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ह ानी
MAJY-501
थम सेमे टर
अनु म
थम ख ड – योितष शा का उ व एवं िवकास पृ - 2
इकाई 1: योितष शा का प रचय 3 -16
इकाई 2: योितष शा क उ पि एवं िवकास 17-33
इकाई 3: योितष शा क वेदागं ता एवं वेदागं योितष 34-51
इकाई 4: योितष शा के व क एवं आचाय 52-64
इकाई 5 : योितष शा का ऐितहािसक िववेचन 65-84
ि तीय ख ड - योितष शा के मुख अंग पृ - 85
इकाई 1: ि - पंच बह क धा मक योितष िववेचन 86-98
इकाई 2: मख
ु क ध – िस ा त 99-119
इकाई 3: मख
ु क ध – होरा 120-139
इकाई 4: मख
ु क ध – संिहता 140-158
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
एम.ए.(योितष)
(MAJY-20)
थम सेमेटर - थम प
MAJY-501
भारतीय योितष का प रचय एवं इितहास-01
खड - 1
योितष शा का उव एवं िवकास
प8टाथ च;म् -
वेद - (सव)िवामल
ू क)
वत)मान योितषशा%& का जो %वAप हम0 देखने को िमलता है, उसका Vेय महाZमा लगध को जाता
है। उ<ह#ने ही ‘वेदांग योितष’ क8 रचना करने योितष को %वत<& Aप से (ितपािदत िकया। यिप
योितष आज भी वहG है, जो पवू ) म0 था, के वल काल भेद के कारण इसके %वAप# म0 िभ<नता
aिYगोचर होती है। भगवान सयू ) के अशं ावतार ने भी सयू )िसTा<त म0 यही कहा है िक –
अ$यास %न – 2
रत %थान# क8 पिू त) क8िजये –
1. योितषशा%& के (मख ु ...................... %क<ध ह3।
2. वृहZसिं हता के रचियता ........................ है।
3. वेद%य िनम)लं च?:ु ..................... कJयते।
4. िवव के सम%त काय) .................... के अधीन होते ह3।
5. कम)णा नरकं सतू ............. याित च कम)णा।
6. .................... परीfयेत ततो ल?णमािदशेत्।
7. मानव शरीर म0 मdु यत: Fयािधय# के ...................... (कार ह3।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
1.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक योितषशा%& का स:ब<ध मनLु य
के ज<म–ज<मा<तर# से जड़ु ा ह2आ है। इसिलए ,ात– अ,ात अव%था म0 भी िनर<तर हम0 योितषशा%&
िकसी न िकसी Aप म0 (भािवत करता रहता है। योितषशा%& का दसू रा नाम ‘कालिवधान शा ’
है। य#िक काल का िनAपण भी योितषशा%& Nारा ही होता है। सामा<यतया आकाश म0 ि%थत >ह,
न?&ािद िपड# क8 गित, ि%थित एवं उसके (भावािद िनAपण का अ/ययन हम िजस शा%& के
अ<तग)त करते ह3, उसे ‘योितषशा ’ कहा जाता है। भारतीय वैिदक सनातन पर:परा म0
योितषशा%& को सव)िवामल ू क ‘वेद’ का अगं होने के कारण ‘वेदांग’ कहा गया है। वेद के छ:
अगं ह3 – िश?ा, कEप, Fयाकरण, िनAत, छ<द एवं योितष। इ<हG वेदांग# को ‘शा%&’ भी कहा
जाता है। यह शा%& हमारे (ाचीन ऋिषय# क8 देन है। इसके मdु यत: तीन %क<ध है – िसTा<त,
संिहता एवं होरा। इस शा%& का (थम उपदेश ]^ा जी ने नारद को िदया था। कयप संिहता के
अनसु ार इसके सयू ) से लेकर शौनकािद पय)<त अLटादश (व)क ह2ये ह3। इसका इितहास
]^ाडोZपि के साथ आर:भ होकर उसके अवसान पय)<त अिविgछ<न Aप से गितमान ह3। मानव
के ज<म से लेकर मृZयु पय)<त यह शा%& उससे (Zय? वा अ(Zय? Aप से जड़ु ा ह2आ है। मानव के
Fयावहारक जीवन म0 उसके (Zयेक काय` म0 योितषशा%& का योगदान %पLट Aप से परलि?त है।
1.6 पारभािषक शदावली
योितष – वेद के च?A ु पी अगं को ऋिषय# के Nारा ‘योितषशा%&’ क8 सं,ा (दान क8 गयी।
सामा<यतया आकाश म0 ि%थत >ह, न?&ािद िपड# क8 गित, ि%थित एवं उसके (भावािद िनAपण
का अ/ययन हम िजस शा%& के अ<तग)त करते ह3, उसे ‘योितषशा%&’ कहा जाता है।
िस,ात - &टु ् यािद से (लयकाल पय)<त क8 गई काल गणना िजस %क<ध म0 हो, उसे िसTा<त कहते
ह3।
संिहता – योितषशा%& के िजस %क<ध म0 >हचारवश >ह- न?&ािद िब:ब# के शभु ाशभु ल?ण से
पशु – प?ी- क8टािदय# का भसू ापे? सामिू हक िववेचन, (ाकृ ितक – आकाशीय घटनाओ ं का ,ान
िकया जाता हो, उसे ‘संिहता शा%&’ कहते ह3।
होरा – िजस %क<ध म0 मानव मा& का उसके ज<म स:बि<धत काल के आधार पर >ह# एवं न?&#
क8 ि%थित वशात् उसके जीवन स:बि<धत शभु ाशभु फल# का िववेचन िकया जाता है, उसे होरा
कहते ह3।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
-ह – गgछतीित >ह:। आकाश%थ वह िपड िजसम0 गित हो और जो चलायमान हो उसे >ह कहते
ह3 ।
न$ – न ?रितित न?&म।् आकाश%थ वह िपड जो चलता नहG न?& कहलाता है। दसू रे शcद#
म0 तार# के समहू को भी न?& कहा जाता है।
वेदांग – वेद के अगं को वेदांग कहा जाता है। भारतीय ,ान–िव,ान क8 पर:परा म0 षड् वेदांग कहे
गये है। इ<हG वेदांग# को शा%& भी कहा जाता है।
1.7 अयास न के उ!र
अWयास 2Iन – 1 कP उ*रमाला
1. सZय 2. सZय 3. असZय 4. असZय 5. सZय 6. सZय
अWयास 2Iन – 2 कP उ*रमाला
1. तीन 2. वराहिमिहर 3. योितषम् 4. काल 5. %वग)म् 6. पवू म) ाय:ु 7. तीन
2.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक योितषशा%& क8 उZपि का मल ू
‘वेद’ है। योितशा%& वैिदककालीन ऋिष-महिष)य# क8 अलौिकक (ितभा क8 देन है। भारतीय
िवाओ ं म0 इसका %थान अिNतीय है। मनLु य क8 संरचना और उसक8 (कृ ित का इससे अिभ<न
स:ब<ध है। इसके अ<तग)त िपड और ]^ाड, FयिY और समिY के स:ब<ध# का अ/ययन सम>
Aप से िकया जाता है। >ह, न?&, तारे , रािशयाँ, म<दािकिनयाँ, िनहारकाएं एवं चराचर (ाणी, वृ?,
चkान0 आिद िवy]^ाडीय घटक (Zय? या परो? Aप से एक-दसू रे को (भािवत-आकिष)त करते
ह3। इन >ह-न?&# का मानव-जीवन पर सि:मिलत (भाव पड़ता है। वे कभी कY दरू करते ह3, तो
कभी कY भी देते ह3। ये तZव मनLु य क8 सfू म सरं चना एवं मनःस%ं थान# पर काय) करते ह3 और उसक8
भावनाओ ं तथा मानिसक ि%थितय# को अिधक (भािवत करते ह3। योितषशा%& के अ/ययन और
