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पाठ्यम सिमित MASL-103

ो0 दामोदर राम ि


पाठी,गंगानाथ झॉ शोधपीठ, ो0 एच0पी0 शुल,
संकृ त िवभाग इलाहाबाद िविवालय िनदेशक, भाषा
िवाशाखा उ0म0ु िव0िव0, ह&ानी
ो0पु पा अवथी, संकृ त िवभाग
एस0एस0जे0परसर,कुमॉऊ िविवालय, डॉ0 देवेश कुमार िम
अमोड़ा सहायक आचाय-,सं कृ त िवभाग
डॉ0 जेश पाडेय,एसो0 ो0 उ0म0ु िव0िव 0, ह&ानी
मिहला िड"ी कालेज, ह&ानी डॉ0 सगं ीता बाजपेयी,
डॉ0 गोपाल दत ि
पाठी, अका0 एसोिसएट सं कृ त िवभाग
संकृ त महािवालय ह&ानी उ0म0ु िव0िव0, ह&ानी

पाठ्यम स#पादन एवं सयं ोजन

डॉ0 देवेश कुमार िम डॉ0 सगं ीता बाजपेयी,


सहायक आचाय-,सं कृ त िवभाग अका0 एसोिसएट सं कृ त िवभाग
उ0म0ु िव0िव 0, ह&ानी उ0म0ु िव0िव0, ह&ानी
इकाई ले ख न इकाई सं 'या

डॉ0 लालाशंकर गयावाल खड 1 ( इकाई 1 से 3 )


भरतपरु राजथान
डॉ0 योगे*+ कुमार नेशनल पी.जी.कालेज खड 2 ( इकाई 1 से 5 )
बड़हलगजं , गोरखपरु
डॉ0 देवेश कुमार िम खड 3 ( इकाई 1 से 5 )
सहायक आचाय-,सं कृ त िवभाग
उ0म0ु िव0िव 0, ह&ानी
डॉ0 पंकज िम खड 4 (इकाई 1 से 6 )
राजधानी कालेज,राजा गाड/न,िदली
डॉ0 माया शुला
एम.बी.पी.जी;कालेज, ह&ानी खड 5 ( इकाई 1 से 5 )
कापीराइट @ उ0तराख1ड म2 ु िविवालय
काशन वष. : 2015 ISBN : 978-93-84632-23-6
काशक: (उ 0 मु 0 िव 0 िव 0) -263139
मु+क: िशवािलक काशन

नोट : - इस अ3ययन साम"ी का काशन छा5 िहत म6 शी7ता के कारण िकया गया है स8पािदत संकरण का काशन अगले वष-
स8भव है । इस साम"ी का उपयोग अ:य5 कह; भी उ0म0ु िव क< िलिखत या शासिनक अनमु ित के िबना नह; िकया जा सकता है ।
भारतीय दश
न एम.ए.एस.एल-103
अनुम
खड -1 अैत वेदा त पृ ठ स
ं या 1
इकाई 1- िविशटाैतवेदा त दशन का िसा त 2-18
इकाई 2- ैत वेदा त दशन का िसा त 19-33
इकाई 3- ैताैत वेदा त दशन का िसा त 34-45
खड 2- सांयकारका पृठ स ं या 46
इकाई 1- सांयदशन का संित इितहास एवं तव मीमांसा 47-66
इकाई 2- द:ु खय, सकायवाद पु ष –बह#व, $कृ ित –पु ष समब ध 67- 80
इकाई 3- सांयका(रका 1 से 10 मल ू पाठ, अथ ,याया 81-99
इकाई 4- सां यका(रका 11 से 20 मल ू पाठ, अथ, ,याया 100-115
इकाई 5 – सांयका(रका 21 से 30 मल ू पाठ, अथ, ,याया 116-131
खड 3- वेदा तसार पृठ संया 132
इकाई 1- वेदा त दशन का ऐितहािसक .व प 133-144
इकाई 2- वेदा तसार के $मख ु िसा त का समीक 145-154
इकाई 3- मगं लाचरण से अनबु ध चतु ु ट्य तक 155-183
इकाई 4- आवरण एवं िवेप शि6 184- 205
इकाई 5- स8ू म शरीर एवं पंचीकरण 206-226
खड 4- जैन एवं चावाक पृठ संया 227
इकाई 1- जैनमत का इितहास 228-241
इकाई 2- जैन दशन का िसा त भाग 1 242-256
इकाई 3- जैन दशन का िसा त भाग 2 257-271
इकाई 4- चावाक् दशन का प(रचय एवं िसा त 272-285
इकाई 5- चावाक:य िसा त; क: अ य भारतीय दशन; म= आंिशक उपि.थित 286-297
इकाई 6- चावाक दशन का वतमान ,यावहा(रक व सांसा(रक जीवन से स?ब ध 298-309
खड 5- याय दशन पृठ संया 310
इकाई 1 - याय दशन का संित इितहास 311-326
इकाई 2 -तक भाषा,$मेय; के नाम,$माण कारण एवं उनका .व प 327-344
इकाई 3- $य $माण एवं इि @याथ सि नकष 345-359
इकाई 4 -तक भाषा,अनमु ान $माण,,यािA एवं उसके भेद; क: मीमासं ा 360-376
इकाई 5 $मेय पदाथ िन पण, .वाथानमु ान, पराथानमु ान, हेवाभास 377-397
भारतीय दश
न MASL-103

 -1 


उतराखड म
ु िविवालय १
भारतीय दश
न MASL-103

 01 :   


    
इकाई क परे खा
1.1 तावना
1.2 उे

1.3 इकाई क पृभिू म
1.3.1 िविशाैत का उव
1.3.2 िविशाैत का सािहय
1.4 ान मीमांसा
1.4.1. ान
1.4.2 ान के साधन -माण
1.5 तव मीमासं ा
1.5.1 िविशाैत
1.5.2 तव - ई$र, िचत् तथा अिचत्
1.5.3 सृि ि&या
1.5.4 ब(धन और मो,
1.5.5 शरणागित
1.6 सारांश
1.7 श-दावली
1.8 बोध 01 / अ3यास1 के उ4र
1.9 सदं भ5 6(थ सचू ी
1.10 सहायक/ उपयोगी पाठ्यसाम6ी
1.11 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय २
भारतीय दश
न MASL-103

1.1 तावना
भारतीय दशन म माण प पाठ्य म भाग थम के िविश%ा&ैत वेदा(त दशन से
स*बि(धत यह इकाई है, इससे पवू  के इकाईय1 के अ3ययन से आप बता सकत ह5 िक भारतीय दशन
िकसे कहते ह5 ? भारतीय दशन के िकतने कार ह5 ?
भारतीय दशन दो भाग1 म िवभ है- आि7तक तथा नाि7तक। आि7तक दशन वेद के समथक ह5 ये
षड्िवध ह5- (याय-वैशिे षक, सा;ं य-योग तथा मीमासं ा और वेदा(त। नाि7तक दशन वेद के िन(दक ह5
ये ह5- चावाक, जैन तथा बौ@। षड्िवध आि7तक दशन1 म वेदा(त दशन का िविश% 7थान है। वेदा(त
दशन कA भी कई शाखाय ह5 । अ&ैत वेदा(त दशन के पBात् वेदा(त दशन के कौन-कौन मख ु
िस@ा(त ह5 उन िस@ांत1 का पCरचय इस इकाई म ाD कर ग।
इस इकाई के अ3ययन के बाद वैEणव स*दाय के मख
ु दाशिनक1 के िच(तन िविश%ा&ैत िस@ा(त
से आप अFछी तरह से पCरिचत हो जायग।े

01.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप
• बता सक गे िक वेदा(त दशन के कौन - कौन स*दाय ह5।
• जान पायगे मखु दाशिनक िसं@ा(त िविश%ा&ैत को।
• पCरिचत हो पायग इसके Hान मीमांसा के तव1 से
• तथा इसके तव1 मीमांसा के मख ु तव1 से भी अवगत हो सक गे ।

1.3 इकाई क पृ ठभू म

1.3.1 िविशाैत का उव


Iिु तय1 पर आधाCरत तथा 7थानयी कA Jया;या के Kप म पLलिवत िह(दू दशन को ही वेदा(त
दशन के नाम से जाना जाता है। आचाय शक ं र के अ&ैतवाद के बाद रामानजु का िविश%ा&ैत, म3व
का &ैत तथा िन*बाक का &ैता&ैत आिद वेदा(त दशन का िवकास हMआ । िविश%ा&ैत वेदा(त दशन
को िवकिसत करने का Iेय आचाय रामानजु को है। इनका ज(म दसवN शताOदी के आसपास माना
जाता है। रामानजु के दशन के चार ने भि माग को प%ु िकया ।
1.3.2 िविशाैत का सािहय
िविश%ा&ैत वेदा(त दशन का उPव बोधायन रिचत ‘‘QRसू िS ’’ से माना जाता है। 7वयं रामानजु
उतराखड म
ु िविवालय ३
भारतीय दश
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कहते ह5-
यथाथ सव िवानम् इित वेदिवदां मतम।्
िु त"मृित$यः सव
"य सवा
मव &तीिततः।।
रामानजु ने 7थानयी (IीमPगवTीता, उपिनषद् तथा QRसू ) भाEय कA Iृख ं ला म ‘‘IीभाEय’’
कA रचना कA। रामानजु के अ(य रिचत V(थ ह5- वेदा(तसार, वेदा(तदीप, वेदाथसंVह। वेदाथसंVह
उपिनषद वाWय1 कA िविश%ा&ैतपरक Jया;या तथा भि िस@ा(त1 का दाशिनक िनKपण करता है।
गय एवं िनयV(थ IीवैEणव स*दाय के समथन म िलखे गये अ(य V(थ ह5। सदु शन भY ने
IीभाEय पर Iतु कािशका टीका िलखी।

1.4 ान मीमांसा


1.4.1 ान
रामानजु Hान को ZJय मानते ह5 । ZJय के दो कार ह5- जड़ और अजड़। रामानुज ने Hान को ‘अजड़’
माना है Wय1िक वह चेतन जीव और जड़ जगत् दोन1 से िभ(न है। Hान जड़ पदाथा\◌े से िभ(न है
Wय1िक वह उनके समान 7वचेतन और 7वयंवे नहN है, तथा Hान न 7वयं को और न पदाथ^ को
जान सकता है। Hान कभी 7वयं के िलये नहN होता, वह सदा पराथ अथात् आमा या Hाता के िलये
होता है। वह 7वयं को और Hेय पदाथ^ को कािशत करता है, िजससे आमा उ(ह जान सके ।
रामानजु के अनसु ार आमा Hाता है जो Hान7वKप और HानाIय दोन1 है, िक(तु Hानमा नहN है।
Hान सत् पदाथ का ही होता है, और पदाथ के अनK ु प होता है। इसे सत् ;याित या यथाथ;याित
कहते ह5।
स'याितवाद- अथात् सभी िवHान यथाथ ह5। िवHान कA Hान मीमांसा म यह एक सबसे
महतवप् णू  बात है। वे सभी Hान को यथाथ मानते ह5। उनके अनसु ार मा के Hान का कोई न कोई
िवषय होता है िजसकA सता को वह कािशत करता है। इसिलये उसे असय या िम_या नहN कह
सकते ह5। रामानजु के अनुसार `म Hान और असय Hान भी सय होता है Wय1िक उसका िवषय
असय नहN होता। इसिलये `म भी सय होता है। र7सी म सप कA तीित कपोल कLपना नहN है,
Wय1िक र7सी और सप दोन1 कA सता अनभु विस@ है।
&मा - व7तओ ु ं के Kप का काशक Hान बिु @ के &ारा इि(Zय1 के सहयोग से अपने काbय के
संबंध म करता है, काbय व7तु कA वा7तिवक अव7था और JयावहाCरक उपयोिगता का Hान मा
कहलाता है। रामानुजाचाय के अनसु ार मा या स*यक् Hान सदा सिवकLपक होता है, अतः िकसी
िनिवकLपक व7तु का Hान अस*भव है ।
1.4.2 ान के साधन ( &माण )
मा Hान का पयाय है। मा कA उपिS के कारण को माण कहते ह5। रामानजु HानोपिS के िलये

उतराखड म
ु िविवालय ४
भारतीय दश
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यc, अनमु ान और शOद, इन तीन1 माण1 को मा(यता देते ह5, एवं अ(य माण1 को इ(हN म
अ(तभतू मानते ह5 ।
&य*- साcाकाCरणी मा का कारण यc है। साcाकाCरणी मा व7तु और इि(Zय1 के
सि(नकष से उप(न होती है। रामानजु िनिवकLप और सिवकLप यc का भेद 7वीकार करते ह5,
िक(तु (याय के िवपरीत, वे यह मानते ह5 िक िनिवकLप यc िनEकारक या िनधमक Hान नहN ह5,
िक(तु उसम भी जाित-धम का Vहण होता है, यिप यह Hात नहN होता है िक यह इसका जाितधम है
जो इस जाित के सम7त Jयि य1 म समान Kप से पाया जाता है। व7तु का दसू री, तीसरी बार यc
सिवकLपक होता है िजसम जाितधम का जाितधम के Kप म Hान होता है।
अनमु ान- रामानजु &ारा अनमु ान का िनKपण (याय के समान ही है। अनपु लOध को उपलOध कराना
ही अनमु ान का फल है। अनमु ान यc के समान सिवशेष िवषयक है। अनिु मित Hान का कारण है।
अनमु ान दो कार के होते ह5- 7वाथानमु ान एवं पराथानमु ान। 7वाथानमु ान Jयि अपने 7वयं के िलये
करता है। पराथानमु ान दसू र1 को बताने के िलये िकया जाता है। पराथानमु ान पाँच चरण1 म पणू  होता
है- ितHा, हेतु, उदाहरण, उपनय और िनगमन। अनुमान के आगमनामक तथा िनगमनामक कार1
का भी वणन IीभाEय म ाD होता है।
श+द- लौिकक और वैिदक भेद से दो कार के ह5। रामानजु के अनसु ार शOद का अथ वैिदक अथात्
वेद ही है। नैयाियक1 कA तरह वे वेद को आD नहN मानते। इ(ह1ने परम तव का िनKपण करने वाली
7मृितय1 और परु ाण1 को भी वेद जैसा ामािणक माना है। शOद माण म रामानजु ने पांचरा आगम
को वेद के समकc रखा है। वे Hानकम-समFु चयवादी ह5। वे यह मानते ह5 िक मीमासं ा और वेदा(त
एक ही शाf के दो भाग ह5। QRिजHासा के पवू  धमिजHासा आवbयक है। सकम से िचSशिु @होती
और इसका बोध होता है िक के वल कम से मोc नहN िमल सकता, उसके िलये QRHान आवbयक
है ।
बोध&.

.(1.) िन*न वाWय1 म सही के आगे(√ ) तथा असय के आगे (x)का अिं कत कर ।

(क) रामानजु ने Iी स*दाय कA 7थापना कA ( )


(ख) ये शक
ं राचाय के अनयु ायी थे ( )
(ग) ‘वेदाथसंVह’ के रचना कार रामानजु थे ( )

उतराखड म
ु िविवालय ५
भारतीय दश
न MASL-103
(घ) रामानुज Hान को ZJय मानते ह5। ( )
(ङ) रामानजु चार माण मानते ह5 ( )
अgयास-
h (1.) रामानजु के अनसु ार िकतने माण ह5, नाम िलख-
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
....................................................................................................
बोध&.-

.(2.) िन*न h1 के उत र िलख-


(क) रामानजु िकस वाद के ितपादक आचाय ह5............................................. ।
(ख) िविश%ा&ैत का िवFछे द कर .......................................................।
(ग) 7थानयी से तापय है .................................................................।
(घ) पराथानमु ान म िकतने वाWय होते ह5............................................... ।
(ङ) रामानजु कA सृि% ि या िकस दशन के समान है ...........................................।
अgयास
h (2.) स;याित से Wया तापय है िलख
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................

उतराखड म
ु िविवालय ६
भारतीय दश
न MASL-103
.....................................................................................................
....................................................................................................

1.5 तव-मीमांसा

1.5.1 िविशाैत (िविशअैत)


रामानजु ाचाय के अनसु ार &ैत-रिहत अ&ैत और अ&ैत-श(ू य &ैत दोन1 ही कोरी कLपना ह5 Wय1िक भेद
के िबना अभेद और अभेद के िबना भेद िस@ नहN होता। अतः दोन1 सदा साथ रहते ह5 और इनम
पाथWय स*भव नहN है। तjव सदा &ैतिविश%-अ&ैत होता है। इसी का सिं cD Kप िविश%Kप है। &ैत
िवशेषण है, अ&ैत िवशेEय है और िवशेषणय ु िवशेEय को िविश% कहते ह5 । यिप रामानजु ने &ैत
और अ&ैत दोन1 को सय और अपृथक् माना है तथािप वे दोन1 को समान 7तर के नहN मानते। अ&ैत
म;ु य है और &ैत गौण है। अ&ैत आमKप है, ZJय है, अङ्गी है। &ैत शरीरKप है, गणु है, अङ्ग है।
अ&ैत िवशेEय है, &ैत िवशेषण है। अतः &ैत अ&ैत पर आिIत रहता है। &ैत अ&ैत का िवशेषण बन
कर ही उससे अपृथक् रहता है। यह िविश%ा&ैत है जो &ैता&ैत से िभ(न है Wय1िक उसम &ैत और
अ&ैत दोन1 समान Kप से सय और एक ही 7तर के होते ह5।
रामानजु िचत,् अिचत् और ईर, इन तीन1 तjव1 को (तjव-य) मानते ह5। िचत् चेतन भो ा जीव है।
अिचत् जड़ भोlय जगत् है। ईर दोन1 का अ(तयामी है। िचत् और अिचत् दोन1 िनय और पर7पर-
7वत( ZJय ह5। िक(तु दोन1 ईर पर आिIत ह5 और सवथा उनके अधीन ह5। दोन1 7वयं म ZJय ह5,
िक(तु ईर के गणु या धम ह5। दोन1 ईर के शरीर ह5 और ईर उनका अ(तयामी आमा है। जीव
अपने शरीर का आमा है, िक(तु ईर का शरीर है जो जीव का भी आमा है। शरीर और आमा का
स*ब(ध अपृथक् िस@ है जो आ(तCरक अपाथWय स*ब(ध है। रामानजु के अनसु ार ‘शरीर’ वह है जो
आमा &ारा धारण िकया जाये (धाय), िनयमन िकया जाये(िनया*य) और अपनी अथिसि@ के िलये
साधन के Kप म वृS िकया जाये (शेष), तथा आमा’ वह है जो शरीर को धारण करे (धता),
िनयमन करे (िनय(ता) और जो साधन Kप म वृS होने वाले शरीर का सा3य हो (शेषी)। यह सब
चेतन और अचेतन िव परमपुKष ईर &ारा िनया*य, धाय तथा शेष होने के कारण उनका शरीर है।
ईर िचदिचि&िश% है। िचदिचद् ईर के िवशेषण, धम, गणु , कार, अश ं , अगं , शरीर, िनया*य,
धाय और शेष ह5, तथा ईर उनके िवशेEय, धमm, ZJय, कारी, अगं ी, शरीरी या आमा, िनय(ता,
धता और शेषी ह5। िचत् और अिचत् दोन1 ईर के समान िनय तjव ह5, िक(तु ईर से बाn और
पृथक् नहN ह5। ये ईर का शरीर ह5। ईर म सजातीय और िवजातीय भेद नहN है Wय1िक ईर के
समान या िभ(न कोई अ(य 7वत( तjव नहN है। िक(तु ईर म 7वगत भेद िवमान ह5 Wय1िक उनका
शरीर िनय एवं पर7पर िभ(न िचत् और अिचत् तjव1 से िनिमत है। ईर का अपने िचदिचद-् शरीर से
स*ब(ध 7वाभािवक और सनातन है।

उतराखड म
ु िविवालय ७
भारतीय दश
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1.5.2 तव0य
ईर रामानजु ाचाय के ईर के िनKपण म तीन िब(दु म;ु य ह5। थम, ईर और QR एक ही ह5। QR
या ईर सिवशेष सगणु ह5 तथा िचदिचद-् िविश% ह5। ईर इस िचदिचZूप िव का अ(तयामी आमा
है तथा इस सकल जगत् कA उपिS-ि7थित-लय का कारण भी है। रामानजु के अनसु ार ईर जगत्
का अिभ(न-िनिमSोपादान कारण है। िचत् या जीव एवं अिचत् या जड़ तjव दोन1 िनय पदाथ ह5
तथा िनय होने के कारण उपिS-िवनाशरिहत ह5। अतः सृि% का तापय इनके 7थल
ू Kप धारण करने
से है और लय का तापय इनके सoू मKप म चले जाने से है। लयकाल म िचत् और अिचत्
अपनी सoू माव7था म रहते ह5, यह QR कA कारणाव7था है। सृि% के समय िचदिचत् 7थल
ू Kप धारण
कर लेते ह5, यह QR कA कायाव7था है।
ईर हेयगणु रिहत और अशेषकLयाणगणु सागर है। वे नारायण या वासदु वे ह5। लoमी उनकA पनी ह5।
श@ ु सjविनिमत वैकुठ उनका िनवास है। वे सवH, सवशि मान् और कpणासागर ह5। उनके
िदJयगणु िनय, श@ु और अन(त ह5। उनका Hान, आन(द, ेम, ऐय, बल, शि , कृ पा आिद अपार
ह5। ईर एक ह5, िक(तु अपने भ 1 पर अनVु ह करने के कारण वे 7वयं को पाँच Kप1 म कट करते
ह5- अ(तयामी, पर, Jयहू , िवभव और अचावतार। िचदिचि&िश% ईर या QR का उपिनषद1 म
ितपादन उपलOध है।
िचत् या चेतन जीव यिप ईर का िवशेषण, कार या गणु है, तथािप वह 7वयं चेतन ZJय है। जीव
एक नहN, अनेक ह5। जीव िनय, ज(म-मरणरिहत और अणK ु प है। वह शरीर, ाण, इि(Zय, मन,
अहकं ार और बिु @ से िवलcण है। वह 7वकाश चेतन ZJय है और वह अपने धमभतू Hान का
आIय है। साथ ही वह िनय 7वचेतन Hाता या Z%ा है, अतः Hान7वKप भी है। Hान उसका
आवbयक, अिनवाय और अपृथिWस@ 7वKप है। अतः उसे एक साथ Hान7वKप और HानाIय
कहा जाता है। वह 7वभाव से आन(दKप है। रामानजु ने िचत् या जीवामा के तीन कार माने ह5।
1. िनय-म ु जीव जो कभी ब@ नहN रहे, जो अिवा, कम और कृ ित से सदा म ु ह5 एवं जो
वैकुठ म सदा भगवत्-सेवा म रत रहते ह5। ये शेष, गKड, िवWसेन आिद ह5 ।
2. म ु जीव जो ब(धन से म ु हो चक ु े ह5 ।
3. ब@ जीव जो अिवा और कम के कारण ज(म-मरण Kपी संसारच म घमू रहे ह5 तथा िविवध
दःु ख भोग रहे ह5।
िच2 और ई5र
जीव और ईर म िवशेषण-िवशेEय, गणु -ZJय, अगं -अगं ी और शरीर-आमा का स*ब(ध है
तथा जीव कA साथकता ईर का अिवभाtय श@ ु अगं बनकर ईरीय Hान और आन(द का अनभु व

उतराखड म
ु िविवालय ८
भारतीय दश
न MASL-103
करने म है। रामानजु जीव और ईर म भेद, अभेद या भेदाभेद स*ब(ध 7वीकार नहN करते। उ(होन इन
तीन1 स*ब(ध1 का खडन िकया है। श@ ु भेद या श@ ु अभेद (भेदश(ू य अभेद) कLपनामा है,
Wय1िक भेद और अभेद सदा साथ-साथ रहते ह5 िज(ह अलग नहN िकया जा सकता। अ&ैत िवशेEय है
जो सदा &ैतिवशेषण से िविश% रहता है। यही िविश%ा&ैत नाम कA साथकता है। िचदिचत-् िविश%
ईर ही QR है। रामानजु ने समवाय स*ब(ध का भी खडन िकया है Wय1िक उनके अनसु ार समवाय
बाn स*ब(ध है और अनव7थादोष से दिू षत है। रामानजु ने जीव और ईर म अपृथिWसि@ नामक
स*ब(ध 7वीकार िकया है जो आ(तर और वा7तिवक स*ब(ध है जीव ईर पर सवथा आिIत है
और ईर से अपृथक् है । अिचत् Hान श(ू य तथा िवकारा7पद को अिचत् कहते ह5। यह तीन कार
का होता है
1. िम सतव् - इसम सव, रजस् तथा तमस् तीन1 गणु िमले रहते ह5, इसे कृ ित या माया कहते ह5।
यह जड़, भोlय है, जगत् का उपादान कारण है। िनय जड़ होते हMए भी यह ईर का शरीर है। सृि%
ईर कA लीला है और उनका संकLप मा है।
2. शु6 सतव् या िनय िवभूित - रज7तमः श(ू य होने से अाकृ त और िदJय है। यह िनय,
अितशयतेजोमय, Hान एवं आन(द का जनक, श@ ु सवKप ZJयिवशेष है। ईर का िवVह, िनय
तथा म ु शरीर1 के शरीर, बैकुठ लोक, भगवान् के िवभव आिद भी इसी श@ ु सतव् से िनिमत है।
रामानजु के अनसु ार आमा शरीर के िबना नहN रहता, अतः मोc दशा म कमज(य ाकृ त देह पात
के बाद म ु पpु ष को भगवसंकLप से िनिमत अाकृ त श@
ु सतवशरीर
् ाD होता है।
3. सव शू8य या काल - काल सवश(ू य जड़ ZJय है। िदक् को आकाश से अिभ(न माना गया है
जो कृ ित ज(य है।इस कार रामानजु ने षड् ZJय 7वीकार िकये ह5-
चेतन- िचत् और ईर।
जड़- कृ ित और काल ।
अजड़- धमभतू Hान और िनयिवभिू त ।
ये षड् ZJय अिचत्, िचत् तथा ईर इन तीन तjव1 के अ(तगत समािव% हो जाते ह5।
1.5.3 सृि &ि:या-
रामानजु के अनसु ार अJय का िवकास सां;य दशन के अनसु ार ही मानते ह5। अJय का थम
िवकार महत् है, महत् से अहक ं ार कA उपिS होती है। अहक
ं ार तीन कार के होते ह5- सािवक ,
राजस् तथा तैजस।् अहक ं ार के सािवक Kप से पंच Hानेि(Zयाँ, पंच कमuि(Zयाँ तथा मन lयारह
इि(Zयाँ उप(न होती है। मन उभयामक है, यह अ(तCरि(Zय है, यह Hानेि(Zय1 तथा कमuि(Zय1 दोनो

उतराखड म
ु िविवालय ९
भारतीय दश
न MASL-103
म आता है। िक(तु रामानजु ने मन को Hानेि(Zय1 के साथ रखा है। मन को इसके काय के अनसु ार कई
नाम िदये जाते ह5- मन जब िनणय करता है तो यह बिु @ है, अHान से शरीर को जब आमा मानता है
तो अहक ं ार है, जब िच(तन या िवचार करता है तो िचत है। रामानजु भतू ािद कA िमक उपिS
मानते ह5।
इस कार उपय
ु चौबीस तव1 से जीवामा और परमामा के िलये भोlय व7तओ ु ,ं भोग के साधन
और भोग के 7थान1 का िनमाण होता है। िनमाण का यह काय QR के &ारा होता है। सृि% के पवू  कA
ि7थित को अ&ारक सृि% कहते ह5 तथा QR &ारा कA गई सृि% स&ारक सृि% कहलाती है। स&ारक
सृि% कA ि या पच
ं ीकरण है।
पचं ीकरण- पंच महाभतू 1 का पणू  िवकास हो जाने के बाद उनम से येक महाभतू के दो दो बराबर
भाग िकये जाते ह5। पनु ः आधे भाग को चार-चार भाग1 म िवभािजत िकया जाता है। अपने आधे भाग
के साथ शेष बचे चार महाभतू 1 के 1/8 भाग को जोड़ने से एक महाभतू का िनमाण होता है, चँिू क
एक महाभतू म पाँच1 तव1 कA उपि7थित होती है अतः इसे पच ं ीकरण कहते ह5 तथा िजस महाभतू म
िजस तव कA अिधकता होती है उसी के नाम से वह जाना जाता है।
जगत-् रामानुज अिचत् ZJय से जगत् को उप(न मानते ह5 Wयोिक अिचत् एक िनय ZJय है। सृि% के
मलू म परQR का संकLप है। ईर के संकLप से ही सृि% कA उपिS होती है। इसिलए जगत् के
उपादान तथा िनिमत दोनो कारण कA सता िनय एवं सय है। ईर और उसकA अश ं भतू ा कृ ित
का कायKप जगत् भी सय है। सत् कारण से सत् काय कA उपिS होती है, Wय1िक कारण और
काय म के वल अव7था भेद का अतं र है। कारण 7वयं काय Kप म पCरवितत हो जाता है। एक ही
पदाथ एक अव7था िवशेष म कारण कहलाता है और दसू री अव7था म काय
-
कारणभूत;<य"याव"था8तरापि2रेव िह काय
ता- ीभा>य 1/1/5 इसे ही सकायवाद कहत ह5
अथात् काय अपनी उपिS से पवू  अपने कारण म सत् Kप म िवमान रहता है, यहाँ कारण से काय
का आिवभाव होता है। रामानजु का िस@ांत सकायवाद का िस@ांत है। इसके अनसु ार िचत् और
अिचत् ही जगत् के Kप म कट होते ह5 , िचत् और अिचत् िवकिसत होकर नाम Kप धारण कर
जगत् कA संHा ाD कर लेते ह5। ईर इन दोनो िचत् और अिचत् के साथ अपृथक् Kप से जड़ु ा रहता
है अथात् QR भी कारण से काय Kप म पCरवितत होता है। अतः जगत् QR कA 7थल ू ाव7था िस@
होती है। रामानजु जगत् को QRामक मानते ह5। जगत् QR म ही ि7थत है, QR ही उसका कारण है
और वही उसका ग(तJय भी है। जगत् कA सता पारमािथक है Wय1िक यह सिवशेष QR कA िवभिू त
है।आचाय शक ं र ने जगत् के िम_याव कA िसि@ के िलये माया िस@ांत का ितपादन करते ह5,
रामानजु शक ं र के इस िस@ांत को िम_यावाद कहते ह5 तथा इसका खडन करते ह5। मायावाद के
खडन म रामानुज के &ारा िदये गये तक को अनपु पिS कहते ह5 ये सात ह5-

उतराखड म
ु िविवालय १०
भारतीय दश
न MASL-103
आIयानपु पिS,ितरोधानानपु पिS,7वKपानपु पिS,अिनवचनीयानपु िS,माणानपु पिS , िनकानपु पिS
तथा िनवृयनपु पिS ।
01.5.4 ब8धन और मो*-
भारतीय दशन के सभी स*दाय ज(म-मृय-ु च को ब(धन तथा इसकA आयिं तक समािD
को मोc नाम देते ह5। जीव1 का ब(धन अिवा और कम के कारण है । ब(ध और मोc दोन1
वा7तिवक ह5 । कम के कारण जीव का देह, ाण, इि(Zय, अ(तःकरण आिद से स*ब(ध होता है और
यही उसका ब(धन है । श@ ु चेतन जीव कम म Wय1 फँ सता है ? इसका कोई उSर नहN है िसवाय
इसके िक कम का जीव के साथ स*ब(ध अनािद है । मोc के िलये जीव को इस कम-मल को सवथा
न% करना आवbयक है । Hानकम-समFु चय इसम सहायक है । सकम िचS को श@ ु करते ह5। Hान
से िचत,् अिचत् और ईर के 7वKप पर काश पड़ता है । रामानजु ाचाय के अनसु ार परHान और
पराभि एक ही है और यही मोc का कारण है। यह परHान सिवकLप शाOदबोध या बौि@क Hान
से िभ(न है, अ(यथा वेदा(तशाf के सभी अ3येता म ु हो जायग।े परा भि भी पिS और 7मृित
या उपासना का भगवसाcाकारKप चरम उकष है जो भगवान् के अनVु ह, कृ पा या साद से ही
स*भव है। पर-Hान या परा-भि ईर के 7वKप का साcात् अनभु व है जो उनकA कृ पा से ही स*भव
है। सकम और बौि@क Hान का समFु चय भि का साधन है। भि का अथ है पिS और 7मृित।
पिS या शरणागित भगवािD का सरल एवं सिु निBत साधन है।
भगवान् का वचन है-
सव
धमा
न् प?रय@य मामेकं शरणं Aज।
अहं वां सव
पापे$यो मो*िय>यािम मा शुच।।
अथात् ‘सब धम^ को छोड़कर के वल मेरी शरण म आ जाओ। म5 तमु को त*ु हारे सब पाप1 से म ु कर
दगँू ा।’ भागवत म Iवण, कAतन, 7मरण, पादसेवन, अचन, व(दन, दा7य, स;य और आमिनवेदन,
इस नवधा भि म आमिनवेदन को शरणागित या पिS कA पराकाvा बताया है। भागवत म कहा
गया है िक िजस कार भख ू से Jयाकुल पिcय1 के छोटे बFचे, िजनके पंख अभी नहN िनकले ह5,
अपने घ1सल1 म माता कA आतरु ता से तीcा करते ह5, िजस कार छोटे बछडे़ (बFचे भी) भख ू से
Jयाकुल होकर माता के दधू कA तीcा करते ह5, िजस कार िवरिहणी िया अपने बाहर गये हMये
ियतम के दशन के िलये दःु ख से Jयाकुल होकर तड़पती है। उसी कार हे कमलनयन! यह हमारा
मन आपके दशन के िलये तड़प रहा है। पिS भगवान् के ित उकट ेम है, ेमा भि है। रामानजु
ने इसके साथ ‘धरवा
ु ् 7मृित’ को भी जोड़ िदया है। 7मृित का अथ है उपासना या 3यान। धरवा
ु ् 7मृित
म ेम और Hान दोन1 का संगम है। यह उकट ेम और िनर(तर िच(तन का िमलन है। रामानजु ाचाय
के अनसु ार भि का अथ है पिS और धरवा ु ् 7मृित। इस भि का चरम उकष भगवदनVु ह से
भगवान् के साcात् अनभु व म होता है। यही परा-भि है, यही पर-Hान है, यही QR-साcाकार है,

उतराखड म
ु िविवालय ११
भारतीय दश
न MASL-103
यही मोc है। आमा का आम7वKप बोध ही उसका मोc है। ज(म मृयु से परे हो जाना मोc है।
जीवामा के कम न% हो जाते ह5 । यिद कम फल का नाश हो जाय तो शरीर स*ब(ध कA आवbयकता
नहN रहती है। इसिलये कम^ और उनके फल1 का आयि(तक उFछे द मोc है। ईर साcाकार तथा
पणू  Hान कA अव7था म मोc ाD होता है अथात् जीवामा को परम पद ाD हो जाता है ।
मो* के उपाय-
मोc ािD के िलये सवwFच साधन ईर 7वयं है। इस संसार रोग कA दवा ईर कA कृ पा है। कम,
Hान, भि इयािद सब साधन ईर कA कृ पा ािD के िलये ही िकये जाते ह5। कम और Hान भि के
सहकारी ह5। तव Hान के &ारा जीवामा को अपने श@
ु 7वKप का बोध हो जाता है । Hान और कम
से हम अपने कम फल1 का नाश कर सकते ह5।
भिC-
भगवसाcाकार के िलये िचत् को ईर म लगा देना ही भि है। बिु @ ही भि का Kप Vहण कर
लेती है, बिु @ परक होने के कारण भि को िवशेष कार का Hान कहते ह5। भि Hान कA पराकाvा
है। Hान कA चरम पCरणित भगवान के ित परम ेम म होती है, इसे ही भि कहते ह5। रामानजु ने
3यान, उपासना, वेदना (Hान) को भि का पयाय कहा है । कमयोग, Hानयोग और भि योग म
सम(वय 7थािपत करते हMए रामानजु कहते ह5 िक भि -Kप Hान िवशेष कA उपपिSपर ईराधन से
ाD Hान से य ु होकर कम या िनEकाम कम करने से भि योग कA िसि@ हो जाती है ।
आमावलोकन के िलये पातंजल योग म उिLलिखत यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याहार,
धारणा, 3यान और समािध का अ%ागं योग साधन भि का ही Kप है। इसके अितCर अचन,
व(दन, पादसेवन इयािद भागवत् दशन म मा(य ि याएँ भी आमावलोकन म सहायक ह5। अ%ांग
योग कA चरमोपलिOध समािध को रामानजु दशन म साधन ही माना गया है ।
1.5. शरणागित-
भगवान् के ित भि एवं र् े म का मानव मा को अिधकार है। Hान ईर कA कृ पा से िमल सकता
है। रामानजु दशन के अनसु ार ईर कA कृ पा ाD करना ही मोc का अ(यतम साधन है। ईरािपत
होना ही पिS अथवा शरणागित है। जब जीवामा ईर को परम लoय के Kप म जान लेता है और
उसे ही मोc का सवwतम उपाय समझने लगता है तब वह शरणागित कA मनःि7थित म होता है
अथात् ईर कA शरण म, ईर का कृ पा पा अपने आप को मानने लगता है । रामानजु ने शरणागित
को भ के िलये आवbयक थम चरण और भि कA चरम पCरणित माना है । स*पणू  वेदा(त दशन
और उसके िविभ(न स*दाय औपिनषिदक िस@ा(त कA Jया;या करते ह5, परं मौिलकता कA yि% से
रामानजु का िविश%ा&ैत दशन शक ं राचाय के दशन के समकc माने जाते ह5। दोनो ही वेदा(त दशन

उतराखड म
ु िविवालय १२
भारतीय दश
न MASL-103
एक दसू रे के परू क तथा एक ही िस@ा(त के दो पहलू ह5। दोनो अ&ैत मत के समथक ह5। रामानजु का
वेदा(त दशन सिवशेष QR और जीव-जगत् के बीच शरीरामभाव स*ब(ध &ारा एके रवाद पर बल
देता है। रामानुज को भि परक वेदा(त दशन को प%ु एवं िवकिसत करने का परू ा Iेय जाता है।
परवतm भि परक वेदा(त दशन1 जैसे म3वाचाय का &ैतवाद, िन*बाक का &ैता&ैतवाद, वLलभ का
श@ु ा&ैतवाद तथा चैत(य का अिच(यभेदाभेदवाद म रामानुज दशन कA छाप देखी जा सकती है।
िवशेष Kप से QR और जीव तथा QR और जगत् के स*ब(ध कA अवधारणाओ ं म, Hान आिद के
स*ब(ध म मौिलक िच(तन 7ततु करने के कारण, भारतीय िच(तन धारा म उनके िविश%ा&ैत दशन
का िविश% 7थान है।
बोध&.-

.(3.) िन*न वाWय1 म सही के आगे(√ ) तथा असय के आगे (x)का अिं कत कर ।
(क) रामानजु के अनसु ार तीन तव होते ह5। ( )
(ख) रामानुज ने स;याितवाद को नहN माना है। ( )
(ग) ईर और QR एक ही ह5। ( )
(घ) रामानजु के िचत् से तापय जीवामा से है। ( )
(ङ) ब(धन और मोc कृ ित को होता है। ( )
अ$यास-

h (3.) रामानजु के अनसु ार िविश%ा&ैत को 7प% कर -


....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
h ( 4.) शरणागित तथा पिS से Wया तापय है।
....................................................................................................

उतराखड म
ु िविवालय १३
भारतीय दश
न MASL-103
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
बोध&.-

.(4.) िन*न h1 का उतर Cर 7थान1 म भर -


क. रामानजु िकस वाद के ितपादक आचाय ह5 ..................................।
ख. भि से ....................... ाD होता है ।
ग. मोc िकसको ाD होता है ।..........................................।
घ. जीव1 का ब(धन िकससे होता है ....................................।
ङ नवधा .......................... है ।
1.6 सारांश -
िविश%ा&ैत वेदा(त दशन को िवकिसत करने का Iेय आचाय रामानजु को है। िविश%ा&ैत वेदा(त
दशन का िस@ांत के ितपादक आचाय ह5। रामानजु ने 7थानयी भाEय कA Iृंखला म ‘‘IीभाEय’’
कA रचना कA। इनके अ(य V(थ ह5- वेदा(तसार, वेदा(तदीप, वेदाथसVं ह, गय एवं िनयV(थ।
रामानजु Hान को ZJय मानते ह5। ZJय के दो कार ह5- जड़ और अजड़। रामानजु ने Hान को ‘अजड़’
माना है। Hान सत् पदाथ का ही होता है और पदाथ के अनK ु प होता है। इसे सत् ;याित या
यथाथ;याित कहते ह5। स;याितवाद- अथात् सभी िवHान यथाथ ह5। मा रामानजु ाचाय के अनसु ार
मा या स*यक् Hान सदा सिवकLपक होता है, अतः िकसी िनिवकLपक व7तु का Hान अस*भव
मा Hान का पयाय है। मा कA उपिS के कारण को माण कहते ह5। रामानजु HानोपिS के िलये
यc, अनमु ान और शOद, इन तीन1 माण1 को मा(यता देते ह5, एवं अ(य माण1 को इ(हN म
अ(तभतू मानते ह5। यc साcाकाCरणी मा का कारण है। साcाकाCरणी मा व7तु और इि(Zय1
के सि(नकष से उप(न होती है। अनमु ान का िनKपण (याय के समान ही है। अनपु लOध को उपलOध
कराना ही अनमु ान का फल है। अनमु ान दो कार के होते ह5 7वाथानमु ान एवं पराथानमु ान।
पराथानमु ान पाँच चरण1 म पणू  होता है- ितHा, हेत,ु उदाहरण, उपनय और िनगमन। शOद लौिकक
और वैिदक भेद से दो कार के ह5। माण म रामानुज ने पांचरा आगम को वेद के समकc रखा।
िविश%ा&ैत रामानजु ाचाय के अनसु ार &ैत-रिहत अ&ैत और अ&ैत-श(ू य &ैत दोन1 ही कोरी कLपना ह5
Wय1िक भेद के िबना अभेद और अभेद के िबना भेद िस@ नहN होता। अतः दोन1 सदा साथ रहते ह5
और इनम पाथWय स*भव नहN है। तjव सदा &ैतिविश%-अ&ैत होता है। इसी का संिcD Kप
िविश%Kप है। &ैत िवशेषण है, अ&ैत िवशेEय है और िवशेषणय ु िवशेEय को िविश% कहते ह5।
उतराखड म
ु िविवालय १४
भारतीय दश
न MASL-103
रामानजु िचत्, अिचत् और ईर, इन तीन1 तjव1 को (तjव-य) मानते ह5। िचत् चेतन भो ा जीव है।
अिचत् जड़ भोlय जगत् है। ईर दोन1 का अ(तयामी है। िचत् और अिचत् दोन1 िनय और पर7पर-
7वत( ZJय ह5। ईर िचदिचि&िश% है। िचदिचद् ईर के िवशेषण, धम, गणु , कार, अश ं , अगं ,
शरीर, िनया*य, धाय और शेष ह5, तथा ईर उनके िवशेEय, धमm, ZJय, कारी, अगं ी, शरीरी या
आमा, िनय(ता, धता और शेषी ह5। िचत् और अिचत् दोन1 ईर के समान िनय तjव ह5, िक(तु ईर
से बाn और पृथक् नहN ह5। ईर का अपने िचदिचद-् शरीर से स*ब(ध 7वाभािवक और सनातन है।
ईर रामानजु ाचाय के ईर के िनKपण म तीन िब(दु म;ु य ह5। थम, ईर और QR एक ही ह5।
रामानजु के अनसु ार ईर जगत् का अिभ(न-िनिमSोपादान कारण है। लयकाल म िचत् और
अिचत् अपनी सoू माव7था म रहते ह5, यह QR कA कारणाव7था है। सृि% के समय िचदिचत् 7थल ू
Kप धारण कर लेते ह5, यह QR कA कायाव7था है। ईर हेयगणु रिहत और अशेषकLयाणगणु सागर
है। वे नारायण या वासदु वे ह5। लoमी उनकA पनी ह5। श@ ु सjविनिमत वैकुठ उनका िनवास है। ईर
एक ह5, िक(तु अपने भ 1 पर अनVु ह करने के कारण वे 7वयं को पाँच Kप1 म कट करते ह5-
अ(तयामी, पर, Jयहू , िवभव और अचावतार। िचत् या चेतन जीव यिप ईर का िवशेषण, कार
या गणु है, तथािप वह 7वयं चेतन ZJय है। जीव एक नहN, अनेक ह5। जीव िनय, ज(म-मरणरिहत
और अणK ु प है। रामानजु ने िचत् या जीवामा के तीन कार माने ह5। िनय-म ु जीव, म ु जीव
तथा ब@ जीव। जीव और ईर म िवशेषण-िवशेEय, गणु -ZJय, अगं -अगं ी और शरीर-आमा का
स*ब(ध है तथा जीव कA साथकता ईर का अिवभाtय श@ ु अगं बनकर ईरीय Hान और आन(द
का अनभु व करने म है। िचदिचत-् िविश% ईर ही QR है। रामानजु ने जीव और ईर म अपृथिWसि@
नामक स*ब(ध 7वीकार िकया है जो आ(तर और वा7तिवक स*ब(ध है जीव ईर पर सवथा आिIत
है और ईर से अपृथक् है। अिचत-् Hान श(ू य तथा िवकारा7पद को अिचत् कहते ह5। यह तीन कार
का होता है -िमI सव , श@ ु सव या िनय िवभिू त तथा सव श(ू य या काल। सृि% ि या
रामानजु के अनसु ार अJय का थम िवकार महत् है, महत् से अहक ं ार कA उपिSयॉं होती है।
अहक ं ार तीन कार के होते ह5- सािवक , राजस् तथा तैजस।् अहक ं ार के सािवक Kप से पंच
Hानेि(Zयाँ, पंच कमuि(Zयाँ तथा मन lयारह इि(Zयाँ उप(न होती है। मन जब िनणय करता है तो यह
बिु @ है, अHान से शरीर को जब आमा मानता है तो अहक ं ार है, जब िच(तन या िवचार करता है तो
िचत है। रामानजु भतू ािद कA िमक उपिSयॉं मानते ह5। चौबीस तव1 से जीवामा और परमामा
के िलये भोlय व7तओ ु ,ं भोग के साधन और भोग के 7थान1 का िनमाण होता है। स&ारक सृि% कA
ि या पंचीकरण है। पंचीकरण- पंच महाभतू 1 का पणू  िवकास हो जाने के बाद उनम से येक
महाभतू 1 कA उपि7थित होती है अतः इसे पंचीकरण कहते ह5 तथा िजस महाभतू म िजस तŸव कA
अिधकता होती है उसी के नाम से वह जाना जाता है। जगत-् रामानजु अिचत् ZJय से जगत् को
उप(न मानते ह5 Wयोिक अिचत् एक िनय ZJय है। ईर के सक ं Lप से ही सृि% कA उपिSयॉं होती है।
ईर और उसकA अश ं भतू ा कृ ित का कायKप जगत् भी सय है। सत् कारण से सत् काय कA

उतराखड म
ु िविवालय १५
भारतीय दश
न MASL-103
उपिSयॉं होती है, इसे ही सकायवाद कहत ह5 रामानजु के अनसु ार िचत् और अिचत् ही जगत्
के Kप म कट होते ह5, रामानुज जगत् को QRमामक मानते ह5। ब(धन और मोc जीव1 का ब(धन
अिवा और कम के कारण है। ब(ध और मोc दोन1 वा7तिवक ह5। कम के कारण जीव का देह,
ाण, इि(Zय, अ(तःकरण आिद से स*ब(ध होता है और यही उसका ब(धन है। भारतीय दशन के
सभी स*दाय ज(म-मृयु-च को ब(धन तथा इसकA आयंितक समािD को मोc नाम देते ह5।
आमा का आम7वKप बोध ही उसका मोc है। ज(म मृयु से परे हो जाना मोc है। भागवत म
Iवण, कAतन, 7मरण, पादसेवन, अचन, व(दन, दा7य, स;य और आमिनवेदन, इस नवधा भि म
आमिनवेदन को शरणागित या पिS कA पराकाvा बताया है। मोc के उपाय- मोc ािD के िलये
सवwFच साधन ईर 7वयं है। कम, Hान, भि इयािद सब साधन ईर कA कृ पा ािD के िलये ही
िकये जाते ह5। भि - भगवसाcाकार के िलये िचत् को ईर म लगा देना ही भि है। भि Hान
कA पराकाvा है। पिS या शरणागित ईरािपत होना अथात् ईर कA शरण म, ईर का कृ पा पा
होना ही पिS अथवा शरणागित है । रामानजु ने शरणागित को भ के िलये आवbयक थम चरण
और भि कA चरम पCरणित माना है ।
स*पणू  वेदा(त दशन और उसके िविभ(न स*दाय औपिनषिदक िस@ा(त कA Jया;या करते ह5, परं
मौिलकता कA yि% से रामानुज का िविश%ा&ैत दशन शक ं राचाय के दशन के समकc माने जाते ह5।
रामानजु को भि परक वेदा(त दशन को प%ु एवं िवकिसत करने का परू ा Iेय जाता है। िवशेष Kप से
QR और जीव तथा QR और जगत् के स*ब(ध कA अवधारणाओ ं म, Hान आिद के स*ब(ध म
मौिलक िच(तन 7ततु करने के कारण, भारतीय िच(तन धारा म उनके िविश%ा&ैत दशन का िविश%
7थान है ।

1.7 शदावल
अिचत-् Hानश(ू य तथा िवकारा7पद जड़ तव ।
अ&ारक सृि%- इस सृि% के पवू  कA ि7थित को कहते ह5 ।
अनपु पि2याँ- आIयानपु पिS,ितरोधानानपु पिS,7वKपानपु पिS,अिनवचनीयानपु िS,माणानपु पिS
, िनकानपु पिS तथा िनवृयानपु पिS ।
अांग योग- यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, 3यान और समािध क
ई5र- ईर और QR एक ही ह5 ।
िचत-् चेतन जीव ।

उतराखड म
ु िविवालय १६
भारतीय दश
न MASL-103
नवधा भिC- Iवण, कAतन, 7मरण, पादसेवन, अचन, व(दन, दा7य, स;य और आमिनवेदन ।
&पि2 - तापय देख शरणागित ।
शरणागित- ईर कA शरण म जाना ही शरणागित तथा पिS है।
सारक सृि- QR &ारा कA गई सृि% कहलाती है ।

1.8 बोध 
न/अयास के उतर

बोध h 11-¼क½(√ ) ¼ख½( Χ ) ¼ग½ ( √ ) ¼घ½( √ ) ¼ड+½( Χ )


2. (क) िविश%ा&ैतवाद
(ख) िविश% अ&ैतवाद
(ग) IीमPगवTीता, उपिनषद् तथा QRसू
(घ) पाँच वाWय
(ङ) सां;य दशन
3. ¼क½ (√ ) ¼ख½ ( Χ ) ¼ग½ ( √ ) ¼घ½ ( √ ) ¼ड½ ( Χ )
(4.) (क) िविश%ा&ैतवाद
(ख) मोc
(ग) जीवामा को
(घ) अिवा और कम से (ङ) भि
अ$यास-

(1.) देख उपखड- 1.4.2


(2.) देख उपखड- 1.4.2
(3.) देख खड- 1.6

उतराखड म
ु िविवालय १७
भारतीय दश
न MASL-103
(4.) देख उपखड- 1.5.5

1.9 संदभ# $%थसूची


1.दासगDु ा एस0 एन0 (1989) भारतीय दशन का इितहास, भाग- 3 राज7थान िह(दी V(थ
अकादमी, जयपरु ि&तीय सं7करण.।
2. दत एवं चटजm (1994 ) भारतीय दशन, प7ु तक भडार, पटना।
3. शमा च(Zधर (1998) भारतीय दशन आलोचना एवं अनश
ु ीलन मोती लाल बनारसी दास,
िदLली .

1.10 सहायक/उपयोगी पा)यसाम$ी


1.दासगDु ा एस0 एन0 (1989) भारतीय दशन कोश, राज7थान िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु
ि&तीय स7ं करण.
2. शमा राममिू त (1998) अ&ैत वेदा(त, इितहास तथा िस@ा(त, ई7टन बक
ु िलंकस, िदLली।
3. ऋिष उमाशक ं रशमा(1984) माधवाचायकृतसवदशनसंVह,चौख*बा िवा भवन वाराणसी,
तृतीय स7ं करण ।

1.11 *नब%धामक 

• िविश%ा&ैत दशन के आधार पर तवय का िव|े षण कर ।


• िविश%ा&ैत दशन के Hान मीमांसा पर एक िनब(ध िलख ।
• िविश%ा&ैत दशन पर एक िनब(ध ।
• िविश%ा&ैत दशन कA पर*परा पर एक िनब(ध िलिखए ।

उतराखड म
ु िविवालय १८
भारतीय दश
न MASL-103

 2: 
    

इकाई क परे खा
2.1 तावना
2.2 उे

2.3 इकाई क पृभिू म -
2.3.1 ैत का उव
2.3.2 ैत का सािहय
2.4 ान मीमांसा
2.4.1. ान
2.4.2 ान के साधन (माण)
2.5 तव मीमासं ा
2.5.1 ैतवाद
2.5.2 पदाथ5 एवं =>य
2.5.3 परमामा एवं जीव
2.5.4 मो, का व@प
2.6 सारांश
2.7 श-दावली
2.8 बोध 01/अ3यास1 के उ4र
2.9 संदभ5 6(थ सचू ी
2.10 सहायक/उपयोगी पाठ्यसाम6ी
2.11 िनबधं ामक 0

उतराखड म
ु िविवालय १९
भारतीय दश
न MASL-103

2.1 तावना
भारतीय दशन म माण प पाठ्य म भाग थम के &ैत वेदा(त दशन से
स*बि(धत यह इकाई है, इससे पवू  के इकाईय1 के अ3ययन से आप बता सकत ह5 िक आि7तक
दशन िकसे कहते ह5 तथा वे िकतने ह5 ? वेदा(त दशन के िकतने स*दाय ह5 ? भारतीय आि7तक
दशन1 म वैEणव स*दाय से स*बि(धत वेदा(त दशन का िविश% 7थान है। वेदा(त दशन के भी कई
शाखाय ह5 । रामानजु के िविश%ा&ैत वेदा(त दशन के पBात् वेदा(त दशन के कौन-कौन मख ु
िस@ा(त ह5 उन िस@ातं 1 का पCरचय इस इकाई म ाD कर ग ।
इस इकाई के अ3ययन के बाद वैEणव स*दाय के &ैतवेदा(त दशन तथा उनके िच(तन एवं िस@ांतो
से आप भली कार से पCरिचत हो जायगे ।

2.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप

• बता सक गे िक वैEणव वेदा(त दशन के कौन - कौन स*दाय तथा िस@ा(त ह5 ।
• इनके मख ु दाशिनक िस@ ं ा(त1 को जान पायगे तथा इनके Hान मीमासं ा तथा तव1
मीमांसा के मखु िस@ा(त1 एवं तव1 से पCरिचत हो जायगे ।

2.3 इकाई क पृ ठभू म


अ(य वैEणव वेदांत स*दाय1 के समान म3व दशन का ‘‘&ैतवाद’’ भी शक ं राचाय के अ&ैतवाद के
िवरोध म खड़ा हMआ है। इस दशन कA िसि@ रामानुज के दशन के जैसी ही है। इनके मत म िनिमत
कारण तथा उपादान कारण का आयि(तक भेद या &ैत मा(य है। &ैतवाद के समथन म म3व ने सां;य
तथा (याय-वैशिे षक दशन1 के कुछ एक िस@ातं ो कA महता को 7वीकार करते हMए औपिनषिदक
दशन कA नयी Jया;या 7ततु कA है।
2.3.1 ैत का उव-
वैEणव दाशिनक म3वाचाय का ज(म 1197 ई. म दिcण म उडुली िजले के अ(तगत िवLव नामक
Vाम म हMआ था। म3व को आन(दतीथ, पणू ब ोध और पणू  H आिद नाम1 से जाना जाता है। उ(ह1ने
QRसू , गीता और उपिनषद1 पर भाEय िलखा है। इनका मत QRस*दाय के नाम से िस@ है।
इनके िस@ा(त को &ैतवाद के नाम से जाना जाता है। इस मत के िस@ा(त का ितपादक |ोक
सवथा 7मरणीय है-

उतराखड म
ु िविवालय २०
भारतीय दश
न MASL-103
ीम8मEवमते ह?रः परतरः सयं जगत् ततवतो,

भेदोजीवगणा हरेरनच
ु रा नीचोFचभावं गताः ।
मुिCनGजसख
ु ानभ
ु ूितरमला भिCI तत् साधनम,्
&य*ािदि0तयं &माणमिखलाJनायैक वेKो ह?रः ।।
2.3.2 ैत का सािहय
म3व के &ारा िलिखत मख ु V(थ1 म 7थानय (QRसू , भगवTीता तथा उपिनषद् ) पर भाEय,
QRसू पर अणJु या;यान नामक V(थ, भागवतपरु ाण पर भागवत-तापय-िनणयटीका आिद ह5।
उपािधखडन, मायावादखडन, िम_यावानमु ानखडन, ततवोोत,
् ततविववे
् क, ततवस ् ं;यान आिद
भी इनकA अ(य रचनाय ह5 ।

2.4 ान मीमांसा

2.4.1. ान का "वLप


अ(य वैEणव वेदाि(तय1 के सyश म3व भी Hान के सिवशेष-िवषयव, 7वतः ामाय, व7तवु ाद एवं
बाnाथवाद का समथन करते है। इनकA Hान मीमांसा (याय-वैशिे षक कA अपेcा सां;य पर अिधक
आधाCरत है। चँिू क कोई व7तु िनिवशेष सामा(य मा नहN, अिपतु असं;य िवशेष1 वाली होती है।
अतः िनिवशषे Hान अस*भव है। Hान िकसी वा7तिवक पदाथ का होता है, उस व7तु के आकार1
वाली बिु @वृि@ के मा3यम से ही Hाता को व7तु का Hान होता है। जैसी व7तु हो ठीक उसी Kप का
Hान, अथात् यथाथ को Vहण करने वाला Hान मा है जो 7वाभािवक Kप म 7वतःमाण है। Hान
का 7वतःामाय 7वयं िस@ है-उसकA ामािणकता 7वयं उसी म, उसकA उपिS एवं HिD म िनिहत
होती है। अयथाथ Hान या अमा का परतःमाण भी उपिS और HिD Kप म स*प(न होता है।
सा*ी-
म3व वेदा(त म साcी के िवना Hान मािणक नहN होता, Wय1िक Hान साcी का बोध या पौpषेय
बोध है। आमा के 7वKपभतू चैत(येि(Zय को साcी कहते ह5। अनव7था दोष से बचने के िलये Hान
का 7वतःमाण मानना आवbयक हो जाता है, अ(यथा एक Hान कA मािणकता िकसी अ(य Hान
से, उसकA पनु ः िकसी अ(य से मानने पर अनव7था दोष उप(न हो जाता है। साcी को ही Hान और
उसकA मािणकता दोनो हो जाती है। म3व के अनसु ार साcी ही सभी माण1 का माण है। Wय1िक
वही सभी िनBय, अ3यवसाय या अनभु व के मल ू म है। वृिS Hान का फलKप मा साcी िनv होती
है। इस कार वृिS Hान और साcीHान दो कार के Hान म3व वेदा(त म मा(य ह5। तदनसु ार माण
भी दो कार के ह5- अनु माण और के वल माण। अनु माण तीन कार के ह5- यc, अनमु ान

उतराखड म
ु िविवालय २१
भारतीय दश
न MASL-103
और शOद या आगम। यथाथ Hान के साधन को अनु माण कहते ह5 जो तीन कार के होने के कारण
तीन कार के यथाथ Hान को देते ह5- यcHान, अनिु मितHान तथा शOदHान। यथाथ Hान को ही
के वल माण कहते ह5 यह चार कार का होता है- 1. ईरHान, 2. लoमी-Hान, 3. योिगHान और
4. अयोिगHान।
2.4.2 ान के साधन (&माण)
तीन अन&ु माण-
7मृित से िभ(न अनभु व ही माण है। माण शOद साधन और उसके फल, दोन1 का वाचक है। यथाथ
Hान के साधन को अनु माण कहते ह5। अनु माण वृŸि◌◌ा Hान है, यह तीन कार का होता है-
यc, अनमु ान और शOद या आगम।
&य* &माण- आस(न और अJयविहत Kप से िवमान कुछ व7तओ ु ं का Vाहक साधन यc
कहलाता है। अथात् िनदwष इि(Zय1 से व7तु के सि(नकष को यc कहते ह5। यह सात कार का
होता है- साcी, मन, ने, वक्, रसना, Iो, और }ाण ये ही सात इि(Zयाँ ह5। म;ु यतः चार कार के
यc का िववरण ाD होता है- 1. ईरयc, 2. लoमी-यc, 3. योिगयc और 4.
अयोिगयc । म3व के अनसु ार सारे यc सिवकLपक ही होते ह5।
अनमु ान &माण- JयािD के 7मरण के साथ-साथ िलगं , हेत,ु Jया~य या यिु का देश िवशेष म ठीक-
ठीक Hान से सा3य, िलगं ी या अनमु ये पदाथ के Hान या मा का जनक साधन अनमु ान माण
कहलाता है। अनमु ान के म;ु य दो अगं ह5- JयािD और समिु चत देश िवशेष म सा3य कA ि7थित। धमू
Jया~य और अिlन Jयापक है। अनमु ान तीन कार का होता है-
1. काया
नुमान- जहाँ काय से कारण का अनुमान होता है वह कायानमु ान है, जैसे धमू से अिlन का
अनमु ान।
2. कारणानुमान- जहाँ कारण से काय का अनमु ान होता है वह कारणा है, जैसे िवशेष कार के
बादल को देखकर वषा का अनमु ान।
3. अकाया
कारणानुमान- जो अपने सा3य का न तो कारण है और न काय, िफर भी अनमु ापक
होता है वह अकायाकारणानुमा होता है, जैसे रस रस Kप का अनमु ापक है। y% और सामा(यतोy%
के भेद से भी अनमु ान के दो कार होते है ।
श+द &माण या आगम &माण- िनदwष शOद को कहते ह5, शOद पद और वाWय है। आकांcा,
योlयता और सि(निहत पद1 के समहू को वाWय कहते ह5। वाWय करण या साधन है, पदाथ कA 7मृित
अवा(तर Jयापार तथा वाWयाथ का Hान अवा(तर फल। आगम या शOद माण दो कार का होता

उतराखड म
ु िविवालय २२
भारतीय दश
न MASL-103
है-अपौpषेय और पौpषेय या िनय और अिनय। वेद आिद सय आगम अपौpषेय ह5 तथा
महाभारत, रामायण, पांचरा आिद पौpषेय आगम ह5।
इन तीन1 माण1 म यc सवािधक ामािणक और िनBयामक माना गया है। िकसी अ(य माण
या तक के &ारा यc का बाध स*भव नहN है। म3व वेदा(त म ये तीन ही माण ह5 तथा अ(य
माण1 का अ(तभाव इ(हN माण1 म हो जाता है।
बोध&.-

.(1.) िन*न वाWय1 म सही के आगे(√ ) तथा असय के आगे (x)का अिं कत कर ।
(क) म3व को आन(दतीथ कहते ह5 ( )
(ख) म3व शक
ं राचाय के िवरोधी थे ( )
(ग) ‘उपािधखडन’ के रचना कार म3व थे ( )
(घ) म3व अनमु ान के चार कार मानते ह5 ( )
(ङ) म3व Hान का 7वतःामाय मानते ह5। ( )
अgयास-
h (1.) म3व के मत म यc के कार1 को िलख-
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
....................................................................................................
बोध&.

.(2.) िन*न h1 के उतर िलख-


(क) म3व िकस वाद के ितपादक आचाय ह5............................................. ।

उतराखड म
ु िविवालय २३
भारतीय दश
न MASL-103
(ख) िकसके िवना Hान ामािणक नहN होता है.............................................।
(ग) यथाथ Hान के साधन को ......................................कहते ह5।
(घ) 7थानयी िकसे कहते ह5 ...........................................................।
(ङ) के वल माण िकतने कार का होता है.....................................।
अ$यास-

h (2.) साcी से Wया तापय है िलख-


....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
....................................................................................................

2.5 तवमीमांसा

2.5.1 ैतवाद
म3व का व7तवु ादी &ैतवाद ईर, जीव और जगत् कA पारमािथक सता 7वीकार करता है । कृ ित,
जीव और ईर िभ(न तव ह5, ये अपनी-अपनी सता रखते ह5, Wय1िक इनकA तीित होती है । इनम
से िकसी एक को दसू रे म अ(तभतू नहN माना जा सकता। बहMव का एक म िवलय नहN होता और न
तो बहMव या नाना को िम_या ही माना जा सकता है। परQR ईर 7वत( तव है, जबिक कृ ित
और जीव परत( तव ह5। ईर अन(तकLयाणगणु स*प(न तथा पCरपणू  ह5, इस कार 7वत( और
परत( Kप से तीन1 तव1 का दो वग है। ये तीन1 सत् तव ह5, Wय1िक इनकA सवदा तीित होती है।
म3व &ैत को सय मानते ह5- जो 7वKपतः िभ(न होता है, वह अिभ(न नहN हो सकता । QR, जीव
और कृ ित 7वKपतः िभ(न ह5, अतः इनम अभेद स*ब(ध नहN हो सकता । QR ही पणू  7वत(,
सय का सय, िनय1 का िनय, चेतन1 का चेतन तथा सता , तीित एवं वृिS का िनिमत है।
म3व भेद को व7तओ ु ं का 7वKप मानते ह5 , यह जगत् सय है और येक पदाथ अ(य सब पदाथा
से सवथा िभ(न है । म3व जीव और जगत् को ईर का शरीर नहN मानते ह5। जीव और जगत् िवशेषण

उतराखड म
ु िविवालय २४
भारतीय दश
न MASL-103
या गौण नहN ह5। वे तािवक और म;ु य ह5 । ईर परत( होने से उनकA सता पर कोई आँच नहN
आती। वे पर7पर िभ(न ह5 और ईर से िनतांत िभ(न ह5, अतः वे ईर का शरीर नहN हो सकते।
म3वाचाय ने पंचिवध िनय भेद 7वीकार िकये ह5 िजनके Hान हो जाने पर जीव मोc को ाD हो
जाता है। ये पाँच भेद ह5-

• ईर और जीव का भेद


• जीव और जीव का भेद
• ईर और जड़ का भेद
• जड़ और जड़ का भेद एवं
• जीव और जड़ का भेद
जैसा िक महाभारततापयिनणय म भी कहा गया है-
जग&वाहः सयोऽयं पच
ं भे दसमि8वतः।
जीवेशयोिभ
दा चैव जीवभेदः पर"परम।्
जडेशयोज
डानांच जडजीविभदा तथा।। महाभारततापय
िनण
य-1.67-70
म3व का भेद पर इतना दिु नवार आVह है िक उ(ह1ने म
ु जीव1 म भी Hान और आन(द के तारत*य
Kपी भेद को 7वीकार िकया है।
02.5.2 पदाथ
एवं ;<य
दस पदाथ
- म3वदशन म पदाथ^ कA स;ं या दस मानी गयी है- ZJय, गणु , कम, सामा(य, िवशेष,
िविश%, अश
ं ी, शि , साybय तथा अभाव ।
बीस ;<य- उनके मत म ZJय बीस कार का होता है- परमामा, लoमी, जीव, अJयाकृ त,
आकाश, कृ ित, गणु य, महSव, अहं कार, बिु @, मन, इि(Zय, त(मााएँ, महाभतू , QRाड,
अिवा, वण, अ(धकार, वासना, काल तथा ितिब*ब। म3वाचाय ने 7वत( और अ7वत( नामक
दो तjव1 को 7वीकार िकया है। भगवान िवEणु 7वत( तjव ह5 और अ7वत( तjव परमामा का दास
जीव है।
सकाय
वाद और प?रणामवाद-
जगत् कृ ित का वा7तिवक िवकार या पCरणाम है। स*पणू  जगत् के उपादान कारण के Kप म कृ ित
को माना गया है। उपादान कारण तथा उनके काय म भेदाभेद स*ब(ध है। त(तु Kप उपादान के

उतराखड म
ु िविवालय २५
भारतीय दश
न MASL-103
अभाव म वf कA सता ही संभव नहN होती। त(तु और कपड़े म अय(त भेद नहN है, िक(तु अय(त
अभेद भी नहN है। यह ि7थित िनिमत कारण के स*ब(ध म नहN है। 7वण से बने आभषू ण सोना Kप
म तथा आभषू ण Kप म िभ(नािभ(न दोन1 ह5। उसी तरह कृ ित और उसके िवकार1 म भी भेद और
अभेद दोन1 ह5 । Jय और अJय , काय और कारण, सoू म और 7थल ू , ये दो अव7थाएँ ही काय-
कारण कहलाती ह5 । भेद पर बल देकर म3व ने सकायवाद तथा असकायवाद म सम(वय 7थािपत
िकया है।
2.5.3 परमामा एवं जीव
परमामा-भगवान् िवEणु परमामा ह5 जो सब कार से पणू  ह5 । भगवान् सम7तकLयाणगणु 1 से
पCरपणू  है। वह म7य, कूम आिद अवतार1 को धारण करते ह5, परमामा उपिS, ि7थित, सहं ार,
िनयमन, Hान, आवरण, ब(ध और मोc- इन सबका िवधाता है। परमामा सवH है वह एकराट्
कहलाता है। वह सवत(-7वत( और एक है। वह जीव, जड़, कृ ित से अय(त िवलcण है। लoमी
परमामा कA शि और सहचरी है। वह परमामा के बािधत रहने के कारण उनसे िभ(न है तथा उनके
आधीन है। लoमी, िनय, िचZूप और अन(त है, वह सम7त गणु 1 से पCरपणू  है। Iी, दगु ा, ी,
महालoमी, दिcणा, सीता जय(ती, सया, KिWमणी आिद लoमी कA मिू तयाँ ह5। वह QRा आिद
जीव1 कA जननी है। लoमी गणु 1 म भगवान् से (यनू है ।
जीव-जीव परमामा से िभ(न और अनेक ह5। येक जीव का अपना Jयि व अलग है, अतः एक
जीव दसू रे से िभ(न है। जीव अHान, मोह, दःु ख, भय आिद दोष1 से म
ु होने के कारण संसार म
पCर`मण करता है। जीव के तीन भेद ह5-
1. मुिCयोQय- देव, ऋिष, िपतृ, च वतm तथा पK
ु षोSम Kप से पाँच कार के होते ह5।
2. िनयससं ारी- अपने कमानसु ार 7वग के सख
ु , मयलोक के सख
ु -दःु ख भोगते रहते ह5। ये म3यम
कोटी के मानव होते ह5।
3. तमोयोQय- दानव, राcस, िपशाच और अधम मानव होते ह5। ये कभी म
ु नहN हो सकते ह5।
मिु योlय तमोयोlय जीव दो कार का होता है- चतगु णु ोपासक और एकगणु ोपासक।
&कृित
मा3वदशन म कृ ित कA मा(यता है। कृ ित साcात् या पर*परया िव का उपादान कारण है।
परमामा तो के वल िनिमS कारण है। परमामा कA अ3यcता म कृ ित अपना काय करती है। कृ ित
िगणु ािमका, पCरणािमनी, जड़, अJय और Jयापक है। कृ ित ईर कA इFछा या शि है। यह
जगत् के सारे बंधन1 का कारण है। सभी ािणय1 के िलंग शरीर कृ ित से िनिमत होते ह5। लoमी

उतराखड म
ु िविवालय २६
भारतीय दश
न MASL-103
इसकA अिधvाी देवी है
2.5.4 मो* का "वLप-
म3वाचाय के अनसु ार भगवान परमामा कA कृ पा एवं साcाकार से ही मोc स*भव है।
परमामा के अनVु ह से जीव मिु को ाD करता है। वैराlय, शम, शरणागित, परमामभि और
पंचिवध भेदHान मोcािD के साधन ह5। भगवान् के ित Hानपवू क  अन(य 7नेह ही भि है।
भगवान् के अपरोc Hान से उनम अन(य भि उप(न होती है और तब भगवान् के परम अनVु ह से
मोc ाD होता है। म
ु पpु ष का शरीर QR के शरीर से िभ(न तथा जीवQRैWय नहN है। पचं भेद1 का
पCरHान मिु के साधन ह5 । मा3वमत म मोc चार कार का होता है- कमcय, उ ाि(तलय,
अिचरािदमाग और भोग। इनम भोग मिु चार कार कA होती है-
1. सालोRय- भगवान् के साथ बैकुठ लोक म िनवास करना ।
2. सामीSय- भगवान् के समीप रहना।
3. साLSय- भगवान् के समान Kप धारण करना।
4. सायु@य- भगवान् के शरीर म वेश करके उनके शरीर से आन(द का भोग करना।
म3व म ु जीव1 को भी QR के समान न मानकर QR से िभ(न मानते ह5 तथा पर7पर भी िभ(न मानते
ह5 तथा उनम Hान और आन(द आिद गणु 1 के तारत*य कA कLपना करते ह5। म3व के अनसु ार दानव,
राcस, िपशाच तथा अधम मनEु य मोc से परे ह5। ये िनय अिभशD ह5 तथा मोc ािD के अिधकारी
नहN ।
बोध&.

.(3.) िन*न वाWय1 म सही के आगे(√ ) तथा असय के आगे (x)का अिं कत कर ।
(क) म3व के अनसु ार पदाथ बीस होते ह5। ( )
(ख) म3व ने सकायवाद को नहN माना है। ( )
(ग) जीव परमामा से अिभ(न और एक ह5। ( )
(घ) म3व के मत म जीवामा चार कार के ह5। ( )
(ङ) पंचिवध भेद Hान मोc ािD के साधन ह5। ( )

उतराखड म
ु िविवालय २७
भारतीय दश
न MASL-103
अ$यास

h (3.) म3व के अनसु ार &ैता&ैत को 7प% कर-


....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
h ( 4.) म3व के अनसु ार भोगमिु के कार1 को िलख-
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
बोध&.

.(4.) उपय
ु उतर के साथ Cर 7थान1 कA पिू त कर-
(क) म3व के अनसु ार पदाथ िकतने ह5 .......................।
(ख) अन(तकLयाणगणु स*प(न ....................... होता है।
(ग) पंचिवध भेद1 के Hान से ...........................होता है।
(घ) ............................िव का उपादान कारण है।
(ङ) ये िनय अिभशD ह5...............................................................।
दानव, राcस, िपशाच तथा अधम मनEु य मोc से परे ह5। ये िनय अिभशD
अ$यास

h ( 5.) म3व के अनसु ार पंचिवध भेद1 को िलख-

उतराखड म
ु िविवालय २८
भारतीय दश
न MASL-103
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................

2.6 सारांश
अ(य वैEणव वेदांत स*दाय1 के समान मा3व दशन का ‘‘&ैतवाद’’ भी रामानजु के दशन के समान
िस@ है। इनका िस@ा(त &ैतवाद है। म3व ने QRसू , गीता और उपिनषद1 पर भाEय िलखे QRसू
पर अणJु या;यान नामक V(थ, भागवतपरु ाण पर भागवत-तापय-िनणयटीका। उपािधखडन,
मायावादखडन, िम_यावानुमानखडन, तत् वोोत, तत् विववेक, तवसं;यान आिद भी इनकA
रचनाय ह5 ।इनकA Hान मीमांसा (याय-वैशिे षक कA अपेcा सा;ं य पर अिधक आधाCरत है। चँिू क
कोई व7तु िनिवशषे समा(य मा नहN, अिपतु असं;य िवशेष1वाली होती है।, अतः िनिवशषे Hान
अस*भव है। Hान का 7वतःामाय 7वयं िस@ है। म3व वेदा(त म साcी के िवना Hान मािणक नहN
होता, Wय1िक Hान साcी का बोध या पौpषेय बोध है। आमा के 7वKपभतू चैत(येि(Zय को साcी
कहते ह5। वृिS Hान का फलKप मा साcी िनv होती है। इस कार वृिSHान न और साcीHान दो
कार के Hान मा3व वेदा(त म मा(य ह5। तदनसु ार माण भी दो कार के ह5- अनु माण और के वल
माण। यथाथ Hान के साधन को अनु माण कहते ह5 अनु माण तीन कार के ह5- यc, अनमु ान
और शOद या आगम। यथाथ Hान को ही के वल माण कहते ह5 यह चार कार का होता है- 1.
ईरHान, 2. लoमी-Hान, 3. योिगHान और 4. अयोिगHान। म;ु यतः चार कार के यc का
िववरण ाD होता है- 1. ईरयc, 2. लoमी-यc, 3.योिगयc और 4. अयोिगयc । म3व
के अनसु ार सारे यc सिवकLपक ही होते ह5। अनमु ान तीन कार का होता है- 1. कायानमु ान-
जहाँ काय से कारण का अनमु ान होता है वह कायानमु ान है, जैसे धमू से अिlन का अनमु ान। 2.
कारणानमु ान- जहाँ कारण से काय का अनमु ान होता है वह कारणानमु ान है, जैसे िवशेष कार के
बादल को देखकर वषा का अनमु ान। 3. अकायाकारणानमु ान- जो अपने सा3य का न तो कारण है
और न काय, िफर भी अनमु ापक होता है वह अकायाकारणानमु ान होता है, जैसे रस रस Kप का
अनमु ापक है।y% और सामा(यतोy% के भेद से भी अनमु ान के दो कार होते ह5। शOद माण या
आगम माण- आगम या शOद माण दो कार का होता है-अपौpषेय और पौpषेय या िनय और
अिनय। वेद आिद सय आगम अपौpषेय ह5 तथा महाभारत, रामायण, पांचरा आिद पौpषेय
आगम ह5। &ैतवाद- म3व का व7तवु ादी &ैतवाद ईर, जीव और जगत् कA पारमािथक सता
7वीकार करता है। कृ ित, जीव और ईर िभ(न तव ह5, ये अपनी-अपनी सता रखते ह5, Wय1िक

उतराखड म
ु िविवालय २९
भारतीय दश
न MASL-103
इनकA तीित होती है। । ये तीन1 सत् तव ह5, Wय1िक इनकA सवदा तीित होती है । म3व &ैत को
सय मानते ह5- जो 7वKपतः िभ(न होता है, वह अिभ(न नहN हो सकता। QR, जीव और कृ ित
7वKपतः िभ(न ह5, अतः इनम अभेद स*ब(ध नहN हो सकता। म3व भेद को व7तुओ ं का 7वKप
मानते ह5 ,यह जगत् सय है और येक पदाथ अ(य सब पदाथ^ से सवथा िभ(न है। म3वाचाय ने
पंचिवध िनय भेद 7वीकार िकये ह5 िजनके Hान हो जाने पर जीव मोc को ाD हो जाता है। ये पाँच
भेद ह5-1. ईर और जीव का भेद 2. जीव और जीव का भेद 3.ईर और जड़ का भेद 4.जड़ और
जड़ का भेद एवं 5.जीव और जड़ का भेद।
म3व का भेद पर इतना दिु नवार आVह है िक उ(होने म ु जीव1 म भी Hान और आन(द के तारत*य
Kपी भेद को 7वीकार िकया है। म3वदशन म पदाथ^ कA सं;या दस मानी गयी है- ZJय, गणु , कम,
सामा(य, िवशेष, िविश%, अश ं ी, शि , साybय तथा अभाव। उनके मत म ZJय बीस कार का होता
है- परमामा, लoमी, जीव, अJयाकृ त, आकाश, कृ ित, गणु य, महSव, अहं कार, बुि@, मन,
इि(Zय, त(मााएँ, महाभतू , QRाड, अिवा, वण, अ(धकार, वासना, काल तथा ितिब*ब।
म3वाचाय ने 7वत( और अ7वत( नामक दो तjव1 को 7वीकार िकया है। भगवान िवEणु 7वत(
तjव ह5 और अ7वत( तjव परमामा का दास जीव है। जगत् कृ ित का वा7तिवक िवकार या
पCरणाम है। स*पणू  जगत् के उपादान कारण के Kप म कृ ित को माना गया है। उपादान कारण तथा
उनके काय म भेदाभेद स*ब(ध है। उसी तरह कृ ित और उसके िवकार1 म भी भेद और अभेद दोन1
ह5 ।
Jय और अJय , काय और कारण, सoू म और 7थल ू , ये दो अव7थाएँ ही काय-कारण कहलाती
ह5। भेद पर बल देकर म3व ने सकायवाद तथा असकायवाद म सम(वय 7थािपत िकया है। परमामा
भगवान् िवEणु परमामा ह5 जो सम7तकLयाणगणु 1 से पCरपूण है। Iी, दगु ा, ी, महालoमी, दिcणा,
सीता जय(ती, सया, KिWमणी आिद लoमी कA मिू तयाँ ह5। वह QRा आिद जीव1 कA जननी है।
लoमी गणु 1 म भगवान् से (यनू है। जीव येक जीव का अपना Jयि व अलग है, अतः एक जीव
दसू रे से िभ(न है। जीव अHान, मोह, दःु ख, भय आिद दोष1 से म ु होने के कारण संसार म पCर`मण
करता है। जीव के तीन भेद ह5-मिु योlय, िनयसंसारी और तमोयोlय- कृ ित-मा3वदशन म कृ ित
साcात् या पर*परया िव का उपादान कारण है। कृ ित िगणु ािमका, पCरणािमनी, जड़, अJय
और Jयापक है। कृ ित ईर कA इFछा या शि है। यह जगत् के सारे बंधन1 का कारण है। वैराlय,
शम, शरणागित, परमामभि और पच ं िवध भेदHान मोcािD के साधन ह5। मा3वमत म मोc चार
कार का होता है- कमcय, उ ाि(तलय, अिचरािदमाग और भोग। इनम भोग मिु चार कार कA
होती है-सालोWय- सामी~य-साK~य-सायtु य-म3व म ु जीव1 को भी QR के समान न मानकर QR
से िभ(न मानते ह5 तथा पर7पर भी िभ(न मानते ह5 तथा उनम Hान और आन(द आिद गणु 1 के तारत*य
कA कLपना करते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ३०
भारतीय दश
न MASL-103

2.7 शदावल
अकाया
कारणानुमान- जो अपने सा3य का न तो कारण है और न काय, िफर भी अनमु ापक होता
है वह अकायाकारणानमु ान होता है, जैसे रस, रस Kप का अनमु ापक है।
अिचत-् Hानश(ू य तथा िवकारा7पद जड़ तव ।
अन&ु माण- यथाथ Hान के साधन को अनु माण कहते ह5। ये तीन कार के ह5
तथा तीन कार के यथाथ Hान को देते ह5- यcHान, अनिु मितHान तथा शOदHान।
काया
नुमान- जहाँ काय से कारण का अनमु ान होता है वह कायानमु ान है, जैसे धमू
से अिlन का अनमु ान।
कारणानुमान- जहाँ कारण से काय का अनमु ान होता है वह कारणानमु ान है, जैसे िवशेष कार के
बादल को देखकर वषा का अनमु ान।
के वल &माण- यथाथ Hान को ही के वल माण कहते ह5 यह चार कार का होता है- 1. ईरHान,
2. लoमी-Hान, 3. योिगHान और 4. अयोिगHान।
वाRय- आकाc ं ा, योlयता और सि(निहत पद1 के समहू को वाWय कहते ह5।
ैत- म3व &ैत को सय मानते ह5- जो 7वKपतः िभ(न होता है, वह अिभ(न नहN हो सकता। QR,
जीव और कृ ित 7वKपतः िभ(न ह5, अतः इनम अभेद स*ब(ध नहN हो सकता।
सकाय
वाद- काय अपनी उपिS से पवू  अपने कारण म सत् Kप म िवमान रहता है। कारण के
सत् होने पर काय भी सत् होता है।
तमोयोQय- दानव, राcस, िपशाच और अधम मानव होते ह5। ये कभी म ु नहN हो सकते ह5 ।
दस पदाथ
- ZJय, गणु , कम, सामा(य, िवशेष, िविश%, अश ं ी, शि , साybय तथा अभाव ।
िनयसंसारी- अपने कमानसु ार 7वग के सख ु , मयलोक के सख ु -दःु ख भोगते रहते ह5 । ये म3यम
कोटी के मानव होते ह5।
पंचिवधिनयभेद- ईर और जीव का भेद, जीव और जीव का भेद, ईर और जड़ का भेद, जड़
और जड़ का भेद एवं जीव और जड़ का भेद।
&कृित- कृ ित िगणु ािमका, पCरणािमनी, जड़, अJय और Jयापक है। कृ ित ईर कA इFछा या
शि है। यह जगत् के सारे बंधन1 का कारण है।
मो*&ािT के साधन- वैराlय, शम, शरणागित, परमामभि और पंचिवध भेदHान।
बीस ;<य- परमामा, लoमी, जीव, अJयाकृ त, आकाश, कृ ित, गणु य, महSव, अहं कार, बिु @,
मन, इि(Zय, त(मााएँ, महाभतू , QRाड, अिवा, वण, अ(धकार, वासना, काल तथा ितिब*ब।
भिC- भगवान् के ित Hानपूवक  अन(य 7नेह ही भि है।
मुिCयोQय- देव,ऋिष, िपतृ, च वतm तथा पK ु षोSम Kप से पाँच कार के होते ह5।
मो* के &कार- कमcय, उ ाि(तलय, अिचरािदमाग और भोग।
सा*ी- आमा के 7वKपभतू चैत(येि(Zय को कहते है।

उतराखड म
ु िविवालय ३१
भारतीय दश
न MASL-103
सामीSय- भगवान् के समीप रहना।
सायु@य- भगवान् के शरीर म वेश करके उनके शरीर से आन(द का भोग करना।
साLSय- भगवान् के समान Kप धारण करना।
सालोRय- भगवान् के साथ बैकुठ लोक म िनवास करना।
शरणागित- ईर कA शरण म जाना ही शरणागित तथा पिS है।
2.8 बोध 
न/अयास के उतर
बोध h

1(क) (√ ) (ख) (√ ) (ग) (√ )(घ)(x)(ङ) (√ )


2.(क) &ैतवाद
(ख) साcी
(ग) अनु माण
(घ) QRसू , भगवTीता तथा उपिनषद्
(ङ) चार कार का

3. (क)(x) (ख) (√ ) (ग) (x) (घ)(x) )(ङ) (√ )


4.(क) दस
(ख) ईर
(ग) मोc
(घ) कृ ित
(ङ) दानव, राcस, िपशाच तथा अधम मनEु य।
अ$यास

(1.) देख उपखड- 2.4.2


(2.) देख उपखड- 2.4.1

उतराखड म
ु िविवालय ३२
भारतीय दश
न MASL-103
(3.) देख खड- 02.5.1
(4.) देख उपखड- 02.5.4
5.) देख उपखड- 02.5.1

2.9 संदभ# $%थसूची


1.दासगDु ा एस0 एन0 (1989) भारतीय दशन का इितहास, भाग 4-5 राज7थान िह(दी V(थ
अकादमी, जयपरु ि&तीय स7ं करण.
5. दत एवं चटजm (1994 ) भारतीय दशन, प7ु तक भडार, पटना ।
6. शमा च(Zधर (1998) भारतीय दशन आलोचना एवं अनश
ु ीलन मोती लाल बनारसी दास,
िदLली.

2.10 सहायक/उपयोगी पा)यसाम$ी


1.दासगDु ा एस0 एन0 (1989) भारतीय दशन कोश, राज7थान िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु ि&तीय
सं7करण.
2. शमा राममिू त (1998) अ&ैत वेदा(त, इितहास तथा िस@ा(त, ई7टन बक
ु िलंकस, िदLली ।
3. ऋिष उमाशंकरशमा(1984) माधवाचायकृतसवदशनसंVह,चौख*बा िवा भवन वाराणसी,
तृतीय सं7करण।

2.11 *नबंधामक 

1. &ैतवाद दशन के आधार पर तव1 का िव|े षण कर ।


2. म3वदशन के Hान मीमांसा पर एक िनब(ध िलख।
3. म3व के अनसु ार मोc के 7वKप पर एक लेख िलख।

उतराखड म
ु िविवालय ३३
भारतीय दश
न MASL-103

3:  


    

इकाई क परे खा

3.1 तावना
3.2 उे

3.3 इकाई क पृभिू म -
3.3.1 ैताैत का उव
3.3.2 ैताैत का सािहय
3.4 ान मीमासं ा
3.4.1. ान
3.4.2 ान के साधन (माण)
3.5 ततव् मीमांसा
3.5.1 ैतवाद
3.5.2 तवAय
3.5.3 जीवामा परमामा का भेदाभेद
3.5.4 ब(धन और मो,
3.6 सारांश
3.7 श-दावली
3.8 बोध 01/अ3यास1 के उ4र
3.9 सदं भ5 6(थ सचू ी
3.10 सहायक/उपयोगी पाठ्यसाम6ी
3.11 िनबंधामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ३४
भारतीय दश
न MASL-103

3.1 तावना
भारतीय दशन म माण प पाठ्य म भाग थम के &ैता&ैत वेदा(त दशन से स*बि(धत यह इकाई
है, इससे पवू  कA इकाईय1 के अ3ययन से आप बता सकत ह5 िक भारतीय दशन के िकतने कार ह5 ?
आि7तक तथा नाि7तक दशन कौन- कौन ह5 ?
भारतीय आि7तक दशन1 म वेदा(त दशन का िविश% 7थान है। वेदा(त दशन कA भी कई शाखाय ह5 ।
अ&ैत वेदा(त दशन के पBात् मख
ु वैEणव वेदा(त दशन1 के कार1 तथा िस@ातं 1 से आप सब
पCरिचत हो पायग।
इस इकाई के अ3ययन के बाद वैEणव स*दाय के मख
ु दाशिनक1 म &ैता&ैतवाद के िच(तन तथा
िस@ांतो से आप पCरिचत हो जायग।े

3.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप -

• बता सक गे िक वेदा(त दशन के कौन - कौन मख


ु स*दाय ह5।
• उनके मख ु दाशिनक िस@ ं ा(त1 को जान सक गे तथा उनके Hान मीमासं ा तथा तव
मीमांसा के मख
ु तव1 से भी पCरिचत हो सक गे।

3.3 इकाई क पृ ठभू म

3.3.1 ैताैत का उव-


िन*बाक दशन के ितvापक आचाय िन*बाक का ज(म बारहवN शताOदी म दिcण भारत म तैलंग
QाRण पCरवार म हMआ था। इनका वा7तिवक नाम िनयमान(द था। कहा जाता है िक नीम के पेड़ पर
चढ़ कर सयू ा7त हो जाने पर भी सयू  का दशन कराने के कारण इनका नाम िन*बाक पड़ा था। ये
अलौिकक ितभास*प(न वैEणवी िव&ान् थे।
इनका समय दासगDु के मत म चौदहवN सदी के अ(त या प(ZहवN सदी के ार*भ का है। रोमा
चौधरी इ(ह lयारहवN सदी का मानती ह5 जो अिधक उपयु तीत होता है। कुछ पर*परानयु ायी
इनका समय काफA पीछे ले जाते ह5, िक(तु रामानजु के बाद ही इ(ह मानना उिचत होगा।
रामानजु के िविश%ा&ैत स*दाय के अितCर िन*बाक का &ैता&ैत या भेदाभेद मख
ु वैEणव वेदा(त
स*दाय है। िन*बाक स*दाय को वैEणव मत का ‘‘सनक-स*दाय’’ कहा जाता है तथा िन*बाक

उतराखड म
ु िविवालय ३५
भारतीय दश
न MASL-103
को सदु शनच का अवतार माना जाता है। भारतीय दशन म &ैता&ैतवाद अय(त ाचीन है।
बादरायण से भी पवू  के आचाय^ म औडुलोिम और आbमर_य तथा शक ं र-पवू  के आचाय^ म
भतृर् पंच एवं शक
ं रोतर आचाय^ म भा7कर और यादव िस@ भेदवादी आचाय हMये ह5।
िन*बाकाचाय ने इन आचाय^ के मत को पनु ptजीिवत िकया है ।
1.3.2 िविशाैत का सािहय
िन*बाक भा7कर के अनयु ायी ह5, पर भा7कर के औपािधक भेदाभेदवाद से थोड़ा िभ(न 7वाभािवक
भेदाभेदवाद का ितपादन करके इ(ह1ने अलग स*दाय बनाया, जो एक िविश% धम-स*दाय के
Kप म, म;ु य Kप से Qज तथा उतर देश म एवं अ(य, बंगाल आिद म, चिलत रहा है। िन*बाक
का QRसू पर भाEय पणू  HभाEय या वेदा(तपाCरजातसौरभ के नाम से िव;यात है। यह अित सिं cD
वृिS के Kप म है। शक
ं र के िस@ा(त का ितवाद करने म इ(ह1ने अिधक अिभpिच नहN िदखायी है।
दश|ोकA या िस@ा(तरन तथा कृ Eण7तवराज नामक इनके दो 7वत( V(थ भी ह5। इनकA रचनाओ ं
पर टीका-V(थ भी पाये जाते ह5। इनकA मख ु रचनाएँ वेदा8तपा?रजातसौरभ, िस6ा8तरन,
दशVोकW, ीकृ>ण"तवराज ह5।

3.4 ान मीमांसा

3.41. ान-
Hान यथाथ, व7त-ु िवषयक तथा आमा का धमभतू ZJय है। यथाथ Hान या मा बिु @ के नहN जीव
के आिIत होती है। मा या धमभतू Hान म संकोच- िवकास कमवश होता है, इसिलये िक आमा
के 7वKप-Hान के समान यह 7वयंकाश नहN है। आमा सदा ही Hातृव धमवाला होता है, अतः
Hान का कभी अभाव नहN होता। इि(Zय आिद िनिमत न िमलने से सषु िु D, मFू छा आिद दशा म वह
कट नहN हो पाता। यिद उसका अभाव माना जाय तो कभी भी आिवभाव स*भव नहN होगा। Hान
आमा का आग(तक ु गणु नहN है, जैसा (याय-वैशिे षक दशन म मा(य है। Hान आमा म गणु और
गणु ी के स*ब(ध से िनय जड़ु ा हMआ रहता है। गणु और गणु ी म भेदाभेद स*ब(ध होता है, गणु आमा
से िभ(न ZJय होते हMए भी उससे अिभ(न या अपृथक् िस@ है। िन*बाक रामानजु के समान व7तवु ादी
या बाnाथसयवादी तथा Hान, Hाता, Hेय एवं Hान के साधन (माणय) को 7वीकार करते ह5।
3.4.2 ान के साधन (&माण)
रामानजु के समान िन*बाक यc, अनमु ान और शOद, तीन माण1 को मानते है।
&य*-इि(Zय और िवषय के सि(नकष से ज(य Hान यc है जो बाn और आ(तर दो कार का
होता है। बाn पदाथ^ का यc इि(Zयज है तथा सख
ु -दःु ख आिद आ(तCरक िवषय1 का इि(Zय-
िनरपेc आ(तर।

उतराखड म
ु िविवालय ३६
भारतीय दश
न MASL-103
अनुमान-JयािD पर िनभर Hान अनमु ान है। अनमु ान माण दो कार का होता है- 7वाथानमु ान तथा
पराथानमु ान। पराथानमु ान म ितHा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा िनगमन पंचावयव वाWय1 का योग
होता है।
श+द-इन दो Hान1 से अितCर एवं सवािधक ामािणक Hान Iिु तमल ू क होता है। Iिु त Iवण-मनन-
िनिद3यासन का िवधान करती है। व7तु के साcाकार का कारण िनिद3यासन है, उसके बिहरंग
साधन Iवण और मनन ह5। आचाय के मख ु से वाWयाथ का Vहण Iवण है, Iु यनक
ु ू ल तक से उस
पर िवशेष िवचार मनन है तथा 3यानपवू क  उपिद% व7तु का साcाकार िनिद3यासन है। इनका अपवू 
िवधान Iिु त &ारा हMआ है। अथात् वेद वचनां◌े म कहN भी िकसी Kप म अथवाद नहN है।
यc और अनमु ान अपने अपने िवषय1 म माण ह5, िक(तु शाf-Hान सवथा िनदwष एवं ामािणक
होने से अपेcाकृ त अिधक िवश@ ु होता है, उसम `ाि(त कA स*भावना िबलकुल नहN होती, वह
सभी पCरि7थितय1 म समान Kप से पCरपणू  एवं `ाि(तरिहत Hान होता है।
िन*बाक रामानजु के समान स;याितवादी ह5। अिनवचनीय ;याित, अ;याित, अ(यथा;याित जैसे
िस@ा(त1 का खडन करते हMये स;याितवादी िन*बाक का कथन है िक माण का बल पर `ा(त
Hान का बाध उसी कार होता है िजस कार पु य से पाप का या औषिध से रोग का। िन*बाक के
अनसु ार पCरणामवाद Iिु त &ारा ितपािदत है।
बोध&.-
.(1.) िन*न वाWय1 म सही के आगे(√ ) तथा असय के आगे (x)का अिं कत कर ।
(क) िन*बाक ने &ैता&ैत वाद कA 7थापना कA ( )
(ख) ये शक ं राचाय के िवरोधी थे ( )
(ग) ‘वेदा(त पCरजातसौरभ के लेखक िन*बाक थे ( )
(घ) आमा Hातृव धम वाला होताह है ( )
(ङ) िन*बाक चार माण मानते ह5 ( )
अ$यास-
h (1.) िन*बाक के अनसु ार Hान के साधन माण1 के नाम िलख-
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
....................................................................................................
बोध&.-
.(2.) िन*न h1 के उत र िलख-

उतराखड म
ु िविवालय ३७
भारतीय दश
न MASL-103
(क) िन*बाक िकस वाद के ितपादक आचाय ह5............................................।
(ख) यc के िकतने कार ह5, कौन-कौन.....................................................।
(ग) तवय से तापय है .................................................................।
(घ) पCरणामवाद िकससे ितपािदत है............................................... ।
(ङ) Hान आमा म िकस स*ब(ध से जड़ु ा है ...........................................।
अ$यास
h (2.) िन*बाक के अनसु ार स;याित से Wया तापय है िलख-
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
..................................................................................................
..................................................................................................
..................................................................................................
3.5 तव मीमांसा
िन*बाक िचत,् अिचत् और ईर इन तीन तव1 को मानते ह5 और उनके दशन म इनका 7वKप भी
ायः रामानजु -स*मत 7वKप के अनK
ु प है। िचत् या जीव एक साथ Hान7वKप भी ह5 और HानाIय
भी ह5। श@
ु चैत(य जीव का 7वKप भी है और Hाता होने के कारण जीव Hान का आIय भी है। Hान
7वKपभतू और धमभतू दोन1 है।
3.5.1 ैताैतवाद-
रामानजु के समान िन*बाक भी िचत,् अिचत् और ईर- इन तीन तjव1 को 7वीकार करते ह5। इनके
मत म िचत् (जीव) अिचत् (जगत)् से िभ(न होते हMये भी Hाता और Hान का आIय है, िजस कार
सयू  काशमय है और काश का आIय भी है, उसी कार िचत् भी एक ही काल म Hान7वKप भी
है और Hान का आIय भी है। QR जीव और जड़य ु जगत् से एक साथ िभ(न और अिभ(न है।
िजस कार मकड़ी अपने म से जाला बनाने पर भी उससे 7वतं रहती है इसी ार QR भी असं;य
जीव और जड़ म िवभ होता हMआ भी अपनी पूणत ा एवं श@ ु ता बनाए रखता है। इस कार िचत्
का अव7थाभेद से QR से िभ(न तथा चैत(यKप से अिभ(न होने के कारण इनका मत ‘&ैता&ैतवाद’
नाम से िस@ है। जीव के सभी Jयापार और उनका अि7तव भी QR पर इस अथ म अवलि*बत है
िक QR सभी का उपादान एवं िनिमत कारण है। काय Kप म ईर और जीव म भेद है, िक(तु कारण
Kप म दोन1 म अभेद है। िजस कार सवु णKप से सोना अभेद एक ही है पर(तु अपने काय कुडल,

उतराखड म
ु िविवालय ३८
भारतीय दश
न MASL-103
अगं ठु ी आिद के &ारा सभेद अथात् अपने मल
ू Kप से िभ(न है।
3.5.2 तव0य-
िचत-्
जीव िन*बाक मत म जीव Hान7वKप, 7वयंकाश, HानाIय और अणK ु प है। वह येक अव7था
म कता है। म
ु ाव7था म भी कSृj व से अलग नहN रहता। वह िवभ,ु िनय एवं कमफल का भो ा है।
जीव अश ं है और ईर अंशी है, अतः दोन1 म अंशांशीभाव स*ब(ध है। वह सदा ईर के अधीन
रहता है। जीव दो कार के है- 1.ब@- दःु ख1 से V7त और 2. म ु - बंधन1 से परे । ब@जीव के दो
कार ह5- ममु cु ु तथा बभु c
ु ।ु म
ु जीव भी दो कार का होता है- िनयम ु और म ु ।
अिचत्
अथात् चेतना िवहीन पदाथ। अिचत् तjव तीन कार का होता है-
1. &ाकृत- अथात् कृ ित से उप(न। महत् से लेकर QRाड पय(त सभी पदाथ ाकृ त ह5।
2. अ&ाकृत- िजसका कृ ित से स*ब(ध न हो, उसे अाकृ त कहते ह5।
3. काल- ाकृ त और अाकृ त से िभ(न तjव को काल कहते ह5, यह िनय एवं िवभु है। यह
परमामा के अधीन है।
ई5र
िन*बाक मत म ईर सवशि मान, सवH, अिच(य, सविनय(ता, 7वत( अिमत ऐय से य ु है।
यह अिवा आिद पाँच Wलेश1 से म ु है। ईर जगत् का उपादान कारण भी है और िनिमS कारण
भी है। अपनी शि के िवcेप के &ारा वह 7वयं जगत् के Kप म पCरणत हो जाता है, वह 7वKप से
अिवकारी भी रहता है, जैसे मकड़ी अपने अचिलत 7वKप को बनाये रख कर भी अपनी शि का
िवcेप करके जाले के Kप म पCरणत हो जाती है। यह सृि% का ईश है। यह जगत् उसी का पCरणाम है।
ईर िवकLयाण के िलये अवतार धारण करता है। इस कार जगत् QR से िभ(न भी है और
अिभ(न भी, 7वKपतः QR से इसका भेद है और काय Kप से अभेद भी है। िजस कार दधू से दही
का पCरणाम होता है, उसी कार QR से जगत् का उसकA असाधारण शि से।
काय
कारण िस6ा8त
िन*बाक के अनसु ार काय अपने कारण से िभ(न और अिभ(न दोन1 Kप1 म रहता है। काय अपनी
उपिS से पवू  आपने कारण म िवमान रहता है- जगत् Kप काय अपनी उपिS से पवू  अपने कारण
म सत् Kप म िवमान रहता है, इसे सकायवाद कहते ह5। अJय ाव7था म जगत् QR से अिभ(न
उतराखड म
ु िविवालय ३९
भारतीय दश
न MASL-103
था िक(तु Jय ाव7था म वह नामKपामक काय-Kप से सीिमत एवं QR Kप से िभ(न है। सभी
पCरणाम या िवकार सत् के कट नामKप ही ह5। अतएव एक कारण के Hान हो जाने से सभी काय^
का Hान हो जाता है। जैसे- 7वण के Hान होने से 7वण के सभी आभषू ण1 का Hान हो जाता है। इस
कार िन*बाक सकायवाद और पCरणामवाद का सहारा लेकर जगत-् Kप काय का QR-कारण से
भेदाभेद स*ब(ध 7थािपत करता है ।
3.5.3 जीवामा और परमामा का भेदाभेद-
जीवामा और परमामा के बीच भेदाभेद स*ब(ध 7थािपत है । परमामा आन(दमय 7वKप वाला है
तथा जीव के आन(द का कारण है।परमामा िनय आिवभतू Hान 7वKप है जबिक जीव अनक ु रण
है। परमामा िनलuप है, जीवामा भो ा है। जीवामा अनेक है तथा परमामा एक और िवभु है।
जीवामा परमामा का अंश है, अचेतन कृ ित के समान उसम िवकार उप(न नहN होता है।
अश ं ांशीभाव से जीवामा और परमामा िभ(न ह5, पर(तु अ(ततः दोन1 म अभेद है। जैसे सूय अनेक
जलाशय1 म ितिबि*बत होते हMए भी जल के वृि@ ास आिद दोष1 से 7प% नहN होता, उसी कार
जीवामा के दोष1 से अ(तयािम QR 7प% नहN होता। जीवामा उसी कार सय तव है िजस कार
परमामा अ(तयािम तथा जीव का उ@ार करने वाला है। जीव ही ब(ध मोc को ाD करता है
परमामा नहN। िन*बाक कA उि है िक QR उभयिलंग अथात् काशवान् भी है और अ(धकार से
दरू है, अतः िनदwष है। Iिु त, 7मृित और परु ाण ईर को सवगणु स*प(न बताते ह5। ईर अिवा आिद
Wलेश1 से रिहत, ज(म आिद छः िवकार1 से रिहत है। Iिु त के सम7त भेद परक और अभेद परक
वचन म;ु य ह5।
3.5.4 ब8धन और मो*
सभी वेदाि(तय1 के समान िन*बाक भी वैिदक Hान काड के समथक ह5। पनु रिप कम आिद को
महŸव देकर Hान कम समFु चयवाद कA 7थापना म िवास करना भि स*दाय के वैEणव
स*दाय कA िवशेषता रही है। अिवा या कम कA िनवृिS तथा आमा और QR का 7वKप Hान
मोc है। िनEकाम कम, जो Hान, I@ा, 3यान, और ईर समपण बिु @ से िकया जाता है मोc ािD म
सहायक होते ह5। धमाचरण &ारा पापकम^ से मिु िमलती है। जब सयHान का काश आिवभतू
होता है तब धमाचारण कA आवbयकता नहN रहती है। Hानयोग िनEकाम कमयोगी को होता है,
परQR का साcाकार भगवकृ पा और Hानयोग से होता है। पिS योग भगवशरणागित है। गK ु
आHा भी भगवत् भि म सहयोग करती है। िन*बाक के अनसु ार मोc ािD का साधन पिS
(शरणागित) है। शरणागत होने से भगवान् अनVु ह करते ह5, अनVु ह से भि उPव होती है, भि से
ईर-ेम उप(न होता है, ेमभि से परमामा का साcाकार होता है, तब सारे Wलेश1 कA
आयि(तक िनवृिS हो जाती है। यही मोc कA अव7था है। इस कार Hान, कम, भि , पिS , तथा
ये पाँच1 समि(वत Kप म सवwतम मोc के साधन ह5 ।

उतराखड म
ु िविवालय ४०
भारतीय दश
न MASL-103
उनके अनसु ार जीवनमिु नहN होती, िवदेहमिु ही होती है । मोc ाD करने पर जीव यिप QR म
िमल जाता है, पर उसका 7वतं Jयि व लDु नहN होता है, बना रहता है। इस िलये कहा जाता है
िक शि और शि मान म अभेद है। भ भगवान् के पास पहMचँ ेगा भगवान् नहN हो सकता, भ
भगवान् बनकर सृि% नहN कर सकता ।
िन*बाकाचाय Hानयोग, भि योग, कमयोग म ही सम(वय 7थािपत नहN करते, अिपतु भेदपरक तथा
अभेदपरक Iिु त वचन1 म तथा चेतन और अचेतन के &ैत को QRाचय बताकर &ैतवादी और
अ&ैतवादी दशन1 म भी एक साथ सम(वय ला देते ह5 । धम, आचार, दशन आिद को एक साथ
समि(वत करने म भी उनका िवशेष योगदान है । उनके दशन म सभी वण^ और आIम1 को उिचत
7थान भी िमला है। उनका भेदाभेदवाद नाम ही सम(वयामक प@ित का ोतक है। िवरोधी बात1 म
संगित और सामजं 7य 7थािपत करना उनका म;ु य उेbय तीत होता है। इनका मत काफA
भावशाली रहा है- अिच(य भेदाभेद, शा मत तथा िवHानिभcु का मत इनसे काफA भािवत रहे
ह5 ।
बोध&.
.(3.) िन*न वाWय1 म सही के आगे(√ ) तथा असय के आगे (x)का अिं कत कर ।
(क) िन*बाक के अनसु ार तीन तव होते ह5। ( )
(ख) िन*बाक ने स;याितवाद को नहN माना है। ( )
(ग) Wया इर QR का पयाय है। ( )
(घ) िन*बाक के िचत् से तापय जीवामा से है। ( )
(ङ) ब(धन और मोc ईर कृ पा से होता है। ( )
अ$यास-
h (3.) िन*बाक के अनसु ार &ैता&ैत को 7प% कर -
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
h ( 4.) तवय से Wया तापय है ।
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................

उतराखड म
ु िविवालय ४१
भारतीय दश
न MASL-103
बोध&.
.(4.) Cर 7थान1 कA पिू त उपय ु उतर के &ारा कर ।
(क) िन*बाक दिcण भारतीय ............................ आचाय ह5।
(ख) जीवामा और परमामा म ....................... संबंध है।
(ग) मोc िकसको ाD होता है..........................................।
(घ) चेतना िवहीन...........................है।
(ङ) िन*बाक .......................... के समथक ह5।
h ( 5.) ब(धन एवं मोc से Wया तापय है।
....................................................................................................
....................................................................................................
....................................................................................................
.....................................................................................................
3.6 सारांश
िन*बाक दशन के ितvापक आचाय िन*बाक का वा7तिवक नाम िनयमान(द था। ये दिcण भारत
के तैलंग QाRण थे। िन*बाक स*दाय को वैEणव मत का सनक-स*दाय तथा &ैता&ैतवाद के Kप
म जाना जाता है। िन*बाक का QRसू पर पणू  HभाEय या वेदा(तपाCरजातसौरभ है। इनकA मख ु
रचनाएँ वेदा(तपाCरजातसौरभ, िस@ा(तरन, दश|ोकA, Iीकृ Eण7तवराज ह5।यथाथ Hान या मा
बिु @वृि@ के नहN जीव के आिIत होती है। Hान आमा म गणु और गणु ी के स*ब(ध से िनय
जड़ु ा हMआ रहता है। गणु और गणु ी म भेदाभेद स*ब(ध होता है, िन*बाक यc, अनमु ान और शOद,
तीन माण1 को मानते ह5। यc-इि(Zय और िवषय के सि(नकष से ज(य Hान यc है जो बाn
और आ(तर दो कार का होता है। बाn पदाथ‚ यc इि(Zयज है तथा सख ु -दःु ख आिद आ(तCरक
िवषय1 का इि(Zय-िनरपेc आ(तर। अनमु ान-JयािD पर िनभर Hान अनमु ान है। शOद-इन दो Hान1 से
अितCर एवं सवािधक ामािणक Hान Iिु तमल ू क होता है। िन*बाक रामानजु के समान
स;याितवादी ह5। अिनवचनीय ;याित, अ;याित, अ(यथा;याित जैसे िस@ा(त1 का खडन करते
हMये स;याितवादी िन*बाक का कथन है िक माण का बल पर `ा(त Hान का बाध उसी कार
होता है िजस कार पु य से पाप का या औषिध से रोग का। &ैता&ैतवाद- रामानजु के समान
िन*बाक भी िचत,् अिचत् और ईर- इन तीन तjव1 को 7वीकार करते ह5। इनके मत म िचत् (जीव)
अिचत् (जगत)् से िभ(न होते हMये भी Hाता और Hान का आIय है, िजस कार सयू  काशमय है
और काश का आIय भी है, उसी कार िचत् भी एक ही काल म Hान7वKप भी है और Hान का
आIय भी है। QR जीव और जड़ य ु जगत् से एक साथ िभ(न और अिभ(न है। िजस कार मकड़ी
अपने म से जाला बनाने पर भी उससे 7वतं रहती है इसी ार QR भी अस;ं य जीव और जड़ म

उतराखड म
ु िविवालय ४२
भारतीय दश
न MASL-103
िवभ होता हMआ भी अपनी पणू त ा एवं श@ ु ता बनाए रखता है। इस कार िचत् का अव7थाभेद से
QR से िभ(न तथा चैत(यKप से अिभ(न होने के कारण इनका मत ‘&ैता&ैतवाद’ नाम से िस@ है।
िचत् जीव िन*बाक मत म जीव Hान7वKप, 7वयंकाश, HानाIय और अणK ु प है। वह िवभ,ु िनय
एवं कमफल का भो ा है। जीव दो कार के ह5 ब@ और म ु । अिचत-् अथात् चेतना िवहीन
पदाथ। अिचत् तjव तीन कार का होता है- ाकृ त, अाकृ त और काल। ईर -िन*बाक मत म ईर
सवशि मान, सवH, अिच(य, सविनय(ता, 7वत( अिमत ऐय से य ु है। यह अिवा आिद
पाँच Wलेश1 से म ु है। ईर जगत् का उपादान कारण भी है और िनिमS कारण भी है। ईर
िवकLयाण के िलये अवतार धारण करता है। इस कार जगत् QR से िभ(न भी है और अिभ(न
भी, 7वKपतः QR से इसका अभेद है और काय Kप से अभेद भी है। िजस कार दधू से दही का
पCरणाम होता है, उसी कार QR से जगत् का उसकA असाधारण शि से। जीवामा और
परमामा के बीच भेदाभेद स*ब(ध 7थािपत है। परमामा िनय आिवभतू Hान 7वKप है जबिक जीव
अनक ु रण है। परमामा िनलuप है, जीवामा भो ा है। जीवामा अनेक है तथा परमामा एक और
िवभु है। जीवामा परमामा का अशं है, जीव ही ब(ध मोc को ाD करता है परमामा नहN। ब(धन
और मोc अिवा या कम कA िनवृिS तथा आमा और QR का 7वKप Hान मोc है। िनEकाम
कम, जो Hान, I@ा, 3यान, और ईर समपण बिु @ से िकया जाता है मोc ािD म सहायक होते ह5।
िन*बाक के अनसु ार मोc ािD का साधन पिS (शरणागित) है। Hान, कम, भि , पिS तथा
गKु पिस(निध ये पाँच1 समि(वत Kप म सवwतम मोc के साधन ह5। उनके अनसु ार जीवनमिु नहN
होती, िवदेहमिु ही होती है।
िन*बाकाचाय Hानयोग, भि योग, कमयोग म ही सम(वय 7थािपत नहN करते, अिपतु भेदपरक तथा
अभेदपरक Iिु त वचन1 म तथा चेतन और अचेतन के &ैत को QRचय बताकर &ैतवादी और
अ&ैतवादी दशन1 म भी एक साथ सम(वय ला देते ह5। उनका भेदाभेदवाद नाम ही सम(वयामक
प@ित का ोतक है। िवरोधी बात1 म संगित और सामंज7य 7थािपत करना उनका म;ु य उेbय
तीत होता है।

03.7 शदावल

अिचत-् अथात् चेतना िवहीन पदाथ Hानश(ू य तथा िवकारा7पद जड़ तŸव।


अनुमान-JयािD पर िनभर Hान अनमु ान है।
अ&ाकृत- िजसका कृ ित से स*ब(ध न हो, उसे अाकृ त कहते ह5।
ई5र- सवषि मान, सवH, अिच(य, सविनय(ता, 7वत( अिमत ऐEवय से य ु है।
काल- ाकृ त और अाकृ त से िभ(न तjव को काल कहते ह5, यह िनय एवं िवभु है।
िचत-् चेतन जीव, Hानश(ू य 7वयंकाश, HानाIय और अणK ु प।

उतराखड म
ु िविवालय ४३
भारतीय दश
न MASL-103
&य*-इि(Zय और िवषय के सि(नकष से ज(य Hान यc है जो बाn और आ(तर दो कार का
होता है।
&ाकृत- अथात् कृ ित से उप(न। महत् से लेकर QRाड पय(त सभी पदाथ ाकृ त ह5।
सकाय
वाद- काय अपनी उपिS से पवू  अपने कारण म सत् Kप म िवमान रहता है। कारण के
सत् होने पर काय भी सत् होता है।
मोcािD के साधन- Hान, कम, भि , पिS तथा गK
ु पसि(निध ।
शरणागित- ईर कA शरण म जाना ही शरणागित तथा पिS है ।

3.8 बोध 
न/अयास के उतर
बोध h

1.क. (√ ) ख. ( Χ) ग. ( √ ) घ. ( √ ) ङ . ( Χ )
2.
(क) &ैता&ैतवाद
(ख) दो कार का बाn और आ(तर ।
(ग) िचत,् अिचत् और ईर।
(घ) Iिु त से
(ङ) गणु -गणु ी संबंध से

3. क. (√ ) ख. ( Χ) ग. ( √ ) घ. ( √ ) ङ . ( Χ )
4. (क) तैलंग QाRण
(ख) भेदाभेद
(ग) जीवामा को
(घ) अचेतन
(ङ) &ैता&ैत

उतराखड म
ु िविवालय ४४
भारतीय दश
न MASL-103
अgयास-
(1.) देख उपखड- 3.4.2
(2.) देख उपखड- 3.4.2
(3.) देख खड- 3.5.1
(4.) देख उपखड- 3.5.2
(5.) देख उपखड- 3.5.4

03.9 संदभ# $%थसच


ू ी

1.दासगDु ा एस0 एन0 (1989) भारतीय दशन का इितहास, भाग- 3 राज7थान


िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु ि&तीय सं7करण।
7दत एवं चटजm (1994 ) भारतीय दशन, प7ु तक भडार, पटना।
8. शमा च(Zधर (1998) भारतीय दशन आलोचना एवं अनश ु ीलन मोती लाल बनारसी दास,
िदLली ।
03.10 सहायक/उपयोगी पा)यसाम$ी
1.दासगDु ा एस0 एन0 (1989) भारतीय दशन कोश, राज7थान
िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु ि&तीय सं7करण.
2. शमा राममिु त (1998) अ&ैत वेदा(त, इितहास तथा िस@ा(त, ई7टन बक
ु िलंकस, िदLली।
3. ऋिष उमाशकं रशमा(1984) माधवाचायकृतसवदशनसVं ह,चौख*बा िवा भवन वाराणसी,
तृतीय सं7करण।

03.11 *नबंधामक 

4. &ैता&ैत दशन के आधार पर तŸवय का िव|े षण कर ।


5. &ैता&ैत दशन के Hान मीमांसा पर एक िनब(ध िलख।
6. ब(धन तथा मोc से Wया तापय है। िव7तार से िलख।

उतराखड म
ु िविवालय ४५
भारतीय दश
न MASL-103

 2-   

उतराखड म
ु िविवालय ४६
भारतीय दश
न MASL-103

1.   ह     ! 


