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उ राख ड मु त िव विव ालय

ह ानी
MAJY-501
थम सेमे टर

भारतीय योितष का प रचय एवं इितहास-01


मानिवक िव ाशाखा
योितष िवभाग
तीनपानी बाईपास रोड, ॉ सपोट नगर के पीछे
उ राख ड मु िव िव ालय, ह ानी, नैनीताल - 263139
फोन नं .05946- 261122 , 261123
टॉल न0 18001804025
Fax No.- 05946-264232, E-mail- info@uou.ac.in
http://uou.ac.in
अ ययन बोड - फरवरी 2020
अय ोफे सर देवी साद ि पाठी
कुलपित, उ राख ड मु त िव विव ालय अ य , वा तुशा िवभाग, ी लालबहादरु शा ी
ह ानी राि य सं कृ त िव ापीठ, नई िद ली।

ोफे सर एच.पी. शु ल - (सयं ोजक) ोफे सर िवनय कुमार पा डेय


िनदेशक, मानिवक िव ाशाखा योितष िवभागा य , सं0िव0ध0िव संकाय,
उ0म0ु िव0िव0, ह ानी काशी िह दू िव विव ालय, वाराणसी।

डॉ. न दन कुमार ितवारी ोफे सर रामराज उपा याय


अिस टे ट ोफे सर एवं सम वयक, योितष िवभाग अ य , पौरोिह य िवभाग, LBS, नई िद ली
उ राख ड मु त िव विव ालय, ह ानी।
पाठ्य म स पादन एवं संयोजन
डॉ. न दन कुमार ितवारी
अिस टे ट ोफे सर एवं सम वयक, योितष िवभाग
उ राख ड मु त िव विव ालय, ह ानी
इकाई ले ख न ख ड इकाई सं या
डॉ. न दन कुमार ितवारी 1/2 1,2,3,4,5/1
अिस टे ट ोफे सर, योितष िवभाग
उ राख ड मु त िव विव ालय, ह ानी

डॉ. वेश यास 2 2,3,4


अिस टे ट ोफे सर, वा तुशा िवभाग
ीलालबहादरु राि य सं कृ त िव ापीठ, नई िद ली

कापीराइट @ उ राख ड मु िव िव ालय


काशन वष-2020 काशक - उ राख ड मु त िव विव ालय, ह ानी।
मु क: - ISBN NO. -
नोट : - ( इस पु तक के सम त इकाईय के लेखन तथा कॉपीराइट सबं धं ी िकसी भी मामले के िलये संबिं धत इकाई लेखक िज मेदार होगा । िकसी भी
िववाद का िन तारण नैनीताल ि थत उ च यायालय अथवा ह ानी स ीय यायालय म िकया जायेगा।)
MAJY-501- थम सेमे टर
भारतीय योितष का प रचय एवं इितहास - 01

अनु म
थम ख ड – योितष शा का उ व एवं िवकास पृ - 2
इकाई 1: योितष शा का प रचय 3 -16
इकाई 2: योितष शा क उ पि एवं िवकास 17-33
इकाई 3: योितष शा क वेदागं ता एवं वेदागं योितष 34-51
इकाई 4: योितष शा के व क एवं आचाय 52-64
इकाई 5 : योितष शा का ऐितहािसक िववेचन 65-84
ि तीय ख ड - योितष शा के मुख अंग पृ - 85
इकाई 1: ि - पंच बह क धा मक योितष िववेचन 86-98
इकाई 2: मख
ु क ध – िस ा त 99-119
इकाई 3: मख
ु क ध – होरा 120-139
इकाई 4: मख
ु क ध – संिहता 140-158
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501

एम.ए.(योितष)
(MAJY-20)
थम सेमेटर - थम प
MAJY-501
भारतीय योितष का प रचय एवं इितहास-01

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501

खड - 1
योितष शा का उव एवं िवकास

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
इकाई – 1 योितष शा का परचय
इकाई क संरचना
1.1 तावना
1.2 उेय
1.3 योितष शा : सामाय परचय
1.3.1 योितष क परभाषा व वप
1.3.2 योितष शा का संित इितहास
1.4 योितष शा के मुख कध
1.4.1 योितष क उपयोिगता
1.5 सारांश
1.6 पारभािषक श%दावली
1.7 अ(यास न* के उ+र
1.8 सदभ, -थ सचू ी
1.9 सहायक पाठ्यसाम-ी
1.10 िनबधा7मक न

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
1.1 तावना
आप लोग# को योितषशा%& के (ित आकष)ण एवं िज,ासा का भाव होने के कारण ही
आप इस शा%& के अ/ययन म0 (वृ ह2ए ह3, ऐसा मेरा िववास है। (%ततु इकाई (थम सेम%े टर के
MAJY-501 के (थम खड क8 (थम इकाई ‘योितष शा%& का परचय’ नामक शीष)क से
स:बि<धत है। सामा<यतया आकाश म0 ि%थत >ह, न?&ािद िपड# क8 गित, ि%थित एवं उसके
(भावािद िनAपण का अ/ययन हम िजस शा%& के अ<तग)त करते ह3, उसे ‘योितषशा ’ कहा
जाता है।
भारतीय वैिदक सनातन पर:परा म0 योितषशा%& को सव)िवामलू क वेद का अगं होने के
कारण ‘वेदांग’ कहा गया है। वेद के छ: अगं ह3 – िश?ा, कEप, Fयाकरण, िनAत, छ<द एवं
योितष । इ<हG वेदांग# को ‘शा%&’ भी कहा जाता है। यह शा%& हमारे (ाचीन ऋिषय# क8 देन ह3।
कालिनयामक होने के कारण इसे ‘कालशा%&’ भी कहा जाता है।
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप योितषशा%& से परिचत हो सक0 गे तथा उसके
मल
ू भतू तJय# को समझने म0 समथ) हो सक0 गे।
1.2 उे य
(%ततु इकाई के अ/ययन के बाद आप -
 बता सक0 गे िक योितष िकसे कहते है।
 समझा सक0 गे िक योितषशा%& का इितहास या ह3।
 योितषशा%& के (मख ु %क<ध# को समझ ल0ग।े
 योितषशा%& के (व)क# का नाम जान ल0गे।
 योितषशा%& क8 उपयोिगता को समझा सक0 गे।
1.3 योितषशा : सामाय परचय
योितषशा%& का स:ब<ध मनLु य के ज<म–ज<मा<तर# से जड़ु ा ह2आ है। इसिलए ,ात –
अ,ात अव%था म0 भी िनर<तर हम0 योितषशा%& िकसी न िकसी Aप म0 (भािवत करता रहता है।
योितषशा%& का दसू रा नाम ‘कालिवधान शा ’ है। य#िक काल का िनAपण भी योितषशा%&
Nारा ही होता है। काल के (भाव के स:ब<ध म0 ‘कालाधीनं जगत् सव)म’् तथा ‘काल: सृजित भतू ािन

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
काल: संहरते (जा:’ ये सिू Oयाँ ही पया)Qत ह3। मानव जीवन काल तथा कम) के अधीन होता है। जैसा
िक आचाय) वराहिमिहर ने %व><थ लघजु ातक म0 िलखा है –
यदुपिचतमयजमिन शभ ु ाऽशभु ं त य कमण: पिं म।्
य जयित शा मेतत् तमिस #यािण दीप इव।।
अथा)त् पवू ज) <म के कमा)नसु ार ही मनLु य का ज<म, उसक8 (वृियाँ तथा उसके भाSय का िनमा)ण
होता ह3। भारतीय ,ान – िव,ान क8 पर:परा म0 ‘वेद’ को सव)िवा का मल ू कहा गया है। उसी वेद
के च?A ु पी अगं को मनीषीय# Nारा योितषशा%& क8 सं,ा (दान क8 गयी है। आचाय) भा%कराचाय)
ने %व><थ िसTा<तिशरोमिण म0 योितष को परभािषत करते ह2ए िलखा है िक -
वेद य िनमलं च$:ु योितषशा मक%मषम।्
िवनैतदिखलं (ौतं मा*+ कम+ न िस,यित।।
अथा)त् योितष वेद का िनम)ल च?ु है, जो अकEमष (दोषरिहत) है और इसके ,ानाभाव म0 सम%त
वेद(ितपा िवषय यथा– Vौत, %मा) य,ािद िXया क8 िसिT नहG हो सकती। सव)साधारण को सृिY
के अनेक चमZकार# का स:पणू ) ,ान (ाQत होकर उनक8 िज,ासा परू ी हो सके , इस हेतु हमारे देश के
अलौिकक बिु Tमान, महान तप%वी व ि&कालदश[ महिष)य# ने अपने तपोबल के आधार पर आम
जनमानस के लाभाथ) जो अनेक शा%& िनमा)ण िकये, उनम0 योितषशा%& का %थान सव)VेLठ व
(थम है य#िक सृिY के (Zयेक व%तु क8 उZपि, (गित व लयािद कालाधीन है और उस काल का
स:पणू ) वण)न तथा शभु ाशभु परणाम आकाश%थ >ह# के उदय,अ%त,यिु त, (ितयिु त, गित व ि%थित
पर िनभ)र है। इ<हG >ह# क8 शभु ाशभु ि%थित पर जगत के मानव (ाणी का सख ु –द:ु ख, हािन– लाभ,
जीवन-मरण पूणA ) प से अवलि:बत है। अत: योितषशा%& का ,ान मानव के िलये अिधक
महZवपूण) है।
योितषशा%& म0 मल ू त: >ह, न?&, तारा, उEका आिद के िवषय म0 सांगोपांग अ/ययन िकया जाता
है। इस ]^ाड म0 जो भी चराचर जीव ह3 उनम0 पच ं महाभतू , तीन# गणु (सZव, रज, तम) सात (कार
क8 धातएु ँ आिद >हन?&ािद के (भाव से रहते है। इनम0 से िकसी म0 पािथ)व तZव अिधक पाया जाता
है तो िकसी म0 जल, िकसी म0 अिSनतZव कहG वायु का अश ं अिधक होता है तो कहG आकाश का
भाग अिधक होता है। िकसी जातक म0 सZवगणु ी >ह# के (भाव से रजोगणु अिधक होता है। िकसी
का शरीर मांसल होता है, िकसी म0 अि%थ क8 (धानता होती है तो िकसी का के शािधय होता है। इन
सभी परि%थितय# का कारण >हयोगबल है। िजस जातक का जैसा (ातन कम) रहता है वह उस
तरह के >हयोग म0 उZप<न होकर जीवन भर कमा)नसु ार शभु ाशभु फल का भोग करता रहता है। इन

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िवषय# से स:बT िसTा<त# का ऋिष- महिष)य# ने (वत)न िकया। इनक8 पर:पराओ ं का कालXम म0
परवत[ आचाय` ने पोषण िकया और िवकास के Xम म0 िवषय क8 aिY से योितष शा%& को तीन
%क<ध# िसTा<त, संिहता, होरा म0 िवभािजत िकया। आज भी इस शा%& के आचाय) एवं िज,ासु
िवNान इसके संवT)न म0 सतत तZपर ह3।
1.3.1 योितष क परभाषा व वप
योितषशा%& का ?े& इतना िवहगं म है िक उसे एक वाय म0 परभािषत करना सरल नहG,
तथािप िवNान# ने इसे अलग–अलग Aप म0 परभािषत िकया है। सामा<यतया आकाश म0 ि%थत
>हिपड# एवं न?&िपड# क8 गित, ि%थित तथा उसके (भावािद का िनAपण िजस शा%& के
अ<तग)त िकया जाता ह3, उसे ‘योितष’ कहते है अथा)त् िजस शा%& म0 सयू ा)िद >ह# क8 गित, ि%थित
स:बि<ध सम%त िनयम, एवं उसके भौितक पदाथb के उपर पड़ने वाला (भाव का वै,ािनक रीित से
िवलेषण िकया जाता है, उसे ‘योितषशा%&’ कहते है। वेद का अगं होने के कारण इसे ‘वेदांग’ भी
कहा जाता है। संि?Qत Aप म0 योितष को इस (कार से भी परभािषत करते है - ‘-हगिणतं
योितषम’् । अथा)त् >ह# का गिणत िजस शा%& के अ<तग)त िकया जाता है उसे ‘योितष’ कहते
है। इसी (संग म0 ‘योितष’ एवं ‘यौितष’ दो शcद# क8 उपलिcध होती है, पर<तु सम%त (ाचीन
><थ# म0 ‘योितष’ शcद को देखकर िवNान# ने इसी को Fयवहार म0 विण)त िकया है। ‘यौितष’ शcद
आधिु नक योितिव)द# क8 कEपना है। FयाकरणaLट्या दोन# ही सही है। ‘तेदीQतौ’ धातु से (काश
अथ) म0 योितष शcद क8 FयZु पि ह2ई है, जहाँ ‘‘तेऋषीनाौच य:’’ स&ू से जकार होता है। वेद
के साथ ही इस शा%& का आिवभा)व होने के कारण इसका वेदांग होना भी (ामािणक है। वेद म0 िवव
के सम%त िवषय# व िनयम# का उEलेख है, इससे इतर कोई भी िवषय नहG ह3। पर<तु सामा<यतया वेद
के मdु य (योजन है – य,स:पादन िXया, और यह काय) वेदवायांश के आधार पर कालाधीन है।
अथा)त् कालिवशेष म0 क8 जाने वाली याि,क िXया सफल होती है। कालिनधा)रण योितषशा%& के
Nारा ही स:भव है, अ<य िकसी शा%& के Nारा नहG। इसीिलए भा%कराचाय) जी का भी कथन है –
वेदा ताव01कम2वृ*ा: य1ा: 2ो4ता ते तु काला(येण।
शा ाद मात् कालबोधो यत: या6ेदाङ्ग7वं योितष यो4तम मात।् ।
इस आधार पर योितष क8 परभाषा इस (कार भी करते ह3 –
‘वेदच$ु: िकलेदं मृतं योितषम’् ।
अथा)त् िनचयेन योितष वेद का च?ु Aपी अगं है। वेद का अगं होने से यह ‘वेदांग’ है।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
य,ािद कम` के Nारा भगवदोपासना वेद का परम लfय है। उपय)ु त य,ािद कम) काल पर
आिVत ह3 और इस परम पिव& काय) के िलए काल का िवधायक शा%& योितषशा%& है। अत: इसे
वेदांग क8 सं,ा दी गई है। Fयाकरण, योितष, िनAत, कEप, िश?ा और छ<द ये छ: वेद के अगं
कहे गये ह3। िजनम0 योितषशा%& ने& Aप म0 (िसT है। वत)मान काल क8 घटनाओ ं को ने& से देखा
जा सकता है िक<तु भतू और भिवLय का दश)न तो के वल वेद के च?ु Aप योितष शा%& Nारा ही
स:भव है।
योितषशा%& के मdु य Aप से तीन %क<ध है -
1. िसTा<त 2. संिहता 3. होरा या फिलत

प8टाथ च;म् -
वेद - (सव)िवामल
ू क)

िश?ा कEप Fयाकरण िनAत छ<द योितष


वेदागं या छ: शा%&
योितषशा%&

िसTा<त संिहता होरा या फिलत


योितष के (मख
ु तीन %क<ध

वत)मान योितषशा%& का जो %वAप हम0 देखने को िमलता है, उसका Vेय महाZमा लगध को जाता
है। उ<ह#ने ही ‘वेदांग योितष’ क8 रचना करने योितष को %वत<& Aप से (ितपािदत िकया। यिप
योितष आज भी वहG है, जो पवू ) म0 था, के वल काल भेद के कारण इसके %वAप# म0 िभ<नता
aिYगोचर होती है। भगवान सयू ) के अशं ावतार ने भी सयू )िसTा<त म0 यही कहा है िक –

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शा मा0ं तदेवेदं य7पूव+ 2ाह भा कर:।
युगानां प=रवत?न कालभेदोऽ के वल:।।

1.3.2 योितषशा का इितहास


योितषशा%& का इितहास ]^ाड क8 उZपि के साथ ही (ार:भ होता है तथा
]^ाड क8 ि%थित पय)<त अिविgछ<न Aप से गितमान रहता है। अन<त आकाश म0 िवमान अन<त
योितषिपड# का ,ान अभी तक मनLु य नहG कर पाया है। मनLु य क8 अपनी सीमा है आकाश
िन:सीम है िफर भी मनLु य ने अ<तर? के अनेक रह%य# को सल ु झाने म0 सफलता (ाQत क8 है तथा
आगे भी सतत् (यZनशील है। ]^ाड अथवा अ<तर? से जड़ु े ह2ये अनेक ऐसे (न है जो
िनचयाZमक Aप से आज तक नहG सल ु झ सके है । भगवान भा%कर ने %वयं ही अनेक रह%य# का
उTाटन करते ह2ये योितषशा%& स:ब<धी अनेक शक ं ाओ ं का समाधान िकया है तथा
योितषशा%& स:ब<धी अZय<त गढ़ू ,ान िदया है। भारतीय (ाचीन िव,ान# म0 अ<य िव,ानापे?या
योितष अZय<त (ाचीन िव,ान है। वैिदककाल से ही इस शा%& का महZव व उपयोिगता क8
अनभु िू त हम करते आ रहे ह3। गिणत, अ<तर?, भगू भ), कृ िष, वृिYयािद िविभ<न िव,ान# का
सव)(थम (ायोिगक तौर पर िववेचन योितषशा%& Nारा िकये जाने के कारण िवव म0 इस शा%& क8
(ितLठा %थािपत है।
शा%&ीयaLटया योितषशा%& क8 उZपि ]^ा के Nारा कही गई है। मता<तर से यह भी माना जाता है
िक (थमपA ु ष िहरयगभ) से ]^ा ने योितषशा%& का ,ान लेकर नारद को (दान िकया था।
ऐितहािसक aिY से ऋSवेद के काल से योितषशा%& क8 उZपि मानी गई है। यिप इस कालखड
म0 योितषशा%& का कोई भी %वत<&><थ उपलcध नहG होता ह3, पर<तु योितष शा%& के अनेक
िवषय वेद# के म<& भाग एवं संिहता भाग से >हण िकये गये ह3। ‘ओरायन’ नामक><थ म0 लोकमा<य
बालगगं ाधर ितलक महोदय ने ऋSवेद का काल ई0 पू0 4500 माना है, जबिक ‘वैिदकस:पि’
नामक ><थ म0 प.ं रघनु <दनशमा) ने ऋSवेद का रचना काल <यनू ाित<यनू 22,000 ई0प0ू माना है। इसी
(कार योितषशा%& का कालखड भी इसी वेद के समान होगा। व%ततु : ऋSवेद का कालखड
िनधा)रण करना सव)था दLु कर है, पर<तु यह भी सZय है िक सृिY क8 आिद से मानवजाित का
माग)दश)क वेद ही था। इसी (कार िविभ<न इितहासकार एवं (ाचीन सािहZय के रचियता भी यह
कहते ह3 िक योितषशा%& क8 उZपि सृिY के आर:भ काल से ही ह2आ ह3। उस काल म0 मानव वन
के जीव–ज<तओ ु ं के साथ ही वन म0 रहते थे। मानव जीव- ज<तओ ु ं के साथ सयू bदय एवं सयू ा)%त क8
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
ि%थित को देखकर उसे समझने का (यास करता रहा होगा। काला<तर म0 शनै: शनै: योितषशा%&
का Fयवहार दैिनक जीवन म0 भी अपरहाय) Aप से ह2आ। आचाय) कमलाकर भk ने %व><थ
िसTा<ततZविववेक म0 योितषशा%& के ,ानोपदेश का उEलेख इस (कार िकया है –
सव)(थम ]^ा से योितषशा%& के ,ान क8 उZपि ह2ई तZपचात् ]^ा के Nारा नारद को
योितष का ,ान (दान क8 गयी। इसी (कार Xमश: च<lमा ने शौनकािद ऋिषय# को, नारायण ने
विशLठ एवं रोमक को, विशLठ ने माडFय को तथा सयू ) ने मय को योितषशा%& का ,ानोपदेश
िदया था। इसका मल ू लोक ><थ म0 इस (कार िनAिपत है –
@Aा 2ाह च नारदाय, िहमगुयBछौनकायामलं
माDडयाय विश8ठसं1कमुिन: सूयG मयायाह यत।्
आचाय) कयप के अनसु ार योितषशा%& के अLटादश (व)क# का उEलेख इस (कार है –
सूय: िपतामहो यासो विश8ठोऽि पराशर:।
कIयपो नारदो गगG मरीिचमुिनरंिगरा:।।
लोमश: पौिलशIचैव Bयवनो यवनो भृग:ु ।
शौनको8टादशIचैते योित: शा 2व*का:।।
सयू ,) िपतामह,वेदFयास,विशLठ, अि&, पराशर, कयप, नारद, गग), मरीिच,मन,ु अिं गरा,लोमश,
पौिलश,gयवन, यवन, भृगु तथा शौनकािद अLटादश महिष)य# को योितषशा%& का (व)क कहा
गया है।
योितषशाm भारतीय िवा का महZवपूण) अगं है, िवशेषकर इसिलए िक एक ओर तो आचाय` ने
इसे परािवा क8 कोिट म0 ला िदया और और दसू री ओर इसका (वेश सव)साधारण के जीवन म0 इस
सीमा तक Fयाn होगा िक शभु घड़ी, लSन और महु oत)-शोधन दैनि<दन जीवन के अगं बन गये। पंचांग
के तpव# का ,ान चाहे सव)साधारण को भी न हो िक<तु योितिषय# Nारा िनयोिजत अनेक# पंचांग
उर म0 और दि?ण म0 अपनी-अपनी पिTित के अनसु ार (चिलत ह3, मा<य ह3। रािश-फल का तो
वै,ािनक कहे जानेवाला आज के यगु म0 इतनी Fयापकता से (सार हो गया है िक अनेक ‘बौिTक’
FयिO भी प&-पि&काओ ं के ‘भिवLय-फल’ वाले अश ं को खल ु े तौर पर, और कुछ लोग (gछ<न
Aप से देख लेते ह3। िविशY धात-ु िनिम)त और नगीन#-जड़ी मिु lकाओ ं के (भाव को कुछ लोग भी
कभी-कभी मानते देखे गये ह3।
अयास  न - 1
उराखड मु त िवविवालय Page 9
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
िनKनिलिखत 2IनL मM स7य / अस7य कथन का चयन कPिजये -
1. योितष वेद का च?A ु पी अगं है।
2. योितष को कालशा%& भी कहा जाता है।
3. शा%&# क8 संdया पाँच ह3।
4. वैिदकस:पि नामक ><थ का लेखक बालगगं ाधर ितलक है।
5. महिष) पराशर योितष शा%& के (व)क है।
6. योितषशा%& के मdु यत: तीन %क<ध ह3।
7.
1.4 योितषशा के मुख कध
यिप िवषयaY्यानश ु ीलन के आधार पर योितषशा%& के अनेक भेद हो सकते ह3, पर<तु
मdु य Aप से इसके तीन %क<ध (ितपािदत ह3 - िसTा<त, संिहता एवं होरा। आचाय) नारद ने भी
कहा है िक –
िस,ातसंिहताहोराQपं कध या7मकम् ।
वेद य िनमलं च$ुयGित: शा मनु*मम् ।।
आचाय) वराहिमिहर ने %व><थ वृहZसंिहता म0 %क<ध&य का उEलेख करते ह2ये िलखा है –
‘‘योितIशा मनेकभेदिवषयं कध यािधिSतम’् ’। कुछ अ<य आचाय` के मत म0 उत
तीन# िसTा<त# के अितरत के रिल एवं शकुन को भी योितष के %क<ध# म0 %थान िदये गये है।
उनके मतानसु ार योितष के पंच%क<ध है । यथा –
पंच कधिमदं शा ं होरागिणतसंिहता ।
के रिल: शकुन चेित योितषशा मुदी=रतम् ।।
पर<तु यह मत सव)%वीकृ त नहG है । व%ततु : शकुन – के रलीय – (न - महु o) – अगं िवा- %वर –
वा%तु - तािजक – रमल इZयािद िवषय संिहता %क<ध के अ<तग)त ही आते ह3 । अ<यथा यिद (Zयेक
का अलग – अलग %क<ध माना जायेगा तो अनेक %क<ध हो सकते ह3। अत: योितषशा%& के
मdु यत: तीन ही %क<ध होते ह3।
1. िस,ात - योितषशा%& के िजस %क<ध म0 &िु ट से लेकर (लय काल पय)<त क8 गई
काल गणना, मानव – दैव – जैव – पै& – ना?& – सौर – सावन – चा<l तथा ]ा^ािद
नविवध काल मान# का सागं ोपागं कथन, >ह# के म/य- म<द%फुटगित - ि%थZयािद का
िनAपण, FयताFयत गिणत, ि&कोणिमितय गिणतोपपादन, तZस:ब<धी (न# का सोर
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
संकलन, वेधोपयु त य<&ािद िवषय# का िनAपण हो उसे ‘िसTा<त’ कहते है। इसे
लोकबT Aप म0 आचाय) भा%कराचाय) जी ने %व><थ ‘िसTा<तिशरोमिण’ म0 इस (कार
(ितपािदत िकया है –
&टु ् यािद(लया<तकालकलना मान(भेद: Xमा
gचारच सु दां िNधा च गिणतं (ना%तथासोरा:।
भिू धLय>हसंि%थतेच कथनं य<&ािद य&ोgयते
िसTा<त: स उदाqतोऽ& गिणत%क<ध(ब<धे बधु ै:।।
2. संिहता - योितषशा%& के िजस %क<ध म0 >हचारवश >ह- न?&ािद िब:ब# के शभु ाशभु
ल?ण से पशु – प?ी- क8टािदय# का भसू ापे? सामिू हक िववेचन तथा (ाकृ ितक –
आकाशीय घटनाओ ं का ,ान िकया जाता हो, उसे ‘संिहता शा%&’ कहते ह3। वृहZसंिहता म0
वराहिमिहर का कथन है -‘‘त7का7सयGपनय य नाममुिनिभ: संकP7यते संिहता’’।
3. होरा – िजस %क<ध म0 मानव मा& का उसके ज<म स:बि<धत काल के आधार पर >ह# एवं
न?&# क8 ि%थित वशात् उसके जीवन स:बि<धत शभु ाशभु फल# का िववेचन िकया जाता
है, उसे ‘होरा’ कहते ह3।
अय कध –
2Iन शा – यह तZकाल फल बतलाने वाला शा%& है। इसम0 (नकता) के उgचारत अ?र# पर से
फल का (ितपादन िकया जाता है। ईसवी सन् 5 वG और 6 ठी शती म0 के वल (न पछ ू ने वाले के
उgचारत अ?र# पर से फल बतलाना ही (नशा%& के अ<तग)त था, लेिकन आगे जाकर इस शा%&
म0 तीन िसTा<त# का (वेश ह2आ – 1. (ना?र िसTा<त 2. (न लSन िसTा<त और 3. %वर िव,ान
िसTा<त। िदग:बर जैन ><थ# क8 अिधकतर रचनाएँ दि?ण भारत म0 होने के कारण (ाय: सभी (न
><थ (ना?र िसTा<त को लेकर िनिम)त ह2ए ह3। अ<वेषण करने पर %पLट मालमू होता है िक के वल
,ान(नचड़ू ामिण, च<lो<मीलन (न, आय,ानितलक, अह)gचडू ामिण आिद ><थ# के आधार पर
ही आधिु नक काल म0 के रल (नशा%& क8 रचना ह2ई है।
वराहिमिहर के प&ु पृथयु शा के समय से (नलSनवाले िसTा<त का (चार भारत म0 तीr
गित से से ह2आ है। 9वG, 10वG और 11वG शती म0 इस िसTा<त को िवकिसत होने के िलए पणू )
अवसर िमला है, िजससे अनेक %वत<& रचनाएँ भी इस िवषय पर िलखी गयी ह3। इस शा%& क8
परभाषा म0 उर म/यकाल तक अनेक संशोधन और परवT)न होते रहे ह3। चया), चेLटा, हाव-भाव

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
आिद के Nारा मनोगत भाव# का वै,ािनक aिY से िवलेषण करना भी इस शा%& के अ<तग)त आ
गया है।
शकुन – इसका अ<य नाम िनिम शा%& भी (ाQत होता है। पवू म) /यकाल तक इसने पृथक् %थान
(ाQत नहG िकया था, िक<तु संिहता के अ<तग)त ही इसका िवषय आता था। ईसवी सन् क8 10वG,
11वG, और 12वG शितय# म0 इस िवषय पर %वत<& िवचार होने लग गया था, िजस कारण इसने
अलग शा%& का Aप ले िलया। िव0सं0 1089 म0 आचाय) दगु द) वे ने अरLट िवषय को भी
शकुनशा%& म0 सि:मिलत कर िदया था। काला<तर म0 इस शा%& क8 परभाषा और भी अिधक
िवकिसत ह2ई और इसक8 िवषय सीमा म0 (Zयेक काय) के पवू ) म0 होने वाले शभु ाशभु # का ,ान (ाQत
करना भी आ गया। वस<तराजशकुन, अvुतसागर जैसे शकुन – ><थ# का िनमा)ण इसी परभाषा को
aिY म0 रखकर िकया (तीत होता है।
1.4.1 योितष क उपयोिगता -
योितषशा%& मानव जीवन के िलए (Zयेक ?े& म0 सहयोगी एवं कEयाणकारी है। यह
मानव के ज<म से लेकर मृZयु पय)<त उसके साथ (Zय? अथवा अ(Zय? Aप से जड़ु ा ह2आ है। िवव
के सम%त काय) कालाधीन है। योितषशा%& कालिनयामक होने के कारण सव)(थम काल िनधा)रण
म0 मानव मा& के िलये सहायक व उपयोगी है।
मानव जीवन म0 कम) िसTा<त अZय<त महZवपणू ) है । कम) का िववेचन करते ह2ए कम)िवपाकसिं हता
कहती है –
कमणा नरकं सूत वग+ याित च कमणा।
देव7वं 2ाTनुयाज् जीवो रा$स7वं च कमणा।।
कमणा बधमायाित मो$मायाित कमणा।
कमणा पतनोBUायौ नण ृ ां जमिन – जमिन।।
इन िसTा<त# से यह %पLट हो जाता है िक मनLु य अपने कम` के अधीन अपने भिवLय का िनमा)ण
करता है। जब हम शरीर के के वल सख ु और द:ु ख का िवचार करते ह3 तो सव)(थम मनLु य क8 आयु
तथा %वा%Jय का (न सामने आता है। पंच%वरा: नामक ><थ म0 िलखा भी है –
‘‘पूवमायु: परीVयेत ततो ल$णमािदशेत् ।।’’
अथा)त् जब मनLु य का जीवन रहेगा तभी वह अपने शारीरक सख ु # एवं द:ु ख# का उपयोग करे गा।
‘शरीरं Fयािधमि<दरम’् यह उिO %पLट दशा)ती है िक Fयािधय# का %थान शरीर ही है। Fयािधयाँ शरीर
नLट होने के बाद भी जीव का साथ नहG छोड़ती है। ये अ<य ज<म# म0 भी शारीरक कLट देती रहती है।
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इसिलए आचाय` ने कहा है– ‘‘कम)जा Fयाधय:के िच Zदोषजा: सि<त चापरे’’ अथा)त् कुछ Fयािधयाँ
कम` के कारण होती ह3 तथा कुछ वात, िप, कफ आिद दोष# के कारण होती ह3। इसी (कार शरीर
म0 (मख ु Aप से तीन (कार क8 Fयािधयॉ होती ह3– सा/य, असा/य एवं याQय। (Zयेक ?े& का
उEलेख तो (%ततु इकाई म0 करना स:भव नहG होगा, िक<तु मdु य Aप से मानव जीवन म0 Fयावहारक
aिYकोण से िन:निलिखत ?े& म0 योितषशा%& क8 उपयोिगता परलि?त होती है –
1. गभ) िनधा)रण म0
2. आयु िनधा)रण म0
3. नामकरण, िवार:भ, rतब<ध, चड़ू ाकम) आिद अनेक (मख ु सं%कार# म0
4. िववाह, स<तानोZपि आिद म0
5. आजीिवका म0
6. िचिकZसा म0
7. या&ा म0
8. गृहिनमा)ण / गृह(वेश म0
9. वा%तु स:ब<धी िवचार# म0
10. पया)वरण, कृ िष, (ाकृ ितक - आपदा, वैिyक ि%थित, समघ) – महघ), वृिY, शकुन आिद
िवचार# म0।
इनके अितरत योितष एक साव)भौिमक िव,ान है, जो मानव जीवन के (Zयेक ?े& से (Zय?तया
जड़ु ा ह2आ है।

अ$यास %न – 2
रत %थान# क8 पिू त) क8िजये –
1. योितषशा%& के (मख ु ...................... %क<ध ह3।
2. वृहZसिं हता के रचियता ........................ है।
3. वेद%य िनम)लं च?:ु ..................... कJयते।
4. िवव के सम%त काय) .................... के अधीन होते ह3।
5. कम)णा नरकं सतू ............. याित च कम)णा।
6. .................... परीfयेत ततो ल?णमािदशेत्।
7. मानव शरीर म0 मdु यत: Fयािधय# के ...................... (कार ह3।
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1.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक योितषशा%& का स:ब<ध मनLु य
के ज<म–ज<मा<तर# से जड़ु ा ह2आ है। इसिलए ,ात– अ,ात अव%था म0 भी िनर<तर हम0 योितषशा%&
िकसी न िकसी Aप म0 (भािवत करता रहता है। योितषशा%& का दसू रा नाम ‘कालिवधान शा ’
है। य#िक काल का िनAपण भी योितषशा%& Nारा ही होता है। सामा<यतया आकाश म0 ि%थत >ह,
न?&ािद िपड# क8 गित, ि%थित एवं उसके (भावािद िनAपण का अ/ययन हम िजस शा%& के
अ<तग)त करते ह3, उसे ‘योितषशा ’ कहा जाता है। भारतीय वैिदक सनातन पर:परा म0
योितषशा%& को सव)िवामल ू क ‘वेद’ का अगं होने के कारण ‘वेदांग’ कहा गया है। वेद के छ:
अगं ह3 – िश?ा, कEप, Fयाकरण, िनAत, छ<द एवं योितष। इ<हG वेदांग# को ‘शा%&’ भी कहा
जाता है। यह शा%& हमारे (ाचीन ऋिषय# क8 देन है। इसके मdु यत: तीन %क<ध है – िसTा<त,
संिहता एवं होरा। इस शा%& का (थम उपदेश ]^ा जी ने नारद को िदया था। कयप संिहता के
अनसु ार इसके सयू ) से लेकर शौनकािद पय)<त अLटादश (व)क ह2ये ह3। इसका इितहास
]^ाडोZपि के साथ आर:भ होकर उसके अवसान पय)<त अिविgछ<न Aप से गितमान ह3। मानव
के ज<म से लेकर मृZयु पय)<त यह शा%& उससे (Zय? वा अ(Zय? Aप से जड़ु ा ह2आ है। मानव के
Fयावहारक जीवन म0 उसके (Zयेक काय` म0 योितषशा%& का योगदान %पLट Aप से परलि?त है।
1.6 पारभािषक शदावली
योितष – वेद के च?A ु पी अगं को ऋिषय# के Nारा ‘योितषशा%&’ क8 सं,ा (दान क8 गयी।
सामा<यतया आकाश म0 ि%थत >ह, न?&ािद िपड# क8 गित, ि%थित एवं उसके (भावािद िनAपण
का अ/ययन हम िजस शा%& के अ<तग)त करते ह3, उसे ‘योितषशा%&’ कहा जाता है।
िस,ात - &टु ् यािद से (लयकाल पय)<त क8 गई काल गणना िजस %क<ध म0 हो, उसे िसTा<त कहते
ह3।
संिहता – योितषशा%& के िजस %क<ध म0 >हचारवश >ह- न?&ािद िब:ब# के शभु ाशभु ल?ण से
पशु – प?ी- क8टािदय# का भसू ापे? सामिू हक िववेचन, (ाकृ ितक – आकाशीय घटनाओ ं का ,ान
िकया जाता हो, उसे ‘संिहता शा%&’ कहते ह3।
होरा – िजस %क<ध म0 मानव मा& का उसके ज<म स:बि<धत काल के आधार पर >ह# एवं न?&#
क8 ि%थित वशात् उसके जीवन स:बि<धत शभु ाशभु फल# का िववेचन िकया जाता है, उसे होरा
कहते ह3।
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-ह – गgछतीित >ह:। आकाश%थ वह िपड िजसम0 गित हो और जो चलायमान हो उसे >ह कहते
ह3 ।
न$ – न ?रितित न?&म।् आकाश%थ वह िपड जो चलता नहG न?& कहलाता है। दसू रे शcद#
म0 तार# के समहू को भी न?& कहा जाता है।
वेदांग – वेद के अगं को वेदांग कहा जाता है। भारतीय ,ान–िव,ान क8 पर:परा म0 षड् वेदांग कहे
गये है। इ<हG वेदांग# को शा%& भी कहा जाता है।
1.7 अयास  न के उ!र
अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला
1. सZय 2. सZय 3. असZय 4. असZय 5. सZय 6. सZय
अWयास 2Iन – 2 कP उ*रमाला
1. तीन 2. वराहिमिहर 3. योितषम् 4. काल 5. %वग)म् 6. पवू म) ाय:ु 7. तीन

1.8 सदभ" #थ सूची


(क) मलू लेखक – वराहिमिहर, टीकाकार – डॉ0 कमलाका<त पाडेय, लघजु ातक (2005) –
(थम अ/याय – लोक संdया – 3 , चौख:भा सं%कृ त भवन, वाराणसी।
(ख) मल ू लेखक – आचाय) भा%कराचाय), टीकाकार – पं0 सZयदेव शमा) , िसTा<तिशरोमिण
(2011) – (थम अ/याय – लोक संdया – 9, 11, चौख:भा सं%कृ त भवन / चौख:भा सािहZय
सीरज , वाराणसी।
(ग) मल
ू लेखक – कमलाकर भk , टीकाकार – कृ Lणच<l िNवेदी, िसTा<ततZविववेक (1996) ,
लोक संdया - 65, स:पणू ा)न<द सं%कृ त िवविवालय, वाराणसी, चौख:भा सं%कृ त भवन /
चौख:भा सािहZय सीरज , वाराणसी।
(घ) लेखक: - डॉ0 िवनय कुमार पाडेय, योितष िसTा<त मजं षू ा (2013) – योितषशा%&%य
संि?Qत परचय:,पृLठ संdया – 5,6,7,8, । चौख:भा सं%कृ त भवन / चौख:भा सािहZय सीरज,
वाराणसी।
(ड.) लेखक – (ोफे 0 रामच<l पाडेय, सयू )िसTा<त (2002) - म/यमािधकार:, लोक संdया - 9
चौख:भा सं%कृ त भवन / चौख:भा सािहZय सीरज , वाराणसी।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
1.9 सहायक पाठ्यसाम#ी
योितष शा%& का इितहास – लोकमिण दहाल
भारतीय योितष – शकं रबालकृ Lणदीि?त / नेिमच<द शा%&ी
लघजु ातक – डॉ0 कमलाका<त पाडेय
वृहजातकम् - डॉ0 सZये<l िमV
सलु भ योितष ,ान – पं. वासदु वे सदािशव खानखोजे
1.10 िनबधा.मक  न
1. योितष क8 परभाषा िलखते ह2ये िव%तृत वण)न क8िजये।
2. योितष के %क<ध# का उEलेख क8िजये।
3. योितष के इितहास का िव%तारपवू क
) वण)न क8िजये।
4. इस इकाई के अ/ययन के आधार पर अपने शcद# म0 योितषशा%& पर िनब<ध िलिखये।
5. योितष क8 उपयोिगता पर (काश डािलये।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
इकाई – 2 योितष शा क उ&पि' एवं िवकास
इकाई कP संरचना
2.1 (%तावना
2.2 उ|ेय
2.3 योितष शा%& क8 उZपि
2.4 योितष का िवकास – िविभ<न काल Xम के आधार पर
2.5 साराश

2.6 पारभािषक शcद
2.7 अ}यास (न# के उर
2.8 सहायक पाठ्यसाम>ी
2.9 िनब<धाZमक (न

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2.1  तावना
(%ततु इकाई एमएजेवाई-501 के (थम खड क8 िNतीय इकाई से स:बि<धत है, िजसका
शीष)क है – योितषशा%& क8 उZपि एवं िवकास। इसके पवू ) क8 इकाई म0 आप योितष शा%& से
परिचत हो चक ु े ह3। इस इकाई म0 आप योितष शा%& के उZपि एवं िवकास के बारे म0 अ/ययन
करने जा रहे है।
योितष शा%& क8 उZपि ]^ाडोZपि के साथ ही ह2आ है, तथा सृिY के (लय पय)<त यह
अिविgछ<न Aप से गितमान है, अथा)त् योितष शावत है। कालखड के आधार पर इसके Aप म0
परवत)न परलि?त होता रहा है।
आइए इस इकाई म0 योितष के मल ू ोZपि के साथ उसके कालXम के आधार पर उसके
िवकास का अ/ययन करते है।
2.2 उ)े%य
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप –
• योितष के मल
ू ोZपि स:ब<धी तZव# को जान जायेग0।
• काल Xम के आधार पर योितष शा%& के िवकास से परिचत हो जाय0ग।े
• वैिदक काल से लेकर अवा)चीन काल तक योितष क8 ि%थित का अवबोधन हो जायेगा।
• योितष शा%& के उZपि और िवकास का ,ान हो जायेगा।
2.3 योितष शा क उ&पि'
योितषशा%& क8 उZपि का मल ू ‘वेद’ है। योितशा%& वैिदककालीन ऋिष-महिष)य# क8
अलौिकक (ितभा क8 देन है। भारतीय िवाओ ं म0 इसका %थान अिNतीय है। मनLु य क8 संरचना और
उसक8 (कृ ित का इससे अिभ<न स:ब<ध है। इसके अ<तग)त िपड और ]^ाड, FयिY और समिY
के स:ब<ध# का अ/ययन सम> Aप से िकया जाता है। >ह, न?&, तारे , रािशयाँ, म<दािकिनयाँ,
िनहारकाएं एवं चराचर (ाणी, वृ?, चkान0 आिद िवy]^ाडीय घटक (Zय? या परो? Aप से
एक-दसू रे को (भािवत-आकिष)त करते ह3। इन >ह-न?&# का मानव-जीवन पर सि:मिलत (भाव
पड़ता है। वे कभी कY दरू करते ह3, तो कभी कY भी देते ह3। ये तZव मनLु य क8 सfू म संरचना एवं
मनःसं%थान# पर काय) करते ह3 और उसक8 भावनाओ ं तथा मानिसक ि%थितय# को अिधक (भािवत
करते ह3। योितषशा%& के अ/ययन और उपयोग से योितषी को मानव-जीवन के सभी ?े&# म0
सfू म अ<तa)िY (ाn हो जाती है।
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(ारि:भक काल म0 योितष अ/याZम-िव,ान क8 ही एक शाखा थी। यह चतदु श ) िवा म0
एक माना जाता है। िजसका %वAप %पYतः धम)िव,ान पर आधारत था। अपने इसी Aप म0 इसने
चािEडयन एवं िमVी धम` तथा (ाचीन भार, चीन एवं पिमी यरू ोप म0 महZवपणू ) भिू मका िनभाई थी।
उस समय इसक8 िवyसनीयता असंिदSध मानी जाती थी और उसका (चार-(सार िवy के सम%त
भाग# पर था, पर<तु म/यकाल म0 योितष पर अनेक# आघात ह2ए और अEप, तथा %वाथ[ लोग# के
हाथ# पह2चँ जाने पर इस िवा के जानने वाल# क8 अवनित ह2ई। योितष क8 मल ू भतू तZवमीमांसा
एवं उसके आ/यािZमक तZवदश)न से उस समय के योितषी बह2त अंश# म0 अनिभ, थे। उ<ह#ने
योितिव)ा के के वल उन िसTा<त# पर अमल िकया, िजसका मेल नए यांि&क भौितक िव,ान के
तJय# से बैठता था। उस समय के वल वहG िसTा<त मा<य रहे जो aय जगत क8 बा‚ भौितक
घटनाओ ं एवं तJय# पर आधारत थे। ‘के पलर’ के योितष िव,ान को >ह# क8 चाल पर आधारत
मानने के कारण भी योितष िव,ान के अ/येताओ ं क8 दगु ि) त ह2ई।
वा%तव म0 इस िवा के िसTा<त# का सaु ढ़ आधार अभौितक एवं आ/यािZमक है। इसे
भौितक यं&वाद और मा& >ह#-तार#-रािशय# एवं भाव# का िनधा)रण करने वाले एवं Fयव%था-Xम
दश)न वाले खगोलीय िव,ान के आधार पर नहG समझा जा सकता। इस शाm के आिवLकता)
भारतीय महिष) रहे ह3, जो अलौिकक आ/यािZमक शिOय# से स:प<न थे। वह अपने तपोबल के
आधार पर ने& ब<द करते ही तीन# काल क8 ि%थितय# को भली-भाँित समझ लेते थे। उनक8 दरू aिY
अलौिकक ह2आ करती थी।
योग-िव,ान जो िक भारतीय आचाय` क8 िवभिू त माना जाता है, इसका पृƒाधार है। यहाँ
ऋिषय# ने योगा}यास Nारा अपनी सfू म (,ा से शरीर के भीतर ही सौरमडल के दश)न िकए और
अपना िनरी?ण कर आकाशीय सौर मडल क8 Fयव%था क8। अक ं िवा जो इस शाm का (ाण है,
उसका आर:भ भी भारत म0 ही ह2आ। म/यकालीन भारतीय सं%कृ ित नामक प%ु तक म0 Vी ओझा ने
िलखा है, “भारत ने अ<य देशवािसय# को जो अनेक बात0 सीखायG, उनम0 सबसे अिधक महZव
अकं िवा का है। संसार भर म0 गिणत, योितष, िव,ान आिद क8 आज जो उ<नित पायी जाती है,
उसका मल ू कारण वत)मान अंक Xम है। िजसम0 १ से ९ तक के अक ं और श<ू य इन १० िच„# से
अक ं -िवा का सारा काम चल रहा है। यह Xम भारतवािसय# ने ही िनकाला और उसे सारे ससं ार ने
अपनाया।’’
उपय)O
ु उTरण से %पY है िक (ाचीनतम काल म0 भारतीय ऋिष खगोल एवं योितषशाm
का ,ान रखते थे। कितपय िवNान भारतीय योितष म0 >ीक (भाव मानते ह3, पर<तु िवचार करने पर

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वा%तिवकता कुछ िभ<न नजर आती है। (ाचीन भारत म0 >ीस देश से अनेक िवाथ[ िविभ<न शाm#
का अ/ययन करने के िलए आते थे और वष` रहकर भारतीय आचाय` से िभ<न-िभ<न शाm# का
अ/ययन करते थे। िजससे अिधक स:पक) के कारण कुछ शcद ई. पवू ) तीसरी शती म0, कुछ छठी शती
म0, कुछ १५-१६ वG शती म0 योितष म0 िमल गए। भारत के योितिव)द् ईसवी सन क8 चौथी और
५वG शती म0 >ीस गए। इससे भी ५वी और छठी शती के (ार:भ म0 अनेक >ीक शcद भारतीय
योितष म0 आ गए।
सम%त िवy ने भारत से जो अगिणत-अनिगनत अज अनदु ान पाए, उसम0 योितष का %थान
अिNतीय है। डcEय.ू डcEय.ू हटर ने इिडयन गजेिटयर म0 %पLट Aप से िलखा है िक - ८वG शती म0
अरबी िवNान# ने भारत से योितष िवा सीखी और भारतीय योितष ‘िसTा<त#’ का िस<दिह<द
नाम से अरबी म0 अनवु ाद िकया। अरबी भाषा म0 िलखी गयी ‘आदन उल अ:बािफतल कालल ू ी
अितcबा’ नामक प%ु तक म0 िलखा है िक- ‘भारतीय िवNान# ने अरबी के अतं ग)त बगदाद क8
राजसभा म0 जाकर योितष-िचिकZसा आिद शाm# क8 िश?ा दी थी।’ कक) नामक एक िवNान शक
संवत् ६९४ म0 बादशाह अलमसरू के दरबार म0 योितष और िचिकZसा के ,ानदान के िनिम गए थे।
भारतीय वांSमय के (ाचीनतम ><थ# म0 आयी योितिव),ान क8 शcदावली भी यही
(मािणत करती है िक इसक8 ज<म%थली भारत ही है। ऋSवेद सिं हता म0 चX शcद आया है, जो
रािशचX का ोतक है। ‘‘Nादशारं निह तजराय (ऋक् १-१६४-११)’’ म&ं म0 Nादशारं शcद १२
रािशय# का बोधक है। (करणगत िवशेषताओ ं के ऊपर /यान देने से इस म&ं म0 %पYतया Nादश
रािशय# का िनAपण देखा जा सकता है। इसके अलावा ऋSवेद के अ<य %थल# एवं शतपथ ]ा^ण
आिद ><थ# के अ/ययन से पता चलता है िक आज से-कम-से-कम २८००० वष) पहले भारतीय# ने
खगोल और योितषशाm का म<थन िकया था। वे आकाश म0 चमकते ह2ए न?& पँजु , आकाश-गगं ा
िनहारका आिद के नाम-Aप-रंग-आकृ ित आिद से पणू त) या परिचत थे।
‘अलबेˆनीज इिडया’ के पृƒ# म0 अलबेˆनी क8 %पYोिO है िक योितष शाm म0 िह<दू
लोग संसार क8 सभी जाितय# से बढ़कर है। म3ने अनेक भाषाओ ं के अक ं # के नाम सीखे ह3, पर िकसी
जाित म0 हजार के आगे क8 संdया के िलए मझु े कोई नाम नहG िमला। िह<दओु ं म0 अठारह अक ं # तक
क8 सdं या के िलए नाम है, िजनम0 अि<तम संdया का नाम पराT) बताया गया है। इिडया-‰ाट इट
के न टीच अस’ म0 (ो. मैसमलू र ने िलखा है, भारतवासी आकाशमडल और न?& मडल आिद
के बारे म0 अ<य देश# के ऋणी नहG ह3 अिपतु वे ही इनके मल ू आिवLकता) ह3। Šाँसीसी पय)टक
Šावीस विन)यर भी भारतीय योितष,ान क8 (शसं ा करते ह2ए िलखते है िक भारतीय अपनी गणना

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
Nारा च<l और सयू )>हण क8 िबलकुल ठीक भिवLयवाणी करते ह3। इनका योितष,ान (ाचीनतम
और मौिलक है।
‘टरवीिनयरस ‹ेिवल इन इिडया’ म0 Šाँसीसी या&ी टरवीिनयर ने भी भारतीय योितष क8
(ाचीनता और िवशालता से (भािवत होकर कहा है िक “भारतीय, योितष ,ान म0 (ाचीनकाल से
ही िनपणु ह3। वे FयिOगत, राL‹ीय एवं वैिyक जीवन के (Zयेक प? के सबं <ध म0 सटीक भिवLयवाणी
करने क8 अvुत ?मता रखते ह3।’’
एनसाइलोपीिडया ऑफ िब‹ैिनका म0 िलखा है िक इसम0 कोई स<देह नहG िक हमारे
वत)मान अक ं Xम क8 उZपि भारत से है। स:भवतः योितष स:ब<धी उन सारिणय# के साथ,
िजनको एक भारतीय राजदतू सन् ७७३ ईसवी म0 बगदाद म0 लाया-इन अक ं # का (वेश भारत से
ह2आ। िफर ईसवी सन् क8 ९वG शती के (ारि:भक काल म0 (िसT अबजू फर मोह:मद अल खारमी
ने अरबी म0 उO Xम का िववेचन िकया और उसी समय से अरब# म0 उसका (चार बढ़ने लगा। यरू ोप
म0 श<ू य सिहत यह स:पणू ) अक
ं Xम ईसवी सन् क8 १२वG शती म0 अरबी से िलया गया है इस Xम से
बना ह2आ अक ं गिणत ‘अल गोरट्मस’ नाम से (िसT ह2आ।
‘िथयोगोनी ऑफ द िह<दजू ’ म0 काट आम)%ट)जन ने िलखा है िक वेल# Nारा िकए गये
गिणत से ही (तीत होता है िक ईसवी सन् ३००० वष) पवू ) ही भारतीय# ने योितष शाm और भिू मित
शाm म0 अgछी पारदिश)ता (ाn कर ली थी। कन)ल टाड ने अपने ‘राज%थान’ नामक ><थ म0 िलखा
है हम उन योितिषय# को यहाँ (भारत म0) पा सकते ह3, िजनका >ह-मडल स:ब<धी ,ान अब भी
यरू ोप म0 आय) उZप<न कर रहा है। िम%टर मारया >ाहम लेटस) ऑन इिडया म0 अपना मत FयO
करते ह2ए कहते है िक सम%त मानवीय परLकृ त िव,ान# म0 योितष मनLु य ऊँचा उठा देता है। इसके
(ारि:भक िवकास का इितहास मानवता के उZथान का इितहास है। भारत म0 इसके आिदम अि%तZव
के बह2त से (माण मौजदू है।
िम%टर सी.वी. लाक) एफ.जी. एफ. कहते ह3 िक अभी बह2त वष) पीछे तक हम सदंु र %थान# के
अ?ांश के िवषय म0 िनयाZमक Aप से ,ान नहG रखते थे िक<तु (ाचीन भारतीय# ने >हण ,ान के
समय से ही इ<ह0 जान िलया था। इनक8 यह अ?ांश-रे खाएँ वाली (णाली वै,ािनक ही नहG अचक ू है।
‘एि<सएट एड मेिडवल इिडया म0 (ो. िवलसन का मानना है िक भारतीय योितिषय# को (ाचीन
खलीफ# िवशेषकर हाˆँ रशीद और अलमायन ने भली भाँित (ोZसािहत िकया। वे बगदाद आमिं &त
िकए गए और वहाँ उनके ><थ# का अनवु ाद ह2आ। डॉटर राबट)सन का कथन है िक 12 रािशय# का
,ान सबसे पहले भारतवािसय# को ही ह2आ था। भारत ने (ाचीनकाल म0 योितिव)ा म0 अgछी