उपयोग से योितषी को मानव-जीवन के सभी ?े&# म0 सfू म अ<तa)िY (ाn हो जाती है।
रे खागिणत के अZय<त समीपवत[ छाया गिणत है, िजसके अ<तग)त छाया से समय ,ान क8
(िXया (ितपािदत है। व%ततु : यह िसTा<त वेध (िXया का (थम चरण है जो वैिदक काल म0 ही
आर:भ हो गया था। िदन म0 15 महु o` क8 कEपना उस समय भी (चिलत थी िक<तु उस समय के
महु o` के नाम िभ<न थे। उन महु o` का ,ान छाया वेध Nारा होता था। 12 अगं ल
ु शक ं ु क8 छाया Nारा
महु o` का िनधा)रण होता था। मल ू त: महु oत` क8 संdया 8 है। आठवां अिभिजत् महु o) ि%थर होता है
शेष रौl आिद सात महु oत) सूयbदय से Xमानसु ार आर:}ा होकर अिभिजत पय)<त जाते ह3। पनु :
अिभिजत के पचात् उZXम से सयू ा)%त के समय रौl तक जाते ह3। छाया के ास एवं वृिT के
अनसु ार महु o` का िनधा)रण होता है। जो िन:निलिखत सारणी से %पLट है –
छायामान मुहaत संgया
∞ - ९६ अगं लु तक रौl १
९६- ६० .. वेत २
६०-१२ .. मै& ३
१२-६ .. सारभट ४
६-५ .. सािव& ५
५-४ .. वैराज ६
४-३ .. िववावसु ७
ि%थर ३-३ .. अिभिजत् ८
३-४ .. िववावसु ९
४-५ .. वैराज १०
५-६ .. सािव& ११
६-१२ .. सारभट १२
१२-६० .. मै& १३
६०-९६ .. वेत १४
९६ -∞ .. रौl १५
इसी (कार राि& म0 भी प<lह महु oत) होते है िक<तु उनका साधन किठनाई से होगा। इनके अितरत
‘पज)<य िवा’ िजसका िववेचन योितष शा%& के संिहता %क<ध म0 िकया गया है, का िविभ<न
इ<हG सात रिमय# के कारण सयू ) को ‘सQत रिम’ कहा जाता है। इ<हG रिमय# का िवलेषण कर
आधिु नक वै,ािनक# ने इनके रंग# के आधार पर BIVGYOR (Blue, Indigo, Voilet, Green,
Yellow, Orange and Red) नाम से िवभत िकया है। यह %थल ू िववेचन है। सfू म िववेचन म0
सयू ) क8 सं,ा सह रिम हो जाती है। सयू ) क8 (Zयेक रिमय# म0 उत सात रिमयाँ होती है तथा
(Zयेक रिमय# सह उप रिमयाँ होती है। (Zयेक रिम के गणु एवं काय) िभ<न –िभ<न होते है।
इन सभी आधार# को देखते ह2ए तथा योितष शा%& के ऐितहािसक तJय# को /यान म0
रखते ह2ए इसे वेद से िभ<न मानने के िलए %थान ही नहG रहता। अत: योितष शा%& क8 सवागीण
वेदांगता %वत: िसT हो जाती है। इसके िलए %वयं वेद ही (माण है। (माणा<तर क8 आवयकता ही
नहG है। आचाय) भा%कर क8 उिO ‘‘वेदागं Zवं योितष%योतम%मात’् ’ सव)था िसT है।
3.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक िकसी भी व%तु के %वAप को िजन
अवयव# या उपकरण# के मा/यम से जाना जाता है। उसे अंग कहते ह3। अगं शcद क8 FयZु पिल}य
अथ) भी यही है – अSं य<ते ,ाय<ते अमीिभरित अङं ् गािन। य,, तप, दान आिद के Nारा ईवर क8
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उपासना वेद का परम लfय है। उपय)ु त य,ािद कम) काल पर आिVत ह3 और इस परम पिव& काय)
के िलए काल का िवधायक शा%& योितषशा%& है। अत: इसे वेदागं क8 स,ं ा दी गई है। शcदशा%&,
योितष, िनAत, कEप, िश?ा तथा छ<द इन छ: शा%&# Nारा वेद का स:यग् ,ान स:भव होता है।
अत: छ: शा%&# को वेदांग कहा गया है। यिप इन शा%&# को वेदांग िसT करने क8 आवयकता
नहG है, ये %वत: िसT वेद के अगं ह3। तथािप योितष शा%& क8 वेदागं ता के (माण# का उTरण इस
इकाई म0 िनिहत है। (ाचीनकाल से आज तक वेद# क8 िजतनी (कार क8 Fयाdयाएँ ह2ई है उनसे %पLट
होता है वेद को मdु य दो धाराओ ं म0 अब तक जाना गया है। (थम धारा वेद क8 य,परक Fयाdया
करती है और दसू री कम)परक।
3.6 पारभािषक शदावली
वैिदक योितष – ऋक, साम, यजु एवं अथव) योितष से स:बि<धत योितष को वैिदक योितष
कहा जाता है।
वेदाङ्ग योितष – वेदाङ्ग योितष महाZमा लगध क8 कृ ित है।
अंग - िकसी भी व%तु के %वAप को िजन अवयव# या उपकरण# के मा/यम से जाना जाता है। उसे
अगं कहते ह3। अगं शcद क8 FयZु पिल}य अथ) भी यही है – अSं य<ते ,ाय<ते अमीिभरित
अङं ् गािन।
पंचांग – ितिथ, वार, न?&, योग एवं करण। इन पाँच अगं # से जो िमलकर बनता है, उसे पंचागं
कहते है।
िदनमान – िदन स:बि<ध मान को िदनमान कहते है। स:पणू ) िदनमान (िदन और राि& िमलाकर) ६०
घटी का होता है।
3.7 अयास न के उ!र
आधुिनक काल
आधिु नक काल म0 योितषशा%& के अनेक िविशLट आचाय) ह2ए। अ/ययन-अ/यापन क8
aिY से पर:परा अZय<त सaु ढ़ रही। आचाय` ने अनेक महZवपणू ) ><थ िलखे और पवू व) त[ ><थ# क8
टीकाएँ िलखी। इन ><थ# और टीकाओ ं से (तीत होता है िक वे इस शा%& के (ौढ़ िवNान रहे ह#गे।
कुछ मल ू ><थ आज भी िवव(िसT है। अ/ययन –अ/यापन क8 पर:परा म0 िजन आचाय` ने योगदान
िकया उनका नामोEलेख स:भव नहG हो पा रहा है य#िक िलिखत या मौिखक साfय नहG िमल पा
रहा है। िफर भी पर:परा से िजतने िवNान# का पता चल पाया है (यास िकया है उनके नाम# का %मरण
करने का। िजनक8 टीका, िटQपणी या मल ू ><थ आिद उपलcध ह3 या इितहास म0 (ामािणक उTरण
(ाQत है या (संगवश नाम आए है और लेखक या स:पादक क8 aिY वहाँ तक पह2चँ पायी है, उनका
नामोEलेख करने का यहाँ (यास िकया गया है-
1. लजाशक ं र शमा) १८०४ ई. शक १७२६
2. न<दलाल शमा) १८०४ ई. शक १७२६
3. राघव १८१० ई. शक १७३२
4. िशव १८१५ ई. शक १७३७
5. देवकृ Lण शमा) १८१८ ई. शक १७४०
6. नृिसहं देव शा%&ी या बापदू वे शा%&ी १८२१ ई. शक १७४०
7. नीला:बर शमा) १८२३ ई. शक १७४५
8. के रो लfमण १८२४ ई. शक १७४६
9. िवशाजी रघनु ाथ लेले १८२७ ई. शक १७४९
10. रघनु ाथ आचाय) १८२८ ई. शक १७५०
11. गोिव<द देव शा%&ी १८३४ ई. शक १७५६
12. कृ Lणशा%&ी गोडबोले १८५३ ई. शक १७७५
13. व0कटेश बापजू ी के तकर १८५३ ई. शक १७७५
14. बालगगं ाधर ितलक १८५६ ई. शक १७७८
अ$यास %न – 2
रत %थान# क8 पिू त) क8िजये –
1. आय)भk का काल ................. है।
2. वृहZसंिहता के रचियता ........................ है।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
