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BED—06
श ा संदभ और बंधता
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज.)
अनु म णका
3
पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज थान)
संयोजक एवं सद य
संयोजक
डॉ. दामीना चौधर
सह आचाय, श ा
वधमान महावीर खुला व व व यालय. कोटा ( राज.)
सद य
1. ो. पी. के. साहू 4. ो. डी. एन. सनसनवाल 7. ो. सोहनवीर संह चौधर
श ा वभाग दे वी अ ह या व व व यालय, इ दौर (म. .) इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय,
पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
4
कु लस चव, व. म. खु. व व व यालय, कोटा वारा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा के लये मु त एवं का शत।
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इकाई 1— श ा का अथ एवं स यय
Unit 1—Concept and Meaning of Education
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1.1 इकाई के उ े य (Objectives of the unit)
1. श ा के अथ एवं स यय से अवगत हो सकगे।
2. श ा के संकु चत एवं यापक स यय से अवगत हो सकगे।
3. श ा के समि वत अथ से प र चत हो सकगे।
4. श ा कया को समझ सकगे।
5. श ा क कृ त के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
6. श ा के मु ख आधार को समझ सकगे।
7. श ा म च लत आधा रक स यय म अ तर प ट कर सकगे।
8. श ा का जीवन म मह व अथात श ा आजीवन चलने वाल कया है, जानकार ा त
कर सकगे।
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1.3 श ा का स यय एवं प रभाषाएँ (Concept of Education
and Definitions)
श ा के स यय और प रभाषाओं को भारतीय एवं पा चा य प र े य म रख कर
समझना उपयु त रहे गा। दोन मत का उ लेख इस कार है;—
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पा चा य मत के अनुसार श ा स ब धी वचार को तीन मु ख दाश नक वचारधाराओं
के अ तगत वग कृ त कर दे खना उ चत होगा —
(1) आदशवाद दशन (Idealism) के अनुसार न नां कत कु छ मु ख च तक वारा द गई
प रभाषाएँ ह –
लेटो (Plato) — '' श ा उसे कहते ह जो स गुण का वकास करती है।''
कॉ म नयस (Comenius) — '' श ा वारा वक सत ान यि त म नै तकता और
धा मकता उ प न करता ह|”
म टन (Milton) — '' श ा का येय परमा मा के त ा उ प न करना, आ मा को
उ नत करना तथा दै वी कृ पा से एकता सीखना।''
पे टालॉजी (pestalozi) — '' श ा मनु य क सम त शि तय का वाभा वक,
ग तशील एवं सवमा य वकास है।'' (Education is a natural harmonious and
progressive development of man’s Innate powers).
एड स (Adams) — '' श ा वह पूव नयोिजत कया है िजसम एक यि त दूसरे
यि त के वकास हे तु वचार का आदान— दान करता है तथा ान के ब ध वारा प रवतन
करता है।''
का ट (Kant) — '' श ा यि त क मतानुसार उसक पूणताओं का वकास है।''
हान (Horn) — ' श ा वारा मनु य कृ त, समाज तथा व व के अ यतम व प से
तदा मय था पत करता है।''
ट .पी.नन (T.P.Nunn) — '' श ा वारा यि त व का पूण वकास होता है। िजससे
यि त अपनी मतानुसार मानव जीवन हे तु योगदान करता है। (Education is the
development individuality so that he can make an original contribution to
human life according to his best capacity).
फ टे (Ficte) — '' श ा ई वर य इ छा का अ वेषण है।''
हबाट (Herbert) — '' श ा अ छे नै तक च र का वकास है।'' (Education is the
development of good moral character)
आदशवाद दशन से े रत उपरो त श ा क प रभाषाएँ भारतीय मत के अ धक नकट
ह।
(2) कृ तवाद दशन (Naturalism) के समथक कु छ मु ख श ा शाि य ने श ा को
इस कार प रभा षत कया है :—
सो (Roussau) — '' श ा जीवन है और उसका उ े य यि त व उ कष करना है।''
हबाट पे सर (Herbert Spencer) — 'पूव जीवन क ाि त ह श ा है।''
रॉस (Ross) — ' श ा बालक के वाभा वक तथा ाकृ तक गुण का वकास करती है।''
फॉबेल (Froebel) — '' श ा कया वारा बालक क ज मजात मताओं क
अ भ यि त म सहायता मलती है।'' (Education is the process by which the child
makes its internal,external.)
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उपरो त प रभाषाओं से कट होता है क भारतीय मत म कृ तवाद दशन का
आदशवाद ि टकोण से सम वय कया गया है।
(3) योगवाद या अथ यावाद दशन (Pragmatism) के अनुसार कु छ मु ख प रभाषाएँ
है:—
जॉन डीवी (John Dewey) — '' श ा अनुभव के सतत ् पुन नमाण के मा यम से
जीवन क कया है। यह यि त म उन सम त मताओं का वकास है िजसके वारा वह अपने
पयावरण को नयि त करता है तथा अपनी उपलि ध क स भावनाओं को पूर करता है।''
(Education is the living through a continuous reconstruction of
experiences.It is the development of all those capacities in the individual
which will enable him to control his environment and fulfil his
possibilities.)
व लयन जे स (William James) — '' श ा ऐसी या क अिजत आदत का
संगठन जो यि त को अपने भौ तक एवं सामािजक पयावरण से समायोजन यो य बनाये।''
(Education is the organization of acquired habits of such action as will fit
the individual to his physical and social environment')
भारतीय मत म इन प रभाषाओं म य त श ा क जीवनोपयो गता एवं समाज
सापे ता का सम वय कया गया है। इनम श ा का स यय सम वयपूण एवं स तु लत है।
श ा क कोई सवमा य प रभाषा दे ना क ठन है क तु सभी दाश नक वचारधाराओं के सम वय
क ि ट से यह कहना उपयु त होगा क —
' श ा के उ े य आदशवाद साधन कृ तवाद तथा वा त वक कया का ि टकोण
योजनवाद होना चा हए।'' (Aims of Education should be idealistic,means be
naturalistic and the approach t actual process be pragmatic.)
वामू यां क न
(Self Evaluation)
1. भारतीय मत के अनु सार श ा के स यय को प ट क िजए|
2. पा चा य मत के अनु सार श ा के स यय को प ट क िजए|
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पर डालता है। ट . रे मंट (T.Raymont) के श द म — '' श ा से हम उन वशेष भाव को
समझते ह िजनको समाज का वय क वग जान बुझकर नि चत योजना वारा अपने से छोट पर
तथा त ण वग पर डालता है।'' मल के श द म — '' श ा वारा एक पीढ़ के लोग दूसर पीढ़
के लोग म सं कृ त का सं ामण करते ह ता क वे उसका संर ण कर सक और य द संभव हो
तो उसम उ न त भी कर सक।''
“The culture which each generation purposefully gives to those
who are be its successors in order to quality them for at list keeping up
and if possible for raising the level of improvement which has been
attained.“—John Sturat Mill.
एस एस मैके नी (S.S.Mackenge) के अनुसार — ''संकु चत अथ म कसी भी ऐसे
सचेतन यास को श ा कहा जा सकता है जो हमार मताओं का वकास एवं वृ कर।'' An
Narrower sense Education may be taken to mean any consciously
directed effort to develop and cultivate our powers.)
ोफेसर ीवर —'' श ा एक या है, िजसम तथा िजसके वारा बालक के ान, च र
तथा यवहार को एक वशेष सॉचे म ढाला जाता है।'' ''Education is a process in which
the knowledge,character and behaviour of the young are shaped and
moulded.” Prof. Drever.
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1.6 श ा का समि वत अथ (Comprehensive meaning of
Education)
जॉन डीवी के अनुसार, '' श ा ग या मक वकासो नमु खी एवं बालक, समाज और रा
क आव यकताओं क पू त म सहायक होनी चा हए।'' अथात श ा क ग या मकता का अथ है
क श ा या वारा यि त क मताओं एवं गुण क अ भ यि त के अवसर दे कर उसके
यि त व का सवागीण वकास होता है तथा ऐसी श ा यि त को प रव तत सामािजक पयावरण
से सम जन करने यो य बनाती है। श ा कया वारा यि त का इस कार वकास कया
जाना वांछनीय है िजसम वह समाज एवं रा का एक सु यो य नाग रक बन अपना स य
योगदान कर सक।
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1.8 श ा क कृ त : कला अथवा व ान?(Nature of
Education : Science or Art)
श ा क संक पना के साथ यह प भी जु ड़ा है क श ा क कृ त या है? श ा
कला है या व ान? इससे पूव यह समझ लेना आव यक है क कला एवं व ान कसे कहते ह?
कला का योजन है —''करना कु छ भाव डालना' अथात कला के मा यम से मानवीय कयाओं
का पा तरण कया जाता है। जब क व ान का अथ '' ान अथात स य का धारण है। व ान
वग कृ त स ा त और नर ण व पर ण करने यो य ान का समाहार है जो ता कक कम म
यवि थत कया जाता है। कला एवं व ान क इस या याओं के संदभ म श ा क कृ त का
नधारण कया जाना चा हए।
य द हम श ा क वषय—व तु, व प, व ध तथा उड़े य का व लेषण कर तो पायगे
क श ा न केवल कला है और न केवल व ान है। अ पतु वह कला तथा व ान दोन ह है।
कला का अथ एक आदश तु त करना है। कला हमे बताती है क अ भ ट या है, उ े य तथा
ग त य या है। इस प म श ा भी हमारे स मु ख अनेक आदश तु त करती है। अनेक उ े य
नि चत करती है तथा ग त य का नधारण करती है। उदाहरण के लए च र नमाण करना
रा य भावना का वकास करना, यि त व का सवागीण तथा स तु लत वकास करना जैसे
श ा के अनेक उ े य तथा आदश ह िजनको श ा के मा यम से ा त करने के यास कये
जाते ह। इस कृ त के कारण श ा कला है।
श ा व ान भी है। व ान हम द ता पूवक काय करने क व ध से अवगत कराती है।
यह ान को पूव नयोिजत, संग ठत तथा मत य यतापूवक ा त करने क ा व धय से अवगत
कराती है। श ा म अनेक यास इस कार कये जाते ह क यि त व का सवागीण वकास पूव
नयोिजत संग ठत, मत य यतापूवक व सफलतापूवक हो सक। इसके लए श ा ने व वध
व धय का भी वकास कर लया है, व भ न श ा स ा त का वकास कया है, श ा
व धय , उ े य का वग करण य, य उपकरण का नमाण, मू यांकन ा व धय तथा
व यालय संगठन के स ा त का वकास कया है। यह सभी श ा को मापन यो य व तु
न ठता तथा भावशीलता दान करने के उ े य से कया गया है। यह काय केवल व ान ह
कर सकता है अत: कहा जा सकता है क श ा व ान भी है। अ त म हम यह कह सकते ह
क श ा कला तथा व ान दोनो ह है। इसे केवल कला अथवा व ान कहना भूल है।
वमू यां क न
(Self Evaluation)
1. श ा क सं कु चत अवधारणा प ट क िजए।
2. यापक सं द भ मे स ा के सं यय क ववे च ना क िजए।
3. “ श ा व ान भी है कला भी” इस कथन क पु ि ट अपने तक वारा द िजए।
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1.9 श ा के आधार (Foundation of Education)
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डी. एल. के. ओड के श द म ''अ यापक वारा क ा म दया गया त या मक एवं
आलोचना मक ान अनुदेशन कहलाता है। अनुदेशन के अ तगत श क का य त य, नो तर,
चचा, योग सभी आ जाते ह। अनुदेशन श ा का एक अंग है, स पूण श ा नह ं। च लत भाषा
म हम िजसे पढ़ना कहते ह वह इसी अथ का योतक है। अनुदेशन क ा म भी हो सकता है
क ा के बाहर भी। श क तथा छा के बीच पा य मीय ान के आदान— दान क या
अनुदेशन कहलाती है।'' ब े डरसेल (Burstrand Russell) के अनुसार ''अनुदेशन या के
अ तगत श क को व या थय म शनै: शनै: कु छ मान सक आदत के नमाण करने का अवसर
मलता है।'' गे स के श द म ''अनुदेशन वह या है जो व याथ को कु छ उ े य क ओर
भा वत करती है।'' इन प रभाषाओं म अनुदेशन व श ा का भेद प ट होता है। डा. एन. आर.,
व प स सैना ने इस अ तर को य त करते हु ए कहा है क जहां श ा का े यापक है
य क वह बालक क ज मजात शि तय का वकास करती है वहां अनुदेशन का े केवल
मान सक वकास तक सी मत है। श ा म बालक मु ख है जब क अनुदेशन म श क। श ा क
भां त अनुदेशन बालक क च व मान सक ि थ त का यान नह ं रखता। श ा जीवन के लए
तैयार करवाती है। जब क अनुदेशन का उ े य केवल पर ा पास करना होता है। श ा नजी
अनुभव के आधार पर अिजत ान को थायी बनाने पर बल दे ती है क तु अनुदेशन म ान
रटाया जाता है जो थायी नह ं होता।
(2) व यालयीकरण (schooling) —
व यालयीकरण ह द श द ' व यालय' तथा अं ेजी श द ' कू ल' (School) से न मत
है। कू ल श द क यु प त यूनानी श द (Skhole) से हु ई है िजसका अथ है 'अवकाश'
(Lesiure) जो 'आ म वकास' या ' श ा' हे तु यु त कया जाता था। काला तर म ये
अवकाशालय अथात ' कू स' एक नि चत योजनानुसार पा यकम नि चत समय म समा त करने
लगे। कू ल के वकास को प ट करते हु ए ए.एफ. ल च ने कहा है, ''वे वचार, गोि ठयॉ अथवा
वाता थल िजनम रहकर एथे स के युवक खेलकू द व यायाम तथा यु हे तु श ण म अपना
अवकाश का समय यतीत करने थे, शनै: शनै: दशनशा एवं उ चतर क ाओं के कू ल म
प र णत होने लगे। अकादमी के सु सि जत उ यान म यतीत कए गए अवकाश से कू ल
वक सत हु ए।''
समाजोपयोगी नाग रक तैयार करने म इनक भू मका का उ लेख करते हु ए जे. एस. रॉस
(J.S.Ross) ने कू ल को इस कार प रभा षत कया है, स य मानव वारा ‘ कू स’ सं थाओं
का आ वभाव कया िजनका उ े य युवक को समाज के कायकु शल एवं समायोिजत सद य क
तैयार म सहायता करना था।'' कू ल को एक वशेष पयावरण के प म दे खत हु ए जॉन डी वी
का कथन है, ' कू ल एक व श ट पयावरण है, जहां एक नि चत जीवन तर व नि चत कार
के या—कलाप तथा यवसाय का ावधान इस उ े य से कया जाता है क बालक का वां छत
दशा म वकास हो सके।''
इस कार व यालयीकरण श ा का औपचा रक प है अथात यह श ा के संकु चत
अथ को कट करता है। व यालयीकरण श ा का एक अंग है स पूण श ा नह ।ं डॉ. ओड के
श द म इसका ववेचन श ा के संकु चत अथ म कया गया है। नि चत अव ध म, नि चत
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पा य म तथा नि चत व धय तथा नि चत यि तय वारा समू ह के प म द जाने वाल
श ा कू लंग कहलाती है।''
(3) श ण (Training)
डॉ. एल. के. ओड के श द म, 'एक ह कार के काय को पुन : आवृ त वारा उसम
द ता अिजत करना श ण कहलाता है। श ण बौ क न होकर द ता परक होता है।'' आर.
ए. शमा ने श ण मनो व ान को इन श द म प ट कया है, ''इस वचारधारा का आ वभाव
श ण क ज टल सम याओं एवं प रि थ तय पर कए गए शोध काय से हु आ है। इसके
अ तगत उन याओं को वशष मह व दया जाता है जो छा सीखते समय करता है। इसम
शु ता पर अ धक बल दया जाता है। श ण मनो व ान का उ े य या क प रे खा तैयार
करना और उनको इस कार यवि थत करना है िजनसे अपे त उ े य क ाि त क जा सके।
इच वचारधारा म काय व लेषण क धानता क जाती है। श ण मनो व ान श ण श ण
के लए एक उपागम है।'' प ट है क श ा का एक अंग या प मा ह है, श ा का पयाय
नह ं।
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तक सी मत है।
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ि थरता से वमु त कर ग या मकता लाती है, वचार को वत ता दान करती है तथा जीवन
के हर े म वत ता लाती है।
श ा सां कृ तक, धा मक तथा आ याि मक उ न त के लए भी अ नवाय है। श ा
समाज क सं कृ त को जी वत रखती है। सं कृ त का एक पीढ़ से दूसर पीढ़ को ह ता तरण
करती है। सं कृ त का प रमाजन करती है तथा सं कृ त को उपयु तता दान करती है।
आ याि मक उ न त व मान सक शि त के लए भी श ा अ नवाय है।
श ा मानव जीवन को सु खमय बनाती है। इसम भौ तक सु ख—सु वधाएँ भी ा त होती
ह। आज मानव ने कृ त पर जो वजय ा त क है वह भी श ा का प रणाम है। वै ा नक
उ न त तथा सु ख सु वधा के लए व ान वारा दत उपकरण श ा क ह दे न है। रे डयो,
चल च , व युत , वायुयान, रे लगा ड़यां, उ योग आ द सब व या वारा ह दये गये ह। श ा ने
मानव जीवन क र ाथ अनेक कार क औष धयाँ हम द ह। श ा हमारे जीवन को मा णत
करती है। इसस ह हम पशु व से ऊपर उठकर ई वर के नकट आ जाते है।
व—मू यां क न
(Self Evaluation)
1 श ा के आधार क ववे च ना क िजए ।
2 अनु दे शन, व यालयीकरण एवं श ण के स यय को प ट क िजए।
3 '' श ा आजीवन चलने वाल कया है । '' प ट क िजए।
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श ा जीवन पय त चलने वाल कया है। श ा वह अ नयि त वातावरण है िजसम
रहते हु ए बालक अपनी कृ त के अनुसार वत तापूवक नाना कार के अनुभव ा त करता है।
श ा क कृ त—कला अथवा व ान (Nature of Education: Science and Art)
य द हम श ा क वषय व तु व प व ध तथा उ े य का व लेषण कर तो पायगे
क श ा न केवल कला है और न ह केवल व ान है। अ पतु कला व व ान दोन ह है।
श ा म च लत आधा रत स यय
1. श ा (Education)
2. अनुदेशन (Instruction)
3. व यालयीकरण (Schooling)
4. श ण (Training)
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Differentiate between Education and Instruction.
.5 श ा, अनुदेशन, व यालयीकरण एवं श ण क अवधारणाओं म अ तर प ट
क िजए।
Differentiate between concept of Education Instruction,Schooling
and Training.
1.15 स दभ थ सू ची (Bibliography)
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इकाई—2
श ा के ल य, वृ तयॉ
Aims of Education and its Trends
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उ पादन का वकास करना (Development of Producation)
2.8.2 समाज स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Society)
सामािजक बुराइय का अ त
समाजवाद समाज क थापना
लोकताि क नाग रकता का वकास
2.8.3 रा स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Nation)
2.9 श ा का ऐ तहा सक प र े य (Historical Prespactive of Education)
2.9.1 ाचीन भारतीय समाज का व प एवं श ा
2.9.2 म यकाल न भारतीय समाज का व प एवं श ा
2.9.3 वतमान भारतीय समाज का व प एवं श ा
2.10 श ा म प रव तत वृि तयाँ (Changing Trends In Education)
2.11 श ा का भावी प र े य (Future Perspectives of Education)
2.12 सार सं ेप (Summary)
2.13 मू यांकन न (Evaluation Question)
2.14 संदभ थ सूची (Bibliography)
2.15 रपोट सू ची (Report List)
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उ े य का नधारण कये स प न क गई याऐ समाज व यि त के हत म बाधक भी हो
सकती है अत: श ा के स दभ म स पूण मानवीय या—कलाप को समाज के क याण क
दशा म े रत करने के लए श ा के ल य एवं उ े य क संक पना का उदय हु आ।
श ा ऐसी या है। िजसके वारा व याथ के यवहार म वां छत प रवतन लाया जा
सकता है। श ा का सीधा स ब ध अ धगम (Learning) से है। अ धगम अिजत करने के
फल व प व याथ के यवहार म अपे त प रवतन लाने हे तु यवि थत प से यास करना
होता है। िजसके लए श ा के ल य एवं उ े य नधा रत करने पड़ते ह।
2.3 ल य (Aims)
श ा को दशा दान करने वाले ल य होते ह। ये वे सा य है जो या के लए पथ
द शत करने का काय करते ह यथा छा म वै ा नक च तन का वकास करना, श ा का एक
ल य हो सकता है। इसक ाि त के लए
सी.वी. गुड (C.V.Good) — 'ल य पूव नधा रत सा य होता है, जो कसी काय या
या का मागदशन करता है।''
'Aims is a Foreseen and that gives direction to an activity.''
श ा क स पूण या अपने ल य पर आधा रत होती है। अत: श ा के ल य का
नधारण एक मह वपूण काय है। ल य वह न श ा क क पना भी नह ं क जा सकती है।
2..4 उ े य (Objectives)
उ े य, काय के फल या प रणाम का घोतक है जब या स प न क जाती है तो
नि चत प म वह कसी प रणाम क ओर उ मु ख होती है। हम काय को तब तक करते रहते
ह। जब तक नि चत उ े य को ा त न कर ल। हम जो ा त करना चाहते ह वे हमारे उ े य
है।
रॉबट मेगर (Robart Mager) —''उ े य वह मानद ड है िजसे छा वारा व यालय
या को पूण करके ा त कया जा सकता है।''
बी.एस. लूम (B.S.Bloom) — '' ान भावना व या म प रवतन लाना ह उ े य का
पूण होना है। यह अलग—अलग भी हो सकता है तथा कसी एक े म भी।''
अ त म हम कह सकते ह याओं के यवि थत प से संचालन हे तु उ े य होते ह।
य द उद े य सु प ट ह गे तो ल य क ाि त भी सरलता से होगी। उ े य को पूण करके ह
ल य क ाि त का यास कया जाता ह|
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. ल य उ े य
1. इनका नधारण दशन एवं समाज इ ह श क क ा—क क अपे ा के
आव यकता के अनु प कया जाता है। अनुसार मनोवै ा नक एवं श क तकनीक
आधार पर नधा रत
रहता ह।
2. ल य व तृत एवं द घकाल म ा त कये उ े य सट क व प ट होते है व इ ह
जाते ह। अ प अव ध म ा त कया जाता है।
3. ल य क ाि त हे तु पा य म नि चत नि चत पा यकम एवं श ण क यूह
नि चत नह ं होता व धय का व प भी रचनाओं के आधार उ े य को ा त कया
अ प ट होता है। जाता है।
4. ल य के नधारण म के य वचार उ े य छा को के मानकर नधा रत
स पूण समाज का होता है। कए जाते ह।
5. सै ाि तक व प होने के कारण ल य का काय को आधार मानकर बनाए गए उ े य
मापन क ठन एवं समय सा य होता है। स ा त के साथ—साथ योगा मक व प
के भी होते ह। अत: इनका मापन करना
अ नवाय होता है।
6. ल य मू य के अनु प नधा रत होते ह। उ े य का नधारण ल य के आधार पर
कया जाता है।
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इसके अ त र त जाताि क यव था म श ा के अ य ल य न न ल खत हो सकते
ह :—
1. सामािजक ि टकोण को वक सत करना
2. े ठ नाग रकता का श ण दे ने क यव था करना
3. अनुकू लन एवं साम ज य था पत करने क मता का वकास करना
4. अ छ आदत के तमान वक सत करना
5. आ थक स प नता हे तु तैयार करना
6. वै ा नक सोच वक सत करना
7. सामािजक याय हे तु तैयार करना
8. उ च आदश के नमाण क कया वक सत करना
9. वत एवं न प च तन मता का वकास करना
10. सवधम समभाव क भावना का वकास करना
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वमू यां क न (Self Evaluation)
1. ल य और उ े य म अ तर प ट क िजए|
2. श ा के ल य का व गकरण पे ट क िजए|
3. जातां क यव था म श ा के ल य बताइए|
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मु दा लयर क अ य ता म 'मा य मक श ा आयोग क नयुि त क गई। आयोग के अनुसार
श ा के उ े य न नां कत है :—
1. जाताि क नाग रकता का वकास (Development of Democratic
Citizenship)
2. कु शल जीवनयापन क कला म श ण (Training in the Art of Living
Efficiency)
3. यि त व का वकास (Development of Personality)
4. यावसा यक कुशलता क उ न त (Improvement of Vocational Efficiency)
5. नेत ृ व के लए श ा (Education for Leadership)
6. च र नमाण (Character Formation)
7. दे श ेम क भावना का वकास (Development of Nationality)
2.7.3 कोठार आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education According to
Kothari Commissions — 1964—66)
भारत सरकार के सम त तर पर श ा के व प स ा त एवं नी तय पर सलाह दे ने
के लए श ा आयोग क नयुि त क । डॉ. डी. एस. कोठार क अ य ता म काय करने के
कारण यह आयोग भी कोठार आयोग कहलाया। कोठार कमीशन रपोट म बहु त व तार से श ा
के उ े य पर चचा क गई। आयोग के वचार को सं ेप म दे ख तो ात होता है क श ा का
उ े य रा य ल य क ाि त है। रा के पुन नमाण हे तु श ा म प रवतन एवं न न चार
सम याओं का समाधान होना आव यक है —
1. खा य साम ी म आ म नभरता
2. आ थक वकास व बेरोजगार का अ त
3. सामािजक व राजनै तक एकता
4. राजनै तक वकास
इन सम याओं के समाधान के लए आयोग ने श ा को साधन के प म बताया।
आयोग के अनुसार जात म यि त वयं सा य है और श ा का मु ख काय है यि त को
अपनी शि तय के पूण वकास करने के लए अ धक से अ धक अवसर दान करना। सं ेप म
न न उ े य बताए गये ह :—
1. उ पादन म वृ करना (To incease Productivity)
2. सामािजक व रा य एकता का वकास करना (To Develop Social and
National Unity)
3. जात को सु ढ़ करना (To Consolidate democracy)
4. दे श का आधु नक करण करना (To Modernize the Country)
5. सामािजक, नै तक तथा आ याि मक मू य का वकास करना (To Develop
Social,Moral and Spiritual Values)
27
2.7.4 नई श ा नी त 1986 (New Education Policy,1986)
नई श ा नी त म न न ब दुओं को यान म रखकर श ा क चु नौती का प
मानकर कायकम नयोिजत करने क बात कह गई है। वे ब दु न न ल खत ह :—
1. जाताि क नाग रकता का वकास
2. जीवन जीने क यो यता का वकास
3. यि त व का वकास
4. यावसा यक कौशल का वकास
5. नेत ृ व का वकास
6. संवेगा मक एवं रा य एकता का वकास
7. अ तर सां कृ तक समझ का वकास
8. अ तरा य स ावना का वकास
2.7.5 आचाय राममू त स म त वारा रा य श ा नी त क समी ा (Critical Analysis
of New Education Policy by Acharya Rammurti Committee)
नई श ा नी त के पुनरावलोकन एवं समालोचन हे तु भारत सरकार ने 7 मई, 1990 को
रा य श ा नी त समी ा स म त का गठन कया िजसका अ य आचाय राममू त नयु त
कए गए। इसी कारण इसे राममू त समी ा स म त के नाम से भी जाना जाता है। वतमान
प र े य म सामािजक प रवतन को दशा दान करने वाले समाज क रचना सव मु ख रा य
ल य है। श ा क भू मका, ल य और मू य को समझाते हु ए या या क गई है। मु ख ब दु
ह|
1. श ा छा को ाना मक आधार दान करे िजससे शि त सं चत कर वह आगे संव ृ
कर सके।
2. श ा उन संभावनाओं को भी श त करे जहां छा बहु त प रि थ तय व कयाओं म
संल न होते हु ए कौशल अिजत कर सके िजसके आधार पर बालक आगे चलकर व श ट
यावसा यक नपुणता या यवसाय आधा रत कौशल वक सत करने म स म हो सके।
3. श ा उन शा वत मू य के नमाण म सहायक हो जो यि त के अपने चा र क आधार
है। साथ ह सामािजक, सां कृ तक व रा य मू य को समा हत कर। वे मू य ऐसा
ढाँचा न मत करे िजसके संदभ म यि त अपने नणय व यवहार को वैयि तक व
रा य तथा सामािजक हत के म य समि वत कर सके। ये वे मू य ह जो यि त को
तब ता व समपण दे ।
4. रा य समाकलन और एकता क ाि त म श ा म य थ व उ ेरक क भू मका का
नवाह करे और छा क सामािजक प रवतन के अ भकता बनाने म सहायक हो।
आचाय राममू त क अ य ता म ग ठत रा य श ा नी त (1986) क समी ा स म त
(1990) ने तीन मु बताए —
काम का अ धकार
रा य एकता
भारत के जन—जन म मानवीय भावना जागृत करना ।
28
(6) डेलस आयोग क रपोट ''अ धगम अ त: न ठ (Repart of Dallors Commission
“Learning Treasure within”)
अ तरा य यूनो के रपोट (Learning treasure within) म श ा के चार त भ
four pillars of education, बताएं है :—
जानने का अ धगम (Learning to know) — पया त प से यापक सामा य ान
को थोड़े से वषय पर ग मीरता से काय करने के अवसर संयोिजत करने वारा। इसका अथ
सीखने का अ धगम भी है, ता क उन अवसर का लाभ उठाया जाए िजनका श ा, जीवन भर के
लए, ावधान करती है।
करने का अ धगम (Learning to Do) — न केवल यावसा यक कौशल पर तु और
अ धक व तृत प म, अनेक ि थ तय से नपटने तथा समू ह म काय करने हे तु भी मता
अिजत करना। इसका अथ युवा वग के लोग के व च सामािजक एवं काय अनुभव के संदभ म
करना सीखना भी है, जो थानीय अथवा रा य संग के प रणाम व प अनौपचा रक अथवा
औपचा रक हो सकता है िजसम पा य म, एका तर अ ययन तथा काय सि म लत होते ह|
इक े रहने का अ धगम (Learning to live together) — अ य लोग के त एक
समझ तथा अ यो या य के त सराहना वक सत करना, संयु त योजनाऐ कायाि वत करना
तथा झगड़ को नयि त करना, सीखना बहु लवाद, पार प रक सू झबूझ तथा शाि त के मू य के
त स मान भाव बनाए रखते हु ए।
बनने का अ धगम (Learning to be) — ता क यि त के यि त व का बेहतर
वकास हो तथा सदा ह बढ़ती वाय तता, नणय एवं यि तगत उतरदा य व स हत काय करने
क यो यता उ प न हो। इस स ब ध म, श ा को यि त क अ त: शि त के कसी भी प
क अवहे लना नह ं करनी चा हए: मरण शि त, तक शि त, सौ दय बोध शार रक मताएँ तथा
संचार कौशल।
औपचा रक श ा प तयाँ अ य कार के अ धगम के त अवरोधक बनकर ानाजन
बल दे ने के लए त पर रहती ह, पर तु अब श ा क एक ओर समा हत प म क पना करना
मह वपूण है। इस कार के ि टकोण को वषयव तु तथा व धय के स ब ध म भावी शै क
सु धार एवं नी त के त नद शत एवं सू चत करना चा हए।
जीवन पय त अ धगम (Life long learning)
(1) आजीवन अ धगम का यय ह तो वह कं ु जी है जो इ क सवीं शता द क ओर उपगमन
दान करता है। यह ारि मक तथा नर तर श ा के बीच क पार प रक व भ नता से कह ं परे
तक जाता है। यह एक अ य, ाय: े षत स यय, अथात अ धगम समाज क अवधारणा से
जोड़ता है िजसके अ तगत येक व तु अ धगम तथा वैयि तक अ त: शि त प रपूण करने का
अवसर दान करती है।
(2) अपने नये व प म, नर तर श ा, जो कु छ भी पहले अ यास म है, से कह ं दूर आगे
बढ़ती तीत होती है, वशेषतया वक सत दे श म, अथात वय क के लए पुन चया श ण,
पुन श ण तथा प रवतन अथवा ो साहन पा यकम वारा पदो न त। इसे सभी के लए श ा
के वार खोलने चा हए, अनेक कार के भ न उ े य हे तु उ ह दूसरा अथवा तीसरा अवसर दे ना,
ान और सु दरता के त उनक इ छा पूण करना अथवा वयं से ऊपर उठने क उनक कामना
29
क पू त करना अथवा ायो गक श ण स हत, श ण के सह यावसा यक व प को
यापक एवं गहन बनाना संभव करना।
सं ेप म, 'आजीवन अ धगम' को समाज वारा दान कए गए सभी अवसर का लाभ
उठाना चा हए।
30
7. वतमान म आव यकता है क भारतीय जनता को अ ध व वास, यथ क ढ़वा दता
एवं अकम यता बढ़ाने वाल भा यवा दता के चंगल
ु से नकलकर उसका आधु नक करण
कया जाए।
8. आज भारत म ऐसी श ा क आव यकता है जो यावहा रक ान दान कर सक जीवन
से स बि धत हो तथा छा क काय कु शलता एवं काय मता को बढ़ा सक।
श ा के न नां कत ल य नि चत कर सकते ह
2.8.1 यि त स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Individual)
आधु नक भारत म यि त से स बि धत श ा के न नां कत ल य नधा रत कए जा
सकते है :—
शार रक वकास (Physical Development)
इस ल य क पू त के लए श ा यव था म हमे यायाम, योग एवं ाणायाम, वा य
श ा, शर र व ान, खेलकू द, भोजन के पोि टक त व आ द से स बि धत यावहा रक सै ाि तक
श ा क यव था करनी होगी।
चा र क वकास (Character Development)
आज भारत के यि तय के यि त व एवं रा य चर का वकास करने क नता त
आव यकता है। आज भारत के चा र क तर काफ गर गया है व इसम चारो ओर बेईमानी,
टाचार, बला कार, कामचोर , घूसखोर जैसी कु वृि तय का बोलबाला है। भारत, म कसी भी
कार के रा य चर का भी अभाव है। इन दोन ह ि टकोण से आज भारत म यि त व
एवं रा य चर के वकास क आव यकता है अत: श ा का ल य यि तय का चा र क
वकास करना भी है।
मान सक वकास (Mental Development)
भारत के नाग रक का इस कार से मान सक वकास करने क भी आव यकता है क वे
वत प से ववेकयु त च तन कर सक, त य का व लेषण कर सके एवं उपयु त नणय
ले सक।
सां कृ तक वकास (Cultural Development)
यह स य है क आज भारत अपनी महान एवं गौरवमयी सं कृ त धू मल कर बैठा है।
श ा के मा यम से हम अपनी सं कृ त का प पुन : नखारना है। सं कृ त के उ नयन हे तु हम
सं कृ त का प रमाजन एवं प र करण करना होगा। श ा के वारा भारतीय सं कृ त को जन—
जन म फैलाना होगा। श ा के वारा आज हम भारतीय पर पा चा य स यता का जो भू त सवार
है उसे भगाना होगा।
आधु नक करण करना (Doing Modernization)
श ा के वारा यि तय को ढ़वा दता, भा यवा दता एवं अ ानता क वषैल कु डल
से बाहर नकालकर लाने क आव यकता है, िजससे आज के भारतीय नई वै ा नक दु नया के
आगे गव से अपना सर ऊँचा कर सक। आधु नक करण के वारा ह वे उ न त के नये—नये
साधन व ान का योग कर सकते।
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उ पादन का वकास करना (Development of Productivity)
आज भारत के कसान एवं मक दोन ह त यि त औसत उ पादन मता एवं
काय मता व व के अ य रा म बहु त ह कम है। यह इस लए क भारत के कसान एवं
मक दोन ह अ श त है एवं आज भी भारत म उ पादन क पुरानी तकनीक का योग कया
जाता है। श ा के वारा उनक उ पादन मता बढ़ानी है।
2.8.2 समाज स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to society)
आज भारतीय समाज अनेक बुराइय तथा ह न भावनाओं से सत है, इसके कारण आज
का भारतीय समाज वां छत उ न त नह ं कर पा रहा है। सामािजक उ न त के लए श ा को
बहु त कु छ करना है। वा तव म आज के समाज म या त बुराइय , कु र तय तथा अ यव थाओं
का अ त करके उसे उ न त के पथ पर अ सर करने का काय केवल श ा ह कर सकती है। इस
काय हे तु श ा के न नां कत ल य नधा रत कए गए है :—
सामािजक बुराईय का अ त (Educational of social Evils)
आज का भारतीय समाज व वध सामािजक बुराइय से त है। दहे ज, मृ युभोज ,
आड बर, ढकोसले, अ ध व वास, मू त—पूजा, बाल ववाह जैसी सकड बुराइय का धु न हमारे
समाज को शनै—शनै खाये जा रहा है। श ा वारा इन बुराइय के त एक आ दोलन जमाने क
आव यकता है। श ा वारा छा को इन बुराइय के त जाग क बनाकर उनको दूर करने के
यास करने ह गे।
समाजवाद समाज क थापना (Establishment of Socialistic Society)
भारतीय सं वधान म यह घोषणा क गई है क भारत म समाजवाद समाज क थापना
क जायेगी। समाजवाद समाज म सबको सामािजक याय मलता है, सबके लए अवसर क
समानता होती है, सबको उपयु त े म पया त वत ता ा त होती है। इस संवध
ै ा नक
यव था क पू त एवं ाि त श ा के वारा ह संभव है। आज क श ा का उ े य यह भी है
क वह भारत म समाजवाद समाज क थापना के य न व यास कर।
लोकताि क नाग रकता का वकास (Development of Democratic
citizenship)
आज क भारतीय श ा का मु य ल य भारत म लोकताि कता का वकास करना है।
इस कार क नाग रकता के वकास से ह भारत म लोकत ा मक शासन यव था सफल हो
सकती है। इस काय के लए रा के नाग रक म नेत ृ व के गुण का वकास करना होगा, िजससे
नाग रक वत नणय ले 'सक, वचार व भाषण म प टता ला सक, जा त ा त भाषा जैसी
संक णताओं से ऊपर उठ 'सके तथा धमा धता एवं प पात को याग रा के उ थान हे तु क टब
हो सक|
2.8.3 रा स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Nation)
आज भारत रा के सामने भी अनेकानेक सम याएँ ह। इन रा य तर क सम याओं
के समाधान हे तु श ा के न नां कत ल य नधा रत कए जा सकते ह :—
1. रा य एकता क भावना का वकास करना
2. मानवीय मू य का वकास करना
3. जन— श ा क यव था करना
32
4. आ थक उ न त के माग श त करना
5. आधु नक करण क या को ग त दान करना
6. अ तरा यता क भावना का वकास करना
उपयु त ल य क ाि त श ा वारा ह क जा सकती है। हम अपनी श ा णाल
को य प से यि तगत, सामािजक एवं आव यकताओं से स बि धत करना होगा।
33
2.9.2 म यकाल न भारतीय समाज का व प एवं श ा
म यकाल न भारत म मु ि लम आ मणका रय ने ाचीन श ण सं थाएँ न ट ट कर
द ं क तु जब शां त व यव था था पत हु ई तो द ल के सु लतान ने श ा क ओर कु छ यान
दया। य य प श ा क कोई सु यवि थत नी त मु ि लम शासक ने नधा रत नह ं क थी।
तथा प कई थान पर मि जद म मकतब और मदरसे खोले गए िजनम अरबी व फारसी का
अ ययन कया जाता था। मकतब ाथ मक श ा क सं थाऐ थीं तथा मदरसे उ च श ा के
के थे। पं डत व ा मण अपने घर म या मि दर म ह दू बालक को ाचीन प त से श ा
दे ते थे। मु सलमान म पदा था होने से म हला श ा उपे त रह । मु गल शासक के समय
श ा पर अ धक यान दया जाने लगा। उदू व फारसी शासन व याय क भाषा होने के कारण
इनके अ ययन क ओर लोग का यान अ धक जाने लगा ता क उ ह सरकार नौकर मलने
लगे।
भारतीय सं कृ त सदै व से सम वयकार रह है िजतने भी वदे शी आ मणकार —शक हु ण,
कु शाण, मु सलमान आ द भारत म आकर बस गये, भारतीय सं कृ त म उनक सं कृ त का वलय
हो गया। भारतीय समाज वदे शी भाव के कारण प रव तत होते हु ए भी अपनी ाचीन
सा कृ तक पर परा को अ ु ण बनाये रख सका तथा पर पर सा कृ तक आदान— दान वारा
नवीन सामािजक मू य का सृजन एवं वकास करता रहा। डा. आशीवाद लाल ीवा तव का मत
है क “'आधु नक भारतीय सं कृ त कसी एक जा त या स दाय क दे न नह है। यह म त
सं कृ त है िजसम ह दू, बौ , मु ि लम, ईसाई तथा अं ेज का योगदान है।'' म यकाल न
भारतीय समाज म जो सम वयकार प रवतन व प रवधन हु ए वे मु ि लम शासक क श ा नी त
से े रत थे।
2.9.3 वतमान भारतीय समाज का व प एवं श ा
मु गल सा ा य के पतन के बाद भारत म अं ेजी शासन आर भ हु आ। अं ेज क ई ट
ईि डया क पनी भारत म यापार के प म आई क तु शनै: शनै: अपने दे श के राजनै तक
मामल म ह त ेप कर अपनी स ता था पत कर ल । आरं भ म अं ेज ने दे श म श ा— सार
के त उदासीनता दखलाई क तु बाद म अपने शासन को सु ढ़ करने हे तु उ ह ने ऐसी श ा
प त क नींव डाल जो भारतीय को अं ेजी भाषा के मा यम से श त कर लक तैयार कर
सक। 1835 म गवनर जनरल क क सल के कानून सद य एवं श ा स म त के अ य लाड
मेकाले (Macauley) ने अं ेजी श ा और मा यम का समथन करते हु ए कहा, “हमे अपनी
सम त शि त लगाकर ऐसा य न करना चा हए क हम भारतवा सय क एक ऐसी ेणी बना
सक िजसम यि त जा त और रं ग म तो भारतीय ह रह पर तु च, वचार और भाषा म पूण
अं ेज हो।'' अं ेज वारा अपनाये गये ' न प दन स ा त' (Down ward filteration
theory) के अनुसार श ा यव था केवल उ च वग वशेष के लए क गई। काला तर म
अं ेजी श ा प त के चार व सार वारा भारतीय म अपनी सं कृ त के त घृणा उ प न
क गई।
य य प अं ेजी शासन के व भारतीय वाधीनता आ दोलन क अव ध म कु छ
भारतीय श ा वद एवं च तक ने रा य श ा प त को अपनाने पर बल दया िजनम वामी
ववेकान द, वामी दयान द, ीअर व द, महा मा गॉधी आ द मु ख है तथा प 1947 म दे श क
34
वत ता ाि त के बाद भी पर परागत अं ेजी श ा प त ह जार रह । फलत: भारतीय
समाज व सं कृ त का वघटन होता रहा जो रा के वकास म बाधक है। वतमान भारतीय
समाज के प रवतन म श ा प त अपनी वधायक भू मका नह नभा सक । वात ो तर काल
म दे श क श ा प त को रा य हत के अनुकू ल वक सत करने हे तु अनेक श ा आयोग ने
अपनी तु तयाँ तु त क है क तु अभी तक ऐसी रा य श ा प त का नधारण नह हो
पाया है िजससे क दे शवा सय क आशाओं एवं आकां ाओं के अनुकू ल वतमान भारतीय समाज
म श क अपनी ाि तकार भू मका नभाकर भावी भारतीय समाज का नव नमाण कर सक।
35
वमू यां क न (Self Evaluation)
1. “ श ा के ल य दे शकाल के अनु सार प रव तत होते रहते ह|” इस कथन क पु ि ट
क िजए|
36
5. भावी श ा द घगामी उ े य तथा उसको ा त करने के जाताि क तर क पर बल
दे नी चा हए।
6. यूने को क बहु च चत रपोट “अ धगम अ तः न ट” का नचोड़ यह है क भ व य क
श ा के चार मु ख उ े य ह गे —
1. एक अ तरा य समु दाय का नमाण करना
2. जात म व वास उ प न करना
3. मनु य का सवा गण वकास करना
4. जीवन पय त श ा दान करना
उ त तवेदन के अनुसार भावी श ा क मह वपूण वशेषताएँ :—
वषय—व तु यि त वशेष हे तु होगी।
चयन के थान पर मागदशन पर बल दया जायेगा।
श ा यि तगत होगी।
व यालय शासन वकेि त होगा।
व यालय म जाताि क यव था लागू क जाए, वशेष सु वधाऐ वशेषा धकार
समा त कए जाएं।
येक सीखने वाले को वयं ह अपनी श ा का उतरदा य व संभालना होगा।
एक सीखने वाला समाज (Learning society) एवं सीखने वाला वातावरण
(Learning Enviornment) बनाया जाए।
श ा क औपचा रक यव थाओं के थान पर पूणतया खु ल एवं ग तशील
यव थाऐ होनी चा हए। ता क कोई भी सीखने वाला अपनी इ छा, मता या ग त
के अनुसार अपने जीवन के लए उपयोगी ान कसी भी ोत से ा त कर सक।
व यालय श ण साम ी के के के प म हो, श क आव यकता पड़ने पर
सहायता व मागदशन कर। समाज के व भ न औपचा रक एवं अनौपचा रक साधन
श ा ा त करने म सहायक हो।
आयु सीमा, वषय , पा य मो तर , पर ाओं के कृ म अवरोधक समा त कर
दए जाएं।
पूव ाथ मक एवं ौढ़ श ा पर वशेष प से अ धक बल दया जाए।
श ा को अ याधु नक तकनीक श ा दान करने म अ धका धक योग कया
जाएं।
अ त वषयी श ा व शोध काय पर बल दया जाएं।
भावी श ा ग तशील, सामािजक असमानताओं और अ याय से मु ि त दलवाने
वाल तथा पर परागत मू य वाल होनी चा हए।
रा वशेष क सामािजक, आ थक व राजनी तक वकास क अव थाओं के अनुसार
सश त व स पूण होना चा हए। ऐसा तभी संभव होगा जब क श ाशा ी, सामािजक व
राजनी तक नेता, अ धकार सभी श ा के भ व य के बारे म खु ले दमाग से सृजना मक च तन
कर व यावहा रक काय कर।
37
2.12 सार सं ेप (Summary)
श ा के ल य एवं उ े य
ल य या के लए पथ द शत करते ह जब क उ े य काय के फल या प रणाम का
घोतक है।
श ा के ल य
(1). यि तगत ल य
आ मानुभू त
आ मा भ यि त
(2). सामािजक ल य
उ प
उदार प
(3). अ य ल य
ान का ल य
शार रक वकास का ल य
चर वकास
नाग रकता का ल य
जी वकोपोजन का ल य
सां कृ तक वकास का ल य
सवागीण वकास का ल य
व भ न आयोग एवं स म तय के अनुसार श ा के ल य :—
1. व व व यालय आयोग के अनुसार श ा के ल य
2. मा य मक श ा आयोग के अनुसार श ा के ल य
3. कोठार आयोग के अनुसार श ा के ल य
4. नई नी त 1986 एवं राममू त स म त के अनुसार श ा के ल य
5. राममू त स म त वारा रा य श ा नी त क समी ा
6. अ तरा य श ा आयोग (डेलस आयोग ) ''अ धगम अ तः न ट न ध' म मु य
संकेतक एवं सफा रशे –
श ा के चार त म —
जानने का अ धगम Learning to Know
करने का अ धगम Learning to Do
इक े रहने का अ धगम Learning to live together
बनाने का अ धगम Learning to be
आधु नक भारतीय समाज के संदभ म श ा के ल य :—
यि त स ब धी शै क ल य
समाज स ब धी श ा के ल य
रा स ब धी शै क ल य
38
श ा का ऐ तहा सक प र े य
1. ाचीन भारतीय समाज का व प एवं श ा
2. म यकाल न भारतीय समाज का व प एवं श ा
3. वतमान भारतीय समाज का व प एवं श ा
श ा का भावी प र े य
आज ती ग त से ान का व फोट हो रहा है उससे मु काबला करने के लए व यालय
के पास कोई ठोस और नि चत योजना तक नह ं है। भावी श ा म बालक व श क को सतत ्
अ यायनरत बनाए रखना होगा। पु तकालय ह ान ाि त के साधन के प म पया त नह ं है।
इसके लए रे डय , ट वी. इ टरनेट आ द दूर संचार के साधन को क ा—क म लाना होगा।
39
Discuss the view of different Education Commission regarding the
aims of Education.