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
उ<नित क8 थी।
(ो. कोलबक ु और बेबर साहब ने िलखा है िक भारत को ही सबसे (थम च<l न?&# का ,ान था।
चीन और अरब के योितष का िवकास भारत से ही ह2आ है। उनका Xाि<तमडल िह<दओ ु ं का ही
है। िन%स<देह उ<हG से अरब वाल# ने इसे िलया है। िवdयात चीनी िवNान ‘िलयांग िचचाप’ के शcद#
म0 “वत)मान स}यजाितय# ने जब हाथ-पैर िहलाना भी (ार:भ नहG िकया था, तभी हम दोन# भाइय#
(भारत और चीन) ने मानव स:ब<धी सम%याओ ं को योितष जैसे िव,ान Nारा सल ु झाना आर:भ कर
िदया था।”
(ो. वेलस महोदय ने Qलेफसर साहब क8 कुछ पंिOयाँ िमEस इिडया के खड दो म0 उTतृ क8 ह3,
िजनका आशय है िक – ‘योितष ,ान के िबना बीजगिणत क8 रचना किठन है।’ िवलसन कहते है
िक भारत ने योितष और गिणत के तZव# का आिवLकार अित (ाचीनकाल म0 िकया था। डी. माग)न
ने %वीकार िकया है िक भारतीय# का गिणत और योितष यूनान के िकसी भी गिणत या योितष के
िसTा<त क8 अपे?ा महान है। इनके तZव (ाचीन और मौिलक ह3।
डॉ. थोबो बह2त सोच-िवचार और समालोचना के बाद इस िनLकष) पर पह2चँ े िक भारत ही
रे खागिणत के मलू िसTा<त# क आिवLकता) है। इसने न?& िवा म0 भी परु ातनकाल म0 ही (वीणता
(ाn कर ली थी। यह रे खागिणत के िसTा<त का उपयोग इस िवा को जानने के िलए करता था।
वजŽस महोदय ने सूय) िसTा<त के अ>ं ेजी अनुवाद के परिशY म0 अपना मत उTतृ करते ह2ए बताया है
िक भारत का योितष टालमी के िसTा<त# पर आधारत नहG है, बिEक इसने ईसवी सन के बह2त
पहले ही इस िवषय का पया)n ,ान (ाn कर िलया था।
2.4 योितष का िवकास – काल 0म के आधार पर
योितषशा%& अपने आर:भ के साथ ही िवकिसत और (भावशाली रहा है। काला<तर म0
के वल कालभेद से उसके Aप म0 परवत)न ह2आ है। जैसा िक भगवान सयू ) ने सयू )िसTा<त म0 कहा है –
शा मा0ं तदेवेदं य7पूव+ 2ाह भा कर:।
युगानां प=रवत?न कालभेदोऽ के वल:।।
अत: आइए कालभेद के आधार पर हम योितष के िवकास क8 बात करते है –
योितषशा%& के ज<म का पता लगाना शिOग:य नहG है। यह मानव सृिY के समान अनािद है।
योितष का िसTा<त है िक एक कEपकाल म0 ४३२००००००० वष) होते ह3, सृिY (ार:भ होते ही
सभी >ह अपनी-अपनी क?ा म0 िनयिमत Aप से मण करने लगते ह3। मानव सदु रू (ाचीन काल म0
सृिY के अन<तर बह2त समय तक िलिप Aप भाषा शिO से रिहत था। वह अपना काम चलाने के
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िलए के वल संकेताZमक भाषा का ही (योग करता था। िवकासवाद बतलाता है िक आर:भ म0 मनLु य
के वल नाद कर सकता था, इसी अ%पLट नाद Nारा अपने सख ु -द:ु ख, हष)-पीड़ा आिद भाव (दिश)त
करता था। जब अनभु व और अनमु ान ने पर%पर एक–दसू रे क8 क8 सहायता कर मानव जाित क8
िवकिसत पर:परा कायम कर दी तो स:भाषण-शिO का आिवभा)व ह2आ। नाद को िनर<तर उgचारत
कर िविभ<न भाव#, िवचार# और उनके भेद# को Xमश: (दिश)त करने क8 चेLटा क8 गयी। ,ाना}यदु य
के साथ-साथ नाद शिO भी वृिTगत होने लगी और धीरे -धीरे भाव# के साथ इिं गत, चेLटा और
Fयत नाद का आर:भ ह2आ। इसी बीच म0 अनक ु रण क8 मा&ा ने (कृ ित(द भाव और िवचार# के
िविनमय म0 पया)Qत योग िदया, िजससे मानव ने आज के समान स:भाषण क8 योSयता (ाQत क8।
यहाँ /यातFय है िक स:भाषण क8 भाषा के आिवभत)ू होने पर िलिप क8 भाषा अभी (ाचीन मानव
को अ,ात थी। इस समय उसके सम%त काय) मौिखक ही चलते थे। वेद शcद का अथ) जो Vतु िकया
गया है वह भी इस बात का ोतक है िक (ाचीन मानव का सम%त ,ान भडार मख ु ा> था, उसम0
उसके िलिपबT करने क8 ?मता नहG थी।
(ाSवैिदक काल म0 भारतीय ऋिषय# ने िदFय ,ानशिO Nारा आकाश मडल के सम%त
तZव# को ,ात कर िलया था और जैस-े जैसे आगे जाकर अिभFयंजना क8 (णाली िवकिसत होती
गयी, योितष तZव सािहZय Nारा (कट होने लगे। अतएव वैिदककाल म0 योितष के महZवपणू )
िसTा<त अZयिधक पLु पिवत और पEलिवत थे। दैिनक काय` के स:पादनाथ) उपयोगी पाि?क
ितिथप& भी उस समय काम म0 लाये जाते थे। उस यगु के (Zयेक FयिO को >ह-न?&# का इतना
,ान था, िजससे वह के वल आकाश को देखकर ही समय और िदशा को ,ात कर लेता था।
उदयकाल म0 िजन योितष िसTा<त# को सािहिZयक Aप (दान िकया गया है, वे (ागवैिदक काल म0
मौिखक Aप म0 वत)मान थे।
(ाSवैिदक काल म0 योितष के गिणत, िसTा<त और फिलत ये तीन# भेद %वत<& Aप से
(%फुिटत हो गये थे। >ह# क8 गित, ि%थित, अयनाश ं , पात आिद गिणत योितष के अ<तग)त तथा
शभु ाशभु समय का िनण)य, िवधायक, य, यागािद काय` के करने के िलए समय और %थान का
िनधा)रण फिलत योितष का िवषय माना जाता था। पवू )म/यकाल क8 अि<तम शतािcदय# म0 िसTा<त
योितष के %वAप म0 भी िवकास ह2आ, लेिकन खगोलीय िनरी?ण और >हवेध क8 परपाटी के कम
हो जाने से गिणत के कEपनाजाल Nारा ही >ह# के %थान# का िनचय करना िसTा<त योितष के
अ<तग)त आ गया। तथा पवू )म/यकाल के (ार:भ म0 योितष का अथ) %क<ध&य – होरा, िसTा<त
और सिं हता के Aप म0 >हण िकया गया। पर<तु इस यगु के म/य म0 इस परभाषा ने और भी सशं ोधन
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देखे और आगे जाकर यह पंचAपाZमक – होरा, गिणत या िसTा<त, संिहता, (न और शकुन Aप
हो गयी।
अ$यास %न – 1
बह2वक
ै िEपक (न –
1. योितष शा%&ोZपि का मलू है –
क. वेद ख. परु ाण ग. उपिनषद घ. %मृित
2. िन:निलिखत म0 ‘अकं िवा’ िकसक8 देन है –
क. चीन ख. भारत ग. जापान घ. िम
3. शतपथ ]ा^णोत ‘Nादशारं िह तिजराय’ म0 Nादशारं का अथ) या है –
क. 12 चX ख. 12 रािशयाँ ग. 12 न?& घ. 12 शार
4. एक कEप म0 िकतने वष) होते है?
क. 432000000 वष) ख. 430000 वष) ग. 430000000 वष) घ. 432 वष)
5. ि&%क<ध योितष का उvव कब हो चक ु ा था –
क. (ागवैिदक काल म0 ख. िसTा<त काल म0 ग. संिहता काल म0 घ. कोई नहG
6. >ह# क8 गित व ि%थित का िनधा)रण िकस %क<ध म0 िकया जाता है -
क. सिं हता ख. िसTा<त ग. होरा घ. शकुन
7. ‘भा%कर’ का अथ) है -
क. सयू ) ख. च<lमा ग. िदवा घ. राि&

2ा[वैिदक काल म0 जहाँ वेद, ]ा^ण और आरयक# म0 य&-त& संकुिचत Aप से


योितष चचा) पाई जाती है, आिदकाल म0 इस िवषय के उपर %वत<& ><थ रचना क8 जाने लगी थी।
इस यगु म0 िश?ा, कEप, Fयाकरण, िनAत, छंद और योितष – ये छ: भेद ‘वेदांग’ के Aप म0 (कट
हो चकु े थे। वेदागं काल म0 महाZमा लगध ने ‘वेदागं योितष’ क8 रचना कर योितष को %वत<& Aप
से %थािपत िकया। वेदांग योितष म0 ऋSवेद, यजवु दŽ और अथव)वदे योितष – ये तीन ><थ माने
जाते ह3। (थम के सं>हकता) लगध नाम के ऋिष ह3, इसम0 ३६ कारकाएँ ह3। यजवु दŽ योितष म0 ४९
कारकाएँ ह3, िजनम0 ३६ कारकाएँ तो ऋSवेद योितष क8 ह3 और १३ नयी आयी ह3। अथव) योितष
म0 १६२ लोक ह3। इन तीन# ><थ# म0 फिलत क8 aिY से अथव) योितष महZवपणू ) है।
लगध(ोत वेदांगयोितष ><थ म0 पाँच वष` का यगु , माघशु लािद वष), अयन, ऋत,ु मास,
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प?, ितिथ, पव), िवषवु ििथ, न?&, अिधमास ये िवषय (ितपािदत ह3। Vौत%मात)धम)कृZय# म0 इन क8
ही अपे?ा होने से इस वेदागं योितष ><थ म0 इन िवषय# का मdु यतया (ितपादन िकया गया ह3।
वैिदक योितष का जो %वAप हम0 संिहता ><थ# म0 उपलcध है, उसम0 न?&#, ितिथय#, चा<lमास#,
दोन# िवषवु त् और दोन# अयन# का का वण)न उपलcध है और न?& गणना कृ िका न?& से क8 गई
है जो उस समय वस<त स:पात का न?& था। उपरोत िवषय# का गिणतीय %वAप हम0 ‘वेदागं
योितष’ म0 उपलcध होता है जो गणना के Nारा ितिथय#, न?&# के मान को (%ततु करता है। वेदांग
योितष क8 गणना के अनसु ार ५ वष` का एक यगु माना गया है जो चा<lयगु चX कहा जा सकता है।
वेदांग योितष के समकालीन रचे गए जैन योितष के ><थ सयू -) (,िn, च<l –(,िn,
ज:बNू ीप(,िn और योितषकरडक इस िवषय के %वत<& ><थ ह3, इसके अितरत कEपस&ू ,
िनAत, Fयाकरण, %मृितयाँ, महाभारत और जीवािभगम स&ू ािद ईसवी सन् से सैकड़ो वष` पवू ) रिचत
><थ# म0 फुटकर Aप से योितष क8 अनेक चचा)एँ आयी ह3। इसी कालखड म0 (थम आय)भk,
भkि&िवXम, लEल, कालाकाचाय), ]^गQु त, मजंु ाल, महावीराचाय), भkोZपल, च<lसेन, Vीपित,
Vीधर, भkवोसर जैसे आचाय` का उvव ह2आ था। िज<ह#ने अपनी कृ ितय# से योितष शा%& को
सaु ढ़ िकया था। आय)भk Nारा रिचत ‘आय)भkीयम’् तथा लEल के Nारा रिचत ‘िशLयधीवृिT’
त<&म् योितष के स(ु िसT रचनाओ ं म0 से एक है। ]^गQु त क8 ]^%फुटिसTा<त, मजंु ाल का
लघमु ानास, महावीराचाय) क8 योितषपटल और गिणतसारसं>ह, भkोZपल क8 टीकाय0, Vीपित क8
िसTा<तशेखर तथा च<lसेन क8 के वल,ानहोरा नामक रचनाय0 योितष शा%& क8 अिNतीय कृ ित
मानी जाती है। इसके साथ-साथ उस समय अगं िवा का भी उvव हो चक ु ा था।
वैिदक काल से ही भारतवष) म0 पंचांग िनमा)ण क8 पर:परा भी आर:भ हो गयी थी। उस
कालखड म0 पंचांग का %वAप आज के सaश नहG था, िक<तु पंचांग क8 उZपि हो चक ु 8 थी। तभी
तो वेद# म0 कई %थल# पर हम0 ितिथ और न?&# का उEलेख िमलता है। ]ा^, सौर तथा आय) – इन
तीन प?# के आधार पर पच ं ागं िनमा)ण का काय) िकया जाता था। काला<तर म0 पच
ं ागं के %वAप म0
कई परवत)न ह2ए और स:(ित ५०० से अिधक (कार के पंचागं भारतवष) म0 िनिम)त होते ह3।
पूवम\यकाल मM योितषशा%& उ<नित क8 चरम सीमा पर था। वराहिमिहर जैसे अनेक
धरु <धर योितिव)द ह2ए, िज<ह#ने इस िव,ान को XमबT िकया तथा अपनी अिNतीय (ितभा Nारा
अनेक नवीन िवषय# का समावेश िकया। इस यगु के (ारि:भक आचाय) वराहिमिहर या वराह ह3,
िज<ह#ने अपने पवू क
) ालीन (चिलत िसTा<त# का पंचिसTाि<तका म0 सं>ह िकया। >हगिणत के ?े&
म0 िसTा<त, त<& एवं करण इन भेद# का (चार भी होने लगा था। िसTा<तगिणत म0 कEपािद से, त<&

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
म0 यगु ािद से और करण शकाcद पर से अहग)ण बनाकर >हािद का आनयन िकया जाता है। िसTा<त
म0 जीवा और चाप के गिणत Nारा >ह# का फल लाकर आनीत म/यम>ह म0 स%ं कार कर देते ह3 तथा
भौमािद >ह# का म<द और शी’फल लाकर म<द%पLट और %पLट मान िसT करते है।
उ*रम\यकाल मM योितषशा%& के सािहZय का अZयिधक िवकास ह2आ है। मौिलक
><थ# के अितरत आलोचनाZमक योितष के अनेक ><थ िलखे गये ह3। भा%कराचाय) ने अपने
पवू व) त[ आय)भk, ]^गQु त, लEल आिद के िसTा<त# क8 आलोचना क8 और आकाश िनरी?ण
Nारा >हमान क8 %थल ू ता ,ात कर उसे दरू करने के िलए बीजसं%कार क8 Fयव%था बतलायी। ईसवी
सन् क8 १२ वG सदी म0 गोल िवषय के गिणत का (चार बह2त ह2आ था। उरम/यकाल क8 (मख ु
िवशेषता >हगिणत के सभी अगं # के संशोधन क8 है। ल:बन, नित, आयनबलन, आ?बलन,
आयनaकम), आ?aकम), भभू ािब:ब साधन, >ह# के %पLटीकरण के िविभ<न गिणत और ितJयािद
के साधन म0 िविभ<न (कार के सं%कार िकये गये, िजससे गिणत Nारा सािधत >ह# का िमलान
आकाश-िनरी?ण Nारा (ाQत >ह# से हो सके ।
इस यगु क8 एक अ<य िवशेषता य<& िनमा)ण क8 भी है। भा%कराचाय) और महे<lसू र ने
अनेक य<&# के िनमा)ण क8 िविध और य<&# Nारा >हवेध क8 (णाली का िनAपण स<ु दर ढंग से िकया
है। यिप इस काल के (ार:भ म0 >हगिणत का बह2त िवकास ह2आ, अनेक करण ><थ तथा सारिणयाँ
िलखी गयG, पर ई0 सन् क8 १५ वG शती से ही >हवेध क8 परपाटी का “ास होने लग गया था। य#
तो (ाचीन ><थ# को %पLट करने और उनके रह%य# को समझाने के िलए इस यगु म0 अनेक टीकाएँ
और भाLय िलखे गए, पर आकाश–िनरी?ण क8 (था उठ जाने से मौिलक सािहZय का िनमा)ण न हो
सका। >हलाघव, करणकुतहू ल और मकर<द जैसे स<ु दर करण ><थ# का िनिम)त होना भी इस यगु के
िलए कम गौरव क8 बात नहG थी।
फिलत योितष म0 जातक, महु oत,) सामिु lक, रमल और (न इन अंग# के सािहZय का िनमा)ण भी
उरम/यकाल म0 कम नहG ह2आ है। मिु %लम स%ं कृ ित के अित िनकट स:पक) के कारण रमल और
तािजक इन अगं # का तो नया ज<म माना जाता है। तािजक शcद का अथ) ही अरब देश से (ाQत
शा%& है। इस यगु म0 इस िवषय पर लगभग दो दज)न ><थ िलखे गये । इस शा%& म0 िकसी FयिO के
नवीन वष) और मास म0 (वेश करने क8 >हि%थित पर से उसके सम%त वष) और मास का फल बताया
जाता है। बलभlकृ त तािजक ><थ म0 कहा गया है :-
यवनाचाय?ण पारसीकभाषायां 2णीतं योित:शा ैकदेशQपं
वािषकािदनानािवधफलादेशफलकशा ं तािजकफलवाBयं तदनतरभूतै: समरिसहं ािदिभ:

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
@ाAणै: तदेवशा ं सं कृतश^दोपिनब,ं तािजकश^दवाBयम।् अतएव तै ता एव
इ4कबालादयो याव7य: स1ं ा उपिनब,ा:।।
अथा)त् यवनाचाय) ने फारसी भाषा म0 योितष शा%& के अगं भतू वष), मास के फल को नाना
(कार से Fयत करनेवाले तािजक शा%& क8 रचना क8 थी। इसके पचात् समरिसंह आिद िवNान# ने
स%ं कृ त भाषा म0 इस शा%& क8 रचना क8 और इकवाल, इ<दवु ार, इशराफ आिद यवनाचाय` Nारा
(ितपािदत योग# क8 सं,ाएँ यथावत् रखG।
इसी कालखड म0 रमल शा%&, महु o) शा%& एवं शकुनशा%& का भी उरोर िवकास ह2आ। आइए
अब उनके बारे म0 भी चचा) करते है।
रमल – रमल का (चार िवदेिशय# के संसग) से भारत म0 ह2आ है। ईसवी सन् ११ वG एवं १२ वG शती
क8 कुछ फारसी भाषा म0 रची गयी रमल क8 मौिलक प%ु तक0 खदु ाबdशखाँ लाइ]ेरी पटना म0 मौजदू
ह3। इन प%ु तक# म0 कता)ओ ं के नाम नहG ह3। सं%कृ त भाषा म0 रमल क8 पाँच-सात प%ु तक0 (धान Aप से
िमलती है। रमलनवरZनम् नामक ><थ म0 पाशा बनाने क8 िविध का कथन करते ह2ए कहा गया है िक
– ‘वेदत7वोप=रकृतं रKलशा ं च स=ू रिभ:। तेषां भेदा: षोडशैव यूनािध4यं न जायते।’
अथा)त् अिSन, वाय,ु जल और पृJवी इन चार तZव# पर िवNान# ने रमलशा%& बनाया है एवं इन चार
तZव# के सोलह भेद कहे ह3, अत: रमल के पाशे म0 १६ शकल0 बतायी गयी है।
िकंवद<ती है िक बहलोद लोदी के साथ भी एक अgछा रमलशा%& का वेा रहता था,
यह मक ू (न# का उर देने म0 िसTह%त बताया गया है। रमलनवरZन के मगं लाचरण म0 पवू ) के
रमलशािmय# को नम%कार िकया गया है: -
न7वा (ीरमलाचायान् परमा0सुखािभधै:। उ,ृतं रमलाKभोधेनवर7नं सुशोभनम।् ।
अथा)त् (ाचीन रमलाचाय` को नम%कार करके परमसख ु नामक ><थकता) ने रमलशा%&Aपी समlु म0
से स<ु दर नवरZन को िनकाला है। इस ><थ का रचनाकाल १७ वG शती है। अत: यह %वयं िसT है िक
उरम/यकाल म0 रमलशा%& के अनेक ><थ# का िनमा)ण ह2आ है।
मुहa* – यिद देखा जाय तो उदयकाल म0 ही महु o) स:ब<धी सािहZय का िनमा)ण होने लग
गया था तथा आिदकाल और पवू म) /यकाल म0 संिहताशा%& के अ<तग)त ही इस िवषय क8 रचनाएँ
ह2ई थG, पर उरम/यकाल म0 इस अगं पर %वत<& रचनाएँ दज)न# क8 सdं या म0 ह2ई ह3। शक सवं त्
१४२० म0 नि<द>ामवासी के शवाचाय) कृ त महु oत) Zव, शक् संवत् १४१३ म0 नारायण कृ त महु oत)
मात)ड, शक् संवत् १५२२ म0 रामभk कृ त महु o) िच<तामिण, शक् संवत् १५४९ म0 िव”ल दीि?त
कृ त् महु oत)कEपlुम आिद महु o) स:ब<धी रचनाएँ ह2ई ह3। इस यगु म0 मानव के भी आवयक काय` के

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
िलए शभु ाशभु समय का िवचार िकया गया है।
शकुनशा – इसका िवकास भी %वत<& Aप से इस यगु म0 अिधक ह2आ है। िव0सं0 १२३२ म0
अि„पkण के नरपित नामक किव ने नरपितचया) नामक एक शभु ाशभु फल का बोध कराने वाला
अपवू ) ><थ क8 रचना क8 थी। इस ><थ म0 (धान Aप से %वरिव,ान Nारा शभु ाशभु फल का िनAपण
िकया गया है। वस<तराज नामक किव ने अपने नाम पर वस<तराज शकुन नाम का एक महZवपणू )
><थ रचा है। इस ><थ म0 (Zयेक काय) के पणू ) होने वाले शभु ाशभु शकुन# का (ितपादन आकष)क ढंग
से िकया गया है। इन ><थ# के अितरत िमिथला के महाराज लfमणसेना के प&ु बEलालसेन ने
श.सं. १०९२ म0 अvुतसागर नाम का एक सं>ह ><थ रचा है, िजसम0 अपने समय के पवू व) त[
याितिव)द# क8 संिहता स:ब<धी रचनाओ ं का सं>ह िकया है। कई जैन मिु नय# ने शकुन के उपर वृहद्
परमाण म0 रचनाय0 िलखी ह3। यिप शकुनशा%& के मल ू तZव आिदकाल के ही थे, पर इस यगु म0
उ<हG तZव# क8 िव%तृत िववेचनाएँ िलखी गयी है।
उरम/यकाल म0 भारतीय योितष ने अनेक उZथान# और पतन# को देखा है। िवदेिशय#
के स:पक) से होनेवाले संशोधन# को अपने म0 पचाया है और (ाचीन भारतीय योितष क8 गिणत-
िवषयक %थल ू ताओ ं को दरू कर सfू मता का (चार िकया है।
यिद स? ं ेप म0 उरम/यकाल के योितष सािहZय पर aिYपात िकया जाये तो यही कहा जा सकता है
िक इस काल म0 गिणत योितष क8 अपे?ा फिलत योितष का सािहZय अिधक फला-फूला है।
गिणत योितष म0 भा%कर के समान अ<य दसू रा िवNान नहG ह2आ, िजससे िवपल ु परमाण म0 इस
िवषय क8 स<ु दर रचनाएँ नहG हो सक8। इस काल म0 भा%कराचाय), दगु द) वे , उदय(भदेव, मिEलषेण,
राजािदZय, बEलालसेन, प–(भ सू र, नरच<l उपा/याय, अ”किव या अह)|ास, महे<lसू र, मकर<द,
के शव, गणेश, ढुिढराज,नीलकठ, रामदैव,, मEलार, नारायण तथा रंगनाथ आिद जैसे अनेक#
िवNान ह2ए िज<ह#ने अपनी अपवू ) कृ ितय# से भारतीय योितष शा%& को और पLु पिवत तथा
पEलिवत करने म0 अपना योगदान िदया।
आधिु नक काल –
आधिु नक काल के आर:भ म0 मिु %लम सं%कृ ित के साथ-साथ पाचाZय स}यता का
(चार भी भारत म0 ह2आ। यिप उरम/यकाल म0 ही योितिषय# ने आकाशावलोकन Zयागकर
प%ु तक# का पEला पकड़ िलया था और प%ु तक8य ,ान ही योितष माना जाने लगा था। सZय तो यह
है िक भा%कराचाय) के पचात् मिु %लम राय# के कारण िह<द-ू धम), स:पि, सािहZय और योितष
आिद िवषय# क8 उ<नित पर पहाड़ िगरे िजससे उत िवषय# का िवकास Aक गया। कुछ धमा)<ध

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सा:(दाियक प?पाती मिु %लम बादशाह# ने स:(दाय के मद म0 चरू होकर भारतीय ,ान-िव,ान को
नLट करने म0 लेशमा& भी सकं ोच नहG िकया, तथािप उसक8 धारा शावत Aप म0 गितमान है। िवNान#
को राजाVय न िमलने से योितष के (सार और िवकास म0 कुछ कम बाधाएँ नहG आयी। नवीन
संशोधन और परवT)न तो अलग क8 बात है, परु ातन योितष ,ान-भडार का संर?ण भी किठन हो
गया। यिप कुछ िह<द,ू मिु %लम िवNान# ने इस यगु म0 फिलत ><थ# क8 रचनाएँ कG, लेिकन
आकाश-िनरी?ण क8 (था उठ जाने से वा%तिवक योितष तZव# का िवकास नहG हो सका।
शकुन, (न, महु o), ज<मप& एवं वष)प& के सािहZय क8 अवय वृिT ह2ई है। कमलाकर भk ने
सयू )िसTा<त का (चार करने के िलए ‘िसTा<ततZविववेक’ नामक गिणत योितष का महZवपूण)
><थ रचा है। इस अवा)चीन काल के (ार:भ म0 (ाचीन ><थ# पर टीका- िटQपणी बह2त िलखे गये।
१७८० म0 आमेरािधपित महाराज जयिसंह का /यान योितष क8 ओर िवशेष आकृ Lट ह2आ
और उ<ह#ने काशी, जयपरु एवं िदEली म0 वेधशालाएँ बनवायG, िजनम0 पZथर# क8 ऊँची और िवशाल
दीवार# के Aप म0 बड़े-बड़े य<& बनवाये। %वयं महाराज जयिसहं इस िवा के (ेमी थे, इ<ह#ने यरू ोप
क8 (चिलत तारासिू चय# म0 कई &िु टयाँ बताई तथा भारतीय योितष के आधार पर नवीन सारिणयाँ
तैयार करायG।
साम<तच<lशेखर ने अपने अिNतीय बिु Tकौशल Nारा >हवेध कर (ाचीन गिणत-योितष के ><थ#
म0 संशोधन िकया तथा अपने िसTा<त# Nारा >ह# क8 गितय# के िविभ<न (कार बतलाये। इनके Nारा
रिचत ‘िसTा<तदप)ण’ नामक ><थ aSगिणतैय पर आधारत अि<तम िसTा<त ><थ के Aप म0 जाना
जाता है।
इधर अ>ं ेजी स}यता के स:पक) से भारत म0 अ>ं ेजी भाषा का (चार हो गया। इस भाषा के
(चार के साथ-साथ अ>ं ेजी आधिु नक भगू ोल और गिणतिवषयक िविभ<न ><थ# का पठन –पाठन
क8 (था भी (चिलत ह2ई। सन् १८५७ के पचात् तो आधिु नक नवीन आिवLकृ त िव,ान# का (भाव
भारत के उपर िवशेष Aप से पड़ा है। फलत: अ>ं ेजी भाषा के जानकार स%ं कृ त के िवNान# ने इस
भाषा के नवीन गिणत ><थ# का अनवु ाद सं%कृ त म0 कर योितष क8 VीवृिT क8 है। बापदू वे शा%&ी
और पं0 सधु ाकर िNवेदी ने इस और िवशेष (यZन िकया है। आप महानभु ाव# के (यास के
फल%वAप ही रे खागिणत, बीजगिणत और ि&कोणिमित के ><थ# से आज का योितष धनी कहा
जा सके गा। के तक नामक िवNान ने के तक8>हगिणत क8 रचना अ>ं ेजी >ह-गिणत और भारतीय
गिणत िसTा<त# के सम<वय के आधार पर क8 है। दीघ)वZृ त, परवलय, अितपरवलय, इZयािद के
गिणत का िवकास इस नवीन स}यता के स:पक) क8 मdु य देन माना जाता है।

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पृJवी, च<lमा, सयू ,) सौर-चX, बधु , शX
ु , मगं ल, अवा<तर >ह, वृह%पित, यरू े नस,
नेपgयनू , नभ%तपू , आकाशगगं ा और उEका आिद का वै,ािनक िववेचन पिमीय योितष के
स:पक) से इधर चार दशक# के बीच म0 िवशेष Aप से ह2आ है। डॉ0 गोरख(साद ने आधिु नक
वै,ािनक अ<वेषण# के आधार पर इस िवषय क8 एक िवशालकाय सौरपरवार नाम क8 प%ु तक
िलखी है िजससे सौर जगत् के स:ब<ध म0 अनेक नवीन बात# का पता लगता है। Vी स:पणू ा)न<द जी
ने योितिव)नोद नामक प%ु तक म0 कापिन)कस, िजओईनो, गैलेिलयो और के Qलर आिद पाचाZय
योितिषय# के अनसु ार >ह, उप>ह और अवा<तर >ह# का %वAप बतलाया है। Vी महावीर(साद
Vीवा%तव ने सयू ) िसTा<त का आधिु नक िसTा<त# के आधार पर िव,ानभाLय िलखा है, िजससे
सं%कृ त, योितष के िवNान# का बह2त उपकार ह2आ ह। अिभ(ाय यह है िक आधिु नक यगु म0
पाचाZय योितष के स:पक) से गिणत योितष के िसTा<त# का वै,ािनक िववेचन (ार:भ ह2आ है।
यिद भारतीय योितषी आकाश-िनरी?ण को अपनाकर नवीन योितष के साथ तल ु ना कर0 तो
पवू म) /यकाल से चली आयी >हगिणत क8 सारिणय# क8 %थल ू ता दरू हो जायेगी और भारतीय
योितष क8 महZता समाज के सम? और सaु ढ़ Aप म0 %थािपत हो सके गा।
अवा)चीन काल म0 मनु ीवर, िदवाकर, कमलाकर भk, िनZयान<द, मिहमोदय,
मेघिवजयगिण, उभयकुशल, लिcधच<lमिण, बाघजी मिु न, यश%वतसागर, जग<नाथ स—ाट, बापदू वे
शा%&ी, नीला:बर झा, साम<तच<lशेखर, सधु ाकर िNवेदी, पं0 रामयZन ओझा, पं0 रामFयास पाडेय,
पं0 अवधिबहारी ि&पाठी, पं0 मीठालाल ओझा, पं0 सीताराम झा, आचाय) राजमोहन उपा/याय,
आचाय) रामच<l पाडेय, प0ं हीरालाल िमV, आचाय) कEयाण द शमा), आचाय) शक ु देव
चतवु दŽ ी, आचाय) रामच<l झा, िशवका<त झा, आचाय) सिgचदान<द िमV आिद अनेक# ऐसे
योितष शा%& के िवNान ह2ए ह3 और ह3, िज<ह#ने अपना स:पणू ) जीवन इस शा%& क8 उपासना म0
लगा दी। इ<ह#ने अपनी-अपनी कृ ितय# से इस शा%& क8 र?ा के साथ-साथ इनको पLु पिवत और
पEलिवत करने म0 अपना महZवपणू ) योगदान िदया और दे रहे ह3। साथ ही इनके अ/येताओ ं को
नवीन उजा) (दान करने के साथ-साथ योितष शा%& म0 िनZय नवीन शोध करने के िलए (ेरत भी
िकया।
यह कहना अितशयोिO नहG होगी िक अवा)चीन योितष म0 जो िशिथलता आयी है, उसका कारण
िदFय ,ान वाले ऋिषय# क8 कमी है। आज हमारे देश म0 न तो बड़ी-बड़ी वेधशालाएँ ह3 और न
योगिXया के जानकार ऋिष- महिष) ही। इसिलए नवीन िववृियाँ योितष म0 नहG हो पा रही है।
इसके साथ-साथ सव)कार को भी इस िवषय के (ित कोई िवशेष /यान नहG रह गया है। राज सरं ?ण

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
के िबना तो िकसी भी िवा अथवा ,ान का काल सापे? पEलवन हो ही नहG सकता। अत: इन
सभी के अभाव म0 भी इनके अ/येताओ ं क8 िवशेष िज:मेदारी बनती है िक योितष शा%& क8 िदशा
म0 वह नवीन काय) कर इसका संर?ण करने म0 अपना योगदान द0। शा%& तो अमर है, िक<तु यगु सापे?
उसक8 सा लोक म0 FयाQत होने पर ही होगी। अत: लोक म0 इसे अिधक से अिधक यथाथ) Aप म0
जोड़े जाने का काम िकया जाना चािहए।
अ$यास %न - 2
=र4त थानL कP पूित कPिजए –
1. वेदांग योितष क8 रचना .......... ने क8 थी।
2. यजवु दŽ योितष म0 ..................... कारकाएँ ह3।
3. अथव) योितष म0 कुल लोक# क8 सdं या .............. है।
4. पंचिसTाि<तका के रचियता .................. है।
5. महु oम) ात)ड .................... क8 रचना है।
6. aSगिणतैय पर आधारत अि<तम िसTा<त ><थ क8 रचना ............. है।
7. आचाय) नरपित Nारा रिचत ><थ का नाम .................. है।
8. पिडत रामयZन ओझा .................... काल के िवNान है।

2.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक योितषशा%& क8 उZपि का मल ू
‘वेद’ है। योितशा%& वैिदककालीन ऋिष-महिष)य# क8 अलौिकक (ितभा क8 देन है। भारतीय
िवाओ ं म0 इसका %थान अिNतीय है। मनLु य क8 संरचना और उसक8 (कृ ित का इससे अिभ<न
स:ब<ध है। इसके अ<तग)त िपड और ]^ाड, FयिY और समिY के स:ब<ध# का अ/ययन सम>
Aप से िकया जाता है। >ह, न?&, तारे , रािशयाँ, म<दािकिनयाँ, िनहारकाएं एवं चराचर (ाणी, वृ?,
चkान0 आिद िवy]^ाडीय घटक (Zय? या परो? Aप से एक-दसू रे को (भािवत-आकिष)त करते
ह3। इन >ह-न?&# का मानव-जीवन पर सि:मिलत (भाव पड़ता है। वे कभी कY दरू करते ह3, तो
कभी कY भी देते ह3। ये तZव मनLु य क8 सfू म सरं चना एवं मनःस%ं थान# पर काय) करते ह3 और उसक8
भावनाओ ं तथा मानिसक ि%थितय# को अिधक (भािवत करते ह3। योितषशा%& के अ/ययन और
उपयोग से योितषी को मानव-जीवन के सभी ?े&# म0 सfू म अ<तa)िY (ाn हो जाती है।

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2.6 पारभािषक शदावली
योितष शा – वेदच?:ु िकलेदं %मृतं योितषशा%&म।् वेद के च?ु Aपी अगं होने के कारण
इसे वेदागं भी कहा जाता है।
वैिदककालीन – वेद# के समय का
-ह- गgछतीित >ह। अथा)त् वह आकाशीय िपड म0 िजसम0 गित हो, और जो चलायमान हो उसे
>ह कहते है।
खगोल – आकाशीय िपड# का अ/ययन िजसके अ<तग)त िकया जाता है, उसे खगोल कहते है।
िस,ात - &टु ् यािद से (लयकाल पय)<त क8 गई काल गणना िजस %क<ध म0 हो, उसे िसTा<त कहते
ह3।
संिहता – योितषशा%& के िजस %क<ध म0 >हचारवश >ह- न?&ािद िब:ब# के शभु ाशभु ल?ण से
पशु – प?ी- क8टािदय# का भसू ापे? सामिू हक िववेचन, (ाकृ ितक – आकाशीय घटनाओ ं का ,ान
िकया जाता हो, उसे ‘संिहता शा%&’ कहते ह3।
होरा – िजस %क<ध म0 मानव मा& का उसके ज<म स:बि<धत काल के आधार पर >ह# एवं न?&#
क8 ि%थित वशात् उसके जीवन स:बि<धत शभु ाशभु फल# का िववेचन िकया जाता है, उसे होरा
कहते ह3।
न$ – न ?रतीित न?&म।् आकाश%थ वह िपड जो चलता नहG न?& कहलाता है। दसू रे शcद#
म0 तार# के समहू को भी न?& कहा जाता है।
वेदांग – वेद के अगं को वेदागं कहा जाता है। भारतीय ,ान – िव,ान क8 पर:परा म0 षड् वेदागं कहे
गये है। इ<हG वेदांग# को शा%& भी कहा जाता है।

2.7 अयास  न के उ!र


अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला
1. क 2. ख 3. ख 4. ग 5. क 6. ख 7. क
अWयास 2Iन – 2 कP उ*रमाला
1. महाZमा लगध 2. ३६ 3. १६२ 4. वराहिमिहर
5. नारायण 6. िसTा<तदप)ण 7. नरपितजयचया)
8. आधिु नक
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
2.8 सदभ" #थ सूची
(क) भारतीय योितष – आचाय) Vीशक ं रबालकृ Lणदीि?त
(ख) भारतीय योितष – आचाय) नेिमच<द शा%&ी।
(ग) िसTा<त योितष मंजषू ा – (ोफे सर िवनय कुमार पाडेय।
(घ) योितष शा%& – डॉ0 कामेवर उपा/याय।
2.9 सहायक पाठ्यसाम#ी
योितष शा%& का इितहास – लोकमिण दहाल
भारतीय योितष – शक
ं रबालकृ Lणदीि?त / नेिमच<द शा%&ी
सल
ु भ योितष ,ान – पं. वासदु वे सदािशव खानखोजे
योितष शा%& – डॉ0 कामेवर उपा/याय।
2.10 िनबधा.मक  न
1. योितष शा%& क8 उZपि का िव%तृत िवलेषण क8िजये।
2. योितष शा%& के िवकास Xम का वण)न क8िजये।
3. योितष के उZपि के बारे म0 िविभ<न िवNान# का मत उप%थािपत क8िजये।
4. योितष के िवकास पर िनब<ध िलिखये।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
इकाई – 3 योितष शा क वेदाङ्गता एवं वेदाङ्ग योितष
इकाई कP संरचना
3.1 (%तावना
3.2 उ|ेय
3.3 योितष शा%& क8 वेदाङ्गता
3.4 वेदाङ्ग योितष
3.4.1 लगध (ोत वेदाङ्ग योितष म0 (ितपा मdु य िवषय
3.4.2 वेदाङ्ग योितष म0 िदनमान
3.4.3 वैिदक योितष और वेदाङ्ग योितष म0 अ<तर
3.4.4 वैिदक योितष और वेदाङ्ग योितष का काल
3.5 सारांश
3.6 पारभािषक शcद
3.7 अ}यास (न# के उर
3.8 सहायक पाठ्यसाम>ी
3.9 िनब<धाZमक (न

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3.1  तावना
(%ततु इकाई एमएजेवाई-501 के (थम खड क8 तृतीय इकाई से स:बि<धत है। इसके पवू )
क8 इकाई म0 आप योितष शा%& के उZपि एवं िवकास से परिचत हो चक ु े ह3। इस इकाई म0 आप
योितष शा%& क8 वेदाङ्गता और वेदाङ्ग योितष के बारे म0 अ/ययन करने जा रहे है।
योितषशा%& मल ू त: वेद का अगं है, अत: इसे ‘वेदाङ्ग’ भी कहा जाता है। इस शा%& क8
वेदाङ्गता %वयंिसT है। इस इकाई म0 आप तZस:बि<धत िवषय# का अ/ययन करके इसे जान ल0ग।े
‘वेदाङ्ग योितष’ महाZमा लगध क8 रचना है, जो िक सव)(थम योितष शा%& को पृथक Aप से
%थािपत करने का काय) करती है।
आइए इस इकाई म0 योितष शा%& क8 वेदाङ्गता और वेदाङ्ग योितष का िव%तृत
अ/ययन करते ह3।
3.2 उ)े%य
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप –
• योितष के मल
ू ोZपि स:बि<धत तZव# को जान जायेग0।
• योितष वेदाङ्ग है, इसका ,ान (ाQत कर ल0ग।े
• योितष शा%& के वेदांगता को िसT कर सक0 गे।
• वेदाङ्ग योितष को समझा सके ग0।
3.3 योितष शा क वेदाङ्गता
योितष शा%& क8 वेदाङ्गता को समझने के पवू ) सव)(थम अगं िकसे कहते है? आइए इसे
जानने का (यास करते है -
िकसी भी व%तु के %वAप को िजन अवयव# या उपकरण# के मा/यम से जाना जाता है, उसे
अगं कहते ह3। अगं शcद क8 FयZु पिल}य अथ) भी यही है – ‘अSं य<ते ,ाय<ते अमीिभरित
अङं ् गािन।'
य,, तप, दान आिद के Nारा ईवर क8 उपासना वेद का परम लfय है। उपय)ु त य,ािद कम)
काल पर आिVत ह3 और इस परम पिव& काय) के िलए काल का िवधायक शा%& योितषशा%& है।
अत: इसे वेदांग क8 सं,ा दी गई है। शcदशा%&, योितष, िनAत, कEप, िश?ा तथा छ<द इन छ:
शा%&# Nारा वेद का स:यग् ,ान स:भव होता है। अत: छ: शा%&# को ‘वेदागं ’ कहा गया है। यिप
इन शा%&# को वेदांग िसT करने क8 आवयकता नहG है, ये %वत: िसT वेद के अगं ह3।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
तथािप योितष शा%& क8 वेदांगता के (माण# का उTरण आपके अ/ययनाथ) इस इकाई म0
(%ततु है-
(ाचीनकाल से आज तक वेद# क8 िजतनी (कार क8 Fयाdयाएँ ह2ई है उनसे %पLट होता है
वेद को मdु य दो धाराओ ं म0 अब तक जाना गया है। (थम धारा वेद क8 य,परक Fयाdया करती है।
य, ही वेद का मdु य (ितपा है जैसा िक आचाय) लगध ने वेदांग योितष म0 िलखा है –
वेदा िह य1ाथमिभ2वृ*ा:
काला िह पूवा िविहताIच य1ा:।
त मािददं कालनिवधानशा ं
यो योितषं वेद से वेद य1ान् ।।
वेद# म0 य, के जो महZव बतलाए गए ह3 वे वेदिविहत समय म0 ही करने पर फलीभतू होते ह3 अ<यथा
वे िनLफल या िवपरीत फलदायक हो जाते ह3। Vिु त कहती है –
ते असुरा अय1ा अदि$णा अन$ ा।
यBच िकंचाकुवत तां कृ7यामेवाकुवत।।
अथा)त् उपयु त न?& एवं उपयु त काल के अभाव म0 िकया गया य,, कृ Zया को समिप)त हो जाता है
न िक देवताओ ं को। अत: य,ानA ु प काल का चयन य, से पूव) आवयक होता है। (ाय: काया)नAु प
काल का िनदŽश भी %थान- %थान पर िकया गया है। यथा –अS<याधान (सगं म0 कहा गया है –
वसते @ाAणोऽि[नमादधीत, -ी8मे राजय आदधीत इ7यािद।
इसी (कार दी?ा >हण करने हेतु काल का िनदŽश ह3 –
एका8टKयां दी$रेन।् फ%गुनी पूणमासे दी$रेन।् ।
इससे %पLट है िक य, से पवू ) के उपXम भी उिचत काल म0 ही स:प<न होने चािहए। आचाय) लगध
ने पग-पग ितिथ न?&, ऋतु एवं अयन आिद क8 आवयकता को देखते ह2ए काल का (ितपादन
िकया है। काल,ान को सवा)िधक महZव देते ह2ए आच) योितष म0 काल क8 व<दना क8 गई है।
2णKय िशरसा कालमिभवा0 सर वतीम।्
काल1ानं 2वVयािम लगध य महा7मन:।।
ऋSवेद से लेकर ]ा^ण आरयक तक योितष शा%& का िववेचन इस बात का परचायक है िक य,
के साथ-साथ योितष शा%& भी वेद का (ितपा िवषय है। अ<यथा सवं Zसर से लेकर ितिथ तक का
उEलेख वेद# म0 नहG होता। इ<हG आधार# पर योितष शा%& के (dयात आचाय) भा%कर ने योितष
शा%& के महZव को (ितपािदत करते ह2ए कहा है –

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
वेदा तावद् य1कम2वृ*ा य1ा: 2ो4ता ते तु काला(येण।
शा ाद मात् कालबोधो यत: याद् वेदांग7वं योितष योम मात् ।।
इतना ही नहG भा%कर ने वेद पA ु ष के सभी अगं # का उEलेख करते ह2ए योितष शा%& को वेद का
ने& बतलाया है। शcदशा%& वेद का मख ु है, योितष ने&, िनAत कण), कEप दोन# ह%त, िश?ा
नािसका, तथा छ<द वेद पA ु ष के दोन# पैर ह3। इन अगं # म0 ने&# को िवशेष महZव िदया गया है इसी
कारण योितष शा%& को शीष)%थ माना गया है। तNद् वेदागं शा%&ाणां योितषं मिू ˜न) ि%थतम।् वेद#
क8 य,परक Fयाdया के अनुसार योितष शा%& क8 वेदांगता उत तJय# के आधार पर %वयं िसT
है।
अब हम वेद# क8 Fयाdया क8 दसू री धारा को लेते ह3 िजसके अ<तग)त हमारी जीवन पTित
से जड़ु ी ह2ई ऐितहािसक एवं वै,ािनक Fयाdया क8 गई है। इस धारा के अ<तग)त सृिY (िXया से लेकर
मानव जीवन पTित तक का सfू म िववेचन िकया गया है। हम यहाँ के वल उ<हG अश ं # का उEलेख
करते ह3 िजसका सीधा स:ब<ध योितषशा%& से है। ]^ाड क8 उZपिpा का उEलेख करते ह2ए
सयू )िसTा<त का कथन है –
वासुदेव: परं @A तमूित: पQ ु ष: पर:।
अय4तो िनगुण: शात: पंचिवशात् परोऽयय:।।
2कृ7यतगतो देव: बिहरतIच सवग:।
संकषणोऽप: सृ8टयादौ तासु वीयमसासृजत।् ।
तदDडमभवद् हैमं सव तमसावृतम।्
त ािनQ,: 2थमं य4तीभूत: सनातन:।।
िहरयगभb भगवानेष छ<दिस पठयते। (सयू िसात, अिधकार -12, लोक-12-14)
इस (कार िहरयगभ) भगवान ने अहक ं ार मिू त) ]^ा के Nारा सृिY का आर:भ कराया। ]^ा के मन से
च<lमा और ने&# से तेज %वAप सयू ) क8 उZपि ह2ई। तदन<तर मन से आकाश, आकाश से वाय,ु
वायु से अिSन, अिSन से जल तथा जल से पृJवी क8 उZपि ह2ई है।
आचाय) भा%कर ने सांdयमत को (ितपािदत करते ह2ए कहा है िक –
य मात् $ु^ध 2कृितपुQषाWयां महान य गभ?
अहक ं ारोऽभूत खकिशिखजलोय तत: सहं तेIच।
@AाDडं यजठरगमहीपृ8ठिन8ठाद् िवरंचे
िवIवं शIवजयित परमं @A त*7वमा0म।् ।

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अथा)त् (कृ ित और पA ु ष के संघष) से महान् क8 उZपि ह2ई, महान से अहक ं ार तथा अहकं ार से
Xमश: आकाश, वाय,ु अिSन-जल एवं पृJवी क8 उZपि ह2ई। इन दोन# िसTा<त# का मल ू वेद ही है।
ऋक् संिहता का म<& ‘ऋतं च सZयं चाभTातपसोऽ/यजायत.. इZयािद। तैरीय ]ा^ण का म<&
‘आपो वा इदम>े सिललमासीत।् इZयािद तथा ‘‘नासदासी<नोसदासीदानीम् नासीlजो नो Fयोमा
परो यत’् ’ इZयािद म<& भी उसी सृिY (िXया को (ितपािदत करते ह3।
इसी (कार पज)<य िवा, सौरमडल, अ<तर?, भगू ोल आिद का िव%तृत वण)न तथा सयू )
च<lमा क8 गित से स:बि<धत ितिथ एवं न?&# का िववेचन %पLट Aप से योितषशा%& का ही
(ितपा है। वेद# म0 इनका महZवपणू ) %थान योितषशा%& क8 महा को Fयत करने के साथ-साथ
वेद के साथ अिभ<नता का भी परचायक है। वैिदक काल म0 ही सम%त आकाशीय िपड# क8
पार%परक िभ<नता ,ात थी। भिू म पर ि%थत (ाणी आकाश म0 (काशमान िपड# को एक समान ही
देखता है िक<तु वा%तिवकता यह नहG है। सम%त (काशमान िपड# म0 कुछ %वयं (कािशत ह3 तथा
कुछ सयू ) से (कािशत ह3। %वयं (काशमान िपड तारा एवं न?& वाचक ह3 तथा सयू ) के (काश से
(कािशत िपड >ह एवं उप>ह सं,क ह3। तार# म0 भी च<l पथ या सौर पथ म0 आने वाले, तारे न?&
सं,क है तथा उनसे िभ<न ि%थित म0 रहने वाले तारे तारा सं,क ह3। वेद# म0 तारक मडल या तारा को
ऋ? शcद से Fयवqत िकया गया है।
‘‘अमीय ऋ$ा िनिहता स उBचा’’
सदैव उर िदशा म0 म0 िदखाई देने वाले सात तार# के समहू को ऋ? मडल कहा गया है िजसे हम
सQतिष) मडल कहते ह3। ऋ? शcद का अथ) ‘भालू’ होता है। स:भवत: ऋ? शcद का भालू अथ)
लेकर ही पाचाZय# ने वृहद सQतिष) मडल को Great bear तथा लघु सQतिष) मडल को Small
bear नाम से स:बोिधत िकया है। वत)मान समय म0 भी योितषशा%& म0 ऋ? शcद न?&# के िलए
(यु त हो रहा है।
लघु सQतिष) मडल को परु ाण# म0 िशश ं मु ार कहा गया है। िशश
ं मु ार के पgु छ म0 ि%थत तारा ™वु स,ं क
है। िक<तु यह ि%थर नहG है। ™वु के स<दभ) म0 वै,ािनक भी ल:बे समय तक म म0 थे वे भी इसे ि%थर
समझते थे। िक<तु परु ाण# ने %पLट शcद# म0 कहा है –
योऽसौ चतुिदशं पुBछे िशंशुमारे यवि थत:।
उ*ानपादपु ोऽसौ मेढीभूतो eुवो िदिव।।
स िह fमन् fामयते च#ािद7यै: -है: सह।
fमतमुपगBछित न$ ािण च च;वत।् ।

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अथा)त् ™वु तारा िशंशमु ार चX सम%त >हमडल को मण कराता ह2आ %वयं भी मण करता
है। (dयात दैव, कमलाकरभk ने भी कठोर शcद# म0 कहा है –
™वु तारां ि%थरां ><थे म<य<ते ते कुबT
ु य:।
न?&# के स:ब<ध म0 भी वेद और योितष म0 अभेद स:ब<ध है। आज भी न?&# के वही नाम
(चिलत है जो वैिदक काल म0 थे। अ<तर इतना ही है िक वैिदक काल म0 न?&# क8 गणना कृ िका
से, वेदांगयोितष काल म0 धिनLठा से तथा आज अिyनी से गणना (ार:}ा होती है। दसू रा अ<तर यह
है िक वेद# म0 Xम से न?&# के नाम नहG िदए गए ह3। संकेता?र Nारा सभी न?&# का उEलेख है। यथा
– जौ lाघ: खेवेहीरोषािच<मषू य: इZयािद।
यहाँ जौ अथा)त् अवयुजौ (अिyनी), lा = आlा) इसी (कार न?&# का नाम ,ात हो पाता है। कहG-
कहG ितLय – भग- फEगनु ी नाम# से भी Fयत िकया गया है।
न के वल Xाि<तवृ का स:यग् ,ान उपलcध होता है अिपतु नाड़ीवृीय काल,ान भी पणू A ) पेण
Fयवहार म0 था। यिप काल का िववेचन सभी वेद# म0 है। िक<तु अथव)वदे म0 काल के सfू मतम अश ं
का उEलेख है। अथव) योितष से ,ात होता है िक उस समय वष) मान 366 िदन# का माना गया था,
तथा मास# के नाम दो (कार से (चिलत थे। कहG –कहG पर ‘‘मधु च माधवचैव शX ु च शिु च रे व
च’’ इZयािद Xमानसु ार चै&ािद मास# के नाम कहे गए ह3 जो अपे?ाकृ त अिधक Fयवहार म0 थे। दसू री
िविध का उEलेख तैरीय ]ा^ण म0 इस (कार है –
1. अAण (चै&)
2. अAणज (वैशाख)
3. पु डरीक (येLठ)
4. िवविजत् (आषाढ़)
5. अिभिजत् (Vावण)
6. आl) (भाlपद)
7. िप<वमान (आिyन)
8. अ<तवान (काित)क)
9. रसवान (माग)शीष))
10. इरावान (पौष)
11. सवšषध (माघ)
12. स:भर (फाEगनु )