3. ]^गQु त का काल....................है।
4. सयू )िसTा<त सयू ाश पA
ु ष और .................... क8 सवं ाद Aपी ><थ है।
4.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक वेद िकसी शा%& िवशेष का ><थ
नहG है। अत: वहाँ िकसी भी शा%& िवशेष का सांगोपांग वण)न एक& नहG देखा जाता है। िक<तु
(संगवश सभी शा%&# का िदSदश)न अवय होता है। योितष तो वेदांग ही है। इसिलए इस का वण)न
%वाभािवक है। इस (कार इस शा%& का (व)क तो वेद है। कालXम म0 इस शा%& के (वत)न का Vेय
उ<ह0 िमला है और इितहास म0 उEलेख भी उनम0 सव)(मख ु है। (व)क का अथ) ऋिष एवं आचाय) वह
होता है, जो पर:परा क8 र?ा के िलए काय) करता है। साथ ही उनम0 नवीनपरक अनसु <धान करने का
काय) भी वह करने के िलए तट%थ रहता है।
आच2 योितष –
वेदागं योितष क8 (थम और महZवपणू ) रचना है – ‘आच)योितष’। आच)यौितषम्
िवव क8 पहली गिणतप%ु तक है। ऋSवेद का ‘वेदांगयौितषम’् है ‘आच) यौितषम’् । इसम0
कुल ३६ म<&ाZमक लोक उपलcध ह3। इस अZय<त महZवपणू ) रचना के िशEपी ह3 महाZमा
लगध। यहG से (ार:भ होता है वेदाङ्ग काल। अनX ु म पवू क) िवषय का (ितपादन यहG से
आर:भ ह2आ है। इस ><थ को पर:परा (ाQत अनVु वण से आच)योितष कहा गया है तथा इस
><थ से यह बात %पLट होती है िक वेद य, के (ितपादन हेतु (वृ ह3, य, कालािVत ह3, काल
योितषशा%& से िवधान को (ाQत करता है योितष जानने वाला ही य, को समझता है –
वेदा िह य1ाथमिभ2वृ*ा:।
कालानपु वू ा िविहताIच य1ा:।
त मािददं कालिवधानशा ं
यो योितषं वेद स वेद य1ान।् ।
आच) योितष का यह उपसंहार लोक है। देखने म0 यह (योजन परक लोक लगता है, पर रचनाकार
ने इस म&ं लोक से ><थ का समापन िकया है। आच)योितष का उपसंहार योितष के ,ान और य,
के सधं ान से ह2आ है – ‘यो यौितषं वेद स वेद य,ान।् ’ यह (योजन परक य, ही िसT करता है िक
आच)योितष का (ितपा पणू )त: य, है।
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(ाचीनकाल म0 िकसी भी िवषय का शा%&Zव िसT होना उसके िलए (ितLठा का ोतक
होता था। इसीिलए योितष को कालिवधान शा%& कहा गया योितिव)ा नहG। आज जैसे (ितLठा
का ोतक शcद िव,ान बना ह2आ है उसी तरह से पहले ‘शा%&’ शcद था। आज लोग अपने िवषय
क8 VेLठता को िसT करने के िलए उसे िव,ान से जोड़ने ह3 जैसे – गृहिव,ान, मनोिव,ान,
समाजिव,ान या िफर पोिलिटकल साइसं ेज आिद। िखचड़ी पकाइये पर िव,ान कहकर, पोिलिटकल
साइसं कह कर। योितषशा%& को योितिव),ान नाम से (चिलत करने के पीछे यगु धम) और यगु
मानिसकता झलकती है। योितषशा%& से VेLठ कोई दसू रा शcद इस अनश ु ासन के िलए अनक
ु ू ल हो
ही नहG सकता। िव,ान के वल (तय? या य<& aLट पदाथ` का ,ान (दान करता है। योितष शा%&
भतू –वत)मान- भिवLय तीन# को (%फुिटत करता है। इसीिलए वेदांग योितष का उपसंहार है ‘य,’।
बात य, पर आकर समाQत ह2ई है। इसी (वृि वेदांगकाल को वेदकाल का तZकाल अनवु त[ काल
या आस<न काल मानना पड़ा ह3। आच) योितष का महZवपणू ) लोक है –
यथा िशखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
त66ेदाङ्गशा ाणां यौितषं मूधिन ि थतम।् ।
यही लोक याजषु योितष के चौथे Xम म0 विण)त है और वहाँ ‘योितषं’ क8 जगह ‘गिणतं’ पाठ भेद
कर िदया गया है। व%ततु : यहाँ ‘योितष’ं पाठ ही उपयु त था ‘गिणतं’ नहG। इसम0 दो कारण ह3 –
आच)योितष पवू व) त[ है याजषु परवत[।ं अत: गिणतं वैकिEपक है। मल ू पाठ ‘योितषं’ है। दसू रा
कारण है – वेदांगता और शा%&Zव योितष को (ाQत है के वल गिणत को नहG। तद् वद् वेदाङ्ग
शा%&ाणां गिणतं मधू )िन ि%थतम् कहते ही योितष से होरा और सिं हता आिद अ<य शाखाओ ं का
Fयावत)न हो जाता है। योितष म0 समािवLट है गिणत और ‘शा%&Zव’ योितष का है। फलत: पं0
सधु ाकर िNवेदी जी का यह कहना िक ‘अ& गिणतं’ %थाने ‘योितषम’् इित पाठो न िवशेषाथ)(द इित’
उिचत नहG है। आचाय) Vी िव%मृत हो गये थे िक योितषं के %थान पर गिणतं आया है। पवू व) त[ है
‘आच)’ परवत[ है ‘याजषु ’। आचाय) सधु ाकर िNवेदी ने याजषु योितष का भाLय पहले िलखा और
‘आच)योितष’ का बाद म0। इसीिलए इस िवषय क8 गंभीरता पर उनका /यान नहG गया।
5.3.4 िस6ात काल
िसTा<त काल म0 योितषशा%& उ<नित क8 चरम सीमा पर था। आय)भk, वराहिमिहर,
लEल, ]^गQु त आिद जैसे अनेक धरु <धर योितिव)द ह2ए, िज<ह#ने इस िव,ान को XमबT िकया
तथा अपनी अिNतीय (ितभा Nारा अनेक नवीन िवषय# का समावेश िकया। इस यगु के (ारि:भक
आचाय) वराहिमिहर या वराह ह3, िज<ह#ने अपने पवू क
) ालीन (चिलत िसTा<त# का पंचिसTाि<तका
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
म0 सं>ह िकया। >हगिणत के ?े& म0 िसTा<त, त<& एवं करण इन भेद# का (चार भी होने लगा था।
िसTा<तगिणत म0 कEपािद से, त<& म0 यगु ािद से और करण शकाcद पर से अहग)ण बनाकर >हािद
का आनयन िकया जाता है। िसTा<त म0 जीवा और चाप के गिणत Nारा >ह# का फल लाकर आनीत
म/यम>ह म0 सं%कार कर देते ह3 तथा भौमािद >ह# का म<द और शीफल लाकर म<द%पLट और
%पLट मान िसT करते है।
योितषशा%& के सािहZय का अZयिधक िवकास ह2आ है। मौिलक ><थ# के अितरत
आलोचनाZमक योितष के अनेक ><थ िलखे गये ह3। भा%कराचाय) ने अपने पवू व) त[ आय)भk,
]^गQु त, लEल आिद के िसTा<त# क8 आलोचना क8 और आकाश िनरी?ण Nारा >हमान क8
%थल ू ता ,ात कर उसे दरू करने के िलए बीजसं%कार क8 Fयव%था बतलायी। ईसवी सन् क8 १२ वG
सदी म0 गोल िवषय के गिणत का (चार बह2त ह2आ था। उरम/यकाल क8 (मख ु िवशेषता >हगिणत
के सभी अगं # के संशोधन क8 है। ल:बन, नित, आयनबलन, आ?बलन, आयनaकम),
आ?aकम), भभू ािब:ब साधन, >ह# के %पLटीकरण के िविभ<न गिणत और ितJयािद के साधन म0
