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उराखड मु त िवविवालय

हानी
MAJY-202
योितषशा ीय िविवध योग एवं दशाफल िवचार

मानिवक िव ाशाखा
योितष िवभाग
तीनपानी बाईपास रोड , ॉसपोट नगर के पीछे
उराखड मु िविवालय, ह!"ानी, नैनीताल - 263139
फोन नं – ०05946-288052
टॉल #$ न0- 18001804025
Fax No.- 05946-264232, E-mail- info@uou.ac.in
http://uou.ac.in
पाठ्य'म सिमित एवं अ,ययन सिमित
ोफे सर एच.पी. शु ल ोफे सर देवीसाद िपाठी
िनदेशक, मानिवक िव ाशाखा अ&य', वातुशा( िवभाग, )ी लालबहादरु शा(ी
उ0म0ु िव0िव0, ह ानी राि,-य संकृ त िव ापीठ, नई िद ली।
ोफे सर च मा पाडेय
डॉ. न दन कुमार ितवारी पवू 2 अ&य', 3योितष िवभाग, काशी िह दू
अिसटे ट ोफे सर एवं समवयक, योितष िवभाग िवविव ालय, वाराणसी।
उराखड मु त िवविव ालय, ह ानी ोफे सर िशवाका त झा
अ&य', 3योितष िवभाग, कामेवर िसहं दरभगं ा सं कृ त
डॉ. देवश कुमार िम िवविव ालय, दरभगं ा
अिसटे ट !ोफे सर, सं कृ त िवभाग डॉ. कामेवर उपा याय
उराखड मु त िवविव ालय राि,-य महासिचव, अिखल भारतीय िवत प7रषद्
ह ानी वाराणसी
पाठ्य'म स-पादन एवं संयोजन
डॉ. न दन कुमार ितवारी
अिसटे ट !ोफे सर एवं सम वयक, 3योितष िवभाग
उराखड मु त िवविव ालय, ह ानी
इकाई ले ख न खड इकाई सं &या
डॉ. न दन कुमार ितवारी 1 1, 2, 3, 4, 5
अिसटे ट !ोफे सर एवं सम वयक, 3योितष िवभाग
उराखड मु त िवविव ालय, ह ानी
डॉ. न दन कुमार ितवारी 2 1, 2, 3, 4, 5
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डॉ. न दन कुमार ितवारी 3 1, 2, 3, 4, 5
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उराखड मु त िवविव ालय, ह ानी
डॉ. न दन कुमार ितवारी 4 1, 2, 3, 4, 5
अिसटे ट !ोफे सर एवं सम वयक, 3योितष िवभाग
उराखड मु त िवविव ालय, ह ानी
कापीराइट @ उराखड म; ु िव<िव ालय
काशन वष* - 2020 काशक - उराखड मु त िवविव ालय, ह ानी।
मुक: - सहारनपुर इलैिक ेस, बोमनजी रोड, सहारनपुर (उ0 0) ISBN No. -
नोट : - ( इस पु तक के समत इकाईय के लेखन तथा कॉपीराइट संबंधी िकसी भी मामले के िलये संबंिधत इकाई लेखक िजमेदार होगा । िकसी भी
िववाद का िनतारण नैनीताल िथत उ$च &यायालय अथवा ह)*ानी स+ीय &यायालय म, िकया जायेगा।)
एम.ए. ( योितष) MAJY-202
योितषशा ीय िविवध योग एवं दशाफल िवचार
अन
ु म

थम खड – िविवध योग िवचार पृ.- 2


इकाई 1: नाभस योग िवचार 3-18
इकाई 2: राज योग 19-36
इकाई 3: चािद योग 37-52
इकाई 4: दा रय योग 53-63
इकाई 5 : मारक योग 64-75
ि/तीय खड - दशा साधन पृ.-76
इकाई 1: िवश ं ोरी दशा साधन 77-88
इकाई 2: अटोरी दशा साधन 89-105
इकाई 3: योिगनी दशा साधन 106-116
इकाई 4: अतदशा एवं  यतदशा 117-124
इकाई 5: स"ू म दशा व ाण दशा 125-132
तृतीय खड – दशा फल िवचार पृ.- 133
इकाई 1: महादशा दशा फल िवचार 134-156
इकाई 2: अतदशा फल िवचार 157-171
इकाई 3:  यतदशा फल िवचार 172-203
इकाई 4: स"ू मातर दशा फल िवचार 204-232
इकाई 5: ाण दशा फल िवचार 233-251
चतुथ* खड – क0ण* फल िववेचन पृ.- 252
इकाई 1: पंचमहाभतू एवं पंचमहाप,
ु ष फल िवचार 253-263
इकाई 2: स वािद गणु फल 264-271
इकाई 3: मानव शरीर के िविभन अगं 0 के ल1ण 272 –291
इकाई 4: शकुन फल िवचार 292-312
इकाई 5: शभु ाशभु 2व3न फल िवचार 313-339
योितषशा ी       MAJY-202

. . (यो)
ितीय वष  ितीय प
योितषशा ी      
MAJY-202

उराखड मु त िवविवालय 1


योितषशा ी       MAJY-202

खड - 1
  

उराखड मु त िवविवालय 2


योितषशा ी       MAJY-202
  1  
इकाई क संरचना

1.1  ता
1.2 उेय
1.3    परचय
1.3.1    ल ण
1.3.2   ग#  
1.4  
1.5 पारभािषक श&दा
1.6 बोध न# के उर
1.7 स,दभ- .,थ  
1.8 सहायक पाठ्यसाम.ी
1.9 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 3


योितषशा ी       MAJY-202
1.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के थम खड क7 पहली इकाई से स:बि,धत है। ! ! "
का शीष-क है)     * !+ पवू - आपने फिलत योितष से जड़ु े िविभ,न िवषय# का
अCययन कर िलया है। अब आप इस इकाई मD ,  - के बारे मD अCय + . /+ /0*
  योग का स:ब,ध योितष शा के फिलत क,ध से है। फिलत योितष मD 32
कार के नाभस योग# का भेद ाGत होता है तथा इनके 1800 भेद हI। ाय: फिलत के लगभग
सम त .,थ# मD आचायK Lारा ,नाभसयोगाCया-  वण-न िकया गया है।
1! इस इकाई मD हम लोग 23 ,नाभस योग#- के बारे मD िव तार से अCय  + /0*
1.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
•    को परभािषत कर सकD गे।
• नाभस योग# के कार को समझा सकD गे।
• 32 कार के   योग# को जान जायDग*े
•   योग के मह6व को ितपािदत कर सकD गे*
•  योितष मD नाभस योग क7 भिू मका को जान लD*+
1.3  प रचय
यो 6 शा के व-क महिष- पराशर Lारा िलिखत ,वृह6पराशरहोराशा - नामक .,थ
के नाभसयोगाCयाय मD वण-न करते हOए िलखा गया है िक नाभस योग के 78 +  9:;; भेद
हI। उन 78 भेद# मD से 7 आQय योग हI, 8  योग हI, 8; आकृ ित योग हI तथा = संSया 
कहे गये हI। इस कार नाभस योग को आQय, , आकृ ित एवं संSया योग# मD वगTकृ त िकया गया
है। मल
ू लोक इस कार है )
2> नाभसा योगा: कUय,ते िLजसम।्
Lाि ंशत् त6भेदा तु शतVनाWटा ि,मता:।।
आQयाSयाYयो योगा दलसंZं Lयं तत:।
आकृ ितिव[शित: संSया: सGत योगा: क7ित-ता:।। (लोक संSया -9,8)
/ A Lाि ंशत् का अथ- 78 है। शतVनाWटादश का अथ- 9:;; है। आQयाSयाYयो का अथ- तीन

उराखड मु त िवविवालय 4


योितषशा ी       MAJY-202
कार का आQय योग, दलसंZं Lयं का अथ- 8 , आकृ ितिव[शित: का अथ- 8; कार के
आकृ ित योग तथा संSया: सGत योगा: का अथ- = कार के सSं या  /0*
 योग के नाम )
रजुच मुसलचैव नलचे यायाय:।
मालाय: सपसं!च दलयोगौ $किततौ।।
य: शकटायच ृगांटक िवहगं मौ।
व+ यवाचै   
-शि,-द-ड- -  -/छ1- 
अधच456तु च7ं च समु5चे  :
सं याया व8लक- --  - :
 गोलच स9तैते यु:ता द4त ता ि;ज।। (लोक संSया 7-B)
अथा-त्   + 78 भेद# मD से रज,ु C>  D  + 7 आQय योग हI। माला एवं सप- )+ 
दलयोग कहे गये हI। गदा, E, Qृंगाटक, /C (प ी), /, व\, , C,  5, 5 , ,
शि], दड, F , E, छ ,  5, अध-च,_, च` एवं सम_ु - + 8; आकृ ितयोग कहे गये हI।
बaलक7, C, 5 , + ,   , > G  ) + = सSं यायोग कहे गये हI। इस कार ये सभी
नाभस योग कहलाते हI।
6प<टाथ च7
सं!ा योग का नाम
आय रज,ु C>  D 
 माला एवं सप-
!   , E, Qृंगाटक, /C (प ी), /, व\, ,
C,  5, 5 , , शि], दड, F , E, छ ,
 5, अध-च,_, च` एवं सम_ु
संया बaलक7, C, 5 , + ,   , > G 

1.3.1 नाभस योग के लण


आय योग के ल?ण )
सवbच+ ि थतै रज:ु ि थर थैमस-ु ल: मृ :*
नलाSयो िL वभाव थैराQयाSया इमे मृ :** (लोक संSया -=)
उराखड मु त िवविवालय 5
योितषशा ी       MAJY-202
 सम त .ह चर (9,I,=,9;) रािश मD ि थत ह# तो ,रजु"  C  / /0* सभी .ह यिद
ि थर (8,J,:,99) रािश मD ि थत ह# तो ,  " नामक योग होता है और सभी .ह िL व 
(7,B,K,98) रािश मD ह# तो , "  C  / /0* ये सभी चरािद रािशय के आित होने
के कारण आय योग कहलाते हC। इन सभी योग# को आप कुडली मD आप इस कार भी समझ
सकते हI )

9
I 9;
=

यिद सम त सयू ा-िद .ह कुडली के उत िदए गए चार थान मD हो तो रजु  C  3+ *

8
99

J
:
 सयू ा-िद सम त .ह कुडली के उत िदए गए चार थान मD हो तो   C  3+ *

98
7

K
B

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योितषशा ी       MAJY-202
यिद सयू ा-िद सम त .ह कुडली के उत चार थान मD हो तो   C  3+ *
दलयोग के ल?ण )
के ,_ यगतै: सो:यै: 5 50वा- दलसंZकौ।
`मा,मालाभजु गं ाSयौ > Lशभु फलदौ।। (लोक सSं या -:)
अथा-त् तीन के ,_ मD सभी शभु .ह ह# या तीन के ,_ मD सम त पाप.ह ह# तो `म से वे माला एवं सप-
योगनामक दलयोग कहलाते हI। ये योग शभु और अशभु फलदायक होते हI। तीन के ,_ से ता6पय-
/ A 9,I,=,9; थान# मD से िकसी तीन मD है।
 +6 - के ,_ेWवपापेषु िसतZजीवै: के ,_ि सं थै: कथयि,त मालाम।्
सप- 6वसौ:यैच यमारसयू bयeगािवमौ Lौ किथतौ दलाSयौ**
!+ 2>  3> , गfु , श`
ु ) ये तीन# यिद तीन के ,_ (9,I,=,9; मD से िकसी तीन मD) ह# तथा
पाप.ह के ,_ से अ,य हो तभी माला योग होता है। इसी कार रिव,  D FC + 7 के ,_ मD ह#
और शभु .ह के ,_ से अ,य थान# मD हो तभी सप-योग कहलाता है।
!  योग के ल?ण )
आस,नके ,_Lयगै: सवbयeगो गदाgय:।
E लhनजाया थै: खा:बगु िै व-हग: मृ :**
: Qृंगाटकं नाम लhना6मजतप:ि थतै:।
अ,य था 4 ि कोण थै: सवbयeगो हलािभध:।।
लhनजायाि थतै: सौ:यै: पापाSयै: खा:बु ि थतै:।
 व\ािभध: ोत: िवपरीति थतैय-व:।। (लोक संSया ) K-99)
समीप थ दो के ,_ मD सभी .ह बैठे ह# तो  नामक योग होता है। लhन तथा सGतम मD सम त .ह
ह# तो   नामक योग होता है। चतथु - तथा दशम थान मD सभी .ह ि थत ह#    (प ी)
नामक योग होता है। यिद लhन से ि कोण (9,J,K) थान मD सभी .ह बैठे ह# तो ृंगाटक 
होता है। लhन से िभ,न थान से ि कोण (8,B,9; 2D 7,=,99 वाँ इस कार से िकसी तीन
था) मD सभी .ह ि थत ह# तो  C  / /0* लhन, सGतम मD सभी शभु .ह बैठे ह# एवं
चतथु - दशम मD सभी पाप.ह बैठे ह# तो व+ नामक योग होता है। िवपरीत होकर बैठे ह# तो 
 C  / /0*
तथा वापी योग के ल?ण #
सव-के,_ 0: सवbिम-Qै: कमलसंZक:।
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के ,_ाद,य गै: सवbयeगो वापीसमाgय:।। (लोक संSया -98)
अथा-त् सम त .ह के ,_ (9,I,=,9;) मD ही ि थत ह# तो नामक योग होता है। यिद सभी .ह
के ,_ से िभ,न थान# (पणफर तथा आपोिलम) मD ही बैठे ह# तो $  C  / /0*
5 , , शि] और दडग# के ल ण )
5  लhनाjचतभु - थै: शर तयु ा-jचतभु ग- :ै ।
शि]म-दाjचतुभ- थैद- डो मCयाjचतभु ग- :ै ।।
लhन से `मश: I थान# मD सभी .ह ि थत ह# तो  नामक योग होता है। चतथु - से I थान मD
सभी .ह बैठे ह# तो  G सGतC + I थान मD सभी .ह ह# तो शि,  C  / /0* C
था + I थान मD सभी .ह ह# तो द-ड  C  / /0*
 -  -छ1 और चाप योग के ल?ण #
लhना 4 सGतमगैनkका कूट तयु ा-jच सGतC0:*
छ ाSय: सGतC +  5 CCयाद् भसGत0:**
लhन +   = सात थान मD सभी .ह ह# तो   नामक योग होता है। चतथु - था + 
थान मD सभी .ह ि थत ह# तो   नामक योग होता है। सGतम थान से सात थान# मD सभी .ह
ि थत ह# तो छ1 नामक योग होता है। इसी कार दशम थान से सात थान# मD सभी .ह बैठे ह# तो
  C  / /0*
च7 एवं समु5योग के ल?ण #
लhनादेका,तर थैच षड्भगैच`मjु य +*
धनादेका,तर थै तु सम_ु : षड्गहृ ािQतै:।।
लhन से ार:भ कर एका,त + B थान# अथा-त् (9,7,J, =, K,99) मD सभी .ह ि थत ह# तो च7
नामक योग होता है। इसी कार धन (िLतीय) भाव से एका,तर थान# अथा-त् (8,I,B,:,9;,98)
मD सभी .ह िवमान ह# तो समु5  C  / /0* + 8;  25-25 1N  +
अनl ु प होने के कारण !  योग कहे गये हI।
सात संयक योग के ल?ण )
एकरािशि थतैगeलो यगु ाSयो िLभसिं थतै:।
शल ू तु ि भगै: ोत: के दार तु चतभु ग- :ै ।।
पंचरािशि थतै: पाशो दामाSय: षड्गहृ ािQतै:।
O सGतभगै: सवbिव-हा,यानदु ीरतान।् ।

उराखड मु त िवविवालय 8


योितषशा ी       MAJY-202
अथा-त् सभी .ह एक रािश मD ि थत ह# तो  , 8 रािश मD सभी .ह ह# तो  , 7  
मD सम त .ह के रहने पर  , I रािश मD सभी .ह ि थत ह# तो  , J रािश मD सभी
.ह ह# तो , B रािश मD सभी .ह रहने पर   G = रािश मD सभी ह# तो $&
 C  / /0* इससे पवू - किथत योग के ल ण न ह# तभी इन योग# को जानना चािहए। यिद
पवू eत ल ण ह# तो पवू क
- िथत योग ही जानना चािहए।
बोध न 
1. नाभस योग के भेद# क7 संSया   /0*
. 7I P.78 .7B Q. 7:
2. वृह6पराशरहोराशा .,थ के अनसु ार नाभस योग के भेद# क7 संSया   /0*
. 78 P. 7: .9:;; Q.9B;;
3. आकृ ित योग# क7 सSं या /0 )
. 7 P.8 .J Q. 8;
4. सभी .ह एक रािश मD ि थत ह# तो कौन सा योग बनता है।
. >  P.   .    Q. O 
5. लhन +   = सात थान मD सभी .ह ह# तो योग होता है-
क. नौका योग ख. छ योग ग. चामर योग घ. शल ू योग
6. सम त .ह के ,_ (9,I,=,9;) मD ही ि थत ह# तो F   / /0*
क. कमल योग ख. छ योग ग. चामर योग घ. यगु योग
7. सभी .ह यिद ि थर (8,J,:,99) रािश मD ि थत ह# तो योग होता है )
क. मसु ल योग ख. कमल योग ग. छ योग घ. वीO 

1.3.2   योग के शुभाशुभ फल 


रजु # अटनिया: सl ु पा: परदेश वा Uय  C.> :*
`ूरा: खल वभावा रजु भवा: सदा किथता:।।
 - मानZानधनाैय-ु ता भपू िया: Sया :*
बहOपु ा: ि थरिचा मसु लम6ु था भवि,त नरा:।।
 - ,यनू ाितरत /+  Lितिनपुणाच*
ब,धिु हताच सl ु पा नलयोगे स:सयू ,ते**
उराखड मु त िवविवालय 9
योितषशा ी       MAJY-202
रजु  मD उ6प,न .  pमणिय, स,ु दर lप वाला, परदेश मD जाने से वा Uय   +
  , `ोधी और दWु ट व  वाला होता है। मसु ल योग मD उ6प,न पl ु ष मानी, Zानी,   +
यु त, राजमा,य, िवSया , अिधक पु वाला और ि थर वभाव वाला होता है। नल योग मD
सम6ु प,न .  C  2 /+   , धन सं.ह करने वाला, अ6य,त  > , ब,धओ ु ं का िय
और स,ु दर lप वाला होता है।
 ) िन6यं सख
ु धाना वाहनवYा,नभोगस:प,ना:*
का,ता: सबु हO ीका मालायां स:सतू ा: य:ु **
सप - 6C : `ूरा िन: वािन6यं द:ु खािद-ता: सदु ीनाच*
परभ पानिनरता: सप-भवा भिव,त  :**
C   मD उ6प,न जातक िन6य P > +   ,  /, वY, अ,नािद के भोग से स:प,न, स,ु द
और अिधक प6नी वाला होता है। सप- योग मD उ6प,न जातक िवषम कृ ित वाला, `ूर, /,
िन6य :> P, दीन और दसू र# से अ,न C  P +   / /0*
 -  तोु ताथ-वशा यवान: शा गेयकुशलाच*
धनकनकर6नस:प6संयु ता C    *> *
 - रोगाता-: कुनखा मख ू ा-: शकटानुजीिवनो िन: वा*
िम व./ : शकटे जाता भवि,त नरा:।।
प?ी - pमणlचयो िवकृ Wटा दतू ा: सरु तानजु ीिवना धृWटा:*
कलहियाच िन6यं /+ +  . :**
ृंगा - ियकलहा: समरसहा: सिु खनो नृपते: िया: शभु कल ा:।
1R यवु ितLेWया: Qृंगाटकस:भ C.> :**
 योग मD उ6प,न जातक सदैव धनोपाज-न मD रत, यZकारक, शा एवं संगीत मD द , , सवु ण-
एवं र6नािद धातओ ु ं से यु त होता है। शकट योग मD उ6प,न .   + 5TS , >P, मख ू -,
 U + .   +   , िनध-न एवं िम ािद वजन# से हीन होता है। प ी रोग मD
उ6प,न जातक pमणकारी, परत, ,  , सरु त से ाGत .   , ढीठ तथा कलहिय होता है।
Qृगं योग मD सम6ु प,न .  / , यs ु कारक, P > , राजा का िय, मनोहर प6नी   ,
धनी और ी का Lेषी होता है।
- बgािशनो दर_ा: कृ षीबला द:ु िखताच सोLेगा:।
ब,धसु tु िu: शता: ेWया हलसZं के सदा पfु षा:।।

उराखड मु त िवविवालय 10


योितषशा ी       MAJY-202
व+ # आ,तवय: सिु खन: नरा: सभु गा िनरीहाच*
भाhय/ व\े जाता: खला िवlsाच**
 - vतिनयममगं लपरा वयसो मCये सख ु ाथ-पु यतु ा:।
: ि थरिचा यवयोगभवा: सदा पfु षा:।।
- O R : पfु षा: ि थरायषु ो िवपल ु क7त-य: शs ु ा:।
>  : पृUवीशा: कमलभवा मानवा िन6यC*4 *
$ - O+ िनपणु िधय: ि थराथ-सख ु संयतु : सतु युताच*
नयनसख ु स:tWटा  5+  . :**
 - आ6मिविदया : िwया यतु : स6वस:प,न:*
vतिनयमरतमनWु यो यपू े जातो िविशWटच**
 - !6 >  : ब,धनपा: मृगयाधनसेिवताच C  :*
िहYं ा: कुिशaपकारा: शरयोगे मानवा: सयू ,ते**
शि, - /   :> P नीचालसािxरायषु : पfु षा:।
सं.ामबिु sिनपणु ा: श6यां जाता: ि थरा: शभु गा:।।
-ड - हतपु दारिन: वा: सव- च िनघृण- ा: वजनबाyा:।
द:ु िखतनीचेWया दडभवा भवि,त नरा:।।
अथा-त् योग मD उ6प,न .  2 . +   , दर_, N 6, :> P, िच,ता>,
िम एवं ब,धV ु + > G F / /0* व+ योग मD उ6प,न जातक बाaय तथा वृsाव था मD
P > ,  , स,ु द, िन: पृ/, भाhय/, दWु ट एवं दसू र# से वैरभाव करने वाला होता है।  योग मD
उ6प,न जातक vत, िनयम एवं अ,य मगं ल कृ 6य मD रत, मCयमाव था मD सख ु ी, , पु # से यु त,
 D ि थर िचवाला होता है। योग मD उ6प,न .  , गणु # से यु त, दीघा-य,ु
िवSयात क7ित- वाला, शs ु , सैकड़# शभु काय- करने वाला एवं राजी होता है। $ योग मD उ6प,न
पfु ष धनसं.ह करने मD िनपणु , ि थर धन एवं सख ु # से यु त, पु # से यु त,  E-नृ6या  P + +
मD सख ु ी और राजा होता है।  योग मD सम6ु प,न जातक आ6मा का Zाता, यZकता-, ी से यु त,
3 , vत-िनयम मD रत रहने वाला और िविशWट पfु ष होता है।  योग मD उ6प,न .  3 O
3 +   , कारागार का वाC, िशकार के माCयम से धन ाGत +   , मांसभ ी, /
और कुकम- करने वाला होता है। शि, योग मD सम6ु प,न मनWु य अथ-हीन एवं फलहीन जीवन वाला,
:> P, , 1, दीघा-य,ु यs ु कारक, ि थर िच वाला एवं स,ु द / /0* द-ड योग मD उ6प,न

उराखड मु त िवविवालय 11


योितषशा ी       MAJY-202
. , पु , ी G  +  , िनद-यी, वजन# से पर6यत, :> P,  G F / /0*
   )
5. : बgाशा: Sयातक7त-यो दWु टा:*
N 5O मिलना ल&ु धा नौसंजाता: खला: पfु षा:।।

E  )
अनृतकथनब,ध5 िनिWकzच : शठा: `ूरा:।
कूटसम6ु था िन6यं भवि,त िगरदगु व- ािसनो मनजु ा:।।
छ  ) वजनाQयो दयावा,नानानृपवaलभ: कृ WटC :*
थमेऽ,6ये वयिस नर: सख ु वान् दीघा-यरु ातप ी या *4 *
 5  - आनृितकगGु तपालाचौ : िकतवाच  +  :*
कामक -ु योगे जाता भाhयिवहीना: शभु ा वयोमCये**
अध-च,_  - + 5 : सव| का,तशरीरा नृपिया बिलन:।
CO6 O > भवि,त योगेLध-च,_ाSये**
च`  ) णताLLशेषनरािधप िकरीटर6नभा फुरतपाद:।
 नरे ,_ो Cनुजच`े यो जायते योगे।।
सम_ु  - बहOर6नधनसमृsा भोगयतु ा धनजनिया: ससतु ा:।
उदिधसम6ु था: पfु षा: ि थरिवभवा: साधश ु ीलाच**
अथा-त् नौका योग मD उ6प,न जातक जलो6प,न (C , P 1 ) व तV ु + .  +
  , , मह6वाकां ी, िवSयात क7ित- वाला, दWु ट . , C G  / /0*
कूट योग मD उ6प,न मनWु य िमUया , .+  2 , दर_, W, `ूर, कूटZ तथा पव-त या
दगु - मD रहने वाला होता है। छ योग मD उ6प,न मनु Wय अपने जन# का आिQत,  >, 2+
राजाओ ं का मा,य, उम बिु s से यु त, थम तथा अि,तमाव था मD सख ु ी, दीघा-यु तथा आतप ी
होता है। चाप योग मD उ6प,न मनWु य िमUया , गy ु पाल (.+), , धतू ,- . , भाhय/
एवं मCय अव था मD सुखी होता है। अध-च,_ योग मD सम6ु प,न मनWु य + 5 , स,ु द ,  .
का िय, 3   CO)सवु णा-िद भषू ण# से यु त होता है। च` योग मD उ6प,न .  2 +6
(स:पणू )- राजाओ ं से वि,दत हI चरण िजनके , ऐसा च`वतT राजा होता है। सम_ु योग मD उ6प,न मनWु य
समिधक र6नािद से परपणू ,-  , जन# का िय, पु यु त, ि थर स:पि वाला और स,ु द 
  / /0*
उराखड मु त िवविवालय 12
योितषशा ी       MAJY-202
O  ) ियगीतनृ6यवाा िनपणु ा: सिु खनच धनव,त:*
+  बहOभ6ृ या वीणायां क7ित-ता: पfु षा:।।
C  - दाि:न सजु नोपकारी नयधनयु तो महेवर: Sया :*
बहOसतु र6नसमृsो धीरो जायेत िवLांच**
5  - पाशे ब,धनभाज: काय| द ा: पच ं काराच*
बहOभािषणो िवशीला बहOभ6ृ या: स:तानाच**
+   - सबु ह~नामपु योया: कृ षीबला: स6य  : > P:*
+ + स:भतू ाचल वभावा धनैय-ु ता:**

  - तीणालसधनहीना िहYं ा: सबु िहWकृ C/  :*
सं.ामे ल&धयशा शल ू े योगे भवि,त नरा:।।
>  - पाखडवािदनो वा धनरिहता वा बिहWकृ + *
सतु मातृधम-रिहता > + +  . :**
  - बलसंयु ता िवधना िवािवZानविज-ता मिलना:।
िन6यं द:ु िखतदीना गोले योगे भवि,त नरा:।।
सवा- व5 दशा वे + +:>  :*
ािणनािमित िवZेया: वदि,त तवा.जा:।।
इस कार $&  मD उ6प,न मनWु य गाने तथा नाचने मD एवं बजाने मD ेम रखने वाला तथा
5O> , P > , , + G 2 F   / /0*   मD उ6प,न मनWु य  + 
कaयाO +   , नीित के Lारा धनोपाज-न करने वाला, अिधक ऐवय-वान, िवSया , पु र6ना
से यु त,  D Lान होता है*   मD उ6प,न .        , काय- मD द ,
पंची, अिधक वता, / , अिधक नौकरवाला और अिधक परजन वाला होता है।  
 मD उ6प,न सभी का उपकार करने वाला कृ िष काय-कारक, स6य 3+   , P > , 
व    G   / /0। शल ू योग मD उ6प,न जातक तीण व    , 1,
/, /, समाज से बिहWकृ , अ6य,त वीर एवं यs ु मD यश ाGत +   / /0* >
योग मD उ6प,न जातक पाखडी, /, समाज से बिहWकृ त एवं पु , C , िपता तथा धम- से हीन
/ /0। गोल योग मD उ6प,न .  3 , /, िवा तथा िवZान से हीन, C,  0
:> P   / /0*
उत फल तत् तत् .ह# क7 दशा मD ािणय# को ाGत / /0, ऐसा ऋिषय# का वचन हI।

उराखड मु त िवविवालय 13


योितषशा ी       MAJY-202
आचाय वैFनाथ कृत जातकपाGरजात .,थ + 2> र भी नाभसयोग पवू eतानसु ार मSु य :
चार कार के होते हI ) 1. आकृ ित योग 2. आQययोग 3.  G 4. सSं या*
1N   + 5 , !6> 1 8; भेद होते है। आQय योग के रज,ु C>  G   + , 
योग के Yक् और सप-- दो भेद तथा संSया + O ,  C 1 ) सात भेद होते हI। इस
कार नाभस योग के कुल बीस (32) भेद होते हI।
जातकपारजात .,थ मD किथत नाभसयोग का मल ू लो )
यपू ेषश
ु ि]यवदडगदासम_ु -
jछ ाs-च,_शकटा:ब.ु पि योगा:।
नौच`व\हलकामक -ु कूटवापी
Qृंगाटकाच िविवधाकृ ितिवश ं ित: य:ु **
रजनु -लच मसु लिYतयाQयाSया:
Yhभोिगनौ > F + C*4
वीणादयच D  C5
के दारशल ू यगु गोलकसGतसंSया:**
अथा-त् यपू , !6,> शि], , दड,  , सम_ु , छ , अध-च,_, E, अ:ब.ु , पि , F , च`,
व\, /, कामक -ु , E,  5 G 8; Qृंगाटक ये बीस योग आकृ ित योग नाम से जाने जाते हI।
रजु , C>  G  ) ये आQय योग के नाम से िसs है। Yक और भोिगन ये दल योग है तथा
O ,  C, 5 , + ,   , > G  इन सात योग# को सSं या योग कहते हI।
नाभसयोग# क7 संSया के स:ब,ध मD वराहिमिहर का िन:न वचन _Wटय /0 )
नविदHवसविकािHनवेदैगुिणता ि;ि1िवक8पजा: 6यु:
यवनािगुणा िह षट्शती सा किथता िव6त'1 सस :
योग मK पर6प  
 Lज4यायजा: समवं यावाMजव+ा-डगोलकाFै:।
के 45ो(: $ो:तफलौ दलायािवयाहOर4ये  !) * +  
अथा-त् आQय    , C, व\, पि , , के दार और शल ू योग# के समान तथा
दलयोगLय का फल के ,_ थ .ह# के समान होने से इनके फल अलग से नह‚ कहा है।
नाभस योग क संया   )
थम   योग# के आकृ ित- सSं या- आQय और दल ये Iभेद होते हI। इनमD आकृ ितयोग

उराखड मु त िवविवालय 14


योितषशा ी       MAJY-202
+ 8;, संSया + =, आQययोग के 7 G  + 8 भेद होते हI।
उत चार# भेद# मD से आकृ ितयोग अके ला होने के कारण 8; ही कार का रहता है। पर,तु G
अ,य - , - ,  -चार अथा-त् आकृ ित-संSया, 1N  -संSया-आQय और आकृ ित-
संSया-आQय-दल ये आपस मD बदलने के कारण, K,9;,: को `म से 7,7 D I + O> + 5
िजतने अक ं ह# उतने भेद होते हI।
अथा-त् आकृ ित और संSया के आपस मD बदलने से K× 7 = 8=, 1N  -संSया-आQय इनके
आपस मD बदलने से 9; × 7 =7; G 1N  )संSया-आQय-दल इनके आपस मD बदलने से
:×I = 78 भेद होते हI। वृहजातकम् मD वराहिमिहर ने इ,हD सं ेप मD कहा है जबिक यवन# ने इनके
िव तारपवू क
- 9:;; भेद कहे हI।
 C + 1N   + 87 भेद और संSयािद ती योग# के आपस मD बदलने से 98= + +
दोन# भेद िमलकर 9J; हOए। यही सब बारह रािशय# के बदलने से 9:;; हो जाते हI। जैसे )
 ही लhन मD सात# .ह# के बदलाव से भेद सSं या - =
-दो .ह# के बदलाव से भेद संSया - 89
-तीन .ह# के बदलाव से भेद संSया - 7J
 -चार .ह# के बदलाव से भेद सSं या - 7J
5 A-5 A .ह# के बदलाव से भेद संSया - 89
Z:-Z: .ह# के बदलाव से भेद संSया - =
सात# .ह# के बदलाव से भेद सSं या - 9
>  = 98=
1N  योग यवनाचायK के मत से 87 = 9J;
23 एक लhन मD 9J;  98 लhन# मD या / ?
9J; × 98 = 9:;; भेद हOए।
कaयाणवमा- N 4    मD यवनािद आचायK Lारा किथत 9:;; कार के नाभस योग# का
वण-न पवू eत + 2>  / /0* / A 78 कार के नाभस योग# का मलू लोक इस कार है-
नौjछ कूटकामक -ु शृगं ाटव\दामनीपाशा:।
O .C>  वापीहलशरसम_ु च`ािण।।
C  सापा-ध|,दु + F  /5 :*
यगु शकटशल ू दडा रज:ु शि] तD  :**

उराखड मु त िवविवालय 15


योितषशा ी       MAJY-202
सचराचर य जगतो योगैरेिभ: क76य-ते सव:।
आQयजातान् ाहOमा-िण6था मसु लरजु  *4 *
पवू eत .,थानसु ार ही इस लोक मD भी नाभस योग# का नाम बतलाया है। ! कार म, ेव N 4
 5  C .,थ मD भी नाभस योग# का उaलेP C /0, जो लगभग पवू - के अ>  /
/0*

1.4 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  यो 6 शा के व-क
महिष- पराशर Lारा िलिखत ,वृह6पराशरहोराशा - नामक .,थ के नाभसयोगाCयाय मD वण-न करते
हOए िलखा गया है िक नाभस योग के 78 +  9:;; भेद हI। उन 78 भेद# मD से 7 आQय योग
हI, 8 दल योग हI, 8; आकृ ित योग हI तथा = संSया योग कहे गये हI। इस कार नाभस योग को
आQय, , आकृ ित एवं संSया योग# मD वगTकृ त िकया गया है* थम नाभस योग# के आकृ ित-
संSया- आQय और दल ये Iभेद होते हI। इनमD आकृ ितयोग के 8;, संSया + =, आQययोग के
7 G  + 8 भेद होते हI। चार# भेद# मD से आकृ ितयोग अके ला होने के कारण 8; ही कार
का रहता है। पर,तु और अ,य - , - ,  -चार अथा-त् आकृ ित-संSया, 1N  -संSया-
आQय और आकृ ित-संSया-आQय-दल ये आपस मD बदलने के कारण, K,9;,: को `म से 7,7
D I से गणु ने पर िजतने अक ं ह# उतने भेद होते हI। अथा-त् आकृ ित और सSं या के आपस मD
3 + + K× 7 = 8=, 1N  -संSया-आQय इनके आपस मD बदलने से 9; × 7 =7; G
1N  )संSया-आQय-दल इनके आपस मD बदलने से :×I = 78 भेद होते हI। वृहजातकम् मD
वराहिमिहर ने इ,हD सं ेप मD कहा है जबिक यवन# ने इनके िव तारपवू क
- 9:;; भेद कहे हI। आQय
   , C, व\, पि , , के दार और शल ू योग# के समान तथा दलयोगLय का
फल के ,_ थ .ह# के समान होने से इनके फल अलग से नह‚ कहा है।

1.5 पा रभािषक शदा


  ) वृह6पराशरहोराशा + 2>     + 78 कार के भेद एवं 9:;; भेद
बतलाए गये है। व तु :   योग भी राज योग के अ,तग-त ही आता है।
!   ) 78 कार के नाभस योग के अ,तग-त 5 , !6> 1 8; कार आकृ ित योग के
/+ + /0*
उराखड मु त िवविवालय 16
योितषशा ी       MAJY-202
  )   8 कार के हI।
आय  ) आQय के तीन भेद कहे गयD है।
स
ं या  ) सSं या  + = + /+ + हI।
  ) सभी .ह एक रािश मD ि थत हो तो गोल योग बनता है।

1.6 बोध  न के उ"र


1. P
2. 
3. Q
4. P
5. 
6. 
7.

1.7 स#दभ$ %#थ 


1. वृह6पराशरहोराशा - नाभसयोगाCया*
2. वृहजा C4 ) नाभसयोगाCया :*
3. जातकपारजात ) नाभसयोगाCया:*
4.    ) नाभसयोगाCया:*

1.8 सहायक पाठ्यसाम%ी


1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C
 +P ) कaयाणवमा-। िटकाकार- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*

उराखड मु त िवविवालय 17


योितषशा ी       MAJY-202
1.9 िनब#धा,मक  न
1. नाभस योग# का िव तृत वण-न क7िजये।
2. आQय योग के भेद# का वण-न करD ।
3. दल योग या /0? पWट क7िजये।
4. संSया ग से आप या C\ + /0?
5. आकृ ित योग के भेद का उaलेख क7िजये।
6.    + + -भेद# का पWटतया उaलेख क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 18


योितषशा ी       MAJY-202
 - 2 #
इकाई क संरचना

2.1  ता
2.2 उेय
2.3  .  परचय
2.3.1 िविवध .,था>   .   
2.3.2  . योग के वlप एवं भाव
2.4  
2.5 पारभािषक श&दा
2.6 बोध न# के उर
2.7 स,दभ- .,थ  
2.8 सहायक पाठ्यसाम.ी
2.9 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 19


योितषशा ी       MAJY-202
2.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के थम खड क7 दसू री इकाई से स:बि,धत है। ! ! " 
शीष-क है )  . * !+ पवू - आपने    से जड़ु े िविभ,न िवषय# का अCय  
है। अब आप इस इकाई मD , . - के बारे मD अCय + . /+ /0*
, . -  यो 6  ही नह‚ वरन् मानव जीवन से जड़ु ा भी एक मह6वपणू - अगं
है। 6येक मनWु य अपने जीवन मD राजा क7 तरह जीवन यतीत करने हेतु इjछु / /0* +
जीवन मD राज योग होगा अथवा नह‚? इन सम त िवषय# का अCययन हम इस इकाई मD करD ग।े
2 : 1! इस इकाई मD हम लोग , . - के बारे मD उसके वlप, मह6व   
िधवत् शा ानसु ार अनुशासन करते हI।
2.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
•  . योग या /0? !को परभािषत कर सकD गे।
•  .   समझा सकD गे।
•  .  0 + 3 /0, इसक7 जानकारी ाGत कर लDग*े
• िविवध कार के राजयोग# का अCययन कर सकD +*
• C  जीवन मD राज योग क7 महा को बतला सकD गे*
2.3 # प रचय
योितष शाw के फिलत या होरा क,ध के अ,तग-त , . , एक अ6य,त मह6वपणू -
6 /0, िजसका मानव जीवन के साथ 6य स:ब,ध है। यिद देखा जाय तो ायः 6येक मानव
25+ . मD राज योग क7 इjछा या अिभलाषा रखता है, िक,तु सभी मानव के जीवन मD राजयोग
हो यह कथमिप सभं व नह‚ है। व ततु ः राजयोग का िनमा-ण भी मानव Lारा पवू ज- ,म मD कृ 6य > >
कम- फल पर ही आधारत होता है।
योितषशा + .  या होरा क,ध के अ,तग-त िजतने भी िसs .,थ हI उनका
अCययन करने पर ाय: सभी .,थ# मD राजयोग का उaलेख हमD ाGत होता है। इस इकाई मD मेरा यह
यास रहेगा िक आप सभी िजZासु अCयेताओ ं के िलए फिलत योितष के कुछ मख ु .,थ# 
उaलेख करते हOए आपको राजयोग से स:बि,धत तUय# + 2  A> *

उराखड मु त िवविवालय 20


योितषशा ी       MAJY-202
राज योग :या है?  ! 5  र िकया जाय तो सामा,यतः िजस मनWु य  .  . +
समान यतीत हो, ]+ , .- कहा जाता है। राज योग का शाि&दक अथ- भी है -  . + C 
योग। योितष शाw के व-क# एवं आचायK ने .ह# क7 ि थित के आधार पर मानव के जीवन मD
होने वाले राजयोग# का उaलेख िविवध कार से अपने-अपने .,थ# मD िकया है।
2.3.1 िविवध %#था$  # 
सव-थम वराहिमिहर कृ त् -वृहजा *" नामक .,थ से आर:भ करते हI। वृहजा C4
के राजयोगाCयाय मD यवनाचाय- और जीवशमा- के C >  , .- का वण-न हमD इस कार
C /0* मूल लो -
$ाहOयवना: 6वतुंगै: 7ूरै : 7ूरमितमहीपित:।
7ूरै6तु न जीवशमण: प?े ि?यिधप: $जायते।।
लो  अथ- है िक यिद िक .  + ज,म  मD एक से अिधक शभु .ह यिद अपने उjच
थान मD ि थत ह# तो वह जातक सबु िु s वाला राजा होता है। यिद `ूर.ह अपने उjच थान मD ि थत
हो तो पापबिु s वाला राजा होता है। यह यवनाचाय- का मत है।
25+ उjच थान# मD `ूर.ह# के रहने से वह राजा नह‚ होता है िक,तु राजा के तुaय  4
होता है। यह जीवशमा- का मत है।
बRीस $कार के राजयोग -
व7ाकजाकगुSिभः सकलैििभU।
6वो/चेषु षोडश नृपाः किथतैकलHने।।
;येकाितेषु च तथैकतमे िवलHने।
6व?े1गे शिशिन षोडश भूिमपाः 6युः।। (वृहजातकम् राजयोगायाय, ोक-2)
अथा-त् ज,मकुडली मD यिद भौम- -सयू - और गl ु ये चार# .ह अपने उjच थान# मD
ि थत होकर इनमD से एक लhन मD ि थत ह# तो चार कार के राजयोग होते हI। जैस-े मेष मD सयू ,- कक-
मD वृह पित, तलु ा मD शिन और मकर मD मगं ल हो तथा शेष.ह अ,य कह‚ भी ह# तब लhन मD मेष
  /  . , कक- रािश हो तो ,  >   /  $ G C   /   +
/ होते हI।
इ,ह‚ चार# मD से तीन .ह यिद अपने उjच थान# मD ि थत ह# और उनमD से एक लhन मD हो तो बारह
कार के राजयोग होते हI। .0+- मेष मD सयू -, कक- मD गl
ु और तलु ा मD शिन तथा शेष .ह कह‚ भी
ह# तब ऐसे मD लhन मD मेष रािश हो तो . , कक- रािश हो तो  G  >   /  $*

उराखड मु त िवविवालय 21


योितषशा ी       MAJY-202
मेष मD सयू -, कक- मD वृह पित और मकर मD मगं ल हो तथा शेष.ह कह‚ भी ह# तब लhन मD मेष रािश
/  ), कक- रािश हो तो 0 0 G C   /  12*
मेष मD सयू -, तलु ा मD शिन तथा मकर मD मगं ल हो और शेष .ह कह‚ भी ह# तब लhन मD मेष रािश रहे
 ,  >   /+  2 G C   /+   *
कक- मD वृह पित, तल ु ा मD शिन और मकर मD मगं ल हो तथा शेष.ह कह‚ भी हो तब लhन मD कक-
  /+  ,  >   /+  Hयारह G C   /+  3 *
उपरो] बारह और चार िमलाकर सोलह राजयोग होते हI। पवू e] चार# .ह# मD से दो .ह अपने उjच
थान# मD ि थत होकर लhन मD ि थत ह# और च,_मा अपनी रािश मD हो तो बारह कार के राजयोग
होते हI।
जैसे मेष मD सयू - तथा कक- मD च,_मा और वृह पित दोन# ह#, शेष .ह कह‚ भी ह# तो लhन मD मेष
  /  . और कक- रािश हो  *
मेष मD सयू - तथा कक- मD च,_मा तल ु ा मD शिन और शेष .ह अ,य ह# तब लhन मD यिद मेष रािश हो
 $,  >   /  *
मेष मD सयू - तथा कक- मD च,_मा और मकर मD मगं ल हो शेष.ह अ,य ह# तब लhन मD यिद मेष रािश
/  0, C   /  14*
कक- मD वृह पित और च,_मा, तल ु ा मD शिन हो शेष.ह अ,य ह# तब लhन मD यिद कक- रािश हो तो
 G  >   /  2*
कक- मD वृह पित और च,_मा, मकर मD मगं ल और शेष.ह कह‚ हो, तब लhन मD कक- रािश हो तो
  C   /  *
तलु ा मD शिन, मकर मD मगं ल और कक- मD च,_मा तथा शेष.ह कह‚ अ,य ह# तो लhन मD तल ु ा
  /  Hयारह G C   /  3 *
पूवV, सोलह और ये बारह िमलकर (16+12) = 28 / होते हI। पवू e] चार# .ह# मD एक
.ह अपने उjच थान मD रहकर लhन मD ि थत हो और च,_मा अपने ही थान मD हो तो चार कार के
राजयोग होते हI।
.0+ - कक- मD च,_मा, मेष मD सयू - और शेष .ह अ,य ह# तब लhन मD मेश रािश हो तो . । कक- मD
च,_मा तथा वृह पित और शेष .ह कह‚ अ,य हो तब लhन मD कक- रािश हो तो । कक- मD
च,_मा, तल ु ा मD शिन और शेष .ह कह‚ अ,य ह# तब लhन मD तल ु ा रािश हो तो $। कक- मD
च,_मा, मकर मD मगं ल और शेष .ह कह‚ अ,य ह# तब लhन मD मकर रािश हो तो । इस कार

उराखड मु त िवविवालय 22


योितषशा ी       MAJY-202
28 G +   C (28+4 )=  32 कार के राजयोग होते हI।

अब 44 $कार के राजयोग कहते हC -


वगVRमेगते लHने च45े वा च45विजतैः।
चतुराFैXहैYZे नृपा ;ािवंशितः 6मृताः।। („ोक संSया -3)
अथा-त् वगeम मD लhन हो और उसको (च,_मा को छोड़) अ,य चार, 5_च या छः .ह देखते ह# तो
22 राजयोग और च,_मा यिद वगeम नवमांश मD ि थत ह# और उसको भी चार, पॉंच या छः .ह
देखते ह# तो भी 22 राजयोग इस तरह दोन# िमलकर 44 राजयोग होते हI।
.0+ - वगeम लhन को देखने वाले सयू - -C-बधु और वृह पित ह# तो .
सयू -- C-बधु और श` ु ह# तो ,
सयू -- C-बधु और शिन ह# तो $,
सयू -- C-बृह पित और श` ु ह# तो ,
सयू -- C-वृह पित और शिन ह# तो > ,
सयू -- C-श` ु और शिन ह# तो 14,
सयू -- 3> -वृह पित और श` ु ह# तो ,
सयू -- 3> -वृह पित और शिन ह# तो 2,
सयू -- 3> -श`ु तथा शिन ह# तो  ,
सयू -- वृह पित-श` ु और शिन ह# तो ,
C-3> -वृह पित और श` ु ह# तो Hयारह,
C-3> -वृह पित और शिन ह# तो 3 ,
C-3> -श` ु और शिन ह# तो  ,
C-बृह पित-श` ु तथा शिन ह# तो  ,
3> -वृह प -श` ु तथा शिन ह# तो प45ह,
वगeम लhन को देखने वाले सयू -- C-3> -वृह पित और श` ु ह# तो . ,
सयू -- C-3> -वृह पित तथा शिन ह# तो ,
सयू -- C-3> - श` ु और शिन ह# तो $,
सयू -- C-वृह पित-श` ु और शिन ह# तो ,
सयू -- 3> -वृह प -श` ु और शिन ह# तो > ,

उराखड मु त िवविवालय 23


योितषशा ी       MAJY-202
C-3> -वृह पित-श` ु और शिन ह# तो 14
और शिन ह# तो 22 ये राजयोग होते हI।
ऐसे ही वगeम मD ि थत च,_मा को चार, पॉंच तथा छः .ह# को देखने से 22 राजयोग होते हI।
पवू e] 22 योग िमलाकर कुल 44 राजयोग होते हI। यहॉं -एक रािशय# का िनयम रखने पर इन
योग# क7 सSं या 528 (44×12) /*
%& कार के राजयोग )
  कु[भे'क\ '/   ( (
नृयुि:सहं ािल6थै: शिशजगु]व7ै नृपतय:।।
यमे4दू 'गे सिवतृशिशजौ ष<ठ 
तुलाजे4दु?े1ै: िसतकुजजीवैच (000 लो )
अथा-त् कु‰भ मD शनैच, मेष मD सयू - तथा वृष मD च,_मा हो तथा यह‚ रािशलhन /+ G 3> -
वृह प -मगं ल ये `मश: िमथुन-िसंह तथा वृिxक रािशय# मD ि थत ह# तो $ / होते हI।
.0+ ) शिन कु:भ मD- सयू - मेष मD- च,_मा वृष मD- बधु िमथनु मD ) वृह पित िसहं मD ) मगं ल वृिxक
मD और शेष .ह कह‚ अ,य ह#, तब कु:भ लhन /  . , C+6 /  , N6 /  $
/
 और च,_मा अपने उjच थान# मD ि थत होकर लhन मD ि थत हो और सयू --बधु क,या रािश मD
ि थत ह# तथा तल ु ा-मेष कक- इन रािशय# मD `मश: श` ु मंगल एवं वृह पित ह# तो  /
/ /0*
श` ु -  तुला मD- च,_मा वृष मD- सयू --बधु क,या मD ) मगं ल मेष मD वृह पित कक- मD और शेष .ह
अ,य कह‚ हो तब लhन मD तुला हो तो . G N6 /    . / /0*  $  ?
पवू V:त $   (2+3= 5) पाँच राजयोग होते हC।
तीन कार के राजयोग )
>.+ +> Lक| ,Lोध-निु ष यमलhने  >5 :*
पितभम-ू े चा,य: ि ितसतु िवलhने   **
सच,_े F+ L ते 5> 5 > F  5+
वतंगु थे भानावदु यमपु याते ि ितपित:।।
अथा-त् मगं ल अपने उjच थान मकर मD ह# और सयू - तथा च,_मा धनु रािश मD और शिन मकर थ
होकर लhन मD रहे तो उ6प,न 3   . / /0*
उराखड मु त िवविवालय 24
योितषशा ी       MAJY-202
C   लhन मD हो, उसी मD च,_मा और मगं ल ह# और सूय- धनरु ािश मD ि थत हो तो जातक राजा
/ /0*
C+6  लhन मD हो और उसी मD 9; अंश के मCय मD सयू - हो तथा धनरु ािश मD वृह प , तल
ु ारािश मD
च,_मा और शिन ि थत ह# तो जातक राजा होता है। इस कार ये तीन राजयोग हOए।
दो कार के राजयोग 
वषृ ोदये मूितधनाGरलाभगै: शशांकजीवािकिसतैनृपो':
सुखे गुरौ खे शिशितHमदीिधतीयमोदये लाभगतैनपो'( ृ :(वृहजा- 000,लो- )
अथा-त् ज,मकाल मD वृषलhन हो और उसी मD च,_मा ि थत हो तथा वृह पित िमथनु मD शिन तल ु ा मD
एवं शेष.ह मीन मD ि थत ह# तो यिद वह राजा का पु हो तो राजा होता है, अ,य /   
/ /0*
वृह पित चतथु - थान मD, च,_मा और सयू - दशम थान मD, शिन लhन मD तथा शेष.ह hयारहवD थान मD
ि थत ह# तो यिद वह राजा का पु हो तो राजा होता है, अ,य /    / /0*
अ,यं  )
मेषरू णायतनगु ा: शिशम4द/$ 
!ारौ धने िसतरवी िहबुके नरे45:
व7ािसतौ शिशसुरेयिसताकसौ[या
होरासुखा6तशुभखािaगता: $जेश:।।(वृहजा- 0 0 0,लो- )
इस लोक का अथ- है िक च,_मा दसवD थान मD, शिन hयारहवD थान मD, वृह पित लhन मD, 3> 
मगं ल दसू रे थान मD तथा श`
ु और सयू - चौथे थान मD ि थत हो तो यिद वह राजा का पु हो तो
 . / /0, अ,य /   4 / /0*
मगं ल व शिन लhन मD, च,_मा चतथु - मD, वृह पित सातवD मD, श`ु नवD मD, सयू - दसवD मD और बधु
hयारहवD थान मD ि थत हो तो यिद वह राजा का पु हो तो राजा होता है अ,य कुल मD पैदा हो तो
  / /0*
एक कार का राजयोग 
6वो/चस6ं थे बध
ु े लHने भृगौ मेषरू णािते।
/$ '6ते िनशानाथे राजा म4दा:  (वृहजा - 000,लो -)
अथा-त् क,या लhन हो तथा उjच था (क,या) ि थत बधु लhन थ हो और दसवD (CD> ) थान मD

उराखड मु त िवविवालय 25


योितषशा ी       MAJY-202
श` ु , वृह पित के साथ च,_मा सGतC (C) मD तथा पॉंचवD (C) मD शिन एवं मगं ल ि थत ह# तो
ऐसे योग मD उ6प,न .   . / /0*
उ/चि1कोणगैबलसं6थै61याFैभूपितवंशजा नरे45ा:
cचार4यवश ं जाता हीनैिवRयुता न भूिमपा: 6यु:(वृहजा- 0 0 0,लो- )
अथा-त् िजनके ज,मकाल मD तीन या चार .ह अपने उjच थान या मल ू ि कोण मD बली होकर ि थत
ह# तो वे यिद राजवश ं मD उ6प,न हOए ह# तो राजा होते है और एक या दो .ह# के उjच थ  C 
ि कोण थ होने से राजा नह‚ होते, िक,तु राजा के तaु य वैभवशाली होते हI।
िजनके ज,मकाल मD पाँच- छ: या सात .ह अपने उjच था  C  -ि कोण मD बली होकर ि थत
ह# तो वे नीचकुल मD ज,म लेकर भी राजा होते हI और यिद पाँच कम तीन या चार .ह उjच थ 
मलू ि कोण थ ह# तो राजा नह‚ होते, पर,तु धनवान अवय / + /0*
25  
लेखा6थे'क\ 'जे4दौ लHने भौमे 6वो/चे कु[भे म4दे
चापं $ा9ते जीवे रा!: पु1ं िवFाद् भूमेनाथम।् ।(वृहजा- 0 0 0,लो- )
इसका अथ- है िक यिद मेष लhन हो तथा उसमD सयू - एवं च,_मा ि थत ह# और मगं ल अपने उjच
  (C) मD] कु:भ रािश मD शिन तथा वृह पित धनरु ािश मD ि थत हो तो ऐसे योग मD उ6प,न  .
का पु राजा होता है। कुछ िवLान लेखा थे पद के थान मD लेय थे का उaलेख करते हI। िजसका
अथ- है िक िसहं मD सयू - ि थत हो और शेष .ह पवू eत ह# तो भी राजयोग समझना चािहए।
6व?\ शु7े पाताल6थे धम6थानं $ा9ते च45े
दुिU:यांग$ािa$ा9तै: शेषैजात: 6वा $  :(वृहजा- 0 0 0,लो- )
अथा-त् श` ु यिद अपनी रािश मD ि थत होकर चतथु - थान मD ि थत हो और च,_मा नवम थान मD
ि थत हो तथा शेष.ह 3, 1 G 11 वD थान मD ि थत हो तो ऐसे योग मD उ6प,न राजा का पु राजा
/ /0*
सौ[ये वीययुते तनुसं6थे वीयाढये च शुभे शुभयाते।
धमाथVपचये<वथ शेषैधमामा !/: !) $:(वृहजा- 000,लो- )
लोकाथ- है िक बली होकर बुध लhन मD एवं शभु .ह अथा-त् वृह पित या श` ु इन दोन# मD से कोई भी
नवम थान मD तथा शेष.ह 9,2, 3,6,10 एवं hयारहवD थान# मD ि थत ह# तो यिद वह राजपु हो तो
धमा-6मा  . / /0, यिद अ,य हो तो धमा-6मा तथा धनवान होता है। कुछ आचाय- इस लोक मD

उराखड मु त िवविवालय 26


योितषशा ी       MAJY-202
शभु याते पद के थान पर सख
ु याते .हण करते हI वहाँ सख
ु से चतथु - था C\  /*
सारावली %#था$  # -
राजकुलो6प,न  . व िन:नकुलो6प,न  .ग एवं धनवान योग Zान )
 लो )
6वो/चि1कोणगृहगैबलसंयुतैच
1याFैनृपो    /:
पcचािदिभजनपद$भवोऽिप िसfो
$(: ि?तीव      : (, अ या-,ोक-)
लो का अथ- है िक यिद ज,म के समय मD तीन या चार .ह अपने उjच मD वा वमल ू ि कोण मD
अथवा अपने घर मD बलवान ह# तो राजकुल मD उ6प,न पfु ष राजा होता है। यिद ज,म + C 5 A
अथवा छ: .ह पवू eत ि थित मD ह# तो िन:न कुलो6प,न भी राजा होता है। यिद दो या एक .ह उjच
या मल
ू ि कोण या वगृह मD हो तो राजा के समान होता है न िक राजा होता है।
अिखलभूम-डल पालक योग !ान #
AGरिनिव<टै म\षसं6थैXहे45ै:
शिश]िधरसुरेडयैजायते पािथवे45:
/ : पालक: सवभूमे-
हतGरपुपGरवार: सवत: फूक (, अ या-,ोक-)
लोकाथ- /0   ज,म के समय लhन थ मेष रािश मD च,_C , C, गfु ह# तो जातक सम_ु
lपी मेखला से वेिWटत सम त भमू ड  5  +    .  . / /0, तथा श दु ल
का नाश करके चार# तरफ हOक ं ार करता है।
B लgमी से युत राजयोग !ान )
 & 6वो/चे लHने पयो[बु :  
C भानो: पु1े मृगािधपतौ रिव:।।
B !  वाचां नाथ: 6फुरक/
 नरपित: 6फतीक6त 3  :
अथा-त् यिद कुडली मD परपणू - च,_मा वृष लhन मD हो तथा कु:भ   मD शिन, /  
मD सयू -, वृिxक रािश मD शोिभत िकरण# से यु त गfु हो तो जातक अिधक लमी व वाहन# से यतु

उराखड मु त िवविवालय 27


योितषशा ी       MAJY-202
 . / /0*
] /O Lारा पWट च` )
चं. 
8 

7
I

. J 99 .
 . 

B 


इ45 तु8य / !ान #


! म4दे लHने कुमुदवनब4धुच  -
6त) क4यां य:वा बध ु भवनस6ं थ:  :
ि6थतो नायाh सौ[यो धनुिष सुरम41ी   *
 जातो भूप: सुरपितसम: $ा9त  
! अथ- है िक यिद कुडली मD मकर लhन मD शिन, च,_मा मीन रािश मD तथा क,या   
छोड़कर बधु के घर मD अथा-त् िमथनु मD भौम, क,या मD बधु , धनु रािश मD गfु हो तो जातक इ,_ +
C  C/C (शसं ा) 5 +    . / /0*

6व/3 से पृiवीपित योग !ान #


A गु]/चे त9तहेम$भावो
हGरततुरगनाथो jयोममkया  $
 शिशबुधशु7ा य6य सतू ो नर6य
6व/ / : सवत: पािथवे45:
अथा-त् यिद कुडली मD तपे हOए सवु ण- क7 आभा के स‹श गfु कक- रािश मD लhन गत हो तथा सयू -
दशम भाव मD व वृष रािश मD च,_C -3> -श` ु ह# तो जातक अपनी भजु ाओ ं के बल से सम त पृUवी
 . +    . / /0*
उराखड मु त िवविवालय 28
योितषशा ी       MAJY-202
अपारकितमान राज योग !ान #
कामुके ि1दशनायकम41ी भानुजो विणिज च45 :
मेषग6तु तपनो यिद लHने भूपितभवित सो'तुलकित:।।
लो का अथ- है िक यिद कुडली मD मेष लhन मD सयू - हो व धनु रािश मD गfु , शिन च,_C +  D
तल
ु ा मD हो तो जातक अपार क7ित-मान राजा होता है।
वृह,पहोराशा1 %#था$  #  )
वृह6पराशरहोराशा  नामक .,थ पराशर मिु न के Lारा िलखा गया है। पराशर मिु न योितषशा
के अWटादश व-क मD से एक है। उनके Lारा किथत राजयोग का वण-न इस कार है-
/  #
लHने पंचमे भावे पच ं मेशे च लHन  
पु1ाम   िव$! लHने च पंचमे ि6थते।
6वो/चे 6वांशे 6व ' भXहिनरीि?ते
महाराजाययोगोऽ1 जात: यात: सुखाि4वत:।।
अथा-त् लhने पंचम भाव मD हो और पंचमेश लhन मD हो एवं आ6मकारक तथा पु कारक दोन# लhन
या पंचम मD अपनी उjच रािश का होकर या अपने नवमांश मD होकर शभु .ह के Lारा अवलोिकत ह#
 यह महाराजनामक योग होता है। इसमD ज,म लेने वाला जातक िवSयात और सख ु से यु त /
/0*
/  #
भाHये: कारको लHने पंचमे 6प ' 
राजयोग$दातारौ शुभखेटयुतेि?तौ।।
लHने* कारका/चािप धने तुय\ च पच ं मे।
D भावे जातो राजा भवेद् lुवम।् ।
!$ ष<ठमे ताmयां पापXहयुतेि?ते।
/ राजा भवेदेवं िमे िमफलं वदेत।् ।
भाhयेश तथा आ6मकारक दोन# लhन, J,= भाव मD ह#, शभु .ह से ‹Wट  > /  +
राजयोगकारक होते हI। लhनेश या कारक से िL , चतथु -, पचं म शभु .ह हो तो जातक िनच /
राजा होता है अथवा लhन    + 7,B भाव मD के वल पाप .ह से यु त या ‹Wट /  

उराखड मु त िवविवालय 29


योितषशा ी       MAJY-202
राजयोगकारक होता है। लhन    + 7,B भाव मD िमिQत ( > , पाप.ह) .ह बैठे ह# तो
िमिQत ( )  / /0*
जातक पा रजात %#था$  )$  # 
क4यामीननृयुHमगोहGरधनु: कु[भि6थतै: खेचरै:।
सेनामRमतंगवािजिवपुलो राजा यश6वी  * 
तौिल/छ!गवृषावनागृहगैजातोऽिखलgमा
गnचापा4यभके 45(: पृथुयशा: पृiवीव /
अथा-त् ज,मां मD सम त .ह क,या, C, CD> , N6, /, धनु और कु:भ रािशय# मD ि थत ह# तो
.  + , म हाथी, घोड़े आिद के िवपल ु समहू से यु त यश वी  . / /0*

> , C+6, वृष और मीन रािशय# मD यिद सम त .ह ि थत ह# तो जातक सम त पृUवी  25
/ /0*
N6, ,> मीन रािशय# मD ि थत .ह यिद के ,_ थ ह# तो जातक अनेक यश-क7ित- से यु त  .
/ /0*
क4यामेषतुलामृगे45घटगैजाजो $ 
दुिU:य$ितभारसातलगतैबpथदेशािधप:।।
D िव7मब4धुपु1गृहगा ;ौ िवRधमि6थतौ।
 लHनकल1रािशसिहतौ राजा भवेfािमक:।।
यिद सम त .ह क,या, C+6,  > , िसंह और कु:भ रािशय# मD ि थत ह# तो इस .हयोग मD उ6प,न
.   . / /0*
N , पंचम और चतथु - भाव# मD यिद सम त .ह ि थत ह# तो 2  > -वैभवािद से यु त 2+
देश# का राजा होता है।
 N , चतथु ,- 5C, िLतीय, C, लhन और सGतम भाव# मD सभी .ह ि थत ह# तो जातक
धािम-क राजा होता है।
इ,ह‚ योग# के स‹श अ,य जातक .,थ# मD िसहं ासन योग, चतु च` योग,   ,  :>  
, चड योग एवं Qीछ योग ( > /  .,थ मD), D कनकदड , डमlक योग एवं
Cव. ,  ./ , गृsपjु छ योग एवं िचŒपjु छ   का उaलेP (C.  .,थ मD),
ाGत होता हI।
उराखड मु त िवविवालय 30
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अ4य /  #
/   /
िम1ेि?ते िनजबलािजतरायकता।
दुिU:यधमसुतगा रिवच45/$ 
वीयाि4वता   3  ! :
अथा-त् ,> मेष अथवा िसंह रािश के लhन मD ि थत भौम यिद अपने िम .ह (सयू -, च,_C , G
वृह प ) से ‹Wट /  ! योग मD उ6प,न जातक वािज-त राय का वामी होता है। सूय,- च,_C
और वृह प  N , नवम और पंचम भाव# मD बलवान होकर ि थत ह# तो जातक कुबेर के
समान वैभवािद स:प,न  . / /0*
नीचि6थतXहनवांशपतौ ि1कोणे।
के 45े')  !  यिद ज4मलHने
तqावपे चरगृहांशसमि4वते वा।
/ महीपितरित$बलो'थवा 6या* 
अथा-त् नीचरािशगत .ह के नवमांशपित यिद ि कोण या के ,_ मD ि थत हो अथवा चररािश का लhन
हो और ज,मलhनािधपित चररािश के नवमांश मD हो तो जातक राजा अथवा बल तापी होता है।
जातकपारजात .,थ के राजयोगाCयाय का अCययन करने पर हमD उसके अ,तग-त पंचमहापl ु ष
, >  , भा क, इ,_, मlत, 3>  , भौमािद पंचतारा.हो6प,न >  
, गजके सरी योग तथा नाभस योगािद सम त योग का उaलेP C /0*
सवा$थ$िच#तामिण %#था$  # )
षड्िभ.-हl
ै jचसमि,वतै: या_ाजािधराजो बहOदश े भा-।
उjचि थतै: पच
ं िभर राजा श6याि,वतो देवगरु ो िवलhने**
. िकसी क7 कुडली मD यिद षड्.ह (6 .ह) अपनी उjचरािश मD ि थत /, तो इस योग मD
उ6प,न मनWु य िनचय कर राजािधराज होकर अनेक देश# का पालनहार होता है। यिद कुडली मD
पच
ं .ह# क7 ि थित अपनी-अपनी उjच रािशगत हो तथा लhनभाव मD गl ु ि थत हो, तो मनWु य
सामUय-   . / /0*
/    ) #
लHने वृषे त1 गते शशांके षड्िभXहैS/चगतै नप:
ृ 6या*
उराखड मु त िवविवालय 31
योितषशा ी       MAJY-202
कि6मन् गृहे 6वो/चयुते तु सवr: 6व?े1गैभूपिततु8य/:
अथा-त् िजस िकसी क7 कुडली मD यिद वृष लhन मD च,_मा और षड्.ह अपनी-अपनी उjच रािश मD
अवि थत हो, तो इस योग मD मनWु य राजा होता है। सभी .ह कुडली के िजस िकसी भी भाव मD
अवि थत होकर उjच थ /  /, तो मनWु य  . / /0, सभी .ह यिद वरािशगत ह#, 
मनWु य इस योग मD के वल राजा के तaु य / /0*
सsाट  ) #
Yय युयते वािप च45जेन वृह6प:
 शासनं त6य धारयि4त नपृ ा6त
. िकसी क7 कुडली मD गfु यिद बधु से देखा जाता हो अथवा यु त /, तो इस योग मD उ6प,न
मनWु य क7 आZा को राजे-महाराजे अपने िशर पर धारण करने वाले होते हI अथा-त् मनWु य सŽाट होता
/0*
धािमक व च7वतt नीच भंग राजयोग कथन -
नीचि6थतो ज4मिन यो Xह: 6याR5ािशनाथो'थ तदु/च):
 चेि;लHनाFिद के 45वतt राजा भवेfािमकच7वतt।।
लो का अथ- है िक . िकसी क7 कुडली मD यिद कोई .ह अपनी नीच रािश मD ि थत / G
उस .ह क7 उjचरािश का वामी अथवा िजस रािश मD वह .ह ि थत है, उस रािश का वामी .ह
ज,मलhन से के ,_ मD ि थत हो, तो इस योग मD उ6प,न होने पर मनWु य धािम-क और च`वतT राजा
/ /0*
भूपिततु8य भाHय   ) #
   45गते िवलHनं य:वा ि1कोणे यिद जीवY<टे
श7ु े ण Y<टे बलपणू यु:ते जातो नरो भूपिततु8य:
.  क7 कुडली मD यिद बलवान च,_ लhन को छोड़कर अ,य के ,_   I,=,9; मD अथवा
ि कोण J,K भाव मD ि थत होकर गfु अथवा श` ु से देखा जाता हो, तो इस कार के .हयोग मD
उ6प,न मनWु य राजा के तaु य भाhय  / /0*
नीचो/च  / ) #
नीचि6थता ज4मिन ये Xहे45ा: 6वो/चांशगा राजसमानभाHया:

उराखड मु त िवविवालय 32


योितषशा ी       MAJY-202
उ/चि6थता चेदिप नीचभागा Xहा न कुवि4त तथैव भाHय * 
अथा-त् िजस िकसी क7 कुडली मD यिद कोई .ह अपनी नीच रािश मD होकर नवमाशं मD अपनी उjच
रािश मD ि थत हो, तो इस ि थित मD मनWु य राजा के समान भाhय  / /0*
कुड मD  कोई .ह अपनी उjचरािश मD होकर नवमांश मD वह अपनी नीच रािश मD ि थत हो,
तो इस ि थित मD मनWु य का राजा के समान भाhय नह‚ होता है।
/   ) #
  दशमे भागे ि6थत: पंकजबोधन:।
सहराजयोगानां फलं नीचवमा9नु * 
. िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद अपनी नीचरािश तुला के दस (9;) अंश मD ि थ /,
तो इस ि थित के ाGत रहने पर मनWु य सहY या हजार राजयोग# के रहने पर भी हीनता को ाGत /
. /0*
!: पु1ो'िप नीच6थो / :
उ8कापातF$काशे Xहे जातो' :
अथा-त् िजस िकसी क7 कुडली मD यिद श`
ु भी नीच रा  /, तो मनWु य +  .
का िवनाश हो जाता है तथा ज,म के समय उaका, पात आिद अकाश .ह लhन मD ि थत होकर
राजयोग को नWट करते हI।
बोध  न 
1. राज योग का अथ- है।
. राजा के समान योग ख. राजा ग. रायािधपित घ. कोई नह‚
2.  .  + ज,म  मD एक से अिधक शभु .ह यिद अपने उjच थान मD ि थत ह#
 / .   . / /0*
. सबु िु s वाला ख. दबु -िु s वाला ग. िवावान घ. चतरु
3. वृहजातक मD िकतने कार के राजयोग का वण-न है।
. 8I P.78 .8B Q. 8:
4. जातकपारजात िन:न मD िकसक7 रचना है।
क. वैनाथ ख. पराशर मिु न ग. वराहिमिहर घ. गणेश

उराखड मु त िवविवालय 33


योितषशा ी       MAJY-202
5. िजस जातक क7 कुडली मD श` ु नीच रािश गत हो तो या / /0*
क. राजयोग ख. राजयोग का िवनाश ग. िवावृिs घ. श वु िृ s
6. . िकसी क7 कुडली मD गfु यिद बधु से देखा जाता हो अथवा यु त /  F  
3 /0*
क. सŽाट योग ख. रंक योग ग. दानवीर योग घ. धािम-क योग
7. िन:न मD सारावली नामक .,थ + +P F /0*
क. वराहिमिहर ख. कaयाणवमा- ग. कमलकार घ. भा क

2.4 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  योितष शाw के फिलत या
होरा क,ध के अ,तग-त , . , एक अ6य,त मह6वपूण- िवषय है, . C  . +  D
6य स:ब,ध है। यिद देखा जाय तो ायः 6येक मानव अपने जीवन मD राज योग क7 इjछा या
2 6 P /0, िक,तु सभी मानव के जीवन मD राजयोग हो यह कथमिप सभं व नह‚ है। व ततु ः
 जयोग का िनमा-ण भी मानव Lारा पवू ज- ,म मD कृ 6य > > कम- फल पर ही आधारत होता है।
योितषशा + .  या होरा क,ध के अ,तग-त िजतने भी िसs .,थ हI उनका
अCययन करने पर ाय: सभी .,थ# मD राजयोग का उaलेख हमD ाGत / है। इस इकाई मD मेरा यह
यास रहेगा िक आप सभी िजZासु अCयेताओ ं के िलए फिलत योितष के कुछ मख ु .,थ# 
उaलेख करते हOए आपको राजयोग से स:बि,धत तUय# + 2  A> *
राज योग :या है? यिद इस पर िवचार िकया जाय तो सामा,यतः जो राजा के समान जीवन यतीत
करD , उसे राजयोग कहा जाता है। राज योग का शाि&दक अथ- भी है - राजा के समान योग। योितष
शाw के व-क# एवं आचायK ने .ह# क7 ि थित के आधार पर मानव के जीवन मD होने वाले
राजयोग# का उaलेख िविवध कार से अपने-अपने .,थ# मD  /0*
2.5 पा रभािषक शदा
/  )  . + C  *
! ) श`ु
E/ ) वृह प
के 45 ) 9,I,=,9; भाव को के ,_ / + /0*

उराखड मु त िवविवालय 34


योितषशा ी       MAJY-202
 ) C
ि1कोण ) J  K थान को ि कोण कहते है।
  )    _ 2 C / /0* 7 2 8;  9 C  C  /
/0*

2.6 बोध  न के उ"र


1. 
2. 
3. P
4. 
5. P
6. 
7.P

2.7 स#दभ$ %#थ 


1. वृहजा C4 - राजयोगाCया:*
2. जातकपारजात ) राजयोगाCया:*
3. वृह6पराशरहोराशा ) राजयोगाCया:*
4.    )  .गाCया:*
5. सवा-थ-िच,ताCO ) राजयोगाCया:*
6.  5 ) राजयोगाCया:*

2.8 सहायक पाठ्यसाम%ी


1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C
 +P ) कaयाणवमा-। िटकाकार- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*

उराखड मु त िवविवालय 35


योितषशा ी       MAJY-202
2.9 िनब#धा,मक  न
1. वृहजातक .,थानसु ार दो कार के राजयोग# का िव तृत वण-न क7िजये।
2. .,थाधारत बीस कार के राजयोग# का याSया क7िजये।
2. वराहिमिहर के अनसु ार पाँच कार के राजयोग का उaलेख करD ।।
3. जातकपारजात के अनुसार राजयोग का वण-न क7िजये।
4. राज योग िकसे कहते हI? सोदाहरण िव तार पवू क
- िलिखये।
5. नीचोjच भगं राजयोग से आप या C\ + /0?
6. वृह6पराशर होराशा एवं सारावली के अनसु ार राजयोग का मह6व ितपािदत क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 36


योितषशा ी       MAJY-202
 - 3 च#2ािद योग
इकाई क संरचना

3.1  ता
3.2 उेय
3.3 च,_ा  परचय
3.3.1 च,_C + 3+  + 
3.4 अ,य  
3.5  
3.6 पारभािषक श&दा
3.7 बोध न# के उर
3.8 स,दभ- .,थ  
3.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
3.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 37


योितषशा ी       MAJY-202
3.1 ता
 तु ! " C.+ " -104 के थम खड क7 तीसरी इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) च,_ा * !+ पवू - आपने , . - से जड़ु े िविभ,न िवषय# का अCय 
िलया है। अब आप इस इकाई मD ,च,_ा - के बारे मD अCय + . /+ /0*
,च,_ा - से ता6पय- है ) च,_C 1 .ह# से बनने वाले योग। फिलत योितष मD
च,_C सबसे मख ु माना गया है। मनWु य के मन से लेकर उसके सम त जीवन पर वग6या> 
इसका तीvतर भाव होता है।
2 : 1! इस इकाई मD हम लोग ,च,_ा - के बारे मD उसके वlप तथा फलाफल
के बारे मD अCययन करते हI।
3.2 उे य
! इकाई के अCयन के पचा 4 15 )
• च,_ा  को परभािषत कर सकD गे।
• च,_ा योग िकतने कार के होते हI, समझा सकD गे।
• च,_C से बनने वाले योग# को समझ लDगे।
• च,_ा योग# के शभु ाशभु फल को समझा सकD गे*
3.3 च#2ा*
च,_ा योग से ता6पय- है ) च,_मा .ह Lारा बनने वाला योग। ाय: फिलत यो 6 +
सम त .,थ# मD च,_ािद योग का उaलेख हमD ाGत / /0* > , .+  1 2+ 
इसके उदाहरण है। च,_मा को .ह# मD सयू - के समान ही राजा कहा गया है। जैसा िक वराहिमिहर
/ + /0- राजा रिव: शिशधरच...0। च,_मा मन का कारक .ह है। अत: जातक के मन को सबसे
यादा च,_मा ही भािवत करता है।  ततु इकाई मD च,_मा से बनने वाले मख ु योग# का वण-न
 . / /0* आचाय- वराहिमिहर कृ त वृहजातकम् नामक .,थ मD च,_C + 3+  + 
इस कार है।
3.3.1 च45   3   
सूय के 6थान से च45ि6थतवश फल #
अधमसमवGर<ठाकके 45ािदस6ं थे
 िवनयिवR!ानधीनैपुणािन।।
उराखड मु त िवविवालय 38
योितषशा ी       MAJY-202
B  िनिश च च45े 6वे'िधिम1ांशके वा।
सुरगु]िसतY<टे िवRवान् 6या* D$ 
अथा-त् िजसके ज,मकाल मD सयू - के थान से च,_मा के ,_ 9,I,=,9; मD ि थत हो तो उसके
,, शा Zान, बिु s और चातयु - ये अधम होते हI अथा-त् नह‚ होते हI। पणफर 8,J,:,9 मD
ि थत हो तो सम अथा-त् न कम न अिधक और आपोिलम 7,B,K,98 मD ि थत हो तो वरWठ
अथा-त् उम होते हI।
D  ) िजसका ज,म िदन मD हOआ हो और च,_मा िजस िकसी रािश मD अपने या अिधिम
के नवमांश मD ि थत हो तथा उसे वृह पित देखता हो अथवा राि मD ज,म हOआ हो और च,_ क7
]5त ि थित हो तथा उसे श` ु देखता हो तो वह जातक धनवान तथा सख ु ी होता है।
B   #
सौ[यै: 6मराGरिनधने<विधयोग इ4दो
6ति6मंचमूपसिचवि?ितपालज4म
स[प4नसौयिवभवा हतश1वं च
दीघायुषो िवगतरोगभयाच /:
अथा- 4 च,_मा के था + ZW+ -सातवD और आठवD इन तीन# मD या दो मD अथवा एक ही थान मD
शभु .ह ि थत हो तो अिधयोगनामक योग होता है। यह सात कार का होता है। जैसे ) छठे थान मD
सभी शभु .ह ि थत हो तो एक सातवD मD दो आठवD मD तीन छठD , सातवD मD  , छठे आठवD मD पाँच,
सातवD आठवD मD छ: और छठे सातवD-आठवD मD सात।
इस अिधयोग मD िजसका ज,म हो वह सेनापित म, ी या राजा होता है। अथा-त् वे शभु .ह यिद
िनब-ल हो तो सेनापित, मCयबली हो तो म, ी और यिद पणू - बली हो तो राजा होता है।
! ग वाले सेनापित म, ी या राजा सख ु युत ऐवय-यतु , श हु ीन, दीघा-यु और रोगभयिवहीन होते
हI। यिद शभु ाशभु .ह इन थान# मD हो शभु ाशभु फल होता है और यिद पाप.ह हो तो पापफल होता
/0*
िहवाक सुनभानभाधु]धुरा: 6वा4योभय6थैXहै:।
$शो: किथतोऽ4यथा तु बहOिभ: के म5ुमोऽ4यै6व
के 45े शीतकरेऽथवा Xहयुते के म5ुमो ने<य
के िचत् के 45नवांशके षु च वद4युि,$िसfा न ते।।
सयू - को छोड़कर अ,य पच ं तारा .ह# मD कोई एक यिद च,_C +  + -बारहवD या दोन# थान# मD

उराखड मु त िवविवालय 39


योितषशा ी       MAJY-202
ि थत हो तो `म से सनु फा, अनफा और दl ु धरा ये तीन योग होते हI अथा-त् दसू रे था > ,
बारहवD मD अनफा और दोन# मD दl ु धरा योग होता है।
इससे अ,यथा अथा-त् च,_मा से दसू रे या बारहवD थान मD कोई भी .ह नह‚ हो तो के म_ुम  /
है। ऐसा बहOत आचाय- कहते है। कितपय आचाय- कहते हI िक च,_मा अ,य .ह# से यु त हो या लhन
+ 9,I,=,9; मD ि थत हो तो के म_ुम योग नह‚ होता है। कुछ आचाय- कहते हI िक च,_C + I
थान मD सयू - को छोडकर कोई .ह ि थत ह# तो सनु फा दसवD थान मD अनफा दोन# मD दl ु धरा तथा
I,9; थान मD कोई भी .ह न हो तो के म_ुम योग होता है।
सुनफा अनफा आिद योग के भेद #
ि1ंशत् सSपा सुनभानभाया:
षिZ1यं धौSधरु ा: $भेदा:।।
इ/छािवक8पै: 7मशोऽिभनीय
नीते िनवृिR: पुनर9य$:
अथा-त् च,_मा से दसू रे थान मD मगं ल बधु , गfु , श`
ु और शिन इनमD से एक, , ,    5 A
.ह# के रहने से 79 कार के सनु फा योग होता है। ऐसे ही 98 वD था + 79 कार का अनफा योग
 / /0*
8 G 98 वD इन दोन# थान# मD उत .ह# मD से िभ,न-2  G ,  G ,  G
,   G ,  V ,  G  ,  G ,  G ,  G  D 
और तीन .ह# के रहने पर 9:; कार का दl ु धरा योग होता है।
सुनफा अनफा योग के फल #
6वयमिधगतिवR: पािथवव6तस  
भवित िह सुनभायां धीधनयाितमांच
$भुरगदशरीर: शीलवान् यातकित
िवषयसख ु सवु ेषो िनवत ृ चा * 
अथा-त् िजसके ज,मकाल मD सनु फायोग हो वह जातक अपने ही कमाये हOए धन से धनवान् और
राजा या राजा के समान एवं उम बिु s-  क7ित- से यु त / /0* 2  /  / . 
समथ-, / , शीलयु त, िवSयातक7ित- सांसारक सख ु से यु त स,ु दर व ा6 O  O +
वाला तथा संतWु ट व    / /0*