इकाई क संरचना
1.1 तावना
1.2 उे

1.3. साBय दश5न का सिं ,C इितहास एवं तवमीमासं ा
1.3.1 साBय दश5न का संि,C इितहास
1.3.2 साBय दश5न क तवमीमांसा
1.3.2.1 सांBय वीकृ त तव1 क संBया
1.3.2.2 सांBय सDमत तव1 का व@प िसिE
1.3.2.3 सृि ि&या
1.3.2.4 सांBय का ई$र िवषयक िवचार
1.4 सारांश
1.5 पाGरभािषक श-दावली
1.6 अ3यास 01 के उ4र
1.7 स(दभ5 6(थ सचू ी
1.8 उपयोगी पाठ्य साम6ी
1.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ४७
भारतीय दश
न MASL-103

1.1 तावना
7ततु इकाई म सां;य दशन का सिं cD इितहास एवं तवमीमासं ा को रखा गया है।
इसम दो उपखड है। थम उपखड म सां;य दशन का संिcD इितहास विणत है। सां;य दशन के
वतक किपल ह5 उ(होने पिव सा;य का उपदेश अपने िशEय आसCु र को िदया, वही Hान पर*परा
पंचिशख वाषगय जैगीषJय आिद के मा3यम से ईर कृ Eण को िमली िजसको उ(होने सां;य
काCरका म बताया है। इसी खड म इसका सािहय भी विणत है।
इसके ि&तीय उपखड म इसकA तवमीमांसा विणत है । इसके अ(तगत तव1 कA सं;या,
तव1 का 7वKप, तव1 कA िसि@, सृि%ि या और ईर िवषयक सां;य कA मा(यता को िदखाया
गया है।

1 .2 उे

7ततु थम इकाई के अ3ययन के उपरा(त आप यह जानने म समथ हो सके ग -


1. सा;यदशन का संिcD इितहास िजसम सा;य कA आचाय पर*परा, सािहय,
2. तव1 कA सं;या व 7वKप, सृि% ि या
3. ईर िवषयक h आिद ।
1.3 सां.य दश#न सं/01त इ*तहास एवं तवमीमांसा:

इस खड के दो उपखड ह5 -
1. सा;ं य दशन का सिं cD इितहास
2. सां;य कA तवमीमांसा ।
1 .3.1 सां'य दश
न का सिं *T इितहास
सा;ं य दशन सवाचीन आि7तक दशन है। इसके वतक महिष किपल ह5 । सां;य का अथ है तव1
कA गणना व तव का Hान। सां;य का Jयु पिS परक अथ है सं'याय8ते गXय8ते तवािन येन तत्
सां'यम् अथात िजसमे तव1 कA सं;या िगनी जाती है वह सां;य है। सां;य का दसू रा Jयुपिjपरक
अथ है। सं;यायते कृ ितपK ु षा(यता;याितKपोऽवबोधो स*यक् Hायते येन तत् सं;यम् अथात
िजसमे कृ ित एवं पKु ष का अ(यता;याित Kप िववेक Hान होता है वह सां;य है। महाभारत के
अनसु ार तव1 कA गणना और तवHान दोन1 ही सा;ं य है।
सं'या &कुव
ते चैव, &कृित´च &च*ते ।
तवािन च चतुिवशत, तेन सां'यं &कWित
तम् ।।

उतराखड म
ु िविवालय ४८
भारतीय दश
न MASL-103
सा;ं य दशन म कृ ित पK
ु ष सृि% ि या, मोc, अHान, आिद का िवचार िमलता है। यह सय है
िक सां;य का सJु यवि7थत Kप बाद म बना िक(तु इसके बहMत से िस@ा(त1 कA चचा वेद उपिनषद,
महाभारत, IीमPगवTीता तथा परु ाण1 म िमलती है। ऋlवेद का पK ु ष स
ू सृि% कA आ3यािमक
Jया;या करता है तो वहN वाक् स ू शि से सृि% कA Jया;या करता है। नासदीय स ू के तम्
असीत तमसा गढू मVर् े के तं (ऋlवेद 10.129.3) म सां;य के अJय का संकेत िमलता है, यही से
सा;य के िवचार1 के र् 7फुिटत होने का संकेत डॉ0 आा साद िमI ने माना है।
उपिनषद1 म तो सां;य दशन म 7वीकृ त बहMत से तव1 का संकेत िमलता है। ेतातर उपिनषद म
सां;य के अJय आिद तव1 का वणन है जैसे - देवाम शिCं "वगुणGिनगूढाम,् पंचाशत् भेदां
पंचपवा
मधीमः, <यCा<यCं भरते िव5मीशः, ितलेषु तैलं दधनीव सिप
ः, अजामेकां लोिहत
शुRलकृ>णां, मायां &कृितं िवKा8माियनं तु महे5रम् । ेतातर म ही सवथम किपल ऋिष का
नाम आया है- ऋिषं &सूतं किपल"तम\े1। 521 कठोपिनषद्2 म भी सां;य के तव1 का संकेत
है।
सकायवाद का बीज वृहदारयक म िमलता है। इसके अितCर महाभारत म सां;य से स*बि(धत
आचाय पर*परा एवं िस@ा(त1 का वणन िमलता है। IीमPगवत् गीता म 7वयं भगवान Iीकृ Eण ने
अनेक 7थल1 पर सां;य योग कA चचा कA है। इसके अितCर सां;य के िस@ा(त भागवत,् सौर,
सयू , िलंग, िवEणु तथा देवी भागवत् परु ाण1 म भी िमलते ह5।
अब आप सां;य के ारि*भक बीज कहां -कहां 7फुिटत हMए और इस िवषय से पCरिचत
हो गये ह1गे। आगे सां;य कA आचाय पर*परा और सािहय पर काश डाला जायेगा।
यह सव 7वीकृ त है िक महिष किपल ही सां;य के वतक है। इ(हे …Rा का पु , अिlन का
अवतार, और नारायण का अवतार, बताया जाता है। भगवान Iीकृ Eण ने 7वयं अपने को िस@1 म
किपल मिु न कहा है- िस@ानां किपलो मिु नः इ(ह िस@ेश, िनमाणिचS का आIय लेकर पिव
सा;ं य का उपदेश करने वाला आिदिव&ान् कहा जाता है। डॉ सरु े शच(द Iीवा7तव के अनसु ार
िपशगं वf धारण करना कदािचत् किपल के नामकरण का भी एक कारण हो, Wय1िक किपल और
िपशगं शOद पयायवाची है। इ(होने िनमाणिचS का आIय लेकर आसCु र को पिव सां;य Hानामक
तं का उपदेश िकया। आज भी िव दाशिनक समदु ाय किपल के 7थािपत िस@ा(त1 के सामने
नतम7तक है। Wय1िक वे दशन के कई अगं ो यथा तवमीमांसा, Hानमीमांसा व नीित मीमांसा को
दशन का अिनवाय अगं मान। आज भी यही तीन1 अगं दशन के आधारभतू अवयव माने जाते ह5।
तवमीमांसा, Hानमीमांसा व नीितमीमांसा को सवथम 7ततु करके इ(होने दशन जगत का बहMत ही
उपकार िकया है। आचाय किपल के नाम से कई V(थ1 को कुछ लोग जोड़ते ह5 जैसे सां;यवचनसू
और तवसमास। सां;यवचनसू िकसी परवतm आचाय कA रचना है। तवसमास को कुछ िव&ान
किपल कA रचना मानते ह5 और कुछ इसे दसू रे आचाय कA रचना मानते ह5

उतराखड म
ु िविवालय ४९
भारतीय दश
न MASL-103
आचाय किपल के बाद उनके िशEय आसCु र का नाम सां;याचाय के Kप म िमलता है।
माठर वृिS के अनसु ार अय(त ही काKय भाव से बार-बार आVह करके गृह7थ धम म आस
आसCु र को किपल ने अपना िशEय बनाया और उ(हे पिव तं (सां;यशाf) का उपदेश िकया ।
आसCु र ने पंचिशख को अपना िशEय बनाया । इ(हे पांचरािवशारद कहा गया है। इ(होने
आसCु र से ाD सां;य को षि%त( म कािशत िकया और बहMत से िशEय1 को उसे पढ़ाया। पंचिशख
के &ारा िलखा गया षि%तं नामक V(थ आज नहN िमलता है िक(तु पंचिशख के िवचार परवतm
V(थ1 म िमलते है। उनम कुछ इस कार है - 1. "यात् "व]पः सङ्करः सप?रहारः स&यवJष

........ ( तव कौमुदी) 2. एकमेव दश


नं 'याितमेव दश
नJयोगसू0 ।
पच
ं िशख के अन(तर जैगीषJय का नाम िमलता है। जैगीषJय परम योगी थे इ(होने उमा और महेश को
भी योग का दशन कर आBय चिकत िकया था। इसके अितCर वाषगय, िव(3यवास
अिसतदेवल आिद को भी सां;याचाय के Kप म माना गया। वाषगय के बाद िस@ सां;याचाय के
Kप म ईरकृ Eण का ही उLलेख िमलता है इ(ह किपल के &ारा उपिद% मल
ू सा;ं यीय िवचार धारा
का अनयु ायी माना जाता है। इ(होने सां;यकाCरका नामक मख
ु V(थ िलखा िजसके ऊपर वतमान
सां;य दशन का 7वKप अवलि*बत है। 7वयं ईरकृ Eण ने कहा है मैन पिव सां;य का संकलन
आ;याियका आिद से रिहत सां;यकाCरका म िकया है । इसम कुल 72/73 काCरकाय ह5 ।
सा;ं यकाCरका को सा;ं यसDित, िहरयसDित, कनकसDित, सवु णसDित भी कहा जाता है।इसी V(थ
पर आधृत सां;य के 7वKप से हम पCरिचत ह5। शक ं राचाय ने सां;य का खडन करते समय
सा;ं यकाCरका से उ@रण िदये ह5। सा;ं यकाCरका पर अनेक टीकाएँ िलखी गयी ह5। माठरवृिS,
गौडपादभाEय, जयमगं ला, तवकौमदु ी यिु दीिपका आिद ाचीन टीकाएँ है। इस V(थ पर कुछ
नवीन टीकाएँ भी ह5 जैसे बालराम उदासीन कA िवदJ् Sतोिषणी, वशं ीधर िमI का सा;यतविदवाकर,
Iीकृ EणबLलभाचाय कA िकरणावली, िशवनारायणशाfी कA सारबोिधनी, हरीराम शWु ल कA सषु मा,
डॉ0 आासाद िमI कA सां य तव कौमदु ी भा ( िहदी म) आिद। इनके अितCर सां;यसू वृिS,
महादेव का सां;यसू िव7तर, नागेश कA लघसु ां;यसू वृिS, िवHानिभcु का सा;यवचनभाEय तथा
सां;यसारः इयािद V(थ भी सां;य से स*बि(धत V(थ है।
1.3.2 सां'य दश
न कW तवमीमांसा
आप सा;ं य दशन के अथ, आचाय पर*परा व सािहय आिद से भलीभाँित पCरिचत हो गये होग।
अब सां;य दशन कA तवमीमांसा पर िवचार िकया जायेगा। सां;य कA तवमीमांसा का वणन करने
के पहले तवमीमांसा का अथ जानना उिचत होगा।
तवमीमासं ा का अथ - दशन का मौिलक 7वKप तविवषयक है। दाशिनक मल ू तव कA सम7या
पर िवचार करते ह5। मौिलक तव कA स;ं या िकतनी है। एक है या अनेक है। मौिलक तव का 7वKप

उतराखड म
ु िविवालय ५०
भारतीय दश
न MASL-103
चेतन है अचेतन। मल ू तव के साथ एक और भी h जड़ु ा हMआ है। यिद तव मौिलक है। तो स*पणू 
सृि% उसी से हMई है। दसू रे शOद1 म सृि% मल
ू तव कA कृ ित है। अतः सृि% िवचार भी तवमीमांसा से
स*बि(धत है। मान िलया जाय िक सृि% काय है। तो इसका कता अवbय होगा। इस सृि%कता को
ायः ईर कहते है। अतः ईर िवचार भी तवमीमासं ा से स*बि(धत है। इस कार तव1 कA स;ं या,
7वKप, सृि% ि या और ईर िवचार ही तवमीमांसा है।
1.3.2.1 सां'य "वीकृत तव_ कW स'
ं या –
सा;ं य दशन म 7वीकृ त तव1 कA स;ं या का सक
ं े त करते हMए गौडपाद कहते है-
पंचिवंशिततवो य0 त0 आ मे वसन् ।
जटी मुXडी िशखी वािप मुFयते ना0 संशय:।।
अथात िजस िकसी भी आIम म िनवास करने वाला जटाधारी, िसर मड़ु ाय रहने वाला और िशखा
धारण करने वाला 25 तव1 के Hान से मोc ाD कर लेता है। इसम संदहे नहN है। इससे यह 7प%
होता है िक सां;य दशन 25 तव1 को 7वीकार करता है। ये तव ह5- कृ ित, महान, अहक ं ार 11
इि(Zयां, 5 त(मा, 5 महाभतू । इ(हN पFचीस तव1 को Jय अJय एवं H म ईकृ Eण ने अ(तभतू
िकया है, और इ(हN के तवHान से उप(न कै वLय को ििवध दःु ख शमन का आयंितक व
एकांितक उपाय बताया है1। अJय तव कृ ित है। और H तव पK ु ष है। इनपर मशः काश
डाला जा रहा ह5। इ(ही 25 तव1 को अिवकृ ित, कृ ित िवकृ ित, िवकृ ित, न कृ ित न िवकृ ित के चार
िवभाग म िदखाया गया है2।
कृ ित अिवकृ ित तव है यह एक है। कृ ित िवकृ ित और िवकृ ित ये कुल 23 तव ह5। और
ये कृ ित के पCरणाम िवशेष ह5। H तव पKु ष ह5। यह अनेक है। इनम 7वKपगत एकता एवं सं;यागत
िभ(नता है। चँिू क कृ ित और पKु ष के संयोग से 23 Jय तव उप(न होते ह5। अतः इन 23 तव1
के 7वKप का ितपादन सृि% ि या को बतलाते हMए िकया जायेगा। चँिू क Jय कृ ित के पCरणाम
ह5। अतः कृ ित और पK ु ष ही दो मल
ू तव ह5। इ(ही दो मल ू तव1 को 7वीकार करने के कारण
सां;य दशन को &ैतवादी दशन कहते है। दो मल ू तव1 कA सं;या 7वीकार करना ही &ैतवाद है।
सां;य के अनसु ार तव और उसके पCरणाम सभी यथाथ ह5। अतः यह यथाथवादी दशन है।
1.3.2.2 सां'य सJमत मूल तव_ का "वLप व िसि6-
चँिू क कृ ित और पK ु ष ये दो ही मल
ू तव ह5। अतएव इन के 7वKप व िसि@ पर िवचार करना
यिु सगं त होगा। सां;य स*मत कृ ित तव 7वKप व िसि@ - कृ ित का अथ है करोित इित
कृ ितः कृ % सजनामक शि ही कृ ित है। अJय , धान और माया इसके अपर पयाय है।
सम7त काय इसम अJय Kप से िवमान रहते है अतः इसे अJय कहते ह5। &कषaण धीयते

उतराखड म
ु िविवालय ५१
भारतीय दश
न MASL-103
अव"थाSयते अ0ािखलम् इित &धानम्1 अथात् स*पणू  काय समहू िजसम कृ % Kप से
अवि7थत हो जाता ह5। वह धान है। देवी भागवत2 के अनसु ार कृ ित म  शOद और कृ ित शOद
है। शOद का अथ है- कृ % और कृ ित का अथ है सृि% जो सृि% करने म मल
ू तव है। वही कृ ित
है। ,कृ , और ित सव, रजस एवं तमो गणु के बोधक ह5। अतः िगणु ािमका शि कृ ित है। वही
कृ ित है।  शOद थम का वाचक है कृ ित-सृि% का वाचक है अतः जो सृि% का आिद कारण है
वही कृ ित है।
कृ ित अ(य कारण से अनु प(न है अतः अकारण है। नर नहN होने से िनय है। काया◌े◌ं
म JयाD रहने से Jयापक है। एक है। आIय है Wय1िक काय इसी म आIय लेते है। अ(य कहN लीन न
होने से अिलंग है। िनरवयव है। 7वत( है। िगणु ािमका है। अिववेकA है। भोlय होने से िवषय है।
सवसाधारण होने से सामा(य है। सख ु -दःु ख एवं मोह को नही जानती है अतः अचेतन है। जड़ है।
िनयपCरणामी है। कृ ित म लयाव7था म गणु 1 म सKपCरणाम और सृि% कA बेला म िवKपपCरणाम
होते ह5। यह अय(त सoू म है। इसकA उपलिOध इसके काय^ से होती है। इसकA सSा सामा(यतोy%
अनमु ान से िस@ होती है। कृ ित ही पK ु ष का कै वLय स*प(न करती है। कृ ित उपकाCरणी है।
गणु वती है। िविभ(न आIय1 वाली कृ ित ही बँधती, संसरण करती एवं छूटती है। तीन1 गणु 1 कA
सा*याव7था ही कृ ित है। गणु का अथ है दसू रे के िलए होना, रtजु होना, गौड होना इन तीन1 ही
अथ^ म सव, रजस् तमस् गणु ह5। ये कृ ित के सरं चनामक तव है। कृ ित और गणु 1 म तZूपता है।
च(Zधर शमा के अनसु ार तीन1 गणु कृ ित के िनमाणक व संघटक तव ह5।
सवगुण –
सव गणु का 7वKप सख ु ामक है। इसका योजन िवषय1 को कािशत करना है। यह लघु है। इसका
रंग ेत है। इसके उकट होने पर सरलता सय पिवता cमा धैय अनक ु *पा लtजा शाि(त संतोष
और सFची I@ा उप(न होती है। अगं हLके होते ह5। इि(Zय1 म िनमलता होती है। वे िवषय1 को
कािशत करती ह5। धम म सदैव ीित होती है। रजोगुण – रजोगणु का 7वKप दख ु ामक है।
ि याशील रहते हMए दसू रे गणु 1 को उSेिजत करना इसका योजन है। इसका रंग लाल है। जब यह
बल होता है तो उकंठा अिनZा राजसी I@ा &ेष Zोह मसर 7त*भ मान मद गव उप(न होता है।
रजोगणु कA बलता से िचS अि7थर होता है।
तमोगण ु - तमोगणु का 7वKप मोहामक है। िनयमन करना इसका योजन है। वह भारी और
अवरोधक है। इसका रंग कृ Eण है। इससे िवषाद उप(न होता है। इसके बल होने पर आल7य अHान
िनZा दीनता भय िववाद कायरता कुिटलता रोष वैष*य अितनाि7तकता, दसू र1 के दोषमा देखने कA
वृिS, दसू र1 को पीिड़त करने कA वृिS होती है।
गणु 1 का Jयापार- गणु 1 का Jयापार िन*न वाWयांश म विणत है।

उतराखड म
ु िविवालय ५२
भारतीय दश
न MASL-103
अ8योऽ8यािभभवा यजननिमथुनवृ2यI
तीनो गणु पर7पर एक दसू रे को ितर7कृ त करने वाले हो कर ही अपने योजन को करते ह5 जैसे
सवगणु तमोगणु व रजोगणु को अिभभतू करके ही िवषय1 को कािशत करता है ऐसे ही रजोगणु
और तमोगणु भी अ(य दोनो गणु 1 को अिभभतू करके अपने योजन को परू ा करते है।
गणु एक दसू रे क आIय बनने वाले होते है। जब िवषयेां का काशन होता है तो वह तमोगणु और
रजो गणु पर अवलि*बत होता है ऐसे ही अ(य गणु ो कA ि या अ(य दसू रे पर अवलि*बत होती है।
तीन1 गणु एक दसू रे के पCरणाम सहकारी ह5। गणु पर7पर अपेcा रखते हMए लयाव7था मे कृ ित मे
सKपCरणाम (जनन) उप(न करते है। ये पर7पर िमथनु भाव से रहते है ये पर7पर सहयोगी है जैसे fी
पK
ु ष िमलकर अपने योजनो को परू ा करते ह5 ठीक वैसे ही गणु भी पर7पर सहायक होकर ही अपना
योजन परू ा करते ह5। जैसा िक कहा गया हे-
अ8यो8यिमथुनाः सवa सवa सव
0गािमनः।
रजसो िमथुनं सवं सव"य िमथुनं रजः।।
तमसIािप िमथुने ते सवरजसी उभे।
उभयोः सव रजसोिम
थुनं तम उFयते।।
नैषामािदः सJ&योगो िवयोगो वोपल$यते।।देवीभागवत्
गणु एक दसू रे कA वृिS को उप(न करते ह5 अ(यो(यवृिSः जनयि(त इित माठरः) जैसे कोई जैसे कोई
नय िवन‡ता िवास चतरु ा fी भातृ ब(धु व पित को सख ु ी करती है वही सौत1 मे दःु ख एवं मोह को
उप(न करती है। इस कार सव गणु के &ारा रजो गणु व तमो गणु कA वृिS उप(न कA जाती है, ऐसे
ही अ(य दोनो गणु भी अ(य दोन1 के Jयापार को उप(न करते है। भगवान Iी कृ Eण ने भी गीता मे
इसका संकेत िकया है- गणु ा गणु षे ु वत(ते।
सा;ं यकाCरका म कृ ित के अि7तव को िस@ करने के िलए पाच
ं हेतओ
ु ं को िदया गया है। जो िन*न
काCरका म ह5।
भेदानां प?रमाणात् सम8वयाFछिCतः &वृ2ेI।
कारणकाय
िवभागादिवभागाद् वै5LSय"य।।का0.15।।
भेदानां प?रमाणात-् महदआिद काय^ के सीिमत होने से अJय का अि7तव िस@ होता है।
इस ससं ार के पदाथ सीिमत परतं अJयापक और अनेक ह5। ये असीिमत 7वतं Jयापक और एक
कA ओर संकेत करते ह5। जैसे बिु @ अहक ं ार 11 इि(Zयां 5 त(मा 5 महाभतू सीिमत परतं
अJयापक और अनेक ह5 इनका जो कारण है वह असीिमत 7वतं Jयापक और एक होना चािहए

उतराखड म
ु िविवालय ५३
भारतीय दश
न MASL-103
वह कारण है अJय ।
सम8वयात् - ससं ार के सभी पदाथ सख ु ामक दख
ु ामक और मोहामक ह5 इन सभी काय^ के मल ू
कारण म भी इस िगणु ामक 7वभाव का होना आवbयक है। इनका मल ू कारण अJय है जो
िगणु ामक है। इस कार तीनो गणु 1 के 7वKप का सम(वय कृ ित म होने से उसका अि7तव िस@
है।
शिCतः &वृ2ेः - शि से वृS होने से अJय का अि7तव िस@ होता है। Jय आिद काय
शि के &ारा ही उप(न होते ह5। शि आIयहीना नहN होती है। उस शि का आIय अJय है।
लोक म िजस Jयि म जैसा काय करने कA शि होती है वैसे ही काय को करता है ठीक ऐसे ही
सृि% को उप(न करने कA शि के वल कृ ित म ही है। अतः उसका अि7तव िस@ है।
कारणकाय
िवभागात् - करोित इित कारणं ि यते इित काय\ तयोिवभागः त7मात् जो करता है वह
कारण है और जो िकया जाय वह काय कहा जाता है, चँिू क कारण अलग होता है और काय अलग
होता है इससे भी कृ ित का अि7तव िस@ होता है। जैसे िमYी का िपड कारण है और घट काय है
Wय1िक वही मधु जल दlु ध आिद Vहण करने मे समथ है न िक िमYी का िपड। इसी तरह से Jय
और अJय म भी भेद है ,Jय काय अलग ह5 और अJय धान Jय से िभ(न कारण है अतः
अJय का अि7तव िस@ है ।
वै5LSय"य अिवभागात् - िव5Lप"य भावो वै5LSयम् बहcLपम् इित अथ
ः त"य
िव5Lपता का भाव ही वैK~य है। वैK~य का अथ है बहMKपता उसके अिवभ Kप म
अ(तभतू होने के कारण धान का अि7तव िस@ है। लयकाल म ैलोWय 5 महाभतू 1 म अिभ(न
बन जाता है । 5 महाभतू 5 त(मााओ ं मे अिभ(न बन जाते ह5। पंच त(मा और 11 इि(Zयां अहक
ं ार
म , अहक
ं ार बिु @ म और वह अJय म अिवभ बन जाती ह5। इस कार तीनो लोक लयकाल म
कृ ित म अिवभ Kप से िवमान रहते ह5। सभी काय समहू के कृ % Kप से अवि7थत होने के
कारण अJय को धान कहते ह5। माठरवृिS कहती है- &कषaण धीयते अव"थाSयते
अ0ािखलिमित &धानम।् इस अिवभाग के कारण कृ ित का अि7तव िस@ होता है ।
सां'य सJमत पुLष का "वLप अि"तव व बहcव िसि6 - आप कृ ित के 7वKप गणु और
कृ ित कA िसि@ से पCरिचत हो चक
ु े ह5। अब सां;य स*मत पुKष तव का िववेचन िकया जायेगा ।
पK
ु ष H आमा पयाय है। पKु ष न तो कृ ित है न िवकृ ित है। यह िकसी अ(य कारण से उप(न नहN
होता है। अतः िवकृ ित अथात काय नहN है। और इससे अ(य कोई उप(न ही नहN होता है अतः यह
िकसी दसू रे का कारण भी नहN है। अतएव यह न तो कृ ित है न िवकृ ित। पKु ष काय एवं कारण से
अतीत है। पुKष िनगणु िववेकA भो ा असाधारण चेतन अपCरणामी है। पK ु ष अहेतुमत् िनय

उतराखड म
ु िविवालय ५४
भारतीय दश
न MASL-103
Jयापक िनिE य अनेक आIय अिलंग िनरवयव और 7वतं तव है। पK ु ष व7ततु ः साcी Z%ा
अकता और उदासीन है, जो पK ु ष का 7वKप धम है। संसारी अव7था म कृ ित से संय ु होने से यह
कता और भो ा सा तीत होता है। यह सत् िचत् है। व(धन अव7था म इसे सख ु और दःु ख का
अिभघात सहना पड़ता है। जब तक कै वLय नहN हो जाता है। तब तक उसे सख ु -दःु ख भोगना पड़ता
है। पK
ु ष अनपु कारी है। कृ ित के &ारा इसका कै वLय स*प(न होता है।
पK
ु ष सoू म तव है। इसकA िसि@ सामा(यतोy% अनमु ान से होती है। पK ु ष कA सSा िस@
करने के िलए ईरकृ Eण ने िन*न काCरका म पाच ं हेतओु ं को िदया है ।
सड्.घातपराथ
वात् ि0गण ु ािदिवषययादिधeानात।्
पुLषोऽि"त भोCृभावात,् कै व]याथ &वृतेI ।। का0.17।।
पKु षः अि7त अथात पK ु ष है, इसके अि7तव के साधक हेतु ह5-
सड्.घातपराथ
वात्
जो यह महदािद सघात पदाथ है वह पK ु ष के िलए है ऐसा अनमु ान िकया जाता है। Wयोिक संघात
पदाथ अचेतन है अतःवे पय\क् कA तरह दसू रे के िलए है और भी यह शरीर पच
ं महाभतू ो का सघं ात
है।यह भोlय शरीर िजसके िलए है वह पKु ष है।
ि0गुणािदिवपय
याद्
िगणु ,अिववेिक िवषय सामा(य अचेतन पCरणाम धम सावयव,परतं से िवपरीत धमw वाला होने से
पK
ु ष का अि7तव िस@ है। Jय तथा अJय दोनो ही मे ये सKप धम है-िगणु अिववेिक
िवषय,सामा(य पCरणाम समान धम है। िगणु िनगणु का अिववेकA, िववेकA का,और िवषय अिवषय
का ,सामा(य असामा(य का तथा चेतन अचेतन का पCरणाम अपCरणाम का िनदuश करता है। ये Jय
एवं अJय के िवपरीत धम िजसमे है वह तव पK
ु ष है।
अिधeानात-् संचालक होने के कारण भी पK ु ष का अि7तव है। Jय और अJय सभी
िगणु ामक होने से जड़ ह5। वे 7वयं अपना संचालन नही कर सकते है। उसके संचालक के Kप म
पK
ु ष कA सSा िस@ होती है। जैसे- संसार मे लंघन धावन ि या मे समथ अो से य ु रथ सारथी के
&ारा ेCरत होता है वैसे ही यह अचेतन शरीर भी पKु ष के &ारा ेCरत होता है। गीता भी कहती है।
............ fgेशेऽज
ुन ितeित।यही रह"य पंचिशख ने ि>त80 मे िनिद
 िकया है ।
पुLषािधिeतं &धानं &व
तते ।
4.भोCृभावात्
भो ा का भाव हो के कारण भी पK ु ष का अि7तव िसि@ होता है। Jय और अJय िवषय और
सामा(य है। भोlय होने के कारण िवषय है । मLू यदासी वत् होने के कारण सामा(य है। इन भोlय

उतराखड म
ु िविवालय ५५
भारतीय दश
न MASL-103
पदाथw को भो ा कA अपेcा होती है। वह भो ा पKु ष है जैसे षˆस समि(त Jयंजन भोlय है उसके
भो ा के Kप मे यHदS िक िसि@ होती है। ऐसे ही महदािद िलड्.ग 7वयं अपने भो ा नही है ये
भोlय है ।इनके भो ा के Kप मे आमा का अि7तव िस@ होता है।
कै व]याथ &वृ2ेI
कै वLय के िलए वृS होने से भी पK ु ष कA अलग सSा िस@ होती है। कै वLय का अथ है दःु ख का
आयि(तकशमन। यतः शाf कै वLय का ितपादन करते है और लोग इसे पाना चाहते ह5। अतः यह
िस@ होता है िक पK
ु ष है जो मिु चाहता है।
अ&ैत वेदा(त एकामवाद का िस@ा(त मानता है। िक(तु सा;ं य दशन बहMत से पKु ष1 कA सSा
7वीकार करता है। इसके अनुसार पK
ु ष1 म 7वKपगत एकता िक(तु सं;यागत बहMव है।पुKष बहMव
को िस@ करने के िलए सां;यकाCरका म पांच हेतु िदये गए ह5 -
जननमरणकरणानां &ितिनयमादयुगप&व2
ृ ेI
पL
ु ष बहcवं िस6ं 0ैगXु यिवपय
याFचैव ।। का0 18
पK
ु षबहMवं िस@म अथात् पK
ु ष बहMत से ह5 यह िस@ है। इसके िसि@ के हेतु ह5 -
जननमरणकरणानां &ितिनयमाद् –
ज(म मृयु तथा इि(Zय1 कA येक जीव के साथ अलग-अलग Jयव7था होने के कारण पK ु ष बहMत
ह5। यिद आमा एक होती तो एक ही जीव के ज(म से सभी जीव1 का ज(म हो जाता। लेिकन हम
देखते ह5 िक एक ही जीव के ज(म के साथ सभी जीव1 का ज(म नहN होता है। इससे यह िस@ होता है
िक आमा एक नहN अनेक है। इसी तरह से येक जीव कA मृयु भी अलग-अलग होती है। ऐसा
नहN है िक यिद एक कA मृयु हो जाय तो सभी मर जायँ। इससे भी िस@ होता है िक आमा एक नहN
अनेक है। इसी तरह से येक जीव के साथ Hानेि(Zय1 और कमuि(Zय1 के बीच अलग-अलग
Jयव7था देखने को िमलती है। यिद आमा एक ही होती तो एक जीव के अ(धे होने पर सभी जीव
अ(धे हो जाते। एक ही जीव के पगं ु होने पर सभी जीव पगं ु हो जाते। िक(तु ऐसा लोक म िदखाई नहN
पड़ता है। अतएव यह मानना यिु संगत है िक जीव एक नहN अनेक ह5। इस अश ं म पK
ु ष बहMव के
साधक तीन हेतु ज(म कA Jयव7था, मृयु कA अलग-अलग Jयव7था और इि(Zय1 कA अलग-अलग
Jयव7था को बताया गया है।
अयlु पद् वृSB
े - और सभी जीव1 के एक ही साथ सyश काय^ म वृS न होने से भी पK ु ष का
बहMव िस@ होता है। यिद आम तव एक होता तो सभी जीव1 कA ि याओ ं म साybय िदखाई
पड़ता, िक(तु हम देखते ह5 िक सभी जीव एक ही साथ एक ही काय म वृS नहN होते ह5 कुछ जीव

उतराखड म
ु िविवालय ५६
भारतीय दश
न MASL-103
धम म वृS होते ह5 तो कुछ अधम म। कुछ जीव वैराlय म वृS होते ह5 तो कुछ जीव आसि म
लगे होते ह5। कुछ जीव ऐय म वृS होते ह5 तो कुछ जीव अनैय कA ओर वृS होते ह5। इससे यह
िस@ होता है पK ु ष एक नहN है बिLक अनेक है।
ैगु यिवपययात् च तीन1 गणु 1 के पCरणाम सख
ु दःु ख मोह म िवपयय िदखाई पड़ने से पK
ु ष बहMत ह5।
यिद आमा एक हो तो सभी जीव1 को एक ही साथ सख ु ी एक ही साथ दखु ी अथवा एक ही साथ
मोहय ु होना चािहए, िक(तु हम देखते ह5 समान ज(म होने पर भी सािवक पK ु ष सुखी, राजसी दख
ु ी
तथा तामसी Jयि मोहय ु होता है। इस कारण यही मानना यिु संगत है िक आमा एक नहN
अनेक है।
1.3.2.3 सां'य सJमत सृि &ि:या
सा;ं य कA सृि% ि या पर िवचार करना अपेिcत है। सां;य कA सृि% ि या के अ(तगत कृ ित
पK
ु ष स*ब(ध व सृि% म पर िवचार िकया जायेगा।
&कृित पुLष सJब8ध – सां;य दशन &ैतवादी दशन है कृ ित एवं पK ु ष के स*ब(ध से कृ ित म
गणु cोभ होता है। और सKप पCरणाम वाली कृ ित िनKप पCरणाम वाली होकर Jय का सव
करती है। कृ ित िगणु ािमका अिववेकA िवषय सामा(य अचेतन और पCरणामी है। पK ु ष तव
िनगणु िववेकA भो ा असाधारण चेतन और अपCरणामी है। कृ ित अचेतन है। और ि याशील है।
पK
ु ष चेतन है। और िनिE य है। दोन1 म संयोग के कारण अचेतन कृ ित के िवकार महत आिद म
चैत(य भास होता है। और कृ ित म कतृव आिद कA तीित। कृ ित जो अचेतन है तथा पK ु ष जो
चेतन है। दोन1 का संयोग Wय1 होता है। इसपर सां;य काCरका म कहा गया है-
पुLष"य दश
नाथ कै व]याथ तथा &धान"य
पड्Qव8धवदुभयोरिप संयोग"तत् कृतः सग
।। का0-21
पKु ष &ारा धान को देखने के िलए और धान &ारा पK ु ष का कै वLय कराने के िलए लगं डे़ व अ(धे
कA तरह दोनो का संयोग होता है। उन दोनो के संयोग का फल सृि% है। पK ु ष का कृ ित के साथ जो
संयोग है वह कृ ित को देखने के िलए होता है। कृ ित महत् से महाभतू पय(त जो सृि% है उसे पK ु ष
देखता है। और कृ ित का पK ु ष के साथ जो संयोग है। वह पK ु ष का कै वLय स*प(न कराने के िलए
है। इन दोन1 का स*ब(ध पंगु और अँधे कA तरह से होता है। पK ु ष पंगु है और कृ ित अँधी है। जैसे
गमन करने म असमथ पगं ु एवं देखने म असमथ अँधा Jयि अपने लoय को ाDकर िवय ु हो
जाते ह5। वैसे ही ि या रिहत दशन शि वाले पK ु ष और ि यावती िक(तु दशन शि रिहत कृ ित
भी अपने अपने दशन और कै वLय Kप योजन को स*प(न करके िवय ु हो जाते है। कृ ित और
पK ु ष का स*ब(ध सयोजन है। सोेbय है। संयोग का अथ वाच7पित के अनसु ार कृ ित और पK ु ष

उतराखड म
ु िविवालय ५७
भारतीय दश
न MASL-103
कA सि(निध है। डॉ संगम लाल पाडेय के अनसु ार जब तक पK ु ष और कृ ित का िववेक नहN हो
जाता तब तक कै वLय कA ािD नहN हो सकती। िववेक ािD के िलए पK ु ष को कृ ित कA
आवbयकता है। पK ु ष और कृ ित कA आवbयकताओ ं म भोग1 म एकता है। पK ु ष िजस िववेक को
चाहता है। उसी को कृ ित भी चाहती है। इसी कारण दोन1 का सयं ोग होता है1। कृ ित और पK ु ष
दोन1 एक दसू रे का उेbय परू ा करते है। चेतनाश(ू य दधू बछड़े के पोषण के िलए गाय के शरीर से
Šिवत होता है, वैसे ही Hानश(ू य (अचेतन) कृ ित का पCरणाम पK ु ष के कै वLय के िलए है2
कृ ित और पKु ष का सयं ोग अनािद है। यह देश और काल म घिटत होने वाला नहN है। कृ ित और
पK
ु ष के स*ब(ध कA Jया;या करने के िलए यह उदाहरण भी िदया जाता है- जैसे च*ु बक के सि(निध
मा से ही लोहे के टुकड़1 म गितशीलता होती है। ठीक ऐसे ही पK ु ष कA सि(निध मा से ही कृ ित
िवKप पCरणाम वाली होती है।
1. भारतीय दश
न का सवa*ण पृe 231 2. सां'यका?रका 57
पK
ु ष का स*ब(ध िवशेष Kप से कृ ित के पCरणाम बिु @ से होता है। लेिकन इस स*ब(ध
का 7वKप 7प% करना किठन है। बिु @ करण1 म सoू म है। इसी म पK ु ष कA छाया पड़ती है। िजसके
कारण बिु @ चेतनावित हो जाती है। और वह पुKष 7वKपा हो जाती है। ऐसी बिु @ पK ु ष के िलए
भोग को उपनन करती है। बिु @ के &ारा ही पK ु ष सखु -दःु ख मोहामक संसार से भो ा या साcी के
Kप म जड़ु ता है। जो बिु @ कृ ित का भोग स*प(न करती है वही बिु @ अ(त म कृ ित और पK ु ष का
िवभेद Hान भी उप(न करती है1। ब@ ु और पK ु ष के स*ब(ध का िनKपण भी जिटल है पK ु ष और
िलंग शरीर का संयोग देश और काल म घिटत होने वाला नहN है िक(तु दोन1 म संयोग के अन(तर
अचेतन िलंग शरीर चेतन सा हो जाता है और िनिE य पK ु ष कता और भो ा सा हो जाता है।
सां;य दशन ने कृ ित और पK ु ष के संयोग कA संतोष जनक Jया;या नहN कA है। ऐसा िव&ान1 का
मत है। कृ ित और पK ु ष का संयोग सोेbय है। और इन दोन1 के संयोग का फल है सृि%। जब तक
कृ ित और पK ु ष का सयं ोग रहता है। तब तक सृि% कA ि7थित रहती है। दोन1 का िवयोग होने पर
लय कA ि7थित होती है।
सिृ :म - कृ ित एवं पKु ष के संयोग का फल है सृि% । गणु cोभ होने पर कृ ित म िवKप पCरणाम
होता है। तब कृ ित से महत्, उससे अहं कार, अहकं ार से 11 इि(Zयां और पांच त(मा , और पांच
त(मााओ ं से पाचं महाभतू उप(न होते ह5। चिू क ये 23 तव िनिBत म से ही उप(न है। अतः
उनपर उसी म से वणन िकया जायेगा।
महत् तव - यह कृ ित से उप(न होने वाला थम तव है। मित ;याित यय उपलिOध और Hा
पयाय है। यह िव का बीज है। समि% Kप म इसे महत् कहते है। Jयि% Kप म बिु @ । का इसका
7वKप अ3यवसाय है। सामने िदखलाई पड़ने वाला Jयि राम ही ह5। ऐसा िनBय अ3यवसाय है।

उतराखड म
ु िविवालय ५८
भारतीय दश
न MASL-103
अ3यवसाय करने वाला तव बिु @ है। बिु @ के सािवक और तामस दो Kप है। सािवक बिु @ के
चार अगं है- धम Hान िवराग और ऐय । तामस बिु @ के भी चार अगं ह5- अधम अHान राग और
अनैय इस कार बिु @ आठ अगं 1 वाली है। धम से उ3व लोक कA ािD होती है। अधम से
अधोगित होती है। Hान से अपवग होता है। और अHान से ब(धन होता है वैराlय से कृ ित लय कA
अव7था होती है। रजोमय राग से संसरण होता है। एय से इFदा कA सफलता तथा अनैय से
इFछाओ ं का हनन होता है। बिु @ पK
ु ष के िलए सभी िवषय1 के भोग का संपादन करती है। और वही
कृ ित और पK ु ा का Hान ही भेद स*प(न करती है। िवपयय अशि तिु % िसि@ ये यय सग ह5।
िवपयय के पांच भेद ह5। 28 भेद अशि के ह5। िु % के 9 भेद ह5 िसि@ के 8 भेद है। इस कार यय
सग के कुल 50 भेद है।
अहक ं ार तव:- महत् से उप(न होने वाला तव अहक ं ार है। अहक ं ार को अिभमान कहते ह5। Kप
आिद िवषय1 म अिभमान अहक ं ार है। जैसे म5 Kपवान ह‹ँ ये िवषय मेरे िलण् है म5 इसे करने म असमथ
ह‹ँ यह सब अिभमान है। और ये सब अहक ं ार के असाधारण धम है। अहक ं ार के तीन भेद है। 1.
सािवक अहक ं ार- इसे वैकृत अहकं ार कहते ह5। 2 तामस अहक ं ार- िजसे भतू ािद अहक ं ार कहते ह5।
1. सां'यका?रका 37
3. राजस अहक ं ार इसे तैजस भी कहते ह5। अहकं ार से दो तरह कA सृि% होती है। सािवक अहक ं ार
से 11 इि(Zय1 का समहू उप(न होता है। तथा तामस अहक ं ार से 5 त(मााएँ उप(न होती है।
सािवक और तामस अहक ं ार का सहयोगी राजस अहक ं ार है।
11 इि8;य तव - सािवक अहक ं ार से इि(Zयाँ उप(न होती है। इि(Zय का अथ माठर के अनसु ार
िवषय1 म Zिवत होने वाले तव1 से है। इि(Zयां तीन तरह कA ह5 - 1. Hानेि(Zया,
2.कमuि(Zयाँ और 3. उभयेि(Zय मन। Hानेि(Zया पांच है- Iो, वचा, ने, िजŒा, }ाण । Iो
शOदका, वचा 7पश का, ने Kप का, िजŒा रस का और }ाण ग(ध का आलोचन करती है। कम
इि(Zयाँ 5 है वाक्, पािण, पाद,् पायु उप7थ । इनका Jयपार मशः बोलना, Vहण करना, गमन
करना, िवसजन करना और रमण करना है। पांच1 Hानेि(Zयां एवं पांच कमuि(Zयां िमलकर दस
वाnेि(Zयां कही जाती है। इ(हे बाकरण भी कहते ह5। उभयेि(Zय मन है जो अ(तCरि(Zय है। यह
उgयामक है। इसका Jयापार सक ं Lप और िवकLप है। गीता म भगवान कृ Eण ने कहा है- इि(Zयाणां
मनBाि7म । महत् अहक ं ार और मन को अ(तः करण कहते है। Hानेि(Zय1 और अ(तः करण कA
Hान म बड़ी भिू मका है । अ(तःकरण ही म;ु य ह5 और Hानेि(Zयाँ अम;ु य ।
पच
ं त8मा0:- तामस अहक ं ार से 5 त(मा उप(न होते ह5। त(मा का अथ सoू म है। यह यc नहN
होते है। अनुमान के िवषय ह5। ये ह5 - शOद त(मा, 7पश त(मा, Kप त(मा, रस त(मा और ग(ध
त(मा । त(मा अिवशेष कहे जाते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ५९
भारतीय दश
न MASL-103
पंच महाभूत:- पंच त(मा1 से पांच महाभतू उप(न होते ह5। शOद त(मा से अकाश महाभतू
उप(न होता है। उसम शOद गणु होता है। शOदत(मासिहत 7पश त(मा से वायु उप(न होता है।
उसम शOद और 7पश गणु होते ह5। शOद7पशत(मासिहत Kप त(मा से अिlन उप(न होता है।
उसम शOद, 7पश और Kपगणु होते ह5। शOद7पशKपसिहत रस त(मा से जल उप(न होता है। उसम
शOद 7पश Kप और रस गणु होता है। शOद7पशKपरसत(मासिहत ग(ध त(मा से पृ_वी उप(न
होती है। इसम◌ ं े शOद 7पश Kप रस और ग(ध गणु होता है। ये महाभतू शा(त घोर मढू होते ह5। ये
िवशेष कहे जाते ह5। ये यc के िवषय ह5। महत से अहकं ार मन Iवण वक ने िजŒा और नािसका
वाक् पािण पाद पायु उप7थ शOद 7पश Kप रस ग(ध आकाश वायु अिlन जल पृ_वी ये सब Jय
पदाथ ह5। ये सभी Jय पदाथ कृ ित के समान भी ह5 और असमान भी ह5। कृ ित जैसे िगणु ािमका,
अिववेकA, िवषय, सामा(य अचेतन और िनयपCरणामी है वैसे ही ये Jय भी सख ु दःु ख मोहामक
अिववेकA िवषय सामा(य अचेतन और पCरणामी तव ह5। जहाँ कृ ित अहेतमु त िनय वेश और
िनःसरण रिहत आIय 7वत( िनरवयव और अिलगं एक है वहN ये Jय आिद हेतमु त अिनय
सि य परत( आिIत सावयव िलंग और अनेक ह5। इन Jय पदाथ^ म बिु @ अहक ं ार मन और
पाँच त(मााय कृ ित और िवकृ ित दोन1 ह5 जबिक एकादश इि(Zयाँ और पंचमहाभतू के वल काय ह5।
कृ ित अिवकृ ित तव है। पुKष न तो कृ ित है न तो िवकृ ित है। सां;य दशन के अनुसार इ(हN
पFचीस तव1 का खेल परू ी सृि% है।सृि% इ(ही तव1 का पCरणाम है। सां;य कA सृि%ि या
िवकासवादी चि य और सयोजन है यह िवकासवादी ि या 25 तव1 का खेल है जो खेल
कृ ित से ार*भ होकर महाभतू 1 तक समाD हो जाता है और पK ु ष इसम Z%ा है।
1.3.2.4 सां'य का ई5र िवषयक िवचार -
सा;ं य दशन के ईर कृ Eणीय 7वKप म ईर के िवषय म कुछ भी संकेत नहN िमलता है। ईर के
िवषय म ईरकृ Eण मौन ह5। किपलउपिद% सां;य ईर के अि7तव को 7वीकार करता था। िक(तु
बौ@1 के भाव से सां;य दशन िनरीर वादी हो गया ऐसा कुछ आचाय^ का मत है। परवतm
सां;याचाय िवHान िभcु ने ईर के अि7तव को माना है। सां;य ने कृ ित और पK
ु ष के संयोग म
ईर के भिू मका को नहN माना है। सां;य के समान त( योगदशन म ईर के अि7तव को 7वीकार
िकया गया है और वह पK ु ष िवशेष ही है।
अ$यास &.

1. सां;य दशन के वतक ह5 -


(a) ईरकृ Eण (b) आसCु र
(c) पंचिशख (d) किपल

उतराखड म
ु िविवालय ६०
भारतीय दश
न MASL-103
2. किपल ने तं का उपदेश िकया -
(a) ईरकृ Eण (b) आसCु र
(c) पंचिशख (d) किपल
3. किपल का नाम सवथम कहां िमलता है -
(a) कठोपिनषद् (b) ऋlवेद
(c) ेतातर उपिनषद् (d) महाभारत
4. सा;ं य का अथ है -
(a) तव1 कA गणना (b) िववेकHान
(b) उपय
ु दोन1 (d) इनम से कोई नहN
5. षि%तं रचना है-
(a) ईरकृ Eण कA (b) आसCु र कA
(c) पंचिशख कA (d) किपल कA
6. सां;यकाCरका िकसकA रचना है -
(a) ईरकृ Eण (b) आसCु र
(c) माठर (d) गौड़पाद
7. माठर वृिS टीका का है -
(a) तव समास पर (b) (यायसू कA
(c) िE%तं कA (d) सां;यकाCरका कA
8. तवमीमांसा का अथ है -
(a) Hान का िवचार (a) नीित का िवचार
(c) तव1 कA सं;या 7वKप आिद िवचार (d) इनम से कोई नहN

उतराखड म
ु िविवालय ६१
भारतीय दश
न MASL-103
9. सां;य कुल िकतने तव1 को 7वीकार करता है -
(a) 23 (b) 24
(c) 25 (d) 20
10. सां;य कुल िकतने मल
ू तव 7वीकार करता है -
(a) 1 (b) 2
(c) 3 (d) इनम से कोई नहN
11. गणु 1 कA सा*याव7था है -
(a) कृ ित (a) Jय
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN
12. अहेतमु त् तव ह5 -
(a) के वल कृ ित (b) के वल पK
ु ष
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN
13. चेतन तव है -
(a) पK
ु ष (b) कृ ित
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN
14. कृ ित म गणु cोभ होता है -
(a) काल से (a) ईर से
(c) पK
ु ष संयोग से (d) इनम से कोई नहN
15. सां;य पंगु अ(ध (याय से कृ ित पK
ु ष संयोग कA Jया;या करता है यह कथन है -
(a) सय (b) असय
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN

उतराखड म
ु िविवालय ६२
भारतीय दश
न MASL-103
16. कृ ित से साcात् उप(न तव है -
(a) Hानेि(Zयाँ (b) अहक
ं ार
(c) महत (d) इनम से कोई नहN
17. अहक
ं ार से उप(न होता है-
(a) 11 इि(Zयाँ (b) 5 त(मााएँ
(c) दोन1 (d) महाभतू
18. िनBय करने वाला तव है -
(a) बिु @ (b) मन
(c) अहक
ं ार (d) कोई नहN
19. पK
ु ष के िवषय म असय है -
(a) पK
ु ष1 म सं;यागत बहMव है। (b) पK
ु ष1 म 7वKपगत एकता है।
(c) पK
ु ष िगणु ामक है। (d) इनम से कोई नहN ।
20. आमा का बहMव मानता है -
(a) सां;य (b) अ&ैत वेदा(त
(c) दोन1 (c) इनम से कोई नहN
21. िन*न म महाभतू है-
(a) आकाश (b) Kप
(c) गधं (d) 7पश
22. िन*न म त(मा है -
(a) आकाश (b) पृ_वी
(c) वायु (d) Kप

उतराखड म
ु िविवालय ६३
भारतीय दश
न MASL-103
23. त(मा का अथ है -
(a) सoू म (b) 7थल

(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN
24. वाच7पित के अनसु ार संयोग का अथ सि(निध है यह कथन है -
(a) सय (b) असय
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN

1.4 सारांश -
दाशिनक िच(तन का ार*भ वेद1 म ही िमलता है। िक(तु उसे सJु यवि7थत Kप देकर सवथम
किपल ने ही सां;य शाf का उपदेश िदया। जा आसCु र पंचिशख जैगीषJय और वाषगय आिद के
&ारा िव7तार को ाD िकया । आज सां;य के िजस 7वKप से हम पCरिचत ह5। वह िच(तन ईरकृ Eण
कA सा;ं य काCरका पर आधाCरत है। सां;य म अपनी तवमीमासं ा म कृ ित और पK
ु ष इन दो मलू
तव1 को 7वीकार िकया है। कृ ित सिहत उसके पCरणाम महत आिद िमलकर 24 ह5। इस कार कुल
तव1 कA सं;या 25 है। कृ ित और पK ु ष म समान और असमान धम ह5। कृ ित कA िसि@ पाचं
हेतओ
ु ं से और पुKष कA अि7तव कA िसि@ व बहMव कA िसि@ पांच-पं◌ाच हेतओ ु ं से कA गई है।
कृ ित और पK ु ष के सयोजन संयोग से सृि% होती है। कृ ित से महत उससे 11 इि(Zया $ 5
त(मा, 5 तनमा1 से पाचं महाभतू उप(न होते है। उSरवतmसृि% इ(हीिवकार1काखेल है। सा;ं य
दशन पहले ईरवादी था िक(तु ईकृ Eणीय सां;य ईर के िवषय म मौन है।

1.5 पा4रभा5षक शदावल


तवमीमांसा- तव1 कA सं;या 7वKप सृि% ि या और ईर िवचार ही तवमीमांसा है।
&कृित- सृजनकाCरणी िगणु ािमका मल
ू शि ।
पुLष- िनगणु चेतन साcी Z%ा कै वLय उदासीन तव।
मो*- ब(धन से छुटकारा दःु ख1 का एकाि(तक व आयि(तक शमन कै वLय कA ािD।

1.6 अयास 
न के उतर
1. d 2. c 3.c 4.c 5.c 6.a

उतराखड म
ु िविवालय ६४
भारतीय दश
न MASL-103
7.d क 8.c 9.c 10.b 11.a 12.c
13.a 14.c 15.a 16.c 17.c 18.a
19.c 20.a 21.a 22.d 23.a 24.a

1.7. स%दभ# $%थ सच


ू ी-1
1. भारतीय दशन, आलोचन और अनश ु ीलन, लेखक- डा. च(Zधर शमा, काशक- मोतीलाल
बनारसीदास िदLली, पनु मZु ण- िदLली 1991
2 भारतीयदशन कA pपरे खा, लेखक- डा. बZीनाथ िसहं , काशक- आशा काशन
वाराणसी, सं7करण 2003
3. भारतीय दशन, लेखक- चटजm एवं दS, काशक- प7ु तक भडार पिOलिशगं हाऊसपटना,तृतीय
सं7करण 1994
4. भारतीय दशन का सवucण, लेखक- संगमलाल पाडेय, काशक- से(Žल पिटलिशगं हाऊस,
इलाहाबाद, चतथु  संशोिधत सं7करण 2002
5. भारतीय दशन (ि&तीय खड), लेखक- डा. राधाकृ Eणन्, काशक- राजपाल एड स(स, िदLली,
सं7करण 1986
6. देवीभागवतपरु ाण मल
ू स7ं कृ त गीता ेस गोरखपरु
7. योगदशनम Jया;याकार डा0 सरु े शच(द Iीवा7तव चौख*भा स7ं कृ त भवन वाराणसी

1.8. सहायक उपयोगी पा)य साम$ी


7ततु इकाई के अ3ययन के िलए आप अVिलिखत प7ु तक1 का उपयोग कर सकते है-
1. सा'यतवकौमुदी&भा- ईरकृ Eण कृ त सां;यकाCरका तथा वाच7पित िमI कृ त तवकौमदु ी
कA िह(दी Jया;या- Jया;याकार- डा. आा साद िमI, काशक- अcयवट काशन इलाहाबाद,
मZु क- शभु िच(तक ेस इलाहाबाद, काशन वष 1994
2. भारतीय दश
न, आलोचन और अनश ु ीलन, लेखक- डा. च(Zधर शमा, काशक- मोतीलाल
बनारसीदास िदLली, पनु मZु ण- िदLली 1991
3. भारतीय दश
न कW hपरेखा, लेखक- डा. बZीनाथ िसंह, काशक- आशा काशन
वाराणसी, सं7करण 2003

उतराखड म
ु िविवालय ६५
भारतीय दश
न MASL-103
4. भारतीय दश
न, लेखक- चटजm एवं दS, काशक- प7ु तक भडार पिOलिशंग हाऊस
पटना, तृतीय सं7करण 1994
5. भारतीय दश
न का सवa*ण, लेखक- संगमलाल पाडेय, काशक- से(Žल पिटलिशगं
हाऊस, इलाहाबाद, चतथु  संशोिधत सं7करण 2002
6. भारतीय दश
न (ितीय खXड), लेखक- डा. राधाकृ Eणन्, काशक- राजपाल एड स(स,
िदLली, सं7करण 1986

1.9 *नब%धामक 

h 1- कृ ित का 7वKप अि7तव िसि@ पर काश डािलए ?
h 2- पK
ु ष का 7वKप व अि7तव िसि@ पर काश डािलये ?
h3- कृ ित पK
ु ष स*ब(ध और सृि% ि या समझाइए ?

उतराखड म
ु िविवालय ६६
भारतीय दश
न MASL-103

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इकाई क सरं चना
2.1 तावना
2.2 उे

2.3. साBं य योग के ितपाH-दःु खAय का व@प, सकाय5वाद
प@
ु ष बहLव , कृ ित प@
ु ष सDब(ध, मो, का व@प
2.3.1 दःु खAय का व@प
2.3.2 सकाय5वाद
2.3.3. प@ु ष बहLव
2.3.4 कृ ित प@ु ष सDब(ध
2.3.5 मो, का व@प
2.4 सारांश
2.5 पाGरभािषक श-दावली
2.6 अ3यास 01 के उ4र
2.7 स(दभ5 6(थ सचू ी
2.8 सहायक उपयोगी पाठ्य साम6ी
2.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ६७
भारतीय दश
न MASL-103

2.1 तावना
7ततु इकाई म सा;ं य दशन के ितपा दःु खय का 7वKप, सकायवाद, पK ु ष बहMव कृ ित
पKु ष स*ब(ध और मोझ का 7वKप ितपािदत िकया गया है। दःु ख रजोगणु का पCरणाम िवशेष है।
सख ु भी व7ततु ः दःु ख ही है। दःु ख के आ3यािमक आिधभौितक तथा आिधदैिवक तीन भेद ह5।
इनका 7वKप अलग-अलग है, सां;य का कारण िवषयक िस@ा(त सकायवाद है। सां;य सत् से
सत् कA उपिS मानता है। सकायवाद को िस@ करने के िलए तक भी देता है। चेतन तव पK ु ष है।
वह एक नहN अनेक है। इसे िस@ करने के िलए भी यिु याँ देता है। कृ ित और पK ु ष पर7पर िभ(न
तव ह5। इ(हN दो तव1 के संयोग से सृि% होती है। कृ ित और पK ु ष दोन1 िभ(न धमामक ह5 तो इन
दोन1 का स*ब(ध अथात् संयोग कै से होता है, Wय1 होता है इस संयोग का Wया आशय है ? इसे भी
इस इकाई म बताया गया है। कृ ित और पK ु ष के सयं ोग से ही सृि% भी होती है। लेिकन इस इकाई म
कृ ित पK
ु ष संयोग से होने वाली सृि% का वणन नहN िकया गया है। यतः थम इकाई म यह बताया
गया है िक तव1 का 7वKप तव1 कA सं;या सृि% ि या और ईर ये सब तवमीमांसा के िवषय
ह5। अतः इस इकाई म कृ ित और पK ु ष के स*ब(ध का ही िवचार िकया गया है। सां;य दशन का
योजन मोc है। मोc दःु ख कA आयंितक और एकांितक िनवृिS है। अतः इसका 7वKप मोc म
कृ ित कA भिू मका जीवन मिु और िवदेह मिु दोन1 पर काश डाला गया है।

2.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन करने के उपरा(त आप िन*न त_य1 से अवगत हो सक गे-
• सा;ं य कA दःु ख िवषयक अवधारणा व दःु ख का भेद,
• सां;य का कारणता िवषयक िस@ा(त का 7वKप व िसि@ के हेत,ु
• पK ु ष का बहMव साधक हेतु,
• कृ ित और पK ु ष का सयोजन स*ब(ध,
• सा;ं य स*मत मोc का 7वKप आिद।
2.3 दःु ख:य का व;प, सकाय#वाद पु;ष बहुव ,कृ*त
पु;ष स<ब%ध, मो0 का व;प

आि7तक वैिदक दशन1 म सा;ं य सबसे ाचीन है। इसम दःु ख का 7वKप, तव1 कA स;ं या,
7वKप, Hान मीमांसा कारणता िवषयक िस@ा(त सृि% ि या, ब(धन व मोc का ितपादन है इस
इकाई के िविभ(न ितपा1 को खड िवभाग पवू क आगे विणत िकया जायेगा।

उतराखड म
ु िविवालय ६८
भारतीय दश
न MASL-103
2.3.1 दुख0य का "वLप
सा;य दशन के अनसु ार स*पणू  सांसाCरक जीवन दःु खमय है। हम िविभ(न कार के दःु ख भोगते
रहते ह5। लेिकन दःु ख Wया है ? दःु ख का Jयु पिSपरक अथ है- दःु खयित इित दःु खम।् पतजं िल ने
कहा है ितकूल वेदनीयता ही दःु ख है। जो अपने िलए अीितकर हो वही दःु ख है। (याय के अनसु ार
तो ‘बाधना लcणम् दःु खं’ अथात पCरताप ही दःु ख है। दःु ख सख ु का अभाव नही है बिLक यह
वा7तिवक Kप से अनभु यू मान है इसके ित िवक षण कA भावना येक Jयि के मन मे रहती है।
दःु ख रजोगणु का पCरणाम िवशेष है। दःु ख तो अीितकर है ही व7ततु ः अनुभयू मान सुख भी पCरणाम
स7ं कार और ताप दःु खता के कारण दःु ख ही है। सव\ दःु खं िववेिकनः। दःु ख के भेद का उLलेख ईर
कृ Eण ने सां;य काCरका के थम काCरकांश म ही सां;य शाf कA अथवSा का ितपादन करते हMए
संकेत िकया है।
दुखः0यािभधाताि@जासा तदपधातके हेतौ अथात् दःु ख ििवध ह5 और उनका अिभघात जीव
मा को होता है। अतएव उन तीन1 दःु ख1 के आयि(तक व एकाि(तक समाधान के साधन कA
िजHासा होती है। ये तीन दःु ख ह5- 1. आ3यािमक, 2. आिधभौितक, 3. आिधदैिवक।
1. आEयािमक दुख- वह दःु ख है जो शरीर और मन म होता है और आ(तCरक उपाय सा3य होता
है। इस दःु ख के दो भेद ह5- 1. शारीCरक व 2. मानिसक। वात, िपS और कफ के वैष*य से उप(न
tवर अितसार आिद शारीCरक दःु ख है। िय व7तु के िवयोग एवं अिय के सयं ोग से उप(न होने
वाले दःु ख को मानिसक कहते ह5। Jयािध शारीCरक दःु ख है और आिध मानिसक दःु ख है।
2. आिधभौितक दुःख- वह दःु ख जो मनEु य पश,ु पcी, सरीसृप, दश
ं , मFछर, जँ,ू खटमल, मछली,
मकर, Vाह और 7थावर से उप(न होता है। यह दः◌ुख जरायजु , अडज, 7वदेज और उिPtज इन
चतिु वध सृि% से उप(न होता है।
3. आिधदैिवक दुःख- वह दःु ख है जो दैव (देवताओ ं अथवा ल ु ोक ) के कारण होता है। ये है
शीत, वषा, बपातािद । तवकौमदु ी के अनसु ार- यc राcस िवनायक Vह आिद के &ारा उप(न
दःु ख आिधदैिवक दःु ख है ।
सा;ं य दशन के वल दःु ख1 को ही नहN बताता है चँिू क दःु ख हेय ह5 अतः उनके हाण के िलए
लौिकक व वैिदक दोन1 ही उपाय1 कA दःु ख1 के ऐकाि(तक व आयि(तक शमन म असमथता िस@
करके कै वLय का ितपादन करता है।
2.3.2 सकाय
वाद
कारणता िस@ा(त सव लागू होता है। इसम कारण काय का 7वKप व स*ब(ध पर िवचार
िकया जाता है। कारणता िस@ा(त मानता है काय उSरवतm होता है और काय का 7वKप अलग
उतराखड म
ु िविवालय ६९
भारतीय दश
न MASL-103
होता है। दोन1 से अलग-अलग तरह के योजन िस@ होते ह5। उपिS के पहले कारण और काय म
Wया स*ब(ध है इससे स*बि(धत तीन h उठते ह5। Wया काय उपिS के पहले कारण म सत् है ? Wया
असत् है ? Wया सत् और असत् दोन1 है ? इन h1 के समाधानाथ भारतीय दशन मे कई िस@ा(त
िमलते ह5। जो मानते है िक काय उपिS के पहले कारण मे सत् है वे सकायवादी कहे जाते ह5। जो
यह मानते ह5 िक काय उपिS के पहले काय म असत् है उ(ह असकायवादी कहते ह5 और जो यह
मानते ह5 िक काय कारण म सत् और असत् दोन1 होता है उ(ह सदसकायवादी कहा जाता है।
सकायवाद को सा;ं ययोग और वेदा(त 7वीकार करते ह5। जो दशन काय को उपिS के पहले कारण
म असत् मानते ह5। वे असकायवादी ह5। (याय व वैशिे षक दशन असत् कायवाद मानते ह5।
(यायवैशिे षक दशन असकायवाद के आर*भवादी 7वKप को मानता है। इनके अनसु ार कारण से
अलग काय स*प(न होता है और काय से अलग योजन परू े होते ह5 तथा उपिS और Jयय काय म
िदखाई पड़ता है। काय एक नवीन सृि% है। बौ@ दशन cणभंगवाद को मानता है। जैन दशन
सदसकायवादी है। जैन दशन 7या&ाद से सदसत् कायवाद को िस@ करता है।
सां'य सJमत सकाय
वाद का "वLप-
सा;ं य दशन के अनुसार जैसे काय उपिS के बाद सत् होता है ठीक वैसे ही यह उपिS के
पहले भी काय कारण म सत् होता है। यह मानता है िक सत् से ही सत् उप(न होता है। कारण िक
काय के Kप म पCरणित है। न िक नवीन सृि%। जैसे- दधू कारण है और दही काय है। दही दधू का
पCरणाम है। Jय आिद काय ह5 और कृ ित कारण है। काय कारण से तािवक Kप से िभ(न नहN है
बिLक वह कारण कA ही पCरणित है। इसी से कारण के ही गणु वाले काय होते ह5। यिद काय कारण म
पहले से ही मौजदू है ? तो कारणाव7था और काय म Wया अ(तर है ? कारण म िवमान काय
अनिभJय होता है और पCरणित के बाद Jय हो जाता है। इस कार वह िस@ा(त जो उपिS के
पहले कारण म काय को सत् मानता है वह सत् कायवाद कहलाता है। सकायवाद का योजन
कृ ित के अि7तव कA िसि@ है। इसके दो Kप ह5- 1.पCरणामवाद, 2. िववतवाद । सा;ं य कृ ित
पCरणामवाद को मानता है। और िविश%ा&ैत दशन …R पCरणामवाद को मानता है ।
सा;ं यकाCरका सकायवाद कA िसि@ के िलए 5 हेतओ ु ं को उप(य7त करती है-
असदकरणादुपादान\हणात् सव
सJभवाभावात् ।
शC"य शRयकरणात् कारणभावाFच सकाय
म् ।। का09
काय\ सत् - उपिS के पहले काय कारण मे िवमान रहता है ।
असदकरणात-् अथात् जो व7तु अनि7तव वाला होता है उसे िकसी भी कारण से उप(न नही िकया
जा सकता है। जैसे आकाश पEु प असत् है उसे िकसी कारण से नही उप(न िकया जा सकता है
और करोड़ो िशLपी िमलकर नीले रंग को पीला नही वना सकते है।अतः जैसे उपिS के बाद काय
सत् होता है ठीक वैसे ही उपिS के पवू  भी काय कारण म सत् होता है।

उतराखड म
ु िविवालय ७०
भारतीय दश
न MASL-103
उपादान\हणात्- यतः काय कA उपिS के िलए स*बि(धत उपादान का Vहण िकया जाता है। यह
लोक िस@ है िक जो Jयि िजस काय को चाहता है वह उससे सं*बि(धत उपादान कारण का Vहण
करता है,जैसे दही को ाD करने के िलए दधू को ही Vहण करता है। इससे िस@ है िक काय उपिS
के पहले कारण मे सत् है।
सव
सJभवाभावात-् यतः सभी काया\◌े कA सभी कारणो से उपिS नही होती है अतः यह भी िस@
करता है िक काय कारण म उपिS के पहले से ही मौजदू रहता है। जैस-े सवु ण कA रजत्
,तृण,धल
ू ,और बालू से उपिS नही होती है।
शC"य शRयकरणात-् यतः जो कारण िजस काय कA उपिS मे श अथात समथ होता है उससे
उसी शWय काय कA उपिS होती है।अतः िस@ होता है िक काय कारण मे सत् है, जैसे शWय
तेल,घट,पट, को उप(न करने म मशः ितल ,मृिSका और त(तु ही समथ ह5।
कारणभावाFच-यतः काय कारणामक होता है जो लcण कारण का होता है वही लcण काय का
भी होता है। यह िस@ करता है िक काय कारण मे पहले से िवमान है जैसे जौ से जौ ही उप(न
होता है,धान से धान ही उप(न होता है,गेह‹ँ से गेह‹ँ उप(न होता है।
2.3.3 पुLष बहcव
थम इकाई म पK ु ष के 7वKप उसके अि7तव कA िसि@ और बहMव का ितपादन िकया गया है
वहN से इस पKु ष के बहMव को िस@ करने के हेतओ ु ं को यहाँ िदखाया जा रहा है। पKु ष अकारण
िनय Jयापक, िनिE य, आIय, अिलंग, िनरवयव, 7वत(, िनगणु , िववेकA, अिवषय, असामा(य,
चेतन, अपCरणामी तव है। वह न तो कृ ित है न िवकृ ित है। िविभ(न दशन1 म पK ु ष के स;ं या
िवषयक िवचार अलग-अलग िमलते ह5। अ&ैत वेदा(त दशन आमा को अ&य मानता है। िक(तु
सां;य दशन पKु षकA सSा एक नहN अनेक मानता है। सभी पK ु ष तािवक Kप ससमानह5।िक(तउु नम
स;ं यागत भेद है। पK
ु ष बहMत ह5 यह िस@ा(त पK ु ष बहMव िस@ा(त है। पK
ु ष बहMव को िस@ करने
के िलए ईर कृ Eण ने सां;य काCरका म हेतओ
ु ं को िदया है-
जननमरणकरणानां &ितिनयमादयुगप&वृ2ेI
पुLष बहcवं िस6ं 0ैगुXयिवपय
याFचैव ।। का0 18
पK
ु ष बहMत ह5 इसके िन*न पाँच हेतु ह5-
जननमरणकरणानां &ितिनयमाद्
ज(म मृयु तथा इि(Zय1 कA येक जीव के साथ अलग-अलग Jयव7था होने के कारण पK
ु ष बहMत
ह5। यिद आमा एक होती तो एक ही जीव के ज(म से सभी जीव1 का ज(म हो जाता। लेिकन हम

उतराखड म
ु िविवालय ७१
भारतीय दश
न MASL-103
देखते ह5 िक एक ही जीव के ज(म के साथ सभी जीव1 का ज(म नहN होता है। इससे यह िस@ होता है
िक आमा एक नहN अनेक है। इसी तरह से येक जीव कA मृयु भी अलग-अलग होती है। ऐसा
नहN है िक यिद एक कA मृयु हो जाय तो सभी मर जायँ। इससे भी िस@ होता है िक आमा एक नहN
अनेक है। इसी तरह से येक जीव के साथ Hानेि(Zयाँ और कमuि(Zयाँ के बीच अलग-अलग
Jयव7था देखने को िमलती है। यिद आमा एक ही होती तो एक जीव के अ(धे होने पर सभी जीव
अ(धे हो जाते। एक ही जीव के पंगु होने पर सभी जीव पंगु हो जाते। िक(तु ऐसा लोक म िदखाई नहN
पड़ता है। अतएव यह मानना यिु सगं त है िक जीव एक नहN अनेक ह5। इस अश ं म पK
ु ष बहMव के
साधक तीन हेतु ज(म कA Jयव7था, मृयु कA अलग-अलग Jयव7था और इि(Zय1 कA अलग-अलग
Jयव7था को बताया गया है।
अयुQपद्&वृ2ेI
और सभी जीव1 के एक ही साथ सyश काय^ म वृS न होने से भी पK ु ष का बहMव िस@ होता है।
यिद आम तव एक होता तो सभी जीव1 कA ि याओ ं म साybय िदखाई पड़ता, िक(तु हम देखते ह5
िक सभी जीव एक ही साथ एक ही काय म वृS नहN होते ह5 कुछ जीव धम मवृS होते ह5 तो कुछ
अधम म। कुछ जीव वैराlय म वृS होते ह5 तो कुछ जीव आसि म लगे होते ह5। कुछ जीव ऐय म
वृS होते ह5 तो कुछ जीव अनैय कA ओर वृS होते ह5। इससे यह िस@ होता है पK ु ष एक नहN है
बिLक अनेक है।
0ैगXु यिवपय
यात् च
तीन1 गणु 1 के पCरणाम सख
ु दःु ख मोह म िवपयय िदखाई पड़ने से पKु ष बहMत ह5। यिद आमा एक हो
तो सभी जीव1 को एक ही साथ सख ु ी एक ही साथ दख ु ी अथवा एक ही साथ मोहय ु होना चािहए,
िक(तु हम देखते ह5 समान ज(म होने पर भी सािवक पK ु ष सख
ु ी, राजसी दखु ी तथा तामसी Jयि
मोहय ु होता। इस कारण यही मानना यिु संगत है िक आमा एक नहN अनेक है।इस कार यह
िस@ है पKु ष बहMत ह5।
2.3.4. &कृित पुLष सJब8ध
सा;ं य दशन &ैतवादी दशन है कृ ित एवं पK
ु ष के स*ब(ध से कृ ित म गणु cोभ होता है।
और सKप पCरणाम वाली कृ ित िवKप पCरणाम वाली होकर Jय का सव करती है। कृ ित
िगणु ािमका अिववेकA िवषय सामा(य अचेतन और पCरणामी है। पK ु ष तव िनगणु िववेकA भो ा
असाधारण चेतन और अपCरणामी है। कृ ित अचेतन और ि याशील है। पK ु ष चेतन और िनिE य
है। दोन1 म संयोग के कारण अचेतन कृ ित के िवकार महत् आिद म चैत(य भास होता है और पK ु ष
म कतृव आिद कA तीित। कृ ित जो अचेतन है तथा पK ु ष जो चेतन है। दोन1 का संयोग Wय1 होता
है। इसपर सा;ं य काCरका म कहा गया है-

उतराखड म
ु िविवालय ७२
भारतीय दश
न MASL-103
पुLष"य दश
नाथ कै व]याथ तथा &धान"य
पड्Qव8धवदुभयोरिप सयं ोग"तत् कृतः सग
। । का0-21
पK
ु ष &ारा धान को देखने के िलए और धान &ारा पK ु ष का कै वLय स*प(न कराने के
िलए लगं डे़ व अ(धे कA तरह दोनो का सयं ोग होता है। उन दोनो के सयं ोग का फल सृि% है। पK ु ष का
कृ ित के साथ जो संयोग है वह कृ ित को देखने के िलए होता है। कृ ित महत् से महाभतू पय(त जो
सृि% है उसे पK ु ष देखता है। और कृ ित का पुKष के साथ जो संयोग है। वह पK ु ष का कै वLय
स*प(न कराने के िलए है। इन दोन1 का स*ब(ध पगं ु और अँधे कA तरह से होता है। पK ु ष पगं ु है और
कृ ित अँधी है। जैसे गमन करने म असमथ पंगु एवं देखने म असमथ अँधा Jयि अपने लoय को
ाDकर िवय ु हो जाते ह5। वैसे ही ि या रिहत दशन शि वाले पK ु ष और ि यावती िक(तु दशन
शि रिहत कृ ित भी अपने अपने दशन और कै वLय Kप योजन को स*प(न करके िवय ु हो
जाते है। कृ ित और पK ु ष का स*ब(ध सयोजन है। सोेbय है। संयोग का अथ वाच7पित के
अनसु ार कृ ित और पK ु ष कA सि(निध है। डॉ सगं म लाल पाडेय के अनसु ार जब तक पK ु ष और
कृ ित का िववेक नहN हो जाता तब तक कै वLय कA ािD नहN हो सकती। िववेक ािD के िलए
पKु ष को कृ ित कA आवbयकता है। पK ु ष और कृ ित कA आवbयकताओ ं म भोग1 म एकता है।
पK ु ष िजस िववेक को चाहता है। उसी को कृ ित भी चाहती है। इसी कारण दोन1 का संयोग होता
है1। कृ ित और पK ु ष दोन1 एक दसू रे का उेbय परू ा करते है। चेतनाश(ू य
1. भारतीय दशन का सवucण पृ0 231
दधू बछड़े के पोषण के िलए गाय के शरीर से Šिवत होता है, वैसे ही Hानश(ू य ( अचेतन) कृ ित
का पCरणाम पK ु ष के कै वLय के िलए है1। कृ ित और पK ु ष का संयोग अनािद है। यह देश और
काल म घिटत होने वाला नहN है। कृ ित और पK ु ष के स*ब(ध कA Jया;या करने के िलए यह
उदाहरण भी िदया जाता है- जैसे च*ु बक के सि(निध मा से ही लोहे के टुकड़1 म गितशीलता होती
है। ठीक ऐसे ही पK
ु ष कA सि(निध मा से ही कृ ित िवKप पCरणाम वाली होती है।
पK
ु ष का स*ब(ध िवशेष Kप से कृ ित के पCरणाम बिु @ से होता है। लेिकन इस स*ब(ध
का 7वKप 7प% करना किठन है। बिु @ करण1 म सoू म है। इसी म पK ु ष कA छाया पड़ती है। िजसके
कारण बिु @ चेतनावित हो जाती है। और वह पुKष 7वKपा हो जाती है। ऐसी बिु @ पK ु ष के िलए
भोग को उपनन करती है। बिु @ के &ारा ही पK ु ष सखु -दःु ख मोहामक ससं ार से भो ा या साcी के
Kप म जड़ु ता है। जो बिु @ कृ ित का भोग स*प(न करती है वही बिु @ अ(त म कृ ित और पK ु ष का
िवभेद Hान भी उप(न करती है2। ब@ ु और पK ु ष के स*ब(ध का िनKपण भी जिटल है पुKष और
िलंग शरीर का संयोग देश और काल म घिटत होने वाला नहN है िक(तु दोन1 संयोग के अन(तर
अचेतन िलंग शरीर चेतन सा हो जाता है और िनिE य पK ु ष कता और भो ा सा हो जाता है।

उतराखड म
ु िविवालय ७३
भारतीय दश
न MASL-103
सा;ं य दशन ने कृ ित और पKु ष के संयोग कA संतोष जनक Jया;या नहN कर सका है। कृ ित और
पKु ष का संयोग सोेbय है। और इन दोन1 के संयोग का फल है सृि%। जब तक कृ ित और पKु ष का
संयोग रहता है। तब तक सृि% कA ि7थित रहती है। दोन1 का िवयोग होने पर लय कA ि7थित होती
है।
2.3.5. मो* का "वhप
मोc कै वLय, अपवग, समानाथm मचु धातु से बना है िजसका अथ है ब(धन से छुटकारा।
ब(धन ज(म ह5। मोc शOद और मरण का अनवरत च है िजसम पड़कर जीव ससं ार म सदा दःु ख
भोगता रहता है। दःु ख1 का आयि(तक शमन ही मोc है। पpु ष साcी, उदासीन, िनगणु तथा िनय
कै वLय ाD है िक(तु अHान के कारण बिु @ ितिबि*बत अपने ितिब*ब के साथ तादा*य म
7थािपत कर लेता है िजससे वह अ(तः करण विFछ(न चैत(य के pप म तीत होने लगता है और
अपने को कता, भो ा व संसारी समझने लगता है और इसी अव7था म वह आ3यािमक,
आिधभौितक, आिधदैिवक दःु ख1 को भोगने लगता है। यह सब अHान के कारण होता है। अHान से
पpु ष का ब(धन होता है। पKु ष ही H तव है। उसका शरीर म पड़े रहन ही ब(धन है। ब(धन से ही
जीव को सख ु -दःु ख आिद भोगां◌े कA ािD होती है। ब(धन तीन कार का होता है- ाकृ ितक,
वैकृितक, दािcिणक। कृ ित को आमा समझकर उसी कA उपासना से उसी म लीन हो जाना
ाकृ ितक व(धन है। कृ ित के िवकार1 को आमा समझकर उनकA उपासना कर उ(ही म लीन हो
जाना वैकृितक व(धन है। इ% तथा पतू  कम^ से दािcिणक व(धन होता है। इन ब(धन1 म पड़े रहने
वाले जीव म ु नही होते है। बिLक पनु ः ज(म आिद को ाD कर सख ु ी-दःु खी होते ह5। मोc दःु ख1
का आयि(तक व एकाि(तक शमन है। वह लौिकक और वैिदक उपाय1 से नही होता है। दःु ख का
आयि(तक शमन तो Jय , अJय H के िववेक;याित के &ारा होता है। िववेक;याित को के वल
Hान के नाम से भी जाना जाता है। इस िववेक;याित से अपवग होता है जो दःु खातीताव7था के
साथ-साथ सख ु ातीताव7था भी है। के वल Hान से उप(न होने से इसे कै वLय भी कहते ह5। यह कै वLय
तव1 के अgयास से होता है िजसका 7वpप सां;यकाCरका म ितपािदत है।
............नाि"म न मे नाऽहिमयप?रशेषम।्
अिवपया
यािशु6ं के वलमुपKते ानम्।। का?रका 64
अथात म5 कता नही ह‹ँ (नाि7म)। यह शरीर मेरा नही है (न मे)। मै कृ ित नही ह‹ँ (नाि7म)। यह के वल
Hान `मािद रिहत िवश@ ु Hान है। िवश@ ु Hान का तापय है िकसी अ(य िवपरीत Hान से िमिIत
नही होता। यही रह7य िववेक;याितरिव~लवा हानोपायः (योगसू मं संकेितक है)। सां;यवचनभाEय
के अनसु ार नाि7म से पpु ष म कतृव का िनषेध है, न मे से संग का िनषेध है तथा नाऽहम् से तादाम
का िनषेध है। इस तव Hान से िवमल एवं y%ा के समान िनिE य पpु ष िववेकHान के साम_य से धम

उतराखड म
ु िविवालय ७४
भारतीय दश
न MASL-103
अधम, अHान, ऐय, अनैय, राग, िवराग, इन सात pप1 से रिहत अपने स*ब(ध म पCरणाम न
उप(न करने वाली कृ ित को देखता है1 - यह िवश@ु चैत(य पpु ष का 7वpप है यह 7वpप Hान ही
मोc है। इससे स*पणू  दःु ख का पणू त या शमन हो जाता है। पpु ष िनगणु , साcी, चेतन pप म
अवि7थत हो जाता है।
मोc म कृ ित कA भिू मका- पpु ष िनयम
ु है, िक(तु वह अHान से अपने को व(धनV7त समझता है,
उसका व(धन शक ु के ब(धन जैसा है। व7ततु ः कृ ित पpु ष का संयोग कृ ित &ारा पK
ु ष का कै वय
स*प(न करने के िलए एवं पpु ष के &ारा कृ ित का दशन अथात् भोग करने के िलए होता है। येक
पpु ष का कै वLय स*प(न करने के िलए ही कृ ित वृS होती है2। कृ ित का Jयापार पpु ष को
िवम ु करने के िलए ही होता है। जैसे नतकA रंग को अपना नृय िदखाकर उपरत हो जाती है वैसे ही
कृ ित भी अपने को पpु ष को िदखाकर उपरत हो जाती है3। गणु वती तथा उपकाCरणी कृ ित
यपु कार िवहीन एवं िनगणु पpु ष का िबना िकसी 7वाथ के ही अनेक उपय1 &ारा मोc स*प(न
करती है4। कृ ित अय(त लtजालू है पpु ष के देखने के बाद वह उसकA yि% म नही आती है5।
व(धन, ससं रण और मोc व7ततु ः कृ ित का ही होता है6। कृ ित 7वयं से ही अपने को अपने सात
pप1 के &ारा बां◌ँधती है और अपने एक pप Hान के &ारा पpु ष के कै वLय के िलए 7वयं को म ु
करती है ।
मोc के भेद- सां;य दशन दो तरह कA मिु मानता है जीवन मिु एवं िवदेह मिु । जीवन रहते ही
िववेकHान होते ही पpु ष म ु हो जाता है और शरीरपात के अन(तर होने वाली मिु िवदेह मिु है।
जीवनमिु कA अव7था म ारOधकम^ के बचे हMए सं7कार1 के साम_य से साधक वैसे ही शरीर
धारण िकये रहता है जैसे दड से चलाई गई चाक पवू  उप(न वेग नामक सं7कार से घमु ती रहती है1।
इस अव7था म संिचत एवं संचीयमान कम दlधबीज हो जाते है। ारOध का भोग िमलते रहने पर भी
पpु ष उसम वैसे ही िनिलD रहता है जैसे पानी म पड़ा हMआ कमल का पSा। शरीरपात के अ(नतर
भोग एवं अपवग दोन1 ही योजन1 के पवू  से ही िस@ हMए रहने के करण कृ ित के िनवृS हो जाने से
पpु ष ऐकाि(तक और आयि(तक कै वLय ाD करता है2। म ु हMए पK
ु ष को परमामा कहा जाता है।
मिु म cय मल और वैष*य दोष नहN होता है। यह पूण समता कA ि7थित है। इसम सभी पुKष एक
दसू रे के समान होते ह5।
अ$यास &.-

1. दःु ख के भेद ह5-


(a)आ3यािमक (b) आिधभौितक
(c) आिधदैिवक (d) ये सभी

उतराखड म
ु िविवालय ७५
भारतीय दश
न MASL-103
2. शरीर एवं मन म होने वाले दःु ख को कहते ह5-
(a)आिधदैिवक (b)आिधभौितक
(c)आ3यािमक (d)इनम से कोई नहN
3. शारीCरक एवं मानिसक दःु ख भेद ह5-
(a)आ3यािमक (b)आिधभौितक
(c)आिधदैिवक (d)ये सभी
4. दैवज(य दःु ख है-
(a)आ3यािमक (b)आिधभौितक
(c)आिधदैिवक (d) ये सभी
5. सां;य दशन का कारणता िवषयक िस@ा(त है-
(a) असदक
् ायवाद (b) सकायवाद
(c) दोन1 (d) 7वभाववाद
6. सकायवाद का अथ है-
(a) उपिS के पवू  कारण म काय का सत् होना।
(b) उपिS के पवू  कारण म काय का असत् होना।
( c) उपिS के पहले कारण म काय का सत और असत् दोन1 होना है।
(d) इनम से कोई नहN।
7. सतकायवाद का योजन कृ ित कA िसि@ है.... यह कथन है-
(a) सय (b) असय
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN।
8. पK
ु ष बहMव मानता है-
(a) (याय दशन (b) सा;ं य दशन

उतराखड म
ु िविवालय ७६
भारतीय दश
न MASL-103
(c) बौ@ दशन (d) इनम से कोई नहN।
9. कृ ित और पK
ु ष का स*ब(ध है-
(a) सयोजन (b) िनEयोजन
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN।
10. कृ ित और पK
ु ष के संयोग से होती है-
(a) लय (b) सृि%
(c) दोन1 ; (d) इनम से कोई नहN।

11. मोc का अथ है-


(a) ब(धन से छुटकारा (b) संसरण करना
(c) दोन1 (d) कुछ कह नहN सकते।
12. ब(धन के भेद ह5-
(a) के वल ाकृ ितक (b) के वल वैकृितक
(c) के वल दािcिणक (d) ये सभी
13. नाि7म, नमे, नाऽहम कA अनभु िू त है-
(a) िववेक;याित (b) अिववेक;याित
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN।
14. ब(धन, संसरण एवं मोc व7ततु ः होता है-
(a) पु Kष का (b) कृ ित का
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN।
15. सां;य दशन मिु के भेद मानता है-

उतराखड म
ु िविवालय ७७
भारतीय दश
न MASL-103
(a) दो (b) तीन
(c) एक (d) इनम से कोई नहN।
16. शरीर के रहते ही होने वाली मिु है-
(a) जीव(मिु (b) िवदेहमिु
(c) ममिु (d)ये सभी
17. शरीर पात के अन(तर होता है-
(a) एकाि(तक कै वLय (b) आयि(तक कै वLय
(c) दोन1 (d) इनम से कोई नहN।
18. कै वLय िनEैगु य है.... यह कथन है-
(a) सय (b) असय
(c)दोन1 (d) इनम से कोई नहN।

2.4 सारांश
7ततु इकाई म विणत िवषय1 से आप Cरिचत हो गये होग इस परू ी इकाई को संिcD pप से हम य1
देख सकते ह5। ितकूल, वेदनीय दःु ख है।आ3यािमक आिधभौितक और आिधदैिवक उसके भेद ह5।
अनभु यू मान सख ु भी िववेकA के िलए दःु ख ही है। काय उपिS के पहले कारण मे सत् होता है यह
िस@ा(त सकायवाद है। यह सा;ं य का कारणता िवषयक िस@ा(त है।सकायवाद कA िसि@ पाच ं
हेतओु ं से होती है। पpु ष तव िनगणु , िववेकA, भो ा, असामा(य, अिलंग, अपCरणामी, िनरवयव
तथा िनय िवमान तव है। पpु ष म तािवक एकता िक(तु सं;यागत िविभ(नता है। पpु ष अनेक ह5।
पpु ष अनेक ह5 िजसकA िसि@ के पाच ं हेतु ह5। कृ ित और पK ु ष का सयं ोग सयोजन है। पK
ु ष &ारा
कृ ित का दशन करने के िलए और कृ ित &ारा पK ु ष का कै वLय स*प(न करने के िलए पंगवधं न
(याय से संयोग होता है। संयोग का अथ सि(निध है। दोन1 के संयोग से सृि% होती है। सां;य कृ त
औरपK ु षके स*ब(ध कA संतोषजनक Jया;या नहN कर सका है। व(धन से छुटकारा ही मोc है इसम
सभी दःु ख1 का ऐकाि(तक व आयि(तक हाण हो जाता है। पpु ष को नाि7म, न मे, नाऽहम् कA
अनभु िू त होती है उस समय वह िवमल व 7वFछ Z%ा कA तरहि7थतहोता है।सा;ं य जीवन मिु और
िवदेह मिु दोन1 को मानता है। इस कार सां;य एकमहवपणू  दशन है जो मानव मा के िलए
उपयोगी है।
उतराखड म
ु िविवालय ७८
भारतीय दश
न MASL-103

2.5 पा4रभा5षक शदावल

1. आEयािमक दुःख- वह दःु ख जो शरीर और मन म होता है।


2. आिधभौितक दुःख- वह दःु ख जो जरायुज, अडज, 7वेदज और उिPज चार कार के भैितक
सृि% से होता है।
3. आिधदैिवक दुःख- वह दःु ख जो ल ु ोक अथवा देवताओ ं से उप(न होता है।
4. सकाय
वाद- काय उपिS के पहले कारण म सत् है इस िस@ा(त को सकायवाद कहते ह5।
2.6 अयास 
न के उतर
1.d 2.c 3.a 4.c 5.b
6 .a 7 .a 8.b 9.a 10.b
11.a 12.d 13.a 14.b 15.b
16.a 17.b 18.a

2.7.स%दभ# $%थ सच
ू ी
भारतीय दश
न, आलोचन और अनुशीलन, लेखक- डा. च(Zधर शमा, काशक- मोतीलाल
बनारसीदास िदLली, पनु मZु ण- िदLली 1991
भारतीय दश
न कW hपरेखा, लेखक- डा. बZीनाथ िसहं , काशक- आशा काशन वाराणसी,
स7ं करण 2003
भारतीय दश
न, लेखक- चटजm एवं दS, काशक- प7ु तक भडार पिOलिशगं हाऊस पटना, तृतीय
सं7करण 1994
भारतीय दश
न का सवa*ण, लेखक- संगमलाल पाडेय, काशक- से(Žल पिटलिशगं हाऊस,
इलाहाबाद, चतथु  संशोिधत सं7करण 2002
भारतीय दश
न (ितीय खXड), लेखक- डा. राधाकृ Eणन,् काशक- राजपाल एड स(स, िदLली,
सं7करण 1986देवी भागवत मल
ू सं7कृ त गीता ेस गोरखपरु ।

2.8.सहायक उपयोगी पा)य साम$ी


7ततु इकाई के अ3ययन के िलए आप अVिलिखत प7ु तक1 का उपयोग कर सकते है-

उतराखड म
ु िविवालय ७९
भारतीय दश
न MASL-103
1. सा'यतवकौमुदी&भा- ईरकृ Eण कृ त सां;यकाCरका तथा वाच7पित िमI कृ त तवकौमदु ी
कA िह(दी Jया;या- Jया;याकार- डा. आा साद िमI, काशक- अcयवट काशन इलाहाबाद,
मZु क- शभु िच(तक ेस इलाहाबाद, काशन वष 1994
2. भारतीय दशन, आलोचन और अनश ु ीलन, लेखक- डा. च(Zधर शमा, काशक- मोतीलाल
बनारसीदास िदLली, पनु मZु ण- िदLली 1991
3. भारतीय दशन कA pपरे खा, लेखक- डा. बZीनाथ िसंह, काशक- आशा काशन वाराणसी,
स7ं करण 2003
4. भारतीय दशन, लेखक- चटजm एवं दS, काशक- प7ु तक भडार पिOलिशगं हाऊस पटना,
तृतीय सं7करण 1994
5. भारतीय दशन का सवucण, लेखक- संगमलाल पाडेय, काशक- से(Žल पिटलिशगं हाऊस,
इलाहाबाद, चतथु  संशोिधत सं7करण 2002
6. भारतीय दशन (ि&तीय खड), लेखक- डा. राधाकृ Eणन्, काशक- राजपाल एड स(स, िदLली,
स7ं करण 1986

2.9 *नब%धामक 

h-1. सा;ं य दशन के कारणता िवषयक िस@ा(त को समझाइये ?
h-2. पK
ु ष बहMत से ह5 िस@ कAिजए ?
h-3. सां;य के मोझ िवषयक अवधारण पर काश डािलए ?

उतराखड म
ु िविवालय ८०
भारतीय दश
न MASL-103

इकाई -3 सांयकारका 1 - 10 मल
ू पाठ,अथ एवं याया

इकाई क सरं चना

3.1 तावना
3.2 उे

3.3 साBं यकाGरका 1-10 मल
ू पाठ, अथ5 एवं >याBया
3.4 सारांश
3.5 पाGरभािषक श-दावली
3.6 अ3यास 01 के उ4र
3.7 स(दभ5 6(थ सचू ी
3.8 सहायक उपयोगी पाठ्य साम6ी
3.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ८१
भारतीय दश
न MASL-103

3.1 तावना
7ततु तृतीय इकाई मे सा;ं यकाCरका कA 1-10 तक कA काCरकाओ ं का मल ू पाठ अथ एवं
Jया;या कA गई है। काCरका थम व ि&तीय मे दःु ख के आयि(तक व एकाि(तक समन के साधन
िवषयक िजHासा और उसके पणू  शमन के साधन के Kप मे तवHान से उप(न कै वLय कA Iेvता
का ितपादन है। तृतीय काCरका मे कृ ित,कृ ितिवकृ ित ,िवकृ ित एवं न कृ ित न िवकृ ित का
ितपादन िकया गया है। इस काCरका मे तवो कA सं;या व 7वKप का िनदuश है।चतथु  से सDम
काCरका पय(त म सा;ं य कA Hानमीमासं ा का िववेचन िकया गया है। अ%म से दशम काCरका पय(त
कृ ित एवं पK
ु ष कA अनपु लिOध मे सoू मता कA कारणता,सकायवाद,Jय एवं अJय के िवKप
धम ितपािदत है।

3.2 उे

7ततु इकाई का अ3ययन करने के उपरा(त आप िन*न त_य1 से पCरिचत हो जायग-े
1. सं◌ा;यशाf दख ु य के िवनाश का आयि(तक एवं ऐकाि(तक साधन तवो के िववेक से
उप(न कै वLय को मानता है।
2. तव1 कA सं;या 25 है और उनको जानने के साधन माण है और ये यc,अनमु ान और शOद
ही ह5।
3. यc माण कA सीमाएं Wया ह5।
4. सां;य का कारणता िवषयक िस@ा(त सकायवाद है
5. .Jय एवं अJय मे कौन-कौन सी असमानता है।
3.3 सां.यका4रका 1-10 मल
ू पाठ,अथ# व >या.या

दुखः0यािभधाताि@जासा तदपधातके 1 हेतौ ।


iे साऽपाथा
चे8नैका8ताय8तोऽभावात।् । का0-1
अ8वय दःु खयािभघाताSदप् घातके हेतौिजHासा(भवित)।y%ेसाऽपाथाचेत,् न,एका(ताय(तोऽभावात।्
अथ
-ििवध दख ु ः का जीव मा से असn स*ब(ध होने से उस (दःु खय) को शा(त करने के उपाय
के िवषय मे िजHासा होती है । यिद कोइ ऐसा मानता है िक (दःु खशमन) के लौिकक उपायो के होने
पर वह िजHासा Jयथ है तो ऐसा कहना यिु संगत नहN है;Wयोिक लौिकक उपाय से दःु ख कA
आवbयक Kप से एवं सदा के िलए शाि(त नही होती है। (अतः वह िजHासा साथक है।)
शारदा<या'या- ीगणपित कछु गुनगन गाऊँ। मातु शारदा सतत मनाऊँ।।

उतराखड म
ु िविवालय ८२
भारतीय दश
न MASL-103
गुhहनुम8त चरन रज आँजूँ। िजनकW कृपा शारदा साजूँ।।
परमकृ पा पवू क
 अHान सागर मे डूबते हMए जीवां◌े के कै वLयाथ िनमाणिचS का आIय लेकर
िस@ेश QRापु किपल ने िजस पिव सा;ं य शाf का उपदेश आसCु र को िदया और वही Hान
आसCु र ने अपने िशEय पंचिशख को िदया पंचिशख ने िजसका षि%त( के मा3यम से खबू िव7तार
िकया वही Hान जैगीषJय,वाषगय िव(3यवासािद िशEय िशEय1 कA पर*परा से पिु EपतपLलिवत
हMआ ।
पाठा(तर सक
ं े त 1-तदिभधाते -गौडपाद,माठर; तदवधातके -जयमगं ला
वही Hान जो षि%त( मे उपिनब@ था उसी का काशन आचाय ईरकृ Eण न‘सा;ं यकाCरका’ म
िकया है।उसम सां;यशाf िवषयक िजHासा कA योजन कA अथवSा ितपादनाथ ईरकृ Eण ने
कहा है दख
ु ःयेित-
दुखः0यािभधातात-्
दुखानां 0यम् तेषाम् अिभधातःत"मात् अपघातके हेतौ िजासा भवित अथात तीन तरह के
दःु ख से बिु @ितिवि*बत पK
ु ष का असहनीय स*ं ब(ध होता है अतः उन तीनो तरह के दःु ख1 के
शमन के िवषय मे िजHासा होती है।दख ु ःWया है ऐसी अपेcा होने पर कोई कहता है
दःु खयतीितदःु खम् पतंजिल ने कहा है ितकूल वेदनीयता ही दःु ख है, जो अपने िलए अीितकर हो।
वही दःु ख है। (याय के अनुसार तो ‘बाधना लcणम् दःु खम’् अथात पCरताप ही दःु ख है। दःु ख सुख
का अभाव नही है; बिLक यह वा7तिवकKप से अनभु यू मान है। इसके ित िवक षण कA भावना
येक Jयि के मन मे रहती है। इसके पCरणाम है-ितकुलता,व7तु,के ित िवकषण और दै(य
आिद। दःु ख रजोगणु का पCरणाम भेद है दःु ख तो अीितकर है ही व7ततु ः अनुभयू मान सख ु भी
पCरणाम, सं7कार और तापदःु खता के कारण दख ु ही है।सव\ दःु खं िववेिकनःऐसा पतंजिल ने कहा
है।दःु ख का 7वKप तो वािणत हो चक ु ा उसके भेद का िववेचन म ाD है। दःु ख भेद िनदuश तो
दःु खय कहकर काCरका मे ही हMआ है अथात दःु ख के तीन भेद है िक(तु ये तीन भेद कौन कौन है?
इसिवषयमेगौडपादभाEयमकहागयाहै- ‘‘तदःु खयमआ ् 3यािमकम,् आिधभौितकम,् आिधदेिवकम्
चेित।ता3यािमकंि&िवधम् - शारीरंमानसंचेित।शारीरंवातिपS|े Eमिवपययकृ तंtवरातीसारािद।
मानसिं यिवयोगाियसयं ोिगािद।आिधभौितकंचतुिवधभतू VामिनिमSमं नEु यपशपु cीसरीसृपदश ं मशक
यक ू ामकुणम7यमकरVाह7थावरे gयोजरायजु ाडज7वेदजोtजेgयःसकाशादपु जायते।आिधदैिवकं-
देवानािमददं वै म,् िदवःभवतीितवादैव,ं तदिधकृ ययदपु जायतेशीतोEणवातवषाशिनपातािदकम।्
अथात दख ु तीन है आ3यािमक,आिधभौितक और आिधदैिवक । आ3यािमक दःु ख के दो भेद है-
1.शारीCरक 2. मानिसक। वात,िपS और कफ के वैष*य से उप(न tवर अितसार आिद शारीCरक

उतराखड म
ु िविवालय ८३
भारतीय दश
न MASL-103
दखु है। िय व7तु के िवयोग एवं अिय के संयोग से उप(न होने वाले दःु ख को मानिसक कहते ह5।
आिधभौितक दःु ख चारो कार िक भतू समहू के कारण होता है। जो मनEु य पश,ु पcी,सरीसृप,दश ं
मFछर,ज,ँू खटमल,मछली,मकर,Vाह और 7थावर से उप(न होता है। यह दःख
जरायजु ,अडज,7वदेज,और उिPtज इन चतिु वध सृि% से उप(न होता है। दैिवक दःु ख वह है जो
दैव (देवताओ ं अथवा ल ु ोक ) के कारण होता है। ये है शीत,वषा,बपातािद। तवकौमुदी मl
आEयािमकदुःख का अथ
िकया गया हैअ8तरोपायसाEयवादाEयिमकं दःु खम,् आिधदैिवकं
तु य*रा*स िवनायक\हाKावेशिनब8धनम् दःु खय का अिभधात जीव मा को होता है जो भी
शरीरी है उन सभी को इन दःु खो का अिभघात सहना पड़ता है।इस अिभधात से Wया आशय है ?
इसका उSर तव कौमदु ीकार य1 देते है- दुःख0येण अ8तःकरणवित
ना चेतनाशCे ः &ितकूल
वेदनीयतयािभसJब8धोऽिभधात इित अथात अ(तः करण मे वतमान और अिन% Kप से
अनभु यू मान ििवध दःु ख के साथ चेतन पK ु ष के असn स*ब(ध को अिभधात कहते है।’’दःु ख
अिन% से अनभु यू मान है अतः हेयः है उसके िनवतन के िवषय मे िजHासा करना ठीक है ।दःु ख का
िवनाश स*भव है। अतः उसके शा(त करने या िवनाश करने के साधन के िवषय मे जानने कA इFछा
होती है ।
iे सा अपाथा
चेत्
अथात यिद पवू प cी यह कहता है दःु ख के िवनाश के यc िस@ लौिकक उपायो के रहते दःु ख
शाि(त करने के साधन िवषयक िजHासा बेकार है ।Wयोिक तीनो दःु खो मे से आ3यािमक दःु ख के
शमन का लौिकक उपाय आयुवदu शाf मे ितपािदत कटु कसाय ित Wवाथआिद है और िय का
समागम और अिय का पCरहार है।आिधभौितक दःु ख के समन का लौिकक उपाय रसािदका योग
है । आिधदैिवक दःु ख का मिणम(ौषिध आिद &ारा िवनाश देखा गया है। अतः सां;यशाfिवषयक
िजHासा Jयथ है । यिदपवू प cी ऐसी आशक ं ा करता है तो- न-अथात दःु ख शमन के साधन1 म
िजHासा करना िनरथक नहN है विLक वह िजHासा साथक है Wयोिक,
एका8ताय8तोभावात्
एका8तI अय8तI एका8ताय8तौ तयोः अभावः त"मात् –

अथात् लौिकक साधनो से दःु खय कA एका(त Kप से और आयि(तक Kप से िनवृिS नही होती है।
शाि(त नही होती है एका(त का तापय है दःु खिनवृSरे व7य*भावः(तवकौमदु ी) दःु ख का आवbयक
Kप िनवृS होना ही एका(त िनवतन है। यह जKरी नही िक दःु ख लौिकक साधन1 से आवbयक Kप
से शा(त ही हो जाय।
कै (सर शरीCरक दःु ख है अव7था िवशेष मे पहMचने पर वह अवbय Kप िनवतनीय नही रह जाता है।

उतराखड म
ु िविवालय ८४
भारतीय दश
न MASL-103
इसी कार लौिकक साधनो से दःु खय कA अय(त Kप से िनवृिS नही होती है। अय(त का अथ
है-अय(तो-िनवृS7य दःु ख7य पनु रनु पादः(तवकै ामदु ी) शा(त हMए दःु ख का िफर उप(न न होना ही
आयि(तक िनवृिS है िक(तु दखु कA आयि(तक िनवृिS नही होती है अतः दःु ख को एकाि(तक एवं
आयि(त Kप से शा(त करने के साधन के िवषय मे िजHासा साथक है।1
िवशेष 1- दःु खय का उप(यास करके जहाँ नैराbय से शK
ु वात है वही उसके िवनाश के कारण कA
िजHासा का ितपादन कर मगं लाचरण करते हMए आशावाद का संचार भी िकया गया है।
2. सां;यशाf सयोजन है।
पवू ा
पर सJव8ध,-लौिकक उपाय से दःु खय कA शाि(त न हो िक(तु वैिदक उपाय से उसके शा(त
होने कA आशक ं ा होने पर कहा गया है
iवदानु िवकः स mिवशुि6*याितशययुCः।
तिपरीतः ेयान् <यCा<यCिवानात।् । का0-2
अ8वय-आनIु िवकःy%वत।् िहसःअिवशिु @cयाितशयय
ु ः।ति&परीतःIेयान् Jय ाJय HिवHानात्
अथ
-वैिदक उपाय भी लौिकक उपाय1 जैसा है Wयोिक वह दोष,cय और वैष*य से य
ु है उन दोन1
लौिकक/वैिदक)उपायो से िभ(न उपाय श7त है वह उपाय है। Jय अJय औेर H के िववेक Hान
से उप(न कै वLय।
शारदा<या'या-अनIु िवकः अनIु यू ते इित अनभु वः त भवः आनIु िवकः गK ु के उFचारण के
अन(तर सनु े जाने से वेदो को अनIु व कहते है। उसमे िविहत उपाय ही आनIु िवक है। दःु ख िवधात
के वैिदक उपाय रहते दःु ख शमन िवषयक िजHासा Jयथ है। Wयोिक आगम कहता है-
अपामसोमममृता अभूमाग8म @योितरिवदाम देवान।्
िकं वा ननू म"मान् तृणवदराितः िकमु धिू त
रमृतमय
"य।। ऋQवेद 8.42.3
ऐसा ही संकेत कठोपिनषद् मे भी िमलता है-
न त0ं वं न जरया िवभेित,उमे तीवा
अशनायािपपासे शोकाि8तगः मोदते "वग
लोके ।
वैिदक उपाय जो दःु खो के शमन का उोष करते है वह वा7तिवक ि7थित नही है वैिदक उपाय1 से
भी दःु ख का आयि(तक व एकाि(तक समाधान नही होता है अतः iवत-् iेन तु]यः अथात
वैिदक उपाय भी y%वत है।जैसे लौिकक उपाय दःु ख कA आयि(तक एवं एकाि(तक िनवृिS करने मे
समथ नही है वैसे ही वैिदक कम कलाप भी,दःु ख का परू ी तरह से शमन करने मे असमथ है।

उतराखड म
ु िविवालय ८५
भारतीय दश
न MASL-103
वैिदक उपाय दःु ख का परू ी तरह से शमन करने मे असमथ Wय1 ह5 ? ऐसी आशक ं ा होने पर कहा है
िहसःिवशिु @cयाितशयय ु ःिवशिु @य ु ःcयय ु ः,अितशयय ु Bते िवशिु @cयाितशयय ु ः।
Wयोिक वह वैिदक काय कलाप अशिु @,cय और वैष*यदोषो से य ु होता है। Iिु त का आदेश है
7वगकामो वै यजेत् िक(तु यHां म िहसं ा भी िविहत है उसमे पशओु िक िह(सा होती है जहाँ साधकु मw
से पु य बनता है वहN िहसं ा कम से पाप भी बनता है। अतः पाप के भी िमिIत होने से वह वैिदकम
मलय ु होता है। और सुख के साथ साथ दःु खदायी भी होता है। वैिदक उपाय ज(य 7वगािद ािD
भी cय दोष से य ु होती है जीव 7वग मे तभी तक रहता है जब तक पु य बना रहता है पु य के cय
होने पर पनु ः मृयु लोक मे आना पड़ता है गीता कहती है-
*ीणे पुXये मय
लोकं िवशि8त। 9.21
वैिदक उपाय ज(य फल मे वैष*य भी होता है िभ(न-िभ(न यH1 का अलग-अलग फल है कुछ 7वग मे
वास देने वाले है तो कुछ वहाँ का अिधपित बनाने वाले ह5 । जैसे लोक मे कम सख ु ी Jयि अिधक
सख ु ी Jयि को देखकर के दख ु ी होता है वैसे ही 7वग मे भी 7वग के वासी अपने से उFच ि7थित मे
िवमान जीव को देखकर दःु खी हो सकते ह5 । जैसे सK ु प को देख कर कुKप दःु खी होता है वैसे ही
इ(Zपद आसीन जीव को देखकर अ(य दःु खी हो सकते ह5। चँिू क लौिकक औैर वैिदक दोनो ही उपाय
दःु ख कA पणू  शाि(त करने मे असमथ है तो Wया कोइ ऐसा उपाय है ? जो उन दख ु का पणू 
शमन करने मे समथ हो ऐसी आशक ं ा होने पर कहते है -
तिप?रतः ता$यां िवपरीतः ेयान-्
उन दोन1 लौिकक एवं वैिदक उपाय1 से िभ(न उपाय श7यतर है ; Wयोिक वह उपाय दःु ख का
आयि(तक एकाि(तक Kप से शमन करता है और उसमे अशिु @,cय,और अितशय भी नही ह5। वह
उपाय है Jय ाJय HिवHानात.् Jय ं च अJय ं च HB इित Jय ाJय Hाः तेषां िवHानम्
त7मात।् Jय अJय और H के िवभेदHान से उप(न कै वLय। Jय तव है महत्, अहक ं ार,11
इि(Zयाँ 5 त(मा, 5 महाभतू । अJय कृ ित है एक है । पुKष तव है इस कार कुल 25 तव है ।
इ(ही तवो के Hान से कै वLय िमलता है । गौड़पादभाEय मे भी िनदuश है-
पंचिवंशिततवो य0 त0ा मे वसन् ।
जटी मुXडी िशखी वािप मुFयते ना0 संशयः।।
इन पFचीस तवो के अgयास से ही के वLय उप(न होता है इसका 64वN काCरका मे ितपादन हMआ
है।
एवं तवा$यासा8नाि"म न मे नाऽहिमयप?रशेषम।्
अिवपय
यािशु6ं के वलमुपKते ानम्।। 2

उतराखड म
ु िविवालय ८६
भारतीय दश
न MASL-103
पूवा
पर संब8ध-तवो के Hान से उप(न कै वLय दःु ख शमन का साधन है उन 25 तवो का पदाथ
चत%ु य के Kप मे ितपादन करते है ।
मूल&कृितरिवकृित
महदाKाः&कृितिवकृतयःसT
षोऽशक"तु िवकारो न &कृितन
िवकृितःपुLषः।। का0-3
अ8वय-मल ू कृ ितःअिवकृ ितः।महदााःसD कृ ित िवकृ तयः।षोडशकः िवकारः।तु पK
ु षः न कृ ितः
न िवकृ ितः अि7त।
अथ
-मलू कृ ित िकसी का काय नही है । महत् आिद-(महत,अहक ं ार,पच
ं त(मा) सात कारण और
काय दोनो ह5। 16 तवो का समहू (11इि(Zयाँ$पच
ं महाभतू )के वल काय ह5। िक(तु पK
ु ष न तो कारण
है और न तो काय है।
शारदा<या'या-मूल&कृितःअिवकृितः मूलं च सा &कृितःइित &कृितः। &करोित इित
&कृितः सज
ना करने वाली मल ू शि कृ ित है वह गणु 1 कA सा*याव7था है।वह िकसी का काय
नही है वह अकारण कारण है। कृ ित का 7वKप देवीभागवत् मे इस कार विणत है-
&कृवाचकः&I कृितI ि"वाचकः।
सृौ &कृा या देवी &कृित सा &कWित
ता।।
गण
ु े सवे &कृे च &श+दो वत
ते तु ः।
मEयमे रजिस कृI ितश+द"तमिस "मृित।।
ि0गुणाम"वLपा या सा शिCसमि8वता।
&धाना सृिकरणे &कृित"तेन कnयते।।
&थमे वत
ते &I कृितI सृिवाचकः।
सृेरादौ च या देवी &कृितः सा &कWित
ता।। देवीभागवत् 9.1.5-8
यह कृ ित िकसी का काय नही होने से अिवकृ ित है वह महत् आिद का तो कारण है िक(तु कृ ित
का कोई अ(य कारण नही है। अतः वह अजा है ।
महदाKाःसT &कृतिवकृतयः-
महदाKाः महत् आिदःयेषां ते महादाKाः सT &कृितिवकृतयः &र् कृतयI िवकृतयI

उतराखड म
ु िविवालय ८७
भारतीय दश
न MASL-103
&कृितकृतयः-महत है ार*भ म िजसके वे महतआ ् िद तव ह5। वे सात ह5-महत् अहक ं ार पाँच
तनमााएं । वे सात तव कृ ित और िवकृ ित अथात् कारण और काय दोनो है जैसे महत् अहक ं ार
का कारण है अतःकृ ित है िक(तु 7वयं मल
ू कृ ित का काय है अतः िवकृ ित भी है। अहक ं ार, 11
इि(Zय1 एवं 5 त(मााओ ं का कारण है और महत् का काय है।पाच
ं त(मा पाच
ं महाभतू ो के कारण ह5
एवं अहकं ार के काय है।
षोडशकः िवकारः-
षोडषकःषोडषतवानां समदु ायः षोडशकःिवकारः16 तवो का समदु ाय ही षोडशक है ये 16 तव है
11इि(Zयाँ$5महाभतू ।ये तव के वल काय ह5।
तु पुLषः न &कृितः न िवकृितः-िक(तु पK
ु ष न तो कारण है न तो काय है।पK ु ष का 7वKप आगे
ु ष कारण और काय कA Iृंखला से परे है।पK
ितपािदत है। पK ु ष सत् िचत है।
िवशेष-िजन 25 तव1 का अgयास कै वलय स*प(न कराता है उनका चतधु ा िवभाग 1.अिवकृ ित
2.कृ ित
िवकृ ित 3.िवकार, 4.न कृ ित न िवकृ ित के Kप मे िकया गया है। 3
पवू ा
पर सJब8ध-कृ ित आिद 25 तव है उनके अि7तव म Wया माण है ऐसी आकांcा होने पर
कहा गया है -
iमनुमानमाTवचनं च सव
&माणिस6वात।्
ि0िवधं &माणिमं &मेयिसि6ः&माणाि6।।का0.4.
अ8वय-y%मअ ् नुमानम् आDवचनं च ििवधम् माणम् इ%म।् सवमाणिस@वात।् िह माणात्
मेयिसि@ः (भवित)।
अथ
-यc,अनमु ान और शOद ये तीन माण ही मा(य है। इ(ही तीनो माण1 मे अ(य सभी माण1
का अ(तभाव हो जाता है। माण से ही मेय1 का Hान होता है।
शारदा<या'या
iम् अनुमानम् आTवचनं च ि0िवध &माणम् इम-्
यc,अनमु ान,और शOद ये तीन ही माण ह5। यc आिद माण1 का लcण व भेद िनदuश तो
5वी काCरका म ितपािदत है।माण का िनवचन तवकौमदु ी मे हMआ है- &मीयतेऽनेनेित
िनव
चनात् &मां &ितकरणवं गJयते । तFचासि8दQधािवपरीतानिधगतिवषयािच2वृि2ः।

उतराखड म
ु िविवालय ८८
भारतीय दश
न MASL-103
बोधI पौLषेयःफलं &मा तसाधनं &माणिमित,अथात िजसके &ारा मा हो वही माण
है।माण वह िचSवृिS है िजसका िवषय िनिBत Kप से Hात हो रहा हो,बािधत होने वाला न हो,तथा
पहले से Hात न हो।ऐसी िचSवृिS से उप(न,अतःउसका फलभतू पKु षवतm बोध मा है इसी का
साधन माण है।
सव
&माणिस6वात-् अ(य सभी माण1 का इ(ही तीनो मे अ(तभाव हो जाता है। भारतीय दशन म
माणो कA सं;या िवषयक िवितपिS का संकेत मानसोLलास म िमलता है-
&य*मेकं चावा
काः कणादसुगतौ पुनः।
अनुमानं तFचािप सां'याः श+दं च ते अिप।।
8यायैकदेिशनोऽSयेवम् उपमानं च के चन।्
अथा
पया सहैतािन चवाया
ह &भाकरः।
अभावषeा8येतािन भpा वे8दाि8तन"तथा।
सJभवैितmयुCािन तािन पौरािणका जगःु ।।
यc,अनमु ान ,शOद के अितCर माण है। उपमान,अथापिS,अभाव,स*भव और ऐितn। इनका
अ(तभाव िदखलाया जा रहा है।उपमान का लcण है-
अितदेशवाWयाथ7मरणसहकृ तगोसाybयिविश%िपडHानमपु मानम् यथा गौ7तथा गवयः
(तक भाषा) सां;य इसे अलग माण न मानकर उपमान का अ(तभाव यc म करता है।अथापित
का लcण है। अनपु पमानाथदशन ात् तदपु पादकAभथू ा(तरकLपनम् अथापिSः। तथा पीनो देवदSो
िदवा न भड़ु ् ः े इित y%े Iतु े वा रािभेाजनं कL~यते। इसका अ(तभाव सां;य अनमु ान मे करता
है। इस कमरे म गौ नहN है यह जो गौ के अभाव का Hान है यह अनपु लिOध माण है। सां;य दशन
इसका अ(तभाव यc म करता है।स*भव माण पर तवकौमदु ी म िलखा है-स*भव7तु यथा
खार य् ांZोणाढक7थाावगमः स चानमु ानमेव।इसी तरह ऐितn पर काश डालते हMए कहते है िक
इस वृc पर यc रहता है ऐसा वृ@ जन कहते है इयािद कार िक जन Iिु त ऐितn माण है। वह
मलू व ा के Hान के अभाव मे सि(दlध है और यह मािणक पK ु ष ो हो तो आगम माण है।
िह &माणात् &मेयिसि6ः - यतः माणो के &ारा ही मेयो का Hान होता है।िवमान सभी िवषय1
का Hान माण से ही होता है। अतः तव1 कA उपलिOध के साधन माण1 का उप(यास िकया गया
है। मेय कृ ित आिद 25 तव है िजनकA उपलिOध यc अनमु ान और शOद से होती है। 4
पवू ापर स*ब(ध
यतः मेय1 का Hान माण से होता है।सां;य के अनसु ार माण तीन ही है। उनके लcण Wया है ?

उतराखड म
ु िविवालय ८९
भारतीय दश
न MASL-103
ऐसी आशक
ं ा होने पर कहते ह5 -
&ितिवषयाEवसायो iं ि0िवधमनमु ानमा'यातम।्
ति]लङ्गिलङ्िपवू
कमाT िु तराTवचनं त1ु ।। का0-5
अ8वय - ितिवषया3यवसायःy%म।् अनमु ानं ििवधम् आ;यातम् तिLलङ्गिलङ्िपूवक
 म।् तु
आDIिु तराDवचनम।्
अथ
- िवषय से सि(नकृ % इि(ZयािIत बिु @ का Jयापार यc है। अनमु ान को तीन कार का कहा
गया है। वह िलङं ् ग(Jया~य) और िलङ्गी (Jयापक) के Hान से होता है।आDIिु त ज(य अथ Hान ही
आगम माण है।
शारदा<या'या
ितिवषया3यवसायःy%म-् िवषय से सि(नकृ % इि(ZयािIत बिु @ का Jयापार यc है। िवषयं िवषयं
ित इित ितिवषयम् ितिवषयेषु Iोादीनां शOदािदिवषयेष,ु अ3यवसायः y%ं यcम् (गौडपाद)।
अथात् वचा के ‘&ारा 7पश िवषय का चcु के &ारा Kप का, रसना के &ारा रस का, नािसका के &ारा
ग(ध का अ3यवसाय अथात िनBय जो बिु @ का Jयापार है वही यc माण है। Jयास भाEय मे
यc पर इस तरह िवचारिमलता है- इि(Zयणािलकया िचS7य वाnव7तपू रागाSि&षया
सामा8यिवषयामनोऽथ
"यिवशेषावधारण-
&धानाविृ 2ः&य*&ं माणं।फलमिविशःपौLषेयिI2विृ 2वोधः। यc का लcण (यायसू
मे इस कार है। इि(Zयाथसि(नकषाप(नं ानम<ययदेqयम<यािभचा?र<यवसायामकं &य*म्
1.4,(याय दशन इि(Zय1 को माण मानता है। िक(तु सां;य बुि& के अ3यवसाय को माण मानता है।
ति]लङ्गिलङ्िपूव
कमअ ् नुमानम-् काCरकाकार ने पहले भेद बतलाया है तब अनुमान का लcण
िकया है। यहां पहले अनमु ान का लcण करते ह5 िफर उसके भेद का वणन िकया जायेगा। िलड.◌्ग
और िलड्.गीपवू क होने वाले Hान को अनमु ान कहा जाता है। अनमु ान का अथ है अनु अथात्
पBात् और मान का अथ है Hान । इस तरह जो Hान यc और आगम माण पर आिIत हो वह
अनमु ान माण है। इसम Jया~य से Jयापक का और Jयापक से Jया~य का Hान होता है।जैसे धमू से
अिlन का अनमु ान दड के &ारा यित होने का Hान। काली कोट से वकAल होने का अनमु ान ।
अनमु ानं ि0िवधम् आ'यातम-् अनमु ान के तीन भेद ह5। पवू वत शेषवत् और साम(यतोy%। ऐसी ही
7वीकृ ित (याय कA भी है- अथ तपवू क
 ं अनमु ानं पवू व Fछे षवत् सामा(यतोy%ं च ((यायसू ) पवू व त
अनमु ान वह है िजसम पवू  अथात् कारण को देखकर काय का Hान होता है।जैसे उमड़े हMए
वादलो को देखकर होने वाली वृि% का अनुमान। मौसम िवभाग कA भिवEयवािणयाँ पवू वत,् अनमु ान
उतराखड म
ु िविवालय ९०
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ही है। शेषवत् अनमु ान वह है िजसमे काय को देखका कारण का Hान होता है।जैसे बढ़ी हMई नदी को
देखकर देशा(तर म होने वाली वृि% का अनमु ान।िक(तु गौडपाद इसका अ(य उदाहरण िदये है।
शेषवत् तथा समु;ादेकं जलपलं लवणंमासाK शेषमSयि"त लवणभावः इित।
सामा8यतोiनं ाम-य0अ&य*े िलड्.लङ्िगनोः सJब8धे के निचदथaन िलड.ग"य
सामा8याद&य*ो
िलिड.गी गJयते यथा काय
तः&कृयुपलि+धः।
अनमु ान माण पर भारतीय दशन म सवािधक सoू म िच(तन (याय दशन मे हMआ है।
आT िु तःआTवचनमइ् ित- आDIिु त ज(य अथ Hान ही शOद माण है। आDIिु तCरितः -आDाः
आचायाः …RादयःIिु तवuदः आDाB Iिु तB आDIिु तः तद ु माDवचनः …Rा आिद आचय^ के
वचन ज(य अथ और वेद ज(य अथ Hान दोनो हीआगम माण है।आD का लcण
गौडपादभाEय म इस कार िकया गया है-
आगमो mाTवचनमाTं दोष*यािदुः।
*ीणदोषोऽनृतं वाRयं न बयू ा6ेवसJभवात।् ।
"वकम
XयिभयुCो य सड.गेषिवविज
तः।
पूिजत"तिवधैिन
यमाTो ेयः स ताiशः।।
&माणो का "वLप व भेद बतला िदया गया है। 5
पवू ापर स*ं ब(ध-यc माण का फल 7प% ही है िक(तु अनमु ान और शOद माण का Wया फल
है? ऐसी आकांcा होने पर कहते है।
सामा8यत"तुiादइि8;याणां &तीितरनुमानात1् ।
त"मादिप चािस6म2् परो*माTागमात् िस6म।् ।का06
अ8वय- सामा(यतःy%ाद् अनमु ानाद् अतीि(Zयाणां तीितः।त7मादिप च अिस@म् परोcम्
आDाडमात् िस@म।्
अथ
-सामा(यतोy% अनुमान से अतीि(Zय मेयो कA उपलिOध होती है।और उससे अथात्
सामा(यतोy% अनमु ान से अिस@ परोc मेय आगम माण से िस@ होते है।
शारदा<या'या
सामा(यतोy%ादनमु ानादतीि(Zयाणां तीितः-सामा(तोy% अनमु ान से इि(Zयातीत िवमान मेयो कA
िसि@ होती है।यc माण से इि(Zयगोचर वतमानकालीन िवषय1 कA िसि@ होती है। इन दोन1 िक

उतराखड म
ु िविवालय ९१
भारतीय दश
न MASL-103
िसि@ साम(तोyि% अनमु ान से होती है जैसे महदािद िलंड्.ग िगणु ामक है िगणु ामक काय िजसके
है,वह धान है।इसी कार,Wयोिक अचेतन चेतन कA तरह तीत होता है अतः इसका संचालक
पKु ष है। अनुमान से भतू कालीन ,वतमानकालीन और भिवEयकालीन िवषय1 का Hान होता है।
1. िसि@रनमु ानात् -यिु दीिपका , 2. सा3यम-् माठरवृिSः
त"मादिप च अिस6ं परो*म् आTागमात् िस6म-् उस सामा(यतोy%ानमु ान से िजन अतीि(Zय
मेयो का Hान नही होता है।उन मेयो कA उपलिOध शOद माण से होती है।जैसे 7वग है, नरक है,
देवताओ ं के राजा इ(Z है, यH करने से 7वग िमलता है आिद शOद माण के &ारा जाने जाते है। 6
पूवा
पर संJब8ध-मेय िवमान रहने पर भी यc का िवषय Wयो नही होते है ? ऐसी आशक ं ा होने
पर कहते ह5।
अितदूरात् सामीSयािदि8;यघातान् मनोऽनव"थानाFच।
सौrJयाद् <यवधानादिभभभवात् समानािभहारात् च ।। का07
अ8वय-अितदरू ात्,सामी~यात,् इि(Zयघातात्,मनोऽनव7थानात्,सौo*याद,् Jयवधानाद,् अिभभवात्,
समानािभहारात् च(मेयणाम् उपलिबधः न भवित इित शेषः)।
अथ
- अिधक दरू होने के कारण,अिधक समीप होने के कारण ,इि(Zय1 के नाश के कारण , िचS कA
अि7थरता के कारण, बीच मे िकसी Kकावट के कारण ,अिभभतू होने के कारण,और समान मे िमल
जाने के कारण (मेय1 का यc Hान नही होता है)।
शारदा<या'या- िवमान होने पर िवषयो के यc न होने के आठ हेतु है-
अितदूरात-् अिधक दरू होने से व7तओ ु का यc नही होता है जैसे देशा(तर मे िवमान चै,मै
और िवEणिु म का यc नही होता है।
सामीSयात-् अिधक समीपता के कारण भी मेयो का यc Hान नही होता है,जैसे आखो मे लगा
हMआ आजन समीप होने के कारण िदखाई नही देता है।
इि8;यघातात-् इि(Zय1 का घात अथात अपने-2 िवषय को कािशत करने कA शि का नाश होने
पर िवमान पदाथwका यc नही हेाता है जैसे अ(धव के कारण Kप का Hान नही होता है।
मनोऽनव"थानात्- मन कA अि7थरता से िवमान व7तु भी Hात नही होती है जैसे JयVिचS Jयि
कही गयी बात को अवधाCरत नही कर पाता है।
सौrJयात-् सoू म होने के कारण भी िवमान व7तु का यc Hान नही होता है जैसे इलेWŽान,ोटान
और (यŽू ान कणो का यc सoू म होने के कारण नही होता है। कृ ित और पK
ु ष अय(त सoू म होने
के कारण यc नहN होते ह5।
<यवधानात-् Jयवधानात् अथात् आड़ मे होने के कारण भी िवमान व7तओ ु का यc Hान नही

उतराखड म
ु िविवालय ९२
भारतीय दश
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होता है जैसे दीवार आिद कA ओट मे रहने से राज मिहिषय1 का यc नही होता है।
अिभभवात-् अिभभव अथात् ितर7कृ त होने के कारण भी िवमान का यc नही होता है।जैसे
सयू  के तेज से ितर7कृ त होने से िदन म Vह,नc ,तारे आिद यc के &ारा नही जाने जाते है।
समानािभहारात-् सyश व7तु के साथ िमिIत होने जाने पर भी िवमान व7तु का यc नही होता
ह5 जैसे-सरोवर के जल म िमली हMई वषा कA बँदू का यc नही होता ,मगँू कA रािश मे िमला िदये गये
मगँू का यc नही होता है।उपय ु आठ हेतु व7ततु ः यc माण कA सीमाएं है।
पूवा
पर सJब8ध- अय(तदरू ािद 8 कारणो से मेय का यc नही होता है तो कृ ित का यc न
होने मे Wया कारण है ? और उसकA उपलOधता कै से होती है ? ऐसी आक ं ाcा होने पर कहते है-
सौ*Jया2दनुपलि+धना
भावात् काय
त"तदुपल+धेः1 ।
महदािद तFच काय &कृितिवLपं2 सLपं च ।।का08
अ8वय-सैoमयात् तदनपु लिOधः,अभावात् न, कायतः तदपु लOधेः। तFच काय महदािद कृ ितिवKपं
सKपं च।
अथ
-सoू म होने के कारण ही उन कृ ित और पK ु ष का यc Hान नही होता है,अभाव के कारण
नही ,Wयोिक काय से उस कृ ित का अनमु ानामक Hान होता है। और वे काय महदािद
है(जो)कृ ित के समान धम वाले भी है और उसमे िभ(न धम वाले भी है।
शारदा<या'या- सौrJयात् तदनुपलि+धः - सoू म होने के कारण उन कृ ित और पK ु ष का यc
के &ारा िसि@ नहN होती है।जो सoू म पदाथ ह5 उनकA यc के &ारा िसि@ नही होती है।
न अभावात-् ऐसा नही है िक कृ ित और पK ु ष ख पEु प कA तरह असत् पदाथ है अतः उन दोनो का
यc नही होता ह5। व7ततु ः वे भाव पदाथ ह5। िनय है। यिद कृ ित और पK ु ष भाव पदाथ ह5 तो
उनकA उपलिOध कै से होती है ऐसी आकांcा होने पर कहते है कायत7दपु लOधेः काय से उस कृ ित
का अनमु ानामक Hान होता है जैसे लोक मे काय को देखकर उसके कारण का अनमु ान होता है वैसे
ही कृ ित का Hान उसके काय से होता है। पKु ष के अनमु ानाथ हेतओ
ु ं का संघातपराथवात् 17वी
काCरका म कहा जायेगा। काय से कृ ित का Hान होता है।काय कौन है ऐसी आशक ं ा होने पर कहा
गया है-तFचकाय\ महदािदः वे काय है महदािद 23 तव अथात् महत् अहक ं ार,11इि(Zयाँ , 5
त(मा और 5 महाभतू । ये काय ह5।इ(ही से कृ ित का अनमु ान होता है।
&कृितिवLपं सLपं च- वे महत् आिद काय कृ ित के सyश धम वाले भी है। और कृ ित से
िवKप धम वाले भी ह5। जैसे पु िपता के सyश भी होता है और उससे िभ(न भी होता है वैसे ही महत्
आिद काय कृ ित के सyश भी ह5 और िभ(न भी ह5। 8
पवू ापर सं*ब(ध-महदािद कायw से कृ ित का अनुमान होता है। महदािद काय कृ ित मे सत् है या
असत् ?ऐसा सश ं य होने पर कहते है।
असदकरणादुपादान\हणात् सव
सJभवाभावात् ।

उतराखड म
ु िविवालय ९३
भारतीय दश
न MASL-103
शC"य शRयकरणात् कारणभावाFच सकाय
म।् ।का09
अ8वय-काय\ सत् असदकरणात्,उपादानVहणात् सवस*भवाभावात् श 7य शWयकरणात्
कारणभावाFच।
अथ
- असत् के न उप(न होने के कारण,उपादान कारण का Vहण होने के कारण,सभी कारणो से
सभी कायw कA उपिS अस*भव होने के कारण,समथ कारण से ही समथ काय कA उपिS होने के
कारण,काय के कारण 7वKप होने के कारण काय उप(न होने के पवू  भी कारण मे◌े सत् होता है।
1. तदपु लिOधः-गौडपादभाEय,यिु दीिपका। 2. कृ ितिवKपं सKपं च तवकौमदु ी
शारदा<या'या- काय\ सत् - उपिS के पहले काय कारण मे िवमान रहता है। यह िस@ा(त
सकायवाद है इसका योजन काय से कृ ित कA अि7तव कA िसि@ है।कारण म काय सत् है
इसके िलए 5 हेतु िदए गए है।
असदकरणात-्
अथात् जो व7तु अनि7तव वाला होता है उसे िकसी भी कारण से उप(न नही िकया जा सकता
है।जैसे आकाश पEु प असत् है उसे िकसी कारण से नही उप(न िकया जा सकता है और करोड़ो
िशLपी िमलकर नीले रंग को पीला नही वना सकते है।अतः जैसे उपिS के बाद काय सत् होता है
ठीक वैसे ही उपिS के पवू  भी काय कारण म सत् होता है।
उपादान\हणात-् यतः काय कA उपिS के िलए स*बि(धत उपादान का Vहण िकया जाता है। यह
लोक िस@ है िक जो Jयि िजस काय को चाहता है वह उससे स*ं बि(धत उपादान कारण का Vहण
करता है,जैसे दही को ाD करने के िलए दधू का ही Vहण करता है। इससे िस@ है िक काय उपिS
के पहले कारण मे सत् है।
सव
सJभवाभावात्
यतः सभी काय^ कA सभी कारणो से उपिS नही होती है अतः यह भी िस@ करता है िक काय
कारण म उपिS के पहले से ही मौजदू रहता है। जैस-े सवु ण कA रजत् ,तृण,धल
ू ,और बालू से उपिS
नही होती है।
शC"य शRयकरणात्
यतः जो कारण िजस काय कA उपिS मे श अथात समथ होता है उससे उसी शWय काय कA
उपिS होती है।अतः िस@ होता है िक काय कारण मे सत् है, जैसे शWय तेल,घट,पट, को उप(न
करने म मशः ितल ,मृिSका और त(तु ही समथ ह5।
कारणभावाFच
यतः काय कारणामक होता है जो लcण कारण का होता है वही लcण काय का भी होता है। यह
िस@ करता है िक काय कारण मे पहले से िवमान है जैसे जौ से जौ ही उप(न होता है,धान से धान
ही उप(न होता है,गेहूॅ से गेह‹ँ उप(न होता है।

उतराखड म
ु िविवालय ९४
भारतीय दश
न MASL-103
िवशेष-
काय उपिSपवू  कारण मे सत् है या असत् है,सदसत् है ? इस h के समाधानाथ भारतीय दशन मे
कई िस@ा(त िमलते है। जो मानते है िक काय उपिS के पहले कारण मे सत् है वे सकायवादी
कहे जाते ह5। सकायवाद को सां;ययोग और वेदा(त मानता है। सां;ययोग सकायवाद के भेद
कृ ित पCरणामवाद को मानता है। िविश%ा&ैत …RपCरणामवाद को मानता है। अ&ैतवेदा(त
…Rिववतवाद मानता है। जो दशन काय को उपिS के पहले कारण म असत् मानते ह5। वे
असकायवादी ह5। वे ह5 (यायवैशिे षक और बौ@दशन। (यायवैशिे षक आर*भवादी ह5। ये काय को
नवीन सृि% मानते है।काय म उपिS और Jयय के &ारा असकायवाद को िस@ करते ह5। वौ@
cणभंगवाद को मानता है। जो कारण मे काय को सद् और असद् दोनो मानतं◌े है वे
सदसकायवादी है जैन दशन इस िस@ा(त को मानता है। जैन दशन 7यादवाद से सदसत् कायवाद को
िस@ करता है। 9
पवू ापर स*ं व(ध- 8वN काCरका मे महदािद काय और कृ ित मे कुछ धम असमान है ऐसा कहा गया है
तो वे असमान धम Wया है ? ऐसी आकांcा होने पर कहते है-
हेतुमदिनयम<यािप सि:यमनेकमाि तं िलड़्.गम।्
सावयवं परतं0ं <यCं,िवपरीतम <यCम।् ।का0.10
अ8वय-Jय ंहेतमु त्,अिनयम् अJयािप सि यम् अनेकम् आिIतं िलड्.गं सावयवं परतंम।् अJय ं
िवपरीतम।्
अथ
-Jय सकारणअथातउ् प(न,िवनाशी,JयाD,ि याशील,अनेक,7वकारणमेआिIत,िलङ्ग अथात
लयय ु या धान के Hापक हेत,ु अवयव य ु ,और परत( ह5 जबिकअJय , िनिE य, एक,आIय,
अिलंग,िनरवयव, और 7वतं है।
शारदा<या'या-Jय काय है और अJय कारण है दोनो मे िवKपता है उनमे िवKपता बतलाने के
िलए Jय के धम को पहले बतलाते है -
<यCं हेतुमत-् Jय महदािद सकारण है इनका कोई कारण होता है। महत् का कारण कृ ित
है।अहकं ार का कारण महत् है। 11 इि(Zय1 एवं 5 त(मााओ का कारण अहक ं ार है। 5 महाभतू ो का
कारण 5 त(मााएं है।
अिनयम-् अिनय का अथ है िवनाशी। िवनाशी होने का अथ है अपने कारण मे अ(तभतू हो
जाना।Jय अपने कारण म लय हो जाने से अिनय ह5। जैसे लयकाल म महाभतू त(मााओ ं म ,
त(मााएं एवं 11 इि(Zयां अहक ं ार म,यह भी महत् मे और महत कृ ित मे अ(तभतू हो जाते ह5।
अJयािप- अJयािप का अथ है अJयापक होना। सभी काय पCरणामी कारण को JयाD नही करते ह5,

उतराखड म
ु िविवालय ९५
भारतीय दश
न MASL-103
महदािद पCरणाम पCरणामी कृ ित को JयाD नही करते है। अतः Jय Jया~य ह5।
सि यम-् Jय सृि% कA दशा मे संसरण करता ह5 अतः सि य है।
अनेकम-् Jय अनेक ह5। ये महद् आिद 23 तव ह5।
आिIतम-् 7वकारणमाIयते महद् आिद अपने-अपने कारण मे आIय लेते है अतः ये आिIत
है।महत् धान पर आिIत है। विु @ पर अहकं ार आिIत है। अहक
ं ार मे 11 इि(Zयाँ व 5 त(मात
आिIत है, त(माो मे 5 महाभतू आिIत है।
िलड़्गम-इसकA Jया;या मे गौडपादभाEयं एवं तव कौमदु ी मे अ(तर है गौड़पादभा<यं मे तो-िलड्गं
लययुCं लयकाले पच ं महाभूतािन त8मा0ेषु लीय8ते ...................................च &धाने लयं
यातीित। कहा गया है। िक(तु तव कौमदु ी मे इस कार कहा गया है,िलंड्गं धान7य अथात् ये
धान के अनमु ान मे हेतु होते है।
सावयम-् अवयव1 वाला होना ही सावयव है।Jय तव सावयव ह5 ।अवयव शOद 7पश Kप रस
ग(ध ही है उनसे य
ु होने से Jय सावयव है।
परतं0म-् Jय 7वयं से उप(न नही हो◌ेते ह5। अतः परत( है।परत( का अथ पराधीन होना भी
है।ये Jय के धम Jया;यात हMए अब कृ ित कA िवKपता िदखलाने के िलए कहते ह5- अJय ं
िवपरीतम् िजसम सभी काय अकट Kप से कारण मे िवमान रहते ह5। वह अJय है। वह Jय के
िवपरीत धम वाला है। यतः Jय हेतमु द,अिनय,सि य,अनेक,आिIत,िलड़्.ग,सावयव, तथा
परत( है िक(तु अJय अहेतमु द,् िनय,एक,आIय,अिलङ्ग,िनरवयव तथा 7वत( ह5। 10
अ$यास &.

h 1. दःु ख िकतने ह5-


(a). तीन (b) पाँच
(c). दो (d). चार
h 2. दःु खय का आयंितक िवनाश होता है -
(a). लौिकक उपाय से (b). वैिदक उपाय से
(c). तवHान से (d).. इनम से िकसी से नहN
h 3. तव1 कA कुल सं;या है -
उतराखड म
ु िविवालय ९६
भारतीय दश
न MASL-103
(a). 1 (b). 20
(c).. 18 (d).. 25
h 4. कृ ित िवकृ ित तव1 कA सं;या है-
(a). 5 (b). 8
(c). 7 (d). 4
h 5. सां;य 7वीकृ त माण ह5 -
(a). के वल यc (b). के वल अनमु ान
(c). के वल आगम (d). ये सभी
h 6. िवकृ ित तव ह5 -
(a). 8 (b). 16
(c). 12 (d). 20
h 7. ितिवषया3यवसायः लcण है -
(a). यc का (b). अनमु ान का
(c). आगम का (d). उपमान का
h 8. िलङ्ग िलङ्गी पवू क
 होता है -
(a). आगम (b). अनमु ान
(c). यc (d). उपमान
h 9. अनमु ान के भेद ह5 -
(a). 2 (b). 5
(c). 3 (d). 4
h 10. अितदरू ात् .................................. म 8 बाधक हेतु ह5 -

उतराखड म
ु िविवालय ९७
भारतीय दश
न MASL-103
(a). यc के (b). अनमु ान के
(c). उपमान के (d).. आगम के

h 11. सां;य दशन 7वीकार करता है -


(a). असकायवाद (b). सकायवाद
(c).. दोनो (d). इनम से कोई नहN

3.4 सारांश
सा;ं यकाCरका अय(त ही महवपणू  V(थ है।इस इकाई मे 1-10 काCरकाओ तक जो ितपािदत है
उनका सार िन*नवत है।सां;यशा7त दःु खो के ऐकाि(तक एवं आयंितक शमन का साधन Jय
अJय एवं H के िववेक Hान से उप(न कै वLय को मानता है। अतः यह मोc शाf है। Jय म 23
तव है- महत् तव,अहकार ,11इि(Zयाँ,5 त(मााएं और 5 महाभतू । अJय तव कृ ित है यह एक
है। H पK
ु ष है। इस कार कुल 25 तव है इनका Hान y% अनमु ान और शOद माण से ही होता है।
काCरका 4-7 म सां;य कA Hानमीमांसा विणत है। कृ ित के िसि@ के सा◌ाधन भतू सकायवाद को
मानता है यह इसका कारणता िस@ा(त है। Jय सकारण Jया~य सि य अनेक आिIत िलङ्ग और
सावयव परतं है। अJय अकारण िनय Jयापक अिलंग आIय िनरवयव और 7वतं है।

3.5 पा4रभा5षक शदावल

1. दःु ख - ितकूल वेदनीय रजोगणु का पCरणाम िवशेष दःु ख है।


2. कृ ित - मल
ू सृजन काCरणी जड अचेतन शि जो गणु ो कA सा*याव7था है।
3. अJय - िजसमे सभी काय समहू अकट Kप से िवमान होते है। कृ ितअJय माया धान
पयाय शOद है।
4. Jय -कारण और काय 7वKपामक महत् आिद 23 तव है।
5. सकायवाद- वह िस@ा(त जो काय को उपिS के पहले कारण मे सत् मानता है।
3.6 अयास 
नो के उतर
1.a 2.c 3.d 4.c
5.d 6.b 7.a 8.b

उतराखड म
ु िविवालय ९८
भारतीय दश
न MASL-103
9.c 10.a 11.b

3.7 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1.सा;ं यकाCरका-गौडपादभाEयसमि(वता लेखक ईरकृ Eण-Jया;याकार पं0Iी tवाला साद
गौड,काशक-चौख*बा िवाभवन वाराणसी सं7करण 2004।
2. सां;यतवकौमदु ीभा-Jया;याकार डा0 आा साद िमI,काशक- अcयवट काशन
इलाहाबाद,सं7करण 1994
3. सा;ं यकाCरका यिु दीिपका सिहत-Jया;या डा0 रमाशकं र िपाठी काशक कEणदास अकादमी
वाराणसी,सं7करण -1999
4. सां;यकाCरका माठरवृिS व जयमगं ला समि(वत-संशोधक सकाCर शमा वगं ीय काशक
चौख*भा स7ं कृ त सीरीज आिफस वाराणसी तृतीय स7ं करण 1994
,5.सां;यदशनम-् सां;यवचनभाEयसिहत स*पादक डा0 पं0 गजानन शाfी मसु लगाँवकर
6. देवीभागवत- (मलू स7ं कृ त) गीता ेस गोरखपरु ।
3.8 सहायक उपयोगी पा)य साम$ी
आप इस इकाई का अ3ययन के िलए अधोिलिखत पाठ्य सामVी का उपयोग कर सकते है-
1.सां;यकाCरका-गौडपादभाEयसमि(वता लेखक ईरकृ Eण-Jया;याकार पं0Iी tवाला साद
गौड,काशक-चौख*बा िवाभवन वाराणसी सं7करण 2004।
2. सा;ं यतवकौमदु ीभा-Jया;याकार डा0 आा साद िमI,काशक- अcयवट काशन
इलाहाबाद,सं7करण 1994
3. सा;ं यकाCरका यिु दीिपका सिहत-Jया;या डा0 रमाशक
ं र िपाठी काशक कEणदास अकादमी
वाराणसी,सं7करण -1999
4. सां;यकाCरका माठरवृिS व जयमगं ला समि(वत-संशोधक सकाCर शमा वगं ीय काशक
चौख*भा स7ं कृ त सीरीज आिफस वाराणसी तृतीय स7ं करण 1994
,5.सां;यदशनम-् सां;यवचनभाEयसिहत स*पादक डा0 पं0 गजानन शाfी मसु लगाँवकर
3.9 *नब%धामक 

h 1. थम इकाई कA काCरकाओ ं का स◌
ं ाराँश िलिखए ?
h 2. सा;ं य दशन कA Hानमीमासं ा पर काश डािलए?
h 3. सकायवाद िस@ा(त को समझाइए ?

उतराखड म
ु िविवालय ९९
भारतीय दश
न MASL-103

-4   / 11-20  0 


1 

इकाई क संरचना
4.1 तावना
4.2 उे

4.3. साBयकाGरका11-20 मलू पाठ से अथ5 एवं >याBया
4.4 स(दभ5 6(थ सचू ी
4.5 पGरभािषक श-दावली
4.6 अ3यास 01 उ4र
4.7 स(ं दभ5 6(थ सचू ी
4.8 सहायक उपयोगी पाठ्य साम6ी
4.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय १००
भारतीय दश
न MASL-103

4.1 तावना
7ततु चतथु  इकाई मे सां;यकाCरका कA 11 से 20 काCरकाओ ं का मल ू पाठ,अथ एवं Jया;या कA
गयी है। lयारहवN काCरका म कृ ित एवं तथा Jय के समान धम और पK ु ष तव कA कृ ित एवं
कृ ित से सKपता एवं िवKपता ितपािदत है। 12वN काCरका म गणु 1 का 7वKप योजन और
णाली का वणन है। 13वN काCरका म तीन1 गणु 1 का नाम व वैिश%य ितपािदत ह5। 14वN काCरका
म कृ ित आिद शoू म तव1 म अिववेिकव आिद धम^ कA िसि@ कA गयी है। 15वN काCरका म
कृ ित तव कA िसि@ के 5 हेतओ ु ं का वणन है। 16वN काCरका म तीन1 गणु 1 के समदु य से उप(न
हMई सृि% म नानाव का उपपिS पवू क ितपादन है। 17वN काCरका म पK ु ष के अि7तव को िस@
करने के िलए 5 हेतओ ु ं को िदया गया है। 18वN काCरका म पK
ु ष के बहMव को िस@ िकया गया है।
19वN काCरका म पK ु ष के वा7तिवक धम का ितपादन िकया गया है। 20वN काCरका म अचेतन
िलगं के चेतनवत् ितपािदत होने के कारण का वणन िकया गया है।

4.2 उे

7ततु इकाई का अ3ययन करने के उपरातं आप िन*न त_यो से पCरिचत हो जायेग -

• कृ ित का 7वKप Wया है ? गणु कौन ह5 ?, कृ ित कA िसि& िकन हेतओ


ु से होती है ?
• पKु ष का 7वKप Wया है, पK
ु ष कA िसि@ कै से होती है ?
• पK
ु ष एक है या अनेक ?

