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BED—06
श ा संदभ और बंधता
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज.)

अनु म णका

इकाई व इकाई का नाम पृ ठ सं या


इकाई 1 — श ा का अथ एवं स यय 6 — 20
इकाई 2 — श ा के ल य, वृ तयां 21 — 40
इकाई 3 — श ा के अ भकरण : औपचा रक, अनौपचा रक एवं नरोपचा रक 41 — 65
इकाई 4 — श ा को भा वत करने वाले कारक 66 — 75
इकाई 5 — समाज क संरचना श ा और सामािजक प रवतन 76 — 96
इकाई 6 — व यालय का सामािजक संदभ : व यालय और समु दाय स ब ध 97 — 108
इकाई 7 — श ा, मानव संसाधन और वकास 109 — 122
इकाई 8 — श ा मानव अ धकार के प म : भारत म ब च क ि थ त 123 — 134
इकाई 9 — बाल केि त श ा 135 — 146
इकाई 10 — जनसं या श ा 147 — 158
इकाई 11 — पयावरण श ा 159 — 175
इकाई 12 — भारत म वं चत वग के लए श ा 176 — 188
इकाई 13 — ी श ा एवं भारत म ल गक असमानता 189 — 202
इकाई 14 — मू यपरक श ा 203 — 214
इकाई 15 —भारत म रा य एवं भावना मक एक करण और श ा 215 — 223
इकाई 16 — खु ला अ धगम समाज, उसक वशेषताएंएवं खु ल अ धगम णाल 224 — 239
इकाई 17 — श ा और भ व य का भारतीय समाज 239 — 254

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पा य म अ भक प स म त

अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज थान)

संयोजक एवं सद य
संयोजक
डॉ. दामीना चौधर
सह आचाय, श ा
वधमान महावीर खुला व व व यालय. कोटा ( राज.)

सद य
1. ो. पी. के. साहू 4. ो. डी. एन. सनसनवाल 7. ो. सोहनवीर संह चौधर
श ा वभाग दे वी अ ह या व व व यालय, इ दौर (म. .) इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय,

इलाहाबाद व व व यालय (उ .) 5. ो. एस. बी. मेनन नई द ल

2. ो. आर. पी. ीवा तव (से. न.) द ल व व व यालय, द ल 8. डॉ. एम. एल. गु ता


जा मया म लया इ ला मया व व व यालय, 6. ो. नेह. एम. जोशी सह आचाय श ा ( से. न. )
नई द ल एम. एस. व व व यालय, बड़ौदा वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

3. ो. आर. जे. संह 9. डॉ. अ नल शु ला


लखनऊ व व व यालय, लखनऊ ( उ . ) लखनऊ व व व यालय, लखनऊ ( उ .)

संपादन एवं पाठ लेखन


संपादक
ो. द य भा नागर
हे ड एवं डीन ( श ा)
लोकमा य तलक श क श ण महा व यालय ,
जनादन राय नागर
राज थान व यापीठ
दबोक, उदयपुर (राज.)
पाठ ले खक
 ो. मधु सू दन वे द  डॉ. श श च तौड़ा  डॉ. रचना राठौड़
वभागा य , समाजशा लो. त. श. .म. डबोक, उदयपु र लो. त. श. .म. डबोक, उदयपु र
ज. रा. ना. रा. व. उदयपु र  डॉ रमे शच द शमा  डॉ उषा च दर
ह.उ.म. श. .म., हटु डी, अजमे र इ नू, नई द ल

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो. (डॉ) नरेश दाधीच ो. (डॉ.) एम. के. घडो लया योगे गोयल
कुलप त नदे शक (अकाद मक) भार
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा संकाय वभाग पा य साम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

उ पादन : अ ेल 2012 ISBN – 13/978—85—8496—334—2


सवा धकार सुर त : इस साम ी के कसी भी अंश क वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी
भी प म ‘ म मया ाफ ' (च मु ण) के वारा या अ यथा पुन: तुत करने क अनुम त नह ं है ।

4
कु लस चव, व. म. खु. व व व यालय, कोटा वारा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा के लये मु त एवं का शत।

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इकाई 1— श ा का अथ एवं स यय
Unit 1—Concept and Meaning of Education

इकाई क परे खा (Outline Of the unit)