उराखड मु त िवविवालय 40


योितषशा ी       MAJY-202
दुSधरा # के म5ुम योग के फल #
उप4नD*   G
6यागाि4वतो धS ु धरु ा$भव: सभ ु ृय:
के म5ुमे मिलनदु:िखतनीचिन66व:
$े<य: खलच ! /:
ज,मकाल मD दl ु धरा योग हो तो वह जातक िकसी तरह से ाGत साम.ी से सख ु भोगी धन व वाहन
से यु त दाता और स,ु द   / /0* िजसके ज,मकाल मD के म_ुम योग हो वह देहािद से
मिलन द:ु िखत नीचकम- करने वाला िनध-न दासकाय- करने वाला और दWु ट व   / /0* 
वह राजवश ं मD उ6प,न हOआ तो तब भी ऐसा ही होता है।
सनु फािद योगकारक भौमािदXहवश फल #
उसाह शौयधनसाहसवान् म $/
सौ[ये :   &: 
जीवेऽथधमसख ु भांक नपृ पिू जतच
कामी भृगौ बहOधनो िवषयोपभो:ता
अथा-त् सनु फा अनफा योगकारक यिद मगं ल हो तो उ6ा 6प,न जातक उमी, रणिय धनवान
D  / / /0* 3> /   > , CW+    , तथा कारीगरी मD बहOत िनपणु होता है।
वृह पित हो तो धम-यु त सुखभोगी और राजाओ ं से पू य होता है। श` ु हो तो कामी बहOत धनवान
G 6 / /0*
  + #
परिवभवपGर/छदोपभो:ता
रिवतनये बहOकायकृद् गणेश:।
अशुभकृदुडुपोऽिu Yय ित
गिलततनु च शभ ु ोऽ4यथा4यदूvम।् ।
शिन योगकारक हो तो जातक पराये धन तथा व तओ ु ं का भोग करने वाला बहOत से काय- करने
वाला और बहOत# का वामी होता है। उत योगकारक यिद एक से अिधक .ह ह# तो के वल योग
का ही फल होता है। वहाँ .ह# का फल नह‚ / *
िदन मD ज,म हो और ज,मकाल मD च,_मा ‹यच`ाs- (सातवD से लhन पय-,त) मD ि थत हो तो
अशभु कारक ओर अ‹यच`ाs- (लhन से सातवD थान तक) मD ि थत हो तो शभु कारक होता है।

उराखड मु त िवविवालय 41


योितषशा ी       MAJY-202
यिद राि मD ज,म हो तब च,_मा अ‹यच`ाs- मD ि थत हो तो अशभु कारक और ‹यच`ाध- मD
ि थत हो तो शभु कारक होता है।
लHन व च45 से उपचय ि6थत शभ ु Xह का फल #
लHना$  *  1 *
सौ[यXहैSपचयोपगतै: सम6तै:
;ाmयां समोऽ8पवसुमाच 
म4ये 6व + ि<वदमुक 
ज,मकाल मD लhन से उपचय अथा-त् 7,B,9;,99 वD थान मD सभी शभु .ह ि थत ह# तो वह जातक
अितशय धनवान होता है। यिद च,_मा से उपचय थान मD सभी शभु .ह ि थत हो तो धनवान होता
/0*  8 ही शभु .ह उत थान मD हो तो मCयम धन वाला होता है। यिद एक ही शभु .ह हो तो
अaप धनवान और यिद कोई .ह नह‚ हो तो दर_ होता है। यिद कुडली मD अ,य बहOत से कुयोग ह#
और यह योग हो तो इसी का पणू - फल होता है अ,य कुयोग# का फल नह‚ होता।
वृह,पराशरहोराशा1 %#था$  किथत च#2ा* -
अ8पमkयमोRम योग
सहwरिमतU45े क-टकािदगते 7मात।्
$(णादीिन 4यूनमkयोRमािन िह।।
सयू - से च,_मा यिद के ,_ (1, 4, 7, 10) मD हो तो जातक को धन, बिु sमान,  1
वaप होता हI; 5O (2, 5, 8, 11 भाव) मD हो तो मCयम एवं यिद आपोिलम (3, 6, 9, 12
भाव) मD हो तो जातक को धन, बिु s, कौशलता आिद उम कोिट के होते हI।
 ) B 
6वांशे वा 6वािधिम1ांशे ि6थतU िदवसे शशी।
गु]णा Yयते त1 जातो धनसुखाि4वतः।।
6वांशे वा 6वािधिम1ांशे ि6थतU शशभृि4निश।
श7ु े ण Yयते त1 जातो धनसख ु ाि4वतः।।
एति;पयय6थे च शु7ेयानवलोिकते।
जायतेऽ8पधनी बालो योगेऽि6मि4नधनोऽथवा।।
जातक का ज,म िदन मD हो और च,_मा अपने या अिधिम के नवमांश मD हो तथा उस पर
गl
ु क7 ‹ि हो तो जातक धनवान और सख ु ी होता हI। राि का ज,म हो और च,_मा अपने या

उराखड मु त िवविवालय 42


योितषशा ी       MAJY-202
अिधिम के नवमांश मD ि थत हो, उस पर श` ु क7 ‹ि हो तो जातक धनी और सख ु ी होता हI। इससे
िवपरीत हो और श` ु ये ‹ न हो तो जातक अaप धनी या िनध-न होता हI।
B
च45ा54lाGरकाम6थैः सौ[यैः 6यादिधयो 4
त1 राजा च म41ी च सेनानीU बल7मात।् ।
च,_मा से 8, 6, 7 भाव मD शभु .ह ि थत ह# तो अिधयोग होता हI। उसमD ज,म लेने वाला
जातक .ह# के बलाबलानसु ार राजा, म, ी अथवा सेनानायक होता हI।
उRम-मkयम-अ8प धनयोग
च45ाद् वृिfगतैः सवrः शुभैजातो महाधनी।
;ाmयां मkयधनो जात एके नाऽ8पधनो भवेत।् ।
च,_मा से वृिs (3, 6, 10, 11) थान मD सम त शभु .ह बैठे ह# तो जातक महाधनी होता
हI। दो शभु .ह ह# तो मCय धनी और एक शभु .ह हो तो जातक अaप धनी होता हI।
 +-अनफा तथा दुSधरा 
45ात् 6वा4योभय6थे िह Xहे सूयh िवना 7मात।्
सुनफायोऽनफायU योगो दुHधराxयः।।
सयू - को छोड़कर अ,य .ह च,_मा मD िLतीय भाव मD हो तो सनु फा, Lादश भाव मD .ह ह# तो अनफा
और दोन# थान मD .ह ि थत ह# तो दl ु धरा  C  / /0*
+-अनफा दुSधरा + -
/ वा राजतु8यो वा धीधनयाितमांग4
6वभुजािजतिवRU सनु फायोगस[भवः।।
भूपोऽगदशरीरU शीलवान् यातकितमान।्
सुSपUाऽनफाजातो सुखैः सवrः समि4वतः।।
उप4नसख ु भुग् दाता धनवाहनसयं ुतः।
सqृयो जायते नूनं जनो दुरध 4
सनु फा योग मD उ6प,न जातक राजा ये राजतaु य, C C , , िवSयात एवं अपने
बाहOबल से उपािज-त धन से य] ु होता हI। अपफा योग मD उ6प,न पl ु ष राजा,  () + /,
> , िवSयात, क7ित-य] ु , स,ु दर तथा सम त सख ु से यु] होता हI। दरु धरा नामक योग मD ज,म
++   .  >P, , -वाहनािद से परपणू - एवं कुशल नौकर वाला होता हI।

उराखड मु त िवविवालय 43


योितषशा ी       MAJY-202
के म5ुम योग
च45ादाFधनाऽ4य6थो िवना भानुं न चेद् Xहः।
किUत् 6या;ा िवना च45ं लHनात् के 45गतोऽथ वा।।
योगः के मद्ु रमो नाम त1 जातोऽितगिहतः।
बुिfिवFा हीनU दGर5ापिRसंयुतः।।
च,_मा के साथ या च,_मा से 2, 12 भाव मD सयू - को छोड़कर अ,य .ह न ह# अथवा लhन
से के ,_ मD च,_मा को छोड़कर अ,य .ह न ह# तो के म_ुम नामक योग होता हI। इनमD ज,म लेने वाला
जातक अ6य,त िनि,दत, बिु s-िवा + /, दर_ और आपि से य] ु होता हI।
च45योग मK िवशेषता
अ4ययोगफलं हि4त च45योगो िवशेषतः।
6वफलं $ददातीित बुधो यनाद् िविच4तयेत।् ।
पवू eत शभु ाशभु च,_ज,य योग अ,य योग# का नाश करके अपना फल देता हI। इसीिलए
िवLान# को य6नपवू क - सव-थम इस योग को देखना चािहए।
3.4 अ#य + -

 .  B
 
लHने शुभयुते योगः शुभः पापयुतेऽशुभः।
jयय6वगैः शुभैः पापैः 7माFोगौ शुभाऽशुभौ।।
लhन शभु .ह# से य]
ु हो तो शभु योग एवं लhन के वल पाप .ह# से य] ु हो तो अशभु योग होता हI*
यिद लhन मD .ह न जो एवं िLतीय तथा Lादश मD शभु .ह ह# तो शभु योग और िLतीय-Lादश मD
के वल पाप .ह ह# तो अशभु योग होता हI।
   +
शभु योगोfवो वाHमी Sपशीलगण ु ाि4वतः।
पापयोगोfवः कामी पापकमा पराथयुक्।।
शभु योग मD उ6प,न जातक वाचाल तथा lप, शील एवं गणु # से य] ु होता हI। अशभु योग
मD उ6प,न जातक कामी, पापकमT तथा दसू रे के धन को अपहरण करने वाला होता हI।
/  $ 
के 45े देवगुरौ लHना/च45ा;ा शुभYHयुते।
नीचा6ताGरगृहैहtने योगोऽयं गजके शरी।।

उराखड मु त िवविवालय 44


योितषशा ी       MAJY-202
गजके सGरस...त6तेज6वी  *  *
 $ गुणस[प4नो राजि$यकरो नरः।।
लhन या च,_मा से के ,_ मD गl ु हो और के वल शभु .ह से य]ु या ‹ हो तथा गl
ु नीच,
अ त या श गु हृ ी न हो तो गजके शरी नामक योग होता हI। इस /  $ योग मD िजस जातक का
ज,म होता हI, / .  ज+ वी,  , C+ , सभी गणु # से स:प,न एवं राजिय होता हI।
अमल कितयोग
दशमेऽङगाRथा च45ात् के वलैU शुभैयुते।
स योगोऽमलक{यायः कितराच45तारक।।
राजपूयो महाभोगी दाता ब4धुजनि$यः।
 $ मामा गण ु ाढयोऽमलकितजः।।
लhन या च,_मा से दशम भाव मD के वल शभु .ह बैठे ह# तो अमलक7ित- नामक योग होता
हI। इस योग मD उ6प,न जातक जब तक च,_, तारायD रहते हI तब तक क7ित- य] ु होता हI और
राजपू य, C/ , , ब,धजु न# का िय, 55 , धमा-6मा, O>  D ,> दर यश से य] ु
होता हI।
पवतयोग
सaमे चाऽZमे शुfे शुभXहयुतेऽथवा।
के 45ेषु शुभयु,ेषु योगः पवतसं!कः।।
भाHयवान् पवतोप4नः वाHमी दाता च शाwिवत।्
हा6यि$यो यश6वी च तेज6वी पुरनायकः।।
सम-अम भाव मD कोई .ह िवमान न हो अथवा के वल शभु .ह हो तथा सम त शभु
.ह के ,_ मD बैठे ह# तो पव-त नामक योग होता हI। पव-त योग मD सम6ु प,न जातक भाhयवान, व]ा,
शाwZाता, हा यिय, यश वी, +.वान और नगरािधपित होता हI।
 
सुखेशेयौ िमथः के 45गतौ बिलिन लHनपे।
काहलो वा 6वभो/च6थे सुखेशे कमपाि4वते।।9।।
ओज6वी साहसी धतू Uतुरङगबलाि4वतः।
यिकंचद् XामनाथU काहले जायते नरः।।10।।

उराखड मु त िवविवालय 45


योितषशा ी       MAJY-202
लhनािधपित बलय] ु हो, सख ु ेश और गl ु पर पर के ,_गत ह# अथवा सख ु श
े और कम|श
एक साथ होकर अपने उjच, वरािश मD हो तो दोन# तरह से काहल नामक योग होता हI। इस योग मD
उ6प,न जातक ओज वी,  /, धत-,  > , बली और कुछ गाँव# का अिधपित हाता हI।
 
लHनेशे तुङगे के 45े गु]YZे तु चामरः।
शुभ;ये िवलHने वा नवमे दशमे मदे।।
लhनािधपित अपने उjच का होकर के ,_ मD हो और उस पर गl ु क7 ‹ि / 2D  >
.ह लhन, C, दशम या सम मD बैठे ह# तो चामर नामक योग होता हI।।
   +
राजा वा राजपू यो वा िचरजीवी च पि-डतः।
वाHमी सवकलािव;ा चामरे जायते जनः।।
चामर योग मD उ6प,न मनWु य राजा या राजपू य, दीघा-य,ु पिडत, व]ा और सम त  V
का Zाता होता हI।
HD
सबले लHनपे पु1-ष€पौ के 45ेगौ िमथः।
शङखो वा लHनकम\शौ चरे बिलिन भाHयपे।।
धनwीपु1संयु,ो दयालुः प-ु यवान् सुधीः।
पु-यकमा िचरंजीवी शङखयोगोfवो नरः।
लhनेश बलवान हो और पंचमेश तथा ष‘ेश पर पर के ,_ मD ि थत ह# अथवा भाhयेश
बलय] ु हो और लhनेश तथा दशमेश चर रािश मD बैठे ह# तो शङख नामक योग होता हI। इस योग मD
उ6प,न जातक धन, wी, पु से य] ु ,  >, पु या6मा, बिु sमान पु यकमT और िचरंजीवी होता हI।
$ 
सबले भाHयपे भेरी खगैः 6वा4योदया6तगैः।
सबले भाHयपे वाऽसौ के 45े शु7ेयलHनपैः।।
भाhयेश बली हो और 2, 12, 1, 7 भाव# मD सभी .ह बैठे ह# अथवा भाhयेश बली हो और
श`ु , गlु तथा लhनािधपित के ,_ मD हो तो भेरी नामक योग होता हI।
$   +
धनwीपु1संयु,ो भूपः कितगुणाि4वतः।

उराखड मु त िवविवालय 46


योितषशा ी       MAJY-202
B * D$ $ $ /  * 
भेरी योग मD उ6प,न जातक धन, wी एवं पु से य] ु ,  . , यश वी, O> , 1  ,4
सख ु ी और भोगी होता हI।
! 
सबले लHनपे खेटाः के 45े कोणे 6वभो/चगाः।
!H /तोऽ1 भूपो वा तसमः सुD$
लhनेश बलय] ु हो और अपने उjच या वरािश मD हो तथा अ,य .ह के ,_ या ि कोण मD
/  CN a4 नामक योग होता हI। इसमD उ6प,न जातक सख ु ी एवं राजा या राजस‹श होता हI।
ीनाथयोग
कामेशे कमगे तुङेग कम\शे भाHयपाि4वते।
योगः ीनाथसं!ोऽ1 जातः श7  !4
समेश दशम मD वोjच का होकर बैठा हो और कम|श नवमेश से य] ु हो तो Qीनाथ नामक योग
होता हI। इसमD उ6प,न जातक इ,_ के तaु य राजा होता हI।

कम\शे सुतगे के 45े बुधेऽक\ सबले 6वभे।
च45ात् कोणे गुरौ !े वा कुजे ला  4
धनwीपु1संयु,ः सुखी िव;ान् नृपि$यः।
तप6वी धमसंयु,ः शारदे जायते जनः।।
कम|श पंचम भाव मD ह#, बधु के ,_ मD हो और बलय] ु सयु - वरािश (5) मD हो, अथवा च,_मा से
O (5, 9) मD गl ु या बधु हो, आय मD भौम हो तो शारद नामक योग होता हI। इस योग मD उ6प,न
.  , wी, पु ािद से य] ु , P
> , िवLान, राजा का िय, तप वी और धािम-क होता हI।
म6ययोग
धमलHनगते सौ[ये पच ं मे सदसFतु े।
पापे च चतुरw6थे योगोऽयं म6यसं!कः।।
धम- तथा लhन मD शभु .ह बैठे ह#, 5चम मD शभु , अशभु .ह बैठे ह#, 4, 8 भाव मD पाप .ह
बैठे ह# तो म6 य नामक योग होता हI।
म6ययोग का फल
काल!ः क]णामूितगणधीबलSपवान
ु ।्

उराखड मु त िवविवालय 47


योितषशा ी       MAJY-202
यशोिवFातप6वी च म6ययोगे िह जायते।।
म6 य योग मD उ6प,न जातक काल को जानने वाला, कlणा का ितlप, गl
ु , 3, lप,
 , िवा और तप या से यु] होता हI।।22।।
कूमयोग
पु1ाGरमदगाः सौ[याः 6वभो/चसुxदश ं गाः।
ि1लाभोदयगाः पापाः कूमयोगः 6वभो/चगाः।।
कूमयोगे जनो भूपो धीरो धमगुणाि4वतः।
कितमानुपकारी च सुखी मानवनाय 4

शभु .ह 5, 6, 7 मD हो और पाप .ह 3, 11, 1 भाव मD, 25+-अपने उjच, अपनी रािश मD


बैठे ह# तो कूम-योग होता हI। कूम- योग मD उ6प,न मानव राजा, , धमा-6मा, O> , क7ित-य]
ु ,
]5, सख ू ी और मनWु य# का नायक (नेता) होता हI।
DI* 
भाHयेशे धनभाव6थे धनेशे भाHयभावगे।
लHनेशे के 45कोण6थे खड्गयोगः स कiयते।।
खड्गयोगे समुप4नो धनभाHयसुखाि4वतः।
शाw!ो बुिfवीयाjयः कृत!ः कुशलो नरः।।

भाhयेश धनाभाव मD हो और धनेश नवम भाव मD हो तथा लhनेश के ,_-ि कोण मD बैठा हो,
तो खड्गयोग होता है। खड्ग योग मD उ6पनन जातक , भाhय-सख ु # से य] ु शाwZाता, बिु s तथा
बल से य] ु , कृ तZ और कुशल मानव होता हI।
लgमी योग
के 45े मूलि1कोण6थे भाHयेशे वा 6वभो/चगे।
लHनािधपे बलाढये च लgमीयोगः $क{य
सुSपो गुणवान् भूपो बहOपु1धनाि4वतः।
यश6वी धमस[प4नो लgमीयोगे जनो भवेत।् ।
लhनेश बलवान हो और भाhयेश अपने मल ू ि कोण या अपने उjचे अथवा वगृह मD होकर के ,_ मD
बैठा हो तो लमी नामक योग होता हI। इस योग मD उ6प,न जातक स,ु दर, O> ,  . , बहOत पु एवं

उराखड मु त िवविवालय 48


योितषशा ी       MAJY-202
धन से समि,वत, यश वी और धमा-6मा होता हI।
  
लHने ि6थरे भृगौ के 45े च45े कोणे शभु ाि4वते।
मान6थानग  '   4
भूपो वा भूपतु8यो वा दाता भोगी सुखी जनः।
कुलमुयो गुणी िव;ान् जायते कुसुमाxये।।
ि थर रािश का लhन हो, श` ु के ,_ मD और च,_मा ि कोण मD शभु .ह से य] ु हो और
दशम भाव मD शिन बैठा हो तो कुसमु योग होता हI। इसमD उ6प,न मानव राजा या राजा के समान,
, , P
> ,  C+ ]C, गणु ी और िवLान होता हI।

ि;तीये पंचमे जीवे बुधशु7युतेि?ते।
?े1े तयोवा स[$ाaे योगः स  4
कलािनिधसमुप4नो गण ु वान् भूपवि4दतः।
 $4 सुखी जातो धनिवFासमि4वतः।।
िLतीय या पचं म भाव मD गlु हो और बधु श` ु के यतु या ‹ हो अथवा बधु श` ु के े मD
ि थत हो तो कलािनिध योग होता हI। इस योग मD ज,म लेने वाले मनWु य गणु ी, राजपू य, ,
P > , धनाढय और िवा से स:प,न होते हI।
क8प5ु 
लHनेश-तत‚षेश-त5‚षेश-4
के 45े कोणे 6वतुङेग वा योगः क8प*   4
सवrƒययुतो भूपो धमामा बलसंयुतः।
युfि$यो दयालुU पाGरजाते नरो भवेत।् ।
लhनािधप तथा लhनेशिन‘ रािश का वामी, पनु ः वह िजस रािश मD हो उसका वामी और
] C 5 -ये सभी के ,_-ि कोण मD अथवा अपने-अपने उjच मD बैठे ह# तो कaप_ुC  C
योग होता हI। इस योग मD उ6प,न जातक सम त स:पि से य] ु ,  . , धमा-6मा, 3, Cिय
और दयालु होता हI।
हGर-हर „ -
6वां4याZ6थै5्िवतीयेशाद् हGरयोगः शुभXहैः।

उराखड मु त िवविवालय 49


योितषशा ी       MAJY-202
कामेशाद् ब4धुधमाZि6थतैः सौ[यैहरािभ4
लHनेशाद् ब4धुकमाय-ि6थतै„र् xयः 6मृतः।
. /4 D  $ िव;ान् धनप1ु ािदसयं ुतः।।
 5 + 2, 8, 12 मD शभु .ह ह# तो हर योग होता हI। समेश से 4, 9, 8 थान मD शभु
.ह बैठे ह# तो हर योग होता हI। लhनेश से 4, 10, 11 भाव मD शभु .ह हो तो “” योग होता हI।
पवू ा-] तीन# योग# मD उ6प,न जातक सख ु ी, िवLान एवं धन-पु ािद से परपणू - होता हI।
Hनािधयोग
लHना4मदाZगैः सौ[यैः पापYHयोगविजतैः।
योगो लHनािधयोगोऽि6मन् महामा शाwिवसुखी।।
लhन से 7, 8 भाव मD शभु .ह बैठे ह# और उन पर पाप .ह क7 ‹ि न हो तथा यिु त भी न हो
तो लhनािध योग होता हI। इसमD ज,म लेने वाला मनWु य महा6मा, शाwZाता और सख ु ी होता हI*
पाGरजातािद वगि6थत लHनेश फल
लHनपे पाGरजात6थे सख ु ी वगVRमे xा]क्।
गोपुरे धनधा4याढया भूपः िसंहासने ि6थते।।
िव;ान् पारावते ीमान् देवलोके सवाहनः।
ऐरावति6थते जातो िवयातो भूपवि4दतः।।
लhनेश पारजातािद योग मD बैठे ह# तो जातक सख ु ी, अपने वगeम मD ह# तो नीरोग,
गोपरु ाश
ं मD रहने पर धन-धा,य से परपणू ,- िसहं ासन मD हो तो राजा, पारावत मD लhनेश हो तो िवLान,
देवलोक मD हो तो Qीमान् एवं ऐरावतांश मD लhनेश हो तो िवSयात और राजमा,य होता हI।
बोध  न 
1. वृहजा C4 + +P F /0*
. /C/ ख. कaयाण वमा- ग. भा क Q. C 
2. िन:न मD सनु फा योग िकस .ह से बनता है।
. सयू - ख. च,_मा ग. भौम घ. गfु
3. सयू - को छोड़कर अ,य पंचतारा .ह# मD कोई एक यिद च,_C + 98 वD थान मD कौन सा
 3 /0*
क. अनफा ख.सनु फा ग. दl
ु धरा घ. के म_ुम
4.  5 + 2, 8, 12 मD शभु .ह हो तो योग होता हI।
उराखड मु त िवविवालय 50
योितषशा ी       MAJY-202
क. हरहर P. / . C Q.  C
5. शभु .ह 5, 6, 7 मD हो और पाप .ह 3, 11, 1 भाव मD, 25+-अपने उjच, अपनी रािश मD बैठे
ह# तो कौन   होता हI।
.  जयोग ख. के म_ुम योग ग. कूम- योग घ. हर योग
6. >  मD उ6प,न .  0  / /0*
क. राजा ख. रंक ग. दानवीर घ. धािम-क
7. वृह6पराशर होरा शाw के णेता है।
.  /C/ P. 5  C>  ग. कमलकार घ. भा क

3.5 
! इकाई के अCय + पचा 4 15+ .   /0  च,_ा योग से ता6पय- है ) च,_मा .ह
Lारा बनने वाला योग। ाय: फिलत योितष के सम त .,थ# मD च,_ािद योग का उaलेख हमD ाGत
/ /0* > , गजके सरी आिद अनेक योग इसके उदाहरण है। च,_मा को .ह# मD सयू - के समान ही
 . /  /0* .0   /C/ / + /0- राजा रिव: शिशधरच...0। च,_C C 
कारक .ह है। अत: जातक के मन को सबसे यादा च,_मा ही भािवत करता है। .+ ज,म 
मD सयू - के थान से च,_मा के ,_ 9,I,=,9; मD ि थत हो तो उसके शील,, शा Zान, बिु s और
चातयु - ये अधम होते हI अथा-त् नह‚ होते हI। पणफर 8,J,:,9 मD ि थत हो तो सम अथा-त् न कम न
अिधक और आपोिलम 7,B,K,98 मD ि थत हो तो वरWठ अथा-त् उम होते हI। िजसका ज,म  
मD हOआ हो और च,_मा िजस िकसी रािश मD अपने या अिधिम के नवमाश ं मD ि थत हो तथा उसे
वृह पित देखता हो अथवा राि मD ज,म हOआ हो और च,_ क7 उपरोत ि थित हो तथा उसे श` ु
P+ /  / .    D P >  / /0*
3.6 पा रभािषक शदा
च45ा  ) च,_मा आिद .ह# बनने वाला *
 ) C
+ ) च,_C + 3+   
के 45 ) 9,I,=,9; भाव को के ,_ / + /0*
आपोि:लम ) 7,B,K,98

उराखड मु त िवविवालय 51


योितषशा ी       MAJY-202
के 45 ) 9,I,=,9; थान को के ,_ / + /0*
हGरहर योग )  5 + 2, 8, 12 मD शभु .ह ह# तो हर योग होता हI।
3.7 बोध  न के उ"र
1. 
2. P
3. 
4. 
5. 
6. 
7.P

3.8 स#दभ$ %#थ 


1. वृहजा C4 - च,_ाCया:*
2. वृह6पराशरहोराशा ) च,_ािदयोगाCया:*
3.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C
 +P ) कaयाणवमा-। िटकाकार- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*
3.10 िनब#धा,मक  न
1. च,_ािद योग से या ता6पय- है।
2. च,_मा से बनने वाले मख ु योग# का वण-न क7िजये।
3. > , 2 , दl ु धरा योग एवं उसके फल िलिखये।
4. के म_ुम योग का िव तृत वण-न क7िजये।
5. कूम-, PT4, लमी, >C> , कलािनिध एवं हरहर योग का वण-न क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 52


योितषशा ी       MAJY-202
 - 4 दा र2य
इकाई क संरचना

4.1  ता
4.2 उेय
4.3 दार_य योग परचय
4.3.1 िविवध कार के दार_य योग िवचार
4.3.2 अ,य  
4.4  
4.5 पारभािषक श&दा
4.6 बोध न# के उर
4.7 स,दभ- .,थ  
4.8 /  5 ठ्यसाम.ी
4.9 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 53


योितषशा ी       MAJY-202
4.1 ता
 तु ! " C.+ " -104 के थम खड क7 चतथु - इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) दार_य योग* !+ पवू - आपने च,_ािद योग से जड़ु े िवषय# का अCय  
/0* 23 आप इस इकाई मD ,दार_य योग- के बारे मD अCय + . /+ /0*
,दार_य योग- से ता6पय- दर_ता अथवा िनध-नता से है। कुडली मD कै से .ह# क7 ि थितय#
के कारण यह योग उ6प,न होता है। इस योग के होने से मानव जीवन पर या भाव पड़ता है। इन
 िवषय# का आप इस इकाई मD अCययन करD ग।े
1! इस इकाई मD हम लोग ,दार_य योग- के बारे मD उसक7 िविभ,न ि थितय# एवं
शभु ाशभु फल# जानने का यास करते है।
4.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• दर_  को परभािषत कर सकD गे।
• ,न कार के दार_य योग से परिचत हो जायDग*े
•  .,थ# मD विण-त दर_ योग को समझा सकD गे।
• दार_य योग के भाव को समझ लDग*े
• फलादेश कथन मD इस योग को ितपािदत करने मD समथ- हो सकD गे*
4.3 दा र2य योग
सव-िविदत /0  C  .  0 P> य# से भरा नह‚ होता। कभी सखु तो कभी द:ु ख
G -कभी यि] िकंकत-यिवमढू भी हो जाता है। राजा या दर_ होना मानव का उसके
कम-फल पर आधारत है। योितष शा मD .ह योग के आधार पर यह ऋिषय# ने अनसु ंधान कर
पता लगाया है िक कै से कोई जातक .ह के भाव तथा उसके दशािद मD दर_ता को ाGत  /0*
िविवध .,थ# + 1  5, ऋिषय# एवं आचायK के कथनानसु ार इस इकाई मD आप सभी के Zानाथ-
दार_य योग का उaलेP  . / /0*
दार_य योग का अथ- है- दर_ता या िनध-नता। इस योग के भाव से जातक क7 आिथ-क
ि थित अ6य,त   C. / .  /0, िजसके फल वlप वह अपने व अपने परवार का
पालन करने मD समथ- नह‚ रह जाता है। अतएव आइए सव-थम वृह6पराशरहोराशा के णेता

उराखड मु त िवविवालय 54


योितषशा ी       MAJY-202
5  C>  के वचन# का अCययन करते हI। मै ेय + 5Z  + . + पर आचाय- पराशर जी ने दार_य
योग का वण-न करते हOए इस कार कहा है िक -
 लो : -
 A 
लHनेशे च jयय6थाने jययेशे लHनमागते।
  ते YZे िनधनो जायते नरः।।
लHनेशे ष€भाव6थे ष€ेशे लHनमागते।
  न युगYZे धनहीनः $जायते।
लHने4दू के तुसंयु,ौ लHनपे िनधनं गते।
मारके शयुते YZे जातो वै िनधनो भवेत।्
ष€ाZमjययगते लHनपे पापसयं ुते।
धनेशे Gरपुभे नीचे राजवंयोऽिप िनधनः।।
ि1के शेन समायु,े पापYZे िवलHनपे।
शिनयु,ेऽथवा सौ[यैरYZे िनधनो नरः।।
म41ेशो धमनाथU 7मात् ष€jययि6थतौ।
YZौ चे4मारके शेन िनधनो जायते नरः।।
लो का अथ- है िक 5  . + / )  लhनेश यय भाव मD हो और ययेश लhन मD हो तथा
मारके श से यतु या ‹ हो तो जातक िनध-न होता हI। लhनेश ष‘ मD हो और ष‘ेश लhन मD हो तD
मारके श से यतु या ‹ हो तो जातक धनहीन होता हI। लhन या च,_मा के तु से यतु हो और लhनेश
अम मD हो तथा मारके श से यतु या ‹ हो तो जातक िनध-न होता हI। लhनेश 6, 8, 12 भाव मD हो;
पाप .ह से य] ु हो तथा धनेश अपनी नीच रािश का हो या श भु ाव मD हो तो जातक राजवश ं मD
उ6प,न होने पर भी िनध-न होता हI। ि क (6, 8, 12) थान के वामी से य] ु तथा शिन से य] ु
लhनेश हो, पाप .ह से ‹ एवं शभु .ह से अ‹ हो तो जातक िनध-न होता हI। पच ं मेश ष‘ मD एवं
नवमेश यय भाव मD हो और मारके श से ‹ हो तो जातक िनध-न होता हI।
पापXहे लHनगते रायधमािधपौ िवना।
मारके शयुते YZे जातः 6याि4नधनो भवेत।् ।
ि1के शा य1 भाव6था तfावेशािwकि6थताः।
पापYZयुता बालो दुःखा7ा4तU िनधनः।।

उराखड मु त िवविवालय 55


योितषशा ी       MAJY-202
च45ा7ा4तनवांशेशो मारके शयुतो यिद।
मारक6थानगो ' /ऽ1 िनधनो नरः।।
लHनेशलHनभागेशौ Gर<फर4lाGरगौ यिद।
   YZौ जातोऽसौ िनधनो नरः।।
शुभ6थानगताः पापाः पाप6थानगताः शुभाः।
िनधनो जायते बालो भोजनेन $पीिडतः।।
कोणेशYिZहीना ये ि1के शैः संयुता Xहाः।
ते सव\ 6वदशाकाले धनहाकराः 6मृताः।।
कारकाद् वा िवलHनाद् वा र4lे Gर<फे ि;जोRम!।
 HYZया धनहीनः $जायते।।
 दशमेश और नवमेश को छोड़कर अ,य पाप .ह लhनगत ह# तथा मारके श से य] ु या ‹ ह# तो
जातक िनध-न होता हI। ि क (6, 8, 12) थान के वामी िजस भाव मD ह# और उन भाव# के वामी
6, 8, 12 भाव मD बैठे ह# तथा पाप .ह से यतु या ‹ हो तो जातक दःु ख# से आ`ा,त एवं िनध-न
होता हI। च,_ा`ा,त नवमांश का वामी यिद मारके श से यतु या मारक थानगत हो तो जातक िनध-न
होता हI। लhनेश तथा लhन का नवमं ाशपित दोन# 6, 8, 12 मD मारके श के साथ हो या ‹ हो तो
जातक िनध-न होता हI। शभु .ह क7 रािश मD पाप .ह और पाप .ह क7 रािश मD शभु .ह बैठे ह# तो
जातक भोजन से भी पीिड़त रहता हI और िनध-न होता हI। जो .ह ि कोणेश क7 ‹ि से हीन हो और
6, 8, 12 के वामी से य] ु हो उस .ह क7 दशा या अ,तद-शा-काल मD धन क7 हािन होती हI।
आ6मकारक से या लhन से 8, 12 भाव मD आ6मकारक और लhनेश क7 ‹ि हो तो भी जातक
धनहीन (दर_) होता हI।।
कारके शो jययं 6व6मात् लHनेशो लHनतो jययम।्
वी?ते चेRदा बालो jययशीलो  * * * 
आ6मकारक रािश का वामी कारक से Lादश भाव को एवं लhनेश लhन से Lादश भाव को
देखते ह# तो जातक अिधक खच- करने वाला हेाता हI।।
दाGर5यभंग  -
अथ दाGर5ययोगां6तु कथयािम सभङगकान।्
धनसं6थौ तु भौमाकt किथतौ धननाशकौ।।
बुधेि?तौ महािवRं कु]ते ना1 संशयः।

उराखड मु त िवविवालय 56


योितषशा ी       MAJY-202
िनः6वतां कु]ते त1 रिविनयं यमेि?तः।।
महाधनयुतं यातं श4यYZः करोयसौ।
शिनUािप रवेYZया फलमेवं $य/छित।।
अथा-त्  धनभाव मD भौम-शिन ह# तो धननाशक योग होता हI; पर,तु यिद उन पर बधु क7
‹ि हो तो जातक महाधनी होता हI-इसमD कोई स,देह नह‚ हI। धनभाव मD रिव हो और उस पर शिन
क7 ‹ि हो तो जातक िनध-न होता है; िक,तु यिद शिन क7 ‹ि नह‚ हो तो जातक महाधनी होता हI।
धनभाव मD शिन हो और उस पर सयू - क7 ‹ि रहे तो जातक िनध-न होता हI, पर,तु रिव क7 ‹ि  /
तो जातक महाधनी होता हI।
ु ार द र2 योग 
जातकपा रजात के अनस
भाHयेव3  िनधनेव 
लHनािधपिदशनाथगु]यिद 6या* 
के 45ा;िहिदनकर6य करािभत9तो
 यिद िवहीनबलो दGर5:।।
अथा-त् अWटC भाव का वाC यिद भाhयािधपित से बलवान हो अथवा लhन, N   C  
का वामी वृह पित हो और के ,_ेतर भाव मD सयू - साि,नCय से िन तेज एवं िनब-ल होकर ि थत हो
तथा एकादश भाव का वामी बलहीन हो तो जातक दर_ होता है।
लाभाGरjययर4lपु1गृहगा /$ रम4दे4दु/
नीच6था यदा रिवकर/छ4ना6तदा िभ?ुक:।।
भाHय6था िदनेशतनय: सौ[येतरैरीि?तो
लHन6थ: शिशन4दनो रिवयुतो नीचांशगो िभ?क ु :।।
 वृह प , FC, शिन और बधु लhन + 99,B,98,:,J वD भाव# मD ि थत हो तथा अपनी-2 
रािश मD हो अथवा सयू -रिम से िन तेज ह# तो जातक िभ क
ु होता है। यिद शिन भाhय थान मD ि थत
हो तथा उस पर िकसी पाप .ह क7 ‹ि हो, सयू - के साथ बधु अपनी नीच रािश के नवमाश ं मD
लhन थ हो तो जातक िभ क ु होता है।
जीव!शु7रिवन4दिमपु1ा
र4lाGरGर: फसुतकमगता यिद 6या*
लHनेव3 $ jय )
नीचि6थतो रिवकरािभहतो दGर5:।।

उराखड मु त िवविवालय 57


योितषशा ी       MAJY-202
वृह प , 3> , श`ु शिन और मगं ल यिद :,B,98,J,9; भाव# मD ि थत हो तथा र:फे श 98
लhनेश से बलवान हो और अपनी नीचरािश मD सयू -रिमय# से आहत होकर िन ते. /  ! 
मD उ6प,न जातक दर_ होता है।
लHने   '
Y<टे च नीचगु]णा यिद िभ?ुक: 6या*
/  'मरपुरोिहतलHन
/$  Gरपुjययगते तु भवेˆGर5:।।
अथा-त् लhन मD चररािश और चररािश का नवांश हो और शिन तथा नीचरािश के वृह पित से ‹Wट /
तो जातक िभ क ु होता है। ज,मकाल मD गfु वरािश से िभ,न    /  B,98 मD हो तो
जातक दर_ होता है।
-*./ 

दGर5 

उराखड मु त िवविवालय 58


योितषशा ी       MAJY-202
0*% %#थ के अनुसार दा र2य योग 
दु6थैभावगृहेवरैरशुभसंयु:तेि?तैवा 7मा
qावै: 6यु6ववयोगिन: 6वमृतय: $ो:ता: कुह‰: पामर:।
हषV दु<कृित Gरयथािप सरलो िनभाHयदुयVगकौ
 ;ादश ते दGर5िवमले $ो:ता िवपिUज(:
लोक का अथ- है िक यिद लhन  लhनेश अशभु .ह से यतु या देखा जाता हो और लhनेश द:ु था
मD हो तो अवयोग होता है। जो अवयोग मD ज,म लेता है उसक7 ि थित बहOत चंचल होती है। ऐसा
यि] असजन# के साथ रहता है, न उसका शरीर अjछा / /0, न उसका चर अjछा / /0*
जातक वaपायु और अिसs रहता है, G घोर दGर5ता तथा अपमान को ाGत  /0*
फलदीिपका के रचियता म, ेवर जी का कथन है िक लhन और लhनेश के बलवान होने से सम त
कुड  >  / . /0, अ,यथा कुडली िनरथ-क हो जाती है।
अ$िसिfरितदुसहदै4यं 6व8पमायुरवमानमसिq:।
: कुचGरत: कुतनु: 6या/चंचलि6थितGरहा9य 
सवु चनश4ू यो िवफलकुटु[ब: कुजनसमाज: कदशनच?ु:।
मितसुतिवFािवभविवहीनो GरपुxतिवR: $भवित िन:6वे
 दसू रे गृह का वामी पाप.ह से यतु अथवा देखा जाता हो  B,:,98 इन तीन# थान# मD से
कह‚ हो और दसू रे घर मD पाप.ह बैठे ह# या पाप.ह दसू रे भाव को देखते हो तो ,िन: व- / /0*
िजसके पास अपना कुछ नह‚ होता अथा-त् वह दGर5 / /0* यहाँ िन: व का अथ- दर_ है। ऐसे
जातक के दाँत और ने खराब होते है। वह कटुवाणी बोलता है। उसका कुटु:ब    / /0*
िLतीय भाव से िवचारणीय सम त िवषय# धनािद का उसे सदैव अभाव रहता है।
अGरपGरभूत:  / $
 िवलजो हतबलिवR:।
अनुिचतकममपGरिख4नो
 ! &  : 6या !
 तृतीय थान का वामी द:ु थान मD ि थत हो और तृतीय भवन और तृतीयेश अशभु .ह# से यतु
 P + . /  - !" योग होता है। ऐसे योग मD उ6प,न मनWु य शु ओ ु ं से परािजत, 2> 
कम- करने वाला, परQम से िख,न और िनल-ज / /0* ]+ 3 G   /O / . /0
G ]+  "-बहन का सख ु भी नह‚ िमलता। ऐसा यि] अिनयंि त होता है।

उराखड मु त िवविवालय 59


योितषशा ी       MAJY-202
मातृवाहनसुxसुखभूषाब4धुिभिवरिहत: ि6थितशू4य:
6थानमाितमनेन हतं 6यात् कुिwयामिभरत: कुहOयोगे।।
अथा-त् यिद लhन से चतथु - गृह या चतथु |श अशभु .ह# से यतु या देखा जाता हो और चतथु |श
B,:,98 इन थान# मD से िकसी मD हो, तो कुह~योग होता है। इस योग मD उ6प,न .   C ,
 /, िम , आभषू ण तथा ब,धओ ु ं का सखु ाGत नह‚ होता। चतथु - गृह सख
ु था / /0
और इस गृह के खराब हो जाने से मनWु य सख ु हीन होता है। ऐसे यि] को कह‚ आQय नह‚ िमलता।
"  " E  0 3 / /0*
िवशेषत: यहाँ िटकाकार का कथन है िक शिन यिद चौथे घर मD हो और चौथे घर का वाC 
अशभु हो तो बढ़ु ापा बहOत दर_ता मD य  /  /0* नीचे दी गयी कुडली मD जातक का यवु ाव था
मD तो राज योग रहा िक,तु बढ़ु ापा अ6य,त दर_ता मD यतीत हOआ।
A & )

िप1ािजत?े1गहािदनाशकृत्
 गु]ि4न4दित धमविजत:।
$नाितजीणा[Mरधृ/च दुगतो
िनभाHययोगे बहOदु:खभाजनम।् ।
 कुडली के नवD थान का वामी लhन + B,:,98 वD भाव मD हो और नवमेश तथा नवम गृह पर
अशभु .ह# क7 ‹ि हो या वहाँ अुशभ .ह बैठै ह# तो -िनभाHय" योग होता है। जो यि] इस योग
मD पैदा होता है वह बहOत द:ु ख उठाने वाला, 5> + 5U+ 5/+   D दगु -ित को ाGत  /0*
नवम भाव धम- भाव है यह िबगड़ने से मनWु य साधुओ ं और गfु ओ ं क7 िन,दा करता है। ऐसे यि] को
जो कुछ पैि क स:पि ाGत होती वह भी सब नWट हो जाती है और वह परम दर_ता को ाGत

उराखड मु त िवविवालय 60


योितषशा ी       MAJY-202
 /0*
ऋणX6त उXो दGर5ाXग-यो
भवेकणरोगी च सौ‹ा1हीन:।
अकाŒ$वृRो  $
पर$े<य : 6याद् दGर5ाय
अथा-त् यिद ज,मकुडली मD 99 वD भाव का वामी द:ु थान मD हो तो दाGर5य योग / /0*  +
द:ु थान मD हो और वह अशभु .ह# से देखा जाता हो तो िविवध योग होते है। िक,तु ! 25
है िक यिद भाव मD सव- अशभु .ह हो+ + 2 >  3+ तो एकादश भाव मD पाप.ह बैठने से
दार_य योग बनता चािहये? िक,तु योितिषय# का आGत वाय है िक लाभे सव| श त:*   
मD भी कaयाण वमा- ने िलखा है िक )
लHन6था: सुखसं6था: दशम6थािप कारका: सव\।
.   के िचत् वांछि4त न त4मतं मुनी45ा& * 
2 : इसका अथ- है िक यिद एकादशेश ि क B,:,98 मD हो या अशभु .ह# से यतु हो अथवा देखे
जाते हो तो दार_य योग होता है। िजसक7 ज,मकुडली मD यह योग हो वह कज-दार, अ6य,त दर_,
कान क7 बीमारी से पीिडत,
़ अjछे भाईय# से हीन, दWु कम- करने वाला, अश त  3+
  ,  +  F G :> P ]W +   / /0*
बोध  न 
1.  5 + +P F /0?
.म, ेव ख. कaयाण वमा- ग. भा क Q. C 
2.  लhनेश यय भाव मD हो और ययेश लhन मD हो तथा मारके श से यतु या ‹ हो तो
जातक या होता हI?
. सखु ी ख. द:ु खी ग. िनध-न घ. राजा
3. िन:न मD ि क् था F  /0*?
. 9,I,= P.B,:,98 . I,K,98 Q. 8,J,:
4.  धनभाव मD भौम-शिन ह# तो F   / /0?
क. धनवृिs योग ख. धननाशक योग ग. राज योग घ. कोई नह‚
5.  कुडली के नवD थान का वामी लhन + B,:,98 वD भाव मD हो और नवमेश तथा
नवम गृह पर अशभु .ह# क7 ‹ि हो या वहाँ अुशभ .ह बैठै ह# तो योग होता है?
उराखड मु त िवविवालय 61
योितषशा ी       MAJY-202
क. िनभा-hय P.  C  ग. कूम- योग Q. /
6.  ज,मकुडली मD 99 वD भाव का वामी द:ु थान मD हो तो या / /0?
. दार_य ख. राज ग. दानवीर घ. धािम-क

4.5 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  सव-िविद /0  C  .
सदैव खिु शय# से भरा नह‚ होता। कभी सख ु तो कभी द:ु ख और कभी-कभी यि] िकंकत-यCR
भी हो जाता है। राजा या दर_ होना मानव का उसके कम-फल पर आधारत है। योितष शा मD .ह
योग के आधार पर यह ऋिषय# ने अनसु धं ान कर पता लगाया है िक कै से कोई जातक .ह के भाव
तथा उसके दशािद मD दर_ता को ाGत करता है। िविवध .,थ# + 1  5, ऋिषय# एवं आचायK
के कथनानसु ार इस इकाई मD आप सभी के Zानाथ- दार_य योग का उaलेP  . / /0*
दार_य योग का अथ- है- दर_ता या िनध-नता। इस योग के भाव से जातक क7 आिथ-क ि थित
अ6य,त   C. / .  /0, िजसके फल वlप वह अपने व अपने परवार का पालन
करने मD समथ- नह‚ रह जाता है।
4.6 पा रभािषक शदा
दाGर5य  ) िनध-न *
लHने ) लhन का वाC
ि1क् ) B,:,98 था*
के 45 ) 9,I,=,9; भाव को के ,_ / + /0*
आपोि:लम ) 7,B,K,98
ि1कोण ) J,K थान को ि कोण / + /0*
&+ ) 8,J,:,99
jय  ) 98  A  
4.7 बोध  न के उ"र
1. 
2. 
3. P

उराखड मु त िवविवालय 62


योितषशा ी       MAJY-202
4. P
5. 
6. 

4.8 स#दभ$ %#थ 


1. वृह6पराशरहोराशा ) दार_य योगाCया:*
2. जातकपारजात ) जातकभगं ाCया:*
2.  5 ) षWठाCया:*
4.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C +P ) कaयाणवमा-। िटकाका- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C  +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*
5. सवा-थ-िच,ताCO ) C
 +P ) Qी वDकटेश
6. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
4.10 ब#धा,मक  न
1. दार_य योग से या ता6पय- है।
2. पराशरोत दार_य योग का वण-न क7िजये।
3. फलदीिपका के अनसु ार दार_य योग P+*
4. दार_य योग पर िटGपO P+*
5. वकिaपत उदाहरण Lारा दार_य योग एवं दार_य भगं योग  C\ !+*

उराखड मु त िवविवालय 63


योितषशा ी       MAJY-202
 - 5 1
इकाई क संरचना

5.1  ता
5.2 उेय
5.3 C   परचय
5.3.1 िविभ,न कार के मारक योग का िवचार
5.3.2 C  योग का भाव
5.4  
5.5 पारभािषक श&दा
5.6 बोध न# के उर
5.7 स,दभ- .,थ  
5.8 सहायक पाठ्यसाम.ी
5.9 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 64


योितषशा ी       MAJY-202
5.1 ता
 तु ! " C.+ " -104 के थम खड क7 पाँचवी इकाई से स:बि,धत है। इस
इकाई का शीष-क है ) C  * !+ पवू - आपने  योितष से जड़ु े िविभ,न िवषय# का
अCय   /0* 23 15 ! !काई मD ,C  - के बारे मD अCय + . /+ /0*
C  योग का अथ- है- मृ6यतु aु य कWट दान करने वाला योग। व ततु : कुडली मD
धानतया िLतीय एवं सGतम भाव को मारक थान कहा गया है। इसिलए िLतीयेश एवं सGतC+
मारके श कहे जाते हI। अWटC थान मृ6यु का होता है। आप मारक योग के कारक .ह# के साथ- D
अ,य मारक योग के बारे मD इस इकाई मD अCययन करD गे।
1! इस इकाई मD हम लोग ,C  - के बारे मD तथा उसके फिलत िसsा,त# 
जानने का यास करते है।
5.2 उे य
! ! " + अCययन के पचा 4 15 )
• C   को परभािषत कर सकD गे।
• C   के कारक .ह को जान लDग।े
• मारक .ह F-कौन होते हI, यह बता सकD गे*
• कुडली फलादेश मD मारक योग को समझा सकD गे*
• C  योग का मह6व जान लDग*े

5.3 1
मृ6यु मानव जीवन का शाव 4 स6य है। कोई भी जीव इस मृ6यल
ु ोक मD ज,म लेने के पचा 4
एक न एक िदन मृ6यु को अवय ही ाGत / /0, इसमD कथमिप सश ं य नह‚ है। योितष शा
कुडली के .ह# के आधार पर मारक योग का िनधा-रण करता है। कुडली मD 8  = वD था 
C क थान कहते है। अWटम थान मृ6यु का होता है। इ,ह‚ थान# एवं उनमD ि थत .ह# के आधार
पर एवं अ,या,य आधार पर भी ऋिषय# ने मारक योग क7 कaपना क7 है। यिप हम सब जानते है
 .-मृ6यु सब िविध के हाथ से िनयि, त होता है। तथािप एकमा योितष शा C  
का िनधा-रण करने मD स म है। अत: इस इकाई मD हम ऋिषय# Lारा अनसु ,धा + + उ,ह‚

उराखड मु त िवविवालय 65


योितषशा ी       MAJY-202
िविवध मारक योग# का आपके Zानाथ- उaलेP + . /+ /0*
वृह6प  होराशा मD आचाय- पराशर जी ने मै ेय से मारक योग का वण-न करते हOए कहा िक -
 लो : -
 A 
तृतीयमZम6थानमायुः6थानं ;यं ि;ज!।
मारकं त;यय6थानं ि;तीयं सaमं तथा।।
त1ािप सaम6थानाद् ि;तीयं बलवRरम।्
$ 1 गताः पािपन6तेन संयुताः।।
ये खेटाः पािपन6ते च सव\ मारकसं!काः
  पाके षु स[भवे िनधनं नण ृ ाम।् ।
अ8प-मkयम-पूणायुः $माणिमह योगजम।
िव!ाय $थमं पुंसां मारकं पGरिच4तयेत।् ।
5  + मै ेय + कहा िक हे िLज! ािणय# के तृतीय तथा अम थान आयु थान होते हI।
इन दोन# के यय थान, िLतीय तथा सम भाव मारक थान होते हI। उन दोन# मारक थान# मD
िLतीय थान बल मारक थान होता हI। उन (सम, िLतीय) थान# के तथा उन (सम, िLतीय)
थान# मD रहने वाने पाप .ह, िLतीयेश तथा समेश के साथ रहने वाले पाप .ह-+  C -
संZक होते हI। उ,ह‚ .ह# क7 दशा या अ,तद-शा मD अaप, मCय, पणू ा-यु आयदु ा-य के अनl
ु प मृ6यु क7
स:भावना होती हI। अतएव पहले योगज के अनसु ार अaप, मCय, दीघ- आिद आयदु ा-य का Zान
करके तदन,तर C       /*
अलाभे पनु रेतेषां स[ब4धेन jययेिशतुः।
:विच/छुभानां च दशा6वZमेशदशासु च।
के वलानां च पापानां दशासु िनधनं :विचत।्
क8पनीयं बध ु ैनृणां मारकाणामदशने।।
गिणत से सम6ु प,न आयदु ा-य के योगानसु ार ािणय# को पवू क
- िथत मारक का समय उपल&ध
न हो तो ययेश के स:ब,धी शभु .ह क7 दशा मD भी मरण होता हI एवं अमेश क7 दशा मD या के वल
पाप .ह क7 दशा मD भी कभी-कभी मरण होता हI। इस कार पवू ाे -] मारके श के अभाव मD ािणय#
के मरण का िवचार िवLान# को कaपना Lारा करना चािहए।
सयिप 6वेन स[ब4धे न हि4त शुभभुि,षु।

उराखड मु त िवविवालय 66


योितषशा ी       MAJY-202
हि4त सय9यस[ब4धे मारकः पापभुि,षु।।
C -कारक .ह अपने स:ब,धी होने पर भर शभु .ह क7 अ,तद-शा मD नह‚ मारता पर,तु
अपने से स:बि,धत न होने पर भी पाप.ह क7 अ,तद-शा मD मृ6यदु ायक होता हI।
मारकXहस[ब4धाि4नह4ता पापकृ/छिनः।
अित7[येतरान् सवान् भवय1 न संशयः।।
यिद शिन पाप फलद हो और मारके श के साथ उसका स:ब,ध (‹, >  ) /  
C -कारक .ह# को हटाकर वतः मारक होता हI, इसमD स,देह नह‚ हI।
अथाऽ4यदिप वgयािम ि;ज! मारकल?णम।्
ि1िवधाUायुषो योगाः 6व8पायुममkयमोRमाः।।
;ाि1शं त् पवू म8पायुमkयमायु6ततः परम।्
चतु<षZयाः पुर6ताRु ततो दीघमुदाxतम।् ।
उRमायुः शतादूवं !ातjयं ि;जसRम!।
जनैिवhशितवषा4तमायुŽञातुं न श:यते।।
/-  -िचिकसाFैबालर?ां िह कारयेत।्
िsय4ते िपतृदोषैU के िच4मातृXहैरिप।।
 त् 6वाGरZयोगा/च ि1िवधा बालमृयवः।
4  !णामायुगणयेद् ि;जसRम!।।
हे िLज! और भी मारक .ह के ल ण कहता ह~।ँ पवू - मD जो अaपाय,ु मCयमायु और पणू ा-यु -
यह तीन कार का आयदु ा-य बताया गया हI, उनमD 32 वष- से पवू - अaपाय,ु तदन,तर 64 वष-पय-,त
मCयमायु और उसके बाद 100 वष- तक दीधायु तथा 100 वष- से ऊपर उमायु जानना चािहए। 20
वष- तक जातक# के आयदु ा-य का िनधा-रण करना किठन होता हI। अतः ज,म से 20 वष- तक पाप.ह#
से र ा हेतु जप-/C, िचिक6सािद Lारा जातक क7 र ा करनी चािहए। 20 वष- तक कोई िपता के
6 +, " C + 6 +, कोई अपने पवू ा-िज-त कुकम- से उ6प,न अर योग# से मृ6यु को ा हो
जाते हI। अतः बाaयाव था मD मरण के तीन कारण होते हI। इसिलए 20 वष- के बाद ही आयदु ा-य का
O + 1> का िनधा-रण करना चािहए।
अथाऽ4यदिप वgयािम नृणां मारकल?णम।्
अ8पायुयVगजात6य िवपfे च मृितभवेत।् ।
मkयायुयVगज6यैवं $यरौ च मृितभवेत।्

उराखड मु त िवविवालय 67


योितषशा ी       MAJY-202
दीघायुयVगजात6य वधभे तु मृितभवेत।् ।
;ािवंश{यंशपUैव तथा वैनािशकािधपः।
िवपRारा-$यरीशा वधभेश6तथैव च।।
आF4तपौ च िव!ेयौ च45ा7ा4तगृहाद् ि;ज!।
  D तौ शुभौ चे5ोगदौ 6मृतौ।।
ष€ािधपदशायां च नृणां िनधनस[भवः।
ष€ाZGर<फनाथानामपहारे मृितभवेत।् ।
मारका बहवः खेटा यिद वीयसमि4वताः।
तRˆशा4तरे िव$! रोगकZािदस[भवः।।
उ, ये मारका6तेषु $बलो मुयमारकः।
तदव6थानुसारेण मृितं वा कZमािदशेत।्
हे िLज! और भी मारक के ल ण कहता ह~।ँ अaपायु योग मD ज,म लेने वाले जातक का
िवपि नामक तारा मD, मCयमायु वाल# को 6यर नामक तारा मD और दीघा-यु योग मD ज,म लेने
वाल# को वध नामक तारा मD मारण क7 स:भावना करनी चािहए। लhन के _ेWकाण से 22 वाँ जो
_ेWकाण हो, उसका जो वामी हो उसमD, वैनािशक न (अपने ज,मन मD 23 वाँ न ) का
वामी एवं िवपत,् 6यरी, वध ताराओ ं के वामी च,_मा िजस रािश मD हो, उससे िLतीय तथा Lादश
थान के वामी, दोन# पापी .ह हो तो ये सब मारक-कारक होते हI। यिद दोन# शभु .ह ह# तो
रोगकारक होते हI। ष‘ेश क7 दशा मD भी मरण क7 स:भावना होती है। मारके श क7 महादशा मD ष‘ेश,
अमेश तथा Lादशेश क7 अšतदशा मD भी मृ6यु क7 स:भावना रहती हI। यिद बहOत मारक-कारक .ह
ह# तो उनमD जो .ह सवा-िधक बलय] ु हो उसक7 दशा या अ,तद-शा मD मरण या रोगािद ककारक
समय का ादभु ा-व होता हI। उ] मारके श कारक .ह# मD सबसे बली .ह ही मSु य मारक होता हI।
अतः उस .ह क7 अव था के अनl ु प जातक का मरण या कदा C   .   /*
राहO-के तु का मारकविववेचन
राहOUेदथवा के तुलHने कामेऽZमे jयये।
मारके शा4मदे वाऽिप मारके  4
मारकः स च िव!ेयः 6वदशा4तदशा6विप।
मकरे वृिUके ज4म राहO6त6य मृित$दः।।
ष€ाऽZGर<फगो राहO6तˆाये कZदो भवे*

उराखड मु त िवविवालय 68


योितषशा ी       MAJY-202
शुभXहयुतो YZो न तदा कZकृ4मतः।।
राहO अथवा के तु लhन मD, सम, अम या Lादश भाव मD हो अथवा मारके श से सम मD हो
या मारके श से य]ु हो तो वह भी मारक होता हI। अतः उसक7 दशा या अ,तद-शा मD मरण का भय
होता हI। मकर और वृिxक लhन मD ज,म लेने वाल# के िलए राहO मारक होता हI। उसक7 दशा या
अ,तद-शा मD मृ6यु क7 स:भावना होती है। ष‘, अम, Lादश मD राहO ि थत हो तो उसक7 दशा मD
कदायक होता हI। यिद उस पर शभु .ह से य] ु अथवा ‹ न हो तो ककारक नह‚ होता।
तृतीय 6थान से मरण &- )
लHनातृतीयभावे तु बिलना रिवणा युते।
राजहेतोU मरणं त6य !ेयं ि;जोRम!।।
तृतीये चे4दुना यु,े YZे वा यgमणा मृितः।
कुजेन LणशwािHन-दाहाFैमरणं भवेत।् ।
!$ -राहOmयां यु,े YZेऽिप वा ि;ज!।
िवषािततो मृितवा/या जला;ा विuपीडनात।् ।
गतादु/चात् $पतनाद् ब4धनाद् वा मृितभवेत।्
तृतीये च45माि4दmयां यु,े वा वीि?ते ि;ज!।।
कृिमकु€ािदना त6य मरणं भवित ध्रवम ु ।्
!$ 3य ु,े वीि?ते वािप तेन च।।
वरेण मरणं त6य िव!ेयं ि;जसRम!।
तृतीये गु]णा यु,े YZे शोफािदना मृितः।।
तृतीये भृगयु ुHYZे मेहरोगेण त4मृितः।
बहOखेटयुते ति6मन् बहOरोग भवा मृितः।।
लhन से तृतीय भाव बलवान रिव से यतु हो तो राजा के कारण से उसक7 मृ6यु होती है। तृतीय भाव
च,_मा से यतु या ‹ हो तो यम ( य) रोग से उसक7 मृ6यु होती हI। यिद तृतीय भाव मगं ल से य] ु
या ‹ हो तो vण (घाव) या अिhन से, तृतीय मD शिन, राहO से यतु या ‹ हो तो िवष से या जल से
अथवा अिhनपीड़ा से या गड्डे मD िगरकर या उjच थान से िगरकर या ब,धन से उसक7 मृ6यु हो
जाती हI। तृतीय भाव मD च,_मा और माि,द (गिु लक) य] ु हो या ‹ हो तो क7ड़े से अथवा कु‘ािद
 +, तृतीय भाव मD बधु से य]ु हो या ‹ हो तो वर से, तृतीय भाव मD गl ु से य]
ु या ‹ हो तो
 1  +, तृतीय भाव मD श` ु से य] ु या ‹ हो तो मेह रोग से उसक7 मृ6यु हो जाती हI।

उराखड मु त िवविवालय 69


योितषशा ी       MAJY-202
यिद तृतीय भाव मD बहOत .ह# के योग अथवा ‹ि हो तो उन सभी .ह# के कारण# से उस जातक क7
मृ6यु जाननी चािहए।

मरण का 6थान- )
तृतीये च शुभैयु,े शुभदेशे मृितभवेत।्
पापैU ककटे देशे िमैिम6थले मृितः।।
यिद तृतीय भाव शभु .ह से यतु अथवा ‹ हो तो शभु थान (काशी आिद पु य तीथK) मD
मरण होता हI। यिद तृतीय भाव पापी .ह# से य] ु हो या ‹ हो तो अशभु थान मD मरण होता हI।
शभु तथा अशभु दोन# .ह तृतीय भाव मD बैठे हो या देखते हो तो मCयम थान मD उस .  
/+   होता हI।
!ाना!ानपूवक मरणयोग
तृतीये गु]शु7ाmयां यु,े !ानेन वै मृितः।
अ!ानेनाऽ4यखेटैU मृितŽञेया ि;जोRम!।।
तृतीय भाव गlु -श`ु य]ु हो तो वह जातक Zानपवू क - मरता हI। हे िLजोम! अ,य .ह
तृतीय भाव मD ि थत ह# तो जातक का अZानपवू क - मरण होता हI।।33।।

मरण देश!ान
चरराशौ तृतीय6थे परदेशे मृितभवेत।्
ि6थरराशौ 6वगेहे च ि;6वभावे पिथ ि;ज!।।
तृतीय भाव मD चर रािश हो तो परदेश मD मरण होता हI। ि थर रािश हो तो वदेश मD एवं
िL वभाव रािश हो तो माग- मD मरण करना चा/*
अZम6थ Xह से मृयु का कारण-!ान
लHनादZमभावा/च िनिमRं किथतं बध ु ैः।
सूय\ऽZमेऽिHनतो मृयुU4दे्र मृयुजलेन च।
शwाद् भौमे वरा!े च गुरौ रोगात् ?ुधा भृगौ।
  !युिव!ेयो ि;जसRम!।।
लhन से अम भाव मD सयू - ि थत हो तो अिhन के माCयम से उसक7 मृ6यु िवLान# ने कही हI।
अम च,_ हो तो जल से, अम मगं ल हो तो शw से, अम बधु हो तो वर से, अम थ गl ु हो

उराखड मु त िवविवालय 70


योितषशा ी       MAJY-202
  +, श`
ु हो तो धु ा से और अम शिन हो तो Gयास से उस जातक क7 मृ6यु हो जाती हI*
तीथातीथ मK करण- )
अZमे शभ ु YHयु,े धमपे च शभ ु ैयुते।
तीथ\ मृित6तदा !ेया पापायैर4यथा मृितः।।
अम भाव शभु .ह से य] ु या ‹ हो और धम|श शभु .ह से यतु हो तो वह जातक िकसी
तीथ- मD देह-6याग करता हI। अम पाप.ह से युत, ‹ हो और धम|श पाप.ह से यतु हो तो तीथ- +
अ,य मरण कहना चािहए।
शवपGरणाम
अH4य[बु िमभ{यंशैŽञेयो मृयुगहाितै ृ ः।
पGरणामः शव6याऽ1 भ6मस:ं लेदशोषकै ः।।
jयालवगYकाणै6तु िवड[बो भवित ध्रवम ु ।्
शव6य 6वृगालाFैगlकाकािदपि?4

लhन से अम थान मD अिhन त6व वाले .ह का _ेWकाण हो अथा-त् अशभु .ह का _ेWकाण हो तो
जातक का शव अिhन मD जलाया जाता हI। जलचर वाले .ह का _ेWकाण हो तो जल मD फD  .
हI। िमQ (शभु तथा अशभु ) का _ेWकाण रहने से जातक का शव सख ू जाता हI। यिद याल (सप-)
_ेWकाण हो तो कुकुर, Qृगालािद िहसं क ज,तओ ु ं से या कौवा आिद पि य# से चंचु Lारा च#च से
  का भ ण िकया जाता हI।
jयाल 5े<काणकथन
ककटे मkयमोऽ4यU वृUकाFाि;तीयकौ।
मीनेऽि4तमिwभागैU jयालवगाः $कितताः।।
कक- ट रािश के िLतीय तथा तृतीय देर् Wकाण, वृिxम रािश के थम तथा िLतीय _ेWकाण एवं
मीन रािश के तृतीय _ेWकाण को याल वग- (सप- _ेWकाण) कहते हI।
पवू ज4म-योिन और 6थान- )
रिवच45बला7ा4तं {यंशनाथे गुरौ जनः।
  *  यातो िव!ेयो ि;जसRम!।।
श7ु े 4;ोः िपतृलोकाRु म{या/च रिवभौमयोः।
बुधाऽऽ‚योनरकादेवं ज4मकाला;देत् सुधीः।

उराखड मु त िवविवालय 71


योितषशा ी       MAJY-202
रािश और च,_मा मD जो बली हो वह .ह यिद गl ु के _ेWकाण मD हो तो जातक देवलोक ये
आया है अथा-त् वह इससे पवू ज- ,म मD देवलोक मD रहता था, ऐसा जानना चािहए। यिद श` ु या
च,_मा के देर् Wकण मD हो तो वह िपतृलोक (च,_लोक) से आया हI। इसी   -भौम के _ेWकाण
मD मृ6युलोक से एवं बधु या शिन के _ेWकाण मD हो तो वह जातक नरक से आया है, b . 
 /*
मरण के अन4तर ग4तjय 6थान
गु]U45िसतौ सूयभौमौ !ाकt यथा7मम।्
देवे4दुभू[यधोलोकान् नय4य6ताGरर4lगाः।।
लhन से 7, 6, 8 भाव# मD गl ु गया हो तो .  देवलोक मD जाता हI एवं उ] थान# मD च,_मा-श` ु
हो तो जातक च,_लोक (िपतृलोक) मD जाता हI तथा सयू --मंगल हो तो म›य (भल ू ोक) मD और बधु -
शिन उ] भाव# मD ि थत हो तो अधोलोक (नरक) मD मरण के अन,तर जातक जाता हI। उ] थान#
मे अिधक .ह बैठे हो तो जो .ह सवा-िधक बली हो, वह .ह िजस लोक का कारक हो, उसी लोक मD
CO + बाद जातक जाता हI।
B) त1 Xहाभावे र4lाGर{यंशनाथयोः।
 3 $  / लोके नयय4ते ि;जोRम!।।
हे िLजोम! यिद 6।7।8 भाव# मD .ह नह‚ हो तो ष‘ और अC   के _ेWकाणािधप मD
जो .ह बली हो, उस .ह के लोक मD मरण के पxात् जीव चला जाता हI।।
त6य 6वो/चािदसंि6थया वरमkयाऽधमाः 7मात।्
तR8लोके ऽिप संजाता िव!ेया ि;जसRम!।।
हे िLजोम! पवू क
- िथत भाव# मD पवू e] .ह क7 उjचािद ि थितरश उस लोक मD भी जीव
को उम, मCयम एवं अधम पंि] मD जानना चािहए। अथा-त् उjच थ .ह हो तो देव आिद लोक# मD
वह जीव Qे‘, नीच मD हो तो नीच Qेणी का और मCय मD .ह हो तो मCयम Qेणी का होता हI।
अ4यान् मारकभेदांU रािशXहकृतान् ि;ज!।
दशाkयाय$सङे गषु कथिय<यािम सुLत!।।
लोकाथ- /0  हे िLज! अ,य जो .ह तथा रािश के माCयम से मारक भेद हI, ]  
दशाCयाय-संग मD कह~गँ ा।
23 / A वृह6पराशरहोराशाw के पचा 4 अ,य म, ेवर Lारा िलिखत .,थ  5 + C 
योग का िवचार करते हI।

उराखड मु त िवविवालय 72


योितषशा ी       MAJY-202
+ $  के अनुसार मारक अथवा मृयु    #
शशांकसंयु:तYगणपूवत:।
खरि1भागे!  ' 
ि1कोणगे वा मरणं शरीGरणां
शिश4य) 6याRनुर4lGर:फगे।।
अथा-त् मृ6यु के समय च,_C / A / ? िन:न थान# मD च,_मा क7 ि थित हो सकती है-
1. ज,म  िजस _ेWकाण मD च,_मा हो उसमD जब गोचर वश च,_C 1 . +*
2. ज,मकाल मD च,_मा िजस थान पर /0 वहाँ से गणना करने पर जो बाइसवाँ _ेWकाO / ] 88
वD _ेWकाण के वामी क7 रािश मD*
3. c5 4. लhन मD 5. लhन से अWटम मD 6. लhन से Lादश मD। इनमD से कह‚ भी च,_मा क7 ि थित
/   /0*
िनधनेव भानािव4दौ  
िनधनािधपसयं ु:ते न?1े िनिदशे4म& * 
अथा-त् यिद ज,म लhन से अWटम का वामी जहाँ ि थत हो उस रािश मD सयू - गोचरवश जा रहा हो
और च,_मा िजस रािश मD ज,मकुडली मD बैठा हो उस मD जा रहा हो अथवा ज,म लhन से अWटC+
ज,मकुडली मD िजस न मD हो उस न मD च,_मा गोचरवश हो तो जातक क7 मृ6यु /   /0*
ित<ठ4य<टमGर: फष<ठपतयो र4lि1भागेव
माि4दयqवनेषु ते<विप गृहे<वाकtडयसूय\4द :
सव\ चारवशा$याि4त िह यदा मृयु6तदा 6या4नृ&
तेषामंशवशा;द4तु िनधनं तRि1कोणे' 
अथा-त् कुडली मD िन:न क7 ि थतयाँ देखनी चािहए-
1.अWटC+
2.य+
3. षWठे
4. अWटम भाव मCय िजस _ेWकाण मD है उसका वाC
5. माि,द।
.3  , गfु , सयू - और च,_ उपय-ु त B,:,98 रािशय# मD जा रहे हो तो जातक क7 मृ6यु
/   /0*

उराखड मु त िवविवालय 73


योितषशा ी       MAJY-202
बोध  न 
1. कुडली मD मारक था F / /0*
. 8, = P. J,: . 9,J Q. B,98
2. 5  . + 2>  मृ6यु का था /0?
. 8,J P. 7,: . 9,I Q. J,=
3. िन:न मD मारके श होता है।
क. लhन का वामी ख.मारक थान का वामी ग. िLतीय का वामी घ. कोई नह‚
4. लhन से अम थान मD अिhन त6व  ले .ह का _ेWकाण हो अथा-त् अशभु .ह का _ेWकाण
/  .  +   या / /0*
. अिhन मD दाह ख. जल मD बहना ग. प ी भोजन घ. पशु भोजन
5. लhन से 7, 6, 8 भाव# मD गl ु गया हो तो जातक मृ6यु + 3 / A जाता हI
क. नरक लोक मD P. देवलोक मD ग. पाताल मD घ. नाग लोक मD
6. तृतीय भाव गl ु -श` ु य]
ु हो तो वह जातक कै से मरता हI।
. Zानपवू क- ख. अZानता मD ग. न‚द मD घ. काय- करते हOए
7. िन:न मD म, ेवर िलिखत .,थ का नाम या /0*
क. जातकपारजात ख. फलदीिपका ग. वृह6सिं हता घ. .हलाघव
5.5 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  मृ6यु C व जीवन का शाव 4
स6य है। कोई भी जीव इस मृ6यल ु ोक मD ज,म लेने के पचात् एक न एक िदन मृ6यु को अवय /
ाGत / /0, इसमD कथमिप संशय नह‚ है। योितष शा कुडली के .ह# के आधार पर मारक
योग का िनधा-रण करता है। कुडली मD 8  = वD थान को मारक थान कहते है। अWटम था
मृ6यु का होता है। इ,ह‚ थान# एवं उनमD ि थत .ह# के आधार पर एवं अ,या,य 1  5 
ऋिषय# ने मारक योग क7 कaपना क7 है। यिप हम सब जानते है िक जीवन-मृ6यु 3  + / D
से िनयि, त होता है। तथािप एकमा योितष शा मारक योग का िनधा-रण करने मD स म है।
5.6 पा रभािषक शदा
  ) मृ6यु + +   *
 6था ) 8,=,:

उराखड मु त िवविवालय 74


योितषशा ी       MAJY-202
च45  ) 5 N 
B  )   2D  
आपोि:लम ) 7,B,K,98
के 45 ) 9,I,=,9; थान को के ,_ / + /0*
ि1क 6था - B ,:,98
5.7 बोध  न के उ"र
1. 
2. P
3. P
4. 
5. P
6. 
7.P

5.8 स#दभ$ %#थ 


1. वृहजा C4 - च,_ाCया:*
2. वृह6पराशरहोराशा ) च,_ािदयोगाCया:*
5.9 .  %23 साम%ी
1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C
 +P ) कaयाणवमा-। िटकाकार- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*
5.10 िनब#धा,मक  न
1. मारक योग से या ता6पय- है।
2. महिष- पराशर Lारा णीत मख ु मारक योग# का वण-न क7िजये।
3. कुडली मD मारक थान कौन होता है। उससे मारक योग का िनधा-रण कै से करते है।
4. C   5 िटGपO P+*

उराखड मु त िवविवालय 75


योितषशा ी       MAJY-202

खड - 2
  

उराखड मु त िवविवालय 76


योितषशा ी       MAJY-202
 - 1 िवंशो"री * +
इकाई क संरचना

1.1  ता
1.2 उेय
1.3 िवश
ं ोरी दशा साधन परचय
1.3.1 गिणतीय प
1.3.2 िवश ं ोरी   - वृह6प  + 2> 
1.4  
1.5 पारभािषक श&दा
1.6 बोध न# + उर
1.7 स,दभ- .,थ  
1.8 सहायक पाठ्यसाम.ी
1.9 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 77


योितषशा ी       MAJY-202
1.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के िLतीय खड क7 पहली इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) िवश
ं ोरी दशा साधन* !+ पवू - आपने िविभ,न योग# से जड़ु े िवषय# का अCय
कर िलया है। अब आप इस इकाई मD दशाओ ं के बारे मD अCय + . /+ /0*
,  सामा,य अथ- है ) ि थित। जातक के जीवन मD कालानरु ोधेन उसक7 िकस
कालखड मD या ि थित है। इसका Zान दशाओ ं के माCयC +  . /0* शोरी दशा 98;
वषK क7 होती है। इसी को आधार मानकर भारत के अिधकािधक भभू ाग मD कुड   +
 . /0*
1! इस इकाई मD हम लोग ,िवश ं ोरी दशा साधन- के बारे मD उसक7 गिणतीय िसsा,त#
को जानने का यास करते है।
1.2 उे य
! ! " के अCययन के पचा 4 15 )
• िवश
ं ोरी को परभािषत कर सकD गे।
• .ह# क7 आयु दशा वष- से परचित हो जायDग।े
• िवश
ं ोरी दशा का साधन कर सकD गे*
• िवश
ं ोरी दशा के मह6व को बता सकD गे।
1.3 िवंशो"री दशा साधन
ऋिषय# ने ि काल ( , वत-मान तथा भिवWय)  > > . + +  
िनमा-ण िकया है। दशा अनेक कार क7 होती है। उनमD िवंशोरी, अWटोरी तथा योिगनी का चार
िवशेष है। सामा,यतया दशा का शाि&दक अथ- है ) काल क7 ि थ *   > +  .  +
cपर या-या भाव पड़ेगा। इसका Zान दशाओ ं के माCयम से ही िकया जाता है। वत-मान समय मD
देश के पवू eर देश तथा राज थान मD ाय: िवश
ं ोरी दशा का उपयोग िवशेष lप से करते हI।
िस,ध, पंजाबािद मD योिगनी दशा तथा दि ण मCय भारत तथा गजु रात मD अWटोरी दशा को य/ 
मD िवशेष lप से .हण करते हI। पर,तु शा ीय वचन इस िवषय मD कुछ िभ,न  2+ /0-
दशा9य<टोRरी शु:ले कृ<णे िवंशोRरी मता। (  था  )
अथा-त् शु ल प मD ज,म हो तो अWटोरी दशा तथा कृ Wण प मD ज,म हो तो िवश
ं ोरी द +
 /*
उराखड मु त िवविवालय 78
योितषशा ी       MAJY-202
 िवंशोRरी चा1 Xाvा ना<टोRरी मता। (     )

न पर से सािधत दशा िवश ं ोरी ही लेनी चािहए। अWटोरी दशा नह‚। इसी लोक का पाठा,त
ाचीन िवLान# के घर मD ह त िलिखत .,थ# मD िन:नP C है। दशा िवश ं ोरी .ाyा मता
चाWटोरी तथा िवश
ं ोरी दोन# दशायD फलाफल के िवचार के िलए उपयु त हI।
कृ<णप?े िदवाजात: शु:लप?े यदा िनिश।
िवंशोRरी दशा $ो:ता'4य1ा9य<टोRरी 6मृ
कृ Wण प मD िदन मD तथा शु ल प मD राि मD ज,म हो तो िवशं ोरी दशा .हण करनी चािहए। इसके
िवपरीत हो तो अWटोरी।
गुजरे क/छसौरा<े पांचाले िस4धुपवते।
एते<व<टोRरी े<ठा'4य1 िवश ं ोRरी मता।।
.>  , कjछ, कािठयावाड़ सौराWœ, 5   5. 3, तथा िस,धु पव-त मD अWटोरी दशा .हण
करनी चािहए। अ,य िवश ं ोरी दशा को .हण करD ।
िवशं ोरी 98; वष- क7 होती है। इसमD सयू -, च,_, C, राहO, गfु , , 3> , के तु तथा श`

इनक7 `मश: दशा रहती है। इ,ह‚ वार# के `म से कृ िकािद 8= न # क7 तीन आवृि हो जाने
+ -एक .ह मD तीन-तीन न रहते हI।
िवशं ोRरी दशा च7 #
ह दशा सयू  च   राह गु     शु

दशा वष         
न  . $, %, &. '(. *. . '+. . . आ. &. &., -. .,
0!0, . ). वा. . ., .-. ये.  . !.,
0#0 ., #.