4.3 सा.यका4रका 11-20 मल


ू पाठ,अथ# एवं >या.या
अवतरिणका-सा;ं यकाCरका 8 मे कहा गया है- तFच काय महदािद &कृितिवLपं सLपं च ।
अथात अJय एवं Jय मे असमान धम है और समान धम भी है। असमान धम काCरका 10 म◌ ं े
ितपािदत िकये गये ह5 िक(तु दोनो के समान धम Wया है ? पK
ु ष िकस कार उनके सyश एवं िभ(न
है ऐसी आशकं ा होने पर कहा गया है-
ि0गुणमिववेिक िवषयःसामा8यमचेतनं &सवधिम

<यCं तथा &धानं तिपरीत"तथा च पुमान।् । का0-11
अ8वय-Jय ं तथा धानं िगणु मअ
् िववेिक िवषयः सामा(यम् अचेतनं सवधिम । पमु ान् ति&पCरतः
तथा च।
अथ-Jय तथा धान दोनो िगणु ामक, अपृथक िवषय अथात् भोlय या

उतराखड म
ु िविवालय १०१
भारतीय दश
न MASL-103
िवHानवाn,सवसाधारण,जड़ एवं पCरणामी भी है । पK
ु ष उन दोनो से िभ(न भी है एव सyश भी है।
शारदाJया;या-Jय एवं अJय मसमान धमw के ितपादनाथ कहते है िगणु िे त-.
<यCं तथा &धानं ि0गण ु म-् Jय तथा धान दोनो ही िगणु ामक है। Jय सव, रजस् एवं तमस्
के धम सख ु द.ु ख एवं मोह से य
ु होने से िगणु ामक है और धान तो गणु ो कA सा*याव7था होने
से िगणु ामक है यह दोनो मे पहली सKपता है।
दोन1 म दसू री सKपता है अिववेिक जैसे धान अपने से अिभ(न है ये गणु है यह कृ ित है ऐसा भेद
नही स*भव है Wय1िक कृ ित िगणु 1 कA तZूपता है वैसे ही यह Jय है यह गणु है ऐसा भेद नही है
अतःअिववेिक का अथ अिभ(नता है।
दोन_ मे तीसरी सLपता है- िवषयः-िवषय का अथ है भोlय होना Jय और अJय पK ु ष का
भोlय होने से िवषय है। सभी का भोlय होने के कारण िवषय है (गौडपाद)। िवषयः
VाnःिवHानाविहCरित यावत् (तव कै मदु ी)।Jय और अJय िवHान वाn होने से भी िवषय है।
दोन1 म चतथु  समानता है सामा(यम् अथात् सवसाधारण होना Jय और अJय दोन1 मLू यदासी
कA तरह से सवसाधारण होने से सामा(य है।
दोन1 मे 5वN सKपता है अचेतनम् अचेतन का अथ है सख
ु और दःु ख का Hान नही होना । चँिू क
सखु दःु ख और मोह का Hान Jय और अJय को नही होता है अतः वे दोन1 अचेतन है। जड
होना ही अचेतन होना है।
दोन1 म 6वी समानता है सवधिम- सवKपो धमw यः सो अ7य अि7त इित सवधिम- िजसम
सवKप धम िवमान है वह सवधमm है। सवधिमता का अथ है िनय पCरणामशीलता। Jय
और अJय दोन1 म िनय पCरणाम होता रहता है। यह सवKप धम िवमान रहते ही विु @ से
अहक ं ार,उससे 11 इि(Zयाँ व 5 त(मा , 5 त(माो से 5 महाभतू सतू होतेह।5 ऐसे ही कृ ित म भी
िनय Kप से पCरणाम होता रहता है। लय काल मे गणु ो म सKप पCरणाम होता रहता है। तथा
सृि%काल म गणु 1 म िवKप पCरणाम होता है । िवKप पCरणामाव7था म यह महदािद को सतू करती
है। यहाँ तक Jय और अJय के सKप धम ितपािदत हMए।
िक(तु पK
ु ष का इनसे वैK~य तथा साK~य बतलाने के िलए कहा गया है-पमु ान् ति&पCरतः
तथा च। पK
ु ष उन दोनो Jय तथा अJय के िवKपधमवाला भी है और उस अJय के समान
धमवाला भी है।पK
ु ष अिगणु है,िववेकA है, भो ा है असामा(य है, चेतन है तथा अपCरणामी है,
अकारण िनय Jयापक िनिE य अनेक, आIय अिलंग िनरवयव और 7वतं है। 11

उतराखड म
ु िविवालय १०२
भारतीय दश
न MASL-103
पवू ापर स*ब(ध- अJय तथा Jय िगणु ामक है उन िगणु 1 का 7वKप Wया है। उनका योजन
(काय) Wया है ? उनका Jयापार कै से होता है ? ऐसी आकांcाओ ं के होने पर कहा गया है-
&ीय&ीितिवषादामकाः &काश&वृि2िनयमाथा
ः।
अ8योऽ8यािभभवा यजननिमथुनवृ2यI गुणाः।।का0.12
अ8वय गणु ाीयीितिवषादामकाकाशवृिSिनयमाथाअ(योऽ(यािभभवाIयजननिमथनु वृSयB
भवि(त।
अथ
-तीनो गणु सख ु ,दःु ख मोहामक है,काशन,वतन,तथा िनयमन इनके योजन है तथा ये एक
दसू रे को अिभभतू करते ह5 ,एक दसू रे के आIय बनत है , एक दसू रे के उपादक (पCरणाम सहकारी)
होते ह5, एक दसू रे से िमथनु ीभतू होते ह5 और एक दसू रे कA वृिS को उप(न करने वाले होते ह5।
शारदाJया;या-गणु ाः ीयीितिवषादामकाः ीयामकः अीयामकः िवषादामकः ते तथा -
तीन1 गणु सख ु दखु और मोहामक ह5।गणु का अथ है दसू रे के िलए होना , गौड होना और रtजु कA
तरह से बॉधने वाला होना। ये तीन ह5 सवगणु रजोगणु व तमोगणु । सवगणु का 7वKप सुख है। रजो
गणु का 7वKप दख ु है और तमो गणु का 7वKप मोह है। सख ु कA अव7था म सव गणु बल होता
है। और दख ु कA अव7था म रजोगणु बल होता है। मोह कA अव7था म तमो गणु बल होता है।
गणु 1 का 7वKप ितपादन के अन(तर इनका योजन बताया जाना अभी% है। इनका योजन है-
&काश&वृि2िनयमाथा
ः &काशाथ
ः च &वृtयथ
ः च िनयमाथ
I अथात् गणु काशन वतन
और िनयमन योजन वाले ह5। सवगणु का योजन िवषयेां को कािशत करना है, रजोगणु का
योजन ि या म वृS करना है । तमोगणु का योजन िनयिं त करना है। गणु 1 का
<यापारहैअ8योऽ8यािभभवा यजननिमथुनवृ2यIअ8योऽ8यािभभवाः,अ8योऽ8या याःअ
8योऽ8यजननाः, अ8योऽ8यिमथुनाः अ8योऽ8यव2 ृ याः च ते (गौडपाद )। ये गणु एक दसू रे को
अिभभतू करत ह5 ,एक दसू रे के आIय बनत है एक दसू रे के उपादक (पCरणाम सहकारी) होते ह5,
एक दसू रे से िमथनु ीभतू होते ह5 और एक दसू रे कA वृिS को उप(न करने वाले होते ह5।
अ8योऽ8यािभभवाः तीन1 गणु पर7पर एक दसू रे को ितर7कृ त करने वाले होकर ही अपने योजन
को करते ह5 जैसे सवगणु तमोगणु व रजोगणु को अिभभतू करके ही िवषयो को कािशत करता है
ऐसे ही रजोगणु और तमोगणु भी अ(य दोनो गणु 1 को अिभभतू करके अपने योजन को परू ा करते
ह5।
अ8योऽ8या याः - गणु एक दसू रे के आIय बनने वाले होते है। जब िवषय1 का काशन होता है
तो वह तमोगणु और रजो गणु पर अवलि*बत होता है ऐसे ही अ(य गणु 1 कA ि या अ(य दसू रे पर
अवलि*बत होती है।

उतराखड म
ु िविवालय १०३
भारतीय दश
न MASL-103
अ8योऽ8यजननाः तीन1 गणु एक दसू रे के पCरणाम सहकारी ह5। गणु पर7पर अपेcा रखते हMए
लयाव7था म कृ ित म सKपCरणाम (जनन) उप(न करते ह5।
अ8योऽ8यिमथुनाः ये पर7पर िमथनु भाव से रहते ह5 ये पर7पर सहयोगी ह5 जैसे fी पK ु ष िमलकर
अपने योजनो को परू ा करते ह5 ठीक वैसे ही गणु भी पर7पर सहायक होकर ही अपना योजन परू ा
करते ह5। जैसा िक कहा गया है-
अ8यो8यिमथुनाः सवa सवa सव
0गािमनः।
रजसो िमथुनं सवं सव"य िमथुनं रजः।।
तमसIािप िमथुने ते सवरजसी उभे।
उभयोः सव रजसोिम
थुनं तम उFयते।।
नैषामािदः सJ&योगो िवयोगो वोपल$यते।। देवीभागवत्
अ8योऽ8यव2 ृ यः- गणु एक दसू रे कA वृिS को उप(न करते ह5 (अ(यो(यवृिSः जनयि(त इित माठरः)
जैसे कोई नय िवन‡ता िवास चतरु ा fी भातृ ब(धु व पित को सख ु ी करती है वही सौत1 मे दःु ख एवं
मोह को उप(न करती है। इस कार सव गणु के &ारा रजोगणु व तमोगणु कA वृिS उप(न कA गई।
ऐसे ही अ(य दोन1 गणु भी अ(य दोन1 के Jयापार को उप(न करते ह5। भगवान Iी कृ Eण ने भी गीता
मे इसका संकेत िकया है- गुणा गुणेषु वत
8ते। 12
पवू ा
पर सJब8ध- िगणु 1 का 7वKप योजन,एवं Jयापार का ितपादन िकया गया है। सख ु दःु ख
मोहामक िगणु कौन ह5 ? उनमे Wया वैिश%्य है ऐसी आकांcा होने पर कहते ह5-
सवं लघु &काशकिममुपJभकं चलं च रजः।
गुLवरणकमेव तमः &दीपवFचाथ
तो वृि2ः।।का0.13
अ8वय-सवल ं घु काशकंरजःचलंउप%*भकंचलंतमःगK ु वरणकमेइ%अ ं थतःदीपववृS।
अथ
- सवगणु हLका एतएव काशक माना गया है , रजोगणु चच ं ल एतएव उSेजक माना
गया है । तमोगणु भारी अतएव िनयामक माना गया है । योजन कA िसि@ मे ये दीप कA तरह
िमलकर Jयापार करते ह5 ।
शारदा<या'या -सवं लघु काशकम् इ%म-् सव गणु लघु और काशक है। जब सव गणु बल
होता है तब अगं हLके होते ह5 , बिु @ िवषय1 का र् काशन करती ह5, इि(Zय1 मे स(नता होती है।
देवीभागवत म सवगणु के स*ब(ध म िन*न िवचार िमलते ह5 -
सवं &ीयामकं ेयं सुखा&ीितसुमुवः।
आज
वं च तथा सयं,शौचं, 6ा,*मा,धृितः।।
अनक ु Jपा तथा ल@जाशाि8तः स8तोष एव च।
एतैः सव&तीितI जायते िनIला सदा।।
5ेतवण सवं धमa &ीितकरं सदा ।
सFद्;6ोपादकं िनयंअसFद्;6ािनवारकम।् ।3.8.2-4

उतराखड म
ु िविवालय १०४
भारतीय दश
न MASL-103
उप%*भकं चलं च रजः। रजोगणु उSेजक और ि याशील है।यह उSेजकता वैसी ही है जैसे वृष को
देखकर दसू रा वृष उSेिजत होता है। रजोगणु ीJयि कलहेमी होता है ,उसुक मन वाला होता है
चंचलिचS वाला होता है। इसका 7वKप देवीभागवत म इस कार विणत है-
रCवण रजः &ोCम&ीितकरमुतम।्
अ&ीितदु
ःखयोगवाöयेव सुिनिIता ।।
&ेषोऽथ तथा ;ोहो मसरः "तJभ एव च।
उकXठा च तथािन;ा 6ा त0 च राजसी।।
मानो मद"तथा गवv रजसा िकल जायते।
&येत<यं रज"वेतैल
*णैI िवच*णै।।3.8.6-8
तमःगुLवरणकमेव-तमोगणु भारी होता है अतः अवरोधक माना गया है। जब तमोगणु बल होता
है अगं भारी होते है। इि(Zयाँ अपने अपने िवषय1 का काशन नहN करती ह5।देवीभागवत म इसका
7वKप इस कार िमलता है -
कृ>णवण तमः &ोCं मोहनं च िवषादकृत।्
आल"यं च तथा अानं िन;ा दै8यं भयं तथा।।
िववादIैव काप
Xयं कौिट]यं रोष एव च।
वैषJयं वाितनाि"तRयं परदोषानदु श
नम् ।।
&येत<यं तम"वेतैल
*णैः सव
था बुधैः।
ताम"या 6या युCं परतापोपपादकम।् ।3.8.9-11
अथ
तः &दीपवत् वृि2ः- पर7पर िवरोधी 7वभाव वाला होने पर भी गणु य दीप कA तरह एक ही
योजन कA िसि@ के िलए िमलकर काय करते ह5। ऐसा देखने मे आता है िक जैसे अिlन बSी और
तेल का िवरोधी है िफर भी उनके साथ िमलकर िवषय1 को कािशत करता है वैसे ही सव रजस्
और तमस् भी पर7पर िवरोधी होने पर भी पर7पर सहयोग पवू क
 अपना काय करते ह5। सहयोग का
अथ है पK
ु ष का भोगापवग। जैसा 31वN काCरका मे कहा गया है- पKु षाथ एवं हेतःु न के दिचत्
कायते करणम।् 13
पवू ा
पर सJब8ध-11वN काCरका मे िगणु मिववेिक िवषयः सामा(यमचेतनम् सवधिम Jय ं तथा
धानम् ऐसा कहा गया है। यc पदाथw मे िगणु आिद धम तो िस@ है िक(तु सoू म अJय तथा
विु @ आिद मे इनकA सSा कै से 7वीकार कA जा सकती है ? ऐसी आकांcा होने पर कहा गया है -
अिववेRयादेः1 िसि6ः 0ैगुXया2िपय
याभावात।्
कारणगणु ामकवाकाय
"या<यCमिप िस6म।् ।का0-14
अ8वय-अिववेWयादेःिसि@ःैगु याSि&पययाभावात।् काय7यकारणगणु ामकवात अJयकतमअ
् िप

उतराखड म
ु िविवालय १०५
भारतीय दश
न MASL-103
िस@म।्
अथ
-िगणु ामक होने के कारण अJय आिद मे अिववेिकवािद धमw कA िसि@ होती है। Wय1िक
इनके अभाव म अJय आिद पदाथा\ म तीन1 गणु 1 का अभाव हो जायेगा और काय के कारण गणु 1
से ही य
ु होने से इन अिववेिकव आिद धम^ के आIयभतू अJय कA भी सSा िस@ होती है।
शारदा<या'या-अिववेRयादेःिसि6ः0ैगुXयात-् अJय इयािद अयc पदाथw मे
अिववेिक,िवषय,सामा(य,आिद धम कA िसि@ िगणु ामक होने से होती है।जो-जो पदाथ
िगणु ामक होते है वे अिववेकA आिद धमw से य
ु होते है जैसे यc होने वाले Jय पदाथ य

होते ह5। यह अ(वयJयािD पवू क
 अJय और Jय म अिववेिक आिद धमw कA िसि@ कA गयी है।
ति&पययाभवात्-अथात जहाँ अिववेिकव िवषयवािद धम^ का िवपयय(अभाव) है। वहाँ ैगु य
का भी अभाव है जैसे पK
ु ष म। अतः Jय और अJय ैगु य Kप हेतवु ाले होने से अिववेिक
1 िववेWयािदः -माठरवृत
िवषय सामा(य आिद धम वाले है। यहा Jयितरे कJयािD पवू क
 अिववेिकवािद कA अJय आिद मे
िस@ कA गई है। चँिू क अभी तक अJय को िस@ नही िकया गया है तो उसमे अिववेिक आिद धम^
कA िसि@ कै से होती है ऐसी आशक
ं ा होने पर कहते ह5 -
काय
"य कारणगुणामकवात् अ<यCमअ ् िप िस6म-् काय मे कारण के गणु होते है । जैसे 7वण
िनिमत आभषू ण 7वण के गणु वाला ही होता है उसी तरह Jय काय भी िगणु ामक तथा
अिववेिकवािद धम वाले देखे जाते ह5। इस ि7थित मे तZूप मल
ू कारण अJय िस@ होता है। 14
पवू ा
पर संJब8ध- अिववेिकवआिद धम य
ु अJय है उसकA सSा कै से िस@ कA जा सकती है ?
ऐसी आशक ं ा होने पर कहा गया है-
भेदानां प?रमाणात् सम8वयाFछिCतः &वृ2ेI।
कारणकाय
िवभागादिवभागाद् वै5LSय"य।।का0.15।।
कारणम"यवCं,&वत
तेि0गण ु तःसमुदयाFच।
प?रणामतः सिललवत् &ित&ितगुणा यिवशेषात।् ।का016।।
अ8वय - भेदानां पCरमाणात,् सम(वयात् , शि तः वृSःे ,कारणकायिवभागात् , वैK~य7य
अिवभागात् चअJय ं कारणम् अि7त। िगणु तः च समदु यात् वतते , ितितगणु ाIयिवशेषात्
पCरणामतः सिललवत् भवि(त।
अथ
- महतआ् िद काय^ के पCरिमत होने , कारण के समान होने , कारण कA शि से ज(य होने,
कारण काय के अलग-अलग मालमू होने , लय कA अव7था म नानाKप काय^ के कारण म लीन

उतराखड म
ु िविवालय १०६
भारतीय दश
न MASL-103
होने से , सबका एक कारण अJय िस@ होता है। अJय अपने तीनो गणु 1 के 7वKप से तथा िमले
हMए तीन1 गणु 1 के समहू से काय करता है एक-एक गणु के आIय से उप(न भेद के कारण पCरणाम
से जल कA भॉित िविभ(न होते ह5।
शारदा<या'या
भेदानां प?रमाणात-् महद् आिद काय^ के सीिमत होने से अJय का अि7तव िस@ होता है। इस
संसार के पदाथ सीिमत परतं अJयापक और अनेक ह5। ये असीिमत 7वतं Jयापक और एक कA
ओर सक ं े त करते ह5। जैसे बिु @ अहक
ं ार 11 इि(Zयां 5 त(मा 5 महाभतू सीिमत परतं अJयापक
और अनेक ह5 इनका जो कारण है वह असीिमत 7वतं Jयापक और एक होना चािहए वह कारण है
अJय ।
सम8वयात्
ससं ार के सभी पदाथ सख
ु ामक दख
ु ामक और मोहामक ह5। इन सभी काय^ के मल ू कारण म भी
इस िगणु ामक 7वभाव का होना आवbयक है। इनका मल ू कारण अJय है जो िगणु ामक है। इस
कार तीनो गणु 1 के 7वKप का सम(वय कृ ित म होने से उसका अि7तव िस@ है।
शिCतः &वृ2ेः
शि से वृS होने से अJय का अि7तव िस@ होता है। Jय आिद काय शि के &ारा ही
उप(न होते ह5। शि आIयहीना नहN होती है। उस शि का आIय अJय है। लोक म िजस
Jयि म जैसा काय करने कA शि होती है वैसे ही काय को करता है ठीक ऐसे ही सृि% को उप(न
करने कA शि के वल कृ ित म ही है। अतः उसका अि7तव िस@ है।
कारणकाय
िवभागात्
करोित इित कारणं ि यते इित काय\ तयोिवभागः त7मात् जो करता है वह कारण है और जो िकया
जाय वह काय कहा जाता है, च◌ू ॅिक कारण अलग होता है और काय अलग होता है इससे भी
कृ ित का अि7तव िस@ होता है। जैसे िमYी का िपड कारण है और घट काय है Wय1िक वही मधु
जल दlु ध आिद Vहण करने मे समथ है न िक िमYी का िपड। इसी तरह से Jय और अJय म भी
भेद है ,Jय काय अलग ह5 और अJय धान Jय से िभ(न कारण है। अतः अJय का
अि7तव िस@ है ।
वै5LSय"य अिवभागात्
िवKप7य भावो वैK~यम् बहMKपम् इित अथः त7य िवKपता का भाव ही वैK~य है। वैK~य
का अथ है बहMKपता उसके अिवभ Kप म अ(तभतू होने के कारण धान का अि7तव िस@ है।

उतराखड म
ु िविवालय १०७
भारतीय दश
न MASL-103
लयकाल म ैलोWय 5 महाभतू 1 म अिभ(न बन जाता है । 5 महाभतू 5 त(मााओ ं मे अिभ(न बन
जाते ह5। पंच त(मा और 11 इि(Zयां अहक
ं ार म , अहक
ं ार बिु @ म और वह अJय म अिवभ
बन जाती ह5। इस कार तीनो लोक लयकाल म कृ ित म अिवभ Kप से िवमान रहते ह5। सभी
काय समहू के कृ % Kप से अवि7थत होने के कारण अJय को धान कहते ह5। माठरवृिS कहती
है कषuण धीयते अव7था~यते अािखलिमित धानम।् इस अिवभाग के कारण कृ ित का अि7तव
िस@ होता है।
धान म सभी काय लयाव7था मे अिवभ Kप से िवमान रहते ह5।और वह एक है तो उससे
अनेक काय^ कA उपिS कै से होती है ? ऐसी आशक ं ा होने पर कहा गया है -ि0गुणतः समुदयात् च
&वत
ते - धान तो तीनो गणु 1 कA सा*याव7था है। उस अव7था म कृ ित म सKप पCरणाम होता है
िजसे िगणु तः शOद से कहा गया है। उसी िगणु ामक कृ ित से तीन तरह का Jयापार होता ह5। वह
Jयापार गणु cोभ होने पर होता है तीनो गणु िमलकर Jय को उप(न करते ह5। जब सृि% एक ही
कारण से उप(न है तो उसम िविभ(नता Wय1 िदखलायी पड़ती है ? ऐसी आशक ं ा होने पर कहते ह5
ितितगणु ाIयिवशेषात् पCरणामतः सिललवत् भवि(त। जैसे आकाश से िगरा हMआ एक ही जल
अनेक भ-ू िवकार1 को ाD करके आम, जामनु तथा नीम आिद का रस बन जाने पर मीठा कसैला
ित आिद अनेक कार का हो जाता है उसी कार येक काल म एक ही गणु के र् बल होने से
ाधा(य ाD उस गणु का आIय लेकर अधान गणु अनेक पCरणाम उप(न करते ह5। 15-16पवू ापर
स*ब(ध- धान का अि7तव िस@ िकया जा चक ु ा है ।अब पKु ष के अि7तव िक िसि@ के िलए
कहा गया है -
सड्.घातपराथ
वात् ि0गुणािदिवषययादिधeानात।्
पुLषोऽि"त भोCृभावात,् कै व]याथ &वृतेI।।का0.17।।
अ8वय-पK ु षः अि7त सड्.घातपराथवात् िगणु ािदिवषययाद् अिधvानात् भो ृ भावात्,कै वLयाथ
वृतेB।
अथ
-संघातो के दसू रो के िलए होने के कारण,िगणु ािद धमw से िभ(न धमw वाला होने से,(कृ ित
का) संचालक होने से,भो ा होने के कारण,और कै वLय ािD के िलए वृS होने से पK ु ष का
अि7तव िस@ है।
शारदा<या'या-पK ु षः अि7त, पK ु ष का अि7तव है इसके साधक हेतु है। संघात पराथवात्-जो
यह महदािद सघु ात पदाथ है वह पK ु ष के िलए है ऐसा अनमु ान िकया जाता है। Wय1िक संघात पदाथ
अचेतन है अतःवे पय\क् कA तरह दसू रे के िलए है और भी यह शरीर पंचमहाभतू ो का संघात है। यह
भोlय शरीर िजसके िलए है वह पK ु ष है।
उतराखड म
ु िविवालय १०८
भारतीय दश
न MASL-103
ि0गुणािदिवपय
याद्-िगणु ,अिववेिक िवषय सामा(य अचेतन पCरणाम धम सावयव,परतं से
िवपरीत धमw वाला होने से पुKष का अि7तव िस@ है। Jय तथा अJय दोनो ही मे ये सKप धम
है-िगणु अिववेिक िवषय,सामा(य पCरणाम समान धम है। िग◌ ं ुण िनगणु का ,अिववेकA िववेकA
का,और िवषय अिवषय का ,सामा(य असामा(य का तथा चेतन अचेतन का पCरणाम अपCरणाम का
िनदuश करता है। ये Jय एवं अJय के िवपरीत धम िजसमे है वह तव पK ु ष है।
अिधeानात-् सच ं ालक होने के कारण भी पK ु ष का अि7तव Jय और अJयकत सभी िगणु ामक
होने से जड़ है वे 7वयं अपना सच ं ालन नही कर सकते है। उसके सच ं ालक के Kप म पKु ष कA सSा
िस@ होती है जैसे संसार म लंघन धावन ि या मे समथ अो से य ु रथ सारथी के &ारा ेCरत होता
है वैसे ही यह अचेतन शरीर भी पK ु ष के &ारा ेCरत होता है। गीता भी कहती है।
............ fgेशेऽज
ुन ितeित। यही रह7य पंचिसख ने पि% त( मे िनिद% िकया है ।
पL ु षािधिeतं &धानं &व
तते ।
भोCभावात-् भो ा का भाव हो के कारण भी पK ु ष का अि7तव िसि@ होता है। Jय और
अJय िवषय और सामा(य है।भोlय होने के कारण िवषय है मLू यदासीवत् होने के कारण सामा(य
है। इन भोlय पदाथw को भो ा कA अपेcा होती है वह भो ा पK ु ष है जैसे षˆस समि(त Jयंजन
भोlय है उसके भो ा के Kप मे यHदS कA िसि@ होती है। ऐसे ही महदािद िलड्.ग 7वयं अपने
भो ा नही है ये भोlय है ।इनके भो ा के Kप मे आमा का अि7तव िस@ होता है।
कै व]याथ &वृ2ेI- कै वLय के िलए वृS होने से भी पुKष कA अलग सSा िस@ होती है। कै वLय
का अथ है दःु ख का आयि(तकशमन।यतः शाf कै वLय का ितपादन करते है और लोग इसे पाना
चाहते है अतः यह िस@ होता है िक पK ु ष है जो मिु चाहता है इस काCरका मे 5 हेतओ ु ं से आमा
के अि7तव को िस@ िकया गया है। 17 पवू ापर स*ब(ध-पK ु ष का अि7तव तो िस@ हो चक ु ा िक(तु
पKु ष एक है या अनेक ? ऐसी आशक ं ा होने पर कहा गया है-
जननमरणकरणानां1 &ितिनयमादयुगप&वृ2ेI
पुLष बहcवं िस6ं 0ैगुXयिवपय
याFचैव2 ।। का0 18
1.ज(ममरणकरणानाम-् गौडपाPाEय,माठरवृिS,यिु दीिपका।2.िगणु ािदिवपययाFचैव-यिु दीिपका।
अ8वय- जननमरणकरणानां ितिनयमात्, अयगु पद् वृSB े , ैगु ययिवपययात् पK ु षबहMवं िस@म्
एव।
अथ
- ज(म, मृयु तथा इि(Zय1 कA येक जीव के साथ Jयव7था होने से, एक ही साथ (काया)
मवृS न होने से तथा सख ु -दःु ख मोह म िवपयय होने के कारण पK ु ष बहMत ह5, यह िस@ है।
शारदा<या'या-जननमरणकरणानां &ितिनयमाद् पL ु षबहcवं िस6म- ज(म मृयु तथा इि(Zय1
कA येक जीव के साथ अलग-अलग Jयव7था होने के कारण पK ु ष बहMत ह5। यिद आमा एक होती
तो एक ही जीव के ज(म से सभी जीव1 का ज(म हो जाता। लेिकन हम देखते ह5 िक एक ही जीव के
ज(म के साथ सभी जीव1 का ज(म नहN होता है। इससे यह िस@ होता है िक आमा एक नहN अनेक

उतराखड म
ु िविवालय १०९
भारतीय दश
न MASL-103
है। इसी तरह से येक जीव कA मृयु भी अलग-अलग होती है। ऐसा नहN है िक यिद एक कA मृयु
हो जाय तो सभी मर जायँ। इससे भी िस@ होता है िक आमा एक नहN अनेक है। इसी तरह से येक
जीव के साथ Hानेि(Zयां और कमuि(Zयां के बीच अलग-अलग Jयव7था देखने को िमलती है। यिद
आमा एक ही होती तो एक जीव के अ(धे होने पर सभी जीव अ(धे हो जाते। एक ही जीव के पगं ु
होने पर सभी जीव पंगु हो जाते। िक(तु ऐसा लोक म िदखाई नहN पड़ता है। अतएव यह मानना यिु
संगत है िक जीव एक नहN अनेक ह5। इस अश ं म पKु ष बहMव के साधक तीन हेतु ज(म कA Jयव7था,
मृयु कA अलग-अलग Jयव7था और इि(Zय1 कA अलग-अलग Jयव7था को बताया गया है।
अयुQपद्&व2 ृ ेI- और सभी जीव1 के एक ही साथ सyश काय^ म वृS न होने से भी पK ु ष का
बहMव िस@ होता है। यिद आम तव एक होता तो सभी जीव1 कA ि याओ ं म साybय िदखाई
पड़ता, िक(तु हम देखते ह5 िक सभी जीव एक ही साथ एक ही काय म वृS नहN होते ह5। कुछ जीव
धम म वृS होते ह5 तो कुछ अधम म। कुछ जीव वैराlय म वृS होते ह5 तो कुछ जीव आसि म
लगे होते ह5। कुछ जीव ऐय म वृS होते ह5 तो कुछ जीव अनैय कA ओर वृS होते ह5। इससे यह
िस@ होता है पK ु ष एक नहN है बिLक अनेक ह5 ।
ैगु यिवपययात् च तीन1 गणु 1 के पCरणाम सख ु दःु ख मोह म िवपयय िदखाई पड़ने से पK ु ष बहMत ह5।
यिद आमा एक हो तो सभी जीव1 को एक ही साथ सख ु ी एक ही साथ दख ु ी अथवा एक ही साथ
मोहय ु होना चािहए, िक(तु हम देखते ह5 समान ज(म होने पर भी सािवक पK ु ष सुखी, राजसी दख
ु ी
तथा तामसी Jयि मोहय ु होता। इस कारण यही मानना यिु सगं त है िक आमा एक नहN अनेक
ह5। इस कार इस काCरका म पK ु ष बहMव के साधक पाँच हेतओ ु ं को बताया गया है। 18
पूवा
पर संब8ध-पK ु ष बहMत ह5 यह िस@ िकया जा चक ु ा है। अब िववेकHान म उपयोगी उसके धम
कौन-कौन ह5 ? ऐसी आकांcा होने पर कहा गया है-
त"माFच िवपया
सािस6ं साि*वम"य पL ु ष"य
कै व]यJयाEय"थं ;ृवमकतृभाव"च।् । का019
अ8वय- च त7मात् िवपयासात् अ7य पK ु ष7य सािcवं कै वLयं मा3य7थं Z%ृवम् अकतृभावः च
िस@म।्
अथ
-और उन-(िगणु ,अिववेिक,िवषय,सामा(य,अचेतन आिद) से िवपCरत धमw वाला होने से इस
पKु ष का साcी होना,कै वLय,म3य7थ होना,Z%ा होना और अकता होना िस@ होता है।
शारदा<या'या-च त7मात् िवपयासात-् और उन िगणु , अिववेकA, सामा(य, अचेतन, अपCरणामी
आिद धम से िवपरीत धम वाला पK ु ष है। lयारहवN काCरका म Jय और अJय से िवपरीत धम
वाला पK ु ष को कहा गया है-
ि0गणु मिववेिक िवषयःसामा8यमचेतनं &सवधिम

<यCं तथा &धानं तिपरीत"तथा च पुमान।् ।

उतराखड म
ु िविवालय ११०
भारतीय दश
न MASL-103
िगणु ,अिववेिक,िवषय,सामा(य चेतन ये Jय तथा अJय के धम है इससे िवपCरत अथात
अगणु ,िववेिक,अिवषय,असामा(य, चेतन,तथा अपCरणामी धम वाला पK ु ष तव है Jय एवं
अJय से िवपCरत धमw वाला होने से पKु ष के 7वKपगत धम िस@ होते ह5। जो धम िववेक Hान म
अय(त उपयोगी ह5। िववेक Hान म उपयोगी वे धम कौन ह5 ? ऐसी आशक
ं ा होने पर कहते ह5- अ7य
पKु ष7य सािcवं कै वLयं मा3य7थं Z%ृवं अकतृभावB िस@म-् अथात इस पK ु ष म
सािcव,कै वLय, मा3य7थ, Z%ृव और अकतापन िस@ ह5। यही सािcव, कै वLय, मा3य7थ और
अकतापन ही पK ु ष के वा7तिवक 7वKप धम ह5। अब इन पर अलग-अलग िवचार करना अपेिcत
है।
सािcवम् Z%ृवम-् पK
ु ष चेतन है अतः वह िवषय1 को देखने वाला है। िवषय िवषय को नहN देख
सकता है। चेतन ही िवषय1 का Z%ा होता है। Z%ा ही साcी होता है। तव कौमदु ी के अनसु ार िजसको
िवषय िदखाया जाय वही साcी है। जैसे लोक म◌ ं े वादी और ितवादी िववाद का िवषय साcी को
िदखाते ह5 उसी कार कृ ित भी अपने &ारा िकये गये काय को पK ु ष को िदखाती है। यह सािcव
और Z%ृव अिवषयव व चेतनव के कारण िस@ होते ह5। अतः चेतन होने के नाते पK ु ष म◌
ं े
सािcव तथा Z%ृव दोन1 िस@ होते ह5।
कै व]यं माEय"थम-् दःु ख1 कA िनवृिS ही कै वLय है। कै वLय, मोc, अपवग, मिु पयाय ह5। जहाँ-
जहाँ िगणु व है वहN सुख-दःु ख और मोह है। चँिू क पK
ु ष िनगणु है। अतः उसम सुख-दःु ख आज भी
नहN है। अतएव वा7तिवक Kप से वह िनय कै वLय ाD है। कम और कता िगणु ामक ही ह5। पK ु ष
िनगणु है। अतः वह कम और कता दोन1 से ही परे है। यही कारण है िक वह म3य7थ है। पK ु ष कA
म3य7थता वैसी ही है जैसे योगी कृ िष काय मे लगे हMए पK ु ष1 के बीच म रहता हMआ भी उदासीन
रहता है। वैसे ही यह पK
ु ष तव गणु 1 के वृS होने पर भी उदासीन रहता है। म3य7थता उदासीनता
ही है।
अकत
ृभावः - पK ु ष िववेकA है। अपCरणामी है। अतः वह अकता है। गीता तो 7प% Kप से कहती
है- गुणा गुणेषु वत
8ते इित मवा न स@जते ।
पवू ा
पर सबं 8ध -पK
ु ष व7ततु ः अकता है; िक(तु मै चेतनावान् ह‹ँ और म5 जा रहा ह‹ँ ऐसी कटु भाव
कA तीित का कारण Wया है ? ऐसी आकाc ं ा होने पर कहा गया है-
त"मात् तसंयोगादचेतनं चेतनाविदव िलङ्गम् ।
गुण कत
ृवे च तथा कतaव भवयुदासीनः।। का0 20
अ8वय- त7मात् ततसंयोगात् अचेतनं िलङ्गं चेतनावत् इव भवित ।
अथ
- अतः दोन1 (चेतन पK
ु ष और अचेतन कृ ित) के सयं ोग से अचेतन िलङ्ग (बृि@ आिद तव

उतराखड म
ु िविवालय १११
भारतीय दश
न MASL-103
चेतन कA तरह से तीत हो जाता है और उसी कार तीन1 गणु 1 के वा7तिवक Kप से कता होने पर
भी उदासीन पK
ु ष कता सा तीत होता है।
शारदा<या'या- त7मात-् यतः पK ु ष चेतन है अतएव। तत् संयोगात् अचेतनं िलङगं चेतनावत् इव
भवित- उस चेतन पK ु ष के सयं ोग के कारण अचेतन महत् आिद िलङग (सoू म शरीर) चेतन जैसे
तीत होते ह5। जैसे इस संसार म घड़ा यिप शीतल एवं उEण नहN होता है, िफर भी उसम उEणता
और शीतलता के सं ा(त कर िदये जाने पर वह उEण और गम है ऐसा तीत होता है। ठीक इसी
कार से महत् आिद िलङग अचेतन ह5 िफर भी उस चेतन पK ु ष के संयोग मा से ही चेतनावान् हो
जाते ह5।
तथा च गुणकत
ृवे उदासीनः कता
इव भवित- और वैसे ही गणु 1 के वा7तव म कता होने पर भी
उदासीन पK ु ष कता सा हो जाता है। यिप संसार म पुKष को ही कता आिद कहा जाता है, िक(तु
वह वा7तव म कता नहN है। कता को पािणिन ने 7वत(ः कता कहकर पCरभािषत िकया है। 7वत(
का अथ है- Jयापार का आIय होना। Jयापार ि या है। अतः जो ि या का आIय है वही कता है।
चँिू क कृ ित िगणु ामक है। िगणु ामक होने के कारण िनय ि याशील है। उसम सKप और
िवKप पCरणाम िनय होते रहते ह5। अतः वा7तव म गणु ही कता ह5। उन गणु 1 का कतृव उदासीन
पKु ष म सं िमत सा होने से पKु ष कता समझा जाता है।िक(तु पK
ु ष व7ततु ः कता नहN है। पK
ु ष म◌ं े
कतापन कA तीित कै से होती है ? और कै से वह अकता है ? इसे समझाने के िलए गौडपाद ने ऐसा
कहा है- यथाऽचौरIचौरैःसह गृहीतIौर इयवगJयते, एवं यो गणु ाः कतारः तै संय ु ः
पK
ु षोऽकताऽिप कता भवित कतृ संयोगात्। अथात् जैसे चोर1 के साथ पकड़ा गया अचौर भी चौर ही
समझा जाता है। वैसे ही तीन1 ही गणु वा7तव म कता ह5। उनके साथ संय ु होने से अकता होने पर
भी पK ु ष कता सा हो जाता है। िलङ्ग म चेतना ातीितक है और पK ु ष म कता पर ातीितक है।
कृ ित पKु ष संयोग के कारण अचेतन कृ ित चेतन जैसी हो जाती है और उदासीन पK ु ष कता सा हो
जाता है। गणु कतृवेऽिप-माठरवृिS जयमगं ला।
अ$यास &.

h-1. ि&तीय इकाई म कुल काCरका ह5-


(a). 8 (a). 6
(c). 10 (d). 18
h-2. िगणु मिववेिक िवषयः सामा(यम् अचेतनं सवधिम... ये समान धम ह5-
(a). Jय और पK
ु ष के (b). अJय और पK
ु ष के

उतराखड म
ु िविवालय ११२
भारतीय दश
न MASL-103
(c). Jय और अJय के (d). इनम से कोई नहN
h-3. काश वृिS और िनयमन् मशः योजन ह5-
(a). रजस् तमस् सव के (b). सव रजस् तमस् के
(c). सव तमस् रजस् के (d). इनम से कोई नहN
h-4. ीित अीित और िवषाद मशः 7वKप ह5-
(a). सव रजस् तमस् के (b). रजस् सव तमस् के
(c). रजस् तमस् सव के (d). इनम से कोई नहN
h-5. अ(यो(यािभभवाIय.........म ितपािदत है-
(a). गणु 1 का 7वKप (b). गणु 1 का योजन
(c). गणु 1 का Jयापार (d). इनम से कोई नहN
h-6. लघु काशकम् है-
(a). सव गणु (a). रजो गणु
(a). तमस् गणु (a). ये सभी
h-7. उप%*भकं चलम् है-
(a). सवगणु (b). तमोगणु
(c). रजोगणु (d). इनम से कोई नहN
h-8. गpु वरणकम् है-
(a). रजो◌ेगणु (b). तमोगणु
(c). सवगणु (d). इनम से कोई नहN
h-9. ेत र व कृ Eण रंग मशः माने गये ह5-
(a). तमस् रजस् सव के (b). रजस् सव तमस् के

उतराखड म
ु िविवालय ११३
भारतीय दश
न MASL-103
(c). तमस् सव रजस् के (d). सव रजस् तमस् के
h-10. भेदानां पCरमाणात.् ................से िस@ होता है-
(a). कृ ित (b). पK
ु ष
(c). दोन1 (d). इनम से कोई नहN

4.4 सारांश
7ततु इकाई का सारांश िन*नवत् है- कृ ित और Jय दोन1 ही िगणु ामक अिववेकA, िवषय,
सामा(य और अचेतन तथा पCरणामी ह5। पK ु ष िनगणु , िववेकA, भो ा, असामा(य, चेतन तथा
अपCरणामी है। कृ ित तीन1 गणु 1 कA सा*याव7था है तीन गणु सव, रजस् और तमस् ह5। सवगणु
सख ु 7वKप, रजोगणु दःु ख 7वKप और तमोगणु मोह 7वKप ह5। इन तीन1 गणु 1 के काश, वतन
और िनयमन् योजन ह5। एक दसू रे का अिभभव आिद करके ये दीपक कA तरह से योजन िस@
करते ह5। कृ ित तव कA िसि@ पांच हेतओ ु ं से होती है। पK
ु ष तव कA िसि@ पांच हेतओ
ु ं से होती है।
पK
ु ष तव अनेक ह5। पK ु ष1 म 7वKपगत एकता िक(तु सं;यागत भेद है। सािcव, म3य7थता,
कै वLय, Z%ाभाव, अकताभाव ये पK ु ष के 7वKप धम ह5। पK ु ष म कतृव आिद कA भासमानता
कृ ित से संयोग होने से होती है।

4.5 पा4रभा5षक शदावल


1. सवगणु - वह गणु जो लघु और काशक होता है।
2. रजोगणु - वह गणु जो उप%*भक् और चंचल होता है।
3. तमोगणु - वह गणु जो भारी और अवरोधक होता है।
4. कृ ित- गणु 1 कA सा*यवा7था का नाम है।
5. धान- कषuण धीयते 7था~यते अािखलिमित िजसम लय काल म सभी िवकार अवि7थत हो
जाते ह5। उसे धान कहते ह5।

4.6 अयास 
न के उतर
1. c 2.c 3. b 4. a 5.c
6. a 7.c 8. b 9. d 10. a

उतराखड म
ु िविवालय ११४
भारतीय दश
न MASL-103

4.7 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1. सां;यकाCरका-गौडपादभाEयसमि(वता लेखक ईरकृ Eण-Jया;याकार पं0Iी tवाला साद
गौड,काशक-चौख*बा वाभवन वाराणसी सं7करण 2004।
2. सां;यतवकौमदु ीभा-Jया;याकार डा0 आा साद िमI,काशक- अcयवट काशन
इलाहाबाद,सं7करण 1994
3. सा;ं यकाCरका यिु दीिपका सिहत-Jया;या डा0 रमाशक
ं र िपाठी काशक कEणदास अकादमी
वाराणसी, सं7करण -1999
4. सां;यकाCरका माठरवृिS व जयमगं ला समि(वत-संशोधक सकाCर शमा वगं ीय काशक
चौख*भा सं7कृ त सीरीज आिफस वाराणसी तृतीय सं7करण 1994
5. सां;यदशनम-् सां;यवचनभाEयसिहत स*पादक डा0 पं0 गजानन शाfी मसु लगाँवकर
6. देवीभागवत् (मलू स7ं कृ त) गीता ेस गोरखपरु

4.8 सहायक उपयोगी पा)य साम$ी


आप इस इकाई का अ3ययन के िलए अधोिलिखत पाठ्य सामVी का उपयोग कर सकते ह5-
1. सा;ं यकाCरका-गौडपादभाEयसमि(वता लेखक ईरकृ Eण-Jया;याकार पं0 Iी tवाला साद
गौड, काशक-चौख*बा िवाभवन वाराणसी सं7करण 2004।
2. सां;यतवकौमदु ीभा-Jया;याकार डा0 आा साद िमI,काशक- अcयवट काशन
इलाहाबाद,स7ं करण 1994
3. सां;यकाCरका यिु दीिपका सिहत-Jया;या डा0 रमाशक ं र िपाठी काशक कEणदास अकादमी
वाराणसी, स7ं करण -1999
4. सां;यकाCरका माठरवृिS व जयमगं ला समि(वत-संशोधक सकाCर शमा वगं ीय काशक
चौख*भा सं7कृ त सीरीज आिफस वाराणसी तृतीय सं7करण 1994
5.सा;ं यदशनम-् सा;ं यवचनभाEयसिहत स*पादक डा0 प0ं गजानन शाfी मसु लगाँवकर

4.9 *नब%धामक 

• ि&तीय इकाई के काCरकाओ ं का साराश


ं िलिखए ?
• कृ ित का 7वKप व उसके अि7तव कA िसि@ कAिजए ?
• पK
ु ष का 7वKप एवं उसके अि7तव कA िसि@ कAिजए ?

उतराखड म
ु िविवालय ११५
भारतीय दश
न MASL-103

-5  / 21-30   0


1 
इकाई क सरं चना
5.1 तावना
5.2 उे

5.3 साBं यकाGरका 21-30 मल
ू पाठ अथ5 एवं >याBया
5.4 सारांश
5.5 पGरभािषक श-दावली
5.6 अ3यास 01 के उ4र
5.7 स(दभ5 6(थ सचू ी
5.8 सहायक उपयोगी पाठ्य साम6ी
5.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ११६
भारतीय दश
न MASL-103

5.1 तावना
7ततु इकाई मे सां;यकाCरका कA 21-30 काCरकाओ का मल ू पाठ अथ एवं Jया;या है, 21वN
काCरका म कृ ित पK ु ष के सयोजन स*ब(ध को बताया गया है। दोन1 का संयोग लंगड़े व अ(धे कA
तरह से है। 22वN काCरका म कृ ित से होने वाली 23 तव1 कA सृि% का म ितपािदत है,
िजसम◌ ं े कृ ित से महत, महत से अहक ं ार, अहक ं ार से 11 इि(Zयाँ व 5 त(मा, 5 त(मा1 से 5
महाभतू 1 के उपिS का संकेत हMआ है। 23वN काCरका म बुि@ का लcण और उसके 8 अगं 1 धम
आिद का ितपादन है। 24वN काCरका म 1 अहक ं ार से 2 कार कA सृि% होने का ितपादन है। यह
ि&िवध सृि% है-(1) 11 इि(Zय1 का समहू व (2) 5 त(मााय। 25वN काCरका म वैकृत अहक ं ार से
11 इि(Zय1 के समहू कA उपिS और भतू ािद अहक ं ार से 5 त(मााओ ं के समहू कA उपिS का वणन
है। राजस अहक ं ार वैकृत और भतू ािद अहकं ार का सहयोगी है इसका ितपादन है। 26वN काCरका म
Iो आिद 5 Hानेि(Zय1 तथा वाक् आिद 5 कमuि(Zय1 का नाम िनदuष है। 27वN काCरका म
उभयामक इि(Zय मन का वणन है और एकही अहक ं ार से 16 पदाथा◌े◌ं का समहू कै से उप(न
होता है इस पर का◌ाश डाला गया है तथा Vाn िवषय1 के िभ((ता से मन के अनेक Kपामक होने
का भी गणु है। 28वN काCरका म Iो आिद सभी Hानेि(Zय1 के शOद आिद िवषय1 के आलोचन
मा Jयापार को तथा वाक् आिद 5 कमuि(Zय1 के वचन आिद 5 Jयापार1 का वणन िकया गया है।
29वN काCरका म अ(तःकरण1 के िविश% एवं सामा(य Jयापार का वणन िकया गया है तथा ाण
आिद 5 वायओ ु ं के Jयापार का वणन िकया गया है। 30वN काCरका म अ(तःकरण1 सिहत येक
Hानेि(Zय1 के िवषय1 कA उपलिOध म यौगप एवं म का वणन िकया गया है। यह इकाई Jय
तव1 के ऊपर परू ी तरह के ि(Zत है।

5.2 उे

7ततु इकाई का अ3ययन करने के उपरा(त आप िन*न त_यो से पCरिचत हो सक ग-
1. कृ ित और पKु ष संयोग का योजन,
2. सृि% म,
3. महत् अहकं ार 11 इि(Zय1 पाँच त(मााओ ं 5 महाभतू 1 का 7वKप व Jयापार,
4. अ(तःकरण एवं उनका वाn करण के साथ HानोपलिOध मे यौगप एवं मािद।
5.3 सा.यका4रका 21-30 मल
ू पाठ अथ# एवं >या.या-
अवतरिणका-चतथु  इकाई म 20वN काCरका मे कृ ित एवं पK ु ष के संयोग का संकेत िकया गया है।
कृ ित पK
ु ष का संयोग िकस योजन से होता है ? कै से होता है ? उस संयोग का फल Wया है ? ऐसी
आकाc ं ा होने पर कहा गया है-

उतराखड म
ु िविवालय ११७
भारतीय दश
न MASL-103
पुLष"य दश
नाथ कै व]याथ तथा &धान"य1
पड्Qव8धवदुभयोरिप सयं ोग"तत् कृतः सग
।◌ं। का0-21
अ8वय- पLु ष"य दश
नाथ तथा &धान"य कै व]याथ पड्Qव8धवद् उभयोअिपसयं ोगःभवित।
तकृतःसगः।
अथ
- पK ु ष &ारा धान को देखने के िलए और धान &ारा पK ु ष का कै वLय स*प(न कराने के िलए
लंगडे़ व अ(धे कA तरह दोनो का संयोग होता है। उन दोनो के संयोग का फल सृि% है।
शारदाJया;या- पKु ष7य धानेन सह सयं ोगो दशनाथम-् पK ु ष का धान के साथ जो सयं ोग है वह
दशन के िलए होता है। कृ ित, महद् से भतू पय(त जो सृि% है उसे पK
ु ष देखता है।
धान7य पK ु षेण सह संयोगः कै वLयाथम-् कृ ित का पK ु ष के साथ जो संयोग है वह पK ु ष का
कै वLय स*प(न कराना है। वाच7पित िमI के अनसु ार संयोग का अथ सि(निध है। कृ ित और पK ु ष
दोन1 का संयोग पंगु और अधं े कA तरह से है। पुKष पंगु है और कृ ित अधं ी है। िजस कार गमन
ि या म असमथ पंगु एवं देखने म असमथ अ(धे अपने योजन कA िसि@ के िलए संयु होते ह5
और अपना योजन परू ा हो जाने पर दोना◌ ं े अलग हो जाते ह5 ठीक वैसे ही ि या रिहत शि वाले
पKु ष और ि यावती िक(तु दशन शि रिहत कृ ित भी अपने-अपने दशन और कै वLय योजन
को स*प(न करने के िलए एक दसू रे से संय
ु होते ह5 और योजन परू ा करके दोन1 िवय ु हो जाते ह5।
इस कार पK ु ष का धान से सयं ोग का योजन कृ ित को िवकार1 सिहत देखना है और कृ ित का
पK
ु ष से संयोग का योजन पK ु ष का कै वLय स*प(न करना है। कृ ित पK ु ष का कै वLय स*प(न
करती है इसे आगे बताया जायेगा।
तकृतः सग
ः ता$यां कृतः सग
ः –
उन दोन1 के संयोग का फल सृि% है। जैसे fी-पK
ु ष िमलकर स(तान उप(न करते ह5 और रमण करते
ह5 ठीक वैसे ही कृ ित और पK
ु ष के सयं ोग से सृि% उप(न होती है। कृ ित से प◌
ु ुKष का सयं ोग
होने पर शा(त रहने वाली (सyश पCरणाम वाली) कृ ित म गणु cोभ होता है और वह िवKप
पCरणाम वाली होकर सृि% करती है। कृ ित और पK ु ष का संयोग होने पर सगाव7था होती है और
दोन1 का िवयोग होने पर लय होता है।
पवू ापर स*ब(ध- कृ ित पK
ु ष सयं ोग का फल सृि% है। सृि% का म Wया है ? ऐसी आकांcा होने पर
कहा गया है-
&कृतेम
हां"ततोऽहड्.कार"त"माद् गणI षोडशकः।

उतराखड म
ु िविवालय ११८
भारतीय दश
न MASL-103
त"मादिप षोडशकात् पxच$यः पxं चभूतािन।। का0-22
1- पK
ु ष7य दशनाथः कै वLयाथ7तथा धान7य- यिु दीिपका
अ8वय- कृ तेः महान,् ततःअहड्.कारः, त7माद् षोडशकः गणः च,त7माद् षोडशकात् अिप
प’चgयः प’ं चभतू ािन भवि(त।
अथ
-कृ ित से महत् उप(न होता है। उस महत् से अहक
ं ार उप(न होता है और उस अहक ं ार से 16
तव1 का समहू उप(न होता है ।उन 16 तव1 के समहू म से पाँच त(मााओ ं से पाँच महाभतू उप(न
होते ह5 ।
शारदा<या'या- कृ तेः महान-् कृ ित से महत् तव उप(न होता है। कृ ित धान माया अJय ये
पयाय ह5। अ(य िकसी कारण म लय को ाD न होने वाली कृ ित से महत् तव उप(न होता है।
महत् तव को बिु @, आसरु ी मित, ;याित, Hान और Hा भी कहते ह5।
ततः अहक ं ारः - उस महत् तव से अहक
ं ार उप(न होता है◌ै। भतू ािद वैकृत तैजस् तथा अिभमान
पयाय ह5।
त"मात् षोडशकः गणः च- और उस अहक ं ार से 16 तव1 का समहू उप(न होता है। ये 16 तव
ह5- 5 Hानेि(Zयाँ (Iवण, वक, चc,ु िजŒा, }ाण), 5 कमuि(Zयाँ (वाक्, पािण, पाद, पाय,ु उप7थ), 1
उभयेि(Zय मन, 5 त(मााय (शOद, 7पश, Kप, रस, ग(ध)।
त"मात् षोडशकात् पंच$यः पंचभूतािन- उन 16 पदाथा◌े◌ं के समहू म से 5 त(मााओ ं से 5
महाभतू उप(न होते ह5। शOद त(मा से आकाश महाभतू होता है। इसम◌ ं े शOद नामक गणु होता है।
7पश त(मा से वायु उप(न होता है िजसम शOद और 7पश दो गणु होते ह5। Kप त(मा से अिlन
उप(न होता है िजसम शOद, 7पश और Kप गणु होते ह5। रस त(मा से जल उप(न होता है िजसम
शOद, 7पश, Kप और रस गणु होता है। ग(ध त(मा से पृिथवी उप(न होती है। िजसम शOद, 7पश,
Kप, रस और ग(ध गणु होते ह5। यह 23 तव ह5 िज(ह◌ ं े Jय कहा जाता है। इस म बिु @, अहक
ं ार
और 5 त(मााय कृ ित और िवकृ ित दोन1 ह5। 11 इि(Zयाँ और 5 महाभतू के वल िवकार ह5। Jय
कृ ित के सKप धम वाला भी है और उससे िवKप धम वाला भी है। जैसे- कृ ित िगणु ामक,
अिववेकA, िवषय सामा(य, अचेतन और पCरणामी है वैसे ही Jय भी िगणु ामक अिववेकA,
िवषय, सामा(य, अचेतन, और पCरणामी ह5। कृ ित अहेतमु त्, िनय, वेश और िनःसरणरिहत
Jयापक एक आIय, अिं ◌लगं , िनरवयव और 7वत( है। Jय हेतमु त, अिनय, सि य, Jया~य,
अनेक, आिIत, िलंग, सावयव और परत( ह5। लय अव7था म Jय अJय म अवि7थत हो
जाया करता है। पूवा
पर सJब8ध- कृ ित से महत् तव उप(न होता है उसका लcण Wया है ? और
उसके धम कौन-कौन ह5 ? ऐसी आकाc ं ा होने पर कहा गया है-
उतराखड म
ु िविवालय ११९
भारतीय दश
न MASL-103
अEयवसायो बुि6ध
मा
ानं िवराग ऐ5य
म।्
सािtवकमेतद् Lपं तामसम"मािपय
"तम।् । का0-23
अ8वय- अ3यवसायःबिु @ः। धमः Hानं िवरागःऐयम एतद् सािjवकं Kपम।् अ7मात् िवपय7तम् एतद्
तामसं Kपम।्
अथ
- िनBय बिु @ है अथात शरीर मे िनBय करने वाला तव बिु @ है।धम Hान वे◌ैराlय और ऐय
बिु @ के सािवक Kप ह5। इनसे िवपरीत अधम अHान राग तथा अनैय इस बुि@ के तामिसक Kप
ह5।
शारदा<या'या- अ3यवसायः बिु @ः- अ3यव7यित इित अ3यवसायः जो िनBय करती है वही बिु @
है। िनBय करने वाली तव को बिु @ कहते ह5। इसे हम िन*न उदाहरण से भलीभाँित समझ सकते ह5।
जब हम पाँच सौ Kपये का नोट िमलता है तो मन संकLप िवकLप करता है िक यह असली नोट है
या नकली ? िविभ(न लcण1 के आधार पर जो यह िनBत होता है िक यह नोट असली ही है। ऐसा
िनBय करने वाली शि ही बिु @ है।
धमः Hानं िवरागः ऐय\ एतद् सािवकं Kपम-् धम Hान वैराlय और ऐय ये चार इस बिु @ के
सािवक Kप ह5। धम का लcण है िजससे अgयदु य एवं िनःIेयस िमले वही धम है। यH आिद
लौिकक एवं पारलौिकक उ(नित के हेतु होने से धम ह5 और अ%ांग योगानvु ान से उप(न धम
िनःIेयस का साधन है। धम िवषयक यह मत तव कौमदु ी का है। िक(तु गौडपाद कहते ह5- त0 धमz
नामदयादानयमिनयमल*णःत0यमाःिनयमाःचपातंजलेऽिभिहताःअिहस ं ासयाऽ"ते{|}च
या
प?र\हा यमाः, शौचस8तोषतपः"वाEयाये5र&िणधानािन िनयमाः।
धम से उ3वगमन होता है। Hान, अवगम, काश, भान ये सब पयाय ह5। गीता कहती है- न िह Hानेन
सyशं पिविमह िवते। Hान से अपवग होता है। Hान के दो भेद ह5- वाn और आgय(तर। अगं ां◌े
सिहत वेद, परु ाण, (याय मीमांसा अ(य भी अपरा िवाय वाn Hान ह5। आgय(तर Hान कृ ित और
पKु ष का िववेक है। देवी भागवत के अनसु ार Hान कA तीन भाया ह5- बिु @, मेधा और धैय
(9.1.114) वाn Hान लोकानुराग को बढ़ाता है। िक(तु आ(तCरक Hान मोc देता है। वैराlय के दो
भेद ह5- वाn और आgय(तर। वाn वैराlय वह है जो िवर पK ु ष कA यc िवषय1 के ित िवतृEणा
है। मोc के इFछुक को जो वैराlय उप(न होता है वह आ(तCरक वैराlय होता है। तव Hान रिहत
वैराlय से कृ ित लय होता है। देवी भागवत् के अनसु ार वैराlय कA दो भायाय ह5- I@ा और भि
(9.1.123)। ईर भाव ही ऐय है। ये आठ गणु ह5- अिणमा, मिहमा, लिघमा, ाका*य, इिशव,
विशव और यकामावसाियव। ऐय से इFछाओ ं का हनन नहN होता है। ये चार1 धम, Hान, वैराlय
और ऐय सािवक बिु @ के धम ह5। इस तरह बिु @ के आठ अगं ह5। वे ह5 धम, अधम, Hान, अHान,

उतराखड म
ु िविवालय १२०
भारतीय दश
न MASL-103
राग, वैराlय, ऐय अनैय।
अ"मात् िवपय
"तं तामस-ं इस सािवक बिु @ के िवपरीत तामिसक बिु @ के Kप ह5। ये ह5- अधम,
अHान, राग तथा अनैय। अधम से अधोगित होती है, अHान से ब(धन होता है, राग से ससं रण
होता है तथा अनैय से इFछाओ ं का हनन् होता है। 23
पूवा
पर सJब8ध- महत् तव का िनKपण िकया गया अब उसके िवकार अहक ं ार का लcण Wया है
? उससे होने वाली दो कार कA सृि% कौन-कौन ह5 ? ऐसी आकांcा हो◌ेने पर कहा गया है-
कार"त"माद् ििवधः &वत
ते सग
ः।
एकादशकI गण"त8मा0प´चकIैव1।। का0 24
अ8वय- अिभमानः अहक ं ारः। त7मात् ि&िविधः सग वधते। एकादशकः च गणः। त(मा पंचकः
एव च।
अथ
- अिभमान अहक ं ार है। उस अहक ं ार से दो कार कA सृि% होती है- 11 इि(Zय1 का समहू और
पाँच त(मााओ ं का समहू ।
शारदा<या'या- अिभमानः अहक ं ार- अहक ं ार अिभमान को कहते ह5। जो यह Vहण िकया हMआ
और िवचार िकया हMआ िवषय है इसम म5 ही अिधकृ त ह‹।ँ इसे करने म म5 ही समथ ह‹।ँ ये िवषय मेरे
िलए ही ह5। इसके अितCर अ(य कोई इसम अिधकृ त नहN है। इस कार का अिभमान अहक ं ार का
असाधारण धम होने से अहक ं ार है।त7मात् ि&िवधः सगः वतते। उस अहक ं ार से दो तरह कA सृि%
होती है। एकादशकः गणः - 11 इि(Zय1 का समहू ही एकादशक गण है। 11 इि(Zय1 म 5 Hानेि(Zयाँ,
5 कमuि(Zयाँ और एक उभयेि(Zय मन है। 24
पूवा
पर सJब8ध- एक अहक ं ार से दो कार कA सृि% कै से होती है ? ऐसी आशक ं ा होने पर कहा
गया है-
सािवक एकादशकः &वत
ते वैकृतादहङ्कारात।्
भूतादे"त8मा0ः स तामस"तैजसादुभयम।् । का0 25।।
अ8वय- वैकृतात् अहक ं ारात एकादशकः सािवकः वतते। भतू ादेः त(माः वतते, सः तामसः।
तैजसात्उभयं वतते।
अथ
- वैकृत अहकं ार से 11 इि(Zय1 का सािवक समहू उप(न होता है। भतू ािद अहक
ं ार से
पच
ं त(मााओ ं का समहू उप(न होता है। वह भतू ािद अहक ं ार तामिसक अहक ं ार है। राजिसक
अहकं ार से दोन1 ही उप(न होते ह5।
शारदा<या'या- वैकृतात् अहक ं ारात एकादशकः सािवकः वतते- वैकृत अहक
ं ार से 11 इि(Zय1

उतराखड म
ु िविवालय १२१
भारतीय दश
न MASL-103
का सािवक समहू उप(न होता है। वैकृत अहक
ं ार को सािवक अहक ं ार कहते ह5। यह अहक
ं ार कA
वह अव7था है जब उसम सवगणु बल होकर रजस् एवं तमस् को अिभभतू िकये रहता है। 11
इि(Zयाँ सािवक ह5। सािवक कहने का आशय यह है िक िवश@ ु इि(Zयाँ ही अपने-अपने आलोचन
आिद
1. ऐि(Zय एकादशक7य त(मा पंचक7यैव यिु दीिपका।
ि याओ ं म समथ होती ह5।
भूतादे"त8मा0ः &वत
ते स तामसः - भतू ािद अहक ं ार से 5 त(मााय उप(न होती ह5। भतू ािद
अहकं ार को तामिसक अहक ं ार कहते ह5। यह अहक ं ार कA वह अव7था है िजसम तमोगणु बल
होकर अ(य को अिभभतू िकये रहता है। पाँच त(मााय ह5- शOद, 7पश, Kप, रस, ग(ध।
तैजसादभु यम-् तैजस अहक ं ार से दोन1 ही उप(न होते ह5। रजोगणु कA बलता वाले अहक
ं ार को
तैजस अहक ं ार कहते ह5। यह अहक ं ार कA वह अव7था है िजसम रजोगणु अ(य को अिभभतू िकये
रहता है। इसे राजिसक अहक ं ार भी कहते ह5। यह सािवक और तामिसक दोन1 ही अहक ं ार1 का
सहयोगी है। 25
पवू ा
पर सJब8ध- सािवक अहक ं ार से उप(न होने वाली Hानेि(Zयाँ और कमuि(Zयाँ कौन-कौन ह5 ?
ऐसी आशक ं ा होने पर कहते ह5-
ब6
ु ीि8;यािण ो0वRच*रू सननािसका'यािन1
वाRपािणपादपायूप"थािन2 कमaि8;याXयाहcः ।। का0 26।।
अ8वय- IोवWचcरू सननािसका;यािन ब@
ु ीि(Zयािण, वाWपािणपादपायपू 7थािन कमuि(Zयािण
आहMः।
अथ
-Iवण, वचा, ने, िजŒा और नािसका Hानेि(Zयाँ ह5। वाणी, दोन1 हाथ, दोन1 चरण पायु तथा
उप7थ को कमuि(Zयाँ कहा गया है।
शारदा<या'या- IोवWचcरू सननािसका;यािन ब@
ु ीि(Zयािण- Iों च, वक् च, चcू च, रसनं
च, नािसका च ते आ;यािन इित तािन अथात् Iवण, वचा, ने, िजŒा और }ाण ये Hानेि(Zयाँ ह5।
शOद7पशKपरसग(धन् बदु 3् य(त इित ब@ ु ीि(Zयािण अथात् जो मशः शOद, 7पश, Kप, रस और
ग(ध का Hान करती ह5 वे Hानेि(Zयाँ ह5। इि(Zय शOद कA Jयु पिS माठर म िकया है- इन् इित
िवषयाणां नाम, तािननः िवषयान् ित Zव(तीित इि(Zयािण- इन का अथ है िवषय और उन िवषय1 म

उतराखड म
ु िविवालय १२२
भारतीय दश
न MASL-103
जो Zिवत होती ह5 उ(ह इि(Zयाँ कहते ह5। पाँच1 Hानेि(Zय1 Iवण, वचा, ने, िजŒा और }ाण के
िवषय मशः शOद 7पश Kप रस और ग(ध ह5। उ(हN म ये Zवीभतू होती ह5 अथात् के वल उ(हN का
आलोचन करती ह5।
वाRपािणपादपायूप"थािन कमaि8;यािण आहcः - वाक् च पाणी च पादौ च पायःु च उप7थं च
इित तािन कमuि(Zयािण कम कुवि(त कायि(त च इित कमuि(Zयािण। वाणी, दोन1 हाथ, दोन1 पैर, पायु
और उप7थ ये कमuि(Zयाँ ह5। वचन, आहरण, िवहरण, िवसजन, आन(द इनके काय ह5।
वासायनभाEय म
1. चcःु Iोघाणरसनवगा;यािन- तवकौमदु ी। कणवWचcूरसननािसका;यािन यिु दीिपका
2. वाWपािणपादपायपू 7थान-् माठरवृिSः, वाWपािणपादपायपू 7था यिु दीिपका।
Hानेि(Zय1 के िवषय म िन*न िवचार िमलता है- िज}ित अनेन इित }ाणं, ग(धं गृहणाित। र7यित
अनेन इित रसनं गृहणाित। च%ेऽनेनेित चcू Kपं पbयतीित। वl7थानिमि(Zयं वक् तदपु चार
7थानािदित। Iृणोयनेनेित Iों शOदं गृहणातीित। एवं समा;यािनवचनसाम_या&ो3यं
7विवषयVहणलcणानीि(Zयाणीित। 26
पवू ा
पर सJब8ध- Hानेि(Zय1 एवं कमuि(Zय1 का नाम िनदuश िकया गया िक(तु मन का 7वKप Wया है
? ऐसी आशक ं ा होने पर कहा गया है-
उभयामकम0 मनः सक
ं ]पकिमि8;यं च साधJया
त।्
गुणप?रणामिवशेषा8नानावं \ाmभेदाFच1 ।। का0 27 ।।
अ8वय- अ मनः उभयामकम,् मनः संकLपकम,् साध*यात् इि(Zयं च,
गणु पCरणामिवशेषानानावम् वाnभेदाः च।
अथ
- इनम मन उभयामक है। सक ं Lप करने वाला मन है। समान धम वाला होने से यह इि(Zय है।
गणु 1 के िविश% पCरणाम के कारण जैसे िविभ(न वाn व7तयु  उप(न होती ह5 वैसे ही वाn िवषय1 से
स*बि(धत मन भी नानाव को ाD करता है।
शारदा <या'या- अ मनः उभयामकम-् 11 इि(Zय1 म मन उभयेि(Zय है। यह Hानेि(Zय1 के साथ
Hानेि(Zयवत् हो जाता है और कमuि(Zय1 के साथ कमuि(Zयवत् हो जाता है।
मनः सक
ं ]पकं- सक
ं Lप और िवकLप करना मन का लcण है। सक ं Lप का अथ यिु दीिपका म◌
ं े
अिभलाषा, इFछा और तृEणा कहा गया है। यह Hानेि(Zय1 के वृिS कA कामना करता है अतः यह

उतराखड म
ु िविवालय १२३
भारतीय दश
न MASL-103
सक
ं Lपक है। पंचदशी म मन को िवमश Kप कहा गया है- मनोिवमशKपं 7यात।् भगवान कृ Eण ने
अपने को इि(Zय1 म मन बताया है- इि(Zयाणां मनBाि7म।
साधJया
त् इि8;यं च- 10 इि(Zय1 के समान धम वाला होने से मन भी इि(Zय है। जैस-े कमuि(Zयाँ व
Hानेि(Zयाँ सािवक अहकं ार से उप(न ह5 वैसे ही मन भी सािवक अहकं ार से उप(न होने के कारण
इि(Zय है। मन के महव को बृहदारयक 1.5.3 म बताया गया है- अ(य मना अभवू ं
नादशम(यमना अभवू ं नाIौषिमित मनसा nेव पBित मनसा Iृणोित। अथात् मेरा मन दसू री जगह
था अतः म5ने नहN देखा। मेरा मन दसू री जगह था अतः म5 नहN सनु सका। (ऐसा जो मनEु य कहता है
इससे िनBय होता है िक) वह मन से ही देखता है और मन से ही सनु ता है।
गुणप?रणामिवशेषानानावम् \ाmभेदाFच- गणु 1 के पCरणाम िवशेष से िविभ(न वाn व7तयु 
उप(न होती ह5। वैसे ही मन भी अ(य इि(Zय1 के संग से अनेक Kपामक होता है। सां;यवचन
भाEय म कहा गया है- यथा एक एव नरः सङ्गवसा(नानावं भजते कािमनी संङ्गात कामक ु ो
िवर सङगाि&र ोऽ(यसङ्गाFचा(यः एवं मनोऽिप चcरु ािद सङ्गाचcरु ाेकAभावेन
1. वाnभेदाB- तवकौमदु ी
दश
नािदवृि2िविशतया नानाभवित। 27
पवू ा
पर सJब8ध- 26वN काCरका म Hानेि(Zय1 एवं कमuि(Zय1 का नाम पCरगणन िकया गया िक(तु
इनके िवशेष Jयापार Wया ह5 ऐसी आशक
ं ा होने पर कहा गया है-
श+दािदष1ु पंचानामालोचनमा0िम>यते वृि2ः।
वचनादानिवहरणोसगा
न8दाI2 पंचानाम।् । का0 28 ।।
अ8वय- शOदािदषु पच
ं ानामालोचनमाम् इEयते वृिSः। वचनादानिवहरणोसगान(दाB प´ं ◌्चानाम।्
अथ
- शOद आिद पाचं 1 िवषय1 का के वल िनिवकLपक Hान करना ही पाच ं 1 Hानेि(दया◌
ं े के Jयापार
कहे जाते ह5 और बोलना, लेना, िवहार, उसग तथा रमण पाँच कमuि(Zय1 के Jयापार कहे जाते ह5।
शारदा<या'या- शOदािदषु पंचानामालोचनमािमEयते वृिSः -शOद, 7पश, Kप, रस, ग(ध का
िनिवकLपक Hान मशः Iवण, वचा, ने, िजŒा और }ाण के &ारा होता है। Hानेि(Zयाँ के वल
अपने-अपने िवषय1 का ही Hान ाD करती ह5। आलोचन का अथ |ोकवाितक म◌ं े िनिवकLपक
िकया गया है- अि7त nालोचनं Hानं थमं िनिवकLपकम।्

उतराखड म
ु िविवालय १२४
भारतीय दश
न MASL-103
वचनादानिवहरणोसगान(दाB प´ं चानाम-् बोलना, आदान, िवहार, उसग तथा रमण करना मशः
वाक्, पािण, पाग, पायु और उप7थ के असाधारण Jयापार ह5 । h उपिनषद म इि(Zय1 कA ि याओ ं
का वणन िमलता है- चcB ु Z%Jयं च, Iों च IोतJयं च,
}ाणं च, }ातJयं च, रसB रसियतJयं च, वक् च 7पशियतJयं च, वाक् च व Jयं च, ह7तौ
चादातJयं, चोप7थB चान(दियतJयं च, पायB ु िवसजियतJयं च, पादौ च ग(तJयं च, मनB म(तJयं
च बिु @B वो@Jयं च अहक
ं ारBाहङ्कतJयं च 4.8 । 28
पवू ापर स*ब(ध- बिु @, मन और अहक
ं ार अ(तःकरण ह5 तथा 10 इि(Zयाँ वाnकरण ह5। अ(तःकरण1
के िविश% एवं सामा(य Jयापार Wया ह5 ? ऐसी आशक
ं ा होने पर कहा गया है-
"वल*Xयं वृि2~य"य सैषा भवयसामा8या ।
सामा8यकरणविृ 2ः &ाणाKा वायवः पंच।। का0 29 ।।
अ(वय- य7य 7वालcयं वृिSः सा एषा असामा(या भवित। ाणााः पं´◌्चवायवः
सामा(यकरणवृिSः भवि(त।
अथ- तीन1 (बिु @ अहक ं ार और मन) के अपने लcण (अ3यवसाय, अिभमान और संकLप) ही
Jयापार ह5 और ये ही इनके िवशेष Jयापार ह5। ाण आिद पाँच वायु इनके साधारण Jयापार ह5।
1. Kपािदष-ु तवकौमदु ी।
2. ...............न(दा7त-ु माठरवृिS। 3. 7वालcया माठरवृिSः
शारदाJयाखा- य7य 7वालcयां वृिSः सा एषा असामा(या अथात् तीन1 बिु @ अहक
ं ार एवं मन के
अपने-अपने लcण ही इनके Jयापार ह5। बिु @ का लcण अ3यवसाय है। अहक ं ार का लcण
अिभमान है और मन का लcण संकLप है। िनBय म5 ह‹ँ और संकLप िवकLप ये तीन1 बिु @ आिद के
असाधारण Jयापार ह5।
ाणााः पंचवायवः सामा(यकरणवृिSः भवि(त ाणािद पंचवायु इनके साधारण Jयापार ह5। ये पांच
वाययु  है- अपान, ाण, समान, उदान, Jयान। ाण वायु वाक् एवं मन से उप(न हMआ है।
(वृदारयक 1.5.12) वेदा(त सार म पचं ाण1 पर िन*नवत् काश डाला गया है-ाणो नाम
ाlगमनवा(नासाV7थानवतm।अपानोनामावाlगमनवा(पा“वािद7थानवतm।Jयानोनामिवlगमनवानिख
लशरीरवतm।उदानो नाम् कठ7थानीय उ3वगमनवानउु  मणवायःु । समानो नाम
शरीरगतािशतपीता(नािदसमीकरणकरः।सुवण 7Dित शाf म इसकA Jया;या िन*नवत् है- यथा पंजरे
शकु ः शकु चलनात् पजं रं चलित तथा इि(Zयायिप। ाणवायच
ु लनात् योदशेि(Zयािण चलि(त।ठीक

उतराखड म
ु िविवालय १२५
भारतीय दश
न MASL-103
ऐसी ही Jया;या गौडपाद कA भी है- ाणोऽिप पंजरशकुिनवत् सव7य चालनं करोित इित।तव
कौमदु ी एवं िव&ततोिषणी म करण1 से पाँच वायओु ं के Jयापार का होना बताया गया है। जबिक गौड
पाद और सवु णसDितकार ने पांच वायवु 1 को तेरह करण1 के Jयापार का कारण मानते ह5।गौड पाद के
मत का आधार कदािचत् hोपिनषद का िन*न सगं है-
सोऽिभमानादूEव
मु:म इव ति"म8नु:ामयथेतरे सव
एवो:ाम8ते ति"मँI &ितeमाने सव

एव &ाितe8ते। तKथा मि*का मधुकरराजनमु:ाम8तं सवा


एवो:ाम8ते ति"मँI
&ितeमाने सवा
एवं &ाितe8त एवं वाङमनI*ःु ो0ं च ते &ीताः &ाणं "तु8वि8त 2.4 । 29
पवू ा
पर सJब8ध- अ(तःकरण1 एवं वाnकरण1 के Jयापार का म Wया है ? ऐसी आशक
ं ा हो◌ेने
पर कहा गया है-
युगपFचतुय"य तु वृि2ः :मशI त"य िनिद
ा।
iे तथाSयiे 0य"य तपिू व
का विृ 2ः।। का0 30 ।।
अ8वय- y%े त7य चत%ु य7य वृिSः तु यगु पत् मशः च िनिद%ा तथा अy%े य7य वृिSः तपिू वका
भवित।
अथ
- यc के िवषय म उन चार1 का Jयापार कभी एक साथ एवं कभी मशः भी होता है। िक(तु
अयc के स*ब(ध म तीन1 अ(तःकरण1 का Jयापार एक साथ और मशः यc पवू क होता है।
शारदा<या'या- y%े त7य चत%ु य7य वृिSः तु युगपत् मशः च िनिद%ा- यc के िवषयभतू पदाथ
के िवषय म उन चार1 (बिु @, अहक ं ार, मन का एक-एक इि(Zय से स*ब(ध होने से चत%ु य बनता है।)
का Jयापार एक साथ और मशः होता है। पाँच चत%ु य ह5- बिु @अहक ं ारमनIोचत%ु य,
बिु @अहकं ारमनवकचत%ु य्, बिु @अहक ं ारमनिजŒाचत%ु य, बिु @अहक
ं ारमन}ाणचतु%य। इन पाँच1
चत%ु य1 से मशः शOद, 7पश, Kप, रस ग(ध का Hान कभी-कभी मशः भी होता है और कभी-
कभी एक साथ भी होता है। यगु पत Hान भी व7ततु म पवू क  ही होता है िक(तु उसम नगय समय
लगने से युगपद कहा जाता है। यगु पद Hान का उदाहरण है- सप को देखकर संकLप िवकLप अहक ं ार
और वहाँ से पलायन का िनBय चार1 का एक साथ ही हो जाना यगु पद Hान है।
तथा अiेऽिप 0य"य तपिू व
का वृि2ः - अy% अथात् भतू कािलका एवं भिवEयतकािलक
िवषय1 का Hान यc पवू क ही होता है। यc कA गयी व7तु का ही बाद म अनमु ान तथा 7मरण
होता है। कभी भी न देखी गयी व7तु का न तो अनमु ान ही होता है और न यc ही। मन अहक ं ार
तथा बिु @ पहले यc कA गयी व7तु के िवषय म ही अपना Jयापार करते ह5। बिु @, अहक
ं ार और
मन का भतू काल और भिवEयतकालीन पदाथ से स*बि(धत Hान यc पवू क  और मशः होता है

उतराखड म
ु िविवालय १२६
भारतीय दश
न MASL-103
जबिक वतमान काल के िवषय म यगु पद और मशः दोन1 होता है। 30
अ$यास &.-

h-1. पK
ु ष का धान के साथ संयोग का योजन कृ ित को िवकार1 सिहत देखना है ....यह कथन
है-
(a). असय (b). सय
(c). दोन1 (d). इनम से कोई नहN।
h-2. कृ ित का पK
ु ष के साथ संयोग का योजन है-
(a). कृ ित को देखना (a). पK
ु ष का कै वLय स*प(न कराना
(c). दोन1 (d). इनम से कोई नहN।
h-3. कृ ित से कुल िकतने तव उप(न होते ह5-
(a). 23 (b). 22
(c). 20 (d). 24
h-4. आठ अगं ह5-
(a). अहक
ं ार के (b). बिु @ के
(c). मन के (d). अJय के
h-5. सािवक अहक
ं ार से उप(न होता है-
(a). मन (b). पांच Hानेि(Zयां
(c). पाच
ं कमuि(Zयां (d). ये सभी
h-6. धम Hान, ऐय, वैराlय लcण ह5-
(a). सािवक बिु @ के (b). राजिसक बिु @ के
(c). तामिसक बिु @ के (d). इनम◌
ं े से कोई नहN

उतराखड म
ु िविवालय १२७
भारतीय दश
न MASL-103
h-7. बिु @ मेधा और धैय िकसकA भाया ह5-
(a). Hान (b). अHान
(c). धम (d). अधम
h-8. वैराlय कA भाया ह5-
(a). I@ा (b). भि
(c). दोन1 (d). इनम◌
ं े से कोई नहN
h-9. अहक
ं ार से सृि% होती है-
(a). दो कार के (b). तीन कार के
(c). चार कार के (d). इनम◌
ं े से कोई नहN
h-10. तामिसक अहक
ं ार से उप(न ह5-
(a). मन (b). पंचमहाभतू
(c). पचं तन् मााय (d). इनम◌
ं े से कोई नहN
h-11. आकाश महाभतू उप(न होता है-
(a). ग(ध त(मा से (a). शOद त(मा से
(c). Kप त(मा से (d). इनम◌
ं े से कोई नहN
h-12. सक
ं Lप िवकLप करने वाला है-
(a). मन (b). बिु @
(c). अहक
ं ार (d). ये सभी
h-13. Iवण इि(Zय आलोचन करती है-
; (a). ग(ध का (b). रस का
(c). Kप का (d). शOद का

उतराखड म
ु िविवालय १२८
भारतीय दश
न MASL-103
h-14. 7वालcयावृिS वाले ह5-
(a). मन (b). अहक
ं ार
(c). बिु @ (d). ये तीन1
h-15. िकस इकाई म कुल काCरकाय ह5-
(a). 6 (b). 8
(c). 10 (d). 12
h-16. अिभमान लcण है-
(a). बिु @ का (b). मन का
(c). दोन1 का (d). इनमसं े कोई नहN

5.4 सारांश-
7ततु इकाई म◌ ं े कुल 10 काCरकाय ह5। कृ ित और पK ु ष के िमलन से ही सृि% होती है। यह सा;ं य
कA मा(यता है। सां;य दशन ने सृि% कA Jया;या चेतन व अचेतन चेतन के संयोग से माना है। पK ु ष
का कृ ित से संयोग का योजन कृ ित को उसके िवकार1 के सिहत देखना है और कृ ित का पK ु ष
से संयोग का योजन पK ु ष का कै वLय स*प(न करना है। दोन1 का संयोग लंगड़े व अ(धे कA तरह से
होता है। चेतन पK ु ष के संयोग से कृ ित म गणु cोभ होता है और वह िवKप पCरणाम वाली होकर
सृि% करती है। कृ ित से महत,् महत् से अहक ं ार, अहक
ं ार से ि&िवध सृि% 1. 11 इि(Zय1 का समहू ,
व 2. 5 त(मााय उप(न होती ह5। 5 त(मााओ ं से 5 महाभतू उप(न होते ह5। महत् तव को बिु @
भी कहते ह5। महत् तव िव का बीज है। बिु @ का धम िनBय करना है। इसके सािवक और
तामिसक दो 7वKप ह5। सािवक 7वKप के चार अगं ह5- धम, Hान, वैराlय और ऐय और तामिसक
बिु @ के चार अगं ह5- अधम, अHान, राग, अनैय। म5 Hानवान ह‹ँ ऐसा अिभमान करने वाला तव
अहक ं ार है। इसके सािवक राजिसक व तामिसक 3 7वKप ह5। सािवक अहक ं ार से 11 इि(Zयाँ
उप(न होती ह5 और तामिसक अहक ं ार से 5 त(मााय उप(न होती ह5। मन 5 Hानेि(Zयां, 5
कमuि(Zयां ये 11 इि(Zयां ह5। मन िवमश Kप है। यह उभयेि(Zय है। Vाn िवषय1 के स*पक से यह
अनेक Kपतामक होता है◌ै। Iो वक ने िजŒा और नािसका ये Hानेि(Zयां ह5। ये मशः शOद
मा, 7पश मा Kप मा और ग(ध मा का आलोचन करती ह5। वाक् पािण पाद पायु उप7थ ये
कमuि(Zयां ह5। बोलना, लेना िवहार करना, िवसजन करना और रमण करना इनके Jयापार ह5।
अ(तःकरण1 का उनका अपना Jयापार असाधारण Jयापार है। ाणािद 5 वायु इनके साधारण Jयापार

उतराखड म
ु िविवालय १२९
भारतीय दश
न MASL-103
ह5। पंच ाण ह5- ाण, अपान, Jयान, उदान और समान। HानोपिS म चत%ु य1 का Jयापार यगु पद
और मशः हMआ करता है।

5.5 अयास 
न के उतर
1.b 2.b 3.a 4.b 5.d
6.a 7.a 8.c 9.a 10.c
11.b 12.a 13.c 14.d 15.c
16.d

5.6 स%दभ# $%थ सच


ू ी-
1.सा;ं यकाCरका-गौडपादभाEयसमि(वता लेखक ईरकृ Eण-Jया;याकार प0ं Iी tवाला साद
गौड,काशक-चौख*बा िवाभवन वाराणसी सं7करण 2004।
2. सां;यतवकौमदु ीभा-Jया;याकार डा0 आा साद िमI,काशक- अcयवट काशन
इलाहाबाद,सं7करण 1994
3. सां;यकाCरका यिु दीिपका सिहत-Jया;या डा0 रमाशक
ं र िपाठी काशक कृ Eणदास
अकादमी वाराणसी,स7ं करण -1999
4. सां;यकाCरका माठरवृिS व जयमगं ला समि(वत-संशोधक सकाCर शमा वंगीय काशक
चौख*भा सं7कृ त सीरीज आिफस वाराणसी तृतीय सं7करण 1994
5.सा;ं यदशनम-् सा;ं यवचनभाEयसिहत स*पादक डा0 प0ं गजानन शाfी मसु लगाँवक

5.7 सहायक उपयोगी पा)य साम$ी


आप इस इकाई का अ3ययन के िलए अधोिलिखत पाठ्य सामVी का उपयोग कर सकते है-
1.सा;ं यकाCरका-गौडपादभाEयसमि(वता लेखक ईरकृ Eण-Jया;याकार प0ं Iी tवाला साद
गौड,काशक-चौख*बा िवाभवन वाराणसी सं7करण 2004।
2.सा;ं यतवकौमदु ीभा-Jया;याकार डा0 आा साद िमI,काशक- अcयवट काशन
इलाहाबाद,सं7करण 1994

उतराखड म
ु िविवालय १३०
भारतीय दश
न MASL-103
3.सा;ं यकाCरका यिु दीिपका सिहत-Jया;या डा0 रमाशक
ं र िपाठी काशक कEणदास अकादमी
वाराणसी,सं7करण -1999
4. सा;ं यकाCरका माठरवृिS व जयमगं ला समि(वत-सशं ोधक सकाCर शमा वगं ीय काशक
चौख*भा सं7कृ त सीरीज आिफस वाराणसी तृतीय सं7करण 1994
,5. सां;यदशनम-् सां;यवचनभाEयसिहत स*पादक डा0 पं0 गजानन शाfी मसु लगाँवकर

5.8 *नब%धामक 

h 1. कृ ित और पK
ु ष का स*ब(ध व सृि% म बताइये ?
h 2. Jय तव1 को िव7तार पवू क
 समझाइये।

उतराखड म
ु िविवालय १३१
भारतीय दश
न MASL-103

 3-


उतराखड म
ु िविवालय १३२
भारतीय दश
न MASL-103

 1.
   2ह  % &'
इकाई क @परे खा
1.1 तावना
1.2 उे

1.3 वेदा(त दश5न क ऐितहािसकता
1.3.1 अैत वेदांत
1.3.2 िविशाैत वेदांत
1.3.3 ैत वैदांत
1.3.4 ैताैत वेदांत
1.3.5 शEु ाैत वेदातं
1.3.6 अिच(य भेदाभेद वेदातं
1.5 सारांश
1.6 पाGरभािषक श-दावली
1.7 अ3यास 
न1 के उतर
1.8स(दभ5 6(थ सचू ी
1.9 सहायक उपयोगी पाठ्यसाम6ी
1.10िनब(धामक 

उतराखड म
ु िविवालय १३३
भारतीय दश
न MASL-103

1.1सतावना

वेदा(तसार नामक V(थ के िव7तृत अ3ययन हेतु िनिमत इस खड कA यह थम इकाई है ।
वेदा(तसार नामक V(थ के गढू अ3ययन हेतु इस इकाई म आप वेदा(त म विणत िस@ा(त1 को
7ततु करने वाले आचाय^ का पCरचय ार् पत करते हMए स*पणू  वेदा(त दशन कA ऐितहािसकता को
जानेग ।

गK ु एवं आचाय के Kप म िवIतु ह1ने के िलए उपिनषद1 पर िजन आचाय^ न टीका V(थ अथवा
प7ु तक िलखकर वेदा(त को अVसCरत होने म योगदान िदया वे आज भी भारतीय मनीषा म 7मरणीय
ह5 । वैसे तो भारतीय दशन कA पर*परा लगभग पॉंच हजार वष से कम परु ानी नहN है । वेदा(त दशन के
ारि*भक आचाय^ से लेकर आज तक के सभी णेताओ ं के संिc~त पCरचय इस इकाई के अ(तगत
आपके अ3ययनाथ 7ततु है ।

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप वेदा(त दशन कA स*पणू  ऐितहािसकता का सc


ं पे िक(तु
िव7तृत अवलोकन करते हMए इस दशन कA अित ाचीनता और िचरनवीनता का Hान कराएगं े ।

1.2 उेशय

वेदा(त दशन कA पृEठभिू म से स*बि(धत इस इकाई के अ3ययन के पbचात् आप बता सक गे िक –

गौडपादाचाय के बारे म समझा सके ग ।

• वेदा(त दशन कA ऐितहािसकता को बता सके ग ।


• आिद शक ं राचाय का पCरचय दे सके गे ।
• &ैत वेदा(त के बारे म जान सके ग ।
• म3ववेदा(त का पCरचय दे सके ग ।
• चैत(य महाभु के बारे म बता सके ग ।
1.3 वेदा8त दश
न कW ऐितहािसकता

वेदा(त Hानयोग कA एक शाखा है जो Jयि को Hान ािD कA िदशा म उेCरत करता है। इसका
म;ु य fोत उपिनषद है जो वेद Vथं ो और अरयक Vथं 1 का सार समझे जाते ह5। वेदा(त कA तीन

उतराखड म
ु िविवालय १३४
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शाखाएँ जो सबसे tयादा जानी जाती ह5 वे ह5: अ&ैत वेदांत, िविश% अ&ैत और &ैत। आिद
शक ं राचाय, रामानजु और Iी म3वाचाय िजनको मश: इन तीनो शाखाओ ं का वतक माना जाता
है, इनके अलावा भी Hानयोग कA अ(य शाखाएँ ह5। ये शाखाएँ अपने वतक1 के नाम से जानी जाती
ह5 िजनम भा7कर, वLलभ, चैत(य, िन*बारक, वाच7पित िमI, सरु े र, और िवHान िभc.ु आधिु नक
काल म जो मख ु वेदांती हMये ह5 उनम रामकृ Eण परमहसं , 7वामी िववेकानंद, अरिवदं घोष, 7वामी
िशवानंद और रमण महिष उLलेखनीय ह5. ये आधिु नक िवचारक अ&ैत वेदांत शाखा का
ितिनिधव करते ह5। दसू रे वेदातं ो के वतक1 ने भी अपने िवचार1 को भारत म भिलभाँित चाCरत
िकया है पर(तु भारत के बाहर उ(ह बहMत कम जाना जाता है ।

ऐितहािसक pप से िकसी गpु के िलये अचाय बनने / समझे जाने के िलये वेदांत कA प7ु तक1 पर
टीकाएँ या भाEय िलखने पड़ते ह5। इन प7ु तक1 म तीन महवपणू  प7ु तक शािमल ह5 उपिनषद, भगवद
गीता, और QRसू . तदनसु ार आिद शक ं राचाय, रामानजु और म3वाचाय तीन1 ने इन तीन महवपूण
प7ु तक1 पर िविश% रचनाय दी ह5 ।

आिदम मनEु य कृ ित के Kप1 को देखकर आBय करता है, उनकA पजू ा करने का िवधान बनाता है।
कमकांड का इस कार िवकास हो जाने पर सिु 7थर िचS से मनEु य उनके पीछे काय कर रहे िनयम1
का िचंतन करने लगता है और यहN उसकA िजHासा ारंभ होती है। 7व का पर के साथ संबंध होने पर
7व और पर के वा7तिवक 7वKप तथा उनके पार7पCरक संबंध के बारे म 7वाभािवक िजHासा उठती
है। यिद 7व जीव है तो पर को जगत् कहा जा सकता है। 7व और पर म िविभ(नता यcत:
yि%गोचर होती है पर यc से आगे िवचार करने पर मनEु य 7व-पर म समान Kप से रहनेवाले तव
िवशेष (QR) कA कLपना करता है। उपिनषद1 म कमकांड को 'अवर' कहकर Hान को इसिलए
महव िदया गया िक Hान 7थूल से सoू म कA ओर ले जाता है। QR, जीव और जगत् का Hान पाना
उपिनषद1 कA मल ू िशcा है । कालांतर म िजन Vंथ1 म उपिनषद् कA परंपरा का पालन करते हMए इन
िवषय1 पर िवचार िकया गया, उनको भी 'वेदातं ' कहा जाने लगा। भगवTीता तथा QRसू उपिनषद1
के साथ िमलकर वेदांत कA '7थानयी' कहलाते ह5 ।
तीन1 Vंथ1 म गट िवचार1 का कई तरह से Jया;यान िकया जा सकता है। इसी कारण से QR, जीव
तथा जगत् के सबं धं म अनेक मत उपि7थत िकए गए और इस तरह वेदातं के अनेक Kपो का िनमाण
हMआ ।
वेदा(त दशन कA आचाय पर*परा व7ततु : अय(त ाचीन है बादरायणकृ त वेदा(त सू 1 म आचाय
बादरायण् ने िविभ(न अ(य समकालीन आचायw के मत का संVह िकया है वे िविभ(न मत कहN तो
आचाय बादरायण के अपने मत1 के समथक ह5 और कही उनसे िवरोध दशाते है । एवं िवध कुछ

वेदा(ताचायw के नाम Hात होते ह5 तथा उनके मतो का भी संकेत िमलता है।

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गौडपाद - यिप अ&ेतवेदा(त कA गK
ु पर*परा अिताचीन है, िक(तु गोडपाद आचाय के समय से
वह पर*परा ऐितहािसक ामािणकता को ा~त कर लेती है।

वा7तव मे अ&ैतवाद के थम वतक आचाय गोडपाद ही िस& होते है । सवथम


अ&ैतवेदा(त के िस&ा(तो का मब& Kप म ितपादन इ(ही के &ारा हMआ है। िव&ान1 का िवचार है
िक गौडपाद आचाय का अ&ैतवाद बौ&वाद पर आधाCरत है । डॉ0 दास ग~ु ता का तो यह िवbवास है
िक आचाय गौडपाद स*भवत: बौ& ही थे , िक(तु डॉ0 शमा का कथन है िक गौडपादाचाय के
मायावाद का म;ु य योजन बौ&-दशन का समथन न होकर उपिनषद् िवचारधारा का 7पEटीकरण है,
इसिलए इनके मायावाद को बौ& श(ू यवाद अथवा िवHानवाद पर आधाCरत न मानकर उपिनषद्
दशन पर ही ितिvत मानना चािहए ।
गौडपाद आचाय कA िस& कृ ित माडूWयोपिनषद् पर आधाCरत माडूWयकाCरका है । यह V(थ चार
करण1 म िवभWत है- 1- आगम करण 2- नैत_य करण 3- अ&ैत करण और 4- अतीत शाि(त
करण ।
माडूकय काCरका से गौडपाद के दाशिनक िवचार1 का 7पEट Hान हो जाता है । वह अनािद माया
को ही &ैत कारण मानते है । (सृEटी के स*ब(ध म उनका मत है िक वह अनभु ािवक Kप से ही सय है
यथाथ सता नहN, वह 7व~न `ि(त है और सम7त भेद तीितKप है ) माियक जगत् के िलए
उ(ह1ने 7व~न , मरीिचका जल एवं गाधं व नगर आिद के yEटा(त िदये ह5 । यथाथ सता एकमा
आमा ह5 । यह सदैव अज(मा , जागृत , 7व~नरिहत 7वकाश है ।

Iीयतु बलदेव उपा3याय माडूWय काCरका के अितCरWत उतरगीता का भाEय भी इ(हN कA कृ ित


बताते ह5 । इनका काल अिधकांशत: आठवN शताOदी का ार*भ अथवा सातवN शताOदी का अ(त
िनिBत िकया जाता है ।

गोिव8दपाद – गौडपादाचाय के िशEय तथा आचाय शक ं र के गK


ु थे, िक(तु इनके िवषय म अिधक
ामािणकता सामVी उपलOध नहN हो सकA है । माधवाचाय ने सवदशनसंVह म रसेbवर दशन के
अ(तगत रस”दय नाम से कुछ bलोक उ•धृत िकये है । Iीयतु बलदेव उपा3याय वहॉ उिLलखत इस
V(थ को गोिव(द कA कृ ित बताते है ।
आचाय
शक ं र – आचाय शक ं र बौि&क जगत कA वह मिहमामय िवभिू त ह5,िज(ह पाकर भारत भिू म
ध(य हो गई । वे दाशिनक नाभमडल का ऐसा तेजोमय सयू  िस& हMए िजसके काश को देश , काल
कA सीमाय अवK& न कर सकN । तभी तो वह िवbवJयापी ;याती अिजत कर सके । Wया पौवाय ,
Wया पाbचाय सभी िव&ान उनके Hान कA महानता के समc नािमत हो गये । डॉ0 घाटे ने उ(ह

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अ&ैतवाद का सवwFच माना है और टोमिलन का कथन है- शक ं र उन सअ दाशिनक1 म महान ह5 ,
िज(ह आज पिBम म ा~त ितEठा कA अपेcा अिधकतर ितEठा िमलनी चािहए । भाEय 7तो
और करण इनकA तीन कार कA कृ ितयॉं ह5 ।
आचाय शक ं र का िस&ा(त अ&ैतवाद के नाम से िस& है । सताओ ं के पृथक् महव को
अ7वीकार करना ही अ&ैतवाद है । आचाय के अ&ैत का मल ू - म( है, " Qहमा सयं जगि(म_या ।"
Qहमा के अितCरWत अनय् सम7त व7तओ ु ं को िम_या कA िसि& हेतु उ(ह1ने मायावाद कA 7थापना
कA । िव&ान1 का कथन है िक शक ं र का मायावाद गौड.पादाचाय के मायावाद से भािवत है ।
आचाय शक ं र ने माया शOद का योग अिवा, अHान, `म, मृगतृिEणका आिद अथw म िकया है ।
मायावाद शक ं र का वह अमोघ म( है िजसके &ारा Qहमा और जगत् के स*ब(ध कA पहेली को
सलु झा सके है । जगत् Qहमा का िववतमा है जैसे रtजू म सप ।
आमा के अि7तव के स*ब(ध मे आचाय का मत है िक वह तो 7वत: िस& है । अपने
अि7तव का Hान येक Jयि को सदैव रहता है । आमा शक ं र का yि%कोण िनराशावादी अथवा
पलायनवादी नहN है । मोcएक JयवहाCरक सय है । इसके िलए उ(ह1ने Hान, कम और उपासना
आिद सभी कA उपादेयता 7वीकार कA है । यही कारण है िक शक ं र के िस&ा(त के वल Hािनय1 और
योिगता को ही नही वरन् साधारण मानव को भी भािवत करते है ।
आचाय शक ं र ने अ&ैत वेदा(त कA िजस धारा को गित दी उसे और अिधक गित कA ओर
उनके योlय िशEय िशEय ले गये । आचाय शक ं र से आगे चलने वाली वेदा(ताचायw कA पिं
अयं(त दीघ है । उनम से कुछ ने वेदा(त सािहय को अय(त समृ& िकया ।
वाच"पित िम - आचाय शक ं र के समान ही वाच7पित िमI भी सवतो(मख ु ी ितभा वाले
आचाय थे । इ(ह1ने ाय: आचाय थे । इ(ह1ने ाय: सभी दशन1 के सािहय को समृ& िकया ।
वेदा(त के …हमbंकर शांकरभाEय पर भामती टीका इनके वेदा(तसार कA पCरचाियका है । इनका
काल नौवN शताOदी िनिBत है
िवKारXय - िवारय मिु न का नाम 'माधव ' बताया जाता है । अपने जीवन के ार*भ म यह माधव
नाम म(ी पद पर काय करते रहे । तदपु रा(त स(यास कA दीcा लेकर िवारय नाम से Iृंगेरी मठ के
अ3यc बने । इनका ि7थितकाल 1296 ई0 से 1386 ई0 तक िनिBत िकया जाता है । जीव(मिु ,
िववेक तथा पञचदशी िवारय तथा भारती तीथ कA सि*मिलत रचना बताई जाती है ।
आन8दिगरी – आन(दिगरी शंकर के धान िशEय1 म से थे । शक ं रभाEय पर (यायिनणय नामक
टीका इनका िस& V(थ है ।
मधुसूदन सर"वती – यह सोलहवN शताOदी के िस& वेदा(ती ह5 । इनकA िस& कृ ित (यायामृत कA
समीcा Kप म अ&ैत िस&ी है । यह अय(त पािडयपूण है । संcेपशारीCरकटीका , गढू ाथदीिपका,
िस&ा(तिब(दु , वेदा(तकLपलितका इयािद अ(य कृ ितया ह5 ।

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धम
राजाEवरी8; - 16 वN शताOदी के अ(य आचाय ह5 – धमराजा3वरीनZ । इनकA उंकृ Eट ितभा
और िव&ता का पCरचायक V(थ ह5 - ' वेदा(तपCरभाषा ' । इसका अ3ययन वेदा(त के माण स*ब(धी
Hान के िलए आवbयक तथा उपयोगी है । बेदा(त –पCरभाषा पर इनके पु रिचत ' िशलामिण '
नामक Jया;या भी उपलOध है ।
सदान8द – सदान(द योगी(Z भी 16वN शताOदी के वेदा(ताचाय ह5 इनकA ;यािता~त कृ ित
वेदा(तसार है । यह स*पणू  वेदा(त –िस&ा(त का पCरचायक V(थ वेदा(त का ारि*भक Hान ा~त
करने के िलए यह V(थ अयिधक उपादेय है । वेदा(तसार पर नृिसंह सर7वती ने सबु ोिधनी ,आपदेव
ने बालबोिधनी तथा 7वामी रामतीथ ने िव&(मनोर(जन टNकाय रचN ।
इन महािवभिू तय1 के अितCरWत अ&ैव वेदा(त सािहय को अ(य अनेक िव&ान1 ने भी समृ& िकया ।
इनम Iीहष , सवHामिु न , अपदीिcत , काशामा , Qहमान(द सर7वती , नारायणतीथ , सदान(द
यित भृित का नाम िवशेषोLलेखनीय है ।
1.3.1 अैत वेदांत

(300 ई.) तथा उनके अनवु तm आिद शक ं राचाय (700 ई.) QR को धान मानकर जीव और जगत्
को उससे अिभ(न मानते ह5। उनके अनसु ार तव को उपिS और िवनाश से रिहत होना चािहए।
नाशवान् जगत तवश(ू य है, जीव भी जैसा िदखाई देता है वैसा तवत: नहN है। जाVत और
7व~नाव7थाओ ं म जीव जगत् म रहता है परंतु सषु िु D म जीव पच
ं Hानश(ू य चेतनाव7था म रहता है।
इससे िस@ होता है िक जीव का श@ ु Kप सषु िु D जैसा होना चािहए। सषु िु D अव7था अिनय है अत:
इससे परे तरु ीयाव7था को जीव का श@ु Kप माना जाता है। इस अव7था म नर जगत् से कोई सबं धं
नहN होता और जीव को पनु : नर जगत् म वेश भी नहN करना पड़ता। यह तरु ीयाव7था अgयास से
ाD होती है। QR-जीव-जगत् म अभेद का Hान उप(न होने पर जगत् जीव म तथा जीव QR म लीन
हो जाता है। तीन1 म वा7तिवक अभेद होने पर भी अHान के कारण जीव जगत् को अपने से पृथक्
समझता है। परंतु 7व~नसंसार कA तरह जाVत संसार भी जीव कA कLपना है। भेद इतना ही है िक
7व~न Jयि गत कLपना का पCरणाम है जबिक जाVत अनभु व-समि%-गत महाकLपना का।
7व~नजगत् का Hान होने पर दोन1 म िम_याव िस@ है। परंतु बौ@1 कA तरह वेदांत म जीव को जगत्
का अगं होने के कारण िम_या नहN माना जाता। िम_याव का अनभु व करनेवाला जीव परम सय है,
उसे िम_या मानने पर सभी Hान को िम_या मानना होगा। परंतु िजस Kप म जीव ससं ार म Jयवहार
करता है उसका वह Kप अवbय िम_या है। जीव कA तरु ीयाव7था भेदHान श(ू य श@ ु ाव7था है। Hाता-
Hेय-Hान का संबंध िम_या संबंध है। इनसे परे होकर जीव अपनी श@ ु चेतनाव7था को ाD होता है।
इस अव7था म भेद का लेश भी नहN है Wय1िक भेद &ैत म होता है। इसी अ&ैत अव7था को QR
कहते ह5। तव असीम होता है, यिद दसू रा तव भी हो तो पहले तव कA सीमा हो जाएगी और

उतराखड म
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सीिमत हो जाने से वह तव बिु @ग*य होगा िजसम Hाता-Hेय-Hान का भेद ितभािसत होने लगेगा ।
अनभु व साcी है िक सभी Hेय व7तएु ँ नर ह5। अत: यिद हम तव को अनर मानते ह5 तो हम उसे
अ&य, अHेय, श@ ु चैत(य मानना ही होगा। ऐसे तव को मानकर जगत् कA अनभु यू मान ि7थित का
हम िववतवाद के सहार Jया;यान करना होगा। र7सी म ितभािसत होनेवाले सप कA तरह यह जगत्
न तो सत् है, असत् है। सत् होता तो इसका कभी नाशश् न होता, असत् होता तो सख ु , द:ु ख का
अनभु व न होता। अत: सत् असत् से िवलcण अिनवचनीय अव7था ही वा7तिवक अव7था हो
सकती है । उपिनषद1 म नेित कहकर इसी अHाताव7था का ितपादन िकया गया है। अHान भाव
Kप है Wय1िक इससे व7तु के अि7तव कA उपलिOध होती है, यह अभाव Kप है, Wय1िक इसका
वा7तिवक Kप कुछ भी नहN है। इसी अHान को जगत् का कारण माना जाता है । अHान का QR के
साथ Wया संबंध है, इसका सही उSर किठन है परंतु QR अपने श@ु िनगणु Kप म अHान िवरिहत है,
िकसी तरह वह भावाभाव िवलcण अHान से आवृS होकर सगणु ईर कहलाने लगता है और इस
तरह सृि% म चालू हो जाता है । ईर को अपने श@ ु Kप का Hान होता है परंतु जीव को अपने
QRKप का Hान ाD करने के िलए साधना के &ारा QRीभतू होना पड़ता है । गpु के मख ु से
'तवमिस' का उपदेश सनु कर जीव 'अहं QRाि7म' का अनभु व करता है । उस अव7था म संपणू 
जगत् को आममय तथा अपने म स*पणू  जगत् को देखता है Wय1िक उस समय उसके (QR) के
अितCर कोई तव नहN होता। इसी अव7था को तरु ीयाव7था या मोc कहते ह5।
1.3.2 िविशाैत वेदांत

रामानजु ाचाय ने (11वN शताOदी) शक


ं र मत के िवपरीत यह कहा िक ईर (QR) 7वतं तव है परंतु
जीव भी सय है, िम_या नहN। ये जीव ईर के साथ संब@ ह5। उनका यह संबंध भी अHान के कारण
नहN है, वह वा7तिवक है। मोc होने पर भी जीव कA 7वतं सSा रहती है। भौितक जगत् और जीव
अलग अलग Kप से सय ह5 परंतु ईर कA सयता इनकA सयता से िवलcण है। QR पणू  है, जगत्
जड़ है, जीव अHान और द:ु ख से िघरा है। ये तीन1 िमलकर एकाकार हो जाते ह5 Wय1िक जगत् और
जीव QR के शरीर ह5 और QR इनकA आमा तथा िनयंता है। QR से पृथक् इनका अि7तव नहN है,
ये QR कA सेवा करने के िलए ही ह5। इस दशन म अ&ैत कA जगह बहMव कA कLपना है परंतु QR
अनेक म एकता 7थािपत करनेवाला एक तव है। बहMव से िविश% अ&य QR का ितपादन करने के
कारण इसे िविश%ा&ैत कहा जाता है।

िविश%ा&ैत मत म भेदरिहत Hान असंभव माना गया है। इसीिलए शक ं र का श@


ु अ&य QR इस मत
म Vाn नहN है। QR सिवशेष है और उसकA िवशेषता इसम है िक उसम सभी सत् गणु िवामान ह5 ।
अत: QR वा7तव म शरीरी ईर है। सभी वैयि क आमाएँ सय ह5 और इ(हN से QR का शरीर
िनिमत है । ये QR म, मोc हाने पर, लीन नहN होतN; इनका अि7तव अcु ण बना रहता है। इस तरह

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QR अनेकता म एकता 7थािपत करनेवाला सू है। यही QR लय काल म सoू मभतू और
आमाओ ं के साथ कारण Kप म ि7थत रहता है परंतु सृि%काल म सoू म 7थल ू Kप धारण कर लेता
है। यही काय QR कहा जाता है। अनंत Hान और आनंद से य ु QR को नारायण कहते ह5 जो लoमी
(शि ) के साथ बैकंु ठ म िनवास करते ह5 । भि के &ारा इस नारायण के समीप पहMचँ ा जा सकता है।
सवwSम भि नारायण के साद से ाD होती है और यह भगवदH् ानमय है। भि माग म जाित-
वण-गत भेद का 7थान नहN है। सबके िलए भगवािD का यह राजमाग है ।
अ$यास के &qन

िन*निलिखत के सही िवकLप चनु कर िलिखए

1.वेदा(त का म;ु य Šोत है

क. गीता ख. महाभारत
ख. परु ाण घ. उपिनषद्

2. म3वाचाय वतक ह5

क. अ&ैत दशन के ख. &ैत दशन के


ग. चावाक के घ . बौ@ के
3.म3वाचाय का समय Wया है
क. 11z97 ई. ख. 1208 ई.
ग. 1390ई. घ. 1550ई.
4. अ&ैत करण रचना -
क. शकं र कA ख. रामानजु
ग. गौड पाद घ. वाच7पित
5. Iीमद भगवतगीता म विणत है
क. (याय ख. कमकाड
ग. िनEकाम घ. पर*परा
िन*निलिखत के एक शOद म उतर िदिजए
क. आ(नद िगरी कौन थे ।

उतराखड म
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ख. वेदा(तसार िकसने िलखा है ।
ग. मधसु दू न सर7वती का समय है ।
घ. भामती तीका के लेखक कौन है ।
ङ. िविशEता&ैत के वतक थे ।
च. मायावाद का खडं न िकसने िकया था ।
छ. वेदा(त का अथ Wया ह5 ।
3. 1.3.3 ैत वैदांत
मEव (1197 ई.) ने &ैत वेदांत का चार िकया िजसम पाँच भेद1 को आधार माना जाता है। जीव
ईर, जीव जीव, जीव जगत्, ईर जगत्, जगत् जगत् इनम भेद 7वत: िस@ है। भेद के िबना व7तु कA
ि7थित असंभव है। जगत् और जीव ईर से पृथक् ह5 िकंतु ईर &ारा िनयंित ह5। सगणु ईर जगत्
का Š%ा, पालक और संहारक है। भि से स(न होनेवाले ईर के इशारे पर ही सृि% का खेल
चलता है । यिप जीव 7वभावत: Hानमय और आनंदमय है परंतु शरीर, मन आिद के संसग से इसे
द:ु ख भोगना पड़ता है । यह संसग कम^ के पCरणाम7वKप होता है। जीव ईरिनयिं त होने पर भी
कता और फलभो ा है। ईर म िनय ेम ही भि है िजससे जीव म ु होकर, ईर के समीप ि7थत
होकर, आनंदभोग करता है। भौितक जगत् ईर के अधीन है और ईर कA इFछा से ही सृि% और
लय म यह मश: 7थल ू और सoू म अव7था म ि7थत होता है । रामानजु कA तरह म3य जीव और
जगत् को QR का शरीर नहN मानते। ये 7वत:ि7थत तव ह5। उनम पर7पर भेद वा7तिवक है । ईर
के वल इनका िनयं ण करता है। इस दशन म QR जगत् का िनिमS कारण है, कृ ित (भौितक तव)
उपादान कारण है।
1.3.4 ैताैत वेदांत
िनबं ाक (11 वN शताOदी) का दशन रामानजु से अयिधक भािवत है। जीव Hान 7वKप तथा Hान
का आधार है। जीव और Hान म धमm-धम-भाव-संबध अथवा भेदाभेद संबंध माना गया है। यही
Hाता, कता और भो ा है। ईरश् जीव का िनयंता, भता और साcी है। भि से Hान का उदय हो
पर संसार के द:ु ख से म
ु जीव ईर का सामी~य ाD करता है। अाकृ त भतू से ईर का शरीर तथा
ाकृ त भतू से जगत् का िनमाण हMआ है। काल तीसरा भतू माना गया है। ईर को कृ Eण राधा के Kप
म माना गया है। जीव और भतू इसी के अगं ह5। यही उपादान और िनिमत कारण है। जीव-जगत् तथा
ईर म भेद भी है अभेद भी है। यिद जीव-जगत् तथा ईर एक होते तो ईर को भी जीव कA तरह
क% भोगना पड़ता। यिद िभ(न होते तो ईर सवJयापी सवा\तरामा कै से कहलाता ?
1.3.5 श6
ु ाैत वेदांत

वLलभ (1479 ई.) के इस मत म QR 7वतं तव है। सिFचदानंद Iीकृ Eण ही QR ह5 और जीव

उतराखड म
ु िविवालय १४१
भारतीय दश
न MASL-103
तथा जगत् उनके अश
ं ह5। वही अणोरणीयान् तथा महतो महीयान् है। वह एक भी है, नाना भी है। वही
अपनी इFछा से अपने आप को जीव और जगत् के नाना Kप1 म गट करता है। माया उसकA शि
है िजसी सहायता से वह एक से अनेक होता है। परंतु अनेक िम_या नहN है। Iीकृ Eण से जीव-जगत्
कA 7वभावत: उपिS होती है। इस उपिS से Iीकृ Eण म कोई िवकार नहN उप(न होता। जीव-जगत्
तथा ईर का संबंध िचनगारी आग का सबंध है। ईर के ित 7नेह भि है। सांसाCरक व7तओ ु ं से
वैराlय लेकर ईर म राग लगाना जीव का कतJय है। ईर के अनVु ह से ही यह भि ा~य है, भ
होना जीव के अपने वश म नहN है। ईर जब स(न हो जाते ह5 तो जीव को (अंश) अपने भीतर ले
लेते ह5 या अपने पास िनयसख
ु का उपभोग करने के िलए रख लेते ह5। इस भि माग को पिु %माग भी
कहते ह5।
1.3.6 अिच8य भेदाभेद वेदांत
महाभु चैत(य (1485-1533 ई.) के इस संदाय म अनंत गणु िनधान, सिFचदानंद Iीकृ Eण परQR
माने गए ह5। QR भेदातीत ह5। परंतु अपनी शि से वह जीव और जगत् के Kप म आिवभतू होता है ।
ये QR से िभ(न और अिभ(न ह5। अपने आपम वह िनिमS कारण है परंतु शि से संपक होने के
कारण वह उपादान कारण भी है। उसकA तट7थशि से जीव1 का तथा मायाशि से जगत् का
िनमाण होता है। जीव अनंत और अणु Kप ह5 । यह सयू  कA िकरण1 कA तरह ईर पर िनभर ह5। संसार
उसी का काश है अत: िम_या नहN है । मोc म जीव का अHान न% होता है पर संसार बना रहता है।
सारी अिभलाषाओ ं को छोड़कर कृ Eण का अनसु ेवन ही भि है । वेदशाfानमु ोिदत माग से
ईरभि के अनंतर जब जीव ईर के रग म रँ ग जाता है तब वा7तिवक भि होती है िजसे pिच या
रागानगु ा भि कहते ह5। राधा कA भि सवwकृ % है। वृदं ावन धाम म सवदा कृ Eण का आनंदपणू  ेम
ाD करना ही मोc है ।
आराEयो भगवान |जेश तनय: त6ामव8ृ दावनम्
रJयाकािचदुपासना &जवधवू गaण या कि]पता
शा"0ं भागवतमपुराणममलं &ेमापुमथv महान
ी चैत8यमहा&भोम
तिमदं त0ादरो न: पर: ।। इनका मानना था िक …जेश तनय भगवान कृ Eण
ही एकमा आा3य ह5 । …जवधओ ु ं &ारा किLपत रमणीय उपासना ही एकमा उपासना है ।
IीमPागवतमहापरु ाण ही शा7 है । ेमा नामक महानद पK ु षाथ है ।

1.5 सारांश

वेदा(त Hानयोग कA एक शाखा है जो Jयि को Hान ािD कA िदशा म उेCरत करता है। इसका
म;ु य fोत उपिनषद है जो वेद Vथं ो और अरयक Vथं 1 का सार समझे जाते ह5। वेदा(त कA तीन

उतराखड म
ु िविवालय १४२
भारतीय दश
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शाखाएँ जो सबसे tयादा जानी जाती ह5 वे ह5: अ&ैत वेदांत, िविश% अ&ैत और &ैत। आिद
शक ं राचाय, रामानजु और Iी म3वाचाय िजनको मश: इन तीनो शाखाओ ं का वतक माना जाता
है, इनके अलावा भी Hानयोग कA अ(य शाखाएँ ह5। ये शाखाएँ अपने वतक1 के नाम से जानी जाती
ह5 िजनम भा7कर, वLलभ, चैत(य, िन*बारक, वाच7पित िमI, सरु े र, और िवHान िभc.ु आधिु नक
काल म जो मख ु वेदांती हMये ह5 उनम रामकृ Eण परमहसं , 7वामी िववेकानंद, अरिवदं घोष, 7वामी
िशवानंद और रमण महिष उLलेखनीय ह5. ये आधिु नक िवचारक अ&ैत वेदांत शाखा का
ितिनिधव करते ह5। दसू रे वेदातं ो के वतक1 ने भी अपने िवचार1 को भारत म भिलभाँित चाCरत
िकया है पर(तु भारत के बाहर उ(ह बहMत कम जाना जाता ।

आचाय शक ं र का िस&ा(त अ&ैतवाद के नाम से िस& है । सताओ ं के पृथक् महव को


अ7वीकार करना ही अ&ैतवाद है । आचाय के अ&ैत का मल ू - म( है, " Qहमा सयं जगि(म_या ।"
Qहमा के अितCरWत अ(य सम7त व7तओ ु ं को िम_या कA िसि& हेतु उ(ह1ने मायावाद कA 7थापना कA
। िव&ान1 का कथन है िक शंकर का मायावाद गौड.पादाचाय के मायावाद से भािवत है । आचाय
शक ं र ने माया शOद का योग अिवा, अHान, `म, मृगतृिEणका आिद अथw म िकया है ।
मायावाद शक ं र का वह अमोघ म( है िजसके &ारा Qहमा और जगत् के स*ब(ध कA पहेली को
सलु झा सके है । जगत् Qहमा का िववतमा है जैसे रtजू म सप ।

1.6 पा4रभा5षक शबदावल


आगम – शा71 को आगम कहा जाता है

उपिनषद् – गित , िवशरण और अवसादन

िववत
– `म

का?रेका – bलोक Kप

भौितक – लोक संसार

1.7 अ$यास &qन_ के उतर

1 घ.

2 ख.

उतराखड म
ु िविवालय १४३
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3 क.

4 घ.

5 ग.

1.8 संदभ# $ंथ

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सां दाियक भाEय;
• राधाकृ Eणन् : इिं डयन िफलासफA, भाग 1-2;
• दासगDु : िह7टरी ऑव इिं डयन िफलासफA, भाग1

1.9 सहायक पाठ्य साम ी


• वेदा(त दशन .7वामी राधाकृ Eणन
• सं7कृ त शा71 का इितहास आचाय बलदेव उपा3याय

1.10 िनबधामक न


• वेदा(त दशन कA संcेिपका िनिमत कAिजए
• शक
ं राचाय का पCरचय 7ततु कAिजए
• वेदा(त दशन कA आचाय पर*परा पर एक िनब(ध िलिखए

उतराखड म
ु िविवालय १४४
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 -2
 / 
* "  3   !4
इकाई क @परे खा
2.1 तावना
2.2 उे

2.3 वेदा(तसार के मखु िसEा(त
2.3.1 NOम का व@प
2.3.2 अनबु (ध
2.3.2.1 अिधकारी
2.3.2.2. िवषय
2.3.2.3 सDब(ध
2.3.2.4 योजन
2.4 अPयारोप एवं आवरण, िव,ेप शिRयॉ
2.5 सTू म शरीर
2.6 पंचीकरण
2.7 सारांश
2.8 श-दावली
2.9 अ3यास 01 के उ4र
2.10 स(दभ5 6(थ
2.11 सहायक /6(थ उपयोगी पाठ्यसाम6ी
2.12 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय १४५
भारतीय दश
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2.1 तावना
वेदा(तसार जो सदान(द योगी(Z &ारा रिचत है, उसके िस@ा(त1 एवं भतू त_य1 के स*यक् अ3ययन
हेतु िनिमत इस खड कA यह दसू री इकाई है। इस इकाई म वेदा(त एवं वेदा(तसार के सै@ाि(तक
तलु नामक समीcण का अ3ययन कराया जायेगा।
व7ततु ः भारतीय दशन1 म वेदा(त दशन ाण7वKप् है। इसके अ(तगत Qम, माया, जीव जगत ईर
और मनEु य के करणीय तथा अकरणीय कमw कA िववेचना िनयम-िनषेध पवू क  कA गयी है। पवू  म भी
इसकA आचाय पर*परा अय(त समृ@ रही है िजकका अ3ययन आपने इसके पवू  कA इकाई म िकया
है। इसके अ(तगत वेदा(तसार म ितपािदत सै@ाि(तक समीcण आपके अ3ययनाथ 7ततु है।
7ततु इकाई म आप वेदा(त के िस@ा(त1 का अ3ययन करने के पBात का*य, िनिष@ आिद कमw
को समझाते हMए Hानयोग से ईर ािD के माग को बता सक गे।

2.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के पBात, आप यह बतायेगे िक-
1. Qाम का 7वKप Wया है।
2. ईर को िकस कार पCरभािषत िकया गया है।
3. यH1 को िकस कार पCरभािषत िकया गया है।
4. Hानमाग कA िवशेषताएं Wया है।
5. अनवु (ध चत7ु टय का महव Wया है।
6. वेदा(तसार कA उपयोिगता Wया है।

2.3 वेदा%तसार के मख


ु स@ा%तः
Hान कA एक अबाध सCरता िजसका वाह सनातन है उसे दशन कहते है। वेद1 म जगत् कA उपिS
ि7थित तथा िवनाश को बताया गया है। इसके बाद जो दाशिनक सया(वेषण है वह है उपिनषद।
इ(ही म Qम माया, जीव जगत ईर कA अ(वेषणपणू  सय सािबत होते ह5। सभी दशन1 के ितपा?
िवषय1 म Qम, माया, जीव, जगत, ईर ये सब कारा(तर से विणत ह5। सदान(द योगी(Z रिचत
वेदा(तसार म अनुब(ध चत%ु या-िवषय, स*ब(ध, अिधकारी और योजन को बताकर अ3यारोप,
अपवाद, अनमु ान, का*य िनिष@ कम, यHािद तथा Hान एवं अHान के 7वKप कA िववेचन कA गयी
है। आवरण तथा िवशेष शि के मा3यम से योगी(Z ने सम7त गिु _य1 कA सलु झाने का यास िकया
उतराखड म
ु िविवालय १४६
भारतीय दश
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है। इस पाठ के अ(तगत आप वेदा(त म िजतने सै@ाि(तक 7वKप है। उनकA सारभतू बात1 को
वेदा(तसार के मा3यम से जानेगे।
2.3.1 Aम-
यहॉ पर के वल वेदा(तसार म विणत त_य1 के आधार पर Qम के 7वKप कA Jया;या नहN कA
जायेगी। Qम के बारे म वेदा(त दशन कA जो मा(यता है उसका संिcD िनदशन िकया जा रहा है।-
सामा(यतः Qम शOद को बृह् धातु से उप(न माना गया है। इसका अथ है िवशाल, अतः जो इतना
िवशाल हो िक सबकुछ JयाD पCरयाD कर ले उसी को Qहम कहते है। ार*भ म Qहम शOद का
योग वैिदक सू 1 तथा 7तिु तय1 म िकया जात था। इसी य म Qम शOद वेद के िलए य ु हो
गया। तथा कमकाड कA चरु ता के कारण यH1 का महव बढ़ जाने से यH को ही सृि% उप(न करने
वाली सबसे बड़ी शि समझा जाने लगा। िक(तु यH का आधार तो Qम अथवा वेद ही था अतः
Qम या वेद को थमजम् कही जाने लगा। ठसके अलावा Qम शOद का तापय है-एकमा िनय
चेतनासSा जो जगत् का कारण और सत् िचत् आन(द 7वKप है। Qम शOद का मख ु योग एक
ही सं;या के िलए भी िकया गया है। अतः Qहम् शOद के चाहे िजतने भी अथ िकये गये हो उनके
तापय तो सवJयापी ही िनकलते है।
Iिु तय1 म Qम के िलए 7थान-7थान पर आन(द एवं आन(दमय शOद का िनमाण ’’तकृ तवचने’’
चरु ता के अथ म मयत् यय के योग से हMआ है। अतः इसका अथ है ’’आन(द कA चरु ता’’
गणु हीन होने के नाते आन(द कA चरु ता Qम म ही समािहत है। Qम के िवषय म सदाननद योगी(Z
ने वेदा(तसार के मगं लाचरण के ारि*भक दो प1 म ही Qहम के 7वKप को उािटत कर िदया है
िजसम उ(होने अपने गK ु कA भी व(दना कA है। मगं लाचरण के प म उ(होनं Qम को सवदा
वतमान, चेतन और आन(द 7वKप, वाणी तथा मन कA पहM◌ॅच से परे , अिखल जगत का आधार
और अखड कहा है। वेदा(तसार के मत म Qम सत् िचत ओर आन(द 7वKप है।
अखXडं सिFचदान8दवांगमनसगोचरम्
आमानमिखलाधारमा येभीिस6ये।
अथ
तोSययान8दतीतैतभानतः
ग"ु नाराEय वेदा8तसारं वrये यथामितः।।
सत् का अथ है िकालवािधत पदाथ जो कभी िवकृ त न हो Qम सयं Hानमन(तं है वह येक
अव7था म िवकारहीन तथा िनय है, वह पणू  है, ब@
ु है तथा Hान व@क भी है। वेदा(त के अ(दर
JयवहाCरक और परमािथक दो y◌ृि%य1 से Qम पर िवचार िकया जाता है।

उतराखड म
ु िविवालय १४७
भारतीय दश
न MASL-103
मु डक उपिनषद म एक कथा आती है- एक बार सनु क के पु अिं गरस ऋिष के पास पहM◌ॅचकर पछू े
िक वह कौन सी व7तु है िजसको जान लेने से सबकुद Hात हो जायेगा। उ(ह1ने उSर िदया िक -Qम।
&ैतभावना का दरू होना अथात् आमा का दशन होना है। इस कार सदान(द योगी(Z ने Qम के
िवषय म अितसcू म शOदावली के मा3यम से असीिमत अनभु िू त और भावना को Jय िकया है।
2.3.2. अनुब8ध-
_कसी भी V(थ को पढ़ने ओर जानने के िलए िन*न बाते महवपणू  होती है।
1. उस V(थ को पढ़ने का अिधकारी कौन है।
2.उस V(थ का िवषय Wया है जो िलखा हMआ ।
3. उसम िलिखत िवषय एवं प7ु तक का Wया स*ब(ध है।
4. इसके अ3ययन का योजन Wया है।
उपय ु इ(हN चार h1 के उSर को अनबु (ध कहा जाता है तथा इन चार1 के उSर को अनबु (ध
चत%ु य कहा जाता है। बात भी सही है कोई भी V(थ को म5 पढ़ रहा ह‹◌ॅ उसका िवषय Wया है, इसम
Wया िलखा है, इसका स*ब(ध िकससे है और म5 पढ़—गा तो Wया ाD होगा, तब तक कोई उसम वृत
नहN हो सकता है। वाच7पयम् म एक 7थान पर कहा गया है-
Hाताथ Hात स*ब(धं Iोतं◌ु Iोता वSते।
V(थादौ तेन व Jयः स*ब(धः सयोजनः।।अतः वह अनबु (ध चार कार का है-
क-अिधकारी 7वः िवषय ग-स*ब(ध घ-योजन। यहॉ पर मशः वणन 7ततु है।
2.3.2.1 अिधकारी-
वेदा(त नामक िवषय का अिधकारी वही हो सके गा जो िविधवत वेद वेदाड़्ग1 का अ3ययन करके
वेदाथ Hान म पारंगत हो। का*य एवं शाf Hान करके िनिष@ कमw का याग िकया हो। इसके बाद
िजस Jयि का अ(तःकरण िनय, नैिमिSक, ायिBत् एवं उपासना कमw के &ारा सम7त पाप1 से
म ु हो गया हो। ऐसेचार साधन1 से स*प(न माता ही अिधकारी कहलाता है। अिधकारी को इस
ज(म या पवू  ज(म म वेदाथ Hान परमाbयक है। 7का ािD कA कामना से िकये जाने वाले tयोितEतोम
यHािद का*य कम है। नरकािद ािD कराने कराने वाले Qमतया आिद कमw को िनिष@ कम कहते
है। िजनके न करने से हािन होती है उ(ह िनय कम कहा जाता है। पु ोपिS आिद के अवसर पर जो
जातेि% आिद यH िकये जाते है उ(ह नैिमिSक कहा जाता है। मनEु य अपने जीवन म िजतने आपकमw

उतराखड म
ु िविवालय १४८
भारतीय दश
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को करता है उनके शमन हेतु िकये जाने वाले चा(Zायाण …त आिद ायिBत कम कहे जाते ह5।
मानिसक वृिS पणू त ः ि7थर हो इसके िलए सगणु Qम के िवषय म जो कम िकये जाते है वे उपासना
कम होते ह5। इसकार के स*प(न होने से Jयि अिधकारी कहलाता है।
2.3.2.2 िवषय-
यह अनबु (ध चत%ु य का एक महवपूण भाग है इसके अ(तगत यह बताया जाता है िक िजस V(थ म
जो भी विणत है वह सै@ाि(तक Kप म िकस िवषय से सि*O(धत है। अथवा वेदा(तसार का िवषय
जीव और Qम का एक होना बताया जाता है। वह िवK@ धमw से म ु होकर श@ चैत(य का Hान
है। यही वेदा(त वाWय1 का चरम लoय भी है। जीव तथा Qम का आयि(तक भेद िनKपण ही
अ&ैतवाद का सारभतू है। जीव1 कA Qम से िभ(न अपनी अलग सSा ही िविशEतवाद का सार है।
जीव और Qम का 7वKप श@ ु चैत(य कA श@ु ता है। माण1 से जाना जाने वाला िवषय मेय
कहलाता है। किपल तथा कणाद आिद दाशिनक1 ने वदा(त का तापय धान के अि7तव को िस@
कराना माना गया है।
2.3.2.3 सJब8ध-
जीव तथा Qम दोन1 के ऐWय और उनके ितपादक उपिनषद् वाWय1 का बो3य बोधक भाव हो
जाना वदो(तसार म स*ब(ध कहलाता है। जीव और Qम का ऐWय ही िवषय है तथा ितवादक
Iिु तवाWय1 के जो बो3यबोधक भाव है वही स*ब(ध है। यिप
श@ ु चैत(य के अि7तव को यc Kप से मािणत नहN िकया जा सकता और कोई यc Jया;या
भी नहN कA जा सकती है िक(तु अनमु ान माण के सहारे से उसकA Jया;या हो सकती है।
2.3.2.4. &योजन-
ज◌ ् ीव और Qम कA जो एकता है उसकA जानकारी के बीच म अHान कA िनवृिS हो जाने पर
आमा के 7वKपान(द कA ािD होती है। आमHाता ही हमेशा शोक से तर जाता है। ’’तरित शोकम्
आमिवत्’’ और Qमिव Qमैव भवित’’ आिद वाWय ही वेदा(तसार के योजन है वैसे तो
वेदा(तसार का मख ु योजन के वल अHान का िनवारण ही यिद िकसी तवेSा को अFछा गK ु ाD
हो जाय तो ’’तवमिस’’ आिद वाWय1 के कृ पापणू  उपदेश से उसके अHान कA िनवृिS हो जाती है।
आन(द का असीिमत सभZु साधक कA झोली म लेता है। अतः इसी आन(द कA उपलिOध करना ही
वेदा(तसार का मख ु योजन है।
2.4 अAयारोप एवं आवरण, 5व0ेप शिCतयॉ
वेदा(तसार के िस@ा(त1 म अ3यारोप तथा अHान कA दो शि य1 का वणन िकया गया है िज(ह
आवरण तथा िवcेप कहते है।
अEयारोप-र7सी म सप का आभास होने के समान िकसी व7तु म अ(य व7तु के आरोप को

उतराखड म
ु िविवालय १४९
भारतीय दश
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अ3यारोप कहते है। यहॉ व7तु का तापय अिवनाशी Qम या आमा से है और अ(य व7तु जो
अव7तु कहलाती है उसकA िकसी भी Kप म सSा नहN होती है। व7तु सिFचदान(दता&यं Qम।
अHानािदसकलजड़समहू ोऽव7तःु अHान सव और असव दोन1 से रिहत होने के कारण अवणनीय
होता है। यह िगणु ामक है और Hान का िवरोधी है मै अHानी ह‹◌ॅ इसका तापय ही Hान कA
भावKपामकता है। समि% और Jयि% दो अिभाय1 के कारण अHान कहN एकKपता म और कहN
बहMवचन के Kप म य ु िकया जाता है। वेदा(तसार म कहा गया है िक-आान7य आवरणिवcेप दो
शि यॉ होती है।
आवरणशिC-
िजस कार एक लघु मेघखड अखड िव7तृत सयू  कA आभा को दशक1 कA yि% से िविFछ(न कर
देता है उसी कार सीिमत अHान भी असीिमत तथा असांसाCरक आमा का आवृत् कर देता है।
ऐसी शि आवरण शि कहलाती है। वेदा(तसार का एक उदाहरण है-
घनFछ8नiिघ
नFछ8नचक यथा म8यतेिन>पभ चाितमूढ़ः।
तथा ब6वाित या मूढ़ iेः स िनतयोपलि+ध"वLप_ऽहमामा।।
अथात् िजस कार मेघ से आFछ(न yि% वाला Jयि मेघाFछािदत सयू  को काशरिहत समझता
है। उसी तरह साधारण yि% वाला मढ़ू लोग1 को ज(म मरण वाला ब(धन1 से बािधत तीत होता है।
िव*ेपशिC- िव*ेप शिC तो उसे कहते ह जो र"सी िनषयक अनाFछािदतं र"सी मl अपनी
शिC से सपा
िदकW उावना के समान अानावृत आमा मl ही आकाशािद &प8च कW
उावना कराता है। िव*ेप शिC ही िलंग शरीर से लेखक AमाXड कW रचना तक करती
है। िव*ेप शिC कW यह‚ िवशेषता है।
िजस कार एक ही मकड़ी अपने त(तु Kपी काय के ित चेतन धानता के नाते िनिमS कारण होती
है और अपने शरीर कA धानता के नाते िनिमS कारण होती है और अपने शरीर कA धानता के
नाते उपादान कारण भी होती है। उसी कार यह संसार है। अगर मकड़ी चेतन न हो तो के वल उसके
शरीर से त(तु नहN बन सकता। िक(तु यिद शरीर न हो तो भी के वल चैत(य से ही त(तु नहN बन
सकता।अथात् िजस कार मकड़ी जाल को बनाती ह5 और उसे िनगल लेती है, िजस कार जीिवत
मनEु य से रोम या के श उप(न होते है वैसे ही अcर अिवनाशी Qम से यह जगत उप(न होता है।

2.5 सE
ू म शरर-लंग
शरीर ही सoू म शरीर कहा जाता है। इसके सह(17) अवयव होते है-पॉच Hानोि(Zयॉ, बिु @ एवं मन
पॉच कमuि(Zयॉ तथा पॉच वाय।ु Iो, वक, चcु िजह(वा, }ाण ये पॉच Hानेि(Zयॉ है। ये पॉच

उतराखड म
ु िविवालय १५०
भारतीय दश
न MASL-103
आकाशािद के सािवक अश ं 1 से अलग-अलग उप(न होती है। िनBत करने वाली अ(तः करण कA
वृिS को बिु @ कहा जाता है। अ(तःकरण वृिS के दो Kप होते ह5-1-िनBयािमका 2-संशयािमका।
सक
ं Lप और िवकLप करने वाली अ(तःकरण कA वृिS को मन अ(तभाव हो जाता है। िच(त कA वृिS
अनसु (धान कता है। अिभमान का काय करने वाली अ(तकरण कA वृिS को अहक
ं ार करते है।
पाच
ं Hानेि(Zय तथा बिु @ का संय
ु Kप िवHानमय कोश कहलाता है। इसी संय
ु होकर Jयवहार
करने कA अव7था वाला कता, उपभो ा, जीव कहलाता है।
मन और Hानेि(Zय का संय
ु Kप मनोमय कोश कहलाता है।
वाणी, हाथ, पैर, पायु और उपसथ ये सभी कमuि(दयॉ है। ये सभी आकाशािद के रजोगणांश1 से
अलग-अलग उप(न होती है। ाण, अपान Jयान उदान तथा समान ये पॉच वायु ह5।
नाक के अVभाग म रहने वाली वाणु ाण है। िन*नगमन वाली गदु ािद 7थल कA वायु अपान है तथा
सभी ओर जाने वाली स*पणू  शरीर कA वायु Jयान है। अपन कA ओर जाने वाली वायलु उदान है
और पCरपाक करने वाली वायु समान वायु होती है।
वेदा(तसार म विणत इ(हN त_य1 के स*पणू  स*पृ होने से सoू म शरीर उप(न होता है। इसके मौिलक
और िव7तृत वणन आगे कA इकाइय1 म िदये गये है।
इस कार िवHानमय कोश, ाणमय कोश तथा मनोमय कोष को िमलाने से सoू म शरीर बन जाते ह5।
Hानेि(Zयो◌ॅ 5 कामuि(Zयॉ 5 वायएु ं 5 तथा बिु @ ओर मनस।्

2.6 प%चीकरण
सृि% के िवकासाथ पॉच महानुत1 का सि*मIण ही प(चीकरण कहलाता है। इस ि या म पॉच भतू 1
के येक के दो बराबर भाग करके अनके आधे-आधे भाग1 म अ(य-अ(य भतू ो के आठवे भाग को
िमला देने से प(चीकृ त महाभतू बनते है। अथात् पृ_वी म के वल आधा भाग पृ_वी का और अवशेष
आधे म आकाश वायु तेज तथा जल का 1/8 भाग साधारणतः िलया जाता है। वेदा(तसार का कथन
है-िधा िवधाय चैकैकं तचध ु ा
&थमं पनु ः।
"व"वेतरितीयां शैयvजनाƒच प8च ते।।
प(चीकरण कA इस ि या कA इस कार Jय िकया गया है- आकाशािद पॉच महाभतू 1 म से
येक को समान दो भाग1 को पनु ः चार बराबर भाग1 म बॉटकर 5ग2 येक को उन दस भाग1 म से
ाधिमक पॉच भाग1 को पनु ः चार बराबर भाग1 म येक को िवभ करके उनके 1/8 भाग1 को

उतराखड म
ु िविवालय १५१
भारतीय दश
न MASL-103
ि&तीयाध भाग को छोड़कर दसू रे भाग1 को िमलाने कA ि या पंचीकरण होती है। अतः पृ_वी=1/2
पृ_वी $1/8 जल$1/8 तेज$1/8 वायु $ 1/8 आकाश=प(चीकरण ।।
शक
ं राचाय का कथन है िक-पच ं ममहाभतू ानामेकैकम् ि&धािवभtय चतधु ा कृ वा 7वधभागं िवहाय
इतरे षु प(चधा प(चीकृ तेषु प(चीकरण भवित।।
अ$यास &.-

िन*निलिखत के सही उSर चनु कर िलिखए


1. Qn शOद के योग म वृधातु का Wया अध है-
क. िवशाल ख. िव7तृत ग. सीिमत घ. वृि@
2. अनबु (ध है-
क. V(थ ख. िवषय ग. साधन घ. याहार
3. िनBयाि*मका है-
क. अ(तःकरण कA वृिS
ख. Qाn यन
ग. बिु @
घ. िदमाग कA वृिS।।
4. अHान कA शि है-
क. Hान ख. अ(धकार ग. आवरण घ. अनावरण
5. श@
ु शOद है-
क. मन ख. मनम् ग. मनस् घ. मना
2. एक शOद म उSर दीिजए-
1. र7सी म सप के अgयास को Wया कहते है।
2. सoू म शरीर के िकतने अवयव है।

उतराखड म
ु िविवालय १५२
भारतीय दश
न MASL-103
3. िलंग शरीर को कहा जाता है।
4. प(चीकरण कA ि या िकस दशन म है।
5. मन और Hानेि(Zय को िमलाने से बनता है? मनो0
6. अनसु (धानािमक बृिS िकसे कहते है। (िच0)
7. बिु @ और Hानेि(Zय को िमलाने से Wया बनता है। िव0 का0
8. संकLप और िवकLप िकसकA वृिS है।

2.7 सारांश-
वेदा(त दशन म Qहम, माया, जीव, जगत, तथा ईर के बारे म चरु ता से वणन िकये गये है। येक
V(थ म इन सभी के वणन1 म यही आभास है। सदान(द योिग(Z ने वेदा(तसार म अखड Qम कA
7तिु त कर जगत कA उपिS म कारण Wया Wया है इसे अFछी तरह बताया है तथा Hान और अHान
को िवLकुल अलग करके पCरभािषत कर िदया है।
उ(ह1ने सoू म शरीर के िनमाण म सहायक तव1 को अलग से बताते हMए कोश1 के िनमाण म िकसका
योगदान है, यह भी 7प% िकया है। भतू ोपिS ि या का िव7तार से वणन कर भतू 1 के िनमाण म
सहायक तव1 कA स;ं या और उनके िवभाग1 को भी बताया है। यिद yि% पवू क िवचार कर तो तीत
होता है िक वेदा(तसार वेदा(त के सै@ाि(तक h1 कA सरल और अय(त 7प% Jया;या करता है।
इतना ही नहN इसम कुछ नवीन समावेश भी िदखयी पड़ता ह5।

2.8 प4रभा5षक शदावल-


1. अनबु (ध-वेदा(त दशन म इसे चार कार से बताया जाता है-
अिधकारी, िवषय, स*ब(ध और योजन।।
2. सoू मशरीर-िलंग शरीर को सoू म शरीर कहते है।
3. प(चमहाभतू -िछित, जल पावक, गगन, समीर।
4. Hाि(Zयॉ-Hानोि(Zय, कमwि(Zय और उभयामक
5. कोश-इि(Zय1 को मन तथा बिु @ से िमलाकर बनता है।

उतराखड म
ु िविवालय १५३
भारतीय दश
न MASL-103

2.9 अयास 
न के उतर
1. क 2. ख 3. क 4. ग 5. ग
एक शOद म उSर-
1. अ3यारोप 2. सह 3. सoू मशरीर 4. वेदा(त म 5 मनोमयकोश 6. िचS
7. िवHानमय कोश 8. मन

2.10 स%दभ# $%थ


1. IीमदभगवTीता-िह(दी अनवु ाद सिहत-गी◌ाेस
2. वेदा(त दशन- 7वामी राधाकृ Eणन
3. सं7कृ त शाf1 का इितहास-आचाय बल देव उपा3याय चौख*भा काशन

2.11 सहायक $%थ


1. भारतीय दशन-दS एवं चटजm -चौख*भा0 का0
2. भारतीय दशन-सी0डी0 शमा-चौख*भा0 काशन

2.12 *नब%धामक 

1. वेदा(त दशन को िव7तृत Kप से Jया;यािपत कर ।
2. अनबु (ध चत%ु य को समझाइये।
3. अHान कA शि य1 पर काश डािलए।
4. प(चीकरण कA ि या पर काश डािलए।

उतराखड म
ु िविवालय १५४
भारतीय दश
न MASL-103

 -3 56 7/4 


") - 7" 
3.1 तावना
3.2 उे

3.3 मंगलाचरण से लेकर अनबु (ध चतु य तक
3.3.1 अिधकारी
3.3.2 िवषय, सDब(ध एवं योजन
3.4 सारांश
3. 5 श-दावली
3.6 अ3यास 
न1 के उतर
3.7 स(दभ5 6(थ सचू ी
3.8 सहायक उपयोगी पाठ्य साम6ी
3.9 िनब(धामक 

उतराखड म
ु िविवालय १५५
भारतीय दश
न MASL-103

3.1 तावना
वेदा(त दशन से स*बि(धत यह तीसरी इकाई है,इस इकाई के अ(तगत आप QR के 7वKप को
जानते हMए िवषय,स*ब(ध अिधकारी एवं योजन आिद का Hान ाD कर गे ।
अखड परमामा को वेदा(तसार म सिFचदान(द कहकर 7वKपािभJयि कA गयी है ।अनबु (ध
चत%ु य के अ(तगत थमतः अिधकारी तथा उसके बाद मशःिवषय स*ब(ध और योजन1 कA
Jया;या कA गयी है ।इन वणन1 म अनबु (ध चत%ु य कA सिविध Jया;या 7ततु कA गयी है ।
7ततु इकाई के अ3ययन से आप QR के 7वKप को जानते हMए अनबु (ध का अथ बताकर
अिधकारी ,िवषय,स*ब(ध एवं योजन1 कA Jया;या िव7तार से बता सके गे ।

3.2 उे

वेदा(तसार से स*बि(धत इस इकाई के अ3ययन से आप Jया;याियत कर सके गे और बता सक गे िक-

• सत,् िचत,् और आन(द का 7वKप Wया है ।


• अखड परमामा को सिFचदान(द Wय1 कहा जाता है ।
• अिधकारी का लcण एवं महव Wया है ।
• िवषय िकसे कहते ह5,उसकA स*यक िवशेषता Wया है।
• स*ब(ध एवं योजन को वेदा(तसार म िकस कार पCरभािषत िकया गया है।

