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भारतीय दर्शन MASL-507

ुखस्तtरातफ तरtट्सत(संस्तृक )त
Master of Arts (Sanskrit)
ततवव ी तसेुेस्tत रात-ततएु0 ए0 एस0 एयत-त507
भखरा ी तदर््न

उत्त राखण्तशतुक्त तविश्तिवि्खय ,तहल्दतवखनी-263139


Toll Free : 1800 180 4025
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उत्तराण्श मक्त
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भारतीय दर्शन MASL-507
पखठट क्रुततसवुव त MASL-503
प्रो े 0तब्रजेर्तृकुखराततपख्तशे , प्रो0तएच0पी0तर्क्य,
विवर्ष्र ं्स कृत त ध्ययन कृन ्व, वनदनर्कृ, मानविकृी विद्यार्ाणा
जन0 एन0 य0ू वदल्ली, उ0 म0ु वि0 वि0, हल्वानी
प्रो े 0तराुखृखन्त तपख्तशे ,
राष्रीय ंस्कृत त ंस्ाा,जयपरु पररंर, राज्तान, शॉ0तदेिेर्तृकुखरातवुश्र
ंहायकृ आचायश, ंस्कृत त विभा
प्रो े 0तृौस्त कभखनन्दतपख्तशे , उ0 म0ु वि0 वि 0, हल्वानी
ंस्कृत त विभा , कृुमाउॅ विश्िविद्यालय,धल्मो डा,
पखठट क्रुततसमतपखदनतएिंतसं ोजन
शॉ0तदेिेर्तृकुखरातवुश्र
ंहायकृ आचायश,ंस्कृत त विभा
उ0म0ु वि0वि0, हल्वानी
इृखईतये ण नततततततततततततततततततततततततततततततततततततततत इृखईतसं ख् ख
शॉ0तयखयखर्ंृरातग खिखयत ण्तशत1त(तइृखईत1तसेत3त)त
भरतपरु राज्ाान
शॉ0त ोगेन्गत तृकुखरा ननर्नल पी.जी.कृालनज ण्तशत2त(तइृखईत1तसेत5त)
बडहल सज, ो रणपरु
शॉ0तदेिेर्तृकुखरातवुश्र ण्तशत3 (तइृखईत1 सेत5 )
ंहायकृ आचायश,ं्स कृत त विभा
उ0म0ु वि0वि 0, हल्वानी
शॉ0 पंृजतवुश्र ण्तशत4त(इृखईत1तसेत6त)त
राजधानी कृालनज,राजा ाशेन,वदल्ली
शॉ0तुख खतर्क्तयखत
एम.बी.पी.जी;कृालनज, हल्वानी ण्तशत5त(तइृखईत1तसेत5त)
ृखपीराखइt @तउत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय
प्रृखर्नतिर््त: 2020
प्रृखर्ृ: (उ 0 मु 0 वि 0 वि 0) -263139
ुकगृ:त ISBN : 978-93-84632-23-6
नोt : - इं ध्ययन ंाम्ी कृा ्रककृार्न ाा्र वहत म र्ी्रतता कृन कृार वकृया या ह ं्पावदत ं्स कृर कृा
्रककृार्न ध लन िर्श ं्भि ह इं ंाम्ी कृा उपयो ध्य्र कृह भी उ0म0ु वि कृी वलवणत या ्रकर्ांवनकृ
धनमु वत कृन वबना नह वकृया जा ंकृता ह

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अनकक्रु
ण्तशत4-तजैनतएिंतचखिख्ृत पकष्तठतसंख्त खत
इकृाई 1- जनमत कृा इवतहां
इकृाई 2- जन दर्शन कृा वंद्धा्त भा 1
इकृाई 3- जन दर्शन कृा वंद्धा्त भा 2
इकृाई 4- चािाशकृ् दर्शन कृा पररचय एिस वंद्धा्त
इकृाई 5- चािाशकृीय वंवा्तर कृी ध्य भारतीय दर्शनर म आसवर्कृ उपव्ावत
इकृाई 6- चािाशकृ दर्शन कृा ितशमान वयािहाररकृ ि ंांस ाररकृ जीिन ंन ं्ब्ध
ण्तशत5-तन्त ख तदर््नत पष्क तठतसख्
ं त खत
इकृाई 1 -्याय दर्शन कृा ंवस ्तत इवतहां
इकृाई 2 -तकृश भार्ा,्रकमनयर कृन नाम,्रकमा कृार एिस उनकृा ्िरूपप
इकृाई 3- ्रकत्य् ्रकमा एिस इव्वयााश ंव्नकृर्श
इकृाई 4 -तकृश भार्ा,धनमु ान ्रकमा ,वयावए एिस उंकृन भनदर कृी मीमासंा
इकृाई 5 ्रकमनय पदााश वनरूपप , ्िाााशनमु ान, पराााशनमु ान, हनत्िाभां

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ण्तशत4-तजैनतएिंतचखिख्ृत

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इृखईत1- जैनु तृखतइव हखस
1.1 ्रक्तािना
1.2 उद्दनश्य
1.3 जन मत कृा पररचय
1.3.1 ्रकारव्भकृ इवतहां
1.3.2 श्वनता्बर
1.3.3 वद ्बर
1.4 जन ंावहत्य एिस उनकृन कृाल
1.4.1 आ म कृाल
1.4.2 धननकृा्त ्ाापनकृाल
1.4.3 ्रकमा वयि्ााकृाल
1.4.4 निीन ्यायकृाल
1.5 जन दार्शवनकृ ््ा एिस ््ाकृार
1.5.1 श्वनता्बर ््ा एिस ््ाकृार
1.5.2 वद ्बर ््ा एिस ््ाकृार
1.5.3 कृुा ्रकवंद्ध दार्शवनकृर कृा ंसव्ए पररचय
1.6 ंारासर्
1.7 र्ब्दािली
1.8 धभ्यां ्रकश्नर कृन उत्तर
1.9 ं्दभश ््ा ंचू ी
1.10 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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1.1 प्रस् खिनख
भारतीय दर्शन कृन तततीय ण्श कृी इं ्रकाम इकृाई म आपकृी आिश्यकृता कृो ्यान म रणकृर
जनमत कृा इवतहां ्रक्ततु वकृया जा रहा ह इं क्रम म याां्भि ्रकयां वकृया या ह वकृ
धपनव्त ंारी ंचू नाए ्रक्ततु कृी जाए एतदाश उनकृन कृाल कृा विभाजन, ््ा एिस ््ाकृार,
दार्शवनकृ आवद कृा ं्यकृ् वििनचन यह स ्रक्ततु वकृया जा रहा ह
आर्ा ह आप इंंन धिश्य ही लाभाव्ित हर न इं ं्दभश म ंिश्रकाम इं पाठ कृन विचार ीय
वब्दु यह स वदयन जा रहन हैं
1.2 उद्देश्
्रक्ततु इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप -

 बता ंकृ न वकृ पर्परा ्रकचवलत विचारधारा कृन विरो धी जन दर्शन कृी ्रकाचीन पर्परा क्या
रही ह?
 ंमझ ंकृ न वकृ ंामा्यतया जन दर्शन कृन कृाल कृा वनधाशर वकृं ्रककृार वकृया या ह
ताा यन कृाल वयि्ाा वकृन वकृन महत्िपू श विर्यर कृो लक्ष्य बनाती हैं?
 यह भी जानकृारी वमल पाए ी वकृ जन विचारधारा कृन ्रकधान ््ा एिस ््ाकृार कृौन हैं ताा
जन दर्शन कृो उनकृा यो दान क्या ह?
1.3तजैनतु तृखतपरराच
भारतीय दार्शवनकृ ं््रकदायर कृा ्रकितशन, जो ंाख्स य, यो , ्याय, िर्नवर्कृ, जन, बौद्ध ्रकभतवत नामर ंन
धवभवहत हुआ, विवभ्न िचाररकृ क्राव्त कृी परर वत ह उनम ंन ्रकत्यनकृ कृी मौवलकृ विचारधारा ह
यही विचारधारा इ्ह पार्पररकृ वच्तन ंन पताकृ् कृरता ह जन दर्शन इंकृा धपिाद नह ह
ि्ततु ः जन दर्शन वच्तन धपनन क्राव्तकृारी विचारर कृन कृार न कृन िल धर्नर् भारत ्रकत्युत ंम्
विश्व म ्रकंार कृो ्रकाए हुआ
भारतीय दर्शन कृन इवतहां म जनदर्शन कृा विर्नर् महत्त्ि ह चािाशकृ और बौद्ध दर्शन कृन ंाा ही,
भारतीय विचारधारा कृी नाव्तकृ पर्परा म परर व त यह तततीय दार्शवनकृ ं््रकदाय ह वज्हरनन
िवदकृ कृमशकृाएश कृा ्रकबल विरो ध वकृया जन दर्शन ऐवतहावंकृ दृवि ंन बौद्ध दर्शन कृी धपन्ा
धवधकृ ्रकाचीन ह ई0 प0ू ाठी र्ताब्दी म िवदकृ धमश और यज्ञ या ावद कृन ्रकवतवक्रया्िरूपप दो
धावमशकृ क्राव्तयर कृा ं्र ू पात हुआ वजनकृा ननतत्त ि ौतम बद्ध
ु ताा महािीर ्िामी नन वकृया बौद्ध

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दार्शवनकृ वच्तन कृी ही भ वस त जन दार्शवनकृ ्रक ाली भी मल ू तः एकृ धावमशकृ विश्वां ंन ं्बद्ध ह
जन मत कृा मख्ु य उद्दनश्य धननकृा्त वंद्धा्त कृन आधार पर विवभ्न मतर कृा ंम्िय कृरना ह दर्शन
वच्तन म यह धननकृा्त ंापन्तािादी बहुत्ििाद कृन रूपप म ्रकवंद्ध हुआ
1.3.1तप्रखरावमभृतइव हखसत–
महािीर ्िामी भारतीय दर्शन कृी जन पर्परा कृन ं्र ू धार हैं उल्लनणनीय ह वकृ महािीर ्िामी जन
धमश दर्शन कृन ्रकितशकृ नह ान िन इं दर्शन कृी पर्परा म आनन िालन चौबींि तीांकृर ान इं धमश कृन
तीांकृरर म ्रकाम नाम ऋर्भदनि कृा ्रकाए हो ता ह ताा तनईंि स नाम पाश्वशनाा कृा ्रकाम तीांकृर
ऋर्भदनि कृा कृालवनधाशर कृवठन ह यह कृहना भी कृवठन ह वकृ ्रकारव्भकृ बाईं तीांकृर कृा
कृाल क्या रहा हो ा वकृ्तु तनईंि तीांकृर पाश्वशनाा वन्ं्दनह ऐवतहावंकृ वयवक्त ान ताा िन
आठि या नि र्ताब्दी ई0पिू श म हुए ान इ्हरनन ही पसच महाव्रत म एकृ धपरर्ह कृन मल ू भतू
वंद्धा्त कृा ्रकवतपादन वकृया ाा बाद म भ िान् महािीर नन इंम ब्रह्मचयश कृो जो डा धव्तम ि
चौबींि तीांकृर िद्धशमान महािीर ाठी र्ताब्दी ई0प0ू म हुए ान ताा यन बद्ध
ु कृन ंमकृालीन ान
जन दर्शन धा िा धमश म ्रकाए हो नन िालन ‘जन’ र्ब्द कृा उöि ‘वजन’ र्ब्द ंन हुआ ह जो धपनन कृो
धााशत् धपनी इव्वयर कृो जीतता ह, धपनन िर् म कृर लनता ह, धा िा ंसयवमत कृर लनता ह, िह
‘वजन’ ह वजन कृो ई ईश्वरीय धितार नह ह ्रकत्यतु वजंनन धररर्श्ि श धााशत् कृाम, क्रो ध, मद,
मत्ंर, लो भ, मो ह, माया आवद कृो ं्पू श रूपप म जीत वलया हो िही वजन कृहलाता ह इंी ‘वजन’
कृन धनयु ायी ‘जन’ कृहलातन हैं वजन र्ब्द ंामा्यतः महािीर कृन वलयन ्रकयक्त
ु हो ता ह, जो इं धमश
कृन महत्तम ्रकिक्ता ान
्यातवय ह वकृ जन धमशर्ास्त्र कृन इवतहां म महािीर्िामी कृो कृई नामर ंन जाना जाता ह यन नाम
उनकृन वयिहार ि आचर कृो पररभावर्त कृरनन कृन वलयन विकृवंत हुए बौद्ध वनकृाय म उ्ह ‘वन ्ठ
नातपत्तु ’ (वन्श्ा ज्ञाततप्र ु ) कृहा या ह रा वनर्ावद विजय कृन कृार महािीर और िीतरा हैं
ठं ्रककृार जन दर्शन वजन तीांकृरर कृन वारा ्रकिवतशत दर्शन ह इनकृन धनंु ार यन तीांकृर ही धहशत् हैं
इंवलयन यन धहशत् इनकृन ईश्वर मानन जातन हैं ध्य्र उल्लनण भी ्रकाए हो ता ह वकृ-
सि्ज्ञोतवज राखगखवददोर्स्त्रैयो् पवू ज ः।
थखवस्थ खथ्िखदीतचतदेिखऽह्नतट पराुेष्िराः।।
इंी आधार पर जन कृो आहशत ताा जन दर्शन कृो आहशत दर्शन भी कृहा जाता ह

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ध्य भारतीय दर्शन कृी तरह ही जन दर्शन वच्तन कृी ंमतद्ध पर्परा रही ह इंकृन ्रकितशकृ ऋर्भदनि
ान वज्ह िवदकृ कृाल कृा माना जाता ह वकृ्तु इं वच्तन कृो ंिशाा दार्शवनकृ रूपप ्रकदान कृरनन
िालन भ िान् महािीर ान जनदर्शन कृी मा्यता कृन धनंु ार जन दर्शन कृी पर्परा धनावदकृाल ंन
्रकिावहत हो ती चली आ रही ह आवद तीांकृर ऋर्भदनि ंन लनकृर महािीर ्िामी पयश्त जनधमश एिस
दर्शन कृा पू श विकृां हुआ ह जो लो जन दर्शन कृो ंिश्रकाचीन नह मानतन उ्ह कृम ंन कृम इंन
उतना तो मानना ही हो ा वजतना ्रकाचीन ध्य भारतीय दर्शन ह
महािीर ्िामी कृन धन्तर कृई आचायश हुए हैं वज्हरनन जन दर्शन कृो नतू न दृवि दी ह उमा्िावत,
कृु्दकृु्दाचायश, ंम्तभव, वंद्धंनन वदिाकृर, धकृलकृ स , हररभव, विद्यानव्द, माव क्यनव्द,
्रकभाच्व, माव क्यनव्द, धन्तिीयश, यर्ो विजय िावददनिंरू र, हनमच्व, मवल्लर्न ावद आचायों नन
इं मत कृन विकृां म महत्त्िपू श यो दान वदया ह
जनदर्शन म दो ं््रकदायर कृा उल्लनण ्रकाए हो ता ह ऐंा माना जाता ह वकृ यह विभाजन ईंा कृी
पहली र्ताब्दी म ही हो या ाा यन दो नर ं््रकदाय हैं- श्वनता्बर और वद ्बर यद्यवप जनमत म
कृवतपय वब्दओु स कृा ्रकार्भ ंन ही वििाद ाा, वकृ्तु महािीर ्िामी कृी मतत्यु कृन बाद भवबाहु ताा
्ालू भव कृन म्य वििाद कृन कृार ही जन धमश वद ्बर एिस श्वनता्बर ं््रकदायर म विभावजत हो
या भवबाहु कृन धनयु ायी वद ्बर कृहलायन ताा ्ाल ू भव कृन धनयु ायी ष्िनता्बर
1.3.2 श्वनता्बर- यह स श्वनता्बर कृा धाश ह श्वनत िस्त्रधारी ताा वद ्बर कृा धाश ह वनिशस्त्र धा िा
आकृार् कृो ही िस्त्र माननन िाला इन दो नर ं््रकदायर कृा ध्तर मता्ह कृा उतना नह ाा वजतना
आनष्ठु ावनकृ वक्रयाकृलापर कृा दंू रन र्ब्दर म, जनधमश कृन दो नर ं््रकदायर म वििाद दार्शवनकृ
वंद्धा्तर पर कृम नवतकृ वंद्धा्तर पर धवधकृ ाा जह स तकृ आधारभतू दार्शवनकृ वंद्धा्तर कृा
ं्ब्ध ह, उनम ंामा्यतः ंहमवत ह
1.3.3तवदगमबरात–
वद ्बर आचर पालन म धवधकृ कृठो र ान, श्वनता्बर कृुा उदार ान वद ्बर ं््रकदाय कृन धनंु ार
मल ू आ म ््ा नि हो चकृ ु न हैं, ‘कृन िल ज्ञान’ ्रकाए कृरनन पर वंद्ध परुु र् कृो भो जन कृी आिश्यकृता
नह हो ती, जो ंाधु धपनन पां कृुा भी ं्पवत्त, वजंम िस्त्र धार भी आ जाता ह, रणतन हैं, उ्ह
मो ् नह ्रकाए हो ंकृता एिस वस्त्रय स मो ् कृी धवधकृारर ी नह हैं यन महािीर कृो भी नग्न रूपप म
्रक्ततु कृरतन हैं इं मत कृन धनयु ायी महािीर कृो धवििावहत ताा आज्म ब्रह्मचारी मानतन हैं
श्वनता्बर ं््रकदाय म वस्त्रय स भी मो ् कृी धवधकृारर ी हैं इनकृन धपनन आ म ््ा हैं ताा यन महािीर
कृो वििावहत मानतन हैं
अभ् खसतप्रश्न

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1. जन धमश दर्शन कृन ्रकितशकृ ान
(कृ) महािीर ्िामी (ण) पाश्वशनाा
( ) ऋर्भदनि (घ) भ िान् बद्ध

2. जन दर्शन म वजन कृा धाश ह
(घ) जीिन कृो जीतनन िाला (ण) महािीर कृो जीतनन िाला
( ) ्रका कृो जीतनन िाला (घ) इव्वय कृो जीतनन िाला
3. ्ाल
ू भव कृन धनयु ायी क्या कृहलायन-
(कृ) श्वनता्बर (ण) महािीर
( ) वद ्बर (घ) जन
4. वस्त्रय स मो ् कृी धवधकृारर ी नह हैं, ऐंा मानना ह-
(कृ) श्वनता्बर कृा (ण) महािीर कृा
( ) वद ्बर कृा (घ) ्ाल
ू भव
5. महािीर कृो ‘वन ्ठ नातपत्तु ’ (वन्श्ा ज्ञाततप्र ु ) कृहा या ह
(कृ) आ म म (ण) बौद्ध वनकृाय म
( ) तत्िााशं्र ू म (घ) भ िती ं्र ू म
1.4तजैनतसखवहत् तएितं उनृे तृखय
जन ंावहत्य कृन धनंु ार आरसभ म दो ही ्रककृार कृन पवि्र ््ा ान- चौदह पिू श ताा ग्यारह
धस इनम ंन ्रकाम ्रककृार कृन ंभी ््ा धतस तः विलएु हो यन धस जो बचन रहन िन ही जनधमश कृन
्रकाचीनतम ््ा हैं इनकृो भी श्वनता्बर ं््रकदाय िालन ही ्रकामाव कृ मानतन हैं वद ्बर ं््रकदाय
िालर कृी मा्यता ह वकृ यन भी नि हो यन ान और उनकृन नाम ंन जो धब चलतन हैं, िन वमथ्या हैं
ध्त,ु जन दर्शन कृन ंम् ्रकाए ंावहत्य कृो ऐवतहावंकृ विकृांक्रम कृी दृवि ंन चार कृालर म
विभक्त वकृया जा ंकृता ह -

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(1) आ म कृाल (वि. ाठी र्ताब्दी तकृ)
(2) धननकृा्त ्ाापनकृाल (वि. तींरी ंन आठि तकृ)
(3) ्रकमा वयि्ााकृाल (आठि ंन ं्र हि तकृ)
(4) निीन ्यायकृाल (धठारहि ंन धद्यपयश्त)
्यातवय ह वकृ पिू कृ
श ाल म उत्तरकृाल कृन विचार बीज ितशमान ह ताा पल्लिन कृी दृवि ंन उक्त कृाल
कृो यह स ंमझा जाना चावहए
1.4.1. रगुतृखयत–
इं यु कृन ध्त तश जन दर्शन कृन दो नर ं््रकदायर कृन आ म ंावहत्य आतन हैं जन ंावहत्य दो भा र
म विभक्त ह- आ म एिस आ मनतर ंावहत्य कृा ्रकाचीनतम भा आ म कृहलाता ह ऐंा माना
जाता ह वकृ आ मर कृी विर्य ि्तु चौबींि तीांकृर महािीर कृी िा ी ह ि्ततु ः यन आ म ््ा
जन पर्परा म िनद कृी तरह ही मा्य ह यन आ म ंावहत्य श्वनता्बर और वद ्बर दृवि ंन पताकृ्
पताकृ् हैं श्वनता्बर कृन धनंु ार ंाधार तः पैंतावलं ््ा हैं इनम दर्शन ंन ं्ब्ध रणनन िालन ््ार
म भ िती ं्र ू , ं्र ू कृत तास , ्रकज्ञापना, राज्रकश्नीय, न्दी, ्ाानास , ंमिायास , धनयु ो वार आवद हैं
आचार ंन ं्बव्धत ््ा आचारास , दर्िकृावलकृ, उपांकृदर्ा, आिश्यकृ आवद हैं इन आ म
््ार पर कृई रीकृाएॅॅॅस वलणी यी हैं
वद ्बरर कृन धनंु ार ्रकमण
ु आ म ््ा र्र्ण्शा म, कृर्ायपाहुड, महाब्ध, ्रकिचनंार,
पसचाव्तकृायंार, ंमयंार, वनयमंार आवद हैं इनम ज्ञान, कृमश आवद कृा धत्य्त ्भीरता ंन
विश्लनर् वकृया या ह
ि्ततु ः जनदर्शन कृन मख्ु य ्त्भर कृन न कृन िल बीज ही धवप तु वििनचन भी इन आ मर ंन ही वमलतन
हैं
1.4.2. अनेृखन् तस्थखपनृखयत–त
यह कृाल जन दार्शवनकृ विचारधारा कृी ्रकारव्भकृ र्तण
स ला ह इंी कृाल म नय, ंएभस ी, ्यावाद
आवद वंद्धा्त कृा ्रकितशन हुआ इं कृाल कृन ्रकवंद्ध ि ्रकमण
ु दार्शवनकृ हैं वंद्धंनन वदिाकृर एिस
ंम्तभव इं कृाल कृन ध्य दार्शवनकृर मल्लिादी, वंसह व , पा्र कृन ंरी, श्रीदत्त आवद उल्लनख्य हैं
इं कृाल म ंद्धाव्तकृ एिस आ वमकृ पररभार्ाओ स ताा र्ब्दर कृी दार्शवनकृ वििनचन कृा महान् कृायश
हुआ ंाा ही, वंद्धंनन वदिाकृर एिस ंम्तभव नन परमत कृन ्रकहार ंन बचानन कृन वलयन ताा धपनन िाद

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कृो और धवधकृ दृढ़ कृरनन कृन महत्त्िपू श कृायश कृा ्रकार्भ वकृया वंद्धंनन कृन ं्मवततकृश एिस
्यायाितार म नय, ्यावाद, धननकृा्तिाद, ्रकमा , ज्ञान आवद कृी ंमवु चत वयाख्या ह ंम्तभव कृन
््ा आएमीमासंा, यक्ु त्यनर्
ु ांन आवद म भी जन वंद्धा्तर कृा ं्यकृ् ्रकवतपादन हुआ ह
1.4.3तप्रुखणर्खस्त्रतव् िस्थखतृखयत
यही िह कृाल ह वजंम जन दार्शवनकृ विचारधारा कृा बीज िपन हुआ इंी कृाल म तकृश , ्रकमा ,
्रकमनय आवद विर्यर पर ंवि्तर पररचचाश हुई ह इं कृाल कृन ्रकमण ु दार्शवनकृ हररभव, वजनभव एिस
धकृलसकृ ह इनम हररभव नन धननकृा्त, धकृलसकृ नन ्रकमा र्ास्त्र ताा वजनभव व नन धननकृा्त एिस
नय कृन वििनचन म महत्त्िपू श यो दान वदया इ्हरनन उं ंमय कृन ्रकचवलत ंभी िादर कृा नय दृवि ंन
जनदर्शन म ंम्िय वकृया ताा ंभी िावदयर म पर्पर विचार ंवहष् तु ा ताा ंमता लानन कृा
्रकयत्न वकृया धननकृा्तविजयपताकृा, र्श्दर्शनंमच्ु चय, र्ास्त्रिाताशंमच्ु चय, लघीयस्त्रय,
्यायविवनश्चय, वंवद्धविवनश्चय आवद इं कृाल कृन ्रकमण ु ््ा हैं ध्य ्रकमण ु दार्शवनकृर म
विद्यानव्द, माव क्यनव्द, ्रकभाच्व, हनमच्व आवद ्रकमणु हैं
1.4.4. निीनतन् ख तृखयत–त
्याय दर्शन कृी ही भ वस त जन दर्शन पर्परा म नवय्याय कृी नतू न विधा कृा वि्तार दनणा जा ंकृता
ह इं कृाल म जन दर्शन वच्तन ्न्र म नतू न वच्तन एिस नयी पद्धवत ंन विचार विमर्श हुआ इं
कृाल कृन ्रकमण
ु दार्शवनकृ यर्ो विजय हैं उ्हरनन नवय्याय कृी पररष्कृत त र्ली म उं यु तकृ कृन
विचारर कृा ंम्िय ताा उ्ह नवय ढस ंन पररष्कृत त कृरनन कृा आद्य और महान् ्रकयत्न वकृया इं
कृाल कृन ्रकमण ु दार्शवनकृ ््ार म धिंाहस्रीवििर , धननकृा्तवयि्ाा, जनतकृश भार्ा,
ंएभस तरसव ी, नयो पदनर्, भार्ारह्य आवद उल्लनणनीय हैं ि्ततु ः ्याय दर्शन कृन वारा ्रकिवतशत
इं नतू न वच्तन र्ली कृो भी इं दर्शन नन उंी रूपप म धपनाकृर जन कृी तकृश पर्परा कृो धत्य्त
ंमतदध वकृया
अभ् खसतप्रश्न

1. जन धमश कृन ्रकाए ्रकाचीनतम धमश ््ा हैं-


(कृ) पिू श (ण) आ म
( ) धस (घ) ं्र ू
2. ंावहत्य कृा ्रकाचीनतम भा कृहलाता ह

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(कृ) पिू श (ण) धस
( ) ं्र ू (घ) आ म
3. वकृं कृाल म नय, ंएभस ी, ्यावाद आवद वंद्धा्त कृा ्रकितशन हुआ-
(कृ) आ म कृाल (ण) ्रकमा वयि्ााकृाल
( ) धननकृा्त ्ाापनकृाल (घ) निीन ्यायकृाल
4. ्रकमण
ु दार्शवनकृ यर्ो विजय वकृं कृाल म हुए
(कृ) आ म कृाल (ण) ्रकमा वयि्ााकृाल
( ) धननकृा्त ्ाापनकृाल (घ) निीन ्यायकृाल
5. र्श्दर्शनंमच्ु चय कृी रचना वकृं कृाल म हुई?
(कृ) आ म कृाल (ण) ्रकमा वयि्ााकृाल
( ) धननकृा्त ्ाापनकृाल (घ) निीन ्यायकृाल
इन ंावहत्यर कृा कृालानंु ार ंसव्ए वििर इं ्रककृार ह-
1.5तजैनतदखर््वनृतग्रन्थतएिंतग्रन्थृखरा
जन दर्शन कृन ं््रकदाय कृी तरह ही इंकृन ््ा एिस ््ाकृारर कृा भी ि ीकृर दो भा र म
यह स वकृया जा रहा ह
1.5.1तश्वे खमबरातग्रन्थतएिंतग्रन्थृखरा
््ाकृार कृाल ््ा
उमा्िावत वि0 तींरी र्ताब्दी तत्त्िााशं्र ू
वंद्धंनन वदिाकृर वि0 प चस ि र्ताब्दी्यायाितारवाव्र सवर्कृाएंस ्मवततकृश ्रककृर
मल्लिावद वि0 ाठी र्ताब्दी नयचक्रं्मवततकृश रीकृा

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हररभव वि0आठि र्ताब्दी
धननकृा्तिाद्रकिनर्र्श्दर्शनंमच्ु चयर्ास्त्रिाताशंमच्ु च्याय्रकिनर्रीकृा
धमशं्स ह ी
िावददनिंरू र वि0 बारहि र्ताब्दी ्रकमा नयतत्त्िालो कृालकृ
स ार
्यावादरत्नाकृर
हनमच्व वि0 बारहि र्ती ध्ययो वयिच्ान दवाव्र सवर्कृा
रत्न्रकभंरू र वि0 तनरहि र्ताब्दी ्यावादरत्नािताररकृा
दनि्रकभ वि0 तनरहि र्ताब्दी ्रकमा ्रककृार्
नरच्वंरू र वि0 तनरहि र्ताब्दी ्यायकृ्दलीरीकृा
मवल्लर्न वि0 चौदहि र्ताब्दी ्यावादमजस री
ु रत्न वि0 प्वहि र्ताब्दी तकृश रह्यदीवपकृा
यर्ो विजय वि0 ं्र हि र्ताब्दी धिंहस्रीवििर
3.1.4.2तवदगमबरातग्रन्थतएितं ग्रन्थृखरा
उमा्िावत वि0 तींरी र्ताब्दी तत्त्िााशं्र ू
ंम्तभव वि0 चौाी-प चस ि र्ताब्दी आएमीमासंा
वंद्धंनन वदिाकृर वि0चौाी-प चस ि र्ताब्दी वाव्र सवर्कृाएंस ्मवततकृश ्रककृर
दनिनव्द वि0 चौाी-प चस ि र्ताब्दी ंारंस्ह
श्रीदत्त वि0 ाठी र्ताब्दी जल्पवन शय
ंमु वत वि0 ाठी र्ताब्दी ं्मवततकृश रीकृा
ंमु वतंएकृ
धकृलकृ
स दनि वि0 ंाति र्ताब्दी लघीयस्त्रयी

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्यायविवनश्चय
्रकमा मीमासंा
धिर्ती
वंद्धविवनश्चय
तत्िााशराजिावतशकृ
कृुमारनव्द वि0 आठि र्ताब्दी िाद्याय
धन्तिीयश वि0 नि र्ताब्दी वंवद्धविवनश्चयरीकृा
विद्यान्दी धिंाहस्री
जनश्लो कृिावतशकृ
आएपरी्ा
्रकमा परी्ा
प्र परी्ा धन्तकृीवतश वि0 दंि र्ताब्दी बतहत्ंिशज्ञवंवद्धलघंु िशज्ञवंवद्ध
दनिंनन 990 िी0 आलापपद्धवत
िंनु व्द वि0 दंि -ग्यारहि र्ताब्दी आएमीमासंाितवत्त
माव क्यनव्द वि0 ग्यारहि र्ताब्दी परी्ामण

िावदराजंरू र वि0 ग्यारहि र्ताब्दी ्यायविवनश्चयवििर
्रकमा वन यश
्रकभाच्व वि0 ग्यारहि र्ताब्दी ्रकमनयकृमलमातश्श
्यायकृुमदु च्व
धन्तिीयश वि0 बारहि र्ताब्दी ्रकमनयरत्नमाला

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3.1.5तृकछतप्रवसद्धतदखर््वनृोंतृखतसवं िप्ततपरराच
यद्यवप ध्ासवकृत आचायों कृा ्रकंस िर् उल्लनण पिू श म कृई बार आ चकृु ा ह पनु रवप यह उन ्रकवंद्ध
दार्शवनकृर कृा क्रमर्ः उनकृा पररचयात्मकृ वििर ्रक्ततु वकृया जा रहा ह-
कृु्दकृु्दाचायश
यन जन दर्शन कृन धवत ्रकाचीन आचायश ान इनकृी ना ंा्ात्कृत तधमाश ऋवर्यर म हो ती ह
मवल्लर्न ्रकर्व्त म धवस कृत ्रकाचीन आचायों कृी नामािवल म इनकृा नाम ंिश्रकाम ह इं दृवि ंन
इनकृा ंमय विक्रम कृी ्रकाम र्ताब्दी ्रकतीत हो ता ह यन वद ्बर पर्परा कृन आचायश ान इ्हरनन
धननकृ ््ार कृी रचना कृी ह वजनम वनयमंार, पचस ाव्तकृायंार, ंमयंार ताा ्रकिचनंार ्रकमण ु
हैं पनु रवप इनकृी रचनाओ स कृन विर्य म पर्परा त कृान यह पाशए हो ता ह वकृ उ्हरनन चौरांी पाहुड
््ार कृी रचना कृी ाी इनकृी ंारी रचनाए ्रकाकृत त म ह यन तत्त्िर कृी पू रूप
श पन वयाख्या कृर पानन म
ं्म हैं
भगबखहु- यन जन दर्शन कृन ्रकारव्भकृ ््ाकृार हैं इनकृा ंमय वनधाशररत नह ह इ्ह धननकृ धमश््ार
कृा रीकृाकृार माना जाता ह इनम ंन दर्िकृावलकृवनयशवु क्त नामकृ रीकृा म िन तकृश र्ास्त्र कृी कृवतपय
र्ाणाओ स कृा वििनचन कृरतन हैं उ्हरनन दं िाक्यर िाली ्यावयकृी रचना कृी ताा उ्ह ंवु िख्यात
जनवंद्धा्त कृा मलू ्रकितशकृ माना जाता ह
उुखस्िखव
यन म ध कृन दनर् कृन रहनन िालन ान कृुा विवान् उनकृा कृाल 135-219 ई0 मानतन हैं तो कृुा ध्य
01-85 ई0 यन उमा्िावत ताा उमा्िावमन् दो नर नाम ंन ्रकवंद्ध हैं इ्हरनन ’तत्त्िााशं्र ू ’ धा िा
‘तत्त्िाााशवध मं्र ू ’ नामकृ ््ा कृी रचना कृी इंन जवनयर कृा धत्य्त पवि्र ि धावमशकृ ््ा माना
जाता ह ंस्कृत त भार्ा म ््ार कृी रचना कृरनन िालन ्रकाम जन विवान् ान जन दर्शन कृन वयिव्ात
्रकवतपादन कृा ्रकमण
ु स्रो त उक्त ््ा कृो ही माना जाता ह उक्त रचना म ल भ तीन ंौ पचां ं्र ू
हैं ताा यह दं ध्यायर म विभक्त ह इं पर धननकृ जन विवानर नन भाष्य वलणन हैं जन दर्शन कृी
ंभी परिती वयाख्याऍ इंी पर आधाररत हैं यद्यवप यह मल ू तः दर्शन कृा ््ा ह ताावप ्रकाचीन
भारतीय वच्तन कृन इवतहां कृन ंामा्य ध्ययन कृन वलयन भी महत्त्िपू श ह क्यरवकृ इंम मनो विज्ञान,
धमशमीमांस ा, ण ो लर्ास्त्र, भौवतकृी, रंायन एिस ध्य विर्यर पर भी जन दृविकृो ंन विचार वकृया
या ह

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सुन् भग
यन दव् भारत कृन वद ्बर ं््रकदाय कृन जनाचायश ान यन उमा्िावत कृी उपरो क्त रचना कृन
रीकृाकृार कृन रूपप म भी ्रकवंद्ध हैं यन जन दर्शन कृन ंिशमा्य आचायश कृहन जातन हैं इनकृन ंिाशवधकृ
्रकमण
ु ््ा हैं आएमीमासंा, तत्त्िानंु ्धान आवद इनकृा ंमय विक्रम कृी तींरी-चौाी र्ताब्दी
मा्य ह धननकृा्त कृन बीज कृो विकृवंत कृरनन म इनकृी ्रकमण ु भवू मकृा रही ह इनकृन ंमय म
भािकृा्त, धभािकृा्त, वनत्यकृा्त, धवनत्यकृा्त, भनदकृा्त, धभनदकृा्त आवद धननकृ एकृा्तर
कृा ्रकाबल्य ाा ंम्तभव नन इन ंम्त एकृा्तर कृा ्यावाद दृवि ंन ंम्िय वकृया ह इनकृी
आएमीमांस ा, जो वकृ पररचयात्मकृ हॅ, म तावकृश कृ वंद्धा्तर कृन वििनचन कृी भरमार ह, ंाा ही
धवतिाद ंवहत ध्य तत्कृालीन दार्शवनकृ ्रक ावलयर कृी ंमी्ा भी ह िाच्पवत वमश्र नन भामती
म इंकृन उद्धर वदयन हैं
वसद्धसेनतवदिखृरा
ल भ प चस ि र्ताब्दी म धननकृ जन विवान् हुए वज्हरनन बडी रुवच एिस उत्ंाह कृन ंाा
्ियस कृो तकृश र्ास्त्र कृन ध्ययन कृन वलयन ंमवपशत वकृया उ्ह म ंन एकृ ान वंद्धंनन वदिाकृर यन
उज्जवयनी कृन र्ांकृ विक्रमावदत्य कृन ंमकृालीन ान यन वद ्बर ताा श्वनता्बर दो नर आ्नायर म
्रकवंद्ध हुए यन ि्तुतः जन ्याय कृन आचायश ान इनकृन वलणन हुए इक्कृीं ््ा ्रकाए हो तन हैं वजनम
ं्मवततकृश ्रककृर धत्य्त ्रकवंद्ध ह यह ्रकाकृत त म वलणी यी रचना ह इंम ंामा्य दर्शन एिस
तकृश र्ास्त्र कृन वंद्धा्तर कृी वििनचना कृी यी ह इनकृी एकृ ध्य रचना ह ्यायाितार इं ््ा ंन
ही जन तकृश र्ास्त्र कृी आधारवर्ला कृा वनमाश हुआ यह ं्स कृत त म वलणी यी बत्तीं पद्यर कृी एकृ
लघु रचना ह इंकृन धवतररक्त इनकृन कृल्या मव्दर्तो ्र ताा कृुा वाव्र सवर्कृाएस भी ्रकाए हो ती हैं
वसद्धसेनगवण
इं श्वनता्बर ं््रकदाय कृन आचायश कृा ंमय ाठी र्ताब्दी मानी जाती ह यन तकृश र्ास्त्र कृन विकृां
कृरनन िालर म ध् ी ान इ्हरनन उमा्िावत कृन तत्त्िाााशवध मं्र ू पर एकृ उच्च कृो वर कृी वयाख्या
वलणी ह आचारास ं्र ू ितवत्त, ्यायाितार आवद इनकृी ध्य कृत वतय स भी ्रकाए हो ती हैं
अृयृ
ं देि
कृदावचत् जन तकृश र्ावस्त्रयर म ंिाशवधकृ ्रकमण
ु ि ्रकवतभार्ाली धकृलसकृ ही ान, जो राष्रकृूर कृन राजा
र्भु तसु कृन ंमकृालीन ान उनकृी धननकृ रचनाएस बतायी जाती हैं वजनम धिर्ती, तत्त्िााशिावत्तशकृ
ताा ्यायविवनश्चय जंन महत्त्िपू श ््ा ंिाशवधकृ ्रकमण ु हैं ्यायर्ास्त्र कृी वयिव्ात रूपपरन णा
धकृलसकृ ंन ्रकार्भ हो ती ह इं दृवि ंन यन जन्याय धा िा जन ्रकमा र्ास्त्र कृन ्रकवतष्ठापकृ आचायश

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हैं उ्हरनन बौद्धर कृी ्रकणर आलो चना कृी ंम्त उत्तरकृालीन जनदार्शवनकृर नन धकृलसकृ वारा
्रकवतष्ठावपत ्रकमा पद्धवत कृो ही पल्लवित और पवु ष्पत कृरकृन जन्यायो द्यान कृो ंिु ावंत वकृया ह
ुखवण् नवन्दनट
यन वद ्बर पर्परा कृन मा्य आचायश ान माव क्यनव्दन् कृा परी्ामणु ं्र ू जन तकृश र्ास्त्र
कृा मानकृ ््ा ह जो धकृलकृ स कृन ्यायविवनश्चय पर आधाररत ह माव क्यनव्दन् कृन इं ््ा पर
्रकभाच्व नन धपनी ्रकवंद्ध रीकृा ्रकमनयकृमलमातश्श वलणी उनकृी ध्य ््ा ्यायकृुमदु च्व ह जो
धकृलकृस कृन ््ा लघीयस्त्रय कृा भाष्य ह
िवददेिसूररा
इ्हरनन ्िरवचत ं्र ू ््ा ‘्रकमा नयत्त्िालो कृालकृ
स ार’ पर धवत विर्ाल भाष्य वलणा ह
वजंकृा नाम ‘्यावादरत्नाकृर’ ह इं एकृ ही ््ा कृो पढकृर ंम्त भारतीय दर्शन एिस ंम्त
्याय पर धवधकृार वकृया जा ंकृता ह जन ्यायर्ास्त्र कृा कृो ई भी िाद इंम ाूर नह ंकृा ह
हरराभगतएितं हेुचन्गखचख ्त
श्वनता्बर ं््रकदाय कृन दर्शनर्ावस्त्रयर म हररभव एिस हनमच्व ंिाशवधकृ उल्लनणनीय हैं हररभव
विक्र्रम कृी आठि र्ताब्दी कृन विवान् आचायश ान उनकृी
रचनाओ स म र्श्दर्शनंमच्ु चय, र्ास्त्रिाताशंमच्ु चय आवद इनकृी ्रकमणु हैं
हनमच्व कृा ज्म धधसु कृ, धहमदाबाद म हुआ ाा ताा िन राजा जयवंहस कृन ंमकृालीन ान िन
कृदावचत् जु रात कृन राजा कृुमारपाल कृन भी रुु ान कृवि एिस ियाकृर कृन ंाा-ंाा िन एकृ ्रकवंद्ध
दार्शवनकृ भी ान ्रकमा मीमासंा ताा ध्ययो वयिच्ान वदकृा इनकृी धमर कृत वत ह ्रकमा मीमांस ा एकृ
ं्र ू ात्मकृ ््ा ह इनम प चस ध्याय ताा दं आविकृ हैं ्रकमा कृा ल् , ्रकमा कृन भनद, ्रकमा
कृा विर्य, ्रकमा कृा ्रकामा्य, ्रकमा कृा फल- इनकृा इं ््ा म पू श वििनचन वकृया या ह
ुवल्दयर्ेण
आचायश मवल्लर्न नन ्यावादमजस री नाम ंन ध्ययो वयिच्ान दवाव्र सर्वतकृा पर एकृ धवत्रकवंद्ध ि
महत्त्िपू श रीकृा वलणी इंम जन दर्शन ं्मत ्यावाद वंद्धा्त कृा ं्यकृ् ्रकवतपादन वकृया या
ह वंद्धा्त ्रकितशन कृन क्रम म ्याय-िर्नवर्कृ ं्मत पदााश वंद्धा्त कृा इंम तावकृश कृ ण्शन ्रकाए
हो ता ह
इं ्रककृार यह कृहा जा ंकृता ह वकृ िवदकृ कृाल ंन ही ध्ययन कृी ्भीरता ताा वच्तन कृी
ंक्ष्ू मता कृी दृवि ंन जन दार्शवनकृ वकृंी भी ध्य दार्शवनकृर ंन पीान नह रहन हैं, इनकृन ्रकौढ तकृश और
धरूर यवु क्तय स उनकृन दार्शवनकृ वंद्धा्तर कृो आज तकृ ंरु व्त रण रही ह जन दर्शन ंन ं्बद्ध

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विर्यर कृो आधार बनाकृर आज भी हो नन िालन कृायश इं बात कृा ्रकमा ह वकृ इं दर्शन वच्तन कृी
जड़्रन वकृतनी मजबतू हैं भलन ही यााव्ावतिादी इंन नाव्तकृ कृह वकृ्तु इं विचारधारा कृन वच्तकृर
नन भारतीयता कृो ध््ु बनायन रणी
1.6 सखराखंर्
इं इकृाई कृो पढ़नन कृन बाद आप यह जान चकृ ु न हैं वकृ जन दर्शन कृी पर्परा िनदकृाल ंन
आजतकृ वबना वकृंी वयिधान कृन चली आ रही ह यााकृाल ्रकबद्ध ु वच्तकृर ि दार्शवनकृर नन धपनी
्रकवतभा ंन इंन पररष्कृत त ि पररिवधशत वकृया विवभ्न कृालर ि विचारधाराओ स ंन जु रतन हुए इं दर्शन
नन ंावहत्य कृन ्न्र म भी पयाशए विकृां वकृया धननकृा्तिाद, ्यावाद, ंएभस ीनय ताा नय
वंद्धा्त रूपप िचाररकृ दनन नन दर्शन ज त् कृो वच्तन कृी नयी ि ्रकामाव कृ वदर्ा दी ऐंन वच्तकृर
कृा कृालानक्र
ु म जानकृर जन दर्शन कृी विकृां या्र ा कृो ंमझ पाना ही कृदावचत् इं पाठ कृा ंम्
ह आर्ा ह इं इकृाई कृन ध्ययन ंन आप जनविर्यकृ ंहज ि ंवस ्ए इवतहां कृो जानकृर इं
वच्तन पर्परा म ्रकितत्त हो पाएस न
1.7 र्ब्दखियी
धहशत-् जन दर्शन कृन धनंु ार इनकृन तीांकृर धहशत् कृहलातन हैं यन धहशत् इनकृन ईश्वर मानन जातन हैं
ंिशज्ञ वंद्ध परुु र्र कृो भी धहशत् कृहा जाता ह आ म- जन ंावहत्य कृा ्रकाचीनतम भा आ म
कृहलाता ह ऐंा माना जाता ह वकृ आ मर कृी विर्य ि्तु महािीर ्िामी कृी िा ी ह यन आ म
््ा जन पर्परा म िनद कृी तरह ही मा्य ह
नवय ्याय- नवय्याय दार्शवनकृ विर्य कृो ्रक्ततु कृरनन कृी एकृ नतू न ि पररष्कृत त र्ली ह वजंम
वकृंी भी विर्य कृी पररभार्ा ि वयाख्या उंकृन पू श तावकृश कृ हो नन कृी व्ावत तकृ पहॅॅुस चायी जाती

1.8 अभ् खसतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
1.3- 1. , 2. घ, 3. घ, 4. कृ, 5. ण
1.4- 1. , 2. घ, 3. , 4. घ, 5. ण
1.9 सन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
1. झा, आचायश आन्द, (1969) चािशकृ दर्शन, वह्दी ंवमवत, ंचू ना विभा , उत्तर्रकदनर्,
लणनउ,
2. ऋवर्, ्रको 0 उमार्कृ
स र र्माश, (1964), ंिशदर्शनं्स हः, चौण्बा विद्याभिन, िारा ंी-1

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3. र्माश, च्वधर, (1991), भारतीय दर्शन आलो चन और धनर् ु ीलन, मो तीलाल
बनारंीदां, वदल्ली
4. दनिराज, श 0 न्दवकृर्ो र, (1992), भरतीय दर्शन, उत्तर्रकदनर् वह्दी ंस्ाान, लणनउ
5. प0स ंण ु लाल, ्रकमा मीमांस ा (हनमच्व) (1939)
6. मनहता, मो हनलाल, जन दर्शन, श्री ं्मवत ज्ञानपीठ, लाहामशस ी, आ रा
7. उमा ्िामी, तत्िाााशवध म ंू्र (ंण ु लाल ंसघिी कृत त वििनचन), पाश्वशनाा विद्याश्रम र्ो ध
ं्स ाान, िारा ंी-5
8. वमश्र, पसकृज कृुमार (1998), िर्नवर्कृ एिस जन तत्त्िमीमासंा म ववय कृा ्िरूपप, पररमल
पवब्लकृन र््ं, र्वक्त न र वदल्ली
1.9 वनबन्धखत्ुृतप्रश्न
(कृ) जन दर्शन कृन ्रकारव्भकृ इवतहां पर एकृ वनब्ध वलण
(ण) श्वनता्बर ताा वद ्बर कृी विचारधारा म ध्तर कृो ्पि कृर
( ) जन ंावहत्य कृन कृाल कृा ं्यकृ् विभाजन कृर उनकृी विर्नर्ताओ स कृो रन णासवकृत कृर
(घ) जन ्यायर्ास्त्र म यो दान दननन िालन वकृ्ह प चस आचायों पर वरतप ी कृर
(श) जन ्यायर्ास्त्र कृी क्रवमकृ विकृां या्र ा कृो ंमझाएस -

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इृखईत2- जैनतदर््नतृखतवसद्धखन्
2.1 ्रक्तािना
2.2 उद्दनश्य
2.3 जन ज्ञानमीमासंा
2.3.1 ्रकत्य् ज्ञान
2.3.2 परो ् ज्ञान
2.3.3 ्रकमा
2.3.4 नय वंद्धा्त
2.3.4.1 नय कृन भनद
2.4 ्यावाद
2.4.1 ंएभस ीनय
2.5 ंारासर्
2.6 र्ब्दािली
2.7 धभ्यां ्रकश्नर कृन उत्तर
2.8 ं्दभश ््ा ंचू ी
2.9 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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2.1 प्रस् खिनख
वकृंी भी दर्शन वच्तन कृो उंकृी धिधार ात्मकृ ्रककृत वत कृन आधार पर तीन ि ों म ब रस ा जा
ंकृता ह यन हैं- ज्ञानमीमासंा, तत्त्िमीमासंा ताा आचारमीमासंा जन दर्शन वचनतन कृो भी ंम्
रूपप म जाननन कृन वलयन हम इनकृा भी इंी ्रककृार विश्लनर् कृरना चावहए धतः इं पाठ कृन ध्त तश ,
आपकृी ंवु िधा कृन वलयन जन वंद्धा्त कृी ंम् वयाख्या पूिांवकृत विचार वब्दु कृन ध्त तश वकृया
जा रहा ह
विर्य वि्तार कृी दृवि ंन यह स कृन िल ज्ञानमीमासंा कृा वििनचन वकृया जा रहा ह तत्त्िमीमासंा ताा
आचारमीमासंा कृा वििनचन धव्म पाठ म वकृया जाए ा
इं इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप जन ज्ञानमीमासंा कृन महत्ि कृो ंमझा ंकृ न ताा ध्य दर्शनर
कृन ंाा इनकृी व्ावत कृा ं्यकृ् विश्लन र् कृर ंकृ न
2.2तउद्देश्
्रक्ततु इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप

 बता ंकृ न वकृ जन दर्शन कृी ज्ञानमीमांस ा विर्यकृ दृवि क्या ह?


 ंमझ ंकृ न वकृ जन दर्शन म धननकृा्तिाद, ्यावाद, ंएभस ी नयावद वयि्ाा क्या ह?
 जान पाएस न वकृ इं दर्शन म ज त् कृी विविधता कृा वनवहतााश क्या ह?
 ंमझ ंकृ न वकृ जन दर्शन कृी ज्ञानमीमासंा इं ज त् कृी ध्य विचारधारा कृन वकृतनी
धनरूप
ु प हैं?
2.3तजैनतज्ञखनुीुखंसख
जन दर्शन चनतना कृो जीि कृा ्िरूपप धमश मानता ह जीि धपनी र्द्ध ु ाि्ाा म धन्त दर्शन, धन्त
ज्ञान, धन्त िीयश एिस धन्त र्वक्त ंन ं्प्न हो ता ह यह इंकृा ‘धन्त चतिु य’ कृहलाता ह यह
ज्ञान ्रककृार् कृी तरह ध्य पदााों कृो भी ्रककृावर्त कृरता ह और धपनन कृो भी- ज्ञानस ्िपरभावं
धन्तचतिु यात्मकृ जीि कृा कृमशपद्गु लर कृन कृार र्द्ध
ु चत्यरूपप भाि धदृश्य हो जाता ह वजं
्रककृार ंयू श ं्पू श ंसंार कृो आलो वकृत कृरता ह वकृ्तु मनघावद वारा उत्प्न वयिधान कृन कृार
ंसंार कृो आलो वकृत नह कृर पाता, उंी ्रककृार जीि धन्तचतिु य ंन यक्त ु हो नन पर भी कृमशपद्गु लर

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कृन आिर कृन कृार धपनन पू श ज्ञान कृो धवभवयक्त नह कृर पाता कृमशपद्गु लर कृा पू ्
श य हो जानन
पर िह पनु ः ंिशज्ञ हो जाता ह और उंकृन पू श ज्ञान कृी धवभवयवक्त हो ती ह
यह स ज्ञान कृन दो भनद हैं- ्रकत्य् (धपरो ्) और परो ् जब ज्ञान मा्यमरवहत हो ता ह तो ्रकत्य्
कृहलाता ह जब यह मा्यमंवहत हो ता ह तो परो ् हो ता ह
2.3.1तप्रत् ितज्ञखन-
इंम ज्ञान इव्वयर या मन कृन वारा ंीधन ्ह वकृया जाता ह जबवकृ धनमु ान, र्ब्द आवद ्रकमा र ंन
्रकाए ज्ञान दंू रन ज्ञान कृन मा्यम ंन ्रकाए हो ता ह, धतः िह परो ् ह माव क्यन्दी नन ्रकत्य् कृा
ल् वदया ह- विर्दस ्रकत्य्म् धााशत् ्पि ज्ञान ्रकत्य् ह ्पि ज्ञान िह ह जो धपरो ् हो ताा
वजंम विर्य कृन ंभी धमों कृा ज्ञान हो जन दर्शन म ्रकत्य् ज्ञान कृन भी दो भनद वकृयन जातन हैं -
पारमावाशकृ और ंासवयािहाररकृ
पारमावाशकृ ्रकत्य् आत्मंापन् ज्ञान ह इंन जीिात्मा ्ियस जानता ह इं ज्ञान कृो ्रकाए कृरनन कृन
वलए ज्ञाननव्वय, मन आवद कृी आिश्यकृता नह हो ती ि्ततु ः यह ज्ञान जीिात्मा कृन धिरो धकृ
कृमशपद्गु लर कृन विनार् कृन बाद वबना वकृंी ंाधन कृन ्रकाए हो ता ह इंम जीिात्मा कृा ज्ञनय ि्तओ
ु स ंन
ंा्ात् ं्ब्ध हो ता ह इंकृी ्रकावए धर् स तः या पू तश ः कृमशब्धनर कृन नि हो नन पर हो ती ह जन
दर्शन म पारमावाशकृ ्रकत्य् ज्ञान कृन भी तीन भनद ्रकाए हो तन हैं- धिवध ज्ञान, मनः पयाशय ज्ञान और
कृन िल ज्ञान
(1) अिवधतज्ञखन-त
दनर् और कृाल ंन पररवच्ा्न विर्यर कृा ्रकत्य् ज्ञान, धिवध ज्ञान ह यह धंाधार दृवि वारा
धतीव्वय विर्यर कृा ज्ञान ह वयवक्त कृन ्रकयत्न ंन कृमशपद्गु लर कृन धर्
स तः ्यो पर्म हो नन पर ्रकाए
धंाधार र्वक्त ंन उत्प्न दरू ्ा, ंक्ष्ू म एिस ध्पि ववयर कृा ज्ञान धिवध ज्ञान ह
चूँवू कृ यह ज्ञान दनर् और कृाल कृी पररवध म आनन िालन पदााों कृा ज्ञान ह धतः इंन धिवध ज्ञान
कृहतन हैं
(2) ुनःप ख् तज्ञखन-त
यह ध्य वयवक्तयर कृन मन कृन भािर और विचारर कृा ज्ञान ह जब वयवक्त रा वनर्ावद मानवंकृ
बाधाओ स पर विजय ्रकाए कृर लननन कृन बाद ध्य वयवक्तयर कृन ्र कृावलकृ विचारर कृो जान लनता ह तब
इंन मनःपयाशय ज्ञान कृहतन हैं

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(3) कृन िल ज्ञान-
यह ज्ञान दनर् कृाल कृी ंीमा ंन रवहत ंिशज्ञता ह यह ंभी पदााांॅन एिस उनकृ पररितशनर कृा पू श
ज्ञान ह यह ज्ञान मक्त
ु जीिर कृो ही ्रकाए हो ता ह इंम आत्मा र्द्ध
ु ंिशज्ञ रूपप म ्रककृावर्त हो ता ह
सखंव् िहखरराृतप्रत् ित-जीिात्मा कृो पसच ज्ञाननव्वयर एिस मन कृी ंहायता ंन ्रकाए हो ता ह तात्पयश
यह ह वकृ इं ज्ञान कृी उपलवब्ध म ंाधनासॅन कृी आिश्यकृता हो ती ह ंाधनर कृन धभाि म इंकृी
उपलवब्ध नह हो ंकृती यह ज्ञान कृभी-कृभी ज्ञाननव्वयर एिस मन, दो नर कृी ंहायता ंन ्रकाए हो ता ह
और कृभी-कृभी कृन िल मन कृी ंहायता ंन यह िह ्रकत्य् ज्ञान ह जो हम दवनकृ जीिन म ्रकाए
हो ता ह ंासवयिहाररकृ ्रकत्य् कृन भी दो भनद हैं-मवत ज्ञान और श्रतु ज्ञान
(1) ुव तज्ञखन-
यह िह ज्ञान ह जो इव्वयर एिस मन कृा विर्य ंन ंसयो हो नन ंन ्रकाए हो ता ह इंम बाह्य विर्यर कृा
्रकत्य् ज्ञान एिस आ्तररकृ विर्यर कृा मानं ज्ञान दो नर हो ता ह
(2) श्रक तज्ञखन-
जन तीांकृरर कृन उपदनर्र एिस जन आ मर ंन ्रकाए ज्ञान श्रतु ज्ञान ह यह र्ास्त्रवनबद्ध ज्ञान ह जन
दर्शन कृन धनंु ार मवत, श्रतु एिस धिवध ज्ञानर म ्र वु र कृी ं्भािना रहती ह, वकृ्तु मनःपयाशय एिस
कृन िल ज्ञानर म ्र वु र कृी ं्भािना नह
2.3.2तपराोितज्ञखन-त
्रकायः जननतर भारतीय दर्शनर म इव्वयााशंव्नकृर्शज्य ज्ञान कृो ्रकत्य् ज्ञान ्िीकृार वकृया जाता ह
कृभी-कृभी जन दर्शन भी इंन ्रकत्य् ज्ञान मानता ह और उंन ंासवयािहाररकृ ्रकत्य् कृहता ह वकृ्तु
जन दर्शन कृन कृवतपय आचायश पारमावाशकृ ्रकत्य् कृो ही िा्तविकृ ्रकत्य् कृहतन हैं वजंम ज्ञाता
वबना वकृंी ंाधन कृा आश्रय वलयन ज्ञनय ि्तु कृा ंा्ात्कृार कृरता ह इं ्रककृार िन आत्मंापन्
ज्ञान कृो ही ्रकत्य् ज्ञान मानतन हैं इंकृन धवतररक्त िन उं ज्ञान कृो , वजंम इव्वयर, मन आवद
मा्यमर कृी आिश्यकृता हो ती ह, परो ् ज्ञान कृहतन हैं धााशत,् इव्वयमनः ंापन् ज्ञान परो ् ज्ञान
ह ‘्रकमा नयतत्त्िालसकृार’ म ्रकत्य् एिस परो ् ज्ञान म पर्पर भनद कृन िल ्पिता कृन धर् स ंन ही ह
्रकत्य् और परो ् ज्ञान म कृन िल धपन्ाकृत त ध्तर ह परो ् धपन्ाकृत त ्रकत्य् ह और ्रकत्य्
धपन्ाकृत त परो ् इव्वयज्य बाह्य एिस मानवंकृ विर्यर कृा मवत ज्ञान धनमु ान कृी धपन्ा ंन
्रकत्य् ह और पारमावाशकृ ्रकत्य् कृी धपन्ा ंन परो ् ह परो ् ज्ञान कृन ध्त तश मवत एिस श्रतु ज्ञान

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आतन हैं श्रतु ज्ञान भी परो ् ज्ञान ह, क्यरवकृ िह मवतपिू कृ
श हो ता ह जन दर्शन म इन दो नर ज्ञानर कृन
धवतररक्त ्मतवत, ्रकत्यवभ्ा, तकृश एिस धनमु ान कृो भी परो ् ज्ञान माना जाता ह
2.3.3तप्रुखणत
्रकमा कृा कृर या ज्ञान कृा ंाधन ्रकमा कृहलाता ह ंाधार तया जन दर्शन म तीन ्रकमा ्रकाए
हो तन हैं- ्रकत्य्, धनमु ान और र्ब्द (्रकमा ावन ्रकत्य्ानमु ानर्ब्दावन)
(1) ्रकत्य् ्रकमा - जन दर्शन म िा्तविकृ ्रकत्य् पारमावाशकृ ्रकत्य् ह वजंकृी ्रकावए हनतु वकृंी
ंाधन कृी आिश्यकृता नह हो ती इंम विर्य कृा ंीधा ्रकत्य् हो ता ह जन दर्शन म एकृ ध्य
्रकत्य् कृी भी चचाश कृी यी ह िह ह, ‘ंावस यािहाररकृ ्रकत्य्’ जन दर्शन कृन धनंु ार ्रकत्य् ज्ञान
कृी उत्पवत्त म चार धि्ााओ स ंन जु रना पडता ह जो धधो वलवणत हैं-
(कृ) धि्ह- इव्वय और विर्य कृा ंव्नकृर्श हो नन पर नाम, आवद कृी विर्नर् कृल्पना ंन रवहत
ंामा्यमा्र कृा ज्ञान धि्ह ह जंन, नन्र कृा पष्ु प ंन ंव्नकृर्श हो नन पर यह ्रकतीत हो ना वकृ कृो ई
ि्तु ह, वकृ्तु यह न ज्ञात हो ना वकृ िह क्या ह, धि्ह ह
(ण) ईहा- धि हत ीतााश कृो विर्नर् रूपप ंन जाननन कृी इच्ाा ‘ईहा’ ह इंमॅ
स न मन ्रकमनय विर्य कृा
वििर जाननन कृी इच्ाा कृरता ह
( ) धिाय- ईवहतााश कृा विर्नर् वन शय ‘धिाय’ ह इं धि्ाा म दृश्य विर्य कृन ु र कृा
वनश्चायकृ एिस वन ाशयकृ ज्ञान ्रकाए हो जाता ह जंन, ‘यह रक्त कृमल ह’, दृश्य विर्य कृा यह
वनश्चायकृ ज्ञान ‘धिाय’ ह
(घ) धार ा-इं धि्ाा म दृश्य विर्य कृा पू श ज्ञान हो जाता ह और इंकृा ंस्कृार जीि कृन
ध्तःकृर म धवस कृत हो जाता ह इंी ंन ्मतवत उत्प्न हो ती ह धतः जन दार्शवनकृ ्मतवत कृन हनतु
कृन रूपप म धार ा कृी वयाख्या कृरतन हैं
उपयशक्त
ु चार धि्ााओ स ंन ंसक्रवमत हो नन कृन उपरा्त ्रकत्य् ज्ञान ्रकाए हो ता ह
(2) धनमु ान ्रकमा - जन दार्शवनकृ धनमु ान कृो भी याााश ज्ञान कृा ्रकमा मानतन हैं धनुमान एकृ
परो ् ज्ञान ह वजंम धनमु ान कृन आधार पर ंा्य कृा ज्ञान ्रकाए हो ता ह
जन दार्शवनकृ भी धनुमान कृन दो भनद ्िीकृार कृरतन हैं- ्िााश और परााश धपनन ंसर्य कृो दरू कृरनन
कृन वलए वकृया या धनमु ान ्िाााशनमु ान ह दंू रर कृी ंर् स यवनितवत्त कृन वलए वकृया या एिस
वयिव्ात तरीकृन ंन वयक्त वकृया या धनुमान पराााशनमु ान ह जन तकृश र्ास्त्री वंद्धंनन वदिाकृर

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्याय दार्शवनकृर कृन ंमान ही धनमु ान म पाूँच धियि ्िीकृार कृरतन हैं- ्रकवतज्ञा, हनत,ु दृिा्त, उपनय
और वन मन भविाहु धनमु ान म दर्ाियि मानतन हैं- ्रकवतज्ञा, ्रकवतज्ञा-विभवक्त, हनत,ु हनत-ु विभवक्त,
विप्, विप्-्रकवतर्नध, दृिा्त, आर्कृस ा, आर्कृस ा-्रकवतर्नध और वन मन
(3) र्ब्द ्रकमा - र्ब्द ्रकमा भी जन दर्शन म एकृ परो ् ्रकमा ह जो ज्ञान र्ब्द कृन वारा ्रकाए हो ,
वकृ्तु ्रकत्य् कृन विरुद्ध न हो , िह र्ब्द ्रकमा ह जन दर्शन म र्ब्द ्रकमा कृन दो भनद हैं- लौवकृकृ
और र्ास्त्र तत्त्ििनत्ता विश्वंनीय वयवक्तयर कृन र्ब्दर एिस िचनास ंन ्रकाए ज्ञान लौवकृकृ ज्ञान ह और
र्ास्त्रर कृन ध्ययन ंन ्रकाए ज्ञान र्ास्त्रज ज्ञान ह
जन दर्शन कृन धनंु ार इन ्रकमा र ंन धविद्या कृा ्य, आन्द कृी ्रकावए एिस वयािहाररकृ जीिन म
ंत्यांत्य कृा वन शय हो ता ह
2.3.4तन -वसद्धखन्
जन दर्शन कृी ज्ञानमीमासंा कृा एकृ महत्िपू श प् उनकृा ‘नय-वंद्धा्त- ह जन मत म ्रकमा र कृन
वारा तत्त्िर कृा ज्ञान हो ता ह जन दार्शवनकृ ्रकमा कृन धवतररक्त दृविकृो -विर्नर् वजंन िन ‘नय’ कृहतन
हैं, ंन भी तत्त्िर कृन ज्ञान कृी पवु ि कृरतन हैं जन दर्शन कृन ्रकमा एिस नय दो नर तत्त्ितः धवभ्न हैं इन
दो नर कृन आधार पर वकृंी विर्य कृा याााश ज्ञान ्रकाए वकृया जाता ह - ्रकमा नयरवध मः वकृ्तु दो नर
म ध्तर यह ह वकृ ्रकमा ंन ि्तु कृा ं्पू श ज्ञान हो ता ह वकृंी पदााश कृो उंी रूपप म जानना
वजं रूपप म िह ह ्रकमा ह नय ंन ि्तु कृा आवस र्कृ ज्ञान हो ता ह इंी कृार ्रकमा कृो
ंकृलादनर् कृहा जाता ह और नय कृो विकृलादनर्
जन दर्शन म ि्तु धन्तधमाशत्मकृ मानी जाती ह ि्तु कृन धन्त धमों कृा ज्ञान मा्र कृन िली (ंिशज्ञ)
कृो हो ता ह ंाधार मनष्ु य कृो ि्तु कृन धन्त धमों कृा ज्ञान हो ना धं्भि ह, क्यरवकृ कृमशज्य
ब्धनर कृन कृार उंकृन ज्ञान कृी पू श धवभवयवक्त नह हो पाती, फल्िरूपप ि्तु कृन विर्य म उंकृी
जानकृारी ंीवमत या आवस र्कृ हो ती ह िह ि्तु कृन ंीवमत धमों कृो जानता ह और उंी कृन आधार
पर उंकृा ि नश भी कृरता ह जन दर्शन ि्तु कृन विर्य म वयवक्त कृन आवस र्कृ ज्ञान या ंापन् दृवि कृो
‘नय’ कृहता ह- एकृदनर्विवर्िो ऽाो नय्य विर्यो मतः
जन दर्शन म इं आवस र्कृ दृविकृो कृन आधार पर ि्तु कृन विर्य म परामर्श कृो भी ‘नय’ कृहा जाता
ह ं्
स नप म, जन दर्शन म नय कृन दो धाश हैं-
(1) ि्तु कृन विर्य म आवस र्कृ दृविकृो और
(2) आवस र्कृ कृन आधार पर ि्तु कृन विर्य म परामर्श

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जन दर्शन म नय कृन ंात भनद ्रकाए हो तन हैं यन ंातर नय वन्नवलवणत हैं- न म नय, ंस्ह नय,
वयिहार नय, ऋतजंु ्र ू नय, र्ब्द नय, ंमवभरूपढ़ नय और एिसभतू नय
(1) न म नय- न म नय कृी वयाख्या दो ्रककृार ंन कृी जाती ह ्रकाम वयाख्या कृन धनंु ार यह वकृंी
्रकयत्न-विर्नर् कृन लक्ष्य ंन ं्बव्धत ह जो वबना वकृंी वयिधान कृन उं ्रकयां कृो वनयव््र त कृरता
ह वंद्धंनन इंंन वभ्न मत कृो ्िीकृार कृरता ह जब हम वकृंी ि्तु कृो जावत त एिस विवर्ि
दो नर ु र ंन यक्तु दनणतन हैं तब यह भी न म नय ह धािा धमश और धमी कृो , धस और धस ी कृो ,
ंामा्य और विर्नर् कृो , वक्रया और कृारकृ कृो ताा भनद और धभनद कृो ौ -मख्ु य भाि ंन ्ह
कृरना न म नय ह जंन ‘जीि-ववय’ कृहनन ंन धमी जीि कृा मख्ु य रूपप ंन और ज्ञानावद धमश कृा
ौ रूपप ंन ्ह हो ता ह वकृ्तु ‘चनतन जीि’ कृहनन ंन चनतना धमश कृा मख्ु य रूपप ंन और जीिववय
कृा ौ रूपप ंन ्ह हो ता ह
(2) ंस्ह नय- ंस्ह नय म ंामा्य विवर्िताओ स कृो ्िीकृार वकृया जाता ह यह िह दृवि ह वजंम
धभनद कृा ्ह हो ता ह और भनद कृा वनराकृर हो ता ह इं दृवि ंन यह ्िीकृार वकृया जाता ह वकृ
ंत्ता कृन िल ंामा्य कृी ह, विर्नर् कृी कृो ई ंत्ता नह ह
(3) वयिहार नय- इं दृवि म विर्नर् धािा भनद कृा ्ह हो ता ह और ंामा्य धािा धभनद कृी
उपन्ा हो ती ह यह ्रकचवलत एिस पर्परा त दृविकृो ह इंम ि्तु कृी वनजी विर्नर्ताओ स पर बल
वदया जाता ह इं दृवि कृी पतष्ठभवू म म यह विचार ह वकृ कृन िल ंामा्य ंन लो कृवयिहार नह
ंसचावलत हो ता लो कृवयिहार कृन वलए भनद या ि्तु कृी विवर्िता कृो ्िीकृार कृरना आिश्यकृ ह
यही वयिहार ह
(4) ऋतजंु ्र ू नय- इं दृवि म पदााश कृी ितशमानकृालीन धि्ाा कृा विचार वकृया जाता ह इंम
ंब ्रककृार कृन नर्तयश कृो भलु ा वदया जाता ह, फल्िरूपप ि्तु कृन ्िरूपप वनधाशर म उंकृन भतू एिस
भविष्यत् रूपपर कृो कृो ई महत्ि नह वदया जाता
(5) र्ब्द नय- इं दृवि म धननकृ र्ब्दर कृो एकृ ही धाश कृा द्यो तकृ माना जाता ह इंम यह
्िीकृार वकृया जाता ह वकृ ्रकत्यनकृ नाम कृा धपना धाश हो ता ह और ध्य र्ब्द भी उंी एकृ पदााश
कृो द्यो वतत कृर ंकृतन हैं जंन, घर, कृलर् और कृु्भ कृो एकृ ही पदााश कृा िाचकृ माना जाता ह
(6) ंमवभरूपढ़ नय- इं म पदर कृन धात्िाश कृन आधार पर भनद वकृया जाता ह यह इं बात पर बल
दनता ह वकृ र्ब्दवयत्ु पवत्त कृन आधार पर एकृााशकृ पदर कृन भी वभ्न धाश हो तन हैं इंकृन धनंु ार न तो
कृई र्ब्दर कृा एकृ िाच्यााश हो ता ह और न एकृ र्ब्द कृा धननकृ धाश हो ता ह जंन पसकृज कृो कृमल

उत्तराण्श मक्त
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कृा पयाशयिाची माना जाता ह, वकृ्तु वयत्ु पवत्त कृन आधार पर इंकृा धाश ह ‘िह, जो कृीचड ंन
उत्प्न हो ’ इं ्रककृार र्ब्द वयत्ु पवत्त कृन आधार पर कृमल कृा धाश नह दनता
(7) एिभस तू नय- यह ंमवभरूपढ़ नय कृा विवर्ि रूपप ह उल्लनणनीय ह वकृ ंमवभरूपढ़ नय वकृंी
र्ब्द कृा धाश उंकृी वयत्ु पवत्त कृन आधार पर कृरता ह और वयत्ु पवत्त-भनद ंन धाशभदन कृरता ह
एिभस तू नय इं बात पर बल दनता ह वकृ उं र्ब्द कृा धाश तभी ्िीकृार कृरना चावहए जब
वयत्ु पवत्त-वंद्ध धाश कृन धनरूप
ु प िंी वक्रया (एिसभतू ) ं्प्न हो रही हो जंन, ‘पजु ारी’ र्ब्द
ंमवभरूपढ़ नय कृन धनंु ार इंकृा धाश ह, ‘पजू ा कृरनन िाला वयवक्त’, वकृ्तु एिभस तू नय कृन आधार
पर िह कृन िल उंी ंमय पजु ारी कृहा जायन ा जब पजू ाकृायश म ्रकितत्त हो , ध्य ंमय म नह इं
्रककृार यह नय ंमवभरूपढ़ नय कृन ध्पि भाि कृो ्पि कृरता ह
्रकत्यनकृ नय पदााश कृा ज्ञान कृरानन िालन धननकृ दृविकृो र म ंन कृन िल एकृ ही दृविकृो कृो ्रक्ततु
कृरता ह वकृ्तु यवद वकृंी दृविकृो कृो ं्पू श ंमझ वलया जाता ह तो यह नयाभां कृहलाता ह
उल्लनणनीय ह वकृ जन दर्शन कृन धनंु ार ्रकत्यनकृ दृविकृो (नय) ंापन्तः ंत्य ह धतः न तो िह
पू रूप
श पन वमथ्या ह और न िह एकृमा्र ंत्य ही ह
जन दर्शन म उपयशक्त ु ंातर नयर कृा ि ीकृर दो ि ों म वकृया जाता ह- धाशनय और र्ब्दनय
ंातर नयर म ंन ्रकाम चार धाशनय कृन ध्त शत आतन हैं और धव्तम तीन नय र्ब्द नय कृन ध्त तश
कृभी-कृभी इन नयर कृा ि ीकृर वनश्चय नय और वयिहाररकृ नय म वकृया जाता ह वनश्चय नय कृन
वारा तत्त्िर कृा िा्तविकृ ज्ञान ्रकाए हो ता ह इंंन तत्त्ि कृन ्िाभाविकृ वनत्य ु र कृन ्िरूपप कृा
पररचय ्रकाए हो ता ह वयािहाररकृ नय लो कृ वयिहार कृी दृवि ंन तत्त्िर कृा ज्ञान कृराता ह जन दर्शन
म नय कृा एकृ ध्य ि ीकृर भी ्रकाए हो ता ह- ववयावाशकृ नय और पयाशयावाशकृ नय पदााश कृन
दृविकृो ंन तत्त्िर कृा वििनचन ववयावाशकृ नय ह इंम वकृंी विर्य कृा ज्ञान ्रकाए कृरनन कृन वलए
उंकृन ु र कृो ववय पर वनभशर माना जाता ह पयाशयावाशकृ नय म पररितशन धािा धि्ाा कृन
दृविकृो ंन विर्य कृा वििनचन वकृया जाता ह इंम ु र कृी विवर्िता पर बल दनकृर ववय कृो
कृाल्पवनकृ माना जाता ह जन दर्शन कृन उपरो क्त ंातर नयर म ्रकाम, ववतीय एिस तततीय नय ववयावाशकृ
हैं और धव्तम चार पयाशयावाशकृ हैं
अभ् खसतप्रश्न