िविभ<न (कार के सं%कार िकये गये, िजससे गिणत Nारा सािधत >ह# का िमलान आकाश-िनरी?ण
Nारा (ाQत >ह# से हो सके ।
इस यगु क8 एक अ<य िवशेषता य<& िनमा)ण क8 भी है। भा%कराचाय) और महे<lसू र ने
अनेक य<&# के िनमा)ण क8 िविध और य<&# Nारा >हवेध क8 (णाली का िनAपण स<ु दर ढंग से िकया
है। यिप इस काल के (ार:भ म0 >हगिणत का बह2त िवकास ह2आ, अनेक करण ><थ तथा सारिणयाँ
िलखी गयG, पर ई0 सन् क8 १५ वG शती से ही >हवेध क8 परपाटी का ास होने लग गया था। य#
तो (ाचीन ><थ# को %पLट करने और उनके रह%य# को समझाने के िलए इस यगु म0 अनेक टीकाएँ
और भाLय िलखे गए, पर आकाश–िनरी?ण क8 (था उठ जाने से मौिलक सािहZय का िनमा)ण न हो
सका। >हलाघव, करणकुतहू ल और मकर<द जैसे स<ु दर करण ><थ# का िनिम)त होना भी इस यगु के
िलए कम गौरव क8 बात नहG थी।
फिलत योितष म0 जातक, महु oत,) सामिु lक, रमल और (न इन अगं # के सािहZय का िनमा)ण भी इस
काल म0 कम नहG ह2आ है। मिु %लम सं%कृ ित के अित िनकट स:पक) के कारण रमल और तािजक इन
अगं # का तो नया ज<म माना जाता है। तािजक शcद का अथ) ही अरब देश से (ाQत शा%& है। इस यगु
म0 इस िवषय पर लगभग दो दज)न ><थ िलखे गये । इस शा%& म0 िकसी FयिO के नवीन वष) और
मास म0 (वेश करने क8 >हि%थित पर से उसके सम%त वष) और मास का फल बताया जाता है।
बलभlकृ त तािजक ><थ म0 कहा गया है :-
शकुनशा –
इसका िवकास भी %वत<& Aप से इस यगु म0 अिधक ह2आ है। िव0सं0 १२३२ म0
अिपkण के नरपित नामक किव ने नरपितचया) नामक एक शभु ाशभु फल का बोध कराने वाला
अपवू ) ><थ क8 रचना क8 थी। इस ><थ म0 (धान Aप से %वरिव,ान Nारा शभु ाशभु फल का िनAपण
िकया गया है। वस<तराज नामक किव ने अपने नाम पर वस<तराज शकुन नाम का एक महZवपूण)
><थ रचा है। इस ><थ म0 (Zयेक काय) के पणू ) होने वाले शभु ाशभु शकुन# का (ितपादन आकष)क ढंग
से िकया गया है। इन ><थ# के अितरत िमिथला के महाराज लfमणसेना के प&ु बEलालसेन ने
श.सं. १०९२ म0 अvुतसागर नाम का एक सं>ह ><थ रचा है, िजसम0 अपने समय के पवू व) त[
याितिव)द# क8 संिहता स:ब<धी रचनाओ ं का सं>ह िकया है। कई जैन मिु नय# ने शकुन के उपर वृहद्
परमाण म0 रचनाय0 िलखी ह3। यिप शकुनशा%& के मल ू तZव आिदकाल के ही थे, पर इस यगु म0
उ<हG तZव# क8 िव%तृत िववेचनाएँ िलखी गयी है।
इस काल म0 भारतीय योितष ने अनेक उZथान# और पतन# को देखा है। िवदेिशय# के
स:पक) से होनेवाले सशं ोधन# को अपने म0 पचाया है और (ाचीन भारतीय योितष क8 गिणत-
िवषयक %थल ू ताओ ं को दरू कर सfू मता का (चार िकया है।
यिद सं?ेप म0 उरम/यकाल के योितष सािहZय पर aिYपात िकया जाये तो यही कहा जा सकता है
िक इस काल म0 गिणत योितष क8 अपे?ा फिलत योितष का सािहZय अिधक फला-फूला है।
गिणत योितष म0 भा%कर के समान अ<य दसू रा िवNान नहG ह2आ, िजससे िवपल ु परमाण म0 इस
िवषय क8 स<ु दर रचनाएँ नहG हो सक8। इस काल म0 भा कराचाय, दुगदेव, उदय2भदेव,
मि%लषेण, राजािद7य, ब%लालसेन, पn2भ सू=र, नरच# उपा\याय, अoकिव या अहpास,
महे#सू=र, मकरद, के शव, गणेश, ढुिDढराज,नीलकDठ, रामदैव1, म%ला=र, नारायण तथा
रंगनाथ आिद जैसे अनेक# िवNान ह2ए िज<ह#ने अपनी अपवू ) कृ ितय# से भारतीय योितष शा%& को
और पLु पिवत तथा पEलिवत करने म0 अपना योगदान िदया।
5.5 सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक िकसी भी शा%& या िवषय का
स:यक् अ/ययन करने के िलए उसका इितहास जानना आवयक होता है; य#िक उस शा%& के
इितहास Nारा तिNषयक रह%य समझ म0 आ जाता है। योितषशा%& सृिY और (कृ ित के रह%य को
Fयत करने वाला है। मानव (कृ ित क8 पाठशाला म0 सव)दा से इस शा%& का अ/ययन करता चला
आ रहा है। गAु पर:परा से इस शा%& क8 अनवरतता लोक म0 (िसT है, अत: इस शा%& के उvव
%थान और काल का िनिचत Aप से पता लगाना किठन है। चाहे अ<य ,ान# क8 िनझ)रणी के आिद
ोत का पता लगाना स:भव हो, पर (कृ ित के अन<यतम अगं इस शा%& का ओर-छोर ढूँढना मानव-
शिO से परे क8 बात है। अथवा दसू रे शcद# म0 यह कहा जा सकता है िजस िदन से मानव ने होश
संभाला, उसी िदन से उसने योितष के आवयक तZव# का अ/ययन करना शA ु कर िदया। भले ही
वह इन तZव# को अिभFयत करने क8 योSयता के अभाव म0 दसू र# को न बता सका हो, पर उसका
जीवन िनवा)ह इन तZव# के िबना हो नहG सकता था; फलत: मानव- जीवन के िवकास के साथ- साथ
योितष का भी िवकास ह2आ।
5.6 पारभािषक शदावली
इितहास – Fयतीत हो चक ु 8 अथवा घिटत घटनाओ ं से स:बि<धत कहानी। सामा<यतया जो Fयतीत
हो चक
ु 8 हो, उसे इितहास कहते है। िकसी िवषय क8 सम>ता का बोध कराने वाला तJय।
दैव1 – दैववशात् होने वाली घटनाओ ं को जानने वाला अथवा काल को जानने वाला।
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
क%प – १००० महायगु के बराबर
वेदांग योितष – महाZमा लगध क8 रचना।
लगध – िजसके शरीर से मृिका क8 स#धी सगंु िध िनकलती हो, उसे लगध कहते है।
मुहa* – महु धातु म0 उरट (Zयय लगने से महु o) शcद क8 FयZु पि होती है।
वेदांग – वेद के अगं को वेदांग कहा जाता है। भारतीय ,ान – िव,ान क8 पर:परा म0 षड् वेदांग कहे
गये है। इ<हG वेदांग# को शा%& भी कहा जाता है।
खड – 2
योितष शा के मुख अंग
इकाई क8 संरचना
१.१ (%तावना
१.२ उ|ेय
१.३ ि& %क<ध योितष
१.४ पंच %क<ध योितष
१.५ बह2%क<धाZमक योितष
१.६ सारांश
१.७ पारभािषक शcदावली
१.८ अ}यास (न# के उर
१.९ सहायक पाठ्यसाम>ी
१.१० स<दभ) ><थ सचू ी
१.११ िनब<धाZमक (न
१.२ उ)े%य
इस इकाई के अ/ययन के पचात् आप -
योितष शा%& के िविवध %क<ध# को समझ ल0ग।े
(धान %क<ध# को समझ सके ग0।
बह2%क<धाZमक योितष को समझा सके ग0।
ि&-पंच- बह2%क<धाZमक योितष का िववेचन कर सक0 गे।