जातक का ज,म न िजस .ह के कोWठक मD पड़े, वह उसक7 ज,म दशा होगी। उस दशा का ज,म
समय मD यतीत काल न के भयात पर से िनकाला जाता है। अथा-त् भभोग काल मD दशा + 5 +
वष- िमलते हI तो भयात काल मD िकतने िमलDग?े इस अनपु ात Lारा यतीत वषा-िद का मान आ
जायेगा। उसको दशा वष- मD घटाने से दशा का भोhय मान शेष रहेगा। ज,म के पचात् दशा का भोhय
मान भोग लेने के अन,तर दसू रे .ह क7 दशा ार:भ /* ]+ बाद अ,य .ह# क7 दशा चलती

उराखड मु त िवविवालय 79


योितषशा ी       MAJY-202
/+* िवंशो"री महादशा#तद$शा 5ान बोधक च6

उराखड मु त िवविवालय 80


योितषशा ी       MAJY-202
1.3.1 गिणतीय प
 का भु:त तथा भोHय काल !ान #

 (च,_ साधन मD जो सािधत होता है) के घटी पल के मान को पला6मक बनाकर उ,हD
ज,म न से ाGत दशा वष- संSया से गणु ा करD और गणु नफल मD भभोग के घटी, पल# के
पला6मक मान से भाग देने से ाGत लि&ध संSया वष- होगी। शेष को 98 + O>  
पला6मक का भाग देने से ल&ध मास ह#गे। शेष को 7; से गणु ाकर पला6म     + + 5
ल&ध संSया िदन ह#गे। पनु : शेष को B; से गणु ाकर पला6मक भभोग पल का भाग देने पर लि&ध
संSया घटी होगी। इस कार पल भी आयDगे। यह वषा-िद संSया दशा का भु त C  / * ]+
वष- मD घटाने से शेष दशा का भोhय C  / *
C     .   .,म न मृगिशरा है। भयात 8J*IJ D  JB*8; /0*
कृ िकािद न `म से गणना करने पर मगं ल क7 महादशा मD ज,म हOआ। िजसक7 दशा वष- सSं या
= /0*
8J × B; = 9J;; + IJ = 9JIJ पला6म 
JB × B; = 77B; + 8; = 77:; पला6म 
9JIJ × = = 9;:9J ÷ 77:; = 7 वष-
77:;)9;:9J(7 वष-
9;9I;
B=J
× 98
77:; ):9;;(8 C 
B=B;
97I;
× 7;
I;8;;
77:;)I;8;;(99  
77:;
BI;;
उराखड मु त िवविवालय 81
योितषशा ी       MAJY-202
77:;
7;8;
× B;
77:;)9:98;;(J7 QE
9BK;;
988;;
9;9I;
8;B;
× B;
77:;)987B;;(7B 5
9;9I;
888;;
8;8:;
9K8;

मगं ल क7 दशा - =*;*;*;*;*;


भु त - - 7*8*9*J7*7B (QE  )
भोhय ) 7*K*9:*B*8I

ज,म के समय मगं ल क7 दशा वषा-िद 7*8*99*J7*7B इतनी भु त हो चक ु 7 थी और


7*K*9:*B*8I इतनी वषा-िद दशा शेष थी। इसके बाद 9: वष- राहO क7 दशा रहेगी एवं `मश:
गfु ,शिन एवं बधु इ6यािद क7 दशा चलेगी।
1.3.2 िवंशो"री दशा सा+  वृह,पराशर होरा शा1 4 )$ 
सम त चराचर ािणय# के जीवनकाल मD उनका कौन सा समय शभु है, अथवा कौन सा
समय अशभु हI, इसका िववेक योितष शा के उस अभीWट कालाविध मD चिलत दशा व
महादशा के आधार पर होता है। ज,माa4 च` मD .ह# क7 जो शभु ाशभु फल क7 ि थित होती है,
वही फल उन .ह# क7 दशा,तद-शाओ ं मD जातक को ाGत होता है । िवश
ं ो6तरी दशाओ ं का चलन
िव,Cय से उ6तर िदशाओ ं के ा,त# मD है। दशाओ ं के स:ब,ध मD आचाय पराशर ने
वृहपराशरहोराशा61 के दशाCयाय मD  5   /0 )
दशा: बहOिवधा6तासु मुया िवंशोत$  
कै िUद<टोतरी कै िUत् किथता षोडशोत$ 
उराखड मु त िवविवालय 82
योितषशा ी       MAJY-202
;ादशाMदोतरी िव$ दशा पcचोत$ )
 शतसमा त;त् चतुराशीितवस
ि;स9तितसमा षिZसमा षट्ि1श ं वस
न?1ाधारGरकाचैता: किथता: पूवसूGरिभ:**
अथा-त् दशा के अनेक भेद है, पर,तु उनमD भी मSु य िवंशोत$ /0, जो सव-साधारण के
 /   /0। अ,य िवLान# ने अWटो6तरी, षोडशो6तरी, Lादशो6त, 5zचो6तरी, शताि&द,
चतरु शीितसमा, िLसGत C , षिसमा, षट्ि ंश6समा आिद ये सभी ज,मन ाधारत दशाओ ं क7
चचा- क7 हI*
  )
B)   च7दशा $ो:ता मुनीव(:
कालच7दशा चा'4या मा4या सवदशासु या
') याया ि6थराया च दशा ि;ज
के 45ाFा च दशा !ेया कारकािदXहोqवा
„ Xहाित?ाFा दशा $ो:ता   *
मा-डूक च दशा नाम तथा शूलदशा 6मृ
योगाधजदशा िव$ YHद  :  *
ि1कोणाया दशा नाम तथा रािशदशा 6मृ
cच6वरदशा िव$ िव!ेया योिगनीदशा
 -डी )$  (िगकदशा तथ
उपय-ु त सa4 के अनसु ार दशाओ ं मD कालदशा, च`दशा है तथा सभी दशाओ ं मD मा,य कालच`
/  /0। इनके अितरत चरदशा, ि थरदशा, के ,_ ,   एवं “”.हदशा भी
/ " /0। िकसी ने मडूकदशा, शल ू दशा, योगाध-दशा, ‹hद , ि कोणदशा, रािशदशा,
5zच वरदशा, योिगनीदशा, िपडदशा, नैसिग-क दशा, अWटवग- दशा, स,Cया , 5  
अ,य तारािद िविभ,न दशाभेद कहा है । पर,तु सभी दशायD सव-स:मत नह‚ हI अथा-त् य/ 5
नह‚ है*
पराशरोत सभी दशाओ ं मD न दशा तथा उनमD भी िवंशो6तरी दशा सव-QेWठ /0* F 5  
दशा क7 िसिs के साथ ) साथ किलयगु मD िवंशो6तरी को ही 6य फलदायक कहा है -
कलौ $य? फलदा दशा िवंशोतरी 6मृ

उराखड मु त िवविवालय 83


योितषशा ी       MAJY-202
अ<टोतरी न संXाvा मारकाथh िवच?णै:
 D / Qप> राशरी मD पWट  ,दशा िवंशोतरी चा1 Xाvा ना<टोत$ " /
िवश ं ो6त दशा को सव-दशा िशरोमिण कहा है*
दशा, अ,तद-शा, महादशा का Zान सव-तोभावेन लोककaयाणकारी है, िजसके Zान से हम िकसी भी
चराचर ाणी का व सृि के सम त पदाथ-  > >   Zान करने मD समथ- हो सकते है*
िवश ं ो6तरी दशा साधन क7 गिणतीय िविध आचायK ने न # के आधार पर कहा है, तथा उसके
आधार पर िकसी जातक के उसके स:पणू - जीवन मD होनेवाली शभु ाशभु फल का िवधान ित5 
 /0*
िवंशोत$   -
कृिRकात: समारmय ि1रावृ त : 
- -  # - - - 3 -के शुपूवा िवहगा: 7मात् ।।
विuभाज4मभं यावद् या संया नवतिZता ।
शेषाˆशािधपो !ेय6तमारmय  * 
िवंशोतशतं पूणमायु: पूवमुदा‘तम् ।
कलौ िवंशोतरी त6माद् दशा मुया ि;जोत 
कृ िका न से आर:भ करके `म से सयू -, च,_, भौम, राहO, गl ु , शिन, बधु , के तु और श`ु ) +
तीन आवृि मD दशािधकारी होते है। कृ िका न से ज,म न तक िगनकर जो संSया हो, उसमD
9 का भाग दD, शेष तुaय पवू eत ) `म से दशािधप होते हI। कृ िका न से आर:भ +
पवू क - िथत दशा`म से .ह# क7 दशा लगानी चािहये। किलयुग मD 120 वष- क7 पणू ा-यु कही गई है*
अत: अ,य दशाओ ं क7 अपे ा िवश ं ो6तरी दशा ही मखु मानी जाती है*
रjयािद Xह के दशावष -
दशासमा: 7मादेषां षड् दशा'वा गजे4द :
!  :  45ाच नगच45ा  D:
सयू ा-िद नव.ह# के दशावष- संSया `म से ये हI ) 6, 10, 7, 18, 16, 19,17,7, 20*
अथा-त् सयू - ) 6 वष-, च,_C + ) 10 वष-, मगं ल ) 7 वष-, राहO ) 18 वष-, गl ु ) 16 वष-, शिन )
19 वष-, बधु ) 17 वष-, के तु ) 7 वष-, श` ु ) 20 वष-*
लHन और सूयािद Xह के दशा7म )
A शशांक$ािणके 45ािदसं6था:

उराखड मु त िवविवालय 84


योितषशा ी       MAJY-202
$थमवयिस मkये'4ये च दFु: फलािन
  फलिवपाक: के 45सं6थाFभावे
भवित िह फलपि,: पवू मापोि:लमे'
अथा-त् सयू - ) च,_ इन तीन# मD जो अिधक बलवान हो पहले उसक7 दशा होती है िफर उसके बाद
के ,_ था मD ि थत .ह# क7 दशा हो  /0* / दशा जीवन के थमवय मD होती है* ]+ 3
मCयवय मD थमवय मD होती है। उसके बाद मCयवय मD थमदशाद से पणफरि थत .ह# क7 दशा
/  /0। उसके बाद अ,तवय मD थमदशा द से आपोिलम ि थत .ह# क7 दशा होती है*
दशा वष$ 
: !  न िह यत
क89या दशा सा $बल6य पूवा
सा[ये बह‰नां बहOवषद6य
तेषां च सा[ये $थमोिदत6य
िजस .ह क7 िजतनी आयदु ा-य हो, उसक7 उतनी ही दशा होती है* /  3 >  /  /0*
इसमD सबसे बली .ह क7 दशा पहले होती है*
  )  1 .ह# मD बल सा:य हो तो उनमD िजसके अिधक वष- ह# उसक7 दशा थम होती
/0। अगर वष- मD भी समानता हो तो सयू - के साि,नCय वश िजसका थम उदय हOआ हो उसी क7 दशा
5/+ /  /0*
    ) अिभिजत् रिहत 27 न # मD कृ िका से ज,म न गणना करD । त6संSया मD
9 का भाग देने पर शेष िन:नोत `म से िवंशो6त + / + /0। अथा-त् 1 शेष बचे तो सूय-, 2 शेष
बचे तो च,_मा, 5 शेष बचे तो गl ु 8 शेष बचे तो के तु व 0 शेष बचे तो श`
ु क7 दशा होती है*
! कार अ,य   .   /*
5+ न-
1. िवशं ोरी दशा होती है।
. 98; वष- क7 ख. 9;: वष- क7 ग. 7B वष- क7 घ. 8; वष- क7
2. सयू - क7 दशा वष- होती है।
. 9; वष- ख.B वष- ग.9: वष- घ.8; वष-
3. िवश ं ोरी दशा का चलन कहाँ है।

उराखड मु त िवविवालय 85


योितषशा ी       MAJY-202
. उर भारत ख. दि ण भारत ग. पवू eर भारत मD घ. एिशया मD
4. दशाओ ं के `म भौम के पचात् िकसक7 दशा होती है।
. राहO ख. गfु ग. सयू - घ. शिन
5. शिन क7 दशा वष- है।
. 9: वष- ख.9K वष- ग.8; वष- घ.= वष-
6. पराशर मतानसु ार दशाओ ं मD QेWठ /0 )
. अोरी ख. िवश ं ोरी ग. योिगनी घ. कोई नह‚
7. िवश
ं ोरी दशाओ ं क7 गणना िकस न से आर:भ /  /0*
. अिžनी ख. भरणी ग. कृ िका घ. रोिहणी

1.4 
! इकाई के अCय + पचात् आपने जान िलया है िक ऋिषय# ने ि काल ( , वत-मान तथा
भिवWय) का शभु ाशभु जानने के िलए दशा का िनमा-ण िकया है। दशा अनेक कार क7 होती है। उनमD
िवश ं ोरी, अWटोरी तथा योिगनी का चार िवशेष है। सामा,यतया दशा का शाि&दक अथ- है )
काल क7 ि थ *   > +  .  + cपर या-या भाव पड़ेगा। इसका Zान दशाओ ं
के माCयम से ही िकया जाता है। वत-मान समय मD देश के पवू eर देश तथा राज थान मD ाय:
िवशं ोरी दशा का उपयोग िवशेष lप से करते हI। िस,ध, पंजाबािद मD योिगनी दशा तथा दि ण
मCय भारत तथा गजु रात मD अWटोरी दशा को यवहार मD िवशेष lप से .हण करते हI। पर,तु
शा ीय वचन इस िवषय मD कुछ िभ,न  2+ /0-दशा9य<टोRरी शु:ले कृ<णे िवंशोRरी
 (मानसागरी था  ) अथा-त् शु ल प मD ज,म हो तो अWटोरी दशा तथा कृ Wण प मD
ज,म हो तो िवश ं ोरी दशा लेनी चािहए। िवश ं ोRरी चा1 Xाvा ना<टोRरी मता। (  
  ) न पर से सािधत दशा िवश ं ोरी ही लेनी चािहए। अWटोरी दशा नह‚। इसी लो 
पाठा,तर ाचीन िवLान# के घर मD ह त िलिखत .,थ# मD िन:निलिखत िमलता है। दशा िवश ं ोरी
.ाyा मता चाWटोरी तथा िवश ं ोरी दोन# दशायD फलाफल के िवचार के िलए उपयु त हI।
1.5 पा रभािषक शदा
िवश
ं ोRरी  ) सयू ा-िद .ह# क7 98; क7 दशा *
 ) ि थित
कृिRका ) तीसरा न का नाम

उराखड मु त िवविवालय 86


योितषशा ी       MAJY-202
समार[भ ) आर:भ अथ- मD*
 ) C
ि1कोण ) J  K थान को ि कोण कहते है।
  )    _ 2 C / /0* 7 2 8;  9 C  C  /
/0*

1.6 बोध  न के उ"र


1. 
2. P
3. 
4. 
5. P
6. P
7. 

1.7 स#दभ$ %#थ 


 
1. भारतीय कुडली िवZान - CW   V\ *
2. जातकपारजात ) दशाCया:*
3. वृह6पराशरहोराशा ) दशाCया:*
4.    ) दशाCया:*
5. सवा-थ-िच,ताCO ) दशाCया:*
6.  5 ) दशाCया:*
1.8 सहायक पाठ्यसाम%ी
1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C
 +P ) कaयाणवमा-। िटकाकार- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*

उराखड मु त िवविवालय 87


योितषशा ी       MAJY-202
1.9 िनब#धा,मक  न
1. िवश
ं ोरी दशा साधन का परचय दीिजये*
2. वकिaपत िवंशोरी दशा साधन क7िजये*
3. दशा साधन का गिणतीय प का लेखन क7िजये*
4. दशा साधन का मह6व 3  !+*
5.  .ह#  C  P पWट क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 88


योितषशा ी       MAJY-202
  2 अ;टो"री दशा साधन
इकाई क संरचना

2.1  ता
2.2 उेय
2.3 अWटोरी दशा परचय
2.4 अWटोरी   कार
2.5  
2.6 पारभािषक श&दा
2.7 बोध न# के उर
2.8 स,दभ- .,थ  
2.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
2.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 89


योितषशा ी       MAJY-202
2.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के िLतीय खड क7 दसू री इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) अWटोरी दशा साधन* !+ पवू - आपने िवश ं ोरी दशा साधन का अCय 
िलया है। अब आप इस इकाई मD अWटोरी दशा साधन के बारे मD अCय + . /+ /0*
अWटोरी दशा ाय: िव,Cय से दि ण अथा-त् दि ण भारत मD चिलत है। इसक7 कुल दशा
वष- 9;: वष- क7 होती है। यह िवश
ं ोरी से िभ,न / /0*
1! इस इकाई मD हम लोग ,अWटोरी दशा साधन- के बारे मD उसक7 गिणतीय िसsा,त#
को जानने का यास करते है।
2.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• अWटोरी को परभािषत कर सकD गे।
• .ह# क7 आयु दशा वष- से परिचत हो जायDग।े
• अWटोरी दशा का साधन कर सकD गे*
• अWटोरी दशा के मह6व को बता सकD गे।
2.3 अ;टो"री दशा प रचय
िवशं ोरी के पचात् अब अWटोरी दशा का Zान करते है। सव-थम आपको यह जानना
 /  अWटोरी 9;: वषK क7 होती है। इनका `म िवश ं ोरी दशा से िभ,न है। इसमD सयू -,
च,_, C,3> , , गfु , राहO एवं श` ु इन आठ .ह# क7 दशा रहती है। यहाँ के तु क7 दशा नह‚
होती। इन .ह# के दशा न िवश ं ोरी से िभ,न हI, जो िक महादशा कोWठक मD वष- संSया +  D
िदये गये हI। इस महादशा मD .ह# के दशावष- न # मD िवभािजत रहते हI। यथा ) सयू - महादशा वष- B
हI और इस दशा के न आ_ा-, पनु व-स,ु पWु य तथा आलेषा ये चार हI। B मD I    + + + 
न का वषा-िददशामान 9*B / / *
का भु त भोhय लाने के िलए यह `म है िक न के भयात भभोग पर से उस न
का भु त भोhय वषा-िद मD साधन करD । यिद वह न बीच मD पड़े, तब गत न # के वषा-िद योग मD
वत-मान दशा न के भु त वषा-िद जोड़ने से उस .ह क7 भु त दशा होगी और उसको .ह दशा वष-
मD घटाने से उस .ह क7 भोhय दशा शेष रहेगी। जैसे माना िक जातक का ज,म मृगिशरा न मD है।
यह श` ु महादशा मD तृतीय न है और एक न के वष- = हI। इस पर से भयात भभोग Lारा भु त

उराखड मु त िवविवालय 90


योितषशा ी       MAJY-202
वष- िवश
ं ोरी के समान साधन करने से लि&ध 7*8*99*J7*7= हOआ। इसको गत दो न # के
वष-मान 9I मD जोड़ा, तब श` ु क7 महादशा के भु त वष- 9=*8*99*J7*7= हOए। अथा-त् लि&ध मD
इस दशा के गत दो न # के सात-सात वष- जोड़ने से श` ु क7 भु त दशा वषा-िद
9=*8*99*J7*J= हOई। इनको 89 वष- मD घटाने से शेष 7*K*9:*B*87 से भोhय वष- हOए। इस कार
!     . /0*
अ<टोR$    #
इसक7 अ,तद-शा का साधन भी िवश ं ोरी के समा नही है। वहाँ पर िजस .ह क7
दशा मD िजस .ह क7 अ,तद-शा का साधन करना रहता है। उन दोन# के दशा वषK का गणु ा कर दस
का भाग देते हI। यहाँ पर K  G 6+  सब उसी कार है।
लHने* के 45कोण6थे राहौ लHनं िवना ि6थते।
अ<टोRरी दशा िव$! िव!ेया रौ5भािदत:।।
चतु<कं ि1तयं त6मात् चतु<कं ि1तयं पुन:।
.  6वज4मभं यावद् िवगण’य यथा7मम।् ।
सयू च45: कुज: सौ[य: शिनजtव6त  !: 
. दशािधपा िव$ !ेया: के तुं िवना Xहा:।।
: पंचे4दवो नागा: स9तच45ाच खे4द :
'Mजा: सयू ा: कुने1ाच रjया$  :
लोकाथ- है िक यिद लhनािधप से राहO लhन को छोड़कर अ,य के ,_ ि कोण थान मD बैठा हो तो
अWटोरी दशा .हण   /, ऐसा कुछ ाचीनाचायK का मत है। उस अWटोरी मD आ_ा- से I
न ािधप सयू ,- अन,तर के न च,_, पचा 4 + I न भौम, ]+ 3 7 न बधु , अन,त
+ I न शिन, उसके पचा 4 7 न गfु , 5> : I न राहO उसके 3 7 न श` ु - इस कार
गणना कर अपना ज,मन िजस .ह मD पड़े, वह‚ ार:भकािलक ज,मदशा होगी। दशावष- मD रिव
 B, च,_  9J FC  :, 3>  9=,  9;, गfु का 9K, राहO का 98 वष- और श` ु का
89 वष- है। इस कार के तु को छोड़कर शे6 : .ह ही दशािधपित होते है।
अ<टोRरी दशा बोधक च7 #
.') सयू  च &0/ 1) ' गु राह श ु
दशावष  2    
न *. . &. ., !. %. '(. अन.ु ये. ., #. . . .-.  .  . $.
प.ु आ. .! वा. '+ &., .# ., -. . -. &.
अिभ. .

उराखड मु त िवविवालय 91


योितषशा ी      MAJY-202
2.4 अ;टो"री * + कार )
दशाMदांि“ पापानां शुभानां {यंश एव िह।
एकै कभे दशामानं िव!ेयं ि;जसRम।् ।
तत6तFाभोगाmयां भु:तं भोHयं  *
िवश
ं ोRरीवदेवा1 तत6तफ * 
अथा-त् पवू - मD जो .ह# क7 दशावष- संSया /  /0, उसमD से पाप .ह# के दशामान के चतथु ा[श
-एक न मD दशावष- होते है। शभु .ह# मD तृतीयाश ं एक-एक न मD दशामान होते है। इस
कार अपने ज,मन मD जो दशा हो और उसका जो भी दशामान उ6प,न / ] 5 +  ,
भभोग के माCयम से िवश ं ोरी के अनlु प दशा का भु त भोhय वषा-िद साधन करना चािहए।
 +6 ) यिद उराषाढ़ा मD ज,म हो तो उराषाढ़ा के थम, िLतीय, तथा तृतीय चरण# का योग
करके उसको भभोग मानकर दशा का भु त भोhय वषा-िद साधन करना चािहए एवं उराषाढ़ा के
चतथु - चरण मD या Qवण के 9J वD भाग के ार:भ काल मD ज,म हो तो उराषाढा के चतथु - चरण
तथा Qवण के 9J वD भाग का योग करके जो हो, उसे भभोग मान कर दशा का भु त भोhय वषा-िद
साधन करना चािहए। यिद Qवण मD ज,म /  9J वाँ भाग Qवण के भभोग मD घटाकर शेष को
भभोग मानकर दशा का भु त भोhय वषा-िद साधन करना चािहए। उराषाढ़ा के चतथु - चरण और
Qवण का 9J वाँ भाग िमला कर अिभिजत नामक न होता है।
A & #
जैसे उराषाढ़ा का स:पणू - मान ) B;*9B /0*  8;*: है तो उराषाढ़ा के िLतीय
चरण मD ज,म हOआ। उराषाढ़ा के कुल भोग मान B;*9B मD इसके चतथु ा[श 9J*I  (B;*9B -
9J*I) QE + + IJ*98 / /0, यही भभोग हOआ तथा 8;*: भयात् हOआ। उराषाढ़ा शिन का
िLतीय न है। उसका मान 7; C  /0, य#  + I न मD 9; वष- (98; C ) हI तो 9
न मD या? इस कार 7; C  1 /0* 2 :  7; मास से िवश ं ोरी दशानयनवत् भयात्
8;*: पला6म 98;:  7; C  + O>   7B8I; हOआ। इसमD पला6म 8=98
भभोग से भभोग से भाग देने से ल&ध C   97*9;*J7 यह भु त हOआ। इसको 7; मD घटाने से
ल&ध C     9B*9K*= भोhय हOआ। इसमD अिभिजत् तथा Qवण न के 7;-7; C 
.U+ + C   =B*9K*= हOए। पनु : इसको वषा-िद बनाने से B*I*9K*= यह मान हOआ। यही
अWटोरी दशा मD शिन का भोhय वषा-िद मान हOआ।

उराखड मु त िवविवालय 92


योितषशा ी       MAJY-202
तदनुसार अ<टोRरी दशा च7 #
.') ' गु राह श
ु ., च &0/ 1)
वष    2  
& 3
'. 
4 
+/ 56 3 22 3   7  7 27
., . 3        
., ./         
., . 2

कृ<णप?े िदवा ज4म शु:लप?े तथा िनिश।


तदा vZोRरी िच4तया फलाथhच िवशेषत:।।
अथा-त् कृ Wण प मD िदन मD एवं शु ल प मD राि का ज,म हो तो िवशेष फल Zान हेतु अोरी
     /*
 +6 ) उराषाढ़ा, अिभिजत् और Qवण मD ज,म हो तो तभी पवू - कार से दशा का भु त-भोhय
का विचार करना है। इन न # से िभ,न न # मD पूण- भभोग पर से ही दशा साधन करना चािहए।
अWटोरी तथा षिहायनी दशा मD अिभिजत न का .हण िकया जाता है, अ,य दशाओ ं मD नह‚।
इसका Cया P  /*
उराषाढ़ा से िभ,न न शतिभषा का भु त भोhय का उदाहरण अWटोरी दशा मD इस कार है।
C    4 9K*9J,  BB*78 िभषा के िLतीय चरण का ज,म है। शतिभषा गfु का
स रा न है। गfु क7 दशा 9K वष- क7 है। अत: 9K × 98 ÷ ==B मास एक न का मान हOआ।
2 : 9K*9J  4, पला6म 99JJ

99JJ ×=B = :==:; हOआ। इसको पलमय 7KK8 भभोग से भाग िदया तो लि&ध 89*8K*I;
भु त मासािद हOआ* ! =B मास मD घटाया तो शतिभषा न का JI*;*8;
भोhय मासािद हOए। इसमD पवू - भा_पद का =B मास जोड़कर वषा-िद बनाने पर 9;*9;*;*8; भोhय
वषा-िद मान हOआ।

उराखड मु त िवविवालय 93


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तदनुसार अ<टोRरी दशा च7 #
.') गु राह श
ु ., च &0/ 1) '
वष   2   
& 
'. 
4 
+/ 56 3   7  3 7 3
., .         
., ./         
., .
इसी कार अ,य न # का भी अोरी दशानयन करना चािहए। 6येक .ह# क7 अWटोरी
C/ शी के अ,तग-त आने वाली दशाओ ं का वष- मान िन:न सिू चय# मD दी गयी है। आप उसका
अवलोकन कर Zान ाGत + +  D / 2-अलग .ह# क7 अोरी दशाओ ं का मान Zात
कर सकते हI। अ<टोRरी दशा बोधक च7 -

उराखड मु त िवविवालय 94


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5+ न-
1. अWटोरी /  /0*
. 98; वष- क7 ख. 9;: वष- क7 ग. 7B वष- क7 घ. 8; वष- क7
2. अWटोरी दशाओ ं मD श` ु क7 दशा वष- होती है।
.9; वष- ख.B वष- ग.9: वष- Q.89 वष-
3. अWटोरी दशा का चलन कहाँ है।
. उर भारत ख. दि ण भारत ग. पवू eर भारत मD घ. एिशया मD
4. अWटोरी दशाओ ं के `म भौम के पचात् िकसक7 दशा होती है।
. 3> ख. गfु ग. सयू - घ. श
5. अWटोरी दशाओ ं मD िन:न मD िकस .ह क7 दशा नह‚ होती है।
. राहO ख. शिन ग. के तु घ.गfु
6. सयू - महादशा मD कुल िकतने न होते है।
.7 P. I . J Q. B
7. अWटोरी दशाओ ं क7 गणना िकस न से आर:भ /  /0*
.आ_ा- ख. भरणी ग. कृ िका घ. रोिहणी

2.5 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  अWटोरी 9;: वषK क7
होती है। इनका `म िवश ं ोरी दशा से िभ,न है। इसमD सयू -, च,_, C, 3> , , f> , राहO एवं श`

इन आठ .ह# क7 दशा रहती है। यहाँ के तु क7 दशा नह‚ होती। इन .ह# के दशा न िवश ं ोरी से
िभ,न हI, जो िक महादशा कोWठक मD वष- संSया के साथ िदये गये हI। इस महादशा मD .ह# के दशावष-
न # मD िवभािजत रहते हI। यथा ) सयू - महादशा वष- B हI और इस दशा के न आ_ा-, पनु व-स,ु
पWु य तथा आलेषा ये चार हI। B मD I का भाग देने से एक न का वषा-िददशामान 9*B / / *
का भु त भोhय लाने के िलए यह `म है िक न के भयात भभोग पर से उस न का भु त
भोhय वषा-िद मD साधन करD । यिद वह न बीच मD पड़े, तब गत न # के वषा-िद योग मD वत-मान
दशा न के भु त वषा-िद जोड़ने से उस .ह क7 भु त दशा होगी और उसको .ह दशा वष- मD
घटाने से उस .ह क7 भोhय +6 /+* .0+ C   .  का ज,म मृगिशरा न मD है। यह

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योितषशा ी       MAJY-202
श`ु महादशा मD तृतीय न है और एक न के वष- = हI। इस पर से भयात भभोग Lारा भु त वष-
िवशं ोरी के समान साधन करने से लि&ध 7*8*99*J7*7= हOआ। इसको गत दो न # के वष-मान
9I मD जोड़ा, तब श` ु क7 महादशा के भु त वष- 9=*8*99*J7*7= हOए। अथा-त् लि&ध मD इस
दशा के गत दो न # के सात-सात वष- जोड़ने से श` ु क7 भु त दशा वषा-िद 9=*8*99*J7*J=
हOई। इनको 89 वष- मD घटाने से शेष 7*K*9:*B*87 से भोhय वष- हOए। इस कार इस दशा का साधन
 . /0*

2.6 पा रभािषक शदा


अ<टोRरी  ) सयू ा-िद .ह# क7 9;: वषK क7 दशा के तु को छोड़कर*
 ) ि थित
आ5ा ) ZW न का नाम
 ) स:पणू - न के मान मD से िजतना मान िबत गया हो उसका नाम भयात है*
 ) स:पणू - न के मान मD से िजतना मान शेष हो य  /+ +  ]  C 
/0*
ि1कोण ) J  K थान को ि कोण कहते है।
B/ ) उराषाढा एवं Qवण न के अंश से बना न का नाम अिभिजत है।
2.7 बोध  न के उ"र
1. P
2. Q
3. P
4. 
5. 
6. P
7. 
2.8 स#दभ$ %#थ 
1. भारतीय कुडली िवZान - CW   V\ *
2. जातकपारजात ) दशाCया:*
3. वृह6पराशरहोराशा ) दशाCया:*
उराखड मु त िवविवालय 104
योितषशा ी       MAJY-202
4.    ) दशाCया:*
5. सवा-थ-िच,ताCO ) दशाCया:*
6.  5 ) दशाCया:*
2.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
1.  5 ) C  +P ) आचाय- म, ेव* E   ) 5+ V\ *
2.    ) C
 +P ) कaयाणवमा-। िटकाकार- मरु लीधर चतवु द| ी।
3. वृहजा C4 ) C +P )  /C/, E  - आचाय- स6ये,_ िमQ।
4. Q.> C4 ) C  +P )  /C/, E   ) कमलाका,त पाडे*
2.10 िनब#धा,मक  न
1. अWटोरी दशा साधन का परचय दीिजये।
2. वकिaपत अWटोरी  साधन क7िजये।
3. अWटोरी दशा साधन का गिणतीय प का लेखन क7िजये।
4. अोरी एवं िवश
ं ोरी महादशा साधन मD अ,त 3  !+*

उराखड मु त िवविवालय 105


योितषशा ी       MAJY-202
 - 3   * +
इकाई क संरचना

3.1  ता
3.2 उेय
3.3  परचय
3.4   
3.5  
3.6 पारभािषक श&दा
3.7 बोध न# के उर
3.8 स,दभ- .,थ  
3.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
3.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 106


योितषशा ी       MAJY-202
3.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के िLतीय खड क7 तीसरी इकाई से स:बि,धत है .
शीष-क है )   * !+ पवू - आपने िवश
ं ोरी एवं अWटोरी दशा साधन का अCय
कर िलया है। अब आप इस इकाई मD योिगनी दशा साधन के बारे मD अCय + . /+ /0*
 > 7B वष- क7 होती है। उसके पचात् उसका पनु : च` का pमण होता है।
C  1W  कहे गये है। इसका चलन पव-तीय े # +  D-साथ राज था,
.>  मD  2 / /0*
1! इस इकाई मD हम लोग ,  - के बारे मD उसक7 गिणतीय िसsा,त#
को जानने का यास करते है।
3.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
•  को परभािषत कर सकD गे।
•  क7 आयु दशा वष- से परिचत हो जायDग।े
•  दशा का साधन कर सकD गे*
•  + मह6व को बता सकD गे।
3.3   दशा प रचय
योिगनी दशाओ ं के बारे मD ऐसा कहा जाता है िक व     + !  /
D * मंगला, िपंगला, धा4या, ‹ामरी, भि5का, उ8का, िसfा, संकटा ) + 2 $
/  /0। मगं ला से च,_मा, िपगं ला से सयू -, धा,या से गl
ु , pामरी से मगं ल, भि_का से बधु , उaका +
शिन, िसsा से श` ु और संकटा से राहO क7 उ6पि है। ज,मन संSया मD 3 जोड़कर 8 का भाग देने
5   6+ + मगं लािद योिगनी दशायD होती है। मगं लािद योिगनी दशावष- एकािद वष- जानना
 /+ अथा-त् 1,2,3,4,5,6,7,8 `म से वष- जानना चािहये । ज,मकािलक भयात् भभोग के Lारा
दशा के भु त, भोhय वषा-िद का साधन करना चािहये*
$  3 मूल लो : -
  गला धा4या ‹ामरी भि5का तथा
उ8का िसfा सक ं टा च योिग4यो'<टौ $कित:
 'भव/च45:     :
उराखड मु त िवविवालय 107
योितषशा ी       MAJY-202
ध4यातो देवपूयो'भूद् ‹ामरीतो' *  /:
भि5कातो बुधो जात6तथो8कात: शनैच:
िसfातो भागवी जात: संकटात6त ' * 
ज4म?h च ि1िभयु:तं वसुिभभागमाहरेत्
. षे िव!ेया योिग4यो   
एकाFेकोतरा !ेया: 7मादासां दशासमा:
न?1यातभोगाmयां भु:तं भोHयं  ** *
अ4य $कार से $    )
  गला धा4या ‹ामरी भि5का तथा
उ8का िसfा सक ं टा च एतासां नामवफ * 
एकं ;ौ गुणवे3&रसस9ता<टांकसंया: 7मात्
6वीय6वीयदशा िवपाकसमये !ेयं शुभं वा' * 
षट्िवंशैिवभजेिˆनीकृतमथैकि;ि1वेदेषुषट्
स9ता<ट•न भवेयुGरित ता एवं दशा4तदशा:
च45: सूयV वा:पितभूिमप1ु चाि45म4दो भागव: सै  :
एते नाथा मंगलािद$िद<टा: सौ[या: सौ[यानामिन<टा: D  ** *
अ1$कारा4तरेण योिगनीनां 6वा : -
  भवेसूयV मंगलातो िनशाकर:
‹ामरीतो भवेgमाजो धा4य'भूि;धो: सतु :
भि5कातो गुSरभूितसfात: किवस[भ :
उ8कातो भानुतनय: संकटा6वभूत :
अ6या एव दशा4ते      $
: D'6तगृहं तथाGरभवनं नीचं $यातो यथा
वष\शाि5पुगो िह त6य गिदता सवा दशा मkय 
य/चो6थ ित: 6वभवने मूलि1कोणे खगो
िम1ागारमुपागतो िनगिदता त6या'िखला सौय*
उपय-ु त लोक मD मगं लािद आठ योिगनीय# के नाम है, तथा कारा,तर से उनके वािमय# का नाम
भी उaलेP  /0। योिगनी दशा का ,यनू ािधक lप से सारे भारतवष- मD िवशेषकर पव-तीय े # मD
तो बहOत चार है* ! V  णेता भगवान िशव को माना जाता है। वृह6पराशरहोराशा मD

उराखड मु त िवविवालय 108


योितषशा ी       MAJY-202
आचाय- पराशर के Lारा ितपािदत है िक मगं ला से च,_मा, िपंगला से सयू -, धा,या से गl
ु , pामरी से
मगं ल, भि_का से बधु , उaका से शिन, िसsा से श`ु और संकटा से राहO क7 उ6पि है, !
आशय है िक इन योिगिनय# के ये .ह भावक माने जाते है। जब मगं ला क7 दशा हो तो च,_ क7
दशा समझकर ज,म लhन मD च,_मा क7 ि थित के अनसु ार दशा को उ6तC, या अधम कaयाO 
C   /+। इसी कार अ,य य# के िवषय मD भी समझना चािहये*
ज,म न मD 3 जोड़कर 8 का भाग देने से शेष के अनु  C +  /  /0*
pामरी दशा के नीचे से ार:भ कर अिžनी आिद न # को `मश: िलखने से योिगनी दशा च`
/ /0 * इसमD अिभिजत् का .हण नह‚ है* !+ 1,2,3,4,5,6,7,8 `मश: दशा वष- होते है*
योिगनी दशा के िवषय मD माना जाता है िक अaपायु लोग# के जीवन मD इसक7 एक आवृि, मCया>
लोग# को दो आवृि तथा दीघा-यु लोग# को तीन आवृि होती है। इसक7 ए आवृि 36 वषK क7
/  /0*
दशा का भु त भोhय काल Zान पवू - मD ितपा   /0*  G ] /O + + /_
C\  . / /0*
ज,म न रे वती से आ_ा-िद `मानसु ार राहO क7 दशा वत-मान है। सजा   1250  
3905 5 /0*  1250  4 3905 5 /0*  1250 × दशावष- 12 = 15000/
पला6म  3905 = 3 वष- 10 C  2 िदन भु त है। इसे 12 वषK मD से घटाया तो 8.01.28
वषा-िद राहO का अWटो6तरी दशा भोhय /0*
योिगनी दशा बोध च6
    धाया ामरी भिका उ"का िस#ा 
 
6वा $ च& सयू  ग#ु &0/ 1) ' शु राह
वष 1 2 3 4 5 6 7 8

न?1 अि$नी -? कृ ि(का $'%? &0'

आा पनु वसु प)ु य आले# &  0, !0 0!0 हत

िचा वा5 '+@  ) ये)ठा &, 0, #0 0#0

वण धिन)ठा 5'-# 0, -0 0-0  +5

उराखड मु त िवविवालय 109


योितषशा ी       MAJY-202
च,_ पWट 11.200 .55 तथा रे वती का अश ं ा6मक भोhय 90 .05 अथा-त् 545 कला भोhय /0* !+
वष- 12 से गणु ाकर 800 कला का पवू व- त् भाग देने से 545 × 12 = 6540 ÷ 800 = भोhय
8.02;03 वषा-िद है। यह िदन# का अ,तर य# 5U , ! 6य मD पवू - मD िवश#तरी C/ + F 
िलखा जा चक ु ा है। पाठक गण वहॉं Cयान दD। इसी पsित से योिगनी दशा का भु त भोhय  . 
.  /0*
3.4   * + -*./ 
माना िक िकसी जातक का ज,म ह त न के थम चरण मD हOआ हI, अत: ज,मन से
13 + 3 = 16। इसमD आठ का भाग िदया तो शेष 0 बचा अथा-6 8 हOआ, अत: आठव‚ संकटा क7
दशा मD ज,म हOआ, संकटा के वष-मान 8 है। ह त न भयात 16*5  65*20 थम चरण मD
ज,म है । पला6म  965 को आठ से गणु नकर पला6म  3920 +     , ल&ध
भु त वषा-िद 1।11।19 को 8 मD घटानD पर 6*0*11 भोhय वषा-िद िसs हOय*े इस कार योिगनी दशा
    . /0*
योिगनी के महादशा व अ#तद$शा का को;ठ 
मंगला दशा एक वष # अ4तदशा
$     धा4या ‹ामरी भि5का उ8का िसfा  
वष 0 0 0 0 0 0 0 0
 0 0 1 1 1 2 2 2
 10 20 0 10 20 0 10 20

िपंगला दशा दो वष # अ4तदशा

$   धा4या ‹ामरी भि5का उ8का िसfा    


वष 0 0 0 0 0 0 0 0
 1 2 2 3 4 4 5 0
 10 2 20 10 1 20 10 20

धा4या दशा तीन वष # अ4तदशा

उराखड मु त िवविवालय 110


योितषशा ी       MAJY-202
$ धा4या ‹ामरी भि5का उ8का िसfा      
वष 0 0 0 0 0 0 0 0
 3 4 5 6 7 8 1 2
 0 0 0 0 0 0 0 0

‹ामरी दशा चार वष # अ4तदशा

$ ‹ामरी भि5का उ8का िसfा       धा4या


वष 0 0 0 0 0 0 0 0
 5 6 8 9 10 1 2 4
 10 20 0 10 20 10 20 0

भि5का दशा पॉच वष # अ4तदशा

$ भि5का उ8का िसfा       धा4या ‹ामरी


वष 0 0 0 1 0 0 0 0
 8 10 11 1 1 3 5 6
 10 0 20 10 10 10 0 20
उ8का दशा छ: वष # अ4तदशा
$ उ8का िसfा       धा4या ‹ामरी भि5का
वष 1 1 1 0 0 0 0 0
 0 2 4 2 4 6 8 10
 0 0 0 0 0 0 0 0

उराखड मु त िवविवालय 111


योितषशा ी       MAJY-202
िसfा दशा सात वष # अ4तदशा

$ िसfा       धा4या ‹ामरी भि5का उ8का


वष 1 1 0 0 0 0 0 1
 4 6 2 4 7 9 11 2
 10 20 10 20 0 10 20 0
संकटा दशा आठ वष # अ4तदशा

$       धा4या ‹ामरी भि5का उ8का िसfा


वष 1 0 0 0 0 1 1 1
 9 2 5 8 10 1 4 6
 10 20 10 0 20 10 0 20

3.5 बोध  न 
1. योिगनी दशा सव-थम िकसके Lारा कहा गया था*
. िवWणु के Lारा ख. “”ा के Lारा ग. जापित के Lारा घ. िशव के Lारा
2.  दशा कुल िकतने वषK का होता है*
. 30 वष- ख. 34 वष- ग. 36 वष- घ. 40 वष-
3. िन:निलिखत मD िसsा से उ6पि है )
क. बधु क7 ख. मगं ल क7 ग. श` ु क7 घ. सयू - क7
4. योिगनी दशा `म मD िपंगला के पचा 4 1 /0*
क. pामरी ख. मगं ला ग. िसsा घ. धा,या
5. मगं ला का अथ- है )
. Cल करने वाला ख. िवपि लाने वाला ग. नाश करने वाला घ. सख ु दान करने वाला
30 वष- ख. 34 वष- ग. 36 वष- घ. 40 वष-

उराखड मु त िवविवालय 112


योितषशा ी       MAJY-202
* 0  4 16  1 
दशाफल िवचार िक िवषय मD लघपु राशरी िवाधरी मD पाराशरीय िनयम# का उaलेP   /0 *
/_ +  CFक व ारि:भक सू बताये जा रहे हI, जो सम त   1  + + /0 )
शुभ फलद दशा िवचार 
1. पराशरीय मत से के ,_ेश# व ि कोणेश# के स:ब,ध पर आधारत सभी कारक .ह# क7
दशायD उ6कृ Wट  +  /0*
2. कारक# के स:ब,धी .ह# क7 दशा मD   क .ह# का फल िमलता है* .0+ - कक- लhन
का कारक मगं ल यिद शिन से योग करता हो तो शिन क7 दशा मD भी उ6कृ Wट फल िमलDगे ।
3. जो .ह ज,म समय मD वोjच, मल ू ि कोण, व े , अिधिम े , िम े , शभु .ह े
मD शभु ‹Wट /  6T4गK के शभु वगK मD गया हो तो `िमक tास से `मश: अjछा /
 + /0। उदाहरणाथ- यिद कोई .ह उjच मD है तो वह अ6य,त >  +  +
पाप‹ि अशभु भाव ि थित आिद से उसक7 शभु ता मD `िमक tास होगा* !+ 5
कोई .ह साधारण सम .ह क7 रािश मD है, लेिकन शभु .ह# से ‹Wट, शभु भावि थित है तो
वह अ6य,त >  देगा ही, इसमD या स,दे/ /0। इस कार उहापोह पवू क - महादशा का
फल ि थर िकया जाता है । िनसग- शभु .ह ाय: शभु फलदायक होते है*
अशुभ दशा िनणय -
1. उत तUय# + 5 /+ 5   2 > / । नीचगत, अ तगं त, श ु े ी ,
अशभु वगK मD गया हOआ, पाप‹Wट तथा अशभु भाव ि थत .ह क7 दशा अशभु फल देती
/0*
2. पापी .ह व`7 भी हो तो उसक7 दशा महान कWट  /  /0*
3. 5   C + C  .ह# क7 दशा कWट /  /0। तथा िनसग- पाप.ह क7 दशा भी
2 >  / +  /0*
 1    )
1. दशा वेश के समय यिद च,_मा बलवान हो तथ अपनी ज,म रािश से शभु गोचर भाव# मD
हो तो महादशा का फल काफ7 बरु ा होते हOये भी कुछ कम हो जाता है*
2. इसके िवपरीत दशा वेश कालीन च,_मा क7 अशभु ता व िनब-लता > + > 
मD कमी करे गी*

उराखड मु त िवविवालय 113


योितषशा ी       MAJY-202
3. जो दशापित बलवान ह#, वे अपनी दशा मD अपना परू ा फल देते हI । तथा बलहीन होकर
कुछ भी फल देने मD समथ- नह‚ होते है । मCयम बली .ह का मCय  C\  /+ *
उदाहरणाथ- ) लhने C : भ> होनी चािहये, लेिकन वह नीच अ तं ,
अशभु वगT आिद होकर पाप पीिडत ़ हो तो कुछ भी िवशेष शभु फल अपनी दशा मD नह‚ दे
+  *
4. सामा,यत: राहOयु त .ह क7 दशा कWटद होती है तथा अ,त मD िवशेष शोक देती है । इसके
िवपरीत यिद राहO िकसी योगकारक .ह के साथ ि थत हो अथवा उसी .ह क7 रािश मD राहO
हो तो अरWट नह‚ होता है ।
5. अपने उjच से आगे क7 रािशय# मD ि थत .ह सामा,यत: नीच रािश क7 ओर बढ़ने के
कारण शभु फल मD `िमक कमी लाता है, लेिकन यिद शभु नवमांश मD हो तो वह अjछे
  + /0*
6. इसी कार उjच रािश क7 ओर बढ़ता .ह सामा,यत: अjछा  + /0 * + C
लhन मD श ु े ी या नीच आिद होने पर उसक7 शभु ता कम हो जायेगी*
7. शभु .ह# के मCय मD िवमान पाप .ह अशभु फल नह‚ देता तथा अशभु .ह# के मCय मD
ि थत शभु .ह शभु फल नह‚ देता*
8. दशा वेश के समय यिद दशेश या अ,त-दशेश उjच, ि कोण, वरािश मD हो तो शभु होता
/0 * 5रीत ि थित मD अशभु आिद होता है*
9. सभी पाप .ह दशा के शl ु मD अपनी उjचािद रािश के अनसु ार उसके बाद मD साथी या
_Wटा गह# क7 कृ ित के अनसु ार तथा लगभग दशा काल के मCय मD था    > 
फल देते हI एवं अ,त मD ाय: सभी पाप दशायD उप_व करती है*
10. ाय: .ह िजस _ेWकाण मD ि थत हो, अपने दशा काल के भी उसी तृतीयांश मD अपना फल
 +6  + /0*
दशा फल मK राहO के तु क िवशेषता -
1. ि कोण थ राहO ) + >  2,7  +श# के साथ ह# तो मारक होते है*
2. ि कोणेश# से यतु या ‹Wट यिद 2,7 भाव# मD हो तो आयु व धन वध-क होते है ।
3. िL वभाव रािशगत राहO ) के तु यिद ि कोणेश# से यु त हो या राहO ) के तु क7 अिधि‘त
रािशय# के वामी ि कोणेश# से यु त ह# तो वे सदैव राय   + + /0*
4. चर या ि थर रािश गत राहO ) के तु के ,_ या ि कोण मD ि थत ह# ओर कारक .ह# से यु त /
तो वदशा मD िवशेष समृिs देते है*
उराखड मु त िवविवालय 114
योितषशा ी       MAJY-202
5. राहO ) के तु अशभु थान# मD ि थत होकर भी कारक .ह# से यु त /  >   >
भाव# मD ि थत होकर भी मारक .ह# से यु त हो तो मारक फल ही दDग*े
3.6  
योितष शा मD दशाओ ं का Zान परमावयक है, दशा `म मD िवश ं ो6तरी के पचा 4
 का नाम आता है। योिगनी दशा कुल 36 वष- का होता है। ये दशायD व C >  25 )
अपना फल देते है। व ततु : चलन के ‹िकोण से सवा-िधक िवश ं ो6तरी एवं अWटो6त  /
िवचार िकया जाता है। पर,तु भारतवष- के कई ा,त# मD योिगनी दशा का भी चलन है । सवा-िधक
दशाओ ं का उaलेख वृह6पराशरहोराशा मD आचाय- पराशर जी ने िकया है। इस इकाई के अCय
के पचात् आशा है िक पाठक गण योिगनी दशा का Zान सगु मता पवू क- ाGत कर सकD गे।

3.7 पा रभािषक शदावली


िवंशोत$ # 120 वषK क7 दशा
अZोत$ # 108 वषK क7 दशा
$ - 36 वषK क7
पर6प )   + 

3.8 बोध के उ र
1. Q
2. 
3. 
4. Q
5. 

3.9 स#दभ$ %#थ सच


ू ी
1. वृह6पराशरहोराशा - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. वृहयो   ) चौख:भा काशन

उराखड मु त िवविवालय 115


योितषशा ी       MAJY-202
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ िमQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर

3.10 िनब#धा,मक  न
1. योिगनी दशा का उaलेख करते हOये उसके फलादेश क6त-या का िव तारपवू क
- उaलेख करD *
2. योितषोत योिगनी दशा का या मह6व /0 तथा इसका सवा-िधक चलन कहॉ है*
3. योिगनी दशा से आप या C\ + /0*
4. योिगनी दशा का पWट lप से साधन करD ।
5. योिगनी दशा का मह6व ितपािदत क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 116


योितषशा ी       MAJY-202
 - 4 अ#तद$शा एवं ,य#तद$शा
इकाई क संरचना

4.1  ता
4.2 उेय
4.3 अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा परचय
4.4 अ,तद- एवं 6य,तद-शा साधन
4.5  
4.6 पारभािषक श&दा
4.7 बोध न# के उर
4.8 स,दभ- .,थ  
4.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
4.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 117


योितषशा ी       MAJY-202
4.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के िLतीय खड क7 चौथी इकाई से स:बि,धत है .
शीष-क है ) अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा* !+ पवू - आपने िवश
ं ोरी एवं अWटोरी दशा तथा योिगनी
दशाओ ं का अCययन कर िलया है। अब आप इस इकाई मD अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा दशा साधन
के बारे मD अCय + . /+ /0*
V के सू म Zानाथ- अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा क7 आवयकता होती है। इसके Zान से
हम सू म फलादेश करने मD समथ- हो पाते हI।
2 : 1! इस इकाई मD हम लोग ,अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा दशा साधन- के बारे मD तथा
उसक7 गिणतीय िसsा,त#  . नने का यास करते है।
4.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा दशा को परभािषत कर सकD गे।
• अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा क7 आयु दशा वष- से परिचत हो जायDग।े
• अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा का साधन कर सकD +*
• अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा के मह6व को बता सकD गे।
4.3 अ#तद$शा एवं ,य#तद$शा 
दशा Zान के `म मD िवश ं ोरी, अWटोरी एवं योिगनी के पचात् अब आपको अ,तद-शा के
बारे मD बताया जा रहा है। िजस .ह क7 महादशा मD अ,तद-शा 2  /, उसक7 वष- संSया
 2-अलग .ह# क7 वष-संSया + O> + सभी .ह# क7 वष-संSया +  +   + + +
लि&ध पृथक-पृथक् अ,तद-शा वषा-िदमान होते हI। इसी कार अ,तद-शा मD 6य,तर Zात करना
अभीWट हो तो अ,तद-शा मान को 6येक .ह के दशा वष- से गणु ाकर सभी .ह# के दशावष- योग से
  + + से लि&ध पृथक-पृथक 6य,तद-शा होती है। इसी कार आगे क7 इकाई मD सू म 
ाणदशा का भी आनयन िकया जायेगा।
A & #
सयू - क7 महादशा मD सयू ा-िद सभी .ह# क7 अ,तद-शा यिद साधन करनी हो तो )
सयू - क7 िवश
ं ोरीय दशावष- संSया B िवश ं ोरी मत से सभी .ह# के वष-योग ) 98; /0* 2 : / A
नीचे सभी का गिणतीय िविध से गणना कर अ,तद-शाओ ं का Zान करते हI-
उराखड मु त िवविवालय 118
योितषशा ी       MAJY-202
सयू - - B × B/ 98; = ;*7*9:
च,_ - B × 9;/ 98; = ;*B*;
C - B × =/ 98; = ;*I*B
राहO - B × 9:/ 98; = ;*9;*8I
गfु - B× 9B/ 98; = ;*K*9:
 - B × 9K/ 98; = ;*9*98
3> - B × 9=/ 98; = ;*9;*B
+ > - B × =/ 98; = ;*I*B
श` ु - B × B/ 98; = 9*;*;

सूय क महादशा मK सूयािद का अ4तर बोधक च7


ह सयू  च   राह गु     शु
वष        
 7  3    3 
    3    

इसी कार अ,य .ह# क7 भी अ,तद-शा गिणत करके िनकाली जा सकती है।
अ4तदशा 7म #
आदाव4तदशा पाकपते6त7 ':
.  $य4तरादौ च 7मौ !ेयो िवच?णै:।।
 क7 भी दशा मD थम अ,तद-शा वामी क7 होती है और उसके आगे `म से सभी .ह# क7
अ,तद-शा होती है। 6य,त,सूम एवं ाणदशा मD भी यही `म जानना चािहए।
 दशाओ ं मK Xह क अ4तदशा )
भुि,नवानां तु8या 6याद् िवभाया   
 दशापतेभुि,6तके 45ा/ :
िवFात् 7मेण भु:यंशानेवं सूgम *
बल7मात् फलं िव!ैव:तjयं पूवरीितत:।।
अथा-त् .ह# क7 चरािद दशा या के ,_ािद दशा मD दशामान को K समान भाग करके अ,तद-शा जाननी
चािहए। यहाँ थम तो दशािधप क7 ही अ,तद-शा होगी, तदन,तर के ,_ ि थत .ह# क7 पनु : पणफर थ

उराखड मु त िवविवालय 119


योितषशा ी       MAJY-202
.ह# क7 आपोिलम थ .ह# क7 अ,तद-शा बल`म से होती है।
रािशय का अ4तदशा साधन -
कृवा'कधा रािशदशां राशेभुि,ं 7माद् वदेत।्
$य4तशाFेवं कृवा तफ  * 
रािशय# का जो दशावष- हो, ] 98 से गणु ा करने पर जो लि&ध हो, उतना ही 6ये   
अ,तद-शावष- होता है। इसी कार अ,तद-शा वष- मD अनुपात से 6य,तद-शा का भी Zान करना
 /*
रािशय क अ4तदशा मK 7म #
आFस9तमयोमkये यो रािशबलवाँ6त:
K/ दशाये ग-या: 7मादु7 :  
अ,तद-शा `म मD थम और सGतम मD से जो अिधक बली हो, ]  िश से अ,तद-शा ार:भ /
जाती है। ारि:भक दशा िवषम रािश क7 हो तो `म से और सम हो तो उ6`म से सभी रािशय# क7
अ,तद-शा होती है।
अ4य $कार से अ4तदशा का साधन #
 दशाहता काया दशिभ भागमाहरेत।्
य8लMधं सो भवे4मासिं शि4न•नं   * 

. .ह क7 महादशा मD िजस .ह क7 अ,तद-शा अपेि त हो, उन दोन# के दशा वषK को गणु ाकर
दस का भाग देने से लि&ध मास ह#गे। शेष को 7; + O>  9; का भाग देने से लि&ध िदन ह#गे।
इसी कार घटयािद फल का भी साधन करना चािहए। 6येक .ह मD अ,तद-शा का साधन करके रख
   /0, आप उसका आगे अवलोकन कर सकते है। उसी आधार आप गिणत करके अ,तद-शा
     + /0*
,य#तद$शा + )
िजसक7 अ,तद-शा मD 6य,तद-शा िनकालनी हो, उस अ,तद-शा वष- को अपने अपने दशावष-
+ गणु ा कर उसमD सम त दशावष- योग से भाग देने से ल&ध .ह# क7 6य,तद-शा होती है। जैसा िक
आचाय- पराशर जी ने भी कहा है )
 लो : -
!) * 6व-6व दशामानैह4याद4तदशािमितम।्

उराखड मु त िवविवालय 120


योितषशा ी       MAJY-202
भजेसवदशायोगै: फलं $य4तरं 7मात।् ।
A &   . #
.0+ सयू - क7 िवश
ं ोरी मान से सयू - मD सयू - क7 अ,तद-शा मD 6य,तद-शा िनकालनी
है। सयू - का अ,तद-शा वषा-िद ;*7*9: है। इसको िदना6म 9;:   + ! 9;: को सयू - दशा
वष- B + O>   BI: हOआ। इसमD सम त  98;       J   C ,
6+ I:  B; + O>  98;       8I QE,शेष श,ू य हो गया। अत: सयू - क7
6य,तद-शा िदनािद J*8I*; हOआ। इसी कार सयू - क7 अ,तद-शा 9;: िदन इसको च,_दशा वष-
9; + O>  98; का भाग देने पर लि&ध िदनािद ;*K*; / य - क7 अ,तद-शा मD च,_मा क7
6य,तद-शा हOई। इस कार 9;: × भौमवष- = ÷ 98; = ;*B*9: सयू ा-,तर मगं ल क7 6य,त
िदनािद हOई। एवं 9;: × 9: ÷ 98; = ;*9B*98 सयू ा-,तर मD राहO क7 6य,तर दशा िदनािद हOई।
इसी कार अपनी-25 ष- संSया + O>  98; का भाग देने पर सभी .ह# क7
6य,तद-शा िदनािद पWट /  /0*
सयू क महादशा मK सयू क अ4तदशा मK सयू ािद क $य4तदशा बोधक च7
ह सयू  च   राह गु     शु
         
 2    3  2  
 3   3    

सूय क महादशा मK च45मा क अ4तदशा मK च45ािद क $य4तदशा बोधक च7


ह च   राह गु     शु सयू 
        
 2   3  2   
  7   7 7 7  

सूय क महादशा मK मंगल क अ4तदशा मK मंगलािद क $य4तदशा बोधक च7


ह   राह गु     शु सयू  च
         
        
 23 3 2 2   7

उराखड मु त िवविवालय 121


योितषशा ी       MAJY-202
सूय क महादशा मK राहO क अ4तदशा मK राpािद क $य4तदशा बोधक च7
ह राह गु     शु सयू  च  
    
  7 2  3   
 7  23 23   23

सूय क महादशा मK गु] क अ4तदशा मK गुवािद क $य4तदशा बोधक च7


ह गु     शु सयू  च   राह
    
  2    3 3  7
 3 7 3 3  3  3

सयू क महादशा मK शिन क अ4तदशा मK शिन आिद क $य4तदशा बोधक च7


ह     शु सयू  च   राह गु
    
 3       2
   2   7 2  7

सूय क महादशा मK बुध क अ4तदशा मK बुधािद क $य4तदशा 3 7


ह    शु सयू  च   राह गु 
      
 7  2 2  2  
 2   7 2 23 3 2

सूय क महादशा मK के तु क अ4तदशा मK के तु आिद क $य4तदशा बोधक च7


ह   शु सयू  च   राह गु  
         
        
   7 23 3 2 2

सूय क महादशा मK शु7 क अ4तदशा मK शु7 आिद क $य4तदशा बोधक च7


ह शु सयू  च   राह गु    
   
उराखड मु त िवविवालय 122
योितषशा ी       MAJY-202
    3  
         

5+ न
1.स:पणू - दशा वष- का मान िकतना होता है।
. 9;: वष- ख.98; वष- ग. 7B वष- घ. कोई नह‚।
2. च,_मा का िवश ं ोरी दशा वष- िकत /0*
.B वष- ख. 9: वष- ग. 8; वष- घ. 9; वष-
3. सयू - क7 दशा मD सयू - क7 अ,तद-शा मान साधन का गिणत है।
. 9;*9;/98; P. B×B/98; . 8; × B/98; Q. B × 9;/98;
4. सयू - क7 दशा मD सयू - क7 अ,तद-शा मान हो *
. ;*7*9: P. ;*B*98 . ;*9;*B ;*J*9;
5. सयू - क7 दशा मD सयू - क7 अ,तद-शा मD सयू - का 6य,त C  / /0*
. ;*J*8I P. ;*7*9: . ;*9*98 Q. ;*:*B
6. सयू - मD बधु का अ,तद-शा मान होगा -
. ;*:*B P. ;*9;*B .;*9*98 Q.;*B*K

4.6  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /  िजस .ह क7 महादशा
मD अ,तद-शा अवगत करनी हो, उसक7 वष- संSया  2-अलग .ह# क7 वष-संSया + O>
+  .ह# क7 वष-संSया के योग से भाग देने से लि&ध पृथक-पृथक् अ,तद-शा वषा-िदमान होते
हI। इसी कार अ,तद-शा मD 6य,तर Zात करना अभीWट हो तो अ,तद-शा मान को 6येक .ह के दशा
वष- से गणु ाकर सभी .ह# के दशावष- योग से भाग देने से लि&ध 5ND-पृथक 6य,तद-शा होती है।
इसी कार आगे क7 इकाई मD सू मदशा एवं ाणदशा का भी आनयन िकया जायेगा।
4.7 पा रभािषक शदावली
अ4तदशा # दशा के मCय अ,तद-शा होती है।
$य4तदशा # अ,तद-शा के मCय 6य,तद-शा होती है।

उराखड मु त िवविवालय 123


योितषशा ी       MAJY-202
!) - !) - 2-2
पर6प )   + 
4.8 बोध के उ र
1. P
2. Q
3. P
4. 
5. 
6. P
4.9 स#दभ$ %#थ सच
ू ी
1. वृह6पराशरहोराशा - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. वृहयो   ) चौख:भा काशन
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ िमQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
4.10 िनब#धा,मक  न
1. अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा साधन से आप या C\ + /0*
2. अ,तद-शा साधन िविध सोदाहरण िलिखये*
3. 6य,तद-शा का साधन क7िजये।
4. अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा का मह6व 3  !+*
5. अ,तद-शा `म,   , रािशय# क7 अ,तद-शा `म का लेखन क7िजये*

उराखड मु त िवविवालय 124


योितषशा ी       MAJY-202
 - 5 सू>म दशा एवं ाण दशा
इकाई क संरचना

5.1  ता
5.2 उेय
5.3 सू म दशा एवं ाण दशा परचय
5.4 सू म दशा एवं ाण दशा साधन
5.5  
5.6 पारभािषक श&दा
5.7 बोध न# के उर
5.8 स,दभ- .,थ  
5.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
5.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 125


योितषशा ी       MAJY-202
5.1 ता
 तु ! " MAJY-202 के िLतीय खड क7 पाँचव‚ इकाई से स:बि,धत है .
शीष- /0 ) सू म दशा एवं ाण दशा* !+ पवू - आपने िवश
ं ोरी, अWटोरी,  D
अ,तद-शा एवं 6य,तद-शा का अCययन कर िलया है। अब आप इस इकाई मD सू म दशा एवं ाण
दशा साधन के बारे मD अCय + . /+ /0*
दशाओ ं मD अित सू म काल Zान के िलए सू म दशा एवं ाण दशा  िवधान है। ऋिषय#
ने काल का िनर,तर अ,वेषण कर सू माितसू म काल खड का िनधा-रण कर जातक के जीवन मD
होने वाली घटनाओ ं का Zान दशाओ ं के माCयC +  + D+*
2 : 1! इस इकाई मD हम लोग ,सू म शा एवं ाण दशा  - के बारे मD तथा
उसक7 गिणतीय िसsा,त# को जानने का यास करते है।
5.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• सू म दशा एवं ाण दशा को परभािषत कर सकD गे।
• सू म दशा एवं ाण दशा क7 आयु दशा वष- से परिचत हो जायDग।े
• सू म दशा एवं ाण दशा का साधन कर सकD गे*
• सू म दशा एवं ाण दशा के मह6व को बता सकD गे।

5.3 स>ू म एवं ाण दशा


V के `म मD अ,तर और 6य,तर दशा के पचात् सू म एवं ाण दशा का था
आता है। आप सभी को यह Zात होना चािहए िक सू म एवं ाण दशा सू माितसू म  +
साधन के आधार त:भ है। ऋिषय# ने िनर,तर घोर साधना कर इतना सू म C  1A
िकया तािक सू म फलादेश करने मD सहायता िमल सके ।
सू म से भी सू म ाण दशा होती है। अत: इसका गिण      1
कत-य दोन# ही सव-था किठन है। आइए इस इकाई मD आपके िलए `मश: सू म एवं ाण दशा का
साधन जो ऋिषय# Lारा बतलाया गया है, `मश: उसका उaलेP  + /0* !+ 1  5 15
सू म एवं ाण दशा साधन करने मD समथ- हो जायDग*े

उराखड मु त िवविवालय 126


योितषशा ी       MAJY-202
5.4 सू>म एवं ाण दशा साधन

सgू मा4तदशा साधन $कार #


गु-या 6व 6वदशावषr: $य4त :
खाकr भ:ता पृथHलिMध: सूgमा4त  * 
अथा-त् 6य,त C   2-अलग दशावष- से गणु ा कर 98;    + + 5 2-
अलग सू मा,तद-शा का मान ाGत / /0*

A & #
जैसे सयू - क7 महादशा मD सयू - क7 ही अ,तद-शा मD सयू - क7 6य,तद-शा J*8I    /0,
! J × B; + 8I = 78I घटया6मक हOआ, इसमD सूय- दशा वष- B + O>   9KII
हOआ, इसमD 98;       9B*98 घटयािद सयू - दशा मD सयू ा-,तर मD सयू - 6य,तर मD सयू -
क7 सू म दशा हOई। इसी कार पवू eत सयू - क7 6य,तद-शा 78I को च,_ दशावष- 9; + O> 
98;    + + + 8=*; घटयािद च,_ क7 सू म दशा हOई। एवं  + O )
78I × =/98; = 9:*JI QE 
78I × 9:/98; = I:*7B QE 
78I × 9B/98; = I7*98 QE 
78I × 9K/98; = J9*9: QE 
78I × 9=/98; = IJ*JI QE 
78I × =/98; = 9:*JI QE 
78I × 8;/98; = JI*;; QE 

अत: सूयमहादशा मK, सूया4तर मK, सूय $य4तर मK, सयू सूgम  च7
Xह सयू च45  राहO ग]ु  3    श7ु
C$ 9B 8= 9: I: I7 J9 IJ 9: JI
 98 ; JI 7B 98 9: JI JI ;

उराखड मु त िवविवालय 127


योितषशा ी       MAJY-202
ाण दशा साधन कार 
पथ
ृ क् खगदशावषrह4यात् सgू म  *
खसूयrिवभजे8लिMध!\या $ाणदशािमित:।।

अथा-त् सू म दशामान को 6येक .ह# के दशावष-संSया से पृथक् पृथक गणु ा कर गणु नफल मD
दशावष- योग 98; से भाग देने पर घटयािद ाणदशा होती है।
A & #
जैसे सयू - क7 सू म 5 9B QU, 98 5 /0, ! 9B × B; + 98 =
K=8 5 3 + + K=8 हOए इसको सयू -वष- संSया B से गणु ा कर ाGत J:78 मD 98;   
+ + 5 ; QE, I: 5 7B िवपल हOआ, यही सयू - क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हOई। इस
कार K=8 पला6मक सयू - क7 सू म दशा को 6येक .ह# के दशा वष- से गणु ाकर 98;    + +
से सभी .ह# के सयू - क7 सू म दशा मD ाणदशा हो जाती है।

QE 5 5
K=8 × 9;/98; = 9*89*; = सयू - क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा
K=8 × =/98; = ;*JB*I8 = सयू - क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा
K=8 × 9:/98; = 8*8J*I: = सयू - क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा
K=8 × 9B/98; = 8*K*7B = सयू - क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा
K=8 × 9K/98; = 8*77*JI = सयू - क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा
K=8 × 9=/98; = 8*9=*I8 = सयू - क7 सू म दशा मD बुध क7 ाणदशा
K=8 × =/98; = ;*JB*I8 = सयू - क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा
K=8 × 8;/98; = 8*I8*; = सयू - क7 सू म दशा मD श`ु क7 ाणदशा
उत कार सेस 6येक .ह क7 सू म दशा के Lारा ाणदशा का साधन करना चािहए।
सयू क सgू म दशा मK सयू क $ाणदशा सारणी #
.ह सयू - च,_ C राहO गfु  3> + > श`ु
QE ; 9 ; 8 8 8 8 ; 8
5 I: 89 JB 8J K 77 9= JB I8
5 7B ; I8 I: 7B JI I8 I8 ;
उराखड मु त िवविवालय 128
योितषशा ी       MAJY-202
इसी कार आप सू म एवं ाण दशा अ,य .ह# का भी साधन कर सकते हI।
23 सू म एवं ाण दशा के अितरत कालच` दशा का भी साधन बतलाया गया है। यहाँ उसका
भी उaलेP  . / /0*
dkypØ n”kk dk vku;u &
dkypØ n”kk ewyr% u{k=&iz/kku n”kk gSA pUnzek gh u{k= gksrk gSA vr%
tUedkfyd pUnzek dk Li’V jk”;kfn Hkksx gh bl egkn”kk dk ewy vk/kkj gSA bl n”kk
ds vku;u fof/k dks ge pkj eq[; pj.kksa esa ck¡V ldrs gSa&
1- pUnzek ds jk”;kfn Hkksx ls tUedkfyd u{k= dk KkuA
2- tUedkfyd u{k= ds pj.k vkSj orZeku pj.k ds Hkqä dkykfn dk KkuA
3- orZeku u{k=&pj.k ds Hkqä dykfn ls Hkqä n”kk dk KkuA
4- n”kk ds Hkqä o’kkZfn ls HkksX; o’kkZfn dk KkuA
n”kku;u dh bl lewph izfØ;k dks ,d mnkgj.k }kjk le>uk ljy gksxkA
eku yhft, fdlh O;fä dk tUe 29 uoEcj 1985 dks gqvk gSA tUedkfyd pUnzek dk
Li’V jk”;kfn Hkksx 10A00A9^A21^^ gSA
pa- 10A0A9A21 = 3000A9^21^^
¼1½ 1 u{k= dk eku 130A20^ gksrk gS rFkk 30A20^ dk ,d pj.k gksrk gSA
u{k=eku 130A20^ ls pUnzek ds va”kkfn Hkksx esa Hkkx fn;kA
--------------------- = 22-511688 yfC/k 22 xr u{k= la[;k gSaA vFkkZr~ 22ok¡ u{k=
Jo.k xr gks pqdus ij orZeku /kfu’Bk u{k= ds “ks’k 60] 8225 rqY; Hkkx tUe rd Hkqä
gks pqdk gSA
¼2½ /kfu’Bk ds xr va”kkfn 60] 8225 esa pj.keku 30A20^ ls Hkkx nsus ij yfC/k 2
/kfu’Bk ds xr pj.k vkSj 00A1^A21^^ r`rh; pj.k dk Hkqäka”k gksxkA
¼3½ bl /kfu’Bk u{k= ds r`rh; pj.k ds Hkqäka”k dks mlds lEiw.kZ n”kko’kZ 85 ls
xq.kk dj pj.keku 30A20^ ls Hkkx nsus ij&
/kfu’Bk ds r`rh; pj.k dk Hkqäka”k 00A9^A21^^
/kfu’Bk ds r`rh; pj.k dh lEiw.kZ n”kk 85 o’kZ gSA
vr% 00A9^A21^^ x 85 » 30A20^ o’kZ

= 3-97375 o’kZA
= 3 o’kZ 11 ekg 20-55 fnuA
= feFkqu dh n”kk ds xr o’kkZfnA

उराखड मु त िवविवालय 129


योितषशा ी       MAJY-202
/kfu’Bk ds rhljs pj.k esa ¼;r% /kfu’Bk vilO; pØ esa u{k==; dk nwljk u{k=
gS blfy,½ vilO; pØ ds lw=ksa esa 7osa lw= ds vuqlkj n”kkØe feFkqu ls izkjEHk gksxk
ftldk n”kk o’kZ 9 gSA
vr% feFkqu dh n”kk esa 3 o’kZ 11 ekg 20 fnu Hkqä gksus ij tkrd dk tUe
gqvk gSA blfy, feFkqu ds HkksX; o’kkZfn 9 o’kZ&3A10A16 o’kkZfn
9A00A00
& 3A11A20
feFkqu dk HkksX; dky = 5A00A10 o’kkZfn
vFkok&
tUedkfyd pUnzek jk”;kfn 10A0A9A21
= 18009-35 dyk
ସ଴ଽǤଷହ
18009-35 » 800 = 22
଼଴଴
ckbZlok¡ u{k= Jo.k xr 23osa u{k= /kfu’Bk ds 409-35 dyk xr gksus ij tUe
gqvkA
ଽǤଷହ
409-35 » 200 = 2 vFkkZr~ /kfu’Bk ds nks pj.k xr] rhljs pj.k ds 9^-35
ଶ଴଴
dyk xr gksus ij tUe gqvkA
ଽǤଷହൈ଼ହ
vr% tUedky esa feFkqu dh 9 o’khZ; egkn”kk izHkkoh Fkh ftldk = 3
ଶ଴଴
o’kZ 11 ekg 20 fnu tUe ls iwoZ xr gks pqdk Fkk rFkk 5 o’kZ vkSj 20 fnu feFkqu dh
n”kk dk “ks’k FkkA

5+ न
1. सयू -महादशा मD, सयू ा-,तर मD, सयू - 6य,तर मD, सयू - सू म  C  /0*
. 9B*98 P. 8I*8I .7*B Q. 9J*8B
2. सयू -महादशा मD, सयू ा-,तर मD, सयू - 6य,तर मD, राहO का सू म   C  /0*
.78I × 9:/98; P. 78I × 9B/98; 78I × B/98; घ. कोई नह‚
3. सयू - क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा साधन का मान होगा।
. K=8 × 9;/98; P. K=8 × :/98 . K=8 × 9B/98; Q. K=8 × B/98;
4. सयू - क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा का मान होगा।
. 9*89*; P. J*9;*9J . 8*J*B Q.8*J*:
उराखड मु त िवविवालय 130
योितषशा ी       MAJY-202
5. काल च` दशा िन:न मD कौन सा धान दशा है।
क. च,_ धान ख. न धान ग. रािश धान घ. कोई नह‚

5.6  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   / V के `म मD अ,त G
6य,तर दशा के पचात् सू म एवं ाण दशा का थान आता है। आप सभी को यह Zा /
चािहए िक सू म एवं ाण दशा सू माितसू म फलादेश साधन के आधार त:भ है। ऋिषय# ने
िनर,तर घोर साधना कर इतना सू म समय का आँकलन िकया तािक सू म फलादेश करने मD
/  C + * सू म से भी सू म ाण दशा होती है। अत: इसका O    
फलोदश आिद कत-य दोन# ही सव-था किठन है। 6य,त C   2-अलग दशावष- से
O>  98;    + + 5 2-अलग सू मा,तद-शा का मान ाGत / /0* सू म C 
को 6येक .ह# के दशावष-संSया + 5ND4 5ND O>  गणु नफल मD दशावष- योग 98; +  
देने पर घटयािद ाणदशा होती है।
5.7 पा रभािषक शदावली
सgू म # $य4त दशा पचात् सू म /  /0*
$ाणद # सू म के बाद ाण दशा जो अ6य,त सू म /  /0*
कालच7 दशा - न धान द *
पर6प )   + 
5.8 बोध के उ र
1. 
2. 
3. 
4. 
5. P
5.9 स#दभ$ %#थ सूची
1. वृह6पराशरहोराशा - आचाय- पराशर

उराखड मु त िवविवालय 131


योितषशा ी       MAJY-202
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. वृहयो   ) चौख:भा काशन
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ CQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
5.10 िनब#धा,मक  न
1. सू म दशा साधन िविध का लेखन क7िजये।
2. ाण दशा िकसे कहते है*
3. सोदाहरण ाण दशा का साधन क7िजये*
4. कालच` दशा का साधन क7िजये*
5. काल च` दशा से या ता6पय- है*

उराखड मु त िवविवालय 132


योितषशा ी       MAJY-202

ख ड-3
 

उराखड मु त िवविवालय 133


योितषशा ी       MAJY-202
 - 1 1.* * 0 
इकाई क संरचना

1.1  ता
1.2 उेय
1.3 महादशा दशाफल परचय
1.4 िवश
ं ोरी महादशा फल िवचार ) सवा-थ-िच,ताCO + 2> 
1.5 C/    - वृह6पराशरहोराशा + 2> 
1.6  
1.7 5 रभािषक श&दा
1.8 बोध न# के उर
1.9 स,दभ- .,थ  
1.10 सहायक पाठ्यसाम.ी
1.11 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 134


योितषशा ी       MAJY-202
1.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के तृतीय खड क7 पहली इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) C/   * !+ पवू - आपने िवश
ं ोरी, अWटोरी एवं योिगनी आिद
दशाओ ं का गिणतीय प जान िलया है। अब आप `मश: इकाई वार उनके फलादेश प का भी
अCय + . /+ /0*
िवश
ं ोरी दशाओ ं का फिलत प इस अCयाय मD विण-त िकया जा रहा है। सयू ा-िद सम त
.ह# क7 दशाओ ं मD जातक पर या शभु ाशभु भाव पड़ता है। इसका Zान इस अCयाय मD आपको हो
. + *
1! इस इकाई मD हम लोग ,िवश ं ोरी महादशा फल िवचार- के बारे मD हम यो 6
शा के माCयम से जानने का यास करते है।
1.2 उे य
! ! ई के अCययन के पचा 4 15 )
• C/  को परभािषत कर सकD गे।
• सयू ा-िद .ह# के महादशा फल को समझा सकD गे।
• C/ फल िवचार कै से िकया जाता है। जान जायेगD।
• िविभ,न जातक .,थ# मD महादशाओ ं के फल या है। उसका िवलेषण कर सकD गे।

1.3 1.* * 0ल प रचय


C/ फल िवचार से ता6पय- यह है िक जातक के उपर िजस .ह क7 महादशा चल रही
/, उस .ह क7 कुडली मD ि थितवशात् उस जातक पर भाव पड़ता है। यह Cयातय / /0 
कुडली मD .ह उjच  /0,   /0, वN/ /0, िम गृही है, श गु हृ ी /0, उस पर िकतने शभु .ह
और पाप.ह क7 ‹ि है तथा उस .ह क7 अव था या है आिद इ6यािद ऐसे अनेक तUय C/
फल िवचार के दौरान योितषी के सम उपि थत होते हI। के वल .ह क7 दशा देखकर ही फलादेश
करना नह‚ चािहए, अिपतु स:पणू - ि थितय# को देखने क7 आवय /  /0*   4 !
फलादेश का तर अ6य,त यापक है। इसके िलए .ह# के 6येक प # का सू म Zान क7
आवयकता होती है। इस इकाई मD सयू ा-िद 6येक .ह# क7 दशा फल उनक7 िविभ,न ि थितय# के
अनl ु प दी जा रही है।
उराखड मु त िवविवालय 135
योितषशा ी       MAJY-202
जातकपाGर/  B  +  
3 & )   &  (
दशाफलः सवफलं नराणां वणानुसारेण यथािवभागः।।
िजस कार .हबल के अनसु ार योग फलदायक होते हI उसी कार योग के अनसु ार ही
योगकारक .ह अपनी दशा ा होने पर शभु ाशभु फल देते हI। दशा के अनसु ार ही मनWु य# को
सम त शभु ाशभु फल ा होते हI तथा ये फल उ,हD वणK के अनसु ार ा होते हI।
िवंशोRरी महादशा
आिदयच45कुजराहOसरु ेशमि41-
म4द!के तुभृगुजा नव कृिRकाFाः।
तेनो नयः िसनदयातटध4यसेjय-
सेनानरा िदनकरािददशाMदस ं याः।।
कृ िका न से ार:भ कर नवD न पवू ा-फाaगनु ी पय-,त `मशः सयू -, च,_मा, C,
राहO, बृह पित, , के तु और श` ु वामी अथा-त् दशापित होते हI। उराफाaगनु ी से ार:भ कर
नवD न पवू ा-षाढा पय-,त और उरषाढा से ार:भ कर भरणी पय-,त सयू ा-िद .ह उपय-] ु `म से
वामी या दशापित होते हI। तेन 6, 10, 7,  18, E 16, ध,य 19, सेय 17, + 7
G  20 वष- उपय-] ु `म से सयू ा-िद .ह# के दशावष- होते हI।
+ $   B   
ऋृ?6य ग[या घिटका दशाMद
िन•ना नताaा 6वदशाMदसंया।
Sपैनमैः संगुरपये4नतेन
xता6तु मासा िदवसाः 7मेण।।
ज,म के समय िकसी .ह क7 िकतनी दशा भोhय थी यह िनकालने का कार बताते हI। यह
देिखये िक ज,म के समय च,_मा िकस न मD है और ज,म के बाद िकतने घड़ी तक उस न मD
और रहेगा। िजतनी घड़ी तक और रहेगा उन घिड़य# को महादशा के मान से गणु ा क7िजये और B;
से भाग देकर यह िनकाल लीिजये िक भोhय वष- िकतने आये। !  ] /O + C\ .
सकता है। मान िलिजये िक ज,म के समय पनु व-सु न के बीस घड़ी शेष थे। पनु व-सु न मD ज,म
होने से वृह पित क7 महादशा मD ज,म होता है इस कारण वृह पित क7 दशा मD ज,म हOआ। अब यिद
यह जानना है िक वृह पित क7 दशा िकतनी शेष है तो )
उराखड मु त िवविवालय 136
योितषशा ी       MAJY-202
8; × 9B/ B;= 9B/7 = J वष- I मास हOआ। इसी कार आगे भी समझना चािहए।
1.4 1.* * 0   सवा$थ$िच#ता1/ 4 )$ 

23 सव-थम / A आचाय- वDकटेश Lारा िवरिचत -सवाथिच4ता &" + 2>  सयू ा-िद .ह# का
दशाफल िवचार िन:न lप से है-
सूय$दशाफलिवचारः -
परमो/चांश6थ सूय दशा फल कथन
भानोदशायां परमो/चग6य भू[यथदारामजकितशौ’यम।्
स4माननं भूिम4  ( रिवनोदगो€ीम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - परमोjचांश मेषरािश के 10 अंश मD ि थत हो, 
उसक7 दशा के समय भिू म, , wी, पु , क7ित-, शौ य- आिद क7 ाि होती है। राजक7य स:मान
ाि के अवसर सल ु भ होते हI। pमण-या ा का शभु अवसर िमलता है। मनोरंजन और िवचार योhय
सभा मD सि:मिलत होने का अवसर भी ा होता है।।
उ/च6थ सूयदशाफलकथन
उ/चाि4वत6यािप रवेदशायां गोवृिfधा4याथपGर‹मं च।
 रयुHब4धज
ु नैिवरोधं देशाि;देशं चरित $कोपात।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - अपनी उjच (मेष) रािश मD ि थत हो तो मनWु य के
गोधन क7 अिभवृिs होती है। अ,न और धन क7 ाि भी होती है। यथ- या ा भी करने पड़ते हI।
अिधकतर गितशील रहने अथा-त् दौड़ धपू करते रहने क7 आवयकता रहती है। ब,ध-ु बा,धव# से
िवरोध के कारण भी उ6प,न होते हI। ायः कोप भाजन होकर देश-देशा,तर pमण भी होता है।
$च-डवेयागमनं ि?तीशादुपैित वृिRं रितके िलमानम।्
मृदङगभेरी रवयु,यानम4यो4यवैरं लभते मनु<यः।।
.-िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - उjच (मेष) रािश मD होता है, तो मनWु य िनकृ  वेया
का संग करता है। राजा या शासक से आजीिवका क7 ाि होती है। काम`7ड़ा का अवसर भी
सलु भ होता है। स:मान क7 ाि भी होती है। ऐसे यि] के वाहन के आगे-5Z+ CN a-+ ( > /)
आिद जैसे बाजे क7 Cविन गँजू ा करती है। ./ A  / /0, / A ]+ -  + +   
 C  5U /0*

उराखड मु त िवविवालय 137


योितषशा ी       MAJY-202
च#2दशाफलिवचारः
परमो/च6थ च45 दशा फल कथन -
अयु/चग6यािप िनशाकर6य दशािवपाके कुसुमा[बरं च।
मह—वमा9नोित कल4नलाभं धनायितं प1ु मनोिवलासम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद परमोjच अथा-त् वृष रािश के त6व अंश मD ि थत हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य को स,ु दर पWु प और वw क7 ाि होती है। अपना मह6व िसs करने मD
सफल होता है। wी क7 ाि होती है। धन भी ा होता है। पु और मनोरंजन करने के अवसर ा
/ + /0*
उ/चरािश6थ च45 दशाफल कथन
उ/चि6थत6यािप िनशाकर6य $ाaौ दशायां सुतदारिवRम।्
िमZा4नपाना[बरभूषणािaं िवदेशयानं 6वजनैिवरोधम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपनी उjच वृष रािश मD ि थत हो तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को पु , wी, धन आिद क7 ाि होती है। मध,ु भोजन और पेय क7 उपलि&ध रहती है।
वw, आभषू ण भी ा होते है। अपकुटुि:बय# से िवरोध भी होता है। िवदेश या ा भी करनी पड़ती
/0**65**
आरोही च45 दशा फल कथन
आरोिहणी च45दशा $प4ना wीपु1िवRा[बरकितसौयम।्
करोित रायं सुखभोजनं च देवाचनं भूसुरतपणं च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद आरोही अथा-त् उjच क7 ओर अ.सर करता हOआ
ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य को wी, पु , , वw, क7ित-, सख ु आिद क7 सहज
उपलि&ध रहती है। राय भी ा होता है। सखु पवू क
- भोजन करने और देवा-चन तथा “ाहमण भोजन
+- + + शभु अवसर ा होते हI।
अवरोिहणी च45दशा फल कथन
िनशाकर6या9यवरोहकाले wीप1ु िम1ा[बरसौयहािनम।्
मनोिवकारं 6वजनैिवरोधं चौरािHनभूपैः पतनं तडागे।।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अवरोही अथा-त् उjच से दरू होकर नीच क7 ओर
अ.सर करता हOआ ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य के wी, पु , िम , वw आिद के सैSय
का नाश होता है। मानिसक िवकार भी उ6प,न होता है। वजन# से िवरोध भी होता है। चोर, अिhन

उराखड मु त िवविवालय 138


योितषशा ी       MAJY-202
G  .   भी उ6प,न होता है। तालाब मD डूबने क7 घटना होती है।
नीच नवांश6थ च45 दशा फल कथन
नीचांशग6यािप िनशाकर6य $ाaौ दशायां िविवधाथहािनम।्
कुभोजनं कुिसतराजसेवां मनोिवकारं समुपैित िन5ाम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद नवाश ं अथा-त् नवांश मD अपनी नीच वृिxक रािश का
होकर ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य को अनेक कार से हािन होती है। अभोय भोजन
करना पड़ता है। दु राजा क7 सेवा करता है। मानिसक िवकार उ6प,न होता है। न‚द खबू आती
/0*
 ि1कोण6थ च45दशा फल कथन
मूलि1कोणि6थतच45दाये नपृ ाfनं भूिमसतु ाथदारान।्
$ा9नोित भूषा[बरमानलाभं सुखं जन4या रितके िललोलम।् ।69।।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपनी मल ू ि कोण रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य को राजा से धन क7 ाि होती है। भिू म, पु , , wी आभषू ण, वw 1 +  
होते हI। माता का सख
ु सहज िमलता है। काम-`7ड़ा के िलए भी अवसर सहज सल ु भ होता रहता
/0**69**
परमो@चथ भौम दशाफल कथन
अयु/चभून4दनदायकाले ?े1ाथलाभं समरे जयं च।
आिध:यम4वेित नरेशमानं सहोदरwीसुतवािHवलासम।् ।1।।
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद परमोjच अथा-त् मकर रािश के 28वD अश ं पर ि थत
/, तो उसक7 दशा के समय मनWु य कृ िष से धन लाभ करने मD सफल रहता है। यs
ु या लड़ाई मD भी
िवजयQी ा करता है। अनेक लोग# के बीच राजक7य स:मान ा कर पाता है। pातृ, wी, पु
1 +  D हा य-परहास वाा- का अवसर भी उसे स ु  / /0*