1. जन दर्शन चनतना कृो जीि कृा ------------ मानता ह


2. वजंम इव्वयर, मन आवद मा्यमर कृी आिश्यकृता हो ती ह, -----कृहतन हैं

उत्तराण्श मक्त
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3. जन दर्शन म ्रकमा ह
(कृ) ंकृलादनर् (ण) विकृलादनर्
( ) चलादनर् (घ) धचलादनर्
4. वयवक्त कृन आवस र्कृ ज्ञान या ंापन् दृवि कृो ------- कृहता ह
5. जन दर्शन म नय कृा धाश ह-
(कृ) ि्तु कृन विर्य म आवस र्कृ दृविकृो (ण) ि्तु कृा पू श ज्ञान
( ) ि्तु कृा विर्द ्िरूपप (घ) इव्वयर ंन ि्तु कृा ज्ञान
6. जन दर्शन म र्ब्द ्रकमा कृन वकृतनन भनद हैं?
2.4तस् खवखद
्यावाद जन दर्शन कृा ंिाशवधकृ विल् वंद्धा्त ह उल्लनणनीय ह वकृ जन दर्शन कृी तत्त्िमीमासंा
धननकृा्तिादी ह वजंम ि्तु ‘धन्तधमाशत्मकृ’ मानी जाती ह धन्तधमाशत्मकृ हो नन कृन कृार
उंकृा ्िरूपप धत्यवधकृ जवरल हो ता ह ि्तु कृन धन्त धमो कृा ज्ञान मा्र कृन िली कृो हो ता ह,
क्यरवकृ िह ंिशज्ञ ह ंिशज्ञ िह ह जो वकृंी ि्तु कृो ंभी दृवियर ंन जानता ह उंकृन धनंु ार यवद
कृो ई वयवक्त वकृंी ि्तु कृो ंभी ि्तओु स कृो ंभी दृवियर ंन जान लनता ह- एकृो भािः ंिशाा यनन
दृिः ंिो भािः ंिशाा तनन दृिः
ंाधार मनष्ु य कृा ज्ञान धत्यवधकृ ंीवमत हो ता ह, क्यरवकृ िह वकृंी ि्तु कृो कृुा ही दृवियर ंन
दनणता ह िह ि्तु कृन आवस र्कृ धमो कृो ही जानता ह और उंी कृन आधार पर ि्तु कृन विर्य म
परामर्श कृरता ह फल्िरूपप उनकृन कृानर म पर्पर मतभनद हो ता ह इनम ंन वकृंी कृान वारा ि्तु
कृन ्िरूपप कृा पू श बो ध नह हो ता, ि्तु कृन विर्य म कृो ई कृान एकृमा्र ंत्य नह हो ता इं ्रककृार
ि्तु कृा ्िरूपप धत्य्त जवरल हो नन कृन कृार उंकृन विर्य म कृो ई कृान धसर्तः ही ंही हो ता ह,
वकृ्तु कृो ई कृान पू रूप
श पन ंही नह हो ता उंकृी ंत्यता ंापन् हो ती ह
ंंन पिू श इयह बताया या ाा वकृ जन दर्शन म ि्तु कृन विर्य म वयवक्त कृन आवस र्कृ ज्ञान कृो ‘नय’
कृहतन हैं और इं आवस र्कृ ज्ञान कृन आधार पर ि्तु कृन विर्य म जो परामर्श हो ता ह, उंन भी ‘नय’
कृहतन हैं जन दर्शन परामर्श कृन तीन भनद कृरता ह-दनु शय, नय और ्रकमा नय- ंदनि ंत््यावदवत
व्र धााो मीयतन दनु ीवतनय्रकमा ररवत दनु शय परामर्श कृा िह रूपप ह वजंम वकृंी परामर्श-विर्नर् कृन ही

उत्तराण्श मक्त
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एकृमा्र ंत्य हो नन कृा कृान वकृया जाता ह जंन, वकृंी ि्तु कृन विर्य म यह कृान वकृ यह ंत् ही
ह दनु शय ह जन दर्शन कृन धनुंार यह एकृा्तिाद कृन दो र् ंन ््त ह, क्यरवकृ इंम आसवर्कृ एिस
ंापन् ंत्य कृो पू श एिस वनरपन् ंत्य मान वलया जाता ह दनु शय हो नन कृन कृार इंन ्रकमा नह कृहा
जा ंकृता
नय परामर्श कृा िह रूपप ह वजंम वकृंी ि्तु कृन विर्य म ंाधार रीवत ंन कृो ई कृान वकृया जाता
ह जंन, यह ंत् ह नय ह यह परामर्श एकृ दृवि ंन ंत्य ह, वकृ्तु पू श ंत्य नह ह िह विकृलादनर्
ंन ््त हो नन कृन कृार एकृवनष्ठ धमश कृा ्रकवतपादन कृरता ह और उंकृन ध्य धमांॅन कृा वनर्नध
कृरता ह दनु शय तो नह ह, वकृ्तु यह ्रकमा भी नह ह, क्यरवकृ इंम ज्ञान कृी आवस र्कृता कृो ्पि
रूपप ंन ्रककृावर्त नह वकृया जाता
जन विचारधारा म ्रकमा परामर्श कृा िह रूपप ह, वजंम ि्तु कृन विर्य म कृो ई कृान पररव्ावतयर,
धमों एिस विचारर ंन वंद्ध वकृया जाता ह इं पररव्ावत धमश धा िा विचार कृा ंामा्य रूपप ह,
‘एकृ दृवि म यह ंत् ह’ जन दर्शन कृन धनंु ार ्रकमा ंकृलादनर् ह और पू तश या ंत्य ह जन दर्शन
म ‘एकृ दृवि म’ इं पदािली कृा धाश दननन कृन वलए वकृंी कृान कृन पिू श ‘्यात’् इं विवर्ि र्ब्द कृा
्रकयो वकृया जाता ह जन दर्शन म ‘्यात’् र्ब्द एकृ तकृनीकृी धा िा पाररभावर्कृ र्ब्द कृन रूपप म
आया ह यह र्ब्द यहाूँ ज्ञान कृी पू श ंापन्ता कृा द्यो तकृ ह
2.4.1तसप्तभङटगीतन
्यावाद कृा ्रकमा ंएभस ी नय ह इंकृा धाश ह, वकृंी ि्तु कृन विर्य म परामर्श या नय कृन ंात
्रककृार ंएभस ी वारा वकृंी ि्तु कृन नानाविध धमों कृा वनश्चय वकृया जा ंकृता ह यन वबना वकृंी
आत्मविरो ध कृन धल -धल या ंसयक्त ु रूपप ंन वकृंी ि्तु कृन विर्य म विधान या वनर्नध कृरतन हैं
और इं ्रककृार वकृंी ि्तु कृन धननकृ धमों कृा ्रककृार्न कृरतन हैं ंामा्यतः पाश्चात्य दर्शन म
परामर्श कृन दो भनद वकृयन जातन हैं- वि्यात्मकृ और वनर्नधात्मकृ वकृ्तु जन दर्शन म परामर्श कृन ंात
भनद वकृयन जातन हैं इंी कृो ंएभस ी नय कृहतन हैं इंकृन ंात नय (्रकमा नय) वन्नवलवणत हैं-
(1) ्यादव्त- जन दर्शन कृन धनंु ार वि्यात्मकृ नय ‘्यादव्त च’ आकृार म धवभवयक्त हो ना
चावहए जंन, ्यात् घर ह इंंन यह धाश वनकृलता ह वकृ घर धपनन नाम, ्ाापना, ववय और
भािरूपप ंन विद्यमान ह
(2) ्या्नाव्त- जन दर्शन कृन धनंु ार वनर्नधात्मकृ नय ‘्या्नाव्त च’ आकृार म कृहा जाना
चावहए जंन, ्यात् घर नह ह इंकृा आर्य ह वकृ पर नाम पर ्ाापना, पर ववय एिस परभाि कृी
दृवि ंन घडा विद्यमान नह ह धााशत् ंिु श आवद कृा बना हुआ (पर ववय), चौकृो र घर (पर नाम)

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एकृ वभ्न ्ाान (पर ्ाापना) और एकृ वभ्न ंमय म (पर भाि ंन) विद्यमान नह ह ंस्नप म,
्यात् ंन यह आर्य वनकृलता ह वकृ वजं घर कृन विर्य म परामर्श हुआ ह, एकृ विर्नर् ंमय म उं
्ाान पर नह ह जहाूँ कृन वलए उंकृन ं्ब्ध म परामर्श हुआ ह
(3) ्यादव्त च नाव्त च- इं नय म दृविभनद ंन ि्तु कृा विधान और वनर्नध दो नर ह जंन- ्यात्
घर ह भी और नह भी ह इंम ्ि-रूपप-ववय- ्ाान-कृाल कृी दृवि ंन घर कृा विधान वकृया जाता
ह और पर-रूपप-ववय- दनर्-कृाल कृी दृवि ंन घडन कृा वनर्नध भी वकृया जाता ह इं नय कृा आर्य
यह ह वकृ एकृ विर्नर् धाश म घर ह और ध्य धाश म घर नह ह इंम इं बात पर बल वदया
जाता ह वकृ ‘एकृ ि्तु क्या ह और क्या नह ह’, ्यात् र्ब्द ंन यह ंवू चत हो ता ह वकृ धव्त और
नाव्त कृन ंमच्ु चय म तकृश तः विरो ध नह ह
(4) ्यादिक्तवयम-् जन दर्शन कृन धनंु ार वकृंी ि्तु कृन धव्त, नाव्त और उभय कृन धवतररक्त एकृ
ध्य कृो वर भी ह, िह धिक्तवयता कृी ह यहाूँ धिक्तवय कृा धाश ह, ‘यु पत् कृान कृरनन कृी
धंमाशता’ इंकृा धाश ह वकृ दृविभनद ंन वकृंी ि्तु म धव्तत्ि और नाव्तत्ि दो नर हो तन हैं,
वकृ्तु भार्ा कृी ंीमा और धपयाशएता कृन कृार हम विरो धी ु र कृा एकृ ंाा वनिशचन नह कृर
पातन जंन, ्यात् घर धिक्तवय ह इंकृा धाश ह वकृ वकृंी घर म धपनन रूपप कृी उपव्ावत और
ध्य रूपप कृी धनपु व्ावत एकृ ंाा हो ती ह, वकृ्तु हम उंन वयक्त नह कृर पातन
(5) ्यादव्त च धिक्तवयस च- यह नय ्रकाम और चताु श नय कृो वमलानन ंन बनता ह इं नय म ि्तु
कृी ंत्ता और उंकृी धवनिशचनीयता दो नर कृा कृान वकृया जाता ह यह नय यह लव्त कृरता ह
वकृ कृो ई ि्तु ्ि-नाम-्ाापना-ववय-भाि ंन विद्यमान हो नन पर भी धपनी इन विर्नर्ताओ स और पर-
नाम-्ाापना-ववय-भाि ंन िह धिक्तवय भी हो ंकृती ह जंन, ्यात् घर ह और धिक्तवय भी ह
इं नय कृा धाश ह वकृ यवद घर कृन ववय रूपप (मतवत्तकृा) कृो दनण तो घर ह वकृ्तु इंकृन ववय रूपप
(मतवत्तकृा) और पररितशनर्ील रूपप, दो नर कृो एकृ ंमय म दनण तो िह धव्तत्ििान् हो नन पर भी
धि नश ीय ह
(6) ्या्नाव्त च धिक्तवयस च- यह नय ि्तु कृी धंत्ता और उंकृी धवनिशचनीयता दो नर कृो
उपलव्त कृरता ह जन दर्शन कृन धनंु ार कृो ई ि्तु पर-नाम-्ाापना-ववय-भाि ंन धविद्यमान हो नन
पर भी इन विर्नर्ताओ स कृन ंाा ्ि-नाम-्ाापना-ववय-भाि ंन िह धवयक्त भी हो ंकृती ह जंन,
्यात् घर नह ह और धवयक्त भी ह इं नय कृा धाश यह ह वकृ घर धपनन पयाशय रूपप कृी धपन्ा
नह रणता, क्यरवकृ िन रूपप ् -् म पररिवतशत हो तन रहतन हैं

उत्तराण्श मक्त
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(7) ्यादव्त च नाव्त च धिक्तवयस च- यह नय तततीय और चताु श नयर कृो वमलानन ंन बनता ह
जंन, ्यात् घर ह, नह ह और धवयक्त भी ह धपनन वनजी चतिु य (्ि-नाम-्ाापना-ववय-भाि)
कृी दृवि ंन परि्तु कृन चतिु य (पर-नाम-्ाापना-ववय-भाि) कृी दृवि ंन और धपनन वनजी एिस
धभािात्मकृ ि्तु कृन ंयस क्त
ु चतिु य कृन दृवि ंन कृो ई ि्तु हो ंकृती ह, नह भी हो ंकृती ह और
धवयक्त भी हो ंकृती ह इन दो नर दृवियर कृन आधार ंसयक्तु रूपप ंन विचार कृरनन पर िह धिक्तवय ह
नय म ववय और पयाशयर कृन एकृ ंाा हो नन और धल -धल हो नन कृन कृार घर कृा धव्तत्ि,
धनव्तत्ि और धवयक्तत्ि ंवू चत हो ता ह
्यावाद धननकृा्तिाद कृो वंद्ध कृरता ह जन दर्शन कृा दािा ह वकृ ्यावाद ंन धननकृा्तिाद वंद्ध
हो ता ह इंकृन धनंु ार विवभ्न दार्शवनकृ वंद्धा्त विवभ्न दृवियर पर आधाररत हो तन हैं इं ्रककृार
ंत्ता ं्ब्धी वजतनन वंद्धा्त हैं, ंत्ता म उतनन धमश हैं ंएभस ी नय कृी ंात विधाओ स ंन यह
्रकमाव त हो ता ह वकृ ि्तु ं्ब्धी वििनचन धननकृ दृवियर पर आधाररत हो ता ह इं ्रककृार ि्तु
धननकृ धमाशत्मकृ या धन्त धमाशत्मकृ हो ती ह
्यावाद ि्तिु ाद ह इंकृन धनंु ार हमारन परामर्श मानवंकृ ्रकत्ययमा्र नह हैं, बवल्कृ िन ि्तु कृन
िा्तविकृ धमों कृी ओर ंसकृनत कृरतन हैं जन मत ंापन्िाद ह ्पि हो चकृ ु ा ह ि्ततु ः यह
ि्तिु ादी ंापन्िाद ह, क्यरवकृ यह मानि ज्ञान कृो ि्तओ ु स कृन धमों ंन ंापन् मानता ह और यन धमश
मन्त््र न हो कृर ि्ततु ््र ह इं ्रककृार यह ्रकत्ययिादी ंापन्िाद ंन वभ्न ह वजंम ि्तु कृन धमों
कृो मन्त््र माना जाता ह ्यावाद बहुलिाद धािा बहुलिादी ि्तिु ाद ह, क्यरवकृ यह ि्तु कृन
धन्त धमों कृो ्िीकृार कृरता ह
ंमी्ा- जननतर भारतीय दर्शन म ्यावाद कृो ध्िीकृार वकृया या ह ्यावाद कृन ्रकधान
आलो चकृर म बौद्ध, मीमासंकृ एिस धवत िनदा्ती दार्शवनकृर कृो जाना जाता ह ्यावाद कृन विरुद्ध
वन्नवलवणत आपन् वकृयन जातन हैं-
(1) आचायश र्कृस र नन ्यावाद कृो ंर् स यिाद और धवनवश्चततािाद कृी ंज्ञस ा दी ह ि्ततु ः जन दर्शन
पर यन आरो प ‘्यात’् र्ब्द कृन र्ावब्दकृ धाश कृन आधार पर ल ायन जातन हैं यन आलो चकृ ्यात् र्ब्द
कृा धाश ‘हो ंकृता ह’, ‘र्ायद’, ‘कृासवचत्’ कृरतन हैं और इं आधार पर ्यावाद पर उपरो क्त
आरो प ल ातन हैं वकृ्तु ्यावाद, ंर् स यिाद, धवनवश्चततािाद या धज्ञनयिाद नह ह
(2) आलो चकृ ंएभस ी नय कृन तततीय नय कृो आत्मविरो धी घो वर्त कृरतन हैं इनकृन धनंु ार कृो ई
ि्तु ‘ह’ और ‘नह ह’ एकृ ंाा कृंन हो ंकृती ह? धमशकृीवतश कृा कृान ह वकृ, ‘यन वनलशज्ज जन
दार्शवनकृ पा ल मनष्ु य कृन ंमान पर्पर विरो धी कृान कृरतन हैं ’ आचायश र्कृ
स र कृन धनंु ार,

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‘्यावाद, जो वकृ याााश और धयाााश, धव्तत्ि और धनव्तत्ि, एकृ और धननकृ, धवभ्न और
वभ्न ताा ंामा्य और विर्नर् आवद कृा वमश्र कृरता ह, पा ल वयवक्त कृन क्र्दन और उ्मत्त कृन
्रकलाप कृन ंमान ्रकतीत हो ता ह’ वकृ्तु जन दार्शवनकृ ऐंा नह मानतन उनकृन धनंु ार ि्तु म
धन्त धमश हो तन हैं विवभ्न दृवियर ंन विचार कृरनन पर उंकृन धमांॅन म कृो ई विरो ध नह वदणायी
दनता ववय कृी दृवि ंन ि्तु म एकृता एिस वनत्यता आवद कृा विधान वकृया जा ंकृता ह तो पयाशय कृी
दृवि ंन धननकृता और धवनत्यता आवद कृा धतः ्यावाद म कृो ई विरो ध नह ह
(3) जन दर्शन कृन धनंु ार हमारन ंभी ज्ञान ंापन् एिस आवस र्कृ हैं िन वनरपन् ज्ञान कृो ध्िीकृार
कृरतन हैं वकृ्तु वनरपन् कृो ्िीकृार वकृयन वबना ंापन् कृी धिधार ा कृो ्िीकृार कृरना धं्भि
ह पनु ः, जन दार्शवनकृ ‘कृन िल ज्ञान’ कृो र्द्ध
ु , पू ,श धपरो ् और परमााश ज्ञान मानतन हैं जो ंभी
आिर ीय कृमों कृन ्य हो जानन पर ्रकाए हो ता ह
(4) जन दर्शन ्यावाद एिस ंएभस ी नय कृन आधार पर ध्य मतर कृी परी्ा तो कृरता ह, वकृ्तु
इंकृन आधार पर िह धपनी परी्ा नह कृरता िह ्यावाद कृन आधार पर ध्य मतर कृो ंापन्
और आवस र्कृ ंत्य मानता ह वकृ्तु िह धपनन वंद्धा्त कृो एकृमा्र ंत्य घो वर्त कृरकृन इंन भल

जाता ह इं ्रककृार ्यावाद एिस ंएभस ीनय ध्तविशरो ध ंन ््त ह
(5) ्यावाद धननकृा्तिाद कृो ्ाावपत नह कृरता ह जन दर्शन कृा यह दािा धनवु चत ह वकृ िह
्यावाद कृन आधार पर धननकृा्तिाद कृो वंद्ध कृरता ह ि्ततु ः जन तकृश र्ास्त्र एिस ज्ञानमीमांस ा
धवतिाद कृी ओर लन जाती ह आचायश र्कृ स र कृा कृान ह वकृ यवद ंभी वंद्धा्त ंो पावधकृ दृवि ंन
ंत्य हैं तो ्यावाद ्ियस भी ंो पावधकृ ंत्य हो ा ंापन्ता वनरपन् ंन ं्बव्धत ह और उंकृन
धव्तत्ि कृो पहलन ही ्िीकृार कृर लनती ह ्यावाद हम वबणरन हुए नयर कृो दनता ह, वकृ्तु उनकृन
ंम्िय कृा ्रकयां नह कृरता ंएभस ी नय ंात नयर कृा एकृ्र ीकृर मा्र ह, उनकृा ंम्िय नह
वनरपन् ही िह ं्र ू ह जो ंब ंापन्र म एकृता ्ाावपत कृरता ह ‘धन्तधमाशत्मकृ’ कृहनन ंन एिस
धमी कृी उपन्ा कृरनन ंन तत्त्ि कृो बो ध नह हो ंकृता
इं ्रककृार ्यवाद एकृास ी मतर कृो इकृट्ठा कृरकृन ाो ड दनता ह और उनम ंम्िय कृरनन कृा ्रकयां नह
कृरता जन दर्शन कृा ्यावाद िहाूँ तकृ तो ठीकृ ह जहाूँ तकृ यह लो र कृो एकृास ी मतर ंन ंािधान
कृरता ह वकृ्तु िह हम वजं ्ाल पर ाो डता ह, िह एकृास ी ंमाधानाॅ स न ंन ाो डा ही धवधकृ ह
ि्ततु ः या तो जन दार्शवनकृ धपनन तकृश र्ास्त्र कृन वनवहतााों कृो नह ंमझ ंकृन या ंा््रकदावयकृ
कृार र ंन उंकृन वनवहतााश कृा कृान नह कृर ंकृन यवद िन उंकृन तावकृश कृ वनष्कृर्श कृा कृान कृरनन
कृा ंाहं कृरतन तो िन धवनिायशतः धवतिाद पर पहुचूँ तन

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अभ् खसतप्रश्न

1. ्यात् ह-
(कृ) पू श ज्ञान (ण) ंापन् ज्ञान
( ) कृन िल ज्ञान (घ) इव्वय ज्ञान
2. ्यावाद -------- कृो वंद्ध कृरता ह
3. जन विचारधारा म -------- परामर्श कृा िह रूपप ह, वजंम ि्तु कृन विर्य म कृो ई कृान
पररव्ावतयर, धमों एिस विचारर ंन वंद्ध वकृया जाता ह
4. ्यावाद कृा ्रकमा ---------------- ह
2.5 सखराखंर्
इं इकृाई कृन ववतीय पाठ कृो पढ़नन कृन बाद आप यह जान चकृु न हैं वकृ जन दर्शन कृी ज्ञानमीमासंा म
्रकमा एिस नय कृी धनठू ी वयाख्या ह यह ज्ञानमीमासंा ध्य दार्शवनकृ विचारधारा कृी धपन्ा कृह
धवधकृ ध्यात्मपरकृ ह ंाा ही यह विचारधारा कृह धवधकृ ध्यात्मो ्मण ु ी ह वकृ्तु धनकृी
ंिाशवधकृ धनठू ी दनन धननकृा्तिाद, ्यावाद, ंएभस ीनय ताा नय वंद्धा्त ह वज्हरननॅन दर्शन
ज त् कृो वच्तन कृी नयी ि ्रकामाव कृ वदर्ा दी ्यावाद तो ऐंा वच्तन ह वजंकृी ााया
आई््रीन कृन ंापनव्कृ वंद्धा्त म दनणी जा ंकृती ह इनकृन वंद्धा्तर कृन ंाा एकृ वि्ततत ंमी्ा
दी यी ह जो तल
ु नात्मकृ ध्ययन कृी दृवि ंन यह स ्रक्ततु कृी यी ह
आर्ा ह इं इकृाई कृन ध्ययन ंन आप जनविर्यकृ ज्ञानमीमांस ा कृन ंहज ि ंवस ्ए रूपप् कृो पढकृर
ि जानकृर इं वच्तन पर्परा म ्रकितत्त हो पाएॅॅॅस न
2.6 र्ब्दखियी
कृन िली- जन दर्शन म दनर् कृालावद कृी ंीमा ंन रवहत ज्ञान ंिशज्ञता ह इं परम ज्ञान कृो
्रकाए कृरनन िाला कृन िली कृहलाता ह ि्तु कृन धन्त धमो कृा ज्ञान मा्र कृन िली कृो हो ता ह
ंएभस ी- ्यावाद कृो ्रककृर कृरनन कृी ंात विधा ह वजंन ंामा्यतया ंएभस ी कृहा जाता
ह ंएभस ी वारा वकृंी ि्तु कृन नानाविध धमों कृा वनश्चय वकृया जा ंकृता ह दंू री ओर जन दर्शन
म परामर्श कृन ंात भनद वकृयन जातन हैं इंी कृो ंएभस ी नय कृहतन हैं

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page ३३
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बहुलिाद- ्यावाद बहुलिाद धािा बहुलिादी ि्तिु ाद ह, क्यरवकृ यह ि्तु कृन धन्त
धमों कृो ्िीकृार कृरता ह
2.7 अभ् खसतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
2.3 1. ्िरूपप धमश, 2. परो ् ज्ञान, 3. कृ, 4. नय, 5. कृ 6. दो
2.4 1. ण, 2. धननकृा्तिाद, 3. ्रकमा , 4. ंएभस ी नय
2.8 सन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
1. झा, आचायश आन्द, (1969) चािशकृ दर्शन, वह्दी ंवमवत, ंचू ना विभा , उत्तर्रकदनर्,
लणनउ,
2. ऋवर्, ्रको 0 उमार्कृ
स र र्माश, (1964), ंिशदर्शनंस्हः, चौण्बा विद्याभिन, िारा ंी-1
3. र्माश, च्वधर, (1991), भारतीय दर्शन आलो चन और धनर्
ु ीलन, मो तीलाल
बनारंीदां, वदल्ली
4. दनिराज, श 0 न्दवकृर्ो र, (1992), भरतीय दर्शन, उत्तर्रकदनर् वह्दी ंस्ाान, लणनउ
5. प0स ंण
ु लाल, ्रकमा मीमासंा (हनमच्व) (1939)
6. मनहता, मो हनलाल, जन दर्शन, श्री ं्मवत ज्ञानपीठ, लाहामशस ी, आ रा
7. उमा ्िामी, तत्िाााशवध म ंू्र (ंण
ु लाल ंसघिी कृत त वििनचन), पाश्वशनाा विद्याश्रम र्ो ध
ंस्ाान, िारा ंी-5
8. वमश्र, पसकृज कृुमार (1998), िर्नवर्कृ एिस जन तत्त्िमीमासंा म ववय कृा ्िरूपप, पररमल
पवब्लकृन र््ं, र्वक्त न र वदल्ली
2.9 वनबन्धखत्ुृतप्रश्न
(कृ) जन दर्शन कृी धनमु ान वयि्ाा कृो वि्तारपिू कृ
श ंमझाएस
(ण) नय वंद्धा्त कृो ंो दाहर ंमझाएस
( ) ंएभस ीनय कृी ंो दाहर ियाख्या कृर

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page ३४
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(घ) आज कृन ं्दभश म ्यावाद कृी महत्ता पर ्रककृार् शाल
(श) जन दर्शन कृन ्रकमा वच्तन कृन िवर्ि्य पर ्रककृार् शाल
(च) ्रकमा ि नय कृन ्रकयो जन ि ध्तर कृो ्पि कृर

उत्तराण्श मक्त
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इृखई-त3 जैनतदर््नतृखतवसद्धखन्
3.1 ्रक्तािना
3.2 उद्दनश्य
3.3 जन तत्त्िमीमासंा
3.3.1 ववय वच्तन
3.3.2 ववय कृन भनद
3.3.2.1. जीि ववय
3.3.2.2 जीि कृन धव्तत्ि कृन वलयन ्रकमा
3.3.3 धजीि ववय
3.3.3.1 पद्गु ल
3.3.3.2 आकृार्
3.3.3.3 धमश और धधमश
3.3.3.4 कृाल
3.4 जन आचारमीमासंा
3.5 ंारासर्
3.6 र्ब्दािली
3.7 धभ्यां ्रकश्नर कृन उत्तर
3.8 ं्दभश ््ा ंचू ी
3.9 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page ३६
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3.1तप्रस् खिनख
जन दर्शन ंन ं्बव्धत यह तींरी इकृाई ह इंंन पिू श ववतीय इकृाई म आपनन जन ज्ञानमीमांस ा कृी
वि्ततत जानकृारी ्रकाए कृी वजंकृन आधार पर आप बता ंकृतन हैं वकृ जन कृी ्रकमा वयि्ाा कृंी
ह? इं पाठ म हम जन दर्शन कृन वंद्धा्त ंन ं्बद्ध तत्त्िमीमासंा ताा आचारमीमासंा कृन विवभ्न
विर्यर पर चचाश कृर न वजंम यह ्पि कृरनन कृा ्रकयां वकृया जा रहा ह वकृ इं ज त् कृी वयि्ाा
जन म वकृं ्रककृार ंन ्िीकृत त ह ंाा ही नवतकृ मल्ू यर ताा आचार वयिहार कृन विर्य मन इनकृी क्या
दृवि ह?इं इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप ववय कृन ्िरूपप ताा जन आचार-वयिहार कृो ंमझा
ंकृ न ताा ध्य दर्शनर कृन ंाा इनकृी व्ावत कृा ं्यकृ् विश्लन र् कृर ंकृ न
3.2तउद्देश्
्रक्ततु इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप

 बता ंकृ न वकृ जन दर्शन कृी तत्त्िमीमासंा विर्यकृ दृवि क्या ह?


 ंमझ ंकृ न वकृ जन दर्शन म जीि, धजीि, पद्गु ल, कृालावद वयि्ाा क्या ह?
 जान पाएस न वकृ इं दर्शन म ज त् कृी विविधता कृा वनवहतााश क्या ह?
 ंमझ ंकृ न वकृ जन दर्शन कृी आचारमीमांस ा इं ज त् कृन वकृतनी धनरूपु प हैं?
3.3तजैन- त्त्ितुीुखंसख
तत्त्िमीमांस ा कृन ध्त तश विश्व कृन मलू तत्त्ि धााशत् आवद कृार कृा धनंु ्धान वकृया जाता ह यदा
कृदा इंन ंत्तामीमासंा भी कृहा जाता ह जन तत्त्िमीमासंा िा्तििादी और ंापन्तािादी
बहुत्ििाद ह इंन धननकृा्तिाद कृहा जाता ह तत्त्ि कृो धन्तधमाशत्मकृ माना या ह क्यरवकृ
्रकत्यनकृ ि्तु कृन धन्त धमश हो तन हैं- धन्तधमाशत्मकृस ि्तु ंत्ता कृी दृवि ंन इंन धननकृा्तिाद ताा
ज्ञान कृी दृवि ंन ्यावाद कृहा जाता ह धननकृा्तिाद कृा धाश ह ि्तु कृा धन्तधमाशत्मकृ हो ना
धन्तधमाशत्मकृ कृा धाश ह ि्तु म धन्त ु या धन्त ल् हो ना जन दर्शन कृन धनंु ार वजं
आश्रय म धमश हो तन हैं िह ‘धमी’ ह ताा धमी कृी विर्नर्ताएूँ ‘धमश’ ह जन दर्शन म धमी कृन वलए
‘ववय’ र्ब्द कृा ्रकयो हो ता ह यह ववय ंत् ह- ंद् ववयल् म् बवल्कृ तत्त्ि एिस ववय कृी तरह
ववय एिस ंत् भी एकृााशकृ ह क्यरवकृ ंब एकृ हैं इंवलयन ंब ंत् हैं- ंिशमकृ न म,् ंववर्नर्ाद्
3.3.1तगव् तवचन् नत
ववय म दो ्रककृार कृन धमश ्िीकृार वकृयन जातन हैं- ्िरूपप धमश और आ ्तकृ
ु धमश इं ्रककृार ववय िह

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ह वजंम ्िरूपप और आ ्तुकृ दो नर धमश पायन जातन हैं ्िरूपप धमश ववय कृन धपररितशनर्ील एिस
वनत्य धमश हैं इंकृन धभाि म ववय कृा धव्तत्ि ं्भि नह ह आ ्तकृ ु धमश ववय कृन
पररितशनर्ील धमश ह यन धमश ववय म आतन-जातन रहतन हैं इनकृन वबना भी ववय धव्तत्ििान् हो ंकृता

जन दर्शन म ्िरूपप धमश कृो ु कृहा जाता ह और आ ्तकृ ु धमश कृो पयाशय इं ्रककृार जन दर्शन
कृन धनंु ार ववय िह ह वजंम ु और पयाशय पायन जातन हैं- ु पयाशयिद् ववयम् जन इं बात पर
बल दनतन हैं वकृ व्रवय और ु कृो पर्पर पताकृ् नह वकृया जा ंकृता
जन दर्शन कृन धनुंार ववय ंत् ह- ंदव् वयल् म् ंत् िह ह वजंकृी उत्पवत्त एिस विनार् हो ता ह
ताा वजंम व्ारता हो ती ह- उत्पादवययध्रौवययतु स ंत् ववय ु कृी दृवि ंन वनत्य हो ता ह, क्यरवकृ
ु उंकृन धपररितशनर्ील धमश हैं पयाशय कृी दृवि ंन िह पररितशनर्ील और ध्ाायी ह जंन, घर
म मतवत्तकृा धपररितशनर्ील एिस वनत्य तत्त्ि ह इंकृी तीन विर्नर्ताएूँ हैं- उत्पवत्त, विनार् एिस व्ावत
ववय कृी इन तीनर विर्नर्ताओ स म कृो ई विरो ध भी नह ह, क्यरवकृ ु कृी दृवि ंन ववय म एकृता,
ंामा्यत्ि एिस वनत्यता कृी वंवद्ध हो ती ह और पयाशय कृी दृवि ंन धननकृता, विर्नर्त्ि एिस धवनत्यता
कृी इं ्रककृार दृवि-भनद ंन ि्तु म एकृता और धननकृता, ंामा्यत्ि एिस विर्नर्त्ि, वनत्यता एिस
धवनत्यता एकृ ंाा रह ंकृतन हैं
3.3.2. गव् तृे तभेद
- जन दर्शन म ववय कृन दो भनद हैं- धव्तकृाय और नाव्तकृाय धव्तकृाय ववय वि्ततत ववय ह
चूँवू कृ इंकृी ंत्ता ह (धव्त) और कृाय या र्रीर कृी भाूँवत आकृार् म वि्ततत ह, इंवलए इंन
धव्तकृाय ववय कृहतन हैं यह बहु्रकदनर्वयापी ववय ह धव्तकृाय ववय कृन दो भनद हैं- जीि और
धजीि जीि चनतन ववय ह धजीि धचनतन ववय ह धजीि कृन चार भनद हैं- पद्गु ल, आकृार्, धमश
और धधमश नाव्तकृाय वि्ताररवहत ववय ह यह एकृ ्रकदनर्वयापी ह कृाल ही एकृमा्र नाव्तकृाय
ववय ह ववय कृा ंवस ्ए ि ीकृर ध्ावस कृत ह-
ववयधव्तकृाय नाव्तकृाय (कृाल)
जीि धजीि
पद्गु ल आकृार् धमश धधमश
3.3.2.1तजीिगव् -त
जन दर्शन कृन ्रकितशकृ आचायों कृन मत म जीि वनत्य चनतन ताा धभौवतकृ तत्त्ि ह जन दर्शन म जीि

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र्रीर एिस इव्वयर ंन ंिशाा वभ्न एकृ चनतन ंत्ता ह यह स जीि एकृ ववय ह और चनतना उंकृा
्िरूपप या वनत्य धमश ह चनतना कृन धभाि म जीि कृा धव्तत्ि ं्भि नह ह
जन दर्शन कृन धनंु ार चनतना कृभी नि नह हो ती यहाूँ जन दर्शन कृा आत्मा ं्ब्धी विचार ्याय-
िर्नवर्कृ दर्शन कृन विचारर ंन वभ्न ह ्याय-िर्नवर्कृ दर्शन म चनतना आत्मा कृा आ ्तकृु ु ह
यह आत्मा एकृ धचनतन ववय ह जो विर्नर् धि्ााओ स म चत्य कृा आधार बनता ह वकृ्तु जन
दर्शन आत्मा कृो वनत्य धमश मानता ह उंकृन धभाि म आत्मा कृी ंत्ता धं्भि ह जन दर्शन यह
भी कृहता ह वकृ जीि म कृुा आ ्तकृ ु धमश भी हो तन हैं जो उंम आतन-जातन रहतन हैं ंुण, दःु ण
इच्ाा, ंकृस ल्प, आवद जीि कृन आ ्तकृ ु धमश हैं
जन दर्शन म जीि कृा एकृ ध्य ल् भी ्रकाए हो ता ह उमा्िामी कृन धनंु ार, जीि कृा ल्
उपयो ह- उपयो ल् ो जीिः
जन दर्शन कृन धनंु ार जीि ्िभाितः पू श ह उंम ‘धन्तचतिु य’ धााशत् चार ्रककृार कृी पू तश ाएूँ
पायी जाती हैं यन हैं- धन्त ज्ञान, धन्त दर्शन, धन्त िीयश और धन्त आन्द जीि कृन यन
्िाभाविकृ धमश कृन िल मक्त
ु जीिर म धवभवयक्त हो तन हैं वकृ्तु कृमशफल ंन ं्पतक्त हो नन कृन कृार
ंासंाररकृ जीिर म, जो ब्धन््त हैं, धन्तचतिु य कृी धवभवयवक्त नह हो पाती
जनदर्शन चनतना कृी धवभवयवक्त कृन आधार पर जीिर कृा ि ीकृर कृरता ह िह ंिश्रकाम जीि कृन
दो भनद कृरता ह- मक्त
ु और बद्ध मक्त ु जीिर म जीि कृन ्िाभाविकृ ्िरूपप कृा पू श ्रककृार्न हो ता ह
बद्ध जीि िन हैं जो धब भी कृमश पद्गु लर ंन धक्रा्त हैं जन दर्शन बद्ध जीिर कृन दो भनद कृरता ह- ्र ं
और ्ाािर ्र ं जीि वतमानस हैं और ्ाािर जीिर म वत नह हो ती ्ाािर जीिर म जीि कृन
्िरूपप कृी ्यनू तम धवभवयवक्त हो ती ह इनकृन पाूँच ्रककृार ह- पतथ्िीकृावयकृ, जलकृावयकृ,
िायकृु ावयकृ, तनजकृावयकृ और िन्पवतकृावयकृ इनम कृन िल एकृ इव्वय, ्पर्ेव्वय पायी जाती ह
्र ं जीिर म ्ाािर जीिर कृी धपन्ा चनतना धवधकृ विकृवंत हो ती ह चत्य कृी धवभवयवक्त कृी
दृवि ंन ्र ं जीिर कृन चार भनद हो तन हैं-
(1) वीव्वय जीि- इन जीिर कृो ्पर्ेव्वय एिस रंननव्वय, दो इव्वयाूँ ्रकाए हो ती हैं जंन, ंीप, वबना
परर िालन कृीर और घरघा
(2) ्र ीव्वय जीि- वजनकृन इन दो कृन ंाा ्रता वन ्वय स भी हैं ्र ाॅीव्वय कृहलाती हैं जंन - जॅ ू ॅॅस,
णरमल, वपपीवलकृा आवद
(3) चतरु रव्वय जीि- इन जीिर म ्पर्श, रंना, ्रता और च्ःु यन चार इव्वयाूँ पायी जाती हैं
जंन- भ्रमर, मक्णी आवद

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(4) पसचनव्वय जीि- इन जीिर म पाूँचर ज्ञाननव्वयर हो ती हैं जंन- मनष्ु य, पर्,ु प्ी आवद
उपयशक्त
ु वििनचन ंन यह तथ्य भी ्रककृार् म आता ह वकृ जन दर्शन धननकृजीििाद म विश्वां कृरता
ह जन दर्शन कृा यह विचार ंाख्स य दर्शन कृन ‘परुु र्बहुत्ि कृी धिधार ा’ कृन नजदीकृ ह
जन दर्शन जीि कृन विर्य म म्यमपररमा िाद कृा ्रकवतपादन कृरता ह यह भारतीय दर्शन म एकृ
विवच्र वंद्धा्त ह इंकृन धनंु ार जीि कृा पररमा म्यम आकृार कृा ह यह ंासंाररकृ धि्ाा
म जीि कृन पररमा कृो घरनन-बढ़नन िाला मानता ह यह आत्मा कृन पररमा कृन विर्य म विभिु ाद
और ध िु ाद कृा म्यिती वंद्धा्त ह भारतीय दर्शन म ्याय एिस धवत िनदा्त, आवद
विचारधाराएूँ आत्मा कृो ‘विभ-ु पररमा ’ मानती हैं इंकृन विपरीत िष् ि विचारधाराएूँ उंन ‘ध -ु
पररमा ’ मानती हैं इन दो नर वंद्धा्तर कृन विपरीत जन दार्शवनकृ उंन ‘म्यम-पररमा ’ मानतन हैं िन
उंन र्रीरपररमा ी कृहतन हैं
जन दर्शन कृन धनंु ार जीि म वि्तार ह, उंम वि्तार और ंसकृो च कृी ंसभािना रहती ह जीि
वजं भौवतकृ र्रीर ंन ं्बद्ध हो ता ह, उंकृी ल्बाई- चौडाई कृन धनरूप ु प उंकृा वि्तार और
ंकृ
स ो च हो ता ह माता कृन भश म वर्र्ु लघु आकृार कृा हो ता ह और र्रीरवि्तार कृन ंाा उंकृा
आकृार बढ़ता रहता ह जब जीि मनष्ु ययो वन म हो ता ह तो उंकृा पररमा मानिर्रीर कृन तल्ु य
हो ता ह जब िही जीि धपनन कृमाशनंु ार हााी या च री कृन र्रीर म ्रकिनर् कृरता ह तब उंकृा
पररमा हााी या च री कृन पररमा कृन ंमान हो जाता ह धााशत् जीि न तो विभु ह और न ध ,ु
धवप तु िह र्रीरपररमा ी ह जन कृन धनंु ार वजं ्रककृार एकृ ही कृमरन कृो दो दीपकृ आलो वकृत
कृर ंकृतन हैं उंी ्रककृार एकृ ही र्रीर म एकृावधकृ जीि भी धव्तत्ििान् हो ंकृतन हैं
3.3.2.2तजीितृे तअवस् त्ितृे तवयएतप्रुखण-त
जन दर्शन म वन्नवलवणत यवु क्तयर कृन आधार पर जीि या आत्मा कृी ंत्ता वंद्ध कृी जाती ह-
(1) ंण
ु , दःु ण इच्ाा, ंकृ
स ल्प आवद ु र कृा हम धनभु ि हो ता ह चूँवू कृ ु वबना ु ी कृन नह रह
ंकृतन धतः इन ु र कृन धव्तत्ि कृन वलए भी वकृंी ववय कृा हो ना आिश्यकृ ह यन ववय ही आत्मा
हैं
(2) र्रीर य््र ित् ह वजं ्रककृार वकृंी य््र कृो ंसचावलत कृरनन कृन वलए एकृ चालकृ कृी
आिश्यकृता हो ती ह उंी ्रककृार र्रीर जो जड ह उंन ंच स ावलत हो नन कृन वलए भी एकृ चालकृ कृी
आिश्यकृता ह िह चालकृ ही आत्मा ह

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(3) हमारी ज्ञाननव्वयाूँ ज्ञान कृन ंाधनमा्र हैं यह ज्ञान ्ियस ज्ञाननव्वयासॅन कृो या र्रीर कृो नह ्रकाए
हो ता इन ंाधनर ंन ज्ञान ्रकाए कृरनन िाला आत्मा ह
(4) र्रीर कृन वनमाश कृन वलए आत्मा कृी ंत्ता आिश्यकृ ह र्रीर कृा वनमाश पद्गु लकृ र ंन हो ता ह
यन पद्गु लकृ धचनतन हैं धतः इनंन ्ितः र्रीर कृा वनमाश नह हो ंकृता र्रीर कृा आकृार ्रकाए
कृरनन कृन वलयन इ्ह एकृ वनवमत्त कृार कृी आिश्यकृता ह यह वनवमत्त कृार आत्मा या जीि ह
3.3.3तअजीि-गव् -त
जन दर्शन म धजीि धचनतन या जड ववय ह वजंन ंुण दःु ण कृी धनुभवू त नह हो ती िह धजीि
ववय ह जीि कृी तरह धजीि भी धव्तकृाय ववय ह यन धजीि ववय चार ्रककृार कृन हैं- पद्गु ल,
आकृार्, धमश और धधमश
3.3.3.1तपकद्गय-त
ंघस रन ताा विघरन कृन वारा परर ाम कृो ्रकाए कृरनन िालन धजीि ववय कृा नाम पद्गु ल ह जन दर्शन
म पद्गु ल जड तत्त्ि या भौवतकृ तत्त्ि ह तत्त्ि रूपप म पद्गु ल कृा ्रकयो बौद्ध दर्शन म भी हुआ ह
िह ॅ स नॅस यह र्ब्द जीि कृन वलए आया ह यह विश्व कृा भौवतकृ आधार ह वयत्ु पवत्त कृन धनंु ार,
पद्गु ल कृा धाश ह परू यव्त लयव्त च धााशत् जो ववय परू और ल कृन वारा विविध ्रककृार ंन
पररिवतशत हो ता ह िह पद्गु ल ह- लनपरू ्िभािंनााः पद्गु लः
पद्गु ल कृन दो ्रककृार हैं- ध रूप
ु प और ्कृ्धरूपप पद्गु ल कृन विभाजन कृी धव्तम एिस ंक्ष्ू मतम
धि्ाा, जो पनु ः धविभाज्य हो , ु कृहलाती ह ध ु धविभाज्य हो नन कृन कृार वनरियि हो ता
ह इंकृा आवद, ध्त एिस म्य कृुा भी नह हो ता यह ंक्ष्ू मतम, धविभाज्य, वनरियि, वनरपन्
एिस वनत्य ंत्ता ह इंकृा न तो वनमाश हो ता ह और न विनार् िह ्ियस धमतू श ह यह धमतू श हो तन
हुए भी ंभी मतू श ि्तओ ु स कृा आधार ह जन दर्शन कृन धनंु ार ध ओ ु स म रूपप, रं, ्ध, और ्पर्श
ु हो तन हैं यन ु वनत्य या ्ाायी नह हैं ध ओ ु स कृन यन ु उनकृन ंसघातर म भी पायन जातन हैं
जन दर्शन कृन धनंु ार ध ु पद्गु लर कृन ंसघात ंन ्कृ्ध पद्गु लर कृा वनमाश हो ता ह जन दर्शन कृी
ंतविमीमासंा म विश्व कृा ढाूँचा परमा ओ ु स ंन वनवमशत मान जाता ह ंभी भौवतकृ पदााश, जो इव्वयर
ंन जानन जातन हैं, वजनम जीिर कृन र्रीर, ज्ञाननव्वयाूँ एिस मन भी र्ावमल हैं, ध ओ
ु स ंन वनवमशत हैं दो
या धवधकृ ध ओ ु स कृन ंसयो ंन ्कृ्ध या ंसघात पद्गु ल उत्प्न हो तन हैं ध ओ
ु स म आकृर्श र्वक्त
हो ती ह वजंंन ध ओ ु स म ंयस ो पर विभा हो ता ह पतथ्िी, जल, धवग्न, और िायु ्कृ्ध पद्गु ल हैं
और ं्पू श ज त् इ्ह ्कृ्धर ंन वनवमशत ह ्रकत्यनकृ दृश्यमान पदााश एकृ ्कृ्ध ह और भौवतकृ
ज त् ्कृ्धर कृा ंमहू ह भौवतकृ ज त् म वदणाई दननन िालन पररितशन ध ओ ु स कृन ंसयो और

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विभा ंन उत्प्न हो तन हैं ंस्नप म, ध पु द्गु ल धदृश्य हैं, धनमु ान ्य हैं, वकृ्तु ्कृ्ध पद्गु ल
दृवि ो चर हैं ध ु पद्गु ल कृार रूपप हैं और ्कृ्ध पद्गु ल कृायशरूपप
भारतीय दर्शन मॅ
स न ध िु ादी कृल्पना िर्नवर्कृ दर्शन म भी ्रकाए हो ती ह जन एिस िर्नवर्कृ ध िु ाद
म कृुा ंमानताएूँ हैं दो नर ध ओ ु स कृो धविभाज्य, वनरियि, वनत्य, धदृश्य ताा भौवतकृ ज त् कृा
उपादान कृार मानतन हैं दो नर दर्शनर कृन ध िु ादी विचारर म कृुा मतभनद भी हैं जंन, जन दार्शवनकृ
ध ओ ु स म कृन िल पररमा ात्मकृ भनद मानतन हैं, वकृ्तु िर्नवर्कृ दार्शवनकृ ध ओु स म पररमा ात्मकृ
और ु ात्मकृ दो नर भनद ्िीकृार कृरतन हैं जन दार्शवनकृ ध ओ ु स कृन ु र कृो वनत्य नह मानतन,
वकृ्तु िर्नवर्कृ इनकृन ु र कृो भी वनत्य मानतन हैं जन कृन परमा िु ाद पर वरतप ी कृरतन हुए श 0
हरमन जकृो बी कृा कृहना ह वकृ हम जनर कृो ्रकाम ्ाान दनतन हैं क्यरवकृ उ्हरनन पद्गु ल कृन ं्ब्ध म
धतीि ्रकाचीन मतर कृन आधार पर ही धपनी पद्धवत (परमा िु ाद) कृो ्ाावपत वकृया ह
3.3.3.2तरृखर्-
जन दर्शन म आकृार् िह धव्तकृाय ववय ह वजंम ध्य धव्तकृाय ववय, जीि एिस धजीि
वि्ततत हैं ताा यह रूपपावदरवहत, धमतू श, वनवष्क्रय ताा ंिशवयापकृ ह आकृार् ्ितः न वत कृी
धि्ाा म ह और न व्ारता कृी धि्ाा म उल्लनणनीय ह वकृ वि्ततत हो ना धव्तकृाय ववयर कृा
धमश ह, वकृ्तु उनकृा वि्तार आकृार् म ही ं्भि ह यह भी ंत्य ह वकृ आकृार् वि्तारहीन
पदााों कृो वि्ततत नह कृर ंकृता, वकृ्तु वि्ततत पदााों कृा वि्तार आकृार् कृन धभाि म ं्भि
नह ह आकृार् धन्त ह आकृार्- ्रकत्य् कृा विर्य नह ह उंकृा ज्ञान धनमु ान ंन हो ता ह जन
दर्शन धव्तकृाय ववयर कृन वि्तार हनतु आकृार् कृा धनमु ान कृरता ह
इं आकृार् कृन दो भनद हैं- लो कृाकृार् और धलो कृाकृार् लो कृाकृार् म ही वत ं्भि ह ंभी
धव्तकृाय ववय लो कृाकृार् म ही वि्ततत हैं धलो कृाकृार् र््ू य आकृार् ह यह धन्त तकृ
वि्ततत ह इंम वत कृा धभाि ह
3.3.3.3ततधु्तऔरातअधु्-त
जन दर्शन म धमश एिस धधमश कृा र्ावब्दकृ धाश न तो र्भु और धर्भु कृमश हैं, न प्ु य और पाप ताा
न ु और पयाशय रूपप धमश यहाूँ यन र्ब्द तकृनीकृी और पाररभावर्कृ धाश म ्िीकृार वकृयन जातन हैं
जन दर्शन ंंस ार म वत एिस व्ावत कृन वलए क्रमर्ः धमश और धधमश कृी ंत्ता ्िीकृार कृरता ह यन
दो नर जीि और पद्गु ल कृी क्रमर्ः वत और व्ावत कृन ंहायकृ कृार हैं धमश वत कृा आधार ह
धमश ्ियस वत नह ह और न यह जीि और पद्गु लावद ववयर कृो वत ्रकदान कृरता ह वकृ्तु इन ववयर
म जो वत वदणाई दनती ह िह धमश कृन कृार ही हो ती ह धमश उनकृी वत म कृन िल ंहायकृ हो ता ह

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जंन, माली पानी म तरती ह पानी माली कृो न तो वत ्रकदान कृरता ह और न उ्ह वत कृरनन कृन
वलए ्रकनररत कृरता ह, धवपतु िह उंकृन तरनन कृन वलए आधार दनता ह उंी ्रककृार धमश जीिावद ववयर
कृी वत कृा आधार ह इंी ्रककृार धधमश न तो ्ियस व्ावत ह और न िह जीिावद ववयर कृो व्ावत
्रकदान कृरता ह िह कृन िल जीि, पद्गु लावद ववयर कृी व्ावत कृा आधार ह
धमश एिस धधमश म पर्पर विरो ध कृन धवतररक्त कृवतपय ंमानताएूँ भी हैं यन दो नर क्रमर्ः वत एिस
व्ावत कृन उदांीन कृार ह इन दो नर कृा ज्ञान धनमु ान ंन ही हो ता ह वत कृन कृार कृन रूपप म धमश
कृा और व्ावत कृन कृार कृन रूपप म धधमश कृा धनमु ान वकृया जाता ह दो नर म रूपप, रं, ्ध और
्पर्श आवद ु र कृा धभाि ह दो नर वनत्य एिस धमतू श हैं
3.3.3.4तृखय-
पररितशन कृा जो कृार ह उंन कृाल कृहतन हैं यह एकृ धनव्तकृाय ववय ह इंकृा धव्तत्ि तो ह ,
वकृ्तु इंम कृायत्ि या वि्तार नह ह कृाल कृी ंत्ता भी धनमु ान ंन ही वंद्ध हो ती ह ितशना,
परर ाम, वक्रया, परत्ि और धपरत्ि, ज्यनष्ठ और कृवनष्ठ आवद विचारर कृी ंााशकृता कृन वलए कृाल
कृी ंत्ता कृा धनमु ान वकृया जाता ह कृाल न हो तो उक्त धिधार ाएूँ ं्भि नह हैं वभ्न-वभ्न
् र म ितशमान रहना ितशना ह धि्ााओ स म पररितशन परर ाम ह वक्रया धािा वत भी वभ्न-
वभ्न धि्ााओ स कृो धार कृरना ह इनकृन वलए कृाल कृा हो ना आिश्यकृ ह इंी ्रककृार पिू श ताा
पश्चात् कृन भनद, ज्यनष्ठ एिस कृवनष्ठ कृन भनद कृी ं्भािना भी कृाल कृन कृार ह इनकृी ं्भािना कृन
वलए ही कृाल कृी ंत्ता कृा धनमु ान कृरतन हैं ंम्त विश्व म एकृ ही कृाल वयाए ह
कृाल कृन भनद- कृाल कृन दो भनद हैं- पारमावाशकृ कृाल और वयािहाररकृ कृाल ित्तशना पारमावाशकृ कृाल
कृन कृार हो ती ह यह ंदि ितशमान कृाल म ही रहती ह इंम भतू ्, ितशमान एिस भविष्यत् कृा
विभाजन नह हो ता वयािहाररकृ कृाल कृो ‘ंमय’ भी कृहतन हैं ित्तशना कृन धवतररक्त ध्य पररितशन
वयािहाररकृ कृाल कृन कृार हो तन हैं िर्श, मां, प्, ंएाह, वदन, घरस ा, वमनर, ंनकृ्श, पल, ्
आवद वयािहाररकृ कृाल कृन उदाहर हैं पारमावाशकृ कृाल धनावद और धन्त ह , वकृ्तु वयािहाररकृ
कृाल ंावद और ंा्त ह
ं् स नप म, जन दर्शन कृी ्ाापना वन्न ्रककृार कृी ह दर्शन कृी ंभी ्रक ावलय स ंत् या िा्तविकृता
कृन ्िरूपप कृी वयाख्या कृरनन कृन ्रकयां म वकृंी एकृ विर्नर् विकृल्प ंन जडु ी रहती हैं उनकृा
हठधवमशतापू श दािा हो ता ह वकृ कृन िल उ्ह कृा विकृल्प ंच्चा विकृल्प ह जब वकृ ध्य ्रक ावलयर
कृी धार ाए तावकृश कृता पर णरी नह उतरत और इंवलयन उ्ह ध्िीकृार वकृया जाना चावहए जन
दर्शन कृन धनंु ार एकृ ही विकृल्प कृो पकृडन रहना उवचत नह ह ंसंार बहुलता यक्त ु ह यह स तकृ
वकृ एकृ धकृन ली ि्तु भी धननकृधमी हो ती ह ि्तुओ स कृो धननकृ दृविकृा र ंन दनणा जा ंकृता ह
्रकत्यनकृ दृविकृो ंन वभ्न वनष्कृर्श वनकृलता ह वकृ्तु ऐंन ्रकत्यनकृ वनष्कृर्श म मा्र आवस र्कृ ंत्य

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हो ा परम ्िीकृार या परम वनर्नध, दो नर ही भ्रमपू श हैं ्रकत्यनकृ ्ाापना ंर्तश हो ती ह कृो ई भी
्िीकृत वत या वनर्नध वकृंी विवर्ि व्ावत म ही ंत्य हो ंकृता ह, यह धपनन आपम ंत्य नह हो
ंकृता
अभ् खसतप्रश्न
1. जन दर्शन म ंत् कृा ल् ह-
(कृ) उत्पाद, वयय एिस ध्रौवय ंन यक्त
ु हो ना (ण) कृूर्ा वनत्य हो ना
( ) व्र कृालातीत हो ना (घ) जंा ह िंा ही हो ना
2. जन दर्शन म पद्गु ल ह-
(कृ) जीि ववय (ण) धजीि ववय
( ) ववय कृा धमश (घ) वनत्य ववय
3. जन दर्शन म जीि कृा ्िरूपप ह-
(कृ) धनव्तकृाय (ण) म्यम पररमा
( ) एकृमा्र ंत्य (घ) इनम ंन कृो ई नह
4. वन्नवलवणत म वत कृा आधार ह-
(कृ) जीि (ण) धजीि
( ) धधमश (घ) धमश
5. वन्नवलवणत म ंन धनव्तकृाय व्रवय ह-
(कृ) पद्गु ल (ण) धमश
( ) कृाल (घ) धधमश
6. वन्नवलवणत म ंन कृौन धंत्य ह-
(कृ) जन दर्शन म धजीि धचनतन ववय ह

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(ण) वजंन ंण
ु दःु ण कृी धनुभवू त हो ती ह िह धजीि ववय ह
( ) जीि कृी तरह धजीि भी धव्तकृाय ववय ह
(घ) धमश धजीि ववय ह
3.4तजैनतरचखराुीुखंसख
ध्य भारतीय दर्शनर कृी भ वस त जन दर्शन कृी भी धपनी आचार मीमासंा ह यह आचार मीमासंा
इनकृन मो ् ज्ञान कृी पररवध म व्ार ह ऐंन म इं दर्शन म मो ् ंाधना कृन क्रम म आचार कृी र्द्ध
ु ता
कृा विर्नर् महत्त्ि ह ब्धन ंन ाुरकृारा मो ् ह- यह जानतन हुयन मो ् कृी धिधार ा ंन पिू श ब्धन
कृो जानना आिश्यकृ ह
ब्धन कृा ्िरूपप- जन दर्शन म ब्धन एिस मो ् कृा ्रकश्न जीि या आत्मा कृन विर्य म उठता ह जन
दर्शन कृन धनंु ार जीि एकृ ववय ह और चनतना उंकृा ल् ह जीि ्िभाितः पू श एिस मक्त ु ह
उंम ‘धन्तचतिु य’ धााशत् चार ्रककृार कृी पू तश ाएूँ पायी जाती हैं यन हैं-धन्त दर्शन, धन्त ज्ञान,
धन्त िीयश एिस धन्त आन्द जीि कृन यन ्िाभाविकृ धमश कृन िल मक्त ु जीिर म धवभवयक्त हो तन हैं
वकृ्तु कृमशफल ंन ं्पतक्त हो नन कृन कृार ंासंाररकृ जीिर म, जो ब्धन््त हैं, धन्तचतिु य कृी
धवभवयवक्त नह हो पाती उल्लनणनीय ह वकृ ब्धन््त धि्ाा म भी जीि कृन यन ल् कृन िल
वतरो वहत हो तन हैं, नि नह हो तन कृमशज्य बाधाओ स कृन दरू हो जानन पर यन ्िाभाविकृ धमश जीि म पनु ः
्रककृर हो जातन हैं जंन, ंयू श ं्पू श ज त् कृो आलो वकृत कृरता ह, वकृ्तु मनघ और तर्ु ार, आवद कृन
आिर कृन कृार िह ंसंार कृो ्रककृावर्त नह कृर पाता जब इनंन उत्प्न आिर दरू हो जाता ह
तब िह ंसंार कृो पनु ः ्रककृावर्त कृरता ह िंन ही जीि भी ्िभाितः पू श ह और ‘धन्तचतिु य’
ंन यक्त
ु ह, वकृ्तु ब्धन ््त हो नन कृन कृार उंकृन ्िाभाविकृ ्िरूपप कृी धवभवयवक्त नह हो पाती
जब िह मक्त ु हो जाता ह तब िह धपनी ्िाभाविकृ पू तश ा कृो पनु ः ्रकाए कृर लनता ह
जन दर्शन कृन धनंु ार ब्धन कृा धाश ह, ‘ज्म ्ह कृरना’, ‘जीि कृा र्रीर ंन ं्ब्ध हो ना’
जीि और कृमशपद्गु लर कृा ंसयो हो ना ब्धन ह र्रीर धार कृरनन ंन या कृमश पद्गु लर ंन ंसयो हो नन कृन
कृार जीि कृी ्िाभाविकृ पू तश ा वतरो वहत हो जाती ह और उंकृन ्िरूपप कृी धवभवयवक्त नह हो
पाती
जन दर्शन कृन धनंु ार कृमश ही ब्धन कृा कृार ह जन दर्शन म कृमश कृी धिधार ा धत्य्त
विल् ह भारतीय दर्शन कृी ध्य ्रक ावलयर म कृमश कृा तात्पयश धच्ान बरु न कृायों और कृरननिालन
कृन वलयन उनकृन धच्ान या बरु न परर ामर ंन हो ता ह वकृ्तु जन दर्शन म कृमश मल
ू तः भौवतकृ एिस

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पौद्गवलकृ ह जो जीि ंन उंी ्रककृार ंसलग्न हो ंकृता ह वजं ्रककृार वकृंी वचपवचपन पदााश ंन मल
वचपकृ जाती ह कृमश कृा तात्पयश पदााश कृन उन ंक्ष्ू म कृ र ंन ह जो जीि कृो ब धस तन हैं कृमश जीि ंन
ंसयक्त
ु हो कृर उंकृन ्िरूपप कृी दवू र्त कृर दनता ह वजंकृन कृार जीि धपनी र्द्ध ु ता ंन च्युत हो कृर
ब्धन कृी धि्ाा म आ जाता ह
जन दर्शन म कृमश कृी महती भवू मकृा ह जीि कृी ं्पू श र्ारीररकृ विर्नर्ताएूँ कृमशज्य मानी जाती ह
यन कृमश आठ ्रककृार कृन हैं-
ज्ञानािर ीय कृमश- ज्ञान कृा नि कृरनन िालन कृमश
दर्शनािर ीय कृमश-विश्वां कृा नि कृरनन िालन कृमश
मो हनीय कृमश- धज्ञान या मो ह पदा कृरनन िालन कृमश
िनदनीय कृमश- ंण
ु या दःु ण कृी धनभु वू त पदा कृरनन िालन कृमश ो ्र कृमश- ो ्र कृो वनधाशररत कृरनन
िालन कृमश
आयष्ु कृमश- जीि कृी आयु कृा वनधाशर कृरनन िालन कृमश
नाम कृमश- िह कृमश, वजंंन वयवक्त कृन नाम कृा वनश्चय हो ता ह और ध्तराय कृमश- बाधाएूँ पदा कृरनन
िालन कृमश
कृमश जीि कृन ध्दर ्रकविि हो कृर उंन ज्म लननन कृन वलए बा्य कृरता ह जीि कृन धतीत कृमों ंन जीि
म िांनाएूँ पदा हो ती ह िांनाएूँ ततए हो ना चाहती हैं, परर ाम्िरूपप िन पद्गु लर कृो धपनी ओर
आकृत ि कृरकृन जीि कृो र्रीर ंन ं्बद्ध कृर दनती हैं
जन दर्शन भी ध्य भारतीय विचारधाराओ स कृन ंमान धविद्या कृो ब्धन कृा कृार मानता ह
धविद्या कृन कृार उंकृा िा्तविकृ ्िरूपप तो धिरुद्ध हो ता ही ह, उंम वमथ्या दर्शन भी उत्प्न
हो ता ह, परर ाम्िरूपप उंम धविरवत एिस ्रकमाद आता ह धपनन ्िाभाविकृ ्िरूपप कृन ज्ञान एिस
र्भु -धर्भु कृन विर्य म उदांीनता ही क्रमर्ः धविरवत एिस ्रकमाद ह जीि म धविरवत एिस ्रकमाद ंन
क्रो ध, मान, माया, लो भ कृु्रकितवत्तयाूँ पदा हो ती हैं इ्ह कृर्ाय कृहतन हैं यन कृर्ाय यो वारा कृमशपद्गु ल
कृो जीि ंन ंसयक्त
ु कृरतन हैं जन दर्शन म यो कृा ्रकयो कृावयकृ, िावचकृ एिस मानवंकृ ्प्दनर कृन
वलए हो ता ह इनकृन वारा जीि कृी ओर कृमशपद्गु ल आकृवर्शत हो तन हैं इं ्रककृार जन दर्शन म वमथ्या
दर्शन, धविरवत, ्रकमाद, कृर्ाय एिस यो ब्धन कृन कृार ह

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जीि कृी ओर कृमश पद्गु लर कृा ्रकिाह ‘आस्रि’ कृहलाता ह आस्रि ब्धन कृा कृार ह, क्यरवकृ
आस्रि कृन धभाि म कृमशपद्गु ल जीि म ्रकिनर् नह कृर ंकृतन आस्रि कृन दो भनद हैं- भािास्रि और
ववयास्रि जीि म कृमशपद्गु लर कृन ्रकिनर् कृन पिू श जीि कृन भािर म पररितशन हो ता ह वजंन ‘भािास्रि’
कृहतन हैं इंकृन बाद जीि म कृमश पद्गु लर कृा ्रकिनर् हो जाना ‘ववयास्रि’ ह वजं ्रककृार तनल ंन वलए
र्रीर पर धलू रावर् वचपकृ कृर जमा हो जाती ह उंी ्रककृार कृमशपद्गु ल जीि पर वचपकृ जातन हैं तनल ंन
वलए हो ना भािास्रि और उं पर धल ू रावर् कृा वचपकृ जाना ववयास्रि ह
इं ्रककृार जन दर्शन कृन धनंु ार कृर्ायर कृन कृार कृमाशनंु ार जीि कृा पद्गु ल ंन आक्रा्त हो जाना
ही ब्धन ह ब्धन कृन भी दो भनद ्रकाए हो तन हैं- भािब्ध और ववयब्ध जीि म कृमशपद्गु लर कृन ्रकिनर्
कृन पिू श उंम भािास्रि उत्प्न हो ता ह उंकृन पश्चात् जीि कृा जो ब्धन हो ता ह, िह भािब्ध ह
इंकृन बाद कृमशपद्गु लर कृा ्रकिनर् हो नन पर जीि म ववयास्रि उत्प्न हो ता ह उंकृन बाद जीि कृा जो
ब्धन हो ता ह उंन ववयब्ध कृहतन हैं
जीि कृा कृमशपद्गु लर ंन वियो मो ् ह कृमशपद्गु लर ंन जीि कृा वियो हो नन कृन वलए दो चीज
आिश्यकृ हैं- नयन कृमशपद्गु लर कृा जीि कृी ओर आस्रि ब्द हो जाय और जीि म ्रकविि हुए परु ानन
कृमशपद्गु लर कृा विनार् हो जाय इनम ंन ्रकाम धि्ाा ंसिर ह और ववतीय धि्ाा वनजशरा ह ंसिर
ंन नयन कृमशपद्गु लर कृा जीिात्मा म ्रकिनर् कृरना वनरुद्ध हो जाता ह ंसिर कृन दो भनद ्रकाए हो तन हैं-
भािंसिर और ववयंसिर भािंसिर ववयंसिर कृी पिू शिती धि्ाा ह वजंम जीि कृन रा -वनर्
मो हरूपप विकृारर कृा वनरो ध हो ता ह ववयंिस र म जीिात्मा म नयन कृमशपद्गु लर कृा ्रकिनर् वनरुद्ध हो
जाता ह इं ्रककृार ंसिर म जीि रा , वनर्, मो ह, आवद विकृारर ंन रवहत हो जाता ह वजंंन उंम नयन
कृमशपद्गु लर कृा ्रकिनर् ताा उंंन हो नन िाला ब्धन रुकृ जाता ह
ंिस र कृी धि्ाा म जीिात्मा म नयन कृमशपद्गु लर कृा ्रकिनर् तो ब्द हो जाता ह, वकृ्तु आत्मा म
पहलन ंन ही ्रकविि हुए कृमशपद्गु लाॅ
स न कृा वनरो ध ंिस र ंन नह हो ता धतः कृन िल ंिस र ंन ही जीिात्मा
कृमशपद्गु लर ंन ाुरकृारा नह ्रकाए कृर पाता इंकृन वलए यह भी आिश्यकृ ह वकृ जीिात्मा म पहलन ंन
्रकविि हुए कृमशपद्गु ल भी नि हो जाय जीिात्मा म पहलन ंन ही ्रकविि हुए कृमशपद्गु लर कृा विनार्
वनजशरा ह वनजशरा कृन भी दो भनद हैं- भाि वनजशरा और ववय वनजशरा ंाधकृ म भाि-वनजशरा म कृमों कृा
नार् कृरनन कृी भािना उत्प्न हो ती ह ववय-वनजशरा म आत्मा म ्रकविि हुए कृमशपद्गु लर कृा िा्तविकृ
नार् हो ता ह इंम दर्शन, ज्ञान एिस चरर्र कृन धभ्यां ंन जीिात्मा म ्रकविि हुए कृमशपद्गु लर कृा
विनार् वकृया जाता ह जब कृमशपद्गु ल कृा धव्तम कृ भी जीिात्मा ंन पताकृ् हो जाता ह तब िह
धपनी ्िाभाविकृ पू तश ा कृो ्रकाए कृरकृन मक्त
ु हो जाता ह यही मो ् कृी धि्ाा ह इं ्रककृार जीि
कृन ंभी कृमों कृा ्य मो ् ह- कृत त््नकृमश्यो मो ्ः मो ् धभािात्मकृ धि्ाा नह ह िह एकृ

उत्तराण्श मक्त
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भािात्मकृ धि्ाा ह इंम कृन िल दःु णवनितवत्त ही नह हो ती, धवपतु िह इंम धपनी ्िाभाविकृ
पू तश ा धन्त दर्शन, धन्त ज्ञान, धन्त िीयश और धन्त आन्द कृो भी ्रकाए कृर लनता ह इं
्रककृार मो ् धन्त आन्द और धन्त ज्ञान कृी भी धि्ाा ह
ं्यकृ् दर्शन ं्यकृ् ज्ञान और ं्यकृ् चरर्र , मो ् कृन मा श मानन जातन हैं जन दर्शन कृी मो ्मीमासंा
म इन तीनर कृा महत्िपू श ्ाान ह, क्यरवकृ तीनर ंव्मवलत रूपप ंन मो ् कृन ंाधन हैं इंवलए जन
दार्शवनकृ इ्ह ‘व्र रत्न’ कृहतन हैं इन तीनर ंाधनर कृा पताकृ्-पताकृ् ि नश ध्ासवकृत ह-
ं्यकृ् दर्शन- जन दर्शन कृन धमश एिस इंकृन तीाशकृरर कृन उपदनर्र म दृढ़ विश्वां ं्यकृ् दर्शन ह
इंकृी आिश्यकृता ंसर्य कृन वनिार कृन वलए हो ती ह ं्यकृ् दर्शन कृा उदय दर्शनािर ीय कृमों
कृन विनार् ंन हो ता ह
ं्यकृ् ज्ञान- जन धमश एिस दर्शन कृन वंद्धा्तर कृा ज्ञान ं्यकृ् दर्शन ह इंम जीि और धजीि कृन
मलू तत्त्िर कृा पू श ज्ञान हो ता ह यह तत्त्िर कृा धंव्दग्ध एिस दो र्रवहत ज्ञान ह ज्ञानािर ीय कृमों कृन
विनार् ंन ं्यकृ् ज्ञान कृी ्रकावए हो ती ह
ं्यकृ् चरर्र - ं्यकृ् ज्ञान कृो कृमश म परर त कृरना ं्यकृ् चरर्र ह धवहतकृारी कृमां कृा
पररत्या और वहतकृारी कृमां कृा आचर ही ं्यकृ् चरर्र ह यह जन ंाधना कृा ंबंन महत्िपू श
धस ह, क्यरवकृ मनष्ु य ं्यकृ् कृमश ंन ही कृमशमक्त ु हो कृर जीिन कृन लक्ष्य कृो ्रकाए कृर ंकृता ह
इंम धवहंस ा, ंत्य, ध्तय, ब्रह्मचयश एिस धपरर्ह, इन पाूँच व्रतर कृन पालन कृा उपदनर् ह जन
दर्शन म इन व्रतर कृन दो रूपप हैं- ‘महाव्रत’ और ‘ध व्रु त’ महाव्रत कृा विधान जन ं्स यावंयर कृन
वलए ह और ध व्रु त कृा विधान हत ्ार कृन वलए
धवहंस ा- जन ंाधना कृन पसचव्रतर म धवस हंा कृो महत्िपू श ्ाान ्रकाए ह ऐंा माना जाता ह वकृ
भारत म धवहंस ा कृन वंद्धा्त कृा ्रकाम उद्घो र् जन नन ही वकृया ाा धवहंस ा कृा र्ावब्दकृ धाश ह, मन,
िा ी और कृमश, तीनर ंन हो नन िाली वहंस ा कृा पररत्या जन दर्शन म धवहंस ा कृा धाश कृन िल दंू रर
कृो हावन पहुचूँ ानन ंन बचना ही नह ह, धवपतु उनकृन उपकृार म ंचनि रहना भी ह
ंत्य- इंकृा धाश ह, ‘धंत्य िचन कृा पररत्या ’ इं व्रत कृा पालन कृरनन कृन वलए मनष्ु य कृो भय,
लो भ एिस परवन्दा कृी ्रकितवत्त ंन दरू रहना चावहए
ध्तनय- चौरितवत्त कृा िजशन ध्तनय ह जन दर्शन कृन धनंु ार वबना वदयन पर ववय कृा ्ह नह कृरना
चावहए जन दर्शन कृन जीिन कृी भाूँवत उंकृी ं्पवत्त कृो भी धत्य्त पवि्र मानता ह िन इंन वयवक्त
कृा बाह्य जीिन कृहतन हैं इं ्रककृार िन परववय ्ह कृो भी जीि-वहंस ा ही मानतन हैं
ब्रह्मचयश- जन दर्शन िांनाओ स कृन पररत्या कृो ब्रह्मचयश कृहतन हैं यह कृन िल इव्वय-ंण ु कृा
पररत्या नह ह, धवपतु ंभी कृामनाओ स कृा पररत्या ह

उत्तराण्श मक्त
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धपरर्ह- विर्यांवक्त कृा पररत्या धपरर्ह ह जन दर्शन कृन धनंु ार ममु ् ु ु कृो र्ब्द, ्पर्श, रूपप,
रं और ्ध, इन विर्यर कृा पररत्या कृरना चावहए जन ंस्यांी ंन पू श धपरर्ह कृी धपन्ा कृी
यी ह िह वकृंी भी ि्तु कृो , वभ्ापा्र कृो भी धपना नह कृह ंकृता
जन दर्शन कृन धनंु ार जीि ं्यकृ् दर्शन, ं्यकृ् ज्ञान और ं्यकृ् चरर्र कृा धनंु र कृरतन हुए
ंम्त कृमशबाधाओ स कृो दरू कृरकृन मो ् ्रकाए कृरतन हैं
जन दर्शन कृी विर्नर्ता उंकृा वयािहाररकृ उपदनर् ह वकृ्तु इंकृन वारा बतायी यी ंाधना धत्य्त
कृठो र ह धपनी कृठो रता कृन कृार ही यह ंामा्य जन कृा धमश नही बन ंकृा इंकृन वारा ंाधओ ु स
कृन वलए बतायी यी ंाधना तो कृठो र ह ही, हत ्ार कृन वलए वनधाशररत कृी यी ंाधना भी
धपन्ाकृत त कृठो र ह यह धपनी कृठो रता कृन कृार मवु नयर कृा ही धमश बन कृर रह या जन दर्शन
वारा महाव्रत एिस ध व्रु त कृन रूपप म आचार-पद्धवत कृा विभाजन कृत व्र म ह इंंन जन धमश और
धवधकृ धवयािहाररकृ हो या
अभ् खसतप्रश्न
1. जन दर्शन म मो ् ह
(कृ) आिा मन ंन मवु क्त (ण) वदयन कृा बझु ना
( ) जीि कृा कृमशपद्गु लर ंन वियो (घ) परमात्मा कृी ्रकावए
2. जन दर्शन म कृमश ह
(कृ) लक्ष्य ्रकाए कृरनन कृा कृार (ण) धहशत् पद ्रकाए कृरनन कृा कृर
( ) ब्धन कृा कृार (घ) जन दर्शन म ्रकितत्त हो ना
3. बाधाएूँ पदा कृरनन िालन कृमश हैं-
(कृ) नाम कृमश (ण) ध्तराय कृमश
( ) मो हनीय कृमश (घ) आयष्ु कृमश
4. जीि कृी ओर कृमश पद्गु लर कृा ्रकिाह -------- कृहलाता ह
5. जीि और कृमशपद्गु लर कृा ंयस ो हो ना -------- ह
3.5 सखराखंर्
इं इकृाई कृो पढनन कृन बाद आप यह जान चकृ ु न हैं वकृ जन दर्शन कृी तत्त्िमीमासंा म ववय कृी विवर्ि
धिधार ा ह जीि एिस धजीि इन दो भा र म विभावजत ववय विश्व कृन ध ु ंन ध तु म एिस महान ंन
महत्तम तत्त्िर कृी वयाख्या म पू तश या ं्म हैं
इंी ्रककृार इनकृी आचारमीमासंा वजं ्रककृार कृमशब्र्?् धन एिस मो ् कृी तावकृश कृ वयाख्या ्रक्ततु
कृरती ह िह विश्व दर्शन वच्तन पर्परा म ंिशाा धनठू ा ह इंी क्रम म ंस्यांी एिस हत ्ार कृी