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इतना ही नहG काल के सfू म िनAपण (संग म0 एक सेकेड से भी छोटी इकाईय# क8 भी कEपना
वैिदक सािहZय म0 उपलcध है जो वैिदक काल के गहन अनसु <धान क8 ओर इिं गत करती है।
आधिु नक कालमान घटा, िमनट तथा सेकेड के साथ तल ु नाZमक मान िन:निलिखत सारणी से
%पLट है। अथव)वदे म0 सबसे छोटी कालमान क8 इकाई िनमेष है िजसे सेकेड म0 परवत)न करने से
०.००८ सेकेड के तEु य होता है। शेष इस (कार है –
वैिदक कालमान वतमान कालमान
१२ िनमेष = १लव = ०.१०६
३० लव = १ कला = ३.२ सेकेड
३० कला = १ &िु ट = १.६ िमनट
३० &िु ट =१ महु o) = ४८ िमनट
३० महु o) = १ अहोरा& = २४ घटा
इस (कार क8 सfू म कालगणना का इितहास िकसी भी (ाचीन स%ं कृ ित के इितहास म0
aिYगत नहG ह2आ है। जब हम गिणतीय aिY से िवचार करते ह3, तो आज क8 िववादा%पद ि%थित भी
सलु झ जाती है। आधिु नक इितहासकार# का अनमु ान है िक रे खागिणत का उvव भारत म0 नहG ह2आ
है। यह िसTा<त िमV से भारत आया है िक<तु यह धारणा िनता<त ामक है। आप%त:ब और
बौधायन शEु बस&ू इसके सा?ी है। शEु ब का अथ) रजु होता है। रजु रे खा क8 (तीक है। र%सी से ही
मापकर वेदी और य, कुड# हेतु ?े& िव<यास िकया जाता था। य,वेदी और कुड# के आकार,
चतभु ज)ु , वृ एवं ि&कोण आिद िविभ<न %वAप# म0 होते ह3। इनक8 िनमा)ण िविध का िव%तृत िववेचन
%पLट Aप से रे खागिणत के िसTा<त# का ही (ितपादन करते ह3। आप%त:ब शEु ब स&ू के (थम पटल
के 3 अ/याय# म0 शT ु Aप से रे खागिणत का ही (ितपादन है। इनम0 वृ और उनके परिध-Fयास
आिद अवयव# एवं उनके पर%पर स:ब<ध# का भी उEलेख है। अत: रे खागिणत का भी मल ू वेद म0
होने से इसक8 भारतीयता िसT हो जाती है।
अयास  न -1
=र4त थानL कP पूित कPिजये –
1. िकसी भी व%तु के %वAप को िजन अवयव# या उपकरण# के मा/यम से जाना जाता है, उसे
............... कहते ह3।
2. य,, तप, दान आिद के Nारा ईवर क8 उपासना ................... का परम लfय है।
3. शcदशा%& वेद का .............. है।

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4. ३० &िु ट ................. के बराबर होता है।
5. १ अहोरा& म0 ............ घटे होते ह3।

रे खागिणत के अZय<त समीपवत[ छाया गिणत है, िजसके अ<तग)त छाया से समय ,ान क8
(िXया (ितपािदत है। व%ततु : यह िसTा<त वेध (िXया का (थम चरण है जो वैिदक काल म0 ही
आर:भ हो गया था। िदन म0 15 महु o` क8 कEपना उस समय भी (चिलत थी िक<तु उस समय के
महु o` के नाम िभ<न थे। उन महु o` का ,ान छाया वेध Nारा होता था। 12 अगं ल
ु शक ं ु क8 छाया Nारा
महु o` का िनधा)रण होता था। मल ू त: महु oत` क8 संdया 8 है। आठवां अिभिजत् महु o) ि%थर होता है
शेष रौl आिद सात महु oत) सूयbदय से Xमानसु ार आर:}ा होकर अिभिजत पय)<त जाते ह3। पनु :
अिभिजत के पचात् उZXम से सयू ा)%त के समय रौl तक जाते ह3। छाया के “ास एवं वृिT के
अनसु ार महु o` का िनधा)रण होता है। जो िन:निलिखत सारणी से %पLट है –
छायामान मुहaत संgया
∞ - ९६ अगं लु तक रौl १
९६- ६० .. वेत २
६०-१२ .. मै& ३
१२-६ .. सारभट ४
६-५ .. सािव& ५
५-४ .. वैराज ६
४-३ .. िववावसु ७
ि%थर ३-३ .. अिभिजत् ८
३-४ .. िववावसु ९
४-५ .. वैराज १०
५-६ .. सािव& ११
६-१२ .. सारभट १२
१२-६० .. मै& १३
६०-९६ .. वेत १४
९६ -∞ .. रौl १५

इसी (कार राि& म0 भी प<lह महु oत) होते है िक<तु उनका साधन किठनाई से होगा। इनके अितरत
‘पज)<य िवा’ िजसका िववेचन योितष शा%& के संिहता %क<ध म0 िकया गया है, का िविभ<न

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(कार का उEलेख है। इ<l और वृ क8 कथा पणू A ) प से पज)<य िवा का ही (ितपादन करती है। Vी
लोकमा<य बालगगं ाधर ितलक ने इ<l को सयू ) तथा वृ को िहम का (तीक माना है। इ<l और वृ
के यT ु को ितलक ने ™वु (देशीय िवQलव बतलाया है। या%क ने भी वृ को मेघ मानकर ही Fयाdया
क8 है। वैिदक देवताओ ं म0 सयू ) का महZवपणू ) %थान है। सयू ) ही योितष शा%& के िनयामक देवता है।
सयू ) क8 सषु :ु ना रिम का सोम से (गाढ़ स:ब<ध बतलाया है। सोमलता च<lमा क8 कला के अनसु ार
बढ़ती है तथा कला के अनसु ार घटती है। इसका यह भी अिभ(ाय है िक सयू ) क8 सषु :ु ना नामक
रिम च<lमा को तथा सोमलता दोन# को ही िवकिसत करती है। सयू ) क8 (मख ु सात रिमयाँ िभ<न–
िभ<न गणु # से यु त है। एक-एक रिम एक-एक >ह को (भािवत करती है। यथा-
सयू ) क8 सषु :ु ना नामक रिम च<lमा को
हरके श .. .. न?&# को
िववकमा) .. .. बधु को
िववFयचा .. .. शX ु को
संयदवसु .. .. भौम को
अवा)वसु .. .. गA ु को
%वराट् .. .. शिन को (भािवत करती ह3।

इ<हG सात रिमय# के कारण सयू ) को ‘सQत रिम’ कहा जाता है। इ<हG रिमय# का िवलेषण कर
आधिु नक वै,ािनक# ने इनके रंग# के आधार पर BIVGYOR (Blue, Indigo, Voilet, Green,
Yellow, Orange and Red) नाम से िवभत िकया है। यह %थल ू िववेचन है। सfू म िववेचन म0
सयू ) क8 सं,ा सह रिम हो जाती है। सयू ) क8 (Zयेक रिमय# म0 उत सात रिमयाँ होती है तथा
(Zयेक रिमय# सह उप रिमयाँ होती है। (Zयेक रिम के गणु एवं काय) िभ<न –िभ<न होते है।
इन सभी आधार# को देखते ह2ए तथा योितष शा%& के ऐितहािसक तJय# को /यान म0
रखते ह2ए इसे वेद से िभ<न मानने के िलए %थान ही नहG रहता। अत: योितष शा%& क8 सवा›गीण
वेदांगता %वत: िसT हो जाती है। इसके िलए %वयं वेद ही (माण है। (माणा<तर क8 आवयकता ही
नहG है। आचाय) भा%कर क8 उिO ‘‘वेदागं Zवं योितष%योतम%मात’् ’ सव)था िसT है।

3.4 वेदांग योितष –


वेदांग योितष कहने से योितष के उस भाग का बोध होता है, जो वैिदक योितष और
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मानव योितष से िभ<न है। वेदांग कहते ही वेद के छ: अगं # का नाम सामने आ जाता है। ये
ह3 – Fयाकरण, योितष, िनAत, कEप, िश?ा और छ<द। इ<ह0 षडंग भी कहा जाता है। अगं ी वेद है
और अगं वेदांग है।
आचाय) बलदेव उपा/याय ने अपने वैिदक सािहZय एवं सं%कृ ित ><थ म0 िलखा है िक – वेद
एक %वयं दA ु ह िवषय ठहरा, भाषा तथा भाव दोन# क8 aिY से। अतएव वेद का अथ) जानने म0, उसके
कम)काड के (ितपादान म0 तथा इस (कार क8 सहायता देने म0 जो उपयोगी शा%& ह3 उ<ह0 वेदांग के
नाम से पक ु ारते ह3।
षड् वेदांग# म0 से चार वेदांग भाषा से स:बि<धत ह3 – Fयाकरण, िनAत, िश?ा, छ<द। इन
चार वेदांग# से वेद का यथाथ) बोध होता है। कEप के चार िवभाग ह3। Vौत, गृ‚, धम) और शEु ब।
इनम0 से के वल शEु ब ही वै,ािनक शाखा का (ितिनधZव करता है। षƒ अगं है योितष। यह वेदागं
पणू त) : वै,ािनक, कालिवधान कारक तथा वैिदक धारा<तग)त भारतीय मनीषा क8 सवbgच उपलिcध
है।
वेद िकसी एक िवषय पर के ि<lत रचना नहG है। िविवध िवषय और अनेक अथ) को ोितत
करने वाली म<& रािश वेद# म0 समािहत है। के वल योितष, Fयाकरण, छ<द, धम), दश)न या िकसी
अ<य िवषय का ><थ नहG है वेद। अत: वेद# म0 िकसी भी िवषय का तारत:य बT अ/ययन नहG है।
इसीिलए वेद# को उZस, मल ू या आिद तो कह सकते ह3, पर िवषय नहG। भारतीय ,ान पर:परा क8
पिु Y वेद म0 िनिहत है। कोई भी िवषय मा<य और भारतीय aिY से संविलत तभी मान जायेगा जब
उसक8 जड़े वेदचतLु टय म0 कहG न कहG समािहत ह#। अत: योितष भी वेद# म0 बीजAप म0 िदखलाई
पड़ता है। इसी बीज िवषय को ‘वैिदक योितष’ कहते है।
वेदांग योितष क8 रचना महाZमा लगध ने क8 थी। उ<ह#ने ही इसक8 रचना करके
सव)(थम योितषशा%& को %वत<& Aप से %थािपत िकया था। भारतवष) के गौरवा%पद िवषय# म0
वेद-वेदागं वाœय का (मख ु %थान है। वेदागं योितषिवा म0 और कलगणनापTित म0 अतीव
महZवपूण) %थान रखने वाले आचाय) लगध को और उन के पंचसंवZसरमयम् इZयािद
वेदांगयोितष><थ को बह2त कम लोग जानते ह3। िक<तु वैिदकधम)कृZय# के काल# के िनAपण म0 यह
><थ अZय<त (ामािणक और अनEु लंघनीय माना गया है। अयनचलन के िवचार के िलए अZय<त
उपयोगी करीब ३४०० वष) (ाचीन आलेख, जो भमू डल के अ<य देश# के योितषवांगमय म0 सव)था
अनपु लcध है, इस ><थ म0 उपलcध होने से कालगणनापTित के िवषय म0 इस ><थ का लौिकक
महZव भी िवल?ण और अिNतीय है।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3.4.1 लगधो,त वेदांगयोितष म- ितपा. मु/य िवषय –
लगध(ोत वेदांगयोितष ><थ म0 पाँच वष` का यगु , माघशु लािद वष), अयन, ऋत,ु मास,
प?, ितिथ, पव), िवषवु ििथ, न?&, अिधमास ये िवषय (ितपािदत ह3। Vौत%मात)धम)कृZय# म0 इन क8
ही अपे?ा होने से इस वेदांग योितष ><थ म0 इन िवषय# का मdु यतया (ितपादन िकया गया ह3।
वैिदक योितष का जो %वAप हम0 संिहता ><थ# म0 उपलcध है, उसम0 न?&#, ितिथय#,
चा<lमास#, दोन# िवषवु त् और दोन# अयन# का का वण)न उपलcध है और न?& गणना कृ िका
न?& से क8 गई है जो उस समय वस<त स:पात का न?& था। उपरोत िवषय# का गिणतीय %वAप
हम0 वेदांग योितष म0 उपलcध होता है जो गणना के Nारा ितिथय#, न?&# के मान को (%तुत करता
है। वेदांग योितष क8 गणना के अनसु ार ५ वष` का एक युग माना गया है जो चा<lयगु चX कहा जा
सकता है। एक सौर वष) ३६६ िदन# का माना गया है, इसिलए ५ सौर वष` म0 ३६६ × ५ = १८३०
सावन िदन होते ह3। एक युग म0 ६२ चा<lमास और ६० सौर मास होते ह3 इस (कार ५ वष) म0 २
अिधमास होते ह3। इन २ अिधमास# म0 ३० ितिथयाँ होती है। यगु म0 ६७ ना?&मास होते ह3। इसम0
च<lमा ६७ × २७ = १८०९ न?&# को पार करता है। यगु का आर:भ उरायण अथवा
दि?णायना<त से होता है, जब च<lमा और सयू ) दोन# धिनLठा न?& पर होते है और माघमास का
आर:भ होता है। जैसे –
वरा;मेते सोमाकh यदा साकं सवासवौ।
यात् तदािदयुगं माघ तप: शु4लोऽयनंjदु क्।।
अथा)त् जब च<lमा और सयू ) एक साथ धिनLठा न?& पर आकाश म0 होते ह3 तभी युग का आिद माघ
और उरायण का आर:भ होता ह3, जो शु लप? का आिद और तपमास होता है।
वेदांग योितष म0 %पLट है िक ितिथ न?&# के मान के वल च<lमा, सयू ) के म/यम गितय# क8 गणना
के आधार पर बनाये गये गिणतीय िनयम# के अनसु ार ह3। इससे %पLट है िक न?&# और ितिथय# के
अश ं ाZमक िवभाग उस समय तक नहG िकए गये थे। य#िक ५ वष) के सावन िदन# क8 संdया और
ितिथय# क8 सdं या का अ<तर करके उसम0 प? संdया से भाग देकर पाि?क ितिथयाँ (ाQत क8 गई ह3,
और इसी (कार च<lमा के न?& भोग िदन# म0 न?& संdया से भाग देकर न?&# का मान उपलcध
िकया ह2आ (तीत होता है। इससे िसT है िक न?&# के कोणीय मान का कोई िनदŽश नहG है। इस ><थ
म0 बारह रािशय#, सQताह# के िदन और >ह# के गितय# का कोई उEलेख नहG है। नीचे िदए गए
तािलका म0 सौर वष` के वा%तिवक िदन से वेदांग म0 पिठत चा<lमास# और ना?&मास# के मान# से
तलु ना करते ह3:-
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
५ सौर वष) = ३६.५२५६३६२ × ५ = १८२६.२८१८१० िदन
६२ चा<l मास = २९.५३०५९ × ६२ = १८३०.८९६५ िदन
६७ ना?&मास = २७.३२१६६ × ६७ = १८३०.५५१२ िदन
महामहोपा/याय Vी सधु ारकर िNवेदी जी ने वेदांग योितष के अनसु ार िन:नांिकत तािलका दी ह3 –
१ यगु म0 रिववष) = ५ = रिवभगण
सौर मास = ६० सौर िदन = १८००
चा<lमास = ६२ चा<l िदन = १८६०
?य िदन = ३०
सावनिदन = १८३०
न?&ोदय = १८३५
च<lभगण = ६७
च<lसावन िदन = १७६८
एक सौर वष) म0 सावन िदन = ३६६
एक सौर वष) म0 चा<l िदन = ३७२
एक सौर वष) म0 न?&ोदय = ३६७
एक से िNतीय अयन पय)<त सौर िदन = १८०
उपय)ु त चा<l और पंचांगीय Fयव%था के िलए माने ह2ए पंचवष[य यगु म0 ६२ चा<lमास#
और वा%तिवक पाँच वष) के सौर िदवस# म0 ४.६०९७ का अ<तर है। इसका ताZपय) यह ह2आ िक
उरायणार:भ के िदन जब च<lमा सयू ) एकि&त ह# वहाँ से आर:भ कर गणना करने पर पाँच वष) के
अ<त म0 उरायणार:भ का िदन ४.६०९७ के पीछे ही होगा और ६ यगु # के अ<तर पर यह अ<तर
लगभग एक चा<lमास तEु य अथा)त् ४.६०९७ × ६ = २७.६५८२ हो जायेगा। इसिलए ६ व0 यगु के
अ<त म0 एक अिधमास हो जायेगा, जो पच ं ागं ीय योजना के िलए Fयथ) होगा। भारतीय योितष के
यश%वी लेखक पं0 शक ं र बालकृ Lण दीि?त के मतानुसार ९५ वष` म0 ९५.२/५ = ३८ अिधमास
(ाQत ह#गे। इसिलए वेदांग योितष के अनसु ार ९५ वष` म0 अपेि?त मास# के अितरत ३अिधमास
और जड़ु ते ह3, िजनको हटा देने पर ही पचं ागं ीय Fयव%था शTु हो सकती है। अत: ३२ वष) के काल म0
६ यगु म0 यिद हम १२ अिधमास कEपना कर0 तो कुल ३६ अिधमास हो जायेगा, इसिलए अि<तम९५
व0 वष) म0 एक अिधमास और कम कर देने से ३५ अिधमास ह#गे इस Fयव%था म0 िजन अिधमास# को
>हण करते थे उ<ह0 ससं प) और िजन अिधमास# का Zयाग करते थे उ<ह0 अहं %पZय (?यमास) कहते

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
थे। दीि?त जी का यह भी मत है िक अिधमास तभी जोड़े जाते थे जब उनक8 आवयकता होती थी।
अत: यह कEपना उिचत ही जान पड़ती है।

3.4.2 वेदांग योितष म- िदनमान –


वेदांग योितष म0 उरायणार:भ के िदनमान से दि?णायनार:भ के िदन तक क8 गणना
करके सबसे बड़े िदन (दि?णायनार:भ के िदन) म0 सबसे छोटे िदन (उरायणार:भ के िदन) को
घटाकर उसम0 वष) के आधे िदन क8 संdया म0 १८३ से भाग देकर लिcधतुEय दैिनक वृिT से
म/यवत[ िदन# का कालमान लाया गया है। िक<तु िदनमान# का अनपु ात २/३ का है, अथा)त् सबसे
छोटे िदन का डेढ़ा सबसे बड़ा िदन है, उससे जो चर घटी आती है वह ३५ अश ं अ?ांश क8 होती है।
खािEदया का अ?ाश ं भी यही है। इसिलए कुछ यरू ोिपयन यह मानते ह3 िक वेदागं योितष के समय
आय` का िनवास उर –पंजाब सीमा (ा<त और कमीर तथा अफगािन%तान म0 था। यहाँ का अ?ांश
३२ अंश है और िकरणवX8 भवनसं%कार से भी ९ िमनट िदनमान बढ़ सकता है, तथा जल घड़ी के
Nारा कालमापन िविध के Fयवहार से भी कुछ अ<तर स:भव है। इस (कार वेदागं योितष का िवषय
शT ु भारतीय है उसके िलए दसू रा (माण न?&# म0 लSन क8 गणना है वेदांग योितष म0 कहा गया है
िक –
VिवLठा}यो गणा}य%तान् (ािSवलSनान् िविनिद)शतŽ ् (आच) योितष १९)
अथा)त् धिनLठा से गणना कर पवू ) ि?ितज म0 लगे ह2ए न?&# के लSन# का फल उसम0 नहG िदया गया
है, िक<तु आगे चलकर अथव) योितष म0 हम न?&# का फल देखते ह3 और ज<म, स:पि, िवपि,
?ेम, (Zयर, साधक,वध, मै& और अितमै& ये नौ सं,ाय0 ज<म न?& से आर:भ कर बतलाई गयी ह3
तथा उनके फल भी नाम के तEु य ही कहे गए ह3। इस (कार हम देखते ह3 िक वेदांग योितष काल म0
गिणत एवं फिलत योितष क8 सgची नGव पड़ चक ु 8 थी।
बाह)%पZय संवZसर का, ?यमास का, मेष वृष इZयािद रािशय# का, सौर संXाि<तय# का, आिदZयवार
सोमवार इZयािद वार# का, सयू -) च<l >हण# का, मगं ल-बधु ािद >ह# का, वृह%पित के और शX ु के
उदय और अ%त का भी वेद म<&# म0 ]ा^ण><थ# म0 Vौतस&ू # म0 गृ‚स&ू # म0 और धम)स&ू # म0 भी
अपे?ा न होने से लगध(ोत वेदांगयोितष><थ म0 भी इन िवषय# का (ितपादन नहG िकया गया है।
वैिदक पर:परा म0 सवं Zसर का अZयिधक महZव है। शतपथ]ा^ण म0 अनेक %थल# म0
संवZसर को (जापित बताया गया है। शतपथ]ा^ण म0 संवZसर को (जापित क8 (ितमा भी कहा
गया है। वैिदक, चयनयाग संवZसर के ही अनक ु रण म0 आधृत िदखाई देता है। अहोरा&,प?, मास,ऋतु
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
सभी संवZसर म0 ही आधृत माने गये ह3। वेद क8 इसी मा<यता को /यान म0 रखकर ही योितषी
गगा)चाय) ने भी सवं Zसर का %वAप िनित होने पर ही अयन, ऋत,ु मास, प?, न?&, ितिथ और िदन
िनित हो सकने क8 और अयनािद काल# म0 िविहत धम)कृZय भी ठीक- ठीक समय म0 हो सकने क8
क8 बात बताई है। उन का वचन है –
अयनायृतवो मासा: प$ास7वृ$ं ितिथर िदनम।्
त7वतो नाऽिधगKयते यदाऽ^दो नाऽिधगKयते।।
यदा तु त7वतोऽ^द य ि;यतेऽिधगमो बुधै:।
तदैवैषाममोह: यात् ि;याणां चाऽिप सवश:।।

इस ि%थित म0 वैिदक मल ू पर:परा के संवZसर के वा%तिवक %वAप का िववेचनाZमक ,ान (ाQत


करना अZय<त आवयक है।
महाZमा लगध Nारा रिचत वेदागं योितष क8 चचा) अवा)चीन काल म0 पाचाZय स%ं कृ तिवद्
कोल]क ू , मैसमल
ू र,याकोिब, वेबर, िथबो इZयािद लोग# ने भी क8 है। भारतीय लोग# म0 शक ं र
बालकृ Lणदीि?त, लाला छोटेलाल (बाह)%पZय), सधु ाकर िNवेदी, बालगगं ाधर ितलक, योगेश च<l
राय, शामशा%&ी, गोरख(साद, सZय(काश इZयािद लोग# ने भी इस ><थ क8 चचा) क8 है। इस ><थ
का वत)मान काल म0 भी वैिदक धम) के अS<याधान- दश)पणू म) ासािद य,# म0 और नामकरण – उपनयन
िववाहािद सं%कार# म0 अपेि?त काल,ान के उपयोगी साधन के Aप म0 (योग हो सकने के िवषय म0
उन लोग# ने स:यक् िवचार नहG िकया है।

3.4.3 वैिदक योितष और वेदांग योितष म- अतर –


(ायश: िवNान वेदागं योितष को ही वैिदक योितष भी समझ लेने क8 भलू करते ह3।
ऋिषय# के अ<त:करण म0 aLट म<& योितष के तZव को धारण िकये ह2ए ह3 तो उसे वैिदक योितष
कहा जाता है, जबिक वेदांग योितष िवषय# को तारत:य बT तरीके से (%ततु करता है। वेदांग
योितष का कता) ऋिष बीज तो वेद से लेता है पर उसका पEलवन अपनी बिु T और (योग के
अनभु व के आधार पर करता है। यही कारण है िक वेदांग योितष म0 बह2त कुछ तारत:यबT िलखा
िमलता है। ऋचाय0 ऋिष qदय म0 अवतरत होती ह3। अत: वेद अपौAषेय ह3। वेदांग ऋिष बिु T से
(ायोिगक या अनभु व के %तर पर रिचत होने के कारण अपौAषेय ह3। आधिु नक Aपक# से %पLट
करना हो तो इसे (ाितभ%फुरण कह सकते ह3।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3.4.4 वैिदक योितष और वेदांग योितष का काल –
अब तक िजतने %वनामध<य मनीिषय# ने वेद# के काल का अनमु ान लगाया है वह सारा का
सारा अनमु ान खिडत होता नजर आ रहा है। उप>ह# के Nारा कृ Lण क8 Nारकापरु ी समlु म0 ढूँढ ली
गयी है। सेतबु <ध रामेवरम का अि%तZव िव,ान क8 नजर# म0 समा चक ु ा है। अत: ५१०० वष) का
काल तो महाभारत को ही समिप)त हो जायेगा। कोई ऐसा कारण भी नहG है हम वेद काल या वेदांग
काल को ईसा पवू ) १४०० वष) का मान0। अत: कालिवभाजन क8 वे सारी मेड़0 %वयं /व%त होती चली
जा रही ह3 िजनसे सारी सृिY को ईसा पवू ) चार हजार वष) के अदं र धके लने का (यास िकया गया था।
यरू ोिपयन एके डमी का चमा अपनी (ासंिगकता खो चक ु ा है और %वयं वहG के वै,ािनक# ने
बाइिबल क8 उस मा<यता को िनर%त कर िदया है िजसम0 सृिY को मा& छ: हजार वष) (ाचीन कहा
गया है। यानी ईसा पवू ) का चार हजार वष) का समय और ईसा पचात् का दो हजार वष) का समय।
(%ततु शीष)क म0 वेदांग या वेद का कालिनधा)रण करना शय नहG है। /येय के वल इतना है िक
अ>ं ेज# Nारा िनधा)रत काल गणना का परु ातािZवक (माणभतू मानदड ईसा पवू ) ३२० वष) अ<य
(माण# के उपलcध हो जाने के कारण /व%त हो चक ु ा है। अब कालगणना का मानदड महाभारत है।
महाभारत को िमथक या काEपिनक ><थ कह कर पEला झाड़ने वाले Xूर भाषावै,ािनक ही हो
सकते ह3। महाभारत म0 िवमान योितष और वेदांग योितष का भी अ<तर %पLट है।
Vिु त पर:परा अZय<त (ाचीन है। उसके ज<म का अनमु ान िलिप पर:परा के मा/यम से नहG
िकया जा सकता। अत: सव)(थम काल गणना का मानदड महाभारत पवू ) महाभारत पचात् िनित
करना होगा। यिद काल गणना का मानदड ए.डी. या बी.सी. होगा तो उससे बेहतर है िक हम सं%कृ त
और वैिदक वांगमय का इितहास िनधा)रत ही न कर0 । हम0 किलयगु ाcद को ऐितहािसक मानना ही
होगा। इस िदशा म0 हमारे पास तZकालीन राजाओ ं को सौ –सौ वष[य पर:पराय0 भी (ाQत ह3।
अवZथामा को Vीकृ Lण (द शाप िक महाभारत समािn के पचात् तीन हजार वष` तक तमु पृJवी
पर िवकल घमू ते रहोगे यह िसT करता है िक ईसामसीह से पवू ) का तीन हजार वष) का समय भारतीय
मनीिषय# क8 aिY से िफसल नहG सकता। हमारे पच ं ागं # म0 जो सृLट्यािद काल गणना है वह १ अरब,
९५ करोड़, ५८ लाख ८५ हजार, एक सौ वष) से आगे बढ़ रही है। इसी का अिं तम चार अक ं
कEयcद है जो ५१०७ या िनर<तर एकोर वष) अिधक है। इसी परू ी गणना से आज भी >हगिणत
होता है।
कुछ ऐसे भी ऋिष ह3, िज<ह#ने म<&# के दश)न िकये ह3 और अलग से अपनी योितष संिहताय0 भी
िलखी ह3। ऐसे ऋिषय# म0 भारNाज, अग%Zय, विसLठ आिद (मख ु ह3। इन ऋिषय# ने वेद क8 ऋचाओ ं
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या म&ं # को पृथक् रखा और %वकृ त रचना को संिहता (योितष) कहा। एक ही ऋिष का िवषयगत
यह पाथ)य अपवू ) है। योितष सिं हताओ ं क8 भाषा शैली वेद म&ं # से सव)था पृथक् है। ऋचाओ ं म0
aLट तZव य# और कै से क8 Fयाdया नहG करता, जबिक संिहता ><थ# म0 विण)त िवषय गिणत और
स&ू ाZमक (िXया से आबT ह3। इस िवषय को और अिधक %पLटता से समझने के िलए कहा जा
सकता है िक ]^ाड म0 िवमान अरब# (काशवष) दरू ि%थत िकसी िपड को टेिल%कोप से देखा तो
जा सकता है, पर गिणतीय (िXया म0 उसे ढ़ालने के िलए गिणतीय स&ू ाZमक Fयव%था देनी होती है।
यह गिणतीय (िXया म<& आिवभा)व से मनLु य रिचत िवषय का अ<तर (कट करती है।
गिणतयोितष का ,ाता %नातक अgछी तरह से जानता है िक य<& aLट और गिणतिसT म0
यथाकाल अ<तर आने लगता है।
अ$यास %न – 2
बहkवैकि%पक 2Iन –
1. षड् वेदांग# म0 एक नहG है -
क. िश?ा ख. योितष ग. Fयाकरण घ. उपिनषद
2. ]^ा के मन से िकसक8 उZपि ह2ई है –
क. सयू ) ख. च<lमा ग. >ह# क8 घ. वायु
3. सयू )िसTा<तानसु ार पृJवी क8 उZपि िकससे ह2ई है –
क. जल ख. अिSन ग. वायु घ. आकाश
4. ‘ऋ?’ शcद का अथ) है –
क. वानर ख.भालू ग. न?& घ. >ह
5. िवविजत् िकस मास का पया)य है –
क. चै& ख. वैशाख ग. येLठ घ. आषाढ़
6. ३० लव = ?
क. १ िवकला ख. १ कला ग. १ िनमेष घ. कोई नहG

3.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक िकसी भी व%तु के %वAप को िजन
अवयव# या उपकरण# के मा/यम से जाना जाता है। उसे अंग कहते ह3। अगं शcद क8 FयZु पिल}य
अथ) भी यही है – अSं य<ते ,ाय<ते अमीिभरित अङं ् गािन। य,, तप, दान आिद के Nारा ईवर क8
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उपासना वेद का परम लfय है। उपय)ु त य,ािद कम) काल पर आिVत ह3 और इस परम पिव& काय)
के िलए काल का िवधायक शा%& योितषशा%& है। अत: इसे वेदागं क8 स,ं ा दी गई है। शcदशा%&,
योितष, िनAत, कEप, िश?ा तथा छ<द इन छ: शा%&# Nारा वेद का स:यग् ,ान स:भव होता है।
अत: छ: शा%&# को वेदांग कहा गया है। यिप इन शा%&# को वेदांग िसT करने क8 आवयकता
नहG है, ये %वत: िसT वेद के अगं ह3। तथािप योितष शा%& क8 वेदागं ता के (माण# का उTरण इस
इकाई म0 िनिहत है। (ाचीनकाल से आज तक वेद# क8 िजतनी (कार क8 Fयाdयाएँ ह2ई है उनसे %पLट
होता है वेद को मdु य दो धाराओ ं म0 अब तक जाना गया है। (थम धारा वेद क8 य,परक Fयाdया
करती है और दसू री कम)परक।
3.6 पारभािषक शदावली
वैिदक योितष – ऋक, साम, यजु एवं अथव) योितष से स:बि<धत योितष को वैिदक योितष
कहा जाता है।
वेदाङ्ग योितष – वेदाङ्ग योितष महाZमा लगध क8 कृ ित है।
अंग - िकसी भी व%तु के %वAप को िजन अवयव# या उपकरण# के मा/यम से जाना जाता है। उसे
अगं कहते ह3। अगं शcद क8 FयZु पिल}य अथ) भी यही है – अSं य<ते ,ाय<ते अमीिभरित
अङं ् गािन।
पंचांग – ितिथ, वार, न?&, योग एवं करण। इन पाँच अगं # से जो िमलकर बनता है, उसे पंचागं
कहते है।
िदनमान – िदन स:बि<ध मान को िदनमान कहते है। स:पणू ) िदनमान (िदन और राि& िमलाकर) ६०
घटी का होता है।
3.7 अयास  न के उ!र

अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला


1. अगं 2. वेद 3. मख
ु 4. महु o) 5. 24

अWयास 2Iन – 2 कP उ*रमाला


1. घ 2. ख 3. क 4. ख 5. घ 6. ख

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3.8 सदभ" #थ सूची
(क) िसTा<तिशरोमिण – मल ू लेखक- भा%कराचाय), िटकाकार- आचाय) सZयदेव शमा), (काशक –
चौख:भा (काशन, वाराणसी।
(ख) वेदांग योितष – मल ू लेखक – महाZमा लगध, िटकाकार- आचाय) कौिडयायन, (काशक
%थान – चौख:भा वाराणसी।
(ग) सयू )िसTा<त – िटका – (ोफे सर रामच<l पाडेय, आचाय) कपीलेवर शा%&ी, (काशक –
चौख:भा (काशन, वाराणसी।
(घ) तैितरीय ]ा^ण
(ड.) भारतीय योितष – आचाय) शक ं रबालकृ Lण दीि?त।
3.9 सहायक पाठ्यसाम#ी
1. (ाgयिवानुशीलनम् - लेखक - (ोफे सर रामच<l पाडेय, (काशक – नैसिग)क8 शोध सं%थान
वाराणसी।
2. भारतीय योितष – शकं रबालकृ Lणदीि?त / नेिमच<द शा%&ी
3. वेदांग योितष – आचाय) कौिड<यायन
4. योितष शा%& – लेखक – डॉ0 कामेवर उपा/याय।
5. सलु भ योितष ,ान – प.ं वासदु वे सदािशव खानखोजे।
3.10 िनबधा.मक  न
1. योितष क8 वेदांगता पर (काश डािलये।
2. वेदांग योितष से या ताZपय) है? %पLट क8िजये।
3. वैिदक योितष एवं वेदांग योितष म0 अ<तर %पLट क8िजये।
4. वेदांग योितष पर िनब<ध िलिखये।
5. लगध(ोत वेदांग योितष म0 (ितपा मdु य िवषय# का उEलेख क8िजये।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
इकाई – 4 योितष शा के व'2क एवं आचाय2
इकाई क8 संरचना
4.1 (%तावना
4.2 उ|ेय
4.3 योितष शा%& के (व)क
4.4 योितष शा%&ीय आचाय) पर:परा
4.5 साराशं
4.6 पारभािषक शcद
4.7 अ}यास (न# के उर
4.8 सहायक पाठ्यसाम>ी
4.9 िनब<धाZमक (न

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
4.1  तावना
(%ततु इकाई एमएजेवाई-501 के (थम खड क8 चतथु ) इकाई से स:बि<धत है। इसके पवू )
क8 इकाई म0 आप योितष शा%& क8 वेदागं ता एवं वेदागं योितष से परिचत हो चक
ु े ह3। इस इकाई
म0 आप योितष शा%& के (व)क एवं आचाय) के बारे म0 अ/ययन करने जा रहे है।
(व)क का अथ) है – (ाचीन ऋिष, िज<ह#ने योितष शा%& का (ितपादन िकया। आचाय) से
ताZपय) योितष शा%& क8 पर:परा को िनव)हन करने वाले तथा उसक8 अ?ु ाता को बनाये रखने
वाल# से है।
आइए इस इकाई म0 हम योितष के (व)क# एवं आचाय` का बारे म0 जानने का (यास करते
ह3।
4.2 उ)े%य
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप –
• योितष शा%& के मल
ू (व)क कौन-कौन ह3, जान ल0ग।े
• (व)क और आचाय) म0 अ<तर समझ ल0गे।
• योितष शा%& के आचाय` से परिचत हो जायेग।0
• (व)क# एवं आचाय` क8 पर:परा से अवगत हो जायेग।0
• योितषशा%& के ऋिषय# एवं आचाय` क8 महा समझ ल0ग।े
4.3 योितष शा के व'2क
वेद िकसी शा%& िवशेष का ><थ नहG है। अत: वहाँ िकसी भी शा%& िवशेष का सांगोपांग
वण)न एक& नहG देखा जाता है। िक<तु (सगं वश सभी शा%&# का िदSदश)न अवय होता है। योितष
तो वेदांग ही है। इसिलए इस का वण)न %वाभािवक है। इस (कार इस शा%& का (व)क तो वेद है।
कालXम म0 इस शा%& के (वत)न का Vेय उ<ह0 िमला है और इितहास म0 उEलेख भी उनम0 सव)(मख ु
है –
सयू ): िपतामहो Fयास: विशLठोऽि& पराशर:।
कयपो नारदो गगb मरीिच मनरु ं िगरा ।।
लोमश: पौिलशचैव gयवनो यवनो भृगो:।
शौनकोऽLटदशाचैते योितषशा%&(व)का:।।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
1. सयू ) 2. िपतामह 3. Fयास 4. विशLठ 5. अि& 6. पराशर 7. कयप 8. नारद
9. गग) 10. मरीिच 11. मनु 12. अिं गरा 13. लोमश 14. पौिलश 15. gयवन 16.
यवन 17. भृगु 18. शौनक।
सूय – वराहिमिहर ने अपनी पंचिसTाि<तका म0 सयू )िसTा<त का वण)न िकया है। इससे पृथक् भी एक
%वत<& सयू )िसTा<त नाम का ><थ उपलcध होता है। इसम0 कहा गया है िक कृ तयगु (सZययगु ) के
अ<त म0 मय दानव ने भगवान सयू ) क8 तप%या क8 थी और उनक8 तप%या से (स<न होकर भगवान
सयू ) ने अपने अशं पA
ु ष Nारा मय दानव को >हगिणत का स:पणू ) िवषय ,ान करवाया था।
िपतामह – िपतामह Nारा िलिखत कोई %वत<& ><थ इस समय उपलcध नहG है। वराहिमिहर Nारा
िलिखत पंचिसTाि<तका म0 िपतामहिसTा<त भी है। स:(ित ]^िसTा<त के नाम से तीन ><थ (िसT
है। ]^गQु त का ]^िसTा<त, शाकEयोत ]^िसTा<त और तीसरा िवLणधु मbरपरु ाण के अ<तग)त
विण)त ]^िसTा<त।
यास – पौरािणक वण)न# से (तीत होता है िक Fयास िकसी FयिO िवशेष का नाम नहG है अिपतु
उपािध है। (Zयेक यगु के आिद म0 ईवरीय (ेरणा से परु ाण# का सिव%तर Fयाdयान करने वाले को
Fयास कहा जाता है। कृ LणNैपायन ऋिष जो सZयवती का प&ु माना जाता है इस यगु म0 Fयास के नाम
से जाने जाते है। Fयास िलिखत कोई %वत<& योितष><थ तो उपलc/ा नहG है िक<तु िविभ<न परु ाण#
म0 योितषशा%& का पया)Qत वण)न िमलता है।
विस8ठ – कितपय उEलेख# के आधार पर यह तJय उजागर होता है िक विशLठ के िसTा<त, संिहता
और होरा इन तीन# %क<ध# के ><थ थे िक<तु आजकल के वल विशLठ सिं हता और वृT विशLठ
संिहता नामक ><थ उपलcध है। विशLठ िसTा<त का उEलेख तो िमलता है िक<तु पंचिसTाि<तका
के अितरत ><थ देखने को नहG िमले है।
अि – (संगवश अनेक %थान# पर अि& का नामोEलेख िमलता है िक<तु %वत<& ><थ इस समय
उपलcध नही है। (माण# के आधार पर ऐसा लगता है िक अि& को >हणािद साधन म0 िवशेष द?ता
(ाQत थी।
पराशर – पराशर Nारा िलिखत लघपु राशरी, म/यपाराशरी, वृहZपराशरहोराशा%& नाम के तीन#
होराशा%&ीय ><थ आज भी उपलcध ह3 और स(ु िसT ह3। यिप म/यपाराशरी के िवषय म0 मता<तर
भी है।
नारद – नारदसंिहता के नाम से कुछ मातृकाएँ उपलcध ह3। अनेक %थल# से इसका (काशन भी
ह2आ है। अलग-अलग (ितय# म0 पाठा<तर कुछ अिधक ही देखने को िमलते है। नारदपरु ाण म0 भी

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
अनेक# अ/याय योितषशा%& िवषयक है।
गग – गग) संिहता नाम का ><थ स:पणू ा)न<द सं%कृ त िवविवालय से (कािशत है। इसके अितरत
भkोZपलटीका म0 अनेक %थल# पर गग) के वचन# का उEलेख िमलता है, जो अZय<त महZवपणू ) है।
मनु – मनु िवरिचत मन%ु मृित धम)शा%& से स:बT ><थ है। िक<तु उसम0 योितष स:ब<धी बह2त सारी
बात0 िमलती है। %वत<& Aप से भी इनका योितषशा%&ीय ><थ रहा हो यह स:भव तो है िक<तु इस
समय उपलcध नहG है। (ाचीन><थ# म0 मनु िवरिचत %वत<& योितष><थ का उEलेख (ाQत नहG
होता है।
भृगु – भृगसु ंिहता के अनेक सं%करण िमलते ह3। (शि%त के अनसु ार कोई भी सं%करण नहG है। अनेक
%थान# पर खिडत मातृकाएँ ह3 भी, तो वे (ामािणक नहG (तीत होती है।
मरीिच – मरीिच का %वत<& ><थ तो उपलcध नहG है िक<तु उTरण बह2& (ाQत होते ह3।
लोमश – रोमक िसTा<त को कुछ लोग लोमश िसTा<त मानते ह3। यह पंचिसTाि<तका के पाँच
िसTा<त# से एक है। इसके अितरत इसका कोई %वत<& ><थ उपलcध नहG है।
पौिलश – पच ं िसTाि<तका म0 यह िसTा<त समािहत है। पृथक् तया पौिलश िसTा<त नहG है। कुछ
िवNान# का मत है िक यह पल ु %Zय ऋिष Nारा िवरिचत है।
कयप, अिं गरा एवं gयवन का उEलेख (वत)क के Aप म0 तो है िक<तु कृ ितय# का उEलेख (ाQत नहG
होता है। ऐसा (तीत होता है िक अ/यापन, वेध और अ<य (कार के (योग म0 द?ता होने के कारण ये
आचाय) (वत)क के Aप म0 (िसT ह2ए ह#गे।
यवन – यवन जातक, वृTयवन जातक आिद ><थ इस समय उपलcध है। हो सकता है ये ><थ इसी
पर:परा के हो।
शौनक – यह (िसT ऋिष तो ह3 िक<तु इनक8 योितषशा%&ीय कृ ित नहG िमलती है। इितहास म0 भी
कृ ित का उEलेख नहG है। ऐसा लगता है िक शौनक क8 भी (िसिT कयप, अिं गरा एवं gयवन क8
तरह अ/यापन क8 िविशLटता, िशLयपर:परा, वेध और अ<य योितषीय (योग क8 द?ता के िलए ही
रही है।
4.4 योितष शा ीय आचाय2 पर5परा
वैिदक काल –
इस समय अ<य शा%&# क8 तरह योितषशा%& क8 भी ि%थित थी। िविभ<न वेद#, ]ा^ण#,
आरयक#, उपिनषद#, %मृितय# आिद म0 (सगं वश योितषशा%& के सभी %क<ध# के िवषय# के
उEलेख िमलते ह3।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
वेदांग काल –इस समय वेदांग योितष का (चार-(सार था। िजसके रचियता महाZमा लगध माने
जाते है। (तीत होता है िक इस समय अ/ययन –अ/यापन क8 पर:परा अिधक सaु ढ़ थी। लेखन पर
बह2त /यान नहG िदया गया। वेदांग योितष भी वैिदक#को पाठ करने म0 सिु वधा क8 aिY से अZय<त
सं?ेप म0 िलखा गया, तािक वेदपाठी आचाय) वेद के साथ वेदांग का भी पाठ कर सक0 । उस समय
इसके अितरत अ<य रचनाय0 अवय रही ह#गG। िक<तु आज XमबT इितहास उपलcध नहG है।
अ$यास %न –
1. िन:निलिखत म0 योितष शा%& है –
क. वेद ख. वेदांग ग. उपिनषद घ. सािहZय
2. शा%&# का मल ू (वत)क कौन है –
क. परु ाण ख. उपिनषद ग.वेद घ. वेदागं
3. पंचिसTाि<तका िकसक8 रचना है –
क. आय)भk ख. वराहिमिहर ग.कमलाकर घ. गणेश
4. लघपु राशरी िकसक8 कृ ित है –
क. आचाय) पराशर ख. वराहिमिहर ग. कमलाकर घ. गणेश
5. वेदांग काल के स(ु िसT आचाय) है –
क. लगध ख. गणेश दैव, ग. कमलाकर घ. भा%कर
िस,ात काल –
इस समय अनेक िविशLट आचाय) ह2ए, िज<ह#ने योितषशा%& के िविभ<न %क<ध# म0 या कुछ एक
%क<ध म0 अZय<त महZवपणू ) काय) िकए। कुछ आचाय` क8 कृ ितयाँ उपलcध भी ह3। ऐसा नहG कहा
जा सकता है िक िजनक8 कृ ितयाँ उपलcध ह3 िसफ) उतने ही आचाय) उस समय ह2ए। अिधकांश
िवNान# क8 तो अ/ययन- अ/यापन क8 ही पर:परा रही है। स:भवत: कुछ ही लोग लेखन पर:परा म0
अिधक Aिच रखते थे। अ/ययन –अ/यापन क8 पर:परा म0 असंdय आचाय) रहे ह#गे िजनका नाम
इितहास म0 देखने को नहG िमलता है। िजन आचाय` क8 कृ ितयाँ उपलcध ह3 या इितहास म0 उEलेख
है, उनम0 (मख
ु ह3 –
;म संgयाआचाय काल
१. आय)भk ई.स. ४७६
२. लEल ४८९ ई.
३. वराहिमिहर ५०५ ई.
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
४. कEयाणवमा) ५७८ ई.
५. ]^गQु त ५९८ ई.
६. मŸु जाल ६६२ ई.
७. िवेवर ८१९ ई.
८. महावीर ८५३ ई.
९. मŸु जाल ९३५ ई.
१०. िNतीय आय)भk ९५३ ई.
११. उZपल भkोZपल ९६६ ई. शक ८८८
१२. िवजयनि<द ९६६ ई.
१३. बलभl ९६६ ई.
१४. Vीधराचाय) ९९१ ई. शक ९१३
१५. प–नाभ िमV -
१६. महेवर १०१८ ई.
१७. Vीपित १०३९ ई.
१८. पृथदु %वामी १०४० ई.
१९. भानभु k १०४० ई.
२०. भोजराज १०४२ ई.
२१. रायमृगांक १०४२ ई.
२२. बEलालसेन १०६० ई.
२३. शतान<द १०९१ ई.
२४. ]^देव १०९२ ई.
२५. भा%कर १११४ ई.
२६. वAण ११५० ई.
२७. अन<तदेव १२२२ ई.
२८. के शवाक) १२४२ ई. (शक ११६४)
२९. कािलदास १२४२ ई. (शक ११६४)
३०. माधव १२६३ ई.