उ/चरािश6थ मंगल दशाफल कथन


उ/चं गत6य च दशासमये कुज6य $ा9नोित रायमथवा ि?ितपा/चिवRम।्
भूमkयदारसुतब4धुसमागमं   &   * 
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद अपनी उjच मकर रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य राय अथवा राजा से धन ा करता है। भिू म, wी, पु और ब,धु से िमलन होता रहता है।

उराखड मु त िवविवालय 139


योितषशा ी       MAJY-202
िविवध वाहन क7 सवारी करने का अवसर िमलता है। इस समय िवशेष कर मनWु य को देशा,तर pमण
करने पड़ते हI।
परमो@चथ बध
ु दशाफल कथन
अयु/चसोमामजदायकाले धनाि4वतः याितमुपैित सौयम।्
!ानं च कित जननायकवं wीपु1भू[यथमहोसवं च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद परमोjचाश ं मD अथा-त् क,या रािश के 15 अश
ं पर
ि थत हो, तो उसक7 दशा मD मनWु य धनवान् होता है। उसे Sयाित िमलती है। सखु क7 भी ाि होती
है। Zान और क7ि- स:प,न होते हI। जनसमहू का नेता होता है। wी, पु ,  C G    
होता है। उसके Lारा महो6सव का आयोजन होता है।
उ/चि6थत6यािप शशङकसूनोदशा मह—वं कु]तेऽथसौयम।्
देह6य पिु Zं धनधा4य1 गोवािजमRेभमृदङगनादम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद अपनी उjच क,या रािश मD हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य अपना मह¡व थािपत करता है। धन का सख ु ा करता है। उसक7 शारीरक बल मD
वृिs होती है। धन, अ,न, पु , , QU , उ,म हाथी आिद से स:प,न होकर सदा मृदङग क7
Cविन सनु ता है।
 $ 3  + )
आरोिहणी सौ[यदशा $प4ना य!ोसवं गोवृषवािजसङघम।्
मृ;4नभूषा[बरयानलाभं वािणयभू[यथपरोपकारम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद उjच क7 ओर अ.सर करता हOआ हो, तो उसक7 दशा
मD मनWु य यZ के आयोजन lप उ6सव मनाता है। गोधन, 30, घोड़ा आिद के समहू का वामी होता
हI मलु ायम अ,न, 16 O, वw,  /  C G   ]+   / /0* सदा परोपकार मD रत
/ /0*
B  $ 3  + )
शशाङकसनू ो6ववरोिहणी या दशा महकZतरं च दुःखम।्
िव!ान $ H !पािHनचौरैभयम1 कZम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD बधु यिद अवरोही अथा-त् नीच क7 ओर अ.सर हो, तो उसक7
दशा के समय मनWु य अ6यिधक क और दःु ख पाता है। Zान-िवZान से रिहत होता है। परायी wी का
C  /0*  . , , अिhन आिद से  व क ा होते हI।

उराखड मु त िवविवालय 140


योितषशा ी       MAJY-202
नीच रािश6थ बुध दशाफल कथन
नीच6थच45ामजदायकाले !ानेन हीनं 6वजनैिवयु,म।्
पद/युितं ब4धिु वरोधतां     4D *
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद अपनी नीच रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य Zान रिहत होता है। वजन# का िवयोग सहन करता है। पद-ित‘ा मD भी कमी होती है। अपने
ब,धजु न# से भी िवरोध िमलता है। िवदेश या ा भी करने पड़ते हI। िनवा-िसत-सा जीवन क G
f> P + +   /  /0*
परमो@चगत गुBदशा फल कथन
गुरोदशायां परमो/चग6य रायं महसौयमुपैित कितम।्
  / Hघनृपािभषेकं 6वकुलािधपयम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद परमोjच मD अथा-त् कक- रािश के 5 अश ं पर ि थत हो,
तो उसक7 दशा के समय मनWु य राय क7 ाि करता है। बहOत सख ु ी होता है। उसक7 अjछी क7ित-
होती है। मन उ6सािहत होने से आन,दानभु िू त क7 अपे ा भी परू ा होता है। बहOत-+ / D G QU
भी उसके पास आता है। उसक7 रायािभषेक भी होता है। अपने कुल मD सव-मख ु होता है।
उ/च (कक) रािश गत गु] दशा फल कथन
कुलीरग6यािप गुरोदशायां भाHयोRरं भूपितमानना;ा।
  िधपयं दुःखैः पGरि:ल4नतनुमनु<यः।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद अपनी उjच रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य के भाhय क7 अिभवृिs होती है। राजक7य स:मान क7 ाि होती है। िवदेश या ा भी
करता है। मह¡वपणू - अिधकार ह तगत करने मD   / /0*    / f> P +  O  िख,न
शरीर से य]ु होता है।
आरोही गु]दशा फल कथन
आरोिहणी देवगुरोमह—वं दशा $प4ना कु]ते ऽथभूिमम।्
गानि7या wीसतु राजपू यं 6ववीयतः $ाaयशः $तापम।् ।
जीवदशायामारोिह-यामीशो म-डलािदनाथो वा।
ि;जभूपाललMधधनो मेधावी काि4तमान् िवनीित!ः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद आरोही अथा-त् उjचानमु ख ु होकर ि थत हो, तो उसक7
दशा के समय मनWु य अपना मह¡व िसs करता है। धन, भिू म आिद क7 ाि भी होती है। अपने बल

उराखड मु त िवविवालय 141


योितषशा ी       MAJY-202
पर वह संगीत कला मD वीणता, wी, 5> आिद क7 ाि भी करता है। राजा से स:मान भी ा
करता है। वह यश वी व तापी भी होता है।
वह िकसी क बा या इलाके का राजा अथवा मडलािधपित होता है। “ाहमण और राजा से
धन क7 ाि करता है। वह बिु sमान लावय-तेजय]
ु शरीर वाला और नीितZ होता /0*

अवरोही गु] दशा फल कथन


देवे45पूय6य दशावरोही करोित सौयं सकृदेव नाशम।्
सकृFशः काि4तिवशेषजालं नरेƒरवं सकृदेव याित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद अवरोही अथा-त् नीचानमु ख ु होकर ि थत होता है, 
उसक7 दशा के समय मनWु य कभी सख ु ी,  f> खी होता है। कभी यश वी, िवशेष काि,त से य]

G  . / /0, तो कभी सामा,य जीवन जीता है। इस तरह मनWु य चंचर ि थ G 
/ . /0*
परमनीचगत ग]ु दशा फल कथन
अितनीचभागभाजो गुरोदशायां $भHनगृहपुंजः।।
अ4यो4यxदयवैरं कृिषनाशं याित परभृयः।।
.स िकसी क7 कुडली मD गfु यिद परमनीच मD अथा-त् मकर रािश के अंश पर ि थत हो,
तो उसक7 दशा के समय मनWु य का गृह भhन अथा-त् िगर जाता है अथवा टूट-फूट से य] ु होता है।
./ A  / / /0, उस वातावरण मD उपल&ध लोग# के ित tदय मD  / /0* ]+ N 6
क7 हािन होती है। दसू र# के पास सेवा करके जीिवकाज-न करने को िववश होता है।
मूलि1कोण रािश6थ ग]ु दशाफल कथन
मूलि1कोणिनलय6य गुरोदशायां रायाथभूिमसुतदारिवशेषसौयम।्
यानािधरोहणमिप 6वबलाaिवRं य!ािदकमजनपूिजतपादपीठम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद अपनी मल ू ि कोण रािश मD /, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य राय, ,  C, पु , पि6न आिद का िवशेष सौSय पणू - करता है। वाहन का सख ु भी
ा होता हI अपने पfु षाथ- बल से धन क7 ाि करता है। यZािद अन‘ु ान स:प,न होता है। उसमD
बहOत से लोग# Lारा ]+ O 5.   . /0*
6वगृही गु] दशा फल कथन
गुरोदशायां 6वगृहं गत6य रा!ोऽथ भूधा4यसुखा[बरं च।

उराखड मु त िवविवालय 142


योितषशा ी       MAJY-202
िमZा4नदो वािजमनोिवलासं काjयािदपु-यागमवेदशाwम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद अपनी रािश धनु या मीन मD हो, .............
शभु Xह से यु, ग]ु दशा फल कथन
शुभाि4वत6यािप गुरोदशायां नरेशयानं मृदुला[बरं च।
दानेन िवRं नृपमानना;ा य!ािदस4मागिवशेषलाभम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद शभु .ह से य] ु हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
 . +  /  ]5  /0* राजा से ही कोमल वw भी िमलते हI। दान से अथवा राजा से
स:मािनत होने से धन ा करता है। यZ आिद अन‘ु ान स:पादन के माग- से िवशेष lप से धन
अिज-त करता है।
पापXहYZ गु] दशाफल कथन
पापेि?त6यािप गुरोदशायां $ाaं सुखं िकिचंदुपैित धैयम।्
:विचFशः कु1िचदाaसौयं :विचfनं नाशमुपैित चा4ते।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद पाप.ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को थोड़ा सख
ु ा रहता है। उसे धैय- होता है। कुछ यश और कभी सख ु भी िमलता है। थोड़ा
  के अ,त मD न / /0*
परमो@चगत शु6 दशाफल कथन
अयु/चभृगुदशायां मRिवलासि$याथभोगी 6यात।्
मा8या/छादनभोजनशयनwीपु1धनयु,ः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD श`ु यिद परमोjच मD अथा-त् मीन रािश के 27 अंश पर हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य परपव अव था के हा य-परहास के आन,द को पस,द करता है। धन
   /0* C  , वw, ., श या, wी, पु और धन से स:प,न भी होता है।
उ/चरािश6थ शु7दशा फल कथन
6वो/चि6थत6यािप भृगोदशायां wीसङगनZाथिव]fधमम्
िप1ोिवनाशं समुपैित दुःखं िशरो]जं भू  
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद अपनी उjच मीन रािश मD हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को िwय# के सङग साथ करने से धन क7 हािन होती है। वह िवरोधी को मानने वाला
/ /0* C -िपता का मरण भी होता है। दःु ख क7 ाि होती है। िशर मD रोग होता /0 D  . +
स:मान C /0*

उराखड मु त िवविवालय 143


योितषशा ी       MAJY-202

आरोही शु7 दशा फल कथन


आरोिहणी श7 ु दशा $प4ना धा4या[बरालङ्कृितकाि4तपज ू ाम।्
$वृिRिसिfं 6वजनैिवरोधं मा1ािदनाशं परदारसङगम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद आरोही अथा-त् उjचरािश क7 ओर अ.सर हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य अ,न, वw, अलंकरण आिद क7 ाि करता है। उसका शरीर काि,त
य]
ु होता है। लोग# Lारा उसका स:मान िकया जाता है। उसका सभी यास सफल होते हI। वजन#
से िवरोध ा होता है। माता-िपता क7 हािन होती है। परायी wी के गमन का यास / /0**50**
अवरोही शु7 दशा फल कथन
भृगोः सतु 6या9यवरोहकाले $च-डवेयागमनं धनािaम।्
wीपु1ब4kवाितमनोिवकारं x/छूलरोगं मदनाितमेित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद अवरोही अथा-त् नीच रािश क7 ओर अ.सर हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य दु वेया का गमन करता है। उसे धन क7 ाि भी होती है। wी, पु ,
ब,धु आिद दःु खी रहता है। मानिसक िवकार उ6प,न होता है। tदय शल ू रोग से य]
ु होता है। रित
+ क7 इjछा से पीिड़त होता है।
परमो@चगत शिन दशा फल कथन
म4दोऽयु/चदशायां Xामसभाम-डलािधपयं 6यात।्
  $  िपतृनाशं ब4धुकलहं च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद परमोjच मD अथा-त् तुला रािश मD 20 अंश पर ि थत
/, तो उसक7 दशा के समय मनWु य को .ाम, क बा, ........ आिद पर आिधप6य ा होता है।
वाता-लाप से आनि,दत होता है। िपताप क7 ‹ि होती है। ब,धओ ु ं से भी झगड़ा होता है।
उ/चरािशगत शिन दशा फल कथन
6वो/चदशायां कु]ते देश‹ंशं मनो]जं दुःखम।्
वािणयस—वा !   !  
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद अपनी उjच तल ु ा रािश मD ि थत हो तो उसक7 दशा
के समय मनWु य के दाँत िगर जाते हI। मानिसक रोग और दःु ख से . त रहता है। यापार और बल
दोन# क7 हािन होती है। कृ िष क7 हािन भी होती है और राजा के प से िवरोध होता है।

उराखड मु त िवविवालय 144


योितषशा ी       MAJY-202
 $   + )
आरोिहणी वासरनाथसूनोदशािवपाके नृपलMधभाHयम।्
वािणयलाभं कृिषभिू मलाभं गोवािज    * 
िजस िकसी क7 कुडली मDर शिन यिद आरोही अथा-त् उjचानगु ामी हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य राजा से भागयोपलि&ध पाता है। यापार-यवसाय मD भी लाभ ा होता है। कृ िष और
 C    / /0* , QU ,  /, पु , wी आिद का लाभ भी ा होता है।
B  $   + )
िदनेशसूनो6ववरोहकाले राय/युितं दारसुताथनाशम।्
भाHय?यं भूपितकोपयु,ं $े<यवमायाित गुदाि?रोगम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद अवरोही अथा-त् नीचानगु ामी हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को रायहािन, पि6न, पु , धन आिद क7 भी हािन होती है। भाhय क7 अवनित भी होती
है। राजा के कोप का भाजन भी होना पड़ता है। दसू र# क7 सेवा करने क7 ि थित उ6प,न हो जाती है।
उसे गदु ारोग व अि रो      / 5U /0*
$   + )
नीचि6थत6यािप िदनेशसूनोदाये कल1ामजसोदराणाम।्
नाशं महकZतरां कृिषं च नीचानृवृ—या समुपैित वृिRम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद अपनी नीच रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य क7 wी, पु , pाता आिद क7 हािन होती है। वह बहOत अिधक क से कृ िष काय- स:प,न
कर पाता है। इस तरह उसे नीच कम- स:पादन कर आजीिवका हेतु य6न करना पड़ता है।
राहC-के तु उ@चािदथान कथन
राहो6तु वषृ भं के तोविUक
ृ ं तङ
ु गसिं !तम।्
मूलि1कोणं कु[भं च ि7यं िम1भमु/यते।।
राहO का वृष और के तु का वृिxकद उjच सZं क थान होता है। राहO का मल
ू ि कोण कु:भ
और ि`य अथा-त् मेष िम रािश कहा जाता है।
एषां सaमरािश6तु के तोमूलि1कोणभम।्
ष€ाZGर<फगो राहOः 6वदाये कZदो भवेत।् 
के तु का मल
ू ि कोण और िम रािश इन थान# अथा-त् कु:भ रािश और मेष रािश से सम
रािश अथा-त् `C + / G  >   /0*

उराखड मु त िवविवालय 145


योितषशा ी       MAJY-202
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद ष‘भाव, अमभाव या Lादश भाव मD ि थत हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य को क सहन करना पड़ता है।
उ/च6थान6थ राहO दशा फल कथन
उ/च6थः सCिहके य6तु तपाके सुखदो भवेत।्
रायं करोित िम1ािaं धनधा4यिववfनम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद अपने उjच थान मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
सखु का अनभु व करता है। उसे राय भी िमलता है। िम क7 ाि होती है। धन-अ,न क7 अिभवृिs
 /  /0*
नीच6थान6थ राहO दशा फल कथन
राहOनtचि6थतो दाये चौरािHननपृ भीितदः।
उ›4धनं िवषाfीितं कु]ते िसंिहकासुतः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद अपने नीच थान मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को चोर, अिhन, राजा आिद से भय ा होता है। फाँसी लगा लेने का कारण उ6प,न
/ /0* 65  1 +   C /0*
के तदु शा सामा#य फल कथन
भायापु1िवनाशनं नरपते‹ाhितमहकZतां
िवFाब4धुधनािaिम1रिहतं रोगािHनिम1ैभयम।्
यानारोहणपातनं िवषजलैः शwिदिभवा भयं
देशाˆेशिववासनं किल]िचं देहािदिभवा भयम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद के तु क7 दशा चल रही हो, तो उस समय मनWु य को पि6न,
पु आिद का िवयोग सहन करना पड़ता है। राजा Lारा pाि,त मD उलझाया जाता है। अ6यिधक क
भी पाता है। पर,तु उसे िवा (Zान), ब,ध,ु धन आिद क7 ाि भी होती है। िम ता का अभाव रहता
/0* , अिhन, िम आिद से भय ही ा होता है। वाहन पर चढ़ता और िगरता भी है। िवष, .,
शw आिद से भी भय ा होता है। एक थान से दसू रे थान पर भटकता िफरता है। कलह मD लगाव
उ6प,न हो जाता है। अथवा उसे रोग 1 /+   / . /0*
के तोदशायां स[$ाaौ दारपु1िवनाशनम।्
राजकोपं मन6तापं चौरािHन !  * 
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद के तु क7 दशा हो, तो उस समय उपरो] फल के साथ- D

उराखड मु त िवविवालय 146


योितषशा ी       MAJY-202
इस कार का फल भी मनWु य को ा होता है। उसको wी, पु आिद से िव ोभ उ6प,न हो जाता है।
राजक7य कोष का भाजन भी होता है। मानिसक स,ताप भी िमलता है। चोर, अिhन, N 6 1 
]  / . /0*

के 45भाव6थ के तु दशा फल कथन


के 456थ6य दशाके तोः करोित िवफलि7याम।्
रायाथसु&    )
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद के ,_ भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य के सभी
काय- असफल हो जाते हI। राय, , पु , wी आिद क7 हािन होती है तथा उसे मा िवपिय# का
 C  5U /0*
1.5 1.* 0  - वहृ ,प होराशा1 4 )$ 
 * 0 
मूलि1कोणे 6व?े1े 6वो/चे  परमो/च
के 45ि1कोणलाभ6थे भाHयकमािधपैयुते
सूय\ बलसमायु:ते िनजवगबलैयुते
ति6म4दाये महत् सौयं      * 
अय4तं राजस4मानमवस4दो8या  D *
समायु:ते पु1लाभं च िव4द
धनेश6य च स[ब4धे गजा4तैवयमािदशेत्
 नािधपस[ब4धे वाहन1यलाभकृत् 
नृपालतुिZिवताG: $: D :
बलवाहनलाभच  3   :

अथा-त् यिद सयू - ज,मसमय मD अपने मलू ि कोण मD, अपने े मD अपने उjच मD अपने
परमोjच मD के ,_, ि कोण, लाभभाव मD, भाhयेश कम|श के साथ मD िनज वग- मD बलवान होकर बैठा
हो तो उसक7 दशा मD धनलाभ, अिधक सुख, राजस:मा  क7 ाि होती है। स,ता+ +  D /
तो पु लाभ, धनेश के साथ सयू - हो तो हाथी आिद धन# का लाभ और वाहनेश के  D / 
 /     /0। ऐसा जातक राजा क7 अनक ु :पा +  R / +   3
उराखड मु त िवविवालय 147
योितषशा ी       MAJY-202
P>  / /0। इस कार बलयुत रिव क7 महादशा मD बल,  /, G     / /0*
अ4य ि6थित मK फल - यिद जातक के ज,मसमय मD सयू - अपने नीच रािश का हो, 6,8,12 भाव मD
मD िनब-ल पाप.ह# से यतु हो या राहO ) के तु से यतु हो या द:ु था 6,8,12 + 25 + > / 
सयू - क7 महादशा मD महान कWट, - धा,य का िवनाश, राज`ोध, वास, राजदड, धन य,
वरपीड़ा, अपयश, वब,धओ ु ं से वैमनयता, िपतृकWट, भय, गृह मD अशभु , चाचा को कWट,
मानिसक अशाि,त और अकारण जन# से Lेष होता है । यिद सयू - के पवू eत नीचािद थान# मD रहने
पर भी उस शभु .ह# क7 ‹ि हो तो कभी )  3 ) बीच मD सख ु भी होता है । यिद के वल
पाप.ह# क7 ही ‹ि हो   0 5 5  / /  /+*
#20 
एवं सूयफलं िव$ स? ं ेपाददुिदतं मया
िवशं ोत$ 'थ „वु े च45+ * 
6वो/चे 6व?े1गे चैव के 45े लाभि1कोणगे
शुभXहेण संयु:ते पूण\ च45े बलैयुते
कमभाHयिधपैयु:ते वाहनेशबलैयुते
आF4तैवय सौभाHय धन धा4या  ! *
!  तु शुभकायािण वाहनं राजदशनम् 
यनकायाथिसिf: 6याद् गृहे लgमी ?कृत्
िम1$भुवशाद् भाHयं रायलाभं महसुD * 
अवा4दो8यािदलाभं च वेतवािदकं लभेत्
पु1लाभािदस4तो ! H*  * 
धन6थानगते च4दे H* 6व?े1गे' 
B लाभं च भाHयवृिfमहसुD *
िन?ेपराजस4मानं िवFालाभं च िव4द
ज,मकाल मD यिद च,_मा अपने उjच रािश का हो या अपने े मD हो, के ,_, 11, ि कोण मD हो
और पणू - बली च,_ शभु .ह# से यतु हो, 4,9,10 भाव# के वामी से यु त हो तो उसक7 महादशा मD
ार:भ से अ,त   ) धा,य, सौभाhयािद क7 वृिs, गृह मD मागं िलक काय-, वाहनसख ु ,
राजदश-न, य6न से काय- िसिs, घर मD धनागम, िम # के Lारा भाhयो ,  यलाभ, सखु , वाहनाि
 धन और वY ािद का लाभ होता है। जातक पु लाभ, मानिसक शाि,त एवं घर मD गौओ ं Lारा

उराखड मु त िवविवालय 148


योितषशा ी       MAJY-202
सश
ु ोिभत होता है । च,_मा िLतीय भाव मD अपने उjच या वगृहगत हो तो अनेक कार से धनलाभ,
भाhयवृिs, राजस:मान तथा िवा का लाभ हो /0*
अ4य ि6थित मK फल - च,_मा अपने नीच का हो या ीण हो तो धन क7 हािन होती है । बलयतु
च,_ तृतीय भाव मD हो तो कभी ) कभी सख ु और धन क7 ाि होती है । िनब-ल च,_ पाप.ह से यतु
होकर तृतीय मD हो तो जड़ता, मानिसक रोग, नौकर# से पीड़ा, धनहािन और माता या मामा से कWट
होता है । दबु -ल च,_मा पाप.ह से यतु होकर 6,8,12 थान मD ि थत हो तो राजLेष, मानिसक द:ु ख,
- धा,यािद का िवनाश, मातृकWट, पचाताप, शरीर क7 जड़ता एवं मनोयD /  /0 * 3>
च,_मा के द:ु थान मD रहने से 3 ) बीच मD कभी )    G P >  / /0*
अशभु कारक रहने पर शाि,त करने से शभु का िनद|श करना चािहये ।
61 * 0 
6वभो/चािदगत6यैवं नीचश1भ ु ग6य  
„वीिम भूिमपु16य '+ * 
परमो/चगते भौमे 6वो/चे मूलि1कोणगे ।
6व?\ के 45ि1कोणे वा लाभे वा धनगे'  
स[पूणबलसंयु:ते शुभY<टे   
रायलाभं भूिमलाभं धनधा4या  ! * 
आिध:यं राजस[मानं वाहना[ब& * 
िवदेशे 6था   & D * 
के 45े गते सदा भौमे दुिU:ये 3  
परा7माि;तलाभो युfे श1ुcज  * 
कल1प1ु िवभवं राजस[मा   
दशादौ सुखमा9नोित दशा4ते क<ट * 
मगं ल अपने परमोjच मD हो, अपने उjच मD हो या अपने मल ू ि कोण मD हो, वगृह मD हो या
के न_ि कोण मD हो, लाभ भाव मD हो, धनभाव मD हो, पणू ब- ल यतु हो, शभु .ह# से अवलोिकत हो,
शभु नवमांश मD हो तो रायलाभ, भिू माि, धन ) धा,यािद का लाभ, राजस:मान, वाहन, वY,
आभषू णािद का लाभ, वास मD भी थानलाभ और सहोदर ब,धु सौSय / /0 *  C
3> होकर के ,_ या तृतीय भाव मD हो तो परा`म से धनलाभ, यs ु मD श ु क7 पराजय, Y ी )

उराखड मु त िवविवालय 149


योितषशा ी       MAJY-202
पु ािद का सख
ु और राजस:मान ाGत होता है , पर,तु भौम दशा के अ,त मD सामा,य कWट  /
/0 *
अ4य ि6थित मK फल - भौम अपने नीचािद दWु ट भाव मD िनब-ल होकर ि थत हो या पाप.ह से यतु
या ‹Wट हो तो उसक7 दशा मD धन- धा,य का िवनाश, कWट 1 2 >  /  /+ *

5+
$ * 0 
अथ सवनभोगेषु य: कुमार: $कितत:
त6य तारेशपु16य ) + * 
6वो/चे 6व?े1सयं ु:ते के 45 ि1कोणगे
िम1?े1समायु:ते सौ[ये दाये महसुD * 
धनधा4यािदलाभं च सकितधनस[पा *
!ानािध:यं नपृ $ीितं सकमगण ु वfनम् 
पु1दा सौयं jयापारा8ल  *
?ीरेण भोजनं सौयं jयापारा8ल  * 
शुभYिZयुते सौ[ये भाHये कमािधपे दशा
आिधपये बलवती स[पूणफलदाियका**
सभी .ह# मD िजसको कुमार कहा जाता है, उस बधु क7 महादशा का फल इस कार है )  3>
अपने उjच मD हो या व े मD हो या के ,_ - ि कोण िम गृह मD बैठा हो तो उसक7 दशा मD P > , 
) धा,य का लाभ, सक ु 7ित-, Zानवृिs, राजा क7 सहानभु िू त, शभु काय- क7 वृिs, पु ) ीज,य
सखु , रोगहीनता, दhु धयतु भोजन एवं यापार से धनलाभ होता है । यिद बधु पर शभु .ह क7 ‹ि हो
या शभु .ह से यतु हो, कम|श होकर भाhय थान मD बैठा हो और पणू - बली हो तो उत फल पणू -
होगा, अ,यथा सामा,य फल क7 ाि होती है ।
अ4य + - यिद बधु पाप.ह से यतु ‹Wट हो तो राजLेष, मानिसक रोग, अपने ब,धु ) बा,धव# से
0,  + ) pमण, दसू रे क7 नौकरी, कलह एवं मू कj¢  + 5+  /  /0 *  3>
6,8,12 वD थान मD हो तो लाभ तथा भोग एवं धन का नाश होता है । वात, पाडु,  . , ,
और अिhन से भय, कृ िष स:ब,धी भिू म और गाय का िवनाश होता है । सामा,यतया दशा के ार:भ
मD धन ) धा,य, िवा लाभ, सख ु पु कल ािद लाभ, स,माग- मD धन यय आिद शभु होता है । मCय
काल मD राजा से आदर ाGत होता है, और अ,त मD द:ु ख ाGत / /0 *
उराखड मु त िवविवालय 150
योितषशा ी       MAJY-202
गुD दशा फल 
6वो/चे 6व?े1गे जीवे के 45 लाभि1कोणगे
मूलि1कोणलाभे वा तुH*शे 6वां' 
राय  महसौयं राजस4मानकतनम्
गजवािजसमायु:तं देव„ा णपूजनम।् ।
दारपु1ािदसौयं च वाहना[ब / *
य!ािदकमिसिf: 6या;ेदा4तवणािदकम् 
महाराज$सादेना'भी<टिसिf: सख ु ावहा
आ4दो िदलाभच क8याणं च महसुD * 
पु1दारािदलाभच अ4नदानं महि$यम्
गl ु यिद वोjच, व े , के ,_, ि कोण या लाभ, मल ू ि कोण, अपने उjच C  25+
नवमांश मD बैठा हो तो राय क7 ाि, महासखु , राजा से स:मा,  - घोड़े हाथी आिद क7 ाि,
+ ) “ा”ण मD िनWठा, ी - पु ािद से सखु , वाहन वYलाभ, यZािद धािम-क काय- क7 िसिs, वेद
) वेदा,तािद का Qवण, महाराजा क7 कृ पा से अभीWट क7 ाि, सख ु , पालक7 आिद क7 ाि,
कaयाण, महासुख, पु कल ािद का लाभ, अ,नदान आिद शभु फल ाGत / /0 *
अ4य + ) यिद गl ु नीच या अ त, पाप.ह# से यतु या 8,12 भाव# मD ि थत हो तो था ,
िच,ता, पु कWट, C/ , 5 > ) चौपाय# क7 हािन, तीथ-या ा आिद होता है । गl ु क7 दशा आर:भ
मD कWटकारक, मCय तथा अ,त मD चतWु पद# से लाभदायक, राजस:मान, ऐवय-, सख ु आिद 
अ‰यु   +   /  /0*
श6
ु दशाफल 
परमो/चगते शु7े 6वो/चे 6व?े1के 45
! ' # स[$ािaवाहना'[ब& * 
गजाव भं च िनयं िम<टा4न/ *
BD-डम-डलाधीश राजस4मा ( * 
मृदगं वाFघोषं च गृहे लgमीकटा?कृत्
ि1कोण6थे जे ति6मन् रायाथगृहस[प:
िववाहोसवकायािण पु1क8या& ( *
पयं कुSते इ<टब4धु  * 

उराखड मु त िवविवालय 151


योितषशा ी       MAJY-202
न<टरायाfन$ािaं गृहे गोधनसङ्X ** *
यिद श` ु अपने परम उjच, उjच व   के ,_ मD बैठा हो तो उसक7 दशा मD जीव# को
रायािभषेक क7 ाि, वाहन, वY, आभषू ण, हाथी, घोड़े, पशु आिद का लाभ, सदा सु वा >
भोजन, स:पणू - पृUवी के वामी से स:मान एवं वगृह मD लमी क7 अनक ु :पा से मृदगं वा )
वादनपणू - उ6स / /0। यिद श` ु ि कोण मD हो तो उस श`ु क7 दशा मD राय, , N/   ,
गृह मD िववाहािद मांगिलक काय-, पु ) पौ ािद का ज,म, सेनानायक, घर मD शभु िच,तक िम का
समागम, गौ आिद पशओ ु ं क7 वृिs एवं नWट राय या धन क7 पनु : ाि होती है ।
अ4य + ) यिद श` ु 6,8,12 वD भाव मD या वनीच रािश थ हो तो उसक7 दशा मD वब,धु )
बा,धव# मD वैमनयता, प6नी को पीड़ा, यवसाय मD हािन, गाय, भIस आिद पशओ ु ं से हािन, ी )
पु ािद या अपने ब,धु ) बा,धव# का िवछोह होता है*
यिद श` ु भाhयेश या कम|श होकर लhन या चतथु - थान मD ि थत हो तो उसक7 दशा मD महत् सौSय,
देश या .ाम का पालक, देवालय ) जलाशयािद का िनमा-ण, पु य कमK का स.ं ह, अ,न ,  0
समु धरु भोजन क7 ाि, उ6साह, यश एवं ी ) पु आिद से सP ु >  /  /0*
 * 0 
6वो/चे 6व?े1गे म4दे िम1?े1े')   
मूलि1कोणे भाHये वा तुंगाशे 6वां' 
दुिU:ये लाभगे चैव राजस[मा ( *
सकितधनलाभच िवFावादिवनोदकृत् 
महाराज$सादेन गजवाहनभूषणम्
/ $कुवtत सेनाधीशा4महसुD * 
लgमीकटा?िचuािन राय    
गृहे क8याणस[पिRदारपु1ािदलाभकृत् ।।
यिद शिन अपने उjच, व े , िम े , मल ू ि कोण, भाhय, अपने उjचां , 25+ C , N ,
लाभ थान मD बैठा हो तो राजस:मान, स,ु दर यश, धनलाभ, िवाCययन से वा,त P > , C/  .
क7 कृ पा से सेनानायक, हाथी, वाहन, आभषू ण आिद का लाभ, परम सख ु , गृह मD लमी क7 कृ पा,
रायलाभ, पु कल धनािद का लाभ, गृह मD कaयाण आिद का शभु फल दान करने वाला होता
/0*
ष<ठा<टमjयये म4दे $ '6तं ' 
िवषश61ािदपीडा च 6थान‹ंशं महqयम् 
उराखड मु त िवविवालय 152
योितषशा ी       MAJY-202
!मातृिवयोगं च दारपु1ािदपीडनम्
राजवैष[यकायािण vिन<टं ब4ध )
शुभयु:तेि?ते म4दे   
के 45ि1कोणलाभे वा मीनगे कामुके शनौ
रायलाभं महोसाहं गजावा[ब  **
  6,8,12 मD हो, नीच या अ तंगत हो तो िवष या श से पीड़ा, था   , C/ ,
C ) िपता से िवयोग, पु कल ािद को पीड़ा, राजवैमनयता से काय- मD अिनWट, ब,ध 1
ाGत / /0 * यिद शिन शभु .ह से यतु या ‹Wट हो, योगकारक .ह# से स:ब,ध रखता हो या के ,_ -
ि कोण लाभ मD हो या मीन, धन रािश थ हो तो रायलाभ, हाथी, घोड़े, व , महो6सवािद का काय-
 /0 *
राहC का दशा फल 
ृ ं तगुं स!ं
राहो6तु !षभं के तुविUक *
मूलि1कोणकं !ेयं युHमं चापं 7मेण च
कु[भा $  !  चो:तौ क4या $   *
तˆाये बहOसौयं च धनधा4यािदस[प * 
िम1$भुवशािद<टं वाहनं पु1स[भ :
 $!हिनमाणं धमिच4ता महोस :
िवदेशराजस4मानं वालंकार& **
शभ ु यु:ते शभ
ु ैY<टे    
के 45ि1कोणलाभे वा दुिU:ये 
ज$सादेन सवस[पसुD * 
यवन$भुस4मानं गहृ े क8याणस[भ **
राहO का उjच रािश वृष और के तु का वृिxक है। राहO का मल
ू ि O CD> G + >    /0*
राहO का कु:भ और के तु का वृिxक वगृह रािश है । अ,य मत से क,या और मीन भी रािशगृह है। राहO
या के तु अपने उjचािद थानगत हI तो उनक7 महादशा मD धन ) धा,यािद स:पि का अ‰यदु य, िम
एवं मा,य जन# क7 सहानभु िू त से काय-िसिs, वाहन, पु लाभ, नवीन गृहिनमा-ण, धािम-क िच,ता,
महो6सव, िवदेश मD भी राजस:मान, वY, अलंकार एवं आभषू ण क7 ाि होती है । राहO के तु
योगकारक .ह# के साथ ह# या शभु .ह से यतु ‹Wट होकर के ,_, ि कोण, लाभ तृतीय भाव मD शभु

उराखड मु त िवविवालय 153


योितषशा ी       MAJY-202
रािशगत ह# तो राजा ) महाराजा क7 कृ पा से सभी स:पिय# का आगमन और िवदेशीय यवनराज से
  C तथा अपने घर मD कaयाO / /0*
यिद राहO 8,12 भाव मD हो तो उसक7 दशा कWटकारक होती है, यिद पाप.ह से स:ब,ध P / 
मारके श से यतु हो या अपने नीच रािशगत हो तो थानpWट, मानिसक रोग, पु ) ी,  
एवं कुभोजन क7 ाि होती है । दशा ) ार:भ मD शारीरक कWट,  ) धा,य   , +
मCय मD सामा,य सख ु और अपने देश मD धनलाभ तथा दशा के अ,त मD थानpWट, मानिसक यD
एवं कWट क7 ाि हो  /0 *
4 7$ *0 
के 45े लाभे ि1कोणे वा शुभराशौ शुभेि?
6वो/चे  शुभवग\ वा राज$ीितं मनोनुगम् 
देशXामािधपयं च वाहनं प1ु स[भ *
देशा4तर$याणं च िनिदशेत् तसुD * 
पु1दारसुखं चैव चतु<पाजी  ! *
दुिU:ये ष<ठलाभे वा के तुदाये सख ु ं िदशेत् 
रायं करोित िम1ांशं गजवािजसमि4वतम्
 राजयोगाच दशामkये महqयम् 
अ4ते दूराटनं चैव देहिवमणं तथा
धने र4lे jयये के तो पापYिZयुतेि?ते
िनगडं ब4धुनाशं च 6थान‹ंशं मनोSजम्
शू5संगािदलाभं च कुSते रोगसंकुलम् 
यिद के तु के ,_, लाभ, ि कोण या शभु रािशगत हो और शभु .ह से ‹Wट हो, अपने उjच, शभु वग-
मD ि थत हो तो राजा से ेम, मनोनक ु ू ल वातावरण, देश या .ाम का अिधकारी, वाहनसख ु ,
स,तानो6पि, िवदेशpमण, सख ु कारक, ी)पु P >  5 V > +   / /0*  + >
3,6,11 भाव मD ि Uात हो तो उसक7 दशा मD सख ु , रायलाभ, िम # का सहयोग एवं हाD, QU+
1      / /0। के तु क7 दशा के आर:भ मD राजयोग, मCय मD भय एवं अ,त मD
दरू गमन और शारीरक कWट / /0* 2,8,12 वD भाव मD के तु ि थत हो तो जातक परािQत,
ब,धनु ाश, थानिवनाश, मानिसक रोग, अधम यि] का सगं और रोगयतु होता है*

उराखड मु त िवविवालय 154


योितषशा ी       MAJY-202
5+ न
1. सयू - क7 उjच   /  /0*
. मेष ख. वृष ग. कक- घ.मकर
2. सयू - यिद 9; 2  / तो या  / /0*
. C -स:मान ख. तीथा-टन ग. मानहािन घ. मन द:ु खी
3. ि थर रािशयाँ है )
. 9,I,=,9; P.8,J,:,99 . 7,B,K,98 घ. कोई नह‚
4. वृह6पराशर होरा शा के अनुसार राहO िकस रािश मD उjच  / /0*
. C+6 ख. वृष ग. िमथनु घ. कक-
5. गfु यिद अपनी उjच रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य के भाhय क7 / 
/0*
. अिभवृिs ख. कमी ग. िमिQत घ. कोई नह‚
6. के तु क7 दशा का आर:भ का या  / /0*
.  . P. मृ6यु ग. आयु य घ. मान
1.6  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /  C/   
से ता6पय- यह है िक जातक के उपर िजस .ह क7 महादशा चल रही हो, उस .ह क7 कुडली मD
ि थितवशात् उस जातक पर भाव पड़ता है। यह Cयातय होता है िक कुडली मD .ह उjच  /0,
  /0, वN/ /0, िम गृही है, श गु हृ ी है, उस पर िकतने शभु .ह और पाप.ह क7 ‹ि है तथा
उस .ह क7 अव था या है आिद इ6यािद ऐसे अनेक तUय महादशा फल िवचार के दौरान यो 6
के सम उपि थत होते हI। के वल .ह क7 दशा देखकर ही फलादेश करना नह‚ चािहए, 25 >
स:पणू - ि थितय# को देखने क7 आवयकता होती है। कदािचत् इसीिलए फलादेश का तर अ6य,त
यापक है। इसके िलए .ह# के 6येक प # का सू म Zान क7 आवय /  /0*
1.7 पा रभािषक शदावली
िवशं ोRरी महादशा # िवश
ं ोरी महादशा कुल 98; वष- क7 होती है।
उ/च6थ # उjच मD ि थत*
!) - !) - 2-2

उराखड मु त िवविवालय 155


योितषशा ी       MAJY-202
के 456थ ) 9,I,=,9; मD ि थत
अ6तं ) अ त /  /*
1.8 बोध के उ र
1. 
2. 
3. P
4. P
5. 
6. 
1.9 स#दभ$ %#थ सच
ू ी
1. सवा-थ-िच,ताCO - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. वृह6पराशरहोराशा ) चौख:भा काशन
4.  5 ) C  +P ) म, ेव
5. वृहजा  ) C  +P - आचाय- वराहिमिहर
1.10 .  पाठ्यसाम%ी
1. सवा-थ-िच,ताCO - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. वृह6पराशरहोराशा ) चौख:भा काशन
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ िमQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
1.11 िनब#धा,मक  न
1. िवशं ोरी म/   P+*
2. सयू - एवं च,_C   P+*
3. गfु एवं श` ु .ह क7 दशाओ ं का फल िलखये।
4. शिन एवं राहO महादशा फल िलिखये।
5. महादशा का मह6व ितपािदत क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 156


योितषशा ी       MAJY-202
 - 2 अ#तद$शाफल िवचार
इकाई क संरचना

2.1  ता
2.2 उेय
2.3 अ,तद-शा सा परचय
2.4 अ,तद-शाफल   (िविभ,न जातक .,थ + 2> )
2.5  
2.6 पारभािषक श&दा
2.7 बोध न# के उर
2.8 स,दभ- .,थ  
2.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
2.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 157


योितषशा ी       MAJY-202
2.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के तृतीय खड क7 दसू री इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) अ,तद-शा फल िवचार* !+ पवू - आपने िवश ं ोरी दशा फल को जान िलया है।
अब आप अ,तद-शा फल िवचार अCय + . /+ /0*
िवश
ं ोरी के पxात अ,तद-शाओ ं के फिलत प इस अCयाय मD विण-त िकया जा रहा है।
अ,तद-शाओ ं मD सयू ा-िद .ह# का जातक पर या शभु ाशभु भाव पड़ता है। इसका Zान इस अCया
मD आपको हो जायेगा।
1! इस इकाई मD हम लोग ,अ,तद-शा   - के बारे मD हम योितष शा +
माCयम से जानने का    + /0*
2.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• रािशय# के अ,तद-शाओ ं को परभािषत कर सकD गे।
• अ,तद-शा  को समझा सकD गे।
• अ,तद-शा   िवचार कै से िकया जाता है। जान जायेग।D
• िविभ,न जातक .,थ# मD अ,तद-शा के फल या है। उसका िवलेषण कर सकD गे।

2.3 अ#तद$शा साधन प रचय


15 पवू - क7 अCयाय# मD अ,तद-शा साधन के गिणतीय प को जान चक ु े है। यहाँ आप
रािशय# के अ,तद-शाओ ं के साधन से परिचत हो जायDग।े त6पचात् उसके फलाफल का Zान भी
ाGत करD ग।े C/ पित और अ,तद-शा के िनयत वष-संSया को पर पर गणु ा कर च` क7 स:पणू -
दशा को वष-संSया से भाग देने से वषा-िद लि&ध अ,तद-शा का भोगकाल होता है। D -
दशां दशाMदसङगु-यां सवायुः स ं यया हरेत।्
लMधम4त5्दशा !ेया वषमासिदनािदकाः।।
5व e] उदाहरण मD िमथनु क7 महादशा मD थम अ,तद-शा िमथनु क7 ही होगी, CD> +
दशावष- K  ] + ण> ा कर च` क7 स:पणू - दशावष- :J +   + + 5 K×K/:J = ; वष- 99
C  97 िदन िमथनु मD िमथनु क7 अ,तद-शा होगी। िमथनु क7 अ,तद-शा के बाद िसंह क7 अ,तद-शा
K×J/:J = ; वष- B C  9;  , कक- क7 K×89/:J = 8 वष- 8 C  8;  , क,या क7
उराखड मु त िवविवालय 158
योितषशा ी       MAJY-202
K×K/:J = ; वष- 99 C  97   इसी `म से अ,य रािशय# तल ु ा, वृिxक, मीन कु:भ और
मकर क7 अ,तद-शाएँ िनकालनी चािहए।
च7े शाMदा भुि,राशीƒराMदैहवा तR5ािशमानायुराaाः।
अMदा मासा वासरा नािडकाFा दुः6थानेशा दुःखरोगाकराः 6युः।।
पवू e] िविध को पनु ः कहते हI। च`े श (महादशापित) के दशावष- को अ,तद-शापित के
दशावष- से गणु ाकर गणु नफल मD च`े श से स:बि,धत नवांश के स:पणू - वष-मान से भाग देने से वष-,
मास और िदना6मक भिु ]काल होता है। दःु थान के वामी क7 अ,तद-शा मD 2+ f> P G
रोगािद होते हI।
इथं महादायिदनं महाMदैः सङगु-य त1ा4तरदा6तु दाये।
पनु U तै6तैः परमायुरMदैxतं दशा4तदिशता दशाया।।
दशापित और अ,तद-शापित के दशावषK को पर पर गणु ाकर न चरण क7 परमायु वष- से
भाग देने पर वषा-िद लि&ध अ,तद-शापित के भोhय वष- होते हI।
िवनाडीकृय न?1ं 6वैः 6वै सवं सरैः पथ
ृ क्।
दायैः सङगु-य सवायुराaं सgू मदशाफलम।् ।
पला6मक न मान को अपने-अपने दशावष- से गणु ाकर कालच` के परमायु वष- से  
देने पर सू म दशा होती है।
Xहवसरवासरा xताः परमायु<यसमािमतध्रवै ु ः।
िनजवषगुणाः 6वपाकदा इित पाके <विखलेषु िच4तयेत।् ।
िजस .ह क7 महादशा मD इ .ह क7 अ,तद-शा का Zान करना हो उसके दशावष- मD
न चरण क7 परमायु वष- से भाग देकर वषा-िद लि&ध को इ .ह के दशावष- से गणु ा करने पर
वषा-िद उस .ह क7 अ,तद-शा होती है। इस िविध का योग सभी कार क7 अ,तद- 1 +
आनयन मD करना चािहए।
2.4 अ#तद$शा 0  - िविभ#न जातक %#थ 4 )$ 
जातकपाGरजात, + $  एवं जातकाभरण X4थ  B अ4तदशा फल -
सयू महादशा मK अ4तदशा फल -
ि;जभूपितशwाFैधन$ािaमनो]जम।्
िवदेशवनसंचारं भानोर4तगते रवौ।।

उराखड मु त िवविवालय 159


योितषशा ी       MAJY-202
सयू - क7 महादशा मD सयू ा-,तद-शा काल मD “ाहमण, राजा और शwािद से धन क7 ाि होती
है। मानिसक उ6पीड़न और िव + -अरयािद pमण होता है।
,महीžरादपु लभतेऽिधकं यशो वनांचल थलवसितं धनागमम।्
वरोWणfक् जनकिवयोगजं भयं िनजां दशां िवशित तीणदीिधतौ,**
( )
अथा-त् सयू - क7 दशा,तद-शा मD राजा से स:मान, यश क7 वृिs, -देश और पव-त# मDर
O D धनागम होता है। वरताप से क तथा िपता का िनधन भी स:भव होता है।
च45ा4तदशा-+
ब4धिु म1जनैरथh $मादं िम1सजनैः।
पा-डुरोगािदस4तापं भानौ च45दशा4तरे।।
सयू - क7 महादशा मD च,_ा,तद-शा काल मD वजन#-ब,ध-ु बा,धव# तथा िम # के सहयो +
धन का लाभ होता है। िम और सजन# क7 सङगित से मनोिवनोदािद का सख ु ा होता है।
पाडुरोगात- होने से क होता है।
,रपु यो यसनशमो धनागमः कृ िषि`या गृहकरणं सtु िु तः।
यानलितहितरक- दायकं शी यदा हरित जलोsवा fजः,** (  5 )
, च,_ तरणेदश - ायां सवु ण-भषू ा:बरिवदरमािम
ु् ।्
सम,ु नितं मानसख ु ािभवृिsं िवरोिधवगा-पचयं जयं च।।
पङे कfहेश य चरि,वपाके कुया-,मृगाङोक यिद लाभमjु चैः।
मादमद‰् यो .हण‚ च पाडुं के षािचंदते ,मतम चो]म,् ** (.  O)
भौमा4तदशा-+
रनकांचनिवRािaं राज6नेहं शुभावहम।्
पैयरोगािदसच ं ारं कुजे भानदु शा4तरे।।
सयू -- महादशा के भौमा,तराविध मD जातक को वण--र6नािद का लाभ,  .N 5 + 2+
शभु फल का लाभ होता है तथा िपज यािधय# का स` ं मण होता है।
,स6वालकलधौतसचु ेलं मङगलािन िवजयं च िवधे।
C C   C5 > f  C C,4 ** (.  O)
,fजागमः पदिवरहोऽरपीडनं vणोsवः वकुलजनैिव-रोिधता।
महीभृतो भवित भयं धनjयिु तय-दा कुजो हरित तदाक- व6सरम,् ** (  5 )

उराखड मु त िवविवालय 160


योितषशा ी       MAJY-202
राu4तदशा-+
अकाले मृयुस4तापं ब4धुवगाGरपीडनम।्
पद/युितं मनोदुःखं रवेर4तगतेऽ9यहौ।।
सयू -- महादशा के रा...,तराविध मD अकाल मृ6यु का भय होता है, वजन#-ब,ध-ु बा,धव#
तथा श ओु ं से उ6पीड़न, पदjयिु त और मानिसक स,ताप होता है।
,रपदू यो धनtितरापददु मो िवषाsयं िवषयिवमढू ता पनु ः।
िशरो‹शोरिधकfगेव देिहनामहौ भवेदिहमकरायरु ,तरे ,** (  5 )
गुव4तदशा-+
सवपूयं सुताि;Rं देव„ाहमणपूजनम।्
सकमाचारसो€ी रवेर4तगते गरु ौ।।
सयू - क7 महादशा मD बृह पित क7 अ,तद-शाविध मD जातक सव- स:मािनत होता /0, पु के
Lारा धन का लाभ और देव-“ाहमण# के ित आ था एवं आदर भाव का सच ं ार होता है; . 
स6कम-रत होता है तथा सजन# क7 सङगित का उसे लाभ िमलता है।
-स;wधा4यािषु सङ्Xहे/छा 6व/छा मितिव$सुराचनेषु।
भूपाaस[मानधनािन नूनं भानोदशायां चरती45व4Fे- (/ &)
-Gरपु?यो िविवधधनािaर4वहं सुराचनं ि;जगु]ब4धुपूजनम।्
वःमो भवित च यgमरोिगता सुरािचते $िवशित गोपतेदशायाम-् 
(  5 )
श4य4तदशा-+
सवश1ु वमाल6यं हीनविृ Rं मनो]जम।्
राजचोरभय$ािaं रवेर4तगते शनौ।।
सयू - क7 महादशा मD शिन क7 अ,तद-शा ा होने पर श तु ा, आल य, िनकृ Wट साधन# का
2> O, मानिसक उ6पीड़न D  . G  +  / /0*
,धनाहितः सुतिवरहः िwया fजो गfु ययः सपिद परjछदjयिु तः।
मिल‘ता भवित कफपीडनं शनैxरे सिवतृदशा,तरं गते,** (  5 )
,नीचारभमू ीपितभीितfjचैः कडूयनाामयस:भवः यात।्
िम ायिम ािण भवि,त ननू ं शनैxरे भानदु शा,तर थे,** (.  O)
बुधा4तदशा-+

उराखड मु त िवविवालय 161


योितषशा ी       MAJY-202
ब4धुपीडां मनोदुःखं स4नोसाहं धन?यम।्
  सुखमवा9नोित रवेर4तगते बुधे।।
सयू - क7 महादशा मD यिद बधु क7 अ,तद-शा हो तो उस अविध मD वजनो एवं परजन# का
क, मानिसक स,ताप, हतो6साह और धन का नाश होता है। जातक को थोड़ा सख ु ही ा होता है।
,िवचिच-का िपटकसकु‘कािमला िवशध-नं जठरकिटपीडनम*्
महा यिwगदभयं भवेदा िवधोः सतु े चरित रवेरथा&दकम,् ** (  5 )
,िवचिच-काुरिवकारप
् वू ःb पापामयैदह| िनपीडनं यात।्
धनययxािप हतो6सवx िवधोः सतु े भानदु शां याते,** (.  O)
के व4तदशा-+
क-ठरोगं मन6तापं ने1रोगमथािप वा।
अकालमृयुमा9नोित रवेर4तगते kवजे।।
सयू - क7 महादशा मD के तु क7 अ,तद-शा ा होने पर कठरोग, मानिसक स,ताप तथा
ने रोगािद से जातक पीिड़त होता है। उसक7 अकाल मृ6यु भी स:भव होती है।
-सुxद्jययः 6वजनकुटु[बिवXहो Gरपोभयं धनहरणं पद/युितः।
गुरोगदUरणिशरो]गु/चकै ः िशखी यदा िवशित दशां िवव6वतः-
(+ $ )
िम हािन, वजन एवं परजन# से िवरोध, श ओ ु ं से भय, धन य, पदjयिु त, >  +
वsु जन# के पैर# और िशर मD भयक ं र पीड़ा से क आिद फल सयू -दशा मD के तु क7 अ,तद-शाविध मD
जातक को ा होते हI।
श7 ु ा4तदशा-+
जल5jयािaमायासं कुwीजनिनषेवणम।्
शु<कसंवादमा9नोित रवेर4तगते भृगौ।।
सयू - क7 महादशा के श` ु भिु ]काल मD जातक को जल से उsूत पदाथK-C , P, म6 य
1 -का लाभ अथवा इन पदाथK के यवसाय से लाभ होता है। िवQाि,त तथा कुि6सत िwय# से
C C / है तथा अथ-हीन िववाद होता है।
-िवदेशयानं कलहाकुलवं शल ू ं च मौिल6थलकणपीडाम।्
गाढवरं चािप करोित िनयं दैयािचतो भानुदशां $यातः- (/ &)
-िशरो]जा जठरगुदाितपीडनं कृिषि7या गृहधनधा4यिव/युितः।

उराखड मु त िवविवालय 162


योितषशा ी       MAJY-202
सुतिwयोरसुखमतीव देिहनां भृगोः सुते चरित रवेरथाMदकम-्  (+ $ )
दशादौ िदननाथ6य िपतृरोगं धन?यम।्
सवबाधाकरं मkये दशा4ते सख ु मा9नयु ात।् ।
सयू - क7 महादशा के ारि:भक भाग मD िपता को क और धन क7 हािन होती है। दशा का
मCय भाग बाधापणू - होता है तथा द  अि,तम भाग सख ु कर होता है।
6वो/चे नीचनवांशग6य तरणेदायेऽपवादं भयं
पु1wीिपतृवगब4धुमरणं कृ<णिदिवR?यम।्
नीचे तुङगनवांशग6य च रवेः पाके नृपालियं
सौयं याित दशावसानसमये िवR?यं वा मृितम।् ।
उjचरािशगत सयू - यिद नीचनवांश मD ि Uत हो तो उसक7 दशा मD अपवाद, -. तता,
पु , wी अथवा िपतृकुल के Qे‘ यि] का िनधन, कृ िष तथा यवसाय क7 ित होती है।
उjचरािश के नवांश मD ि थत सयू - यिद नीच रािशगत हो तो राजQी, P > 1   
दशा के अ,त मD जातक को ा होता है।
च45महा-+
िहमिकरणदशायां म41वेदि;जािa-
युवितजनिवभूितः wीधन?े1िसिfः।
कुसुमवसनभूषाग4धनानाधनाढयो
भवित बलिवरोधे चाथहा वातरोगी।।
च,_मा क7 महादशा मD म, , वेद और “ाहमण# मD आ था िवकिसत होती है; wीजन# के
ित fिच तथा wी,  एवं े (भिू म) का लाभ होता है। जातक पWु प, वw, 16 O, सगु ,ध
पदाथ- और िवपल ु धन से सख ु ी होता है। यिद च,_मा िनब-ल हो तो धन क7 हािन और वातरोग होता
/0*
,िशिशरकरदशायां म, देविLजोवTपितजिनतिवभिू तwीधन े िसिsः।
कुसमु वसनभषू ाग,धनानारसािभ-वित खलु िवरोध 6व यो वातरोगः,**
(  5 )
च45मा क महादशा मK अ4तदशा-+
िवFाwीगीतवाFे<विभरितशमनं पœवwािदिसिfं
ससङंग देहसौयं नृपसिचवचमूनायकै ः पूयमानम।्

उराखड मु त िवविवालय 163


योितषशा ी       MAJY-202
सकितh तीथया1ां िवतरित िहमगुः पु1िम1ैः ि$यं च
?ोणीगोवािजलाभं बहOधनिवभवं 6वे दशा4तिवपाके ।।
च,_मा क7 महादशा के च,_मा क7 ही अ,तद-शाविध मD िवा, wी और संगीत-  G
वादन दोन# मD िवशेष अिभfिच, रे शमी वw का लाभ, स6सङग, 0 / P > ,  . , उसके म, ी और
सेनापित Lारा स:मान, स6क7ित- तथा पु और िम # के साथ तीथा-टनािद का सख ु जातक को ा
/ /0*  C, गौ और अžािद और ियव तु और -वैभवािद क7 ाि होती है।
-wी$जािaरमलांशुकागमो भूसुरोRमसमागमो भवेत।्
मातुGरZफलमङगनासुखं 6वां दशां िवशित शीतदीिधतौ- (+ $ )
च,_मा क7 दशा मD उसके भिु ]काल मD क,या का ज,म, वjछ िनम-ल वw का लाभ तथा
Qे‘ “ाहमण# मD समागम होता है। माता क7 स,तिु  और wीसुख क7 ाि होती है।
भौमा4तदशा-+
रोगं िवरोधबुिfं च 6थाननाशं धन?यम।्
िम1‹ातृवशात् :लेशं च456या4तगतेर कुजे।।
च,_मा क7 महादशा के भौमा,तद-शा काल मD रोगात-ता, िवरोधबिु s, थानjयिु त,  
िवनाश और सहोदर तथा िम # के Lारा जातक उ6पीिड़त होता है।।
,कोशpंशं र]िपािददोषं रोगो6पिं थानतः jयिु तं च।
कुया-6पीडां मातृिप ािदवगbभ-मू ीसनू यु ा-िमनीनाथपाके ,** (.  O)
,िपविtfिधरोsवा fजः लेशदःु खरपचु ोरपीडनम।्
िवमानिवहितभ-व6े कुजे शीतदीिधितदशा,तरं गते,** (  5 )
राu4तदशा-+
Gरपुरोगभयात् :लेशं ब4धुनाशं धन?यम।्
   सुखमा9नोित राहौ च45दशा4तरे ।।
श ु और रोगभय से क, ब,ध-ु बा,धव# का िवनाश तथा धन क7 हािन होती है। च,_मा क7
महादशा मD रा...,तराविध मD जातक को थोड़ा भी सख ु नह‚ होता।
,तीvदोषरपवु िृ sब,धfु क् माfताशिनभयाित-fhभवेत।्
अ,नपानजिनतवरोदयाx,_व6सरिवहारके tा.हौ,** (  5 )
गुव4ददशाफल
यानािदिविवधाथािaं वwाभरणस[पदः।

उराखड मु त िवविवालय 164


योितषशा ी       MAJY-202
यनात् कायमवा9नोित जीवे च45दशा4तरे।।
च,_महादशा,तग-त बृह पित क7 अ,तद-शा मD वाहनािद स:पि का लाभ, िवपल ु मा ा मD
वw-आभषू णािद का लाभ होता है और य6न कने से सम त काय- सफल होते हI।
-िविशZ धनधा4यभोगान4दािभवृिfगजवािजस[पत।्
पु1ोसवUािप भवे4नराणां गुरौ सुराणां शिशपाकसं6थे- (/ &)
-दानधमिनरितः सुखोदयो वwभूषणसुxसमागमः।
राजसकृितरतीव जायते कै रवि$यवयोहरे गुरौ- (+ $ )
तृपीडा मनोदुःखं वातपै—यािदपीडनम।्
6तMधवागGरसंवादं शनौ च45दशा4तरे।।
च,_महादशा के शिन-अ,तद-शाविध मD जातक क7 माता को क, मानिसक स,ताप,  -
िपज,य यािध से क, श ु के साथ उसे त&ध कर देने वाला िववाद आिद फल होते हI।।78**
,नरे ,_चैरािहतविŒभीितं कल पु ासख ु fक् वृिsम।्
करोित नानायसनािन पंसु ां शिनिन-शानाथदशां िवः,** (.  O)
पैरोगिनवहः सुt6सुतwीfजा यसनस:भवो महान।्
ाणहािनरथवा भवेjछनौ मारब,धवु यसोऽ,तरं गते,** (  5 )
बुधा4तदशा-+
मातृवगाfन$ािaिव;जनसमायम।्
वwभूषणस[$ािaबधेु च45दशा4तरे।।
च,_महादशा मD बधु ा,तद-शा हो तो मातलु प से धनलाभ, वwाभषू णािद क7 ाि होती है
D . क सजन# का आQयदाता होता है।
,सव-दा धनगजाžगोकुलािराभरणसौSयस:पदः।
बोध इित जायते िवधोरायिु ष िवशते यदा बधु ः,** (  5 )
,उदारनामा,तरलि&धमjु चैल-लामगोभिू मगजाžवृिsः।
िवाधनैžय-स:म,ु नत6वं कुया-£ुधx,_दशा,तराले,** (.  O)
के व4तदशा-+
wीरोगं ब4धनु ाशं च कुि?रोगािदपीडनम।्
5jयनाशमवा9नोित के तौ च45दशा4तरे।।

उराखड मु त िवविवालय 165


योितषशा ी       MAJY-202
प6नी को ......, वजनो का िवनाश, उदरिवकारज,य पीड़ा, -धा,य क7 हािन आिद फल
जातक को च,_महादशा,तग-त बधु क7 अ,तद-शा मDर ा होते हI।
दासभृ6यहितरि त देिहनां के तुके हरित चा,_म&दकम,् ** (  5 )
शु7ा4तदशा-+
wीधनं कृिषपƒािदजलवwागमं सुखम।्
मातृरोगमवा9नोित भृगौ च45दशा4तरे।।
wीप से धनलाभ, N 6-5 > , जलीय पदाथ- और वwािद का सख ु , मातृप से रोग का
सं`मण-ये फल च,_मा क7 महादशा मD श` ु क7 अ,तद-शाविध मD जातक को ा होते हI।
,तोययानवसुभषू णाङगनािव`य`यकृ िषि`यादयः।
पु िम पशधु ा,यसंयिु तx,_दायहरणो,मख ु े NF,**(  5 )
,नानाङगनाके िलिवलासशीलो जलोsवैधा-,यधनैx य] ु ः।
म]ु ाफलााभरणैरिप यािद,दोद-शायां िह िसते मनWु यः,**(.  O)
सयू 4तदशा-+
नृप$ायकमैƒयh jयािधनाशं Gरपु?यम।्
सौयं शुभमवा9नोित रवौ च45दशा4तरे ।।
राजतaु य ऐžया-िद का लाभ, रोगमिु ], श ओ ु ं का िवनाश, सख ु औरअनेक शभु फल क7
ाि जातक को च,_मा क7 महादशा मD सयू - क7 अ,तद-शा आने पर होती है।
, .C C   रोगशाि,तररप िवjयिु तः।
िपवातfिगने गते तदा याjछशाङकपरव6सरा,तरम,् **(  5 )
,नरे žरा_ौरवमथ-लाभं यामयाित[ कृ तेिव-कारम।्
चैरािhनवैरभवां च भीितं शीतांशपु ाके कुfते िदनेशः,**(.  O)
आदौ भावफलं मCये रािश थानफलं िवदःु ।
5   नसमये चाङगजं ‹िजं फलम।् ।
च,_मा िजस भाव मD ि थत हो उस भाव के शभु ाशभु ानसु ार शभु ाशभु फल दशा के ार:भ
मD देता है। िजस रािश मD वह ि थत होता है उसके अनसु ार शभु ाशभु फल दशा के मCय मD तथा लhन
या शरीरज,य फल और च,_मा पर ‹िफल दशा के अि,तम भाग मD देता है।
आरोही सूयदशा फल कथन
आरोिहणी वासरनायक6य दशा महवं कु]तेऽित सौयम।्

उराखड मु त िवविवालय 166


योितषशा ी       MAJY-202
परोपकारं सुतदारभूिमगोवािजमातङगकृिषि7यादीन।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद आरोही अथा-त् उjच रािश मD जाने वाले सयू - क7 दशा हो,
तो मनWु य को अपना मह¡व थािपत करने का अवसर िमलता है। अ6यिधक सुख क7 ाि होती है।
अ,या,य यि]य# का उपकार करने मD भी वृ रहता है। पु , wी,  C,  , QU , / D 1
क7 ाि सहज ही होता है। कृ िषकाय- से भी लाभ स:भव होता है।।
B  $  + )
दशावरोहािˆननायक6य कृिषि7या िवRगृहेZनाशम।्
चोरािHनपीडां कलहं िवरोघं नरेशकोपं कु]ते िवदेशम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद अवरोही अथा-त् उjच से िनकलकर नीच क7 ओर अ.सर
सयू - क7 दशा के समय मनWु य को कृ िष कम- के अवसर का अभाव होता है। अ,न, , N/, इ व तु
 2लिषत व तु आिद क7 हािन होती है। चोर, अिhन आिद से भी पीड़ा ा होती है। कलह,
िवरोध आिद को भी झेलना पड़ता है। राजक7य कोप भी िमलता है। िवदेश या ा भी करने पड़ते हI।।
नीच (तुला) रािश6थ सयू दशा फल कथन
नीचि6थत6यािप रवेिवपाके मानाथनाशं ?पालकोपात।्
6वब4धुनाशं सुतिम1दारैः िप1ािदकानामपकितमेित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD नीच तल ु ा रािश मD सयू - के ि थत रहने पर मनWु य राजक7य कोप
के कारण अपमान सहन करता हOआ धन हािन भी उठाता है। उसे अपने ब,ध-ु बा,धव# क7 हािन भी
सहन करना पड़ता है। अपने पु , िम और wी के कारण भी अपने िपता आिद कुल क7 अपक7ित-
 /  /0**
परमनीच6थ सयू दशा फल कथन
अय4तनीचाि4वतसूयदाये िवपिRमा9नोित गृह/युितं च।
िवदेशयानं मरणं गुSणां wीपु1गोभूिमकृषेिवनाशम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - अपने परमनीचांश तुलारािश के 10 अंश मD ि थत हो,
तो उस क7 दशा के समय िवपिय# का सामना करना पड़ता है। ायः घर-गृह थी से दरू हो जाना
पड़ता है। िवदेश भी जाना पड़ता है। गfु वग- के जन# क7 मृ6यु होती है। wी, पु , ,  C G
कृ िष आिद क7 हािन भी उठा 5U  /0*
लि1कोण (िसंह) रािश6थ सूय दशा फल कथन
मूलि1कोण6थरवेिवपाके ?े1ाथदारामजब4धुसौयम।्

उराखड मु त िवविवालय 167


योितषशा ी       MAJY-202
राजायं गोधनिम1लाभं 6व6थानयानािदकमेित रायम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - अपनी मल ू ि कोण रािश मD हो उसक7 दशा के समय
मनWु य कृ िषयोhयभिू म, , wी, पु और ब,धओ ु ं का ... सौSय ा करता है। राय का आQय
पाता है। गोधन और िwय# का लाभ भी ा करता है। अपने थान, वाहन आिद के साथ राय क7
ाि भी करने का अवसर ा होता है।
6वरािश (िसंह6थ) सूय दशा फल कथन
6व?े1ग6यािप रवेदशायां 6वब4धुसौयं कृिषिवRकितम।्
िवFायशः $ािथतराजपूजां 6वभूिमलाभं समुपैित िवFाम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - वरािश (िसंह) मD /, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
को अपने ब,धओ ु ं का सख ु ा होता है। कृ िष, धन और क7ित- का लाभ होता है। िवा (Zान), 
आिद भी िमलते हI। अपने योhय राजक7य स:मान भी पाता है। अपनी भिू म और िवा    
ा करता है।।
अिधश1रु ािशगत सयू दशा फल कथन
दशािवपाके िधश1ुग6य रवेः $नZाथकल1पु1ः।
गोिम1िप1ािदशरीरकZं श1ु वमायाित जनैः सम4तात।्
िजस िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद अिधश ु .ह क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य अपने धन, wी, पु आिद क7 हािन उठाता है। गोधन, िम , िपता आिद को शारीरक
क होता है। हर कार से अ,य जन# से श तु ा होती है।।24।।
श1ुरािश6थ सूय दशाफल कथन
सपनरािशि6थतसयू दाये दुःखी पGर‹Zसतु ाथदारः।
नृपािHनचौरैिवपदं िववादं िप1ोिवरोधं च दशा4तमेित।
िजस िकसी क7 कुडली मD सयू - यिद श ु .ह क7 रािश मD /, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य दःु खी रहता है। पु , , wी आिद क7 हािन होती है। राजक7यमाCयम, अिhन,  1 +
िवपि का कारण ा होता है। िववाद मD उलझना पड़ता है। अपने माता-5 +   +
अ,त मD होता है।
5+ न:-
1. सयू - क7 महादशा मD सयू ा-,तद-शा काल मD िकसक7 ाि होती है?
. C -स:मान ाि ख. धन ाि ग. ऐवय- ाि घ. सभी

उराखड मु त िवविवालय 168


योितषशा ी       MAJY-202
2. फलदीिपका के अनसु ार सयू ा-,तद-शा का फल या /0?
. राजा Lारा स:मान ख. धन ाि ग. लाभ घ. उपयु -त 
3. वरािश का सयू - अ,तद-शा काल मD या  + /0*
. ब,धु सखु ख. धन सख ु ग. राय सखु घ. कोई नह‚
4. च,_मा क7 महादशा मD श` ु क7 अ,तद-शा का या  /0?
. रोग ख. मातृ प से रोग ग. vण घ. सख

5. च,_मा मD वृह पित दशा का या  /0?
.  / सख ु ख. धन सख ु ग.प6नी सखु घ. राय P>

2.5  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /  महादशापित और अ,तद-शा के
िनयत वष-संSया को पर पर गणु ा कर च` क7 स:पणू - दशा को वष-संSया से भाग देने से वषा-
लि&ध अ,तद-शा का भोगकाल होता है। D -
दशां दशाMदसङगु-यां सवायुः संयया हरेत।्
लMधम4त5्दशा !ेया वषमासिदनािदकाः।।
5व e] उदाहरण मD िमथनु क7 महादशा मD थम अ,तद-शा िमथनु क7 ही होगी, CD> +
दशावष- K  ] + ण> ा कर च` क7 स:पणू - दशावष- :J +   + + 5 K×K/:J = ; वष- 99
C  97 िदन िमथनु मD िमथनु क7 अ,तद-शा होगी। िमथनु क7 अ,तद-शा के बाद िसंह क7 अ,तद-शा
K×J/:J = 0 वष- B C  9;  , कक- क7 K×89/:J = 8 वष- 8 C  8;  , क,या क7
K×K/:J = ; वष- 99 C  97   ! `म से अ,य रािशय# तल ु ा, वृिxक, मीन कु:भ और
मकर क7 अ,तद-शाएँ िनकालनी चािहए। सयू - क7 महादशा मD सयू ा-,तद-शा काल मD “ाहमण,  .
और शwािद से धन क7 ाि होती है। मानिसक उ6पीड़न और िवदेश-अरयािद pमण होता है।
च,_मा क7 महादशा के च,_मा क7 ही अ,तद-शाविध मD िवा, wी और संगीत-  G  
दोन# मD िवशेष अिभfिच, रे शमी वw का लाभ, स6सङग, 0 / P > ,  . , उसके म, ी और
सेनापित Lारा स:मान, स6क7ित- तथा पु और िम # के साथ तीथा-टनािद का सख ु जातक को ा
/ /0*  C, गौ और अžािद और ियव तु और -वैभवािद क7 ाि होती है। च,_मा क7
महादशा के भौमा,तद-शा काल मD रोगात-ता, िवरोधबिु s, थानjयिु त,    G / 
तथा िम # के Lारा जातक उ6पीिड़त हो /0* इसी कार अ,य .ह# क7 अ,तद-शाओ ं   
उराखड मु त िवविवालय 169
योितषशा ी       MAJY-202
/ /0*
2.6 पा रभािषक शदावली
अ4तदशा # दशा के मCय अ,तद-शा होती है।
सूया4तदशा # सयू - क7 महादशा मD सयू - क7 अ,तद-शा
6थान /यु- था + 2CP >  परवत-न
पर6प )   + 
 ) पृUवी
 )  
 ) पु
 ) प6नी
! )  .
 ) 
2.7 बोध के उ र
1. Q
2. Q
3. 
4. P
5. 
2.8 स#दभ$ %#थ सच
ू ी
1. जातकपारजात - आचाय- वैनाथ
2.  5 ) आचाय- म, ेव
3. . OC4 ) चौख:भा काशन
4. सवा-थ-िच,ताCO ) Qी वDकटेश
5. Nहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
2.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
1. Q.>  ) आचाय- वराहिमिहर
2. वृह6पराशरहोराशा ) आचाय- पराशर

उराखड मु त िवविवालय 170


योितषशा ी       MAJY-202
2.9 िनब#धा,मक  न
1. सयू - क7 अ,तद-शा  P+*
2. अ,तद-शा साधन िविध सोदाहरण िलिखये*
3. . O   5 के अनसु ार च,_मा मD सयू ा-िद .ह# क7 अ,तद-शा का फल िलिखये*
4. गfु क7 अ,तद-शा फल का लेखन क7िजये*
5. जातकपारजात के अनुसार िविवध .ह# क7 अ,तद-शा फल का उaलेख क7िजये*

उराखड मु त िवविवालय 171


योितषशा ी       MAJY-202
 - 3 ,य#तद$शा फल िवचार
इकाई क संरचना

3.1  ता
3.2 उेय
3.3 6य,तद-शा फल परचय
3.3.1 सयू ा-िद .ह# के दशा फल
3.4 6य,तद-शा   
3.5  
3.6 पारभािषक श&दा
3.7 बोध न# के उर
3.8 स,दभ- .,थ  
3.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
3.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 172


योितषशा ी       MAJY-202
3.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के तृतीय खड क7 तीसरी इकाई से स:बि,धत है। इस
इकाई का शीष-क है ) 6य,तद-शा फल िवचार* !+ पवू - आपने महादशा एवं अ,तद-शा 
को जान िलया है। अब आप 6य,तद-शा फल िवचार अCय + . /+ /0*
ं ोरी  अ,तद-शा फल के पxात अब आप और सू म दशाओ ं क7 ओर बढ़ते हOए
िवश
6य,तद-शा का फिलत प इस अCयाय मD अCय + जा रहा है। 6य,तद-शाओ ं का जातक पर
या शभु ाशभु भाव पड़ता है। इसका Zान इस अCयाय मD आपको हो जा+ *
1! इस इकाई मD हम लोग ,6य,तद-शा फल िवचार- के बारे मD हम योितष शा +
माCयम से जानने का यास करते है।
3.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• 6य,तद-शा दशा फल को परभािषत कर सकD गे।
• 6य,तद-शा फल  C\ सकD गे।
• 6य,तद-शा फल का िवचार कै से िकया जाता है। जान जायेग।D
• िविभ,न जातक .,थ# मD 6य,तद-शाओ ं दशा के फल या है। उसका िवलेषण कर सकD गे।

3.3 ,य#तद$शा दशाफल


 +   के `म मD अ,तद-शा के पचात् और सू म  Zान के िलए ऋिषय# Lारा
6य,तद-शा फल का भी िवचार िकया गया है। इससे फलादेश कथन मD और सू म ‹ि समािहत है।
अत: इसका Zान योितष के अCयेताओ ं को अवय /   /*
यिप फिलत योितष के सम त .,थ# मD दशा िवचार िकया गया है। िक,तु सवा-िधक दशा
साधन अथवा उसके फिलत प का िवचार के ‹िकोण से ,वृह6पराशरहोराशा - नामक .,थ
चिलत है। इसके अितरत  5 , जातकपारजात, सवा-थ-िच,ताCO, Q.> ,
वृहजा , .   , योितष सव- व, योितष रह य 1  .,थ# मD फलादेश आिद
कथन का स:यकतया अCययन कर सकते हI। यहाँ इस इकाई मD आप फिलत के इ,ह‚ उत .,थ#
Lारा दशा फल का बोध करने जा रहे है।

उराखड मु त िवविवालय 173


योितषशा ी       MAJY-202
3.4 सूया$िद %ह के दशा फल

सयू $ %ह का * 0 -
-मkय-अ4त के सूय दशा फल कथन
आदौ सयू दशायां दुःखं िपतृरोगकृ?यUािधः।
मkये पशुधनहािनUा4ते िवFां महव...0
. जातक क7 कुडली मD सयू - दशा ारि:भक अव था मD /  ]+ f> P / /0* 50 N
, य रोग, मानिसक िवकार आिद भी होता है। दशा के मCय समय मD पशओ ु ं आिद क7 हािन
/  /0। दशा के अ,त समय मD मनWु य िवा, यश मह¡व ा करने मD सफल होता है।
ि;तीय भाव6थ सूयदशा फल कथन
पु1ोपिRिवपिRम1 कु]ते भानोधन6थ6य वा
:लेशं ब4धिु वयोगदुःख कलहं वाHदूषणं 7ोधनम।्
wीनाशं धननाशनं नृपभयं भूपु1याना[बरं
सवh नाशमुपैित त1 शुभयुHवा/यं न चैतफलम्।।
. .  क7 कुडली मD सयू - यिद िLतीय भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को पु उ6प,न होता है और उसक7 हािन भी होती है, लेश के अ,य कारण भी होता है*
ब,धजु न# का िवयोग भी होता है, f> P ]W  5U /0 G /  / /0*  णी मD दोष उ6प,न
/ / /0, `ोध होता है, wी व धन का नाश भी होता है, राजा का भय भी उ6प,न होता है तथा
 C, पु , वाहन वw आिद का अभाव जैसा अनुभव होता है।
सयू - यिद िLतीय भाव मD शभु यु] हो, तो उपरो] अशभु फल# + 5 >  /
/ /0*
तृतीय भाव6थ सयू दशा फल कथन
भानोिव7मयु,6य दशा धैय महसुखम।्
नृपमाननमथािaं ‹ातृवैरिवपRथा।।
िजस िकसी क7 कुडली मD सयू - यिद तृतीय भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को धैय- रहता है। बहOत सख ु ा होता है। राजक7य स:मान भी िमलता है। धन लाभ के
अवसर ा होता है। साथ ही भाईय# मD श तु ा उ6प,न होती है और िवपिय# को भी झेलने पड़ते हI।

उराखड मु त िवविवालय 174


योितषशा ी       MAJY-202
चतुथ भाव6थ सूय दशा फल कथन
सुखि6थत6यािप रवेदशायां भोगाथभूभृयकल1हािनम।्
?े1ािदनाशं 6वपद/युितं वा यान/ु युितं चोरिवषािHनभीितम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD सयू - यिद चतथु - भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को सख ु ोपभोग के अवसर# का अभाव रहता है। धन,  C, +, wी आिद क7 हािन होती
है। कृ िष का भी नाश होता है। अथवा अपने पद क7 हा /  /0*  /-दघु ट- ना आिद का िशकार
/ 5U /0* , अिhन, 6 1 का भय भी उ6प,न होता है।
ष€भाव6थ सूय दशा फल कथन
दशािवपाके धनहािनमेित ष€6थभानोरितदुःखजालम।्
ग8ु म?योfूतपिव1रोगं मू1ािदकृछं वथ वा $मेहम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद सयू - ष‘भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
को धन क7 हािन होती है। अनेक कार से अ6य,त दःु ख# का सामना करना पड़ता है। गaु म रोग व
य रोग से उ6प,न अितसार, मू कृ j¢ अथवा मेह रो      / 5U /0*
सaमभाव6थ सूयदशा फल कथन
दाराि4वत6यािप रवेदशायां कल1रोगं वथ वा मृितं च।
कुभोजनं कुिसतपाकजातं ?ीरािददkयायिवहीनम1म।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD सयू - यिद सम भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को अपनी पि6न के रोग या मृ6यु से क होता है। अभोय भोजन, _ु ता पवू क - पकाये हOए
G  , / QN 1 + /त अ,न क7 ाि होती है।
अ<टम भाव6थ सयू दशा फल कथन
र4l6थभानोरिप वा दशायां देह6य कZं वथ वािHनभीितम।्
चातुिथके ने1िवकारकासं वराितसारं 6वद/युितं च।
िजस िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद अम भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को शारीरक क अथवा अिhन से भय का िशकार होना पड़ता है। चौिथया वर (चार िदन मD
उतरने वाला बख ु ार) और ने िवकार भी होता है। कास वर के साथ अितसार रोग को भी झेलना
5U है। पद क7 हािन भी होती है।
 व6थ सूय दशा फल कथन
कमि6थत6यािप रवेदशायां रायाथलाभं समुपैित धैयम।्

उराखड मु त िवविवालय 175


योितषशा ी       MAJY-202
उFोगिसिfं यशसा स  /   !  
िजस िकसी क7 कुडली मD सयू - यिद दशम (कम-) भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को राय लाभ के साथ धन का लाभ भी होता है। धैय- भी रहता है। उोग अथा-त्
पfु षाथ- सफल होता है। यश क7 ाि होती है। िववाद या लड़ाई मD िवजय िमलती है तथा राजक7य
स:मान क7 ाि भी होती है।
एकादशभाव6थ सयू दशा फल कथन
आयि6थत6यािप दशािवपाके भानोधनािaं शुभकमलाभम।्
उFोगिसिfं सुतदारसौयं यानािदभूषा[बरदेहसौयम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद एकादश भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को धनलाभ के माग- श त होते हI। शभु कम- का भी लाभ होता है। िकया गया यास या
पfु षाथ- सफल होता है। wी, पु , P> ,  / आिद और आभषू ण वw आिद क7 भी ाि होती है।
;ादश भाव6थ सूयदशा फलकथन
भानो;ादशग6य चेFिद दशा :लेशाथहािनं कृशं
wीब4kवामजभूिमनाशमथ वा िप1ोिवनाशं किलम।्
6थाना6थानपGर‹मं िवषकृतं रा!ो भयं पाद]-
िHवFावादिवनोदगोि€कलहं गोवा/ $I * 
िजस िकसी क7 कुडली मD सयू - यिद Lादशभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को लेश, धन हािन आिद सहन करना पड़ता है। शारीरक दबु -लता भी आ जाती है। wी,
ब,ध,ु पु , भिू म आिद स:ब,धी हािन अथवा माता-िपता क7 हािन होती है। कलह करने को बाCय
होता है। एक थान से दसू रे थान मD pमण करना पड़ता है। िवष का भय,  .   1 
होता है। पैर# मD रोग भी हो जाता है। िवा (Zान) स:ब,धी आयोिजत सभा मD वाद-िववाद मD कलह
    / 5U /0* , QU , / D 1 +  O  5U C  /0*
च#21  * 0 9 -
समरािश6थ च45दशा फल कथन
दशािवपाके समरािशग6य कलािनधेः कांचनभूिमलाभम।्
  सुखं बा4धवरोगपीडां िवदेशयानं लभते मनु<यः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपने सम.ह क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य को वण- और भिू म का लाभ होता है। कुछ सुख भी िमलता है। ब,धु-बा,धव# को