उत्तराण्श मक्त
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आचार पद्धवत कृा भी यह स वच्तन ्रकाए हो ता ह जन दार्शवनकृ ्पि रूपप ंन ंाधु एिस हत ्ा कृी
आचार पद्धवत कृी वयाख्या कृरतन हैं वकृ्तु दानर कृन वलयन यह पद्धवत धत्य्त कृठो र ह
ध्त,ु इं इकृाई कृन ध्ययन ंन आप तत्त्िमीमांस ा एिस आचारमीमांस ा कृन धनर् ु ीलन ंन इं
ि्तिु ादी एिस बहुत्ििादी दर्शन कृन ंािशभौवमकृ वच्तन कृो धत्य्त ंहजता ंन ंमझ कृर धपनन
ज्ञान कृो धवभवयक्त कृर पाएस न
इं इकृाई कृन ध्यनयन ंन आप कृावयाशनर् ु ीलन वारा ंहज ही ्रकाएा हो नन िालन फलर और उपादानर
कृी धनभु वू त कृो धवभवय क्तय कृर ंकृ न
3.6 र्ब्दखियी
ंापन्तािादी- यह वच्तन कृी एकृ ऐंी विधा ह वजंम वच्तकृ ज त् कृन वकृंी भी ि्तु कृी ंत्ता
कृा वनर्नध नह कृरतन बवल्कृ वकृंी भी ि्तु कृी ंत्ता धा िा ंत्यता कृा वनधाशर वकृंी वभ्न ि्तु
कृी धपन्ा कृरतन हैं
धन्तधमाशत्मकृ- जन दर्शन म ि्तु कृो धन्तधमाशत्मकृ कृहा या ह क्यरवकृ इं लो कृ म धननकृ
ि्तएु हैं ताा ्रकत्यनकृ ि्तु कृन धननकृ धमश हो तन हैं- धन्तधमशकृस ि्तु
परुु र् बहुत्ि- ंाख्स य दर्शन म धननकृ परुु र् कृी धिधार ा ह इंी वलयन उंम परुु र् बहुत्ि कृी
धिधार ा ्रक्ततु कृी यी ह ंासख्य कृन धनंु ार ्रककृत वत कृन धवतररक्त परुु र् दंू रा मल
ू तत्ि ह
धव्तकृाय- धव्तकृाय कृा धाश ह वि्तार यक्त ु , ंत्तायक्त
ु हो नन ंन यह धव्त ह ताा र्रीर कृन ंमान
वि्तारयक्त
ु हो नन कृन कृार यह कृाय कृहलाता ह
धनव्तकृाय- धव्तकृाय कृा विपरीत धनव्तकृाय हो ता हैं इंकृा ंामा्य धाश ह एकृदनर्वयापी
हो ना जन दर्शन म कृाल एकृमा्र एकृदनर्वयापी ववय ह
3.7 अभ् खसतप्रश्नोंतृे तउत्तरात
3.3 1. कृ, 2. ण, 3. ण, 4. घ, 5. , 6. ण
3.3. 1. 2. 3. ण 4. आस्रि 5. ब्धन
3.8 सन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
1. झा, आचायश आन्द, (1969) चािशकृ दर्शन, वह्दी ंवमवत, ंचू ना विभा , उत्तर्रकदनर्,
लणनउ,

उत्तराण्श मक्त
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2. ऋवर्, ्रको 0 उमार्कृ
स र र्माश, (1964), ंिशदर्शनंस्हः, चौण्बा विद्याभिन, िारा ंी-1
3. र्माश, च्वधर, (1991), भारतीय दर्शन आलो चन और धनर् ु ीलन, मो तीलाल
बनारंीदां, वदल्ली
4. दनिराज, श 0 न्दवकृर्ो र, (1992), भरतीय दर्शन, उत्तर्रकदनर् वह्दी ं्स ाान, लणनउ
5. पस0 ंण ु लाल, ्रकमा मीमासंा (हनमच्व) (1939)
6. मनहता, मो हनलाल, जन दर्शन, श्री ं्मवत ज्ञानपीठ, लाहामशस ी, आ रा
7. उमा ्िामी, तत्िाााशवध म ं्र ू (ंण ु लाल ंघस िी कृत त वििनचन), पाश्वशनाा विद्याश्रम र्ो ध
ंस्ाान, िारा ंी-5
8. वमश्र, पकृ
स ज कृुमार (1998), िर्नवर्कृ एिस जन तत्त्िमीमांस ा म ववय कृा ्िरूपप, पररमल
पवब्लकृन र््ं, र्वक्त न र वदल्ली
3.9 वनबन्धखत्ुृतप्रश्न
(कृ) जन दर्शन कृी तत्त्िमीमासंा म ववय कृा वि्ततत ि ीकृर ्रक्ततु कृर
(ण) जन दर्शन धमश एिस धधमश कृी तल
ु ना कृरतन हुए इनकृी विर्नर्ता पर ्रककृार् शाल
( ) जन आचार मीमासंा कृन िवर्ि्य पर एकृ वि्ततत वनब्ध वलण
(घ) जन दर्शन म ब्धन कृन ्िरूपप कृो ्पि कृरन

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इृखईत4- चखिख्ृतदर््नतृखतपरराच तएिंतवसद्धखन्
4.1 ्रक्तािना
4.2 उद्दनश्य
4.3 चािाशकृ दर्शन कृा पररचय
4.3.1 भवू मकृा
4.3.2 चािाशकृ दर्शन कृन उल्लनण
4.3.3 चािाशकृ दर्शन विवभ्न नाम एिस उनकृन धाश
4.3.4 चािाशकृ दर्शन कृन ंावहत्य
4.4 चािाशकृ दर्शन कृन वंद्धा्त
4.4.1 चािाशकृ दर्शन कृी ज्ञानमीमांस ा
4.4.2 चािाशकृ दर्शन कृी तत्त्िमीमांस ा
4.5 ंारासर्
4.6 र्ब्दािली
4.7 धभ्यां ्रकश्नर कृन उत्तर
4.8 ं्दभश ््ा ंचू ी
4.9 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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4.1तप्रस् खिनखत
चािाशकृ दर्शन ंन ं्बद्ध ्रकाम ताा इं ब्ल कृ कृी चताु श इकृाई म आपकृी जानकृारी कृन वलयन यह स
ंिश्रकाम चािाशकृ दर्शन कृन पररचय एिस वंद्धा्त ्रक्ततु वकृयन जा रहन हैं, इं विश्वां कृन ंाा वकृ
्रकायः कृम ्रकचवलत यह िाद आपकृन ज्ञान कृो धवभवद्ध कृर पाए ा
भारतीय दार्शवनकृ वच्तकृ कृी ंामा्य एिस विवर्ि ्रकायः ंम्त धारा कृा एकृमा्र धपिाद
चािाशकृ दर्शन ह ंामा्य रूपप ंन इं ‘नाव्तकृ दर्शन वर्रो मव ’ कृहा जाता ह, जबवकृ विवर्ि रूपप
ंन यह ‘भौवतकृिाद कृा चरम’ माना जाता ह नाव्तकृ िनद कृी वन्दा कृरनन िालन, परलो कृ कृो न
माननन िालन ताा ईश्वर कृी ंत्ता म धविश्वां कृरनन िालन हो तन हैं ताा चािाशकृ दर्शन नाव्तकृता कृन
तीनर ु र ंन यक्तु ह, कृदावचत् यही कृार ह वकृ दर्शन कृा यह ं््रकदाय ‘नाव्तकृ वर्रो मव ’
कृहलाता ह ंाा ही, ध्य ंम्त भारतीय दार्शवनकृ वच्तन कृन विरुद्ध कृन िल इं ज त् कृन दृश्य
तत्त्ि, परम ंण
ु , विर्य, इच्ाा, कृामना कृी ही बात कृरनन कृन कृार यह ‘‘भौवतकृिाद कृा चरम’’
कृहलाता ह
4.2 उद्देश्
्रक्ततु इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप -

 बता ंकृ न वकृ चािाशकृ दर्शन कृा उल्लनण कृह स कृह स वकृया या ह?
 ंमझ ंकृ न वकृ चािाशकृ दर्शन कृा वनवहतााश क्या ह?
 जान पाएस न वकृ इं दर्शन कृन ंमपु लब्ध ंावहत्य कृौन कृौन ंन ह?
 ंमझ ंकृ न वकृ चािाशकृ दर्शन कृन मौवलकृ वंद्धा्त क्या क्या हैं?
4.3.चखिख्ृतदर््नततत
उक्त ं्दभश म नाव्तकृ कृी धिधार ा कृो यह स आिश्यकृ रूपप ंन ंमझ वलया जाना चावहए
मन्ु मतवत म िनद कृी वन्दा कृरनन िालन कृो नाव्तकृ कृहा या ह- नाव्तकृो िनदवन्दकृः (2/11)
पाव वन नन परलो कृ कृो माननन िालन कृो आव्तकृ कृहा ह ताा न मानननिालन कृो आव्तकृ कृहा ह-
धव्त नाव्त वदिस मवतः (धि0 4/4/60) वकृ्तु ंमा्य वच्तन म धनीश्वरिादी कृो नाव्तकृ कृहा
जाता ह चािाशकृ दर्शन कृन उदय कृा मलू कृार कृदावचत् उपवनर्द् दर्शन कृा उच्च विज्ञानिाद, िवदकृ
कृमशकृा्श कृी धतावकृश कृता ताा उंकृा दरुु पयो , यज्ञर म पर्ु बवल ्रकाा, तात्कृावलकृ ंामावजकृ ि
राजनीवतकृ धवयि्ाा एिस धव्ारता कृा विरो ध ाा चािाशकृ, लो कृायत धा िा बाहश्पत्य दर्शन

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्रकाचीन भारतीय भौवतकृिाद कृा ्रकवतवनवधत्ि कृरता ह वन्ं्दनह चािाशकृ कृन भौवतकृिाद कृी
तााकृवात पर्परा उतनी ही ्रकाचीन ह वजतना वकृ ्ियस भारतीय दर्शन इं क्रम म यह स यह
्मर ीय ह वकृ भौवतकृिादी ्रकितवत्त कृन बीज उपवनर्दर म भी दनणन जा ंकृतन हैं यह स भौवतकृिाद ंन
तात्पयश ह िह विचारधारा वजंकृन धनंु ार विश्व कृा मल ू भतू तत्त्ि एकृ या धननकृ रूपप, जडात्मकृ ह
भौवतकृिादी जडत्ि ंन वभ्न वकृंी चनतन तत्त्ि कृो ्िीकृार नह कृरतन यही चािाशकृ ि्तत्त्ु त्ि ह
4.3.1चखिख्ृतदर््नतृे तउल्दयेणत
एकृ वयािहाररकृ ंत्य ह वकृ धच्ाा तभी धच्ाा ह जब बरु ा हो ा, इंी ्रककृार बरु ा तभी बरु ा हो ा
जब धच्ाा विद्यमान हो ा दंू रन र्ब्दर म, कृो ई भी एकृ िाद ंमाज या र्ास्त्र म तभी पनपन ा जब
विरो धी कृो ई दंू रा विरो धी िाद विद्यमान हो ा इं आधार पर यह ्िीकृार कृरना पडन ा वकृ िवदकृ
पर्परा कृा विरो धी िाद भी िवदकृ कृाल म धिश्य ही रहा हो ा कृदावचत् इंी िाद नन चािाशकृ कृा
्िरूपप ्ह वकृया हो ा
ऋग्िदन म इं भौवतकृिाद कृा बीज ढॅॅॅॅूढा जा ंकृता ह िह स इ्व कृी ंत्ता म ं्दनह कृरनन िालन
ताा ताा धपव्रती लो र कृा उल्लनण ्रकाए हो ता ह परो ्तः चािाशकृीय वंद्धा्त कृा हम इंन बीज
कृह ंकृतन हैं भौवतकृिादी ्रकितवत्त कृन बीज उपवनर्दर म भी दनणन जा ंकृतन हैं श्वनताश्वतरो पवनर्द् कृन
्रकार्भ म ऐंी धननकृ धार ाओ स कृी व नती दी यी ह जो ंसंार कृी उत्पवत्त कृी वयाख्या कृरनन कृा
्रकयां कृरती हैं इनम ंन एकृ ज त् कृा मल ू कृा कृार भतू कृो मानता ह इंी तरह कृठो पवनर्द् म
भी कृहा या ह वकृ धन कृन मो ह ंन मढ़ू , बालबवु द्ध, ्रकमादी वयवक्तयर कृो परलो कृ कृन मा श म आ्ाा
नह हो ती, िह कृन िल इं लो कृ कृो मानता ह, परलो कृ कृो नह , ऐंा वयवक्त पनु ः पनु ः मनरन िर् म
आता ह (कृठ0 1/2/6) ाा्दो ग्य उपवनर्द् कृन ्रकजापीत और इ्व-विरो चन ंसिाद म उल्लनण ह वकृ
धंरु र कृा ्रकवतवनवध विरो चन दनहात्मिाद ंन ही ं्तिु हो कृर चला या ाा (ाा्दो ग्य0 8-7)
्रकत्य्तः इं िाद कृा उल्लनण ्रकायः ंारन महत्त्िपू श ंावहत्य म ्रकाए हो तन हैं बौद्ध वपरकृर म
लो कृायत मत कृा ना्ना उल्लनण ह कृौवरलीय धाशर्ास्त्र म ंासख्य और यो कृन ंाा लो कृायत
दर्शन कृा तकृश पर आधाररत दर्शन कृन रूपप म उल्लनण ह चािाशकृ दर्शन कृन ्रकारव्भकृ ््ा ‘बाहश्तत्य
ं्र ू ’ या ‘लो कृायवतकृ ं्र ू ’ नाम ंन जाना जाता ह इं पर वलणी यी भा रु ी या िव कृ श ा नाम कृी
रीकृा कृा उल्लनण पतसजवल कृन वयाकृर महाभाष्य मन ्रकाए हो ता ह इंी ्रककृार श्रीकृत ष् वमश्र विरवचत
नारकृ ्रकबो धच्वो दय कृन ववतीय धकृ स म यह उद्धर ्रकाए हो ता ह वकृ बतह्पवत नन वजं र्ास्त्र कृी
रचना कृरकृन चािाशकृ कृो ंमवपशत वकृया ाा उंकृा वि्तार चािाशकृ ताा उनकृन वर्ष्यर कृन वारा वकृया
या ह

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4.3.3तचखिख्ृतदर््नतृे तविवभन्नतनखुतएिंतउनृे तअथ्
इंंन पिू श कृन वििर म चािाशकृ मत ंन ं्बद्ध कृई नामर कृी चचाश कृी यी ह चािाशकृ, लो कृायत
ताा बाहश्पत्य- यन तीन इनकृन नाम ्रकाए हो तन हैं
चािाशकृ र्ब्द कृन कृई धाश ्रकाए हो तन हैं ंामा्य धिधार ा ह वकृ चािाशकृ चारु-िाकृ् धााशत्
वमिभार्ी कृा ंसव्ए रूपप ह इंकृा धवभ्रकाय िह वयवक्त ह, वजंकृी िा ी या िचन चारु या
मनो हारर ी ह इंम ्पितः यह ंसकृनत ह वकृ जनंामा्य म यह दर्शन ंहज ्िीकृत त ाा एकृ ध्य
धार ा कृन धनंु ार चािाशकृ र्ब्द चिश- चबानन या णानन धातु ंन बना ह इंकृन धनंु ार चािाशकृ मौज,
म्ती णानन-पीनन मा्र म विश्वां कृरतन ान
लो कृायत धााशत् लो कृ $ आयत कृा तात्पयश जनंामा्य म ्रकचवलत हो ना ह हररभव नन लो कृायत
कृा धाश उन ंाधार लो र ंन वकृया जो विचारर््ू य म् ू श कृी तरह आचर कृरतन हैं राधाकृत ष् न् कृी
दृवि म लो कृायत भौवतकृिाद कृन वलयन ंंु स्कृत त पद ह आयत कृा धाश आयतन धााशत् आधार
मानकृर यह भी कृहा जाता ह वकृ लो कृायत कृा धाश इं मढ़ू एिस लौवकृकृ ंंस ार कृा आधार ह एकृ
ध्य धनमु ान कृन धनंु ार लो कृायत एकृ तकृनीकृी र्ब्द ह वजंकृा तात्पयश वििाद, वित्शा एिस
कृुतकृश कृा विज्ञान ह ऐंा इं कृार कृहा या ह वकृ यह दर्शन ालपू श िाद वििाद म रुवच लनता ह
और विवभ्न विर्यर पर पार्पररकृ दृविकृो कृो चनु ौती दनता ह
बाहश्पत्य नाम ंन धवभ्रकाय ह वकृ इं दर्शन कृन ्रक तन ा बतह्पवत ान यद्यवप इंकृा कृो ई वनवश्चत ंाक्ष्य
नह ह वकृ बतह्पवत इं दर्शन कृन ्रक तन ा ान पनु रवप परिती उपवनर्द् म एकृ कृाा ्रकाए हो ती ह वकृ
बतह्पवत नन धंरु र कृो नाव्तकृ विद्या कृा उपदनर् वदया ाा वकृ इंकृन ्रकभाि ंन धंरु र कृा नार् हो
ताा इ्व वनष्कृ्रकृ धमरािती पर राज्य कृर ंकृ
4.3.4तचखिख्ृतदर््नतृे तसखवहत् त
दभु ाशग्य ंन इं दार्शवनकृ ं््रकदाय कृा कृो ई भी ््ा ्रकातय नह ह इं दर्शन कृन वंद्धा्तर ि
धार ाओ स कृो जाननन ि ंमझनन कृन वलयन हम पू शतः इंकृन विरो वधयर कृन वारा दी यी जानकृारी पर ही
वनभशर रहना पडता ह
जयरावर् भट्ट विरवचत तत्त्िो पतलिवंसह नामकृ ््ा कृो ाो डकृर इं मत कृा कृो ई मौवलकृ ््ा
उपलब्ध नह ह यह ््ा भी बहुत बाद कृा ह वजंकृा ्रककृार्न 1940 ई0 म हुआ ह वकृ्तु इं
विर्य म यह एकृ धवनिायश ंत्य ह वकृ कृो ई भी ््ा, भलन ही िह वकृंी ं््रकदाय कृा हो , चािाशकृ
कृन कृवतपय आधारभतू वंद्धा्तर कृा उल्लनण एिस उनकृा ण्शन वकृयन वबना धपनन कृो पू श नह
मानता इं आधार पर एकृ ंामा्य वन यश यह धिश्य ही वलया जा ंकृता ह वकृ ्रकायः हर
दार्शवनकृ ््ा इं िाद कृा एकृ महत्त्िपू श ंावहवत्यकृ स्रो त बन जाता ह पनु रवप, चािाशकृ दर्शन कृन

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मतर कृो ्रकंाररत कृरनन म ंिाशवधकृ महत्त्िपू श भवू मकृा ंिशदर्शनंस्ह, ्रकबो धच्वो दय ताा
बाहश्तत्यं्र ू कृी रही ह
अभ् खसतप्रश्न-

1. चािाशकृ कृन ध्य नाम हैं-


(कृ) बाहश्पत्य ताा लो कृायत (ण) लो कृायत ताा पार्पु त
( ) पार्पु त ताा बाहश्पत्य (घ) चािाशकृ एिस पार्पु त
2. चािाशकृ दर्शन कृन ्रकारव्भकृ ््ा वकृं नाम ंन जानन जातन ह?
3. चािाशकृ दर्शन ंन ं्बद्ध वकृ्ह तीन ््ार कृन नाम बताएॅॅॅस
4. लो कृायत कृा धाश ह-
(कृ) जनंामा्य म ्रकचवलत हो ना (ण) ं्ु दर िचन
( ) लो र कृा घर (घ) लो कृ िचन
4.4तचखिख्ृतदर््नतृे तवसद्धखन् त
4.4.1तचखिख्ृतदर््नतृीतज्ञखनुीुखंसख-त
भारतीय दर्शन वच्तन म चािाशकृ दर्शन ज्ञानमीमासंा कृी दृवि ंन ्रकत्य्िादी, तत्त्िमीमासंा कृी दृवि ंन
भौवतकृिादी और आचारमीमासंा कृी दृवि ंन ंण ु िादी विचारधारा ह इंकृी विचारधारा कृा
ंिाशवधकृ महत्िपू श प् इंकृा ज्ञानमीमासंीय ्रकत्य्िाद ह ध्य ंम्त भारतीय दर्शन कृन विपरीत
चािाशकृ दर्शन कृन िल ्रकत्य् कृो ्रकमा मानता ह और ध्य ्रकमा र कृा वनर्नध कृरता ह
ि्ततु ः इंकृन ज्ञानवंद्धा्त कृा वजतना विवर्ि प् एकृमा्र ्रकत्य् ्रकमा कृी ्िीकृत वत ह, उतना ही
विवर्ि प् ध्य ्रकमा र, विर्नर्तः ‘धनमु ान ्रकमा ’ कृा ण्शन भी ह उल्लनणनीय ह वकृ भारतीय
दर्शन कृन चािाशकृनतर ं््रकदाय ्रकमा कृन ंाधन कृन रूपप म ्रकत्य् कृन ंाा धनमु ान ्रकमा कृन ्रकामा्य म
धिश्य विश्वां कृरतन हैं
चािाशकृ दर्शन कृन धनंु ार याााश ज्ञान कृा एकृमा्र ्रकामाव कृ ंाधन ह ्रकत्य्- ्रकत्य्मनकृस ्रकमा म्
चािाशकृ ्रकत्य् कृन धवतररक्त ध्य ्रकमा र कृी िधता कृो ्िीकृार नह कृरता ्रकत्य् कृन विर्य म

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चािाशकृर कृन वारा दी यी कृो ई भी ्पि पररभार्ा ्रकाए नह हो ती ्रकायः िन भी ध्य भारतीय
दार्शवनकृर कृी तरह यह ्िीकृार कृरतन हैं वकृ ज्ञाननव्वय एिस विर्य कृन ं्पकृश ंन उत्प्न ज्ञान ही ्रकत्य्
ह इंकृा ्रकमा भी ्रकत्य् ह हमारी ज्ञाननव्वयाूँ पाूँच हैं- च्ःु , श्रो ्र , नावंकृा, रंना और त्िकृ्
रूपप, रं, ्ध, ्पर्श और र्ब्द यह पचस विध इव्वय ्रकत्य् ह ंण ु , दःु ण आवद कृा धनभु ि भी इं
पसचविध इव्वय ्रकत्य् पर ही आवश्रत ह
चािाशकृ म ्रकत्य् ्रकमा विर्यकृ वच्तन कृी ्पिता कृो इं पकृार ंमझा जा ंकृता ह वकृ रूपप कृन
धभाि म जो धदृि ह, रं कृन धभाि म जो धना्िावदत ह, ्ध कृन धभाि म जो धना्रतात ह,
्पर्श कृन धभाि म जो ध्पति ह ताा र्ब्द कृन धभाि म जो धश्रतु ह ऐंा वच्तन कृन िल कृल्पनाओ स
म ही हो ंकृता ह, याााश म नह ्रकत्य् कृो एकृमा्र ्रकमा माननन कृा कृार इं ्रकमा मॅस न ्रकाए
धभ्रा्तता और वनश्चयात्मकृता ह जो ्रकत्य्नतर ्रकमा र म ं्भि नह ह
धनमु ानविर्यकृ चािाशकृ वच्तन- जंा वकृ ऊपर उल्लनण वकृया या ह, वकृ चािाशकृ कृन वारा ्रकिवतशत
्रकत्य् कृी पररभार्ा ्रकाए नह हो ती वकृ्तु इंकृन वारा वकृया धनमु ान कृा ण्शन ंिाशवधकृ ्रकवंद्ध
ह धनमु ान कृा यह ण्शन म्िविरवचत ंिशदर्शनंस्ह म ्रकाए हो ता ह तदनंु ार-
दृि हनतु ंन धदृि ंा्य कृी वंवद्ध कृरना धनमु ान ह, पिशत पर दृि धमू कृन ज्ञान ंन पिशत पर धदृि
धवग्न कृा ज्ञान कृरना धनमु ान ह धनुमान कृा आधार वयावए ह यह वयावए हनतु और ंा्य, वलस
और वलस ी कृन बीच ंाहचयश कृा वनयम ह चािाशकृ कृा इं विर्य म कृहना ह वकृ धनमु ान म दंू रन
कृी उपव्ावत ंन एकृ कृी उपव्ावत कृा वनश्चय वकृया जाता ह यह तभी ं्भि ह जब दो नर ि्तु कृी
वनत्य ंहिवतशता कृा दृढ वनश्चय हो जंन- धमू और धवग्न कृा ं्ब्ध- जह स जह स धमू ह, िह स िह स
धवग्न धिश्य ह वकृ्तु तथ्य यह ह वकृ ऐंा वनयम बनाया नह जा ंकृता पनु ः पनु ः वनरी् कृरनन
ंन कृन िल यह वंद्ध हो ता ह वकृ धएु ॅॅॅस कृी कृुा घरनाएॅॅॅस धवग्न कृी घरनाएॅॅॅस हो ती हैं,
लनवकृन धएु ॅॅॅस कृी ंभी घरनाएॅॅॅस धवग्न कृी घरनाएॅॅॅस नह हो ंकृत क्यरवकृ इं बात कृी
परू ी ंसभािना ह वकृ ऐंी घरनाएॅॅॅस हमारन वनरी् म आनन ंन रह जाएॅॅॅस परर ामतः ंसर्य कृन
वलयन ंदि ्ाान बना रहता ह और धनमु ान कृी ्रकामाव कृता ्ाावपत नह हो ती ्रकामाव कृ
धनमु ान कृी तााकृवात घरनाओ-स जह स धएु ॅॅॅस ंन धवग्न कृा धनमु ान वकृया या और उं ्ाान
पर जानन पर याााश धवग्न वदणी- कृो ंसयो ही कृहा जा ंकृता ह
चािाशकृ दार्शन कृा यह ्पि कृान ह वकृ धमू और धवग्न कृन बीच वयातय-वयापकृ-भाि कृी कृल्पना
वनराधार एिस तकृश विरुद्ध ह, क्यरवकृ इं ्रककृार कृन तकृश िाक्यर कृो ्रकाए कृरनन कृा कृो ई िध ंाधन नह
ह चूँवू कृ वयावए हनतु और ंा्य कृा वयातय-वयापकृ ं्ब्ध ह, धतः चािाशकृर कृी मा्यता ह वकृ
धनमु ान तभी वनश्चयात्मकृ एिस वनदोर् हो ंकृता ह जब वयावए वनदोर् एिस िा्तविकृ हो वकृ्तु

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वयावए कृन विर्य म वनश्चायकृ रूपप ंन ऐंा नह कृहा जा ंकृता जहाूँ धआु ूँ हो ता ह, िहाूँ आ हो ती
ह- हम इं वयावए ज्ञान कृो कृन िल तभी वनश्चायकृ एिस ्रकमाव कृ मान ंकृतन हैं जब हम ्रकत्य् ंन
धम्रू यक्त
ु ंभी पदााों कृो धवग्नयक्त
ु जान ंकृ वकृ्तु यह वबल्कृुल धं्भि ह वकृ हम भतू एिस
भविष्य कृन ंभी धमू िान् ्ालर कृो धवग्नयक्त
ु दनण ंकृ
्रकत्य् कृा ं्ब्ध कृन िल ितशमान ंन ह और हम ितशमान ंमय म भी ंभी धूमिान पदााों कृो
धवग्नयक्त
ु नह जान ंकृतन पुनः, यवद इं ्रककृार कृी वयावए आज ंत्य भी हो तो यह भविष्य म भी
ंत्य हो ी- इंकृा कृो ई ्रकमा नह ह इं ्रककृार ्रकत्य्ानभु ि कृा ्न्र धत्य्त ंीवमत ह,
परर ाम्िरूपप िह हम वकृंी भी ंामा्य ं्ब्ध (वयावए) कृा ज्ञान नह कृरा ंकृता
चािाशकृ कृा यह भी कृहना ह वकृ ्रकत्य् कृन आधार पर धमू त्ि एिस िवित्ि कृा ज्ञान नह हो ंकृता
इव्वय ्रकत्य् ंन कृन िल विर्नर्र कृा ही ज्ञान हो ता ह, ंामा्य कृा नह जब हमारा ंारा ज्ञान विर्नर्र
तकृ ही ंीवमत ह तो हम विर्नर्र कृी ंीमा कृा धवतक्रम कृरनन कृा कृो ई धवधकृार नह ह विर्नर्र ंन
ंामा्य कृी कृल्पना हमारी बवु द्ध कृी भ्रा्त कृल्पना ह, िा्तविकृ ज्ञान नह ह धमू त्ि एकृ जावत या
ंामा्य ह जो ंभी धमू िान पदााों मॅ स न विद्यमान रहता ह धतः जब तकृ ंभी धमू िान एिस
िविमान पदााों कृा ्रकत्य् नह हो ा, तब तकृ उनकृन ंामा्य धमश कृा ज्ञान ं्भि नह ह धतः
कृुा ्ालर पर धमू त्ि एिस िवित्ि कृन ्रकत्य् ंन धुएूँ और धवग्न कृन म्य ंामा्य ं्ब्ध (वयावए)
कृी ्ाापना ं्भि नह ह
पनु ः, वयावए हनतु और ंा्य कृा वनरुपावधकृ वनयत ंाहचयश ं्ब्ध ह चािाशकृ कृा कृान ह वकृ
्रकत्य् वारा वनरुपावधकृ ं्ब्ध कृा ज्ञान ं्भि नहॅ स ीॅस ह उपावध दो ्रककृार कृी हो ती ह-
आर्वस कृत और वनवश्चत यवद उपावध वनवश्चत ह, जंन, धवग्न एिस धएु ूँ म, तो वयावए धिध हो ी यवद
उपावध कृी आर्कृ स ा ह तो भी वयावए िध नह हो ी तात्पयश यह ह वकृ हम दो ि्तओु स म ंाहचयश कृो
दनणकृर यह नह कृह ंकृतन वकृ उनकृा ंाहचयश वनरुपावधकृ ह
चािाशकृ दर्शन कृन धनंु ार धनमु ान और र्ब्द ्रकमा भी वयावए कृो ंत्यावपत नह कृर ंकृतन हैं
धनमु ान ्रकमा ंन वयावए कृो ्ाावपत कृरना इंवलए धं्भि ह, क्यरवकृ वजं धनमु ान कृन वारा हम
इंकृी ्ाापना कृर न िह भी वयावए पर वनभशर हो ा इं ्रककृार हमारा तकृश ध्यो ्याश्रय दो र् ंन ््त
हो ा इं ्रककृार एकृ धनुमान कृन ंत्यापन कृन वलए वकृंी ध्य धनमु ान कृी आिश्यकृता हो ी और
उं धनमु ान कृन वलए वकृंी ध्य धनमु ान कृी धनमु ान कृी यह पर्परा धारािावहकृ रूपप म बनी ही
रहन ी इं ्रककृार धनि्ाा दो र् कृा भी ्रकंस उपव्ात हो ा

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वयावए कृी ्ाापना र्ब्द ्रकमा ंन भी ं्भि नह ह, क्यरवकृ ्रकामतः, र्ब्द ज्ञान कृा ्रकामाव कृ
ंाधन नह ह और ववतीय, र्ब्द ्रकमा कृन आधार पर वयावए कृो ्ाावपत कृरनन कृन ्रकयां म धनमु ान
र्ब्द ्रकमा पर वनभशर हो जायन ा ऐंी व्ावत म धनुमान ज्ञान कृा ्ित््र ंाधन नह रह जायन ा
पनु ः, कृार -कृायश वनयम कृन आधार पर भी वयावए कृो ्ाावपत नह वकृया जा ंकृता, क्यरवकृ कृार -
कृायश कृा ंािशभौम वनयम ्ियस एकृ वयावए ह इं ्रककृार चािाशकृर कृा कृान ह वकृ वयावए कृी
्ाापना वकृंी भी ्रकमा ंन ं्भि नह ह
इं ्रककृार चािाशकृ धनमु ान ्रकमा कृी िधता एिस वनश्चयात्मकृता म ं्दनह वयक्त कृरतन हैं उनकृा यह
भी कृान ह वकृ धनमु ान कृो िध ्रकमा तभी माना जा ंकृता ह जब इंकृन वारा ्रकाए ज्ञान
ंसर्यरवहत एिस िा्तविकृ हो वकृ्तु धनमु ान म इंकृा ंिशाा धभाि हो ता ह, यद्यवप कृुा धनमु ान
आकृव्मकृ रूपप ंन (ंसयो िर्) ंत्य हो तन हैं
चािाशकृ कृी र्ब्द ्रकमा विर्यकृ मा्यता- भारतीय दर्शन कृन ्रकायः ंारन दार्शवनकृ ं््रकदायर म र्ब्द
्रकमा कृो भी याााश ज्ञान कृा ंाधन माना जाता ह आए परुु र्र कृन िचनर एिस श्रवु तयर ंन जो ज्ञान
्रकाए हो ता ह उंन र्ब्द ्रकमा कृहतन हैं और इंन उपलब्ध कृरानन िालन धंाधार ंाधन कृो ‘र्ब्द
्रकमा ’ कृहतन हैं ंारी आव्तकृ दर्शन पर्परा म िनदर कृो ्रकमा माना जाता ह
चािाशकृ दर्शन नन र्ब्द ्रकमा कृा भी ण्शन वकृया ह वकृंी परुु र् कृन आए और लो कृो पकृारकृ हो नन
कृन कृार उंकृन िाक्यर म श्रद्धा रणना धनमु ान ंन ं्भि ह, यह धनमु ान ्ियस ्रकमा नह ह
इंवलयन धनमु ानावश्रत र्ब्द कृो भी ्रकमा नह माना जाना चावहए यवद आए परुु र् ्रकत्य्वंद्ध
पदााों कृा ि नश कृरतन हैं तो यह ि नश ्रकत्य् ्रकमा कृन ध्त तश आ जाता ह यवद िन धदृि धश्रतु
धज्ञात पदााों कृा ि नश कृर तो इंन उनकृी कृल्पनामा्र ंमझा जा ंकृता हॅ याााश नह
चािाशकृ कृी यह भी मा्यता ह वकृ आए परुु र्र कृन वारा उच्चररत र्ब्दर ंन ज्ञान्रकावए हो ती ह, धतः
उंन श्रो ्र नव्वयज्य ्रकत्य् ही मानना चावहए, ्ित््र ्रकमा नह पनु ः, आए परुु र्र कृन र्ब्द ्रकत्य्
विर्यर कृन बो ध पयश्त ही ्रकामाव कृ मानन जा ंकृतन हैं यवद उनंन ध्रकत्य् विर्यर कृन बो ध कृी
धार ा ्रक्ततु कृी जाती ह तो उनकृा ्रकामा्य ंव्दग्ध हो जाता ह, क्यरवकृ उन विर्यर कृा ्रकामा्य
्रकत्य् वारा वंद्ध नह वकृया जा ंकृता पनु ः, चािाशकृर कृा विचार ह वकृ र्ब्द ंन ्रकाए ंभी ज्ञान
धनमु ानवंद्ध हैं चॅ ू ॅवकृ धनमु ान कृी ही ्रकामाव कृता ंव्दग्ध ह इंवलयन धनमु ान कृी तरह
र्ब्द्रकमा कृी भी ्रकमाव कृता ंव्दग्ध ह
चािाशकृ िनदर कृी ्रकामाव कृता कृा ंिशाा वनर्नध कृरतन हैं िन िनदर कृो धंत्यता, पनु रुवक्त एिस
धंस वत दो र्र ंन यक्त
ु कृहतन हैं िन िनदर कृो धतू श परु ो वहतर कृी कृत वत मानतन हैं िवदकृ या ावद कृमों म

उत्तराण्श मक्त
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भी उनकृा विश्वां नह ह इन कृमों कृो िह धतू शजनर कृा कृत त्य मानतन हैं ताा एकृ ्रककृार ंन िन उन
जनर कृी जीविकृा कृा भी उंन ंाधन मानतन हैं इनकृा मानना ह वकृ श्राद्धावद कृमों ंन मतत वयवक्त ततए
नह हो ंकृता यन ईश्वर, आत्मा, िनद, परलो कृ, धमश, धधमश, पाप, प्ु य आवद कृो भी ्िीकृार नह
कृरतन इनकृी दृवि म, इनंन ्रकायः ्ि श, नरकृ, यज्ञ, आत्मा, परमात्मा आवद धतीव्वय विर्यर कृा
ज्ञान ्रकाए हो ता ह चूँवू कृ इं ज्ञान कृो ्रकत्य् वारा ंत्यावपत नह वकृया जा ंकृता, धतः यन ्रकमा
नह हो ंकृतन
उपमान ्रकमा विर्यकृ मा्यता- चािाशकृ उपमान कृी ्रकामाव ता कृो भी ध्िीकृार कृरतन हैं चूँवू कृ
उपमान कृा आधार ंादृश्य ज्ञान ह और ंादृश्य कृा ज्ञान ्रकत्य् ंन ही हो ता ह धतः चािाशकृ इंकृन
वलए वकृंी ्ित््र ्रकमा कृो आिश्यकृ नह मानतन पनु ः, कृवतपय भारतीय विचारकृ भी उपमान
कृा ध्तभाशि धनमु ान म ही कृरतन हैं धतः धनुमान कृन ध्रकामाव कृ हो नन ंन उपमान भी ध्रकामाव कृ
हो जाता ह
इं ्रककृार ध्य भारतीय दर्शन पर्परा म ्िीकृत त धनमु ान, र्ब्द और उपमान ्रकमा र कृन
ध्रकामाव कृ हो नन कृन कृार चािाशकृ ज्ञानमीमासंा म ्रकत्य् ही एकृमा्र ्रकमा बचता ह
ंमी्ा- चािाशकृ दर्शन कृी ्रकत्य्िादी ज्ञानमीमासंा कृन विरुद्ध भारतीय दर्शन पर्परा कृन ध्य
ं््रकदायर म ्रकबल ्रकवतवक्रया हुई, क्यरवकृ इंनन भारतीय ज्ञानमीमासंा म न कृन िल एकृ नयी
विचारधारा कृो ज्म वदया ्रकत्यतु ंमकृालीन ंम्त विचारधारा कृी ंनातन ्ाापना कृो ंिशाा
पररिवतशत कृर वदया परर ामतः इंन ध्य विचारधारा कृन ्रकबल विरो ध कृा ंामना कृरना पडा ध्य
दार्शवनकृर नन चािाशकृ कृन ज्ञानवंद्धा्त कृन विरुद्ध वन्नवलवणत आ्नप वकृया-
(1) चािाशकृ दर्शन नन ्रकत्य् कृो एकृमा्र ्रकमा ्िीकृार कृरकृन ताा इतर ्रकमा र कृा ण्शन कृरकृन
बौवद्धकृ दर्शन वच्तन कृन विरुद्ध धपना ्िर मण ु र वकृया उनकृन उक्त वच्तन कृी ंबनन उपन्ा कृी
ताा कृहा वकृ इं वच्तन कृन आधार पर विश्व म वकृंी भी ्रककृार कृी तावकृश कृ वयि्ाा कृी ्ाापना
नह कृी जा ंकृती एकृमा्र ्रकत्य् कृन ्रकमा त्ि ंन कृन िल णव्शत ज्ञान ं्भि ह, उंकृी एकृता
कृा नह , क्यरवकृ ्रकत्य् ंन उ्ह जो डनन िालन वकृंी धवनिायश ं्ब्ध कृा ज्ञान नह ्रकाए हो ंकृता
(2) चािाशकृ कृन ्रकत्य् कृी ्रकामाव कृता भी वनविशिाद नह ह ्रकत्य् ज्ञाननव्वयर कृी र्वक्त पर वनभशर
ह ज्ञाननव्वयर कृी र्वक्त कृी ंीमा ही ्रकत्य् कृन वनदिशु त्ि कृा वनधाशर कृरती ह वनदिशु ्रकत्य् कृन वलए
ज्ञाननव्वयर कृा धनकृु ू ल हो ना भी परम आिश्यकृ ह ज्ञाननव्वयर कृन ्रकवतकृूल हो नन पर ्रकत्य् भी ंदो र्
हो जाता ह रज्जु म ंपश कृी ्रकतीवत, बालू म जल कृा आभां आवद दो र्पू श ्रकत्य् कृन उदाहर हैं
इं ्रककृार धनमु ान कृन ्रकमा त्ि कृन ण्शन कृा आधार ही दवू र्त हो नन कृन कृार ्रकत्य् कृन आधार पर

उत्तराण्श मक्त
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धनमु ान कृा ण्शन नह वकृया जा ंकृता ह ्रकत्य् कृी ंीमाओ स पर वबना विचार वकृयन उंन ही
एकृमा्र ्रकामाव कृ ज्ञान घो वर्त कृरकृन चािाशकृ नन रूपवढ़िाद एिस ध्धविश्वां कृो ही बढ़ािा वदया ह
(3) जन दार्शवनकृर कृा कृान ह वकृ चािाशकृर वारा धनमु ान ्रकमा कृा ण्शन आत्मघातकृ ह उनकृन
धनंु ार चािाशकृ विचारकृर वारा ्रकत्य् कृो एकृमा्र ्रकमा घो वर्त कृरना, परलो कृ, आवद ्रकत्य्
विर्यर कृन बारन म वकृंी भी ्रककृार कृा वििनचन कृरना, ध्य मतर पर विचार कृरना ताा धपनन
वंद्धा्तर कृा ्पिीकृर कृरना मानो ्रकच्ा्न रूपप ंन धनमु ान कृो ्िीकृार कृरना ही ह
(4) चािाशकृ विचारकृर वारा वयावए कृा वनर्नध धनवु चत ह बौद्ध विचारकृर कृी ्पि मा्यता ह वकृ दो
ि्तओ ु स कृो जो डनन िालन ंामा्य विचार कृो तब तकृ ंत्य मानना पडन ा जब तकृ िह ंिश्िीकृत त
ह ंाा ही िह दनव्दन जीिन कृन वकृंी ्ाावपत वनयम पर आधाररत ह वकृंी मा्य कृान कृा
विरो ध वयािहाररकृ जीिन कृन मल ू कृो ही उणाडना ह
उल्लनणनीय ह वकृ चािाशकृ विचारकृ भी पू तश ः वयावए कृा ण्शन नह कृर पातन हैं उनकृी यह
मा्यता वकृ ‘्रकत्य् ही एकृमा्र ्रकमा ह’, धनमु ान ्रकमा नह ह, उनकृी इं आ्ाा कृी ओर
ंकृ
स न त कृरता ह वकृ कृवतपय दृिा्तर म वयावए ं्भि ह, क्यरवकृ यह आ मनात्मकृ ंामा्यीकृर
कृा फल ह
(5) चािाशकृ कृत त धनमु ानण्शन कृा ध्य भारतीय दार्शवनकृर नन ्रकबल ण्शन वकृया ह उनकृन
धनंु ार बवु द्ध वारा धनमु ान कृा ण्शन नह हो ंकृता ंम्त बवु द्ध-विकृल्प कृायश कृार ावद वनयमर
पर आधाररत ह वजनकृी ंािशभौमता, वनवश्चतता और धवनिायशता, ्ितःवंद्ध और ्ि्रककृार्
आत्मतत्त्ि ंन आती ह इन बवु द्ध विकृल्पर कृन वबना वकृंी ्रककृार कृा बवु द्ध वयिहार ं्भि नह हो ता
(6) यद्यवप ंभी विचारकृ र्ब्द ्िीकृार नह कृरतन ताावप आए िचन कृो वनता्त ध्ाह्य घो वर्त
कृरना ंासंाररकृ वयािहाररकृ एिस ंामावजकृ, नवतकृ वयि्ाा कृो वनमल
शू कृर ंकृता ह
पनु रवप ज्ञानमीमासंा कृन ्न्र म चािाशकृ कृन धिदान कृम महत्त्िपू श नह हैं इंकृी ज्ञानमीमासंा नन
भारतीय विचारकृर कृन ंम् धननकृ ंम्याएूँ उत्प्न कृ वजनकृन ंमाधान कृन कृार भारतीय दर्शन
पिु एिस ंमतद्ध हुआ पनु ः, चािाशकृ विचारकृर नन भारतीय दर्शन कृो रूपवढ़िादी एिस ध्धविश्वांी हो नन
ंन बचाया इंकृन ज्ञानमीमासंा कृा एकृ ध्य महत्िपू श प् भारतीय वच्तन कृन ॅन बहुआयामी
दृविकृो एिस िचाररकृ ्ित््र ता कृा ्रकवतवनवधत्ि कृरना ह

उत्तराण्श मक्त
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4.4.2तचखिख्ृतदर््नतृीत त्त्िुीुखंसख-
चािाशकृ दर्शन कृी तत्त्िमीमासंा उंकृी ज्ञानमीमासंा कृी ही उपवंवद्ध ह धपनन ्रकत्य्िादी ज्ञान-
वंद्धा्त कृन आधार पर चािाशकृ कृन िल उ्ह तत्त्िर कृी ंत्ता ्िीकृार कृरतन हैं वजनकृा ्रकत्य् हो ता ह
िन इं ज्ञान-वंद्धा्त कृी पतष्ठभवू म म कृन िल जड तत्त्ि या भौवतकृ पदााश कृी ही ंत्ता कृो ्िीकृार कृरतन
हैं, क्यरवकृ कृन िल उंी कृा ्रकत्य् हो ता ह इं ्रककृार चािाशकृ दर्शन तत्त्िमीमासंा कृी दृवि ंन
जडिादी या भौवतकृिादी ह इनकृन ज्ञात तत्त्िमीमासंीय तथ्य इं ्रककृार हैं-
(1) चार भतू र ंन ंतवि कृी उत्पवत्त
(2) र्रीरन तर वनत्य आत्मतत्त्ि कृा वनर्नध
(3) ईश्वर तत्त्ि कृा वनर्नध
(1) चार भतू र ंन ंतवि कृी उत्पवत्त- चािाशकृ कृन तत्त्िवच्तन म चार महाभतू र कृी ही ्िीकृत वत ह-
पतथ्िी, जल, धवग्न और िायु आकृार् कृा धनमु ान हो ता ह, धतः चािाशकृ उंन तत्त्ि नह मानतनॅन
पनु ः िह इन महाभतू र कृो कृन िल ्ाल ू रूपप मानता ह िह उनकृन ध रूप
ु पत्ि कृा वनर्नध कृरता ह,
क्यरवकृ उनकृा ्रकत्य् नह हो ता िह इन जड तत्त्िर कृन त्मा्र त्ि कृो भी नह ्िीकृार कृरता
क्यासॅनवकृ त्मा्र त्ि कृन विचार कृा भी आधार धनमु ान ह
चािाशकृ दार्शवनकृर कृी मा्यता ह वकृ ं्पू श चराचर ज त् कृी ंतवि इ्ह चारर भतू र ंन हुई ह यन ही
ज त् कृन उपादान कृार हैं इन भतू र कृा विवभ्न धनपु ातर म ंव्मश्र हो नन ंन बाह्य ज त्, भौवतकृ
र्रीर, चनतना, बवु द्ध और इव्वयाूँ आवद उत्प्न हो ती हैं रूपप, रं, ्ध आवद ु र कृी उत्पवत्त भी
इ्ह कृन ंसयो ंन हो ती ह इनकृन ंसयो कृन वलए वकृंी वनवमत्त कृार कृी आिश्यकृता नह हो ती
जड तत्त्ि धपनन ्िभाि कृन धनंु ार ही ंसयक्त ु हो तन हैं और उनकृन ्ितः ंव्मश्र ंन ंसंार कृी
उत्पवत्त हो ती ह
(2) र्रीरन तर वनत्य आत्मतत्त्ि कृा वनर्नध- चािाशकृ कृा मानना ह वकृ चत्य भी भौवतकृ तत्त्िर कृन
ंव्मश्र हो नन ंन जीवित र्रीर म उत्प्न हो ता ह धतः जीवित र्रीर ंन वभ्न कृो ई आत्मा नह ह
चािाशकृ दर्शन कृन धनंु ार र्रीर ंन वभ्न वकृंी पताकृ् आत्मा कृन धव्तत्ि कृो ्िीकृार कृरना
आिश्यकृ नह ह र्रीर कृा चनतना ंन यक्त ु हो ना ही आत्मतत्त्ि कृहलानन कृन वलए पयाशए ह चत्य कृा
्रकत्य् भी र्रीर कृन ध्त तश हो ता ह धतः ‘चनतना ंन विवर्ि र्रीर’ ही आत्मा ह वयवक्त ्रकत्य् कृन
आधार पर भी र्रीर और आत्मा कृन तादात््य कृा धनभु ि कृरता ह मैं कृत र् ह,ूँ मैं ्ाल ू ह,ूँ मैं ंण
ु ी
ह,ूँ मैं दःु णी ह,ूँ - यन कृान मैं (आत्मा) और र्रीर कृन तादात््य कृा ही बो ध कृरातन हैं

उत्तराण्श मक्त
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इं ्रककृार चािाशकृ जड तत्त्िर कृन आधार पर आत्मा कृी भी वयाख्या कृरतन हैं उनकृन धनंु ार
जडतत्त्िर ंन र्रीर भी उत्प्न हो ता ह और उंम पाया जानन िाला चत्य भी यद्यवप जडतत्त्िर म
चत्य कृा धभाि ह, ताावप उनकृन ंव्मश्र ंन चत्य कृी उत्पवत्त हो ती ह वजं ्रककृार मवदरा कृन
विवभ्न घरकृर म ंन वकृंी म भी मादकृता नह ह लनवकृन उनम विर्नर् ्रकवक्रया ंन विकृार उत्प्न हो नन
पर मादकृता उत्प्न हो ती ह उंी ्रककृार जडतत्त्िर कृन विर्नर् ंव्मश्र ंन चनतना उत्प्न हो ती ह -
वकृ्िावदभ्यो मदर्वक्तिद् विज्ञानम् इं ्रककृार चनतन र्रीर ंन वभ्न आत्मा कृा कृो ई ्रकमा नह ह
ंाा ही चनतन र्रीर कृन आत्मत्ि कृन कृार आत्मा कृी धमरता भी ं्भि नह ह आत्मा कृी
धवनत्यता यह वंद्ध कृरती ह वकृस आत्मा ंन जडु ी ंभी धिधार ाएूँ- पनु जश्म, ्ि ,श नरकृ एिस
कृमशयो -वनराधार हैं
(3) ईश्वर तत्त्ि कृा वनर्नध- चािाशकृ दर्शन ईश्वर कृी ंत्ता कृा वनर्नध कृरता ह ्रकायः आ्यावत्मकृ,
धावमशकृ एिस नवतकृ मल्ू यर कृन र्कृ ताा ंतवि कृन कृत्ताश, वनयामकृ एिस ंसर्कृ कृन रूपप म ईश्वर कृी
ंत्ता ्िीकृार कृी जाती ह चािाशकृ आ्यावत्मकृ, धावमशकृ, एिस नवतकृ मल्ू यर कृो मानवंकृ भ्राव्त
कृहता ह िह ंतवि कृी वयाख्या कृन वलए भी ईश्वर कृो आिश्यकृता नह मानता िह ईश्वर कृी कृल्पना
कृो एकृ धावमशकृ भ्राव्त कृहता ह चूँवू कृ ईश्वर कृा कृो ई ्रकत्य् नह हो ता धतः ईश्वर कृा धव्तत्ि भी
नह ह उंकृन वलए ईश्वर जंन वकृंी वनवमत्त कृार कृी भी आिश्यकृता नह हो ती इं ्रककृार, चूँवू कृ
जडतत्त्िर कृन आ्तररकृ ्िभाि ंन ही ंसंार कृी उत्पवत्त हो ती ह धतः िह ्िभाििादी या
यदृच्ाािादी ह
ंमी्ा- चािाशकृ दर्शन कृन जडिादी वंद्धा्त कृन विरुद्ध आव्तकृ दर्शनो ॅनॅस म तीव्रतम ्रकवतवक्रया
हुई जन एिस बौद्ध ंदृर् नाव्तकृ दर्शनर नन भी चािाशकृर कृी तत्त्िमीमासंा कृो पू रूप
श पन ्िीकृार नह
वकृया भारतीय दर्शनर म चािाशकृ तत्त्िमीमासंा कृन विरुद्ध वन्नवलवणत आ्नप ्रकाए हो तन हैं-
(1) चािाशकृ दर्शन कृी यह मा्यता धनवु चत ह वकृ एकृमा्र जडतत्त्ि ंतवि कृी वयाख्या कृन वलए पयाशए
ह जडतत्त्ि ंतवि कृा उपादान कृार मा्र हो ंकृता ह, वकृ्तु ंतवि कृन उद्भि कृार न वजं ्रककृार
कृु्भकृार कृी ंहायता कृन वबना वमट्टी ंन घडा नह बन ंकृता उंी ्रककृार चनतन वनवमत्त कृार
(ईश्वर) कृन वबना यन ंतवि नह हो ंकृती
(2) चािाशकृ दर्शनकृन आत्मवंद्धा्त कृन विरुद्ध ध्य भारतीय दर्शनासॅन नन ्रकबल ्रकहार वकृया उंकृन
आत्म वंद्धा्त कृन विरुद्ध धधो वलवणत आ्नप ्रकाए हो तन हैं-
(कृ) चत्य विवर्ि र्रीर कृो आत्मा कृहना धनवु चत ह आत्मा म चनतना और र्रीर कृा तादात््य
मानना भी धनवु चत ह यवद चत्य कृा धाश ्िचत्य ह जो मनष्ु यर म ह तो इंकृा तादात््य जीवित

उत्तराण्श मक्त
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र्रीर ंन नह वकृया जा ंकृता यवद चनतना और र्रीर कृन ंाहचयश कृो वनत्य भी मान वलया जाय तो
भी यह नह वंद्ध हो ता ह वकृ चनतना र्रीर कृा धमश ह
(ण) यवद चनतना र्रीर कृा आिश्यकृ ु हो ती तो उंन र्रीर ंन धवियो ज्य हो ना चावहए ताा उंन
र्रीरपयश्त उंकृन ंाा ं्बद्ध हो ना चावहए वकृ्तु यह याााश ह वकृ मच्ू ााश या ्ितनरवहत वनवा म
र्रीर चनतना ंन र््ू य वदणाई दनती ह
( ) यवद चनतना ि्ततु ः र्रीर कृा धमश हो ती तो उंकृा िंा ही ज्ञान दंू रर कृो भी हो ना चावहए जंा
हम हो ता ह वकृ्तु एकृ वयवक्त कृी चनतना उंकृा वनजी ु ह धतः उंकृा जंा ज्ञान उं वयवक्त कृो
हो ता ह िंा दंू रर कृो नह हो ंकृता
(घ) र्रीर ्ियस भी एकृ ंाधन ह, धतः उंन िर् म रणनन िालन चनतन कृी आिश्यकृता ह ्पि ह वकृ
चनतना र्रीर म नह , धवप तु र्रीर कृन वनय््र कृत्ताश म ह इं ्रककृार भौवतकृिादी कृी व्ावत ्ियस
उंकृन विरुद्ध जाती ह
(ङ) चनतना र्रीर कृा ु नह हो ंकृता यवद चनतना र्रीर कृा ु हो ी तो र्रीर कृा ज्ञान नह हो
ंकृता, क्यरवकृ र्रीर, जो ्ियस चनतना कृा आधार ह, चनतना वारा नह जानी जा ंकृती धतः चनतना
र्रीर कृा ु नह हो ंकृती
(च) जडतत्त्िर ंन चनतना कृी उत्पवत्त नह वदणाई दनती जडतत्त्ि ंन चनतना कृन उत्प्न हो नन कृा धाश ह
वकृ धंत् ंन ंत् कृी उत्पवत्त वकृ्तु ऐंा हो ता नह ि्ततु ः र््ू य ंन र््ू य ही उत्प्न हो ता ह, कृो ई
ि्तु नह
(ा) यवद चनतना र्रीर कृा ु ह तो ध्य भौवतकृ ु र कृन ंमान चनतना कृा भी ्रकत्य् धनुभि हो ना
चावहए वकृ्तु ऐंा नह हो ता
(3) मैं ्ाल
ू ह,ूँ मैं कृत र् ह-ूँ इन कृानर ंन चािाशकृ दर्शन र्रीर कृो ही आत्मा वंद्ध कृरना चाहता ह
इन कृानर ंन कृन िल यह वंद्ध हो ता ह वकृ र्रीर कृन ंाा इंकृा घवनष्ठ ं्ब्ध ह यवद आत्मा कृा
धव्तत्ि नह ह तो ‘र्रीर आत्मारवहत ह’ इं कृान कृा कृो ई धाश नह रह जाता
इन दो र्र कृन बािजदू चािाशकृ तत्त्िमीमासंा कृा ्रकचवलत विश्वांर पर पयाशए ्रकभाि रहा इंनन भतू कृाल
कृन ्रकवत ल ाि और भविष्य कृन आकृर्श कृो भस वकृया वकृ्त,ु जब िह भस ीर वचसतन कृरता ह तो
िह भौवतकृिाद ंन दरू चला जाता ह आश्चयश ह वकृ चािाशकृ दर्शन नन यही कृायश नह वकृया
अभ् खसतप्रश्न

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1. चािाशकृ दर्शन कृन धनंु ार याााश ज्ञान कृा एकृमा्र ्रकामाव कृ ंाधन ह
(कृ) ्रकत्य् (ण) धनुमान
( ) उपमान (घ) र्ब्द
2. चािाशकृ कृन धनंु ार र्ब्द ्रकमा नह ह, क्यरवकृ
(कृ) यह एकृ ्रककृार ंन ्रकत्य् ही ह (ण) यह धनुमानावश्रत ह
( ) र्ब्द आकृार् कृा ु ह (घ) यह उपमानावश्रत ह
3. चािाशकृ उपमान ्रकमा कृा वनर्नध कृरता ह, क्यरवकृ उंकृा मानना ह वकृ
(कृ) धनमु ान और उपमान एकृ ही ह
(ण) ्रकत्य् उपमान ंन वभ्न नह ह ( ) उपमान कृा आधार ंादृश्य ज्ञान ह और ंादृश्य कृा ज्ञान
्रकत्य् ंन ही हो ता ह
(घ) उपमान भी ्रकमा हो ंकृता ह
4. चािाशकृ कृन िल उ्ह तत्िर कृो ्िीकृार कृरता ह
(कृ) वजनकृा धनमु ान हो ता ह (ण) वजनकृा उपमान हो ता ह
( ) वजनकृा र्ब्द हो ता ह (घ) वजनकृा ्रकत्य् हो ता ह
5. चािाशकृ आ्यावत्मकृ, धावमशकृ, एिस नवतकृ मल्ू यर कृो क्या कृहता ह?
4.5 सखराखंर्
इं इकृाई कृो पढनन कृन बाद आप यह जान चकृ ु न हैं वकृ चािाशकृ कृन वच्तन कृो ंािशभौवमकृ
रूपप म ्रकिवतशत कृरनन कृन वलयन वकृंी ्ित््र ््ा धा िा ंावहत्य कृी रचना नह कृी यी बवल्कृ
विवभ्न दार्शवनकृ स्रातर ताा कृुा परिती रचनाओ स ंन इंकृन वबणरन वंद्धा्तर कृो हम ंमझ पाए
इ्ह स्रो तर कृन वारा चािाशकृविर्यकृ कृुा विचारर कृो हम एकृव्र त कृर पाए इनकृी तत्त्िमीमांस ा ताा
ज्ञानमीमासंा कृो ंमझनन वलयन आज एकृमा्र उपलब्ध ंम् कृत वत ंिशदर्शनंस्ह ह इं पाठ म
्रक्ततु ंमी्ा यह दर्ाशती ह वकृ चािाशकृ नन ्ाावपत मा्य वंद्धा्त कृो न कृन िल ध्िीकृार वकृया
बवल्कृ धपकृन दधु शर्श तकृों ंन उनकृा ण्शन भी वकृया इं इकृाई कृन धघ्ययन ंन आप चािाशकृ दर्शन
कृन पररचय एिस वंद्धा्त ंन ंहज ही धि त हो पाएस न ंाा ही उ्ह धवभ्ंवयक्त भी कृर पाएस न
4.6 र्ब्दखियी
ंा्य- िह परो ् तत्ि, वजंकृा धनमु ान वकृया जाना ह, ंा्य ह इंन वयापकृ ताा धनमु यन भी
कृहतन हैं
वलस - लीनम् धां मयवत इवत वलस म् इं ्रककृार लीन धााशत् परो ् ंा्य कृा जो ज्ञान कृरायन िह
वलस ह इंन हनतु भी कृहतन हैं
वयावए- हनतु कृा ंा्य कृन ंाा ्िाभाविकृ ं्ब्ध वयावए ह

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हनत-ु वयावए कृन कृार वकृंी ्ाान विर्नर् म ंा्य कृी ंत्ता ्रकमाव त कृरनन िाला ंाधन हनतु ह इंन
वलस भी कृहतन हैं
आएपरुु र्- आए याााश िक्ता कृो कृहतन हैं यह आए िाक्य आए परुु र् कृन वारा ही ं्भि ह या
याााश िाक्यर कृा ्रकयो कृरनन िाला आए परुु र् कृहलाता ह
4.7 अभ् खसतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
4.3 1. कृ, 2. बाहश्पत्य ं्र ू , 3. बाहश्पत्य ं्र ू , तत्त्िो पतलिवंहस ताा ंिशदर्शन ं्स ह 4. कृ
4.4 1. कृ 2. ण 3. 4. घ 5. मानवंकृ भ्राव्त
4.8 सन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
1. झा, आचायश आन्द, (1969) चािशकृ दर्शन, वह्दी ंवमवत, ंचू ना विभा , उत्तर्रकदनर्,
लणनउ,
2. वतिारी, श 0 नरन र् ्रकंाद, (1986), चािाशकृ कृा नवतकृ दर्शन, वबहार वह्दी ््ा धकृादमी,
परना
3. ऋवर्, ्रको 0 उमार्कृ
स र र्माश, (1964), ंिशदर्शनं्स हः, चौण्बा विद्याभिन, िारा ंी-1
4. र्माश, च्वधर, (1991), भारतीय दर्शन आलो चन और धनर् ु ीलन, मो तीलाल
बनारंीदां, वदल्ली
5. दनिराज, श 0 न्दवकृर्ो र, (1992), भरतीय दर्शन, उत्तर्रकदनर् वह्दी ंस्ाान, लणनउ
4.9 वनबन्धखत्ुृतप्रश्न
(कृ) चािाशकृ दर्शन कृन विवभ्न नाम एिस उनकृन धाो कृो ्पि कृर
(ण) चािाशकृ कृन ्रकमा विर्यकृ वच्तन पर एकृ वनब्ध वलण
( ) चािाशकृ कृी धनमु ान विर्यकृ धिधार ा कृो ्पर्ध
् कृर
(घ) चािाशकृ कृन ्रकमा वच्तन पर ंमी्ा कृर
(श) चािाशकृ कृी तत्िमीमासंा कृा ंार ्रक्ततु कृरतन हुए उंकृी ंमी्ा कृर

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इृखईत5 - चखिख्ृीतवसद्धखन् ोंतृीतअन् तभखरा ी तदर््नोंतुेंतरवं र्ृतउपवस्थव
इृखईतृीतरूपराे णख
5.1 ्रक्तािना
5.2 उद्दनश्य
5.3. चािाशकृ दर्शन और आव्तकृ ं््रकदाय
5.3.1 िनद म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत
5.3.2 उपवनर्द् म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत
5.3.3 ीता म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत
5.3.4 ्याय िर्नवर्कृ म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत
5.3.5 धवत िनदा्त म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत
5.4 चािाशकृ दर्शन और नाव्तकृ ं््रकदाय
5.4.1 जन दर्शन म चािाशकृ कृी उपव्ावत
5.4.2 रंनश्वर दर्शन म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत
5.5 ंारासर्
5.6 र्ब्दािली
5.7 धभ्यां ्रकश्नर कृन उत्तर
5.8 ं्दभश ््ा ंचू ी
5.9 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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5.1तप्रस् खिनखत
चािाशकृ दर्शन ंन ं्बद्ध यह ववतीय ताा इं ंम् ब्ल कृ कृी यह प चस ि इकृाई ह इंंन पिू श कृन
पाठ म आपनन चािाशकृ दर्शन कृन वंद्धा्तर कृा ंवि्तर ज्ञान ्रकाए वकृया
इं पाठ म आप चािाशकृ दर्शन कृन विर्य म यह जान न वकृ इंकृा उल्लनण हम ंामा्यतया
वकृन ध्य दार्शवनकृ विचारधारा म पाएॅॅॅस न ि्ततु ः इंंन पिू श कृी चचाश ंन आप इतना धिश्य
ही जान यन हर न वकृ इं विवर्ि दर्शन कृा ध्य भारतीय दर्शन कृी तरह इं दर्शन कृा कृो ई
्रकामाव कृ ््ा उपलब्ध नह ह यवद कृो ई ््ा ाा भी तो िह उपलब्ध नह हो ता इं व्ावत म
हम ध्य ््ार म उवल्लवणत उद्धर र ंन इंकृन वंद्धा्तर कृो जान पातन हैं वकृ्तु यह स हम ंविर्नर्
ध्य भारतीय दर्शनर म विद्यमान पररचचाशओ स म चािाशकृ कृी व्ावत कृो आधार बनाकृर इं पाठ कृा
पररिधशन कृर न
5.2 उद्देश् तत
्रक्ततु इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप -

 बता ंकृ न वकृ ंामा्यतया ध्य वकृन वकृन भारतीय दर्शनर म चािाशकृ वच्तन ्रकाए हो ता

 ंमझ पाएस न वकृ चािाशकृ दर्शन कृी व्ावत ध्य भारतीय दर्शनर म कृंी ह
 ंाा ही, ध्य दर्शनर ंन इंकृन मत िवभ्य कृो भी जान पाएस न
5.3. चखिख्ृतदर््नतऔरातरवस् ृतसमप्रदख
भारतीय दर्शन कृी आव्तकृ विचारधारा कृन विवभ्न ं््रकदायर म चािाशकृ दर्शन कृी
आवस र्कृ उपव्ावत कृी यह स पररचचाश कृी जाए ी
5.3.1तिेदतुेंतचखिख्ृतदर््नतृीतउपवस्थव -त
यद्यवप ना्ना िनद म चािाशकृ कृा उल्लनण ्रकाए नह हो ता ताावप ध्य दार्शवनकृ वंद्धा्तर कृन ंमान
ही चािाशकृ कृन वंद्धा्तर कृा भी बीज यह स धिश्य ही वदण जाता ह कृई ऐंन विर्य हैं जो परिती
चािाशकृ कृन वंद्धा्तर कृन धत्य्त वनकृर हैं तद्याा-
चािाशकृ दर्शन कृा मल
ू वच्तन भतू चत्य कृी ्ाापना म वनरत ह िनद म भी इंकृी तावकृश कृ ्ाापना
दनणी जा ंकृती ह िनद म, यज्ञ कृी एकृ धवधष्ठा्र ी दनिता कृी कृल्पना कृी जाती ह यह स तकृ वकृ

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्रकत्यनकृ ि्तु कृन वलयन उक्त दनिता कृी कृल्पना कृी जाती ह यह कृल्पना कृदावप मौवलकृ नह कृी जा
ंकृती, ऐंा ंमालो चकृर कृा मानना ह ( आन्द झा, चािाशकृ दर्शन, पत0 400)
इं ्रककृार ्रकत्यनकृ िवदकृ भौवतकृ ं्बो धन-्ाल कृो दनिता कृी कृल्पना कृन वारा धभतू चत्य कृा
ज्ञापकृ नह बनाया जा ंकृता इंवलयन भतू चत्य-्ाापकृ ं्दभों एिस कृानो पकृानर ंन ंम्
िवदकृ कृमशकृा्श वयाए हो नन कृन कृार यही उवचत मानना ्रकतीत हो ता ह वकृ ंम् िवदकृ कृमशकृा्श
चािाशकृ ं्मत भतू चत्य कृो ही मा्यता दनता हुआ ्रकतीत हो ता ह ्यातवय ह वकृ एतदाश िनद म
कृह भी भतू र्ब्द कृा उल्लनण नह ह इं ्रककृार भतू चत्य ्रकधानकृ चािाशकृ वंद्धा्त ंिशाा िवदकृ
ह धिवदकृ नह एिस धवत्रकाचीन ह आधवु नकृ नह
इंकृन धवतररक्त ऋग्िदन म इ्व कृी ंत्ता म ं्दनह कृरनन िालन ताा धपव्रत लो र कृा उल्लनण ह िह स
आव्तकृ, व्रती लो र कृी ्रकर्ंस ा ताा यज्ञविहीन धव्रती लो र कृी वन्दा ह
5.3.2तउपवनर्दटतुेंतचखिख्ृतदर््नतृीतउपवस्थव
उपवनर्द् िवदकृ ज्ञानकृा्श कृा ंार ह इंन भारतीय दर्शनर कृा मल ू स्रो त माना जाता ह
्रकायः ंम्त दार्शवनकृ विचारधाराओ स कृा ्रकवतवब्बन इंम ्रकाए हो ता ह यद्यवप इन ंम्त
उपवनर्दर म ंासख्य, धवत, विवर्िावत, वत ्रकभतवत आव्तकृ विचारधाराओ स कृा ही ंिाशवधकृ
ं्पो र् हुआ ह पनु रवप, ऐंा नह ह वकृ इंम आव्तकृ विचारधारा कृन विरुद्ध ताा चािाशकृी
विचारधारा कृन धत्य्त ंव्नकृर वच्तन धिश्य ही ्रकाए नह हो ता ह धतः उपवनर्द् म भी कृह
यवद चािाशकृ कृा बीज ्रकाए हो जाए तो यह धं्भि नह उदाहर ााश ईर्ािा्यो पवनर्त् कृन ाठन
म््र म यह कृहा या ह वकृ जो वयवक्त ंारन भतू र धााशत् ्रकाव यर म आत्मदृवि रणता ह और आत्मा
म ंम् भतू दृवि रणता ह िह वकृंी म भी घत ा या भनदभाि कृरता नह -
स् कतसिख्वणतभू खवनतरत्ुन् ेिखनपक श् व ।
सि्भू ेर्तक चखत्ुखनतं ोतनतविजकगप्क स े।।त
इं म््र कृा वनवहतााश यह ह वकृ इं म भतू ात्मिाद कृी ही विर्नर्ता िव शत हुई ह जो चािाशकृ दर्शन
कृा ंार ह कृन नो पवनर्द् म इंी भतू ात्मिाद कृन ंमाशन म यह कृहा या ह वकृ ‘‘ इं चराचरात्मकृ
भौवतकृ ंसंार कृो यवद ंत्य ंमझा तो ठीकृ ह और यवद ऐंा नह ंमझा तो ंमझो महान् विनार्
्रकाए ह ्रकत्यनकृ भतू कृो आत्मा ंमझनन िाला ही मर कृर धमतत हो ता ह ’’ तद्याा-
इहतचेदिेदीदथतसत् ुवस् तनतचेवदहखिेदीन्ुह ीतविनवटः।

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भू ेर्कतभू ेर्कतविवचत् तधीराखःतप्रेत् खस्ुॉ ंल्दयोृखदुक खतभिवन् ।।
कृठो पवनर्द् म कृहा या ह वकृ धन कृन मो ह ंन मढू , बालबवु द्ध, ्रकमादी वयवक्तयर कृो परलो कृ कृन मा श
या ंाधन म आ्ाा नह हो ती, िह कृन िल इं लो कृ कृो मानता ह, परलो कृ कृो नह , ऐंा वयवक्त
बार बार मनरन धााशत् यम या मतत्यु कृन िर् म आता ह (1/2/6) ाा्दो ग्य उपवनर्द् कृन ्रकजापवत और
इ्व विरो चन ंसिाद म उल्लनण ह वकृ धंरु र कृा ्रकवतवनवध विरो चन दनहात्मिाद ंन ही ं्तिु हो कृर
चला या ाा (8-7)
5.3.3तगी खतुेंतचखिख्ृतदर््नतृीतउपवस्थव
ीता जो भारतीय वच्तन पर्परा कृा ंिाशवधकृ महत्त्िपू श ््ा ह, कृभी भी चािाशकृ मत कृन
्रकवतपादन धा िा ंमाशन म कृुा नह कृहती ऐंी ि्तवु ्ावत कृन हो तन हुए भी यवद आनर्ु वस कृ रूपप
म यह स चािाशकृ वंद्धा्त कृन ंमाशकृ कृुा बात वमल जाय तो चािाशकृ वंद्धा्त कृन वलयन उन बातर कृा
महत्त्ि धत्यवधकृ हो ा
ि्ततु ः ीता कृी ंम्त पतष्ठभवू म ही चािाशकृीय वच्तन ह उपदनश्य धजनशु जह स यद्ध ु कृो वहंस ा
ंमझतन हैं उपदनर्कृ कृत ष् इंकृन विपरीत यह ्ाावपत कृरतन हैं वकृ यद्ध
ु ्व्र यर कृन वलए पापात्मकृ
वहंस ा नह ्रकत्यतु उंकृन विपरीत धमाशत्मकृ ंदाचर ह इंंन ंाररूपप म यह वन यश उपव्ात वकृया
या ह वकृ आचर कृी धच्ााई एिस बरु ाई कृा मल्ू यासकृन पररव्ावत कृन आधार पर कृर ीय ह
पररव्ावत ही उंकृा मापद्श ह मर कृी ंमानता कृो लनकृर यद्ध ु त िीरिध ताा धयद्ध ु त
्रकाव िध कृो एकृ ंमान मानना उवचत नह यवद विचार कृर कृन दनणा जायन तो इं ्रककृार कृन
आचर त धनकृाव्तकृ वन शय कृन कृार ही धमश कृी ऐकृाव्तकृतािावदयर नन राजनीवत एिस उंकृन
दर्शनभतू चािाशकृीय दृविकृो कृी वन्दा कृी ह ताा उंकृन ्रकवत घत ा कृा भाि फलाया ह धतः यह
मानना हो ा वकृ ीता पर चािाशकृ दृविकृो कृा ्रकभाि धिश्य ह
इंी तरह ववतीय ध्याय कृन 42ि पद्य ंन लनकृर 45ि पद्य पयश्त पार्पररकृ िनदिाद कृी वन्दा कृी
यी ह यवद विचारपिू कृ श दनणा जाए तो इं ्रकंस म वि्तारपिू कृश िव शत चािाशकृीय िनदिाद कृन ऊपर
ही आ्नप उपव्ात वकृया या ह चताु श ध्याय कृन 21ि पद्य म यतवचत्तात्मा र्ब्द म ्रकयुक्त आत्म
र्ब्द कृा ्रकयो र्रीर धाश म वकृया या ह र्कृ स राचायश नन भी इंकृा धाश र्रीर ही वकृया ह पसचम
ध्याय कृन 7ि पद्य म विवजतात्मा कृा धाश र्रीर वलया या ह र्रीरावतररक्त आत्मा नह आचायश
र्कृ
स र नन भी इंकृा धाश विवजतदनह धााशत् धपनन दनह पर विजय पानन िाला वकृया ह ्यातवय ह वकृ
चािाशकृ र्रीरात्मिाद कृो ही मानता ह ऐंी पररव्ावत म यह मानना ही पडन ा वकृ ीता चािाशकृ मत
ंन भलन ही पू तश ः नह वकृ्तु आवस र्कृ रूपप ंन धिश्य ही ्रकभावित ह

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धठारहि ध्याय कृन 48ि पद्य म कृहा या ह वकृ कृो ई भी कृमश यवद ंहज हो तो ंदो र् हो नन पर भी
धााशत् वकृंी कृार िर् धनवु चत मानन जानन पर भी ंहंा उंन नह ाो ड दनना चावहए धााशत् कृो ई
भी कृायश पररत्याज्य नह ह इं ्रककृार वन्ं्दनह यह कृहा जा ंकृता ह वकृ यह स चािाशकृीय
विचारधारा कृा ्पि ्रकभाि वदणाई दनता ह
5.3.4तन् ख तुेंतचखिख्ृतदर््नतृीतउपवस्थव
्याय दर्शन ि्ततु ः ्रकमा पर आधाररत एकृ ि्तिु ादी दर्शन ह ि्ततु ः दर्शन ्न्र म
्रकमा मीमासंीय क्राव्त लानन कृा श्रनय भी इंी दर्शन कृो जाता ह यह कृह पाना वकृ ्याय दर्शन म
चािाशकृ मत कृा ंमाशन या ंम्िय हुआ ह तो यह र्ो ध कृा विर्य हो ंकृता ह, वकृ्तु धपनन मत
कृन ंमाशन म ताा धपनन मत कृी ्ाापना कृन वलयन ध्य मत कृन ण्शन कृन क्रम म इं विचारधारा कृी
आवस र्कृ उपव्ावत दनणी जा ंकृती ह तद्याा-
्याय वंद्धा्तमक्त
ु ािली म आत्मा कृी ्ाापना कृन क्रम म चािाशकृ कृन र्रीरात्मिाद कृा ण्शन ्रकाए
हो ता ह- ननु र्रीर्यि कृततशत्िम्त्ित आह-
र्राीरास् तनतचै न् ंतुक ेर्कतव् वभचखरा ः।
थखत्िंतचेवदवन्ग खणखुकपघख ेतृथंतस्ुकव ः।।
ि्ततु ः विश्वनाा नन यह स चािाशकृ कृन मत कृो पूिपश ् कृन रूपप म ्रक्ततु वकृया ह चािाशकृ र्रीर कृो ही
आत्मा मानता ह र्रीर कृो ही आत्मा माननन पर यह आपवत्त हो ंकृती ह वकृ मतत धि्ाा म र्रीर
बना रहता ह वफर चत्य क्यर नह रहता? इं पर चािाशकृ कृा कृहना ह वकृ ्याय-िर्नवर्कृ कृन मत म
यह माना जाता ह वकृ मक्त ु धि्ाा म चत्य कृा धभाि मान वलया जाए ा, क्यरवकृ वजं ्रककृार
्रका ाभाि ्याय-िर्नवर्कृ कृन मत म मक्तु दर्ा म ज्ञान कृन धभाि कृा कृार ह, इंी ्रककृार हमारन मत
म भी ्रका ाभाि ही मतत र्रीर म ज्ञानाभाि कृा कृार हो जाए ा
इंी ्रककृार आव्तकृ नाव्तकृ वििनचन ्रकंस म, ्याय भाष्य म िात््यायन नन एकृ दृिा्त दनतन हुए यह
्ाावपत कृरनन कृा ्रकयां वकृया ह वकृ चािाशकृ नाव्तकृ नह ान िात््यायन कृा मानना ह वकृ
‘‘नाव्तकृ यवद दृिा्त कृो मानन ा तो िह नाव्तकृ नह रह पाए ा और यवद िह दृिा्त कृो नह
मानन ा तो वकृंकृन ंहारन िह धपना विरो धी प् कृा ण्शन कृरन ा?’’-
नाव्तकृश्च दृिा्तमभ्यपु च्ा्नाव्तकृत्िस जहावत धनभ्युप च्ान् वकृस ंाधनः परमपु ालभनत?-
्यायदर्शन, िात््यायनभष्य