1.1 इकाई के उ े य (Objectives of the Unit)
1.2 वषय वेश (Introduction)
1.3 श ा का स यय एवं प रभाषाएँ (Concept and Definitions of Education)
1.3.1 भारतीय मत (Indian Concept)
1.3.2 पा चा य मत (Western Concept)
1.4 श ा का संकु चत अथ (Narrow Meaning of Education)
1.5 श ा का यापक अथ (Broad Meaning of Education)
1.6 श ा का समि वत अथ (Comprehensive Meaning of Education)
1.7 श ा या के अंग—मनोवै ा नक तथा सामािजक (Aspects of Educational
Process — Psychological and Sociological)
1.8 श ा क कृ त—कला अथवा व ान (Nature of Education—Art or Science)
1.9 श ा के आधार (Basis of Education)
1.9.1 दाश नक आधार (Philosophical Basis)
1.9.2 मनोवै ा नक आधार (Psychological Basis)
1.9.3 वै ा नक आधार (Scientific Basis)
1.9.4 समाजशा ीय आधार (Sociological Basis)
1.10 श ा म च लत आधारभू त स यय (Popular Fundamental Concept of
Education)
1.10.1 अनुदेशन (Instruction)
1.10.2 व यालयीकरण (Schooling)
1.10.3 श ण (Training)
1.11 अनुदेशन, व यालयीकरण श ण व श ा म अ तर (Difference between
Instruction, Schooling, Training and Education)
1.12 श ा का जीवन म मह व श ा आजीवन चलने वाल कया है (Importance of
Education in Life: Life Long Process in Education)
1.13 सार—सं ेप (Summary)
1.14 मू यांकन न (Evaluation Questions)
1.15 संदभ थ सूची (Bibliography)

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1.1 इकाई के उ े य (Objectives of the unit)
1. श ा के अथ एवं स यय से अवगत हो सकगे।
2. श ा के संकु चत एवं यापक स यय से अवगत हो सकगे।
3. श ा के समि वत अथ से प र चत हो सकगे।
4. श ा कया को समझ सकगे।
5. श ा क कृ त के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
6. श ा के मु ख आधार को समझ सकगे।
7. श ा म च लत आधा रक स यय म अ तर प ट कर सकगे।
8. श ा का जीवन म मह व अथात श ा आजीवन चलने वाल कया है, जानकार ा त
कर सकगे।

1.2 वषय वेश (Introduction)


बालक जब ज म लेता है तो असहाय एवं असामािजक होता है। वह न बोलना जानता है
न चलना फरना। उसका न कोई म होता है न कोई श ।ु यह नह ,ं उसे समाज के र त—
रवाज तथा पर पराओं का ान भी नह ं होता है और न ह उसम कसी आदश तथा मू य को
ा त करने क िज ासा पाई जाती है। पर तु जैसे—जैसे वह बड़ा होता है, वैसे—वैसे उस पर श ा
के औपचा रक तथा अनौपचा रक साधन का भाव पड़ता जाता है। इस भाव के कारण उसका
जहां एक ओर शार रक, मान सक तथा संवेगा मक वकास होता है वहां दूसर ओर उसम
सामािजक भावना भी वक सत होती जाती है। इस कार हम दे खत है क बालक के यवहार म
वांछनीय प रवतन के लए श ा क परम आव यकता है। श ा माता के समान पालन—पोषण
करती है, पता के समान उ चत मागदशन वारा अपने काय म लगाती है तथा प नी क भां त
सांसा रक च ताओं को दूर करके स नता दान करती है। श ा के वारा ह हमार क त का
काश चार ओर फैलता है तथा श ा ह हमार सम याओं को सु लझाती है एवं हमारे जीवन को
सु सं कृ त बनाती है। िजस कार सू य का काश पाकर कमल का फूल खल उठता है तथा सू य
अ त होने पर कु हला जाता है, ठ क उसी कार श ा के काश को पाकर यि त कमल के
फूल क भां त खल उठता है तथा अ श त रहने पर द र ता, शोक एवं क ट के अंधकार म डु बा
रहता है। अथात श ा वह काश है िजसके वारा बालक क सम त शार रक, मान सक,
सामािजक एवं आ याि मक शि तय का वकास होता है। इस कार एक ओर श ा बालक का
सवा गण वकास करके उसे तेज वी, बु मान, च र वान व वान तथा वीर बनाती है, उसी कार
दूसर ओर श ा समाज क उ न त के लए भी एक आव यक तथा शि तशाल साधन है।
यि त के समान समाज भी श ा के चम कार से लाभाि वत होता है। श ा के वारा समाज
भावी पीढ़ के बालक को उ च आदश , आशाओं, आकां ाओं, व वास तथा पर पराओं आ द
सां कृ तक स प त को इस कार से ह ता त रत करता है क उनके दय म दे श ेम तथा याग
क भावना व लत हो जाती है। जब ऐसी भावनाओं तथा आदश से ओत— ोत बालक समाज
अथवा दे श क सेवा या काय करगे तो समाज भी नर तर उ न त के शखर पर चढ़ता ह रहे गा।
इस कार यि त एवं समाज दोन ह के वकास म श ा आव यक है।