2.14 स दभ थ सू ची (Bibliography)
40
इकाई—3
श ा के अ भकरण : औपचा रक, अनौपचा रक एवं
नरोपचा रक
(Agencies of Education : Formal,Non—formal and
Informal)
इकाई क परे खा (Outline of the unit)
3.1 इकाई के उ े य (Objectives of the unit)
3.2 वषय वेश (Introduction)
3.3 श ा के अ भकरण का वग करण (Classification of Agencies of Education)
3.4 श ा के औपचा रक अ भकरण (Formal Agencies of Education)
3.4.1 औपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Formal Agencies)
3.4.2 औपचा रक श ा के दोष (Demerits of Formal Education)
3.4.3 व यालय श ा के औपचा रक अ भकरण के प म (School as a Formal
Agency of Education)
व यालय क प रभाषा (Definition of School)
आधु नक व यालय क मु ख वशेषताएँ (Main Characteristics of
modern School)
व यालय के काय (Function of School)
3.5 श ा के अनौपचा रक अ भकरण (Informal Agency of Education)
घर या प रवार (Home or Family)
समु दाय (Community)
रा य (State)
धम या धा मक सं थाएँ (Religion or Religies Institutions)
जनसंचार के साधन (Mass Media)
3.5.1 अनौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Informal Education)
3.5.2 अनौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Informal Education)
3.6 श ा के नरोपचा रक अ भकरण (Non—Formal Agency of Education)
3.6.1 नरौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Non—Formal
Education)
3.6.2 नरौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Non—Formal Education)
41
3.7 श ा के औपचा रक, अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण म अ तर (Difference
among Formal Informal and Non—Formal Education)
3.8 खु ला व यालय, खु ला व व व यालय (Open School, Open universities)
3.8.1 खु ला व यालय (Open School)
3.8.2 खु ला व व व यालय (Open University)
(अ) व व व यालय के कार (Types of Open University)
आवासीय व व व यालय (Residential University)
अनुबि धत व व व यालय (Contact Bases University)
आवासीय तथा अनुबि धत व व व यालय (Residential and Contact
Bases University)
(4) खु ला व व व यालय (Open University)
खु ला व व व यालय क आव यकता (need of Open University)
खु ला व व व यालय क काय व ध (Procedure of Open University)
खु ला व व व यालय : वकास कथा (Open University : Development
History)
3.9 इि दरा गॉधी रा य खु ला व व व यालय (indira Gandhi National Open
University)
3.10 रा य तर य खु ला व व व यालय : वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
(State Open University : Vardhman Mahaveer Open University)
3.10.1 उ े य (Objectives)
3.10.2 वधमान महावीर खु ला व व व यालय क वशेषताएँ (Characteristics of
Vardhman Mahaveer Open University,Kota)
3.10.3 अ ययन साम ी एवं ेणांक (Study Material and Credit System)
3.10.4 वधमान महावीर खु ला व व व यालय वारा संचा लत व भ न पा यकम (Difference
Courses run by Vardhman Open University)
3.10.5 पर ा प त (Examination Pattern)
3.10.6 मू यांकन (Evaluation)
3.10.7 व याथ सहायता सेवाएँ (Student Support Services)
3.11 सार सं ेप (Summary)
3.12 मू यांकन न (Evaluations Question)
3.13 संदभ थ सूची (Bibliography)
42
2. श ा के अ भकरण का वग करण समझ सकगे।
3. श ा के औपचा रक, अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण के स यय से प र चत
हो सकगे।
4. इन तीनो अ भकरण म अ तर था पत कर सकगे।
5. व यालय एक औपचा रक अ भकरण के साधन के प म या या कर सकगे।
6. व यालय के काय को समझ सकगे।
7. घर—प रवार, समु दाय, रा य, धा मक सं थाएँ एवं जनसंचार साधन म अनौपचा रक
अ भकरण के साधन है, प र चत हो सकगे।
8. खु ल व यालय के व प म अवगत हो सकगे।
9. व व व यालय के कार से अवगत हो सकगे।
10. खु ला व व व यालय के व प, आव यकता के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
11. खु ला व व व यालय क काय व ध एवं वकास गाथा से प र चत हो सकगे।
12. रा य एवं रा य तर य खु ला व यालय के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
43
ाउन (Brown) ने श ा के अ भकरण को चार े णय म वग कृ त कया है :—
44
उपयु त सभी वग करण को दे खते हु ए हम श ा के अ भकरण को मु यत:
न न ल खत तीन े णय म वग कृ त कर सकते ह :—
45
3.4.2 औपचा रक श ा के दोष (Demerits of Formal Education)
यह श ा सै ाि तक अ धक व यावहा रक कम है।
औपचा रक श ा बालक को यह सखाती है क उसके जीवन का मु ख उ े य पर ा
उ तीण करना है एवं माण—प ा त करना है।
यह श ा अ यापक को भी पा य म पूरा करने तक सी मत कर दे ती है।
श ा व यालय क चार द वार म बँध जाती है।
3.4.3 व यालय— श ा के औपचा रक अ भकरण के प म (School as a Formal
Agency Of Education)
ाचीनकाल म ीक म बालक िजस थान पर अपने आ मा के वकास हे तु जाता था
उ ह कू ल कहते थे। धीरे —धीरे इन सं थाओं का वकास श ा दे ने के एक पूव नयोिजत थान
के प म हु आ जो बालक को नि चतकाल म नि चत समय म नि चत कार क श ा दान
करने का काय करते थे।
भारतीय दशन क मा यता व यालय के बारे म वह व या+आलय अथात ् व यालय वह
थान है जहाँ श ा का आदान— दान होता है। वा त वकता म दे खा जाए तो व यालय
औपचा रक श ा दान करने का स य साधन है।
(1) व यालय क प रभाषा (Definition of School)
जॉन यूवी (John Dewey) के अनुसार, ' कू ल एक ऐसा व श ट वातावरण है जहाँ
बालक के वां छत वकास क ि ट से व श ट याओं तथा यवसाय क श ा द जाती है।''
"School is a special environment where a certain quality of life
and certain type of activities and occupation are provided with the object
of securing the child's development along desirable lives."
रॉस (Ross) के अनुसार, '' व यालय वे सं थाएँ ह िजनको स य मनु य ने इस उ े य
से था पत कया है क समाज म सु यवि थत तथा यो य सद यता के लए बालक को तैयार
करने म सहायता मले।''
"Schools are institutions desired by civilized man for the purpose
of aiding in the preparation of the young for well adjusted and efficient
members of society."
व यालय क अवधारणा क चचा हम दो प म कर सकते ह :—
व यालय क पर परागत अवधारणा (Traditional Concept of Education)
व यालय क आधु नक अवधारणा (Modern Concept of Education)
व यालय क पर परागत अवधारण म व यालय को ान दान करने के एक साधन
के प म दे खते है। इनक मा यता है क व यालय म ान का य व व य होता है।
अ यापक ान को बेचते है व बालक ान खर दते है। यह वचारधारा श ा क या को
नीरस व नज व बनाती है एवं कूल के वातावरण को भी कृ म बनाकर वा त वकता से दूर ले
जाती है। इन व यालय म ान दान करने का तर का मनोवै ा नक होता था। चू ं क बालक क
च, यो यता व मताओं पर ये यान नह ं दे ते थे।
46
व यालय क आधु नक आवधारणा के अ तगत समाज व यालय से कु छ अ धक
अपे ाएँ करता है। अब व यालय सू चना तथा ान दान करने के के मा नह ं रहे है। आज
के व यालय का उ े य लोकत ा मक शासन णाल के लए एक कु शल व सफल नाग रक का
नमाण करना भी है।
(2) आधु नक व यालय क मु ख वशेषताऐ (Main Characteristics of Modern
School)
छा के त नवीन ि टकोण (New Attitude towards Students)
श ा म या के स ा त पर बल (Emphasis on principle of Activity in
Education)
सामु दा यक भावना का वकास (Development of Community Feeling)
स य वातावरण होना (Have an active Environment)
रा व व व के त ि टकोण का नमाण (Formation of the Healthy
Attitude for Nation and the World)
(3) व यालय के काय (Function of School)
व भ न व वान ने व यालय के काय के स ब ध म अपने—अपने वचार य त कये
ह िजनम से मु ख इस कार है —
ू ेकर (Brubacher) ने व यालय के काय को तीन
ब े णय म वभ त कया है:—
47
नै सी कैट (Nancy Catty) ने व यालय के न न काय बताएं है :—
48
बालक के आचरण का पा तरण करते ह पर तु पा तरण क या अ ात, अ य व
अनौपचा रक होती है।
इन अ भकरण म घर या प रवार, समु दाय, रा य, धम या धा मक सं थाएं एवं जन—
संचार के साधन यथा रे डयो, ट वी, चल च आ द क गणना क जाती है।
घर या प रवार (Home or Family)
घर या प रवार ाचीनकाल से ह मानव के सामािजक जीवन का आधार रहा है। घर या
प रवार म ह बालक ारि मक श ा हण करता है तथा बाद म भी अ य प से उसके
यि त व पर भाव डालता है। वह बालक क आ थक, धा मक, सामािजक और शै क सभी
कार क आव यकताओं क पू त करता है। बालक अपने प रवारजन को दे खकर अनुकरण वारा
अथवा घर के काय म हाथ बटाकर अनेक चा र क गुण को सीखते है। अत: घर या प रवार का
कत य है क वह अपने बालक क अ य श ा वारा उनके त ेम, नेह व सहानुभू त का
यवहार कर उनके यि त व का वकास करे । व यालय अथवा औपचा रक अ भकरण के काय म
भी घर या प रवार का सहयोग अपे त है।
समु दाय (Community)
थानीय समाज या समु दाय म रहकर बालक र त— रवाज, पर पराएँ, धारणाएँ तथा
जीवन प त का अ य श ण ा त करता है। समुदाय सामािजक जीवन का े है।
व यालय अथात ् औपचा रक अ भकरण क कायकु शलता एवं भावो पादकता समु दाय पर ह
नभर होती है। थानीय समु दाय के सहयोग, सदभावना एवं जन—सहयोग वारा ह श ा के
औपचा रक अ भकरण या सं थाओं क थापना होती है एवं उनका श ण काय उ च तर य बन
पाता ह|
रा य (State)
अनौपचा रक श ा अ भकरण म रा य का भाव आज क ि थ त म सव पर है।
बालक क समु चत श ा—द ा हे तु पया त धनरा श आवं टत कर उपयु त श ा सं थाओं क
थापना करने व श ा के समान अवसर समाज के सभी वग के बालक को उपल ध कराने म
रा य का योगदान ह नणायक स होता है। इसके अ त र त रा य क राजनै तक ग त व धयाँ
भी बालक क श ा पर अ य क तु नणायक भाव डालती है। भारत जैसे लोकताि क
शासन णाल के दे श म वधायक एवं सांसद के यवहार एवं लोकताि क सं थाओं क काय
णाल बालक को भा वत करती है तथा उ ह भावी नाग रक क भू मका नभाने हे तु तैयार
करती है। अत: रा य का यह कत य है क वह श ा के त अपने उ तरदा य व को समझे।
धम या धा मक सं थाएँ (Religion or Religies Institutions)
धम या धा मक सं थान (मि दर, मि जद, गु वारा, चच आ द) का बालक के
यि त व पर अ य भाव पड़ता है। य य प भारत एक धम नरपे लोकताि क रा है
क तु धम का भारतीय जनमानस पर सदै व से ह गहरा भाव बना रहा है। अत: इन धा मक
सं थाओं का यह कत य है क वे अपने स यय के बालक म धम—स ह णु ता तथा दूसर के
धम के त आदर क भावना वक सत कर िजससे क सा दा यक भेदभाव के कारण रा य
एकता था पत करने म कोई बाधा न आये।
49
जनसंचार के साधन (Mass Media)
जनसंचार के साधन म समाचार प , चल च , ट वी. आ द का इस युग म श ा के
अनौपचा रक अ भकरण के प म भाव अ य धक ि टगत होता है। ये अ य प से बालक
के मानस पर भाव डालते ह। श ा सं थाओं म व याथ असंतोष, अनुशासनह नता,
अपराधवृि त, अ ल ल यवहार आ द अनेक असामािजक त व का समावेश जनसंचार के इन
साधन का दु भाव है। अत: इन साधन का दु पयोग न होकर बालक क अ य श ा हे तु
सदुपयोग कया जाना आव यक है।
3.5.1 अनौपचा रक श ा क वशेषताऐ (Characteristics of Informal Education)
1. अनौपचा रक श ा वाभा वक होती है अथात ् यह कृ मता से परे होती है।
2. यह श ा जीवनपय त चलती है अथात ् जब बालक इस संसार म ज म लेता है तब से
ार म होकर मृ यु पय त तक चलती है।
3. इस श ा को दे ने का मु ख साधन प रवार, पड़ौस, समाज, रा य, धम आ द है।
4. इसम बालक अपने अनुभव के मा यम से श ा ा त करता है।
5. इसम बालक वत वातावरण म श ा हण करता है। उसके ऊपर कोई कठोर
नय ण नह ं होता है|
6. यह श ा बालक क च एवं िज ासा पर आधा रत होती है।
3.5.2 अनौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Informal Education)
1. इसके वारा दान कया गया ान अ प ट होता है।
2. इसम श ा का समय व थान अ नि चत होने के कारण श ा क ि थ त सदै व
अ प ट रहती है।
3. ान हण करते समय बालक गलत धारणाओं का वकास कर लेता है|
4. इस श ा के वारा हम कौशल एवं तकनी कय का वकास नह ं कर सकते ह।
5. इसक नयमावल व अनुशासन ढ ला होता है।
51
1.7 श ा के औपचा रक, अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण
म अ तर (Difference among Formal,Informal and
Non— formal Agencies of Education)
52
2.यह वभ न है। 2. सीखना क मक
इकाइय म वभ त 2. सीखना एक प से नह
होता है। अचानक होता है।
3.सीखना एक मक होने वाल या 3. इसक यव था
कया के प म है। सचे ट होता है।
होता है।
6 नय ण 1. इसके ऊपर 1 यह सीखने वाले इसम श ा के कु छ
(Control) याि क प से के नय ण पर े पर नय ण
नयं ण होता आधा रत होता है। होता है |
होता ह| कु छ पर नह ं।
2. सीखने वाले
पर श ा के येक
े को लाया जाता
है।
7 थान 1. थान नि चत 1. थान नि चत 1 थान छा के
(Location) होता है। नह ं होता है। लए नि चत नह ं
ले कन श ा दे ने
का थान नि चत
होता है।
53
3.8 खु ला व यालय एवं व व व यालय (Open School,Open
Universities)
3.8.1 खु ला व यालय (Open Schooling)
श ा जगत म ईवान इ लच क 'डी कू लंग सोसायट ' और एडवड रे मर क ' कू ल इज
डेड' पु तक ने नयी— वचारधारा को ज म दया है। रे मर के अनुसार हमार पर प रत व यालय
प त मर गई है और हम श ा के नये साधन क खोज करनी है। इ लच का वचार है क हम
व यालय को व था पत कर सकते ह अथवा हम अपनी सं कृ त को व यालय र हत बना
सकते ह। य क व यालय अथह न हो गये ह। इ लच ने व यालय को कारागाह माना है
इस लए वह खेल या वत व यालय क थापना करना चाहता है। उसके मत से इन वत
व यालय क दो मु ख आव यकताएँ ह :—
1. उ ह ेड व माण प से मु त होना चा हए।
2. उ ह व यालयी समाज के छुपे हु ए मू य से वत होना चा हए।
उसके अनुसार इस वत व यालय के लए वत अ यापक क आव यकता है।
अभी अ यापक का े पा य म और व यालय के े तक सी मत है। उसे बढ़ाकर स पूण
मानव जीवन से स बि धत करना है। उसके अनुसार इस तकनीक युग म कु छ चु ने हु ए
शि तशाल लोग वारा वै ा नक ान और संचार साधन पर भु व पा लेने के कारण जन—
साधारण उन सु वधाओं से वं चत रहता है। अत: इस समाज यव था म प रवतन क आव यकता
है।
एडवड रे मर के अनुसार जब छा क सं या अ य धक है और श ा के साधन यून ह
तब कसी कार क श ा नह ं द जा सकती है। उसके मतानुसार अ नवाय नःशु क श ा का
वचार दोषपूण है। इस वचार के कारण असमानता का वकास होता है। साधन क यूनता के
कारण कु छ साधन स प न यि त ह व यालय का लाभ उठा सकते ह और बचे हु ए अ य लोग
समाज म न न तर बनाए रखने को बा य कए जाते ह। भारत जैसे वकासशील दे श म अनेक
वष तक इस प त के कारण केवल कु छ साधन स प न यि त ह श ा ा त करने क
वला सता का उपभोग करते ह।
इस कार हम दे खते ह क स पूण व व म च लत श ा यव था के त अस तोष
है और उसम प रवतन क मांग बराबर क जा रह है। इसी प रवतन को मू त प दे ने के वचार
से मा य मक तर पर के य मा य मक श ा बोड द ल वारा खु ला व यालय क थापना
क गई। इस योजना के अ तगत 14 वष क आयु से ऊपर के सब वय क के लए मा य मक
तर तथा उ चतर मा य मक तर क श ा ा त करना तथा माण प ा त करने क
यव था है। मा य मक श ा के लए कोई पूव वेश यो यता आव यक नह ं है। वेशाथ म
केवल प ने— लखने क मता होनी चा हए। उ चतर मा य मक पा य म के लए मा य मक
पर ा का माण—प आव यक है। मा य मक श ा के लए एक भाषा तथा अ य कोई 4
वषय म पर ा उ तीण करना आव यक है। कोई पर ाथ चाहे तो एक साल म अथवा धीरे —धीरे
एक—एक, दो—दो वषय क पर ा दे ते हु ए पाँच साल म भी पा य म पूरा कर सकता है। श ा
का मा यम ह द अथवा अं ेजी हो सकता है।
54
व—मू यां क न (Self Evaluation)
1. खु ला व यालय के व प क ववे च ना क िजए|
55
खु ला व व व यालय से ता पय एक ऐसे व व व यालय से है जो उन सभी के लए है
जो उ च श ा ा त करना चाहते ह। इन व व व यालय म वेश ा त करने के लए —
1) कसी भी कार क उपा ध या माण प क ज रत नह ,ं
2) इसम आयु क कोई सीमा नह ,ं
3) कोई सी मत प रसर नह ं होता
4) छा कसी भी े का नवासी हो सकता है ।
खु ला व व व यालय अ य सामा य व व व यालय से अलग ह हो सकता है। इसम
सीमा का कोई ब धन नह ं होता है। अ यापक के थान पर इस व व व यालय म य— य
उपकरण यथा—दूरदशन, लघु चल च , य साधन यथा— व नलेख संयं (टे प रकॉडर), रे डयो,
ामोफोन, लं वाफोन वारा काय स प न होता है। साथ ह साथ उनके वारा छा के पास
सु झाव भेजे जाते ह और उनसे कु छ वषय पर ल खत उ तर मांगे जाते है। कभी—कभी थानीय
श ण समू ह क सहायता के लए श ण क यव था भी क जाती है।
भारतवष म कु छ व व व यालय प ाचार पा य म वारा भी व व व यालय तर क
श ा दान करते है। प ाचार पा य म म अ धगम साम ी डाक के वारा ह भेजी जाती है
तथा उ तर को ा त करने क भी यव था है कभी—कभी दे श के व भ न थान पर स पक
काय म (Contact Programmes) आयोिजत कए जाते ह। इस कार के कायकम एक माह
म दो बार अथवा वष म दो या तीन बार आयोिजत कए जाते ह, जहां अ यापक श ण करता
है।
इस बात को यान म रखना होगा क खु ला व व व यालय, प ाचार महा व यालय से
सवथा भ न है। इनम श ा के य— य उपकरण का योग िजस कार और िजस भाषा म
कया जाता है वैसा प ाचार व व व यालय म नह ं होता है।
खु ला व व व यालय क आव यकता (Need of Open University)
आज जो श ा छा को द जा रह है, वह मा औपचा रक बनकर रह गई है। जीवन
के कसी भी े म सम या समाधान म उनका योगदान नह ं हो पाता। छा कृ त से दूर रहकर
श ा ा त कर रहे ह। हमार श ा का एकमा उ े य अ छ नौकर ा त करना ह रह गया
है। जो श ा हम ा त कर रहे ह उसका वह ं अंश उपयोगी हो जाता है िजसका उपयोग हम
अपने यवसाय या कायालय म कर पाते ह। इस लए यह आव यक हो गया है क हम वतमान
प रि थ तय म औपचा रक, व यालय वह न, खु ला व व व यालय क तकनीक क ओर यान
द।
वै ा नक उपलि धय ने सामािजक ाि त तो उ प न क है, पर तु अनेक ज टलताओं
को भी बढ़ा दया है। श ा क औपचा रक यव था नधा रत ल य क ाि त म असमथ रह
है। उ चतर श ा के े म भी मू य का हास नर तर हो रहा है। श ण सं थान क
उपल खयॉ भी न के बराबर ह। वे केवल बेरोजगार क सेना ह तैयार कर रह है। इन श ण
सं थान से नकले युवक म से दूर भागते ह, उनक वा य म कोई च नह ं। भाषा क
ि ट से वे कमजोर ह तथा उनम सामािजक और रा य उ तरदा य व को पूरा करने क कोई
भावना नह ं। इन क मय का नराकरण करने के लए खु ला व व व यालय क आव यकता है।
56
व—मू यां क न(Self Evaluation)
1. व व व यालय के कार क ववे च ना क िजए|
2. खु ला व व व यालय के व प को समझाए|
3. खु ला व व व यालय क आव यकता प ट क िजए|
57
बेनेजु एला, कनाडा और पा क तान जैसे दे श म खु ले व व व यालय श ा के े म बड़ी तेजी
से सार काय कर रहे ह।
भारतवष म 1970 से ह यह यास कया जा रहा था क यह पर भी खु ला
व व व यालय था पत हो। 1970 को अ तरा य शै क वष घो षत कया गया। उस समय
यह संक प कया गया क भारत वष म भी ऐसे व व व यालय क थापना क जायेगी।
भारतवष म रा य तर पर सबसे पहला खु ला व व व यालय 1982 म आ दे श म
ार भ कया गया। इसम िजन पा य म क यव था क गई, वे थे (1) बी.ए., बी.एस.सी.,
बी.कॉम. (2) नातको तर पा य म (3) पु तकालय व ान (4) पि लक अकाउ टे सी।
58
रा य तर य खु ला व व व यालय (State Open University)
व मान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
व मान महावीर कोटा खु ला व व व यालय क थापना सन ् 1987 म रा य वधान
सभा के पा रत अ ध नयम के अ तगत क गई। सरकार ने यह अनुभव कया क वत ता
ाि त के पाँच दशक बाद भी भारत म उ च श ा के लए उपल ध अवसर असमान एवं
अपया त है। पार प रक श ा णाल क सीमाओं को यान म रखते हु ए दूर थ श ा पर
आधा रत इस नए व व व यालय क थापना से उ च श ा से वं चत समाज के कमजोरवग,
म हलाएँ एवं रोजगार ा त यि त अपनी िज मेदा रय को पूरा करने के साथ—साथ इस
व व व यालय के वारा अपनी शै णक यो यताओं म वृ का लाभ ा त कर सकते ह।
(1) उ े य (Objectives)
1. उ च श ा के जाताि करण के उ े य से श ा ाि त के इ छुक समू ह , रोजगार
ा त यि तय , म हलाओं, वकलांग एवं वय क को श ा ाि त का अवसर दान
करना।
2. कम लागत पर गुणा मक एवं रोजगारो मुखी उ च श ा उपल ध कराना।
3. दे श के उ च श ा से वं चत दूर थ े , आ दवासी एवं म थल य े म उ च
श ा का सार करना।
4. रोजगारो मु खी पा यकम के मा यम से रोजगार अवसर का सृजन करना।
(2) व मान महावीर खु ला व व व यालय क वशेषताएँ (Characteristics of
Vardhman Mahaveer Open University)
वेश स ब धी लचीले नयम
बना भेद—भाव सबको समान अवसर।
दूर थ श ा तकनीक पर आधा रत वषय वशेष वारा तैयार पा य—साम ी
व या थय को घर बैठे उपल ध करवायी जाती है यह प त वयं पाठ के प म
पर ा दे ने एवं प ाचार प त से े ठ है।
व या थय को अपनी च व यो यता के अनुसार पर ा दे ने क वत ता।
नय मत उपि थ त क बाधा नह ं।
आधु नक संचार एवं शै णक तकनीक का उपयोग कर य— य साम ी अ ययन
के पर उपल ध कराई जाती है।
सतत ् मू यांकन क ि ट से स ीय काय एवं स ांत पर ा का आयोजन।
येक के लए तशत अंक क बा यता नह ं।
(3) अ ययन साम ी एवं ेणांक (Study of Material and Credit System)
खु ला व व व यालय म व भ न पा य म के अ धकतम के डट नधा रत है। वषय
वशेष क राय म कसी पा य म के अ ययन म लगने वाले समय के आधार पर इनका
नधारण कया जाता है। सामा यतया एक े डट को 30 घंट के अ ययन के बराबर माना गया
है।
59
इसम पा य—साम ी को पढ़ना एवं समझना, बोध न के उ तर लखना, उस वषय से
स बि धत स ीय काय को पूरा करना। इसम स बि धत य एवं य साम ी म लगने वाले
समय को सि म लत कया गया है। इस कार पा य म य द 8 े डट का है तो छा से यह
अपे ा क जाती है क वह 8 गुणा 30=240 घंटे का समय उस पा य म के अ ययन करने म
लगायेगा। इसके अ त र त इस अ ययन प त म अ ययन के पर परामशदाताओं के साथ
एवं अपने साथी व या थय के साथ वचार— वमश क सु वधा, स ताह त एवं अवकाश के दन
म द जाती है।
(4) व मान महावीर खु ला व व व यालय वारा संचा लत व भ न पा यकम (Different
Courses Run by Vardhman Mahaveer Open University)
1. नातक उपा ध कायकम (B.A./B.Com.) कला एवं वा ण य।
2. प का रता (जनसंचार) म नातक उपा ध काय म BJ(MC)
3. श ा म नातक उपा ध (B.ED.)
4. श ा म नातको तर उपा ध कायकम (M.A.)
5. प का रता (जनसंचार) म नातको तर उपा ध काय म MJ(MC)
6. ब ध पा यकम (Management Course)
7. इस व व व यालय वारा व भ न े म ड लोमा एवं स ट फकेट पा य म संचा लत
कए जाते है यथा सं कृ त एवं पयटन, पु तकालय व ान, सू चना व ान, म कानून ,
औ यो गक स ब ध एवं का मक ब ध, होटल ब ध, वा य श ा, भोजन एवं
भोजन कायालय ब ध, क यूटर श ण आ द।
(4) पर ा प त (Examination Pattern)
इस व व व यालय क पर ा णाल के दो मु ख त व है—
(अ) स ीय काय (Internal Assignment)
व याथ वारा चु ने गए पा य म के येक पेपर म व व व यालय स ीय काय दान
करता है। यह आ त रक मू यांकन काय व याथ वारा अपने घर पर बैठकर ह कया जाता है।
यह अपे ा क जाती है क आ त रक मू यांकन क प त के कारण व याथ नर तर
अ ययनरत रहे गा। आ त रक मू यांकन के ा तांक अि तम पर ा प रणाम म सि म लत कए
जाते ह जो कु ल ा तांक का 30 तशत होता है।
(ब) स ांत पर ा (Term End Examination)
काय म क यूनतम अव ध पूर होने के बाद व व व यालय वारा स ा त पर ा
आयोिजत क जाती है। इसका अंक भार 70 तशत होता है। व व व यालय वारा वष म दो
स ांत पर ाएं आयोिजत क जाती ह। जो सामा यत: जू न एवं दस बर माह म होती है।
अ ययन क यूनतम अव ध समा त होने पर व याथ जू न या दस बर क स ा त पर ा म
अपनी सु वधानुसार भाग ले सकता है।
(6) मू यांकन (Evaluation)
1. पर ाथ को स ा त पर ा एवं स ीय काय म अलग—अलग पास होना अ नवाय है ।
2. पर ाथ को दोन कार क पर ाओं म 'सी' ेड ा त करना अ नवाय है ।
60
3. स ा त पर ा म 'सी' ेड ा त करने के लए 70 म से कम से कम 35 अंक तथा
स ीय काय म 30 म से कम से कम 15 अंक ा त करना अ नवाय है। अ यथा
व याथ अनु तीण माना जायेगा।
(7) व याथ सहायता सेवाएँ (Student Support Services)
व मान महावीर खु ला व व व यालय ने राज थान म अब तक 6 थान पर े ीय
के एवं 53 थान पर अ ययन के ार भ कर दए ह। येक े के म न न ल खत
सु वधाएं दान क जाती ह:—
श ण तथा परामश सु वधाएं
य— य उपकरण तथा उनके उपयोग के अ य साधन
पु तकालय सु वधा
सू चना सेवा
62
औपचा रक श ा का ार भ व यालय से होता है तथा अ त भी व यालय म ह हो
जाता है। अनौपचा रक श ा बालक के ज म से लेकर मृ युपय त तक चलती है। नरौपचा रक
श ा का व प उसके के ब दु 'जन—समु दाय'' पर आधा रत है।
खु ला व यालय (Open School)
मा य मक तर पर के य मा य मक श ा बोड, द ल वारा खु ला व यालय क
थापना क गई। इस योजना के अ तगत 14 वष क आयु से ऊपर सब वय क के लए
मा य मक तर तथा उ च मा य मक तर क श ा ा त करना तथा माण प ा त करने
क यव था है।
खु ला व व व यालय (Open University)
खु ला व व व यालय से ता पय एक ऐसे व व व यालय से ह, जो उन सभी के लए है
जो उ च श ा ा त करना चाहते है। इस व व व यालय म वेश ा त करने के लए कसी भी
कार क उपा ध या माण प क ज रत नह ,ं इसम आयु क कोई सीमा नह ं एवं समय व
थान क भी सीमा नधा रत नह ं है।
63
What do you mean by Agencies of Education? Present the
classification of agencies of Education.
2. '' व यालय श ा का औपचा रक अ भकरण है।'' इस कथन क पुि ट हे तु तक तु त
क िजए।“
School is formal agency of Education.”Gove Logic to Explain.
3. श ा के अनौपचा रक अ भकरण का अथ प ट क िजए। अनौपचा रक अ भकरण के
गुण —दोष को ल खए।
Explain the Meaning of Non—formal agency of Education.Write Merits and
Demerits of Non—formal Agencies.
4. नरौपचा रक अ भकरण का अथ बताइए। श ा के औपचा रक, अनौपचा रक एवं
नरौपचा रक अ भकरण म अ तर प ट क िजए।
Write the meaning of informal agency.Differentiate among formal,Non
formal and informal Agencies of Education.
5. खु ला व यालय एवं खु ला व व व यालय के स यय को प ट क िजए।
Explain the concept of Open School and Open University.
6. रा य एवं रा य तर य खु ला व व व यालय का व तृत ववेचन क िजए।
Discuss in detail National and state Level Open Universities.
3.13 स दभ थ सू ची (bibliography)
65
इकाई—4
श ा को भा वत करने वाले कारक
Factors affecting Education
उ े य (Objectives)
1. व याथ राजनै तक कारक से प र चत हो सकगे।
2. सामािजक कारक के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
3. आ थक कारक श ा को भा वत करता है, समझ सकगे।
4. शै क कारक के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
5. भौगो लक कारक से प र चत हो सकगे।
66
व व क येक व तु, वचार तथा काय से लाभदायक प रणाम तभी मल सकते है
जब क उनके पूव नि चत उ े य ह । श ा सामािजक वकास क आधार शला है। समाज म जैसी
श ा होगी वैसा ह समाज होगा। अत: श ा का व प एवं उ े य दे श काल एवं प रि थ तय
के अनु प हो। समय—समय पर श ा के व प एवं उ े य म प रवतन होते रहते ह। वै दक युग
म श ा का उ े य बालक का सवागीण वकास करना था। ाचीन रोम म श ा का उ े य '
रा य का क याण करना था।' यूनान म श ा का उ े य नै तक एवं सामािजक वकास करना
था। वतमान युग म सामािजक संरचना म प रवतन आने के साथ—साथ श ा के उ े य म भी
प रवतन होता रहता है। सामािजक ग त हे तु श ा काश त भ का काय करती है। अत: कह
सकते ह क श ा क समय—समय पर अनेक कारक ने भा वत कए ह। कु छ मु ख कारक का
व तार से वणन करगे—
67
आकमण, पा क तान का आ मण आ द म य त रहने के कारण श ा पर अ धक यान नह ं दे
पाई । प रणामत: श ा के े म उ लेखनीय एवं आशातीत ग त नह ं हो सक ।
भारत म श ा का दा य व के और रा य के शासन पर है। ये दोन शासन अपनी
सु वधानुसार यव था का काय करते ह। इन दोन शासन म सह—स ब ध का भी आभाव है।
थानीय शासन को चलाने वाले लोग राजनै तक येय को यान म रखते हु ए सारे काय करते
ह। अत: आव यकता इस बात क है क सरकार को चा हए क श ा क प ट नी त का नमाण
कर और अपनी नी त को नि चत ढं ग से कराने का संक प ल। इसके लए श ण सु वधाएँ
दान करायी जानी चा हए।
भारत के सं वधान नमाताओं ने खैर स म त के ि टकोण को अपनाते हु ए सं वधान के
अनु छे द 45 म सावभौम श ा के लए प ट प से उ लेख कया है क —
यह रा य उस सं वधान के याि वत कए जाने के समय से 10 वष के अ तगत जब
तक सभी ब चे 14 वष क आयु को पूरा नह ं कर लेते, नःशु क एवं अ नवाय होने दे ने का
यास करे गा।
हमारे दे श क वतमान राजनी त का कोई मानद ड नह ं है और न कोई च र , वाथ
पू त ह सव च मापद ड है और वह सबसे बड़ा नेता है जो सवा धक चाल चल कर अपना उ लू
सीधा कर सके। प रणामत: श ा के येक े म राजनी त या त है जो न न ल खत ब दुओं
से प ट हो जायेगी —
(1). श क थाना तरण — वतमान सरकार नेताओं का एक मा काय श क काय का
थाना तरण है। राज थान इस काय म अ णी है। श क को फुटबाल बनाकर अपना
वाथ स करना उनका मु य काय है।
(2). व यालय थापना — कसी गाँव, ढाणी, मु ह ला या गल म व यालय खु लना चा हए
अथवा नह ,ं वह भी थानीय नेता पर नभर करता है। वरोधी प के बालक को श ा
से वं चत रखना तथा उनके गाँव अथवा गल म व यालय खु लवाना उसके शतरं ज के
पतरे क मु य चाल होती है। सरकार भी इस काय म मददगार होती है।
(3). व यालय यव था म ह त ेप — थानीय ट नेता व यालय यव था म ह त ेप
करते रहते ह। प रणामत: धाना यापक शै क ग त हे तु वत प से काय नह ं
कर पाता। य द कोई उ साह धाना यापक थानीय नेताओं को मु ह नह ं लगाता तो
उसके सरदद बन जाता है और उसके व नाना कार क शकायत उ चा धका रय
को करते ह। उ चा धकार भी उनके भाव एवं अपनी कु स बाधाओं के कारण कान म
तेल डालकर थानीय नेताओं को स न करने के लए उनक इ छानुसार काय कर दे ते
ह।
68
4.3 सामािजक कारक (Social Factor)
कसी भी दे श क सामािजक प रि थ तयाँ वॅहा क श ा के उ े य के नमाण म
मह वपूण होती है। उदाहरणाथ— ाचीन भारत म श ा का उ े य ' 'ई वर ाि त' ' था। भारत
धम परायण दे श था। फलत: ' 'नर से नारायण' बनने पर बल दया जाता था। अपरा व या से
परा व या को े ठ बतलाया गया था। युग बदला, समाज म प रवतन आया। मृ तकाल म
“वण यव था” गुण , कम, वभाव पर आधा रत न रहकर ज म पर आधा रत हो गई थी। फलत:
श ा का उ े य ' 'बालक को उनके वणानुसार कम करने के लए तैयार करना था। वतमान
भारतीय समाज जा त, वह न समाज क थापना करना चाहता है। प रणामत: श ा का उ े य
“सामािजक समानता” है िजसम जा त, रं ग, वण, समुदाय के थान पर यि त के गुण , कम,
वभाव पर अ धक बल दया गया और इ ह ं के मा यम से यि त उ च से उ च पद पर
आसीन हो सकता है। भारतीय सं वधानानुसार सम त भारतीय समान है। धम, स दाय, जा त,
वण के आधार पर न कोई छोटा है और न कोई बड़ा। “अ पृ यता” अपराध है । अत: ि मथ के
अनुसार “ व यालय को यापक काय संभालना चा हए एवं उसे नि चत प से ऐसी यव था
करनी चा हए िजससे क सामािजक कृ तइाता एवं समु दाय भि त को उ प न तथा पो षत कए
जाने का काय हो सके।''
"School should assume wider functions and definitely set itself to
the task of creating and fostering the sense of obligation loyalty to the
community.”
—W.P.Lister Smith
भारतीय सं वधान क धार 29 व 30 म अ पसं यक को अपनी भाषा, सं कृ त को
सु र त रखने तथा श ा सं थाओं क थापना करने व संचा लत करने का अ धकार दान कया
गया है। सं वधान क धारा 350 (क) म कहा गया है — येक रा य और रा य के अ तगत
थानीय ा धकार का यह यास होगा क भाषायी अ पसं यक वग के ब च को ाथ मक तर
पर श ा उनक मातृभाषा म दे ने क पया त सु वधा दान कर।
श ा के सामािजक उ े य से ता पय सामािजक नपुणता से है । श ा यि त को
समाजोपयोगी बनाने म सहायक होती है और यह तभी स भव है जब श ा के उ े य समाज क
प रि थ तय के अनुकू ल ह । रॉस के अनुसार— ''सामािजक वातावरण से भ न वैयि तकता का
कोई मू य नह ं है और यि त व अथह न श द है।''
“Individuality isof on value and personality is a meaningless term a
part from the social environment.”
—J.Ross
समाज म रहकर यि त एक—दूसरे के स पक म आता है। उसके साथ वचार का
आदान— दान करता है। यह तभी स भव है जब क श ा के उ े य सामािजक प रि थ तय के
अनुकू ल ह । ठ क इसके वपर त य द वे यि त व के अनुसार भ न— भ न हु ए तो यि त म
टकराहट होगी और ऐसा समाज कभी ग त पथ पर अ सत नह ं हो सकता।
69
अ धकांश बालक के अ भभावक वयं अ श त है। फलत: वे श ा के मह व से
अप र चत ह। वे अपने बालक को श ा दलाने म च नह ं रखते और साथ म भा यवा दता का
सहारा लेते ह। अ श त अ भभावक बालक क श ा के लए अ भशाप स होते ह। और वे
स प न होते हु ए भी बालक क श ा क ओर यान नह ं दे ते।
छोटे —छोटे बालक को ववाह ब धन म बॉध दया जाता है। राज थान म तो बाल ववाह
का अ य धक चलन है। प रणामत: बाल ववाह के कारण उन बालक क श ा का कोई न
नह ं उठता। जा त था अनुसार श ा ा त करने का अ धकार ाहमण वग का है। शु अथवा
वतमान ह रजन को श ा ा त करने का कोई अ धकार नह ं है। दूर—दराज के गाँव म यह
वचार याशील है।
भारत दे श पु ष धान दे श है। यहाँ पु को अ य धक मह व दया जाता है तथा पु ी को
पराया धन समझ कर उसका तर कार कया जाता है। ामीण े म यह भेद प टतया
ि टगोचर होता है। फलत: बा लकाओं को पढ़ाने को हे य ि ट से दे खते ह। व यालय भवन क
दूर , श क का अभाव, व यालय म सु वधाओं का न होना, बा लका व यालय म पु ष क
नयुि त, नधनता ढ़वा दता आ द अनेक ऐसे सामािजक कारण ह िजनक वजह से ाथ मक
श ा का सावभौ मकरण नह ं हो पा रहा है।
70
तकनीक ” उ न त है ता क इस आ थक दौड़ म हम भी भागीदार कर सके। हाटशोन का कथन है
“जी वकोपाजन क श ा सबसे अ धक भावशाल श ा है। इसके बना वे लोग आजीवन क ट
उठाते ह जो केवल व यालय ह जाते ह।''
“Vocational Education is an Eduction of most effective and for lack
of which those who merely go to school suffer all their lives."