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इं कृान ंन यही वंद्ध हो ता ह वकृ नाव्तकृ िही कृहलाता हो ा जो दृिा्त नह मानता हो ा
दृिा्त कृो न माननन कृा धाश हो ता ह ्रकत्य् कृो न मानना वकृ्तु चािाशकृ ्रकत्य् कृो तो मानता ही
ाा वबना वकृंी दृिा्त कृा िह धपनन विचारर कृा भी ्रकितशन नह कृरता ाा इं ्रककृार वकृंी न
वकृंी रूपप म ्याय िर्नवर्कृ दर्शन म चािाशकृ कृी आवस र्कृ उपव्ावत दनणी जा ंकृती ह
5.3.5तअवै तिेदखन् तुेंतचखिख्ृतदर््नतृीतउपवस्थव
ब्रह्मं्र ू कृन ऊपर भाष्य वलणकृर र्कृ
स राचायश नन धवत िनदा्त कृा ्रकितशन वकृया ाा वकृ्तु धपनी इं
विचारधारा कृा विश्लन र् उ्हरनन धपनन ध्य ््ार म भी वकृया ब्रह्मं्र ू कृन ही ध्यां ्रककृर म
उ्हरनन चािाशकृ कृा उल्लनण लो कृायत कृहकृर वकृया ह इंंन इतना ्पि ह वकृ आचायश र्कृ स र
चािाशकृ या लो कृायत कृी विचारधारा ंन पू तश या धि त ान
इंकृन धवतररक्त र्कृ
स राचायश कृन ध्य ््ा ‘‘ंिशवंद्धा्त ंस्ह’’ म भी चािाशकृ विचार कृा पयाशए
वि्तार वमलता ह यद्यवप इं विर्य म ं्दनह ह वकृ यह आद्यर्कृ स राचायशविरवचत ह वकृ्तु जब तकृ
कृो ई ्रकबल बाधकृ नह ्रकाए हो ता तब तकृ इंम वकृंी ्रककृार कृा ं्दनह नह वकृया जाना चावहए
र्कृ
स राचायश नन धपनन इं ््ा कृन ववतीय ्रककृर कृा ‘‘लौकृायवतकृ प् ्रककृर ’’ नाम वदया ह-
यौृख व ृपिेत कत त्िं भू च कट ु।ट
पकवथव् खपस् थखत ेजोतिख कररात् ेितनखपराु।ट ।त298
इं ्रककृर म र्कृ
स राचायश नन लौकृायवतकृ विचारधारा कृा ्िरूपप ि नश इं ्रककृार वकृया ह-
‘‘लौकृायवतकृ प् म तो पतवािी जल, तनज और िायु यन चार ही तत्ि हैं, और नह ्रकत्य् ्य ही
ि्तएु मा्य हैं, धदृि मा्य नह हैं, क्यरवकृ यह स दनणा जाता नह जो लो धदृि मानतन हैं िन भी उंन
दृि धााशत् दनणी जानन िाली ि्तु कृह स कृहतन हैं? यवद वकृंी नन उं धदृि कृो दनणा ह तो वफर िन
लो उंन धदृि क्यर कृहतन हैं? वजंन कृभी कृो ई भी दनण न पायन िह र्र्र्तस आवद कृन तल्ु य हो नन कृन
कृार ‘‘ंत’् ’ कृंन हो ंकृता? ंण ु और दःु ण कृन ंहारन भी धमश ओर धधमश कृी कृल्पना नह कृी
जा ंकृती क्यरवकृ लो ंुणी और दण ु ी ्िभाितः भी हो ंकृतन हैं धतः ्िभाि ंन धवतररक्त
और कृो ई ंुण दःु ण कृा कृार नह मयरू कृन पसणर कृो भला कृौन वचव्र त कृरता ह? कृो वकृलर कृो
भला कृौन मधरु कृूजन वंणलाता ह? मैं मो रा हूँ , मैं तरु हूँ , मैं तो ितद्ध हो या, मैं धभी युिकृ हूँ -
इं ्रककृार ्रकतीवतय स आत्मा कृन ं्ब्ध म हो ती हैं, धतः उक्त विर्नर् र ंन यक्त ु र्रीर ही ह आत्मा
उंंन वभ्न ध्य और कृो ई नह भौवतकृ जड ि्तओ ु स म जो चनतना दनणी जाती ह उंन पान ंपु ारी
चनू ा और णर आवद कृन ंसयो ंन हो नन िालन लाल रूपप कृन ंमान ंासयो व कृ ंमझना चावहए इं

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लो कृ ंन ध्य कृो ई ्ि श या नरकृ नह ह वर्ि-लो कृ आवद कृी बात िचस कृर एिस धज्ञर कृी
कृल्पनामा्र हैं यिु ती ंस मज ंण ु कृन धवतररक्त कृो ई ्ि ीय धनभु ि नह ह महीन कृपडन,
ंु व्धत मालाए एिस च्दन लनपन इत्यावद जवनत ंण ु र कृो भी ्ि ीय ंण
ु कृहा जा ंकृता ह मो ्
मर ही ह और िह भी र्रीर ंन हो नन िालन ्रका वन शमन कृन धवतररक्त और कृुा नह ह इंवलयन
बवु द्धमान् वयवक्त कृो वकृंी ्रककृार कृा आयां नह कृरना चावहए तप, उपिां आवद कृन वारा धपनन
कृो ंण ु ाना धज्ञान कृा ही कृाम ह पावतव्रत्य, ंिु दश ान, भवू मदान, म््र पिू कृ
श पररमावजशत भो जन
आवद कृन औवचत्य कृी कृल्पना उन दबु शलर कृन वारा कृी यी जो वकृ बवु द्धमान् ान और दाररव्य कृन
कृार धपना पनर भरना चाहतन ान दनिमव्दर, जलपान, वयि्ाा, यज्ञ, कृूप, उद्यान आवद कृी ्रकर्ंस ा
भला पवाकृर ाो डकृर और कृौन कृरता ह? इंीवलयन बतह्पवत नन धवग्नहो ्र , िनदपाराय ,
व्र द्शधार , भ्मलनपन आवद कृो बवु द्ध एिस ंामथ्यशहीन वयवक्तयर कृी जीविकृा बतलाया ह
इंवलयन बवु द्धमानर कृो चावहए वकृ णनती, पर्पु ालन, िाव ज्य एिस द्श नीवत आवद दृि उपायर वारा
ंांस ाररकृ भो र कृा धनभु ि कृर ’’ ( आन्द झा, चािाशकृ दर्शन, पत0 446-447)
इं ं्दभश म, िनदाव्तकृ दृवि ंन र्कृ
स राचायश कृन वारा चािाशकृ कृन मतर कृन ंमाशन कृा विश्लन र् यह स
आिश्यकृ ह ्यातवय ह वकृ र्कृ स र नन चािाशकृ कृन इन मतर कृा उल्लनण ण्शन कृन वलयन वकृया ह
मा्यता दननन कृन वलयन नह वकृ्तु उनकृन इं मत ि नश म कृुा ऐंी बात धिश्य कृही यी ह वजंंन
उंकृन धवत्रकाचीन ्िरूपप कृा एिस मा्यता कृा आभां ्रकाए हो ता ह वब्दर् ु ः इंन इं ्रककृार ंमझा
जा ंकृता ह-
(कृ) र्कृ
स राचायश नन ंिशमतंस्ह म लो कृायत प् न कृहकृर इंकृन वलयन लौकृायवतकृ प् उद्धतत
वकृया ह वजंंन एकृ ंवु यिव्ात एिस दीघशकृावलकृ लो कृादृत विचारधारा कृी धनभु वू त हो ती ह
(ण) बतह्पवत कृन ं्दभश म उदधतत मत, वकृ धवग्नहो ्र आवद कृुा धंमाोंॅस कृन जीविकृााश ्रकिवतशत
ह, म धवग्नहो ्र आवद कृी धकृर ीयता नह बतलायी यी ह क्यरवकृ वयािहाररकृ रूपप ंन
जीिनो पाय ंिाशाश आिश्यकृ ह
( ) ंार रूपप म कृवात यह िाक्य वकृ बवु द्धमानर कृो चावहए वकृ णनती, पर्पु ालन, िाव ज्य वयापार
आवद कृो धपनाकृर ंुणी बन, ंन यह ्पि ्रकतीत हो ता ह वकृ लो कृायत विचारधारा धवत ्रकाचीन
कृाल म उच्ात स णल नह , पू ंश यस त एिस ंर्
ु णसत ल ाी
ध्त,ु लक्ष्य या विर्य कृुा भी हो वकृ्तु र्कृ
स राचायश कृन वारा चािाशकृ दर्शन कृन मतर कृा इं ्रककृार
उद्धतत वकृया जाना वन्ं्दनह चािाशकृ कृन विर्य म वयाए आधवु नकृ विश्वां कृा ्रकतीप रूपप ्रकिवतशत

उत्तराण्श मक्त
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कृरता ह ऐंा नह ह वकृ कृन िल र्कृ
स र नन ही चािाशकृ कृा विरो ध वकृया बवल्कृ ध्य दर्शन नन भी
परु जो र इंकृा विरो ध वकृया
अभ् खसतप्रश्न

1. यज्ञ म कृल्पना कृी जाती ह


(कृ) िनद कृी (ण) एकृ धवधष्ठा्र ी दनिी कृी
( ) इ्व कृी (घ) ंयू श कृी
2. कृन नो पवनर्द् म ंमाशन वमलता ह-
(कृ) दनहात्मिाद कृा (ण) इव्वयात्मिाद कृा
( ) भतू ात्मिाद कृा (घ) इनम ंन कृो ई नह
3. ीता कृन प चस ि ध्याय म ्रकयक्त
ु विवजतात्मा र्ब्द कृा धाश र्कृ
स राचायश नन वलया ह-
(कृ) विवजत दनह (ण) विवजत मन
( ) विवजत इव्वय (घ) विवजत वचत्त
4. र्कृ
स राचायश कृन वारा ्रकिवतशत लो कृायवतकृ विचारधारा कृा ्रकितशन ्रकाए हो ता ह-
(कृ) ंिशदर्शनंस्ह (ण) र्श्दर्शनंमच्ु चय
( ) ंिाशाशवंवद्ध (घ) ंिशमतंस्ह
5. विश्वनाा नन ्यायवंद्धा्त मक्त
ु ािली म र्रीरात्मिाद कृा ण्शन वकृया ह इं िाद कृा
्रकित्तशन वकृया ह-
(कृ) विश्वनाा नन (ण) चािाशकृ नन
( ) र्कृ
स र नन ( ) महािीर नन

उत्तराण्श मक्त
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5.4 चखिख्ृतदर््नतऔरातनखवस् ृतसमप्रदख
यद्यवप चािाशकृ ्ियस नाव्तकृ ं््रकदाय म परर व त ह ताावप कृुा ध्य नाव्तकृ विचारधारा हैं जो
चािाशकृ कृा तो विरो ध कृरतन ही हैं ंाा ही, उनकृन मत कृो उद्धतत कृरतन हुए उन मतर ंन ंहमवत भी
्रककृर कृरतन हैं इंी ं्दभश म यह स नाव्तकृ विचारधारा म चािाशकृ कृी उपव्ावत कृा ध्िनर् वकृया
जा रहा ह
5.4.1तजैनतदर््नतुेंतचखिख्ृतृीतउपवस्थव
जन दर्शन कृन आचायश हररभव ंरू र विरवचत र्श्दर्शनंमच्ु चय म चािाशकृ एिस इंकृन वंद्धा्तर कृा
वििर ्रकाए हो ता ह यह स चािाशकृ मत कृा ्िरूपप इं ्रककृार उपव्ात वकृया या ह-
योृख खतिदन्त् ेितं नखवस् तदेिोतनतवनि्वक ः।
धुख्धुौतनतवि्े ेतनत यंतपक् पखप ोः।।तर्शटदर््नसुकच्च , चखिख्ृतु
‘‘धााशत् लो कृायतर कृा कृहना ह वकृ न दनिर कृा धव्तत्ि ह और न वनितवश त धााशत् ्ि श या धपि श
ह धमश और धधमश भी नह ह और इंवलयन उनकृन फल भी नह हैं चािाशकृ वस्त्रयर ंन भी कृहतन हैं वकृ
हन भवन! वजतना तुम दनणती हो या त्ु हारन इव्वयर कृन वारा ्ह वकृयन जानन यो ग्य ह, उ्ह ही ्रकामाव कृ
ंमझो र्ास्त्र कृन आधार पर जो लो ्ि श धपि श , पाप प्ु य आवद कृा उपदनर् दनतन हैं उंन तमु
भयानकृ जस ली जानिर कृन प िस कृन ंमान ंमझो -
एतािाननि लो कृो यस यािावनव्व ो चरः
भवन! ितकृपदस पश्य यवदव्त बहुश्रतु ाः र्श्दर्शनंमच्ु चय, चािाशकृ मत
हन रम ी! णाओ, पीओ मौज कृरो जो बीत जाए ा िह तनरा नह हो ा या ंमय वफर लौरता नह
जब तकृ यह र्रीर िवद्धशष् ु ह फलतः यिु ाि्ाा यक्त
ु ह, तभी तकृ िा्तविकृ ह और पतवािी, जल,
तनज ताा िायु यन चार भतू ही हम चािाशवकृयर कृन मत म तत्ि हैं यन ्ियस चत्य कृन आश्रय हैं चािाशकृ
कृा यह भी मानना ह वकृ पतवािी आवद भतू र कृा ंसघात हो नन पर दनहावद ंसभि हो ता ह मद्य कृन धस
भतू भात आवद कृन ंडनन ंन मदर्वक्त कृन ंमान भौवतकृ दनहर म आत्मता हो ती ह धााशत् चत्य हो ता
ह इंवलयन दृि ऐवहकृ फलर कृो ाो डकृर जो लो धदृि पारलौवकृकृ फलर कृन वलयन ्रकितत हो तन हैं यह
उनकृी धत्य्त विमढू ता ह, धााशत् धज्ञान ह ऐंा चािाशवकृयर कृा मानना ह ंाधनीय दनिपजू न
आवद आचर और वनितवत धााशत् त्या ंन जो कृुा लो र कृो ्रकं्नता हो ती ह िह र््ू य कृन
धवतररक्त और कृुा नह धतः िह वनराशकृ ह’’-

उत्तराण्श मक्त
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ंा्यितवत्तवनितवत्तभ्यास या ्रकीवतजाशयतन जनन
वनरााश ंा मता तनर्ास ंा चाकृार्ात्परा न वह र्श्दर्शनंमच्ु चय, चािाशकृ मत ( आन्द झा, चािाशकृ
दर्शन, पत0 446-447)
5.4.2तरासेश्वरातदर््नतुेंतचखिख्ृतदर््नतृीतउपवस्थव
यद्यवप रंनश्वर दर्शन कृो दार्शवनकृ ्रक्ाान कृन रूपप म ंािशभौवमकृ ्िीकृत वत नह ह पनु रवप,
ंिशदर्शनंस्ह म माधिाचायश नन एकृ दर्शन ्रक्ाान कृन रूपप मॅ
स न इंन उद्धतत वकृया ंमालो चकृर कृी
दृवि म माधिाचायश नन िह स वजं रूपप म इं विचारधारा कृा ्रकितशन वकृया ह िह वकृंी न वकृंी रूपप
म चािाशकृीय विचारधारा कृा ही वि्तार ्रकतीत ह
ंिशदर्शनं्स ह कृन रंनश्वर दर्शन वििनचन ्रकंस म कृहा या ह वकृ ‘‘ाः दर्शनर कृन ’’ ध्दर मवु क्त कृी
बात कृही यी ह िह ंत्य ह वकृ्तु र्रीरपात धााशत् मर कृन धन्तर इंवलयन ध्य दर्शनीय मवु क्त
ह्त त आमलकृ कृन ंमान ्रकत्य्तः उपलब्ध नह हो पाती इंवलयन रंायनात्मकृ रं धााशत् र्द्ध ु
पारद कृन वारा र्रीर कृी र्ा कृरनी चावहए धााशत र्रीर कृो वनत्य बना लनना चावहए-
र्शटदर््नेवपतविस् कतदवर् खवप्शपख ने।
ृराोुयृित्ु् खवपतप्रत् िखनोपप् े
त्मावत्त र्वत्प्शस रंश्चि रंायनः 3
िह स ‘‘ध्य दर्शनीय मवु क्त ्रकत्य्तः उपलब्ध नह हो ती’’ इं कृान ंन यह ्पि ्रकतीत हो ता ह वकृ
रंनश्वर दर्शन भी ्रकत्य् कृो उंी ्रककृार ्रकमा मानता ह वजं ्रककृार चािाशकृ दर्शन र्रीर कृो वनत्य
मान लननन पर भतू ात्मिाद, फलतः भतू चत्य ्ितः ्रकाए हो जाता ह और ्रकत्य् मा्र ्रकमा ता भी
इं वच्तन कृो ्िीकृार ह ही ्यातवय ह वकृ यन दो नर मौवलकृ वंद्धा्त ही चािाशकृ कृन विवर्ि
वंद्धा्त हैं इंी ्रककृार रंनश्वर दर्शन कृो जो परमनश्वर तादात््यिादी कृहा या ह िह भी चािाशकृ कृन
महांमिायात्मकृ भतू ावत कृी तत्त्िता कृी मा्यता कृन ंाा ंस त हो जाती ह
अभ् खसतप्रश्न

1. िात््यायन कृन धनंु ार नाव्तकृ कृा धाश ह-


(कृ) आत्मा कृो नह माननन िाला (ण) ईश्वर कृो न माननन िाला

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( ) िनद कृी वन्दा कृरनन िाला (घ)दृिा्त कृो नह माननन िाला
2. चािाशकृ वस्त्रयर कृो भी ं्बो वधत कृरतन ्रकतीत हो तन हैं यह उद्धर हमन वमलता ह-
(कृ) र्श्दर्शनंमच्ु चय म (ण) ंिशदर्शनंस्ह म
( ) ्यायवंद्धा्त मक्त
ु ािली म (घ) ंिशमत ंस्ह म
3. ंमालो चकृर कृी दृवि म चािाशकृीय विचारधारा कृा वि्तार ह-
(कृ) जन दर्शन (ण) बौद्ध दर्शन
( ) ंिशदर्शन (घ) रंनश्वर दर्शन
4. ‘‘ध्य दर्शनीय मवु क्त ्रकत्य्तः उपलब्ध नह हो ती’’ इं कृान ंन यह ्रकतीत हो ता ह वकृ
(कृ) चािाशकृ ्रकत्य् कृो नह मानता ह
(ण) बौद्ध दर्शन ही ्रकत्य् कृो मानता ह
( ) रंनश्वर दर्शन ्रकत्य् कृो ्रकमा मानता ह
(घ) इनम ंन कृाई नह
5. रंनश्वर दर्शन कृन धनंु ार र्रीर कृो वनत्य बनानन कृन वलयन वकृं तत्त्ि ंन र्रीर कृी र्ा कृरनी
चावहए?
5.5 सखराखंर्
इंंन पिू श कृी इकृाई म आपनन चािाशकृ दर्शन कृन मल ू वंद्धा्तर कृो जाना इं इकृाई कृो पढ़नन कृन बाद
आप यह जान चकृ ु न हैं वकृ चािाशकृ विचारधारा वकृंी एकृ कृाल म वकृंी आकृव्मकृ घरना कृन
कृार विकृवंत नह हुआ बवल्कृ यह विचारधारा िवदकृ कृाल ंन ही ंमाना्तर रूपप म चली आ
रही ह यही कृार ह वकृ िनद ंन लनकृर ंमकृालीन ंारन दर्शन वच्तन म इंकृी उपव्ावत दनणी जाती
ह िनद म तो ंाा ंाा यह र्ास्त्रााश चलती वदणाई दनती हैं या्कृाचायश विरवचत वनरुक्त म तो कृौत्ं
कृन ्रकश्नर म ्पितया इंकृा ्रकवतवब्बन दनणा जाता ह ध्तु, इन दर्शनर म कृह तो इंकृी उपव्ावत
वि्ततत रूपप म दनणी जाती ह कृह आवस र्कृ रूपप म यह उपव्ावत या तो चािाशकृ दर्शन कृन ंमाशन म
ह तो कृह उन उन दर्शनर म धपनन मत कृी ्ाापना क्रम म विरो धी लक्ष्य बनकृर विद्यमान ह

उत्तराण्श मक्त
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इंवलयन ्रकाए उद्धर र कृन आधार पर िनद, उपवनर्द,् िनदा्त, ्याय िर्नवर्कृ, जन आवद दार्शवनकृ
विचारधाराओ स म चािाशकृ कृी उपव्ावत कृा ध्िनर् वकृया या ह
इं प चस ि इकृाई कृन ध्ययन ंन चािाशकृ कृन मतर कृो जानकृर आप ध्य दार्शवनकृ विचारधाराओ स कृन
ंाा तल ु नात्मकृ ध्ययन कृरनन म ं्म हो पाएॅॅॅस न ंाा ही यह भी जान पाएॅॅॅस न वकृ ध्य
दार्शवनकृ विचारधाराओ स कृी दृवि म चािाशकृ कृी व्ावत क्या ह?
5.6 र्ब्दखियी

दनहात्मिाद- वजं वंद्धा्त म दनह धा िा र्रीर कृो आत्मा माना जाता ह, उंन दनहत्मिाद या
र्रीरात्मिाद कृहा जाता ह ्यातवय ह वकृ चािाशकृ दनह या र्रीर कृो ही आत्मा मानतन हैं
भतू ात्मिाद- दनहात्मिाद या र्रीरात्मिाद कृी तरह ही भतू धााशत् ्रका ी कृो आत्मा कृन रूपप म मानना
भतू ात्मिाद ह
रंनश्वर- माधिाचायश विरवचत ंिशदर्शनं्स ह म निम दर्शन कृन रूपप म रंनश्वर कृो एकृ दर्शन माना ह
इंन आयुिदे दर्शन भी कृहा जाता ह इं म पारद धा िा रं ंन जीि्मवु क्त कृी बात कृही जाती ह
इंकृी ना माहनश्वर कृन चार ं््रकदायर म कृी जाती ह
ध्यां- यह एकृ ्रककृार कृा भ्रम ह धिा्तविकृ तत्त्ि कृन ऊपर िा्तविकृ तत्त्ि कृा आरो प
ध्यां ह याा- ंीपी कृन ऊपर रजत कृा आरो प यह धवत िनदा्त कृन वारा ्रकिवतशत एकृ वच्तन
ह वजंकृन आधार पर िह ब्रह्म कृन धवतत्ि कृी ्ाापना कृरतन हैं
धवग्नहो ्र - िवदकृ पर्परा म हत ्ााश्रम म धनष्ठु ीयमान एकृ विवर्ि यज्ञ ह चािाशकृ नन िवदकृ
कृमशकृा्श पर िावचकृ ्रकहार कृन क्रम म धवग्नहो ्र कृरनन िालन कृो बवु द्ध ताा परुु र्ााश ंन रवहत कृहा ह
5.7 अभ् खसतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
5.3 1. ण, 2. , 3. कृ, 4. घ, 5. ण
5.4 1. घ, 2. कृ, 3.घ, 4. , 5. र्द्ध
ु पारद
5.8 सन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
1. झा, आचायश आन्द, (1969) चािशकृ दर्शन, वह्दी ंवमवत, ंचू ना विभा , उत्तर्रकदनर्,
लणनउ,
2. वतिारी, श 0 नरन र् ्रकंाद, (1986), चािाशकृ कृा नवतकृ दर्शन, वबहार वह्दी ््ा धकृादमी,
परना

उत्तराण्श मक्त
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3. ऋवर्, ्रको 0 उमार्कृ
स र र्माश, (1964), ंिशदर्शनंस्हः, चौण्बा विद्याभिन, िारा ंी-1
4. र्माश, च्वधर, (1991), भारतीय दर्शन आलो चन और धनर् ु ीलन, मो तीलाल
बनारंीदां, वदल्ली
5. दनिराज, श 0 न्दवकृर्ो र, (1992), भरतीय दर्शन, उत्तर्रकदनर् वह्दी ं्स ाान, लणनउ
6. ंिाशन्द पाठकृ, चािाशकृ र्वि, निनाल्दा विहार ररंचश पवब्लकृन र््ं
5.9 वनबन्धखत्ुृतप्रश्न
(कृ) ्रकारव्भकृ दार्शवनकृ विचारधारा म चािाशकृ दर्शन कृी आवस र्कृ उपव्ावत कृो वि्तारपिू कृ

ंमझाएस
(ण) श्रीमद्भ िद्गीता म चािाशकृ दर्शन कृी उपव्ावत पर एकृ वनब्ध वलण
( ) नाव्तकृ विचारधारा म वकृं ्रककृार चािाशकृ कृन मत कृो ढ़सढा जा ंकृता ह? ंो दाहर ंमझाएस
(घ) रंनश्वर दर्शन कृन वंद्धा्त कृो ्पि कृरतन हुए चािाशकृ दर्शन कृन ंाा उंकृन ंा्य कृो ्पि कृर
(श) ध्य भारतीय दर्शन कृन विवर्ि ं्दभश म चािाशकृ कृन ्ाान कृा वनधाशर कृर

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इृखईत6 - चखिख्ृतदर््नतृखति ्ुखनतव् खिहखरराृतितसखंसखरराृतजीिनतसेतसमबन्ध
6.1 ्रक्तािना
6.2 उद्दनश्य
6.3. चािाशकृ दर्शन कृी आचारमीमासंा
6.3.1 भवू मकृा
6.3.2 चािाशकृ दर्शन कृी मो ्विर्यकृ धिधार ा
6.3.3 चािाशकृ दर्शन कृी धमशविर्यकृ धिधार ा
6.3.4 चािाशकृ दर्शन कृी कृामविर्यकृ धिधार ा
6.4 चािाशकृ दर्शन कृन वयािहाररकृ वंद्धा्त
6.4.1 रूपवढ़ कृा विरो ध
6.4.2 ंॅ ु ुण कृा ध्िनर्
6.4.3 भो ााश ऋ कृी कृामना
6.4.4 तनािमवु क्त कृन ्रकयां
6.5 ंारासर्
6.6 र्ब्दािली
6.7 धभ्यां ्रकश्नर कृन उत्तर
6.8 ं्दभश ््ा ंचू ी
6.9 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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6.1तप्रस् खिनखतत
चािाशकृ दर्शन ंन ं्बद्ध यह तींरी ताा इं ंम् ब्ल कृ कृी यह ाठी इकृाई ह इंंन पिू श कृन पाठ
म आपनन चािाशकृ दर्शन कृन वंद्धा्तर कृा ंवि्तर ज्ञान ्रकाए वकृया उंन जानकृर आप वन्ं्दनह
चािाशकृ कृी ज्ञानमीमासंा ताा तत्त्िमीमासंा कृो भली भ वस त ंमझ वलया हो ा आपनन यह भी जाना
हो ा वकृ धपनी मा्यता कृी ्ाापना कृन वलयन िन वकृंी भी र्ास्त्र कृो ्रकमा नह मानतन, पर्परा एिस
र्ास्त्र कृन विरुद्ध जा ंकृतन ह ंाा ही, धपनन तकृश कृो ही ्रकधान मानतन हैं
ध्त,ु उक्त पररचचाश ंन ंिशाा वभ्न इं इकृाई म हम चािाशकृ दर्शन कृी बहुचवचशत विचारधारा कृा न
कृन िल ंासंाररकृ जीिन ंन ं्ब्ध कृन विर्य म जान न ्रकत्यतु वयािहाररकृ जीिन ंन ं्ब्ध ताा
इंकृी उपादनयता कृन विर्य म भी जाननन कृा ्रकयां कृर न
6.2तउद्देश् तत
्रक्ततु इकृाई कृन ध्ययन कृन बाद आप -

 बता ंकृ न वकृ आज चािाशकृ दर्शन क्यर ्रकांवस कृ ह


 ंमझ ंकृ न वकृ चािाशकृ दर्शन रूपवढ़यर कृा विरो ध कृरता ह, ंण ु कृो ही एकृमा्र ्रकाएवय
ंमझता ह ताा कृाम कृन ्रकवत ंमवपशत ह
 परुु र्ााश कृन विर्य म वकृं ्रककृार ध्य दार्शवनकृ विचारधारा ंन वभ्न विचार रणता ह
 एतदाश ंिश्रकाम हम चािाशकृ दर्शन कृी आचारमीमासंा धा िा नीवतमीमासंा ंमझनी
पडन ी ्यातवय ह वकृ इंंन पिू श कृन पाठ म आचारमीमासंाविर्यकृ पाठ ्रक्तावित ाा,
पनु रुवक्त दो र् ंन बचनन कृन वलयन वजंकृा वििनचन िह स नह वकृया या आपलो र कृन बो धााश
उंकृी पररचचाश यह कृी जा रही ह-
6.3. चखिख्ृतदर््नतृीतरचखराुीुखंसख

6.3.1तभूवुृखत
चािाशकृ दर्शन कृी आचारमीमासंा उंकृी ज्ञानमीमासंा एिस तत्त्िमीमासंा कृी परर वत ह इंम मानि
कृा ्िरूपप और परुु र्ााश कृा ्िरूपप पू तश या पररिवतशत हो जाता ह भारतीय विचारधारा म मो ् परम
परुु र्ााश ह धमश मो ् कृी ्रकावए कृा ंाधन ह धाश एिस कृाम धमश ंन वनयव््र त हो ता ह चूँवू कृ चािाशकृ
तत्त्िमीमासंा म मनष्ु य कृा आ्यावत्मकृ ्िरूपप भौवतकृ बन जाता ह, धतः उंकृन ्रकाएवय धभीि कृी
्रकाावमकृता भी बदल जाती ह ऐंी व्ावत म मो ् ौ हो जाता ह, धमश लक्ष्यविहीन हो जाता ह,

उत्तराण्श मक्त
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कृाम परम परुु र्ााश बन जाता ह और धाश उंकृी ्रकावए कृा एकृमा्र ंाधन यह स उक्त चारर परुु र्ााों
कृी चािाशकृीय वििनचना ्रक्ततु कृी जा रही ह-
6.3.2ततचखिख्ृतदर््नतृीतुोिविर् ृतअिधखराणख-
भारतीय विचारधारा म मो ् दःु णर कृन आत्यव्तकृ धभाि कृी धि्ाा ह, यही मानि जीिन कृा
धव्तम लक्ष्य माना जाता ह िह स इंी कृो परम परुु र्ााश कृहा या ह कृुा विचारकृर कृन धनंु ार
मो ् इंी जीिन म ्रकाएवय ह तो कृवतपय ध्य विचारकृर कृन धनंु ार मतत्यु कृन उपरा्त इंकृी
उपलवब्ध हो ती ह बौद्ध दर्शन कृा वनिाश , ंाख्स य एिस यो दर्शन कृा कृिल्य, जन, ्याय-िर्नवर्कृ
एिस िनदा्त विचारधाराओ स कृा मो ् मानि जीिन कृा परम लक्ष्य ह मीमासंकृ विचारकृ ्ि श कृो , जो
पू श आन्द कृी धि्ाा ह, मानि जीिन कृा धव्तम लक्ष्य मानतन हैं
चािाशकृ कृन धनंु ार मतत्यु ही मो ् ह- मर मनि धपि शः धा िा मर मनि मो ्ः ंिशदर्शनंस्ह म
मो ् कृा ल् इं ्रककृार वदया या ह- दनहच्ान दो मो ्ः धााशत् दनह या आत्मा कृा विनार् ही मो ्
ह यवद मो ् ंन तात्पयश आत्मा कृा र्ारीररकृ ब्धन ंन मक्त
ु हो ना ह तो यह ं्भि नह ह, क्यरवकृ
जीवित र्रीर ही आत्मा ह र्रीर ंन वभ्न आत्मा कृा कृो ई ्िरूपप ही नह ह यवद मो ् कृा धाश
जीिन कृाल म ही दःु णर कृी आत्यव्तकृ वनितवत्त ह तो यह धं्भि ह, क्यरवकृ र्रीर-धार और
ंणु -दःु ण म धवियो ज्य ं्ब्ध ह चािाशकृ कृन धनंु ार ंणु कृी कृामना ताा मतत्यु कृन उपरा्त मो ्
कृी धिधार ा वनराधार ह, क्यरवकृ यह परलो कृ कृी धिधार ा पर आधाररत ह और परलो कृ कृन
वलए कृो ई ्रकमा नह ह धतः मो ् कृी धार ा न कृन िल भ्रमज्य ह बवल्कृ तकृश विरुद्ध भी ह
6.3.3ततचखिख्ृतदर््नतृीतधु्विर् ृतअिधखराणखत–त
भारतीय विचारधारा म धमश ंिाशवधकृ महत्िपू श ह रामाय , महाभारतावद ््ार कृा ्रक यन ही धमश
कृी ्ाापना कृन वलयन वकृया या ह इंन ही ज त् कृी ्रकवतष्ठा कृहा या ह व्र ि श (धमश, धाश और
कृाम) म इंकृा मधू श्य ्ाान ह धमश कृा ्रकमा िनद ह वकृ्तु चािाशकृ दर्शन कृन धनंु ार धमश
मणू तश ापू श मवतभ्रम एिस एकृ ्रककृार कृा मानवंकृ रो ह न ईश्वर कृा धव्तत्ि ह एिस न वनत्य आत्मा
कृा धावमशकृ ध्धविश्वांर एिस प्पातर कृन कृार मनष्ु य कृो परलो कृ, ईश्वर, ्ि श, नरकृ आवद कृी
कृल्पना कृरनन कृी आदत बन जाती ह
चािाशकृ िनदर कृी घो र वन्दा कृरता ह उनकृन धनंु ार िनद धविश्वंनीय हैं, क्यरवकृ िन धंत्यता,
धंस वत एिस पनु रुवक्त कृन दो र्र ंन भरन पडन हैं िनद कृन रचवयता तीन ह- भा्श, धतू श और वनर्ाचर
धवग्नहो ्र , तीनर िनद, तप्िी कृन व्र द्श और र्रीर म भ्म ल ाना- यन ंब उन लो र कृी जीविकृा
कृन ंाधन हैं जो ज्ञानर््ू य एिस पस्ु त्िविहीन हैं िनदर म ्रकाए धमश, धधमश, ्ि ,श नरकृ, यज्ञ, आत्मा,

उत्तराण्श मक्त
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ईश्वर, परलो कृ, पनु जशनम आवद धतीव्वय विर्यर कृी कृल्पनाएूँ जनंाधार कृो धो णा दननन कृन वलए
हैं
चािाशकृ िवदकृ कृमशकृा्श एिस यज्ञ, या ावद कृा भी घो र विरो ध कृरतन हैं िन िवदकृ कृमशकृा्शर कृा
उपहां कृरतन हैं उनकृन धनंु ार ्ि श पानन कृन वलए, नरकृ ंन बचनन कृन वलए ताा ्रकनतात्माओ स कृो ततए
कृरनन कृन वलए िवदकृ कृमशकृा्श वनराशकृ हैं िन िवदकृ कृमशकृा्श कृा विरो ध कृरतन हुए कृहतन हैं वकृ
यवद यज्ञ म मारा या पर्ु ्ि श जाता ह तो वयवक्त पर्ओ ु स कृन बजाय धपनन माूँ-बाप कृी बवल क्यर
नह कृर दनतन वजंंन िन ्ि श जा ंकृ िवदकृ श्राद्ध-कृमश पर वयसग्य कृरतन हुए चािाशकृ कृहतन हैं वकृ यवद
श्राद्ध म धवपशत वकृया हुआ पदााश ्रकनतात्मा कृी भण
ू वमरा ंकृता ह तो पवाकृ भो जन-ंाम्ी लनकृर
या्र ा पर क्यर वनकृलता ह? उंकृन कृुरु्बजनर कृो घर ंन ही उंकृी भणू वमरानन कृन वलए भो ज्य पदााश
धवपशत कृर दनना चावहए तद्याा-
मततानामवप ज्तनू ास श्राद्धस चनत्तवत एकृार म्
वनिाश ्य ्रकदीप्य ्ननहः ंसिद्धशयनवच्ाणाम् ंिश0 15
6.3.4ततचखिख्ृतदर््नतृीतृखुविर् ृतअिधखराणखत–
चािाशकृ चारर परुु र्ााों म कृाम कृो परम परुु र्ााश मानता ह उनकृी ्पि मा्यता ह वकृ जो कृमश कृाम
कृी पवू तश कृरन या ंण
ु ्रकदान कृरन िही उवचत ह उनकृन धनंु ार वयवक्त वारा इव्वय ंण ु र कृा उपयो
ही जीिन कृा लक्ष्य ह उंकृा आदर्श ह, जब तकृ जीवित रह ंण ु ंन रह, उधार लनकृर घी वपय
क्यरवकृ दनह कृन भ्म हो जानन कृन बाद पनु जश्म नह हो ता -
यािज्जीिनत् ंुणस जीिनद् ऋत स कृत त्िा घततस वपबनत्
भ्मीभतू ्य दनह्य पनु रा मनस कृुतः
चािाशकृ दर्शन कृन धनंु ार पारलौवकृकृ और आ्यावत्मकृ ंुण कृी आर्ा म ऐवहकृ ंण ु कृा पररत्या
कृरना पा लपन ह उनकृी यह भी मा्यता ह वकृ दःु ण कृन भय ंन ंुण कृा त्या कृरना मण ू तश ा ह
वजं ्रककृार कृो ई वयवक्त वभ्कृ ु र वारा माूँ न जानन कृन भय ंन भो जन पकृाना नह ाो डता, धािा
पर्ओु स वारा नि वकृयन जानन कृन भय ंन णनती कृरना नह ाो डता उंी ्रककृार दःु ण कृन भय ंन ंण ु कृा
पररत्या नह कृरना चावहए वफर, यवद ंण ु और दःु ण पर्पर वमलन हर तो ंण ु कृा ्ह और दःु ण
कृा पररत्या िंन ही उवचत ह जंन भंू न और हन ूँ वमलन रहतन हैं, वकृ्तु हन ूँ लन वलया जाता ह और भंू ा
पर्ओ ु स कृन वलए ाो ड वदया जाता ह इं ्रककृार चािाशकृ दर्शन कृन िल और कृन िल ंुण कृा वच्तन
कृरता हुआ ्रकतीत हो ता ह

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उपरो क्त वििनचन कृन आधार पर ंहज ही यह वनष्कृर्श वदया जा ंकृता ह वकृ चािाशकृ दर्शन कृी इन
मा्यताओ स नन मनष्ु य कृन वचत्त कृो उच्चतर जीिन कृन विचारर ताा आ्यावत्मकृ एिस नवतकृ मल्ू यर ंन
वबलकृुल हराकृर विर्यभो कृी दवु नयाूँ म कृन व्वत कृर वदया उंनन विश्व कृो वनयव््र त कृरनन िालन
ईश्वर ताा मनष्ु य कृो ं्मा श पर लानन िाली ध्तदृशवि कृा तो वनर्नध वकृया ही, परलो कृ, लो कृो त्तर
जीिन ताा पनु जश्म कृो भी ध्िीकृार कृरकृन कृमशिाद कृन वंद्धा्त कृा भी वतर्कृार वकृया चािाशकृ
दर्शन ंण ु कृी ्रकावए कृन वलए इतना धधीर हो उठता ह वकृ िह दःु ण ंन बचनन कृी भी कृो वर्र् नह
कृरता फल्िरूपप उंनन दर्शनर्ास्त्र कृो जीिन कृी ंाधना कृन ्तर ंन भी च्यतु कृर वदया इं क्रम
इंन इं ्रककृार ंमझा जाना चावहए वकृ चािशकृ नन वकृंी दर्शन या विचार कृा ्रकितशन नह वकृया
बवल्कृ उं कृाल म वयाए ंामावजकृ वयि्ाा कृा लो र कृी मानवंकृता कृन धनुरूपप् विरो ध वकृया
ि्ततु ः उक्त वििनचन ंन ही हम इं दर्शन कृा ितशमान वयािहाररकृ ंासंाररकृ जीिन ंन ं्ब्ध कृी
्ाापना कृर ंकृतन हैं यह वच्तन एकृ ऐंा विचार ह जो लो र कृो ंहज ही आकृत ि कृर लनता ह
लो र कृी रुवच कृन धनकृ
ु ू ल ह इं ं्दभश म, वयािहाररकृ ि ंासंाररकृ जीिन कृन ितशमान ्िरूपप कृो
ंमझना परमािश्यकृ ह इंकृन ंिरूपप कृो म्ु शन म्ु शन मवतवभश्ना कृन ं्दभश म नह ंमझा जाना
चावहए
ितशमान वयिहार, वयि्ाा ि ंसंार कृन ्िरूपप कृी वयाख्या कृर पाना ंिशाा दष्ु कृर ह इंकृा ्िरूपप
्रकवत् बदलता रहता ह इंवलयन यह कृह पाना वकृ यह ऐंा ह यह िंा ह ंिशाा आपनव्कृ ह
पनु रवप ्रकवतवदन कृन ्रकवत् बदलतन ्िरूपप कृो ्यान म रणकृर एकृ ंिश्िीकृत त ्िरूपप धिश्य ही
वनधाशररत वकृया जा ंकृता ह
अभ् खसतप्रश्न

(1) चािाशकृ कृन धनंु ार मो ् ह-


(कृ) पनु जश्म (ण) ्ि श ( ) मतत्यु (घ) कृमशब्धन
(2) िनदर म ्रकाए धमश, धधमश आवद विर्यर कृी कृल्पनाएूँ जनंाधार कृन वलए ------ ह
(3) चािाशकृ दर्शन कृा आदर्श िाक्य क्या ह?
(4) चािाशकृ दर्शन नन आ्यावत्मकृ एिस नवतकृ मल्ू यर कृो कृन व्वत कृर वदया-
(कृ) उच्चतर मल्ू यर म (ण) विर्यो पभो म

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( ) परमात्मा कृी ्रकावए म (घ) कृमशकृा्श म
(5) चािाशकृ मन कृमशिाद वंद्धा्त कृा-
(कृ) ंमाशन वकृया (कृ) ्रकचार वकृया
( ) धपमान वकृया (घ) वंद्धा्त वदया
6.4तचखिख्ृतदर््नतृे तव् खिहखरराृतवसद्धखन्
6.4.1तरूवितृखतविराोधत-त
यह स रूपवढ़ ंन तात्पयश ंमकृालीन ंमाज म वयाए वकृंी ऐंी पार्पररकृ भ्रा्त धार ा ंन ह वजंकृा
ं्ब्ध तकृश या विश्वां पर आधाररत वकृंी मा्यता ंन न हो कृर उं ंमाज म ्रकिवतशत ध्धविश्वां
पर आधाररत वकृंी धदृि, धश्रतु , धज्ञात ि धवतमावयकृ मा्यता ंन ह याा- या्र ा पर वनकृलतन
ंमय वबल्ली कृन वारा रा्ता कृारनन पर धर्भु ि धवनि कृी ंसभािना कृर बठना या परुु र् कृी बाई स
ऑणस कृन फडकृनन ंन धवनि ताा दाई सऑणस कृन फडकृनन ंन धभीि कृी ्रकावए हो ना
इंंन पिू श कृन पाठर म ं्यक्तया यह ्ाावपत कृरनन कृा ्रकयां वकृया या ह वकृ चािाशकृ ल भ ंभी
रूपवढ़यर कृा उपहां उडातन हैं ंविर्नर् िनद एिस िवदकृ आचार उनकृन कृठो र ्रकहार कृन विवर्ि लक्ष्य
रहन िनद पर ्रकहार कृा धाश इं ्रकंस म उं म वनवहत कृट्टर कृमशकृा्श कृी भत््नाश वकृया जाता रहा ह
आज भी यह वििाद कृा ही विर्य ह वकृ क्या उं तााकृवात कृमशकृा्श ंन ्ि ाशवद कृी ्रकावए ंभस ि
ह? आज भी हमारन ंमाज मन यज्ञ, व्र द्श भ्म इत्यावद कृन ंहारन जीविकृो पाजशन कृरनन िालन कृी कृमी
नह इंी वयि्ाा कृन विरो ध म कृाला्तर म कृबीरदां नन धपना ्िर मण ु ररत वकृया ाा वकृ
पाहन पजू हरर वमल तो मैं पजू सू पहार
ता तन चवकृया भली कृूर णाए ंसंार
मतत्यु कृन उपरा्त ं्पावदत वकृयन जानन िालन श्राद्धावद कृन विवर्ि ं्दभश म उ्हरनन ्पि कृहा ह वकृ
श्राद्धकृमश म मरन हुए कृन वलयन वप्शदान रूपप भो जन क्यर वदया जाता ह यवद वप्शदान ंन मततात्मा
ं्ततए हो ता हो ा तो या्र ा पर जानन िालन या्र ी धपनन ंाा क्यर भो जन लन जातन हैं? क्यर नह घर बठन
उनकृन ्िजन श्राद्ध्रकवक्रया कृन वारा उ्ह भो जन पहुचस ा दनतन हैं?
भलन ही चािाशकृकृालीन ंमाज म यह कृान िनद विरुद्ध रहा हो वकृ्तु आज यह ्पि दनणा जा ंकृता
ह वकृ उक्त ंम्त वक्रया, ्रकवक्रया ि ्रकवतवक्रया विलएु ्रकाय हो रही हैं कृह तीन वदनर म ही मततात्मा

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कृन उक्त ंम्त ंस्कृार कृर वदयन जातन हैं तो कृह उंी वदन उं कृायश कृो ं्प्न कृर र्ो कृाकृुल
पररिार वनवश्च्त ंन हो जातन हैं ह ,स आज भी वमवाला, िारा ंी आवद ्रकदनर्र कृन कृट्टर पव्शत
ंमिाय म इंकृी बीभीवर्कृा दनणी जाती ह जह स श्राद्ध कृन नाम पर लाणर रूपपयन कृा धपवयय हो ता ह
वकृंी भी ंमाज कृन वपाडनपन कृन कृई कृार र म ंन एकृ कृार उंकृा रूपवढ़््त हो ना ह रूपवढ़
ंमाज कृी मानवंकृ दांता ह जो ्रक वतिादी वच्तन कृन मा श कृो ंदि धिरुद्ध कृरता ह
धकृमश्यता ि वनष्कृमश्यता कृो इंी ंन बढ़ािा वमलता ह रूपवढ़ कृा कृो ई कृायश कृार परर ाम नह
हो ता ऐंी व्ावत म, चािाशकृ कृन वारा ्रकिवतशत यह क्राव्त ितशमान वयािहाररकृ ंासंाररकृ वयि्ाा
कृन वलयन ंिशाा उपादनय ह इंकृा यह धाश नह वकृ रूपवढ़ ंिशाा त्याज्य ह या िनदावद कृा विरो ध
कृरना ही आधवु नकृ ंसंार कृा ंतजन कृरता ह बवल्कृ इंकृा धाश यह वलया जाना चावहए वकृ ंमाज
वकृंी ऐंी एकृवनष्ठ विचारधारा कृा धनिु तशकृ न रहन जो ्रक वत ि विकृां कृन मा श म बाधकृ बनन
्रकत्यतु विचारर कृी ्ित््र ता ऐंी ्रक वत ि विकृां म ंाधकृ बनन
6.4.2तसकणतृखतअन्िेर्ण-त
ध्य ंांस ाररकृ ि्तओ ु स कृी इच्ाा वजंकृी इच्ाा हो नन कृन कृार हो ती ह िह भािात्मकृ ि्तु ह
ंण
ु - इतरन च्ाानधीननच्ााविर्यत्िस ंण ु ्य ल् म् (तकृश ंस्ह ्या0 बो वधनी) इं धरा पर रहनन
िाला ्रकत्यनकृ मानि ंुण कृन ध्िनर् मा्र म रहता ह उपवनर्द् ्पितया ंण ु ्रकावए कृी बात कृरती ह
िह स भलन ही आत्यव्तकृ धा िा पारमावाशकृ ंण ु कृी बात कृही जा रही हो वकृ्तु मल ू म एकृ ऐंन
धभीि कृी धवभलार्ा ंसवचत ह जो ज्म ज्मा्तर कृन दःु णर कृा वनर्नध कृरती ह दःु ण कृा वनर्नध ि
ंणु कृी ्रकावए कृा वच्तन ्रकायः ंम्त भारतीय दर्शन वच्तन म विद्यमान ह चािाशकृ भी ंण ु कृी
धिधार ा ्रक्ततु कृरता ह
चािाशकृ दर्शन ंण ु कृी वयाख्या ंिशाा नतू न पद्धवत ंन कृरता ह िन दःु ण, कृि, पीडा आवद कृो इंी
जीिन म ्रकाएवय मानतन हैं चसवू कृ ्ि ,श पनु जश्म आवद कृो िन नह मानतन इंवलयन ंम्त भो क्तवय,
धभो क्तवय आवद कृो इंी ज्म कृी धवनिायशता मानतन हैं धतः ंण ु कृो ही परम लक्ष्य मानतन हुए िन
उंी कृो एकृमा्र ्रकाएवय मानतन कृहतन हैं
चािाशकृ कृन धनंु ार मानिमा्र कृा आदर्श ंण ु ह ंण ु इवच्ात ि्तु कृी ्रकावए ह इं ंण ु कृी ्रकावए
कृाम ंन हो ती ह कृाम मानि कृी ्िाभाविकृ ्रकितवत्त ह धतः ंणु ्रकावए कृन वलयन कृामततवए आिश्यकृ
ह कृामततवए ताा ंण ु ्रकावए ि्ततु ः एकृ ही ह णाओ, पीओ ताा मौज कृरो यही मानि कृी ऐर् ा
ह इंवलयन चािाशकृ इंन धपनानन कृी ्रकनर ा दनता ह तदनंु ार यही मनष्ु य कृा आदर्श हो ना चावहए
इं क्रम म चािाशकृ वकृंी मयाशदा धा िा नवतकृता कृी रन णा नह ण चता ंिशदर्शनंस्ह म इं ंुण

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कृो ही परुु र्ााश कृहा या ह- धस नाद्यावलस नावदज्यस ंण
ु मनि परुु र्ााशः धााशत् स्त्री कृन आवलस न ंन
उत्प्न ंण ु ही परुु र्ााश ह
एतदाश र्ास्त्रीय वच्तन, धावमशकृ धनष्ठु ान, आ्यावत्मकृ वनष्ठा आवद कृो िन आश्बर मा्र कृहतन हैं
िात््यायन कृन कृामं्र ू म ्रकिवतशत इव्वयंण ु कृो यद्यवप िन ्िीकृार कृरतन हैं पनु रवप पर्परापघातकृस
व्र ि ं ंनितन कृन कृथ्य कृा िन धनंु र नह कृरतन इनत तथ्यर कृो िन कृन िल मन कृन राज्य कृी कृल्पना
कृहतन ह ्यातवय ह वकृ यद्यवप यािज्जीिनत् ंण ु स जीिनत् कृी धिधार ा ंम्त ब्धन कृो तो डनन
िाली हो ती ह ताावप उंकृी मौवलकृ धिधार ा कृो ंामा्य तकृश मा्र ंन वनराकृत त नह वकृया जा
ंकृता आधवु नकृ ंम्त ंसंार इंी ंण ु िाद कृन ्रकवत उ्मण ु ह भलन ही, इं उच्ात स णल ंण ु िाद
कृा ्रकत्य्तः धवहत वदणता हो वकृ्तु ध्रकत्य्तः वकृंी भी विचारधारा म इंकृा विरो ध नह दनणा
जाता ्रकायः ंारन ंमकृालीन धा िा आव्तकृ विचारधारा म धंत्य भार् कृा विरो ध ह, लनवकृन
वयािहाररकृ ंासंाररकृ ं्ब्ध कृी दृवि ंन कृन िल इंकृा ही धनपु ालन मा्र वदणता ह ंरु ापान,
ं्ु दरींमा म आवद कृो महापाप कृी ंसज्ञा वदयन जानन पर भी मनष्ु य इं म लीन वदणतन हैं, इ्ह त्याज्य
नह मानतन
तात्पयश यह ह वकृ एकृ विचारधारा नवतकृता कृी ल्बी चौडी पररभार्ा ि उदाहर ्रक्ततु कृरकृन भी
उंकृन धनपु ालन म धंमाश ह दंू री ओर चािाशकृ कृरुंत्य ही ंही वकृ्तु उंकृन धनपु ालन कृी
वर््ा दन रहा ह तो नवतकृता कृा उल्लसघन कृहना लासाना मा्र ्रकतीत हो ता ह ि्तुतः ंमाज कृी
नवतकृता वकृंी वंद्धा्त ंन वनधाशररत नह कृी जा ंकृती मनष्ु य आिश्यकृतानरूपु प धपनी याांभस ि
नवतकृता कृा वनधाशर कृरता ह इं दृवि ंन, वन्ं्दनह चािाशकृ दर्शन कृन ंुण कृा ध्िनर् आधवु नकृ
वयािहाररकृ ंासंाररकृ ं्ब्ध कृी ं्ु दरतम वयाख्या कृरता ्रकतीत हो ता ह ऐंी वयि्ाा ंनॅन
बचना ि बचाना कृठो र आत्मवन्ह ही हो ा
6.4.3ततभोगखथ्तऋणतृीतृखुनख-त
इंंन पिू श रूपवढ़ एिस ंण ु कृी धिधार ा कृन विर्य म आपनन पढ़ा इंंन एकृ बात ्पि हुई वकृ
चािाशकृ कृा ंण ु उच्ात स णल ह िह इंकृी ्रकावए कृन वलयन वकृंी भी ंीमा तकृ जा ंकृता ह यद्यवप
वकृंी भी ंीमा- इं ्रककृार कृा कृान धवनिशचनीय हो ता ह पनु रवप ्रकाए उनकृन ंिाशवधकृ ्रकवंद्ध पद्य
कृा एकृ चर ंण ु कृी ्रकावए कृन वलयन ऋ ्ह तकृ कृरनन कृा परामर्श दन दनता ह यह स ऋ कृा धाश
ह धपनी उपयो व ता कृी वंवद्ध कृन वलयन वकृंी पर ंन आिश्यकृतानरूप ु प ि्तु ्ह कृरना ्यातवय
ह वकृ ंिशदर्शनंस्ह म िव तश चािाशकृ दर्शन कृी ्रक्तािना म उद्धतत कृाररकृा म उक्त चर ्रकाए नह
हो ता तदनंु ार-
यािज्जीिस ंण
ु स जीिन्नाव्त मतत्यो य ो चरः

उत्तराण्श मक्त
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भ्मीभतू ्य दनह्य पनु रा मनस कृुतः?
पनु रवप पिू िश व तश चर कृो ही आधार मानकृर यह स वििनचन वकृया जा रहा ह ्पितः इं
विचारधारा कृी मा्यता ह वकृ ंण ु ्रकातत्याश धिश्य ही ऋ ावद ्ह कृर लनना चावहए यद्यवप
ऋ ावद ्ह म कृी महती ंम्या उंन पनु ः लौरानन कृी हो ती ह वकृ्तु इंंन शरना नह चावहए
क्यरवकृ मतत्यु कृन उपरा्त मतत वयवक्त ंन ऋ म स न ा कृौन? यह स ऋ कृा धाश ह ंणु ो पभो ााश
ंिशविध ंवु िधा कृा धवनयव््र त उपभो कृाला्तर म यह परम लक्ष्य वंद्ध हुआ
यवद आधवु नकृ ं्दभश म इंकृा विश्लन र् वकृया जाय तो भारतीय वच्तन धरा म आज ंन 2500 िर्श
पिू श बो या या वयािहाररकृ बीज ंम्त आवाशकृ वयि्ाा कृा आधार बन चकृ ु ा ह ंारी बैंवकृस
्रक ाली इंी ऋ वंद्धा्त पर आधाररत ह उपभो क्ता बैंकृ ंन ऋ ्ह कृरता ह घर, ाडी, री िी
आवद आधवु नकृ ंण ु ंवु िधाओ स कृो ्रकाए कृरता रहता ह इं बैंवकृस ्रक ाली कृन ध्त शत भी मतत्यु कृन
उपरा्त ऋ िापं कृरनन कृन ं्दभश म कृुा विवर्ि ाूर कृी वयि्ाा रहती ह
्यातवय ह वकृ उक्त ्रक ाली कृा ्रकार्भ न तो चािाशकृ दर्शन कृन ंास ो पास ध्ययन कृन उपरा्त ्रकार्भ
वकृया या न ही चािाशकृ नन उक्त ्रक ाली कृन वलयन धपनन इं वंद्धा्त कृा ्रकितशन वकृया ाा यह एकृ
ंसयो मा्र ह वकृ चािाशकृ कृन वारा ्रकार्भ कृी यी यह धिधार ा आज भी ंिशाा ्रकांसव कृ ्रकतीत
हो रहा ह ्रकत्य्तः भलन ही इं विचारधारा पर कृठो र ्रकहार वकृया जाता रहा हो , परो ्तः आज भी
इंकृा धनपु ालन हो ता वदण रहा ह
6.4.4त नखिुकवितृे तप्र खसत-त
ंमाज म हर वत ि मवत िालन लो रहतन हैं जो वकृंी न वकृंी रूपप म वकृंी न वकृंी ् विविध
ंम्याओ स ंन ््त रहतन हैं आव्तकृ विचारधारा कृन दार्शवनकृो कृा यह मानना ह वकृ यन ंम्याएस
तीन ्रककृार कृी हो ती हैं- आवधभौवतकृ, आवधदविकृ ताा आ्यावत्मकृ इन ंम्याओ स कृा
ंा्ात्कृार हम कृरना ही पडता ह इन ंम्याओ,स दःु णर धा िा कृिर कृन कृार हो तन हैं कृदावचत्
िन कृार हो तन हैं एर् ाओ स कृी ्रकावए न हो ना यही तनाि कृा मल ू कृार भी हो ता ह हम जब तकृ
िजशनाओ स म बॅधनस हो तन हैं तब तकृ इं मनो िज्ञावनकृ कृिर कृो ्रकाए हो तन रहतन हैं

चािाशकृ नन इंकृन वलयन ्ित््र ता ंन जीनन कृा एकृ म््र वदया एकृ ऐंन वनःंसकृो च ज त् कृा ्िरूपप
्रकदान वकृया जह स वकृंी मयाशदा कृन धधीन नह रहना पडता ंण ु कृी ्रकावए कृन वलयन कृुा भी वकृया
जाना, ्ि श, नरकृ, ईश्वर, पनु जश्म आवद कृा पू तश या वनर्नध कृरना, पाप प्ु य कृी धिधार ा कृो न

उत्तराण्श मक्त
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मानना आवद उक्त िजशनाओ स ंन ाुरकृारा कृा ्रकयांमा्र ह भलन ही आधवु नकृ व्ावत पररव्ावत म
यह हम उवचत ्रकतीत हो ता हो वकृ्तु इंन ही परम ंत्य नह माना जाना चावहए
इं ंम्त ं्दभश म चािाशकृ वच्तन कृो विर्द्ध ु बवु द्धिादी ि तकृश कृी धरा पर णडा वच्तन ंमझा
जाना चावहए बवु द्ध कृा ऐंा ंक्ष्ू म ्रकयो चािाशकृिादी धार ा कृो एकृ नयन ही रूपप म ्रक्ततु कृरता
ह वकृ्तु ंत्य कृन ं्ब्ध म एकृ विरल ंसकृनत मा्र ह जो हम ्रकाए हो ता ह ंमा्यतया तो इं दर्शन
वच्तन कृा हम विरूपप वच्र ही ्रकाए हो ता ह
दंू री ओर चािाशकृ यु र तकृ उपहां कृन पा्र बनन रहन हैं उन पर ंभस ि धंभस ि, ्रकत्यनकृ ्रककृार कृन
दो र्ारो प वकृयन जातन रहन पर्परा कृन विरुद्ध विचारधारा कृो मो डनन कृा आ्नप उन पर ल ाया या
वकृंी नन उंन नाव्तकृ वर्रो मव कृहा तो वकृंी नन धतू श वर्रो मव कृह कृर उपहां उडाया एकृ
दार्शवनकृ नन तो उ्ह पर्ओु स ंन भी धवधकृ पार्विकृ कृहा ह उनकृन वलवणत ््ार कृन भी जलायन
जानन कृी धपिु बात कृी जाती रही यह स तकृ वकृ इं विचारधारा कृो आ न पनपनन नह वदया या
वकृ्तु आज हमारन वलयन ि्तु त दृविकृो धपनाना आिश्यकृ ह इं ्रकाचीन भारतीय भौवतकृिादी
दर्शन कृन मलू ््ार कृन धभाि म इंकृन धिदान कृा मल्ू याकृ
स न हम वबना वकृंी पिू ाश्ह कृन उपलब्ध
ंाम्ी कृन हन परी् कृन वारा कृरना चावहए चािाशकृ दर्शन कृो वजं विकृत त रूपप म हमारन ंम्
्रक्ततु वकृया या ह उंंन हम भ्रवमत नह हो ना चावहए
अभ् खसतृे तप्रश्नत

1. रुवढ़ कृा धाश ह-


(कृ) र्ास्त्र ंमवाशत वंद्धा्त (ण) तकृश पर आधाररत वंद्धा्त
( ) ध्धविश्वां पर आधाररत वंद्धा्त (कृ) इनम ंन कृो ई नह
2. चािाशकृ कृी दृवि म ंण
ु ह-
(कृ) ईश्वर कृी ्रकावए (ण) स्त्री ंण

( ) मतत्यु (घ) पापमक्त
ु हो ना
3. िात््यायन कृन वारा ्रकिवतशत इव्वयंण
ु कृा ल् क्या ह?
4. चािाशकृ कृन ऋ वंद्धा्त कृा ही धपरूपप कृहा जाना चावहए-

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(कृ) चौयश वंद्धा्त कृो (ण) धदृश्य हो नन कृी कृला कृो
(कृ) धन ंसचय कृो (घ) बैंकृ ंन ऋ ्ह कृरनन कृो
5. क्या चािाशकृ दर्शन वकृंी न वकृंी रूपप म तनाि ंन ाुरकृारा वदलिानन कृा ्रकयां कृरता ह?
6.5 सखराखंर्
इं इकृाई कृो पढ़नन कृन बाद आप यह जान चकृ ु न हैं वकृ चािाशकृ एिस उनकृन धनयु ावययर नन िवदकृ कृाल
ंन चली आ रही ंम्त रूपवढ़यर कृा विरो ध वकृया ईश्वर, पनु जश्म, ्ि श आवद कृा विरो ध कृर उ्हरनन
वच्तन कृी धारा कृो एकृ नयी वदर्ा दी ंण ु एिस कृाम कृो ंिाशवधकृ महत्त्ि दनकृर चािाशकृ नन
ंमकृालीन आिश्यकृता कृो पहचाना वकृंी भी धदृि कृो फल कृा वनयामकृ न ंमझकृर उ्हरनन
मानि कृो ंदा कृन वलयन वच्ता विमक्तु कृरनन कृा ्रकयां वकृया एकृ तरह ंन ंमाज म वयाए ंम्त
िजशनाओ स कृो इ्हरनन िवजशत कृरनन कृा ्रकयां वकृया कृदावचत् यही इंकृी ्रकांसव कृता भी ह इंकृन
ंाा ही यह भी आपकृो ंमझ लनना चावहए वकृ यह वंद्धा्त ंनातन नह बन पाया ताा यााकृाल
ध्य दार्शवनकृ विचारर कृा विरो ध इ्ह ंहतन रहना पडा
इं इकृाई कृन ध्ययन ंन आप चािाशकृ कृन मतर कृो जानकृर ंहज ही जान पाएॅॅॅस न वकृ चािाशकृ
दर्शन कृा ितशमान वयािहाररकृ ंासंाररकृ जीिन ंन कृंन ं्ब्ध बनायन जा ंकृतन हैं
6.6 र्ब्दखियी
आपकृी ंवु िधा कृन वलयन यह स इं पाठ म ्रकयक्त
ु म जवरल ि दरुु ह र्ब्दर कृा ंरलीकृत त रूपप वदया जा
रहा ह आर्ा इनकृन मा्यम ंन भार्ा ि वंद्धा्त त जवरलता कृो धत्य्त ंरलता ंन ंमझ पाएस न
तद्याा-
ज्ञानमीमासंा- वच्तन कृी एकृ ्रकवक्रया वजंम ंत्ता कृो ज्ञान धा िा ्रकमा कृन वारा वंद्ध वकृया
जाता ह ज्ञानमीमासंा कृहलाती ह
तत्त्िमीमासंा- दर्शन वच्तन कृी ्रकवक्रया वजंम ंम्त ंतवि ्रकवक्रया कृो ंमझनन ि ंमझानन कृा
्रकयां वकृया जाता ह ज्ञानमीमांस ा कृी तरह यह भी दाश्रवनकृ विचारधारा कृा धवनिायश धस ह
परुु र्ााश- भारतीय ंा्स कृत वतकृ पर्परा म मानिमा्र कृन परम लक्ष्य कृो परुु र्ााश कृहा जाता ह परुु र्ााश
चार हैं- धमश, धाश, कृाम ताा मो ्

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वनिाश - इंकृा धाश ह वदयन कृा बझु जाना यह बौद्ध दर्शन म मो ् कृन वलयन ्रकयक्त
ु हो नन िाला र्ब्द
ह यह एकृ ्रककृार ंन आत्यव्तकृ दःु ण कृा विनार् हो ना
कृिल्य- ंाख्स य एिस यो यो दर्शन म मो ् कृन वलयन कृिल्य र्ब्द कृा ्रकयो हो ता ह कृिल्य कृा
धाश ह धकृन ला हो जाना या ंरल भार्ा म धपनी ंारी दकृ ु ान ंमनर लनना वनिाश कृी तरह कृिल्य
भी मो ् कृा ही पयाशय ह
धपि श- ंस्कृत त वयाकृर म इंकृा धाश ह कृायशवंवद्ध वकृ्तु ्याय एिस िर्नवर्कृ म मो ् कृन वलयन
धपि श कृा ्रकयो वकृया जाता ह जह स इंकृा धाश ह दःु ण ंन पू तश ः मक्त
ु हो जाना
6.7 अभ् खसतप्रश्नोंतृे तउत्तरात
6.3 1. , 2. धो णा,
3. यािज्जीिनत् ंण
ु स जीिनद् ऋ स कृत त्िा घततस वपबनत्
4. ण 5.
6.4 1. , 2. ण, 3. पर्परापघातकृस व्र ि ं ंनितन
4. घ, 5. ह स
6.8 सन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
1. झा, आचायश आन्द, (1969) चािशकृ दर्शन, वह्दी ंवमवत, ंचू ना विभा , उत्तर्रकदनर्,
लणनउ,
2. वतिारी, श 0 नरन र् ्रकंाद, (1986), चािाशकृ कृा नवतकृ दर्शन, वबहार वह्दी ््ा धकृादमी,
परना
3. ऋवर्, ्रको 0 उमार्कृ
स र र्माश, (1964), ंिशदर्शनंस्हः, चौण्बा विद्याभिन, िारा ंी-1
4. र्माश, च्वधर, (1991), भारतीय दर्शन आलो चन और धनर्
ु ीलन, मो तीलाल
बनारंीदां, वदल्ली
5. दनिराज, श 0 न्दवकृर्ो र, (1992), भरतीय दर्शन, उत्तर्रकदनर् वह्दी ंस्ाान, लणनउ

उत्तराण्श मक्त
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6.9 वनबन्धखत्ुृतप्रश्न
(कृ) चािाशकृ दर्शन कृी आचारमीमांस ा कृो वि्तारपिू कृ
श ंमझाएस
(ण) चािाशकृ दर्शन कृी कृामविर्यकृ धिधार ा पर एकृ वनब्ध वलण
( ) चािाशकृ विचारधारा वकृं ्रककृार रूपवढ़यर कृा विरो ध कृरता ्रकतीत हो ता ह?
(घ) ितशमान वयािहाररकृ ंासंाररकृ ं्ब्ध कृी दृवि ंन चािाशकृ दर्शन कृी उपादनयता पर ्रककृार्
शाल

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ण्तशत5-तन्त ख तदर््नत

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इृखईत1तन् ख तदर््नतृखतसंविप्ततइव हखस

इकृाई कृी रूपपरन णा


1.1 ्रक्तािना
1.2 उद्दनश्य
1.3 ्याय दर्शन पररचय
1.3.1 िचाररकृ पतष्ठभवू म
1.3.2 भारतीय तकृश पर्परा ि पद्धवत
1.3.3 ्याय ््ार कृा विकृांानक्रु म
1.4 ्याय दर्शन कृा इवतहां
1.4.1 ंतवि वििनचन और ्याय
1.4.2 कृायशकृार िाद और ्याय
1.4.3 ्याय दर्शन कृा पदााश विचार
1.4.4 ्याय कृन र्ो शर् पदााश
1.4.5 ्याय दर्शन कृन ्रकवंद्ध आचायश
1.5 ंारार् स
1.6 पाररभावर्कृ र्ब्दािली
1.7 बो ध ्रकश्नर कृन उत्तर
1.8 वनब्धात्मकृ ्रकश्न
1.9 ंसदभश ््ा

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1.1प्रस् खिनख
आप जानतन हैं वकृ भारतीय दर्शन कृन ध्त तश दो ं््रकदाय आतन हैंॅः 1. आव्तकृ ं््रकदाय 2.
नाव्तकृ ं््रकदाय आव्तकृ दर्शन उंन कृहा या ह जो िनदर म विश्वां कृरता हो इंकृन विपरीत
नाव्तकृ दर्शन िनदर म विश्वां न रणनन िालन दर्शनर कृो कृहा जाता ह इं विभाजन कृन आधार पर
ंाख्स य, यो , पिू -श मीमांस ा, उत्तर-मीमासंा, ्याय और िर्नवर्कृ कृो आव्तकृ दर्शन कृहा या ह, ताा
जन, बौद्ध और लो कृायत नाव्तकृ दर्शन कृन ध्त तश मानन ए हैं
आव्तकृ मानन जानन िालन भारतीय दर्शनर म भी ्याय दर्शन धपनी विश्लन र् ात्मकृ विवर्िताओ स कृन
वलए जाना जाता ह, यहास कृाल्पवनकृ धिधार ाएस नह , धवपतु तावकृश कृ जासच और आलो चनात्मकृ
विवध हमारा ्िा त कृरतन हैं, लनवकृन विश्लन र् कृी इं णरी जमीन पर आ न बढ़नन कृन पहलन उंकृी
‘ंक्ष्ू म, दु मश और पाररभावर्कृ‘ वििनचन पद्धवत कृो आत्मंात कृरनन कृी श्रमंा्य ्रकवक्रया ंन भी
जु रना पडता ह
‘्याय दर्शन कृा इवतहां‘ ्याय दर्शन कृन आपकृन ध्ययन क्रम कृी पहली इकृाई ह वकृंी दर्शन कृन
इवतहां ंन आप कृो पता चलता ह वकृ वकृं िचाररकृ भवू म म िह दर्शन पल्लवित और पवु ष्पत हुआ
ह, और वच्तन-मनन कृी वकृं पर्परा कृो उंनन धपनी विवर्िता कृन बतौर धस ीकृार कृरकृन ंम्ु नत
वकृया ह इंवलए ्याय कृन इवतहां कृी इं इकृाई म भी आप इं दर्शन कृन उद्भि और विकृां कृी
क्या िचाररकृ पतष्ठभवू म ाी, इंकृी मख्ु य विर्य ि्तु क्या ाी, कृौन ंन दार्शवनकृ तत्ि इंकृो विवर्ि
बनातन हैं और और ध्य भारतीय दर्शनर कृन ्रकवत इंकृा क्या दृविकृो ाा, इत्यावद ्रकश्नर कृा
्रकारव्भकृ पररचय ्रकाए कृर ंकृ न
1.2उद्देश्
इं इकृाई कृन ध्त तश ्याय दर्शन कृन ंसव्ए इवतहां कृन ध्ययनो परा्त आप विर्य कृन वन्न
वब्दओ
ु स ंन धि त हो ंकृ नः
1. ्याय भारतीय दर्शन कृी वकृं पर्परा कृा िाहकृ ह और भारतीय दार्शवनकृ इवतहां म
उंकृा क्या महत्ि ह?
2. ्याय दर्शन कृा ्रकारव्भकृ पररचय हावंल कृर ल न
3. ्याय कृा उद्भि वकृं िचाररकृ पतष्ठभवू म म हुआ, इंकृा विश्लन र् कृर ंकृ न
4. ्याय दर्शन कृा विकृांानक्र
ु म क्या ाा, और उंकृन मख्ु य तत्ि क्या हैं, बता ंकृ न
5. इंकृन मख्ु य ्रकितशकृर और ््ार ंन पररवचत हो जाएस न

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1.3 न् ख तदर््नतपरराच

तिैचखरराृतपकष्ठभूवु
भारतीय दर्शन कृा इवतहां धवत ्रकाचीन ह और ्रकचरु दर्शन ंाम्ी कृी उपलब्धता उंकृी विर्नर्ता
ह, वजंन दनणनन ंन भारतीय ंमाज कृी ल भ ढाई हजार िर्ों कृी हन दार्शवनकृ वतविवधयर कृा
पररचय वमलता ह यह तो ंिशविवदत ह वकृ हमारन उपवनर्दर कृी विर्यि्तु दार्शवनकृ वच्तन-मनन
पर कृन व्वत ह, वजंकृन कृार औपवनर्वदकृ यु कृो दार्शवनकृ वतविवधयर कृन ्रकार्भ कृा यु माना
जाता ह इनकृा ंरीकृ कृाल वनधाशर कृर पाना तो मवु श्कृल ह, वफर भी ईंापिू श ंाति र्ताब्दी कृो
ही आम तौर पर उनकृा कृाल माना जाता ह उपवनर्दर कृी पररपक्ि दार्शवनकृ विर्यनि्तु कृो दनणतन
हुए यह कृहना लत न हो ा वकृ उनकृन ्रकौढ़ हो नन कृन पहलन भी वच्तन-मनन कृी ल्बी ्रकवक्रया भारत
म रही हो ी, भलन ही आज हमारन वलए उंकृी कृो ई ्पि ऐवतहावंकृ रूपपरन णा ्रक्ततु कृरना ंसभि न
हो
इं तरह यह तो कृहा ही जा ंकृता ह वकृ औपवनर्वदकृ और पिू औ श पवनर्वदकृ कृाल ंन लनकृर
ं्र हि -धठारहि ंदी म नवय ्याय कृा ्रकवतवनवधत्ि कृरनन िालन दाधर और उनकृन रीकृाकृारर कृन
उदय कृाल तकृ, भारतीय दर्शन नन एकृ ौरिपू श या्र ा तय कृी ह इं कृालािवध म दर्शन र्ास्त्र पर
धननकृ महत्त्िपू श कृत वतयाूँ ंामने आइ,स धननकृ दार्शवनकृ चचाशओ स कृा ं्र ू पात हुआ, और धत्य्त
कृुर्लता कृन ंाा उनकृा वििनचन वकृया या ाा ्याय दर्शन इं ंमतद्ध पर्परा कृा धस हो नन कृन
ंाा-ंाा उंकृो हराई तकृ ्रकभावित कृरनन िाला दर्शन भी ाा ्याय और िर्नवर्कृ दर्शनर कृी
पर्पर ंमानताएस तो ंिशविवदत हैं, ध्य दर्शनर कृन ंाा भी इंकृा जडु ाि कृुा कृम नह रहा ह
मीमासंा और पिू मश ीमासंा नन भी इंकृन कृुा वंद्धा्तर कृो धपनाया ाा, तो कृुा कृा णशस न वकृया ाा
यह कृहना लत न हो ा वकृ तावकृश कृ पद्धवतयर कृन धपनन उ्नत विकृां कृन कृार बाद म ्याय दर्शन
ंम्त भारतीय दर्शनर कृी िनर् ा कृा जरूपरी ंहायकृ बन या ाा ्याय दर्शन कृी इं ऐवतहावंकृ
ि दार्शवनकृ विवर्िता कृन कृार , उंन ंमझनन कृन वलए भारतीय तकृश पर्परा पर भी एकृ विहस म दृवि
शालना हमारन वलए उपयो ी हो ा
भखरा ी त ृ् तपरामपराखतऔरातपद्धव त
मनष्ु य तकृश र्ील ्रका ी ह िह कृुा चीजर कृा ंत्य जाननन कृन बाद व्ार नह हो जाता, बवल्कृ बहुतनरी
ध्य चीजर कृन ंत्यांत्य ं्ब्धी वनष्कृर्ों कृी ओर आ न बढ़ता रहता ह तकृश र्ीलता कृी यह
्रकवक्रया वयवक्त त ्तर पर ही नह चलती, धवपतु ंामावजकृ और ंामवू हकृ ्तरर पर भी आ न बढ़ती
रही ह, और दर्शन र्ास्त्र कृन उद्भि और विकृां कृा कृार बनती ह भारतीय इवतहां म ऐंी
ंािशजवनकृ चचाशओ स धािा र्ास्त्रााश कृन ं्दभश उपवनर्दर म णबू वमलतन हैं, लनवकृन भारत कृी ध्य