3.3 मंगलाचरण से लेकर अनब


ु %धचतु टय तक
अखXडं सिFचदान8दमवाड़्मनसगोचरम।्
आमानमिखलाधारमा येऽभीिस6ये।।
अ8वय- अखडं, सिFचदान(दम् तथा िवजातीय और अपनेपन के भेदभाव से रिहत अथात् के वल
एक स*पणू  , अि&तीय। ’’अवाड़्मनसगोचरम-् वाणी तथा मन से परे , अथात् वाणी तथा मन से न
जाने जा सकने वाला। अिखलाधारम=् आकाशािद पॉच महाभतू का आधार, अथात सृि%, पालन,
िवनाश का कारण। अभी%िस@ये=िनःIेयस (मोc) कA ािD के िलये।
अनुवाद-(म5 सदान(द) आयि(तक दःु ख िनवृिSKप मोc कA ािD के िलए अथवा V(थ कA समािD

उतराखड म
ु िविवालय १५६
भारतीय दश
न MASL-103
के िलये सवदा वतमान, चेतन एवं आन(द7वKप, वाणी और मन कA पहMचँ से परे , स*पणू  7थावर-
जड़्गमKप प’च के आधारभतू , अखड परमामा का आIय Vहण करता ह‹।ँ
<या'या -1. आमा- यहॉ पर आमा परमामा के अथ म आया है आमा का योग वेदा(तसार म
जीव-आमन् के िलये भी आया है, जो व7ततु ः Qहार् के साथ तदा*य रखता है।
2. अिखलाधारम-् ’यतो व इमािन भतू ािन जाय(ते (तैिSरीय उपिनषद)् वह िजससे यह सभी पदाथ
(ाणी आिद) िवकिसत हMए ह5, उप(न हMए ह5। व7ततु ः सृि%, ि7थित और िवनाश का कारण है।
Qहार् सू का ’जनमा7य यतः’ सू इसी अथ का बोधक है।
3. अभीिस6ये- लेखक कA िविश% कामना कA पिू त के िलये अथात् शाfस*मत वेदा(तिवषय के
िनKपण के िलये। रामतीथ ने अभी% से तीन कार कA अथ िनवृिS मानी है। (1) शाfीय अथ का
बोध न होना, (2) अ(यथा बोध होना तथा (3) िवK@ बोध होना।
4. A} (आमा)- मु डक उपिनषद् म यह कथा है-सनु क के पु अड़्िगरम ऋिष के पास पहM◌ॅचे
और उनसे न‡ता से पछू ा वह कौन सी व7तु है िजसके जान लेने से सब कुछ Hात हो जायेगा। ऋिष
अड़्िगरस ने उSर िदया- ’Qहार् ’। वेदा(त दशन और उपिनषद् कहते है िक यही भारतीय दाशिनक1
का लoय है। आगे के दाशिनक1 ने ाचीन1 के इस त_य को लेकर अय(त सoू म से सoू म िस@ा(त
7ततु िकये और वेदा(त दशन म पॉच स*दाय िवकिसत हMए ह5, िज(ह1ने स*पणू  िह(दू आि7तक
मि7तEक एवं जीवन को भािवत िकया है।
5. सत-् वेदा(त दशन म तीन कार कA सSाय 7वीकार कA गयी ह5-
(क) पारमािथक, (ख) JयावहाCरक तथा (ग) ितभािसक। QR पारमािथक सSा है, JयावहाCरक
सSा म ईर, जीवामा, 7वग, नरक और स*पणू  सृि% आती है। ये सब अHान से किLपत ह5 और
7व~न से अिधक 7थाियव नहN रखते िक(तु मनEु य Jयवहार म उ(ह वा7तिवक अि7तव वाला
मानकर चलता है, अतः वह पर*परया एवं Jयवहारे ण अि7तव वाले माने जाते ह5। ितभािसत सSा
का आभासमा होती है जैसे सीप1 म रजत का आभास और र7सी म सप का। यह आभास अHान
के कारण होता है। यह सारा सSाओ ं का िस@ा(त जगत् का िनराकरण और Qहार् कA Jया;या करने
के िलये 7ततु हMआ है। इसे कहॉ तक सफलता िमली है, हम कह नहN सकते।
6. िचत् अथवा चैत8य- यह Qहार् का चिलत तीक है पर ’िचत’् शOद तैिSरीय उपिनषद् म Hान
के िलये भी आया है, िक(तु शड़्कर के अनसु ार िचत् बिु @ का अथ नहN रखता। िनरपेcता और
सयता से स*ब@ है।
7. आन8द-सां;य वचनभाEय म पछ
ू ा गया है िक Wया आमा आन(द है? उSर म कहा गया िक

उतराखड म
ु िविवालय १५७
भारतीय दश
न MASL-103
आमा को िकसी कार आन(द कह सकते है।
8. अखXडम-् नृिसहं सर7वती ने अखडम् को समझाने म उदाहरण िदया है- जैसे- एक वृc है उसम
7वगत िविवधताय है जैसे, पिSयॉ, फूल, फल। साथ ही वह कुछ ऐसी भी व7तयु  रखता है जो दसू रे
वृc1 म भी ह5, साथ ही वह कुछ ऐसी भी व7तयु  रखता है जो अ(य पदाथw जैसे पाषण आिद म ह5,
िक(तु Qहार् ऐसा नहN है वह िनरपेc और अपCरवतनशील है, वह यथाथ सत् है। छा(दोlय उपिनषद्
म आया है ’सदेवसो*य इदमV आसीद एकमेवाि&तीयम’् िवारय ने भी प(चदशी म वृc के
उदाहरण से Qहार् को अखड अथात् सजातीय, िवजातीय और 7वगतभेदश(ू य कहा है। अनेक
7थान1 पर वेदा(त के V(थ1 म Qहार् कA अखडता कA बोधक उि ययॉ आई है। िजनम ऐWय,
अवधारण तथा &ैतिनषेध से ििवध भेद का िनराकरण िकया गया है। कहN भी Iिु तय1 म सत् व7तु के
अवयव1 का वणन ाD नहN होता, Wय1िक सत् का िवजातीय असत् होता है अथात् िजसकA सSा न
हो तथा िजसम सSा न हMई उसम भेद भी न होगा। सत् का सजातीय कोई सत् ही हो सकता है, िक(तु
Iिु त 7प% Kप से सत् से िवलcण व7तु का िनषेध करती है। रामतीथ आिद कुछ टीकाकार1 ने
अखड शOद का पयाD अ(तर कहा है। जैसे िक िवारय भी कहते है-
न <यािपवात,् देशातोऽ8तो िनयवा8निप कालतः।
न व"तुतोऽिप सवा
Jयादान8य Aहर◌
् ा◌्रण ि0धा।। (प8चदशी)
उपिनषत् म उस अखड कA लौिकक शOद1 से अिभJयि कA गयी हैजो व7ततु ः अिनवचनीय है-
ओ३म् पूण
मदः पूण
िमदं पूणा
पूण
मुदFयते।
पूण
"य पूण
मादाय पूण
मेवादिश>यते।।
9. सिFचदान8द- अनेक शक ं ाओ ं का िनराकरण करने के िलये Qहार् को सत् िचत् और आन(द
कहा गया है, Wय1िक अखड, अनृत् और श(ू य भी हो सकता है, इसिलये Qहार् का सत् िवशेषण
िदया गया है, Wय1िक जगत् कA सृि% िनराधार नहN हो सकती है। अतवए Qहार् को सत् कहा गया है,
वह अनृत् एवं श(ू य नहN है। इससे बौ@1 का श(ू यवाद खिडत हो जाता है। िचत् कहने से Qहार् को
अ(धकार के समान जड़ता का िनराकरण होता है अथात् वह Hान7वKप है चैत(य उसका गणु नहN
है। तैिSरीय उपिनषत् कहता है-’सयं Hानमन(तं Qहार् ।’ Hान और Qहार् का समानािधकरण है,।
वृहदारयक उपिनषद् म Qहार् के सवगणु रािहय का िव7तार के साथ ितपादन हMआ है, वहॉ कहा
गया है Hान िनय होता है और िकालाबािधत सय होता है, साथ ही, QR आन(द हे यही सख ु Kप
है, वह सख ु Kप न होता तो िवचारशील लोग1 कA वृिS भी उस ओर न होती। Qहार् कA
आननदKपता को िस@ करने वाली Iिु तय1 म अनेक उि यॉ है-जैसे बृहदारयक कहता है-

उतराखड म
ु िविवालय १५८
भारतीय दश
न MASL-103
’िवHानमान(दं QR ।’ तैिSरीयोपिनषद् कहता है-’आन(दो QRेित। मू डक उपिनषद् कहता है-
आन(दKपं अमृतं यिु दभाित।
10. आवड़्मनसगोचरम्-अनेक Iिु तय1 म आमा के वाणी और मन का तथा इि(Zय1 का िवषय न
होने का ितपादन िकया गया है जैसे तैिSरीय 2/9 , के न 1/3 माडूWय 7, कठ ’’नैव वाचा न मनसा
ाDंु शWय1 न चcषु ।’’ इसी कार के न 1/4, 5 और 2/2/15, मु डक 2/2/10 मे आमा को बिु @,
मन ाण और इि(Zय1 से अग*य ितपािदत िकया है।
2. अथ
तोऽSययान8दानतीयैतभानतः।
गुLनाराEय वेदा8तसारं वrय_ यथामितः।।
अ8वयः-अतीत&ैतभानतः, अथतः, अिप, अ&यान(दान् गK
ु न् आरा3य यथामित वेदा(तसारं वoये।।
श+दाथ
- अतीत&ैतभानतः=&ैत भावना से दरू हो जाने से अथात् आमा का दशन हो जाने से।
अथतः =अथ कA yि% से। अ&यान(दान=् अ&यान(द नामक। आरा3य=आराधना करके ।
यथामित=अपनी बिु @ के अनसु ार। वoये=वणन कKगा ।
अनवु ाद-(म5)सम7त भेदभाव से श(ू य होने के कारण यथाथतः अभेदान(द य
ु अ&यान(द नामक
गK
ु कA आराधना करके यथाबिु @ देदा(तसार को कह‹गँ ा।
<या'या -1. अ&यान(द-सदान(द योगी(Z अपने गK ु अ&यान(द तथा Qहार् दोन1 को 7ततु प म
माण करता है। इसके गK
ु यथाथनामा अथात् अि&तीय आमतव म आन(द पाने वाले थे उनका
&ैतभाव िनर7त हो चकु ा है और वे परम सSा का साcातकार करके साथक नाम हो गये है।
अ&यान(द शOद गK ु और Qहार् दोन1 का संकेत करता है।
2. अतीतैतभानतः-िव&(मनोर(जनीकार ने Jया;या कA है-दरू हो गया है &ैत िजससे वह हMआ
अतीत&ैत (यागामा)। उसका भान अथात् साcाकार, ’अतीत’ &ैत य7मात तत् अतीत&ैत
यामतवं, त7य भानम् साcाकारः त7मात् अतीत&ैतभानतः। िक(तु सुबोिधनीकार ने इस कार
कA Jया;या कA है-अतीत गतं &ैतभान यतः त7मात् िनर7तसम7तभेदHानवात् इयथः। अथात्
सम7त भेद Hान से परे होने से। व7ततु ः &ैततीित से छुटकारा पा जाना ही आन(द ाD करना है।
Iिु त कहती हे- ’त कः मोहः कः शोकः, एकवमनपु bयतः।’
सदाननद् के गK
ु जीवम
ु हो गये है- जीव(म
ु कA दो दशाय होती है-
(1) जहॉ सांसाCरक &ैततीित-Hाता, Hेय और Hान-अ&ैत म िवलीन हो जाते है। (2) जहॉ बाा भेद
इि(Zय1 से तीत तो होते ह5, पर उनसे अ&ैत म बाधा नहN पड़ती।

उतराखड म
ु िविवालय १५९
भारतीय दश
न MASL-103
3. यथामित-वेदोपिनषत् से मािणत एवं िनःसृत वेदा(तशाf का जो अय(त ग*भीर िवषय है, उसे
सीिमत शि रखने वाले मनEु य के &ारा िववेिचत होना अस*भव है, अतः V(थकार कहता है िक म5
अपनी बिु @ के अनसु ार Jया;या म वृS होऊॅगा। जैसे-’अिप महित जलाणवे िनमlनाः,
सिललमपु ादयते िमतं िह मीनाः।’
3. वेदा8तो नामोपिनष&माणं तदुपकारीिण शारीरकस0ू ादीिन च।।
अनवु ाद-उपिनषद1 को माण7वKप मानकर चलने वाले शाf वेदा(त ह5 तथा तदनसु ारी (उपिनषद1
का अनसु रण करने वाले) शारीCरक (Qहार् ) सू भी वेदा(त ह5।
<या'या 1. वेदा(त-’वेदा(त’ शOद कA ’वेदानाम् अ(तः इित वेदा(त’ इस वृिS के अनुसार वेदो का
अ(त (अि(तम भाग उपिनषत)् है। वेदा(त कई अथw म उपय ु है-
(क) वेदशOवाFय संिहता-Qहार् ण, आरयक तथा उपिनषद् V(थ1 म इसकA रचना सबसे अनत म
(उपिनषद1 से) हMई है।
(ख) इस काल तक वेदशOदवाFय स*पणू  V(थ मौिखक Kप म ही थे उनका Hान के वल गKु से ाD
िकया जा सकता था और गKु जन भी वैिदक िशcा म म इ(ह (वेदा(त) सबसे अ(त म पढ़ाते थे
Wय1िक यHािद के रह7य1 तथा दाशिनक िवचार1 से य
ु होने के कारण ये अिधक जिटल एवं किठन
थे।
(ग) वेद1 के 7वा3याय मानसु ार उपिनषद1 का अ(त म पाठ करना पु य समझा◌ा जाता था।
(घ) आचायw के मतानसु ार वेद (Hान) उपिनषद् V(थ1 म अपनी पराकाvा को ाD कर गया है। इनम
Hान कA चरम सीमा है।
2.उपिनषत्-’उपिनषत्’ शOद Hानकाड के उस िवशाल दाशिनक सािहय को बोिधत करता है जो
वैिदक कमकाड कA िति या से उप(न हMआ। लेिकन इस शOद के मल ू अथ के िवषय म कुछ
मतभेद है। यह उप और िन उपसगपवू क  सद् धातु से िWवप् यय करने पर िनEप(न हMआ है।
’षदल ् िृ वशरणगयवसादनेष’ु के अनसु ार सार सद् धातु के िवशरण (न% होना), गित (जाना) तथा
अवसादन (िशिथल करना) तीन अथ ह5। शड़्कराचाय अपने कठोपिनषद् भाEय म इन तीन1 अथw का
स(ु दर सम(वय 7ततु करते है-
’अिवKादेः सस ं ारबीज"य िवशरणाद् िवनाश
नाद्................पर A} वा गमयतीित
Aहा्रगमियतृवेन योगाद.् ...........गभवासज(मजराोपिनषत्’ (िवशरण) इसके पढ़ने से
मोcेFछुक1 कA संसारबीजKपी अिवा न% हो जाती है। (गित) वह QR कA ािD कराती ह5।
(अवसादन) तथा मनEु य के गभवास, ज(म, मृयु आिद दःु ख सवथा िशिथल हो जाते ह5।
उतराखड म
ु िविवालय १६०
भारतीय दश
न MASL-103
शड़्कराचाय जी के कथनानुसार तो उपिनषद् का म;ु य अथ QRिवा और अधान अथ है।
QRिवाितपादक V(थिवशेष-
त"माद् िवKायां मु'यया वृया उपिनषFछ+दो वत
ते \8थे तु भRया........।
िन पवू क
 सद् धातु का अथ बैठना भी होता है। ’उप’ अपसग समीप का सचू क है। इस भाँित उपिनषद्
शOद से समीप म बैठने का भाव 3विनत होता है। िविभ(न िव&ान1 ने ’समीप म बैठने’ के कारण कA
Jया;या अनेक कार से कA है। व7ततु ः उपिनषत् का मल ू और ाचीनतम भाव था- िकसी गDु Hान
कA उपलिOध के िलये िशEय का गK ु के समीप बैठना। िवकास कA दसू री अव7था म इसका अथ
हMआ-वह गोपनीय िस@ा(त या Hान जो ऐसी गDु ि7थित म िदया जाय। इसी से उपिनषद1 के िलये
’रह7यम’् पयाय शOद य ु होता है।
3.शारीरकसू0ादीिन-िव&(मनोरि(जनी म शारीरकसू शOद कA Jयु पिS इस कार बताई गई है-
’शरीरमेव शरीरकं त भवो जीवः शारीरकः से स˜ू यते याथात_येन िनK~यते यै7तािन शारीरकसू ािण
अथातो QRिजHासेयादीिन।’ अथात् कुसाथक का यय शरीर शOद से लगकर शरीरक बनकर-
’त भवः’ से अण् यय जड़ु कर शारीरक शOद Jयु प(न होकर अथ होगा-कुिसत शरीर म रहने
वाला जीवामा। उसे जीवामा का यथाथ KवKप (QRव का िवचार) का िनKपण िजनसू 1 &ारा
होता है, वे शारीरक सू कहलाते है। शारीरक सू 1 के रचियता Jयास महिष ह5। आिद षOद
IीमPगवTीता तथा इसी भाँित के अ(य V(थ1 का Vाहक है। इन म से शारीरक सू ही V(थ का मल ू
नाम तीत होता है।
4. अ"य वेदा8त&करणवात् तदीयैः एव अनुब8धैः य2ािस6ेः, न ते पृथगालोचनीयाः।।
अनवु ाद-यह वेदा(तसार वेदा(त का ही अड़ग है अतः उसी वेदा(त के अनबु (ध1 से ही अनबु (धवSा
िस@ होने के कारण उनका पृथक् िनदuश करने कA अपेcा नहN।
<या'या -1. करण-परु ाण आिद के वचनानसु ार ’करण’ शOद कA पCरभाषा इस कार है-
शा~ैकदेशसJब6ं शा~काया
8तरे ि"थतम।्
आहcः &करणं नाम \8थभेदं िवपिIतः।।
िव&ान् लोग एक शाf के एक भाग के ितपादक तथा योजनवश अ(य शाf1 के भी उपय ु अश
ं 1
को Vहण करने वाले (िवषय ितपादन कA yि% से स*ब(ध रखने वाले) V(था(तर भी करण कहे
जाते है। यथा 7ततु V(थ ’वेदा(तसार’ वेदा(त दशन का करण है।
2. अनुब8ध-िकसी भी V(थ का पठनार*भ करते समय-

उतराखड म
ु िविवालय १६१
भारतीय दश
न MASL-103
(क) इसे पढ़ने का अिधकारी कौन है? (ख) इसम कौन सा िवषय िनब@ है? (ग) इसम िलिखत
िवषय तथा प7ु तक का Wया स*ब(ध है? तथा (घ) इसे पढ़ने का Wया योजन है? इन चार h1 के
येक उSर को अनबु (ध तथा चार1 को िमलाकर अनबु (धचत%ु य कहा जाता है। जब तक कोई यह
नहN जानेगा िक यह V(थ िकस िवषय का है, म5 इसे समझ सकता हॅू िक नहN, इसके पढ़ने से मझु े
लाभ होगा अथवा नहN, तब पढ़ने म वृिS नहN हो सकता। इसी से ’वाच7पयम’् म कहा गया हे-
ाताथ
ातसJब8धं ोता &वत
ते।
\8थादौ तेन वC<यः सJब8धः स&योजनः।।
5. त0 अनुब8ध_ नाम अिधका?रिवषय सJब8ध&योजनािन।।
अनवु ाद-उनम अिधकारी, वय-िवषय, 7ततु प7ु तक तथा मल
ू V(थ का पर7पर स*ब(ध तथा
(अ3ययन का) योजन। ये अनबु (ध कहे जाते ह5।
<या'या -1. त-इस ’त’ का संकेत िव&(मनोरि(जनी म वेदा(तशाf अथ िकया गया ह5, लेिकन
सभी सं7कृ त भाषा के V(थ1 म अनबु (ध1 का वणन (पवू  म) होने से वेदा(तशाf अथ अिधक उिचत
नहN हो सका। यहॉ ’अनबु (ध1 म’ यह शOदाथ अिधक उिचत ह5। अब वेदा(तसार के रचियता
सदान(दयोगी(Z मशः अनुब(धचत%ु य का िवशद िववेचन करते ह5। सवथम वे अिधकारी को लेते
ह5।
3.3.1 अिधकारी
6. अिधकारी तु िविधवदधीतवेदाड़गवेनापाततोऽिधगतािखलवेदाथvऽि"मन् ज8मिन
ज8मा8तरे वा काJयिनिष6वज
नपुरःसरं िनयनिमि2क&ायिI2ोपासनानुeानेन
िनग
तिनिखलक]मषतया िनता8तिनम
ल"वा8तः साधनचतुयसJप8नः &माता।
अनवु ाद-अिधकारी तो वही हो सकता है, िजसने इस ज(म या पवू  ज(म म पहले िविधपवू क
 वेद-
वेदाड़गो का अ3ययन करके स*पणू  वेद1 का अथHान उपलOध करके का*य कम तथा शाf1 के &ारा
िनिष@ कमw का याग िकया हो, तपBात् स*पणू  पाप1 से म
ु तथा अयिधक 7वFछ हो गया हो,
ऐसा चार साधन1 से स*प(न माता ही (अिधकारी है)।
<या'या -1. िविधवदवधीतवेदाड़गवेनापाततोऽिधगताखीलवेदाथः-िनयािद कमw का अनvु ान
शाfीय िविध के अनसु ार िकया जाने के कारण इन कमw को करने कA योlयता उपलOध करने के
िलये वेद वेदाड़्ग (िशcा, कLप िनK , छ(द; Jयाकरण और tयोितष) का अ3ययन करके उनके
अथ को समझना जKरी है। इसी को यहॉ उपय ू वाWय के &ारा बताया गया है। Wय1िक इस कार
भली-भॉित अ3ययन करने से 7वयं ही वेद1 तथा वेदाड़्ग1 का अथHान हो जाता है।

उतराखड म
ु िविवालय १६२
भारतीय दश
न MASL-103
2. अि"मन् ज8मिन ज8मानतरे वा-कुछ लोग वेदािद का 7वा3याय तथा िनयािद कमw के अनvु ान
के िबना ही श@
ु िचत वाले (तवदशm) हो जाते ह5 तो सवा3याय और कमानvु ान का आवbयक होना
Wय1 बताया गया है? इस शंका का समाधान करने के िलये V(थकता ने 7ततु वाWय सि*मिलत
िकया है। महामा िवदरु तो शZू दासी के गभ से उप(न होने के कारण वेदािद के 7वा3याय तथा
िनतयािद कमw के अनvु ान के अिधकारी न थे, तथािप महाभारतािद V(थ1 म तवदशm Hानी
महापKु ष के Kप म उनका उLलेख हMआ है। तब वहॉ वेद7वा3याय तथा िनतयािदकमानvु ान
आवbयक नहN है, इसका िनराकरण सततु वाWय के &ारा ही होता है। अ(तःकरण के िनमल होने के
िलये के वल एक ही ज(म कA साधना पयाD नहN अिपतु अनािद ज(म1 कA कLमषताKपी पS1 को
अ(तःकरण Kपी दपण से दरू करने के िलये सहा3यवसाय, यन तथा धैय कA आवbयकता है। गीता
भी इसी का समथन करती है-
’त0 तं बुि6संयोगं लभते पोव
देिहकम।्
यतते च ततो भूयः सिं स6ौ कुयन8दन।।
&यनायतमान"तु योगी संशु6िकि]वषः।
अनेकजनमसंिस6"ततो याित परां गितम।् ।’ (गीता)
अतः महामा िवदरु के तjवHान कA हेतK
ु पा साधना पवू ज (म1 म िनEपािदत हMई होगी।
3. काJयिनिष6वज
नपरु ः सरं िनयनैिमि2क&ायिI2ोपासनानeु ानेन-सततु अश ं के &ारा
सम7त काLमष1 को दरू करने का हेतु बताया गया है। कामवासना से िकये जाने वाले (कामवासना
शि कA साcात् बािधका है) का*य कम तथा अ(तःकरण कA शिु @बाधक अभoय भcण आिद
िनिष@ कमw का पCरयाग िकये िबना रागािद धासनाओ ं कA कLमषता का िनवारण नहN हो सकता
तथा िनय नैिमिSक, ायिBत तथा उपासना कमw का अनvु ान इन कLमष1 कA िनवृSयथ आवbयक
है,। अतः का*य एवं िनिष@ कमw को छोड़कर िनयािद कमw को करना चािहये।
4. नीग
तिनिखलक]मषतया-िनग
तािन िनिखलािन क]मषािन य"य सः
िनग
तिनिखलक]मषः त"य भावः (तल् &यय) िनग
तिनिखलक]मषता तथा।’ इस वृिS के
अनसु ार इस शOद के &ारा यह बताया गया है िक अ(तःकरण स सम7त राग&ेष आिद वासनामक
कLमष1 के िनकल जाने पर अ(तःकरण श@ ु होता हे।
5. साधनचतुयसJप8नः- साधनानो चत%ु यं इित साधनचत%ु य,ं तेन स*प(नः’ इस वृयानसु ार आगे
कहे जाने वाले िनयािनयव7तिु ववेक, इहामु ाथफलभोगिवराग, शमािद छः स*पिSयॉ, तथा
ममु c
ु ु व इन चार साधन1 से स*प(न होना QR िवा (वेदा(त) म अिधकार ाD करने के िलये

उतराखड म
ु िविवालय १६३
भारतीय दश
न MASL-103
आवbयक होने से इनके िबना (साधनचत%ु य के िबना) वेदा(त का अिधकारी होना अस*भव है।
6. &माता-माण1 के &ारा जो लौिकक तथा वैिदक दोन1 ही कार के य
ु होकर वेदा(त का
’माता’ अिधकारी हो सकता है ।
7. िविधवत -QRचय …त म ि7थत छा शाfानसु ार जो अ3ययन करता है, वह िविधवत् अ3ययन
कहलाता है।
8.वेदांड़्ग ये छः है-
िश*ा क]पो <याकरण िनLCं @योितषां गितः।
छ8दसां ल*णं चैव षडड़ग_ वेद उFयते।। (बृहसंिहता)
9. आचाय शड़्कर िवशेष Kप से यह आवbयक समझते ह5 िक Hान-ािD के िलये गK ु अय(त
आवbयक है। वे कहते ह5-’सवHोऽिप 7वात(येण Qहार् Hाना(शेषणं न कुयात।् ’ प(चदशी
.................4/39-41 भी 7प% Kप से गK
ु को आवbयकता को ितपािदत करती है।
10 . ज8मज8मा8तर-पनु ज(मवाद का िस@ा(त भारत, सीलोन, बमा ितOबत एवं चीन म 7वीकृ त रहा
है। इससे हम कह सकते ह5 िक मानव जाित का अिधकाश ं इसे 7वीकार करता है। यिद हम इसकA
उपिS एवं िवकास को ठीक से खोज पाते तो अय(त स(तोष का िवषय होता। ार*भ म आय जाित
और भारत म ारि*भक बसने वाले आय इस िस@ा(त को नहN मानते थे। वे तो आम के सातय को
7वीकार करते थे। । सवथम इस पनु ज(मवाद के िस@ा(त का Hान &ा(दोlय और वृहदारयक
उपिनषद् से होता है। गौतम बु@ ने कम के 7थाना(तरण के िस@ा(त का ितपादन िकया था।
अ$यास &.-1

1-तैितरीय उपिनषद् म िचत् शOद य


ु है-
क- Hान के िलए ख- चेतन के िलए
ग- अन(त के िलए घ-श@
ु के िलए
2-अनृत शOद से तापय है-
क- असय ख-सयासय
ग-परम सय घ- लोक सय

उतराखड म
ु िविवालय १६४
भारतीय दश
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3-वेदा(त से तापय है-
क-वैिदक ख- वेद
ग-वेद का अि(तम घ- वेदश(ू य
4-वेदा(तसार के रचियता ह5-
क-शक
ं राचाय ख-रामानजु
ग-सदान(द योगी(Z घ-िदवाकर
5- िविधवत कहलाता है -
क. Qहमचय म ि7थत होकर शा7ानसु ार अ3ययन
ख . Qहमचय का पालन
ग . के वल अ3ययन
घ . िवधान से
6- ज(मा(तर का अथ होता है -
क . इस ज(म म
ख . ज(म के बाद
ग . ज(म से पहले
घ . अगले ज(म म
7- िवHानमान(दं QR यह कथन िकस उपिनषद् का है
क . बृहदारयक
ख . कठ्
ग . मु डक
घ . तैिSरीय
8- आन(द1 QRेित यह कथन है -
क . मु डक

उतराखड म
ु िविवालय १६५
भारतीय दश
न MASL-103
ख . माडुWय
ग . ऐतरे य
घ . तैिSरीय
खट्वाड़्गो नाम राजिषHावेयSािमहायषु ः
महु ‹Sासवमु सृtय गतवानभयं हCरम।्
7. काJयािन-"वगा
दीसाधनािन @योितोमादीिन।
अनवु ाद-7वगप~यािद कामनाओ ं से िकये जाने वाले tयोित%ीम यHािद का*य कम है।
<या'या -1. का*य- जो कम िकसी फल के उेbय से िकये जाते ह5, वे का*य कम कहलाते ह5। कहा
भी गया है-
’फलाgेशेन िविधयमाननािन कमा
िण काJयािन’
7वग आिद कA उपलिOध इनका (का*य कम का) फल है।
2. @योितोम-शOदाथ है अिlनसतिु त म किथत म( िकनतु यहॉ (7ततु अश ं म) अिlन%ोम योग से
तापय है। ’’tयोित%ोमेन 7वगकाम1 यजेत’ इसी Iिु त पर जौ वैिदक आदेश आधाCरत है, वह
अिlन%ोम यहॉ अिभेत है। यिप tयोित%ोमािद धम के साधन एवं पु य देने वाले अFछे कम होते
हMए भी ज(म-मरण का हेतु है, Wय1िक अFछे कम करने से भी उनका फल भोगने के िलये ज(म लेना
ही पड़ेगा, चाहे वह िकसी स*प(न घर के ह1 इस भॉित अFछे कम भी उनका ब(धन होने से
वेदा(तािधकारी होने म वय ह5। डॉ0 हॉग के अनसु ार अनेक 7थान1 म tयोित%ोम तथा अिlन%ोम
एक ही अथ म आये ह5। tयोित%ोम एक िदन का होता था, अिlन%ोम पॉच िदन का होता था, पॉचवे
िदन सोमदान िकया जाता था। ये सभी सोमयH थे।
8. िनिष6ािन-नरकाKिनसाधनािन Aाहा्रणहननादीिन।।
अनुवाद- नरक जैसी अिन% व7तओ
ु ं को ाD कराने वाले Qहार् हया आिद िनिष@ कम ह5।
<या'या 1.िनिष@-मनEु य `मवश िजन अिन%कारक कमw को अपने अभी% का साधन मानकर
करता है तथा वेद1 म ’Qाहार् ण1 ने ह(तJयः’ इयािद Iिु तय1 &ारा िजनका िनषेध िकया है वे िनिष@
कम कहे जाते ह5। िव&(मनोरि(जनी के अनसु ार िनिष@ कम कहे जाते ह5। -
’’„मावगतेसाधनतािनषेधकन8पदयोिगवाRयगJयािन िनिष6ािन’’।

उतराखड म
ु िविवालय १६६
भारतीय दश
न MASL-103
2. Aाहा्रणहनन- ’Qाहार् ण1 न ह(तJयः’ आिद Iिु त िनषेध&ारा Qहार् हया (Qाहार् ण कA हया)
िनिष@ कA गई है। इस भॉित गोहया का भी शाf1 म िनषेध िकया गया है। धमशाf1 म महापातक
िन*निलिखत कहे गये है-
’’Aहा्रहयासुरापानं’’
मन7ु मृित 4/1/165,166,7/380,381, 11/72 आिद म Qहार् हया को महान् पाप कहा गया है।
9. िनयािन-अकरणे &यवायसाEनािन स8Eयाव8दनादीिन।।
अनवु ाद- िजनके न करने से हािन हो, वे िनय कम कहलाते ह5 उदाहरणाथ स(3याव(दन आिद।
<या'या - 1. िनय- िजन कमw को रोकने से कोई िवशेष पु य नहN होता िक(तु न करने से पाप
बढऋ जाता है, िनय कम कहे जाते ह5।
2. स8Eयाव8दनािद- जैसे ितिदन 7नान तथा द(तमाजन से कोई पु य नहN होता लेिकन यिद िकया
जाय तो शरीर म मल इकठ्टा हो जाने से 7व7_य िवकृ त हो जाता है, उसी भॉित जाने अनजाने ही जो
छोटे-मोटे पाप उप(न हो जाते ह5, उ(ह एकित होने से बचने के िलये स(3याव(दन आिद काय िकये
जाते ह5 तथा िनय कम कहे जाते है। कोलQक ु कहते ह5-ातः, दोपहर और सायंकालीन स(3या7नान
कA िविश% ितभा आज भी माध, फाLगनु और काितक 7नान1 म ाD होती है। ायः पिव निदय1
म 7नान करते ह5। 7नान के साथ गायी का जप स(3या कA िवशेषता है।-’तसिवतवु रं े यम् भगw
देव7य धीमिह िधयो यो नः चोदयात।् ’ प(चमहायH भी िनयकमw म 7वीकार िकये जाते ह5-
Qहार् यH, देवयH, भतू यH, नृयH तथा िपतृयH। (क) वेदाि(तय1 के अनसु ार स(3यािद न करने पर कोई
नया पातक नहN होता िक(तु करने पर नये पाप का अवरोध होता है, (ख) मीमांसक1 के अनसु ार
स(3यािद का न करना नया पाप उप(न करता है। अतः वेदा(ती स(3या को अिनवाय नहN मानते ह5।
10 नैिमि2कािन-प0ु ज8माKनबु 8धीिन जाते>यादीिन।।
अनवु ाद-पु ोपिS आिद के अवसर पर (शाf1 म िनिद%) Hातेि% यH आिद नैिमिSक कम कहे जाते
ह5-
<या'या -1. नैिमि2क- िकसी िनिमS को उपलOध कर अवbय कSJयता होने के कारण से जो
Iिु तय1 &ारा अिभिहत िकये गये ह5, वे नैिमिSक कम कहलाते ह5। िव&(मनोरि(जनी भी कहती है-
’िनिम2मा0मासाKावqयक2
<यतया िविहतािन नैिमि2कािन’’
2. जातेि%-पु उप(न होते ही शाf1 &ारा िविहत िविध के अनसु ार िपता जो यHािद के &ारा

उतराखड म
ु िविवालय १६७
भारतीय दश
न MASL-103
जातकम सं7कार करता है उसे ही ’जातेि%’ कहा जाता है। Iिु तवाWय इस कार है-
’’वैानरं &ादशकपालं िनवपेत् पु े जाते।’’
11. &ायिI2ािन-पाप*यसाधनािन चा8;ायणादीिन।।
अनवु ाद-पापcालनाथ िकये जाने वाले चा(Zायण आिद …त ायिBत कम कहे जाते ह5।
<या'या - 1. ायिBत-शाf1 म िविहत कम को न करने से तथा षाf1 &ारा िनिष@ कमw को न
रोकने से जो पाप उपनन होता है उसके िनवारणाथ जो कम िकये जाते ह5, उ(ह ायिBत कम कहते
ह5।
’िविहताकरण&ितिनिष6सेवाLपिनिम2िवशेषानबु 8धीिन &ायिIातािन।’
2.च(Zायण-मन7ु मृित म चा(Zायण चार कार का कहा गया है- िपपीिलकाम3य, यवम3य, गित और
िशशु एक कार का लोकिव;यात ायिBत …त है। इसम च(Zमा के बढ़ने और घटने के अनसु ार ही
आहार (Vास) बढ़ाया और घटाया जाता है। मन7ु वमृित इसके अनvु ान कA िविध िन*न कार से
कहती है-
’’एकै कं ासयेत् िपXडं कृ>णे शुRले च वध
येत।्
डपसपृशंि~षवणमेतFचा8;ायणं "मृतम।् ’’
अथात् पिू णमा को प(Zह Vास खकर कृ Eणपc म मशः एक-एक Vास घटाते-घटाते चतुदशm को
एक Vास खाकर अमावसया को पणू  …त समय म ितिदन तीन बार ातः म3या™ तथा सायं सवन
(7नान) करना चािहये।
12. उपासनािन-सगुणA…ािवषयमानस<यापारLपािण शािXड]यिवKादीिन।।
अनवु ाद- सगणु Qािवषयक मनोवृिS के ि7थरीकरण के िलये िकये जाने वाले कम उपासना कहे
जाते है। जैसे-शािडLयिवा आिद।
<या'या - 1. उपासनािन- चराचर जगत् को Qा का Kप जानकर उसम आदरपवू क  िचरकाल
पय(त अपनी मोनवृिS को ि7थर करने के िलये िजन कमw को िकया जाता है, उपासना कम कहते है।
उपासना और Hान दो पृथक्-पृथक् व7तयु  ह5 । Hान म Hाता तथा Hेय एक-एक हो जाते है तथा
आरा3य और आराधक पृथक-पृथक हो जाते ह5।
2. शािXडलयिवKािद- शािडLय ऋिष ने सव खिLवदं Qा’ से लेकर ’स तंु कुवीत मनोमयः
ाणशरीरे भाKपः’ यहॉ छा(दोlय उपिनषद् म कहा है िक संसार और आमा कA QाKप म उपासना
करनी चािहये इसीिलये इसे शािडLय िवा कहा गया है; ’आिद’ शOद से शतपथ Qााण मे किथत
’सेआमनमपु ासीत, मनोमयम’् आिद िवाये अिभेत ह5।
3. सगुण A}- QR जो िक उपिS पालन एवं िवनाशािद य ु है, सगणु कहलाता है। उपासना
प@ित म परम सSा कA िजस Kप म साधना कA जाती है वह सगणु Kप म साधना कA जाती है वह
सगणु Kप म ही होती है।
13. एतेषां िनयादीनां बुि6शुि6ः परं &योजनमुपासनानां तु िच2ैका\यम।् ’’तमेतमामानं

उतराखड म
ु िविवालय १६८
भारतीय दश
न MASL-103
वेदानुवचनेन Aााण िविविदषि8त येन’’, इयािद ुतेः ’’तपसा क]मषं हिनत’’
इयांिद"मृतेI।।
अनवु ाद- इनम (इन कमw म) से िनय कमw के अनvु ान का परम योजन बिु @ िक शिु @ तथा
उनासनकमw का िचS को एकाV करना है।
<या'या -1 परं&योजनम-् इसे यहॉ परम कहना अ(य सासं ाCरक योजन1 कA अपेcा इसे अिधक
महव देना ही है। व7ततु ः ब(धन से मोc ही परम योजन है। मिु का िवचार वेद1 और Qााण1 म
नहN पाया जाता है, सवथम यह ेतातरोपिनषद् म पणू  िवकिसत Kप से उपलOध होता है।
2. उपासनानं तु िच2ैका\यम-् िपतृलोकािD तथा सयलोकोपलिOध िचS को एकाV करने के
साधन1 का अवानतर फल है। म;ु य फल िचS को एकाV करना ही है।
3. िविविदषि8त- शड़्कराचाय के कथनानसु ार कमकाड मिु का साधन साcात् Kप से नहN।
वेदा(त के पाठक1 के िलये ऋतेः Hाना(न मिु ः यह सदाचार ि या मोc न होकर (मोc के ) साधन
Hान तक पहM◌ॅचाने वाली है। इसिलये Hान कम का एकीकरण का िस@ा(त यहॉ माना नहN है।
4. िनयादीनाम-् नैिमिSक और ायिBSािद कम इसम सि*मिलत ह5। 7मृित कहती है-
’’िनयनैिमि2कै रेव कुवा
णो दु?रतF*यम।् ’’
गीता भी कहती है-
’’"वे "वे कम
Xयिभरतः संिसि6ं लभते नरः।(18/45)
नैEक*य िसि@ म भी िनय कम को सवwFच ◌ा◌ान के साधन के Kप् म 7वीकार िकया है। व7ततु ः
िनमल म नही Qहार् का अनुभव कर सकता है। िनयािद कमw से बिु @ म िनमलता आती है।
14. िनयनैिमि2क&ायिI2ोपासनानां ववा8तरफलं िपतृलोकसयलोक&ािTः कम
णा
िपतृलोको िवKया देवलोकः’’ इयािद तु े।।
अनवु ाद-िनय, नैिमिSक, ायिBत एवं उपासना कमw का गौण फल तो उनसे िपतृलोक तथा
सयलोक कA उपलिOध है। कम के &ारा िपतृलोक तथा िवा के &ारा सयलोक (देवलोक) कA ािD
होती है।’ Iिु तवचन इसम माण है।
<या'या -1. अवा(तरफलम-् िजस भॉित वृcारोपण का धान फल, फल1 को ाD करना है तथा
आनषु ड़्िगके फल छाया तथा ग(धािद ाD करना है, उसी भॉित िनय नैिमिSक कमw का धान फल
िचS कA शिु @ तथा समािध तथा अवा(तर फल सयलोक कA उपलिOध है। आप7त*ब धमसू

उतराखड म
ु िविवालय १६९
भारतीय दश
न MASL-103
आ‡वृc का Kपक 7ततु करता है-
’आ†ेफलाथa िनिम2े छायाग8धावु पKेते।’
2. सयलोक-ऊपर के सात लोक1 म सबसे ऊपर ि7थत समझा जाने वाले Qहार् लोक ही सयलोक
है। सयलोक से यहॉ मोc अिभेत नहN है।
3. िवKया-िवा शOद का तापय यहॉ उपासना से है न िक मोc के साधनKप यथाथ Hान का फल
मोc है िकसी भी लोक कA ािD नहN। यहॉ तो िवा से देवलोक कA ािD बताई गई है अतः यहॉ
िवा से तापय उपासना है।
4. िनयनैिमि2क-इसम ायिBत कमw को छोड़ िदया गया है Wयोिक वे मृयु के बाद कोई पCरणाम
उप(न नहN करते है।
5.िपतृलोक-यह भवु ः लोक से स*ब(ध रखता है।
6. QR सू भाEय म शड़्कराचाय ने िलखा है-’त कािनFत् QRणः उपासनािन अgयदु याथािन,
कािनिचत् ममWु यथािन, कािनिचत् कमसमृ@यथािन।’
छा(दोlय उपिनषद् भाEय म उनका मत है ’’उपासनं तु यथाशाfसमिथतं िकि(चदाल*बनमपु ादाय
तिसमन् समानिचSवृिS स(तानकरणं तद् िवलcणयान(तCरतिमित।’’
आचाय शड़्कर तथा सदान(द योगी(Z के उपासना स*ब(धी िवचार1 म कुछ थोड़ा अ(तर है।
नैEक*यिसि@ 1/52 म िजस कार िवशद् िववेचन िकया गया है उससे सभी िवचार1 का सम(वय हो
जाता है।
15.साधनािनिनयािनतयव"तुिववेकेहामु0ाथ
फलभोगिवरागशमािदषट्कसJपि2मुमु*वा
िन।
अनवु ाद-िनय तथा अिनय व7तु का िववके , ऐहलौिक तथा पारलौिक फल के भोग से अनासि ,
शमािद छः स*पिSयॉ तथा मोcािD कA कामना-ये (चार) साधन है।
<या'या - साधनािन-ितपािदत साधन1 म से मशः पवू - पवू  उSरोSर कA उपलिOध का साधन है।
थम िनयािनतय व7तु के िववके के िबना फलभोग1 से िवराग नहN उप(न हो सकता तथा वैराlय के
िबना शम, दम, उपरित, ितितcा I@ा, समाधानािद छः स*पिSयॉ नहN ाD हो सकती और इन छः
स*पिSय1 को उपलOध िकये गये िबना मोc कA इFछा नहN होती, अतः मशः पवू -पवू  साधन
उSरोSर को ाD करने म साधनभतू ह5।

उतराखड म
ु िविवालय १७०
भारतीय दश
न MASL-103
16. िनयािनयव"तुिववेक"तावद्Aहा्रवै िनय व"तुतोऽ8यदिखलमिनयिमित िववेचनम।् ।
अनवु ाद-के वल Qहार् ही िनय व7तु है, उसके अितCर स*पणू  जगत् अिनय है ऐसा िववेचन
िनयव7तिु ववेक है।
<या'या -1. िनयािनय7तिु ववेक-काल, 7थान आिद कA सीमा िजस व7तु को ब@ नहN कर सकती
वह व7तु िनय है, इसके िवपरीत काल कA सीमा से बॅधने वाली व7तु अिनय है। संसार कA सभी
व7तएु ◌ॅ काल सीमा से ब@ ह5 अतः अिनय ह5 और Qहार् तीन1 काल1 से बािधत न होने के कारण
िनय है। Qहार् का िनय होना Iिु तय1 के वचन1 &ारा िन*न Kप1 से िस@ है-
(क) िनयं िवभुं सव
गतं सस
ु ूrमम।्
(ख) अजो िनयः शा5तः।
(ग) सयं ानमन8तं Aहा्र।
(घ) आकाशवसव
गतI िनयः।
QR के अितCर अ(य सब कुछ अिनय है, इसम िन*न Iिु तवाWय माण है-
(अ) यो वै भूमा तदमृतम,् यद]पं त8मय
म।्
(आ) नेह नानाि"त िक8चन।
(इ) आमा वा इदमेक एवा\ आसीत् ना8यत् िक8चनािमषत।्
2. िनयािनयव"तुिववेक- यह &थम साधना है।
17. ऐिहकानां ‡Rच8दनविनतािदिवषयभोगानां
कम
ज8यतयािनयतववदामुिम>काणामSयमृतािदिवषयभोगानामिनयतया ते$यो िनतरां
िवरितः- इहामु0ाथ
फलभोगिवरागः।।
अनवु ाद-इस लोक के माला, च(दन, fी आिद िवषय1 के भोग तो कमज(य होने के कारण अिनय
ह5, उसी कार उस लोक (परलोक) के अमृतािद िवषय1 के भोग भी (कमज(य होने के कारण)
अिनय ह1गे ऐसा िनBय करके ऐहलौिक और पारलौिकक उन व7तओ ु से उदासीन होने को
इहामु ाथफलभोगिवराग कहते है।
<या'या -कम
ज8यतया- ’यत-् यत् कमज(यम् तत् तत् कायम’् और यत् यत् काय तत्-तत्

उतराखड म
ु िविवालय १७१
भारतीय दश
न MASL-103
अिनयम’् अथात् जो कम से उप(न होता है वह काय है और जो काय है वह अिनय होता है।
2. इहामु0ाथ
फलभोगिवरागः-’इह अमु अथा एव फलं त7य भोगः त7मात् िवरागः’ इस वृिS
के अनसु ार इस लोक म तथा परलोक म ाD होने वाले स(ु दर पदाथ ही कम से उप(न होने के
कारण फल ह5, उन फल1 का भोग करने के ित िवरि य ु बिु @ का न होना ही
इहामु ाथफलभोगिवराग है। िवरागोपिS के िलये यहॉ पर जो यिु बताई गयी ह5, वह िन*न
Iिु तवचन का अनवु ाद 7वKप है-
’’तKथेह कम
िजतो लोकः *ीयत एवमेवामु0 पुXयिजतो लोकः *ीयते।’’
3. अमृतािद-अमृतािद िवषय 7वग से ाD होते ह5 िजनका उपभोग जब तक पु य रहते ह5 होता है
तथा पु य cीण होने पर जीवामा को पनु : मयलोक म आना पड़ता है और नया ज(म Vहण करना
होता है।
4. अिनयता-छा(दोlय उपिनषद् 7प% करता है’’ यत् तथा इह कमिजतः लोक cीयते एवमेव
अमु पु यिजतः लोकः *ीयते।’’
5. िवराग-यह साधना का ि&तीय पग है।
6. ऐिहकानां-प(चभौितक शरीर से स*बि(धत।
18. शमादय"तु-शमदमोपरितित*ासमाधान 6ा'याः।।
अनवु ाद-शम, दम, उपरित, ितितcा, समाधान और I@ा आिद शमािद षट्य स*पिS है।
<या'या -1. शमािद-िजस कार भख ू ~यास शा(त करने के िलये जल-अ(न है,और भख ू े तथा
~यासे ाणी का िचS बार-बार पानी कA ओर दौड़ा करता है, उसी भॉित तवHान के साधन Iवण,
मनन इयािद ह5 यहॉ ’आिद’ शOद से ’शम’ कA भॉित दम, उपरित आिद अिभेत ह5।
इन गणु 1 के अभाव म ममु c
ु ु मोc कA अय(त अपेcा कA अनभु िू त नही करता है। िबना …ती ममु c
ु ्
के मोc कA ािD द7ु तर ही रहती ।
19. शम"तावत-् वणािद<यित?रCिवषये$यो मनसो िन\हः।।
अनुवाद-उनम से Iवण आिद के अितCर सांसाCरक िवषय1 से (उस ओर अवृिS होने वाले) मन
को रोकनेवाली वृिS शम कहलाती है।
<या'या -1. शम-Iवण-मनन आिद को छोड़कर अ(य सासं ाCरक िवषय1 म बार-बार दौड़कर जाते
हMए मन को एक िविश% कार कA अ(तःकरण कA वृिS रोकती है। इसी मनोिनय(णकN वृिS को
शम कहते ह5।
2. िन\ह- शम मन का वह िविश% वृिS अथवा Jयापार है, जो मन को भौितक िवषयसुख1 के पीछे

उतराखड म
ु िविवालय १७२
भारतीय दश
न MASL-103
भागने से रोकता है।
3. वणािद- वेदशाf1 का अ3ययन, Iवण, िच(तन और आचारण।
4. भगवान् Iीकृ Eण ने भी ’शम’ को Qहार् Hान के िलये अयावbयक कहा है। यथा-’’योगाKढ़7य
शमः कारणमFु यते।’’ (गीता 6/3)
20. दमः-बाहा्रेि8;याणां तद्<यित?रCिवषये$यो िनवत
नम।् ।
अनुवाद-उन (वेदा3ययनािद िवषय1) से अितCर िवषय1 बिहCरि(Zय1 को रोकने को दम कहते है।
<या'या -1 दमः-Qहार् के साcाकार के साधन Kप Iवण मनन आिद से अितCर िवषय1 से ने,
कण आिद बािहCरि(Zय1 को हटा लेना ही दम कहा जाता है। दम को Iीकृ Eण ने गीता म Qहार् Hान
का हेतु कहा है-
यथा संहरते चायं कूमvऽड़्गानीव सव
शः।
इि8;याणीि8;याथa$य"त"य &ा &ितिeता।।
2.बाmेि8;य-ये दो कार कA होती है-कमuि(Zय और Hानेि(Zय।
पॉच कमaि8;य- पािण, पाद, पाय,ु उप7थ तथा मख ु एवं-
पॉच ानेि8;य- चc,ु Iो,वक् }ाण एवं रसना अ(तCरि(Zय ह5, दम का अथ है मन का वह काय
जो बाnेि(Zय को उनके िवषय1 से लौटाता है।
21. िनवित
तानामेतेषां तद्<यित?रCिवषये$यो उपरमणमुपरित"थवािविहतानांकम
णां
िविधना प?रयागः।।
अनुवाद-इन (बाहार् िवषय1) से िनयि(त कA गई इि(Zय1 को (बहार् ितCर ) िवषय1 से िनरोध
उपरित है अथवा शाf1 &ारा िनिद% कमw का शाfो िविध के अनसु ार याग उपरित कहलाता है।
<या'या -1. िविहतानां कम
णां िविधना प?रयागः-वेदिविहत कमw को सं(यास लेते समय
अI@ा के कारण मनमाने ढंग से याग नहN िकया जाता, अिपतु शाfो िविध से पCरयाग िकया
जाता है। इसका कारण है िक कमw के पCरयाग कA िविध Iिु तय1 तथा 7मृितय1 म कही गई है।
मन7ु मृित कहती है-
&जापयां िनLSयेि सव
वेदसदि*णाम।्
आम8यQनीय् समारोSय Aाहा्रणो &वजेद् गहृ ात।् ।
उपरित-शमािदक1 कA भॉित स(यास भी आमHान का अ(तरड़्ग साधन होने से समु c ु ु के िलये यह
भी आवbयक है। इस िवषय म ’नैEक*यिसि@ परमा स(यासेनािधगFछित’ गीता वाWय तथा ’न
कमणा न जया घनेन यागेनैके अमृवमानशःु ’ इयािद Iिु त माण है। यHािद कमw म िविcD मन
रहने से तथा Qाहार् णतव, cाियव इयािद िवपरीत भावनाओ ं के बने रहने तक भली कार वेदा(त
के अथ का िवचार न हो पाने से Iिु त7मृित के वचनानसु ार कSJयKप आमHान के अड़्गभतू
सं(यास को उपरित कहते ह5 ।

उतराखड म
ु िविवालय १७३
भारतीय दश
न MASL-103
व7ततु ः उपरित मन का वह काय है, जो दिमत इि(Zय1 को उनके िवषय1 म पनु ः जाने से रोकता है।
व7ततु ः उपरित शम का दम से उयLप अ(तर रखती है।
3. प?रयाग-Iिु तय1 तथा 7मृितय1 म स(यास का समथन है-
(1) स8याससंयोगात् यत् यः शु6सवः । (मुXडकोपिनषद्)।
(2) वJपदाथ
िवचाराय स8यासः सव
कम
णाम।्
(उपदशं साह‡ी)।
(3) &वृि2ल*णो योगः ानं स8यासल*णम।्
त"मा@ांन पुर"कृय स8यसेिदह बुि6मान।् ।
(4) यत् अहरेव िवरजेत् तदहरेव &|जेत।् (जाबाल0)।
22. ितित*ा-शीतो>णािद8सिह>णुता।।
अनवु ाद-सदm-गमm आिद को (शरीर धम समझकर) सहना ितितcा है।
<या'या -1. ितितcा-सदm-गमm, मान-अपमान तथा सख ु -दःख आिद और इसी भॉित अ(य &(द
सबको यह समझ कर िक यह तो शरीर के धम है, आमा को यह सदm-गमm कुछ नहN। इस कार के
Hान से सबको सहन कर लेना ितितcा कहलाती है।
Wय1िक शीतोEणािद शरीर से स*ब(ध रखते ह5, आमा से नहN आमा इन सबसे 7वत( है।
िववेकचड़ू ामिण कहती है
’’सहनं सव
दुःखानाम&ितकारपूव
क।
िच8तािवलापर िहतं सा ितित*ा नगKते।।’’
गीता 2/14 कहती है-
’’मा0ा "पश
"तु कौ8तेयः शीतो>णसुखदुःखदाः।
आगमापाियनोऽिनया"तान् ितति*"व भारत।।’’
व7ततु ः िववेकKपी दीपक से िम_या होने पर भी भािसत होने वाले &(द1 का मषण ही ितितcा है।
23. िनगृहीत"य मनः वणादौ तदनुगुणिवषये च समािधः समाधानम।् ।

उतराखड म
ु िविवालय १७४
भारतीय दश
न MASL-103
अनुवाद-वशीभतू मन को Iवणािद एवं उसके अनुKप िवषय1 म लगाने को समािध कहते ह5।
<या'या -1. तदनगु ण
ु िवषये-उसके अनK
ु प बताये गये िवषय म अथात् गयु भि अथवा िवनय के
आचरण म सदा िच(तन करना समाधान है।
2. समाधान-मन के वश म हो जाने पर उसे Iवण-मनन तथा िनिद3यासन से एकाV कर देना अथात्
अनवरत Kप से िनय इ(हN का िच(तन करना समाधान है। गीता म Iीकृ Eण कहते भी ह5-
’म{येव मन आE"व मिय बिु 6 िनवेशय।’
3. वणादौ- गK ु -सेवा, वेदा(त-V(थ1 का अ3ययन तथा उनका रcण। नृिसंहसर7वती ने ’अिभमान
का ’अभाव’ आिद को Vहण िकया है। गीता म सािवक स*पिS का lयारहव अ3याय म बड़ा स(ु दर
वणन है। समाधन के िलये अपCरVह अय(त आवbयक है। Iिु त कहती है-
’’दXडं आFछादनं कोपीनं प?रगृहेत् शेषं िवसृजेत।’’
24. गL
ु पिदवेदा8तवाRयेषु िव5ासः- 6ा।।
अनवु ाद-आचाय के &ारा उपदेश म िदये गये वेदा(त के वाWय1 म िवास करना I@ा है।
<या'या -I@ा- गK ु &ारा कहे हMये वाWय1 म िवास करना I@ा है। इसके िबना तवHान ाD
होना अस*भव है। गीता भी कहती है-
’’ 6ावा]लभते ानं तपरः सयं तेि8;यः।’’
6ा सारे पाप से छुड़ाने वाली है-
’’अ 6या परमं पापं 6ा पाप&मोचनी।’’ (महाभारत)
व7ततु ः I@ा के िवषय म महाभारत तथा गीता म अनेक 7थल1 पर कहा गया है, िबना I@ा के
वा7तिवक लoय कA ािD म अयनत किठनाई है-
’’ 6ामयोऽयं पL
ु षः यो यत् 6ः स एव सः।’’ (गीता 17/3)
6ा के िबना या, दान, तप आिद भी असत् कहलाते ह। यथा-
’’अ 6या हcतं द2ं तप"तTं कृतं च यत् असिदयुFयते पाथ
0।’’ (गीता 17/28)
25. मुमु*ुवं-मो*ेFछा।।

उतराखड म
ु िविवालय १७५
भारतीय दश
न MASL-103
अनुवाद-मोc कA कामना ही ममु c
ु ु व है।
<या'या - मुमु*ु वम-् जब ममु ख
ु ु उपCरिलिखत तीन साधन1 से म
ु हो जाता है त बवह मोc कA
अय(त चल इFछा रखता है तथा वह आपने आ3याि*मक गK ु से िनरपेc सय का Hान ाD करने
का अिधकारी बनता है। वृहदारयक उपिनषद् कहता है-
’’यदा सवa &मुFय8ते कामा य"य fिदि"थताः।
अथ मयvऽमृतो भवव0 Aहा्र सम.ुते।।’’
आगे बृहदारXयक पुनः कहता है-
’’अथाकामयमान_ योऽकामो िन>काम आTकाम आमकामः।’’
व"तुतः आमकाम पूण
िन>काम होने से सभी कामनाओ ं से िवमुC ही माना जायेगा ।
26. एवJभूतः &मातािधकारी ’’शा8तो दा8त’’ इयािद ुतेः। उC8च- ’’&शा8तिच2ाय
िजतेि8;याय च &हीणदोषाय यथोCका?रणे।
गुणाि8वतायानुगताय सव
दा &देयमेतत् सततं मुमु*ुवे ।।इित।
अ8वय-शानतिचSय, िजतेि(Zयाय, हीणदोषाय, यथो काCरणे, गणु ाि(वताय, अनुगताय, च
ममु c
ु ुवे एतत् सकलं सवदा देयम।्
श+दाथ
-&शा8तिच2ाय-शा(त िचS वाले के िलये। िजते ि8;याय-Hानेि(Zय तथा कमuि(Zय1 को
अपने वश ं म करने वाले के िलये अथात् इि(Zय1 को वशीभतू (जीतने)करने के िलए। हीणदोषाय-
जनम ज(मा(तर1 म िकये हMए पाप1 से रिहत Jयि के िलये, अथात् िजसके पाप-समहू न% हो गये ह1,
उसके िलये अतः िनमल अ(तःकरण वाले के िलये। यथोCका?रणे-वेद तथा शाf1 म किथत
िनयम1 के अनसु ार आचरण करने वाले के िलये। यथो काCरणे-वेद तथा शाf1 म किथत िनयम1 के
अनसु ार आचरण करने वाले के िलये। गुणाि8वताय-दया दािcय, िववके , वैराlय, उपरित, ितितcा
आिद गणु 1 से य ु Jयि के िलये अनगु ताय-I@ाय ु के िलये। मुमु*वु े- मोc ािD कA इFछा
रखने वाले के िलए। एतत् सकलम-् यह समसत आम स*ब(धी Hान। देयम-् देना चािहये अथवा
देने योlय ह5।
अनवु ाद-इस कार का माता ही अिधकारी है। Iिु त के अनसु ार ’शा(त दा(त हो।’ जैसा िक कहा
गया है-
शा(त िचS वाले, वशी, िनदwष, (काJयािद) िनिद% कमw को करने वाले िववेकािदगणु स*प(न,

उतराखड म
ु िविवालय १७६
भारतीय दश
न MASL-103
आचायानगु ामी, मोcािD कA कामना वाले Jयि कA यह (आमHान) सदा ही देना चािहये ।
<या'या -1. एवJभूतः-इस कार का शम-दम आिद गणु 1 और िनया िनयिववके ,
इहामु ाथफलभोगिवराग, षटक स*पिS और ममु c
ु ु व आिद चार साधन1 से स*प(न Jयि (इस
वेदा(तसार को पढ़ने का अिधकारी है)।
2. शा8तो दा8त-ये Iिु त शमािद षटक स*पिS को शाfस*मत मािणत करने के िलए उ@तृ कA गई
है तथा काव मा3यि(दन शाखाओ ं म अलग-अलग Kप म ाD होती है। काव शाखा वृह0 उप0 म
इस कार का पाठ है- ’शा(तो दा(त उपरति7तितcः समािहतो भू चस’ के 7थान पर मा3यि(दन
शाखा म ’I@ािवSो भू वा’ यह पाठ ाD होता है। वेदा(तसार कता ने दोन1 का सम(वय कर िदया है
और शमािदषट्कस*पिS कहा है।
3. &शा8तिच2ाय-िजसका िचSलौिकक तथा वैिदक Jयवहार1 म सवथा `मरिहत होकर शा(त हो
गया हो, वह शा(तिचS जीव (वेदा(तसार का अिधकारी है)।
4. यथोCकारणे-शाf1 &ारा िविहन कमw को शाf1 के कथानानसु ार ही करने वाला तथा शाf1 म
वtय कहे गये (का*य एवं िनिष@) कमw को शाf िनषेध होने से उ(ह न करने वाला जीव
यथो कारी है (उसे ही यह आमHान देना चािहये)।
5. अिधकार-वेदा(तसार के एक Jया;याकार के अनसु ार के वल स(यासी ही वेदा(त Hान के
अिधकारी हो सकते ह5 Wय1िक गृह7थ का जीवन िविवध-कSJय कमw म JयाD रहने से उसके पास
वेदा(त-Hान के िलये आवbयक पयाD समय नहN रहता है Wय1िक ममु c
ु ु के िलये एक दीघ साधना
का िव7तृत वणन सव िकया गया है।
6. गुणाि8वताय-सदस् द् िववके , याग और cमा।
7. &शा8तिच2ाय- यह पद उपदेशसहŠी से उ@तृ है जो आचाय शड़ं ् कर &ारा िलिखत कही जाती
है।
3.3.2 िवषय, सJब8ध एवं &योजन
िवषयः-जीवAहा्रैRयं शु6चैत8यं &मेय त0 एव वेदा8तानां तापया
त।् ।
अनवु ाद-(इस वेदा(तसार का ) िवषय-जीव और Qहार् का एक होना (सवHव और अLपHवािद)
िवK@ धमw से िवम ु श@ु चैत(य का Hान है। वही वेदा(त वाWय1 का लoय है।
<या'या 1. जीवA}ैRयम -जीव और Qहार् का आयि(तक भेद ही अदैतवाद का सार है।

उतराखड म
ु िविवालय १७७
भारतीय दश
न MASL-103
िविश%ा&ैतवाद के अनसु ार माया &ारा आरोिपत है, वा7तिवक नहN है। उपािधय1 के कारण
ितभािसत होने वाले िम_या अिभ(नव को हटा देने पर के वल चैत(यांश शेष रहता है, वही
पारमािथक है तथा ईर और जीव म अिभ(नव (ऐWय) है इसीिलए दोन1 म अभेद है।
2.श6 ु चैत8यम्-जीव और Qहार् का 7वKप श@ ु चैत(य है। चैत(य कA श@
ु ता सब धमw से अतीत
होना और एक Kप होना है। तीत होने वाले धम आरोिपत होने से िम_या है। दधू और पानी िमल
जाने पर भी याि(क उपाय1 से दोन1 को अलग-अलग िकया जा सकता है लेिकन Qहार् तथा जीव म
श@ ु चैत(यKप होने के कारण तवतः एWय है। उनम तीयमान भेद औपािधक होने के कारण िम_या
है। अHान कA उपािध न% हो जाने पर जीवव न% हो जाता है, वह Qहार् ही हो जाता है-’Qहार् िवद्
Qहैव भवित।’
3.&मेय-मा का आधार माण1 से जाना जाने वला िवषय मेय है; िक(तु माण के वल भौितक
िवषय के ही साधन ह5। Qहार् अभौितक होने से माण सा3य नहN हो सकता तथा माणसा3य नहोन
से वह मेय भी नहN हो सकता। अतः 7वामी रामतीथ Qहार् को HातJय कहकर Hान का िवषय
मानते है जो वेदा(त पCरभाषा के अनसु ार उिचत है। ’अHातं Qहार् िवषयः Hातं Qहार् योजनम।् 7ततु
वेदा(त पCरभाषा म कहा गया है।
4. िवषय-ये दसू रा अनबु (ध है।
5. वेदा8ततापय
-किपल और कणाद आिद दाशिनक1 ने वेदानत का तापय धान के अि7तव
को िस@ करना 7वीकार िकया है, िक(तु वेदा(त 7प% Kप से सवाड़्गण िवचार करने पर तीत होता
है िक वह Qहार् को पारमािथक सत् िस@ करता है। कठोपिनषद् कहता है-
’’सवa वेदा यपदमामनि8त।’’
6.व7ततु ः सम7त वेदा(तवाWय1 म ’Vीवा7थVैवये क’ (याय से जीव और QR कA आयि(तक एकता
ही ितपा है। गीता भी कहती है-
’’वेदैI सवGरहमेव वेKः।’’
7.वृहदारयकोपिनषद् कहता है-
’’आमा वा अरे i<यः ोत<यः म8त<यः िनिदEयािसत<यः।।’’
सJब8ध"तु-तदैRय&मेय"य त&तपादकोपिनष&माण"य च बोEयबोधकभावः।।
अनुवाद-उन दोन1 (जीव और QR) का ऐWय और उनके ितपादक उपिनषत् वाWय का

उतराखड म
ु िविवालय १७८
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बो3यबोधकभाव है।
<या'या -सJब8ध -जीव तथा QR का अभेद (ऐWय) ही यहॉ िवषय है तथा उन दोन1 के ितपादक
Iिु तवाWय1 का जो बो3यबोधकभाव है, वह स*ब(ध है । जीवQR का अभेद यहॉ बो3य है तथा
’तवमिस ’ आिद बोधक वाWय ह5।
2. तदैRय&मेय"य- यिप श@
ु चैत(य के अि7तव को यc मािणत नहN िकया जा सकता है
और उसकA Jया;या कA जा सकती है, के वल अयc रीित से उसे मािणत िकया जा सकता है
और उसकA Jया;या भी कA जा सकती है अथात् अनमु ान माण का आधार लेना होता है।
&योजनंतु -तदRय&मेयगताानिनवृि2ः, "वLपान8दावािTI ’’तरित शोकम् आमिवत’् ’
इयािद ुतेः ’’Aहा्रिवद् Aहा्रैव भवित’’ इयािद ुतेI।।
अनवु ाद-योजन तो उस (जीव Qहार् ) के ऐWय के Hान के म3य अHानिनवृिSपवू क
 आमा के
7वKपान(द कA ािD है। ’’आमHाता शोक से तर जाता है’’ इयािद तथा ’QाHाता Qा ही हो
जाता है’ इयािद Iिु तवचन इसम माण ह5।
<या'या -1. &योजन- आमगत अHान तथा उस अHानज(य स*पणू  प(च का िनवृिSपवू क 
7वKप Hान हो जाने पर जो अखडान(द Qहार् कA उपलिOध होती है उसे ाD करना ही इस
वेदा(तसार (आमHान) को पढ़ने का योजन है।
2. "वLपान8दावािT -वेदानतसार का म;ु य योजन अHान का िनवारण ही नहN है, अिपतु अपने
7वKपान(द कA उपलिOध भी इसका म;ु य योजन है। यिद सौभाlय से कोई तववेSा अFछा गK ु
ाD हो जाता है तथा कृ पापवू क
 ’तवमिस’ आिद वाWय1 के &ारा उपदेश देते ह5 तो अHान कA
िनवृिS हो जाती है तथा आन(द का असीम सागर लहराता हMआ yि%गोचर होता है इसिलये िनय
ाD होने पर भी उसी अखडान(द के 7वKप कA उपलिOध करना वेदा(तसार का म;ु य योजन है।
एक लौिकक उदाहरण म इसे समझा जा सकता है जैसे एक मनEु य, अपने गले म पहने हMए आभषू ण
को िव7मृत कर बैठता है, और दिु खत एवं Jयिथत होता है िक आभषू ण खो गया है, िक(तु ज बवह
िकसी के &ारा िनदuिशत यह Hान करता है िक वह तो उसके कठ म ह5, इसी कार का मानव अHान
होता है।
अयमिधकारी ज8ममरणािदवंसारानलतTोदीTिशराजलरािशिमवोपहारपािणः ोि0यं
Aहा्रिनeं गुLमुपसृय तमनुसरित ’सिमपािणः ोि0यं Aहा्रिनeम’् इयािद ुतेः।
अनुवाद- भीषण गमm से अय(त स(तD मनEु य िजस कार अपनी (तपनKप) Jयाकुलता को दरू

उतराखड म
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करने के िलये सरोवर के समीप जाता है उसी कार यह (वेदाड़्ग QRHान Hान का) अिधकरी ज(म,
अवसान, बृ@ाव7था तथा रोगािद सांसाCरक क%1 से पीिड़त होकर, हाथ म भट लेकर Qहार् म
िनvावान् वेद अ3येता आचाय के सामी~य को ाD कर उनका अनयु ायी बनता है, जैसा िक ’सिमधा
हाथ म लेकर Qहार् म िनvाय
ु वेदा3यायी (के समीप जाता है)’ इयािद Iिु तवचन से 7प% है।
<या'या 1. वेद1 तथा वेदाड़्गो म म पारड़्गत Jयि को Iोिय कहते है। ’ ोि0यqछ8दोऽधीते’
(अvा3यायी) सू से ’छ(दस् शOद से ’अ3येता’ अथ म घन् (घ=इय) यय होकर तथा ’छ(दस’
को ’Iो’ आदेश िनपातन से होकर Iोिय शOद िनEप(न होता है। वृहदारयक के िन*न वचनानसु ार
Iोिय पापहीन तथा िनEकाम होना भी ईि~सत है-’यI ोि0योऽवृिजनोऽकामहत’। छा(दोlय
उपिनषद् भी कहता हैः- ’आचायवान् पK ु ष1 वेद। Iोिय के िवषय म 7मृित कहती है-
’’ज8मना जायेते शूदः सं"कारािज उFयते।
िवKया याित िव&वं ि0िभ: ोि0य उFयते।।’’
2. उपहारपािण-राजा, देवता और गK
ु के पास कभी Cर हाथ नहN जाना चािहये, जैसा िक कहा
भी है-
’’?रCपािणन
सेवेत राजानं देवतां गुLम’् ’
गK
ु के समc यथाशि फल-फूल आिद कोई न कोई भट लेकर ही जाना चािहये। महाभारत म भी
उपहार सिहत गK
ु के पास जाने का िनदuश है- Cर पािणनं सेवते राजानं Qाहार् णं गK
ु म।्
3. सिमपािण- सिमत् पाणौ य7य सः अथात् पािण म सिमधा लेकर जाना चािहये। यहॉ सिमधा
शOद भट के िलये उपलcणमा है। अयिधक अथाभाव होने पर कुछ देने कA साम_य न होने से
के वल सिमधायही ले जा सकते है।
4. A}िन>ठ – QRिण िनvा य7य तम=् QR म िनvा रखने वाले (गK ु के पास अिधकारी को जाना
चािहये)। उपिनषद् V(थ1 म िजसका वणन िकया गया है उस Qहार् ामैWयिवHान से जो अ(तः बाहार्
सव सयं ु है, वह Qहार् िनv है-जैसे िक िव&(मनोरि(जनी टीमा भी कहती है-
’औपिनषदQ् हार् ामिवHानपणू म।् ’ आचाय शड़्कर ने Qहार् िनv को जपिनv और तपोिनv कA भॉित
Jया;यात िकया है। उनका कथन है िक Qहार् िनv वह है िजसने सभी कार के कम का पCरयाग कर
िदया है और सभी समय QR म ि7थत रहता है ।
5. अनुसरित- यहॉ अनसु रण से तापय के वल पBात् गमन ही नहN है अिपतु मन से, वाणी से तथा
कम से गK
ु कA सेवा करना और गढ़ I@ाभि से गK ु के उपिद% साधन को यथोिचत रीित से
कायाि(वत करना है।
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6. अयमिधकारी-पवू क
 िथत चार कार के साधन चत%ु य स*पिS से स*प(न ।
7. ज8ममरणािद-रोग तथा अ(य भौितक क% आिद भी गिणत है ।
सः गLु परमकृSया ’अEयारोपापवाद’ 8यायेनैनमुपिदशित ’त"मै सः िवानपु स8नाय &ाह’’
इयािद ुतेः।
अनवु ाद-यह (आचाय) परम दयालु होकर ’अ3यारो’ और ’अपवाद’ (याय से उसे (Qहार् Kप रह7य
का) उपदेश देता है जैसा िक ’उस आये हMए Qहार् Hान के इFछुक को िव&ान उपदेश देता है’
Iिु तवचन भी है ।
<या'या -1. अEयारोपापवाद8यायेन- सीपो म `मण जैसे चॉदी भािसत होने लगी है अथवा
र7सी म सॉप कA तीित होने लगती है, उसी भॉित अ&ैत आमतव पर अHान के कारण ससं ार
`मामक तीित हो रही है, वही अ3यारोप लcण िदया है। दीपक के &ारा काश न होने पर र7सी म
िम_या सप का’ िनBय हो जाने के समान तथा के वल आधारKप र7सी शेष रह जाने के समान
Iवणमननािद का ल*बे अरसे तक िनर(तर अgयास करते-करते Hानोदय होने पर सम7त िम_या
सांसाCरक सृि% का िनBय हो जाता है और सबका आIयभतू सिFचदान(द Qहार् ही शेष रह जाता है
यही अपवाद कहलाता है। इसी अ3यारोप तथा-अपवाद कA मय ु ि या से आचाय अपने
िशEय को आमHान का उपदेश देता है। इसिलये कहा भी है-
अEयारापापवादा$यं िन>&प8चं &प8चयते।
िश>याणां बोधिस6यथ
तवैः कि]पतः :मः।।
िववेकचूड़ामिण मl अEयारोप और अ$यास का बड़ा सु8दर िववेचन िकया गया है7
’’अति"म"तद् बुि6ः &भवित िवमूढ़"य तमसा।
िववेकाभावाद् वै "फु?रत भ@ु ड़्गे र@जुिध>णा।।
ततोऽनथ
वातो िनपतित समादातुरिधक"ततो।।
योऽसŠाहः स िह भवित ब8धः ुणु सखे।।’’
2. &रमकृपया - अितशय रह7यमयी आमाHान कA िवा को उपिद% करने म संकोच भाव न होने
के कारण कKणा है। शरणागत जन के Wलेश1 का अवलोकन कर QRHानोपदे%ा आचाय का कोमल
िचS Zवीभतू हो उनका िनवारण करने के िलये से आFछािदत बिु @ को HानKपकाश से शनैः-
शनैः कािशत करके िवकिसत करता है। संcेपशारीरक म आया है िक गK
ु कृ पालतु ा से िशEय को

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िशिcत करता है-
’’एतदेव िह दयालल
ु *णं यत् िवनेयजनबिु 6िववध
नम।् ’’
3. एनमपु िदशित-गीता म Iीकृ Eण कहते ह5-
’’तिि &िणपातेन प?र&.ेन सेवाया।
डपदेrयि8त ते ानं ािनन"तवदिश
नः।।’’
अथात् Hान तवदशm से सीखना चािहये, िवन‡ता से, सेवा और िनbछल होकर अय(त सरलता से
पछ
ू ने पर दयालु Hानी सय का उपदेश करते ह5 ।

3.4 सारांश
7ततु इकाई म आपने तव Hान के माग म िकतने त_य1 कA जानकारी आवbयक है इसका अ3ययन
करते हMए गK ु कA Hानदाियनी शि का अवलोकन कर यHािद के िवषय म अधययन ् िकया है ।
िकसी भी V(थ के पढने से Wया लाभ होता है इसका अ3ययन आपने अनबु (ध चतEु टय के अ(तगत
िकया है । अिधकारी Qहमचय का पालन करते हMए शा7ोपदेश के अनसु ार गK ु के समीप बैठकर
अ3ययन करते ह5 । िजसे वेदा(त सार म िविधवत कहा गया है। का*य एवं िनिष& कमw के वगmकृ त
Hान से भी आप पCरिचत हो गये ह5 । साधन चत7ु य को बताकर वेदा(सार म वेदा(त के योजन को
परू ी तरह िस& िकया गया है तथा tयोितEटोमािद यHो एवं ायिbचत कमw कA िविधयॉ इस इकाई
के अ(तगत ;यािपत कA गयी है । अत : आप इनका Hान ा~त कर अ3यारोपापवाद (याय को
जानते हMए स*पणू  अनबु (ध चतEु य को समझा सक गे ।

3. 5 शबदावल

शरणागत – रcा हेतु आये हMए को शरणागत कहते ह5 ।
A}ानोपदेा – QR के Hान का उपदेश करने वाला
आ यभूत – आIय म ही रहने वाला
अEयेता – अ3ययन करने वाला
बोEयबोधक&भाव – बोध और बोधक का भाव
आयि8तक – िवLकुल सटीक

उतराखड म
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अाना8धकार – अHान से ा~त अ(धकार
3.6 अgयास bन1 के उतर
1.ख 2.क 3.ग 4.ग 5.क 6.घ 7.क 8.घ

3.7 सनदभ#
् $नथ
् सच
ू ी

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सां दाियक भाEय;
• राधाकृ Eणन् : इिं डयन िफलासफA, भाग 1-2;
• दासगDु : िह7टरी ऑव इिं डयन िफलासफA, भाग1
• वेदा(तसार – सदान(द योगी(Z चौख*भा काशन वाराणसी

3.8 सहायक उपयोगी पा)य साम$ी

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सांदाियक भाEय;

3.9 *नब%धामक 

• वेदा(तसार के मगं लाचरण कA Jय;या कAिजए
• अिधकारी के 7वKप कA िववेचना कAिजए
• योजन को 7पEट कAिजए
• अनबु (ध चतEु टय पर एक िनब(ध िलिखए

उतराखड म
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 4 - 8 /4    
' 9

इकाई क @परे खा

4.1 तावना
4.2 उे

4.3 अ ान का व@प
4.4 आवरण एवं िव,ेप शिR
4.5 सारांश
4.6 श-दावली
4.7 अ3यास
न1के उतर
4.8 स(दभ56(थसचू ी
4.9 िनब(धामक

उतराखड म
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4.1 तावना
वेदा(तसार के अ3ययन से स*बि(धत यह चौथी इकाई है इसके पवू  कA इकाईयो मे आपको वेदा(त
दशन कA ऐितहािसकता तथा आचाय पर*परा एवं सै@ाि(तक पcो का अ3ययन कराया गया है ।
इसके अितCरWत इसके पवू  कA इकाई अनबु (ध चतEु टय कA है । 7ततु इकाई म आपको अHान के
िवषय म बताते हMए इसकA शि यो का अ3ययन कराया जायेगा ।
वेदा(त दशन कA पर*परा आचाय शक
ं र से पवू  भी थी और आज भी चिलत है । िविभ(न V(थेा मे
Q R ,माया ,जीव,जगत, ईbवर और मनEु य के करिणय तथा अकरणीय कमw एवं यHािद के बारे म
बताया गया है । उपिनषदो पर आधाCरत दशन वेदा(त कहलाता है । आवरण तथा िवoेाप शि का
Hान इस इकाई म 7ततु है
इस इकाई के अ3ययन के पbचात् आप यह बता सक गे िक जगत् कA उपिS िकस कार होती है
तथा जीव माया से आcािदत जगत् को िकस तरह समझता है ।

4.2 उेशय

7ततु इकाई के अ3ययन के पbचात् आप बता सक गे िक –

• अHान कA पCरभाषा Wया ह5 ।


• आवरण शि िकसे कहते है ।
• आवरण शि के काय Wया ह5 ।
• िवcेप शि कA पCरभाषा Wया है ।
• िवcेप शि के काय Wया ह5 ।
• इन शि यो कA Jया;याये िकस कार कA जा सकती ह5।

4.3 अान का सव;प



34. अानं तु सदसद्$यामिनव
चनीय ि0गुणमकं ानिवरोधी भावLपं यिकि8चिदित
वद8यहम इयाKनुभवात् ’’देवामशिC "वगुणे िन
गढ़ू ाम इयािद ुतेI।।
अनवु ाद-अHान तो सव और असव दोन1 के रिहत होने के कारण अवणनीय है, (यह)
(सवरज7तम) िगणु ामक है, Hान का िवरोधी तथा भावKप है (’यह ऐसा है’ इयािद िनिBत सीमा
के &ारा अHापक होने के कारण) यिकि(चत् है-यह वेदाि(तय1 का कथन है। ’मै आ (अHानी) ह‹◌ॅ’

उतराखड म
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इयािद अनुभव1 का यc आभास ही अHान के भाव Kप होने म माण है-Iिु तवाWय भी है-
’वेदामा कA शि अपने गणु 1 से आवृS है।’
<या'या 1. ि0गुणामकम-् यिद अHान अिनवचनीय है और िकसी भी कार जाना ही नहN जा
सकता तो उसका अि7तव ही नहN होगा। इस संशय का िनवारण करने के िलये उसका
’िगणु ामक’ िवशेषण य ु हMआ है। अजामेकां लोिहतशWु ल-कृ Eणं बŒीः जा सृजनानां सKपाः ।
इस Iितवचन से ही मािणत है िक वह सव रजस् तमस् िगणु ामक है। जब काय लोिहत शWु ल
तथा कृ Eण तीन गणु 1 वाला है तो उसका कारण से अपृथक् अHान भी िगणु ामक होगा । सां;य
दशन म तीन1 गणु 1 का िस@ा(त पणू त या िवकिसत िकया गया है और कृ ित कA Jया;या म उसका
उपयोग िकया है।
2. सदसद्$यामिनव
चनीयम-् यिद अHान को सत् कहा जाता है तो उसे िचदामा (Qहार् ) के समान
िकालाबािधत होना चािहये लेिकन उसे तवHान से बािधत देखा जाता है, उसे असत् कहे तो
ब(3या के पु (अस$भव) के समान तीयमान नहN होना चािहए, लेिकन वह ससं ार के ब(धन म
जिटलब@ ाणी को म5 अHान ह‹ँ इस भॉित तीत हेाती है, अतः उसे सZूप तथा असZूप दोन1 ही
नहN कहा जा सकता है। इसिलये वह सदसदg् याम् अिनवचनीय है। िक शड़्कराचाय का भी कथन
है-
’स8नाSयस8नायुभयािमका नो’ िभ8नाSयिभ0ाSयुभयाितमका नो।
साड़्गाSयनड़्गाSयु$याितमका नो’ महदाुतािनव
चनीयLपा।।’
3. ानिवरोधी- Hानिनवयं ही अHान का लcण है।अHान का Hान के &ारा बािधत होना वेद तथा
लोक म सविव;यात है। प(च अHानज(य होने के कारण अHान से अिभ(न है अतः Qहार् ामैकव
िवHान से िनवृS होन वाले संसारKप िचदामा का अHान से स*ब(ध होना पणू K
 पेण अHानाधीन है
अतः अHानामा का स*ब(ध भी अHानKप ही िस@ हो जाता है। अHानाधनी है अतः
अHानिनवयभतू लcण का स*ब(ध भी अHानKप ही िस@ हो जात है। अHान के इस
Hानिनवयभतू लcण म अJयाित, और अस*भव दोष कA तो शड़्का ही उप(न नहN होती । इस
कार यह लcण अJयािD, अितJयािD तथा अस*भव तीन1 ही दोष1 से य ु है। अHान Hान का
िवरोधी है, आमसाcाकार (Hान) होने पर िवन% हो जात है।
4. यिकि8चत-् अHान कA सZूपता, असZूपता से िनKिपत नहN कA सकती, अतः उसे यिकि(चत्
कहा गया है। अ(धे पK ु ष के &ारा सयू  म अ(धकार-कLपना के सyश ही अHान है। अHान का यथाथ
7वKप जानना, अस*भव होने पर भी उसकA सSा म अनभु िू त तथा Iिु तवचन दोन1 माण ह5। सय
को खोजने का यन करने से हमस य के िवषय म अHान को मानते ह5 यह अHान हमारी अनभु िू त
है, इसी से शाf1 म ये सािcभाEय कहे गये ह5। बृहदारयक वाितक म आया है।

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’’अिवKाया अिवKावं इदमेव तु ल*णम् &माणासिह>णुवम8यथाव"तु सा भवेत।् ।
5. भावLपम-् अHान को यिद भावKप कहा जाये तो इसकA िनवृिS न हो सकने के कारण
अभावKप मानना होगा अतः उसको तभी तक भावKप माना जाय, जब तक आमा का Hान
(साcाकार) न हो- Hान Kप साcाकार होने पर अHान िवन% हो जाता है।
6. अहमः- सय व7तु के िवषय म, जो 7वयं तीत होने म जड़ा होने से अश है, अतः ’अहम’्
आिद के साoय से चैत(य भािसत हो सकता है।
7. देवामशिCम-् इस Iिु त से तथा उस पर शाड़्करभाEय से यह बात 7प% हो जाती है िक अHान
परमामा कA शि है, इसिलये &ैत (भेद) कA स*भावना का भी िनराकरण हो जाता है, Wय1िक शि
और शि शाली म एWं य (अभेद) माना जाता है (होता है)।
8.वेदा(त दशन म व7ततु ः अHान का िववेचन अय(त किठन है। (यायदशन कहता है िक Hान का
अभाव अHान है इसिलये यह भावKप नहN हो सकता है िक(तु वेदा(त दशन का कथन है िक यह
भावKप भी होता है। वेदा(त h करता है िक वह Hान कै सा है- िजसका अभाव कहा जा सकता है?
हम Hान को तीन Kप1 म समझते ह5-(1)सािcचेता (ेतातरोपिनषद)् । Hान शात होता है अतः
उसे अभाव कA ि7थित के साथ नहN जोड़ा जा सकता। (2) िवHानेन व ऋlवेदं िवजानाित (छा(दोlय
उपिनषद)् इससे Hात होता है िक मि7तEक (मन) का िविश% Jयापार Hान है। यहॉ पर Hान का योग
अयc Hान के Kप म है। जब तक आमा साथ म न हो तब तक मि7तEक (मन) का कोई Jयापार
िकसी व7तु को कािशत नहN सकात। ने ,कान इयािद अपने Jयापार1 को तभी कर पाते ह5 जब
आमा से चेतना पाते ह5, जैसे िक ऐतरे योपिनषद् भी कहता है-
सव तवHानें Hाने ितिvतं Hाने1 लोकः Hाितvा Hानं QR।’’
िकसी ि7थित म Hान अभाव कA दशा वाला नहN हो सकता है(3) अHान को िकसी भी Jया;या के
Hान का अभाव नहN हो सकता चाहे सामा(य Kप से अथवा िविश% Kप से िवचार िकया जाये। यिद
कोई Jयि कहता है िक ’म5 अHानी ह‹ँ ’ म5 कुछ नहN जानता हॅ।ू इस ि7थित म वह अनभु व को
पणू त या नहN खो देता है यिप वह िविश% व7तु को नहN जान पाता िफर भी वह जानता है।
नै>कJय
िसि6 मl िलखा है-
’’सेयं „ाि8तिन
रालJबा सव
8यायिवरोिधनी।
"हते न िवचारं सा तमेदयवत् िदवाकरम’् ’
9. देवामशि म-् ेतातर उषिनषद’् के Iिु त के समथन म और भी Iिु तयॉ िमलती है जैसे गीता
5/15-

उतराखड म
ु िविवालय १८७
भारतीय दश
न MASL-103
’’अाने ना वृतं तेन मुहा्रि8त ज8तवः।’’ तथा
’’नाहं &काशः सव
"य योगमायासमावृतः।’’ गीता 3/25
व7ततु ः देखने पर यह 7प% होता है िक ारि*भक उपिनषद1 म पCरणामवाद् का िस@ा(त 7वीकृ त रहा
है, मायावाद और िववतवाद का नहN। तब h होता है िक स*पणू  ससं ार कA असयता का िस@ा(त
वेदा(त म कहॉ से आया? इसका उSर जैकब के अनसु ार है बौ@1 से। इस त_य को सां;य दशन के
Jया;याकार िवHानिभcु ने सततु िकया है। पपरु ाण तथा िवEणपु रु ाण भी िवHानिभcु का समथन
करते है।
3.5 इदमानं समि<य्यंिभ&ायेणैकमनेकिमि2 च <यविfयते।।
अनवु ाद-’यह अHान समि% और Jयि% दो अिभाय1 के कारण कही एक Kप म, कहN बहMवचन म
पयु
ु िकया जाता है।
<या'या - 1. समि%- ’अजामेकाम,् आिद Iिु तवचन1 से अHान का एकव िस@ होता है, यही
समि% Kप से एक है। सम् उपसगपवू क
 अश् धातु से ि न् यय लगाकर समि% शOद िनEप(न होता
है िजसका अथ सबको JयाD करने वाली। यहॉ पर समि% शOद िनEप(न होता है िजसका अथ सबको
JयाD करने वाली। यहॉ पर समि% शOद का योग समदु ाय, समहू , सामा(य अथवा संघात के अथ म
हMआ है। िनिखलान(द 7वामी रामतीथ ने Jयि% तथा समि% को मशः िवशेष और सामा(य का
वाचक माना है। व7ततु ः दोन1 म अभेद है के वल Jयवहार के िलये ही भेद कLपना है। अHान का
Iिु तय1 म इसी कार उLलेख है। वेदा(त म अHान कA समि% के िलये माया तथा Jयि% के िलए
अिवा शOद आया है (प(चदशी 1/16)
2. <यि- ’इ(Zो मायािभः पKु Kप ईयते’ आिद Iिु तवचन1 से अHान कA अनेकता भी िस@ होती है
यही Jयि% Kप से अनेक है। िवपवू क
 अश् धातु से ि न् यय होकर Jयि शOद Jयु प(न होता है
िजसका तापय है सीिमत को JयाD करने वाला। यहॉ पर Jयि% शOद एक Jयि अथवा िवशेष का
वाचक है।
3. एकमनेकिमित- यह वेद एवं उपिनषद् वचन1 म य ु माया (अHान) परक उदाहरण1 से कभी
एकव सचू क तथा कभी बहMवचना(त होने के कारण कहा गया है-
’’अामेकां लोकिहतशुRलकृ>णां व‹ीः &जाः सुजमानां सLपाः।
अजोोकोजुषमाणोऽनुशेते जहायेनां भुCभोगामजोऽ8यः।।’’
यह Iिु तवचन अHान से एकव का सचू क है तथा ’इ(दो मायािभः पK
ु Kप ईयते’ यह वाWय अHान
(माता) के अनेकव का बोधक है। इसी से अHान शOद का एक तथा अनेक के अिभाय से
समषि् अ तथा Jयि% से Jयापार होता है।

उतराखड म
ु िविवालय १८८
भारतीय दश
न MASL-103
36. तथािह यथा वृ*ाणां समयिभ&ायेण वनिमयेकव<यपदेशो यथा वा जलानां
समयिभ&ायेण जलाशय इित तथा नानावेन &ितभा◌ासमानानां जीवगताानानां
समयिभ&ायेण तदेकव<यपदेशः अजामेकाम् इयािद तु ेः।
अनवु ाद- िजस कार वृc1 को समि% (समदु ाय) के yिEकोण से ’वन’ इस कार एकसं;यासचु क
Jयवहार होता हे अथवा िजस कार जल1 के (जलकण1 के ◌े)समहू को समि% कA िववcा से
’जलाशय’ इस कार कहा जाता है, उसी भॉित अनेक सं;या म तीमान जीवि7थत अHान1 के
समहू को समि% कA आकाड़्cा से उन सबके एक होने का सचू क योग होता है ’अज(मा एक’ यह
Iिु तकथन भी समि% से एकवसचू क है।
<या'या -1. समि%- समि% शOद कA िववृिS पवू ि लिखत है वहN पर देख।
2.नानावेन- येक जीव के अHान कA सSा पृथक-पृथक है। जो जीव के &ारा भािषत होती है।
जीव अनेक ह5 अतः अHान भी अनेकव (नानाव) से स*प(न है।
3. अजामेकाम-् यहा अHान का एक होना ’एकाम’् पद से िवविcत ह5 Iिु तय1 म इसी अHान को
कृ ित, अिवा◌ा, तम, माया, अजा तथा अJयाकृ त आिद द1 &ारा Jयव”त िकया गया है।
4. वेदा(त दशन म अHान कA उपािध से य
ु आमा कA तीन अव7थाय कही गई ह5- 1. सषु िु D इसम
कारण शरीर उपािध होता है (आन(दमय कोष)।
2. "वT- इसम कारण शरीर सoू म उपािध होता है (िवHानमय कोष मनोमय कोप। ाणमय कोष
=सoू म शरीर)। 3. जागरण- इस अव7था म कारण शरीरसoू म शरीर=7थल
ू शरीर उपािध होता है।
7थलू शरीर को अ(नमय कोष भी कहते है।
5. ईर और जीव दोन1 ही अHान कA उपािध से य ु ह5 अतः दोन1 कA उपय ु तीन1 अव7थाय
होती है। ईर 7व~नाव7था म िहरयगभ, सू ामा तथा Qहार् ा कहलाता है तथा जागरणव7था म
िवराट् एवं वैानर कहलाता है। जीव सषु िु Dकाल म ाH, 7व~न म तैजस् तथा जागरण म िव
कहलाता है। माडूWय0 म इसका िववेचन है।
37. इयं समिLकृोपािधतया िवशु6सव&धाना।।
अनवु ाद-यह समि% (Jयि% कA अपेcा) उ(नत उपािध वाली होने के कारण रागािददोषश(ू य श@

सव गणु धान ह5।
<या'या . 1. उकृ %ोपािधतया- जब कोई व7तु से िभ(न Kप म कािशत हो, तो भािसत होने का
जो योजक हेतु होता है, वह उपािध कहलाती है। वाच7पयम् म उपािध का लcण है-

उतराखड म
ु िविवालय १८९
भारतीय दश
न MASL-103
’अ(यथाि7थत7य व7तनु ः अ(यथाकाशनKपे’। तक भाषा म उपािध कA पCरभाषा है-
’योजकBोपािधः इयुFयते ’ 7ततु परू े पद का अथ है उकृ % उपािध होने के कारण। इसका दो
कार से अथ िकया जा सकता है। थम-समि%गत अHान Jयि%गत अHान कA अपेcा उकृ % है,
स*पणू  ससं ार म JयाD होने से इसम आधारभतू अHान कA एकता पर आवरण नहN पड़ने पाता, िक(तु
Jयि%गत अHान म आधार7वKप एकता ितरोिहत हो जाती है। ि&तीय अथ-आगे विणत िकये जाने
वाले (ाH) जीव कA अपेcा ईर के उकृ % होने के कारण है-वह समि%गत अHान का 7वामी होता
है और वह अितहत Hानवान् होता है लेिकन जीव Jयि%गत अHान कA आधीन तथा अLपH होता
है।
2.िवश6 ु सव&धाना-यहॉ िवश@ ु सवधान से तापय है- ईर ि7थत माया(अHान) म सव गणु
कA धानता होती है, उस िवश@ ु सव का समc रजस् तथा तमस् गणु िबLकुल नहN रहता। सततु
पद का अथ है सवगणु समि% (ईर) म ि7थत अHान म रजस् तथा तमस् को अिभभतू िकये रहता
है 7वयं पराभतू नहN होता। जैस िव&(मनोरि(जनी टीका भी कहती है-
’िवशु6 रज"तमो$यामनिभभूतं सवं &धानं य"याः सा।’
38. एतदुपिहतं चैत8यं सव
वसवa5रवसव
िनय8तृवािदगुणकम<यCम8तया
मी
जगकारणमी5र इित च <यपिदqयते सकलाानीवभासकवात’् यः सव
ः सव
िवत’् इित
ुतेः।।
अनवु ाद-इस (उकृ %) उपािध से य ु चैत(य को सवHाता, सबका ईर तथा सविनय(ता आिद गणु 1
वाला, अJय , अ(तयामी, संसार का कारणKप तथा ईर आिद (नाम1 से) Jयव”त िकया जाता है।
जो सवHाता, सविवत् है’ इयािद Iु यनसु ार यह स*पणू  अHान का काशियता है।
<या'या -1. उपिहतम-् (वKप कािशत होने म योजक हेत)ु उपािध से आरोिपत 7ततु पद का
वाFयथ है। यहॉ समि%गत अHान के उकृ % उपािध य ु परमामा (सवH) के िलये यह िवशेषण
य ु हMआ है।
2. सविनय(तृ तथा अ(तयामी-ईर के सविनय(तृव (सबको िनयिनत करने वाला) मािणत करने
के िलये िन*न Iिु त Vाहार् है-
’एष सेतिु वधरणः।
’’एष त आमा(या*यगृतः’’ Iिु तवचन परमामा के अ(तयामी (भीतर िनयमन करने वाला) होने को
मािणत करती है।
3 . ईर के सवHव का ितपादन मु डक0 करता है-
उतराखड म
ु िविवालय १९०
भारतीय दश
न MASL-103
यः सव
ः सव
िवद् य"य ानमयं तपः।
त"मादेतद् Aहा्रनाम Lपम8नं च जायेते।।
39. ई>व"येयं समिरिखलकारणवात् कारणशरीरमान8द&युरवात्
कोशवदाFछादकवाFचान8दमयकोशः सवvपरमवात् सुषुिTरत एव
सथूलसूrम&प8चय"थानिमित चोFयते।।
अनवु ाद-ईर कA यह समि% (समहू ोपािध) सबका मल ू भतू कारण होने के कारण कारणशरीर,
आन(द का ाचयु  होने के कारण समि%भतू अHानामा को कोश के तLु य आवbयक होने के कारण
’आन(दमय कोश’ तथा सoू म व 7थल ू जगप(च के लय7थान होन के कारण ’सषु िु D’ कहलाती है।
<या'या -1. कारणशरीरम-् सां;यािद दाशिनक िवचारानसु ार के वल स◌ ु ूoम व 7थल
ू दो शरीर माने
गये ह5, सां;यमतानसु ार यह कृ ित कA िगणु ामक सा*याव7था मानी गई है।
2. आन8दमयकोशः-आन(दमय, मनोमय, िवा◌ानमय, ाणमय तथा अ(नमय ये पॉच कोश
वेदा(ती मानते ह5। इस अHान (माया) के थम अवतरण म ईर ही आन(द चरु कहा गया है, जो
Qहार् के अHानोपािध से आरोिपत 7वKप को 7प% अिभJय करता हे। उपािधिवहीन िनगणु Qहार्
तो आन(द ही है। समि% अHान को सषु िु D तथा लय भी कहते है।
3. सवvपरमवात् तथा आन8द&चुरवात-् सवwपरमवात् का अथ है Jयि%गत स*पणू  सृि% के
िवलीन हो जाने का कारण । आन(दचरु वात् का अथ है जाVद् अव7था कA अपेcा अिधक
आन(द होने के कारण।
40. यथा वन"य <ययिभ&ायेण वृ*ा इयनेकवहदेशो यथा वा जलाqय"य
<ययिभ&ायेण जलानीित, तथाान"य <ययिभ&येण तदनेकव<यपदेशः
अनवु ाद-जैसे वन के वृc1 का Jयि% (पाथWय कA िववcा कA ’वृc’ यह अनेकवHापक Jयवहार
होता है अथवा जैसे जलाशय ि7थत जल को Jयि गत (पृथकता के ) अिभाय से उसे ’अनेक जल’
यह योग होता है, उसी कार अHान को Jयि%Kप म ’अनेक अHान’ इस कार बहMव का Jयवहार
होता है। यही बात (आमा) इ(Z अHान1 के कारण बहMयपवान् तीत होता है’ इयािद Iिु त म कही
गई है।
<या'या 1. यथा वन7य Jयि%यिभायेण वृcा इयनेकवJयपदेशो यथा वा जलाbय7य
वय%यिभायेण ’जलानीित तथाHान7य Jय%यिभायेण तदनेकवJयपदेशः- यहॉ वन और वृc का
तथा जलाbय और जल का समि% और Jयि% का अिभाय समझने के िलये दो y%ा(त1 को देने का
योजन इस कार है-िचदामा &ारा अHानाHान कायwपािधयु होकर जीवभाव तथा ईरभाव कA
उतराखड म
ु िविवालय १९१
भारतीय दश
न MASL-103
ािD होने पर उसका इन उपािधय1 से स*ब(ध होता है, उस स*ब(ध का 7वKप जानने कA िजHासा
7वाभािवक Kप से उप(न होती है। इसकA कLपना दो Kपो म कA जा सकती है। पहली-िचदामा
अHान तथा उसके कायw से अवFछे दपणू  है। दसू री-उनम ितिबि*बत है। अविFछ(न मानने पर ’बन
वcु ’ का ताि◌◌ा ितिवि*बत मानते परे ’जलाशय-जल’ का y%ा(त है। इसी कारण से इस कार
म सव दो y%ा(त 7ततु िकये गये ह5।
2.इ8;ोमायािभः-’तिम(Zं िमं वKणं अिlनमाहMरथो सपु णा’ आिद वचन से सभी ईरवाचक शOद
होने से इ(Z भी ईरवाचक ह5। माया उसकA शि है, िजसे वेदा(ती अHान कहते ह5, पK ु अथात्
बहMत Kप1 वाली तीत होती है। ईर एक ही है िक(तु ससं ार के बहMत से जीव1 म ि7थत अHान के
Kप म अनेक Kप1 म ितभािसत हो रहा है।
4.1 अ0 वय"तसमसत<यािपवेन <यिसमिता<यपदेशः।।
अनवु ाद-ऐसे 7थल पर Jयि गत तथा समदु ायगत Jयापकभाव के कारण ही Jयि% (अनेकता) तथा
समि% (एकता) का Jयाहार िकया जाता है।
<या'या -1. समिLप अान- संसार के सम7त जीव1 के अHान को एक Hान का िवषय मानकर
समि% Kप म देखना।
2. <यिLप अान- सम7त अHान के िभ(न-अिभ(न Kप को िभ(न-िभ(न Hान का िवषय मानकर,
िभ(न-िभ(न Kप म देखना।
42. इयं <यििन
कृोपािधतया मिलनसव&धाना।।
अनवु ाद-(अHान कA) यह Jयि% (समि% कA अपेcा) िनकृ % उपािधभतू होने के कारण मिलन
सवगणु धान है।
<या'या -1. मिलनसवधान-िनकृ % जीव कA उपािध Jयि% Kप अHान है, इसिलये उसम ि7थत
सवगणु रजस् तथा तमस् से पराभतू होने के कारण मिलन होता है, जैसे 7वFछ शीशे पर धिू ल आिद
पड़ जाने पर ितिब*बVहण कA शि घट जाती है वैसे ही सवगणु रजस् और तमस् के &ारा पराभतू
कर मिलन कर देने पर उसम िचदामा का सJु य ितिब*ब ितिबि*बत नहN होता है। यही जीव के
अLपHव का हेतु है।
2. िनकृोपािधतया-इसका अथ दो कार से िकया जा सकता है। थम Jयि% अHान को समि%
अHान कA अपेcा िनकृ % उपािध से आरोिपत कहने के तीन हेतु है-(अ) उसम आधारKप एकव
अ(तिहत हो जाता है। (आ) इसम अहड़्कार ि7थत रहता है। (इ) साथ ही आमाितCर व7तओ
ु ं का
अ3याय इसी कारण से होता है। ि&तीय अथ-जीव ईर कA अपेcा अिधक िनकृ % है। जबिक ईर
उतराखड म
ु िविवालय १९२
भारतीय दश
न MASL-103
उपािधय ु अHान का 7वामी होने के कारण सवH सवशि स*प(न आिद कहा जाता है, िक(तु जीव
अपनी उपािधभतू (अHान) माया के अधीन होने से अLपH अLपसामियवान् आिद कहा जाता है।
जीव के Hान पर ितब(धकता अिवा का पदा डल जाने से जीव िनकृ % होता है। जीव के Hान पर
ितब(धकता अिवा का पदा डल जाने से जीव िनकृ % होता है अपनी िनकृ % उपािध के कारण।
7वामी रामतीथ के अनसु ार-
’ान&ितब8धकावरणवान् जीवो िनकृ"तसयोपािधतया।’
ईर और जीव के भेद को िवशेष Kप से 7प% करते हMये िवारय 7वामी िलखते है-
मायािबJवो वशीकृय तां "यात् सव
 ई5रः।
अिवKावशग"व8य"तद् वैिचƒयादनेकधा।।
43. एतदुपिहतं चैत8यम]पवानी5रवािदगुणयुCः &ा इयुFयते,
एकाानावभासकवात।् ।
अनवु ाद-इस (िनकृ %) उपािध से उपिहत चैत(य को अLपHता, अनीरव आिद गणु यु होने के
कारण तथा के वल (Jयिकतगत)एक ही अHान का काशियता होने के कारण ाH कहा जाता है।
<या'या -1. एकाHानायभासकयात्-समि%गत (एक) अHान के एक अंश को (एक Jयि% Kप
अHान को) कािशत करने के कारण।
2.ाD-7वामी रामतीथ के अनसु ार 7ततु शOद का अथ है योग अHः के अनसु ार अHानी। वैसे
कषuण जानाित इित Hः=Hः एवं ाHः Jयु पिS के अनसु ार अथ है बहMत Hानवान् अथात् कृ %ं
Hान से य
ु । लेिकन यहॉ (7ततु करण म) उसके अLपHव के साथ ाH शOद कA यह Jयु पिS
उिचत नहN मेल खाती, अतः अHानी अथ ही ठीक है। शक ं र ने वृहद0 और माडूकय0के भाEय म
ाH कA दो Jया;याय िलखी ह5-1. भतू भिवEयत Hातृवं सविवषयHानवम् अ7यैव इित ाHः। 2.
ा◌ािDमाम7येवासाधारणं Kपम् इित ाHः।
44. अ"य &ा◌ावम"पोपािधतयाऽन&ित&काशकवात।् ।
अनवु ाद- अ7प% उपािध से यु होने से एक से अिधक (अनेक) का काशक ने होने के कारण इसे
ाH कहा जाता है।
<या'या -अ"पोपािधतया अनित&काशकवात-् धल ु ािद से अ7वFछ दपण के समान ाH कA
उपिधKपा अHानJयि%, रजस् तमस् के &ारा सवगणु के पराभतू हो जाने से 7प% है। उपािध से मिलन

उतराखड म
ु िविवालय १९३
भारतीय दश
न MASL-103
हो जाने म उसम अ7प% Kप से िचदामा Kपी सयू  का िब*ब सांसाCरक िवषय1 का कािशत नहN
करत, अतः ाHः कहलाता है। उपािधभतू अHान के मिलन हो जाने पर उसम ितिबि*बत होन
वाला िचदामा का ितिब*ब 7प% हो ही नहN सकता। यही वेदा(त म िचदाभास कहलाता है। यही
सासं ाCरक व7तओु ं का काशक है। िचदाभास के अ7प% होने पर ससं ार कA चीज1 को अिधक
कािशत न कर सकने के कारण यिकि(चत ही काश दान कर पाता हे। यही ाH के अLपHव
का रह7य है। यथा-उपािधभतू अHान दपण है, सवगणु 7वFछता है, रजस् धिू ल आिद है, िचदामा
सयू  है। 7वFछ दपण म सयू  7प% ितिबि*बत हेाता है। सयू - ितिबि*बत दपण अ(धेरे म ि7थत
पदाथw को भी कािशत करता हे िक(तु यिद दपण 7व7छ नहN है तो न तो सयू  ही इसम 7प%
ितिबि*बत होगा तथा न ही वह अ(धेरे म ि7थत पदाथw को कािशत करे गा।
45.अ"यापीयमहड़्कारािदकारणवात् काररणशरीरमान8द&चतवाकोशवदा-
FछादकवाFचान8दमयकोषः सवvपरमवासुषुिTरत एवं
"थूलसrू मशरीर&प8चलय"थानिमित चोFयते।।
अनवु ाद- इस (Jयि%-जीव) कA भी यह उपािध अहक ं ार आिद का कारण होने के ’कारण शरीर’
आन(दािधWय तथा श@ ु चैत(य को कोश के समान ढक लेने के कारण ’आन(दमय कोश’, सबका
उपरमण होने से सुषिु D तथा 7थलू एवं सoू म शरीर प(च के लीन होने का आधार से लय7थान
कहलाती है।
<या'या -1. सषु िु T-आमा कA अHानोपािधय ु दो अव7थाय मानी गई है-एक सषु िु D दसू री
जाVत। आमा के और जगत् के सृि%िवकास कA तीन दशाओ ं म िभ(न-िभ(न Kप होते ह5, वेदा(ती
लोग तीन-अव7था, तीन शरीर तथा पॉच कोष1 से अिभिहत करते ह5। -सषु िु D अव7था म या, कारण
शरीर म आन(दमय कोश, 7व~नाव7था या सoू म शरीर म िवHानमय कोश, मनोमय कोश तथा
ाणमय कोश तथा जाVत या सoू म शरीर म िवHानमय कोश, मनोमय कोश तथा ाणमय कोश तथा
जाVत अव7था म 7थल ू शरीर म अ(नमय कोश।
2. अहड़्कारािदकारणवात-् अहड़ं ् कार शOद से यहॉ अ(तःकरण अिभेत है। अ(तःकरण सषु िु D
अव7था म अHान म लय हो जाता है तथा 7व~न और, जागरण म िव% होते समय अHान से ही
उप(न होता हे। इसी से अHान को अहड़्कार से उपलिcत अ(तःकरणािद का हेतु बताया है। जैसा
िक िव&(मनोरि(जनी टीका भी कहती है-
’अहड़्कारदेः सुषुSयाKव"थायां सं"कारावशेषेण ि"थत"यकारणवात।् ’
3. आन8द&चुरवात-् जागरण तथा 7व~न म आन(द के साथ दःु ख का भी अनभु व होता है िक(तु
सषु िु D म के वल सख
ु का ही अनभु व होता है। कै वLय उपिनषद् कहता है-’सषु िु Dकाले सकले

उतराखड म
ु िविवालय १९४
भारतीय दश
न MASL-103
िवनीनेतेमोऽिभभतू ः सख
ु Kपमेित।’ अथात् सषु िु Dकाल म जागरण और 7व~नप(च के िवलीन हो
जाने पर सखु का अनभु व करता है।
46. तदानीमेतामी5रं&ौ चैतनय&दीTािभरितसूrमािभरानवृि2िभरान8दमनुभवत
आन8दभुRचेतोमुखः &ाः’ इित ुते। सुखमहम"वाSसं न िक8चदवेिदषिम’ युिथत"य
परामशvपप2ेI।।
अनवु ाद-उस काल म (लय या सषु िु Dकाल म) ईर और ाH दोन1 चैत(य से दीD अयिधक
सoू म अनावृिSय1 से 7वKपान(द का अनभु व करते ह5। ’चेतोमख ु ी ाH आन(द को भोगता है’
इयािद तथा ’मै ऐसा सख ु से सोया िक कुछ जान नहN सका’ आिद वाWय1 &ारा अचेत पK ु ष सोकर
उठने के उपरा(त अपने पवू ानभु व सखु को कट करता है।
<या'या -1. चैत(यदीDािभः-समि% तथा Jयि% चैत(य से दीD अHानवृिSय1 से 7व~न एवं
जाVदव7था म अ(तःकरण म Kप िवकिसत होने वाली ये अHानवृिSयॉ ही होती है। ये िचदामा से
ितिबि*बत होकर इनम आन(दानभु िू त कराने कA cमता आती ह5। ये िचदामा के चैत(य से
कािशत होती ह5।
2.अानवृि2िभः-अ(तःकरण कA वृिSय1 से अनभु िू त तथा भोग 7व~न और जाVत अव7था म न
होकर सषु िु D म अ(तःकरण अHान म िवलीन हो जाता है अतः सषु िु D दशा म अ(तःकरण वृिSय1 म
आन(द कA अनभु िू त हो ही नहN सकती।
3. आन8दभुRचेतोमुखः-चेतोमख ु ः का अथ शाड़्करभाEय के अनसु ार ’7व~न आिद अव7था म
अHानKप चेतना के ित &ार7वKप होने के कारण चेतोमख ु कहा है।’ जबिक 7ततु करणानक ु ूल
बनाने के िलये रामतीथ ने िव&(मनोरि(जनी टीका म ’चैत(य से दीD होने वाली अHानवृिSय1 को
ही म;ु य Kप से आमीय बनाने वाला कहा है’-’चैत(यदीिD अHानवृिSधानः।
47. अनयोः समि<ययोव
नव* ृ यो?रव जलाशयजलयो?रव वाऽभेदः।।
अनुवाद-वन और वृc अथवा जल और सरोवर के समान इन समि% और Jयि%Kप अHानोपािधय1
का ऐWय है (अभेद) है।
<या'या - इन उपय ु दोन1 7वKप1 म अHानाविFछ(न चैत(य (ईर और ाH) म वा7तिवक भेद
नहN है। भेद है के वल उपािध के तारत*य के कारण। जैसे 7थल ू जलाशय उपािध से अिविFछ(न
आकाश और तTत ितिब*बाकाश म वा7तिवक भेद नहN है। उपािधय1 से हट जाने पर एक
िनरविFछ(न आकाश रह जाता है।
48.एतदुपिहतयोरी5र&ायोरिप बनवृ*विFछ8नाकाशयो?रव जलाशय
जलगत&ितिबJबाकाशयो?रव वाऽभेदः ’एष सवa5र’ इयािद ुतेः।।

उतराखड म
ु िविवालय १९५
भारतीय दश
न MASL-103
अनुवाद-इन अHानोपािधय1 से उपिहत ईर और ाH भी एक ही ह5 जैसे वन म वतमान और वृc1
म वतमान आकाश अथवा जल और सरोवर म ितिबि*बत आकाश एक ही है। Iिु तवचन भी
साcी ह5-’यह (आमा) सबका ईर है◌’ै
<या'या -1. ईराHयोः अभेदः-ऐसा समझा जाता है िक वेदा(ती लोग ईर तथा जीव म वह
अभेद नहN मानते जो अभेद सामा(यता एकता माना जाता है। यिद ऐसा होता तो अ&ैत वेदाि(तय1 का
-
’’जीव ईशिवश6िच2या जीवेशयोिभ
दा।
अिवKा तिFचतोयvगः षड़"माकमनादयः।।’’
यह िस@ा(त भगं हेा जायेगा। अतः ईर और ाज (जीव) के अभेद को 7वKपगत ऐWय ही मानना
चािहये अथात् िवशेEय चैत(य एक Kप् हे और िवशेषण ईर एवजं ◌ीव दोन1 िभ(न-िभ(न ह5। इस
कार के उपािधगत काLपिनक भेद से ही ईर और ाH म भेद है इसके िवपरीत दोन1 म अभेद है।
2. एष सवa5र-माडूWय म यह वाWय इस कार है-एषः सवHः एषः अ(तयािम एष योिनः सव7य
भवा~ययौ िह भतू ानाम् िह भतू ानाम् अथात् यह ाH ही सवuर हे, यह सवH है, यह अ(तयािम है
और सब जीव1 कA उपिS तथा लय का 7थान है तथा सबका कारण भी है।
49. ननवृrतदविFछ8नाकाशयोज
लाशयजलतद् गत&ितिबJबाकाशयोवा
ऽऽ धारभूतानुप-
िहताकाशवदनयोरानतदुपिहतचैत8ययोराधारभूत यदनपु िहत चैत8यं त2रु ीयिमयुFयते
’िशवमैतं चतुथ
’ म8यते इयािद Kुतेः।।
अनवु ाद- वन और वृc म वतमान आकाश तथा जल और सरोवर म ितिब*बत आकाश का
आधार उपािध से रिहत महाकाश के समान इन दोन1 समदु ायगत तथा Jयि गत अHान तथा इन
उपािधय से उपिहत दो चैत(य1 (ईर तथा ाH) का आधार िनKपािध श@ ु चैत(य है, उसे ही तरु ीय
नाम से अिभिहत िकया जात है। Iिु तवचन से भी 7प% है ’अ&ैत Qहार् को ही चतथु  मानते है।
<या'या - 1. आधारभूतानुपिहताकाशवद्-अनपु िहताकाशवद् का अथ है घटाकाश,
जलाशयाकाश आिद उपािधय1 से रिहत आकाश के समान। इसके िलये आधारभतू इसिलये कहा
गया है िक-यिप आकाश न तो जल जलाशय1 का और न ही वृc1 का आIय है िफर भी आकाश
के िबना इन सब (जलाशय-वन) कA ि7थित हो नहN हो सकती।
2. -’चतुरqछयताAK*रलोपI’ वाितक से चतरु शOद से ’तरु ीय’ शOद िनEप(न होकर ’चतथु ’
अथ देता है। ाH-तैजस् तथा िव कA अपेcा तचथु  होने के कारण िवश@ चैत(य तरु ीय कहलाता
है। िकसी-िकसी मत के अनसु ार तीन अव7थाओ ं सषु िु D, 7व~न तथा जाVत कA अपेcा चतथु  होने से
उतराखड म
ु िविवालय १९६
भारतीय दश
न MASL-103
तरु ीय कहलाया हे और आपदेव के अनसु ार अिवा-ईर एवं ाH कA अपेcा चतथु  होने से तरु ीय
है। Wय1िक 7ततु V(थ म इ(ही तीन1 का िनKपण िकया गया है। शड़्कराचाय ने भी ाH, तैजस् और
िव कA अपेcा से अनुपिह चैत(य को चतथु  ितपािदत िकया है-’तीयमानपादय
Kपवैलcयात।् ’
3. िशवम-् ि0षु धामसु योQयं भोCा भोगI यद् भवेद्।
ते$य_ िवल*णा सा*ी िच8मा0ोऽहम् सदािशवः।। कै व]य उप0
आन8दिग?र-’’प?रश6
ु ं परमान8दबोधLपम् इित।।’’
4. अैतम्-भेदिवक]परिहतम-् शड़्कराचाय

50. इदमेव तुरीयं शु6चैत8यमानािदतदुपिहतचैत8या$या तTायः िपXडवदिविवC
स8महावाकय"य वाFयं िविवC’ िविवC स]लrयिमित चौFयते।।
अनवु ाद-लोगो◌े◌ं &ारा जलते हMए लोहे के टुकड़े को आग ही कहने के समान यही चतथु 
उपािधरिहत श@ु चैत(य, अHानािद एवं उनके उपािधय
ु दो चैत(य1 के साथ एकव Jयब”त होता
है और ये इस अव7था म अ&ैतितपादक महावाWय के वाWयाथ होता है, लेिकन Jयि% िववcा होने
पर भी महावाWय1 &ारा ितपािवत एकव को लcणाIय पर लoयाथ कहना चािहये।
<या'या तरु ीयम-् इसके &ारा अ3यारोप के िववेचन िचS के त(मय हो जाने से कहN करण का
म;ु य िवषय िव7मृत न हो जाय, इसिलये सड़्गवश उसको 7मरण िदला रहे ह5। वेदा(त का म;ु य
3येय है जीव Qहार् कA एकता। कहा गया है-’िवषय_ जीवAहा्रैRयं श6 ु चैत8यं &मेयं त0ैव
वेदा8तानां तापया
त।् ’
2.वाFयलrयम-् साहयदपण म अथ को पणू  Kप से जानने के िलये तीन शOदशि यॉ है-वे ह5-
अिभधा(वाFय), लcणा(लoयम)् और Jय(जना। अिभधा से वाकय का अथ सीधा सादा अथ
ग*यमान होने के कारण वाFय कहलाता है। तथा वाFय का अथ, सीधे अ(वय से ठीक नहN बैठता
तब लcणा का आIय लेते ह5। जैसा िह सािहयदपण म लcणा कA पCरभाषा बताई गई है-
’मु'याथ
बाधे तKुCो यथा8योऽथ
ः &तीयते।
Lढ़ेः &योजनाासौ ल*णाशिCरिप
ता।’
अिभधा तीयमान अथ का बोध होकर, Kिढ़ के कारण म;ु याथ से स*बि(धत अ(य कA तीित
िजससे होती है, वह लcण है जो लoयाथ कही जाती है। तDायः िपडवत् म दाहकता अिlन का धम

उतराखड म
ु िविवालय १९७
भारतीय दश
न MASL-103
है वह लौहिपड म सं मण कर गई है अतः अया िपड अपने से स*ब@ अिlन का लcणा से बोध
कराता है। तD अयः िपड का वाFयाथ होगा-अयः िपड का अिlन से अिभ(न तीत होना लoयाथ
होगा-अिlन का अयः िपड से िभ(न तीत होना’तवमिस’ का इस कार वाFयाथ होगा-
अHानोपिहत चैत(य तथा तरु ीय चैत(य कA अिभ(नता। लoयाथ होगा अHानोपिहत चैत(य का श@ु
चैत(य से िभ(न तीत होना।

4.4 आवरण एवं 5व0ेप शिCत


51. अान"यावरणिव*ेपनामकमि"त शिCयम।् ।
अनवु ाद-इस अHान कA आवरण और िवcेप नामक दो शि यॉ है।
<या'या -1. आयरणशि ःमाता जीव कA yि% से सामने पदा डालकर सत् िचत् तथा
आन(द7वKप आमा को आवृS करने वाली शि को आवरणशि कहते है। जैसा िक सबु ोिधनी
टीका भी कहती है-
सिFचदान(द7वKपमावृणोतीयावरणशि ः।
2. िव*ेपशि ः-Qहार् से लेकर 7थावर ािणय1 तक स*पणू  नामKपतामक संसार का (जल म
बल
ु बलु े के सyश) पैदा करने वाली शि िवcेप शि कहलाती है। सबु ोिधनी टीका भी इसी का
समथन करती है-
’Qहार् ािद7थावरा(त जगत् जलबछ
ु बदु त् नामKपामकं िविcपिS सृजतीित िवcेपशि ः।
52. आवरणशिC"तावद]पोऽिप मl घोऽनेकयोजनायतमािदयमXडलमRलोक-
ियतृनयनपथिपधायकतया यथाFछादयतीव तथाानं
प?रिFछ8नामSयमानमप?रिrछ8नमससा?रणमवलोकियतृबुि6िपधायकतयाFछयतीवताi
शं सामnय
म।् तदुCम्
’घनFछ8नiिघ
नFछ8नचक
यथा म8यते िन>&भं चाितमूढ़ः। तथा ब6वाित यो मूढ़iेः स
िनयोपलि+ध"वLपोऽहमामा’ इित।
अ8वय -यथा अितमढ़ू ः घनFछ(नyि%ः (सन)् अक घनFछ(म,ं िनEभं च म(यते, था मढ़ू ः y%े यः
(आमा) व@वत् भाित, सः िनयोपलिOध7वKपः आमा (एब) अहम् (अि7म)।
अनवु ाद-जैसे लघु मेघ खड अनेक योजन तक िव7तृत सयू  को दशक के नयन1 के आगे से ढककर
उसकA yि% को पCरिFछ(न कर देता है उसी कार सीिमत अHान कA असीिमत, अज(मा और

उतराखड म
ु िविवालय १९८
भारतीय दश
न MASL-103
असासं ाCरक आमा को आवृत कर देता है, ऐसी (यह) शि है,यही आवरण शि कहलाती ह5।
इसीिलये कहा गया है-
’िजस कार मेघ से आFछ(न yि% वाला मख ू  Jयि मेघाFछािदत सयू  को काश रिहत समझता है,
उसी भॉित जो मढ़ू साधारण yि%वान् लोग1 को ज(ममरणािद ब(धन1 से ब@ तीत होता है, ऐसा वह
िनय उपलिOध7वKप अहम् या आमा है।’’
<या'या -1. आFछादयतीव- इसका अथ है मानो ढक लेता है अथात् सयKप म ढ़कता नहN
िक(तु ऐसा आभास होता है ि◌कवह आवृS है। यह उ@रण अ&ैतवेदाि(तय1 का आमा के ब(धन
और मोc दशा कA अयथाथता दशनाथ बहMत ही लोकिव;यात है।
2. ब@वPाित-बॅधा हMआ-सा तीत होता है अथात् वेदाि(तय1 कA yि% म ब(धन और मोc के वल
तीितमा ह5 व7ततु ः आमा ब(धन और मोc से परे है।
53. अनवैवावरणशRयाविFछ8न"यामयः
कत
ृभोCृवसुखदुःखमोहामकतुFदसंसारभावनािप सJभा<यते यथा "वाानावृ2यां
र@@वां सप
व"Jभावना।।
अनवु ाद- इसी आवरण शि से आFछ(न आमा कA कतृता, भो ृ ता सांसाCरक सख ु दःु खमक
मोहामक तFु छ भावनाय भी अHानावृS र7सी म सप होने कA स*भावना म तुLय आरोिपत होती ह5।
<या'या -तFु छ-तFु छ का शािOदक अथ ’श(ू य’ है, लेिकन वेदा(ती लोग ससं ार को ऐसा (श(ू य)
नहN समझते वे उसे सख
ु -दःु ख Kप से तीयमान ससं ार कA yि% से सत् तथा यिु पवू क
 िवचारक1 कA
yि% से असत् और तविवद1 कA yि% म तFु छ बताते है।
54. िव*ेपशिC"तु तथा र@@वानं "वावृतर@जौ "वशRया
सपा
िदकमुावययेवमानमिप "वावृतामिन िव*ेपशCयाकाशािद&प8चािदमुदभावयित
ताiश सामnय
म।् तदुCम-्
’िव*ेपशिRल
लड़्गािदAहा्राXडा8तं जगसृजेिदित’।।
अनवु ाद-िवcेप शि तो वह है-जो र7सी िवषयक अHानाFछािदक र7सी म 7वशि से सपािद को
उPावना के समान अHानावृS आमा म ही आकाशािद प(च कA उPावना कराता हे यह ऐसी
शि है। अतः कहा गया है-
िवcेप शि ही िलड़्ग (स;ू म yि%) से लेकर Qहार् ाडपय(त संसार कA रचना करती है।
<या'या - वcेपशिWलड़्गाद Qहार् ाडा(तं जगसृजते ्-इस वाWय का िनदuश िवcेप शि तथा
आवरण शि दोन1 का िनदuश करने के िलये ’ylybयिववके ’ से इस कार िकया गया है-

उतराखड म
ु िविवालय १९९
भारतीय दश
न MASL-103
शिCयं िह मायया िव*ेपावृि2Lपकम।्
िव*ेपशिCिल
ड़्गािदAहा्राXडा8तं जगसृजेत।् ।
अ8तiqययोभaद बिहI Aहा्रसग
योः।
आवृणोयपरा शिCः सा सस ं ार"य कारणम।् ।
55. शिCयवदानोपपिहतं चैत8य "व&धानतया िनिम2ं "वोपािध&धानतयोपादानं च
भवित।।
अनवु ाद-दो शि यो कA अHानोपािध से य ु चैत(य अपने धान अपने ाधा(य से िनिमS कारण
तथा अपनी उपािध के ाधा(य से उपादान कारण होता है।
<या'या - शि &यवद.् .............भवित- िजस भॉित एक ही मकड़ी अपने त(तुKप काय के ित
चैत(य धानता के कारण िनिमS कारण होनी है तथा अपने शरीर के ाधा(य के कारण उपादान
कारण भी है। यिद मकड़ी चेतन न हो तो के वल शरीर से त(तु नहN बन सकता यिद शरीर न हो तो
के वल चैत(य से ही त(तु बन सकता। इस कार जालKपी काय मकड़ी कA चेतनता तथा उसका
(िविश%) शरीर दोन1 ही कारण है। लेिकन चेतनांश के ाधा(य के कारण शरीर िनिमS (कारण) है
और वही मकड़ी शरीराधा(य के कारण उपादान कारण भी है Wय1िक शरीर का साcात् स*ब(ध है।
इसी कार चैत(य (ईर) भी अपने चैत(य धानता के कारण चराचर संसार का िनिमS कारण है
तथा अHान Kप उपािध कA धानता के कारण उपादान कारण भी है संसार अHानोप(न है अतः
अHान (माया) ससं ार का उपादान है। अHान आमा भी है। अतः मायावी चैत(य (ईर) को
पर*परया संसार का उपादान कारण कह सकते ह5, Wयोिक मकड़ी कA भॉित ईर भी सृि% से पवू  एक,
िबना िकस साधन के ही अपनी माया के &ारा सoू म शरीर भी लेकर Qहार् ाड तक 7थल जगत् कA
सृि% कर देता है। अतः ईर उपादान कारण है तथा इसके धान कारण अHान कA अपेcा पर*परा से
स*बि(धत Qहार् के उपादान कारण होने पर इसकम ’Qहार् ’ के चैतनयव िनयव गणु नहN रह
सकते। चैत(याशं से वह िनिमS कारण है।
56. यथा लूता त8तुकाय
&ित "व&धानतया िनिम2 "वशरीर&धानतय_पादानं च भवित।।
अनवु ाद-िजस कार एक ही मकड़ी जालKप काय के ित चैत(य ाधा(य के कारण िनिमS कारण
है तथा अपने शरीर के ाधा(य के कारण उपादान कारण भी है, उसी भॉित अHानोपािध य
ु आमा
चैत(य धानता के कारण सम7त प(च का िनिमS कारण तथा अHान ाधा(य के कारण उपादान
कारण है ।
<या'या -यथा.......भवित-यह मकड़ी का उदाहरण उपिनषद1 म मल
ू Kप से इस कार है-
यथोण
नािभः सज
ृ ते गŒ
ृ ाते च।

उतराखड म
ु िविवालय २००
भारतीय दश
न MASL-103
यथा पृिथ<यामोषEयः सJभवि8त ।।
यथा सतः पL
ु षोके शलोमािन।
तथा*रासभ
ं वती िव5म।् ।
अथात िजस भॉित मकड़ी जाल को बनाती है तथा िफर उसे Vहण कर लेती है (िनगल जाती है)।
िजस कार पृिथवी म औषिधयॉ (वन7पितयॉ) उ(पन होती ह5 तथा रोम उप(न होते ह5 वैसे अcर
(अिवनाशी) Qहार् से यह स*पणू  िव उप(न होता है।
57. तमः &धानिव*ेपशिCमदानोपिहतचैत8यादाकाश
आकाशाायुवा
योरिQनरQनेरापोऽद्$यः पिृ थवी चोपKते ’त"माा एतसमादामन आकाशः
सJभूत’ इयािद ुतेः।।
अनवु ाद-तमोगणु धान िवcेप शि य ु अHानोपािध से उपिहत चैत(य से आकाश, आकाश से
वायु से अिlन, अिlन स ◌ेजल और जल से पृिथवी उप(न हMई। ’उस आमा से आकाश से आकाश
उप(न हMआ’ यह Iिु तकथन भी माण है।
<या'या -1. तम;धान- आकाशा आिद तव1 का कारणभतू अHान म तमोगणु धान होता है।
इसका तापय है िक उसम सव एवं रजस् गणु भी अ(य माा म ि7थत रहते है, िक(तु तमोगणु अ(य
दोन1 गणु 1 को अिभभतू िकये रहता है। इसी से (तमोगणु कA अ(य कA अपेcा धानता होने से)
मत;धान कहा जाता है।
2.आकाश- वेदा(ती लोग अ(य दाशिनक1 कA भॉित आकाशािद को िनय नहN मानते अिपतु
’उपते’ के ,&ारा उप(न होने वाला मानते ह5। यिप इस िवषय म ’न(वाकाशं नापते’
िनरवयवZJयवादामविदित’ इस वैशिे षक दशन के अनसु ार, आकाश उप(न नहN हेा सकता’
आcेप उठता है िक(तु ’आमनः आकाशः स*भतू ः’ इस Iिु त से 7ततु आपेख का िनराकरण हो
जाता है, Wयोिक पृिथवी आिद के सदश् ः’ आकाश भी महवय ु होने पर भतू है, इसिलये उप(न
होता ह, जैसा िक कहा भी है-’आकाशमु पते महवे सित भतू वा(महापिु थJयािदविदित’।
3.त"माा एत"मादामन आकाश सJभूतः- इसके ामाय से वैशिे षक1 का िस@ा(त आकाश
तथा अ(य चार भतू 1 को िनय मानने का आcेप बािधत होता ह5 तथा सा;य का कृ ित कारणवाद
भी खिडत हो जाता है। नैयाियक1 का परमाणक
ु ारणवाद भी िनर7त है।
4. अानोपिहतचैत8यात-् अशेषिव Qहार् से िवकिसत हMआ है-
(क) ’पुLष एवं इदं सव
म-् ऋQवेद, दशम् मXडल।

उतराखड म
ु िविवालय २०१
भारतीय दश
न MASL-103
(ख) यतो वा इमािन भूतािन जाय8ते येनं जातािन जीवि8त0। तै 0 उ0
(ग) अहम् सव
"य &भवः म2ः सव
म् &वत
ते। गीता 10/8
58. तेषु जाडयािधRयदश
ना2मः&ाधा8यं तकारण"य। तदान‚ सवरजसतमांिस
कारणगुण&:मेण ते>वाकाशािदषूपK8ते।
अनवु ाद-उसम जड़ता अिधक िदखाई देने के कारण तमोगणु धान िवcेपशि य ु चैत(य ही
उसका कारण है। उस समय उ(ही आकाशािद प(चभतू 1 म अपने-अपने साcाकार1 के गणधार पर
सव, रजस् और तम कA उपिS होती है।
<या'या -1. सवरज"तमांिस कारणगण ु &:मेण-उपादान कारण के सवरजस् तथा तमस् तीन1
गणु काय म िवमान रहते ह5, अतः ’जाडयािधWयदशनात’् अथात् जड़ता अिधक होने के कारण
कहा गया है। ’जैसे कारण होता है वैसा ही काय होता है’ इस भारतीय दाशिनक िस@ा(त के अनसु ार
कारणि7थत सoू म गणु काय म अिधक ठोसतर और कठोर होकर अिभJय होते ह5।
िव&(मनोरि(जनी के अनसु ार-
कारण7याJयाकृ त7य ये गणु ाः सवादय7तेषां  मेण, तान् गणु ान् आरgय यथाकाय मं
सवािदगणु ाः सहैव काय7तेषु प(त इयथः। जैसे-जैसे काय उप(न होते जाते है वैसे-वैसे उनके
कारण1 म रहने वाले सव, रजस् तथा तमस् गणु उन कायw म उनकA उपिS के साथ ही उPूत हो
जाते है। तक भाषा म ’कारणगणु करे ण’ कA Jया;या इस कार है ’कारणगणु ा िह
कायगणु ानारभ(ते।’ इस वैशिे षक दशन क ◌ेमत के वाWय का जो तापय है वह वेदाि(तय1 क ◌ेमत
से सगं त नहN बैठता, Wयोिक वेदा(त म आकाश आिद उप(न होते है िनय नहN होते। वेदा(त के
अनसु ार ’कारणगणु ा िह कायगणु ानारभनते’ का अथ ’कारण ही िभ(न-िभ(न कायw कA आकृ ित म
ि7थत होता है, इसिलये कारण ि7थत गणु काय म भी अनुिवमान रहते ह5। होगा।
सा;ं य तथा वेदा(त सकायवाद म आ7था रखते ह5 जबिक वैशिे षक तथा (याय दशन आर*भवाद
तथा असकायवाद म आ7था रखते ह5। वेदा(त के अनसु ार कारण ही काय के आकार म ि7थत होता
है।
2.तेषु जाडयािधRयदश
नात-् उन (आकाश आिद प(चमहाभाू तो) म जाडय (जड़ता-अचैत(य) कA
अिधकता साcात् दीख पडती है, अतः उनके कारण7वKप अHान म भी जडता होना 7वाभािवक है।
जड़ता तमोगणु का धम होन के कारण जैसा िक सां;यकाCरका कहती है (गK ु वरणकमेव
तमः)अHान तमोगणु धान होता है। रामतीथ के कथनानसु ार ’अिधWय’ पद भतू ो (आकाश आिद)
और उनके कायw म चैत(य कA भी अLपोपि7थित को सिू चत करता है। वाWयसधु ा ’ 7प% कहती है-

उतराखड म
ु िविवालय २०२
भारतीय दश
न MASL-103
’अि"त भाित ि&यम् Lपम् नाम चेयंशप8चकम।्
अK0यं Aहा्रLपं जग;ूपं ततो ,यम।् ।
अ$यास &qन :

एक शOद मे उतर िदिजए


1- अHान कA िकतनी शि या होती है ।
2- सद् और असद् से अिनवचनीय है ।
3- अHान आिद सकल जड समहू को Wया कहते है ।-
4- चैत(य को Wया कहते है । - सवH
5- उपिहत को कहा जाता है । - उपािध आरोिपत
6- वेदा(तसार मे कोश् िकतने कार के होते है ।
7- सतिचत और आनंद िकसे कहा गया है ।
8- लतू ा िकसे कहते है ।
9- तम का अथ Wया होता है ।
10- आवरण शि का अथ Wया है ।

4.5 सारांश
र7सी मे सप का आभास जो अHान है वह अHान समि% और Jयि% दो तापयw से कहN एक Kप म
और कहN बहMबचन के Kप मे यWु त िकया जाता है वृcो को समदु ाय के yि%कोण से बन कहा जाता
है उसी कार जल तरंगो के समहू को जलाशय कहा जाता है । ठीक इसी तरह अनेक सं;या मे
तीत होने वाला जीव अHानो से यWु त होकर समहू वाला होता हMआ समि% कA इFछा से एक होता
है । अHान कA दो शि या होती है – आवरण तथा िवcेप । आवरण शि जीव के समc पदा
डालकर आन(द 7वKप आमा को ढक देती है इसीिलए इसे आवरण कहा जाता है । Qहम् से लेकर
चरचर जगत् के ािणयो तक सम7त नाम Kपामक ससं ार को पैदा करने वाली शि को िवcेप
शि कहते है । िजस कार मेघ से आFछािदत सयू  को अHान स*प(न जीव काशहीन बतलाता है
उसी कार सीिमत अHान से अिसिमत Qहम Hान को जीव पCरिछ(न कर झठू ा बतला देता है । अत:
साधारण yि% वाला जीव लोगो को ज(म मरण के ब(धन से भी इसी कार तीत होने लगता है इस
कार वह िनय उपलOध होता हMआ अहम है या आमा है वेदाि(तयो कA जो yि% है उसमे आमा