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1.3 श ा का स यय एवं प रभाषाएँ (Concept of Education
and Definitions)
श ा के स यय और प रभाषाओं को भारतीय एवं पा चा य प र े य म रख कर
समझना उपयु त रहे गा। दोन मत का उ लेख इस कार है;—

(i)भारतीय मत (Indian view)


श ा श द सं कृ त क ' श ा' धातु से न मत है िजसका अथ है सीखना या सीखाना।
श ा के लए ाचीन युग म ‘ व या' श द का योग भी कया जाता था। व या श द ‘ वद' धातु
से न मत है िजसका अथ है 'जानना'। व या का ता पय है — ान। वेद म कहा गया है क
व या वह ान है िजसे ा त कर लेने के बाद और कु छ जान लेने को शेष नह ं रहता अथात
व या का अथ आ म ान समझा जाता था।
प रभाषाऐ (Definitions)
यजु वद — '' व यायामृतम नुत ' अथात व या से अमर व क ाि त होती है।
गीता — ''सा व या या वमु तये' अथात वह व या है जो ब धन से मु त कराव।
वामी ववेकान द—'' श ा मनु य म अ त न हत पूणता क अ भ यि त है।''
(Education is the manifestation of perfection already in man).
रव नाथ ठाकु र — '' श ा का अ भ ाय है — मि त क को इस यो य बनाना क वह
चर तन स य को पहचान सके, उसके साथ एक प हो सके और उसे अ भ य त कर सके।
अर व द—''बालक क श ा उसक कृ त म जो कु छ सव तम, सवा धक शि तशाल ,
सवा धक अ तरं ग और जीवनपूण है उसको अ भ य त करना होना चा हए, वह उसके अ तरं ग
गुण और शि त का सांचा है।''
महा मा गाँधी — '' श ा से मेरा ता पय है — यि त के शर र मन और आ मा का
वकास।'' (By Education I mean, an all round drawing out of the best in
child and man—body,mind and spirit).
(ii) पा चा य मत (Western view)
श ा का अं ेजी पयाय ' Education ' श द है िजसक यु प त ले टन भाषा के श द
Educatum, Educare या Educare से हु ई है। Educatum का अथ है 'अ यापन क या
(The Act of Teaching or Training), Educare का अथ है आगे बढ़ाना, बाहर
नकालना या वक सत करना (To Educate, To Bring Up, Educere) का वक सत
करना अथवा नकालना (To Lead Out) कु छ लोग का मत है क E (ई) अथात भीतर (Out
Of) तथा (Duco) ( यूको) अथात बाहर करना (Lead Forth) अत: Education श द का अथ
हु आ आ त रक शि तय को बाहर क ओर े रत करना। यह अथ भारतीय मत के अनुकू ल तीत
होता है। भारतीय एवं पा चा य मत कमश: आ याि मक एवं भौ तक ि टकोण के प रचायक ह
क तु ताि वक प से उनम अ त वरोध नह ं है।