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ंावहवत्यकृ-दार्शवनकृ धाराए,स उनकृी र्ाणाएस-्रकर्ाणाएस भी इं ं्दभश म पीान नह हैं भारतीय बौद्ध
पर्परा इंकृा उदाहर ह, जहास वमवल्द पह और कृाा ि्तु जंी रचनाएस धपनी तकृश र्ीलता ंन
लो र कृो आकृवर्शत कृरती रही हैं
भारत म पासचि र्ताब्दी ईंा पिू श ंन ही ण ो लर्ास्त्र, धाशर्ास्त्र, ज्यो वतर् ि धमशर्ास्त्र, और्वध,
व त ि ध्य विर्यर पर वच्तन-मनन कृी एकृ ंमतद्ध पर्परा वमलनन ल ती ह पाव वन कृी
धिा्यायी, ंश्रु तु कृी चरकृंसवहता ि कृौवरल्य कृन धाशर्ास्त्र इंी दौर कृी िन रचनाएस हैं, जो धपनी
तावकृश कृता और विचारर्ीलता कृी िजह ंन इतनन वदनर बाद भी भारत कृन ौरि ््ार कृन रूपप म
विश्वविख्यात हैं ्रकवंद्ध बौद्ध दार्शवनकृ ना ाजनशु , ्याय दर्शन कृन िात््यायन और िाक्पदीयम कृन
रचनाकृार भततशहरर जंन रचनाकृारर नन धपनन वंद्धा्तर कृन ्रकवतपादन म तकृश र्ास्त्र कृन जवरल वंद्धा्तर
कृा कृौर्लपू श ्रकयो वकृया ह पदााश कृन ् -् म उत्प्न ि विनि हो नन िालन धव्तत्ि पर विचार
कृरतन हुए िन इं धिधार ा कृो ं्र ू बद्ध कृर ंकृन ान, वकृ वकृंी चीज कृी ंत्ता या तो ह, धािा नह
ह िात््यायन आत्यव्तकृता कृन वंद्धा्त कृा ्रकयो कृरतन हैं, और कृहतन हैं वकृ कृो ई भी ंत्ता एकृ
ंाा र्ाश्वत या धर्ाश्वत नह हो ंकृती
माना जाता ह वकृ भारतीय तकृश र्ास्त्र कृा धव्तत्ि बौद्धर कृन धभ्यदु य कृाल ंन पहलन ही हो चकृ ु ा ाा
भारतीय ््ाासॅन म इं र्ास्त्र कृो धननकृ नामर ंन जाना जाता ाा, वजनम हनतवु िद्या, तकृश विद्या,
तकृश र्ास्त्र, िाद विद्या, ्याय विद्या, ्यायर्ास्त्र, ्रकमा र्ास्त्र, आवद र्ब्दािली र्ावमल ह ्याय कृा
एकृ परु ाना नाम आ्िीव्कृी भी ह, और कृौवरल्य नन धपनन धाशर्ास्त्र म वजन चार विद्याओ स कृा
वजक्र वकृया ह, उनम आ्िीव्कृी कृो ंम्त विद्याओ स कृा ्रकदीप, ंम्त कृमों कृा उपाय और
ंम्त धमों कृा आश्रय बताया या हः
आ्िीव्कृी ्र यी िाताश द्शनीवतश्चनवत विद्या
्रकदीपः ंिशविद्यानामपु ायः ंिशकृमश ाम्
आश्रयः ंिशधमाश ास र्श्वदा्िीव्कृी मता
भारतीय दार्शवनकृ तकृश पर्परा कृी ्रकाचीन उपव्ावत ंन पररवचत हो नन कृन बाद यह जानना भी जरूपरी
ह वकृ हमारी इं तकृश पर्परा कृी पद्धवतमल ू कृ विर्नर्ता भी उल्लनणनीय ह यहास प् कृो , वजंन
पार्पररकृ र्ब्दािली म पिू पश ् कृहतन हैं, ्रक्ततु कृरनन कृन बाद उंकृन ्रकवतप् यानी वकृ विरो धी या
्रकवतिादी कृन प् कृो रणनन, और इं तरह उत्तर-्रकत्यत्तु र कृन क्रम म दार्शवनकृ वच्तन कृो आ न बढ़ानन
कृी पर्परा रही ह यह पद्धवत भी परु ानी ह, वजंकृा पररचय हम औपवनर्वदकृ कृाल ंन ही वमलनन
ल ता ह उपवनर्दर कृी ्रकाचीन पर्परा म इं पद्धवत कृन वलए िाकृो िाक्य र्ब्दािली कृा ्रकयो

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वमलता ह, वजंकृा र्ावब्दकृ धाश ह ्रकश्नो त्तर कृन मा्यम ंन वििाद ्यान दननन िाली बात ह वकृ
िाकृो िाक्य कृी पदािली यनू ानी दर्शन कृी उं शायलनवक्रक्ं (ववस ात्मकृता) ंन कृाफी वमलती-जल
ु ती
ह, जो दवु नया भर म आज भी वच्तन पद्धवत कृन रूपप म लो र कृो आकृवर्शत कृरती ह
भारतीय तकृश पर्परा कृा हराई ंन ध्ययन कृरना, और पवश्चम म तकृश र्ास्त्र कृन विकृां ंन उंकृी
तलु ना कृरना एकृ वदलच्प विर्य हो ंकृता ह, और ऐंन ्रकयां ्याय दर्शन कृन उद्भि और विकृां
कृो ंमझनन कृन वलए भी उपयो ी हर न लनवकृन हम यहास कृन िल इतना ही ंमझ न वकृ भारत म धपनी
पद्धवतमल ू कृ विर्नर्ता कृन ंाा तकृश र्ास्त्र कृी एकृ ंमतद्ध पर्परा मौजदू ाी, जो र्ायद धर्तू कृन
तकृश र्ास्त्र कृी चवचशत पवश्चमी पर्परा कृन ंमान ही कृाफी ंम्ु नत ाी
हमारन वलए यह जानना जरूपरी ह वकृ भारतीय तकृश र्ास्त्र या तकृश विज्ञान कृी पर्परा, उंकृी
पद्धवतमल ू कृ विर्नर्ता कृा ्याय दर्शन कृन ंाा क्या ं्ब्ध रहा ह? इंकृा ्पि उत्तर यही ह वकृ
्याय दर्शन कृन ंाा उंकृा हरा ं्ब्ध ह, बवल्कृ हम तो यह भी कृह ंकृतन हैं वकृ उंकृन मल ू
आधारर कृो तयार कृरनन िाली पहली कृत वत ही ्याय ं्र ू ाी इतना तो आप जानतन हर न वकृ ्याय
ं्र ू कृन रचनाकृार महवर्श ौतम हैं और उनकृन इं ं्र ू कृा रचना कृाल ल भ दंू री र्ताब्दी माना
जाता ह दंू री तरफ यह जानना भी जरूपरी ह वकृ ौतम कृन ्याय ं्र ू कृी ंबंन ्रकाम ंास ो पास
वयाख्या ्रक्ततु कृरनन कृा श्रनय िात््यायन कृो जाता ह, वजनकृन भाष्य कृो ्याय दर्शन कृन ंिाशवधकृ
्रकामाव कृ भाष्य कृा दजाश आज तकृ यााित बना हुआ ह हम यह विश्वां कृन ंाा कृह ंकृतन हैं वकृ
भारतीय दार्शवनकृ इवतहां म िाकृो िाक्य कृी विद्या ंन युक्त दार्शवनकृ पर्परा कृा ्रकाम ंष्ु पि
्िरूपप ्रक्ततु कृरनन कृा श्रनय ्याय दर्शन कृो , और उंकृन दो मनीवर्यर धााशत् महवर्श ौतम और
िात््यायन कृो जाता ह
िचाररकृ पतष्ठभवू म कृन इं ंसव्ए पररचय कृन बाद हम धब ्याय दर्शन कृन पररचयात्मकृ इवतहां कृी
ओर आ न बढ़ ंकृतन हैं
न् ख तदर््न-तपरराच
आप्त्ब नन ्याय र्ब्द कृा ्रकयो मीमासंा कृन रूपप म वकृया ह ्याय कृी उत्पवत्त ‘नी‘ धातु ंन हुई
ह इंकृन धाश कृी वििनचना कृरतन हुए यह कृहा जाता ह वकृ इंी कृन वारा र्ब्दर और िाक्यर कृन
वनवश्चत धाों कृा बो ध हो ता ह इं ्याय कृन आधार पर ही िवदकृ र्ब्दर कृा उच्चार वनवश्चत वकृया
जाता ह ंस्नप म आप यह ंमझ ंकृतन हैं वकृ िवदकृ र्ब्दर कृन उच्चार कृो भी ्याय कृी ंसज्ञा दी
जाती ाी ्याय कृो कृभी-कृभी तकृश विद्या और िाद-विद्या, धााशत िाद-वििाद ं्ब्धी विज्ञान कृा

उत्तराण्श मक्त
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नाम भी वदया या ह बहं धािा िाद बौवद्धकृ जीिन कृा ्रका ह ंत्य कृन ध्िनर् कृन वलए इं
विवध कृा आश्रय लनना आिश्यकृ हो जाता ह
उपवनर्दर कृन ध्ययन कृन ंमय आप दनण न वकृ उं ंमय ऐंी विवत पररर्द हुआ कृरती ा वजनम
दार्शवनकृ विर्यर पर िाद-वििाद हुआ कृरतन ान इंम ं्दनह नह वकृ ौतम कृन ्याय र्ास्त्र कृा ज्म
भी ऐंन ही िाद-वििादर धािा र्ास्त्रााों कृी पर्परा ंन हुआ, वजंन उं कृाल म राजदरबारर ताा
दार्शवनकृर म ंमान रूपप ंन लो कृव्रकयता ्रकाए ाी
जय्त धवधकृार पिू कृ श कृहतन हैं वकृ यद्यवप ौतम कृा ्यायदर्शन तकृश र्ास्त्र कृन विर्य कृो एकृ
ं्तो र्जनकृ रूपप म उपव्ात कृरता ह, वफर भी ौतम ंन पिू श भी तकृश र्ास्त्र विद्यमान ाा, जंन जवमनी
ंन पिू श पिू मश ीमांस ा और पाव वन ंन पिू श वयाकृर विद्यमान ाा महाभारत म भी तकृश र्ास्त्र और
आ्िीव्कृी कृा उल्लनण ह बौद्ध ््ार म तकृश विद्या कृा कृो ई वि्ततत उल्लनण नह वमलता धवपतु
कृन िल नाममा्र कृा उल्लनण वमलता ह मवज्झमवनकृाय म आए धनुमान ंत्तु कृन नाम ंन जरूपर यह
्रककृर हो ता ह वकृ धनमु ान र्ब्द कृा ्रकयो ं्भितः धनमु ान ्रकमा कृन वलए हुआ हो ा
लवलतवि्तर नन ्याय र्ास्त्र कृा ि नश हनतवु िद्या कृन नाम ंन वकृया या ह जन आ मर नन भी भारतीय
्याय र्ास्त्र कृी ्रकाचीनता कृो ्रकमाव त वकृया ह
राधाकृत ष् न कृन धनंु ार ्याय र्ास्त्र कृा आर्भ बौद्ध कृाल ंन पिू श हो या ाा, यद्यवप उंकृी
िज्ञावनकृ वििनचना बौद्धकृाल कृन आर्भ म और मख्ु य वंद्धा्तर कृी ्ाापना ईंा पिू श तींरी
र्ताब्दी ंन पहलन हुई ाी
न् ख तग्रन्थोंतृखतविृखसखनकक्रु
ं्स कृत त ंावहत्य कृन इवतहां कृी वकृंी भी प्ु तकृ पर ध र आप एकृ ंरंरी वन ाह शाल, तो आप
्याय दर्शन कृन ऐवतहावंकृ विकृांानक्र ु म कृी रूपपरन णा ंन पररवचत हो जाएस न यहास उंकृा ंसव्ए
ि नश आपकृन वलए ंााशकृ और पयाशए हो ा आप पहलन ही जान चकृ ु न हैं वकृ ्याय दर्शन कृा पहला
ं्र ू ््ा ध्पाद ौतम वलवणत ‘्यायं्र ू ‘ ह, वजं पर ्रकाए हो नन िाला पहला ्रकामाव कृ भाष्य
िात््यायन (400 ई.) कृा ह, जो चौाी र्ताब्दी कृा ््ा माना जाता ह िात््यायन कृन ््ा कृन ्रकाम
बडन आलो चकृ ्रकवंद्ध बौद्ध दार्शवनकृ वदङना ान ्याय दर्शन कृन प् ंन वदङना कृा णशस न कृरनन
िाला ्रकवंद्ध ्याय ््ा ‘्यायिावतशकृ‘ ाा, वजंकृन रचवयता राजा हर्शिधशन कृन ंमकृालीन ्रकवंद्ध
दार्शवनकृ उद्यो तकृर ान उद्यो तकृर कृन ््ा पर रीकृा वलणनन िालन दार्शवनकृ िाच्पवत वमश्र (841 ई.)
ान ्यान दननन िाली बात यह ह वकृ ्ियस धवत िनदा्ती हो नन कृन बािजदू िाच्पवत वमश्र कृो ंभी
दर्शनर पर ्रकामाव कृ ््ा वलणनन कृा श्रनय ्रकाए ह इं क्रम म दार्शवनकृ जय्त भट्ट कृा भी नाम

उत्तराण्श मक्त
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वलया जाता ह, वजनकृी रचना कृा नाम ‘्याय मजस री‘ ह यहास तकृ कृा विकृां-कृाल ्याय दर्शन कृन
इवतहां कृा ्रकाचीन यु माना जाता ह
्याय दर्शन कृन इवतहां कृा निीन यु धााशत नवय ्याय कृन यु कृी र्रुु आत बारहि ंदी कृन
आंपां मानी जा ंकृती ह, वजंकृी र्रुु आत पिू ी बस ाल कृन वनिांी एकृ धत्य्त ्रकवतभार्ाली
दार्शवनकृ स र्न उपा्याय और उनकृन ्रकवंद्ध ््ा ‘तत्ि वच्तामव ‘ कृी रचना कृन ंाा हुई ाी कृहा
जाता ह वकृ इं महान ््ा नन वपालन ््ार कृो पीान ाो ड वदया ाा, और ंब लो ्िीकृार कृरतन हैं
वकृ स र्न उपा्याय कृी ्रकवतभा कृा ्पर्श पानन कृन बाद ही ्याय कृा तकृश र्ास्त्र धपनन पररपक्ि ्िरूपप
कृो पा ंकृा ाा हालासवकृ उनकृी आलो चना भी कृी जाती ह, और कृहा जाता ह वकृ धपनी तावकृश कृ
बारीवकृयर कृन बािजदू उनकृन बाद कृन ्याय ््ा दार्शवनकृ ज्ञान कृन वलहाज ंन वन्तनज हो ए ान, और
र्ब्दजाल कृन वयहू म उनकृी दार्शवनकृ िनर् ा ढसकृ ंी ई ाी स र् न उपा्याय कृन ््ा पर िांदु िन
ंािशभौम और रघनु ाा कृी रीकृाएस महत्िपू श मानी जाती हैं िांदु िन ंािशभौम (1500 ई.) नयावयकृर
कृी ्रकवंद्ध ‘नवदया र्ाणा‘ कृा ्रकाम नयावयकृ ाा, और रघनु ाा ि ्रकवंद्ध धमश रुु चत्य उंकृन
वर्ष्य ान माना जाता ह वकृ स र्न कृन ््ा पर रघनु ाा कृी रीकृा ‘दीवधत‘ ंबंन महत्िपू श ््ा ह
उंकृन बाद नयावयकृर कृी इंी र्ाणा ंन जडु न दाधर वमश्र (1650 ई.) नन जो रीकृा वलणी िह ंबंन
ज्यादा ्रकवंद्ध हुई ह, और उंन स र्
न उपा्याय कृन बाद नवय ्याय कृन ्न्र म दंू रा ंबंन बडा ्ाान
वदया जाता ह
्याय कृन िचाररकृ ््ार कृन विकृांानक्र ु म कृन इं ंवस ्ए इवतहां कृो जाननन कृन बाद एकृ और चचाश
भी जरूपरी ह, क्यरवकृ उंकृन ब र ्याय दर्शन कृी ंमझ धधरू ी रह जाए ी दार्शवनकृ वििनचनाओ स म
ंामा्यतया ्याय-िर्नवर्कृ कृी चचाश ंसयक्त ु रूपप म उपव्ावत हो ती ह, और आपकृन मन म भी यह
्रकश्न आया हो ा वकृ ऐंा क्यर वकृया जाता ह पहलन तो र्ायद इंकृा ंबंन बडा कृार उनकृा
याााशिादी यानी वकृ ि्तओ ु स कृन ि्तु त धव्तत्ि कृो माननन िाला दृविकृो ह लनवकृन दंू री
महत्त्िपू श बात यह ह वकृ ्रकवतपादन र्ली और वंद्धा्तर कृी वभ्नताओ स कृन बािजदू उनकृन ही
्रकिक्ताओ स नन आ न चलकृर उ्ह एकृाकृार कृर वदया ाा वर्िावदत्य वमश्र रवचत ‘ंएपदााी‘ म ्याय
और िर्नवर्कृ कृा ंमव्ित रूपप ंबंन पहलन वदणाई पडता ह ्याय और िर्नवर्कृ कृन इवतहां कृन
उत्तर कृाल म इन दो नर दर्शनर कृा ंयस क्त
ु ्रकवतपादन ही हम ्रकाए हो ता ह, वजंकृा ंबंन बडा ्रकमा
ल भ एकृ ही कृालािवध म वलणन यन लो कृव्रकय ््ा ध्नसभट्ट कृन ‘तकृश ंस्ह‘ और विश्वनाा कृन
भार्ा पररच्ान द या ‘कृाररकृािली‘ हैं
वरतप ीकृार इन दर्शनर कृन इवतहां कृन इन दो चर र (उदाहर कृन तौर पर ्रकाचीन ्याय और नवय
्याय) कृन धलािा एकृ तींरन चर कृी भी चचाश कृरतन हैं कृहा जाता ह वकृ यह िह चर ाा जब

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भारतीय दर्शन MASL-507
्याय-िर्नवर्कृ कृा ्ित््र विश्वदर्शन ल भ वि्मतत कृर वदया या ाा, और उंन मख्ु यतः तकृश र्ास्त्र
मानतन हुए िनदा्त दर्शन कृन ध्ययन मॅ स न ंहायकृ मानन जानन िालन दर्शन कृी ौ व्ावत म पहुचस ा
वदया या ाा ्याय-िर्नवर्कृ दर्शनर ि उनकृन तकृश र्ास्त्र कृी धननकृ ंमानताओ स कृन बािजदू उनम
महत्त्िपू श ध्तर भी ान, वजनकृी ंवस ्ए चचाश आप ध ली इकृाइयर म पढॅ न
आपनन यह दनणा वकृ ्याय दर्शन कृा आविभाशि वकृन पररव्ावतयर म और तकृश र्ास्त्र कृी वकृं
पर्परा कृन ध्त तश हुआ, और इंकृा बीजारो प ि पल्लिन वकृन-वकृन दार्शवनकृ ््ार कृन जररयन
हुआ ह धब हम ्याय कृी विर्य ि्तु कृन पररचयात्मकृ इवतहां कृी ओर, यानी वकृ उंकृन मख्ु य
तत्त्िर कृन पररचय और उनकृन ऐवतहावंकृ विकृां कृो ंमझनन कृी ओर आ न बढ न
1.4 न् ख तदर््नतृखतइव हखस
तन् ख तर्खस्त्रत
हम दनण चकृ ु न हैं वकृ ्याय र्ास्त्र कृा इवतहां बीं र्तावब्दयर म फला हुआ ह ौतम कृा ्याय ं्र ू
पासच ध्यायर म बसरा हुआ ह, वजंम ्रकत्यनकृ ध्याय कृन दो -दो पररच्ान द हैं इं ्याय ं्र ू कृा भाष्य
िात््यायन नन वलणा ह िात््यायन कृन धनंु ार ््ा उद्दनश्य, ल् और परी्ा कृी विवध कृा
धनंु र कृरता ह ्रकाम ध्याय म ंामा्यतः ंो लह विर्यर कृा ि नश ह, वजन पर ध लन चार
ध्यायर म वि्तार ंन विचार वकृया या ह ्याय ं्र ू िवदकृ विचार धारा कृन वनष्कृर्ों कृो तकृश
वंद्धा्तर कृन आधार पर णडा कृरता ह, और उंन उपवनर्दर कृन धावमशकृ एिस दार्शवनकृ मतर कृन ंाा
जो डता ह, और इं ्रककृार िह आव्तकृ याााशिाद कृा तकृश पू श ंमाशन कृरता ह ौतम कृन ्याय
ं्र ू , णांकृर उंकृन ्रकाचीनतम मानन जानन िालन ं्र ू ईंा पिू श तींरी र्ताब्दी कृी रचनाएूँ हैं, हालाूँवकृ
्याय कृन कृुा ं्र ू वनवश्चत रूपप ंन ईंा कृाल कृन बाद रचन यन ्रकतीत हो तन हैं हम पहलन ही बता चकृ ु न हैं
वकृ िात््यायन कृा ्याय भाष्य ्याय ं्र ू कृी ंिाशवधकृ चवचशत ि ंर्क्त र्ास्त्रीय रीकृा ह
सकवटतविचखरातऔरातन् ख
ंतवि कृी उत्पवत्त कृन कृार धााशत कृार कृायशिाद कृी वििनचना ंभी दर्शनर कृी वच्ता कृा मख्ु य
विर्य रहा ह ्िाभाविकृ तौर पर यह विर्य दार्शवनकृर कृन मतभनदर और विभाजनर कृन कृन ्व म रहा ह
कृायशकृार िाद कृन धनंु ार ्रकत्यनकृ कृायश कृा कृो ई कृार धिश्य हो ना चावहए, क्यरवकृ कृार कृी
धनपु व्ावत म कृायश कृा हो ना धं्भि ह लनवकृन दार्शवनकृ वििाद यह तकृ ंीवमत नह रहता,
और िह आ न बढ़कृर ्रकश्न कृरता ह वकृ कृायश धपनी उत्पवत्त कृन पिू श भी क्या धपनन कृार म विद्यमान
रहता ह, धािा ऐंा नह हो ता दार्शवनकृर वारा इं ्रकश्न कृन जो उत्तर वदए यन, उनकृन आधार पर
दर्शन म एकृ वयापकृ विभाजन कृरना ं्भि ह जो दार्शवनकृ मानतन हैं वकृ कृायश धपनी उत्पवत्त कृन

उत्तराण्श मक्त
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भारतीय दर्शन MASL-507
पिू श कृार म विद्यमान रहता ह, िन ंत्कृायशिादी कृहन जातन हैं, और जो ऐंा नह मानतन िन
धंत्कृायशिादी कृहलातन हैं
इं ्रकश्न कृो कृन ्व म रणकृर एकृ जवरल बहं भारतीय दार्शवनकृ इवतहां म हो ती रही ह , वजंन आप
ंस्नप म इं ्रककृार ंमझ ंकृतन हैं धंत्कृायशिावदयर कृन धनंु ार कृायश उत्पवत्त कृन पिू श ‘धंत‘ ह,
धााशत् धपनन कृार म विद्यमान नह ह, और इंवलए कृायश कृी ंत्ता उंकृी उत्पवत्त ंन ही ्रकार्भ
हो ती ह धपनन इंी तकृश कृन कृार धंत्कृायशिावदयर कृो आर्भिादी भी कृहा जाता ह उनकृी
तावकृश कृ दलील कृो पार्पररकृ तौर पर इं तरह धवभवयक्त वकृया जाता हः उत्पवत्त ंन पिू श कृायश कृी
ंत्ता कृा ्रकश्न ही नह उठता, क्यरवकृ यवद कृायश उत्पवत्त ंन पिू श विद्यमान ह, तो ंत् हो नन कृन कृार िह
उत्प्न माना जाए ा, और इं तरह उंकृी दो बारा उत्पवत्त पनु रुत्पवत्त हो ी, जो वयाश या वनराशकृ ह
धतः कृायश कृी ंत्ता उंकृी उत्पवत्त ंन ही आर्भ हो ती ह कृायश एकृ नतू न कृत वत ह, एकृ निीन ंतवि
ह यवद घडा वमट्टी म, कृपडा धा न म ताा दही दधू म पहलन ंन ही विद्यमान ह तो कृु्हार कृो वमट्टी ंन
घडा बनानन कृन वलए पररश्रम कृरनन कृी क्या आिश्यकृता ह? या वफर धा न णदु ही िस्त्र कृा कृाम क्यर
नह कृरतन? और दधू कृा ्िाद दही जंा क्यर नह हो ता?
धंत्कृायशिाद कृा ्रकवतप् ंत्कृायशिाद कृहलाता ह, वजंकृी मा्यता यह ह वकृ धपनी उत्पवत्त कृन
पिू श भी कृायश धपनन कृार म विद्यमान रहता ह ंत्कृायशिावदयर कृन ंसव्ए तकृश कृो आम तौर पर इं
रूपप म वयक्त वकृया जाता हः कृायश कृार म बीज रूपप ंन ध्तवनशवहत रहता ह, ताा कृार कृायश म
्िभाि रूपप ंन विद्यमान रहता ह, इं तरह कृायश कृो ई नयी ंतवि नह ह, बवल्कृ उंकृी उत्पवत्त कृा
धाश कृन िल उंकृा धवभवयक्त हो ना ह ंस्नप म ंत्कृायशिाद कृन धनंु ार कृार ही कृायश कृन रूपप म
पररिवतशत हो ता ह, और कृार और कृायश एकृ ही ि्तु कृन दो रूपप हैंॅः कृार कृी धि्ाा उंकृा
धवयक्त रूपप ह, जबवकृ कृायश कृी धि्ाा उंकृा वयक्त रूपप ह इं ्रककृार कृायश धपनी उत्पवत्त ंन पिू श
भी ंत् ह, और धपनी इंी मा्यता कृन कृार इंकृो ंत्कृायशिाद नाम ंन जाना जाता ह
आप जानतन हैं वकृ दार्शवनकृ िाद-वििाद जल्दी ामनन कृा नाम नह लनता, र्ायद इंीवलए ंमाज म
दार्शवनकृर कृो ‘बाल कृी णाल वनकृालननॅन‘ िाला भी ंमझ वलया जाता ह बहरहाल, दर्शन कृन
ाा्र र कृो तो कृायशकृार िाद ं्ब्धी बहं कृन ध लन ्रकश्न ंन भी पररवचत हो ना पडन ा, जो आ न
बढ़कृर वजज्ञांा कृरता ह वकृ कृार कृा कृायश कृन रूपप म पररितशन िा्तविकृ या तावत्त्िकृ पररितशन ह,
धािा धिा्तविकृ या धतावत्त्िकृ पररितशन ह वजन दार्शवनकृर नन इं पररितशन कृो िा्तविकृ या
तावत्त्िकृ माना ह उ्ह ‘परर ामिादी‘ कृहा या ह, जबवकृ इं पररितशन कृो धिा्तविकृ धािा
धतावत्त्िकृ माननन िालर कृो ‘विितशिादी‘ कृहा या ह

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यहास दार्शवनकृ ण्शन-म्शन कृी इं जवरल ्रकवक्रया कृो आ न बढ़ानन कृन बजाय हम कृन िल धब तकृ
कृन तकृों कृो याद रणतन हुए, उनकृन आधार पर भारतीय दार्शवनकृ ं््रकदायर म जो ि श-विभाजन वकृया
या ह, उंकृा एकृ ंसव्ए पररचय ्रकाए कृर न यह ि ीकृर कृुा इं ्रककृार हः
ंासख्य ि यो - ंत्कृायशिादी,
्याय ि िर्नवर्कृ-धंत्कृायशिादी,
िनदा्ती ि बौद्ध- विितशिादी,
जन ि मीमासंकृ- ंदंत्कृायशिादी
लो कृायत- ्िभाििादी
इं ्रककृार, हम यहास एकृ धंत्कृायशिादी दर्शन कृन इवतहां ंन, उंकृन विकृांानक्र
ु म ंन पररवचत हो नन
कृी चनिा कृर रहन हैं
ृख ्ृखराणिखदतृे तसन्दभ्तुेंतबौद्ध, सखंख् तऔरातनै खव ृत
आपकृो यह ्यान रणना चावहए वकृ ्याय कृन आविभाशि कृी ऐवतहावंकृ पतष्ठभवू म ंासख्य ि बौद्ध
मतर कृन उंकृन ण्शन-म्शन ंन जडु ी ह बौद्ध कृहा कृरतन ान वकृ कृायश कृी उत्पवत्त कृन बाद कृार तत्त्ि
नि हो जातन हैं, जंन यवद दधू ंन दही बनता ह, तो दही बननन कृन बाद कृार तत्त्ि दधू कृा धव्तत्ि
ंमाए हो जाता ह पर्तु ्याय दर्शन कृन धनयु ायी बौद्धर कृन इं मत कृा ण्शन कृरनन कृन क्रम म एकृ
जवरल तकृश ंामनन लातन हैं, जो ंस्नप म इं ्रककृार हः कृार रूपप कृन विर्नर् तत्त्ि कृायश कृन तत्त्ि पसजु म
भी विद्यमान रहतन हैं, और कृार कृन तत्ि पजसु र कृी ्ित््र वक्रया कृन परर ाम्िरूपप कृायश कृन तत्त्ि
पसजु कृी उत्पवत्त हमारन धनुभि और ंाधार ज्ञान कृन विपरीत हैं दधू म जो श्वनत तत्त्ि ह िह दही म
भी पाया जाता ह, इंवलए हम यह नह कृह ंकृतन वकृ एकृ ् म ही पहला पदााश (कृार ) नि हो
या, और दंू रा पदााश (कृायश) उत्प्न हो या
दंू री ओर, हम दनणतन हैं वकृ नयावयकृर कृन वंद्धा्त कृन ्रकारव्भकृ ्िरूपप ंन ही ंासख्य दर्शन कृी
मा्यता कृन ण्शन कृी ्रकवक्रया र्रूपु हो जाती ह, लनवकृन नयावयकृर कृन इं ्रकवतप् कृो जाननन कृन
पहलन हम ंस्नप म यह जान लनना हो ा वकृ ंासख्य दर्शन कृन धनयु ावययर कृा प् क्या ाा ंासख्य कृन
धनयु ायी यह मानतन ान वकृ कृायश कृन िल कृार कृा ्रककृरीकृर ह, और कृार कृी धि्ाा भविष्य म
ं्प्न हो नन िालन ंारन कृायों कृी धनु एु व्ावत ंमावहत वकृयन रहती ह िन धपनी दलील कृो
लो कृव्रकय ढस ंन वयक्त कृरतन हुए कृहतन ान- ‘वतल म तनल पहलन ंन विद्यमान रहता ह’ नयावयकृर नन

उत्तराण्श मक्त
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ंासख्य कृन धनयु ावययर कृी इं लो कृव्रकय दलील कृो आधारहीन बताया ाा और कृहा ाा वकृ वतल
कृा ्रकयो हम तनल कृी तरह नह कृर ंकृतन, या वमट्टी कृन वप्श कृो घडा ंमझकृर हम उंम पानी
नह भर ंकृतन हैं
्याय दर्शन कृन उद्भि ंन जडु न इं दार्शवनकृ ण्शन-म्शन कृी ंसव्ए पतष्ठभवू म कृन बाद चलतन-चलतन
र्ायद एकृ और बात कृा उल्लनण भी आपकृो वदलच्प ल न ा, जो इं दर्शन कृन नामकृर ंन जडु ी
ह धनमु ान ल ाया जाता ह वकृ ्याय र्ब्द कृी उत्पवत्त धननकृ विवानर वारा कृी जानन िाली
िनदविर्यकृ िाताशओ स ि वििादर कृन ं्दभश म हुई हो ी आप नन भी ऐंी कृााएस पढ़ी हर ी, जो भारत
कृन ्रकाचीन कृाल म ऐंी धननकृ ्रकवतव्वी र्ाणाओ स कृन धव्तत्ि कृो दर्ाशती हैं, जो धपनन
्रकर् वतपव्यर कृो हराकृर धपनन मत कृो ंमाज म ्ाावपत कृरनन कृन वलए मनो यो पिू कृ
श र्ास्त्रााश वकृया
कृरती ा
धब हम ्याय दर्शन कृी विर्य ि्तु कृन दंू रन महत्त्िपू श तत्त्ि ंन पररवचत हर न और उंकृन ऐवतहावंकृ
ं्दभश कृो ंमझनन कृी कृो वर्र् कृर न ्याय दर्शन कृा पदााश विचार
्याय दर्शन कृन पदााों ंन पररवचत हो नन कृन पहलन हम यह ्यान दनना चावहए वकृ िर्नवर्कृर कृन
तत्त्िमीमासंीय दृविकृो कृन विपरीत नयावयकृ विश्व कृो ज्ञानमीमासंीय दृविकृो ंन दनणतन हैं ्याय
दर्शन कृन ंो लह पदााों कृा जब हम ध्ययन कृरतन हैं, तो पातन हैं वकृ ्याय नन धपना ्यान वकृंी
ि्तु कृन ु र कृन िा्तविकृ ध्ययन पर कृन व्वत नह वकृया ह, बवल्कृ तकृश और व्विाद कृी उं
्रकवक्रया पर कृन व्वत वकृया ह, जो ज्ञान कृी ्रकावए कृन वलए आिश्यकृ ह िर्नवर्कृर कृन ंात पदााों कृो
्याय दर्शन नन धपनन दंू रन पदााश धााशत ्रकमनय कृन ध्दर ंमावहत कृर वलया ह ज्ञान कृी पद्धवत पर
नयावयकृर कृन इंी कृन ्वीकृर कृो ्पि कृरतन हुए विश्लन र्कृ कृहतन हैं वकृ ्रकमा और ्रकमनय, यानी वकृ
्याय कृन पहलन दो पदााश ही उंकृन दृविकृो कृो ्पि कृरनन कृन वलए पयाशए हैं ्याय कृी वजज्ञांा इं
्रकश्न पर कृन व्वत नह ह वकृ ि्तएु स ्ितः क्या हैं, बवल्कृ उंकृा जो र इं बात पर ह वकृ कृंन उनकृी
जानकृारी या उनकृन ज्ञान कृी वंवद्ध ंसभि ह यहास यह ्पि कृरनन कृी जरूपरत ह वकृ ्याय कृो ि्तओ ु स
कृन ्ित््र धव्तत्ि पर वकृसवचत मा्र भी ं्दनह नह ाा, बवल्कृ िह वमथ्या ज्ञान कृन दष्ु ्रकभािर कृन ्रकवत
ज्यादा वचसवतत ाा िह मानता ाा वकृ वमथ्या ज्ञान हम आंानी ंन भ्रम म शाल ंकृता ह, इंवलए
िह ि्तओ ु स पर विचार कृरनन कृन वनयमर कृी ाानबीन म ल या ाा यह बात ्याय दर्शन कृन बाकृी
चौदह पदााों कृन ्िरूपप ंन ्ितः ्पि हो जाती ह , क्यरवकृ िन ंभी ंत्य कृी णो ज म ंहायकृ हैं, या
धतकृोवचत आक्रम र ंन उंन बचानन म उपयो ी हैं इंीवलए कृहा जाता ह वकृ ्याय दर्शन म ज्ञान
पर ंिोच्च बल वदया या ह कृहा या ह, ‘ऋतन ंत्या्न मवु क्तः‘ धााशत् ज्ञान कृन वबना जीिन मवु क्त
ंिशाा धं्भि ह

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्यायर्ास्त्र म पदााों कृन ज्ञान पर विर्नर् बल वदया या ह ौतम कृन धनंु ार वनःश्रनयं कृी ्रकावए
धााशत दःु ण और पीडा ंन मवु क्त या मो ् ंो लह पदााों कृन ंत्य कृो जाननन कृन बाद ही हो ंकृती ह
यन पदााश ान- ्रकमा , ्रकमनय, ंसर्य, ्रकयो जन, दृिा्त, वंद्धा्त, धियि, तकृश , वन यश , िाद, जल्प,
वित्शा, हनत्िाभां, ाल, जावत, वन्ह ्ाान इन पदााों म ्रकमा कृो ंबंन पहला ्ाान वदया
या ह जबवकृ ज्ञान कृी धााशत ्रकमनय कृो ौ ्ाान ्रकदान वकृया या ह ्पि ह वकृ ्याय ्रक ाली
्रकामतः ंही ज्ञान ्रकाए कृरनन कृी पद्धवत वनरूपवपत कृरनन िाला दर्शन ह ौतम ंही ज्ञान ्रकाए कृरनन कृन
ंाधन धााशत ्रकमा कृो धत्यवधकृ महत्त्ि दनतन हैं ्याय दर्शन तकृश िाद, धमशवनरपन्ता और विज्ञान
कृी पर्परा ंन ं्ब्ध ह यह दर्शन पदााश कृन मल ू तत्त्ि कृी धपनी-धपनी पररकृल्पनाओ स कृन आधार
पर ि्त-ु ज त कृी वयाख्या ्रक्ततु कृरता ह नयावयकृर नन परमा ओ ु स कृन रूपप मॅ
स न पदााश कृी
पररकृल्पना कृी ह इंीवलए इनकृन वंद्धा्त परमा ु वंद्धा्त भी कृहलातन हैं
न् ख तुेंतस्िीृक तर्ोशर्तपदखथ्
ौतम जब ्याय ं्र ू कृा ्रक यन कृरतन हैं तो ंत् कृन रूपप म ंो लह पदााों कृी वििनचना कृरतन हैं-
्रकमा ्रकमनयंसर्य्रकयो जनदृिा्तवंद्धा्ताियितकृश वन यश िादजल्पवित्शाहनत्िभांच्ालजावतवन्ह
्ाानीनास तत्त्िज्ञानाव्नःश्रनयंावध मः
धााशत ्रकमा , ्रकमनय, ंसर्य, ्रकयो जन, दृिा्त, वंद्धा्त, धियि, तकृश , वन यश , िाद, जल्प, वित्शा,
हनत्िाभां, ाल, जावत, वन्ह्ाान कृन तत्त्ि ज्ञान ंन वनःश्रनयं ्रकाए हो ता ह
इन ंो लह पदााों कृा ही वि्ततत वििनचन ्यायं्र ू म उपलब्ध हो ता ह ध ली इकृाई म आप
इंकृा ितहद ध्ययन कृर ंकृ न इं इकृाई म इनकृा एकृ ंसव्ए पररचय वदया जा रहा ह, तावकृ
ध ली इकृाइयर कृा ध्ययन आपकृन वलए ंरल और ं्ु ाह्य बनाया जा ंकृन
्रकमा ः ‘्रकमा कृी वििनचना ्याय दर्शन कृा ्रकमण
ु विर्य ह, वजंकृन वारा याााश ज्ञान कृी उपलवब्ध
हो ती ह उंन ्रकमा कृहतन हैं ि्तओ ु स कृन याााश ज्ञान कृो ‘्रकमा‘ कृहतन हैं ौतम नन कृहा हः
्रकमीयतनऽननन‘ इवत ्रकमा ः धााशत ्रकमा कृन कृर कृो ्रकमा कृहा जाता ह, आम भार्ा म वजंकृा
धाश हुआ वकृ ज्ञान कृन मख्ु य ंाधन कृो ्रकमा कृहतन हैं इंकृन वारा ही ि्तु कृा याााश ज्ञान ं्भि
हो ता ह ्याय दर्शन कृन ध्त तश चार ्रकमा ्िीकृत त वकृयन यन हैं- ्रकत्य्, धनमु ान, उपमान और
र्ब्द ्रकमा इनकृा वि्ततत वििनचन ध ली इकृाई म वकृया जाए ा
्रकमनयः आत्मर्रीरन व्वयााशबवु द्धमनः्रकितवत्तदो र््रकनत्याभािफलदःु णापि ाश्तु ्रकमनयम ‘्रकमा‘ धााशत
याााश ज्ञान कृन विर्य कृो ्रकमनय कृहतन हैं इनकृी ंसख्या बारह बताई ई ह, और इनकृन नाम क्रमर्ः

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इं ्रककृार हैंॅः आत्मा, र्रीर, इव्वय, धाश, बवु द्ध, मन, ्रकितवत्त, दो र्, ्रकनत्यभाि, फल, दःु ण ताा
धपि श
ंर्
स यः ंमानाननकृधमोपपत्तनविश्रकवतपत्तनरूपपलब््यवयि्ाातश्च विर्नर्ापन्ो विमर्शः ंर्
स यः‘ धााशत
विर्नर्ापन् विमर्श ही ंसर्य कृहलाता ह, जंन ्ाा ु (ठूूँठ) और परुु र् (मनष्ु य) म कृुा धमश ंमान
हो नन कृन कृार (वदणनन म कृुा ंमानता कृन कृार ) जब भाि (ं्दनह) उत्प्न हो ता ह वकृ यह ठूँ ॅठू
ह धािा परुु र्, तो नयावयकृर कृी भार्ा म इंन ंसर्य कृहा जाता ह
्रकयो जनः ‘यमाशमवधकृत त्य ्रकितशतन
्रकमाता (ज्ञान ्रकाए कृरनन िाला) वजं धाश कृो धनकृ
ु ू ल या ्रकवतकृूल वनश्चय कृर ्रकितत्त हो (आ न बढ़न),
उंन ्रकयो जन कृहतन हैं
दृिा्तः ‘लौवकृकृपरी्कृ ास यव्म्नाे बवु द्धंा्यस ं दृिा्तः‘
धााशत लौवकृकृ परुु र् और विर्नर् परुु र् ध र वकृंी ि्तु कृो एकृ ंा ंमझतन हर, तो उंन दृिा्त
कृहा जाता ह आम भार्ा म कृहॅ स न तो िादी ताा ्रकवतिादी वजं विर्य म एकृमत हर उंन दृिा्त
कृहा जाता ह आ न कृी इकृाई म इंकृन भनदर कृा आप वि्तार ंन ध्ययन कृर न
वंद्धा्तः ‘त््र ावधकृर ्यपु मंसव्ावतः वंद्ध्तः‘ विर्नर् रूपप ंन परी् वकृया या धािा
्रकामाव कृ रूपप ंन ्िीकृत त विर्य वंद्धा्त कृहलाता ह यह चार ्रककृार कृा हो ता ह वजंकृा वि्ततत
वििनचन हम ध ली इकृाई म कृर न
धियिः ‘्रकवतज्ञाहनतदू ाहर ापनयवन मा्यियिाः‘ आप पहलन ही जान चकृ ु न हैं वकृ ्याय दर्शन म
चार ्रकमा व नाए ए हैं, वजनम दंू रा ्रकमा धनमु ान कृहा जाता ह धनमु ान ्रकमा कृन पाच स भनद या
ण्श हैं, वज्ह धियि कृहा जाता ह ंामा्य तौर पर कृह तो वजन िाक्यर कृन मा्यम ंन हम
धनमु ान ज्ञान ्रकाए कृरतन हैं, िन धियि कृहलातन हैं, वजनकृन नाम हैंॅः ्रकवतज्ञा, हनतु, उदाहर , उपनय
और वन मन
तकृश ः धविज्ञातत्त्िनऽाे कृार ो पपवत्तत्तत्त्िज्ञानााशमहू ्तकृश ः भली-भावस त न जानन हुए धाश कृो जाननन
कृी वजज्ञांा कृन कृार उं पर ं्यकृ विचार कृरना तकृश कृहलाता ह
वन यश ः विमतश्य प््रकवतप्ाभ्यामााशिधार स वन यश ः विचार ्रकवक्रया परू ी हो नन कृन पश्चात प् ्रकवतप्
वारा धाश कृा वनश्चय कृरना ‘वन यश ‘ कृहलाता ह ्याय दर्शन म िाद-वििाद कृन तकृश कृी धि्ाा

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तकृ पहुचस नन तकृ वकृंी वनष्कृर्श पर वयवक्त नह पहॅ
स ुचता, जबवकृ वन यश कृी धि्ाा पर पहुचस तन ही
िह वनष्कृर्श या वनश्चय ्रकाए कृर लनता ह
िादः ्रकमा तकृश ंाधनो पाल्भः वंद्धा्तविरुद्धः पच स ाियो पप्न प््रकवतप् परर्हो िादः र्ास्त्रााश
कृन ंमय िादी ताा ्रकवतिादी दो प् हो तन हैं, यन दो नर जब तत्त्िज्ञान कृन वलए र्ास्त्रााश कृरतन हैं तो उंन
िाद कृहतन हैं िाद कृन दौरान पासचर धियिर िाली यवु क्तयास ्रक्ततु कृी जाती हैं वनितत्त कृा वनर्नध ताा
वयिव्ात कृी ्ाापना ही िाद कृा लक्ष्य ह
जल्पः याो क्तो पप्नश्ालजावतवन्ह्ाानो पाल्भो जल्पः जब दो नर प् र्ास्त्रााश म विजय कृी
धवभलार्ा रणतन हुए धपनन ही प् कृो वंद्ध कृरनन कृन वलए कृाा कृरतन हैं तो यह जल्प कृहलाती ह
वित्शाः ं ्रकवतप््ाापनाहीनो वित्शा ्िप् कृी ्ाापना ंन विरवहत हो कृर परप् कृी ्ाापना
कृाा वित्शा कृहलाती ह, यानी वकृ जब ्रकवतिादी धपनी णीझ म परू ी तरह वनराशकृ वििाद कृरनन
ल न, तो उंन वित्शा कृहा जाता ह
हनत्िाभांः हनतलु ् ाभािादहनतिो हनतंु ामा्यावनतिु दाभांमानाः तन इमन
ंवयवभचारविरुद्ध्रककृर ंमंा्यंमकृालातीता हनत्िाभांाः हनत्िाभां कृा धाश हो ता ह हनतु न
हो तन हुए भी हनतु कृी ्रकतीवत हो ना इं हनतु ंन जो धनमु ान ज्ञान हो ता ह िह धयाााश धनमु ान ह
उदाहर कृन तौर पर वित्शा कृन ंभी हनतु धयक्त ु हो नन कृन कृार हनत्िाभां रह जाएस न
ालः ‘िचनविधातो ऽाशविकृल्पो पपत्या ालम‘् धााशत ्रकवतिादी कृन धवभमत धाश ंन विरुद्ध
कृल्पनो पपादन िचनविधान ाल कृहलाता ह यह व्ावत तब आती ह जब ्रकवतिादी िादी कृन
िाक्यर कृा विरुद्धााश कृरकृन उंकृो ाल म शालनन कृा ्रकयत्न कृरता ह, यानी वकृ ध्य धवभ्रकाय ंन
कृही ई बात कृो ध्य धाश म लनना ाल कृहलाता ह जंन वकृंी नन कृहा- ‘निकृ्बलो ऽयस दनिदत्तः‘
(दनिदत्त कृन पां नया कृ्बल ह) यहास ्रकवतिादी ‘निकृ्बल‘ कृा धाश नया कृ्बल न कृर नौ
कृ्बलर िाला कृर दनता ह ाल तीन ्रककृार कृा हो ता ह, वज्ह िाक्ाल, ंामा्याल ताा
उपचाराल कृहा या ह
जवतः ंाध्यशिध्याश्यास ्रकत्यि्ाानस जावतः जब ्रकवतिादी वयावए वनरपन् ंाध्यश या िध्यश कृन
वारा धपनन प् कृो पिु कृरनन ल ता ह, िह जावत धि्ाा म आ जाता ह
वन्ह्ाानः वि्रकवतर्रकवतपवत्तश्च वन्ह्ाानम् वि्रकवतपवत्त या ध्रकवतपवत्त कृी धि्ाा ‘वन्ह्ाान‘
कृहलाती ह विपरीत या वनव्दत ्रकवतपादन ‘वि्रकवतपवत्त‘ कृहा जाता ह धााशत िादी जहास ्रकवतिादी

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वारा ्ाावपत प् कृा आिश्यकृ ण्शन न कृरन , िह वन्ह्ाान कृहलाता ह आम भार्ा म कृह तो
वन्ह्ाान िह धि्ाा ह जब ्रकवतिादी कृो रो कृकृर र्ास्त्रााश ब्द वकृया जाता ह
न् ख तदर््नतृे तप्रवसद्धतरचख ्
हम ्याय दर्शन कृन ््ार कृन विकृांानक्र ु म कृो पहलन ही जान चकृ
ु न हैं धब ्याय दर्शन कृन ्रकमण

आचायों कृन विर्य म भी ंसव्ए पररचय ्रकाए कृर लनना हमारन वलए लाभदायी रहन ा लनवकृन इनकृी
रूपपरन णा कृो दनणनन कृन पहलन भारतीय दर्शन ं्ब्धी दो ंामा्य बात ्यान म रणना उपयो ी हो ा
पहली बात इन आचायों कृी ऐवतहावंकृ वतवा ंन ं्बव्धत ह ्पि ंाक्ष्यर कृन धभाि म हमारन
्रकाचीन इवतहां कृन ््ार कृा वतवा वनधाशर कृाफी जवरल मंला बना हुआ ह, और इंवलए ऐंा
कृरतन ंमय हम धवधकृासर्तया धनमु ान पर भरो ंा कृरना पडता ह दंू री बात इन मनीवर्यर कृन
आत्मचररत ंन ं्बव्धत ह कृार चाहन जो रहन हर, लनवकृन हमारी ज्ञान पर्परा म मनीवर्यर वारा
धपनन बारन म कृुा कृहनन कृा चलन नह वमलता ह इंवलए ््ार कृन रचवयताओ स कृन वनजी जीिन कृन
बारन म न ्य जानकृाररयास ही हम ्रकाए हो ंकृी हैं
प्रखचीनतन् ख तृे तरचख ्
1. ौतमः ्याय ं्र ू कृन रचवयता कृा नाम ौतम ह इनकृा दंू रा नाम ध्पाद ह ंिाशवधकृ
विवान इनकृो वमवालावनिांी माननन कृन प् म हैं ्याय ं्र ू पासच ध्याय म विभक्त ह, और ्रकत्यनकृ
ध्याय कृन दो आविकृ (भा र) म
2. िात््यायनः ्याय ं्र ू कृन ंिश्रकमण
ु भाष्यकृार हैं भाष्य कृन ध्ययन ंन पता चलता ह वकृ
इंंन पिू श भी कृो ई वयाख्या ््ा ाा
3. उद्यो तकृरः वदङना कृन विचारर कृा ण्शन कृरनन कृन वलए उद्यो तकृर नन ्याय भाष्य कृी
वयाख्या कृन रूपप म ्यायिावतशकृ वलणा
4. िाच्पवत वमश्रः ्यायिावतशकृ कृन वक्लि हो नन कृन कृार िाच्पवत नन ‘तात्पयश रीकृा‘ कृा
्रक यन वकृया िर्नवर्कृ कृो ाो डकृर पच
स दर्शनर पर इनकृी विरवचत रीकृाएस ्रकामाव कृ, ्रकौढ़ ताा
पासवशत्यपू श हैं
5. जय्त भट्टः इनकृी रचना ्यायमजस री ह विरो धी मतािलव्बयर कृा ण्शन जय्त भट्ट नन
रो चकृ भार्ा म वकृया ह
6. भांिशज्ञः ‘्याय ंार‘ कृी रचना कृर भांिशज्ञ नन ्याय ज त म धववतीय ्ाान ्रकाए कृर
वलया ्िााश ताा पराााशनमु ान कृा ि नश , उपमान कृा ण्शन, बौद्धर कृन ंमान प्ाभां एिस

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दृिा्ताभां कृा ि नश ताा आत्मा कृी वनरवतर्य आन्दो पलवब्ध मवु क्त कृी कृल्पना जंन इनकृन
वंद्धा्त नयावयकृ ज त म ंिशाा धपिू श हैं
7. उदयानाचायशः उदयन कृी ‘तात्पयश पररर्वु द्ध‘ तात्पयश रीकृा कृी एकृ बहुमल्ू य वयाख्या ह
इनकृन ंिशश्रनष्ठ ््ा हैं- आत्मतत्त्ि वििनकृ ताा ्याय कृुंमु ासजवल ्याय कृुंमु ासजवल मख्ु य रूपप ंन
ईश्वर कृन धव्तत्ि कृन ंमाशन म ्रकमा जरु ानन कृन उद्दनश्य ंन वलणी ई
नव् तन् ख तृे तरचख ्
नवय ्याय कृन ्रक तन ा स र्
न उपा्याय एकृ ऐंन रत्न ान वज्हरनन ्रकाचीन ्याय कृी धारा पलर कृर
‘नवय ्याय कृो ज्म वदया ्याय ं्र ू जहास पदााों कृन वििनचन पर बल दनता ह िह नवय ्याय म
्रकमा विचार ंिश्रकमण ु ्ाान ्ह कृर लनता ह इनकृी रचना तत्त्ि वच्तामव ंिाशवधकृ लो कृव्रकय
ह तत्त्िवच्तामव कृन रचना कृाल ंन ्याय पर्परा कृा नवय यु ्रकार्भ हो ता ह स र् न कृन
धनयु ावययर म व नानन यो ग्य हैं िांदु िन , ंािशभौम, रघनु ाा वर्रो मव , दाधर ताा ज दीर्
धभी तकृ आपनन दनणा वकृ ्याय दर्शन मख्ु य रूपप ंन तकृश विद्या पर बल दनता ह तकृश ्रकधान ्रक ाली कृन
आधार पर ही इं दर्शन कृा नाम तकृश धािा ्याय पडा इंीवलए िात््यायन नन भी वलणा ह वकृ
‘्रकमा राशपरी् स ्यायः ्रकत्य्ा मावश्रतमनमु ानमः् ंाङिी्ा‘ धााशत् ्रकमा र ंन धाश परी्
्याय कृहलाता ह िन ्रकमा , ्रकत्य् ताा आ म कृन धनकृ ु ू ल धनमु ान कृो ही आ्िीव्कृी विद्या
कृहतन हैं
बोधतप्रश्न

्याय दर्शन कृन ्रकितशकृ कृौन ान?


वित्शा वकृं श्रन ी म आती ह?
्याय कृन धनंु ार पदााों कृी ंख्स या वकृतनी ह?
वनःश्रनयं वकृंन कृहतन हैं?
1.5तपखरराभखवर्ृतर्ब्द
आ्िीव्कृी - तकृश विद्या
प्ाभां- प् कृी तरह ्रकतीत हो नन िाला

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दृिा्ताभां- दृिा्त धािा उदाहर कृी तरह ्रकतीत हो नन िाला
नवय ्याय- ्याय दर्शन कृी धिा्तर ्रक ाली
धियि- धस
ध्तरस ंाक्ष्य- भीतरी ंाक्ष्य
्रकविवध- तरीकृा
1.6तसखराखंर्
आपनन धभी तकृ ्याय दर्शन कृा ंसव्ए इवतहां पढ़ा इंकृो पढ़नन कृन बाद आपकृो यह ज्ञात हुआ
वकृ ्याय दर्शन िनदर म विश्वां रणनन कृन कृार आव्तकृ दर्शन कृी श्रन ी म आता ह तकृश ्रकधान हो नन
कृन कृार इंकृा दंू रा नाम आ्िीव्कृी भी ह परमा ओ ु स कृन ंसयो ंन वनवमशत इं ज त कृी
वयाख्या कृन कृार इंन ि्तिु ादी दर्शन भी कृहा जाता ह ्याय र्ास्त्र भी दो भा र म बसरा हुआ ह
्रकाचीन ्याय और नवय ्याय ्रकाचीन ्याय कृन ्रकितशकृ महवर्श ौतम ताा नवय ्याय कृन ्रक तन ा स र् न
उपा्याय ान ्याय दर्शन कृन मख्ु य वंद्धा्तर कृी ्ाापना भी तींरी र्ताब्दी ंन पहलन हो चकृ ु ी ाी
्याय दर्शन कृन ंो लह पदााों कृी ंसव्ए चचाश भी हम इं इकृाई म कृर चकृ ु न हैं, वजनकृा वि्ततत
ध्ययन आप आ न कृी इकृाई म कृर न
1.7तबोधतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
1. ौतम, 2. कृाा, 3. ंो लह, 4. मवु क्त
1.8तवनबन्तधखत्तुृतप्रश्तनत
्याय दर्शन कृन ंसव्ए इवतहां पर ्रककृार् शावलए
्याय दर्शन कृन धनंु ार ंो लह पदााों कृा ं्
स नप म ि नश कृीवजए ्रकमा वकृंन कृहतन हैं, वयाख्या
कृीवजए

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इृखईत2.तन् ख तदर््नत ृ् भखर्खत-तप्रुे ोंतृे तनखु, प्रुखण, ृखराणतएिंतउनृखत
स्िरूप-तुूयतपखठ, अथ्तएिंतव् खख् खत

इकृाई कृी रूपपरन णा

2.1 ्रक्तािना
2.2 उद्दनश्य,
2.3 ्याय दर्शन- पररचय
2.4 ्रकमनय, वि्ततत वयाख्या
2.5 ्रकमा वि्ततत वयाख्या
2.5.1 ्रकत्य् ्रकमा
2.5.2 धनमु ान ्रकमा
2.5.3 उपमान ्रकमा
2.5.4 र्ब्द ्रकमा
2.6 कृार और उनकृन ्िरूपप कृी वयाख्या
2.6.1 कृार और उनकृन ्िरूपप कृी वयाख्या
2.6.2 ंमिावय कृार
2.6.3 धंमिावय कृार
2.6.4 वनवमत्त कृार
2.7 ंारासर्
2.8 र्ब्दािली
2.9 बो ध ्रकश्नर कृन उत्तर
2.10 ं्दभश ््ा ंचू ी
2.11 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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2.1तप्रस् खिनख
्याय दर्शन कृी पिू श इकृाई म आप ्रकाचीन ्याय और नवय ्याय कृन इवतहां ताा उनकृी
तत्त्िमीमासंा कृा वि्तार ंन ध्ययन कृर चकृु न हैं िहास आपनन यह दनणा हो ा वकृ ंू्र पद्धवत कृा
धनंु र कृर वलणन ए ््ा ्रकाचीन ्याय, और उंकृन विपरीत ्ित््र रूपप ंन वलणन ए ््ा नवय
्याय कृी श्रन ी म आतन हैं इं आधार पर तकृश भार्ा कृो नवय ्याय कृा ््ा माना जाता ह
आपनन यह भी पढ़ा ह वकृ ्याय एकृ ि्तिु ादी दर्शन ह, वजंकृी मल ू ्रक्ाापनाएस तकृश कृन वारा वंद्ध
कृी जाती हैं तकृश पर धत्यवधकृ जो र दननन कृन कृार ही इंन तकृश विद्या भी कृहा जाता ह तकृश ्रकधान
््ा हो नन कृन कृार ्याय र्ास्त्र पर आधाररत ््ार कृा भी एकृ ल्बा इवतहां रहा ह आप ्याय
दर्शन ंन ं्बव्धत धननकृ ््ार कृा पहली इकृाई म ध्ययन कृर चकृ ु न हैं, और ्रकाचीन ्याय ताा
नवय ्याय कृन इवतहां पर भी दृवि शाल चकृ ु न हैं
महवर्श ौतम कृा ‘्याय ं्र ू ‘ ्याय दर्शन कृा पहला ््ा ह, वजंन हम ्रकाचीन ्याय कृहतन हैं ्रकाचीन
और नवय कृा भनद कृरतन ंमय आपनन यह भी दनणा वकृ ौतम ज्ञान कृी ्रकावए कृन वलए ंो लह पदााों
कृा ज्ञान आिश्यकृ मानतन हैं, क्यरवकृ उनकृन धनंु ार ंो लह पदााों कृन ंत्य कृो जान लननन कृन बाद ही
वनःश्रनयं धााशत मो ् कृो ्रकाए कृर पाना ं्भि ाा नवय ्याय कृन ्रक तन ा स र् न उपा्याय नन ‘तत्ि
वच्तामव ‘ नामकृ लो कृव्रकय ््ा वलणा ाा, वजंन ्रकाचीन ्याय कृी धारा पलरनन िाला ््ा माना
या ह ‘तत्िवच्तामव ‘ कृन रचना कृाल कृो ही ्याय पर्परा कृन नवययु कृा ्रकार्भ माना जाता ह
्याय ं्र ू जहास ंो लह पदााों कृन वििनचन पर बल दनता ह िह नवय ्याय ज्ञान कृन ंाधन कृो धााशत
्रकमा विचार कृो ंिश्रकमण
ु ्ाान पर आंीन कृरता ह
आपकृो पता ह वकृ हम इं इकृाई म ्याय दर्शन कृन ्रकमनयर कृन नाम, ्रकमा , कृार और ्िरूपप
ं्ब्धी धपनन ध्ययन कृो तकृश भार्ा कृन मल ू पाठ कृन आधार पर आ न बढ़ाएस न हमारी आधार
प्ु तकृ तकृश भार्ा पस. कृन र्ि वमश्र वारा ्रक ीत बारहि र्ताब्दी कृा एकृ ऐंा धनपु म ््ा ह, वजंम
्याय कृन मख्ु य पदााों कृा ्रकवतपादन वकृया या ह तकृश भार्ा म ्याय और िर्नवर्कृ दो नो ही दर्शन
वंद्धा्तर कृा ि नश वमलता ह ्याय र्ास्त्र कृन ंम्त विर्यर कृा ं्पू श ि नश न हो नन कृन कृार
‘तकृश भार्ा‘ कृो ्याय कृा ‘्रककृर ््ा‘ यानी वकृ ं्बव्धत ््ा कृहना ही उवचत हो ा ्रककृर
््ा कृा ल् इं ्रककृार वकृया या ह-
र्ास्त्रकृदनर्ं्बद्ध र्ास्त्रकृायाश्तरन व्ातम्
आहुः ्रककृर स नाम ््ाभनदस विपवश्चतः

उत्तराण्श मक्त
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्याय और िर्नवर्कृ दर्शनर कृी िचाररकृ ंसरचना ंमान ह, इंवलए ्रककृर ््ा ्रकायः ्याय और
िर्नवर्कृ दो नर दर्शनर कृन पदााों कृा ंव्मवलत ि नश कृरतन हैं हालासवकृ उनम कृुा ््ा ्याय कृो
्रकधान और िर्नवर्कृ कृो ौ ्ाान दनतन हैं, तो ध्य ््ा धपनन वििनचन म िर्नवर्कृ कृो ्रकमण
ु ि
्याय कृो ौ ्ाान दनतन हैं
पहली इकृाई कृन ध्ययन ंन आप जान चकृ ु न हैं वकृ ्याय दर्शन म ्रकमा इत्यावद ंो लह पदााों कृा
ि नश वमलता ह, जबवकृ िर्वर्कृ दर्शन म ववय इत्यावद ंात पदााों कृा ि नश वकृया या ह ्याय
कृो ्रकधानता दननन िालन ््ा ्याय कृन ्रकमा इत्यावद ंो लह पदााों कृा ्रकमण ु ता ंन ्रकवतपादन कृरतन हैं
्याय कृन इन पदााों म ्रकमनय कृो दंू रा पदााश माना या ह, वजंकृन धननकृ भनद भी व नाए जातन हैं, इन
भनदर म एकृ ‘धाश‘ ्रकमनय भी ह, वजंकृन ि नश म िर्नवर्कृ दर्शन वारा ्रकवतपावदत ववय इत्यावद ाह
पदााों कृन भी वििनचन ंमावहत वमलतन हैं ्याय कृन ्रककृर ््ार म तकृश भार्ा कृो एकृ ्याय्रकधान
््ा माना जाना चावहए
2.2तउद्देश्
इं इकृाई कृन ध्त तश आप ्याय र्ास्त्र मन िव शत ंो लह पदााों ंन पररवचत हर न इंकृन ध्ययन कृन
बाद आप-

 ्याय कृन ववतीय पदााश यानी वकृ ्रकमनय कृी जानकृारी ्रकाए कृर ंकृ न
 नवय ्याय कृन ंिाशवधकृ महत्िपू श धस ्रकमा र्ास्त्र कृन वि्ततत वििनचन ंन पररवचत हर न
 दार्शवनकृ भार्ा म कृार वकृंन कृहतन हैं, उनकृन वकृतनन भनद हो तन हैं, इंकृा ध्ययन कृर
ंकृ न
2.3त न् ख तदर््न-तपरराच
्याय दर्शन ं्ब्धी बवु नयादी बातर कृो हम ध्ययन कृी ्रकाम इकृाई म जान चकृ ु न हैं, लनवकृन ्रकमनयर
कृन वि्ततत ि नश म जानन कृन पहलन उ्ह दो हरा लनना लाभदायकृ हो ा आपकृो यह याद हो ा वकृ
िर्नवर्कृर कृन तत्त्िमीमासंीय दृविकृो कृन विपरीत नयावयकृ विश्व कृो ज्ञानमीमासंीय दृविकृो ंन दनणतन
हैं ्याय दर्शन कृन ंो लह पदााों कृा जब हम ध्ययन कृरतन हैं, तो पातन हैं वकृ ्याय नन धपना ्यान
वकृंी ि्तु कृन ु र कृन िा्तविकृ ध्ययन पर कृन व्वत नह वकृया ह, बवल्कृ तकृश और व्विाद कृी
उं ्रकवक्रया पर कृन व्वत वकृया ह, जो ज्ञान कृी ्रकावए कृन वलए आिश्यकृ ह िर्नवर्कृर कृन ाह पदााों
कृो ्याय दर्शन नन धपनन दंू रन पदााश धााशत ्रकमनय कृन ध्दर ंमावहत कृर वलया ह ज्ञान कृी पद्धवत
पर नयावयकृर कृन इंी कृन ्वीकृर कृो ्पि कृरतन हुए विश्लन र्कृ कृहतन हैं वकृ ्रकमा और ्रकमनय, यानी

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वकृ ्याय कृन पहलन दो पदााश ही उंकृन दृविकृो कृो ्पि कृरनन कृन वलए पयाशए हैं ्याय कृी वजज्ञांा
इं ्रकश्न पर कृन व्वत नह ह वकृ ि्तएु स ्ितः क्या हैं, बवल्कृ उंकृा जो र इं बात पर ह वकृ कृंन
उनकृी जानकृारी या उनकृन ज्ञान कृी वंवद्ध ंसभि ह यहास यह ्पि कृरनन कृी जरूपरत ह वकृ ्याय कृो
ि्तओ ु स कृन ्ित््र धव्तत्ि पर वकृसवचत मा्र भी ं्दनह नह ाा, बवल्कृ िह वमथ्या ज्ञान कृन
दष्ु ्रकभािर कृन ्रकवत ज्यादा वचसवतत ाा िह मानता ाा वकृ वमथ्या ज्ञान हम आंानी ंन भ्रम म शाल
ंकृता ह, इंवलए िह ि्तुओ स पर विचार कृरनन कृन वनयमर कृी ाानबीन म ल या ाा यह बात
्याय दर्शन कृन बाकृी चौदह पदााों कृन ्िरूपप ंन ्ितः ्पि हो जाती ह , क्यरवकृ िन ंभी ंत्य कृी
णो ज म ंहायकृ हैं, या धतकृोवचत आक्रम र ंन उंन बचानन म उपयो ी हैं इंीवलए कृहा जाता ह
वकृ ्याय दर्शन म ज्ञान पर ंिोच्च बल वदया या ह कृहा या ह, ‘ऋतन ंत्या्न मवु क्तः‘ धााशत्
ज्ञान कृन वबना जीिन मवु क्त ंिशाा धं्भि ह
्यायर्ास्त्र म पदााों कृन ज्ञान पर विर्नर् बल वदया या ह ौतम कृन धनंु ार वनःश्रनयं कृी ्रकावए
धााशत दःु ण और पीडा ंन मवु क्त या मो ् ंो लह पदााों कृन ंत्य कृो जाननन कृन बाद ही हो ंकृती ह
यन पदााश ान- ्रकमा , ्रकमनय, ंर्स य, ्रकयो जन, दृिा्त, वंद्धा्त, धियि, तकृश , वन यश , िाद, जल्प,
वित्शा, हनत्िाभां, ाल, जावत, वन्ह ्ाान इन पदााों म ्रकमा कृो ंबंन पहला ्ाान वदया
या ह जबवकृ ज्ञान कृन विर्य कृो धााशत ‘्रकमनय‘ कृो ौ ्ाान ्रकदान वकृया या ह ्पि ह वकृ
्याय ्रक ाली ्रकामतः ंही ज्ञान ्रकाए कृरनन कृी पद्धवत वनरूपवपत कृरनन िाला दर्शन ह ौतम ंही ज्ञान
्रकाए कृरनन कृन ंाधन धााशत ्रकमा कृो धत्यवधकृ महत्त्ि दनतन हैं ्याय दर्शन तकृश िाद, धमशवनरपन्ता
और विज्ञान कृी पर्परा ंन ं्ब्ध ह यह दर्शन पदााश कृन मल ू तत्त्ि कृी धपनी-धपनी पररकृल्पनाओ स
कृन आधार पर ि्त-ु ज त कृी वयाख्या ्रक्ततु कृरता ह नयावयकृर नन परमा ओ ु स कृन रूपप म पदााश कृी
पररकृल्पना कृी ह इंीवलए इनकृन वंद्धा्त परमा ु वंद्धा्त भी कृहलातन हैं
ौतम जब ्याय ं्र ू कृा ्रक यन कृरतन हैं तो ंत् कृन रूपप म ंो लह पदााों कृी वििनचना कृरतन हैं-
्रकमा ्रकमनयंसर्य्रकयो जनदृिा्तवंद्धा्ताियितकृश वन यश िादजल्पवित्शाहनत्िभांच्ालजावतवन्ह
्ाानीनास तत्त्िज्ञानाव्नःश्रनयंावध मः
धााशत ्रकमा , ्रकमनय, ंसर्य, ्रकयो जन, दृिा्त, वंद्धा्त, धियि, तकृश , वन यश , िाद, जल्प, वित्शा,
हनत्िाभां, ाल, जावत, वन्ह्ाान कृन तत्त्ि ज्ञान ंन वनःश्रनयं ्रकाए हो ता ह
तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र नन धपनन ्रकाम ं्र ू म ही ्याय कृन ंो लह पदााों कृा वजक्र कृरतन हुए कृहा
ह वकृ ‘‘्रकमा ावदर्ो शर्पदाााशनास तत्त्िज्ञाना्मो ््रकावएभशितीवत ‘‘ धााशत ्रकमा ावद ंो लह पदााों कृन
तत्त्िज्ञान ंन वनःश्रनयं कृी ्रकावए हो ती ह

उत्तराण्श मक्त
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2.4त प्रुे , विस् क तव् खख् ख
आपनन दनणा हो ा वकृ तकृश भार्ा म पहलन वि्तार कृन ंाा ्रकमा वनरूपप वकृया या ह , और उंकृन
बाद ्याय दर्शन कृन ववतीय पदााश धााशत ्रकमनय कृा वििनचन िहास वकृया या ह ंबंन पहलन िह
्याय कृन इं ं्र ू कृो उद्धतत कृरती ह-
आत्मर्रीरन व्वयााशबवु द्धमनः्रकितवत्तदो र््रकनत्यभािफलदःु णापि ाश्तु ्रकमनयम्
यहास ्याय दर्शन कृन दंू रन पदााश धााशत ्रकमनय कृन बारह भनद वमलतन हैं, और उनकृन नाम इं ्रककृार हैं-
1. आत्मा 2. र्रीर 3. इव्वय 4. धाश 5. बवु द्ध 6. मन 7. ्रकितवत्त 8. दो र् 9 ्रकनत्यभाि 10. फल 11
दःु ण और 12 धपि श आप ्याय दर्शन कृी इं ध्ययन इकृाई म ्रकमनय, ्रकमा और कृार कृी
ंसव्ए जानकृारी ्रकाए कृर ,न और इनकृा वि्ततत ध्ययन ध ली इकृाइयर म कृर ंकृसॅनॅस न
राइए धब हम ्रकमनयर कृा ध्ययन र्रूप ु कृर जंा आप जान चकृ
ु न हैं, पहला ्रकमनय आत्मा ह,
तकृश भार्ाकृार नन वजंकृन बारन म कृहा हः
त्र ात्मत्िंामा्यिानात्मा ं च दनहवन ्वयावदवयवतररक्तः, ्रकवतर्रीरस वभ्नो वनत्यो विभश्चु ं च
मानं्रकत्य्ः वि्रकवतपत्ती तु बदु ्् यावद ु वलङ कृः ताा वह बदु ्् यादय्तािद् ु ाः धवनत्यत्िन
ंत्यनकृनव्वयमा्र ्ाह्यत्िात् ु श्च ्ु यावश्रत एि
कृन र्िवमश्र आत्मा कृी वयाख्या कृरतन हुए कृहतन हैं वकृ आत्मा िह ह वजंम आत्मत्ि रहता ह िह
दनह, इव्वय आवद ंन पताकृ रहती ह, और ्रकत्यनकृ र्रीर म धल -धल आत्माएस धिव्ात रहती हैं,
और िह वनत्य ि वयापकृ ह धपनी आत्मा कृी धनुभवू त आप मानं ्रकत्य् ंन कृरतन हैं, ताा दंू रन
कृी आत्मा कृा ज्ञान बवु द्ध आवद यवु क्त वारा धनमु ान ंन ्रकाए हो ता ह ु ु ी कृन आवश्रत रहतन हैं,
और बवु द्ध इत्यावद ु धवनत्य हैं ि आत्मा कृन आवश्रत हैं ्यान दननन कृी बात वकृ यहास आत्मा ्ियस
म चनतन ्िरूपप नह मानी ई ह, बवल्कृ चनतना उंकृा आ ्तकृ ु ु माना या ह
दंू रा ्रकमनय र्रीर कृो माना या ह र्रीर कृा ल् कृरतन हुए कृन र्ि वमश्र कृहतन हैं-
‘त्य भो ायतनम्त्याियवि ‘र्रीरम‘् ंण ु दःु णा्यतरंा्ात्कृारो भो ः ं च यदिवच्ा्न
आत्मवन जायतन तद्भो ायतनस तदनि र्रीरम् चनिाश्रयो िा र्रीरम्
‘तकृश भार्ा‘ म आत्मा कृन भो कृन आश्रय कृो ‘र्रीर‘ कृहा ह, उ्हो नन र्रीर कृन वलए ध्त्याियिी
विर्नर् ल ाकृर ्पि कृर वदया ह वकृ उनकृा ्रकयो जन र्रीर कृन वकृंी धस ंन न हो कृर ध्त्य
धियिी ं्पू श र्रीर ह ंःु ण दःु ण म ंन वकृंी एकृ कृन ंा्ात्कृार कृो भो कृहा जाता ह, और

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उं भो कृा आश्रय ही र्रीर कृहा जाता ह तकृश भार्ाकृार नन ्यायं्र ू कृार कृी पर्परा म र्रीर कृो
चनिा कृा भी आश्रय बताया ह
तींरन ्रकमनय कृा नाम ‘इव्वय‘ ह तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं
‘र्रीरंयस क्त
ु स ज्ञानकृर मतीव्वयस ‘इव्वयम‘ तावन चनव्वयाव र्र् ्रता रंन च््ु त्िक्रो तमनावस ं ‘
इव्वय कृा वििनचन कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं वकृ र्रीर ंन ंसयक्त
ु , धतीव्वय धााशत् इव्वयर ंन
हत ीत न हो नन िालन ज्ञान कृा (कृर ) ंाधन ‘इव्वय‘ कृहलाता ह उ्हरनन ाह इव्वयर कृो मानतन हुए
उनकृन ल् व नाए हैं, और ्रता , रंना, च्,ु त्िकृ्, श्रो ्र जंी पाच
स बाह्यनव्वयर कृन धलािा एकृ
ध्तररव्वय मन कृो भी र्ावमल वकृया ह
्याय र्ास्त्र कृन दंू रन पदााश ्रकमनय कृन बारह भनदर कृो जाननन कृन क्रम म धभी तकृ आपनन आत्मा, र्रीर
और इव्वय क्या हैं, इं ्रकश्न कृा उत्तर जाना ह धब हम आ न बढ़तन हुए ्यायर्ास्त्र कृन चौान ्रकमनय
‘धाश‘ कृी चचाश कृर ,न वजंकृा वििनचन तकृश भार्ा म इं ्रककृार वकृया या ह-
धााशः र्र्पदाााशः तन च ववय ु कृमशंामा्यविर्नर्ंमिायाः
धााशत् धाश कृी ंख्स या ाः हो ती ह, वजनकृन नाम इं ्रककृार हैं- ववय, ु , कृमश , ंामा्य, विर्नॅनर्
और ंमिाय इं तरह हम दनणतन हैं वकृ तकृश भार्ाकृार नन िर्नवर्कृ दर्शन कृन पदााों कृा वनरूपप इं
‘धाश‘ नामकृ ्रकमनय कृन ध्त तश कृर वदया ह, हालासवकृ यह भी ्यान दननन िाली बात ह वकृ
तकृश भार्ाकृार नन िर्नवर्कृ दर्शन कृन ंातिस पदााश धभाि कृा यहास उल्लनण नह वकृया ह उ्हरनन यहास
्पि वकृया ह वकृ ्रकमा इत्यावद ंो लह पदााश िर्नवर्कृ कृन इन पदााों म ध्तभतशू हो जातन हैं, लनवकृन
्रकयो जनिर् उ्ह धल ंन बताया जा रहा ह इं ्रकयो जन कृो िात््यायन नन ्पि कृरतन हुए कृहा ह
वकृ यवद ्रकमा आवद पदााों कृा वनरूपप ्याय म न वकृया जाय तो ्याय विद्या कृन ्ित््र ्िरूपप
कृी र्ा कृरना मवु श्कृल हो जाए ा
जंा आप जान चकृ
ु न हैं, पासचिन ्रकमनय कृा नाम बवु द्ध ह बवु द्ध कृा वििनचन तकृश भार्ा इं ्रककृार कृरती
ह-
बवु द्धरूपपलवब्धज्ञाशनस ्रकत्यय इत्यावदवभः पयाशयर्ब्दयांवभधीधतन ंा बवु द्धः धाश्रककृार्ो िा बुवद्धः ंा
च ंस्नपतो ववविधा धनभु िः ्मर स च धनभु िो ऽवप ववविधो याााोऽयाााशश्चनवत
बवु द्ध, उपलवब्ध, ज्ञान, ्रकत्यय आवद पयाशयिाची र्ब्दर ंन वजंकृो ं्बो वधत वकृया या ह, िह बवु द्ध
ह धािा धाश कृन ्रककृार्कृ कृो बवु द्ध कृहतन हैं िह धनभु ि और ्मर दो ्रककृार कृी हो ती ह