—Hartshorne
अत: श ा के उ े य नमाण म आ थक प रि थ तयाँ वशेष योग दे ती ह। भारत एक
वकासोमु ख रा है। आ थक उ न त एवं येक नाग रक को रोजगार उपल ध कराने हे तु हमार
सरकार य नशील है और इसक पू त हे तु यावसा यक व यालय का सम त दे श म जाल बछा
दया गया है ता क येक भारतीय नाग रक वत यवसाय कर सके । कहावत है “भू खे भजन
न हो ह गोपाला डाल अपने क ठ माला”। अत: आ थक प रि थ तयाँ श ा के उ े य नमाण म
मह वपूण भू मका अदा करती ह। कोई भी समाज, दे श, रा तब तक आ म नभर नह ं हो सकता
जब तक क उसके येक नाग रक को जी वकोपाजन के साधन उपल ध नह ं हो। अत: श ा के
उ े य नधारण म आ थक कारक मह वपूण भू मका अदा करती है।
वतमान युग अथत का युग है। िजस दे श क अथ यव था सु ढ़ होगी, वह ह उ न त
पथ पर अ सर हो सकेगा। आज व व म आ थक वकास एवं भौ तक समृ के पीछे पागलपन
सा छाया हु आ है। भारत क अ धकांश जनता गर बी रे खा से नीचे तर क है। नधन अ भभावक
माता— पता अपने ब च को व यालय नह ं भेज पाते। आज श ा पर होने वाला यय यथा—
पौशाक, पा य—पु तक एवं अ धगम (सहायक) साम ी का भार वहन करना उसक सीमा से बाहर
क बात होती है। इसके थान पर वे नधन माता— पता बालक को अथ पाजन का एक मा यम
बनाते ह। गाँव म पशु चराना, खेत म काय करना, माता— पता के खेतीहर काय म लगे होने के
समय छोटे भाई—बहन क दे खभाल उनका मु य काय होता है। शहर े म नधनता क
सम या और भी अ धक उजागर होती है। ग द बि तय के बालक कचरे के ढे र अथवा कचरा
पा से कागज, पॉल थीन के टू कड़े, फटे — चथड़े एक त करते, चाय क दुकान पर काय करते
अथवा भ ावृ त करते हु ए साधारणतया दखलाई पड़ते ह। नधनता के इस ता डव नृ य के
कारण अ भभावक उन मासूम ब च क अथ पाजन स ब धी काय म लगाना अ छा समझते है न
क व यालय भेजना।
भारत सरकार ने ाथ मक श ा को रा य का वषय बना रखा है। फलत: रा य म होने
वाला श ा यय का के य सरकार कु छ ह सा ह रा य सरकार कु ाए दे ती है। वा तव म दे खा
जाए तो श ा का वषय के य सरकार का होना चा हए। श ा को के य सरकार सव च
ाथ मकता दान करे । क तु अब सम या के कारण के य सरकार श ा पर होने वाले यय
का कु छ अंश दे कर अपने उ तरदा य व से मु ि त ा त कर लेती है।
एक सव ण के अनुसार भारत म वतमान व यालय भवन म 33 तशत भवन ह ऐसे
ह िज ह कसी कार उपयु त नह ं कहा जा सकता अथात ् 67 तशत भवन अनुपयु त है। ये
अनुपयु त भवन अंधकार से पूण , घुटन से यु त तथा वष भर सीलनयु त रहते ह। इसम दुग ध
यु त वातावरण रहता है, न ह काश क यव था है और न ह व छ तथा ताजा वायु क ।
71
बालक को भेड—बक रय के समान क ा—क पी बाड़े म बैठा दया जाता है िजसम न तो
आसन यव था ह है और न ह शै क सु वधाएँ। खेल स ब धी सु वधाएँ तो दवा व न मा ह।
आ थक क ठनाइय के कारण उपयु त भवन का नमाण नह ं करवा पाते। फलत:
मि दर , मि जद , धमशालाओं, अनाथालय , टू टे —फूटे , पुराने भवन , वृ के नीचे व यालय चलते
ह िजनम आए दन कसी न कसी कारण अवकाश करना पड़ता है और वषा ऋतु म भवन के
दुघटना त होने क सम याएँ बराबर बनी रहती ह।
भारत म अ धकांश ाथ मक व यालय क ि थ त अ त सोचनीय है। आ थक
क ठनाइय के कारण व यालय छा को शै क सु वधाएँ नह ं जु टा पाते शै क सम याऐ
न न ल खत ह—
(अ) व यालय म पया त सं या म श क क नयुि त नह ं क जाती। ाथ मक श ा म
अ यापक छा अनुपात 1:40 का है जो क शै क ि ट से अनुप यु त है एक श क
40 बालक को श ण काय नह ं करा सकता।
(ब) ाथ मक व यालय म शै क सहायक अ धगम साम ी का नता त अभाव होता है।
पा य—पु तक ह एक मा श ा का आधार होती है।
(स) अ धकांश ाथ मक व यालय म चतुथ ेणी कमचा रय क यव था नह ं है फलत:
भवन क सफाई से लेकर सम त काय छोटे —छोटे बालक को ह करने पड़ते ह। अत:
उनका यान श ा से हट जाता है।
(द) ाथ मक व यालय म पु तकालय एवं वाचनालय तो ह ह नह ं। प रणामत: व या थय
के साथ—साथ श क क भी कू पम डू क जैसी ि थ त हो जाती है।
अ धकांश ाथ मक व यालय म थानीय यि तय को श क पद पर नयुि त क
जाती है इन नयुि तय म पूणत: राजनी त काम करती है। प रणामत: श क व यालय क
ओर यान नह ं दे ता। बस अपना नजी काय खेती—बाड़ी, दुकानदा रयॉ अ य काय करता है। न
तो समय पर व यालय आता है न पूण समय व यालय म कता है। यहाँ तक क छा से
नजी घरे लू काय करवाता है। फलत: अ भभावक ब च को कू ल से नकाल लेते ह।
सरकार क वतमान नी त के अनुसार येक 500 जनसं या क आबाद के पीछे एक
ाथ मक व यालय होना चा हए। क तु अभी दे श म लगभग 3.50 लाख ामीण ऐसे ह िजनक
आबाद 500 से कम है। प रणामत: इनके ब च को अ य थान पर प ने जाना पड़ता है । वन,
नाले, नद , दूर तथा छोटे —छोटे बालक इन कारण म से अ य गाँव म जाकर बालक के लए
पढ़ना स भव नह ं है। प रणामत: अ भभावक छोटे बालक को वशेषत: बा लकाओं को इतनी दूर
भेजना उ चत नह ं समझते और ये बालक श ा से वं चत रह जाते ह।
72
नधा रत कया गया है। े ीय भ नता, थानीय प रि थ तयाँ आ द का कोई यान नह ं रखा
गया है। वतमान पा य म न तो जीवन से स बि धत है और न यावहा रक ह है। पा य म म
न तो सरलता है न आकषण ह । रचना मक याओं को इनम कोई थान नह ं दया गया है।
य द यह कहा जाए क पा य म केवल सा र बनाने का काय करता है तो कोई अ त योि त
नह ं होगी।
73
(iv) दोषपू ण पर ा णाल (Defective Education System)
पर ा णाल भी दोषपूण है। केवल सै ाि तक प पर जोर दया जाता है। यावहा रक
प शू य रहता है। मू यांकन क अ व वसनीयता बनी रहती है। एक ह न के मू यांकन म
व वधता आ जाती है।
ाथ मक व यालय म नर ण एवं मागदशन हे तु सरकार ने अ धका रय क ल बी
फौज खड़ी कर रखी है। फर भी अनेक व यालय ऐसे दुलभ थान पर ह क यह पर पॉच—पाँच
वष तक कोई अ धकार नह ं जा पाता। मागदशन एवं नर ण नाम मा का होता है।
उपयु त शै क कारक के अ त र त अ य अनेक कारण है जैसे बालक क च,
अ भ च का यान नह ं रखना, श ा का जीवन से स बि धत न होना, यि तगत भ नता को
नजर अ दाज कर दे ना आ द।
74
आ थक कारक — श ा के उ े य नमाण म आ थक प रि थ तयाँ वशेष योग दे ती ह।
भारत एक वकासो मुख रा है। आ थक उ न त एवं येक नाग रक को रोजगार उपल ध कराने
हे तु हमार सरकार य नशील है और इसक पू त हे तु यावसा यक व यालय का सम त दे श म
जाल बछा दया गया है ता क येक भारतीय नाग रक वत यवसाय कर सके। कहावत है
''भू खे भजन न हो ह गोपाला डाल अपने क ठ माला”। अत: आ थक प रि थ तयाँ श ा के
उ े य नमाण म मह वपूण भू मका अदा करती है। कोई भी समाज, दे श, रा तब तक
आ म नभर नह ं हो सकता जब तक क उसके येक नाग रक को जी वकोपाजन के साधन
उपल ध नह ं हो। अत: श ा के उ े य नधारण म आ थक कारक मह वपूण भू मका अदा करती
है।
शै क कारक —वतमान पा यकम न तो जीवन से स बि धत है और न यावहा रक ह
है। पा य म म न तो सरलता है न आकषण ह । रचना मक कयाओं को इनम कोई थान नह ं
दया गया है। य द यह कहा जाए क पा य म केवल सा र बनाने का काय करता है तो कोई
अ त योि त नह ं होगी। अत: अ यापक का अभाव अ धगम सहायक साम ी का अभाव, भारतीय
श क व धय का अभाव तथा दोषपूण पर ा णाल पायी गई।
75
इकाई 5
समाज क संरचना श ा और सामािजक प रवतन
Structure of Society Education and Social Change
5.0 उ े य (Objectives)
1. मु ख उ े य समाज को सामािजक तर के प रभा षत करना,
2. समाज क संरचना का या अथ है, जानना
76
3. संरचना के मु ख अंग के बारे म जानना,
4. समाज क उपसंरचना या अंग को जानना और समझना,
5. सामािजक प रवतन को प रभा षत करना, और
6. श ा सामािजक प रवतन कस कार लाती है?
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वत ताओं पर नय ण रखता है। और भी सरल श द म समाजशा म समाज श द के
प ट करण के लए तीन आव यक त व ह।
79
जाती है और यह उसके स पूण जीवन—पय त चलती है। यि त अपने सामािजक, आ थक,
सां कृ तक आ द काय के लए एक दूसरे पर आ त रहते ह।
6. एक प रवतनशील ज टल यव था : समाज को सामा यत: सामािजक स ब ध का एक
जाल सामािजक स ब ध अ य त ज टल एवं प रवतनशील होते ह। उदाहरण के लए ारि भक
समाज एवं वतमान समाज के अ तर को दे खा जा सकता है यह अ तर प रवतन का प रणाम
है। जो सामा यत: और ज टल महसूस होते ह।
7. समाज केवल मनु य म ह नह ं है : मैकाइवर एवं पेज क यह उि त व तु त: स य है
जहाँ कह ं जीवन ह, वह समाज है। “4 इससे प ट होता है क समाज केवल मनु य तक ह
सी मत नह ं है, अ पतु ब दर , चीं टय , क ड़े—मकोड़ , मधुमि खय आ द म भी समाज के ल ण
एवं सामािजक संगठन दे खा जा सकता है। श ा के व याथ होने के नाते यहाँ हमारा स ब ध
केवल 'मानव—समाज'से ह ह।
80
दे खते ह। पारस स ने सामािजक संरचना क व भ न इकाइय (सं थाओं, एजेि सय , तमान )
क मब ता के प म सामािजक संरचना को समझने का यास कया है। ये इकाईयाँ आपस म
मलकर मब प से सामािजक संरचना का नमाण करती ह, एक—दूसरे से पृथक् रहकर नह ं।
5.1.3.2 सामािजक संरचना क वशेषताएँ
1. सामािजक संरचना अनेक अंग या इकाइय से मलकर बनती है। वा तव म व भ न
अंग या इकाइय को यवि थक प से मब होना ह आव यक नह ं वरन ् उनम
अ त: स ब ध का होना भी आव यक है।
2. सामािजक संरचना का स ब ध समाज म बा य व प से होता है।
3. सामािजक संरचना एक कार से शर र रंचना क तरह है और इसका योग भी इसी अथ
म कया गया है
4. सामिजक संरचना का योग यापक अथ म सामािजक संगठन सामािजक यव था या
सामािजक व प अथ म हु आ है, तथा सामािजक समू ह, सं थाय, स म तयाँ आ द इसक
इकाइयाँ है।
5. सामािजक 'संरचना अपे ाकृ त 'ि थर और ' थायी होती है।
5.2 जा त (Caste)
इस ि ट से जा त मनु य म ह नह ,ं पौध और जड़ पदाथ म भी होती है। एक अ य
धारणा के अनुसार यूरोपवा सय म सबसे पहले पुतगा लय ने 'का ट' श द का योग कया जो
पुतगाल श द 'का टा से बना है िजसका अथ है 'वंश' या 'न ल'। भारत म जा त यव था वण
यव था का उ पाद है। ज म के आधार पर पहचान का नधारण पर परागत होते ह वण से
जा तय का नमाण ार म हो गया। पर परागत यवसाय ने जा त यव था के वकास म
सहयोग दया है। त प चात ् कई अ य आधार का योगदान म उपजा त एवं उप—उपजा तय के
उ व का कारण बनी।
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वशेष अपवर पर खान—पान, यवसाय, ववाह एवं सामािजक सहवास स ब धी अनेक नषेध क
यव था जु ड़ जा त है और सद य को उ ह वीकार करना होता है, जा त को भारतीय समाज
यव था क एक संरचना के प म, वयं म एक सामािजक—सां कृ तक यव था के प म व
सं तरण के आधार के प म दे खा जा सकता है।
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5.2.3 जा त यव था म प रवतन (Changes in Caste System)
जा त यव था के सामािजक एवं सां कृ तक व प म यापक प रवतन, श ा,
औ योगीकरण, नगर करण, आधु नक करण एवं अब लोबलाईजेशन के कारण दे खा जा सकता है।
जा त सं तरण के आधार के प म अपना मह व खोती जा रह है। कई व ान का मानना है
क जा तय म वग यव था उ प न हो रह है अत: जा त समू ह म सामािजक ग तशीलता बढ़
रह है। ले कन पर परागत जा तगत सं तरण अब भी व यमाने है। यह सोच अब पुराना हो चु का
है। न न जा तयाँ सामािजक, आ थक और राजनी तक ि थ त म सुधार कर रह ह और नगर म
बढ़ती अप र चतता का लाभ उठाकर न न जा त के व प वयं को उ च जा त का घो षत कर
रहे ह।
कई जा तगत वशेषताएँ ा मण क उ च ि थ त, पेशे का चु नाव, भोजन एवं खान—
पान स ब धी तब ध, ववाह स ब धी तब ध आ द—तेजी से कमजोर होती जा रह है। इनक
मह वता लगभग समा त हो चु क है। नवीन कानून ने सामािजक—सां कृ तक स ब ध क
पर परागत ि थ त म प रवतन कया है। धम नरपे ीकरण एवं जातं ीय मू य ने जा तगत
भेद म कमी क है और नवीन व व तर के यवसाय ने पैसे और पद क मह वता को बढ़ाते हु ए
पर परागत मू य म तेजी से बदलाव लाने म अपना सहयोग बढ़ाया है। कु छ व ान ने जा त म
वग के उ व क बात क है और कु छ इसे णक प रवतन का ह सा मानते ह। ले कन यह
स य है क जा तगत जडताएँ अब तेजी से समा त होती जा रह ह और नवीन ान क धाराओं
के भाव से जा तगत मू य का अि त व और उनका च र अब राजनी तक उपयोग तक अ धक
सी मत होता जा रहा है। सामािजक—सां कृ तक वशेषताएं धीरे —धीरे लु त हो रह ह। फलहाल
उनके नए व प क चचा करना दु कर काय है।
5.3 वग (Class)
सामािजक संरचना म सामािजक सं तरण का एक मु ख आधार सामािजक वग भी है।
सामािजक प रवतन क याओं — औ योगीकरण, नगर करण, श ा ौ यो गक वकास,
आधु नक करण आ द के भाव के प रणाम व प सामािजक वग यव था के संदभ म भारतीय
समाज क या या क जाने लगी है। आ थक वकास ने जा तगत सं तरण को जहां कमजोर
करना ार भ कया है, वह ं वगगत वशेषताओं को बढ़ाने म अपनी अहम ् भू मका नभाई है।
बोटोमोर का कथन मह वपूण है – “वग त यत: समूह होते ह। वे अपे ाकृ त उ मु त होते ह, ब द
नह ं। उनका आधार न ववाद प से आ थक है, ले कन वे आ थक समूह से अ धक ह। वे
ओ यो गक समाज के ला णक समू ह ह।
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वग यव था आधु नक औ यो गक एवं खु ले समाज क व श ट वशेषता है। िजसका
आधार अिजत ि थ त है। अिजत ि थ त यि तगत यो यता और मता के आधार पर ा त
उपलि ध पर नभर करती है। कोई भी यि त अपने जीवनकाल म एक वग से दूसरे वग म
अपनी उपलि दय के आधार पर नीचे से उपर जा सकता है। इसके वपर त एक उ च तर का
यि त या अमीर यि त कसी काल वशेष न न तर तक आ सकता है, या न उसका वग
बदल जाता है।
वग यव था के आधार पर हम समाज को मोटे तौर पर तीन वग म बांट सकते ह —
उ च वग, म यम वग और न न वग। व भ न समाज म तरण का आधार समान नह ं होता।
वशेषकर वक सत एवं वकासशील दे श म। वकासशील दे श म न न वग का आधार बहु त बड़ा
होता है। जब क वक सत दे श म म यम वग का आकार शेष दोन वग से बड़ा होता है। भारत
म म यम वग का आकार तेजी से नह ं बढ़ रहा। वरन ् इसक मह वता म भी वृ हो रह है।
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1. पद—सोपान यव था : समाज म वग क एक ेणी होती है जो उ च से न न क ओर
या न न से उ च क ओर होती है। उ च वग के सद य क त ठा एवं शि त अ य
वग क तु लना म सबसे यादा होती है। इनक सं या भी कम होती है। वकासशील
समाज म न न वग के सद य क सं या सवा धक होती है, जब क वक सत समाज
म म यम वग का आकार न न व उ च वग क तु लना म सबसे बड़ा होता है।
2. खु ल यव था :वग यव था जा त क तरह कठोर और ज म पर आधा रत नह ं होती।
वग क सद यता म प रवतन संभव है। यि त अपनी यो यता एवं मता का योग
कर अपने से उ च वग क सद यता अिजत कर सकता है, जा त क तरह यि त
जीवन पय त उसी वग का सद य रहे गा, यह आव यक नह ं है और ना ह ज म से
वग का नधारण ह होता है ।
3. समान ि थ त समूह : एक वग के लोग क ि थ त एक समान होती है। ि थत
नधारण के कई आधार ह। स प त, श ा, यवसाय, आय, राजनी त आ द कई आधार
हो सकते ह। फर भी कोई एक ह आधार सामािजक ि थ त का नधारण नह ं करता।
दो या अ धक आधार मलकर भी सामािजक ि थ त का नधारण करने म अपना
योगदान करते ह। एक वग के लोग समान ि थ त के आधार पर उ चता या न नता
क भावना रखते ह तथा उनम 'हम' क भावना वक सत होती है।
4. सी मत सामािजक स ब ध : एक वग के सद य के बीच सामािजक स ब ध अपने ह
वग के लोग तक सी मत रहते ह। अ य वग (उ च या न न) से एक नि चत
सामािजक दूर बनाए रखते ह। आ थक, सामािजक एवं सां कृ तक समानता के कारण
एक वग के सद य के स ब ध अपने ह वग म अ धक पाए जाते ह। इसम श ा,
यवसाय, आय, मकान का कार, मोह ले क त ठा, रहन—सहन, पहनावा, बोलने का
तर का, आ द मह वपूण ह। उ च, म यम एवं न न वग के सद य से इन आधार पर
प ट भ नता दे खी व पहचानी जा सकती है।
5. प रवतनशीलता : वग यव था म प रवतनशीलता का गुण व यमान रहता है। इसका
कारण श ा, यवसाय, आय, शि त, आ द अिजत वशेषताओं से यु त होती है। और
इनम प रवतन भी आसान है। वग प रवतन स भव है, ले कन इसम समय लग सकता
है।
6. जीवन अवसर : मै स वेबर का कहना है क एक वग के लोग को जीवन के कु छ
व शट अवसर और सु वधाएं समान प से ा त होते ह। मजदूर के अवसर गर ब वग
को नए उ योग—धंध खोलने के एवं उ च जीवन तर बनाए रखने के अवसर
स प न लोग को समान प से ा त होते ह।
5.4 धम (Religion)
धम तीक का ऐसा संकलन है िजससे लोग के अनुभव और भावनाएं मान सकता का
ह सा बन जाते ह और सं कार और उ सव से जु ड़ जाते ह। अलग—अलग धम म अलग—अलग
ि थ तयां दे खी जाती ह। कह ं धा मक पु तक तो कह ं मू त त आकृ त मह वपूण होती है। कह ं
आ याि मक और लौ कक व प मह वपूण होता है। इसी लए अलग—अलग धम के तीक एवं
सं कार के व प म भी अ तर दे खा जा सकता है। सं कार म ाथना, लोक आ द का
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उ चारण, भजन या गायन, वशेष कार का भोजन, त या उपवास आ द व यमान होते ह। ये
सब यि तगत एवं सामू हक दोन तर पर आयो य होते ह।
धम कसी भी समाज क संरचना का मह वपूण अंग है। हजार वष से मानव जीवन पर
धम का कठोर भाव रहा है। सभी ात समाज म धम का अ त व कसी न कसी व प म
व यमान दे खा जा सकता है। पुराताि वक अवशेष ारि भक समाज म धम के तीक एवं
उ पक क कहानी कहते ह। स पूण मानव इ तहास म धम ने मानवीय अनुभव एवं स ब ध के
व प म के य भू मका नबाह है। साथ ह िजस भौ तक एवं सामािजक—सां कृ तक पयावरण
म वे समाज रहते रहे थे उस पयावरण से अ तः या म धा मक या याएँ दे खी जा सकती ह।
धम क कोई एक सवमा य प रभाषा दे ना अ य धक क ठन है। इसम यि त और
समु दाय क भावना मकता अ त न हत होती है। व भ न कार के धा मक व वास और संगठन
इतने अ धक ह क व ान को धम क सामा य वीकृ त प रभाषा वक सत करने म अ य धक
क ठनाई आती है। धम एक सामािजक सं था है। इसका ताना—बाना आ धदै वक तथा उ ाकृ तक
है। समाजशा ीय ि टकोण से धम को मु यत: ताि वक और काया मक ि ट से प रभा षत
कया जा सकता है। ताि वक प रभाषाएं धम क या या “ या” है? के आधार पर वक सत है,
जब क काया मक प रभाषाएं समाज म धम क भू मका (धम या करता है?) को प ट करती
है।
19वीं शता द के मानवशाि य म टायलर क धम क या या ताि वक ि टकोण को
तु त करती है। टायलर के अनुसार धम दे वी—दे वताओं तथा अ य अ धमानवीय ा णय जैसे
पूवज, आ माओं के त व वास तथा उनसे स बि धत कमका ड क एक यव था है।
समाजशा म धम क काया मक या या अ य सामािजक सं थाओं क तरह ह प रभा षत क
गई है। धम सामािजक यव था को बनाए रखने म अपनी व श ट भू मका नबाहता है। दख म
ने टायलर क धम क या या को अ वीकार करते हु ए काया मक ि टकोण से इसे प रभा षत
कया है।
दख म के अनुसार धम प व व तु ओं से स बि धत व वास तथा कमका ड क एक
संग ठत यव था है। धम वशेष के अनुया यय को एक एकल सामािजक—नै तक समु दाय म
बांधता है जो इनका अनुसरण करते ह। दूसरे श द म “ कसी आलौ कक ाणी, शि त अथवा
स ता पर केि त व वास , मू य व आ था प व ता क धारणा पर आधा रत होते ह, तथा इनसे
स बि धत कमका ड के पु ज
ं को धम कहते ह। यह नै तक नणु य को लेने क या म
उ प न क ठन असमंजस क ि थ त म यि त क सहायता करता है। सामा यत: धम मानवीय
जीवन के अ ात एवं अबुक प जैसे जीवन, मृ यु , बीमार , वृ ाव था और उसके अि त व के
रह य को जानने और उनके साथ यवहार करने का तर का है।
दख म के अनुसार धम कमका डीय याओं का प रणाम है। व तु त: धम का व प
सामािजक है, वैयि तक नह ं। उसने तक दया है क “सभी समाज म 'प व व अप व व तु ओं
म भेद कया जाता है और प व व तु ओं से स बि धत व वास व याओं क एक संयु त
यव था को धम कहते ह। प व व तु एँ वे व तु एँ ह जो पृथक रखी जाती ह और न ष मानी
जाती है। इनका दु पयोग न ष होता है। व वास और याएं जो एक अकेले नै तक समु दाय म
संग ठत होती है, िजसे धम कहते ह, सभी लोग उसे अपनाते ह।
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मा स के अनुसार धम मानव को यथाथ जगत से बचाने या दूर करने के बजाय कायर
बना डालता है। मा स क ि ट म धम अफ म क गोल है, िजसके नशे म गर ब जनता को
सु लाकर उ ह नभयता से लू टा जाता है। उनके अनुसार धम जनता या समाज के वकास म
बाधक है।
मै स वेबर के धम के बारे म वचार न तो मानवशा ीय सै ाि तक यूि त दोष से
मु ता थे और ना ह उ ह ने धम क ववेचना म पूजा और व वास क वैचा रक यव था को
कोई य दया। वेबर का मु य उ े य व भ न समाज क सं थागत यव थाओं पर धा मक
नी तय के भाव को प ट करके यह ात करना था क व भ न समाज क आ थक तथा
सामािजक व भ नताओं को धा मक आधार पर कस तरह प ट कया जा सकता है। कस कार
और कौन से धा मक मू य पू ज
ं ीवाद यव था को वक सत करने म सहायक होते ह। ोटे टट
ए थक म वे पू ज
ं ीवाद क आ मा पाते ह।
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कं सले डे वस के अनुसार “एक समाज के सामािजक संगठन क संरचना और कायाँ म
होने वाले प रवतन को सामािजक प रवतन कहते ह।
मो रस िज सवग “सामािजक प रवतन से म समझता हू ँ सामािजक संरचना म एक
प रवतन। '' मो रस िज सवग क प रभाषा सव तम है।
आधु नक समाजशा ीय भाषा म समाज श द के बदले सामािजक यव था पद का
योग कया जाता है, तथा सामािजक यव था के तीन भाग या अंग व लेषण हे तु बताये गये है।
(i) 'सामािजक संरचना' — सामािजक संरचना िजसका अथ है सामािजक सं थाओं क ठोस
तमाना मक यव था। इसी पर मू लत: सामािजक यव था टक होती है। जैसे भारतीय
सामािजक संरचना जा त, धम, वग आ द मह वपूण सामािजक सं थाओं से मलकर बनी है।
(ii) सं कृ त — सं कृ त जो क वा तव म मू य क एक यव था है। यह हमार जीवन
शैल या जीवन का ढं ग है।
(iii) यि त व यव था — समाज के सद य के यि त व उनक मनोवै ा नक वशेषताओं,
वृ तय आकां ाओं, सु झाव आ द अनेक ज टल मनोवै ा नक व सां कृ तक कारक से न मत
होते ह।
इस कार एक समाज या सामािजक यव था म होने वाले कसी भी मह वपूण प रवतन
को ''सामािजक प रवतन'' कह दया जाता है और मोटे प म यह ठ क ह मान लया जाता है।
ले कन वा तव म य द बार क से व लेषण कया जाये तो यह कहना चा हये क जब सामािजक
संरचना म प रवतन आये तो वह स चा हु आ, जब सं कृ त म प रवतन आये तो वह हु आ और
जब यि त व यव था म प रवतन आये (जो बहु त मु ि कल से यदाकदा ह आता है) तो वह
यि त व प रवतन हु आ।
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करने क यव था न हो पाने तथा श क— श ण के तर न न होने के कारण
वां छत सामािजक प रवतन नह ं हो पा रहा है।
(ख) सामािजक प रवतन लाने के साधन या अ भकता के प म श ा :
सामािजक प रवतन के लए इ छुक एक समाज कई कार के कारक सं थाओं, संय
अथवा अ भकताओं को काम म लाता है। उनम से एक मह वपूण यं श ा है। यह व वास
कया जाता है क श ा वारा यो य वशेषीकृ त कायकता तैयार कये जा सकगे— जो उ च
तर य श ा सं थाओं, औ यो गक— यापा रय त ठान तथा अ धकार तं म काय कर सकगे,
लोग म नये सामािजक मू य वक सत कये जा सकगे तथा उनको परं परागत मू य क जकड़
से बहु त अ धक छुटकारा दलवाना संभव होगा, लोग के यि त व म परानुभू त ग तशील
बु वता तथा अ यवसाय क आधु नक वशेषताएँ उ प न क जा सकगी तथा पछड़ेपन
संकु चतता तथा अ ान को न ट कया जा सकेगा। श ा के वारा लोग के सामा य ान,
जीवन तर, व छता, वा य, नै तकता तथा नव—प रवतन के त ेरणा अथवा जाग कता के
तर को वक सत कया जा सकेगा तथा सामािजक वभेद करण या तरण तथा शोषण को कम
कया जा सकेगा।
एम.एन. ी नवास तथा अ य कई सामािजक े क ने इस स ब ध म दो मह वपूण वचार दये
ह—
1. श ा सामािजक प रवतन का भावशाल संयं तभी बन सकती है, जब क वह वयं
व थ अथवा दोषमु त हो। दुभा यवश, आधु नक भारतीय श ा क यव था के भीतर ह इतने
अ धक रोग— वेष, सामािजक अ याय, वषमताएँ, शोषण तथा अनाचार क वृ तयाँ फैल हु ई ह
क अब उससे यह आशा करना क वह समाज म सु धार और प रवतन लायेगी केवल एक
वंचना ह है। व व व यालय म श ण पा रहे भ व य के डाँ टर , इंजी नयर , नौकरशाह ,
मैनेजर और अ य पदा धका रय म से कतन के दय म यइ इ छा नह ं है क नौकर लगते ह
समाज म लू ट—खसोट कर अपना घर भरने का यास नह ं करगे?
2. श ा सामािजक यव था से वयं ह भा वत होती है। अत: वह कस कार सामािजक
यव था को भा वत व प रव तत कर सकती है?
आज का भारतीय सामािजक संदभ ह तमानह नता तथा वरोधाभास से त ह अत:
वह श ा सं थाओं पर भी बुरे सामािजक भाव डाल रहा है। हमारे पा य म, श क क
नयुि तयाँ , श ा सं थाओं के शासन, श ा सं थाओं म उपल ध साधन—सु वधाएँ, ये सभी तो
समाज पर ह नभर है। जब समाज म ह प रवतन के थान पर पर परागत यव था अथवा
सामािजक ि थरता फैल हु ई है तो फर यह कैसे आशा क जा सकती है क श ा सं थाएँ ऐसी
मनोवृि तय से भा वत नह ं हो पायगी और समाज को सु धार पायगी?
इस आलोचना का उ तर दया जा सकता है। यह सह है क समाज क वतमान अथवा
पर परागत यव थाओं, मू य व पर पराओं का श ा सं थाओं पर बहु त अ धक भाव पड़ता है।
ले कन यह कहना पूणतया स य नह ं है क श ा सं थाएँ ऐसी ि थ त म समाज सुधार अथवा
सामािजक प रवतन लाने क दशा म कु छ भी नह ं कर सकती। वा तव म यह वैधा नक
उ तरदा य व है क वे सामािजक सम याओं पर न प तापूवक सोच— वचार कर यह तय करे क
कस कार समाज म च लत अ काया मक यव थाओं म मह वपूण प रवतन लाया जा सकता
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है। य द श ा सं थाएं ऐसा नह ं कर पाती ह, तो वे अपने त क जा रह समाज क मह वपूण
आकां ा को धू मल कर रह ह।
भारतीय श ा सं थाएं वयं म सु धार अथवा प रवतन नह ं ला पा रह ह। वे समाज म
प रवतन भी नह ं ला पा रह ह। इस मह वपूण प पर वचार करने के लए हम उन सभी बात
पर यान दे ना होगा, िजनका संबध
ं प रवतन क ेरणा, प रवतन के अ भकताओं क पृ ठभू मय ,
मू य वाथ , आकां ाओं, सामािजक नयं क आ द से होता ह।
हमार श ा सं थाओं के भीतर और बाहर दोन ह ओर ऐसे यि तय क भरमार होती
है, जो कसी भी कार का प रवतन पस द नह ं करते। शो षत व द लत यि त भी अपनी
वतमान प रि थ तय से ह एक कार क संतु ि ट अनुभव करते ह। वे प रवतन से हच कचाते
ह। उ च शास नक, आ थक, सामािजक, राजनै तक ि थ तय म ि थत यि त प रवतन को
इस लए नह ं चाहते क ऐसा होने से उनके नजी वाथ क पू त नह ं होगी। आज व याथ श ा
सं थाओं के शासन को चलाने म अपना हक मांग रहे ह ले कन हमारे बूढ़े धानाचाय, यापक
व श ा शास नक अ धकार इसी लए उनक इस मांग को ठु करा रहे ह क ऐसा हो जाने पर
उ ह कौन पूछेगा और वे कस कार श ा सं थाओं के धन और साधन—सु वधाओं, नौकर—
चाकर , मोटरगाड़ी फन चर आ द का यि तगत लाभ उठा सकगे? आज भारतीय व व व यालय
क पर ाएँ पूणतया बदनाम हो चु क है। ले कन इस ओर से उनके व उठने वाल आवाज के
बावजू द उनम सुधार व प रवतन नह ं आ रहा है।
ा यापक और काशक के गठबंधन के फल व प कई पा य म और पा य पु तक
व ता वत पु तक म कोई प रवतन वष तक नह ं लाया जाता। जो लोग नजी श ा सं थाएँ
चलाते ह वे अपनी मनमानी करते ह तथा नौकरशाह , व या थय के दबे हु ए माता— पताओं तथा
थानीय राजनी त क सहायता से तथा अपनी जोड—तोड क वृि त या तकडमबाजी के बल
पर श ा दान करने तथा अंधाधु ध
ं धनाजन करने म लगे हु ए ह। भला वे कस कार श ा
यव था म सु धार होने दे सकते ह? जब तक श ा यव था म सु धार नह ं होगा तब तक कस
कार श ा समाज म प रवतन ला सकती है?
हमारे उ च शास नक अ धकार , नेता तथा पर परागत सं थाओं के भावी सद य
अपने अ तमन म नह ं चाहते क वा तव म कोई ऐसा मह वपूण सामािजक प रवतन दे श म हो—
िजसम उनक कु स हल जाय या उनके वाथ क पू त म लेशमा भी कमी आ जाय। यह
कारण है क शै क अवसर पर समता, समाजवाद, धम नरपे ता, जातं , सामा य शाला प त
आ द के नारे तो लगाये जाते ह, ले कन वा तव म जो कु छ होता है, वह उनके ठ क व ह है।
ये पर परागत सामािजक नयं क श ा यव था को परं परागत ह बने रहने को बा य करते ह।
बार—बार हमारे उ च राजनै तक नेता श ा म आमूलचूल प रवतन क ल बी—चौड़ी बात करते ह।
तस पर भी य द भारतीय श ा प त के भीतर और न उसके वारा समाज म कोई मह वपूण
प रवतन नह ं लाया जाता तो इसका सबसे बड़ा रह य यह है क हमारे भावी यि त व समू ह
वा तव म ऐसा नह ं चाहते। न ठावान ्, बु , शि तशाल व वतं प रवतन अ भकताओं के
बना तथा अनाव यक ह त ेप न डालने वाले सामािजक नयं क के बना कस कार ऐसे
प रवतन लाये जा सकते ह? सभी राजनै तक दल अपनी—अपनी ढफल पर अपना—अपना राग
अलाप रहे ह। सामािजक प रतवन लाने के लए हमारे दे श म भ य सं थाओं म बड़ी—बड़ी
नौकरशाह क यव थाओं, यो यताओं व आराम करने क वृ त पर बल दया जाता है, ले कन
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वा तव म या काय होता है और कैसे होता है, इसक ओर कोई वशेष यान नह ं दया जाता।
बड़ी—बड़ी श ण और शोध सं थाओं को खोला गया है। ले कन फर भी, वांछनीय कार का न
तो श ा—सु धार ह हु आ और न सामािजक प रवतन। उनम जैसा सामाजीकरण च लत है, वह
यि तय म ग या मक व सावभौ मकता के गुण का वकास नह ं होने दे ता तथा पर परावाद
यव था पर ह अ य धक बल दे ता है। श ा सं थाओं के वातावरण म ह अनेक कार क
सां कृ तक, सामािजक वल बनाएँ व यमान ह, िजनके कारण श ा सामािजक वघटन से त
हो रह है तथा सामािजक प रवतन लाने म असमथ बनती जा रह है।
न कष यह नकलता है क य यप श ा सामािजक प रवतन का एक मह वपूण
साधन या अ भकता बन सकती है तथा प भारतीय प रि थ तय म यह अनेक ज टल कारण के
फल व प ऐसा बनने म सफल नह ं हो पा रह है।
(ग) सामािजक प रवतन के भाव के प म श ा—
सामािजक प रवतन और श ा के पर पर संबध
ं को व ले षत करने का तीसरा
पा य म यह हो सकता है क श ा को घ टत हो चु के सामािजक प रवतन के प रणाम के प
म दे खने का यास कया जाये। भारतीय समाज म यह दे खने म आता है क गांव म डाकखाने,
बक, सहकार बक, दुकान तथा शहर म बक, सु परमाकट,आयकर वभाग आ द अनेकानेक
औपचा रक व ज टल कायालय खु ल गये ह िजनसे अपना काम नकालने के लए लोग को कई
कार के प को भरना होता है, कई कार के नयम का पालन करना पड़ता है तथा
अ याय य कार क औपचा रकताओं का अनुपालन करना होता है। अ श त यि त को ऐसा
करने म बहु त—सी असु वधाओं का अनुभव होता है। अत: अब उनम यह भावना उ प न होने लगी
है क हम नह ं पढ़े तो न सह , ले कन अपने ब च को अव य ह पढ़ाना है। यह कारण है क
गांव के नर र कसान और न न जा तयाँ तक भी अपने ब च को प ने के लए भेजने लगे
ह। कई ौढ़ वयं भी अब श ा ा त करने म च लेने लगे ह। इसी कार िजस थान पर
कोई बड़ा कल—कारखाना था पत हो जाता है, वहाँ और उसके आस—पास के लोग म पढ़ने तथा
श ण ा त कर उस कल—कारखाने या सं था म काम के अवसर पाने क इ छा जागृत हो
जाती है। बड़े—बड़े नगर के इद— गद या छोर के क व और गाव म हम यह दे खते ह क
अश त प रवार म भी अपने ब च को श त कराने क इ छा पनपने लगी है। द ल म
टे ल वजन के काय म के आसपास के गांव के अ श त कृ षक और ामीण म उपलि ध
सं ाि त तथा उनम श ा ाि त क इ छा बढ़ने लगी है।
य य प सामािजक प रवतन और श ा के पर पर संबध
ं के ये तीन प आपस म
संबं धत है, तथा प हमने प ट व लेषण के लए इ ह पृथक—पृथक रखकर समझाने का यास
कया है। इस कार हमने दे खा क श ा और सामािजक प रवतन के बीच गहन संबध
ं है।
इसी लए आधु नक युग म येक दे श श ा के मह व को समझ रहा है और इस पर बहु त धन
यय करता है।
93
5.6 श ा वारा सामािजक प रवतन (Social Change Through
Education)
सामािजक प रवतन लाने म श ा क मह वपूण भू मका हो सकती है। इस स ब ध म
न नां कत मु ख ब दुओं को भल भां त समझ लेना चा हए—
1. सामािजक प रवतन लाने के कई संयं या साधन होते ह जैसे कानून , पु लस, म लटर ,
आ थक— यव था, श ा। श ा उनम से केवल एक संयं है।“अकेला चना भाड़ नह ं फोड़
सकता है” केवल श ा ह सामािजक प रवतन नह ं ला सकती है। अत: सभी संयं को
मलकर काय करना चा हये। ऐसा आज भारत म नह ं हो रहा है।
2. सामािजक प रवतन और आधु नक करण लाने के लए पहल अ नवाय शत यह है क
दे श के सभी बु जीवी व प रवतन लाने वाल को आधु नक करण के हमारे दे श के मॉडल
का प ट ान हो। अब तक तो ऐसा हु आ भी नह ं है। दूसर शत है, उनम उपयु त
कार का प रवतन लाने क स ची भावना, लगन या न ठा हो। न ठावान ् राजनी त ,
शासक श क व प रवतन के अ भकताओं का घोर अभाव है।
3. संयं या साधन के प म श ा ह जब वयं खोखल , ढोगी, ट, पर परागत भाव
से संचा लत तथा संकु चत हो (जैसा क आज हम उसे पाते ह) तो वह कैसे भारतीय
समाज को प रव तत कर सकती है। पहले श ा के े म ह प रवतन व सुधार करना
होगा, उसके मॉडल को बदलना होगा। नारे बाजी के उसके वतमान मॉडल के थान पर
हम पावलो े रे के आ मा को झकझोरने वाले मॉडल को लाना होगा।
4. श ा म जब तक न नां कत त व को अ धक मह वपूण थान नह ं दया जायेगा,
भारत म उपयु त कार का सामािजक प रवतन नह ं आ सकेगा—
1. श ा के उ े य — श ा के उ े य को भारत के समाज और सं कृ त के
भू त,वतमान और भ व य के इि छत व प क मांग के अनुसार बदला व सश त
कया जाये।
2. श ा का मॉडल — श ा का मॉडल बदला जाये, वतमान मॉडल कोरे नार , आदश
क हाई मा को ो सा हत करना है। सामािजक सम याओं क ब कु ल सह
जानकार येक को मले, लोग क आ मा इस कार क जानकार से झकझोर
जाय, तथा वे वयं अपनी दशा को बदलने व सुधारने के लए अपनी लड़ाई वयं
लड़े। गांधीजी व पावलो े रे के वचार इस संदभ म बहु त लाभ दे सकते ह ।
3. श ण प तयाँ — सामू हकता क भावना वक सत करने वाल श ण व धय को
अपनाया जाये।
4. शासन — श ण सं थाओं का शासन जातं ीय, वकेि त तथा बु हो।
तानाशाह , गुटब द , राजनै तक दखल तथा शोषण क वृ तय को दूर कया जाये।
5. श क का काय — श क वयं को पढ़ाने का काम करने वाला व ता ह न
समझे, उसे वयं को सामािजक प रवतन का अ भकता समझना होगा। उसे समाज—
श ा, समाज सु धार तथा सं कृ त वकास व सार म योग दे ना होगा।
6. पा य म — पाठशालाओं और महा व यालय के पा य म म भारतीय समाज क
सम याओं को बहु त अ धक थान दया जाये। पा य म आधु नक ह , व तृत ह ,
94
सावभौ मक ह , तथा उनम उ कृ ट स ा त व भारतीय जीवन क वा त वकताओं
का सु दर मलन हो। सामािजक प रवतन व सु धार पर वशेष बल दया जाय।
7. शै क तकनीक का योग – वै ा नक और शै क के इस युग म हमार श ण
सं थाओं को बाबा आदम के जमाने क श ण व धय व उपकरण से श ा दे ना
शोभा नह ं दे ता। वे अपार समय व साधन को न ट कर रह ह। उ ह शै क
तकनीक के नये साधन टे ल फोन, रे डयो, ो ाम ल नग आ द का योग करना
चा हए। श ा जगत के नवाचार से उ ह लाभाि वत होना चा हये।
8. सीखने के पयावरण का नमाण — कू ल, कॉलेज के श क के पढ़ाते रहने मा से
न तो श ा फैलेगी और न वां छत सामािजक प रवतन आयेगा। आव यकता इस
बात क है क व भ न सं थाएं आपस म मल तथा थान— थान पर सीखने को
े रत करने वाले पयावरण या सीखने के जाल बनाय। उनम पहु ँ च कर सीखने वाले
को वत: ह सीखने के लए ेरणा मले।
9. जीवन पय त श ा — ऐसी शै क यव थाएं व सु वधाएं बनाई जाय क हर आयु
के येक यि त को अपनी जीवन क आव यकताओं और अपनी इ छाओं के
अनु प जीवन—पय त श ा मलती रहे। पा यो तर पा य म, अंशकाल न श ा
सं थाओं, ौढ़ श ा आ द क इस दशा म बहु त अ धक भू मका होनी चा हए।
95
3. Fairchild,H.p.,Dictionary of Sociology,The Free Press,New
York,1951.