उराखड मु त िवविवालय 176


योितषशा ी       MAJY-202
5U /  /0* देश या ा से लाभ होता है।
नीचरािश6थ च45दशा फल कथन
नीचि6थत6य दशया िवपदं महाित :लेशाथदुःखवनवासमुपैितकाले।
कारागृहं िनगडपादकृशा4नहीनो चौरािHनभूपितभयं सुतदा * 
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपनी नीच वृिxक रािशगत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को िवपि का सामना करना पड़ता है। पीड़ा दायक ि थितयाँ उ6प,न होती हI। लेश
होता है। धन स:ब,धी दःु ख भी होता है। िनवा-िसत जीवन भी िकसी कारण यतीत करना पU /0*
कारागार भी जाना पड़ता है। शरीर दबु -ल होता है। अ,नहीनता का िशकार भी होता है। चोर, अिhन,
राजा आिद से भय और wी, पु आिद क7 हा /  /0*
?ीण च45 दशा फल कथन
?ीण4दुपाके सुकलािवहीनो राजाथभूपु1कल1िम1म।्
उ4मादिचRं 6वजनैिवरोधमृणवमायाित कुशीलवृ—या।
दशा के समय मनWु य के मह6वपणू - सौSय क7 पिू त- होती है। अनेक कार से धन का लाभ
होता है। राजा से स:मािनत होता है। उसके शरीर क7 दबु -लता दरू होकर पु होता है।
च45 दशा के आिद-मkय-अ4त का फल कथन
च45दशायामादौ नरपितस4मानकितसौयं च।
मkये wीसतु नाशं गृहधनसौया[बरं चा4ते।।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद च,_ क7 दशा चल रही हो, तो उसक7 दशा के आिद मD
राजा से स,मान क7 ाि होती है। क7ित- मD वृिs होती है। सुख िमलता है। मCय दशाकाल मD wी, पु
क7 हािन भी होती है। अ,त दशा के समय गृहसख ु और धन का सख ु ा होता है।
: . 61 * 0 9
आरोिहणी भूिमसुत6य सौयं दशा तनोय1 नरे45पूयम।्
$धानतां धैयमनोिभलाषं भाHयोRरं गोगजवािजसङधम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद आरोही `म मD अथा-त् अपनी उjचरािश क7 ओर
अ.सर रहता हOआ ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य सख ु ा करता है। राजा से स:मान
ा करता है। समाज मD Qे‘ता िसs कर पाता है। धैय-वान् होता है। मनवािं छत सफलता भी उसे
िमलती है। ऐžय- क7 ाि भी होती है। गाय, / D, QU 1 5 ओ> ं के समहू से य]
ु होता है।

उराखड मु त िवविवालय 177


योितषशा ी       MAJY-202
B  $   + )
धरासुत6या9यवरोहकाले 6थानाथनाशं किलकोपदुःखम।्
िवदेशवासं 6वजनैिवरोधं चौरािHनभूपैभयमेित कZम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद अवरोही `म मD अथा-त् ....... नचरािश क7 ओर
अ.सर रहता हOआ ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य को भिू म और धन का हरण होता है।
कलह मD उलझना होता है। `ोध भी आने लगता है। दःु खी रहना पड़ता है। परदेश वास करने क7
बाCयता भी होती है। वजनो से िवरोध िमलता है। चोर, अिhन, राजा आिद से भी भय और क उसे
C /0*
हC * 0 -
लHनभाव6थ राहO दशा फल कथन
लHनगतराहOदाये बिु fिवहीनं िवषािHनशwाFैः।
ब4धुिवनाशं लभते दुःखाित च पराजयं समरे।।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद लhनभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
बिु sहीनता का िशकार होता है। िवष, अिhन, शw आिद से उसे भय रहता है। ब,धओ ु ं क7 हािन होती
है। दःु ख से वह आ- होता है। यs
ु मD परािजत होता है।।
ि;तीय भाव6थ राहOदशा फल कथन
राहोदशायां धनरािशग6य रायं च िवRं हरते िवशेषात।्
कुभोजनं कुिसतराजसेवा मनोिवकारं वनृतं $कोपम।् ।
. सी क7 कुडली मD राहO यिद िLतीयभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य िवशेष lप से राय और धन स:ब,धी हािन सहन करने को बाCय रहता है। अखा भोजन
करने को िमलता है। दु राजा के पास सेवा करना पड़ता है। मानिसक िवकार उ6प,न होता है। झठू
 3 5U है। वह `ोध भी करता है।
तृतीय भाव6थ राहO दशा फल कथन
तृतीयरािशि6थतराहOदाये प1ु ाथदारामसहोदराणाम।्
सुखं कृषेब4धनमािधपयं िवदेशयानं नरपालपूयम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद तृतीय भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य पु , wी, , अपने भाई आिद के सख ु से य]ु होता है। उसक7 कृ िष मD अिभवृिs होती है।
उसे अिधकार क7 ाि होती है। िवदेश गमन करने का अवसर ा होता है। राजा Lारा स:मािनत भी

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योितषशा ी       MAJY-202
/ /0*
चतुथ भाव6थ राहO दशा फल कथन
चतुथरािशि6थतराहOदाये मातुिवनाशं वथवा $ *
?े1ाथनाशं नृपतेः $कोपं भायािदपाितयमनेकदुःखम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद चतथु - भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य क7 माता क7 मृ6यु अथवा वह वयं ही मृ6यु का िकार हो जाता है। कृ िष े , धन आिद क7
 /  /  /0। राजा के कोप का भाजन भी होता है। उसक7 पि6न आिद क7 पिव ता न होने से
/ 2+ f> P + P >  / /0*
चौरािHनब4धाितमनोिवकारं दारामजानामिप रोगपीडा।
चतुथरािशि6थतराहOदाये $भHनसस ं ारकल1पपु म।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद चतथु - भाव मD ि थ /,  C   , wी, पु
आिद को रोग पीड़ा आिद स:भव होता है। इस तरह उसका अपनी पि6न, पु तथा उस ससं ार, 
से िवरि] हो जाता है।।
पंचमभाव6थ राहO दशाफल कथन
बुिf‹मं भोजनसौयनाशं िवFािववादं कलहं च दुःखम।्
कोपं नरे456य सुत6य नाशं राहोः सुत6थ6य दशािवपाके ।।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद पंचम भाव थ हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
बिु s pम का िकार होता है। भोजन स:ब,धी सख ु से रिहत हो जाता है। िवा (Zान) स:ब,धी
िवषय# के कारण िववाद, कलह और दःु ख ा करता है। स6य से भी कोप क7 ाि होती है।
पु नाश के कारण भी उ6प,न होता है।
ष€भाव6थ राहO दशा फल कथन
दशािवपाके वGररािशग6य चौरािHनभूपैभयमाaनाशम।्
$मेहगु8म?यिपRरोगं वHदोषरोगं वथवा मृितं च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद राहO ष‘भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
 , अिhन, राजा आिद से भय ा होता है। उसके शभु jे छुओ ं क7 भी हािन होती है। उसे मेह
, गaु म रोग, य रोग, िप रोग, 6वचा रोग होता है अथवा उसक7 मृ6यु होती है।
सaमभाव6थ राहO दशाफल कथन
कल1रािशि6थतराहOदाये कल1नाशं समुपैित शी“म।्

उराखड मु त िवविवालय 179


योितषशा ी       MAJY-202
िवदेशयानं कृिषभाHयहािनं सपाfयं मृयुसुताथनाशम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद सम भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय,
मनWु य क7 पि6न क7 मृ6यु शी¤ होती है। िवदेश या ा करनी पड़ती है। कृ िष स:ब,धी हािन के साथ ही
 hयावनित भी उसक7 होती है। सप- से भय उ6प,न होता है। स,तान (पु ) क7 मृ6यु और धन क7
/   /  /0*
अZम भाव6थ राहO दशाफलमाह
राहोदशायां िनधनि6थत6य यमालयं याित सुताथनाशम।्
चौरािHनभूपैः 6वकुलोfवैU भयं भृगोवा वनवासदुःखम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद अमभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य यमलोक क7 या ा करता है अथा-त् उसक7 मृ6यु होती है। उसके पु वध-न शि] क7 हािन भी
/  /0* , अिhन, राजा और अपने कुलजन# से भी उसे भय क7 ाि होती है। उसे मृग (िसं/) +
भी वन मD    +    C  5U /0**
नवमभाव6थ राहO दशा फल कथन
राहोदशायां नवमि6थत6य िप1ोिवनाशं लभते मनु<यः।
िवदेशयानं गु]ब4धुनाशं 6नानं समु56य सुताथनाशम।् ।
शुभ%हEF गुB दशा फल कथन
लHन भाव6थ गु] दशाफल कथन
लHनं गत6य िह दशा पु]षे करोित जीव6य सौयममला[बरभूषणािaम।्
यानािधरोहणमृदङगपणारवैU मRेभवािजभटसङघयुतं करोित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद लhनभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
सौSय, िनम-ल वw और आभषू ण क7 ाि करता है। मृदड़ नगाड़ा आिद क7 Cविन से य] ु वाहन
क7 सवारी भी करता है। उ,म हाथी, QU , और योsाओ ं के समहू से य] ु भी उसको क /0*
चतुथ भाव6थ गु] दशाफल कथन
चतुथके 45ि6थतजीवदाये यान1यं भूपितिम1भावम।्
भूपालयोगे यिद भूपितवं नोचेRथा तसYशं करोित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद चतथु - भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य के पास तीन कार के वाहन चतWु पद, सजीव और िनजTव सल ु भ होते हI। राजा से िम ता का
भाव रखता है। ऐसी ि थित मD मनWु य क7 कुडली मD राजयोग रहने पर उसे राजा कहना चािहए।

उराखड मु त िवविवालय 180


योितषशा ी       MAJY-202
राजयोग के अभाव मD मनWु य  . + C   / / /0*
पंचम भाव6थ गु]दशा फल कथन
पचं म6थगरु ोदाये म41ोपा6त महसख ु म।्
सुतािaं राजपूजां च वेदा4तवणािदकम।् । सaमभाव6थ गु]दशा फल कथन
कल1रािशि6थतजीवदाये दाराथपु1ाथसुखं $याित।
िवदेशयानं समरे जयं च kयानं पर„हमािण पु-यकम।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद समभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
पि6न, पु , धन आिद का सख ु ा करता है। िवदेश क7 या ा पर भी जाता है। यs
ु मD िवजयी होता
है। पर“” का Cयान भी करता है। वह पु य लाभ के उपाय भी करता /0*
दशमभाव6थ ग]ु दशा फल कथन
कमि6थत6यािप गुरोिवपाके रायािaमाहOमुनय6तदानीम।्
भूपालयोगे वथ वाथपु1कल1सकमसुराजयोगम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद दशम भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य राय क7 ाि करता है। ऐसा मिु नजन# ने कहा है। लेिकन उसक7 कुडली मD  . /
चािहए। अ,यथा ऐसे मD धन, पु , wी आिद क7 ाि, शभु काय- स:पादन, राजा क7 स,नता आिद
3 राजयोग के भी होते ही हI।
मूलि1कोण रािश गत शिन दशाफल कथन
लHनभाव6थ शिन दशा फल कथन
लHनि6थतशनेदाये देहकृ/žमुपैित च।
6थान/युितं $वासं च राजकोपं िशरो]जम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद लhनभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
शारीरक क से परे शान रहता है। उसे थान-पद से jयतु होना पड़ता हI। परदेश मD वास करना
पड़ता है। राजक7य 5   .  / 5U है। िशर मD रोग होता है।
चतुथभाव6थ शिन दशा फल कथन
चतुथ6थशनेदाये मातृत;गनाशनम।्
गृहदाहं पद‹ंशं चौराित नृपपीडनम।् 
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद चतथु - भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य क7 माता या मातृवग- मD आने वाली िwय# जैसे मौसी,  , चाची आिद से स:बि,धत हािन

उराखड मु त िवविवालय 181


योितषशा ी       MAJY-202
होती है। घर मD आग लग जाती है। पद से हटना पड़ जाता है। चोर,  . 1 + 5U व भय क7
ाि होती है।
सaम भाव6थ शिन दशा फल कथन
दाररािशगत6यािप शनेदायेऽGरपीडनम।्
मू1कृ/žं महा;ेषं wीहेतोमरणं च वा।
िजस िकसी क7 कुडली मDर शिद यिद समभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य श ु से उ6पीिड़त होता है। मू रोग के साथ अितLेष उ6प,न होता है। अथवा wी के कारण मृ6यु
O  5U /0*
दशम भाव6थ शिन दशाफल कथन
दशम6थशनेदाये कमनाशमुपैित च।
देशा4तरं पद‹ंशं िनगडं राजपीडनम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद दशम भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य के कम- क7 हािन होती है। देशा,तर मD भटकता है। पद से हटना पड़ता है। जेल भी जाना पड़ता
है। राजक7य पीड़ा के कारण उ6प,न होता है।
ि;तीयभाव6थ शिन दशा फल कथन
ि;तीय6थशनेदाये िवRनाशमथाि?]क्।
राजकोपं मन6तापम4न;ेषं मनो]जम।् ।
वैशेिषकाश यु, शिन दशा फल कथन
वैशेिषकांशरांयु,ः शिनः सौयं करोित च।
िवशेषा5ाजस4मानं िविच1ा[बरपषृ णम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद वैशिे षकांश मD हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
सौSय य] ु होता है। िवशेष lप से सजक7य स,मान उसे ा होता है। अनेक रंग से य] ु वw और
16 O 1  P >  C /0*
7ूर5े<काणगत शिन दशा फल कथन
7ूर5े<काणसंयु,शिनदाये महfयम।्
उ›4धनं िवषाfीितं नृपचौरािHनजं भयम।् 
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद पाप _ेWकाण मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य महाभय से .िसत रहता है। उसे फाँसी का भय, 6 +  D  . , , अिhन आिद से

उराखड मु त िवविवालय 182


योितषशा ी       MAJY-202
  / /0**134**
$-उ/चनवांश6थ शिन दशा + )
नीचरािशगतो म4दः 6वो/चांशकसमि4वतः।
दशादौ दुःखमापाF दशा4ते सुखदो भवेत।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद अपनी नीच रािश (मेष) मD होकर अपने उjच (तल ु ा
रािश) नवांश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य उस दशा के आिद काल मD दःु ख. त
/ /0, लेिकन उसी दशा के अ,तकाल मD सख ु स:प,न हो जाता है।
उ/चरािश-नीच नवांश6थ शिन दशा फल कथन
उ/चरािशगतो म4दो नीचांशकसमि4वतः।
दशादौ सखु मापाF दशा4ते कZदो भवेत।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद अपनी उjचरािश (तल ु ा) मD होकर नीच (मेष) नवांश
मD ि थत /, तो उसक7 दशा के समय मनWु य उस दशा के आिद मD सख ु पाता है और उसी दशा के
अ,तसमय मD क क7 ाि भी करता है।
5$+ * 0 9
लHन6थ बुध दशा फल कथन
लHनं गत6य च दशा शिशन4दन6य भूपालमानकृिषवाहनलMधभाHयम।्
भेरीरवािदपGरघोिषतयानमागh तीथािभषेकमथ वा जगित $िसिfम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद बधु लhन भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
राजा से स:मान ा करता है। कृ िष, वाहन के साथ भाhयोपलि&ध के अवसर सल ु भ होते हI। तरु ही,
मृदङग आिद क7 Cविन से ग.ु ..यमान वाहन से माग- पर चलने का अवसर ा होता है। तीथ- मD नान
करने का अवसर भी सल ु भ होता है। वह ायः संसार मD िसिs क7 ाि भी करने मD सफल होता है।
ि;तीय भाव6थ बुध दशा फल कथन
िवRगसौ[यदशायां िवFा$ािaं महLकित च।
भूपितभाHयसमानां राज6थाने $धानतां याित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद िLतीय भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को िवा-Zान क7 ाि होती है। बहOत क7ित- भी िमलती है। राजा के समान भाhय ा करता
है। राजा के दरबार मD भी उसको Qे‘ता िसs करने मD सफलता िमलती है।

उराखड मु त िवविवालय 183


योितषशा ी       MAJY-202
!$ भाव6थ बुध दशा फल कथन
तृतीयरािशि6थतच45सूनोदशािवपाके जडतां समेित।
उानमाजीवनग8ु मरोगम4नाितयोगे नृपमाननं च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद तृतीयर भाव थ हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
जड़ता या मख ू त- ा का दश-न करता है। गीत-  + 1.  ता हI। गaु म रोगी होता है।
अ,न से भी पीड़ा िमलती है; पर,तु राजा से स:मान क7 ाि होती है।
चतुथ भाव6थ बुधदशा फल कथन
शशाङकसूनोिहबुकि6थत6य दशा $प4ना गृहधा4यनाशम।्
सौयािदहािनं िहबुके समृयुमुFोगभङंग च पद/युितं वा।।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद चतथु - भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य गृह या घर और अ,न स:ब,धी जिटलतायD उ6प,न होती हI। सख ु -सौिवCय आिद का अभाव-
सा रहता है। उसके माता को भी क सहना पड़ता है। अथवा मृ6यु होती है। उोग या यास
2  / /0* 2D 5 -ित‘ा क7 हािन भी उठानी पड़ती है।
पंचमभाव6थ बुध दशा फल कथन
पंचम6थशिशन4दन6य वा 7ूरबुिfरितकZता भवेत।्
हीनवृिRरिप राजसेवया कृ/žलMधधनमेित स[पदम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD बधु यिद पचं म भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य मD `ूर या कठोर बिु s का ादभु ा-व होता है। अ6यिधक क सहन करना पड़ता है। िनि,दत
कायK से आजीिवका चलती है। उसे राजा क7 सेवा से भी बहOत परे शानी के साथ कुछ धन-स:पि
क7 ाि होती है।
ष€ाZम-;ादश भाव6थ बुध दशा फल कथन
ष€ाZमा4यि6थतसौ[यदाये वHदोषजातं बहOरोगमेित।
िवचिचका पैिRक पा-डुरोगं नपृ ािHनचौरैमरणं कृशवम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद ष‘भाव या अमभाव या Lादश भाव मD ि थत हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य को चम-रोग के कोप का िशकार होना पड़ता है। वमन-उिaट भी होती
है। िप िवकृ ित ज,य पाडुरोग हो जाता है। राजा, अिhन, चोर आिद से भय क7 ाि होती है।
शारीरक दबु -लता अथवा मृ6यु भी होती है।
;ादशभाव6थ बुध दशा का िवशेष फल कथन

उराखड मु त िवविवालय 184


योितषशा ी       MAJY-202
देहाङगवैक8यकल1ब4धुिव;ेषणं भूपितदRकोपम।्
आकि6मकं मृयुभयं $सादं Gर<फि6थत6यािप शशाङकसू4
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद Lादश भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
उपरो] के साथ मनWु य को शारीरक अगं # मD िवकलता के कारण ा हो जाते हI। wी और ब,धओ
ु ं
से िवरोध का सामना भी करना पड़ता है। राजा के कोप का भाजन भी होना पड़ता है। आकि म
मृ6यु का भय उ6प,न होने से मानिसक उ,मता भी आ जाती है।
लGन भावथ के तुदशा फल कथन
लHनके 45गत6यािप के तोदाये महfयम।्
वराितसारमेहं च 6फोटकािदिवषूिचकाः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद लhन भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य महाभय का िशकार हो जाता है। उसे वर, 2  , मेह, U -फु,सी फोट का रोग,
6  (/0. .0 सं`ामक) रोग भी होता है।
धनभाव6थ के तु दशा फल कथन
धनरािशगत6यािप के तोदाये धन?यम।्
वा:पा]<यं मनोदुःखं कुिसता4नं मनो]जम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद िLतीय (धन) भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को धनहािन सहन करना पड़ता है। वाणी भी कठोर बोलता है। मानिसक दःु ख भी
िमलता है। अखा अ,न .हण करता है। मनोरोग का िश  / /0*
तृतीय भाव6थ के तु दशा फल कथन
तृतीयरािशग6यािप के तोदाये महसुख *
मनोवैक8यमायाित ‹ातृिभ;\षणं परम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद तृतीय भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को अ6यिधक सख ु ा होता है। मन क7 िवकलता आती है। भाईय# से िनxय ही बहOत
अिधक Lेष (श तु ा) उ6प,न हो जाता है।
चतुथ भाव6थ के तु दशा फल कथन
चतुथरािशग6यािप के तोदाये सुख?यम।्
$भHनदारपु1ािदगृहे धा4य$हिषतः।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद चतथु - भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय

उराखड मु त िवविवालय 185


योितषशा ी       MAJY-202
मनWु य को सुख के अवसर# क7 कमी होती है। wी, पु आिद से अलग रहना पड़ता है। उसके घर मD
अ,न पया- उपल&ध / /0*
पच
ं मभाव6थ के तुदशा फल कथन
पंचम6थ6य के तो6तु दशाकाले सुत?यम।्
बुिf‹मं िवशेषेण राजकोपं धन?यम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद पंचमभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को पु क7 हािन होती है। उसे बिु s pम भी उ6प,न हो जाता है। िवशेष lप से उसे राजा के
5   .  / 5U /0* धन य क7 पीड़ा भी होती है।
शु6 %ह दशा फल -
ि1कोण6थ शु7 दशा फल कथन
ि1ि1कोणगतः शु7ः करोित नृपपूयताम।्
य!कमािदलाभं च गु]िप1ोः सुखं यशः।।
.स िकसी क7 कुडली मD श`ु यिद ि -ि कोण अथा-त् नवम भाव मD हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य राजा से स:मािनत होता है। यZकम--अन‘ु ान आिद के लाभ का माग- श त होता है।
उसे गfु , C -िपता आिद का सख ु ा / /0*   C /0*
उ/चरािश नीचनवांश6थ शु7 दशा फल कथन
उ/च?े1ेऽिप नीचांशयु,ः शु7ोऽितकZदः।
करोित रायनाशं च 6थाननाशमथािप वा।।
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद उjचरािश मD होकर नीच नवांश हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य अ6यिधक क ा करता है। राय भी उसका िछ,न-िभ,न हो . /0 2D ]+
थान या पद-ित‘ा क7 हािन होती है।
$-उ/चनवांश6थ शु7 दशा फल कथन
उ/चांशयु,शु7ोऽिप नीचरािशसमि4वतः।
कृिषगोभूिमवािणयं धनधा4यिववfनम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद नीचरािश मD होकर उjचनवांश मD ि थत हो, 
]सक7 दशा के समय मनWु य के कृ िष, ,  C, यापार व अ,न आिद प मD अिभवृिs होती है।

उराखड मु त िवविवालय 186


योितषशा ी       MAJY-202
वृह,पराशरहोराशा1 के अनुसार ,य#तद$शा फल -
सयू ा4तदशा मK सयू ािद $य4तदशा फल
िववादो िवRहािनच दाराितः िशरिस jयथा।
रjय4तरे बधै!\यं त6य $य4तरे फलम।् ।
सयू - क7 अ,तरद-शा मD सयू - क7 ही 6य,तद-शा हो तो उस समय जातक को लोग# से वाद- ,
/ , wी को क एवं म तक मD पीडा होती है।
यिद सयू - वोjच मD, वगृह मD, के ,_, ि कोण, शभु .ह से यतु या ‹, शभु वग- मD ि थत लhनेश,
भाhयेश, कम|श से यतु और अ,य ा भी शभु थान मD बैठा हो तो पवू e] अशभु फल नह‚ देता।
सूय क महादशा मK च45मा क अ4तदशा मK च45ािद क $य4तदशा का फल -
सूया4तदशा उ;ेगः कलहचै व िवRाहािनमनोjयथा।
रjय4तरे िवजानीयात् च45$य4तरे फलम।् ।
सयू ा-,तर मD च,_ क7 6य,तद-शा हो तो उLेग, /, धननाश एवं मानिसक यथा होती है।
सूया4तदशा मK भौमािद $य4तदशा फल -
राजभीितः शwभितब4धनं बहOसक ं टम।्
श1ुविuकृता पीडा कुज$य4तरे फलम।् ।
सयू ा-,तर मD मगं ल क7 6य,तर दशा हो तो राजभय, शwभय, ब,धन, िविभ,न कार के शक ं ट और
श ु और अिhन से पीड़ा होती है।
सूया4तर मK राहO क $य4तर दशा फल -
Ÿे <मjयािधः शwभीितधनहािनमहqयम।्
राजभंग6तथा 1ासो राहO$य4तरे फलम।् ।
सयू ा-,तर मD राहO क7 6य,तर दशा हो तो कफस:ब,धी रोगभय, शwभय,  , रायनाश, G
मानिसक ास हो जाता है।
सूया4तर मK गु] क $य4तर दशा फल -
श1ुनाषो जयो विृ fवwहेमािदभूषणम।्
अžलायनािदलाभWच गfु 6य,तरे फलम।् ।
सयू ा-,तर मD गfु का 6य,तर हो तो श नु ाश, ., वw, सवु ण-, आभषू णािद क7 वृिs एवं अž-
      / /0*
सूया4तर मK शिन क $य4तर दशा फल
उराखड मु त िवविवालय 187
योितषशा ी       MAJY-202
धनहािनः पशोः पीडा महा;ेगो महा]जः।
अशुभं सवमा9नोित शिन$य4तरे जनः।।
सया-,तर मD शिन का 6य,त /  / , पशओ ु ं मD पीडा, उLेग, महारोग एवं सभी कार से
2 >  / /0*
सूया4तर मK बुध क $य4तर दशा फल
िवFालाभो ब4धुसंगो भोय$ािaधनागमः।
धमलाभो नृपापूजा बुध$य4तरे भवेत।् ।
सयू - के अ,तर मD बधु का 6य,तर हो तो िवा , ब,धओ ु ं का संग, सु वादु भोजन क7 ाि,
 C, धम-लाभ एवं राजा से पिू जत होता है।
सयू ा4तर मK के तु क $य4तर दषा फल
$ाणभीितमहाहािन राजभीितU िवXहः।
श1ूणांU महावादो के तोः $य4तरे भेवत।् ।
सयू ा-,तर मD के तु का 6य,तर हो तो ाणभय, 2 / ,  ., िव.ह एवं श ओ ु ं के साथ
 - / /0*
सूया4तर मK शु7 क $य4तर दशा फल
िदनािन समSपािण लाभोऽ9य8पो भवेिदह।
6व8पा च सुखस[पिRः शु7$य4तरे भवेत।् ।
सयू ा-,तर मD श` ु क7 6य,तर दशा हो तो सख ु और दःु ख समान lप से यतीत होता है। साथ ही
वaप लाभ, अaप सख ु एवं स:पि क7 वृिs होती है।
च45मा के अ4तर मK च45मा का $य4तर दशा फल
भूभोयधनस[$ाaी राजपूजा महसुखम।्
लाभच45ा4तरे !ेयं च45$य4तरे फलम्
च,_ा,तर मD च,_मा क7 ही अ,तर दशा हो तो भिू म, भोय-व तु और धन क7 ाि होती है। साथ ही
जातक राजा से पिू जत होता है एवं उसे परम सखु क7 ाि होती है।
च45ा4तर मK भौम $य4तर दशा फल
मितवृिfमहापू यः सखु ं ब4धजु नैः सह।
धनागमः श1ुभयं कुज$य4तरे भवेत।् ।
च,_ा,तर मD मगं ल का 6य,तर हो तो बिु s मD वृिs, लोक मD मान, वब,धओ ु ं सिहत सख
ु ,  C

उराखड मु त िवविवालय 188


योितषशा ी       MAJY-202
और श भु य रहता है।
च45ा4तर मK राहO $य4तर दशा फल
भवेक8याणस[पRी राजिवRसमागमः।
अशुभैर8पमृयु<च राहO $य4तरे ि;ज!।।
च,_ा,तर मD राहO का 6य,तर हो तो कaयाण, राजक7य धनागम एवं यिद .ह# से यतु हो तो अपमृ6यु
  / /0*
च45ा4तर मK गु] $य4तर दशा फल
वwलाभो महातेजो „ !ानं च सुरोः।
रायालंकरणावािaगु]$य4तरे भवेत।् ।
च,_ा,तर मD गfु का 6य,तर हो तो वwलाभ, भावशाली गfु स¥fु से “”Zान क7 ाि एवं राय
तथा अलंकार क7 ाि होती है।
च45ा4तर मK शिन $य4तर दशा फल
दुिदने लभते पीडां वातिपRाि;षेषतः।
धनधा4ययशोहािनः शिन$य4तरे भवेत।् ।
च,_ा,तर मD शिन का 6य,तर हो तो वात और िप स:ब,धी रोग से दिु द-न का अनभु व एवं धनधा,य
और यश क7 हािन होती है।
च45ा4तर मK बुध $य4तर दशा फल
पु1ज4महय$ािaिवFालाभो मनो4नितः।
शु:लवwा4नलाभ<च बुध$य4तरे भवेत।् ।
च,_ा,तर मD बधु का 6य,तर हो तो पु ज,म, अž क7 ाि, िवा का लाभ उ,नित, žेत वwा और
अ,न क7 ाि होती है।
च45ा4तर मK के तु $य4तर दषा फल
„ा णेन समं युfमपमृयुः सख ु ?यः।
सव1 जायते :लेषः के तोः $य4तरे भवेत।् ।
च,_ा,तर मD के तु का 6य,तर हो तो “ा”ण# के साथ कलह, अपमृ6यु का भय, सख ु क7 हािन एवं
सभी जगह# पर क होता है।
च45ा4तर मK शु7 $य4तदशा फल -
धनलाभो महसौयं क4याज4म सुभोजनम।्

उराखड मु त िवविवालय 189


योितषशा ी       MAJY-202
$ीितU सवलोके mयो भृगु$य4तरे िवधोः।।
च,_ा,तर मD श` ु क7 6य,त /   , पणू - सौSय, क,या का ज,म, सभु ोजन और लोग#
मD ेम रहता है।
च45ा4तर मK सूय $य4तर फल
अ4नागमो वwालाभः श1ुहािन सुखगमः।
सव1 िवनय$ािaः सयू $य4तरे िवधोः।।
च,_ा,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो अ,न का ला, वw का लाभ, श ु क7 हािन, P>  
जगह पर िवजय ा होती है।
भौमा4तर मK भौम $य4तर दशा फल
श1भु ीितं किलं घोरं र,ावं मृतेभयम।्
कुज6या4तदषायां च कुज$य4तरे वदेत।् ।
भौमा,तर मD भौम का 6य,तर हो तो श भु य,  /  र]िवकार के कारण अपमृ6यु क7
स:भावना रहती है।
भौम मK राहO $य4तदशा फल
ब4धनं राजभंगच  4  / *
कलहः श1ुिभिनयं राहO $य4तरे भवेत।् ।
भौमा,तर मD राहO का 6य,तर हो तो ब,धन, राय एवं धन का नाश, कुभोजन कलह और श ु का
 / /0*
भौमा4तर मK गु] $य4तर दशा फल
मितनाश6तथा दुःखं स4तापः कलहो भवेत।्
िवफलं िचि4ततं सवh गुरोः $य4तरे भवेत।् ।
भौमा,तर मD गfु का 6य,तर हो तो बिु sिवpम, दःु ख का स,ताप, कलह एवं सम त वािं छत काय-
असफल होते हI।
भौमा,तर मD शिन का 6य,तर का फल
6वािमनाष6तथा पीडा धनहािनमहाभयम।्
वैक8यं कलहासो शनेः $य4तरे भवेत।् ।
भौमा,तर मD शिन क7 6य,तर दशा हो तो वामी का नाश, 5T ,  , C/ ,   G
कलह का ास होता है।

उराखड मु त िवविवालय 190


योितषशा ी       MAJY-202
भौमा4तर मK बुध का $य4तर दशा फल
सवथा बिु fनाष<च धनहािनवर6तनौ।
वwा4नसxु दां नाषो बध ु $य4तरे भवेत।् ।
भौमा,तर मD बधु का 6य,तर हो तो बिु s का pम, धन क7 हािन, शरीर मD वर, वw, अ,न और
िम1 का नाश होता है।
भौमा4तर मK के तु $य4तर दशा का फल
आल6यं च िशरः पीडा पापरोगोऽपमृयुकृत।्
राजभीितः शwाघातो के तोः $य4तरे भवेत।् ।
भौम के अ,तर के तु का 6य,तर हो तो आल य, म तक मD पीडा, 5 5, रोग से क, अपमृ6यु,
राजभय एवं शwघात आिद होता है।
भौमा4तर मK शु7 $य4तर दशा फल
चा-डालासंकटाासो राजशw  *
अितसारोऽथ वमनं भृगो $य4तरे भवेत।् ।
भौमा,तर मD श` ु का 6य,तर हो तो चाडाल जाित से संकट, ास, राजभय तथा शwभय एवं
2   D C  / /0
भौमा4तर मK सयू का $य4तर दशा फल
भूिमलाभोऽथस[पितः स4तोषो िम1ासंगितः।
सव1 सुखमा9नोित रवेः $य4तरे जनः।।
भौमा,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो भिू म, , स:पि क7 वृिs, स,तोष, िम # का समागम और
सभी का कार से सख ु क7 ाि होती है।
भौमा4तर मK च45$य4तर दशा फल
या[यां िदिष भवे8लाभः िसतवwिवभूषण *
सिं सिf सवकायाणां िवधोः $य4तरे भवेत।् ।
भौमा,तर मD च,_मा का 6य,तर हो तो दि ण िदशा से स का
फे द वw तथा आभषू ण का लाभ एवं सम त कायK क7 /  /0*
राहO के अ4तर मK राहO के $य4तर फल
ब4धनं बहOधा रोगो बहOघातः सुxqयम।्
राpा4तरदषायां च !ेयं राpा4तरे फलम।् ।

उराखड मु त िवविवालय 191


योितषशा ी       MAJY-202
राहO के अ,तर मD राहO का ही 6य,तर हो तो ब,धन, िविभ,न रोग# से आघात एवं िम # का भय रहता
/0*
राहO के अ4तर मK ग]ु के $य4तर फल
सव1 लभते मानं गजा<वं च धनागमम।्
राहोर4तदषायां च गुरोः $य4त /4
राहO के अ,तर मD गfु का 6य,तर हो तो सव- मान ित‘ा, अž हाथी आिद वाहन तथा धन का
  / /0*
राहO के अ4तर मK शिन के $य4तर फल
ब4धनं जायते घोरं सुखहािनमहqयम।्
$यहं वातपीडा च षनेः $य4तरे भवेत।् ।
राहO के अ,तर मD शिन का 6य,तर हो तो भयंकर ब,धन, सख ु क7 हािन, C/ 4 , िवपि य# से
ास और वातरोग होता है।
राहO के अ4तर मK बध ु के $य4तर फल
सव1 बहOधा लाभः wीसंगा/च िवषेषतः।
परदेषभवा िसिfबुध$य4तरे भवेत।् ।
राहO के अ,तर मD बधु का 6य,तर हो तो सभी कायK मD सफलता, िवशेषकरके wी से लाभ औQ
वैदिे शक काय- क7 िसिs होती है।
राहO के अ4तर मK के तु के $य4तर फल
बुिfनाषो भयं िव•नो धनहािनमहqयम।्
सव1ा कलहा;ेगौ के तोः $य4तरे फलम।् ।
राहO मD के तु का 6य,तर हो तो बिु sना , , कायK मD िवVन, / , सव- ा कलह और उLेग
/ /0*
राहO क अ4तदशा मC श7 ु क $य4तदशा फल
योिबनीmयो भयं भूयाद<वहािनः कुभोजनम।्
wीनाषः कुलजं शोकं शु7 $य4तरे भवेत।् ।
राहO के अ,तर मD श` ु का 6य,तर /   + , अž क7 हािन, >., wी नाश और
अपने वश ं मD शोक होता है।
राहO के अ4तर मK सूयािद $य4तर फल

उराखड मु त िवविवालय 192


योितषशा ी       MAJY-202
वररोगो महाभीितः पु1पौ1ािदपीडनम।्
अ8पमृयुः $माद<च रवेः $य4तरे भवेत।् ।
राहO के अ,तर मD 6य,तर हो तो वर, 5C , पु -पौ # को पीडा, अपमृ6यु और माद होता है।
राहO के अ4तर मK च45ािद $य4तर फल
उ;ेगकलहौ िच4ता मानहािनमहqयम।्
िपतुिवकलता देहे िवधोः $य4तरे भवेत।् ।
राहO के अ,तर मD च,_ का 6य,तर हो तो उLेग और कलह, िच,ता, C  ,  G 5 +
शरीर मD क होता है।
राहO के अ4तर मK भौम $य4तर का फल
भग4दरकृता पीडा र,िपRपीड़नम।्
अथहािनमहो;ेगः कुज$य4तरे फलम।् ।
राहO के अ,तर मD भौम का 6य,तर हो तो भग,द रोग से पीडा, र]-िप स:ब,धी यािध, 
और उLेग हो /0*
गु] के अ4तर मK गु] आिद का $य4तर का दशा फल
हेमलाभो धा4यवृिfः क8याणं सुफलोदयः।
गुरोर4तदषायां च भवेद् गुव4तरे फलम।् ।
गfु के अ,तर मD गfु का 6य,तर हो तो सवु ण-लाभ, धा,यवृिs, कaयाण, भाhयोदय और सुखािद क7
ाि होती है।
गु] के अ4तर मK श4यािद का $य4तर फल
गोभूिमहयलाभः 6यासव1 सख ु साधनम।्
संXहो v4नपानादेः शनेः $य4तरे भवेत।् ।
गfु के अ,तर मD शिन क7 6य,तर दशा हो तो गौ,  C, अž लाभ एवं अ,न-5   +  +
P > >  / /0*

गु] के अ4तर मK बुधािद $य4तर का फल


िवFालाभो वwलाभे !ानलाभः समौि,कः।
सुxदां संगमः 6नेहो बुध$य4तरे भवेत।् ।

उराखड मु त िवविवालय 193


योितषशा ी       MAJY-202
गfु के अ,तर म बधु का 6य,तर हो तो िवा, वw, Zान, र6न लाभ, िम # का समागम और नेह
/ /0*
ग]ु के अ4तर मK के तु का $य4त +
जलभीित6तथा चौयh ब4धनं कलहो भवेत।्
अपमृयुभयं घोरं के तोः $य4तरे ि;जः।।
गfु के अ,तर मं के तु का 6य,तर हो तो जल से भय, , ब,धन, कलह और भयंकर अपमृ6यु का
 / /0*
गु] के अ4तर मK शु7 $य4तर का फल
नानािवFाथस[$ािaह\मवwिवभूषणम।्
लभते ?ेमस4तोषं भृगोः $य4तरे जनः।।
गfु के अ,तर मD श`ु का 6य,तर हो तो अनेक िवा और Cन क7 ाि, सवु ण-, वw, 16 O, ेम
कaयाण और स,तोष ा होता है।
ग]ु के अ4तर मK सयू ािद $य4तर का फल
नृपा8लाभ6तथा िम1ात् िपतृतो मातृतोऽिप वा।
सव1 लभते पूजां रवेः $य4तरे जनः।।
गfु के अ,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो राजा, िम , C -िपता और अ,य सभी जगह# से लाभ एवं
सभी जगह# से आदर ा होता है।
गु] के अ4तर मK च45ािद $य4तर दशा का फल
सवदुःखिवमो?<च मु,लाभो हय6य च।
िसfयि4त सवकायािण िवधोः $य4तरे ि;जः।।
गfु के अ,तर मD च,_मा क7 6य,तर दशा हो तो सभी आपिय# का िनवारण, र6न और
अžस:ब,धी वाहन# का लाभ तथा सभी काय- मD सफलता िमलित है।
ग]ु के अ4तर मK भौम का $य4तर फल
शwभितगुदे पीडा विuमाFमूजीणता।
पीडा श1ुकृता भूिमभnम$य4तरे भवेत।् ।
गfु के अ,तर मD भौम का 6य,तर हो तो शwभय, गदु ा माग- मD पीडा, म,दािhन, अजीण-ता और श ु
+ 5T /  /0*
गु] के अ4तर मK राहO $य4तर दशा का फल

उराखड मु त िवविवालय 194


योितषशा ी       MAJY-202
चा-डालेन िवरोधः 6याद् भयं तेmयो धन?ितः।
कZं जीवा4तरे !ेयं राहोः $य4तरे ध्ु * 
गfु के अ,तर मD राहO का 6य,तर हो तो चाडाल जाित से िवरोध, उनके Lारा ही भय,  1
क होता है।
श4य4तर मK श4यािद $य4तर का फल
देहपीडा कलेभtितभयम4सजलोकतः।
दुःख श4य4तरे नाना शनेः $य4तरे भवेत।् ।
श,य,तर मD शिन का ही 6य,तर हो तो शारीरक पीडा, /, अ,6यज (नीच) लोगD से भय एवं
िविभ,न कार के दःु ख होते हI।
श4य4तर मK बध ु $य4तर का फल
बुिfनाषः कलेभtितर4नपानािदहािनकृत।
धनहािनभयं श1ोः शनेः $य4तरे भवेत।् ।
श,य,तर मD बधु का 6य,तर हो तो बिु sनाश, /, , भोजनािद क7 िच,ता,  G 25+
िवपि य# से भय रहता है।
श4य4तर मK के तु $य4तर दशा का फल
ब4धः श1ोगृहे जातो वणहािनबहO?ध ु ा।
िचRे िच4ता भयं 1ासः के तोः $य4तरे भवेत।् ।
श,य,तर मD के तु क7 6य,तर दशा हो तो श ु के गृह मD ब,धन, Z-/ , अिधक धु ा, tदय मD
िच,ता, भय और ास होता है।
श4य4तर मK श7 ु $य4तर   +
िचि4ततं फिलतं व6तुक8याणं 6वजने सदा।
मनु<यकृिततो लाभः भृगोः $य4तरे ि;ज!।।
हे िLज! श,य,तर मD श` ु का 6य,तर हो तो अभी काय- मD सफलता, अपने जन# का कaयाण एवं
मानिवक काय- से लाभ होता है।
श4य4तर मK सूय $य4तर दशा  +
राजतेजोऽिधकाGरवं 6वगृहे जायते किलः।
वरािदjयािधपीडा च रवेः $य4तरे भवेत।् ।
श,य,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो राजा से अिधकार क7 ि, पर,तु अपने गृह मD कलह G

उराखड मु त िवविवालय 195


योितषशा ी       MAJY-202
वरािद रोग से पीडा होती है
श4य4तर मK च45 $य4तर का फल
6फतबिु fमहार[भो म4दतेजा बहOjययः।
बहOwीिभः समं भोगो िवधोः $य4तरे शनौ।।
श,य,तर मD च,_ का 6य,तर हो तो खर बिु s, बडे काय- का आर:भ, तेज मD म,दता, अिधक यय
और अिधक िwय# के साथ समागम होता है।
श4य4तर मK भौम $य4तर का फल
जोहािनः पु1घातो विuभीती Gरपोभयम।्
वातिपRकृता पीडा कुज$य4तरे भवेत।् ।
श,य,तर मD भौम का 6य,तर हो तो भाव मD ,यनू ता, पु को आघात, अिhन और श ु का भय,  >
तथा िप से पीडा होती /0*
श4य4तर मK राहO $य4तर का फल
धननाषो वwहािनभूिमनाषो भयं भवेत।्
िवदेशगमनं मृयुः राहोः $य4तरे भवेत।् ।
श,य,तर मD राहO का 6य,तर हो तो धन, वw तथा भिू म का नाश, भय देशा,तर मD pमण तथा मृ6यु
  / /0*
श4य4तर मK गु] $य4तर दशा का फल
गृहेषु 6वीकृतं िछ5ं vसमथV िनरी?णे।
अथ वा किलमु;ेगं गुरोः $य4तरे वदेत।् ।
शिन के अ,तर मD गfु का 6य,तर हो तो wी Lारा क7 गई अकम-यता को रोकने मD असमथ-ता तथा
कलह और उLेग होता है।
बुधा4तर मK बुधािद $य4तर का फल
बिु fिवFालाभो वा वwलाभो महसD ु *
बुध6या4तदषायां च बुध$य4तरे भवेत।् ।
बधु ा,तर मD बधु क7 6य,तर दशा हो तो बिु s, िवा और धन का लाभ, वw क7 ाि एवं परम सख

/ /0*
बुधा4तर मK के तु $य4तर का फल
किठना4न6य स[$ािaSदरे रोगस[भवः।

उराखड मु त िवविवालय 196


योितषशा ी       MAJY-202
कामलं र,िपRं च के तो $य4तरे भवेत।् ।
बधु ा,तर मD के तु का 6य,तर हो तो कुभोजन, उदर स:ब,धी रोग क7 स:भावना, ने -स:ब,धी यािध
एवं र] और िपिवकार होता है।
बुधा4तर मK शु7 $य4तर का फल
उRर6यां भवे8लाभो हािनः 6याRु चतु<पादात।्
B  ! !गोः $य4तरे भवेत।् ।
बधु ा,तर मD श` ु का 6य,तर हो तो उरिदशा से लाभ, पशओ ु ं से हािन एवं राजगृह मD अिधकार क7
ाि होती है।
बुधा4तर मK सूयािद $य4तर का फल
तेजोहािनभवे5ोग6तनपु ीडा यदा कदा।
जायते िचRवैक8यं रवेः $य4तरे बुधे।
बधु ा,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो भाव क7 हािन, रोग का आ`मण एव मानिक अशाि,त होती है।
बध ु ा4तर मK च45 $य4तर का फल
wीलाभ<चाथस[पिRः क4यालाभो महfनम।्
लभते सवतः सौयं िवधोः $य4तरे जनः।।
बधु ा,तर मD च,_ का 6य,तर हो तो wी, , स:पि का लाभ, क,या क7 ाि एवं सभी तरह से
P > / /0*
बुधा4तर मK भौम $य4तर का फल
धमधीधनस[$ािa<चौराH4यािद$पीडनम्।
र,वwं शwघातः भौम$य4तरे भवत।् ।
बधु ा,तर मD भौम का 6य,तर हो तो धम-, बिु s तथा धन क7 ाि, चोर अिhन Lारा पीडा, र]वw का
लाभ एवं शw से आघात का भय रहता है।
बध ु ा4तर मK राहO $य4तर का फल
कलहो जायते wीिभरक6माद् भयस[भवः।
राजशwकृता भीितः राहोः $य4तरे ि;जः।।
हे िLज! बधु ा,तर मD राहO का 6य,तर हो तो कलह और wी से अकारण भय तथा राजा और शw से
 / /0*
बुधा4तर मK गु] $य4तर का फल

उराखड मु त िवविवालय 197


योितषशा ी       MAJY-202
रायं राजािधकारो वा पूजा राजसमुqवा।
िवFाबुिfसमृिf<च गुरोः $य4तरे भवेत।् ।
बधु ा,तर मD गfु का 6य,तर हो तो रायलाभ,  .   D  . से स:मान एवं िवा, बिु s क7
समृिs होती है
बुधा4तर मK शिन $य4तर का फल
वातिपRमहापीडा देहघातसमुqवा।
धननाषमवा9नोित शनेः $य4तरे जनः।।
बधु ा,तर मD शिन का 6य,तर हो तो वायु तथा िप स:ब,धी रोग, शरीर मD आघात और धन का य
/ /0*
के व4तर मK के तु $य4तर का फल
आपसमुqवोऽक6माद् देषा4तरसमागमः।
के व4तरेऽथहािन<च के तो $य4तरे भवेत।् ।
के 6व,तर मD के तु का 6य,तर हो तो अक मात आपि, देशा,तर मD pमण और धननाश होता है।
के व4तर मK शु7 $य4तर का फल
[ले/छभीरथनाषो वा ने1रोगः िषरोjयथा।
हािनUतु<पदानां च भृगोः $य4तरे भवेत।् ।
के 6व,तर मD श` ु का 6य,तर हो तो यवन# से भय,  , ने रोग, िशर मD पीडा और चौपाय# क7
/  /  /0*
के व4तर मK सूय $य4तर का फल
िम1ैः सह िवरोध<च 6व8पमृयुः पराजयः।
मित‹ंषो िववाद<च रवेः $य4तरे भवेत।् ।
के 6व,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो अपने िम # के साथ िवरोध, अकाल मृ6य,ु 5 ., बिु spश

G  / /0*
के व4तर मK च45 $य4तर का फल
अ4ननाषो यषोहािनद\हपीडा मित‹मः।
आमवातािद वृिf<च िवधोः $य4तरे भवेत।् ।
के 6व,तर मD च,_ का 6य,तर हो तो अ,ननाश, क7ित- मD आघात, शारीरक पीडा, मितpम एवं आँव
तथा वायु स:ब,धी रोग क7 वृिs होती है।

उराखड मु त िवविवालय 198


योितषशा ी       MAJY-202
के व4तर मK भौम $य4तर का फल
शwघातेन पातेन पीिडतो विuपीडया।
$चाद् भीती Gरपोः शकं ा कुज$य4तरे भवेत।् ।
के 6व,तर मD भौम का 6य,तर हो तो शwघात, 5   , अिhन से भय एवं नीच जन# और
शओ ु ं से भय रहता है।
के व4तर मK राहO $य4तर का फल
कािमनीmयो भयं भूयाRथा वैGरसमुqवः।
?ु5ादिप भवेद् भीती राहोः $य4तरे भवेत।् ।
के 6व,तर मD राहO का 6य,तर हो तो wी और िवपि य# से भय एवं _ु जन# से भी भय का आभास
/ /0*
के व4तर मK गु] $य4तर का फल
धनहािनमहोपातो शwिम1िवनाषनम।्
सव1 लभते :लेषं गरु ोः $य4तरे भ * 
के 6व,तर मD गfु का 6य,तर हो तो धन एवं िम का िवनाश, शw से महा उ6पात, और सभी जगह#
से क होता है।

के व4तर मK शिन $य4तर का फल


गोमिह<यािदमरणं देहपीडा सुx;धः।
6व8पा8पलाभकरणं शनेः $य4तरे फलम्।।
के 6व,तर मD शिन का 6य,तर हो तो गौ-मिहWयािद पशु और िम # का मरण, शरीरक पीडा और
अ6य,त अaप लाभ होता है।
के व4तर मK बुध $य4तर का फल
बिु fनाशो महो;ेगो िवFाहािनमहाभयम।्
कायिसिfन जायेत !6य $य4तरे फलम।् ।
के 6व,तर मD बधु का 6य,तर हो तो बिु sनाश, उLेग, िवा क7 हािन भय और काय- िवफल होते हI।
श7 ु ा4तर मK श7 ु $य4तर का फल
ƒेता<च-वw-मु,ाFं िदjयwीसंगजं सुखम।्
लभते शु7ा4तरे $ाaे शु7$य4तरे जनः।।

उराखड मु त िवविवालय 199


योितषशा ी       MAJY-202
श` ु ा,तर C श` ु का 6य,तर हो तो सफे द वw, अž, मोती आिद र6न और स,ु दर wी से सगं म होता
/0*
श7 ु ा4तर मK सयू $य4तर का फल
वातवरः िषरः पीडा रा!ः पीडा Gरपोरिप।
जायते 6व8पलाभोऽिप रवेः $य4तरे फलम।् ।
श` ु ा,तर मD सयू - का 6य,तर हो तो वातवर, म तक मD पीडा, राजा और श ु से भी 5T D
यवसाय मD अaप लाभ होता है।
शु7ा4तर मK च45 $य4तर का फल
क4याज4म नृपा8लाभो वwाभरणसंयुतः।
रायािधकारस[$ािaः च45$य4तरे भवेत।् ।
श` ु ा,तर मD च,_ का 6य,तर हो तो क,या क7 ाि, राजा से वwा-16 O   ाि और
रायािधकार ा होता है।
श7 ु ा4तर मK भौम $य4तर का फल
र,िपRािदरोग<च कलह6ताडनं भवेत।्
महान् :लेषो भवेद1ा कुज$य4तरे ि;ज!।।
श` ु ा,तर मD भौम का 6य,तर हो तो र] और िप स:ब,धी रोग, कलह ताडन और महान क होता
/0*
शु7ा4तर मK राहO $य4तर का फल
:लहो जायते wीिभरक6माद् भयस[भवः।
राजतः श1तु ः परडा राहोः $य4तरे भवेत।् ।
श` ु ा,तर मD राहO का 6य,तर हो तो wी से कलह, अक मात् भय एवं राजा और श ु से पीडा होती
/0*
श7 ु ा4तर मK ग]ु $य4तर का फल
महद् 5jयं मह5ायं वwमु,ािदभूषणम।्
गजा<वािदपद$ािaः गुरोः $य4तरे भवेत।् ।
श` ु ा,तर मD गfु 6य,तर हो तो _य, राय, वw, C , 16 O, / D, अž,  / 1 
  / /0*
शु7ा4तर मK शिन $य4तर का +

उराखड मु त िवविवालय 200


योितषशा ी       MAJY-202
खरो<छागस[$ािaलVहमाषितलािदकम।्
लभते 6व8पपीडािद शनेः $य4तरे जनः।।
श` ु ा,तर मD शिन 6य,तर हो तो गदहा, उWœ, छाग क7 ाि, / , C 6,   1 +   G
>Z 5T  /  /0*
शु7ा4तर मK बुध $य4तर का फल
धन!ानमह8लाभो राजरायािधकाGरता।
िन?ेपाfनलाभोऽिप !6य $य4तरे भवेत।् ।
श`ु ा,तर मD बधु का 6य,तर हो तो धन, Zान, C/   , राजा से अिधकार क7 ाि और दसू रे के
िन ेप धन का लाभ होता है।
अपमृयुभयं !ेयं देषाˆेषा4तरागमः।
लाभोऽिप जायते मkये के तोः $य4तरे ि;जः!।।
श` ु ा,तर मD के तु का 6य,तर हो तो अपमृ6यु का भय एवं देश-िवदेश मD pमण होता है,  D /
3-3 C आिथ-क लाभ भी होता है।

5+ न
1. सयू - क7 ारि:भक अव था का दशा फल या /0*
. सख ु ाि ख. द:ु ख ाि . /  Q.  
2. षWठ भाव का सयू - का दशा फल या /0*
. धन ाि ख. धन हािन ग. ि थर लमी Q. + E
3. सयू - मD सयू - का 6य,तर चल रहा हो तो या  / *
.  - P.  /  . ु भय घ. उपय-ु त 
4. च,_ मD च,_ का 6य,त /   )
. भिू म ाि ख. धन क7 ाि ग. भिू म एवं धन क7 हािन घ. कोई
नह‚
5. भौम मD राहO का 6य,तर का या  /0*
. ब,ध P.  C ग. प6नी ाि घ. पु ाि
6. शिन मD राहO का 6य,तर का फल या /0*
. मृ6यु भय ख. पय-टन ग. लमी ाि घ. िववाह

उराखड मु त िवविवालय 201


योितषशा ी       MAJY-202
3.5  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /   +   +
`म मD अ,तद-शा के पचात् और सू म फल Zान के िलए ऋिषय# Lारा 6य,तद-शा फल का भी
िवचार िकया गया है। इससे फलादेश कथन मD और सू म ‹ि समािहत है। अत: इसका Zान यो 6
के अCयेताओ ं को अवय /   /*
यिप फिलत यो 6 + सम त .,थ# मD दशा िवचार िकया गया है। िक,तु सवा-िधक दशा साधन
अथवा उसके फिलत प का िवचार के ‹िकोण से ,वृह6पराशरहोराशा - नामक .,थ चिलत
है। इसके अितरत  5 , जातकपारजात, सवा-थ-िच,ताCO, Q.> , वृहजा ,
.   , योितष सव- व, योितष रह य आिद िविवध .,थ# मD फलादेश आिद कथन का
स:यकतया अCययन कर सकते हI। सयू - क7 अ,तरद-शा मD सूय- क7 ही 6य,तद-शा हो तो उस समय
जातक को लोग# से वाद- , / , wी को क एवं म तक मD पीडा होती है।  सयू -
वोjच मD, वगृह मD, के ,_, ि कोण, शभु .ह से यतु या ‹, शभु वग- मD ि थत लhनेश, भाhयेश, कम|श
से यतु और अ,य ा भी शभु थान मD बैठा हो तो पवू e] अशभु फल नह‚ देता। इसी कार 6ये
.ह# क7 6य,तद-शा का फल होता है।
3. 6 पा रभािषक शदावली
सवािधक # 3+ 2*
$य4तदशा # अ,तद-शा के मCय 6य,तद-शा होती है।
   # नाना कार के
स[य * ) अjछी / +
लHने ) लhन का वाC
  Xह ) 3> , श`
ु , पणू च- ,_, गfु
 Xह ) सयू ,- C, , राहO एवं के तु
ि1कोण ) J,K  *
के 45 6था ) 9,I,=,9;  *
3.7 बोध के उ र
1. P
2. P

उराखड मु त िवविवालय 202


योितषशा ी       MAJY-202
3. Q
4. 
5. 
6. 
3. 9 स#दभ$ %#थ सूची/ सहायक पाठ्यसाम%ी
1. सवा-थ-िच,ताCO - आचाय- वDकटेश
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. वृह6पराशरहोराशा ) आचाय- पराशर
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ िमQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
6.  5 ) आचाय- म, ेव
7. Q.>  )  /C/
3.10 िनब#धा,मक  न
1. सयू - मD सम त च,_ािद .ह# का 6य,त  P+*
2. च,_मा मD सभी .ह# का 6य,त   P+*
3. 6य,तद-शा से आप या C\ + /0*
4. राहO मD सम त .ह# 6य,तद-शा का मह6व 3  !+*
5. के तु का Lादश भाव# मD दशा फल िलिखये*

उराखड मु त िवविवालय 203


योितषशा ी       MAJY-202
 - 4 सू>मा#तद$ 0 
इकाई क संरचना

4.1  ता
4.2 उेय
4.3 सू मा,तद-शा फल परचय
4.4 सू मा,तद-शा   
4.4  
4.5 पारभािषक श&दा
4.6 बोध न# के उर
4.7 स,दभ- .,थ  
4.8 सहायक पाठ्यसाम.ी
4.9 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 204


योितषशा ी       MAJY-202
4.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के तृतीय खड क7 चौथी इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) सू मा,तद-शा   * !+ पवू - आपने िवश
ं ोरी, अWटोरी, 6य,तद-शाओ ं
   .   /0* 23 15 सू मा,तद-शा फल िवचार अCय + . /+ /0*
V +  + क7 सू मता मD सू मा,तद-शा का Zान ऋिषय# Lारा बतलाया गया है।
िजसे 6येक योितष के अCये V  .   /*
2 : 1! इस इकाई मD हम लोग ,सू मा,तद-शा फल िवचार- + 3 + मD हम यो 6
शा के माCयम से जानने का यास करते है।
4.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• सू मा,तद-शा दशा फल को परभािषत कर सकD गे।
• सू मा,तद-शा फल को समझा सकD गे।
• सू मा,तद-शा फल का िवचार कै से िकया जाता है। जान जायेग।D
• िविभ,न जातक .,थ# मD सू मा,तद-शा दशा के फल या है। उसका िवलेषण कर सकD गे।
4.3 स>ू मा#तद$शा दशाफल प रचय
सू म यथा नाम से ही पWट है िक जातक के उपर सू म कार क7 चलने वाली दशा।
सू मा,तद-शा मD जातक के उपर पड़ने वाले शभु ाशभु फल# का िववेचन िविवध जातक .,थ# +
1  5 / A  . / /0*
सव$थम सपपाश 5े<काण6थ सयू दशा फल कथन
धुजङम{यंशयुत6य भानोदशािवपाके िह भयं िवषा;ा।
नृपािHनपाितयमनेकदुःखं पाशािदभृयंशयुत6य चैवम।् ।
. .  क7 कुडली मD सयू - यिद सप- _ेWकाण मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को िवष से भय और राजा, अिhन और पितत होने से अनेक कार के दःु ख िमलते हI। इसी
तरह क7 फल पाश _ेWकाण थ सयू - क7 दशा मD भी ा होता है।
उ/चरािश-नीच नवांश6थ सूय दशाफल क)
6वो/च6थोऽिप िदनेशो नीचांशे चेकल1धनहािनः।
6वकुलजब4धुिवरोधः िप1ादीनां तथैव मुिनवा:यम।् ।
उराखड मु त िवविवालय 205
योितषशा ी       MAJY-202
िजस िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद उjचरािश मD होकर नीचनवांश तल ु ा रािश मD हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य को wी व धन क7 हािन होती है। अपने ही कुल के ब,धजु न# से िवरोध
 / /0* 5 , चाचा आिद से भी िवरोध के कारण उ6प,न होते हI। ऐसा मिु नय# का वचन है।
नीचरािश उ/चनवांश6थ सूय दशाफल कथन
उ/चांशकयुतो भानुनtच6थोऽिप महसुखम।्
करोित रायभारं च दशा4ते िवपदं कृशाम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद नीच रािश मD होकर उjचनवांश मेष रािश मD हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य को अ6यिधक सख ु क7 ाि होती है। राय का अिधकार भी ा होता
/0, लेिकन दशा के अ,त मD थोड़ी किठनाईय#    C  5U /0*
सू>म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
सयू के $य4तर मK सयू सgू म दशा फल
िनजभूिमपGरयागो $ाणनाषभयं भवेत।्
6थाननाषो महाहािनः िनजसूgमगते रवौ।।
सयू - के 6य,तर मD सयू - क7 सू म दशा हो तो अपनी भिू म का 6याग मृ6यु का भय, थाननाश और
सभी जगह# से हािन होती /0*
सूय के $य4तर मK च45मा क सूgम दशा फल
देव„ा णभि,<च िनयकमरत6तथा।
सु$ीितः सवैिम1ै<च रवेः सgू मगते िवधौ।।
सयू - के 6य,तर मD च,_मा सू म दशा हो तो देव-“ा”ण मD Qsा, अपने कम- मD सदैव त6पर और
िम # मD ेम रहता है।
सूय के $य4तर मK भौम क सूgम दशा फल
7ूरकमरिति6तHमष1ुिभः पGरपीडनम।्
र,ावािदरोगU रवेः सgू मगते कुजे।।
सयू - क7 6य,तद-शा मD भौम क7 सू म दशा मD रहने पर कुकम- मD वृित, िन‘O र, श ओ
ु ं से पीडा और
र]पात आिद रोग से जातक आ`ा,त रहता है।
सूय के $य4तर मK राहO क सूgम दशा फल
चौरािHनिवषभीित<च रणे भगं पराजयः।
दानधमािदहीन<च रवेः सूgमगते राहौ।।
उराखड मु त िवविवालय 206
योितषशा ी       MAJY-202
सयू - 6य,तर मD राहO क7 सू मदशा हो तो चोर, अिhन और िवष का भय, यs
ु मD पराजय एवं दान-
धमा-िद धािम-क कृ 6य मD अवरोध होता है।
सूय के $य4तर मK गु] क सूgम दशा फल
नृपसकारराजाहः सेवकै ः पGरपिू जतः।
राजच?ुगतः शा4तः सूयसूgमगते गुरौ।।
सयू - 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो राजा से आदर, राज सेवक# Lारा पिू जत एवं राजा 
कृ पापा होता है।
सूय के $य4तर मK शिन क सूgम दशा फल
चौयसाहसकमाथh देव„ा णपीडनम।्
6थान/युितं मनोदुःखं रवेः सूgमगते शनौ।।
सयू - 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो चोरी और साहिसक काय- से देवता और “ा”ण# को
5T , उनके Lारा थान6याग और मानिसक यथा होती है।

सयू के $य4तर मK बध
ु क सgू म दशा फल
िदjया[बरािदलिMध<च िदjयwीपGरभोिगता।
अिचि4तताथिसिf<च रवेः सूgमगते बुधे।।
सयू - 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो स,ु दर वwािद का लाभ, स,ु दर wी के साथ भोग- 
और अिचि,तत काय- क7 भी िसिs होती है।
सयू के $य4तर मK के तु क सgू म दशा फल
गु]ताथिवनाषU भृयदारभव6तथा।
:विचसेवकस[ब4धो रवेः सूgमगते kवजे।।
सयू - 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो सेवक और wी से गौ,      -
सेवक से ससु :ब,ध भी होता है।
सूय के $य4तर मK शु7 क सूgम दशा फल
पु1ािम1ाकल1ािदसौयस[प4न एव च।
नानािवधा च स[पRी रवेः सूgमगते भृगौ।।
सयू - 6य,तर मD श`
ु क7 सू म दशा हो तो पु , िम और कल ािद सख
ु एवं िविभ,न कार क7

उराखड मु त िवविवालय 207


योितषशा ी       MAJY-202
स:पि क7 ाि होती है।
वरािशथ च#2दशा फल कथन
6व?े1ग6यािप िनशाकर6य नृपाfन$ािaमुपैित सौयम।्
$च-डवेयागमनं िgतीशास4माननं wीसतु ब4धस ु ौयम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपनी वरािश कक- मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को राजक7य धन लाभ होता है। सुख ाि होती है। दु वेया के सगं भी होता है।
राजक7य स:मान क7 ाि होती है। मनWु य को wी पु , ब,धु आिद का सौSय भी ा होता है।
अिधश1रु ािश6थ च45दशा + )
िनशाकर6या9यितश1ुरािशं गत6य दाये कलहाथनाशम।्
कुवwतां कुिसतभोजनं च ?े1ाथदारामजतापमेित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपने अिधश ु .ह क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7
दशा के समय मनWु य को कलह मD उलझन पड़ता है। धन क7 हािन उठानी पड़ती है। मिलन वw
पहनना पड़ता है। अभोय भोजन करना पड़ता है। कृ िष, , wी, पु आिद प से स,ताप क7 ाि
/  /0*
श1ुरािश6थ च45दशा फल कथन
याना[बरालङकरणािदहािनं िवदेशयानं पGरचारकवम।्
देशा4तरे ग/छित ब4धुहीनो दुःखी पGरि:लयित श1ु
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद श ु .ह क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य को वाहन, वw, 16 O-अलङकरण आिद क7 हािन होती है। िवदेश या ा भी करने
पड़ते हI। दसू रे क7 सेवा करना पड़ता है। देशा,तर मD भी भटकना पड़ता है। ब,धु से हीन / /0*
f> P Gर लेश य] ु होना पड़ता है।
िम1 रािश6थ च45दशा फल कथन
िम1?ग6यािप िनशाकर6य पाके ऽथलाभं ि?ितपालमै1ीम।्
उFोगिसिfं जलव6तुलाभं िच1ा[बराभूषणवािHवलासम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपने िम .ह क7 रािश मD ि थ /, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य को धनलाभ होता है। शासको से िम ता होती है। यास या पfु षाथ- सफल होता है।
जल स:ब,धी व तओ ु ं का भी लाभ होता है। िच -िविच रङग के वw, 16 O    / /0*
हा य-   C. +  2  >  / /0*

उराखड मु त िवविवालय 208


योितषशा ी       MAJY-202
B 1 रािश6थ च45 दशा फल कथन
सुधाकर6या9यितिम1रािशं गत6य दाये वितसौयमेित।
िवFािवनोदािङकतराजपज ू ां ?े1ाथदारामजकामलाभम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD च,_ यिद अपने अिधिम क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7
दशा के समय मनWु य को बहOत अिधक सौSय क7 ाि होती है। िवा (Zान) ाि होती है, .+
राजा को भािवत कर स:मािनत भी होता है। कृ िष योhय भिू म का लाभ होता है। अथ-, wी, पु के
 D-साथ मनWु य क7 अिभलाषा पणू - होती है।
सू>म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
च45 $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
भूषणं भूिमलाभ<च स4मानं नृपपूजनम्।
तामस—वं ग]ु वं च िनज सgू मगते कुजे।।
च,_मा के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो आभषू ण और भिू म का लाभ, स:मान,  . +
5 . , तामस कृ ित और गौरव / /0*
च45 $य4तर मK भौम क सgू म दशा-+
दुःखं श1ुिवरोधU कुि?रोगः िपतुमृितः।
वातिपRािपRकफो5ेकः िवधोः सूgमगते कुजे।।
च,_ 6य,तर मD भौम क7 सू म दशा हो तो दःु ख, श ु से िवरोध, पेट स:ब,धी रोग, 5  CO
  , 5 और कफ स:ब,धी रोग होता है।
च45 $य4तर मK राहO क सgू म दशा-+
7ोधनं िम1ब4धुनां देषयागो धन?यः।
िवदेशाि4नगड$ािaिवधोः सgू sगतेऽ9यगौ।।
च,_ 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो िम तथा ब,धुओ ं का `ोध, देश6याग, - य और
िवदेश मD ब,धन होता है।
च45 $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+
छ1चामरसंयु,ं वैभवं पु1स[पदः।
सव1सुखमा9नोित िवधोः सgू मगते गुरौ।।

उराखड मु त िवविवालय 209


योितषशा ी       MAJY-202
च,_ 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो राजिचŒ (छ ा$चामर) से यतु ऐžय- एवं पु lपी स:पि
क7 ाि तथा सव- सख ु होता है।
च45 $य4तर मK शिन क सूgम दशा-+
राजोप5वभीितः 6या;यवहारे धन?यः।
चौरवं िव$भीित<च िवधोः सूgमगते शनौ।।
च,_ 6य,तर मD शिन क7 सू मदशा हो तो राजा का कोप और भय, अपने ही यवहार से धन य
एवं चोर और “ा”ण# का भय रहता है।
च45 $य4तर मK बुध क सूgम दशा-+
राजमानं व6तुलाभो िवदेषा;हनािदकम।्
पु1पौ1समृिf<च िवधोः सgू मगते बुधे।।
च,_ 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो राजा से स:मान, व तओ
ु ं से लाभ, देशा,त +  /
 , एवं पु -पौ ािद स,तान क7 वृिs होती है।
च45 $य4तर मK के तु क सूgम दशा-+
आमनो वृिR हननं स6यृंगवृषािदिभः।
अिHनसूयािदभीितः 6याि;धो सूgमगते kवजे।।
च,_ 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो स य (अ,न) औषिध पशु आिद के Lारा अपनी वृि का
हनन एवं अिhन और सयू - िकरण से भय रहता है।
च45 $य4तर मK शु7 क सूgम दशा-+
िववाहो भूिमलाभ<च वwाभरणवैभवम।्
रायलाभU कितU िवधोः सूgमगते रवौ।।
च,_ 6य,तर मD श` ु क7 सू म दशा हो तो  /,  C  , वw, 1O  0, राय और
    / /0*
च45 $य4तर मK सूय क सूgम दशा-+
:लेशात :लेषः कायनाशः पशुधा4यधन?यः।
गा1वैष[यभिू म<च िवधो सgू मगते रवौ।।
च,_ के 6य,तर मD सयू - क7 सू म दशा हो तो भयक
ं र क, काय-नाश, 5 -> -धा,य का य, 
मD िवषमता होती है।

उराखड मु त िवविवालय 210


योितषशा ी       MAJY-202
61 * 0 -
नीच रािश6थ भौम दशा फल कथन
नीचि6थत6यािप धरासुत6य दाये कुवृ—या 6वजनािदर?ा।
 / / / 6वब4धनु ाशं नृपविxचौरैः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद अपनी नीच कक- रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य कुवृि अथा-त् अशोभनीय काय- यवसाय से वजन#-कुटुि:बय# क7 र ा करता है।
अभोय भोजन उसे ा होता है। गाय, / D, घोड़# क7 हािन भी हो जाती है। उसके ब,धओ ु ं क7
/   /  /0* , ......... G  . + /  ]W  5U  /0*
मूलि1कोण6थ भौमदशां फल कथन
मूलि1कोणि6थतभौमदाये िमZा4नपाना[बरभूषणािaम।्
परु ाणधमवणं मनो!ं ‹ा1ािदसौयं कृिषलाभमेित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद मल ू ि कोण रािश मेष मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य मधनु अ,न-पान के साथ वw, आभषू ण आिद ा करता है। उसे परु ाण आिद शाw#
से धम- कथा Qवण करने का अवसर ा होता है। वह िवचारशील होता है। pाता, ब,ध,ु िम आिद
का सौSय पणू - होता है। कृ िष काय- से भी उसे लाभ C +  2  >  / /0*
6वरािश6थ भौम दशा फल कथन
6व?े1ग6यािप धरासुत6य दशािवपाके लभतेऽथभूिमम।्
6थानािधपयं सुखवाहनं च नाम;यं ‹ातृसुखं सुखािaम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद वरािश मेष या वृिxक मD ि थत हो तो उसक7 दशा
के समय मनWु य भिू म और धन लाभ के अवसर ा करता है। थान िवशेष का अिधकारी भी वह
होता है। आरामदेह वाहन का सख ु ा होता है। उसका दो नाम होता है। pातृसुख के साथ अ,य
अनेक कार के सख ु क7 ाि भी होती है।
अिधश1ु रािश6थ भौम दशा फल कथन
घरासतु 6या9यितश1रु ािशं मत6य दाये कलहािददुःखम।्
रेशकोपं 6वजनैिवरोधं भू[वथदारामजिम1रोगम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद अिधश ु .ह क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य कलह से दःु खी रहता है। राजा के कोप का भाजन होता है। वजन# से िवरोध होता
/0*  C, , wी, पु , िम आिद से स:बि,धत सम यायD क व लेश देने वाले होते है।

उराखड मु त िवविवालय 211


योितषशा ी       MAJY-202
श1ु रािश6थ भौम दशा फल कथन
भून4दन6याि$रािशग6य दशािवपाके समरे च पीडाम।्
शोकािHनभूपालिवषैः $मादं पीडाितकृžािदगदु ाि?रोगम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद श ु रािश मD ि थत हो,  उसक7 दशा मD मनWु य को
यsु से पीड़ा क7 ाि होती है। शोक, अिhन,  . , 6 1 +  O  5U /  /0*
अितकृ j¢ािद गदु ारोग और ने रोग भी होते हI।
िम1 रािश6थ भौमदशाफल कथन
िम1?ज6यािप कुज6य दाये िम1वमायाित सपनसङै घः।
चौरािHनमा4Fाि?िवपादभूिमं कृषेिवनाशं किलकोदुःखम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद अपने िम .ह क7 रािश मD हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य श ओ ु ं से िम ता भी करने का य6न करता है। चोर, अिhन आिद से भय उ6प,न होता
है। म,द ‹ि दोष के साथ पैर# मD िववाई फटने से परे शानी होती है। भिू म और कृ िष क7 हािन भी
स:भव होता है। झगड़ा-U ", `ोध आिद +  f> P \+ 5U /0*
अिधिम1रािश6थ भौम दशा फल कथन
कुज6य दाये वितिम1रािशगत6य भूपालकृताथभूिमम।्
वwािदय!ािदिववाहदी?ामुपैितर देशा4तरलMधभाHयम।् 
िजस िकसी क7 कुडली मD मंगल यिद अिधिम .ह क7 रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनु य राजक7य धन और भिू म क7 ाि करता है। वw आिद भी उसे िमलता है। यZ आिद
अन‘ु ान काय- भी स:प,न कराता है। िववाह होता है। दी ा लेता है तथा उसक7 भाhयोदय देशा,तर मD
/ /0*
समरािश6थ भौमदशाफल कथन
धरासुत6यािप सम?ग6य गहृ ोपकाय वधन$माणात।्
wीप1ु भृयामसहोदराणां श1ु वमा9नोित नपृ ािHनपीडाम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद समरािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य िनध-नता के कारण गृह थी के छोटे-छोटे जlरत# क7 पिू त- मD 5U /  /0*
शभ ु Xह से YZ भौम दशा फल कथन
शुभेि?तधरासूनोदाये भू[यथनाशनम।्
ति6मन् गोचरसंयु,े वय4तं शोभनं भवेत।् ।

उराखड मु त िवविवालय 212


योितषशा ी       MAJY-202
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद शभु .ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के C
मनWु य के भिू म और धन का हरण होता है। अपनी दशा के समय मD मगं ल यिद गोचर से भी उस रािश
मD आ जाय, तो मनWु य को अ6य,त शभु फल ा होता है।
अशुभXह से YZ भौमदशा फल कथन
आर6य पापXहवीि?त6य $ाaौ दशायां बहOदुःखकZे।
जनः पGरय,कल1िम1ो देशा4तर6थः ि?ितपालकोपात।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद अशभु (पाप) .ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य बहOत अिधक दःु ख और क सहन करने का बाCय होता है। राजा के कोप से बचने
के िलए wी, पु आिद परजन को छोड़कर वह देशा,तर मD रहता है*
के 45भाव6थ भौमदशा फल कथन
के 45गतभौमदाये चोरिवषाmयामुपैित दुःखािन।
   िवरोधं लभते देशा4तरं याित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD मगं ल यिद के ,_भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य चोर, 6 1 +  + f> P / /0* /-\U 2D  +  O ह देशा,तर
मD चला जाता है।
सू>म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
भौम क दशा मK भौम के अ4तर मK भौम $य4तर मK भौम क सूgम दशा-+
भूिमहािनमनःखेटो vप6मारी च ब4धयु ुक्।
पुर?ोभमन6तापो िनजसूgमगते कुचे।।
Fम के 6य,तर मD भौम क7 सूम दशा हो तो भिू म क7 हािन, मन मD खेद, CN , ब,धन, नगर मD
ोभ और मानिसक ताप होता है।
भौम $य4तर मK राहO क सूgम दशा-+
अंगदोषो जनाद् भीितः $मदावंषनाशनम।्
विuसपभयं घोरं भौमे सूgमगतेऽ9यहौ।।
भौम के 6य,तर मD राहO क7 सूम दशा हो तो देह मD दोष, लोग# से भय, wी-स,तान का नाश एवं
अिhन, सप- का भयंकर भय होता है।
भौम $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+

उराखड मु त िवविवालय 213


योितषशा ी       MAJY-202
 /-रित<चा1 म41ाmयुथानतपरः।
लोके पूजा $मोद<च भौमे सूgमगते गुरौ।।
भौम 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो देव पजू ा मD ेम, म, िसिs, लोक मD स:मान और आन,द
/ /0*
भौम $य4तर मK शिन क सgू म दशा-+
ब4धना4मु/यते बfो धनधा4यपGर/छदः।
भृयाथबहOलः ीमान् भौमे सूgमगते शनौ।।
भौम के 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो ब,धन से मिु ], -धा,यािद का लाभ तथा सेवक
और धन क7 ाि होती है।
भौम $य4तर मK बुध क सूgम दशा-+
वाहनं छ1संयु,ं रायभोगपरं सुखम।्
कास<वासािदका पीडा भौमे सgू मगते बध ु े।।
भौम के 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा /   /, छ तथा चामर आिद रायभोhय व तओ ु ं से
> , पर,तु शरीर मD कास और žासस:बि,ध रोग से पीडा होती है।
P
भौम $य4तर मK के तु क सgू म दशा-+
पर$ेGरतबुिf<च सव1ाऽिप च गिहता।
अषुिचः सवकालेषु भौमे सgू मगते kवजे।
भौम के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो दसू रे के कथन पर िवžास कर जातक िनि,दत काय-
करता है एवं सदैव अपिव रहता है।
भौम $य4तर मK शु7 क सgू म दशा-+
इZwी--स[पिRGरZ भोजनसXं हः।
इZाथ6यािप लाभ<च भौमे सूgमगते भृगौ।।
भौम के 6य,तर मD श`
ु क7 सू म दशा हो तो इिjछत wी के साथ स:पक- , धन तथा अभी भोजन
का स.ं ह और अभी व तओु ं का लाभ होता है।
भौम $य4तर मK सयू क सgू म दशा-+
राज;ेषो ि;जात् :लेश: कायािभ$ायवंचकः।
लोके ऽिप िन4Fतामेित भौमे सूgमगते  

उराखड मु त िवविवालय 214


योितषशा ी       MAJY-202
FC + 6य,तर मD सयू - क7 सू म दशा हो तो राजा का कोप, िव# से क, कायK मD असफलता
और लोक मD िन,दा होती है।
भौम $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
शf ु वं धनस[$ािaद\व„ा णवसलः।
jयािधना पGरभूयेत् भौमे सूgमगते  
भौम के 6य,तर मD च,_ क7 सू म दशा हो तो शs
ु ता, धन ाि, + -“ा”ण मD िन‘ा, पर,तु शरीर मD
   3 / /0*
राहC दशाकािलक सामा#य फल कथन
राहोदशायां स[$ाaौ नृपचौरािHनपीडनम्।
  4Dित वनवासाfयं धु * 
िजस िकसी क7 कुडली मD यिद राहO क7 दशा हो, तो उस समय मनWु य राजा, अिhन, 
आिद के कारण पीड़ा ा करता है। िवदेश या ा होती है। दःु ख से दयनीय अव था को पाता है।
वनवास या िनवा-िसत होने का भय भी िनxय ही उसे होता है।
लHनभाव6थ राहO दशा फल कथन
लHनगतराहOदाये बुिfिवहीनं िवषािHनशwाFैः।
ब4धुिवनाशं लभते दुःखाित च पराजयं समरे।।
िजस िकसी क7 कुडली मD राहO यिद लhनभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
बिु sहीनता का िशकार होता है। िवष, अिhन, शw आिद से उसे भय रहता है। ब,धओु ं क7 हा / 
है। दःु ख से वह आ- होता है। यs
ु मD परािजत होता है।।
सू>म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
राहO क दशा मK राहO के अ4तर मK राहO $य4तर मK राहO क सूgम दशा-+
लोकोप5वबुिf<च 6वकाय\ मित‹मः।
शू4यता िचRदोषः 6यात् 6वीये सूgमगतेऽ9यगौ।।
राहO के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो लोक मD उप_व करने मD उत, अपने काय- मD
मितिवpम, श,ू यता और िच दिू षत होता है।
राहO $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+
दीघरोगी दGर5्र<च सव\षां ि$यदशनः।

उराखड मु त िवविवालय 215


योितषशा ी       MAJY-202
दानधमरतः श6तो राहोः सूgमगते गुरौ।।
राहO के 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो दीघ- रोग,   , पर,तु लोक मD सबका िय एवं दान
धमा-िद धािम-क कृ 6य# मD उसक7 अिभfिच रहती है।
राहO $य4तर मK शिन क सgू म दशा-+
कुमागात कुिसतोऽथU दुZU परसेवकः।
अससंगमितमूढो राहोः सूgमगते शनौ।।
राहO के 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो कुमाग- से धन सं.ह, दु वभाव, दरू के काय- मD रत
एवं धतू K क7 संगित रहती है।
राहO $य4तर मK बध ु क सgू म दशा-+
wीस[भोगमितवाHमी लोकस[भावनावृतः।
अ4नू/छं6तनुHलािन राहोः सूgमगते बुधे।।
राहO 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो wी भोग क7 इjछा मD वृिs,   , -यवहार का
Zाता एवं अ,न क7 इjछा से hलािन होती है।
राहO $य4तर मK के तु क सूgम -+
माधुयh मानहािन<च ब4धनं चा$माकरम।्
पा]<यं जीवहािनU राहोः सgू मगते kवजे।।
राहO के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो मधरु ता, C / , ब,धन, W , G  D
./  /  /0*

राहO $य4तर मK शु7 क सूgम दषा-+


ब4धना4मु/यते बfः 6थानमानाथसंचयः।
कारणाद् 5jयलाभ<च राहोः सgू मगते भृगौ।।
राहO के 6य,तर मD श`
ु क7 सू म दशा हो तो कारागार से मिु ], थान-C -अथ- का स.ं हः और
िविभ,न कारण# से _य का लाभ होता है।
राहO $य4तर मK सूय क सूgम द-+
jय,ाशV गु8मरोग<च 7ोधहािन6तथैव च।
वहनािद सुखं सवh राहोः सूgमगते रवौ।।

उराखड मु त िवविवालय 216


योितषशा ी       MAJY-202
QाहO के 6य,तर मD रिव क7 सू म दशा हो तो देशा,तर मD िनवास, गaु मरोग, `ोध का नाश एवं
 /   P > / /0*
राहO $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
मिणरनधनावािaिवFोपानशीलवान।
देवाचनपरो भ:याः राहोः सूgमगते िवधौ।।
राहO के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो मिण, र6न आिद धन क7 ाि, िवा क7 उपासना
मD त6पर, एवं देवपजू ा मD Qsावान होता है।
राहO $य4तर मK मंगल क सूgम दशा-+
िनिजतो जनिव5ावो जने 7ोधच ब4धनम्।
चौयषीलरितिनयं राहो सgू मगते कुजे।।
राहO के 6य,तर मD मगं ल क7 सू म दशा हो तो परािजत होकर पलायन, `ोध, ब,धन और चोरी के
काय- मD वृित होती है।
के #2भावथ गBु दशा फल कथन
शभ ु ेि?त6यािप गुरोदशायां देशा4तरे िवRमुपैित भूपात।्
देवाचनं भूसुरतपणं च तीथािभषेकं गु]पूयतां च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद शभु .ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य अ,य देश मD राजा से धन ा करता है। देवताओ ं का पजू न भी करता है। “ाहमण भोजन भी
करवाता है। तीथK मD पिव जल नान भी करता है तथा गfु का पजू न भी करता है।
के 45गतजीवदाये रायं भूदारराजस4मानम।्
िविवधसुखान4दकरं बहOजनर?ां $धानतां याित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD गfु यिद के ,_भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
को राय िमलता है। भिू म, wी के साथ राजा से स:मान भी ा होता है। अनेक तरह से सख ु का
आन,द लेता है। उसके Lारा अनेक लोग# क7 र ा भी स:भव होता है। जनसमहू # का नेता व धान
/ /0*
सू>म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
गु] क दशा मK गु] के अ4तर मK गु] $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+
  धनािध:यमिHनहो1ं िशवाचनम।्