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पा चा य मत के अनुसार श ा स ब धी वचार को तीन मु ख दाश नक वचारधाराओं
के अ तगत वग कृ त कर दे खना उ चत होगा —
(1) आदशवाद दशन (Idealism) के अनुसार न नां कत कु छ मु ख च तक वारा द गई
प रभाषाएँ ह –
लेटो (Plato) — '' श ा उसे कहते ह जो स गुण का वकास करती है।''
कॉ म नयस (Comenius) — '' श ा वारा वक सत ान यि त म नै तकता और
धा मकता उ प न करता ह|”
म टन (Milton) — '' श ा का येय परमा मा के त ा उ प न करना, आ मा को
उ नत करना तथा दै वी कृ पा से एकता सीखना।''
पे टालॉजी (pestalozi) — '' श ा मनु य क सम त शि तय का वाभा वक,
ग तशील एवं सवमा य वकास है।'' (Education is a natural harmonious and
progressive development of man’s Innate powers).
एड स (Adams) — '' श ा वह पूव नयोिजत कया है िजसम एक यि त दूसरे
यि त के वकास हे तु वचार का आदान— दान करता है तथा ान के ब ध वारा प रवतन
करता है।''
का ट (Kant) — '' श ा यि त क मतानुसार उसक पूणताओं का वकास है।''
हान (Horn) — ' श ा वारा मनु य कृ त, समाज तथा व व के अ यतम व प से
तदा मय था पत करता है।''
ट .पी.नन (T.P.Nunn) — '' श ा वारा यि त व का पूण वकास होता है। िजससे
यि त अपनी मतानुसार मानव जीवन हे तु योगदान करता है। (Education is the
development individuality so that he can make an original contribution to
human life according to his best capacity).
फ टे (Ficte) — '' श ा ई वर य इ छा का अ वेषण है।''
हबाट (Herbert) — '' श ा अ छे नै तक च र का वकास है।'' (Education is the
development of good moral character)
आदशवाद दशन से े रत उपरो त श ा क प रभाषाएँ भारतीय मत के अ धक नकट
ह।
(2) कृ तवाद दशन (Naturalism) के समथक कु छ मु ख श ा शाि य ने श ा को
इस कार प रभा षत कया है :—
सो (Roussau) — '' श ा जीवन है और उसका उ े य यि त व उ कष करना है।''
हबाट पे सर (Herbert Spencer) — 'पूव जीवन क ाि त ह श ा है।''
रॉस (Ross) — ' श ा बालक के वाभा वक तथा ाकृ तक गुण का वकास करती है।''
फॉबेल (Froebel) — '' श ा कया वारा बालक क ज मजात मताओं क
अ भ यि त म सहायता मलती है।'' (Education is the process by which the child
makes its internal,external.)

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उपरो त प रभाषाओं से कट होता है क भारतीय मत म कृ तवाद दशन का
आदशवाद ि टकोण से सम वय कया गया है।
(3) योगवाद या अथ यावाद दशन (Pragmatism) के अनुसार कु छ मु ख प रभाषाएँ
है:—
जॉन डीवी (John Dewey) — '' श ा अनुभव के सतत ् पुन नमाण के मा यम से
जीवन क कया है। यह यि त म उन सम त मताओं का वकास है िजसके वारा वह अपने
पयावरण को नयि त करता है तथा अपनी उपलि ध क स भावनाओं को पूर करता है।''
(Education is the living through a continuous reconstruction of
experiences.It is the development of all those capacities in the individual
which will enable him to control his environment and fulfil his
possibilities.)
व लयन जे स (William James) — '' श ा ऐसी या क अिजत आदत का
संगठन जो यि त को अपने भौ तक एवं सामािजक पयावरण से समायोजन यो य बनाये।''
(Education is the organization of acquired habits of such action as will fit
the individual to his physical and social environment')
भारतीय मत म इन प रभाषाओं म य त श ा क जीवनोपयो गता एवं समाज
सापे ता का सम वय कया गया है। इनम श ा का स यय सम वयपूण एवं स तु लत है।
श ा क कोई सवमा य प रभाषा दे ना क ठन है क तु सभी दाश नक वचारधाराओं के सम वय
क ि ट से यह कहना उपयु त होगा क —
' श ा के उ े य आदशवाद साधन कृ तवाद तथा वा त वक कया का ि टकोण
योजनवाद होना चा हए।'' (Aims of Education should be idealistic,means be
naturalistic and the approach t actual process be pragmatic.)

वामू यां क न
(Self Evaluation)
1. भारतीय मत के अनु सार श ा के स यय को प ट क िजए|
2. पा चा य मत के अनु सार श ा के स यय को प ट क िजए|

1.4 श ा का संकु चत अथ (Narrower meaning of Education)


संकु चत अथ म श ा योजनाब प म नधा रत कर द जाती है। ऐसी श ा का प
औपचा रक होता है अथात वह एक नि चत थान पर व यालय, महा व यालय या
व व व यालय म द जाती है तथा उसक एक नि चत अव ध, नि चत पा यकम तथा नि चत
यो यता के श क होते ह। इस संकु चत अथ म श ा काल व यालय म बालक के वेश होने
से ार भ होता है तथा श ा सं था को छोड़ने पर उसक समाि त मानी जाती है। इस कार
संकु चत अथ म उन क तपय भाव तक सी मत है जो समाज येक प म मनु य के जीवन