4. Parsons,Talcott,The Social System,The Free Press,New York,1951.
5. Majumdar,D.N.and Madam,T.N.An Introduction to Social
Anthropology,Asia Publishing House,Bombay,1957.
6. Ghurye,G.S.Caste and Class in India,Popular Book
Depot,Bombay,1950.
7. Max Weber,The Protestant Ethic and Spirit of
Famiralistum,Charles skikmers and sons,New York,1958.
8. Max Weber,Social and Economic Organisation,Charles skikmers
and Sons,New York,1958.
9. Karl Mars,Communist Manifesto,Ref.in Mishel Duncum’s.A New
Dictionary of Sociology,Rewattege and Kegan Raw,London,1979.
10. Dau’s kingsley,Human Society,Macmillan,New York,1949.
11. Moore,Willbert,Social Change,Prentice Hall,Analysed,1974.
12. Srinivas,M.N.Caste in Modern India and Other Eassys,Asia
Publishing House,Mumbai,1962.
96
इकाई 6
व यालय का सामािजक संदभ : व यालय और समु दाय
स ब ध;
Social Context of School : School and Community
Relation;
इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)
6.0 उ े य (Objectives)
6.1 तावना (Introduction)
6.2 व यालय का सामािजक संदभ (Social Context of School)
6.2.1 सामािजक संदभ (Social Context)
6.2.2 व यालय का सामािजक संदभ (Social Context of School)
6.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community Relation)
6.3.1 समु दाय (Community)
6.3.2 समु दाय क मु ख वशेषताएँ (Characteristics of Community)
6.3.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community Relation)
6.4 व यालय और जातं ीय समाज (School and Democratic School)
6.4.1 व यालय एक जातं ीय यव था (School and Democratic System)
6.4.2 जातं ीय समाज यव था (Democratic Social System)
6.4.3 व यालय और जातं ीय समाज (School and Democratic Society)
6.5 सारांश (Summary)
6.6 मू यांकन न (Evaluation Question)
6.7 संदभ पु तक (References)
6.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई को प ने के बाद आपको इतना ान ा त जो जाएगा क
1. सामािजक संदभ से या ता पय है?
2. व यालय का सामािजक संदभ या होता है?
3. व यालय और समु दाय का पार प रक स ब ध या है?
4. जातं और जातं ीय समाज से या अथ है?
5. जातं ीय सामािजक यव था म व यालय का या व प होता है?
98
1. ाचीन भारतीय सामािजक यव था और व यालय ाचीन भारतीय समाज यव था
वणा म पर आधा रत थी। काया मक ि ट से भारतीय समाज चार वग म वभािजत था। ये
चार वग चार वण के नाम से जाने गए। इन चार वण ( ा मण, ीय, वै य और शू ) के काय
का वभाजन गुण तथा काय के अनुसार कया गया। उसी के अनु प सामािजक एवं श ा
यव था व यमान थी।
दूसर ओर आ म यव था के अ तगत स पूण मानव जीवन को आयु के आधार पर
चार अव थाओं म बांटा गया। ये ह: 1. यचय, 2. गृह थ 3. वान थ और 4. स यास
आ म। इन चार आ म म से थम मचय आ म श ा हण करने एवं समाज को समझने
क अव था थी। जीवन के थम प चीस वष ाचीन भारतीय समाज यव था म श ा अजन
हे तु रखे गए थे। स पूण जीवन का आधार थम आ म ह था। इस आ म का उ े य बालक का
शार रक, मान सक, बौ क, नै तक, आ द या न सवागीण वकास कर उसे सांसा रक जीवन
(गृह था म) म वेश के लए तैयार करना था। इस तैयार का थल व यालय था। इस कार
वै दक भारतीय समाज म पर परागत व यालय (गु कु ल) यव था का मह व अ य धक था।
2. वतमान भारतीय सामािजक यव था और व यालय. प रवतन के म म गुण एवं
काय का थान और सामािजक तर करण म वण का थान ज म पर आधा रत जा त यव था
ने लया तो पर परागत व यालय का मह व कम होता चला गया और प रवार व जा त म
पर परागत यवसाय मह वपूण होने लगे। फल व प श ा के के व यालय से हटकर
प रवार' बनने लगे। अनुभव पर आधा रत संयु त प रवार पर परागत यवसाय क श ा और
श ण के के बनते चले गए। ान अजन हे तु व यालय का पहले वाला व प और उसक
मह वता उ च वग तक सी मत रह गई और भारत म व व तर य व या के के धीरे —धीरे
अपनी त ठा खोने लगे।
वतं ता से पूव अं ेज शासक ने पि चमी सं कृ त पर आधा रत औपचा रक श ा के
व यालय क यव था ार भ क । समय एवं प रि थ तय क आव यकता के अनु प नये
व यालय का सामािजक उ े य त काल न सामािजक—सां कृ तक कारक पर आधा रत था।
वतं ता के प चात ् समानता, ातृ व, याय, वतं ता, आ द पर आधा रत लोकतां क
समाजवाद धम नरपे समाज क थापना ने व यालय के व प को धीरे —धीरे बदलना ार भ
कया। श ा समाज के सभी वग एवं जा त के सद य के लए खोल द गई। भारतीय
जातां क समाज यव था वण, जा त, धम एवं लंग धानता पर आधा रत समाज यव था के
प म नह ं है। सभी यि त समान ह, उनम वभेद नह ं कया जाना चा हए। हांला क भारतीय
सामािजक यव था सं मण काल से गुजर रह है अत: व यालय वारा श ा एवं श ण दन
त दन मह चपूण होते जा रहे ह। प रवतन क आधु नकतम या के प रणाम व प स पूण
व व म व यालय के योगदान क मह वता को वीकार कया जा चुका है। अब तो वैि वक
श ा यव था क बात क जा रह है। अत: नकट भ व य म ह श ा यव था म पुन : नए
समाज के अनु प श ा यव था को वक सत करना होगा।
99
6.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community
Relationship)
व यालय तथा समुदाय दोन ह श ा के अ भकरण ह। व यालय औपचा रक
अ भकरण ह तो समु दाय अनौपचा रक। बालक सव थम माता फर पता उसके बाद प रवार के
अ य सद य के स पक म आता है। इसके बाद जब वह घर क चार द वार लांघता है तो पास—
पड़ोस एवं समु दाय के स पक म आता है और स पक क यापकता के म म वह व यालय
तथा अ य संगठन से स प कत हो, वकास के पथ पर आगे बढ़ता जाता है। समाजशा के े
म वशेषत: सामािजक मनो व ान के े म हु ए अनुसंधान से यह संकेत मलता है क ज म के
बाद बालक जो भी कु छ इस संसार म सीखता है, उसका अ धकांश भाग वह अपने सामु दा यक
स पक के कारण सीखता है।अत: बालक क श ा म समु दाय क अहम ् भू मका है।
100
3. सामु दा यक भावना : समु दाय के नमाण के लए यि तय के समू ह और नि चत
भौगो लक े के अलावा सामु दा यक भावना का होना भी अ य त आव यक है। इसम तीन बात
का होना ज र है।
(अ) हम क भावना क अ भ यि त,
(ब) दा य व नवाह क भावना, और
(स) नभरता क भावना
101
कु छ लोग समान यवसाय, समान धम, आ म— नभरता को भी समु दाय के आव यक
ल ण म मानते ह क तु आज क प रि थ तय म सभी दे श म ि थत समुदाय म ल ण नह ं
पाये जाते ह। अत: इ ह आव यक ल ण म नह ं रखा जा रहा है। समु दाय के व प क
उपयु त ववेचना के बाद यह दे खना है क इस समु दाय क शै क—भू मका या है अथात
समु दाय का श ा— े म योगदान या है?
103
समाजीकरण कर सक। अत: भारतीय समाज— यव था म व यालय का अ य त मह वपूण
थान है।
104
6.4.2 व यालय एक जातं ीय यव था (School as a
Democratic System)
व यालय एक संर चत सामािजक समू ह के प म काय करता है। व वान व यालय को
एक कार का समाज ह कहते ह िजसक अपनी सामािजक यव था है। कु छ ने इसे समु दाय क
सं ा दे ना उपयु त समझा है य क इसके सद य के उ े य समान होते ह। पस रपोट के
अनुसार आज के त न ध व यालय को केवल व याजन का थान नह ं माना जा सकता। वह
एक सामािजक इकाई अथवा एक व श ट कार का समाज है िजसके सभी छोटे —बड़े सद य,
अ यापक, छा साथ—साथ रहते ह। वे ऐसे सं वधान के अधीन काय करते ह, िजसके लये कई
कार से सबक सहम त और सबका सहयोग रहता है । व यालय वयं म एक लोकतां क
उपसामािजक यव था के प म काय करता है। अत: व यालय के सद य ( श क, कायक ता
एवं व याथ ) का यवहार भी लोकतां क होगा। यह प रि थ त लोकतां क समाज यव था के
नमाण म सहायक होती है।
य द हम लोकतां त समाज यव था के लये यावहा रक नाग रकता क श ा दे ना
चाहते ह तो उसके लये व यालय एक उपयु त थल है। िजस कार के समाज म छा आगे
चलकर रहगे, उसके अनुकू ल व यालय स य सद य तैयार कर सकता है। व यालय को यह
सब मक प म करना चा हये। व यालय म राजनी तक लोकत के नमू ने क तज पर पूण
वाय तता यावहा रक नह ं होगी।
अ धकतर समाजशाि य ने व यालय को एक औपचा रक सामािजक सं था माना है।
इ ह ने इसे अ धकार तं का ह एक प माना है। अ धकार त म व भ न अ धकार एवं
कत य के बंधे हु ए कई पद या थान होते ह िजनम ऊँच—नीच का एक सामािजक सं तरण या
वभेद करण होता है। गु डनर के अनुसार अ धकार त दो कार का हो सकता है —
1. त न ध अ धकार त ,
2. द ड केि त अ धकार त ,
लोकतां क सामािजक संगठन म त न ध अ धकार त ह उपयु त रहता है। अत:
भारतीय व यालय के लये इस कार का त ह उपयु त होगा। इसम अ यापक और
व या थय के बीच काय एवं अ धकार वभाजन कया जा सकता है।
अ यापक क भू मकाएँ : व यालय म सामा यत: शै क नी त का नधारण का काय
अ यापक एवं धाना यापक मलकर करते ह। कु छ नयम के नधारण म छा के साथ वचार—
व नमय भी करते ह। पा य म तथा श ण— व धयाँ इनका ह अ धकार े होगा। यथा
आव यकता व या थय से वचार— व नमय तथा परामश करते ह और यह उपयोगी होगा।
व या थय क भू मकाएँ : नयम एवं व यालय—संगठन के े म व या थय का
परामश आव यक है। यह व याथ — त न ध समू ह के मा यम से कया जा सकता है। व यालय
प रष इसका उपयु त मा यम है।
व यालय प रषद — इनम सभी क ाओं का त न ध व होता है। त न ध व या थय
का चयन क ाओं के सभी व याथ मलकर करते ह। व यालय प रषद म अ यापक वग के
त न ध भी धाना यापक या ाचाय वारा नयु त होते ह। प रषद का अ धकार े नधा रत
होता है। व यालय प रषद न मत सं वधान क सीमा म रहकर काय करती है। इस प रषद क
105
ग त व धय से व याथ वचार— व नयम, वमश, स ह णु ता, सहयोग, आ द लोकतां क वृि तय
को सीखते ह। आ मानुशासन का वकास भी होता है। इस प रष के अ तगत व भ न काय के
लए व या थय क स म तयां बनाई जाती ह और वे स बि धत ग त व धय का संचालन
अ यापक के नदशन म करते ह। पु तकालय, खेलकू द, सां कृ तक ग त व ध आ द से स बि धत
स म तयां बनाई जाती ह। इनका संचालन व याथ अ यापक क दे ख—रे ख म करते ह। इस कार
व याथ व यालय म लोकतां क समाज यव था का अ यसात करते ह।
सि म लत उ तरदा य व क भावना का वकास — लोकतां क आधार पर संग ठत
व यालय का एक लाभ यह भी है क इसम सभी सद य म उ तरदा य व क भावना का वकास
होता है। समू ह म कसी नि चत भू मका के अदा करने से बालक म उ तरदा य व क भावना का
वकास होता है। वह यह महसू स करता है क समू ह म उसका मह व है। वह समू ह उसका है,
समू ह का हत उसका हत है। इसके अलावा छोटे — छोटे काय को पूरा कर वह बड़े एवं क ठन
काय का नवाह करना सीखता है। ार भ म छा को क ा सजाना, च का थान बदलना,
ना ता— वतरण, क ा—सफाई, दे ख—रे ख जैसे काय सौप जाते ह। धीरे — धीरे वह गोि ठय ,
खेलकू द, मनोरं जन—काय म आ द के संचालन और संयोजन तक के काम करने लगता है।
व यालयी स ब ध के आधार लोकताि क मू य ह गे तो व यालय का सामािजक
वातावरण भी लोकताि क होगा। अत: अ यापक— व याथ , धाना यापक—अ यापक तथा अ य
व यालयी सद य के स ब ध वत ता, ातृ व, याय आ द के लोकताि क मू य पर
आधा रत होने लगते ह। य द व यालय का काय सामािजक जीवन क तैयार है तो व यालय म
मानवीय स ब ध का मह व बढ़ जाता है।
सारांश यह है क भारत क ाचीन समाज— यव था म व यालय को अ य त
मह वपूण थान ा त था और आज भी वतमान समाज— यव था म उसको अ य त मह वपूण
थान दये बना, वतमान समाज— यव था का चलना मु ि कल होगा य क वतमान समाज के
िजस व प क संक पना हमने क है, उसके लये नाग रक तैयार करने का काय वतमान
प रि थ तय म व यालय ह करता है। अत: नवीन भारतीय समाज— यव था म व यालय का
अ य त मह वपूण थान है।
106
2. लोकत के जीवन—शैल के प म अपनाना — लोकत को केवल शासन— णाल के
प म न अपनाकर जीवन जीने क शैल के प म अपनाने का यास श ा का मु ख उ े य
होना चा हये। भारतीय स दभ म यह इस लए आ याव यक है य क यहां धम एवं भाषाएँ
भ न— भ न ह। यहाँ व भ न जा तय , जा तय एवं वग के लोग नवास करते ह। ऐसी ि थ त
म ह लोकत का सह पर ण होता है। लोकत को जीवन—शैल के प म अपनाने पर ह
उपयु त व वधता म एकता लायी जा सकेगी। यह बहु त क ठन काम है क तु य द श ा इस
ि थ त का सामना न कर सक तो वह श ा लोकत के लये कोई अथ नह ं रखेगी।
3. सामािजक याय एवं भारतीय श ा के उ े य सामािजक याय का आधार आ थक है।
य द सभी नाग रक को आ थक वकास के अवसर मल तो ह सभी को समु चत सामािजक याय
मल सकता है।
1. आ थक उ े य : भारतीय श ा का एक मु ख उ े य आ थक वकास करना है। इसके
लए आव यक ह क हम मानवीय संसाधन का वकास कर; भौ तक संसाधन का वकास कर;
म के त न ठा पैदा कर; और रोजगार के अवसर म वृ कर।
2. सामािजक याय क भावना के वकास का उ े य — भारतीय समाज म अनेक वग,
अनेक तर, अनेक सोपान बन गये ह िजससे समाज का एक बहु त बड़ा ह सा सामािजक याय
से वं चत रह जाता है। नीचे से ऊपर सामािजक ग तशीलता क कमी है। व भ न वग के बीच
काफ अ तर है। इस ि ट से आव यक है क —
(i) सामािजक याय क भावना क ि ट से वतमान भारतीय श ा णाल म समान
शै क अवसर क या या करनी होगी इसके लए न न कदम उठाए गए है:
(अ) नःशु क एवं अ नवाय श ा यव था;
(ब) समान कू ल णाल ;
(स) ौढ़ श ा काय म को बढ़ावा दे ना।
107
1. जातं से या अथ है |
2. व यालय एक जातं ीय यव था है | कै से ?
3. जातं ीय समाज यव था के तीन मह वपू ण ब दु द िजये |
108
इकाई 7
श ा मानव संसाधन और वकास
Education Human Resource and Development
7.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई को प ने के बाद आपको इतना ान ा त हो जाएगा क
1. आ थक वकास या है?
2. श ा और आ थक वकास कस कार एक दूसरे से स बि धत ह?
3. श ा कस कार मानव संसाधन के वकास म सहयोगी होती ह?
110
बढ़ती हु यी श ा क मांग के कारण संसाधन को श ा के े म आवं टत कया जा
रहा है। शै क यय क वृ सरकार के बजट पर भाव डाल रह है। इसके लये व भ न दे श
क सरकार यह भी जानना चाहती ह क यय के बदले म उ पादक तफल कतना ा त हो रहा
है। कुछ लोग श ा को व नयोग नह ं मानते ह उसका कारण है श ा म द घकाल न व नयोग
होना| हम सभी जानते ह क श ा पर जो आज हम यय कर रहे ह उसका तफल हम तुर त
नह मलता। इसका तफल 10 या 15 वष के प चात ् मलता है। य क जो यि त आज
श ा ा त कर रहे ह वे अपने ऊपर खच कये जा रहे ह। इस ि ट से श ा उपभोग है। आज
से 15 वष बाद वे समाज के लये उ पादन या म शा मल हो सकगे। इस ि ट से यह
व नयोग है य क तफल अव य ा त होता है। साथ ह यह तफल यय क तु लना म
अ धक होता है।
श ा पर यय का तफल उस पर कये गये यय से अ धक है या नह ,ं इस को
मापने के लये कोई भी व ध पूणतया व वसनीय नह ं ह। य क उ पादन म जो वृ होती है
उसम कई त व का योगदान होता है जैसे वातावरण, ो साहन, अनुशासन, सरकार नी तयां,
जलवायु ब ध, तकनीक, ब ध व े नंग, आ द। उ पादन वृ म श ा के योगदान को अलग
से मापना पूर तरह संभव नह ं है। ले कन इसम कोई संदेह नह ं है क उ पादन—वृ म श ा व
श ण क मह वपूण भू मका है।
श ा एक व नयोग है और मानव संसाधन वकास म सहायक होती है। श ा के कारण
ह म शि त अ धक आय ा त करने म सफल होती है। इस त य क पुि ट के लये कई
अ ययन हु ये है। वी.के.आर.वी रॉव म द ल से कये अ ययन म पाया क मै क, हायर
सैक डर , नातक व नातको तर तर क श ा ा त कये हु ये यि तय क आय व श ा के
तर म उ च सहसंबध
ं है। दूसरे श द म िजतना यादा श ा का तर ऊँचा होगा, उतनी ह
लोग क आय भी अ धक होगी|
वी.के.आर.वी रॉव के अ ययन के वपर त हम ऐसे लोग भी दे खने को मलते ह िज ह ने
उ च श ा ा त क है पर तु उनक आय उनके शै क तर के अनु प नह ं है। हमारे दे श म
हजार नवयुवक—नवयुव तयाँ नातक व नातको तर तर क श ा ा त करने के प चात 300
या 400 पये म व भ न व यालय म अ यापन यवसाय म कायरत है। इनका कारण हमारे
दे श म संसाधन को सामा य श ा पर यय कया जाना है। हमारे दे श म तकनीक व
यावसा यक आकड़े बताते ह क श त यि त बेरोजगार या अ वरोजगार क ि थ त म जी रहे
ह। य द श त यि त बेरोजगार रहते ह तो उन पर कया गया यय अनु पादक होगा। वतमान
भारत म 6.5 तशत यि त तकनीक प से कु शल, 0.1 तशत शास नक अ धकार , 13.4
तशत कु शल मक व 50.2 तशत अकु शल मक ह जब क वक सत दे श म 15 तशत
टे क न शयन, 2 तशत शास नक अ धकार , 25 तशत कु शल मक, 50 तशत अकुशल व
अ वकुशल मक व 8 तशत टे नो े स होते ह।
श ा पर कया गया स पूण यय उ च तफल दान नह ं करता उस नाते श ा
व नयोग नह ं है। ऐसा करने से श ा क मह ता व उपयो गता कम नह ं हो जाती है। श ा पर
कया गया स पूण यय उ च तफल दान करे , यह न तो संभव है और न ह वांछनीय है।
श ा से ा त तफल केवल आ थक ह नह ं होते। तफल सामािजक व सां कृ तक भी होते
111
ह। श ा के वारा यि त एक स पूण व उ च तर क िज दगी जीने के का बल बनता है। इस
नाते श ा उपभो य पदाथ है।
स पूण श ा को आ थक वकास से जोड़ने का अथ होगा श ा के दायरे को संकु चत
करना। िज दगी केवल खाना, पीना या कमाना ह नह ं है। भारत म ऐसे समाजसुधारक , च तक
व ानी पु ष के उदाहरण मलते ह िज ह ने श ा के सामािजक व सां कृ तक मू य के कारण
श ा को बढ़ावा दया है। दयान द सर वती राजा राममोहन राय ने ी श ा पर बल इस लये
नह ं दया क ि याँ आ थक वकास क या म सहायक होगी। ी श ा पर बल उ ह ने
एक अ छे व सु दर समाज के नमाण के लये दया। श ा के वारा अना थक तफल को
ा त कया जाता है जो आगे जा कर आ थक वकास क या को व रत करता है। इस कार
श ा अ य प से भी आ थक वकास को लाती है। उदाहरण के लये भाषाओं का ान सीधे
प म आ थक वकास म योगदान नह ं दे ता है। सामा य यि त के लये भाषा का ान र त
रवाज को जानने और धम व सं कृ त को जानने म मदद करता है। यह संचार या को
सु गम बनाता है पर तु इंजी नयर के लये वदे शी भाषा का ान वदे शी तकनीक को जानने म
सहायक होता है। इस कार श ा य प म उ पादन वृ म कई बार सहयोग नह ं दे ती
पर तु अ य प म अव य सहायक होती है।
अ त म न कष प म हम यह कह सकते ह क श ा उपभोग व व नयोग दोन ह
है।
श ा और आ थक वकास के स ब ध को सबसे पहले एडम ि मथ ने अपनी पु तक
'”वे थ ऑफ नेश स” म बताया था। जैसा क आप जानते ह उ पादन के लये हम दो कार क
पू ज
ं ी क आव यकता होती है। एक है ि थर पू ज
ं ी और दूसर है कायशील पू ज
ं ी। एडम ि मथ ने
म को ि थर पू ज
ं ी माना है व कॉटलै ड के वकास को दे खकर कहा था क वहाँ के लोग क
बु मता व अ छ आदत का ेय श ा को ह है। श ा ने वहाँ एक अ छ सरकार और एक
अ छ जनता को ज म दया। इसके साथ ह आ थक याओं व तर क का ेय भी श ा को
है। रकॉड और माशल जैसे अथशाि य ने भी श ा के प म कहा है क यह मनु य म
अ छ आदत वक सत करती है। श ा के कारण सी मत प रवार का ज म होता है जो
जनसाधारण के आ थक क याण म सहायक होता है। इस कार श ा आ थक वकास के लये
अ य प से योगदान दे ती है।
112
कायशील जनसं या से कसी दे श क म शि त तथा उसक यवसा यक संरचना से
वहां के आ थक वकास के तर का ान कया जा सकता है। िजस दे श म अ धकांश जनसं या
कृ ष पर नभर होती है वह दे श वकास के थम चरण पर माना जाता है। ऐसे दे श अ वक सत
दे श कहलाते ह। िजस दे श म उ योग जैसे व , चीनी, तेल, कागज, ख नज, आ द का व य
उ त उपयोग भी अपने उ नत तर पर होता है उसे वकास के वतीय चरण म माना जाता है।
ऐसे दे श वकासशील दे श कहलाते ह। िजन दे श म भार उ योग 7 पू ज
ं ीगत उ योग का
अथ यव था म योगदान अ धक होता है उ ह वक सत दे श क को ट म रखा जाता है। भारत म
कृ ष 71 तशत, नमाण उ योग म 13 तशत तथा अ य काय म 16 तशत लोग लगे हु ए
ह जब क अमे रका जैसे वक सत दे श म 2 तशत यि त कृ ष, 32 तशत उ योग तथा 66
तशत यि त सेवाओं म लगे हु ए ह। अत: दे श के वकास के ि टकोण से यह आव यक है क
दे श को वक सत करने के लये कृ ष पर आ त जनसं या को अ य कु ट र एवं भार उ योग म
लगाया जाये। भार उ योग म म शि त को लगाने के लये औपचा रक एवं तकनीक श ा दे ने
क ज रत है। भारत क जनसं या का इ तहास इस त य को घो षत करता है क यहाँ क
आबाद ती ग त से तवष बढ़ती जा रह है। इस समय भारत क जनसं या एक अरब से ऊपर
हो चु क है और ज म दर 2.5 तशत त वष से कु छ कम ह है। जब क वक सत दे श म यह
दर 1 तशत है। जनसं या वृ के कारण बेरोजगार क सम या और अ धक वकट होती जा
रह है। 2007 के “भारतं” के अनुसार हमारे दे श म लगभग 5821 हजार लोग रोजगार कायालय
म पंजीकृ त ह। बेरोजगार क सं या म लगातार वृ हु ई है जब क त दन यह दे खने म आया
है क रोजगार दे ने के लये सरकार वारा व भ न योजनाएँ चालू क गई ह।
व भ न पंचवष य योजनाओं म भौ तक पू ज
ं ी म वृ के यास कये गये पर तु बढ़ती
हु ई जनसं या म शि त म वृ करती है, िजसके कारण त यि त पू ज
ं ी का मा ा म अ धक
प रवतन नह ं हो पाता है। दूसर और मानवीय पू ज
ं ी का तर भी हमारे दे श म स तोषजनक नह ं
है। मानवीय पू ज
ं ी का वकास वा य सेवाओं, श ा व श ण पर नभर करता है। श ा क
ि थ त को दे खने पर पता चलता है क 64 तशत यि त अभी भी हमारे दे श म नर र ह
जब क अमे रका, कनाडा, इं लैड जैसे वक सत दे शो म 5 तशत यि त नर र ह। आज हमारे
दे श म आव यकता इस बात क है क मानवीय पू ज
ं ी को इस कार से तैयार कया जाये क वह
भौ तक पू ज
ं ी का ठ क कार से ल बे समय तक उपयोग कर सके। वतमान म भौ तक पू ज
ं ी
तकनीक प से बहु त ज टल हो गई है। एक ल बे समय तक मशीन व य को ठ क कार के
उपयोग करने के लये यि तय म कौशल का वकास करना ज र है। अत: औ यो गक सं कृ त
को लाने के लये मानवीय शि त का नमाण करना होगा।
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य द योजनाओं म ाथ मकताओं को दे ख तो पता चलता है क श ा व े नंग को
न न ाथ मकता द गई है। योजनाओं म श ा पर नर तर यय म वृ क गई पर तु इसे
सव च ाथ मकता नह ं द गई है। थम योजना म जहां श ा पर 164 करोड़ . खच कया
गया था। वह ं सातवीं योजना म 6383 करोड़ पये खच करने क योजना है। वक सत दे श म
कु ल बजट का 6 से 8 तशत खच कया जाता है। जब क भारत म 3 तशत के लगभग ह
खच कया गया ह|
हमारे दे श म श ा पर िजतनी भी मा ा यय क जा रह है उसका तफल उसके
अनु प नह ं मल पा रहा है य क श ा के व भ न तर और श ा के कार पर कये जाने
वाले यय का वतरण सह प म नह ं हो पा रहा है। ाथ मक श ा को वातावरण से न जोड़ने
के कारण इस पर कया गया यय यथ जा रहा है। ाथ मक श ा और वातावरण को न जोड़
पाने से ामीण यि तय के सोचने के ढं ग व अ भवृि तयो म कोई प रवतन नह ं आया है। साथ
ह व यालय छोड़ने वाल क सं या बढ़ रह है। उ च तर य श ा ा त यि त भी बेरोजगार
ह िजसके कारण उनका उ पादन म योगदान नह ं मला है। इस कार श ा के े म कया
गया नवेश अ यु त रहा है और यह साधन क बरबाद का उदाहरण है। जहां मानवीय पू ज
ं ी को
वकास के अवसर नह मले ह वहां बु —पलायन दे खने को मला है। इसके लये हमारे दे श म
आव यकता है तकनीक व यावसा यक श ा पर खच करने और उसको ाथ मकता दे ने क न
क सामा य श ा पर अ धक यय करने क । साधन के कु शल उपयोग के लये मानवीय शि त
के नयोजन क आव यकता है। मानवीय शि त क माँग व पू त म स तु लन था पत करना ह
मानवीय शि त का नयोजन है। मानव नयोजन करने वाले साधन को यथ जाने से बचाया जा
सकता है। इससे व भ न कौशल को वक सत करने क लागत व लाभ का पता लगा कर साधन
का अनुकू लतम उपयोग संभव हो सकेगा। बढ़ती हु ई श त बेरोजगार को दे खते हु ये मानवीय
शि त का अनुमान करके सी मत साधन व जाताि क धम नरपे रा य के सामािजक आ थक
दशन के अनुसार साधन का अंकन कया जाना चा हये। साथ ह यह वचार कया जाना चा हये
हम कतनी श ा मानवीय शि त को द, कस कार क श ा द व कतने यि तय को द।
114
कर लया जाएगा। अथात सकल रा य (या घरे ल)ू उ पाद और त यि त आय म वृ के
लाभ रस— रसकर अ य े को भा वत करगे। इसे संव ृ का रसाव भाव कहा जाता है।
बीसवीं शता द के छठे और सातव दशक म कोई लाभ नह ं हु आ तो बहु त से
अथशाि य ने 'पर परागत’ वकास क वचारधारा को छोड़ दया। आठव दशक म आ थक
वकास क संक पना को पुन : प रभा षत कया गया और आ थक वकास का मु य उ े य
गर बी, असमानता और बेरोजगार का नवारण रखा गया। इस दूसर धारणा को पुन वतरण के
साथ संव ृ का नारा दया गया।
इस संदभ म चा स पी. क डलबगर और स
ू है रक का यह कथन मह वपूण है आ थक
वकास क प रभाषा ाय: लोग के भौ तक क याण म बढ़ोतर होती है। जनसाधारण को अ श ा,
बीमार और छोट उ म मृ यु के साथ—साथ गर बी से छुटकारा मलता है। लोग का मु य
यवसाय न रहकर औ योगीकरण होता है िजससे उ पादन के व प म और उ पादन के लए
इ तेमाल होने वाले कारक के व प म प रवतन होता है। कायकार जनसं या का अनुपात बढ़ता
है और आ थक तथा दूसरे क म के नणय म लोग क भागीदार बढ़ती है तो अथ यव था का
व प बदलता है और हम कहते है क दे श वदे श म आ थक वकास हु आ है।
या गर बी के तर म कमी हो रह है? या बेरोजगार का तर कम हो रहा है? या
अथ यव था म असमानताएँ कम हो रह है' य द इन तीन न का उ तर सकारा मक है तो
न चय ह अथ य था म आ थक वकास हु आ है।
115
ाकृ तक संसाधन को बहु त मह वपूण माना है। जेकब वाइनर के श द म, “आ थक वकास बहु त
कु छ इसी बात पर नभर करता है क भौ तक पयावरण अथवा मेर श दावल म ाकृ तक
संसाधन क ेणी या गुण व ता उ पादन क ि ट से या है। तकू ल भौ तक पयावरण वकास
म एक मु ख बाधा बन सकता है। इसम स दे ह नह ं है क कई दे श के वकास और समृ म
उनके ाकृ तक संसाधन के भ डार ने अ य धक योगदान दया है। उपजाऊ भू म और संचाई के
लए उ चत यव था कृ ष वकास के लए अनुकू ल वातावरण पैदा करते ह। अ प— वक सत दे श
के कायाक प म कोयले और पे ो लयम के भ डार, जल व युत नमाण करने क सु वधाएं, लोहा,
टन, तांबा, बॉ साइट आ द व वध ख नज पदाथ क उपलि ध, वन तथा पशु स पि त, इ या द
अ य त मह वपूण भू मका अदा कर सकते ह। आथर युइस का मत ठ क ह है क कसी भी
दे श के वकास का तर तथा व प उस दे श के संसाधन वारा सी मत होता है। पर तु यहाँ इस
बात पर जोर दे ना आव यक है क मा ाकृ तक संसाधन क उपलि ध वकास के लए काफ
नह ं है। लै टन अमेर का, अ का और ए शया के बहु त से दे श ऐसे ह िजनम पया त ाकृ तक
संसाधन तो है पर तु िजनका वकास का तर अ य त नराशाजनक है। अ सर कहा जाता है क
अफगा न तान और तबत के अ प— वकास का कारण वहाँ ाकृ तक संसाधन का न होना है।
पर तु इस बात पर यादा जोर इस लए नह ं दया जा सकता य क बहु त से दे श ऐसे भी है
जहाँ ाकृ तक संसाधन का अभाव है पर तु िज ह ने उ साहव वक आ थक वकास ा त कया
है। उदाहरण के लए, ि वटजरलड के पास कोई ाकृ तक संसाधन नह ं है और न ह भौ तक
पयावरण अनुकू ल है फर भी उस रा ने काफ उ न त क है और वहां क त यि त आय
तथा स प त अमे रका, बटे न तथा जमनी जैसे दे श क तु लना म कम नह ं है।
116
2. मानव संसाधन : आ थक वकास म जनसं या एक मह वपूण कारक है। मानव से ह
उ पादन काय के लए म क उपलि ध होती है। य द कसी दे श म म शि त कु शल होने के
साथ—साथ काय करने क मता भी है तो उसक उ पादन साम य न चय ह अ धक होगी।
दुबल, अ श त, अकु शल और ढ़य म फंसे हु ए यि तय क उ पादकता कम होती है और
आ थक वकास म उनका योगदान भी अ धक नह ं होता। पर तु इस स दभ म इस बात का
यान रखना भी आव यक है क य द मानव शि त का युि तपूण उपयोग नह ं कया जाता, सभी
यि तय को उ पादक काय म नह ं लगाया जाता या फर मानव संसाधन का बंधन अकु शल
और अनुपयु त तर के से कया जाता है तो वह लोग जो आ थक वकास म मह वपूण योगदान
दे सकते थे, अथ यव था पर बोझ बन जाते ह। यह कारण है क अथशा ी जना ध य को
आ थक वकास म बाधा मानते ह।
3. कृ ष का व य अ धशेष — दे श के आ थक वकास के लए न स दे ह कृ ष उ पादन
तथा उ पादकता म वृ मह वपूण है पर तु इससे भी अ धक मह वपूण है कृ ष के व य
अ धशेष म वृ । व य अ धशेष (या ब यो य अ धशेष) कृ ष उ पादन का वह ह सा है जो
ामीण जनसं या क नवाह क आव यकताओं को पूरा करने के बाद बच जाता है। इस व य
अ धशेष पर ह शहर े के लोग का गुजर बसर होता है। शहर जनसं या क आव यकताओं
क तु लना म खा या न का ब यो य अ धशेष कम था इस लए सरकार को इनका भार मा ा
म आयात करना पड़ा। इससे खा या न क सम या का तो समाधान हो गया पर तु वदे शी मु ा
के प म बहु त अ धक खच करना पड़ा। इस मु ा का योग ऐसे अ य उ े य के लए कया जा
सकता था िजनसे आ थक वकास क दर को और यादा बढ़ाना संभव हो सकता था। इससे यह
स होता है क य द कोई दे श औ योगीकरण क ग त को तेज करना चाहता है तो उसे इस बात
का भी यान रखना पड़ेगा क कृ ष े पछड़ न जाए।
4. वदे शी यापार क शत : बहु त ल बे समय तक कई अथशाि य ने यापार के
ला सकल स ांत का सहारा लेकर यह तक दया है क अ तरा य यापार उन सब दे श के
लए लाभदायक है जो यापार म ह सा लेते ह। इस संदभ म यह कहा जाता रहा है क
अ प वक सत दे श को कृ ष पदाथ तथा क चे माल का उ पादन व नयात करना चा हए य क
इसी म उनका तु लना मक लागत लाभ है। इसके वपर त वक सत दे श को न मत व तु ओं का
उ पादन व नयात करना चा हये य क इनका तु लना मक लागत लाभ इसी म है।
वदे शी यापार से उन दे श को ह अ धक लाभ हु आ है िज ह ने तेजी के साथ
औ योगीकरण से न मत माल को ह वदे शी बाजार म बेचा है। इस लए अ प— वक सत दे श के
सामने भी यह ल य होना चा हए क तेजी से औ योगीकरण कर, औ यो गक व तु ओं और
पू ज
ं ीगत व तु ओं के े म आ म नभर बन तथा अपने नयात म कृ ष पदाथ और क चे माल
का ह सा घटाकर औ यो गक व तु ओं का नयात बढाएं।
5. आ थक णाल — आ थक वकास क ि ट से अथ णाल बहु त मह वपूण है। एक समय
ऐसा था जब सरकार ह त ेप र हत पू ज
ं ीवाद अथ णाल को अपना कर तेजी से आ थक वकास
करना संभव था जैसा क इं लैड ने कया पर तु आज क बदल हु ई प रि थ तय म इं लैड क
भां त वकास कर पाना असंभव है य क अ प— वक सत दे श के पास औप नवे शक शोषण क
वैसी संभावनाएं नह ं ह जैसी क इं लैड के पास थी। आज के अ प— वक सत दे श को अपना
वकास पथ वयं चु नना होगा। इन दे श के सामने अब दो रा ते ह। थम, पू ज
ं ीवाद णाल म
117
आ थक आयोजन जैसा क भारत म कया गया है। इसम वकास क दर धीमी रहती है। ले कन
द ण को रया तथा कु छ दूसरे दे श ने पू ज
ं ीवाद ढांचे म ह सरकार सहयोग से तेजी के साथ
वकास कया है। दूसरा रा ता समाजवाद आ थक आयोजन का है। चीन ने इस रा ते को
अपनाया है और इसके वारा तेज आ थक वकास ा त करने म सफलता पाई है।
118
4. भ ाचार से मु ि त : अ प— वक सत दे श म या त टाचार का इन दे श के आ थक
वकास पर यापक तकूल भाव पड़ा है। जब तक सरकार त है उस समय तक
लोकतां क णाल म स प न पू ज
ं ीप त यापार तथा अ य लोग वभ न कार से अपने
यि तगत हत म रा य साधन का दु पयोग करगे। ट समाज म योजनाओं पर होने वाले
यय का एक भाग तो सरकार अफसर और दूसरे कमचार हड़प कर जाते ह। सरकार गलत लोग
को लाइसे स दे ती है।
5. वकास के लए आकां ा — वकास या को एक मशीनी या नह ं समझा जाना
चा हए। कसी भी दे श म आ थक वकास क या क ग त उस दे श के लोग क वकास के
लए आकां ा पर नभर होती है। य द चेतना का तर नीचा है तो जनसाधारण म आकां ा होनी
चा हए।
इस कार यह प ट है क आ थक वकास क ि ट से जहां वक सत दे श क भां त
ह अ प वक सत दे श म ढ़ भौ तक आधार का नमाण करना आव यक है, वहां वकास के
राजनै तक, सामािजक तथा मनोवै ा नक नधारक पर भी यान दया जाना चा हए। मानवीय
त व क उपे ा कर वकास के कसी भी काय म को सफल नह ं बनाया जा सकता है। आ थक
और अना थक दोन ह कारक श ा, श ण एवं तकनीक ान से जु ड़े ह। अत: आ थक
वकास के लए समाज के येक सद य क जाग कता के लए आधु नक वै ा नक श ा एव
ान क त आव यक है, साथ ह ौ यो गक के उपयोग क मान सकता भी इतनी ह
मह वपूण है।
119
है, यह क समाज और शासक वारा ऐसी रा य ाथ मकताएं नधा रत क जा सकती ह
अथवा समाज का राजनै तक ढांचा ऐसा हो सकता है क आय के व तार से लोग के सामने
वक प का व तार न हो। उदाहरण के लए '' समाज म लोकतं के लए उसका संप न होना
आव यक नह ं है। प रवार म एक—दूसरे के अ धकार को मह व दे ने के लए उसका धनी होना
आव यक नह ं है। रा म ी—पु ष को समानता दान करने के लए उसका समृ होना
आव यक नह ं है। बहु मू य सामािजक एवं सां कृ तक पर पराओं को आय के सभी तर पर
बनाए रखा जा सकता है।
121
7.9 स दभ पु तक (Important Books)
1. SK Mishra and V.K. Suri, Bhartiya Arth Vyavastha, Himalaya Publishing
House, Delhi, 2006, pp. 5.27.
2. Mahboob, ULHag, ”Employment and Income Distribution in 1970; A New
Perspective, ”Pakistan Economic and Social Reviews, June—
December,1971.
3. Foll Stretion and Others, First Things First : Meeting Basic Needs In
Human Needs In Developing Countries,New York,1981.