उराखड मु त िवविवालय 217


योितषशा ी       MAJY-202
वाहनं छ1संयु,ं 6वीये सूgमगते गुरौ।।
गfु के 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो शोक क7 िनवृित, धनािधय, 2िhनहो ,  5. ,
छ ािद सिहत वाहन का लाभ होता है।
ग]ु $य4तर मK शिन क सgू म दशा-+
Lतभंगो मन6तापो िवदेशे   *
िवरोधो ब4धुवगrU गुरोः सूgमगते शनौ।।
गfु के ग6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो वीकृ त vत भगं , मानिक स,ताप,  + C,
धननाश और ब,धु बा,धव# से िवरोध होता है।
ग]ु $य4तर मK बध
ु क सgू म दशा-+
िवFाबुिfिवविृ fU स-स[मानं धनागमः।
गृहे सविवधं सौयं गुरोः सgू मगते बुधे।।
गfु के 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो िव-बिु s क7 वृिs, क मD स:मान,  C  Q
मD हर कार के सख
ु उपल&ध होते हI।
गु] $य4तर मK के तु क सूgम दशा-+
!ानं िवभवपाि-डये शाwोता िशवाचनम।्
अिHनहो1ं गुरोभि,गरोःु सूgमगते kवजे।।
गfु के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो Zानी, ऐžय- स:प,न, पािड6यपणू ,- शाwQोता,
 5. , अिhनहो ी और गfु मD भि] रखने वाला होता है।
ग]ु $य4तर मK श7
ु क सgू म दशा-+
रोगा4मुि,ः सुखं भोगो धनधा4यसमागमः।
पु1दारािदसौयं च गुरोः सgू मगते भृगौ।।
गfु के 6य,तर मD श` ु क7 सू म दशा हो तो रोग से छुटकारा, P
> , -धा,य का समागम और
wी-पु ािद को सखु होता है।
गु] $य4तर मK सूय क सूgम दशा-+
वातिपR$कोपU Ÿे <मा5ेक6तु दा]णः।
रसjयािधकृतं शूलं गुरोः सूgमगते रवौ।।
गfु के 6य,तर मD सयू - क7 सू म दशा हो तो वात-िप का कोप एवं कफ और रस-  +  

उराखड मु त िवविवालय 218


योितषशा ी       MAJY-202
 / /0*
गु] $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
छ1चामरसयं ु,ं वैभवं प1ु स[पदः।
ने1ाकुि?गता पीडा गुरोः सgू मगते िवधौ।।
गfु के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो छ , चामरय]
ु ऐžय-, पु ो6पि एवं ने ा तथा कुि
मD पीडा होती है।
गु] $य4तर मK भौम क सूgम दशा-+
wीजना/च िवषोपिRब4धनं च ]जोभयम।्
देषा4तरगमो ‹ि4तगरोःु सूgमगते कुजे।।
गfु के 6य,तर मD भौम क7 सूम दशा हो तो wी Lारा िवष का योग, ब,धन, , दशा,तर मD
pमण और बिु s pम हो जाता है।
ग]ु $य4तर मK राहO क सgू म दशा-+
jयािधिभः पGरभूितः 6या/चौरैरपxतं धनम।्
सपवृि<चकभीित<च गुरोः सgू मगतेऽ9यगौ।।
गfु के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो रोगो6पित,  +   25/O, एवं सप-, िबjछु
आिद ज,तओ ु ं से भय होता है।
 * 0 -
मूलि1कोणिनलय6य शनेदशायां देशा4तरािदवनवासमुपैित काले।
नाम;यं यिद सभानगरािधपयं िव;ेषणं सुतकल1धनािदिभवा।।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद अपनी मल ू ि कोण रािश मD ि थत हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य समय पर देश-देशा,तर आिद क7 या ा भी करता है, वन मD वास भी करता है।
उपािध नाम के साथ वह दो नाम ा करता है। सभा मD सभापित6व और नगरािधपित6व का लाभ
भी पाता है। पु , पि6न, धन आिद से िवLेष उ6प,न हो जाता है अथा-त् वतं जीवन को मह¡व देता
/0*
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद िकसी पाप.ह से य] ु हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य समय पर गोपनीय lप से पाप कम- करता है। िवशेष lप से िकसी नीचकम- करने वाली wी का
गमन भी करता है। चोर आिद नीच कम- करने वाल# से िवशेष lप मD कलह या िववाद करता /0* /

उराखड मु त िवविवालय 219


योितषशा ी       MAJY-202
पि6न रिहत होता है।
शुभXह यु, शिन दशा फल कथन
शभ ु ाि4वत6यािप शनेदशायां िवशेषतो !ानमुपैित काले।
परोपकारं नृपलMधभाHयं कृ<णािन धा4या4ययशU लाभम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद िकसी शभु .ह से य] ु हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य समयानसु ार िवशेष lप से Zान ा करने मD सफल होता है। परोपकार करने क7 उसक7 वृि
होती है। राजा से भाhयोपलि&ध होती है। काले वण- के अ,न और लोहा जैसी धातओ ु ं और यश का
  / /0*
पापXहYZ शिन दशा फल कथन
पापेि?त6यािप शनेदशायां भृयाथदारामजसोदराणाम।्
नाशं समायाित परापवादं कुभोजनं कुिसतगंधमा8यम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद िकसी पाप.ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य सेवक, , पि6न, पु , pाता आिद से स:बि,ध /  /  /0*  + ग# Lारा
िमUया-अपवाद या कलंक ा होता है। दिू षत भोजन और 6याय सगु ि,ध_य-पWु पमाला आिद क7
ाि होती है।
शुभXह YZ शिन दशा फल कथन
शुभेि?त6यािप शनेदशायां wीपु1भृयाथमुपैित काले।
पUादुपैय1 महवकZं गोभूिमवािणयकृषेिवनाशम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद िकसी शभु .ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के
समय मनWु य समय पर wी, पु , +, धन आिद मD अिभवृिs ा करता है। अपना मह¡व दिश-त
करने पर क भी पाता है। ]+ , N 6,  C Gर यापार क7 हािन होती है।
के 45भाव6थ शिन दशा फल कथन
के 45ाि4वतशनेदाये कलहायासपीडनम।्
पु1िम1ाथदारािदब4धूनां मरणं धु * 
िजस िकसी क7 कुडली मD शिन यिद के ,_भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य कलह, Qम आिद से पीड़ा अनुभव करता है। पु , िम , धन आिद क7 हािन भी उसे सहन
करना पड़ता है। pाता क7 मृ6यु भी अवय होती है।
स>ू म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )

उराखड मु त िवविवालय 220


योितषशा ी       MAJY-202
शिन क7 दशा मD शिन के अ,तर मD शिन 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा- 
 महाjयािधः वातपीडाकुल?यः।
िभ4नाहारी महादुःखी िनजसgू मगते शनौ।।
शिन के 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो धनहािन, महायािध,  + 5T , > , 5ND
. G f> P / /0*
शिन $य4तर मK बुध क सूgम दशा-+
वािणयवृRेलाभU िवFािवभ  
wीलाभ<च मही$ािaः शनेः सgू मगते बध ु े।।
शिन के 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो यापार से लाभ, िवा और ऐžय- क7 ाि एवं wी
D  C    / /0*
शिन $य4तर मK के तु क सgू म दशा-+
चौरोप5वकु€ािदविृ R?य-िवग[ु फनम।्
सवाhगपीडनं jयािधः शनेः सूgमगते kवजे।।
शिन के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो चोर# का उप_व, कु‘ािद रोग का, . 
 , ग:ु फन और सम त अगं # मD पीडा होती है।
शिन $य4तर मK शु7 क सूgम दशा-+
ऐƒयमायुधाmयासः पु1लाभोऽिभषेचनम।्
आरोHयं धनकामौ च शनेः सूgमगते भृगौ।।
शिन के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो ऐžय- का लाभ, शाwा‰यास, पु ो6पि, 26+,
आरोhय एवं धन और मनोकामना क7 िसिs होती है।
शिन $य4तर मK सूय क सूgम दशा-+
/तेजोऽिधकारवं 6वगहृ े जायते किलः।
िकंिचपीडा 6वदेहोथा शनेः सूgमगते रवौ।।
शिन के 6य,तर मD सयू - क7 सूम दशा हो तो राजा से वैरभाव, अपने घर मD झगडा और अपने शरीर
मD कु¦ पीडा होती है।
शिन $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
6फतबुिfमहार[भो म4दतेजा बहOjययः।

उराखड मु त िवविवालय 221


योितषशा ी       MAJY-202
wीपु1ै<च समं सौयं शने सgू मगते िवधौ।।
शिन के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो बिु s मD अिधक िनम-लता, बडे काय- का ार:भ,
छिव मे ,यनू ता, अिधक खच- एवं wी-पfु ष से सख
ु होता है।
शिन $य4तर मK मंगल क सूgम दशा-+
तेजोहािनमहा;ेगो विuमा4Fं ‹मः किलः।
वातिपRकृता पीडा शनेः सgू मगते कुजे।।
शिन के 6य,तर मD मगं ल क7 सू म दशा हो तो काि,त क7 हािन, उLेग, अिhन-म,दता, pम, /
G  -िप ज,य रोग# से पीडा होती है।
शिन $य4तर मK राहO क सूgम दशा-+
िपतृमातृिवनाषU मनोदुःखं ग]ु -jययम।्
सव1 िवफलवं च शनेः सूgमगते गुरौ।।
शिन के 6य,तर मD राहO क7 सूम दशा हो तो िपतृ-C > , C  f> P, 2-यय एवं
सभी जगह# से िवफलता क7 ाि होती है।
शिन $य4तर मK ग]ु क सgू म दशा-+
स4मु5ाभोगस4मानं धनधा4यिववधनम।्
छ1चामरस[$ािaः शनेः सूgमगते गुरौ।।
शिन के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो स,ु दर म_ु ा का भोग, स:मान, धन धा,य# क7 वृिs एवं
छ -चामरािद राजिचŒ क7 ाि हो  /0*
मूलि1कोणाि4वतसौ[यदाये रायं महसौयकरं च कितम।्
िवFािवलासं िनगमाितशीलं पुराणधमवणािदपूतः।।
के #2भावगत बध
ु दशा फल कथन
के 45ोपग6य िह दशा शिशन4दन6य भूपालिम1धनधा4यकल1पु1ान।्
य!ािदकमनपृ मानयशः $लिMधं मृ;4नपानशयना[बरभूषणािन।।
िजस िकसी क7 कुडली मD बुध यिद के ,_ भाव मD हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य क7
राजा से िम ता होती है। धन, अ,न, wी, पु आिद क7 ाि होती है। यZ-अन‘ु ान आिद कम- का
स:पादन होता है। राजक7य स:मान ा होता है। मल
ु ायम अ,न-पेय व त,ु श या- , वw-
16 O 1  P > > / /0*

उराखड मु त िवविवालय 222


योितषशा ी       MAJY-202
सू>म * 0 - (वृह,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
बध
ु $य4तर मK बध
ु क सgू म दशा-+
सौभाHयं राजस[मानं धनधा4यािद स[पदः।
सव\षां ि$यदषt च िनजसूgमगते बुधे।।
बधु के 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो सौभाhय, राजा से स:मान, धन धा,य स:पि का लाभ
और सबसे ीित होती है।
बुध $य4तर मK के तु क सूgम दशा-+
बालXहोऽिHनभी6तामः wीगदोqवदोषभाक्।
कुमागt कुिसताशी च बौधे सूgमगते kवजे।।
बधु के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो बाल.ह का दोष, अिhनभय, स,ताप, wी का रोग,
कुमाग- मD वेश और कुभोजन ा होता है।
बुध $य4तर मK शु7 क सूgम दशा-+
वाहनं धनस[पितजलजा4नाथस[भवः।
शभु क7ित-मह- ाभोगो बौधे सू मगते भृगौ।।
3> + 6य,तर मD श`
ु क7 सूम दशा हो तो वाहन, , स:पित, जल से उ6प,न अ,न और धन क7
ाि, स,ु दर यश और महाभोग क7 ाि होती है।
बुध $य4तर मK सूय क सूgम दशा-+
ताडनं नृपवैष[यं बुिf6खलनरोगभाक्।
हािनजनापवादं च बौधे सgू मगते रवौ
बधु के 6य,तर मD सयू - क7 सू म दशा हो तो ताडन,  . + 6C , चच ं ल बिु s, ,  / 
और लोक मD अपसश होता है।
बुध $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
सुभगः ि6थरबुिfU राजस[मानस[पदः।
सxु दां ग]ु सच
ं ारो बौधे सgू मगते िवधौ।।
3> के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो सौभाhय, ि थरबिु s, राजस:मान, स:पित, िम तथा
गfु जन# से समागम होता है।
बुध $य4तर मK मंगल क सूgम दशा-+

उराखड मु त िवविवालय 223


योितषशा ी       MAJY-202
अिHनदाहो िवषोपिRजडवं च दGर5ता।
िव‹म<च महा;ेगो बौधे सूgमगते कुजे।।
3> के 6य,तर मD मगं ल क7 सूम दशा हो तो अिhन से दाह और िवषभय, मख ू त- ा, दर_ता, मितpम
एवं उLेग होता है।
बुध $य4तर मK राहO क सूgम दशा-+
अिHनसपनृपाद् भितः कृ/žादGरपराभवः।
भूतावे‹माद् ‹ाि4तबnधे सgू मगतेऽ9यहौ।।
बधु के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो अिhन, सप- और राजा से भय, अिधक परQम से श ु
परािजत एवं भतू # से उप_व Lारा मितpर् म होता है।
बुध $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+
गृहोपकरणं भjयं दानं भोगािदवैभवम।्
राज$सादस[पिRबnधे सgू मगते गरु ौ
बधु के 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो स,ु दर गहु का िनमा-ण, दान मD त6परता, -ऐžय- क7
वृिs एवं राजदरबार से धनलाभ होता है।
बुध $य4तर मK शिन क सूgम दशा-+
वािणयवृिRलाभ<च िवFािवभवमेव च।
wीलाभ<च महाjयािaबVधे सूgमगते शनौ।।
बधु के 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो यापार से लाभ, िवा, ऐžय- क7 वृिs, wीलाभ और
यापकता होती है।
षHभावथ के तु दशा फल कथन
के तो6वGरगत6यािप दशाकाले महfयम।्
चौरािHनिवषभीितU दशािaं समुपैित च।।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद ष‘ भाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
C/      / /0* , 2िhन िवष आिद से भय ा होता है। वह दयनीय दशा
(2व था) को ा होता है।
सaमभाव6थ के तु दशा फल कथन
कल1रािशसंयु,के तोदाये महfयम।्

उराखड मु त िवविवालय 224


योितषशा ी       MAJY-202
दारपु1ाथनाशं च मू1कृ/छंª मनो]जम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद समभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
को बहOत अिधक भय क7 ाि होती है। wी, पु , धन आिद क7 भारी हािन भी होती है। मू रोग से
क होता है। मनोरोग भी उसे झेलने को बाCय होता है*
अZमभाव6थ के तु दशा फल कथन
के तोरZमयु,6य दशाकाले महfयम।्
िपतृमृयुƒासकासXह-यािद?याि4वतः।।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद अमभाव मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को अ6यिधक फल ा होता है। माता-िपता क7 मृ6यु भी होती है। žास स:ब,धी रोग,  
 P A, सं.हणी रोग आिद के साथ य रोग से भी वह यु] होता है।
नवमभाव6थ के तु दशा फल कथन
नवम6थ6य के तो6तु दशापाके िपतुिवपत।्
गरु ोवा िवपदं दुःखं शभ
ु कमिवनाशनम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD के तु यिद नवम भाव मD ि थत हो,  ]क7 दशा के समय
मनWु य के िपता िवपि. त होता है अथवा गfु को िवपि और दःु ख िमलता है। उसके शभु कमK क7
/   /  /0**
दशमभाव6थ के तु दशा फल कथन
कम6थके तोः स[$ाaौ दशायां सुखमेित च।
मानहािनं मनोजाडयमपकितh मनो]जम।् ।

स>ू म * 0 - (ह= ,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )


के तु $य4तर मK के तु क सूgम दशा-+
पु1दारािदजं दुःखं गा1ावैष[यमेव च।
दाGर5याद् िभ?वु िृ R<च नैजे सgू मगते kवजे।।
के तु के 6य,तर मD के तु क7 सू म दशा हो तो पु -wी से दःु ख, शरीर मD िवषमता एवं दर_ता के
कारण िभ ावृि होती है।
के तु $य4तर मK शु7 क सूgम दशा-+

उराखड मु त िवविवालय 225


योितषशा ी       MAJY-202
रोगनाषोऽथलाभU गु]िव$ानुवसलः।
संगमः 6वजनैः साfh के तोः सूgमगते भृगौ।।
के तु के 6य,तर मD श`
ु क7 सूम दशा हो तो रोग से िनवृि,  , f> और “ा”ण मD Qsा एवं
वजन#  C / /0*
के तु $य4तर मK सूय क सूgम दशा-+
युfं भूिमिवनाषच िव$वासः 6वदेषतः।
सुxि;पिRराित<च के तोः सgू मगते रवौ।।
के तु के 6य,तर मD सयू - क7 सू म दशा हो तो कलह, भिू म क7 हािन, देशा,तर मD िनवास, िम # 
भी िवपि और श ु भय होता है।
के तु $य4तर मK च45मा क सूgम दशा-+
दासीदाससमृिfU युfे लिMधजय6तथा।
लिलता कित]प4ना के तोः सgू मगते िवधौ।।
के तु के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो दास- िसय# क7 वृिs, यs ु मD िवजय और लोक मD
स,ु दर यश ा होता है।
के तु $य4तर मK भौम क सgू म दशा-+
आसने भयम<वादे<चौरदुZािदपीडनम।्
गु8मपीडा िशरोरोगः के तोः सूgमगते कुजे।।
के तु के 6य,तर मD मगं ल क7 सू म दशा हो तो अž आिद सवारय# + +  , चोर# और
दु # से पीडा एवं गaु म तथा म तक रोग होता है।
के तु $य4तर मK राहO क सूgम दशा-+
िवनाशः wीग]ु णां च दुZwीसगं मा8लघःु ।
वमनं ]िधरं िपRं के तोः सूgमगतेऽ9यगौ।।
के तु के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो wी तथा गfु आिद मा,य जन# का िवनाश, दु ा wी के
 +  O Q> , C, र]िवकार और िपा:ब,धी रोग होता है।
के तु $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+
Gरपोिवरोधः स[पिR सहसा राजवैभवम।्
पशु?े1िवनाशाितः के तोः सूgमगते गुरौ।।

उराखड मु त िवविवालय 226


योितषशा ी       MAJY-202
+ > के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो श ु से िवरोध, अक मात् राजवैभव क7 ाि एवं पशु
और े क7 हािन के कारण दःु ख होता है।
के तु $य4तर मK शिन क सgू म दशा-+
मृषा पीडा भवेत् ?5ु सख
ु ोपिR<च लघं नम्।
wीिवरोधः सयहािनः के तोः सूgमगते शनौ।।
के तु के 6य,तर मD शिन क7 सूम दशा हो तो िमUया पीडा, वaप सख
ु , ]5 , wी से िवरोध और
स6यता क7 हािन होती है।
के तु $य4तर मK बुध क सूgम दशा-+
नानािवधजनािa<च िव$योगोऽGरपीडनम।्
अथस[पसमृिfच के तोः सूgमगते 3
के तु के 6य,तर मD बधु क7 सूम दशा हो तो िविभ,न कार के लोग# से संयोग एवं िवयोग, श ओ ु ं
+ 5T D -स:पि क7 वृिs होती है।
परमनीचगत श7 ु दशा फल कथन
उ;ेगरोगतaः कमसु िवफलेषु सवदािभरतः।
अितनीचग6य दाये शु76यामाथदारपु1ाितम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD श`ु यिद परमनीच अथा-त् क,यारािश के 26 अश ं पर ि थत हो,
तो उसक7 दशा के समय मनुWय उLेग रोग से . त होता है। वह अपने कायK मD िवफल रहने के
बावजदू सदा ही सफलता के िलए कायK को करते रहने मD लगा रहता है। उसको अपने वा Uय, wी,
पु स:ब,धी पीड़ा भी होती है।
लि1कोण6थ श7 ु दशा फल कथन
मूलि1कोणभाजो भृगोदशायां महािधपयं 6यात।्
7यिव7येषु कुशलो धनकितसमि4वतो िविध!U।।
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद अपनी मल ू ि कोण कु:भरािश मD /,  उसक7 दशा
के समय मनWु य को मह¡वपणू - अिधकार क7 ाि होती है। लेन-े देने या `य-िव`य के काय- मD िनपणु
भी होता है। धन व क7ित- भी िमलती है। िनयम-   जानने मD वृ रहता है।
6वरािश6थ शु7दशा फल कथन
शु7?े1दशायां लभते wीप1ु िम1धनशौयम।्
िनयोसाहं ;ेषं परोपकारं मह—वं च।।
उराखड मु त िवविवालय 227
योितषशा ी       MAJY-202
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद अपनी रािश वृष या तुला रािश मD हो, तो उसक7 दशा
के समय मनWु य wी, पु , िम , परा`म आिद से स:प,न होता है। िन6य नये उ6साह से य] ु रहता है।
Lेष भी उ6प,न होता है। परोपकार करने मD वृ होता है। अपना मह¡व वह थािपत करता है।।54।।
अिधश1ु रािश6थ शु7 दशा फल कथन
भृगोदशायामितश1ुरािशं गत6य पु1ाथकल1हािनम।्
$भHनसंसारिवशीणदेहं गु8माि?रोगं Xहणी $कोपम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद अिधश ु .ह क7 रािश मD हो,  पु  प6नी क7 /  / 
/0* D िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद पाप.ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य के स:मान मD बाधा आती है। धन भी अपयय करने पड़ते है। उसे दःु ख क7 ाि होती है।
पि6न से िवरोध िमलता है। अपने पद से अवनित और िवदेश मD वास से वह अपने कम-- िय6व से
/ . . /0*
शुभXह YZ शु7 दशा फल कथन
शभु ेि?त6यािप भृगोिवपाके धना[बरं भूपितपज ू नं च।
जनािधपयं 6वशरीरकाि4तं कल1िम1ामजसौयमेित।।
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद शभु .ह से देP . /, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को धन, वw और राजक7य स:मान क7 ाि होती है। जन समहू का नेता भी होता है। उसके
शरीर मD काि,त होती है। पि6न, िम , पु आिद का सख ु भी ा करता है।
के 45भाव6थ शु7 दशा फल कथन
के 45े गत6य िह दशा भृगुन4दन6य याना[बरिदमिणभूिषतदेहकाि4तम।्
रायाथभूिमकृिषवाहनवwशwदुगािधयानवनवासजलािभषेकम।्
िजस िकसी क7 कुडली मD श` ु यिद के ,_भाव मD हो, तो उसक7 दशा के समय मनWु य
 /, वw आिद तथा मिण से य] ु आभषू ण का लाभ करता है। काि,त य] ु शरीर   / /0*
राय, ,  C, कृ िष काय-,  /, वw, शw आिद क7 ाि होती है। िकला मD वास करता हOआ
व,य जल से नान करने को िमलता है।
स>ू म * 0 - (वहृ ,प होरा शा1 %#थ 4 )$ )
शु7 $य4तर मK शु7 क सूgम दशा-+
1ुहािनमहसौयं शंकरालयिनिमितः।

उराखड मु त िवविवालय 228


योितषशा ी       MAJY-202
तडागकूपिनमाणं िनजसूgमगते भृगौ।।
श`ु के 6य,तर मD श`ु क7 सू म दशा हो तो िवपि य# का नाश, C/  P
>     
देवमि,दर तथा तडाग-कूपािद जलाशय का िनमा-ण होता है।
श7 ु $य4तर मK सयू क सgू म -+
उर6तापो ‹म<चैव गतागतिवचेिZतम।्
:विच8लाभः :विचfािनभृगोः सूgमगते रवौ।।
श`
ु के 6य,तर मD सूय- क7 सू म दशा हो तो tदय मD स,ताप, मितpम, !-] QC  , 
    /  /  /0*
श7ु $य4तर मK च45मा क सgू म -+
आरोHयं धनस[पिRः कायलाभो गतागतैः।
बुिfिवFािवविृ fः 6याद् भृगोः सूgमगते िवधौ।।
श` ु के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो िनरोगता, -स:पि क7 वृिs, C C +
काय-िसिs एवं बिु s और िवा क7 वृिs होती है।
शु7 $य4तर मK मंगल क सूgम दशा-+
जडवं Gरपुवैष[यं देष‹ंषो महqयम।्
jयािधदुःखसमुपिRभृगोः सूgमगतेऽ9यगौ।।
श` ु के 6य,तर मD मगं ल क7 सू म दशा हो तो मख ू त- ा, श ु से िवषमता, देश6याग, ,  G
f> P / /0*
श` ु 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा- 
रायािHनसपजा भितब4धुनाशो गु]jयथा।
6थान/युितमहाभीितभृगोः सgू मगतेऽ9यगौ।।
श` ु के 6य,तर मD राहO क7 सू म दशा हो तो अिhन और सप- से भय ब,धु नाश, C/ , थान
6याग और महाभय होता है।
शु7 $य4तर मK गु] क सूgम दशा-+
सव1 कायलाभ<च ?े1ाथिवभवो4नितः।
विणHवृRेमहालिMधभृगोः सgू मगते गुरौ।।
श`
ु के 6य,तर मD गfु क7 सू म दशा हो तो सभी जगह से लाभ, P+  G -ऐžय- क7 उ,नित

उराखड मु त िवविवालय 229


योितषशा ी       MAJY-202
एवं यापार से अिधक लाभ होता है।
शु7 $य4तर मK शिन क सूgम दशा-+
श1पु ीडा महˆुःखं चतु<पादिवनाशनम।्
6वगो1गु]हािनः 6याद् भृगोः सूgमगते शनौ।।
श`ु के 6य,तर मD शिन क7 सू म दशा हो तो श ु से पीडा, C/ f> P, 5 V
> क7 हािन एवं अपने
वश
ं और गfु जन# क7 हािन स:भव होती है।
शु7 $य4तर मK बुध क सूgम दशा-+
बा4धवािदषु स[पिRjयवहारो धनो4नितः।
पु1दारािदतः सौयं भृगोः सूgमगते बुधे।।
श`ु के 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो अपने ब,ध-ु बा,धव# मD धन क7 वृिs, यवहार
कुशलता के कारण धनलाभ एवं पु और wी + P > / /0*
श7 ु $य4तर मK के तु क सgू म दशा-+
अिHनरोगो महापीडा मुखने1िषरोjयथा।
संिचताथामनः पीडा भृगोः सूgमगते kवजे।।
श`ु के 6य,तर मD के तु क7 सूम दशा हो तो अिhनभय, C/  + 5T , मख
ु ने और म तक मD
5T ,  धन का नाश और मानिसक स,ताप होता है।
5+ न
1. श` ु के 6य,तर मD मंगल क7 सू म दशा हो तो या / /0*
.  P.  . :> P Q. ]5य-ु त 
2. बधु के 6य,तर मD गfु क7 सू म /   / -
. ,> दर गृह का िनमा-ण P.   .  वृिs Q. C  / 
3. . .  क7 कुडली मD श` ु यिद पाप.ह से देखा जाता हो, तो उसक7 दशा के समय
या  / *
. C  वृिs P. C   .  ाि Q. श ु 5 .
4. बधु के 6य,तर मD बधु क7 सू म दशा हो तो या  / /0*
. भाhयो,न P.  hय मD C .  P > Q. ऐवय- वृिs
5. गfु के 6य,तर मD च,_मा क7 सू म दशा हो तो  या / *

उराखड मु त िवविवालय 230


योितषशा ी       MAJY-202
क.पु ाि P. प6नी ाि . 1> वृिs Q. C  / 
4.5  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /  सू म D  C + /
पWट है िक जातक के उपर सू म कार क7 चलने वाली दशा।
धजु ङम{यंशयुत6य भानोदशािवपाके िह भयं िवषा;ा।
नृपािHनपाितयमनेकदुःखं पाशािदभृयंशयुत6य चैवम।् ।
. .  क7 कुडली मD सयू - यिद सप- _ेWकाण मD ि थत हो, तो उसक7 दशा के समय
मनWु य को िवष से भय और राजा, अिhन और पितत होने से अनेक कार के दःु ख िमलते हI। इसी
तरह क7 फल पाश _ेWकाण थ सयू - क7 दशा मD भी ा होता है।
उ/चरािश-नीच नवांश6थ सूय दशाफल कथन
6वो/च6थोऽिप िदनेशो नीचांशे चेकल1धनहािनः।
6वकुलजब4धिु वरोधः िप1ादीनां तथैव मिु नवा:यम।् ।
िजस िकसी क7 कुडली मD सूय- यिद उjचरािश मD होकर नीचनवांश तल ु ा रािश मD हो, 
उसक7 दशा के समय मनWु य को wी व धन क7 हािन होती है। अपने ही कुल के ब,धजु न# से िवरोध
 / /0* 5 , चाचा आिद से भी िवरोध के कारण उ6प,न होते हI। ऐसा मिु नय# का वचन है।
! कार अ,य .ह# के सू मा,तद-शा का फल समझना चािहए।

4.7 पा रभािषक शदावली


सgू म  # 6य,तद-शा के पचात् सू म /  /0*
उ/च 6था # सभी .ह# के उjच थान होते है। जैसे सयू - का मेष, च,_  N6 1 *
भाया # प6नी
  )      *
 ) ि थित
 ) 
अिHन ) 1

4.8 बोध के उ र

उराखड मु त िवविवालय 231


योितषशा ी       MAJY-202
1. Q
2. 
3. P
4. 
5. 
4.9 स#दभ$ %#थ सूची
1. वृह6पराशरहोराशा - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. सवा-थ-िच,ताCO ) आचाय- वDकटेश
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ िमQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
4.10 िनब#धा,मक  न
1. सू मा,तद-शा  से आप या C\ + /0*
2. सयू - .ह का सू मा,तद-शा का फल P+*
3. च,_ एवं गfु सू म दशा का फल िलखD*
4. शिन एवं राहO .ह का सू म फल िलखD*
5. के तु .ह का सू म दशा फल िलखD*

उराखड मु त िवविवालय 232


योितषशा ी       MAJY-202
  5 ाणदशा फल िवचार
इकाई क संरचना

5.1  ता
5.2 उेय
5.3 ाण दशा परचय
5.4 ाण   
5.5  
5.6 पारभािषक श&दा
5.7 बोध न# के उर
5.8 स,दभ- .,थ  
5.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
5.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 233


योितषशा ी       MAJY-202
5.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के तृतीय खड क7 पाँचवी इकाई से स:बि,धत है। इस
इकाई का शीष-क है ) ाणदशा दशाफल* !+ पवू - आपने C/ , अ,तद-शा, 6य,त , D
सू म 1 + > शभु फलाफल का अCययन कर िलया है अब आप दशा `म मD ही ाण
दशा के फल# का अCय + . /+ /0*
.  क7 दशाओ ं के अ,तग-त ाO दशा सबसे सू म दशा मानी गयी। अत: इसका Zान
भी योितष के अCयेताओ ं को अवय .   /*
1! इस इकाई मD हम लोग ,ाO - के बारे मD तथा उसके शभु ाशभु भाव के
बारे मD जानने का यास करते है।
5.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• ाण को परभािषत कर सकD गे।
• ाण के अवयव# को समझा सकD गे।
• ाण दशा के शभु फल# को समझ लDगे।
• ाण दशा के अशभु भाव# को जान लDग।े
• ाण दशा के मह6व का िनlपण कर सकD गे।
5.3 ाणदशा प रचय
V के फलाफल Zान `म मD ाण दशा के बारे मD अब आप अCय + . /+ /0*
15 / .   /  V मD सबसे सू म दशा ाण दशा /  /0* !+ 1  5
सू माितसू म  + + करना सरल हो जाता है। यह सू म दशा के पचात् आता है। ाण दशा
के आधार पर यि] का एक िदवस का परू ा-परू ा फलादेश िकया जा सकता है। यिप इसका Zान
किठन है। इसके आधार पर फलादेश करना भी आजा क7 ि थित मD दWु क /0, िक,तु आचायK ने जो
यह Zान हमD योितष शा के माCयम से घोर अनसु ,धान के Lारा िदया है उसका अवलोकन करते
/0*
सयू - से लेकर श`
ु पय-,त सभी .ह# के ाण दशाओ ं का शभु ाशभु फल का िववेचन `मश:
यहाँ आपके Zानाथ- िदया जा रहा है।
उराखड मु त िवविवालय 234
योितषशा ी       MAJY-202
Zान हेतु वृह6पराशरहोराशा योितष शा का अपूव- .,थ /0* सवा-िधक V  O
! .,थ मD ाGत / /0* 2 : ! .,थ + 1  5 / A ाण   वण-न  .
/ /0*
5.4 ाणदशा फल िवचार 
व-थम सयू - .ह + आर:भ  + /0*  सयू - क7 सू म मD सयू -  ाण 
/ /  ] या  / * !    + /0* त6पचा 4 `म + च,_, C,  हO, गfु ,
, 3> , + >  `> .ह#   ाO   O  . + *
सूय क सूgम दशा मK सयू का $ाण दशा फल #
पौच8यं िवषजा बाधा चौरािHननृपजं भयम।्
क<टा सूgमदशाकाले रवौ $ाणदशां गते।।
अथा-त् सयू - क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो गदु ा मैथनु मD वृि, िवष मD बाधा, F, अिhन
और राजभय एवं एवं शारीरक कWट / /0*
सूय क सूgम दशा मK च45मा का $ाणदशाफल -
सुखं भोजनस[पिR: सं6का ! ( *
उदारािदकृपािभच रवे: $ा&  
अथा-त् सयू - क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो सख ु , .-स:पि क7 ाि, बिु s मD
परवत-न, राजा से ऐवय- क7 ाि एवं स,त सजन उदारािद पfु ष# क7 कृ पा रहती है।
सयू क सgू म दशा मK मंगल क $ाणदशाफल #
भूपोप5वम4याथ\ 5jयनाशो महqयम।्
महयपचय$ा9ती रवे: $ाणगते कुजे।।
सयू - क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो अ,य# के कारण राजा से उप_व, _य ,  G
C/  /  /  /0*
सूय क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशाफल #
अ4नोqवा महापीडा िवषोसपिRिवशेषत:।
अथािHनराजिभ: :लेशो रवे: $ाणगते'9य 
सयू - क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो अ,न से कWट,  +6 6, अिhन तथा राजा के
Lारा धननाश और ले / /0*
सयू क सgू म दशा मK ग]ु का $ाणदशा फल #

उराखड मु त िवविवालय 235


योितषशा ी       MAJY-202
नानािवFाथस[पिR: कायलाभो गतागतै:।
नृपािव$ामे सूgमे रवे: $ाणगते गुरौ।।
अथा-त् सयू - क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो िविभ,न िवा, , स:पि का लाभ,
गमनागमन से काय- िसिs और राजा तथा “ा”ण से स:ब,ध / /0*
सूय क सूgम दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
ब4धनं $ाणनाशच िचRो;ेग6त)( 
बहOबाधा महाहानी रवे: $ाणगते शनौ।।
सयू - क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो ब,ध, ाणनाश, मन मD उLेग, काय- मD िवVन G
C/  /  /  /0*
सयू क सgू म दशा मK बध ु का $ाण दशा फल #
राजा4नभोग: सततं राजलांछनतप *  
आमा स4तपयेदेवं रवे: $ाणगते बुधे।।
सयू - क7 सू म दशा मD बधु क7ाणदशा हो तो िनर,तर राजा,न, ., राजिचŒ क7 ाि   .5
क7 ाि से आ6मसंतोष ाGत / /0*
सूय क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #
अ4यो'4यं कलहचै  : /:
गु]61ीब4धुवगrच सूय$ाणगते kव/
सयू - क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा रहने पर पू य जन# और ी, वब,धु जन# के साथ पर प
कलह से धन क7 हािन होती है।
सयू क सgू म दशा मK श7 ु का $ाणदशा फल #
राजपूजा धानािध:यं 61ीपु1ािदभवं सुखम।्
अ4नपानािदभोगािद सूय$ाणगते भृगौ।।
सयू - क7 सू म दश मD श` ु क7 ाO /   . + 5 . , धन क7 वृिs ी पू ािद से सख ु और
अ,न 5     / /0*
च45मा क सूgम दशा मK च45मा का $ाणदशा फल #
61ीप1ु ािदसख ु ं 5jयं लभते नतू ना[ब *
योगिसिfं समािधच िनज$ाणगते िवधौ।।
च,_मा क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा होत तो ी पु ािद से सख ु , धन और नतू न वY का

उराखड मु त िवविवालय 236


योितषशा ी       MAJY-202
लाभ एवं योग और समािध क7 िसिs होती है।
च45 क सूgम दशा मK मंगल का $ाणदशा फल -
?यं कु<ठं ब4धनु ाशं र:तावा4महqयम।्
  /येत िवधो: $ाणगते कुजे।।
च,_ क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो य, कुWठ, ब,धV ु   , रतYाव से
   G 5     / /0*
च45 क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशा फल #
सपभीितिवशेषेण भूतो$दववान सदा।
YिZ?ोभो मित‹hशो िवधो: $ाणगते'9य
च,_ क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो िवशेषकार सप- का भय, सदा भतू # का उप_व, gP
मD रोग और मितpशं होता है।
च45 क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशा फल #
धमविृ f: ?मा$ािaद\व„ा णपज ू नम।्
सौभाHयं ि$यYिZच च45$ाणगते गुरौ।।
अथा-त् च,_ क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो धािम-क कृ 6य# मD वृिs, मााि, + -
“ा”ण# का पजू न, भाhयोदय और अपने ियजन# से भDट होती है।

च45 क सूgम दशा मK शिन का $ाणदशा फल #


सहास देहपतनं श1ूप5ववेदना।
अ4धवं च धन$ािaच45$ाणगते शनौ।।
च,_ क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो शरीर मD अक मात् कWट, श ओ ु ं के उप_व से
+  , ‹ि मD कमी और धन क7 ाि होती है।
च45 क सgू म दशा मK बध ु का $ाणदशा फल #
चामर/छ1स[$ा9ती रायलाभो नृपाRत:।
समवं सवभूतेषु च45$ाणगते बुधे।।
च,_ क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो राजिचŒ क7 ाि या राजा से राय   G
सम त जीव# मD समता क7 बिु s होती है।
च45 क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #

उराखड मु त िवविवालय 237


योितषशा ी       MAJY-202
श61ािHनपुजा पीडा िवषािHन: कुि?रोिगता।
पु1दारिवयोगच च45$ाणगते kव/
च,_ क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो श , अिhन और श ु से पीड़ा, 6, पेट मD रोग
एवं ी 5> ािद का िवयोग होता है।
च45 क सूgम दशा मK शु7 का $ाणदशा फल #
पु1िम1कल1ािaिवदेशा/च  :
सुखस[पिRरथच च45$ाणगते भृगौ।।
च,_ क7 सू म मD श`ु क7 ाणदशा हो तो पु , िम , ी आिद क7 ाि,  + +  C
एवं सभी कार के सख ु -स:पि का लाभ होता है।
च45 क सgू म दशा मK सयू का $ाणदशा फल #
7ूरता कोपवृिfच $ाणहािनमनोjय)
देशयागो महाभीितच45$ाणगते रवौ।।
च,_ क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो `ूरता, कोप क7 बढ़ोरी, ाणनाश, मानिसक यD ,
देश6या G C/  / /0*
मंगल क सूgम दशा मK मंगल का $ाणदशा फल #
कलहो Gरपुिभब4ध: र:तिपRािदरोगभी:।
/सूgमदशामkये कुजे $ाणगते फलम।् ।
मगं ल क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो श ु से िववाद, ब,धन एवं रत िप स:ब,धी
 / /0*
मंगल क सgू म दशा मK राहO का $ाणदशा फल #
िव/युत: सुतदारैच ब4धूप5वपीिडत:।
$ाणयागी िवषेणैव भौम$ाणगते '9य 
मगं ल क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो ी पु # से िवछोह, अपने ब,धओ ु ं के उप_व से
पीड़ा एवं िवष से ाण6या   / /0*
मंगल क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशा फल #
देवाचनपर: ीमा4म41ान<ु ठानतप:
पु1पौ1सुखावािaभnम$ाणगते गुरौ।।
मगं ल क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो देवपजू न मD त6प, पू य म, # के अनWु ठान मD

उराखड मु त िवविवालय 238


योितषशा ी       MAJY-202
त6परता एवं पु पौ # से सख ु क7 ि होती है।
मंगल क सूgम दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
अिHनबाधा भवे4मृयुरथनाश: पद/यु:
ब4धुिभब4धुतावािaभnम$ाणगते शनौ।।
मगं ल क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो अिhनभय, CO,  , थान 6या, पर,तु
ब,धओ ु ं मD pातृ6व क7 वृिs होती है।
मंगल क सूgम दशा मK बुध का $ाणदशा फल #
िदjया[बरसमुपिRिदjया&:
िदjयांगनाया: स[$ािaभnम$ाणगते बुधे।।
मगं ल क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो िदय व # क7 ाि, स,ु द 16 O +  6 G
स,ु दर ी    / /0*
मंगल क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #
पतनोपातपीडा च ने1?ोभो महqयम।्
भुजंगाद् 5jयाहािनच भौम$ाणगते kव/
मगं ल क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो िगरने का भय, उ6पा , ने रोग, सप- से भय ए 
  / /0*
मंगल क सूgम दशा मK शु7 का $ाणदशा फल #
धनधा4यािदस[पिRलVकपूजा सुखागमा।
नानाभोगैभवेद् भोगी भौम$ाणगते भृगौ।।
मगं ल क7 सू म दशा मD श` ु क7 ाणदशा हो तो धन-धा,य स:पि क7 वृिs, लोक मD स:मा, P >
एवं अनेक कार के भोग ाGत होते हI।
मंगल क सूgम दशा मK सूय का $ाणदशा फल #
वरो4माद: ?यो'थ6य राजिव6नेहस[भ :
दीघरोगी दGर5: 6याद् भौम$ाणगते रवौ।।
मगं ल क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो व, उ,मा ,  , राजा से स:ब,ध िवjछे ,
दीघ- रोग एवं दर_ता होती है।
मंगल क सूgम दशा मK सूय का $ाणदशा फल #
भोजनािदसुख$ािaवाभरणजं सुखम।्

उराखड मु त िवविवालय 239


योितषशा ी       MAJY-202
शीतो<णjयािधपीडा च भौमा$ाणगते िवधौ।।
मगं ल क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा /  ., वY, आभरणािदज,य P >  
तथा उWण स:ब,धी या + 5U /  /0*
राहO क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशाकाल #
अ4नाशने िवर:तच िवषभीित6त)( 
साहसाfननाशच राहौ $ाणगते भवेत।् ।
राहO क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो अ,न से िनिम-त भोजन मD अlिच, 6 
अक मात् धननाश होता है।
राहO क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशाकाल #
अंगसौयं िविनभtितवाहनोदच  
नीचै: कलहस[$ा9ती राहो: $ाणगते गुरौ।।
राहO क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो शारीरक सख ु , िनभ-रता, वाहन# का लाभ और नीच
जन# से कलह होता है।
राहO क सूgम दशा मK शिन का $ाणदशाकाल #
गृहदाह: शरीरे Sंग नीचैरपxतं धनम।्
तथा ब4धनस[$ा9ती राहो: $ाणगते शनौ।।
राहO क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो गृहदाह, शरीर मD रोग, नीच# के Lारा धन का अपहरण
और ब,ध / /0*
राहO क सूgम दशा मK बुध का $ाणदशाकाल #
ग]ु पदेशिवभवो ग]सकारवfनम।्
गुणवांछीलवांचािप राहो: $ाणगते बुधे।।
राहO क7 सू म दशा मे बधु क7 ाणदशा हो तो गfु के Zान से यु त, उनक7 कृ पा से धन क7 वृिs एवं
O>  G   / /0*
राहO क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशाकाल #
61ीपु1ािदिवरोधच गृहाि4न<7 &
साहसाकायहािनच राहो: $ाणगते kव/
राहO क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो ी-पु ािद से िवरोध, गृह से िनW`CO   / +
काय-नाश होता है।

उराखड मु त िवविवालय 240


योितषशा ी       MAJY-202
राहO क सूgम दशा मK शु7 का $ाणदशाकाल #
छ1वाहनस[पिR: सवाथफलसंचय:।
िशवाचनगृहार[भो राहो: $ाणगते भृगौ।।
राहO क7 सू म दशा मD श` ु क7 ाणदशा हो तो छ ,  /, स:पि क7 ाि, सभी कायK का
फलस.ं ह, िशवपजू न और गृहार:भ / /0*
राहO क सूgम दशा मK सयू का $ाणदशाकाल #
अशािदरोगभीितच रायोप5वस[भ :
चतु<पादािदहािनच राहो: $ाणगते  
राहO क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो बवासीर आिद रोग का भय, राजा के उप_व क7
स:भावना एवं पशओ ु ं क7 हािन होती है।
राहO क सूgम दशा मK च45मा का $ाणदशाकाल #
सौमन6यं च स›ुिf: सकारो गु]दशनम।्
पापाद् भीितगन: सौयं राहो: $ाणगते िवधौ।।
राहO क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो मन और बिु s का िवकास, लोक मD आदर, पू य
जन# का अगमन, पाप से भय और मानिसक सख ु क7 अनभु िू त होती है।
राहO क सूgम दशा मK मंगल का $ाणदशाकाल #
चा-डालिHनवशाद् भीित: 6वपद/यु:
मिलन: वािदवृिRच राहो: $ाणगते कुजे।।
राहO क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो चाडाल और अिhन से भय, पद6या, िवपि,
मिलनता और नीच काय- होता है।
गु] क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशा फल #
हषागमो धनािध:यमिHनहो1ं िशवाचनम।्
वाहनं छ1सयं ु:तं िनज$ाणगते गरु ौ।।
गfु क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा रहने पर हष-, धन क7 वृिs, अिhनहो ,  5.   /
और छ आिद का लाभ होता है।
ग]ु क सgू म दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
Lतहािनिवषादच    *
िवरोधे ब4धुवगrच गुरो: $ाणगते शनौ।।

उराखड मु त िवविवालय 241


योितषशा ी       MAJY-202
गfु क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो vत मD बाधा, 6 ,  + C,   25+
ब,धवु गK से िवरोध होता है।
ग]ु क सgू म दशा मK बध ु का $ाणदशा + #
िवFाबुिfिवविृ fच   /  :
61ीपु1ािदसुख$ािaगुरो: $ाणगते बुधे।।
गfु क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो िवा तथा बिु s क7 वृिs, लोक मD आदर,  C 
ी पु ािद से सख
ु ाGत / /0*
गु] क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #
!ानं िवभवपाि-डयं शा61!ानं िशवाचनम।्
अिHनहो1ं गरु ोभि,गुरो: $ाणगते kव/
गfु क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो Zान, ऐवय-, पािड6य, शा Zान,  5. ,
अिhनहो और गfु मD िनWठा /  /0*
ग]ु क सgू म दशा मK श7 ु का $ाणदशा फल #
रोगा4मुि,: सुखं भोगो धनधा4य  :
पु1दारािदजं सौयं गुरो: $ाणगते भृगौ।।
गfु क7 सू म दशा मD श` ु क7 ाणदशा हो तो रोग से छुटकारा, P > ,   ,य  1C 
ी पु से सखु होता है।
गु] क सूgम दशा मK सूय का $ाणदशा फल #
वातिपR$कोपं च Ÿे षमो5ेकं तु दाSणम।्
रसjयािधकृतं शल ू ं गरु ो: $ाणगते रवौ।।
गfु क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो वात, िप और कफस:ब,धीh     -
या +  O    / /0*
ग]ु क सgू म दशा मK च45 का $ाणदशा फल #
छ1चामरसंयु:तं वैभवं पु1स[प:
ने1कुि?गता पीडा गुरो: $ाणगते िवधौ।।
गfु क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो छ चामरयतु ऐवय- क7 ाि, पु लाभ एवं ने
तथा पेट मD पीड़ा होती है।
गfु क7 सू म दशा मD मगं ल का ाणदशा फल )

उराखड मु त िवविवालय 242


योितषशा ी       MAJY-202
ीजनाjच िवषो6सपिब-,धनं चाितिन.ह:।
देशा,तरगमो pाि,तगर-ु ो: ाणगते कुजे।।
गfु क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो ी + 6, कारागार मD वेश, देशा,तर मD गमन
और मितpश ं होता है।
गु] क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशा फल #
jयािधिभ: पGरभूत: 6याचौरैपx्रतं धनम।्
सपवृिUकभीितच गुरो: $ाणगते'9य 
गfु क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो रोग से आjछा , चोर Lारा धन का अपहरण एवं
सप-, िबjछु 1   / /0*
शिन क सgू म दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
वरेण विलता काि4त: कु<ठरोगोदरािदSक्।
जलािHनकृतमृयु: 6याि4नज$ाणगते शनौ
शिन क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो वर से काि,त का नाश, कुWठ D ]   
जल और अिhन से मरण स:भ / /0*
शिन क सूgम दशा मK बुध का $ाणदशा फल #
धनं धा4यं च मांग8यं jय / *
देव„ा णभि,च शने: $ा& 3
शिन क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो धन-धा,य एवं मगं ल क7 ाि, यवहार मD कुशलता,
लाभ तथा देवता और “ा”ण# मD भि] होती है।
शिन क सgू म दशा मK के तु का $ाणदशा फल #
मृयुवेदनदु:खं च भूतोप5वस[भ :
रािभभतवं शने: $ाणगते kव/
शिन क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो मरणस‹श कWट, :> P, भतू # का उप_व एवं पर ी +
25C  / /0*
शिन क सूgम दशा मK शु7 का $ाणदशा फल #
प1ु ाथिवभवै: सौयं ि?ितपालािदत: सख ु म।्
अिHनहो1ं िववाहच शने: $ाणगते भृगौ।।

उराखड मु त िवविवालय 243


योितषशा ी       MAJY-202
शिन क7 सू म दशा मD श` ु क7 ाणदशा हो तो पु एवं अथ- का लाभ, राजा से ऐवय-लाभ,
अिhनहो , िववाहािद मागं िलक काय- होता है।
शिन क सgू म दशा मK सयू का $ाणदशा फल #
अि?पीडा िशरोjयािध: सपश1ुभयं भवेत।्
अथहािनमहा:लेश: शने: $ाणगते रवौ।।
शिन क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो आँख और म तक मD रोग, सप- एवं श ु का भय तथा
धननाश और ले / /0*
शिन क सूgम दशा मK च45मा का $ाणदशा फल #
आरोHयं पु1लाभच शाि4तपौिZकवधनम।्
देव„ा णभि,च शने: $ाणगते िवधौ।।
शिन क7 सू म दशा मD च,_मा का ाणदशा हो तो आरोhय एवं पु क7 ाि, शाि,त तथा पौिक
काय- स:प,न  + ता और “ा”ण# मD भि] होती /0*
शिन क सgू म  मK मंगल का $ाणदशा फल #
गु8मरोग: श1ुभीितमृगया $ाणनाशनम।्
सपािHनिवषतो भीित: शने: $ाणगते कुजे।।
शिन क7 सू म दशा मD मंगल क7 ाणदशा हो तो गaु म , श ु से भय, CN +   CO  
सप-, अिhन और िवष का भय रहता है।
शिन क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशा फल #
देशयागो नृपाद् भीितमVहनं िवषभ?णम।्
वातिपRकृता पीडा शने: $ाणगते'9य 
शिन क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो देश6या,  . + , C/, 65   
िपस:ब,धी  + 5U /  /0*
शिन क सgू म दशा मK ग]ु का $ाणदशा फल #
सेनापयं भूिमलाभ: संगम: 6व/(:  
गौरवं नृपस[मानं शने: $ाणगते गुरौ।।
शिन क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो सेनानायक,  C , अपने ब,धV ु  C,
गौरव और राजा से स:मान ाGत / /0*
बुध क सूgम दशा मK बुध का $ाणदशा फल #

उराखड मु त िवविवालय 244


योितषशा ी       MAJY-202
आरोHयं सुख[पिRधमकमािदसाधनम।्
समवं सवभूतेशु िनज$ाणगते बुधे।।
बधु क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो नीरोग, P-स:पि -धम- और कम- साधन एवं सभी
जीव# मD समभाव रहता है।
बुध क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #
विuत6करतो भीित: परमािधिवषोqव:।
देहा4तकरणं दु:खं बुध$ाणगते kव/
बधु क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो अिhन, चोर और परम िवष का भय एवं मरणस‹श
:> P / /0*
बध ु क सgू म दशा मK श7 ु का $ाणदशा फल #
$भुवं धनस[पिR: कितधम: िशवाचनम।्
पु1दारािदकं सौयं बुध$ाणगते भृगौ।।
बधु क7 सू म दशा मD श` ु क7 ाणदशा हो तो वािम6व, -स:पि और यश, धम- क7 ाि,
 5. , पु और ी + P > / /0*
बुध क सूgम दशा मK सूय का $ाणदशा फल #
अ4तदाहो वरो4मादौ बा4धवानां रित: िwया:।
$ा9यते 6तेयस[पिRबुध$ाणगते रवौ।।
बधु क7 सू म दशा मD रिव क7 ाणदशा हो तो आ,तरक स,ता5, व, उ,मा , ब,धु और ी मD
ेम और अपहरण िकया गया धन ाGत / /0*
बध ु क सgू म दशा मK च45 का $ाणदशा फल #
61ीलाभचाथस[पिR: क4या   :
लभते सवत: सौयं बुध$ाणगते िवधौ।।
बधु क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो ी G  , क,यााि,  C  
जगह# से सख ु क7 ाि होती है।
बुध क सूgम दशा मK मंगल का $ाणदशा फल #
पितत: कुि?रोगी च द4तने1ािदजा jय)
अशाhिस $ाणस4देहो बुध$ाणगते कुजे।।
बधु क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो पितत काय- मD वृि, ] , द,त और ने स:ब,धी

उराखड मु त िवविवालय 245


योितषशा ी       MAJY-202
  3  G CO   / /0*
बुध क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशा फल #
वाभरणस[पिRिवयोगो िव$वैGरता।
सि4नपातोqवं दु:खं बुध$ाणगते'9य 
बधु क7 सम शा मD राहO क7 ाणदश हो तो वY, आभरण और स:पि से िवयोग, “ा”ण# से
वैरभाव और सि,नपात रोग होता है।
बुध क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशा फल #
गु]वं धनस[पिRिवFा सुणसंXह:।
jयवसायेन स8लाभो बुध$ाणगतौ गुरौ।।
बधु क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो गौरव, -स:पि और िवा का लाभ, स¥णु # क7
वृिs एवं व-यवसाय मD उिचत लाभ होता है।
बुध क सूgम दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
चौय\ण िनधन$ािaिवधनवं दGर5ता।
याचकवं िवशेषेण बुध$ा& 
बधु क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदश हो तो चोर के Lारा◌ा मरण क7 सभं ावनायD, िनध-नता,
दर_ता और िभ ावृि होता◌ी है।

के तु क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #


अवपातेन घातच श1ुत: कलहागम:।
िनिवचारवधोपिRिनज$ाणगते kव/
के तु क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो घोड़े से िगरने से घात, श ु से कलह एवं
िववेकश,ू यता से वधज,य 5 5 / /0*

के तु क सूgम दशा मK शु7 का $ाणदशा फल #


?े1लाभो वैGरनाशो हयलाभो मन:सुखम।्
पश?ु े1धनािaच के तो: $ाणगते भृगौ।।
के तु क7 सू म दशा मD श`
ु क7 ाणदशा हो तो े एवं अव   , श नु ाश, C  P
> ,
धन क7 ाि एवं खेती और पशओ ु ं क7 वृिs होती है।

उराखड मु त िवविवालय 246


योितषशा ी       MAJY-202
के तु क सूgम दशा मK सूय का $ाणदशा फल #
6तेयािHनGरपुभीितच  मनोjय)
$ाणा4तकरणं क<टं के तो: $ाणगते रवौ।।
के तु क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो चौर, अिhन और श भु य,  , C   
मरणतaु य कWट / /0*
के तु क सूgम दशा मK च45मा का $ाणदशा फल #
देवि;जगुरो: पूजा दीघया1ा धनं सुखम।्
कण\ वा लोचने रोग: के तो: $ाणगते िवधौ।।
के तु क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो देव और “ा”णD मD भि], ल:बी या ा,  
सख ु एवं कान और ने मD रोग होता है।
के तु क सूgम दशा मK मंगल का $ाणदशा फ #
िपRरोगो नसावृिfिव‹म: सि4नपातज:।
6वब4धज ु निव;ेष: के तो: $ाणगते कुजे।।
के तु क7 सू म दशा मD मंगल क7 ाणदशा हो तो िपरोग, नसावृिs, बिु s मD pम, सि,नपात रोग और
अपने ब,धओ ु ं से Lेष होता है।
के तु क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशा फल #
िवरोध: 61ीसुताFैच गृहाि4न<7 &  *
6वसाहसाकायहािन: के तो: $ाणगते '9य 
के तु क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो ी पु # से िवरोध, गृह6याग एवं अपने साहस से काय-
क7 हािन होती है।
  क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशा फल #
श61Lणैमहारोगो xपीडािदसमुqव:।
सतु दारिवयोगच के तो: $ाणगते गरु ौ।।
के तु क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो श + 1Q , vण, ¨दयरोग और ी-पु # से
 / /0*
के तु क सgू म दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
मितिव‹मतीgणवं 7ूरकमरित: सदा।
jयसनाद् ब4धनं दु:खं के तो: $ाणगते शनौ।।

उराखड मु त िवविवालय 247


योितषशा ी       MAJY-202
के तु क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो मितpम, `ूर कम- मD वृि, किठन यसन से ब,ध
G :> P / /0*
 तु क सgू म दशा मK बध ु का $ाणदशाफल #
      / *
सौयं सवाhगभोHयं च के तो: $ाणगते बुधे।।
के तु क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो पWु प, श या, 16 O, +5, स,ु द . G P >
ाGत / /0*
शु7 क सूgम दशा मK शु7 का $ाणदशा फल #
!ानमीवरभि,च स4तोषच  :
प1ु पौ1समृिfच िनज$ाणगते भृगौ।।
श` ु क7 सू म दशा मD श` ु क7 ाणदशा हो तो Zान, ईवर मD भि], स,तो6, धन का लाभ एवं पु -
पौ # क7 वृिs होती /0*
श7 ु क सgू म दशा मK सयू का $ाणदशा फल #
लोक$काशकितच सुतसौयिवविजत:।
उ<णािदरोगजं दु:खं शु7$ाणगते रवौ।।
श` ु क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो लोक मD िसिs और सयु श, पु सख ु से िवहीन एवं
उWण   + :> P / /0*
शु7 क सूgम दशा मK च45मा का $ाणदशा फल #
देवाचने कमरितम41तोषणतप:
धनसौभाHयस[पिR: श7 ु $ाणगते िवधौ।।
श` ु क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो देवपजू क, काय-कुशलता, म, से स,तो6  
तथा भाhयो  / /0*
श7 ु क सgू म दशा मK मंगल का $ाणदशा फल #
वरो मसूGरका 6फोट क-डू   :
देव „ा णपूजा च शु7$ाणगते कुजे।।
श` ु क7 सू म दशा मD मंगल क7 ाणदशा हो तो व, Q , , P.> ,  G + D
“ा”ण का पजू क होता है।
शु7 क सूgम दशा मK राहO का $ाणदशा फल #

उराखड मु त िवविवालय 248


योितषशा ी       MAJY-202
िनयं श1ुकृता पीडा ने1कुि?]जादय:।
िवरोध: सुxदां पीडा शु7$ाणगते'9य 
श`ु क7 सू म दशा मD राहO क7 ाणदशा हो तो सदैव श ु से पीड़ा, ने , पेट मD रोग एवं िम # से
 +  O C  5U /  /0*

शु7 क सूgम दशा मK गु] का $ाणदशा फल #


आयुरारोHयमैवयh पु161ी ( *
छ1वाहनस[$ािa: शु7$ाणगते गुरौ।।
श`ु क7 सू म दशा मD गfु क7 ाणदशा हो तो आय,ु 1hय, ऐवय-, पु , ी, धन क7 वृिs एवं
छ , वाहन आिद क7 ाि होती है।
शु7 क सूgम दशा मK शिन का $ाणदशा फल #
राजोप5वजा भीित: सुखहािनमहाSज:।
नीचै: सह िववादच भृगो: $ाणगते शनौ।।
श` ु क7 सू म दशा मD शिन क7 ाणदशा हो तो राजा का उप_व, P >  , रोगभय एवं नीच# के
 D  / /0*
शु7 क सूgम दशा मK बुध का $ाणदशा फल #
स4तोषो राजस[मानं नानािदHभूिमस[प:
िनयमुसाहवृिf: 6या/छु7$ाणगते बुधे।।
श` ु क7 सू म दशा मD बधु क7 ाणदशा हो तो स,तो6,  . + 1 ,   +  C 
लाभ एवं सदैव उ6साह क7 वृिs होती है।
शु7 क सूgम दशा मK के तु का $ाणदशा फल #
जीिवताम यशोहािनधन धा4य पGर?य:।
यागभोगधनािन 6यु: श7 ु $ाणगते kव/
श` ु क7 सू म दशा मD के तु क7 ाणदशा हो तो जीवन एवं यश क7 हािन, िनध-नता एवं धा,य /
/ +   D  2 +6 / /0*
5+ न: -
1. सयू - क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो या  / /0 )
. भाhय वृिs P. P
> ाि . बिु s परवत-न Q. 

उराखड मु त िवविवालय 249


योितषशा ी       MAJY-202
2. सवा-िधक V  O  .,थ मD C /0*
. जातकपारजात P. वृह6प शरहोराशा .  5 Q. " नह‚
3. श` ु क7 सू म मD गfु क7 ाणदशा हो तो या  C /0*
. 1> वृिs P.    . प6नी ाि Q. अव ाि
4. के तु क7 सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो F   / /0*
.  कृ ित    P. असाCय  . िप कृ  3  Q. व
5. शिन क7 सू म दशा मD सयू - क7 ाणदशा हो तो  +  2 मD  / /0*
. 1AP G म त मD P. ]  मD . 50 मD Q. Z  मD
5.5  
इस इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /  V +  
Zान `म मD ाण दशा के बारे मD अब आप अCय + . /+ /0* 15 / .   / 
V मD सबसे सू म दशा ाण दशा /  /0* !+ 1 र पर सू माितसू म  + +
करना सरल हो जाता है। यह सूम दशा के पचात् आता है। ाण दशा के आधार पर यि] का एक
   5 -परू ा फलादेश िकया जा सकता है। यिप इसका Zान किठन है। इसके आधार पर
फलादेश करना भी आजा क7 ि थित मD दWु क /0, िक,तु आचायK ने जो यह Zान हमD योितष शा
के माCयम से घोर अनसु ,धान के Lारा िदया है उसका अवलोकन करते है। सयू - क7 सू म दशा मD सयू -
क7 ाणदशा हो तो गदु ा मैथनु मD वृि, िवष मD बाधा, F, अिhन और राजभय एवं एवं शारीरक
कWट / /0*सयू - क7 सू म दशा मD च,_मा क7 ाणदशा हो तो सख ु , .-स:पि क7 ाि, बिु s
मD परवत-न, राजा से ऐवय- क7 ाि एवं स,त सजन उदारािद पfु ष# क7 कृ पा रहती है। सयू - क7
सू म दशा मD मगं ल क7 ाणदशा हो तो अ,य# के कारण राजा से उप_व, _य ,  G C/ 
/  /  /0* !   अ,य .ह# क7  ाण  /  /0*

5.6 पा रभािषक शदावली


$ा&  # V मD 3+ सू म /  /0*
अनुस4धा #  P.*
A # 5+E
 ) C
 ) ि थित

उराखड मु त िवविवालय 250


योितषशा ी       MAJY-202
 ) 
अिHन ) 1
5jय ) 
5.7 बोध के उ र
1. Q
2. P
3. 
4. 
5. 
5.8 स#दभ$ %#थ सच
ू ी
1. वृह6पराशरहोराशा - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. सवा-थ-िच,ताCO ) आचाय- वDकटेश
4. योितष सव- व ) सरु े श च,_ िमQ
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
5.9 .  पाठ्यसाम%ी
1. वृह6पराशरहोराशा - आचाय- पराशर
2. जातकपारजात ) आचाय- वैनाथ
3. सवा-थ-िच,ताCO ) आचाय- वDकटेश
4.  5 ) म, ेव
5. वृहजा  ) आचाय- वराहिमिहर
5.10 िनब#धा,मक  न
1. ाण  से आप या C\ + /0*
2. च,_  C .ह का  .ह# मD ाण   P+*
3.  .ह का  .ह# मD ाण   P+*
4. 5  C >  गfु  श` ु .ह# मD  .ह# क7 ाण   P+*
5. राहO .ह का  .ह# मD ाण   P+*

उराखड मु त िवविवालय 251


योितषशा ी       MAJY-202

ख ड-4
कण  

उराखड मु त िवविवालय 252


योितषशा ी       MAJY-202
  1 %1. 7 > पंचमहापुDष फल िवचार
इकाई क संरचना

1.1  ता
1.2 उेय
1.3 5C/  परचय
1.3.1 5C/    
1.4 पंचमहापfु ष परचय एवं फल िवचार
1.5  
1.6 पारभािषक श&दा
1.7 बोध न# के उर
1.8 स,दभ- .,थ  
1.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
1.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 253


योितषशा ी       MAJY-202
1.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के चतथु - खड क7 पहली इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) पंचमहाभतू एवं पंचमहापl ु ष फल िवचार* !+ पवू - आपने दशा अ,तद-शाओ ं
   D ]+ > >   से जड़ु े िविभ,न िवषय# का अCय   /0* 23
आप इस इकाई मD ,5C/   पच ं महापfु ष फल िवचार- के बारे मD अCय + . /+ /0*
5C/  से ता6पय- हI )  C, ., विŒ, आकाश एवं वाय।ु पंचमहापfु ष के अ,तग-त
lचक, भ_, /, मालय एवं शश योग आते हI।
1! इस इकाई मD हम लोग ,पच ं महाभतू एवं पच
ं महापfु ष फल िवचार- + बारे मD तथा
]+  क,ध मD विण-त मह6व को जानने का यास करते है।
1.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• 5C/  को परभािषत कर सकD गे।
• 5C/  के अवयव# को समझा सकD गे।
• पंचमहापfु ष योग या /0 ? !+ समझ लDगे।
• 5C/  +    जान लDग।े
• पच
ं महापfु ष के फल िवचार का ितपादन करने मD समथ- हो सकD गे*
1.3 %1. 7 प रचय
यो 6 शा मD .ह# क7 वत-मान दशा के Zानाथ- ऋिषय# Lारा पंचमहाभतू स:ब,धी Z 
Zान का वण-न िकया गया है। हम सभी जानते है िक मानव शरीर तथा “”ाड का िनमा-ण भी इ,ह‚
पंचमहाभतू # (अिhन,  C,  ,> 1  .) से िमलकर हOआ है। अत: इन सभी का Zान
परमावयक है। सम त +  वेदागं ो या शा # मD इनका उaलेख हमD ाGत / /0* 1! /C
सभी महिष- पराशर Lारा णीत योितष शा मD किथत पंचमहाभतू स:ब,धी Z   अCय
इस इकाई मD यहाँ करते है।
15 जानकर यह हष- होगा  ,वृह6प होराशा - नामक .,थ मD आचाय- पराशर जी ने
,पंचमहाभतू फलाCया- नामक एक वत, अCया  / +P  /0* 2 : /C  ]
/ A 2  Zान ाGत करते हI। सव-थम महिष- पराशर जी ने पंचमहाभतू # के अिधपितय#

उराखड मु त िवविवालय 254


योितषशा ी       MAJY-202
का वण-न करते हOए कहा है िक )
िशिखभूखा[बु    :
तR›लवशाज् !ेयं तRqूतभवं फलम।् ।
अथा-त् अिhन,  C, 1 , . G वायु के अिधपित `म से मगं लािद (मंगल, 3> ,
गfु , श`
ु , शिन) .ह होते हI। जो .ह बली हो, उस .ह से स:बि,ध C/    . 
 /*
1.3.1 %1. 7 0 
3  मंगले विu6व  / :
3 मही6भाव: 6यादाकाश$कृितगुरौ।।
शु7े जल6वभावच मा]त$कृित: शनौ।
िमैिम6वभावच िव!ेयो ि;जसRम।।
लो का अथ- है िक ज,मकाल मD या गोचरकाल मD यिद मंगल बली हो तो अिhनकृ ित,
गfु के बली होने पर आकाशकृ ित, श` ु बली होने पर जलकृ ित एवं शिन के बली होने पर
वातकृ ित होता है। अिधक .ह# के बली रहने पर िमQ वभाव होता है।
सूय\ विu6वभावच जल$कृितको िवधौ।
6व Xहाछायां jयंजयि4त 6व/ * 
अथा-त् सयू - के बली होने पर अिhन वभाव और च,_ के बली होने पर जल वभाव होता है।
सभी .ह 25-अपनी दशा मD अपने महाभतू से स:बि,धत छाया का दश-न कराते हI।
विu6व यु:त पु]ष का ल?ण
?ध ु ातच : शूर: कृश: $ा!ो'ितभ?ण:।
तीgणो गौरतनमु ानी विu$कृितको नर:।।
विŒ वभाव वाला पfु ष धु ा से दःु खी, ,  , N , बिु sमान्, 2  +
  , तीण, गौर वण- और अिभमानी होता है।
भूिम6वभाव यु, प]ु ष का ल?ण
कपरोू पलग4धाG भोगी ि6थरसुखी बली।
?मावान् िसंहनादाच मही$कृितको नर:।।
भतू ¡व वाला पfु ष कपरू तथा कमल के समान ग,ध वाला, , ि थर सख ु से य]
ु , 3,
मता करने मD स म एवं िसंह के समान श&द वाला होता है।

उराखड मु त िवविवालय 255


योितषशा ी       MAJY-202
 $कृितक पु]ष का ल?ण
शMदाथिवत् सुनीित!ो $ग8भो !ानसंयुत:।
िववृता6यो'ितदीघच jयोम$कृितस[भ :
योम कृ ित वाला पfु ष श&द तथा अथ- को जा+   , नीित का Zाता,  > , Zान से
> , 2 N CP >   एवं ल:बे कद वाला होता है।
जल6वभावयु, पु]ष का ल?ण
काि4तमान भारवाही च ि$यवाक् पृiवी:
बहOिम1ो मृदुिव;ान् जल$कृितस[भ :
जलकृ ित वाला यि] काि,तय] ु ,   / +   , C>  6, राजा अिधक िम #
से य]
ु , कोमल और िवLान् होता है।
वायु$कृितक पु]ष का ल?ण
वायुतवा  दाता 7ोधी गौरो'टनि$य:।
भूपितच दुराधष: कृशांगो जायते जन:।।
वायु त6व वाला पfु ष दाता, `ोधी, गौर वण- से य]
ु , pमण , श ु को जीतने वाला
 3> +-5 +    / /0*
अिHन तव क छाया
6वणदीिa: शुभा YिZ: सवकायाथिसिfता।
 / धनलाभच विuभायाh $जायते।।
जब अिhन त6व का उदय होता है तो शरीर मD सोने के स‹श काि,त, स,ु दर ‹ि, सम त
कायK क7 िसिs, . और धनलाभ का आिधय रहता है।
भूत—व क छाया
इ<टग4ध: शरीरे 6यात् सुि6नHधनखद4त
धमाथसख ु लाभाच भूिम/छा   * 
अथा-त् भतू ¡व का उदय होने पर शरीर मD अनेक कार क7 सगु ि,ध,  P , A G +
वjछ तथा धम-,  G सख ु का अ‰यदु य हो जाता है।
jयोम/छाया-ल?ण
6व/छा गगनजा छाया वा:पटुव$दा भवेत।्
सुशMदवणोqूतं सुखं त1 $जायते।।

उराखड मु त िवविवालय 256


योितषशा ी       MAJY-202
अथा-त् आकाशत¡व का उदय होने पर पfु ष मD वjछता, स,ु दरता बोलने मD पटुता होती है तथा
,> दर श&द (गीतािद या भजनािद) Qवण करने मD उसे आन,दानभु ित होती है।
जल/छाया का ल?ण
! 6व6थता देहे जल/छा   *
'भी<टरसा6वाD    :
जब जलत¡व का अ‰यदु य हो तो शरीर मD मृदतु ा, व थता तथा िविभ,न कार के स,ु दर
वाद वाले भोजन C+ + >P >  /  /0*
वायुत—व/छाया का ल?ण
मािल4यं मूढता दै4यं रोगाच पवनोqवा:।
 च शोकस4तापौ वायु/छा   * 
जब वायु त¡व का उदय हो तो उस समय मD शरीर मD मिलनता, Ci ,  , वायसु :ब,धी
  ]    G स,ताप का ाबaय रहता है।
.  फलं बध ु ै!\यं सबलेषु कुजािदष।ु
िनबलेषु तथा तेषु व:तjयं jयययाद् ि;ज।।
इस कार महाभतू (पच ं त6व#) का जो फल ऊपर कहा गया है, वह फल भौमािद .ह# के
बलवान होने पर पणू - lप से ा / /0, अ,यथा बलानसु ार फल# मD भी अaपता तारत:य से
C\  /*
नीचश1ुभगैचा  $ +  *
फलािaरबलै: खेटै: 6वि94च4ता /
यिद .ह वनीच, श रु ािश आिद अिन थानगत हो तो िवपरीत फल समझना चािहए। जो
.ह बलहीन हो, ] फल वGनाव था मD या मानिसक कaपना मD ही ा होता है।
तदु<टफलशा4यथमिप चा!ातज4म *
फलप:या दशा !ेया वतमाना नभ:सदाम।् ।
अथा-त् िजस जातक का ज,मसमय Zात न हो, उसके उ] दशाफल के अनुसार वत-मान
.हदशा समझ कर दु फल हो तो उसके शा,6यथ- उ] .ह क7 आराधना करनी चािहए।
1.4 पंचमहापुBष प रचय एवं लण
5C/  के Zान हो जाने के पचात् पच
ं महापfु ष का यहाँ वण-न िकया जा रहा है।
व ततु : पंचमहापfु ष का स:ब,ध योितष शा मD राजयोग से ही है। यह एक कार का अ6य,त
उराखड मु त िवविवालय 257
योितषशा ी       MAJY-202
>  /  /0* पंचमहापfु ष योग के अ,तग-त lचक, भ_, /, मालय   
उaलेख हमD ाGत / /0* इसके ल ण# के बारे मD हम यहाँ अCययन करते हI -
वृहपहोराशा61 मK किथत पच ं महाप]ु ष योग ल?ण #
अथ वgया[य  -महापु]षल?णम।्
6वभो/चगतके 456थैबिलिभ कुजािदिभः।
7मशो ]चको भ5ो हस ं ो मालjय एव च।
शशैते बुधैः सवामहा4तः पु]षाः 6मृदाः।।
अथा-त् 5  . 3+-हे मै ेय! अब मI आपसे पंच महापfु ष के ल ण कहता ह~।ँ यिद
भौमािद .ह बलवान होकर अपने उjच, वगृह या के ,_ मD होते हI तो जातक `मशः fचक, भ_,
/, मालय और शश नामक िसs महापfु ष होते हI।
]चकल?ण -
दीघाननो महोसाहो 6व/छकाि4तमहाबलः।
चा]भूरनtलके
् शच स]ु िचच रण$यः।।
र,यामौऽGरह4ता च म41िव/चोरना 4
7ूरो भता मनु<याणां ?माऽड्ि“ि;जपूजकः
वीणाव+धनुःपाशवृषच7ाडतः करे।
म41ािभचारकुशली दै•य\ चैव शतांगु 4 
मुखदै•यसमं मkयं त6य िव!ैः $किततम।्
तु8य6तुलासहwेण ]चको ि;जपुंग ! 
भुनि, िव4kयसvि5$देशः सaितं  4
शwेण विuपस वाऽिप स $याित सुरालयम् ।
fचक नामक पfु ष ल:बे मख ु वाला, महान् उ6साही, िनम-ल काि,त वाला, C/ 3, स,ु दर
भ©ह वाला,  + +   , सब व तओ ु ं मD fिच रखने वाला, यs
ु िय, र] कृ Wण वण-, श ु का
/ +   , म, को जा+   ,    , `ूर वभाव वाला, मनWु य# का वामी,
दबु -ल पैर वाला, िव# का पजू क, हाथ मD वीणा, व\, 6> , 5 , वृष च`ािं कत और च`रे खा से
य] ु तथा गy ु िवचार एवं म, ािभचार (मारण, उjचाटनािद) मD द होता है। वह ल:बाई मD सौ
2U > , मख
ु क7 ल:बाई के समान ही मCय भाग वाला तथा तौल मD एक हजार के समान होता है।
वह िव,Cयाचल तथा सyचल पव-त का राजा होकर =; वष- तक राय कर =; वष- क7 आयु मD

उराखड मु त िवविवालय 258


योितषशा ी       MAJY-202
शw या अिhत के Lारा देवलोक मD जाता है।
भ5ल?ण
शादूल$ितभः पीनव?ा गजगितः पमु ान।्
$नाजानुभुजः $ा!चतुरच  * 
साि—वकः शोभनांि“च शोभनमुसंयुतः।
 $ D गदाच7--कुंजरिचuकै ः ।।
kवजलांगल िचuच िचिuतांि“करा[बु/:
सुनासशा61 * धीर: कृ<णा  /  !* 
6वत41: सवकाय\षु 6वजन$ीणन?म:।
ऐवयh भुयते चा6य िनयं िम1जनै: परै:।।
  तुिलतो भार$िमत: 61ीसुताि4वत:।
स?ेमो भूपित: पाित मkय   :
अथा-त् िसंह के तaु य तापी, ऊँचे व ः थल वाला, / D + C     ,
जानपु य-,त ल:बी भजु ा वाला, पिडत, F,   . +   , स¡व गणु ी, स,ु दर चरण और
स,ु दर दाढ़ी-CZ   ,  C, P- -च`- + -/ D-Cवजा-/-इन िच,ह# से अिं कत हI चरण
G .> .+ , स,ु दर नािसका वाला, शाw को जानने वाला, ग:भीर, काले और घँघु राले बाल#
+ >  , सम त कायK मD वत, एवं अपने जन# का भरण-पोषण करने मD स म भ_ पfु ष होता
है। अपने िम जन तथा अ,य जन भी इसके धन का उपभोग करते हI।
इनका तौल एक भार के तaु य होता है। यह wी-पु से य]
ु , सामUय-वान एवं मCय देश का
5  /  F    . / /0*

 ल?ण #

  हस
ं 6वरो गौर: सुमुखो4न :
ले<म  मधिु पगं ा?ो र:तवणनख: सध ु ी:।।
पीनग-ड6थ  वृRिशरा: सुचरणो नृप:।
म6यां   धनु: शंख कंज खट्वांग िचuकै :।।
िचिह4तांि“कर: 61ीषु कामातV नैित तु<ट *
ष--वयं  दै•य\ जल7डारत: सुखी।।
गंगायमुनयोमkय    :

उराखड मु त िवविवालय 259


योितषशा ी       MAJY-202
वना4ते िनधनं याित भु:वा सवसुखं भुिव।।
हसं के तaु य वर वाला, स,ु दर मख ु और उjच नाक वाला, कफ कृ ितक, C> + C 
पीला ने ,    P , ,> दर बिु s वाला, मजबतू गड थल वाला, वृाकार (गोल) िशर वाला
एवं स,ु दर चरण वाला राजा होता है। उसके चरण और बाह~ मछली, 2> , 6> , P, C,
खिटया के समान रे खाओ ं से अिं कत होते हI। वह कामी होता है और स:भोग से तृ नह‚ होता। वह
ल:बाई मD KB 2 >  होता है। जलिवहार मD रत होकर सख ु पवू क
- गड्डा तथा यमनु ा के मCचय
देश का र क होकर सम त भिू म का सुख भोगकर सौ वष- के अन,तर वन मD हसं पfु ष का िनधन
/ /0*
मालjय पु]ष का ल?ण #
समौ<ठ: कृशमkयच च45काि4तSिच: पमु ान।्
सुग4धो नाितर:तां न ‘6वो नाितदीघक:।।
सम6व/छ हि6तनाद आजानुबाहOधृक्।
D िववांगलु ं दै•य\ िव6ता   * 
मालjयो मालवायं च देशं पाित स िस4धु *
D स9तितवषा4तं भु:वा    * 
! लोक का अथ- है िक - स,ु दर ओ‘, मCय भाग पतला, च,_मास‹श स,ु दर काि,त वाला, 
मD सगु ,ध वाला, सामा,य र] वण- वाला, न छोटा और न अिधक ल:बा, बिaक मCयम कद वाला,
स,ु दर और वjछ दाँत वाला, हाथी के समान श&द वाला, घटु न# तक ल:बी भजु ा वाला एवं 97
अगं लु ल:बाई और चौड़ाई मD 9; अगं ल ु मख ु वाला मालय पfु ष होता है। वह िस,धु तथा मालय
देश का सख ु पवू क
- पालन करके =; वष- क7 अव था मD देवलोक चला जाता है।
 पु]ष का ल?ण #
तनुि;जमुख: शूरो नित‘6व: ! :
मkये ?ाम: सज ु ंघच मितमान परर4l * 
श:तो वनाि5दुग\षु सेनानीद4तु: :
  धातुवादी च 61ीश:तो'धनाि4वत:।।
  $& ! '- रेखािं कतकरांि“क:।
' वसुधा पाित जीवन् खाि5समा: सुखी।।
अथा-त् , दाँत और मख ु से सामा,य आकार वाला,  , C 5  , बीच मD रे शमी, स,ु द

उराखड मु त िवविवालय 260


योितषशा ी       MAJY-202
.Q , बिु sमान्, श ओ ु ं का िछ_ जानने वाला, वन तथा पव-त और दगु - मD रहने वाला, + 
वामी, सामा,यतया ऊँचे दाँत वाला, ,  > , wी मD अनरु ] एवं दसू रे के धन से य] ु
ल ण वाला शश पfु ष होता है। इसके हाथ और पैर मD माला, O , CN U तथा शw के समान रे खा
के िच,ह होते हI। यह पृUवी के अिधकतर भाग# पर =; वष- तक शासन करने के उपरा,त देवलोक मD
 . /0*
5+ न
1. 5C/  F-F + /0?
. पृUवी, ., अिhन, 1 ,  > P. ि ित, धŽू , 5 , 1 ,  >
. पृUवी, .ह, 5 , 1 ,  > Q. ि ित, ., C+Q, 1 ,  >
2. मानव शरीर का िनमा-ण िकतने त6व# से िमलकर हOआ है।
. B P. = .: Q.J
3. ज,मकाल के दौरान जातक का मगं ल बल हो तो िकस त6व क7 अिधक /*
. वायु ख. आकाश ग. अिhन घ. जल
4. िन:न मD fचक योग िकस .ह से बनता है।
क. बधु ख. मगं ल ग. श` ु घ. शिन से
5. मालय पfु ष के ओWठ 0  / *
क. स,ु दर ख. काला ग. कुfप घ. कोई नह‚
6. भ_ पfु ष का ल ण कै सा होगा।
क. चोर ख. राजा ग. िसंह के समान तापी घ. शरू वीर
7. शश नामक योग िकस .ह से बनता है।
क. बधु ख. मगं ल ग. श` ु घ. शिन से