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धनभु ि भी दो ्रककृार कृा हो ता ह- याााश और धयाााश याााश ज्ञान भी याााश कृा ्रकत्य् धनभु ि
हो ंकृता ह, या वफर याााश कृा धनमु ान्िरूपप धनुभि हो ंकृता ह- उदाहर ्िरूपप धएु स कृो
दनणकृर आ कृन याााश कृा धनभु ि हम यहास पर इनकृा वि्ततत वििनचन नह कृर ,न क्यरवकृ िह
आपकृी ध ली ध्ययन इकृाइयर कृा विर्य ह
ाठा ्रकमनय मन ह मन कृा ल् तकृश भार्ा म इं ्रककृार वकृया या हः
ध्तररव्वयस मनः तश्चो क्तमनि धााशत ध्तरर्वय कृो मन कृहा जाता ह, और ऐंा कृहा जा चकृ
ु ाह
जंा वकृ हम दनण चकृ
ु न हैं इव्वय ्रकमनय कृा ि नश कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार नन ाह इव्वयर कृो व नाया
ाा, वजनम पासच बाह्यनव्वयर कृन बाद मन कृो ाठी इव्वय बताया या ाा
ंातिास ्रकमनय ्रकितवत्त ह, वजंकृन बारन म तकृश भार्ा म कृहा या हः
्रकितवत्तः धमाशधमंमयीया ावदवक्रया, त्या ज वयिहारंाधकृत्िात्
धमश धधमश रूपप या ावद वक्रया (और उंंन उत्प्न धमाशधमश) ्रकितवत्त कृहलातन हैं यह ्रकितवत्त ही ज त
कृन वयिहार कृा ंाधकृ हो ती ह
आठिास ्रकमनय वनर् ह तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं
दो र्ाः रा मो हाः
्याय र्ास्त्र कृन धनंु ार रा , वनर् और मो ह यन तीन दो र् हो तन हैं रा इच्ाा कृो कृहतन हैं ‘वनर्‘ क्रो ध
कृो कृहतन हैं मो ह वमथ्या ज्ञान धााशत विपयशय कृो कृहतन हैं
निास ्रकमनय ्रकनत्यभाि ह तकृश भार्ा इंकृा ि नश कृरतन हुए कृहती हः पनु रुत्पवत्तः ्रकनत्यभािः ं
चात्मनः पिू दश हन वनितवत्तः धपिू शदहन ंघस ातलाभः मर कृर पनु ः उत्प्न हो ना ही ्रकनत्यभाि कृहलाता ह,
और पनु जश्म कृी यह धि्ाा आत्मा कृन पिू र् श रीर कृी ंमावए और निीन र्रीर कृी ्रकावए ह दंिास
्रकमनय फल ह, वजंकृन बारन म तकृश भार्ा कृहती हः
फलस पनु भो ः ंणु दःु णा्यतर ंा्ात्कृारः धााशत ंण ु या दःु ण म वकृंी कृन भो कृन धनुभि रूपप
कृो फल कृहतन हैं ग्यारहिास ्रकमनय दःु ण ह तकृश भार्ा कृहती हः
पीडा ‘दःु णम‘ धााशत पीडा कृो दःु ण कृहतन हैं

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धव्तम ्रकमनय धपि श ह वजंन मो ् भी कृहा जाता ह धपि श कृा ल् तकृश भार्ा म इं ्रककृार
वकृया या ह-मो ्ो ऽपि शः ं च एकृविर् स वत्रकभनदवभ्न्य दःु ण्यात्यव्तकृी वनितवत्तः धााशत् मो ्
इक्कृीं ्रककृार कृन दःु णर ंन आत्यव्तकृ वनितवत्त ह
धब आप तकृश भार्ा कृन वििनचन कृन आधार पर ्याय र्ास्त्र कृन दंू रन पदााश ्रकमनय कृन बारह भनदर कृा
ंामा्य पररचय ्रकाए कृर चकृन हैं हम ध्ययन कृी ितशमान इकृाई म ही ्रकमा र्ास्त्र कृन वििनचन कृी
चचाश कृर न नवय ्याय कृा ््ा हो नन कृन कृार तकृश भार्ा ्रकमनय कृी धपन्ा ्रकमा र कृन वििनचन पर
धवधकृ बल दनती ह ौतम ्रक ीत ्यायं्र ू कृन वजं ं्र ू म पदााों कृी व नती बताई ई ह,
िहांस बंन पहलन पदााश कृन रूपप म ्रकमा कृा उल्लनण वकृया या ह, जो उंकृन महत्ि कृो भी उद्घावरत
कृरता ह इं ं्र ू म पदााों कृा क्रम इं ्रककृार व नाया या ह-
्रकमा -्रकमनय-ंसर्य-्रकयो जन-दृिा्त-वंद्धा्त-धियि-तकृश -वन यश -िाद-जल्प- वित्शा-
हनत्िाभां-च्ाल-जावत-वन्ह्ाानानास तत्िज्ञानावनःश्रनयंावध मः
2.5 तप्रुखणतविस् क तव् खख् खत
्रकमा कृा ल् कृरतन हुए कृन र्ि वमश्र कृहतन हैं- ्रकमाकृर स ्रकमा म् धााशत् ्रकमा (ज्ञान) कृन कृर
(ंाधन) कृो ्रकमा कृहतन हैं, धााशत ज्ञान कृन ंाधन कृो ्रकमा कृहतन हैं इंकृन बाद आपकृो ्रकश्न
कृरना चावहए वकृ ्रकमा क्या ह तकृश भार्ाकृार नन इंन ्पि कृरतन हुए कृहा ह- याााोनभु िः ्रकमा
धााशत याााश धनभु ि ्रकमा ह तकृश भार्ा नन ्रकमा कृो याााश (धनभु ि) बताकृर उंंन ंसर्य, विपयशय
और तकृश ज्ञान कृो धल कृर वदया ह, िह उंन धनभु ि बताकृर उंन ्मतवत ंन भी धल कृर वदया
ह ्रकमनयर कृी चचाश कृरतन ंमय हमनन ऊपर पहलन ही जान वलया ह वकृ ज्ञान या बवु द्ध कृन दो भनद हैं-
धनभु ि और ्मतवत ंस्नप म पदााश जंा ह उंन उंी रूपप म ्ह कृरना याााश ज्ञान धािा ्रकमा
कृहलाता ह कृर (ंाधन) क्या ह इंकृो ्पि कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार नन कृहा ह-
ंाधकृतमस कृर म् धवतर्वयतस ंाधकृस ंाधकृतमस ्रककृत िस कृार वमत्याशः
धााशत ंाधकृतम कृो कृर कृहतन हैं और धवतर्यत ंाधकृ धााशत ंिोत्कृत ि कृार कृो कृर
कृहतन हैं कृार कृी वयाख्या कृो धवधकृ ्पि कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं वकृ कृार िह ह कृायश
कृन हो नन कृन पहलन वजंकृी ंत्ता कृा हो ना धवनिायश ह ्याय दर्शन म तीन ्रककृार कृन कृार व नाए ए
हैं, लनवकृन उनकृा ध्ययन हम धभी ्ाव त रण न, क्यरवकृ पहलन ्रकमा -विचार कृा ध्ययन कृर
लनना हमारन वलए उपयो ी हो ा

उत्तराण्श मक्त
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आइए धब हम ्रकमा र कृन धपनन ध्ययन कृो हम आ न बढ़ातन हैं यह जान लननन कृन बाद वकृ ‘्रकमा कृन
कृर कृो ्रकमा कृहतन हैं‘, धब हम यह जान न वकृ िन वकृतनन ्रककृार कृन हो तन हैं ्याय दर्शन म ्रकमा
कृन चार भनद बताए ए हैं- ्रकत्य्, धनमु ान, उपमान और र्ब्द ताा च ्यायं्र ू म-
्रकत्य्ानमु ानो पमानर्ब्दाः ्रकमा ावन
्िाभाविकृ तौर पर ंबंन पहलन आप ्रकत्य् ्रकमा कृन वििनचन ंन पररवचत हो ना चाह न कृन र्ि वमश्र
नन ्रकत्य् ्रकमा कृा वििनचन इं ्रककृार वकृया ह-
ं्ात्कृारर्रकमाकृर स ्रकत्य्म ंा्ात्कृारर ी च ्रकमा ंिो च्यतन या इव्वयजा ंा च ववधा-
ंविकृल्पकृवनविशकृल्पकृभनदात् त्याः कृर म् व्र विधम् कृदावचद् इव्वयस, कृदावचद्
इव्वयााशंव्नकृर्शः कृदावचद् ज्ञानम्
ंा्ात्कृारर ी ्रकमा कृन कृर कृो ्रकत्य् कृहतन हैं और ंा्ात्कृारर ी ्रकमा इव्वयज्य हो ती ह िह
ंविकृल्पकृ और वनविशकृल्पकृ भनद ंन दो ्रककृार कृी हो ती ह उंकृन कृर तीन ्रककृार कृन हो तन हैं- 1.
कृभी इव्वय , कृभी इव्वय और धाश कृा ंव्नकृर्श और कृभी वनविशकृल्पकृ ज्ञान इंकृा वि्ततत
वििनचन हम आ न कृी इकृाई म कृर न
्रकमा कृा दंू रा भनद धनमु ान ्रकमा ह, वजंकृी धब हम चचाश कृर न नयावयकृ धनुमान ्रकमा कृो
महत्िपू श मानतन हैं धनुमान कृा ल् कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र कृहतन हैं-
वलस परामर्ेन चानमु ीयतनऽतो वलस परमर्ोऽनुमानमस् तच्च धमू ावदाॅानमनवु मवतस ्रकवत कृर त्िात्
ध ्यावदज्ञानमनवु मवतः तत्कृर स धमू ावदज्ञानम् वकृस पनु वलस स कृश्च त्य परामर्शः उच्यतन वयावए
िलननााश मकृस वलस म् याा धूमो ऽग्ननवलं म् ताावह य्र धूमंत्र ावग्नररवत ंाहयचश वनयमो वयावएः
त्यास हत ीतायामनि वयाएौ धमू ो ऽवग्नस मयवत धतो वयावएिलननाग्नयपु माकृत्िाद् धमू ो ऽग्ननवलं म्
त्य तततीयानस परामर्शः ताावह ्रकामस ताि्महानंादनऽभयू ो -भयू ो धमू स पश्यन् िवहनस पश्यवत तनन भयू ो
दर्शननन धमू ाग््यो ः ्िाभाविकृस ं्ब्धमिधारयवत, य्र धमू ्त्र वग्नररवत
वलस परामर्श कृो धनमु ान कृहतन हैं वजंंन धनवु मवत हो , धााशत् ्रकत्य् ्रकमा ंन ज्ञात वलस (वच्ह
कृो दनणकृर ज्ञान कृा बो ध) हो , उंन धनमु ान कृहतन हैं इं तरह धनमु ान कृा धाश ह वलस परामर्श,
और यह वलस परामर्श धमू ावद ज्ञान ह, (धएु स कृो दनणकृर हम धवग्न कृा ज्ञान कृर लनतन हैं) धवग्न आवद
कृा ज्ञान धनवु मवत ह वलस और परामर्श कृी वयाख्या कृरतन हुए कृन र्ि वमश्र कृहतन हैं वयावए कृन बल ंन
जो धाश कृा बो धकृ हो उंन वलस कृहतन हैं जंन धमू धवग्न कृा वलस ह जहास-जहास धआ ु स हो ता ह िहा-स
िहास आ हो ती ह, यह ंाहचयश वनयम ह इंी ंाहचयश वनयम कृो वयावए कृहतन हैं इंवलए वयावए कृन

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बल ंन धवग्न कृा धनमु ापकृ हो नन ंन धमू धवग्न कृा वलस हो ता ह धनमु ान ्रकमा कृा विर्द वििनचन
्याय र्ास्त्र म वकृया या ह, लनवकृन हम यहास उंकृी चचाश कृो और आ न नह बढ़ाएस न, क्यरवकृ
उंकृा वि्ततत ध्ययन आपकृो ्याय दर्शन कृी धपनी पासचिी इकृाई म कृरना ह
तकृश भार्ा कृन धनंु ार तींरा ्रकमा उपमान ्रकमा ह कृन र्ि वमश्र नन उपमान कृा ल् इं ्रककृार
वकृया ह-
धवतदनर्िाक्यााश्मर ंहकृत तस ो ंादृश्य विवर्िवप्शज्ञानमपु मानम् याा ियमजाननवप ना ररकृा
‘याा ौ्तया िय‘ इवत िाक्यस कृुतवश्चदार्यकृात्परुु र्ाच्क्रत्िा िनस तो िाक्यााश ्मरन् यदा
ो ंादृश्यविवर्िवप्शज्ञानमपु मानमपु वमवत कृर तिात् ो ंादृश्य वप्शज्ञानानतरमयमंो
ियर्ब्दिाच्यः वप्श इवत ंसज्ञांसवज्ञ ं्ब्ध ्रकतीवतरूपपवमवतः
धवतदनर् िाक्य (याा ौ्तया ियः) कृन धाश कृन ्मर कृन ंाा ो ंादृश्य विवर्ि वप्श धााशत
ंिय ्रका ी कृा ज्ञान उपमान ्रकमा ह ौ कृन धमश (चरर्र ) कृो िय (नील ाय) म धवतदनर् (वयाए)
कृरनन िाला िाक्य धवतदनर् िाक्य कृहलाता ह भार्ा कृी िजह ंन जवरल ल नन िालन इं िाक्य कृो
एकृ उदाहर कृन जररए तकृश भार्ाकृार नन आंानी ंन ंमझानन कृा ्रकयां वकृया ह िन कृहतन हैं वकृ िय
(नील ाय) कृो न जाननन िाला कृो ई ना ररकृ वकृंी िनिांी परुु र् ंन ‘जंी ाय हो ती ह िंा िय
हो ता ह‘ जंा (धवतदनर्) िाक्य ंनु नन कृन बाद ध र िन म जाता ह, और िहास वकृंी ो ंादृश्य
वप्श (नील ाय) कृो दनणता ह, और उं वप्श कृो दनणकृर उंन िनिांी ंन ंनु ा हुआ (धवतदनर्)
िाक्य याद आ जाता ह, तब उं िाक्य कृा ्मर उं ो ंादृश्य वप्श (नील ाय) कृन ज्ञान कृा
कृार बनता ह यह धवतदनर् िाक्य उपवमवत कृा कृार हो नन ंन उपमान ्रकमा कृहलाता ह
ो ंादृश्यविवर्ि वप्श कृन ज्ञान कृन बाद यह वप्श ही ियपदिाच्य ह इं ्रककृार कृी
ंसज्ञांसवज्ञं्ब्ध कृी ्रकतीवत ही उपवमवत ह
इं ्रकमा कृो ंरल भार्ा म आप इं तरह दो बारा ंमझ ंकृतन हैं वकृंी र्हरी बावर््दन नन जस ल म
रहनन िाली नील ाय कृो कृभी न दनणा हो , लनवकृन उंनन वकृंी िनिांी परुु र् कृी यह बात ंनु रणी
हो वकृ जंी ाय हो ती ह िंा िय धााशत नील ाय हो ती ह िह ध र इं ंादृश्य ज्ञान कृा बो ध
कृरनन कृन बाद जस ल जाए, और िहास नील ाय वमलनन पर िह िनिांी कृन उं कृान कृो याद कृरकृन
उंन पहचान लन, तो इं तरह उंकृा ्रकाए ज्ञान ंादृश्य ज्ञान कृन वारा हुआ ह, और ंादृश्य ज्ञान कृन
वारा वारा ्रकाए ज्ञान ही उपवमवत कृहलाता ह
र्ब्द ्रकमा चौाा ्रकमा ह तकृश भार्ा म र्ब्द ्रकमा कृा ल् इं ्रककृार वकृया या ह -

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आए िाक्यस र्ब्दः आए्तु याभतू ्यााश्यो पदनिा परुु र्ः िाक्यस त्िाकृास्ायो ग्यता ंव्नवधमतास
पदानास ंमहू ः धतएि ‘ ौरश्वः‘ परुु र्न ह्ती इवत पदावन न िाक्यम् पर्परासविरहात् ‘िविना
वंसचनवदवत‘ न िाक्यस यो ग्यता िररहात् न ह्यवग्नंसकृयो ः पर्परा्िययो ग्यताव्त ताावह धवग्नननवत
तततीयया ंनकृरूपपस कृायं ्रकवत कृर त्िमग्ननः ्रकवतपावदतम् न चावग्नः ंनकृन कृर ीभवितसु यो ग्यः तनन
कृायशकृार भािल् ं्ब्धन धवग्नंनकृयो रयो ग्यत्िादवग्नना वंसचनवदवत न िाक्यम्
एिमनकृकृर्ः ्रकहरन ्रकहरन धंहो च्चाररतावन ‘ ामानय‘ इत्यावद पदावन न िाक्यम् ंतयामवप
पर्पराकृास्ायास ंतयामवप पर्परा्िययो ग्यतायस पर्परंाव्न्याभािात् यावन तु ंाकृास्ाव
यो ग्यािव्त ंव्नवहतावन पदावन ता्यनि कृाक्यम् याा- ज्यो वतिो मनन ्ि कृ
श ामो यजनत् इत्यावद याा
च नदीतीरन पसच फलावन ंव्त
आए िाक्य कृो र्ब्द ्रकमा कृहतन हैं यााभतू धाश कृा उपदनर् कृरनन िाला परुु र् आए परुु र्
कृहलाता ह, और उंकृा िाक्य र्ब्द ्रकमा माना या ह
यहास ्रकश्न उठता ह वकृ िाक्य क्या ह तकृश भार्ाकृार नन इंकृो ्पि कृरतन हुए कृहा ह वकृ आकृास्ा,
यो ग्यता और पदंव्नवध ंन यक्त ु पदर कृन ंमहू कृो िाक्य कृहतन हैं, इंवलए पर्पर आकृास्ा विरवहत
हो नन ंन ाय, घो डा, मनष्ु य हााी आवद पद िाक्य नह कृहन जातन हैं दंू री ओर वकृंी पदंमहू म
ध र यो ग्यता कृा धभाि ह तो िह िाक्य नह हो ा, उदाहर कृन वलए ‘धवग्न ंन ं चता ह‘
पदंमहू िाक्य नह ह, क्यरवकृ धवग्न म ं चनन कृी ्मता धािा यो ग्यता कृा धभाि रहता ह इंी
्रककृार यवद आप एकृ-एकृ ्रकहर कृन बाद धााशत् बहुत रुकृ-रुकृ कृर, धल -धल उच्चररत कृर
और कृह ‘ ाय कृो लन आओ‘, तब भी यह पदंमहू ( ाय कृो लन आओ) िाक्य नह कृहलाए ा,
क्यरवकृ पर्पर ध्िय और यो ग्यता हो नन कृन बाद भी इं िाक्य म पदंव्नवध कृा धभाि ह
धब तकृ आपनन यह धच्ाी तरह ंमझ वलया हो ा वकृ आकृास्ा यक्त ु , यो ग्यता यक्त ु और
ंव्नवधयक्तु पद ही िाक्य कृहलातन हैं- जंन ्ि श कृी इच्ाा रणनन िाला ज्यो वतिो म या कृरन इत्यावद
िवदकृ िाक्य और जंन नदी तीर पर पाचस फल हैं, यह लौवकृकृ िाक्य, और जंन धविल्ब ंन
उच्चररत िही ‘ ाय कृो लन आओ‘ इत्यावद पद िाक्य हो जातन हैं
्रकत्य्, धनमु ान, उपमान और र्ब्द इन चारर ्रकमा र कृन ि नश ो परा्त तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं-
िव तश ावन चत्िारर ्रकमा ावन एतनभ्यो ऽ्य्न ्रकमा म,् ्रकमा ्य ंतो ऽ्र िा्तभशि
धााशत चारर ्रकमा र कृा ि नश हो या इनकृन धवतररक्त और कृो ई ्रकमा नह हैं ध्य ्रकमा इ्हर
चारर ्रकमा र म ध्तभतशू हैं
बोधतप्रश्न

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वन्नवलवणत ्रकश्नर कृन उत्तर ररक्त ्ाानर म वलवणए ताा इकृाई कृन ध्त म वदए ए उत्तरर ंन धपनन
उत्तरर कृा वमलान कृीवजए-
1. तकृश भार्ा कृन आधार पर ्रकमनयर कृी ंख्स या बताइए
2. उपवमवत कृा क्या आधार हो ता ह
3. र्ब्द ्रकमा कृन वलए क्या आिश्यकृ हो ता ह
4. ‘िव्हना वं्चनत‘ म वकृंकृा धभाि ह
इंी ध्ययन इकृाई म ्रकमनय, ्रकमा कृन वनरूपप कृन बाद आप ्यायं्मत कृार कृन ्िरूपप कृा
ध्ययन भी कृर न कृार और कृायश म आन्त्यश ं्ब्ध हो ता ह दवनकृ जीिन म भी आप धनभु ि
कृरतन हैं वकृ वबना कृार कृन कृो ई कृायश घवरत नह हो ता दार्शवनकृ ं््रकदाय कृार िाद कृी विर्द
वयाख्या कृरतन हैं उनकृा मत ह वकृ ंतवि भी धकृार उत्प्न नह हुई ह कृार िाद कृा वंद्धा्त भी
्रकत्यनकृ दार्शवनकृ ं््रकदायर म धल -धल ह जहास ंासख्य ंत्कृायशिाद कृी वििनचना कृरता ह िह
नयावयकृ धंत्कृायशिाद कृा ंमाशन कृरतन हैं िनदा्ती विितशिाद कृो मानतन हैं और बौद्ध ्व कृिाद
कृो ्िीकृार कृरतन हैं इं इकृाई कृन ध्त तश आप नयावयकृर कृन कृार िाद कृा ध्ययन कृर न जो
धंत्कृायशिाद धािा आर्भिाद कृन नाम ंन जाना जाता ह
2.6त ृखराणतऔरातउनृे तस्िरूपतृीतव् खख् ख
्याय कृार कृी वत ्रकवक्रया कृन पिू श कृायश कृी व्ावत कृो ्िीकृार नह कृरता ह,ॅ पर्तु इं दर्शन
कृी यह मा्यता धिश्य ह वकृ कृार कृन ु र वारा कृायश कृन ु र कृा आविभाशि हो ता ह कृार कृी
पररभार्ा बतातन हुए तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र कृहतन हैं-
य्य कृायाशत् पिू भश ािो वनयतो ऽन्याावंद्धश्च तत्कृार म-् याा त्तिु मन ावदकृस पर्य कृार म्
धााशत् कृायश ंन पहलन वजंकृी ंत्ता वनवश्चत हो , उंकृो कृार कृहतन हैं लनवकृन जंन त्तु और कृरघा
आवद पर कृन कृार हैं यह ि नश धवतवयाए ह, क्यरवकृ यह धननकृ ऐंी बातर पर ला ू हो ता ह वज्ह
कृार नह माना जा ंकृता इंवलए इं वििनचन म ‘वनयतो ऽन्याा वंद्धश्च‘ पद कृा विर्नर् महत्ि
ह कृार कृा वििनचन कृरतन हुए यवद वनयत र्ब्द नह रणा जाए, कृन िल पिू शभाि ही रणा जाए, तो
कृु्हार कृन वारा घडा बनातन ंमय वजतनी ि्तएु स उपव्ात हर ी, िन ंभी घर कृा कृार कृहलानन
ल ी, उदाहर कृन वलए घडा बनानन कृन ंमय ध र कृो ई परुु र् दर्शकृ धािा धा इत्यावद कृो ई
जानिर िहास उपव्ात हो जाए, तो घरो त्पवत्त कृन पिू श-कृार कृा ल् उनम भी ंव्नवहत हो जाए ा
इंीवलए तकृश भार्ा कृन वििनचन कृा ‘वनयत‘ पद महत्िपू श ह त्तु ि कृरघा इत्यावद कृा पिू भश ाि
वनयत ह, धााशत् जब पर कृी उत्पवत्त हो ी, उंकृन पहलन त्तु ि कृरघा इत्यावद कृी उपव्ावत

उत्तराण्श मक्त
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आिश्यकृ हो ी इंवलए कृपडन कृन वनमाश म त्तु कृरघा इत्यावद ‘वनयतपिू भश ािी‘ हो नन कृन कृार पर
कृन कृार कृहलातन हैं इंकृी वयाख्या तकृश भार्ा म इं ्रककृार कृी ई ह -
यद्यवप परो त्पत्तौ दिादा त्य रांभादनः पिू भश ािो विद्यतन, ताावप नांौ वनयतः त्तरूप
ु प्य तु वनयतः
पिू भश ािो ऽ्त्यनि वकृ्त्ि्याावंद्धः पररूपपजननो प्ी त्िात, परस ्रकत्यवप कृार त्िन
कृल्पना ौरि्रकंस ात्
तननान्याावंद्धवनयतपिू भश ावित्िस कृार त्िम् धन्याावंद्धवनयत-पश्चादभावित्िस कृायशत्िम्
इंवलए तकृश भार्ाकृार कृन धनुंार ‘धन्याावंद्ध वनयत पिू भश ावित्ि‘ यह कृार कृा ल् ह और
धन्याावंद्ध वनयत पश्चादभावित्ि कृायशत्ि कृा ल् ह
आपकृन मन म यह ्िाभाविकृ ्रकश्न उठन ा वकृ यह ध्याावंद्ध क्या ह कृार कृन वििनचन म यह पद
विर्नर् महत्ि कृा ह और इंकृो जानन वबना आप ्याय दर्शन कृन कृार िाद कृो ठीकृ ंन नह ंमझ
पाएस न कृार कृी उपयशक्त ु पररभार्ा कृो याााश बनानन कृन वलए कृुा धपिाद बताए ए हैं, वज्ह
‘ध्याावंद्ध‘ कृहा या ह इ्ह ाो डनन कृन बाद जो भी वकृंी कृायश कृा वनयत पिू िश ती हो , िह
उंकृा कृार ह ्याय िर्नवर्कृ कृन ्रकवंद्ध ््ा ्याय मक्तु ािली कृन आधार पर तकृश भार्ाकृार नन पासच
्रककृार कृन ध्याावंद्ध व नाए हैं, हालासवकृ उनकृा ध्तर ध्पि और धवनवश्चत ल ता ह
्रकाम ध्याावंद्ध ह ‘यनन ंह पिू भश ािो ‘ वजं धमश कृन ंवहत कृार कृा कृायश कृन ्रकवत पिू भश ाि हत ीत
हो ता ह िह धमश कृायश कृन ्रकवत ध्याावंद्ध हो ता ह जंन द्श घर कृा कृार ह द्शत्ि धमश विवर्ि
द्श ही घर कृा कृार ह इंवलए द्शत्ि कृा कृार कृन रूपप म धल ंन कृान ्रकाम ्रककृार कृा
ध्याावंद्ध ह
‘कृार मादाय िा य्य‘ यह ववतीय ्रककृार कृन ध्याावंद्ध कृा ल् ह इंकृा धवभ्रकाय यह ह वकृ
वजंकृा कृायश कृन ंाा ्ित््र रूपप ंन ध्िय-वयवतरन कृ न हो , धवपतु धपनन कृार कृन वारा ध्िय-
वयवतरन कृ हो , िह ववतीय ्रककृार कृा ध्याावंद्ध कृहलाता ह जंन घर कृन ्रकवत द्शरूपप कृा ्ितः
ध्िय-वयवतरन कृ नह ह धवपतु कृार कृन द्श कृन वारा ध्िय वयवतरन कृ ह इंवलए द्शरूपप घर कृन
्रकवत दंू रन ्रककृार कृा ध्याा वंद्ध हुआ
तींरन ध्याावंद्ध कृा ल् मक्त ु ािलीकृार नन इं ्रककृार वदया ह-
‘ध्यस ्रकवत पिू भश ािन ज्ञातन यत्पिू भश ािविज्ञानम‘् - इंकृा धाश यह ह वकृ वकृंी ध्य कृन ्रकवत पिू भश ाि
ज्ञात हो नन पर वजंकृा कृायश कृन ्रकवत पिू भश ाि हत ीत हो ंकृन िह तततीय ध्याावंद्ध हो ता ह जंन घर
कृन वनमाश कृन पिू श आकृार् उपव्ात रहता ह, लनवकृन आकृार् घर कृन ्रकवत ध्याावंद्ध ह आकृार्
्रकत्य् नह ह उंकृी वंवद्ध र्ब्द कृन ंमिावय कृार कृन रूपप म धनमु ान वारा हो ती ह

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चौाा ध्याावंद्ध ह- जनकृस ्रकवत पिू िश वत त्ततामपररज्ञाय न य्य हत यतन- धााशत् कृार कृा कृार
चौान ्रककृार कृा ध्याावंद्ध कृहलाता ह जंन कृु्हार घर कृा कृार ह लनवकृन कृु्हार कृा वपता घर
कृा कृार नह ह, इंवलए िह ध्याावंद्ध ह
‘धवतररक्तमाावप यदभिनवनयतािश्यकृ पिू भश ाविनः‘ यह पाच स िा ध्याावंद्ध ह धवभ्रकाय यह ह वकृ
वनयतािश्यकृ पिू भश ािी धााशत वनयत पिू िश ती ंन धवतररक्त जो कृुा ह िह ंब पचस म ्रककृार कृा
ध्याावंद्ध ह जंन परो त्पवत्त कृन पिू श ‘दिादा त रांभ‘ धााशत धचानकृ उपव्ात हो नन िाला धा
इत्यावद
पासचर ध्याावंद्ध म पसचम ्रककृार कृा ध्याावंद्ध ंबंन महत्िपू श कृहलाता ह इंकृन विर्नर्
महत्ि कृन कृार ही तकृश भार्ाकृार नन वनयत पद ंन ंवू चत वकृया यवद ऐंा नह हो ता तो
धन्याावंद्ध पद ंन ही कृार कृा ल् परू ा हो जाता, वनयत पद रणनन कृी आिश्यकृता नह
पशती
ध्याावंद्धर कृन पाचस ्रककृारर कृन बीच कृन भनदर म ध्पिता वदणाई दनती ह और इं वलए उ्ह
ंामा्यतया ‘औपावधकृ बातर‘ कृन र्ीर्शकृ कृन तहत ंमझ वलया जाता ह ध्याावंद्धर कृी इं
यो जना कृन ंामा्य ्िरूपप कृो ंमझनन कृन वलए एकृ या दो उदाहर र कृो ्यान म रणना उपयो ी
हो ा पहला यह ह वकृ कृार कृन ु कृायश कृन ु नह हैं, उदाहर कृन वलए शसशा घडा कृा कृार ह,
लनवकृन शसशन कृा रस घडन कृा कृार नह ह दंू रा, यह वकृ कृार कृा कृार भी कृार नह माना जा
ंकृता, जंा हम ऊपर दनण चकृ ु न हैं वकृ कृु्हार घडन कृा कृार ह, लनवकृन कृु्हार कृा वपता घडन कृा
कृार नह ह
कृार कृा वििनचन जाननन ताा वििनचन म ्रकयक्त ु पाररभावर्कृ र्ब्दर कृी वयाख्या कृन उपरा्त कृार
कृन भनद पर भी विचार कृरना उवचत हो ा तकृश भार्ा म तीन ्रककृार कृन कृार बतलाए ए हैं-
तच्च कृार स व्र विधम् ंमिावय-धंमिावय-वनवमत्त-भनदात् त्र यत्ंमिनतस कृायशमत्ु पद्यतन
तत्ंमिावयकृार म् याा त्तिः परंय ंमिावय कृार म् यत््त्तष्ु िनि परः ंमिनतो जायतन न
तयु ाशवदर्ु
िह कृार तीन ्रककृार कृा हो ता हैं ंमिावय कृार , धंमिावयकृार और वनवमत्त कृार ंमिाय
ं्ब्ध ंन उत्प्न हो नन िालन कृायश कृन कृार कृो ंमिावय कृार कृहा जाता ह, जंन पर त्तु कृा
ंमिावय कृार हैं, क्यरवकृ ता न म ही ंमिाय ं्ब्ध ंन पर पदा हो ता ह, कृरघन आवद म नह
इं पर ्रकश्न यह पदा हो ता ह वकृ ता न कृन ंाा ं्ब्ध कृन ंमान कृरघन आवद कृन ंाा भी पर कृा
ं्ब्ध ह, तब वफर क्यर ता र मॅ स न ही ंमिाय ं्ब्ध ंन पर उत्प्न हो ता ह, और तरु ी आवद म
नह हो ता
आप दनण न वकृ नयावयकृ इंकृा उत्तर बहुत ही तकृश ं्मत ढस ंन दनतन हैं नयावयकृर कृा कृहना ह, वकृ
ठीकृ ह पर कृा तरु ी और ता न दो नर कृन ंाा ं्ब्ध धिश्य ह, पर्तु ं्ब्ध दो ्रककृार कृा हो ता हैं

उत्तराण्श मक्त
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एकृ ंसयो और दंू रा ंमिाय उ्हरनन आ न ्पि कृरतन हुए कृहा ह वकृ दो धयतु वंद्ध पदााों कृा
ं्ब्ध ही ंमिाय ं्ब्ध हो ता ह, और ध्यर कृन बीच कृा ं्ब्ध ंसयो ं्ब्ध हो ता ह,
ंमिाय नह
धब यन धयतु वंद्ध क्या कृहलातन हैं यह ्रकश्न वकृया या ह इंकृा उत्तर यह ह वकृ वजन दो म एकृ
‘धविनश्यदि्ा‘ धााशत् दंू रन कृन आवश्रत ही रहता ह, िन दो नर ही पर्पर धयतु वंद्ध कृहलातन हैं
धााशत् वजनकृो एकृ-दंू रन ंन धल कृरकृन नह दनणा जा ंकृता, िन दो नर पर्पर धयतु वंद्ध कृहलातन
हैं, जंन मनज ंन उंकृा ्िरूपप धल नह वकृया जा ंकृता इं उदाहर म मनज ु ी ह और रूपप
उंकृा ु इंवलए ु और ु ी पर्पर धयतु वंद्ध हैं और इनकृा ं्ब्ध ंमिाय ं्ब्ध
कृहलाता ह
धियि और धियिी, ु और ु ी, वक्रया-वक्रयािान, जावत-वयवक्त और वनत्य ववय ताा विर्नर्
यन पासच धयतु वंद्ध हैं और इनकृा ं्ब्ध ंमिाय ं्ब्ध कृहलाता ह
तकृश भार्ाकृार वारा धयतु वंद्ध कृन ल् म ्रकयक्त
ु ‘धविनश्यदि्ाा‘ कृी वयाख्या भी आिश्यकृ ह
उ्हरनन इंकृी वयाख्या इं ्रककृार कृी ह-
याा धियिाियवयनौ, ु वु नौ, वक्रयावक्रयाि्तौ, जावतवयक्ती विर्नर्वनत्यववयन चनवत
धियवयादयो वह यााक्रममियिाद्यावश्रता एिा-िवतष्ठनतनऽविनश्य्तः विनश्यदि्ाा्त्िनावश्रता
एिािवतष्ठनतनऽियि वयादयः याा त्तनु ार्न ंवत परः याा िा आश्रयनार्न ंवत ु ः विनश्यत्ता तु
विनार्कृार ंाम्ींाव्न्यम्
जंन धियि-धियिी, ु - ु ी, वक्रया वक्रयािान, जावत और वयवक्त ताा वनत्यववयस और विर्नर्
धियिी आवद यााक्रम धविनश्यदि्ाा म धियिावद कृन आवश्रत ही रहतन हैं विनष्यदि्ाा म
धियिी आवद वनरावश्रत हो जातन हैं विनश्यता तो विनार्कृर र कृा एकृ्र ीकृर ह
धब दंू रा कृार धंमिावयकृार ह, वजंकृी वयाख्या तकृश भार्ाकृार नन इं ्रककृार कृी ह-
धंमिावयकृार स तदच्ु यतन यत्ंमिावयकृार ्रकत्यां्नमिधतत ंामाशयस तदंमिावयकृार म् याा
त्तंु सयो ः पर्यांमिावयकृार म् त्तंु सयो ्य ु ्य परंमिावयकृार र्न ु त्तुर्ु वु र्,ु
ंमिनतत्िनन ंमिावयकृार न ्रकत्यां्नत्िात् धन्याावंद्धवनयतपिू भश वित्िननस परस ्रकवत कृार त्िाच्च
धंमिावय कृार उंकृो कृहतन हैं जो ंमिावय कृार म रहता हो , और वजंम वनवश्चत रूपप ंन
कृायोत्पादन कृी ्मता भी विद्यमान हो , धााशत् वजंम ‘धन्याावंद्धवनयतपिू भश ावित्िम‘् यानी वकृ
ध्याावंद्ध वनयतपिू िश ती हो ‘धन्याावंद्धवनयतपिू भश ावित्िम‘् कृी विर्द वयाख्या इं इकृाई म
आप पहलन ही पढ़ चकृ ु न हैं जंन पर कृन मामलन म ता न ंमिावय कृार हैं, लनवकृन ता र कृा ंसयो
ु ह, इंवलए िह पर कृा ंमिावय कृार नह ह, बवल्कृ उंकृा धंमिावय कृार ह और यह
पर कृन ंमिावय कृार यानी वकृ ता र म ंमिाय ं्ब्ध ंन विद्यमान हो नन ंन ंमिावय कृार म
्रकत्यां्न कृहलाए ा और धन्याावंद्धवनयतपिू भश ावित्ि कृन ल् ंन यक्त ु हो नन ंन

उत्तराण्श मक्त
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धंमिावयकृार कृहलाता ह ंस्नप म त्तंु सयो कृन वबना पर कृी उत्पवत्त धं्भि ह और
ंमिावयकृार त्तु म ्रकत्यां्न भी ह, इंवलए त्तंु सयो पर कृा धंमिावयकृार हुआ
तींरा कृार क्या ह? धब हम इं पर विचार कृरतन हैं तकृश भार्ा कृन धनंु ार वनवमत्त कृार उंकृो
कृहतन हैं जो न ंमिावय कृार ह और न धंमिावय कृार ह वफर भी जो कृार ह धााशत वजंम
‘धन्याावंद्ध वनयतपिू शभावित्िम‘् कृार कृा यह ल् घरता ह जनंन िनमावद पर कृन वनवमत्त
कृार हैं यह तीन ्रककृार कृन ंमिावय, धंमिावय और वनवमत्त कृार भाि पदााों कृन ही हो तन हैं
धभाि कृा तो कृन िल एकृ वनवमत्त कृार ही हो ता ह उं धभाि कृा कृह भी वकृंी भी पदााश कृन
ंाा ंमिाय ं्ब्ध न हो नन ंन कृो ई पदााश उंकृा ंमिावय कृार नह हो ंकृता, और जब
ंमिावय कृार ही नह तब धंमिावयकृार भी नह हो ंकृता, इंवलए धभाि कृा कृन िल वनवमत्त
कृार ही हो ता ह व्र विध कृार कृन िल भाि पदााों कृन हो तन हैं धभाि कृन नह तकृश भार्ाकृार नन कृहा
ह-
वनवमत्त्कृार म् तदच्ु चयतन य्न ंमिावयकृार स नातयंमिावयकृार म् धा च कृार स
तव्नवमत्तकृार म् याा िनमावदकृस पर्य वनवमत्तकृार म,् तदनतद् भािनामनि व्र विध कृार म्
धभाि्य तु वनवमत्तमा्र स त्य कृवचदतयंमिायात् ंमिाय्य भािवयधमशत्िात्
कृार र कृन बारन म तकृश भार्ा कृन पाठ पर आधाररत इं चचाश कृन बाद हमारन वलए ंरल र्ब्दर म एकृ
और बात कृो ंमझ लनना उपयो ी हो ा ंभी दर्शनर म भािात्मकृ कृायों कृन वलए दो ्रककृार कृन
कृार र कृो माना या ह, एकृ कृार कृो उपादान कृार कृहा जाता ह तो दंू रन कृार कृो वनवमत्त
कृार कृन नाम ंन जाना जाता ह ्याय दर्शन म वनवमत्त कृार तो ल भ िंन ही माना जाता ह जंा
बाकृी दर्शनर म लनवकृन उपादान कृार कृन मामलन म ्याय कृी व्ावत ध्य दर्शनर ंन वभ्न ह ्याय
दर्शन ववय और उंकृन ु र म भनद कृरता ह, और इंी भनद कृन धनरूप ु प िह ंमिावय कृार और
धंमिावय कृार कृन भनद कृो भी ्ाावपत कृरता ह ंस्नप म ंमिावय कृार हमनर्ा कृो ई ववय हो ता
ह और धंमिावय कृार कृो ई ु या कृमश हो ता ह इंीवलए नयावयकृ दो कृन ्ाान पर तीन तरह कृन
कृार र कृी यो जना ्रक्ततु कृरतन हैं
2.7तसखराखंर्

इं इकृाई कृन ध्त तश आपनन ्रकमनयर कृन नाम, ्रकमा और कृार कृन ्िरूपप कृा ध्ययन तकृश भार्ा कृन
धनंु ार वकृया और आपनन दनणा वकृ बारह ्रकमनय व नाए ए हैं- आत्मा, र्रीर, इव्वय, धाश, बवु द्ध,
मन, ्रकितवत्त, दो र्, ्रकनत्यभाि, फल, दःु ण और धपि श
्रकमा चार हैं- ्रकत्य्, धनमु ान, उपवमवत और र्ब्द ्रकमा

उत्तराण्श मक्त
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इव्वय ताा ि्तु कृन ं्पकृश ंन वजं याााश ज्ञान कृी उत्पवत्त हो ती ह िह ्रकत्य् ्रकमा ह ्रकमा कृा
दंू रा मख्ु य ंाधन धनमु ान ह वकृंी ि्तु कृन वलस (विवर्ि) वच्ह कृन आधार पर ्रकाए ज्ञान कृो
धनमु ान कृहतन हैं जंन धएु स (वलस ) कृो दनणकृर धवग्न कृा ज्ञान ्रकाए कृरना
्याय दर्शन कृन धनंु ार तींरा ्रकमा ‘उपमान‘ ह वजं ि्तु ंन कृो ई पिू श पररचय नह ह, उंकृो
ध्य ि्तु कृी उपमा ंन ्रकत्य् हो नन पर पहचानना ही उपमान ह धााशत धज्ञान कृो ज्ञान कृन उदाहर
ंन जानना ही उपमान ह
्रकमा र कृी चचाश म आपनन चौान ्रकमा कृन रूपप र्ब्द ्रकमा कृा ध्ययन वकृया ं् स नप म ‘र्ब्द
्रकमा ‘ धािा ंाक्ष्य िह ज्ञान ह जो हम विश्वंनीय, ंत्यिक्ता, श्रद्धनय एिस ं्माननीय वयवक्तयर
कृन कृान वारा ्रकाए कृरतन हैं
्रकमनयर कृन नाम और ्रकमा र कृी चचाश कृन उपरा्त हमनन कृार कृन ्िरूपप पर भी विचार वकृया ह
नयावयकृर कृन धनंु ार कृार कृा ल् ह- ‘य्य कृायाशत् पिू भश ािो वनयतो ऽन्याा वंद्धश्च
तत्कृार ‘ धााशत् कृायश ंन पहलन वजंकृी ंत्ता वनवश्चवॅत हो और जो ध्याावंद्ध न हो , उंन कृार
कृहतन हैं ‘वनयत पिू भश ावित्िम‘ॅ् और ‘ध्याावंद्ध‘ जंन पदर कृी वयाख्या भी इंी इकृाई म
आपनन वि्तार ंन पढ़ी कृार कृा ल् बतानन कृन बाद नयावयकृर नन तीन ्रककृार कृन कृार बतलाए
हैं- ंमिावयकृार , धंमिावयकृार और वनवमत्त कृार
2.8तपखरराभखवर्ृतर्ब्दखियी
1. ्रकमनय- ज्ञान कृन विर्य कृो ्रकमनय कृहतन हैं
2. ्रकमा - ंाधन धााशत वजंकृन वारा याााश ज्ञान ्रकाए वकृया जाता ह
3. ्रकमा-याााश धनभु ि कृा नाम
4. वनविशकृल्पकृ - नाम रूपप इत्यावद कृन वबना जो ्रकत्य् ज्ञान हो ता ह उंन वनविशकृल्पकृ ्रकत्य्
कृहतन हैं
5. ंविकृल्पकृ- नाम रूपप इत्यावद कृन ंाा जो ्रकत्य् ज्ञान हो ता ह उंन ंविकृल्पकृ ्रकत्य्
कृहतन हैं
6. वलस - विवर्ि वच्ह वजंकृन वारा धनमु ान कृी वंवद्ध हो ती ह
7. वयवए- ंाहचयश वनयम कृो वयावए कृहतन हैं उदाहर ्िरूपप जहास-जहास धआ ु स हो ता ह िहास-
िहास आ हो ती ह यह ंाहचयश वनयम ह धााशत् वबना आ कृन धआ ु स नह हो ंकृता यही ंाहचयश
वनयम नयावयकृर कृन धनंु ार वयावए कृहलाता ह
8. आकृास्ा- ंााशकृ ं्ब्ध- धाश ्रकवतपादन वारा ध्य पदर कृन बारन म आकृास्ा उत्प्न
हो ती ह
9. यो ग्यता- यो ग्यता ंन तात्पयश पद ंमहू म कृायश कृी यो ग्यता ंन ह जंन धवग्न म ं चनन कृी
यो ग्यता नह ह

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10. ंव्नवध- पदर कृा र्ी्रतता ंन उच्चार ंव्नवध कृहलाता ह
11. ंमिाय- धल न वकृए जा ंकृनन िालन ं्ब्ध कृो ंमिाय ं्ब्ध कृहतन हैं जंन वमट्टी
और घडा
12. ध्याावंवद्ध- ध्य ्रककृार ंन वंद्ध वकृया जानन िाला कृायश ध्याा वंद्ध कृहलाता ह

बोधतप्रश्नत2.
1. धपि श वकृंकृन ध्त तश आता ह?
2. परामर्श र्ब्द कृा ्रकयो वकृं ्रकमा म वकृया या ह?
3. ्रकमा र कृी ंसख्या वकृतनी ह?
4. वनविशकृल्पकृ क्या ह?
5. पर कृा ंमिावय कृार कृौन ंा ह
6. घशन कृा वनवमत्त कृार बताइए
2.9तबोधतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
बो ध ्रकश्न 1.
1. बारह
2. ंादृश्य ज्ञान
3. आकृास्ा, यो ग्यता और ंव्नवध
4. यो ग्यता कृा
बो ध ्रकश्न 2.
5. ्रकमनय कृन ध्त तश
6. धनमु ान ्रकमा म
7. चार
8. ्रकत्य्
9. त्तु
10. कृु्हार

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2.10तसन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी:
कृन र्ि वमश्रः तकृश भार्ा, चौण्भा ं्स कृत त ं्स ाान, 1990
शा. चक्रधर वबजल्िातः भारतीय ्याय र्ास्त्र, उत्तर ्रकदनर् वह्दी ंस्ाान
वहररय्ना, एम.- भारतीय दर्शन कृी रूपपरन णा, राजकृमल ्रककृार्न, 1987
रो ला, िाच्पवत- ंस्कृत त ंावहत्य कृा इवतहां, चौण्बा विद्याभिन, 1992
दां एु , एं. एन.- भारतीय दर्शन कृा इवतहां भा -1, राज्ाान वह्दी ््ा धकृादमी, जयपरु ,
1988
र्माश, च्वधर- भारतीय दर्शन धनर्
ु ीलन और आलो चन, मो तीलाल बनारंीदां, 1991
राधाकृत ष् न, एं.- भारतीय दर्शन, भा -2 राजपाल ए्श ंसं
र्ास्त्री, ्िामी वारकृादां- ्याय दर्शनम् िात््यायन भाष्य ंवहत, बद्ध
ु भारती, 1986
चट्टो पा्याय, दनिी ्रकंाद, भारतीय दर्शन ंरल पररचय, राजकृमल ्रककृार्न, 1980
2.11तवनबन्धखत्ुृतप्रश्नः
1. ्रकमा चतिु य कृा ंस्नप म ि नश कृीवजए
2. धंमिावयकृार क्या ह? ल् और उदाहर कृन ंाा ंमझाइए
3. ध्याा वंद्ध कृा ंस्नप म ि शन कृीवजए

उत्तराण्श मक्त
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इृखई-त3तप्रत् ितप्रुखणतएिंतइवन्ग खथ्तसवन्नृर््
इकृाई कृी रूपपरन णाः
3.1 ्रक्तािना
3.2 उद्दनश्य
3.3 ्रकमा पररभार्ा एिस वयाख्या
3.4 ्रकत्यण ्रकमा
3.4.1 वनविशकृल्पकृ ्रकत्य्
3.4.2 ंविकृल्पकृ ्रकत्य्
3.5 र्ो डा ंव्नकृर्श
3.5.1 ंयस ो ंव्नकृर्श
3.5.2 ंयस क्तु ंमिाय ंव्नकृर्श
3.5.3 ंसयक्त ु ंमिनत ंमिाय ंव्नकृर्श
3.5.4 ंमिाय ंव्नकृर्श
3.5.5 ंमिनत ंमिाय ंव्नकृर्श
3.5.6 विर्नर् विर्नष्य भाि ंव्नकृर्श
3.6 धलौवकृकृ ्रकत्य्
3.7 ंारासर्
3.8 पाररभावर्कृ र्ब्दािली
3.9 बो ध ्रकश्नर कृन उत्तर
3 .10 ं्दभश ््ा ंचू ी
3.11 वनब्धात्मकृ ्रकश्न

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3.1प्रस् खिनख
पिू श कृी ध्ययन इकृाइयर म आप ्याय दर्शन कृा ंवस ्ए इवतहां, ्रकाचीन ्याय एिस नवय ्याय कृी
तत्त्ि मीमासंा पढ़ चकृ
ु न हैं इंकृन धवतररक्त नवय ्याय कृन ्रकमण
ु ््ा ि धपनी आधार-पाठ्य प्ु तकृ
तकृश भार्ा कृन आधार पर आप ्याय दर्शन कृन दंू रन पदााश धााशत ्रकमनयर कृन नाम जाननन कृन धवतररक्त
्याय दर्शन कृन ्रकाम पदााश धााशत ्रकमा , ि ्याय दर्शन कृन कृार ि उंकृन ्िरूपप पर वि्ततत चचाश
कृर चकृ ु न हैं आप नवय ्याय कृन ंिाशवधकृ ्रकमणु वंद्धा्त धााशत ्रकमा र कृन ्िरूपप ताा कृार कृन
्िरूपप पर विचार मास न कृर चकृ ु न हैं आपनन धपनन इं ध्ययन कृो तकृश भार्ा म िव तश मल ू पाठ ि
उनकृी वयाख्या कृन आधार पर ंसचावलत वकृया ह, वजंंन इन वंद्धा्तर कृो ्रकामाव कृ तौर पर
ंमझनन म आपकृो ंहायता हुई हो ी ्रकमा र कृा ंसव्ए ध्ययन कृरतन ंमय आपनन ्याय ं्मत
चार ्रकमा र कृन बारन म जो जानकृारी ्रकाए कृी ाी, उंकृन धनंु ार ्याय दर्शन म िव शत ्रकमा र कृन
चार भनद इं ्रककृार ान- ्रकत्य्, धनमु ान, उपमान और र्ब्द ितशमान इकृाई म आप ्रकत्य् ्रकमा कृन
बारन म वि्ततत ध्ययन कृर न
पिू श इकृाइयर कृन धपनन ध्ययन कृन आधार पर आप कृो ्मर हो ा वकृ ्याय दर्शन कृी दो र्ाणाएस
हैं, एकृ कृो ्रकाचीन ्याय कृहतन हैं और दंू रन कृो नवय ्याय ्रकाचीन ्याय जहास पदााश मीमांस ा पर
जो र दनता ह, िह नवय ्याय कृा कृन ्वीकृर ्रकमा मीमासंा पर ह ौतम ्रक ीत ्याय ंू्र ्रकाचीन
्याय कृा ््ा ह, तो स र् न उपा्याय कृत त तत्त्ि वच्तामव नवय ्याय कृा आधार ्ा माना जाता
ह दंू रन र्ब्दर म हम यह कृह ंकृतन हैं वकृ पदााश मीमासंा कृन ्रक तन ा महवर्श ौतम हैं और ्रकमा
मीमासंा कृन ्रक तन ा स र्
न उपा्याय हैं तकृश भार्ा नवय ्याय कृा ््ा ह, और धभी तकृ कृन वििनचनर
ंन आप यह भली-भावस त ंमझ ए हर न वकृ नवय ्याय कृा ््ा हो नन कृन कृार ्रकमा विचार ही
उंकृा मख्ु य उद्दनश्य ह धपनी तींरी ध्ययन इकृाई म आपकृन वारा पढ़न ए चार ्रकमा र म पहलन
्रकमा धााशत ्रकत्य् ्रकमा कृा आप ितशमान इकृाई कृन ध्त तश वि्ततत ध्ययन कृर न
3.2उद्देश्
इं इकृाई कृन ध्त तश आप ्याय दर्शन म िव शत ्रकत्य् ्रकमा कृन वि्ततत ध्ययन कृन पश्चात-
1. ्रकमा कृा धाश बता ंकृ न
2. ्रकमा कृन पहलन भनद ्रकत्य् ्रकमा कृी तकृश भार्ा आधाररत पररभार्ा कृन आधार पर उंकृी
्पि वयाख्या कृर ंकृ न
3. इव्वयााश-ंव्नकृर्श क्या हो ता ह, इंकृी जानकृारी आपकृो हो ंकृन ी
4.इव्वयााश ंव्नकृर्श कृन वकृतनन भनद हो तन हैं और िन कृौन-कृौन ंन हैं, इंकृा वनधाशर भी आप कृर न

उत्तराण्श मक्त
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3.3तप्रुखणतपरराभखर्खतएिंतव् खख् ख
नयावयकृ ंिश्रकाम ्रकमा विचार ्रक्ततु कृरतन हैं नयावयकृर कृन धनंु ार याााश ज्ञान कृा बो ध कृरानन
िाला ्रकमा कृहलाता ह जंा वकृ आप धपनन पिू श ध्ययन ंन जान चकृ ु न हैं वकृ ्याय दर्शन धपनी
चचाश कृो बनहद तावकृश कृ और िज्ञावनकृ ढस ंन आ न बढ़ाता ह, इंीवलए उंन हनतु विद्या या
आ्िीव्कृी भी कृहा जाता ह धपनी इं ्रकवंवद्ध कृन धनरूप ु प ्याय दर्शन नन ्रकमा विश्लन र् कृो भी
धत्य्त िज्ञावनकृ ढस ंन ्रक्ततु वकृया ह उनकृी तावकृश कृ यवु क्तयर कृा विधान और वंद्धा्त प् कृो
्रक्ततु कृरनन कृी विवध धत्य्त िज्ञावनकृ ्रकतीत हो ती ह ज्ञान ्याय कृा ंिोच्च विर्य ह नयावयकृ
वमथ्या ज्ञान कृो ही वनःश्रनयं धााशत जीिनमवु क्त कृन मा श कृा ंबंन बडा धिरो ध मानतन हैं उनकृन
विधान कृन धनंु ार ्रकमा कृन वारा ही याााश ज्ञान कृी उपलवब्ध ं्भि ह
प्रत् ितप्रुखणत
तकृश भार्ा कृो आधार बनातन हुए धब हम ंबंन पहलन ्रकमा कृन पहलन भनद धााशत ्रकत्य् ्रकमा कृन
्िरूपप कृी चचाश ्रकार्भ कृरतन हैं ्रकत्य् ्रकमा कृी पररभार्ा तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र इं ्रककृार
कृरतन हैं-
ंा्ात्कृारर्रकमाकृर स ्रकत्य्म ंा्ात्कृारर ी च ्रकमा ंिो च्यतन या इव्वजा ंाच्च ववधा
ंविकृल्पकृवनविशकृल्पकृभनदात् त्याः कृर स व्र विधम् कृदावचद् इव्वयस, कृदावचत्
इव्वयााशंव्नकृर्शः, कृदावचद् ज्ञानम्
धााशत ्रकमा कृा जो ंाधन ह उंन ्रकत्य् कृहतन हैं ंा्ात्कृारर ी ्रकमा धािा ज्ञान इव्वयर कृन
ं्पकृश ंन उत्प्न हो ता ह, और इव्वय कृन ं्पकृश ंन उत्प्न यह ्रकत्य् ज्ञान दो ्रककृार कृा हो ता ह-
पहला ंविकृल्पकृ दंू रा वनविशकृल्पकृ वजंम वनविशर्नर् ि्तमु ा्र कृा ्ह हो ता ह, िह
वनविशकृल्पकृ ्रकत्य् कृहलाता ह, धााशत जहास हम ि्तु कृन ्िरूपप कृी ्रकतीवत मा्र हो ती ह, उंकृन
नाम जावत इत्यावद कृन वि्तार कृा हम ज्ञान नह हो ता, िह वनविशकृल्पकृ ्रकत्य् कृहलाती ह इंकृन
विपरीत नाम जावत इत्यावद कृन वि्तार ंन यक्त
ु ज्ञान कृो ्याय दर्शन म ंविकृल्पकृ ्रकत्य् कृहा या

सविृल्दपृतऔरातवनवि्ृल्दपृतप्रत् ि
दवनकृ वयिहार म आनन िाली ्रकायः ंभी ि्तुएस ंविकृल्पकृ ्रकत्य् कृन ही उदाहर हैं ंविकृल्पकृ
और वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृन ध्तर कृो ंरल र्ब्दर म आप कृन उदाहर कृन जररए आंानी ंन ंमझ
ंकृतन हैं मान लीवजए कृह पर एकृ घडी ह, वजंकृो एकृ बालकृ दनणता ह, और उंकृन ंाा एकृ
्रकौढ़ परुु र् भी उं घडी कृा ंा्ात कृरता ह घडी कृा ंा्ात कृरतन ंमय घडी कृन ्िरूपप कृा जो

उत्तराण्श मक्त
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ज्ञान हो ता ह िह बालकृ और ्रकौढ़ परुु र् म एकृ ंमान हो ता ह लनवकृन धाश कृन ्ह कृाल म दो नर
कृा ज्ञान ंमान हो नन कृन बािजदू उन दो नर कृन ज्ञान म एकृ महत्िपू श ध्तर हो ता ह, ्रकौढ़ वयवक्त घडी
कृन नाम जावत आवद ंन भी पररवचत हो ता ह, पर्तु बालकृ नाम-जावत कृी इन बातर ंन धनवभज्ञ हो ता
ह धतः वयिहार कृाल म ्रकौढ़ वयवक्त कृा ज्ञान ंविकृल्पकृ हो जाता ह, जबवकृ बालकृ उंकृन नाम
जावत आवद ंन धनवभज्ञ रहनन कृन कृार िंा वयिहार नह कृर ंकृता ह इं तरह हम दनणतन हैं वकृ
धाश (विर्य) कृन ्ह कृाल म ्रकौढ़ परुु र् और बालकृ दो नर कृो वनविशकृल्पकृ ज्ञान ही हो ता ह, वकृ्तु
्रकौढ़ परुु र् र्ी्रततांन उंकृन नाम जावत आवद कृा ्मर कृर लनता ह, इंवलए उंकृा वनविशकृल्पकृ
ज्ञान ंविकृल्पकृ ज्ञान म पररिवतशत हो जाता ह
धभी तकृ आपनन यह पढ़ा वकृ ्रकत्य् ज्ञान ्रकत्य् ्रकमा पर आधाररत हो ता ह,ॅ और ्याय दर्शन
म उंकृन ंविकृल्पकृ और वनविशकृल्पकृ नामकृ दो ्रककृार कृन भनद मानन ए हैं आ न तकृश भार्ाकृार
्रकत्य् ज्ञान कृन ंाधनर कृी चचाश कृरतन हुए तीन ्रककृार कृन ंाधनर कृा उल्लनण कृरतन हुए कृहतन हैं, वकृ
्रकत्य् ज्ञान कृन ‘कृर ‘ तीन हो तन हैं- ‘त्याः कृर स व्र विधम् कृदावचद् इव्वयस, कृदावचत्
इव्वयााशंव्नकृर्शः, कृदावचद् ज्ञानम् ‘
धााशत् पहला इव्वय, दंू रा इव्वयााश ंव्नकृर्श और तींरा वनविशकृल्पकृ ज्ञान जंा वकृ आप
धपनी पिू श इकृाइयर म पढ़ चकृ
ु न हैं, ्याय कृी पार्पररकृ र्ब्दािली म ‘कृर ‘ कृा धाश ्रकमण
ु या
धंाधार कृार माना जाता ह
यही तीन ‘कृर ‘ ्रकत्य् ज्ञान कृा मा्यम बनतन हैं, और तकृश भार्ा म पस कृन र्ि वमश्र नन इन तीन
कृार र कृो ंरल ढस ंन वयाख्यावयत वकृया ह इव्वय, इव्वयााश ंव्नकृर्श और तींरा वनविशकृल्पकृ
ज्ञान कृन उल्लनण कृन बाद उ्हरनन चौानॅन क्रम म ंविकृल्पकृ ज्ञान और पासचिन क्रम म
हाननापादानो पन्ा बवु द्ध इन दो नर फलर कृो भी जो ड वदया ह, और इं ्रककृार उ्हरनन पाचस कृवडयर
िाली एकृ श्रणस ला ्रक्ततु कृी ह- ?
इन पाच
स र म यवद पहलन कृो हम धंाधार कृार धािा कृर मानतन हैं, तो दंू रा धिा्तर वयापार
यानी वक्रया और तींरा उंकृा फल हो ा ठीकृ इंी ्रककृार यवद दंू रन कृो हम कृर मानतन हैं तो
तींरा धिा्तर वयापार और चौाा फल हो ा तींरन कृो यवद कृर रूपप म ्िीकृार कृरतन हैं तो
चौाा धिा्तर वयापार और पाचस िा उंकृा फल हो ा ं् स नप म आप इं यो जना कृन एकृ उदाहर
ंन इं ्रककृार ंमझ ंकृतन ंकृतन हैं- मान लीवजए जब इव्वय कृर ह तो इव्वयााशंव्नकृर्श धिा्तर
वयापार हो ा और वनविशकृल्पकृ ज्ञान धााशत नामाजावत आवद ंन रवहत जो ज्ञान हो ा िह उंकृा फल
कृहलाए ा जब इव्वयााशंव्नकृर्श कृो कृर माना जाए ा तो वनविशकृल्पकृ ज्ञान धिा्तर वयापार
और ंविकृल्पकृ ज्ञान धािा नाम जावत आवद ंवहत ि्तु कृा ज्ञान फल हो ा इंी तरह जब

उत्तराण्श मक्त
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तींरी ंसख्या धािा वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृर हो ा तो ंविकृल्पकृ ज्ञान धिा्तर वयापार और
हानो पादानो पन्ाबवु द्ध इंकृी फल हो ी इं व्र विध कृर र कृी ंरल वयाख्या कृन पश्चात ्याय
र्ास्त्रीय भार्ा म इंकृी वयाख्या इं ्रककृार कृी ई ह-
कृदा पनु ररव्वयस कृर म? यदा वनविशकृल्पकृ रूपपा ्रकमा फलम् ताा वह आत्मा मनंा ंयस ज्ु यतन, मन
इव्वयन , इव्वयमाेन इव्वया ास ि्त्रकु ातय्रककृार्कृाररत्ि वनयमात् ततो ऽाशंव्नकृत िनननव्वयन
वनविशकृल्पकृस नामजात्यावदयो जनाहीनस ि्तमु ा्र ाि ावहवकृसवचवददवमवत ज्ञानस ज्यतन
इव्वयााशंव्नकृर्ोऽिा्तरवयापारः वादाकृर ्य परर्ो ररि दारुंयस ो ः वनविशकृल्पकृस ज्ञानस फलस
परर्ो ररि वहदा
तकृश भार्ा कृन इं मल ू पाठ म व्र विध कृार र म ंन ्रकाम कृर ‘इव्वय‘ कृी वयाख्या कृी ई ह और
उंकृन धिा्तर वयापार ताा फल कृो ंमझानन कृा ्रकयां कृवतपय उदाहर र वारा वकृया या ह, जो
इं ्रककृार ह- इव्वय कृो कृर कृब माना जाता ह? जब वनविशकृल्पकृ रूपप ्रकमा यानी याााश ज्ञान
हो ता ह उदाहर कृन वलए आत्मा कृन ंाा मन कृा ंसयो हो ता ह, वफर मन कृा इव्वय कृन ंाा, तब
इव्वय धाश धााशत विर्य कृन ंाा ंयस क्त ु हो ती ह और वफर इव्वयर कृन ि्तु कृो ्रकाए कृरकृन ही धाश
कृो ्रककृावर्त कृरनन कृा वनयम हो नन ंन तब धाश ंन ंसयक्त
ु इव्वय कृन वारा नाम जावत आवद ंन रवहत
ि्तु कृन ्िरूपप मा्र कृा ज्ञान कृरानन िाला वनविशकृल्पकृ ज्ञान उत्प्न हो ता ह और ऐंी व्ावत म
नामाजात्यावद यो जना ंन रवहत वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृा कृर धााशत् धंाधार कृार इव्वय हो ती ह
तकृश भार्ा म लकृडी कृो फरंन ंन कृारन जानन कृा उदाहर दनतन हुए इं बात कृो इं ्रककृार ंमझाया
या ह- जंन ान दन वक्रया कृा कृर फरंा हो ता ह, और इव्वय और धाश कृा ंव्नकृर्श धिा्तर
वयापार हो ता ह इं तरह फरंा कृा लकृडी कृन ंाा ंसयो धिा्तर वयापार हो ता ह और
वनविशकृल्पकृ ज्ञान धााशत फरंन रूपप कृर कृा फरंा और लकृडी कृन ंसयो रूपप धिा्तर वयापार
वारा फल लकृडी कृा कृरना हो ता ह
धभी तकृ कृी वयाख्या ंन और उदाहर र ंन आपनन यह ंमझ वलया हो ा वकृ इव्वय रूपप कृर ंन
वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृी उत्पवत्त म इव्वयााश ंव्नकृर्श धिा्तर वयापार हो ता ह धिा्तर वयापार भी
नयावयकृर कृी पाररभावर्कृ र्ब्दािली ह तकृश भार्ा म इंकृी पररभार्ा इं ्रककृार दी ई ह-
तज्ज्यत्िन ंवत तज्ज्यजनकृो ऽिा्तरवयापरः
धााशत जो ्ियस उं कृर ंन ज्य हो , और उं कृर ंन उत्प्न हो नन िालन फल कृा जनकृ हो , उंन
‘धिा्तर वयापार‘ कृहतन हैं जंन कृुल्हाडी ंन लकृडी कृारनन कृी वक्रया म कृुल्हाडी और लकृडी कृा
ंसयो धिा्तर वयापार ह क्यरवकृ िह कृुल्हाडी ज्य ह और ंाा ान दन रूपप फल कृा जनकृ भी ह

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धब इव्वयर कृी कृर कृन रूपप म वयाख्या कृरनन कृन बाद दंू रन कृर धााशत् इव्वयााश ंव्नकृर्श कृो
ंमझनन कृी कृो वर्र् कृर न ‘इव्वयााश ंव्नकृर्श‘ कृब कृर हो ता ह, यह जानना भी आप कृन वलए
आिश्यकृ ह इंकृो ंमझनन कृन वलए भी ंबंन पहलन हम मल ू पाठ पर ्यान दनना हो ा िह इं
्रककृार ह-
कृदा पनु रर्वयााशंव्नकृर्शः कृर म? यदा वनविशकृल्पकृान्तरस ंविकृल्पकृस नामजात्यावदयो जनात्मकृस
वशत्ाो ऽयस ब्राह्म ो ऽयस श्यामो ऽयवमवत विर्नर् विर्नष्याि ावह ज्ञानमत्ु पद्यतन, तदनव्वयााशंव्नकृर्शः
कृर म वनविशकृल्पकृस ज्ञानमिा्तरवयापारः, ंविकृल्पकृस ज्ञानम् फलम्
धााशत् इव्वय ताा धाश कृा ंव्नकृर्श कृब कृर हो ता ह? जब वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृन बाद
ंविकृल्पकृ ज्ञान धााशत नामजात्यावद ंवहत नाम यक्त ु ्रकतीवत (यह वशत्ा (्रका ी) ह) जावत यक्त ु
्रकतीवत (यह ब्राह्म ह) रूपप ु विवर्ि ्रकतीवत धााशत (यह श्याम ि श कृा ह) उत्प्न हो ता ह इं
्रककृार कृन विर्नर् विर्नष्य भाि विर्यकृ ज्ञान म इव्वयााश ंव्नकृर्श कृर हो ता ह , वनविशकृल्पकृ ज्ञान
धिा्तर वयापार हो ता ह और ंविकृल्पकृ ज्ञान फल हो ता ह
धब तींरा वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृब कृर हो ता ह, इंकृा उत्तर तकृश भार्ा म इं ्रककृार वदया या ह-
कृदा पनु ज्ञाशनस कृर म?् यदा उक्तंविकृल्पकृान्तरस हानो पादानो पन्ाबद्ध
ु यो जाय्तन तदा वनविशकृल्पकृस
ज्ञानस कृर म् ंविकृल्पकृस ज्ञानमिा्तरवयापारः हानावद बद्धु यः फलम्
और वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृब कृर हो ता ह? जब ंविकृल्पकृ ज्ञान कृन बाद जानी ई ि्तु कृो त्या नन
धािा उंकृी उपन्ा कृरनन कृी (‘हानो पादानो पन्ा‘) बवु द्ध उत्प्न हो ती ह, तब वनविशकृल्पकृ ज्ञान
कृर हो ता ह, जबवकृ ंविकृल्पकृ ज्ञान धिा्तर वयापार हो ता ह और त्या , ्ह धािा उपन्ा
कृरनन कृी बवु द्ध धााशत् हानो पादानो पन्ा बवु द्ध फल कृहलाती ह
र्ोड़खतसवन्नृर््
व्र विध कृर र कृन ्रकवतपादन ्िरूपप आपनन यह ंमझ वलया हो ा वकृ वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृी उत्पवत्त म
इव्वयााश ंव्नकृर्श धिा्तर वयापार ह, और वनविशकृल्पकृ ज्ञान फल ह ंविकृल्पकृज्ञान कृी उत्पवत्त
म इव्वयााश ंव्नकृर्श कृर हो ता ह, वनविशकृल्पकृ ज्ञान धिा्तर वयापार और ंविकृल्पकृ ज्ञान फल
हो ता ह हानो पादानो पन्ाबवु द्ध फल कृन ंमय वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृर हो ता ह, ंविकृल्पकृ ज्ञान
धिा्तर वयापार और हानो पादानो पन्ा बवु द्ध फल हो ती ह धााशत् वनविशकृल्पकृ ज्ञान कृी उत्पवत्त म
इव्वयााश ंव्नकृर्श रूपप एकृ धिा्तर वयापार ह ंविकृल्पकृ कृी उत्पवत्त म इव्वयााश ंव्नकृर्श और
वनविशकृल्पकृ ज्ञान यन दो धिा्तर वयापार हैं और हानो पादानो पन्ा बवु द्ध कृी उत्पवत्त म इव्वयााश

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ंव्नकृर्श, वनविशकृल्पकृ ज्ञान और ंविकृल्पकृ ज्ञान यन तीनर धिा्तर वयापार हैं इव्वय और धाश
कृा जो ंव्नकृर्श ्रकत्य् ज्ञान कृा कृार ह, ्याय दर्शन म उंन ाह ्रककृार कृा माना या ह, और िह
र्ो ढ़ा ंव्नकृर्श कृन नाम ंन जाना जाता ह-
इव्वयााशयो ्तु यः ंव्नकृर्शः ंा्ात्कृारर्रकमाहनतुः ं र्शविध एि तद्याा ंसयो ः ंसयक्त
ु ंमिायः
ंसयक्त
ु ंमिनतंमिायः, ंमिायः ंमिनतंमिायः विर्नष्यविर्नर् भािश्चनवत
तकृश भार्ा ंन उद्धतत इं धसर् म र्ो ढा ंव्नकृर्श कृन नाम व नाए ए हैं और आप दनण ंकृतन हैं वकृ
पहला इव्वयााश ंव्नकृर्श ंयस ो , दंू रा इव्वयााश ंव्नकृर्श ंयस क्त ु ंमिाय, तींरा इव्वयााश
ंव्नकृर्श ंसयक्त
ु ंमिनतंमिाय, चौाा इव्वयााश ंव्नकृर्श ंमिाय, पासचिा इव्वयााश ंव्नकृर्श
ंमिनत ंमिाय और ाठा इव्वयााश ंव्नकृर्श विर्नर् विर्नष्यभाि कृन नाम ंन व नाया या ह
तकृश भार्ा कृन धनंु ार एकृ-एकृ इव्वयााश ंव्नकृर्श कृन ल् , उदाहर इत्यावद कृो ्रक्ततु कृर हम
इनकृा ं्ु पि ज्ञान ्रकाए कृर ंकृ न
सं ोगतसवन्नृर््
्रकाम इव्वयााश ंव्नकृर्श कृा नाम ंसयो ंव्नकृर्श ह ंसयो ंव्नकृर्श तब हो ता ह जब नन्र कृन वारा
घर कृा ज्ञान हो ता ह, धॅार तब च्ु इव्वय और घर कृा धाश हो ता ह और इन दो नर कृा ंव्नकृर्श
ंसयो ही हो ता ह कृन र्ि वमश्र कृत त तकृश भार्ा म ंसयो ंव्नकृर्श कृी वयाख्या इं ्रककृार कृी ई ह-
त्र यदा च्र्ु ा घरविर्यस ज्ञानस ज्यतन तदा च्रु रव्वयस घरो ऽाशः धनयो ः ंव्नकृर्शः ंसयो एि
धयतु वंद्धयभािात् मनंाऽ्तररव्वयन यदात्मविर्यकृस ज्ञानस ज्यतनऽहवमवत, तदा मन इव्वयस,
आत्माऽाशः, धनयो ः ंव्नकृर्शः ंयस ो एि
धााशत नन्र कृन वारा घशन कृा ज्ञान जब उत्प्न हो ता ह धािा मन कृन वारा जब आत्मा कृा ज्ञान हो ता
ह इन दो नर व्ावतयर म इव्वयााश ंव्नकृर्श ंसयो हो ता ह, क्यरवकृ इव्वय और धाश म पर्पर
धयतु वंद्ध ं्ब्ध कृा धभाि ह
आपकृो ्यान हो ा वकृ धयतु वंद्ध ं्ब्ध हमनर्ा ंमिाय ं्ब्ध हो ता ह और विनार्कृाल ंन
पिू श यन एकृ दंू रन पर आवश्रत हो तन हैं क्यरवकृ यहास च्ु (इव्वय) और घर (धाश) ताा मन (इव्वय)
और आत्मा (धाश) यन दो नर उदाहर धयतु वंद्ध नह हैं, इंवलए इनकृा ं्ब्ध ंसयो ं्ब्ध
हो ा इन दो नर उदाहर र म ्रकाम उदाहर बाह्यनववय कृन ंव्नकृर्श कृा और ववतीय उदाहर
ध्तरन व्वय कृन ंव्नकृर्श कृा ह
सं किसुिख तसवन्नृर््
दंू रा ंव्नकृर्श जंा वकृ आप तकृश भार्ा कृन उद्धर ंन जान चुकृन हैं ंसयक्त
ु ंमिाय ंव्नकृर्श कृन नाम

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ंन जाना जाता ह इंकृा भी धघ्ययन आपकृो तकृश भार्ा कृन मल ू पाठ कृन आधार पर कृरना ह
तकृश भार्ा म ंसयक्त
ु ंमिाय ंव्नकृर्श कृो ्पि कृरतन हुए उंकृी पररभार्ा इं ्रककृार कृी ई ह-
यदा च्रु ावदना घर तरूपपावदकृस ह्य
त तन घरन श्यामरूपपम्तीवत, तदा च्रु रव्वयस घररूपपमाशः धनयो ः
ं्नकृर्शः ंसयक्त
ु ंमिाय एि च्ंु सयक्त ु न घरन रूपप्य ंमिायात् एिस मनंाऽऽत्मंमिनतन ंण ु ादौ
्ाह्यमा न धयमनि ंव्नकृर्शः
धााशत जब च्ु आवद ंन घर म व्ात रूपपावद कृा ्ह हो ता ह, उदाहर कृन वलए घर म श्याम
रूपप ह ऐंा ज्ञान हो ता ह, तो यह ज्ञान ंसयक्त
ु ंमिाय ंव्नकृर्श ंन हो ता ह इंम च्ु इव्वय ह, घडा
धाश ह और घडन म श्याम रूपप ंमिाय ं्ब्ध ंन व्ात ह इंकृो ंरल ढस ंन आप इं तरह ंमझ
ंकृतन हैं वकृ इव्वय (च्ु) और घर (धाश) कृा ंव्नकृर्श हो नन कृन पश्चात ही घडन म व्ात श्याम रूपप
कृा ज्ञान ं्भि हो ा इव्वय (च्)ु कृन वारा धाश कृा ज्ञान ‘ंसयो ंव्नकृर्श‘ कृन वारा हो ता ह, इं
बात कृा ध्ययन आप ‘ंसयो ंव्नकृर्श‘ कृी वयाख्या पढ़तन ंमय कृर चकृ ु न हैं लनवकृन जब घडन कृन
ध्दर व्ात श्याम रूपप कृा ज्ञान हो ा, धााशत घडा श्याम ि श कृा ह इं ्रककृार कृा ज्ञान हो ा, तो
यह ज्ञान ंयस क्त
ु ंमिाय ंव्नकृर्श कृन वारा ही हो ा इं उदाहर म ंयस ो ंव्नकृर्श ंन घर कृन ज्ञान
कृी उत्पवत्त हो ी, तदो परा्त घर म ंमिाय रूपप ंन व्ात श्याम रूपप कृा ज्ञान ं्भि हो पाए ा
ध्तररव्वय कृन ं्ब्ध म भी आप ंसयक्त ु ंमिाय ंव्नकृर्श ंन मन कृन वारा आत्मा म ंमिाय
ंमब्ध ंन व्ात ंण ु ावद ु र कृा ्रकत्य् कृर ंकृतन हैं ंमिाय ं्ब्ध आप ंमिावय कृार कृी
चचाश कृरतन ंमय धपनी पिू श इकृाई म वि्तार ंन पढ़ चकृ ु न हैं आप जानतन हैं वकृ धयतु वंद्ध ं्ब्ध
कृो ंमिाय ं्ब्ध कृहतन हैं, धााशत् धपनन धव्तत्ि कृाल म वजनकृो एकृ-दंू रन ंन धल नह
वकृया जा ंकृता हो िही ं्ब्ध ंमिाय ं्ब्ध कृहलातन हैं तकृश भार्ाकृार नन ंसयक्त ु ंमिाय
ंव्नकृर्श कृा ि शन कृरतन ंमय ‘चतिु य ंव्नकृर्श‘ कृा भी ि नश वकृया ह यन चतिु य ंव्नकृर्श क्या
हैं? वजनंन घर ंन ं्बव्धत पररमा इत्यावद बातर कृा बो ध हो ता ह उ्ह तकृश भार्ाकृार नन चतिु य
ंव्नकृर्श बताया ह ्यान दननन कृी बात यह ह वकृ यह ज्ञान भी ंसयक्त ु ंमिाय ंव्नकृर्श ंन ही हो ता
ह, वकृ्तु इंम इव्वयाियि और धााशियिी कृा ंव्नकृर्श (इव्वय धियिी कृन ंाा धाश कृन
धियिर कृा) और इव्वयाियिी और धााशियिी कृा ंव्नकृर्श आिश्यकृ हो ता ह
सं किसुिे सुिख तसवन्नृर््
घर त पररमा ावद्हन चतिु ं्नकृर्ोऽतयवधकृस कृार वमच्यतन ंत्यावप ंयस क्त
ु ंमिायन तदभािन दरू न
पररमा द्य्ह ात् चतिु यंव्नकृर्ो याा-इव्वयाियिरााशियविनाम्
इव्वयाियविनामााशियिानाम् इव्वयाियिऽााशियिानाम् धााियविनावमव्वयाियविनास ंव्नकृर्श
इवत