१.३ ि - कध योितष
योितषशा%& ]^ाडोZपि के साथ ही अपने अि%तZव को लेकर (कट ह2आ था। अत:
उसका आर:भ ]^ाडोZपि के साथ ही ह2आ है, इसम0 लेशमा& भी संशय नहG। काला<तर म0 उसके
Aप# म0 परवत)न होता चला गया। इस शा%& के अनेक# (व)क ह2ए, िजनम0 ]^ा जी से लेकर
शौनकािद पय)<त िविवध नाम# का उEलेख िमलता है। योितषशा%& अपने िविवध %क<ध# के साथ
सृिY म0 कEपवृ? क8 भाँित FयाQत होकर यगु -यगु ा<तर से लोकोपकारी रहा है। ‘ि&’ शcद का अथ)
तीन (3) होता है, जो संdयावाची है। (धानता के aिYकोण से योितषशा%& के तीन %क<ध ह2ए –
१. िसTा<त या गिणत २. होरा या फिलत 3. सिं हता
इ<हG तीन# %क<ध# को ‘ि&%क<ध योितष’ के नाम से जाना जाता है। इसका िव%तृत िवलेषण आगे
योितष क;प<ुम
आप िच& म0 योितषशा%& Aपी कEपवृ? को देख रहे है, िजसके मल ू म0 चार# वेद -
ऋSवेद, यजवु द , सामवेद एवं अथव)वदे है। साथ ही उपिनषद, परु ाण एवं त<& का भी उEलेख है। उसी
मल
ू से उपर आप योितषशा%& और उसके %क<ध# को देख रहे ह3। िसTा<त, संिहता एवं होरा
%क<ध के भी िविभ<न %क<ध आपको वृ? क8 शाखाओ ं म0 परलि?त हो रहा है।
िस,ात कध मM पाटी गिणत, बीजगिणत, रे खागिणत, ि&कोणिमित, यािमित, चलनकलन,
गोला/याय, करण ><थ, त<& ><थ, चापीयि&कोणिमित, गोलीयरे खागिणत, (ितभाबोधकम,्
य<&िनमा)ण, वेधशाला, Vृगं ो<नित आिद (मख ु ह3।
होरा कध के अ<तग)त जातक ><थ, तािजक ><थ, पच ं ागं िनमा)ण ><थ, लघजु ातक, महु o) ><थ
य वेध - वेध शcद का िनमा)ण ‘िवध’् धातु से ह2आ है िजसका अथ) है िकसी आकाशीय >ह
अथवा तारे को aिY के Nारा वेधना अथा)त् िवT करना। >ह# तथा तार# क8 ि%थित के ,ान हेतु
आकाश म0 उ<ह0 देखा जाता था। आकाश म0 >हािदक# को देखकर उनक8 ि%थित का िनधा)रण ही वेध
है। परभाषा Aप म0 “न[नने या शलाका, यिu, निलका, दूरदशक इ7यािद य L के 6ारा
आकाशीय िपDडL का िनरी$ण ही वेध है।” निलकािद य<&# से >ह# के िवT होने के कारण ही
इस िXया का नाम ‘वेध’ िवyिवVतु है।
vिu तथा य भेद से वेध दो (कार का होता है-aिY वेध भी अ<तa)िYवेध तथा
बाaिYवेध से दो (कार का होता है। यहाँ महिष)य# Nारा यम-िनयम, आसन, (ाणायामािद
तप%याओ ं से भिO,ानज<य ने& Nारा ]^ाड%थ िपड# के अवलोकन को अतvिuवेध तथा %व-
%व नSन ने& Nारा आकाश%थ िपडावलोकन को बाjvिuवेध माना जाता है। जब हम चXनिलका,
शक
ं ु , दरू दश)क आिद वेध-उपकरण# से सयू ा)िद योित:िपड# को देखते ह3 तो य वेध होता है।
मुहa* – महु o) योितषशा%& का अिभ<न अगं है। ‘महु ’ धातु म0 उरट (Zयय लगने से महु o) शcद बना
है। इसके िबना हम िकसी भी काय) के शभु ाशभु परणाम क8 कEपना नहG कर सकते ह3। यथा- rत,
पव), उZसव, िववाह, षोडशसं%कार, य,कम) अथवा अ<य कोई भी शभु काय) हो अथवा VाTािद
(अशभु कम)) काय) हो हम महु o) के िबना उसका अनश ु ासन स:यक Aप से नहG कर सकते ह3। अत:
महु o) का ,ान योितष के अ/येताओ ं के िलए परमावयक है। सामा<यतया लोग योितषी के पास
शभु ाशभु महु o) ,ान के िलए ही जाते है, अथवा योितषी से शभु ाशभु महु o) जानने क8 अपनी इgछा
(कट करते ह3।
यिद देखा जाय तो योितषशा%& के उदयकाल म0 ही महु o) स:ब<धी सािहZय का िनमा)ण
होने लग गया था तथा आिदकाल और पवू म) /यकाल म0 संिहताशा%& के अ<तग)त ही इस िवषय क8
रचनाएँ ह2ई थG, पर उरम/यकाल म0 इस अगं पर %वत<& रचनाएँ दज)न# क8 संdया म0 ह2ई ह3। शक
सवं त् १४२० म0 नि<द>ामवासी के शवाचाय) कृ त महु o)तZव, शक् सवं त् १४१३ म0 नारायण कृ त महु oत)
१.६ सारांश
(%ततु इकाई के अ/ययन के पचात् आपने जाना िक योितषशा%& ]^ाडोZपि के
साथ ही अपने अि%तZव को लेकर (कट ह2आ था। अत: उसका आर:भ ]^ाडोZपि के साथ ही
ह2आ है, इसम0 लेशमा& भी संशय नहG। काला<तर म0 उसके Aप# म0 परवत)न होता चला गया। इस
शा%& के अनेक# (व)क ह2ए, िजनम0 ]^ा जी से लेकर शौनकािद पय)<त िविवध नाम# का उEलेख
िमलता है। योितषशा%& अपने िविवध %क<ध# के साथ सृिY म0 कEपवृ? क8 भाँित FयाQत होकर
यगु -यगु ा<तर से लोकोपकारी रहा है। ‘ि&’ शcद का अथ) तीन (3) होता है, जो सdं यावाची है।
(धानता के aिYकोण से योितषशा%& के तीन %क<ध ह2ए – १.िसTा<त या गिणत २. होरा या
फिलत 3. संिहता। इ<हG तीन# %क<ध# को ‘ि&%क<ध योितष’ के नाम से जाना जाता है। इ<हG
%क<ध# के कई उप%क<ध ह2ए, िज<ह0 ‘बह2%क<धाZमक योितष’ के नाम से जाना जाता है।
ि – ‘ि&’ सं%कृ त का शcद है, िजसका अथ) तीन (3) होता है। यह संdयावाची है।
पंच – पंच का शािcदक अथ) है – पाँच। यह भी संdयावाची है।
बहk कधा7मक – बह2 का अथ) है – अनेक। िविवध (कार के %क<ध को बह2%क<धाZमक कहा
जाता है।
गिणत – गयते संdयायते तद् गिणतम।् िजसक8 गणना क8 जाय, और जो संdयावाची हो, उसे
१.११ िनबधा.मक न
उराखड मु त िवविवालय Page 97
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
1. ि&%क<ध योितष से या ताZपय) है? वण)न क8िजये।
2. पच
ं %क<धाZमक योितष का िववेचन क8िजये।
3. बह2%कनधाZमक योितष से आप या समझते है? %पLट क8िजये।
4. (%ततु इकाई के अनसु ार आप योितष के िविवध %क<ध# का वण)न अपने शcद# म0 क8िजये।
5. योितषशा%& के िविवध %वAप# पर (काश डािलये।
२.२ उ)े%यम्
(%ततु इकाई के अ/ययन से आप –
िसTा<त योितष का परचय (ाn कर0 ग।े
िसTा<त योितष के िविवध भेद# का परचय (ाn कर0 ग।े
िसTा<त योितष के िविवध ><थ व ><थकार# के िवषय म0 जान0ग।े
िसTा<त योितष म0 विण)त िविवध िवषय# का (ितपादन करने म0 कुशल हो सक0 गे।
भारतीय गिणत व खगोल शाm के िवकास क8 पर:परा का ,ान (ाn कर0 ग।े
ू ी–
२.११ सदभ2 ?थ सच
भारतीय योितष का इितहास, - उर (देश शासन, राजिष) पु षोम दास टडन,
िह<दी भवन, लखनऊ, १९७४ ई.