1.5 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  यो 6 शा मD .ह# क7 वत-मान दशा
के Zानाथ- ऋिषय# Lारा पंचमहाभतू स:ब,धी छाया Zान का वण-न िकया गया है। हम सभी जानते है
िक मानव शरीर तथा “”ाड का िनमा-ण भी इ,ह‚ पंचमहाभतू # (अिhन,  C,  ,> 1 
.) से िमलकर हOआ है। अत: इन सभी का Zान परमावयक है। सम त वेद एवं वेदांगो या शा #

उराखड मु त िवविवालय 261


योितषशा ी       MAJY-202
मD इनका उaलेख हमD ाGत होता है। आइए हम सभी महिष- पराशर Lारा णीत योितष शा मD
किथत पच ं महाभतू स:ब,धी छाया का अCययन इस इकाई मD यहाँ करते है। ,वृह6प /राशा -
नामक .,थ मD आचाय- पराशर जी ने ,पंचमहाभतू फलाCया- नामक एक वत, अCया  /
+P  /0* अिhन,  C, 1 , जल और वायु के अिधपित `म से मंगलािद (मंगल, 3> ,
गfु , श`
ु , शिन) .ह होते हI। जो .ह बली हो, उस .ह से स:बि,ध C/    . 
 /*
1.6 पा रभािषक शदा
> ) शकुन का शाि&दक अथ- है )प ी। दसू रा अथ- िनिम भी होता है।
पaली ) Z5
अव ) QU
. ) / D
F )  
5  )  D,  , न ,   O + C/  5  / + /0*
योितिव-द ) योितष शा  . +  
िनिम )  O
1.7 बोध  न के उ"र
1. 
2. Q
3. 
4. P
5. 
6. 
7. Q

1.8 स#दभ$ %#थ 


वृह6प  होरा शा )
.  पारजात )

उराखड मु त िवविवालय 262


योितषशा ी       MAJY-202
1.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
वृह6प  होरा शा
.  पारजात
वृह6सं /
यो 6 रह य
सयू - िसsा,त
1.10 िनब#धा,मक  न
1. पंचमहाभतू से आप या C\ + /0* पWट क7िजये।
2. पचं महापfु ष के ल ण िलिखये*
3. 5C/    P+*
4. fचक आिद योग# का वण-न क7िजये*

उराखड मु त िवविवालय 263


योितषशा ी       MAJY-202
 - 2 स,वािद गुणफल
इकाई क संरचना

2.1  ता
2.2 उेय
2.3 स6वा O>  परचय
2.4 स6वािद गणु # का फल
2.5  
2.6 पारभािषक श&दा
2.7 बोध न# के उर
2.8 स,दभ- .,थ  
2.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
2.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 264


योितषशा ी       MAJY-202
2.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के चतथु - खड क7 दसू री इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) स6वा O> * !+ पवू - आपने  यो 6 + .U> + 5C/  
पंचमहापfु ष ल ण से स:बि,धत िवषय# का अCययन कर िलया है। अब आप इस इकाई मD
,स6वा O> - + बारे मD अCय + . /+ /0*
,स6वा O> - से ता6पय- है ) स6व, रज एवं तम गणु । सव-िविदत है िक 6येक मनWु य मD
 / + O> (स6व, ., G C) पाये जाते हI। इ,ह‚ गणु # के अनसु ार यि]य# के य/ 
एवं चर भी होते हI। अत: इनका Zान भी परमावय /0*
1! इस इकाई मD हम लोग ,स6वा O> - के बारे मD तथा उसके शभु ाशभु ल ण# के
बारे मD जानने का यास करते है।
2.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• स6वा O> को परभािषत कर सकD गे।
• स6वा गणु # + अवयव# को समझा सकD गे।
• स6वा गणु # के कारण# को समझ लDगे।
• स6वािद गणु # के ल ण# को जान जायDग।े
• स6वा गणु # के मह6व को ितपािदत कर सकD गे*

2.3 स,वा* $/ 0 प रचय


भारतीय वैिदक वांhमय मD 6येक मानव के अ,दर गणु य होने क7 बात कही  /0* + 
गणु हI ) स6व, रज एवं तम। इ,ह‚ गणु # के यि] के भीतर अिधक- कम मा ा मD होनD से तदनसु ार
उसक7 वृि हो जाती है। अथा-त् यिद िकसी मD स6व क7 अिधकता होगी, तो वह यि] भी स6य
3+   / G    / * यिद िकसी मD .O> क7 2 /   . वृि
का होगा। इसी कार यिद िकसी मD तम गणु क7 आिधता /  / 1, मादी एवं
अहक ं ारी वृि वाला यि] होगा।
O> के अनसु ार यि] क7 कृ ित बदल जाती है, ऐसा आचायK के Lारा कहा गया है। अब

उराखड मु त िवविवालय 265


योितषशा ी       MAJY-202
वृह6प शर होरा शा मD आचाय- पराशर Lारा णीत स6वा O>     / A 15 
+   . / /0*
2.4 स,वा* $/ 0 

सव-थम आचाय- गणु य क7 फल# क7 बात करते हOए कहते है िक -


 लो : -
अथो गुणवशेनाहं कथयािम फलं ि;ज।
सवXहोदये जातो भवेत् सवा : $:
रज: खेटोदये िव!ो रजोगुणसमि4वत:।
तम: खेटोदये मूखV भवेजात6त ' :
गुणसा[ययुतो जातो गुणसा[यD
एवं चतुिवधा िव$ जाय4ते ज4त   
उRमो मkयमो नीच उदासीन इित 7मात।्
 &  वgये नारदािद $भािषतान।् ।

अथा-त् जब अिधक स6व गणु .ह# क7 बलता रहती है तो उस समय उ6प,न जातक स6वO>  G
स,ु दर बिु sवाला होता है। रजोगणु ािधक समय मD उ6प,न जातक रजोगणु से यु त एवं िवLान होता है।
तमोगणु ािधक समय मD उ6प,न .  तमोगणु ी एवं िववेकश,ू य / /0* O> -सा:य समय मD उ6प,न
जातक िमिQत गणु वाला और मCयम बिु s का होता है। इस कार उम, मCयC, 2C, ]  +
चार कार के ज,तु ससं ार मD उ6प,न होते हI। अब यहाँ उनके गणु # को कहा गया है, .   
C/िष-य# + / /0*
उRम प]ु ष के ल?ण-
शमो दम6तप: शौचं ?ाि4तराजवमेव च।
अलोभ: सयवािदवं जने सव  &:
इि,_य तथा मन को िनय, O  , तप या, पिव ता, मा,  , / , स6य  G
साि6वक गणु # से यु त उम पुfष होता है, /  D C  / /0*
मkयम पु]ष के गुण-
शौयh तेज धृितदाgयं युfे चा'9य  *

उराखड मु त िवविवालय 266


योितषशा ी       MAJY-202
साधूनां र?णं चेित गुणा !ेयां रजो'  
 , तेज वी, धैय,-  > , यs ु मD पीछे न हटना, साधओु ं क7 र ा करना रजोगणु ािधक पfु ष# के
गणु हI।
अधम पु]ष के ल?ण-
लोभचासयवािदवं जाडयमाल6य  
सेवाकमपटुवं & .  '  
, अस6य 3+   , मख ू -, आलसी तथा सेवाकाय- मD चतरु ता ) ये तमोगणु ी पfु ष# के गणु
हI।
उदासीन पु]ष के गुण-
कृिषकमिण वािणये पटुवं   
सयासय$भािषवं गुणसा[ये & E 
कृ िष कम-, यापार और पशपु ालन मD पटुता, अस6य तथा स6य 3 - ये गणु सा:य स6व, .,
तमिमिQत उदासीन पl ु ष# के ल ण हI।
एतैच ल?णैलgय उRमो मkय ' :
उदासीनच िव$े45 तं तकमिण योजयेत।् ।
हे िव पवू eत ल ण# का अवलोकन करके ही पfु ष# के उम, मCयC,  G ]  + 
जानना चािहए। तदनु सार जो िजस काय- का स:पादन करने मD स म हो, उसे उसी काय- मD लगाना
 /*
;ाmया  'िधको यच त6यािध:यं िनगFते।
अ4यथा गण ु सा[यं च िव!ेयं ि;जसRम।् ।
पवू eत स6व, ., C- इन तीन# गणु # मD जो एक गणु , शेष दो गणु # से बल हो उसक7 अिधकता
मानी जाती है। इसके िवपरीत अथा-त् िकसी भी एक का बल शेष दो से अिधक न /+ 5 5
गणु सा:य C  . /0*
गुण!ान का महव #
सेjय सेवकयोरेवं क4य  
गणु ै: सYशयोरेव $ीितभवित िनच 
वामी तथा सेवक मD तथा वर एवं क,या मD यिद तaु य गणु हो तो दोन# मD सदु ीघ-कािलक ेम होता है।
A$'धम6यैवमुदासीन6य मkय :

उराखड मु त िवविवालय 267


योितषशा ी       MAJY-202
मkयम6योRमो िव$ $भवयायो मुदे।।
पवू ोत I कार के मनWु य# मD अधम का वाC ] , उदासीन का वामी मCयम एवं मCयC 
वामी उम जन हो तभी पर पर ेम और आन,द. P > / /0*
B'  त् क4या सेjय:  ' :
गुणै6तत: सुखोपिRर4य)   
वर से क,या एवं वामी से सेवक गणु मD कम हो तो आपस मD ेम और सख ु होता है। इससे अ,यD
क,या से वर एवं सेवक से वामी यिद हीन वण- का हो तो वहाँ सदैव हािन ही होती है।
वीयh ?े1ं $सूतेच समय: सगं ित6त)
उRमािदगुणे हेतुबलवानुRरोRरम।् ।
C , 5 , ज,मC, संसग-ज,य O> - ये सभी उमािद गणु # के कारण होत है। इनमD उरोर हेतु
3  / /0*
अत: $सूितकाल6य सYशे जातके गुण:।
/ तं परीgयैव फलं वा/यं िवच?णै:।।
इसिलए ज,मकाल मD िजस गणु का ाबaय रहता है वही गणु जातक मD भी ाGत / /0* 2 :
ज,मकाल क7 स:यक् कार से परी ा करके ही फलादेश करना चािहए।
काल: सृजित भूतािन पायथो सहं रय
ईवर: सवलोकानामjय    :
सम त लोक# के वामी अिवनाशी एवं यापक भगवान काल ही सम त चराचर जगत् के उ6पा ,
पालक और संहारक भी हI।
त/छि,: $कृित: $ो:ता मुिनिभिwगण ु ािमका।
तथा िवभ:तो 'jय:तो'िप jय:तो     * 
] काल भगवान क7 ि गणु ाि6मका शि] ही कृ ित कही जाती है, .+  .  
अयत काल भी यत होते हI।
चतुधा'वयवा6त6य 6वगुणैच चतुिवध:।
जाय4ते vR ु मो मkय A$'धम: 7मात।् ।
उस यत वlप वाले भगवान काल के अपने कृ ित गणु के अनुसार `म से उम, मCयC,
]  D 2C- + I कार के अवयव होते हI।
उRमे तूRमो ज4तुमkयमKग च मkय :

उराखड मु त िवविवालय 268


योितषशा ी       MAJY-202
उदासीने vुदासीनो जायते चा' ' :
उस यापक भगवान काल के उम अगं मD उम जीव (  2), मCयC 2 मD मCयम ज,त,ु
उदासीन अगं मD उदासीन ज,तु और अधम अगं मD अधम ाणी क7 उ6पि होती है।
उRमांग िशर6त6य मkयमांगमुर:6थ *
जंघा;यमुदासीनमधमं पदमु/य
यापक काल भगवान का उम अगं म त, मCयम अंग दोन# हाथ तथा छाती, ] न अगं दोन#
जघं ा तथा अधम अगं दोन# पैर कहा गया है।
एवं गुणवशादेव कालभेद: $जायते।
जाितभेद6तु तqेदाजा'1 चरा'
इस कार गणु के भेद से ही कालभेद हो जाता है और कालभेद के अनl ु प ही चर तथा अचर मD
.  + / . /0*
.    !<टं िवभुना 6व&(:  *
चतुिवधेन कालेन जगदेत/चतुिवधम।् ।
इस कार चतिु व-ध परमेवर काल ने अपने गणु # के अनुlप ही संसार को चार भेद# से समि,वत
3  /0*

5+ न-
1. गणु य से ता6पय- है।
. स6व, .  C P. ., , C ग. स6व,  ,> अिhन घ. कोई नह‚।
2. तमोगणु ी होन से यि] होता है।
. अिभमानी ख. साि6वक ग. परोपकारी घ. राजा
3. काल के िकतने अवयव होते हI।
. 8 P.I .B Q. 7
4. लोभी िन:न मD िकसका गणु है।
. . P. C ग. स6व घ. कोई नह‚
5. मन को िनय, ण मD रखना िकस पfु ष का गणु है।
. उम ख. मCयC . 2C Q.  .

उराखड मु त िवविवालय 269


योितषशा ी       MAJY-202
2.5 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  भारतीय वैिदक वांhमय मD
6येक मानव के अ,दर गणु य होने क7 बात कही गयी है। ये तीन गणु हI ) स6व, रज एवं तम। इ,ह‚
गणु # के यि] के भीतर अिधक- कम मा ा मD होनD से तदनसु ार उसक7 वृि हो जाती है। अथा-त्
यिद िकसी मD स6व क7 अिधकता होगी, तो वह यि] भी स6य 3+   / G   
/ । यिद िकसी मD रजोगणु क7 अिधकता होगी तो राजसी वृि का होगा। इसी कार यिद िकसी
मD तम गणु क7 आिधता /  / 1, मादी एवं अहक ं ारी वृि वाला यि] होगा।
O> के अनसु ार यि] क7 कृ ित बदल जाती है, ऐसा आचायK के Lारा कहा गया /0* 23
वृह6पराशर होरा शा .,थ मD णीत स6वािद गणु # का फल इस इकाई मD विण-त है।

2.6 पा रभािषक शदा


स6वा O> ) स6व, ., तम गणु # को स6वा O> / . /0*
O> य ) स6वािद तीन गणु # को गणु य कहा जाता है।
साि6वक ) स6य 3+   ,   , धमा-6मा,  *>
 . )   . .+   *
C ) 2C , रा स।
5C/  ) अिhन,  ,> 1 , ., पृUवी

2.7 बोध  न के उ"र


1. 
2. 
3. P
4. P
5. 
2.8 स#दभ$ %#थ 
वृह6प  होरा शा )
.  पारजात )

उराखड मु त िवविवालय 270


योितषशा ी       MAJY-202
2.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
वृह6प  होरा शा
.  पारजात
वृह6सं /
यो 6 रह य
सयू - िसsा,त
2.10 िनब#धा,मक  न
1. साि6वक गणु से आप या C\ + /0* पWट क7िजये।
2. साि6वक गणु # के फल िलिखये
3. उम, मCयC वं अधम पfु ष# का वण-न करते हOए उनका फल िलिखये*
4. फिलत योितष मD साि6वक गणु फल का मह6व ितपािदत क7िजये*

उराखड मु त िवविवालय 271


योितषशा ी       MAJY-202
 - 3 मानव शरीर के िविभ#न अंग के लण
इकाई क संरचना

3.1  ता
3.2 उेय
3.3 मानव शरीर के अगं # का ल ण परचय
3.4 नारय# के िविभ,न अगं # का ल ण
3.5  
3.6 पारभािषक श&दा
3.7 बोध न# के उर
3.8 स,दभ- .,थ  
3.9 सहायक पाठ्यसाम.ी
3.10 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 272


योितषशा ी       MAJY-202
3.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के चतथु - खड क7 तीसरी इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
का शीष-क है ) मानव शरीर के िविभ,न अगं # का ल ण* !+ पवू - आपने   /
योितष से जड़ु े िविभ,न िवषय# का अCययन कर िलया है। अब आप इस इकाई मD ,शरीर के अगं #
का ल ण- के बारे मD अCय + . /+ /0*
यो 6 शा मD किथत मानव शरीर के िविभ,न अगं # का ल ण का Zान  
.,थ# + 1  5 /C इस इकाई मD करने जा रहे हI।
1! इस इकाई मD हम लोग ,मानव शरीर के िविभ,न अगं # के ल ण- के बारे मD . +
का यास करते है।
3.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
•  के अगं # के ल ण को परभािषत कर सकD गे।
• िwय# + िविभ,न अगं # के ल ण को जान जायDगे।
• पfु ष# के अगं # का ल ण समझ लDग।े
• शरीर के अगं # के ल ण को ितपािदत करने मD समथ- हो सकD गे।
•  अगं # के ल ण के मह6व को बता सकD गे।

3.3 1  4 िविभ#न अंग का लण प रचय


योितष शा मD ऋिषय# ने िनर,तर अनसु ,धान कर मानव शरीर के िविभ,न अगं # के
ल ण को बतलाया है। शीष- से पाद (50) तक मानव शरीर के िविभ,न अगं # क7 आकृ ितय# एवं
उनके lप# तथा ल ण# के आधार पर अलग-अलग फल कहे गये हI। वृह6पराशरहोराशा .,थ
मD आचाय- पराशर ने ी के शरीर के िविभ,न अगं # को अगं ल णाCया (:7 वाँ अCया) मD
िव तृत lप मD ितपािदत िकया है। उनका कथन है िक िwय# के समान ही पfु ष# के अगं # का भी
ल ण जानना चािहए। 6येक मनWु य के शरीरागं # क7 बात करD तो सबमD कुछ न कुछ िभ,नता अवय
/  /0, .0+ " CE / /0 " 5  , "  "   , िकसी क7 ऑखं D बड़ी होती है
िकसी क7 छोटी, िकसी के बाल ल:बे होते हI,  + ZE+,  + QQA>  +   + +*

उराखड मु त िवविवालय 273


योितषशा ी       MAJY-202
िकसी का ओWठ काला तो िकसी का लाल होता है। िकसी क7 कमर मोटी होती है, तो िकसी क7
5 ,  + P P> + / + /0, तो िकसी के िचकने आिद इ6यािद। इ,ह‚ सभी ल ण# एवं गणु #
के आधार पर शरीर के िविभ,न अगं # का ल ण का िवचा  . /0*
हम जानते हI िक सृि क7 मता नारी के पास होती है। अत: सृि, समाज व परवार मD
िwय# का िवशेष योगदान है। अत: िwय# क7 धानता को देखते हOए ऋिषय# ने उनके शरीर के
िविभ,न अगं # का जो ल ण कहा है, उसे यहाँ आप लोग# के Zानाथ- वण-न िकया जा रहा है।
 शरीर के िविभ4न अंग से अिभ$ाय - शीष- (म त), CP > , 1AP,  , द,त, + ,
ह त, tदय, .ीवा, ] , Z , त, P, 5W, 50, िनत:ब, गy ु माग-, 5 , 2A> , . ,> उf,
जघं ा आिद से हI। कुछ िवशेष एक-  2 को छोड़ िदया जाय तो पfु ष एवं िwय# दोन# मD ये सभी
अगं होते हI।
3.4 ना रय के िविभ#न अंग का लण िवचार
सव-थम मै ेय मिु न के कहने पर आचाय- पराशर जी ने िwय# के अगं ल ण# को बताते हOए कहा
- मूल लो :-
बहOधा भवता $ो:तं ज4म  * ' *
ोतुिम/छािम नारीणामंगिचuै : फलं मुने।।
अथा-त् मै ेय + / -हे मनु े! अपने ज,मकािलक लhन के अनसु ार बहOत से शभु ाशभु फल# को कहा,
अब मI नारय# के अगं ल ण के माCयम से शभु ाशभु फल सनु ना चाहता ह~।ँ
 A  #
णृ ु िव$ $वgयािम नारीणामंगल?णम।्
+  )''ह पावयै भगवान् शक ं र6त)
लो का अथ- है िक 5  + / -हे िव! पवू - समय मD िजस कार भगवान् शक
ं र ने पाव-ती को
नारय# के अगं ल ण Lारा शभु ाशभु फल बतलाया था, उसी कार मI भी आपको नारय# +
अगं ल ण Lारा शभु ाशभु फल बतलाता ह~।ँ
 ल?ण-
ि6नHधं पादतलं 61ी& !     *
र:तम6वेदमु<णं च बहOभोग- $दायकम।् ।
िववणh प]षं S?ं खि-डतं िवषमं तथा।

उराखड मु त िवविवालय 274


योितषशा ी       MAJY-202
सूयाकारंच शु<कं च दु:खदौभाHय * 
ज,मकाल मD िजस wी के पैर के तलएु (िनचला भाग) िचकने, C, पु , C ( 2 3U , 
ZE ), र], पसीने से हीन और गरम ह# वह wी अिधक भोग करने वाली होती है। िजसके तलएु
खराब वण- के , W, lखे, E+- E+, 6C, E+i+-C+i+, सपू - के स‹श और शWु क ह# तो वह wी दःु P
तथा दभु ा-hय   +   /  /0*
 D #
D -6वि6तक-च7ा'Mज kव/- $''तप1वत।्
य6या: पादतले िचuं सा !ेया ि?ितपांगना।।
भवेत् सम6तभोगाय तथा दीघVkवD 
रेखा: सपा''D- काकाभा दु:खदाGर5यसिू चका:।।
िजस wी के पादतल मD शंख, वि तक, च`ाकार, C, Cवज, मछली एवं छाता के िच,ह अिं कत
ह# एवं ऊCव- रे खा ल:बी हो तो वह wी बहOत सख
ु भोगने वाली रानी होती है। िजस wी के पादतल मD
सप-, मषू क या कौवे के समान िच,ह हो वह wी दःु ख भोगने वाली दर_ा होती /0*
पादनखल?ण-
र:ता: समु4नता: ि6नHधा वृRा: पादनखा: शभ ु ा:।
6फुिटता: कृ<णवणाच !ेया अशुभसूचका:।।
िजस wी के पैर के नाखनू लाल वण- के , cA+, गोलाकार एवं िचकने ह# तो वे शभु दायक होते हI।
िजसके पैर के नाखनू फटे हOए और काले ह#, + अशभु ता को सिू चत करते हI।।=**
अंगु<ठल?ण #
उ4न  'H*< ठो वतुलो' :
व7ो ‘6वच िचिपटो दु:खदाGर5यसूचक।।
िजस wी के पैर का अँगठू ा ऊँचा, पु और गोलाकार हो, / 2 >   +   /  /0,
 D /  2W E+i , छोटा एवं िचपटा हOआ हो तो वह दःु ख एवं दर_ता का सचू क होता है।
पाद के अंगुिलय का ल?ण #
! 'H*ल
 य: श6ता घना वR
ृ ाच  :
दीघाH*लीिभ: कुलटा कृशािभधनविजता।।
उराखड मु त िवविवालय 275
योितषशा ी       MAJY-202
पैर क7 अगं ु  A C, Q, वृाकार और पु ह#,  >  ; ल:बी ह#  >E 
5  2 >  /+ पर wी धन से हीन होती है।
भवेद्l6वािभर8पायुिवषमािभच कुœनी
िचपटािभभवेˆासी िवरलािभच िनधना।
य6या िमथ: समा]ढा: पादांग8ु यो भवि4त िह।
बह‰निप पतीन् हवा पर$े<या    * 

िजस wी के चरण क7 अगं िु लयाँ छोटी ह# वह अaपायु होती है। िवषम (छोटी-3U, E+i-C+i) / 
>..., 5E /  , िछ_ वाली हो तो िनध-नी एवं िजसक7 अगं िु लयाँ ऊपर उठी ह# वह बहOत
पितय# का हनन कर अ,त मD दसू रे क7 सेिवका होकर जीवन- 5 +   /  /0*
य6या: ) चल4याच रजो भूमे: समु/छ *
सा पांसुला भवे4नारी कुल1यिवघाितनी।।
य6या: किनि€का भूिमं ग/छ4या न पGर6पृ*
सा िह पूवपितं हवा ि;तीयं कु]ते पितम।् ।
िजस wी के माग- मD चलने पर धल
ू उड़े वह wी तीन# कुल मD लांछन लगा+   >E /  /0*
िजस wी के चलने पर किनि‘का अगं ल ु ी से भिू म का पश- न हो, वह wी पवू - पित का हनन क
  5 3 +  /0*
मkय 'नािसका चािप य6या भूिमं न सं6पृ*
पितहीना च सा नारी िव!ेया ि;जसRम।।
$देिशनी भवेF6या अंग<ु ठाद् jय &$
क4यैव दूिषता सा 6यात् कुलटा च तदXत:।।
िजस wी के चलने पर मCयमा तथा अनािमका अगं िु लय# से भिू म का पश- न हो, /   5 /
(िवधवा) होती है। िजस wी के अगं ठू े के अितर] उसके ऊपर भी अगं लु ी हो, वह क,याव था मD ही
पfु ष के स... से दिू ष >E  /  /0*
पादप<ृ ठ ल?णम् #
उ4नतं पादपृ<ठं चेत् तदा रा!ी भवेद् lुवम।्

उराखड मु त िवविवालय 276


योितषशा ी       MAJY-202
अ6वे G   !& !
अ4यथा धनहीना च िशरालं चेRदा'kव
रोमाढयं चेद् भवेˆासी िनमासं यिद दुभगा।।
िजस wी का पादपृ‘भाग उ,नत हो एवं पसीने से रिहत,   / , पु ,  G C / /
रानी होती है। इसके िवपरीत होने पर धन से हीन दर_ा होती है। पाद का पृ‘भाग िशरा‹ हो तो माग-
मD pमण करने वाली, C/ /   G C A/त हो तो दभु ग- ा होती है*
पैर के िपछले भाग का ल?ण #
सभु गा समपाि<ण: 61ी पृथपु ाि<णच दुभगा।
कुलटो4नत पाि<णच दीघपाि<णच :D
िजस wी के पैर का िपछला भाग (एड़ी) बराबर हो वह सभु गा, थलू हो तो दभु ग- ा, cA /+ 5
कुलटा एवं ल:बा /  f> P /  /0*
जंघा ल?ण #
अरोमे च समे ि6नHधे य6य जंघे सवु तुले।
िविसरे च सुर[ये सा राजपनी भवेद् lुवम।् ।
िजस wी का जघं ा (50 + c5  QE> + + +   ) C/ , C ,  ,   ,
िशराहीन एवं देखने मD स,ु दर हो, वह wी राजप6नी होती है।
जानु ल?ण #
वतुलं मांसलं ि6नHधं जानयु ुHमं शभ
ु $दम।्
िनमासं 6वैरचाGर-या िनधनायाच िवल) * 
िजस wी का जानु (घटु ना) गोलाकार, पु तथा िचकना हो तो वह उसके िलए शभु द होता है।
मांसहीन हो तो वह wी वjछ,द घमू ने वाली एवं िशिथल हो तो धनहीन दर_ा होती है।।8j**
N] ल?ण #
घनौ कGरकराकारौ वतुलो मदृ ु लौ शभ ु ौ।
य6या N] िशराहीनौ सा रा!ी भवित lुवम।् ।
िचिपटौ रोमशौ य6या िवधवा दुभगा च सा।।
िजस wी का उf (जाँघ) हाथी के सँडू के समान गोलाका /, घने (िमले हOए), C    +

उराखड मु त िवविवालय 277


योितषशा ी       MAJY-202
/ /, वह wी रानी होती है। िजस wी का जाँघ िचपटा और रोमय]
ु हो वह wी िव G
दभु ग- ा होती है।
किट ल?ण #
चतुिभिवशितयुतैरंगुलैच   :
समु4नत िनत[बाढया $श6ता 6या* !$ * 
िजस wी क7 किट (कमर) 8I 2
> /, िनत:ब उ,नत हो तो ऐसी मृगनयनी wी सौभाhयवती होती
/0*
िवनता िचिपटा दीघा िनमाhसा संकटा किट:।
‘6वा: रोमै: समायु:ता दु:खवैधjय 
िजस क,या क7 किट टेढ़ी, 5E, ल:बी, C / , > , ZE  मय]
ु हो, वह wी दःु ख
तथा वैधय को ा करने वाली होती है।
िनत[बल?ण #
िनत[ब: शुभद: 61ीणामु4न  : !):
सुखसौभाHयद: $ो:तो !ेयो दु:ख$दो'4य)
wी का उ,नत, पु एवं थलू िनत:ब सख
ु -सौभाhयदायक होता है, !+ 5त होने पर दःु खद
/ /0*
भग ल?ण #
61ीणां गूढमिण6तुंगो र:ता  :
भग: कमठपृ<ठा: 'वथ  ! :
wी का भग यिद िछपा हOआ, मिणतुaय, उjच लाल वण- का, मल ु ायम रोम से य]
ु , Z> + 5W +
स‹श उ,नत एवं पीपल के पे के तaु य हो तो उसे शभु द माना गया है।
कुरंगखुरSपो यचुि8लकोदरसि4नभ:।
रोमशो Yयाशच िववृता6यो'शुभ$द:।।
CN + P> + C , चहू े के उदर (पेट) के तaु य, कठोर रोमय]
ु , cA CO    P
> CP
>
 ला भग अशभु द कहा गया है।

उराखड मु त िवविवालय 278


योितषशा ी       MAJY-202
वामो4नत6तु क4याज: पु1जो दि?णो4न:
शंखावतV भगो य6या: सा िवगभा'H* 
िजस wी का भग बाँय‚ ओर ऊँचा हो तो वह भग क,या स,तानकारक एवं दि ण तरफ उ,नत हो तो
वह पु स,तानकारक होता है। शख
ं के तaु य वलय वाला भग हो तो उस भग Lारा गभ- धारण नह‚
/ *
वि6त ल?ण #
मृ;ी वि6त: $श6ता 6याद् िवपुला8पसमु4न
रोमाढया च िशराला च रेखांका न शुभ$दा।।
िजसक7 वि त (नािभ से नीचे एवं योिन से ऊपर का भाग) मल
ु ायम, 3U  DU cA /  ]+
शभु कारक जानना चािहए। रोग से य] ु ,   /  रे खाय]ु वि त को अशभु द जानना
 /*
नािभल?ण #
ग[भीरा दि?णावता नािभ: सवसुख$दा।
jय:तXि4थ: समुRाना वामावता न शोभना।।
िजस wी क7 नािभ दबी हOई एवं दि ण तरफ घमु ी हOई हो तो वह सम त सुख दान करने वाली होती
/0 D >Z c5 क7 ओर उठी हOई, वाम तरफ घमु ी हOई और उठी हOई .ि,थ वाली /  /
2 >   /  /0*
कुि? ल?ण-
पथृ ुकुि?: शुभा नारी सूते सा च बह‰न सुतान।्
भूपितं जनयेत् प1ु ं म-डूकाभेन कुि?णा।।
िजस wी क7 कुि (पेट) िव तारय] ु हो तो वह शभु होती है और अिधक पु # को उ6प,न करने मD
स म होती है तथा िजसका पेट मेढ़क के समान हो, उसका पु राजा होता है।
उ4नतेन वलीभाजा सावत\न च कुि?णा।
व4kया सं4यािसनी दासी जायते 7मशो'3 
उ,नत कुि वाली wी व,Cया होती है, वलीयतु उदर वाली सं,यािसनी होती है एवं भँवरयु] कुि
वाली wी दासी होती है।
उराखड मु त िवविवालय 279
योितषशा ी       MAJY-202
पावल?ण-
समे समांशे मृदुले पाव\ 61ीणां शुभ$दे।
उ4नते रोमसयं ु:ते   'शभ ु $दे।।
wी का पाž- भाग समान, पु एवं कोमल हो तो शभु द होता है। यिद पाž- भाग उ,नत रोमय]
ु एवं
  + या हो तो अशभु होता है।
‘दय ल?ण #
िनलVमं ‘दयं 61ीणां समं सवसुख$दम।्
िव6तीणा च सलोमं च िव!ेयमशभ ु $दम।् ।
िजस wी का tदय रोमरिहत और समान हो तो वह सम त सख ु # को देने वाला होता है,  D /
tदय यिद रोमयतु और िव तृत हो तो उसे अशभु द समझना चािहए।
कुच ल?ण #
समौ पीनौ घनौ वृRौ Yढौ श6तौ 
6थूलाXौ िवरलौ श<ु कौ 61ीणां नैव शभु $दौ।।
िजस wी के दोन# तन बराबर, पु , Q+, वृाकार और ‹ढ़ ह# तो वे शभु द होते हI। तन +
अ.भाग थल ू , दोन# िभ,न-िभ,न और माँसरिहत शWु क ह# तो उ,हD अशभु कारक जानना चािहए।
दि?णो4नतव?ोजा नारी पु1वती मता।
वामो4नत6तनी क4या$जा $ो:ता (:
िजस wी का दिहना कुच उ,नत हो वह पु वती होती है और वाम तन के उ,नत होने पर क,यावती
/  /0-bसा पवू ा-चायK ने कहा है।
6क4धल?ण #
61ीणां 6क4धौ समौ पु<टौ गढू स4धी शुभ$दौ।
रोमाढयावु4नतौ व7ौ िनमासांवशुभौ 6मृ
िजस wी के क,धे सम (न ऊँच, न नीच) एवं पु ह#, सि,ध दबे हOए ह# तो शभु  /  /0* C +
/ , उ,नत, व` (टेढ़े-मेढ़े) एवं मांसरिहत ह# तो उ,हD अशभु द कहा गया है।
क? काँख ल?ण #
सुसूgमरोमे नारीणां पु<टे ि6नHधे शुभ$दे।
उराखड मु त िवविवालय 280
योितषशा ी       MAJY-202
क?े िशराले ग[भीरे न शुभे 6वे 
wी क7 क ा (काँख) स,ु दर, सू म रोम# से य] ु , पु एवं मल
ु ायम रहने पर शभु द होती है।
िशराय]
ु , /, मांसरिहत एवं पसीने से य]
ु काँख अशभु द कही गई है।
भुज ल?ण-
गढू ा6थी कोमलX4थी      
सरलौ वतुलौ चैव भुजौ श6तौ मृगीYशाम।् ।
िनमासौ 6थूलरोमाणौ ‘6वौ ( 
व7ौ भुजौ च नारीणां :लेशाय पGरकिततौ।।
िजस wी क7 भजु ा दबी हOई हड्िडय# वाली हो,  AW C /,   D C + / / 
सरलाकार गोल हो तो वह भजु ा शभु द और मासं हीन थल ू रोम# से य]
ु , ZE,   > , E+i
भजु ा wी के िलए लेश   +   /  /0*
ह6त अंगु<ठ ल?ण #
सरोजमुकुलाकारौ करांग<ु ठौ मृगीYशाम।्
सवसौय$दौ $ो:तौ कृशौ व7ौ च दु:खदौ।।
िजस wी के हाथ के अगं ठू े कमल के कली के समान ह# तो उसे सम त सख
ु # को देने वाला कहा
 /0*  N , 3>  -5  , E+i 2‘> हो तो दःु खदायक होता है।
करतल ल?ण #
61ीणां करतलं र:तं मkयो4नतमर4l *
मृदुलं चा8परेखाढयं !ेयं सवसुख$दम।् ।
िवधवा बहOरेखेण रेखाहीनेन िनधना।
िभ?क ु ा च िशराढयेन नारी करतलेन िह।।
िजस wी क7 हथेली र] वण-, मCय भाग सामा,य ऊँची, अगं ल ु ी िमलाने पर िछ_हीन, C 
अaप रे खा से यतु हो तो सब कार से सख ु द जानना चािहए। बहOत रे खा वाली हो तो िवधवा, + P
से हीन हो तो दर_ा एवं हथेली मD िशरा हो तो वह wी िभ णु ी (भीP C A+  ) /  /0*
रपृ<ठ ल?ण #
पािणपृ<ठं शभ
ु ं 61ीणां प<ु टं !   *

उराखड मु त िवविवालय 281


योितषशा ी       MAJY-202
िशरालं रोमां िन[नं दु:ख दारि5य सूचकम।् ।
wी के हाथ का पृ‘भाग पु , मल
ु ायम और रोम से हीन रहने पर शभु होता है। वही यिद िशरा से य]
ु ,
रोमसिहत एवं दबा हOआ हो तो दःु ख तथा दर_ता क7 सचू ना देता है।
करतल रेखा ल?ण #
य6या: करतले रेखा jय:ता र:ता च वतुला।
ि6नHधा पूणा च ग[भीरा सा सवसुखभािगनी।।
म6येन सुभगा !ेया 6वि6तके न धनाि4वता।
राजपनी / /$ !) $:
सावभौमि$या पाणौ नFावत\ $दि?णे।।
शंखातप1कमठै भूप6य /$  * 
िजस wी के हथेली क7 रे खा प, लाल वण-, , C, पणू - एवं दबी हOई हो वह सभी सख ु # का
भोग करने वाली होती है। यिद हथेली मD म6 य रे खा हो तो सौभाhयय] ु , वि तक िच,ह हो तो
   C के तaु य रे खा हो तो राजप6नी तथा राजमाता होती है। नदी के समान रे खा होने पर
वह wी च`वतT राजा क7 ाणिया होती है। wी का हाथ यिद शख ं , छ और कछुए के स‹श
िच,ह# से य]
ु हो तो वह wी राजमाता होती है।
रेखा तुलाकृित: पाणौ य6या: सा िह विणHव:
/ / !     !$:
िजस wी के वाम हथेली मD तराजू अथवा हाथी, घोड़ा या बैल के तaु य रे खा हो तो वह wी यापारी
क7 प6नी होती है।
रेखा $सादव+ाभा सूते तीथकरं सुतम।्
कृषीबल6य पनी 6या/छ    
    चापैच राजपनी पितLता।
ि1शूला'िस गदा शि, दु4दुmया !  D
िजस wी क7 हथेली मD दरबार (महल) या व\ के समान रे खा हो, वह wी शाw-िनमा-ता या
संदायसं थापक पु को उ6प,न करने वाली होती है। िजसक7 हथेली मD बैलगाड़ी, /  .1 
स‹श िच,ह हो वह wी कृ षक क7 प6नी होती है। िजसके हाथ मD चँवर, 2> , ि शल ू ,  ,
 , शि] एवं द,ु दिु भ के तaु य रे खा हो, तो ऐसी wी पितvता राजप6नी होती है।
उराखड मु त िवविवालय 282
योितषशा ी       MAJY-202
िजस wी के अंग‘ु मल ू से िनकल कर किन‘ा तक रे खा गई हो वह नारी पित का हनन करने  
होती है। ऐसी wी को दरू से ही 6याग देना चािहए। िजसके हाथ मD कौआ, C+i, Qृगं ार, +U, िबjछू,
सप-,  / , उWœ या िबaली के स‹श रे खा हो वह wी f> P +   /  /0*
अंगुिल ल?ण #
मृदुलाच सपु वाणो दीघा वR ृ ा: 7मात् कृशा:।
अरोमका: शुभा: 61ीणामंगु8य: पGरकितता:।।
अित‘6वा: कृशा व7ा िवमला रोमसंयुता:।
बहOपवयुता वा'िप पवहीनच :D
िजस wी के हाथ क7 अगं िु लयाँ कोमल ह#, स,ु दर पवK से यतु ह#, दीघ-, वृाकार, N  C/
ह# तो उ,हD शभु कारक कहा गया है। िजसक7 अगं िु लयाँ अ6य,त छोटी ह#, N , E+i, िछ_ तथा
रोमय]
ु ह#, अिधक पव- अथवा पव-रिहत ह# तो उ,हD f> P  .   /*

नखल?ण #
र:तवणा नखा6तुंगा सिशखाच शुभ$दा:।
िन[ना िववणा पीता वा पुि<पता दु:खदायका:।।
. wी का नाखनू र] वण-, उ,नत एवं िशखय] ु हो तो वह शभु द होता है। गहरा, C, 5 ,
सफे द िब,दओ
ु ं से य]
ु ह# तो ऐसे नख दःु खदायक होते हI।
प<ृ ठभागल?ण #
अ4तिनमHनवंशाि6थ पृ<ठं 6या4मां   *
स िशरं रोमयु:तं वा व7ं चा' * 
wी का पृ‘ भाग दबा हOआ, हड्डी एवं मांसय]
ु तथा पु हो तो शभु एवं िशरा तथा रोमय]
ु और
E+i /  2 >  / /0*
क-ठल?णम् #
61ीणां क-ठिरेखांक6वjय:ताि6थच वतुल:।
मांसलो मृदुलचैव $श6त+  :
6थूलXीवा च िवधवा व7Xीवा च िकंकरी।

उराखड मु त िवविवालय 283


योितषशा ी       MAJY-202
व4kया च िचिपटXीवा लघुXीवा च िन:सृता।।
िजस wी का कठ तीन रे खा से य]
ु , /T4T   P+  ,   , मासं य]
ु एवं कोमल हो तो
/ >  ; थल ू कठ िवधवाकारक एवं टेढ़ कठ दासी बनाने वाली होती है। िच5E
.ीवा वाली wी व,Cया एवं छोटी कठ हो तो स,तान + / /  /0*
कृकािटका ल?ण #
े<ठा कृकािटका ऋवी समांसा च समु4न
शु<का    G      '
िजस wी क7 कृ कािटका (काठी अथा-त् कठ का उठा हOआ मCय भाग) सीधी, मांस से पु एवं
सामा,य उ,नत हो तो वह शभु द होती है एवं यिद शWु क (मांसरिहत), िशरा तथा रोम से यु], 3U
G E+i /  ]+ 2 >  C\  /**JK**
िचबुकल?ण #
अ]णं मृदुलं पु<टं $श6तं िचबुकं िया:।
आयातं रोमशं 6थूलं ि;धा भ:त  * 
िजस wी का िचबक
ु लाल वण-, मल ु ायम और पु हो तो वह शभु होता है। फै ला हOआ, रोमय]
ु ,
थल
ू और दो भाग मD िवभ] रहने वाले िचबक
ु को अशभु द जानना चािहए।
कपोल ल?ण #
कपोलावु4नतौ 61ीणां पीनौ वृRौ शुभ$दौ।
रोमशौ प]षौ िन[नौ िनमाh 'शभु $दौ।।
िजस wी का गाल उ,नत, पु और गोल हो तो वह शभु होता है। यिद रोमसिहत, W, दबा हOआ
 C हीन हो तो अशभु द होता है।
मुख ल?ण #
61ीणां मुखं समं पृ<ठं वतुलं च सुगि4धमत।्
सिु 6नHधं च मनोहाGर सख ु सौभाHय  * 
wी  CP > , C ( 3U ,  ZE ), पु ,   , सगु ि,धत,  , C
> , देखने मD स,ु दर
एवं मन को हरण करने वाला हो तो उसे शभु द कहा गया है, !+ 5 CP >  2 > . 
 /*

उराखड मु त िवविवालय 284


योितषशा ी       MAJY-202
अधरल?ण #
वतुल: पाटल: ि6नHधा रेखाभूिषतमkय:
 'धरो य6या: सा भवेद् राजव8ल
िनमास: 6फुिटतो ल[बो ]?ो वा यामवणक:।
6थू 'धरच नारीणां वैधjय:ले :
िजस wी का अधर (नीचे का ओठ) žेत-र] िमले हOए रंग वाला,   , C > , मCय भाग मD
रे खा से य]
ु , स,ु दर एवं मनोहर हो तो वह wी राजिया होती है। मांसहीन, फटा हOआ, ल:बा, lखा,
याम वण- एवं थल ू अधर रहने पर वैधय तथा लेश का सचू क होता है।
उRरो<ठ ल?ण #
र:तोपलिनभ: ि6नHध उRरो<ठो मृगीYशाम।्
िकंिच4मkयो4न'रोमा सख
ु सौभाHय  * 
िजस wी का ऊपर का ओठ र]कमलस‹श लाल,  , सामा,य lप से मCय भाग उठा हOआ हो
 C/ /  / P
> -सौभाhयदायक होता है। इससे िभ,न को अशभु द जानना चािहए।
द4त ल?ण #
ि6नHधा दुHधिनभा: 61ीणां ;ाि1श ं ˆशना: शभ ु ा:।
अध6तादुपGर<टा/च समा: 6तोकसमु4न:
अध6तादिधका: पीता यामा दीघा ि;पं:त:
िवकटा िवरलाचािप दशना न शभ ु ा: 6मृ:
wी के दाँत िचकने,  + C   + , संSया मD 78, ऊपर तथा नीचे के समान एवं थोड़े उ,नत ह#
तो शभु कारक होते हI। यिद ऊपर क7 अपे ा नीचे अिधक, 5+   +, ल:बे, दो पिं ] मD, E
 2-अलग ह# तो उ,हD अशभु द माना गया है।
िजpाल?ण #
शोणा मृ;ी शभ
ु ा िजpा 61ी&  
दु:खदा मkयसंकणा पुरोभागे'ितिव6त
िसतया मरणं तोये यामया कलहि$या।
सलया धनैहtना ल[ब'भgयभि?णी।।

उराखड मु त िवविवालय 285


योितषशा ी       MAJY-202
$मादसिहता नारी िजpया च िवशालया।
िजस wी का जीभ लाल वण- तथा कोमल हो, वह असंSय भोग# का भोग करने वाली होती है।
िजसका मCय भाग संकुिचत एवं अ. भाग अित िव तृत हो वह दःु ख का भोग करने वाली होती है।
 + . वाली wी का जल से मरण होता है एवं िजसक7 जीभ याम वण- क7 हो तो ऐसी wी
कलहकारणी होती है। इसी कार मोटी जीभ वाली दर_ा, ल:बी जीभ वाली अखा व तु का
भ ण करने वाली एवं िवशाल जीभ वाली wी मादय]
ु ा होती है।
तालु ल?ण #
सिु 6नHधं पाटलं 61ी&      *
वेते तालुिन वैधjयं पीते $Lिजता भवेत।्
कृ<णे स4तितहीना 6याद् S?े भूGरकुटुि[बनी।।
िजस wी का तालु िचकना žेत-र] िमिQत (पाटल) वण- एवं कोमल हो तो वह शभु ; के वल žेत
तालु वाली wी िवधवा, पीली तालु वाली सं,यािसनी, कृ Wण तालु वाली स,तानहीना, lखी तालु
होने पर wी अिधक परवार वाली होती है।
हा6य ल?ण #
अलि?तरदं 61ीणां िकंिचफु8ल  *
ि6मतं शुभ$दं !ेयम4यथा वशुभ$दम।् ।
िजस wी के हँसते समय दाँत न िदखाई दD, कुछ उठे हOए गाल ह# और म,द हा य हो तो ऐसी wी
शभु द होती है। इससे िभ,न हो तो उसे अशभु द जानना चािहए।
नािसका ल?ण #
समवृRपुटा नासा लघुि/छ5ा शुभ$दा।
6थूलाXा मkयिन[ना वा न $श6ता मृगीYशाम।् ।
िजस wी का नािसका समान, गोलाकार एवं िजसके दोन# िछ_ लघु ह# तो वे शभु द एवं नाक का
अ.भाग थलू तथा मCय भाग गहरा हो तो अशभु द होता है।
र:ताXा''कुंिचताXा वा नासा वैधjयकाGरणी।
दासी सा िचिपटा य6या ‘6वा दीघा किलि$या।।
िजस wी क7 नािसका का अ.भाग र] वण- और संकुिचत हो तो वह िवधवा होती है। िचपटी

उराखड मु त िवविवालय 286


योितषशा ी       MAJY-202
नािसका वाली wी दासी एवं अिधक छोटी या अिधक ल:बी नािसका वाली wी कलहकारणी होती
/0*
ने1 ल?ण #
शभ
ु े िवलोचने 61ीणां र:ता4ते कृ<ण  
गो?ीरवण\ िवशदे सिु 6नHधे कृ<णपgम&$
wी क7 आँखD अ,त मD लाल वण- वाली, 5>  A  , गाय के दhु धस‹श žेत एवं बड़ी-3U
िचकनी काली पलक# वाली ह# तो उ,हD शभु कहा गया है।
उ4नता?ी च दीघायुवRा?ी
ृ कुलटा भवेत।्
रमणी मधुिपंगा?ी सुखसौभाHय$
पुं चली वामकाणा?ी व4kया दि?णकािणका।
पारावता?ी दु:शीला गजा?ी नैव शोभना।।
िजस wी क7 आँखD ऊँची ह# वह अaपायु होती है; गोलाकार आँख वाली wी कुलटा होती है;
स,ु दर, मधसु ‹श िप...ल ने वाली wी सख ु और सौभाhय को भोगने वाली होती है; िजसक7 बाँय‚
1AP  नी हो वह यिभचारणी होती है; दािहनी आँख से कानी wी बाँझ होती है; 3  +
समान ने वाली wी दु वभाव वाली होती है एवं हाथी के समान आँख वाली wी शभु ाकारक नह‚
/ *
पgम ल?ण #
मृदुिभ: पgमिभ: कृ<णैघनै: सgू मै: सभ
ु ाHय * 
िवरलै: किपलै: 6थूलैभािमनी दु:खभािगनी।।
wी के पलक कोमल,  +, घने और सू म ह# तो वह सौभाhयवती होती है। िवरल, किपल वण-,
थल
ू पलक रहने वाली wी दःु खभािगनी होती है।
‹ूल?ण #
वतुलौ कामुकाकारौ ि6नHधे कृ<णे B 
सु‹ुवौ मृदुरोमाणौ सु‹ुवां सख
ु कितदौ।।
wी क7 भ©हD गोलाकार, धनषु के स‹श,   , पर पर न िमली हOई एवं कोमल रोम# से य]

होने पर सख
ु तथा क7ित- दान करने वाली होती हI।

उराखड मु त िवविवालय 287


योितषशा ी       MAJY-202
कणल?ण #
कणn दीघn शुभावतn सुतसौभाHय 
श<कु $  4Fौ      ! 
िजस wी के दोन# कान ल:बे, गोलाकार एवं साथ घमू े हOए ह# तो वह पु तथा सौभाhय को ा
करती है। िव तारहीन,   > , टेढ़े एवं मासं रिहत कण- अशभु ता को कट करते हI।
भालल?ण #
िशरािवरिहतो भाल: िनलVमा'धशिश$भ:
अिन[नयंगल ु 61ीणां सतु सौभाHयसौय:
6प<ट6वि6तकिचuच भालौ राय$द: िwया:।
$ल[बो रोमशचैव $ांशुच दु:खद: 6मृ:
िजस wी का भाल (ललाट) िशरा तथा रोमरिहत, अध- च,_ाकार के समान एवं ल:बाई मD तीन
2> /, वह पु के साथ-साथ सौभाhयसुख को भी ा करती है। यिद भाल मD प वि तक
िच,ह हो तो वह wी राजिया होती है। अिधक ल:बा, रोमयु] एवं बहOत ऊँचा भाल हो तो उस wी
+  f> P  / /0*
मूधा ल?ण #
उ4नतो गजकु[भाभो वृRो मूधा शुभ: िwय:।
6थूलो दीघV'थवा व7ो दु:खदौभाHय :
wी का हाथी के म तक स‹श ऊँचा और गोलाकार म तक शभु तथा थल ू , ल:बा अथवा टेढ़ा
म तक दःु ख-दभु ा-hय का सचू क होता है।
के शल?ण #
कु4तला: कोमला: कृ<णा: सूgमा दीघाच :
िपंगला: प]षा S?ा िवरला लघवो':
िपगं ला गौरवणाया यामाया: या :   :
नारील?णतचैवं नराणामिप िच4त* 
wी के के श कोमल,  +, 5 +, ल:बे ह# तो वे शभु द होते हI। िपगं ल वण- के , W, lखे, 3P+
हOए छोटे के श अशभु सचू क होते हI। पर,तु गौर वण- क7 wी के िपंगल एवं याम वण- क7 wी के काले
उराखड मु त िवविवालय 288
योितषशा ी       MAJY-202
+  > / .   /*
इसी कार wी के अगं ल ण के Lारा पfु ष# का भी अं -ल ण अवगत करना चािहए।
5+ न
1. शीष- का अथ- या / /0*
. म त P. + ग. मख
ु घ. ने
2. वृह6पराशरहोराशा िकसक7 रचना है।
. मै ेय ख. पराशर ग. नारद घ. गग-
3. नारय# के शरीर का िविभ,न अगं # का ल ण वृह6पराशरहोराशा के िकस अCयाय मD
विण-त है।
. :8 P.:7 .:I Q. :J
4. P  या अथ- है।
.   P.   .  P Q. CP>
5. wी क7 आँखD अ,त मD लाल वण- वाली, 5>  A   /  0  /  /0*
. शभु ख. अशभु ग. िमिQत घ. कोई नह‚
6. ी का म तक ल:बा हो तो या  / /0*
. उम ख. दभु ा-hय सचू क ग. अशभु घ. कोई नह‚
7. िजस wी का नािसका समान,     .+ न# िछ_ लघु ह# तो वे होते हI )
. अशभ ु द ख. शभु द ग. दभु ा-hय द घ. िमिQतद

3.5 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  योितष शा मD ऋिषय# ने
िनर,तर अनसु ,धान कर मानव शरीर के िविभ,न अगं # के ल ण को बतलाया है। शीष- से पाद (50)
तक मानव शरीर के िविभ,न अगं # क7 आकृ ितय# एवं उनके lप# तथा ल ण# के आधार पर अलग-
अलग फल कहे गये हI। वृह6पराशरहोराशा .,थ मD आचाय- पराशर ने ी के शरीर के िविभ,न
अगं # को अगं ल णाCयाय मD िव तृत lप मD ितपािदत िकया है। उनका कथन है िक िwय# के समान
ही पfु ष# के अगं # का भी ल ण जानना चािहए। 6येक मनWु य के शरीरांग# क7 बात करD तो सबमD
कुछ न कुछ िभ,नता अवय /  /0, .0+ " CE / /0 " 5  , "  "   ,
उराखड मु त िवविवालय 289
योितषशा ी       MAJY-202
िकसी क7 ऑखं D बड़ी होती है िकसी क7 छोटी, िकसी के बाल ल:बे होते हI,  + ZE+, 
के घँघु राले तो िकसी के सीधे। िकसी का ओWठ       ल होता है। िकसी क7 कमर
CE /  /0, तो िकसी क7 पतली,  + P P> + / + /0, तो िकसी के िचकने आिद इ6या *
इ,ह‚ सभी ल ण# एवं गणु # के आधार पर शरीर के िविभ,न अगं # का ल ण का िवचार िकया जाता
है। हम जानते हI िक सृि क7 मता नारी के पास होती है। अत: सृि, समाज व परवार मD िwय#
का िवशेष योगदान है। अत: िwय# क7 धानता को देखते हOए ऋिषय# ने उनके शरीर के िविभ,न
अगं # का जो ल ण कहा है, उसे यहाँ आप लोग# के Zानाथ- वण-न िकया जा रहा है।
C  शरीर के िविभ,न अगं # से अिभा - शीष- (म त), CP > , 1AP,  , द,त, + , ह त,
tदय, .ीवा, ] , Z , त, P, 5W, 50, िनत:ब, गy ु माग-, 5 , 2A > , . ,> उf, .Q
आिद से हI। कुछ िवशेष एक-दो अगं को छोड़ िदया जाय तो पfु ष एवं िwय# दोन# मD ये सभी अंग
/ + हI।
3.6 पा रभािषक शदा
शीष- ) म त
CP> ) C/A>
]  ) 5+E
बाहO ) .>  / D
E ) C
कु ) P
5 - 50
P )  P
3.7 बोध  न के उ"र
1. 
2. P
3. P
4. 
5. 
6. P
7. P
उराखड मु त िवविवालय 290
योितषशा ी       MAJY-202
3.8 स#दभ$ %#थ 
 
वृह6प / शा ) C +P ) आचाय- पराशर, E   ) 5. प«नाभ शमा-
.  पारजात ) C +P ) आचाय- वैनाथ।
यो 6 रह य ) जगजीवनदास गGु ता*
3.9 सहायक पाठ्यसाम%ी
वृह6प होरा शा
.  पारजात
वृह6सं/
यो 6 रह य
3.10 िनब#धा,मक  न
1. मानव शरीर के िविभ,न अगं # से या अिभाय है*
2. नारय# के िविभ,न अगं # का ल ण िलिखये।
3. ी + CP > ,  , ओWठ एवं किट ल ण# का फल िलिखये*
4.   + 5 , + , ह त, उदर एवं कु का फल िलिखये*

उराखड मु त िवविवालय 291


योितषशा ी       MAJY-202
 - 4 $ 0 
E ई क संरचना

4.1  ता
4.2 उेय
4.3 > परचय
4.3.1 > + +
4.3.2 .ामीण एवं जंगली जीव# का िवभेद
4.4 जीव# Lारा शकुन फल िवचार
4.4.1 कौए Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन
4.4.2 कुD एवं अ,य 5 -> पि य# Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन फल िवचार
4.5 या ाकािलक शभु ाशभु शकुन िवचार
4.6  
4.7 पारभािषक श&दा
4.8 बोध न# के उर
4.9 स,दभ- .,थ  
4.10 सहायक पाठ्यसाम.ी
4.11 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 292


योितषशा ी       MAJY-202
4.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के चतथु - खड क7 चौथी इकाई से स:बि,धत है। इस इकाई
 शीष-क है ) >   * !+ पवू - आपने  योितष से जड़ु े िविभ,न योग#,
दशाफलािद तथा मानव शरीर के िविभ,न अगं # के ल ण स:बि,धत िवषय# का अCय  
है। अब आप इस इकाई मD , >   - के बारे मD अCय + . /+ /0*
> का शाि&दक अथ- होता है ) प ी। , > शा - से अिभाय है- जीव# के अगं # के
ल ण के आधार पर िकया जाने वाला शभु ाशभु फल िसsा,त* धान क,ध य के अितरत
शकुन भी योितष शा का एक क,ध के lप मD चिलत है।
1! इस इकाई मD हम लोग , >- के बारे मD एवं उसके शभु ाशभु फल िवचार# के
िविवध प # को समझने का यास करते है।
4.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• > को परभािषत कर सकD गे।
• > + िविभ,न अवयव# को समझा सकD गे।
• > के शभु ाशभु फल का Zान कर लDग*े
• शा # एवं परु ाण# के आधार पर शकुन के फल को समझा सकD गे।
• > के मह6व को िनlपित कर सकD गे।
4.3 $ 0 
-शभु शिं स िनिमे च शक ु नं या पंसु कम- इस वचन के अनसु ार िजसमD कुछ ल ण# को
P
+  > >     . /0, उस शाw को शकुनशाw कहते है। शकुन का अथ-
प ी होता है, प ी से पशु तथा अ,य जीव# का भी बोध होता है। शकुन का दसू रा अथ- िनिम भी है,
.+ 2- फुरण, छ‚क, पaलीपतन, सरटािधरोहण तथा अ,य ल ण# Lारा भिवWय का Zान ात
होता है। मनWु य# के पवू ज- ,मािज-त जो शभु ाशभु कम- हI, उन कमe के शभु ाशभु फल को गमनकािलक
शकुन कािशत करता है। जैसे िक आचाय- वराहिमिहर का कथन है-
अ4यज4मा4तरकृतं कम पस ुं ां शुभाशुभम् ।
यR6य शकुन: पाकं िनवेदयित ग/छताम् ।।

उराखड मु त िवविवालय 293


योितषशा ी       MAJY-202
योितष मD शकुन क,ध का अितम थान है। योितषशाw के ायः सभी क,ध# मD > 
सव-थम ाकटऋ हOआ होगा, य#िक जब आिद मानव योितष के गिणत प से अनिभZ रहा
/ , 3  2- फुरण, पशु चेा अथवा ाकृ ितक हलचल# से भिवWय का Zान ा कर लेता
होगा। अ,धकासरु के वध के सम  4  + 5 )> पि य# के अ वाभािवक हलचल देखे थे,
वे ही शकुन नाम से कहे गये हI। पनु ः तारकासु + s
> S के पवू - वािम काित-केय को भगवान् शक
ं र ने
शकुन का उपदेश िकया। ज:भासरु से यs ु ़ के िलए तैयार इ,_ ने कयप ऋिष को तथा कयप ने
गlड जी को, गlड ने अि , गग-, N,> पराशर अिद मिु नय# को शकुन का उपदेश िकया है।
शकुन जानने वाले योितिव-द# को गिणतािद क7 आवयकता नह‚ पड़ती। पंचांग,  2D
ज,मसमयािद के िवना भी भिवWय का फल शकुन Lारा जाना जाता है। वेद, 5> O, ! / , मृित
तथा अ,य सभी भारतीय .,थ# मD कह‚ न कह‚ शकुन का वण-न अवय ा होता है।
4.3.1 $ 4 4*
अिhनपरु ाण मD शकुन दो कार के बतलाये गये हI- दी और शा,त* 0    +
वाले योितिषय# ने स:पणू [ दी शकुन# का फल अशभु तथा शा,त शकुन# का फल शभु बतलाया
हI। वेलादी, िदhदी, देशदी, ि`यादी, lपदीपत और जाितदी के भेद से दी शकुन छः कार
के बतलाये गये हI। उनमD पवू --पवू - को अिधक बल समझना चािहए।
षट्$कारा िविनिदZा शकुनानां च दीaयः।
वेलािदHदेशकरण]तजाितिवभेदतः।।
पूवा पूवा च िव!ेया सा तेषां बलवRरो।।
िदन मD िवचरने वाले ाणी राि मD और राि मD चलने वाले ाणी िदन मD िवचरते िदखायी दD,  ]+
वेलादी जानना चािहए। इसी कार िजस समय न , लhन और .ह आिद `र अव था को ा
/ . A, वह भी वेलादी के ही अ,तग-त आते हI। सयू - िजस िदशा को जाने वालD हो वह , C -
िजसमD िवामान ह#, / ,विलता- तथा िजसे छोड़ आये ह#, / ,अगं ारणी- मानी गयी हI। ये तीन
 A ,दी- G +6 5 A  A ,शा,त- कहलाती हI। दीिदशा मD जगल ं ी और जगं ल मD .ामीण
5 -> प ी आिद िवामान ह#,  वह िनि,दत देश है। इसी कार जहाँ िनि,दत वृ ह#, वह थान भी
िन, और अशभु माना गया हI।
दीaायां िदिश िदHदीaं शकुनं पGरकिततम।्
Xामेऽर-या वने Xा[या6तथा िनि4दतपादपः।।
देशे चैवाशुभे !ेयो देशदीaो ि;जोRमः।।

उराखड मु त िवविवालय 294


योितषशा ी       MAJY-202
अशभु देश मD जो शकुन / /0, उसे अिhनपरु ाण मD ,देशदी- कहा गया हI। अपने वण-धम- के
िवपरीत अनिु चत कम- करने वाला पl ु ष ,ि`यादी- बतलाया गया हI। उसका िदखायी देना
ि`यादी शकुन के अ,तग-त आता हI। फटी हOई भयंकर आवाज का सनु ायी पड़ना ,lतदी-
कहलाता हI। के वल मांस भोजन करने वाले ाणी को ,जाितदी- समझना चािहए। उसका दश-न भी
जाितदी शकुन हI। दी अव था के िवपरीत जो शकुन हो, / ,शा,त- बतलाया गया हI। उसमD भी
उपय-]ु सभी य6नपवू क - जानने चािहए। यिद शा,त और दी के भेद िमले हOए ह#,  ]+ ,िमQ
>- /ते हI। इस कार िवचारकर उसका फलाफल बतलाना चािहए।
4.3.2 Xामीण एवं जंगली जीव का िवभेद
.ामीण एवं जगं ली जीव# का िवभेद बतलाते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया है िक गौ, QU+,  /+,
कु#, सारका (मैना), N/ (E), E (F+  ), भास (चील या मगु ा-) G Z>
आिद ािण .ामवासी कहे गये हI।
गोऽƒो<गद भƒानः साGरका गृहगोिधका।
चटका मासकूमाFाः किथता Xामवािसनः।।
इसी कार बकरा, +U,  , . ., 2  , भIसा और कौआ- ये .ामीण भी होते हI और
जगं ली भी। इनके अितर] और सभी जीव जगं ली कहे गये हI। िबaली और मगु ा- भी .ामीण तथा
जगं ली कहे गये हI। पर,तु उनके lप मD भेद होता हI, इसी से वे सदा पहचाने जाते हI।
िदन मD और रात मD चलने वाले जीव# का िवभेद बतलाये हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया है िक
गोकण-, C, च`वाक,  /+, /  , F, > /, >कुभ, 3 .,  U, ख.. रीट,  , शतVन,
E, , नीलकठ (येन), 5... ( ),  , 5, 3 , P., दा6यहू
(. ),  > ,  ., मगु ा-,  
 G  - ये िदन मD चलने वाले ाणी हI।
गोकणिशिखच7ाxखरहाGरतवायसाः।
कुलाहकु:कुभयेनफे ]खंग 4
शत•नचटकयामचाषयेनकिपगं 4
ितिRGरः शतप1U कपोतU तथा 1यः।।
Dरीटकदायूहशुकराजीवकु:कुटाः।
भर;ाजU सारंग इित !ेया िदवाचराः।।
इसी कार वागरु ी, उaलू, , `ौ..., P , Z>1,   , G 5 - ये राि मD
चलने वाले ाणी बतलाये गये हI। हसं , CN, 3 , N6, C >, N, ,  , QU ,

उराखड मु त िवविवालय 295


योितषशा ी       MAJY-202
गोघा और कौपीनधारी पl ु ष - ये िदन और रात दोन# मD चलने वाले हI।
हस
ं ाU मृगमाजारनकुल?भुजंग 4
वृकाGरिसहं jया“ो<Xामसक ू रमानषु ाः।।
ƒािवदवृषभगोमायुवृककोिकलसारसाः।
 पीननरा गोध vुभयचाGरणः।।
स:ित उ] जीव# के शभु ाशभु शकुन का िवचार करते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया है िक
यिद यs ु या यs ु -या ा का समय ये सभी जीव झु ड बाँध कर सामने आवD,  .   + +
गये हI, िक,तु यिद पीछे से आवD,  .   + + 3  ये गये हI, िक,तु यिद पीछे से आवD, 
मृ6यक
ु ारक माने गये हI।
3ल$6थानयोः सव\ परु 6तासगं चाGरणः।
जयावहा िविनिदZा पUाि1धनकाGरणः।।
यिद नीलकठ अपने घोसले से िनकल कर आवाज देता हOआ सामने ि थत हो जाय, 
वह राजा को अपमान क7 सचु ना देता हI और ज बवह वामभाग मD आ जाय,  /  D
भोजन मD बाधा डालने वाला होता हI। या ा के समय उसका दश-न उC C   /0, उसके बायD
2  2  ]म हI। यिद या ा के समय मोर जोर-. + 1 . ,+ तो चोर# के Lारा
अपने धन क7 चोरी होने का स,देश देता है।
गृहा[य यदा चाषो jयाहरेपुरतः ि6थताः।
!    4 /
याने तददनं श6तं सjयमंग6य वा9यथ।
चौरैमVषमथायाित मयूरो िभ4नािनः6वनः।।
 थानकाल मD यिद मृग आगे-1+ +, तो वह ाण लेने वाला होता हI। री , / ,  , 3 Q,
/, 3 ,  /+-ये यिद ितकूल िदशा मD जाते ह#,  / .-जोर से रD कता हो और किपच ं ल
प ी वाय‚ अथवा दािहनी ओर हो, तो उसका फल िनि,दत माना गया हI।
या ा काल मD िततर का िदखायी देना अjछा नह‚ हI। मृग, 2   G  3+ /- ये यिद वायD
/   /+ / . A, तो सदा काय-साधक होते हI। इसके िवपरीत यिद दािहनD से वायD चले
. A, तो िनि,दत माने गये हI। बैल, QT+,  U, 3 Q, /, 3  G  /+  /+ + 3 +
. A,  + C Zत व तु क7 िसिs करने वाले होते हI, / C\  /*
वृषाUज[बुकjया“ाः िसंहमाजारगदभाः।

उराखड मु त िवविवालय 296


योितषशा ी       MAJY-202
1ताथकरा !ेया दि?णा;ामतो गताः।।
इसी कार Qृगाल याममृख, छुjछु (छछूँदर), 5 , N/ ,   ,  D
पिु aलंग नाम धारण करने वाले जीव यिद वाम भाग मD ह# तथा wीिलंग नामवाले जीव, C ,
काlष, ब,दर, Qीकण-, ZŸ, 5, िपGपीक, ll और येन-ये दि ण िदशा मD ह#, तो शभु हI।
या ा काल मD जाितक, सप-, P , सअ ु र तथा गोधक नाम लेना भी शभु माना गया हI।
जाती?ा (ितका) िहशशकोडगोधानां कRनं शुभम।्
वहाँ बतलाया गया है िक री और वानर# का िवपरीत िदशा मD िदखायी देना अिनकारक
होता हI।  थान करने पर जो काय-साधक बलवान् शकुन ितिदन िदखायी देता हI, ] 
िवLान# पlु ष को उसी िदन के िलए बतलाना चािहए। अथा-त् िजस िदन शकुन िदखायी देता है, ]
िदन उसका फल होता हI।
5 , भोजनाथT बालक तथा वैरी पl ु ष यिद गाँव या नगर क7 सीमा के भीतर िदखायी दD,
तो उनके दश-न का कोई फल नह‚ होता हI, b C\  /*
यिद िसयारन एक, ,     3  1 .  +, तो वह शभु मानी गयी हI। इसी
कार पाँच और छः बार बोलने पर अशभु और सात बार बोलने पर शभू बतलायी गयी हI। सा 3 
से अिधक बोले तो उसका कोई फल नह‚ होता हI।
एकि;ि1चतुिभ6तु िशवा ध4या ]तैभवेत।्
पंचिभU तथा पड्िभरध4या पGरकिRता।।
सaिभU तथा ध4या िन<फला परतो भवेत।् ।
सरंग के दश-न का फल बतलाते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया है िक यिद या ा के पहले
 ]म देश मD सारंग का दश-न हो, तो वह मनWु य के िलए एक वष- तक शभु क7 सचू ना देता हI।
उसे देखने से अशभु मD भी शभु होता हI। अतः या ा के थम िदन मनWु य ऐसे गणु वाले िकसी सारंग
का दश-न करे तथा अपने िलए एक वष- तक उपय-] ु lप से शभू फल क7 ाि /+   C\+*

$थमं सारंग YZे शुभे देशे शुभं वदेत।्


संवसरं मनु<य6य xाशुभे च शुभं तथा।।
तथा िवधं नरं पयेत् सारंग $थमेऽहिन।
आमनU तथावेन !ातjयं वसरं फलम।् ।

उराखड मु त िवविवालय 297


योितषशा ी       MAJY-202
4.5 #व Iारा शकुन फल िवचार

4.4.1 कौए ;ारा होने वाले शभ ु ाशभु शकु


कौए Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन# का वण-न करते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया हI िक िजस माग-
से बहOतेरे कौए श ु के नगर मD वेश करD , उसी माग- से घेरा डालने पर उस नगर के ऊपर अघना
अिधकार ा होता हI। यिद िकसी सेना या समदु ाय मD बायी ओर से भयभीत कौआ रोता हOआ
वेश करे , तो वह आने वाले अपार भय क7 सचू ना देता हI। छाया (त:बू,  E 1 ), 2  /,
]5 /, छ और वw आिद के Lारा कौए को कुचल डालने पर अपने िलए मृ6यु क7 सचू ना िमलती
हI। उसक7 पजू ा करने पर अपनी भी पजू ा होती है तथा अ,न आिद के Lारा उसका इ करने पर अपना
भी शभु होता हI।
1 वाहनोपान/छ1वwािदकुœने।
मृयु6तपूजने पूजा तिदZकरणे शुभम।् ।
 F1  .+ 5 3 3  1 .  + , तो वह उस घर के िकसी परदेशी यि] के
आने क7 सचू ना देता है। इसी कार यिद वह कोई लाल या जली हOई व तु मकान के ऊपर डाल देता
/0, तो आग लगने क7 सचू ना िमलती हI।
$ेिषतागमकृकाकः कुवन् ;ाGर गतागतम।्
र,ं दHधं गृहे 5jयं ि?पन् विuिनवेदकः।।
यिद कौआ मनWु य के आगे कोई लाल व तु डाल देता हI, तो उसके कै द होने क7 बात बतलाता हI
G  " 5ले रंग क7 व तु सामने िगरता है,  ]+ +-चाँदी क7 ाि सिू चत होती हI,
सारांश यह क7 वह िजस व तु को अपने पास ला देता हI, उसक7 ाि और _य को अपने यहाँ से
]W + . /0, उसक7 हािन क7 संकेत करता हI।
4यसे5,ं पुर6ता/च िनवेदयित ब4धनम।्
पीतं 5jयं तथा ]:म S9यमेव तु भागव।।
या/चोपनयेद् 5jयं त6य लिMधं िविनिदशेत।्
5jयं वापनयेF6तु त6य हािनं िविनिदशेत।् ।
यिद कौआ अपने आगे कjचा मांस लाकर डाल दे, तो धन क7, िम¬ी िगरावे, तो पृUवी क7 और
कोई र6न डाल दे, तो महान् ऐžय- क7 ाि होती हI। यिद या ा करने वाले क7 अनक ु ू ल िदशा
(सामने) क7 ओर कौआ जाय, तो वह कaयाणकारी और काय-साधक होता हI। पर,तु यिद ितकूल

उराखड मु त िवविवालय 298


योितषशा ी       MAJY-202
िदशा क7 और जाय, तो उसे काय- मD बाधा डालनेवाला तथा भयंकर जानना चािहए। यिद कौआ
सामने काँव काँव करता हOआ आ जाय,  ह या ा का िवघातक होने पर काय- का नाश करता हI।
वामभाग मD होकर कौआ यिद अनक ु ू ल िदशा क7 ओर चले तो Qे‘ और दािहने होकर अनक
ु ू ल िदश
क7 ओर चले, तो मCयम माना जाता है, िक,तु वामभाग मD होकर यिद वह िवपरीत िदशा क7 ओर
1 . , तो या ा का िनषध करता हI। या ा काल मD घर पर कौआ आ जाय, तो वह अभी काय-
क7 िसिs सिू चत करता हI। यिद वह एक पैर उठाकर एक आँख से सयू - क7 ओर देख,े   + +
वाला होता हI। यिद कौआ िकसी वृ के खोखले मD बैठकर आवाज दे, तो वह महान अनथ- का
कारण हI। ऊसर भिू म मD बैठा हो,   2 > / /0, िक,तु यिद वह क7चड़ मD िलपटा हOआ हो,
 ]म माना गया हI।
एकाि?चरण6वकh वी?माणो भयावहः।
कोटरे वसमानU महानथकरो भवेत।् ।
न शुभ6तूषरे काका पंग स तु श6यते।।
िजसक7 च#च मे मल आिद अपिव व तएु ँ लगी हो, / F1 P . , तो सभी कायK
 साधक होता हI। कौए क7 भाँित अ,य पि य# का भी फल जानना चािहए।
अमेkयपूणावदनः काकः सवाथसाधकः।
!ेयाः पति1णोऽ4येऽिप काकवद् भृगुन4दन।।

4.4.2 कुRे एवं अ4य पशु-पि?य ;ारा होने वाले शुभाशभ ु शकुन
कु# के Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन# क7 चचा- करते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया हI िक
यिद सेना क7 छावनी के दािहने भाग मD कु# 1 . A, तो वे “ाहाण# के िवनाश क7 सचू ना देते हI।
इ,_Cवज के थान मD ह#, तो राजा का और गोपरु (नगरLार) पर ह#, तो नगराधीर क7 मृ6यु क7 सचू ना
देते हI।
6क4धवारापसjय6थाः ƒानो िव$िवनाशकाः।
इ456थाने नरे 456य पुरेश6य तु गोपुरे।।
भकँू ता हOआ कु#  Q +   1+, तो गृह वामी क7 मृ6यु का कारण होता हI। वह
िजसके बायD अंग को सँघू ता हI, उसके काय- क7 िसिs होती हI। यिद दािहने अगं और बाय‚ भ.ु 
AQ +, तो भय उपि थत होता हI। या ी के सामने क7 ओर आवे, तो या ा मD िवVन डालने वाला होता
हI। यिद कु#  /   PU /, तो माग- मD चारो का भय सिू चत करता हI। महँु मD हड्डी िलये हो,

उराखड मु त िवविवालय 299


योितषशा ी       MAJY-202
तो उसे देखकर या ा करने पर कोई लाभ नह‚ होता तथा र सी  DU P+   कु# 
अशभु सचू क होता हI।
मागावरोधको माग\ चौरान् वदित भागव।
अलाभोऽि6थमुखः पापो रजु?ीरमुख6तथा।।
िजसके मख ु मD जतू ा या माँस हो, b कु#  C+ /, तो शभु होता हI। यिद उसके महँु मD कोई
2C िलक व तु तथा के श आिद हो, तो उससे अशभु क7 सचु ना िमलती हI। कु# .+ 1+
पेशाब करके चला जाता हI, उसके ऊपर भय आता हI। िक,तु मू 6याग कर यिद वह िकसी शभु
थान, शभु वृ तथा मांगिलक व तु के समीप चला जाय,  / ], पl ु ष के काय- का साधक
होता हI। कु# क7 भाँित गीदड आिद के िवषय मD भी समझना चािहए।
अवमू{याXतो याित य6य त6य भयं भवेत।्
य6यावमू{य Lजित शुभं देशं तथा द्ु रमम।् ।
8यं च तथा 5jयं त6य 6यादथिसfये।
ƒव/च राम िव!ेया6तथा वै ज[बक ु ादयः।।
गौ आिद पशओ ु ं के Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन का उaलेख करते हOए अिhनपरु ाण मD
कहा गया हI िक यिद गौयD अकारण ही डकारने लगD, तो समझना चािहए िक वामी के ऊपर भय
आने वाला हI। रात मD उसके बोलने से चोर# का भय सिू चत होता है और यिद वे िवकृ त वर मD
`,दन करD , तो मृ6यु क7 सचु ना िमलती हI।
भयाय 6वािमनो !ेयमिनिमRं ]तं गवाम।्
िनिश चौरभयाय 6याि;कृतं मृयवे तथा।।
यिद रात मD बैल गज-न करे , तो वामी का कaयाण होता हI और साँढ आवाज दे, तो राजा मD
बैल गज-ना करD , तो राजा को िवजय दान करता हI। यिद अपनी दी हOई तथा अपने घर पर मौजदू
रहने वाली गौएँ अभय-भ ण करD और अपने बछडे पर भी नेह करना छोड़ दD, तो गभ- य क7
सचू ना देने वाली मानी गयी हI।
अभgयं भ?य4यU गावो दRा6तथा 6वकाः।
तय,6नेहा 6ववसेषु गभ?यकरा मताः।।
पैर# से भिू म खोदने वाली, दीन तथा भयभीत गौएँ भय लाने वाली होती हI। िजनका शरीर भ‚गा ह#,
C-रोम स,नता से िखला हो और सीग# से िम¬ी लगी हOई हो, वे गौएँ शभु होती हI। िवZ पl ु ष को
भIस आिद के स:ब,ध मD भी यही सब शकुन बतलाना चािहए।

उराखड मु त िवविवालय 300


योितषशा ी       MAJY-202
भूिमं पादैिविन•न4यो दीना भीता भयावहाः।
आ5ङ्Hयो xZरोमाU ृ...लHनमृ4 4
मिह<याि;षु चा9येतसवh वा/यं िवजानता।।
Qड़े के Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन# का कथन करते हOए अिhनपरु ाण मD कही गया हI िक
जीन कसे हOए अपने घोडे पर दसू रे का चढना, उस घोडे का जल मD बैठना और भिू म पर एक ही जगह
चकर लगाना अिन का सचू क हI। िबना िकसी कारण के घोडे का सो जाना िवपि मD डालने वाला
हI।
आरोहणं तथा4येन सप’याण6य वािजनः।
जलोपवेशनं नेZं भूमौ च पGरवतनम।् ।
िवपकरं तुरङग6य सaु ं वा9यिनिमRतः।।
इसी कार यिद अक मात् जई और गडु क7 ओर से घोडे क7 अlिच हो जाये, ]+ C/A>
+ P + + D ]   3   5+ +, तो ये अjछे ल ण नह‚ हI, उनके अशभु क7
सचू ना िमलती हI। यिद घोडा बगल ु #, कबतू र# और सरकाओ ं से िखलवाड़ करे , तो मृ6यु का स,देश
देता हI। उसके ने # से आँसू बहे तथा वह जीभ से अपना पैर चारने लगे,   श का सचू क हI।
यिद वह बायD टाप से धरती खोदD बायी करवट से सोये अथवा िदन मD न‚द ले, तो शभु कारक नह‚
माना जाता हI।
वामपादेन च तथा िविलखंU वसु4धराम।्
6वपेद् का वामपाƒ\न िदवा वा न शुभ$दः।।
जो घोड़ा एक बार मू करने वाला हो, अथा-त् िजसका मू एक बार थोडा सा िनकल कर िफर lक
जाये तथा िन_ा के कारण िजसका महँु मिलन हो, वह भय उपि थत करने वाला होता हI। यिद वह
चढने न दे अथवा चढ़ते समय उलटे घर मD चला जाये या सवार क7 बाय‚ पसली का पश- करने
+, तो वह या ा मD िवVन पड़ने क7 सचू ना देता हI। यिद श -ु योsा को देखकर ह‚सने लगे और
वामी के चरण# का पश- करे, तो वह िवजय िदलाने वाला होता हI।
भयाय 6यासकृ4मू1ी तथा िन5ािवलाननः।
आरोहणं न चे ट्दकृा$तीपं वा गृहं Lजेत।् ।
या1ािवघातमाचZे वामपाƒh तथा 6पृशन।्
हेषमाणः श1ुयोधं पाद6पशt / 4
हाथी आिद के Lारा होने वाले शभु ाशभु शकुन# का वण-न करते हOए वहाँ कहा गया हI िक यिद हाथी

उराखड मु त िवविवालय 301


योितषशा ी       MAJY-202
गाँव मD मैथनु करे , तो उस देश के िलए हािन कारक होता हI। हिथनी गाँव मे बjचा दे या पागल हो
. , तो राजा के िवनाश क7 सचू ना देती हI।
Xामे Lजित नागUे4मै)    *
$सूला नागविनता मRा चा4ताय भूपतेः।।
 / D i+  ,+ उलटे हिथसार मD चला जाय या मद क7 धारा बहाने लगे,  /  . 
घातक होता हI। यिद दािहने पैर को बायD पैर पर रखे और सडँू से दािहने दाँत का माज-न करD,  /
शभु होता हI।
मं दि?णपादेन पादमा7मते शुभः।
दि?णं च तथा द4तं पGरमािZ करेण च।।
इस कार अपना बै, घोड़ा अथवा हाथी श ु मD चला जाय, तो अशभु होता हI।
वृषोऽžाः >´जरो वािप रपसु ै,यगतोऽशभु ः।।
यिद थोड़ी दरू मD बादल िघर कर अिधक वषा- करे, तो सेना का नाश होता हI। या ा के समय
अथवा यs ु काल मD .ह और न ितकूल ह#, सामने से हवा आ रही हो और छ आिद िगर जायँ,
तो भय उपि थत होता हI। लड़ने वाले योsा हष- और उ6साह मD भरD ह# और .ह अनक ु ू ल ह#,  /
िवजय का ल ण हI।
ख-डमेघाितवृZया तु सेना नाशमावा9नुयात।्
$ितकूलXहा?ाRु तथा स[मुखमा]तात।् ।
या1ाकाले रणे वािप छ1ािदपतनं भयम।्
xZा नराUानुलोमा Xहा वै जयल?णम।् ।
 F G C  /  .-ज,तु योsाओ ं का ितर कार करD, तो मडल का नाश होता
हI। पवू ,- पिxम एवं ईशान िदशा स,न तथा शा,त ह#, तो िय और शभु फल क7 ाि कराने वाली
होती हI।
काकै यVfािभभवनं 7jयाि;म-डल?यः।
$ाचीपिUमकै शानी सौ[या $े€ा शुभा च िदक्।।
या ा के समय िदखायी देने वाले िविभ,न व तओ ु ं के Lारा शभु और अशभु शकुन# का
उaलेख करते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया है िक ेत वw, वjछ जल, फल से भरा हOआ वृ ,
िनम-ल आकाश, खेत मD लगे हOए अ,न और काला धा,य-इनका या ा मD िदखायी देना अशभु हI।
lई, तृणिमिQत सूखा गोबर (कंडा), , 2, N/,  , CUA , मड़ु ाकर तेल लगाया हOआ नhन