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यदा पनु श्च्र्ु ा घररूपपंमिनतस रूपपत्िावद ंामा्यस ह्य
त तन, तदा च् ु रु रव्वयस रूपपत्िावदंामा्यमाशः
धनयो ः ंव्नकृर्शः ंसयक्त
ु ंमिनत ंमिाय एि च्ु ंसयक्त ु न घरन रूपपस ंमिनतस त्र रूपपत्ि्य ंमिायात्
जब च्ु ंन घर म ंमिनत रूपपत्ि (रूपप जावत कृा ) कृा ज्ञान ्ह वकृया जाता ह, तो च्ु और घर
कृा ंव्नकृर्श ंसयक्त
ु ंमिनत ंमिाय ंव्नकृर्श कृहलाता ह ऐंा इंवलए हो ता ह क्यरवकृ च्ु ंन
ंसयक्तु घर म रूपप कृा ज्ञान ंमिाय ं्ब्ध ंन हो ता ह, यह बात धभी-धभी आप ऊपर पढ़ चकृ ु न हैं
और उं रूपप म रूपपत्ि जावत कृा ंमिाय ं्ब्ध ह, यह भी आप जान चकृ ु न हैं इंवलए रूपपत्ि
जावत कृन ंाा च्ु पर्परया ंसयक्त ु ंमिनत ंमिाय ं्ब्ध हुआ इं तरह आपनन दनणा वकृ तींरा
ंव्नकृर्श ंयस क्त
ु ंमिनत ंमिाय ंव्नकृर्श ह, वजंंन घर म व्ात रूपप म रूपपत्ि जावत कृा ्रकत्य्
ज्ञान हावंल हो ता ह इं ंव्नकृर्श म च्ु और घर कृन बीच ंसयो धािा ंसयक्त ु ं्ब्ध हो ता ह,
और घर म ंमिाय ं्ब्ध ंन व्ात रूपप और रूपप म ंमिाय ं्ब्ध ंन व्ात रूपपत्ि जावत कृा
्रकत्य् ंसयक्त
ु ंमिनतंमिाय ं्ब्ध ंन हो ता ह
आपनन ्रकार्भ म ही यह पढ़ा ाा वकृ इव्वयााश ंव्नकृर्श ाः ्रककृार कृन हो तन हैं, वजनम आपनन ंयस ो
ंव्नकृर्श, ंसयक्त
ु ंमिाय ंव्नकृर्श और ंसयक्त ु ंमिनतंमिाय ंव्नकृर्श कृी जानकृारी तकृश भार्ा कृन
धनंु ार ंन धभी तकृ आप वि्तार ंन ्रकाए कृर चकृ ु न हैं धब आप चौाा ंव्नकृर्श धााशत ‘ंमिाय
ंव्नकृर्श‘ क्या हो ता ह, इंकृा उत्तर क्या हो ता ह, यह जाननन कृी कृो वर्र् कृर न तकृश भार्ाकृार न
कृहा ह-
सुिख तसवन्नृर््
यदा श्रो तनव्वयन र्ब्दो ह्य
त तन तदा श्रो तवमव्वयस, र्ब्दो ऽाशः, धनयो ः ंव्नकृर्शः ंमिाय एि
कृ र्
श ष्कृुल्यिवच्ा्नस नभः श्रो तमॅ
् ् श्रो त्याकृार्ात्मकृत्िाच्ार्ब्दरूपप चाकृार् ु त्िाद्
ु वु नो श्च ंमिायात्
धााशत श्रो तनव्वय ंन जब र्ब्द कृा ज्ञान ्ह हो ता ह तब श्रो त इव्वय और र्ब्द धाश हो ता ह, और
इन दो नर कृा ं्ब्ध ंमिाय ं्ब्ध हो ता ह क्यरवकृ ्याय दर्शन कृन मतानंु ार कृ शर्ष्कृुली ंन
वघरा हुआ आकृार् श्रो त ह धााशत श्रो तनव्वय आकृार् ्िरूपप ही ह, और िह आकृार् ंन धवतररक्त
नह ह आप पहलन ही पढ़ चकृ ु न हैं वकृ र्ब्द आकृार् कृा ही ु हो ता ह दंू री ओर आप यह भी
जानतन हैं वकृ ु ी और ु मसॅन ंमिाय ं्ब्ध हो ता ह,ॅ इंवलए आकृार् ( ु ी) और र्ब्द
( ु ) म ंमिाय ं्ब्ध कृन धवतररक्त और कृो ई ं्ब्ध ं्भि नह ह इंवलए जब श्रो तनव्वय ंन
र्ब्द कृा ्रकत्य् हो ता ह तो िह ंमिाय ंव्नकृर्श ंन हो ता ह
ंमिनतंमिाय ंव्नकृर्श

उत्तराण्श मक्त
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पासचिा ंव्नकृर्श ‘ंमिनतंमिाय ंव्नकृर्श‘ कृन नाम ंन जाना जाता ह आपकृन मन म यह
्िाभाविकृ वजज्ञांा हो रही हो ी वकृ यह ंमिनतंमिाय ंव्नकृर्श क्या ह? इं वजज्ञांा कृा
ंमाधान तकृश भार्ाकृार नन इं ्रककृार वकृया ह-
यदा पनु ः र्ब्दंमिनतस र्ब्दत्िावदकृस ंामा्यस श्रो तनव्वयन ह्य
त तन तदा श्रो तवमव्वयस, र्ब्दत्िावद
ंामा्यमाशः धनयो ः ंव्नकृर्शः ंमिनतंमिाय एि श्रो तंमिनतन र्ब्दन र्ब्दत्ि्य ंमिायात्
धााशत जब र्ब्द म ंमिाय ं्ब्ध ंन रहनन िालन र्ब्दत्ि आवद ंामा्य जावत कृा ज्ञान श्रो तनव्वय
ंन ्ह हो ता ह, तब श्रो त इव्वय ताा र्ब्दत्ि ंामा्य धाश ह र्ब्दत्ि र्ब्द म ंमिाय ं्ब्ध ंन
हो ता ह, यह आप पहलन ंन ही ंमझतन हैं, क्यरवकृ आपनन यह पढ़ रणा ह वकृ वयवक्त और जावत म
ंमिाय ं्ब्ध हो ता ह र्ब्दत्ि जावत ह, इंवलए आकृार् म ंमिाय ं्ब्ध ंन रहनन िालन र्ब्द
म ंमिाय ंन रहनन िाली र्ब्दत्ि जावत कृा ्रकत्य् ‘ंमिनतंमिाय ंव्नकृर्श‘ ंन हो ा आकृार्
और र्ब्द म भी ंमिाय ंव्नकृर्श हो ता ह क्यरवकृ ु ी और ु म भी ंमिाय ं्ब्ध हो ता ह,
यह आप चौान ंव्नकृर्श धााशत् ‘ंमिाय ंव्नकृर्श‘ कृी चचाश कृन दौरान जान चकृु न हैं
विर्नष्य विर्नर् भाि ंव्नकृर्श
धब हम ाठन ंव्नकृर्श धााशत ‘विर्नष्य विर्नर् भाि‘ कृो जान न ‘विर्नष्य विर्नर् भाि ंव्नकृर्श‘
कृब हो ता ह यह जाननन कृन वलए हम तकृश भार्ा म िव तश ्रकंस कृो उद्धतत कृर उंकृी वयाख्या कृर न
तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र नन ‘विर्नष्यविर्नर् भाि‘ कृो इं तरह ंमझानन कृा ्रकयां वकृया ह-
यदा च्र्ु ा ंसयक्त
ु न भतू लन घराभािो ह्य
त तन ‘इहभतू लन घरो नाव्त‘ इवत तदा विर्नष्यविर्नर् भािः
ं्ब्धः तदा च्ःु ंयस क्त ु ्य भतू ल्य घराद्यभािो विर्नर् ,स भतू लस विर्नष्यम् ्दा च मनःंयस क्त

आत्मावन ंण ु ाद्यभािो ह्य
त तन ‘धहस ंण ु रवहत इवत, तदा मनः ंसयक्त ु ा्यात्मनः ंुणाद्यभािो
विर्नर् म् यदा श्रो तंमिनतन कृारन घत्िाभािो ह्य त तन तदा श्रो तंमिनत्य कृार्य घत्िाभािो
विर्नर् म‘्
विर्नष्यविर्नर् भाि कृब हो ता ह? जब च्ु ंन ंयस क्त ु भतू ल म घर कृन धभाि कृा ज्ञान हो ता ह
धााशत् भतू ल म घडा नह ह यह ज्ञान विर्नष्यविर्नर् भाि ंन हो ता ह इंम च्ु ंन ंसयुक्त भतू ल म
घर कृा धभाि विर्नर् ह, जबवकृ भतू ल विर्नष्य ह इंी ्रककृार जब मन ंन ंसयक्त ु आत्मा म
ंण ु ावद कृा धभाि ्ह वकृया जाता ह तब आत्मा म ंण ु ाभाि विर्नर् हो ता ह और जब श्रो त म
ंमिाय ं्ब्ध ंन रहनन िालन कृार म घत्ि ( म घ) आवद जावत कृा धभाि हत ीत हो ता ह, तब
श्रो त ंमिनत कृार कृा घत्िाभाि (धााशत म घ कृा धभाि) ंमिनत ंमिाय ं्ब्ध ंन विर्नर्
हो ता ह और इनकृा ्ह विर्नष्यविर्नर् भाि ं्ब्ध ंन हो ता ह

उत्तराण्श मक्त
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ंस्नप म विर्नष्यविर्नर् भाि ंव्नकृर्श कृो आप इं तरह ंमझ ंकृतन हैं वकृ ऊपर िव तश पासच
्रककृार कृन ंव्नकृर्ों म वकृंी एकृ ं्ब्ध कृा, धााशत् ंसयो ं्ब्ध, ंसयक्त
ु ंमिाय ं्ब्ध,
ंसयक्त
ु ंमिनतंमिाय ं्ब्ध, ंमिाय ं्ब्ध और ंमिनत ंमिाय ं्ब्ध ंन ं्बद्ध धभाि कृा
्ह इव्वय वारा ही वकृया जाता ह
नयावयकृर कृी भार्ा म ्रकत्य् ज्ञान क्या हो ता ह िह वकृतनन ्रककृार कृा हो ता ह? इव्वयााश ंव्नकृर्श
क्या ह और उंकृन वकृतनन भनद हो तन हैं? धब तकृ इन बातर कृी चचाश ितशमान इकृाई म हम कृर चकृ ु न हैं
आइए धब इं चचाश कृो और आ न बढ़ातन हैं
ंिश्रकाम जब हम ्रकत्य् ज्ञान कृा ध्ययन कृर रहन ान तो आपनन जरूपर दनणा हो ा वकृ ्रकत्य् ज्ञान
दो ्रककृार कृन भनदर, धााशत वनविशकृल्पकृ और ंविकृल्पकृ भनदर, ंन यक्त
ु बताया या ह वनविशकृल्पकृ
्रकत्य् िह हो ता ह जो नाम जात्यावद यो जना ंन रवहत हो ता ह वनविशकृल्पकृ और ंविकृल्पकृ
धि्ााएस घल ु ी-वमली रहती हैं यन ि्ततु ः धविभाज्य हैं और इनकृा विभा कृन िल बुवद्ध कृत त ह
मान लीवजए वकृ हम ंडकृ पर एकृ मरमली ि्तु वदणाई दनती ह, पां जानन पर उंकृा ज्ञान एकृ
मली ंी र्ंी कृन रूपप म हो ता ह इं ज्ञान म पिू श ज्ञान धााशत् पहला ज्ञान जो उत्प्न हुआ िह
वनविशकृल्पकृ ्रकत्य् हुआ और उत्तर ज्ञान धााशत् बाद िाला ज्ञान ंविकृल्पकृ ्रकत्य् हुआ ्पि ह
वकृ याााश म इं ज्ञान कृा बो ध ि्ततु ः धविभाज्य रूपप म हो ता ह
वनविशकृल्पकृ और ंविकृल्पकृ ्रकत्य् कृी जब हम चचाश कृरतन हैं तो हम यह भी धिश्य जान लनना
चावहए वकृ ्रकत्य् कृो हम पनु ः दो भा र म बासर ंकृतन हैं- लौवकृकृ ्रकत्य् और धलौवकृकृ ्रकत्य्,
इ्ह हम एकृ और नामकृर धााशत ंाधार ्रकत्य् और धंाधार ्रकत्य् ंन भी जानतन हैं इनम
लौवकृकृ ्रकत्य् कृन भी दो भनद पाए जातन हैं, वज्ह हम बाह्य और मानं नाम ंन जानतन हैं बाह्य
्रकत्य् म च्ु, रंना, ्रता , त्िकृ् और श्रो त जंी ज्ञाननव्वयास बाह्य पदााों कृन ंव्नकृर्श म आती हैं,
ताा रूपप, रं, ्ध ्पर्श और र्ब्द कृा ्रकत्य् कृरती हैं ्यान दननन यो ग्य बात यह ह वकृ बाह्य
्रकत्य् म भी मन एिस इव्वय कृा ंव्नकृर्श हो ता ह और आत्मा ताा मन कृा ंसयो भी बना रहता ह
मानं ्रकत्य् म मन या ध्तररव्वय कृा मनो भािर ंन ंव्नकृर्श हो ता ह एिस आत्मा ताा मन कृा
ंसयो बनन रहनन पर ज्ञान, ंण
ु , दःु ण, इच्ाा यत्नावद कृा ्रकत्य् हो ता ह
लौवकृकृ ्रकत्य् कृन ध्त तश बाह्य एिस मानं ्रकत्य् कृन ध्तर कृो आपनन ंमझ वलया ह धलौवकृकृ
्रकत्य् तीन ्रककृार कृा हो ता ह- ंामा्यल् , ज्ञानल् और यो ज तकृश भार्ाकृार नन कृन िल ाह
(र्ो डा) लौवकृकृ ंव्नकृर्ो कृा ही ्रकवतपादन वकृया ह वक्लिता कृन कृार उ्हरनन तीनर धलौवकृकृ
ंव्नकृर्ों कृा ्रकवतपादन नह वकृया ह
बोधतप्रश्न-1

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वन्नवलवणत ्रकश्नर कृन उत्तर ररक्त ्ाानर म वलवणए ताा इकृाई कृन ध्त म वदए ए उत्तरर ंन धपनन
उत्तरर कृा वमलान कृीवजए-
1. इव्वयााश ंव्नकृर्श वकृतनन ्रककृार कृा हो ता ह?
2. जावत कृन ज्ञान म कृौन ंा इव्वयााश ंव्नकृर्श हो ता ह?
3. ंविकृल्पकृ ्रकत्य् क्या ह?
4. ंामा्य धमश क्या ह?
अयौवृृतप्रत् ि
्रकत्य् ज्ञान कृी ्पि जानकृारी कृन वलए कृी दृवि ंन इन तीनर धलौवकृकृ ्रकत्य् कृी ंसव्ए जानकृारी
आपकृो पाठ्य ि्तु कृो ंमझनन म ंहायता कृर न ‘ंामा्यल् ा ्रकत्यांवत्त‘, ‘ज्ञानल् ा
्रकत्यांवत्त‘ और ‘यो ज‘ ंव्नकृर्श यन तीन भनद धलौवकृकृ ्रकत्य् कृन हैं जब हम एकृ ि्तु कृा ज्ञान
्रकाए कृर लनतन हैं तो उं ्रककृार कृी ंम्त ि्तओ ु स कृो धपनन आप ंमझ लनतन हैं हर एकृ ि्तु कृन
ज्ञान कृन वलए धल ्रकयत्न नह कृरना पडता ह उनम रहनन िालन ंामा्य धमश कृा ज्ञान यवद हम हो
जाता ह तो उं ंामा्य धमश कृन ज्ञान कृन वारा ही ंम्त ंजातीय ि्तओ ु स कृा ंामा्य ज्ञान हो जाता
ह उदाहर कृन वलए यवद आप ंंो ईघर म धआ ु स और आ कृो दण ू तन हैं तो िहास धमू त्ि ंामा्य ंन
ंम्त धएु स कृा और िव्हत्ि ंामा्य ंन ंम्त िव्हयर कृा ्रकत्य् हो जाता ह तभी धम्रू ंामा्य
और िव्ह ंामा्य कृी वयावए कृा ्ह हो ता ह एकृ और उदाहर दनणतन हैं मान लीवजए हम
विविध ायर या मनष्ु यर कृो दनणतन हैं, वकृ्तु ो त्ि या मनष्ु यत्ि कृो नह दनणतन ो त्ि जावत या
मनष्ु यत्ि जावत ंभी ायर या ंभी मनष्ु यर कृा ंामा्य धमश ह, और यह लौवकृकृ ्रकत्य् कृा विर्य
नह ह इं ो त्ि या मनष्ु यत्ि जावत कृा ्रकत्य् ‘ंामा्यल् ा ्रकत्यांवत्त‘ नामकृ धलौवकृकृ
्रकत्य् ंन हो ता ह
दंू रा धलौवकृकृ ्रकत्य् ‘ज्ञानल् ा ्रकत्यांवत्त‘ ह जब एकृ ज्ञाननव्वय ंन वकृंी ि्तु कृा लौवकृकृ
ंव्नकृर्श हो ता ह, और इं तरह िह ज्ञाननव्वय उं ि्तु कृन ्िाभाविकृ ु कृो ्ह कृरती ह,
लनवकृन ंाा ही ंाा उंी ज्ञाननव्वय वारा उंी ि्तु कृन वकृंी ध्य ु कृो वजंन ्ह कृरनन ्ह
कृरनन कृी कृल्पना कृी जाती ह, लनवकृन उं ु कृो ्ह कृरनन म िह ज्ञाननव्वय ं्म नह ह, तो
यही ज्ञान बो ध कृी कृल्पना ‘ल् ा ्रकत्यांवत्त‘ कृहलाती ह मान लीवजए ‘ंरु वभच्दन ण्शम‘् यह
ज्ञान ह एकृ वदन बाजार म वकृंी वयवक्त नन च्दन कृन रुकृडन कृो ंघसू ा और परी्ा कृरनन कृन बाद यह
वनश्चय वकृया वकृ यह ंु व्धत रुकृडा च्दन कृा रुकृडा ह दंू रन वदन वकृंी ्ाहकृ नन यह च्दन कृा
रुकृडा उं वयवक्त कृो वदणलाकृर उंकृन विर्य म उंकृी ं्मवत जाननी चाही, वजं पर उं वयवक्त

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नन दरू ंन ही दनणतन हुए कृहा वकृ यह रुकृडा ंु व्धत च्दन कृा ह इं घरना म उं वयवक्त नन च्दन
कृो आण स र ंन तो दनणा, पर्तु उंकृी ंु ्ध कृो धपनी ्रता नव्वय ंन ्ह नह वकृया, लनवकृन उं
वयवक्त कृो वफर भी ‘ंरु वभच्दन ण्शम‘् कृी ्रकतीवत हो जाती ह इं ्रकतीवत म च्दन और च्दनत्ि
नामकृ जावत और उंकृन ंौरभ ु तीनर कृो चा्र्ु ्रकत्य् बताना ‘ज्ञानल् ा ्रकत्यांवत्त‘ नामकृ
धलौवकृकृ ्रकत्य् ंन ं्भि हो ता ह तींरा धलौवकृकृ ्रकत्य् यो ज ्रकत्य् ह भतू , भविष्य आवद
कृी ि्तओ ु स कृन ंाा लौवकृकृ इव्वय और धाश कृा ंव्नकृर्श नह बन पाता ह धतएि िहास यो व यर
कृो धपनी यो ज ंामथ्यश ंन धलौवकृकृ इव्वयााश ंव्नकृर्श हो जाता ह इं तरह ंन
‘ंामा्यल् ा ्रकत्यांवत्त‘ ‘ज्ञानल् ्रकत्यांवत्त‘ ताा यो ज ्रकत्य् कृी तीनर कृो वरयास
धलौवकृकृ ्रकत्य् कृी श्रन ी म आतन हैं धपनन इं ध्ययन कृी ंवस ्ए पनु राितवत्त हम एकृ बार वफर
ंन कृर ल, तावकृ नयावयकृर कृन ्रकत्य् ज्ञान कृो हम और ्पि रूपप म ंमझ ंकृ
3.7तसखराखंर्
पहलन आपनन ्रकत्य् कृन दो भनद जानन- वनविशकृल्पकृ ्रकत्य् और ंविकृल्पकृ ्रकत्य् लौवकृकृ और
धलौवकृकृ कृी दृवि ंन ्रकत्य् ज्ञान कृा एकृ और विभाजन वकृया या वफर लौवकृकृ ्रकत्य्-बाहय
और मानं दो ्रककृार कृा बताया या धलौवकृकृ ्रकत्य् कृी तीन श्रनव यास बताई ई-स ‘ज्ञानल् ा
्रकत्यांवत्त‘ ‘ंामा्यल् ा ्रकत्यांवत्त‘ और यो ज ्रकत्य्
्रकत्य् ज्ञान कृन ्रककृारर कृन विभाजन कृन उपरा्त इं इकृाई म आपनन यह भी पढ़ा वकृ लौवकृकृ ्रकत्य्
कृा ज्ञान इव्वय और धाश कृन ंव्नकृर्श ंन उत्प्न हो ता ह और िह ंव्नकृर्श ाह ्रककृार कृा हो ता ह
ंसयो ंव्नकृर्श जंन इव्वय ताा घर कृा ंव्नकृर्श ंसयो ंव्नकृर्श माना जाता ह च्रु रव्वय वारा
घर म व्ात श्याम रूपप कृा ्रकत्य् ज्ञान ंयस क्त ु ंमिाय ं्ब्ध ंन हो ता ह वफर जब हम घर म
घरत्ि आवद ंामा्य जावत कृा ्रकत्य् कृरतन हैं तो िह ंयस क्त ु ंमिनतंमिाय ं्ब्ध ंन हो ता ह
चौाा ंव्नकृर्श ंमिाय ंव्नकृर्श ह जो श्रो तनव्वय ंन र्ब्द कृा ्ह कृरतन ंमय हो ता ह
ंमिनत ंमिाय नामाकृ ंव्नकृर्श र्ब्द म ंमिाय ं्ब्ध ंन रहनन िालन र्ब्दत्ि जावत ्ह कृन
ंमय हो ता हैं
ाठा ंव्नकृर्श विर्नर् विर्नष्यभाि ंव्नकृर्श ह जब हम भतू ल म घराभाि कृा ज्ञान हो ता ह तो िह
विर्नर् विर्नर्भाि ंव्नकृर्श ंन हो ता ह

3.8तपखरराभखवर्ृतर्ब्दखियी

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्रकमा- याााश ज्ञान
इव्वयााश ंव्नकृर्श- बाह्यनव्वयर (च्,ु रंना, ्रता , त्िकृ् और श्रो त) ताा ध्तररव्वय मन कृा धाश
यानी वजं ि्तु कृा ज्ञान ्रकाए कृरना ह उंकृन ंाा ं्ब्ध
वनविशकृल्पकृ- नाम जावत आवद ंन रहवत वकृंी ि्तु कृा पव्राम ् म उत्प्न ज्ञान
ंविकृल्पकृ- नाम जावत आवद कृन ंाा उत्प्न ्रकत्य् ज्ञान
हानो पादानो पन्ा बवु द्ध- त्या कृरना ह धािा ्ह कृरना ह इंकृी बवु द्ध
धिा्तर वयापार- वकृंी ंन उत्प्न ताा ध्य वकृंी ि्तु कृो उत्प्न कृरनन िाला धााशत् म्य्ा
कृी भवू मकृा वनभानन िाला
धयतु वंद्ध ं्ब्ध- धव्तत्िकृाल म वजंन एकृ दंू रन ंन धल न वकृया जा ंकृन
ंामा्यल् ा ्रकत्यांवत्त- ंामा्य धमश कृा ्रकत्य् ज्ञान
ज्ञानल् ा ्रकत्यांवत्त- पिू श म ्ह वकृए ए ज्ञान कृन आधार पर उत्प्न ्रकत्य् ज्ञान
यो ज ्रकत्य्- यो व यर कृन वारा वकृया या ्रकत्य्
लौवकृकृ ्रकत्य्- ंामनन धािा ्रकत्य् रूपप ंन उत्प्न ज्ञान
धलौवकृकृ ्रकत्य्- वजंकृा ्रकत्य् ज्ञान ंीधन-ंीधन न हो
धनवु यिंाय- ज्ञान ंन उत्प्न ज्ञान
बोधतप्रश्न-2
वन्नवलवणत ्रकश्नर कृन उत्तर ररक्त ्ाानर म वलवणए ताा ध्त म वदए ए उत्तरर ंन धपनन उत्तरर कृा
वमलान कृीवजए-
1. लौवकृकृ ्रकत्य् वकृतनन ्रककृार कृा हो ता ह?
2. यो ज ंव्नकृर्श वकृं श्रन ी म आता ह
3. ंरु वभच्दनण्शम् वकृं ्रकत्य् कृा उदाहर ह?
4. मनष्ु यत्ि धािा ो त्ि जावत कृा ्रकत्य् कृंन हो ता ह?
4.7तउत्तरातुखयखतबोधतप्रश्नत1
1. ाह
2. ंयस क्त
ु ंमिनतंमिाय
3. नामजावत आवद कृन ंाा उत्प्न ज्ञान
4. जावत
बोधतप्रश्न-2
1. दो -बाह्य और मानं

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2. धलौवकृकृ ्रकत्य्
3. ज्ञानल् ा ्रकत्यांवत्त कृा उदाहर
4. ंामा्यल् ा ्रकत्यांवत्त ंन
3त.10तसन्तदभ्तग्रन्तथतसच
ू ीत
कृन र्ि वमश्रः तकृश भार्ा, चौण्भा ंस्कृत त ंस्ाान, 1990
शा. चक्रधर वबजल्िातः भारतीय ्याय र्ास्त्र, उत्तर ्रकदनर् वह्दी ं्स ाान
वहररय्ना, एम.- भारतीय दर्शन कृी रूपपरन णा, राजकृमल ्रककृार्न, 1987
रो ला, िाच्पवत- ंस्कृत त ंावहत्य कृा इवतहां, चौण्बा विद्याभिन, 1992
दां एु , एं. एन.- भारतीय दर्शन कृा इवतहां भा -1, राज्ाान वह्दी ््ा धकृादमी, जयपरु ,
1988
र्माश, च्वधर- भारतीय दर्शन धनर् ु ीलन और आलो चन, मो तीलाल बनारंीदां, 1991
राधाकृत ष् न, एं.- भारतीय दर्शन, भा -2 राजपाल ए्श ंसं
र्ास्त्री, ्िामी वारकृादां- ्याय दर्शनम् िात््यायन भाष्य ंवहत, बद्ध ु भारती, 1986
चट्टो पा्याय, दनिी ्रकंाद, भारतीय दर्शन ंरल पररचय, राजकृमल ्रककृार्न, 1980
वंसह, उदय नाराय - ्यायदर्शनम,् चौण्भा ंस्कृत त ्रकवतष्ठान, 2004
ध्नभस ट्ट- तकृश ं्स हः, मो तीलाल बनारंीदां, 2007
3.11तवनबन्धखत्ुृतप्रश्न
1. ंयस क्त
ु ंमिनत ंमिाय ंव्नकृर्श कृी ंो दाहर वयाख्या ्रक्ततु कृीवजए
2. ंविकृल्पकृ ्रकत्य् क्या हो ता ह, इंकृी वि्ततत वयाख्या कृीवजए
3. र्ो ढ़ा ंव्नकृर्श कृा ंस्नप म ि नश कृीवजए
4. ज्ञानल् ा ्रकत्यांवत्त कृी वयाख्या कृीवजए

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इृखई-त4त ृ् भखर्खत-तअनकुखनतप्रुखणत-तव् खवप्ततएिंतइसृे तभेदोंतृीतुीुखंसखत-तुूयत
पखठतअथ्तएिंतव् खख् ख

इृखईतृीतरूपराे णखत
4.1 ्रक्तािना
4.2 उद्दनश्य
4.3 पररचय
4.4 ल् एिस उदाहर
4.5 धनमु ान कृन भनद
4.5.1 ्िाााशनमु ान
4.5.2 पराााशनमु ान
4.6 वयावए कृी पररभार्ा एिस उंकृन भनद
4.6.1 ध्ियवयवतरन कृी वयावए
4.6.2 कृन िला्ियी वयावए
4.6.3 कृन िल वयवतरन कृी वयावए
4.7 ंारासर्
4.8 पाररभावर्कृ र्ब्दािली
4.9 बो ध ्रकश्नर कृन उत्तर
4.10 वनब्धात्मकृ ्रकश्न
4.11 ं्दभश ््ा ंचू ी

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4.1तप्रस् खिनख
पिू श कृी इकृाइयर म आप ्याय दर्शन कृा ंवस ्ए इवतहां, ्रकाचीन ्याय एिस नवय ्याय कृी
तत्त्िमीमासंा, ्रकमनयर कृन नाम, ्रकमा , कृार कृन ्िरूपप इत्यावद विर्यर कृा ध्ययन कृर चकृ ु न हैं
धपनी चौाी ध्ययन इकृाई म आप ्रकत्य् ्रकमा कृी पररभार्ा, ्रकत्य् कृन भनद, इव्वयााश ंव्नकृर्श
कृी वयाख्या इत्यावद विर्यर पर वि्ततत ध्ययन भी कृर चकृ ु न हैं धब तकृ कृन धपनन ध्ययन कृन बाद
आप कृो यह ्मर कृरना मवु श्कृल नह हो ा वकृ नयावयकृर नन धपनन ्रकमा र कृन चार भनद बताए हैं,
याा ्रकत्य् ्रकमा , धनमु ान ्रकमा , उपमान ्रकमा और र्ब्द ्रकमा धपनी चौाी ध्ययन इकृाई
म आप ्रकत्य् ्रकमा कृा वि्ततत ध्ययन पहलन ही कृर चुकृन हैं ितशमान ध्ययन इकृाई म धब हम
धनमु ान ्रकमा कृन बारन म वि्ततत चचाश कृर न ्यान दननन िाली बात यह ह वकृ धनमु ान ्रकमा कृो
धकृंर ्याय दर्शन कृा ्रका बताया जाता ह हम धनमु ान ्रकमा कृी चचाश कृन वि्तार म आ न बढ़,
इंकृन पहलन हम यह भी ्मर कृर लनना चावहए वकृ नयावयकृर कृन धनमु ान ्रकमा कृी ्पि ंमझ
्रकाए कृरनन कृन वलए हमारन वलए वयावए कृन वनयम कृो ंमझना धवनिायश ह, क्यरवकृ ंस्नप म आप यह
भी कृह ंकृतन हैं वकृ धनुमान ्रकमा कृा ्रका वयावए कृी धिधार ा ह आपकृो याद हो ा वकृ वयावए
कृो वनयत ंाहचयश वनयम भी कृहतन हैं, और यह कृायशकृार ं्ब्ध पर आवश्रत ह कृार ्रककृर पर
कृन व्वत धपनी ध्ययन इकृाई म आप पहलन ही पढ चकृ ु न हैं वकृ कृार कृायश कृा वनयतपिू शिती हो ता
ह आप इन बातर कृो धपनी ्मतवत म ताजा कृर ल क्यरवकृ वयावए कृन वनयमर कृो ंमझतन ंमय
आपकृो धपनन इं पिू श ध्ययन कृी आिश्यकृता महंूं हो ी आप यह भी ्यान रण वकृ पिू श कृी
भासवत इं ध्ययन इकृाई म भी हम धपनन ध्ययन कृो कृन र्ि वमश्र कृत त तकृश भार्ा कृन मल ू पाठ कृन
आधार पर आ न बढ़ाएस न
4.2तउद्देश्
1. इं इकृाई कृन ध्त तश आप धनमु ान ्रकमा कृन बारन म वि्ततत जानकृारी ्रकाए कृर ंकृ न
2. वलस और परामर्श जंन पाररभावर्कृ र्ब्दर कृी वयाख्या ंन आप पररवचत हो ंकृ न
3. धनमु ान ज्ञान कृन वलए आिश्यकृ वयावए कृन वनयमर कृो आप जान ंकृ न
4. धनमु ान ्रकमा कृन पसचिाक्यर ंन धााशत् ्रकवतज्ञा, हनत,ु उदाहर , उपनय और वन मन ंन आप
पररवचत हो ंकृ न
4.3 पररचय
धनमु ान कृा इवतहां ल्बा और परु ाना ह िवदकृ ंावहत्य म ्पितः धनमु ान कृी तावकृश कृ ्रकवक्रया
कृा विश्लन र् तो नह उपलब्ध हो ता वकृ्तु य्र -त्र धनमु ान कृन वयािहाररकृ उदाहर र कृी ्रकचरु ता

उत्तराण्श मक्त
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वदणाई दनती ह वनवश्चत तौर पर ्रकत्य् ्रकमा ंन हम याााश ज्ञान कृी उपलवब्ध हो ती ह वकृ्तु धपनन
आविभाशि कृन ंमय ंन ही नयावयकृर कृा धनमु ान ंन हरा ल ाि रहा ह धनु उपं श पिू कृ श ‘मा‘
धातु म ल्यरु ् ्रकत्यय जडु नन ंन धनमु ान र्ब्द कृी वनष्पवत्त हो ती ह वजंकृा ंामा्य धाश ह पश्चात ज्ञान
धााशत् ्रकत्य् ्रकमा ंन ज्ञात वच्ह ंन पीान ंन उत्प्न हो नन िालन ज्ञान कृो धनमु ान कृहतन हैं आप यह
भी कृह ंकृतन हैं वकृ दो ज्ञात ंत्यर ंन वकृंी धज्ञात ंत्य कृा ज्ञान कृरना ही धनमु ान ह धएु स और
धवग्न कृन ज्ञान ंन पिशत म धवग्न कृा ज्ञान धनुमान ज्ञान कृहलाए ा इंन आप आ न ्पि रूपप ंन ंमझ
पाएस न
ौतम नन ्याय ं्र ू म तीन ्रककृार कृन धनमु ान ्रकमा कृी चचाश कृी ह-
धा तत्पिू कृश स व्र विधमनमु ानस पिू िश च्ान र्ित्ंामा्यतो दृिस च पिू िश त, र्नर्ित् और ंामा्यतो दृि
नामकृ भनद ंन धनुमान तीन ्रककृार कृा हो ता ह लनवकृन तकृश भार्ाकृार नन धनुमान कृन दो ही भनद वकृए
हैं यन भनद मख्ु यतः िर्नवर्कृ दर्शन म ्रकवतपावदत वकृए ए हैं, वजनकृा ध्ययन आप ितशमान इकृाई म
आ न कृर न

4.4तयिणतएिंतउदखहराण
आप जानतन ही हैं वकृ नयावयकृर कृन चार ्रकमा भनद हैं, और ंिश्रकाम ्रकत्य् ्रकमा कृी वयाख्या
कृरनन कृन बाद नयावयकृ धनमु ान ्रकमा कृी वयाख्या कृरतन हैं वयाख्या कृन इं धनक्र ु म कृन बािजदू
नयावयकृर कृी ज्ञानमीमांस ा कृा ंिाशवधकृ महत्त्िपू श आधार धनमु ान ्रकमा कृो ही बताया जाता ह
्रकश्न उठता ह वकृ धनमु ान पद ंन उनकृा धवभ्रकाय क्या ह? नयावयकृर नन धनमु ान उं ्रकवक्रया कृो
कृहा ह वजंम हम एकृ ंचू कृ वच्ह कृी उपव्ावत कृो दनणकृर (वजंन नयावयकृर कृी पाररभावर्कृ
र्ब्दािली म वलस कृहा या ह) वकृंी ध्य ि्तु कृन धव्तत्ि कृा बो ध कृरतन हैं, और इं ज्ञान बो ध
कृा आधार यह हो ता ह वकृ दनणन ए वलस ताा बो ध कृी ई ि्तु कृन बीच ंदा उपव्ात रहनन िाला
एकृ ं्ब्ध ह, वजंन नयावयकृर नन धपनी र्ब्दािली म वयावए कृा नाम वदया ह धनमु ान कृी
पररभार्ा तकृश भार्ा म इं ्रककृार दी ई ह-
वलस परामर्ोऽनूमानम् यनन वह धनमु ीयतन तदनमु ानम् वलस परामर्ेन चानुमीयतनऽतो
वलस परामर्ोऽनुमानम् तच्च धमू ावदज्ञानमनवु मवतस ्रकवत कृर तिात् धग््यावदज्ञानमनवु मवतः तत्कृर स
धमू ावदज्ञानम्
धााशत् वलस कृन परामर्श कृो धनमु ान कृहतन हैं इं पररभार्ा म (वजंन पार्पररकृ र्ब्दािली म ल्
कृहा जाता ह) ‘वलस ‘ ताा ‘परामर्श‘ दो र्ब्द हैं, ्पि ह वकृ वलस ताा परामर्श इन दो नर र्ब्दर कृो

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page १४७
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ठीकृ ंन ंमझन वबना धनमु ान कृन ल् कृो ्पि तौर पर नह ंमझा जा ंकृता ह इंवलए दनणतन हैं
वकृ तकृश भार्ा म ‘वलस ‘ कृा ल् वकृं तरह वकृया या ह तकृश भार्ा कृन धनंु ार - वयावए बलनन
धाश मकृस वलस म
धााशत वयावए बल ंन जो धाश कृा बो धकृ ह, उंन वलस कृहतन हैं आपनन वलस कृन धाश कृो ंमझनन कृा
्रकयां वकृया, तो बीच म ‘वयावए‘ पद कृन आ जानन ंन आपकृो ाो डी परन र्ानी हो रही हो ी आपकृो
याद हो ा वकृ वयावए कृा धाश ंाहचयश वनयम ंन हो ता ह, इंकृा आवस र्कृ उल्लनण हम ्रक्तािना म
पहलन ही कृर चकृ ु न हैं ंरल र्ब्दर म ंाहचयश वनयम कृो इं तरह ंन ंमझ ंकृतन हैं- कृार और
कृायश कृा ंदा ंाा-ंाा उपव्ात रहना उदाहर ्िरूपप ‘य्र -य्र धमू ्त्र त्र िव्हः‘ धााशत
जहा-स जहास धआु स हो ता ह, िहा-स िहास धवग्न हो ती ह, इंी ंाहचयश वनयम कृो वयावए कृहतन हैं यह
उदाहर तो आपनन ्ियस धपनन वयािहाररकृ जीिन म भी धनुभि वकृया हो ा आपनन पहलन यह पढ़ा
भी ह वकृ नयावयकृ ंत्य कृी कृंौरी कृो वयिहार मानतन ान धमू कृो दनणकृर धवग्न कृा ज्ञान हो ता ह,
धतः धमू धाश कृा बो ध कृरानन िाला हुआ, और इंवलए िह वलस कृहलाता ह
धनमु ान कृन ल् म तकृश भार्ाकृार नन दंू रा र्ब्द ‘परामर्श‘ ्रकयक्त
ु वकृया ह आइयन, हम धब इंन भी
ंमझनन कृी कृो वर्र् कृरतन हैं परामर्श कृन दो धाश हम ्याय कृन ््ार म वमलतन हैं, पहला धाश इं
्रककृार वकृया या ह- वलस ्य तततीयस ज्ञानस परामर्शः धााशत वलस कृन तततीय ज्ञान कृो परामर्श कृहतन हैं
दंू रा धाश ह- वयावए विवर्िप्धमशता ज्ञानस परामर्शः धािा वयावएविवर्िप्धमशता ज्ञान कृो
परामर्श कृहतन हैं
वलस और परामर्श कृा धाश ्पि हो जानन कृन बाद आप धब तकृ यह ंमझ चकृ ु न हैं वकृ वलस परामर्श
कृो धनमु ान कृहतन हैं और िह वलस परामर्श धूमावदज्ञान रूपप ह, धनवु मवत कृन ्रकवत कृर हो नन ंन ्रकश्न
ह वकृ धनवु मवत क्या ह? धनमु ान ्रकमा ंन जो ज्ञान ्रकाए हो ता ह उंन ही हम धनवु मवत कृहतन हैं इं
उदाहर म धएु स कृो दनणकृर धवग्न आवद कृा ज्ञानबो ध धनुवमवत ह धतः धमू आवद ज्ञान धवग्न आवद
ज्ञान कृा कृर हो नन ंन धनमु ान ह
आप धपनी पिू श इकृाई म कृार कृन ्िरूपप कृी वििनचन कृन क्रम म कृर क्या हो ता ह, इं ्रकश्न कृी
वि्ततत जानकृारी ्रकाए कृर चकृ
ु न हैं
वलस और परामर्श क्या हो ता ह यह ्रकश्न धभी भी आपकृन मन म ्िाभाविकृ तौर पर र्ायद उठ रहा
हो ा, आइए जरा वि्तार ंन दनणतन हैं वकृ तकृश भार्ाकृार नन इंकृा उत्तर दनतन हुए क्या कृहा ह-

उत्तराण्श मक्त
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वयावए बलननााश मकृस वलस म याा धमू ो ऽग्ननवलस म ताावह य्र धमू ्त्र ावग्नररवत ंाहचयश वनयमो
वयावएः त्यास हत ीतायवमि वयाएौ धमू ो ऽवग्नस मयवत धतो वयावएबलननाग््यनमु ापकृत्िाद्
धमू ो ऽग्ननवलं
त्य तततीयस ज्ञानस परामर्शः ताावह ्रकामस ताब्महमंादौ भयू ो भयू ो धमू स पश्यन् िव्हस पश्यवत तनन
भयू ो दर्शननन धमू ाग््यो ः ्िाभाविकृस ं्ब्धमनिधारयवत, य्र धमू ा्त्र ावग्नररवत
धभी तकृ आपनन यह पढ़ा वकृ वयावएविवर्ि प्धमशता ज्ञान ही धनमु ान ह आपनन यह भी पढ़ा वकृ
ंाहचयश वनयम या ्िाभाविकृ वनयम कृो ही वयावए कृहतन ह,स जंन जहास-जहास धआ ु स हो ता ह िहा-स िहास
आ हो ती ह, याा महानं धािा रंो ईघर म भयू ो दर्शन धािा रंो ईघर म बार-बार धएु स कृन ंाा
आ कृा दर्शन कृरनन कृन बाद पिशत आवद ्ालर म धएु स कृा यवद हम दर्शन हो ता ह, तो धएु स कृा यही
ज्ञान ववतीय ज्ञान कृहा जाता ह इं ववतीय ज्ञान ंन ्िाभाविकृ तौर पर पिू श हत ीत धमू और धवग्न कृी
वयावए कृा ्मर हो ता ह, और तब ‘िव्हवयातय धमू ािासश्चायस पिशतः‘ धााशत् यह पिशत धमू ंन यक्त ु
धवग्न ंन वयाए ह, इं ्रककृार कृा ज्ञान हो ता ह, और इंन ही नयावयकृर कृी पाररभावर्कृ र्ब्दािली म
तततीय ज्ञान कृहा जाता ह और यही तततीय ज्ञान धनवु मवत कृन ्रकवत कृर हो नन ंन धनमु ान कृहा जाता
ह इंी तततीय ज्ञान कृन बाद ‘त्मात् पिशतो िव्हमान्‘ इंवलए पिशत बव्ह यक्त ु ह, यह धनुवमवत हो
जाती ह
इं तततीय ज्ञान कृा बो ध कृरानन िालन इं उदाहर कृी धााशत िव्हवयातयधमू िाश्च स ायस पिशतः कृी
वयापकृ वयाख्या तकृश भार्ा म कृी ई ह आप ्रकार्भ म ही यह बात ंमझ चुकृन हैं वकृ
‘वयावएविवर्िप्धमशताज्ञान‘ कृो धनमु ान कृहतन हैं यहास यह ंमझ लनना उपयो ी हो ा वकृ तततीय
ज्ञान कृन दो धर्
स हो तन हैं- एकृ धर्
स ‘वयावए‘ कृो ंवू चत कृरता ह, और दंू रा धर्
स ‘प्धमशता‘ कृो
‘िव्हवयातय‘ इतनन धर् स ंन वयावए ंवू चत हो ती ह, और ‘धमू िासश्चायस पिशतः‘ इं धर्स ंन धमू कृा
पिशत रूपपी प् म धव्तत्ि ्रकतीत हो ता ह इंी कृो प्धमशता ज्ञान कृहतन हैं इं तरह हम दनण चकृ ुन
हैं वकृ ‘िव्हवयातयधमू िाश्चायस पिशतः‘ कृन इं तततीय ज्ञान म वयावए और प्धमशता ज्ञान दो नर ही
विद्यमान हैं, इंवलए इं तततीय ज्ञान कृो ‘वयावएविवर्िप्धमशता ज्ञान‘ भी हम कृह ंकृतन हैं
4.5तअनुक खनतृे तभेद
जंा वकृ आप जानतन हैं धनमु ान कृन दो भनद बताए ए हैं, याा ्िाााशनमु ान और पराााशनमु ान
4.5.1 ्िाााशनमु ान
तकृश भार्ा म ्िाााशनमु ान कृी पररभार्ा इं ्रककृार कृी ई ह-

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page १४९
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तच्चानमु ानस ववविधम् ्िााश परााश चनवत ्िााश ्ि्रकपवत्त हनतःु ताा वह ्ियमनि महानंादौ
विवर्िनन ्रकत्य्न धमू ाग्नयो वयाशवए हत ीत्िा पिशत ंमीपस त्तद्गतन चा्ौ ंव्दहानः
पिशतिवतशनीमविवच्ा्न मल ू ा्रकभ्रवलहास धमू -लनणा पश्यन् धमू दर्शनाच्चो द्बुद्धंस्कृारो वयावएस ्मरवत
य्र धमू ्त्र ावग्नररवत त्र ो ऽ्र ावप धमू ो ऽ्तीवत ्रकवतपद्यतन त्मादत्त पिशतनऽधवग्नरतय्तीवत ्ियमनि
्रकवतपद्यतन तत््िाााशनुमानम्
तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं वकृ हनतु दर्शन ंन ्ियस ्रकाए वकृया या ज्ञान धनमु ान ज्ञान कृहलाता ह वकृंी
वयवक्त नन यवद रंो ईघर म ्रकत्य् ्रकमा ंन यह ज्ञान ्रकाए वकृया ह वकृ जहास-जहास धमू हो ता ह िहा-स
िहास धवग्न हो ती ह इं ज्ञान कृन वारा ्ियस ही धमू और धवग्न कृी वयावए कृो ्ह कृर पिशत कृन
ंमीप जाकृर पिशत त धवग्न कृन विर्य म ं्दनह हो नन पर (पिशत म धवग्न ह या नह ) पिशत पर वयाए
धविवच्ा्नमल ू ा धमू कृी रन णा कृो दनणकृर धमू कृन दर्शन ंन उद्बुद्ध ंस्कृार ंन धएु स और धवग्न कृी
वयावए कृा ्मर कृरता ह उंकृन बाद पिशत म धआ ु स ह, इंवलए उं पिशत पर धवग्न भी ह, यह जान
लनता ह इं ्रककृार ्ियस कृन ्रकत्य् पर आधाररत यह धनमु ान ज्ञान ्िाााशनमु ान कृहलाता ह

4.5.2तपराखथख्नकुखन
जब वकृंी दंू रन वयवक्त कृो पासच धियिासॅन ंन यक्त ु धनमु ान ज्ञान कृराया जाता ह तो िह
पराााशनमु ान कृहलाता ह तकृश भार्ा म पराााशनमु ान कृा ल् और उदाहर इं ्रककृार ह-
यत्तु कृवश्चत् ्ियस धमू ादवग्नमनमु ाय परस बो धवपतसु पसचाियिमनमु ानिाक्यस ्रकयसक्त
ु न तत् पराााशनमु ानम्
तद्याा पिशतो ऽवग्नमान्, धमू ित्िात्, यो यो धमू िान ंंो ऽवग्नमान् याा महानंः, ताा चायस
त्मात्ताा इवत
धननन िाक्यनन ्रकवतज्ञावदमता ्रकवतपावदतात् पसचरुपो प्ना वलस ात परो ऽतयऽवग्नस ्रकवतपद्यतन तननतत्
पराााशनमु ानम्
पराााशनमु ान ंन तात्पयश ह दंू रन कृन वारा धनमु ान कृा बो ध कृराना ्ियस धमू ंन धवग्न कृा धनमु ान
कृरकृन दंू रन कृो यह ज्ञान कृरानन कृन वलए पच
स ाियिास ंन यक्त
ु धनमु ान ज्ञान कृराया जाता ह और यही
धनमु ान ज्ञान पराााशनमु ान कृहलाता ह हम धब कृुा उदाहर र ंन इंन ंमझनन कृी कृो वर्र् कृर न 1.
यह पिशत धवग्नमान ह (यह ्रकाम धियि ्रकवतज्ञा ह) 2. धमू यक्त ु हो नन ंन (यह हनतु रूपप दंू रा धियि
ह) 3. जो -जो धमू यक्तु हो ता ह, िह-िह िव्हयक्त ु भी हो ता ह, जंन रंो ई घर (यह तींरा धियि
उदाहर हुआ) 4. यह पिशत भी उंी ्रककृार धमू यक्त ु ह (यह उपनय नामकृ चौाा धियि हुआ) 5.

उत्तराण्श मक्त
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इंवलए पिशत धवग्नयक्त ु ह (यह वन मन रूपप पासचिास धियि हुआ) और पिशत धवग्नयुक्त ह इं
्रककृार कृा जो ज्ञान हो ता ह िह ज्ञान दंू रा वयवक्त जब जान लनता ह तो िह पराााशनमु ान कृहलाता ह
्िाााशनमु ान ताा पराााशनमु ान कृन ज्ञान कृन वलए वयावए ं्ब्ध धवनिायश ह वयावए और उंकृन भनदर
कृा ध्ययन आप इंकृन पिू श कृी इकृाई म कृर चकृ ु न हैं धमू और धवग्न कृी वयावए म आपनन दनणा ह
वकृ धमू हनतु ह और धवग्न ंा्य ह धनमु ान ज्ञान कृन वलए ंही हनतु कृा हो ना आिश्यकृ हो ता ह
लनवकृन कृभी-कृभी ऐंा भी हो ता ह वकृ हनतु ंदो र् हो ता ह िही हनतु वनदोर् माना जाता ह जो ंा्य
कृी वंवद्ध मन ंमाश हो यानी वकृ प्धमशता आवद रूपपर ंन यक्त ु हो ंदो र् हनतु हनत्िाभां कृहलातन हैं
हनत्िाभां कृा ध्ययन आप धपनी ध ली ध्ययन इकृाई म वि्तारपिू कृ श कृर न
बो ध ्रकश्न ्रकाम
वन्नवलवणत ्रकश्नर कृन उत्तर ररक्त ्ाानर म वलवणए ताा इकृाई कृन ध्त म वदए ए उत्तरर ंन धपनन
उत्तरर कृा वमलान कृीवजए-
1. धनमु ान कृा ल् ह-
कृ. वलस परामर्ोऽनमु ानम्
ण. वयावएबलननााश मकृस वलस म
. ंा्य वयापकृत्िन ंवत ंाधनावयापकृत्िमपु ावधः
घ. इनम ंन कृो ई नह
2. तकृश भार्ाकृार कृन धनंु ार धनमु ान कृन भनद हो तन हैं-
कृ. एकृ
ण. दो
. तीन
घ. चार
3. ्याय ं्र ू कृन धनंु ार धनमु ान कृन भनद हैं-

उत्तराण्श मक्त
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कृ. दो
ण. तीन
. चार
घ. पासच
4. इनम ंन प् क्या ह-
कृ. पिशत
ण. रंो ईघर
. तालाब
घ. इनम ंन कृो ई नह
5. आदनरश् ्धन ंसयो क्या ह
कृ. उपावध
ण. वयावए
. हनत्िाभां
घ. इनम ंन कृो ई नह
आइए धब वयावए कृी चचाश कृो भी ाो डा आ न बढ़ाया जाय तकृश भार्ा म वयावए कृन धाश कृो ्पि
कृरतन ंमय दो बात मख्ु य रूपप ंन ्रकवतपावदत कृी ई हैं इनम पहली बात यह ह वकृ वयावए कृा ्ह
‘भयू ः ंहचार दर्शन‘ ंन हो ता ह, और वयावए एकृ ंाहचयश या ्िाभाविकृ ं्ब्ध हो ता ह लनवकृन
यहास एकृ बात ्यान दननन यो ग्य ह वकृ हर ज ह ‘भयू ः ंहचारदर्शन‘ ंन ्िाभाविकृ ं्ब्ध कृा वनश्चय
नह वकृया जा ंकृता ह, इं बात कृो इं तरह ंमझ ंकृतन हैं आप जहास जहास धआ ु स दनणतन हैं िहास -
िहास धवग्न कृा दर्शन कृरतन हैं और बार-बार दनणनन कृन बाद आपकृो इं ्िाभाविकृ ं्ब्ध कृा ज्ञान
हो ता ह वकृ जहास-जहास धआु स हो ता ह िहास-िहास आ हो ती ह लनवकृन इंकृन ठीकृ विपरीत यवद बार-
बार जहास आ हो ती ह िहास-िहास धआ ु स हो ता ह,ॅ इंन भी हम ्िाभाविकृ ं्ब्ध मान ल न तो यह
ज्ञान धिश्य ही दो र्पू श हो जाए ा, क्यरवकृ ‘भयू ः ंहचार दर्शन‘ हो नन कृन बािजदू भी यह यह

उत्तराण्श मक्त
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ं्ब्ध ्िाभाविकृ ं्ब्ध या वयावए नह कृहलाए ा क्यर? क्यरवकृ आप यह भी दनण ंकृतन हैं वकृ
यवद लो हन कृन एकृ ो लन कृो मश कृर वदया जाय तो उंम धवग्न तो हो ती ह पर्तु धमू नह हो ता
इंवलए ‘य्र -य्र िव्ह्त्र त्र धमू ः‘ यह ्िाभाविकृ ं्ब्ध नह धवपतु औपावधकृ ं्ब्ध
कृहलाता ह इंम ‘आवश इ्धन ंयस ो ‘ ‘उपावध‘ ह
हम दनणतन हैं वकृ नयावयकृ यहास पर एकृ नए र्ब्द ‘उपावध कृा ्रकयो कृरतन हैं ्पि ह वकृ हम भी इं
र्ब्दािली कृो ंस्नप म धिश्य ंमझ लनना चावहए तकृश भार्ा म उपावध कृा ल् इं ्रककृार वकृया
या ह-
ंा्यवयापकृत्िन ंवत ंाधनावयापकृत्िमपु ावधः
धााशत जो धमश ंा्य कृा वयापकृ हो , और ंाधन कृा धवयापकृ हो , धााशत जो धमश ंा्य म वयाए
हो और ंाधन म धवयाए हो , उंन उपावध कृहतन हैं
औपावधकृ ं्ब्ध कृो तकृश भार्ा म उदाहर कृन जररए भी इं तरह ंमझाया या ह -
तद्यवप य्र -य्र म्र ीतनयत्िस त्र -त्र श्यामत्िमपीवत भयू ो दर्शनस ंमानमि ्यतन, ताावप
म्र ीतनयत्िश्यामत्ियोन ्िाभाविकृः ं्ब्धः वकृ्त्िौपावधकृ एि
र्ाकृाद्य्नपरर ाम्यो पाधनविद्यमानत्िात् ताा वह श्यामत्िन म्र ीतनयत्िस न ्रकयो जकृस वकृ्तु
र्ाकृाद्य्नपरर वत भनद एि ्रकयो जकृः ्रकयो जकृश्चो पावधररत्युच्यतन
इंकृा धवभ्रकाय यह ह वकृ म्र ी नामकृ वकृंी स्त्री कृन पाचस प्र ु हैं, वजनम चार प्र ु र कृो हमनन दनणा ह,
और िन ंभी प्र ु श्याम ि श कृन हैं पाचस िास प्र ु , वजंन हमनन नह दनणा ह, ौर ि श कृा ह लनवकृन वजं
वयवक्त नन म्र ी कृन चार श्याम ि श कृन प्र ु र कृो दनणा ह, िह भयू ो ंहचार दर्शन कृन आधार पर
म्र ीतनयत्ि और श्यामतनयत्ि कृा ्िाभाविकृ ं्ब्ध धािा वयावए मानतन हुए पासचिास प्र ु भी
श्याम ि श कृा हो ा, ऐंा धनमु ान कृर ंकृता ह इं उदाहर म म्र ीतनयत्ि हनतु धािा ंाधन ह,
और श्यामत्ि ंा्य ह लनवकृन यह हनतु ंो पावधकृ धााशत उपावध कृन ल् ंन यक्त ु ह, क्यरवकृ प्र ु कृन
श्याम ि श कृन हो नन म म्र ीतनयत्ि कृार नह ह बवल्कृ भशकृाल म वकृए ए आहार कृा ्रकभाि ह
यवद माता भश कृाल म दग्ु ध इत्यावद पदााों कृा धवधकृ ंनिन कृरती ह तो बालकृ ौर ि श कृा हो ता
ह इंकृन विपरीत यवद माता हरी र्ाकृ-ंब्जी इत्यावद कृा धवधकृ ंनिन कृरती ह तो बालकृ श्याम
ि श कृा हो ता ह (यह आधवु नकृ विज्ञान कृन धभ्यदु य कृाल ंन पहलन कृा उदाहर ह, और
विज्ञानं्मत न हो नन पर भी ितशमान ्रकंस म यह उदाहर ंारतः उपयक्त ु ह ) धतः यहास कृार
म्र ीतनयत्ि न हो कृर ‘र्ाकृपाकृज्यत्ि‘ हुआ इंवलए यह ्िाभाविकृ ं्ब्ध न हो कृर ंो पावधकृ

उत्तराण्श मक्त
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ं्ब्ध हुआ और क्यरवकृ इंम वयावए कृा ल् नह घरता, इंवलए यह धनुमान ्रकमा नह
हो ा क्यर? क्यासवकृ ्याय दर्शन म वयावए विवर्विप्धमशताज्ञान कृो ही धनमु ान कृहतन हैं
धमू और धवग्न कृन बीच वकृंी तरह कृा औपावधकृ ं्ब्ध नह ह, इंकृी वयाख्या तकृश भार्ाकृार
कृन र्ि वमश्र नन वि्तार ंन ्रक्ततु कृी ह क्यरवकृ इंी उदाहर कृन आधार पर धभी तकृ आप धनमु ान
्रकमा कृो ंमझतन आए हैं, इंवलए इंकृन ाो डा वि्तार म जाना उपयो ी हो ा-
न च धमू ाग्नयो ः ं्ब्धन कृवश्चदपु ावधरवंत धव्त चनत् यो ग्यो ऽयो ग्यो या ध ो ग्य्य
र्वस कृतमु र्क्यत्िात् यो ग्य्य चानपु लभ्यमानत्िात् य्र ो पावधरव्त त्र ो पलभ्यतन याा
धग्ननधशमू ं्ब्धन आवे्धनंसयो ः वहंस ात्ि्य चाधमशंाधनननन ंह ं्ब्धन वनवर्द्धत्िमपु ावधः
म्र ीतनयत्ि्य च श्यामत्िनन ंह ं्ब्धन र्ाकृाद्य्नपरर वतभनदः
इंकृा धाश आप इं तरह ंमझ ंकृतन हैं- धमू और धवग्न कृन बीच कृो ई औपावधकृ ं्ब्ध नह
बवल्कृ ्िाभाविकृ ं्ब्ध ह, क्यरवकृ यवद औपावधकृ ं्ब्ध हो ता तो हम िह ्रकत्य् वदणाई दनता,
जंा जहास-जहास धवग्न ह, िहास-िहास धमू ह कृान म वदणता ह इन ्ालर म हम वजं बात कृा
्रकत्य् दर्शन हो ता ह, उंन आवश इ्धन ंयस ो उपावध कृहतन हैं आप वयािहाररकृ जीिन म भी यह
धनभु ि कृरतन हैं वकृ धवग्न कृन ंाा धएु स कृा धव्तत्ि तब हो ता ह जब ीली लकृडी और आ कृा
ंसयो हो ता ह, क्यरवकृ यवद लकृडी ीली नह ह तो िहास आ हो नन पर भी धआ ु स नह हो ा इंी
्रककृार म्र ीतनयत्ि कृन ंाा भी जो ‘र्ाकृपाकृजनयत्ि‘ उपावध ह िह भी हम वदणाई दनती ह
तकृश भार्ाकृार इं चचाश कृो ्पि कृरतन हुए कृहतन हैं-
न चनह धमू ्यावग्नंाहचयेकृवश्चदपु ावधरव्त यद्यभविष्यत्तत्तो ऽवक्ष्यत्, ततो दर्शनभािा्नव्त इवत
तकृश ंहकृार ानपु ल्भंनाधनन ्रकत्य्न िो पा्यो भािो ऽिधायतन ताा च उपा्यभाि्ह जवनत
ंस्कृार ंहकृत तनन ंाहचयश्वह ा ्रकत्य्न ि धमू ाग््यो वयाशवए रिधायशतन तनन धमू ाग््यो ः ्िाभाविकृ
एि ं्ब्धो न त्िौपावधकृः ्िाभाविकृश्च ं्ब्धो वयावएः
इंकृा धाश यह ह वकृ यहास धमू कृन ंाा धवग्न कृन ंाहचयश म कृो ई उपावध नह ह, क्यरवकृ यवद
उपावध हो ती तो िह वदणाई दनती िह ्रकत्य् नह ह, इंवलए िह नह ह, क्यरवकृ वकृंी ि्तु कृी
धनपु लवब्ध ंन ही धभाि कृा वनश्चय हो ता ह इंवलए ्िाभाविकृ ं्ब्ध धािा वयावए ं्ब्ध
कृो आप इं तरह भी ंमझ ंकृतन हैं जहास उपावध कृन धभाि कृा ्रकत्य् दर्शन हो , और उं ज्ञान ंन
ं्प्न (‘ंहकृत त‘) ताा बार-बार दनणनन कृन ज्ञान ंन ्रकाए (‘भयू ः ंहचार ज्य‘) ंस्कृार ंन धएु स ताा
धवग्न कृन ंाहचयश कृा बो ध ्रकत्य् ्रकमा कृन वारा वकृया या हो , और इं तरह धएु स ताा धवग्न कृी
वयावए कृा ्ह वकृया या हो , िही वयावए ं्ब्ध हो ता ह

उत्तराण्श मक्त
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इंन आ न वयाख्यावयत कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं-
तदननन ्यायनन धमू ाग््यो वयाशएौं ह्यत मा ायास, महानंन यद्धूमज्ञानस तत््रकामम् पिशतादौ प्न यद्धूमज्ञानस
तदव् वतीयम् तत् पिू श हत ीतास धमू ाग््यो वयावएस ितशतन पनु धमू ं परामतर्वत ध्त्य्र पिशतन िव्हना वयाएो
धमू इवत तवददस धमू ज्ञानस तततीयम्
एतश्चािश्यमभ्यपु नतवयम् ध्याा य्र धमू ्त्र ावग्नररत्यनि ्यात् इह तु कृामवग्नना भवितवयम्
त्मावदहावप धमू ो ऽव्त इवत ज्ञानस ध्िनवर्तवयम् धयमनि वलस परामर्शः धनवु मवतस
्रकवतकृर त्िाच्चानमु ानम् त्मात,् ध्त्य्र पिशतनऽवग्नररत्यनवु मवतज्ञानमत्ु पद्यतन

आप इं इकृाई कृन ्रकार्भ म ही पढ़ चकृ ु न हैं वकृ तततीय ज्ञान कृो परामर्श कृहतन हैं यह तततीय ज्ञान क्या
हो ता ह? तकृश भार्ा कृन इं उद्धर म इंी बात कृी वयाख्या हम उपलब्ध हो ती ह उपावध कृन धभाि
कृन ्रकत्य् दर्शन ंन और धमू और धवग्न कृी वयावए ्ह कृरनन म, भयू ःंसचार दर्शन ंन धमू और
धवग्न कृी वयावए कृा ज्ञान महानं धािा रंो ईघर म हो ता ह, उनम इं ्िाभाविकृ ं्ब्ध कृा ज्ञान
्रकाम ज्ञान हुआ पिशत इत्यावद ज हर म (‘प्‘ म) जो धमू कृा ज्ञान ह, िह ववतीय ज्ञान हुआ
पिू श हत ीत धूम और धवग्न कृन वयावए कृा ्मर कृरकृन ‘िव्हवयातयधमू िासश्चायस‘ पितश‘ धााशत पिशत म
िव्हवयातय धमू कृन ज्ञान कृा बो ध कृरना परामर्श धािा तततीय ज्ञान कृहलाता ह
तततीय ज्ञान कृो धिश्य मानना पडन ा, क्यरवकृ तततीय ज्ञान ही धनमु ान ज्ञान हो ता ह ध र हम ऐंा
नह कृर न तो ‘जहास धमू हो ा िहास धवग्न हो ी‘ इं ्रककृार कृन ंामा्य ज्ञान कृा हम बो ध कृर ल न
प् धााशत पिशत म धवग्न क्यर हो नी चावहए इंकृन वलए इं वयावए कृा ज्ञान पयाशए हो ता ह वकृ
‘जहास-जहास धमू हो ता ह िहास -िहास धवग्न हो ती ह‘, इंी कृो वलस परामर्श कृहतन हैं और धनवु मवत कृन
्रकवत कृर हो नन ंन यही धनमु ान कृहलाता ह, क्यरवकृ इं वलस परामर्श रूपप तततीय ज्ञान ंन ही पिशत म
धवग्न ह इं ्रककृार कृा ज्ञान उत्प्न हो ता ह
तकृश भार्ा म ्रकश्न उठाकृर ताा उंकृा वनराकृर कृरकृन इं धनमु ान ज्ञान कृन वंद्धा्त कृा ्पिीकृर
इं तरह वकृया या ह-
ननु कृास ्रकामस महानंन यद्धूमज्ञानस त्नावग्नमनुमानयवत ंत्यम् वयाएन हत ीतत्िात् हत ीतायामनि
वयाएािनवु मत्यदु यात् धा वयावएवनश्चयो त्तरकृालस महानं एिावग्नरनमु ीयताम् मिम् धग्ननविश त्िनन
ं्दनह्यानदु यात् ंव्दग्धश्चाााशऽनमु ीयतन याो क्तस भाष्यकृत ता नानपु लब्धन न वन ीतनऽाे ्यायः ्रकितशतन
वकृ्तु ंव्दग्ध

उत्तराण्श मक्त
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धा पिशत तमा्र ्य पंु ो यद्धूमज्ञानस, तत्कृास नावग्नमनमु ापयवत धव्त चा्र ावग्नं्दनहः
ंाधकृिाधकृ ्रकमा ाभािनन ंसर्य्य ्याय्रकाएिात् ंत्यम् ध हत ीतवयाएनररि हत ीतवि्मततवयाएनरवप
पसंु ो ऽनमु ानानदु यनन वयावए ्मततनरतयनवु मवतहनतत्ु िात् धमू दर्शनाच्चो द्बद्ध ंस्कृारो वयावएस ्मरवत यो -यो
धमू िान ंो -ंो धवग्नमान् याा महानं इवत तनन धमू दर्शनन जातन वयावएंमततौ भतू ायास यद्धूमज्ञानस तत्
तततीयस ‘धमू िासश्चायम‘् इवत तनदिावग्नमनुमापयवत ना्यत् तदनिानमु ानम् ं एि वलस परामर्शः तनन
वयिव्ातमनत- वलस परामर्ोऽनमु ानवमवत
रंो ईघर म जो ्रकाम धमू ज्ञान ह उंी ंन धवग्न कृा धनमु ान क्यर नह कृर वलया जाता ह? इंकृा
उत्तर नयावयकृ इं ्रककृार दनतन हैं- ्रकश्न तो ठीकृ ह वकृ्तु ्रकाम धमू ज्ञान ंन धवग्न कृा धनमु ान नह
वकृया जा ंकृता क्यरवकृ वयावए ्ह कृन पश्चात ही हमॅ स न धनमु ान ज्ञान हो ता ह आप इं बात कृो
पहलन भी पढ़ चकृु न हैं वकृ वयावएविवर्िप्धमशता ज्ञान ही धनुमान कृहलाता ह
लनवकृन इं ंमाधान कृन बाद भी दंू रा ्रकश्न यह उठाया या ह वकृ वयावए ्ह कृन पश्चात रंो ईघर म
ही धवग्न कृा धनमु ान हो ना चावहए
नयावयकृास कृा उत्तर ह वकृ यह भी कृहना उवचत नह ह क्यरवकृ महानं म धवग्न कृा चवसू कृ ्रकत्य्
ज्ञान हो रहा ह इंवलए िहास ं्दनह नह उपव्ात हो ंकृता, और क्यरवकृ ंव्दग्ध धाश म ही
धनमु ान कृी ्रकितवत्त हो ती ह, और इंवलए ्याय ं्र ू कृन भाष्यकृार िात््यायन कृी उवक्त कृो उद्धतत
कृरतन हुए कृहा या ह वकृ न तो धनपु लब्ध धााशत धज्ञात धाश म और न ही वन ीत धाश म ही ्याय
्रकितत्त हो ता ह
इं पर ्रकश्न यह उठता ह वकृ वयावए ्ह कृन बाद पिशत पर पहुचस न हुए मनष्ु य कृा जो धमू ज्ञान धााशत
वयावए्मर कृन पिू श कृा ववतीय ज्ञान हो नन पर धवग्न कृा धनुमान हो ना चावहए, क्यरवकृ यहास धवग्न कृा
ं्दनह तो ह ‘ंाधकृ-बाधकृ ्रकमा ‘ कृन धभाि म ं्दनह हो ना उवचत ही ह
इंकृा उत्तर भी हम तकृश भार्ा म ्रकाए हो ता ह नयावयकृ कृहतन हैं पिशत म हुए धमू ज्ञान कृो भी हम
धनमु ान ज्ञान नह कृह ंकृतन, क्यरवकृ यहास पर वयावए कृा ्मर नह हो रहा ह ्मतवत कृन धभाि म
धनवु मवत नह हो ंकृती ववतीय धमू ज्ञान ंन उद्बुद्ध ंस्कृार ंन ही इं वयावए कृा ्मर हो ता ह वकृ
‘जो -जो धमू िान हो ता ह िह-िह िव्हमान हो ता ह‘ यह पिशत धमू िान ह इंवलए यह िव्हमान
हो ा इं तरह ंन िव्हयक्त ु पिशत कृा ्रकाए वकृया जानन िाला तततीय ज्ञान वलस परामर्श ह, इंवलए
वलस परामर्ोऽनुमानम् यह ल् वंद्ध हो ता ह
धभी तकृ आपनन यह पढ़ा वकृ धनमु ान क्या ह वलस और परामर्श वकृंन कृहतन हैं, धनमु ान ज्ञान म
वयावए कृी क्या भवू मकृा ह, और वयावए वकृंन कृहतन हैं आ न हम वयावए कृन भनदर कृो भी तकृश भार्ा कृो

उत्तराण्श मक्त
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आधार बनाकृर ंमझनन कृा ्रकयां कृर न इं वयावए कृन तीन तरह कृन भनद बताए ए हैं, वज्ह
ध्ियवयवतरन कृी, कृन िला्ियी, ताा कृन िलवयवतरन कृी नाम ंन जाना जाता ह ‘िव्हवयातय
धमू ािासश्चायसपिशतः‘ ध्ियवयवतररन कृ वयावए कृन इं उदाहर कृो ंमझातन हुए तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं-
ध्र पिशत्यावग्नमत्िस ंा्यस, धमू ित्िस हनतःु ं चा्यियवयवतरन कृी, ध्ियनन वयवतरन कृन च
वयावएमत्िात् ताा वह य्र -य्र धमू ित्िस त्र ावग्नमत्िस याा महानंन इत्य्िय वयावएः महानंन
धमू ाग््यो र्िय ंद्भािात् एिस य्र ावग्ननाशव्त त्र धमू ो ऽवप नाव्त याा महाहृदन इतीयस वयवतरन कृवयावएः
महाहृदन धमू ाग््यो वयशवतरन कृ्य ंद्भािदर्शनात्
इं धनुमान म पिशत कृा धवग्नमत्ि ंा्य ह, धमू ित्ि हनतु धााशत ंाधन ह और िह हनतु धााशत
कृार ध्ियवयवतरन कृी हनतु ह क्यरवकृ उंकृी ध्िय और वयवतरन कृ दो नर ्रककृार कृी वयावए म
उदाहर वमल जातन हैं जंन जहास-जहास धमू त्ि हो ता ह िहास-िहास धवग्नमत्ि हो ता ह, जंन रंो ईघर म
यह ध्िय वयावए हुई इंी ्रककृार जहास-जहास धवग्न कृा धभाि हो ता ह िहास-िहास धमू कृा धभाि
हो ता ह, जंन तालाब म ऐंा वयवतरन कृ ्रकभाि हो नन ंन हो ता ह महाहृद म आप जानतन ही हैं वकृ जल
हो नन कृन कृार धवग्न हो ही नह ंकृती, और जब धवग्न कृा धभाि हो ा तो धएु स कृा धभाि भी िहास
वनवश्चत रूपप ंन हो ा इं तरह यह धनमु ान िाक्य महानं म ध्ियवयावए कृा ताा महाहृद म
वयवतरन कृ वयावए कृा एकृ उदाहर बन जाता ह धतः धमू ित्ि हनतु ध्ियवयवतरन कृी हनतु हुआ
आपकृो यहास ्यान दनना हो ा वकृ तकृश भार्ा म नयावयकृर नन ‘पिशतो धमू ित्िात् धमू िान् ंो ऽवग्नमान
याा महानंः‘ इत्यावद धनमु ान िाक्य म कृन िल ध्िय वयावए हो नन कृा उदाहर वदया ह, क्यरवकृ
वयवतरन कृ यहास ंरल ह ि्तुतः इं उदाहर म ध्िय और वयवतरन कृ दो नर ्रककृार कृी वयावए कृा
उदाहर आप धभी दनण ही चकृ ु न हैं नयावयकृास कृा तकृश इं ्रककृार ह-
तदनिस धमू ित्िन हनताि्ियननस वयवतरन कृन च वयावएरव्त यत्तु िाक्यन कृन िलसम्ियवयाएनरनि ्रकदर्शनस
तदनकृननऽवप चररतााशत्िात् त्र ातय्िय्यािक्रत्िात् ्रकदर्शनम् ऋजमु ा े वंद्धयतो ऽाश्य िक्रन
ंाधनायो ात् न तु वयवतरन कृवयाएनरभािात्
उपयशक्त
ु उदाहर म ध्िय और वयवतरन कृ दो नर ्रककृार कृी वयावएयर कृन हो नन कृन बािजदू जो कृन िल
ध्िय वयावए कृा ही ्रकदर्शन वकृया या ह िह वयवतरन कृ वयावए कृी धपन्ा ध्िय वयावए कृन ंरल
हो नन कृन कृार चवसू कृ एकृ ही वयावए कृन ्रकदर्शन ंन कृाम चल ंकृता ह इंवलए ंरल मा श कृा आश्रय
वलया या ह, न वकृ वयवतरन कृ वयावए कृन धभाि कृन कृार ऐंा वकृया या ह