122
इकाई 8
श ा मानव अ धकार के प म : भारत म ब च क
ि थत
Education As Human Rights : Situation Of
Children In India
8.0 उ े य (Objectives)
1. भारतीय सं वधान म मू ल अ धकार को जानना
2. सामािजक यव था के ल ण को जानना,
3. मानवा धकार श ा और उसके त जाग कता के यास,
4. भारत म ब च के अ धकार को जानना
124
स ह णुता क पर परा तथा व वधता व अनेक पता के त आदर क पर परा रह है| वसु धैव
कु टु बकम ् क अवधारणा इसका उदाहरण है। भारतीय दशन म बंधु व और स पूण व व को एक
प रवार के प म दे खने जैसे मू य अ त न हत ह। ये अवधारणाएं अनेक धा मक एवं समाज
सु धार आदोलन म भी त बि बत हु ई ह। इसी कार के वचार अ य सं कृ तय और स यताओं
म भी वक सत हु ए ह। यूरोप म 'पुनजागरण' और ' ानोदय' मानवतावाद का मूलमं बना है।
मानवतावाद ने मनु य को सबसे ऊपर ति ठत कया है। इस काल म िजस समय यूरोप म
मानवतावाद क थापना हो रह थी लगभग उसी समय अमर का के यूरोपीय—पूव सं कृ तय के
व वंस, इंसान क तजारत और व व के कई भाग म उप नवेशीकरण के ार भ का भी काल
था। मानवतावाद का सारा संदभ मानवा धकार है।
मानवा धकार क अवधारणा के वकास क या 18वीं सद म उ दत ां तकार
आ दोलन के प रणाम व प तेजी से फैल और 19वीं व 20वी शता द म परवान चढ़ । इसम
सबसे बड़ा योगदान अमर क वतं ता क घोषणा और ांस क मनुषय तथा नाग रक के
अ धकार क घोषणा का रहा। अमर का और अ य सभी दे श जो मानवा धकार क बात करते रहे
सवा धक अ धकार का हनन उ ह ं जातां क, समाजवाद जनवाद दे श म ह हु ए ह।1914 से
1945 दो व वयु तक का कालख ड ' व वसं का काल' था। इसी काल के अि तम वष म
अ तरा य तर पर मानवा धकार क अवधारणा और अ भ यि त वतमान अश म क जाने
लगी, संयु त रा संघ के अ धकार—प को लेकर कोई तीन वष बाद ज द क गई।
मानवा धकार क सावजनीक घोषणा (1948) व तु त: ऐसे मानवा धकार क एक ल बी सू ची है।
िजनक ग त सभी जन सभाओं और रा के लए 'सामा यत: आव यक मानी जाती है।
मानवा धकार क इस अवधारणा क चचा सामा य प से इसके तीन चरण को यान म
रखकर क जाती है —
1. थम चरण के अ धकार : वतं ता अ भमु ख अ धकार — इनका स ब ध मु य प से
यि त के नाग रक तथा राजनी तक अ धकार से ह। इनका उ े य सरकार को यि तगत
वतं ताओं म ह त ेप करने से रोकने के लए नषेधा मक दा य व आरो पत करना था।ये
अ धकार 19वीं सद से आरं भ हाने वाले सभी उदारवाद और लोकतां क आदोलन के मु ख
योजन म से थे।
2. दूसरे चरण के अ धकार सु र ा अ भमु ख अ धकार — इनम सामािजक, आ थक और
सां कृ तक सु र ा क यव था है। इसक कृ त सकारा मक है। इनके कारण यह ज र हो जाता
है क रा य इन अ धकार क पालना सु न चत कर।
3. तृतीय चरण के मानवा धकार वकास का अ धकार — इनका वकास हाल ह म हु आ है।
वतमान म पयावरण स ब धी, सां कृ तक तथा वकासा मक अ धकार का समावेश हु आ है।
इनका स ब ध यि तय क बजाय समू ह और जन—समाज के अ धकार से है। इनम आ म—
नणय और वकास का अ धकार, आ द आते ह। इन अ धकार पर अ तरा य तर पर आम
सहम त पैदा करने म वकासशील दे श क महती भू मका रह है।
125
दया गया है। संयु त रा क महासभा म “मानवा धकार क इस सावज नक घोषणा का ल य”
यह बताया है क
“ येक यि त और समाज का येक अंग... अ यापन और श ा वारा इन
अ धकार व वतं ताओं के त स मान क भावना का अ भवधन करे गा |”
ब च के अ धकार से स बि धत कई अनु छे द श ा के अ धकार के व भ न पहलू ओं
और श ा क वषय—व तु के बारे म है। इसक वषय—व तु म इस बात का भी समावेश है क
“ब चे क श ा... मानवा धकार ओर वतं ताओं के त स मान क भावना का वकास करने
क और अ भमु ख होगी|
ब च के लए श ा का अ धकार आज आधार भू त अ धकार है। इस मानवा धकार के
अ तगत 14 वष क आयु दे श के सभी ब च के लए श ा अ नवाय कर द गई है। यह
इस लए अ नवाय है य क श ा का भाव मानव वकास पर सवा धक होता है। इस गुणा मक
सु धार का भाव यि त व नमाण के साथ ह समाज के वकास से सीधा जु ड़ा है। बालक य क
भ व य का नाग रक होता है अत: उसका श त होना, ानकाल होना और अब तक के अिजत
ान को अपनी अगल पीढ़ को थाना त रत करने का कत य होता है। ऐसे म वा य एवं
सामािजक सु र ा के अ त र त श ा का अ धकार ब च का है। वह दे श जो ब च क श ा का
अ धकार नय मत प से दे ता है वह वकास के उ च तर पर रहता है।
संभवत: मानव अ धकार से संबं धत भारतीय जीवन मू य क उ पि त सबसे ाचीन है।
सबसे ाचीन माने जाने वाले ऋ वेद म यह घो षत कया गया है क सभी मानव बराबर है और
वे सब भाई—भाई ह। अथवद के अनुसार खा य पदाथ तथा जल जैसे ाकृ तक संसाधन पर सभी
मानव का बराबर अ धकार है। उप नषद ( ु त) स हत वेद धम के मौ लक ोत ह। 'धम' उन
सभी मानव अ धकार और कत य के लए एक ऐसा सारग मत श द है िजसका पालन करना
यि त और समाज के सु ख एवं शाि त के लए आव यक माना गया। मृ त और पुराण म धम
के उन नयम का संकलन कया गया है िजनम नाग रक कत य, यवहार, धम तथा रा य धम
भी शा मल है और जो वेद म न हत मूलभू त आदश के आधार पर वक सत कए गये थे। इनके
राजधम संबध
ं ी अ य अ धकृ त थ
ं भी ह िजनम सबसे अ धक मह वपूण काम डक, 'शु नी त'
तथा कौ ट य का 'अथशा ह। इन सबका उ े य सब को सु खी बनाना था।
धम के नयम के व लेषण से यह ात होता है क अ त ाचीन काल से ह भारत म
मू यवान मानव अ धकार को नधा रत कर मा यता द गयी और इन मानव अ धकार क र ा
रा य तथा नि चत यि तय का कत य माना गया। इससे यह भी ात होता है क जीवन
मू य म अनेक मानव अ धकार न हत थे जो अब “ व व मानव अ धकार घोषणा” प तथा
भारतीय सं वधान के तृतीय भाग म अनेक मू लभू त अ धकार म स म लत कए गये ह। यह
वषय मेनका गांधी बनाम भारतीय संघ वाले मु कदमे म (1978(1) एस.सी.सी. 248) नयम
कार उजागर कया है।
“ये मू ल अ धकार उन आधारभू त मू य के योतक ह िज ह इस दे श के लाग ने वेद के
काल से ह मू यवान समझा और िज ह यि त के मान क र ा के लए ऐसी ि थ तयाँ न मत
करने के लए आव यक माना गया िजनम येक मानव अपने यि त व का पूण वकास कर
सकता है।
126
इस दे श क स यता तथा सं कृ त को आदश प दान करने वाले महान वचारक ने
येक यि त के अ धकार क र ा के लए दूसरे यि तय के सहगामी कत य नधा रत करने
का अ वतीय उपाय नकाला।
अतएव, इस दे श के ाचीन दाश नक ने अ धकार पर आधा रत समाज न बनाकर कत य
आधा रत समाज बनाना अ धक अ छा समझा िजसम यि त को दया हु आ अ धकार उसक
कत य पू त का अ धकार है।
मानव अ धकार जीवन का आधारभूत मू य है जो भगवतगीता क अ य त लोक य
तथा मह वपूण घोषणा है जो इस कार है,
तु हारा अ धकार अपने कत य क पू त करना है।
समानता का अ धकार सभी अ धकार म सबसे मह वपूण अ धकार है। इसके बना सु खी
जीवन असंभव है। अ यायपूण भेदभाव से उन यि तय म दुख और संताप पैदा होता है िजनके
व भेदभाव कया जाता है इस लए ज र है क येक यि त को समाज म मान ा त हो।
अ यंत ाचीनकाल से ह मानवीय याकलाप के येक े म समानता और अवसर क
समानता को आव यक माना गया है।
ऋ वेद और अथवेद म समानता के अ धकार क घोषणा क गयी है। वे उदाहरण है।
जैसे—''समाज म ऊँचनीच का भेदनह ं है, सभी भाई ह। सबको सबक भलाई और उ न त
करनी चा हए।''
''मानव अ धकार के घोषणाप (1948) क धारा 1 और 7 के अनुसार सभी मनु य
ज म से ह मान और अ धकार म बराबर ह। मनु य वभाव से ह तकशील और ववेक है,
इस लए भाई—चारे क भावना के साथ उ ह एक दूसरे के त यवहार करना चा हए।''
''सभी, कानून क ि ट से समान ह। कानून बना भेदभाव के उनक समान संर ण
दान करे गा। इस घोषणा के उ लंघन व प कसी भी भेदभाव के खलाफ और भेदभाव से े रत
कसी भी यवहार के खलाफ समान संर ण का सबको अ धकार है।''
127
8.3 नवीन सामािजक यव था के ल ण(Characteristics of New
Social System)
भारतीय —सामािजक यव था का एक नि चत, नधा रत व प वतमान समय म ती
ग त से प रव तत हु आ है। यि त, प रवार, समु दाय, समाज एवं रा क आकां ाओं, उपे ाओं
के प रव तत तमान के कारण यह यव था ती ग त से नवीन सामािजक व प को ा त
कर रह है। कु छ मु ख ल ण न न ल खत है :
128
सम या को उजागर करने वाले त य हम इस दशा म सोचने के लए बा य करते ह क इस
श ा को दान करने के लए कन ल य का नधारण कया जाना ाथ मकता है? ऐसे ह
क तपय ल य का वणन तु त है
129
पतृऋण, 3. ऋ ष ऋण आचाय / श ा शा ी। िजनम भगवत गीता भी सि म लत है। उनके
अनुसार तीन प व कत य अधूरे ह उ ह ने चौथा कत य 'मानव ऋण' बताया है। चौथे कत य को
पव कत य म सि म लत करने म मह ष वेद यास का मह वपूण योगदान है।
येक मनु य को चार पु य कत य दे वऋण, पतृऋण, ऋ ष ऋण और मानवऋण का
पालन करना चा हए।
येक पीढ़ के यि त अपनी पूव पीढ़ के व ान , आचाय तथा श ा वद के त
ऋण को चु काने को बा य है िज ह ने ान को दूसर पीढ़ के लए सं चत, वक सत और
ह ता त रत कया। ठ क वैसे ह पु अपने प व कत य को कृ त तापूवक नभाता है जैसे उसके
पता ने अपने प रवार के क याण के लए अपने धा मक कत य को नभाया था। यह यि त
का प व कत य बनता है क वह उस ान को सं चत कर, हण कर और तब उसम उपयोगी
सु धार, शोघ, या या, श ण तथा लेखन वारा नए वचार का वकास करके उसे अगल पीढ़
को ह ता त रत कर।
इस लए सह श ा हण करना और ान ा त करना येक यि त का कत य है। उसे
ारि भक श ा से लेकर उ च तर तक ान ा त करने के लए यास करना चा हए।
फर भी, आचाय पर ाथ मक से लेकर उ च तर तक अ धक उ तरदा य व है। आचाय
का उ तरदा य व अपने छा को न केवल ान दान करना है अ पतु उनके च र को बनाना है
िजससे वे ा त ान का उपयोग वृि तस हता तथा समाज के लाभ के अनुसार कर सक।
ाचीन भारत म श ा क मह ता का वणन भतृह र (ईसा से पूव थम शता द ) के
लोक म मलता है। श ा मनु य क वशेष अ भ यि त है, श ा वह धन है िजसे हा न के भय
के बना सुर त रखा जा सकता है। ' ' श ा से भौ तक आनंद, सु ख और या त ा त होते ह।
श ा गु थ क गु है। ' श ा ह उसका म है, श ा परमा मा का अवतार है। “जब यि त
वदे श जाता है, उधर रा य से स मान क ाि त श ा से होती है न क धन से।“ श ा के
अभाव म मनु य पशु तु य है।“ भतृह र उ जैन का नरे श जो दाश नक बन गया था के उपरो त
लोक म श ा क मह ता के साथ—साथ अ श त यि त को पशु समान माना गया है। ऐसा
कहकर उसने सभी को ान ा त करने और अगल पीढ़ को उसका सार करने क ेरणा द ।
हमार स यता के इस प का संकेत भारत के सव च यायालय के मो हनी जैन के
मु कदमे म कया गया िजसम श ा के अ धकार को मौ लक अ धकार माना गया है। उ नीकृ णन
के मु कदमे म आदे श दया गया क श ा का अ धकार सं वधान क इ क सवीं धारा के अधीन
मौ लक अ धकार का एक भाग है।
पातंज ल ने सं त मगर साथक अनु छे द म श ा के इन चार मह वपूण सोपान
अथवा अव थाओं को पूण करने के लए येक यि त को आदे श दे ते हु ए कहा है—
1. अपने माता— पता तथा आचाय से ान / श ा ा त करो।
2. वयं अ ययन करके ान म वृ करो।
3. मह वपूण ान को दूसर को दान करो। अथात ् माता पता के प म अपनी संतान को
अ यापक के प म छा को अथवा अ य कसी प म दूसर को।
4. ान का उपयोग प रवार के लाभ के लए तथा अपने यापार, पेशे या रोजगार से समाज
के लाभ पहु ँ चाने के लए करो।
130
श ा के मानवीय अ धकार के उ े य सु ख ा त करना है इस लए इसे सा रता तक
सी मत नह ं करना चा हए। श ा का उ े य तो यि त का बौ वक, मान सक, नै तक, शार रक,
अथात ् सवागीण वकास कर यि त को समाज क संपदा बनाना है। जब रा और समाज
अ धक सं या म ऐसे यि तय का नमाण करने म सफल होता है, तभी वह सु ख ा त करता
है। इस त य को तै तर य उप नष के श ावल के आठव पाठ म बताया गया है।
यह पाठ घो षत करता है क श ा का अथ बौ क, नै तक और शार रक श ा है।
इसम यह भी न हत है क कसी भी रा का सु ख और उसक समृ लोग क शार रक,
बौ क और नै तक शि त के अनुपात म होती है। श ा के वारा सभी के यि त व का पूण
वकास होता है।
इस लए यह प ट है क यि तगत और सामू हक प से सभी के सु ख के लए न सफ
केवल आ थक नयोजन ह पया त है अ पतु ऐसी मौ लक शै णक योजना भी आव यक है जो
अ धक सं या म च र वान ् ानी, ढ़ संक पी, नै तक तथा शार रक प से यो य युवक का
नमाण कर। रा का सु ख ऐसी ह युवा पीढ़ क सं या के अनुपात म होगा िजसे हम सह
श ा वारा सजन कर सकते ह। सभी श ाशाि य और अ यापक का यह प व और दुःसा य
कत य है।
सभी लोग के पास सु खी जीवन बताने क मता अथवा साधन नह ं होते। अनेक
यि त घोर र ता, श ा के अभाव, धनोपाजन क अ मता, शार रक अपंगता, बीमार ,
ाव था तथा प रवार म कमाने वाले सद य के नधन आ द से पी डत होते ह। पर तु इस कार
के सभी लोग को घोर र ता क अव था म भी, सु खी जीवन जीने का मू ल मानव अ धकार है।
उनके इस अ धकार क सु र ा उन लोग तथा रा य को, कत य बोध कराने से होता है िजन
लोग पर वे आ त ह।
131
1. येक रा य अपने—अपने अ धकार े के अ दर, अ भसमय म उि ल खत अ धकार
को येक ब चे के संदभ म ब चे क याद उसके माता— पता या कानूनी अ भभावक क न ल,
रं ग, लंग, भाषा, धम, राजनी तक या अ य मत, रा य, नृजातीय या सामािजक मू ल, संपि त,
नयो यता ज म या अ य ि थ तय के आधार पर कोई वभेद कए बना, स मान दे गे और
सु नि चत करगे।
2. ब च से स बि धत सभी कायवाइय म, चाहे वे कायवाइयां सरकार या समाज क याण
सं थाओं वारा क जाए या यायालय वारा अथवा शास नक ा धका रय या वधायक
सं थाओं वारा, ब च के वा त वक हत मु य वचारणीय त व ह गे।
3. सभी रा य का क त य है क वे ब चे के माता— पता, कानूनी अ भभावक या उसके
लए कानूनन अ य िज मेदार यि तय के अ धकार तथा कत य को यान म रखते हु ए उसके
लए ऐसा संर ण और दे खभाल सु नि चत करगे जो उसके क याण के लए आव यक हो और
इस ल य क ाि त के लए सभी उपयु त वैधा नक तथा शास नक उपाय करगे।
4. रा य यह भी सु नि चत करगे क ब चे को उसके माता— पता क इ छा के व उनसे
अलग नह ं कया जाएगा, िजसका अपवाद मा वह ि थ त होगी जब स म ा धकार लागू कए
जाने यो य कानून और याओं के अनुसार यह नणय कर।
5. ब चे क अ भ यि त क वतं ता का अ धकार होगा। इस अ धकार म कसी कार क
सीमाओं क कोई बाधा माने बना, मौ खक या ल खत अथवा मु त प म या कला के प म
या ब चे क पसंद के अ य मा यम से सभी कार क जानकार और वचार ा त करने और
सं े षत करने का य न करने तथा उ ह ा त और सं े षत करने क वतं ता के अ धकार का
समावेश होगा।
6. कसी भी ब चे के नजीपन, प रवार या घर या प — यवहार म मनमाना या गैर कानूनी
ह त ेप नह ं कया जाएगा और न उसके स मान और त ठा पर कोई गैर—कानूनी हार कया
जाएगा।
7. ब चे के अपने माता या पता या दोन या कानूनी अ भभावक या उसक दे खभाल के
लए िज मेदार कसी अ य यि त क दे ख—रे ख म रहते हु ए उसे सभी कार क शार रक या
मान सक हंसा से, चोट या दु पयोग से, उपे ा या उदासीन यवहार से, दु यवहार या शोषण से,
िजसम लै गक दु यवहार भी शा मल है, बचाने के लए प कार रा य सभी उपयु त वैघा नक
शास नक, सामािजक और शै क उपाय करगे।
8. यह रा य सरकार का दा य व है क मान सक या शार रक ि ट से वकलांग ब चे को
ऐसी प रि थ तय म सवागीण और े ठ जीवन जीना चा हए जो मानवीय ग रमा सु नि चत करने
वाल , वावलंबन को बढ़ावा दे ने वाल और समाज म ऐसे ब चे क स य भागीदार कामाग
सु गम बनानेवाल ह ।
9. सभी रा य ब च के वा य के लए हा नकर पारं प रक थाओं को समा त करने के
लए सभी भावकार और उपयु त उपाय करगे।
10. िजन रा य म नृजातीय, धा मक या भाषाई अ पसं यक समु दाय या मू लवासी समू ह के
लोग रहते ह उनम ऐसे अ पसं यक समु दाय या मू लवासी समू ह के ब चे को अपने समु दाय या
समू ह के अ य सद य के साथ अपनी सं कृ त का उपभोग करने, अपने धम को मानने या
132
उसका आचरण करने अथवा अपनी भाषा का उपभोग करने के अ धकार से वं चत नह ं कया
जाएगा।
11. नशील दवाओं तथा मनः— भावी (साइको ॉ पक) पदाथ क ासं गक अंतरा य सं धय
मे जो प रभाषाएं क गई है उन प रभाषाओं के अंतगत आनेवाल ऐसी दवाओं या पदाथ के
नष उपयोग से ब च को बचीने के लए तथा ऐसे पदाथ के न ष उ पादन तथा यापार म
ब च के उपयोग को रोकने के लए प कार रा य वैधा नक, शास नक, सामािजक और शै क
सभी उपये त उपाय करगे।
134
इकाई 9
बाल केि त श ा
(Child Centered Education)
इकाई क परे खा (Outline of Unit)
9.0 उ े य (Objectives)
9.1 तावना (Introduction)
9.2 बाल केि त श ा (Child—Centered Education)
9.2.1 बाल के त श ा का अथ (Meaning of Child—Centered Education)
9.2.2 बाल केि त और श क केि त श ा (Child—Centered and
Teacher— Centered Education)
9.3 बाल केि त श ा और श क क भू मका (Child—Centered Education and
the Role of Teacher)
9.4 बाल केि त श ण क व धयाँ (Types of Child—Centered Education)
9.4.1 श ण व ध अथ एवं वशेषता (Meaning and Characteristic of
Teaching Method)
9.4.2 व भ न व धयाँ (Types of Method)
9.4.3 बाल केि त श ा के लए योजना (Plan of Child—Centered
Education)
9.5 मू यांकन एवं आंकलन (Evaluation and Analysis)
9.5.1 मू यांकन : वशेषता एवं आव यकता (Evaluation : Characteristics
and Need)
9.5.2 सतत— यापक मू यांकन, आ त रक—बा य मू यांकन (Continued—Broad
Evaluation,Internal—External Evaluation)
9.6 शै क ौ यो गक (Education Technology)
9.7 सारांश (Summary)
9.8 मू यांकन न (Evaluation Quaestions)
9.9 संदभ (Reference)
9.0 उ े य (Objectives)
इस अ याय के अ ययन के न न उ े य ह —
1. बाल केि त श ा को समझना।
2. श क क भू मका को जानना।
3. श ा क व धय क जानकार ।
135
4. बाल केि त श ण का मू यांकन कैसे हो?
5. बाल केि त श ा म आधु नक ौ यो गक क मह वता जानना।
136
वाभा वक प से घर के बाहर समाजीकरण होता है। बालक क यि तगत सम याओं को भी
दूर करने का यास कया जाता है। वावल बन एवं वतं ता क भावना बालक सीखता है और
उसके यि त व का ह सा बन जाता है। उसे जीवन म व भ न सा य और उनक ाि त हे तु
साधन क जानकार ा त होती है और व भ न साधन म से अपनी इ छानुसार कसी भी
साधन का चयन कर उ े य क पू त करता है और इस कार अनुभव से वह शार रक एवं
मान सक शाि त के साथजीवन पथ पर आगे बढ़ता चला जाता है। अत: बाल केि त श ा
श ण णाल है। यह श ा णाल जैवक य शशु से एक वक सत ौढ़ बनने म सहायता करती
है। इसम सीखने क सभी या णा लय का समावेश होता है।
दूसर ओर, श क—केि त श ा णाल अब तक मु ख रह है। इसम बालक के थान
पर श क के म होता है। सम त श ा काय म श क को के म मानकर आयोिजत होते
ह। वा तव म यह सामू हक क ा श ण पर आधा रत होता है और भय न मत बा य अनुशासन
था पत कया जाता है। इस णाल म अ सर बालक क भावा भ यि त खु लकर सामने नह ं
आती। छा अ ययन के लए उतना वतं नह ं होता िजतना क बाल केि त श ा म होता है।
इस णाल म श ा एवं नर ण पर श क का पूण नय ण
ं रहता है। इसम बालक क चय
और मताओं का यान नह ं दया जाता है। बालक को वह पढ़ना होता है जो श क चाहता है।
इस णाल म सभी योगा मक काय श क करते ह। बालक को मौका दया ह नह ं जाता और
इसी लए बालक को आ मा भ यि त का अवसर नह ं मलता। प रणाम यह होता है क बालक म
न तो आ म व वास वक सत होता है और ना ह वह आ म नभर हो पाता है। सबसे बड़ी बात
सृजना मक शि त वक सत नह ं हो पाती।
137
श क वारा दया गया ान जगत और सृि ट से, यहाँ तक क वयं से प रचय
कराता है। यह ान प रवार के सद य, स ब धी या सामा य जन नह ं दे सकते। सू म एवं
यापक तर का ान श क ह दे ता है। तक, व लेषण एवं ववेचन क मता श क ह
बालक को दे ता एवं वक सत करता है। श क बालक म वचारधारा या प र े य क मता भी
वक सत करते ह।
बाल केि त श ा म श क, माल वारा पौध क दे खभाल के समान, बालक का
पोषण करके उनका शार रक, मान सक तथा सामािजक वकास करता है। बालक को जै वक य से
मानवीय वृ त क ओर उ मु ख करने म श क क भू मका प रवार के सद य से अ धक
मह वपूण मानी जाती ह वशेषकर ‘ ान क शि त‘ से ओत— ोत करने का काय श क ह करता
ह। बाल केि त श ा म श क को बना प पात के वतं रहकर नणय लेना होता है क
बालक को या और कैसे सखाए? थानीय पयावरण, पा य म, शाला समय, शाला का दै नक
काय म, आ द का नणय थानीय समाज क प रि थ तय और आव यकताओं को यान म
रखकर श क को करना होता है।
अत: सं ेप म यह कहा जा सकता है क बालक केि त श ा म श क क मागदशक
के प म सदै व महती भू मका रहती है। इसके अभाव म श ा का मू य एवं मह व दोन ह
समाज म घटने लगते ह।
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ीमती एस.के. ीधर का भी मानना है क “िजस कार एक सै नक को यु े म
लड़ने के लए व भ न ह थयार का ान आव यक होता है, उसी कार अ यापक को भी श ण
व धय का ान होना आव यक है।'' इस कार श ा के े म कायरत श क को श ण
व धय का इगन बहु त ह मह वपूण है।
139
3. अ भनय व ध : बाल केि त श ा म अ भनय व ध का योग एक आधु नक दे न है।
इस व ध के वारा क ठन वषय को मनोरं जन बनाया जा सकता है। उसी के फल व प छा
या म च दखाने लगते ह। अ भनय व ध का अथ अ भनय करने का अथ कसी यि त का
अनुसरण करना होता है। छा कसी पा , याप रय तथा फेर लगाने वाल का अ भनय करते ह।
इस कार छा म वयं करके सीखना आ जाता है। इ तहास और भाषा जैसे वषय म अ भनय
व ध का योग सरलता से कया जा सकता है।
4. मण व ध : छा क ा— श ण के ान को ज द भू ल जाते ह, य क क ा— श ण
के वा त वक अनुभव ा त नह ं होते और न ह व याथ को य सूचना ह मलती है। य द
ताजमहल पढ़ाना है तो उसका वा त वक अनुभव दान करने के लए ताजमहल दखाना
आव यक होता है। े ीय पयटन से केवल शै णक ान ा त नह ं होता, बि क वा त वक ान
का योग करने का अवसर भी ा त होता है और छा क नर ण शि त का वकास होता है।
मण के वारा छा को वयं य अ धगम अनुभव ा त करने का अवसर मलता
है। सबसे पहले ोफेसर रान ने व यालय मण क शु आत क थी। मनोवै ा नक ि टकोण के
आधार पर छा क िजतनी अ धक इि याँ कसी काय को करने म याशील होती है, वह वषय
उतना ह शी एवं द घका लक मृ त म रहता है। े ीय मण म ानेि याँ कायरत होती ह,
िजनके मा यम से उ े य क ाि त क जाती है।
5. अवलोकन व ध : बालकेि त श ा म अवलोकन व ध ाथ मक क ाओं म वषेष प
से उपयोगी है, य क इस व ध के अ तगत छा वयं अवलोकन कर, अपने तथा वातावरण के
स ब ध का अनुभव कर उनके वषय म सोचता है और उनसे अ धक स पक था पत कर अपने
ान म वृ करता है। अवलोकन व ध म यह आव यक है क िजस थान का अवलोकन करना
हो, उसके वषय म श क को पूव जानकार होनी चा हए िजससे वह छा के स मु ख न और
नदशन वारा उसका ववेचन कर सके।
6. इकाई व ध : श ा के े म सव थम इसका योन सन ् 1920 ई. म कया गया था।
इकाई को श ा के े म लाने का ेय हरबट महोदय को है। िजस कार हम एक शीषक अथवा
ख ड को पढ़ाने के लए कालांश क दै नक पाठ योजना बनाते ह, उसी कार पूरे अ याय क एक
योजना बनायी जाती है, िजसके अनतगत पा य—व तु से स बि धत श क एवं छा क याएँ,
सहायक साम ी एवं मू यांकन क व धय को समा हत कर एक योजनाब एवं यवि थत ढं ग
से लखा जाता है। इकाई योजना कु ल मलाकर एक वषय के स पूण पा य म के उ े य क
पू त करती है। इकाई स पूण पा य म और दै नक पाठ के बीच क मह वपूण कड़ी है।
7. आगमन व ध : आगमन व ध म कु छ उदाहरण छा के सम तु त कये जाते ह।
इन उदाहरण क सहायता से छा सामा यीकरण करते ह। इस कार छा का ान थायी हो
जाता है।“जब कभी छा के सम अनेक त य, उदाहरण या व तु एँ तु त करते ह तथा फर
न कष नकलवाने का य न करते ह, तो श ण क आगमन व ध का योग कया जाता है।''
आगमन व ध म श ण के तीन सू का योग कया जाता है — (i) ात से अ ात क ओर,
(ii) व श ट से सामा य क ओर तथा (iii) थूल से सू म क ओर।
8. नगमन व ध : बालकेि त श ा म नगमन व ध से छा को श ा दे ते समय
सामा य नयम का ान करा दया जाता है उसके प चात ् योग, अवलोकन आ द क सहायता
से उसे स य स करने का य न कया जाता है। इस अथ म नगमन व ध आगमन व ध के
140
ठ क वपर त तीत होती है। ले डन के अनुसार “ नगमन व ध वारा श ण म थम प रभाषा
या नयम का ान करा दया जाता है। त प चात ् उसके अथ क सावधानी से या या क जाती
है। अ त म त य का योग करके उसे पूण प से प ट कया जाता है। “इस व ध म दो सू
का योग कया जाता है। ये सू इस कार है — (ii) सामा य से व श ट क ओर तथा (ii)
सू म से थू ल क ओर।
9. प रचचा व ध : प रचचा व ध श ण क वह व ध है िजसम श क तथा छा मलकर
कसी करण, न या सम या के स ब ध म वत तापूणक सामू हक वातावरण म वचार का
आदान— दान करते ह। इसके अथ को और अ धक प ट करने के लए आगे कु छ प रभाषाएँ द
जा रह ह :— जे स एल.ल के अनुसार प रचचा एक शै क समू हक या है, िजसम श क
तथा छा सहयोगी प से कसी सम या या करण पर बातचीत करते ह।'' योकम तथा
स पसन के अनुसार “प रचचा बातचीत का एक व श ट व प है, इसम सामा य बातचीत क
अपे ा अ धक व तृत एवं ववेकयु त वचार का आदान— दान होता है। सामा यत: प रचचा म
मह वपूण वचार एवं सम याओं को सि म लत कया जाता है।''
10. यापरक या ग त व ध आधा रत श ा व ध : पर परागत श ा णाल म यापरक
श ण पर लेशमा यान नह ं दया जाता था तथा अ यापक वारा छा के मि त क म
पु तक य ान को ठू ँ स—ठू ँ स कर भरने का यास कया जाता था। इस श ण व ध का
कॉमे नयस ने वरोध कया तथा छा याशीलता के स ा त पर वशेष बल दया। सो को इस
स ा त का वतक कहा जाता है। सो का कथन है क 'य द आप अपने छा क बु का
वकास करना चाहते ह तो उस शि त का वकास करना चा हए, िजसे इसको नयि त करता है।
उसको बु मान और तकपूण बनाने के लए उसे ह ट—पु ट और व थ बनाना ज र है।''
या मक व ध का अथ है — छा का अपनी वयं क या के वारा ान ा त करना। छा
क या से ता पय है क िजस या को बालक कसी उ े य से पूण करता है और उसको पूण
करने म उसका शर र और मि त क दोन याशील रहते ह। इस आधार पर यह ात होता है
क छा क याएँ दो कार क होती ह — शार रक तथा मान सक। पहल कदमी, आ म या
एवं आ म अ भ यि त इसके मु ख अंग माने जाते ह। या मक या या परक व ध का थान
क ा—क और इसका साधन स हक श ण होता है। यापरक व ध का योग पा य म के
स पूण वषय के श ण के लए कया जाता है।
11. श क समा या योजना श क समा या योजना का या वयन यूनीसेफ क सहायता
से मानव संसाधन वकास मं ालय एवं रा य सरकार का श ा वभाग चरणब तर के से
संचा लत कर रहा है। श क समा या एक ऐसी व ध है िजसम अ यापक के अ यापन काय को
इतना समथ एवं चकर बनाया जाय, िजससे वह बालक को रोचक ढं ग से पढ़ा सके, िजससे
छा भी सरलतापूवक पठन—पाठन कर सक। इस व ध के वारा श क एवं उसके श ण क
गुणव ता से स ब धत ऐसी योजना बनायी जाती है, िजससे छा प ने— लखने के त आक षत
होकर एक े ठ शै क वातावरण म श ा हण कर सक। श ण के वातावरण सृजन हे तु
अ यापक उन सभी साधन का उपयोग करे गा, जो श ा के आव यक उपयोगी, रोचक और
भावकर उ े य को पूरा करने म सहायक ह गे।
141
9.4.3 बाल केि त श ा आयोजना (Plan of Child—Centered
Education)
कसी काय को सफलतापूवक करते हु ए नि चत उ े य को ा त करने का साधन
'योजना कहलाता है। इसके अ तगत करणीय काय के व भ न प पर पूव च तन कया जाता
है, ता क वह काय कु शलतापूवक एवं भावशाल ढं ग से पूण कया जा सके। योजना वारा काय
करने म मब ता आ जाती है। इस लए बालकेि त श ा म श ण को उ े य न ठ बनाने के
लये काय का योजनाब होना अ य त आव यक है।
श ण योजना को मु य प से दो वग म वभािजत कया जाता है —
(i) द घका लक योजना : इसके अ तगत स पूण स के लए श ण योजना (वा षक
योजना) तैयार क जाती है तथा उसके वभािजत अंश के प म मा सक और सा ता हक
योजनाएँ तैयार क जाती है।
(ii) अ पका लक योजना : इसके अ तगत इकाई तथा दै नक पाठ योजना का सि म लत
कया जाता है।
142
मू यांकन का अथ : मू यांकन दो श द से मलकर बना है — मू य और अंकन इस
कार मू यांकन का शाि दक अथ हु आ छा के गुण दोष क या या करके उसके स ब ध म,
उ चत नणय करना अथवा उसके यथाथ मू य का नघारण करना। वा तव म मू यांकन एक
या है िजसके वारा श क व छा यह नणय करते ह क श ण के ल य को ा त कया
जा रहा है अथवा नह ं।
उपरो त ववेचन के आधार पर कहा जा सकता है क मू यांकन वह या है, िजसके
वारा कसी काय का मू य नि चत कया जाता है। हम येक कार क यो यता का मू यांकन
कर सकते ह।
मू यांकन क वशेषताएँ : मू यांकन क कु छ मु ख वशेषताएँ —
(1). मू यांकन का काय यह मापन करना है क कसी बालक क नि चत उ े य क ओर
य ग त हु ई ह?