उतराखड म
ु िविवालय २०३
भारतीय दश
न MASL-103
ब(धन एवं मोc से परे है । इस इकाई के अ3ययन के पbचात् आप अHान के 7वKप क अ3ययन कर
आमा के िवश&ु 7वKप के िनणय को समझा सकते है ।

4.6 शदावल
अानाविFछ8न – अHान से अविFछ(न न होने वाला
समि – समदु ाय
उपिहत – उपािध &ारा आरोिपत
िवशु सव&धान – ईbवर मे ि7थत माया का 7वगणु धान होना । इसका तापय यह है िक
वेदा(त मे सवगणु समि% ईbवर मे ि7थत अHान के अ(दर रजस एवं तमस् को अिभभतू करके रखता
है ।
<यि – Iिु त बचनो मे अHान का अनेक Kप िस& होता है इसका अथ है िव उपसग पवू क
 अश्
धातू से ि न् यय होने पर Oयि शOद बनता है
आन8द &चरु ता –जागते और सोते दोना समय सख ु और दखू दोनो का अनभु व होता है िक(तु
आम Hान से पCरपणू  हो जाने पर जीव को हर समय आन(द कA ही अनभु िू त होती है ।

4.7 अयास 
न के उतर
1 – दो
2 – Qहम
3 –अव7तु
4 – सवH
5 – उपािध आरोिपत
6 – पॉच
7 – QR
8 –मकडी
9- अधं कार
10 – ढकना

उतराखड म
ु िविवालय २०४
भारतीय दश
न MASL-103

4.8 स%दभ# $%थ सच


ू ी

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सांदाियक भाEय;
• राधाकृ Eणन् : इिं डयन िफलासफA, भाग 1-2;
• दासगDु : िह7टरी ऑव इिं डयन िफलासफA, भाग1
• वेदा(तसार – सदान(द योगी(Z चौख*भा काशन वाराणसी

4.9 सहायक उपयोगी पा)य साम$ी

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सांदाियक भाEय;

4.10 *नब%धामक 

1- अHान के 7वKप को Jया;याियत कAिजए
2- अHान के 7वKप पर एक िनवधं िलिखए
3- आवरण शि को पCरभािषत कर अHान कA Jया;या कAिजए
4- िवcेप शि के साथ अHान को पCरभािषत कAिजए
5- आवरण और िवcेप शि कA समीcा कAिजए

उतराखड म
ु िविवालय २०५
भारतीय दश
न MASL-103

 – 5 :;   !  "


इकाई कW Lपरेखा
5.1 तावना
5.2 उे

5.3 सTू म शरीरोपि4
5.4 पंचीकरण क ि&या
5.5 सारांश
5.6 श-दावली
5.7 अ3यास 
न1 के उतर
5.8 स(दभ5 6(थ सचू ी
5.9 सहायक उपयोगी पाठ्य साम6ी
5.10 िनब(धामक 

उतराखड म
ु िविवालय २०६
भारतीय दश
न MASL-103

5.1 तावना
वेदा(तसार के V(थावलोकन से समं बिं धत यह पॉचवी इकाई है । इसके पवू  कA इकाईयो म आपने
वेदा(त कA ऐितहािसकता जानकर मगं लाचरण से लेकर अनुवधं का Hान ा~त करते हMए अHान कA
आवरण एवं िवcेप शि यो का स*यक अ3ययन िकया है । यिप वेदा(तसार प7ु तक म सoू म शरीर
के वणन के बाद पंचीकरण का संग आता है तथािप 7ततु इकाई म पंचीकरण का सिc~त िववरण
आपके अ3यनाथ 7ततु है ।
भारतीय दशन म अनेक िवधाओ ं मे सृि% कA ि या के अनेक कार से वणन िकए गये है ।
आचाय शक ं र कA पर*परा से लेकर सदान(द योगे(Z तक िजतने वणन िकए गये उनम पंचीकरण का
7पEट िनदशन के वल वेदा(त सार मे ा~त है । इस V(थ म पंचीकरण कA िवधा को अयंत तािक क
Kप से 7ततु करते हMए पCरभािषत िकया गया है ।
इस इकाई के अ3ययन के पbचात् आप पंचभौितक जगत् कA उपिS कA ि या को
स*यक Kप से जानकर िवbलेिषत कर सक गे साथ ही पंचमहाभतू ो कA उतपिS आिद को भली
भॉित समझा सक गे ।

5.2 उे

पंचीकरण कA ि या से समबंिधत इस इकाई के अ3ययन के पbचात् आप यह बता सक गे िक
• पंचीकरण का अथ Wया है ।
• पंचीकरण कA पCरभाषा Wया है ।
• वेदा(तसार म पंचीकरण &ारा उपिS कA ि या Wया है ।
• आकाशािद पच
ं महाभतू ो कA उपिS कै से होती है ।
• महाभतू ो का सि*मIण िकस कार होता है ।

5.3 सE
ू म शररोपित

59. एता8येव सूrमभूतािन त8मा0ाXयप8चीकृतािन चोFय8ते।।


अनवु ाद-ये ही सoू मभतू त(माा और अप(चीकृ त कहे जाते ह5।
<या'या -1. सoू मभतू ािन-इसका, उLलेख आगे सगं म िकया जायेगा। आगे िलखे जाने वाली
7थल ू भतू 1 कA अपेcा जो सoू मभतू कहे जाते ह5 तथा जाVत अव7था म Jयवहारोिचत नहN होते, वे
सoू मभतू कहे जाते ह5 तथा जाVत अव7था म Jयवहारोिचत नहN होते, वे सoु मभतू कहलाते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय २०७
भारतीय दश
न MASL-103
2. त8मा0ािण-ये सoू मभतू दसू रे भतू 1 म सि*मिIत नहN होते तथा अपने िवश@
ु 7वKप म होते ह5।
स;ू म दशा म आकाश म के वल रस और पृिथवी म के वल ग(ध ही रहता है। और जब इन पॉच1
सoू मभतू 1 का प(चीकरण हो जाता है तब ये 7थल ू व को ाD कर येक (महाभतू ) प(चामक हो
जाते ह5 (येक म पॉच1 भतू ो का अश ं रहता है)। िव&(मनोरि(जनी के अनसु ार-ता8येवेित
त8मा0िणित समासिव\हः। ’श+दािदताव8मा0ैक"वभावा8यप8चीकृतािन पर"परमसंसुािन
चेित "मृयािदषFू य8ते।’
60. एते$यः सrू मशरीरिण "थूलभूतािन चोपK8ते ।।
अनुवाद-इ(हN से सoू म शरीर एवं 7थल
ू भतू उप(न होते ह5।
<या'या -1. सूrमशरीररािण-सां;यमतानसु ार सoू मशरीर के अšारह अवयव होते ह5 जबिक
वेदा(त स;ू मशरीर को सह भाग1 वाला मानता है। वेदाि(तय1 के सoू मशरीर का िववरण िन*न
काCरका 7ततु करती है-
’प8च&ाणमनोबुि6दशेि8;यसमि8वतम।्
अप8चीकृतभूतोथं सूrमाड़्क भोगसाधनम।् ।
61. सूrमशरीरािण सTदशावयवािन िलड़्गशरीरािण।।
अनवु ाद-सoू म शरीर के सह अवयव ह5, ये ही िलड़्गशरीर है।
<या'या -1. सrू मशरीरिण- इसकA Jया;या ऊपर देख।
2. िलड़्गशरीरािण-सoू म शरीर ही िलड़्गशरीर कहे जाते ह5, Wय1िक इनके &ारा यगामा कA सSा
का Hापन होता है। िजस भॉित सoू म शरीर के वेदा(त म सह अवयव माने गये ह5 वे ही िलड़्गशरीर
के भी अवयव हMए, Wय1िक सoू म शरीर कA ही दसू री संHा िलड़्ग शरीर है। िलड़्गशरीर संHा से
अिभिहत होने का कारण इस कार है-
’’िलड़्गयते ाSयते &यगामसाव एिभ?रित िलड़्गािन।
िलड़्गािन चे तािन शरीररािण चेित िलड़्गशरीरािण।।
प(चदशी के अनसु ार िलड़्ग (सoू म) शरीर के अवयव है-
बुि6, कमaि8;य, &ाणप8चकै म
नसा िधयां।
शरीरं सTदशिभः सूrमं ति]लड़्गमुFयते।।

उतराखड म
ु िविवालय २०८
भारतीय दश
न MASL-103
िक(तु सां;यतवकौमदु ी म इसके िन*निलिखत अवयव कहे गये ह5-
’महदड़्कारैकादशोि8;यप8चत8मा0Sय
8तम।् ’
62. अवयवा"तु ानेि8;यप8चकं, बिु 6मनस_, कमaि8;यपनचकं, वायुप8चक8चेित।।
अनुवाद-वे अवयव ह5-पॉच HानेिZयॉ, बिु @ एवं मन, पॉच कमuि(Zयॉ तथा पॉच वाय।ु
<या'या -1. Hानेि(Zयप(चकम-् इसका तापय है प(च (पॉच) Hानेि(Zयॉ आकाशािद म ि7थत
सवगणु ांश से Iो (कान), वायु के सSवगणु ांश से वक् (वचा), तेज के सवगणु ांश से चcु (ने),
जल के सवगणु ाश ं से रसना (जीभ) तथा पृिथवी के सवाश ं ये }ाण (नािसका) का उPव होता है।
काCरका भी है-
’सवांशैः :मा6ीि8;यप8चम।
ो0वगि*रसनणां'यमुपजायते।।
63. ानेि8;यािण ो0वRच*ुिज
‹ाणा'यािण।।
अनुवाद-Iो, वक् चc,ु िजŒा तथा }ण ये (पॉच) Hानेि(Zयॉ ह5।
<या'या -1. Hानेि(Zयािण Hानेि(Zयॉ आकाश आिद, भतू 1 के सािवक भाग1 से उप(न होती ह5।
शेष इनके िवषय म पृv 92 पर देख
64.अवयवा"तु ानेि8;यप8चकं, बुि6मनसो, कमaि8;यप8चकं, वायुप8चक8चेित।।
अनुवाद-ये अवयव ह5-पॉच Hानेि(Zयॉ, बिु @ एवं मन, पॉच कमuि(Zयॉ तथा पॉच वाय।ु
<या'या -1. ानेि8;यप8चकम-् इसका तापय है प(च (पॉच) Hानेि(Zयॅ आकाशािद के सािवक
अशं 1 से मशः अलग-अलग ादभु तू  होता ह5।
<या'या -एतािन.......उप(ते- यही म तैिSरीय उपिनषद् का यह वचन भी 7ततु करते ह5-
’त"माा एत"मादाकाशः सJभूतः, आकाशाायुः।’
65. बुि6ना
म िनIयािमका8तः करणवृि2ः।।
अनुवाद-िनBय करने वाली अ(तःकरण कA वृिS बिु @।
<या'या -1. अनतः् करणवृि2ः-आ(तCरक िवचार1 कA (साधकतमं करणम् से करण) करणभतू
इि(Z अथवा अ(तःकरण कहलाती है। (इसी अ(तCरि(Zय म ’मै fी ह‹,ँ मै गृहसथ ह‹’ँ इस भॉित
िनBयय ु जब वृिS उप(न होती है तब उसे बिु @ कहते ह5।)
2. अ(तःकरण वृिS के दो Kप होते ह5-(क) िनBयािमका बिु @।(ख) संशयािमका वृिS मन।

उतराखड म
ु िविवालय २०९
भारतीय दश
न MASL-103
66. मन_ नामसड़्क]पिवक]पािमका8तःकरणवृि2ः।।
अनवु ाद-सड़्कLप और िवकLप करने वाली (संशय करने वाली) अ(तःकरण कA वृिS मन है।
<या'या -1. सड़्क]पिवक]पािमका8तःरणविृ 2ः- आ(तCरक भावनाओ ं कA करणभतू इि(Zय
अ(तःकरण म जब ’’म5 िचZूप हॅ’ू ’- ’’म5 देह हॅू’’ इस कार कA सक
ं Lपय
ु अथवा ’म5 पढू या न
पढ़—-म5 जाऊॅ’ इस कार कA िवकLपामक वृिS उप(न होती ह5 तो इसे मन कहते ह5।
(2) िवारय 7वामी ने अ(तःकरण के वृिS भेद से दो भेद कहे है-
तैर8तःकरणम् सवaविृ 2भेदेन तद् िधा।
मनो िवमश
Lपम "यात् बुि6ः "यात् िन>चयािमका।।
67. अनयोरेव िच2ाहड़्कारयोर8तभा
वः।।
अनुवाद-इ(हN दोन1 (बिु @ और मन) म िचS ओर अक
ं ार का अ(तभाव हो जात है।
<या'या -अनयो.................अ(तभावः-अनयोः-इन दोन1 अथात् मन तथा बिु @ म मशः िचS
का बिु @ म अ(तभाव हो जाता है Wय1िक 7मरणािमका िचS वृिS िनBय Kप ही होता है तथा
अहकं ार का मन म अ(तभाव हो जाता है Wय1िक अहड़्कार भी संकLप होता है-कहा भी है-
’मनाःबुि6रहक
ं ारिI2ं करणम8तरम।् संशय_ िनIयो गव
समरणिवषया अभी।।’
68. अनुस8धनािमका8त करणवृि2ः िच2म।् ।
अनुवाद-अनसु (धानकN अ(तःकरण कA वृिS है।
<या'या -अनसु (धानािमका(तः..............िचSम-् आ(तCरक िवषय1 के Vहण कता अ(तःकरण म
जब अनसु (धानय
ु अअथात् 7मरणािमका वृिS उप(न होती है तो वह िचS कहलाती है।
69. अिभमानािमका8तःकरणवृि2ः अहड़्कारः।।
अनुवाद-अिभमान करने वाली अ(तःकरण कA वृिS अहक
ं ार है।
<या'या _ अिभमानािमका(त ................अहड़्कारः-पवू क
 िथत अ(तःकरण म जब ’म5 बड़ा
िनपणु ह‹ँ ।’ इस कार कA गवामक, (अिभमानKपा) वृिS का ादभु ाव होता है त बवह वृिS
अड़्कार कही जाती है।
70. एते पनु राकाशािदगतसाि2वकाषे$यो िमिलते$य उपK8ते।।

उतराखड म
ु िविवालय २१०
भारतीय दश
न MASL-103
अनुवाद-ये चार1 (बिु @, मन िचS और अहक ं ार) आकाशािद म ि7थत सािSवक अश ं 1 के िमिIत
अशं 1 से पैदा होते ह5।
<या'या -िमिलते$यः-मन, बिु @, (इ(ही म अ(तभतू होने वाले िचS तथा अहड़्कार) ये सभी
(पॉच1) Hानेि(Zय1 के साथ आवbयक ह5 Wय1िक िबना मन बिु @ के सहयोग के Hानेि(Zयॉ अपने-
अपने िवषय1 को Vहण करने म समथ नहN हो सकती। इसीिलये वे पॉच1 भतू 1 के िमिलत (िमले हMए)
अश ं 1 से उप(न होने वाले कहे गये है।
71. एतंषां &काशामकवासािवकांशकाय
वम।् ।
अनुवाद-इन (चार1) के काशियता होने के कारण उ(ह साियक अश ं 1 से ादभु तू कहा जाता है।
<या'या -&काशामकवात-् पॉच Hानेि(Zयॉ, मन तथा बिु @ से सात सवांश से उप(नं होने के
कारण सवगणु धम काश से य ु ह5 इसी से ये सवगणु का कायव है Wय1िक सवगणु काश माना
गया है। गीता म सवगणु काशक कहा गया है-
’त0 सवं िनम
लवात् &काशकमनामयम।् ’
72. इयं बुि6ा
नेि8;यः सिहता िवानमयकोशो भवित।।
अनुवाद-(प(च)Hानेि(Zय1 सिहत यह बिु @ िवHानमय कोश कहलाती है।
<या'या - िवHानमयकोशः-पॉच Hानेि(Zयॉ (Iोत, वग,् चcु रसना तथा }ाण)तथा छठी बिु @
समवेत Kप म िवHानमयकोश Kप म पCरभािषक शOद य ु होता है।
73. अयं कत
ृवभोCृवसिु खवदुःिखवाKिभमािनवेनेहलोकपरलोकगामी <यवहा?रको
जीव इयुFयते।।
अनवु ाद-यही (िवHानमय कोश से य ु चैत(य) कता, उपभो ा, सख
ु , स*प(न, दःु खी होना आिद
कारण1 से (तथा) अिभमानव, के कारण इस लोक और परलोक का आवगमन कता JयवहाCरक
अव7था म जीव कहलाता है।
<या'या -कतृव.......परलोकगामी-कता होने तथा भोग करने वाला होना िनयान(द Kप
अपCरिFछ(निनिE य होने पर भी िवHानमय कोश अिभमानी होने के कारण इीलोक परलोक म गत
JयवहाCरक जीव के लोक-परलोक गमनKप Jयवहार का हेतु बन जाता है।
74. मन"तु ानेि8;यै सिहतं स8मनोमयकोशो भवित।।
अनुवाद-Hानेि(Zय से य
ु मन को मनोमय कोश कहा जाता है ।
<या'या -1. मनोमयकोशः-पॉच Hानेि(Zय1 समेत मन के िमल जाने पर मनोमय कोश कहलाता है-
यही वात प(चदशी म िन*न कार से कही गई है-

उतराखड म
ु िविवालय २११
भारतीय दश
न MASL-103
’’सािवके धीि8;यैः साकं िवमशमाः मनोमयः।
तैरवे सांकं िवानमयो धीिन
शा
माः मनोमयः।।
अथात् िवमशीमा मन (प(चमहाभतू 1 के ) सवगणु ाश1 से उप(न हMई इि(Zय1 से सयु
ु होकर मनोमय
कोश होता है। िनBमहाभतू 1 के सवगणु ाश ं 1 से उप(न हMई इि(Zयो से सयं
ु होकर मनोमय कोश
होता है। िनBयािमका बिु @ उ(हN Hानेि(Zय1 से िमलकर िवHानमय कोश बन जाती है।
75. कमaि8;यािण वाRपािणपादपायूप"था'यािण।।
अनुवाद-याणी, हाथ पैर, पायु तथा उप7थ-ये (पॉच) कमuि(Zयॉ है।
<या'या - कमuि(Zयािण-Hानेि(Zय1 के समान कमuि(Zयॉ (वाणी, हाथ, पैर, पायु तथा उप7थ) भी
प(चभतू 1 के रज1ऽश1 से उप(न हMई ह5 इनके मशः िवषय है वचन, आदान, गमन, िवसग तथा
आन(द। प(चदशी इसी भौितकता का समथन करती है-
’’रज_ऽशैः प8चिभ"तेषां :माकमaि8;यािण तु।
वाRपािणपादपायूप"थािभधानािन जिरे।।’’
76. एतािन पुनराकाशादीनां रजोऽशे$यः पृथक्-पृथक् :मेणोपK8ते।।
<या'या -ये (प(चकमuि(Zयॉ) आकाशािद के रजोगणु ांश1 से अलग-अलग मशः पैदा होती है।
<या'या -एतािन...उप(ते-अथात् इन इि(Zय1 म आकाशािद के रजोगणु ांश से मशः पृथक्-
पृथक् आकाश के राजोगणु ांश से पायु और पृिथवी के रजोगणु ांश से उप7थ इि(Zय का ादभु ाव होता
है।
77.वायवः-&ाण, अपान,् <यान, उदान तथा समान ये (प8च) वायु है।
<या'या -›िु तय1 म पॉच1 वायओ
ु का िववरण िमलता है जो आगे कहा जायेगा।
78. &ाण_ नाम &ाQगमनवा8नासा\"थानवतŽ।।
अनवु ाद-समाने गमन वाली नाम के अVभाग म वतमान रहने वाली वायु ’ाण’ है।
<या'या -ाणः-नािसका के अVभाग म इसकA उपलिOध साcात् Kप से होती है तथा नाक पर
हाथ लगाने से इसका यc अनभु व भी होता है, इसी से इसे नासाVसथानवतm कहा गया है तथािप
’ाणो’ ”दये’ म इसे ”दय म रहने वाला कहा गया है।

उतराखड म
ु िविवालय २१२
भारतीय दश
न MASL-103
79. अपान_ नामावाQगमनवान् पा{वािद"थानवतŽ।।
अनवु ाद- िन*न गमन वाली पायु (गदु ािद) 7थन1 म रहने वाली ’अपान’ वायु है।
80. <यान_ नाम िव>वQगमनवानिखलशरीरवतŽ।।
अनुवाद-सब ओर गमन करने वाली स*पणू  शरीर म वतमान रहने वाली वायु 3यान है।
<या'या -Jयान1...........वतm-छा(दोlय उपिनषद् के मतानसु ार यह ाण और अपान कA सि(ध है-
’अथ यः ाणापानय1 सि(ध सः Jयानः।’ इसका उपयोग वीयय ु कम करते समय िकया है। इ(ह
मनEु य ाण तथा अपान को रोक कर ही करता है। इसी से Jयान वायु ाण और अपान कA
िनयमनकN भी कही गई है।
81. ऊदानो नाम कXठ"थानीय उEव
गमनवानु:मणवायुः।।
अनुवाद- ऊपर कA ओर चलने वाली कठ 7थानीय वायु उदान वायु है।
<या'या -उदान-’च*ुषो वा मूEनv वा8ये$यो-वा शरीरदेशे$यः’ Iिु तवाचनानसु ार उ मण
ऊपर कA ओर जाने वाली वाय,ु आँख, शरीर या अ(य िकसी शरीर के अवयव से िनकाली, जाने
वाली होने से िकसी भी &ार से जाते समय कठ से अवbय िनकलेगी, अतः इसे कठ7थानीय कहा
गया है।
82. समानो नाम शरीरमEयगतािशतापीता8नािदसमीकरणकरः।।
अनवु ाद-शरीर म खाये-िपये हMए अ(नािद का अFछी कार पCरपाक (समीकरण) करने वाली वायु
समान है।
83. समीकरण8तु प?रपाककरणं रसLिधरशु:पुरीषािदकरणिमित यावंत।् ।
अनवु ाद-रस, र और शरीर के अ(य पदाथw म (भोtय पेय पदाथw का) पCरवतन करना और भोजन
आिद का पाचन करना ’समीकरण’ है।
<या'या -समीकरणम-् पेट म ाD हMए अ(न से सार अश ं को पृथक् करके रस र आिद सात
धातओ ु ं (रस1) के Kप म पचाकर Cरवितत कर देना तथा वtयाश को मलािदKप म बाहर िनकाल
देना ही समीकरण है।
84. के िच2ु नागकूम
कृकलदेवद2ाधन8जया'याः प8चा8ये वायवः स8तीित वदि8त।।

उतराखड म
ु िविवालय २१३
भारतीय दश
न MASL-103
अनुवाद-कुछ लोग तो (सां;यमत वाले) ’नाग, कूम, कृ कल, देवदS तथा धन(जय नामक पाँच
अ(य वायु ह5’ ऐसा कहते ह5।
<या'या -के िचS.ु ....वदाि(त-इन अितCर प(चवायओ
ु ं का वणन गोरcाशतक तथा मनसोLलास
म भी िकया गया है।
85. त0 नाग उिŠरणकरः। कम
उ8मीलनकरः। कृकलः *ुकरः। देवद2ो जृJभणकरः।
धन8जयः पोषणकरः।।
अनवु ाद-उनम (अ(य पाँच वायओ ु ं म) वमनािद कराने वाली वायु नाग, पलक1 को खोलने तथा
ब(द करने वाली कूम, बभु c
ु ा उप(न करने वाली कृ कल, ज*भाई उप(न करने वाली देवदS तथा
शरीर को पोषण करने वाली वायु धन(जय है।
<या'या -धन(जयः- मानसोLलास तथा गोरcाशतक के अितCर प(चवायु वणन से इस वायु का
7वKप कुछ और 7प% होता है। यह सारे शरीर को प%ु करने के साथ ही मरने पर शरीर को छोड़ती
नहN।
86. एतेषां &ाणािद>व8तभा
वा&ाणादयः प8चैवेित के िचत।।
अनवु ाद-कुछ लोग1 के अनसु ार (वेदा(तमतानसु ार) इन नागािद पाँच वायओ
ु ं का इ(ही ाणािद पांच
वायओु ं म अ(तभाव हो जाने से ये पाँच ह5 (न िक दस)।
87. एत&ाणािदप8चकमाकाशािदगतरज_ऽशे$य_ िमिलते$येः उपK8ते।।
अनुवाद-ये ाणािद पाँच वायु आकाशिद म ि7थत रजोगणु िमिIत अश
ं 1 से उप(न होती है।
<या'या -िमिलतेgयः-ये ाण, अपान, Jयान, उदान, समान, आकाश आिद के िमिIत रजोगणु ांश1
से उप(न कही गई है Wय1िक आपेिcत ह5।
88. इदं &ाणािदप8चकं कमaि8;यैः सिहतं स&ाणमयकोशो भवित। अ"य ि:यामकवेन
रज_ऽशकाय
वम।् ।
अनवु ाद-ये ाणािद पाँच वायु कमuि(Zय1 के सिहत ाणमयकोश कहलाती ह5। इनके ि यामक होने
के कारण इ(ह रजोगणु के अश1 से उप(न कहा जाता है।
<या'या -रज1ऽशकायवम-् ाणमय कोश को रज1ऽशकायवम् कहा है-सा;ं यमत तथा गीता के
अनसु ार मशः ेरक तथा ि याशील रजोगणु बताया गया है-’रजः कम
िण भारत’ गीता तथा

उतराखड म
ु िविवालय २१४
भारतीय दश
न MASL-103
उपJभकं चलं च रजः (सा;ं यकाCरका) अतः ाणमयकोश ि याशील है Wय1िक वह रजोऽश का
काय है।
89. एतेषु कोशेषु मEये िवानमयो ानशिCमान् कत
ृLपः। मनोमय इFछाशिCमान्
करणLपः। &ाणमयः ि:याशिCमान् काय
Lपः। योQयवादेवमेतेषां िवभाग इित वण
यि8त।
एतकोश0यं िमिलतं। ससूrमशरीरिमयुFयते।।
<या'या -इन तीन1 कोश1 म से िवHानमयकोशHान शि स*प(न कSाKप है। मनोमयकोश
इFछाशि य ु करणKप है तथा ाणमयकोश ि याशि स*प(न कायKप है। पृथक्-पृथक् तीन1
कA (अपनी-अपनी) योlयता के अनK ु प ही इनका (कता, करण तथा काय आिद &ारा) िवभाग वणन
िकया जाता है। ये तीन1 कोश िमलकर ’सoू मशरीर’ कहे जाते ह5।
<या'या -ानशिCमान् क2ा
Lपः- िवHानमयकोश चैत(य के परम सि(नकष के कारण
Hानाशि स*प(न होता है तथा वतमान भो ाभाव आिद का अिभमानी होने के कारण इसका
कताKप है। जैसा िक वृहदारयक उपिनषद् के वचन1 से भी पता चलता ह5-
-योऽयं िवानमयः &ाणेषु fK8त@यvित पुLषः।’
जे ाण1 म ”दय (बिु @)के अ(दर रहने वाला िवHानमय tयोित7वKप पK
ु ष ह5।
2. इFछाशिCमान् करणLपः-मनोमय कोश इFछाशि य ु होता है। िववके का साधनभतू होने
से इFछा का करण होने िस@ है। आमा इि(Zय तथा िवषय का साि(न3य होने पर भी Hान होना
अथवा न होना मन पर आिIत होता है। ’अ(यमान अgवम् नादशम(यमना अभवू ना Iौषिमित
मनसा ”ोव पbयित मनसा Iृणोित। 7ततु Iितवचनम् ’मेरा मन अ(य था, इससे म5ने देखा नहN, मेरा
मन अ(यास था अतः सनु नहN सका, वह मन से ही देखता है तथा मन से ही सनु ता है’ इस कार
मन को ही कारणKप है। वृ0 उप0 कहता है-’कामः सक
ं Lप1 िविचिकसा।’
3. ि:याशिCमान काय
Lपः-ामय कोश ि याशि मान् होने से कायKप ह5 जैसे िक Iिु त भी
इसके कायKपव को मािणत करती है-’तौ िमथनु ं समैतां ततः ाणोऽजायत।’ इसके िमथनु ीभतू
(पार7पCरक संसगय
ु ) वाणी और मन से उप(न होने से ाणमयकोश कायKप िस@ होता ह5।
90. अ0ाSयिखलसrू मशरीरमेकबिु 6िवषयतया वनव@जलाशयव6ा
समिरनेकबुि6िवषयतया वृ*व@जलव6ा <यिरिप भवित।।
अनवु ाद-यहाँ पर भी सकल चराचर ् के सoू म शरीर, एकव के Hान का िवषय होने के कारण वन
अथवा जलाशय के समान समि% (समदु ाय Kप), अनेकव के Hान का िवषय होने के कारण वृc
जल के समान Jयि% भी होते ह5।
उतराखड म
ु िविवालय २१५
भारतीय दश
न MASL-103
<या'या -अािप.........भवित-स*पणू  चराचर अन(त सoू मशरीर1 को शरीरKपेण एक मानकर
एकव कA िववcा म एकता के Hान का िवषय होने के कारण वन अथवा जलाशय के समान समि%
तथा उ(ही को अलग-अलग अनेक मानकर अनेक जीव1 कA िववcा होने पर 7व7वबिु @ का िवषय
होने के कारण वृc होने के कारण वृc अथवा जल के समान Jयि% पद कहते ह5।
(क) अन(तं वै मनो अन(ता िवेदवे ाः। वृ0 उ0
(ख) वायरु े व Jयि%ः वायरु े व समि%ः।वृ0उ0
91. एतसम्युपिहतं चैत8यं स0ू ामा, िहरXयगभ
ः &ाणIेयुFयते
सव
0ानु"यूतवा@ानेFछाि:याशिCमदुपिहतवाFच।।
अनवु ाद-इस समि% (समदु ाय)उपािध से य
ु चैत(य को सू ामा, िहरयगभ तथा ाण कहते है
Wय1िक (यह) सव JयाD तथा (तीन1 कोश1 से य ु होने के कारण) Hान इFछा तथा ि या से
स*प(न है।
<या'या - 1. िहरयगभ-’िहरXय"य गभ
ः’ वृिS के अनसु ार Hानशि मान् िवHानमय कोश ही
िहरमय अडा है, उससे ढका होने के कारण उसके अिभमानी चैत(य को िहरयगभ कहा जाता है।
Iिु तवाWय1 म यह सू ामा िहरयगभ तथा ाण आिद अिभधान1 से िव;यात है-’िहरXयगभ

समवत
ता\े।’
2. मन7ु मृित म 7वग के अडे से Qहार् ा के उप(न होन कA कथा है-
तदXडमभवत् हैमम् सह‡ांशुसम&भम।्
ति"मन् जे "वयम् Aहा्रासव
लोकिपतामहः।।
92. अ"यैषा समिः "थ◌
् ल
ू &प8चापे*या सू*मवात् सूrमशरीर िवानमयािदकोश0यं,
जा\ासनामयवा"वSनो>त एवं "थूल&प8चलय"थानिमित चोFयते।।
अनवु ाद-इस (िहरयगभ) कA यह समि% 7थलू प(च कA अपेcा सc
ू म होने के कारण सoू मशरीर,
िवHानमयािद तीन1 कोश1 वाली, जाVत अव7था म वासनाय ु होने के कारण 7व~न, इसी कारण
7थल
ू प(च के लय का 7थान कही जाती है।
िवविृ 2-जा\ासनामयवा"वSनः-जागरण अव7था के िवषयानुभाव1 Kपी वासनाओ ं से बने
होने के कारण िचS म वासनाय ही 7व~न को उप(न करती है- इसी कारण 7व~न के वल वासनामय

उतराखड म
ु िविवालय २१६
भारतीय दश
न MASL-103
होता है। इस सoू मशरीर को भी जागरणाव7था के िवषयानभु वKप वासनाओ ं से उप(न होने के
कारण ’7व~न’ कA जाता है।
93. एतययु पिहतं चैत8यंतैजसो भवित तेजोमया8तः करणोपिहतवात।्
अनवु ाद-यह Jयि% कA उपािध से य
ु चैत(य तेजोमय अ(तःकरण कA उपािध से य
ु होने के कारण
’तैजस’ कहलाता है।
<या'या -तेजोमय-पवू  संV1 म आ(तCरक इि(Zय1 को भतू ो म िमिलताशी से बना हMआ कहने के
पBात् तेजोमय कहना के वल तेज कA धानता को सिू चत करता है।
स7ं कृ त म ’&ाधा8येन <यपदेशा भवि8त’ (िजसका ाधा(य होता है उसी के नाम से वह Jयविहत
िकया जाता है) इसी के आधार पर यहाँ तेजोमय कहा गया है।
94. अ"यापीयं <यिः "थूलशरीरापे*या सूrमवािदित हेतोरेव सrू मशरीरं
िवानमयािदकोश0यं जा\ासनामयवा"वSनोऽत एव "थूलशरीरलय"थानिमित
चोFयते।।
अनवु ाद-इसकA भी यह Jयि% सथल ू शरीर कA अपेcा सoू म होने के कारण सoू मशरीर िवHानामयािद
तीन कोश1 से स*प(न, चैत(यानभू तू अव7था कA वासना से य ु होने के कारण 7व~न, इसी कारण
7थल
ू शरीर के िवषय का 7थल कहलाती है।
95. एतौ सू0ामतैजसो तदान‚ मनोवृि2िभः सूrमिवषयाननुभवतः &िविवCभुCतैजस
इयािद ुतेः।।
अनवु ाद- उस समय (7व~नाव7था म) ये दोन1 सू ामा तथा तेजस मनोवृिSय1 से (वासनामय
शOदािद) सoू मिवषय1 का अनुभव करते ह5। Iिु तवचन भी है-’तैजस सूrम भोC है।’’
<या'या -मनोवृि2िभः सrू मिवषयानभ ु वतः- िनZािद दोष1 के कारण अ(तCरि(Zय म
अyEयािदजागCरत स7ं कार1 के सहयोग से तदनKु पवृिSयाँ चैत(यगत अिवाशि से िवषयाकार
धारण करके उन वृिSय1 &ारा दोन1 (ससू ामा तैजस) जागरणाव7था कA वासनाओ ं म उPूत
सoू मिवषय1 कA अनभु िू त करते ह5।
96. अ0ािप समि<ययो"तदुपिहतसू0ामतैजसयोव
नवृ*व2दविFछ8नाकाशवFच
जलाशयजलव2Šत&ितिबJबाकाशवFचाऽभेदः।।
अनुवाद-यहा पर भी समि% और Jयि% कA तथा उन दोन1 कA उपािध से य
ु सू ामा तैजस कA, वन

उतराखड म
ु िविवालय २१७
भारतीय दश
न MASL-103
और वृc तथा उनसे अिविFछ(न आकाश कA तरह और सरोवर एवजं ल तथा उसम ितिबि*बत
आकाश कA भाँित अिभ(नता है।
<या'या -समि<ययोरभेदः-यहाँ समि% तथा Jयि% म अभेद (ऐWय) उदाहरण1 &ारा ितपािदत
िकया है। अथात् समि% ही Jयि% है तथा Jयि% ही समि% है। इस कार दोन1 एक ही ह5। इसी का
समथन वृहदारयकोपिनषद् के िन*न वाWय म हMआ है-
’वायुरेव <यिवा
यःु ।
टीकाकार रामनाथ ने समि% और Jयि% को मशः सामा(य और िवशेष का वाचय माना है। सामा(य
और िवशेष म अभेद होता है। िक(तु िकसी भेद कA कLपना कर पृथक्-पृथक Jयवहार िकया जाता
है।
97. एवं सू'मशरीरोपि2ः।।
अनुवाद-इस कार सoू मशरीर उप(न होता है।
<या'या -िवHानमय कोश, ाणमय कोश तथा मनोमय को िमलाकर सoू म शरीर बनते ह5। इसम
17 अगं होते है-5 Hानेि(Zयाँ, 5 कमuि(Zयाँ, 5 वायऐु ,ं और बिु @ तथा मनस।् इस शरीर म Hान, इFछा
तथा ि या तीन1 शि याँ रहती ह5 और अपने अनK ु प काय करती है।
98. "थूलभूतािन तु प8चीकृत_ (महाभतू 1) को कहते ह5।
<या'या -अप(चीकृ त भतू सoू म 7वKप् ह5। इससे िवकिसत जड़ कृ ित (माया) 7थल
ू 7वKप ाD
करती है। यही अव7था प(चीकृ त कA अव7था है।

5.4 पंचीकरण क IJया


99. प8चीकरणं वाकाशािदप8च"वेककं िधा सम िवभ@य तेषु दशसु भागेषु &ाथिमकान्
प8चभागान् &येकं चतुधा
समं िवभ@य तेषां चतुणा
भगानां "व"वितीयाध
भागप?रयागेन
भागा8तुरेषु संयोजनम।् ।
अनवु ाद-आकाशािद पाँच महाभतू 1 म से येक को समान दो भाग1 म बाँटकर उन (5×2=10)दस
भाग1 म से ाथिमक (अधाश) पाँच भाग1 को पनु ः चार बराबर भाग1 म येक को िवभ करके
उनकA (1/8 भाग को) अपने-अपने ि&तीयाध भाग को छोड़कर दसू रे भाग1 को िमलाने कA ि या
प(चीकरण है (अथात् आकाश=1/2 भाग आकाश1/8 भाग वाय1ु /8 भाग अिlन 1/8 भाग जल
भाग पृ_वी।। इसी कार अ(य महाभतू 1 का अपने अंश का 1/2 भाग तथा अ(य चार महाभतू 1 का

उतराखड म
ु िविवालय २१८
भारतीय दश
न MASL-103
1/8 अश
ं िमलकर प(चीकृ त महाभतू बनता है)।
<या'या -प(चीकरण-सृि%िवकासाथ प(चभतू 1 का पर7पर सि*मIण ही प(चीकरण है। इस
ि यानसु ार पाच
ं भतू ो के येक के दो बराबर भाग करके उन-उन भतू 1 के आधे-आधे भाग1 म
अ(य-अ(य भतू 1 के आठव अश ं को िमला देने से प(चीकृ त महाभतू बनते ह। अथात् पृ_वी म के वल
आधा भाग पृ_वी का और अवशेष आधे म आकाश, वायु तेज तथा जल का 1/8 भाग
साधारणतया रहता है। इसी भाँित अ(य भतू 1 म भी अपना अधाश तथा शेष अ(य का आठवाँ भाग
रहता है।
100. तद
ु म-्
’िधा िवधाय चैकैकं चतुधा
&थमं पुनः।
"व"वेतरितीयांशैयvजनाप8च प8च ते।। इित।।
अ8वय-थमम् (येकं) ि&धा िवधाय, पनु ः एकै कं चतधु ा (िवधाय) 7व7वेSरि&तीयांशै योजनात् ते
प(च (एव) भवि(त।
श+दाथ
-येकम=् आकाश, पृिथवी, जल, वाय,ु अिlन इन पाँच1 महाभतू 1 म हर एक को। ि&धा
िवधाय=दो-दो भाग करके । चतधु ा िवधाय=चार-चार भाग करके । 7व7तेतरि&तीयांशःै =अपने-अपने
ि&तीय भाग 1/2 को छोड़कर अ(य1 के अश ं 1 म अपने अश
ं 1 के । योजनात् जोड़ने से। ते=वे
आकाशािद प(चमहाभतू । प(च=पाँच ही। प(च=प(चीकृ त हो जाते ह5।
अनवु ाद-इसी को यह काCरका इस कार कहती है- येक को दो समान भाग1 म िवभ करके पनु ः
पहले अधभाग1 को चार िवभाग1 म बाँटकर भतू 1 के येक अधभाग म अपने अशं को छोडकर
अ(य भतू 1 के अधाश का चौथा अथवा आठवाँ भाग िमिIत करने से पाँच (महाभतू ), पाँच ही हो
जातते ह5।
<या'या -इस काCरका को 7प% करने के िलये ’एक-एक Kपये का नोट (पाँच) पाँच Jयि य1 के
पास है यह कLपना करना अिधक अिचत है। येक Jयि अपने Kपये को अठि(नय1 म भनु ा ले
और एक-एक अठ(नी अपने पास रखकर दसू री अठ(नी कA चार दअ ु ि(नयाँ करा के उन चार1 को शेष
चार Jयि य1 को देद।े यही काम पाँच Jयि य1 ने िकया, अपनी-अपनी एक अठ(नी पास रखकर
दसू री अठ(नी कA चार1 दअ
ु ि(नय1 को चार1 को दे िदया। इस भाँित सबके पास (चार दअ ु (नीय1 के
Kप म आठ-आठ आने और आने कसे िफर एक-एक Kपया हो गया। इस तरह आकाशिद, पाँच
महाभतू 1 को अपना-अपना आधा िह7सा तथा शेष चार महाभतू 1 का आठवाँ भाग िमलाकर
प(चीकृ त महाभतू बनते ह5। 7ततु काCरका म यही बात िनिद% कA गई है;) यथा-
उतराखड म
ु िविवालय २१९
भारतीय दश
न MASL-103
पृnवी=1/2 पृnवी1/8 जल1/8 वायु1/8 आकाश।
। शड़्कराचाय कहते ह5-प(चमहाभतू ानाम् एकै कं ि&धा िवभजय चतधु ा कृ वा कृ वा 7वाधभाग
िवहाय इतरे षु प(चधा प(चीकृ तेषु प(चीकरणम् भवित।
101. अ"या&ामाXयं नाशड़्कनीयं ि0वृकरण ुतेः प8चीकरण"याSयुपल*णवात।् ।
अनुवाद-उपिनषद् के िवृकरण के प(चीकरण का उपलcण होने का कारण इस (पनचीकरण) के
ामाय मे आशक
ं ा नही करनी चािहए ।
<या'या – ि0वृ करण तु े : िवृकरण का अथ है भतू 1 मे तीन भतू ो का ही सि*मIण ।
प(चीकरण कA ामािणकता कA ितEठा कA सम7या का िनराकरण इस कार िकया गया है – तीन1
भतू ो का पर7पर सि*मIण बताने वाली Iिु त के वल िनदuशन मा है व7ततु : यह पं(चीकरण कA ओर
संकेत है । छा(दोlय उपिनषद मे थम अिlन , अिlन से जल तथा जल से पृथवी ् कA उपिS कहकर
इनके (येक के आधे तथा शेष दो के चतथु  भाग ) वृकरण &ारा ही सृि% कA उपिS कही गई है
– सेयं देवतै*त ह8ताहिममाि"त"0ो देवता अनेन जीवेनामानाऽनु&िवqय
नामLपेवयाकररवािण । तथा तासां ि0वृतं ि0वतृ मेकैकां करवािण इित सेयं देवतेमाि"त"0ो
देवता अनेनैव जीवेनामनाऽनु&िवqय नामLपे <याकरोत् ।
102. प8चानां प8चामकवे समानेिप तेशु च वैशे>याताद"ताद इित
‘8यायेनाकाशािद<यपदेश:’ सJभवित ।।
अनवु ाद-पॉच1 (भतू ो म) पॉच1 के समान भाग िमिIत होने पर भी येक म िवशेषाक
ं के आधार पर
ही उनके िलये आकाशािद (यायसगं त Jयवहार होता है।
103. तदानीमाकाशे श+दोिभ<य8@यते वायौ श+द"पशा
वQनौ श+द"पश
LपाXयSसु
श+द"पश
Lपरसा: पृिथवी मl श+द"पशL ं परसग8ध अिभ<यि8जत होते है।
अनुवाद- तभी प(चीकृ त दशा मे आकाश म शOद , वायु म शOद7पश, अिlन म शOद7पशKप, जल
म शOद7पशKरस तथा पृिथवी म शOद7पशKपरसग(ध अिभJयि(जत होते है।
Jया;या- अिभJयWत हMये प(चीक़त 7थल ू भतू 1 म मश: उपयWु त अिभJयि होती है।
104. एते$य- प8चीक़ते$य: भूते$यो भूभ
ुव: "वम
हज
न"तप: सयिमयेत8नामकानामुपयुपार
िवKमानानामतलिवतलसतु लरसातलतलातलमहातलपातालनाकानामधोधो िवKमानानां
लोकानां A}ाXड"य तद8तव
ित
ध"थू लशरीरराणां
तदुिचतानाम8नपानादीना8चोपितभ
वित।।
अनुवाद- इन प(चीकृ त महाभतू 1 से भ:ू भवु : 7व: मह:, जन:, तप:, तथा सयम् इयािद नामक ऊपर

उतराखड म
ु िविवालय २२०
भारतीय दश
न MASL-103
से भवु न1 का, अतल, िवतल, सतु ल, रसातल, तलातल, महातल तथा पाताल नामक नीचे के
िवमान लोक1 का Q”ाड और उसम ि7थत चतिु वध 7थल ू शरीर1 और उनके पोषणाथ अ(न
पानािदक1 का ादभु ाव होता है।
<या'या- 1. Q”ामड7य- चौदह लोक1 को चार1 ओर से घेरे हMए लोका-लोक पवत के भी बाहर
पृ_वी तथा उससे भी बाहर समZु ािद को िमलाकर Q”ामण कहा जाता है। जैसा िक
बृहदारणयकोपिनषद
् ् म कहा है-‘n&ािशतं वे देवरथा™ या(ययं लोक7तं सम(तं पृिथवN ि&7तावत्
पयuित तां सम(तं पृिथवN ि&7तावत् सम(ु Z: पयuित।
105. चतुिव
धशरीरािण तु जरायुजाXडजोि@ज"वेदजा'यािन।।
अनवु ाद- जरायजु , अडज, उिPtज तथा 7वेदज नामक चार कार के शरीर ह5।
<या'या- चतिु वध शरीरािण-अमरकोश भी इनका (चार कार के शरीर1 का उLलेख इस कार
करता है- ‘नृगवा । जरायजु :। 7वेदजा: कृ िमदश
ं ाा: पिcसपादयोडजा:) उिPद7तKगLु माा: ।
106. जरायुजािन जरायुभय_
् जातािन मन>ु यपqवादीिन।।
अनवु ाद-जरायु से उप(न होने वाले मनEु य, पशु आिद जरायुज ह5।
107. अXडजा8यXडे$यो जातािन पि*प8नगादीिन।।
अनवु ाद- अड1 से उप(न होने वाले ि&ज (पcी) तथा सपािद अडज ह5।
108. उि@जािन भूिममुिK जातािन लताव*
ृ ादीिन
अनुवाद- भूिम को उPेद कर उप(न होने वाले लता, वृcािद उिPtज है।
109. "वेदजािन "वेदे$यो जातािन यूकामशकादीिन।।
अनुवाद- पसीने से उप(न होने वाले जंू तथा मFछरािद 7वेदज ह5।
110. अ0ािप चतुिव
धसकल"थूलशरीरमेकानेकबिु 6िवषयतया वनव@जलाशय वा
समिव
ृ*व@@जवा <यिरिप भवित।।
अनवु ाद- यहॉ पर भी चतिु वध 7थल
ू शरीर, एकाव या अनेकव के Hान का िवषय होने के कारण
वन या सरोवर कA भॉित Jयि% भी कहे जाते है।
111. एतसम>टयु पिहतं चैत8यं वैqवानरो िवरािडयुFयते सव
नरािभमािनवाििवधं
राजमानवाFच।।
अनुवाद-यह समि% से उपCरह चैत(य, सवमं नEु यािभमानी तथा िविवध Kप से शोभायमान होने के

उतराखड म
ु िविवालय २२१
भारतीय दश
न MASL-103
कारण वैbवानर तथा िवराड् कहा जाता है।
<या'या- 1. सवनरािभमािनवाद-् अिभमानी शOद का वेदा(त म अिधEठाता अथ िकया जाता है।
पर नर शOद के वल मनEु य1 का ही नहN-यतु सम7त ािणय1 का उपलcणमा है तथा ‘सव’ शOद
से ‘िवbव ‘ अिभेत है सम7त ािणय1 के शरीर समहू म ‘यह म5 ह‹’ं इस भॉित अिभमान रखने के
कारण उसका वेbवानरव है।
112. अ"येषा समि: "थूलशरीरम8निवकारवाद8नमयकोश: "थूल भोगयतनवाFच
"थूलशरीरं जा\िदित च <यपिदqयते।।
अनवु ाद-इनकA यह समि% 7थल ू शरीर, (मात-िपता के खाये)अ(न (से उप(न होने के कारण) का
िवकार होने के कारण अ(नमयकोश, 7थल ू भोग का आIय होने के कारण 7थल ू शरीर तथा
(िवषयभोगी होने के कारण) जाVत् कहा जाता है।
<या'या-जाVत्-इि(Zय1 के &ारा िवषय1 कA ािD होने से इसकA जाVत् कहा जाता है। सबु ोिधनी
टीका भी इसी का समथन करती है-
’इि8;यैरथvपल+धेqच जा\दव"थावं घटतेा’
जागरणाव"था कW इसी प?रभाषा को शड्कराचाय
भी मानते ह। वे कहते हे-
‘इि8;यैरथvपलि+धजा
ग?रतम् ।‘
113. एतद् <य>टयु चैत8यं िवqव इयुFयते सूrमशरीरािभमातम-प?रय@य
"थूलशरीरािद&िव>टवात।् ।
अनवु ाद-(7थल ू शरीर1 कA) इस JयEटयपु ािध से उपिहत चैत(य, सoू म शरीर1 को िबना यागे ही
7थल ू शरीर1 म वेश करने के कारण िवbव कहलाती है।
<या'या-1.7थल ू शरीरािदिवEटवात्- यहॉ 7थलू शरीर के वाद आिद शOद िनरथक है, Wय1िक
शरीर के बाद अ(य कोई 7थल ू उपािध ही शेष नहN रहती। तथा िवEटवात। का अथ है स*पणू  शरीर
म रहने के कारण ही (जीव) िवbव कहलाता है।
2. िवqव- िवEटवात् तथा िवbव यिप दोन1 एक ही ‘िवश’् धातु से िनEप(न ह5 िक(तु िवEटवात्
कA ‘िवश’ धातु ‘िवbवभाव’ को नहN कहती है बिLक वह िवbव (स*पणू ) शरीर म अिभमानी होने
के कारण ‘िवbव’ कहलाती है।
114.अ"याSयेषा <यि: "थूलशरीरम8नयिवकारवादेव हेतोर8नमयकोश जा\िदित चोFयते।
अनुवाद- इसकA भी Jयि% 7थल ू शरीर, अ(निवकार होने के कारण अ(नमयकोश तथा जाVत कही
जाती है।
115.तदानीमेती,िवqववqवानरौिदQवाताक
वLणाि5िभ::माि8नयि80तेन‡ो0ादीि8;यप8च
के न:माFछ+द"पश
Lपरसग8धानामQनी8;ोपे8;यम&जापितिभ::माि8नयि80तेनवागादीि8;

उतराखड म
ु िविवालय २२२
भारतीय दश
न MASL-103
यप8चके न:माचनादानगमनिवसगा
न8दाqच8;चतुम
ुखशड्कराFयुतै::मासड्क]पिनqच
याहड्काय
चैतांqचसवा
नेता8"थूलिवशयाननुभवतो जाग?रत"थानो बिह:&: इयािद ुते:।।
अनवु ाद-उस समय म (जाVत अव7था म) िवbव और वैbवानर िदक्, वायु सयू , वKण तथा
अिनीकुमार1 से मश: िनयिमत Iोािद (Iो वक्, चcु िजŒा तथा }ाण) पाचं इि(दय1 से
मश: शOद, 7पश Kप, रस तथा ग(ध का तथा अिlन, इ(Z उपे(Z , यम और जापित &ारा म से
िनयिमत वाणी, हाथ पैर, वायु तथा च(Z, QRा, िशव तथा िवEणु &ारा मश: िनयि(त मन, बिु @,
अहड्कार और िचत नामक चार अ(तCरि(Zय1 से मश: सड्कLप िनbचय, गव, 7मरणKपी सब
7थलू िवषय1 कA अनभु िू त करते है। इस समय म िन*न Iिु तवचन माण ह5-‘जाVत् अव7था यWु त
(चैत(य) ही QR िवषय1 से अवगत है।
<या'या -1. िदlवाताक वKणाििभ:- भागवत् म बताई गई कLपना के अनसु ार इि(Zय1 के
अिभमानी देवता कA कLपना मानी गई है।‘
116.अ0ाSयनय_:"थूल<यिसम>टयो"तदुपिहतिववqवैqवानरयोqच
वनवृ*वतदिFछ8नाकाशवचच जलाशयजलवतŠत&ितिबJबाकाशवFच पूव
वदभेद:।।
अनवु ाद-यहॉ पर भी इन दोन1 7थल
ू Jयि% ओर समि% म तथा इन दोन1 से उपिहत िवbव और
वैbवानर म वन और वृc तथा उससे आFछ(न आकाश के समान एवं जलाशय व तथा जल उसम
ितिबि*बत आकाश कA तरह पवू wLलेख के अनसु ार ही अिभ(नता है।
<या'या- िवbव तथा वैbवानर Kप 7थल ू शरीर1 के आकृ Eट चैत(य Hानेि(Zय कमेि(Zय तथा
अ(त:करण1 के &ारा 7थल ू िवषय1 का भोग करता है। इन दोन1 ‘म’ भी भेद के वल उपािधय1 के &ारा
Hात होता है। तािवक व7तु तो दोन1 म वही एक चैत(य है।
117. एवं प8चीकृतप8चभूते$य: "थूल&प8चोपि2:।।
अनवु ाद- इस कार प(चीकृ त पॉच महाभतू 1 से 7थलू प(च उप(न होता है।
Jया;या- इस कार कारण, सoू म तथ 7थल ू प(च1 के एक yि% के िवषय होने से समि% Kप म एक
महान प(च होता है। इन प(च1 म रहने वाले, ‘ईbवर-ाH’ं ‘सू ामा-तैजस’् तथा ‘वैbवानरिवbव‘
इन सब म कोई वा7तिवक भेद नहN है। देखने म जो भेद है, वह के वल उपािधय1 के कारण है।
अ$यास &qन-

एक शOद म उतर दीिजए।


1. सां;यमत म सoू म शरीर के िकतने अवयव है-
2. वेदा(तमत म सcू म शरीर के िकतने अवयव है-

उतराखड म
ु िविवालय २२३
भारतीय दश
न MASL-103
3. िलंग शरीर िकसे कहते ह5-
4. महद और आकाश िकसके मत म अवयव माने जाते ह5-
5. Hानेि(Zय1 कA स;ं या िकतनी है-
6. }ाण कौन सी इि(Zय है-
7. अिभमान करने वाली अ(तकरण कA वृिS कौन है-
8. अनसु (धान कतw वृिS कौन है-
9. बिु @ और Hानेि(Zय को िमलाने से कौन सा कोश बनता है-
10. पॉच Hानोि(Zय को मन से िमलाने पर कौन सा कोश बनता हे-
11. वायु कौन सी इि(Zय है-
12. िन*न गमन वाली वायु कहलाती है-
13. कड7थानीय वायु कौन सी है-
14. भोजन पCरपाक कA वायु कौन सी है-
15. अन(तं वै मनोअन(ता िवbवेदवा: यह कथन िकसका है-
16. िवHानमय, मनोमय और ाणमयकोश को िमलाकर Wया बनता है-

5.5 सारांश
इ(ही के &ारा सoू म शरीर एवं 7थल
ू भतू कA उपिS हMआ करती है। सoू मशरीर कहे जाते ह5।
उन (आकाश आिद प(चमहाभाू तो) म जाडय (जड़ता-अचैत(य) कA अिधकता साcात् दीख पडती
है, अतः उनके कारण7वKप अHान म भी जडता होना 7वाभािवक है। जड़ता तमोगणु का धम होन
के कारण जैसा िक सां;यकाCरका कहती है (गK ु वरणकमेव तमः)अHान तमोगणु धान होता है।
रामतीथ के कथनानसु ार ’अिधWय’ पद भतू ो (आकाश आिद) और उनके कायw म चैत(य कA भी
अLपोपि7थित को सिू चत करता है। वाWयसधु ा ’ 7प% कहती है-
’अि"त भाित ि&यम् Lपम् नाम चेयंशप8चकम।्
अK0यं Aहा्रLपं जग;ूपं ततो ,यम।् ।
ये ही सoू मभतू त(माा और अप(चीकृ त कहे जाते ह5। जरायु से उप(न होने वाले मनEु य, पशु आिद
जरायजु ह5।
अड1 से उप(न होने वाले ि&ज (पcी) तथा सपािद अडज ह5। भिू म को उPेद कर उप(न होने वाले
लता, वृcािद उिPtज है। पसीने से उप(न होने वाले जंू तथा मFछरािद 7वेदज ह5। इस इकाई के
पbचात आप महाभतू ो कA उपिS से जडु ् े हMए सम7त त_य1 को बताते हMए पच ं ीकरण के िवधान का
7पEट Hान करा सके ग।

उतराखड म
ु िविवालय २२४
भारतीय दश
न MASL-103

5.6 शबदावल

िवqव- िवEटवात् तथा िवbव यिप दोन1 एक ही ‘िवश’् धातु से िनEप(न ह5 िक(तु िवEटवात्
कA ‘िवश’ धातु ‘िवbवभाव’ को नहN कहती है बिLक वह िवbव (स*पणू ) शरीर म अिभमानी होने
के कारण ‘िवbव’ कहलाती है।
जा\ासनामयवा"वSनः-जागरण अव7था के िवषयानभु ाव1 Kपी वासनाओ ं से बने होने के
कारण िचS म वासनाय ही 7व~न को उप(न करती है- इसी कारण 7व~न के वल वासनामय होता है।
इस सoू मशरीर को भी जागरणाव7था के िवषयानभु वKप वासनाओ ं से उप(न होने के कारण ’7व~न’
कA जाता है।
ि0वृकरण तु े : िवृकरण का अथ है भतू 1 मे तीन भतू ो का ही सि*मIण । प(चीकरण कA
ामािणकता कA ितEठा कA सम7या का िनराकरण इस कार िकया गया है – तीन1 भतू ो का पर7पर
सि*मIण बताने वाली Iिु त के वल िनदuशन मा है व7तुत: यह पं(चीकरण कA ओर संकेत है

5.7 अयास 
न के उतर
1. अठारह 2. सह 3. सoु म शरीर 4. सां;य 5. पॉच 6.
Hानेि(Zय
7. अहक
ं ार 8. िचत 9. िवHान मय 10. मनोमय 11. कमuि(Zय 12.
अपान
13. उदान 14. समान 15. बृहदारयक 16. सoु म शरीर

5.8 स%दभ# $%थ सच


ू ी

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सांदाियक भाEय;
• राधाकृ Eणन् : इिं डयन िफलासफA, भाग 1-2;
• दासगDु : िह7टरी ऑव इिं डयन िफलासफA, भाग1
• वेदा(तसार – सदान(द योगी(Z चौख*भा काशन वाराणसी

उतराखड म
ु िविवालय २२५
भारतीय दश
न MASL-103

5.9 सहायक उपयोगी पा)य साम$ी

• उपिनषद;् भगवTीता; गौडपादकाCरका; QRसू ;


• उपिनषTीता और QRसू पर सांदाियक भाEय;

5.10 *नब%धामक 

1- सoू म शरीर के अवयव पर काश डािलए।


2- भतू ोपिS पर काश डािलए।
3- पंचीकरण ि या कA िववेचना कAिजए।

उतराखड म
ु िविवालय २२६
भारतीय दश
न MASL-103

 4- #$   7 <

उतराखड म
ु िविवालय २२७
भारतीय दश
न MASL-103

 1- #$%   ह


1.1 तावना
1.2 उे

1.3 जैन मत का पGरचय
1.3.1 ारिDभक इितहास
1.3.2 $ेताDबर
1.3.3 िदगDबर
1.4 जैन सािहय एवं उनके काल
1.4.1 आगम काल
1.4.2 अनेका(त थापनकाल
1.4.3 माण >यवथाकाल
1.4.4 नवीन (यायकाल
1.5 जैन दाश5िनक 6(थ एवं 6(थकार
1.5.1 $ेताDबर 6(थ एवं 6(थकार
1.5.2 िदगDबर 6(थ एवं 6(थकार
1.5.3 कुछ िसE दाश5िनक1 का संि,C पGरचय
1.6 सारांश
1.7 श-दावली
1.8 अ3यास 01 के उ4र
1.9 स(दभ5 6(थ सचू ी
1.10 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय २२८
भारतीय दश
न MASL-103

1.1 तावना
भारतीय दशन के तृतीय खड कA इस थम इकाई म आपकA आवbयकता को 3यान म रखकर
जैनमत का इितहास 7ततु िकया जा रहा है। इस म म यथास*भव यास िकया गया है िक
अपेिcत सारी सचू नाए◌ॅ◌ं 7ततु कA जाए◌ॅ◌ं। एतदथ उनके काल का िवभाजन, V(थ एवं
V(थकार, दाशिनक आिद का स*यक् िववेचन यहॉं 7ततु िकया जा रहा है।
आशा है आप इससे अवbय ही लाभाि(वत ह1गे। इस स(दभ म सवथम इस पाठ के िवचारणीय
िब(दु यहॉं िदये जा रहे ह5।

1.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप -

• बता सक गे िक पर*परा चिलत िवचारधारा के िवरोधी जैन दशन कA ाचीन पर*परा Wया
रही है?
• समझ सक गे िक सामा(यतया जैन दशन के काल का िनधारण िकस कार िकया गया है
तथा ये काल Jयव7था िकन िकन महवपणू  िवषय1 को लoय बनाती ह5?
• यह भी जानकारी िमल पाएगी िक जैन िवचारधारा के धान V(थ एवं V(थकार कौन ह5 तथा
जैन दशन को उनका योगदान Wया है?

1.3 जैन मत का प4रचय


भारतीय दाशिनक स*दाय1 का वतन, जो सां;य, योग, (याय, वैशिे षक, जैन, बौ@ भृित नाम1 से
अिभिहत हMआ, िविभ(न वैचाCरक ाि(त कA पCरणित है। उनम से येक कA मौिलक िवचारधारा है।
यही िवचारधारा इ(ह पार7पCरक िच(तन से पृथक् करता है। जैन दशन इसका अपवाद नहN है।
व7ततु ः जैन दशन िच(तन अपने ाि(तकारी िवचार1 के कारण न के वल अशेष भारत युत समV
िव म सार को ाD हMआ।
भारतीय दशन के इितहास म जैनदशन का िवशेष महjव है। चावाक और बौ@ दशन के साथ ही,
भारतीय िवचारधारा कA नाि7तक पर*परा म पCरगिणत यह तृतीय दाशिनक स*दाय है िज(ह1ने
वैिदक कमकाएड का बल िवरोध िकया। जैन दशन ऐितहािसक yि% से बौ@ दशन कA अपेcा
अिधक ाचीन है। ई0 प0ू छठी शताOदी म वैिदक धम और यH यागािद के िति या7वKप दो
धािमक ाि(तय1 का सू पात हMआ िजनका नेतृ व गौतम बु@ तथा महावीर 7वामी ने िकया। बौ@

उतराखड म
ु िविवालय २२९
भारतीय दश
न MASL-103
दाशिनक िच(तन कA ही भॉंित जैन दाशिनक णाली भी मल ू तः एक धािमक िवास से स*ब@ है।
जैन मत का म;ु य उेbय अनेका(त िस@ा(त के आधार पर िविभ(न मत1 का सम(वय करना है। दशन
िच(तन म यह अनेका(त सापेcतावादी बहMववाद के Kप म िस@ हMआ ।
1.3.1 &ारिJभक इितहास –
महावीर 7वामी भारतीय दशन कA जैन पर*परा के सू धार ह5। उLलेखनीय है िक महावीर 7वामी जैन
धम दशन के वतक नहN थे। वे इस दशन कA पर*परा म आने वाले चौबीसव तीथ\कर थे। इस धम के
तीथ\कर1 म थम नाम ऋषभदेव का ाD होता है तथा तेईसवॉं नाम पानाथ का। थम तीथ\कर
ऋषभदेव का कालिनधारण किठन है। यह कहना भी किठन है िक ारि*भक बाईस तीथ\कर का
काल Wया रहा होगा। िक(तु तेईसव तीथ\कर पानाथ िन7स(देह ऐितहािसक Jयि थे तथा वे
आठवN या नवN शताOदी ई0पवू  म हMए थे। इ(ह1ने ही पंच महा…त म एक अपCरVह के मल ू भतू
िस@ा(त का ितपादन िकया था। बाद म भगवान् महावीर ने इसम QRचय को जोड़ा। अि(तम व
चौबीसव तीथ\कर व@मान महावीर छठी शताOदी ई0प0ू म हMए थे तथा ये ब@
ु के समकालीन थे।
जैन दशन अथ वा धम म ाD होने वाले ‘जैन’ शOद का उöव ‘िजन’ शOद से हMआ है। जो अपने को
अथात् अपनी इि(Zय1 को जीतता है, अपने वश म कर लेता है, अथ वा संयिमत कर लेता है, वह
‘िजन’ है। िजन कोई ईरीय अवतार नहN है यतु िजसने अCरषड्वग अथात् काम, ोध, मद,
मसर, लोभ, मोह, माया आिद को स*पणू  Kप म जीत िलया हो वही िजन कहलाता है। इसी ‘िजन’
के अनयु ायी ‘जैन’ कहलाते ह5। िजन शOद सामा(यतः महावीर के िलये य
ु होता है, जो इस धम
के महSम व ा थे।
3यातJय है िक जैन धमशाf के इितहास म महावीर7वामी को कई नाम1 से जाना जाता है। ये नाम
उनके Jयवहार व आचरण को पCरभािषत करने के िलये िवकिसत हMए। बौ@ िनकाय म उ(ह ‘िनगठ
नातपSु ’ (िनV(थ Hातृपु ) कहा गया है। राग&ेषािद िवजय के कारण महावीर और वीतराग ह5।
ठस कार जैन दशन िजन तीथ\कर1 के &ारा वितत दशन है। इनके अनसु ार ये तीथ\कर ही अहत् ह5।
इसिलये ये अहत् इनके ईर माने जाते ह5। अ(य उLलेख भी ाD होता है िक-
सव
ो िजतरागािददोष~ैलोRयपिू जतः।
यथाि"थताथ
वादी च देवाऽह
न् परमे>वरः।।
इसी आधार पर जैन को आहत तथा जैन दशन को आहत दशन भी कहा जाता है।
अ(य भारतीय दशन कA तरह ही जैन दशन िच(तन कA समृ@ पर*परा रही है। इसके वतक ऋषभदेव
थे िज(ह वैिदक काल का माना जाता है। िक(तु इस िच(तन को सवथा दाशिनक Kप दान करने

उतराखड म
ु िविवालय २३०
भारतीय दश
न MASL-103
वाले भगवान् महावीर थे। जैनदशन कA मा(यता के अनसु ार जैन दशन कA पर*परा अनािदकाल से
वािहत होती चली आ रही है। आिद तीथ\कर ऋषभदेव से लेकर महावीर 7वामी पय(त जैनधम एवं
दशन का पणू  िवकास हMआ है। जो लोग जैन दशन को सवाचीन नहN मानते उ(ह कम से कम इसे
उतना तो मानना ही होगा िजतना ाचीन अ(य भारतीय दशन है।
महावीर 7वामी के अन(तर कई आचाय हMए ह5 िज(ह1ने जैन दशन को नतू न yि% दी है। उमा7वाित,
कु(दकु(दाचाय, सम(तभZ, िस@सेन िदवाकर, अकलंक, हCरभZ, िवानि(द, मािणWयनि(द,
भाच(Z, मािणWयनि(द, अन(तवीय, यशोिवजय वािददेवसCू र, हेमच(Z, मिLलषेणािद आचाय^ ने
इस मत के िवकास म महjवपणू  योगदान िदया है।
जैनदशन म दो स*दाय1 का उLलेख ाD होता है। ऐसा माना जाता है िक यह िवभाजन ईसा कA
पहली शताOदी म ही हो गया था। ये दोन1 स*दाय ह5- ेता*बर और िदग*बर। यिप जैनमत म
कितपय िब(दओ ु ं का ार*भ से ही िववाद था, िक(तु महावीर 7वामी कA मृयु के बाद भZबाहM तथा
7थलू भZ के म3य िववाद के कारण ही जैन धम िदग*बर एवं ेता*बर स*दाय1 म िवभािजत हो
गया। भZबाहM के अनयु ायी िदग*बर कहलाये तथा 7थल ू भZ के अनयु ायी Eवेता*बर।
1.3.2 ेता*बर- यहॉं ेता*बर का अथ है ेत वfधारी तथा िदग*बर का अथ है िनवf अथ वा
आकाश को ही वf मानने वाला। इन दोन1 स*दाय1 का अ(तर मताVह का उतना नहN था िजतना
आनvु ािनक ि याकलाप1 का। दसू रे शOद1 म, जैनधम के दोन1 स*दाय1 म िववाद दाशिनक
िस@ा(त1 पर कम नैितक िस@ा(त1 पर अिधक था। जहॉं तक आधारभतू दाशिनक िस@ा(त1 का
स*ब(ध है, उनम सामा(यतः सहमित है।
1.3.3 िदगJबर –
िदग*बर आचरण पालन म अिधक कठोर थे, ेता*बर कुछ उदार थे। िदग*बर स*दाय के अनसु ार
मलू आगम V(थ न% हो चक ु े ह5, ‘के वल Hान’ ाD करने पर िस@ पpु ष को भोजन कA आवbयकता
नहN होती, जो साधु अपने पास कुछ भी स*पिS, िजसम वf धारण भी आ जाता है, रखते ह5, उ(ह
मोc नहN ाD हो सकता एवं िfयॉं मोc कA अिधकाCरणी नहN ह5। ये महावीर को भी नlन Kप म
7ततु करते ह5। इस मत के अनयु ायी महावीर को अिववािहत तथा आज(म QRचारी मानते ह5।
ेता*बर स*दाय म िfयॉं भी मोc कA अिधकाCरणी ह5। इनके अपने आगम V(थ ह5 तथा ये महावीर
को िववािहत मानते ह5।
अ$यास &.
1. जैन धम दशन के वतक थे
(क) महावीर 7वामी (ख) पानाथ

उतराखड म
ु िविवालय २३१
भारतीय दश
न MASL-103
(ग) ऋषभदेव (घ) भगवान् ब@

2. जैन दशन म िजन का अथ है
(घ) जीवन को जीतने वाला (ख) महावीर को जीतने वाला
(ग) ाण को जीतने वाला (घ) इि(Zय को जीतने वाला
3. 7थल
ू भZ के अनयु ायी Wया कहलाये-
(क) ेता*बर (ख) महावीर
(ग) िदग*बर (घ) जैन
4. िfयॉं मोc कA अिधकाCरणी नहN ह5, ऐसा मानना है-
(क) ेता*बर का (ख) महावीर का
(ग) िदग*बर का (घ) 7थल
ू भZ
5. महावीर को ‘िनगठ नातपSु ’ (िनV(थ Hातृपु ) कहा गया है
(क) आगम म (ख) बौ@ िनकाय म
(ग) तवाथसू म (घ) भगवती सू म

1.4 जैन साKहय एवं उनके काल


जैन सािहय के अनसु ार आरंभ म दो ही कार के पिव V(थ थे- चौदह पवू  तथा lयारह
अगं । इनम से थम कार के सभी V(थ अतं तः िवलDु हो गये। अगं जो बचे रहे वे ही जैनधम के
ाचीनतम V(थ ह5। इनको भी ेता*बर स*दाय वाले ही ामािणक मानते ह5। िदग*बर स*दाय
वाल1 कA मा(यता है िक ये भी न% हो गये थे और उनके नाम से जो अब चलते ह5, वे िम_या ह5।
अ7त,ु जैन दशन के समV ाD सािहय को ऐितहािसक िवकास म कA yि% से चार काल1 म
िवभ िकया जा सकता है -
(1) आगम काल (िव. छठी शताOदी तक)
(2) अनेका(त 7थापनकाल (िव. तीसरी से आठवN तक)
(3) माण Jयव7थाकाल (आठवN से सहवN तक)

उतराखड म
ु िविवालय २३२
भारतीय दश
न MASL-103
(4) नवीन (यायकाल (अठारहवN से अपय(त)
3यातJय है िक पवू क
 ाल म उSरकाल के िवचार बीज वतमान है तथा पLलवन कA yि% से उ काल
को यहॉं समझा जाना चािहए।
1.4.1. आगम काल –
इस यगु के अ(तगत जैन दशन के दोन1 स*दाय1 के आगम सािहय आते ह5। जैन सािहय दो भाग1
म िवभ है- आगम एवं आगमेतर। सािहय का ाचीनतम भाग आगम कहलाता है ऐसा माना
जाता है िक आगम1 कA िवषय व7तु चौबीसव तीथ\कर महावीर कA वाणी है व7ततु ः ये आगम V(थ
जैन पर*परा म वेद कA तरह ही मा(य है। ये आगम सािहय ेता*बर और िदग*बर yि% से पृथक्
पृथक् ह5। ेता*बर के अनसु ार साधारणतः प5तािलस V(थ ह5। इनम दशन से स*ब(ध रखने वाले V(थ1
म भगवती सू , सू कृ तांग, Hापना, राजhीय, न(दी, 7थानांग, समवायांग, अनयु ोग&ार आिद ह5।
आचार से स*बि(धत V(थ आचारांग, दशवैकािलक, उपासकदशा, आवbयक आिद ह5। इन आगम
V(थ1 पर कई टीकाए◌ॅ◌ं िलखी गयी ह5।
िदग*बर1 के अनसु ार मख
ु आगम V(थ षट्खडागम, कषायपाहMड़, महाब(ध, वचनसार,
पंचाि7तकायसार, समयसार, िनयमसार आिद ह5। इनम Hान, कम आिद का अय(त ग*भीरता से
िव|े षण िकया गया है।
व7ततु ः जैनदशन के म;ु य 7त*भ1 के न के वल बीज ही अिप तु िववेचन भी इन आगम1 से ही िमलते
ह5।
1.4.2. अनेका8त "थापनकाल –
यह काल जैन दाशिनक िवचारधारा कA ारि*भक शृख ं ला है। इसी काल म नय, सDभगं ी, 7या&ाद
आिद िस@ा(त का वतन हMआ। इस काल के िस@ व मख ु दाशिनक ह5 िस@सेन िदवाकर एवं
सम(तभZ। इस काल के अ(य दाशिनक1 मLलवादी, िसहं गिण, पाके सरी, IीदS आिद उLले;य ह5।
इस काल म सै@ाि(तक एवं आगिमक पCरभाषाओ ं तथा शOद1 कA दाशिनक िववेचन का महान् काय
हMआ। साथ ही, िस@सेन िदवाकर एवं सम(तभZ ने परमत के हार से बचाने के िलये तथा अपने वाद
को और अिधक yढ़ करने के महjवपणू  काय का ार*भ िकया। िस@सेन के स(मिततक एवं
(यायावतार म नय, 7या&ाद, अनेका(तवाद, माण, Hान आिद कA समिु चत Jया;या है। सम(तभZ के
V(थ आDमीमासं ा, यWु यनश
ु ासन आिद म भी जैन िस@ा(त1 का स*यक् ितपादन हMआ है।
1.4.3 &माणशा~ <यव"था काल
यही वह काल है िजसम जैन दाशिनक िवचारधारा का बीज वपन हMआ। इसी काल म तक , माण,

उतराखड म
ु िविवालय २३३
भारतीय दश
न MASL-103
मेय आिद िवषय1 पर सिव7तर पCरचचा हMई है। इस काल के मख ु दाशिनक हCरभZ, िजनभZ एवं
अकलंक है। इनम हCरभZ ने अनेका(त, अकलंक ने माणशाf तथा िजनभZगिण ने अनेका(त एवं
नय के िववेचन म महjवपणू  योगदान िदया। इ(ह1ने उस समय के चिलत सभी वाद1 का नय yि% से
जैनदशन म सम(वय िकया तथा सभी वािदय1 म पर7पर िवचार सिहEणतु ा तथा समता लाने का
यन िकया। अनेका(तिवजयपताका, षड्दशनसमFु चय, शाfवातासमFु चय, लघीयfय,
(यायिविनBय, िसि@िविनBय आिद इस काल के मख ु V(थ ह5। अ(य मख ु दाशिनक1 म
िवानि(द, मािणWयनि(द, भाच(Z, हेमच(Z आिद मख ु ह5।
1.4.4. नवीन 8याय काल –
(याय दशन कA ही भॉंित जैन दशन पर*परा म नJय(याय कA नतू न िवधा का िव7तार देखा जा सकता
है। इस काल म जैन दशन िच(तन cे म नतू न िच(तन एवं नयी प@ित से िवचार िवमश हMआ। इस
काल के मख ु दाशिनक यशोिवजय ह5। उ(ह1ने नJय(याय कA पCरEकृ त शैली म उस यगु तक के
िवचार1 का सम(वय तथा उ(ह नJय ढगं से पCरEकृ त करने का आ और महान् यन िकया। इस
काल के मख ु दाशिनक V(थ1 म अ%साहŠीिववरण, अनेका(तJयव7था, जैनतक भाषा,
सDभगं तरंिगणी, नयोपदेश, भाषारह7य आिद उLलेखनीय ह5। व7ततु ः (याय दशन के &ारा वितत
इस नतू न िच(तन शैली को भी इस दशन ने उसी Kप म अपनाकर जैन कA तक पर*परा को अय(त
समृदध िकया।
अ$यास &.

1. जैन धम के ाD ाचीनतम धम V(थ ह5-


(क) पवू  (ख) आगम
(ग) अगं (घ) सू
2. सािहय का ाचीनतम भाग कहलाता है
(क) प◌
ू ूव (ख) अंग
(ग) सू (घ) आगम
3. िकस काल म नय, सDभगं ी, 7या&ाद आिद िस@ा(त का वतन हMआ-
(क) आगम काल (ख) माण Jयव7थाकाल
(ग) अनेका(त 7थापनकाल (घ) नवीन (यायकाल

उतराखड म
ु िविवालय २३४
भारतीय दश
न MASL-103
4. मख
ु दाशिनक यशोिवजय िकस काल म हMए
(क) आगम काल (ख) माण Jयव7थाकाल
(ग) अनेका(त 7थापनकाल (घ) नवीन (यायकाल
5. षड्दशनसमFु चय कA रचना िकस काल म हMई?
(क) आगम काल (ख) माण Jयव7थाकाल
(ग) अनेका(त 7थापनकाल (घ) नवीन (यायकाल
इन सािहय1 का कालानसु ार संिcD िववरण इस कार है-

1.5 जैन दाश#*नक $%थ एवं $%थकार


जैन दशन के स*दाय कA तरह ही इसके V(थ एवं V(थकार1 का भी वगmकरण दो भाग1 म
यहॉं िकया जा रहा है।
1.5.1 5ेताJबर \8थ एवं \8थकार
V(थकार काल V(थ
उमा7वाित िव0 तीसरी शताOदी तjवाथसू
िस@सेन िदवाकर िव0 पॉंचवN शताOदी(यायावतार&ाििं शकाएसं (मिततक करण
मLलवािद िव0 छठी शताOदी नयच स(मिततक टीका
हCरभZ िव0आठवNशताOदी
अनेका(तवादवेशषड्दशनसमFु चयशाfवातासमFु च(यायवेशटीका
धमसंVहणी
वािददेवसCू र िव0 बारहवN शताOदी माणनयतjवालोकालक
ं ार
7या&ादरनाकर
हेमच(Z िव0 बारहवN शती अ(ययोगJयवFछे द&ािंिशका
रनभसCू र िव0 तेरहवN शताOदी 7या&ादरनावताCरका

उतराखड म
ु िविवालय २३५
भारतीय दश
न MASL-103
देवभ िव0 तेरहवN शताOदी माणकाश
नरच(ZसCू र िव0 तेरहवN शताOदी (यायक(दलीटीका
मिLलषेण िव0 चौदहवN शताOदी 7या&ादमजं री
गणु रन िव0 प(ZहवN शताOदी तक रह7यदीिपका
यशोिवजय िव0 सहवN शताOदी अ%सहŠीिववरण
3.1.4.2 िदगJबर \8थ एवं \8थकार
उमा7वाित िव0 तीसरी शताOदी तjवाथसू
सम(तभZ िव0 चौथी-पॉंचवN शताOदी आDमीमासं ा
िस@सेन िदवाकर िव0चौथी-पॉंचवN शताOदी &ािंिशकाएसं (मिततक करण
देवनि(द िव0 चौथी-पॉंचवN शताOदी सारसंVह
IीदS िव0 छठी शताOदी जLपिनणय
समु ित िव0 छठी शताOदी स(मिततक टीका
समु ितसDक
अकलंकदेव िव0 सातवN शताOदी लघीयfयी
(यायिविनBय
माणमीमासं ा
अ%शती
िस@िविनBय
तवाथराजवाितक
कुमारनि(द िव0 आठवN शताOदी वाद(याय
अन(तवीय िव0 नवN शताOदी िसि@िविनBयटीका

उतराखड म
ु िविवालय २३६
भारतीय दश
न MASL-103
िवान(दी अ%साहŠी
जैन|ोकवाितक
आDपरीcा
माणपरीcा
पपरीcा अन(तकAित िव0 दसवN शताOदी बृहसवHिसि@लघसु वHिसि@
देवसेन 990 वी0 आलापप@ित
वसनु ि(द िव0 दसवN-lयारहवN शताOदी आDमीमासं ावृिS
मािणWयनि(द िव0 lयारहवN शताOदी परीcामख

वािदराजसCू र िव0 lयारहवN शताOदी (यायिविनBयिववरण
माणिनणय
भाच(Z िव0 lयारहवN शताOदी मेयकमलमातड
(यायकुमदु च(Z
अन(तवीय िव0 बारहवN शताOदी मेयरनमाला
3.1.5 कुछ &िस6 दाश
िनक_ का सिं *T प?रचय
यिप अVांिकत आचाय^ का संगवश उLलेख पवू  म कई बार आ चक
ु ा है पनु रिप यहॉ उन िस@
दाशिनक1 का मशः उनका पCरचयामक िववरण 7ततु िकया जा रहा है-
कु(दकु(दाचाय
ये जैन दशन के अित ाचीन आचाय थे। इनकA गणना साcाकृ तधमा ऋिषय1 म होती है।
मिLलषेणशि7त म अिं कत ाचीन आचाय^ कA नामाविल म इनका नाम सवथम है। इस yि% से
इनका समय िव म कA थम शताOदी तीत होता है। ये िदग*बर पर*परा के आचाय थे। इ(ह1ने
अनेक V(थ1 कA रचना कA है िजनम िनयमसार, पंचाि7तकायसार, समयसार तथा वचनसार मख ु
ह5। पनु रिप इनकA रचनाओ ं के िवषय म पर*परागत कथन यह पाD होता है िक उ(ह1ने चौरासी पाहMड़
V(थ1 कA रचना कA थी। इनकA सारी रचनाए ाकृ त म है। ये तjव1 कA पणू K
 पेण Jया;या कर पाने म
सcम ह5।

उतराखड म
ु िविवालय २३७
भारतीय दश
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भ;बाहc- ये जैन दशन के ारि*भक V(थकार ह5। इनका समय िनधाCरत नहN है। इ(ह अनेक धमV(थ1
का टीकाकार माना जाता है। इनम से दशवैकािलकिनयिु नामक टीका म वे तक शाf कA कितपय
शाखाओ ं का िववेचन करते ह5। उ(ह1ने दस वाWय1 वाली (याियकA रचना कA तथा उ(ह सिु व;यात
जैनिस@ा(त का मल ू वतक माना जाता है।
उमा"वाित
ये मगध के देश के रहने वाले थे। कुछ िव&ान् उनका काल 135-219 ई0 मानते ह5 तो कुछ अ(य
01-85 ई0। ये उमा7वाित तथा उमा7वािमन् दोन1 नाम से िस@ ह5। इ(ह1ने ’तjवाथसू ’ अथ वा
‘तjवाथािधगमसू ’ नामक V(थ कA रचना कA। इसे जैिनय1 का अय(त पिव व धािमक V(थ माना
जाता है। स7ं कृ त भाषा म V(थ1 कA रचना करने वाले थम जैन िव&ान् थे। जैन दशन के Jयवि7थत
ितपादन का मख ु Šोत उ V(थ को ही माना जाता है। उ रचना म लगभग तीन सौ पचास सू
ह5 तथा यह दस अ3याय1 म िवभ है। इस पर अनेक जैन िव&ान1 ने भाEय िलखे ह5। जैन दशन कA
सभी परवतm Jया;याए◌ॅ◌ं इसी पर आधाCरत ह5। यिप यह मल ू तः दशन का V(थ है तथािप
ाचीन भारतीय िच(तन के इितहास के सामा(य अ3ययन के िलये भी महjवपणू  है Wय1िक इसम
मनोिवHान, धममीमांसा, खगोलशाf, भौितकA, रसायन एवं अ(य िवषय1 पर भी जैन yि%कोण से
िवचार िकया गया है।
सम8तभ;
ये दिcण भारत के िदग*बर स*दाय के जैनाचाय थे। ये उमा7वाित कA उपरो रचना के
टीकाकार के Kप म भी िस@ ह5। ये जैन दशन के सवमा(य आचाय कहे जाते ह5। इनके सवािधक
मख ु V(थ ह5 आDमीमांसा, तjवानसु (धान आिद। इनका समय िव म कA तीसरी-चौथी शताOदी
मा(य है। अनेका(त के बीज को िवकिसत करने म इनकA मख ु भिू मका रही है। इनके समय म
भावैका(त, अभावैका(त, िनयैका(त, अिनयैका(त, भेदकै ा(त, अभेदकै ा(त आिद अनेक एका(त1
का ाबLय था। सम(तभZ ने इन सम7त एका(त1 का 7या&ाद yि% से सम(वय िकया है। इनकA
आDमीमांसा, जो िक पCरचयामक है◌ै, म तािक क िस@ा(त1 के िववेचन कA भरमार है, साथ ही
अ&ैतवाद सिहत अ(य तकालीन दाशिनक णािलय1 कA समीcा भी है। वाच7पित िमI ने भामती
म इसके उ@रण िदये ह5।
िस6सेन िदवाकर
लगभग पॉंचवN शताOदी म अनेक जैन िव&ान् हMए िज(ह1ने बड़ी pिच एवं उसाह के साथ
7वयं को तक शाf के अ3ययन के िलये समिपत िकया। उ(हN म से एक थे िस@सेन िदवाकर। ये
उtजियनी के शासक िव मािदय के समकालीन थे। ये िदग*बर तथा ेता*बर दोन1 आ*नाय1 म
िस@ हMए। ये व7ततु ः जैन (याय के आचाय थे। इनके िलखे हMए इWकAस V(थ ाD होते ह5 िजनम

उतराखड म
ु िविवालय २३८
भारतीय दश
न MASL-103
स(मिततक करण अय(त िस@ है। यह ाकृ त म िलखी गयी रचना है इसम सामा(य दशन एवं
तक शाf के िस@ा(त1 कA िववेचना कA गयी है। इनकA एक अ(य रचना है (यायावतार। इस V(थ से
ही जैन तक शाf कA आधारिशला का िनमाण हMआ। यह सं7कृ त म िलखी गयी बSीस प1 कA एक
लघु रचना है। इसके अितCर इनके कLयाणमि(दर7तो तथा कुछ &ाििं शकाएं भी ाD होती ह5।
िस6सेनगिण
इस ेता*बर स*दाय के आचाय का समय छठी शताOदी मानी जाती है। ये तक शाf के िवकास
करने वाल1 म अVणी थे। इ(ह1ने उमा7वाित के तjवाथािधगमसू पर एक उFच कोिट कA Jया;या
िलखी है। आचारांगसू वृिS, (यायावतार आिद इनकA अ(य कृ ितयॉं भी ाD होती ह5।
अकलंकदेव
कदािचत् जैन तक शािfय1 म सवािधक मखु व ितभाशाली अकलंक ही थे, जो राEŽकूट के राजा
शभु तंगु के समकालीन थे। उनकA अनेक रचनाएं बतायी जाती ह5 िजनम अ%शती, तjवाथवािSक
तथा (यायिविनBय जैसे महjवपणू  V(थ सवािधक मख ु ह5। (यायशाf कA Jयवि7थत Kपरे खा
अकलंक से ार*भ होती है। इस yि% से ये जैन(याय अथ वा जैन माणशाf के ितvापक आचाय
ह5। उ(ह1ने बौ@1 कA खर आलोचना कA। सम7त उSरकालीन जैनदाशिनक1 ने अकलंक &ारा
ितvािपत माण प@ित को ही पLलिवत और पिु Eपत करके जैन(यायोान को सवु ािसत िकया है।
मािणRयनि8दन्
ये िदग*बर पर*परा के मा(य आचाय थे। मािणWयनि(दन् का परीcामख
ु सू जैन तक शाf
का मानक V(थ है जो अकलक ं के (यायिविनBय पर आधाCरत है। मािणWयनि(दन् के इस V(थ पर
भाच(Z ने अपनी िस@ टीका मेयकमलमातड िलखी। उनकA अ(य V(थ (यायकुमदु च(Z है जो
अकलक ं के V(थ लघीयfय का भाEय है।
विददेवसू?र
इ(ह1ने 7वरिचत सू V(थ ‘माणनयjवालोकालक ं ार’ पर अित िवशाल भाEय िलखा है
िजसका नाम ‘7या&ादरनाकर’ है। इस एक ही V(थ को पढकर सम7त भारतीय दशन एवं सम7त
(याय पर अिधकार िकया जा सकता है। जैन (यायशाf का कोई भी वाद इसम छूट नहN सका है।
ह?रभ; एवं हेमच8;ाचाय

ेता*बर स*दाय के दशनशािfय1 म हCरभZ एवं हेमच(Z सवािधक उLलेखनीय ह5। हCरभZ
िव ् रम कA आठवN शताOदी के िव&ान् आचाय थे। उनकA
रचनाओ ं म षड्दशनसमFु चय, शाfवातासमFु चय आिद इनकA मख
ु ह5।
उतराखड म
ु िविवालय २३९
भारतीय दश
न MASL-103
हेमच(Z का ज(म धंधु क, अहमदाबाद म हMआ था तथा वे राजा जयिसंह के समकालीन थे। वे
कदािचत् गजु रात के राजा कुमारपाल के भी गpु थे। किव एवं वैयाकरण के साथ-साथ वे एक िस@
दाशिनक भी थे। माणमीमांसा तथा अ(ययोगJयवFछे िदका इनकA अमर कृ ित है। माणमीमांसा एक
सू ामक V(थ है। इनम पॉंच अ3याय तथा दस आि™क ह5। माण का लcण, माण के भेद, माण
का िवषय, माण का ामाय, माण का फल- इनका इस V(थ म पणू  िववेचन िकया गया है।
मि]लषेण
आचाय मिLलषेण ने 7या&ादमजं री नाम से अ(ययोगJयवFछे द&ािश ं ितका पर एक अितिस@ व
महjवपणू  टीका िलखी। इसम जैन दशन स*मत 7या&ाद िस@ा(त का स*यक् ितपादन िकया गया
है। िस@ा(त वतन के म म (याय-वैशिे षक स*मत पदाथ िस@ा(त का इसम तािक क खडन ाD
होता है।
इस कार यह कहा जा सकता है िक वैिदक काल से ही अ3ययन कA ग*भीरता तथा िच(तन कA
सoू मता कA yि% से जैन दाशिनक िकसी भी अ(य दाशिनक1 से पीछे नहN रहे ह5, इनके ौढ तक और
अटूट यिु यॉं उनके दाशिनक िस@ा(त1 को आज तक सरु िcत रख रही है। जैन दशन से स*ब@
िवषय1 को आधार बनाकर आज भी होने वाले काय इस बात का माण है िक इस दशन िच(तन कA
जे िकतनी मजबतू ह5। भले ही यथाि7थितवादी इसे नाि7तक कह िक(तु इस िवचारधारा के िच(तक1
ने भारतीयता को अcु ण बनाये रखी।
1.6 सारांश
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप यह जान चक ु े ह5 िक जैन दशन कA पर*परा वेदकाल से
आजतक िबना िकसी Jयवधान के चली आ रही है। यथाकाल ब@ ु िच(तक1 व दाशिनक1 ने अपनी
ितभा से इसे पCरEकृ त व पCरविधत िकया। िविभ(न काल1 व िवचारधाराओ ं से गजु रते हMए इस दशन
ने सािहय के cे म भी पयाD िवकास िकया। अनेका(तवाद, 7या&ाद, सDभगं ीनय तथा नय
िस@ा(त Kप वैचाCरक देन ने दशन जगत् को िच(तन कA नयी व ामािणक िदशा दी। ऐसे िच(तक1
का कालानु म जानकर जैन दशन कA िवकास याा को समझ पाना ही कदािचत् इस पाठ का समV
है।आशा है इस इकाई के अ3ययन से आप जैनिवषयक सहज व सिं cD इितहास को जानकर इस
िच(तन पर*परा म वृS हो पाएगं ।े

1.7 शदावल
अहत-् जैन दशन के अनसु ार इनके तीथ\कर अहत् कहलाते ह5। ये अहत् इनके ईर माने जाते ह5।
सवH िस@ पpु ष1 को भी अहत् कहा जाता है।आगम- जैन सािहय का ाचीनतम भाग आगम
कहलाता है। ऐसा माना जाता है िक आगम1 कA िवषय व7तु महावीर 7वामी कA वाणी है। ये आगम
V(थ जैन पर*परा म वेद कA तरह ही मा(य है।
नJय (याय- नJय(याय दाशिनक िवषय को 7ततु करने कA एक नतू न व पCरEकृ त शैली है िजसम

उतराखड म
ु िविवालय २४०
भारतीय दश
न MASL-103
िकसी भी िवषय कA पCरभाषा व Jया;या उसके पणू  तािक क होने कA ि7थित तक पहॅ◌ुं चायी जाती
है।
1.8 अयास 
न के उतर
1.3- 1. ग, 2. घ, 3. घ, 4. क, 5. ख
1.4- 1. ग, 2. घ, 3. ग, 4. घ, 5. ख

1.9 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1. झा, आचाय आन(द, (1969) चावक दशन, िह(दी सिमित, सचू ना िवभाग, उSरदेश,
लखनउ,
2. ऋिष, ो0 उमाशक ं र शमा, (1964), सवदशनसVं हः, चौख*बा िवाभवन, वाराणसी-1
3. शमा, च(Zधर, (1991), भारतीय दशन आलोचन और अनश ु ीलन, मोतीलाल
बनारसीदास, िदLली
4. देवराज, डॉ0 न(दिकशोर, (1992), भरतीय दशन, उSरदेश िह(दी सं7थान, लखनउ
5. पं0 सख
ु लाल, माणमीमांसा (हेमच(Z) (1939)
6. मेहता, मोहनलाल, जैन दशन, Iी स(मित Hानपीठ, लाहामडं ी, आगरा
7. उमा 7वामी, तवाथािधगम सू (सख ु लाल संघवी कृ त िववेचन), पानाथ िवाIम शोध
सं7थान, वाराणसी-5
8. िमI, पकं ज कुमार (1998), वैशिे षक एवं जैन तjवमीमासं ा म ZJय का 7वKप, पCरमल
पिOलके श(स, शि नगर िदLली।
1.9 *नब%धामक 

(क) जैन दशन के ारि*भक इितहास पर एक िनब(ध िलख।
(ख) ेता*बर तथा िदग*बर कA िवचारधारा म अ(तर को 7प% कर ।
(ग) जैन सािहय के काल का स*यक् िवभाजन कर उनकA िवशेषताओ ं को रे खांिकत कर ।
(घ) जैन (यायशाf म योगदान देने वाले िक(हN पॉंच आचाय^ पर िट~पणी कर ।
(ड) जैन (यायशाf कA िमक िवकास याा को समझाए।ं -

उतराखड म
ु िविवालय २४१
भारतीय दश
न MASL-103

 2- =    


2.1 तावना
2.2 उे

2.3 जैन ानमीमासं ा
2.3.1 य, ान
2.3.2 परो, ान
2.3.3 माण
2.3.4 नय िसEा(त
2.3.4.1 नय के भेद
2.4 यााद
2.4.1 सCभगं ीनय
2.5 सारांश
2.6 श-दावली
2.7 अ3यास 01 के उ4र
2.8 स(दभ5 6(थ सचू ी
2.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय २४२
भारतीय दश
न MASL-103

2.1 तावना
िकसी भी दशन िच(तन को उसकA अवधारणामक कृ ित के आधार पर तीन वग^ म बॉंटा जा
सकता है। ये ह5- Hानमीमांसा, तjवमीमांसा तथा आचारमीमांसा। जैन दशन िचनतन को भी समV
Kप म जानने के िलये हम इनका भी इसी कार िव|े षण करना चािहए। अतः इस पाठ के अ(तगत,
आपकA सिु वधा के िलये जैन िस@ा(त कA समV Jया;या पूवा\िकत िवचार िब(दु के अ(तगत िकया
जा रहा है।
िवषय िव7तार कA yि% से यहॉं के वल Hानमीमांसा का िववेचन िकया जा रहा है। तjवमीमांसा तथा
आचारमीमांसा का िववेचन अिVम पाठ म िकया जाएगा।
इस इकाई के अ3ययन के बाद आप जैन Hानमीमांसा के महव को समझा सक गे तथा अ(य दशन1
के साथ इनकA ि7थित का स*यक् िव|े षण कर सक गे।

2.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप

• बता सक गे िक जैन दशन कA Hानमीमासं ा िवषयक yि% Wया है?


• समझ सक गे िक जैन दशन म अनेका(तवाद, 7या&ाद, सDभंगी नयािद Jयव7था Wया है?
• जान पाएगं े िक इस दशन म जगत् कA िविवधता का िनिहताथ Wया है?
• समझ सक गे िक जैन दशन कA Hानमीमासं ा इस जगत् कA अ(य िवचारधारा के िकतनी
अनKु प ह5?

2.3 जैन ानमीमांसा


जैन दशन चेतना को जीव का 7वKप धम मानता है। जीव अपनी श@ु ाव7था म अन(त दशन, अन(त
Hान, अन(त वीय एवं अन(त शि से स*प(न होता है। यह इसका ‘अन(त चत%ु य’ कहलाता है। यह
Hान काश कA तरह अ(य पदाथ^ को भी कािशत करता है और अपने को भी- Hानं 7वपरभािस।
अन(तचत%ु यामक जीव का कमपTु ल1 के कारण श@ ु चैत(यKप भाव अybय हो जाता है। िजस
कार सयू  स*पणू  संसार को आलोिकत करता है िक(तु मेघािद &ारा उप(न Jयवधान के कारण
संसार को आलोिकत नहN कर पाता, उसी कार जीव अन(तचत%ु य से य ु होने पर भी कमपTु ल1
के आवरण के कारण अपने पणू  Hान को अिभJय नहN कर पाता। कमपTु ल1 का पणू c  य हो जाने
पर वह पनु ः सवH हो जाता है और उसके पणू  Hान कA अिभJयि होती है।
उतराखड म
ु िविवालय २४३
भारतीय दश
न MASL-103
यहॉं Hान के दो भेद ह5- यc (अपरोc) और परोc। जब Hान मा3यमरिहत होता है तो यc
कहलाता है। जब यह मा3यमसिहत होता है तो परोc होता है।
2.3.1 &य* ान-
इसम Hान इि(Zय1 या मन के &ारा सीधे Vहण िकया जाता है जबिक अनमु ान, शOद आिद माण1 से
ाD Hान दसू रे Hान के मा3यम से ाD होता है, अतः वह परोc है। मािणWयन(दी ने यc का
लcण िदया है- िवशदं यcम् अथात् 7प% Hान यc है। 7प% Hान वह है जो अपरोc हो तथा
िजसम िवषय के सभी धम^ का Hान हो। जैन दशन म यc Hान के भी दो भेद िकये जाते ह5-
पारमािथक और सांJयावहाCरक।
पारमािथक यc आमसापेc Hान है। इसे जीवामा 7वयं जानता है। इस Hान को ाD करने के
िलए Hानेि(Zय, मन आिद कA आवbयकता नहN होती। व7ततु ः यह Hान जीवामा के अवरोधक
कमपTु ल1 के िवनाश के बाद िबना िकसी साधन के ाD होता है। इसम जीवामा का Hेय व7तओ ु ं से
साcात् स*ब(ध होता है। इसकA ािD अश ं तः या पणू त ः कमब(धन1 के न% होने पर होती है। जैन
दशन म पारमािथक यc Hान के भी तीन भेद ाD होते ह5- अविध Hान, मनः पयाय Hान और
के वल Hान।
(1) अविध ान-
देश और काल से पCरिFछ(न िवषय1 का यc Hान, अविध Hान है। यह असाधारण yि% &ारा
अतीि(Zय िवषय1 का Hान है। Jयि के यन से कमपTु ल1 के अश ं तः cयोपशम होने पर ाD
असाधारण शि से उप(न दरू 7थ, सoू म एवं अ7प% ZJय1 का Hान अविध Hान है।
चँिू क यह Hान देश और काल कA पCरिध म आने वाले पदाथ^ का Hान है अतः इसे अविध Hान
कहते ह5।
(2) मनःपया
य ान-
यह अ(य Jयि य1 के मन के भाव1 और िवचार1 का Hान है। जब Jयि राग&ेषािद मानिसक
बाधाओ ं पर िवजय ाD कर लेने के बाद अ(य Jयि य1 के ैकािलक िवचार1 को जान लेता है तब
इसे मनःपयाय Hान कहते ह5।
(3) के वल Hान-
यह Hान देश काल कA सीमा से रिहत सवHता है। यह सभी पदाथा\◌े एवं उनक पCरवतन1 का पणू 
Hान है। यह Hान म
ु जीव1 को ही ाD होता है। इसम आमा श@
ु सवH Kप म कािशत होता है।

उतराखड म
ु िविवालय २४४
भारतीय दश
न MASL-103
सां<यवहा?रक &य* -जीवामा को पंच Hानेि(Zय1 एवं मन कA सहायता से ाD होता है। तापय
यह है िक इस Hान कA उपलिOध म साधनां◌े कA आवbयकता होती है। साधन1 के अभाव म इसकA
उपलिOध नहN हो सकती। यह Hान कभी-कभी Hानेि(Zय1 एवं मन, दोन1 कA सहायता से ाD होता है
और कभी-कभी के वल मन कA सहायता से। यह वह यc Hान है जो हम दैिनक जीवन म ाD
होता है। सांJयवहाCरक यc के भी दो भेद ह5-मित Hान और Iतु Hान।
(1) मित ान-
यह वह Hान है जो इि(Zय1 एवं मन का िवषय से सयं ोग होने से ाD होता है। इसम बाn िवषय1 का
यc Hान एवं आ(तCरक िवषय1 का मानस Hान दोन1 होता है।
(2) ुत ान-
जैन तीथ\कर1 के उपदेश1 एवं जैन आगम1 से ाD Hान Iतु Hान है। यह शाfिनब@ Hान है। जैन
दशन के अनसु ार मित, Iतु एवं अविध Hान1 म िु ट कA स*भावना रहती है, िक(तु मनःपयाय एवं
के वल Hान1 म िु ट कA स*भावना नहN
2.3.2 परो* ान-
ायः जैनेतर भारतीय दशन1 म इि(Zयाथसि(नकषज(य Hान को यc Hान 7वीकार िकया जाता है।
कभी-कभी जैन दशन भी इसे यc Hान मानता है और उसे सांJयावहाCरक यc कहता है। िक(तु
जैन दशन के कितपय आचाय पारमािथक यc को ही वा7तिवक यc कहते ह5 िजसम Hाता
िबना िकसी साधन का आIय िलये Hेय व7तु का साcाकार करता है। इस कार वे आमसापेc
Hान को ही यc Hान मानते ह5। इसके अितCर वे उस Hान को, िजसम इि(Zय1, मन आिद
मा3यम1 कA आवbयकता होती है, परोc Hान कहते ह5। अथात,् इि(Zयमनः सापेc Hान परोc Hान
है।‘माणनयतjवालंकार’ म यc एवं परोc Hान म पर7पर भेद के वल 7प%ता के अश ं से ही है।
यc और परोc Hान म के वल अपेcाकृ त अ(तर है। परोc अपेcाकृ त यc है और यc
अपेcाकृ त परोc। इि(Zयज(य बाn एवं मानिसक िवषय1 का मित Hान अनमु ान कA अपेcा से
यc है और पारमािथक यc कA अपेcा से परोc है। परोc Hान के अ(तगत मित एवं Iतु Hान
आते ह5 Iतु Hान भी परोc Hान है, Wय1िक वह मितपवू क होता है। जैन दशन म इन दोन1 Hान1 के
अितCर 7मृित, यिभcा, तक एवं अनमु ान को भी परोc Hान माना जाता है।
2.3.3 &माण
मा का करण या Hान का साधन माण कहलाता है। साधारणतया जैन दशन म तीन माण ाD
होते ह5- यc, अनमु ान और शOद (माणािन यcानुमानशOदािन)।

उतराखड म
ु िविवालय २४५
भारतीय दश
न MASL-103
(1) यc माण- जैन दशन म वा7तिवक यc पारमािथक यc है िजसकA ािD हेतु िकसी
साधन कA आवbयकता नहN होती। इसम िवषय का सीधा यc होता है। जैन दशन म एक अ(य
यc कA भी चचा कA गयी है। वह है, ‘सांJयावहाCरक यc’। जैन दशन के अनसु ार यc Hान
कA उपिS म चार अव7थाओ ं से गजु रना पड़ता है जो अधोिलिखत ह5-
(क) अवVह- इि(Zय और िवषय का सि(नकष होने पर नाम, आिद कA िवशेष कLपना से रिहत
सामा(यमा का Hान अवVह है। जैसे, ने का पEु प से सि(नकष होने पर यह तीत होना िक कोई
व7तु है, िक(तु यह न Hात होना िक वह Wया है, अवVह है।
(ख) ईहा- अवगृहीताथ को िवशेष Kप से जानने कA इFछा ‘ईहा’ है। इसम◌
ं े मन मेय िवषय का
िववरण जानने कA इFछा करता है।
(ग) अवाय- ईिहताथ का िवशेष िनणय ‘अवाय’ है। इस अव7था म ybय िवषय के गणु 1 का
िनBायक एवं िनणायक Hान ाD हो जाता है। जैस,े ‘यह र कमल है’, ybय िवषय का यह
िनBायक Hान ‘अवाय’ है।
(घ) धारणा-इस अव7था म ybय िवषय का पणू  Hान हो जाता है और इसका सं7कार जीव के
अ(तःकरण म अिं कत हो जाता है। इसी से 7मृित उप(न होती है। अतः जैन दाशिनक 7मृित के हेतु
के Kप म धारणा कA Jया;या करते ह5।
उपय
ु चार अव7थाओ ं से सं िमत होने के उपरा(त यc Hान ाD होता है।
(2) अनमु ान माण- जैन दाशिनक अनमु ान को भी यथाथ Hान का माण मानते ह5। अनमु ान एक
परोc Hान है। िजसम अनमु ान के आधार पर सा3य का Hान ाD होता है।
जैन दाशिनक भी अनुमान के दो भेद 7वीकार करते ह5- 7वाथ और पराथ। अपने संशय को दरू करने
के िलए िकया गया अनुमान 7वाथानमु ान है। दसू र1 कA संशयिनवृिS के िलए िकया गया एवं
Jयवि7थत तरीके से Jय िकया गया अनमु ान पराथानमु ान है। जैन तक शाfी िस@सेन िदवाकर
(याय दाशिनक1 के समान ही अनमु ान म पाँच अवयव 7वीकार करते ह5- ितHा, हेतु, y%ा(त, उपनय
और िनगमन। भZवाहM अनमु ान म दशावयव मानते ह5- ितHा, ितHा-िवभि , हेत,ु हेत-ु िवभि ,
िवपc, िवपc-ितषेध, y%ा(त, आशक ं ा, आशक ं ा-ितषेध और िनगमन।
(3) शOद माण- शOद माण भी जैन दशन म एक परोc माण है। जो Hान शOद के &ारा ाD हो,
िक(तु यc के िवp@ न हो, वह शOद माण है। जैन दशन म शOद माण के दो भेद ह5- लौिकक
और शाf। तjववेSा िवसनीय Jयि य1 के शOद1 एवं वचनां से ाD Hान लौिकक Hान है और
शाf1 के अ3ययन से ाD Hान शाfज Hान है।

उतराखड म
ु िविवालय २४६
भारतीय दश
न MASL-103
जैन दशन के अनसु ार इन माण1 से अिवा का cय, आन(द कA ािD एवं JयावहाCरक जीवन म
सयासय का िनणय होता है।
2.3.4 नय-िस6ा8त
जैन दशन कA Hानमीमासं ा का एक महवपणू  पc उनका ‘नय-िस@ा(त- है। जैन मत म माण1 के
&ारा तjव1 का Hान होता है। जैन दाशिनक माण के अितCर yि%कोण-िवशेष िजसे वे ‘नय’ कहते
ह5, से भी तjव1 के Hान कA पिु % करते ह5। जैन दशन के माण एवं नय दोन1 तjवतः अिभ(न ह5। इन
दोन1 के आधार पर िकसी िवषय का यथाथ Hान ाD िकया जाता है- माणनयैरिधगमः। िक(तु दोन1
म अ(तर यह है िक माण से व7तु का स*पणू  Hान होता है। िकसी पदाथ को उसी Kप म जानना
िजस Kप म वह है माण है। नय से व7तु का आिं शक Hान होता है। इसी कारण माण को
सकलादेश कहा जाता है और नय को िवकलादेश।
जैन दशन म व7तु अन(तधमामक मानी जाती है। व7तु के अन(त धम^ का Hान मा के वली (सवH)
को होता है। साधारण मनEु य को व7तु के अन(त धम^ का Hान होना अस*भव है, Wय1िक कमज(य
ब(धन1 के कारण उसके Hान कA पणू  अिभJयि नहN हो पाती, फल7वKप व7तु के िवषय म उसकA
जानकारी सीिमत या आिं शक होती है। वह व7तु के सीिमत धम^ को जानता है और उसी के आधार
पर उसका वणन भी करता है। जैन दशन व7तु के िवषय म Jयि के आिं शक Hान या सापेc yि% को
‘नय’ कहता है- एकदेशिविश%ोऽथw नय7य िवषयो मतः।
जैन दशन म इस आिं शक yि%कोण के आधार पर व7तु के िवषय म परामश को भी ‘नय’ कहा जाता
है। संcेप म, जैन दशन म नय के दो अथ ह5-
(1) व7तु के िवषय म आिं शक yि%कोण और
(2) आिं शक के आधार पर व7तु के िवषय म परामश।
जैन दशन म नय के सात भेद ाD होते ह5। ये सात1 नय िन*निलिखत ह5- नैगम नय, सVं ह नय,
Jयवहार नय, ऋृजसु ू नय, शOद नय, समिभKढ़ नय और एवंभतू नय।
(1) नैगम नय- नैगम नय कA Jया;या दो कार से कA जाती है। थम Jया;या के अनसु ार यह िकसी
यन-िवशेष के लoय से स*बि(धत है जो िबना िकसी Jयवधान के उस यास को िनयि(त करता
है। िस@सेन इससे िभ(न मत को 7वीकार करता है। जब हम िकसी व7तु को जाितगत एवं िविश%
दोन1 गणु 1 से य
ु देखते ह5 तब यह भी नैगम नय है। अथवा धम और धमm को, अगं और अगं ी को,
सामा(य और िवशेष को, ि या और कारक को तथा भेद और अभेद को गौण-म;ु य भाव से Vहण
करना नैगम नय है। जैसे ‘जीव-ZJय’ कहने से धमm जीव का म;ु य Kप से और Hानािद धम का

उतराखड म
ु िविवालय २४७
भारतीय दश
न MASL-103
गौणKप से Vहण होता है। िक(तु ‘चेतन जीव’ कहने से चेतना धम का म;ु य Kप से और जीवZJय
का गौण Kप से Vहण होता है।
(2) सVं ह नय- सVं ह नय म सामा(य िविश%ताओ ं को 7वीकार िकया जाता है। यह वह yि% है िजसम
अभेद का Vहण होता है और भेद का िनराकरण होता है। इस yि% से यह 7वीकार िकया जाता है िक
सSा के वल सामा(य कA है, िवशेष कA कोई सSा नहN है।
(3) Jयवहार नय- इस yि% म िवशेष अथवा भेद का Vहण होता है और सामा(य अथवा अभेद कA
उपेcा होती है। यह चिलत एवं पर*परागत yि%कोण है इसम व7तु कA िनजी िवशेषताओ ं पर बल
िदया जाता है। इस yि% कA पृvभिू म म यह िवचार है िक के वल सामा(य से लोकJयवहार नहN
सचं ािलत होता। लोकJयवहार के िलए भेद या व7तु कA िविश%ता को 7वीकार करना आवbयक है।
यही Jयवहार है।
(4) ऋृजसु ू नय- इस yि% म पदाथ कA वतमानकालीन अव7था का िवचार िकया जाता है। इसम
सब कार के नैर(तय को भल
ु ा िदया जाता है, फल7वKप व7तु के 7वKप िनधारण म उसके भतू एवं
भिवEयत् Kप1 को कोई महव नहN िदया जाता।
(5) शOद नय- इस yि% म अनेक शOद1 को एक ही अथ का ोतक माना जाता है। इसम यह
7वीकार िकया जाता है िक येक नाम का अपना अथ होता है और अ(य शOद भी उसी एक पदाथ
को ोितत कर सकते ह5। जैसे, घट, कलश और कु*भ को एक ही पदाथ का वाचक माना जाता है।
(6) समिभKढ़ नय- इस म पद1 के धावथ के आधार पर भेद िकया जाता है। यह इस बात पर बल
देता है िक शOदJयु पिS के आधार पर एकाथक पद1 के भी िभ(न अथ होते ह5। इसके अनसु ार न तो
कई शOद1 का एक वाFयाथ होता है और न एक शOद का अनेक अथ होता है। जैसे पंकज को कमल
का पयायवाची माना जाता है, िक(तु Jयु पिS के आधार पर इसका अथ है ‘वह, जो कAचड़ से
उप(न हो’। इस कार शOद Jयु पिS के आधार पर कमल का अथ नहN देता।
(7) एवभं तू नय- यह समिभKढ़ नय का िविश% Kप है। उLलेखनीय है िक समिभKढ़ नय िकसी
शOद का अथ उसकA Jयु पिS के आधार पर करता है और Jयु पिS-भेद से अथभदे करता है।
एवभं तू नय इस बात पर बल देता है िक उस शOद का अथ तभी 7वीकार करना चािहए जब
Jयु पिS-िस@ अथ के अनKु प वैसी ि या (एवभं तू ) स*प(न हो रही हो। जैस,े ‘पजु ारी’ शOद।
समिभKढ़ नय के अनसु ार इसका अथ है, ‘पजू ा करने वाला Jयि ’, िक(तु एवभं तू नय के आधार
पर वह के वल उसी समय पजु ारी कहा जायेगा जब पजू ाकाय म वृS हो, अ(य समय म नहN। इस
कार यह नय समिभKढ़ नय के अ7प% भाव को 7प% करता है।
येक नय पदाथ का Hान कराने वाले अनेक yि%कोण1 म से के वल एक ही yि%कोण को 7ततु

उतराखड म
ु िविवालय २४८
भारतीय दश
न MASL-103
करता है। िक(तु यिद िकसी yि%कोण को स*पणू  समझ िलया जाता है तो यह नयाभास कहलाता है।
उLलेखनीय है िक जैन दशन के अनसु ार येक yि%कोण (नय) सापेcतः सय है। अतः न तो वह
पणू K
 पेण िम_या है और न वह एकमा सय ही है।
जैन दशन म उपय
ु सात1 नय1 का वगmकरण दो वग^ म िकया जाता है- अथनय और शOदनय।
सात1 नय1 म से थम चार अथनय के अ(तगत आते ह5 और अि(तम तीन नय शOद नय के अ(तगत।
कभी-कभी इन नय1 का वगmकरण िनBय नय और JयवहाCरक नय म िकया जाता है। िनBय नय के
&ारा तjव1 का वा7तिवक Hान ाD होता है। इससे तjव के 7वाभािवक िनय गणु 1 के 7वKप का
पCरचय ाD होता है। JयावहाCरक नय लोक Jयवहार कA yि% से तjव1 का Hान कराता है। जैन दशन
म नय का एक अ(य वगmकरण भी ाD होता है- ZJयािथक नय और पयायािथक नय। पदाथ के
yि%कोण से तjव1 का िववेचन ZJयािथक नय है। इसम िकसी िवषय का Hान ाD करने के िलए
उसके गणु 1 को ZJय पर िनभर माना जाता है। पयायािथक नय म पCरवतन अथवा अव7था के
yि%कोण से िवषय का िववेचन िकया जाता है। इसम गणु 1 कA िविश%ता पर बल देकर ZJय को
काLपिनक माना जाता है। जैन दशन के उपरो सात1 नय1 म थम, ि&तीय एवं तृतीय नय ZJयािथक
ह5 और अि(तम चार पयायािथक ह5।
अ$यास &.

1. जैन दशन चेतना को जीव का ------------ मानता है।


2. िजसम इि(Zय1, मन आिद मा3यम1 कA आवbयकता होती है, -----कहते ह5।
3. जैन दशन म माण है
(क) सकलादेश (ख) िवकलादेश
(ग) चलादेश (घ) अचलादेश
4. Jयि के आिं शक Hान या सापेc yि% को ------- कहता है
5. जैन दशन म नय का अथ है-
(क) व7तु के िवषय म आिं शक yि%कोण (ख) व7तु का पणू  Hान
(ग) व7तु का िवशद 7वKप (घ) इि(Zय1 से व7तु का Hान
6. जैन दशन म शOद माण के िकतने भेद ह5?

उतराखड म
ु िविवालय २४९
भारतीय दश
न MASL-103

2.4 याLवाद
7या&ाद जैन दशन का सवािधक िवलcण िस@ा(त है। उLलेखनीय है िक जैन दशन कA तjवमीमांसा
अनेका(तवादी है िजसम व7तु ‘अन(तधमामक’ मानी जाती है। अन(तधमामक होने के कारण
उसका 7वKप अयिधक जिटल होता है। व7तु के अन(त धमw का Hान मा के वली को होता है,
Wय1िक वह सवH है। सवH वह है जो िकसी व7तु को सभी yि%य1 से जानता है। उसके अनसु ार यिद
कोई Jयि िकसी व7तु को सभी व7तओ ु ं को सभी yि%य1 से जान लेता है- एको भावः सवथा येन
y%ः सवw भावः सवथा तेन y%ः।
साधारण मनEु य का Hान अयिधक सीिमत होता है, Wय1िक वह िकसी व7तु को कुछ ही yि%य1 से
देखता है। वह व7तु के आिं शक धमw को ही जानता है और उसी के आधार पर व7तु के िवषय म
परामश करता है। फल7वKप उनके कथन1 म पर7पर मतभेद होता है। इनम से िकसी कथन &ारा व7तु
के 7वKप का पणू  बोध नहN होता, व7तु के िवषय म कोई कथन एकमा सय नहN होता। इस कार
व7तु का 7वKप अय(त जिटल होने के कारण उसके िवषय म कोई कथन अंशतः ही सही होता है,
िक(तु कोई कथन पणू K पेण सही नहN होता। उसकA सयता सापेc होती है।
ससे पवू  इयह बताया गया था िक जैन दशन म व7तु के िवषय म Jयि के आिं शक Hान को ‘नय’
कहते ह5 और इस आिं शक Hान के आधार पर व7तु के िवषय म जो परामश होता है, उसे भी ‘नय’
कहते ह5। जैन दशन परामश के तीन भेद करता है-दनु य, नय और माण नय- सदेव स7यािदित
िधाथw मीयते दनु mितनयमाणैCरित। दनु य परामश का वह Kप है िजसम िकसी परामश-िवशेष के ही
एकमा सय होने का कथन िकया जाता है। जैसे, िकसी व7तु के िवषय म यह कथन िक यह सत् ही
है दनु य है। जैन दशन के अनुसार यह एका(तवाद के दोष से V7त है, Wय1िक इसम आंिशक एवं
सापेc सय को पणू  एवं िनरपेc सय मान िलया जाता है। दनु य होने के कारण इसे माण नहN कहा
जा सकता।
नय परामश का वह Kप है िजसम िकसी व7तु के िवषय म साधारण रीित से कोई कथन िकया जाता
है। जैसे, यह सत् है नय है। यह परामश एक yि% से सय है, िक(तु पणू  सय नहN है। वह िवकलादेश
से V7त होने के कारण एकिनv धम का ितपादन करता है और उसके अ(य धमा\◌े का िनषेध
करता है। दनु य तो नहN है, िक(तु यह माण भी नहN है, Wय1िक इसम Hान कA आिं शकता को 7प%
Kप से कािशत नहN िकया जाता।
जैन िवचारधारा म माण परामश का वह Kप है, िजसम व7तु के िवषय म कोई कथन पCरि7थितय1,
धम^ एवं िवचार1 से िस@ िकया जाता है। इस पCरि7थित धम अथ वा िवचार का सामा(य Kप है,
‘एक yि% म यह सत् है’। जैन दशन के अनसु ार माण सकलादेश है और पणू त या सय है। जैन दशन

उतराखड म
ु िविवालय २५०
भारतीय दश
न MASL-103
म ‘एक yि% म’ इस पदावली का अथ देने के िलए िकसी कथन के पवू  ‘7यात’् इस िविश% शOद का
योग िकया जाता है। जैन दशन म ‘7यात’् शOद एक तकनीकA अथ वा पाCरभािषक शOद के Kप म
आया है। यह शOद यहाँ Hान कA पणू  सापेcता का ोतक है।
2.4.1 सTभङ्गी नय
7या&ाद का माण सDभगं ी नय है। इसका अथ है, िकसी व7तु के िवषय म परामश या नय के सात
कार। सDभगं ी &ारा िकसी व7तु के नानािवध धम^ का िनBय िकया जा सकता है। ये िबना िकसी
आमिवरोध के अलग-अलग या सयं ु Kप से िकसी व7तु के िवषय म िवधान या िनषेध करते ह5
और इस कार िकसी व7तु के अनेक धम^ का काशन करते ह5। सामा(यतः पाBाय दशन म
परामश के दो भेद िकये जाते ह5- िव3यामक और िनषेधामक। िक(तु जैन दशन म परामश के सात
भेद िकये जाते ह5। इसी को सDभगं ी नय कहते ह5। इसके सात नय (माण नय) िन*निलिखत ह5-
(1) 7यादि7त- जैन दशन के अनसु ार िव3यामक नय ‘7यादि7त च’ आकार म अिभJय होना
चािहए। जैसे, 7यात् घट है। इससे यह अथ िनकलता है िक घट अपने नाम, 7थापना, ZJय और
भावKप से िवमान है।
(2) 7या(नाि7त- जैन दशन के अनसु ार िनषेधामक नय ‘7या(नाि7त च’ आकार म कहा जाना
चािहए। जैसे, 7यात् घट नहN है। इसका आशय है िक पर नाम पर 7थापना, पर ZJय एवं परभाव कA
yि% से घड़ा िवमान नहN है। अथात् सवु ण आिद का बना हMआ (पर ZJय), चौकोर घट (पर नाम)
एक िभ(न 7थान (पर 7थापना) और एक िभ(न समय म (पर भाव से) िवमान नहN है। सc ं ेप म,
7यात् से यह आशय िनकलता है िक िजस घट के िवषय म परामश हMआ है, एक िवशेष समय म उस
7थान पर नहN है जहाँ के िलए उसके स*ब(ध म परामश हMआ है।
(3) 7यादि7त च नाि7त च- इस नय म yि%भेद से व7तु का िवधान और िनषेध दोन1 है। जैस-े 7यात्
घट है भी और नहN भी है। इसम 7व-Kप-ZJय- 7थान-काल कA yि% से घट का िवधान िकया जाता
है। और पर-Kप-ZJय- देश-काल कA yि% से घड़े का िनषेध भी िकया जाता है। इस नय का आशय
यह है िक एक िवशेष अथ म घट है और अ(य अथ म घट नहN है। इसम इस बात पर बल िदया
जाता है िक ‘एक व7तु Wया है और Wया नहN है’, 7यात् शOद से यह सिू चत होता है िक अि7त और
नाि7त के समFु चय म तक तः िवरोध नहN है।
(4) 7यादव Jयम-् जैन दशन के अनसु ार िकसी व7तु के अि7त, नाि7त और उभय के अितCर एक
अ(य कोिट भी है, वह अव Jयता कA है। यहाँ अव Jय का अथ है, ‘यगु पत् कथन करने कA
असमथता’। इसका अथ है िक yि%भेद से िकसी व7तु म अि7तव और नाि7तव दोन1 होते ह5,
िक(तु भाषा कA सीमा और अपयाDता के कारण हम िवरोधी गणु 1 का एक साथ िनवचन नहN कर

उतराखड म
ु िविवालय २५१
भारतीय दश
न MASL-103
पाते। जैसे, 7यात् घट अव Jय है। इसका अथ है िक िकसी घट म अपने Kप कA उपि7थित और
अ(य Kप कA अनपु ि7थित एक साथ होती है, िक(तु हम उसे Jय नहN कर पाते।
(5) 7यादि7त च अव Jयं च- यह नय थम और चतथु  नय को िमलाने से बनता है। इस नय म व7तु
कA सSा और उसकA अिनवचनीयता दोन1 का कथन िकया जाता है। यह नय यह लिcत करता है
िक कोई व7तु 7व-नाम-7थापना-ZJय-भाव से िवमान होने पर भी अपनी इन िवशेषताओ ं और पर-
नाम-7थापना-ZJय-भाव से वह अव Jय भी हो सकती है। जैस,े 7यात् घट है और अव Jय भी है।
इस नय का अथ है िक यिद घट के ZJय Kप (मृिSका) को देख तो घट है। िक(तु इसके ZJय Kप
(मृिSका) और पCरवतनशील Kप, दोन1 को एक समय म देख तो वह अि7तववान् होने पर भी
अवणनीय है।
(6) 7या(नाि7त च अव Jयं च- यह नय व7तु कA असSा और उसकA अिनवचनीयता दोन1 को
उपलिcत करता है। जैन दशन के अनसु ार कोई व7तु पर-नाम-7थापना-ZJय-भाव से अिवमान होने
पर भी इन िवशेषताओ ं के साथ 7व-नाम-7थापना-ZJय-भाव से वह अJय भी हो सकती है। जैस,े
7यात् घट नहN है और अJय भी है। इस नय का अथ यह है िक घट अपने पयाय Kप कA अपेcा
नहN रखता, Wय1िक वे Kप cण-cण म पCरवितत होते रहते ह5।
(7) 7यादि7त च नाि7त च अव Jयं च- यह नय तृतीय और चतथु  नय1 को िमलाने से बनता है।
जैसे, 7यात् घट है, नहN है और अJय भी है। अपने िनजी चत%ु य (7व-नाम-7थापना-ZJय-भाव)
कA yि% से परव7तु के चत%ु य (पर-नाम-7थापना-ZJय-भाव) कA yि% से और अपने िनजी एवं
अभावामक व7तु के सयं ु चत%ु य के yि% से कोई व7तु हो सकती है, नहN भी हो सकती है और
अJय भी हो सकती है। इन दोन1 yि%य1 के आधार संय ु Kप से िवचार करने पर वह अव Jय है।
नय म ZJय और पयाय1 के एक साथ होने और अलग-अलग होने के कारण घट का अि7तव,
अनि7तव और अJय व सिू चत होता है।
7या&ाद अनेका(तवाद को िस@ करता है। जैन दशन का दावा है िक 7या&ाद से अनेका(तवाद िस@
होता है। इसके अनसु ार िविभ(न दाशिनक िस@ा(त िविभ(न yि%य1 पर आधाCरत होते ह5। इस कार
सSा स*ब(धी िजतने िस@ा(त ह5, सSा म उतने धम ह5। सDभगं ी नय कA सात िवधाओ ं से यह
मािणत होता है िक व7तु स*ब(धी िववेचन अनेक yि%य1 पर आधाCरत होता है। इस कार व7तु
अनेक धमामक या अन(त धमामक होती है।
7या&ाद व7तवु ाद है। इसके अनसु ार हमारे परामश मानिसक ययमा नहN ह5, बिLक वे व7तु के
वा7तिवक धम^ कA ओर संकेत करते ह5। जैन मत सापेcवाद है। 7प% हो चक ु ा है। व7ततु ः यह
व7तवु ादी सापेcवाद है, Wय1िक यह मानव Hान को व7तओ ु ं के धम^ से सापेc मानता है और ये धम
मन7त( न होकर व7ततु ( है। इस कार यह ययवादी सापेcवाद से िभ(न है िजसम व7तु के धम^

उतराखड म
ु िविवालय २५२
भारतीय दश
न MASL-103
को मन7त( माना जाता है। 7या&ाद बहMलवाद अथवा बहMलवादी व7तवु ाद है, Wय1िक यह व7तु के
अन(त धम^ को 7वीकार करता है।
समीcा- जैनेतर भारतीय दशन म 7या&ाद को अ7वीकार िकया गया है। 7या&ाद के धान
आलोचक1 म बौ@, मीमांसक एवं अ&ैत वेदा(ती दाशिनक1 को जाना जाता है। 7या&ाद के िवp@
िन*निलिखत आपेc िकये जाते ह5-
(1) आचाय शक ं र ने 7या&ाद को संशयवाद और अिनिBततावाद कA संHा दी है। व7तुतः जैन दशन
पर ये आरोप ‘7यात’् शOद के शािOदक अथ के आधार पर लगाये जाते ह5। ये आलोचक 7यात् शOद
का अथ ‘हो सकता है’, ‘शायद’, ‘कथंिचत्’ करते ह5 और इस आधार पर 7या&ाद पर उपरो
आरोप लगाते ह5। िक(तु 7या&ाद, संशयवाद, अिनिBततावाद या अHेयवाद नहN है।
(2) आलोचक सDभगं ी नय के तृतीय नय को आमिवरोधी घोिषत करते ह5। इनके अनसु ार कोई
व7तु ‘है’ और ‘नहN है’ एक साथ कै से हो सकती है? धमकAित का कथन है िक, ‘ये िनलtज जैन
दाशिनक पागल मनEु य के समान पर7पर िवरोधी कथन करते ह5।’ आचाय शक ं र के अनसु ार,
‘7या&ाद, जो िक यथाथ और अयथाथ, अि7तव और अनि7तव, एक और अनेक, अिभ(न और
िभ(न तथा सामा(य और िवशेष आिद का िमIण करता है, पागल Jयि के (दन और उ(मS के
लाप के समान तीत होता है’। िक(तु जैन दाशिनक ऐसा नहN मानते। उनके अनसु ार व7तु म
अन(त धम होते ह5। िविभ(न yि%य1 से िवचार करने पर उसके धमा\◌े म कोई िवरोध नहN िदखायी
देता। ZJय कA yि% से व7तु म एकता एवं िनयता आिद का िवधान िकया जा सकता है तो पयाय कA
yि% से अनेकता और अिनयता आिद का। अतः 7या&ाद म कोई िवरोध नहN है।
(3) जैन दशन के अनसु ार हमारे सभी Hान सापेc एवं आिं शक ह5। वे िनरपेc Hान को अ7वीकार
करते ह5। िक(तु िनरपेc को 7वीकार िकये िबना सापेc कA अवधारणा को 7वीकार करना अस*भव
है। पनु ः, जैन दाशिनक ‘के वल Hान’ को श@
ु , पणू , अपरोc और परमाथ Hान मानते ह5 जो सभी
आवरणीय कम^ के cय हो जाने पर ाD होता है।
(4) जैन दशन 7या&ाद एवं सDभगं ी नय के आधार पर अ(य मत1 कA परीcा तो करता है, िक(तु
इसके आधार पर वह अपनी परीcा नहN करता। वह 7या&ाद के आधार पर अ(य मत1 को सापेc
और आिं शक सय मानता है। िक(तु वह अपने िस@ा(त को एकमा सय घोिषत करके इसे भल ू
जाता है। इस कार 7या&ाद एवं सDभगं ीनय अ(तिवरोध से V7त है।
(5) 7या&ाद अनेका(तवाद को 7थािपत नहN करता है। जैन दशन का यह दावा अनिु चत है िक वह
7या&ाद के आधार पर अनेका(तवाद को िस@ करता है। व7ततु ः जैन तक शाf एवं Hानमीमांसा
अ&ैतवाद कA ओर ले जाती है। आचाय शक
ं र का कथन है िक यिद सभी िस@ा(त सोपािधक yि% से

उतराखड म
ु िविवालय २५३
भारतीय दश
न MASL-103
सय ह5 तो 7या&ाद 7वयं भी सोपािधक सय होगा। सापेcता िनरपेc से स*बि(धत है और उसके
अि7तव को पहले ही 7वीकार कर लेती है। 7या&ाद हम िबखरे हMए नय1 को देता है, िक(तु उनके
सम(वय का यास नहN करता। सDभगं ी नय सात नय1 का एकीकरणमा है, उनका सम(वय नहN।
िनरपेc ही वह सू है जो सब सापेc1 म एकता 7थािपत करता है। ‘अन(तधमामक’ कहने से एवं
धमm कA उपेcा करने से तjव को बोध नहN हो सकता।
इस कार 7य&ाद एकांगी मत1 को इकšा करके छोड़ देता है और उनम सम(वय करने का यास नहN
करता। जैन दशन का 7या&ाद वहाँ तक तो ठीक है जहाँ तक यह लोग1 को एकांगी मत1 से सावधान
करता है। िक(तु वह हम िजस 7थल पर छोड़ता है, वह एकागं ी समाधाना◌
ं े से थोड़ा ही अिधक है।
व7ततु ः या तो जैन दाशिनक अपने तक शाf के िनिहताथ^ को नहN समझ सके या सा*दाियक
कारण1 से उसके िनिहताथ का कथन नहN कर सके । यिद वे उसके तािक क िनEकष का कथन करने
का साहस करते तो वे अिनवायतः अ&ैतवाद पर पहMचँ ते।
अ$यास &.

1. 7यात् है-
(क) पणू  Hान (ख) सापेc Hान
(ग) के वल Hान (घ) इि(Zय Hान
2. 7या&ाद -------- को िस@ करता है।
3. जैन िवचारधारा म -------- परामश का वह Kप है, िजसम व7तु के िवषय म कोई कथन
पCरि7थितय1, धम^ एवं िवचार1 से िस@ िकया जाता है।
4. 7या&ाद का माण ---------------- है।

2.5 सारांश
इस इकाई के ि&तीय पाठ को पढ़ने के बाद आप यह जान चक ु े ह5 िक जैन दशन कA Hानमीमांसा म
माण एवं नय कA अनठू ी Jया;या है। यह Hानमीमासं ा अ(य दाशिनक िवचारधारा कA अपेcा कहN
अिधक अ3यामपरक है। साथ ही यह िवचारधारा कहN अिधक अ3यामो(मख ु ी है। िक(तु अनकA
सवािधक अनठू ी देन अनेका(तवाद, 7या&ाद, सDभगं ीनय तथा नय िस@ा(त है िज(ह1ने◌े दशन
जगत् को िच(तन कA नयी व ामािणक िदशा दी। 7या&ाद तो ऐसा िच(तन है िजसकA छाया
आई(7टीन के सापेिcक िस@ा(त म देखी जा सकती है। इनके िस@ा(त1 के साथ एक िव7तृत समीcा

उतराखड म
ु िविवालय २५४
भारतीय दश
न MASL-103
दी गयी है जो तल
ु नामक अ3ययन कA yि% से यहॉं 7ततु कA गयी है।
आशा है इस इकाई के अ3ययन से आप जैनिवषयक Hानमीमांसा के सहज व संिcD Kप् को पढकर
व जानकर इस िच(तन पर*परा म वृS हो पाए◌ॅ◌ंग।े

2.6 शदावल
के वली- जैन दशन म देश कालािद कA सीमा से रिहत Hान सवHता है। इस परम Hान को
ाD करने वाला के वली कहलाता है। व7तु के अन(त धमw का Hान मा के वली को होता है।
सDभगं ी- 7या&ाद को कट करने कA सात िवधा है िजसे सामा(यतया सDभगं ी कहा जाता
है। सDभगं ी &ारा िकसी व7तु के नानािवध धम^ का िनBय िकया जा सकता है। दसू री ओर जैन दशन
म परामश के सात भेद िकये जाते ह5। इसी को सDभगं ी नय कहते ह5।
बहMलवाद- 7या&ाद बहMलवाद अथवा बहMलवादी व7तवु ाद है, Wय1िक यह व7तु के अन(त
धम^ को 7वीकार करता है।

2.7 अयास 
न के उतर
2.3 1. 7वKप धम, 2. परोc Hान, 3. क, 4. नय, 5. क 6. दो
2.4 1. ख, 2. अनेका(तवाद, 3. माण, 4. सDभगं ी नय

2.8 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1. झा, आचाय आन(द, (1969) चावक दशन, िह(दी सिमित, सचू ना िवभाग, उSरदेश,
लखनउ,
2. ऋिष, ो0 उमाशक
ं र शमा, (1964), सवदशनसंVहः, चौख*बा िवाभवन, वाराणसी-1
3. शमा, च(Zधर, (1991), भारतीय दशन आलोचन और अनश
ु ीलन, मोतीलाल
बनारसीदास, िदLली
4. देवराज, डॉ0 न(दिकशोर, (1992), भरतीय दशन, उSरदेश िह(दी स7ं थान, लखनउ
5. पं0 सख
ु लाल, माणमीमांसा (हेमच(Z) (1939)
6. मेहता, मोहनलाल, जैन दशन, Iी स(मित Hानपीठ, लाहामडं ी, आगरा

उतराखड म
ु िविवालय २५५
भारतीय दश
न MASL-103
7. उमा 7वामी, तवाथािधगम सू (सख
ु लाल संघवी कृ त िववेचन), पानाथ िवाIम शोध
सं7थान, वाराणसी-5
8. िमI, पक
ं ज कुमार (1998), वैशिे षक एवं जैन तjवमीमासं ा म ZJय का 7वKप, पCरमल
पिOलके श(स, शि नगर िदLली।

2.9 *नब%धामक 

(क) जैन दशन कA अनुमान Jयव7था को िव7तारपवू क
 समझाए।ं
(ख) नय िस@ा(त को सोदाहरण समझाएं।
(ग) सDभंगीनय कA सोदाहरण वया;या कर ।
(घ) आज के स(दभ म 7या&ाद कA महSा पर काश डाल।
(ड) जैन दशन के माण िच(तन के वैिश%्य पर काश डाल।
(च) माण व नय के योजन व अ(तर को 7प% कर ।

उतराखड म
ु िविवालय २५६
भारतीय दश
न MASL-103

- 3 =    


3.1 तावना
3.2 उे

3.3 जैन तVवमीमासं ा
3.3.1 =>य िच(तन
3.3.2 =>य के भेद
3.3.2.1. जीव =>य
3.3.2.2 जीव के अितव के िलये माण
3.3.3 अजीव =>य
3.3.3.1 पWु ल
3.3.3.2 आकाश
3.3.3.3 धम5 और अधम5
3.3.3.4 काल
3.4 जैन आचारमीमांसा
3.5 साराश ं
3.6 श-दावली
3.7 अ3यास 01 के उ4र
3.8 स(दभ5 6(थ सचू ी
3.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय २५७
भारतीय दश
न MASL-103

3.1 तावना
जैन दशन से स*बि(धत यह तीसरी इकाई है। इससे पवू  ि&तीय इकाई म आपने जैन Hानमीमासं ा कA
िव7तृत जानकारी ाD कA। िजसके आधार पर आप बता सकते ह5 िक जैन कA माण Jयव7था कै सी
है? इस पाठ म हम जैन दशन के िस@ा(त से स*ब@ तjवमीमांसा तथा आचारमीमांसा के िविभ(न
िवषय1 पर चचा कर ग।े िजसम यह 7प% करने का यास िकया जा रहा है िक इस जगत् कA Jयव7था
जैन म िकस कार से 7वीकृ त है साथ ही नैितक मLू य1 तथा आचार Jयवहार के िवषय मे इनकA Wया
yि% है?इस इकाई के अ3ययन के बाद आप ZJय के 7वKप तथा जैन आचार-Jयवहार को समझा
सक गे तथा अ(य दशन1 के साथ इनकA ि7थित का स*यक् िव|े षण कर सक गे।

3.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप

• बता सक गे िक जैन दशन कA तjवमीमांसा िवषयक yि% Wया है?