उत्तराण्श मक्त
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ध्ियवयवतरन कृी हनतु कृो और धवधकृ ्पि कृरनन कृन वलए तकृश भार्ाकृार एकृ और उदाहर ्रक्ततु
कृरतन हैं, जो इं ्रककृार ह-
एिम्यनऽतयवनत्यत्िादौ ंा्यन कृत तकृत्िादयो हनतिो ऽ्ियवयवतरन वकृ न विवयाः याा र्ब्दो ऽवनत्यः
कृत तकृत्िाद् घरिद् य्र कृत तकृत्िस त्र ावनत्यत्िम् य्र ावनत्यत्िाभाि्त्र कृत तकृत्िाभािो याा नन
इंकृा धाश यह ह वकृ धवनत्यिाद कृी वंवद्ध कृत तकृत्िाद ध्य हनतु भी ध्ियवयवतरन कृी हनतु कृन
उदाहर जानन जानन चावहए जंन कृत तकृ (उत्प्न) हो नन ंन र्ब्द घर कृन ंमान धवनत्य ह जहास-जहास
कृत तकृत्ि रहता ह िहास-िहास धवनत्यत्ि रहता ह जंन घर, यह ध्िय वयावए हुई, क्यरवकृ आप जानतन
हैं वकृ घडा वमट्टी ंन उत्प्न हो नन कृन कृार इंम धवनत्यत्ि धमश कृी वंवद्ध हो ती ह वयवतरन कृ वयावए
कृा उदाहर भी इंम वनवहत ह, क्यरवकृ जहास-जहास धवनत्यत्ि कृा धभाि हो ता ह िहास-िहास ज्यत्ि
कृा भी धभाि हो ता ह, जंन न धािा आकृार् वयवतरन कृ वयावए बनातन ंमय ंा्य और हनतु कृन
ंाा धभाि पद जडु जाता ह ताा वयातयवयापकृभाि बदल कृर उलरा हो जाता ह
ध्ियवयवतरन कृ वयावए कृो उदाहर कृन ंाा ंमझानन कृन बाद तकृश भार्ाकृार कृन िल वयवतरन कृ वयावए
कृा उदाहर ्रक्ततु कृरतन हैं-
कृवश्चदहनतःु कृन िल वयवतरन कृी तद्याा, ंात्मकृत्िन ंाधो ्रका ावदमत्िस हनतःु याा जीिच्ारीरस ंात्मकृस
्रका ावदमत्िात् यत! ंात्मकृस न भिवत तत् ्रका ावदम्न भिवत याा घरः न चनदस जीिच्ारीरस ताा
त्मा्न तानवत ध्र वह जीिच्ारीरस ंात्मकृत्िन ्रका ावदमत्िस हनतुः ं च कृन िलवयवतरन कृी,
ध्ियवयाएनरभािात ताा वह यत् ्रका ावदमत् तत ंात्मकृस याा धमकृ ु इवत दृिा्तो नाव्त
जीिच्ारीरस ंिश प् एि
धााशत कृो ई हनतु कृन िल वयवतरन कृी हो ता हैं जंन ंात्मकृत्ि कृन ंा्य हो नन म ्रका ावदमत्ि हनतु ह
ंात्मकृ ंन धवभ्रकाय ह आत्मायक्त ु हो ना जंन जीवित र्रीर ंात्मकृ ह ्रका ावदयक्त ु हो नन ंन इं
धनमु ान म ध्ियवयावए कृा उदाहर न हो नन ंन कृन िलवयवतरन कृी हनतु ह जो ंात्मकृ नह हो ता िह
्रका ावदयक्त
ु नह हो ता, जंन घर जीवित र्रीर ्रका ावदमत्ि ह, इंवलए यह ंात्मकृ ह इं
उदाहर म जो ्रका ावदमत् ह िह ंात्मकृ ह, इं ्रककृार कृी ध्ियवयावए कृा कृो ई उदाहर नह
वमलता
तकृश भार्ा म वयवतरन कृ वयावए कृो ंमझानन कृन वलए ल् कृा भी उदाहर ्रक्ततु वकृया या ह-
ल् मवप कृन िलवयवतरन कृी हनतःु याा पतवािील् स ्धित्त्िम् वििादपदस पतवािीवत वयिहतशवयस
्धित्त्िात् य्न पतवािीवत त्न ्धित् याापः

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page १५८
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इं उदाहर कृो आप इं तरह ंमझ ंकृतन हैं- ल् भी कृन िलवयवतरन कृी हनतु हो तन हैं जंन पतवािी
कृन ल् ्धित्ि कृो हनतु बनाकृर वकृंी वििादा्पद ि्तु कृो पतवािी कृहकृर वयिहार वकृया
जाय, उंम ्धत्ि हो नन कृन कृार जहास पतवािी कृा यह वयिहार नह हो ता िहास ्धत्ि नह हो ता
जंन जल यह वयवतरन कृ वयावए कृा उदाहर हुआ लनवकृन जहास-जहास ्धत्ि ह िहास-िहास पतवािी ह,
ऐंन वयिहार कृा ध्िय वयावए म कृो ई उदाहर नह वमलता, इंवलए यह कृन िलवयवतरन कृ वयावए कृा
उदाहर हुआ इं तरह आप दनणतन हैं वकृ तकृश भार्ाकृार वयवतरन कृ वयावए कृो धननकृ उदाहर र ंन
्पि कृरतन हैं, आप यहास उनकृा ध्ययन भी कृर चकृ ु न हैं इन बातर कृो ्पि कृरनन कृन बाद
तकृश भार्ाकृार कृन िला्ियी हनतु कृो उदाहर कृन ंाा ंमझानन कृा ्रकयां इं तरह कृरतन हैं-
कृवश्चद्यो हनतःु कृन िला्ियी याा र्ब्दो ऽवभधनयः ्रकमनयत्िात् यत््रकमनयस तदवभधनयस याा घरः ताा
चायस त्मात्तानवत ध्र र्ब्द्यावमधनयतिस ंा्यस ्रकमनयत्िस हनतःु ं च कृन िला्िय्यनि यदवभधनयस न
भिवत तत््रकमनयमवप याामकृ ु इवत वयवतरन कृ दृिा्ताभािात् ंिश्र वह ्रकामाव कृ एिााो दृिा्तः ं च
्रकमनयश्चावभधनयश्चनवत
कृन िला्ियी वयावए कृो आप उपररवलवणत दृिा्त ंन ंमझ ंकृतन हैं र्ब्द जाननन यो ग्य (धवभधनय)
ह, क्यरवकृ िह ्रकमनय (ज्ञान कृा विर्य ) ह जो ्रकमनय हो ता ह िह धवभधनय हो ता ह, जंन घर यह
र्ब्द उंी ्रककृार कृा ्रकमनय ह, धतएि िंा ही धवभधनयत्ि इंम भी उपव्ात ह
यहास र्ब्द कृा धवभधनयत्ि ंा्य ह, ्रकमनयत्ि हनतु धााशत ंाधन ह और िह कृन िला्ियी ह जो
धवभधनय नह हो ता ह िह ्रकमनय भी नह हो ता, इं ्रककृार वयवतरन कृ वयावए कृा उदाहर नह बन
ंकृता क्यरवकृ ्रकत्य् आवद ्रकमा र ंन ज्ञान हो नन िाला ्रकामाव कृ धाश ही हो ंकृता ह इं तरह ंन
ध्ियवयवतरन कृी, कृन िला्ियी और कृन िलवयवतरन कृी इन तीन ्रककृार कृी वयावए कृो दृिा्त कृन ंाा
आपनन वि्तार ंन ंमझा परू ी इकृाई कृन ंार-ंस्नप कृा दो बारा ्मर कृरतन हएु हम उंन एकृ बार
वफर ंन ंमझनन कृा ्रकयां कृर न
बोधतप्रश्न

1. ्याय दर्शन धनमु ान ्रकमा कृन वलए वकृंन धवनिायश मानता ह-


कृ. वयावए ं्ब्ध
ण. औपावधकृ ं्ब्ध
. हनत्िाभां

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page १५९
भारतीय दर्शन MASL-507
घ. इनम ंन कृो ई नह
2. इनम ंन ंप् क्या ह
कृ. महाहृद
ण. रंो ईघर धािा महानं
. पिशत
घ. इनम ंन कृो ई नह
3. परामर्श वकृंन कृहतन हैं-
कृ. ्रकाम ज्ञान
ण. ववतीय ज्ञान
. तततीय ज्ञान
घ. चताु श ज्ञान
4. जहास जहास धवग्न कृा धभाि ह िहास-िहास धएु स कृा धभाि ह यह वयावए कृा उदाहर ह-
कृ. ध्िय वयावए
ण. वयवतरन कृ वयावए
. ध्िय वयवतरन कृ वयावए
घ. इनम ंन कृो ई भी नह
5. जहा-स जहास धमू कृा धभाि ह िहास-िहास धवग्न कृा धभाि ह, इंम उपावध क्या ह
कृ. ंाहचयश ं्ब्ध
ण. ंमिाय ं्ब्ध
. आदनरश् ्धन ंसयो ं्ब्ध

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page १६०
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घ. इनम ंन कृो ई नह
बो ध ्रकश्नर कृन उत्तर
1. कृ, 2. ण, 3. ण, 4. कृ, 5. कृ
2. कृ, 2. ण, 3. , 4. ण, 5.
4.7तर्ब्दखियी
वलस - हनतु धािा कृार
परामर्श - ंा्य कृा तततीय ज्ञान
वयावए - हनतु ओर ंा्य कृन बीच ्िाभाविकृ ं्ब्ध
वयावएविवर्ि प्धमशताज्ञान- प् म वयावए यक्त
ु ंा्य कृा ज्ञान
प् - जहास ंा्य वंद्ध कृरना हो जंन यवद पिशत म िव्हवयातय धमू ज्ञान कृा ज्ञान हो ता ह तो यहास
पिशत प् ह
ंप्- जहास ंा्य कृा पहलन दर्शन कृर वलया या हो जंन रंो ईघर
उपावध- ्रकयो जकृ धािा वनवमत्त
4.8तसखराखंर्
धनमु ान नयावयकृर कृा ंबंन महत्त्िपू श ्रकमा ह उनकृन ्रकमा भनद म ्रकत्य् ्रकमा कृन बाद दंू रन
क्रम म धनमु ान ्रकमा कृी वयाख्या कृी ई ह ‘वयाएविवर्िप्धमशता‘ ज्ञान कृो ही धनुमान कृहतन
हैं ्याय कृी भार्ा म ‘वलस परामर्ोऽनमु ानम‘् यह धनमु ान कृा ल् वकृया या ह नयावयकृर कृो
धनमु ान व्रकय हो नन कृन कृार आप दनण न वकृ कृह -कृह ्याय कृा धाश ही धनुमान वकृया या ह
्याय दर्शन म धनमु ान कृन वलए हनतु और ंा्य म ्िाभाविकृ ं्ब्ध धािा वयावए कृो धवनिायश
माना या ह वयावए कृी वयापकृ वयाख्या आपनन पढ़ी ह वयावए कृन तीनर भनदर ध्ियवयवतरन कृी,
कृन िला्ियी और कृन िलवयवतरन कृी कृा ध्ययन भी आपनन इं इकृाई म तकृश भार्ा कृन मल ू पाठ कृो
आधार बनातन हुए वकृया ह
4.9तसन्दभ्तग्रन्थतसच
ू ी
महवर्श ौतम- ्याय दर्शन, बौद्ध भारती, िारा ंी

उत्तराण्श मक्त
ु विश्वविद्यालय Page १६१
भारतीय दर्शन MASL-507
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त4.10तवनबन्धखत्ुृतप्रश्न
1. ल् और उदाहर ंवहत धनमु ान ्रकमा कृी वयाख्या कृीवजए
2. वयावए वकृंन कृहतन हैं ंभनद इनकृा वि्तार ंन उल्लनण कृीवजए
3. उपावध क्या ह? ंो दाहर ंमझाइयन

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तइृखईत5त ृ् भखर्ख-तप्रुे , पदखथ्तवनरूपण, स्िखथख्नकुखन, पराखथख्नकुखनत,त
हेत्िखभखस-तुूयतपखठतृखतअथ्तएिंतव् खख् ख
5.1 ्रक्तािना
5.2 उद्दनश्य
5.3 ्रकमनय पदााश कृा ि शन
5.3.1 ्रकमनय कृन भनद
5.3.2 आत्मा
5.3.3 र्रीर
5.3.4 इव्वय
5.3.5 धाश
5.3.6 बवु द्ध
5.3.7 मन
5.3.8 ्रकितवत्त
5.3.9 दो र्
5.3.10 ्रकनत्यभाि
5.3.11 फल
5.3.12 दःु ण
5.3.13 धपि श
5.4 ्िाााशनमु ान
5.5 पराााशनमु ान
5.5.1 ्रकवतज्ञा
5.5.2 हनतु
5.5.3 उदाहर
5.5.4 उपनय
5.5.5 वन मन
5.6 हनत्िाभां
5.6.1 धवंद्ध हनत्िाभां

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5.6.2 विरुद्ध हनत्िाभां
5.6.3 धनकृाव्तकृ हनत्िाभां
5.6.4 ्रककृर ंम हनत्िाभां
5.6.5 कृालात्ययापवदि धािा बावधत हनत्िाभां
5.7 ंारासर्
5.8 पाररभावर्कृ र्ब्दािली
5.9 बो ध ्रकश्न
5.10 बो ध ्रकश्नर कृन उत्तर
5.11 वनब्धात्मकृ ्रकश्न
5.12 ं्दभश ््ा ंचू ी

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5.1तप्रस् खिनख
धब तकृ धपनी ंम्त पिू श ध्ययन इकृाइयर म आप ्याय दर्शन कृन ंसव्ए इवतहां ंन लनकृर ्याय
ं्मत धननकृ दार्शवनकृ वंद्धा्तर कृा ंवि्तार ध्ययन कृर चकृ ु न हैं कृन र्ि वमश्र कृत त तकृश भार्ा
धवधकृासर् विश्वविद्यालयर कृी ्नतातकृो त्तर कृ्ाओ स म भारतीय दर्शन कृन पाठ्यक्रम म मल ू ््ा कृन
रूपप म पढ़ाई जाती ह आप जानतन हैं वकृ तकृश भार्ा नवय ्याय कृा एकृ ्रकमण ु ््ा ह, और इंी कृन
आधार पर पिू श कृी ध्ययन इकृाइयर म ्याय दर्शन कृन ्रकमा , कृार , ्रकत्य् ्रकमा , इव्वयााश
ंव्नकृर्श, धनमु ान ्रकमा आवद विर्यर कृा वि्ततत ध्ययन आपनन धब तकृ वकृया ह ितशमान
ध्ययन इकृाई ्याय दर्शन कृन आपकृन ्रकश्न प्र कृी धव्तम ध्ययन इकृाई ह , और ्रकमनय पदााों
धााशत् आत्मा, र्रीर, इव्वय, धाश, बवु द्ध, मन आवद उन बारह ्रकमनयर कृा, वजनकृन नाम कृा उल्लनण
आप तींरी ध्ययन इकृाई म पढ़ चकृ ु न हैं, यहास पर वफर ंन आप उनकृा वि्तारपिू कृ श ध्ययन
कृर न धनमु ान ्रकमा भी आप पढ़ चकृ ु न हैं, और आप जान चकृ ु न हैं वकृ तकृश भार्ा म उंकृन दो भनद
व नाए ए हैं- ्िाााशनमु ान और पराााशनमु ान इन भनदर कृी चचाश भी वि्तारपिू कृ श ितशमान इकृाई म
कृी जाए ी हनतु धािा कृार कृी विर्द् वयाख्या ध्य इकृाइयर म आप पढ़ चकृ ु न हैं आप र्ायद
इं उल्लनण ंन भी पररवचत हर न वकृ जो हनतु न हो तन हुए भी हनतु कृी तरह ्रकतीत हो तन हैं, उ्ह
हनत्िाभां कृहतन हैं तकृश भार्ा म हनत्िाभां कृन पासच भनद व नाए ए हैं, वजनकृा ध्ययन भी हम इं
इकृाई म कृर न

5.2तउद्देश्
1. इं इकृाई कृन ध्त तश आप ्रकमनय (ज्ञान कृा विर्य) वकृतनन हैं, इंकृी जानकृारी ्रकाए कृर
ंकृ न
2. आत्मा, र्रीर, इव्वय, धाश, बवु द्ध, मन, दो र्, ्रकितवत्त, ्रकनत्यभाि, फल, दःु ण, धपि श
इत्यावद इन बारह ्रकमनयास कृन बारन म जान ंकृ न
3. धनमु ान कृन भनदर ताा पराााशनमु ान कृन पसचिाक्यर ंन पररवचत हो कृर धनमु ान ्रकमा कृी ्पि
जानकृारी कृर पाएस न
4. हनत्िाभां और हनतु कृन ध्तर कृो ंमझ पाएस न ताा हनत्िाभां कृन भनदर कृा भली-भावस त
वनरूपप कृर ंकृ न
5.2त ृ् भखर्खतृे तरधखरातपरातप्रुे ोंतृखतिण् न
आप जानतन हैं वकृ ्याय दर्शन म ंो लह पदााों कृी वििनचना कृी ई ह िहास ंिश्रकाम ्रकमा

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मीमासंा उपलब्ध हो ती ह, और ्रकमा र कृी वििनचना कृन उपरा्त िहास ्रकमनयर कृा ि नश वमलता ह
्रकमनय ज्ञान कृन विर्य कृहन जातन हैं, वजनकृी ंसख्या बारह ह-
‘आत्मर्रीरन व्वयााशबवु द्धमनः ्रकितवत्त दो र््रकत्यभािफलदःु णापि ्श तु ्रकमनयम‘्
आत्मा, र्रीर, इव्वय, धाश, बवु द्ध, मन, ्रकितवत्त, दो र्, ्रकनत्यभाि, फल, दःु ण और धपि श नामकृ
बारह ्रकमनय तकृश भार्ा म बताए ए हैं इन बारह ्रकमनयर कृन विर्य म ्रकत्यनकृ कृी धल -धल
पररभार्ाएस भी हम तकृश भार्ा म ्रकाए हो ती हैं धब हम इनकृन वि्ततत ध्ययन कृी ओर ध्ंर हर -न
रत्ुख
तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र नन ंिश्रकाम आत्मा कृन विर्य म बताया ह वकृ आत्मत्ि ंामा्य जावत
वजंम विद्यमान हो , िह आत्मा कृहलाती ह-
त्र ात्मिंामा्यिानात्मा ं च दनहवन ्वयावदवयवतररक्तः, ्रकवत र्रीरस वभ्नो वनत्यो विभश्च
ु ंच
मानं्रकत्य्ः वि्रकवतपत्तौ तु बद्ध ु यावद ु ावलस कृः ताा वह बद्ध
ु यादय्तािद् ु ाः धवनत्यत्िन
ंत्यनकृनव्वय मा्र ्ाह्यत्िात् ु श्च ्ु यावश्रत एि
कृन र्ि वमश्र कृन धनंु ार आत्मत्ि जावत वजंम रहती ह उंन आत्मा कृहा जाता ह यह पहला ्रकमनय
ह यह आत्मा दनह, इव्वयावद ंन वभ्न ह ्रकत्यनकृ र्रीर म वभ्न हो नन कृन ंाा ही यह विभु ताा वनत्य
ह, और यह मानं ्रकत्य् कृा विर्य ह, धााशत ्रकत्यनकृ वयवक्त कृो ‘मैं ह‘ॅस इं बात कृी ्रकतीवत
हो ती ह यह ‘मैं‘ र्रीर इव्वय आवद ंन वभ्न विभु और वनत्य हो ता ह दंू रन वयवक्त म आत्मा कृन
धव्तत्ि कृा बो ध कृरानन म बवु द्ध इत्यावद ु ंहायकृ हो तन हैं बवु द्ध आवद ु रूपप वलस ंन धनमु ान
ज्ञान वारा आत्मा कृी वंवद्ध हो ती ह ्रकश्न ह वकृ ऐंा कृंन हो ता ह? ंबंन पहलन बवु द्ध आवद धवनत्य
हो तन हुए कृन िल एकृ इव्वय ंन ्ाह्य हो नन कृन कृार ु हैं, और क्यरवकृ ु ु ी कृन आवश्रत रहता ह,
धतः यहास पर िह आश्रय आत्मा हो ती ह
आत्मा कृन ्िरूपप कृो ्पि कृरतन हुए तकृश भार्ाकृार इंकृो वयाख्यावयत कृरतन हुए कृहतन हैं-
त्र बद्ध
ु ादयो न ु ा भतू ानास मानं्रकत्य्त्िात् यन वह भतू ानास ु ा्तन न मनंा ह्य त य्तन याा
रूपपादयः नावप वदकृ् कृालमनंास ु ा, विर्नर् ु त्िात् यन वह वदक्कृालावद ु ाः ंसख्यादयो न तन
विर्नर् ु ा्तन वह ंिशववयंाधार ु ा एि बुद्धयादया्तु विर्नर् ु ा, ु त्िन
ंत्यनकृनव्वयमा्र ्ाह्यत्िाद, रूपपित् धतो न वद ावद ु ाः त्मादनभ्यो ऽिभ्यो वयवतररक्तो बद्ध
ु यादीनास
ु ानामश्रयो िक्तवयः ं एिात्मा

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आप जानतन हैं वकृ नयावयकृर कृन धनंु ार ववयर कृी ंसख्या नौ ह, वजनकृन नाम इं ्रककृार हैं- पतवािी,
जल, तनज, िाय,ु आकृार्, वदकृ्, कृाल, मन और आत्मा बुवद्ध आवद ु मानं ्रकत्य् कृा विर्य
हो तन हैं, इंवलए िन पतवािी इत्यावद भतू र कृन ु नह हो ंकृतन क्यरवकृ जो भतू र कृन ु हो तन हैं,
उदाहर कृन वलए ्ध, रूपप, रं, ्पर्श और र्ब्द हैं, इन पच स भतू र कृन ु र कृा मानं ्रकत्य् नह
हो ता ह दंू री ओर वदकृ्, कृाल और मन कृन ु भी नह हो ंकृतन, क्यरवकृ इन ववयर म ंामा्य ु
रहता ह, विर्नर् ु नह रहता बवु द्ध आवद क्यरवकृ विर्नर् ु र कृी श्रन ी म आतन हैं, इंवलए इन
आठ ववयर याा पतवािी, जल, तनज, िाय,ु वदकृ्, कृाल और मनं कृन धवतररक्त वकृंी निम् ववय कृो
ु र कृा आश्रय हो ना चावहए, और यही निास ववय आत्मा ह
धनमु ान कृन वारा आत्मा कृी ंत्ता वंद्ध कृरनन कृन उपरा्त धनमु ान कृन वलए धवनिायश वयावए ं्ब्ध
कृो भी तकृश भार्ा म दर्ाशया या ह-
्रकयो श्च बद्ध
ु यादयः पतवावयाद्यिववयवयवतररक्तववयावश्रताः पतवावयाद्यिववयानावश्रतत्िन ंवत
ु त्िात् य्तु पतावयाद्यिववयवयवतररक्त ववयावश्रतो न भिवत, नांो पतवावयाद्यिववयवयवतररक्त
ववयावश्रतत्िन ंवत ु ाऽवप भिवत याारूपपावदररवत कृन िलवयवतरन कृी ध्ियवयवतरन कृी िा ताावह
बद्धु यादयः पतवावयाद्यिववयवयवतररक्त ववयावश्रताः पतवावयाद्यिववयानावश्रतत्िन ंवत ु त्िात् यो
यदनावश्रतो ु ः ं तदवतररक्तावश्रतो भिवत याा पतवावयाद्यनावश्रतः र्ब्दः
पतवावयाद्यवतररक्ताकृार्ाश्रय इवत ताा च बद्ध
ु यादयः पतवावयाद्यिववयावतररक्ताश्रयाः
ऊपर कृन उद्धर म ध्िय ि वयवतरन कृी दो नर तरह कृी वयावएयर कृा ि नश ह धनुमान ंन आत्मा कृी
वंवद्ध कृरनन म यन दो नर ंाधन (हनत)ु हम वमल जातन हैं ध्ियवयवतरन कृी हनतु कृो आप पिू श ध्ययन
इकृाई म वि्तार ंन पढ़ चकृ ु न हैं आत्मा कृन धाश म इं हनतु कृा उदाहर इं ्रककृार ह- बवु द्ध आवद
ु पतवािी आवद आठ ववयर ंन वभ्न ववय म आवश्रत हैं पतवािी आवद आठ ववयर म धनावश्रत
हो कृर ु हो नन ंन जो पतवािी आवद ंन वभ्न आठ ववयर मॅ स न आवश्रत नह हो ता िह पतवािी आवद
आठ ववयर ंन धल ववय म धनावश्रत ु भी नह हो ता, धवपतु पतवािी आवद आठ ववयर म
आवश्रत ु ही हो ता ह, जंन रूपप इत्यावद यह वयवतरन कृ वयावए कृा उदाहर ह
ध्ियवयवतरन कृी वयावए कृा उदाहर भी तकृश भार्ाकृार नन ऊपर वदया ह, जंन बवु द्ध पतवािी आवद
आठ ववयर ंन धवतररक्त ववयर म आवश्रत ह, पतवािी आवद आठ ववयर म धनावश्रत हो कृर ु हो नन
ंन क्यरवकृ जो वजं ववय म धनावश्रत ु हो ता ह िह उंंन वभ्न ववय म आवश्रत ु हो ता ह
उदाहर कृन वलए र्ब्द पतवािी इत्यावद आठ ववयर ंन धवतररक्त आकृार् म आवश्रत हैं
इंवलए बवु द्ध आवद ु पतवािी आवद आठ ववयर ंन धवतररक्त ववय मस आवश्रत ु हैं-

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तदनिस पतवावयाद्यिववयवयवतररक्तो निमस ववयात्मास वंद्धः ं च ंिश्र कृायोपल्भाद विभःु परममहत्
पररमा िावनत्याशः विभत्ु िाच्च वनत्यो ऽंौ वयो मित् ंुणादीनास िवचत्र्यात् ्रकवतर्रीरस वभ्नः
ध्ियवयवतरन कृी दृिा्त ्रक्ततु कृरनन कृन बाद तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं-
इं ्रककृार पतवािी आवद आठ ववयर ंन धवतररक्त बवु द्ध आवद ु र कृा आश्रयभतू निम ववय आत्मा
वंद्ध हो या और िह विभु धााशत वयापकृ ह विभु हो नन ंन िह आकृार् कृन ंमान वनत्य ह, और
ंणु ावद कृन वभ्न हो नन ंन िह ्रकत्यनकृ र्रीर म वभ्न-वभ्न ह
र्राीरा
आत्मा कृी वंवद्ध कृन बाद दंू रन ्रकमनय कृन रूपप म र्रीर कृा वनरूपप वकृया या ह-
त्य भो ायतनम्त्याियवि‘र्रीरम‘् ंण ु दःु णा्यतरंा्ात्कृारो भो ः ं च यदिवच्ा्न आत्मवन
जायतन त भो ायतनस तदनि र्रीरस चनिाश्रो िा र्रीरम् चनिा तु वहतावहत्रकावएपररहाराााश वक्रया, न तु
्प्दनमा्र म्
आत्मा कृन भो कृा आश्रय र्रीर हो ता ह िह र्रीर ध्त्याियवि ह ध्त्याियवि ंन धवभ्रकाय ह-
धव्तम धियिी धियिी उंन कृहतन हैं जो धियि धााशत् धस र कृो धार कृरता ह हाा-पर
इत्यावद कृो धार कृरनन कृन कृार र्रीर कृो धियिी कृहा या ध्त्याियवि विर्नर् यहास इंवलए
वदया या ह क्यरवकृ उस ली इत्यावद भी धियि ह और ु कृो धार कृरनन ंन हाा-पर भी धियिी
हो जाएस न लनवकृन हाा-पर धव्तम धियिी नह हो ंकृतन परू ा र्रीर ही ध्त्याियिी हो ंकृता ह
ंणु -दःु ण म वकृंी एकृ कृी धनभु वू त भो कृहलाती ह धंकृा आश्रय र्रीर कृहलाता ह इंकृन
धवतररक्त चनिा या ्रकयत्न कृन आश्रय कृो भी र्रीर कृहतन हैं चनिा वहत कृी ्रकावए ताा धवहत कृन
पररहार कृन वलए कृी जानन िाली वक्रया ह ्प्दन मा्र कृो चनिा नह कृहा जा ंकृता ह
इवन्ग
तींरा ्रकमनय इव्वयर कृो माना या ह-
र्रीरंयस क्त
ु ज्ञानकृर मतीव्वयस ‘इव्वयम‘ धतीव्वयवमव्वयवमत्युच्यमानन कृालादनरपीव्वय्रकंस ो ऽत
उक्तस ज्ञानकृर वमवत ताापीव्वयंव्नकृर्ेवत्रकंस नऽत उक्तस र्रीरंसयक्त ु वमवत र्रीरस ंसयक्त
ु स
ज्ञानकृर वमव्वयवमत्यच्ु यमानन आलो कृादनररव्वयत्ि ्रकंस ो ऽत उक्तमतीव्वयवमवत
उपयशक्त
ु पररभार्ा कृन धनंु ार ‘इव्वय‘ िह ह जो र्रीर ंन ंयस क्त
ु ह और ज्ञान कृा कृर ह, और इंकृन
ंाा-ंाा जो ध्रकत्य् ह

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इं बात कृो आप इं तरह भी ंमझ ंकृतन हैं वकृ र्रीर कृन वजन धियिर कृन वारा विर्य कृा ्ह
हो ता ह िन इव्वय कृहलातन हैं इव्वयास ्ियस धतीव्वय हो ती हैं धतीव्वय ंन तात्पयश ह उनकृा ्रकत्य्
तौर पर वदणाई न दनना ्यान दननन िाली बात यह ह वकृ ्रकत्य् ्रकमा कृी चचाश कृरतन ंमय
‘इव्वयााश ंव्नकृर्श‘ कृन वजं ्रकत्य् ्रकमा कृी बात कृही ई ाी, िहास उं ्रकवक्रया कृन ध्त तश
धाश कृा ्रकत्य् हो ता ह न वकृ इव्वयर कृा
‘ज्ञानकृर म‘् कृा धाश ह वयापार वारा ज्ञान कृा धंाधार कृर धंाधार कृार वकृंन कृहतन हैं
इंन आप पिू श ध्ययन इकृाई म वि्तार ंन पढ़ चकृ
ु न हैं यवद ‘ज्ञानकृर म‘् इं धर्
स कृो पररभार्ा ंन
हरा वदया जाय तो कृाल कृो भी इव्वय मानना पडन ा, क्यरवकृ कृाल भी र्रीर ंयस क्त
ु और धतीव्वय
हो ता ह
और यवद कृन िल ‘ज्ञानकृर म् धतीव्वयस‘ पद ंन इंकृा ल् वकृया जाए तो इव्वयााश ंव्नकृर्श भी
इव्वय कृहलानन ल न, क्यरवकृ िन भी ज्ञान कृन कृर और धतीव्वय हैं इंवलए ‘र्रीरंसयुक्तम‘् यह
पद यहास रणा या ह, और िह इं पररभार्ा कृन वलए महत्िपू श ह
दंू री ओर यवद कृन िल ‘र्रीर ंयस क्त ु स ज्ञानकृर वमव्वयम‘ ऐंा ल् वकृया जाता ह तो िह भी
दो र्पू श हो ा, क्यरवकृ ्रककृार् इत्यावद भी र्रीर ंन ंसयक्त
ु हो ता ह और िह ज्ञान कृा कृर भी ह
इंवलए ‘धतीव्वयम‘् पद रणा या ह धब ‘र्रीरंसयक्त ु म‘् , ‘ज्ञानकृर म‘ और ‘धतीव्वयम‘् इन
तीनर पदर कृी धल -धल वयाख्या ंन इव्वय कृी पररभार्ा म इन तीनर पदर कृा क्या महत्ि ह आप
भली-भासवत ंमझ ए हर न
तकृश भार्ाकृार इव्वय कृी इं पररभार्ा कृन धन्तर इव्वयर कृी ंसख्या और उनकृन धाश बतातन हुए
कृहतन हैं-
तावन चनव्वयाव र्र् ्रता रंनच््ु त्िक्श्रो तमनासवं त्र ्धो पलवब्धंाधनवमव्वयस ्रता म्
नांा्िवतश तच्च पावाशिस ्धित्िाद् घरित् ्धित्िचस ्ध्ाहकृत्िातस यवदव्वयस रूपपावदर्ु
पसचंु म्यन यस ु स ह्णत ावत तवदव्वयस तद्गु ंसयक्त
ु स , ताा च च्रूप
ु प्ाहकृस रूपपित्
यन इव्वयास ाह हो ती हैं, इनकृन नाम हैं ्रता , रंन, च्,ु त्िकृ् और श्रो त यन पासच बाह्यनव्वयास हैं और
इनकृन धलािा मन नामकृ एकृ ध्तररव्वय भी ह इनम ंन ्ध कृी उपलवब्ध कृरानन िाली इव्वय
्रता वन ्वय कृहलाती ह, जो नावंकृा कृन ध्भा म रहती ह ्धित् हो नन ंन घर कृन ंमान पावाशि
धााशत् पतवािीज्य हो ती ह जो इव्वय पासचर म ंन वजं ु कृो ्ह कृरती ह िह उं ु िाली
च्रु रव्वय कृहलाती ह, जंन रूपप कृो ्ह कृरनन िाली च्ुररव्वय रूपपित् कृहलाती ह

उत्तराण्श मक्त
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रंो पलवब्धंाधनवमव्वयस रंनम् वजह्वा्िवतश तचचातयस रंित्िात् रंित्िचस रूपपावदर्ु पसचंु म्यन
रं्यिावभिसजकृत्िाल्लालाित्
रं कृा ज्ञान कृरानन िाली इव्वय रंना ह िह वजह्वा कृन ध्भा म व्ात ह यह इव्वय रंिती हो नन
ंन जलीय हो ती ह
रूपपो लवब्धंाधनवमव्वयस च्ःु कृत ष् तारा्िवतश तच्च तजंस, रूपपावदर्ु पसचंु म्यन
रूपप्यिावभवयसजकृत्िात् ्रकदीपित्
रूपप कृा ज्ञान कृरानन िाली इव्वय च्ु कृहलाती ह िह आण स कृी कृाली पतु ली म व्ात ह िह रूपप,
रं, ्ध आवद पासचर म रूपप कृी धवभवयसजकृ हो नन ंन ्रकदीप कृन ंमान तनज ंन उत्प्न इव्वय ह
्ि ाश पलवब्धंाधनवमव्वयस त्िकृ्, ंिशर्रीरवयावप तत्तु िायिीयस रूपपावदर्ु पच स ंु म्यन
्पर्श्पिावभवयसजकृत्िात् धस ंसव ंवललर्त्यावभवयसजकृवयसजनिातित्
्पर्श कृा ज्ञान कृरानन िाली इव्वय ‘त्िकृ्‘ ं्पू श र्रीर म वयाए हो ती ह और िह िायु ंन उत्प्न
इव्वय ह रूपपावद पाचस ो इव्वयर म िह ्पर्श कृी धवभवयसजकृ ह
र्ब्दो पलवब्धंाधनवमव्वयस श्रो तम् तच्च कृ र् श ष्कृुल्यिवच्ा्न माकृार्मनि, न ववया्तरस
र्ब्द ु त्िात् तदवप र्ब्द्ाहकृत्िात् यवदव्वयस रूपपावदर्ु पसचंु म्यन यद्गु वयसजकृस तत् तद्गु ंसयक्त
ु स
याा च्रु ावद रूपप्ाहकृस रूपपावदयक्त
ु म्
र्ब्द कृा ज्ञान कृरानन िाली इव्वय श्रो त ह िह कृ र् श ष्कृुली ंन वघरा हुआ आकृार् ही ह िह
र्ब्द ु ंन ंयस क्तु हो नन कृन कृार और कृो ई ववय नह ह र्ब्द ु ंन ंयस क्त ु हो नन कृन कृार िह
आकृार् रूपप ही ह
पसच बाह्यज्ञाननव्वयर कृो तकृश भार्ा म भौवतकृ ववयर ंन उत्प्न बताया या ह पाचस ो ज्ञाननव्वयास
पतवािी, जल, तनज, िायु और आकृार् ंन उत्प्न बताई ई हैं मन कृा ि नश तकृश भार्ाकृार कृन र्ि
वमश्र इं ्रककृार कृरतन हैं-
ंण ु ाद्यपु लवब्ध ंाधनवमव्वयस मनः तच्चा पु ररमा स हृदया्तिशवतश
ंण ु ावद कृी उपलवब्ध कृा ंाधनभतू इव्वय मन ह िह ध ु पररमा और हृदय कृन भीतर रहनन िाला

अथ्
तकृश भार्ा म इव्वयर कृी वयाख्या कृन उपरा्त चौान ्रकमनय कृन रूपप म धाश कृी वििनचना कृी ई ह , जो
इं ्रककृार ह-
धााशः र्र्पदाााशः तन च ववय ु कृमशंामा्यविर्नर्ंमिायाः
धाश कृी ंसख्या ाह ह, िन ववय, ु , कृमश, ंामा्य, विर्नर्, ंमिाय नाम ंन जानन जातन हैं

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त्र ंमिावयकृार स ववयम् ु ाश्रयो िा तावन च ववयाव पतवावयएनजो िायाकृार्कृालवद ात्ममनासवं
निि
जो ु र कृा आश्रय हो ता ह िह ववय कृहलाता ह िह ववय पतवािी, जल, धवग्न, िाय,ु आकृार्,
कृाल, वदकृ् और आत्मा ताा मन हैं
धा ु ाः उच्य्तन ंामा्िान् धंमिावयकृार स ्प्दात्मा ु ः ं च ववयावश्रत एि रूपप-रं-
्ध-्पर्श-ंसख्या-पररमा -पताकृत्ि-ंसयो -विभा -परत्ि-धपरत्ि- रुु त्ि-्रकबति-्ननह-र्ब्द-बवु द्ध-
ंण
ु -दःु ण-इच्ाा-वनर्-्रकयत्न-धमश-धधमश-ं्स कृार भनदाश्चतवु िंर्वतधा
ंामा्य जावत ंन यक्त ु , धंमिावयकृार बननन िाला, वक्रयार्ील न हो नन िाला और जो ववय पर
आवश्रत ह, िह ु कृहलाता ह ंामा्य ताा धंमिावय कृार कृा ध्ययन आप धपनी पिू श
ध्ययन इकृाइयर म कृर चकृ ु न हैं
ु र कृी ंसख्या तकृश भार्ा म चौबीं व नाई ई ह, जो वन्नवलवणत हैं-
रूपप, रं, ्ध, ्पर्श, ंसख्या, पररमा , पताकृत्ि, ंसयो , विभा , परत्ि, धपरत्ि, रुु त्ि, ववयत्ि,
्ननह, र्ब्द, बवु द्ध, ंण ु , दःु ण, इच्ाा, वनर्, ्रकयत्न, धमश और धधमश
कृमश भी धाश नामकृ ्रकमनय कृन ध्त तश आता ह कृमश कृी वयाख्या तकृश भार्ा म इं ्रककृार कृी ई ह -
कृमाशव उच्चय्तन चलनात्मकृस कृमश, ु इि ववयमा्र ितवत्त धविभवु वयपररमा नन मतू शत्िायरना्ना
ंहकृायश ंमिनतस विभावारा पिू ंश यस ो नार्न ंत्यत्तु रदनर्ंयो हुतश्च ु तच्च उत््नप -धप्नप -
आकृसु चन ्रकंार मनभनदात् पसचविधम् भ्रम ादय्तु मन्ह नन ि ह्य त ्तन
कृमों कृा ि नश कृुा इं ्रककृार वकृया जा ंकृता ह वत रूपप कृमश ु कृन ंमान कृन िल ववयर म
आवश्रत रहता ह कृमश धविभु ववय कृा पररमा हो नन ंन कृन िल मतू श ववयर म रहता ह क्यरवकृ विनार्
वारा पिू ंश सयो कृा नार् हो जाता ह, इंवलए पनु ः उत्तरंसयो कृा कृमश हनतु (ंाधन) हो ता ह
उत््नप , धप्नप , आकृसु चन, ्रकंार और मन कृन भनद ंन कृमश पाच स ्रककृार कृा हो ता ह
सखुखन्
धनिु वत त्त्रकत्यय हनतुः ंामा्यम् ववयावद्र यितवत्त, वनत्यमनकृमननकृानु तसच तच्च ववविवधस, परमपरसच
परस ंत्ता बहुविर्यत्िात् ंा चानिु वत त्त्रकत्ययमा्र हनतत्ु िात् ंमा्य मा्र म् धपरस ववयत्िावद
तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र कृन धनंु ार ‘धनिु वत त्त ्रकत्यय‘ कृन हनतु (ंाधन) कृो ंामा्य कृहतन हैं
धनिु वत त्त ्रकत्यय कृा धाश ह धननकृ वयवक्तयर म हो नन िाली ंमा्य ्रकतीवत यह (ंामा्य)ववय, ु
और कृमश म रहनन िाला वनत्य, एकृ और धननकृ ितवत्त हो ता ह पर कृा धाश ह वयापकृ दनर् म रहनन
िाला ताा धपर कृा धाश ह धल्प दनर् म रहनन िाला
विर्नर् कृो भी धाश कृी श्रन ी म रणा या हैं इंकृी पररभार्ा नयावयकृर नन इं ्रककृार कृी ह-

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विर्नर्ो वनत्यो वनत्यववयितवत्तः वयाितवत्त बुवद्धमा्र हनतःु वनत्यववयाव त्िाकृार्ादीवन पसच
पतवावयादयश्चत्िारः परमा रूप
ु पाः
विर्नर् वनत्य ववयर म रहता ह और िह वनत्य ह ध्य ववयर म उपव्ात रहनन िाला धव्तम भनदकृ
(वन ाशयकृ भनद कृरनन िाला) धमश विर्नर् कृहलाता ह यह कृन िल वयाितवत्त (धल कृरना) बवु द्ध कृा
हनतु हो ता ह
सुिख
ंमिाय कृी पररभार्ा भी धाश कृन ध्दर कृी ई ह आप पहलन भी यह पढ़ चकृ ु न हैं वकृ धयतु वंद्ध
ं्ब्ध कृो ही ंमिाय कृहतन हैं-
‘धयतु वंद्धयो ः ं्ब्धः ंमिायः ‘
पिू श कृी ध्ययन इकृाइयर म धयतु वंद्ध ं्ब्ध कृी वयाख्या भी आप पहलन ही पढ़ चकृ ु न हैं
इं ्रककृार आपनन चौान ्रकमनय धााशत ‘धार‘् कृन विर्य म जाना ववय, ु , कृमश, ंामा्य, ंमिाय
और विर्नर् कृी भी ंसव्ए जानकृारी आप ्रकाए कृर चकृ ु न हैं धत्यवधकृ वि्तार न हो इं बात कृो
्यान म रणतन हुए इन विर्यर कृन वििनचन कृो यह तकृ ंीवमवत रणा या ह
बकवद्धत
पासचिास ्रकमनय बवु द्ध ह बवु द्ध कृी पररभार्ा तकृश भार्ा म इं ्रककृार दी ई ह-
बवु द्धरूपपलवब्धज्ञानस ्रकत्यय इत्यावदवभः पयाशयर्ब्दयाशऽवभधीयतन ंा बवु द्धः धाश्रककृार्ो िा बवु द्ध ंा
च ंस्नपतो ववविधा धनभु िस ्मर स च धनभु िो ऽवप ववविधो याााोऽयाााेश्चनवत
बवु द्ध कृन पयाशयिाची धािा ंमानााशकृ र्ब्द उपलवब्ध, ज्ञान, ्रकत्यय इत्यावद हैं ं् स नप म इंकृन दो
भनद हैं, जो धनभु ि और ्मर नाम ंन जानन जातन हैं धनभु ि कृन भी दो भनद हो तन हैं, पहलन कृो याााश
कृहतन हैं और दंू रन कृो धयाााश नाम ंन जाना जाता ह
त्र याााोऽााशऽविंिस ादी ं च ्रकत्य्ावद ्रकमा जश्यतन याा च्रु ावदवभरदिु घशरावदज्ञानम्
धमू ावलस कृमावग्नज्ञानम् ो ंादृश्य दर्शनाद ियर्ब्दिाच्यताज्ञानम् ज्यो वतिो मनन ्ि कृ श ामो यजनत्
इत्यावद िाक्याज्यो वतिो मह्य ्ि ंश ाधनता ज्ञानसच
धयााश्तु धाशवयवभचारी, ध्रकमा जः ं व्र विधः ंसर्य्तकृो विपयशयश्चनवत
याााश और धयाााश ज्ञान कृा वनरूपप भी तकृश भार्ा म बवु द्ध नामकृ ्रकमनय कृन ध्त तश वकृया या ह
्रकमा र कृन वििनचन कृन ंमय भी आप यह पढ़ चकृ ु न हैं वकृ याााश ज्ञान ही ्रकमा कृहलाती ह ताा यह
्रकमा ्रकत्य्ावद ्रकमा र ंन उत्प्न हो ती ह यही बात यहास भी कृही जा रही ह- दो र् रवहत च्ु आवद
ंन घर कृा ज्ञान (्रकत्य् ज्ञान), धमू आवद वलस ंन धवग्न आवद कृा ज्ञान (धनमु ान ज्ञान), ो कृन
ंादृश्य कृो दनणनन ंन िय र्ब्द ंन िाच्य हो नन कृा ज्ञान (उपमान ज्ञान), ्ि श कृी इच्ाा रणनन िाला

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ज्यो वतिो म या कृर जंन िनद िाक्य ंन ज्यो वतिो म या म ्ि ंश ाधनता कृा ज्ञान (यह र्ब्द ्रकमा
ज्य ज्ञान), याााश धनभु ि हुआ
धयाााश ज्ञान धाश कृा ‘वयवभचारी‘ (धाश कृा धनाश कृरनन िाला) ताा ध्रकमा ंन उत्प्न हो ता ह
धयाााश ज्ञान कृन ंर्
स य, तकृश और विपयशय नामकृ तीन भनद हो तन हैं
ुन
मन ाठा ्रकमनय ह, वजंकृन बारन म तकृश भार्ाकृार नन कृहा ह-
ध्तररव्वय मनः
ध्तररव्वय कृो मन कृहतन हैं इव्वय नामकृ तींरन ्रकमनय कृी चचाश कृरतन ंमय आप इंन वि्तार ंन
प्रिकवत्त
ंाति ्रकमनय कृन रूपप म ्रकितवत्त कृा ि नश वमलता ह, वजंन तकृश भार्ा म इं ्रककृार पररभावर्त वकृया
या ह-
्रकितवत्तः धमाशधमशमयी या ावदवक्रया, त्या ज दव् यिहारंाधकृत्िात्
धमश और धधमश रूपप या ावद वक्रया और उंंन उत्प्न धमश और धधमश कृो ही ्रकितवत्त कृहतन हैं
दोर्
आठिास ्रकमनय दो र् ह इंकृी पररभार्ा तकृश भार्ा म इं ्रककृार कृी ई ह-
दो र्ा रा -वनर्-मो हाः रा इच्ाा वनर्ो म्यःु क्रो ध इवत याित् मो हो वमथ्याज्ञानस विपयशय इवत याित्
रा , वनर् और मो ह दो र् कृहलातन हैं इच्ाा कृो रा कृहतन हैं म्यु धािा क्रो ध वनर् कृहा जाता ह
वमथ्या ज्ञान धािा विपयशय कृो मो ह कृहतन हैं
प्रेत् भखि
यह निास ्रकमनय ह, वजंकृा ि शन तकृश भार्ा म इं ्रककृार वकृया या ह-
पनु रुत्पवत्तः ्रकनत्यभािः ं चात्मनः पिू दश हन वनितवत्तः धपूिदश हन ंसघात लाभः
मर कृर पनु ः ज्म लनना ्रकनत्यभाि नामकृ निास ्रकमनय हैं यह पिू श र्रीर कृा नार् ताा नए र्रीर कृी
्रकावए ह वनत्य आत्मा कृा पनु ः नए र्रीर-इव्वय कृन ंाा ं्ब्ध ्रकनत्यभाि कृहलाता ह
युट

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यह दंिास ्रकमनय ह फलम् पनु भो ः ंुणदःु णा्यतर ंा्ात्कृारः
दःु ण या ंण
ु म वकृंी एकृ कृा भी भो फल कृहलाता ह
दकःण
यह ग्यारहिास ्रकमनय ह तकृश भार्ाकृार नन इं ्रकमनय कृा ि नश कृरतन हुए कृहा ह- ‘पीडा दःु णम‘
अपिग्त
नयावयकृर कृा यह बारहिास और धव्तम ्रकमनय ह इंकृा वििनचन तकृश भार्ा म इं ्रककृार वकृया या
ह-
मो ्ो ऽपि ःश ं चकृविर्स वत्रकभनदवभ्न्य दःु ण्यात्यव्तकृी वनितवत्तः एकृविसर्वत भनदा्तु र्रीरस
र्वशव्वयाव , र्श्विर्याः, र्श्बद्ध ु यः, ंण
ु स दःु णचस नवत ौ मख्ु य भनदात् ंणु स तु दःु णमनि
दःु णानुर्वस त्िात् धनर्ु स ऽन विनाभािः ं चायमपु चारो मधवु न विर्ंसयक्त ु न मधनु ो ऽवप
विर्प्वन्नपित्
इक्कृीं ्रककृार कृन दःु णर ंन आत्यव्तकृ वनितवत्त कृो ही नयावयकृर नन मो ् कृी ंसज्ञा दी ह मो ् और
धपि श एकृ-दंू रन कृन पयाशय हैं ्याय दर्शन म इक्कृीं ्रककृार कृन दःु ण व नाए ए हैं- र्रीर, ाह
इव्वयास, ाह विर्य, ाह ज्ञान और ंण ु और दःु ण इन दःु णर ंन ाुरकृारा पाना ही मो ् कृहलाता
ह जीिन म ंण ु और दःु ण दो नर कृा भो हो ता ह, पर्तु लौवकृकृ ंण ु भी क्यरवकृ दःु ण वमवश्रत
हो तन हैं इंवलए िन भी दःु ण ही हो तन हैं आप दवनकृ वयिहार म भी यह दनणतन हैं वकृ यवद मधु विर् ंन
ंसयक्त
ु ह तो िह विर् कृा ही ्रकभाि ाो डता ह
तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र नन धपि श ्रकावए कृन मा श कृा भी वििनचन धपनी तकृश भार्ा म इं ्रककृार
वकृया ह-
र्ास्त्राद् विवदतंम्तपदााशतत्त्ि्य, विर्यदो र्दर्शनविरक्त्य, ममु ्
ु ो ्याशवयनो ्यानपररपाकृिर्ात्
ंा्ात्कृत तात्मनः क्लनर्हीन्य, वनष्कृामकृमाशनष्ठु ानादना त धमोऽधमाशिनजशयतः पिू ोपातच स
धमाशऽधमश्रकचयस यो वव्रकभािाद् विवदत्िा ंमाहृत्य भजसु ान्य, पिू कृ श मशवनितत्तौ ितशमानर्रीराप मन
पिू र्
श रीरभािाच्ारीराद्यनकृविर्
स वत दःु णं्ब्धो न भिवत कृार ाभािात्
ंो ऽयमनकृविर् स वत्रकभनदवमभ्नदःु णहारवनमो्ः ंो ऽपि श इत्युच्यतन
र्ास्त्रर कृन याो वचत ध्ययन ंन ंम्त पदााों कृा तत्त्िज्ञान ्रकाए कृर ंांस ाररकृ विर्यर ंन विरवक्त कृन
फल्िरूपप मो ् कृी इच्ाा रणनन िाला ममु ् ु ंम्त दो र्र कृन वनितत्त हो जानन ंन वनष्कृाम भाि म

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्रकितत्त हो जाता ह यो ाभ्यां ंन ्रकाए र्वक्त कृन वारा धमश और धधमश कृो भली भासवत जानकृर उ्ह
एकृ ंाा भो लनता ह परर ाम यह हो ता ह वकृ ितशमान र्रीर ाूरनन पर नया र्रीर इं धि्ाा म
नह उत्प्न हो ता ह, और इं कृार इक्कृीं दःु णर कृी वनितवत्त हो जाती ह, वजं व्ावत कृो ही
्याय कृी पार्पररकृ भार्ा म मो ् कृहा जाता ह
प्रथुतबोधतप्रश्नतत
वन्नवलवणत ्रकश्नर कृन उत्तर ररक्त ्ाानर म वलवणए ताा इकृाई कृन ध्त म वदए ए उत्तरर ंन धपनन
उत्तरर कृा वमलान कृीवजए-
1. तकृश भार्ा म ्रकमनयर कृी ंसख्या वकृतनी बताई ई ह-
कृ. बारह
ण. चौदह
. ंो लह
घ. धट्ठारह
2. ‘इव्वय‘ नामकृ ्रकमनय ह-
कृ. चौाा
ण. तींरा
. दंू रा
घ. निास
3. दःु णर ंन आत्यव्तकृ वनितवत्त कृो कृहतन हैं-
कृ. मो ्
ण. आंवक्त
. विरवक्त
घ. इनम ंन कृो ई नह

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4. मन ह-
कृ, ध्तररव्वय
ण. बाह्य ज्ञाननव्वय
. कृमेव्वय
घ. इनम ंन कृो ई नह
5. ्पर्श विर्नर् ु ह-
कृ. त्िव व्वय कृा
ण. च्रु रव्वय कृा
. ्रता वन ्वय कृा
घ. रंननव्वय कृा
्रकमनय वनरूपप कृन पश्चात् इं इकृाई म आप धनमु ान ्रकमा कृन भनदर, याा ्िाााशनमु ान और
पराााशनमु ान कृा ताा हनत्िाभां कृा भी वि्तार ंन ध्ययन कृर न धनमु ान ्रकमा कृा ध्ययन
आप धपनी पिू श ध्ययन इकृाई म कृर चकृ ु न हैं ध्ययन कृन दौरान आपनन हनतु और वयावए कृी भी
जानकृारी ्रकाए कृर ली ह यहास आप हनत्िाभां धााशत् ‘हनतु या कृार न हो तन हुए भी जो कृार कृी
तरह ्रकतीत हो तन हैं‘ उनकृा ध्ययन कृर ,न ताा उनकृन भनदर कृो भी जान न
धनमु ान ्रककृर म आप यह पढ़ चकृ ु न हैं वकृ हनतु कृा तततीय ज्ञान (परामर्श) धनुमान ्रकमा ह
नयावयकृर कृा यह तततीय ज्ञान क्या ह, इंकृी भी जानकृारी आप वि्तार ंन पहलन ही ्रकाए कृर चकृ ुन
हैं यहास पर धनमु ान कृन भनदर पर विचार वकृया जाना ्रकांसव कृ हो ा
जंा वकृ आप जानतन हैं धनमु ान कृन दो भनद बताए ए हैं, याा ्िाााशनमु ान और पराााशनमु ान
5.4तस्िखथख्नकुखनत
तकृश भार्ा म ्िाााशनमु ान कृी पररभार्ा इं ्रककृार कृी ई ह-
तच्चानमु ानस ववविधम् ्िााश परााश चनवत ्िााश ्ि्रकपवत्त हनतःु ताा वह ्ियमनि महानंादौ
विवर्िनन ्रकत्य्न धमू ाग्नयो वयाशवए हत ीत्िा पिशत ंमीपस त्तद्गतन चा्ौ ंव्दहानः
पिशतिवतशनीमविवच्ा्न मल ू ा्रकभ्रवलहास धमू -लनणा पश्यन् धमू दर्शनाच्चो द्बुद्धंस्कृारो वयावएस ्मरवत

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य्र धमू ्त्र ावग्नररवत त्र ो ऽ्र ावप धमू ो ऽ्तीवत ्रकवतपद्यतन त्मादत्त पिशतनऽधवग्नरतय्तीवत ्ियमनि
्रकवतपद्यतन तत््िाााशनुमानम्
तकृश भार्ाकृार कृहतन हैं वकृ हनतु दर्शन ंन ्ियस ्रकाए वकृया या ज्ञान धनमु ान ज्ञान कृहलाता ह वकृंी
वयवक्त नन यवद रंो ईघर म ्रकत्य् ्रकमा ंन यह ज्ञान ्रकाए वकृया ह वकृ जहास-जहास धमू हो ता ह िहा-स
िहास धवग्न हो ती ह इं ज्ञान कृन वारा ्ियस ही धमू और धवग्न कृी वयावए कृो ्ह कृर पिशत कृन
ंमीप जाकृर पिशत त धवग्न कृन विर्य म ं्दनह हो नन पर (पिशत म धवग्न ह या नह ) पिशत पर वयाए
धविवच्ा्नमल ू ा धमू कृी रन णा कृो दनणकृर धमू कृन दर्शन ंन उद्बुद्ध ं्स कृार ंन धएु स और धवग्न कृी
वयावए कृा ्मर कृरता ह उंकृन बाद पिशत म धआ ु स ह, इंवलए उं पिशत पर धवग्न भी ह, यह जान
लनता ह इं ्रककृार ्ियस कृन ्रकत्य् पर आधाररत यह धनमु ान ज्ञान ्िाााशनमु ान कृहलाता ह
5.5तपराखथख्नकुखन
जब वकृंी दंू रन वयवक्त कृो पासच धियिासॅन ंन यक्त ु धनमु ान ज्ञान कृराया जाता ह तो िह
पराााशनमु ान कृहलाता ह तकृश भार्ा म पराााशनमु ान कृा ल् और उदाहर इं ्रककृार ह-
यत्तु कृवश्चत् ्ियस धमू ादवग्नमनमु ाय परस बो धवपतसु पचस ाियिमनमु ानिाक्यस ्रकयक्त
सु न तत् पराााशनमु ानम्
तद्याा पिशतो ऽवग्नमान्, धमू ित्िात्, यो यो धमू िान ंंो ऽवग्नमान् याा महानंः, ताा चायस
त्मात्ताा इवत
धननन िाक्यनन ्रकवतज्ञावदमता ्रकवतपावदतात् पचस रुपो प्ना वलस ात परो ऽतयऽवग्नस ्रकवतपद्यतन तननतत्
पराााशनमु ानम्
पराााशनमु ान ंन तात्पयश ह दंू रन कृन वारा धनमु ान कृा बो ध कृराना ्ियस धमू ंन धवग्न कृा धनमु ान
कृरकृन दंू रन कृो यह ज्ञान कृरानन कृन वलए पसचाियिर ंन यक्त ु धनमु ान ज्ञान कृराया जाता ह और यही
धनमु ान ज्ञान पराााशनमु ान कृहलाता ह हम धब कृुा उदाहर र ंन इंन ंमझनन कृी कृो वर्र् कृर न 1.
यह पिशत धवग्नमान ह (यह ्रकाम धियि ्रकवतज्ञा ह) 2. धमू यक्त ु हो नन ंन (यह हनतु रूपप दंू रा धियि
ह) 3. जो -जो धमू यक्त ु हो ता ह, िह-िह िव्हयक्त ु भी हो ता ह, जंन रंो ई घर (यह तींरा धियि
उदाहर हुआ) 4. यह पिशत भी उंी ्रककृार धमू यक्त ु ह (यह उपनय नामकृ चौाा धियि हुआ) 5.
इंवलए पिशत धवग्नयक्त ु ह (यह वन मन रूपप पासचिास धियि हुआ) और पिशत धवग्नयुक्त ह इं
्रककृार कृा जो ज्ञान हो ता ह िह ज्ञान दंू रा वयवक्त जब जान लनता ह तो िह पराााशनमु ान कृहलाता ह
्िाााशनमु ान ताा पराााशनमु ान कृन ज्ञान कृन वलए वयावए ं्ब्ध धवनिायश ह वयावए और उंकृन भनदर
कृा ध्ययन आप इंकृन पिू श कृी इकृाई म कृर चकृ ु न हैं धमू और धवग्न कृी वयावए म आपनन दनणा ह
वकृ धमू हनतु ह और धवग्न ंा्य ह धनमु ान ज्ञान कृन वलए ंही हनतु कृा हो ना आिश्यकृ हो ता ह
लनवकृन कृभी-कृभी ऐंा भी हो ता ह वकृ हनतु ंदो र् हो ता ह िही हनतु वनदोर् माना जाता ह जो ंा्य
कृी वंवद्ध मन ंमाश हो यानी वकृ प्धमशता आवद रूपपर ंन यक्त ु हो ंदो र् हनतु हनत्िाभां कृहलातन हैं

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हनतु ्रकतीत हो तन हुए भी जो धनवु मवत कृा ्रकवतब्धकृ धािा ्रकवतरो धकृ हो िह हनत्िाभां कृहलाता
ह नयावयकृर कृन धनंु ार हनत्िाभां कृन पासच भनद हो तन हैं इन पासचर भनदर कृा वनरूपप तकृश भार्ा म
वकृया या ह
धनमु ान ्रककृर म ‘हनतु‘ कृा ध्ययन आप वि्तार ंन पहलन ही कृर चकृ ु न हैं वयावए ं्ब्ध पढ़तन
ंमय आपनन ्यान वदया हो ा वकृ हनतु कृा ‘विप्‘ (विरो धी प्) म धभाि हो ता ह, पर्तु जब हनतु
विप् म भी विद्यमान हो ता ह तो यह हनत्िाभां कृहलानन ल ता ह आइए, ध्िय वयवतरन कृी हनतु कृन
पासच रूपपर कृी चचाश भी हम ंस्नप म यहास कृर ल इंंन हम हनत्िाभां ्रककृर कृो ंमझनन म आंानी
हो ी ध्ियवयवतरन कृी हनतु कृन पाच
स रूपप ं्
स नप म वन्नवलवणत हैं-
1. प्ंत्त्ि, 2. ंप्ंत्त्ि, 3. विप्वयािततत्त्ि, 4. धबावधतविर्यत्ि 5. धंत््रकवतप्त्ि
इन रूपपर म ‘प्‘ ‘ंप्‘ और ‘विप्‘ र्ब्दािवलयर कृो पहलन हम ंमझ लनना चावहए तकृश भार्ा
म कृहा या ह- ‘ंव्दग्ध ंा्यिान प्ः‘ धााशत जहास ंा्य कृी वंवद्ध कृरनी हो िह
प् कृहलाता ह उदाहर कृन वलए पिशत म यवद धवग्न कृो धमू ित्ि हनतु ंन वंद्ध कृरना ह तो पिशत
‘प्‘ कृहलाए ा उं धूम हनतु कृा ्रकाम रूपप प्ंत्त्ि हुआ ंप् रंो ईघर कृहलाए ा क्यरवकृ िहास
धमू ित्ि हनतु हो नन पर धवग्न कृा वनश्चय ह इं ंप् रूपप महानं म धमू रूपप हनतु रहता ह इं हनतु
धमू कृा दंू रा रूपप ‘ंप्ंत्ि‘ हुआ वजंम ंा्य कृा धभाि वनवश्चत हो िह ‘विप् कृहलाता ह
उदाहर कृन वलए तालाब ंा्य रूपप म धवग्न कृा धभाि वनवश्चत ह उं तालाब म हनतु धमू कृा भी
धभाि हो ता ह यह उंकृा तींरा रूपप ‘विप्वयाितत्त‘ हुआ
इंी ्रककृार धमू ित्ि हनतु म धबावधत विर्यत्ि भी दनणा जा ंकृता ह क्यरवकृ धमू ित्ि हनतु कृा ंा्य
धवग्न कृी पिशतरूपप प् म विद्यमानता वकृंी ध्य ्रकमा ंन बावधत नह ह इंी ्रककृार पासचिास रूपप
धंत््रकवतप्त्ि धमश कृा दर्शन भी धमू ित्ि हनतु म हो ता ह क्यरवकृ ंा्य कृन विपरीत धाश कृो वंद्ध
कृरनन िाला कृो ई ध्य ्रकवतप् धााशत विरो धी प् उपलब्ध नह ह
इन पासच रूपपास ंन यक्त
ु धमश ही हनतु कृहलाता ह और ध्ियवयवतरन कृी हनतु म यन पासचर रूपप विद्यमान
हो तन हैं कृन िला्ियी म विप्वयािततत्ि और कृन िलवयवतरन कृी म ंप्ंत्ि कृा धभाि हो ता ह
इंवलए कृन िला्ियी और कृन िलवयवतरन कृी हनतु चार रूपपर ंन यक्त
ु हो तन हैं इन हनतओ
ु स कृन धवतररक्त हनतु
्रकतीत हो नन िालन हनत्िाभांर म पहला हनत्िाभां धवंद्ध, दंू रा विरुद्ध, तींरा धनकृाव्तकृ, चौाा
्रककृर ंम और पासचिास कृालात्ययापवदि नाम ंन ्रकचवलत हैं इंकृा उल्लनण तकृश भार्ा म इं ्रककृार

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वकृया या ह- धतो ऽ्यन हनत्िाभांाः तन च धवंद्ध विरुद्ध-धनकृाव्तकृ ्रककृर ंम-कृालात्ययापवदि
भनदात् पसचि याा नारवब्दस ंरु वभ धरवब्दत्िात् ंरो जारवब्दित्
अवसद्ध
जब हनतु कृी प् म विद्यमानता न हो तो िहास धवंद्ध हनत्िाभां हो ता ह उदाहर ्िरूपप कृमल हो नन
कृन कृार आकृार् कृमल ंु व्धत हो ता ह, ठीकृ जंन ंरो जकृमल हो ता ह यहास आकृार् कृमल
( नारवब्द) हनतु कृा आश्रय ह, लनवकृन ऐंा नह हो ंकृता ह क्यरवकृ आकृार् कृमल कृा
धव्तत्ि ही नह हो ता प् कृन विद्यमान न हो नन कृन कृार ‘प्ंत्ि‘ धमश कृा उल्लघस न ह जो ंदह् तन ु
कृन वलए धवनिायश हो ता ह यह आश्रयावंद्ध, ्िरूपपावंद्ध और वयातत्िावंद्ध नाम ंन तीन ्रककृार कृा
हो ता ह
2. विरुद्ध दंू रा हनत्िाभां विरुद्ध कृहलाता ह तकृश भार्ाकृार कृन र्िवमश्र कृहतन हैं-
ंा्यविपयशयवयाएो हनतवु िशरुद्धः ं याा र्ब्दो वनत्यः कृत तकृत्िादात्मित् ध्र कृत तकृत्िस वह
ंा्यवनत्यत्िविपरीतावनत्ित्िनन वयाएम् यत्कृत तकृस तदवनत्ययमनि न वनत्यवमत्यतो , विरुद्धस
कृत तकृत्िवमवत
धााशत जो हनतु ंा्य कृो वंद्ध कृरनन कृन ्ाान पर ंा्य कृन धभाि कृो वंद्ध कृरता ह, िह विरुद्ध
नामकृ हनत्िाभां कृहलाता ह जंन र्ब्द वनत्य ह ज्य हो नन कृन कृार आत्मा कृन ंमान यहास ज्यत्ि
धािा कृत तकृत्ि हनतु ंा्य वनत्य कृन विपरीत धवनत्यत्ि म वयाए हो ता ह इंवलए यहास कृत तकृत्ि हनतु
म विरुद्ध हनत्िाभां ह
3. अनैृखवन् ृत
तकृश भार्ा म इंकृा ल् कृरतन हुए कृहा या ह-
ंवयवभचारो ऽनकृाव्तकृः ं ववविध, ंाधार ानकृाव्तकृो ऽंाधार ानकृाव्तकृष्चनवत त्र
प्ंप्विप् ितवत्तः ंाधार ः याा र्ब्दो वनत्यः ्रकमनयत्िात् वयो मित ध्र वह ्रकमनयत्िस हनत्ु तच्च
वनत्यावनत्यितवत्त ंप्ाद् विप्ाद् वयाितत्तो यः प्ः एि ितशतन ंो ऽंाधार नकृाव्तकृः ं याा
भवू मवनशत्या ्धक्त्िात् ्धत्त्िस वह ंप्व्नत्याद विप्ाच्चाव्त्याद वयाितत्तस भमू ा्र ितवत्तः
‘धनकृाव्तकृ‘ हनत्िाभां कृो उपररवलवणत पररभार्ा और उदाहर कृो ंरल ढस ंन हम इं तरह
ंमझ ंकृतन हैं वकृ ‘धनकृाव्तकृ‘ हनत्िाभां ंवयवभचार भी कृहलाता ह यह ंाधार और
धंाधार कृन भनद ंन दो ्रककृार कृा हो ता ह आपकृो यह याद ही हो ा वकृ हनतु कृा विप् म ंिशाा

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धभाि ंद् हनतु कृन वलए धवनिायश हो ता ह लनवकृन जब इंकृन विपरीत प्, ंप्, विप्, तीनर म
विद्यमान हो तो िहास ंाधार हनत्िाभां हो जाता ह जंन र्ब्द वनत्य ह ्रकमनय हो नन ंन आकृार् कृन
ंमान यहास ्रकमनयत्ि हनतु ंप् ताा विप् दो नर म जो ंप् और विप् दो नर म विद्यमान नह
हो ता िह धंाधार नकृाव्तकृ हनत्िाभां कृहलाता ह उदाहर कृन वलए पतवािी वनत्य ह ्धिती
हो नन ंन यहास ्धत्ि हनतु ंप् वनत्य आकृार्ावद और विप् धवनत्य जलावद ंन पताकृ कृन िल
पतवािीमा्र रहता ह, इंवलए यहास धंाधार नकृाव्तकृ हनत्िाभां ह
4. प्रृराणसु
वजं हनतु कृन ंा्य कृन विपरीत धाश कृो वंद्ध कृरनन िाला दंू रा हनतु विद्यमान हो िहास ्रककृर ंम
हनत्िाभां कृहलाता ह तकृश भार्ाकृार कृन र्ि वमश्र नन इंकृी पररभार्ा इं ्रककृार कृी ह-
्रककृर ंम्तु ं एि य्य हनतो ः ंा्यविपरीतंाधकृस हनत्ि्तरस विद्यतन ं याा र्ब्दो ऽवनत्यो
वनत्यधमशरवहतत्िात् र्ब्दो वनत्यो ऽवनत्य धमशरवहत्िावदवत धयमनि वह ंत््रकवतप् इिो च्यतन
धााशत् वजं हनतु कृन ंा्य कृन विपरीत धाश कृो दंू रन हनतु वारा वंद्ध वकृया जा ंकृन िहास ्रककृर ंम
हनत्िाभां हो ता ह
जंन र्ब्द वनत्य ह धवनत्य धमश ंन रवहत हो नन कृन कृार और उंकृा दंू रा हनतु ह र्ब्द धवनत्य ह
वनत्य धमश ंन रवहत हो नन कृन कृार यहास ंा्य कृन विपरीत धाश कृा ंाधकृ हनतु भी विद्यमान ह
इंवलए यहास ्रककृर ंम धािा ंत््रकवतप् नामकृ हनत्िाभां ह
5. कृालात्यापवदि इंन बावधत हनत्िाभां भी कृहा जाता ह इंकृी पररभार्ा तकृश भार्ा म इं
्रककृार दी ई ह-
प्न ्रकमा ानतरािधततंा्याभािो हनतबु ाशवधतविर्यः याा धवग्नरनष्ु ः कृत तकृत्िात्जलित् ध्र वह
कृत तकृत्ि्य हनतो ः ंा्यमनष्ु त्िस तद्भािः ्रकत्य्न िािधाररतः ्पार्शन्रकत्य्न िो ष् त्िो पल्भात्
प् म वकृंी ध्य ्रकमा ंन ंा्य कृा धभाि वनवश्चत हो जानन पर ‘बावधत विर्य‘ हनत्िाभां हो ता
ह जंन धवग्न धनष्ु ह कृत तकृ (ज्य) हो नन ंन जल कृन ंमान यहास कृत तकृत्ि हनतु कृा ंा्य धनष्ु त्ि
कृा धभाि ्रकत्य् ्रकमा ंन ही वंद्ध हो चकृ
ु ा ह इंकृो आप ंरल भार्ा म यर ंमझ ंकृतन हैं मान
लीवजए आप ंन कृो ई कृहता ह वकृ धवग्न र्ीतल हो ती ह लनवकृन धपनन वयावहाररकृ जीिन म आपनन
यह ्रकत्य् ही दनणा ह वकृ धवग्न हमनर्ा उष् धााशत मश हो ती ह इंवलए धवग्न कृो र्ीतल कृहना
बावधत विर्य नामकृ हनत्िाभां ंन यक्त
ु ह

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5.6तसखराखंर्
इं इकृाई म आपनन ्रकमनयर कृा ितहत् ध्ययन वकृया धनमु ान कृन दो भनद ्िाााशनुमान ताा
पराााशनमु ान कृा ध्ययन भी तकृश भार्ा कृन मल ू पाठ कृन आधार पर वकृया उंकृन बाद हनत्िाभांर कृा
भी वनरूपप तकृश भार्ा कृन आधार पर वकृया धब हम ं् स नप म इं ध्ययन कृो एकृ बार आत्मंात
कृर लनतन ह वजंंन हमारन विचार और धवधकृ ्पि और वयिव्ात हो ंकृ तकृश भार्ा कृन धनंु ार
्रकमनय (ज्ञान कृन विर्य) बारह हो तन हैं- याा आत्मा, र्रीर, इव्वय, धाश, बवु द्ध, मन, ्रकितवत्त, दो र्,
्रकनत्यभाि, फल, दःु ण और धपि श धनुमान कृन दो भनद हो तन हैं- ्िाााशनमु ान और पराााशनमु ान
्रकत्य् ज्ञान कृन आधार पर ्ियस वकृया या ज्ञान ्िाााशनुमान और पसचाियिर ंन यक्त ु दंू रन कृन वारा
कृराया या ज्ञान पराााशनमु ान कृहलाता ह हनतु कृी तरह ्रकतीत हो नन िालन हनतओ
ु स कृो हनत्िाभां कृहा
जाता ह आपनन इं इकृाई म इनकृा वि्तार ंन ध्ययन वकृया यन पासच हो तन हैं- धवंद्ध, विरुद्ध,
धनकृाव्तकृ, ्रककृर ंम और बावधतविर्य यन हनत्िाभां धनमु ान ज्ञान कृन दो र् कृन रूपप म व नाए ए
हैं

5.7तपखरराभखवर्ृतर्ब्दखियी
्रकमनय- ज्ञान कृन विर्य
धपि श- मो ्
ंामा्य- जावत
परत्ि- धवधकृ ्न्र म रहनन िाला
धपरत्ि- कृम ्न्र म रहनन िाला
धविभ-ु धवयापकृ
उत््नप - ऊपर उठना
धप्नप - नीचन व रना
आकृसचन- वंकृो डना
्रकंार - फलाना

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बावधत विर्यत्ि- वकृंी ध्य कृन वारा णव्शत
ंत््रकवतप्त्ि- वजंकृा विरो धी प् विद्यमान हो
दंू रा बो ध ्रकश्न
हनत्िाभां वकृतनन हो तन हैं-
कृ. पासच
ण. चार
. तीन
घ. दो
2. धनमु ान ्रकमा कृन वकृतनन भनद हो तन हैं-
कृ. एकृ
ण. दो
. तीन
घ. पासच
3. पराााशनमु ान कृन वकृतनन धस हो तन हैं-
कृ. दं
ण. बारह
. पाचस
घ. चौदह
4. महानं धााशत रंो ईघर क्या ह-
कृ. विप्

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ण. ंप्
. प्
घ. इनम ंन कृो ई नह
5. धनकृाव्तकृ क्या ह
कृ. हनतु
ण. हनत्िाभां
. वयावए
घ. इनम ंन कृो ई नह

5.8तबोधतप्रश्नोंतृे तउत्तरा
पहला बो ध ्रकश्नः 1. कृ, 2. ण, 3. कृ, 4. कृ 5. कृ
दंू रा बो ध ्रकश्नः 2.1. कृ, 2.2 ण, 2.3 , 2.4 ण, 2.5 ण

5.9ततसन्दभ्तग्रन्थतसूची
महवर्श ौतम- ्याय दर्शन, बौद्ध भारती, िारा ंी
कृन र्ि वमश्रः तकृश भार्ा, चौण्भा ंस्कृत त ंस्ाान, 1990
शा. चक्रधर वबजल्िातः भारतीय ्याय र्ास्त्र, उत्तर ्रकदनर् वह्दी ंस्ाान
वहररय्ना, एम.- भारतीय दर्शन कृी रूपपरन णा, राजकृमल ्रककृार्न, 1987
रो ला, िाच्पवत- ं्स कृत त ंावहत्य कृा इवतहां, चौण्बा विद्याभिन, 1992
दां एु , एं. एन.- भारतीय दर्शन कृा इवतहां भा -1, राज्ाान वह्दी ््ा धकृादमी, जयपरु ,
1988
र्माश, च्वधर- भारतीय दर्शन धनर्
ु ीलन और आलो चन, मो तीलाल बनारंीदां, 1991
राधाकृत ष् न, एं.- भारतीय दर्शन, भा -2 राजपाल ए्श ंंस

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र्ास्त्री, ्िामी वारकृादां- ्याय दर्शनम् िात््यायन भाष्य ंवहत, बद्ध
ु भारती, 1986
चट्टो पा्याय, दनिी ्रकंाद, भारतीय दर्शन ंरल पररचय, राजकृमल ्रककृार्न, 1980
वंसह, उदय नाराय - ्यायदर्शनम,् चौण्भा ंस्कृत त ्रकवतष्ठान, 2004
ध्नसभट्ट- तकृश ंस्हः, मो तीलाल बनारंीदां, 2007
5.10ततवनबन्धखत्ुृतप्रश्न
1. ्रकमनय वकृतनन हो तन हैं? धाश नामकृ ्रकमनय कृा ि नश कृीवजए
2. पराााशनमु ान कृा ल् एिस उदाहर
3. हनत्िाभां कृन भनदर कृा वनरूपप कृीवजए
4. ‘इव्वय‘ नामकृ ्रकमनय कृा ंवि्तार ि नश कृीवजए

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