(2). मू यांकन क या म वे सभी यि त भाग लेते ह, िजनके वारा यह संचा लत क
जाती है।
(3). मू यांकन क या नर तर चलती रहती है।
(4). मू यांकन नदाना मक होता है। इसके वारा बालक क वतमान दशा म सु धार कया
जाता है तथा सम याओं के कारण का पता चलता है।
(5). मू यांकन क या यह न चत करती है क आगामी समय के लए नयोजन करने
हे तु या कया जा चु का है।
(6). मू यांकन म म, धन और समय क अ धक आव यकता होती है।
(7). मू यांकन म कई पर ाओं का समावेश होता है।
(8). मू यांकन म साथकता के साथ भ व यवाणी भी क जा सकती है।
(9). मू यांकन क सरलता उस व तु पर नभर रहती है, िजसका मापन कया जा सकता है।
कु छ व तु ओं का मापन सरलता से कया जा सकता है और कु छ व तु ओं के मापन म
क ठनाई आती है।
(10). मू यांकन वारा श ा के उ े य कस सीमा तक ा त हो चु के ह? इसका ान कया
जा सकता है।
(11). यह श ा णाल का अ भ न एवं आव यक अंग है।
(12). मू यांकन अगले तर के लए आधार तु त करता है तथा यापक प से सू मत:
ग त का भी ान ा त करता है।
मू यांकन क आव यकता : बालक को श ा दे ने के कु छ उ े य होते ह। इ ह ं उ े य
क पू त के लए पा य म बनाया जाता है। मू यांकन से यह ात कया जाता है क या
पा य म का नमाण सह दशा म कया गया है? या श ण प त ठ क है? श क अपने
यास म कह ं तक सफल रहा है? पर ा का उ े य इसी सफलता का मापन करना होता है।
प ट है क मू यांकन श क, माता— पता तथा छा तीन के लए आव यक होता है। सं ेप म
मू यांकन क आव यकता न न ल खत तीन पहलु ओं के लए होती है —
(i) मू यांकन क शास नक आव यकता
(ii) मू यांकन क शै क आव यकता
(iii) मू यांकन क शै क अनुसंधान म आव यकता
143
9.5.2 सतत ् एवं यापक मू यांकन : आ त रक एवं बा य मू यांकन
(Continued—Broad Evaluation,Internal—External
Evaluation)
छा —छा ाओं क अ धगम या का नमाण होता है। इसके लए उनका मू यांकन
रचना मक तथा वकासा मक ि ट से कया जाता है। इसके लए द ताधा रत मू यांकन का
योग कया जाता है, िजसके तहत छा वारा सीखे गये रचना मक कौशल का आकलन होता
है। इसके वपर त छा के स पूण यि त व म कौन—कौन से प रवतन हो रहे ह, इस हे तु
यापक मू यांकन का योग कया जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है क
द ताधा रत मू यांकन, यापक मू यांकन का के ब दु है, क तु आकार एवं कार म यह
यापक मू यांकन से छोटा है।
सतत ् मू यांकन : सतत ् मू यांकन योजना को नर तर मू यांकन योजना भी कहते
ह|सतत ् मू यांकन का आशय उस पर ण से है, िजससे छा के अ ययन एवं उपलि धय का
तमाह लेखा—जोखा लया जाता है। सतत ् मू यांकन प त म आमतौर पर स पूण पा य म को
दस इकाईय म वभ त कर दया जाता है। येक माह उस इकाई का अ ययपन कराने के बाद
वाभा वक प से पर ण कया जाता है। िजसका यवि थत अ भलेख रखा जाता है। वष के
अ त म स पूण मू यांकन के ाथ मक और पूव मा य मक क ाओं म सतत ् मू यांकन प त
कह —
ं कह ं च लत है, क तु यह उस प म नह ं है, जैसा क सतत ् मू यांकन के मौ लक व प
म होना चा हए। इससे मा ानाजन के शै क कौशल का ह मू यांकन कया जाता है।
शै केतर उपलि धय का कोई मू यांकन नह ं कया जाता है।
वा तव म सतत ् मू यांकन साथक ान के लये नदान एवं उपचार का पथ श त
करता है। य द एक ाथ मक श क अपने ापन एवं कायकु शलता क सहायता से मू यांकन का
योग व याथ के ानाजन क क ठनाईय और उसके कारण का नदान करने के लये कर
सके, तो वह उ चत उपचारा मक साधन अपनाकर उसके ग त—रोध एवं त को कम कर सकता
है और इस तरह उसे अ धकतम ान ा त करने म सहायता कर सकता है। साथक ान का
अथ है — व याथ क वांछनीय काय मताओं एवं यो यताओं का वकास, िजससे क वह भ व य
म अ धकतम लाभ ा त कर सके। साथक ान कई त य पर नभर करता है जैसे व याथ क
च, श ा का तर ानाजन के लए उपल ध समय एवं श ा से लाभ उठाने क मता आ द।
यापक मू यांकन : द ता आधा रत मू यांकन त दन क ा म श ण के अ तगत
छा म द ता सखाने के बाद कया जाता है, क तु छा क द ता के अ त र त उनम
सं ाना मक प , भाव प तथा या मक प भी सि म लत होते ह, िजनका मू यांकन
द ताधा रत व ध से स भव नह ं होता है। इस लए छा के चहु ँ मख
ु ी वकास हे तु यापक
मू यांकन क आव यकता होती ह|
आ त रक एवं बा य मू यांकन : ाथ मक श ा म गुणा मक सु धार लाने के लए
ाथ मक व यालय के श क म सतत ् एवं यापक मू यांकन क तब ता को वक सत करने
का यास कया जा रहा है। ाथ मक श ा म आ त रक मू यांकन क यव था को कायम रखा
गया है, क तु उ च ाथ मक व यालय म बा य मू यांकन क यव था है। यूनतम अ धगम
144
तर क संक पना के लागू होने के बाद बा य मू यांकन अनुपयु त सा तीत होने लगता है,
फर भी इसे यूना धक प म लागू कया गया है। आ त रक मू यांकन से आशय है क
ाथ मक व यालय म अ यापक वारा सतत प से बालक क उपलि धयो का मू यांकन,
िजससे बालक का दै नक सा ता हक, मा सक, ष मा सक एवं वा षक वकास तथा अ धगम दर का
सह ान हो सके, जब क बा य मू यांकन का स ब ध छा क बा य पर ा से होता है,
िजसका अंकन अ य अ यापक वारा कया जाता है।
145
आधु नक श ा प त ने बालक के मू यांकन क प त को बदलने पर भी जोर दया
है। अब सतत एवं यापक मू यांकन पर जोर दया जाने लगा है। अत: आत रक मू यांकन क
मह वतता बढ़ गयी है। ऐसी ि थ त म श क क भू मका ओर भी गंभीर होती चल जा रह है।
146
इकाई—।0
जनसं या श ा
Population Education
148
से स बि धत बात का समावेश जनसं या श ा के अ तगत कया जा सकता है। जनसं या
श ा जैसा क नाम से प ट होता है मू लत: तीन श द का योग है िजसका अथ है—
च नं. 1 — जनसं या श ा
149
जनसं या श ा एक शै क काय म है, जो श ाथ म वकास करता है —
1. जनसं या एवं जीवन गुणव ता के म य अ तसंबध
ं का बोध।
2. जनसं या सम याओं के त उ तरदायी ख एवं यवहार।
3. जनसं या से स बि धत सम याओं पर उ चत नणय लेने क मता का वकास।
पुनब धीकरण (Reconceptulization)
जनसं या श ा के व भ न त व का पुनब ध करने क आव यकता को यान म रखते
हु ए 1984 म यूने को क े ीय सेमीनार (बकाक) म इसे पुन : प रभा षत करने का यास कया
गया। पुनब धीकरण क या म मु य यान इस त य पर केि त कया गया क जनसं या
श ा के अथ को जनसं या नयं ण उपागम अथवा शु जनां कक के े से हटा कर एक
यापक सतत ् वकास के उपागम से जोड़े, जो क पयावरण, संसाधन, गर बी एवं पुन रउ पादक
वा य से स बि धत ब दुओं को पश करता है।
150
युि तयु त तथा उ चत नणय लेने म समथ ह गे। उनम जनसं या स ब धी उ चत ि टकोण भी
वक सत होगा िजससे समाज, दे श एवं व व का क याण स भव होगा।
151
2001 क जनगणना के आधार पर व व क जनसं या 650 करोड़ थी औ इसम
भारत क 102.70 करोड़ थी। व व क जनसं या का 17 तशत भाग भारत म नवास करता
है। व व के भू—भाग क तु लना म भारत का भू—भाग 240 तशत है। इससे प ट होता है क
भारत म जनसं या का दबाव अ धक है।
व व क जनसं या वृ दर 17 तशत है जब क भारत म 2.1 तशत तवष है।
भारत म तवष एक आ े लया महा वीप क जनसं या के बराबर जनसं या बढ़ जाती है और
भू म म एक इंच भी वृ नह ं होती है, इसी लये भारत अभी तक वकासशील दे श म गना जाता
है।
भारत क जनसं या (1901 से 2001 तक)
152
2 राज थान 28.33 165 922 23.38 61.3
इस कार हम दे ख राज थान क जनसं या वृ दर भारत क जनसं या वृ दर से 7
तशत अ धक है।अ य कारक का व तृत व लेषण कर पाना यहां संभव नह ं है।
154
इ ह ं आधार पर जनसं या श ा श ण के लये न नां कत व धयां उपयु त हो
सकती है :—
1. िज ासा उपागम व ध (सम या समाधान व ध)
2. मू य प ट करण व ध
3. ायोजना व ध
4. खेल और ना य व ध
5. य व य 'साम ी के मा यम से जनसं या श ा
6. वयं श ण व ध ( ो ा ड ल नग व ध) —
7. सव ण व ध
155
2. ती जनसं या वृ को रोकने म व यालय क एक सं था के प म भू मका क
लाघा।
3. प रवार नयोजन नी त, कायकम व दे श म हो रहे यास क लाघा।
कौशल —
1. 6 से 14 वष व 15 से 17 वष तर के बालक क जनसं या श ा का अ ययन करने
का कौशल।
2. जनां कक (Demography) द त का तु तीकरण व व लेषण।
3. वभ न य— य सहायक साम ी के वारा जनसं या श ा का ान दान करने का
कौशल वक सत करना।
4. जनसं या श ा कायकम को सहभागी कयाओं वारा आयोिजत करने का कौशल
वक सत करना।
156
(य) जनसं या वृ व साधन — जनसं या वृ का जीवन तर पर व जीवन क
गुणा मकता पर भाव।
(र) जनसं या वृ व श ा का गुणा मक प ।
तृतीय इकाई — जनसं या श ा म श क क भू मका (The Role of Teacher in
Population Education)
(अ) सामािजक प रवतन म श क क भू मका एक एजे ट के प म।
(ब) श क का वयं का व वास क श ा के वारा सामािजक प रवतन व वकास लाया
जा सकता है।
(स) जनसं या श ा रा य उ े य क ाि त के लये सश त उपाय है। श क का यह
व वास मह वपूण है। (द) अ यापक क व भ न रा य सम याओं क जानकार क
मह ता।
(य) अ यापक जनसं या श ा, यौन श ा व प रवार श ा क जानकार दे ने म मह वपूण
भू मका अदा करता है।
चतुथ इकाई —जनसं या श ा का पा य म (Curiculum of Population Education)
(अ) व यालय म पा य म बदलने क आव यकता
(ब) व यालयी पा यकम म जनसं या श ा का थान
(स) पा यकम को व भ न े को पहचानना ता क जनसं या श ा के यय व स ा त
को सि म लत कया जा सके।
(द) पा य म वकास के स ा त — संग ठत पा यकम, या मक ए ोच व लैडर टाइप
ए ोच
(य) पा य म द दशन का वकास।
पंचम इकाई — श ण प तयां व मू यांकन (Teaching methods & Evaluation)
(अ) संग ठत व सह—स ब धा मक तर के से जनसं या श ा का श ण।
(ब) जनसं या श ा के श ण म एकल वषय अ ययन प त व सम या समाधान प त
का योग।
(स) अ य व यालयी वषय तथा सामािजक ान, सामा य व ान भाषा, वा य श ा,
जीव व ान के करण के साथ जनसं या श ा का संगठन।
(द) जनसं या श ा व सह—शै क याओं का संगठन।
(य) आव यक श ण साम ी का नमाण व योग।
(र) जनसं या श ा के वारा आये यवहारगत प रवतन का मू यांकन।
(ल) जनां कक (Demography) त य का तु तीकरण व ववेचन कौशल।
ष टम इकाई — ववाद और सम याएं (Controversied & Issues)
(अ) पा रवा रक जीवन श ा, यौन श ा, नषेधा मक उपाय क श ा, जनसं या श ा व
वा य श ा म या मक अ तर।
(ब) जनसं या श ा के त धा मक, सामािजक व सां क तक अ भम त।
157
व—मू यां क न न (Self Evaluation)
1. जनसं या श ा के सं द भ म श क श ण काय म के पा य ब दु ल खए।
158
इकाई—11
पयावरण श ा
(Environmental Education)
इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)
11.1 उ े य व ल य (Objectives and Aims)
11.2 तावना (Introduction)
11.3 पयावरणीय श ा का वकासा मक इ तहास (Developmental History of
Environment Education)
11.4 पयावरण श ा का अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition of
Environment Education)
11.5 पयावरण श ा के उ े य (Objectives of Environment Education)
11.6 पयावरण श ा क आव यकता (Needs of Environment Education)
11.7 पयावरण दूषण के कार (Types of Environment Education)
11.7.1 कार (Types)
11.7.1.1 मृदा दूषण (Soil Pollution)
11.7.1.2 जल दूषण (Water Pollution)
11.7.1.3 वायु दूषण (Air Pollution)
11.7.1.4 वन दूषण (Noise Pollution)
11.8 अ यापक श ण (Teacher Training)
11.9 पयावरण श ा यवहार म (Environmental Education in behaviour)
11.10 सारांश (Summary)
11.11 मू यांकन (Evaluation)
11.12 संदभ थ (References)
160
3. समय—समय पर पयावरण श ा स ब धी पहलु ओं पर व भ न सं थाओं वारा यान
दया जाता रहा है। पर तु 1965 म पहल बार क ले व व व यालय अमे रका वारा
पयावरण श ा क पा यकम के आव यक अंग के प म वीकार कया गया।
4. 1975 म IEEP ने बेल ेड म ए तहा सक पयावरण श ा अ तरा य कायशाला
आयोिजत क गई िजसम यूने को ने 136 दे श से पयावरण श ा से स बि धत
जानकार एक त क ।
संयु त रा संघ क मु ख सं थाय जैसे — WHO, WMO,ILO,FAO आ द य
व अ य प से पयावरण श ा म सहयोग दे रह है।
बेल ेड अ धवेशन (1975) क मह वपूण उपलि ध “पयावरण घोषणा प ”ं (Charter) था,
िजसम चार भाग है
(अ) पयावरण क ि थ त
(ब) पयावरण के उ े य
(स) पयावरण के शै क उ े य तथा ल य
(द) पयावरण के शै क ल य
1976 से 1982 व व के कतने ह दे श म पयावरण र ा स ब धी कानून बने तथा
पयावरण र ा स ब धी सं थाओं क थापना हु ई है।
भारत म ''पयावरण श ा” सं कृ त का एक ऐसा अंग रह है। इसके संर ण के लये
समाज को श त कया जाता रहा है। वेद—पुराण म वृ आ द क र ा के लए संग आते है।
भारत म पयावरण संर ण स ब धी रा य कायकम चलाए जा रहे है िजसम से 1972
म टाकहोम म आयोिजत ''मानव और जीव म डल'' नामक अ तरा य संगो ठ से ा त क,
तथा भारत म पयावरण संर ण के काय म आर भ कये।
भारत सरकार वारा सन 1897 से लेकर 1992 तक पयावरण संर ण कानून बनाये गये
तथा उनक पालना क जा रह है।
162
11.5 पयावरण श ा के उ े य (Objectives of Environmental
Education)
पयावरण श ा के उ े य को व भ न पयावरण वै ा नको ने अलग—अलग कार से
दये ह, जो न नवत है –
(अ) टे प और उनके साथी (1970) —
टे प और उनके सा थय ने सन 1970 म पयावरण श ा के अधो ल खत उ े य नधा रत कये
—
1. लोग को यह अवबोध कराना क मानव उस यव था का अ भ न अंग है िजसम मानव,
भौ तक और जै वक पयावरण आते ह।
2. जनसामा य म पयावरण के त समझ उ प न करना
3. मू लभू त पयावरणीय सम याओं का अवबोध कराना
4. पयावरण के त नाग रक के उ तरदा य व नधा रत करना।
5. अनुकू ल मनोवृि तय (Attitudes) का नमाण करना।
(ब) वदात (Vidart) (1978) के अनुसार —
वदात ने पयावरण के उ े य को न न ल खत े णय म वभािजत कया —
1. ाना मक उ े य (Cognitive Aims) —
(1). पयावरण का ान कराना।
(2). सोचने व सम या समाधान क मता का वकास करना।
2. मानक उ े य (Normative Aims) —
(1). पा रि थ तक जाग कता का वकास करना
(2). पयावरणीय मू य का नमाण करना
3. तकनीक तथा ायो गक उ े य (Technical & Experimental Aims) —
(1). पयावरण के संवधन व संर ण के लये सामू हक् यावहा रक याओं क
योजनाएं बनाना तथा उ ह याि वत करना।
(2). सामु दा यक प से समाज के वीकृ त मानद ड के अनुसार औपचा रक व
अनौपचा रक श ा क यव था करना, िजससे आ थक वकास पयावरण के
जै वक चक को भा वत न कर सके।
(स) यूने को (1981) के अनुसार —
1. पयावरण श ा को औपचा रक श ा के साथ स ब कया जाना।
2. पयावरण श ा को अ त: अनुशासना मक कृ त दान करना।
3. सम ता के ि टकोण का वकास, िजसम इकोलोजीकल सामािजक व सां कृ तक प
सि म लत हो।
4. पयावरणीय श ा को मानव जीवन से स बि धत करना।
5. पयावरणीय मू य का नधारण करना, िजससे श ा के मा यम से बालका बा लकाओं म
उनका वकास कया जा सके।
(द) UNEP के अनुसार —
163
यूनाइटे ड नेश स ए दायरमे टल ो ाम (UNEP) के अनुसार पयावरण श ा के उ े य
न नवत नधा रत कये गये —
(1). जाग कता (Awareness)
पयावरण श ा का मु ख उ े य जनसामा य म पयावरण के त जाग कता पैदा करना
है। यह काय औपचा रक एवं अनौपचा रक श ा का नयोजन कर स प न कया जाना चा हये।
(2). ान (Knowledge)
पयावरण श ा का मह वपूण काय समाज के सभी आयु वग के तथा लंग के लोग को
पयावरण से स बि धत ान का चार व सार करना ता क लोग पयावरण के संर ण क
च ता कर।
(3). मू यांकन (Evalution) —
यि तय एवं सामािजक समू ह म पयावरण के मू यांकन क द ता का वकास करना।
(4). अ भवृि तय म प रवतन (Change in Attitude) –
पयावरण श ा वारा लोग म पयावरण के त अनुकू ल अ भवृि तय एवं मू य का
वकास कया जाए। न नां कत पयावरणीय मू य का वकास करना है —
(अ) ेम (ब) उदारता (स) सह—अि त व (द) अ हंसा (प) क णा
(फ) पर पर पूरकता (ब) समानता (भ) याय (म) ब धु व।
(5). कौशल का वकास—
इसके अ तगत पयावरण श ा वारा लोग म उन कौशल का वकास कया जाना
आव यक है, िजसके वारा वे पयावरणीय सम याओं को पहचान कर उनको हल करने म समथ
हो सक।
(6). सहभा गता (Participation) —
इसके अ तगत पयावरण श ा वारा दूषण नवारण के लए वृ ारोपण, सफाई
काय म के संचालन, जनसं या श ा के कायकम के नयोजन व काया वयन म समाज के सभी
वग के लोग क भागीदार सु नि चत करना है।
164
1. आज के व याथ कल के नाग रक, शासक, नेता, नणयकता तथा नयोजक है। य द
मानव जीवन को सु खमय व शाि तमय बनाना है तो व या थय को पयावरण से
स बि धत सभी कार क जानकार व कौशल का वकास करवाना आव यक है।
2. औ यो गकरण के वकास के साथ मू य का यास हु आ है। आज मानव भौ तक सु ख
क ओर अ धक अ सर है। मानव को अपने जीवन मू य पर पुन वचार करना होगा,
इसके लये व याथ व श क दोन को पयावरण स ब धी श ा आव यक है।
3. अ भवृि तय यवहार को भा वत करने वाले आव यक ेरक होते ह। कसी थान,
व तु, या व जीव के त जैसी हमार मनोवृ त होगी, हम वैसा ह यवहार करगे।
पयावरण स ब धी सकारा मक व वै ा नक ि टकोण अथवा मनोवृ तय के वकास के
लये पयावरण स ब धी श ा क आव यकता है।
4. पयावरण के त यान आक षत करने के लये उ चत चय का वकास व यालय म
ह कया जा सकता है। पा यकम म प रवतन, ाकृ तक वातावरण म छा को ले
जाना, समय—समय पर पयावरण स ब धी तयो गताएँ आ द आयोिजत करके पयावरण
स ब धी चय का वकास कया जा सकता है, इस कार स होता है क श ा म
पयावरण स ब धी जानकार क आव यकता है।
5. पयावरण स ब धी सम याओं को समझने, व लेषण करने व उनके समाधान के लये
बौ क मताओं तथा नणय लेने के लये स बि धत कौशल के वकास क आव यकता
है। यह काय व यालय म ह हो सकता है, अत: पयावरण क श ा आव यक है।
6. जल, वायु, व न, भू म, वाहन दूषण क सम याओं ने पयावरण म बड़ी सम याओं को
ज म दे दया है — जैसे — ओजोन परत म छ , ीन हाउस भाव, अ ल य वषा आ द
य द इस सम याओं क जानकार व या थय को दे ना आव यक है,अत: पयावरण श ा
क परम आव यकता है।
165
पोषक तं (Life Supporting System) कमजोर हो रहा है और हमारे सं वकास क संक पना
(Concept of Sustainable Development) को गहरा आघात लग रहा है।
पयावरण दूषण के सामा य कारण न न ल खत ह —
1. अ नयि क ाकृ तक घटनाएं
2. जनसं या वृ एवं संसाधन पर उसका बढ़ता दबाव
3. ठोस अप श ट न तारण एवं मल वाह क अपया त सु वधाऐं
4. उ योग से नकले वाले जहर ले रसायन एवं ठोस पदाथ
5. आधु नक कृ ष तकनीक व क टनाशक का योग
6. नधनता एवं अ प वकास
7. बढ़ते हु ए प रवहन के साधन एवं बढ़ता शोर
मानव वारा छोड़े गये अव श ट पदाथ व उजा के पयावरण म सि म लत होने से
पा रि थ तक त क सामा य याओं म प रवतन को दूषण कहते ह।
167
(1) धरातल ोत (Surface sources)
(2) भू म ोत (Ground sources)
जल दूषण क प रभाषा (Definition of Water pollution):—
ाकृ तक जल म कसी अवांछनीय बाहय पदाथ का वेश िजससे जल क गुणव ता म
अवन त आती हो, जल दूषण कहलाता है।
1. भौ तक दूषण
2. रासाय नक दूषण
3. शर र या मक दूषण
4. जैवीय दूषण
जल दूषण नय ण के उपाय (Preventive measures to control of water
pollution)—
जो ग दगी मानव वारा उ प न है उसक रोकथाम भी वह कर सकता है। इसे रोकने के
लये सामा य उपाय व सु झाव न न ल खत ह—
1. कसी भी कार के अप श ट या अप श टयु त पदाथ को जलाशय म मलने से रोका
जाय।
2. घर से नकलने वाले मल न जल को संशोधन संयं ो म उपचा रत करके ह नद तालाब
म डाला जाये।
3. पेयजल के ोत जैसे— तालाब, नद व कु एँ इ या द के पास द वार बनाकर व भ न
कार क ग दगी को ड़नम वेश से रोका जाए।
4. जलाशय के पास नान करने कपड़े धोने आ द को रोका जाये।
5. नद व तालाब म जानवर के वेश व नहाने आ द पर रोक लगाई जाये।
6. छोटे बड़े उ योग को नद तालाब , झील के पास बनाने पर रोक लगाई जाए।
7. कृ ष काय म आव यकता से अ धक उवरक तथा क टनाशक के उपयोग पर रोक लगाई
जाए।
8. जलाशय म मछल पालन पर अ धक जोर दया जाए य क ऐसा करने से मछ लय
म छर के अ डे, लावा व जल य खरपतवार को न ट करने म सहायता मलती है।
169
1. कल कारखान क चम नय पर ऐसे यं लगाये जाने चा हये क उनसे नकलने वाल
धु ए,ं गैस व धू ल कण का अवशोषण हो सके।
2. वाहनो से नकलने वाले धु एं को नयि त कया जाए। वाहनो को C.N.G. योजना के
अनुसार उपयोग म लाया जाए।
3. भ य व कल कारखान म ईधन का इस कार योग कया जाए िजससे उसका पूण
ऑ सीकरण हो सके।
4. ऐसे थान पर जहाँ जनसं या घन व अ धक हो, कल कारखाने नह ं लगाये जाए।
5. वन संर ण के वशेष उपाय कये जाने चा हये।
170
बादल क गरज, उ कापात, वालामु खी व फोट, भू खलन, भू क प से भवन का गरना,
समु लहर आ द।
2. मानव न मत ोत (Man—made Sources)
इ ह पुन : दो भाग म वभ त कया जा सकता है —
(अ) अचल ोत (Stationary Sources) :— इनम वभ न कार के उ योग, रे डयो,
टे ल वजन, मल के सायरन, लाउड पीकर, ववाह उ सव आ द।
(ब) सचल ोत :— इनम सड़क प रवहन, रे ल प रवहन तथा वायु प रवहन सि म लत ह। मोटर
गा डयां, रे ल गा डयां तथा वायुयान ऐसे ह ोत ह।
शोर के दु भाव (Effect of Noise Pollution)
1. सु नने क या पर :—
अ ययन से ात होता है क ल बी अव ध तक शोर त थान के संपक म रहने पर
मनु य पूण अथवा आ शक प से बहरा हो सकता है।
2. शर र क या णाल पर —
शोर केवल बहरापन ह उ प न नह ं करता वरन दय, पाचन तं तथा तं का तं पर
भी तकू ल भाव डालता है।
3. मान सक याओं पर :—
शोर के कारण मनु य के अनेक या कलाप म यवधान उ प न होता है िजसके
प रणाम व प असु वधा, दुघटना तथा थकान उ प न हो जाती है। कई क ट द व नय से
मान सक तनाव उ प न हो जाता है िजसके प रणाम व प दुघटना, लड़ाई—झगड़े मान सक
अि थरता, कु ठा, पागलपन आ द दोष उ प न हो जाते ह।
शोर दूषण को नयं ण करने के उपाय (Preventive measures to control Noise
Pollution)
1. शोर उ प न करने वाले वाहन क जांच क जानी चा हये तथा तकनीक दोष के
नवारण के प चात ह वाहन चलाने क अनुम त द जावे।
2. वाहन क अ धकतम शोर सीमा नधा रत कर दे नी चा हये।
3. उ योग तथा कल कारखान को अ धक जनसं या वाले े से दूर था पत कया जाए।
4. अ धक शोर उ प न करने वाले कारखान म शोर शोधक व धयां अपनाई जानी चा हये।
5. भार यातायात वाल स क तथा रे लमाग के दोनो ओर घने वृ ारोपण वारा शोर क
ती ता को कम कया जा सकता है।
6. शोर नयं ण हे तु भावी कानून बनाये जाने चा हये|
171
11.8 अ यापक श ण (Teacher Training)
यूने को ने पयावरण श ा को अ यापक के श ण कायकम म सि म लत करने क
अनुशंसा 1982 म क थी इसी अनुशंसा के अनुसार जो अ यापक पहले से ह सेवारत है, उनके
लये अ भनवीकरण काय म तथा नये अ यापक के लये श ण काय म म पयावरण श ा
को सि म लत कया गया है।
श ा स ब धी कोई भी नवीन काय म बना अ यापक के स कय सहयोग के सफल
नह ं हो सकता। पयावरण श ा' को भी सफल बनाने के लये अ यापक क पयावरण श ा
स ब धी मनोवृि तय का वकास, पयावरण स ब धी आव यक जानकार , पयावरण श ा
स ब धी पठन व धय क जानकार व कौशल का वकास आव यक है।
अ यापक के लये पयावरण श ा स ब धी पा य म के न न ल खत उ े य होने
चा हये।
अ यापक क पयावरण स ब धी जानकार म अ भवृ करना।
थानीय सम याओं का सु यवि थत ढं ग से अ ययन करने क मता का वकास
करना।
पयावरण स ब धी नई सम याओं के नबटने के लये उनको गहन प से श त
करना।
अ यापक को इस कार के कौशल का श ण दे ना िजससे वे क ा म पयावरण
स ब धी सम याओं से उ प न भाव के वषय म छा को जानकार दे सक।
मटजैल (1982) ने अ यापक के श ण को भावी बनाने के लये कु छ सु झाव दये
ह। उनके अनुसार अ यापक क पयावरण श ा क न न ल खत वशेषताय होनी चा हये —
1. काय म का स ब ध मू ल व ान से होना चा हये पर तु वह पूर तरह से
व ान(Science ominated) मु ख नह ं होनी चा हये।
2. काय म व वध कार क चय तथा पृ ठभू म रखने वाले अ यापक के अनुकू ल होना
चा हये।
3. काय म का मू ल उ े य अ यापक को पयावरण श ा के त अपे त करने वाला
होना चा हये।
4. वह अ यापक को पयावरण वशेष के साथ संल नता उ प न करने वाला होना चा हये।
5. पा य म ऐसा होना चा हये िजसके वारा अ यापक अपनी मा यताओं, मू य तथा
भावनाओं और ाकृ तक वातावरण के साथ स ब ध के बारे म पुन वचार करने पर
मजबूर हो सक।
अब न यह उठता है क उपयु त वशेषताओं के आधार पर अ यापक के श ण का
व प या हो? स सेना (1983) ने इस स ब ध म न न ल खत व प का सु झाव दया है —
आमने—सामने श ण
इस स ब ध म वश ट वशेष गने—चु ने अ यापक को सामने बठाकर उनको
पयावरण श ा म श त करते है तथा ये श त अ यापक पुन : कु छ अ यापक को
श त करते ह इस कार क व ध म गुणव ता क ोल (Quality Control) क वशेष
आव यकता होती है।
172
व—अ धगम मो युल (Self Learning Module)
व अ धगम मो युल को बनाने म बहु त अ धक समय तथा अथ क आव यकता होती
है, पर तु एक बार इनके नमाण के प चात अ यापक श ण आसान व स ता हो जाता है।
INCERT म ऐसे Module का नमाण कया गया है।
Mass Media दूर संचार साधन
रे डय , टे ल वजन, क यूटर, वी डय , कॉ े ि संग, इंटरनेट आ द का उपयोग भी
आव यकतानुसार अ यापक को पयावरण स ब धी श ा के लये कया जा सकेगा।
प ाचार पा य म (Corrospondance courses)
प ाचार के मा यम से भी 'पयावरण श ा पा यकम चलाया जाता है। इसम े ीय
अ ययन, योजना, सव ण आ द का भी ावधान रहता है।
174
1. Soxena,A.B.” Environment Education”National Psycholigical corporation,
Agra,1986
2. Agrawal, Anil 1982, ”For on Altermation Development” The Vnaco courier,
August—September 23—26
3. Chourasia R.A.1998 ”Elements of Environment Education” Sahitya
Prakashan Agra.
4. Senger Shivraj singh” Environment Education” Sahitya Prakashan Agra.
5. EEP (Environment Education Project),1981.
“Environment Education; A source book for primary Education.”Curriculum
development center canbera,Austrlia.
6. NCERT 1990 A Teacher’s Guide for Environmental studies Part II
Class—V NCERT,New Delhi.
7. Rajput J.S.1978”Teaching through Environmental Paper presented at the
meeting of UNESCO study group on development of curriculum material
held during 4—19 December at Vdan them Thailand.
175
इकाई 12
भारत म वं चत वग के लए श ा
(Education of Deprived Class in India)
इकाई क परे खा (Outline of the Unit)
12.1 तावना (Introduction)
12.2 सामािजक—आ थक प र य (Socio—economic Scenerio)
12.3 वं चत वग का अथ (Meaning of Deprived Class)
12.4 ै ा नक मू य (Constitutional Values)
संवध
12.4.1 याय (Justice)
12.4.2 वतं ता (Liberty)
12.4.3 समता (Equality)
12.4.4 ब धु व (Fraternity)
12.5 संवध
ै ा नक मू य के शै क न हताथ (Educational Implications of
Constitutional Values)
12.6 संवध
ै ा नक ावधान (Constitutional Provisions)
12.7 वं चत वग क श ा (Education of Deprived Class)
12.7.1 अनुसू चत जा त क श ा (Education of Schedule Class)
12.7.2 अनुसू चत जनजा त क श ा (Education of Schedule Tribe)
12.7.3 न द ट जनजा त क श ा (Education of DT)
12.7.4 मणशील जनजा त क श ा (Education of NT)
12.8 वं चत वग क श ा के लए सु झाव (Suggestion for Education of Deprived
Class)
12.8.1 शै क सु वधाओं क सु लभता (Availability of Educational Facilities)
12.8.2 अंशका लक एवं दूर थ श ा यव था (Part Time and Distance
Education System,)
12.8.3 तपूरक श ा (Supportive Education)
12.8.4 श क क भू मका (Role of a Teacher)
12.8.5 श ण म सां कृ तक प र े य (Cultural Perspective in Teaching)
12.8.6 ेरक ग त व धयाँ (Motivational Activities)
12.9 सारांश (Summary)
12.10 मू यांकन न (Evaluation Questions)
12.11 संदभ (Reference)
176
12.1 तावना (Introduction)
भारत ' व वधता म एकता के लए स मा नत दे श है। इसे आ याि मक ि ट से उ चतम
तर पर आ मसंतु ि ट के ोत के प म दे खने क पर परा रह है। मु य प से कृ षक समाज
रहा। आ थक ि ट से वप नता के बावजू द आ म नभरता, संतोष और येक गाँव म काय करने
क वाय तता पर जोर दया जाता रहा। अतीत म सामािजक स ब ध क पहचान भी व तीय
भू मकाओं क जमावट, रोजगार एवं श ा से थी। यौहार समाज के आत रक संगठन के व भ न
अंग के प म अ य त वाभा वक तर के से मनाए जाते थे। धा मक व दाश नक लोकाचार
आ म ान क ाि त के मु य उ े य से उसके आस—पास केि त रहते थे।
177
सामािजक आधार पर िजन जा तय को वं चत वग माने वह वीकाय होगा। इनम अनुसू चत
जा त (Schedule Class), अनुसू चत जनजा त (Schedule Tribe), न द ट जनजा त
(Deprived Education of Schedule Tribes) एवं मणशील जनजा त (Numadic
Tribes) को रखा गया है।
'वंचन' मूल प से आ थक स यय है। जब एक प रवार को अ धका धक समय
जी वका के लए यय करने के बाद भी पया त भोजन एवं पोषण ा त नह ं होता है तब उसे
गर ब कहा जाता है। ऐसे प रवार के बालक भी आ थक याओं म जु ट जाते ह तथा श ा—द ा
के अवसर से वं चत रहने के कारण वं चत वग म आते ह।
इसी कार सामािजक मा यताओं एवं र त— रवाज के कारण म हलाओं को समाज म
समान अवसर नह ं मल पाते। भारत के ामीण एवं सु दरू वत इलाक म अभी भी बा लकाओं को
बालक से भ न मानकर यवहार कया जाता है। उनके लए श ा अजन से अ धक घर क
िज मेदार का नवाह करना है। अत: पढ़ाने के अवसर से वं चत रखा जाता है। कई बार सु र ा
क ि ट से भी ऐसा कया जाता है।
178
त ठा को मा यता द गई है। इन चार आदश का शै क मह व है। इ ह तभी ा त कया जा
सकता है जब क श ा के वारा समाज के वं चत वग को उसके मह व को समझाया जाये।
सामािजक वगभेद को दूर करने के लए ये चार अ धकार दये गये ह। ये वो मू ल अ धकार ह जो
उन सब बात का त न ध व करते ह जो क भारतीय समाज के लए मू यवान ह। यह नदशन
स ा त ह, आचरण के नयम ह िजन पर भ व य के कानून एवं वधान नमाण कये जाने
चा हए।
179
भेद—भाव नह ं कर सकता है। कानून सब के लए चाहे ह दू हो, मू सलमान हो, युवा हो, वृ हो,
ी या पु ष एक समान है। इसके अ तगत श ा यव था म वेश, चयन, मू यांकन, यवहार
आ द म समानता का यान रखा जाये। सामािजक एवं आ थक प से वं चत वग के साथ
भेदभाव कया जाना गैर संवध
ै ा नक होगा।
12.4.4 ब धु व (Fraternity)
रा य एकता एवं स ावना बनाए रखने के लए ब धु व क भावना अ य धक आव यक
है। उ त तीन मू ल अ धकार— याय, वत ता एवं समानता का ववेकपूण उपयोग न कया जाये
तो समाज म कई यि त शो षत होते रहगे। जब क इन अ धकार को समा व ट करने का उ े य
यह था क रा य एकता व स ावना बनी रहे | इसी लए ब धु व का अ धकार सि म लत कया
गया है। य क मू ल अ धकार के योग म दूसरे यि तय क वत ता म कावट पड़ती है या
वह समाज वरोधी है या वह अनै तक है तो उ ह यवहार म लाने क अनुम त नह द जा
सकती है। इसम कोई स दे ह नुह ं है क हमारे सं वधान म यि त क मान—मयादा को बहु त
ऊँचा थान दया गया है क तु यह रा क एकता के बीच म कावट नह ं बन सकती है। अत:
रा य स ावना हे तु ब धु व के अ धकार क पालना आव यक है। श ा यव था म वं चत वग
के त स ाव तथा सहयोग क भावना को पो षत कया जाना आव यक है।
उपरो त संवध
ै ा नक ावधान के अ तगत सामािजक वकास के ल य को ा त करने
तथा सामािजक सम पता था पत करने क ि ट से यथे ट गुणा मक तथा यापक श ा एक
बहु त ह शि तशाल साधना है। कु छ मह वपूण रा य ल य ह पंथ नरपे ता, लोकत ,
समानता, वत ता, ब धु व, याय, रा य एकता और दे शभि त। श ा का दा य व है क वह
ब च म मानव अ धकार और कत य के त स मान क भावना वक सत कर। नबल समु दाय
िजनम अनुसू चत जा त, अनुसू चत जनजा त, म हलाएं, वकलांग ब चे 'और अ पसं यक आते
ह, अब और दे र तक सु वधा वं चत नह ं रखे जा सकते।
180
धारा 45 के अ तगत यह नद शत कया गया है क सं वधान लागू होने के दस वष के
अ दर 14 वष तक के येक बालक को नःशु क अ नवाय श ा द जायेगी।
सं वधान क धारा 29(1) के अ तगत ावधान है क नाग रक का कोई भी वग दे श के
कसी भी भाग म भारत दे श क सीमा म रहता हो, चाहे कसी भी भाषा या धम का हो, को उ त
लाभ ा त होगा।
सं वधान क धारा 29(2) के अनुसार कोई भी शै क सं था कसी भी नाग रक को धम,
जा त, भाषा या अ य कसी भी कारण से वेश दे ने से मना नह ं कर सकती।
धारा 30(1) म दये ावधान के अनुसार धम अथवा भाषा के आधार पर अ पसं यक
वग को उनक च के अनुसार श ण सं थाएँ था पत करने एवं चलाने का अ धकार होगा।
धारा 30(2) के ावधान के अनुसार धम अथवा भाषा के आधार पर वग कृ त अ पसं यक
समू ह वारा बं धत शै क सं थाओं को रा य अथवा के सरकार अनुदान हे तु भेदभाव पूण
यवहार नह ं कर सकती।
धारा 350(4) के अनुसार भाषा के ि ट से घो षत अ पसं यक वग के बालक क
ाथ मक तर तक क श ा के लए उनक मातृभाषा म श ण क सु वधा दान करने क
िज मेदार थानीय अ धकृ तयो क होगी।
धारा—46 के अ तगत वं चत वग के आ थक एवं शै णक च का वशेष प से यान
रखने क िज मेदार रा य सरकार को द गई है। इस धारा के अनुसार कमजोर वग म शै क
च जा त करना एवं आ थक सु वधा का यान रखा जाना चा हए। वशेष प से, आ दवासी एवं
आ दवासी जनजा त समू ह का, श ा के लए कसी भी कार का शोषण न हो, स पूण सामािजक
याय ा त हो, यह आव यक है।
भारतीय सं वधान म 42वे संशोधन से श ा को एक मा रा य सरकार के दा य व से
हटा कर समवत सू ची म सि म लत कर लया है। इस प रवतन का उ े य था क श ा के े
म जार सम त रा य नी तय व ायोजनाओं को यवि थत प से सु वधाऐ ा त हो सक।
इस यव था म के एवं रा य सरकार क साथक सहभा गता हो सकेगी।
181
अ धकार ा त है। इसके अ त र त भारतीय सं वधान क धारा 16,46, 164, 335 एवं 338 म
भी अनुसू चत जा त को अ धका धक अवसर दान कर आगे लाने हे तु ावधान कये गये ह।
इन व भ न संवध
ै ा नक ावधान के अनुसार अनुसू चत जा त के वं चत वग को शै क
अवसर दान करने हे तु अनेक ो साहन दये जा रहे ह। नःशु क श ा, आवासीय यव था,
छा वृ लयॉ आ द। नई श ा नी त म इन सब सु वधाओं के साथ गणवेश, पु तक, टे शनर आ द
भी नःशु क उपल ध करवाने क सु वधा द गई है।
12.7.2 अनुसू चत जनजा त क श ा (Education of Schedule Tribe)
अनुसू चत जा तय क भाँ त अनुसू चत जनजा त के लोग भी सामािजक, आ थक एवं
शै क ि ट से पछड़े हु ए रहा है। इस समू ह म भील, मीणा आ द आ दवासी सि म लत ह। ढे बर
कमीशन(1960—61) के सु झाव के अनु प सरकार ने अनुसू चत जनजा त के ब च के लए
नःशु क श ा यव था के साथ नःशु क म याहन भोजन, व , पु तक, लेखन साम ी आ द
भी दान क जाती है। कोठार कमीशन (1964—66) ने अनुसू चत जनजा त के वरल आबाद
(Spreadly Populated Agrees) वाले े म आ म कू ल िजसम नःशु क श ा, आवास,
भोजन, व , प ने— लखने क यव था आ द क सफा रश क ।
12.7.3 न द ट जनजा त क श ा (Education of Denotified Tribes)
इ ह अपराधशील अथवा जरायम पेशा जनजा त भी कहा जाता है। ये जनजा त भी
अनुसू चत जनजा त क भां त सु दरू पहाड़ी, जंगल , रे ग तानी आ द े म बसने वाल जा त ह।
इस जा त के लोग पहले चोर , डकैती तथा अपराध करते थे। वाधीनता के प चात ् इ ह वह
शै क सु वधाएँ ा त हो रह ह जो अनुसू चत जा त/ जनजा त को ा त ह। सरकार नौक रय
म आर ण होने के कारण ये जा तयाँ अपराधी वृि त याग चुक ह। इसी लए इ ह जरायम पेशा
या अपराधशील जनजा त न पुकार कर न द ट जनजा त कहना ार भ कर दया है।
12.7.4 मणशील जनजा त क श ा (Education of Nomadic Tribes)
अनुसू चत जा त अथवा जनजा त क तु लना म मणशील अथवा खानाबदोश जनजा त
सामािजक—आ थक ि ट से अ धक पछड़ी रह है। जैसे बंजारे , गाडो लया लु हार आ द का कोई
थायी नवास नह ं होता। ये एक थान से दूसरे थान पर मण करते रहते ह। ऐसे ब च क
श ा यव था होना बहु त क ठन ह। इ ह सरकार क ओर से अनेक सु वधाएं ा त ह फर भी ये
घुम कड़ जीवन नह ं छोड़ते। ऐसे लोग के लए मणशील पाठशालाएं, दूर थ श ा, मु त
व यालय, आ द ह अ धक उपयोगी स हो सकती ह।
183
स पक क ाओं (Contact Classes) अथवा आमने—सामने क श ा (Face—to—Face) क
यव था करता है। यह भी उ लेखनीय है क खु ला— व यालय अब +2 तरपर पा यकम ार भ
कर रहा है।
उ च श ा के े म अनेक व व— व यालय नातक, नातको तर एवं उपा ध
(Diploma) तर के पा य म चला रहे ह। यह प ाचार के साथ—साथ स पक क ाओं अथवा
आमने—सामने क श ा यव था भी करते ह। दे श म इस समय व भ न व व व यालय ऐसे भी
ह जो खु ले व व व यालय के प म काय कर रहे ह। ऑ दे श खु ला व व व यालय(1982)
इि दरा गाँधी मु त व व व यालय(1965) और कोटा खु ला व व व यालय (1987) प ाचार
पा यकम वारा यह दूर थ श ा क यव था करते ह एवं व श ट थान पर महा व यालय म
अ ययन के था पत कर स पक क ाओं, मु त साम ी के वतरण, परामश आ द क
यव था भी करते ह। इन खु ले व व व यालय के पा य म म रे डयो एवं दूरदशन का उपयोग
कया जा रहा है। खु ले व व व यालय म जो छा नातक पा य म म वेश लेते ह उ ह कसी
शै क अहता (Educational Qualifications) क आव यकता नह ं होती पर तु य द +2
पर ा उ तीण नह ं ह तो उ ह एक वेश पर ा दे नी पड़ती है और उसम उ तीण होने पर ह
उनका वेश हो पाता है। इन यास के भाव को बढ़ाने क आव यकता है।
12.8.3 सहयोगी श ा (Supportive Education)
सहयोगी श ा का अथ है ऐसी व श ट श ण सु वधाओं और ो साहन का ावधान
जो सामािजक एवं आ थक प से पछडे अथवा सां कृ तक प से वं चत वग के ब च क
ारि भक जीवन म होने वाल असु वधाओं अथवा ह नताओं क तपू त कर दे । प ट है क
नधनता अथवा आ थक असमानता, घर के वातावरण, सामािजक तर क ह नता तथा यो न
अ तर के कारण उ प न होने वाल शै क अवसर क असमानताओं को सहयोगी श ा के वारा
कम कया जा सकता है। सहयोगी श ा के कु छ ावधान जैसे नःशु क श ा क यव था,
छा वृि तयॉ, बना मू य के पु तक, कागज, काँपी, पेि सल आ द के वतरण क यव था तथा
अनौपचा रक श ा, के , खु ले व यालय तथा खु ले व व व यालय क चचा हम पहले ह कर
चु के ह।
इसके अ त र त अनुसू चत जा त एवं अनुसू चत जन—जा तय के लए सं वधान के
अ तगत कमश: 15 तशत एवं 7.5 तशत आर ण श ा सं थाओं एवं नौक रय म कया
गया है।
साथ ह ह रजन छा ावास क यव था क गई है एवं िजला मु यालय पर सामा य
छा ावास म अनुसू चत जा तय के छा के लए सु वधाय दान क गई है। अनुसू चत जा त
एवं अनुसू चत जनजा त के युवक को सावज नक सेवाओं म चयन से स ब नधत तयो गताओं
के हे तु तैयार करने के लए श ण दया जाता है। दे श के मु ख नगर म यह योजना चल रह
है। ि य क श ा को ो साहन दे ने के लए क या व यालय आ धका रक सं या म खोले जा
रहे ह तथा म हला श क क अ धका धक एवं वर यता के आधार पर नयुि त क जा रह है।
ि य को तकनीक एवं यावसा यक पा य म म वेश ा त करने पर तथा पर परागत ध ध
म लगाये जाने हे तु ो साहन दया जा रहा है।
184
चालक य डचलचज बाधाओं और सामा य बाधाओं से त ब च क श ा जहॉ तक
स मव है, अ य ब च के समान तथा इसके साथ ह एक कृ त श ा के अ तगत क जा रह ।
इस नी त पर आगे चलने क घोषणा नी त म भी गई है।
िज हे अपने ारि मक जीवन म श ा ा त करने का कोई अवसर नह ं मल सका
उनके लए ोढ़ श ा क यव था वत ता पूव से ह क जा रह है।
ौढ़ श ा के कायकम म रे डयो, दूरदशन और चल— च का पूण सहयोग लया
जायेगा। साथ ह अ धगमकताओं (सीखने वाल ) क चय को यान म रखते हु ए यावसा यक
एवं तकनीक श ा के अनौपचा रक काय म वृहत तर पर आयोिजत कये जायगे।
12.8.4 श क क भू मका (Role of a Teacher)
श ा यव था म असमानता को दूर करने, वं चत वग को पूण सु वधा दे ने क कया
म श क क भू मका अ य धक मह वपूण है। य द संवध
ै ा नक ल य को ा त करने म श क
सकारा मक भू मका का नवाह करना चाहते ह तो यि तगत सोच को व तार दे कर सामा य
हत म काय कर। भारतीय दशन तथा सां कृ तक मू य को आ मसात करते हु ए सांवध
ै ा नक
ावधान को सह स दभ म समझे। य क समाज के सम त वगभेद को मटाने के लए
सं वधान म दये गये ावधान मा दखावा नह ं है, केवल सै ाि तक नह ं है वरन ् समाज क
प रवतनशील ि थ तय म समाज के संर ण के यावहा रक नदश है। अत: श क के श ण
के दौरान इनके मू ल त व को समझते हु ए श क को संवेदनशील होना चा हए।
दाश नक अथ म याय, वत ता, समानता एवं ब दु व अ तस बि धत ह एवं एक—
दूसरे पर नभर है। अत: इ ह अलग—अलग भी समझना होता है। याय म श क को समझना
होगा क राजनी तक, आ थक, सामािजक कसी भी आधार पर भेद—भाव न करते हु ए छा जो भी
यो यता रखते ह उसके अनुसार यवहार करना होगा। समाज के वं चत वग के लए आर ण के
नयम क पालना करनी चा हए। अत: दूसरे श द म श क को छा के साथ समान यवहार तो
करना ह चा हए साथ ह छा को भी सामािजक याय क माँग करने के लए जागृत करना
चा हए। इससे समाज जागृत होगा। श क को यह समझना होगा क अ याय होता रहे तथा
समाज का एक वग सु वधा स प न हो। इससे रा म शाि त कभी नह ं रह सकती। न ह
वकास हो सकता है। अत: सामािजक मू य के प म ‘ याय' क श ा द जानी चा हए।
इसी कार वत ता का अथ ब धन से मु ि त है। क तु समाज म मा यताओं, आदश
एवं सं कार के ब धन म रहना होता है। तभी वत ता समाज के लए हतकार होती है।
श णाथ को महा व यालय के सम त नयम क पालना करनी चा हए तथा इसे अपने
यवहार का अंग बनाना चा हए। िजससे वानुशा सत जीवन जी कर खाज म एक यव था
था पत क जा सके। इससे येक यि त के यि त व को वक सत होने का पूरा अवसर
मलेगा। रा के लए एक िज मेदार सु नाग रक के प म सभी का वकास हो सकेगा। यह
श क को वयं भी समझाना पड़ेगा क वत ता का अथ नबाध व छ दता नह ं होता।
समाज एवं रा य वारा नधा रत नै तक सीमाओं के अ तगत यवहार करना होगा। अत:
वानुशासन के साथ वत ता के अ धकार का उपयोग श क को सीखना एवं सीखाना होगा।
समानता का अथ यवहार म शु ता से होता है। वैसे ाकृ तक, भौ तक, वंशानुगत,
जै वक एवं इसी कार क अ य असमानताओं के लए श क कु छ नह ं कर सकता। क तु
185
समाज वारा रखी गई असमानताओं को कम करने म पया त सहयोग दे सकता है। श क—
श ा वारा इसका ावधान कया जा कर समाज क वसंग तय को दूर कया जा सकता है।
इसका अथ यह है क अश त एवं वं चत वग के लए वशेष सु वधाएं वक सत क जाय। िजससे
वे भी बेहतर जीवन जी सक। हमारे दे श म रा य वारा व भ न कार के संर ण, सहयोग एवं
सु वधाऐं दान क जा रह है।
12.8.5 श ण म सां कृ तक प र े य (Cultural Perspective in Teaching)
' व वधता म एकता' के वचार म काफ अ तर आता जा रहा है। े ीयता जा तवाद, वग
एवं व भ न समु दाय म इतनी मत भ नता हो गई है क रा क एकता म खतरा सा अनुभव
होने लगा है। ”..........Social harmony and brotherhood,the feeling of
associative living and neighbourhood have received a set back.Social
solidarity and cohesion are being gradually replaced by a fractured
society caste identities are turning into caste conflict.From a social
category caste has become a political force and recieved political
overtone and value …………………The “Curriculum Framework of Teacher
Education”(1998)suggested certain concrete steps to be taken by teacher
education,……………”(NCTE,2004,36)
रा य अ यापक श ा प रष का यह मानना रहा है सां कृ तक प र े य को यान म
रखते हु ए श ा क यव था होनी चा हए। जनजा त े के बालक एवं शहर े के बालक क
पृ ठभू म एवं अनुभव अलग है। अत: एक ह तर के से पढ़ाना उपयु त होता। "It is this
context that special mention may be made of some cultural practices
such as story telling ,dramatics and aesthetics which should become a
strong basis for our pedagogy rather than one uniform,mechanistic way of
student learning.”(NCTE,1996,14)
12.8.6 वं चत वग के बालक को ो साहन हे तु ग त व धय (Activities for Encourage
ment of Deprived Children)
वं चत वग क श ा पर यान दे ने के लए क ा—क श ण के अ त र त भी कई ग त व धयॉ
सु झाई गई है। िजससे शाला—समु दाय स ब ध म वृ हो सके। जैसे :—
छा के ज म दन का आयोजन
अ भभावक दवस का आयोजन
अ भभावक श क संघ को स य बनाना
सामु दा यक खेल—कू द एवं अ य तयो गताएँ
सामु दा यक संसाधन का योग
छा क पृ ठभू म को जानना/समझना
रा य दवस के आयोजन म सभी समु दाय क सहभा गता
पयावरण श ा म स यता
सामािजक वा नक एवं पौधारोपण म सहयोग
186
व यालय वकास म समु दाय का सहयोग
वा य चेतना के प का आयोजन
समाजोपयोगी उ पादक काय (SUPW) करना
सां कृ तक मू य (Cultural Specific Value) का संपोषण करना।
उ त सम त ग त व धय म श क— श ा म ऐसी यव था क जाये क वं चत वग
वयं को सबके साथ महसू स करे । उनम आ म व वास जागत हो। इसके लए कहा गया है,
Teacher Education has twin responsibility in this regard, first to evolve a
new pedagogy of education for children coming from the neglected
rections like this and second, to develop positive attitudes among
teachers for its success.(NCTE—2004,39).