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पर डालता है। ट . रे मंट (T.Raymont) के श द म — '' श ा से हम उन वशेष भाव को
समझते ह िजनको समाज का वय क वग जान बुझकर नि चत योजना वारा अपने से छोट पर
तथा त ण वग पर डालता है।'' मल के श द म — '' श ा वारा एक पीढ़ के लोग दूसर पीढ़
के लोग म सं कृ त का सं ामण करते ह ता क वे उसका संर ण कर सक और य द संभव हो
तो उसम उ न त भी कर सक।''
“The culture which each generation purposefully gives to those
who are be its successors in order to quality them for at list keeping up
and if possible for raising the level of improvement which has been
attained.“—John Sturat Mill.
एस एस मैके नी (S.S.Mackenge) के अनुसार — ''संकु चत अथ म कसी भी ऐसे
सचेतन यास को श ा कहा जा सकता है जो हमार मताओं का वकास एवं वृ कर।'' An
Narrower sense Education may be taken to mean any consciously
directed effort to develop and cultivate our powers.)
ोफेसर ीवर —'' श ा एक या है, िजसम तथा िजसके वारा बालक के ान, च र
तथा यवहार को एक वशेष सॉचे म ढाला जाता है।'' ''Education is a process in which
the knowledge,character and behaviour of the young are shaped and
moulded.” Prof. Drever.

1.5 श ा का यापक अथ (Wider meaning of Education)


यापक ि ट म श ा का अथ बालक के उन सभी अनुभव से है िजसका भाव उसके
ऊपर ज म से लेकर मृ यु पय त तक पड़ता है। अथात श ा वह अ नयि त वातावरण है
िजसम रहते हु ए बालक अपनी कृ त के अनुसार वत ता पूवक नाना कार के अनुभव ा त
करता है तथा वक सत होता है। श ा जीवन पय त चलने वाल कया है। ऐसी श ा कसी
वशेष यि त, समय, थान अथवा दे श तक सी मत नह ं रहती अ पतु िजन यि तय के स पक
म आकर बालक जो कु छ भी सीखता है वे सब उसके श क ह, िज ह वह सीखाता है वे सब
उसके श य ह तथा िजस थान पर सीखने व सीखाने का काय चलता है वह व यालय ह।
श ा बालक के ाकृ तक वकास क कया है।
जॉन टु अट मल के श द म —'' व तृत या यापक अथ म श ा च र और मानवीय
मताओं पर उन बात वारा पड़े हु ए अ य भाव का भी बोध कराती है िजनके येक
योजन नता त भ न होते ह।''
डम वल (Dumville) के अनुसार, '' श ा के यापक अथ म वे सभी भाव आते ह, जो
यि त को ज म से लेकर मृ यु तक भा वत करते ह' (Education in its wider sense
includes all the influeness which act upon an individual during the
passage from the cradle to the grave).

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1.6 श ा का समि वत अथ (Comprehensive meaning of
Education)
जॉन डीवी के अनुसार, '' श ा ग या मक वकासो नमु खी एवं बालक, समाज और रा
क आव यकताओं क पू त म सहायक होनी चा हए।'' अथात श ा क ग या मकता का अथ है
क श ा या वारा यि त क मताओं एवं गुण क अ भ यि त के अवसर दे कर उसके
यि त व का सवागीण वकास होता है तथा ऐसी श ा यि त को प रव तत सामािजक पयावरण
से सम जन करने यो य बनाती है। श ा कया वारा यि त का इस कार वकास कया
जाना वांछनीय है िजसम वह समाज एवं रा का एक सु यो य नाग रक बन अपना स य
योगदान कर सक।