• समझ सक गे िक जैन दशन म जीव, अजीव, पTु ल, कालािद Jयव7था Wया है?
• जान पाएगं े िक इस दशन म जगत् कA िविवधता का िनिहताथ Wया है?
• समझ सक गे िक जैन दशन कA आचारमीमासं ा इस जगत् के िकतनी अनK ु प ह5?

3.3 जैन-तव मीमांसा


तjवमीमासं ा के अ(तगत िव के मलू तjव अथात् आिद कारण का अनसु (धान िकया जाता है। यदा
कदा इसे सSामीमांसा भी कहा जाता है। जैन तjवमीमांसा वा7तववादी और सापेcतावादी
बहMववाद है। इसे अनेका(तवाद कहा जाता है। तjव को अन(तधमामक माना गया है Wय1िक
येक व7तु के अन(त धम होते ह5- अन(तधमामकं व7त।ु सSा कA yि% से इसे अनेका(तवाद तथा
Hान कA yि% से 7या&ाद कहा जाता है। अनेका(तवाद का अथ है व7तु का अन(तधमामक होना।
अन(तधमामक का अथ है व7तु म अन(त गणु या अन(त लcण होना। जैन दशन के अनसु ार िजस
आIय म धम होते ह5 वह ‘धमm’ है तथा धमm कA िवशेषताएँ ‘धम’ है। जैन दशन म धमm के िलए
‘ZJय’ शOद का योग होता है। यह ZJय सत् है- सद् ZJयलcणम।् बिLक तjव एवं ZJय कA तरह
ZJय एवं सत् भी एकाथक है Wय1िक सब एक ह5 इसिलये सब सत् ह5- सवमक
े म,् सि&शेषाद।्
3.3.1 ;<य िच8तन
ZJय म दो कार के धम 7वीकार िकये जाते ह5- 7वKप धम और आग(तक
ु धम। इस कार ZJय वह

उतराखड म
ु िविवालय २५८
भारतीय दश
न MASL-103
है िजसम 7वKप और आग(तुक दोन1 धम पाये जाते ह5। 7वKप धम ZJय के अपCरवतनशील एवं
िनय धम ह5। इसके अभाव म ZJय का अि7तव स*भव नहN है। आग(तक ु धम ZJय के
पCरवतनशील धम है। ये धम ZJय म आते-जाते रहते ह5। इनके िबना भी ZJय अि7तववान् हो सकता
है।
जैन दशन म 7वKप धम को गणु कहा जाता है और आग(तक ु धम को पयाय। इस कार जैन दशन
के अनसु ार ZJय वह है िजसम गणु और पयाय पाये जाते ह5- गणु पयायवद् ZJयम।् जैन इस बात पर
बल देते ह5 िक Z्रJय और गणु को पर7पर पृथक् नहN िकया जा सकता।
जैन दशन के अनुसार ZJय सत् है- सदZ् Jयलcणम।् सत् वह है िजसकA उपिS एवं िवनाश होता है
तथा िजसम ि7थरता होती है- उपादJयय›ौJययतु ं सत।् ZJय गणु कA yि% से िनय होता है, Wय1िक
गणु उसके अपCरवतनशील धम ह5। पयाय कA yि% से वह पCरवतनशील और अ7थायी है। जैसे, घट
म मृिSका अपCरवतनशील एवं िनय तjव है। इसकA तीन िवशेषताएँ ह5- उपिS, िवनाश एवं ि7थित।
ZJय कA इन तीन1 िवशेषताओ ं म कोई िवरोध भी नहN है, Wय1िक गणु कA yि% से ZJय म एकता,
सामा(यव एवं िनयता कA िसि@ होती है और पयाय कA yि% से अनेकता, िवशेषव एवं अिनयता
कA। इस कार yि%-भेद से व7तु म एकता और अनेकता, सामा(यव एवं िवशेषव, िनयता एवं
अिनयता एक साथ रह सकते ह5।
3.3.2. ;<य के भेद
- जैन दशन म ZJय के दो भेद ह5- अि7तकाय और नाि7तकाय। अि7तकाय ZJय िव7तृत ZJय है।
चँिू क इसकA सSा है (अि7त) और काय या शरीर कA भाँित आकाश म िव7तृत है, इसिलए इसे
अि7तकाय ZJय कहते ह5। यह बहMदेशJयापी ZJय है। अि7तकाय ZJय के दो भेद ह5- जीव और
अजीव। जीव चेतन ZJय है। अजीव अचेतन ZJय है। अजीव के चार भेद ह5- पTु ल, आकाश, धम
और अधम। नाि7तकाय िव7ताररिहत ZJय है। यह एक देशJयापी है। काल ही एकमा नाि7तकाय
ZJय है। ZJय का सिं cD वगmकरण अVािं कत है-
ZJयअि7तकाय नाि7तकाय (काल)
जीव अजीव
पTु ल आकाश धम अधम
3.3.2.1 जीव;<य-
जैन दशन के वतक आचाय^ के मत म जीव िनय चेतन तथा अभौितक तjव है। जैन दशन म जीव
शरीर एवं इि(Zय1 से सवथा िभ(न एक चेतन सSा है। यहॉं जीव एक ZJय है और चेतना उसका
7वKप या िनय धम है। चेतना के अभाव म जीव का अि7तव स*भव नहN है।

उतराखड म
ु िविवालय २५९
भारतीय दश
न MASL-103
जैन दशन के अनसु ार चेतना कभी न% नहN होती। यहाँ जैन दशन का आमा स*ब(धी िवचार (याय-
वैशिे षक दशन के िवचार1 से िभ(न है। (याय-वैशिे षक दशन म चेतना आमा का आग(तक ु गणु है।
यह आमा एक अचेतन ZJय है जो िवशेष अव7थाओ ं म चैत(य का आधार बनता है। िक(तु जैन
दशन आमा को िनय धम मानता है। उसके अभाव म आमा कA सSा अस*भव है। जैन दशन यह
भी कहता है िक जीव म कुछ आग(तक ु धम भी होते ह5 जो उसम आते-जाते रहते ह5। सुख, दःु ख
इFछा, संकLप, आिद जीव के आग(तक ु धम ह5।
जैन दशन म जीव का एक अ(य लcण भी ाD होता है। उमा7वामी के अनसु ार, जीव का लcण
उपयोग है- उपयोगलcणो जीवः।
जैन दशन के अनसु ार जीव 7वभावतः पणू  है। उसम ‘अन(तचत%ु य’ अथात् चार कार कA पणू त ाएँ
पायी जाती ह5। ये ह5- अन(त Hान, अन(त दशन, अन(त वीय और अन(त आन(द। जीव के ये
7वाभािवक धम के वल म ु जीव1 म अिभJय होते ह5। िक(तु कमफल से स*पृ होने के कारण
सासं ाCरक जीव1 म, जो ब(धनV7त ह5, अन(तचत%ु य कA अिभJयि नहN हो पाती।
जैनदशन चेतना कA अिभJयि के आधार पर जीव1 का वगmकरण करता है। वह सवथम जीव के
दो भेद करता है- म
ु और ब@। म ु जीव1 म जीव के 7वाभािवक 7वKप का पणू  काशन होता है।
ब@ जीव वे ह5 जो अब भी कम पTु ल1 से अ ा(त ह5। जैन दशन ब@ जीव1 के दो भेद करता है- स
और 7थावर। स जीव गितमानं ह5 और 7थावर जीव1 म गित नहN होती। 7थावर जीव1 म जीव के
7वKप कA (यनू तम अिभJयि होती है। इनके पाँच कार है- पृ_वीकाियक, जलकाियक,
वायक ु ाियक, तेजकाियक और वन7पितकाियक। इनम के वल एक इि(Zय, 7पशuि(Zय पायी जाती है।
स जीव1 म 7थावर जीव1 कA अपेcा चेतना अिधक िवकिसत होती है। चैत(य कA अिभJयि कA
yि% से स जीव1 के चार भेद होते ह5-
(1) &ीि(Zय जीव- इन जीव1 को 7पशuि(Zय एवं रसनेि(Zय, दो इि(Zयाँ ाD होती ह5। जैस,े सीप, िबना
पैर1 वाले कAट और घ1घा।
(2) ीि(Zय जीव- िजनके इन दो के साथ }ाणेि(Zयॉं भी ह5 ा◌ीि(Zय कहलाती ह5। जैसे- ज◌ ू ॅ◌ं,
खटमल, िपपीिलका आिद।
(3) चतCु रि(Zय जीव- इन जीव1 म 7पश, रसना, }ाण और चcःु ये चार इि(Zयाँ पायी जाती ह5 ।
जैसे- `मर, मWखी आिद।
(4) पंचेि(Zय जीव- इन जीव1 म पाँच1 Hानेि(Zय1 होती ह5। जैस-े मनEु य, पश,ु पcी आिद।
उपय ु िववेचन से यह त_य भी काश म आता है िक जैन दशन अनेकजीववाद म िवास करता
है। जैन दशन का यह िवचार सां;य दशन के ‘पpु षबहMव कA अवधारणा’ के नजदीक है।

उतराखड म
ु िविवालय २६०
भारतीय दश
न MASL-103
जैन दशन जीव के िवषय म म3यमपCरमाणवाद का ितपादन करता है। यह भारतीय दशन म एक
िविच िस@ा(त है। इसके अनसु ार जीव का पCरमाण म3यम आकार का है। यह सांसाCरक अव7था
म जीव के पCरमाण को घटने-बढ़ने वाला मानता है। यह आमा के पCरमाण के िवषय म िवभवु ाद
और अणवु ाद का म3यवतm िस@ा(त है। भारतीय दशन म (याय एवं अ&ैत वेदा(त, आिद
िवचारधाराएँ आमा को ‘िवभ-ु पCरमाण’ मानती ह5। इसके िवपरीत वैEणव िवचारधाराएँ उसे ‘अण-ु
पCरमाण’ मानती ह5। इन दोन1 िस@ा(त1 के िवपरीत जैन दाशिनक उसे ‘म3यम-पCरमाण’ मानते ह5। वे
उसे शरीरपCरमाणी कहते ह5।
जैन दशन के अनसु ार जीव म िव7तार है, उसम िव7तार और सकं ोच कA सभं ावना रहती है। जीव
िजस भौितक शरीर से स*ब@ होता है, उसकA ल*बाई- चौड़ाई के अनK ु प उसका िव7तार और
संकोच होता है। माता के गभ म िशशु लघु आकार का होता है और शरीरिव7तार के साथ उसका
आकार बढ़ता रहता है। जब जीव मनEु ययोिन म होता है तो उसका पCरमाण मानवशरीर के तLु य
होता है। जब वही जीव अपने कमानसु ार हाथी या चNटी के शरीर म वेश करता है तब उसका
पCरमाण हाथी या चNटी के पCरमाण के समान हो जाता है। अथात् जीव न तो िवभु है और न अण,ु
अिप तु वह शरीरपCरमाणी है। जैन के अनसु ार िजस कार एक ही कमरे को दो दीपक आलोिकत
कर सकते ह5 उसी कार एक ही शरीर म एकािधक जीव भी अि7तववान् हो सकते ह5।
3.3.2.2 जीव के अि"तव के िलए &माण-
जैन दशन म िन*निलिखत यिु य1 के आधार पर जीव या आमा कA सSा िस@ कA जाती है-
(1) सख
ु , दःु ख इFछा, सक
ं Lप आिद गणु 1 का हम अनभु व होता है। चँिू क गणु िबना गणु ी के नहN रह
सकते। अतः इन गणु 1 के अि7तव के िलए भी िकसी ZJय का होना आवbयक है। ये ZJय ही आमा
ह5।
(2) शरीर य(वत् है। िजस कार िकसी य( को संचािलत करने के िलए एक चालक कA
आवbयकता होती है उसी कार शरीर जो जड़ है उसे सच
ं ािलत होने के िलए भी एक चालक कA
आवbयकता है। वह चालक ही आमा है।
(3) हमारी Hानेि(Zयाँ Hान के साधनमा ह5। यह Hान 7वयं Hानेि(Zयां◌े को या शरीर को नहN ाD
होता। इन साधन1 से Hान ाD करने वाला आमा है।
(4) शरीर के िनमाण के िलए आमा कA सSा आवbयक है। शरीर का िनमाण पTु लकण1 से होता है।
ये पTु लकण अचेतन ह5। अतः इनसे 7वतः शरीर का िनमाण नहN हो सकता। शरीर का आकार ाD
करने के िलये इ(ह एक िनिमS कारण कA आवbयकता है। यह िनिमS कारण आमा या जीव है।

उतराखड म
ु िविवालय २६१
भारतीय दश
न MASL-103
3.3.3 अजीव-;<य-
जैन दशन म अजीव अचेतन या जड़ ZJय है। िजसे सुख दःु ख कA अनुभिू त नहN होती वह अजीव
ZJय है। जीव कA तरह अजीव भी अि7तकाय ZJय है। ये अजीव ZJय चार कार के ह5- पTु ल,
आकाश, धम और अधम।
3.3.3.1 पुŠल-
सघं टन तथा िवघटन के &ारा पCरणाम को ाD करने वाले अजीव ZJय का नाम पTु ल है। जैन दशन
म पTु ल जड़ तjव या भौितक तjव है। तjव Kप म पTु ल का योग बौ@ दशन म भी हMआ है
वहॉं◌े◌ं यह शOद जीव के िलए आया है। यह िव का भौितक आधार है। Jयु पिS के अनसु ार,
पTु ल का अथ है परू यि(त गलयि(त च। अथात् जो ZJय परू ण और गलण के &ारा िविवध कार से
पCरवितत होता है वह पTु ल है- गलनपरू ण7वभावसनाथः पTु लः।
पTु ल के दो कार ह5- अणK ु प और 7क(धKप। पTु ल के िवभाजन कA अि(तम एवं सoू मतम
अव7था, जो पनु ः अिवभाtय हो, गणु कहलाती है। अणु अिवभाtय होने के कारण िनरवयव होता
है। इसका आिद, अ(त एवं म3य कुछ भी नहN होता। यह सoू मतम, अिवभाtय, िनरवयव, िनरपेc
एवं िनय सSा है। इसका न तो िनमाण होता है और न िवनाश। वह 7वयं अमतू  है। यह अमतू  होते
हMए भी सभी मतू  व7तओ ु ं का आधार है। जैन दशन के अनसु ार अणओ ु ं म Kप, रस, ग(ध, और 7पश
गणु होते ह5। ये गणु िनय या 7थायी नहN ह5। अणओ
ु ं के ये गणु उनके संघात1 म भी पाये जाते ह5।
जैन दशन के अनसु ार अणु पTु ल1 के संघात से 7क(ध पTु ल1 का िनमाण होता है। जैन दशन कA
सृि%मीमासं ा म िव का ढाँचा परमाणओ ु ं से िनिमत मान जाता है। सभी भौितक पदाथ, जो इि(Zय1
से जाने जाते ह5, िजनम जीव1 के शरीर, Hानेि(Zयाँ एवं मन भी शािमल ह5, अणओ ु ं से िनिमत ह5। दो
या अिधक अणओ ु ं के संयोग से 7क(ध या संघात पTु ल उप(न होते ह5। अणओ ु ं म आकषणशि
होती है िजससे अणओ ु ं म सयं ोग पर िवभाग होता है। पृ_वी, जल, अिlन, और वायु 7क(ध पTु ल ह5
और स*पणू  जगत् इ(हN 7क(ध1 से िनिमत है। येक ybयमान पदाथ एक 7क(ध है और भौितक
जगत् 7क(ध1 का समहू है। भौितक जगत् म िदखाई देने वाले पCरवतन अणओ ु ं के संयोग और
िवभाग से उप(न होते ह5। संcेप म, अणपु Tु ल अybय ह5, अनमु ानग*य ह5, िक(तु 7क(ध पTु ल
yि%गोचर ह5। अणु पTु ल कारणKप ह5 और 7क(ध पTु ल कायKप।
भारतीय दशन म◌
ं े अणवु ादी कLपना वैशिे षक दशन म भी ाD होती है। जैन एवं वैशिे षक अणवु ाद
म कुछ समानताएँ ह5। दोन1 अणओु ं को अिवभाtय, िनरवयव, िनय, अybय तथा भौितक जगत् का
उपादान कारण मानते ह5। दोन1 दशन1 के अणवु ादी िवचार1 म कुछ मतभेद भी ह5। जैसे, जैन दाशिनक
अणओ ु ं म के वल पCरमाणामक भेद मानते ह5, िक(तु वैशिे षक दाशिनक अणओ ु ं म पCरमाणामक

उतराखड म
ु िविवालय २६२
भारतीय दश
न MASL-103
और गणु ामक दोन1 भेद 7वीकार करते ह5। जैन दाशिनक अणओ ु ं के गणु 1 को िनय नहN मानते,
िक(तु वैशिे षक इनके गणु 1 को भी िनय मानते ह5। जैन के परमाणवु ाद पर िट~पणी करते हMए डॉ0
हरमन जैकोबी का कहना है िक हम जैन1 को थम 7थान देते ह5 Wय1िक उ(ह1ने पTु ल के स*ब(ध म
अतीव ाचीन मत1 के आधार पर ही अपनी प@ित (परमाणवु ाद) को 7थािपत िकया है।
3.3.3.2 आकाश-
जैन दशन म आकाश वह अि7तकाय ZJय है िजसम अ(य अि7तकाय ZJय, जीव एवं अजीव
िव7तृत ह5 तथा यह Kपािदरिहत, अमतू , िनिE य तथा सवJयापक है। आकाश 7वतः न गित कA
अव7था म है और न ि7थरता कA अव7था म। उLलेखनीय है िक िव7तृत होना अि7तकाय ZJय1 का
धम है, िक(तु उनका िव7तार आकाश म ही स*भव है। यह भी सय है िक आकाश िव7तारहीन
पदाथ^ को िव7तृत नहN कर सकता, िक(तु िव7तृत पदाथ^ का िव7तार आकाश के अभाव म स*भव
नहN है। आकाश अन(त है। आकाश- यc का िवषय नहN है। उसका Hान अनमु ान से होता है। जैन
दशन अि7तकाय ZJय1 के िव7तार हेतु आकाश का अनमु ान करता है।
इस आकाश के दो भेद ह5- लोकाकाश और अलोकाकाश। लोकाकाश म ही गित स*भव है। सभी
अि7तकाय ZJय लोकाकाश म ही िव7तृत ह5। अलोकाकाश श(ू य आकाश है। यह अन(त तक
िव7तृत है। इसम गित का अभाव है।
3.3.3.3 धम
और अधम
-
जैन दशन म धम एवं अधम का शािOदक अथ न तो शभु और अशभु कम ह5, न पु य और पाप तथा
न गणु और पयाय Kप धम। यहाँ ये शOद तकनीकA और पाCरभािषक अथ म 7वीकार िकये जाते ह5।
जैन दशन संसार म गित एवं ि7थित के िलए मशः धम और अधम कA सSा 7वीकार करता है। ये
दोन1 जीव और पTु ल कA मशः गित और ि7थित के सहायक कारण ह5। धम गित का आधार है।
धम 7वयं गित नहN है और न यह जीव और पTु लािद ZJय1 को गित दान करता है। िक(तु इन ZJय1
म जो गित िदखाई देती है वह धम के कारण ही होती है। धम उनकA गित म के वल सहायक होता है।
जैसे, मछली पानी म तैरती है। पानी मछली को न तो गित दान करता है और न उ(ह गित करने के
िलए ेCरत करता है, अिपतु वह उसके तैरने के िलए आधार देता है। उसी कार धम जीवािद ZJय1
कA गित का आधार है। इसी कार अधम न तो 7वयं ि7थित है और न वह जीवािद ZJय1 को ि7थित
दान करता है। वह के वल जीव, पTु लािद ZJय1 कA ि7थित का आधार है।
धम एवं अधम म पर7पर िवरोध के अितCर कितपय समानताएँ भी ह5। ये दोन1 मशः गित एवं
ि7थित के उदासीन कारण है। इन दोन1 का Hान अनमु ान से ही होता है। गित के कारण के Kप म धम
का और ि7थित के कारण के Kप म अधम का अनुमान िकया जाता है। दोन1 म Kप, रस, ग(ध और
7पश आिद गणु 1 का अभाव है। दोन1 िनय एवं अमतू  ह5।

उतराखड म
ु िविवालय २६३
भारतीय दश
न MASL-103
3.3.3.4 काल-
पCरवतन का जो कारण है उसे काल कहते ह5। यह एक अनि7तकाय ZJय है। इसका अि7तव तो है,
िक(तु इसम कायव या िव7तार नहN है। काल कA सSा भी अनमु ान से ही िस@ होती है। वतना,
पCरणाम, ि या, परव और अपरव, tयेv और किनv आिद िवचार1 कA साथकता के िलए काल
कA सSा का अनमु ान िकया जाता है। काल न हो तो उ अवधारणाएँ स*भव नहN ह5। िभ(न-िभ(न
cण1 म वतमान रहना वतना है। अव7थाओ ं म पCरवतन पCरणाम है। ि या अथवा गित भी िभ(न-
िभ(न अव7थाओ ं को धारण करना है। इनके िलए काल का होना आवbयक है। इसी कार पवू  तथा
पBात् के भेद, tयेv एवं किनv के भेद कA स*भावना भी काल के कारण है। इनकA स*भावना के
िलए ही काल कA सSा का अनमु ान करते ह5। सम7त िव म एक ही काल JयाD है।
काल के भेद- काल के दो भेद ह5- पारमािथक काल और JयावहाCरक काल। वSना पारमािथक काल
के कारण होती है। यह सदैव वतमान काल म ही रहती है। इसम भतू ्, वतमान एवं भिवEयत् का
िवभाजन नहN होता। JयावहाCरक काल को ‘समय’ भी कहते ह5। वSना के अितCर अ(य पCरवतन
JयावहाCरक काल के कारण होते ह5। वष, मास, पc, सDाह, िदन, घटं ा, िमनट, सेकड, पल, cण
आिद JयावहाCरक काल के उदाहरण ह5। पारमािथक काल अनािद और अन(त है, िक(तु JयावहाCरक
काल सािद और सा(त है।
सcं ेप म, जैन दशन कA 7थापना िन*न कार कA है। दशन कA सभी णािलयॉं सत् या वा7तिवकता
के 7वKप कA Jया;या करने के यास म िकसी एक िवशेष िवकLप से जड़ु ी रहती ह5। उनका
हठधिमतापणू  दावा होता है िक के वल उ(हN का िवकLप सFचा िवकLप है जब िक अ(य णािलय1
कA धारणाए तािक कता पर खरी नहN उतरतN और इसिलये उ(ह अ7वीकार िकया जाना चािहए। जैन
दशन के अनसु ार एक ही िवकLप को पकड़े रहना उिचत नहN है। संसार बहMलता य ु है। यहॉं तक
िक एक अके ली व7तु भी अनेकधमm होती है। व7तओ ु ं को अनेक yि%काण1 से देखा जा सकता है।
येक yि%कोण से िभ(न िनEकष िनकलता है। िक(तु ऐसे येक िनEकष म मा आिं शक सय
होगा। परम 7वीकार या परम िनषेध, दोन1 ही `मपणू  ह5। येक 7थापना सशत होती है। कोई भी
7वीकृ ित या िनषेध िकसी िविश% ि7थित म ही सय हो सकता है, यह अपने आपम सय नहN हो
सकता।
अ$यास &.
1. जैन दशन म सत् का लcण है-
(क) उपाद, Jयय एवं ›ौJय से य
ु होना (ख) कूट7थ िनय होना
(ग) िकालातीत होना (घ) जैसा है वैसा ही होना

उतराखड म
ु िविवालय २६४
भारतीय दश
न MASL-103
2. जैन दशन म पTु ल है-
(क) जीव ZJय (ख) अजीव ZJय
(ग) ZJय का धम (घ) िनय ZJय
3. जैन दशन म जीव का 7वKप है-
(क) अनि7तकाय (ख) म3यम पCरमाण
(ग) एकमा सय (घ) इनम से कोई नहN
4. िन*निलिखत म गित का आधार है-
(क) जीव (ख) अजीव
(ग) अधम (घ) धम
5. िन*निलिखत म से अनि7तकाय Z्रJय है-
(क) पTु ल (ख) धम
(ग) काल (घ) अधम
6. िन*निलिखत म से कौन असय है-
(क) जैन दशन म अजीव अचेतन ZJय है।
(ख) िजसे सख
ु दःु ख कA अनुभिू त होती है वह अजीव ZJय है।
(ग) जीव कA तरह अजीव भी अि7तकाय ZJय है।
(घ) धम अजीव ZJय है।

3.4 जैन आचारमीमांसा


अ(य भारतीय दशन1 कA भॉंित जैन दशन कA भी अपनी आचार मीमासं ा है। यह आचार मीमासं ा
इनके मोc Hान कA पCरिध म ि7थर है। ऐसे म इस दशन म मोc साधना के म म आचार कA श@ ु ता
का िवशेष महjव है। ब(धन से छुटकारा मोc है- यह जानते हMये मोc कA अवधारणा से पवू  ब(धन
को जानना आवbयक है।

उतराखड म
ु िविवालय २६५
भारतीय दश
न MASL-103
ब(धन का 7वKप- जैन दशन म ब(धन एवं मोc का h जीव या आमा के िवषय म उठता है। जैन
दशन के अनसु ार जीव एक ZJय है और चेतना उसका लcण है। जीव 7वभावतः पूण एवं म ु है।
उसम ‘अन(तचत%ु य’ अथात् चार कार कA पणू त ाएँ पायी जाती ह5। ये ह5-अन(त दशन, अन(त Hान,
अन(त वीय एवं अन(त आन(द। जीव के ये 7वाभािवक धम के वल म ु जीव1 म अिभJय होते ह5।
िक(तु कमफल से स*पृ होने के कारण सांसाCरक जीव1 म, जो ब(धनV7त ह5, अन(तचत%ु य कA
अिभJयि नहN हो पाती। उLलेखनीय है िक ब(धनV7त अव7था म भी जीव के ये लcण के वल
ितरोिहत होते ह5, न% नहN होते। कमज(य बाधाओ ं के दरू हो जाने पर ये 7वाभािवक धम जीव म पनु ः
कट हो जाते ह5। जैसे, सयू  स*पणू  जगत् को आलोिकत करता है, िक(तु मेघ और तषु ार, आिद के
आवरण के कारण वह ससं ार को कािशत नहN कर पाता। जब इनसे उप(न आवरण दरू हो जाता है
तब वह संसार को पनु ः कािशत करता है। वैसे ही जीव भी 7वभावतः पणू  है और ‘अन(तचत%ु य’
से य
ु है, िक(तु ब(धन V7त होने के कारण उसके 7वाभािवक 7वKप कA अिभJयि नहN हो पाती।
जब वह म ु हो जाता है तब वह अपनी 7वाभािवक पणू त ा को पनु ः ाD कर लेता है।
जैन दशन के अनसु ार ब(धन का अथ है, ‘ज(म Vहण करना’, ‘जीव का शरीर से स*ब(ध होना’।
जीव और कमपTु ल1 का संयोग होना ब(धन है। शरीर धारण करने से या कम पTु ल1 से संयोग होने के
कारण जीव कA 7वाभािवक पूणत ा ितरोिहत हो जाती है और उसके 7वKप कA अिभJयि नहN हो
पाती।
जैन दशन के अनसु ार कम ही ब(धन का कारण है। जैन दशन म कम कA अवधारणा अय(त
िवलcण है। भारतीय दशन कA अ(य णािलय1 म कम का तापय अFछे बरु े काय^ और करनेवाले
के िलये उनके अFछे या बरु े पCरणाम1 से होता है। िक(तु जैन दशन म कम मलू तः भौितक एवं
पौTिलक है जो जीव से उसी कार संलlन हो सकता है िजस कार िकसी िचपिचपे पदाथ से मैल
िचपक जाती है। कम का तापय पदाथ के उन सoू म कण1 से है जो जीव को बॉंधते ह5। कम जीव से
सयं
ु होकर उसके 7वKप कA दिू षत कर देता है िजसके कारण जीव अपनी श@ ु ता से Fयतु होकर
ब(धन कA अव7था म आ जाता है।
जैन दशन म कम कA महती भिू मका है। जीव कA स*पणू  शारीCरक िवशेषताएँ कमज(य मानी जाती है।
ये कम आठ कार के ह5-
Hानावरणीय कम- Hान का न% करने वाले कम।
दशनावरणीय कम-िवास का न% करने वाले कम।
मोहनीय कम- अHान या मोह पैदा करने वाले कम।
वेदनीय कम- सख
ु या दःु ख कA अनभु िू त पैदा करने वाले कम। गो कम- गो को िनधाCरत करने
वाले कम।

उतराखड म
ु िविवालय २६६
भारतीय दश
न MASL-103
आयEु कम- जीव कA आयु का िनधारण करने वाले कम।
नाम कम- वह कम, िजससे Jयि के नाम का िनBय होता है और अ(तराय कम- बाधाएँ पैदा करने
वाले कम।
कम जीव के अ(दर िव% होकर उसे ज(म लेने के िलए बा3य करता है। जीव के अतीत कम^ से जीव
म वासनाएँ पैदा होती है। वासनाएँ तृD होना चाहती ह5, पCरणाम7वKप वे पTु ल1 को अपनी ओर
आकृ % करके जीव को शरीर से स*ब@ कर देती ह5।
जैन दशन भी अ(य भारतीय िवचारधाराओ ं के समान अिवा को ब(धन का कारण मानता है।
अिवा के कारण उसका वा7तिवक 7वKप तो अवp@ होता ही है, उसम िम_या दशन भी उप(न
होता है, पCरणाम7वKप उसम अिवरित एवं माद आता है। अपने 7वाभािवक 7वKप के Hान एवं
शभु -अशभु के िवषय म उदासीनता ही मशः अिवरित एवं माद है। जीव म अिवरित एवं माद से
ोध, मान, माया, लोभ कुवृिSयाँ पैदा होती ह5। इ(ह कषाय कहते ह5। ये कषाय योग &ारा कमपTु ल
को जीव से संय ु करते ह5। जैन दशन म योग का योग काियक, वािचक एवं मानिसक 7प(दन1 के
िलए होता है। इनके &ारा जीव कA ओर कमपTु ल आकिषत होते ह5। इस कार जैन दशन म िम_या
दशन, अिवरित, माद, कषाय एवं योग ब(धन के कारण है।
जीव कA ओर कम पTु ल1 का वाह ‘आŠव’ कहलाता है। आŠव ब(धन का कारण है, Wय1िक
आŠव के अभाव म कमपTु ल जीव म वेश नहN कर सकते। आŠव के दो भेद ह5- भावाŠव और
ZJयाŠव। जीव म कमपTु ल1 के वेश के पवू  जीव के भाव1 म पCरवतन होता है िजसे ‘भावाŠव’
कहते ह5। इसके बाद जीव म कम पTु ल1 का वेश हो जाना ‘ZJयाŠव’ है। िजस कार तेल से िलD
शरीर पर धलू रािश िचपक कर जमा हो जाती है उसी कार कमपTु ल जीव पर िचपक जाते ह5। तेल से
िलD होना भावाŠव और उस पर धल ू रािश का िचपक जाना ZJयाŠव है।
इस कार जैन दशन के अनसु ार कषाय1 के कारण कमानसु ार जीव का पTु ल से आ ा(त हो जाना
ही ब(धन है। ब(धन के भी दो भेद ाD होते ह5- भावब(ध और ZJयब(ध। जीव म कमपTु ल1 के वेश
के पवू  उसम भावाŠव उप(न होता है। उसके पBात् जीव का जो ब(धन होता है, वह भावब(ध है।
इसके बाद कमपTु ल1 का वेश होने पर जीव म ZJयाŠव उप(न होता है। उसके बाद जीव का जो
ब(धन होता है उसे ZJयब(ध कहते ह5।
जीव का कमपTु ल1 से िवयोग मोc है। कमपTु ल1 से जीव का िवयोग होने के िलए दो चीज
आवbयक ह5- नये कमपTु ल1 का जीव कA ओर आŠव ब(द हो जाय और जीव म िव% हMए परु ाने
कमपTु ल1 का िवनाश हो जाय। इनम से थम अव7था संवर है और ि&तीय अव7था िनजरा है। संवर
से नये कमपTु ल1 का जीवामा म वेश करना िनp@ हो जाता है। संवर के दो भेद ाD होते ह5-

उतराखड म
ु िविवालय २६७
भारतीय दश
न MASL-103
भावसवं र और ZJयसंवर। भावसंवर ZJयसंवर कA पवू वती अव7था है िजसम जीव के राग-&ेष
मोहKप िवकार1 का िनरोध होता है। ZJयसंवर म जीवामा म नये कमपTु ल1 का वेश िनp@ हो
जाता है। इस कार संवर म जीव राग, &ेष, मोह, आिद िवकार1 से रिहत हो जाता है िजससे उसम नये
कमपTु ल1 का वेश तथा उससे होने वाला ब(धन pक जाता है।
सवं र कA अव7था म जीवामा म नये कमपTु ल1 का वेश तो ब(द हो जाता है, िक(तु आमा म
पहले से ही िव% हMए कमपTु लां◌े का िनरोध संवर से नहN होता। अतः के वल संवर से ही जीवामा
कमपTु ल1 से छुटकारा नहN ाD कर पाता। इसके िलए यह भी आवbयक है िक जीवामा म पहले से
िव% हMए कमपTु ल भी न% हो जाय। जीवामा म पहले से ही िव% हMए कमपTु ल1 का िवनाश
िनजरा है। िनजरा के भी दो भेद ह5- भाव िनजरा और ZJय िनजरा। साधक म भाव-िनजरा म कम^ का
नाश करने कA भावना उप(न होती है। ZJय-िनजरा म आमा म िव% हMए कमपTु ल1 का वा7तिवक
नाश होता है। इसम दशन, Hान एवं चCर के अgयास से जीवामा म िव% हMए कमपुTल1 का
िवनाश िकया जाता है। जब कमपTु ल का अि(तम कण भी जीवामा से पृथक् हो जाता है तब वह
अपनी 7वाभािवक पणू त ा को ाD करके म ु हो जाता है। यही मोc कA अव7था है। इस कार जीव
के सभी कम^ का cय मोc है- कृ 7नकमcयो मोcः। मोc अभावामक अव7था नहN है। वह एक
भावामक अव7था है। इसम के वल दःु खिनवृिS ही नहN होती, अिपतु वह इसम अपनी 7वाभािवक
पणू त ा अन(त दशन, अन(त Hान, अन(त वीय और अन(त आन(द को भी ाD कर लेता है। इस
कार मोc अन(त आन(द और अन(त Hान कA भी अव7था है।
स*यक् दशन स*यक् Hान और स*यक् चCर, मोc के माग माने जाते ह5। जैन दशन कA मोcमीमांसा
म इन तीन1 का महवपणू  7थान है, Wय1िक तीन1 सि*मिलत Kप से मोc के साधन ह5। इसिलए जैन
दाशिनक इ(ह ‘िरन’ कहते ह5। इन तीन1 साधन1 का पृथक्-पृथक् वणन अVािं कत है-
स*यक् दशन- जैन दशन के धम एवं इसके तीथकर1 के उपदेश1 म yढ़ िवास स*यक् दशन है।
इसकA आवbयकता संशय के िनवारण के िलए होती है। स*यक् दशन का उदय दशनावरणीय कम^
के िवनाश से होता है।
स*यक् Hान- जैन धम एवं दशन के िस@ा(त1 का Hान स*यक् दशन है। इसम जीव और अजीव के
मलू तjव1 का पणू  Hान होता है। यह तjव1 का असि(दlध एवं दोषरिहत Hान है। Hानावरणीय कम^ के
िवनाश से स*यक् Hान कA ािD होती है।
स*यक् चCर- स*यक् Hान को कम म पCरणत करना स*यक् चCर है। अिहतकारी कमा\ का
पCरयाग और िहतकारी कमा\ का आचरण ही स*यक् चCर है। यह जैन साधना का सबसे महवपूण
अगं है, Wय1िक मनEु य स*यक् कम से ही कमम
ु होकर जीवन के लoय को ाD कर सकता है।
इसम अिहसं ा, सय, अ7तय, QRचय एवं अपCरVह, इन पाँच …त1 के पालन का उपदेश है। जैन

उतराखड म
ु िविवालय २६८
भारतीय दश
न MASL-103
दशन म इन …त1 के दो Kप ह5- ‘महा…त’ और ‘अण…ु त’। महा…त का िवधान जैन सं(यािसय1 के
िलए है और अण…ु त का िवधान गृह7थ1 के िलए।
अिहसं ा- जैन साधना के पंच…त1 म अिं हसा को महवपणू  7थान ाD है। ऐसा माना जाता है िक
भारत म अिहसं ा के िस@ा(त का थम उोष जैन ने ही िकया था। अिहसं ा का शािOदक अथ है, मन,
वाणी और कम, तीन1 से होने वाली िहसं ा का पCरयाग। जैन दशन म अिहसं ा का अथ के वल दसू र1
को हािन पहMचँ ाने से बचना ही नहN है, अिपतु उनके उपकार म सचे% रहना भी है।
सय- इसका अथ है, ‘असय वचन का पCरयाग’। इस …त का पालन करने के िलए मनEु य को भय,
लोभ एवं परिन(दा कA वृिS से दरू रहना चािहए।
अ7तेय- चौरवृिS का वजन अ7तेय है। जैन दशन के अनसु ार िबना िदये पर ZJय का Vहण नहN करना
चािहए। जैन दशन के जीवन कA भाँित उसकA स*पिS को भी अय(त पिव मानता है। वे इसे Jयि
का बाn जीवन कहते ह5। इस कार वे परZJय Vहण को भी जीव-िहसं ा ही मानते ह5।
QRचय- जैन दशन वासनाओ ं के पCरयाग को QRचय कहते ह5। यह के वल इि(Zय-सख ु का
पCरयाग नहN है, अिपतु सभी कामनाओ ं का पCरयाग है।
अपCरVह- िवषयासि का पCरयाग अपCरVह है। जैन दशन के अनसु ार ममु c ु ु को शOद, 7पश, Kप,
रस और ग(ध, इन िवषय1 का पCरयाग करना चािहए। जैन सं(यासी से पणू  अपCरVह कA अपेcा कA
गयी है। वह िकसी भी व7तु को, िभcापा को भी अपना नहN कह सकता।
जैन दशन के अनसु ार जीव स*यक् दशन, स*यक् Hान और स*यक् चCर का अनसु रण करते हMए
सम7त कमबाधाओ ं को दरू करके मोc ाD करते ह5।
जैन दशन कA िवशेषता उसका JयावहाCरक उपदेश है। िक(तु इसके &ारा बतायी गयी साधना अय(त
कठोर है। अपनी कठोरता के कारण ही यह सामा(य जन का धम नही बन सका। इसके &ारा साधओ ु ं
के िलए बतायी गयी साधना तो कठोर है ही, गृह7थ1 के िलए िनधाCरत कA गयी साधना भी
अपेcाकृ त कठोर है। यह अपनी कठोरता के कारण मिु नय1 का ही धम बन कर रह गया। जैन दशन
&ारा महा…त एवं अण…ु त के Kप म आचार-प@ित का िवभाजन कृ िम है। इससे जैन धम और
अिधक अJयावहाCरक हो गया।
अ$यास &.
1. जैन दशन म मोc है
(क) आवागमन से मिु (ख) िदये का बझु ना
(ग) जीव का कमपTु ल1 से िवयोग (घ) परमामा कA ािD
2. जैन दशन म कम है
(क) लoय ाD करने का कारण (ख) अहत् पद ाD करने का करण
(ग) ब(धन का कारण (घ) जैन दशन म वृS होना
3. बाधाएँ पैदा करने वाले कम ह5-

उतराखड म
ु िविवालय २६९
भारतीय दश
न MASL-103
(क) नाम कम (ख) अ(तराय कम
(ग) मोहनीय कम (घ) आयEु कम
4. जीव कA ओर कम पTु ल1 का वाह -------- कहलाता है।
5. जीव और कमपTु ल1 का सयं ोग होना -------- है।
3.5 सारांश
इस इकाई को पढने के बाद आप यह जान चक ु े ह5 िक जैन दशन कA तjवमीमांसा म ZJय कA िविश%
अवधारणा है। जीव एवं अजीव इन दो भाग1 म िवभािजत ZJय िव के अणु से अणतु म एवं महान से
महSम तjव1 कA Jया;या म पणू त या सcम ह5।
इसी कार इनकA आचारमीमांसा िजस कार कमब(ष?् धन एवं मोc कA तािक क Jया;या 7ततु
करती है वह िव दशन िच(तन पर*परा म सवथा अनठू ा है। इसी म म सं(यासी एवं गृह7थ1 कA
आचार प@ित का भी यहॉं िच(तन ाD होता है। जैन दाशिनक 7प% Kप से साधु एवं गृह7थ कA
आचार प@ित कA Jया;या करते ह5 िक(तु दान1 के िलये यह प@ित अय(त कठोर है।
अ7त,ु इस इकाई के अ3ययन से आप तjवमीमांसा एवं आचारमीमांसा के अनुशीलन से इस
व7तवु ादी एवं बहMववादी दशन के सावभौिमक िच(तन को अय(त सहजता से समझ कर अपने
Hान को अिभJय कर पाएगं ।े
इस इकाई के अ3येयन से आप काJयानश ु ीलन &ारा सहज ही ाDा होने वाले फल1 और उपादान1
कA अनभु िू त को अिभJय य कर सक गे।

3.6 शदावल
सापेcतावादी- यह िच(तन कA एक ऐसी िवधा है िजसम िच(तक जगत् के िकसी भी व7तु कA सSा
का िनषेध नहN करते बिLक िकसी भी व7तु कA सSा अथ वा सयता का िनधारण िकसी िभ(न व7तु
कA अपेcा करते ह5।
अन(तधमामक- जैन दशन म व7तु को अन(तधमामक कहा गया है Wय1िक इस लोक म अनेक
व7तएु ह5 तथा येक व7तु के अनेक धम होते ह5- अन(तधमकं व7त।ु
पpु ष बहMव- सां;य दशन म अनेक पpु ष कA अवधारणा है। इसी िलये उसम पpु ष बहMव कA
अवधारणा 7ततु कA गयी है। सां;य के अनसु ार कृ ित के अितCर पpु ष दसू रा मल
ू तव है।
अि7तकाय- अि7तकाय का अथ है िव7तार य
ु , सSाय
ु होने से यह अि7त है तथा शरीर के समान
िव7तारय
ु होने के कारण यह काय कहलाता है।

उतराखड म
ु िविवालय २७०
भारतीय दश
न MASL-103
अनि7तकाय- अि7तकाय का िवपरीत अनि7तकाय होता ह5। इसका सामा(य अथ है एकदेशJयापी
होना। जैन दशन म काल एकमा एकदेशJयापी ZJय है।

3.7 अयास 
न के उतर
3.3 1. क, 2. ख, 3. ख, 4. घ, 5. ग, 6. ख
3.3. 1. ग 2. ग 3. ख 4. आŠव 5. ब(धन

3.8 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1. झा, आचाय आन(द, (1969) चावक दशन, िह(दी सिमित, सचू ना िवभाग, उSरदेश,
लखनउ,
2. ऋिष, ो0 उमाशक ं र शमा, (1964), सवदशनसंVहः, चौख*बा िवाभवन, वाराणसी-1
3. शमा, च(Zधर, (1991), भारतीय दशन आलोचन और अनश ु ीलन, मोतीलाल
बनारसीदास, िदLली
4. देवराज, डॉ0 न(दिकशोर, (1992), भरतीय दशन, उSरदेश िह(दी सं7थान, लखनउ
5. प0ं सख
ु लाल, माणमीमासं ा (हेमच(Z) (1939)
6. मेहता, मोहनलाल, जैन दशन, Iी स(मित Hानपीठ, लाहामडं ी, आगरा
7. उमा 7वामी, तवाथािधगम सू (सख ु लाल संघवी कृ त िववेचन), पानाथ िवाIम शोध
सं7थान, वाराणसी-5
8. िमI, पंकज कुमार (1998), वैशिे षक एवं जैन तjवमीमांसा म ZJय का 7वKप, पCरमल
पिOलके श(स, शि नगर िदLली।
3.9 *नब%धामक 

(क) जैन दशन कA तjवमीमांसा म ZJय का िव7तृत वगmकरण 7ततु कर ।
(ख) जैन दशन धम एवं अधम कA तल
ु ना करते हMए इनकA िवशेषता पर काश डाल।
(ग) जैन आचार मीमांसा के वैिश%्य पर एक िव7तृत िनब(ध िलख।
(घ) जैन दशन म ब(धन के 7वKप को 7प% करे

उतराखड म
ु िविवालय २७१
भारतीय दश
न MASL-103

 4- 7 <   '/7    


4.1 तावना
4.2 उे

4.3 चावा5क दश5न का पGरचय
4.3.1 भिू मका
4.3.2 चावा5क दश5न के उXलेख
4.3.3 चावा5क दश5न िविभ(न नाम एवं उनके अथ5
4.3.4 चावा5क दश5न के सािहय
4.4 चावा5क दश5न के िसEा(त
4.4.1 चावा5क दश5न क ानमीमासं ा
4.4.2 चावा5क दश5न क तVवमीमासं ा
4.5 सारांश
4.6 श-दावली
4.7 अ3यास 01 के उ4र
4.8 स(दभ5 6(थ सचू ी
4.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय २७२
भारतीय दश
न MASL-103

4.1 तावना
चावाक दशन से स*ब@ थम तथा इस Oलॉक कA चतथु  इकाई म आपकA जानकारी के िलये यहॉं
सवथम चावाक दशन के पCरचय एवं िस@ा(त 7ततु िकये जा रहे ह5, इस िवास के साथ िक
ायः कम चिलत यह वाद आपके Hान को अिभJ@ कर पाएगा।
भारतीय दाशिनक िच(तक कA सामा(य एवं िविश% ायः सम7त धारा का एकमा अपवाद
चावाक दशन है। सामा(य Kप से इस ‘नाि7तक दशन िशरोमिण’ कहा जाता है, जबिक िविश% Kप
से यह ‘भौितकवाद का चरम’ माना जाता है। नाि7तक वेद कA िन(दा करने वाले, परलोक को न
मानने वाले तथा ईर कA सSा म अिवास करने वाले होते ह5 तथा चावाक दशन नाि7तकता के
तीन1 गणु 1 से य
ु है, कदािचत् यही कारण है िक दशन का यह स*दाय ‘नाि7तक िशरोमिण’
कहलाता है। साथ ही, अ(य सम7त भारतीय दाशिनक िच(तन के िवp@ के वल इस जगत् के ybय
तjव, परम सख ु , िवषय, इFछा, कामना कA ही बात करने के कारण यह ‘‘भौितकवाद का चरम’’
कहलाता है।

4.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप -

• बता सक गे िक चावाक दशन का उLलेख कहॉं कहॉं िकया गया है?
• समझ सक गे िक चावाक दशन का िनिहताथ Wया है?
• जान पाएगं े िक इस दशन के समपु लOध सािहय कौन कौन से है?
• समझ सक गे िक चावाक दशन के मौिलक िस@ा(त Wया Wया ह5?

4.3.चावा#क दश#न
उ स(दभ म नाि7तक कA अवधारणा को यहॉं आवbयक Kप से समझ िलया जाना चािहए।
मन7ु मृित म वेद कA िन(दा करने वाले को नाि7तक कहा गया है- नाि7तको वेदिन(दकः (2/11)।
पािणिन ने परलोक को मानने वाले को आि7तक कहा है तथा न माननेवाले को आि7तक कहा है-
अि7त नाि7त िद%ं मितः (अ%0 4/4/60)। िक(तु समा(य िच(तन म अनीरवादी को नाि7तक कहा
जाता है।चावाक दशन के उदय का मल ू कारण कदािचत् उपिनषद् दशन का उFच िवHानवाद, वैिदक
कमकाड कA अतािक कता तथा उसका दpु पयोग, यH1 म पशु बिल था, ताकािलक सामािजक व
राजनीितक अJयव7था एवं अि7थरता का िवरोध था।चावाक, लोकायत अथ वा बाह7पय दशन
ाचीन भारतीय भौितकवाद का ितिनिधव करता है। िन7स(देह चावाक के भौितकवाद कA

उतराखड म
ु िविवालय २७३
भारतीय दश
न MASL-103
तथाकिथत पर*परा उतनी ही ाचीन है िजतना िक 7वयं भारतीय दशन। इस म म यहॉं यह
7मरणीय है िक भौितकवादी वृिS के बीज उपिनषद1 म भी देखे जा सकते ह5। यहॉं भौितकवाद से
तापय है वह िवचारधारा िजसके अनसु ार िव का मल
ू भतू तjव एक या अनेक Kप, जड़ामक है।
भौितकवादी जड़व से िभ(न िकसी चेतन तjव को 7वीकार नहN करते। यही चावाक व7तjु व है।
4.3.1चावा
क दश
न के उ]लेख
एक JयावहाCरक सय है िक अFछा तभी अFछा है जब बरु ा होगा, इसी कार बरु ा तभी बरु ा होगा
जब अFछा िवमान होगा। दसू रे शOद1 म, कोई भी एक वाद समाज या शाf म तभी पनपेगा जब
िवरोधी कोई दसू रा िवरोधी वाद िवमान होगा। इस आधार पर यह 7वीकार करना पड़ेगा िक वैिदक
पर*परा का िवरोधी वाद भी वैिदक काल म अवbय ही रहा होगा। कदािचत् इसी वाद ने चावाक का
7वKप Vहण िकया होगा।
ऋlवेद म इस भौितकवाद का बीज ढॅ◌ॅ◌ूढा जा सकता है। वहॉं इ(Z कA सSा म स(देह करने वाले
तथा तथा अप…ती लोग1 का उLलेख ाD होता है। परोcतः चावाकAय िस@ा(त का हम इसे बीज
कह सकते ह5। भौितकवादी वृिS के बीज उपिनषद1 म भी देखे जा सकते ह5। ेतातरोपिनषद् के
ार*भ म ऐसी अनेक धारणाओ ं कA िगनती दी गयी है जो संसार कA उपिS कA Jया;या करने का
यास करती ह5। इनम से एक जगत् का मल ू का कारण भतू को मानता है। इसी तरह कठोपिनषद् म
भी कहा गया है िक धन के मोह से मढ़ू , बालबिु @, मादी Jयि य1 को परलोक के माग म आ7था
नहN होती, वह के वल इस लोक को मानता है, परलोक को नहN, ऐसा Jयि पनु ः पनु ः मेरे वश म
आता है (कठ0 1/2/6)। छा(दोlय उपिनषद् के जापीत और इ(Z-िवरोचन सवं ाद म उLलेख है िक
असरु 1 का ितिनिध िवरोचन देहामवाद से ही स(त%ु होकर चला गया था।(छा(दोlय0 8-7)
यcतः इस वाद का उLलेख ायः सारे महjवपणू  सािहय म ाD होते ह5। बौ@ िपटक1 म
लोकायत मत का ना*ना उLलेख है। कौिटलीय अथशाf म सा;ं य और योग के साथ लोकायत
दशन का तक पर आधाCरत दशन के Kप म उLलेख है। चावाक दशन के ारि*भक V(थ ‘बाह7~य
सू ’ या ‘लोकायितक सू ’ नाम से जाना जाता है। इस पर िलखी गयी भागरु ी या विणका नाम कA
टीका का उLलेख पतंजिल के Jयाकरण महाभाEय मे ाD होता है। इसी कार Iीकृ Eण िमI िवरिचत
नाटक बोधच(Zोदय के ि&तीय अक ं म यह उ@रण ाD होता है िक बृह7पित ने िजस शाf कA
रचना करके चावाक को समिपत िकया था उसका िव7तार चावाक तथा उनके िशEय1 के &ारा िकया
गया है।
4.3.3 चावा
क दश
न के िविभ8न नाम एवं उनके अथ

इससे पवू  के िववरण म चावाक मत से स*ब@ कई नाम1 कA चचा कA गयी है। चावाक, लोकायत
तथा बाह7पय- ये तीन इनके नाम ाD होते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय २७४
भारतीय दश
न MASL-103
चावाक शOद के कई अथ ाD होते ह5। सामा(य अवधारणा है िक चावाक चाp-वाक् अथात्
िम%भाषी का संिcD Kप है। इसका अिभाय वह Jयि है, िजसकA वाणी या वचन चाp या
मनोहाCरणी है। इसम 7प%तः यह संकेत है िक जनसामा(य म यह दशन सहज 7वीकृ त था। एक अ(य
धारणा के अनसु ार चावाक शOद चव- चबाने या खाने धातु से बना है। इसके अनसु ार चावाक मौज,
म7ती खाने-पीने मा म िवास करते थे।
लोकायत अथात् लोक $ आयत का तापय जनसामा(य म चिलत होना है। हCरभZ ने लोकायत
का अथ उन साधारण लोग1 से िकया जो िवचारश(ू य मc ू  कA तरह आचरण करते ह5। राधाकृ Eणन् कA
yि% म लोकायत भौितकवाद के िलये ससु ं7कृ त पद है। आयत का अथ आयतन अथात् आधार
मानकर यह भी कहा जाता है िक लोकायत का अथ इस मढ़ू एवं लौिकक ससं ार का आधार है। एक
अ(य अनमु ान के अनसु ार लोकायत एक तकनीकA शOद है िजसका तापय िववाद, िवतडा एवं
कुतक का िवHान है। ऐसा इस कारण कहा गया है िक यह दशन छलपणू  वाद िववाद म pिच लेता है
और िविभ(न िवषय1 पर पार*पCरक yि%कोण को चनु ौती देता है।
बाह7पय नाम से अिभाय है िक इस दशन के णेता बृह7पित थे। यिप इसका कोई िनिBत साoय
नहN है िक बृह7पित इस दशन के णेता थे। पनु रिप परवतm उपिनषद् म एक कथा ाD होती है िक
बृह7पित ने असरु 1 को नाि7तक िवा का उपदेश िदया था िक इसके भाव से असरु 1 का नाश हो
तथा इ(Z िनEकटक अमरावती पर राtय कर सक ।
4.3.4 चावा
क दश
न के सािहय
दभु ाlय से इस दाशिनक स*दाय का कोई भी V(थ ा~य नहN है। इस दशन के िस@ा(त1 व
धारणाओ ं को जानने व समझने के िलये हम पणू तः इसके िवरोिधय1 के &ारा दी गयी जानकारी पर ही
िनभर रहना पड़ता है।
जयरािश भY िवरिचत तjवोप~लविसंह नामक V(थ को छोड़कर इस मत का कोई मौिलक V(थ
उपलOध नहN है। यह V(थ भी बहMत बाद का है िजसका काशन 1940 ई0 म हMआ है। िक(तु इस
िवषय म यह एक अिनवाय सय है िक कोई भी V(थ, भले ही वह िकसी स*दाय का हो, चावाक
के कितपय आधारभतू िस@ा(त1 का उLलेख एवं उनका खडन िकये िबना अपने को पणू  नहN
मानता। इस आधार पर एक सामा(य िनणय यह अवbय ही िलया जा सकता है िक ायः हर
दाशिनक V(थ इस वाद का एक महjवपणू  सािहियक Šोत बन जाता है। पनु रिप, चावाक दशन के
मत1 को साCरत करने म सवािधक महjवपणू  भिू मका सवदशनसVं ह, बोधच(Zोदय तथा
बाह7~यसू कA रही है।
अ$यास &.-

1. चावाक के अ(य नाम ह5-


(क) बाह7पय तथा लोकायत (ख) लोकायत तथा पाशपु त

उतराखड म
ु िविवालय २७५
भारतीय दश
न MASL-103
(ग) पाशपु त तथा बाह7पय (घ) चावाक एवं पाशपु त
2. चावाक दशन के ारि*भक V(थ िकस नाम से जाने जाते है?
3. चावाक दशन से स*ब@ िक(हN तीन V(थ1 के नाम बताए◌ॅ◌ं।
4. लोकायत का अथ है-
(क) जनसामा(य म चिलत होना (ख) स(ु दर वचन
(ग) लोग1 का घर (घ) लोक वचन

4.4 चावा#क दश#न के स@ा%त

4.4.1 चावा
क दश
न कW ानमीमांसा-
भारतीय दशन िच(तन म चावाक दशन Hानमीमांसा कA yि% से यcवादी, तjवमीमांसा कA yि% से
भौितकवादी और आचारमीमांसा कA yि% से सख ु वादी िवचारधारा है। इसकA िवचारधारा का
सवािधक महवपणू  पc इसका Hानमीमासं ीय यcवाद है। अ(य सम7त भारतीय दशन के िवपरीत
चावाक दशन के वल यc को माण मानता है और अ(य माण1 का िनषेध करता है।
व7ततु ः इसके Hानिस@ा(त का िजतना िविश% पc एकमा यc माण कA 7वीकृ ित है, उतना ही
िविश% पc अ(य माण1, िवशेषतः ‘अनमु ान माण’ का खडन भी है। उLलेखनीय है िक भारतीय
दशन के चावाकेतर स*दाय मा के साधन के Kप म यc के साथ अनमु ान माण के ामाय म
अवbय िवास करते ह5।
चावाक दशन के अनसु ार यथाथ Hान का एकमा ामािणक साधन है यc- यcमेकं माणम।्
चावाक यc के अितCर अ(य माण1 कA वैधता को 7वीकार नहN करता। यc के िवषय म
चावाक1 के &ारा दी गयी कोई भी 7प% पCरभाषा ाD नहN होती। ायः वे भी अ(य भारतीय
दाशिनक1 कA तरह यह 7वीकार करते ह5 िक Hानेि(Zय एवं िवषय के स*पक से उप(न Hान ही यc
है। इसका माण भी यc है। हमारी Hानेि(Zयाँ पाँच ह5- चcःु , Iो, नािसका, रसना और वक्।
Kप, रस, ग(ध, 7पश और शOद यह पंचिवध इि(Zय यc है। सख ु , दःु ख आिद का अनुभव भी इस
पंचिवध इि(Zय यc पर ही आिIत है।
चावाक म यc माणिवषयक िच(तन कA 7प%ता को इस पकार समझा जा सकता है िक Kप के
अभाव म जो अy% है, रस के अभाव म जो अना7वािदत है, ग(ध के अभाव म जो अना}ात है,
7पश के अभाव म जो अ7पृ% है तथा शOद के अभाव म जो अIतु है ऐसा िच(तन के वल कLपनाओ ं

उतराखड म
ु िविवालय २७६
भारतीय दश
न MASL-103
म ही हो सकता है, यथाथ म नहN। यc को एकमा माण मानने का कारण इस माण म◌
ं े ाD
अ`ा(तता और िनBयामकता है जो यcेतर माण1 म स*भव नहN है।
अनमु ानिवषयक चावाक िच(तन- जैसा िक ऊपर उLलेख िकया गया है, िक चावाक के &ारा वितत
यc कA पCरभाषा ाD नहN होती। िक(तु इसके &ारा िकया अनमु ान का खडन सवािधक िस@
है। अनमु ान का यह खडन म3विवरिचत सवदशनसंVह म ाD होता है। तदनसु ार-
y% हेतु से अy% सा3य कA िसि@ करना अनमु ान है, पवत पर y% धमू के Hान से पवत पर अy%
अिlन का Hान करना अनमु ान है। अनुमान का आधार JयािD है। यह JयािD हेतु और सा3य, िलगं
और िलंगी के बीच साहचय का िनयम है। चावाक का इस िवषय म कहना है िक अनमु ान म दसू रे
कA उपि7थित से एक कA उपि7थित का िनBय िकया जाता है। यह तभी स*भव है जब दोन1 व7तु कA
िनय सहवितता का yढ िनBय हो। जैस-े धमू और अिlन का स*ब(ध- जहॉं जहॉं धमू है, वहॉं वहॉं
अिlन अवbय है। िक(तु त_य यह है िक ऐसा िनयम बनाया नहN जा सकता। पनु ः पनु ः िनरीcण करने
से के वल यह िस@ होता है िक धएु ◌ॅ◌ं कA कुछ घटनाए◌ॅ◌ं अिlन कA घटनाए◌ॅ◌ं होती ह5,
लेिकन धएु ◌ॅ◌ं कA सभी घटनाए◌ॅ◌ं अिlन कA घटनाए◌ॅ◌ं नहN हो सकतN Wय1िक इस बात कA
परू ी संभावना है िक ऐसी घटनाए◌ॅ◌ं हमारे िनरीcण म आने से रह जाए◌ॅ◌ं। पCरणामतः संशय के
िलये सदैव 7थान बना रहता है और अनमु ान कA ामािणकता 7थािपत नहN होती। ामािणक
अनमु ान कA तथाकिथत घटनाओ-ं जहॉं धएु ◌ॅ◌ं से अिlन का अनमु ान िकया गया और उस 7थान
पर जाने पर यथाथ अिlन िदखी- को सयं ोग ही कहा जा सकता है।
चावाक दाशन का यह 7प% कथन है िक धमू और अिlन के बीच Jया~य-Jयापक-भाव कA कLपना
िनराधार एवं तक िवp@ है, Wय1िक इस कार के तक वाWय1 को ाD करने का कोई वैध साधन नहN
है। चँिू क JयािD हेतु और सा3य का Jया~य-Jयापक स*ब(ध है, अतः चावाक1 कA मा(यता है िक
अनमु ान तभी िनBयामक एवं िनदwष हो सकता है जब JयािD िनदwष एवं वा7तिवक हो। िक(तु
JयािD के िवषय म िनBायक Kप से ऐसा नहN कहा जा सकता। जहाँ धआ ु ँ होता है, वहाँ आग होती
है- हम इस JयािD Hान को के वल तभी िनBायक एवं मािणक मान सकते ह5 जब हम यc से
ध‡ू य
ु सभी पदाथ^ को अिlनय ु जान सक । िक(तु यह िबLकुल अस*भव है िक हम भतू एवं
भिवEय के सभी धूमवान् 7थल1 को अिlनय ु देख सक ।
यc का स*ब(ध के वल वतमान से है और हम वतमान समय म भी सभी धूमवान पदाथ^ को
अिlनय ु नहN जान सकते। पनु ः, यिद इस कार कA JयािD आज सय भी हो तो यह भिवEय म भी
सय होगी- इसका कोई माण नहN है। इस कार यcानभु व का cे अय(त सीिमत है,
पCरणाम7वKप वह हम िकसी भी सामा(य स*ब(ध (JयािD) का Hान नहN करा सकता।
चावाक का यह भी कहना है िक यc के आधार पर धमू व एवं वि™व का Hान नहN हो सकता।

उतराखड म
ु िविवालय २७७
भारतीय दश
न MASL-103
इि(Zय यc से के वल िवशेष1 का ही Hान होता है, सामा(य का नहN। जब हमारा सारा Hान िवशेष1
तक ही सीिमत है तो हम िवशेष1 कA सीमा का अित मण करने का कोई अिधकार नहN है िवशेष1 से
सामा(य कA कLपना हमारी बिु @ कA `ा(त कLपना है, वा7तिवक Hान नहN है। धमू व एक जाित या
सामा(य है जो सभी धमू वान पदाथ^ म◌ ं े िवमान रहता है। अतः जब तक सभी धमू वान एवं
वि™मान पदाथ^ का यc नहN होगा, तब तक उनके सामा(य धम का Hान स*भव नहN है। अतः
कुछ 7थल1 पर धमू व एवं वि™व के यc से धुएँ और अिlन के म3य सामा(य स*ब(ध (JयािD)
कA 7थापना स*भव नहN है।
पनु ः, JयािD हेतु और सा3य का िनpपािधक िनयत साहचय स*ब(ध है। चावाक का कथन है िक
यc &ारा िनpपािधक स*ब(ध का Hान स*भव नह◌ ं ी◌ं है। उपािध दो कार कA होती है-
आशिं कत और िनिBत। यिद उपािध िनिBत है, जैसे, अिlन एवं धएु ँ म, तो JयािD अवैध होगी। यिद
उपािध कA आशक ं ा है तो भी JयािD वैध नहN होगी। तापय यह है िक हम दो व7तओ
ु ं म साहचय को
देखकर यह नहN कह सकते िक उनका साहचय िनpपािधक है।
चावाक दशन के अनसु ार अनमु ान और शOद माण भी JयािD को सयािपत नहN कर सकते ह5।
अनमु ान माण से JयािD को 7थािपत करना इसिलए अस*भव है, Wय1िक िजस अनमु ान के &ारा हम
इसकA 7थापना कर गे वह भी JयािD पर िनभर होगा। इस कार हमारा तक अ(यो(याIय दोष से V7त
होगा। इस कार एक अनुमान के सयापन के िलए िकसी अ(य अनमु ान कA आवbयकता होगी और
उस अनमु ान के िलए िकसी अ(य अनमु ान कA। अनमु ान कA यह पर*परा धारावािहक Kप म बनी ही
रहेगी। इस कार अनव7था दोष का भी संग उपि7थत होगा।
JयािD कA 7थापना शOद माण से भी स*भव नहN है, Wय1िक थमतः, शOद Hान का ामािणक
साधन नहN है और ि&तीय, शOद माण के आधार पर JयािD को 7थािपत करने के यास म अनमु ान
शOद माण पर िनभर हो जायेगा। ऐसी ि7थित म अनमु ान Hान का 7वत( साधन नहN रह जायेगा।
पनु ः, कारण-काय िनयम के आधार पर भी JयािD को 7थािपत नहN िकया जा सकता, Wय1िक कारण-
काय का सावभौम िनयम 7वयं एक JयािD है। इस कार चावाक1 का कथन है िक JयािD कA
7थापना िकसी भी माण से स*भव नहN है।
इस कार चावाक अनमु ान माण कA वैधता एवं िनBयामकता म स(देह Jय करते ह5। उनका यह
भी कथन है िक अनुमान को वैध माण तभी माना जा सकता है जब इसके &ारा ाD Hान
सश
ं यरिहत एवं वा7तिवक हो। िक(तु अनमु ान म इसका सवथा अभाव होता है, यिप कुछ अनमु ान
आकि7मक Kप से (संयोगवश) सय होते ह5।
चावाक कA शOद माणिवषयक मा(यता- भारतीय दशन के ायः सारे दाशिनक स*दाय1 म शOद

उतराखड म
ु िविवालय २७८
भारतीय दश
न MASL-103
माण को भी यथाथ Hान का साधन माना जाता है। आD पpु ष1 के वचन1 एवं Iिु तय1 से जो Hान
ाD होता है उसे शOद मा कहते ह5 और इसे उपलOध कराने वाले असाधारण साधन को ‘शOद
माण’ कहते ह5। सारी आि7तक दशन पर*परा म वेद1 को माण माना जाता है।
चावाक दशन ने शOद माण का भी खडन िकया है। िकसी पpु ष के आD और लोकोपकारक होने
के कारण उसके वाWय1 म I@ा रखना अनमु ान से स*भव है, यह अनमु ान 7वयं माण नहN है।
इसिलये अनुमानािIत शOद को भी माण नहN माना जाना चािहए। यिद आD पpु ष यcिस@
पदाथ^ का वणन करते ह5 तो यह वणन यc माण के अ(तगत आ जाता है। यिद वे अy% अIतु
अHात पदाथ^ का वणन कर तो इसे उनकA कLपनामा समझा जा सकता है◌ै यथाथ नहN।
चावाक कA यह भी मा(यता है िक आD पpु ष1 के &ारा उFचCरत शOद1 से HानािD होती है, अतः
उसे Iोेि(Zयज(य यc ही मानना चािहए, 7वत( माण नहN। पनु ः, आD पpु ष1 के शOद यc
िवषय1 के बोध पय(त ही ामािणक माने जा सकते ह5। यिद उनसे अयc िवषय1 के बोध कA
धारणा 7ततु कA जाती है तो उनका ामाय सि(दlध हो जाता है, Wय1िक उन िवषय1 का ामाय
यc &ारा िस@ नहN िकया जा सकता। पनु ः, चावाक1 का िवचार है िक शOद से ाD सभी Hान
अनमु ानिस@ ह5। च◌ू ॅिक अनमु ान कA ही ामािणकता सि(दlध है इसिलये अनमु ान कA तरह
शOदमाण कA भी मािणकता सि(दlध है।
चावाक वेद1 कA ामािणकता का सवथा िनषेध करते ह5। वे वेद1 को असयता, पनु pि एवं
असंगित दोष1 से य ु कहते ह5। वे वेद1 को धतू  परु ोिहत1 कA कृ ित मानते ह5। वैिदक यागािद कम^ म
भी उनका िवास नहN है। इन कम^ को वह धतू जन1 का कृ य मानते ह5 तथा एक कार से वे उन
जन1 कA जीिवका का भी उसे साधन मानते ह5। इनका मानना है िक Iा@ािद कम^ से मृत Jयि तृD
नहN हो सकता। ये ईर, आमा, वेद, परलोक, धम, अधम, पाप, पु य आिद को भी 7वीकार नहN
करते। इनकA yि% म, इनसे ायः 7वग, नरक, यH, आमा, परमामा आिद अतीि(Zय िवषय1 का
Hान ाD होता है। चँिू क इस Hान को यc &ारा सयािपत नहN िकया जा सकता, अतः ये माण
नहN हो सकते।
उपमान माणिवषयक मा(यता- चावाक उपमान कA ामािणता को भी अ7वीकार करते ह5। चँिू क
उपमान का आधार साybय Hान है और साybय का Hान यc से ही होता है। अतः चावाक इसके
िलए िकसी 7वत( माण को आवbयक नहN मानते। पनु ः, कितपय भारतीय िवचारक भी उपमान
का अ(तभाव अनमु ान म ही करते ह5। अतः अनमु ान के अामािणक होने से उपमान भी अामािणक
हो जाता है।
इस कार अ(य भारतीय दशन पर*परा म 7वीकृ त अनुमान, शOद और उपमान माण1 के
अामािणक होने के कारण चावाक Hानमीमांसा म यc ही एकमा माण बचता है।

उतराखड म
ु िविवालय २७९
भारतीय दश
न MASL-103
समीcा- चावाक दशन कA यcवादी Hानमीमांसा के िवp@ भारतीय दशन पर*परा के अ(य
स*दाय1 म बल िति या हMई, Wय1िक इसने भारतीय Hानमीमांसा म न के वल एक नयी
िवचारधारा को ज(म िदया यतु समकालीन सम7त िवचारधारा कA सनातन 7थापना को सवथा
पCरवितत कर िदया। पCरणामतः इसे अ(य िवचारधारा के बल िवरोध का सामना करना पड़ा। अ(य
दाशिनक1 ने चावाक के Hानिस@ा(त के िवp@ िन*निलिखत आcेप िकया-
(1) चावाक दशन ने यc को एकमा माण 7वीकार करके तथा इतर माण1 का खडन करके
बौि@क दशन िच(तन के िवp@ अपना 7वर मख ु र िकया। उनके उ िच(तन कA सबने उपेcा कA
तथा कहा िक इस िच(तन के आधार पर िव म िकसी भी कार कA तािक क Jयव7था कA 7थापना
नहN कA जा सकती। एकमा यc के माणव से के वल खिडत Hान स*भव है, उसकA एकता
का नहN, Wय1िक यc से उ(ह जोड़ने वाले िकसी अिनवाय स*ब(ध का Hान नहN ाD हो सकता।
(2) चावाक के यc कA ामािणकता भी िनिववाद नहN है। यc Hानेि(Zय1 कA शि पर िनभर
है। Hानेि(Zय1 कA शि कA सीमा ही यc के िनद%ु व का िनधारण करती है। िनद%ु यc के िलए
Hानेि(Zय1 का अनक ु ू ल होना भी परम आवbयक है। Hानेि(Zय1 के ितकूल होने पर यc भी सदोष
हो जाता है। रtजु म सप कA तीित, बालू म जल का आभास आिद दोषपणू  यc के उदाहरण ह5।
इस कार अनमु ान के माणव के खडन का आधार ही दिू षत होने के कारण यc के आधार पर
अनमु ान का खडन नहN िकया जा सकता है। यc कA सीमाओ ं पर िबना िवचार िकये उसे ही
एकमा ामािणक Hान घोिषत करके चावाक ने Kिढ़वाद एवं अ(धिवास को ही बढ़ावा िदया है।
(3) जैन दाशिनक1 का कथन है िक चावाक1 &ारा अनमु ान माण का खडन आमघातक है। उनके
अनसु ार चावाक िवचारक1 &ारा यc को एकमा माण घोिषत करना, परलोक, आिद यc
िवषय1 के बारे म िकसी भी कार का िववेचन करना, अ(य मत1 पर िवचार करना तथा अपने
िस@ा(त1 का 7प%ीकरण करना मानो Fछ(न Kप से अनमु ान को 7वीकार करना ही है।
(4) चावाक िवचारक1 &ारा JयािD का िनषेध अनिु चत है। बौ@ िवचारक1 कA 7प% मा(यता है िक दो
व7तओ ु ं को जोड़ने वाले सामा(य िवचार को तब तक सय मानना पड़ेगा जब तक वह सव7वीकृ त
है। साथ ही वह दैनि(दन जीवन के िकसी 7थािपत िनयम पर आधाCरत है। िकसी मा(य कथन का
िवरोध JयावहाCरक जीवन के मल ू को ही उखाड़ना है।
उLलेखनीय है िक चावाक िवचारक भी पणू त ः JयािD का खडन नहN कर पाते ह5। उनकA यह
मा(यता िक ‘यc ही एकमा माण है’, अनमु ान माण नहN है, उनकA इस आ7था कA ओर
संकेत करता है िक कितपय y%ा(त1 म JयािD स*भव है, Wय1िक यह आगमनामक सामा(यीकरण
का फल है।

उतराखड म
ु िविवालय २८०
भारतीय दश
न MASL-103
(5) चावाक कृ त अनमु ानखडन का अ(य भारतीय दाशिनक1 ने बल खडन िकया है। उनके
अनसु ार बिु @ &ारा अनमु ान का खडन नहN हो सकता। सम7त बिु @-िवकLप काय कारणािद िनयम1
पर आधाCरत है िजनकA सावभौमता, िनिBतता और अिनवायता, 7वतःिस@ और 7वकाश
आमतjव से आती है। इन बिु @ िवकLप1 के िबना िकसी कार का बिु @ Jयवहार स*भव नहN होता।
(6) यिप सभी िवचारक शOद 7वीकार नहN करते तथािप आD वचन को िनता(त अVाn घोिषत
करना सांसाCरक JयावहाCरक एवं सामािजक, नैितक Jयव7था को िनमल
ू कर सकता है।
पनु रिप Hानमीमासं ा के cे म चावाक के अवदान कम महjवपणू  नहN ह5। इसकA Hानमीमासं ा ने
भारतीय िवचारक1 के समc अनेक सम7याएँ उप(न कN िजनके समाधान के कारण भारतीय दशन
प%ु एवं समृ@ हMआ। पनु ः, चावाक िवचारक1 ने भारतीय दशन को Kिढ़वादी एवं अ(धिवासी होने
से बचाया। इसके Hानमीमांसा का एक अ(य महवपणू  पc भारतीय िच(तन के ◌े बहMआयामी
yि%कोण एवं वैचाCरक 7वत(ता का ितिनिधव करना है।
4.4.2 चावा
क दश
न कW तtवमीमांसा-
चावाक दशन कA तjवमीमांसा उसकA Hानमीमांसा कA ही उपिसि@ है। अपने यcवादी Hान-
िस@ा(त के आधार पर चावाक के वल उ(हN तjव1 कA सSा 7वीकार करते ह5 िजनका यc होता है।
वे इस Hान-िस@ा(त कA पृvभिू म म के वल जड़ तjव या भौितक पदाथ कA ही सSा को 7वीकार करते
ह5, Wय1िक के वल उसी का यc होता है। इस कार चावाक दशन तjवमीमांसा कA yि% से
जड़वादी या भौितकवादी है। इनके Hात तjवमीमासं ीय त_य इस कार ह5-
(1) चार भतू 1 से सृि% कA उपिS।
(2) शरीरे तर िनय आमतjव का िनषेध।
(3) ईर तjव का िनषेध।
(1) चार भतू 1 से सृि% कA उपिS- चावाक के तjविच(तन म चार महाभतू 1 कA ही 7वीकृ ित है-
पृ_वी, जल, अिlन और वाय।ु आकाश का अनमु ान होता है, अतः चावाक उसे तjव नहN मानते◌े।
पनु ः वह इन महाभतू 1 को के वल 7थल ू Kप मानता है। वह उनके अणK
ु पव का िनषेध करता है,
Wय1िक उनका यc नहN होता। वह इन जड़ तjव1 के त(माव को भी नहN 7वीकार करता
Wया◌ ं ेिक त(माव के िवचार का भी आधार अनमु ान है।
चावाक दाशिनक1 कA मा(यता है िक स*पणू  चराचर जगत् कA सृि% इ(हN चार1 भतू 1 से हMई है। ये ही
जगत् के उपादान कारण ह5। इन भतू 1 का िविभ(न अनपु ात1 म सि*मIण होने से बाn जगत्, भौितक
शरीर, चेतना, बिु @ और इि(Zयाँ आिद उप(न होती ह5। Kप, रस, ग(ध आिद गणु 1 कA उपिS भी

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इ(हN के संयोग से होती है। इनके संयोग के िलए िकसी िनिमS कारण कA आवbयकता नहN होती।
जड़ तjव अपने 7वभाव के अनसु ार ही संय ु होते ह5 और उनके 7वतः सि*मIण से संसार कA
उपिS होती है।
(2) शरीरे तर िनय आमतjव का िनषेध- चावाक का मानना है िक चैत(य भी भौितक तjव1 के
सि*मIण होने से जीिवत शरीर म उप(न होता है। अतः जीिवत शरीर से िभ(न कोई आमा नहN है।
चावाक दशन के अनसु ार शरीर से िभ(न िकसी पृथक् आमा के अि7तव को 7वीकार करना
आवbयक नहN है। शरीर का चेतना से य ु होना ही आमतjव कहलाने के िलए पयाD है। चैत(य का
यc भी शरीर के अ(तगत होता है। अतः ‘चेतना से िविश% शरीर’ ही आमा है। Jयि यc के
आधार पर भी शरीर और आमा के तादा*य का अनभु व करता है। म5 कृ श ह‹,ँ म5 7थल ू ह‹,ँ म5 सख
ु ी
ह‹,ँ म5 दःु खी ह‹,ँ - ये कथन म5 (आमा) और शरीर के तादा*य का ही बोध कराते ह5।
इस कार चावाक जड़ तjव1 के आधार पर आमा कA भी Jया;या करते ह5। उनके अनसु ार
जड़तjव1 से शरीर भी उप(न होता है और उसम पाया जाने वाला चैत(य भी। यिप जड़तjव1 म
चैत(य का अभाव है, तथािप उनके सि*मIण से चैत(य कA उपिS होती है। िजस कार मिदरा के
िविभ(न घटक1 म से िकसी म भी मादकता नहN है लेिकन उनम िवशेष ि या से िवकार उप(न होने
पर मादकता उप(न होती है उसी कार जड़तjव1 के िवशेष सि*मIण से चेतना उप(न होती है-
िकवािदgयो मदशि वद् िवHानम।् इस कार चेतन शरीर से िभ(न आमा का कोई माण नहN है।
साथ ही चेतन शरीर के आमव के कारण आमा कA अमरता भी स*भव नहN है। आमा कA
अिनयता यह िस@ करती है िकं आमा से जड़ु ी सभी अवधारणाएँ- पनु ज(म, 7वग, नरक एवं
कमयोग-िनराधार ह5।
(3) ईर तjव का िनषेध- चावाक दशन ईर कA सSा का िनषेध करता है। ायः आ3यािमक,
धािमक एवं नैितक मLू य1 के रcक तथा सृि% के कSा, िनयामक एवं संरcक के Kप म ईर कA
सSा 7वीकार कA जाती है। चावाक आ3यािमक, धािमक, एवं नैितक मLू य1 को मानिसक `ाि(त
कहता है। वह सृि% कA Jया;या के िलए भी ईर को आवbयकता नहN मानता। वह ईर कA कLपना
को एक धािमक `ाि(त कहता है। चँिू क ईर का कोई यc नहN होता। अतः ईर का अि7तव भी
नहN है। उसके िलए ईर जैसे िकसी िनिमS कारण कA भी आवbयकता नहN होती। इस कार, चँिू क
जड़तjव1 के आ(तCरक 7वभाव से ही संसार कA उपिS होती है। अतः वह 7वभाववादी या
यyFछावादी है।
समीcा- चावाक दशन के जड़वादी िस@ा(त के िवp@ आि7तक दशनो◌े◌ं म ती…तम िति या
हMई। जैन एवं बौ@ सyश नाि7तक दशन1 ने भी चावाक1 कA तjवमीमांसा को पणू K
 पेण 7वीकार नहN
िकया। भारतीय दशन1 म चावाक तjवमीमांसा के िवp@ िन*निलिखत आcेप ाD होते ह5-

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भारतीय दश
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(1) चावाक दशन कA यह मा(यता अनिु चत है िक एकमा जड़तjव सृि% कA Jया;या के िलए पयाD
है। जड़तjव सृि% का उपादान कारण मा हो सकता है, िक(तु सृि% के उPव कारण न। िजस कार
कु*भकार कA सहायता के िबना िमYी से घड़ा नहN बन सकता उसी कार चेतन िनिमS कारण
(ईर) के िबना ये सृि% नहN हो सकती।
(2) चावाक दशनके आमिस@ा(त के िवp@ अ(य भारतीय दशनां◌े ने बल हार िकया। उसके
आम िस@ा(त के िवp@ अधोिलिखत आcेप ाD होते ह5-
(क) चैत(य िविश% शरीर को आमा कहना अनिु चत है। आमा म चेतना और शरीर का तादा*य
मानना भी अनिु चत है। यिद चैत(य का अथ 7वचैत(य है जो मनEु य1 म है तो इसका तादा*य जीिवत
शरीर से नहN िकया जा सकता। यिद चेतना और शरीर के साहचय को िनय भी मान िलया जाय तो
भी यह नहN िस@ होता है िक चेतना शरीर का धम है।
(ख) यिद चेतना शरीर का आवbयक गणु होती तो उसे शरीर से अिवयोtय होना चािहए तथा उसे
शरीरपय(त उसके साथ स*ब@ होना चािहए। िक(तु यह यथाथ है िक मFू छा या 7व~नरिहत िनZा म
शरीर चेतना से श(ू य िदखाई देती है।
(ग) यिद चेतना व7ततु ः शरीर का धम होती तो उसका वैसा ही Hान दसू र1 को भी होना चािहए जैसा
हम होता है। िक(तु एक Jयि कA चेतना उसका िनजी गणु है। अतः उसका जैसा Hान उस Jयि को
होता है वैसा दसू र1 को नहN हो सकता।
(घ) शरीर 7वयं भी एक साधन है, अतः उसे वश म रखने वाले चेतन कA आवbयकता है। 7प% है िक
चेतना शरीर म नहN, अिप तु शरीर के िनय(णकSा म है। इस कार भौितकवादी कA ि7थित 7वयं
उसके िवp@ जाती है।
(ङ) चेतना शरीर का गणु नहN हो सकता। यिद चेतना शरीर का गणु होगी तो शरीर का Hान नहN हो
सकता, Wय1िक शरीर, जो 7वयं चेतना का आधार है, चेतना &ारा नहN जानी जा सकती। अतः चेतना
शरीर का गणु नहN हो सकती।
(च) जड़तjव1 से चेतना कA उपिS नहN िदखाई देती। जड़तjव से चेतना के उप(न होने का अथ है
िक असत् से सत् कA उपिS। िक(तु ऐसा होता नहN। व7ततु ः श(ू य से श(ू य ही उप(न होता है, कोई
व7तु नहN।
(छ) यिद चेतना शरीर का गणु है तो अ(य भौितक गणु 1 के समान चेतना का भी यc अनुभव होना
चािहए। िक(तु ऐसा नहN होता।
(3) म5 7थल
ू ह‹,ँ म5 कृ श ह‹-ँ इन कथन1 से चावाक दशन शरीर को ही आमा िस@ करना चाहता है।
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इन कथन1 से के वल यह िस@ होता है िक शरीर के साथ इसका घिनv स*ब(ध है। यिद आमा का
अि7तव नहN है तो ‘शरीर आमारिहत है’ इस कथन का कोई अथ नहN रह जाता।
इन दोष1 के बावजदू चावाक तjवमीमांसा का चिलत िवास1 पर पयाD भाव रहा। इसने भतू काल
के ित लगाव और भिवEय के आकषण को भगं िकया। िक(त,ु जब वह गभं ीर िचतं न करता है तो
वह भौितकवाद से दरू चला जाता है। आBय है िक चावाक दशन ने यही काय नहN िकया।
अ$यास &.

1. चावाक दशन के अनसु ार यथाथ Hान का एकमा ामािणक साधन है


(क) यc (ख) अनुमान
(ग) उपमान (घ) शOद
2. चावाक के अनसु ार शOद माण नहN है, Wय1िक
(क) यह एक कार से यc ही है (ख) यह अनमु ानािIत है
(ग) शOद आकाश का गणु है (घ) यह उपमानािIत है
3. चावाक उपमान माण का िनषेध करता है, Wय1िक उसका मानना है िक
(क) अनमु ान और उपमान एक ही है
(ख) यc उपमान से िभ(न नहN है (ग) उपमान का आधार साybय Hान है और साybय का Hान
यc से ही होता है
(घ) उपमान भी माण हो सकता है।
4. चावाक के वल उ(हN तव1 को 7वीकार करता है
(क) िजनका अनमु ान होता है (ख) िजनका उपमान होता है
(ग) िजनका शOद होता है (घ) िजनका यc होता है
5. चावाक आ3यािमक, धािमक, एवं नैितक मLू य1 को Wया कहता है?
4.5 सारांश
इस इकाई को पढने के बाद आप यह जान चक ु े ह5 िक चावाक के िच(तन को सावभौिमक
Kप म वितत करने के िलये िकसी 7वत( V(थ अथ वा सािहय कA रचना नहN कA गयी। बिLक
िविभ(न दाशिनक Šात1 तथा कुछ परवतm रचनाओ ं से इसके िबखरे िस@ा(त1 को हम समझ पाए।
इ(हN Šोत1 के &ारा चावाकिवषयक कुछ िवचार1 को हम एकित कर पाए। इनकA तjवमीमासं ा तथा
Hानमीमांसा को समझने िलये आज एकमा उपलOध समV कृ ित सवदशनसंVह है। इस पाठ म
7ततु समीcा यह दशाती है िक चावाक ने 7थािपत मा(य िस@ा(त को न के वल अ7वीकार िकया
बिLक अपके दधु ष तक^ से उनका खडन भी िकया। इस इकाई के अžययन से आप चावाक दशन
के पCरचय एवं िस@ा(त से सहज ही अवगत हो पाएगं े साथ ही उ(ह अिgसJय भी कर पाएंग।े

उतराखड म
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4.6 शदावल
सा3य- वह परोc तव, िजसका अनमु ान िकया जाना है, सा3य है। इसे Jयापक तथा अनमु ये भी
कहते ह5।
िलंग- लीनम् अथ\ गमयित इित िलंगम।् इस कार लीन अथात् परोc सा3य का जो Hान कराये वह
िलंग है। इसे हेतु भी कहते ह5।
JयािD- हेतु का सा3य के साथ 7वाभािवक स*ब(ध JयािD है।
हेत-ु JयािD के कारण िकसी 7थान िवशेष म सा3य कA सSा मािणत करने वाला साधन हेतु है। इसे
िलंग भी कहते ह5।
आDपpु ष- आD यथाथ व ा को कहते ह5। यह आD वाWय आD पpु ष के &ारा ही स*भव है। या
यथाथ वाWय1 का योग करने वाला आD पpु ष कहलाता है।
4.7 अयास 
न के उतर
4.3 1. क, 2. बाह7पय सू , 3. बाह7पय सू , तjवोप~लविसंह तथा सवदशन संVह 4. क
4.4 1. क 2. ख 3. ग 4. घ 5. मानिसक `ाि(त
4.8 स%दभ# $%थ सच
ू ी
1. झा, आचाय आन(द, (1969) चावक दशन, िह(दी सिमित, सचू ना िवभाग, उSरदेश,
लखनउ,
2. ितवारी, डॉ0 नरे श साद, (1986), चावाक का नैितक दशन, िबहार िह(दी V(थ अकादमी,
पटना
3. ऋिष, ो0 उमाशक ं र शमा, (1964), सवदशनसंVहः, चौख*बा िवाभवन, वाराणसी-1
4. शमा, च(Zधर, (1991), भारतीय दशन आलोचन और अनश ु ीलन, मोतीलाल
बनारसीदास, िदLली
5. देवराज, डॉ0 न(दिकशोर, (1992), भरतीय दशन, उSरदेश िह(दी स7ं थान, लखनउ
4.9 *नब%धामक 

(क) चावाक दशन के िविभ(न नाम एवं उनके अथw को 7प% कर ।
(ख) चावाक के माणिवषयक िच(तन पर एक िनब(ध िलख।
(ग) चावाक कA अनमु ान िवषयक अवधारणा को 7पषअ
् कर ।
(घ) चावाक के माण िच(तन पर समीcा कर ।
(ड) चावाक कA तवमीमांसा का सार 7ततु करते हMए उसकA समीcा कर ।

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 5 - 7 <!  3 !   > /! 3 ?


8 @'A%0
इकाई क परे खा
5.1 तावना
5.2 उे

5.3. चावा5क दश5न और आितक सDदाय
5.3.1 वेद मY चावा5क दश5न क उपिथित
5.3.2 उपिनषद् मY चावा5क दश5न क उपिथित
5.3.3 गीता मY चावा5क दश5न क उपिथित
5.3.4 (याय वैशेिषक मY चावा5क दश5न क उपिथित
5.3.5 अैत वेदा(त मY चावा5क दश5न क उपिथित
5.4 चावा5क दश5न और नाितक सDदाय
5.4.1 जैन दश5न मY चावा5क क उपिथित
5.4.2 रसे$र दश5न मY चावा5क दश5न क उपिथित
5.5 सारांश
5.6 श-दावली
5.7 अ3यास 01 के उ4र
5.8 स(दभ5 6(थ सचू ी
5.9 िनब(धामक 0

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5.1 तावना
चावाक दशन से स*ब@ यह ि&तीय तथा इस समV Oलॉक कA यह पॉंचवN इकाई है। इससे पवू  के
पाठ म आपने चावाक दशन के िस@ा(त1 का सिव7तर Hान ाD िकया।
इस पाठ म आप चावाक दशन के िवषय म यह जानगे िक इसका उLलेख हम सामा(यतया
िकन अ(य दाशिनक िवचारधारा म पाए◌ॅ◌ंग।े व7ततु ः इससे पवू  कA चचा से आप इतना अवbय
ही जान गये ह1गे िक इस िविश% दशन का अ(य भारतीय दशन कA तरह इस दशन का कोई
ामािणक V(थ उपलOध नहN है। यिद कोई V(थ था भी तो वह उपलOध नहN होता। इस ि7थित म
हम अ(य V(थ1 म उिLलिखत उ@रण1 से इसके िस@ा(त1 को जान पाते ह5। िक(तु यहॉं हम सिवशेष
अ(य भारतीय दशन1 म िवमान पCरचचाओ ं म चावाक कA ि7थित को आधार बनाकर इस पाठ का
पCरवधन कर ग।े

5.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप -

• बता सक गे िक सामा(यतया अ(य िकन िकन भारतीय दशन1 म चावाक िच(तन ाD होता
है।
• समझ पाएगं े िक चावाक दशन कA ि7थित अ(य भारतीय दशन1 म कै सी है।
• साथ ही, अ(य दशन1 से इसके मत वैिभ(य को भी जान पाएगं ।े

5.3. चावा#क दश#न और आितक स<दाय


भारतीय दशन कA आि7तक िवचारधारा के िविभ(न स*दाय1 म चावाक दशन कA
आिं शक उपि7थित कA यहॉं पCरचचा कA जाएगी।
5.3.1 वेद मl चावा
क दश
न कW उपि"थित-
यिप ना*ना वेद म चावाक का उLलेख ाD नहN होता तथािप अ(य दाशिनक िस@ा(त1 के समान
ही चावाक के िस@ा(त1 का भी बीज यहॉं अवbय ही िदख जाता है। कई ऐसे िवषय ह5 जो परवतm
चावाक के िस@ा(त1 के अय(त िनकट ह5। तथा-
चावाक दशन का मल
ू िच(तन भतू चैत(य कA 7थापना म िनरत है। वेद म भी इसकA तािक क 7थापना
देखी जा सकती है। वेद म, यH कA एक अिधvाी देवता कA कLपना कA जाती है। यहॉं तक िक

उतराखड म
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भारतीय दश
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येक व7तु के िलये उ देवता कA कLपना कA जाती है। यह कLपना कदािप मौिलक नहN कA जा
सकती, ऐसा समालोचक1 का मानना है ( आन(द झा, चावाक दशन, पृ0 400)।
इस कार येक वैिदक भौितक स*बोधन-7थल को देवता कA कLपना के &ारा अभतू चैत(य का
Hापक नहN बनाया जा सकता। इसिलये भतू चैत(य-7थापक स(दभ^ एवं कथनोपकथन1 से समV
वैिदक कमकाड JयाD होने के कारण यही उिचत मानना तीत होता है िक समV वैिदक कमकाड
चावाक स*मत भतू चैत(य को ही मा(यता देता हMआ तीत होता है। 3यातJय है िक एतदथ वेद म
कहN भी भतू शOद का उLलेख नहN है। इस कार भतू चैत(य धानक चावाक िस@ा(त सवथा वैिदक
है अवैिदक नहN एवं अिताचीन है आधिु नक नहN।
इसके अितCर ऋlवेद म इ(Z कA सSा म स(देह करने वाले तथा अप…त लोग1 का उLलेख है। वहॉं
आि7तक, …ती लोग1 कA शसं ा तथा यHिवहीन अ…ती लोग1 कA िन(दा है।
5.3.2 उपिनषद् मl चावा
क दश
न कW उपि"थित
उपिनषद् वैिदक Hानकाड का सार है। इसे भारतीय दशन1 का मल ू Šोत माना जाता है।
ायः सम7त दाशिनक िवचारधाराओ ं का ितिब*बन इसम ाD होता है। यिप इन सम7त
उपिनषद1 म सां;य, अ&ैत, िविश%ा&ैत, &ैत भृित आि7तक िवचारधाराओ ं का ही सवािधक
स*पोषण हMआ है। पनु रिप, ऐसा नहN है िक इसम आि7तक िवचारधारा के िवp@ तथा चावाकA
िवचारधारा के अय(त सि(नकट िच(तन अवbय ही ाD नहN होता है। अतः उपिनषद् म भी कहN
यिद चावाक का बीज ाD हो जाए तो यह अस*भव नहN। उदाहरणाथ ईशावा7योपिनषत् के छठे
म( म यह कहा गया है िक जो Jयि सारे भतू 1 अथात् ािणय1 म आमyि% रखता है और आमा
म समV भतू yि% रखता है वह िकसी म भी घृणा या भेदभाव करता नहN -
य"तु सवा
िण भूतािन आम8येवानपु qयित।
सव
भूतेषु चामानं ततो न िवजुगSु सते।।
इस म( का िनिहताथ यह है िक इस म भतू ामवाद कA ही िवशेषता विणत हMई है जो चावाक दशन
का सार है। के नोपिनषद् म इसी भतू ामवाद के समथन म यह कहा गया है िक ‘‘ इस चराचरामक
भौितक संसार को यिद सय समझा तो ठीक है और यिद ऐसा नहN समझा तो समझो महान् िवनाश
ाD है। येक भतू को आमा समझने वाला ही मर कर अमृत होता है।’’ तथा-
इह चेदवेदीदथ सयमि"त न चेिदहावेदी8महती िवनिः।
भूतेषु भूतेषु िविचय धीराः &ेया"मॉ ं]लोकादमृता भवि8त।।

उतराखड म
ु िविवालय २८८
भारतीय दश
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कठोपिनषद् म कहा गया है िक धन के मोह से मढू , बालबिु @, मादी Jयि य1 को परलोक के माग
या साधन म आ7था नहN होती, वह के वल इस लोक को मानता है, परलोक को नहN, ऐसा Jयि
बार बार मेरे अथात् यम या मृयु के वश म आता है (1/2/6)। छा(दोlय उपिनषद् के जापित और
इ(Z िवरोचन सवं ाद म उLलेख है िक असरु 1 का ितिनिध िवरोचन देहामवाद से ही स(त%ु होकर
चला गया था (8-7)।
5.3.3 गीता मl चावा
क दश
न कW उपि"थित
गीता जो भारतीय िच(तन पर*परा का सवािधक महjवपूण V(थ है, कभी भी चावाक मत के
ितपादन अथ वा समथन म कुछ नहN कहती। ऐसी व7तिु 7थित के होते हMए भी यिद आनषु िं गक Kप
म यहॉं चावाक िस@ा(त के समथक कुछ बात िमल जाय तो चावाक िस@ा(त के िलये उन बात1 का
महjव अयिधक होगा।
व7ततु ः गीता कA सम7त पृvभिू म ही चावाकAय िच(तन है। उपदेbय अजनु जहॉं य@ु को िहसं ा
समझते ह5 उपदेशक कृ Eण इसके िवपरीत यह 7थािपत करते ह5 िक य@ ु cिय1 के िलए पापामक
िहसं ा नहN यतु उसके िवपरीत धमामक सदाचरण है। इससे सारKप म यह िनणय उपि7थत िकया
गया है िक आचरण कA अFछाई एवं बरु ाई का मLू यांकन पCरि7थित के आधार पर करणीय है।
पCरि7थित ही उसका मापदड है। मरण कA समानता को लेकर य@ ु गत वीरवध तथा अय@ ु गत
ािणवध को एक समान मानना उिचत नहN। यिद िवचार कर के देखा जाये तो इस कार के
आचरणगत अनैकाि(तक िनणय के कारण ही धम कA ऐकाि(तकतावािदय1 ने राजनीित एवं उसके
दशनभतू चावाकAय yि%कोण कA िन(दा कA है तथा उसके ित घृणा का भाव फै लाया है। अतः यह
मानना होगा िक गीता पर चावाक yि%कोण का भाव अवbय है।
इसी तरह ि&तीय अ3याय के 42व प से लेकर 45व प पय(त पार*पCरक वेदवाद कA िन(दा कA
गयी है। यिद िवचारपवू क  देखा जाए तो इस संग म िव7तारपवू क
 विणत चावाकAय वेदवाद के ऊपर
ही आcेप उपि7थत िकया गया है। चतथु  अ3याय के 21व प म यतिचSामा शOद म य ु आम
शOद का योग शरीर अथ म िकया गया है। शक ं राचाय ने भी इसका अथ शरीर ही िकया है। पंचम
अ3याय के 7व प म िविजतामा का अथ शरीर िलया गया है शरीराितCर आमा नहN। आचाय
शकं र ने भी इसका अथ िविजतदेह अथात् अपने देह पर िवजय पाने वाला िकया है। 3यातJय है िक
चावाक शरीरामवाद को ही मानता है। ऐसी पCरि7थित म यह मानना ही पड़ेगा िक गीता चावाक मत
से भले ही पणू त ः नहN िक(तु आिं शक Kप से अवbय ही भािवत है।
अठारहव अ3याय के 48व प म कहा गया है िक कोई भी कम यिद सहज हो तो सदोष होने पर भी
अथात् िकसी कारणवश अनिु चत माने जाने पर भी सहसा उसे नहN छोड़ देना चािहए। अथात् कोई
भी काय पCरयाtय नहN है। इस कार िन7स(देह यह कहा जा सकता है िक यहॉं चावाकAय

उतराखड म
ु िविवालय २८९
भारतीय दश
न MASL-103
िवचारधारा का 7प% भाव िदखाई देता है।
5.3.4 8याय मl चावा
क दश
न कW उपि"थित
(याय दशन व7ततु ः माण पर आधाCरत एक व7तवु ादी दशन है। व7ततु ः दशन cे म
माणमीमासं ीय ाि(त लाने का Iेय भी इसी दशन को जाता है। यह कह पाना िक (याय दशन म
चावाक मत का समथन या सम(वय हMआ है तो यह शोध का िवषय हो सकता है, िक(तु अपने मत
के समथन म तथा अपने मत कA 7थापना के िलये अ(य मत के खडन के म म इस िवचारधारा कA
आिं शक उपि7थित देखी जा सकती है। तथा-
(याय िस@ा(तम ु ावली म आमा कA 7थापना के म म चावाक के शरीरामवाद का खडन ाD
होता है- ननु शरीर7यैव कतृवम7वत आह-
शरीर"य न चैत8यं मृतेषु <यिभचारतः।
तथावं चेिदि8;याणामुपघाते कथं "मृितः।।
व7ततु ः िवनाथ ने यहॉं चावाक के मत को पवू प c के Kप म 7ततु िकया है। चावाक शरीर को ही
आमा मानता है। शरीर को ही आमा मानने पर यह आपिS हो सकती है िक मृत अव7था म शरीर
बना रहता है िफर चैत(य Wय1 नहN रहता? इस पर चावाक का कहना है िक (याय-वैशिे षक के मत म
यह माना जाता है िक म ु अव7था म चैत(य का अभाव मान िलया जाएगा, Wय1िक िजस कार
ाणाभाव (याय-वैशिे षक के मत म म ु दशा म Hान के अभाव का कारण है, इसी कार हमारे मत
म भी ाणाभाव ही मृत शरीर म Hानाभाव का कारण हो जाएगा।
इसी कार आि7तक नाि7तक िववेचन सगं म, (याय भाEय म वा7यायन ने एक y%ा(त देते हMए यह
7थािपत करने का यास िकया है िक चावाक नाि7तक नहN थे। वा7यायन का मानना है िक
‘‘नाि7तक यिद y%ा(त को मानेगा तो वह नाि7तक नहN रह पाएगा और यिद वह y%ा(त को नहN
मानेगा तो िकसके सहारे वह अपना िवरोधी पc का खडन करे गा?’’-
नाि7तकB y%ा(तमgयपु गFछ(नाि7तकवं जहाित। अनgयपु गFछन् िकं साधनः परमपु ालभेत?-
(यायदशन, वा7यायनभEय।
इस कथन से यही िस@ होता है िक नाि7तक वही कहलाता होगा जो y%ा(त नहN मानता होगा।
y%ा(त को न मानने का अथ होता है यc को न मानना। िक(तु चावाक यc को तो मानता ही
था िबना िकसी y%ा(त का वह अपने िवचार1 का भी वतन नहN करता था। इस कार िकसी न
िकसी Kप म (याय वैशिे षक दशन म चावाक कA आिं शक उपि7थित देखी जा सकती है।

उतराखड म
ु िविवालय २९०
भारतीय दश
न MASL-103
5.3.5 अैत वेदा8त मl चावा
क दश
न कW उपि"थित
QRसू के ऊपर भाEय िलखकर शक ं राचाय ने अ&ैत वेदा(त का वतन िकया था। िक(तु अपनी इस
िवचारधारा का िव|े षण उ(ह1ने अपने अ(य V(थ1 म भी िकया। QRसू के ही अ3यास करण म
उ(ह1ने चावाक का उLलेख लोकायत कहकर िकया है। इससे इतना 7प% है िक आचाय शक ं र
चावाक या लोकायत कA िवचारधारा से पणू त या अवगत थे।
इसके अितCर शक ं राचाय के अ(य V(थ ‘‘सविस@ा(त संVह’’ म भी चावाक िवचार का पयाD
िव7तार िमलता है। यिप इस िवषय म स(देह है िक यह आशक ं राचायिवरिचत है िक(तु जब तक
कोई बल बाधक नहN ाD होता तब तक इसम िकसी कार का स(देह नहN िकया जाना चािहए।
शकं राचाय ने अपने इस V(थ के ि&तीय करण का ‘‘लौकायितक पc करण’’ नाम िदया है-
लौकायितकप*े तु तवं भूतचतुयम।्
पिृ थ<याप"तथा तेजो वायु?रयेव नापरम।् । 298
इस करण म शक
ं राचाय ने लौकायितक िवचारधारा का 7वKप वणन इस कार िकया है-
‘‘लौकायितक पc म तो पृिथवी जल, तेज और वायु ये चार ही तव ह5, और नहN। यcग*य ही
व7तएु मा(य ह5, अy% मा(य नहN ह5, Wय1िक यहॉं देखा जाता नहN। जो लोग अy% मानते ह5 वे भी उसे
y% अथात् देखी जाने वाली व7तु कहॉं कहते ह5? यिद िकसी ने उस अy% को देखा है तो िफर वे
लोग उसे अy% Wय1 कहते ह5? िजसे कभी कोई भी देख न पाये वह शशशृंग आिद के तLु य होने के
कारण ‘‘सत’् ’ कै से हो सकता? सख
ु और दःु ख के सहारे भी धम ओर अधम कA कLपना नहN कA
जा सकती। Wय1िक लोग सुखी और दख ु ी 7वभावतः भी हो सकते ह5। अतः 7वभाव से अितCर
और कोई सुख दःु ख का कारण नहN। मयरू के पंख1 को भला कौन िचित करता है? कोिकल1 को
भला कौन मधरु कूजन िसखलाता है? म5 मोटा ह‹ँ , म5 तpण ह‹ँ , म5 तो वृ@ हो गया, म5 अभी युवक ह‹ँ -
इस कार तीितयॉं आमा के स*ब(ध म होती ह5, अतः उ िवशेषण1 से य ु शरीर ही है आमा।
उससे िभ(न अ(य और कोई नहN। भौितक जड़ व7तओ ु ं म जो चेतना देखी जाती है उसे पान सपु ारी
चनू ा और खैर आिद के संयोग से होने वाले लाल Kप के समान सांयोिगक समझना चािहए। इस
लोक से अ(य कोई 7वग या नरक नहN है। िशव-लोक आिद कA बात वचं क1 एवं अH1 कA
कLपनामा ह5। यवु ती सगं मज सख ु के अितCर कोई 7वगmय अनभु व नहN है। महीन कपड़े,
सगु ि(धत मालाए एवं च(दन लेपन इयािद जिनत सख ु 1 को भी 7वगmय सख ु कहा जा सकता है। मोc
मरण ही है और वह भी शरीर से होने वाले ाणिनगमन के अितCर और कुछ नहN है। इसिलये
बिु @मान् Jयि को िकसी कार का आयास नहN करना चािहए। तप, उपवास आिद के &ारा अपने
को सख ु ाना अHान का ही काम है। पाित…य, सवु णदान, भिू मदान, म(पवू क  पCरमािजत भोजन

उतराखड म
ु िविवालय २९१
भारतीय दश
न MASL-103
आिद के औिचय कA कLपना उन दबु ल1 के &ारा कA गयी जो िक बिु @मान् थे और दाCरZ्य के
कारण अपना पेट भरना चाहते थे। देवमि(दर, जलपान, Jयव7था, यH, कूप, उान आिद कA शसं ा
भला पिथक1 छोड़कर और कौन करता है? इसीिलये बृह7पित ने अिlनहो, वेदपारायण,
िदडधारण, भ7मलेपन आिद को बिु @ एवं साम_यहीन Jयि य1 कA जीिवका बतलाया है।
इसिलये बिु @मान1 को चािहए िक खेती, पशपु ालन, वािणtय एवं दड नीित आिद y% उपाय1 &ारा
सांसाCरक भोग1 का अनभु व कर ।’’ ( आन(द झा, चावाक दशन, पृ0 446-447)
इस स(दभ म, वेदाि(तक yि% से शक ं राचाय के &ारा चावाक के मत1 के समथन का िव|े षण यहॉं
आवbयक है। 3यातJय है िक शक ं र ने चावाक के इन मत1 का उLलेख खडन के िलये िकया है
मा(यता देने के िलये नहN। िक(तु उनके इस मत वणन म कुछ ऐसी बात अवbय कही गयी है िजससे
उसके अिताचीन 7वKप का एवं मा(यता का आभास ाD होता है। िब(दश ु ः इसे इस कार समझा
जा सकता है-
(क) शकं राचाय ने सवमतसVं ह म लोकायत पc न कहकर इसके िलये लौकायितक पc उ@तृ
िकया है िजससे एक सJु यवि7थत एवं दीघकािलक लोकाyत िवचारधारा कA अनभु िू त होती है।
(ख) बृह7पित के स(दभ म उदधृत मत, िक अिlनहो आिद कुछ असमथ^◌ं के जीिवकाथ वितत
है, म अिlनहो आिद कA अकरणीयता नहN बतलायी गयी है। Wय1िक JयावहाCरक Kप से
जीवनोपाय सवाथ आवbयक है।
(ग) सार Kप म किथत यह वाWय िक बिु @मान1 को चािहए िक खेती, पशपु ालन, वािणtय Jयापार
आिद को अपनाकर सुखी बन, से यह 7प% तीत होता है िक लोकायत िवचारधारा अित ाचीन
काल म उFछृ ं खल नहN, पणू स ंयत एवं सश
ु ंख
ृ ल थी।
अ7त,ु लoय या िवषय कुछ भी हो िक(तु शक ं राचाय के &ारा चावाक दशन के मत1 का इस कार
उ@तृ िकया जाना िन7स(देह चावाक के िवषय म JयाD आधिु नक िवास का तीप Kप वितत
करता है। ऐसा नहN है िक के वल शक
ं र ने ही चावाक का िवरोध िकया बिLक अ(य दशन ने भी
परु जोर इसका िवरोध िकया।
अ$यास &.

1. यH म कLपना कA जाती है
(क) वेद कA (ख) एक अिधvाी देवी कA
(ग) इ(Z कA (घ) सयू  कA

उतराखड म
ु िविवालय २९२
भारतीय दश
न MASL-103
2. के नोपिनषद् म समथन िमलता है-
(क) देहामवाद का (ख) इि(Zयामवाद का
(ग) भतू ामवाद का (घ) इनम से कोई नहN
3. गीता के पॉंचव अ3याय म य
ु िविजतामा शOद का अथ शक
ं राचाय ने िलया है-
(क) िविजत देह (ख) िविजत मन
(ग) िविजत इि(Zय (घ) िविजत िचS
4. शक
ं राचाय के &ारा वितत लोकायितक िवचारधारा का वतन ाD होता है-
(क) सवदशनसVं ह (ख) षड्दशनसमFु चय
(ग) सवाथिसि@ (घ) सवमतसंVह
5. िवनाथ ने (यायिस@ा(त म
ु ावली म शरीरामवाद का खडन िकया है। इस वाद का
वSन िकया है-
(क) िवनाथ ने (ख) चावाक ने
(ग) शक
ं र ने (ग) महावीर ने

5.4 चावा#क दश#न और नाितक स<दाय


यिप चावाक 7वयं नाि7तक स*दाय म पCरगिणत है तथािप कुछ अ(य नाि7तक िवचारधारा ह5 जो
चावाक का तो िवरोध करते ही ह5 साथ ही, उनके मत को उ@तृ करते हMए उन मत1 से सहमित भी
कट करते ह5। इसी स(दभ म यहॉं नाि7तक िवचारधारा म चावाक कA उपि7थित का अ(वेषण िकया
जा रहा है।
5.4.1 जैन दश
न मl चावा
क कW उपि"थित
जैन दशन के आचाय हCरभZ सCू र िवरिचत षड्दशनसमFु चय म चावाक एवं इसके िस@ा(त1 का
िववरण ाD होता है। यहॉं चावाक मत का 7वKप इस कार उपि7थत िकया गया है-
लोकायता वद8येवं नाि"त देवो न िनव
ृितः।
धमा
धम न िवKेते न फलं पुXयपापयोः।। षड्दश
नसमुFचय, चावा
क मत

उतराखड म
ु िविवालय २९३
भारतीय दश
न MASL-103
‘‘अथात् लोकायत1 का कहना है िक न देव1 का अि7तव है और न िनवृि त अथात् 7वग या अपवग
है। धम और अधम भी नहN है और इसिलये उनके फल भी नहN ह5। चावाक िfय1 से भी कहते ह5 िक
हे भZे! िजतना तुम देखती हो या त*ु हारे इि(Zय1 के &ारा Vहण िकये जाने योlय है, उ(ह ही ामािणक
समझो। शाf के आधार पर जो लोग 7वग अपवग , पाप पु य आिद का उपदेश देते ह5 उसे तमु
भयानक जगं ली जानवर के पॉंव के समान समझो-
एतावानेव लोकोयं यावािनि(Zगोचरः।
भZे! वृकपदं पbय य&दि(त बहMIतु ाः।। षड्दशनसमFु चय, चावाक मत
हे रमणी! खाओ, पीओ मौज करो जो बीत जाएगा वह तेरा नहN होगा। गया समय िफर लौटता नहN।
जब तक यह शरीर वि@Eणु है फलतः यवु ाव7था य ु है, तभी तक वा7तिवक है। और पृिथवी, जल,
तेज तथा वायु ये चार भतू ही हम चावािकय1 के मत म तव ह5। ये 7वयं चैत(य के आIय ह5। चावाक
का यह भी मानना है िक पृिथवी आिद भतू 1 का संघात होने पर देहािद संभव होता है। म के अंग
भतू भात आिद के सड़ने से मदशि के समान भौितक देह1 म आमता होती है अथात् चैत(य होता
है। इसिलये y% ऐिहक फल1 को छोड़कर जो लोग अy% पारलौिकक फल1 के िलये वृत होते ह5 यह
उनकA अय(त िवमढू ता है, अथात् अHान है ऐसा चावािकय1 का मानना है। साधनीय देवपजू न
आिद आचरण और िनवृित अथात् याग से जो कुछ लोग1 को स(नता होती है वह श(ू य के
अितCर और कुछ नहN अतः वह िनरथक है’’-
सा3यवृिSिनवृिSgयां या ीितजायते जने।
िनरथा सा मता तेषां सा चाकाशापरा न िह।। षड्दशनसमFु चय, चावाक मत ( आन(द झा, चावाक
दशन, पृ0 446-447)
5.4.2 रसे5र दश
न मl चावा
क दश
न कW उपि"थित
यिप रसेर दशन को दाशिनक 7थान के Kप म सावभौिमक 7वीकृ ित नहN है पनु रिप,
सवदशनसंVह म माधवाचाय ने एक दशन 7थान के Kप म◌ ं े इसे उ@तृ िकया। समालोचक1 कA
yि% म माधवाचाय ने वहॉं िजस Kप म इस िवचारधारा का वतन िकया है वह िकसी न िकसी Kप
म चावाकAय िवचारधारा का ही िव7तार तीत है।
सवदशनसVं ह के रसेर दशन िववेचन सगं म कहा गया है िक ‘‘छः दशन1 के ’’ अ(दर मिु कA
बात कही गयी ह वह सय है िक(तु शरीरपात अथात् मरण के अन(तर। इसिलये अ(य दशनीय मिु
ह7तगत आमलक के समान यcतः उपलOध नहN हो पाती। इसिलये रसायनामक रस अथात् श@ ु
पारद के &ारा शरीर कA रcा करनी चािहए अथात शरीर को िनय बना लेना चािहए-

उतराखड म
ु िविवालय २९४
भारतीय दश
न MASL-103
षड्दश
नेिप िC"तु दिशतािपXडपातने।
करोमलकवम
तािप &य*ानोपपKते।।
त7मािS रcिपडं रसैBैव रसायनैः।।3।।
वहॉं ‘‘अ(य दशनीय मिु यcतः उपलOध नहN होती’’ इस कथन से यह 7प% तीत होता है िक
रसेर दशन भी यc को उसी कार माण मानता है िजस कार चावाक दशन। शरीर को िनय
मान लेने पर भतू ामवाद, फलतः भतू चैत(य 7वतः ाD हो जाता है और यc मा माणता भी
इस िच(तन को 7वीकार है ही। 3यातJय है िक ये दोन1 मौिलक िस@ा(त ही चावाक के िविश%
िस@ा(त ह5। इसी कार रसेर दशन को जो परमेर तादा*यवादी कहा गया है वह भी चावाक के
महासमवायामक भतू ा&ैत कA तjवता कA मा(यता के साथ संगत हो जाती है।
अ$यास &.

1. वा7यायन के अनसु ार नाि7तक का अथ है-


(क) आमा को नहN मानने वाला (ख) ईर को न मानने वाला
(ग) वेद कA िन(दा करने वाला (घ)y%ा(त को नहN मानने वाला
2. चावाक िfय1 को भी स*बोिधत करते तीत होते ह5। यह उ@रण हमे िमलता है-
(क) षड्दशनसमFु चय म (ख) सवदशनसंVह म
(ग) (यायिस@ा(त म
ु ावली म (घ) सवमत संVह म
3. समालोचक1 कA yि% म चावाकAय िवचारधारा का िव7तार है-
(क) जैन दशन (ख) बौ@ दशन
(ग) सवदशन (घ) रसेर दशन
4. ‘‘अ(य दशनीय मिु यcतः उपलOध नहN होती’’ इस कथन से यह तीत होता है िक
(क) चावाक यc को नहN मानता है
(ख) बौ@ दशन ही यc को मानता है
(ग) रसेर दशन यc को माण मानता है

उतराखड म
ु िविवालय २९५
भारतीय दश
न MASL-103
(घ) इनम से काई नहN।
5. रसेर दशन के अनसु ार शरीर को िनय बनाने के िलये िकस तjव से शरीर कA रcा करनी
चािहए?

5.5 सारांश
इससे पवू  कA इकाई म आपने चावाक दशन के मल ू िस@ा(त1 को जाना। इस इकाई को पढ़ने के बाद
आप यह जान चक ु े ह5 िक चावाक िवचारधारा िकसी एक काल म िकसी आकि7मक घटना के
कारण िवकिसत नहN हMआ बिLक यह िवचारधारा वैिदक काल से ही समाना(तर Kप म चली आ
रही है। यही कारण है िक वेद से लेकर समकालीन सारे दशन िच(तन म इसकA उपि7थित देखी जाती
है। वेद म तो साथ साथ यह शाfाथ चलती िदखाई देती ह5। या7काचाय िवरिचत िनp म तो कौस
के h1 म 7प%तया इसका ितिब*बन देखा जाता है। अ7त,ु इन दशन1 म कहN तो इसकA उपि7थित
िव7तृत Kप म देखी जाती है कहN आिं शक Kप म। यह उपि7थित या तो चावाक दशन के समथन म
है तो कहN उन उन दशन1 म अपने मत कA 7थापना म म िवरोधी लoय बनकर िवमान है।
इसिलये ाD उ@रण1 के आधार पर वेद, उपिनषद,् वेदा(त, (याय वैशिे षक, जैन आिद दाशिनक
िवचारधाराओ ं म चावाक कA उपि7थित का अ(वेषण िकया गया है।
इस पॉंचव इकाई के अ3ययन से चावाक के मत1 को जानकर आप अ(य दाशिनक िवचारधाराओ ं के
साथ तलु नामक अ3ययन करने म सcम हो पाए◌ॅ◌ंगे साथ ही यह भी जान पाए◌ॅ◌ंगे िक अ(य
दाशिनक िवचारधाराओ ं कA yि% म चावाक कA ि7थित Wया है?

5.6 शदावल

देहामवाद- िजस िस@ा(त म देह अथ वा शरीर को आमा माना जाता है, उसे देहमवाद या
शरीरामवाद कहा जाता है। 3यातJय है िक चावाक देह या शरीर को ही आमा मानते ह5।
भतू ामवाद- देहामवाद या शरीरामवाद कA तरह ही भतू अथात् ाणी को आमा के Kप म मानना
भतू ामवाद है।
रसेर- माधवाचाय िवरिचत सवदशनसंVह म नवम दशन के Kप म रसेर को एक दशन माना है।
इसे आयुवदu दशन भी कहा जाता है। इस म पारद अथ वा रस से जीव(मिु कA बात कही जाती है।
इसकA गणना माहेर के चार स*दाय1 म कA जाती है।
अ3यास- यह एक कार का `म है। अवा7तिवक तjव के ऊपर वा7तिवक तjव का आरोपण
अ3यास है। यथा- सीपी के ऊपर रजत का आरोपण। यह अ&ैत वेदा(त के &ारा वितत एक िच(तन
है िजसके आधार पर वह QR के अ&ैतव कA 7थापना करते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय २९६
भारतीय दश
न MASL-103
अिlनहो- वैिदक पर*परा म गृह7थाIम म अनvु ीयमान एक िविश% यH है। चावाक ने वैिदक
कमकाड पर वािचक हार के म म अिlनहो करने वाले को बिु @ तथा पpु षाथ से रिहत कहा है।

5.7 अयास 
न के उतर
5.3 1. ख, 2. ग, 3. क, 4. घ, 5. ख
5.4 1. घ, 2. क, 3.घ, 4. ग, 5. श@
ु पारद

5.8 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1. झा, आचाय आन(द, (1969) चावक दशन, िह(दी सिमित, सचू ना िवभाग, उSरदेश,
लखनउ,
2. ितवारी, डॉ0 नरे श साद, (1986), चावाक का नैितक दशन, िबहार िह(दी V(थ अकादमी,
पटना
3. ऋिष, ो0 उमाशक ं र शमा, (1964), सवदशनसंVहः, चौख*बा िवाभवन, वाराणसी-1
4. शमा, च(Zधर, (1991), भारतीय दशन आलोचन और अनश ु ीलन, मोतीलाल
बनारसीदास, िदLली
5. देवराज, डॉ0 न(दिकशोर, (1992), भरतीय दशन, उSरदेश िह(दी स7ं थान, लखनउ
6. सवान(द पाठक, चावाक षि%, नवनाल(दा िवहार Cरसच पिOलके श(स
5.9 *नब%धामक 

(क) ारि*भक दाशिनक िवचारधारा म चावाक दशन कA आिं शक उपि7थित को िव7तारपवू क

समझाए।ं
(ख) IीमPगवTीता म चावाक दशन कA उपि7थित पर एक िनब(ध िलख।
(ग) नाि7तक िवचारधारा म िकस कार चावाक के मत को ढ़—ंढा जा सकता है? सोदाहरण समझाए।ं
(घ) रसेर दशन के िस@ा(त को 7प% करते हMए चावाक दशन के साथ उसके सा*य को 7प% कर ।
(ड) अ(य भारतीय दशन के िविश% स(दभ म चावाक के 7थान का िनधारण कर ।

उतराखड म
ु िविवालय २९७
भारतीय दश
न MASL-103

 6 - 7 <     1 ह /


  / =!  
,) -
6.1 तावना
6.2 उे

6.3. चावा5क दश5न क आचारमीमासं ा
6.3.1 भिू मका
6.3.2 चावा5क दश5न क मो,िवषयक अवधारणा
6.3.3 चावा5क दश5न क धम5िवषयक अवधारणा
6.3.4 चावा5क दश5न क कामिवषयक अवधारणा
6.4 चावा5क दश5न के >यावहाGरक िसEा(त
6.4.1 @िढ़ का िवरोध
6.4.2 स◌
ु ुख का अ(वेषण
6.4.3 भोगाथ5 ऋण क कामना
6.4.4 तनावमिु R के यास
6.5 सारांश
6.6 श-दावली
6.7 अ3यास 01 के उ4र
6.8 स(दभ5 6(थ सचू ी
6.9 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय २९८
भारतीय दश
न MASL-103

6.1 तावना
चावाक दशन से स*ब@ यह तीसरी तथा इस समV Oलॉक कA यह छठी इकाई है। इससे पवू  के पाठ
म आपने चावाक दशन के िस@ा(त1 का सिव7तर Hान ाD िकया। उसे जानकर आप िन7स(देह
चावाक कA Hानमीमांसा तथा तjवमीमांसा को भली भॉंित समझ िलया होगा। आपने यह भी जाना
होगा िक अपनी मा(यता कA 7थापना के िलये वे िकसी भी शाf को माण नहN मानते, पर*परा एवं
शाf के िवp@ जा सकते है। साथ ही, अपने तक को ही धान मानते ह5।
अ7त,ु उ पCरचचा से सवथा िभ(न इस इकाई म हम चावाक दशन कA बहMचिचत िवचारधारा का न
के वल सांसाCरक जीवन से स*ब(ध के िवषय म जानगे यतु JयावहाCरक जीवन से स*ब(ध तथा
इसकA उपादेयता के िवषय म भी जानने का यास कर ग।े

6.2 उे

7ततु इकाई के अ3ययन के बाद आप -

• बता सक गे िक आज चावाक दशन Wय1 ासिं गक है।


• समझ सक गे िक चावाक दशन Kिढ़य1 का िवरोध करता है, सख ु को ही एकमा ाDJय
समझता है तथा काम के ित समिपत है।
• पpु षाथ के िवषय म िकस कार अ(य दाशिनक िवचारधारा से िभ(न िवचार रखता है।
• एतदथ सवथम हम चावाक दशन कA आचारमीमांसा अथ वा नीितमीमांसा समझनी
पड़ेगी। 3यातJय है िक इससे पवू  के पाठ म आचारमीमांसािवषयक पाठ 7तािवत था,
पनु pि दोष से बचने के िलये िजसका िववेचन वहॉं नहN िकया गया। आपलोग1 के बोधाथ
उसकA पCरचचा यहN कA जा रही है-

6.3. चावा#क दश#न क आचारमीमांसा

6.3.1 भूिमका
चावाक दशन कA आचारमीमांसा उसकA Hानमीमांसा एवं तjवमीमांसा कA पCरणित है। इसम मानव
का 7वKप और पpु षाथ का 7वKप पणू त या पCरवितत हो जाता है। भारतीय िवचारधारा म मोc परम
पpु षाथ है। धम मोc कA ािD का साधन है। अथ एवं काम धम से िनयि(त होता है। चँिू क चावाक
तjवमीमांसा म मनEु य का आ3यािमक 7वKप भौितक बन जाता है, अतः उसके ाDJय अभी% कA
ाथिमकता भी बदल जाती है। ऐसी ि7थित म मोc गौण हो जाता है, धम लoयिवहीन हो जाता है,

उतराखड म
ु िविवालय २९९
भारतीय दश
न MASL-103
काम परम पpु षाथ बन जाता है और अथ उसकA ािD का एकमा साधन। यहॉं उ चार1 पpु षाथ^
कA चावाकAय िववेचना 7ततु कA जा रही है-
6.3.2 चावा
क दश
न कW मो*िवषयक अवधारणा-
भारतीय िवचारधारा म मोc दःु ख1 के आयि(तक अभाव कA अव7था है, यही मानव जीवन का
अि(तम लoय माना जाता है।वहॉं इसी को परम पpु षाथ कहा गया है। कुछ िवचारक1 के अनसु ार
मोc इसी जीवन म ाDJय है तो कितपय अ(य िवचारक1 के अनसु ार मृयु के उपरा(त इसकA
उपलिOध होती है। बौ@ दशन का िनवाण, सा;ं य एवं योग दशन का कै वLय, जैन, (याय-वैशिे षक
एवं वेदा(त िवचारधाराओ ं का मोc मानव जीवन का परम लoय है। मीमांसक िवचारक 7वग को, जो
पणू  आन(द कA अव7था है, मानव जीवन का अि(तम लoय मानते ह5।
चावाक के अनसु ार मृयु ही मोc है- मरणमेव अपवगः अथ वा मरणमेव मोcः। सवदशनसंVह म
मोc का लcण इस कार िदया गया है- देहFछे दो मोcः। अथात् देह या आमा का िवनाश ही मोc
है। यिद मोc से तापय आमा का शारीCरक ब(धन से म ु होना है तो यह स*भव नहN है, Wय1िक
जीिवत शरीर ही आमा है। शरीर से िभ(न आमा का कोई 7वKप ही नहN है। यिद मोc का अथ
जीवन काल म ही दःु ख1 कA आयि(तक िनवृिS है तो यह अस*भव है, Wय1िक शरीर-धारण और
सखु -दःु ख म अिवयोtय स*ब(ध है। चावाक के अनसु ार सखु कA कामना तथा मृयु के उपरा(त मोc
कA अवधारणा िनराधार है, Wय1िक यह परलोक कA अवधारणा पर आधाCरत है और परलोक के
िलए कोई माण नहN है। अतः मोc कA धारणा न के वल `मज(य है बिLक तक िवp@ भी है।
6.3.3 चावा
क दश
न कW धम
िवषयक अवधारणा –
भारतीय िवचारधारा म धम सवािधक महवपणू  है। रामायण, महाभारतािद V(थ1 का णयन ही धम
कA 7थापना के िलये िकया गया है। इसे ही जगत् कA ितvा कहा गया है। िवग (धम, अथ और
काम) म इसका मधू (य 7थान है। धम का माण वेद है। िक(तु चावाक दशन के अनसु ार धम
मख
ू त ापूण मित`म एवं एक कार का मानिसक रोग है न ईर का अि7तव है एवं न िनय आमा
का। धािमक अ(धिवास1 एवं पcपात1 के कारण मनEु य को परलोक, ईर, 7वग, नरक आिद कA
कLपना करने कA आदत बन जाती है।
चावाक वेद1 कA घोर िन(दा करता है। उनके अनसु ार वेद अिवसनीय ह5, Wय1िक वे असयता,
असंगित एवं पनु pि के दोष1 से भरे पड़े ह5। वेद के रचियता तीन है- भाड, धतू  और िनशाचर।
अिlनहो, तीन1 वेद, तप7वी के िदड और शरीर म भ7म लगाना- ये सब उन लोग1 कA जीिवका
के साधन ह5 जो Hानश(ू य एवं पं7ु विवहीन ह5। वेद1 म ाD धम, अधम, 7वग, नरक, यH, आमा,
ईर, परलोक, पनु जनम आिद अतीि(Zय िवषय1 कA कLपनाएँ जनसाधारण को धोखा देने के िलए
ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ३००
भारतीय दश
न MASL-103
चावाक वैिदक कमकाड एवं यH, यागािद का भी घोर िवरोध करते ह5। वे वैिदक कमकाड1 का
उपहास करते ह5। उनके अनसु ार 7वग पाने के िलए, नरक से बचने के िलए तथा ेतामाओ ं को तृD
करने के िलए वैिदक कमकाड िनरथक ह5। वे वैिदक कमकाड का िवरोध करते हMए कहते ह5 िक
यिद यH म मारा गया पशु 7वग जाता है तो Jयि पशओ ु ं के बजाय अपने माँ-बाप कA बिल Wय1
नहN कर देते िजससे वे 7वग जा सक । वैिदक Iा@-कम पर Jयंlय करते हMए चावाक कहते ह5 िक यिद
Iा@ म अिपत िकया हMआ पदाथ ेतामा कA भख ू िमटा सकता है तो पिथक भोजन-सामVी लेकर
याा पर Wय1 िनकलता है? उसके कुटु*बजन1 को घर से ही उसकA भख ू िमटाने के िलए भोtय पदाथ
अिपत कर देना चािहए। तथा-
मृतानामिप ज(तनू ां Iा@ं चेSिृ Dकारणम।्
िनवाण7य दीप7य 7नेहः संव@येिFछखाम।् । सव0 15
6.3.4 चावा
क दश
न कW कामिवषयक अवधारणा –
चावाक चार1 पpु षाथ^ म काम को परम पpु षाथ मानता है। उनकA 7प% मा(यता है िक जो कम काम
कA पिू त करे या सख
ु दान करे वही उिचत है। उनके अनसु ार Jयि &ारा इि(Zय सख ु 1 का उपयोग
ही जीवन का लoय है। उसका आदश है, जब तक जीिवत रह सख ु से रह, उधार लेकर घी िपय
Wय1िक देह के भ7म हो जाने के बाद पनु ज(म नहN होता -
यावtजीवेत् सख
ु ं जीवेद् ऋृणं कृ वा घृतं िपबेत।्
भ7मीभतू 7य देह7य पनु रागमनं कुतः।।
चावाक दशन के अनसु ार पारलौिकक और आ3यािमक सख ु कA आशा म ऐिहक सख ु का पCरयाग
करना पागलपन है। उनकA यह भी मा(यता है िक दःु ख के भय से सुख का याग करना मख ू त ा है।
िजस कार कोई Jयि िभcुक1 &ारा माँगे जाने के भय से भोजन पकाना नहN छोड़ता, अथवा
पशओु ं &ारा न% िकये जाने के भय से खेती करना नहN छोड़ता उसी कार दःु ख के भय से सख ु का
पCरयाग नहN करना चािहए। िफर, यिद सख ु और दःु ख पर7पर िमले ह1 तो सख ु का Vहण और दःु ख
का पCरयाग वैसे ही उिचत है जैसे भसू े और गेह‹ँ िमले रहते ह5, िक(तु गेह‹ँ ले िलया जाता है और भसू ा
पशओ ु ं के िलए छोड़ िदया जाता है। इस कार चावाक दशन के वल और के वल सुख का िच(तन
करता हMआ तीत होता है।
उपरो िववेचन के आधार पर सहज ही यह िनEकष िदया जा सकता है िक चावाक दशन कA इन
मा(यताओ ं ने मनEु य के िचS को उFचतर जीवन के िवचार1 तथा आ3यािमक एवं नैितक मLू य1 से
िबलकुल हटाकर िवषयभोग कA दिु नयाँ म के ि(Zत कर िदया। उसने िव को िनयि(त करने वाले

उतराखड म
ु िविवालय ३०१
भारतीय दश
न MASL-103
ईर तथा मनEु य को स(माग पर लाने वाली अ(तyि% का तो िनषेध िकया ही, परलोक, लोकोSर
जीवन तथा पनु ज(म को भी अ7वीकार करके कमवाद के िस@ा(त का भी ितर7कार िकया। चावाक
दशन सख
ु कA ािD के िलए इतना अधीर हो उठता है िक वह दःु ख से बचने कA भी कोिशश नहN
करता। फल7वKप उसने दशनशाf को जीवन कA साधना के 7तर से भी Fयतु कर िदया। इस म
इसे इस कार समझा जाना चािहए िक चावक ने िकसी दशन या िवचार का वतन नहN िकया
बिLक उस काल म JयाD सामािजक Jयव7था का लोग1 कA मानिसकता के अनुKप् िवरोध िकया।
व7ततु ः उ िववेचन से ही हम इस दशन का वतमान JयावहाCरक सांसाCरक जीवन से स*ब(ध कA
7थापना कर सकते ह5। यह िच(तन एक ऐसा िवचार है जो लोग1 को सहज ही आकृ % कर लेता है।
लोग1 कA pिच के अनकु ू ल है। इस स(दभ म, JयावहाCरक व सांसाCरक जीवन के वतमान 7वKप को
समझना परमावbयक है। इसके सवKप को मु डे मु डे मितिभ(ना के स(दभ म नहN समझा जाना
चािहए।
वतमान Jयवहार, Jयव7था व ससं ार के 7वKप कA Jया;या कर पाना सवथा दEु कर है। इसका 7वKप
ितcण बदलता रहता है इसिलये यह कह पाना िक यह ऐसा है यह वैसा है सवथा आपेिcक है।
पनु रिप ितिदन के ितcण बदलते 7वKप को 3यान म रखकर एक सव7वीकृ त 7वKप अवbय ही
िनधाCरत िकया जा सकता है।
अ$यास &.