सयू )िसTा<तः, Vीकिपलेyरशाmीिवरिचतः, VीतpवामृतभाLयोपपिसिहतः,
चौख:बा सं%कृ त सं%थान, वाराणसी, १९८७ ई.
>हलाघवम,् Vीगणेशदैव,िवरिचतम,् Fयाdया – डॉ.]^ान<दि&पाठी, (काशन –
चौख:बा सरु भारती (काशन, वाराणसी, २००८ ई.
३.२ उ)े%य –
आचाय) वराहिमिहर रिचत बृहZसिं हता ><थ सिं हतायोितष का सव)(मख ु और सव)मा<य
><थ है। इसका काल ४२७ शकाcद मान जाता है। बृहZसंिहता ><थ म0 संिहता योितष से संबT
सभी िवषय# का वण)न िकया गया है। पृथक शाm के Aप म0 संिहता भाग का उदय कब ह2आ इस
िवषय म0 िनित Aप से कहा नहG जा सकता। बृहZसिं हता म0 आचाय) वराहिमिहर पवू व) त[ आचाय`
के Aप म0 गग), पराशर, अिसत, देवल, वृTगग), कयप, भृग,ु विस, बृह%पित, मन,ु मय, सार%वत,
ऋिषप&ु आिद को संिहता ><थ# के रचनाका)ओ ं के Aप म0 %मरण करते ह3। आचाय) भkोZपल ने
वराहिमिहर िवरिचत सभी ><थ# क8 टीकाऐ ं िलखी बृहZसिं हता ><थ क8 टीका लेखन के समय
भkोZपल ने वराहिमिहर से भी कहG अिधक पवू व) त[ आचाय` का %मरण िकया है। उ<ह#ने टीका ><थ
म0 Fयास, भानभु k, िवLणगु nु , िवLणचु <l, यवन, रोम, िसTासन, भlबाह2, नि<द, नSनिजत,् शX,
किपल, चािणय, बलदेव, बृहlथ, गZमान, किप%थल, ऋषभ, भिद, सिव&, लाटदेव, ह%ताcद,
अिसत, अग%Zय, lFयवध)न, िवLणचु <l, इ<l, कायप, गाग), जीवशमा), गड, दैवल, देव%वामी,
न<दी, नSनजीत, नारद, पिु लशाचाय), बादरायण, भk]^गnु , भानभु k, भागु र, भारNाज मिु न, मय,
मयासरु , मिणZथ, माडFय, यवन, यवनेyर, व©ऋिष, वfयमाण, वरिच, िवLणगु nु , िवLण,ु
िवyकमा), वीरभl, शX ु , समlु ऋिष, सZयाचाय), सार%वत, िसTसेन, सयू ), Vतु क8ित), िहरयगभ)
इZयािद आचाय` का %मरण िकया। इन आचाय` के Nारा रिचत ><थ स:(ित उपलcध नहG होते ह3,
के वल इनके नाम ही शेष रह गये ह3।
आज नारद सिं हता, पाराशर सिं हता, गग) सिं हता, भृगु संिहता, कायप सिं हता और विस
संिहता बृहZसंिहता से पवू व) त[ संिहताओ ं के Aप म0 उपलcध ह3। कुछ िवNान# का यह अनुमान है िक
वेदाङ्ग काल तक संिहताशाm का पृथक् अि%तZव नहG था। संिहता योितष के तpव िविवध
परु ाण# म0 और इितहास ><थ# म0 (ाn होते ह3। महाभारत म0 भी कुछ संिहता शाm# क8 ि%थित के
सक ं े त (ाn होते ह3 िवशेषतः Fयास सिं हता क8 ि%थित के ससं चू क वचन उपलcध होते ह3 –
ततो इuेऽहिन 2ाzे मुहa*? साधसु Kमते।
ज-ाह िविधव7पािणं मा#्याः पाDडुनरािधपः।। (महाभारतम् - १/११३/१६)
ऐ#े च#समायुे मुहa*?ऽिभिजदuमे
उराखड मु त िवविवालय Page 125
भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
िदवा म\यगते सूय? ितथौ पूण?ऽितपूिजते।। (महाभारतम् - १/१२३/६)
महु o)शाm को भी संिहताशाm का ही अङ्ग माना गया िजसके िबना लौिकक, वैिदक और
%मारत् कोई भी काय) िसT नहG हो पाता। संिहताशाm म0 %थल, जल, और गगन म0 िदखाई देने वाले
िविवध उZपात# के िववेचन व ल?ण के Nारा तथा ताZकािलक >हचार के Nारा सिु भ? दिु भ)? आिद
बृहZसंिहता ><थ म0 ही (ाn होते ह3। जैसा िक ><थार:भ म0 आचाय) वराहिमिहर ने विण)त िकया –
य ैते संिहता पदाथा:। िदनकरादीनां -हाणां चारा तेषु च तेषां
2कृितिवकृित2माणवणिकरण0ुितसं थाना तमनोदयमागमागातरव;ानुव;$-हसमागम
चारािदिभ: फलािन न$ कूमिवभागेन देशे8वग 7यचार:। सzिषचार:। -हभयो
न$ यूह-हशृङ्गाटक-हयु,-हसमागम-हवषफलगभ ल$णरोिहणी वा7याषाढीयोगा:
स0ोवषकुसुमलताप=रिधप=रवेषप=रघपवनो%कािद[दाहि$ितचलनस\यारागगधवनगरर
जोिनघाताघकाDडस यजमे#\वजे#चापवा तुिव0ाङ्गिव0ावायसिव0ातरच;मृगच;
}च;वातच;2ासादल$ण2ितमाल$ण2ितSापनवृ$ायुव?दोदगागलरनीरालजनख जन
को7पातशाितमयूरिच कघृतकKबलखङ्गप कृकवाकुकूमगोऽजा}ेभपुQषyील$णाय
त:परु िचतािपटकल$णोपानBछे दवyBछे दचामरदDडशयनाऽऽसनल$णर7नपरी$ा
दीपल$णं दतकाSा0ाि(तािन शुभाऽशुभािन िनिम*ािन सामायािन च जगत: 2ितपु|षं
पाथवे च 2ित$णमनयकमािभयुेन दैव1ेन िचतियतयािन। न चैकािकना
श4यतेऽहिनशमवधारियतुं िनिम*ािन। त मात् सुभृतेनैव दैव1ेनायेऽिप ति6दr7वार:
कतया:। त ैकेनै#ी चा-ेयी च िदगवलोकियतया। याKया नैऋती चायेनैवं वा|णी
वायया चो*रा चैशानी चेित। य मादु%कापातादीिन शीमपगBछतीित।