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
३१. महादेव १२७८ ई.
३२. महे<lसू र १३२० ई.
३३. महादेव िNतीय १३५७ ई. (शक १२७९)
३४. मकर<द १४३८ ई. शक १३६०
३५. के शव १४५६ ई.
३६. लfमीदास १५०० ई. शक १४२२
३७. ,ानराज १५०३ ई.
३८. गणेश १५०७ ई.
३९. अन<तदैव, १५२५ ई.
४० अन<तदैव, िNतीय १५३७ ई.
४१ सयू ) १५४१ ई.
४२ ढुिढराज १५४१ ई.
४३ िवLणदु वै , १५६६ ई.
४४ कृ Lणदैव, १५६५ ई.
४५ नीलकठ १५५७ ई.
४६ रघनु ाथ शमा) १५६५ ई.
४७ रामदैव, (रामाचाय)) १५६५ ई0 शक १४८७
४८ गोिव<द दैव, १५६९ ई0 शक १४९१
४९ मEलार १५७१ ई0 शक १४९३
५० नारायण १५७१ ई0 शक १४९३
५१ रंगनाथ १५७३ ई0 शक १४९५
५२ गणेश १५७८ ई0 शक १५००
५३ िववनाथ १५७८ ई0 शक १५००
५४ नृिसंहदैव, १५८६ ई0 शक १५०८
५५ िव”ल दीि?त १५८७ ई0 शक १५०९
५६ नारायण १५८८ ई0 शक १५१०
५७ िशवदैव, १५९१ ई0 शक १५१३

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
५८ बलभl िमV १५९२ ई0 शक १५१४
५९ सोमदैव, १६०२ ई0 शक १५२४
६० मनु ीवर १६०३ ई0 शक १५२५
६१ िदवाकर १६०६ ई0 शक १५२८
६२ कमलाकर १६१६ ई0 शक १५३८
६३ िनZयान<द १६३९ ई0 शक १५६१
६४ रंगनाथ १६४० ई0 शक १५६२
६५ जग<नाथ स—ाट १६५२ ई0 शक १५७४
६६ जयिसंह १६९३ ई0
६७ दादाभk १७१९ ई0
६८ शक ं र १७२६ ई0 शक १६४८
६९ िशवलाल पाठक १७३४ ई0 शक १६५६
७० गगं ाधर १७३४ ई0 शक १६५६
७१ िच<तामिण दीि?त १७३६ ई0 शक १६५८
७२ परमान<द पाठक १७४८ ई0 शक १६७०
७३ लfमीपित १७४८ ई0 शक १६७०
७४ बबआ ु योितषी १७५६ ई0 शक १६७८
७५ मथरु ानाथ शु ल १७५८ ई0 शक १६८०
७६ परमसख ु ोपा/याय १७६८ ई0 शक १६९०
७७ बालकृ Lण योितषी १७७० ई0 शक १६९२
७८ मिणराम १७७४ ई0 शक १६९६
७९ कृ Lणदेव १७७५ ई0 शक १६९७
८० िशवदैव, १७७८ ई0 शक १७००
८१ भल ु ा १७८१ ई0 शक १७०३
८२ गोिव<दाचारी १७८४ ई0 शक १७१६
८३ दगु ा)शकं र पाठक १७८७ ई0 शक १७०९
८४ जयराम योितषी १७९५ ई0 शक १७१७

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
८५ सेवाराम शमा) १७९५ ई0 शक १७१७

आधुिनक काल
आधिु नक काल म0 योितषशा%& के अनेक िविशLट आचाय) ह2ए। अ/ययन-अ/यापन क8
aिY से पर:परा अZय<त सaु ढ़ रही। आचाय` ने अनेक महZवपणू ) ><थ िलखे और पवू व) त[ ><थ# क8
टीकाएँ िलखी। इन ><थ# और टीकाओ ं से (तीत होता है िक वे इस शा%& के (ौढ़ िवNान रहे ह#गे।
कुछ मल ू ><थ आज भी िवव(िसT है। अ/ययन –अ/यापन क8 पर:परा म0 िजन आचाय` ने योगदान
िकया उनका नामोEलेख स:भव नहG हो पा रहा है य#िक िलिखत या मौिखक साfय नहG िमल पा
रहा है। िफर भी पर:परा से िजतने िवNान# का पता चल पाया है (यास िकया है उनके नाम# का %मरण
करने का। िजनक8 टीका, िटQपणी या मल ू ><थ आिद उपलcध ह3 या इितहास म0 (ामािणक उTरण
(ाQत है या (संगवश नाम आए है और लेखक या स:पादक क8 aिY वहाँ तक पह2चँ पायी है, उनका
नामोEलेख करने का यहाँ (यास िकया गया है-
1. लजाशक ं र शमा) १८०४ ई. शक १७२६
2. न<दलाल शमा) १८०४ ई. शक १७२६
3. राघव १८१० ई. शक १७३२
4. िशव १८१५ ई. शक १७३७
5. देवकृ Lण शमा) १८१८ ई. शक १७४०
6. नृिसहं देव शा%&ी या बापदू वे शा%&ी १८२१ ई. शक १७४०
7. नीला:बर शमा) १८२३ ई. शक १७४५
8. के रो लfमण १८२४ ई. शक १७४६
9. िवशाजी रघनु ाथ लेले १८२७ ई. शक १७४९
10. रघनु ाथ आचाय) १८२८ ई. शक १७५०
11. गोिव<द देव शा%&ी १८३४ ई. शक १७५६
12. कृ Lणशा%&ी गोडबोले १८५३ ई. शक १७७५
13. व0कटेश बापजू ी के तकर १८५३ ई. शक १७७५
14. बालगगं ाधर ितलक १८५६ ई. शक १७७८

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
15. िवनायक पाडुरंग खाना परु कर १८५८ ई. शक १७८०
16. सधु ाकर िNवेदी १८६० ई. शक १७८२
17. िदनकर १८८१ ई. शक १८०३
18. य,ेवर (बाबा जोशी राडे) १७७८ ई. शक १७०० के आसपास
19. साम<त च<lशेखर १८६६ ई.
20. नीलकठ
21. आचाय) प–ाकर िNवेदी
22. आचाय) बलदेव पाठक
23. आचाय) अनपु िमV
24. आचाय) डी. अिक) सोमयािज
25. आचाय) गगं ाधर िमV
26. आचाय) च<lशेखर झा
27. आचाय) ग0दालाल चौधरी
28. आचाय) सीताराम झा
29. आचाय) बलदेव िमV
30. आचाय) मरु लीधर िमV
31. आचाय) अgयतु ान<द झा
32. आचाय) नीला:बर झा
वत2मान काल
वत)मान काल म0 योितषशा%& का अ/ययन–अ/यापन एवं शोध देश के िविभ<न स%ं कृ त
िवालय#, महािवालय#, िवविवालय# म0 संचािलत ह3। िजसम0 काशी िह<दू िवविवालय,
सं%कृ त क8 सबसे बड़ी सं%था रािL‹यसं%कृ तसं%थान (मािनत िवविवालय), Vी लालबहादरु शा%&ी
रािL‹य स%ं कृ त िवापीठ, स:पणू ा)न<द स%ं कृ त िवविवालय, रािL‹य स%ं कृ त िवापीठ (ितAपित),
उराखड सं%कृ त िवविवालय, किवकुलगA ु कािलदास सं%कृ त िवविवालय, कामेवर िसहं
दरभगं ा सं%कृ त िवविवालय, जग A ु रामान<दाचाय) राज%थान सं%कृ त िवविवालय आिद
(मख ह3। स:(ित उराखड मु त िवविवालय भारतवष) क8 एकमा& ऐसी िश?ण स%ं था है
िजसके Nारा दरू %थ मा/यम से योितष िवषय क8 सम%त पाठ्यXम संचािलत क8 जा रही है।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
िवविवालय अनदु ान आयोग Nारा सामा<य िवविवालय# म0 भी िवगत 2- 3 वष` से इस शा%&
का अ/ययन–अ/यापन काय) चलाया जा रहा है। इस समय योितष शा%& के तीन# %क<ध# म0 अgछे
िवNान ह2ए ह3। िसTा<त और संिहता %क<ध म0 (ायोिगक Aप से कम काम हो रहे है। अ/ययन –
अ/यापन या लेखन म0 िजनका योगदान रहा है और इस काय) म0 लगे ह2ए लोग# क8 वहाँ तक पह2चँ
पायी है। उनम0 (मख ु ह3 –
1. आचाय) अवध िबहारी ि&पाठी 2. आचाय) संकटा (साद उपा/याय 3. आचाय) किपलेवर
चौधरी 4. आचाय) देवच<l झा 5. आचाय) के दार द जोशी 6. आचाय) राजमोहन
उपा/याय 7. आचाय) सवु श ं झा 8. आचाय) गणेश द पाठक 9. आचाय) गणपित देव
शा%&ी 10. आचाय) िव</येवरी (साद पाडेय 11. आचाय) मनु ीलाल झा 12. आचाय)
गणेश योितषी 13. आचाय) रामयZन ओझा 14. आचाय) अयो/या नाथ शमा) 15.
आचाय) रामFयास पाडेय 16. आचाय) मीठालाल ओझा 17. आचाय) मरु ार लाल शमा)
18. आचाय) िपडपित) स]ु ^यम शा%&ी 19. आचाय) िपडपित) कृ Lणमिू त) शा%&ी 20.
आचाय) हनमु ान शा%&ी 21. आचाय) मधरु कृ Lणमिू त) शा%&ी 22. आचाय) Vीच<l
पाडेय 23. आचाय) Vीrजिकशोर झा 24. आचाय) कEयाणद शमा) 25. आचाय)
कृ Lणच<l िNवेदी 26. आचाय) रामच<l पाडेय 27. आचाय) रामच<l झा 28.
आचाय) शक ु देव चतवु दŽ ी 29. आचाय) िशवाका<त झा 30. आचाय) उमाशकं र शु ल
31. आचाय) ओकं ारनाथ चतवु दŽ ी 32. आचाय) “षीके श उपा/याय 33. आचाय)
हीरालाल िमV 34. आचाय) रामपाल शमा) 35. आचाय) नागेश उपा/याय 36. आचाय)
रामभरोसे िमV 37. आचाय) माताभीख शु ल 38. आचाय) दगु ा)द िमV 39. आचाय)
राममिू त) शु ल और 40. आचाय) के .बी.शमा) 41. आचाय) सिgचदान<द िमV
इनके अितरत भी योितष शा%& के अनेक# िवNान शा%& क8 र?ा म0 अपना जीवन िनर<तर
समिप)त िकये ह3, और कर रहे ह3। सभी का नाम यहाँ उिEलिखत करना असभं व है। अत: (मख ु ता
और %व जानकारी के अनसु ार ही उत िवNान# के नाम यहाँ िदए गये ह3।

अ$यास %न – 2
रत %थान# क8 पिू त) क8िजये –
1. आय)भk का काल ................. है।
2. वृहZसंिहता के रचियता ........................ है।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3. ]^गQु त का काल....................है।
4. सयू )िसTा<त सयू ा›श पA
ु ष और .................... क8 सवं ाद Aपी ><थ है।
4.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक वेद िकसी शा%& िवशेष का ><थ
नहG है। अत: वहाँ िकसी भी शा%& िवशेष का सांगोपांग वण)न एक& नहG देखा जाता है। िक<तु
(संगवश सभी शा%&# का िदSदश)न अवय होता है। योितष तो वेदांग ही है। इसिलए इस का वण)न
%वाभािवक है। इस (कार इस शा%& का (व)क तो वेद है। कालXम म0 इस शा%& के (वत)न का Vेय
उ<ह0 िमला है और इितहास म0 उEलेख भी उनम0 सव)(मख ु है। (व)क का अथ) ऋिष एवं आचाय) वह
होता है, जो पर:परा क8 र?ा के िलए काय) करता है। साथ ही उनम0 नवीनपरक अनसु <धान करने का
काय) भी वह करने के िलए तट%थ रहता है।

4.6 पारभािषक शदावली


2वतक – (वत)क का अथ) है – ऋिष। ऋिष lLटा होता है, जो अपने तपोबल से भावी घटनाओ ं
को सरल Aप से देख लेता है।
आचाय – आचाय) पर:परा का पोषक होता है। वह (चिलत पर:परा क8 र?ा अपने ,ान के आधार
पर करने के साथ-साथ उसको सरल बनाने का काय) करता है।
िस,ात – िसT: अ<ते य%य स: िसTा<त:।
वेद – सव)िवा का मल ू वेद है। चँिू क ऋचाय0 ऋिष “दय म0 अवतरत होती है, इसीिलए वेद को
अपौAषेय भी कहा है।
वेदांग – वेद के अगं को वेदांग कहा जाता है। इ<हG को शा%& भी कहा जाता है।
कध – िवभाग।
4.7 अयास  न के उ!र
अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला
1. ख 2. ग 3. ख 4.क 5. क
अ}यास (न – 2 क8 उरमाला
1. ४७६ ई. 2. वराहिमिहर 3. ५९८ ई0 4. दानवराज मय

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
4.8 सदभ" #थ सूची
(क) भारतीय योितष – Vी शकं रबालकृ Lण दीि?त
(ख) कयप सिं हता
(ग) भारतीय योितष – नेिमच<l शा%&ी।
(घ) नारद संिहता
(ड.) भारतीय फिलत योितष – रािL‹य सं%कृ त सं%थान, नई िदEली।
4.9 सहायक पाठ्यसाम#ी
योितष शा%& का इितहास – लोकमिण दहाल
भारतीय योितष – शक
ं रबालकृ Lणदीि?त / नेिमच<द शा%&ी
सल
ु भ योितष ,ान – पं. वासदु वे सदािशव खानखोजे
4.10 िनबधा.मक  न
1. योितष शा%& के (व)क# का उEलेख क8िजये।
2. (व)क एवं आचाय) म0 अ<तर %पLट क8िजये।
3. योितष के (मखु आचाय` का उEलेख क8िजये।
4. शा%&# म0 (व)क एवं आचाय` क8 भिू मका पर िनब<ध िलिखये।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
इकाई – 5 योितष शा का ऐितहािसक िववेचन
इकाई कP संरचना
5.1 (%तावना
5.2 उ|ेय
5.3 योितषशा%& का ऐितहािसक िववेचन
5.3.1 (ाSवैिदक काल
5.3.2 वैिदक काल
5.3.3 वेदांग काल
5.3.4 िसTा<त काल
5.3.5 आधिु नक काल
5.4 सारांश
5.5 पारभािषक शcद
5.6 अ}यास (न# के उर
5.7 सहायक पाठ्यसाम>ी
5.8 िनब<धाZमक (न

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
5.1  तावना
(%ततु इकाई एमएजेवाई-501 के (थम खड क8 पंचम इकाई से स:बि<धत है। इसके पवू )
क8 इकाई म0 आपने योितष शा%& के (व)क# एवं आचाय` का अ/ययन कर िलया ह3। अब आप
योितषशा%& के ऐितहािसक प? का अ/ययन करने जा रहे ह3।
योितष शा%& क8 उZपि कहाँ से ह2ई? कब ह2ई? कालXम के आधार पर हम
योितषशा%& को कै से समझ सकते ह3? इन सभी (न# से जड़ु े समाधान# का हम (%ततु इकाई म0
अ/ययन करने जा रहे ह3।
आइए इस इकाई म0 कालXम के आधार पर योितषशा%& के ऐितहािसक िववेचन का
अ/ययन करते है।
5.2 उ)े%य
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप –
• योितषशा%& के आरि:भक तJय# को समझ ल0ग।े
• काल Xम के आधार पर योितष शा%& के ऐितहािसक प?# को जान ल0ग।े
• (ाSवैिदक काल से लेकर आधुिनक काल पय)<त योितष क8 ि%थितय# को समझने म0 समथ)
हो सके ग0।
• ऐितहािसक िववेचना के आधार पर योितषशा%& के िविभ<न पहलओ
ु ं का बोध कर लेग।0
5.3 योितषशा का ऐितहािसक परचय
िकसी भी शा%& या िवषय का स:यक् अ/ययन करने के िलए उसका इितहास जानना
आवयक होता है; य#िक उस शा%& के इितहास Nारा तिNषयक ,ान समझ म0 आ जाता है।
योितषशा%& सृिY और (कृ ित के रह%य को Fयत करने वाला है। मानव (कृ ित क8 पाठशाला म0
सव)दा से इस शा%& का अ/ययन करता चला आ रहा है। गAु पर:परा से इस शा%& क8 अनवरतता
लोक म0 (िसT है, अत: इस शा%& के उvव %थान और काल का िनिचत Aप से पता लगाना
किठन है। चाहे अ<य ,ान# क8 िनझ)रणी के आिद ोत का पता लगाना स:भव हो, पर (कृ ित के
अन<यतम अगं इस शा%& का ओर-छोर ढूँढना मानव-शिO से परे क8 बात है। अथवा दसू रे शcद# म0
यह कहा जा सकता है िजस िदन से मानव ने होश संभाला, उसी िदन से उसने योितष के आवयक
तZव# का अ/ययन करना शA ु कर िदया। भले ही वह इन तZव# को अिभFयत करने क8 योSयता के
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
अभाव म0 दसू र# को न बता सका हो, पर उसका जीवन िनवा)ह इन तZव# के िबना हो नहG सकता था;
फलत: मानव- जीवन के िवकास के साथ- साथ योितष का भी िवकास ह2आ।
काल वग[करण क8 aिY से इस शा%& के इितहास को िन:न यगु # म0 िवभत िकया जा सकता है : -
(ागवैिदक काल - सृLट्यार:भ काल से वैिदक काल के पवू ) तक का समय
ई.प.ू १०००० वष) के पहले का समय (आधिु नक मतानसु ारे ण)
वैिदक काल – ई.प.ू १०००१ से ५०० तक (ऋक् , याजषु , अथव) योितष का काल)
वेदांग काल – महाZमा लगध का काल
आिदकाल – ई0 प0ू ५०१ ई. से ५०० ई. तक
िसTा<त काल (पवू म) /यकाल) – ५०१ ई0 से १००० तक
उरम/यकाल – १००१ ई0 से १६०० ई0 तक
आधिु नक काल – १६०१ ई. से वत)मान समय तक
5.3.1 ागवैिदक काल –
योितषशा%& ‘वेदागं ’ होने के कारण वेद क8 भाँित यह भी अपौAषेयता को (ाQत है। ऋिष
qदय म0 अवतरत होने के कारण इस शा%त क8 भी अपनी एक अलग मिहमा है। सह # वष` के
तपोबल के आधार पर ऋिष अपनी िदFय च?ओ ु ं से काल के िविभ<न %वAप# को देख व जान लेता
था, तभी तो उसे ‘ि&काल,’ क8 स,ं ा दी गयी। वह दैववशात् होने वाले शभु ाशभु फल# का िववेचन
अपने योितष Aपी गढ़ू ,ान से सहज ही कर लेता था। इसीिलए उसे ‘दैव,’ भी कहा गया।
वैिदक काल के पवू ) अथा)त् (ागवैिदक काल म0 इस शा%& क8 ि%थित अपनी िदFयता के
साथ लोक म0 FयाQत थी। मानव को वह िकतनी मा&ा म0 सव)सल ु भता के साथ (ाQत थी? इसका
िलिखत िववरण योितषशा%& के िकसी ><थ म0 अ(ाQत है। शायद इसीिलए कुछे क आचाय` ने
अ<धकार काल क8 बात क8 है। िक<तु मेरा मानना है िक योितष अपने ,ान से अ<धकार को (काश
म0 बदल देता है, इसीिलए योितषशा%& का कोई भी कालखड कथमिप अ<धकारकाल के Aप म0
नहG हो सकता। हाँ उसे (ागवैिदक काल के Aप म0 हम अवय जान सकते है।
यह पवू ) म0 कहा जा चक
ु ा है िक योितषशा%& के उvव काल का ,ान मानव शिOग:य
नहG है; य#िक सृिY के उZपि काल से जब इसका उvव माना जाता है तो उस काल का वण)न
मानवीय ,ान से कथमिप स:भव नहG है। अत: यह मानव सृिY के समान अनािद है। योितष का
िसTा<त है िक एक कEपकाल म0 ४३२००००००० वष) होते ह3, सृिY के (ार:भ होते ही सभी >ह
अपनी-अपनी क?ा म0 िनयिमत Aप से मण करने लगते ह3। सृिY म0 िलिप का (ादभु व) कब ह2आ
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
अथवा वण` क8 उZपि सव)(थम कहाँ से ह2ई? इन सभी (न# के उर मानवीय सीमा के बाहर है।
यिद सव)िवामल ू क वेद क8 बात कर0 अथवा परु ाण या उपिनषद# के आधार पर भगवान िशव को
सम%त िवाओ ं का मल ू ोत कहा जाता है। दगु ा)सQतशती के ‘क8लक’ पाठ म0 जैसा िक हम0 (ाQत
होता है – ‘‘िवशTु ,ान देहाय ि&वेदी िदFयच?षु ।े Vेय: (ाQत िनिमZताय नम: सोमाT)धारणे।।’’
िजनका शरीर ही िवशT ु ,ान है ऐसे िशव क8 बात क8 गई है। अत: तभी सृिY के आिद काFय
रामायण म0 भी िशव Nारा कथा कहने क8 बात क8 गई है। सम%त िवाओ ं को सव)(थम िशव ने ही
शिO को (दान िकया तZपचात् ऋिषय# को। पनु : ऋिष पर:परा से िवाओ ं क8 लोक म0 Fयािn ह2ई।
योितषशा%& क8 भी उZपि उसी Xम म0 ]^ािद Nारा नारद तथा विसLठािद ऋिषय# क8 पर:परा से
चली आ रही है। कायप संिहता के अनसु ार भगवान सयू ) को योितषशा%& का अिधपित बतलाया
गया है।
मानवीय धरातल पर मानव क8 %वाभािवक (वृिय# का िवलेषण करने पर अवगत होगा
िक ‘य#’, और ‘कै से’ ये दो िज,ासाएँ उसक8 (धान ह3। वह (Zयेक व%तु के आिद कारण क8 खोज
करता है और उसके स:ब<ध म0 सभी अvुत बात# को जानने के िलए लालाियत रहता है। जब तक
उसक8 यह ,ानिपपासा शा<त नहG होती, उसे मन:शाि<त नहG िमलती। फलत: आिद मानव के
मि%तLक म0 भी यिZकंिचत् िवकास के अन<तर ही समय, िदशा और %थान िजनके िबना उसका काम
चलना किठन ही नहG, बिEक अस:भव था; के स:ब<ध म0 य# और कै से ये (न अवय उZप<न ह2ए
ह#गे तथा इन (न# के उर पाने क8 भी चेLटा क8 होगी। यह िनित है िक िकसी भी (कार के ,ान
का ोत समय, िदशा, और %थान के िबना (वािहत नहG हो सकता है। इसीिलए उत तीन# िवषय#
का ,ान योितष के Nारा स:प<न होने पर ही अ<य िवषय# का ,ान मानव को ह2आ होगा।
भारतवष) क8 अपनी िनजी िवशेषता आ/यािZमक ,ान क8 है और इसका स:पादन योग-
िXया Nारा (ाचीनकाल से होता चला आ रहा है। इस िसTा<त के अनसु ार ‘महाकुडिलनी’ नाम क8
शिO सम%त सृिY म0 परFयाQत रहती है और FयिO म0 यही शिO कुडिलनी के Aप म0 Fयत होती
है।
अनभु व भी यह बतलाता है िक मानव ने अपनी आवयकता क8 पिू त) के िलए सबसे (थम
%थान, िदक् और काल – इन तीन के स:ब<ध म0 जानकारी (ाQत क8 होगी। य#िक िकसी से भी पछ ू ा
जाये िक अमक ु व%तु कहाँ ि%थत है? तो वह यही उर देगा िक अमक ु िदशा म0 है। अमक
ु घटना कब
घटेगा? तो वह यही कहेगा िक अमक ु समय म0। अिभ(ाय यह है िक अमक ु %थान से इतना पवू ,)
अमक ु से इतना दि?ण, इतने बजकर इतने िमनट पर अमक ु काय) ह2आ, इतना बदला देने पर उस
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
काय)-िवषयक %वाभािवक िज,ासा शा<त हो जाती है। योितष Nारा उत िवषय# का ,ान (ाQत
करना ही सा/य माना गया है। इसिलए (ागवैिदक काल म0 जब योितष के िसTा<त िलिपबT िकये
जा रहे थे, इसक8 बड़ी (शसं ा क8 गयी है। %थान एवं कालबोधक शा%& होने के कारण इसे जीवन
का अिभ<न अगं बतलाया गया है।
नेिमच<l शा%&ी Nारा िलिखत ‘भारतीय योितष’ म0 योितषीय काल वग[करण के
अ<तग)त उ<ह#ने अ<धकार यगु क8 बात कही है, जो मेरी aिY (इकाई लेखक) म0 सव)था अनुपयु त है,
म3 इसका खडन करता हo।ँ योितष शा%& का कोई भी कालखड अ<धकारमय नहG रहा, यह िकसी
क8 कपोल कEपना ही हो सकती है। िजस शा%& का उvव सृY्योZपि के साथ ह2आ है, उसके
अि%तZव का कोई भी कालखड अ<धकारमय नहG हो सकता। योितषशा%& ]^ाडोZपि के साथ
स:(Zयिप अिविgछ<न Aप से गितमान है।
5.3.2 वैिदक काल –
वैिदक सनातन पर:परा म0 िविदत है िक य,, तप, दान आिद के Nारा ईवर क8 उपासना वेद
का परम लfय है। उपय)ु त य,ािद कम) काल पर आिVत ह3 और इस परम पिव& काय) के िलए काल
का िवधायक शा%& योितषशा%& है। अत: इसे ‘वेदांग’ क8 सं,ा दी गई है। वेद िकसी एक िवषय पर
के ि<lत रचना नहG है। वेद सव)िवा का मल ू है। िविवध िवषय और अनेक अथ) को ोितत करने
वाली म<& रािश वेद# म0 समािहत है। के वल योितष, Fयाकरण, छ<द, धम), दश)न या िकसी अ<य
िवषय का ><थ नहG है - वेद। अत: वेद# म0 िकसी भी िवषय का तारत:य बT अ/ययन नहG है।
इसीिलए वेद# को उZस, मल ू या आिद तो कह सकते ह3, पर िवषय नहG। भारतीय ,ान पर:परा क8
पिु Y वेद म0 िनिहत है। कोई भी िवषय मा<य और भारतीय aिY से संविलत तभी माना जायेगा जब
उसक8 जड़े वेदचतLु टय म0 कहG न कहG समािहत ह#। अत: योितष भी वेद# म0 बीजAप म0 िदखलाई
पड़ता है। इसी बीज िवषय को ‘वैिदक योितष’ कहते है।
वैिदक काल म0 मानव योितष को भी धम) मानता था, उस यगु म0 FयिO और समाज के
सम%त काय) एक ही िनयम पर चलते थे, अत: धम), दश)न और योितष – ये भेद सािहZय म0
(%फुिटत नहG ह2ए थे तथा सम%त िवषय# का सािहZय एक साथ ही रहता था।
कुछ आचाय` का मत है िक उदयकाल के पवू ) आय) लोग भारत म0 उरी ™वु से आये थे
और यहाँ बस जाने के पचात् उ<ह#ने वेद, वेदागं आिद सािहZय क8 रचना क8। लेिकन िवचारकरने
पर अवगत होगा िक उस कालखड म0 उरी ™वु उस %थान पर था, िजसे आज िबहार और उड़ीसा
कहते ह3। वह भारत के बाहर नहG था। अत: आय) भारत के ही थे अथवा पवू ) समय म0 भारत के लोग#
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को आय) कहकर स:बोिधत िकया जाता था। आय` ने उदयकाल म0 अपने वैिदक सािहZय को ज<म
िदया। यिप वेद, आरयक, ]ा^ण, Nादशाश ं , (क8ण)क और उपिनषद् आिद धािम)क रचनाएँ मानी
जाती ह3, पर इनम0 योितष, आयवु दŽ , िशEप आिद िवाओ ं क8 चचा)एँ पया)Qत मा&ा म0 ह3। वैिदक
काल के सािहZय म0 मास, ऋत,ु अयन, वष), यगु , >ह, >हण, >हक?ा, न?&, िवषवु , न?&- लSन,
िदन-रात का मान और उसक8 वृिT-हािन आिद िवषय# पर िवचार योितष क8 aिY से िकया जाने
लगा था। वेद# म0 (ितपािदत योितष चचा) क8 अपे?ा शतपथ ]ा^ण, वृहदारयक, तैिरीय
]ा^ण, ऐतरे य ]ा^ण आिद ><थ# म0 िवकिसत Aप से उपलcध है। इन ><थ# म0 योितष के
िसTा<त# का Fयावहारक और शा%&ीय इन दोन# aिYकोण# से (ितपादन िकया है। ऋSवेद के समय
म0 िदन को के वल काम िनकालने वाला समय के Aप म0 माना जाता था, पर ]ा^ण और आरयक#
के समय म0 उसका योितष क8 aिY से िववेचन होने लग गया था। िदन क8 वृिT कै से और कब होती
है तथा वह िकतना बड़ा होता है आिद बात# क8 शा%&ीय मीमांसा होने लग गयी थी। वैिदक काल
क8 ,ानरािश पर aिYपात करने से यह ,ात होता है िक सयू ) और च<lमा के अितरत भौमािद ५ >ह
भी योितषिवषयक सािहZय के िवषय बन गये थे। इस यगु म0 योितष के भेद-(भेद भी आिवभ)तू
नहG ह2ए थे, के वल सामा<य योितष शcद से इस शा%& के >ह-न?& के गिणत और उनके फल
गृहीत होते थे।

5.3.3 वेदांग योितष काल –


वेदांग योितष कहने से योितष के उस भाग का बोध होता है जो वैिदक योितष और
मानव योितष से िभ<न है। वेदांग कहते ही, वेद के छ: अगं # का नाम सामने आ जाता है। ये ह3 –
िश?ा, कEप, Fयाकरण, िनAत, छ<द और योितष। इ<ह0 ‘षडंग’ भी कहा जाता है। अगं ी वेद है
और अगं वेदांग है।
षड् वेदांग# म0 से चार वेदांग भाषा से स:बि<धत ह3 – Fयाकरण, िनAत, िश?ा और छ<द।
इन चार वेदागं # से वेद का यथाथ) बोध होता है। कEप के चार िवभाग ह3। Vौत, गृ‚, धम) और शEु ब।
इनम0 से के वल शEु ब ही वै,ािनक शाखा का (ितिनधZव करता है। षƒ अगं है -योितष। यह वेदांग
पणू त) : वै,ािनक, कालिवधान कारक तथा वैिदक धारा<तग)त भारतीय मनीषा क8 सवbgच उपलिcध
है।
वेदागं योितष क8 रचना महाZमा लगध ने क8 थी। महा7मा लगध को यह (ेय 2ाTत है
िक उहLने 2थम बार योितषशा को ‘अथ’ से ‘इित’ पयत तक वDय िवषय बनाया।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
अZय<त सरलता, सहजता और शिु चता के साथ उ<ह#ने %वीकार िकया िक इन म&ं # को तप%या या
समािध के समय हमने ईवरीय अवदान के Aप म0 नहG पाया है, बिEक ये सम%त िवषय मेरी मनीषा
क8 %तरीय बौिTक उपलिcधयाँ ह3। ये ‘%विच<Zय-’ ह3। अिच<Zय और अFयत का %फूत) अवतरण
नहG ह3। यिद आच) योितष का स:ब<ध ‘aYम&ं वद’् होता तो उसके साथ िविनयोग भी जड़ु ा होता।
%पLट है िक यह महाZमा लगध क8 अपनी रचना है। ऋिषपद िवव का VेLठतम पद है। ऋिषZव के
आगे सब कुछ हेय है, य#िक यह अपरमेय है। एक म&ं का lLटा ऋिष उतना ही पू य है िजतना
शतािधक म&ं # का lLटा है। ऋिष यगु म0 लगध ने अपने को महाZमा कहा –
2णKय िशरसा कालमिभवा0 सर वतीम।्
काल1ानं 2वVयािम लगध य महा7मन:।।
इ7येतमासवषाणां मुहa*Gदयपवणाम।्
िदन7वयनमासानां याgयानं लगधोऽ@वीत।् ।
काल को िसर झक ु ा कर (णाम करके , सर%वती का अिभवादन करके लगध महाZमा के काल,ान
को कहने जा रहा हo।ँ
इस (कार से मास, वष), महु o), उदय, पव)काल, िदन, ऋतु, अयन एवं मासािद का Fयाdयान लगध ने
िकया। इन दोन# लोक म0 लगध का नाम आया है और ऊपर के लोक म0 तो महाZमा उपािध के
साथ आया है। इससे इस ><थ क8 ऐितहािसकता को बल िमलता है िक यह महाZमा लगध क8 रचना
है। इसक8 भाषा और िवषय से इस (आच) योितष) क8 ‘Vिु त मल ू कता िसT’ होती है।
महाZमा लगध को लेकर दो (कार का अनमु ान अ>ं ेज इितहासकार# ने खड़ा िकया। साथ ही
उनके अनमु ान से लगध क8 वा%तिवक ऐितहािसक उपि%थित को म या संदहे क8 aिY से देखने का
अवसर िमला। पहला अनुमान था – सं%कृ त ><थ# म0 अपने नाम को िलखने क8 पर:परा नहG रही है।
स:भव है िकसी अ<य लेखक ने ‘लगध’ नाम से आच) योितष क8 रचना क8 हो। दसू रा अनमु ान था
– ‘लगध’ शcद स%ं कृ त का नहG है। इन दोन# अनमु ान# को िनर%त करने का काम (ायश: परवत[
योितष इितहासकार# ने िकया है। यिद अपना नाम िलखने या ><थ म0 डालने क8 पर:परा नहG होती
तो म<&# और सू त# के lLटा ऋिषय# का ,ान िकसी को नहG हो पाता। िविनयोग म0 ऋिष का नाम
अवय होता है। भारतीय पर:परा म0 अपना परचय देने क8 पर:परा अपवू ) है। गो&, (वर, आचाय) के
नामोEलेख के साथ अपना परचय िदया जाता है। किठनाई तब आती है जब अ>ं ेज इितहासकार
‘ननु न च’ करके तJय# को झठु लाता है या संदहे के घेरे म0 डाल देता है। वेबर ने ‘लगध’ का नाम
‘लाट’ के Aप म0 (ितपािदत कर उ<ह0 पाँचवG शताcदी का ठहराने का (यास िकया है। /येय है वेबर

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
क8 मानिसकता वेद# और भारतीय# िवाओ ं के (ित अZय<त िन:न%तरीय थी। कितपय अ>ं ेज
इितहासकार# ने लगध को ‘लगड़’ या ‘लगढ़’ माना है। ‘होमग<ध’ और ‘पLु पग<ध’ क8 तरह ‘लगध’
नाम सं%कृ त का है। ‘र’ अ?र आगम म0 अिSनबीजक का वाचक है। इसी तरह ‘ल’ अ?र पृJवी का
वाचक है। फलत: िजसके शरीर से हवनािSन क8 सगु िं ध िनकलती हो उसे रगध (र गधं ) और िजसके
शरीर से मृिका क8 स#धी सगु िं ध िनकलती हो उसे लगध (ल गधं ) कहते ह3।
वेदांगयोितष मM 2ितपा0 मुgय िवषय –
लगध(ोत वेदांगयोितष ><थ म0 पाँच वष` का यगु , माघशु लािद वष), अयन, ऋत,ु मास,
प?, ितिथ, पव), िवषवु ििथ, न?&, अिधमास ये िवषय (ितपािदत ह3। Vौत%मात)धम)कृZय# म0 इन क8
ही अपे?ा होने से इस वेदांग योितष ><थ म0 इन िवषय# का मdु यतया (ितपादन िकया गया ह3।
वैिदक योितष का जो %वAप हम0 संिहता ><थ# म0 उपलcध है, उसम0 न?&#, ितिथय#,
चा<lमास#, दोन# िवषवु त् और दोन# अयन# का का वण)न उपलcध है और न?& गणना कृ िका
न?& से क8 गई है जो उस समय वस<त स:पात का न?& था। उपरोत िवषय# का गिणतीय %वAप
हम0 वेदांग योितष म0 उपलcध होता है जो गणना के Nारा ितिथय#, न?&# के मान को (%तुत करता
है। वेदांग योितष क8 गणना के अनसु ार ५ वष` का एक युग माना गया है जो चा<lयगु चX कहा जा
सकता है। एक सौर वष) ३६६ िदन# का माना गया है, इसिलए ५ सौर वष` म0 ३६६ × ५ = १८३०
सावन िदन होते ह3। एक युग म0 ६२ चा<lमास और ६० सौर मास होते ह3 इस (कार ५ वष) म0 २
अिधमास होते ह3। इन २ अिधमास# म0 ३० ितिथयाँ होती है। यगु म0 ६७ ना?&मास होते ह3। इसम0
च<lमा ६७ × २७ = १८०९ न?&# को पार करता है। यगु का आर:भ उरायण अथवा
दि?णायना<त से होता है, जब च<lमा और सयू ) दोन# धिनLठा न?& पर होते है और माघमास का
आर:भ होता है। जैसे –
वरा;मेते सोमाकh यदा साकं सवासवौ।
यात् तदािदयुगं माघ तप: शु4लोऽयनंjदु क्।।
अथा)त् जब च<lमा और सयू ) एक साथ धिनLठा न?& पर आकाश म0 होते ह3 तभी युग का आिद
माघ और उरायण का आर:भ होता ह3, जो शु लप? का आिद और तपमास होता है।
वेदागं योितष म0 %पLट है िक ितिथ न?&# के मान के वल च<lमा, सयू ) के म/यम गितय#
क8 गणना के आधार पर बनाये गये गिणतीय िनयम# के अनुसार ह3। इससे %पLट है िक न?&# और
ितिथय# के अश ं ाZमक िवभाग उस समय तक नहG िकए गये थे। य#िक ५ वष) के सावन िदन# क8
सdं या और ितिथय# क8 सdं या का अ<तर करके उसम0 प? सdं या से भाग देकर पाि?क ितिथयाँ

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
(ाQत क8 गई ह3, और इसी (कार च<lमा के न?& भोग िदन# म0 न?& संdया से भाग देकर न?&#
का मान उपलcध िकया ह2आ (तीत होता है। इससे िसT है िक न?&# के कोणीय
मान का कोई िनदŽश नहG है।
अ$यास %न – 1
1. िन:निलिखत म0 ‘दैव,’ िकसक8 सं,ा है –
क. देवता को जानने वाला ख. योितष शा%& वेा ग. काल, घ. सभी
2. एक कEप काल म0 िकतने वष) होते है ?
क. ४३२००० ख. ४३२०००० ग. ४३२००००० घ. ४३२०००००००
3. कायप संिहता के अनसु ार योितष शा%& के अिधपित है।
क. िशव ख. िवLणु ग. च<l घ. सयू )
4. य,ािद कम) आिVत है –
क. अनLु ठान पर ख. काल पर ग. कम)काड पर घ. कोई नहG
5. वेदागं योितष िकसक8 रचना है –
क. लगध ख. भा%कर ग. गणेश घ. राम

वैिदक योितष और वेदांग योितष का काल –


अब तक िजतने %वनामध<य मनीिषय# ने वेद# के काल का अनमु ान लगाया है वह सारा का
सारा अनमु ान खिडत होता नजर आ रहा है। उप>ह# के Nारा कृ Lण क8 Nारकापरु ी समlु म0 ढूँढ ली
गयी है। सेतबु <ध रामेवरम का अि%तZव िव,ान क8 नजर# म0 समा चक ु ा है। अत: ५१०० वष) का
काल तो महाभारत को ही समिप)त हो जायेगा। कोई ऐसा कारण भी नहG है हम वेद काल या वेदांग
काल को ईसा पवू ) १४०० वष) का मान0। अत: कालिवभाजन क8 वे सारी मेड़0 %वयं /व%त होती चली
जा रही ह3 िजनसे सारी सृिY को ईसा पवू ) चार हजार वष) के अदं र धके लने का (यास िकया गया था।
यरू ोिपयन एके डमी का चमा अपनी (ासिं गकता खो चक ु ा है और %वयं वहG के वै,ािनक# ने
बाइिबल क8 उस मा<यता को िनर%त कर िदया है िजसम0 सृिY को मा& छ: हजार वष) (ाचीन कहा
गया है। यानी ईसा पवू ) का चार हजार वष) का समय और ईसा पचात् का दो हजार वष) का समय।
(%ततु शीष)क म0 वेदागं या वेद का कालिनधा)रण करना शय नहG है। /येय के वल इतना है िक
अ>ं ेज# Nारा िनधा)रत काल गणना का परु ातािZवक (माणभतू मानदड ईसा पवू ) ३२० वष) अ<य
(माण# के उपलcध हो जाने के कारण /व%त हो चक ु ा है। अब कालगणना का मानदड महाभारत है।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
महाभारत को िमथक या काEपिनक ><थ कह कर पEला झाड़ने वाले Xूर भाषावै,ािनक ही हो
सकते ह3। महाभारत म0 िवमान योितष और वेदागं योितष का भी अ<तर %पLट है।
Vिु त पर:परा अZय<त (ाचीन है। उसके ज<म का अनमु ान िलिप पर:परा के मा/यम से नहG
िकया जा सकता। अत: सव)(थम काल गणना का मानदड महाभारत पवू ) महाभारत पचात् िनित
करना होगा। यिद काल गणना का मानदड ए.डी. या बी.सी. होगा तो उससे बेहतर है िक हम स%ं कृ त
और वैिदक वांगमय का इितहास िनधा)रत ही न कर0 । हम0 किलयगु ाcद को ऐितहािसक मानना ही
होगा। इस िदशा म0 हमारे सनातन परमपरा के पास तZकालीन राजाओ ं को सौ–सौ वष[य पर:पराय0
भी (ाQत ह3। अवZथामा को Vीकृ Lण (द शाप िक महाभारत समािn के पचात् तीन हजार वष`
तक तमु पृJवी पर िवकल घमू ते रहोगे यह िसT करता है िक ईसामसीह से पवू ) का तीन हजार वष) का
समय भारतीय मनीिषय# क8 aिY से िफसल नहG सकता। हमारे पंचांग# म0 जो सृLट्यािद काल गणना
है वह १ अरब, ९५ करोड़, ५८ लाख ८५ हजार, एक सौ वष) से आगे बढ़ रही है। इसी का अिं तम
चार अक ं कEयcद है जो ५१०७ या िनर<तर एकोर वष) अिधक है। इसी परू ी गणना से आज भी
>हगिणत होता है।
वेदांगयोितष के गिणतीय अवयव –
५ वष) = १ यगु
५ वष) = ५ सयू ) भगण
५ वष) = ६० सौर मास
५ वष) = ६२ चा<l मास
५ वष) (६२ चा<l मास +५) = ६७ च<l भगण
५ वष) = १८०० सौर िदन
५ वष) ६२ चा<lमास = १८६०चा<l िदन
५ वष) = १८३०सावन िदन
५ वष) (१८३०सावन िदन + ५) = १८३७भम (न?&ोदय)
५ वष) म0 उZप<न ?यिदन (१८६०-१८३०) = (युग?याह)
१ सौर वष) म0 कुल सावन िदन = ३६६ िदन
१ सौर वष) म0 कुल सौर िदन = ३६० िदन
१ सौर वष) म0 कुल चा<l िदन = ३७२
१ सौर वष) म0 कुल न?&ोदय = ३६७
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
१ सौर वष) म0 कुल अयन संdया = २
१ अयन म0 कुल सावन िदन सdं या = १८३
१ अयन म0 कुल सौर िदन संdया = १८०
१ सौर यगु (५ सौर वष) म0) च<lन?& संdया ६७ × २७ न?& = १८०९
(च<lभु तन?&)
१ यगु = १२० सौर पव) = १२४ चा<lपव)।
१ यगु म0 उZप<न ४ अिधपव)
६० सौरपव) म0 उZप<न २ अिधपव)
१ न?& िदन = १ सावन िदन + ७ कला
१ यगु म0 सयू ) न?& संdया ५ × २७ = १३५
१ न?& भोग म0 सयू ) १३ िदन १३ घटं ा २० िमनट लेता है।

आच2 योितष –
वेदागं योितष क8 (थम और महZवपणू ) रचना है – ‘आच)योितष’। आच)यौितषम्
िवव क8 पहली गिणतप%ु तक है। ऋSवेद का ‘वेदांगयौितषम’् है ‘आच) यौितषम’् । इसम0
कुल ३६ म<&ाZमक लोक उपलcध ह3। इस अZय<त महZवपणू ) रचना के िशEपी ह3 महाZमा
लगध। यहG से (ार:भ होता है वेदाङ्ग काल। अनX ु म पवू क) िवषय का (ितपादन यहG से
आर:भ ह2आ है। इस ><थ को पर:परा (ाQत अनVु वण से आच)योितष कहा गया है तथा इस
><थ से यह बात %पLट होती है िक वेद य, के (ितपादन हेतु (वृ ह3, य, कालािVत ह3, काल
योितषशा%& से िवधान को (ाQत करता है योितष जानने वाला ही य, को समझता है –
वेदा िह य1ाथमिभ2वृ*ा:।
कालानपु वू ा िविहताIच य1ा:।
त मािददं कालिवधानशा ं
यो योितषं वेद स वेद य1ान।् ।
आच) योितष का यह उपसंहार लोक है। देखने म0 यह (योजन परक लोक लगता है, पर रचनाकार
ने इस म&ं लोक से ><थ का समापन िकया है। आच)योितष का उपसंहार योितष के ,ान और य,
के सधं ान से ह2आ है – ‘यो यौितषं वेद स वेद य,ान।् ’ यह (योजन परक य, ही िसT करता है िक
आच)योितष का (ितपा पणू )त: य, है।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
(ाचीनकाल म0 िकसी भी िवषय का शा%&Zव िसT होना उसके िलए (ितLठा का ोतक
होता था। इसीिलए योितष को कालिवधान शा%& कहा गया योितिव)ा नहG। आज जैसे (ितLठा
का ोतक शcद िव,ान बना ह2आ है उसी तरह से पहले ‘शा%&’ शcद था। आज लोग अपने िवषय
क8 VेLठता को िसT करने के िलए उसे िव,ान से जोड़ने ह3 जैसे – गृहिव,ान, मनोिव,ान,
समाजिव,ान या िफर पोिलिटकल साइसं ेज आिद। िखचड़ी पकाइये पर िव,ान कहकर, पोिलिटकल
साइसं कह कर। योितषशा%& को योितिव),ान नाम से (चिलत करने के पीछे यगु धम) और यगु
मानिसकता झलकती है। योितषशा%& से VेLठ कोई दसू रा शcद इस अनश ु ासन के िलए अनक
ु ू ल हो
ही नहG सकता। िव,ान के वल (तय? या य<& aLट पदाथ` का ,ान (दान करता है। योितष शा%&
भतू –वत)मान- भिवLय तीन# को (%फुिटत करता है। इसीिलए वेदांग योितष का उपसंहार है ‘य,’।
बात य, पर आकर समाQत ह2ई है। इसी (वृि वेदांगकाल को वेदकाल का तZकाल अनवु त[ काल
या आस<न काल मानना पड़ा ह3। आच) योितष का महZवपणू ) लोक है –
यथा िशखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
त66ेदाङ्गशा ाणां यौितषं मूधिन ि थतम।् ।
यही लोक याजषु योितष के चौथे Xम म0 विण)त है और वहाँ ‘योितषं’ क8 जगह ‘गिणतं’ पाठ भेद
कर िदया गया है। व%ततु : यहाँ ‘योितष’ं पाठ ही उपयु त था ‘गिणतं’ नहG। इसम0 दो कारण ह3 –
आच)योितष पवू व) त[ है याजषु परवत[।ं अत: गिणतं वैकिEपक है। मल ू पाठ ‘योितषं’ है। दसू रा
कारण है – वेदांगता और शा%&Zव योितष को (ाQत है के वल गिणत को नहG। तद् वद् वेदाङ्ग
शा%&ाणां गिणतं मधू )िन ि%थतम् कहते ही योितष से होरा और सिं हता आिद अ<य शाखाओ ं का
Fयावत)न हो जाता है। योितष म0 समािवLट है गिणत और ‘शा%&Zव’ योितष का है। फलत: पं0
सधु ाकर िNवेदी जी का यह कहना िक ‘अ& गिणतं’ %थाने ‘योितषम’् इित पाठो न िवशेषाथ)(द इित’
उिचत नहG है। आचाय) Vी िव%मृत हो गये थे िक योितषं के %थान पर गिणतं आया है। पवू व) त[ है
‘आच)’ परवत[ है ‘याजषु ’। आचाय) सधु ाकर िNवेदी ने याजषु योितष का भाLय पहले िलखा और
‘आच)योितष’ का बाद म0। इसीिलए इस िवषय क8 गंभीरता पर उनका /यान नहG गया।
5.3.4 िस6ात काल
िसTा<त काल म0 योितषशा%& उ<नित क8 चरम सीमा पर था। आय)भk, वराहिमिहर,
लEल, ]^गQु त आिद जैसे अनेक धरु <धर योितिव)द ह2ए, िज<ह#ने इस िव,ान को XमबT िकया
तथा अपनी अिNतीय (ितभा Nारा अनेक नवीन िवषय# का समावेश िकया। इस यगु के (ारि:भक
आचाय) वराहिमिहर या वराह ह3, िज<ह#ने अपने पवू क
) ालीन (चिलत िसTा<त# का पंचिसTाि<तका
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
म0 सं>ह िकया। >हगिणत के ?े& म0 िसTा<त, त<& एवं करण इन भेद# का (चार भी होने लगा था।
िसTा<तगिणत म0 कEपािद से, त<& म0 यगु ािद से और करण शकाcद पर से अहग)ण बनाकर >हािद
का आनयन िकया जाता है। िसTा<त म0 जीवा और चाप के गिणत Nारा >ह# का फल लाकर आनीत
म/यम>ह म0 सं%कार कर देते ह3 तथा भौमािद >ह# का म<द और शी’फल लाकर म<द%पLट और
%पLट मान िसT करते है।
योितषशा%& के सािहZय का अZयिधक िवकास ह2आ है। मौिलक ><थ# के अितरत
आलोचनाZमक योितष के अनेक ><थ िलखे गये ह3। भा%कराचाय) ने अपने पवू व) त[ आय)भk,
]^गQु त, लEल आिद के िसTा<त# क8 आलोचना क8 और आकाश िनरी?ण Nारा >हमान क8
%थल ू ता ,ात कर उसे दरू करने के िलए बीजसं%कार क8 Fयव%था बतलायी। ईसवी सन् क8 १२ वG
सदी म0 गोल िवषय के गिणत का (चार बह2त ह2आ था। उरम/यकाल क8 (मख ु िवशेषता >हगिणत
के सभी अगं # के संशोधन क8 है। ल:बन, नित, आयनबलन, आ?बलन, आयनaकम),
आ?aकम), भभू ािब:ब साधन, >ह# के %पLटीकरण के िविभ<न गिणत और ितJयािद के साधन म0
िविभ<न (कार के सं%कार िकये गये, िजससे गिणत Nारा सािधत >ह# का िमलान आकाश-िनरी?ण
Nारा (ाQत >ह# से हो सके ।
इस यगु क8 एक अ<य िवशेषता य<& िनमा)ण क8 भी है। भा%कराचाय) और महे<lसू र ने
अनेक य<&# के िनमा)ण क8 िविध और य<&# Nारा >हवेध क8 (णाली का िनAपण स<ु दर ढंग से िकया
है। यिप इस काल के (ार:भ म0 >हगिणत का बह2त िवकास ह2आ, अनेक करण ><थ तथा सारिणयाँ
िलखी गयG, पर ई0 सन् क8 १५ वG शती से ही >हवेध क8 परपाटी का “ास होने लग गया था। य#
तो (ाचीन ><थ# को %पLट करने और उनके रह%य# को समझाने के िलए इस यगु म0 अनेक टीकाएँ
और भाLय िलखे गए, पर आकाश–िनरी?ण क8 (था उठ जाने से मौिलक सािहZय का िनमा)ण न हो
सका। >हलाघव, करणकुतहू ल और मकर<द जैसे स<ु दर करण ><थ# का िनिम)त होना भी इस यगु के
िलए कम गौरव क8 बात नहG थी।
फिलत योितष म0 जातक, महु oत,) सामिु lक, रमल और (न इन अगं # के सािहZय का िनमा)ण भी इस
काल म0 कम नहG ह2आ है। मिु %लम सं%कृ ित के अित िनकट स:पक) के कारण रमल और तािजक इन
अगं # का तो नया ज<म माना जाता है। तािजक शcद का अथ) ही अरब देश से (ाQत शा%& है। इस यगु
म0 इस िवषय पर लगभग दो दज)न ><थ िलखे गये । इस शा%& म0 िकसी FयिO के नवीन वष) और
मास म0 (वेश करने क8 >हि%थित पर से उसके सम%त वष) और मास का फल बताया जाता है।
बलभlकृ त तािजक ><थ म0 कहा गया है :-

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यवनाचाय?ण पारसीकभाषायां 2णीतं योित:शा ैकदेशQपं
वािषकािदनानािवधफलादेशफलकशा ं तािजकफलवाBयं तदनतरभूतै: समरिसहं ािदिभ:
@ाAणै: तदेवशा ं सं कृतश^दोपिनब,ं तािजकश^दवाBयम।् अतएव तै ता एव
इ4कबालादयो याव7य: स1ं ा उपिनब,ा:।।
अथा)त् यवनाचाय) ने फारसी भाषा म0 योितष शा%& के अगं भतू वष), मास के फल को नाना
(कार से Fयत करनेवाले तािजक शा%& क8 रचना क8 थी। इसके पचात् समरिसंह आिद िवNान# ने
सं%कृ त भाषा म0 इस शा%& क8 रचना क8 और इकवाल, इ<दवु ार, इशराफ आिद यवनाचाय` Nारा
(ितपािदत योग# क8 सं,ाएँ यथावत् रखG।
इसी कालखड म0 रमल शा%&, महु o) शा%& एवं शकुनशा%& का भी उरोर िवकास ह2आ। आइए
अब उनके बारे म0 भी चचा) करते है।
रमल – रमल का (चार िवदेिशय# के संसग) से भारत म0 ह2आ है। ईसवी सन् ११ वG एवं १२ वG शती
क8 कुछ फारसी भाषा म0 रची गयी रमल क8 मौिलक प%ु तक0 खदु ाबdशखाँ लाइ]ेरी पटना म0 मौजदू
ह3। इन प%ु तक# म0 कता)ओ ं के नाम नहG ह3। सं%कृ त भाषा म0 रमल क8 पाँच-सात प%ु तक0 (धान Aप से
िमलती है। रमलनवरZनम् नामक ><थ म0 पाशा बनाने क8 िविध का कथन करते ह2ए कहा गया है िक
– ‘वेदत7वोप=रकृतं रKलशा ं च सू=रिभ:। तेषां भेदा: षोडशैव यूनािध4यं न जायते।’
अथा)त् अिSन, वाय,ु जल और पृJवी इन चार तZव# पर िवNान# ने रमलशा%& बनाया है एवं इन चार
तZव# के सोलह भेद कहे ह3, अत: रमल के पाशे म0 १६ शकल0 बतायी गयी है।
िकंवद<ती है िक बहलोद लोदी के साथ भी एक अgछा रमलशा%& का वेा रहता था,
यह मक ू (न# का उर देने म0 िसTह%त बताया गया है। रमलनवरZन के मगं लाचरण म0 पवू ) के
रमलशािmय# को नम%कार िकया गया है: -
न7वा (ीरमलाचायान् परमा0सुखािभधै:। उ,ृतं रमलाKभोधेनवर7नं सुशोभनम।् ।
अथा)त् (ाचीन रमलाचाय` को नम%कार करके परमसख ु नामक ><थकता) ने रमलशा%&Aपी समlु म0
से स<ु दर नवरZन को िनकाला है। इस ><थ का रचनाकाल १७ वG शती है। अत: यह %वयं िसT है िक
उरम/यकाल म0 रमलशा%& के अनेक ><थ# का िनमा)ण ह2आ है।
मुहa* –
यिद देखा जाय तो उदयकाल म0 ही महु o) स:ब<धी सािहZय का िनमा)ण होने लग गया था
तथा आिदकाल और पवू म) /यकाल म0 संिहताशा%& के अ<तग)त ही इस िवषय क8 रचनाएँ ह2ई थG,
पर उरम/यकाल म0 इस अगं पर %वत<& रचनाएँ दज)न# क8 सdं या म0 ह2ई ह3। शक सवं त् १४२० म0

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
नि<द>ामवासी के शवाचाय) कृ त महु oत) Zव, शक् संवत् १४१३ म0 नारायण कृ त महु oत) मात)ड, शक्
सवं त् १५२२ म0 रामभk कृ त महु o) िच<तामिण, शक् सवं त् १५४९ म0 िव”ल दीि?त कृ त्
महु oत)कEपlुम आिद महु o) स:ब<धी रचनाएँ ह2ई ह3। इस यगु म0 मानव के भी आवयक काय` के
िलए शभु ाशभु समय का िवचार िकया गया है।