उराखड मु त िवविवालय 302


योितषशा ी       MAJY-202
 ,> / , क7चड़, CT , 3 , पागल मनWु य, /.U , चाडाल, ž5 1 , ब,धन क7 र ा
करने वाले मनWु य, गिभ-णी wी,  , ितल क7 खली, मृ6य,ु > ,  P, P5U, /T4T G  E
हOआ वत-न-यs ु या ा के समय इनका िदखायी देना अशभु माना गया हI।
कापासं तृ<णशु<क´   (  
अङारं गुडसजn च मु-डा mय,... नHनकम।् ।
अयः पङंक चमके शौ उ4मRं च नपुंसकम।्
चा-डालƒपचाFािन नरा ब4धनपालकाः।।
गिभणी wी च िवधवाः िप-डयाकादीिन वै मृतम।्
तुषभ6मकपालि6थिभ4नभा-डमश6तकम्।।
वा# का वह श&द, िजसमD फटे हOए क7 भंयकर Cविन सनु ायी पड़ती हो, अjछा नह‚ माना
गया हI। ,+ 1V- यह श&द यिद सामने क7 ओर से सनु ायी पडD,  ]म है। िक,तु पीछे क7 ओर
+ /, तो अशभु माना गया हI। ,. V-- यह श&द यिद पीछ क7 ओर से हो,  ]C /0, िक,तु आगे
क7 ओर से हो, तो िनि,दत होता हI। कहाँ जाते ह# ! ढहरो,  . V, वहाँ जाने से त:ु हD या लाभ है?
- ऐसे श&द अिन क7 सनु ना देते हI।
अश6तो वाFशMदU िभ4नभैरवजजरः।
एहीित पुरतः शMदः श6यते न तु पृ€तः।।
ग/छे ित पUा/छMदोऽHŒः पुर6ताRु िवगिहताः।
:व यािस ित€ मां ग/छ िक4ते त1 गत6य च।।
यिद Cवजा आिद के ऊपर चील आिद मांसाहारी प ी बैठ जाँए, QT+S, / D 1  /
UPT  S  5U+, /D  EE . A, Lार आिद के Lारा म तक पर चोट लगे तथा छ और वw
1  "  ,+ तो ये सब अपशकुन मृ6यु का कारण बनते हI।
BिनZशMदा मृवथh 7jयादU kवजािदगः।
िशरोघातU ;ाराFैछ1वासािदपातनम।्
यिद या ा के समय उ] अपशक ु ल िदखायी दे, तो भगवान् िवWणु क7 पजु ा और तिु त करने
से अमगं ल का नाश होता हI। िक,तु यिद दसू री बार भी इन अपशकुन# का दश-न हो,  Q FE
.   /*
हGरमmय/य सं6तुय 6यादमङग8यनाशनम।्
ि;तीयं तु ततो YZ्वा िव]fं $िवशेृहम्।।

उराखड मु त िवविवालय 303


योितषशा ी       MAJY-202
4.5 या1ाकािलक शुभाशुभ शकुन 0 
या ा के समय कुछ शभु शकुन# का उaलेख करते हOए अिhनपरु ाण मD कहा गया हI िक या ा
के समय žेत पWु प# का दश-न Qे‘ माना गया हI। भरे हOए घडे़ का िदखायी देना तो बहOत ही उम हI।
C , CZ, दरू का कोलाहल अके ला वृsपl ु ष, पशओु ं मD बकरे , F, QU+ D / D, देवितमा,
विलत अिhन, दवु ा-, . 3, वेया,  ,  A , र6न बच, सरस# आिद औषिधयाँ, CA ,
आयधु # मD तलवार, Z , 5R , राजिच,ह,् .+ 5  "   / b , , Q, /,
> , अ त, दप-ण, C,> P, "P, >   , भ] पl ु ष# का गाना-3.  , मेघ क7 ग:भीर
गज-ना, िबलली क7 चमक तथा मन का स,तोष-ये सब शभु शकुन हI।
ƒेताः सुमनसः े€ाः पूणकु[भो महोRमः।
मासं म6या दूरशMदा वf ृ एकः पश6ु वजः।।
गाव6तुरंगमा नागा देवाU विलतोऽनलः।
दूवा5गोमयं वेया 6वणS9य च रनकम।् ।
वचािसfाथकौषkयो मु आयुधखड्गकम।्
छ1ं पीठं राजिल... शवं ]िदतविजतम।् ।
फलं धृतं दिध पयो x?तादशमाि?कम।्
शङख इ?ःु शभ ु ं वा:यं भ,वािद1गीतकम।्
ग[भीरमेघ6तिनतं त-डRुिZU $
साराश
ं lप मD वहाँ कहा गया है िक एक ओर सब कार के शभु शकुन और दसू री ओर मन
क7 स,नता - ये दोन# बराबर हI। अथा-त् सभी कार शभु शकुन# के िदखायी पड़ने पर भी यिद या ा
के समय मन स,न न हो, तो या ा नह‚ करना चािहए। जैसा िक अिhनपरु ाण का वचन हI-
एकतः सविलङ्गिन मनस6तुिZरेकतः।
ग]ड़पुराण मK शुभाशुभ शकुन िवचार
गfड़परु ाण मD भी शभु ाशभु शकुन का िवचार ा होता हI, वहाँ कहा गया हI िक या ा मD
यिद दािहने हरण,  A5, ब,दर, 3 , >ा, 2 > , प ी (नीलकठ आिद) नेवला तथा चहू ा
िदखाय‚ दे, तो या ा मगं लकारी होती हI।
मृगािहकिपमाजारƒानाः सक ू रपि?णः।
नकुलो मूषकUैव या1ायं दि?णे शुभः।।
इसी कार िवक,या, P, +, पृUवी, +O> ( ), जल से पणु - कु:भ ली हOई wी का दश-न या ा

उराखड मु त िवविवालय 304


योितषशा ी       MAJY-202
मD शभु होता हI। इसी कार या ा के समय वाम भाग मD Qृगाल, cAE,  / 1   P " +
शभु का सचू क होता हI। अशभु शकुन# का उaलेख करते हOए वहाँ कहा गया हI िक या ा मD कपास,
V6, +, दहकते हOए 2A + , सप-, बाल िबखरे लाल माला पहने और नhन अव था मD यिद कोई
यि] िदखाई दे, तो अशभु होता हI।
िव$क4या िशवा एषां शङखभेरीवसु4धरा।
वेणुwीपूणकु[भाU या1ायां दशनं शुभम।् ।
ज[बूको<खराFाU या1ायां वामके शुभाः।।
कापासौषिधतेलं च प:वाङागर भुजङगमाः।
मु,के शी र,मा8यनHनाFशुभमीि?तम।् ।
या ाकािलक शकुन का उaलेख करते हOए नारदपरु ाण मD कहा गया हI िक या ा काल मD
र6ना नामक प ी, / , िसयारन, F1 D 3 -इनके श&द वामभाग मD सनु ायी दे,  >
होता हI। छुछु,दर, 5 (उaल)ू , पaली (िछपकली) और गदहा-ये या ा के समय वामभाग मे ह#,
तो Qे‘ हI। इसी कार कोयल, तोता और भरदल ू आिद प ी यिद दािहने भाग मD आ जाँय,  Qे‘ है
तथा या ा समय मD कृ कवास (िगरिगट) का दश-न शभु नह‚ हI।
रनाकुडयिशवाकाककपोतानां िगर6तथा।
QQभुकहेमव?ीर6वराणां वामतो गितः।।
पीतकारभर;ाजपि?णां दि?णा गितः।
चाषं य:वा चतु<पाRु शुभदा वामतो मताः।।
कृ<णं य:या $याणे तु कृकलासेन वीि?तः।।
वहाँ बतलाया गया हI िक या ा काल मD सअ ु र, P ,  (/) G सपK िक चचा-
शभु होती हI। िक,तु िकसी भल ू ी हOई व तु को खोजने के िलए जाना हो, तो इनक7 चचा- अjछी नह‚
होती हI। वानर और भालओ ु ं क7 चचा- का िवपरीत फल होता हI।
वाराहशशगोधा6तु सपाणां कतनं शभ ु म।्
xते?णं नेZमेव jयययं किपऋ?योः।।
या ा मD मोर, 3 , + , नीलकठ G 3  P . A , तो इनके दश-न मा से शभु होता हI,
पर,तु लौटकर अपने नगर मD आने या घर मD रोदन श&द रिहत कोई शव (मदु ा-) सामने दीख पड़े तो
या ा के उदेय क7 िसिs होती है। पर,तु लौटकर घर आने तथा नवीन गृह मD वेश करने के समय
यिद रोदन श&द के साथ मदु ा- दीख पड़े, तो वह घातक होता हI।

उराखड मु त िवविवालय 305


योितषशा ी       MAJY-202
मयूर/छागनकुलचापपारावताः शुभाः।
YZमा1ेण या1ायां jय6तं सवh $वेशने।।
या1ािसिfभवेद् YZे शवे रोदनविजते।
$वेशे रोदनयुतः शवः शव$द6त।।
या ा के समय अपशकुन क7 चचा- करते हOए नारदपरु ाण मD कहा गया हI िक या ा के समय पितत,
5,> .E  , 5 , औषिध आिद खाकर वमन (उलटी) करने वाला शरीर मD तेल लगाने
  ,  , /T4T, चम-, अङागर (वालारिहत अिhन), दीघ-रोगी, U> , कपास (lई) नमक, ­
(पछ ु ने या टोकने का श&द), ON , E, व,Cयाwी, >3U , गेlवा वwधारी, P > + +   ,
P  D  - ये सब सामने उपि थत हो जाँय, तो अभी िसs नह‚ होती हI।
पितत:लीबजिटलमRमRवा4तौषधािदिभः।
अmय,वसाि6थचमाङागरदा]रोिगिभः।
गुडकापासलवणGरपु$¡तृणोरगैः।
व4kयाकुजिककाषायमु,के शबभ ु ि?तैः।।
$याणसमये नHनैYZैः िसिfन जायते।।
पनु ः शभु शकुन क7 चचा- करने हOए वहाँ कहा गया हI िक विलत अिhन, स,ु दर घोड़ा,
 ./ , स,ु दरी wी, च,दन आिद क7 सगु ,ध,  , अ त, छ , C , डोली या पालक7,
 . , खा पदाथ-, "P, ,  CEE, अ,न, / , QN , /, 3,  ,  >  ,
र6न (हीरा मोती आिद), Na , F, “ाहमण,  U , CN a, द,ु दिु भ, घटा तथा वीणा (बाँसरु ी)
आिद वा# के श&द वेदम, एवं मगं ल गीत आिद के श&द - ये सब या ा के समय यिद देखने या
सनु ने मD आवे, तो या ा करने वाले लोग# के काय- िसs करते हI।
$वलाHनीन् सुतुरगनृपासनपुराङगनाः।
ग4धपु<पा?त/छ1चामारा4दोिलकं नृपः।
भgये?फ ु लमृ6ना4नमkवायदिधगोमयाः।।
मFमांससुधाधौतवwशङखवृषkवजाः।
पु-यwीपु-यकलशरनभृङारगोि;जाः।।
भेरीमृदङगपटहघ-टावीणािदिनः6वनः।
 लघोषाः 6युः याियनां कायिसिfदाः।।
नारदपरु ाण मD या ा के समय यिद कोई अपशकुन हो, तो उसका परहार बतलाते हOए कहा गया हI िक

उराखड मु त िवविवालय 306


योितषशा ी       MAJY-202
या ा के समय थम बार अपशकुन हो, तो खड़ा होकर इदेव का मरण करके िफर चले। दसु रा
25 > /, तो “ाहा:ण# क7 पजू ा (वw, _य आिद से उनका स6कार) करके चले। यिद तीसरी
3  25 > / . , तो या ा थिगत कर देनी चािहए।
आदौ िव]fशकुनं YZ्वा यायीZदेवताम।्
6मृवा ि;तीये िव$ाणां कृवा पूजां िनवतयेत।् ।
मूित-$ितमािवकार
शकुन िवचार के `म मD आगे मिू त--ितमा के िवकार के शभु ाशभु का फल कथन करते हOए
नारदपरु ाण मD कहा गया है िक देवताओ ं क7 ितमा यिद नीचे िगर पड़े, .+, 3 -3  +,  +,
5+ +  / . , /A+, अिhन, 1 > ,A +,  , >  .  C + , 2+CP > / . 
तथा इसी तरह क7 अनेक अuुत बातD दीख पड़े, तो या ितमा-िवकार करलाता हI यह िवकार अशभु
फल का सचू क होता हI।
देवता य1 नृयि4त पति4त $वलि4त च।
मुह‰ ]दि4त गायि4त $ि6वFि4त हसि4त च।
वम4यिHनं तथा धूमं 6नेह र,ं पयो जलम।्
अधोमुखािधित€ि4त 6थाना6थानं Lजि4त 
एवमाFा िह Yय4ते िवकाराः $ितमासु च।।
इसी कार शभु ाशभु िविवध िवकार# का उaलेख करते हOए कहा गया हI िक यिद आकाश
मD ग,धव-नगर (.ाम के समान आकार) िदन मD ताराओ ं का दश-न, उaकापतन, का‘, ON G
शोिणत क7 वषा-, ग,धवK का दश-न, िदhदाह,  शाओ ं मD धतु छा जाना, िदन या राि मD भक
ू :प होना,
िबना आग के फुिलङग (अंङगार) दीखना, 3 U + 1  . , राि मे इ,_धनषु या
परवेश क7 िचनगारय# का कट होना आिद िदखायी देने लगे, F, / D G QT+S + 
अlणोदय- से तीत हो, गाँव मD गीदड# का िदन मD बास हो, धमु के तओ ु ं का दश-न होने लगे तथा
राि मे कौओ ं का और िदन मD कबतू र# का `,दन हो, तो ये भयं कर उ6पात क7 सचू ना देते हI। इसी
कार वृ # मD िबना समय के फूल दीख पड़े, तो उस वृ को काट देना चािहए और उसक7 शाि,त
कर लेनी चािहए। इस   + G  . 3U+-बड़े उ6पात ‹िगोचर होते हI, वे थान (देश या
.ाम) का नाश करने वाले होते हI।
महो8कापतनं का€तृणर,$वषणम।्
गा4धवदेहिदHधूमं भूिमक[पं िदवा िनिश।।

उराखड मु त िवविवालय 307


योितषशा ी       MAJY-202
अनHनौच 6फुिलङागU वलनं च िवने4धनम्।
िनशी45चापम-डकं िशखरे ƒेतवा4
Yय4ते िव6फुिलङागU गोगजाƒो<गा1तः।
ज4तवो ि;ि1िशरसो जाय4ते वािप योिनषु।
$ातः सूयाUतसृषु xािदतायुगप5वेः।
ज[बूकXामसंवासः के तूनां च $दशनम्।।
काकानामकुलं रा1ौ कपोतानां िदवा यिद।
अकाले पुि<पता वृ?ा Yय4ते फिलता य
कायh त/छे दनं त1 ततः शाि4तमनीिषिभः।
एवमाFा महोपाता बहवः 6थाननाशदाः।।
इस कार के अ,य भी जो बड़े -बड़े उ6पात ‹िगोचर होते हI, वे थान (देश या .ाम) का नाश
करने वाले होते हI। िकतने ही उ6पात घातक होते हI, िकतने ही श ओ ु ं से भय उपि थत करते हI।
िकतने ही उ6पात# से भय,  , मृ6यु, / , क7ित-, P> -दःु ख और क7 ाी भी होती हI। यिद
बaमीक (दीपक क7 िम¬ी के ढेर) पर शहद दीख पड़े, तो धन क7 हािन होती हI। इस तरह के सभी
उ6पात# मD य6नपवू क
- कaपो] िविध से शाि,त अवय कर लेनी चािह*
 4मृयु$दाः के िच/छ1ुmयU भय$दाः।
मkयाद् भयं यशो मृयुः ?यः कितः सुखासुखम।् ।
ऐƒयh धनहािनं च मधु/छ4नं च वाि8मकम।्
इयािद च सव\षूपातेषु ि;जोRम।।
शाि4त कुयात् $यनेन क8पो,िविधना शभ ु म।् ।

छ¢क के शुभाशुभफल- 


मनWु य के जीवन मD छ‚क Lारा भी शभु और अशभु शकुन क7 सचू ना िमलती हI। परु ाण# मD
िहका (छ‚क) के शभु शभु फल# का िववेचन ा होता हI। गlणपरु ाण मD छ‚क के शभु -2 >
फल# का वण-न िमलता हI। वहाँ कहा गया हI िक पवू - िदशा मD छ‚क होने पर बहOत बड़ा फल ा
होता हI। अिhनकोण मD छ‚क होने पर शोक और स,ताप तथा दि ण मD छ‚क होने पर हािन उठानी
पड़ती हI। नैऋ-6यकोण मD छ‚क होने पर शोक और स,ताप तथा मD छ‚क होने पर िम‘ान क7 ाि
G ]र मD छ‚क होने पर कलह होता हI। ईशान कोण मD छ‚क होने पर मृ6यु के समान क ा

उराखड मु त िवविवालय 308


योितषशा ी       MAJY-202
होना बतलाया गया हI।
िह:काया ल?णं वgये लभेपूव\ महाफलम।्
आHनेये शोकस4तापौ दि?णे हािनमा9नयु ात।् ।
नैऋये शोकस4तापौ िमZा4नं चैव पिUमे।
अथh $ा9नोित वायjये उRरकलहो भवेत।् ।
ईशाने मरणं $ा,ं िह:कायाU + + * 
इसी कार नारदपरु ाण मD या ा के समय के छ‚क का शभु ाशभु फल कथन करते हOए कहा
गया है िक या ा के समय सभी िदशाओ ं क7 छ‚क िनि,दत हI। गौ क7 छ‚क घातक होती हI, िक,तु
3 , वृs, रोगी या कफ वाने मनWु य क7 छ‚क िनWफल होती हI।
5+ न-
1. िजसमD कुछ ल ण# को देखकर शभु ाशभु का िवचार िकया जाय, उसे या / + /0?
. न ख. शकुन शा ग. महु ~- घ. संिहता
2. शकुन का शाि&दक अथ- होता है?
क. पशु ख. मानव ग. प ी घ. क7ट
3. अगं फुरण िन:न मD िकसका अगं है?
क. न शा का ख. सिं हता का ग. शकुन का घ. कोई नह‚
4. पaलीपतन का अथ- है?
. क7ट का िगरना ख. िछपकली का िगरना ग. मनWु य का िगरना घ. कुछ नह‚
5. अिhन परु ाण के अनसु ार शकुन के िकतने भेद है?
. 8 P.7 .I Q.J
6. दैविच,तक योितिषय# Lारा शकुन के कुल िकतने भेद कहे गये है?
.J P.B .= Q.:
7. दीGत और शा,त िन:न मD िकसके भेद कहे गये है।
क. शकुन के ख. न के ग. .ह के घ. न के
8. या ा के समय गौ क7 िछंक का शकुन फल या /0*
. भ> ख. घातक ग. अशभु घ. मृ6यु 
9. गौ का अचानक डकारने का फल या /0*
क. वामी को सख ु ाि ख. गौ वाC 5 संकट आना ग. धन ाि घ. कोई नह‚

उराखड मु त िवविवालय 309


योितषशा ी       MAJY-202
4.6 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  -शभु शिं स िनिमे च शक ु नं
या पंसु कम- इस वचन के अनसु ार िजसमD कुछ ल ण# को देखकर शभु ाशभु का िवचार िकया
. /0, उस शाw को शकुनशाw कहते है। शकुन का अथ- प ी होता है, प ी से पशु तथा अ,य
जीव# का भी बोध होता है। शकुन का दसू रा अथ- िनिम भी है, .+ 2- फुरण, छ‚क,
पaलीपतन, सरटािधरोहण तथा अ,य ल ण# Lारा भिवWय का Zान ात होता है। मनWु य# के
पवू ज- ,मािज-त जो शभु ाशभु कम- हI, उन कमe के शभु ाशभु फल को गमनकािलक शकुन कािशत
 /0* योितष मD शकुन क,ध का अितम थान है। योितषशाw के ायः सभी क,ध# मD
शकुन का सव-थम ाकटऋ हOआ होगा, य#िक जब आिद मानव योितष के गिणत प से
अनिभZ रहा होगा, 3  2- फुरण, पशु चेा अथवा ाकृ ितक हलचल# से भिवWय का Zान
ा कर लेता होगा। अ,धकासु +  + C  4  + 5 )> पि य# के अ वाभािवक
/ P + + D+, वे ही शकुन नाम से कहे गये हI। पनु ः तारकासु + s
> S के पवू - वािम काित-केय को
भगवान् शक ं र ने शकुन का उपदेश िकया। ज:भासरु से यs ु ़ के िलए तैयार इ,_ ने कयप ऋिष को
तथा कयप ने गlड जी को, गlड ने अि , गग-, N,> पराशर अिद मिु नय# को शकुन का उपदेश
 /0*
शकुन जानने वाले योितिव-द# को गिणतािद क7 आवयकता नह‚ पड़ती। पंचांग,  2D
ज,मसमयािद के िवना भी भिवWय का फल शकुन Lारा जाना जाता है। वेद, 5> O, ! / , मृित
तथा अ,य सभी भारतीय .,थ# मD कह‚ न कह‚ शकुन का वण-न अवय ा होता है।

4.7 पा रभािषक शदा


> ) शकुन का शाि&दक अथ- है )प ी। दसू रा अथ- िनिम भी होता है।
पaली ) Z5
अव ) QU
. ) / D
F )  
5  )  D,  , न ,   O + C/  5  / + /0*
योितिव-द ) योितष शा  . +  
िनिम )  O
उराखड मु त िवविवालय 310
योितषशा ी       MAJY-202
4.8 बोध  न के उ"र
1. P
2. 
3. 
4. P
5. 
6. P
7. 
8. P
9. P

4.9 स#दभ$ %#थ 


वृह6सं/ )
विशWठ / )
  / )
अिhन 5> O
अuुतसागर
योितष रह य

4.10 सहायक पाठ्यसाम%ी


वृह6सं / )
विशWठ / )
  / )
अिhन 5> O
अuुतसागर
योितष रह य

उराखड मु त िवविवालय 311


योितषशा ी       MAJY-202
4.11 िनब#धा,मक  न
1.शकुन से आप या समझते है। पWट क7िजये।
2. शकुन के कार# का उaलेख क7िजये।
3. परु ाण आधारत शकुन फल िलिखये।
4. विशWठ / + 1  5 >  > >  P+*
5. पaलीपतन िवचार का उaलेख क7िजये।
6. इकाई पर आधारत पश-ु प ीय# के शभु ाशभु शकुन िवचार का फल िलखD।

उराखड मु त िवविवालय 312


योितषशा ी       MAJY-202
  5 शुभाशुभ वJन 0 
इकाई क सं

5.1  ता
5.2 उेय
5.3 वGन परचय
5.3.1 वGन के कार एवं कारण
5.3.2    वGन िवाओ ं क7 िवशेषता
5.4 वGनC  .,थानसु ार वGन + > >   
5.5 5> O एवं अ,य आधारत शभु ाशभु वGन   
5.6  
5.7 पारभािषक श&दा
5.8 बोध न# के उर
5.9 स,दभ- .,थ  
5.10 सहायक पाठ्यसाम.ी
5.11 िनब,धा6मक न

उराखड मु त िवविवालय 313


योितषशा ी       MAJY-202
5.1 ता
 तु ! " C.+ " -202 के चतथु - खड क7 पाँचव‚ इकाई से स:बि,धत है। इस
इकाई का शीष-क है ) शभु ाशभु वGन   * !+ पवू - आपने >    + .U> +
6 का अCययन कर िलया है। अब आप इस इकाई मD , वGन- के बारे मD अCय + . /+ /0*
वGन मानव जीवन का एक अिभ,न 2 /0* व ततु : 6येक मानव अपने जीवन मD कभी-
कभी एक बार वGन अवय P + /0* + -वेदांग# एवं परु ाण# मD किथत वGन     !
इकाई मD आप िविधवत् अCययन करD ग।े
1! इस इकाई मD हम लोग , वGन- तथा उसके शभु ाशभु फल# के बारे मD . + 
यास करते है।
5.2 उे य
! इकाई के अCययन के पचा 4 15 )
• वGन को परभािषत कर सकD गे।
• वGन के कार को समझा सकD गे।
• वGन आने वाले कारक# को जान लDग।े
• वGन के शभु ाशभु फल क7 मीमांसा कर सकD गे।
• + ,5> O तथा योितष शा के आधार पर शभु ाशभु वGन    Zान क7 ाि
कर लDग।े
5.3 वJन प रचय
सं कृ त वा®य मD वGन िवा को परा िवा का अगं माना गया हI। अतः वGन के माCयम
से सृि के रह य# को जानने का यास भारतीय ऋिष, मिु न और आचायK ने िकया हI। फलतः
भारतीय मनीिषय# क7 ‹ि मD वGन के वल जा.त ‹य# का मानसलोक पर भाव का परणाम मा
नह‚ हI न तो कामज या इिjछत िवकार# का ितफलन मा है।
सामा,य lप से वेदा,त क7 िवधा मD कहा जाए तो वGन लोक क7 तरह या ‹य लोक णभगं रु हI।
इससे वGन का िमUया6व िसs होता हI। रजु मD सप- का pम कहा जाए तो वGन मD िभखारी का
राजा होना भी pम मा ही हI; पर,तु वGन को आदेश मानकर राजा Lारा अपने राय का दान, वGन
मD अजन-ु Lारा पाशपु ताw क7 दी ा ाि आिद उदाहरण भी भारतीय सं कृ ित मD देखने को िमलते हI।

उराखड मु त िवविवालय 314


योितषशा ी       MAJY-202
ि जटा ने जो कुछ वGन मD देखा उसको अपवू - माण मानकर Qी हनमु ान् जी ने लंका दहन िकया। ये
सब ऐसे उदाहरण हI जो वGन मD िवा को दैिवक आदेश या परा अनसु धं ान से जोड़ते हI। वGन
िच,तन जब शाw का lप .हण करता है तो िनिxत ही उसक7 िच,तना पsित मतू - से अमतू - काल मD
वेश कर जाती हI।
5.3.1 वJन के कार एवं कारण
6व9नकमलाकर .,थ मD वGन को चार कार का माना गया हI- (1) दैिवक वGन (2)
शभु वGन (3) अशभु वGन और (4) िमQ वGन।
दैिवक वGन को उjच कोिट को साCय मानकर इसक7 िसिs के िलए अनेक मं और
  भी िदये गये हI। वGन उ6पि +  रण# पर िवचार करते हOए आचायK ने वGन के नौ कारण
भी िदये हI- (1) Qतु (2) अनभु तू (3) ‹ (4) िच,ता (5) कृ ित ( वभाव) (6) िवकृ ित (बीमारी
आिद से उ6प,न) (7) देव (8) पु य और (9) पाप।
कृ ित और िवकृ ित कारण# मD काम (सेस) और इjछा आिद का अ,तभा-व होगा। दैवी
आदेश वाले वGन उसी यि] को िमलते हI जो वात, 5, कफ ि दोष से रिहत होते हI। िजनका
tदय राग-Lेष से रिहत और िनम-ल होता हI।
+ , पु य और पाप भाव वाले तीन कार के वGन सव-था स6य िसs होते हI। शेष छः
कारण# से उ6प,न वGन अ थायी एवं शभु ाशभु य] ु होते हI।
C0D> , हा य, , , मू मल और चोरी के भाव# से उ6प,न वGन यथ- होते हI-
रतोहासा/च शोका/च भया4मू1पुरीषयोः।
$णZव6तुिच4तातो जातः 6व9नो वृथा भवेत।् ।
1 य- बृह पित के मतानसु ार दश इि,_याँ और मन जब िनxे होकर सासं ारक चेा से,
गितिविधय# से पृथक् होते हI तो वGन उ6प,न होते हI। इस परभाषा के अनसु ार िवदेशी िवचारक# के
इस कथन को बल िमलता हI िजसमD वे वGन का मSु य कारण जा.त अव था के ‹य# को मानते हI-
सव\ि45या-युपरतौ मनो vपु रतं यदा।
िवषयेmय6तदा 6व9नं नानाSपं $पयित।।
आचाय- बृह पित Lारा द वGन क7 यह अव था सिू चत करती हI िक 6य lप से
शरीर का कोई भी भाग जब तक काम करता रहेगा वGन नह‚ आयेगा। यहाँ तक िक C  
िशिथल होकर िनि_त होना आवयक हI। बjचे जब वGन को देखकर हसं ते या रोते हI तब धीरे से
उनके शरीर को छूने मा से वGन भगं हो जाता हI। कुछ लोग# का मानना हI िक गाढ़ िन_ा क7

उराखड मु त िवविवालय 315


योितषशा ी       MAJY-202
अव था मD वGन नह‚ आते। यह िसsा,त वाय नह‚ हI। िन_ा क7 गाढ़ता मD भी वGन क7 तरंगे
उठती हI।
वGन देखने के िलए चा षु 6य कारण# का होना आवयक नह‚ हI। यह स6य हI िक
वGन मD उ,ह‚ व तुओ ं का दश-न होता हI िज,हD हम जा.त अव था मD कभी न कभ देखे हOए होते हI;
पर,तु दल
ु -भ ही सही 5र वैसे भी वGन आते हI िज,हD हम कभी पवू - 6य नह‚ मान सकते। उदाहरण
के तौर पर अ‹Wय पवू - भिू म, दसू रे लोक के ‹य, आकाश गगं ा आिद। वGन# का अवतरण मानस
 + / / /0, पर दैिवक वGन मD मन उपकरण बनता हI। अतः वGन को मानस से अितर]
यापार या मानस का यापार दोन# ही नह‚ क7 सकते। ऋिषय# ने वGन को उतना ही सहज माना हI
िजतने ाकितक घटनाओ ं को जैसे- सयू ा-दय, सयू ा- त। पाप पु य से उ6प,न वGन ,अपवु - घटना- क7
कोिट मD आते हI।
वGन मD आवाजD आती हI। इन आवाज# का ‹य िवहीनता के बावजदू वGन कोिट मD रखा
जा सकता हI ओर ये आवाजD कभी-कभी पणू - स6य भी िसs होती हI। ऐसे वGन# को कण|ि,_य धान
वGन कह सकते हI। वGन देखने मD सवा-िधक िब:ब चा ुष ही होते हI। शेष इि,_याँ चा षु िब:ब#
का सहयोग मा करती हI। अतः योग बनता हI वGन_ा, वGनजीवी, वGनलोक आिद। ज,मा,ध
यि]य# को जो वGन आते हI या आयेगD वे अिधक मा ा मD ‹यिवहीन ह#गे। वGन लाल, 5+,
 +, +, उजले रंगो से यु] भी हो सकते हI और रंगिवहीन भी। इस कार या कहा जा  /0
िक ‹य तीक# के िबना भी वGन आ सकते हI। वGन का दश-न, वGन का Qवण और वGन का
पश-न भी हो सकता हI। वGन मD हम महससू कर सकते हI िक हमारे बगल मD कोई सोया हOआ है
G -कभी उसे वGन मे ही छूकर आž त भी हो लेते हI। वGन सृि के उस अव था िवशेष
का नाम हI जो ज.त या चेित अव था के िवपरीत काल मD ही अवतरत होता हI। वGन अवतरण
+   25  6+ C/6व रखते हI। िजस काल मD वGन आ रहा है वह काल उस वGन क7
चरताथ-ता को िसs करता हI। अतः काल के ण, QE+, ह, सिं धकाल भिवWयत् अनमु ान या कथन
+  C/6वपणू - िनयामक बनते हI। एक रात को चार खड मD बाँट कर थल ू तः तीन-  QE+ 
एक याम या खड मान सकते हI। राि का िवभाग िन:निलिखत कार के कर सकते हI-
(1) दोषकाल (थम हर) से तीन धटं े तक
(2) अs-राि से पवू - (िLतीय हर) तीन घटं े तक
(3) अs-राि से बाद (तृतीय हर) के तीन घटं े तक और
(4) सयू ा-दय से पवू - (चतथु - हर) तीन घटं े तब

उराखड मु त िवविवालय 316


योितषशा ी       MAJY-202
(1) इस खड मD देखा गया वGन एक वष- के अदं र अपना फल देता हI। (2) इस खड मD देखा गया
वGन छः मास के अदं र अपना फल देता हI। (3) इस खड मD देखा गया वGन तीन मास के अदं र
अपना फल देता हI। (4) इस खड मD देखा गया वGन एक वष- के अदं र अपना फल देता। “ाहामहु ~-
मD देखा गया वGन उसी िदन अपना फल देता हI।
अिनकारी वGन# को देखकर जो यि] सो जाता हI और बाद मD शभु वGन# को देखता है
वह अशभु फल नह‚ ा करता। अतः अिन वGन को देख कर िफर से सो जाना चािहए-
अिनं थमं ‹्वा त6पxात् वपेत् पमु ान।्
आचाय- बृह पित के मतानसु ार राि के थम हर मD देखा गया वGन एक वष- मD D
िLतीय हर मD देखा गया वGन आठ मास के अदं र, तृतीय हर मD देखा गया वGन तीन मास मD,
चतथु - हर मD देखा गया वGन एक मास मD तथा अlणोदय बेला या “ाहामहु ~त- मD देखा गया वGन
दश िदन के अ,दर अपना फल देता हI-
वGने तु थमे यामे सवं 6सरिवपािकनः।
िLतीये चािभमा-सैिwिभमा-सै तृतीयके ।।
चतथु -यामे यः वGनो मासे स फलदः मृतः।
अfणोदयवेलायां दशाहेन फलं भवेत।् ।
सयू eदय काल मD वGन देखकर जाग जाने के बाद वह वGन अपना त6काल फल देता हI। िदन मD मन
मD सोच कर सोने के बाद यिद उसी का वGन िनद|शा6मिक आया तो समझD यह वGन शी¤ ही अपना
 + *
ातः वGनx फलद त6 णं यिद बोिधतः।
िदने मनिस यद् ‹ं त6सव-च लभेद् ¯वु म*् * (वैवतमहापरु ाणम्, 77/7)
कफ धान कृ ित वाला यि] जल तथा जलीय पदाथK का सवा-िधक वGन देखता हI। वातधान
कृ ित वाला यि] हवा मD उड़ता हI और ऊँचाई पर चढ़ता तथा ऊँचाई से कूदता हI। िपतृ कृ ित
वाला यि] अिhन क7 लपट#, वण- तथा विलत चीज# को देखता हI।
5.3.2 भारतीय वJन िवKा कL िवशेषता
   वGनिवद# ने दःु वGन नाशन के िलए कुछ अपवू - मं # तथा उपाय# को खोज रखा
हI। वGन शाw के सभी .,थ# मD ायशः ये िवधान िदये गये हI। रोग और सू म आ6माओ ं के
दWु भाव से उ6प,न दःु वGन नाश के िलए वेद# मD भी मं िदये गये हI। इन मं # के भाव से िनिxत
ही लाभ िमलता हI।

उराखड मु त िवविवालय 317


योितषशा ी       MAJY-202
इन उपाय# को देखने मा से तीत होता हI िक भारतीय ऋिषय# ने वGन को दैवत सृि का
अश ं मान कर उसे मनWु य के ज,मा,तरािज-त पु य-पाप# का दश-क या सचू क त6व माना हI।
वGन िवा मD ता6कािलक मृ6यु या शी¤ आने वाली मृ6यु के ल ण# को भी िदया गया हI।
इससे िसs होता हI िक अपमृ6यु के सचू क ल ण चाहे वे िजस कारण से उ6प,न होते ह# वGन क7
परिध मD आते हI।
दःु वGन, दःु वGन नाश और आस,न मृ6यु ल ण वGन िवा के अ,तग-त आने वा+
िवषय हI।
कुछ वGन# क7 याSया उनक7 कृ ित के आधार पर क7 जा सकती हI। सभी कार के
सफे द पदाथ- वGन मD िदखने पर शभु फल देते हI कपास, भ म, भात और म°ा को छोड़ कर। इसी
कार काली व तएु ं गो, / D, + , “ाहा:ण और घोड़ा छोड़कर सभी कार का अिन फल देती
हI-
सवा-िण शु ला,यितशोभनािन
कापा-स भ मौ±त`वय-म।्
सवा-िण कृ Wणा,यितिनंिदतािन
गोहि तदेविLजवािजवय-म।् ।
संसार मD िजतने शभु पदाथ- हI वे आवयक नह‚ िक वGन मD िदखलायी पड़ने पर शभु फल ही दD।
ठीक इसी तरह सभी कार के अशभु पदाथ- वGन मD ‹ होने पर ायशः शभु फल के सूचक होते
हI-
लौिककयवहारे ये पदाथा-ः ायशः शभु ाः।
सव-थैव शभु ा ते यु रित नैव िविनxयः।।

5.4 वJनकमलाकर के अनुसार वJन  $ $ 0 -

6व9नकमलाकरः  थमः कaलोलः मD CC4  तिु नद|शा6मकम् -


Qीनृिसंहं रमानाथं गोकुलाधीžरं हरम।्
व,दे चराचरं िवžं य य वGनाियतं भवेत्।
वGनाCयायं वयािम मtु ा,ते य सरू यः।
  C  संिच,6य यथाबिु sबलोदयम।् ।
उराखड मु त िवविवालय 318
योितषशा ी       MAJY-202
मI (योितिव-द् Qीधर) भगवान् नृिसंह, Qी रमानाथ (Qी रामच,_) तथा गोकुलपित भगवान्
Qीकृ Wण को णाम करता ह~,ँ िजनक7 उ6पि से यह सम. चर अचर िवž वGनाियत हो रहा हI।
नाना कार के मत# ( वGन स:बि,धत िसsा,त#) को अपने शाwZान वlप बल तथा
बिु s के योग से चयिनत कर वGनाCयाय क7 रचना कर रहा ह~,ँ िजसक7 याSया मD बड़े-बड़े िवLान
भी मोिहत हो जाते हI।
वGनं चतिु व-धं ो]ं दैिवकं काय-सचू कम।्
िLतीयं तु शभु वGनं तृतीयमशभु ं तथा।।
िमQं तरु ीयमाSयातं मिु नपंगु वकोिटिभः।
त ादौ दैिवक वGने म, साधनमjु यते।।
वGन चार कार के कहे गये हI- (1) दैिवक वGन जो काय-सचू क होता हI (2) शभु वGन
(3) अशभु वGन तथा (4) िमQ वGन यािन शभु ाशभु वGन ऐसा अनेक ाचीन Qे‘ मिु नय# का मत
हI।
थम दैिवक वGन के िलए म, # के साधन भतू उपाय# को दिश-त िकया जा रहा हI*
F  -यामानां िवचारं कुम-हे वयम।्
त च थमे यामे वGनं वष|ण िसCयित।।
थमतया वGन फल िवचार हेतु वGन-काल का िवचार करते हI। थम याम मD देखा हOआ
वGन एक वष- मD फलीभतू होता हI। िदवा-राि मD कुल 8 याम होते हI। तीन घटे का एक  C /
हI राि मD थम याम मD देखा हOआ वGन एक वष- बीतते-बीतते अपना फल देता हI।
िLतीये मासषट्केन षड्िभः प ै तृतीयके ।
चतथु | 6वेकमासेन 6यूषे तिनेन च।।
राि के िLतीय याम मD देखा हOआ वGन छः मास के अ,दर अपना फल देता हI और N 
याम मD देखा हOआ वGन तीन माय के अ,दर फलीभतू होता हI। राि के चतथु - हर मD देखा वGन
एक मास के अ,दर 6य फल देता हI। “ा:हामहु ~त- का ‹ वGन उसी िदन अपना फल िदखाता हI।
गोरे णjू छुरे ण चाथ त6कालं जायते फलम।्
वGनं ‹ं िनिश ातगर-ु + + + *4 *
FV के चरने जाते समय (सूया-दय से त6काल पवू )- देखा हOआ वGन त6काल फल देता हI।
राि मD देखे हOए वGन को ातःकाल अपने गl ु से शभु ाशभु Zान हेतु कहना चािहए।
तम,तरे ण म, Zः वयं वGनं िवचारयेत।्

उराखड मु त िवविवालय 319


योितषशा ी       MAJY-202
यािन कृ 6या   Zानग:यािन तािन त।ु ।
यिद गl
ु ( वGनवेा) न हो तो वयं मं Z यि] को वGन फल का िवचार करना
चािहए। भिवWय मD घटने वाली घटनायD Zान Lारा जानी जाती हI।
आ6मZानाये त माद् यिततयं नरोमैः।
कम-िभद|वसेवािभः कामारगण यात्।।
अतः आ6मZान के िलये Qे‘ यि] को अनवरत य6नशील रहना चािहए। यह आ6मZान कम-, +
सेवा और कामािद श ओ ु ं के समहू के दमन से ा होता हI।
ि;तीयः क8लोलः
( वGन कमलाकर के थम कaलोल मD वGनिसिs के िविवध मं और उनक7 ि` 
ितपादन िकया गया हI। इन मं ो के माCयम से भतू - -वत-मान तीन# कार के वGन# का रह य
जाना जा सकता हI। िLतीय कaलोल मD वGन क7 कृ ित और उसका कारण विण-त हI। इस कaलोल
मD मा शभु वGन# का ही फल कहा गया हI।)
6व9नफल5ZO यVHयता-
अथ नानािवधान् .,थान् समालोjयावलोडय च।
अि मन् िLतीये कaलोले शभु वGनफलं “वु ।े ।
य य िचं ि थरीभतू ं समाधातुx यो नरः।
त6ािथ-तं च बहOशः वGने काय[ ‹यते।।
अब `म ा िLतीस कaलोल मD अनेक कार के .,थ# क7 समी ा कर तथा उनका आलोडन कर
शभु वGन# के शभु फल को क7 रहा ह~।ँ िजस मनWु य का िच ि थर हI तथा िजस मनWु य का शरीर
C > ( - -िप lप ि धात)ु हI यािन वात-5 और कफ क7 मा ा संतिु लत हI। ( व थ
यि] मD धातु सम होता हI।) उसके Lारा इिचछत या िथ-त वGन ायशः काय- क7 सचू ना दे देता हI।
आशय यह है िक वGन मD दैवी आदेश उसी यि] को िमलता हI िजसक7 िचवृियाँ G 
दोन# ही व थ ह#।
6व9नकारणमः् -
6व9न$दा नव भुिव भावाः पुंसां भवि4त िह।
तु ं तथानभ ु ूतं च YZं तसYशं तथा।
िच4ता च $कृितUैव िवकृितU तथा भवेत।्
 4 -यािन पापानीयेवं जगतीतले।।

उराखड मु त िवविवालय 320


योितषशा ी       MAJY-202
मनWु य के फल को दिश-त करने वाने नौ भाव पUु वी पर िसs हI जैसे- (1) Qतु (सनु ा
हOआ), 2. अनभु तू (अनभु व िकया हOआ), 3. ‹ (देखा हOआ), 4. िच,ता (मानिसक L,L से उ6प,न),
5. कृ ित ( वभाव के कारण उ6प,न), 6. N  (. C   C /), 7 देव (देवता से ेरत
या ‹) 8. पु य (जप, 5, धमा-िद से ‹), 9. पाप (ह6या, षडय, एवं अपराध के कारण ‹)।
इ,ह‚ नौ भाव# के अनl ु प िकसी भी मनWु य को वGन िदखलाई पड़ते हI।
त4मkय आFं षट्कं तु िशवं वािशवम9यथ।
अ4यं ि1कं तथा नृणामिचराफलदशकम।् ।
$ा!ेन पुSषेणेहावयं !ेयः 6वचेतिस।
6व9नो िवचाय6त6याथ6तथा चैकाXचेतसा।।
इनमD से ार:भ के छः संSया तक के वGनभाव शभु या अशभु दोन# कार क फल देते हI।
अिं तम तीन वGनभाव मनWु य# के िलए यथाशी¤ फलदायक होते हI। बिु sमान् मनWु य को एका.िच
होकर अपने मन मD ‹ वGन और उसके भिवWयत् अथ- को गभं ीरतापवू क - अवय िवचारना चािहए।
jयथ6व9नः-
रतेहा-साjच शोकाjच भया,मू परु ीषयोः।
णव तिु च,तातो जातः वGनो वृथा भवेत।् ।
 (C0D> ), हा य, , , मु -मल और ण (चोरी गयी व त)ु क7 िच,ता से उ6प,न
वGन यथ- चला जाता हI; अथा-त् उस समय वGन का कोई ताि6वक अथ- नह‚ रहता।
धातु?ोभजिनत6व9नफलम-्
कफGलतु शरीर तु पयेद् बहOजलाशयान।्
नः       **
िजस शरीर मD कफ क7 अिधकता हो वह वGन मD जलाशया को देखता हI। भतू (अिधक)
जल वाली निदय# तथा कमल से य] ु सरोवर# को देखता हI।
फिटकै रिचतं सौधं तथा žे  /C*4
 O  ,_ं च तोयदानां च मडलम।् ।
रसाxं मधरु ान् िदयान् फलािन िविवधािन च।
आयं यZोपकरणं यZमडपमु मम।् ।
कफािधय से य] ु शरीर को फिटक के बने भय भवन, उजवल गफ ु ायD,  O, च,_मा और
मेघ# क7 पिं ]याँ िदखलाई देती हI। अनेक कार के मधरु रस, िदय िविवध कार के फल, QN , यZ

उराखड मु त िवविवालय 321


योितषशा ी       MAJY-202
क7 साम.ी तथा उम यZमडप आिद िदखलाई पड़ते हI।
> a4 करशािल,यः पृथलु तनमडलाः।
 >  f पीनशिथ च परशोिभतमCयमाः।।
žेतवwैः žेतमाaयैिव-कास,6यx योिषतः।
िपकृ ितको यx सोऽिhनिमsं पयित।।
(कफ कृ ित वाले पुlष को) शभु अलंकार# से य] ु गृिहिणयाँ िदखाती हI; .+
मनमडल श त होते हI। वे स,ु दर आँख# वाली होती हI और उनके भरपरू मांसल जंघे होते हI एवं
स,ु दर किटभाग से जो सशु ोिभत हो रही ह# (वे िदखलाई देती हI) अपने Qेत वw# और Qेत
मालाओ ं से काश फै लाती मिहलायD िदखलाई पड़ती हI। िप कृ ित वाला शरीर (यि]) विलत
अिhन देखता हI।
िवaु लतायाx तेज तथा पीतां वस,ु धराम।्
िनितािन च शwािण िदशो दावानलािद-ताः।।
फुaला 6वशोकतरवो गांगये ंर चािप िनम-लम।्
िकच lढकोपः संघातपातािदकाः ि`याः।।
5 धान यि] को िवaु लता (आकाशीय तथा कृ ि म) का तेज तथा पीली पृUवी,
अ6य,त तीण शw, दवानल से या िदशायD (िप कृ ित वाले को) िदखलाई पड़ती हI। फुaल
2  + वृ , T4T , से स:बि,धत िनम-ल भिू म, तटािद अथवा `ोध से आिव तथा सघं ात चोट
चपेट के कारण वयं को ऊँचाई से िगरना िदखलाई देता हI।
करो6या6मैविे त पयेजलं चािप िपबेद् बहO।
वातकृ ितको यx स पयेतङु गरोहणम।् ।
तङु ग_मांx िविवधान् पवनेन कि:प *4
+ C > a गx पि िभग-मनं वयम।् ।1
बहOत मा ा मD जल का पीना, . P +  , 5 कृ ित वाला यि] वGन मD देखता हI। जो
वात कृ ित वाला यि] होता हI वह वयं को ऊँचे थल पर चढ़ता हOआ देखता हI। उjच िविवध
वृ # को हवा से कि:पत होता देखता हI। वेगशाली घोड़ो को देखख हI तथा पि य# के साथ वयं
का गमन (उड़ना) देखता हI।
उjचसौधान् िववादं च कलहं च तथा6मनः।
1/O च डयनिमित कृ िततो भवेत्।।

उराखड मु त िवविवालय 322


योितषशा ी       MAJY-202
वGनिमं च ‹्वा यः पनु ः विपित मानवः।
तद6ु प,नं शभु फलं स नाGनोतीित िनिxतम।् ।
वGन मD ऊँचा भवन, /, अपने से स:बि,धत िववाद, (िशखर# पर) चढ़ना, ]i 1
5 कृ ित के कारण िदखलाई देता हI। अभी वGन को देखकर जो यि] पनु ः सो जाता हI तो उसे
‹ वGन का फल ा नह‚ होता। ऐसा िनिxत मत हI।
अतो ‹्वा शभु वGनं >  C + 0*
सयू -सं तवनैन|याविशा रजनी पनु ः।।
देवानां च गl ु णां च पजू नािन िवधाय सः।
शभं ोन-मि `यां कुया-त् ाथ-येjच शभु ं ित।।
अतः बिु sमान् मनWु य को िनिxत lप से शभु वGन देखने के बाद शेष राि जागरणपवू -क
तथा सयू - सं तवनपवू क- यतीत करनी चािहए। शभु वGन देखने के उस यि] को देवताओ ं तथा
गl ु जन# क7 पजू ा करनी चािहए। भगवान् िशव को िविधवत् णाम कर शभु फल क7 ाि हेतु
ाथ-ना करनी चािहए।
शभु वGनफलम-्
वGनमCये पमु ान् यx िसहं ाžगजधेनजु ःै ।
य] ु ं रथं सC /+ 4  + 4 5ND5 f**
žेतेन दि णकरे फिणना दं यते च यः।
पचं रा े भवे य धनं दशसहwकम।् ।
वGन मD जो यि] अपने को िसंह, QU , / D, बैल से यु] रथ पर चढ़ा हOआ देखता हI
वह राज6व को ा करता हI। िजस यि] के दि ण हाथ मD सफे द सप- काटता हI वह पाँच रात के
अ,दर दश हजार धन ा करता हI। (यहाँ दशसहwकम् उपल ण है िजसका अथ- है िवपल ु धन)।
म तकं य य वै वGने यx वGने च मानवः।
स च रायं समाGनोित िjछते वा िछनि वा।।
िलङगjछे दे च पl ु षो योिषsनमवाGनयु ात।्
योिनjछे दे  Cनी च पl ु षाsनमाGनयु ात।् ।
जो मनWु य वGन मD म तक काटे या िजसका म तक काटा जाय वे दोन# ही राय ा करते
हI। वGन मD यिद पl ु ष िलंग को काटता देखे तो वह wीधन ा करता हI। यिद wी योिन भगं देखे तो
पlु ष धन (या पl ु ष से धन) ा करती हI।

उराखड मु त िवविवालय 323


योितषशा ी       MAJY-202
िछ ा भवे य िजŒा वGने स पl ु षोऽिचरात।्
ि यः साव-भौम6विमतरो मडलेशताम।् ।
žेतदि,तनमाl” नदीतीरे च यः पमु ान।्
शाaयोदनं भङु ् ]े वै स भङु ् ]े िनिखलां महीम।् ।
िजस यि] क7 वGन मD िज” कट जाये तो वह पl ु ष (यिद) ि य हI शी¤ ही
साव-भौमराज6व को ा करता हI। ि य से इतर वण- का यि] मडलेश बनता हI (िछनिज” के
दश-न से)। उजले हाथी पर चढ़कर जो यि] नदीतट पर दधू भात खाता है वह सम. पृUवी का भोग
करता है अथा-त् राज6व ा करता हI-
सयू ा-च,_मसोिब-:बं सम.ं .सते च यः।
स सy भङु ् ]े वै सकलां साण-वां महीम।् *
यः वदेहोि6थतं मांसं परदेहोि6थतं च वा।
वGने भङु ् ]े मनजु ः स साŽायं सम­तु े।।
जो यि] वGन मD सयू - और च,_मा का संपणू - िव:ब .स लेना हI वह बलपवू क - सम_ु
सिहत सम. पृUवी का भोग करता हI। जो यि] वGन मD अपने शरीर का मांस अथवा दसू रे के शरीर
का मासं खाता है वह सामार् य को सं ा करता हI।
ासाद Qृङगमासाा वा चा ं वलंकृतम।्
अगाधेऽ:भिस य तीया-6स भवेत् मृिथवीपितः।।
छिद- परु ीषमथवा यः वदे िवमानयेत।्
रायं ाGनोित स पमु ान ना 6येव संशयः।।
राजभवन के उjच Qृंग (चोटी) पर चढ़ कर जो यि] उम पवा,न को खाता है अथवा
जो यि] वGन मD अगाध जल मD तैरता िदखलाई देता हI वह पृिथवीपित यािन राजा होता हI, वGन
मD जो यि] वमन और िव‘ा को वाद लेकर खाता है, उसक7 अभय मानकर अवZा नह‚ करता
वह यि] राय को ा करता हI। इसमD संदहे नह‚ हI।
मू ं रे तः शोिणतं च वGने खादित यो नरः।
तैरङाग‰यञजनं यx कुfते धनवान् िह सः।।
निलनीदलश यायां िनषणः 5  C*4
यः करोित नरः सोऽ ायं रायं सम­तु े।।
जो यि] वGन मD मू , रे त (वीय- या रज) एवं र] को खाता है तथा शरीर के अगं # मD

उराखड मु त िवविवालय 324


योितषशा ी       MAJY-202
उबटन या तेल लगाता हI वह धनवान् होता हI। कमल के प # पर बैठकर जो यि] खीर को खाता है
वह कृ  एवं िवशाल राय को ा करता हI।
फलािन च सनू ािन यः खादित च पयित।
वGने त याङगणे लमील-ठु 6येव न संशयः।।
यः वGने चापसयं ोगः बाण य कुfते सधु ीः।
सव[ श बु लं ह,या य रायमकटकम।् ।
वGन मD जो यि] फल# और फूल# को खाता है या देP /0, उसके आँगन मD लमी
लोटती हI। इसमD संदहे नह‚ करना चािहए। वGन मD जो यि] धनषु क7 डोरी पर बाण का संधान
करता हI वह अपने श ओ ु ं को मारकर िनWकंटक राय ा करता हI।
वGने पर य योऽसयू ां वधं ब,धनमेव च।
f  5C> 4 +  4 .  + > f**
वGने य य जयो वै याि_पणू ां च पराजयः।
स च`वतT राजा याद ना 6येव संशयः।।
जो दसू रे से Lेष करता हI, वध या ब,धन करत हI वह धनवान् होता हI। वGन मD जीत हो व
श ु क7 हार तो िनxय ही यि] च`वतT राजा बनता हI।
रौGये   ´चने पा े पायसं यः वदे,नरः।
त य यात् पािथ-वपदं वृ े शैलेऽथवा ि थरः।।
शैल.ामवनैय-] ु ां भजु ा‰यां यो मह‚ तरे त।्
अिचरे णवै कालेन स या_ाजेित िनिxतम।् ।
चाँदी या सोने के पा मD जो यि] खीर का आ वाद लेता है वह राय6व को ा 
हI। ठीक यही फल (राय6व) वृ या पव-त पर वGन मD चढ़ने का होता हI। पव-त-जगं ल से य] ु पृUवी
को अपनी भजु ाओ ं से तैरकर जो यि] पार करता हI वह शी¤ ही राय6व को ा करता हI।
f  0 ङगमाlyोरित Qमम,तरा।
स सव-कृतकृ 6यः सन् पनु रायाित वेमिन।।
िवषं पी6वा मृित गjछे त् वGने यः पfु षोमः।
स भोगैब-हOिभय-]ु ः लेशाद् रोगाद् िवमjु यते।।
तृतीयः क8लोलः
अशुभ6व9नफलम-्

उराखड मु त िवविवालय 325


योितषशा ी       MAJY-202
अतः परं वयािम वGनानां फलम,यथा।
यतो Zा यि,त भल ू ोके ऽशभु ं य6 वaपबs ु यः।।
1>  6 O  मणीनां िवदरम ू ् य च।
  च कुGयानां हरणं हािनकारकम।् ।
शभु वGन करण के पxात् वGन के अ,यथा फल को कह~गँ ा िजसे जानकर अaपबिु s
वाले मनWु य पृUवी लोक मD अशभु फल को जान सकD गे। वGन मD हिथयारो, आभषू ण#, मिणय#, CA ,
वण- तथा ता:बे का /O   2 >  (/ )  + /0*
हा यय]ु ं नृ6यशीलं िव तं के शविज-तम।्
वGने यः पयित नरं स जीवे,मासयhु मकम।् ।
कण-नासाकरादीनां छे दनं पङकमजनम।्
पतनं द,तके शानां बहOमांस य भ णम।् ।
हँसता हOआ, नृ6य करता हOआ, ल:बे चौड़े तथा बालरिहत मनWु य को जो यि] वGन मD
P+ /0 /  C   . / /0*  ,  , .> V  E .  , क7चड़ मD डूबना,
दाँत# और बाल# का िगरना, अ6यिधक मांस खाना-
गृहसाद-भेदं च वGनमCये पयित।
य त य रोगबाहOaयं मरणं चेित िनxयः।।
अžानां वारणानां च वसनानां च वेमनाम।्
वGने यो हरणं पये य राजभयं + *4 *
मकान (घर) का राजमहल का फट जाना जो यि] वGन के बीच देखता है वह अनेक रोग#
से िघर जाता है अथवा उसक7 मृ6यु हो जाती हI। ऐसा िनिxत समझना चािहए। घोड़ो का, हािथय#
 , वw का तथा भवन थान आिद का हरण (लटू पाट) जो यि] वGन मD देखता है उसको
राजभय उ6प,न होता हI।
व यवप6निभहारे च लमीनाशो भवेद् धरवम ु ् ।्
वGयापमाने संलेशो गो wीणां च िव.हः।।
वGनमCये य य पसंु ो िŒयते पादर णम।्
प6नी च िŽयते य य च याेहने 5U f**
जो यि] वGन मD अपनी प6नी का हरण देखता है उसका धन िनिxत नाश को ा करता
है। अपना ( वयं का) अपमान देखना लेश उ6प,न करता है तथा सगं ो ा मिहलाओ ं से कलह

उराखड मु त िवविवालय 326


योितषशा ी       MAJY-202
कराता हI। जो वGन मD अपने जतू ा क7 चोरी देखता है अथवा प6नी क7 मृ6यु ( वGन मD) देखता है
उसका शरीर रोग से पीिड़त हो जाता हI यािन वह यि] शरीर क को ा करता हI।
वGने ह तLयjछे दः य य या6स नरो भिु व।
C -5 -N िवहीनः याद् गवां वृ,दैx मjु यते।।
द,तपाते _यनाशः नासाकण-कत-ने।
फलं तदेव याSयातम ना 6येव संशयः।।
वGन मD िजस यि] के दोन# हाथ कट जाते हI वह पृUवी पर माता-5 + / / .
हI। साथ ही उसका गाय# का समहू भी न हो जाता हI। यिद वGन मD दाँव िगरे तो धन नाश होता हI,
 -कान कटने पर भी धननाश समझना चािहए। इस वGन के फल मD तिनक भी स,देह नह‚ करना
 /*
च`वातं च यः पयेदङे ग वातं च यः पृशते ।्
िशखा चो6पाटयते य य स िŽयेतािचराsरवम ु ् ।् ।
वGनमCये य य कण| गोमीगोधाभजु ङगमाः।
िवशि,त पंसु ां कण| रोगेण स िवनयित।।

5.5 पुराण आधा रत शुभाशुभ वJन 0 

अिHनपरु ाण के अनस ु ार शभु ाशभ


ु 6व9न + -
7म 6व9न 6व9नफल
1. नािभ के अितर] अगं # से तृण व वृ का उगना 2 >  
2. िसर पर कां य या सीसा का टूटना 2 >  
3. मु डन देखना 2 >  
4. अपने को नhन देखना 2 >  
5. मिलन वw 5/ 2 >  
6. ]3E   रोग . त होना
7. क7चड़ मD फँ सना िवपि मD फंसना
8. cA " +  िवपि मD फंसना
9. 25  / P +  िवपि मD फंसना
उराखड मु त िवविवालय 327
योितषशा ी       MAJY-202
10.    2 >  
11. वीणा बजाते हOए मजाक करना 2 >  
12. /-C.   2 >  
13. \  \   2 >  
14. कमल पWु प ा करना 2 >  
15. लोहा या लौहसाम.ी ा करना 2 >  
16. सप- मारना 2 >  
17. लाल पWु प से लदा वृ देखना 2 >  
18. चाडाल का देखना 2 >  
19. 2  , >ा,  / , cAE 5 i मृ6युभय उ6प,न होना
20. पंि य# का माँस खाना मृ6युभय उ6प,न होना
21. + 5 , PU P  मृ6यभु य उ6प,न होना
22. माता के पेट मD वेश करना िवपिकारी
23.  5 i  +E मृ6युभयकारी
24. इ,_Cवज को टूE + P +  िवपिकारी, रायनाशक
25. सयू -- च,_मा का टूटकर िगरते देखना िवपिकारी
26. िदय अ,तर तथा भिू मज उ6पात को देखना 2 >  
27. + , “ाहमण और राजा को `ोिधत देखना 2 >  
28. वGन मD नाचना तथा हँसना 2 >  
29. वGन मD 25  / P +  2 >  
30.  /   >  2 >  
31. तं ीवा (वीणा) रिहत अ,य वा# को बजाना 2 >  
32. जलwोत को नीचे िगरते देखना 2 >  
33. गोबर सने जल मD नान करना िवपिकारक
34. क7चड़ के जल से नान करना िवपिकारक
35. याही से नान करना 2 >  
36. कुमारी क,या का आिलंगन करना िवपिकारक
37. पfु ष# का मैथनु देखना 2 >  

उराखड मु त िवविवालय 328


योितषशा ी       MAJY-202
38. अपने अगं # को अलग होते देखना 2 >  
39. उaटी-द त देखना 2 >  
40. दि ण िदशा क7 ओर  थान करना मृ6युभयकारी
41. 2पने को रोग. त देखना मृ6युभयकारी
42. फल# का नाश देखना 2 >  
43.  > Z+   P +  2 >  
44. .ह# को टूटते देखना रोगिवपि मD फँ सना
45. घर मD झाड़³ लगाना रोगिवपि मD फँ सना
46. 5 , रा स, 3 , चाडाल के साथ खेलना गिवपि मD फँ सना
47. श ु से परािजत होते देखना 2 >  
48. श ु Lारा िवपि मD A  2 >  
49. दु य-सन (नशाखोरी) मD फँ सना 2 >  
50. कषाय वw पहनना 2 >  
51. कषाय वw से खेलना 2 >  
52. + 5 , तेल मD ना  िवपि मD फँ सना
53. लाल फूल क7 माला पहनना 2 >  
54. र] च,दन का लेप करना 2 >  
55. वGन मD पव-त, C/, / D, QU 30 5 i >  
56. आकाश मD सफे द फूल एवं सफे द वृ # को देखना >  
57. नाभी मD तृण एवं वृ उ6प,न होना देखना >  
58. शरीर मD अनेक भजु ाओ ं को उ6प,न होना देखना >  
59. 2+    P +  >  
60.  + 3   P +  >  
61. सफे द पWु पमाला धारण करना >  
62. सफे द वw धारण करना >  
63. च,_मा-य --  V  5U >  
64. च,_-सयू --     >  
65. इ,_Cवज का आिलगं न करना >  

उराखड मु त िवविवालय 329


योितषशा ी       MAJY-202
66. Cवज फहराना >  
67. पृUवी से फूटती जलधारा को पकड़ना >  
68. .    >  
69. श ओ ु ं को परािज  .   
70. कलह तथा जआ ु मD िवजयी होना .   
71. यs ु मD िवजयी होना .   
72. . C A P  >   
73. P P  >   
74. र] (खेन) को देखना >   
75. र] नान करना >   
76. C-  5   शभु 6व एवं समृिs पाना
77. र]पान करना शभु 6व एवं समृिs पाना
78. C  5   शभु 6व एवं समृिs पाना
79.  5 शभु 6व एवं समृिs पाना
80. 5NUवी पर अw चलाना िवजय एवं समृिs पाना
81. िनम-ल 1 P +  >  
82. भIस- -/-/D-घोड़ी के तन# को मख ु से पीना रायतaु य समृिs ाि
83. + -“ाहमण-गfु को स,न देखना धनसमृिs क7 ाि
84. वयं का जलािभषेक देखना रायतaु य समृिs ाि
85. Qृंगी Lारा दhु धा6+ P +  रायतaु य समृिs ाि
86. च,_मा से बहते जल Lारा अपना अिभषेक देखना राज6व ाि
87. अपनी मृ6यु देखना शभु 6वाि, आयवु िृ s
88. दसू रे Lारा अिhन ा करना राज तथा धनाि
89. अिhनेदव Lारा गृहदाह देखना शभु 6व ाि
90. छ तथा चामर# को ा करना राज6व ाि
91. वीणावादन Lारा अपना अिभवादन देखना राज तथा शभु 6वाि
92. वGन के अ,त मD राजा-/ D-QU - वण--N6-  P+  पु ाि क7 सचू ना
93. 30 D / D 5 i कुटु:ब एवं धनवs-क

उराखड मु त िवविवालय 330


योितषशा ी       MAJY-202
94. छत तथा पव-त पर चढ़ना कुटु:ब एवं धनवs-क
95. वृ पर चढ़ना कुटु:ब एवं धनवs-क
96. वGन मD रोना कुटु:ब एवं धनवs-क
97. गोघृत तथा िव‘ा का शरीर मD लेपन करना कुटु:ब एवं धनवs-क
98. अग:या wी के साथ गमन कर कुटु:ब एवं धनवs-क
म,य%$/ के अनुसार वJन  $ $ 0 
99. घोड़# को मारना 2 > -5 . 
100. आकाशमडल को लाल देखना 2 > -5 . 
101.   5 i मृ6यु-5 . 
102. जलाशय मD नान करके या ा करना मृ6य-ु 5 . 
103. मकान# को ढहते देखना 2 > -/  
104. मकान# क7 धल ु ाई पतु ाई देखना 2 > -/  
105. भालू तथा मनWु य के साथ `7ड़ा करना 2 >  
106. परwी से अपमािनत होना 2 >  
107. परwी के कारण रोग होना 2 >    
108. परwी से `7ड़ा करना 2 >    
109. पृUवी तथा सम_ु को .ास बनाना शभु एवं राजदायी
110. पृUवी एवं आकाश को आँत# से लपेटना राज6वसचू क
111. गाय# को जल से नान करना रायलाभसचू क
112. पव-त िशखर तथा च,_मा पर से िगरना रायलाभसचू क
113. अपना रायािभषेक देखना रायलाभसचू क
114. जल मD तैरना स:पिाि सचू क
115. 5/ U  A स:पिाि सचू क
116. / D-QU -गाय का घर मD सव देखना  , धनाि सचू क
117. शभु एवं पू य िwय# को ा करना तथा उनका आ  >  
118. .. +   3 A .  शभु एवं रायािसचू क
119. .  . + C अ6य,तशभु कारी, रोगमिु ]
120. जीिवत िम से िमलना अ6य,तशभु कारी, रोगमिु ]

उराखड मु त िवविवालय 331


योितषशा ी       MAJY-202
121. जलाशय# को देखना अ6य,तशभु कारी, रोगमिु ]
122. + V  P +  अ6य,तशभु कारी, रोगमिु ]
NOवैवत$पुराण के अनुसार शुभाशुभ वJन 0  -
123.  -/ D-QU - .C/-पव-त तथा वृ # पर चढ़ना   
124. .  ,  , गोद मD वीणा लेकर बजाना N 6 C   
125. शw और अw से घायल हो धनािकारक
126. शरीर मD फोड़ा होना बल धनागमकारी
127. शरीर मD ि`मी (क7ड़ा) पड़ना बल धनागमकारी
128. िव‘ा और खनू से सन जाना बल धनागमकारी
129. अग:यागमन करना स,ु दरप6नी ा कारक 24,
130. मू -C +  .  शभु वाता-  5 > 
131. वीय-पान (भ ण) करना शभु वाता- एवं िवपल ु लाभ
132. नरक मD वेश करना शभु वाता- एवं िवपल ु लाभ
133. नगर मD वेश करना शभु वाता- एवं िवपल ु लाभ
134. र]-सम_ु -2CN  5 शभु वाता- एवं िवपल ु लाभ
135. / D- . - वण--30-गाय को ा करना कुटु:बक7ित-िवपल ु धनलाभ 24,
136. 5-अ,न-क,या- -  -छ -Cवज -D  P +  कुटु:ब-क7ित--5 >  
137. . +  QU P +  Qीवृिsकारक
138. “ाहमण-शभु अिhन (हवन) फूलपान, C   P +  Qीवृिsकारक
139. सफे द अ,न P +  Qीवृिsकारक
140. नट तथा वेया को देखना Qीवृिsकारक
141. गोदhु ध-QN P +  धन एवं पु यािकारक
142. P-कमलप - /-  -Q-मधु (पच ं ामृत) तथा शभु िम‘ा,न (मालपआ ू , C/ 1 )
राजपद क7 सिु निxताि
143. पि य# का मांस खाना अ6यिधक एवं शभु वाता-ाि
144. छ -पादक ु ा ा करना -धा,याि
145. िनम-ल एवं तीणतलवार को देखना -धा,याि
146. 1  +   5   धान (उjच) बनना

उराखड मु त िवविवालय 332


योितषशा ी       MAJY-202
147. फलदार वृ देखना िनिxत धनाि
148. सप-Lारा काटा जाना अथ-लाभ
149. सयू -- च,_मा के मडल को देखना -कारगार मिु ]
150. QU-मगु T-`©ची को देखना स,ु दरप6नी ािकारक
151. .. + 3 P +  ित‘ा एवं पु ािकारक
152.   E 5 /- D P  C5 पर खाना राजा बनने क7 सचू ना
153. फटे कमलप पर खाना राजा बनने क7 सचू ना
154. ज#क-िबjछू-सप- को देखना -पु -.-ित‘ालाभ
155. / 5 ,> A +  E+  + 5 ,> 2 > ,   + 5U /
 . / 5 >  
156. CZ-C A-C - P- -/  P +  िवपल ु धनािकारक
157. C  -P - वण- देखने के बाद िव‘ा देखना धनािकारक
158.  -िशवितमा देखना िवजय एवं धनािकारक
159.  -फुला िबaववृ देखना धनािकारक
160.  -फुला आŽवृ देखना धनािकार
161. जलती अिhन (हवनािhन) देखना Qी-लमी ाि
6व9नकमलाकर (ि;तीय क8लोल) के अनुसार शुभाशुभ 6व9न +  
162. /, अž, , हाथी य] ु रथ पर चढ़ना राजा बनने क7 सचू ना
163. दािहने हाथ मD सफे द सप- Lारा काटा जाना पाँच रात के अ,दर 10 हजार वण-म_ु ाि
164. म तक काटना या कटना राय ाि
165.  E wी ाि
166.  E पfु ष ाि
167. ./ E साव-भौम रायाि
168.   E 5  + -/ D 5 i  - P  सम त पृUवी का अिधपित बनना
169. सयू ,- च,_ के स:पणू - िब:ब को खा जाना बलपवू क - राय जीतना
170. मनWु य का मांस खाना साŽाय लाभ
171. C/ +  + 5 i  . 3+  
172. अगाध जल मD तैरना  . 3+  

उराखड मु त िवविवालय 333


योितषशा ी       MAJY-202
173. िवा या वमन खाना राय ाि
174. C , ., वीय- या र] को खाना  4 /+  
175. मू , ., वीय-, र] को शरीर मD लपेटना  4 /+  
176. कमल के पे पर बैठकर खीर खाना   राय क7 ाि
177. ,   P   /
178. धनषु क7 डोरी पर बाण चढ़ाना श सु ंहार एवं िनWकंटक राय
179. दसू रे से Lेष करना, C   3  3 +  4 /+  
180. वण- या चाँदी के पा मD खीर खाना राय6व लाभ
181. वृ या पव-त रोहण राय लाभ
182. पव-त, .ाम एवं वन को तैरना शी¤ राय लाभ
183. पव-  P 5 i 1  + ]  >  Q FE
184. 6 5 C लेश रोग से मिु ]
185.     / P +  धनधा,य ाि
186. खनू मD नान या खनू पीना  /
187.   E  E 1 हजार वण-म_ु ा लाभ
188. वयं या दसू रे क7 िजy पर िलखना िवा ाि एवं धािम-क राजा बनना
189. पfु ष अपने को wी lप मD P + + उम ीित क7 ाि
190. wी अपने को पl ु ष lप मD देखे उम ीित क7 ाि
191. 5  / D 5 3 T+ i अतल ु धन ाि
192. QU+ 5 i  5 राजा बनने क7 सचू ना
193. 5/+  . , 5> f , 5> f  . राजा या रायतaु य बनना
194. अगं # मD मू -िव‘ा से सन जाना राज6व ाि क7 सचू ना
195. शमशान मD अपना घर देखना राज6व ाि क7 सचू ना
196. सफे द बैल क7 गाड़ी पर चढ़कर पवू - या उर जाना राज6व ाि क7 सचू ना
197.   3 / P +  लमी ाि क7 सचू ना
198. 5>  Q R/   3  
199. नीले रंग क7 गाय, धनषु या जतू ा ा करना  + + Q FE
200. गदु ामाग- से जलपान करना 5> -धा,य ा करना

उराखड मु त िवविवालय 334


योितषशा ी       MAJY-202
201. पैर से म तक तक बेड़ी से बंधना पु र6न क7 ाि
202.  A    Q+ गाँव या मडल का मिु खया बनना
203. खाई मD िगरकर िनकलना स£ुिs क7 ाि
204. गोद मD फल फूल देखना ितिदवसीय धनाि
205. मखी, मjछर, PEC + Q > , उम प6नी क7 ाि
206.  , C, उान या पव-त देखना शोक म]ु होना
207. 5 ,     C वण-लाभ
208. परागमिण (पख ु राज) ा करना लमी, सर वती को ा करना
209. žेत वw य] ु नारी देखना लमी आगमन
210. >T, C -C  , C > >E P
+   . 3+  
211. सफे दवw धारणी Lारा आिलंगन अपवू - लमी ाि
212. मृ6यु एवं fदन देखना सखु # से िघरना
213. आगं न मD कोई अंजली मD फूल इक°ा करे लमी तथा राय क7 ाि

$ $ वJन 0 


7म शुभ 6व9न 7म अशुभ 6व9न
स
ं या स
ं या
1. /ाहमण बालक $ .@ 1. अ2यत वृ3ा और काले  +  A /0
5ी का नाचना
2. आभषू ण6 से िवभिू षत, पित पु 6 से य7
ु 2. खल
ु े के शवाली श_ू ा या िवधवा देखना
या सफे द व5वाली सु दरी 5ी देखना
3. /ाहमण, B, .+5, गु 3. ' C D5  5E  A $F -   /0
के फल6 का िगरना
4. ! . & , $+, B%/ 4. &G  (G , िवकत आकार तथा #खे
के शवाले ;ले<छ या गिलत कु> से य7 ु नगं ा शू
.@
5. सयू , च, 5 , इ-)# 5. )+, पु वती, सती 5ी या िशखा खोले
/ाहमण का रोष, कुिपत गु , सं यासी या वै)णव
$ .@
6. फल फूलय7 ु आम, &, नाCरयल, 6. E  !$E B
िवशाल मदार या के ला का वृ

उराखड मु त िवविवालय 335


योितषशा ी       MAJY-202
7. ! . H  4 7. 0/ , भम या र7 कD वषा
8. &% , पवत, वृ, '/%, %I, $E 8. +, K+, कु(ा, - ,,   , 0.%, 1G ,
A + .@ A   (J भEस गीध, /, 'EA , 'A .@
9. +? 1 9. नंगी 5ी का नृ2य
10. िFयान दही, .), , @'. @ 10. अपने शरीर मG िकसी का तेल लगाना
11. वयं के अगं 6 मG कोड़े या िव>ा लगना 11. नृ2य गीत य7 ु िववाहो2सव देखना
12. $5 % 12. सयू  च िनतेज या Jहण लगा हआ देखना
13. हाथ6 मG सफे द धाय, ! . !, '.@F 13. उLकापात, )&,  5, - , Mप, रा)N-िवOलव,
. *H), तूफान आिद उ2पात देखना
14.  $ (/.-चिचत देखना 14. वृ कD डािलयाँ, पवत-ृंग, सयू -च-मRडल
A 5 4,45 '.@F .
15. अपने को समु मG देखना 15. हाथ से दपण, दRडािद का िगरकर टूटना
16. र7 से नान,  मG र7 लगा देखना 16. 0   % A &  *'.  4,4
17. अपना अगं िछन-िभन या त-िवत 17. काले व5य7 ु िकसी Tयि7 को अपना
.@ *' /0-चMु बर करते देखना
18. अपने शरीर मG मेद या पीव िलपटा 18. काली Fितमा देखना
.@
19. $, (H., ! द मिण र2न, &$5, 19. भम-(/ , हड्िडय6 का ढेर, 5E  ! ,  ,
&', भरे हए कलश का जल देखना @, , K'EAH, +F5, 1M  0/  ($A )
.@
20. 1DE '%5 0O, HP, &$, 5$5, 20. & 4, िचता पर रXखा मरु दा, कुMहार का चाक,
, %/ , ( @/B4 .@ तेलो का कोLहY, )B  A @ ,  Q, ,
5?, चलता हआ धड़, मरु दे का िचLलाता हआ
मतक, आग से जला हआ थान देखना
21. .+-B, , +.-Zविन का श)ु क वण, 21. भमय7 ु सख ू ा तालाब, B  &D , $%,
Fितमा, ीकृ )ण कD Fितमा, '+-' /0 .+-  B कर बझु ा हआ वन देखना
.@

5.6 
! इकाई के अCययन के पचा 4 15+ .   /0  सं कृ त वा®य मD वGन िवा
को परा िवा का अगं माना गया हI। अतः वGन के माCयम से सृि के रह य# को जानने का यास
   m6, मिु न और आचायK ने िकया हI। फलतः भारतीय मनीिषय# क7 ‹ि मD वGन के वल
जा.त ‹य# का मानसलोक पर भाव का परणाम मा नह‚ हI न तो कामज या इिjछत िवकार# का

उराखड मु त िवविवालय 336


योितषशा ी       MAJY-202
ितफलन मा है।
सामा,य lप से वेदा,त क7 िवधा मD कहा जाए तो वGन लोक क7 तरह या ‹य लोक णभगं रु हI।
!से वGन का िमUया6व िसs होता हI। रजु मD सप- का pम कहा जाए तो वGन मD िभखारी का
राजा होना भी pम मा ही हI; पर,तु वGन को आदेश मानकर राजा Lारा अपने राय का दान, वGन
मD अजन-ु Lारा पाशपु ताw क7 दी ा ाि आिद उदाहरण भी भारतीय सं कृ ित मD देखने को िमलते हI।
ि जटा ने जो कुछ वGन मD देखा उसको अपवू - माण मानकर Qी हनमु ान् जी ने लंका दहन िकया। ये
सब ऐसे उदाहरण हI जो वGन मD िवा को दैिवक आदेश या परा अनसु ंधान से जोड़ते हI। वGन
िच,तन जब शाw का lप .हण करता है तो िनिxत ही उसक7 िच,तना पsित मतू - से अमतू - काल मD
वेश कर जाती हI। 6व9नकमलाकर .,थ मD वGन को चार कार का माना गया हI- (1) 0 
वGन (2) शभु वGन (3) अशभु वGन और (4) िमQ वGन।
दैिवक वGन को उjच कोिट को साCय मानकर इसक7 िसिs के िलए अनेक मं और
िवधान भी िदये गये हI। वGन उ6पि +  रण# पर िवचार करते हOए आचायK ने वGन के नौ कारण
भी िदये हI- (1) Qतु (2) अनभु तू (3) ‹ (4) िच,ता (5) कृ ित ( वभाव) (6) िवकृ ित (बीमारी
आिद से उ6प,न) (7) देव (8) पु य और (9) पाप।
कृ ित और िवकृ ित कारण# मD काम (सेस) और इjछा आिद का अ,तभा-व होगा। दैवी
आदेश वाले वGन उसी यि] को िमलते हI जो वात, 5, कफ ि दोष से रिहत होते हI। िजनका
tदय राग-Lेष से रिहत और िनम-ल होता हI।
5+ न)
1.     कृ त वांhमय मD वGन   2 C   /0*
. अिवा का ख. परा िवा का ग. परु ाण का घ. रामायण का
2. वGन उ6पि के कुल िकतने कारण कहे गये हI।
. 9; P.99 . K Q.98
3. वGनकमलाकर के अनसु ार वGन को िकतने कार का कहा गया है-
. 7 P.I .J Q.B
4. सफे द कमल के पWु प को वGन मD देखना कै सा माना गया है।
. शभु ख. अशभु ग. िमिQत घ. कोई नह‚
5. वGन मD म तक कटना का या  /0*
. राय /O ख. राय ाि ग. श ु दमन घ. श ु वृिs

उराखड मु त िवविवालय 337


योितषशा ी       MAJY-202
6. वेत सप- Lारा काटे जाने का वGन फल या /0*
. राय ाि ख. पु ाि ग. ी ाि घ. कोई नह‚
7. अिhन परु ाण के अनसु ार उबटन लगाने का वGन फल या /0*
. रोग . त होना ख. िववाह होना ग. िम ाि घ. धन ाि
8. “ा”ण बालक को वGन मD देखने का या  /0 )
. अशभु ख. शभु ग. िमिQत घ. कोई नह‚
5.7 पा रभािषक शदा
5 िवा ) भारतीय सं कृ त वांगमय मD परा िवा के चतदु श
- कार है।
वGन ) परा िवा का एक अगं है।
सृि ) सम त चराचर ाणी, अ,तर आिद का समहू ।
C6 ) ऋिष िच,त
रजु ) र सी
अपवू - ) पवू - मD होने वाली घटना का आभास
ि दोष )  , िप एवं वा।
5.8 बोध  न के उ"र
1. P
2. 
3. P
4. 
5. P
6. P
7. 
8. P
5.9 स#दभ$ %#थ 
 
“”वैवत- परु ाण ) C
 +P- वेदया
अिhन 5> O ) वेदया
म6 य 5> O ) वेदया

उराखड मु त िवविवालय 338


योितषशा ी       MAJY-202
वGन C  ) C +P - आचाय- Qीधर।
वGन िवा - +P- आचाय- कामेवर उपाCया*
योितष रह य ) जगजीवन दास गGु त*
5.10 सहायक पाठ्यसाम%ी
ऋhवे -
अथव-वदे -
 C+ -
C/   -
 C O-
रामचरतमानस -
“”वैवत- परु ाण -
अिhन 5> O -
म6 य 5> O -
वGन C  -
वGन िवा - +P- आचाय- कामेवर उपाCया*

5.11 िनब#धा,मक  न
1. वGन से आप या C\ + /0*
2. वGन िकतने कार के होते है। पWट lप से िलिखये।
3. अिhन परु ाणोत वGन  > >  P+*
4. वGनकमलाकर मD किथत शभु ाशभु वGन  का वण-न क7िजये।
5. “”वैवत- परु ाण मD उsतृ शभु ाशभु वGन फल का वण-न क7िजये।
6. म6 य परु ाण मD उsतृ शभु ाशभु वGन फल का वण-न क7िजये।

उराखड मु त िवविवालय 339

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