रा य अ यापक श ा प रष ने श क श ा के जो उ े य नधा रत कये ह, उनम
थम उ े य है :
''...........to promote capabilities for inculcating national values and
goals as enshrined in the constitution of India.”(NCTE—1928,24).
Curriculum Framewark for Teacher Education—2004 के द तावेज म
प ट लखा गया क”Teacher need to be sensitized in the provisions of
Indian condtitution regarding underprivilkeged groups like scheduled
castes,scheduled tribes, other backward classes,woman etc.on one hand
and justice,liberty,equality of status and opportunity on the other.(Pg.10).
187
12.10 मू यांकन न (Evaluation Questions)
1. वं चत वग के लए सं वधान म या शै क ावधान दये गये ह।
What educational Provisions are given in the Constitution for the deprived
class?
2. वतमान म वं चत वग क श ा के लए मु य सु झाव द िजये।
Give important suggestions for the education of deprived class.
12.11 स दभ सा ह य (References)
1. व यालयी श ा के लए रा य पा यचया क परे खा, 2000, एन.सी.ई.आर.ट ., नई
द ल।
2. डी. एस.एस. माथु र, श ा के दाश नक सामािजक आधार, 1995, वनोद पु तक मि दर,
आगरा।
3. Some Specific Issues and Concerns of Teacher Eduction, 2004, N.C.T.E,
New Delhi.
4. Curriculum Framework For Teacher Education(1996)—NCTE,New Delhi.
5. Curriculum Framework For Quality Teacher Education(1998),NCTE,New
Delhi.
6. Curriculum Framework For Teacher Education,2004,NCTE,New Delhi.
7. Sinha, Tripathi and Mishra, Deprivation (1982), Concept Publishing
Company, New Delhi.
8. Tqwards Meeting a Commitment—Achievements Under Education for All:
A Statuse paper—dept. of Education, MHRD, Govt.of India, July, 1995.
12.12 BIBLIOGRAPHY:
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Book Depot,Meerut.
2. Reddy,G.Ram(1984,’OpenEducation System in India Its Place and
Potential Hyderabad’:Andhra Pradesh Open University.
3. Parmaji,S.C.(Ed.)(1984),Distance Education,New Delhi,Sterling publishers.
4. Lewis,B.N.(1974): Educational Technology at the Open University. An
Approach to the problem of Quality in British Journal of E.T.
5. Keegan,Desmond(1986):The Foundation of Distance
Education,London,croom Helm.,
6. Foks,J (1987): Towards Open Learning,in P.Smith and m.kelly (eds.)
Distance Education and the Mainstream, London Croom helm.
7. Cunningham (1987) : Openness and Learning to Learn. Beyomd distance
teaching towards Open Learning, Open University Press.
188
इकाई—13
ी श ा एवं भारत म ल गक असमानता
(Women Education and Gender Inequality in India)
इकाई क परे खा (Outline of the Unit)
13.1 इकाई के उ े य
13.2 ी श ा क आव यकता
13.3 भारत म ी श ा का वकास
13.3.1 ाचीन भारत म ी श ा
13.3.2 टश काल म ी श ा
13.3.3 वतं भारत म ी श ा
13.3.4 वतमान समय म ी श ा
13.4 ी श ा क सम याएँ
13.5 ी श ा के वकास हे तु कये जा रहे यास
13.5.1 अनौपचा रक श ा
13.5.2 म हला समा या—म हला समानता हे तु श ा म हला संघ
13.5.3 म हला संघ
13.5.4 ऑपरे शन लेक बोड
13.5.5 िजला ाथ मक श ा कायकम
13.5.6 सव श ा अ भयान
13.6 भ व य के लए योजनाऐ
13.7 सार—सं ेप
13.8 ग त का मू यांकन
13.9 स दभ पु तक
189
इस इकाई के अ ययन से छा ा यापक अपनी ओर से भी ी श ा के वकास हे तु
आव यक सु झाव दे सकगे।
190
13.3 भारत म ी श ा का वकास (Development of Women
Education in India)
भारतीय सं कृ त म ी श ा का मह व ाचीन काल से ह रहा है। इसके वकास को
हम न न कार से समझ सकते ह –
रा य श ा नी त (1968) के सु झाव
शै क अवसर क समानता के लए रा य श ा नी त (1968) म अनेक सु झाव दये
गये। मु ख सु झाव न न ह —
(1). श ा के अ तगत या त े ीय असमानता को दूर करना। ामीण तथा पछड़े े म
श ा क अ छ सु वधाय उपल ध कराना।
(2). सामािजक और रा य एक करण के लए ''काँमन कू ल स टम'' (Common School
System) णाल लागू करना, सामा य व यालय के शै क तर का उ नयन करना,
पि लक व यालय म वेश क शत छा क यो यता के अनुसार रखना तथा कमजोर
वग के छा को नःशु क श ा क सु वधाय दान करना।
(3). सामािजक प रवतन के लए बा लकाओं क श ा पर वशेष यान दे ना।
(4). पछड़े वग ( वशेषकर अनुसू चत जा तय एवं जनजा तयाँ) क श ा के सार पर
सवा धक बल दान करना।
(5). मान सक एवं शार रक प रो वकलांग बालक क शै क सु वधाओं म वृ करना।
रा य श ा नी त (1986) म कहा गया है क ''लाभ उठाने से अब तक वं चत वग को
उनक आव यकताओं के अनु प शै क अवसर क समानता उपल ध कराकर वषमताओं के
उ मूलन पर बल दया जाएगा। 'रा य श ा नी त के अ तगत शै क ि ट से पछड़े वग को
न न ल खत भाग म वभ त कया गया है —
(1). म हलाय
(2). अनुसू चत जा त
(3). अनुसू चत जनजा तयाँ
(4). अ पसं यक वग
(5). शार रक वकलांग
रा य श ा नी त (1988) के अ तगत उपयु त पाँच वग म शै क अवसर क
समानता लाने पर वशेष बल दया गया ह|
म हलाओं को श ा के समान अवसर उपल ध कराने के लए न नां कत ावधान कये
गये ह —
(1). म हलाओं क नर रता का उ मू लन करना।
(2). तकनीक और यावसा यक काय म म हलाओं क भागीदार सु नि चत करना।
194
(3). बालक—बा लकाओं क श ा म कोई भेदभाव न करना।
(4). म हलाओं के त दुरा ह वाले अंश को पा यकम से न का सत करना।
(5). अनुसंधान काय म म हलाओं को ो सा हत करना।
वष ी पु ष
1901 0.6 9.83
1911 1.05 10.56
1921 1.81 12.20
1931 2.93 15.59
1941 7.30 24.90
1951 7.93 24.95
1961 12.95 34.44
1971 16.89 34.95
1981 24.82 46.89
1991 39.29 64.13
2001 54.16 75.85
195
सारणी म आये वग के अनुसार ामीण व नगर य े म ी सा रता तशत म 2001 के
अनुसार
आयु वग सम त ामीण नगर य
5—9 25.79 19.63 48.38
10—14 44.85 36.44 73.39
15—19 43.28 33.66 70.40
20—24 37.18 27.16 65.16
25—29 28.96 19.64 56.98
35 और ऊपर 14.44 8.62 35.91
सभी आयु 24.82 17.46 47.82
196
3. शासन — ी श ा का वकास कु शल शासन के अभाव के कारण नह ं हो पा रहा है।
बा लका व यालय के नर ण व शासन हे तु ठ क कार क यव था नह ं क गई। इसके लए
पृथक यव था का अभाव है। यो य धाना या पकाओ का अभाव है। ी श ा के वकास क
गलत योजनाओं के कारण भी इसका वकास नह ं हो पाया है|
4. अ या पकाओं क कमी — अ या पकाओं क कमी भी ी श ा म एक बहु त बड़ी बाधा
है। वशेषकर ामीण व पछड़े े म अ या पकाओं का अभाव है। इसका कारण वहाँ आवास,
यातायात, व युत आ द सु वधाओं का अभाव होना है।
5. अप यय क सम या — ी श ा म फजू लखच क सम या भी है। कु छ ि याँ
अ ययन करने के बाद घर बैठ रहती है। हमारे यहां ी अ या पकाओं क कमी है ले कन कु छ
ि याँ काम नह ं कर रह ।ं इसका कारण उनके माता— पता या प त क अ न छा अथवा सु वधाओं
के अभाव के कारण काम नह ं कर पाना है। इसके साथ ह व भ न कारण से लड़ कय का अपने
अ ययन के बीच म ह पढ़ाई छोड़ दे ना भी अप यय ह है।
6. पृथक बा लका व यालय का अभाव — ामीण े म बा लका व यालय का बहु त
अभाव है। शहर म भी आव यकतानुसार पृथक बा लका व यालय का अभाव है। ामीण व पुराने
वचार के अ भभावक अपनी बा लकाओं को सह श ा दलवाने के प म नह ं होते। इस लए ाय:
ाथ मक श ा के बाद अ भभावक अपनी बा लकाओं को अ ययन करने से रोक लेते ह।
7. पा य म स ब धी दोष — व भ न श ा आयोग व स म तय के अनुसार पा य म म
सु धार हे तु सु झाव दये गये। छा —छा ाओं के लए समान पा य म क यव था है। उसम छा
का तु लना मक प से अ धक यान रखा गया है। छा ाओं से संबं धत वषय अ नवाय के थान
पर वैकि पक वषय के प म रखे गए ह। जैसे संगीत गृह व ान आ द। च लत पा य म म,
सै ाि तकता अ धक है, यावहा रकता कम। इस लए यह पा रवा रक व सामािजक ि ट से
उपयु त नह ं है।
8. शोध का अभाव — ी श ा से संबं धत व भ न पहलु ओं पर पया त शोध काय नह ं
हु आ। लड़के व लड़ कय क शार रक, मनोवै ा नक व यावहा रक आव यकताओं पर बहु त कम
यान दया गया है।
197
13.5 ी श ा के वकास हे तु कये जा रहे यास
बा लकाओं एवं म हलाओं के शै क उ नयन हे तु रा य एवं रा य तर पर अनेक
कायकम के मा यम से यास कए गए, जो बा लका एवं म हला श ा के े म मील का
प थर सा बत हु ए। इनका सं त ववरण इस कार है।
13.5.1 अनौपचा रक श ा
के ायोिजत योजना तगत 6—14 वय वग के व यालय न जाने वाले ब च के लए
वष 1979—80 से माच 31,2001 तक अनौपचा रक श ा काय म चलाया गया। श ा के दायरे
से छूट रहे कामकाजी ब च एवं एक बड़ी सं या म बा लकाओं को चहना कत करते हु ए
अनौपचा रक श ा योजना के अ तगत वकेि त बंधन यव था वारा आव यकतानुसार
पा य म क संब ता एवं अ धगम याओ म व वधता को अपनाकर सभी तक श ा क पहु ँ च
सु नि चत करने हे तु छूट दान क गई है। इस योजना तगत आवासीय े तक श ा सु वधा
क पहुच सु नि चत करने हे तु लचील काय योजनाओं हे तु आवासीय श वर व यालय वा पस
चलो श वर सेतु पा य म इ या द का ावधान है। इस योजना का यह नवीन प इन के को
सामु दा यक बंधन यव था हे तु आदे शत करता है।
13.5.6 सव श ा अ भयान
ारि मक श ा के सावभौमीकरण हे तु दे श यापी काय म के प म सव श ा अ भयान
के रा य काय म के वारा ाथ मक श ा काय म को सफलता ा त हु ई है।वष 2007 तक
सभी ब चे पाँच वष क ाथ मक श ा पूण कर सक एवं ल गक असमानता दूर हो जाए। वष
2010 तक सभी ब च को आठ वष क ारि मक श ा, उ च ाथ मक तर तक पूर करने का
ल य है।
शै क प से पछड़े वकास ख ड (दे श के लगभग एक तहाई लाँक) म से वशेष प
से म हला श ा के े के प म चहनां कत कए गए वकास ख ड के लए एक वशेष पैकेज
का नमाण कया गया िजसम बा लका श ा पर वशेष बल दे ते हु ए वशेष सामु दा यक
जाग कता एवं थानीय आव यकतानुसार यास कए गए इसके अ तगत व यालय वातावरण,
अनुसमथन सेवाएं जैसे—पूव बा यकाल प रचया के एवं सव श ा अ भयान के अ तगत
ारि मक तर पर बा लका श ा हे तु रा य कायकम के प म वशेष यास कए गए।
13.6 भ व य के लए योजनाएँ
रा य काय योजना म दो तरफा रणनी त तैयार क गई है िजसके अ तगत ल गक
आधार को मु यधारा म लाना एवं वशेष योजना तगत बा लका और म हला श ा को ो सा हत
करना। ारि भक श ा के सावभौमीकरण हे तु सव श ा अ भयान एवं इसके अ य भाग, िजला
ाथ मक श ा कायकम, लोक जु ि बश कायकम, म या तर भोजन योजना के अ तगत
199
बा लकाओं को श ा क मु यधारा म सि म लत करने का ावधान कया गया है। इन काय म
के मु य े इस कार है:
बा लका श ा को समथन दान करने म समु दाय क स यता सु नि चत करना, वशेष
प से गाँव एवं व यालय म ग त का नय मत अनु वण कर, शै क वातावरण तैयार
करना।
योजना तैयार करने वाल , श क और शै क ब धक का श ण एवं ल गक
संवेद करण काय म का आयोजन। इस काय म म बा लका श ा के े पर वशेष बल
दया जाएगा।
क ा—क , पा य—पु तक एवं श ण—अ धगम साम ी को बा लका हे तु म वत ्
बनाना।
वशेष यास क यव था करना।
म हला एवं बा लका श ा हे तु नधा रत कये गए उपयु त ता वत उ े य को पूरा
करने हे तु तीन काय म चलाये जा रह है, म हला समा या काय म, सव श ा अ भयान के
अ तगत ारि मक तर पर बा लका श ा का रा य काय म और क तु रबा गॉधी वतं
व यालय योजना। इन तीन योजनाओं के अ त र त, मा य मक तर पर नवीन मु त बा लका
श ा योजना ता वत क गई। इस योजना तगत, न नां कत ावधान कये गए है :—
शै क प से पछड़े 500 वकास ख ड को चहनां कत कर मा य मक एवं उ चर
मा य मक व यालय का नमाण करना। इसके लए दसवीं पंचवष य योजना अव ध हे तु
इस काय हे तु 5000 म लयन पये क धनरा श का ावधान, 100 म लयन पये त
व यालय क दर से कया गया है।
शै क प से पछड़े वकास ख ड म गर बी रे खा से नीचे रहने वाले प रवार क क ा
IX एव X क बा लकाओं हे त,ु दसवीं पंचवष य योजना तगत 6577.76 म लयन पये
लागत क नःशु क पा य—पु तक वत रत करने का ावधान है।
इन दो काय योजनाओं के सम वय से ल गक असमानता को कम करने म कये गए
यास से न केवल नामांकन, ठहराव एवं स ाि त म ह अ तर आएगा, बि क व यालय का
वातावरण भी ल गक समानता एवं संवेदनशीलता से यु त होगा।
13.7 सार—सं ेप
आधु नक काल म ह नह ं वरन ् ाचीनकाल म भी ी श ा क आव यकता व मह व
को वीकार कया गया था। ाचीनकाल म अनेक वदुषी ि य के नाम प ने को मलते ह।
200
ले कन धीरे —धीरे ि य क समानता व श ा को अ वीकार कया जाने लगा था। उ तर वै दक
काल म ि य क ि थ त बहु त खराब हो गई। उ तर वै दक युग के बाद बौ काल म ि य क
ि थ त म सुधार हु आ। मुि लम काल को ी श ा क ि ट से अ धकार युग के नाम से
स बो धत कया जाता है। टश काल म भी सरकार ी श ा के त उदासीन ह रह ।
वतं ता के बाद ि य के सामािजक एवं शै क तर म काफ ग त हु ई। वतं ता के बाद बने
सभी श ा आयोग ने अपनी अनुशस
ं ाओं म ी श ा पर बल दया और उ ह ने ी श ा के
सार के लए अपने—अपने सु झाव दये।
ी श ा के लए 1958 म ीमती दुगाबाई दे शमु ख क अ य ता म, 1962 म ीमती
हंसा मेहता क अ य ता म और 1963 म भ तव सलम ् क अ य ता म स म तयाँ ग ठत क
गई। इ ह ने ी श ा के सार के लए ग भीर च तन करके अपने सु झाव दये। ी श ा
क सा रता को दे खने से प ट हो जाता है क ामीण े क तु लना म नगर य े क
सा रता के तशत म वृ अ धक हु ई है। वतं भारत म ी श ा क अनेक सम याएँ ह—
जैसे ी श ा के त प पातपूण धारणा, नधनता, अ या पकाओं क कमी, शासन, अप यय,
पा य म स ब धी दोष, पृथक् बा लका व यालय का अभाव, शोध का अभाव आ द। इन
सम याओं के समाधान के लए भी सु झाव दये गये ह। इसके अ तगत पृथक बा लका व यालय
क थापना, पया त धन क यव था, अ या पकाओं क नयुि त, अलग नदे शालय, व शासन
क यव था करने, व थ ि टकोण का वकास, पा य म एवं शासन म सु धार करना आ द
मु य ह। ी श ा क धीमी ग त के बावजू द भी इसम और ग त क स मावनाएं काफ
बढ़ती जा रह है। सरकार इसके लये वशेष यास कर रह है। नई श ा नी त म भी ी श ा
व सा रता पर अ धक बल दया गया है।
13.8 ग त का मू यांकन
1. ाचीन काल न पाँच ऋ षकाओं के नाम ल खये।
Write down the names of five learned women of ancient India..
2. कस युग को ी श ा क ि ट से अ धकार का युग कहा जाता है?
Which period wos dark period from education point of view of women?
3. बा लकाओं के लए सबसे पहले कसने पाठशाला था पत क ?
Who established the first school for girls?
4. भारत म थम म हला श क— श ण क थापना कसने क ?
Who founded the first Women Teachers Training Colleg in India?
5. ी श ा के लए पहल बार रा य समत क थापना कसक अ य ता म हु ई?
In whose chairmanship the first national committee for women education
was established?
6. ी श ा के मह व के पाँच कारण ल खए।
Write down five points for importance of women education.
7. ी श ा क या सम याएँ ह? इनके नवारण के लए या कदम उठाये गये ह?
What are the problems of Women Education in India?What measures are
being taken to solve it?
201
8. वत ता के प चात ् ी श ा क ग त का ववरण ल खए।
Write down the development of Women Education in free India.
13.9 स दभ पु तके
1. अि नहो ी रवी — भारतीय श ा क वतमान सम याएँ, 1987 रसच, नई द ल ।
2. अि नहो ी रवी — भारतीय श ा : दशा और दशा, मेरठ, 1975
3. अ वाल, जे.सी. — वतं भारत म श ा का वकास, द ल , 1968
4. अदावल, सु बोध तथा माधवे उ नयाल — भारतीय श ा क सम याएँ तथां वृ तयॉ
उ तर दे श ह द थ अकादमी, लखनऊ, 1975
5. संघल, महे शच — भारतीय श ा क वतमान सम याएँ, राज थान ह द थ
अकादमी, जयपुर , 1971
6. रपोट ऑफ द सैक डर एजू केशन कमीशन, 1952—53
7. रपोट ऑफ द एजू केशन कमीशन, 1964—66
8. योजना मई 16—31,1988, योजना भवन, पा लयामे ट ट, नई द ल ।
202
इकाई—14
मू यपरक श ा
(Value Education)
इकाई क संरचना (Outline of the Unit)
14.0 उ े य और ल य
14.1 मू य का अथ
14.2 मू यपरक श ा का अथ
14.3 मू यपरक श ा क आव यकता
14.4 मू यपरक श ा क व धयॉ
14.5 मू यपरक श ा स ब धी आव यक शै क यव थाएं
14.6 सार—सं ेप
14.7 इकाई का मू यांकन
14.8 संदभ साम ी
14.0 उ े य (Objectives)
इस पाठ को भल —भाँ त पढ़ लेने के उपरांत आप बता सकगे क :—
1. मू य (Values) या ह?
2. सामािजक और सां कृ तक मू य म अ तर या है?
3. मू यपरक श ा का या अथ है?
4. मू यपरक श ा के आ दोलन क व व और भारत म या आव यकता है?
5. मू यपरक श ा क व धयाँ या ह?
6. मू यपरक श ा के लए उपयु त शै क यव था या हो सकती है?
7. भारत म मू यपरक श ा के या त प (Models) हमारे सामने अब तक आये ह?
8. मू यपरक श ा के बारे म हमार रा य श ा नी त या कहती है?
9. मू यपरक श ा के आ दोलन को सफल बनाने के लए भारत म या— या मु ख कदम
उठाये जा रहे ?
203
“Value : worth, utility, desirability and the qualities on which these
depend.”
दाश नक आर.बी. पेस के अनुसार — ''मू य कसी के लए च क व तु होता है,
य क यह च और व तु के म य के वशेष स ब ध से नकलता है।''
“Value is an object of interest to someone,for it emenates from
Particular relation between the interest and its object.''
—R.B.Percy
इ टरनेशनल ड शनर ऑफ ए यूकेशन के अनुसार — ''मू य या उ चत या अनु चत है
उसके बारे म व वास है।'' (Valeues are beliefs about what is desirable of
undesirable'')
भारतीय समाजशा ी ो. राधाकमल मु खज के अनुसार — ''मू य वे सामािजक प से
वीकृ त इ छाएं और ल य होते ह जो कि डश नंग, सीखना या सामाजीकरण क कया के वारा
आ मसात कर लये जाते ह और जो यि तगत पस द , तमान और मह वाकां ाओं का व प
धारण कर लेते ह।
“Value are socially approved desires and goals that are
internalized through the process of conditioning,learning or socialization
and that become subjective preferences,standards and aspirations.''
—Prof R.K.Mukerjee
ो. मु खज क उपरो त प रभाशा बहु त उपयु त है। वा तव म मू य एक समाज म
वीक त यि त क पस द या मा यता ह होते ह।
204
14.1.2 मू य का वग करण (Classification of Values)
मू य को दो कार से वग कृ त कया जा सकता है :
(1) जीवन के व वध पहलुओं के अनुसार मू य (Values in the different spheres of
life)
1. शार रक मू य (Physical Values)
2. सामािजक मू य (Social Values)
3. राजनै तक मू य (Political Values)
4. सौ दया मक मू य (Aesthetic Values)
5. धा मक मू य, (Religious Values)
6. आ याि मक मू य (Spiritual Values)
7. मान सक मू य (Mental Values)
8. बौ क मू य (Intellectual Values)
9. आ थक मू य (Economic Values)
10. नै तक मू य (Moral Values)
11. सां कृ तक मू य (Cultural Values)
205
व—मू यां क न—1
1. मू य का या अथ होता है ?
2. मू य क दो मु ख प रभाषाएँ बताइये|
3. मू य का सामा य व गकरण कै से होता है ?
4. मू य का भारतीय ि टकोण बताएँ|
206
' श ा को मू लत' आ मा से कृ त क ओर अ सत होना चा हए। इसे यह बतलाना
चा हये क मानवजा त का दै वक प रवार है। समाज म व यमान दै वी व यि तय के मा यम से
ह अनुभव कया जा सकता है। न ता, आदर, दया, सहनशीलता याग और इि य नयं ण गुण
है जो स ची श ा के प रणाम को बतलाते ह।''
“Education must proceed primarily from the spirit of nature,it must
show that mankind constitutes one divine family.The divinity that is
present in the society can be exoerienced only through individuals.
Humility, tolerance, sacrifice and sense control are the qualities
which reveal the outcome of the Education.
सं ेप म हम कह सकते है क मू यपरक श ा ऐसी श ा है जो उ चत मू य से
अनु ा णत होती है तथा व याथ म ऐसे ि टकोण, आ था तथा संक प को वक सत करती है,
िजससे वह अपने जीवन के सभी काय व यवहार को उ चत मू य क कसौट पर परखता हु आ
तथा मानव क याण तथा मानव क आ मा के उ थान को सव प र मानता हु आ करता है।
यह श ा धा मक श ा का न तो कोई दूसरा प है और न तथाक थत ''नै तक श ा'’
(Moral Education) है। िजसम पर परा तथा आधु नकता शा वत मू य तथ उ चत सामािजक,
सां कृ तक तथा पयावरण स ब धी मू य और भू त—वतमान तथा भ व य का ऐसा संतु लत
म ण होता है िजसम मानव जीवन म आ याि मक उ थान तथा व व बंधु व और स ाव का
वकास होता है। उसम आ याि मकता, भौ तक व ान अथवा व ान एवं नै तकता का सु दर
सम वय है। इसे व तु त: “एक कृ त श ा” (Integrated Education) ह समझना चा हए।
इसका उ े य मानव उ कृ टता (Human Excellance) तथा चर आका त मू य
(Cherished Values) का वकास करना है जो धम नरपे ता और व व के सभी मत व
धम क एकता पर आधा रत है।
अपने लेख “Education in Human” Value म ी स य साई बाल वकास ट क
क वीनर ीमती के. म ण ने लखा है क मू य परक श ा के न नां कत दो मु ख उ े य ह —
1. च र नमाण
2. यि त व का नमाण
ी स य साई बाल वकास ट वारा का शत पुि तका “Curriculum and
Methodology for Integrated Human Values in Education :(International
Edition)म E.H.V.Movement(Education Human Values Movement) अथात ्
मू यपरक श ा का यह अथ बताया गया है।
“To enable balanced and wholesome development of all aspects of
child’s personality namely Physical,Intellectual,Emotional,Psychic and the
Spiritual.The present education covers to first two and and partly to the
third(emotional)that leaves a wid in the Personality of the child,as has
been confirmed by various studies and causes behavioural distortations.
207
The developments of all the five domains that the E.H.V. attempts
is synchronous with inculcation of five basic human values, Righteous
with inculcation of five basic human values.Righteous
conduct,truth,peace,love and non—violence.These five values represent an
integral perfection at all levels of personality.these have further logical
correspondence with five ideas of education namely,knowledge
skill,balance,insight,and identity.
सारांश यह है क मू यपरक श ा पाँच मु ख मानवीय मू य —स य, धम, शां त, ेम
और अ हंसा के वकास पर बल दे ती है। िजससे क यि त व के सभी तर या प का
संतु लत वकास हो सके।
210
2. बोलने स बि धत आदत :—
(1). न ता से बोलना।
(2). क ा म अपनी बात न ता से कहना।
(3). आदरसूचक श द का योग करना।
(4). गाल —गलोच तथा तू तकार से नह ं बोलना।
(5). च लाकर नह ं बोलना।
3. समय क पाब द —
(1). समय पर व यालय जाना।
(2). खेल के समय खेलना एवं प ने के समय पढ़ना।
(3). समय पर गृहकाय करना।
(4). घर के काम को समय पर करना।
4. व छता —
(1). थान क सफाई
व यालय प रसर क सफाई
प ने के थान क सफाई
क ा क सफाई
(2). व क सफाई
अपने व क धु लाई वयं करना।
उ ह तहकर रखना।
बटन टू टने पर वयं लगाना।
व को ग दे होने से बचाना।
जू ते मोजे साफ रखना|
(3). शार रक सफाई
समय पर शौच जाना एवं नान करना।
नाखू न समय पर काटना।
(4). काम म आने वाल चीज क सफाई
पु तक —कॉ पयो पर कवर लगाकर रखना।
पेन ब ते, साइ कल आ द को साफ रखना।
प ने क मेज, थान को यवि थत रखना।
भोजन करने के बतन क सफाई करना।
5. अनुशासन एबं शाि त बनाये रखना
(1). बैठक , सभाओं म तथा क ाओं म शाि त एवं अनुशासन रखना।
(2). बड़ी सभाओं म नधा रत थान पर बैठना।
(3). सभा के नयम का पालन करना।
(4). घर म यवहार करते समय न ता व शाि त रखना।
6. अपनी बार क ती ा करना(धैय)
(1). उपि थ त बोलते समय
(2). बस म चढ़ते समय
211
(3). ट कट लेते समय
(4). व यालय म पानी पीते समय
7. भोजन स ब धी आदत
(1). हाथ स ब धी आदत ।
(2). जू ठन नह ं छोड़ना।
(3). भोजन करने के बतन को यथा थान रखना।
(4). थान क सफाई करना।
8. खेल स ब धी
(1). खेल म जानबूझ कर दूसर को चोट न पहु ंचाना।
(2). वप ी क जीत पर उसे बधाई दे ना।
(3). नणायक के आदे श को मानना।
(4). खेल म ईमानदार रखना।
9. कु छ व श ट आदत
(1). पहल करना
(2). काम म नेत ृ व दान करना
(3). काय आर भ कर बीच म नह छोडना
(4). म के काम म सहयोग दे ना
(5). म और भई—बहन के साथ मल बैठ कर और बांट कर खाना।
अगर इस कार छा —छा ाओं म कु छ आदत का नमाण होगा तो उनम न नां कत
जीवन मू य वत: ह वक सत ह गे :—
(1) सहयोग, (2) साहस, (3) सफाई, (4) ण न चय, (5) आ म वशवास, (6)
परोपकार, (7) कत य परायणता, (8) ईमानदार , (9) वन ता, (1०) म म न ठा, (11) याग
क भावना, (12) वन ता, (13) ेम, (14) दया, (15) सहानुभू त, (16) स ह णु ता (17) धैय
(18) मा, (19) दूसर का आदर, (20) त परता, (21) म ता, (22) दूसर का आदर करना,
(23) नभ कता, (24) वावल बन, (25) अनुषासन, (26) दे ष भि त।
कसी एक व यालय वातावरण क अनुकू लता / तकूलता के अनुपात म ह उस
व यालय क छा —छा ाओं म व थ मानवीय मू य का नमाण व वकास होता है। इस त य
परक स य क ओर य द आज का ष क वग यान दे तो इसम कोई स दे ह नह ं क नवपीढ़ के
छा —छा ाओं का अपे त यवहार प रवतन कर उ ह सं का रत कया जा सकता है। जो आज
क वशम सामािजक ि थ त म अ याव यक है।
212
कार के बताये गये ह। भारतीय च तन म मू य को दाश नक ि ट से लौ कक एवं
आ याि मक दो कार से वभािजत कया गया है — इसम काम, अथ, धम एवं मो आते ह।
मू यपरक श ा उस श ा को कहते ह जो व या थय म व थ ि टकोण, आ था
तथा संक प को वक सत करती है। यह धा मक श ा एवं नै तक श ा भ न क तु एक कृ त
होती है। पाँच मु ख मानवीय मू य स य, धम शाि त, ेम और अ हंसा के वकास पर बल दे ती
है। मू यपरक श ा क अनेक व धयाँ है। छोटे तर पर भाषण के थान पर सहगामी वृि तय
क सहायता से मू य का वकास करना उ तम रहता है। इसके लए व यालय का वातावरण
भावी होना चा हए। व भ न कार क व थ आदत का वकास हो सकेगा।
14.9 स दभ साम ी
1. Ruhela S.P.(Ed.),Human Values and Education,New Delhi,Sterling
Publishers,1989.
2. Ruhela S.P. “Education in Humjan Values”,: a ”Synotic View”
University News, July 13,1987, P.P.3—8.
3. Curriculum and Methodology for Intergrating Human Values in
Education (International Edition), Prasnthi Moyam Sri Sathya Sai
Bal Vikas Education Trust.
4. “National Symposium on Value Orientation in Hither Education”
University News, Oct.22, 1987.
5. Downay,M & Kelly,A.V.Moral Education : Theory and Practice,
London, Harper & Raw,1978.
6. Durkheim, E. Moral Education, New York, Fee Press of Clencoe,
1953.
7. ी स य साई बाबा, व या वा हनी। द ल , ी स य साई बु स ए ड पि लकेशन ट,
1984
213
8. Prashad Nayaran education for a New Life, Pondicherry, Shri
Aurobindo Asram1976.
9. Joshi, Kireet, An Outline Programme of Value Oriented Education
and Relevent Pedegogical Suggessions.
10. Sharma, S.K., सां कृ तक वरासत एवं श ा, बाल भवन, एं लो एकेडेमी, उदयपुर ,
2005.
214
इकाई—15
भारत म रा य एवं भावना मक एक करण और श ा
National and Emotional Integration in Indian and
Education
इकाई क संरचना (Outline of the Unit)
15.1 उ े य
15.2 रा य एक करण का अथ
15.3 भावा मक एक करण का अथ
15.4 श ा का अथ
15.5 रा य एवं भावा मक एक करण क आव यकता
15.6 रा य एवं भावा मक एक करण म बाधक त व
15.7 रा य एवं भावा मक एक करण हे तु व भ न स म तय के सु झाव
15.8 रा य एवं भावा मक एक करण और श ा
15.9 सारांश
15.10 ग त का व—मू यांकन
15.11 संदभ थ
15.1 उ े य (Objectives)
इस इकाई क स ाि त पर आपको इस यो य होना चा हए क :—
1. आप रा य एवं भावा मक एक करण के अथ के बारे म बता सक।
2. आप रा य एवं भावा मक एक करण को अतीत के संदभ म दे ख सक।
3. रा य एवं भावा मक एक करण क वशेष आव यकता य है? बता सक।
4. आप यह समझ सक क कस कार से श ा रा य एवं भावा मक एक करण के
वकास म सहायक होती है और सु यवि थत श ा के अभाव म रा य एवं भावा मक
एकता के वकास म बाधा पहु ंचती है।
5. आप रा य एवं भावा मक एक करण के संदभ म भारत म श ा स ब धी वांछनीय
प रवतन को गना सक।
6. आप व या थय म भ व य म रा य एवं भावा मक एक करण के त जाग कता
उ प न करने के लए उपाय बता सक।
7. आप म व भ न सां कृ तक जहां े ीय व भ नताओं स ब धी ि टकोण का वकास हो
सके और उनके त लाघा उ प न हो सके।
215
15.2 रा य एक करण का अथ (Meaning of National
Integration)
मानव क महानता उसके मान सक, चा र क, व आ याि मक गुण वारा होती है और
वृ का वैभव उसके पु प क सु गध
ं एवं माधु य तथा का ठ क उपयो गता पर नभर है। ठ क
इसी कार रा का गौरव एवं उसक महानता रा य एकता से पहचानी जा सकती है। अब न
यह उठता है क रा य एक करण या है?
रा य एकता स मेलन म पं. जवाहरलाल नेह ने रा य एकता को प ट करते हु ए
कहा था ' रा य एकता एक मनोवै ा नक और शै क या है िजसके वारा सभी लोग के
दल म एकता क भावना, समान नाग रकता का अनुभव और रा के त न ठा और ेम क
भावना को वक सत कया जाता है । '' ब
ू ेकर के अनुसार रा वाद एक ऐसा श द है जो
पुन थान काल और मु य प से ासीसी ाि त के बाद काम म आने लगा है। यह
सामा यतया दे श क अपे ा न ठा के एक यापक े क ओर संकेत करता है। रा वाद
थानगत स ब ध के अ त र त जा त, भाषा, इ तहास, सं कृ त और पर परा जैसे स ब ध के
मा यम से भी य त होता है। “रा य एक करण क इन प रभाषाओं से प ट हो जाता है क
रा यता क भावना से यि त म संक ण न ठाओं से ऊपर उठकर रा के त न ठावान
बनने क भावना आ जाती है। हमारे दे श म धम, जा त, भाषा, े , सं कृ त आ द सभी क
व वधता है। रा यता क भावना म इन व वधताओं क संक णता को नाग रक नह ं मानता”
इसम यि त रा य अपे ाओं व आव यकताओं को ाथ मकता दे ता है।
216
15.4 रा य एवं भावा मक एक करण क आव यकता (Need of
National and Emotional Integration)
हम य द अपने दे श क इ तहास को उठाकर दे ख तो रा य एवं भावा मक एक करण क
आव यकता वत: प ट हो जायेगी। हमने दे खा क हमारे दे श म एकता का अभाव रहा और
एकता के अभाव के कारण ह हम वदे शय से परािजत होते रहे। ाचीन एवं म यकाल म भारत
अनेक छोटे —छोटे रा य म वभािजत रहा और ये सभी रा य पर पर तो झगड़ा करते ह थे, साथ
ह वदे शी आ मणकार को भी अपने ह दे श म दूसरे रा य के व सहायता दे ते थे। इससे दे श
का बहु त पतन हु आ। इन सबके बावजू द भी भारत म भौगो लक व सां कृ तक एकता बनी रह ।
ले कन टश शासन काल म हमार रा य एवं भावा मक एकता को समा त करने का बहु त
यास कया गया य क अं ेज क ''फूट डालो और रा य करो'’ क नी त थी। उ ह ने हमम
व भ न संक णताओं को ज म दया। हम सभी म ह पर पर जा त, धम, सं कृ त, आ थक तर
आ द के आधार पर द वार खड़ी कर द । हमारे दे श का वभाजन अं ेज अ धका रय के ो साहन
एवं प पात के कारण हु आ। भारत म अ पसं यक म भय एवं शोषण क भावना भर द । इसका
आज भी असर व यमान है। वतं ता के बाद से अब तक के इ तहास का अ ययन कया जाये
तो प ट हो जायेगा क अनेक अवसर ऐसे आये है, जब क छोट सी बात को लेकर रा यता
एवं भावा मक एक करण का अभाव कट हु आ। 1962 के समय चीन के आकमण और 1965 व
1971 म पा क तान के आ मण के समय हमारे दे शवा सय ने रा य एवं भावा मक एकता का
अपूव उदाहरण तु त कया है।
अत: हमारे दे श क व भ नताओं को यान म रखते हु ए यह प ट हो जाता है क
दे श हत म यह रा य एवं भावा मक एकता क बहु त आव यकता है। जैसा क पं. जवाहर लाल
नेह ने कहा था '' क मेरे जीवन का मु य काय भारत का एक करण ह|''
217
15.5.1 जा त (Caste)
हमारे दे श क रा य एवं भावा मक एकता म सबसे बड़ी बाधा जा त है। हमारे यह कोई
भी कह ं रहे , वह जा त के संसार म ह रहता है। ह दू जैन, मु ि लम, सख, ईसाई आ द सभी
व भ न जा तय म बटे हु ए है। उ च जा त वाल म े ठता क भावना है। उ च व न न जा त
वाल म तनाव होता रहता है। राजनी तक दल जा तय म बंटे हु ए है। उ च जा त वाल म े ठता
क भावना है। उ च व न न जा त वाल म तनाव होता रहता है। राजनी तक दल जा तय के
संगठन का उपयोग चु नाव के समय करते ह। हमारे अनेक रा य म चु नाव के समय जातीय
त व दता बहु त जबरद त दखाई दे ती है। बहार म राजपू त, भू महार, व काय थ जा तय ,
त मलनाडू म ाहमण व गैर ाहमण, आक म रे डी व क मा, मैसू र म लंगायत व वो क लग
का संघष सव दे खने को मलता है।
218
हु आ। इसम यह कया गया क जब तक एक भी रा य चाहे गा, के म ह द के साथ—साथ
अं ेजी राज भाषा के प म रहे गी|
219
न थोपे,रा य वज एवं रा य गान के मह व व आदर क भावना का वकास कर और रा य
दवस को अ नवाय प से मनाय। श ा क नी तयाँ अ खल भारतीय तर पर लागू हो और
उनम सामािजक अ ययन एवं पा य म सहगामी याओं पर बहु त अ धक बल दया जाना
चा हए य क इनके मा यम से रा य एवं भावा मक एक करण लाने म सहायता मलेगी।
ाथना सभा म व या थय से रा हत क त ाएं नय मत प से करवाई जानी चा हए।
220
रा य एवं भावा मक एक करण था पत करने हे तु दये गये व भ न सु झाव के
बावजू द भी हमारे दे श क यह सम या य क य बनी हु ई है। इसका कारण यह है क इन
सु झाव के या वयन पर अ धक यान दया गया है।
222
(स) रा य एवं भावा मक एक करण धान पा य म होगा।
(द) पा य म—सहगामी वृि तयाँ श ा म नह ं रहगी।
2. रा य एवं भावा मक एक करण के अथ को प ट क िजये।
3. रा य एवं भावा मक एक करण म श ा क भू मका ल खये।
4. रा य एवं भावा मक एक करण हे तु व भ न स म तय ने या सु झाव दये है?
5. रा य एवं भावा मक एक करण के माग म मु य बाधाएँ या ह? सं ेप म लखे।
1. Out of following statement,which statements are true from
futuristics point of views of education?Tick the correct statement:
A. Inguage will not have specific importance in Indian
Education.
B. Religeous education will not have any importance in our
contry.
C. National and Emotional Integration based curriculum will
prevail.
D. There will be no co—curricular activities in education.
2. Explain the meaning of National and Emotional Integration.
3. Write down the role of National and Emotional Integration.
4. What suggestions are given by different committees for National
and Emotional Inregration?
5. What are themain problems in National and Emotional
Integration?Write in short.