त याrाकारवण नेह2माणािद-ह$Gपघातािदिभ: फलािन भवित। (बृहZसंिहता,
सांवZसरस&ू ा/यायः, ¤ोक-२३)
अvुतसागर><थ म0 भी बृहZसंिहता के समान ही िवषय# का वण)न है, पर<तु उसम0 अनेक
नवीन िवषय# का भी िववेचन िकया गया िजनक8 चचा) बृZसिं हता म0 भी चचा) नहG है। उसम0
िदFयाVय, अ<तर?ाVय और भौमाVय सं,क तीन भाग# म0 िविवध उZपात# का सोपपिZक वण)न
िकया है व उनक8 शाि<त के उपाय भी विण)त िकये है। भौमाVय म0 भक
ू :प, जलाशय अिSन, दीप, देव
(ितमा, शX/वज, वृ?, गृह, वातज उप%कर, वm, उपाहन, आसन, शm, िदFय mीपु षदश)न,
मानषु , िपटक, %वQन, कायरY, द<त ज<म, (सव, सव)शाकुन, नाना मृग, िवहग, गज, अy, वृष,
मिहष, िबडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोिधका, िपपीिलका, पतङ्ग, मशक, मि?क, लतू ा, मर, भेक,
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
ख<जरीट दश)न, पोतक8, कृ Lणपेिचका, वायसाvुताव), िमVकाvुताव), अvुतशा<Zयvुताव),
सोवष)िनिमाvुताव), अिवTाvुताव) और पाकसमयाvुतावत) का िनAपण िकया ह3 िजनम0 से
अनेक िवषय# क8 चचा) बृZसंिहता म0 नहG (ाn होती।
संिहता के िवषय अZय<त िव%तीरण् ह3। इसम0 स:पणू ) देश क8 ि%थित, देश का शभु ाशभु
फल, कृ िष स:बि<धत फल, वृिY स:बि<धत फल, वािणय स:बि<धत फल, राजनीित स:बि<धत
फल और अथ) स:बि<धत फल का िव%तृत प (ितपादन िकया गया है। इसके िनधा)रण हेतु आचाय)
वराहिमिहर रिचत बृहZसंिहता म0 वण)न है िक सव)(थम साईस न?तर् # को नव खणड् # म0 िवभािजत
िकया गया। (Zयेक खड म0 तीन तीन न?तर् %थािपत िकये। बृहद भारत देश के भभू ाग को न?तर् #
के आधार पर िवभािजत िकया। जब >ह# का सचार उन न?&# पर होता ह3 तब उनसे संबंिधत देश#
पर उन >ह# का शभु ाशभु का (ितपादन िकया गया। िकस %थान पर कब िकतनी मा&ा म0 वृिY होगी?
Fयापार जगत म0 िकन व%तओ ु ं के मEू य# म0 तेजी या म<दी होगी? इZयािद िवषय# का िवचार भी
सिं हता ><थ# म0 उO >हचार के आधार पर िकया गया। सिं हता ><थ# म0 विण)त िवषय# का स? ं ेप म0
वण)न िकया जा रहा है –
१. सामािजकिव1ानम् (Social science) – संिहता ><थ# म0 ताZकालीन सामािजक Fयव%था के
स<दभ) म0 िव%तार से वण)न (ाn होता है। उसम0 वण) Fयव%था, वण) सक ं र, चार आVम, पनु िव)वाह,
बह2िववाह, िवधवा िववाह, सती(था, िववाहिवgछे द आिद िवषय म0 वण)न (ाn होता है। पारवारक
संबंध, समाज म0 िश?ा क8 ि%थित इZयािद िवषय# का संिहता %क<ध म0 वण)न (ाn होता है। िविवध
(देश# के िनवासकता)ओ ं का ?े& के अनसु ार, %वAप के अनसु ार और कम)िवशेष के अनसु ार नाम
का वण)न िकया गया है। उससे उस समय क8 सामािजक ि%थित का ,ान होता है। जैसे – आभीरस,
अिभसार, आदश), अिSनधर, yमख ु , अyZथ, अवगाण, आवत)क, वाटधान, महा>ीव, मZ%य
इZयािद।
२. भौगोिलक शाy (Geography) – संिहता><थ# म0 ताZकािलक देश, (देश और नगर# के
नाम# का उEलेख (ाn होता है। उससे ताZकािलक भौगोिलक ि%थित का ,ान भी होता है। मdु य सn
पव)त# के नाम का उEलेख (ाn होता है। भीमरथा, च<lभागा, चादेवी, देिवका, गा:भीरका,
गलु हु ा, इ?मु ती, इरावती, कौिशक8, लौिहZय, िनिव)</या, पारा, पयोLणी, फEगल ु क
ु ा, रथाdया,
शतlु, शोण, तापण[, वेद%मृित, वेणा, वेणमु ती, िवपाशा, िवत%ता इZयािद नदीय# के नाम# का
उEलेख (ाn होता है। दडक, धमा)रय, महाZवी, नैिमष, नृिसंहवन, पLु कर, वनराय, वनराL,
वनौघ, वसवु न इZयािद वन# के नाम भी (ाn होते ह3।
२. लघू'रा&मक B –
(क) योितष शाm का (ाचीनतम %क<ध कौनसा है?
(ख) योितषशाm के िकस %क<ध म0 गिणत से संबT िवषय# का वण)न है?
(ग) संिहता %क<ध का सव)(मख ु ><थ कौनसा है?
(घ) संिहता %क<ध म0 वा%तश ु ाm का अ<तभा)व होता है या नहG?
(ङ) बृहZसिं हता ><थ म0 िकतने अ/याय ह3?
(च) “टोडरान<द” ><थ का रचनाकार कौन है?
(छ) संिहताशाm म0 वृिY संबT िवषय# का वण)न है या नहG?
(ज) सामिु lकशाm का सिं हता%क<ध म0 अ<तभा)व है, सZय अथवा असZय?
(झ) भजू ल का वण)न संिहता शाm# म0 िकस अ/याय म0 िकया गया है?
(ञ) वृ?# क8 िचिकZसा का वण)न िकस नाम से िकया गया है?