शकुनशा –
इसका िवकास भी %वत<& Aप से इस यगु म0 अिधक ह2आ है। िव0सं0 १२३२ म0
अि„पkण के नरपित नामक किव ने नरपितचया) नामक एक शभु ाशभु फल का बोध कराने वाला
अपवू ) ><थ क8 रचना क8 थी। इस ><थ म0 (धान Aप से %वरिव,ान Nारा शभु ाशभु फल का िनAपण
िकया गया है। वस<तराज नामक किव ने अपने नाम पर वस<तराज शकुन नाम का एक महZवपूण)
><थ रचा है। इस ><थ म0 (Zयेक काय) के पणू ) होने वाले शभु ाशभु शकुन# का (ितपादन आकष)क ढंग
से िकया गया है। इन ><थ# के अितरत िमिथला के महाराज लfमणसेना के प&ु बEलालसेन ने
श.सं. १०९२ म0 अvुतसागर नाम का एक सं>ह ><थ रचा है, िजसम0 अपने समय के पवू व) त[
याितिव)द# क8 संिहता स:ब<धी रचनाओ ं का सं>ह िकया है। कई जैन मिु नय# ने शकुन के उपर वृहद्
परमाण म0 रचनाय0 िलखी ह3। यिप शकुनशा%& के मल ू तZव आिदकाल के ही थे, पर इस यगु म0
उ<हG तZव# क8 िव%तृत िववेचनाएँ िलखी गयी है।
इस काल म0 भारतीय योितष ने अनेक उZथान# और पतन# को देखा है। िवदेिशय# के
स:पक) से होनेवाले सशं ोधन# को अपने म0 पचाया है और (ाचीन भारतीय योितष क8 गिणत-
िवषयक %थल ू ताओ ं को दरू कर सfू मता का (चार िकया है।
यिद सं?ेप म0 उरम/यकाल के योितष सािहZय पर aिYपात िकया जाये तो यही कहा जा सकता है
िक इस काल म0 गिणत योितष क8 अपे?ा फिलत योितष का सािहZय अिधक फला-फूला है।
गिणत योितष म0 भा%कर के समान अ<य दसू रा िवNान नहG ह2आ, िजससे िवपल ु परमाण म0 इस
िवषय क8 स<ु दर रचनाएँ नहG हो सक8। इस काल म0 भा कराचाय, दुगदेव, उदय2भदेव,
मि%लषेण, राजािद7य, ब%लालसेन, पn2भ सू=र, नरच# उपा\याय, अoकिव या अहpास,
महे#सू=र, मकरद, के शव, गणेश, ढुिDढराज,नीलकDठ, रामदैव1, म%ला=र, नारायण तथा
रंगनाथ आिद जैसे अनेक# िवNान ह2ए िज<ह#ने अपनी अपवू ) कृ ितय# से भारतीय योितष शा%& को
और पLु पिवत तथा पEलिवत करने म0 अपना योगदान िदया।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
आधुिनक काल –
आधिु नक काल के आर:भ म0 मिु %लम सं%कृ ित के साथ-साथ पाचाZय स}यता का
(चार भी भारत म0 ह2आ। यिप उरम/यकाल म0 ही योितिषय# ने आकाशावलोकन Zयागकर
प%ु तक# का पEला पकड़ िलया था और प%ु तक8य ,ान ही योितष माना जाने लगा था। सZय तो यह
है िक भा%कराचाय) के पचात् मिु %लम राय# के कारण िह<द-ू धम), स:पि, सािहZय और योितष
आिद िवषय# क8 उ<नित पर पहाड़ िगरे िजससे उत िवषय# का िवकास Aक गया। कुछ धमा)<ध
सा:(दाियक प?पाती मिु %लम बादशाह# ने स:(दाय के मद म0 चरू होकर भारतीय ,ान-िव,ान को
नLट करने म0 लेशमा& भी संकोच नहG िकया, तथािप उसक8 धारा शावत Aप म0 गितमान है। िवNान#
को राजाVय न िमलने से योितष के (सार और िवकास म0 कुछ कम बाधाएँ नहG आयी। नवीन
सश ं ोधन और परवT)न तो अलग क8 बात है, परु ातन योितष ,ान-भडार का सरं ?ण भी किठन हो
गया। यिप कुछ िह<द,ू मिु %लम िवNान# ने इस युग म0 फिलत ><थ# क8 रचनाएँ कG, लेिकन
आकाश-िनरी?ण क8 (था उठ जाने से वा%तिवक योितष तZव# का िवकास नहG हो सका। शकुन,
(न, महु o,) ज<मप& एवं वष)प& के सािहZय क8 अवय वृिT ह2ई है। कमलाकर भk ने सयू )िसTा<त
का (चार करने के िलए ‘िसTा<ततZविववेक’ नामक गिणत योितष का महZवपणू ) ><थ रचा है। इस
अवा)चीन काल के (ार:भ म0 (ाचीन ><थ# पर टीका- िटQपणी बह2त िलखे गये।
१७८० म0 आमेरािधपित महाराज जयिसहं का /यान योितष क8 ओर िवशेष आकृ Lट ह2आ
और उ<ह#ने काशी, जयपरु एवं िदEली म0 वेधशालाएँ बनवायG, िजनम0 पZथर# क8 ऊँची और िवशाल
दीवार# के Aप म0 बड़े-बड़े य<& बनवाये। %वयं महाराज जयिसंह इस िवा के (ेमी थे, इ<ह#ने यरू ोप
क8 (चिलत तारासिू चय# म0 कई &िु टयाँ बताई तथा भारतीय योितष के आधार पर नवीन सारिणयाँ
तैयार करायG।
साम<तच<lशेखर ने अपने अिNतीय बिु Tकौशल Nारा >हवेध कर (ाचीन गिणत-योितष के ><थ#
म0 संशोधन िकया तथा अपने िसTा<त# Nारा >ह# क8 गितय# के िविभ<न (कार बतलाये। इनके Nारा
रिचत ‘िसTा<तदप)ण’ नामक ><थ aSगिणतैय पर आधारत अि<तम िसTा<त ><थ के Aप म0 जाना
जाता है।
इधर अ>ं ेजी स}यता के स:पक) से भारत म0 अ>ं ेजी भाषा का (चार हो गया। इस भाषा के
(चार के साथ-साथ अ>ं ेजी आधिु नक भगू ोल और गिणतिवषयक िविभ<न ><थ# का पठन –पाठन
क8 (था भी (चिलत ह2ई। सन् १८५७ के पचात् तो आधिु नक नवीन आिवLकृ त िव,ान# का (भाव
भारत के उपर िवशेष Aप से पड़ा है। फलत: अ>ं ेजी भाषा के जानकार सं%कृ त के िवNान# ने इस
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भाषा के नवीन गिणत ><थ# का अनवु ाद सं%कृ त म0 कर योितष क8 VीवृिT क8 है। बापदू वे शा%&ी
और प0ं सधु ाकर िNवेदी ने इस और िवशेष (यZन िकया है। आप महानभु ाव# के (यास के
फल%वAप ही रे खागिणत, बीजगिणत और ि&कोणिमित के ><थ# से आज का योितष धनी कहा
जा सके गा। के तक नामक िवNान ने के तक8>हगिणत क8 रचना अ>ं ेजी >ह-गिणत और भारतीय
गिणत िसTा<त# के सम<वय के आधार पर क8 है। दीघ)वZृ त, परवलय, अितपरवलय, इZयािद के
गिणत का िवकास इस नवीन स}यता के स:पक) क8 मdु य देन माना जाता है।
पृJवी, च<lमा, सयू ,) सौर-चX, बधु , शX
ु , मगं ल, अवा<तर >ह, वृह%पित, यरू े नस,
नेपgयनू , नभ%तपू , आकाशगंगा और उEका आिद का वै,ािनक िववेचन पिमीय योितष के
स:पक) से इधर चार दशक# के बीच म0 िवशेष Aप से ह2आ है। डॉ0 गोरख(साद ने आधिु नक
वै,ािनक अ<वेषण# के आधार पर इस िवषय क8 एक िवशालकाय सौरपरवार नाम क8 प%ु तक
िलखी है िजससे सौर जगत् के स:ब<ध म0 अनेक नवीन बात# का पता लगता है। Vी स:पणू ा)न<द जी
ने योितिव)नोद नामक प%ु तक म0 कापिन)कस, िजओईनो, गैलेिलयो और के Qलर आिद पाचाZय
योितिषय# के अनसु ार >ह, उप>ह और अवा<तर >ह# का %वAप बतलाया है। Vी महावीर(साद
Vीवा%तव ने सयू ) िसTा<त का आधिु नक िसTा<त# के आधार पर िव,ानभाLय िलखा है, िजससे
स%ं कृ त, योितष के िवNान# का बह2त उपकार ह2आ ह। अिभ(ाय यह है िक आधिु नक यगु म0
पाचाZय योितष के स:पक) से गिणत योितष के िसTा<त# का वै,ािनक िववेचन (ार:भ ह2आ है।
यिद भारतीय योितषी आकाश-िनरी?ण को अपनाकर नवीन योितष के साथ तल ु ना कर0 तो
पवू म) /यकाल से चली आयी >हगिणत क8 सारिणय# क8 %थल ू ता दरू हो जायेगी और भारतीय
योितष क8 महZता समाज के सम? और सaु ढ़ Aप म0 %थािपत हो सके गा।
अवा)चीन काल म0 मनु ीवर, िदवाकर, कमलाकर भk, िनZयान<द, मिहमोदय,
मेघिवजयगिण, उभयकुशल, लिcधच<lमिण, बाघजी मिु न, यश%वतसागर, जग<नाथ स—ाट, बापदू वे
शा%&ी, नीला:बर झा, साम<तच<lशेखर, सधु ाकर िNवेदी, प0ं रामयZन ओझा, प0ं रामFयास पाडेय,
पं0 अवधिबहारी ि&पाठी, पं0 मीठालाल ओझा, पं0 सीताराम झा, आचाय) राजमोहन उपा/याय,
आचाय) रामच<l पाडेय, पं0 हीरालाल िमV, आचाय) कEयाण द शमा), आचाय) शक ु देव
चतवु दŽ ी, आचाय) रामच<l झा, िशवका<त झा, आचाय) सिgचदान<द िमV आिद अनेक# ऐसे
योितष शा%& के िवNान ह2ए ह3 और ह3, िज<ह#ने अपना स:पणू ) जीवन इस शा%& क8 उपासना म0
लगा दी। इ<ह#ने अपनी-अपनी कृ ितय# से इस शा%& क8 र?ा के साथ-साथ इनको पLु पिवत और
पEलिवत करने म0 अपना महZवपणू ) योगदान िदया और दे रहे ह3। साथ ही इनके अ/येताओ ं को

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नवीन उजा) (दान करने के साथ-साथ योितष शा%& म0 िनZय नवीन शोध करने के िलए (ेरत भी
िकया।
अ$यास %न – 2
रत %थान# क8 पिू त) क8िजये –
1. वेदांग योितष के अनसु ार ५ वष) बराबर ................... होता है।
2. एक सौर वष) .............. िदन# का होता है।
3. ‘र’ अ?र आगम म0 ................... का वाचक है।
4. िजसके शरीर से मृिका क8 स#धी संगु िध िनकलती हो उसे ............... कहते है।
5. आचाय) नरपित Nारा रिचत ><थ का नाम ............ है।

5.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक िकसी भी शा%& या िवषय का
स:यक् अ/ययन करने के िलए उसका इितहास जानना आवयक होता है; य#िक उस शा%& के
इितहास Nारा तिNषयक रह%य समझ म0 आ जाता है। योितषशा%& सृिY और (कृ ित के रह%य को
Fयत करने वाला है। मानव (कृ ित क8 पाठशाला म0 सव)दा से इस शा%& का अ/ययन करता चला
आ रहा है। गAु पर:परा से इस शा%& क8 अनवरतता लोक म0 (िसT है, अत: इस शा%& के उvव
%थान और काल का िनिचत Aप से पता लगाना किठन है। चाहे अ<य ,ान# क8 िनझ)रणी के आिद
ोत का पता लगाना स:भव हो, पर (कृ ित के अन<यतम अगं इस शा%& का ओर-छोर ढूँढना मानव-
शिO से परे क8 बात है। अथवा दसू रे शcद# म0 यह कहा जा सकता है िजस िदन से मानव ने होश
संभाला, उसी िदन से उसने योितष के आवयक तZव# का अ/ययन करना शA ु कर िदया। भले ही
वह इन तZव# को अिभFयत करने क8 योSयता के अभाव म0 दसू र# को न बता सका हो, पर उसका
जीवन िनवा)ह इन तZव# के िबना हो नहG सकता था; फलत: मानव- जीवन के िवकास के साथ- साथ
योितष का भी िवकास ह2आ।
5.6 पारभािषक शदावली
इितहास – Fयतीत हो चक ु 8 अथवा घिटत घटनाओ ं से स:बि<धत कहानी। सामा<यतया जो Fयतीत
हो चक
ु 8 हो, उसे इितहास कहते है। िकसी िवषय क8 सम>ता का बोध कराने वाला तJय।
दैव1 – दैववशात् होने वाली घटनाओ ं को जानने वाला अथवा काल को जानने वाला।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
क%प – १००० महायगु के बराबर
वेदांग योितष – महाZमा लगध क8 रचना।
लगध – िजसके शरीर से मृिका क8 स#धी सगंु िध िनकलती हो, उसे लगध कहते है।
मुहa* – महु धातु म0 उरट (Zयय लगने से महु o) शcद क8 FयZु पि होती है।
वेदांग – वेद के अगं को वेदांग कहा जाता है। भारतीय ,ान – िव,ान क8 पर:परा म0 षड् वेदांग कहे
गये है। इ<हG वेदांग# को शा%& भी कहा जाता है।

5.7 अयास  न के उ!र


अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला
1. घ 2. घ 3. घ 4. ख 5. क
अWयास 2Iन – 2 कP उ*रमाला
1. १ यगु 2. ३६६ 3. अिSनबीजक 4. लगध 5. नरपितजयचया)

5.8 सदभ" #थ सूची


(क) भारतीय योितष – Vी शकं र बाल कृ Lण दीि?त
(ख) वेदांग योितष – मल
ू लेखक – महाZमा लगध
(ग) भारतीय योितष – नेिमच<l शा%&ी
(घ) िसTा<तिशरोमिण – मल ू लेखक – आचाय) भा%कराचाय)
(ड.) योितष शा%& – डॉ0 कामेवर उपा/याय
5.9 सहायक पाठ्यसाम#ी
योितष शा%& का इितहास – लोकमिण दहाल
भारतीय योितष – शक ं रबालकृ Lणदीि?त / नेिमच<द शा%&ी
योितष शा%& – डॉ0 कामेवर उपा/याय
योितष िसTा<त मजं षू ा – (ोफे सर िवनय कुमार पाडेय
सल
ु भ योितष ,ान – पं. वासदु वे सदािशव खानखोजे

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
5.10 िनबधा.मक  न
1. योितष क8 परभाषा िलखते ह2ये िव%तृत वण)न क8िजये।
2. योितष शा%& क8 ऐितहािसक िववेचना क8िजये।
3. योितष के िसTा<त काल पर िटQQणी िलिखये।
4. इस इकाई के अ/ययन के आधार पर अपने शcद# म0 योितषशा%& पर िनब<ध िलिखये।
5. योितष क8 उपयोिगता पर (काश डािलये।

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खड – 2
योितष शा  के मुख अंग

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इकाई – 1 ि -प7च-बह: कधा&मक योितष िववेचन

इकाई क8 संरचना
१.१ (%तावना
१.२ उ|ेय
१.३ ि& %क<ध योितष
१.४ पंच %क<ध योितष
१.५ बह2%क<धाZमक योितष
१.६ सारांश
१.७ पारभािषक शcदावली
१.८ अ}यास (न# के उर
१.९ सहायक पाठ्यसाम>ी
१.१० स<दभ) ><थ सचू ी
१.११ िनब<धाZमक (न

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१.१ तावना
(%ततु इकाई िNतीय खड क8 पहली इकाई से स:बि<धत है, िजसका शीष)क है – ि&-पंच-
बह2%क<धाZमक िववेचन। इससे पवू ) क8 इकाईय# म0 आपने योितष शा%& का परचय, इितहास
आिद का अ/ययन कर िलया है। अब आप इसी Xम म0 उसके %क<ध# का अ/ययन करने जा रहे है।
योितष शा%& का ?े& अZय<त िव%तृत है, इसके कई %क<ध है। इसीिलए बह2%क<धाZमक
योितष क8 बात कही गई है। यिद हम योितषशा%& को कEपवृ? के Aप म0 जान0, तो उस वृ? क8
कई शाखाय0 है। शाखाय0 ही %क<ध Aप म0 FयाQत है।
आइए अब हम (धान Aप से और िव%तृत Aप से योितष के %क<ध# क8 जानकारी (ाQत
करने का (यास करते है।

१.२ उ)े%य
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप -
 योितष शा%& के िविवध %क<ध# को समझ ल0ग।े
 (धान %क<ध# को समझ सके ग0।
 बह2%क<धाZमक योितष को समझा सके ग0।
 ि&-पंच- बह2%क<धाZमक योितष का िववेचन कर सक0 गे।
१.३ ि - कध योितष
योितषशा%& ]^ाडोZपि के साथ ही अपने अि%तZव को लेकर (कट ह2आ था। अत:
उसका आर:भ ]^ाडोZपि के साथ ही ह2आ है, इसम0 लेशमा& भी संशय नहG। काला<तर म0 उसके
Aप# म0 परवत)न होता चला गया। इस शा%& के अनेक# (व)क ह2ए, िजनम0 ]^ा जी से लेकर
शौनकािद पय)<त िविवध नाम# का उEलेख िमलता है। योितषशा%& अपने िविवध %क<ध# के साथ
सृिY म0 कEपवृ? क8 भाँित FयाQत होकर यगु -यगु ा<तर से लोकोपकारी रहा है। ‘ि&’ शcद का अथ)
तीन (3) होता है, जो संdयावाची है। (धानता के aिYकोण से योितषशा%& के तीन %क<ध ह2ए –
१. िसTा<त या गिणत २. होरा या फिलत 3. सिं हता
इ<हG तीन# %क<ध# को ‘ि&%क<ध योितष’ के नाम से जाना जाता है। इसका िव%तृत िवलेषण आगे

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क8 इकाईय# म0 िकया जायेगा। यहाँ सामा<य Aप से आप इ<ह0 समझ िलिजये।
१. िसTा<त या गिणत – योितष के (मख ु %क<ध# म0 यह पहला %क<ध है, िजसम0 काल क8
सfू मतम इकाई ‘&िु ट’ से लेकर (लय काल पय)<त काल-गणना, सौर-चा<lमास# का
(ितपादन, >हगितय# का िनAपण, FयताFयत गिणत का (योजन, िविवध (नोर
िविध, >ह-न?& क8 ि%थित, नाना (कार के तरु ीय, निलका इZयािद य<&# क8 िनमा)ण िविध,
िदक् –देश-काल ,ान के अन<यतम उपयोगी अगं , अ??े& स:ब<धी अ?या, ल:बया,
ु या,कुया, तTिृ त, समशंकु इZयािद का आनयन िकया जाता है। जैसा िक आचाय)
भा%कराचाय) जी ने इसक8 परभाषा बताते ह2ए कहा है-
ुट्यािद2लयातकालकलना मान2भेदः ;मा-
Bचारr 0स ु दां ि6धा च गिणतं 2sा तथा सो*राः।
भूिध8Dय-हसंि थतेr कथनं य ािदय ोBयते।
िस,ात स उदाtतोऽ गिणत कध तृतीयोऽपरः।।

इसके अितरत सामा<यतया िसTा<त को हम इस Aप म0 भी जानते है िक - िसT: अ<ते य%य स:


िसTा<त:। अथा)त् अ<त म0 जाकर जो िसT हो जाये, उसका नाम िसTा<त है। गयते संdयायते तद्
गिणतम।् यह गिणत क8 परभाषा है। (ाचीनकाल म0 इसक8 परभाषा के वल िसTा<त गिणत के Aप
म0 मानी जाती थी। आिदकाल म0 अक ं गिणत Nारा ही अहग)ण मान सािधत कर >ह# का आनयन
करना इस शा%& का (धान (ितपा िवषय था। पवू म) /यकाल म0 इसक8 यह परभाषा य# क8 Zय#
अवि%थत रही। उरम/यकाल म0 इसने अनेक पहलओ ु ं के पEल# को पकड़ा और इस यगु के (ार:भ
से वासनाZमक होती ह2यी भी Fयत गिणत को अपनाती रही, इसिलए इस काल म0 गिणत के
िसTा<त, त<& व करण तीन भेद (कट ह2ए।
िजसम0 सृY्यािद से इLट िदन पय)<त अहग)ण बनाकर >ह िसT िकये जाय0 वह ‘िसTा<त’; िजसम0
यगु ािद से इLट िदन पय)<त अहग)ण बनाकर >हगिणत िकया जाये वह ‘त<&’ और िजसम0 किEपत इLट
वष) का यगु के भीतर ही िकसी अभीLट िदन का अहग)ण लाकर >हानयन िकया जाये उसे ‘करण’
कहते है।
२. होरा या फिलत – (मखु %क<ध# के Xम म0 यह दसू रा %क<ध है। यह पणू त) : िसTा<त
या गिणत योितष पर आधारत है। गिणत के Nारा जब हम >ह# को िसT कर लेते ह3,

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तब उसी आधार पर मानव जीवन के उपर उनका (>ह# का) पड़ने वाले (भाव# का
िवलेषण िजस %क<ध म0 हम करते ह3, उसी का नाम ‘होरा या फिलत’ योितष है।
इसका दसू रा नाम जातकशा%& है। इसक8 उZपि अहोरा& शcद से है। आिद शcद
‘अ’ और अि<तम शcद ‘&’ का लोप कर देने से होरा शcद बनता है। होराशाm
मानवजीवन का पथ(दश)क है। ज<मकुडली के आधार पर Nादश भाव# के शभु ाशभु
फल का िववेचन करना होराशाm का (धान िवषय है। जैसा िक आचाय) भkोZपल ने
कहा है – '2ितSाया ािववाहादीनां ल[न-हवशेन च शुभाशुभफलं जगित यया
िनिrयते सा होरा'।
३. संिहता – (मख ु %क<ध# म0 यह तीसरा है। इसम0 समिYपरक फलादेश आिद क)Fय िकये
जाते ह3। इसम0 भश
ू ोधन, िदशोधन, शEयोTार, गृहोपकरण, गृहार:भ, गृह(वेश, वा%त,ु
दकाग)ल, समघ)- महघ), (ाकृ ितक आपदा, वृिY, जलाशय िनमा)ण, >ह# के उदया%त का
फल, >हचार आिद इZयािद सम%त (कEप इसी %क<ध के अ<तग)त आते ह3। ऐसा शाm जो
जन सामा<य के िहतकारक अथवा लोकिहतपरक िवषय# का स:यOया (ितपादन करता
हो, उसे संिहता कहा जाता है। FयाकरणaLट्या ‘संिहत’ शcद म0 टाप (Zयय करने पर
‘सिं हता’ शcद क8 िनLपि होती है।
उपय)ु त ये तीन# %क<ध योितषशा%& के (मख ु शाखाय0 ह3, िजनका ,ान योितषशा%& के
अ/येताओ ं को होना परमावयक है। आइये अब पचं -%क<ध योितष को जानते है।
१.४ पंच कधा&मक योितष
ि&%क<ध योितष म0 ‘(न एवं शकुन’ को िमलाकर कुल पाँच %क<ध# को पचं -
%क<धाZमक योितष कहा जाता है। होरा %क<ध से ‘(न’ एवं सिं हता %क<ध से शकुन क8 उZपि
ह2ई है। (न योितष के अनेक# ><थ आज (ाQत होते ह3, य#िक योितष जगत म0 (न का बड़ा
महZव है।
िकसी FयिO का कोई भी काय) होगा या नहG, िकस (कार होगा ? इZयािद अनेक (न लोग
दैव,# (योितषीय#) से पछ
ू ते ह3। (न का उर बताने क8 कई रीितयाँ ह3। कुछ लोग (नकालीन
लSन के अनसु ार फल बताते ह3, इसिलए (न होरा%क<ध का एक अगं कहा जा सकता है पर<तु कुछ
रीितयाँ ऐसी ह3, िजनका योितष से कोई स:ब<ध नहG ह3। िफर भी लोग# क8 यह धारणा है िक
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योितषी सभी (कार के भिवLय बतात0 ह3, इसिलए हर एक (कार का (न योितष का िवषय समझा
जाता है और सभी (न ><थ# क8 गणना योितष><थ# म0 क8 जाती है। यथाथ) म0 योितष से इतर
िवषय स:बि<धत (न योितष के (न %क<ध म0 नहG आता है।
सिं हता%क<ध का ही एक अगं शकुन है। इस पर आचाय) नरपितकृ त नरपितजयचया) नामक
एक बड़ा (ाचीन अथा)त् िवXम संवत् १२३२ का ><थ है। नरपित जैन (तीत होते ह3। इसे उ<ह#ने
अि<हलपkन म0 बनाया था। इनके िपता आ—देव धारानगरी म0 रहते थे। वे बह2त बड़े िवNान थे। इस
><थ म0 %वर Nारा मdु यत: राजाओ ं के िलए शभु ाशभु फल बताये ह3। ><थकार ने इसक8 ><थसdं या
४५०० िलखी है। (तीत होता है इसे %वरोदय और सारोTार भी कहते ह3। िजन ><थ# के आधार पर
यह बना है उनके नाम ><थकार ने आर:भ म0 इस (कार िलखे ह3 –
VZु वादौ यामलान् सQत तथा यT ु जयाण)वम।्
कौमारीकौशलंचैव योिगनां योगस:भवम।् ।
रति&मिू त)कं च %वरिसंहं %वराण)वम।्
भबू लं गाAडं नाम ल:पटं %वरभैरवम।् ।
त<&बलंच ताdयं च िसTा<तं जयपTितम।्
प%ु तके <lं पटौVीद(णं योितषाण)वम।् ।
इनके अितरत इसम0 वस<तराज ><थकार तथा चडू ामिण और गिणतसार ><थ# के नाम भी आये ह3,
अत: ये सभी शके १०९७ के पहले के ह3। इस पर हरवश ं कृ त जयलfमी ना:नी तथा नरहर, भधू र
और रामनाथ क8 टीकाय0 ह3। नैिमष?े&वासी सरू दास के प&ु राम वाजपेयी का %वरशा%& पर समरसार
नामक ><थ है। उस पर उनके भाई भरत क8 टीका है। यह %वरशा%& मdु यत: नािसका से िनकले ह2ए
वायु के आधार पर बनाया गया है। इस िवषय के अ<य भी बह2त से ><थ है।

१.५ बह: कधा&मक योितष


िविदत हो िक योितषशा%& के अनेक# %क<ध ह3। सभी का वण)न करना यहाँ करना स:भव
नहG, पर<तु (मखु ता और Fयावहारकता के aिYकोण से यहाँ अ<य %क<ध# का उEलेख िकया जा
रहा ह3। सव)(थम आप यहाँ नीचे िदए गए ?े& म0 बह2%क<धाZमक योितष को समिझये -

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501

योितष क;प<ुम

आप िच& म0 योितषशा%& Aपी कEपवृ? को देख रहे है, िजसके मल ू म0 चार# वेद -
ऋSवेद, यजवु दŽ , सामवेद एवं अथव)वदे है। साथ ही उपिनषद, परु ाण एवं त<& का भी उEलेख है। उसी
मल
ू से उपर आप योितषशा%& और उसके %क<ध# को देख रहे ह3। िसTा<त, संिहता एवं होरा
%क<ध के भी िविभ<न %क<ध आपको वृ? क8 शाखाओ ं म0 परलि?त हो रहा है।
िस,ात कध मM पाटी गिणत, बीजगिणत, रे खागिणत, ि&कोणिमित, यािमित, चलनकलन,
गोला/याय, करण ><थ, त<& ><थ, चापीयि&कोणिमित, गोलीयरे खागिणत, (ितभाबोधकम,्
य<&िनमा)ण, वेधशाला, Vृगं ो<नित आिद (मख ु ह3।
होरा कध के अ<तग)त जातक ><थ, तािजक ><थ, पच ं ागं िनमा)ण ><थ, लघजु ातक, महु o) ><थ

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एवं (न ><थािद (मख ु ह3।
संिहता कध के अ<तग)त सामिु lक, वा%त,ु वृिY, अvुतोZपात, शकुन, शाि<त, %वर, >हचार
शभु ाशभु , भश
ू ोधनािद, पEलीपतन िवचार, %वQन, अगं %फुरण िवचार, रमल आिद (मख ु ह3।
उपय)ु त इन %क<ध# के भी उप%क<ध ह3। इसीिलए योितषशा%& अZय<त िव%तृत है। मेरी
aिY म0 इसके िकसी एक िवधा म0 ही मानव जीवन का यिद स:पणू ) काल लगा िदया जाय, तो
कदािचत् वो भी अपणू ) ही रह जाय, तथािप %थलू Aप से इन सभी का अ/ययन आवयक है।
गोला\याय - गिणत %क<ध म0 गोला/याय (मख ु है िजसक8 (शसं ा करते ह2ए भा%कराचाय) कहते है
िक –
भोयं यथा सवरसं िवनायं रायं यथा रायिवविजतं च।
सभा न भातीव सवु कतीृ हीना गोलानिभ1ो गणक तथाऽ ।।
अथा)त् भोजन म0 सभी Fयंजन उपलcध हो और घी न ह# तो भोजन Fयथ) है, राजा के िबना राय तथा
अgछे वता के िबना सभा Fयथ) है। उसी (कार गोल से अनिभ, गणक (योितषी) नहG हो सकता।
अत: >ह# के समिु चत ,ान के िलए ‘गोल’ का ,ान होना परमावयक है। इसक8 महा को देखते
ह2ए आचाय) भा%कर ने िसTा<तिशरोमिण म0 ‘गोला/याय’ का %वत<& Aप से (ितपादन िकया है।
ि कोणिमित – िजस (कार योितषशा%&ीय ि&कोणिमित म0 या अ, कोया अ, %प अ, को%प
अ, छे अ, तथा कोछे अ का (योग सम%त समीकरण# म0 करते ह3, उसी (कार आधिु नक गिणत म0
हम Sinθ, Cosθ, tanθ, Cosecθ, Secθ, तथा Cotθ का (योग करते ह3। अ<य स&ू # को
साधने के शेष सभी िनयम लगभग समान होते ह3। मेरी aिY म0 योितषशा%&ीय िविध वैिदक पTित
के अनसु ार है, इसीिलए वो आधिु नक से VेLठ है।
इसी (कार बीजगिणत, रे खागिणत, गोलीयरे खागिणत, यािमित, चलनकलन तथा अ<य %क<ध भी
महZवपूण) ह3।
अ$यास %न – 1
1. ‘ि&’ शcद का अथ) होता है –
क. 3 ख. 4 ग. 5 घ. 6
2. (धानतया योितष शा%& के िकतने %क<ध ह3 –
क. पाँच ख. चार ग. छ: घ. तीन
3. काल क8 सfू मतम इकाई या है?
क. रे णु ख. &िु ट ग. िनमेष घ. घटी
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4. िसT: अ<ते य%य स: ........... ?
क. होरा ख. गिणत ग. िसTा<त: घ. सिं हता
5. ‘योितषी’ का पया)य है?
क. दैव, ख. गणक ग. कालवेा घ. उपयु त सभी

य वेध - वेध शcद का िनमा)ण ‘िवध’् धातु से ह2आ है िजसका अथ) है िकसी आकाशीय >ह
अथवा तारे को aिY के Nारा वेधना अथा)त् िवT करना। >ह# तथा तार# क8 ि%थित के ,ान हेतु
आकाश म0 उ<ह0 देखा जाता था। आकाश म0 >हािदक# को देखकर उनक8 ि%थित का िनधा)रण ही वेध
है। परभाषा Aप म0 “न[नने या शलाका, यिu, निलका, दूरदशक इ7यािद य L के 6ारा
आकाशीय िपDडL का िनरी$ण ही वेध है।” निलकािद य<&# से >ह# के िवT होने के कारण ही
इस िXया का नाम ‘वेध’ िवyिवVतु है।
vिu तथा य भेद से वेध दो (कार का होता है-aिY वेध भी अ<तa)िYवेध तथा
बा‚aिYवेध से दो (कार का होता है। यहाँ महिष)य# Nारा यम-िनयम, आसन, (ाणायामािद
तप%याओ ं से भिO,ानज<य ने& Nारा ]^ाड%थ िपड# के अवलोकन को अतvिuवेध तथा %व-
%व नSन ने& Nारा आकाश%थ िपडावलोकन को बाjvिuवेध माना जाता है। जब हम चXनिलका,
शक
ं ु , दरू दश)क आिद वेध-उपकरण# से सयू ा)िद योित:िपड# को देखते ह3 तो य वेध होता है।
मुहa* – महु o) योितषशा%& का अिभ<न अगं है। ‘महु ’ धातु म0 उरट (Zयय लगने से महु o) शcद बना
है। इसके िबना हम िकसी भी काय) के शभु ाशभु परणाम क8 कEपना नहG कर सकते ह3। यथा- rत,
पव), उZसव, िववाह, षोडशसं%कार, य,कम) अथवा अ<य कोई भी शभु काय) हो अथवा VाTािद
(अशभु कम)) काय) हो हम महु o) के िबना उसका अनश ु ासन स:यक Aप से नहG कर सकते ह3। अत:
महु o) का ,ान योितष के अ/येताओ ं के िलए परमावयक है। सामा<यतया लोग योितषी के पास
शभु ाशभु महु o) ,ान के िलए ही जाते है, अथवा योितषी से शभु ाशभु महु o) जानने क8 अपनी इgछा
(कट करते ह3।
यिद देखा जाय तो योितषशा%& के उदयकाल म0 ही महु o) स:ब<धी सािहZय का िनमा)ण
होने लग गया था तथा आिदकाल और पवू म) /यकाल म0 संिहताशा%& के अ<तग)त ही इस िवषय क8
रचनाएँ ह2ई थG, पर उरम/यकाल म0 इस अगं पर %वत<& रचनाएँ दज)न# क8 संdया म0 ह2ई ह3। शक
सवं त् १४२० म0 नि<द>ामवासी के शवाचाय) कृ त महु o)तZव, शक् सवं त् १४१३ म0 नारायण कृ त महु oत)

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मात)ड, शक् संवत् १५२२ म0 रामभk कृ त महु oि) च<तामिण, शक् संवत् १५४९ म0 िव”ल दीि?त
कृ त् महु oत)कEपlुम आिद महु o) स:ब<धी रचनाएँ ह2ई ह3। इस यगु म0 मानव के भी आवयक काय` के
िलए शभु ाशभु समय का िवचार िकया गया है।
2Iनशा – यह तZकाल फल बतलाने वाला शा%& है। इसम0 (नकता) के उgचारत अ?र# पर से
फल का (ितपादन िकया जाता है। ईसवी सन् क8 ५वG और ६ठी शती म0 के वल पृgछक के उgचारत
अ?र# से फल बतलाना ही (नकता) के अ<तग)त था; लेिकन आगे जाकर इस शा%& म0 तीन
िसTा<त# का (वेश ह2आ – १. (ना?र िसTा<त २. (न लSन िसTा<त, ३. %वरिव,ान िसTा<त।
िदग:बर जैन ><थ# क8 अिधकतर रचनाएँ दि?ण भारत म0 होने के कारण (ाय: सभी (न ><थ
(ना?र िसTा<त को लेकर िनिम)त ह2ए ह3। अ<वेषण करने पर %पLट (तीत होता है िक
के वल,ान(नचड़ू ामिण, च<lो<मीलन (न, आय,ानितलक, अह)gचडू ामिण आिद ><थ# के आधार
पर ही आधिु नक काल म0 के रल (नशा%& क8 रचना ह2ई है।
वराहिमिहर के प&ु पृथयु शा के समय से (नलSनवाले िसTा<त का (चार भारत म0 तीrता
से ह2आ है। ९वG १०वG और ११वG शती म0 इस िसTा<त को िवकिसत होने के िलए पणू ) अवसर
िमला है, िजससे अनेक %वत<& रचनाय0 भी इस िवषय पर िलखी गयी है। इस शा%& क8 परभाषा म0
उZतर म/यकाल तक अनेक सश ं ोधन और परवT)न होते रहे ह3। चया), चेLटा, हाव-भाव आिद के
Nारा मनोगत भाव# का वै,ािनक aिY से िवलेषण करना भी इस शा%& के अ<तग)त आता है।
रमल – रमल का (चार िवदेिशय# के संसग) से भारत म0 ह2आ है। सं%कृ त भाषा म0 रमल क8 पाँच-सात
प%ु तक0 (धान Aप से िमलती है। रमलनवरZनम् नामक ><थ म0 पाशा बनाने क8 िविध का कथन करते
ह2ए कहा गया है िक – ‘वेदत7वोप=रकृतं रKलशा ं च सू=रिभ:। तेषां भेदा: षोडशैव
यूनािध4यं न जायते।’
अथा)त् अिSन, वाय,ु जल और पृJवी इन चार तZव# पर िवNान# ने रमलशा%& बनाया है एवं इन चार
तZव# के सोलह भेद कहे ह3, अत: रमल के पाशे म0 १६ शकल0 बतायी गयी है।
‘रमलनवरZन’ के मगं लाचरण म0 पवू ) के रमलशािmय# को नम%कार िकया गया है: -
न7वा (ीरमलाचायान् परमा0सुखािभधै:। उ,ृतं रमलाKभोधेनवर7नं सुशोभनम।् ।
अथा)त् (ाचीन रमलाचाय` को नम%कार करके परमसख ु नामक ><थकता) ने रमलशा%&Aपी समlु म0
से स<ु दर नवरZन को िनकाला है। इस ><थ का रचनाकाल १७ वG शती है।
शकुनशा – इसका अ<य नाम िनिम शा%& भी िमलता है। पवू म) /यकाल तक इसने पृथक् %थान
(ाQत नहG िकया था, िक<तु सिं हता के अ<तग)त ही इसका िवषय आता था। काला<तर म0 ईसवी सन्

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
क8 १०वG, ११वG, और १२वG शितय# म0 इस िवषय पर %वत<& िवचार होने लग गया था, िजससे
इसने अलग शा%& का Aप (ाQत कर िलया। िव0स0ं १०८९ म0 आचाय) दगु द) वे ने अरLट िवषय को
भी शकुनशा%& म0 िमला िदया था। आगे चलकर इस शा%& क8 परभाषा और भी अिधक िवकिसत
ह2ई और इसक8 िवषयसीमा म0 (Zयेक काय) के पवू ) म0 होने वाले शभु ाशभु # का ,ान (ाQत करना भी
आ गया। िव0सं0 १२३२ म0 अि„पkण के नरपित नामक किव ने नरपितचया) नामक एक शभु ाशभु
फल का बोध कराने वाला अपवू ) ><थ क8 रचना क8 थी। इस ><थ म0 (धान Aप से %वरिव,ान Nारा
शभु ाशभु फल का िनAपण िकया गया है। वस<तराज नामक किव ने अपने नाम पर वस<तराज शकुन
नाम का एक महZवपूण) ><थ रचा है। इस ><थ म0 (Zयेक काय) के पणू ) होने वाले शभु ाशभु शकुन# का
(ितपादन आकष)क ढंग से िकया गया है। इन ><थ# के अितरत िमिथला के महाराज लfमणसेना
के प&ु बEलालसेन ने श.सं. १०९२ म0 अvुतसागर नाम का एक सं>ह ><थ रचा है, िजसम0 अपने
समय के पवू व) त[ याितिव)द# क8 संिहता स:ब<धी रचनाओ ं का सं>ह िकया है। कई जैन मिु नय# ने
शकुन के उपर वृहद् परमाण म0 रचनाय0 िलखी ह3। यिप शकुनशा%& के मल ू तZव आिदकाल के ही
थे, पर इस यगु म0 उ<हG तZव# क8 िव%तृत िववेचनाएँ िलखी गयी है।
तािजक शा - यवनाचाय) ने फारसी भाषा म0 योितष शा%& के अगं भतू वष), मास के फल को
नाना (कार से Fयत करनेवाले तािजक शा%& क8 रचना क8 थी। तािजक शा%& म0 इकबाल आिद
षोडश (16) (मख ु योग# क8 और पु यािद 50 सहम# क8 चचा) ह3।
इसके अितरत भी योितष के कई %क<ध एवं उप%क<ध ह3। अZयिधक िव%तार हो जाने के
कारण यहाँ सभी का उEलेख स:भव नहG है।
वा तु - “वा%त”ु शcद का सामा<य अथ) िनवास है। “वस िनवासे” धातु से उणािद स&ू “वसे%तनु ”
के Nारा “तनु ” (Zयय करने पर वा%तु शcद क8 िनLपि होती है। वा%तु का FयुZपिल}य अथ)
“वस<Zयि%मि<नितवा%त”ु है। जब िकसी अिनयोिजत भख ू ड को सिु नयोिजत %वˆप (दान कर उसे
िनवास के योSय बनाया जाता है, तो उसे वा%तु कहा जाता है। अत: भवन, दगु ,) (ासाद, महल, मठ,
मि<दर और नगरािद सम%त रचनाऐ ं िजनम0 मनLु य वास करते है उ<हे ‘वा%त’ु पद से स:बोिधत िकया
जाता है। ]^ा जी को वा%तुशाm के (व)क के Aप म0 माना जाता है। वा%तश ु ाm के (मखु आचाय`
का उEलेख वा%तश ु ाm के अनेक ><थ# और परु ाण# म0 (ाn होता है। मZ%यपरु ाण म0 भृग,ु अि&,
विशƒ, िवyकमा), मय, नारद, नSनिजत, िवशाला?, परु <दर, ]^ा, कुमार, न<दीश, शौनक, गग),
वासदु वे , अिनˆT, शX ु तथा बृह%पित इन अठारह आचाय` का वण)न िकया गया है।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
अ$यास %न – 2
रत %थान# क8 पिू त) क8िजये –
1. वेध शcद का िनमा)ण ...................धातु से ह2आ है।
2. पृथयु श .............. के प&ु थे।
3. रमल के पाश# म0 ................... शकल0 बतायी गयी है।
4. अvुतसागर .............. क8 रचना है।
5. तािजकशा%& म0 ............ सहम# का उEलेख िकया गया है।
6. वा%तु शcद म0 ............. (Zयय है।

१.६ सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक योितषशा%& ]^ाडोZपि के
साथ ही अपने अि%तZव को लेकर (कट ह2आ था। अत: उसका आर:भ ]^ाडोZपि के साथ ही
ह2आ है, इसम0 लेशमा& भी संशय नहG। काला<तर म0 उसके Aप# म0 परवत)न होता चला गया। इस
शा%& के अनेक# (व)क ह2ए, िजनम0 ]^ा जी से लेकर शौनकािद पय)<त िविवध नाम# का उEलेख
िमलता है। योितषशा%& अपने िविवध %क<ध# के साथ सृिY म0 कEपवृ? क8 भाँित FयाQत होकर
यगु -यगु ा<तर से लोकोपकारी रहा है। ‘ि&’ शcद का अथ) तीन (3) होता है, जो सdं यावाची है।
(धानता के aिYकोण से योितषशा%& के तीन %क<ध ह2ए – १.िसTा<त या गिणत २. होरा या
फिलत 3. संिहता। इ<हG तीन# %क<ध# को ‘ि&%क<ध योितष’ के नाम से जाना जाता है। इ<हG
%क<ध# के कई उप%क<ध ह2ए, िज<ह0 ‘बह2%क<धाZमक योितष’ के नाम से जाना जाता है।

१.७ पारभािषक शदावली

ि – ‘ि&’ सं%कृ त का शcद है, िजसका अथ) तीन (3) होता है। यह संdयावाची है।
पंच – पंच का शािcदक अथ) है – पाँच। यह भी संdयावाची है।
बहk कधा7मक – बह2 का अथ) है – अनेक। िविवध (कार के %क<ध को बह2%क<धाZमक कहा
जाता है।
गिणत – गयते संdयायते तद् गिणतम।् िजसक8 गणना क8 जाय, और जो संdयावाची हो, उसे

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गिणत कहते है।
िस,ात – िसT: अ<ते य%य स: िसTा<त:। जो अ<त म0 जाकर िसT हो जाय, उसे िसTा<त कहते है।
होरा – अहोरा& शcद के आिद और अ<त शcद का लोप होन पर होरा शcद का िनमा)ण ह2आ है।
िजसका अथ) समय होता है।
संिहता – िजस %क<ध के अ<तग)त समिYपरक फलादेश आिद कत)Fय िकये जाते है, उसे संिहता
कहते ह3।

१.८ अयास  न के उ!र


अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला
1. क 2. घ 3. ख 4. ग 5. घ
अWयास 2Iन – 2 कP उ*रमाला
1. िवध् 2. वराहिमिहर 3. १६ 4. बEलालसेन 5. ५० 6. तनु ्

१.९ सदभ" #थ सूची


(क) भारतीय योितष – Vी शकं र बाल कृ Lण दीि?त
(ख) वेदांग योितष – मल
ू लेखक – महाZमा लगध
(ग) भारतीय योितष – नेिमच<l शा%&ी
(घ) िसTा<तिशरोमिण – मल ू लेखक – आचाय) भा%कराचाय)

१.१० सहायक पाठ्यसाम#ी


योितष शा%& का इितहास – लोकमिण दहाल
भारतीय योितष – शक ं रबालकृ Lणदीि?त / नेिमच<द शा%&ी
योितष िसTा<त मजं षू ा – (ोफे सर िवनय कुमार पाडेय
सल
ु भ योितष ,ान – प.ं वासदु वे सदािशव खानखोजे

१.११ िनबधा.मक  न
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
1. ि&%क<ध योितष से या ताZपय) है? वण)न क8िजये।
2. पच
ं %क<धाZमक योितष का िववेचन क8िजये।
3. बह2%कनधाZमक योितष से आप या समझते है? %पLट क8िजये।
4. (%ततु इकाई के अनसु ार आप योितष के िविवध %क<ध# का वण)न अपने शcद# म0 क8िजये।
5. योितषशा%& के िविवध %वAप# पर (काश डािलये।

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इकाई – 2 मख
ु कध - िस4ात
इकाई कP संरचना
२.१ (%तावना
२.२ उ|ेय
२.३ िसTा<त योितष क8 परभाषा
२.४ िसTा<तयोितष के भेद – िसTा<त, त<& एवं करण
२.५ काल Xम से िसTा<त योितष का िवकास
२.६ िसTा<त योितष के (मख ु ><थ व आचाय)
२.६.१ अ<य आचाय) व उनके ><थ
२.७ िसTा<त योितष के (मखु िवषय
अ}यास (¢
२.८ सारांश
२.९ पारभािषक शcदावली
२.१० अ}यास (¢# के उर
२.११ स<दभ) ><थ सचू ी
२.१२ सहायक पाठ्य साम>ी
२.१३ िनब<धाZमक (¢

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
२.१  तावना –
योितषशाm िसTा<त, सिं हता, होरा भेद से तीन %क<ध# म0 िवभO है। उनम0 से िसTा<त
योितष शाm गिणत शcद से भी जाना जाता है। यह %क<ध भी >हगिणत, पाटीगिणत व बीजगिणत
भेद से तीन भाग# म0 िवभO है। ]^ा, विसƒ, सोम, सयू ) आिद इसके (वत)क आचाय) माने गये है।
इसके उपरा<त आय)भट, ]^गnु , वराहिमिहर, भा%कराचाय), कमलाकर आिद ने इसका िवकास
िकया। आष) सयू )िसTा<त, आय)भट रिचत आय)भटीय, ]^गnु रिचत ]ा^%फुटिसTा<त, वराहिमिहर
रिचत पŸचिसTाि<तका, भा%कराचाय) रिचत िसTा<तिशरोमिण और कमलाकर रिचत
िसTा<ततpविववेक इस %क<ध मा<य ><थ ह3। पर<तु आचाय) लगध मिु न (णीत वेदाङ्गयोितष
सं,क ><थ ही िसTा<त योितष का (थम ><थ माना जाता है। िसTा<त योितष के मdु य ><थ,
><थकार व मdु य िवषय# का इस पाठ म0 आप अ/ययन कर0 ग।े

२.२ उ)े%यम्
(%ततु इकाई के अ/ययन से आप –
 िसTा<त योितष का परचय (ाn कर0 ग।े
 िसTा<त योितष के िविवध भेद# का परचय (ाn कर0 ग।े
 िसTा<त योितष के िविवध ><थ व ><थकार# के िवषय म0 जान0ग।े
 िसTा<त योितष म0 विण)त िविवध िवषय# का (ितपादन करने म0 कुशल हो सक0 गे।
 भारतीय गिणत व खगोल शाm के िवकास क8 पर:परा का ,ान (ाn कर0 ग।े

२.३ िस6ात योितष क परभाषा –


"अते िस,ः िस,ातः" इस िनव)चन से ,ात होता है िनरी?ण परी?ण आिद Nारा >हगित
संबि<ध जो मत अ<त म0 उप%थािपत िकया जाता है वही ‘िसTा<त’ कहा जाता है। उदाहरणाथ) जैसे
अहग)ण, उदया<तर, देशा<तर, चर, म<दफल, शी’फल आिद स%ं कार# Nारा >ह %पY होते है। >ह
गिणत %पY होने पर वेधशाला म0 जाकर aिसT करने हेतु य<&# Nारा वेधकाय) िकया जाता है। यिद
गणना Nारा सािधत >ह य<&# Nारा वेध करने पर भी उसी %थान पर िदखाई दे तो ही वे योितषशाm
म0 महु o) साधन, कुडली िनमा)ण व फल कथन हेतु (यO
ु होते ह3। अतः कहा गया – “यदते िस,ः
िस,ातः”।
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भा%कराचाय) के मत से िजस शाm म0 &िु ट से (ार:भ कर (लय तक काल क8 गणना, सौर चा<l
सावन ना?& आिद नविवध काल के (भेद, >हचार के िनयम, FयO व अFयO गिणत का िववेचन,
िदSदेशकाल का ,ान, भगू ोल, खगोल और >ह# क8 ि%थित, वेधय<&# का साङ्गोपाङ्ग िववेचन
होता है वह िसTा<त है। जैसा कहा है –
ुट्यािद2लयातकालकलना मान2भेदः ;मा-
Bचारr 0ुसदां ि6धा च गिणतं 2sा तथा सो*राः।
भूिध8Dय-हसंि थतेr कथनं य ािदय ोBयते।
िस,ात स उदाtतोऽ गिणत कध तृतीयोऽपरः।।
“गDयते संgयायते येन तwिणतम”् अथा)त् िजसके Nारा गणना क8 जाती है और
सdं याओ ं का बोध होता है वह गिणत है। उसके भी चार भेद ह3 – १.FयO २.अFयO ३. >ह एवं
४.गोल। जहां FयO संdयाओ ं के सङ्कलन Fयवकलन आिद गिणत का वण)न होता है FयO गिणत
कहलाती है। िजस गिणत म0 अFयO# (यावत् तावत् कालक पीलक आिद)
क8 सापेfय बिु T से गिणत होती है उसे अFयO गिणत कहा गया। >ह# क8 गित ि%थित सबं िं धत
गिणत को >हगिणत कहा गया। गोल से वेध आिद Nारा गणना क8 िविध गोलगिणत के अ<तग)त
माना गया। इ<हG चार# िवधाओ ं का िनAपक िसTा<त है। जैसा िक कहा गया –
‘यायभगोलवासनामयः िस,ातः’। Vीपित के कथन के अनसु ार भी –
शतानद\वि त 2भृित ुिटपयतसमय2माणं
भूिध8Dय-हसिं नवहसं थानकथनम।्
-हके #ाणां चाराः सकलगिणतं य गिदतं
स िस,ातः 2ोो िवपुलगिणत कधकुशलैः।।
यह िसTा<त %क<ध योितषशाm के तीन# %क<ध# म0 सवा)िधक महZवपणू ) है। िसTा<त के
िबना होरा व संिहता शाm# का कोई महpव नहG रह जाता। य#िक ज<म कुडली का िनमा)ण व >ह
गोचर क8 ि%थित का ,ान िसTा<त योितष के िबना नहG िकया जा सकता। अतः आचाय` ने
िसTा<त %क<ध को योितष का आधार कहा। होरा %क<ध का मdु य िवषय है >ह# के मानव जीवन
पर पडने वाले शभु ाशभु (भाव का िववेचन और संिहता %क<ध का मdु य िवषय है >ह# के भगू ोलीय
समिYगत (भाव का वण)न। िसTा<त %क<ध का मdु य िवषय है - >हगिणत अथवा >ह %पYीकरण।
शT ु >ह%पYीकरण के िबना >ह# के (भाव का सही वण)न नहG िकया जा सकता। इसी कारण से

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भा%कराचाय) ने कहा – "खेटैः फ़ुटै रेव फल फुट7वम्" अथा)त् %पY >ह# के Nारा ही
%पY फल जाना जा सकता है। अतः िकसी भी >ह के फल कथन से पवू ) उसके %थान का शT ु
%पYीकरण परमावयकं होता है। और >ह का शT ु Aप से साधन िसTा<त के ,ान के िबना संभव
नहG होता। अतः िसTा<त योितष का वैिशY्य (ितपािदत करते ह2ए भा%कराचाय) ने कहा िक जैसे
राय शासन म0 िभि पर िच& Aप म0 अिं कत राजा और अZय<त सगु िठत लकडी का बना ह2आ िसहं
कुछ भी करने म0 असमथ) होता है उसी (कार जातक व संिहता का ,ाता दैव, यिद िसTा<त योितष
से अनिभ, हो तो काल क8 गणना म0 असमथ) होकर उसके भेद व (भेद का िववेचन करने म0
असमथ) होता है, जैसा िक कहा है –
जानन् जातकसंिहतासगिणत कधैकदेशा अिप।
योितः शाyिवचारसारचतुर2sे8विकि च7करः।।
यः िस,ातमनतयुििवततं नो वेि* भीतौ यथा।
राजा िच मयोऽथवा सुघिटतः काS य कDठीरवः।।

२.४ िस6ात योितष के भेद –


िसTा<त %क<ध के भी तीन भेद होते ह3 – (थम िसTा<त, िNतीय त<& और तृतीय करण।
(क) िस,ात - ‘सृu्यादेयद्-ह1ानं िस,ात: स उदाtत:’ िसTा<त ><थ# म0 सृY्यािद से
अथवा कEपािद से >हगिणत क8 जाती है। आज उपलcध (मख ु िसTा<त ><थ# म0 स(ु िसT
आष)><थ सयू )िसTा<त है। इसके उपरा<त मानव रिचत ><थ# म0 ]ा^%फुटिसTा<त, िशLयधीवृिTद,
िसTा<तिशरोमिण, िसTा<तसाव)भौम, िसTा<ततpविववेक आिद अनेक िसTा<त ><थ (ाn होते है।
व%ततु ः िसTा<त योितष के मल ू भतू िसTा<तो का वण)न सूय)िसTा<त ><थ म0 ही कर िदया गया है
पर<तु अZय<त (ाचीन होने के कारण उसके आधार पर सािधत >ह# म0 कुछ %थूलता (ाn होती है,
िक<तु यह आष) ><थ होने से इसके Nारा विण)त िवषय# को आज भी अZय<त (ामािणक माना जाता
है। िसTा<ततpविववेक भी अZय<त महpवपणू ) वा तािpवक ><थ माना जाता है। तथा भारतीय िसTा<त
योितष पर:परा का अि<तम ><थ भी माना जाता है। ><थ के रचियता भk कमलाकर ने मनु ीyर
भा%कर ]^गnु आिद पवू ा)चाय` का पद पद पर सयिु Oक खडन भी िकया है। िसTा<त िशरोमिण
िसTा<त योितष का साङ्गोपाङ्ग ><थ है, िजसम0 िसTा<त योितष के सभी िवषय# का
आोपा<त वण)न िकया गया है, अतः इसका (माणZव %वीकार िकया जाता है।