223
इकाई 16
खु ला अ धगम समाज,उसक वशेषताएँ एवं खु ल अ धगम
णाल
Open Learning Society,its Features and Open
Learning System
इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)
16.1 इकाई शीषक (Unit Title)
16.2 अ धगम उ े य (Learning Objectives)
16.3 तावना (Introduction)
16.4 खु ला अ धगम समाज का उ गम/उ व (The Emergence of Open Learning
Society)
16.4.1 तकनीक एवं ान अथ यव था (Technology and knowledge economy)
16.4.2 वै वीकरण एवं ान अथ यव था (Globalization and Knowledge Economy)
16.4.3 रोजगार एवं नवीन मक बाजार (Employment and the new labour market)
16.4.4 खु ला अ धगम समाज म बदलते जीवन तमान (Changing life patterns in
Open Learning Society)
16.5 जीवन पय त अ धगम एवं अ धगम समाज (Life Long Learning and The
Learning Society)
16.5.1 अ धगम अव था— श ा नी त के वचार (Learning Age—Educational Policy
Issues)
16.5.2 अ धगम समाज — मु य वशेषताऐ (The Learning Society—Characteristics
Features)
16.6 खु ला अ धगम णाल (Open Learning Systems)
16.6.1 प रवतन को चु नौती— व व व यालय नवीनीकरण हे तु केस (Challenge of Change—
case for University Renewal)
16.6.2 शै क णाल म तकनीक भ व य के त ि ट (Vision of the Technological
Future in Educational System)
16.6.3 ि ट को वा त वकता म प रव तत करने हे तु पूव आव यकताएँ/पूवकां ा
(Prerequisites for Translating from Vision to Reality)
16.6.4 उ च श ा म अवसर एवं चु नौ तयॉ (Challenges and Opportunities for
higher Education)
224
16.7 ान युग का ज म — शै क स ा त एवं अ यास म प रवतन (Birth of
Knowledge Era—changes in Educational Theory and Practice)
16.8 न कष (Conclusion)
16.9 सारांश (Summary)
16.10 इकाई का मू यांकन (Evaluation of the Unit)
16.11 स दभ थ सू ची (References)
226
बहु त अ धक उपल ध होती ह ले कन मु य ब दु यह है क कस कार इन सू चनाओं का चयन
कर उनका ब धन कया जाए िजससे वो वयं तथा उपभो ताओं के लए अ धक मू यवान बन
सके। इसके लए मानवीय म क अपे ा बौ क कौशल क आव यकता होती है। साथ ह साथ
बौ क लचीलापन तथा थाना तरण यो य कौशल का सि म ण बहु त आव यक है।
तकनीक प रवतन का मु य भाव यह हु आ है क अथ यव था म अ धक कौशलयु त
यवसाय म वृ हु ई है। काम—कौशल वाले यवसाय म अवसर यूनतम हो गये ह। इस कारण
औ यो गक फम को लाभ अ धक होने लगा है।
Rich (1993) ने मक बाजार (Labour market) म आने वाले प रवतन को प ट
करते हु ए एक नये भावी सामािजक वग के बारे म बताया िजसका मु य यवसाय ान का
व नमय एवं ब धन करना है। इस वग को तका मक व लेषक कहा गया। वतमान
अथ यव था म उ प न न न तीन वग को लेकर रच ने च ता अ भ य त क है —
1. तका मक व लेशक (Symbolic Analyst)
2. सेवा वग (Service Class)
3. अि थर आ थक भू मका वाले य काय का बड़ा समू ह (A large group of people
with no stable economic role)
227
मानव शि त बहु तायत म है अत: एक नवीन यूह रचना को अपनाना आव यक है। इसक छ व
यारहवीं पंच वष य योजना म उ च एवं यावसा यक श ा को मह व दे ने से प ट हो जाती है।
रा य ान कमीशन ने भी अपनी रपोट म इसक आधारभू त संरचना (Infra Structure) म
वृ हे तु सु झाव तु त कए।
वै वीकरण एक सामािजक शि त भी है। कसी भी रा अथवा समु दाय के लए अपनी
पहचान और मू य को था पत करने का ाथ मक तर का श ा है। ीरे —धीरे स ेषण क
सु वधा वक सत हो गई।
दूररथा श ा एवं क यूटर वारा श ा का बहु त सार हो रहा है। अं ेजी भाषा क
श ा का चलन बढ़ा है|
229
16.5 जीवन पय त श ा एवं अ धगम समाज (Life Long
Learning and The Learning Society)
जीवन पय त श ा के स यय का उदय अमे रका म यूवी के इस कथन से “The
Melination to learn from itself and to make the condition of life such that
all will learn in the process of living in the finest product of schooling.” से
हु आ। इसका मु य भाव तब पड़ा जब UNESCO ने अपनी रपाट म इसे वीकार कया िजसे
डेलस रपोट के नाम से जाना जाता है। इस रपोट ने जीवन पय त श ा के स भा वत भाव
का दावा करते हु ए बताया क श ा सावभौ मक तथा जीवन पय त होनी चा हए िजससे न केवल
यि त आ थक वकास हे तु तैयार हो वरन ् वह भ व य के समाज के लए भी तैयार रह।
शोन (Schon, 1971) वारा तपा दत ''अ धगम समाज'' के नमाण को यान म
रखते हु ए जीवन पय त श ा क बात कह गयी।
रानसन (1998:2) ने अ धगम समाज को ऐसे समाज के प म प रभा षत कया जो—
स पूण तथा इसम होने वाले प रवतन के बारे म सीखे।
सीखने के तर के म प रवतन क आव यकता महसूस कर।
िजसके सभी सद य सीखने वाले ह ।
जो अ धगम क प रि थ तय म जातां क तर के से प रवतन लाना सीखे।
जीवन पय त श ा तथा अ धगम समाज कई दे श म चचा म है य य प उनक ग त व
समय म भ नता है। 1980 के म य म कई पा चा य दे श क अथ यव था म धीम आ थक
वकास के कारण सरकार क च जीवन पय त श ा म जागत हु ई। 1983 के ार भ म
कौशल म गरावट अनुभव क गयी िजससे शै क सु धार क आव यकता महसूस क गयी।
श ा म गुणवता हे तु न मत रा य कमीशन ने अपनी रपोट म तक दया क शै क सुधार
का मु य ल य अ धगम समाज का नमाण होना चा हए तथा श ा सावभौ मक एवं जीवन
पय त होनी चा हए।
1998 म UK सरकार ने ीन पेपर ''अ धगम अव था'' का शत कया। अ धगम
अव था का वा त वक अथ पर चचा एवं वाद— ववाद हु ए। वक सत रा म अ धगम आयु,
अ धगम समाज तथा जीवन पय त श ा आ द श द मी डया म बहु त सामा य ह। जहॉ सरकार
अपने काय को वहां के नाग रक के स दभ म पुनप रभा षत कर रह है वह इन श द का
उपयोग कया जाता है।
वतमान म पुराने समय क अपे ा ज टलताओं म काफ वृ हु ई है। अत: नई सद के
ार म म व—मू यांकन का मह व बढ़ गया है। हम वयं को प ट प से सीखने क अव था
म पाते ह वह बार—बार न उभरते है। जैसे यह क श ा या करती है या करे और श ा है
या? यह कसके लए है? इसके अ तगत या समा व ट कया जाए? श ा व कसके त
उ तरदायी है?
230
व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)
1. 1972 तथा 1996 क यू ने को क रपोट को भा वत करने वाल मु ख
वै ि वक घटनाओं को प ट क िजए।
2. जीवन पय त श ा से स बि धत मु यनी तय का वणन क िजए।
232
16.6 खु ल अ धगम णाल (Open Learning System)
वतमान समय म सीखते रहने क आव यकता के अनु प सतत ् सखते रहने के लए
वतमान श ा यव था अपया त सा बत हो रह है। दूर थ श ा का तर का वतमान व भ व य
क बढ़ती हु ई मांग व आव यकता पू त हे तु है। व ान व तकनीक ान मह वपूण ताकत सा बत
हो रहे ह। यह सफ आ थक वकास हे तु ह नह ं बि क मानव काय के हर े म आव यक है।
वक सत रा के बीच खाई पाटने हे तु दूर थ श ा (DE) क आव यकता है।
दूर थ श ा तीस साल पूव ार भ हु ई है और अपनी युवाव था म है। यह ए शया म ह
नह ं बि क पि चमी यूरोप संयु त रा य तथा कनाडा म वरदान स हो रह है। बहु मा यमी
श ा क रा य जापानी सं था वारा कए अ ययन के अनुसार ए शया ह नह ं वरन ् यू.के. एवं
अ का, ले टन अमे रका एवं तीसर दु नया म आजीवन श ा के लए दूर थ श ा को नर तर
रखना बहु त आव यक है।
य क उन रा म अपने वकास हे तु नयी तकनीक को शा मल कया है। व व तर य
तयो गता हे तु वक सत द ता तथा नये ान को पकड़ना आव यक है। उपरो त सम याओं के
समाधान एवं आ थक चु नौ तय का सामना करने हे तु वक सत उ च श ा के लए पूव म
था पत व व व यालय को वगत प चीस वष म नये कार के व व व यालय म प रव तत
कये गये ह ऐसे व व व यालय दूसरे व व व यालय के मु काबले बहु त कम लागत म श ण
काय होता है। ऐसे व व व यालय अपने व या थय को उनक सु वधानुसार— कहा व कब
अ ययन करना है इसके लए चयन करने क वतं ता दे ते ह।
वतमान अनुभव यह है क तकनीक ान एवं यि त के स ब ध म गुणा मक
प रवतन करता है। ान के भावी उपयोग के लए सामू हक य न क आव यकता रहती है।
जोन डे नयम के अनुसार उपरो त प रवतन का मु काबला करने के लए कम लागत तथा श ण
दे ने का भावी तर के क आव यकता है। अ ययन से ात होता है क वृत व अ नयोिजत लोग
को सुधारा मक श ण दे ने क अपे ा नौजवान को नयोजन के लए श ा व नपुणता का
ान दे ना यादा भावी है। उ च श ा अकेले व याथ को एवं सामू हक प से सभी
व या थय को लाभ दे ती है।
कई दे श म यह पाया गया क वहां क सरकार युवा के श ण व ाथ मक व
सैक डर श ण के सावभौ मक एवं भावी बनाने के लए सी मत लोक संसाधन पर का बहु त
यान दे ती है।
उपरो त पा लसी लोकताि क समाज एवं बाजार क अथ यव था हे तु उपयु त है। कई
व व व यालय ने ौढ़ यि तय क बढ़ती सं या के लए जीवनपय त श ण का वरोध नये
ो ाम व सेवाओं के लए कया है। ले कन पूण का लक श ण यव था नातक तर के
व या थय के लए पूववत चालू रहे गी। उनके अनुसार दूर थ श ा से सम त सम याओं का
समाधान स मवन नह ं है।
233
16.6.1 प रवतन क चु नौती— व व व यालय नवीनीकरण हे तु
केस (Challenge of Change—case for University
Renewal)
नई मले नयम के बदलते प रवेश म व व व यालय के लए वा त वक प रवतन क
आव यकता महसू स क गई। वगत हजार वष के वै ा नक, तकनीक एवं सामािजक प रवतन म
मु य सहयोगी रहे ह। तथा प वे प रवतन म असफल रहे है।
यह कहना सु र त है क जीवनपय त श ण क फैलती सं कृ त युवाओं के अ नवाय
श ण के बाद ि टकोण म प रवतन लायेगी। य द अ ययन एवं काय दोन जीवन भर साथ—
साथ रह तो य नह ं ार भ म ह साथ—साथ कये जाव ता क पाट टाइम ड ी भी ले सक व
काम भी मल सके। वतमान समय म रोजगार ा त करना क ठन है ब न पत ड याँ लेने के।
रोजगार के लए अनुभव का भी होना ज र है। अत: नौजवान के लए ड ी एवं काय का
गठजोड़ आव यक है। व व व यालय को नवीनीकृ त करने का उ े य लोग को जीवन पय त
श ण के अवसर उपल ध कराना है।
कई व व व यालय ने अपने सह अथ म तकनीक का योग कर लागत व पहु ंच क
चु नौ तय का सामना कया है। बड़े—बड़े व व व यालय ने दूर थ श ा से लाख व या थय को
सेवा दे कर सफलता ा त करती है।
235
ले कन तकनीक आधा रत ड लवर णाल से इस नी त के या वयन म बाधा उ प न होगी।
सरकार वारा नवीन नी त नधारण से व व व यालय के सम कोश एवं नयमन से स बि धत
सम या उ प न हो जाएगी।
तकनीक आधा रत श ण वारा नयी शै क णाल का सृजन होगा जो भौगो लक एवं
अ धका रक बाधाओं को पार कर शै क एवं वा त वक जगत म सम वय कर सकेगा। इससे
व या थय को व तृत एवं सु वधाजनक चयन म आसानी होगी।
236
चु नौ तय का सामना करने के स ब ध म हमार क ा—क यव था बहु त अपया त है
इस लए साव भो मक श ा, सतत तथा शै क अवसरो क समानता का सम य सव सु नाई
दे ता है
ार भ म श ा ब च एवं वय क को सा र बनाने के उ े य से द जाती थी ले कन
अब वै ा नक आ व कार यि तय को इस ब दु के लए जाग क कर रहे ह क वे अपनी श ा
एवं श ण व यालय एवं व व व यालय के बाद भी जार रख। अ म श ण, सेवारत
श ण, सतत श ा एवं कई अ य समान यय का उ व हो रहा है। हॉल (Houle 1961) ने
बताया क वय क व— नद शत अ धगमक होते ह। ान म इतनी ती ता से होने वाले प रवतन
के अनु प श ा के सभी तर म भी प रवतन आव यक है।
केट et al, (1973) ने सु झाव दया क श ा औ योगीकरण का मु य ब दु है।
उपयु त व णत े म तमान थाना तरण न न कार से हु आ।
1. बा याव था एवं वय क अव था से जीवन पय त श ा।
2. अ यापक केि त श ा के थान पर छा केि त श ा।
3. शा ीय पा यचया से व च (Romantic) पा यचया से काय म।
4. ान का प रवतनीय तर (The Changing Status of Knowledge)
5. मृ त अ धगम से अनुभव आधा रत व त छाया अ धगम (from rote learning to
learning as experiemental and Reflection)
6. आमने—सामने से दूर तक (From face to face to distance)
7. कु छ से बहु त तक (From few to the many)
8. वतं वचार से यवसाय पर बल (From emphasis on the libral to the
vocational)
9. सै ाि तक से ायो गक (From theoretical to practical)
10. समि वत शान हे तु एक वषयी से अ त वषयी, अ त वषयी से ान का सम वय (From
Single discipline to multidisciplinary to integrated knowledge).
11. क याण क आव यकता से बाजार क माँग तक (From welfare needs to
market demands)
12. श ा एवं श ण से अ धगम क ओर (From Education and Training to
learning)
237
16.8 न कष (Conclusion)
यि त ान ा त करना चाहता है, अ धगम साम ी क पहु ंच व व यापी हो गयी है।
येक यि त वयं के सीखने क ग त तथा उपल ध समय के अनुसार वयं के प रवेश के
अनु प सीख सकता है। यह अ धगम आयु का ार भ है।
पूरे व व म वशेषतया औ यो गक समाज म अमू य श त होते ह और मु त
बाजार अथ यव था (Free Market Economy) के कारण अ धकांश दे श यह महसू स करते ह
क उ च श ा, सामा य दर पर उपल ध होनी चा हए िजससे सव साधारण भी ऐसी श ा ा त
कर सक।
इसके लए यह आव यक है क श ण दाता अ धगम हे तु एक नवीन रा ता तलाश
कर। श ा वद को इस कार क योजना बनानी चा हए िजससे सामु दा यक यव था
(Community Setting) एवं काय थल पर अ धगम म सम वय कया जा सके।
उपयु त उ े य व समय क मांग क पू त हे तु दूर थ श ा का उ व हु आ िजससे बहु त
अ धक सं या म लोग के श ण एवं श ण क यव था हो सक ।
238
इकाई—17
श ा और भ व य का भारतीय समाज
(Education and the future of the Indian Society)
इकाई क परे खा (Outline of the Unit)
17.0 उ े य और ल य
17.1 भ व यशा
17.2 भ व य के त संवेदनशीलता वक सत करने का मह व
17.3 भ व य चेतना कैसे वक सत कर?
17.4 भ व य चेतना वक सत करने म श ा क भू मका
17.5 भ व य का भारतीय समाज कैसा होगा?
17.6 भ व य क भारतीय श ा सं थाएँ कैसी ह ?
17.7 भ व य के भारतीय श क कैसे ह ?
17.8 भव य म या नए, शै क प रवतन आव यक ह गे?
17.9 सारांश
17.10 मू ल श द और स यय
17.11 ग त का मू यांकन
17.12 संदभ सा ह य
239
भ व यशा के मु ख आराि भक वचारक म हम अमे रका के एल वन टोफलर (Alvin
Toffler) ड यू.एल. जैगलर (W.L.Zeigler), डी.बैल (F.Bell), ब ल रोजास (Billy Rojas),
ू फक लन (H.Bruce Franklin), आथर सी. लाक (Arthur C.Clarks), पोलक
एच. स ेड
(Polak Fred) आ द अनेक मह वपूण व वान के नाम का उ लेख कर सकते ह।
इन सब म ए लन टोफलर सबसे अ धक भावशाल व बहु च चत वचारक और लेखक ह।
उनक न न पु तक है जो भ व य क बात करती है —
(i) Future Shock (1970)
(ii) Learning for Tomarrow (1974)
(iii) The Third Wave (1980)
(iv) Power Shift
आपक पहल पु तक “Future Shock” ने संसार भर के लोग के मि त क को
झकझोर दया है। उ ह ने यह बतलाया है क भ व य म ऐसे अ या शत औ यो गक, सामािजक
तथा सां कृ तक प रवतन बहु त तेजी से होने जा रहे ह। िजनसे उन लोग को जो उनके लए
पहले से मनोवै ा नक प से तैयार नह ं ह गे ग भीर झटका लगेगा।
टोर टे न हयुसेन (Torsten Husen) जो को डने वया के एक मु ख श ा वद ह, ने
एक बहु त मह वपूण तवेदन “Education in the year 2000” (1971) म तैयार कया था।
उनक गणना भी मु ख वदे शी भ व यशाि यो म होती है।
भारत म एस.सी.सेठ (S.C.Seth), ो.जे.एन.कपूर (J.N.Kapur), ो. लेमकोम
ै ा (Malcom Adisheshiah) आ द
आ दशैषय मु ख भ व यशा ी ह।
इन वदे शी तथा भारतीय व वान के अ त र त आज व भ न ान— व ान म असं य
व वान भ व यशा के आदोलन म सि म लत हो रहे ह।
इस नये े को बडल बैल (Wendell Bell) ने इन श द म भल —भां त प रभा षत
कया है—
भ व यशा क प रभाषा (Definition of the Futurology)
''भ व यशा का मु ख के द ब दु न तो केवल मा वणन करना है और न या या
करना है, और न यह मूलत: भ व यवाणी करना ह है। यह नव—प रवतन और माग दशन है।
इसके अ तगत मू य और ल य क या या और मू याकंन, ग त व धय का ववरण, वक प,
भ व य के बारे म ि ट तथा अ नभरताओं के वतमान म का ववरण आता है।''
भ व यशा एक अ त वषयी अ ययन े है। य य प इसे समाजशा का एक
उप वषय माना जाता है तथा प इसका संबध
ं इ तहास, अथशा , राजनी त, भू गोल, पयावरण
व ान अ य सामािजक व ाकृ तक व ान , ौ यो गक और श ा से भी है। मानव जीवन के
भ व य से संबं धत होने के कारण जीवन के येक पहलू म इसक च होती है।
यहां न खड़ा होता है. कस कार क भ व य म भ व यशाि य क च होती है?
(B) भ व य के कार (Types of Future)
भ व य तीन कार के हो सकते ह :—
240
1. संभा वत भ व य : ऐसे भ व य होते ह जो घ टत हो सकते ह पर तु ऐसा होना कोई
आव यक नह ं है। हमार बहु त सी क पनाएं इस ेणी के भ व य म आयेगी ।
2. नि चततापूण संभा वत भ व य : ये ऐसे भ व य होते ह िजनके घ टत होने क क हं
तकपूण आधार पर बहु त कु छ संभावना क जा सकती है । ऐसे भ व य ब कु ल
नराधार या बना सर—पैर क क पनाओं पर आधा रत नह ं होते ।
3. पस द कये गए भ व य : ये ऐसे भ व य होते ह िज ह हम पस द करते ह, िजनको
साकार बनाने के लए हम न केवल बहु त लाला यत होते ह अ पतु बहु त कु छ यास भी
करने को तैयार होना चाहते ह।
भ व यशा न केवल वषय—व तु पर बल दे ता है बि क उससे भी अ धक भ व य के
त झु काव, झान या ि टकोण रखने व भ व य के त चेतनता या सजगता वक सत करने
पर बल दे ता है । भ व यशा पस द कये हु ए ''भ व य (Preferred future) म अ धक
दलच पी रखता है ।
ब ल रोजास का यह कथन पूणत: स य और हम सबके लये वचारणीय है —
“भ व य वत: ह घ टत नह ं हो जाता, हम इसे बनाते ह और हम इसका उपयोग कर
सकते ह । यह अनुभू त क हम भ व य को पहले से ह दे ख सकते ह तथा हम आने वाले कल
के मू य , प रवार क संरचनाओं, ौ यो ग कय , नगर या पाठशाला के व प क साथक पूव
क पना कर सकते ह, का अथ यह है क भ व य एक सीखने क साम ी (Lrarning
Resourse) है ।“
वा तव म हम सबको अब यह महसू स करने क बड़ी जबरद त ज रत है क हम यह
सोचना आर भ कर क भ व य म या— या वक प (Alternatives) हो सकते ह, उनम से
कौन से हम चु नने ह तथा कैसे भ व य के अ या शत झटके (Future Shock) से हम अपनी
आगामी पी ढ़य और समाज को बचाना है ।
व— मू यांकन न 1
1. बतलाइये इनम से कौन कौन से कथन आपके वचारानुसार भारत क अभीि सत भ व य
(Preferred Future) को इं गत करने वाले है ।
241
(1). भारत कृ ष धान दे श नह ं रह पायेगा, यह तो ाय: औ यो गक समाज ह बनकर
रहे गा।........................
(2). भारत म युवक—युव तय को डेनमाक और के डने वया जैसे दे श क भां त पूण यौन
स ब ध म वतं ता होगी ।..........................
(3). भ व य के भारत म पर परागत मू य तथा नये मू य का एक सह मेल दे खने म
आयेगा ।............................
(4). भ व य के भारत म सती था, क यावध, ि य के त दमनकार भावना का
नामो नशान तक नह ं होगा । ..................................................
(5). भ व य के भारत म वह सब कु छ नह ं होगा जो आज क कु ि सत राजनी त म हो रहा
है— टाचार, वोट का खर दना, जा तवाद व धम के आधार पर चु नाव जीतना, मानव
मू य क ह या आ द ।...............................
2. भ व यशा का मू लभूत झु काव कस ओर ह?
242
4. अ यंत दुत ग त से होने वाले वै ा नक, यां क व सामािजक प रवतन के कारण आज
मानव जीवन म अ था य व अथवा नरथकता (Transience), पृथक व अथवा वलगाव
(Alienation) तथा उपभोग कर और फक दो' (Throw Away) मनोवृ त वक सत हो
रह है । कोई भी संबध
ं , व तु या यि त इस ती ग त से चलने वाले वतमान म (जो
क भ व य को बना रहा है आज हमारे लये थायी लगाव क व तु नह ं रह गया है ।
भ व य म इन वृ तय क गंभीरता और भी भयंकर प से बढ़े गी ।
5. भ व य क अजीब—अजीब कार क सं थाओं, समू ह , उप—समू ह , आचरण के प म
दे खेने म आयगे। आज का वतमान भ व य का गंभीर प से पूवानुमान कर रहा है ।
ववाह, प रवार, श ा, यवसाय, नै तकता, राजनी त, सं कृ त आ द सभी े म हम
अनजाने म मनचाहे ग भीर ध के या झटके लगगे ह य द हमने अभी से उनके लए
वयं को तैयार नह ं कया । भारत म हम अभी तक वतमान युग क सम याओं गर बी,
सा दा यकता, राजनी तक धांध लय , नर रता आ द को भी नह ं हल कर पाये । आगे
या और कैसे करगे? यह तो अभी तक हमने ग भीरतापूवक सोचा नह ं ह ।
6. न केवल नयी वै ा नक व ौ यो गक खोज हमारे जीवन को बहु त दुतग त तथा
मनोवै ा नक प से असुर त बना दगी, बि क नयी—नयी सामािजक खोज और
अजीब—अजीब सामािजक सम याएँ हमारे जीवन म ग भीर वघटन उ प न कर दगी ।
अभी से ह परखनल म शशुओं के ज म कराये पर लए हु ए गभाशय म ू ण का
वकास व शशु का ज म, महान ् तभावान ् लोग के वीय के बक थापन तथा उनसे
उ तम न ल उ प न करने, क यूटर व प —प काओं म व ापन क सहायता से कु छ
वष के लए ब चे गोद लेन,े सम लंगीय ववाह आ द क चचाय जोर पकड़ने लगी ह,
तो भ व य म या— या हो सकता है और उनके या— या अ छे व बुरे प रणाम नकल
सकते ह, यह अभी से सोचना ज र है ।
7. भ व य म मानव मू य म भयंकर व वधताये और टकराहट आकर रहगी।भ व य के
मानव क जीवन शैल आज जैसी न हो कर बहु त व वधता, ज टलता तथा ग भीरता
होगी ।
8. टौफलर अपनी तीसर पु तक ''TheThird Wave'' म यह ग भीर संभावना बताता है
क भ व य म घर' “इले ो नक कॉटे ज” (Electronic cottages) ह गे और अ धकांश
लोग द तर या काम के थान पर जाने के थान पर घर पर ह रह कर, व युत यं
वारा अपने द तर , अ य कायालय , के , पु तकालय , सं थाओं, यि तय से स पक
बनाते हु ए, अपनी जीवन सा थय के साथ मलकर अपना काम करते ह गे ।
9. ती प रवतन तथा असं य कार के दुतग त वाले उपकरण से प रपूण भ व य म
टौफलर के अनुसार मानव क पस द म जबरद त प रवतन आकर रहे गा । उदाहरणाथ
भ व य का प त ऐसी प नी चाहे गा जो न केवल सु दर हो अ पतु जो मान सक प से
बहु त सजग, बहु त श त, बहु त प र मी, क यूटर चलाने म जादुई द ता रखने वाल
ऊंग लय वाल व अ या य गुण से यु त हो । हो सकता है, भ व य का प त यह ेम
गीत गाये
243
''I love your eyes, your cherry lips, the love that always lingers,
your ways with words and random blips, skilled computer figures''
प ट है, इस कार क असं य व च ताओं, संभावनाओं, ज टलताओं और ग भीरताओं
से भरे अनजान भ व य म य द हम अपना व अपनी भावी संत त का मान सक व सां कृ तक
संतु लन नह ं खोने दे ना चाहते तो हम अभी से ग भीरतापूवक सोचना होगा क हम कैसा भ व य
चाहते ह, उसे साकार करने के लए हम अभी से या— या काय और प रवतन कर, िजससे हम
भ व य क भयंकर प ाओं और असु र ाओं के युग म संतल
ु न के साथ जी सक ।
न कष यह नकलता है क हम सभी लोग म, वशेषकर नई पीढ़ म अ वल ब भ व य
चेतना (Future Consciousness) जा त करनी ह होगी।
244
17.4 भ व य चेतना उ प न करने म श ा क भू मका (Role of
Education in Development of Future Consciousness)
भ व य के त सह कार क चेतना अथवा झान उ प न करने म श ा सं थाओं क
बहु त मह वपूण भू मका होनी चा हए ।
यह इस लये आव यक है क
1. अ धकांश प रवार म ( वशेषकर भारत जैसे अ धकतर अ श त व वकासशील दे श म)
माता— पता को न तो इतना खाल समय ह होता है और न उनम इतनी श ा, ान
और भ व य के त िज ासा और चेतना ह होती है क वे अपनी संतान म भ व य
चेतना को ो सा हत कर सक । य द उनम से कु छ करते भी ह (जैसा क कु छ म यम
वग के माता— पता करते ह) तो वे अपने बालक म भ व य के त भय, ह न—भावना
तथा अ त— य त व अ व थ कार के भाव उ प न कर दे ते है।
2. समाज क अ य सं थाएं तथा अ य काय थल, यापा रक व औ यो गक के अत
आधु नक बनने का यास भले ह करते ह पर तु उनम न तो यह ई छा ह पायी जाती
है और न यह मता ह होती है क वे जनता म भ व य के त सह चेतना उ प न
कर सक।
श ा सं थाओं का काम ह यह है क वे व या थय म सह कार का ान, सह कार
के मू य, सह कार क कु शलताऐ सह स मान तथा सह कार का च तन उ प न
कर । श ा सं थाएँ व या थय का सामाजीकरण, श ण, यि त व नमाण, च र
नमाण, तथा प रवतन व प रमाजन करती है अत: उ ह भी भ व य चेतना जागृत करने
का उ तरदा य व नभाना उ चत ह नह ं अ पतु आव यक भी है । ऐसा काय वे
न नां कत कार से कर सकती ह —
1. य श ण (Direct Teaching) वारा भी श क व व ता अपनी क ाओं म
व या थय को भ व य क व वध कार क स भावनाओं के बारे म, तथा व व के
अ त—आधु नक समाज म हो रहे दुतगामी तथा व च तापूण प रवतन व उनके
सामािजक प रणाम के बारे म ठोस जानकार , ऑकड़े, च तु तीकरण तथा उस पर
अपने मत दे सकते ह ।
2.भ व य स ब धी खेल (Future Related Game) वारा व वध कार क
का प नक प रि थ तय के वक प को सोचने जैसे, घटनाओं क संभावनाओं
स ब धी च तन के अ यास तथा मौनोपोल (Monopoly), सॉप—सीढ़ , चाइनीज
चैकर, यापार जैसे खेल वारा व या थय म भ व य चेतना का चुर मा ा म
भावषाल ढं ग से वकास कया जा सकता है । ब ल रोजास जैसे भ व यशा ी के
वारा सु झाये गए भ व य स ब धी खेल इस कार के हो सकते है ।
भ व य चेतना वकास हे तु कु छ खेल (Few Games for Development of Future
Consciousness)
1. सन ् 2020 म का शत होने वाल आपक पाठशाला क वा षक प का कैसी होगी?
(1). उसका कवर पृ ठ कैसा होगा?
245
(2). उसका या शीषक होगा?
(3). उसम कैसे—कैसे लेख, क वता आ द ह गे?
(4). उसका कौन स पादन करे गा?
(5). उसक या— या अ य वशेषताएँ ह गी जो आजकल क शाला प का से भ न
ह गी ।
2. सन ् 2000 म अंत र म या— या हो सकता है
1.अपराध
2. नमाणकाय
3.अ य प रवतन
3. सन ् 2020 म भारत म सबसे अ धक बकने वाल दस पु तक के नाम या ह गे?
4. सन ् 2010 म एक भारतीय का पा रवा रक जीवन कैसा होगा? तब हमारे समाज म एक
गभवती कुँ वार क या के साथ उसके माता— पता, भाई व अ य र तेदार कैसा यवहार
करगे? क पना करके बताय ।
5. न नां कत वषो म आपके जीवन म या— या मह वपूण घटनाय ह गी — 2010, 2025,
2050
6. श क व ान क एक का प नक कहानी (Science—fiction) का पहला अनु छे द
(पेरे ाफ) यामप पर लख। क ा के सभी व या थय से कह क वे अपनी—अपनी
क पना के आधार पर उसके आगे एक या दो अनु छे द लख कर उस कहानी को पूरा
कर ।
7. भ व य को 10 वष म ख म हो जाने वाले यवसाय (रोजगार) के नाम लख ।
8. सन ् 2020 म भारतीय समाज क पाँच मु ख सामािजक कु र तयाँ या ह गी? उनको दूर
करने के लए कैसे—कैसे सामािजक कानून बनाने पड़ सकते ह?
9. सन ् 2021 म भारतीय राजनै तक यव था क या— या नयी वशेषताएँ ह गी?
10. अगले दस वष म ऐसी या नयी खोज / आ व कार हो सकते ह ( क ह पाँच क
क पना करे ) िजनसे हमार श ा णाल बहु त कु छ बदल सकती है ।
3. भ व य से संबं धत पा ये तर याओं का आयोजन (Organization Co—curricular
Activities Related to Future) पाठशालाओं, कॉलेज तथा व व व यालय म
“ यूचर क सल”,” यूचर लब”, “ यूचरोलोजी ऐसा सयेशन” आ द संग ठत कये जा
सकते ह िजनम नर तर भ व य संबध
ं ी कसी वषय पर भाषण, चचा, गो ठ ' सेमीनार,
फ म—शो, लाइड—शो, नाटक, ामा, रोल— ले आ द आयोिजत कये जा सकते ह ।
भ व य के त जागृत करने के लए च व काटू न क दश नयॉ लगायी जा सकती ह
। जनसाधारण को भी इन या—कलाप के मा यम से भ व य चेतना के वकास म
लाभाि वत कया जा सकता है ।
4. पा य म म भ व यो मुखता वक सत करना (Future orientation of
Curriculum) अब यह नतांत आव यक हो गया है क पाठशालाओं और उ च श ा
सं थाओं के सभी कार के पा यकम म चाहे वे ाकृ तक व ान के पा यकम ह या
सामािजक व ान के, अ वल ब आधु नीक करण कया जाये ता क उनके भ व य क
246
सम याओं के त सजगता प रल त हो । घसे— पटे , संकु चत व गले—सड़े पा यकम
से कैसे हम लोग नई पी ढ़य का भ व य बना सकते ह? यह न सभी श क को
अपने से और आप को भी वयं से पूछना होगा ।
वमू यां क न — 2
अब तक आप या समझे ? आप इसका वं य मू यां क न न नां कत अ यास नो दवारा
कर ल िजये
1. क ा आठ के बालक के लए दो भ व य चे त ना े र क खे ल बनाइये ।
(1)
(2)
2. भ व य के त चे त ना को वक सत करने के लए तीन सबसे मह वपू ण तक
तु त क िजये
(1)
(2)
(3)
247
भी हमारा समाज आज पर परा और आधु नकता, तक और अंध व वास, धम नरपे ता और
धमा धता, समृ और बेकार , उ च आदश और कु ि सत यवहार णा लय व टाचार के
वरोधाभास म उलझा हु आ है
ऐसे भारतीय समाज का भ व य 10— 15 या 20 वष म अचानक नह ं बदल सकता ।
ये ग भीर सामािजक, सां कृ तक, आ थक और राजनै तक सम याएँ और अ धक उ होकर हमारे
भ व य को हमारे वतमान से कह ं अ धक दु:खपूण , वकट और असहनीय बना सकती ह। वदे श
क भ व य क खोज , उनके अ छे और बुरे सामािजक भाव ( वशेषकर बुरे भाव ) तथा भ व य
क अ या शत घटनाओं जैसे यु , ाकृ तक वपदाओं आ द से भारतीय समाज के भ व य का
व प और भी ज टल, वषम और क ट द हो सकता है। समाज वै ा नक का च तन तो यह
संकेत दे रहा है। दूसर ओर ऐसे अनेक वचारक भी ह जो भारत म राम रा य के शी लौट
आने, दूध—घी क न दयाँ पुन : बहने तथा भारत वारा व व को नै तक, आ याि मकता, शां त,
व व—बंधु व के पाठ पढ़ाने वाले धम गु बनने क आशाएँ कर रहे ह । कु छ वै ा नक यह
सोचते ह क भारत म व ान व ौ यो गक क वदे श जैसे जबरद त ग त होगी और हम
गर बी, बेकार , सां कृ तक पछड़ाव आ द सम याओं का 8— 10 वष म ह सदै व के लए हल
लगे। आ दशेषय
ै ा जैसे अथशा ी व भ व यशा ी इसके वपर त यह अनुमान लगा रहे ह क
21वीं शता द के भारत म भी मू ल प से कृ ष— धान अथतं ह होगा और जनसं या का भयंकर
व फोट हमारे समाज को बहु त परे शानी क आ थक प रि थ तय म झ क दे गा। बढ़ती हु ई
मंहगाई, कालाधन वग—भेद, शोषण स भवत: नकट भ व य म तो समा त नह ं हो पायगे।
इतनी सार स भावनाऐ ह हमारे समाज के भावी व प के बारे म। अत: हम कैसा
भ व य चु नना है अथवा बनाना है, उसके बारे म अब ग भीरता से समाज के येक यि त को
सोचना आव यक है और उसके लए उपयु त तैयार शु करनी है।
न केवल राजनी त , आयोजक व शासक का इस दशा म ग भीर प से सोचना
आव यक है अ पतु सभी तर क श ा से स ब सभी कायकताओं को अब इस दशा म तु र त
सोचना व काय करना आव यक हो गया है। वतमान शता द के जो थोड़े से वष अब बचे ह
उनका एक—एक दन, एक—एक पल इस कार के च तन व तैयार म यय कया जाना चा हए,
उनको बबाद होने दे ना भावी भारतीय समाज के त कया गया ग भीर अपराध ह माना
जायेगा।
248
जब तक श ा का यह वतमान ा प (मॉडल) िजसे “ब कं ग मॉडल ऑफ एजुकेशन (Banking
Model of Education) कहा गया है, नह ं बदला जाता है और उसके थान पर आ मा को
झकझोर दे ने वाल तथा अपनी लड़ाई वयं लड़ने क साम य उ प न करने वाल श ा का तथा
आ मा को सश त बनाने वाला श ा का मॉडल (Conscientization Model of
Education), िजसे मैि सको के सु स दे शभ त व श ाशा ी पावलो फेरे (Paole Friere)
ने अपनी बहु च चत पु तक (Education of Oppressed (1973) म तु त कया है, नह ं
अमल म लाया जाता, भारतीय समाज का शोषण और अ य सम याओं का अ त नह ं हो पायेगा।
आज स पूण व व म यह वीकार कया जा रहा है क बजाय सखाने—पढ़ाने
(Teaching) पर ह जोर दे ने के, आव यकता इस बात क है क हर कह ं सीखने का वातावरण
(Learning—Enviroment) तैयार कया जाये। िजसम सीखने वाला वयं व भ न ेरणाओं से
े रत होते हु ए तथा व वध ाकार के ान के अवसर तु त करने वाल सं थाओं, स म तय व
औपचा रक व अनौचा रक यव थाओं का लाभ उठाते हु ए अपने ल य क ओर अपनी ग त से
बढता जाये |
व वभर म जो महान ् आ चयजनक वै ा नक ौ यो गक वकास हो रहे ह उनक
चु नौ तयाँ भी भारतीय श ा को वीकार करनी है। पधा के इस युग म भ व य के भारत क
श ा को अ यंत उ च को ट का बनना ह पड़ेगा। वरना हम दु नया के ग तशील दे श से काफ
पीछे रह जायगे। य द हमने अपनी श ा सं थाओं को आगामी 5—7 वष म ह बहु त कया मक
भावी चेतना और तकपूण सोच— वचार के आधार पर नह ं सु धारा, तो भार का भ व य नःस दे ह
भयंकर प से धू मल हो सकता है।
इस कार क चु नौ तय का सफलतापूवक सामना करने वाल श ा दान करने वाल
सं थाओं का व प न नानुसार बनाना होगा
1. बहु त भार वशाल पैमाने पर टे ल वजन, वी डयो तथा रे डयो का उपयोग करते हु ए हम
सभी आयु वग व े के लोग को श त करना होगा ।
2. वतमान श ा सं थाओं को चौबीस घंट , पा रय म चलाकर, हम उनके भवन व साधन
का पूणतया उपयोग श ा सार के लए करना होगा ।
3. वभ न थान पर पर परागत कार के कू ल कॉलेज खोलते रहने क अपे ा, हम
सीखने के जाल (Learning webs) न मत करने ह गे ।
4. वभ न कार क सं थाओं, पु तकालय , अजायबघर , रोजगार के. कायालय , जन
सारण के के , कल—कारखान के म य घ न ठ स पक बनाना होगा । अनौपचा रक
श ा (Non—formal Education) क यव थाओं से खु ले व व व यालय , प ाचार
पा य म , ौढ़ श ा के को बहु त व तृत पैमाने पर बढ़ाना होगा।
5. श ा सं थाओं के योग , नवाचार (Innovations) तथा नये वचार के पर ण क
योगशालाएँ बनानी होगी।
249
17.7 भावी भारतीय श क (Indian Teacher in Future)
भ व य के भारतीय श क को आजकल के सामा य श क क तु लना म बहु त अ धक
प रव तत और नये कार का होना आव यक होगा, अ यथा वे भावी समाज म नेत ृ व नह ं कर
पायगे ।
भ व य का सफल भारतीय श क ऐसी वशेषताओं से स प न होगा :—
1. जो साथक पर परागत मू य और आव यक नये मू य का सह स तु लन अपने
यि त व म रखता हो।
2. वह न केवल अपने वषय म अ पतु व भ न वषय म उ कृ ट तर का पां ड य रखता
हो।
3. वह व भ न कार क यावहा रक कु शलताओं म द हो।
4. वह सामािजक प रवतन, सामािजक सुधार तथा भ व य के वषय म सश त सामािजक
दाश नक सै ाि तक आ था रखता हो।
5. वह ानाजन व ान दान करने क व भ न व धय व नई कु शलताओं म द ता
रखता हो ।
6. जो वषय साम ी को रखने—रखाने के थान पर न य हो रहे ान के व फोट म
उपयु त साम ी का चयन करना जानता हो।
7. जो पा य म के नमाण, टे ल वजन व रे डयो के पाठ के नमाण व अ य श ण
उपकरण के योग म द हो।
8. जो अ धकारवाद या नरं कु श यि त व वाला श क होने के थान पर स दय
ेरणादायक, जनत ीय श क हो।
9. जो व भ न कार क सं थाओं, समूह व स म तय से उ तम तालमेल रख सकता हो ।
10. जो आ मा को झकझोर दे ने वाल श ा को यथाथता और पूण आ था के साथ दान
कर सके ।
250
2. पावल फेरे के सश त ाि तकार वचार से उ प न आ मा को झकझोर दे ने वाल
श ा का ा प भारत म यथाशी लागू कया जाये।
3. भारतीय श ा जगत क वतमान कमजो रय — टाचार, भाई—भतीजावाद, लापरवाह ,
कत य युतता, दलब द , घ टयापन तु र त समा त कये जाय ।
4. नजी और कई सहायता ा त सं थाओं म जो आ थक शोषण श क व व या थय का
आज हो रहा है उसे समा त कया जाये ।
5. सभी तर के पा यकम म नवीनता व भ व यो मुख ता को लाया जाये ।
6. श ण व धय व श ा के उपकरण म सु धार व नयापन लाया जाये ।
7. श ा के तर को ऊँचा उठाने के लए श ा—सं थाओं, श क के काय तथा
व या थय क ग त का एक सह व कठोर मू यांकन समय—समय पर हो।
8. पर ा णाल के दोष को पछले 40 वष से दोहराया जाता है पर तु उसे न तो
साहसपूवक समा त ह कया जाता है और न सु धारा ह जाता है। 21वीं शता द म भी
य द बोड और व व व यालय क पर ाओं म नकलबाजी, धांधल पूवक उ तर—
पुि तकाओं का मू यांकन, तृतीय ेणी व असफल छा के अनुपात क अ धकता,
पर क क नयुि तय म राग— वेष आ द चलता रहे गा तो फर हमार भ व य क
श ा भी चौपट ह हो जायेगी। तु र त अभी से हम इस दशा म ठोस कदम उठाने ह गे।
9. भ व य क श ा को सभी वग , आयु समू ह , लंग , े के लए काय करना है । अत:
वह बहु त व वधता वाल व भावशाल हो । हमारे पा यकम म व वधता व उपयो गता
के त व का बहु त अ धक वकास करना होगा।
10. भ व य क श ा को मू लत: सह कार के मू य क श ा होना आव यक है । इसके
लए समु चत यवि थत ढं ग से वशाल पैमाने पर यव थाएं करनी ह गी।
आप इस वषय म सो चये । ग भीर चंतन क िजये, अपने सा थय से वचार— वमश
क िजये तथा यह तकपूण नणय क िजये क भ व य के भारतीय समाज म कैसी श ा
यव थाओं का होना आव यक होगा ।
251
या— या मांगे ह और पूण करने के लये हम नकट भ व य म ह या— या सुध र हु ई व नयी
श ा— यव थाएँ लानी ह गी?
17.10 मू ल श द और स यय
1. Futurology भ व यशा : एक अ तर—अनुशासनीय अ ययन—जो कृ त, कला और
व ान दोन ह भ व य का अ ययन।
2. Futuristic भ व य का अ ययन Futurology का पयायवाची व अ य त च लत
श द।
3. Future Consciousne : भ व य चेतना भ व य के त सजगता, जाग कता अथवा
झु काव ।
4. Future Focused Role Image (F.F.R.I.) : भ व योनमुखी भू मका क झांक
भव य म यि त वशेष को या उ तरदा य व नवाह करना होगा, इसके बारे म
ग भीर पूवानुमान ।
5. Cope—ability : अ या शत घ टत होने वाल घटनाओं या बदल हु ई प रि थ तय म
भी सामंज य था पत करने क यो यता जो भ व य म बहु त अ धक आव यक होगी ।
6. Transience : अ थायी, तेजी से लु त या न ट होने क अनुभू त ।
7. Throw away culture : शी तापूवक व तु ओं का उपभोग करने और त प चात ् उ ह
बेकार समझकर बाहर फक दे ने क वृि त जो आजकल के धनवान औ यो गक समाज
म दे खने म आ रह है ।
8. Learning Resoures : सीखने क साम ी । अब भ व य को सीखने क साम ी
समझा जा रहा है ।
252
In your opinion what will be the important demands of Indian
Education?
(1).
(2).
3. भ व य के भारतीय शाला— श क म कौन—कौन सी वशेषताएँ व कु शलताऐ आव यक
समझी जायगी?
(1).
(2).
(3).
(4).
(5).
(6).
(7).
(8).
(9).
(10).
What characteristics and skill will be necessary in future Indian
school teacher?
(1).
(2).
(3).
(4).
(5).
(6).
(7).
(8).
(9).
(10).
4. आपके शहर या गांव क उस ाथ मक पाठशाला को याद क िजये िजसम आपने
ाथ मक श ा पाई थी। सन ् 2010 म आप उस पाठशाला का व प कैसा दे खना
चाहगे? लगभग एक पृ ठ म अपनी क पनाओं को तु त क िजये।
253
4. husein Torsten, Education in the Year 2000,Stockholm, University
of Stockholm, 1972
5. Learning To Be, Paris, UESCO, 197
6. Adisheshiah, Malcolm Indian Education in 2001, New Delhi
N.C.E.R.T, 1972
7. Seth, S.C., “Education in An outlook for India’s Future(200A.D)
New Delhi, National Committee in Science & Technology, 1978,
pp. 153—154
8. Friere Paolo Pedalogy of the Oppressed.
9. Ruhela, S.P. Trends of Social Change and Future Demand of
Education, paper Presented to the “Futurology Awareness
programme” Algappa university, Karaikudi, May 11—13, 1968
(Mimeographrd)
10. Ruhela, S.P. (Ed.), Human Values and Education, New Delhi,
Sterling Publishers, 1986.
11. हे ला, स यपाल, ''भ व यशा तथा श ा का भावी व प”, एल.के.ओड़ (स पा दत)
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सं करण) पृ ठ 52—59
254
255
256