(1) चावाक के अनसु ार मोc है-


(क) पनु ज(म (ख) 7वग (ग) मृयु (घ) कमब(धन
(2) वेद1 म ाD धम, अधम आिद िवषय1 कA कLपनाएँ जनसाधारण के िलए ------ है।
(3) चावाक दशन का आदश वाWय Wया है?
(4) चावाक दशन ने आ3यािमक एवं नैितक मLू य1 को के ि(Zत कर िदया-
(क) उFचतर मLू य1 म (ख) िवषयोपभोग म
(ग) परमामा कA ािD म (घ) कमकाड म
(5) चावाक मे कमवाद िस@ा(त का-
(क) समथन िकया (क) चार िकया

उतराखड म
ु िविवालय ३०२
भारतीय दश
न MASL-103
(ग) अपमान िकया (घ) िस@ा(त िदया

6.4 चावा#क दश#न के >यावहा4रक स@ा%त

6.4.1 Lिढ़ का िवरोध -


यहॉं Kिढ़ से तापय समकालीन समाज म JयाD िकसी ऐसी पार*पCरक `ा(त धारणा से है िजसका
स*ब(ध तक या िवास पर आधाCरत िकसी मा(यता से न होकर उस समाज म वितत अ(धिवास
पर आधाCरत िकसी अy%, अIतु , अHात व अितमाियक मा(यता से है। यथा- याा पर िनकलते
समय िबLली के &ारा रा7ता काटने पर अशभु व अिन% कA सभं ावना कर बैठना। या पpु ष कA बाई ं
ऑखं के फड़कने से अिन% तथा दाई ंऑखं के फड़कने से अभी% कA ािD होना।
इससे पवू  के पाठ1 म स*य या यह 7थािपत करने का यास िकया गया है िक चावाक लगभग सभी
Kिढ़य1 का उपहास उड़ाते ह5। सिवशेष वेद एवं वैिदक आचार उनके कठोर हार के िविश% लoय
रहे। वेद पर हार का अथ इस सगं म उस म िनिहत कYर कमकाड कA भ7ना िकया जाता रहा है।
आज भी यह िववाद का ही िवषय है िक Wया उस तथाकिथत कमकाड से 7वगािद कA ािD संभव
है? आज भी हमारे समाज मे यH, िदड भ7म इयािद के सहारे जीिवकोपाजन करने वाले कA कमी
नहN। इसी Jयव7था के िवरोध म काला(तर म कबीरदास ने अपना 7वर मखु Cरत िकया था िक
पाहन पजू ै हCर िमलै तो म5 पजू ंू पहार।
ता ते चिकया भली कूट खाए ससं ार।।
मृयु के उपरा(त स*पािदत िकये जाने वाले Iा@ािद के िविश% स(दभ म उ(ह1ने 7प% कहा है िक
Iा@कम म मरे हMए के िलये िपडदान Kप भोजन Wय1 िदया जाता है। यिद िपडदान से मृतामा
स(तृD होता होगा तो याा पर जाने वाले याी अपने साथ Wय1 भोजन ले जाते ह5? Wय1 नहN घर बैठे
उनके 7वजन Iा@ि या के &ारा उ(ह भोजन पहMचं ा देते ह5?
भले ही चावाककालीन समाज म यह कथन वेद िवp@ रहा हो िक(तु आज यह 7प% देखा जा सकता
है िक उ सम7त ि या, ि या व िति या िवलDु ाय हो रही ह5। कहN तीन िदन1 म ही मृतामा
के उ सम7त सं7कार कर िदये जाते ह5 तो कहN उसी िदन उस काय को स*प(न कर शोकाकुल
पCरवार िनिB(त से हो जाते ह5। हॉं, आज भी िमिथला, वाराणसी आिद देश1 के कYर पिडत
समवाय म इसकA बीभीिषका देखी जाती है जहॉं Iा@ के नाम पर लाख1 Kपये का अपJयय होता है।
िकसी भी समाज के िपछड़ेपन के कई कारण1 म से एक कारण उसका Kिढ़V7त होना है। Kिढ़
समाज कA मानिसक दासता है जो गितवादी िच(तन के माग को सदैव अवp@ करता है।

उतराखड म
ु िविवालय ३०३
भारतीय दश
न MASL-103
अकमयता व िनEकमयता को इसी से बढ़ावा िमलता है। Kिढ़ का कोई काय कारण पCरणाम नहN
होता। ऐसी ि7थित म, चावाक के &ारा वितत यह ाि(त वतमान JयावहाCरक सांसाCरक Jयव7था
के िलये सवथा उपादेय है। इसका यह अथ नहN िक Kिढ़ सवथा याtय है या वेदािद का िवरोध
करना ही आधिु नक ससं ार का सृजन करता है बिLक इसका अथ यह िलया जाना चािहए िक समाज
िकसी ऐसी एकिनv िवचारधारा का अनवु तक न रहे जो गित व िवकास के माग म बाधक बने
यतु िवचार1 कA 7वत(ता ऐसी गित व िवकास म साधक बने।
6.4.2 सख
ु का अ8वेषण-
अ(य सांसाCरक व7तओ ु ं कA इFछा िजसकA इFछा होने के कारण होती है वह भावामक व7तु है
सखु - इतरे FछानधीनेFछािवषयवं सख
ु 7य लcणम् (तक संVह (या0 बोिधनी)। इस धरा पर रहने
वाला येक मानव सुख के अ(वेषणमा म रहता है। उपिनषद् 7प%तया सख
ु ािD कA बात करती है।
वहॉं भले ही आयि(तक अथ वा पारमािथक सख ु कA बात कही जा रही हो िक(तु मल ू म एक ऐसे
अभी% कA अिभलाषा सिं चत है जो ज(म ज(मा(तर के दःु ख1 का िनषेध करती है। दःु ख का िनषेध व
सख
ु कA ािD का िच(तन ायः सम7त भारतीय दशन िच(तन म िवमान है। चावाक भी सख ु कA
अवधारणा 7ततु करता है।
चावाक दशन सख
ु कA Jया;या सवथा नतू न प@ित से करता है। वे दःु ख, क%, पीड़ा आिद को इसी
जीवन म ाDJय मानते ह5। चिंू क 7वग, पनु ज(म आिद को वे नहN मानते इसिलये सम7त भो Jय,
अभो Jय आिद को इसी ज(म कA अिनवायता मानते ह5। अतः सख ु को ही परम लoय मानते हMए वे
उसी को एकमा ाDJय मानते कहते ह5।
चावाक के अनसु ार मानवमा का आदश सख ु है। सख
ु इिFछत व7तु कA ािD है। इस सख ु कA ािD
काम से होती है। काम मानव कA 7वाभािवक वृिS है। अतः सख ु ािD के िलये कामतृिD आवbयक
है। कामतृिD तथा सख ु ािD व7ततु ः एक ही है। खाओ, पीओ तथा मौज करो यही मानव कA ऐषणा
है। इसिलये चावाक इसे अपनाने कA ेरणा देता है। तदनसु ार यही मनEु य का आदश होना चािहए।
इस म म चावाक िकसी मयादा अथ वा नैितकता कA रे खा नहN खNचता। सवदशनसंVह म इस सुख
को ही पpु षाथ कहा गया है- अगं नाािलंगनािदज(यं सख
ु मेव पpु षाथः। अथात् fी के आिलंगन से
उप(न सख ु ही पpु षाथ है।
एतदथ शाfीय िच(तन, धािमक अनvु ान, आ3यािमक िनvा आिद को वे आड*बर मा कहते ह5।
वा7यायन के कामसू म वितत इि(Zयसख ु को यिप वे 7वीकार करते ह5 पनु रिप पर7परापघातकं
िवग\ सेवते के क_य का वे अनसु रण नहN करते। इनत त_य1 को वे के वल मन के राtय कA कLपना
कहते है। 3यातJय है िक यिप यावtजीवेत् सख ु ं जीवेत् कA अवधारणा सम7त ब(धन को तोड़ने
वाली होती है तथािप उसकA मौिलक अवधारणा को सामा(य तक मा से िनराकृ त नहN िकया जा

उतराखड म
ु िविवालय ३०४
भारतीय दश
न MASL-103
सकता। आधिु नक सम7त संसार इसी सख ु वाद के ित उ(मख ु है। भले ही, इस उFछृ ं खल सख ु वाद
का यcतः अिहत िदखता हो िक(तु अयcतः िकसी भी िवचारधारा म इसका िवरोध नहN देखा
जाता। ायः सारे समकालीन अथ वा आि7तक िवचारधारा म असय भाषण का िवरोध है, लेिकन
JयावहाCरक सासं ाCरक स*ब(ध कA yि% से के वल इसका ही अनपु ालन मा िदखता है। सरु ापान,
स(ु दरीसमागम आिद को महापाप कA संHा िदये जाने पर भी मनEु य इस म लीन िदखते ह5, इ(ह याtय
नहN मानते।
तापय यह है िक एक िवचारधारा नैितकता कA ल*बी चौड़ी पCरभाषा व उदाहरण 7ततु करके भी
उसके अनपु ालन म असमथ है दसू री ओर चावाक कटुसय ही सही िक(तु उसके अनपु ालन कA
िशcा दे रहा है तो नैितकता का उLलंघन कहना लांछना मा तीत होता है। व7तुतः समाज कA
नैितकता िकसी िस@ा(त से िनधाCरत नहN कA जा सकती। मनुEय आवbयकतानK ु प अपनी यथासंभव
नैितकता का िनधारण करता है। इस yि% से, िन7स(देह चावाक दशन के सुख का अ(वेषण आधिु नक
JयावहाCरक सांसाCरक स*ब(ध कA स(ु दरतम Jया;या करता तीत होता है। ऐसी Jयव7था से◌े
बचना व बचाना कठोर आमिनVह ही होगा।
6.4.3 भोगाथ
ऋण कW कामना-
इससे पवू  Kिढ़ एवं सुख कA अवधारणा के िवषय म आपने पढ़ा। इससे एक बात 7प% हMई िक
चावाक का सख ु उFछृ ं खल है। वह इसकA ािD के िलये िकसी भी सीमा तक जा सकता है। यिप
िकसी भी सीमा- इस कार का कथन अिनवचनीय होता है पनु रिप ाD उनके सवािधक िस@ प
का एक चरण सख ु कA ािD के िलये ऋणVहण तक करने का परामश दे देता है। यहॉं ऋण का अथ
है अपनी उपयोिगता कA िसि@ के िलये िकसी पर से आवbयकतानK ु प व7तु Vहण करना। 3यातJय
है िक सवदशनसंVह म विणत चावाक दशन कA 7तावना म उ@तृ काCरका म उ चरण ाD नहN
होता। तदनसु ार-
यावtजीवं सख
ु ं जीवे(नाि7त मृयोयगोचरः।
भ7मीभतू 7य देह7य पनु रागमनं कुतः?
पनु रिप पवू व िणत चरण को ही आधार मानकर यहॉं िववेचन िकया जा रहा है। 7प%तः इस
िवचारधारा कA मा(यता है िक सख ु ा~यथ अवbय ही ऋणािद Vहण कर लेना चािहए। यिप
ऋणािद Vहण म कA महती सम7या उसे पनु ः लौटाने कA होती है िक(तु इससे डरना नहN चािहए
Wय1िक मृयु के उपरा(त मृत Jयि से ऋण मॉंगगे ा कौन? यहॉं ऋण का अथ है सखु ोपभोगाथ
सविवध सिु वधा का अिनयि(त उपभोग। काला(तर म यह परम लoय िस@ हMआ।
यिद आधिु नक स(दभ म इसका िव|े षण िकया जाय तो भारतीय िच(तन धरा म आज से 2500 वष

उतराखड म
ु िविवालय ३०५
भारतीय दश
न MASL-103
पवू  बोया गया JयावहाCरक बीज सम7त आिथक Jयव7था का आधार बन चक ु ा है। सारी ब5िकंग
णाली इसी ऋण िस@ा(त पर आधाCरत है। उपभो ा ब5क से ऋण Vहण करता है। घर, गाड़ी, टी वी
आिद आधिु नक सख ु सिु वधाओ ं को ाD करता रहता है। इस ब5िकंग णाली के अ(तगत भी मृयु के
उपरा(त ऋण वापस करने के स(दभ म कुछ िविश% छूट कA Jयव7था रहती है।
3यातJय है िक उ णाली का ार*भ न तो चावाक दशन के सांगोपांग अ3ययन के उपरा(त ार*भ
िकया गया न ही चावाक ने उ णाली के िलये अपने इस िस@ा(त का वतन िकया था। यह एक
संयोग मा है िक चावाक के &ारा ार*भ कA गयी यह अवधारणा आज भी सवथा ासंिगक तीत
हो रहा है। यcतः भले ही इस िवचारधारा पर कठोर हार िकया जाता रहा हो, परोcतः आज भी
इसका अनपु ालन होता िदख रहा है।
6.4.4 तनावमुिC के &यास -
समाज म हर गित व मित वाले लोग रहते ह5 जो िकसी न िकसी Kप म िकसी न िकसी cण िविवध
सम7याओ ं से V7त रहते ह5। आि7तक िवचारधारा के दाशिनको का यह मानना है िक ये सम7याएं
तीन कार कA होती ह5- आिधभौितक, आिधदैिवक तथा आ3यािमक। इन सम7याओ ं का
साcाकार हम करना ही पड़ता है। इन सम7याओ,ं दःु ख1 अथ वा क%1 के कारण होते ह5। कदािचत्
वे कारण होते ह5 एषणाओ ं कA ािD न होना। यही तनाव का मल ू कारण भी होता है। हम जब तक
वजनाओ ं म बॅधें होते ह5 तब तक इस मनोवैHािनक क%1 को ाD होते रहते ह5।

चावाक ने इसके िलये 7वत(ता से जीने का एक म( िदया। एक ऐसे िनःसंकोच जगत् का 7वKप
दान िकया जहॉं िकसी मयादा के अधीन नहN रहना पड़ता। सख ु कA ािD के िलये कुछ भी िकया
जाना, 7वग, नरक, ईर, पनु ज(म आिद का पणू त या िनषेध करना, पाप पु य कA अवधारणा को न
मानना आिद उ वजनाओ ं से छुटकारा का यासमा है। भले ही आधिु नक ि7थित पCरि7थित म
यह हम उिचत तीत होता हो िक(तु इसे ही परम सय नहN माना जाना चािहए।
इस सम7त स(दभ म चावाक िच(तन को िवश@ ु बिु @वादी व तक कA धरा पर खड़ा िच(तन समझा
जाना चािहए। बिु @ का ऐसा सoू म योग चावाकवादी धारणा को एक नये ही Kप म 7ततु करता
है। िक(तु सय के स*ब(ध म एक िवरल संकेत मा है जो हम ाD होता है। समा(यतया तो इस दशन
िच(तन का हम िवKप िचण ही ाD होता है।
दसू री ओर चावाक यगु 1 तक उपहास के पा बने रहे ह5। उन पर सभं व असभं व, येक कार के
दोषारोपण िकये जाते रहे। पर*परा के िवp@ िवचारधारा को मोड़ने का आcेप उन पर लगाया गया।
िकसी ने उसे नाि7तक िशरोमिण कहा तो िकसी ने धतू  िशरोमिण कह कर उपहास उड़ाया। एक

उतराखड म
ु िविवालय ३०६
भारतीय दश
न MASL-103
दाशिनक ने तो उ(ह पशओ
ु ं से भी अिधक पाशिवक कहा है। उनके िलिखत V(थ1 के भी जलाये
जाने कA अप%ु बात कA जाती रही। यहॉं तक िक इस िवचारधारा को आगे पनपने नहN िदया गया।
िक(तु आज हमारे िलये व7तगु त yि%कोण अपनाना आवbयक है। इस ाचीन भारतीय भौितकवादी
दशन के मल
ू V(थ1 के अभाव म इसके अवदान का मLू यांकन हम िबना िकसी पवू ाVह के उपलOध
सामVी के गहन परीcण के &ारा करना चािहए। चावाक दशन को िजस िवकृ त Kप म हमारे समc
7ततु िकया गया है उससे हम `िमत नहN होना चािहए।
अ$यास के &.

1. pिढ़ का अथ है-


(क) शाf समिथत िस@ा(त (ख) तक पर आधाCरत िस@ा(त
(ग) अ(धिवास पर आधाCरत िस@ा(त (क) इनम से कोई नहN
2. चावाक कA yि% म सख
ु है-
(क) ईर कA ािD (ख) fी सख

(ग) मृयु (घ) पापम
ु होना
3. वा7यायन के &ारा वितत इि(Zयसख
ु का लcण Wया है?
4. चावाक के ऋणिस@ा(त का ही अपKप कहा जाना चािहए-
(क) चौय िस@ा(त को (ख) अybय होने कA कला को
(क) धन संचय को (घ) ब5क से ऋण Vहण करने को
5. Wया चावाक दशन िकसी न िकसी Kप म तनाव से छुटकारा िदलवाने का यास करता है?

6.5 सारांश
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप यह जान चकु े ह5 िक चावाक एवं उनके अनयु ाियय1 ने वैिदक काल
से चली आ रही सम7त Kिढ़य1 का िवरोध िकया। ईर, पनु ज(म, 7वग आिद का िवरोध कर उ(ह1ने
िच(तन कA धारा को एक नयी िदशा दी। सख ु एवं काम को सवािधक महjव देकर चावाक ने
समकालीन आवbयकता को पहचाना। िकसी भी अy% को फल का िनयामक न समझकर उ(ह1ने
मानव को सदा के िलये िच(ता िवम
ु करने का यास िकया। एक तरह से समाज म JयाD सम7त

उतराखड म
ु िविवालय ३०७
भारतीय दश
न MASL-103
वजनाओ ं को इ(ह1ने विजत करने का यास िकया। कदािचत् यही इसकA ासंिगकता भी है। इसके
साथ ही यह भी आपको समझ लेना चािहए िक यह िस@ा(त सनातन नहN बन पाया तथा यथाकाल
अ(य दाशिनक िवचार1 का िवरोध इ(ह सहते रहना पड़ा।
इस इकाई के अ3ययन से आप चावाक के मत1 को जानकर सहज ही जान पाए◌ॅ◌ंगे िक चावाक
दशन का वतमान JयावहाCरक सांसाCरक जीवन से कै से स*ब(ध बनाये जा सकते ह5।

6.6 शदावल
आपकA सिु वधा के िलये यहॉं इस पाठ म य
ु म जिटल व दpु ह शOद1 का सरलीकृ त Kप िदया जा
रहा है। आशा इनके मा3यम से भाषा व िस@ा(तगत जिटलता को अय(त सरलता से समझ पाएगं ।े
तथा-
Hानमीमांसा- िच(तन कA एक ि या िजसम सSा को Hान अथ वा माण के &ारा िस@ िकया
जाता है Hानमीमासं ा कहलाती है।
तjवमीमासं ा- दशन िच(तन कA ि या िजसम सम7त सृि% ि या को समझने व समझाने का
यास िकया जाता है। Hानमीमांसा कA तरह यह भी दाIिनक िवचारधारा का अिनवाय अगं है।
पpु षाथ- भारतीय सां7कृ ितक पर*परा म मानवमा के परम लoय को पpु षाथ कहा जाता है। पpु षाथ
चार ह5- धम, अथ, काम तथा मोc।
िनवाण- इसका अथ है िदये का बझु जाना। यह बौ@ दशन म मोc के िलये य
ु होने वाला शOद
है। यह एक कार से आयि(तक दःु ख का िवनाश होना।
कै वLय- सां;य एवं योग योग दशन म मोc के िलये कै वLय शOद का योग होता है। कै वLय का
अथ है अके ला हो जाना या सरल भाषा म अपनी सारी दक ु ान समेट लेना। िनवाण कA तरह कै वLय
भी मोc का ही पयाय है।
अपवग- सं7कृ त Jयाकरण म इसका अथ है कायिसि@। िक(तु (याय एवं वैशिे षक म मोc के िलये
अपवग का योग िकया जाता है जहॉं इसका अथ है दःु ख से पणू त ः म
ु हो जाना।

6.7 अयास 
न के उतर
6.3 1. ग, 2. धोखा,
3. यावtजीवेत् सुखं जीवेद् ऋणं कृ वा घृतं िपबेत् ।

उतराखड म
ु िविवालय ३०८
भारतीय दश
न MASL-103
4. ख 5. ग
6.4 1. ग, 2. ख, 3. पर7परापघातकं िवग\ सेवते ।
4. घ, 5. हॉं

6.8 स%दभ# $%थ सच


ू ी
1. झा, आचाय आन(द, (1969) चावक दशन, िह(दी सिमित, सचू ना िवभाग, उSरदेश,
लखनउ,
2. ितवारी, डॉ0 नरे श साद, (1986), चावाक का नैितक दशन, िबहार िह(दी V(थ अकादमी,
पटना
3. ऋिष, ो0 उमाशक
ं र शमा, (1964), सवदशनसंVहः, चौख*बा िवाभवन, वाराणसी-1
4. शमा, च(Zधर, (1991), भारतीय दशन आलोचन और अनश
ु ीलन, मोतीलाल
बनारसीदास, िदLली
5. देवराज, डॉ0 न(दिकशोर, (1992), भरतीय दशन, उSरदेश िह(दी सं7थान, लखनउ

6.9 *नब%धामक 

(क) चावाक दशन कA आचारमीमांसा को िव7तारपवू क
 समझाए।ं
(ख) चावाक दशन कA कामिवषयक अवधारणा पर एक िनब(ध िलख।
(ग) चावाक िवचारधारा िकस कार Kिढ़य1 का िवरोध करता तीत होता है?
(घ) वतमान JयावहाCरक सांसाCरक स*ब(ध कA yि% से चावाक दशन कA उपादेयता पर काश
डाल।

उतराखड म
ु िविवालय ३०९
भारतीय दश
न MASL-103

 5-   

उतराखड म
ु िविवालय ३१०
भारतीय दश
न MASL-103

 1      ह 

इकाई क @परे खा
1.1 तावना
1.2 उे

1.3 (याय दश5न पGरचय
1.3.1 वैचाGरक पृभिू म
1.3.2 भारतीय तक5 परDपरा व पEित
1.3.3 (याय 6(थ1 का िवकासान& ु म
1.4 (याय दश5न का इितहास
1.4.1 सृि िववेचन और (याय
1.4.2 काय5कारणवाद और (याय
1.4.3 (याय दश5न का पदाथ5 िवचार
1.4.4 (याय के षोडष पदाथ5
1.4.5 (याय दश5न के िसE आचाय5
1.5 साराश ं
1.6 पाGरभािषक श-दावली
1.7 बोध 01 के उ4र
1.8 िनब(धामक 0
1.9 संदभ5 6(थ

उतराखड म
ु िविवालय ३११
भारतीय दश
न MASL-103

1.1तावना
आप जानते ह5 िक भारतीय दशन के अ(तगत दो स*दाय आते ह5◌ः 1. आि7तक स*दाय 2.
नाि7तक स*दाय। आि7तक दशन उसे कहा गया है जो वेद1 म िवास करता हो। इसके िवपरीत
नाि7तक दशन वेद1 म िवास न रखने वाले दशन1 को कहा जाता है। इस िवभाजन के आधार पर
सां;य, योग, पवू - मीमांसा, उSर-मीमांसा, (याय और वैशिे षक को आि7तक दशन कहा गया है, तथा
जैन, बौ@ और लोकायत नाि7तक दशन के अ(तगत माने गए ह5।
आि7तक माने जाने वाले भारतीय दशन1 म भी (याय दशन अपनी िव|े षणामक िविश%ताओ ं के
िलए जाना जाता है, यहां काLपिनक अवधारणाएं नहN, अिपतु तािक क जांच और आलोचनामक
िविध हमारा 7वागत करते ह5, लेिकन िव|े षण कA इस खरी जमीन पर आगे बढ़ने के पहले उसकA
‘सoू म, दगु म और पाCरभािषक‘ िववेचन प@ित को आमसात करने कA Iमसा3य ि या से भी
गजु रना पड़ता है।
‘(याय दशन का इितहास‘ (याय दशन के आपके अ3ययन म कA पहली इकाई है। िकसी दशन के
इितहास से आप को पता चलता है िक िकस वैचाCरक भिू म म वह दशन पLलिवत और पिु Eपत हMआ
है, और िच(तन-मनन कA िकस पर*परा को उसने अपनी िविश%ता के बतौर अंगीकार करके सम(ु नत
िकया है। इसिलए (याय के इितहास कA इस इकाई म भी आप इस दशन के उPव और िवकास कA
Wया वैचाCरक पृvभिू म थी, इसकA म;ु य िवषय व7तु Wया थी, कौन से दाशिनक तव इसको िविश%
बनाते ह5 और और अ(य भारतीय दशन1 के ित इसका Wया yि%कोण था, इयािद h1 का
ारि*भक पCरचय ाD कर सक गे।

1.2उे

इस इकाई के अ(तगत (याय दशन के संिcD इितहास के अ3ययनोपरा(त आप िवषय के िन*न
िब(दओ
ु ं से अवगत हो सक गेः
1. (याय भारतीय दशन कA िकस पर*परा का वाहक है और भारतीय दाशिनक इितहास म
उसका Wया महव है?
2. (याय दशन का ारि*भक पCरचय हािसल कर लग।े
3. (याय का उPव िकस वैचाCरक पृvभिू म म हMआ, इसका िव|े षण कर सक गे।
4. (याय दशन का िवकासानु म Wया था, और उसके म;ु य तव Wया ह5, बता सक गे।
5. इसके म;ु य वतक1 और V(थ1 से पCरिचत हो जाएगं ।े

उतराखड म
ु िविवालय ३१२
भारतीय दश
न MASL-103

1.3 %याय दश#न प4रचय

वैचा?रक पृeभूिम
भारतीय दशन का इितहास अित ाचीन है और चरु दशन सामVी कA उपलOधता उसकA िवशेषता
है, िजसे देखने से भारतीय समाज कA लगभग ढाई हजार वष^ कA गहन दाशिनक गितिविधय1 का
पCरचय िमलता है। यह तो सविविदत है िक हमारे उपिनषद1 कA िवषयव7तु दाशिनक िच(तन-मनन
पर के ि(Zत है, िजसके कारण औपिनषिदक यगु को दाशिनक गितिविधय1 के ार*भ का यगु माना
जाता है। इनका सटीक काल िनधारण कर पाना तो मिु bकल है, िफर भी ईसापवू  सातवN शताOदी को
ही आम तौर पर उनका काल माना जाता है। उपिनषद1 कA पCरपWव दाशिनक िवषयेव7तु को देखते
हMए यह कहना गलत न होगा िक उनके ौढ़ होने के पहले भी िच(तन-मनन कA ल*बी ि या भारत
म रही होगी, भले ही आज हमारे िलए उसकA कोई 7प% ऐितहािसक Kपरे खा 7ततु करना संभव न
हो।
इस तरह यह तो कहा ही जा सकता है िक औपिनषिदक और पवू औ  पिनषिदक काल से लेकर
सहवN-अठारहवN सदी म नJय (याय का ितिनिधव करने वाले गदाधर और उनके टीकाकार1 के
उदय काल तक, भारतीय दशन ने एक गौरवपणू  याा तय कA है। इस कालाविध म दशन शाf पर
अनेक महjवपणू  कृ ितयाँ सामनu आइ,ं अनेक दाशिनक चचाओ ं का सू पात हMआ, और अय(त
कुशलता के साथ उनका िववेचन िकया गया था। (याय दशन इस समृ@ पर*परा का अगं होने के
साथ-साथ उसको गहराई तक भािवत करने वाला दशन भी था। (याय और वैशिे षक दशन1 कA
पर7पर समानताएं तो सविविदत ह5, अ(य दशन1 के साथ भी इसका जड़ु ाव कुछ कम नहN रहा है।
मीमांसा और पवू म ीमांसा ने भी इसके कुछ िस@ा(त1 को अपनाया था, तो कुछ का खडं न िकया था।
यह कहना गलत न होगा िक तािक क प@ितय1 के अपने उ(नत िवकास के कारण बाद म (याय दशन
सम7त भारतीय दशन1 कA गवेषणा का जKरी सहायक बन गया था। (याय दशन कA इस ऐितहािसक
व दाशिनक िविश%ता के कारण, उसे समझने के िलए भारतीय तक पर*परा पर भी एक िवहगं म yि%
डालना हमारे िलए उपयोगी होगा।
भारतीय तक
परJपरा और प6ित
मनEु य तक शील ाणी है। वह कुछ चीज1 का सय जानने के बाद ि7थर नहN हो जाता, बिLक बहMतेरी
अ(य चीज1 के सयासय स*ब(धी िनEकष^ कA ओर आगे बढ़ता रहता है। तक शीलता कA यह
ि या Jयि गत 7तर पर ही नहN चलती, अिपतु सामािजक और सामिू हक 7तर1 पर भी आगे बढ़ती
रही है, और दशन शाf के उPव और िवकास का कारण बनती है। भारतीय इितहास म ऐसी
सावजिनक चचाओ ं अथवा शाfाथ के स(दभ उपिनषद1 म खबू िमलते ह5, लेिकन भारत कA अ(य
सािहियक-दाशिनक धाराएं, उनकA शाखाएं-शाखाएं भी इस स(दभ म पीछे नहN ह5। भारतीय बौ@
उतराखड म
ु िविवालय ३१३
भारतीय दश
न MASL-103
पर*परा इसका उदाहरण है, जहां िमिल(द पह और कथा व7तु जैसी रचनाएं अपनी तक शीलता से
लोग1 को आकिषत करती रही ह5।
भारत म पाचं वN शताOदी ईसा पवू  से ही खगोलशाf, अथशाf, tयोितष व धमशाf, औषिध,
गिणत व अ(य िवषय1 पर िच(तन-मनन कA एक समृ@ पर*परा िमलने लगती है। पािणिन कA
अ%ा3यायी, सIु तु कA चरकसंिहता व कौिटLय के अथशाf इसी दौर कA वे रचनाएं ह5, जो अपनी
तािक कता और िवचारशीलता कA वजह से इतने िदन1 बाद भी भारत के गौरव V(थ1 के Kप म
िविव;यात ह5। िस@ बौ@ दाशिनक नागाजनु , (याय दशन के वा7यायन और वाWपदीयम के
रचनाकार भतृहCर जैसे रचनाकार1 ने अपने िस@ा(त1 के ितपादन म तक शाf के जिटल िस@ा(त1
का कौशलपणू  योग िकया है। पदाथ के cण-cण म उप(न व िवन% होने वाले अि7तव पर िवचार
करते हMए वे इस अवधारणा को सू ब@ कर सके थे, िक िकसी चीज कA सSा या तो है, अथवा नहN
है। वा7यायन आयि(तकता के िस@ा(त का योग करते ह5, और कहते ह5 िक कोई भी सSा एक
साथ शात या अशात नहN हो सकती।
माना जाता है िक भारतीय तक शाf का अि7तव बौ@1 के अgयदु य काल से पहले ही हो चक
ु ा था।
भारतीय V(थां◌े म इस शाf को अनेक नाम1 से जाना जाता था, िजनम हेतिु वा, तक िवा,
तक शाf, वाद िवा, (याय िवा, (यायशाf, माणशाf, आिद शOदावली शािमल है। (याय का
एक परु ाना नाम आ(वीिcकA भी है, और कौिटLय ने अपने अथशाf म िजन चार िवाओ ं का
िज िकया है, उनम आ(वीिcकA को सम7त िवाओ ं का दीप, सम7त कम^ का उपाय और
सम7त धम^ का आIय बताया गया हैः
आ(वीिcकA यी वाता दडनीितBेित िवा।
दीपः सविवानामपु ायः सवकमणाम।्
आIयः सवधमाणां शदा(वीिcकA मता।।
भारतीय दाशिनक तक पर*परा कA ाचीन उपि7थित से पCरिचत होने के बाद यह जानना भी जKरी
है िक हमारी इस तक पर*परा कA प@ितमल ू क िवशेषता भी उLलेखनीय है। यहां पc को, िजसे
पार*पCरक शOदावली म पवू प c कहते ह5, 7ततु करने के बाद उसके ितपc यानी िक िवरोधी या
ितवादी के पc को रखने, और इस तरह उSर-यSु र के म म दाशिनक िच(तन को आगे बढ़ाने
कA पर*परा रही है। यह प@ित भी परु ानी है, िजसका पCरचय हम औपिनषिदक काल से ही िमलने
लगता है। उपिनषद1 कA ाचीन पर*परा म इस प@ित के िलए वाकोवाWय शOदावली का योग
िमलता है, िजसका शािOदक अथ है hोSर के मा3यम से िववाद। 3यान देने वाली बात है िक
वाकोवाWय कA पदावली यनू ानी दशन कA उस डायलेिWटWस (&&ं ामकता) से काफA िमलती-जल ु ती

उतराखड म
ु िविवालय ३१४
भारतीय दश
न MASL-103
है, जो दिु नया भर म आज भी िच(तन प@ित के Kप म लोग1 को आकिषत करती है।
भारतीय तक पर*परा का गहराई से अ3ययन करना, और पिBम म तक शाf के िवकास से उसकA
तल
ु ना करना एक िदलच7प िवषय हो सकता है, और ऐसे यास (याय दशन के उPव और िवकास
को समझने के िलए भी उपयोगी ह1गे। लेिकन हम यहां के वल इतना ही समझगे िक भारत म अपनी
प@ितमलू क िवशेषता के साथ तक शाf कA एक समृ@ पर*परा मौजदू थी, जो शायद अर7तू के
तक शाf कA चिचत पिBमी पर*परा के समान ही काफA सम(ु नत थी।
हमारे िलए यह जानना जKरी है िक भारतीय तक शाf या तक िवHान कA पर*परा, उसकA
प@ितमल ू क िवशेषता का (याय दशन के साथ Wया स*ब(ध रहा है? इसका 7प% उSर यही है िक
(याय दशन के साथ उसका गहरा स*ब(ध है, बिLक हम तो यह भी कह सकते ह5 िक उसके मल ू
आधार1 को तैयार करने वाली पहली कृ ित ही (याय सू थी। इतना तो आप जानते ह1गे िक (याय
सू के रचनाकार महिष गौतम ह5 और उनके इस सू का रचना काल लगभग दसू री शताOदी माना
जाता है। दसू री तरफ यह जानना भी जKरी है िक गौतम के (याय सू कA सबसे थम सागं ोपागं
Jया;या 7ततु करने का Iेय वा7यायन को जाता है, िजनके भाEय को (याय दशन के सवािधक
ामािणक भाEय का दजा आज तक यथावत बना हMआ है। हम यह िवास के साथ कह सकते ह5 िक
भारतीय दाशिनक इितहास म वाकोवाWय कA िवा से यु दाशिनक पर*परा का थम सEु प%
7वKप 7ततु करने का Iेय (याय दशन को, और उसके दो मनीिषय1 अथात् महिष गौतम और
वा7यायन को जाता है।
वैचाCरक पृvभिू म के इस सिं cD पCरचय के बाद हम अब (याय दशन के पCरचयामक इितहास कA
ओर आगे बढ़ सकते ह5।
8याय दश
न- प?रचय
आप7त*ब ने (याय शOद का योग मीमासं ा के Kप म िकया है। (याय कA उपिS ‘नी‘ धातु से हMई
है। इसके अथ कA िववेचना करते हMए यह कहा जाता है िक इसी के &ारा शOद1 और वाWय1 के
िनिBत अथ^ का बोध होता है। इस (याय के आधार पर ही वैिदक शOद1 का उFचारण िनिBत िकया
जाता है। संcेप म आप यह समझ सकते ह5 िक वैिदक शOद1 के उFचारण को भी (याय कA संHा दी
जाती थी। (याय को कभी-कभी तक िवा और वाद-िवा, अथात वाद-िववाद स*ब(धी िवHान का
नाम भी िदया गया है। बहस अथवा वाद बौि@क जीवन का ाण है। सय के अ(वेषण के िलए इस
िविध का आIय लेना आवbयक हो जाता है।
उपिनषद1 के अ3ययन के समय आप देखग े िक उस समय ऐसी िव&त पCरषद हMआ करती थN िजनम
दाशिनक िवषय1 पर वाद-िववाद हMआ करते थे। इसम स(देह नहN िक गौतम के (याय शाf का ज(म

उतराखड म
ु िविवालय ३१५
भारतीय दश
न MASL-103
भी ऐसे ही वाद-िववाद1 अथवा शाfाथ^ कA पर*परा से हMआ, िजसे उस काल म राजदरबार1 तथा
दाशिनक1 म समान Kप से लोकियता ाD थी।
जय(त अिधकार पवू क  कहते ह5 िक यिप गौतम का (यायदशन तक शाf के िवषय को एक
स(तोषजनक Kप म उपि7थत करता है, िफर भी गौतम से पवू  भी तक शाf िवमान था, जैसे जैिमनी
से पवू  पवू म ीमांसा और पािणिन से पवू  Jयाकरण िवमान था। महाभारत म भी तक शाf और
आ(वीिcकA का उLलेख है। बौ@ V(थ1 म तक िवा का कोई िव7तृत उLलेख नहN िमलता अिपतु
के वल नाममा का उLलेख िमलता है। मिtझमिनकाय म आए अनुमान सSु के नाम से जKर यह
कट होता है िक अनमु ान शOद का योग स*भवतः अनमु ान माण के िलए हMआ होगा।
लिलतिव7तर ने (याय शाf का वणन हेतिु वा के नाम से िकया गया है। जैन आगम1 ने भी भारतीय
(याय शाf कA ाचीनता को मािणत िकया है।
राधाकृ Eणन के अनसु ार (याय शाf का आर*भ बौ@ काल से पवू  हो गया था, यिप उसकA
वैHािनक िववेचना बौ@काल के आर*भ म और म;ु य िस@ा(त1 कA 7थापना ईसा पवू  तीसरी
शताOदी से पहले हMई थी।
8याय \8थ_ का िवकासानु:म
स7ं कृ त सािहय के इितहास कA िकसी भी प7ु तक पर अगर आप एक सरसरी िनगाह डाल, तो आप
(याय दशन के ऐितहािसक िवकासानु म कA Kपरे खा से पCरिचत हो जाएगं ।े यहां उसका संिcD
वणन आपके िलए साथक और पयाD होगा। आप पहले ही जान चक ु े ह5 िक (याय दशन का पहला
सू V(थ अcपाद गौतम िलिखत ‘(यायसू ‘ है, िजस पर ाD होने वाला पहला ामािणक भाEय
वा7यायन (400 ई.) का है, जो चौथी शताOदी का V(थ माना जाता है। वा7यायन के V(थ के थम
बड़े आलोचक िस@ बौ@ दाशिनक िदङनाग थे। (याय दशन के पc से िदङनाग का खडं न करने
वाला िस@ (याय V(थ ‘(यायवाितक‘ था, िजसके रचियता राजा हषवधन के समकालीन िस@
दाशिनक उोतकर थे। उोतकर के V(थ पर टीका िलखने वाले दाशिनक वाच7पित िमI (841 ई.)
थे। 3यान देने वाली बात यह है िक 7वयं अ&ैत वेदा(ती होने के बावजदू वाच7पित िमI को सभी
दशन1 पर ामािणक V(थ िलखने का Iेय ाD है। इस म म दाशिनक जय(त भY का भी नाम
िलया जाता है, िजनकA रचना का नाम ‘(याय मजं री‘ है। यहां तक का िवकास-काल (याय दशन के
इितहास का ाचीन यगु माना जाता है।
(याय दशन के इितहास का नवीन यगु अथात नJय (याय के यगु कA शpु आत बारहवN सदी के
आसपास मानी जा सकती है, िजसकA शpु आत पवू m बंगाल के िनवासी एक अय(त ितभाशाली
दाशिनक गगं श
े उपा3याय और उनके िस@ V(थ ‘तव िच(तामिण‘ कA रचना के साथ हMई थी। कहा
जाता है िक इस महान V(थ ने िपछले V(थ1 को पीछे छोड़ िदया था, और सब लोग 7वीकार करते ह5

उतराखड म
ु िविवालय ३१६
भारतीय दश
न MASL-103
िक गगं श
े उपा3याय कA ितभा का 7पश पाने के बाद ही (याय का तक शाf अपने पCरपWव 7वKप
को पा सका था। हालांिक उनकA आलोचना भी कA जाती है, और कहा जाता है िक अपनी तािक क
बारीिकय1 के बावजदू उनके बाद के (याय V(थ दाशिनक Hान के िलहाज से िन7तेज हो गए थे, और
शOदजाल के Jयहू म उनकA दाशिनक गवेषणा ढक ं सी गई थी। गगं श े उपा3याय के V(थ पर वासदु वे
सावभौम और रघनु ाथ कA टीकाएं महवपणू  मानी जाती ह5। वासदु वे सावभौम (1500 ई.) नैयाियक1
कA िस@ ‘निदया शाखा‘ का थम नैयाियक था, और रघनु ाथ व िस@ धमगpु चैत(य उसके
िशEय थे। माना जाता है िक गगं श
े के V(थ पर रघनु ाथ कA टीका ‘दीिधत‘ सबसे महवपणू  V(थ है।
उसके बाद नैयाियक1 कA इसी शाखा से जड़ु े गदाधर िमI (1650 ई.) ने जो टीका िलखी वह सबसे
tयादा िस@ हMई है, और उसे गगं शे उपा3याय के बाद नJय (याय के cे म दसू रा सबसे बड़ा 7थान
िदया जाता है।
(याय के वैचाCरक V(थ1 के िवकासानु म के इस संिcD इितहास को जानने के बाद एक और चचा
भी जKरी है, Wय1िक उसके बगैर (याय दशन कA समझ अधरू ी रह जाएगी। दाशिनक िववेचनाओ ं म
सामा(यतया (याय-वैशिे षक कA चचा सयं ु Kप म उपि7थित होती है, और आपके मन म भी यह
h आया होगा िक ऐसा Wय1 िकया जाता है। पहले तो शायद इसका सबसे बड़ा कारण उनका
यथाथवादी यानी िक व7तओ ु ं के व7तगु त अि7तव को मानने वाला yि%कोण है। लेिकन दसू री
महjवपणू  बात यह है िक ितपादन शैली और िस@ा(त1 कA िभ(नताओ ं के बावजदू उनके ही
व ाओ ं ने आगे चलकर उ(ह एकाकार कर िदया था। िशवािदय िमI रिचत ‘सDपदाथm‘ म (याय
और वैशिे षक का समि(वत Kप सबसे पहले िदखाई पड़ता है। (याय और वैशिे षक के इितहास के
उSर काल म इन दोन1 दशन1 का संय ु ितपादन ही हम ाD होता है, िजसका सबसे बड़ा माण
लगभग एक ही कालाविध म िलखे गये लोकिय V(थ अ(नंभY के ‘तक संVह‘ और िवनाथ के
भाषा पCरFछे द या ‘काCरकावली‘ ह5।
िट~पणीकार इन दशन1 के इितहास के इन दो चरण1 (उदाहरण के तौर पर ाचीन (याय और नJय
(याय) के अलावा एक तीसरे चरण कA भी चचा करते ह5। कहा जाता है िक यह वह चरण था जब
(याय-वैशिे षक का 7वत( िवदशन लगभग िव7मृत कर िदया गया था, और उसे म;ु यतः तक शाf
मानते हMए वेदा(त दशन के अ3ययन म◌ं े सहायक माने जाने वाले दशन कA गौण ि7थित म पहMचं ा
िदया गया था। (याय-वैशिे षक दशन1 व उनके तक शाf कA अनेक समानताओ ं के बावजदू उनम
महjवपणू  अ(तर भी थे, िजनकA संिcD चचा आप अगली इकाइय1 म पढ◌़ग।े
आपने यह देखा िक (याय दशन का आिवभाव िकन पCरि7थितय1 म और तक शाf कA िकस
पर*परा के अ(तगत हMआ, और इसका बीजारोपण व पLलवन िकन-िकन दाशिनक V(थ1 के जCरये
हMआ है। अब हम (याय कA िवषय व7तु के पCरचयामक इितहास कA ओर, यानी िक उसके म;ु य
तjव1 के पCरचय और उनके ऐितहािसक िवकास को समझने कA ओर आगे बढग।े

उतराखड म
ु िविवालय ३१७
भारतीय दश
न MASL-103

1.4 %याय दश#न का इ*तहास

8याय शा~
हम देख चकु े ह5 िक (याय शाf का इितहास बीस शतािOदय1 म फै ला हMआ है। गौतम का (याय सू
पांच अ3याय1 म बंटा हMआ है, िजसम येक अ3याय के दो-दो पCरFछे द ह5। इस (याय सू का भाEय
वा7यायन ने िलखा है। वा7यायन के अनसु ार V(थ उेbय, लcण और परीcा कA िविध का
अनसु रण करता है। थम अ3याय म सामा(यतः सोलह िवषय1 का वणन है, िजन पर अगले चार
अ3याय1 म िव7तार से िवचार िकया गया है। (याय सू वैिदक िवचार धारा के िनEकष^ को तक
िस@ा(त1 के आधार पर खड़ा करता है, और उसे उपिनषद1 के धािमक एवं दाशिनक मत1 के साथ
जोड़ता है, और इस कार वह आि7तक यथाथवाद का तक पणू  समथन करता है। गौतम के (याय
सू , खासकर उसके ाचीनतम माने जाने वाले सू ईसा पवू  तीसरी शताOदी कA रचनाएँ ह5, हालाँिक
(याय के कुछ सू िनिBत Kप से ईसा काल के बाद रचे गये तीत होते ह5। हम पहले ही बता चक ु े ह5
िक वा7यायन का (याय भाEय (याय सू कA सवािधक चिचत व सश शाfीय टीका है।
सृि िवचार और 8याय
सृि% कA उपिS के कारण अथात कारणकायवाद कA िववेचना सभी दशन1 कA िच(ता का म;ु य
िवषय रहा है। 7वाभािवक तौर पर यह िवषय दाशिनक1 के मतभेद1 और िवभाजन1 के के (Z म रहा है।
कायकारणवाद के अनसु ार येक काय का कोई कारण अवbय होना चािहए, Wय1िक कारण कA
अनपु ि7थित म काय का होना अस*भव है। लेिकन दाशिनक िववाद यहN तक सीिमत नहN रहता,
और वह आगे बढ़कर h करता है िक काय अपनी उपिS के पवू  भी Wया अपने कारण म िवमान
रहता है, अथवा ऐसा नहN होता। दाशिनक1 &ारा इस h के जो उSर िदए गये, उनके आधार पर
दशन म एक Jयापक िवभाजन करना स*भव है। जो दाशिनक मानते ह5 िक काय अपनी उपिS के
पवू  कारण म िवमान रहता है, वे सकायवादी कहे जाते ह5, और जो ऐसा नहN मानते वे
असकायवादी कहलाते ह5।
इस h को के (Z म रखकर एक जिटल बहस भारतीय दाशिनक इितहास म होती रही है, िजसे आप
संcेप म इस कार समझ सकते ह5। असकायवािदय1 के अनसु ार काय उपिS के पवू  ‘असत‘ है,
अथात् अपने कारण म िवमान नहN है, और इसिलए काय कA सSा उसकA उपिS से ही ार*भ
होती है। अपने इसी तक के कारण असकायवािदय1 को आर*भवादी भी कहा जाता है। उनकA
तािक क दलील को पार*पCरक तौर पर इस तरह अिभJय िकया जाता हैः उपिS से पवू  काय कA
सSा का h ही नहN उठता, Wय1िक यिद काय उपिS से पवू  िवमान है, तो सत् होने के कारण वह
उप(न माना जाएगा, और इस तरह उसकA दोबारा उपिS पनु pपिS होगी, जो Jयथ या िनरथक है।
अतः काय कA सSा उसकA उपिS से ही आर*भ होती है। काय एक नतू न कृ ित है, एक नवीन सृि%
उतराखड म
ु िविवालय ३१८
भारतीय दश
न MASL-103
है। यिद घड़ा िमYी म, कपड़ा धागे म तथा दही दधू म पहले से ही िवमान है तो कु*हार को िमYी से
घड़ा बनाने के िलए पCरIम करने कA Wया आवbयकता है? या िफर धागे खदु ही वf का काम Wय1
नहN करते? और दधू का 7वाद दही जैसा Wय1 नहN होता?
असकायवाद का ितपc सकायवाद कहलाता है, िजसकA मा(यता यह है िक अपनी उपिS के
पवू  भी काय अपने कारण म िवमान रहता है। सकायवािदय1 के संिcD तक को आम तौर पर इस
Kप म Jय िकया जाता हैः काय कारण म बीज Kप से अ(तिनिहत रहता है, तथा कारण काय म
7वभाव Kप से िवमान रहता है, इस तरह काय कोई नयी सृि% नहN है, बिLक उसकA उपिS का
अथ के वल उसका अिभJय होना है। सc ं ेप म सकायवाद के अनसु ार कारण ही काय के Kप म
पCरवितत होता है, और कारण और काय एक ही व7तु के दो Kप ह5◌ः कारण कA अव7था उसका
अJय Kप है, जबिक काय कA अव7था उसका Jय Kप है। इस कार काय अपनी उपिS से पवू 
भी सत् है, और अपनी इसी मा(यता के कारण इसको सकायवाद नाम से जाना जाता है।
आप जानते ह5 िक दाशिनक वाद-िववाद जLदी थमने का नाम नहN लेता, शायद इसीिलए समाज म
दाशिनक1 को ‘बाल कA खाल िनकालने◌े‘ वाला भी समझ िलया जाता है। बहरहाल, दशन के
छा1 को तो कायकारणवाद स*ब(धी बहस के अगले h से भी पCरिचत होना पड़ेगा, जो आगे
बढ़कर िजHासा करता है िक कारण का काय के Kप म पCरवतन वा7तिवक या तािjवक पCरवतन है,
अथवा अवा7तिवक या अतािjवक पCरवतन है। िजन दाशिनक1 ने इस पCरवतन को वा7तिवक या
तािjवक माना है उ(ह ‘पCरणामवादी‘ कहा गया है, जबिक इस पCरवतन को अवा7तिवक अथवा
अतािjवक मानने वाल1 को ‘िववतवादी‘ कहा गया है।
यहां दाशिनक खडन-मडन कA इस जिटल ि या को आगे बढ़ाने के बजाय हम के वल अब तक
के तक^ को याद रखते हMए, उनके आधार पर भारतीय दाशिनक स*दाय1 म जो वग-िवभाजन िकया
गया है, उसका एक सिं cD पCरचय ाD कर ग।े यह वगmकरण कुछ इस कार हैः
सा;ं य व योग- सकायवादी,
(याय व वैशिे षक-असकायवादी,
वेदा(ती व बौ@- िववतवादी,
जैन व मीमांसक- सदसकायवादी
लोकायत- 7वभाववादी।
इस कार, हम यहां एक असकायवादी दशन के इितहास से, उसके िवकासानु म से पCरिचत होने
कA चे%ा कर रहे ह5।
उतराखड म
ु िविवालय ३१९
भारतीय दश
न MASL-103
काय
कारणवाद के स8दभ
मl बौ6, सां'य और नैयाियक
आपको यह 3यान रखना चािहए िक (याय के आिवभाव कA ऐितहािसक पृvभिू म सां;य व बौ@
मत1 के उसके खडन-मडन से जड़ु ी है। बौ@ कहा करते थे िक काय कA उपिS के बाद कारण तjव
न% हो जाते ह5, जैसे यिद दधू से दही बनता है, तो दही बनने के बाद कारण तjव दधू का अि7तव
समाD हो जाता है। पर(तु (याय दशन के अनयु ायी बौ@1 के इस मत का खडन करने के म म एक
जिटल तक सामने लाते ह5, जो संcेप म इस कार हैः कारण Kप के िवशेष तjव काय के तjव पंजु म
भी िवमान रहते ह5, और कारण के तव पंजु 1 कA 7वत( ि या के पCरणाम7वKप काय के तjव
पजंु कA उपिS हमारे अनभु व और साधारण Hान के िवपरीत ह5। दधू म जो ेत तjव है वह दही म
भी पाया जाता ह, इसिलए हम यह नहN कह सकते िक एक cण म ही पहला पदाथ (कारण) न% हो
गया, और दसू रा पदाथ (काय) उप(न हो गया।
दसू री ओर, हम देखते ह5 िक नैयाियक1 के िस@ा(त के ारि*भक 7वKप से ही सां;य दशन कA
मा(यता के खडन कA ि या शK ु हो जाती है, लेिकन नैयाियक1 के इस ितपc को जानने के
पहले हम संcेप म यह जान लेना होगा िक सां;य दशन के अनयु ाियय1 का पc Wया था। सां;य के
अनयु ायी यह मानते थे िक काय के वल कारण का कटीकरण है, और कारण कA अव7था भिवEय म
स*प(न होने वाले सारे काय^ कA अनगु Dु ि7थित समािहत िकये रहती है। वे अपनी दलील को
लोकिय ढंग से Jय करते हMए कहते थे- ‘ितल म तेल पहले से िवमान रहता है’। नैयाियक1 ने
सा;ं य के अनयु ाियय1 कA इस लोकिय दलील को आधारहीन बताया था और कहा था िक ितल
का योग हम तेल कA तरह नहN कर सकते, या िमYी के िपड को घड़ा समझकर हम उसम पानी
नहN भर सकते ह5।
(याय दशन के उPव से जड़ु े इस दाशिनक खडन-मडन कA संिcD पृvभिू म के बाद चलते-चलते
शायद एक और बात का उLलेख भी आपको िदलच7प लगेगा, जो इस दशन के नामकरण से जड़ु ी
है। अनमु ान लगाया जाता है िक (याय शOद कA उपिS अनेक िव&ान1 &ारा कA जाने वाली
वेदिवषयक वाताओ ं व िववाद1 के स(दभ म हMई होगी। आप ने भी ऐसी कथाएं पढ़ी ह1गी, जो भारत
के ाचीन काल म ऐसी अनेक ित&(&ी शाखाओ ं के अि7तव को दशाती ह5, जो अपने
र् ितपिcय1 को हराकर अपने मत को समाज म 7थािपत करने के िलए मनोयोगपवू क शाfाथ िकया
करती थN।
अब हम (याय दशन कA िवषय व7तु के दसू रे महjवपणू  तjव से पCरिचत ह1गे और उसके ऐितहािसक
स(दभ को समझने कA कोिशश कर ग।े (याय दशन का पदाथ िवचार
(याय दशन के पदाथ^ से पCरिचत होने के पहले हम यह 3यान देना चािहए िक वैशिे षक1 के
तjवमीमांसीय yि%कोण के िवपरीत नैयाियक िव को Hानमीमांसीय yि%कोण से देखते ह5। (याय

उतराखड म
ु िविवालय ३२०
भारतीय दश
न MASL-103
दशन के सोलह पदाथ^ का जब हम अ3ययन करते ह5, तो पाते ह5 िक (याय ने अपना 3यान िकसी
व7तु के गणु 1 के वा7तिवक अ3ययन पर के ि(Zत नहN िकया है, बिLक तक और &(&वाद कA उस
ि या पर के ि(Zत िकया है, जो Hान कA ािD के िलए आवbयक है। वैशिे षक1 के सात पदाथ^ को
(याय दशन ने अपने दसू रे पदाथ अथात मेय के अ(दर समािहत कर िलया है। Hान कA प@ित पर
नैयाियक1 के इसी के (Zीकरण को 7प% करते हMए िव|े षक कहते ह5 िक माण और मेय, यानी िक
(याय के पहले दो पदाथ ही उसके yि%कोण को 7प% करने के िलए पयाD ह5। (याय कA िजHासा इस
h पर के ि(Zत नहN है िक व7तएु ं 7वतः Wया ह5, बिLक उसका जोर इस बात पर है िक कै से उनकA
जानकारी या उनके Hान कA िसि@ संभव है। यहां यह 7प% करने कA जKरत है िक (याय को व7तओ ु ं
के 7वत( अि7तव पर िकंिचत मा भी स(देह नहN था, बिLक वह िम_या Hान के दEु भाव1 के ित
tयादा िचंितत था। वह मानता था िक िम_या Hान हम आसानी से `म म डाल सकता है, इसिलए
वह व7तओ ु ं पर िवचार करने के िनयम1 कA छानबीन म लग गया था। यह बात (याय दशन के बाकA
चौदह पदाथ^ के 7वKप से 7वतः 7प% हो जाती है, Wय1िक वे सभी सय कA खोज म सहायक ह5, या
अतकwिचत आ मण1 से उसे बचाने म उपयोगी ह5। इसीिलए कहा जाता है िक (याय दशन म Hान
पर सवwFच बल िदया गया है। कहा गया है, ‘ऋते सया(न मिु ः‘ अथात् Hान के िबना जीवन मिु
सवथा अस*भव है।
(यायशाf म पदाथ^ के Hान पर िवशेष बल िदया गया है। गौतम के अनसु ार िनःIेयस कA ािD
अथात दःु ख और पीड़ा से मिु या मोc सोलह पदाथ^ के सय को जानने के बाद ही हो सकती है।
ये पदाथ थे- माण, मेय, सशं य, योजन, y%ा(त, िस@ा(त, अवयव, तक , िनणय, वाद, जLप,
िवतडा, हेवाभास, छल, जाित, िनVह 7थान। इन पदाथ^ म माण को सबसे पहला 7थान िदया
गया है। जबिक Hान कA अथात मेय को गौण 7थान दान िकया गया है। 7प% है िक (याय णाली
थमतः सही Hान ाD करने कA प@ित िनKिपत करने वाला दशन है। गौतम सही Hान ाD करने के
साधन अथात माण को अयिधक महjव देते ह5। (याय दशन तक वाद, धमिनरपेcता और िवHान
कA पर*परा से स*ब(ध है। यह दशन पदाथ के मल
ू तjव कA अपनी-अपनी पCरकLपनाओ ं के आधार
पर व7त-ु जगत कA Jया;या 7ततु करता है। नैयाियक1 ने परमाणओ ु ं के Kप म◌ ं े पदाथ कA
पCरकLपना कA है। इसीिलए इनके िस@ा(त परमाणु िस@ा(त भी कहलाते ह5।
8याय मl "वीकृत षोडश पदाथ

गौतम जब (याय सू का णयन करते ह5 तो सत् के Kप म सोलह पदाथ^ कA िववेचना करते ह5-
माणमेयसंशययोजनy%ा(तिस@ा(तावयवतक िनणयवादजLपिवतडाहेवभासFछलजाितिनVह
7थानीनां तjवHानाि(नःIेयसािधगमः।
अथात माण, मेय, संशय, योजन, y%ा(त, िस@ा(त, अवयव, तक , िनणय, वाद, जLप, िवतडा,

उतराखड म
ु िविवालय ३२१
भारतीय दश
न MASL-103
हेवाभास, छल, जाित, िनVह7थान के तjव Hान से िनःIेयस ाD होता है।
इन सोलह पदाथ^ का ही िव7तृत िववेचन (यायसू म उपलOध होता है। अगली इकाई म आप
इसका वृहद अ3ययन कर सक गे। इस इकाई म इनका एक सिं cD पCरचय िदया जा रहा है, तािक
अगली इकाइय1 का अ3ययन आपके िलए सरल और सVु ाn बनाया जा सके ।
माणः ‘माण कA िववेचना (याय दशन का मख ु िवषय है, िजसके &ारा यथाथ Hान कA उपलिOध
होती है उसे माण कहते ह5। व7तओ ु ं के यथाथ Hान को ‘मा‘ कहते ह5। गौतम ने कहा हैः
मीयतेऽनेन‘ इित माणः अथात मा के करण को माण कहा जाता है, आम भाषा म िजसका
अथ हMआ िक Hान के म;ु य साधन को माण कहते ह5। इसके &ारा ही व7तु का यथाथ Hान स*भव
होता है। (याय दशन के अ(तगत चार माण 7वीकृ त िकये गये ह5- यc, अनमु ान, उपमान और
शOद माण। इनका िव7तृत िववेचन अगली इकाई म िकया जाएगा।
मेयः आमशरीरे ि(Zयाथबिु @मनःवृिSदोषेयाभावफलदःु खापवगा7तु मेयम। ‘मा‘ अथात
यथाथ Hान के िवषय को मेय कहते ह5। इनकA सं;या बारह बताई गई है, और इनके नाम मशः
इस कार ह5◌ः आमा, शरीर, इि(Zय, अथ, बिु @, मन, वृिS, दोष, ेयभाव, फल, दःु ख तथा
अपवग।
सशं यः समानानेकधमwपपSेिवितपSेKपलO3यJयव7थातB िवशेषापेcो िवमशः संशयः‘। अथात
िवशेषापेc िवमश ही संशय कहलाता है, जैसे 7थाणु (ठूँठ) और पpु ष (मनEु य) म कुछ धम समान
होने के कारण (िदखने म कुछ समानता के कारण) जब भाव (स(देह) उप(न होता है िक यह ठँ ◌ठू
है अथवा पpु ष, तो नैयाियक1 कA भाषा म इसे संशय कहा जाता है।
योजनः ‘यमथमिधकृ य वतते
माता (Hान ाD करने वाला) िजस अथ को अनक
ु ू ल या ितकूल िनBय कर वृS हो (आगे बढ़े),
उसे योजन कहते ह5।
y%ा(तः ‘लौिककपरीcकणां यि7म(नथu बिु @सा*यं स y%ा(तः‘।
अथात लौिकक पpु ष और िवशेष पpु ष अगर िकसी व7तु को एक सा समझते ह1, तो उसे y%ा(त
कहा जाता है। आम भाषा म कह◌ ं े तो वादी तथा ितवादी िजस िवषय म एकमत ह1 उसे y%ा(त
कहा जाता है। आगे कA इकाई म इसके भेद1 का आप िव7तार से अ3ययन कर ग।े
िस@ा(तः ‘त(ािधकरण*यपु गमसिं 7थितः िस@(तः‘। िवशेष Kप से परीcण िकया गया अथवा
ामािणक Kप से 7वीकृ त िवषय िस@ा(त कहलाता है। यह चार कार का होता है िजसका िव7तृत
िववेचन हम अगली इकाई म कर ग।े
उतराखड म
ु िविवालय ३२२
भारतीय दश
न MASL-103
अवयवः ‘ितHाहेतदू ाहरणापनयिनगमा(यवयवाः‘। आप पहले ही जान चक ु े ह5 िक (याय दशन म
चार माण िगनाए गए ह5, िजनम दसू रा माण अनमु ान कहा जाता है। अनमु ान माण के पांच भेद या
खड ह5, िज(ह अवयव कहा जाता है। सामा(य तौर पर कह तो िजन वाWय1 के मा3यम से हम
अनमु ान Hान ाD करते ह5, वे अवयव कहलाते ह5, िजनके नाम ह5◌ः ितHा, हेत,ु उदाहरण, उपनय
और िनगमन।
तक ः अिवHातjवेऽथu कारणोपपिSत7तjवHानाथमहू 7तक ः। भली-भांित न जाने हMए अथ को जानने
कA िजHासा के कारण उस पर स*यक िवचार करना तक कहलाता है।
िनणयः िवमृbय पcितपcाgयामथावधारणं िनणयः। िवचार ि या परू ी होने के पBात पc ितपc
&ारा अथ का िनBय करना ‘िनणय‘ कहलाता है। (याय दशन म वाद-िववाद के तक कA अव7था
तक पहMचं ने तक िकसी िनEकष पर Jयि नहN पह◌
ं ुचता, जबिक िनणय कA अव7था पर पहMचं ते ही
वह िनEकष या िनBय ाD कर लेता है।
वादः माणतक साधनोपाल*भः िस@ा(तिवp@ः पंचावयोपप(न पcितपc पCरVहो वादः। शाfाथ
के समय वादी तथा ितवादी दो पc होते ह5, ये दोन1 जब तjवHान के िलए शाfाथ करते ह5 तो उसे
वाद कहते ह5। वाद के दौरान पांच1 अवयव1 वाली यिु यां 7ततु कA जाती ह5। िनवृS का िनषेध तथा
Jयवि7थत कA 7थापना ही वाद का लoय है।
जLपः यथो ोपप(नbछलजाितिनVह7थानोपाल*भो जLपः। जब दोन1 पc शाfाथ म िवजय कA
अिभलाषा रखते हMए अपने ही पc को िस@ करने के िलए कथा करते ह5 तो यह जLप कहलाती है।
िवतडाः स ितपc7थापनाहीनो िवतडा। 7वपc कA 7थापना से िवरिहत होकर परपc कA 7थापना
कथा िवतडा कहलाती है, यानी िक जब ितवादी अपनी खीझ म परू ी तरह िनरथक िववाद करने
लगे, तो उसे िवतडा कहा जाता है।
हेवाभासः हेतल
ु cणाभावादहेतवो हेतसु ामा(या&ेतवु दाभासमानाः। ते इमे
सJयिभचारिवp@करणसमसा3यसमकालातीता हेवाभासाः। हेवाभास का अथ होता है हेतु न
होते हMए भी हेतु कA तीित होना। इस हेतु से जो अनमु ान Hान होता है वह अयथाथ अनमु ान है।
उदाहरण के तौर पर िवतडा के सभी हेतु अय ु होने के कारण हेवाभास रह जाएगं ।े
छलः ‘वचनिवधातोऽथिवकLपोपपया छलम‘् अथात ितवादी के अिभमत अथ से िवp@
कLपनोपपादन वचनिवधान छल कहलाता है। यह ि7थित तब आती है जब ितवादी वादी के
वाWय1 का िवp@ाथ करके उसको छल म डालने का यन करता है, यानी िक अ(य अिभाय से
कही गई बात को अ(य अथ म लेना छल कहलाता है। जैसे िकसी ने कहा- ‘नवक*बलोऽयं देवदSः‘
(देवदS के पास नया क*बल है) यहां ितवादी ‘नवक*बल‘ का अथ नया क*बल न कर नौ

उतराखड म
ु िविवालय ३२३
भारतीय दश
न MASL-103
क*बल1 वाला कर देता है। छल तीन कार का होता है, िज(ह वाWछल, सामा(यछल तथा
उपचारछल कहा गया है।
जितः साध*यवधै *या*यां यव7थानं जाितः। जब ितवादी JयािD िनरपेc साध*य या वैध*य के
&ारा अपने पc को प%ु करने लगता है, वह जाित अव7था म आ जाता है।
िनVह7थानः िवितरितपिSB िनVह7थानम।् िवितपिS या अितपिS कA अव7था ‘िनVह7थान‘
कहलाती है। िवपरीत या िनि(दत ितपादन ‘िवितपिS‘ कहा जाता है। अथात वादी जहां ितवादी
&ारा 7थािपत पc का आवbयक खडन न करे, वह िनVह7थान कहलाता है। आम भाषा म कह तो
िनVह7थान वह अव7था है जब ितवादी को रोककर शाfाथ ब(द िकया जाता है।
8याय दश
न के &िस6 आचाय

हम (याय दशन के V(थ1 के िवकासानु म को पहले ही जान चक ु े ह5। अब (याय दशन के मखु
आचाय^ के िवषय म भी संिcD पCरचय ाD कर लेना हमारे िलए लाभदायी रहेगा। लेिकन इनकA
Kपरे खा को देखने के पहले भारतीय दशन स*ब(धी दो सामा(य बात 3यान म रखना उपयोगी होगा।
पहली बात इन आचाय^ कA ऐितहािसक ितिथ से स*बि(धत है। 7प% साoय1 के अभाव म हमारे
ाचीन इितहास के V(थ1 का ितिथ िनधारण काफA जिटल मसला बना हMआ है, और इसिलए ऐसा
करते समय हम अिधकांशतया अनमु ान पर भरोसा करना पड़ता है। दसू री बात इन मनीिषय1 के
आमचCरत से स*बि(धत है। कारण चाहे जो रहे ह1, लेिकन हमारी Hान पर*परा म मनीिषय1 &ारा
अपने बारे म कुछ कहने का चलन नहN िमलता है। इसिलए V(थ1 के रचियताओ ं के िनजी जीवन के
बारे म नगय जानकाCरयां ही हम ाD हो सकA ह5।
&ाचीन 8याय के आचाय

1. गौतमः (याय सू के रचियता का नाम गौतम है। इनका दसू रा नाम अcपाद है। सवािधक
िव&ान इनको िमिथलािनवासी मानने के पc म ह5। (याय सू पाच
ं अ3याय म िवभ है, और येक
अ3याय के दो आि™क (भाग1) म।
2. वा7यायनः (याय सू के सवमख
ु भाEयकार ह5। भाEय के अ3ययन से पता चलता है िक
इससे पवू  भी कोई Jया;या V(थ था।
3. उोतकरः िदङनाग के िवचार1 का खडन करने के िलए उोतकर ने (याय भाEय कA
Jया;या के Kप म (यायवाितक िलखा
4. वाच7पित िमIः (यायवाितक के िWल% होने के कारण वाच7पित ने ‘तापय टीका‘ का
णयन िकया। वैशिे षक को छोड़कर पंचदशन1 पर इनकA िवरिचत टीकाएं ामािणक, ौढ़ तथा
पांिडयपणू  ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ३२४
भारतीय दश
न MASL-103
5. जय(त भYः इनकA रचना (यायमजं री है। िवरोधी मतावलि*बय1 का खडन जय(त भY ने
रोचक भाषा म िकया है।
6. भासवHः ‘(याय सार‘ कA रचना कर भासवH ने (याय जगत म अि&तीय 7थान ाD कर
िलया। 7वाथ तथा पराथानमु ान का वणन, उपमान का खडन, बौ@1 के समान पcाभास एवं
y%ा(ताभास का वणन तथा आमा कA िनरितशय आन(दोपलिOध मिु कA कLपना जैसे इनके
िस@ा(त नैयाियक जगत म सवथा अपवू  ह5।
7. उदयानाचायः उदयन कA ‘तापय पCरशिु @‘ तापय टीका कA एक बहMमLू य Jया;या है।
इनके सवIेv V(थ ह5- आमतjव िववेक तथा (याय कुसमु ांजिल। (याय कुसमु ांजिल म;ु य Kप से
ईर के अि7तव के समथन म माण जटु ाने के उेbय से िलखी गई।
न<य 8याय के आचाय

नJय (याय के णेता गंगश े उपा3याय एक ऐसे रन थे िज(ह1ने ाचीन (याय कA धारा पलट कर
‘नJय (याय को ज(म िदया। (याय सू जहां पदाथ^ के िववेचन पर बल देता है वहN नJय (याय म
माण िवचार सवमख ु 7थान Vहण कर लेता है। इनकA रचना तjव िच(तामिण सवािधक लोकिय
है। तjविच(तामिण के रचना काल से (याय पर*परा का नJय यगु ार*भ होता है। गगं श े के
अनयु ाियय1 म िगनाने योlय ह5 वासदु वे , सावभौम, रघनु ाथ िशरोमिण, गदाधर तथा जगदीश।
अभी तक आपने देखा िक (याय दशन म;ु य Kप से तक िवा पर बल देता है। तक धान णाली के
आधार पर ही इस दशन का नाम तक अथवा (याय पड़ा। इसीिलए वा7यायन ने भी िलखा है िक
‘माणैरथपरीcणं (यायः यcागमािIतमनमु ानमः् साङवीcा‘ अथात् माण1 से अथ परीcण
(याय कहलाता है। वे माण, यc तथा आगम के अनक ु ू ल अनमु ान को ही आ(वीिcकA िवा
कहते ह5।
बोध &.

(याय दशन के वतक कौन थे?


िवतडा िकस Iेणी म आती है?
(याय के अनसु ार पदाथ^ कA स;ं या िकतनी है?
िनःIेयस िकसे कहते ह5?

उतराखड म
ु िविवालय ३२५
भारतीय दश
न MASL-103

1.5 पा4रभा5षक शद


आ(वीिcकA - तक िवा
पcाभास- पc कA तरह तीत होने वाला
y%ा(ताभास- y%ा(त अथवा उदाहरण कA तरह तीत होने वाला
नJय (याय- (याय दशन कA अवा(तर णाली
अवयव- अगं
अ(तरंग साoय- भीतरी साoय
िविध- तरीका

1.6 सारांश
आपने अभी तक (याय दशन का संिcD इितहास पढ़ा। इसको पढ़़ने के बाद आपको यह Hात हMआ
िक (याय दशन वेद1 म िवास रखने के कारण आि7तक दशन कA Iेणी म आता है। तक धान होने
के कारण इसका दसू रा नाम आ(वीिcकA भी है। परमाणओ ु ं के संयोग से िनिमत इस जगत कA
Jया;या के कारण इसे व7तवु ादी दशन भी कहा जाता है। (याय शाf भी दो भाग1 म बंटा हMआ है।
ाचीन (याय और नJय (याय। ाचीन (याय के वतक महिष गौतम तथा नJय (याय के णेता गगं श े
उपा3याय थे। (याय दशन के म;ु य िस@ा(त1 कA 7थापना भी तीसरी शताOदी से पहले हो चक ु A थी।
(याय दशन के सोलह पदाथ^ कA संिcD चचा भी हम इस इकाई म कर चक ु े ह5, िजनका िव7तृत
अ3ययन आप आगे कA इकाई म कर ग।े

1.7 बोध 
न के उतर
1. गौतम, 2. कथा, 3. सोलह, 4. मिु

1.8 *नब%धामक 

(याय दशन के संिcD इितहास पर काश डािलए।
(याय दशन के अनसु ार सोलह पदाथ^ का संcेप म वणन कAिजए माण िकसे कहते ह5, Jया;या
कAिजए।

उतराखड म
ु िविवालय ३२६
भारतीय दश
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 2.    > ( - *


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इकाई क @परे खा

2.1 तावना
2.2 उे
य,
2.3 (याय दश5न- पGरचय
2.4 मेय, िवतृत >याBया
2.5 माण िवतृत >याBया
2.5.1 य, माण
2.5.2 अनमु ान माण
2.5.3 उपमान माण
2.5.4 श-द माण
2.6 कारण और उनके व@प क >याBया
2.6.1 कारण और उनके व@प क >याBया
2.6.2 समवािय कारण
2.6.3 असमवािय कारण
2.6.4 िनिम4 कारण
2.7 सारांश
2.8 श-दावली
2.9 बोध 01 के उ4र
2.10 स(दभ5 6(थ सचू ी
2.11 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ३२७
भारतीय दश
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2.1 तावना
(याय दशन कA पवू  इकाई म आप ाचीन (याय और नJय (याय के इितहास तथा उनकA
तjवमीमांसा का िव7तार से अ3ययन कर चक ु े ह5। वहां आपने यह देखा होगा िक सू प@ित का
अनसु रण कर िलखे गए V(थ ाचीन (याय, और उसके िवपरीत 7वत( Kप से िलखे गए V(थ नJय
(याय कA Iेणी म आते ह5। इस आधार पर तक भाषा को नJय (याय का V(थ माना जाता है।
आपने यह भी पढ़ा है िक (याय एक व7तवु ादी दशन है, िजसकA मलू 7थापनाएं तक के &ारा िस@
कA जाती ह5। तक पर अयिधक जोर देने के कारण ही इसे तक िवा भी कहा जाता है। तक धान
V(थ होने के कारण (याय शाf पर आधाCरत V(थ1 का भी एक ल*बा इितहास रहा है। आप (याय
दशन से स*बि(धत अनेक V(थ1 का पहली इकाई म अ3ययन कर चक ु े ह5, और ाचीन (याय तथा
नJय (याय के इितहास पर भी yि% डाल चकु े ह5।
महिष गौतम का ‘(याय सू ‘ (याय दशन का पहला V(थ है, िजसे हम ाचीन (याय कहते ह5। ाचीन
और नJय का भेद करते समय आपने यह भी देखा िक गौतम Hान कA ािD के िलए सोलह पदाथ^
का Hान आवbयक मानते ह5, Wय1िक उनके अनसु ार सोलह पदाथ^ के सय को जान लेने के बाद ही
िनःIेयस अथात मोc को ाD कर पाना स*भव था। नJय (याय के णेता गगं श े उपा3याय ने ‘तव
िच(तामिण‘ नामक लोकिय V(थ िलखा था, िजसे ाचीन (याय कA धारा पलटने वाला V(थ माना
गया है। ‘तविच(तामिण‘ के रचना काल को ही (याय पर*परा के नJययगु का ार*भ माना जाता है।
(याय सू जहां सोलह पदाथ^ के िववेचन पर बल देता है वहN नJय (याय Hान के साधन को अथात
माण िवचार को सवमख ु 7थान पर आसीन करता है।
आपको पता है िक हम इस इकाई म (याय दशन के मेय1 के नाम, माण, कारण और 7वKप
स*ब(धी अपने अ3ययन को तक भाषा के मल ू पाठ के आधार पर आगे बढ़ाएगं ।े हमारी आधार
प7ु तक तक भाषा प.ं के शव िमI &ारा णीत बारहवN शताOदी का एक ऐसा अनपु म V(थ है, िजसम
(याय के म;ु य पदाथ^ का ितपादन िकया गया है। तक भाषा म (याय और वैशिे षक दोनो ही दशन
िस@ा(त1 का वणन िमलता है। (याय शाf के सम7त िवषय1 का स*पणू  वणन न होने के कारण
‘तक भाषा‘ को (याय का ‘करण V(थ‘ यानी िक स*बि(धत V(थ कहना ही उिचत होगा। करण
V(थ का लcण इस कार िकया गया है-
शाfैकदेशस*ब@ शाfकाया(तरे ि7थतम।्
आहMः करणं नाम V(थभेदं िवपिBतः।।
(याय और वैशिे षक दशन1 कA वैचाCरक सरं चना समान है, इसिलए करण V(थ ायः (याय और
वैशिे षक दोन1 दशन1 के पदाथ^ का सि*मिलत वणन करते ह5। हालांिक उनम कुछ V(थ (याय को

उतराखड म
ु िविवालय ३२८
भारतीय दश
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धान और वैशिे षक को गौण 7थान देते ह5, तो अ(य V(थ अपने िववेचन म वैशिे षक को मख
ु व
(याय को गौण 7थान देते ह5।
पहली इकाई के अ3ययन से आप जान चक ु े ह5 िक (याय दशन म माण इयािद सोलह पदाथ^ का
वणन िमलता है, जबिक वैशिै षक दशन म ZJय इयािद सात पदाथ^ का वणन िकया गया है। (याय
को धानता देने वाले V(थ (याय के माण इयािद सोलह पदाथ^ का मख ु ता से ितपादन करते ह5।
(याय के इन पदाथ^ म मेय को दसू रा पदाथ माना गया है, िजसके अनेक भेद भी िगनाए जाते ह5, इन
भेद1 म एक ‘अथ‘ मेय भी है, िजसके वणन म वैशिे षक दशन &ारा ितपािदत ZJय इयािद छह
पदाथ^ के भी िववेचन समािहत िमलते ह5। (याय के करण V(थ1 म तक भाषा को एक (यायधान
V(थ माना जाना चािहए।

2.2 उे

इस इकाई के अ(तगत आप (याय शाf मे विणत सोलह पदाथ^ से पCरिचत ह1गे। इसके अ3ययन के
बाद आप-

• (याय के ि&तीय पदाथ यानी िक मेय कA जानकारी ाD कर सक गे।


• नJय (याय के सवािधक महवपणू  अगं माण शाf के िव7तृत िववेचन से पCरिचत ह1गे।
• दाशिनक भाषा म कारण िकसे कहते ह5, उनके िकतने भेद होते ह5, इसका अ3ययन कर
सक गे।

2.3 %याय दश#न- प4रचय


(याय दशन स*ब(धी बिु नयादी बात1 को हम अ3ययन कA थम इकाई म जान चक ु े ह5, लेिकन मेय1
के िव7तृत वणन म जाने के पहले उ(ह दोहरा लेना लाभदायक होगा। आपको यह याद होगा िक
वैशिे षक1 के तjवमीमांसीय yि%कोण के िवपरीत नैयाियक िव को Hानमीमांसीय yि%कोण से देखते
ह5। (याय दशन के सोलह पदाथ^ का जब हम अ3ययन करते ह5, तो पाते ह5 िक (याय ने अपना 3यान
िकसी व7तु के गणु 1 के वा7तिवक अ3ययन पर के ि(Zत नहN िकया है, बिLक तक और &(&वाद कA
उस ि या पर के ि(Zत िकया है, जो Hान कA ािD के िलए आवbयक है। वैशिे षक1 के छह पदाथ^
को (याय दशन ने अपने दसू रे पदाथ अथात मेय के अ(दर समािहत कर िलया है। Hान कA प@ित
पर नैयाियक1 के इसी के (Zीकरण को 7प% करते हMए िव|े षक कहते ह5 िक माण और मेय, यानी
िक (याय के पहले दो पदाथ ही उसके yि%कोण को 7प% करने के िलए पयाD ह5। (याय कA िजHासा
इस h पर के ि(Zत नहN है िक व7तएु ं 7वतः Wया ह5, बिLक उसका जोर इस बात पर है िक कै से
उनकA जानकारी या उनके Hान कA िसि@ संभव है। यहां यह 7प% करने कA जKरत है िक (याय को

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ु िविवालय ३२९
भारतीय दश
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व7तओ ु ं के 7वत( अि7तव पर िकंिचत मा भी स(देह नहN था, बिLक वह िम_या Hान के
दEु भाव1 के ित tयादा िचंितत था। वह मानता था िक िम_या Hान हम आसानी से `म म डाल
सकता है, इसिलए वह व7तुओ ं पर िवचार करने के िनयम1 कA छानबीन म लग गया था। यह बात
(याय दशन के बाकA चौदह पदाथ^ के 7वKप से 7वतः 7प% हो जाती है, Wय1िक वे सभी सय कA
खोज म सहायक ह5, या अतकwिचत आ मण1 से उसे बचाने म उपयोगी ह5। इसीिलए कहा जाता है
िक (याय दशन म Hान पर सवwFच बल िदया गया है। कहा गया है, ‘ऋते सया(न मिु ः‘ अथात्
Hान के िबना जीवन मिु सवथा अस*भव है।
(यायशाf म पदाथ^ के Hान पर िवशेष बल िदया गया है। गौतम के अनसु ार िनःIेयस कA ािD
अथात दःु ख और पीड़ा से मिु या मोc सोलह पदाथ^ के सय को जानने के बाद ही हो सकती है।
ये पदाथ थे- माण, मेय, संशय, योजन, y%ा(त, िस@ा(त, अवयव, तक , िनणय, वाद, जLप,
िवतडा, हेवाभास, छल, जाित, िनVह 7थान। इन पदाथ^ म माण को सबसे पहला 7थान िदया
गया है। जबिक Hान के िवषय को अथात ‘मेय‘ को गौण 7थान दान िकया गया है। 7प% है िक
(याय णाली थमतः सही Hान ाD करने कA प@ित िनKिपत करने वाला दशन है। गौतम सही Hान
ाD करने के साधन अथात माण को अयिधक महjव देते ह5। (याय दशन तक वाद, धमिनरपेcता
और िवHान कA पर*परा से स*ब(ध है। यह दशन पदाथ के मल
ू तjव कA अपनी-अपनी पCरकLपनाओ ं
के आधार पर व7त-ु जगत कA Jया;या 7ततु करता है। नैयाियक1 ने परमाणओ
ु ं के Kप म पदाथ कA
पCरकLपना कA है। इसीिलए इनके िस@ा(त परमाणु िस@ा(त भी कहलाते ह5।
गौतम जब (याय सू का णयन करते ह5 तो सत् के Kप म सोलह पदाथ^ कA िववेचना करते ह5-
माणमेयसंशययोजनy%ा(तिस@ा(तावयवतक िनणयवादजLपिवतडाहेवभासFछलजाितिनVह
7थानीनां तjवHानाि(नःIेयसािधगमः।
अथात माण, मेय, संशय, योजन, y%ा(त, िस@ा(त, अवयव, तक , िनणय, वाद, जLप, िवतडा,
हेवाभास, छल, जाित, िनVह7थान के तjव Hान से िनःIेयस ाD होता है।
तक भाषाकार के शव िमI ने अपने थम सू म ही (याय के सोलह पदाथ^ का िज करते हMए कहा
है िक ‘‘माणािदषोडशपदाथानां तjवHाना(मोcािDभवतीित।‘‘ अथात माणािद सोलह पदाथ^ के
तjवHान से िनःIेयस कA ािD होती है।

2.4 मेय, 5वतत


ृ >या.या
आपने देखा होगा िक तक भाषा म पहले िव7तार के साथ माण िनKपण िकया गया है, और उसके
बाद (याय दशन के ि&तीय पदाथ अथात मेय का िववेचन वहां िकया गया है। सबसे पहले वह
(याय के इस सू ़ को उ@तृ करती है-

उतराखड म
ु िविवालय ३३०
भारतीय दश
न MASL-103
आमशरीरे ि(Zयाथबिु @मनःवृिSदोषेयभावफलदःु खापवगा7तु मेयम्
यहां (याय दशन के दसू रे पदाथ अथात मेय के बारह भेद िमलते ह5, और उनके नाम इस कार ह5-
1. आमा 2. शरीर 3. इि(Zय 4. अथ 5. बिु @ 6. मन 7. वृिS 8. दोष 9 ेयभाव 10. फल 11
दःु ख और 12 अपवग। आप (याय दशन कA इस अ3ययन इकाई म मेय, माण और कारण कA
संिcD जानकारी ाD कर ग,े और इनका िव7तृत अ3ययन अगली इकाइय1 म कर सकं◌े◌ंग।े
टाइए अब हम मेय1 का अ3ययन शK ु कर । जैसा आप जान चक
ु े ह5, पहला मेय आमा है,
तक भाषाकार ने िजसके बारे म कहा हैः
तामवसामा(यवानामा। स च देहिे (ZयािदJयितCर ः, ितशरीरं िभ(नो िनयो िवभBु । स च
मानसयcः। िवितपSी तु बदु 3् यािदगणु िलङगकः। तथा िह बदु 3् यादय7तावद् गणु ाः अिनयवे
सयेकेि(ZयमाVाnवात्। गणु B गु यािIत एव।
के शविमI आमा कA Jया;या करते हMए कहते ह5 िक आमा वह है िजसम आमव रहता है। वह
देह, इि(Zय आिद से पृथक रहती है, और येक शरीर म अलग-अलग आमाएं अवि7थत रहती ह5,
और वह िनय व Jयापक है। अपनी आमा कA अनुभिू त आप मानस यc से करते ह5, तथा दसू रे
कA आमा का Hान बिु @ आिद यिु &ारा अनमु ान से ाD होता है। गणु गणु ी के आिIत रहते ह5,
और बिु @ इयािद गणु अिनय ह5 व आमा के आिIत ह5। 3यान देने कA बात िक यहां आमा 7वयं
म चेतन 7वKप नहN मानी गई है, बिLक चेतना उसका आग(तक ु गणु माना गया है।
दसू रा मेय शरीर को माना गया है। शरीर का लcण करते हMए के शव िमI कहते ह5-
‘त7य भोगायतनम(यावयिव ‘शरीरम‘् । सख ु दःु खा(यतरसाcाकारो भोगः। स च यदविFछ(न
आमिन जायते तPोगायतनं तदेव शरीरम।् चे%ाIयो वा शरीरम।्
‘तक भाषा‘ म आमा के भोग के आIय को ‘शरीर‘ कहा है, उ(होने शरीर के िलए अ(यावयवी
िवशेषण लगाकर 7प% कर िदया है िक उनका योजन शरीर के िकसी अगं से न होकर अ(य
अवयवी स*पणू  शरीर है। सःु ख दःु ख म से िकसी एक के साcाकार को भोग कहा जाता है, और
उस भोग का आIय ही शरीर कहा जाता है। तक भाषाकार ने (यायसू कार कA पर*परा म शरीर को
चे%ा का भी आIय बताया है।
तीसरे मेय का नाम ‘इि(Zय‘ है। तक भाषाकार कहते ह5
‘शरीरसयं
ु ं Hानकरणमतीि(Zयं ‘इि(Zयम‘। तािन चेि(Zयािण षट्। }ाणरसन चc7ु व ोतमनािं स।‘
इि(Zय का िववेचन करते हMए तक भाषाकार कहते ह5 िक शरीर से सयं
ु , अतीि(Zय अथात् इि(Zय1 से

उतराखड म
ु िविवालय ३३१
भारतीय दश
न MASL-103
गृहीत न होने वाले Hान का (करण) साधन ‘इि(Zय‘ कहलाता है। उ(ह1ने छह इि(Zय1 को मानते हMए
उनके लcण िगनाए ह5, और }ाण, रसना, चc,ु वक्, Iो जैसी पांच बाnेि(Zय1 के अलावा एक
अ(तCरि(Zय मन को भी शािमल िकया है।
(याय शाf के दसू रे पदाथ मेय के बारह भेद1 को जानने के म म अभी तक आपने आमा, शरीर
और इि(Zय Wया ह5, इस h का उSर जाना है। अब हम आगे बढ़ते हMए (यायशाf के चौथे मेय
‘अथ‘ कA चचा कर ग,े िजसका िववेचन तक भाषा म इस कार िकया गया है-
अथाः षट्पदाथाः ते च ZJयगणु कमसामा(यिवशेषसमवायाः।
अथात् अथ कA स;ं या छः होती है, िजनके नाम इस कार ह5- ZJय, गणु , कम , सामा(य, िवशे◌ेष
और समवाय। इस तरह हम देखते ह5 िक तक भाषाकार ने वैशिे षक दशन के पदाथ^ का िनKपण इस
‘अथ‘ नामक मेय के अ(तगत कर िदया है, हालांिक यह भी 3यान देने वाली बात है िक
तक भाषाकार ने वैशिे षक दशन के सातवं पदाथ अभाव का यहां उLलेख नहN िकया है। उ(ह1ने यहां
7प% िकया है िक माण इयािद सोलह पदाथ वैशिे षक के इन पदाथ^ म अ(तभतू हो जाते ह5, लेिकन
योजनवश उ(ह अलग से बताया जा रहा है। इस योजन को वा7यायन ने 7प% करते हMए कहा है
िक यिद माण आिद पदाथ^ का िनKपण (याय म न िकया जाय तो (याय िवा के 7वत( 7वKप
कA रcा करना मिु bकल हो जाएगा।
जैसा आप जान चक
ु े ह5, पांचवे मेय का नाम बिु @ है। बिु @ का िववेचन तक भाषा इस कार करती
है-
बिु @KपलिOधHानं यय इयािदिभः पयायशOदैया\िभधीधते सा बिु @ः। अथकाशो वा बिु @ः। सा
च संcेपतो ि&िवधा। अनभु वः 7मरणं च। अनभु वोऽिप ि&िवधो यथाथwऽयथाथBेित।
बिु @, उपलिOध, Hान, यय आिद पयायवाची शOद1 से िजसको स*बोिधत िकया गया है, वह बिु @
है। अथवा अथ के काशक को बिु @ कहते ह5। वह अनभु व और 7मरण दो कार कA होती है।
अनभु व भी दो कार का होता है- यथाथ और अयथाथ। यथाथ Hान भी यथाथ का यc अनभु व
हो सकता है, या िफर यथाथ का अनमु ान7वKप अनुभव हो सकता है- उदाहरण7वKप धएु ं को
देखकर आग के यथाथ का अनभु व। हम यहां पर इनका िव7तृत िववेचन नहN कर ग,े Wय1िक वह
आपकA अगली अ3ययन इकाइय1 का िवषय है।
छठा मेय मन है। मन का लcण तक भाषा म इस कार िकया गया हैः
अ(तCरि(Zयं मनः। तBो मेव। अथात अ(तCर(Zय को मन कहा जाता है, और ऐसा कहा जा चक
ु ा है।
जैसा िक हम देख चक
ु े ह5 इि(Zय मेय का वणन करते हMए तक भाषाकार ने छह इि(Zय1 को िगनाया

उतराखड म
ु िविवालय ३३२
भारतीय दश
न MASL-103
था, िजनम पांच बाnेि(Zय1 के बाद मन को छठी इि(Zय बताया गया था।
सातवां मेय वृिS है, िजसके बारे म तक भाषा म कहा गया हैः
वृिSः धमाधम\मयीयागािदि या, त7या जग&यवहारसाधकवात।्
धम अधम Kप यागािद ि या (और उससे उप(न धमाधम) वृिS कहलाते ह5। यह वृिS ही जगत
के Jयवहार का साधक होती है।
आठवां मेय &ेष है। तक भाषाकार कहते ह5
दोषाः रागमोहाः।
(याय शाf के अनसु ार राग, &ेष और मोह ये तीन दोष होते ह5। राग इFछा को कहते ह5 ‘&ेष‘ ोध
को कहते ह5। मोह िम_या Hान अथात िवपयय को कहते ह5।
नवां मेय ेयभाव है। तक भाषा इसका वणन करते हMए कहती हैः पनु pपिSः ेयभावः। स
चामनः पवू द हे िनवृिSः अपवू दहे संघातलाभः।मर कर पनु ः उप(न होना ही ेयभाव कहलाता है,
और पनु ज(म कA यह अव7था आमा के पवू श  रीर कA समािD और नवीन शरीर कA ािD है।दसवां
मेय फल है, िजसके बारे म तक भाषा कहती हैः
फलं पनु भwगः सख
ु दःु खा(यतर साcाकारः। अथात सख ु या दःु ख म िकसी के भोग के अनुभव Kप
को फल कहते ह5। lयारहवां मेय दःु ख है। तक भाषा कहती हैः
पीड़ा ‘दःु खम‘ अथात पीड़ा को दःु ख कहते ह5।
अि(तम मेय अपवग है िजसे मोc भी कहा जाता है। अपवग का लcण तक भाषा म इस कार
िकया गया है-मोcोऽपवगः। स च एकिवशं ितभेदिभ(न7य दःु ख7यायि(तकA िनवृिSः। अथात् मोc
इWकAस कार के दःु ख1 से आयि(तक िनवृिS है।
अब आप तक भाषा के िववेचन के आधार पर (याय शाf के दसू रे पदाथ मेय के बारह भेद1 का
सामा(य पCरचय ाD कर चके ह5। हम अ3ययन कA वतमान इकाई म ही माण शाf के िववेचन कA
चचा कर ग।े नJय (याय का V(थ होने के कारण तक भाषा मेय कA अपेcा माण1 के िववेचन पर
अिधक बल देती है। गौतम णीत (यायसू के िजस सू म पदाथ^ कA िगनती बताई गई है,
वहांसबसे पहले पदाथ के Kप म माण का उLलेख िकया गया है, जो उसके महव को भी उािटत
करता है। इस सू म पदाथ^ का म इस कार िगनाया गया है-
माण-मेय-संशय-योजन-y%ा(त-िस@ा(त-अवयव-तक -िनणय-वाद-जLप- िवत(डा-

उतराखड म
ु िविवालय ३३३
भारतीय दश
न MASL-103
हेवाभास-Fछल-जाित-िनVह7थानानां तवHानािनःIेयसािधगमः।

2.5 माण 5वतत


ृ >या.या
माण का लcण करते हMए के शव िमI कहते ह5- माकरणं माणम।् अथात् मा (Hान) के करण
(साधन) को माण कहते ह5, अथात Hान के साधन को माण कहते ह5। इसके बाद आपको h
करना चािहए िक मा Wया है। तक भाषाकार ने इसे 7प% करते हMए कहा है- यथाथwनभु वः मा
अथात यथाथ अनभु व मा है। तक भाषा ने मा को यथाथ (अनभु व) बताकर उससे सश
ं य, िवपयय
और तक Hान को अलग कर िदया है, वहN उसे अनभु व बताकर उसे 7मृित से भी अलग कर िदया
है। मेय1 कA चचा करते समय हमने ऊपर पहले ही जान िलया है िक Hान या बिु @ के दो भेद ह5-
अनभु व और 7मृित। संcेप म पदाथ जैसा है उसे उसी Kप म Vहण करना यथाथ Hान अथवा मा
कहलाता है। करण (साधन) Wया है इसको 7प% करते हMए तक भाषाकार ने कहा है-
साधकतमं करणम।् अितशियतं साधकं साधकतमं कृ %ं कारणिमयथः।
अथात साधकतम को करण कहते ह5 और अितशयत साधक अथात सवwकृ % कारण को करण
कहते ह5। कारण कA Jया;या को अिधक 7प% करते हMए तक भाषाकार कहते ह5 िक कारण वह है काय
के होने के पहले िजसकA सSा का होना अिनवाय है। (याय दशन म तीन कार के कारण िगनाए गए
ह5, लेिकन उनका अ3ययन हम अभी 7थिगत रखग,े Wय1िक पहले माण-िवचार का अ3ययन कर
लेना हमारे िलए उपयोगी होगा।
आइए अब हम माण1 के अपने अ3ययन को हम आगे बढ़ाते ह5। यह जान लेने के बाद िक ‘मा के
करण को माण कहते ह5‘, अब हम यह जानगे िक वे िकतने कार के होते ह5। (याय दशन म माण
के चार भेद बताए गए ह5- यc, अनमु ान, उपमान और शOद। तथा च (यायसू म-
यcानमु ानोपमानशOदाः माणािन।
7वाभािवक तौर पर सबसे पहले आप यc माण के िववेचन से पCरिचत होना चाहग।े के शव िमI
ने यc माण का िववेचन इस कार िकया है-
सcाकाCरमाकरणं यcम। साcाकाCरणी च मा सैवोFयते या इि(Zयजा। सा च ि&धा-
सिवकLपकिनिवकLपकभेदात।् त7याः करणम् ििवधम।् कदािचद् इि(Zय,ं कदािचद्
इि(Zयाथसि(नकषः कदािचद् Hानम।्
साcाकाCरणी मा के करण को यc कहते ह5। और साcाकाCरणी मा इि(Zयज(य होती है। वह
सिवकLपक और िनिवकLपक भेद से दो कार कA होती है। उसके करण तीन कार के होते ह5- 1.

उतराखड म
ु िविवालय ३३४
भारतीय दश
न MASL-103
कभी इि(Zय , कभी इि(Zय और अथ का सि(नकष और कभी िनिवकLपक Hान। इसका िव7तृत
िववेचन हम आगे कA इकाई म कर ग।े
माण का दसू रा भेद अनमु ान माण है, िजसकA अब हम चचा कर ग।े नैयाियक अनमु ान माण को
महवपूण मानते ह5। अनुमान का लcण करते हMए तक भाषाकार के शव िमI कहते ह5-
िलंगपरामशuन चानमु ीयतेऽतो िलंगपरमशwऽनुमानमं् तFच धमू ािदा◌ानमनिु मितं ित करणवात्।
अग(यािदHानमनिु मितः। तकरणं धमू ािदHानम।् िकं पनु िलंगं कB त7य परामशः उFयते। JयािD
वलेनाथगमकं िलगं म।् यथा धूमोऽlनेिल\गम।् तथािह य धूमसतािlनCरित साहयच िनयमो JयािDः।
त7यां गृहीतायामेव JयाDौ धमू ोऽिlनं गमयित। अतो JयािDवलेनाlनयपु माकवाद् धमू ोऽlनेिल\गम।्
त7य तृतीयानं परामषः। तथािह थमं ताव(महानसादेऽभयू ो -भयू ो धमू ं पbयन् विहनं पbयित। तेन भयू ो
दशनेन धमू ाl(योः 7वाभािवकं स*ब(धमवधारयित, य धमू 7तिlनCरित।
िलंग परामश को अनमु ान कहते ह5। िजससे अनिु मित हो, अथात् यc माण से Hात िलंग (िच(ह
को देखकर Hान का बोध) हो, उसे अनमु ान कहते ह5। इस तरह अनमु ान का अथ है िलंग परामश,
और यह िलंग परामश धमू ािद Hान है, (धएु ं को देखकर हम अिlन का Hान कर लेते ह5)। अिlन आिद
का Hान अनिु मित है। िलंग और परामश कA Jया;या करते हMए के शव िमI कहते ह5 JयािD के बल से
जो अथ का बोधक हो उसे िलगं कहते ह5। जैसे धमू अिlन का िलंग है। जहां-जहां धआ
ु ं होता है वहा-ं
वहां आग होती है, यह साहचय िनयम है। इसी साहचय िनयम को JयािD कहते ह5। इसिलए JयािD के
बल से अिlन का अनमु ापक होने से धमू अिlन का िलगं होता है। अनमु ान माण का िवशद िववेचन
(याय शाf म िकया गया है, लेिकन हम यहां उसकA चचा को और आगे नहN बढ़ाएगं ,े Wय1िक
उसका िव7तृत अ3ययन आपको (याय दशन कA अपनी पांचवी इकाई म करना है।
तक भाषा के अनसु ार तीसरा माण उपमान माण है। के शव िमI ने उपमान का लcण इस कार
िकया है-
अितदेशवाWयाथ7मरणसहकृ तं गोसाybय िविश%िपडHानमपु मानम।् यथा गवयमजाननिप नागCरका
‘यथा गौ7तया गवय‘ इित वाWयं कुतिBदारयकापpु षाF वा वनं गतो वाWयाथ 7मरन् यदा
गोसाybयिविश%िपडHानमपु मानमपु िमित करणतवात।् गोसाybय िपडHानानतरमयमसो
गवयशOदवाFयः िपड इित संHासिं H स*ब(ध तीितKपिमितः।
अितदेश वाWय (यथा गौ7तया गवयः) के अथ के 7मरण के साथ गो साybय िविश% िपड अथात
सवय ाणी का Hान उपमान माण है। गौ के धम (चCर) को गवय (नील गाय) म अितदेश (JयाD)
करने वाला वाWय अितदेश वाWय कहलाता है। भाषा कA वजह से जिटल लगने वाले इस वाWय को
एक उदाहरण के जCरए तक भाषाकार ने आसानी से समझाने का यास िकया है। वे कहते ह5 िक गवय

उतराखड म
ु िविवालय ३३५
भारतीय दश
न MASL-103
(नील गाय) को न जानने वाला कोई नागCरक िकसी वनवासी पpु ष से ‘जैसी गाय होती है वैसा गवय
होता है‘ जैसा (अितदेश) वाWय सनु ने के बाद अगर वन म जाता है, और वहां िकसी गोसाybय
िपड (नील गाय) को देखता है, और उस िपड को देखकर उसे वनवासी से सनु ा हMआ (अितदेश)
वाWय याद आ जाता है, तब उस वाWय का 7मरण उस गोसाybय िपड (नील गाय) के Hान का
कारण बनता है। यह अितदेश वाWय उपिमित का कारण होने से उपमान माण कहलाता है।
गोसाybयिविश% िपड के Hान के बाद यह िपड ही गवयपदवाFय है। इस कार कA
सHं ासिं Hस*ब(ध कA तीित ही उपिमित है।
इस माण को सरल भाषा म आप इस तरह दोबारा समझ सकते ह5। िकसी शहरी बािश(दे ने जगं ल म
रहने वाली नील गाय को कभी न देखा हो, लेिकन उसने िकसी वनवासी पpु ष कA यह बात सनु रखी
हो िक जैसी गाय होती है वैसा गवय अथात नील गाय होती है। वह अगर इस साybय Hान का बोध
करने के बाद जगं ल जाए, और वहां नील गाय िमलने पर वह वनवासी के उस कथन को याद करके
उसे पहचान ले, तो इस तरह उसका ाD Hान साybय Hान के &ारा हMआ है, और साybय Hान के
&ारा &ारा ाD Hान ही उपिमित कहलाता है।
शOद माण चौथा माण है। तक भाषा म शOद माण का लcण इस कार िकया गया है-
आD वाWयं शOदः। आD7तु यथभतू 7याथ7योपदे%ा पpु षः। वाWयं वाकांcायोlयता सि(निधमतां
पदानां समहू ः। अतएव ‘गौरः‘ पpु षे ह7ती इित पदािन न वाWयम।् पर7परािं वरहात।् ‘वि™ना
िसंचेिदित‘ न वाWयं योlयता वCरहात।् न nिlनसंकयोः पर7परा(वययोlयताि7त। तथािह अिlननेित
तृतीयया सेकKपं काय\ ित करणवमlनेः ितपािदतम।् न चािlनः सेके करणीभिवतंु योlयः। तेन
कायकारणभावलcणस*ब(धे अिlनसेकयोरयोlयवादिlनना िसंचेिदित न वाWयम।्
एवमेकैकशः हरे हरे असहोFचाCरतािन ‘गामानय‘ इयािद पदािन न वाWयम।् सतयामिप
पर7पराकांcायां सतयामिप पर7परा(वययोlयतायं पर7परसाि(न3याभावात।् यािन तु साकांcािण
योlयावि(त सि(निहतािन पदािन ता(येव काWयम।् यथा- tयोित%ोमेन 7वगकामो यजेत् इयािद। यथा
च नदीतीरे पंच फलािन सि(त।
आD वाWय को शOद माण कहते ह5। यथाभतू अथ का उपदेश करने वाला पpु ष आD पpु ष
कहलाता है, और उसका वाWय शOद माण माना गया है।
यहां h उठता है िक वाWय Wया है। तक भाषाकार ने इसको 7प% करते हMए कहा है िक आकांcा,
योlयता और पदसि(निध से य ु पद1 के समहू को वाWय कहते ह5, इसिलए पर7पर आकांcा िवरिहत
होने से गाय, घोड़ा, मनEु य हाथी आिद पद वाWय नहN कहे जाते ह5। दसू री ओर िकसी पदसमहू म
अगर योlयता का अभाव है तो वह वाWय नहN होगा, उदाहरण के िलए ‘अिlन से सNचता है‘

उतराखड म
ु िविवालय ३३६
भारतीय दश
न MASL-103
पदसमहू वाWय नहN है, Wय1िक अिlन म सNचने कA cमता अथवा योlयता का अभाव रहता है। इसी
कार यिद आप एक-एक हर के बाद अथात् बहMत pक-pक कर, अलग-अलग उFचCरत कर
और कह ‘गाय को ले आओ‘, तब भी यह पदसमहू (गाय को ले आओ) वाWय नहN कहलाएगा,
Wय1िक पर7पर अ(वय और योlयता होने के बाद भी इस वाWय म पदसि(निध का अभाव है।
अब तक आपने यह अFछी तरह समझ िलया होगा िक आकांcा य ु , योlयता य ु और
सि(निधय ु पद ही वाWय कहलाते ह5- जैसे 7वग कA इFछा रखने वाला tयोित%ोम याग करे इयािद
वैिदक वाWय। और जैसे नदी तीर पर पाच ं फल ह5, यह लौिकक वाWय, और जैसे अिवल*ब से
उFचCरत वही ‘गाय को ले आओ‘ इयािद पद वाWय हो जाते ह5।
यc, अनमु ान, उपमान और शOद इन चार1 माण1 के वणनोपरा(त तक भाषाकार कहते ह5-
विणतािन चवाCर माणािन। एतेgयोऽ(य(न माणम,् माण7य सतोऽैवा(तभव।
अथात चार1 माण1 का वणन हो गया। इनके अितCर और कोई माण नहN ह5। अ(य माण इ(ह1
चार1 माण1 म अ(तभतू ह5।
बोध &.

िन*निलिखत h1 के उSर Cर 7थान1 म िलिखए तथा इकाई के अ(त म िदए गए उSर1 से अपने
उSर1 का िमलान कAिजए-
1. तक भाषा के आधार पर मेय1 कA सं;या बताइए
2. उपिमित का Wया आधार होता है
3. शOद माण के िलए Wया आवbयक होता है
4. ‘वि(हना िस(चेत‘ म िकसका अभाव है
इसी अ3ययन इकाई म मेय, माण के िनKपण के बाद आप (यायस*मत कारण के 7वKप का
अ3ययन भी कर ग।े कारण और काय म आन(य स*ब(ध होता है। दैिनक जीवन म भी आप अनभु व
करते ह5 िक िबना कारण के कोई काय घिटत नहN होता। दाशिनक स*दाय कारणवाद कA िवशद
Jया;या करते ह5। उनका मत है िक सृि% भी अकारण उप(न नहN हMई है। कारणवाद का िस@ा(त भी
येक दाशिनक स*दाय1 म अलग-अलग है। जहां सां;य सकायवाद कA िववेचना करता है वहN
नैयाियक असकायवाद का समथन करते ह5। वेदा(ती िववतवाद को मानते ह5 और बौ@ cिणकवाद
को 7वीकार करते ह5। इस इकाई के अ(तगत आप नैयाियक1 के कारणवाद का अ3ययन कर गे जो
असकायवाद अथवा आर*भवाद के नाम से जाना जाता है।

2.6 कारण और उनके व;प क >या.या


(याय कारण कA गित ि या के पवू  काय कA ि7थित को 7वीकार नहN करता ह,◌ै पर(तु इस दशन
उतराखड म
ु िविवालय ३३७
भारतीय दश
न MASL-103
कA यह मा(यता अवbय है िक कारण के गणु 1 &ारा काय के गणु 1 का आिवभाव होता है। कारण कA
पCरभाषा बताते हMए तक भाषाकार के शव िमI कहते ह5-
य7य कायात् पवू भ ावो िनयतोऽन(यथािस@B तकारणम-् यथा त(तवु मे ािदकं पट7य कारणम।्
अथात् काय से पहले िजसकA सSा िनिBत हो, उसको कारण कहते ह5। लेिकन जैसे त(तु और करघा
आिद पट के कारण ह5। यह वणन अितJयाD है, Wय1िक यह अनेक ऐसी बात1 पर लागू होता है िज(ह
कारण नहN माना जा सकता। इसिलए इस िववेचन म ‘िनयतोऽन(यथा िस@B‘ पद का िवशेष महव
है। कारण का िववेचन करते हMए यिद िनयत शOद नहN रखा जाए, के वल पवू भाव ही रखा जाए, तो
कु*हार के &ारा घड़ा बनाते समय िजतनी व7तएु ं उपि7थत ह1गी, वे सभी घट का कारण कहलाने
लगगी, उदाहरण के िलए घड़ा बनाने के समय अगर कोई पpु ष दशक अथवा गधा इयािद कोई
जानवर वहां उपि7थत हो जाए, तो घटोपिS के पवू -कारण का लcण उनम भी सि(निहत हो जाएगा।
इसीिलए तक भाषा के िववेचन का ‘िनयत‘ पद महवपणू  है। त(तु व करघा इयािद का पवू भ ाव
िनयत है, अथात् जब पट कA उपिS होगी, उसके पहले त(तु व करघा इयािद कA उपि7थित
आवbयक होगी। इसिलए कपड़े के िनमाण म त(तु करघा इयािद ‘िनयतपवू भ ावी‘ होने के कारण पट
के कारण कहलाते ह5। इसकA Jया;या तक भाषा म इस कार कA गई है-
यिप पटोपSौ दैवादागत7य रासभादेः पवू भ ावो िवते, तथािप नासौ िनयतः। त(तK
ु प7य तु िनयतः
पवू भ ावोऽ7येव िक(व(यथािस@ः पटKपजननोपcीणवात, पटं यिप कारणवे
कLपनागौरवसंगात्।
तेनान(यथािस@िनयतपवू भ ािववं कारणवम।् अन(यथािस@िनयत-पBादभािववं कायवम।्
इसिलए तक भाषाकार के अनुसार ‘अन(यथािस@ िनयत पवू भ ािवव‘ यह कारण का लcण है और
अन(यथािस@ िनयत पBादभािवव कायव का लcण है।
आपके मन म यह 7वाभािवक h उठे गा िक यह अ(यथािस@ Wया है। कारण के िववेचन म यह पद
िवशेष महव का है और इसको जाने िबना आप (याय दशन के कारणवाद को ठीक से नहN समझ
पाएगं ।े कारण कA उपय
ु पCरभाषा को यथाथ बनाने के िलए कुछ अपवाद बताए गए ह5, िज(ह
‘अ(यथािस@‘ कहा गया है। इ(ह छोड़ने के बाद जो भी िकसी काय का िनयत पवू व तm हो, वह
उसका कारण है। (याय वैशिे षक के िस@ V(थ (याय म
ु ावली के आधार पर तक भाषाकार ने पाच

कार के अ(यथािस@ िगनाए ह5, हालांिक उनका अ(तर अ7प% और अिनिBत लगता है।
थम अ(यथािस@ है ‘येन सह पवू भ ावो‘ िजस धम के सिहत कारण का काय के ित पवू भ ाव गृहीत
होता है वह धम काय के ित अ(यथािस@ होता है। जैसे दड घट का कारण है। दडव धम िविश%
दड ही घट का कारण है इसिलए दडव का कारण के Kप म अलग से कथन थम कार का
अ(यथािस@ है।

उतराखड म
ु िविवालय ३३८
भारतीय दश
न MASL-103
‘कारणमादाय वा य7य‘ यह ि&तीय कार के अ(यथािस@ का लcण है। इसका अिभाय यह है िक
िजसका काय के साथ 7वत( Kप से अ(वय-Jयितरे क न हो, अिपतु अपने कारण के &ारा अ(वय-
Jयितरे क हो, वह ि&तीय कार का अ(यथािस@ कहलाता है। जैसे घट के ित दडKप का 7वतः
अ(वय-Jयितरे क नहN है अिपतु कारण के दड के &ारा अ(वय Jयितरे क है। इसिलए दडKप घट के
ित दसू रे कार का अ(यथा िस@ हMआ।
तीसरे अ(यथािस@ का लcण म ु ावलीकार ने इस कार िदया है-
‘अ(यं ित पवू भ ावे Hाते यपवू भ ाविवHानम‘् - इसका अथ यह है िक िकसी अ(य के ित पवू भ ाव
Hात होने पर िजसका काय के ित पवू भ ाव गृहीत हो सके वह तृतीय अ(यथािस@ होता है। जैसे घट
के िनमाण के पवू  आकाश उपि7थत रहता है, लेिकन आकाश घट के ित अ(यथािस@ है। आकाश
यc नहN है। उसकA िसि@ शOद के समवािय कारण के Kप म अनमु ान &ारा होती है।
चौथा अ(यथािस@ है- जनकं ित पवू व िृ SतामपCरHाय न य7य गृहयते- अथात् कारण का कारण
चौथे कार का अ(यथािस@ कहलाता है। जैसे कु*हार घट का कारण है लेिकन कु*हार का िपता घट
का कारण नहN है, इसिलए वह अ(यथािस@ है।
‘अितCर मथािप यदभवेिनयतावbयक पवू भ ािवनः‘ यह पांचवा अ(यथािस@ है। अिभाय यह है िक
िनयतावbयक पवू भ ावी अथात िनयत पवू व तm से अितCर जो कुछ है वह सब पचं म कार का
अ(यथािस@ है। जैसे पटोपिS के पवू  ‘दैवादागत रासभ‘ अथात अचानक उपि7थत होने वाला गधा
इयािद।
पांच1 अ(यथािस@ म पंचम कार का अ(यथािस@ सबसे महवपूण कहलाता है। इसके िवशेष
महव के कारण ही तक भाषाकार ने िनयत पद से सिू चत िकया। यिद ऐसा नहN होता तो
अन(यथािस@ पद से ही कारण का लcण परू ा हो जाता, िनयत पद रखने कA आवbयकता नहN
पडती।
अ(यथािस@1 के पाच ं कार1 के बीच के भेद1 म अ7प%ता िदखाई देती है और इस िलए उ(ह
सामा(यतया ‘औपािधक बात1‘ के शीषक के तहत समझ िलया जाता है। अ(यथािस@1 कA इस
योजना के सामा(य 7वKप को समझने के िलए एक या दो उदाहरण1 को 3यान म रखना उपयोगी
होगा। पहला यह है िक कारण के गणु काय के गणु नहN ह5, उदाहरण के िलए डंडा घड़ा का कारण है,
लेिकन डंडे का रंग घड़े का कारण नहN है। दसू रा, यह िक कारण का कारण भी कारण नहN माना जा
सकता, जैसा हम ऊपर देख चक ु े ह5 िक कु*हार घड़े का कारण है, लेिकन कु*हार का िपता घड़े का
कारण नहN है।
कारण का िववेचन जानने तथा िववेचन म य ु पाCरभािषक शOद1 कA Jया;या के उपरा(त कारण
के भेद पर भी िवचार करना उिचत होगा। तक भाषा म तीन कार के कारण बतलाए गए ह5-
तFच कारणं ििवधम।् समवािय-असमवािय-िनिमS-भेदात।् त यसमवेतं कायमु पते
तसमवाियकारणम।् यथा त(तवः पटसय समवािय कारणम।् य7त(तEु वेव पटः समवेतो जायते न

उतराखड म
ु िविवालय ३३९
भारतीय दश
न MASL-103
तयु ािदष।ु
वह कारण तीन कार का होता ह5 समवािय कारण, असमवाियकारण और िनिमS कारण। समवाय
स*ब(ध से उप(न होने वाले काय के कारण को समवािय कारण कहा जाता है, जैसे पट त(तु का
समवािय कारण ह5, Wय1िक तागे म ही समवाय स*ब(ध से पट पैदा होता है, करघे आिद म नहN।
इस पर h यह पैदा होता है िक तागे के साथ स*ब(ध के समान करघे आिद के साथ भी पट का
स*ब(ध है, तब िफर Wय1 ताग1 म◌ ं े ही समवाय स*ब(ध से पट उप(न होता है, और तरु ी आिद म
नहN होता।
आप देखग े िक नैयाियक इसका उSर बहMत ही तक स*मत ढंग से देते ह5। नैयाियक1 का कहना है, िक
ठीक है पट का तरु ी और तागे दोन1 के साथ स*ब(ध अवbय है, पर(तु स*ब(ध दो कार का होता ह5
एक संयोग और दसू रा समवाय। उ(ह1ने आगे 7प% करते हMए कहा है िक दो अयतु िस@ पदाथ^ का
स*ब(ध ही समवाय स*ब(ध होता है, और अ(य1 के बीच का स*ब(ध संयोग स*ब(ध होता है,
समवाय नहN।
अब ये अयतु िस@ Wया कहलाते ह5 यह h िकया गया है। इसका उSर यह है िक िजन दो म एक
‘अिवनbयदव7थ‘ अथात् दसू रे के आिIत ही रहता है, वे दोन1 ही पर7पर अयतु िस@ कहलाते ह5।
अथात् िजनको एक-दसू रे से अलग करके नहN देखा जा सकता, वे दोन1 पर7पर अयतु िस@ कहलाते
ह5, जैसे मेज से उसका 7वKप अलग नहN िकया जा सकता। इस उदाहरण म मेज गणु ी है और Kप
उसका गणु । इसिलए गणु और गणु ी पर7पर अयतु िस@ ह5 और इनका स*ब(ध समवाय स*ब(ध
कहलाता है।
अवयव और अवयवी, गणु और गणु ी, ि या-ि यावान, जाित-Jयि और िनय ZJय तथा िवशेष
ये पांच अयतु िस@ ह5 और इनका स*ब(ध समवाय स*ब(ध कहलाता है।
तक भाषाकार &ारा अयतु िस@ के लcण म य ु ‘अिवनbयदव7था‘ कA Jया;या भी आवbयक है।
उ(ह1ने इसकA Jया;या इस कार कA है-
यथा अवयवावयियनौ, गणु गिु णनौ, ि याि याव(तौ, जाितJय A िवशेषिनयZJये चेित।
अवयJयादयो िह यथा ममवयवाािIता एवा-वितvनतेऽिवनbय(तः। िवनbयदव7था7वनािIता
एवावितvनतेऽवयव Jयादयः। यथा त(तनु ाशे सित पटः। यथा वा आIयनाशे सित गणु ः। िवनbयSा तु
िवनाशकारण सामVीसाि(न3यम।्
जैसे अवयव-अवयवी, गणु -गणु ी, ि या ि यावान, जाित और Jयि तथा िनयZJयं और िवशेष।
अवयवी आिद यथा म अिवनbयदव7था म अवयवािद के आिIत ही रहते ह5। िवनEयदव7था म
अवयवी आिद िनरािIत हो जाते ह5। िवनbयता तो िवनाशकरण1 का एकीकरण है।
अब दसू रा कारण असमवाियकारण है, िजसकA Jया;या तक भाषाकार ने इस कार कA है-
असमवाियकारणं तदFु यते यसमवाियकारणयास(नमवधृत सामथयं तदसमवाियकारणम।् यथा
त(तसु ंयोगः पट7यासमवाियकारणम।् त(तसु ंयोग7य गणु 7य पटसमवाियकारणेषु त(तुषु गिु णष,ु

उतराखड म
ु िविवालय ३४०
भारतीय दश
न MASL-103
समवेतवेन समवाियकारणे यास(नवात् अन(यथािस@िनयतपवू भ िववेनं पटं ित कारणवाFच।
असमवािय कारण उसको कहते ह5 जो समवािय कारण म रहता हो, और िजसम िनिBत Kप से
कायwपादन कA cमता भी िवमान हो, अथात् िजसम ‘अन(यथािस@िनयतपवू भ ािववम‘् यानी िक
अ(यथािस@ िनयतपवू व तm हो। ‘अन(यथािस@िनयतपवू भ ािववम‘् कA िवशद Jया;या इस इकाई म
आप पहले ही पढ़ चक ु े ह5। जैसे पट के मामले म तागे समवािय कारण ह5, लेिकन ताग1 का संयोग
गणु है, इसिलए वह पट का समवािय कारण नहN है, बिLक उसका असमवािय कारण है। और यह
पट के समवािय कारण यानी िक ताग1 म समवाय स*ब(ध से िवमान होने से समवािय कारण म
यास(न कहलाएगा और अन(यथािस@िनयतपवू भ ािवव के लcण से य ु होने से
असमवाियकारण कहलाता है। सc ं ेप म त(तसु यं ोग के िबना पट कA उपिS अस*भव है और
समवाियकारण त(तु म यास(न भी है, इसिलए त(तसु ंयोग पट का असमवाियकारण हMआ।
तीसरा कारण Wया है? अब हम इस पर िवचार करते ह5। तक भाषा के अनसु ार िनिमS कारण उसको
कहते ह5 जो न समवािय कारण है और न असमवािय कारण है। िफर भी जो कारण है अथात िजसम
‘अन(यथािस@ िनयतपवू भािववम‘् कारण का यह लcण घटता है। जेसे वेमािद पट के िनिमS
कारण ह5 । यह तीन कार के समवािय, असमवािय और िनिमS कारण भाव पदाथ^ के ही होते ह5।
अभाव का तो के वल एक िनिमS कारण ही होता है। उस अभाव का कहN भी िकसी भी पदाथ के
साथ समवाय स*ब(ध न होने से कोई पदाथ उसका समवािय कारण नहN हो सकता, और जब
समवािय कारण ही नहN तब असमवाियकारण भी नहN हो सकता, इसिलए अभाव का के वल िनिमS
कारण ही होता है। ििवध कारण के वल भाव पदाथ^ के होते ह5 अभाव के नहN। तक भाषाकार ने कहा
है-
िनिमjकारणम् तदFु चयते। य(न समवाियकारणं ना~यसमवाियकारणम।् अथ च कारणं
ति(निमSकारणम।् यथा वेमािदकं पट7य िनिमSकारणम,् तदेतद् भावनामेव ििवध कारणम।्
अभाव7य तु िनिमSमां त7य किचद~यसमवायात।् समवाय7य भाव&यधमवात्।
कारण1 के बारे म तक भाषा के पाठ पर आधाCरत इस चचा के बाद हमारे िलए सरल शOद1 म एक
और बात को समझ लेना उपयोगी होगा। सभी दशन1 म भावामक काय^ के िलए दो कार के
कारण1 को माना गया है, एक कारण को उपादान कारण कहा जाता है तो दसू रे कारण को िनिमS
कारण के नाम से जाना जाता है। (याय दशन म िनिमS कारण तो लगभग वैसे ही माना जाता है जैसा
बाकA दशन1 म। लेिकन उपादान कारण के मामले म (याय कA ि7थित अ(य दशन1 से िभ(न है। (याय
दशन ZJय और उसके गणु 1 म भेद करता है, और इसी भेद के अनK ु प वह समवािय कारण और
असमवािय कारण के भेद को भी 7थािपत करता है। संcेप म समवािय कारण हमेशा कोई ZJय होता
है और असमवािय कारण कोई गणु या कम होता है। इसीिलए नैयाियक दो के 7थान पर तीन तरह के
कारण1 कA योजना 7ततु करते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ३४१
भारतीय दश
न MASL-103

2.7 सारांश

इस इकाई के अ(तगत आपने मेय1 के नाम, माण और कारण के 7वKप का अ3ययन तक भाषा के
अनसु ार िकया और आपने देखा िक बारह मेय िगनाए गए ह5- आमा, शरीर, इि(Zय, अथ, बिु @,
मन, वृिS, दोष, ेयभाव, फल, दःु ख और अपवग।
माण चार ह5- यc, अनमु ान, उपिमित और शOद माण।
इि(Zय तथा व7तु के स*पक से िजस यथाथ Hान कA उपिS होती है वह यc माण है। माण का
दसू रा म;ु य साधन अनमु ान है। िकसी व7तु के िलंग (िविश%) िच(ह के आधार पर ाD Hान को
अनमु ान कहते ह5। जैसे धएु ं (िलंग) को देखकर अिlन का Hान ाD करना।
(याय दशन के अनसु ार तीसरा माण ‘उपमान‘ है। िजस व7तु से कोई पवू  पCरचय नहN है, उसको
अ(य व7तु कA उपमा से यc होने पर पहचानना ही उपमान है। अथात अHान को Hान के उदाहरण
से जानना ही उपमान है।
माण1 कA चचा म आपने चौथे माण के Kप शOद माण का अ3ययन िकया। संcेप म ‘शOद
माण‘ अथवा साoय वह Hान है जो हम िवसनीय, सयव ा, I@ेय एवं स*माननीय Jयि य1
के कथन &ारा ाD करते ह5।
मेय1 के नाम और माण1 कA चचा के उपरा(त हमने कारण के 7वKप पर भी िवचार िकया है।
नैयाियक1 के अनसु ार कारण का लcण है- ‘य7य कायात् पवू भ ावो िनयतोऽन(यथा िस@B
तकारण‘ अथात् काय से पहले िजसकA सSा िनिBि◌त हो और जो अ(यथािस@ न हो, उसे कारण
कहते ह5। ‘िनयत पवू भ ािववम‘◌् और ‘अ(यथािस@‘ जैसे पद1 कA Jया;या भी इसी इकाई म
आपने िव7तार से पढ़ी। कारण का लcण बताने के बाद नैयाियक1 ने तीन कार के कारण बतलाए
ह5- समवाियकारण, असमवाियकारण और िनिमS कारण
2.8 पा4रभा5षक शदावल
1. मेय- Hान के िवषय को मेय कहते ह5।
2. माण- साधन अथात िजसके &ारा यथाथ Hान ाD िकया जाता है।
3. मा-यथाथ अनभु व का नाम
4. िनिवकLपक - नाम Kप इयािद के िबना जो यc Hान होता है उसे िनिवकLपक यc
कहते ह5।
5. सिवकLपक- नाम Kप इयािद के साथ जो यc Hान होता है उसे सिवकLपक यc
कहते ह5।
6. िलंग- िविश% िच(ह िजसके &ारा अनमु ान कA िसि@ होती है।
7. JयिD- साहचय िनयम को JयािD कहते ह5। उदाहरण 7वKप जहां-जहां धआ
ु ं होता है वहां-
वहां आग होती है यह साहचय िनयम है अथात् िबना आग के धआ ु ं नहN हो सकता। यही साहचय
उतराखड म
ु िविवालय ३४२
भारतीय दश
न MASL-103
िनयम नैयाियक1 के अनसु ार JयािD कहलाता है।
8. आकांcा- साथक स*ब(ध- अथ ितपादन &ारा अ(य पद1 के बारे म आकांcा उप(न
होती है।
9. योlयता- योlयता से तापय पद समहू म काय कA योlयता से है। जैसे अिlन म सNचने कA
योlयता नहN है।
10. सि(निध- पद1 का शी}ता से उFचारण सि(निध कहलाता है
11. समवाय- अलग न िकए जा सकने वाले स*ब(ध को समवाय स*ब(ध कहते ह5। जैसे िमYी
और घड़ा।
12. अ(यथािसि@- अ(य कार से िस@ िकया जाने वाला काय अ(यथा िस@ कहलाता है।

बोध &. 2.
1. अपवग िकसके अ(तगत आता है?
2. परामश शOद का योग िकस माण म िकया गया है?
3. माण1 कA सं;या िकतनी है?
4. िनिवकLपक Wया है?
5. पट का समवािय कारण कौन सा है।
6. घडे़ का िनिमS कारण बताइए।
2.9 बोध 
न के उतर
बोध h 1.
1. बारह
2. साybय Hान
3. आकांcा, योlयता और सि(निध
4. योlयता का
बोध h 2.
5. मेय के अ(तगत
6. अनमु ान माण म
7. चार
8. यc

उतराखड म
ु िविवालय ३४३
भारतीय दश
न MASL-103
9. त(तु
10. कु*हार

2.10 स%दभ# $%थ सच


ू ी:
के शव िमIः तक भाषा, चौख*भा सं7कृ त सं7थान, 1990
डा. च धर िबजLवातः भारतीय (याय शाf, उSर देश िह(दी सं7थान
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चYोपा3याय, देवी साद, भारतीय दशन सरल पCरचय, राजकमल काशन, 1980

2.11 *नब%धामक 
नः
1. माण चत%ु य का संcेप म वणन कAिजए
2. असमवाियकारण Wया है? लcण और उदाहरण के साथ समझाइए।
3. अ(यथा िस@ का सc
ं ेप म वणन कAिजए।

उतराखड म
ु िविवालय ३४४
भारतीय दश
न MASL-103

- 3 * * 4   A B 0 C(


इकाई क @परे खाः
3.1 तावना
3.2 उे

3.3 माण पGरभाषा एवं >याBया
3.4 यख माण
3.4.1 िनिव5कXपक य,
3.4.2 सिवकXपक य,
3.5 षोड़ा सि(नकष5
3.5.1 सयं ोग सि(नकष5
3.5.2 सयं R
ु समवाय सि(नकष5
3.5.3 संयR ु समवेत समवाय सि(नकष5
3.5.4 समवाय सि(नकष5
3.5.5 समवेत समवाय सि(नकष5
3.5.6 िवशेषण िवशे_य भाव सि(नकष5
3.6 अलौिकक य,
3.7 सारांश
3.8 पाGरभािषक श-दावली
3.9 बो ध 01 के उ4र
3 .10 स(दभ5 6(थ सचू ी
3.11 िनब(धामक 0

उतराखड म
ु िविवालय ३४५
भारतीय दश
न MASL-103

3.1तावना
पवू  कA अ3ययन इकाइय1 म आप (याय दशन का सिं cD इितहास, ाचीन (याय एवं नJय (याय कA
तjव मीमांसा पढ़ चक ु े ह5। इसके अितCर नJय (याय के मखु V(थ व अपनी आधार-पाठ्य प7ु तक
तक भाषा के आधार पर आप (याय दशन के दसू रे पदाथ अथात मेय1 के नाम जानने के अितCर
(याय दशन के थम पदाथ अथात माण, व (याय दशन के कारण व उसके 7वKप पर िव7तृत चचा
कर चक ु े ह5। आप नJय (याय के सवािधक मख ु िस@ा(त अथात माण1 के 7वKप तथा कारण के
7वKप पर िवचार मथं न कर चक ु े ह5। आपने अपने इस अ3ययन को तक भाषा म विणत मल
ू पाठ व
उनकA Jया;या के आधार पर संचािलत िकया है, िजससे इन िस@ा(त1 को ामािणक तौर पर
समझने म आपको सहायता हMई होगी। माण1 का संिcD अ3ययन करते समय आपने (याय स*मत
चार माण1 के बारे म जो जानकारी ाD कA थी, उसके अनसु ार (याय दशन म विणत माण1 के
चार भेद इस कार थे- यc, अनमु ान, उपमान और शOद। वतमान इकाई म आप यc माण के
बारे म िव7तृत अ3ययन कर ग।े
पवू  इकाइय1 के अपने अ3ययन के आधार पर आप को 7मरण होगा िक (याय दशन कA दो शाखाएं
ह5, एक को ाचीन (याय कहते ह5 और दसू रे को नJय (याय। ाचीन (याय जहां पदाथ मीमासं ा पर
जोर देता है, वहN नJय (याय का के (Zीकरण माण मीमांसा पर है। गौतम णीत (याय सू ाचीन
(याय का V(थ है, तो गगं श
े उपा3याय कृ त तjव िच(तामिण नJय (याय का आधार ग(थ माना जाता
है। दसू रे शOद1 म हम यह कह सकते ह5 िक पदाथ मीमांसा के णेता महिष गौतम ह5 और माण
मीमांसा के णेता गगं श
े उपा3याय ह5। तक भाषा नJय (याय का V(थ है, और अभी तक के िववेचन1
से आप यह भली-भािं त समझ गए ह1गे िक नJय (याय का V(थ होने के कारण माण िवचार ही
उसका म;ु य उेbय है। अपनी तीसरी अ3ययन इकाई म आपके &ारा पढ़े गए चार माण1 म पहले
माण अथात यc माण का आप वतमान इकाई के अ(तगत िव7तृत अ3ययन कर गे।

3.2उे

इस इकाई के अ(तगत आप (याय दशन म विणत यc माण के िव7तृत अ3ययन के पBात-
1. माण का अथ बता सक गे।
2. माण के पहले भेद यc माण कA तक भाषा आधाCरत पCरभाषा के आधार पर उसकA
7प% Jया;या कर सक गे
3. इि(Zयाथ-सि(नकष Wया होता है, इसकA जानकारी आपको हो सके गी।
4.इि(Zयाथ सि(नकष के िकतने भेद होते ह5 और वे कौन-कौन से ह5, इसका िनधारण भी आप कर गे ।

उतराखड म
ु िविवालय ३४६
भारतीय दश
न MASL-103

3.3 माण प4रभाषा एवं >या.या


नैयाियक सवथम माण िवचार 7ततु करते ह5। नैयाियक1 के अनसु ार यथाथ Hान का बोध कराने
वाला माण कहलाता है। जैसा िक आप अपने पवू  अ3ययन से जान चक ु े ह5 िक (याय दशन अपनी
चचा को बेहद तािक क और वैHािनक ढंग से आगे बढ़ाता है, इसीिलए उसे हेतु िवा या
आ(वीिcकA भी कहा जाता है। अपनी इस िसि@ के अनK ु प (याय दशन ने माण िव|े षण को भी
अय(त वैHािनक ढंग से 7ततु िकया है। उनकA तािक क यिु य1 का िवधान और िस@ा(त पc को
7ततु करने कA िविध अय(त वैHािनक तीत होती है। Hान (याय का सवwFच िवषय है। नैयाियक
िम_या Hान को ही िनःIेयस अथात जीवनमिु के माग का सबसे बड़ा अवरोध मानते ह5। उनके
िवधान के अनसु ार माण के &ारा ही यथाथ Hान कA उपलिOध स*भव है।
&य* &माण
तक भाषा को आधार बनाते हMए अब हम सबसे पहले माण के पहले भेद अथात यc माण के
7वKप कA चचा ार*भ करते ह5। यc माण कA पCरभाषा तक भाषाकार के शव िमI इस कार
करते ह5-
साcाकाCरमाकरणं यcम। साcाकाCरणी च मा सैवोFयते या इि(Zजा। साFच ि&धा
सिवकLपकिनिवकLपकभेदात्। त7याः करणं ििवधम।् कदािचद् इि(Zयं, कदािचत्
इि(Zयाथसि(नकषः, कदािचद् Hानम।्
अथात मा का जो साधन है उसे यc कहते ह5। साcाकाCरणी मा अथवा Hान इि(Zय1 के
स*पक से उप(न होता है, और इि(Zय के स*पक से उप(न यह यc Hान दो कार का होता है-
पहला सिवकLपक दसू रा िनिवकLपक। िजसम िनिवशेष व7तमु ा का Vहण होता है, वह
िनिवकLपक यc कहलाता है, अथात जहां हम व7तु के 7वKप कA तीित मा होती है, उसके
नाम जाित इयािद के िव7तार का हम Hान नहN होता, वह िनिवकLपक यc कहलाती है। इसके
िवपरीत नाम जाित इयािद के िव7तार से य
ु Hान को (याय दशन म सिवकLपक यc कहा गया
है।
सिवक]पक और िनिव
क]पक &य*
दैिनक Jयवहार म आने वाली ायः सभी व7तएु ं सिवकLपक यc के ही उदाहरण ह5। सिवकLपक
और िनिवकLपक Hान के अ(तर को सरल शOद1 म आप के उदाहरण के जCरए आसानी से समझ
सकते ह5। मान लीिजए कहN पर एक घड़ी है, िजसको एक बालक देखता है, और उसके साथ एक
ौढ़ पpु ष भी उस घड़ी का साcात करता है। घड़ी का साcात करते समय घड़ी के 7वKप का जो
Hान होता है वह बालक और ौढ़ पpु ष म एक समान होता है। लेिकन अथ के Vहण काल म दोन1

उतराखड म
ु िविवालय ३४७
भारतीय दश
न MASL-103
का Hान समान होने के बावजदू उन दोन1 के Hान म एक महवपणू  अ(तर होता है, ौढ़ Jयि घड़ी
के नाम जाित आिद से भी पCरिचत होता है, पर(तु बालक नाम-जाित कA इन बात1 से अनिभH होता
है। अतः Jयवहार काल म ौढ़ Jयि का Hान सिवकLपक हो जाता है, जबिक बालक उसके नाम
जाित आिद से अनिभH रहने के कारण वैसा Jयवहार नहN कर सकता है। इस तरह हम देखते ह5 िक
अथ (िवषय) के Vहण काल म ौढ़ पpु ष और बालक दोन1 को िनिवकLपक Hान ही होता है, िक(तु
ौढ़ पpु ष शी}तासे उसके नाम जाित आिद का 7मरण कर लेता है, इसिलए उसका िनिवकLपक
Hान सिवकLपक Hान म पCरवितत हो जाता है।
अभी तक आपने यह पढ़ा िक यc Hान यc माण पर आधाCरत होता ह,◌ै और (याय दशन
म उसके सिवकLपक और िनिवकLपक नामक दो कार के भेद माने गए ह5। आगे तक भाषाकार
यc Hान के साधन1 कA चचा करते हMए तीन कार के साधन1 का उLलेख करते हMए कहते ह5, िक
यc Hान के ‘करण‘ तीन होते ह5- ‘त7याः करणं ििवधम।् कदािचद् इि(Zयं, कदािचत्
इि(Zयाथसि(नकषः, कदािचद् Hानम।् ‘
अथात् पहला इि(Zय, दसू रा इि(Zयाथ सि(नकष और तीसरा िनिवकLपक Hान। जैसा िक आप
अपनी पवू  इकाइय1 म पढ़ चकु े ह5, (याय कA पार*पCरक शOदावली म ‘करण‘ का अथ मख
ु या
असाधारण कारण माना जाता है।
यही तीन ‘करण‘ यc Hान का मा3यम बनते ह5, और तक भाषा म पं के शव िमI ने इन तीन
कारण1 को सरल ढंग से Jया;याियत िकया है। इि(Zय, इि(Zयाथ सि(नकष और तीसरा िनिवकLपक
Hान के उLलेख के बाद उ(ह1ने चौथे◌े म म सिवकLपक Hान और पाच ं वे म म
हानेापादानोपेcा बिु @ इन दोन1 फल1 को भी जोड़ िदया है, और इस कार उ(ह1ने पाचं किड़य1
वाली एक Iंखला 7ततु कA है- ?
इन पांच1 म यिद पहले को हम असाधारण कारण अथवा करण मानते ह5, तो दसू रा अवा(तर Jयापार
यानी ि या और तीसरा उसका फल होगा। ठीक इसी कार यिद दसू रे को हम करण मानते ह5 तो
तीसरा अवा(तर Jयापार और चौथा फल होगा। तीसरे को यिद करण Kप म 7वीकार करते ह5 तो
चौथा अवा(तर Jयापार और पांचवा उसका फल होगा। संcेप म आप इस योजना के एक उदाहरण
से इस कार समझ सकते सकते ह5- मान लीिजए जब इि(Zय करण है तो इि(Zयाथसि(नकष अवा(तर
Jयापार होगा और िनिवकLपक Hान अथात नामाजाित आिद से रिहत जो Hान होगा वह उसका फल
कहलाएगा। जब इि(Zयाथसि(नकष को करण माना जाएगा तो िनिवकLपक Hान अवा(तर Jयापार
और सिवकLपक Hान अथवा नाम जाित आिद सिहत व7तु का Hान फल होगा। इसी तरह जब
तीसरी सं;या अथवा िनिवकLपक Hान करण होगा तो सिवकLपक Hान अवा(तर Jयापार और
हानोपादानोपेcाबिु @ इसकA फल होगी। इस ििवध करण1 कA सरल Jया;या के पBात (याय