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(ख) त – ‘युगािदतो य -ह1ानं त ं तिनग0ते ’ अथा)त् िजस भाग म0 यगु ािद से (ार:भ कर
>हगिणत क8 जाती है, उसक8 त<& स,ं ा होती है। त<& ><थ# म0 आय)भट का आय)भटीय त<&><थ
स(ु िसT है। इस त<& ><थ के गिणतपाद म0 वग)मल
ू आनयन, घनमल ू आनयन, Fयास मान से परिध
का साधन आिद िवषय संभवतः िवy म0 (थम बार अZय<त %पY रीित से विण)त िकये गये है। ><थ के
गोलपाद म0 उ<ह#ने भिू म के अपने अ? पर मण का आधारभतू िसTा<त िवy इितहास म0 सव)(थम
(ितपािदत िकया। आय)भट ने उस समय िन:न वाय# के Nारा यह िसTा<त उप%थािपत िकया –
अनल
ु ोमगितनौ थ: पIय7यचलं िवलोमगं य6त।्
अचलािन भािन त6त् समपिrमगािन लङ्कायाम।् ।
(ग) करण - ‘शकाद् य -ह1ानं करणं तत् 2कPिततम’् अथा)त् जहां अभीY शकवष) >हगिणत
का िनAपण िकया जाय िसTा<त योितष क8 उस शाखा को ‘करण’ कहा गया। करण><थ# म0
>हलाघव, के तक8 >हगिणत, सवा)न<दकरण आिद ><थ स(ु िसT ह3। >हलाघव ><थ Nारा सािधत
>ह# म0 भी कुछ %थल
ू ता है। अतः आज के समय aSगिणत क8 एकता (ाn करने हेतु (ायशः भारतवष)
के अनेक पŸचाङ्ग के तक8 >हगिणत के आधार पर ही िनिम)त िकये जाते है।
इस (कार से िसTा<त %क<ध भी तीन भाग# म0 िवभO ह3। िसTा<त ><थ# म0 कEपािद अथावा
सृY्यािद से, त<& ><थ# म0 यगु ािद से तथा करण ><थ# म0 अभीY शकाcद से अहग)ण का साधन कर
म/यम >ह का आनयन व >ह%पYीकरण िकया गया।

२.५ काल>म के अनस


ु ार िस6ात योितष का िवकास –
शक पवू ) पŸचम शताcदी से (ार:भ कर षोडश शक काल पय)<त ही भारतीय योितषशाm के
िवकास का म/यम काल था। इस काल म0 >ह# क8 म/यम गित, %पY ि%थित, िदSदेशकाल का
िववेचन, >ह यिु त, >ह-न?&# का उदया%त िवचार, च<lशृङ्गो<नित, पात, भिू %थित, कालमान,
इZयािद िवषय म0 िसTा<त# का िनAपण िकया गया। अतः यह काल िसTा<त काल नाम से भी जाना
जाता है। यह िसTा<त काल भी िसTा<त (ितपादन व उनक8 Fयाdया के आधार पर पवू ) व उर भाग
म0 िवभO है। सयू )िसTा<त से (ार:भ कर ]^गnु पय)<त इसका पवू म) /य काल तथा उसके उपरा<त
राजा जयिसहं तक का समय उर म/यकाल कहलाता है। अब िसTा<त योितष के (मख ु आचाया)
व (मख ु ><थ# के िवषय म0 वण)न करते है।

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२.६ िस6ात योितष के िस6 आचाय2 व ?थ –
आचाय) लगध से (ार:भ कर आचाय) सधु ाकर पय)<त जो मल ू िसTा<त ><थ के (णेता ह3
उनका संि?n परचय िदया जा रहा है।
लगधाचाय एवं वेदाङ्ग योितष – आचाय) लगध का मल ू ><थ तो स:(ित उपलcध नहG है पर<तु
><थ के एक ¤ोक म0 उसका नाम िनिद)Y िकया गया है –
“काल1ानं 2वVयािम लगध य महा7मनः”
वेदाङ्ग योितष म0 धिनƒाध) म0 सयू ) और च<lमा उरायण का वण)न कहा गया, इससे ><थ का
रचनाकाल १४१० शकपवू ) िसT होता है। वेदाङ्ग योितष न के वल िसTा<त योितष का अिपतु
स:पणू ) योितषशाm का (थम ><थ माना गया है।
आयभटीय – आय)भट रिचत आय)भटीय ><थ पौˆषेय उपलcध योितष ><थ# म0 (थम है। आय)भट
%वयं को कुसमु परु िनवासी और ३९८ शकाcद समय का बताया है। कुसमु परु को कुछ िवNान्
पाटलीप&ु का तथा कुछ िवNान् दि?ण (देश के िकसी नगर का मानते है। आय)भट रिचत
आय)भटीय चार भाग# म0 िवभO ह3 – गीितकापाद, गिणतपाद, कालिXयापाद और गोलपाद। जैसा
िक ><थ म0 कहा है –
2िणप7यैकमनेकं कं स7यां देवतां पलं @A।
आयभटyीिण गदित गिणतं कालि;यां गोलम।् ।
चार भाग# म0 Xम से १३, ३३, २५, ५० ¤ोक ह3, इस (कार कुल १२१ ¤ोक ><थ म0 ह3।
आय)भट ने िवषय को संि?n बनाने के िलये वण` क8 सहायता से अङ्क# का िनदŽश िकया है।
अङ्क# के लेखन क8 एक िवल?ण िविध उसने (यO ु क8 है। उसम0 ककार का १ अङ्क, खकार का
२, गकार का ३, घकार का ४ इसी (कार Xम से .......मकार का २५। और यकार ३०, रकार ४०,
लकार ५०, वकार ६०, तालFय शकार ७०, मधू )<य षकार ८०, सकार ९०, हकार १००। %वर# का
भी िवशेष Aप से संdया िनदŽश िकया गया – अ १(इकाई), आ १०(दहाई), इ १००(सैकडा), ई
१०००(हजार), उः १०,००० (दश हजार) ऋ ल?, दीघ) ॠकार का दशल?, लृकार का कोटी
(करोड), दीघ) ॡकार का दशकोटी (दश करोड), एकार अयतु (अरब), ऐकार का दश अयतु (दश
अरब), ओकार का िनयतु (खरब), औकार का दश िनयतु (दस खराब)। जैसे – िक = क(१)
+इ(सैकडा) = १००, िख = ख(२)+ इ(सैकडा) = २००, िश = श(७०)+इ(सैकडा) = ७०००, बु =
ब(२३)+उ(दश हजार) = २३००० इZयािद। इस िविध से अ?र# के मा/यम से सयू ा)िद >ह# क8 भगण
संdया का िनदŽश िकया गया है। ><थ म0 कEपािद से आर}य कर यगु काल गणना, रायंशकला
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संबंध, आकाश क?ा का िव%तार, पृJवी सयू ) च<lािद क8 गित, अङ्गल ु ह%त पˆु ष योजन आिद
मान# का सबं <ध, पृिथवी का Fयास, सयू ा)िद >ह# का िब:बFयास परमाण, >ह# क8 Xाि<त और
िव?ेप, उनके पात म<दोgच %थान, उनक8 म<द व शी’ परिध का परमाण, याखडमान,
अङ्कगिणत, बीजगिणत व रे खागिणत आिद िवषय# का Xम से िनदŽश िकया गया है।
आय)भट भमू ी क8 गित भी मानते है। उ<ह#ने भिू म क8 मण सdं या क8 भी गणना क8।
पृिथवी के चलन का यह संभवतः िवy म0 पहला िलिखत (माण है –
अनुलोमगितनh थः पIय7यचलं िवलोमगं य6त।्
अचलािन भािन त6त् समपिrमगािन लङ्कायाम।् ।
आय)भट क8 यगु गणना पTित अ<य परवत[ आचाय` से िभ<न रही है। उनके अनसु ार ७२
यगु # से एक म<व<तर होता है। उनके मत म0 सभी यगु पाद समान ही होते ह3। आय)भट ने बधु वासर के
सयू bदय से महायगु का आर:भ माना। इ<हे आय)भट नाम से भी जाना जाता है।
ल%लाचाय और िश8यधीविृ ,दत – आय)भटिसTा<त म0 लEल ने बीजसं%कार (दान िकया है।
िशLयधीवृिTदत<& एक अपवू ) ><थ है। लEल तीfणमित वेधकता) थ0। जब आचाय) ने देखा िक िजन
िवषय# म0 आय) िसTा<त से संगतता नहG बैठ पाई वहां उ<होने बीज संकार भी (दान िकया। आचाय)
सधु ाकर उ<ह0 ४२१ शकाcद काल का मानते है। इसके िवपरीत शङ्कर बालकृ Lण दीि?त उ<ह0 ५६०
शकाcद काल का मानते है।
वराहिमिहर और प चिस,ाितका – आचाय) वराहिमिहर ने पवू व) त[ पांच (ाचीन िसTा<त# का
सकं लन पŸचिसTाि<तका ><थ म0 िकया है। जैसा िक –
पौिलशरोमकवािसSसौरपैतामहा तु प चिस,ाताः।
नारायण ने कालचX (वत)न के िलये सयू ) को जो उपदेश िदया वहG सौर िस,ात है
उसे आय)भट %मरण करते है। िपतामहो ]^ा ने िजस को रह%य को विसƒ को कहा
वह पैतामह िस,ात कहलाया। ]^ा Nारा उपिदY गिणत %वबिु Tयोग से विसƒ ने जो
पराशर को उपदेश िदया वह वािसS िस,ात कहलाया। विसƒ (ाn जो शाm पराशर ने मिु नय#
गगा)िद आचाय` को उपदेश िदया व िजसे पिु लश ने कहा वह पौिलश िस,ात कहलाया। जो
शाm रोमक को और यवन जाित को ]^ा के शाप से उZप<न सयू ) ने कहा तथा रोमक नगर म0
िव%तारत िकया वही रोमक िस,ात कहलाया।
इनम0 से सौरिसTा<त अनभु व िवषयक है, पौिलशकृ त िसTा<त a(तीित िवषयक और

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रोमक उससे भी (ाचीन है। पैतामह और विसƒिसTा<त तो तु िनता<त ही (ाचीन है िजनके
अनसु ार (ाn >हि%थित सही (ाn नहG हो पाती है। अतः आचाय) वराहिमिहर ने कहा –
पोिलशकृतः फुटोऽसौ त यासन तु रोमकः 2ोः।
पuतरः सािव ः प=रशेषौ दूरिवfuौ।।
कुछ िवNान# का मत है िक वराहिमिहर का जातकाण)वस,ं क करण><थ भी था। आचाय) वराहिमिहर
का काल ४२७ शकवष) माना जाता है। ४०७ वष) म0 उनका ज<म ह2आ और ५०९ शकवष) म0 वे
िदवङ्गत ह2ए। उनके िपता और गˆु का नाम आिदZयदास था। उनका िनवास %थान कािपZथ >ाम
था।
भा कर 2थम – (थमभा%कर का समय ५३० शकाcद अनमु ािनत है। उनके दो ><थ (ाn होते है
महाभा%करीय और लघभु ा%करीय। इनके Nारा रिचत आय)भटीय भाLय (िसT है। ये दाि?णाZय थे।
@Aगुz और @ाA फुटिस,ात – ]^गnु महान् योितषी, महान् अ<वेषक और वेधकुशल थ0।
वेध के (सङ्ग म0 जब आचाय) ]^गnु ने देखा िक (चिलत िसTा<त ><थ# से सािधत >ह गिणत एवं
वेध Nारा (ाn वा%तिवक >ह# क8 ि%थित म0 बह2त अ<तर (ाn हो रहा है तब उ<ह#ने aक् तEु य>ह# क8
ि%थित का साधन करने वाले िसTा<त का (णयन िकया। उनके Nारा रिचत ]ा^%फुटिसTा<त नामक
िसTा<त ><थ और खडखाक नामक करण><थ स:(ित समपु लcध होते ह3। उनके Nारा
(ितपािदत चिXयचतभु ज)ु (मेय भारतीय बीज गिणत के िवकास म0 एक बडी उपलिcध माना जाता है।
या के िबना भजु और कोिट का आनयन, या से चाप आनयन सव)(थम ]^गnु ने ही िकया।
]ा^%फुटिसTा<त का (णयन ५५० शकाcद काल मे ह2आ।
आचाय मु जाल, बृहमानस और लघुमानस – आचाय) मŸु जाल भी ]^गnु के समान
%वत<& अ<वेषक और िवल?ण (ितभास:प<न थ0। उनका ि%थितकाल ८५४ शकाcद माना
जाता है। मŸु जाल ने ८५४ शकाcद म0 ६°/५०’ अयनांश का मान बताया और अयनांश क8
वािष)क8 गित एक कला तEु य बताई। इससे पवू ) िकसी भी पौˆषेय ><थ म0 अयनचलन के िवषय म0
वण)न नहG िकया गया था। मŸु जाल ने च<l%पY म0 िवशेष स%ं कार (दान िकये जो िक इससे पवू )
िकसी आचाय) ने (दान नहG िकये थ0। मŸु जाल ने बृह<मानस नामक िसTा<त ><थ और लघमु ानस
नामक करण><थ क8 रचना क8।
ि6तीय आयभट और महािस,ात – आय)िसTा<त म0 ]^गnु ने और लEल ने भी जो दोष
िनिद)Y िकये उनका िनराकरण करते ह2ए िNतीय आय)भट ने अपना िसTा<त (ितपािदत िकया। इनके

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Nारा रिचत ><थ महािसTा<त नाम से (िसT है। ><थ म0 कुल अYादश अ/याय ह3। पाटीगिणत,
अङ्कगिणत, ?े&फल, घनफल आिद ><थ के (ितपा िवषय ह3 । अYादश अ/याय म0 बीजगिणत
का िनAपण िकया। उ<ह#ने सnष[य# क8 गित को भी माना और उनके कEप भगण# को भी (%ततु
िकया। उनका ि%थितकाल शङ्करबालकृ Lण दीि?त ने ८७५ शकाcद अनिु मत िकया है।
(ीपित और िस,ातशेखर – इनका ि%थितकाल ९६० शकाcद माना गया है। िसTा<त शेखर,
धीकोिटदकरण, रZनमाला और जातकपTित इनके (मख ु ><थ ह3। भा%कराचाय) अपने िसTा<त
िशरोमिण ><थ म0 Vीपित को VTापवू क
) %मरण करते ह3।
भोजदेव और राजमृगाङ्क – भोजदेव का राजमृगाङ्क ]^गnु के िसTा<त का करण ><थ है। इस
><थ का (णयन काल ९६४ शकाcद माना गया है। इस ><थ म0 म/यम व %पY सं,क दो अिधकार
(ाn होते ह3 िजनम0 ६९ ¤ोक ह3। भोजदेव ने ]^गnु के िसTा<त म0 बीज सं%कार (दान िकया।
भा कराचाय और िस,ात िशरोमिण – भा%कराचाय) १०३६ शकाcद म0 उZप<न ह2ए। वे
शेखरकरण के कता) महेyर के प&ु और स‚कुल पव)त(ा<त >ाम के िनवासी थ0। उनके िपता ही
उनके गˆु थ0। उनका िसTा<तिशरोमिण नामक िसTा<त ><थ और करणकुतहू ल स,ं क करण ><थ है।
िसTा<त िशरोमिण उनक8 एक िवल?ण रचना है। िसTा<त िशरोमिण का (णयन काल १०७२
शकाcद है। िसTा<त िशरोमिण के चार भाग ह3 – पाटीगिणत अथा)त् लीलावती,
बीजगिणत, >हगिणत और गोला/याय। कुछ िवNान् उरभाग के दो भाग# को िसTा<त शcद
से भी कहा है ।
पाटी गिणत %वAप लीलावती ><थ तो अङ्कगिणत का एक %वत<& ><थ ही है। इसम0
२७८ प ह3। इसम0 िविवध परमाण िनदŽश, सङ्dयान िविध, परकमा)Yक (पणू ा)ङ्क# का योग,
अ<तर, गणु न, भाग, वग), वग)मल ू , घन, घनमलू आिद, अपणू ा)ङ्क# का परकमा)Yक, श<ू य का
परकमा)Yक) &ैरािशक, पŸचरािशक, ?े&फल, घनफल, कुkक, पाि?क िवपय)य, सवा›िशक िवपय)य
आिद का िनAपण िकया । लीलावती ><थ क8 िजतनी टीकाऐ ं ह3 उतनी िकसी अ<य गिणत ><थ क8
उपलcध नहG होती है। उनके नाम है – गोवध)न रिचत गिणतामृतसागरी, गणेशदैव, रिचत
बिु Tिवलािसनी, धनेyर रिचत लीलावतीभषू ण, महीदास रिचत महीदासी, मनु ीyर रिचत लीलावती
िववृित, महीधर रिचत लीलावती िववरण, रामकृ Lण रिचत गिणतामृतलहरी, नारायण रिचत
पाटीगिणतकौमदु ी, रामकृ Lण रिचत मनोरŸजना, रामच<l रिचत लीलावतीभषू ण, िवyAप रिचत
िनसृYदतू ी, सयू )दास रिचत गिणतामृतकूिपका, च<lशेखर रिचत उदाहरण, िवyेyर रिचत
उदाहरण, टीकाराम रिचत च<lकला इZयािद।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
बीजगिणत इस ><थ का िNतीय भाग है। इसम0 धनण)षड्िवध, श<ू यसङ्कलनािद,
अFयOकEपनासङ्कलनािद, अनेकवण)षड्िवध, करणीषड्िवध, कुkक, वग)(कृ ित, चXवाल,
एकवण)समीकरण, अनेकवण)समीकरण, अनेकवण)म/यमाहरण और भािवत िवषय# का िनAपण
िकया गया ह3 । लीलवती ><थ का १५०९ शकाcद म0 और बीजगिणत का १५९७ शकाcद म0
पिश)यन भाषा म0 Aपा<तर िकया गया। और दोन# ><थ# का १७५५ शकाcद म0 अ>ं ेजी भाषा म0
Aपा<तर ह2आ।
>हगिणत इस ><थ का तृतीय भाग है। इसम0 उपो§ात, म/यमािधकार, माना/याय,
भगणा/याय, >हानयन, क?ा/याय, अिधकमासािदिवचार, भपू र/यािद िवषय, %पYािधकार,
ि&(¢ािधकार, पव)स:भवािधकार, च<l>हणािधकार, सयू )>हणािधकार, >हgछायािधकार,
>होदया%तािधकार, शृङ्गो<नZयिधकार, >हयZु यिधकार, भ>हयZु यिधकार और पातािधकार िवषय
िववेिचत िकया गया है।
गोला/याय इसका चतथु ) पाद है। इसम0 उपो§ात, गोल%वAपा/याय, म/यमगितवासना,
छे कािधकार, गोलब<धािधकार, ि&(¢वासना, >हणवासना, उदया%तवासना, शृङ्गो<नितवासना,
य<&ा/याय, ऋतिु वचार, (¢ा/याय आिद िवषय Xम से िववेिचत िकया गया।
भा%कराचाय) का करणकुतहू ल करण ><थ (िसT है। इसका (ार:भ काल ११०५ शकाcद
है। इसम0 म/यमािधकार, %पYािधकार, ि&(¢ािधकार, च<lसयू )>हणािधकार, उदया%तािधकार,
शृङ्गो<नZयिधकार, >हयिु त, पव)स:भव स,ं क दश अिधकार ह3। करणकुतहू ल क8 सोड्ढल,
प–नाभ, के शवाक) , हष)गिणत, िवyनाथ, एकनाथ, शङ्करािद (णीत टीकाऐ ं ह3। रZनमाला टीका म0
माधव भा%कराचाय) Nारा (णीत Fयवहार(दीप सं,क महु o) ><थ का भी उEलेख करते ह3। इसी (कार
भा%कराचाय) के िववाहपटल स,ं क ><थ का भी अि%तZव शङ्कर बालकृ Lण दीि?त ने सिू चत
िकया है।
भा%कराचाय) ने ]ा^%फुटिसTा<त से और राजमृगाङ्क से िवषय# का >हण कर ><थ का
(णयन िकया। ><थ म0 वेध सा/य और िवचार सा/य नवीन व%तओ ु ं का िनदŽश िकया गया है। ><थ म0
िवशेष Aप से गोल को अZयिधक %पY िकया गया। ि&(¢ािधकार म0 नवीन रीितयां िनिद)Y क8 गई
है। ><थ म0 शङ्करोिदY िदछाया साधन का वण)न िकया गया है जो िक पवू ा)चाय` के ><थ#
म0 उपलcध नहG होता। पात साधन म0 पवू ा)चाय` के मत का िववेचन करते ह2ए अपने मत को
उप%थािपत िकया।

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उदया<तर इनका नवीन शोध है। अहग)ण Nारा आगत >ह म/यम सयू bदय काल के होते ह3।
उ<ह0 उदयकालीन करने हेतु पवू व) त[ आचाय` ने के वल भजु ा<तर व चरसं%कार ही िनिद)Y िकये थ0।
पर<तु भा%कराचाय) ने उसम0 उदया<तर स,ं क स%ं कार को भी जोडा । अनेक %थल# पर भा%कराचाय) ने
]^गnु क8 &टु ीय# क8 ओर सङ्के त िकया। इससे भा%कराचाय) न के वल Fयाdयाता अिपतु िसTा<त
(वत)क भी माने गये है। उसने अहग)ण से >हानयन पTित आर:भ करते ह2ए योZपि सaश गहन
िवषय को भी उपपि सिहत िनAिपत िकया। इसक8 (ितपादन रीित अZय<त सरस और %पY है।
उसके गिणतसाधक ¤ोक भी काFयान<द (दायक है। उनका सम> (यास उपपि िववेचन पर
के ि<lत रहा। उ<ह#ने अपने िसTा<तिशरोमिण ><थ के तृतीय व चतथु ) भाग का वासना भाLय भी
िलखा।
सव)(थम भा%कराचाय) ने ही अङ्कगिणतीय िXयाओ ं मे अपरमेय राशीय# का (योगः
िकया। चX िविध से आिवLकृ त अिनित एकजातीय वग)समीकरण# का Fयापक समाधान ही उसके
त%य गिणतशाm का सवbम उपाय है। उ<ह#ने गोला/याय म0 मा/य
आकष)ण तpव नाम से गˆु Zवाकष)ण िसTा<त भी (णीत िकया। जैसा िक –
‘आकृuशिr महीतया यत् ख थं ग|ु ि$z वािभमुखं वश47या आकृ8यते त7पततीव
भाित’। भा%कराचाय) ने ही दशमलव(णाली का Xिमक Aप से Fयाdया क8।
मकरद – आचाय) मकर<द ने पŸचाङ्गसाधक सयू )िसTा<त के अनसु ार ><थ १४०० शकाcद रिचत
िकया। इसक8 आचाय) िदवाकर ने १५४९ शकाcद म0 मकर<द िववरण नामक टीका भी िलखी।
के शव एवं -हकौतुक – के शव का >हकौतक ु करण><थ योितषशाm के इितहास म0 अपना एक
िविशY %थान रखता है। यह १४१८ शकाcद म0 (णीत िकया। के शव कमलाdय योितिव)द का प&ु
और नि<द>ाम का िनवासी था । स एक महान् गणक और सफल वेधक था।
गणेश एवं -हलाघव – गणेशदैव, का >हलाघवकरण लोकि(य और बह2(यO ु ><थ है। गणेश
के शवदैव, के प&ु थ0। आचाय) गणेश शाm, और कुशल वेधकता) थ0। उ<ह#ने अपने ><थ म0 उ<ह#ने
>हगिणत को संि?त व सरल (यास िकया। इसका उपXमवष) १४४२ शकाcद माना है। >ह# क8 aक्
तEु यता के िलये उ<ह#ने सयं ोगिवयोग रािशय# का वण)न िकया। याचापस:ब<ध के िबना ही
>हानयन, सfू मतर रीित से एकादश वष) के अ<तग)त अहग)ण चX के मा/यम से व ™वु ाङ्क# से
म/यम>ह का आनयन और मानसंयोजन के िलये संयोग िवयोग रािश का िनदŽश गणेश का वैिशY्य
है। >हलाघव म0 चतदु श) अिधकार ह3। इस ><थ क8 गङ्गाधरकृ त, मEलारकृ त, िवyनाथकृ त और
सीतारामकृ त टीकाऐ ं (िसT ह3।
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1ानराज और िस,ातशेखर – ,ानराज ने वत)मान सयू )िसTा<त के अनसु ार िसTा<तस<ु दर सं,क
><थ क8 रचना क8। ><थ म0 ?ेपक आिद १४२४ शकाcद का िदया गया। सामियक बीजस%ं कार का
साधन इस ><थ का वैिशY्य है।
रघुनाथ एवं सुधाम जरी – रघनु ाथ का सधु ामŸजरी ]ा^प?ीय करण><थ है। इसका आर:भवष)
१४८४ शकाcद माना जाता है।
मुनी}र एवं िस,ातसावभौम – िसTा<तसाव)भौम १५५८ शकाcद काल म0 मनु ीyर Nारा (णीत
िसTा<त ><थ है। उसने लीलावती क8 िनसृYदतू नामक टीका और गिणता/याय व गोला/याय क8
टीका भी िलखी । पाटीसार भी मनु ीyर का ही ><थ है।
कमलाकर और िस,ातत~विववेक – आचाय) कमलाकर रिचत िसTा<ततpविववेक एक
बह2चिच)त ><थ है। इसक8 रचना १५८० शकाcद म0 क8 गई। सवा)ङ्गपणू ) इस ><थ म0 िसTा<त
योितष के सभी िवषय स(पŸच िनAिपत िकये गये ह3। यह ><थ सव)था सौरिसTा<त को %वीकार
करता है। कमलाकर न के वल सयू )िसTा<त का अिधवOा था अिपतु महान् अ<वेषक भी था। स:पात
का गित के आधार पर ™वु न?& क8 अि%थरता का (ितपादन, सा:(ितक aय ™वु मान का ™वु
%थान से कुछ हटना, पवू bर राि& और उनके %थानवैिभ<य का (ितपादन उनके Nारा िकये
आिवLकार# म0 उEलेखनीय िवषय है। उ<ह#ने तरु ीय य<& से वेध क8 एक िव%तृत िविध का िनदŽश
िकया, ि&(¢ािधकार और >हणािधकार म0 अनेक नवीन रीितय# का िनदŽश िकया, मेघ, भक ू :प,
उEकापात, ओलावृिY आिद (ाकृ ितक उZपात# के कारण# का िनदŽश िकया। ि&या का मान ३४३८
के %थान पर ६० ि&या किEपत िकया। >हभोग से िवषवु ांश आनयन क8 सारणी का भी (णयन
िकया।
िन7यानद और सविस,ातराज – १५६१ शकाcद म0 िनZयान<द ने सव)िसTा<तराज क8 रचना
क8। इस ><थ म0 मdु य Aप से दो ही अिधकार है – गिणता/याय और गोला/याय। (थम भाग म0
म/यम, %पY, ि&(¢, च<lसयू )>हण, शृङ्गो<नित, भ>हयिु त और छाया स,ं क नौ ही अिधकार है।
िNतीय भाग म0 भवु नकोश, गोलब<ध और य<&ािधकार का िनˆपण िकया गया है। सभी सामा<य
िवषय# म0 उसने सावनमान का वैिशY्य (ितपािदत िकया।
जयिसहं , जगनाथ और िस,ातसाट् – जयिसहं मZ%यदेश का अिधपित था। उसने मdु य Aप
से गिणतागत >ह# क8 सfू मता से aOुEयता करने हेतु वेधकाय) करवाया। जयिसंह ने गिणतागत >ह
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और वा%तव >ह का ऐय साधन करने हेतु व वेध Nारा गिणत उपकरण# क8 भी शिु T हेतु जयपरु ,
इ<l(%थ(िदEली), वाराणसी, मथरु ा और उजियनी म0 वेधशाला क8 %थापना करवाई। वेध Nारा
गिणत उपकरण# का शोधन करना इनका मdु य (योजन था। वेधशालाओ ं म0 सं%थािपत कुछ य<&
(ितसं%कृ त थ0 व कुछ तो सव)था नतू न थ0। य<& रचना म0 अरबीय यौितष य<&# क8 व उनके िवNान#
क8 भी सहायता ली गई।
राजा जयिसंह क8 सभा म0 अनेक िवNान् योितषी काय)रत थ0। दि?ण (देश से आचाय)
जग<नाथ को जयिसहं ने जयपरु म0 सस:मान बल ु ाया। जयिसहं ने >हवेध के िवषय म0
‘िसTा<तस—ाट्’ सं,क ><थ १६५३ शकवष) जग<नाथ पिडत के Nारा िलखवाया। यह एक
सिु व%तृत ><थ ह3। ><थ म0 दो अ/याय ह3। (थम अ/याय म0 चतदु श ) (करण व षोडश?े& तथा
िNतीय अ/याय म0 तेरह (करण और पgचीस ?े& ह3। इसके अितरO भी य<&, याचाप आिद,
रे खागिणतसा/य, ि&(¢, म/यम, %पYािधकार आिद का भी स(पŸच िनAपण िकया गया है। यहां
सायन वष)मान %वीकार िकया गया है िजसम0 अयनांश क8 वािष)क गित ५१.४ िवकला मानी गई है।
िसTा<त प? म0 यह ><थ बीजस%ं कार सिहत सयू )िसTा<त का अनसु रण करता है।
जयिसहं क8 सभा म0 नयनसखु ोपा/याय नामक अ<य स(ु िसT िवNान् थ0। जयिसंह क8 आ,ा
से नयनसखु ोपा/याय ने कटरा नामक ><थ क8 रचना क8। उस ><थ म0 तेरह अ/याय और उनसठ
(एकोनषिY) ?े&# का वण)न िकया गया ह3। जयिसंह क8 पTित से >ह# क8 सfू माितसfू म गित का
,ान िकया जा सकता है।
बापदू ेव – बापदू वे का अपर नाम नृिसहं भी था। बापदू वे ने अनेक ><थ# क8 रचना क8 िजसम0
सरलि&कोणिमित एक अZय<त (िसT ><थ है। वे १७४३ शकाcद म0 उZप<न ह2ए थ0। इनके लघक ु ाय
और बृहZकाय बारह से अिधक ><थ ह3। जैसे – तpविववेकपरी?ा, अङ्कगिणत, बीजगिणत,
मानमि<दर%थ य<&वण)न, सायनवाद इZयािद। उनके Nार रिचत गोल परभाषा आज भी अZय<त
(िसT है।
नीलाKबर – नीला:बरः १७४५ शकाcद म0 उZप<न ह2ए। उ<ह#ने मdु य Aप से गोल(काश नामक
><थ क8 रचना क8। उसम0 पांच अ/याय ह3 – योZपि, ि&कोणिमित, चापीयरे खागिणत,
चापीयि&कोणिमित और (¢िवषय।
के तकर और योितगिणत – वेङ्कटेश के तकर महोदय ने १८१२ शकाcद म0 योितग)िणत क8
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रचना क8। इस ><थ के चार भाग ह3, िजसम0 (थम पŸचाङ्ग गिणत, िNतीय >ह%थान गिणत, तृतीय
म0 >हण, यिु त, च<lशृङ्गो<नZयािद क8 गिणत और चतथु ) म0 ि&(¢ािधकार लSनमान आिद से
संबंिधत गिणत का वण)न ह3। यह ><थ पŸचाङ्ग िनमा)ताओ ं के िलये िनता<त उपयोगी है। इसी के
(योग से आज भी अनेक पŸचाङ्ग# का िनमा)ण िकया जाता है।
सध ु ाकरः – आचाय) सधु ाकर िNवेदी महोदय का ज<म १७८२ शकाcद म0 काशी के समीप खजरु ी
>ाम म0 ह2आ था। उनक8 बिु T अZय<त िवल?ण थी। उनके Nारा (णीत अनेक ><थ ह3, िजनम0
दीघ)वृ ल?ण, सभङ्ग िविच&(¢, वा%तवच<lशृङ्गो<नितसाधन, चु रचार, िपड(भाकर,
भामरे खािनˆपण, धराम, >हणकरण, गोलीयरे खागिणत और (ितभाबोधक िवशेष Aप से (िसT
ह3। इनके Nारा रिचत गणकतरङ्िगणी यौितषशाm इितहास वण)न करने वाला एक उZकृ Y ><थ है।
२.६.१ अय आचाय2 व उनके ?थ –
उपय)O
ु आचाय) एवं उनके ><थ काला<तर म0 अZय<त (िसT ह2ए। पर<तु इसके अितरO भी अनेक
आचाय) ह2ए िज<ह#ने िसTा<त िवषय म0 ><थ# क8 रचना क8। संभवतः सैकडो वष` के दीघ) इितहास म0
भारत ने अनेक (कार क8 परि%थितय# को देखा। अनेक आXमण# को झेला व गल ु ामी को सहा। इस
दौरान अनेक ><थ काल कवलीत हो गये। अब जो अविशY रह गया वही हम0 ,ात ह3। योितष क8
पर:परा भारत के सभी भाग# म0 िवकिसत हो रही थी। सभी भाग# म0 rत, पव), Zयोहार व महु oत` के
,ान के िलये पŸचाङ्गो क8 आवयकता होती थG। अतः स:पणू ) भारत के सभी ?े&# म0
पŸचाङ्गकता) व गिणतकता) आचाय) िवमान रहे ह#गे। पर<तु के वल वे ही कृ ितयां ल:बे समय तक
जीिवत रहG जो िक अZय<त िवल?ण थG व िजनक8 हजार# ह%तिलिखत (ितिलिपयां पीढी दर पीढी
होती रही। अथवा वे िवNान् जो िक बडे शासक के साि<न/य म0 काय)रत रह0 व उनक8 रचना को
रायाVय म0 सरु ि?त रखा गया। वे ही कृ ितयां आज उपलcध हो पाती ह3। कुछ आचाय) व उनके Nारा
रिचत ><थ# के नाम िन:न (कार से ह3 – साम<त च<lशेखर िवरिचत िसTा<तशेखर, िवजयनि<द
रिचत करणितलक, भानभु k रिचत रसायन त<&, वˆणाचाय) रिचत खडखा टीका, दशबल रिचत
करणकमलमात)ड, ]^देव रिचत करण(काश, शतान<द रिचत भा%वती, महेyर रिचत शेखरकरण,
सोमेyर रिचत मानसोEलास, माधव रिचत िसTा<तिशरोमिण, प–नाभ रिचत य<&रZनावली, नृिसहं
रिचत म/यम>हिसिT, नागेश रिचत >ह(बोध, रङ्गनाथ रिचत िसTा<तचडू ामिण, कृ Lण रिचत
करणकौ%तभु , रZनकठ रिचत पŸचाङ्गकौतक ु , जटाधर रिचत फतेशाह(काश, शङ्कर रिचत

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करण><थ, मिणराम रिचत >हगिणत िच<तामिण, मथरु ानाथ रिचत य<&राजघटना, िच<तामिणदीि?त
रिचत गोलान<द, राघव रिचत खेटकृ ित, िशव रिचत ितिथपारजात, िदनकर रिचत >हिव,ानसारणी,
रघनु ाथ रिचत योितषिच<तामिण, िवनायकपाडुरङ्ग रिचत िसTा<तसार इZयािद।

२.७ िस6ात योितष के मुख िवषय –


िसTा<त योितष के अ<तग)त परगिणत िकये जाने वाले िवषय# म0 िन:न (मखु है –
गिणत के तीन भेदा पाटीगिणत, बीजगिणत और FयOाFयOगिणत, अहग)ण आनयन,
भपू रिध साधन, देशा<तर ,ान, उदया<तर साधन, चरकाल ,ान, अयनांश िवचार, >हण िवचार,
भगू ोल वण)न, म/यमािधकार, >ह%पYीकरण, िदSदेशकालसं,क ि&(¢, छे कािधकार,
>हयZु यिधकार, भ>हयिु त, पातिवचार, कालमान, च<lVृङ्गो<नित इZयािद । िसTा<त योितष के
िविवध ><थ व ><थकार# के वण)न के संदभ) म0 भी िविवध िवषय# का िनAपण िकया गया।
िसTा<तयोितष अ<तग)त समागत िवषय# के स<दभ) म0 बृहZसंिहता ><थ म0 आचाय)वराहिमिहर ने
दैव,ल?णवण)न के स<दभ) म0 िव%तार से वण)न िकया िक एक दैव, को िकन िकन िवषय# का ,ाता
होना चािहये, इस वण)न के स<दभ) म0 िसTा<त योितष से संबंिधत िन:न िवषय# का उEलेख िकया –
“त -हगिणते पौिलशरोमकवािसSपैतामहेषु प च वेतेषु िस,ातेषु
युगवषयनतुमासप$ाहोरा याममुहa*नाडी2ाण ुटी ुट्या0वयवािदक य काल य
$े य च वे*ा। चतुणा+ च मानानां सौरसावनना$ चा#ाणामिधमासकावमसKभव य
च कारणािभ1ः। षS्य^दयुगवषमासिदनहोरािधपतीनां 2ितपि*Bछे दिवत।्
िस,ातभेदेऽTययनिनवृ*ौ 27य$सममDडललेखासK2योगाWयुिदतांशकानां
छायाजलय v[गिणतसाKयेन 2ितपादनकुशलः। सूयादीनां च -हाणां
शी€मदयाKयो*रनीचोBचगितकारणािभ1ः। -हणे मो$कालिद42माणि थितिवमद-
वणादेशनामनागत-हसमागमयु,ानामादेuा। 27येक-हfमणयोजनकVया2माण2ित-
िवषययोजनप=रBछे दकुशलः।
भूभगणfमणसं थाना0$ावालKबकाहयासचरदलकाल-
राIयुदयBछायानाडीकरण2भृितषु $े कालकरणे8विभ1ः”।
२.८ सारांश –
इस पाठ म0 योितष शाm के अतीव िव%तृत िसTा<त %क<ध का अZय<त सं?ेप म0
परचय (दान िकया गया। िसTा<त योितष क8 परभाषा, िसTा<त योितष के भेदा, कालXम से

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
िसTा<तयोितष का िवकास, िसTा<तयोितष के (मख ु ><थ व ><थकार और िसTा<त योितष के
(मख ु िवषय# का इस पाठ म0 अZय<त स? ं ेप म0 िनAपण िकया। ये सभी िवषय अपने आप म0
अZय<त िवशाल ह3। आज के समय म0 मdु यतया पŸचाङ्ग िनमा)ण हेतु, नतू नवेधशाला िनमा)ण हेतु,
िनिम)त वेधशालाओ ं के (योग हेत,ु गिणतशाm व खगोलशाm के इितहास के अ/ययन हेतु
िसTा<त योितष क8 अZयिधक उपयोिगता है। िसTा<त योितष के िबना िकसी भी काय) के शभु
महु o) का ,ान, rत, पव), Zयोहार के सही समय के ,ान होना संभव नहG है अतः इस शाm क8
आवयकता भारतीय सं%कृ ित के जीिवत रहने तक बनी रहेगी। आजकल के वल मा& इस शाm का
%वAप परवित)त हो गया है। आज सभी (कार क8 गिणत संगणक य<&# के मा/यम से शी’ाितशी’
क8 जा सकती है । (ाचीन िसTा<त ><थ# के आधार पर िविवध संगणक8य त<&# (सा¨टवेयर) का
िनमा)ण कर िलया गया है जो ?णमा& म0 ही ताZकािलक व भतू भिवLयतकािलक >ह# क8 ि%थित क8
सटीक गणना (दान कर देते है। अतः तकनीक8 के (योग से िसTा<त योितष को एक नया आयाम
िमला है। गिणत और खगोलशाm के इितहास पठन के स<दभ) म0 उन (ाचीन ><थ# का उपयोग िवy
म0 आज भी होता है। िवy म0 गिणत का इितहास यहG से (ार:भ होता है। जब िकसी राL‹ के मनLु य
अपने गौरवशाली इितहास को जानते है तो उनम0 राL‹ीयता क8 भावना म0 वृिT होती है व गौरव का
अनभु व होता है। िसTा<त योितष क8 यह भारतीय िवकास पर:परा भी भारत के नागरक को
गौरवाि<वत होने का अवसर (दान करती है। पाठ के अ<त म0 पठनीय प%ु तक# क8 सचू ी (दान क8 गई
है। िजनके अ/ययन से िज,ासु अ/येता इस िवषय म0 अपने ,ान को और अिधक िव%तार (दान कर
सकते ह3।
२.९ पारभािषक शAदावली –
vि4स, -ह एवं बीज सं कार – सव)(थम (ाचीन िसTा<त ><थ# के आधार पर >ह# क8 ि%थित
का %पYीकरण िकया जाता था। इसके उपरा<त गिणत से (ाn >ह# क8 ि%थित सही है या नहG इसक8
जाच
ं िविवध य<&# म0 वेध Nारा क8 जाती थी। य<&# से वेध करने पर >ह# क8 वा%तिवक ि%थित का
,ान होता था। वेधय<&# से सािधत >ह को aिसT >ह कहा जाता था। यिद गिणत Nारा सािधत >ह#
क8 ि%थित वेधय<&# Nारा सािधत >ह# क8 ि%थित के अनसु ार ही (ाn होती थी तभी उस गिणत को
सही माना जाता था। और उस िसTा<त के आधार पर भिवLय म0 भिवLयतकाल हेतु क8 गई गिणत
को (ामािणक माना जाता था। यिद गिणत से (ाn >ह ि%थित व वेधय<&# से सािधत >हि%थित म0
बार बार अ<तर (ाn होता था तो उस िसTा<त ><थ म0 िदये गये मान# म0 कुछ नये परवत)न क8

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आवशयकता होती थी, िजसे बीज सं%कार कहा जाता था। परवत[ आचाय` ने इसी (कार (ाचीन
िसTा<त ><थ# का िनर<तर परी?ण करते ह2ए स%ं कार (दान िकये।
िु ट मान – “सूBया िभने पnप े ुटी=र7यिभधीयते” अथा)त् सचू ी से एक कमल के पे को
भेदने म0 िजतना काल अपेि?त होता है, वह समय &िु ट कहलाता है। िसTा<त योितष म0 काल
गणना के (संग म0 &िु ट को काल गणना क8 सबसे छोटी इकाई माना है। किपलेyर शाmी जी ने
सयू )िसTा<त क8 टीका म0 िव%तृत Aप से इसका वण)न िकया। आधिु नक मान से इसका मान लगभग
एक सैकड का ४३,२०,०००वां भाग माना जाता है।
अय गिणत – गिणत म0 जो रािश अ,ात होती है, उसके िलये कुछ संकेता?र माना जाता है,
िजस (कार आधिु नक समय म0 अ>ं ेजी के x, y, z आिद अ?र# का (योग िकया जाता है। उससे
संबंिधत गिणत को अFयO गिणत कहा गया। (ाचीन म0 इन संकेत# हेतु यावावत् (या) तथा अ<य
रंग# के संकेता?र# का (योग िकया जाता था, जैसे कालक (का), पीलक (पी), नीलक (नी), हरतक
(ह) इZयािद।
च# शृङ्गोनित – च<l मडल सयू ) क8 िकरण# से ही (कािशत होता है। सयू ) च<l व पृिथवी क8
िविभ<न कोणाZमक ि%थितय# के कारण पृिथवी से च<l कलाओ ं के िविभ<न %वAप िदखाई देते ह3।
च<l िब:ब पर पड रही सयू ) क8 िकरण0 एक अध) वलय का Aप बनाती है, िजसके दोनो छोर गाय के
सGग के समान तीखे होते ह2ए िफर समाn हो जाते है, उसी आकृ ित को च<l शृङ्ग कहा गया। संिहता
><थ# म0 च<l शृङ्ग क8 िविभ<न आकृ ितय# के अनसु ार भी फल (ितपादन िकया गया है। अतः
िसTा<त ><थ# म0 च<l क8 शृङ्गो<नित के साधन क8 िविधय# का भी (ितपादन िकया गया।
अयनांश – नाडी वृ व Xाि<त वृ के स:पात िब<दु को अयन िब<दु कहा गया। काल क8 गणना का
आधार नाडीवृ है तथा रािश गणना का आधार Xाि<त वृ है। सयू ) वष) म0 दो बार जब अयन िब<दु
पर पह2चं ता है तब िदन राि& का मान समान होता है व Xाि<तमान श<ू य होता है। उसे िवषवु त िदन भी
कहा जाता है। पृिथवी क8 अयन गित के कारण यह अयन िब<दु भी चलायमान होता है। अतः
िवषवु त िदन भी परवित)त होता रहता है। अयन िब<दु Xाि<तवृ मडल के िजस %थान पर लगा
होता है, वह अयन िब<दु का %थान होता है तथा वह िब<दु मेषािद (रािश चX के आर:भ) िब<दु से
िजतने अश ं दरू होता है, वह अयनाशं कहलाता है। वत)मान म0 अयन क8 वािष)क गित लगभग ५३
िवकला मानी गई है।

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अWयास 2s –
१. बह2िवकEपाZमक (¢ –
(क) िसTा<त योितष संबंिधत ><थ नहG है –
(i) िसTा<तिशरोमिण (ii) सयू )िसTा<त (iii) बृहजातक (iv) ]ा^%फुटिसTा<त
(ख) पŸचिसTाि<तका ><थ के रचनाकार है –
(i) वराहिमिहर (ii) भा%कराचाय) (iii) आय)भट (iv) मनु ीyर
(ग) पŸचिसTा<त# म0 नहG है –
(i) सौर िसTा<त (ii) पैतामह िसTा<त (iii) इ<l िसTा<त (iv) पौिलश िसTा<त
(घ) आय)भट Nारा (ितपािदत कटपयसंdयाबोध िसTा<त के अनुसार ‘िक’ अ?र से िकस
सdं या का बोध होता है –
(i) १०० (ii) ३०० (iii) २०० (iv) ४००
(ङ) िसTा<तिशरोमिण ><थ का भाग नहG है –
(i) बीजगिणत (ii) लीलावती (iii) वा%तिु वा (iv) गोला/यायः
(च) िसTा<तयोितष संबT िवषय नहG है –
(i) कािकणीिवचार (ii) िदS,ान (iii) बालारYिवचार (iv) अहग)ण साधन
(छ) आचाय) सध ु ाकरिNवेदी Nारा रिचत ><थ नहG है –
(i) वा%तवच<lशृङ्गो<नितसाधन (ii) भामरे खािनAपण
(iii) दीघ)वृ ल?ण (iv) गोल परभाषा
(ज) जयिसंह Nारा बनवाई गई वेधशाला कहां नहG है –
(i) िदEली म0 (ii) कमीर म0 (iii) जयपरु म0 (iv) काशी म0
(झ) मŸु जाल ने अयन क8 वािष)क गित िकतनी मानी है –
(i) दश कला तEु य (ii) चार कला तEु य (iii) एक कला तEु य
(iv) आधी कला तEु य
(ञ) गणेशदैव, िवरिचत करण ><थ है –
(i) करणकुतहू ल (ii) राजमृगाङ्क (iii) िNगिु णतकरण (iv) >हलाघवकरण
२. लघू राZमक (¢ –
(क) िसTा<त योितष के िकतने भेद ह3?

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(ख) योितषशाm के िकस भेद म0 यगु ािद से >ह गणना होती है?
(ग) वेदाङ्गयोितष ><थ के का) कौन है?
(घ) पृिथवी के चलन का (थम उदाहरण िकसने (दान िकया?
(ङ) भारतीयबीजगिणत म0 चिXयचतभ ु ज)ु (मेय का (ितपादन सव)(थम िकसने िकया?
(च) लघमु ानस><थ के रचियता कौन है?
(छ) सरलि&कोणिमित ><थ क8 रचना िकसने क8?
(ज) भा%कराचाय) िवरिचत करण><थ का या नाम है?
(झ) िकस आचाय) ने सव)(थम गˆु Zवाकष)ण िसTा<त का (ितपादन िकया?
(ञ) चापीयि&कोणिमित ><थ के का) कौन है?
२.१० अ$यास BC के उ'र –
१. बह2िवकEपाZमक (¢# के उर –
(क) (iii)
(ख) (i)
(ग) (iii)
(घ) (i)
(ङ) (iii)
(च) (iii)
(छ) (iv)
(ज) (ii)
(झ) (iii)
(ञ) (iv)
२. लघू राZमक (¢# के उर –
(क) तीन
(ख) त<& भेद
(ग) आचाय) लगध
(घ) आय)भट ने
(ङ) ]^गnु ने

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
(च) मŸु जाल ने
(छ) बापदू वे ने
(ज) करणकुतहू ल
(झ) भा%कराचाय) ने
(ञ) आचाय) नीला:बर झा

ू ी–
२.११ सदभ2 ?थ सच

 योितषशाm%येितहासः, आचाय)लोकमिणदाहालिवरिचतः, (काशन – चौख:बा


सरु भारती (काशन, वाराणसी, २००३ ई.
 लगधयोितष, लगधाचाय) कृ त, Fयाdया – डॉ.पनु ीताशमा), (काशन –
नागपिcलशस), िदEली, २००८ ई.
 (ाचीनभारतीयगिणत, लेखक – बलदेव उपा/याय, (ाचीना भारतीय गिणत,
िव,ान भारती, नई िदEली, १९७१ ई.
 गिणत का इितहास, लेखक – बृजमोहन, िह<दी सिमित सचू ना िवभाग, लखनऊ,
उर(देश, १९६५ ई.
 भारतीय योितष, लेखक – शङ्कर बालकृ Lण दीि?त, िह<दी अनवु ाद –
िशवनाथ झारखडी, (काशन – उर(देश िह<दी सं%थान, लखनऊ, १९९० ई.।
२.१२ सहायक पाठ्य साम?ी –

 भारतीय योितष का इितहास, - उर (देश शासन, राजिष) पˆु षोम दास टडन,
िह<दी भवन, लखनऊ, १९७४ ई.
 सयू )िसTा<तः, Vीकिपलेyरशाmीिवरिचतः, VीतpवामृतभाLयोपपिसिहतः,
चौख:बा सं%कृ त सं%थान, वाराणसी, १९८७ ई.
 >हलाघवम,् Vीगणेशदैव,िवरिचतम,् Fयाdया – डॉ.]^ान<दि&पाठी, (काशन –
चौख:बा सरु भारती (काशन, वाराणसी, २००८ ई.