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भारतीय योितष का परचय एवं इितहास-01 MAJY-501
३.११ अ$यास BC के उ'र –
१. बह2िवकEपाZमक (¢ान# के उर –
(क) (i)
(ख) (iii)
(ग) (ii)
(घ) (iii)
(ङ) (ii)
(च) (iii)
(छ) (iv)
(ज) (ii)
(झ) (ii)
२. लघू राZमक (¢# के उर –
(क) संिहता
(ख) िसTा<त %क<ध म0
(ग) बृहZसंिहता
(घ) है
(ङ) 106 अ/याय
(च) राजा टोडरमEल
(छ) है
(ज) सZय
(झ) दकाग)ला/याय म0
(ञ) वृ?ायवु द अ/याय
३.१२ सदभ2 ?थ सच
ू ी
• अvुतसागरः, Vीम¬Eलासेनदेव(णीत, चौख:बा सरु भारती (काशन, वाराणसी,
२००६
• नारदसंिहता, नारदमहामिु न(णीता, चौख:बा सं%कृ त भवन,वाराणसी, संवत् २०६५
३.१४ िनबधा&मक B –
१. योितष शाm के तीन# %क<ध# का संि?n परचय (दान कर0 ।
२. संिहता शाm के (मखु ><थकार# का परचय (दान कर0 ।
३. सिं हता %क<ध के (मख
ु ><थ# का परचय (दान कर0 ।
४. संिहता %क<ध के (मख ु िवषय# का िव%तार से वण)न कर0 ।
५. आधिु नक पर(ेfय म0 संिहता शाm क8 उपयोिगता पर (काश डाल0।
४.२ उ)े%य –
इस पाठ के अ/ययन से आप –
योितषशाm के होरा %क<ध का परचय (दान करने म0 सम? ह#गे।
होराशाm का वैिशY्य (ितपािदत करने म0 कुशल ह#गे।
होराशाm के (मख ु ><थ# व ><थकार# का परचय (ाn कर0 ग।े
होराशाm म0 विण)त मdु य िवषय# का परचय (ाn कर0 ग।े
होराशाm के अनपु लcध व अ(कािशत ><थ# का भी परचय (ाn कर0 ग।े
2. भृगु संिहता -
ऋिष भृगु रिचत योितष शाm के तीन# %कनध् # के (वOा थ0 पर<तु आज उनक8 सिं हता
का फिलत भाग ही उपलcध होता है। िकंव<द<ती है िक उनक8 संिहता म0 करीब साढे सात करोड
(7,46,48,600) ज<मकुडिलयां विण)त क8 गई व (ित कुडली म0 60 से अिधक ¤ोक# के Nारा
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फलादेश भी बताया गया, पर<तु वराहिमिहर कEयाणवमा) भkोZपला आिद ने अपने ><थ# म0 कहG भी
इस बृहZकाय ><थ के िवषय म0 कोई उEलेख नहG िकया। न िह इितहास म0 कहG ऐसी गA ु कुल पTित
सनु ी गई िजसम0 ऐसे ><थ के िनमा)ण का उEलेख हो। इस िवषय म0 इतना ही अनमु ान िकया जा
सकता है िक यह आष) ><थ (ायः दाि?णाZय (देश म0 (चिलत था िजसका उर भारत बह2त
काल के उपरा<त ,ान ह2आ।
3. वराहिमिहरािद आचारय् L 6ारा उ,=रत -थ एवं आचाय -
वराहिमिहर भkोZपल कEयाणवमा) आिद आचारय् # ने अपने ><थ# म0 िविवध पवू व) त[
आचायb के वचन व नाम च उTरत िकये है। उनके ><थ आज उपलcध नहG होते है। िजनके नाम है
- गग)संिहता, मयहोराशाm, यवनहोराशाm, मािणZथहोराशाm, जैवहोराशाm, िवLणगु nु होराशाm,
देव%वामीहोराशाm, िसTसेनहोराशाm, यवनेyरहोराशाm, बादरायणहोराशाm आिद। अब
समपु लcध होरा ><थ# का परचय (दान िकया जाता है
4. जैिमनीसू म् - जैिमिनस&ू ><थ आज उपलcध होता है। गाZमक स&ू Aप म0 रिचत इस ><थ म0
चार अ/याय ह3। वराहिमिहर कEयाणवरम् ा भkोZपल आिद ने इस ><थ का उEलेख नहG िकया है
पर<तु योितषशाm के (वत)क आचाय` म0 जैिमिनऋिष का नाम (ाn होता है। िकनत् ु इसक8 शैली
स&ू मयी (ाचीन है। फिलत पTित भी िभ<न है। यह ><थ शकोदय काल म0 रिचत है। इस ><थ क8
अनेक टीकाऐ ं उपलcध होती है। इस ><थ का मलावार वा दाि?णाZय (देश म0 िवशेष (चार देखा
गया है।
5. बृहजातकम् -
व%ततु ः बृहजातक पौAषेय होरा >नथ् # म0 (थम माना गया है। इस ><थ म0 सताईस 27
अ/याय ह3 व अि<तम उपसंहारा/याय को अाईसवाँ माना गया है। िवषय क8 संि?nता, %पYता
सरलतापवू क) (%तिु त के साथ उकृ Y काFयाZमकता वराहिमिहर के इस ><थ का वैिशY्य है।
अिभFयक्ित का सौव आचाय) वराहिमिहर का िवशेष गणु है। जैसा िक कहा है -
स7योपदेशो वरम िकतु कुव7ययो[यं बहkवगणािभः।
आचायक7व च बहkनताया येकं तु यू=र तदेव कायम।् ।
आचाय) वराहिमिहर ने (ाचीन आचारय् # क8 जहां कहG भी &टु ी देखी उनका िनभ[क Aप से
संकेत िकया, यह उनका एक िवशेष गणु है। यथा-
पूवशाyानुसारेण मया वादयः कृताः।
7. सारावली -
सारावली ><थ के कता) आचाय) कEयाणवमा) है। यह ><थ 54 अ/याय# म0 िवभO है। ><थ
म0 कEयाणवमा) %वयं को ‘Fयापदीyर’ सं,ा देते है। उनका समय 550 शकाcद अनमु ािनत है।
कEयाणवरम् ा के कथन से यह ,ात होता है िक आचाय) वराहिमिहर ने होराशाm के िवषय# का सार
सं?ेप बृहजातक ><थ म0 िकया पर<तु उसके Nारा तेन स:पणू ) िवषय# का वण)न नहG िकया । अत एव
उसक8 पिू त) हेतु इस ><थ का (णयन िकया गया। जैसा िक ><थ म0 वण)न िकया-
रािशदशवगभूपितयोगायुदायतो दशादीनाम।्
िवषयिवभागं पuं कत+ु न श4यते यत तेन।।
कEयाणवरम् ा का िवषय चयन, (%तिु त सौवं और %पYता अZय<त िविशY है। व%ततु ः
यह ><थ होरा Aपी तृLणा के Qयासे जन# के िलये शीतल के जल के समान है।
8. (ीपितजातकप,ित -
जातकपTित ><थ क8 रचना रZनामाला ><थ के (णेता Vीपित ने क8। इस ><थ क8 भी
रZनामाला के समान माधव ने टीका िलखी। Vीपित का समय 921 शकाcद अनमु ािनत है।
9. सवाथिचतामिण -
४.७ सारांश –
आधिु नक समय म0 होरा %क<ध योितष शाm सवा)िधक उपयोगी और (चिलत %क<ध है। य#िक
यह FयिOिवशेष का फलकथन करता है। सभी मनLु य अपना भिवLय भतू वत)मान का फल Vवण
करने के उZसकु होते है। इसी कारण होराशाm का वत)मान समय म0 सवा)िधक (चार है। होराशाm
के पचभाग# म0 सभी भाग पृथक् शाm के Aप म0 िवdयात हो चक ु े ह3। अतः जातकशाm ही आज
के समय म0 होराशाm के Aप म0 %वीकार िकया जाता है। तािजकशाm, (¢शाm, %वQनशाm,
रमलशाm आिद का तो अब पृथक अि%तZव ही हो गया है। उन शाm# के %वत<& ><थ भी उपलcध
होते ह3 । इस पाथ म0 होराशाm का परचय, वैिशY्य, िवभाग, (मख ु ><थ, ><थकार और मdु य
िवषय# का अZय<त सं?ेप से परचय (दान िकया गया।
अ$यास B –
१. बहkिवक%पा7मक 2s -
1. िकस शcद के आिद व अि<तम वण) के लोप से ‘होरा’ शcद बना -
(क) महोरा& (ख) अहोरा& (ग) सहोरा& (घ) दहोरा&
2. िवधाता Nारा ललाट पर िलिखत अ?रमािलका को कौन पढता है?
(क) राजा (ख) कृ षक (ग) दैव, (घ) सेनापित
3. बृहZपाराशरहोराशाm ><थ का अनसु रण कर सारप म0 रिचत ><थ कौनसा है?
(क) सारावली (ख) बृहजातक (ग) लीलावती (घ)
लघपु ाराशरी
4. जैिमनीस&ू ><थ म0 िकतने अ/याय है?
(क) चार (ख) तीन (ग) पांच (घ) आठ
5. सारावली ><थ के कता) कौन है?