उतराखड म
ु िविवालय ३४८
भारतीय दश
न MASL-103
शाfीय भाषा म इसकA Jया;या इस कार कA गई है-
कदा पनु Cरि(Zयं करणम? यदा िनिवकLपक Kपा मा फलम।् तथा िह आमा मनसा संयtु यते, मन
इि(Zयेण, इि(Zयमथuन। इि(Zयाणां व7तु ा~यकाशकाCरव िनयमात।् ततोऽथसि(नकृ %ेनेि(Zयेण
िनिवकLपकं नामजायािदयोजनाहीनं व7तमु ाावगािहिकंिचिददिमित Hानं ज(यते।
इि(Zयाथसि(नकषwऽवा(तरJयापारः िछदाकरण7य परशोCरव दाpसंयोगः। िनिवकLपकं Hानं फलं
परशोCरव िहदा।
तक भाषा के इस मल ू पाठ म ििवध कारण1 म से थम करण ‘इि(Zय‘ कA Jया;या कA गई है और
उसके अवा(तर Jयापार तथा फल को समझाने का यास कितपय उदाहरण1 &ारा िकया गया है, जो
इस कार है- इि(Zय को करण कब माना जाता है? जब िनिवकLपक Kप मा यानी यथाथ Hान
होता है। उदाहरण के िलए आमा के साथ मन का संयोग होता है, िफर मन का इि(Zय के साथ, तब
इि(Zय अथ अथात िवषय के साथ संय ु होती है और िफर इि(Zय1 के व7तु को ाD करके ही अथ
को कािशत करने का िनयम होने से। तब अथ से सयं ु इि(Zय के &ारा नाम जाित आिद से रिहत
व7तु के 7वKप मा का Hान कराने वाला िनिवकLपक Hान उप(न होता है। और ऐसी ि7थित म
नामाजायािद योजना से रिहत िनिवकLपक Hान का करण अथात् असाधारण कारण इि(Zय होती है।
तक भाषा म लकड़ी को फरसे से काटे जाने का उदाहरण देते हMए इस बात को इस कार समझाया
गया है- जैसे छे दन ि या का करण फरसा होता है, और इि(Zय और अथ का सि(नकष अवा(तर
Jयापार होता है। इस तरह फरसा का लकड़ी के साथ सयं ोग अवा(तर Jयापार होता है और
िनिवकLपक Hान अथात फरसे Kप करण का फरसा और लकड़ी के संयोग Kप अवा(तर Jयापार
&ारा फल लकड़ी का कटना होता है।
अभी तक कA Jया;या से और उदाहरण1 से आपने यह समझ िलया होगा िक इि(Zय Kप करण से
िनिवकLपक Hान कA उपिS म इि(Zयाथ सि(नकष अवा(तर Jयापार होता है। अवा(तर Jयापार भी
नैयाियक1 कA पाCरभािषक शOदावली है। तक भाषा म इसकA पCरभाषा इस कार दी गई है-
तtज(यवे सित तtज(यजनकोऽवा(तरJयापरः।
अथात जो 7वयं उस करण से ज(य हो, और उस करण से उप(न होने वाले फल का जनक हो, उसे
‘अवा(तर Jयापार‘ कहते ह5। जैसे कुLहाड़ी से लकड़ी काटने कA ि या म कुLहाड़ी और लकड़ी का
सयं ोग अवा(तर Jयापार है Wय1िक वह कुLहाड़ी ज(य है और साथ छे दन Kप फल का जनक भी है।
अब इि(Zय1 कA करण के Kप म Jया;या करने के बाद दसू रे करण अथात् इि(Zयाथ सि(नकष को
समझने कA कोिशश कर गे। ‘इि(Zयाथ सि(नकष‘ कब करण होता है, यह जानना भी आप के िलए
आवbयक है। इसको समझने के िलए भी सबसे पहले हम मल ू पाठ पर 3यान देना होगा। वह इस

उतराखड म
ु िविवालय ३४९
भारतीय दश
न MASL-103
कार है-
कदा पनु Cर(Zयाथसि(नकषः करणम? यदा िनिवकLपकान(तरं सिवकLपकं नामजायािदयोजनामकं
िडथोऽयं QाRणोऽयं bयामोऽयिमित िवशेषणिवशेEयावगािह Hानमु पते, तदेि(Zयाथसि(नकषः
करणम। िनिवकLपकं Hानमवा(तरJयापारः, सिवकLपकं Hानम् फलम।्
अथात् इि(Zय तथा अथ का सि(नकष कब करण होता है? जब िनिवकLपक Hान के बाद
सिवकLपक Hान अथात नामजायािद सिहत नाम य ु तीित (यह िडथ (ाणी) है) जाित य ु
तीित (यह QाRण है) Kप गणु िविश% तीित अथात (यह bयाम वण का है) उप(न होता है। इस
कार के िवशेषणिवशेEय भाव िवषयक Hान म इि(Zयाथ सि(नकष करण होता है, िनिवकLपक Hान
अवा(तर Jयापार होता है और सिवकLपक Hान फल होता है।
अब तीसरा िनिवकLपक Hान कब करण होता है, इसका उSर तक भाषा म इस कार िदया गया है-
कदा पनु Hानं करणम?् यदा उ सिवकLपकान(तरं हानोपादानोपेcाब@
ु यो जाय(ते तदा िनिवकLपकं
Hानं करणम।् सिवकLपकं Hानमवा(तरJयापारः हानािद ब@
ु यः फलम।्
और िनिवकLपक Hान कब करण होता है? जब सिवकLपक Hान के बाद जानी गई व7तु को यागने
अथवा उसकA उपेcा करने कA (‘हानोपादानोपेcा‘) बिु @ उप(न होती है, तब िनिवकLपक Hान
करण होता है, जबिक सिवकLपक Hान अवा(तर Jयापार होता है और याग, Vहण अथवा उपेcा
करने कA बिु @ अथात् हानोपादानोपेcा बिु @ फल कहलाती है।
षोड़ा सि8नकष

ििवध करण1 के ितपादन 7वKप आपने यह समझ िलया होगा िक िनिवकLपक Hान कA उपिS म
इि(Zयाथ सि(नकष अवा(तर Jयापार है, और िनिवकLपक Hान फल है। सिवकLपकHान कA उपिS
म इि(Zयाथ सि(नकष करण होता है, िनिवकLपक Hान अवा(तर Jयापार और सिवकLपक Hान फल
होता है। हानोपादानोपेcाबिु @ फल के समय िनिवकLपक Hान करण होता है, सिवकLपक Hान
अवा(तर Jयापार और हानोपादानोपेcा बिु @ फल होती है। अथात् िनिवकLपक Hान कA उपिS म
इि(Zयाथ सि(नकष Kप एक अवा(तर Jयापार है। सिवकLपक कA उपिS म इि(Zयाथ सि(नकष और
िनिवकLपक Hान ये दो अवा(तर Jयापार ह5 और हानोपादानोपेcा बिु @ कA उपिS म इि(Zयाथ
सि(नकष, िनिवकLपक Hान और सिवकLपक Hान ये तीन1 अवा(तर Jयापार ह5। इि(Zय और अथ
का जो सि(नकष यc Hान का कारण है, (याय दशन म उसे छह कार का माना गया है, और वह
षोढ़ा सि(नकष के नाम से जाना जाता है-
इि(Zयाथयो7तु यः सि(नकषः साcाकाCरमाहेतुः स षडिवध एव। तथा संयोगः संय
ु समवायः
संय
ु समवेतसमवायः, समवायः समवेतसमवायः िवशेEयिवशेषणभावBेित।
उतराखड म
ु िविवालय ३५०
भारतीय दश
न MASL-103
तक भाषा से उ@तृ इस अंश म षोढा सि(नकष के नाम िगनाए गए ह5 और आप देख सकते ह5 िक
पहला इि(Zयाथ सि(नकष संयोग, दसू रा इि(Zयाथ सि(नकष संय ु समवाय, तीसरा इि(Zयाथ
सि(नकष संय ु समवेतसमवाय, चौथा इि(Zयाथ सि(नकष समवाय, पांचवा इि(Zयाथ सि(नकष
समवेत समवाय और छठा इि(Zयाथ सि(नकष िवशेषण िवशेEयभाव के नाम से िगनाया गया है।
तक भाषा के अनसु ार एक-एक इि(Zयाथ सि(नकष के लcण, उदाहरण इयािद को 7ततु कर हम
इनका स7ु प% Hान ाD कर सक गे।
सयं ोग सि8नकष

थम इि(Zयाथ सि(नकष का नाम संयोग सि(नकष है। संयोग सि(नकष तब होता है जब ने के &ारा
घट का Hान होता है, अै◌ार तब चcु इि(Zय और घट का अथ होता है और इन दोन1 का सि(नकष
संयोग ही होता है। के शव िमI कृ त तक भाषा म संयोग सि(नकष कA Jया;या इस कार कA गई है-
त यदा चcषु ा घटिवषयं Hानं ज(यते तदा चcCु रि(Zयं घटोऽथः। अनयोः सि(नकषः संयोग एव
अयतु िस@यभावात।् मनसाऽ(तCरि(Zयेण यदामिवषयकं Hानं ज(यतेऽहिमित, तदा मन इि(Zयं,
आमाऽथः, अनयोः सि(नकषः सयं ोग एव।
अथात ने के &ारा घडे़ का Hान जब उप(न होता है अथवा मन के &ारा जब आमा का Hान होता
है इन दोन1 ि7थितय1 म इि(Zयाथ सि(नकष संयोग होता है, Wय1िक इि(Zय और अथ म पर7पर
अयतु िस@ स*ब(ध का अभाव है।
आपको 3यान होगा िक अयतु िस@ स*ब(ध हमेशा समवाय स*ब(ध होता है और िवनाशकाल से
पवू  ये एक दसू रे पर आिIत होते ह5। Wय1िक यहां चcु (इि(Zय) और घट (अथ) तथा मन (इि(Zय)
और आमा (अथ) ये दोन1 उदाहरण अयतु िस@ नहN ह5, इसिलए इनका स*ब(ध संयोग स*ब(ध
होगा। इन दोन1 उदाहरण1 म थम उदाहरण बाnेिZय के सि(नकष का और ि&तीय उदाहरण
अ(तरे ि(Zय के सि(नकष का है।
संयुCसमवाय सि8नकष

दसू रा सि(नकष जैसा िक आप तक भाषा के उ@रण से जान चुके ह5 संय


ु समवाय सि(नकष के नाम
से जाना जाता है। इसका भी अžययन आपको तक भाषा के मल ू पाठ के आधार पर करना है।
तक भाषा म सयं
ु समवाय सि(नकष को 7प% करते हMए उसकA पCरभाषा इस कार कA गई है-
यदा चcरु ािदना घटगतKपािदकं गृnते घटे bयामKपम7तीित, तदा चcCु रि(Zयं घटKपमथः अनयोः
स(नकषः संय ु समवाय एव। चcसु ंय ु े घटे Kप7य समवायात।् एवं मनसाऽऽमसमवेते सखु ादौ
Vाnमाणे अयमेव सि(नकषः।
अथात जब चcु आिद से घट म ि7थत Kपािद का Vहण होता है, उदाहरण के िलए घट म bयाम
उतराखड म
ु िविवालय ३५१
भारतीय दश
न MASL-103
Kप है ऐसा Hान होता है, तो यह Hान संय ु समवाय सि(नकष से होता है। इसम चcु इि(Zय है, घड़ा
अथ है और घड़े म bयाम Kप समवाय स*ब(ध से ि7थत है। इसको सरल ढंग से आप इस तरह समझ
सकते ह5 िक इि(Zय (चcु) और घट (अथ) का सि(नकष होने के पBात ही घड़े म ि7थत bयाम Kप
का Hान स*भव होगा। इि(Zय (चc)ु के &ारा अथ का Hान ‘सयं ोग सि(नकष‘ के &ारा होता है, इस
बात का अ3ययन आप ‘संयोग सि(नकष‘ कA Jया;या पढ़ते समय कर चक ु े ह5। लेिकन जब घड़े के
अ(दर ि7थत bयाम Kप का Hान होगा, अथात घड़ा bयाम वण का है इस कार का Hान होगा, तो
यह Hान सयं
ु समवाय सि(नकष के &ारा ही होगा। इस उदाहरण म सयं ोग सि(नकष से घट के Hान
कA उपिS होगी, तदोपरा(त घट म समवाय Kप से ि7थत bयाम Kप का Hान स*भव हो पाएगा।
अ(तCरि(Zय के स*ब(ध म भी आप सयं ु समवाय सि(नकष से मन के &ारा आमा म समवाय
समब(ध से ि7थत सख ु ािद गणु 1 का यc कर सकते ह5। समवाय स*ब(ध आप समवािय कारण कA
चचा करते समय अपनी पवू  इकाई म िव7तार से पढ़ चक
ु े ह5। आप जानते ह5 िक अयतु िस@ स*ब(ध
को समवाय स*ब(ध कहते ह5, अथात् अपने अि7तव काल म िजनको एक-दसू रे से अलग नहN
िकया जा सकता हो वही स*ब(ध समवाय स*ब(ध कहलाते ह5। तक भाषाकार ने संय ु समवाय
सि(नकष का वणन करते समय ‘चत%ु य सि(नकष‘ का भी वणन िकया है। ये चत%ु य सि(नकष Wया
ह5? िजनसे घट से स*बि(धत पCरमाण इयािद बात1 का बोध होता है उ(ह तक भाषाकार ने चत%ु य
सि(नकष बताया है। 3यान देने कA बात यह है िक यह Hान भी संय
ु समवाय सि(नकष से ही होता
है, िक(तु इसम इि(Zयावयव और अथावयवी का सि(नकष (इि(Zय अवयवी के साथ अथ के
अवयव1 का) और इि(Zयावयवी और अथावयवी का सि(नकष आवbयक होता है।
संयुCसमवेतसमवाय सि8नकष

घटगत पCरमाणािदVहे चत%ु स(नकषwऽ~यिधकं कारणिमFयते। सयािप संय ु समवाये तदभावे दरू े
पCरमाणVहणात।् चत%ु यसि(नकषw यथा-इि(Zयावयवैरथावयिवनाम।्
इि(Zयावयिवनामथावयवानाम।् इि(Zयावयवैऽथावयवानाम।् अथावयिवनािमि(Zयावयिवनां सि(नकष
इित।
यदा पनु Bcषु ा घटKपसमवेतं Kपवािद सामा(यं गृnते, तदा चc ु Cु रि(Zयं Kपवािदसामा(यमथः
अनयोः सि(नकषः संय
ु समवेत समवाय एव। चcु संय ु े घटे Kपं समवेतं त Kपव7य समवायात।्
जब चcु से घट म समवेत Kपव (Kप जाित का ) का Hान Vहण िकया जाता है, तो चcु और घट
का सि(नकष सयं
ु समवेत समवाय सि(नकष कहलाता है। ऐसा इसिलए होता है Wय1िक चcु से
संय
ु घट म Kप का Hान समवाय स*ब(ध से होता है, यह बात अभी-अभी आप ऊपर पढ़ चक ु े ह5।
और उस Kप म Kपव जाित का समवाय स*ब(ध है, यह भी आप जान चक ु े ह5। इसिलए Kपव
जाित के साथ चcु पर*परया सयं
ु समवेत समवाय स*ब(ध हMआ। इस तरह आपने देखा िक तीसरा
सि(नकष संय
ु समवेत समवाय सि(नकष है, िजससे घट म ि7थत Kप म Kपव जाित का यc

उतराखड म
ु िविवालय ३५२
भारतीय दश
न MASL-103
Hान हािसल होता है। इस सि(नकष म चcु और घट के बीच संयोग अथवा संय
ु स*ब(ध होता है,
और घट म समवाय स*ब(ध से ि7थत Kप और Kप म समवाय स*ब(ध से ि7थत Kपव जाित का
यc संय
ु समवेतसमवाय स*ब(ध से होता है।
आपने ार*भ म ही यह पढ़ा था िक इि(Zयाथ सि(नकष छः कार के होते ह5, िजनम आपने संयोग
सि(नकष, संय
ु समवाय सि(नकष और संय ु समवेतसमवाय सि(नकष कA जानकारी तक भाषा के
अनसु ार से अभी तक आप िव7तार से ाD कर चक ु े ह5। अब आप चौथा सि(नकष अथात ‘समवाय
सि(नकष‘ Wया होता है, इसका उSर Wया होता है, यह जानने कA कोिशश कर ग।े तक भाषाकार न
कहा है-
समवाय सि8नकष

यदा Iोतेि(Zयेण शOदो गृnते तदा Iोतिमि(Zयं, शOदोऽथः, अनयोः सि(नकषः समवाय एव।
कणशEकुLयविFछ(नं नभः Iोतम◌ ् ्। Iोत7याकाशामकवाFछशOदKप चाकाश गणु वाद्
गणु गिु णनोB समवायात्।
अथात Iोतेि(Zय से जब शOद का Hान Vहण होता है तब Iोत इि(Zय और शOद अथ होता है, और
इन दोन1 का स*ब(ध समवाय स*ब(ध होता है। Wय1िक (याय दशन के मतानसु ार कणशEकुली से
िघरा हMआ आकाश Iोत है अथात Iोतेि(Zय आकाश 7वKप ही है, और वह आकाश से अितCर
नहN है। आप पहले ही पढ़ चक ु े ह5 िक शOद आकाश का ही गणु होता है। दसू री ओर आप यह भी
जानते ह5 िक गणु ी और गणु म◌ं े समवाय स*ब(ध होता ह,◌ै इसिलए आकाश (गणु ी) और शOद
(गणु ) म समवाय स*ब(ध के अितCर और कोई स*ब(ध स*भव नहN है। इसिलए जब Iोतेि(Zय से
शOद का यc होता है तो वह समवाय सि(नकष से होता है।
समवेतसमवाय सि(नकष
पाच
ं वा सि(नकष ‘समवेतसमवाय सि(नकष‘ के नाम से जाना जाता है। आपके मन म यह
7वाभािवक िजHासा हो रही होगी िक यह समवेतसमवाय सि(नकष Wया है? इस िजHासा का
समाधान तक भाषाकार ने इस कार िकया है-
यदा पनु ः शOदसमवेतं शOदवािदकं सामा(यं Iोतेि(Zयेण गृnते तदा Iोतिमि(Zयं, शOदवािद
सामा(यमथः। अनयोः सि(नकषः समवेतसमवाय एव। Iोतसमवेते शOदे शOदव7य समवायात।्
अथात जब शOद म समवाय स*ब(ध से रहने वाले शOदव आिद सामा(य जाित का Hान Iोतेि(Zय
से Vहण होता है, तब Iोत इि(Zय तथा शOदव सामा(य अथ है। शOदव शOद म समवाय स*ब(ध से
होता है, यह आप पहले से ही समझते ह5, Wय1िक आपने यह पढ़ रखा है िक Jयि और जाित म
समवाय स*ब(ध होता है। शOदव जाित है, इसिलए आकाश म समवाय स*ब(ध से रहने वाले शOद
उतराखड म
ु िविवालय ३५३
भारतीय दश
न MASL-103
म समवाय से रहने वाली शOदव जाित का यc ‘समवेतसमवाय सि(नकष‘ से होगा। आकाश
और शOद म भी समवाय सि(नकष होता है Wय1िक गणु ी और गणु म भी समवाय स*ब(ध होता है,
यह आप चौथे सि(नकष अथात् ‘समवाय सि(नकष‘ कA चचा के दौरान जान चक
ु े ह5।
िवशेEय िवशेषणभाव सि(नकष
अब हम छठे सि(नकष अथात ‘िवशेEय िवशेषणभाव‘ को जानग।े ‘िवशेEय िवशेषणभाव सि(नकष‘
कब होता है यह जानने के िलए हम तक भाषा म विणत संग को उ@तृ कर उसकA Jया;या कर ग।े
तक भाषाकार के शव िमI ने ‘िवशेEयिवशेषणभाव‘ को इस तरह समझाने का यास िकया है-
यदा चcषु ा सयं ु े भतू ले घटाभावो गृnते ‘इहभतू ले घटो नाि7त‘ इित तदा िवशेEयिवशेषणभावः
स*ब(धः। तदा चcःु संय ु 7य भतू ल7य घटाभावो िवशेषण,ं भतू लं िवशेEयम।् 3दा च मनःसंय ु
आमािन सख ु ाभावो गृnते ‘अहं सख ु रिहत इित, तदा मनः संय ु ा7यामनः सुखाभावो
िवशेषणम।् यदा Iोतसमवेते गकारे घवाभावो गृnते तदा Iोतसमवेत7य गकार7य घवाभावो
िवशेषणम‘्
िवशेEयिवशेषणभाव कब होता है? जब चcु से संय ु भतू ल म घट के अभाव का Hान होता है।
अथात् भतू ल म घड़ा नहN है यह Hान िवशेEयिवशेषणभाव से होता है। इसम चcु से संयु भतू ल म
घट का अभाव िवशेषण है, जबिक भतू ल िवशेEय है। इसी कार जब मन से संय ु आमा म
सखु ािद का अभाव Vहण िकया जाता है तब आमा म सख ु ाभाव िवशेषण होता है। और जब Iोत म
समवाय स*ब(ध से रहने वाले गकार म घव (ग म घ) आिद जाित का अभाव गृहीत होता है, तब
Iोत समवेत गकार का घवाभाव (अथात ग म घ का अभाव) समवेत समवाय स*ब(ध से िवशेषण
होता है और इनका Vहण िवशेEयिवशेषणभाव स*ब(ध से होता है।
सcं ेप म िवशेEयिवशेषणभाव सि(नकष को आप इस तरह समझ सकते ह5 िक ऊपर विणत पांच
कार के सि(नकष^ म िकसी एक स*ब(ध का, अथात् संयोग स*ब(ध, सयं
ु समवाय स*ब(ध,
संय ु समवेतसमवाय स*ब(ध, समवाय स*ब(ध और समवेत समवाय स*ब(ध से स*ब@ अभाव का
Vहण इि(Zय &ारा ही िकया जाता है।
नैयाियक1 कA भाषा म यc Hान Wया होता है वह िकतने कार का होता है? इि(Zयाथ सि(नकष
Wया है और उसके िकतने भेद होते ह5? अब तक इन बात1 कA चचा वतमान इकाई म हम कर चकु े ह5।
आइए अब इस चचा को और आगे बढ़ाते ह5।
सवथम जब हम यc Hान का अ3ययन कर रहे थे तो आपने जKर देखा होगा िक यc Hान
दो कार के भेद1, अथात िनिवकLपक और सिवकLपक भेद1, से य ु बताया गया है। िनिवकLपक
यc वह होता है जो नाम जायािद योजना से रिहत होता है। िनिवकLपक और सिवकLपक
अव7थाएं घल ु ी-िमली रहती ह5। ये व7ततु ः अिवभाtय ह5 और इनका िवभाग के वल बुि@ कृ त है।

उतराखड म
ु िविवालय ३५४
भारतीय दश
न MASL-103
मान लीिजए िक हम सड़क पर एक मटमैली व7तु िदखाई देती है, पास जाने पर उसका Hान एक
मैली सी र7सी के Kप म होता है। इस Hान म पवू  Hान अथात् पहला Hान जो उप(न हMआ वह
िनिवकLपक यc हMआ और उSर Hान अथात् बाद वाला Hान सिवकLपक यc हMआ। 7प% है
िक यथाथ म इस Hान का बोध व7ततु ः अिवभाtय Kप म होता है।
िनिवकLपक और सिवकLपक यc कA जब हम चचा करते ह5 तो हम यह भी अवbय जान लेना
चािहए िक यc को हम पनु ः दो भाग1 म बांट सकते ह5- लौिकक यc और अलौिकक यc,
इ(ह हम एक और नामकरण अथात साधारण यc और असाधारण यc से भी जानते ह5। इनम
लौिकक यc के भी दो भेद पाए जाते ह5, िज(ह हम बाn और मानस नाम से जानते ह5। बाn
यc म चcु, रसना, }ाण, वक् और Iोत जैसी Hानेि(Zयां बाn पदाथ^ के सि(नकष म आती ह5,
तथा Kप, रस, ग(ध 7पश और शOद का यc करती ह5। 3यान देने योlय बात यह है िक बाn
यc म भी मन एवं इि(Zय का सि(नकष होता है और आमा तथा मन का संयोग भी बना रहता है।
मानस यc म मन या अ(तCरि(Zय का मनोभाव1 से सि(नकष होता है एवं आमा तथा मन का
सयं ोग बने रहने पर Hान, सख
ु , दःु ख, इFछा यनािद का यc होता है।
लौिकक यc के अ(तगत बाn एवं मानस यc के अ(तर को आपने समझ िलया है। अलौिकक
यc तीन कार का होता है- सामा(यलcण, Hानलcण और योगज। तक भाषाकार ने के वल छह
(षोड़ा) लौिकक सि(नकषw का ही ितपादन िकया है। िWल%ता के कारण उ(ह1ने तीन1 अलौिकक
सि(नकष^ का ितपादन नहN िकया है।
बोध &.-1
िन*निलिखत h1 के उSर Cर 7थान1 म िलिखए तथा इकाई के अ(त म िदए गए उSर1 से अपने
उSर1 का िमलान कAिजए-
1. इि(Zयाथ सि(नकष िकतने कार का होता है?
2. जाित के Hान म कौन सा इि(Zयाथ सि(नकष होता है?
3. सिवकLपक यc Wया है?
4. सामा(य धम Wया है?
अलौिकक &य*
यc Hान कA 7प% जानकारी के िलए कA yि% से इन तीन1 अलौिकक यc कA संिcD जानकारी
आपको पाठ्य व7तु को समझने म सहायता कर ग।े ‘सामा(यलcणा यासिS‘, ‘Hानलcणा
यासिS‘ और ‘योगज‘ सि(नकष ये तीन भेद अलौिकक यc के ह5। जब हम एक व7तु का Hान

उतराखड म
ु िविवालय ३५५
भारतीय दश
न MASL-103
ाD कर लेते ह5 तो उस कार कA सम7त व7तओ ु ं को अपने आप समझ लेते ह5। हर एक व7तु के
Hान के िलए अलग यन नहN करना पड़ता है। उनम रहने वाले सामा(य धम का Hान यिद हम हो
जाता है तो उस सामा(य धम के Hान के &ारा ही सम7त सजातीय व7तओ ु ं का सामा(य Hान हो जाता
है। उदाहरण के िलए यिद आप ससोईघर म धआ ु ं और आग को दख ू ते ह5 तो वहां धमू व सामा(य से
सम7त धएु ं का और वि(हव सामा(य से सम7त वि(हय1 का यc हो जाता है। तभी ध‡ू सामा(य
और वि(ह सामा(य कA JयािD का Vहण होता है। एक और उदाहरण देखते ह5। मान लीिजए हम
िविवध गाय1 या मनEु य1 को देखते ह5, िक(तु गोव या मनEु यव को नहN देखते। गोव जाित या
मनEु यव जाित सभी गाय1 या सभी मनEु य1 का सामा(य धम है, और यह लौिकक यc का िवषय
नहN है। इस गोव या मनEु यव जाित का यc ‘सामा(यलcणा यासिS‘ नामक अलौिकक
यc से होता है।
दसू रा अलौिकक यc ‘Hानलcणा यासिS‘ है। जब एक Hानेि(Zय से िकसी व7तु का लौिकक
सि(नकष होता है, और इस तरह वह Hानेि(Zय उस व7तु के 7वाभािवक गणु को Vहण करती है,
लेिकन साथ ही साथ उसी Hानेि(Zय &ारा उसी व7तु के िकसी अ(य गणु को िजसे Vहण करने Vहण
करने कA कLपना कA जाती है, लेिकन उस गणु को Vहण करने म वह Hानेि(Zय सcम नहN है, तो
यही Hान बोध कA कLपना ‘लcणा यासिS‘ कहलाती है। मान लीिजए ‘सरु िभच(दन खडम‘् यह
Hान है। एक िदन बाजार म िकसी Jयि ने च(दन के टुकड़े को सघंू ा और परीcा करने के बाद यह
िनBय िकया िक यह सगु ि(धत टुकड़ा च(दन का टुकड़ा है। दसू रे िदन िकसी Vाहक ने यह च(दन का
टुकड़ा उस Jयि को िदखलाकर उसके िवषय म उसकA स*मित जाननी चाही, िजस पर उस Jयि
ने दरू से ही देखते हMए कहा िक यह टुकड़ा सगु ि(धत च(दन का है। इस घटना म उस Jयि ने च(दन
को आख ं 1 से तो देखा, पर(तु उसकA सगु (ध को अपनी }ाणेि(Zय से Vहण नहN िकया, लेिकन उस
Jयि को िफर भी ‘सरु िभच(दन खडम‘् कA तीित हो जाती है। इस तीित म च(दन और च(दनव
नामक जाित और उसके सौरभ गणु तीन1 को चाcषु यc बताना ‘Hानलcणा यासिS‘ नामक
अलौिकक यc से स*भव होता है। तीसरा अलौिकक यc योगज यc है। भतू , भिवEय आिद
कA व7तओ ु ं के साथ लौिकक इि(Zय और अथ का सि(नकष नहN बन पाता है। अतएव वहां योिगय1
को अपनी योगज साम_य से अलौिकक इि(Zयाथ सि(नकष हो जाता है। इस तरह से
‘सामा(यलcणा यासिS‘ ‘Hानलcण यासिS‘ तथा योगज यc कA तीन1 कोिटयां
अलौिकक यc कA Iेणी म आते ह5। अपने इस अ3ययन कA संिcD पनु रावृिS हम एक बार िफर
से कर ल, तािक नैयाियक1 के यc Hान को हम और 7प% Kप म समझ सक ।

3.7 सारांश
पहले आपने यc के दो भेद जाने- िनिवकLपक यc और सिवकLपक यc। लौिकक और

उतराखड म
ु िविवालय ३५६
भारतीय दश
न MASL-103
अलौिकक कA yि% से यc Hान का एक और िवभाजन िकया गया। िफर लौिकक यc-बाहय
और मानस दो कार का बताया गया। अलौिकक यc कA तीन Iेिणयां बताई गई-ं ‘Hानलcणा
यासिS‘ ‘सामा(यलcणा यासिS‘ और योगज यc।
यc Hान के कार1 के िवभाजन के उपरा(त इस इकाई म आपने यह भी पढ़ा िक लौिकक यc
का Hान इि(Zय और अथ के सि(नकष से उप(न होता है और वह सि(नकष छह कार का होता है।
संयोग सि(नकष जैसे इि(Zय तथा घट का सि(नकष संयोग सि(नकष माना जाता है। चcCु रि(Zय &ारा
घट म ि7थत bयाम Kप का यc Hान संय ु समवाय स*ब(ध से होता है। िफर जब हम घट म
घटव आिद सामा(य जाित का यc करते ह5 तो वह सयं ु समवेतसमवाय स*ब(ध से होता है।
चौथा सि(नकष समवाय सि(नकष है जो Iोतेि(Zय से शOद का Vहण करते समय होता है।
समवेत समवाय नामाक सि(नकष शOद म समवाय स*ब(ध से रहने वाले शOदव जाित Vहण के
समय होता ह5
छठा सि(नकष िवशेषणिवशेEयभाव सि(नकष है। जब हम भतू ल म घटाभाव का Hान होता है तो वह
िवशेषणिवशेषभाव सि(नकष से होता है।

3.8 पारभािषक शदावली


मा- यथाथ Hान
इि(Zयाथ सि(नकष- बाnेि(Zय1 (चc,ु रसना, }ाण, वक् और Iोत) तथा अ(तCरि(Zय मन का अथ
यानी िजस व7तु का Hान ाD करना है उसके साथ स*ब(ध
िनिवकLपक- नाम जाित आिद से रहित िकसी व7तु का प…थम cण म उप(न Hान
सिवकLपक- नाम जाित आिद के साथ उप(न यc Hान
हानोपादानोपेcा बिु @- याग करना है अथवा Vहण करना है इसकA बिु @
अवा(तर Jयापार- िकसी से उप(न तथा अ(य िकसी व7तु को उप(न करने वाला अथात् म3य7थ
कA भिू मका िनभाने वाला
अयतु िस@ स*ब(ध- अि7तवकाल म िजसे एक दसू रे से अलग न िकया जा सके ।
सामा(यलcणा यासिS- सामा(य धम का यc Hान
Hानलcणा यासिS- पवू  म Vहण िकए गए Hान के आधार पर उप(न यc Hान
योगज यc- योिगय1 के &ारा िकया गया यc
लौिकक यc- सामने अथवा यc Kप से उप(न Hान
अलौिकक यc- िजसका यc Hान सीधे-सीधे न हो
उतराखड म
ु िविवालय ३५७
भारतीय दश
न MASL-103
अनJु यवसाय- Hान से उप(न Hान
बोध &.-2
िन*निलिखत h1 के उSर Cर 7थान1 म िलिखए तथा अ(त म िदए गए उSर1 से अपने उSर1 का
िमलान कAिजए-
1. लौिकक यc िकतने कार का होता है?
2. योगज सि(नकष िकस Iेणी म आता है
3. सरु िभच(दनखडम् िकस यc का उदाहरण है?
4. मनEु यव अथवा गोव जाित का यc कै से होता है?
4.7 उतर माला बोध 
न 1
1. छह
2. सयं
ु समवेतसमवाय
3. नामजाित आिद के साथ उप(न Hान
4. जाित
बोध 
न-2
1. दो-बाn और मानस
2. अलौिकक यc
3. Hानलcणा यासिS का उदाहरण
4. सामा(यलcणा यासिS से
3 .10 स%दभ# $%थ सच
ू ी
के शव िमIः तक भाषा, चौख*भा स7ं कृ त स7ं थान, 1990
डा. च धर िबजLवातः भारतीय (याय शाf, उSर देश िह(दी सं7थान
िहCरय(ना, एम.- भारतीय दशन कA Kपरे खा, राजकमल काशन, 1987
गैरोला, वाच7पित- सं7कृ त सािहय का इितहास, चौख*बा िवाभवन, 1992
दासगDु , एस. एन.- भारतीय दशन का इितहास भाग-1, राज7थान िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु ,
1988
शमा, च(Zधर- भारतीय दशन अनश ु ीलन और आलोचन, मोतीलाल बनारसीदास, 1991
राधाकृ Eणन, एस.- भारतीय दशन, भाग-2 राजपाल एड संस
शाfी, 7वामी &ारकादास- (याय दशनम् वा7यायन भाEय सिहत, ब@ ु भारती, 1986
चYोपा3याय, देवी साद, भारतीय दशन सरल पCरचय, राजकमल काशन, 1980
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उतराखड म
ु िविवालय ३५८
भारतीय दश
न MASL-103

3.11 *नब%धामक 

1. सयं
ु समवेत समवाय सि(नकष कA सोदाहरण Jया;या 7तुत कAिजए
2. सिवकLपक यc Wया होता है, इसकA िव7तृत Jया;या कAिजए
3. षोढ़ा सि(नकष का संcेप म वणन कAिजए
4. Hानलcणा यासिS कA Jया;या कAिजए

उतराखड म
ु िविवालय ३५९
भारतीय दश
न MASL-103

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3 ! !  - :6 ' D 0   1 

इकाई क परे खा
4.1 तावना
4.2 उे

4.3 पGरचय
4.4 ल,ण एवं उदाहरण
4.5 अनमु ान के भेद
4.5.1 वाथा5नमु ान
4.5.2 पराथा5नमु ान
4.6 >यािC क पGरभाषा एवं उसके भेद
4.6.1 अ(वय>यितरे क >यािC
4.6.2 के वला(वयी >यािC
4.6.3 के वल >यितरे क >यािC
4.7 सारांश
4.8 पाGरभािषक श-दावली
4.9 बोध 01 के उ4र
4.10 िनब(धामक 0
4.11 स(दभ5 6(थ सचू ी

उतराखड म
ु िविवालय ३६०
भारतीय दश
न MASL-103

4.1 तावना
पवू  कA इकाइय1 म आप (याय दशन का सिं cD इितहास, ाचीन (याय एवं नJय (याय कA
तjवमीमांसा, मेय1 के नाम, माण, कारण के 7वKप इयािद िवषय1 का अ3ययन कर चक ु े ह5।
अपनी चौथी अ3ययन इकाई म आप यc माण कA पCरभाषा, यc के भेद, इि(Zयाथ सि(नकष
कA Jया;या इयािद िवषय1 पर िव7तृत अ3ययन भी कर चक ु े ह5। अब तक के अपने अ3ययन के बाद
आप को यह 7मरण करना मिु bकल नहN होगा िक नैयाियक1 ने अपने माण1 के चार भेद बताए ह5,
यथा यc माण, अनमु ान माण, उपमान माण और शOद माण। अपनी चौथी अ3ययन इकाई
म आप यc माण का िव7तृत अ3ययन पहले ही कर चुके ह5। वतमान अ3ययन इकाई म अब हम
अनमु ान माण के बारे म िव7तृत चचा कर ग।े 3यान देने वाली बात यह है िक अनमु ान माण को
अकसर (याय दशन का ाण बताया जाता है। हम अनमु ान माण कA चचा के िव7तार म आगे बढ़,
इसके पहले हम यह भी 7मरण कर लेना चािहए िक नैयाियक1 के अनमु ान माण कA 7प% समझ
ाD करने के िलए हमारे िलए JयािD के िनयम को समझना अिनवाय है, Wय1िक संcेप म आप यह
भी कह सकते ह5 िक अनुमान माण का ाण JयािD कA अवधारणा है। आपको याद होगा िक JयािD
को िनयत साहचय िनयम भी कहते ह5, और यह कायकारण स*ब(ध पर आिIत है। कारण करण पर
के ि(Zत अपनी अ3ययन इकाई म आप पहले ही पढ चक ु े ह5 िक कारण काय का िनयतपवू वतm होता
है। आप इन बात1 को अपनी 7मृित म ताजा कर ल Wय1िक JयािD के िनयम1 को समझते समय
आपको अपने इस पवू  अ3ययन कA आवbयकता महसूस होगी। आप यह भी 3यान रख िक पवू  कA
भांित इस अ3ययन इकाई म भी हम अपने अ3ययन को के शव िमI कृ त तक भाषा के मल ू पाठ के
आधार पर आगे बढ़ाएगं ।े

4.2 उे

1. इस इकाई के अ(तगत आप अनमु ान माण के बारे म िव7तृत जानकारी ाD कर सक गे।
2. िलंग और परामश जैसे पाCरभािषक शOद1 कA Jया;या से आप पCरिचत हो सक गे।
3. अनमु ान Hान के िलए आवbयक JयािD के िनयम1 को आप जान सक गे
4. अनमु ान माण के पंचवाWय1 से अथात् ितHा, हेत,ु उदाहरण, उपनय और िनगमन से आप
पCरिचत हो सक गे
4.3 परचय
अनमु ान का इितहास ल*बा और परु ाना है। वैिदक सािहय म 7प%तः अनमु ान कA तािक क ि या
का िव|े षण तो नहN उपलOध होता िक(तु य-त अनमु ान के JयावहाCरक उदाहरण1 कA चरु ता
िदखाई देती है। िनिBत तौर पर यc माण से हम यथाथ Hान कA उपलिOध होती है िक(तु अपने

उतराखड म
ु िविवालय ३६१
भारतीय दश
न MASL-103
आिवभाव के समय से ही नैयाियक1 का अनमु ान से गहरा लगाव रहा है। अनु उपसग पवू क  ‘मा‘
धातु म Lयटु ् यय जड़ु ने से अनमु ान शOद कA िनEपिS होती है िजसका सामा(य अथ है पBात Hान।
अथात् यc माण से Hात िच(ह से पीछे से उप(न होने वाले Hान को अनमु ान कहते ह5। आप यह
भी कह सकते ह5 िक दो Hात सय1 से िकसी अHात सय का Hान करना ही अनमु ान है। धएु ं और
अिlन के Hान से पवत म अिlन का Hान अनुमान Hान कहलाएगा इसे आप आगे 7प% Kप से समझ
पाएगं ।े
गौतम ने (याय सू म तीन कार के अनमु ान माण कA चचा कA है-
अथ तपवू क  ं ििवधमनमु ानं पवू व Fछे षवसामा(यतोy%ं च। पवू व त, शेषवत् और सामा(यतोy%
नामक भेद से अनमु ान तीन कार का होता है। लेिकन तक भाषाकार ने अनमु ान के दो ही भेद िकए
ह5। ये भेद म;ु यतः वैशिे षक दशन म ितपािदत िकए गए ह5, िजनका अ3ययन आप वतमान इकाई म
आगे कर ग।े

4.4 लण एवं उदाहरण


आप जानते ही ह5 िक नैयाियक1 के चार माण भेद ह5, और सवथम यc माण कA Jया;या
करने के बाद नैयाियक अनमु ान माण कA Jया;या करते ह5। Jया;या के इस अनु म के बावजदू
नैयाियक1 कA Hानमीमांसा का सवािधक महjवपणू  आधार अनमु ान माण को ही बताया जाता है।
h उठता है िक अनमु ान पद से उनका अिभाय Wया है? नैयाियक1 ने अनमु ान उस ि या को
कहा है िजसम हम एक सचू क िच(ह कA उपि7थित को देखकर (िजसे नैयाियक1 कA पाCरभािषक
शOदावली म िलगं कहा गया है) िकसी अ(य व7तु के अि7तव का बोध करते ह5, और इस Hान बोध
का आधार यह होता है िक देखे गए िलंग तथा बोध कA गई व7तु के बीच सदा उपि7थत रहने वाला
एक स*ब(ध है, िजसे नैयाियक1 ने अपनी शOदावली म JयािD का नाम िदया है। अनुमान कA
पCरभाषा तक भाषा म इस कार दी गई है-
िलगं परामशwऽनमू ानम।् येन िह अनमु ीयते तदनमु ानम।् िलंगपरामशuन चानमु ीयतेऽतो
िलंगपरामशwऽनुमानम।् तFच धमू ािदHानमनिु मितं ित करणतवात।् अl(यािदHानमनिु मितः। तकरणं
धमू ािदHानम।्
अथात् िलंग के परामश को अनमु ान कहते ह5। इस पCरभाषा म (िजसे पार*पCरक शOदावली म लcण
कहा जाता है) ‘िलगं ‘ तथा ‘परामश‘ दो शOद ह5, 7प% है िक िलगं तथा परामश इन दोन1 शOद1 को
ठीक से समझे िबना अनमु ान के लcण को 7प% तौर पर नहN समझा जा सकता है। इसिलए देखते ह5
िक तक भाषा म ‘िलंग‘ का लcण िकस तरह िकया गया है। तक भाषा के अनसु ार - JयािD बलेन
अथगमकं िलंगम

उतराखड म
ु िविवालय ३६२
भारतीय दश
न MASL-103
अथात JयािD बल से जो अथ का बोधक है, उसे िलंग कहते ह5। आपने िलंग के अथ को समझने का
यास िकया, तो बीच म ‘JयािD‘ पद के आ जाने से आपको थोड़ी परे शानी हो रही होगी। आपको
याद होगा िक JयािD का अथ साहचय िनयम से होता है, इसका आिं शक उLलेख हम 7तावना म
पहले ही कर चक ु े ह5। सरल शOद1 म साहचय िनयम को इस तरह से समझ सकते ह5- कारण और
काय का सदा साथ-साथ उपि7थत रहना। उदाहरण7वKप ‘य-य धमू 7त त वि(हः‘। अथात
जहां-जहां धआु ं होता है, वहां-वहां अिlन होती है, इसी साहचय िनयम को JयािD कहते ह5। यह
उदाहरण तो आपने 7वयं अपने JयावहाCरक जीवन म भी अनुभव िकया होगा। आपने पहले यह पढ़ा
भी है िक नैयाियक सय कA कसौटी को Jयवहार मानते थे। धमू को देखकर अिlन का Hान होता है,
अतः धमू अथ का बोध कराने वाला हMआ, और इसिलए वह िलंग कहलाता है।
अनमु ान के लcण म तक भाषाकार ने दसू रा शOद ‘परामश‘ य ु िकया है। आइये, हम अब इसे भी
समझने कA कोिशश करते ह5। परामश के दो अथ हम (याय के V(थ1 म िमलते ह5, पहला अथ इस
कार िकया गया है- िलगं 7य तृतीयं Hानं परामशः। अथात िलगं के तृतीय Hान को परामश कहते ह5।
दसू रा अथ है- JयािD िविश%पcधमता Hानं परामशः अथवा JयािDिविश%पcधमता Hान को
परामश कहते ह5।
िलंग और परामश का अथ 7प% हो जाने के बाद आप अब तक यह समझ चक ु े ह5 िक िलंग परामश
को अनमु ान कहते ह5। और वह िलगं परामश धूमािदHान Kप है, अनिु मित के ित करण होने से। h
है िक अनिु मित Wया है? अनमु ान माण से जो Hान ाD होता है उसे ही हम अनिु मित कहते ह5। इस
उदाहरण म धएु ं को देखकर अिlन आिद का Hानबोध अनिु मित है। अतः धमू आिद Hान अिlन आिद
Hान का करण होने से अनमु ान है।
आप अपनी पवू  इकाई म कारण के 7वKप कA िववेचन के म म करण Wया होता है, इस h कA
िव7तृत जानकारी ाD कर चक
ु े ह5।
िलंग और परामश Wया होता है यह h अभी भी आपके मन म 7वाभािवक तौर पर शायद उठ रहा
होगा, आइए जरा िव7तार से देखते ह5 िक तक भाषाकार ने इसका उSर देते हMए Wया कहा है-
JयािD बलेनाथगमकं िलंगम। यथा धमू ोऽlनेिलंगम तथािह य धमू 7तािlनCरित साहचय िनयमो
JयािDः। त7यां गृहीतायिमव JयाDौ धमू ोऽिlनं गमयित। अतो JयािDबलेनाl(यनमु ापकवाद्
धमू ोऽlनेिल\ग।
त7य तृतीयं Hानं परामशः। तथािह थमं ताब(महमसादौ भयू ो भयू ो धमू ं पbयन् वि(हं पbयित। तेन
भयू ो दशनेन धमू ाl(योः 7वाभािवकं स*ब(धमेवधारयित, य धमू ा7तािlनCरित।

उतराखड म
ु िविवालय ३६३
भारतीय दश
न MASL-103
अभी तक आपने यह पढ़ा िक JयािDिविश% पcधमता Hान ही अनमु ान है। आपने यह भी पढ़ा िक
साहचय िनयम या 7वाभािवक िनयम को ही JयािD कहते ह,ं जैसे जहां-जहां धआ ु ं होता है वहां-वहां
आग होती है, यथा महानस अथवा रसोईघर म। भयू ोदशन अथवा रसोईघर म बार-बार धएु ं के साथ
आग का दशन करने के बाद पवत आिद 7थल1 म धएु ं का यिद हम दशन होता है, तो धएु ं का यही
Hान ि&तीय Hान कहा जाता है। इस ि&तीय Hान से 7वाभािवक तौर पर पवू ग हृ ीत धमू और अिlन कA
JयािD का 7मरण होता है, और तब ‘वि(हJया~य धमू ावांBायं पवतः‘ अथात् यह पवत धमू से य ु
अिlन से JयाD है, इस कार का Hान होता है, और इसे ही नैयाियक1 कA पाCरभािषक शOदावली म
तृतीय Hान कहा जाता है। और यही तृतीय Hान अनिु मित के ित करण होने से अनमु ान कहा जाता
है। इसी तृतीय Hान के बाद ‘त7मात् पवतो वि(हमान‘् इसिलए पवत बि(ह य ु है, यह अनिु मित हो
जाती है।
इस तृतीय Hान का बोध कराने वाले इस उदाहरण कA अथात वि(हJया~यधमू वांBायं पवतः कA
Jयापक Jया;या तक भाषा म कA गई है। आप ार*भ म ही यह बात समझ चुके ह5 िक
‘JयािDिविश%पcधमताHान‘ को अनमु ान कहते ह5। यहां यह समझ लेना उपयोगी होगा िक तृतीय
Hान के दो अशं होते ह5- एक अशं ‘JयािD‘ को सिू चत करता है, और दसू रा अश ं ‘पcधमता‘ को।
‘वि(हJया~य‘ इतने अश ं से JयािD सिू चत होती है, और ‘धमू वांBायं पवतः‘ इस अशं से धमू का
पवत Kपी पc म अि7तव तीत होता है। इसी को पcधमता Hान कहते ह5। इस तरह हम देख चक ुे
ह5 िक ‘वि(हJया~यधमू वाBायं पवतः‘ के इस तृतीय Hान म JयािD और पcधमता Hान दोन1 ही
िवमान ह5, इसिलए इस तृतीय Hान को ‘JयािDिविश%पcधमता Hान‘ भी हम कह सकते ह5।
4.5 अनमु ान के भेद
जैसा िक आप जानते ह5 अनमु ान के दो भेद बताए गए ह5, यथा 7वाथानमु ान और पराथानमु ान।
4.5.1 7वाथानमु ान
तक भाषा म 7वाथानमु ान कA पCरभाषा इस कार कA गई है-
तFचानमु ानं ि&िवधम।् 7वाथ पराथ चेित। 7वाथ 7वपिS हेतःु । तथा िह 7वयमेव महानसादौ
िविश%ेन यcेण धमू ाlनयोJयािD गृहीवा पवत समीपं गत7तTते चाVौ सि(दहानः
पवतवितनीमिविFछ(न मल ू ा`िलहां धमू -लेखा पbयन् धमू दशनाFचोŸु@सं7कारो JयािDं 7मरित।
य धमू 7तािlनCरित। तोऽािप धमू ोऽ7तीित ितपते। त7मादS पवतेऽअिlनर~य7तीित 7वयमेव
ितपते। त7वाथानमु ानम।्
तक भाषाकार कहते ह5 िक हेतु दशन से 7वयं ाD िकया गया Hान अनमु ान Hान कहलाता है। िकसी

उतराखड म
ु िविवालय ३६४
भारतीय दश
न MASL-103
Jयि ने यिद रसोईघर म यc माण से यह Hान ाD िकया है िक जहां-जहां धमू होता है वहा-ं
वहां अिlन होती है। इस Hान के &ारा 7वयं ही धमू और अिlन कA JयािD को Vहण कर पवत के
समीप जाकर पवतगत अिlन के िवषय म स(देह होने पर (पवत म अिlन है या नहN) पवत पर JयाD
अिविFछ(नमल ू ा धमू कA रे खा को देखकर धमू के दशन से उŸु@ स7ं कार से धएु ं और अिlन कA
JयािD का 7मरण करता है। उसके बाद पवत म धआ ु ं है, इसिलए उस पवत पर अिlन भी है, यह जान
लेता है। इस कार 7वयं के यc पर आधाCरत यह अनमु ान Hान 7वाथानमु ान कहलाता है।

4.5.2 पराथा$नुमान
जब िकसी दसू रे Jयि को पाच ं अवयवा◌ ं े से य ु अनमु ान Hान कराया जाता है तो वह
पराथानमु ान कहलाता है। तक भाषा म पराथानमु ान का लcण और उदाहरण इस कार है-
यSु किBत् 7वयं धमू ादिlनमनमु ाय परं बोधिपतंु पंचावयवमनमु ानवाWयं यं
ु े तत् पराथानमु ानम।्
तथा पवतोऽिlनमान्, धमू ववात्, यो यो धमू वान ससोऽिlनमान् यथा महानसः, तथा चायं
त7माSथा इित।
अनेन वाWयेन ितHािदमता ितपािदतात् पच
ं pपोप(ना िलगं ात परोऽ~यऽिlनं ितपते। तेनैतत्
पराथानमु ानम।्
पराथानमु ान से तापय है दसू रे के &ारा अनमु ान का बोध कराना। 7वयं धमू से अिlन का अनमु ान
करके दसू रे को यह Hान कराने के िलए पंचावयवां से य ु अनमु ान Hान कराया जाता है और यही
अनमु ान Hान पराथानमु ान कहलाता है। हम अब कुछ उदाहरण1 से इसे समझने कA कोिशश कर ग।े 1.
यह पवत अिlनमान है (यह थम अवयव ितHा है) 2. धमू य ु होने से (यह हेतु Kप दसू रा अवयव
है) 3. जो-जो धमू य ु होता है, वह-वह वि(हय ु भी होता है, जैसे रसोई घर (यह तीसरा अवयव
उदाहरण हMआ) 4. यह पवत भी उसी कार धमू य ु है (यह उपनय नामक चौथा अवयव हMआ) 5.
इसिलए पवत अिlनय ु है (यह िनगमन Kप पांचवां अवयव हMआ) और पवत अिlनयु है इस
कार का जो Hान होता है वह Hान दसू रा Jयि जब जान लेता है तो वह पराथानमु ान कहलाता है।
7वाथानमु ान तथा पराथानमु ान के Hान के िलए JयािD स*ब(ध अिनवाय है। JयािD और उसके भेद1
का अ3ययन आप इसके पवू  कA इकाई म कर चक ु े ह5। धमू और अिlन कA JयािD म आपने देखा है
िक धमू हेतु है और अिlन सा3य है। अनमु ान Hान के िलए सही हेतु का होना आवbयक होता है
लेिकन कभी-कभी ऐसा भी होता है िक हेतु सदोष होता है। वही हेतु िनदwष माना जाता है जो सा3य
कA िसि@ मे समथ हो यानी िक पcधमता आिद Kप1 से य ु हो। सदोष हेतु हेवाभास कहलाते ह5।
हेवाभास का अ3ययन आप अपनी अगली अ3ययन इकाई म िव7तारपवू क  कर ग।े

उतराखड म
ु िविवालय ३६५
भारतीय दश
न MASL-103
बोध h थम
िन*निलिखत h1 के उSर Cर 7थान1 म िलिखए तथा इकाई के अ(त म िदए गए उSर1 से अपने
उSर1 का िमलान कAिजए-
1. अनमु ान का लcण है-
क. िलंगपरामशwऽनमु ानम्
ख. JयािDबलेनाथगमकं िलंगम
ग. सा3य Jयापकवे सित साधनाJयापकवमपु ािधः
घ. इनम से कोई नहN
2. तक भाषाकार के अनुसार अनुमान के भेद होते ह5-
क. एक
ख. दो
ग. तीन
घ. चार
3. (याय सू के अनसु ार अनमु ान के भेद ह5-
क. दो
ख. तीन
ग. चार
घ. पांच
4. इनम से पc Wया है-
क. पवत
ख. रसोईघर

उतराखड म
ु िविवालय ३६६
भारतीय दश
न MASL-103
ग. तालाब
घ. इनम से कोई नहN
5. आदेर् (धन संयोग Wया है
क. उपािध
ख. JयािD
ग. हेवाभास
घ. इनम से कोई नहN
आइए अब JयािD कA चचा को भी थोड़ा आगे बढ़ाया जाय। तक भाषा म JयािD के अथ को 7प%
करते समय दो बात म;ु य Kप से ितपािदत कA गई ह5। इनम पहली बात यह है िक JयािD का Vहण
‘भयू ः सहचार दशन‘ से होता है, और JयािD एक साहचय या 7वाभािवक स*ब(ध होता है। लेिकन
यहां एक बात 3यान देने योlय है िक हर जगह ‘भयू ः सहचारदशन‘ से 7वाभािवक स*ब(ध का िनBय
नहN िकया जा सकता है, इस बात को इस तरह समझ सकते ह5। आप जहां जहां धआ ु ं देखते ह5 वहां -
वहां अिlन का दशन करते ह5 और बार-बार देखने के बाद आपको इस 7वाभािवक स*ब(ध का Hान
होता है िक जहां-जहां धआ
ु ं होता है वहां-वहां आग होती है। लेिकन इसके ठीक िवपरीत यिद बार-
बार जहां आग होती है वहां-वहां धआु ं होता ह,◌ै इसे भी हम 7वाभािवक स*ब(ध मान लगे तो यह
Hान अवbय ही दोषपणू  हो जाएगा, Wय1िक ‘भयू ः सहचार दशन‘ होने के बावजदू भी यह यह
स*ब(ध 7वाभािवक स*ब(ध या JयािD नहN कहलाएगा। Wय1? Wय1िक आप यह भी देख सकते ह5 िक
यिद लोहे के एक गोले को गम कर िदया जाय तो उसम अिlन तो होती है पर(तु धमू नहN होता।
इसिलए ‘य-य वि(ह7त त धमू ः‘ यह 7वाभािवक स*ब(ध नहN अिपतु औपािधक स*ब(ध
कहलाता है। इसम ‘आZ इ(धन संयोग‘ ‘उपािध‘ है।
हम देखते ह5 िक नैयाियक यहां पर एक नए शOद ‘उपािध का योग करते ह5। 7प% है िक हम भी इस
शOदावली को सc ं ेप म अवbय समझ लेना चािहए। तक भाषा म उपािध का लcण इस कार िकया
गया है-
सा3यJयापकवे सित साधनाJयापकवमपु ािधः।
अथात जो धम सा3य का Jयापक हो, और साधन का अJयापक हो, अथात जो धम सा3य म JयाD
हो और साधन म अJयाD हो, उसे उपािध कहते ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ३६७
भारतीय दश
न MASL-103
औपािधक स*ब(ध को तक भाषा म उदाहरण के जCरए भी इस तरह समझाया गया है-
तिप य-य मैीतनयवं त-त bयामवमपीित भयू ो दशनं समानमवग*यते, तथािप
मैीतनयवbयामवयwन 7वाभािवकः स*ब(धः िक(वौपािधक एव।
शाका(नपCरणाम7योपाधेिवमानवात।् तथा िह bयामवे मैीतनयवं न योजकं िक(तु
शाका(नपCरणित भेद एव योजकः। योजकBोपािधCरयुFयते।
इसका अिभाय यह है िक मैी नामक िकसी fी के पाचं पु ह5, िजनम चार पु 1 को हमने देखा है,
और वे सभी पु bयाम वण के ह5। पाचं वां पु , िजसे हमने नहN देखा है, गौर वण का है। लेिकन िजस
Jयि ने मैी के चार bयाम वण के पु 1 को देखा है, वह भयू ो सहचार दशन के आधार पर
मैीतनयव और bयामतनयव का 7वाभािवक स*ब(ध अथवा JयािD मानते हMए पाच ं वां पु भी
bयाम वण का होगा, ऐसा अनमु ान कर सकता है। इस उदाहरण म मैीतनयव हेतु अथवा साधन है,
और bयामव सा3य है। लेिकन यह हेतु सोपािधक अथात उपािध के लcण से य ु है, Wय1िक पु के
bयाम वण के होने म मैीतनयव कारण नहN है बिLक गभकाल म िकए गए आहार का भाव है।
यिद माता गभ काल म दlु ध इयािद पदाथ^ का अिधक सेवन करती है तो बालक गौर वण का होता
है इसके िवपरीत यिद माता हरी शाक-सOजी इयािद का अिधक सेवन करती है तो बालक bयाम
वण का होता है (यह आधिु नक िवHान के अgयदु य काल से पहले का उदाहरण है, और
िवHानस*मत न होने पर भी वतमान संग म यह उदाहरण सारतः उपय ु है )। अतः यहां कारण
मैीतनयव न होकर ‘शाकपाकज(यव‘ हMआ। इसिलए यह 7वाभािवक स*ब(ध न होकर सोपािधक
स*ब(ध हMआ। और Wय1िक इसम JयािD का लcण नहN घटता, इसिलए यह अनुमान माण नहN
होगा। Wय1? Wयांिक (याय दशन म JयािD िविशि%पcधमताHान को ही अनमु ान कहते ह5।
धमू और अिlन के बीच िकसी तरह का औपािधक स*ब(ध नहN है, इसकA Jया;या तक भाषाकार
के शव िमI ने िव7तार से 7ततु कA है। Wय1िक इसी उदाहरण के आधार पर अभी तक आप अनमु ान
माण को समझते आए ह5, इसिलए इसके थोड़ा िव7तार म जाना उपयोगी होगा-
न च धमू ाlनयोः स*ब(धे किBदपु ािधरिसत। अि7त चेत् योlयोऽयोlयो या। अगोlय7य
शिं कतमु शWयवात् योlय7य चानपु लgयमानवात।् योपािधरि7त तोपलgयते। यथा
अlनेधमू स*ब(धे आZu(धनसयं ोगः। िहसं ाव7य चाधमसाधननेन सह स*ब(धे िनिष@वमपु ािधः।
मैीतनयव7य च bयामवेन सह स*ब(धे शाका(नपCरणितभेदः।
इसका अथ आप इस तरह समझ सकते ह5- धमू और अिlन के बीच कोई औपािधक स*ब(ध नहN
बिLक 7वाभािवक स*ब(ध है, Wय1िक यिद औपािधक स*ब(ध होता तो हम वह यc िदखाई देता,
जैसा जहां-जहां अिlन है, वहां-वहां धमू है कथन म िदखता है। इन 7थल1 म हम िजस बात का
यc दशन होता है, उसे आZ इ(धन संयोग उपािध कहते ह5। आप JयावहाCरक जीवन म भी यह

उतराखड म
ु िविवालय ३६८
भारतीय दश
न MASL-103
अनभु व करते ह5 िक अिlन के साथ धएु ं का अि7तव तब होता है जब गीली लकड़ी और आग का
संयोग होता है, Wय1िक यिद लकड़ी गीली नहN है तो वहां आग होने पर भी धआु ं नहN होगा। इसी
कार मैीतनयव के साथ भी जो ‘शाकपाकजनयव‘ उपािध है वह भी हम िदखाई देती है।
तक भाषाकार इस चचा को 7प% करते हMए कहते ह5-
न चेह धमू 7यािlनसाहचयuकिBदपु ािधरि7त। यभिवEयSSोऽZoयत्, ततो दशनभावा(नि7त। इित
तक सहकारणानपु ल*भसनाधेन। यcेणवै ोपा3यो भावोऽवधायते। तथा च उपा3यभावVहणजिनत
स7ं कार सहकृ तेन साहचयVिहणा यcेणैव धमू ाl(योJयािD रवधायते। तेन धमू ाl(योः 7वाभािवक
एव स*ब(धो न वौपािधकः। 7वाभािवकB स*ब(धो JयािDः।
इसका अथ यह है िक यहां धमू के साथ अिlन के साहचय म कोई उपािध नहN है, Wय1िक यिद
उपािध होती तो वह िदखाई देती। वह यc नहN है, इसिलए वह नहN है, Wय1िक िकसी व7तु कA
अनपु लिOध से ही अभाव का िनBय होता है। इसिलए 7वाभािवक स*ब(ध अथवा JयािD स*ब(ध
को आप इस तरह भी समझ सकते ह5। जहां उपािध के अभाव का यc दशन हो, और उस Hान से
स*प(न (‘सहकृ त‘) तथा बार-बार देखने के Hान से ाD (‘भयू ः सहचार ज(य‘) स7ं कार से धएु ं तथा
अिlन के साहचय का बोध यc माण के &ारा िकया गया हो, और इस तरह धएु ं तथा अिlन कA
JयािD का Vहण िकया गया हो, वही JयािD स*ब(ध होता है।
इसे आगे Jया;याियत करते हMए तक भाषाकार कहते ह5-
तदनेन (यायेन धमू ाl(योJयाD  गृnमाणायां, महानसे य@ूमHानं तथमम।् पवतादौ पcे य@ूमHानं
तदि् &तीयम।् तत् पवू ग हृ ीतां धमू ाl(योJयािDं वतते पनु धमू \ परामृशित। अ7य पवते वि(हना JयाDो
धमू इित। तिददं धमू Hानं तृतीयम।्
एतBावbयमgयपु ेतJयम।् अ(यथा य धमू 7तािlनCरयेव 7यात।् इह तु कथमिlनना भिवतJयम।्
त7मािदहािप धमू ोऽि7त इित Hानं अ(वेिषतJयम।् अयमेव िलंग परामशः। अनिु मितं
ितकरणवाFचानमु ानम।् त7मात,् अ7य पवतेऽिlनCरयनिु मितHानमु पते।

आप इस इकाई के ार*भ म ही पढ़ चक ु े ह5 िक तृतीय Hान को परामश कहते ह5। यह तृतीय Hान Wया
होता है? तक भाषा के इस उ@रण म इसी बात कA Jया;या हम उपलOध होती है। उपािध के अभाव
के यc दशन से और धमू और अिlन कA JयािD Vहण करने म, भयू ःसच ं ार दशन से धमू और
अिlन कA JयािD का Hान महानस अथवा रसोईघर म होता है, उनम इस 7वाभािवक स*ब(ध का Hान
थम Hान हMआ। पवत इयािद जगह1 म (‘पc‘ म) जो धमू का Hान है, वह ि&तीय Hान हMआ।

उतराखड म
ु िविवालय ३६९
भारतीय दश
न MASL-103
पवू ग हृ ीत धूम और अिlन के JयािD का 7मरण करके ‘वि(हJया~यधमू वांBायं‘ पवत‘ अथात पवत म
वि(हJया~य धमू के Hान का बोध करना परामश अथवा तृतीय Hान कहलाता है।
तृतीय Hान को अवbय मानना पड़ेगा, Wय1िक तृतीय Hान ही अनमु ान Hान होता है। अगर हम ऐसा
नहN कर गे तो ‘जहां धमू होगा वहां अिlन होगी‘ इस कार के सामा(य Hान का हम बोध कर लग।े
पc अथात पवत म अिlन Wय1 होनी चािहए इसके िलए इस JयािD का Hान पयाD होता है िक
‘जहां-जहां धमू होता है वहां -वहां अिlन होती है‘, इसी को िलंग परामश कहते ह5। और अनिु मित के
ित करण होने से यही अनमु ान कहलाता है, Wय1िक इस िलंग परामश Kप तृतीय Hान से ही पवत म
अिlन है इस कार का Hान उप(न होता है।
तक भाषा म h उठाकर तथा उसका िनराकरण करके इस अनमु ान Hान के िस@ा(त का 7प%ीकरण
इस तरह िकया गया है-
ननु कथं थमं महानसे य@ूमHानं त(नािlनमनुमानयित सयम।् JयाDेगहृ ीतवात।् गृहीतायामेव
JयाDावनिु मयदु यात।् अथ JयािDिनBयोSरकालं महानस एवािlनरनुमीयताम् मैवम।् अlनेZ% वेन
स(देह7यानदु यात।् सि(दlधBाथाऽनमु ीयते। यथो ं भाEयकृ ता। नानपु लOधे न िनणmतेऽथu (यायः वतते
िक(तु सि(दlध
अथ पवतगतमा7य पसु ो य@मू Hानं, तकथं नािlनमनमु ापयित। अि7त चाािlनस(देहः।
साधकवाधक माणाभावेन संशय7य (यायाDवात।् सयम।् अगृहीतJयाDेCरव गृहीतिव7मृतJयाDेरिप
पसंु ोऽनमु ानानदु येन JयािD 7मृतेर~यनिु मितहेतु वात।् धमू दशनाFचोŸ@ स7ं कारो JयािDं 7मरित। यो-यो
धमू वान सो-सो अिlनमान् यथा महानस इित। तेन धमू दशने जाते JयािDसमृतौ भतू ायां य@ूमHानं तत्
तृतीयं ‘धमू वांBायम‘् इित। तेदवािlनमनुमापयित ना(यत् तदेवानमु ानम।् स एव िलंग परामशः। तेन
Jयवि7थतमेत- िलंगपरामशwऽनमु ानिमित।
रसोईघर म जो थम धमू Hान है उसी से अिlन का अनमु ान Wय1 नहN कर िलया जाता है? इसका
उSर नैयाियक इस कार देते ह5- h तो ठीक है िक(तु थम धमू Hान से अिlन का अनुमान नहN
िकया जा सकता Wय1िक JयािD Vहण के पBात ही हम◌ ं े अनमु ान Hान होता है। आप इस बात को
पहले भी पढ़ चकु े ह5 िक JयािDिविश%पcधमता Hान ही अनुमान कहलाता है।
लेिकन इस समाधान के बाद भी दसू रा h यह उठाया गया है िक JयािD Vहण के पBात रसोईघर म
ही अिlन का अनमु ान होना चािहए।
नैयाियकां का उSर है िक यह भी कहना उिचत नहN है। Wय1िक महानस म अिlन का चंिू क यc
Hान हो रहा है इसिलए वहां स(देह नहN उपि7थत हो सकता, और Wय1िक सि(दlध अथ म ही
अनमु ान कA वृिS होती है, और इसिलए (याय सू के भाEयकार वा7यायन कA उि को उ@तृ

उतराखड म
ु िविवालय ३७०
भारतीय दश
न MASL-103
करते हMए कहा गया है िक न तो अनपु लOध अथात अHात अथ म और न ही िनणmत अथ म ही (याय
वृS होता है।
इस पर h यह उठता है िक JयािD Vहण के बाद पवत पर पहMचं े हMए मनEु य का जो धमू Hान अथात
JयािD7मरण के पवू  का ि&तीय Hान होने पर अिlन का अनमु ान होना चािहए, Wय1िक यहां अिlन का
स(देह तो है। ‘साधक-बाधक माण‘ के अभाव म स(देह होना उिचत ही है।
इसका उSर भी हम तक भाषा म ाD होता है। नैयाियक कहते ह5 पवत म हMए धमू Hान को भी हम
अनमु ान Hान नहN कह सकते, Wय1िक यहां पर JयािD का 7मरण नहN हो रहा है। 7मृित के अभाव म
अनिु मित नहN हो सकती। ि&तीय धमू Hान से उŸु@ स7ं कार से ही इस JयािD का 7मरण होता है िक
‘जो-जो धमू वान होता है वह-वह वि(हमान होता है‘। यह पवत धमू वान है इसिलए यह वि(हमान
होगा। इस तरह से वि(हय ु पवत का ाD िकया जाने वाला तृतीय Hान िलंग परामश है, इसिलए
िलगं परामशwऽनुमानम् यह लcण िस@ होता है।
अभी तक आपने यह पढ़ा िक अनमु ान Wया है। िलगं और परामश िकसे कहते ह5, अनमु ान Hान म
JयािD कA Wया भिू मका है, और JयािD िकसे कहते ह5। आगे हम JयािD के भेद1 को भी तक भाषा को
आधार बनाकर समझने का यास कर ग।े इस JयािD के तीन तरह के भेद बताए गए ह5, िज(ह
अ(वयJयितरे कA, के वला(वयी, तथा के वलJयितरे कA नाम से जाना जाता है। ‘वि(हJया~य
धमू ावांBायंपवतः‘ अ(वयJयितCरे क JयािD के इस उदाहरण को समझाते हMए तक भाषाकार कहते ह5-
अ पवत7यािlनमवं सा3यं, धमू ववं हेतःु । स चा(यवयJयितरे कA, अ(वयेन Jयितरे केण च
JयािDमवात।् तथा िह य-य धमू ववं तािlनमवं यथा महानसे इय(वय JयािDः। महानसे
धमू ाl(योर(वय सPावात।् एवं यािlननाि7त त धमू ोऽिप नाि7त यथा महा”दे इतीयं Jयितरे कJयािDः।
महा”दे धमू ाl(योJयितरे क7य सPावदशनात।्
इस अनुमान म पवत का अिlनमव सा3य है, धमू वव हेतु अथात साधन है और वह हेतु अथात
कारण अ(वयJयितरे कA हेतु है। Wय1िक उसकA अ(वय और Jयितरे क दोन1 कार कA JयािD म
उदाहरण िमल जाते ह5। जैसे जहां-जहां धमू व होता है वहां-वहां अिlनमव होता है, जैसे रसोईघर म।
यह अ(वय JयािD हMई। इसी कार जहां-जहां अिlन का अभाव होता है वहां-वहां धमू का अभाव
होता है, जैसे तालाब म। ऐसा Jयितरे क भाव होने से होता है। महा”द म आप जानते ही ह5 िक जल
होने के कारण अिlन हो ही नहN सकती, और जब अिlन का अभाव होगा तो धएु ं का अभाव भी वहां
िनिBत Kप से होगा। इस तरह यह अनमु ान वाWय महानस म अ(वयJयािD का तथा महा”द म
Jयितरे क JयािD का एक उदाहरण बन जाता है। अतः धमू वव हेतु अ(वयJयितरे कA हेतु हMआ।
आपको यहां 3यान देना होगा िक तक भाषा म नैयाियक1 ने ‘पवतो धमू ववात् धमू वान् सोऽिlनमान

उतराखड म
ु िविवालय ३७१
भारतीय दश
न MASL-103
यथा महानसः‘ इयािद अनुमान वाWय म के वल अ(वय JयािD होने का उदाहरण िदया है, Wय1िक
Jयितरे क यहां सरल है। व7तुतः इस उदाहरण म अ(वय और Jयितरे क दोन1 कार कA JयािD का
उदाहरण आप अभी देख ही चक ु े ह5। नैयाियकां का तक इस कार है-
तदेवं धमू ववे हेताव(वयेनं Jयितरे केण च JयािDरि7त। यSु वाWये के वलंम(वयJयाDेरेव दशनं
तदेकेनऽिप चCरताथवात्। ता~य(वय7याव वात् दशनम।् ऋजमु ागuण िस@यतोऽथ7य व े ण
साधनायोगात।् न तु Jयितरे कJयाDेरभावात।्
उपय ु उदाहरण म अ(वय और Jयितरे क दोन1 कार कA JयािDय1 के होने के बावजदू जो के वल
अ(वय JयािD का ही दशन िकया गया है वह Jयितरे क JयािD कA अपेcा अ(वय JयािD के सरल
होने के कारण। चिंू क एक ही JयािD के दशन से काम चल सकता है इसिलए सरल माग का आIय
िलया गया है, न िक Jयितरे क JयािD के अभाव के कारण ऐसा िकया गया है।
अ(वयJयितरे कA हेतु को और अिधक 7प% करने के िलए तक भाषाकार एक और उदाहरण 7ततु
करते ह5, जो इस कार है-
एवम(येऽ~यिनयवादौ सा3ये कृ तकवादयो हेतवोऽ(वयJयितरे िकणे Z%Jयाः। यथा शOदोऽिनयः
कृ तकवाद् घटवद।् य कृ तकवं तािनयवम।् यािनयवाभाव7त कृ तकवाभावो यथा गगने।
इसका अथ यह है िक अिनयवाद कA िसि@ कृ तकवाद अ(य हेतु भी अ(वयJयितरे कA हेतु के
उदाहरण जाने जाने चािहए। जैसे कृ तक (उप(न) होने से शOद घट के समान अिनय है। जहा-ं जहां
कृ तकव रहता है वहां-वहां अिनयव रहता है जैसे घट, यह अ(वय JयािD हMई, Wय1िक आप जानते
ह5 िक घड़ा िमYी से उप(न होने के कारण इसम अिनयव धम कA िसि@ होती है। Jयितरे क JयािD
का उदाहरण भी इसम िनिहत है, Wय1िक जहां-जहां अिनयव का अभाव होता है वहां-वहां ज(यव
का भी अभाव होता है, जैसे गगन अथवा आकाश। Jयितरे क JयािD बनाते समय सा3य और हेतु के
साथ अभाव पद जड़ु जाता है। तथा Jया~यJयापकभाव बदल कर उलटा हो जाता है।
अ(वयJयितरे क JयािD को उदाहरण के साथ समझाने के बाद तक भाषाकार के वल Jयितरे क JयािD
का उदाहरण 7ततु करते ह5-
किBदहेतःु के वल Jयितरे कA। तथा, सामकवे साधो ाणािदमवं हेतःु । यथा जीवFछरीरं सामकं
ाणािदमवात्। यत! सामकं न भवित तत् ाणािदम(न भवित। यथा घटः। न चेदं जीवFछरीरं तथा
त7मा(न तथेित। अ िह जीवFछरीरं सामकवे ाणािदमवं हेतःु । स च के वलJयितरे कA,
अ(वयJयाDेरभावात तथा िह यत् ाणािदमत् तत सामकं यथा अमक ु इित y%ा(तो नाि7त।
जीवFछरीरं सव पc एव।

उतराखड म
ु िविवालय ३७२
भारतीय दश
न MASL-103
अथात कोई हेतु के वल Jयितरे कA होता ह5 जैसे सामकव के सा3य होने म ाणािदमव हेतु है।
सामक से अिभाय है आमाय ु होना। जैसे जीिवत शरीर सामक है ाणािदय ु होने से इस
अनमु ान म अ(वयJयािD का उदाहरण न होने से के वलJयितरे कA हेतु है। जो सामक नहN होता वह
ाणािदय ु नहN होता, जैसे घट । जीिवत शरीर ाणािदमव है, इसिलए यह सामक है। इस
उदाहरण म जो ाणािदमत् है वह सामक है, इस कार कA अ(वयJयािD का कोई उदाहरण नहN
िमलता ।
तक भाषा म Jयितरे क JयािD को समझाने के िलए लcण का भी उदाहरण 7ततु िकया गया है-
लcणमिप के वलJयितरे कA हेतःु । यथा पृिथवीलcणं ग(धवjवम।् िववादपदं पृिथवीित JयवहतJयं
ग(धवjवात।् य(न पृिथवीित त(न ग(धवत् यथापः।
इस उदाहरण को आप इस तरह समझ सकते ह5- लcण भी के वलJयितरे कA हेतु होते ह5। जैसे पृिथवी
के लcण ग(धवव को हेतु बनाकर िकसी िववादा7पद व7तु को पृिथवी कहकर Jयवहार िकया
जाय, उसम ग(धव होने के कारण। जहां पृिथवी का यह Jयवहार नहN होता वहां ग(धव नहN होता
जैसे जल। यह Jयितरे क JयािD का उदाहरण हMआ। लेिकन जहा-ं जहां ग(धव है वहां-वहां पृिथवी है,
ऐसे Jयवहार का अ(वय JयािD म कोई उदाहरण नहN िमलता, इसिलए यह के वलJयितरे क JयािD का
उदाहरण हMआ। इस तरह आप देखते ह5 िक तक भाषाकार Jयितरे क JयािD को अनेक उदाहरण1 से
7प% करते ह5, आप यहां उनका अ3ययन भी कर चक ु े ह5। इन बात1 को 7प% करने के बाद
तक भाषाकार के वला(वयी हेतु को उदाहरण के साथ समझाने का यास इस तरह करते ह5-
किBद(यो हेतःु के वला(वयी। यथा शOदोऽिभधेयः मेयवात।् यमेयं तदिभधेयं यथा घटः। तथा
चायं त7माSथेित। अ शOद7यािमधेयतवं सा3यं मेयवं हेतःु । स च के वला(व“येव। यदिभधेयं न
भवित तमेयमिप यथामक ु इित Jयितरे क y%ा(ताभावात।् सव िह ामािणक एवाथw y%ा(तः। स च
मेयBािभधेयBेित।
के वला(वयी JयािD को आप उपCरिलिखत y%ा(त से समझ सकते ह5। शOद जानने योlय (अिभधेय)
है, Wय1िक वह मेय (Hान का िवषय ) है। जो मेय होता है वह अिभधेय होता है, जैसे घट। यह
शOद उसी कार का मेय है, अतएव वैसा ही अिभधेयव इसम भी उपि7थत है।
यहां शOद का अिभधेयव सा3य है, मेयव हेतु अथात साधन है और वह के वला(वयी है। जो
अिभधेय नहN होता है वह मेय भी नहN होता, इस कार Jयितरे क JयािD का उदाहरण नहN बन
सकता। Wय1िक यc आिद माण1 से Hान होने वाला ामािणक अथ ही हो सकता है। इस तरह से
अ(वयJयितरे कA, के वला(वयी और के वलJयितरे कA इन तीन कार कA JयािD को y%ा(त के साथ
आपने िव7तार से समझा। परू ी इकाई के सार-संcेप का दोबारा 7मरण करते हएु हम उसे एक बार
िफर से समझने का यास कर ग।े

उतराखड म
ु िविवालय ३७३
भारतीय दश
न MASL-103
बोध &.

1. (याय दशन अनमु ान माण के िलए िकसे अिनवाय मानता है-


क. JयािD स*ब(ध
ख. औपािधक स*ब(ध
ग. हेवाभास
घ. इनम से कोई नहN
2. इनम से सपc Wया है
क. महा”द
ख. रसोईघर अथवा महानस
ग. पवत
घ. इनम से कोई नहN
3. परामश िकसे कहते ह5-
क. थम Hान
ख. ि&तीय Hान
ग. तृतीय Hान
घ. चतथु  Hान
4. जहां जहां अिlन का अभाव है वहां-वहां धएु ं का अभाव है यह JयािD का उदाहरण है-
क. अ(वय JयािD
ख. Jयितरे क JयािD
ग. अ(वय Jयितरे क JयािD
घ. इनम से कोई भी नहN

उतराखड म
ु िविवालय ३७४
भारतीय दश
न MASL-103
5. जहां-जहां धमू का अभाव है वहां-वहां अिlन का अभाव है, इसम उपािध Wया है
क. साहचय स*ब(ध
ख. समवाय स*ब(ध
ग. आदेर् (धन संयोग स*ब(ध
घ. इनम से कोई नहN
बोध h1 के उSर
1. क, 2. ख, 3. ख, 4. क, 5. क
2. क, 2. ख, 3. ग, 4. ख, 5. ग

4.7 शदावल
िलगं - हेतु अथवा कारण
परामश - सा3य का तृतीय Hान
JयािD - हेतु ओर सा3य के बीच 7वाभािवक स*ब(ध
JयािDिविश% पcधमताHान- पc म JयािD य
ु सा3य का Hान
पc - जहां सा3य िस@ करना हो जैसे यिद पवत म वि(हJया~य धमू Hान का Hान होता है तो यहां
पवत पc है।
सपc- जहां सा3य का पहले दशन कर िलया गया हो जैसे रसोईघर
उपािध- योजक अथवा िनिमS

4.8 सारांश
अनमु ान नैयाियक1 का सबसे महjवपणू  माण है। उनके माण भेद म यc माण के बाद दसू रे
म म अनमु ान माण कA Jया;या कA गई है। ‘JयाDिविश%पcधमता‘ Hान को ही अनुमान कहते
ह5। (याय कA भाषा म ‘िलंगपरामशwऽनमु ानम‘् यह अनमु ान का लcण िकया गया है। नैयाियक1 को
अनमु ान िय होने के कारण आप देखग े िक कहN-कहN (याय का अथ ही अनमु ान िकया गया है।
(याय दशन म अनमु ान के िलए हेतु और सा3य म 7वाभािवक स*ब(ध अथवा JयािD को अिनवाय
माना गया है। JयािD कA Jयापक Jया;या आपने पढ़ी है। JयािD के तीन1 भेद1 अ(वयJयितरे कA,

उतराखड म
ु िविवालय ३७५
भारतीय दश
न MASL-103
के वला(वयी और के वलJयितरे कA का अ3ययन भी आपने इस इकाई म तक भाषा के मल
ू पाठ को
आधार बनाते हMए िकया है।

4.9 स%दभ# $%थ सच


ू ी
महिष गौतम- (याय दशन, बौ@ भारती, वाराणसी
के शव िमI- तक भाषा, चौख*भा स7ं कृ त स7ं थान, 1990
डा. च धर िबजLवातः भारतीय (याय शाf, उSर देश िह(दी स7ं थान
िहCरय(ना, एम.- भारतीय दशन कA Kपरे खा, राजकमल काशन, 1987
गैरोला, वाच7पित- सं7कृ त सािहय का इितहास, चौख*बा िवाभवन, 1992
दासगDु , एस. एन.- भारतीय दशन का इितहास भाग-1, राज7थान िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु ,
1988
शमा, च(Zधर- भारतीय दशन अनश
ु ीलन और आलोचन, मोतीलाल बनारसीदास, 1991
राधाकृ Eणन, एस.- भारतीय दशन, भाग-2 राजपाल एड संस
शाfी, 7वामी &ारकादास- (याय दशनम् वा7यायन भाEय सिहत, ब@
ु भारती, 1986
चYोपा3याय, देवी साद, भारतीय दशन सरल पCरचय, राजकमल काशन, 1980
िसंह, उदय नारायण- (यायदशनम,् चौख*भा सं7कृ त ितvान, 2004
अ(नंभY- तक संVहः, मोतीलाल बनारसीदास, 2007

4.10 *नब%धामक 

1. लcण और उदाहरण सिहत अनमु ान माण कA Jया;या कAिजए
2. JयािD िकसे कहते ह5। सभेद इनका िव7तार से उLलेख कAिजए
3. उपािध Wया है? सोदाहरण समझाइये

उतराखड म
ु िविवालय ३७६
भारतीय दश
न MASL-103

 5 > ( - *
, ' 0 &'4, % 0<" ,
'/ 0<%(% , ह
 > - :6 ' D  0   1 
5.1 तावना
5.2 उे

5.3 मेय पदाथ5 का वण5न
5.3.1 मेय के भेद
5.3.2 आमा
5.3.3 शरीर
5.3.4 इि(=य
5.3.5 अथ5
5.3.6 बिु E
5.3.7 मन
5.3.8 वृि4
5.3.9 दोष
5.3.10 ेयभाव
5.3.11 फल
5.3.12 दःु ख
5.3.13 अपवग5
5.4 वाथा5नमु ान
5.5 पराथा5नमु ान
5.5.1 ित ा
5.5.2 हेतु
5.5.3 उदाहरण
5.5.4 उपनय
5.5.5 िनगमन
5.6 हेवाभास
5.6.1 अिसE हेवाभास
5.6.2 िवaE हेवाभास
उतराखड म
ु िविवालय ३७७
भारतीय दश
न MASL-103
5.6.3 अनैकाि(तक हेवाभास
5.6.4 करणसम हेवाभास
5.6.5 कालाययापिद अथवा बािधत हेवाभास
5.7 सारांश
5.8 पाGरभािषक श-दावली
5.9 बोध 0
5.10 बोध 01 के उ4र
5.11 िनब(धामक 0
5.12 स(दभ5 6(थ सचू ी

उतराखड म
ु िविवालय ३७८
भारतीय दश
न MASL-103
5.1 &तावना
अब तक अपनी सम7त पवू  अ3ययन इकाइय1 म आप (याय दशन के संिcD इितहास से लेकर (याय
स*मत अनेक दाशिनक िस@ा(त1 का सिव7तार अ3ययन कर चक ु े ह5। के शव िमI कृ त तक भाषा
अिधकांश िविवालय1 कA 7नतातकोSर कcाओ ं म भारतीय दशन के पाठ्य म म मल ू V(थ के
Kप म पढ़ाई जाती है। आप जानते ह5 िक तक भाषा नJय (याय का एक मख ु V(थ है, और इसी के
आधार पर पवू  कA अ3ययन इकाइय1 म (याय दशन के माण, कारण, यc माण, इि(Zयाथ
सि(नकष, अनमु ान माण आिद िवषय1 का िव7तृत अ3ययन आपने अब तक िकया है। वतमान
अ3ययन इकाई (याय दशन के आपके h प कA अि(तम अ3ययन इकाई है, और मेय पदाथ^
अथात् आमा, शरीर, इि(Zय, अथ, बिु @, मन आिद उन बारह मेय1 का, िजनके नाम का उLलेख
आप तीसरी अ3ययन इकाई म पढ़ चक ु े ह5, यहां पर िफर से आप उनका िव7तारपवू क  अ3ययन
कर ग।े अनमु ान माण भी आप पढ़ चक ु े ह5, और आप जान चक ु े ह5 िक तक भाषा म उसके दो भेद
िगनाए गए ह5- 7वाथानमु ान और पराथानमु ान। इन भेद1 कA चचा भी िव7तारपवू क  वतमान इकाई म
कA जाएगी। हेतु अथवा कारण कA िवशद् Jया;या अ(य इकाइय1 म आप पढ़ चक ु े ह5। आप शायद
इस उLलेख से भी पCरिचत ह1गे िक जो हेतु न होते हMए भी हेतु कA तरह तीत होते ह5, उ(ह
हेवाभास कहते ह5। तक भाषा म हेवाभास के पांच भेद िगनाए गए ह5, िजनका अ3ययन भी हम इस
इकाई म कर गे।

5.2 उ(ेय
1. इस इकाई के अ(तगत आप मेय (Hान का िवषय) िकतने ह5, इसकA जानकारी ाD कर
सक गे
2. आमा, शरीर, इि(Zय, अथ, बिु @, मन, दोष, वृिS, ेयभाव, फल, दःु ख, अपवग
इयािद इन बारह मेयां के बारे म जान सक गे।
3. अनमु ान के भेद1 तथा पराथानमु ान के पंचवाWय1 से पCरिचत होकर अनमु ान माण कA 7प%
जानकारी कर पाएगं े
4. हेवाभास और हेतु के अ(तर को समझ पाएगं े तथा हेवाभास के भेद1 का भली-भांित
िनKपण कर सक गे।
5.2 तक भाषा के आधार पर मेय का वणन
आप जानते ह5 िक (याय दशन म सोलह पदाथ^ कA िववेचना कA गई है। वहां सवथम माण
मीमासं ा उपलOध होती है, और माण1 कA िववेचना के उपरा(त वहां मेय1 का वणन िमलता है।
मेय Hान के िवषय कहे जाते ह5, िजनकA स;ं या बारह है-

उतराखड म
ु िविवालय ३७९
भारतीय दश
न MASL-103
‘आमशरीरे ि(Zयाथबिु @मनः वृिS दोषयभावफलदःु खापवग7तु मेयम‘्
आमा, शरीर, इि(Zय, अथ, बिु @, मन, वृिS, दोष, ेयभाव, फल, दःु ख और अपवग नामक
बारह मेय तक भाषा म बताए गए ह5। इन बारह मेय1 के िवषय म येक कA अलग-अलग
पCरभाषाएं भी हम तक भाषा म ाD होती ह5। अब हम इनके िव7तृत अ3ययन कA ओर अVसर ह1गे-
आमा
तक भाषाकार के शव िमI ने सवथम आमा के िवषय म बताया है िक आमव सामा(य जाित
िजसम िवमान हो, वह आमा कहलाती है-
तामवसामा(यवानामा। स च देहिे (ZयािदJयितCर ः, ित शरीरं िभ(नो िनयो िवभB ु ।सच
मानसयcः। िवितपSौ तु ब@ ु यािदगणु ािलंगकः। तथा िह ब@
ु यादय7तावद् गणु ाः अिनयवे
सयेकेि(Zय मा Vाnवात।् गणु B गु यािIत एव।
के शव िमI के अनसु ार आमव जाित िजसम रहती है उसे आमा कहा जाता है। यह पहला मेय
है। यह आमा देह, इि(Zयािद से िभ(न है। येक शरीर म िभ(न होने के साथ ही यह िवभु तथा िनय
है, और यह मानस यc का िवषय है, अथात येक Jयि को ‘म5 ह‹‘◌ं इस बात कA तीित
होती है। यह ‘म5‘ शरीर इि(Zय आिद से िभ(न िवभु और िनय होता है। दसू रे Jयि म आमा के
अि7तव का बोध कराने म बिु @ इयािद गणु सहायक होते ह5। बिु @ आिद गणु Kप िलंग से अनमु ान
Hान &ारा आमा कA िसि@ होती है। h है िक ऐसा कै से होता है? सबसे पहले बिु @ आिद अिनय
होते हMए के वल एक इि(Zय से Vाn होने के कारण गणु ह5, और Wय1िक गणु गणु ी के आिIत रहता है,
अतः यहां पर वह आIय आमा होती है।
आमा के 7वKप को 7प% करते हMए तक भाषाकार इसको Jया;याियत करते हMए कहते ह5-
त ब@ ु ादयो न गणु ा भतू ानां मानसयcवात।् ये िह भतू ानां गणु ा7ते न मनसा गृnय(ते यथा
Kपादयः। नािप िदक् कालमनसां गणु ा, िवशेषगणु वात।् ये िह िदWकालािदगणु ाः सं;यादयो न ते
िवशेषगणु ा7ते िह सवZJयसाधारणगणु ा एव। बु@यादया7तु िवशेषगणु ा, गणु वे
सयेकेि(ZयमाVाnवाद, Kपवत् अतो न िदगािदगणु ाः। त7मादेgयोऽ%gयो JयितCर ो बु@यादीनां
गणु ानामIयो व Jयः। स एवामा।
आप जानते ह5 िक नैयाियक1 के अनसु ार ZJय1 कA स;ं या नौ है, िजनके नाम इस कार ह5- पृिथवी,
जल, तेज, वाय,ु आकाश, िदक्, काल, मन और आमा। बुि@ आिद गणु मानस यc का िवषय
होते ह5, इसिलए वे पृिथवी इयािद भतू 1 के गणु नहN हो सकते। Wय1िक जो भतू 1 के गणु होते ह5,
उदाहरण के िलए ग(ध, Kप, रस, 7पश और शOद ह5, इन पंच भतू 1 के गणु 1 का मानस यc नहN

उतराखड म
ु िविवालय ३८०
भारतीय दश
न MASL-103
होता है। दसू री ओर िदक्, काल और मन के गणु भी नहN हो सकते, Wय1िक इन ZJय1 म सामा(य गणु
रहता है, िवशेष गणु नहN रहता। बिु @ आिद Wय1िक िवशेष गणु 1 कA Iेणी म आते ह5, इसिलए इन
आठ ZJय1 यथा पृिथवी, जल, तेज, वायु, िदक्, काल और मनस के अितCर िकसी नवम् ZJय को
गणु 1 का आIय होना चािहए, और यही नवां ZJय आमा है।
अनमु ान के &ारा आमा कA सSा िस@ करने के उपरा(त अनमु ान के िलए अिनवाय JयािD स*ब(ध
को भी तक भाषा म दशाया गया है-
योगB ब@ ु यादयः पृिथJया%ZJयJयितCर ZJयािIताः। पृिथJया%ZJयानािIतवे सित
गणु वात।् य7तु पृथJया%ZJयJयितCर ZJयािIतो न भवित, नासो पृिथJया%ZJयJयितCर
ZJयािIतवे सित गणु ाऽिप भवित यथाKपािदCरित के वलJयितरे कA अ(वयJयितरे कA वा। तथािह
ब@ ु यादयः पृिथJया%ZJयJयितCर ZJयािIताः पृिथJया%ZJयानािIतवे सित गणु वात।् यो
यदनािIतो गणु ः स तदितCर ािIतो भवित। यथा पृिथJयानािIतः शOदः
पृिथJयाितCर ाकाशाIय इित। तथा च ब@ु यादयः पृिथJया%ZJयाितCर ाIयाः।
ऊपर के उ@रण म अ(वय व Jयितरे कA दोन1 तरह कA JयािDय1 का वणन है। अनमु ान से आमा कA
िसि@ करने म ये दोन1 साधन (हेत)ु हम िमल जाते ह5। अ(वयJयितरे कA हेतु को आप पवू  अ3ययन
इकाई म िव7तार से पढ़ चक ु े ह5। आमा के अथ म इस हेतु का उदाहरण इस कार है- बिु @ आिद
गणु पृिथवी आिद आठ ZJय1 से िभ(न ZJय म आिIत ह5। पृिथवी आिद आठ ZJय1 म अनािIत
होकर गणु होने से। जो पृिथवी आिद से िभ(न आठ ZJय1 मं◌े आिIत नहN होता वह पृिथवी आिद
आठ ZJय1 से अलग ZJय म अनािIत गणु भी नहN होता, अिपतु पृिथवी आिद आठ ZJय1 म
आिIत गणु ही होता है, जैसे Kप इयािद। यह Jयितरे क JयािD का उदाहरण है।
अ(वयJयितरे कA JयािD का उदाहरण भी तक भाषाकार ने ऊपर िदया है, जैसे बिु @ पृिथवी आिद
आठ ZJय1 से अितCर ZJय1 म आिIत है, पृिथवी आिद आठ ZJय1 म अनािIत होकर गणु होने
से। Wय1िक जो िजस ZJय म अनािIत गणु होता है वह उससे िभ(न ZJय म आिIत गणु होता है।
उदाहरण के िलए शOद पृिथवी इयािद आठ ZJय1 से अितCर आकाश म आिIत ह5।
इसिलए बिु @ आिद गणु पृिथवी आिद आठ ZJय1 से अितCर ZJय मं आिIत गणु ह5-
तदेवं पृिथJया%ZJयJयितCर ो नवमं ZJयामां िस@ः। स च सव कायwपल*भाद िवभःु परममहत्
पCरमाणवािनयथः। िवभु वाFच िनयोऽसौ Jयोमवत।् सख
ु ादीनां वैिच˜यात् ितशरीरं िभ(नः।
अ(वयJयितरे कA y%ा(त 7ततु करने के बाद तक भाषाकार कहते ह5-
इस कार पृिथवी आिद आठ ZJय1 से अितCर बिु @ आिद गणु 1 का आIयभतू नवम ZJय आमा

उतराखड म
ु िविवालय ३८१
भारतीय दश
न MASL-103
िस@ हो गया। और वह िवभु अथात Jयापक है। िवभु होने से वह आकाश के समान िनय है, और
सखु ािद के िभ(न होने से वह येक शरीर म िभ(न-िभ(न है।
शरीर
आमा कA िसि@ के बाद दसू रे मेय के Kप म शरीर का िनKपण िकया गया है-
त7य भोगायतनम(यावयिव‘शरीरम‘् । सख ु दःु खा(यतरसाcाकारो भोगः। स च यदविFछ(न आमिन
जायते त भोगायतनं तदेव शरीरं। चे%ाIो वा शरीरम।् चे%ा तु िहतािहतािDपCरहाराथा ि या, न तु
7प(दनमाम।्
आमा के भोग का आIय शरीर होता है। वह शरीर अ(यावयिव है। अ(यावयिव से अिभाय है-
अि(तम अवयवी। अवयवी उसे कहते ह5 जो अवयव अथात् अगं 1 को धारण करता है। हाथ-पैर
इयािद को धारण करने के कारण शरीर को अवयवी कहा गया। अ(यावयिव िवशेषण यहां इसिलए
िदया गया है Wय1िक उंगली इयािद भी अवयव है और गणु को धारण करने से हाथ-पैर भी अवयवी
हो जाएगं ।े लेिकन हाथ-पैर अि(तम अवयवी नहN हो सकते। परू ा शरीर ही अ(यावयवी हो सकता है।
सखु -दःु ख म िकसी एक कA अनभु िू त भोग कहलाती है। असका आIय शरीर कहलाता है। इसके
अितCर चे%ा या यन के आIय को भी शरीर कहते ह5। चे%ा िहत कA ािD तथा अिहत के
पCरहार के िलए कA जाने वाली ि या है। 7प(दन मा को चे%ा नहN कहा जा सकता है।
इि8;य
तीसरा मेय इि(Zय1 को माना गया है-
शरीरसयं
ु Hानकरणमतीि(Zयं ‘इि(Zयम‘। अतीि(Zयिमि(ZयिमयFु यमाने कालादेरपीि(Zयसगं ोऽत
उ ं Hानकरणिमित। तथापीि(Zयसि(नकषuितसंगेऽत उ ं शरीरसंय ु िमित। शरीरं संय ु ं
Hानकरणिमि(ZयिमयFु यमाने आलोकादेCरि(Zयव संगोऽत उ मतीि(Zयिमित।
उपय
ु पCरभाषा के अनसु ार ‘इि(Zय‘ वह है जो शरीर से संय
ु है और Hान का करण है, और इसके
साथ-साथ जो अयc है।
इस बात को आप इस तरह भी समझ सकते ह5 िक शरीर के िजन अवयव1 के &ारा िवषय का Vहण
होता है वे इि(Zय कहलाते ह5। इि(Zयां 7वयं अतीि(Zय होती ह5। अतीि(Zय से तापय है उनका यc
तौर पर िदखाई न देना। 3यान देने वाली बात यह है िक यc माण कA चचा करते समय
‘इि(Zयाथ सि(नकष‘ के िजस यc माण कA बात कही गई थी, वहां उस ि या के अ(तगत
अथ का यc होता है न िक इि(Zय1 का।
‘Hानकरणम‘् का अथ है Jयापार &ारा Hान का असाधारण करण। असाधारण कारण िकसे कहते ह5
इसे आप पवू  अ3ययन इकाई म िव7तार से पढ़ चक
ु े ह5। यिद ‘Hानकरणम‘् इस अश
ं को पCरभाषा से
उतराखड म
ु िविवालय ३८२
भारतीय दश
न MASL-103
हटा िदया जाय तो काल को भी इि(Zय मानना पड़ेगा, Wय1िक काल भी शरीर संय
ु और अतीि(Zय
होता है।
और यिद के वल ‘Hानकरणम् अतीि(Zयं‘ पद से इसका लcण िकया जाए तो इि(Zयाथ सि(नकष भी
इि(Zय कहलाने लगगे, Wय1िक वे भी Hान के करण और अतीि(Zय ह5। इसिलए ‘शरीरसंयु म‘् यह
पद यहां रखा गया है, और वह इस पCरभाषा के िलए महवपणू  है।
दसू री ओर यिद के वल ‘शरीर संय
ु ं Hानकरणिमि(Zयम‘ ऐसा लcण िकया जाता है तो वह भी
दोषपणू  होगा, Wय1िक काश इयािद भी शरीर से सयं ु होता है और वह Hान का करण भी है।
इसिलए ‘अतीि(Zयम‘् पद रखा गया है। अब ‘शरीरसंय ु म‘् , ‘Hानकरणम‘ और ‘अतीि(Zयम‘् इन
तीन1 पद1 कA अलग-अलग Jया;या से इि(Zय कA पCरभाषा म इन तीन1 पद1 का Wया महव है आप
भली-भांित समझ गए ह1गे।
तक भाषाकार इि(Zय कA इस पCरभाषा के अन(तर इि(Zय1 कA सं;या और उनके अथ बताते हMए
कहते ह5-
तािन चेि(Zयािण षट्। }ाणरसनचc7ु वWIोतमनांिस। त ग(धोपलिOधसाधनिमि(Zयं }ाणम।्
नासाVवित। तFच पािथवं ग(धववाद् घटवत्। ग(धववचं ग(धVाहकवांत। यिदि(Zयं Kपािदषु
पंचसु म3ये यं गणु ं गृ¡ाित तिदि(Zयं तTणु संय
ु ं , तथा च चcK
ु पVाहकं Kपवत।्
ये इि(Zयां छह होती ह5, इनके नाम ह5 }ाण, रसन, चc,ु वक् और Iोत। ये पाच
ं बाnेि(Zयां ह5 और
इनके अलावा मन नामक एक अ(तCरि(Zय भी है। इनम से ग(ध कA उपलिOध कराने वाली इि(Zय
}ाणेि(Zय कहलाती है, जो नािसका के अVभाग म रहती है। ग(धवत् होने से घट के समान पािथव
अथात् पृिथवीज(य होती है। जो इि(Zय पांच1 म से िजस गणु को Vहण करती है वह उस गणु वाली
चcCु रि(Zय कहलाती है, जैसे Kप को Vहण करने वाली चcुCरि(Zय Kपवत् कहलाती है।
रसोपलिOधसाधनिमि(Zयं रसनम।् िजŒाVवित। तचचा~यं रसववात्। रसववचं Kपािदषु पंचसु म3ये
रस7यैवािभवजं कवाLलालावत।्
रस का Hान कराने वाली इि(Zय रसना है। वह िजŒा के अVभाग म ि7थत है। यह इि(Zय रसवती होने
से जलीय होती है।
KपोलिOधसाधनिमि(Zयं चcःु । कृ EणताराVवित। तFच तैजस,ं Kपािदषु पच ं सु म3ये
Kप7यैवािभJयंजकवात् दीपवत।्
Kप का Hान कराने वाली इि(Zय चcु कहलाती है। वह आख ं कA काली पतु ली म ि7थत है। वह Kप,
रस, ग(ध आिद पांच1 म Kप कA अिभJयंजक होने से दीप के समान तेज से उप(न इि(Zय है।

उतराखड म
ु िविवालय ३८३
भारतीय दश
न MASL-103
7वगा पलिOधसाधनिमि(Zयं वक्, सवशरीरJयािप। तSु वायवीयं Kपािदषु पंचसु म3ये
7पश7पैवािभJयंजकवात।् अंगसंिगसिललशैयािभJयंजकJयंजनवातवत।्
7पश का Hान कराने वाली इि(Zय ‘वक्‘ स*पणू  शरीर म JयाD होती है। और वह वायु से उप(न
इि(Zय है। Kपािद पाचं ो इि(Zय1 म वह 7पश कA अिभJयंजक है।
शOदोपलिOधसाधनिमि(Zयं Iोतम।् तFच कणशEकुLयविFछ(न माकाशमेव, न ZJया(तरं
शOदगणु वात।् तदिप शOदVाहकवात् यिदि(Zयं Kपािदषु पंचसु म3ये यTणु Jयंजकं तत् तTणु संय
ु ं
यथा चcरु ािद KपVाहकं Kपािदय ु म।्
शOद का Hान कराने वाली इि(Zय Iोत है। वह कणशEकुली से िघरा हMआ आकाश ही है। वह
शOदगणु से सयं ु होने के कारण और कोई ZJय नहN है। शOद गणु से सयं ु होने के कारण वह
आकाश Kप ही है।
पंच बाnHानेि(Zय1 को तक भाषा म भौितक ZJय1 से उप(न बताया गया है। पाचं ो Hानेि(Zयां
पृिथवी, जल, तेज, वायु और आकाश से उप(न बताई गई ह5। मन का वणन तक भाषाकार के शव
िमI इस कार करते ह5-
सख ु ापु लिOध साधनिमि(Zयं मनः। तFचाणपु Cरमाणं ”दया(तवित।
सखु ािद कA उपलिOध का साधनभतू इि(Zय मन है। वह अणु पCरमाण और ”दय के भीतर रहने वाला
है।
अथ

तक भाषा म इि(Zय1 कA Jया;या के उपरा(त चौथे मेय के Kप म अथ कA िववेचना कA गई है, जो
इस कार है-
अथाः षट्पदाथाः। ते च ZJयगणु कमसामा(यिवशेषसमवायाः
अथ कA सं;या छह है, वे ZJय, गणु , कम, सामा(य, िवशेष, समवाय नाम से जाने जाते ह5।
त समवाियकारणं ZJयम।् गणु ाIयो वा। तािन च ZJयािण पृिथJयDेजोवायाकाशकालिदगाममनािं स
नवैव।
जो गणु 1 का आIय होता है वह ZJय कहलाता है। वह ZJय पृिथवी, जल, अिlन, वाय,ु आकाश,
काल, िदक् और आमा तथा मन ह5।
अथ गणु ाः उFय(ते। सामा(वान् असमवाियकारणं 7प(दामा गणु ः। स च ZJयािIत एव। Kप-रस-
ग(ध-7पश-स;ं या-पCरमाण-पृथकव-सयं ोग-िवभाग-परव-अपरव-गpु व-बतव-7नेह-शOद-बिु @-
सख
ु -दःु ख-इFछा-&ेष-यन-धम-अधम-सं7कार भेदाBतिु व\शितधा।
सामा(य जाित से य
ु , असमवाियकारण बनने वाला, ि याशील न होने वाला और जो ZJय पर
आिIत है, वह गणु कहलाता है। सामा(य तथा असमवािय कारण का अ3ययन आप अपनी पवू 
अ3ययन इकाइय1 म कर चक ु े ह5।

उतराखड म
ु िविवालय ३८४
भारतीय दश
न MASL-103
गणु 1 कA सं;या तक भाषा म चौबीस िगनाई गई है, जो िन*निलिखत ह5-
Kप, रस, ग(ध, 7पश, सं;या, पCरमाण, पृथकव, संयोग, िवभाग, परव, अपरव, गpु व, ZJयव,
7नेह, शOद, बिु @, सखु , दःु ख, इFछा, &ेष, यन, धम और अधम।
कम भी अथ नामक मेय के अ(तगत आता है। कम कA Jया;या तक भाषा म इस कार कA गई है-
कमािण उFचय(ते। चलनामकं कम, गणु इव ZJयमावृिS। अिवभZु JयपCरमाणेन मतू वायरना*ना
सहैकाय समवेतं िवभा&ारा पवू स ंयोगनाशे सयSु रदेशसयोगहMतB ु । तFच उcेपण-अपcेपण-
आकंु चन सारण गमनभेदात् पच ं िवधम।् `मणादय7तु गमनVहणेनैव गृn(ते।
कम^ का वणन कुछ इस कार िकया जा सकता है। गित Kप कम गणु के समान के वल ZJय1 म
आिIत रहता है। कम अिवभु ZJय का पCरमाण होने से के वल मतू  ZJय1 म रहता है। Wय1िक िवनाश
&ारा पवू स ंयोग का नाश हो जाता है, इसिलए पनु ः उSरसंयोग का कम हेतु (साधन) होता है।
उcेपण, अपcेपण, आकंु चन, सारण और गमन के भेद से कम पांच कार का होता है।
सामा8य
अनवु िृ Sयय हेतुः सामा(यम।् ZJयािदयवृिS, िनयमेकमनेकानगु तंच। तFच ि&िविधं, परमपरंच।
परं सSा बहMिवषयवात।् सा चानवु िृ Sययमा हेतु वात् समा(य माम।् अपरं ZJयवािद।
तक भाषाकार के शव िमI के अनसु ार ‘अनवु िृ S यय‘ के हेतु (साधन) को सामा(य कहते ह5।
अनवु िृ S यय का अथ है अनेक Jयि य1 म होने वाली समा(य तीित। यह (सामा(य)ZJय, गणु
और कम म रहने वाला िनय, एक और अनेक वृिS होता है। पर का अथ है Jयापक देश म रहने
वाला तथा अपर का अथ है अLप देश म रहने वाला।
िवशेष को भी अथ कA Iेणी म रखा गया ह5 इसकA पCरभाषा नैयाियक1 ने इस कार कA है-
िवशेषो िनयो िनयZJयवृिSः। JयावृिS बुि@मा हेतःु । िनयZJयािणवाकाशादीिन पंच।
पृिथJयादयBवारः परमाणK
ु पाः।
िवशेष िनय ZJय1 म रहता है और वह िनय है। अ(य ZJय1 म उपि7थत रहने वाला अि(तम भेदक
(िनणायक भेद करने वाला) धम िवशेष कहलाता है। यह के वल JयावृिS (अलग करना) बिु @ का
हेतु होता है।
समवाय
समवाय कA पCरभाषा भी अथ के अ(दर कA गई है। आप पहले भी यह पढ़ चक ु े ह5 िक अयतु िस@
स*ब(ध को ही समवाय कहते ह5-
‘अयतु िस@योः स*ब(धः समवायः।‘
पवू  कA अ3ययन इकाइय1 म अयतु िस@ स*ब(ध कA Jया;या भी आप पहले ही पढ़ चक ु े ह5।
इस कार आपने चौथे मेय अथात ‘अथर‘् के िवषय म जाना। ZJय, गणु , कम, सामा(य, समवाय

उतराखड म
ु िविवालय ३८५
भारतीय दश
न MASL-103
और िवशेष कA भी संिcD जानकारी आप ाD कर चक ु े ह5। अयिधक िव7तार न हो इस बात को
3यान म रखते हMए इन िवषय1 के िववेचन को यहN तक सीिमित रखा गया है।
बिु 6
पाच ं वां मेय बिु @ है। बिु @ कA पCरभाषा तक भाषा म इस कार दी गई है-
बिु @KपलिOधHानं यय इयािदिभः पयायशOदैयाऽिभधीयते सा बिु @ः। अथकाशो वा बिु @। सा
च संcेपतो ि&िवधा। अनभु वं 7मरणं च। अनभु वोऽिप ि&िवधोयथाथwऽयथाथuBेित।
बिु @ के पयायवाची अथवा समानाथक शOद उपलिOध, Hान, यय इयािद ह5। सc ं ेप म इसके दो
भेद ह5, जो अनभु व और 7मरण नाम से जाने जाते ह5। अनभु व के भी दो भेद होते ह5, पहले को यथाथ
कहते ह5 और दसू रे को अयथाथ नाम से जाना जाता है।
त यथाथwऽथाऽिवसंवादी। स च यcािद माणैज( यते। यथा चcरु ािदिभरद%ु घै ट ािदHानम।्
धमू ािलंगकमािlनHानम।् गोसाybय दशनाद गवयशOदवाFयताHानम।् tयोित%ोमेन 7वगकामो यजेत्
इयािद वाWयाtयोित%ोमn 7वगसाधनता Hानच ं ।
अयथा7तु अथJयिभचारी, अमाणजः। स ििवधः संशय7तकw िवपययBेित।
यथाथ और अयथाथ Hान का िनKपण भी तक भाषा म बिु @ नामक मेय के अ(तगत िकया गया है।
माण1 के िववेचन के समय भी आप यह पढ़ चक ु े ह5 िक यथाथ Hान ही मा कहलाती है। तथा यह
मा यcािद माण1 से उप(न होती है। यही बात यहां भी कही जा रही है- दोष रिहत चcु आिद
से घट का Hान (यc Hान), धमू आिद िलगं से अिlन आिद का Hान (अनमु ान Hान), गो के
साybय को देखने से गवय शOद से वाFय होने का Hान (उपमान Hान), 7वग कA इFछा रखने वाला
tयोित%ोम याग कर जैसे वेद वाWय से tयोित%ोम याग म 7वगसाधनता का Hान (यह शOद माण
ज(य Hान), यथाथ अनभु व हMआ।
अयथाथ Hान अथ का ‘Jयिभचारी‘ (अथ का अनथ करने वाला) तथा अमाण से उप(न होता है।
अयथाथ Hान के सश ं य, तक और िवपयय नामक तीन भेद होते ह5।
मन
मन छठा मेय है, िजसके बारे म तक भाषाकार ने कहा है-
अ(तCरि(Zय मनः।
अ(तCरि(Zय को मन कहते ह5। इि(Zय नामक तीसरे मेय कA चचा करते समय आप इसे िव7तार से
&वृि2
सातव मेय के Kप म वृिS का वणन िमलता है, िजसे तक भाषा म इस कार पCरभािषत िकया
गया है-

उतराखड म
ु िविवालय ३८६
भारतीय दश
न MASL-103
वृिSः धमाधममयी यागािदि या, त7या जगदJ् यवहारसाधकवात।्
धम और अधम Kप यागािद ि या और उससे उप(न धम और अधम को ही वृिS कहते ह5।
दोष
आठवां मेय दोष है। इसकA पCरभाषा तक भाषा म इस कार कA गई है-
दोषा राग-&ेष-मोहाः। राग इFछा। &ेषो म(यःु ोध इित यावत।् मोहो िम_याHानं िवपयय इित यावत।्
राग, &ेष और मोह दोष कहलाते ह5। इFछा को राग कहते ह5। म(यु अथवा ोध &ेष कहा जाता है।
िम_या Hान अथवा िवपयय को मोह कहते ह5।
&ेयभाव
यह नवां मेय है, िजसका वणन तक भाषा म इस कार िकया गया है-
पनु pपिSः ेयभावः। स चामनः पवू द हे िनवृिSः अपूवद हे संघात लाभः।
मर कर पनु ः ज(म लेना ेयभाव नामक नवां मेय ह5। यह पवू  शरीर का नाश तथा नए शरीर कA
ािD है। िनय आमा का पनु ः नए शरीर-इि(Zय के साथ स*ब(ध ेयभाव कहलाता है।
फलम्
यह दसवां मेय है। फलम् पनु भwगः सुखदःु खा(यतर साcाकारः।
दःु ख या सख
ु म िकसी एक का भी भोग फल कहलाता है।
दुःख
यह lयारहवां मेय है। तक भाषाकार ने इस मेय का वणन करते हMए कहा है- ‘पीड़ा दःु खम‘।
अपवग

नैयाियक1 का यह बारहवां और अि(तम मेय है। इसका िववेचन तक भाषा म इस कार िकया गया
है-
मोcोऽपवगः। स चैकिवश ं ितभेदिभ(न7य दःु ख7यायि(तकA िनवृिSः। एकिवश ं ित भेदा7तु शरीरं
षिडि(Zयािण, षड्िवषयाः, षड्ब@ ु यः, सख
ु ं दःु खचं ेित गौणम;ु य भेदात।् सख ु ं तु दःु खमेव
दःु खानुषिं गवात।् अनषु ंगऽे िवनाभावः। स चायमपु चारो मधिु न िवषसंय ु े मधनु ोऽिप
िवषपcिनcेपवत।्
इWकAस कार के दःु ख1 से आयि(तक िनवृिS को ही नैयाियक1 ने मोc कA सHं ा दी है। मोc और
अपवग एक-दसू रे के पयाय ह5। (याय दशन म इWकAस कार के दःु ख िगनाए गए ह5- शरीर, छह

उतराखड म
ु िविवालय ३८७
भारतीय दश
न MASL-103
इि(Zयां, छह िवषय, छह Hान और सख ु और दःु ख। इन दःु ख1 से छुटकारा पाना ही मोc कहलाता
है। जीवन म सखु और दःु ख दोन1 का भोग होता है, पर(तु लौिकक सख ु भी Wय1िक दःु ख िमिIत
होते ह5 इसिलए वे भी दःु ख ही होते ह5। आप दैिनक Jयवहार म भी यह देखते ह5 िक यिद मधु िवष से
सयं
ु है तो वह िवष का ही भाव छोड़ता है।
तक भाषाकार के शव िमI ने अपवग ािD के माग का भी िववेचन अपनी तक भाषा म इस कार
िकया है-
शाfाद् िविदतसम7तपदाथतjव7य, िवषयदोषदशनिवर 7य, ममु c ु ो3याियनो 3यानपCरपाकवशात्
साcाकृ तामनः Wलेशहीन7य, िनEकामकमानvु ानादनागत धमwऽधमावनजयतः पवू wपातंच
धमाऽधमचयं योगि&भावाद् िविदवा समा”य भजंु ान7य, पवू क  मिनवृSौ वतमानशरीरापगमे
पवू श
 रीरभावाFछरीराेकिवश
ं ित दःु खस*ब(धो न भवित कारणाभावात।्
सोऽयमेकिवश ं ितभेदिमभ(नदःु खहारिनमwcः। सोऽपवग इयुFयते।
शाf1 के यथोिचत अ3ययन से सम7त पदाथ^ का तjवHान ाD कर सांसाCरक िवषय1 से िवरि के
फल7वKप मोc कA इFछा रखने वाला ममु c ु सम7त दोष1 के िनवृS हो जाने से िनEकाम भाव म
वृS हो जाता है। योगाgयास से ाD शि के &ारा धम और अधम को भली भांित जानकर उ(ह
एक साथ भोग लेता है। पCरणाम यह होता है िक वतमान शरीर छूटने पर नया शरीर इस अव7था म
नहN उप(न होता है, और इस कारण इWकAस दःु ख1 कA िनवृिS हो जाती है, िजस ि7थित को ही
(याय कA पार*पCरक भाषा म मोc कहा जाता है।
&थम बोध &.
िन*निलिखत h1 के उSर Cर 7थान1 म िलिखए तथा इकाई के अ(त म िदए गए उSर1 से अपने
उSर1 का िमलान कAिजए-
1. तक भाषा म मेय1 कA स;ं या िकतनी बताई गई है-
क. बारह
ख. चौदह
ग. सोलह
घ. अšारह
2. ‘इि(Zय‘ नामक मेय है-

उतराखड म
ु िविवालय ३८८
भारतीय दश
न MASL-103
क. चौथा
ख. तीसरा
ग. दसू रा
घ. नवां
3. दःु ख1 से आयि(तक िनवृिS को कहते ह5-
क. मोc
ख. आसि
ग. िवरि
घ. इनम से कोई नहN
4. मन है-
क, अ(तCरि(Zय
ख. बाn Hानेि(Zय
ग. कमuि(Zय
घ. इनम से कोई नहN
5. 7पश िवशेष गणु है-
क. विगि(Zय का
ख. चcCु रि(Zय का
ग. }ाणेि(Zय का
घ. रसनेि(Zय का
मेय िनKपण के पBात् इस इकाई म आप अनमु ान माण के भेद1, यथा 7वाथानमु ान और
पराथानमु ान का तथा हेवाभास का भी िव7तार से अ3ययन कर ग।े अनमु ान माण का अ3ययन
आप अपनी पवू  अ3ययन इकाई म कर चक ु े ह5। अ3ययन के दौरान आपने हेतु और JयािD कA भी

उतराखड म
ु िविवालय ३८९
भारतीय दश
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जानकारी ाD कर ली है। यहां आप हेवाभास अथात् ‘हेतु या कारण न होते हMए भी जो कारण कA
तरह तीत होते ह5‘ उनका अ3ययन कर ग,े तथा उनके भेद1 को भी जानगे ।
अनमु ान करण म आप यह पढ़ चक ु े ह5 िक हेतु का तृतीय Hान (परामश) अनुमान माण है।
नैयाियक1 का यह तृतीय Hान Wया है, इसकA भी जानकारी आप िव7तार से पहले ही ाD कर चक ुे
ह5। यहां पर अनमु ान के भेद1 पर िवचार िकया जाना ासंिगक होगा
जैसा िक आप जानते ह5 अनमु ान के दो भेद बताए गए ह5, यथा 7वाथानमु ान और पराथानमु ान।
5.4 &वाथा$नुमान
तक भाषा म 7वाथानमु ान कA पCरभाषा इस कार कA गई है-
तFचानमु ानं ि&िवधम।् 7वाथ पराथ चेित। 7वाथ 7वपिS हेतःु । तथा िह 7वयमेव महानसादौ
िविश%ेन यcेण धमू ाlनयोJयािD गृहीवा पवत समीपं गत7तTते चाVौ सि(दहानः
पवतवितनीमिविFछ(न मल ू ा`िलहां धमू -लेखा पbयन् धमू दशनाFचोŸु@सं7कारो JयािDं 7मरित।
य धमू 7तािlनCरित। तोऽािप धमू ोऽ7तीित ितपते। त7मादS पवतेऽअिlनर~य7तीित 7वयमेव
ितपते। त7वाथानमु ानम।्
तक भाषाकार कहते ह5 िक हेतु दशन से 7वयं ाD िकया गया Hान अनमु ान Hान कहलाता है। िकसी
Jयि ने यिद रसोईघर म यc माण से यह Hान ाD िकया है िक जहां-जहां धमू होता है वहा-ं
वहां अिlन होती है। इस Hान के &ारा 7वयं ही धमू और अिlन कA JयािD को Vहण कर पवत के
समीप जाकर पवतगत अिlन के िवषय म स(देह होने पर (पवत म अिlन है या नहN) पवत पर JयाD
अिविFछ(नमल ू ा धमू कA रे खा को देखकर धमू के दशन से उŸु@ स7ं कार से धएु ं और अिlन कA
JयािD का 7मरण करता है। उसके बाद पवत म धआ ु ं है, इसिलए उस पवत पर अिlन भी है, यह जान
लेता है। इस कार 7वयं के यc पर आधाCरत यह अनमु ान Hान 7वाथानमु ान कहलाता है।
5.5 पराथा$नुमान
जब िकसी दसू रे Jयि को पाच ं अवयवा◌ ं े से य ु अनमु ान Hान कराया जाता है तो वह
पराथानमु ान कहलाता है। तक भाषा म पराथानमु ान का लcण और उदाहरण इस कार है-
यSु किBत् 7वयं धमू ादिlनमनुमाय परं बोधिपतंु पंचावयवमनुमानवाWयं यं ु े तत् पराथानमु ानम।्
तथा पवतोऽिlनमान्, धमू ववात्, यो यो धमू वान ससोऽिlनमान् यथा महानसः, तथा चायं
त7माSथा इित।
अनेन वाWयेन ितHािदमता ितपािदतात् पच ं pपोप(ना िलगं ात परोऽ~यऽिlनं ितपते। तेनैतत्
पराथानमु ानम।्
पराथानमु ान से तापय है दसू रे के &ारा अनमु ान का बोध कराना। 7वयं धमू से अिlन का अनमु ान
करके दसू रे को यह Hान कराने के िलए पंचावयव1 से य ु अनमु ान Hान कराया जाता है और यही
अनमु ान Hान पराथानमु ान कहलाता है। हम अब कुछ उदाहरण1 से इसे समझने कA कोिशश कर ग।े 1.

उतराखड म
ु िविवालय ३९०
भारतीय दश
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यह पवत अिlनमान है (यह थम अवयव ितHा है) 2. धमू य ु होने से (यह हेतु Kप दसू रा अवयव
है) 3. जो-जो धमू य
ु होता है, वह-वह वि(हय ु भी होता है, जैसे रसोई घर (यह तीसरा अवयव
उदाहरण हMआ) 4. यह पवत भी उसी कार धमू य ु है (यह उपनय नामक चौथा अवयव हMआ) 5.
इसिलए पवत अिlनय ु है (यह िनगमन Kप पाच ं वां अवयव हMआ) और पवत अिlनय ु है इस
कार का जो Hान होता है वह Hान दसू रा Jयि जब जान लेता है तो वह पराथानमु ान कहलाता है।
7वाथानमु ान तथा पराथानमु ान के Hान के िलए JयािD स*ब(ध अिनवाय है। JयािD और उसके भेद1
का अ3ययन आप इसके पवू  कA इकाई म कर चक ु े ह5। धमू और अिlन कA JयािD म आपने देखा है
िक धमू हेतु है और अिlन सा3य है। अनमु ान Hान के िलए सही हेतु का होना आवbयक होता है
लेिकन कभी-कभी ऐसा भी होता है िक हेतु सदोष होता है। वही हेतु िनदwष माना जाता है जो सा3य
कA िसि@ मे समथ हो यानी िक पcधमता आिद Kप1 से य ु हो। सदोष हेतु हेवाभास कहलाते ह5।
हेतु तीत होते हMए भी जो अनिु मित का ितब(धक अथवा ितरोधक हो वह हेवाभास कहलाता
है। नैयाियक1 के अनसु ार हेवाभास के पांच भेद होते ह5। इन पांच1 भेद1 का िनKपण तक भाषा म
िकया गया है।
अनमु ान करण म ‘हेतु‘ का अ3ययन आप िव7तार से पहले ही कर चक ु े ह5। JयािD स*ब(ध पढ़ते
समय आपने 3यान िदया होगा िक हेतु का ‘िवपc‘ (िवरोधी पc) म अभाव होता है, पर(तु जब हेतु
िवपc म भी िवमान होता है तो यह हेवाभास कहलाने लगता है। आइए, अ(वय Jयितरे कA हेतु के
पाच
ं Kप1 कA चचा भी हम सc ं ेप म यहां कर ल। इससे हम हेवाभास करण को समझने म आसानी
होगी। अ(वयJयितरे कA हेतु के पांच Kप संcेप म िन*निलिखत ह5-
1. पcसjव, 2. सपcसjव, 3. िवपcJयावृतjव, 4. अबािधतिवषयव 5. असितपcव
इन Kप1 म ‘पc‘ ‘सपc‘ और ‘िवपc‘ शOदाविलय1 को पहले हम समझ लेना चािहए । तक भाषा
म कहा गया है- ‘सि(दlध सा3यवान पcः‘। अथात जहां सा3य कA िसि@ करनी हो वह
पc कहलाता है। उदाहरण के िलए पवत म यिद अिlन को धमू वव हेतु से िस@ करना है तो पवत
‘पc‘ कहलाएगा। उस धूम हेतु का थम Kप पcसjव हMआ। सपc रसोईघर कहलाएगा Wय1िक वहां
धमू वव हेतु होने पर अिlन का िनBय है। इस सपc Kप महानस म धमू Kप हेतु रहता है। इस हेतु
धमू का दसू रा Kप ‘सपcसव‘ हMआ। िजसम सा3य का अभाव िनिBत हो वह ‘िवपc कहलाता है।
उदाहरण के िलए तालाब सा3य Kप म अिlन का अभाव िनिBत है। उस तालाब म हेतु धमू का भी
अभाव होता है। यह उसका तीसरा Kप ‘िवपcJयावृS‘ हMआ।
इसी कार धमू वव हेतु म अबािधत िवषयव भी देखा जा सकता है Wय1िक धूमवव हेतु का सा3य
अिlन कA पवतKप पc म िवमानता िकसी अ(य माण से बािधत नहN है। इसी कार पांचवां Kप

उतराखड म
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असितपcव धम का दशन भी धमू वव हेतु म होता है Wय1िक सा3य के िवपरीत अथ को िस@
करने वाला कोई अ(य ितपc अथात िवरोधी पc उपलOध नहN है।
इन पाचं Kपां से य ु धम ही हेतु कहलाता है और अ(वयJयितरे कA हेतु म ये पाच
ं 1 Kप िवमान
होते ह5। के वला(वयी म िवपcJयावृतव और के वलJयितरे कA म सपcसव का अभाव होता है।
इसिलए के वला(वयी और के वलJयितरे कA हेतु चार Kप1 से य ु होते ह5। इन हेतओ
ु ं के अितCर हेतु
तीत होने वाले हेवाभास1 म पहला हेवाभास अिस@, दसू रा िवp@, तीसरा अनैकाि(तक, चौथा
करणसम और पाच ं वां कालाययापिद% नाम से चिलत ह5। इसका उLलेख तक भाषा म इस कार
िकया गया है- अतोऽ(ये हेवाभासाः। ते च अिस@ िवp@-अनैकाि(तक करणसम-कालाययापिद%
भेदात् पंचैव। यथा गगनारिब(दं सरु िभ अरिब(दवात् सरोजारिब(दवत।्
अिस6
जब हेतु कA पc म िवमानता न हो तो वहां अिस@ हेवाभास होता है। उदाहरण7वKप कमल होने
के कारण आकाश कमल सगु ि(धत होता है, ठीक जैसे सरोजकमल होता है। यहां आकाश कमल
(गगनारिब(द) हेतु का आIय है, लेिकन ऐसा नहN हो सकता है Wय1िक आकाश कमल का
अि7तव ही नहN होता। पc के िवमान न होने के कारण ‘पcसव‘ धम का उLलंघन है जो सदह् ते ु
के िलए अिनवाय होता है। यह आIयािस@, 7वKपािस@ और Jया~वािस@ नाम से तीन कार का
होता है।
2. िवp@ दसू रा हेवाभास िवp@ कहलाता है। तक भाषाकार के शविमI कहते ह5-
सा3यिवपययJयाDो हेतिु वp@ः। स यथा शOदो िनयः कृ तकवादामवत्। अ कृ तकवं िह
सा3यिनयविवपरीतािनववेन JयाDम।् यकृ तकं तदिनययमेव न िनयिमयतो, िवp@ं
कृ तकविमित।
अथात जो हेतु सा3य को िस@ करने के 7थान पर सा3य के अभाव को िस@ करता है, वह िवp@
नामक हेवाभास कहलाता है। जैसे शOद िनय है ज(य होने के कारण आमा के समान। यहां ज(यव
अथवा कृ तकव हेतु सा3य िनय के िवपरीत अिनयव म JयाD होता है। इसिलए यहां कृ तकव हेतु
म िवp@ हेवाभास है।
3. अनैकाि8तक
तक भाषा म इसका लcण करते हMए कहा गया है-
सJयिभचारोऽनैकाि(तकः। स ि&िवध, साधारणानैकाि(तकोऽसाधारणानैकाि(तकEचेित। त

उतराखड म
ु िविवालय ३९२
भारतीय दश
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पcसपcिवपc वृिSः साधारणः। यथा शOदो िनयः मेयवात् Jयोमवत। अ िह मेयवं हेत7ु तFच
िनयािनयवृिS। सपcाद् िवपcाद् JयावृSो यः पcः एव वतते सोऽसाधारणनैकाि(तकः। स यथा
भिू मिनया ग(धWवात्। ग(धjवं िह सपcि(नयाद िवपcाFचाि(याद JयावृSं भमू ावृिSः।
‘अनैकाि(तक‘ हेवाभास को उपCरिलिखत पCरभाषा और उदाहरण को सरल ढंग से हम इस तरह
समझ सकते ह5 िक ‘अनैकाि(तक‘ हेवाभास सJयिभचार भी कहलाता है। यह साधारण और
असाधारण के भेद से दो कार का होता है। आपको यह याद ही होगा िक हेतु का िवपc म सवथा
अभाव सद् हेतु के िलए अिनवाय होता है लेिकन जब इसके िवपरीत पc, सपc, िवपc, तीन1 म
िवमान हो तो वहां साधारण हेवाभास हो जाता है। जैसे शOद िनय है मेय होने से आकाश के
समान। यहां मेयव हेतु सपc तथा िवपc दोन1 म जो सपc और िवपc दोन1 म िवमान नहN
होता वह असाधारण नैकाि(तक हेवाभास कहलाता है। उदाहरण के िलए पृिथवी िनय है ग(धवती
होने से। यहां ग(धव हेतु सपc िनय आकाशािद और िवपc अिनय जलािद से पृथक के वल
पृिथवीमा रहता है, इसिलए यहां असाधारणनैकाि(तक हेवाभास है।
4. &करणसम
िजस हेतु के सा3य के िवपरीत अथ को िस@ करने वाला दसू रा हेतु िवमान हो वहां करणसम
हेवाभास कहलाता है। तक भाषाकार के शव िमI ने इसकA पCरभाषा इस कार कA है-
करणसम7तु स एव य7य हेतोः सा3यिवपरीतसाधकं हेव(तरं िवते। स यथा शOदोऽिनयो
िनयधमरिहतवात् शOदो िनयोऽिनय धमरिहवािदित। अयमेव िह सितपc इवोFयते।
अथात् िजस हेतु के सा3य के िवपरीत अथ को दसू रे हेतु &ारा िस@ िकया जा सके वहां करणसम
हेवाभास होता है।
जैसे शOद िनय है अिनय धम से रिहत होने के कारण और उसका दसू रा हेतु है शOद अिनय है
िनय धम से रिहत होने के कारण। यहां सा3य के िवपरीत अथ का साधक हेतु भी िवमान है
इसिलए यहां करणसम अथवा सितपc नामक हेवाभास है।
5. कालायापिद% इसे बािधत हेवाभास भी कहा जाता है। इसकA पCरभाषा तक भाषा म इस
कार दी गई है-
पcे माणानतरावधृतसा3याभावो हेतबु ािधतिवषयः। यथा अिlनरनEु णः कृ तकवाजलवत।् अ िह
कृ तकव7य हेतोः सा3यमनEु णवं तPावः यcेणवै ावधाCरतः 7पाशनयcेणैवोEणवोपल*भात।्
पc म िकसी अ(य माण से सा3य का अभाव िनिBत हो जाने पर ‘बािधत िवषय‘ हेवाभास होता
है। जैसे अिlन अनEु ण है कृ तक (ज(य) होने से जल के समान। यहां कृ तकव हेतु का सा3य अनEु णव
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भारतीय दश
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का अभाव यc माण से ही िस@ हो चक ु ा है। इसको आप सरल भाषा म य1 समझ सकते ह5। मान
लीिजए आप से कोई कहता है िक अिlन शीतल होती है। लेिकन अपने JयाJहाCरक जीवन म आपने
यह यc ही देखा है िक अिlन हमेशा उEण अथात गम होती है। इसिलए अिlन को शीतल कहना
बािधत िवषय नामक हेवाभास से य
ु है।
5.6 सारांश
इस इकाई म आपने मेय1 का वृहत् अ3ययन िकया। अनमु ान के दो भेद 7वाथानुमान तथा
पराथानमु ान का अ3ययन भी तक भाषा के मलू पाठ के आधार पर िकया। उसके बाद हेवाभास1 का
भी िनKपण तक भाषा के आधार पर िकया। अब हम सc ं ेप म इस अ3ययन को एक बार आमसात
कर लेते है। िजससे हमारे िवचार और अिधक 7प% और Jयवि7थत हो सक । तक भाषा के अनसु ार
मेय (Hान के िवषय) बारह होते ह5- यथा आमा, शरीर, इि(Zय, अथ, बिु @, मन, वृिS, दोष,
ेयभाव, फल, दःु ख और अपवग अनुमान के दो भेद होते ह5- 7वाथानमु ान और पराथानमु ान।
यc Hान के आधार पर 7वयं िकया गया Hान 7वाथानुमान और पंचावयव1 से य ु दसू रे के &ारा
कराया गया Hान पराथानमु ान कहलाता है। हेतु कA तरह तीत होने वाले हेतओ
ु ं को हेवाभास कहा
जाता है। आपने इस इकाई म इनका िव7तार से अ3ययन िकया। ये पांच होते ह5- अिस@, िवp@,
अनैकाि(तक, करणसम और बािधतिवषय। ये हेवाभास अनमु ान Hान के दोष के Kप म िगनाए गए
ह5।

5.7 पारभािषक शदावली


मेय- Hान के िवषय
अपवग- मोc
सामा(य- जाित
परव- अिधक cे म रहने वाला
अपरव- कम cे म रहने वाला
अिवभ-ु अJयापक
उcेपण- ऊपर उठना
अपcेपण- नीचे िगरना

उतराखड म
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आकंचन- िसकोड़ना
सारण- फै लाना
बािधत िवषयव- िकसी अ(य के &ारा खि(डत
सितपcव- िजसका िवरोधी पc िवमान हो
दसू रा बोध h
हेवाभास िकतने होते ह5-
क. पाच

ख. चार
ग. तीन
घ. दो
2. अनमु ान माण के िकतने भेद होते ह5-
क. एक
ख. दो
ग. तीन
घ. पांच
3. पराथानमु ान के िकतने अगं होते ह5-
क. दस
ख. बारह
ग. पांच
घ. चौदह
4. महानस अथात रसोईघर Wया है-

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क. िवपc
ख. सपc
ग. पc
घ. इनम से कोई नहN
5. अनैकाि(तक Wया है
क. हेतु
ख. हेवाभास
ग. JयािD
घ. इनम से कोई नहN

5.8 बोध +, के उ-र


पहला बोध hः 1. क, 2. ख, 3. क, 4. क 5. क
दसू रा बोध hः 2.1. क, 2.2 ख, 2.3 ग, 2.4 ख, 2.5 ख

5.9 सदभ$ थ सूची


महिष गौतम- (याय दशन, बौ@ भारती, वाराणसी
के शव िमIः तक भाषा, चौख*भा सं7कृ त सं7थान, 1990
डा. च धर िबजLवातः भारतीय (याय शाf, उSर देश िह(दी सं7थान
िहCरय(ना, एम.- भारतीय दशन कA Kपरे खा, राजकमल काशन, 1987
गैरोला, वाच7पित- स7ं कृ त सािहय का इितहास, चौख*बा िवाभवन, 1992
दासगDु , एस. एन.- भारतीय दशन का इितहास भाग-1, राज7थान िह(दी V(थ अकादमी, जयपरु ,
1988
शमा, च(Zधर- भारतीय दशन अनश
ु ीलन और आलोचन, मोतीलाल बनारसीदास, 1991
राधाकृ Eणन, एस.- भारतीय दशन, भाग-2 राजपाल एड ससं

उतराखड म
ु िविवालय ३९६
भारतीय दश
न MASL-103
शाfी, 7वामी &ारकादास- (याय दशनम् वा7यायन भाEय सिहत, ब@
ु भारती, 1986
चYोपा3याय, देवी साद, भारतीय दशन सरल पCरचय, राजकमल काशन, 1980
िसंह, उदय नारायण- (यायदशनम,् चौख*भा सं7कृ त ितvान, 2004
अ(नंभY- तक संVहः, मोतीलाल बनारसीदास, 2007
5.10 िनबधामक +
1. मेय िकतने होते ह5? अथ नामक मेय का वणन कAिजए
2. पराथानमु ान का लcण एवं उदाहरण
3. हेवाभास के भेद1 का िनKपण कAिजए
4. ‘इि(Zय‘ नामक मेय का सिव7तार वणन कAिजए

उतराखड म
ु िविवालय ३९७

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