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
 आय)भटीयम,् आय)भतट(णीतम,् Fयाdया – डॉ.सZये<lशमा), (काशन – चौख:बा
सरु भारती (काशन, वाराणसी, २००८ ई.
 िसTा<तिशरोमिणः, भा%कराचाय)िवरिचतः, Fयाdया – पं.सZयदेवशमा), चौख:बा
सरु भारती (काशन, वाराणसी, २०११ ई.
२.१३ िनबधा&मक B –
१. िसTा<त योितष के भेद# का िव%तृत वण)न कर0 ।
२. आचाय) लगध व उनके कृ ितZव का वण)न कर0 ।
३. िसTा<त योितष के िवकास म0 भा%कराचाय) के योगदान का वण)न कर0 ।
४. राजा जयिसहं और उनके कृ ितZव का वण)न कर0 ।
५. िसTा<त योितष म0 विण)त िवषय# का सं?ेप म0 िववेचन कर0 ।
६. आचाय) ]^गnु का वैिशY्य (दिश)त कर0 ।

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इकाई – 3 मुख कध - संिहता
इकाई कP संरचना
३.१ (%तावना
३.२ उ|ेय
३.३ संिहता %क<ध का परचय
३.४ संिहता %क<ध का महpव
३.५ सिं हता %क<ध के (मख ु (ाचीन आचाय)
३.६ संिहता %क<ध के (मख ु ><थ व ><थकार
१. नारद संिहता
२. बृहZसिं हता
३. अvुत सागर
४. भlबाह2 संिहता
५. योितष दप)ण
६. टोडरान<द
७. कादि:बनी
३. ६. १ अ<य ><थ
३.७ सिं हता %क<ध के मdु य िवषय –
१. सामािजक िव,ान (Social science)
२. भौगोिलक शाm(Geography)
३. वा%तश ु ाm तथा कला (Architecture and Fine Arts)
४. सामिु lक शाm एवं ह%तरे खा िव,ान (Palmestry and body language)
५. वृिY िव,ान (Rainfall)
६. भजू ल का ,ान (Art of exploring underground Water-Veins)
७. कृ िष स:बंिधत िवषय (Agriculture)
८. खगोल शाm (Planetary movement and Eclipse)
९. आपदाऐ ं एवं उनके पवू ा)नमु ान के उपाय (disasters and their prediction
methods)

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१०. वृ?ायवु दŽ और पादप िव,ान (Arbori-Horticulture and Flora)
३.८ अ<य िवषय
३. ९ सारांश
३.१० पारभािषक शcदावली
३.११ अ}यास (¢# के उर
३.१२ स<दभ) ><थ सचू ी
३.१३ सहायक पाठ्य साम>ी
३.१४ िनब<धाZमक (¢

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३.१  तावना –
नारद सिं हता म0 वेद# के िनम)ल च?ु के Aप म0 योितष शाm को (ितƒािपत िकया और इस
शाm के तीन मdु य िवभाग बताये –
िस,ातः संिहता होरा Qप कध या7मकं।
वेद य िनमलं च$ुयGितः शाyमनु*मम।् । (नारदसंिहता, थमोऽयायः, ोक-४)
आचाय) पराशर ने भी योितषशाm को परम पु य शाm बताते ह2ए इसके तीन मdु य %क<ध बताये –
भगवान् परमं पुDयं गुjं वेदाङ्गमु*मम।्
ि कधं यौितषं होरा, गिणतं, संिहतेित च।। (बृहपाराशरहोराशाम् ,अ-१२/६ )
अतः योितषशा%& %क<ध&याZमक (िसT है। (थम िसTा<त, िNतीय संिहता और तृतीय
होरा %क<ध। ये ही तीन िवभाग योितष सािहZय म0 %क<ध&य नाम से जाने जाते ह3। यहां %क<ध का
अथ) शाखा भी जान सकते है। योितष उस िवशालकाय वृ? के समान है िजसका मल ू वेद,
उपिनषद, महाभारत, परु ाण और त<& सािहZय म0 िवमान है। िसTा<त, सिं हता और होरा उसक8 तीन
िवशाल शाखाय0 ह3। यिद ग:भीर Aप से िच<तन िकया जाय तो %क<ध&याZमक योितषAपी िवशाल
वृ? क8 छाया म0 मनोिव,ान, जीव िव,ान, िचिकZसा शाm, रसायन िव,ान और पदाथ) िव,ान
आिद अनेक िवधाय0 परपYु होती ह3। िसTा<त %क<ध म0 मdु य Aप से >हगिणत का वण)न है। होरा
%क<ध म0 >ह# क8 ि%थित के अनसु ार FयिO िवशेष के भतू भिवLय वत)मान से संबंिधत फल का मdु य
Aप से िववेचन (ाn होता है। पर<तु संिहता योितष म0 अनेक िवषय# का समावेश है, मdु यतया
समिYगत फल# का िववेचन िकया गया है। जैसा िक आचाय) वराहिमिहर ने कहा –
त7का7 यGपनय य नाम मुिनिभः सङ्कP7यते संिहता।
इस पाठ म0 संिहता %क<ध का िव%तृत परचय, संिहता %क<ध के िविभ<न ><थ एवं ><थकार, संिहता
म0 विण)त िविवध िवषय# का िववेचन िकया गया ह3।

३.२ उ)े%य –

(%ततु इकाई के अ/ययन के बाद आप –

 संिहता %क<ध का परचय (ाn कर0 ग।े


 सिं हता योितष क8 िवकास पर:परा का (ितपादन करने म0 कुशल ह#गे।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
 संिहता योितष के िविभ<न ><थ# का परचय (ाn कर0 गे
 संिहता योितष के िविभ<न ><थकार# का परचय (ाn कर0 ग।े
 सिं हता योितष का वैिशY्य (ितपादन करने म0 कुशल ह#गे।

३.३ सिं हता कध का परचय –


सिं हता शcद का (योग ला?िणक और शा%&ीय भी है। ‘संिहत’ शcद म0 टाप् (Zयय करने
पर संिहता शcद िनLप<न होता है। आचाय` ने संिहता पद म0 बह2]ीिह समास माना है और ‘सKयक्
िहतं 2ितपा0ं य या: सा’ इस (कार से समास िव>ह िकया है। इस सामािसक िव>ह से संिहता
पद का अथ) होता है – स:यक् िहत (ितपादक शcद। अत: ऐसा शाm जो जन सामा<य के िहतकारक
अथवा लोकिहतपरक िवषय# का स:यOया (ितपादन करता हो, उसे संिहता कहा जाता है। जैसे –
वेद संिहता और %मृित संिहता। संिहता शcद का कोश>ा‚ अथ) है – संयोग, मेलन, सं>ह इZयािद।
महिष) पािणिन ने ‘पर: सि<नकष): संिहता’ स&ू िलखा िजसके अनसु ार अितशय सामीQय संिहता
कहा जाता है। इस (कार के िववेचन से यह िनLकष) (ाn होता है िक उन वरण् # का, शबद् # का
अथवा वाय# का संयोग, मेलन अथवा सं>ह संिहता कहा जा सकता ह3 िजनसे लोकिहतकारी
भावनाऐ ं (कट होती ह#। शाm हो या िव,ान दोन# म0 ही लोकमङ्गल क8 भावना तो होती ही है।
योितष को शाm माने चाहे िव,ान, वह पणू ) Aप से लोकिहत साधक िसTा<त# से ही यO ु
है। योितष शाm का होरा भाग FयिOमा& के िहत का िच<तन करता है उसम0 समिY िहत का अभाव
देखा जाता है। अत एव होरा को लोकिहतकारक होते ह2ए भी सिं हता नहG कह जा सकता। पर<तु
योितष शाm का संिहता भाग सव)तोभाव से समिY िहतकार भावनाओ ं से अथा)त् राL‹िहतकार
भावनाओ ं से परपणू ) है। धम)संिहता धािम)क कृ त्य# के आधार पर राL‹िहत के िच<तन के तZपर होती
है। पर<तु योितष का सिं हता भाग एक वै,ािनक आधार को %वीकार कर (ाकृ ितक ततव् # के
शभु ाशभु फल# को %पY करते ह2ए राL‹िहत के अनेक िसTा<त# का (ितपादन करता है।
समिYगत फल का (ितपादन ही योितष के संिहता भाग का मdु य उ|ेय है। संिहता शाm
म0 मानव िहत से संबंिधत जगत के अनेक चराचर िवषय# का वण)न (ाn होता है। इस भाग म0
आ<तर?ीय घटनाओ ं के शभु ाशभु फल के साथ अ<य भी महpवपणू ) िवषय# का िवशेष Aप से
वण)न िकया गया है।
३.४ सिं हता कध का महFव –

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बृहZसंिहता आचाय) वराहिमिहर िवरिचत एक िवल?ण संिहता ><थ है। उसम0 दैव, (शसं ा
के स<दभ) म0 िनदŽश िकया िक जो दैव, सिं हता शाm को स:यक् ˆप से जानता है, वहG दैविच<तक
होता है – “सिं हतापारगr दैविचतको भवित”। जो दैव, गिणत व होरा शाm के साथ सिं हता
शाm म0 भी पारंगत होता है उसक8 “सांव7सर” सं,ा दी गई। सांवZसर का अZयिधक महpव
(ितपािदत िकया गया। सावं Zसर िकसी देश, (देश, िजले या नगर का शभु ाशभु फलकथन करने म0
समथ) होता है, अत एव कहा गया िक अपने कEयाण क8 इgछा रखने वाले FयिO को सा:वZसर
रिहत देश म0 िनवास नहG करना चािहये –
नासांव7स=रके देशे व तयं भूितिमBछता।
च$भ ु ूतो िह य ैष पापं त न िव0ते।। (बृहसंिहता, अयायः-२, ोक-११)
सांवZसर का महpव (दिश)त करते ह2ए आचाय) वराहिमिहर ने वण)न िकया – जैसे दीिnरिहत राि&
अ<धकार यO ु होता है, जैसे सयू )रिहत आकाश अ<धकारयO ु होता है उसी (कार दैव, िवहीन राजा
अ<धकार म0 ही मण करता है –
अ2दीपा यथा राि ः अनािद7यं यथा नभः।
तथा असांव7सरो राजा fKय7यध इवा\विन।।( बृहसंिहता, अयायः-२, ोक-८)
जो राजा िवजय क8 कामना करता है उसे िसTा<त सिं हता होरा Aप ि&%क<धाZमक
योितषशाm म0 पारंगत सांवZसर क8 अ}यच)ना कर अपने राय म0 %थान देना चािहये –
यः तु सKयि[वजानाित होरागिणतसंिहताः।
अWयBयः स नरे#ेण वीकतयो जयैिषणा।। (बृहसंिहता, अयायः-२, ोक-१९)
सांवZसर का अZयिधक महpव आचाय) वराहिमिहर ने (ितपािदत िकया। यिद कोई दैव,
भिवLय म0 घिटत होने वाली आपदा का पवू ा)नमु ान कर लेता है तो वह एक बृहम काय) करता है जो
िक न एक हजार हाथी िमलकर कर सकते है न ही चार हजार घोडे िमलकर कर सकते ह3। जैसा िक
कहा गया –
न त7सहं क=रणां वािजनां च चतुगुणम।्
करोित देशकाल1ो यथैको दैविचतकः।। (बृहसंिहता, सांवसरसूायायः, ोक-३८)
इस (कार ि&%क<ध के वेा दैव, क8 (शसं ा करते ह2ए आचाय) वराहिमिहर ने सिं हता %क<ध के
महpव को भी (ितपािदत िकया। होरा शाm का ,ाता योितषी तो के वल एक FयिO िवशेष का ही
फल (ितपादन कर सकता है पर<तु संिहता %क<ध म0 कुशल दैव, तो स:पणू ) समाज के कEयाण के

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िलये िच<तन करता है। अतः संिहता %क<ध का ,ाता होने पर ही िकसी योितषी को दैव, क8 सं,ा
दी गई। आज भी सिं हता योितष का अZय<त महpव समाज म0 िदखाई देता है।

३.५ संिहता कध के मुख ाचीन आचाय2 –

आचाय) वराहिमिहर रिचत बृहZसिं हता ><थ सिं हतायोितष का सव)(मख ु और सव)मा<य
><थ है। इसका काल ४२७ शकाcद मान जाता है। बृहZसंिहता ><थ म0 संिहता योितष से संबT
सभी िवषय# का वण)न िकया गया है। पृथक शाm के Aप म0 संिहता भाग का उदय कब ह2आ इस
िवषय म0 िनित Aप से कहा नहG जा सकता। बृहZसिं हता म0 आचाय) वराहिमिहर पवू व) त[ आचाय`
के Aप म0 गग), पराशर, अिसत, देवल, वृTगग), कयप, भृग,ु विसƒ, बृह%पित, मन,ु मय, सार%वत,
ऋिषप&ु आिद को संिहता ><थ# के रचनाका)ओ ं के Aप म0 %मरण करते ह3। आचाय) भkोZपल ने
वराहिमिहर िवरिचत सभी ><थ# क8 टीकाऐ ं िलखी बृहZसिं हता ><थ क8 टीका लेखन के समय
भkोZपल ने वराहिमिहर से भी कहG अिधक पवू व) त[ आचाय` का %मरण िकया है। उ<ह#ने टीका ><थ
म0 Fयास, भानभु k, िवLणगु nु , िवLणचु <l, यवन, रोम, िसTासन, भlबाह2, नि<द, नSनिजत,् शX,
किपल, चािणय, बलदेव, बृहlथ, गˆZमान, किप%थल, ऋषभ, भिद, सिव&, लाटदेव, ह%ताcद,
अिसत, अग%Zय, lFयवध)न, िवLणचु <l, इ<l, कायप, गाग), जीवशमा), गˆड, दैवल, देव%वामी,
न<दी, नSनजीत, नारद, पिु लशाचाय), बादरायण, भk]^गnु , भानभु k, भागु र, भारNाज मिु न, मय,
मयासरु , मिणZथ, माडFय, यवन, यवनेyर, व©ऋिष, वfयमाण, वरˆिच, िवLणगु nु , िवLण,ु
िवyकमा), वीरभl, शX ु , समlु ऋिष, सZयाचाय), सार%वत, िसTसेन, सयू ), Vतु क8ित), िहरयगभ)
इZयािद आचाय` का %मरण िकया। इन आचाय` के Nारा रिचत ><थ स:(ित उपलcध नहG होते ह3,
के वल इनके नाम ही शेष रह गये ह3।
आज नारद सिं हता, पाराशर सिं हता, गग) सिं हता, भृगु संिहता, कायप सिं हता और विसƒ
संिहता बृहZसंिहता से पवू व) त[ संिहताओ ं के Aप म0 उपलcध ह3। कुछ िवNान# का यह अनुमान है िक
वेदाङ्ग काल तक संिहताशाm का पृथक् अि%तZव नहG था। संिहता योितष के तpव िविवध
परु ाण# म0 और इितहास ><थ# म0 (ाn होते ह3। महाभारत म0 भी कुछ संिहता शाm# क8 ि%थित के
सक ं े त (ाn होते ह3 िवशेषतः Fयास सिं हता क8 ि%थित के ससं चू क वचन उपलcध होते ह3 –
ततो इuेऽहिन 2ाzे मुहa*? साधसु Kमते।
ज-ाह िविधव7पािणं मा#्याः पाDडुनरािधपः।। (महाभारतम् - १/११३/१६)
ऐ#े च#समायुे मुहa*?ऽिभिजदuमे
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िदवा म\यगते सूय? ितथौ पूण?ऽितपूिजते।। (महाभारतम् - १/१२३/६)

न के वल महाभारत म0 अिपतु वाEमीक8य रामायण म0 भी सिं हता से सबं िं धत िवषय# का

उEलेख िमलता है, यथा –


ततो य1े समाzे तु ऋतूनां षट् सम7ययुः।
ततr 6ादशे मासे चै े नाविमके ितथौ।।
न$ ेऽिदितदैव7ये वोBचसं थेषु प चसु।
-हेषु कक टे ल[ने वा4पतािवदुना सह।।(वामीकरामायणम् -
१/१८/८-९)
अतः संिहता के िवषय# का िनदŽश (ाचीन काल से ही (ाn हो जाता है।

३.६ सिं हता योितष के मुख ?थ व ?थकार –


आज के समय म0 उपलcध संिहता ><थ# म0 बृहZसंिहता(वाराहीसंिहता), नारद संिहता,
नारदीय सिं हता, भृगु सिं हता, विशƒ सिं हता, अvुतसागर और गग) सिं हता के नाम मdु यAप से (ाn
होते ह3, पर<तु इनम0 से सव)सल
ु भ Aप से लोक(चलन म0 नारद संिहता और बृहZसंिहता ही मdु य है।
बृहZसंिहता ><थ म0 योितष शाm के संिहता %क<ध के स:पणू ) िवषय# का िववेचन (ाn
होता है। समपु लcध सिं हता ><थ# का सिं ?n वण)न यहां िकया जा रहा है –
१.नारद संिहता – समपु लcध संिहता ><थ# म0 आष) Aप म0 (थम नारद संिहता उपलcध होती है,
यिप इसका (कािशत सा:(ितक %वAप नवीन ही लगता है। नारद संिहता 55 अ/याय# म0 िवभO
है। नारदसंिहता ><थ म0 सांवZसरक का ल?ण इस (कार विण)त िकया गया है –
ि कध1ो दशनीयः (ौत मा*ि;यापरः।
िनदािKभकः स7यवादी दैव1ो दैविवि7 थरः।।
पाराशर, गग), कायप, वािसƒ आिद संिहताओ ं म0 भी नारद संिहता के समान िवषय संभािवत ह3,
के वल िनAपण Xम िभ<न हो सकता है। सिं हताओ ं म0 भृगसु िं हता %थल
ू कलेवर वाली व बह2त िवषय#
वाली है। स:(ित सनु ी जा रही भृगु संिहता म0 अनेक ज<म कुडलीय# का सं>ह है िजसम0 िक FयिO
के ज<म, परवार व िविभ<न घटनाओ ं का सटीक वण)न िलखा ह2आ (ाn होता है। पर<तु संिहता के
अ<य िवषय# का इसम0 अभाव है।
२. बृह7संिहता – स:(ित ,ात पौˆषेय संिहता ><थ# म0 बृहZसंिहता ही (थम ><थ ह3। बृहZसंिहता

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को वाराहीसंिहता भी कहा जाता है। आचाय) वराहिमिहराचाय) इसके (णेता है। इसका समय 427
शकाcद माना जाता है। यह वराहिमिहर क8 अि<तम कृ ित मानी जाती है। इसम0 कुल 106 अ/याय ह3।
इस ><थ क8 भkोZपल रिचत िव%तृत टीका (ाn होती है। योगया&ा, िववाहपटल, िववाहखड,
िढकिनकया&ा, >हमडल पटल और समास संिहता आचाय) वराहिमिहर के संिहता िवषयक ><थ
माने जाते ह3।
बृZसंिहता से पवू ) भी संिहता िवषय# पर ><थ# क8 रचना क8 गई थG। आचाय) वराहिमिहर
%वयं कहते है िक िजन िक िवषय# का म3 इस बृहZसंिहता ><थ म0 (ितपािदत कर रहा हoं वे मेरे Nारा
आिवLकृ त नहG है अिपतु मैने के वलमा& पवू ा)चाय` Nारा रिचत ><थ# का अ/ययन कर उसी ,ान को
सार सं?ेप Aप म0 अपने वाय# म0 कहा ह3। वराहिमिहर ><थ म0 अनेक %थल# पर पवू ा)चाय) के Aप म0
पराशर, गग), भृग,ु देवल, वृTगग), कयप, विसƒ, बृह%पित, मन,ु सार%वत, ऋिषप&ु आिद का %मरण
करते ह3, िक<तु उनम0 से िकसी के Nारा भी रिचत संिहता ><थ आज उपलcध नहG होते ह3। इनम0 से
विसƒ सिं हता क8 एक पाडुिलिप (ाn ह2ई है, िजसका (काशन हो चक ु ा है। कुछ आचाय` का
अनमु ान है िक (ाचीन काल म0 ]^ा Nारा (कटीत योितष शाm क8 बह2त सी शाखाऐ ं थG। उनम0
अनेक ><थ# म0 िवषय# क8 पनु ˆिO व अFयवि%थत (ितपादन िकया गया होगा अतः मितम के
परहार के िलये आचाय) वराहिमिहर ने सभी िवषय# का सङ्>ह कर सार स? ं ेप म0 बृZसिं हता ><थ क8
रचना क8, तथा योितष के सभी िवषय# को तीन भाग# म0 िवभािजत करते ह2ए तीन# भाग# म0 पृथक्
पृथक् ><थ# क8 रचना क8। िकसी भी दो %क<ध के िवषय# को आपस म0 समािहत नहG िकया, उ<ह0
अgछी (कार से िवभािजत िकया।
बृZसंिहता के अवलोकन से ,ात होता है िक उस समय िकस (कार के ><थ रहे ह#गे।
(ाचीन आचाय` ने िविवध िवषय# पर महान् शोधकाय) िकये थ0, पर<तु दःु ख का िवषय है िक वे ><थ
आज उपलcध नहG होते ह3। और जैसा काय) आचाय) वराहिमिहर ने िकया िकसी अ<य आचाय) ने
नहG। स(ु िसT ‘भारतीय योितष’ ><थ के रचनाकार शङ्कर बालकृ Lण दीि?त ने सZय ही कहा िक
वराहिमिहर के उपरा<त तो संिहता ><थ# का साङ्गोपाङ्ग लेखन लnु (ाय हो गया। संिहता िवषय# म0
के वल महु oत)खड ही स:(ित सजीव है। महु oत)><थ# को भी संिहता%क<ध म0 ही परगिणत िकया गया।
३. अƒुतसागर – व%ततु ः अvुतसागर ><थ अvुत ही है। यह ><थ वङ्ग देश के राजा लfमण सेन
ने (ार:भ िकया और उनके प&ु बEलालसेन ने १०८९ शकाcद म0 उसे पणू ) करवाया। इस ><थ म0 भी
बृहZसंिहता के समान ही िवषय ह3। इस ><थ म0 बृहZसंिहता से भी अिधक कई नवीन िवषय भी विण)त
िकये गये ह3, िजनम0 मdु य Aप से अ<तर?, भिू म व वायमु डल म0 िदखाई देने वाले अनेक अvुत

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उZपात# का िववेचन िकया गया ह3 िजनका वण)न बृZसंिहता म0 भी नहG (ाn होता। इस ><थ का सबसे
बडा वैिशY्य है िक इसम0 पवू )वत[ ><थ# के वचन# को यथाAप उTरत िकया गया है। इस ><थ म0
(ाn होने वाले पराशर के वचन# के आधार पर जैन िवyिवालय, ब0गलोर के आधिु नक िव,ान के
िवNान् Vी आर. एन. आयङ्गर ने पाराशर संिहता के Aप म0 “पराशरत<&” ><थ क8 रचना क8 है।
पवू व) ित) कुछ आचाय` नाम िजनका उEलेख बृहZसिं हता म0 भी उपलcध नहG है, इस ><थ म0 (ाn
होते ह3 –
-थेऽ वृ,गगगगपराशरविशSगाग„यान् ।
बाह प7यबृह पितकठ(ुित@Aिस,ातान् ।।
आथवणाƒुतािशतषट् ि ंशद् @Aिषकृतीः।
गाग„यमतौशनसे कालाविलसयू िस,ातौ।।
िव\यवासी-वदरायणोशनः शािलहो िवधुगुzसु(ुतान।्
पीलुकायनृपपु देवलान् भागवीयिबजवायकाIयपान।् । (अ!ुतसागर, उपो%ातः, पृ&-४)
इस (कार बृहZसंिहता के उपरा<त अvुतसागर ही संिहता का एक साङ्गोपाङ्ग ><थ (ाn होता है।
><थ के अ/ययन से ,ात होता है िक वे सभी (ाचीन ><थ 12व0 शकाcद काल तक व उसके
उपरा<त भी िवमान थ0, और उनसे भी अिधक थ0 िजनका िक उEलेख आचाय) वराहिमिहर ने अपने
><थ बृहZसंिहता म0 िकया है।
४.भ#बाहk संिहता – ११-१२ शताcदी काल म0 आचाय) भlबाह2 ने इस ><थ क8 रचना क8। मdु य
Aप से यह अYाङ्ग िनिम# का वण)न करने वाला ><थ है। आपदाओ ं के आने पवू ) aY होने वाले
िनिम# का िव%तार से िववेचन इस ><थ म0 िकया गया है। कुछ अित नवीन िवषय भी ह3 िजनका
वण)न पवू व) त[ संिहता ><थ# म0 (ाn नहG होता। यह भी संिहता योितष का एक उZकृ Y ><थ है।
५.योितष दपण – गपाZमक यह ><थ पŸचपEलू सं,क िकसी आचाय) ने १४७९ शकाcद म0
िलखा। पŸचपEलू कवशाखा/यायी वZसगो&ीय ]ा^ण थ0। वे अपने ><थ म0 पैलभू टीय नामक
संिहता ><थ का %मरण करते ह3।
६.टोडरानद – १५७२ ई%वी वष) म0 राजा अकबर के शासनकाल म0 (धानम<&ी टोडरमEल ने
िवNान# क8 बह2त बडी गोƒी का आयोजन करवाया। उस शाmचचा) मे उसन0 उस काल म0 समपु cध
शाm# के महpवपणू ) मल ू वचन# का सङ्कलन करवाया। उसके परणाम%वAप 23 से अिधक िवषय#
के समायोजन से महाभारत तुEय “टोडरान<द” ><थ का िनमा)ण ह2आ। इसम0 (Zयेक भाग क8 सौdय

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सं,ा दी गई। उनम0 से “संिहतासौdयम”् , “वा%तसु ौdयम”् , “गिणतसौdयम”् इZयािद म0
योितषशाm संबिं धत परु ातन ><थ# के वचन# का उZकृ Y सं>ह (ाn होता ह3। कुछ नवीन िव¤े षक#
का मत है िक इस ><थ का िनमा)ण राजा के साि<न/य म0 मdु य Aप दैव, नीलकठ ने िकया।
७.कादिKबनी – म. म. िवावाच%पित पं. Vीमधसु दू न ओझा जी ने समपु लcध संिहता><थ# का
सfू मेि?कया अ/ययन कर सारAप म0 अZय<त सरल भाषा म0 उन िवषय# का िववेचन कादि:बनी
><थ म0 िकया। िवशेष Aप से इस ><थ म0 वृिY संबंिधत फल# का िववेचन िकया गया ह3। महोदय का
ज<म Vीकृ Lण ज<माYमी के िदन संवत् १९२३ म0 ह2आ था।
८.बृहpैव1र जन – १९५४ शकसंवत् म0 काशी नरे श के आिVत पं.रामदीन महोदय ने इस सं>ह
><थ क8 रचना क8। इस ><थ म0 गोचर फल, फिलत योितष, महु o) शाm इZयािद से संबंिधत िवषय#
का संकलन ह3। मdु य Aप से इस ><थ म0 बृZसंिहता के वचन# को उTरत िकया गया ह3।
१.६.१ अय -थ – उपय)O ु ><थ# के अितरO और भी अ<य उपलcध स(ु िसT संिहता ><थ ह3
िजनका स:(ित (काशन हो चक ु ा है। उनके नाम ह3 – मयरू िच&क, मेघमाला, वनमाला, विशƒ
संिहता, बृहNा%तमु ाला, अvुत दप)ण, शृङ्गार तरंिगणी, िवामाधवीय, िववेक िवलास, गˆु संिहता,
कृ िषपाराशर, दैव,कामधेनु, िनिमशाm, गृहरZनिवभषू ण, जयपायड िनिमशाm इZयािद। इनके
अितरO आज भी बडी संdया म0 सिं हता शाm से सबं िं धत ><थ देश और िवदेश के िविभ<न
प%ु तकालय# म0 पाडु ><थ# के Aप म0 िवमान है व (कािशत होने क8 (ती?ा कर रहे ह3। िजनके
(काशन से और भी नये ,ान व संिहता शाm के िवकास क8 पर:परा का ,ान हो सकता है।
३.७ संिहता कध के मुख िवषय –
जल िव,ान (भिू मगत और आकाश%थ), रे खािव,ान, वा%त,ु धमू के तू उEका आिद का
,ान, शकुन शाm और सामिु lक शाm इZयािद सिं हता शाm से ही उvूत ह2ए। >हजिनत अशभु दोष
िनवारण क8 िचिकZसा पTित म0 सयू ा)िद >ह# से संबT मािणयािद रZन धारण, िविभ<न धातओ ू ं क8
भ%म से िविवध रोग# का िनदान इZयािद िवषय भी संिहता म0 समािहत ह2ए। इसी शाm के आधार पर
न?&मडल म0 >ह# के संचरण Nारा इस लोक म0 होने वाले शभु ाशभु फल# का िनAपण इसी शाm
म0 िकया गया। योितष के इसी %क<ध के आधार पर वाय,ु वृिY आिद का ,ान दैव, करते ह3।

महु o)शाm को भी संिहताशाm का ही अङ्ग माना गया िजसके िबना लौिकक, वैिदक और
%मारत् कोई भी काय) िसT नहG हो पाता। संिहताशाm म0 %थल, जल, और गगन म0 िदखाई देने वाले
िविवध उZपात# के िववेचन व ल?ण के Nारा तथा ताZकािलक >हचार के Nारा सिु भ? दिु भ)? आिद

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साव)भौम शभु ाशभु फल# का (%ततु ीकरण होता ह3। साथ ही %वर, महु oरत् , शकुन, पˆु षmील?ण,
गजतरु गल?ण, रZन, (ितमा(ासादल?ण आिद अनेक िवशेष िवषय# का (ितपादक सिं हताशाm है।
यह समाज के कEयाणपथ का (दश)क है। इस %क<ध म0 विण)त सभी मdु य िवषय# के नाम के वल

बृहZसंिहता ><थ म0 ही (ाn होते ह3। जैसा िक ><थार:भ म0 आचाय) वराहिमिहर ने विण)त िकया –
य ैते संिहता पदाथा:। िदनकरादीनां -हाणां चारा तेषु च तेषां
2कृितिवकृित2माणवणिकरण0ुितसं थाना तमनोदयमागमागातरव;ानुव;$-हसमागम
चारािदिभ: फलािन न$ कूमिवभागेन देशे8वग 7यचार:। सzिषचार:। -हभयो
न$ यूह-हशृङ्गाटक-हयु,-हसमागम-हवषफलगभ ल$णरोिहणी वा7याषाढीयोगा:
स0ोवषकुसुमलताप=रिधप=रवेषप=रघपवनो%कािद[दाहि$ितचलनस\यारागगधवनगरर
जोिनघाताघकाDडस यजमे#\वजे#चापवा तुिव0ाङ्गिव0ावायसिव0ातरच;मृगच;
}च;वातच;2ासादल$ण2ितमाल$ण2ितSापनवृ$ायुव?दोदगागलरनीरालजनख जन
को7पातशाितमयूरिच कघृतकKबलखङ्गप कृकवाकुकूमगोऽजा}ेभपुQषyील$णाय
त:परु िचतािपटकल$णोपानBछे दवyBछे दचामरदDडशयनाऽऽसनल$णर7नपरी$ा
दीपल$णं दतकाSा0ाि(तािन शुभाऽशुभािन िनिम*ािन सामायािन च जगत: 2ितपु|षं
पाथवे च 2ित$णमनयकमािभयुेन दैव1ेन िचतियतयािन। न चैकािकना
श4यतेऽहिनशमवधारियतुं िनिम*ािन। त मात् सुभृतेनैव दैव1ेनायेऽिप ति6दr7वार:
कतया:। त ैकेनै#ी चा-ेयी च िदगवलोकियतया। याKया नैऋती चायेनैवं वा|णी
वायया चो*रा चैशानी चेित। य मादु%कापातादीिन शी€मपगBछतीित।
त याrाकारवण नेह2माणािद-ह$Gपघातािदिभ: फलािन भवित। (बृहZसंिहता,
सांवZसरस&ू ा/यायः, ¤ोक-२३)
अvुतसागर><थ म0 भी बृहZसंिहता के समान ही िवषय# का वण)न है, पर<तु उसम0 अनेक
नवीन िवषय# का भी िववेचन िकया गया िजनक8 चचा) बृZसिं हता म0 भी चचा) नहG है। उसम0
िदFयाVय, अ<तर?ाVय और भौमाVय सं,क तीन भाग# म0 िविवध उZपात# का सोपपिZक वण)न
िकया है व उनक8 शाि<त के उपाय भी विण)त िकये है। भौमाVय म0 भक
ू :प, जलाशय अिSन, दीप, देव
(ितमा, शX/वज, वृ?, गृह, वातज उप%कर, वm, उपाहन, आसन, शm, िदFय mीपˆु षदश)न,
मानषु , िपटक, %वQन, कायरY, द<त ज<म, (सव, सव)शाकुन, नाना मृग, िवहग, गज, अy, वृष,
मिहष, िबडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोिधका, िपपीिलका, पतङ्ग, मशक, मि?क, लतू ा, मर, भेक,
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ख<जरीट दश)न, पोतक8, कृ Lणपेिचका, वायसाvुताव), िमVकाvुताव), अvुतशा<Zयvुताव),
सोवष)िनिमाvुताव), अिवˆTाvुताव) और पाकसमयाvुतावत) का िनAपण िकया ह3 िजनम0 से
अनेक िवषय# क8 चचा) बृZसंिहता म0 नहG (ाn होती।
संिहता के िवषय अZय<त िव%तीरण् ह3। इसम0 स:पणू ) देश क8 ि%थित, देश का शभु ाशभु
फल, कृ िष स:बि<धत फल, वृिY स:बि<धत फल, वािणय स:बि<धत फल, राजनीित स:बि<धत
फल और अथ) स:बि<धत फल का िव%तृत ˆप (ितपादन िकया गया है। इसके िनधा)रण हेतु आचाय)
वराहिमिहर रिचत बृहZसंिहता म0 वण)न है िक सव)(थम साईस न?तर् # को नव खणड् # म0 िवभािजत
िकया गया। (Zयेक खड म0 तीन तीन न?तर् %थािपत िकये। बृहद भारत देश के भभू ाग को न?तर् #
के आधार पर िवभािजत िकया। जब >ह# का सŸचार उन न?&# पर होता ह3 तब उनसे संबंिधत देश#
पर उन >ह# का शभु ाशभु का (ितपादन िकया गया। िकस %थान पर कब िकतनी मा&ा म0 वृिY होगी?
Fयापार जगत म0 िकन व%तओ ु ं के मEू य# म0 तेजी या म<दी होगी? इZयािद िवषय# का िवचार भी
सिं हता ><थ# म0 उO >हचार के आधार पर िकया गया। सिं हता ><थ# म0 विण)त िवषय# का स? ं ेप म0
वण)न िकया जा रहा है –
१. सामािजकिव1ानम् (Social science) – संिहता ><थ# म0 ताZकालीन सामािजक Fयव%था के
स<दभ) म0 िव%तार से वण)न (ाn होता है। उसम0 वण) Fयव%था, वण) सक ं र, चार आVम, पनु िव)वाह,
बह2िववाह, िवधवा िववाह, सती(था, िववाहिवgछे द आिद िवषय म0 वण)न (ाn होता है। पारवारक
संबंध, समाज म0 िश?ा क8 ि%थित इZयािद िवषय# का संिहता %क<ध म0 वण)न (ाn होता है। िविवध
(देश# के िनवासकता)ओ ं का ?े& के अनसु ार, %वAप के अनसु ार और कम)िवशेष के अनसु ार नाम
का वण)न िकया गया है। उससे उस समय क8 सामािजक ि%थित का ,ान होता है। जैसे – आभीरस,
अिभसार, आदश), अिSनधर, yमख ु , अyZथ, अवगाण, आवत)क, वाटधान, महा>ीव, मZ%य
इZयािद।
२. भौगोिलक शाy (Geography) – संिहता><थ# म0 ताZकािलक देश, (देश और नगर# के
नाम# का उEलेख (ाn होता है। उससे ताZकािलक भौगोिलक ि%थित का ,ान भी होता है। मdु य सn
पव)त# के नाम का उEलेख (ाn होता है। भीमरथा, च<lभागा, चाˆदेवी, देिवका, गा:भीरका,
गलु हु ा, इ?मु ती, इरावती, कौिशक8, लौिहZय, िनिव)</या, पारा, पयोLणी, फEगल ु क
ु ा, रथाdया,
शतlु, शोण, ता—पण[, वेद%मृित, वेणा, वेणमु ती, िवपाशा, िवत%ता इZयािद नदीय# के नाम# का
उEलेख (ाn होता है। दडक, धमा)रय, महाZवी, नैिमष, नृिसंहवन, पLु कर, वनराय, वनराL‹,
वनौघ, वसवु न इZयािद वन# के नाम भी (ाn होते ह3।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
३. वा तुशाy तथा कला (Architecture and Fine Arts) – भिू म चयन से (ार:भ
कर गृह(वेश पय)<त सभी गृहवा%तु के िवषय वा%तश ु ाm के अ<तग)त समािहत होते है। वराहिमिहर ने
वा%तश ु ाm को भी संिहता %क<ध के अ<तग)त परगिणत िकया। बृहZसंिहता म0 न के वल गृहवा%तु के
स<दभ) म0 अिपतु (ासाद वा%तु व मि<दर वा%तु का भी समावेश िकया गया। काला<तर म0 वा%तु एक
पृथक् शाm के Aप म0 %थािपत ह2आ।
४. सामुि#क शाy व ह तरेखा िव1ान (Palmistry and Body language) –
आज के समय म0 ह%तरे खाओ ं के Nारा फलकथन क8 िविध का अZयिधक (चार देखा जाता है।
ह%तरे खा दश)न सामिु lक शाm का ही एक भाग है। सामिु lक शाm के अ<तग)त शरीर के सभी
अङ्ग# के ल?ण व उनके Nारा फलकथन िकया जाता है। उनम0 से भी ह%तरे खा दश)न काला<तर म0
अित (िसT हो गया और पृथक् शाmAप म0 इसके ><थ# क8 रचना होने लगी। सामिु lक शाm का
भी अ<तभा)व संिहता शाm म0 ही िकया गया।
५.वृिu िव1ान (Rainfall) – आधिु नक वै,ािनक सतत Aप वृYी के पवू ा)नमु ान हेतु
(यासरत रहते ह3। पर<तु अिधक सफलता िदखाई नहG देती। वे कुछ िदन पवू ) का ही अनमु ान कर पाते
ह3। (ाचीन आचाय` ने भी वृिY के िवषय म0 िव%तार से िववेचन िकया और एक वष) पूव) ही वृिY के
पवू ा)नमु ान का (यास िकया। वृिY क8 उZपि, वृिY के कारण, वृिY क8 पवू ा)नमु ान क8 िविभ<न
िविधयां, िविभ<न (कार क8 वृिY के Nारा होने वाले फल, अितवृिY अनावृिY जिनत आपदाऐ ं व
उनके शमन के उपाय भी संिहता %क<ध म0 विण)त िकये गये ह3।
६.भूजल का 1ान (Art of exploring underground Water-Veins) – आज
िविवध रे िडयोधम[ य<&# के मा/यम से भगू भ) म0 ि%थत जल का ,ान िकया जाता है, पर<तु (ाचीन
समय म0 भी भिू मगत जल के ,ान हेतु य<&# उपलcध नहG थ0। (ाचीनकाल म0 िविवध वृ?# क8
ि%थित, वEमीक आिद क8ट# के गृहदश)न इZयािद िविध Nारा भगू भ) म0 िवमान जलिशराओ ं का ,ान
िकया जाता था। यह वण)न संिहता %क<ध के “दकाग)ला/याय” म0 िकया गया। मdु यतया भगू भ) म0
जल है या नहG? यिद है तो िकतनी मा&ा म0? जल मधरु है अथवा लवणयO ु ? जल %वा%Jयवध)क है
या िवषाO? भगू भ) म0 जल िकतना गहराई म0 है? इन सभी (शन् # का समाधान दकाग)ला/याय म0
िकया गया। आज आधिु नक य<तर् # Nारा भगू भ) के ि%थत जल, तैल व खिनज पदारथ् # का ,ान
िकया जाता है, परनत् ु (ाचीनकाल म0 य<&# के अभाव म0 उनका सfू म ,ान के वल जय् ोितष शाm के
संिहता शाm Nारा ही िकया जाता था।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
७.कृिष सKबंिधत िवषय (Agriculture) – िकस (कार के धा<य# क8 उZपि कब होती
ह3? उनका सवं ध)न िकस (कार होता है? उन धा<य# हेतु बीज# का िनमा)ण कै से िकया जाय? धा<य#
का संर?ण कै से िकया जाय? धा<य कब उ<नत होते ह3 तथा कब धा<य उZपि म0 “ास होता है, इन
सभी िवषय# का भी वण)न संिहता शाm म0 (ाn होता है।
८.खगोल शाy (Planetary movement and Eclipse) – >ह# का संचार,
अग%Zय चार, सnिष) चार, >हण, >हयT ु , >ह# का उदया%त, >हवण), >हसमागम, धमू के तू,
उEकापतन आिद खगोलीय िवषय# के कारण, ल?ण और फल# का (ितपादन संिहता शाm# म0
िव%तार से िकया गया ह3। बृहZसंिहता म0 आचाय) वराहिमिहर ने सnिष) का भी चलन (ितपािदत
िकया।
९.आपदाऐ ं एवं उनके पवू ानमु ान के उपाय (disasters and their prediction
methods) – जैसी भक ू :पािद आपदाऐ ं आज लोक म0 िदखाई देती ह3 उसी (कार (ाचीन काल म0
भी ऐसी आपदाऐ ं आती रही ह3। (ाचीन आचाय` ने इस (कार से आपदाओ ं का िनर<तर िनदश)न
िकया होगा और िव%तार से उनका िववेचन भी िकया। िविवध आपदाओ ं के ल?ण, कारण,
पवू ा)नमु ान क8 िविधयां, आपदाओ ं से र?ा के उपाय और आपदाओ ं के शमन हेतु भी उपाय# का
वण)न िकया। भक ू :प के स<दभ) म0 तो आचाय) वराहिमिहर एक िवशेष अ/याय ही बृहZसिं हता म0
(%ततु कर िदया। अ/याय म0 भक ू ं प# के चार भेद बताते ह2ए उनका िववेचन िकया गया है।
१०.वृ$ायुव?द और पादप िव1ान (Arbori-Horticulture and Flora) –
सिं हता><थ# म0 पादप िव,ान का भी िव%तार से वण)न (ाn होता ह3। पादप# का सरं ?ण, सवं ध)न और
िचिकZसा कै से हो, वृ?# क8 िचिकZसा का वण)न भी संिहता %क<ध म0 (ाn होता है, उसक8
‘वृ?ायवु दŽ ’ सं,ा दी गई।

३.८ अय िवषय –


वा †य, रोग और औषिधयां (Health, Disease and Medicine) – िविवध रोग
और उनके शमन हेतु उपाय (का<दिप)का), िविवध चणू ` के िनमा)ण क8 िविधयां सिं हता ><थ# म0
विण)त क8 गई ह3 ।
अनपानािद (Food and Drinks) – संिहता ><थ# म0 खाा<न और पानीय पदाथ` के िवषय म0
भी िव%तार से चचा) (ाn होती है। िविवध धा<य, मसाले, दSु धपदाथ), िमƒा<न, िवशेष FयŸजन, शाक,
फल, म आिद के िवषय म0 चचा) (ाn होती है।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
वyािण आभूषणािण च (Dress and Ornaments) – िविवध वm, परधान, वm# के वण),
िविवध आभषू ण, सजा व%तऐू ं (चामर छ&) इZयािद का वण)न सिं हता ><थ# म0 उपलcध होता है।
सगु ध #य और नानागार कP व तूऐ ं (Perfumery and toilets) – ग<ध यिु O,
ग<ध lFय, तैल, मख ु वास, %नानचणू ,) धपू , पZु वास, मधू )ज, राग, ता:बलू , माला इZयािद
lFय# के िनमा)ण के (कार का वण)न िकया गया है।
आवIयक गृह उपकरण (Furniture and Miscellaneous Material) – श«या,
पलंग, भlासन, पा& और आवयक व%तओ ू ं के िनमा)ण व रख रखाव के िवषय म0 वण)न (ाn होता
है।
पु8प (Fauna) – उस काल म0 भारत म0 समपु लcध होने वाले िविवध पLु प# क8 (जाितय#
के स<दभ) म0 संिहता><थ# म0 वण)न (ाn होता है। उन पLु प# का वैिशY्य और उनक8 “ासवृिT के
अनसु ार लोक म0 िविवध व%तूओ ं क8 “ास और वृिT का फल बृहZसंिहता के “कुसमु लता/याय” म0
विण)त िकया गया है।
कला तथा कुटीर (Arts and Crafts) – (ाचीन भारत म0 िविवध कलाऐ ं (िसT थG।
िविवध ह%तिनिम)त व%तओ ू ं के उोग# के नाम संिहता ><थ# म0 (ाn होते ह3। एक िवशेष काय) करने
वाले समदु ाय क8 भी िवशेष सं,ाऐ ं (ाn होती है।
अथशाy (Trade) – कुछ व%तु (दान करते ह2ए अ<य व%तु का लाभ कै से हो, अथ) का
िविनमय और Fयापार कै से करना चािहये। इन सभी क8 मानक (िकया का वण)न भी संिहता शाm का
िवषय है ।
आभूषण िव1ान (Jewel Industry) – िविवध आभषू ण, उनके िनमा)ण क8 (िXया,
उनके धारण क8 िविध, उनक8 देश के िविभ<न ?े&# म0 समपु लcधता और िवशेष समदु ाय के साथ
उनक8 संबTता का वण)न (ाn होता है। िविभ<न (कार के रZन, उनका वैिशY्य, ल?ण और उनक8
(ािn के %थान का वण)न िकया गया है।
मापन िव1ान (Weights and Measurements) – व%तओ ू ं के भार मापन के और
वmािद के दै˜य) मापन के िसTा<त, मापक व%तऐू ,ं उनके Nारा मापन क8 (िकया का भी वण)न
सिं हता %क<ध म0 (ाn होता है।
मु#ा िविनमय (Coinage) – मlु ा के िविवध (कार, मlु ा िनमा)ण हेतु (यO ु धातऐु ,ं मlु ा
टङ्कण क8 पTितयां, मlु ाओ ं के आदान (दान क8 (िXया और मlु ाAप म0 (यO ु होने
वाली िविवध व%तूओ ं का वण)न संिहता %क<ध म0 िकया गया है।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
संगीत शाy और िच शाy (Sculpture, Music, Painting) – संगीत शाm,
मिू त)कला शाm और िच&कला से सबं िं धत िविवध िवषय# का सिं हता शाm म0 वण)न िकया गया ह3।
दशन शाy (Philosophy) – योितषशाm का मल ू दश)नशाm म0 ही िवमान है।
संिहता %क<ध म0 दन)शाm के भी अनेक िवषय# का वण)न िकया गया ह3। जैसे – कम)वाद,
पनु ज)<मवाद, सृिY उZपि इZयािद
धमशाy (Religion) – धम) Nारा िविहत कत)Fयाकत)Fय का बोधक शाm “धम)शाm” कहा
जाता है। धम)शाm के भी अनेक िवषय संिहता %क<ध के अ<तग)त विण)त ह3।
याय शाy (Law) – िविधिवˆT कम` का स:पादन करने वाले FयिO हेतु दड का
िवधान िकया गया। दड का %वAप, दड क8 (िXया इZयािद <याय संबT िवषय# का संिहताशाm
म0 वण)न िकया गया।
३. ९ सारांश
वैिदक काल म0 याग को एक अZय<त महpवपणू ) िXया माना गया। और उन वैिदक याग# का
स:पादन एक िनित काल म0 >ह न?&# क8 िवशेष ि%थित म0 िकया जाता था, जो िक महु o) शाm
का िवषय है। याग# के स:पादन हेतु कुड मडप क8 िसिT हेतु माप व िनमा)ण िवधान का वण)न
वा%तश
ु ाm का िवषय है। महु oत) व वा%तदु ोन# ही संिहता %क<ध म0 समािहत है, अतः संिहता %क<ध
योितषशाm का (ाचीनतम %क<ध माना जाता है। योितषशाm का यह %क<ध समिYिहतकार
भावनाओ ं से अथा)त् राL‹िहतकार भावनाओ ं से परपणू ) है। िकसी शाm के ,ान के िलये उस शाm
के (मखु आचाया) व मdु य िवषय# का ,ान आवयक होता है। इस %क<ध म0 िवषय# का अZय<त
िव%तार है। यह पाठ के वल परचय मा& ही है। इस पाठ म0 संिहता %क<ध के (मख ु ><थ, (मखु
आचाय), (मख ु ><थ और (मख ु िवषय# का स? ं ेप म0 वण)न िकया गया।
३.१० पारभािषक शAदावली

दैविचतक – “पूव जमकृतं कम तpेविमित क†यते” शाy कथन के अनसु ार


पवू ज) <मािज)त कम` को दैव कहा जाता है। अथवा जो िनयित परमाZमा के Nारा तय है वह भी ‘दैव’
कहलाती है। जो FयिO दैव के िवषय म0 िच<तन करता है। उसके अनसु ार स:भािवत घटनाओ ं का
िनदश)न करता है और शभु ाशभु फल# का िववेचन करता है।
सांव7सर – मdु य Aप से आचाय) वराहिमिहर ने दैव, हेतु “सावं Zसर” शcद का (योग िकया। जो

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
योितषशाm के तीन# %क<ध# का ,ाता हो उसे ही दैव, अथवा सांवZसर कहा गया। साथ ही एक
अgछे दैव, के सभी ल?ण# व गणु # का आचाय) वराहिमिहर ने िव%तार से (ितपादन भी िकया।
उ7पात – “2कृतेरयथो7पातः” जो घटना (कृ ित से िभ<न व िविच& िदखाई देती है, उसक8 उZपात
सं,ा क8 गई। उZपात# को भी तीन भाग# म0 बांटा गया – १. िदFय २. भौम और ३. आ<तर?। जो
उZपात आकाश मडल म0 िदखाई िदये उ<ह0 िदFय उZपात कहा, जैसे धमू के त,ू >ह# का वण) परवत)न,
>हण इZयािद। जो िविच& घटनाऐ ं भिू म पर िदखाई दG उ<ह0 भौिमक उZपात कहा, जैसे – भक ू :प,
नदीय# का अचानक सख ू जाना, वृ? का अचानक सख ू जाना, मि<दर म0 मिू त)य# का िखसकना,
हसना या रोना, पशु पि?य# का िविच& Fयवहार इZयािद। और वायमु डल म0 जो िविच& घटनाऐ ं
िदखाई दG उ<ह0 आ<तर? उZपात कहा गया। जैसे उEकापात, िवतु , (चड वात, मेघ# क8 िविच&
आकृ ित आिद।
दकागल – भारत म0 अनेक %थल ऐसे ह3 जहां अZयEप वृिY होती है, वहां के िनवासी कुओ,ं बावडी
के भिू मगत ोत# पर ही आिVत रहते ह3। (ाचीन आचाय` ने (ितपािदत िकया िक िजस (कार शरीर
म0 रO वािहिनय# का जाल होता है उसी (कार भिू म म0 भी जल क8 अनेक िशराओ ं का जजं ाल होता
है, व अनेक %थल# पर उन िशराओ ं के जल का भिू म म0 एकि&करण भी होता रहता है। जल के उन
भिू मगत भडार# का ,ान िजस िविध से होता था, उसे दकाग)ल कहा गया।
वृ$ायुव?द – वृ?ायवु दŽ अथा)त् ‘वृ?# का िचिकZसाशाm’। िजस (कार मनLु य का शरीर िविवध
रोग# से >%त होता है उसी (कार से वृ?# को भी अनेक (कार के रोग होते ह3। उनके उपचार क8
िविधय# का वण)न वृ?ायवु दŽ म0 िकया गया। यिद िकसी वृ? को एक %थान से हटाकर अ<य %थाप
(Zयारोिपत करना हो तो उसे िकस (कार से यथाि%थित(िजसे उसके पे भी उसी ि%थित म0 रह0)
%थाना<तरत िकया जाय, उसका भी वण)न संिहता ><थ# म0 िकया। कुछ वृ?# के बीज# का अक ं ु रण
किठनाई से होता है, अतः उनके बीज# को तैयार करने क8 िविधयां भी िव%तार से विण)त क8 गई।
िनिम* – वे ल?ण जो भिवLय म0 घिटत होने वाली घटनाओ ं के सचू क होते ह3, उ<ह0 िनिम कहा
गया। जैसे – पशु पि?य# का िविच& Fयवहार, वाय,ु िवतु , >हण इZयािद।
अ$यास B
१. बह2िवकEपाZमक (¢
(क) योितष शाm के िकतने %क<ध ह3 –
(i) तीन (ii) पांच (iii) दस (iv) सात
(ख) योितष शाm का %क<ध नहG है –
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
(i) होरा (ii) संिहता (iii) सािहZय (iv) िसTा<त
(ग) सिं हतापारग कौन होता है –
(i) न?&कसचू क (ii) दैविच<तक (iii) योगी (iv) वेदा<ती
(घ) संिहता %क<ध से संबT ><थ नहG है –
(i) बृहZसिं हता (ii) भlबाह2सिं हता (iii) वेदा<तसार (iv) कादि:बनी
(ङ) बृहZसंिहता ><थ के कता) है –
(i) नारायण दैव, (ii) आचाय) वराहिमिहर (iii) नारद (iv) विसƒ
(च) संिहता संबT िवषय नहG है –
(i) सामिु lकशाm (ii) वा%तश ु ाm (iii) ]^,ान (iv) दकाग)ल
(छ) अvुतसागर ><थ के कता) है –
(i) आचाय) वराहिमिहर (ii) नारायण दैव, (iii) विसƒ (iv) बEलालसेन
(ज) कादि:बनी ><थ के रचियता है –
(i) विसƒ (ii) पं.Vीमधसु दू न ओझा (iii) आचाय) वराहिमिहर (iv) बEलालसेन
(झ) भlबाह2 संिहता ><थ के रचियता है –
(i) नारायण दैव, (ii) आचाय) भlबाह2 (iii) आचाय) वराहिमिहर (iv)
बEलालसेन

२. लघू'रा&मक B –
(क) योितष शाm का (ाचीनतम %क<ध कौनसा है?
(ख) योितषशाm के िकस %क<ध म0 गिणत से संबT िवषय# का वण)न है?
(ग) संिहता %क<ध का सव)(मख ु ><थ कौनसा है?
(घ) संिहता %क<ध म0 वा%तश ु ाm का अ<तभा)व होता है या नहG?
(ङ) बृहZसिं हता ><थ म0 िकतने अ/याय ह3?
(च) “टोडरान<द” ><थ का रचनाकार कौन है?
(छ) संिहताशाm म0 वृिY संबT िवषय# का वण)न है या नहG?
(ज) सामिु lकशाm का सिं हता%क<ध म0 अ<तभा)व है, सZय अथवा असZय?
(झ) भजू ल का वण)न संिहता शाm# म0 िकस अ/याय म0 िकया गया है?
(ञ) वृ?# क8 िचिकZसा का वण)न िकस नाम से िकया गया है?
उराखड मु त िवविवालय Page 137
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
३.११ अ$यास BC के उ'र –
१. बह2िवकEपाZमक (¢ान# के उर –
(क) (i)
(ख) (iii)
(ग) (ii)
(घ) (iii)
(ङ) (ii)
(च) (iii)
(छ) (iv)
(ज) (ii)
(झ) (ii)
२. लघू राZमक (¢# के उर –
(क) संिहता
(ख) िसTा<त %क<ध म0
(ग) बृहZसंिहता
(घ) है
(ङ) 106 अ/याय
(च) राजा टोडरमEल
(छ) है
(ज) सZय
(झ) दकाग)ला/याय म0
(ञ) वृ?ायवु दŽ अ/याय
३.१२ सदभ2 ?थ सच
ू ी
• अvुतसागरः, Vीम¬Eलासेनदेव(णीत, चौख:बा सरु भारती (काशन, वाराणसी,
२००६
• नारदसंिहता, नारदमहामिु न(णीता, चौख:बा सं%कृ त भवन,वाराणसी, संवत् २०६५

उराखड मु त िवविवालय Page 138


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501

• बृहZसंिहता, वराहिमिहरिवरिचत, चौख:बािवाभवन, वाराणसी,


२००९
• बृहZसंिहता (भाग१ व २ ), आचाय) वराहिमिहर, Fयाdया – नागे<l
पाडेय, संपणू ा)न<द सं%कृ त िवyिवालय, वाराणसी, २००२
• बृहZसंिहता, वराहिमिहरिवरिचता, भkोZपलटीकासिहता, Fयाdयाकारः-
अgयतु ान<द झा, चौख:बा िवाभवन, वाराणसी १९९७
३.१३ सहायक पाठ्य साम?ी
• मयरू िच&कम,् देविष) नारद िवरिचतम् , चौखभं ा सं%कृ त भवन,
वाराणसी, सवं त २०६५
• वसतं राजशाकुनम,् भkवसंतराजिवरिचतं, टीका – भानचु <lगिण, खेमराज
Vीकृ Lणदास, ब:बई, सन् -१९९७
• विशƒसिं हता, ]^िष)वT
ृ विशƒिवरिचता, चौख:बा स%ं कृ त
भवन,वाराणसी, संवत् २०६५
• India as seen in The Brhatsamhita of Varahamihira, Ajay
Mitra Shastri, Motilal Banarasidas, 1969

३.१४ िनबधा&मक B –
१. योितष शाm के तीन# %क<ध# का संि?n परचय (दान कर0 ।
२. संिहता शाm के (मखु ><थकार# का परचय (दान कर0 ।
३. सिं हता %क<ध के (मख
ु ><थ# का परचय (दान कर0 ।
४. संिहता %क<ध के (मख ु िवषय# का िव%तार से वण)न कर0 ।
५. आधिु नक पर(ेfय म0 संिहता शाm क8 उपयोिगता पर (काश डाल0।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
इकाई - 4 मुख कध - होरा
इकाई क संरचना
४.१ (%तावना
४.२ उ|ेय
४.३ होरा %क<ध का परचय
४.३.१ होराशाm का वैिशYय
४.३.२ होराशाm के िवभाग
४.४ होराशाm के (मखु ><थ व ><थकार
४.५ होराशाm के (मख ु िवषय
४.५.१. लSनािद Nादश भाव# का परचय
४.५.२ >हयोग परचय व अ<य िवषय
४.६ अ(कािशत व अनपु लcध होरा ><थ
अ}यास (¢
४.७ साराश

४.८ पारभािषक शcदावली
४.९ अ}यास (¢# के उर
४.१० स<दभ) ><थ सचू ी
४.११ सहायक पाठ्य साम>ी
४.१२ िनब<धाZमक (¢

उराखड मु त िवविवालय Page 140


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
४.१  तावना -
ि&%क<धाZमक योितषशाm का होरा%क<ध FयिOिवशेष का फलकथन करता है। अत एव
आधिु नक काल म0 इसी %क<ध का सवा)िधक (चार िदखाई देता है। आज के समय म0 साधारणतया
लोग योितषशाm शcद से के वलमा& फिलत योितष को ही जानते ह3, पर<तु योितषशाm फिलत
योितष से इतर भी अनेक िवषय# का समावेश है। सामा<य जन को तो संिहता व िसTा<त योितष
का परचय भी नहG है। होरा %क<ध के अ<तग)त मdु य Aप से जातक तािजक (¢ आिद िवषय# का
समावेश है। होराशाm ज<मकाल से (ार:भ कर मृZयु पय)<त सभी शभु ाशभु िवषय# का िच<तन िकया
जाता है। इस पाठ म0 होराशाm का साङ्गोपाङ्ग िववेचन िकया गया है।

४.२ उ)े%य –
इस पाठ के अ/ययन से आप –
 योितषशाm के होरा %क<ध का परचय (दान करने म0 सम? ह#गे।
 होराशाm का वैिशY्य (ितपािदत करने म0 कुशल ह#गे।
 होराशाm के (मख ु ><थ# व ><थकार# का परचय (ाn कर0 ग।े
 होराशाm म0 विण)त मdु य िवषय# का परचय (ाn कर0 ग।े
 होराशाm के अनपु लcध व अ(कािशत ><थ# का भी परचय (ाn कर0 ग।े

४.३ होराशाH का सामाय परचय -


कालवाचक अहोरा& शcद के आिद व अि<तम अ?र के लोप से होरा शcद क8 िनLपि
होती है। जैसा िक आचाय) वराहिमिहर ने बृहजातक म0 िलखा - ‘‘होरे7यहोरा िवक%पमेके
वा छित पूवापरवणलोपात’् ’। 'होरा' शcद से लSन तथा रािश के आधे भाग का ,ान होता है।
होरा सबं िधत शाm होराशाm कहा जाता है। इस होराशाm म0 िकसी भी FयिO ज<मकुडली का
िनमा)ण कर Nादश भाव# व रािशय# म0 ि%थत >ह# क8 ि%थित, उनके बलाबल, दशा व अ<तरदशा का
,ान कर सख ु -दःु ख, इY-अिनY, उ<नित-अवनित, भाSयोदय आिद मानव जीवन म0 घिटत होने वाली
सभी घटनाओ ं व िवषय# का ,ान िकया जाता है। जैसा िक आचाय) भkोZपल ने कहा है –

उराखड मु त िवविवालय 141


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
'2ितSाया ािववाहादीनां ल[न-हवशेन च शुभाशुभफलं जगित यया िनिrयते सा होरा'।
जातक के ज<मपि&का के मा/यम से पवू ज) <म म0 िकये (ारcध कम` के आधार पर जातक
के इस ज<म म0 होने वाले शभु ाशभु फल का ,ान िकया जाता है। अतः शभु ाशभु कम` के फल का
सचू क शाm होराशाm को कहा गया। िसTा<तिशरोमिण के वासनाभाLय म0 कहा गया -
‘जातकशाyं 2ार^धमिवपाकय जकम’् ।

४.३.१ होराशाH का वैिशI्य -


‘अिभधेयं तु जगतः शभ ु ाशभ ु िनQपणम’् महिष) नारद के इस वचन से िसT होता है िक
इस जगत म0 (ािणमा& के शभु ाशभु िनAपण करना ही होराशाm का मdु य (योजन है। होराशाm
मानवजीवन का पथ(दश)क है। ज<मकुडली के आधार पर Nादश भाव# के शभु ाशभु फल का
िववेचन करना होराशाm का (धान िवषय है। लSन के मा/यम से रािशचX का Nादश भाव# म0
िवभाजन िकया जाता है। उन >ह# के शभु ाशभु गणु # के आधार पर FयिO के शभु ाशभु फल का
कथन िकया जाता है। ज<म कुडली मानव के पवू ज) <म# म0 अिज)त करम् # का मिू )मान Aप होती है।
जैसे एक िवशाल वटवृ? का सfू म Aप से समावेश उसके बीजाङ्कुरण म0 होता है उसी तरह
(Zयेक मानव के पवू ) ज<म ज<मा<तर म0 िकये गये करम् # का अक ं न ज<मकुडली म0 होता है,
होराशाm उ<हG पवू ज) <मािज)त करम् # के फल को (कट करता है। जैसा िक कहा है -
यदुपिचतमयजमिन शुभाशुभं त य कमणः पङ्िम।्
य जयित शाyमेतत् तमिस #यािण दीप इव।।
होराशाm म0 जातक का शभु ाशभु फलस:बि<ध िवचार सfू मतया िकया जाता है। होराशाm
जीवन म0 चल रहे सम%त घटनाXम का यथाथ) Aप से ,ान करवाता है। यिप योितषशाm मानव
जीवन के िविवध पक्ष# के ,ान के अनेक माग) है तथािप जैसा ,ान होराशाm Nारा होता है वैसा
अ<य िकसी शाm से संभव नहG है। होराशाm दैव, को ऐसी िदFयaिY (दान करता है िजससे वह
मनLु य के ललाट पर िवधाता Nारा िलिखत अ?रमािलका को भी पढने म0 समथ) हो जाता है। जैसा
िक शाm वचन है -
िवधा ा िलिखता याऽसौ ललाटे ऽ$रमािलकाम।्
दैव1 तां पठे द् यं होरािनमलच$ुषा।।

उराखड मु त िवविवालय 142


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
यह होराशाm मनLु य के नर म%तक पर िलिखत भाSयलेख का (काशन ठीक उसी (कार
करता है िजस (कार िक अ<धकार से आवृत घर म0 ि%थत दीपक वmािद पदारथ् # का (काशन करता
है। ज<मकुडली के आधार पर शभु ाशभु दशा<तद)शा आिद का ,ान (ाn कर उसके अनक ु ूल
वािणय आिद करम् # का, शभु समय म0 या&ा, िवार:भ, धनािद मनोरथ# क8 िसिT को जाना जा
सकता है।
यह होराशाm मनषु य् # को धनाज)न सहायता करता है, समदु र् Aपी िवपि म0 नौका और
या&ा के समय एक अgछे सहयोगी म<&ी के समान काय) करता है। इस (कार अथा)जन) म0 सहायक,
िवपि के समय सहायक, सव)कEयाणकारक लोकोपकारक जातकशाm के अितरO कोई और
शाm नहG है । जैसा िक सारावली ><थ म0 आचाय) कEयाण वमा) ने कहा -
अथाजने सहाय पQु षाणामापदणवे पोतः।
या समये म ी जातकमपहाय ना 7यपरः।।
होराशाm म0 जो भी फल (ितपािदत िकया जाता है वह पवू क ) ृ त कम` का परपाक ही है।
होराशाm के अितरO िकसी भी अ<य शाm से कम) के िवषय म0 इस (कार से यथाथ),ान (ाn नहG
होता है।अतः इसका (योग %वतः िसT ही है।
होराशाm का मानवजीवन म0 अZयिधक महZव उपयोिगता है। सभी FयिO अपना भिवLय
जानने म0 सव)दा उZसक ु होते ह3। इसी कारण योितषशाm के होरा %क<ध का सवा)िधक (चार
िदखाई देता है। यह %क<ध िशशु के ज<म से मरण पय)<त सभी शभु ाशभु फल# को (कट करता है।
यिद कोई दैव, िकसी मनLु य का उिचत (कार से ज<मप& िनरि् मत करता है तो वह िनित Aप से
उस मनLु य के गणु # व (कृ ित व जीवन म0 घिटत होने घटनाओ ं को सfू म Aप से जान सकता है।
िवधाा के अितरO कुशल दैव, ही यह काय) कर सकता है। इस (कार जातक होराशाm के
मा/यम से अपने जीवन सम%त घटनाओ ं का ,ान कर सकता है। >ह न?&ािद जिनत दोष अरYफल
के शमनाथ) होरा शाm भतू -भिवLय-वत)मानकािलक घटनाXम का परचय (दान कर सही िदशा म0
मनLु य को अपने कम) म0 (वृ करता है अतः होराशाm का वैिशY्य साव)दिे शक साव)भौिमक व
साव)कािलक है।
होराशाm म0 न के वल >ह# क8 शभु ाशभु ि%थित के Nारा मानव जीवन पर पडने वाले
शभु ाशभु (भाव का िववेचन िकया गया है अिपतु अशभु >ह# शाि<त के व िनब)ल>ह# क8 पिु Y के
उपाय# का भी स:यक Aप से िनAपण िकया गया है। >ह# के अशभु (भाव क8 शाि<त व िनब)ल >ह#
उराखड मु त िवविवालय 143
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
के (भाव को पYु करने हेतु म<& (योग, रZन धारण, दान, औषिध %नान इZयािद उपाय# का भी वण)न
होरा>नथ् # म0 (ापत् होता है। इस (कार भिवLय म0 स:भािवत घटनाओ ं का ,ान कर म<&, रZनधारण,
औषिध %नान इZयािद अनƒु ान# Nारा अशभु (भाव# िनराकरण भी होराशाm Nारा िकया जाता है।
४.३.२ होराशाH के िवभाग – आचाय` ने होराशाm को पांच भाग# म0 िवभO िकया है –
जातक, तािजक, रमल, (¢ और %वQन। उनम0 भी जातक भाग का (ाधा<य अिधक है अतः
होराशाm ‘जातक’ शcद से भी जाना जाता है । जैसा िक आचाय) कEयाणवरम् ा ने कहा -
‘‘जातकिमित 2िस,ं य%लोके तिदह कP7यते होरा।
अथवा दैविवमशनपयायः ख%वयं श^दः।।’’
जहां वष)(वेशकािलक >ह-न?&-ितिथ-रायािद के आधार पर फलादेश िकया जाता है वह
भाग तािजक कहलाया। तािजक भाग म0 मdु य Aप से वष)फल िवचार िकया जाता है। (¢ के समय
फे क0 गये पाश# के आधार पर फल कथन को रमल के अ<तग)त माना गया। FयिO के (¢ का
तZकाल (¢ा?र अथवा (¢कािलक >ह ि%थित के अनसु ार फलकथन िकया जाय वह (¢शाm
कहलाया। %वQन के िववेचन से शभु ाशभु फल का िनAपण %वQनशाm के अ<तग)त समािहत ह2आ।
इन तािजक रमल (¢ व %वQन पTितय# म0 फल (ितपादन हेतु ज<म लSन कुडली क8 आवयकता
नहG होती। इन सभी के ><थ# क8 भी िभ<न Aप से रचना क8 गई। अतः जातक शाm ही होराशाm
के मdु य अङ्ग के Aप म0 माना गया। अ<य तािजकािद को तो काला<तर म0 पृथक् शाm के Aप म0 ही
परगिणत िकया गया। अतः इस पाठ म0 आप मdु य Aप से जातकशाm के िवषय म0 ही ,ान (ाn
कर0 ग।े अब होराशाm अथवा जातक शाm के (मख ु आचाय) तथा उनके Nारा िवरिचत >नथ् # के
िवषय म0 वण)न िकया जाता है।
४.४ होराशाH के मुख ?थ व ?थकार -
लSनािद Nादश भाव व उनम0 ि%थत रािश व >ह# क8 ि%थित के आधार पर फलादेश क8
(िXया कब (ार:भ ह2ई इसका कोई िनित काल तो ,ात नहG है पर<तु यह (िXया िनता<त (ाचीन
है ऐसा शाm# के अवलोकन से ,ात होता है। वाजसनेयी संिहता म0 न?&दश) का (30/10) और
गणक का (30/20) उEलेख (ाn होता है। इसी (कार से छा<दोSयोपिनषद म0 भी (7/1/2, 7/7/1)
न?&िवा का उEलेख (ाn होता है।
िविवध (माण# से ,ात होता है िक नारद कयप विसƒ पराशर भृगु आिद आचाय` ने

उराखड मु त िवविवालय 144


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
जातकशाm के ><थ# का (णयन िकया था। आज भी पाराशर भृगु जैिमनी (णीत कुछ
फिलतयोितष के ><थ (ाn होते ह3 पर<तु उनक8 रचनाशैली व िवषया नवीन है लगते है। पौAषेय
>नथ् # म0 वराहिमिहर रिचत बृहजातक, लघजु ातक, योगया&ा, कEयाणवरम् ा रिचत सारावली,
के शव रिचत जातकपTित, गणेशदैव, का जातकालङ्कार, वैनाथ का जातकपारजात, ढुिडराज
का जातकाभरण, जीवनाथ का भावकुतहू ल और बलभl रिचत होरारZन आिद कुछ (िसT ><थ ह3।
अब उन ><थ# का संि?n परचय (ाn करते है।
1. बृह7पाराशरहोराशाy -
बृहZपाराशरहोराशाm पराशर मिु न Nारा िवरिचत एक (िसT होरा><थ है। पराशर व मै&ेय के
संवाद Aप म0 यह ><थ पाNित) िकसी दैव, ने सङ्>ह कर िलखा। म:ु बई तथा काशी से (कािशत
सं%करण# म0 महान् पाठभेद िदखाई देता है। इस ><थ म0 98 अ/याय ह3। ><थ का काशी सं%करण
सीताराम दैव, ने 1850 शकाcद म0 समप् ािदत कर (कािशत िकया। इस ><थ म0 सभी
जातकस:बT िवषय# का िनAपण िकया गया है।
पाराशरहोराशाm का लघA ु प व म/यमAप भी (कािशत ह2आ। इसका लघA ु प
‘लघपु ाराशरी’ या ‘उडुदाय(दीप’ कहलाता है। पाराशरहोराशाm के वचन# के सारAप से
लघपु ाराशरी ><थ क8 रचना ह2ई। जैसा िक ><थार:भ म0 कहा -
वयं पाराशरी होरामनुसृ7य यथामितः।
उडुदाय2दीपपाgयं कुमG देविवदां मुदे।।
लघपु ाराशरी ><थे म0 स,ं ा/याय, योगा/याय, आयिु व)चारा/याय, दशाफला/याय और
िमVका/याय सं,क पांच अ/याय और 45 ¤ोक ह3। यह ><थ िकसने कब िलखा यह िनित Aप से
,ात नहG है। इस ><थ म0 मdु यतया >ह# के दशाफल का वण)न िकया गया है। आज भी योितषी इस
><थ म0 विण)त िनयम# के आधार पर ही दशाफल करते ह3। वराहिमिहर ने अपने बृहजातक ><थ म0
‘शिOपवू ’) नाम से पराशर का %मरण िकया है।

2. भृगु संिहता -
ऋिष भृगु रिचत योितष शाm के तीन# %कनध् # के (वOा थ0 पर<तु आज उनक8 सिं हता
का फिलत भाग ही उपलcध होता है। िकंव<द<ती है िक उनक8 संिहता म0 करीब साढे सात करोड
(7,46,48,600) ज<मकुडिलयां विण)त क8 गई व (ित कुडली म0 60 से अिधक ¤ोक# के Nारा
उराखड मु त िवविवालय 145
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
फलादेश भी बताया गया, पर<तु वराहिमिहर कEयाणवमा) भkोZपला आिद ने अपने ><थ# म0 कहG भी
इस बृहZकाय ><थ के िवषय म0 कोई उEलेख नहG िकया। न िह इितहास म0 कहG ऐसी गA ु कुल पTित
सनु ी गई िजसम0 ऐसे ><थ के िनमा)ण का उEलेख हो। इस िवषय म0 इतना ही अनमु ान िकया जा
सकता है िक यह आष) ><थ (ायः दाि?णाZय (देश म0 (चिलत था िजसका उर भारत बह2त
काल के उपरा<त ,ान ह2आ।
3. वराहिमिहरािद आचारय् L 6ारा उ,=रत -थ एवं आचाय -
वराहिमिहर भkोZपल कEयाणवमा) आिद आचारय् # ने अपने ><थ# म0 िविवध पवू व) त[
आचायb के वचन व नाम च उTरत िकये है। उनके ><थ आज उपलcध नहG होते है। िजनके नाम है
- गग)संिहता, मयहोराशाm, यवनहोराशाm, मािणZथहोराशाm, जैवहोराशाm, िवLणगु nु होराशाm,
देव%वामीहोराशाm, िसTसेनहोराशाm, यवनेyरहोराशाm, बादरायणहोराशाm आिद। अब
समपु लcध होरा ><थ# का परचय (दान िकया जाता है
4. जैिमनीसू म् - जैिमिनस&ू ><थ आज उपलcध होता है। गाZमक स&ू Aप म0 रिचत इस ><थ म0
चार अ/याय ह3। वराहिमिहर कEयाणवरम् ा भkोZपल आिद ने इस ><थ का उEलेख नहG िकया है
पर<तु योितषशाm के (वत)क आचाय` म0 जैिमिनऋिष का नाम (ाn होता है। िकनत् ु इसक8 शैली
स&ू मयी (ाचीन है। फिलत पTित भी िभ<न है। यह ><थ शकोदय काल म0 रिचत है। इस ><थ क8
अनेक टीकाऐ ं उपलcध होती है। इस ><थ का मलावार वा दाि?णाZय (देश म0 िवशेष (चार देखा
गया है।
5. बृहजातकम् -
व%ततु ः बृहजातक पौAषेय होरा >नथ् # म0 (थम माना गया है। इस ><थ म0 सताईस 27
अ/याय ह3 व अि<तम उपसंहारा/याय को अ”ाईसवाँ माना गया है। िवषय क8 संि?nता, %पYता
सरलतापवू क) (%तिु त के साथ उकृ Y काFयाZमकता वराहिमिहर के इस ><थ का वैिशY्य है।
अिभFयक्ित का सौƒव आचाय) वराहिमिहर का िवशेष गणु है। जैसा िक कहा है -
स7योपदेशो वरम िकतु कुव7ययो[यं बहkवगणािभः।
आचायक7व च बहk‡नताया येकं तु यƒू=र तदेव कायम।् ।
आचाय) वराहिमिहर ने (ाचीन आचारय् # क8 जहां कहG भी &टु ी देखी उनका िनभ[क Aप से
संकेत िकया, यह उनका एक िवशेष गणु है। यथा-
पूवशाyानुसारेण मया वˆादयः कृताः।

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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
चतुथ? भवने सूया1िसतौ भवतः कथम।् ।
इस ><थ क8 अनेक टीकाऐ ं िलखी गई। उनम0 से भkोZपल क8 िववृित सवा)िधक (ामािणक व (ाचीन
है। इसी ><थ के बलभl महीधर आिद आचाय` ने भी टीका ><थ (णीत िलखे है। इस ><थ क8
सबु ोिधिन टीका भी जानकारी िमलती है।
6. लघुजातकम् -
लघजु ातक वराहिमिहर रिचत बृहजातक का सार सं?ेप Aप ><थ है। जैसा िक –
होराशाyं वृतैमया िनब,ं िनरीVयं शाyािण।
य* याTयायािभः सारमहं सK2वVयािम।।
लघजु ातक क8 भkोZपल (णीत टीका (िसT है। गणेश दैव, के अनुज अन<त
दैव, रिचत टीका भी (ाn होती है।

7. सारावली -
सारावली ><थ के कता) आचाय) कEयाणवमा) है। यह ><थ 54 अ/याय# म0 िवभO है। ><थ
म0 कEयाणवमा) %वयं को ‘Fया’पदीyर’ सं,ा देते है। उनका समय 550 शकाcद अनमु ािनत है।
कEयाणवरम् ा के कथन से यह ,ात होता है िक आचाय) वराहिमिहर ने होराशाm के िवषय# का सार
सं?ेप बृहजातक ><थ म0 िकया पर<तु उसके Nारा तेन स:पणू ) िवषय# का वण)न नहG िकया । अत एव
उसक8 पिू त) हेतु इस ><थ का (णयन िकया गया। जैसा िक ><थ म0 वण)न िकया-
रािशदशवगभूपितयोगायुदायतो दशादीनाम।्
िवषयिवभागं पuं कत+ु न श4यते यत तेन।।
कEयाणवरम् ा का िवषय चयन, (%तिु त सौƒवं और %पYता अZय<त िविशY है। व%ततु ः
यह ><थ होरा Aपी तृLणा के Qयासे जन# के िलये शीतल के जल के समान है।

8. (ीपितजातकप,ित -
जातकपTित ><थ क8 रचना रZनामाला ><थ के (णेता Vीपित ने क8। इस ><थ क8 भी
रZनामाला के समान माधव ने टीका िलखी। Vीपित का समय 921 शकाcद अनमु ािनत है।
9. सवाथिचतामिण -

उराखड मु त िवविवालय 147


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
सवा)थ)िच<तामिण वेङ्कटािlदैव, Nार (णीत होरा><थ है। ये जातकपारजात के (णेता
वैनाथ दैव, के िपता थ0। इनका ि%थितकाल 1240 शकाcद अनमु ािनत है।
10. जातकपा=रजात -
जातकपारजात के शवीय जातक ><थ (णेता के शव के गA ु वैनाथ Nारा (णीत है। उनका
ि%थितकाल 1300 शकाcद अनमु ािनत है। जातकशाm का यह एक उZकृ Y ><थ है। इस ><थ क8
किपलेyर िवरिचत सधु ाशािलनी टीका (िसT है।
11. के शवीयजातकप,ित – नि<द>ाम िनवासी के शव दैव, ने इस ><थ क8 रचना क8। इस
लघक ु ाय ><थ का भी बह2त (चार ह2आ। इस ><थ म0 40 ही ¤ोक ह3, ><थ के (ि?n ¤ोक म0 ऐसा
वण)न िमलता है। जैसा िक वण)न है –
निद-ामे के शवो िव2वयG योऽभू,ोराशाyसङ्घं िवलो4य।
तेनाे यं प,ितजातकPया च7वा=रंशद् वृ*ब,ा सुबोधा।।
इस ><थ म0 भावसाधन, भावसनि् ध का आनयन, अयनािद बलसाधन, चेYाबल, इYकY,
दशा<तद)शा, अYकवग) आिद िवषय सारAप म0 िनAिपत िकये गये ह3। इस ><थ के के शव, िवyनाथ,
नारायण व िदवाकर रिचत टीका><थ (ाn होते ह3। इस ><थ के अनेक सं%करण (ाn होते है। इसका
समय शकाcद माना गया है।
12. जातकाभरण -
जातकाभरण आचाय) ढुिढराज Nारा 1460 शकाcद म0 िलखा गया। वे नृिसंह दैव, के
प&ु दैव, ,ानराज के िशLय थ0। इस ><थ म0 सभी फिलत के िवषय# का Xमानसु ार िववेचन िकया
गया है। सरलता और %पYता इस ><थ का वैिशY्य है। अतः सव)साधारण के िलये भी यह ><थ
अZय<त उपयोगी है। आचाय) सधु ाकर िNवेदी के मत से इस ><थ क8 ¤ोक संdया लगभग 2000 है।
13. जातकालङ्कार -
गणेशदैव, (णीत यह ><थ आकार म0 लघु है पर<तु जातकशाm के सवा)िधक (िसT ><थ#
म0 यह एक है। इस ><थ म0 छः अ/याय ह3 – १.सं,ा २.भाव ३.योग ४.िवषक<या ५.आयुदा)य और
६.FयZयय%थ भावफल । गणेश दैव,, आचाय) गोपाल के प&ु और आचाय) िशवदास के पौ& थ0। यह
><थ 1535 शकाcद म0 िलखा गया। इस ><थ क8 हरभानु िवरिचत टीका (ाn होती है।
14. होरार7न –
सिु व%तृत यह ><थ आचाय) दामोदर के प&ु बलभl दैव, ने 1557 शकाcद म0 िलखा। इस
उराखड मु त िवविवालय 148
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
><थ म0 सिु व%तृत दश अ/याय ह3। इस ><थ का वैिशY्य है िक इसम0 90 से अिधक ><थकार व
>नथ् # का उEलेख िकया गया है। यह ><थ होरा िवषय# का एक िवyकोश ही कहा जा सकता है।
15. भावकुतूहल –
यह ><थ 1780 शकाcद के समय आचाय) नीला:बर के अनुज व आचाय) श:भनु ाथ के प&ु
जीवनाथ ने िलखा। इस ><थ म0 17 अ/याय ह3। काFयाZमकता और भाव सौƒव इस ><थ का
वैिशY्य है। इस ><थ म0 दैव, जीवनाथ ने सामिु lक ल?ण संबंिधत अ/याय भी सि:मिलत िकया है
जो िक अ<य होरा ><थ# म0 उपलcध नहG होता। इस ><थ क8 भाषा सरल और सगु म है। िवषक<या
आिद योग# को परहार भी इस ><थ म0 वण)न िकया गया जो िक जातकालङ्कार आिद अ<य ><थ#
म0 (ाn नहG होता ।
16. जातकादेशमाग -
यह ><थ दाि?णाZय (देश म0 बह2(चिलत कितपय फिलतयोितष >नथ् # का सार सं?ेप
Aप है। यह ><थ िकस समय िकसके Nारा सङ्किलत िकया गया यह िनित Aप से ,ात नहG है
पर<तु 1500 शकाcद से पवू ) ही िलखा गया ऐसा ,ात होता है। इस ><थ म0 सं,ा, िनषेक, बालारY,
आयदु ा)य, मरणयोग, अYक-वग), भाविवचार, गोचरफल, दशाफल, भाया) िवचार, आनक ु ू Eय, प&ु
िच<ता, स<तान िच<ता, िमVक, आिद सnदश (17) (करण ह3।
४.५ होराशाH के मुख िवषय -
होरा%क<ध के अ<तग)त कौनसे िवषय# का समावेश है इस स<दभ) म0 आचाय) वराहिमिहर ने
बृहZसिं हता ><थ म0 वण)न िकया - ‘‘होराशाyेऽिप च
रािशहोरा#े8काणनवांशक6ादशभागि ंशƒागबलाबलप=र-हो -हाणां िदक्- थान-काल-
चेuािभरने2काबल- िनधारणं 2कृितधातु#यजाित चेuाप=र-हो िनषेकजमकाल
िव मानपन 27ययादेश स0ोमरण-आयुदाय-दशातदशा
-अuकवग-राजयोग-च#योग-ि6-हािदयोगानां नाभसादीनां च योगानां फलािन-आ(य
भावावलोकन-िनयाणग7यूनूकािन त7काल2sशुभाशुभिनिम*ािन िववाहादीनां च कमणां
करणम।् ।’’
जैसा िक पवू ) म0 बताय गया जातकशाm अथवा होराशाm म0 ज<मकाल व ज<म%थान के
आधार पर िनिम)त कुडली के आधार पर फलादेश िकया जाता है। अतः सभी जातक >नथ् # म0
सव)(थम ज<मकुडली के मdु यतव् # का िववेचन िकया जाता है यथा – रािश, न?&, >ह एवं भाव#
उराखड मु त िवविवालय 149
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
का वण)न। आकाशमडल म0 अनेक योितिप)ड िदखाई देते है उनम0 से जो सव)दा ि%थरगितक
िदखाई देते है उ<ह0 न?&, ऋ? अथवा भ शcद से जाना गया। यिप ]^ाड एक अिवभाय, िवभु
और अन<त है तथािप योितरि् पणड् # क8 ि%थित के अ/ययन हेतु आचाय` ने सम%त योितषचX
को 27 सताईस भाग# म0 िवभािजत िकया (कुछ आचाय` ने 28 भाग# म0 भी िवभािजत िकया) उ<ह0
न?& कहा गया। उनम0 भी (Zयेक न?& को भी चार पाद# म0 िवभािजत िकया। इस (कार से न?&# के
कुल 108 पाद ह2ए। जब इन पाद# को बारह भाग# म0 िवभािजत िकया गया तब नौ पाद वाले एक
भाग को ‘रािश’ कहा गया।
सfू मतया अवलोकन से पवू ा)चारय् # ने %पYया जाना िक ज<म के समय जो जो भी
ज<मन?&, रािश, लSन, वार, ितिथ आिद होते ह3 वह मनLु य भी उसी (कृ ित व %वभाव वाला होता
है। अतः उन सभी का सfू मतया ,ान आवयक होता है अतः जातक >नथ् # म0 सव)(थम
रािशशीला/याय व >ह%वAपवण)ना/याय (ापत् होते है। उनम0 राशीय# क8 सं,ाये, %वAप, %थान,
सिललािद सं,ा, चतLु पदािद स,ं ा, धातु मल ू जीव आिद स,ं ा, ]ा^ण आिद वण), वण)(रंग),
बलाबल, %वामी, उgच नीच मल ू ि&कोण आिद, दशवग), भाव# के सं,ा, भाव# के कारक, भाव# क8
के <l आिद सं,ा, उदयमान, राशीय# के शभु ाशभु भाग, वास देश, QलवZव िनAपण आिद िवषय# का
वण)न िकया गया।
उसम0 >ह# के सं,ा %वAप गणु भेद आिद का वण)न िकया गया। जातक>नथ् # म0 वण)न िकया
गया िक न के वल >ह मनLु य के शभु ाशभु का िववेचन करते है अिपतु मनLु य %वयं ही >हमय होता है
िजसक8 आZमा सयू ), मन च<l, शिO मगं ल, वाणी बधु , ,ान गˆु , सख ु शXु और दःु ख शिन है। जैसा
िक वण)न है –
काला7मा िदनकृमन तु िहमगःु स~वं कुजो 1ो वचः।
जीवो 1ानसुखे िसतr मदनो दुःखं िदनेशा7मजः।।
इनम0 सयू ,) मगं ल, शिन व राह2 पाप >ह है, च<l, बधु , बृह%पित और शX
ु सौ:य >ह ह3 िक<तु
?ीण च<l और Xूर >ह# से युO बधु भी पाप >ह माने जाते है। रािश, भाव, उदया%त, बाल-तAण-
वृTZव अव%था आिद के आधार पर >ह शभु ाशभु फल देते ह3 उनम0 भाव म/य म0 गत >ह पणू ) और
सि<ध म0 ि%थत >ह कोई फल (दान नहG करता है।
जातक के ज<म के समय जो रािश ि?ितज के पवू भ) ाग म0 उदय होती है वहG लSनरािश
कहलाती है। उसी से आर:भ कर वामाव) Xम से Nादश भाव ज<मकुडली म0 अवि%थत होते ह3।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
ज<मकाल म0 जो लSन होता है उससे आरमभ् कर Nादश भाव# म0 राशीय# क8 %थापना क8 जाती है।
यिद कोई जातक िमथनु रािश पवू ) म0 ि%थत होने पर ज<म लेता है तो उसका िमथनु लSन ही होता है
अतः उसी से (ार:भ कर भाव# क8 गणना क8 जाती है।
४.५.१ लJनािद Kादश भावC का परचय –
ज<म कुडली म0 लSन %थान क8 आ, वपु या शरीर सं,ा होती है। िNतीय को धन भाव, तृतीय को
सहज भाव, चतथु ) को सख ु भाव, पŸचम को सतु भाव, षƒ को रपु भाव, सnम को कल& भाव,
अYम को मृZयु भाव, नवम को धम) %थान, दशम को कम) भाव, एकादश को आय भाव और Nादश
%थान को Fयय भाव कहा गया। इस Nादश भाव# म0 >ह# व रािशय# क8 ि%थित के अनसु ार
शभु ाशभु फल िकया जाता है। इन बारह भाव# म0 लSन चतथु ) सnम व दशम को के <l %थान कहा गया।
होरा ><थ# म0 >ह, भाव, रािश आिद के वण)न के उपरा<त जातक के ज<म के िवषय म0
िवचार िकया गया। अतः िवयोिन ज<म, िनषेक िविध, सतु ािद योगकारक >ह ि%थित, लीब पˆु ष mी
ज<म योग, दो तीन या अिधक स<तित के ज<म के योग, नालवेिYत सप)विे Yत ज<म आिद योग,
(सिू त काल ,ान, औरस ?े&ज आिद ,ापक >ह ि%थित, अनढू , दक, जारजZव कारक योग,
ज<म%थान िवचार, सिू तकागृह, दीप Nार ,ान, उपसिू तका संdया ,ान, जातक %वAप, िच„ आिद
का ,ान इZयािद िवषय# का िच<तन िकया गया। ज<म के उपरा<त सव)(थम जातक क8 आयु का
िच<तन िकया गया। यिद िकसी मनLु य क8 आयु ही न हो तो उसके जीवन के अ<य िवषय# के
फलादेश का िच<तन Fयथ) ही होता है। अतः सव)(थम जातक क8 ज<म कुडली म0 आयु का ही
िच<तन िकया जाता है। जैसा िक वचन है -
पूवमायुः परी$ेत् पrा%ल$णमािदशेत।्
आयुहीना च नराणां ल$णैः िकं 2योजनम।् ।
अतः जातक > म0 फलादेश कथन से पवू ) सव)(थम जातक के अरY योग उनके
भङ्गकारक योग# का वण)न िकया गया। आयु के भेद, अरYकारक >हि%थितयां, माता िपता सिहत
जातक के मरण के योग, गभ) के मास# के %वामी, अEप म/यम व दीघा)यु योग, अरYभङ्गकारक
>हि%थितयां, च<lकृ त, शभु >हकृ त, गˆु कृ त, लSनेशकृ त और राह2कृत अरYभङ्ग योग, अिमतायु
पणू ा)यु आिद योग# का िवशेष Aप से वण)न िकया गया।
यिद जातक क8 कुडली म0 बालारY योग हो टो वह 12 वष) तक ही जीिवत रहता है, यिद
बालारY न हो तो िकतने वष) तक उसक8 आयु होगी इस िवषय म0 सहज िज,ासा होती है, अतः
उराखड मु त िवविवालय 151
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
होरा ><थ# म0 आयु िनधा)रण क8 अनेक िविधय# का वण)न िकया गया। जैसे - िपडाय,ु िनसगा)य,ु
लSनाय,ु अशं काय,ु रिमजाय,ु चXाय,ु दशायु इZयािद। न के वल आयु का िनधा)रण अिपतु मृZयु का
कारण, %थान व िदशा का ,ान भी विण)त िकया गया तथा मृZयु के उपरा<त मृतक क8 गित िकस
(कार क8 होगी इस िवषय म0 िच<तन िकया गया है।
आयु ,ान के उपरा<त फलादेश सबं िं धत िविवध िवषय# का वण)न िकया गया। जातक के
शभु ाशभु काल का ,ान >ह# क8 दशा<तद)शा के आधार पर ही होता है अतः आयु ,ान के उपरा<त
दशा<तद)शा साधन के िविधय# का वण)न िकया गया । दशा के भी िविवध (कार# का वण)न िकया
गया। जैसे – िवशोरी दशा, अYोरी दशा, षोडशोरी दशा, चर दशा, योिगनी दशा, कालचX
दशा इZयािद।
४.५.२ ?हयोग परचय व अय िवषय –
कुछ ऐसे >हयोग होते है िजनके (भाव से जातक िवशेष शभु फल (ापत् करता है। उन >ह# को
राजयोग सं,ा (दान क8 गई। उनम0 भी पŸचतारा>ह# के Nारा िनिम)त पŸचमहापˆु षयोग िवशेष Aप से
सभी जातक >नथ् # म0 विण)त िकये गये। मगं ल Nारा ˆचक योग, गˆु Nारा हसं योग, बधु Nारा भl
योग, शX ु Nारा मालFय योग और शिन Nारा शश योग। यिद बृह%पित च<l %थान से के <l भाव# म0
नीच व अ%त रिहत हो तो गजकके सरी योग होता है। जैसा िक कहा है -
"के #ि थते देवगुरौ मृगाङ्का0ोग तदाहkगजके सरीित"।
पर<तु कभी कभी राजयोग होते ह2ए भी जातक दरl ही होता है। उसका कारण होता है राजयोग का
भङ्ग। जातकपारजात ><थ म0 चार योग# का वण)न है िजनके Nारा अ<य शभु योग भी भङ्ग हो
जाते ह3। उ<ह0 राजभङ्ग योग कहा गया जैसे रे का सं,क योग, दरl योग, के मlुम योग आिद। जैसा
िक जातक पारजात ><थ म0 वण)न िकया गया -
के िच0ोगा राजयोग य भङ्गा के िच#ेका नाम दा=र#योगाः।
के िच72े8याः के च के म#ुमाgया ते च7वारो जातभङ्गाकराः युः ।
राजयोग के अितरO भी अनेक योग होते ह3 िजनके Nारा ज<मकुडली का फलादेश िकया
जाता है । उनके नाम िन:न (कार से है – रोग योग, भा%कर इ<l मˆत् बधु योग, सनु फा अनफा
दˆु धरा योग, पारजात आिद योग, अधम आिद योग, लSनािध योग, च<lािध योग, वेिश वाशी
आिद योग, अमला पव)त काहल मािलका चामर मृदङ्ग शङ्ख भेरी Vीनाथ शारद मZ%य कूम) खङ्ग
लfमी कुसुम कलािनिध हरहरिविध अश ं ावतार आिद योग। योग# म0 बीस ३२ नाभसयोग# का
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
िवशेष महpव विण)त िकया गया। उनम0 आकृ ितय# के आधार पर िनिम)त नौ कूट छ& चाप आिद बीस
आकृ ित योग, सdं या के आधार पर िनिम)त वEलक8 दािमनी आिद सn सdं या योग, भावाVय के
आधार पर िनरि् मत रजु मशु ल आिद तीन योग, क व सप) सं,क दो दल योगौ। इस सभी योग# के
भे >ह# क8 ि%थित के भेद से कुल 1800 भेद यवनाचारय् # ने बताये है। जैसा िक आचाय) वराहिमिहर
ने कहा -
यवनैिyगुणा िह षट्शती सा किथता िव तरतोऽ ।
इसके उपरा<त दो, तीन, चार >ह# के संयोग से होने वाले फल# का वण)न िकया गया।
ज<मकुडली म0 ि%थत >ह# के अितरO ताZकािलक आकाश म0 ि%थत >ह भी िनर<तर मनLु य को
(भािवत करते ह3। उनके (भाव को जानने के िलये आचारय् # ने अYकवग)िविध का िनˆपण िकया।
अYकवग) पTित म0 राह2 के तू के अितरO लSनसिहत सn >ह# के वरग् # का िनमा)ण िकया जाता है।
उन अY वग` के Nारा गोचर के >ह# का फलादेश िकया जाता है।
जातक ><थ# म0 mीय# क8 ज<म कुडली के आधार पर फलकथन कुछ िभ<न कहा गया
इसी कारण जातक >नथ् # म0 पृथक् ˆप से mीजातका/याय का वण)न िकया गया। उसके उपरा<त
लSनािद Nादश भाव# म0, मेषािद Nादश रािशय# म0, अिyनी आिद सnिवश ं ित न?तर् # म0 >ह# क8
ि%थित से होने वाले फल# का िवसत् ार से वण)न िकया गया। >ह# क8 दशा<तद)शा के फल भी (ायशः
सभी (मख ु जातक>नथ् # म0 विण)त िकये गये है । ये ही मdु य िवषय सभी जातक ><थ# म0 (ाn होते
ह3। इनके अितरO कालचX दशा िनˆपण, िवषक<य आिद योग, (rया योग, aिY फल, (क8ण)
िवषय, नY जातक, lेLकाण %वˆप, नैया)िणक, रािशशील, बल साधन, स<तान िवचार इZयािद िवषय
भी िविवध >नथ् # म0 विण)त िकये गये है।
४.६ अकािशत व अनपु लAध होरा ?थ –
कुछ अ<य भी अविशY ह3 िजनका वण)न इस पाठ म0 नहG िकया गया। उनम0 से अिधकांश
><थ आज (कािशत Aप से उपलcध नहG होते है। जैसे – सZयाचाय) (णीत ™वु नाड़ी ><थ,
वराहिमिहर रिचत %वEपजातकम,् लEलाचाय) (णीत जातकसार, िवारय (णीत भाविनण)य,
अन<तदैव, (णीत अन<तजातकपTित, िशवदास दैव, (णीत जातकोम, गणु ाकर (णीत
जातकादेश, नृहरदैव, (णीत जातकसार, दैव,िदवाकर Nारा (णीत प–जातक, सोमदैव, (णीत
पTितभषू ण, गोिव<द (णीत होराकौ%तभु , नारायण दैव, (णीत होरासारसधु ािनिध, राघव (णीत
पTितचि<lका, गोिव<दाचार (णीत साधनसबु ोध, अन<ताचाय) (णीत अन<तफलदप)ण। कुछ
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
होरा>नथ् # के नाम के शवीयजातकपTित क8 टीका म0 उिEलिखत िकये गये ह3, जैसे - VीधरपTित,
महालिु गपTित, दामोदरपTित, रामकृ LणपTित, के शवपTित, बEलयपु Tित, होरामकरनद् और
लघपु Tित। इस (कार से ,ात होता है िक जातक>नथ् # क8 एक सिु व%तृत पर:परा थी।

४.७ सारांश –
आधिु नक समय म0 होरा %क<ध योितष शाm सवा)िधक उपयोगी और (चिलत %क<ध है। य#िक
यह FयिOिवशेष का फलकथन करता है। सभी मनLु य अपना भिवLय भतू वत)मान का फल Vवण
करने के उZसकु होते है। इसी कारण होराशाm का वत)मान समय म0 सवा)िधक (चार है। होराशाm
के पŸचभाग# म0 सभी भाग पृथक् शाm के Aप म0 िवdयात हो चक ु े ह3। अतः जातकशाm ही आज
के समय म0 होराशाm के Aप म0 %वीकार िकया जाता है। तािजकशाm, (¢शाm, %वQनशाm,
रमलशाm आिद का तो अब पृथक अि%तZव ही हो गया है। उन शाm# के %वत<& ><थ भी उपलcध
होते ह3 । इस पाथ म0 होराशाm का परचय, वैिशY्य, िवभाग, (मख ु ><थ, ><थकार और मdु य
िवषय# का अZय<त सं?ेप से परचय (दान िकया गया।
अ$यास B –
१. बहkिवक%पा7मक 2s -
1. िकस शcद के आिद व अि<तम वण) के लोप से ‘होरा’ शcद बना -
(क) महोरा& (ख) अहोरा& (ग) सहोरा& (घ) दहोरा&
2. िवधाता Nारा ललाट पर िलिखत अ?रमािलका को कौन पढता है?
(क) राजा (ख) कृ षक (ग) दैव, (घ) सेनापित
3. बृहZपाराशरहोराशाm ><थ का अनसु रण कर सारˆप म0 रिचत ><थ कौनसा है?
(क) सारावली (ख) बृहजातक (ग) लीलावती (घ)
लघपु ाराशरी
4. जैिमनीस&ू ><थ म0 िकतने अ/याय है?
(क) चार (ख) तीन (ग) पांच (घ) आठ
5. सारावली ><थ के कता) कौन है?

उराखड मु त िवविवालय 154


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
(क) आचाय) वराहिमिहर (ख) भा%कराचाय) (ग) गणेश दैव, (घ) आचाय)
कEयाण वमा)
6. जीवनाथ Nारा रिचत जातक ><थ कौनसा है?
(क)भावकुतहू ल (ख)जातकालङ्कार (ग)लघजु ातक (घ)जातकपTित
7. ज<मकुडली का िNतीय भाव कहलाता है -
(क) मृZयु भाव (ख) कम) भाव (ग) धन भाव (घ) स<तान भाव
8. ज<मकुडली म0 सव)(थम या िवचारणीय है?
(क) राजयोग (ख) आजीिवका (ग) आयु (घ) स<तित
9. ज<मकाल म0 जो रािश ि?ितज के पवू ) भाग म0 उदय होती है, वह होती है -
(क) लSन रािश (ख) ज<म रािश (ग) काल रािश (घ) पर रािश
10. जातकशाm का िवषय नहG है -
(क) बालारY (ख) दशा<तद)शा (ग) अहग)ण साधन (घ) अYकवग)
२. लघ*ू रा7मक 2s -
1. योितषशाm के िकस %क<ध म0 FयिO िवशेष क8 ज<मकुडली के मा/यम से
फल (ितपादन िकया जाता है?
2. कौनसा शाm आपदा Aपी समlु म0 नाव समान सहायता करता है?
3. बृहजातक><थ ><थ के का) कौन है?
4. आचाय) वैनाथ Nारा (णीत जातक ><थ कौनसा है?
5. होरारZन िकसके Nारा रिचत है?
6. आकृ ितयोग िकतने होते ह3?
7. Fययभाव कौनसा है?
8. शXु के Nारा िनिम)त महापˆु षयोग कौनसा है?
9. जातकपारजात><थ म0 राजयोग भङ्ग करने वाले िकतने योग कहे गये ह3?
10. के शवीयजातकपTित ><थ म0 िकतने ¤ोक ह3?

४.८ पारभािषक शAदावली –


अहोरा – अहः अथा)त् िदन व रा& अथा)त् राि&, िदन व राि& िमलाकर होने वाला कुल समय,
उराखड मु त िवविवालय 155
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
(ाचीन समय म0 भारत म0 सयू bदय से िदन का (ार:भ माना जाता था, अतः एक सयू bदय से अि>म
िदन के सयू bदय तक का समय अहोरा& कहलाया
होरा – अहोरा& शcद के आिद ‘अ’ व अि<तम ‘&’ अ?र के लोप से होरा शcद बना। मdु य Aप से
स:पणू ) अहोरा& मे २४ होराय0 होती ह3 अतः अहोरा& मान का २४वा भाग एक होरा का मान होता है।
यहG मा<यता अन<तर स:पणू ) िवy म0 %वीकृ त क8 गई अतः आज भी एक िदन म0 २४ घटे माने जाते
है। अतः कहा जाता है िक अ>ं ेजी का ‘HOUR’ शcद ‘HORA’ का ही िबगडा ह2आ %वAप है।
एक लSन का औसत मान लगभग २ घटे के तEु य होता ह3 अतः रािश के आधे मान को भी होरा
कहा गया। फिलत शाm का नाम भी ‘होरा’ कहा गया।
दैव1 – जो ‘दैव’ अथा)त् िनयित को जानता हो उसक8 दैव, सं,ा दी गई। दैव, के गणु # का वण)न
आचाय) वराहिमिहर ने अपने ><थ बृहZसंिहता म0 िव%तार िकया। दैव, मdु य Aप से योितषशाm के
तीन# %क<ध# का मम), होता है।
नाभस – जो योग नभ अथा)त् आकाश म0 >ह, रािश, भाव# के संयोग से उZप<न होते है, उ<ह0 नाभस
योग कहा गया।
ल[न – िकसी भी समय अपने %थान (%व खम/य) से रािश चX का जो भाग पवू [ ि?ितज पर लगा
िदखाई देता है वह लSन कहलाता है। िसTा<त योितष क8 भाषा म0 Xाि<त वृत का जो भाग ि?ितज
वृ को पवू ) ममे %पश) करता है लSन िब<दु कहलाता है।
आयुदाय – आयु साधन से संबंिधत िवषय, जातक क8 आयु िकतने वष) क8 होगी? यह एक
अZय<त महpवपूण) िवषय है, इसका िवचार जातक ><थ# म0 आयदु ा)य अ/याय म0 िकया गया
िवषकया योग – ऐसे योग िजनम0 उZप<न क<या पितघाितिन होती है, अथा)त् उसे वैधFय का दःु ख
भोगना पडता है, पित हेतु मृZयुकारक होने के कारण ऐसी क<या को िवषक<या कहा गया
राजभङ्ग योग – ऐसे योग जो िक ज<म कुडली म0 बने ह2ए राजयोग# को भे समाn कर दरlता
(दान करते है, उ<ह0 राजभङ्ग योग कहा गया
४.९ अ$यास BC के उ'र –

१. बह2िवकEपाZमक (शन् # के उर –


1. (ख) 6. (क)
2. (ग) 7. (ग)
उराखड मु त िवविवालय 156
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3. (घ) 8. (ग)
4. (क) 9. (क)
5. (घ) 10. (ग)
२. लघू राZमक (¢# के उर -
1. होरा %क<ध म0
2. जातक
3. आचाय) वराहिमिहर
4. जातकपरजात
5. बलभl दैव,
6. बीस
7. Nादश भाव
8. मालFय योग
9. चार
10. चालीस (४०)
४.१० सदभ2 ?थ सूची -
• भारतीय योितष, लेखक – शक
ं र बालकृ Lण दीि?त, (काशन – उर (देश िह<दी
स%ं थान, २००२
• भारतीययोितषशाm%येितहासः, आचाय)लोकमिणदाहालिवरिचतः, (काशन - चौख:बा
सरु भारती (काशन, वाराणसी 2003 ई. ।
• बृहजातकम,् Fयाdया - के दारद जोशी, (काशन-मोतीलाल बनारसीदास, िदEली -
2002 ई. ।
• जातकपारजातः दैव,वैनाथिवरिचतः, टीका – किपलेyर शाmी, Fयाdया - पं.
मातृ(सादशािm, (काशन- चौख:बा सं%कृ त सं%थान, वाराणसी - 2004 ई.।
४.११ सहायक पाठ्य साम?ी –
• सारावली, VीमZकEयाणवम)िवरिचता, Fयाdया - मरु लीधर चतवु दŽ ी, (काशन - मोतीलाल

उराखड मु त िवविवालय 157


भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
बनारसीदास, 2007 ई.।
• जातकालङ्कारः, गणेशदैव,िवरिचतः, Fयाdया - डॉ. सZये<l िमV, चौख:बा सरु भारती
(काशन, वाराणसी, 2008 ई.।
• भावकुतहू लम,् Vी जीवनाथकृ त, Fयाdया- डॉ. हरशङ्कर पाठक, (काशन - चौख:बा
स%ं कृ त (ितƒान, िदEली, 2004 ई.।
• लघपु ाराशरी, Fयाdया - डॉ. सरु का<त झा, (काशन - चौख:बा सरु भारती (काशन,
वाराणसी, 2005 ई.।
• जैिमनीस&ू म,् Fयाdया - पं. सीताराम शमा), (काशन - चौख:बा िवा भवन, वाराणसी-
2007 ई.।
• बृहZपाराशरहोराशाmम,् Fयाdया - प.ं देवच<l झा, चौख:बा स%ं कृ त स%ं थान, वाराणसी -
2012 ई.।
४.१२ िनबधा&मक B –
१. आचाय) वराहिमिहर रिचत होरा ><थ# का परचय (दान कर0 ।
२. होरा %क<ध के वैिशY्य का वण)न कर0 ।
३. होरा %क<ध म0 विण)त मdु य िवषय# का (ितपादन कर0 ।
४. जातक पारजात व जातकालङ्कार ><थ# का परचय (दान कर0 ।
५. जैिमनी स&ू ><थ का वैिशY्य िलख0।
६. नाभस योग, अरY योग व राजभङ्ग योग का परचय (दान कर0 ।
७. पŸचमहापˆु ष योग# का सिं ?n परचय (दान कर0 ।

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