1.7 श ा या के अंग — मनोवै ा नक तथा सामािजक


(Pspects of Educational Process Psychological and
Social)
बालक क मू ल वृ तय , मताओं, यो यताओं आ द का अ ययन मनोवै ा नक अंग का
भाग है जब क मान सक अंग के अ तगत उन बात का नधारण कया जाता है िजससे क
बालक समाज के आदश के अनुकू ल वयं का संमजन कर सके तथा सामािजक प रवतन म भी
योगदान दे सके। कु छ व वान जैसे एड स (Admas) श ा क वमु खी कया (Bi polar
Process) मानते ह िजसम एक यि त ( श क) दूसरे यि त (बालक) को ान दान कर
उसके यवहार म अपे त प रवतन करते ह। रॉस का भी यह मत है क चु बक के समान
श ा म भी दो ु व का होना अ याव यक है। ये दोन ु व श क एवं श ाथ ह िजनके म य
अ त: या होती है जो ानाजन या यावहा रक प रवतन का आधार है। अब श ा व श ा
क कया को मु खी या ु वीय कया (Tri—polar process) मानने लगे ह। जॉन डीवी ने
श ा कया म दो त व श क एवं श ाथ के अ त र त तीसरे मह व समाज को भी
सि म लत कया है िजसक उपे ा नह ं क जा सकती। सामािजक प रवेश श क, श ाथ व
श ा म को भा वत करता है तथा श ा कया वारा बालक म सामािजक कु शलता उ प न
करने पर बल दे ता है। ता क श ाथ समाज के साथ समायोजन कर सक। वक सत एवं
वकासशील समाज म श ा का यह व प मा य है।
श ा क भारतीय संक पना तथा उस पर आधा रत श ा क प भाषाएँ उपरो त
समि वत आधु नक संक पना के अनुकूल है य क वे श ा को एक कया मानते हु ए यि त
एवं समाज दोन प का सम वय करती है। भारतीय श ा भारतीय सं कृ त के पोषण एवं
वकास म सहायक है।

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1.8 श ा क कृ त : कला अथवा व ान?(Nature of
Education : Science or Art)
श ा क संक पना के साथ यह प भी जु ड़ा है क श ा क कृ त या है? श ा
कला है या व ान? इससे पूव यह समझ लेना आव यक है क कला एवं व ान कसे कहते ह?
कला का योजन है —''करना कु छ भाव डालना' अथात कला के मा यम से मानवीय कयाओं
का पा तरण कया जाता है। जब क व ान का अथ '' ान अथात स य का धारण है। व ान
वग कृ त स ा त और नर ण व पर ण करने यो य ान का समाहार है जो ता कक कम म
यवि थत कया जाता है। कला एवं व ान क इस या याओं के संदभ म श ा क कृ त का
नधारण कया जाना चा हए।
य द हम श ा क वषय—व तु, व प, व ध तथा उड़े य का व लेषण कर तो पायगे
क श ा न केवल कला है और न केवल व ान है। अ पतु वह कला तथा व ान दोन ह है।
कला का अथ एक आदश तु त करना है। कला हमे बताती है क अ भ ट या है, उ े य तथा
ग त य या है। इस प म श ा भी हमारे स मु ख अनेक आदश तु त करती है। अनेक उ े य
नि चत करती है तथा ग त य का नधारण करती है। उदाहरण के लए च र नमाण करना
रा य भावना का वकास करना, यि त व का सवागीण तथा स तु लत वकास करना जैसे
श ा के अनेक उ े य तथा आदश ह िजनको श ा के मा यम से ा त करने के यास कये
जाते ह। इस कृ त के कारण श ा कला है।
श ा व ान भी है। व ान हम द ता पूवक काय करने क व ध से अवगत कराती है।
यह ान को पूव नयोिजत, संग ठत तथा मत य यतापूवक ा त करने क ा व धय से अवगत
कराती है। श ा म अनेक यास इस कार कये जाते ह क यि त व का सवागीण वकास पूव
नयोिजत संग ठत, मत य यतापूवक व सफलतापूवक हो सक। इसके लए श ा ने व वध
व धय का भी वकास कर लया है, व भ न श ा स ा त का वकास कया है, श ा
व धय , उ े य का वग करण य, य उपकरण का नमाण, मू यांकन ा व धय तथा
व यालय संगठन के स ा त का वकास कया है। यह सभी श ा को मापन यो य व तु
न ठता तथा भावशीलता दान करने के उ े य से कया गया है। यह काय केवल व ान ह
कर सकता है अत: कहा जा सकता है क श ा व ान भी है। अ त म हम यह कह सकते ह
क श ा कला तथा व ान दोनो ह है। इसे केवल कला अथवा व ान कहना भूल है।

वमू यां क न
(Self Evaluation)
1. श ा क सं कु चत अवधारणा प ट क िजए।
2. यापक सं द भ मे स ा के सं यय क ववे च ना क िजए।
3. “ श ा व ान भी है कला भी” इस कथन क पु ि ट अपने तक वारा द िजए।

13
1.9 श ा के आधार (Foundation of Education)

श ा एक कया है िजसम श क, श ाथ एवं वातावरण क अ त: कया वारा


व याथ म वां छत यवहार भाव प रवतन लाकर उसके यि त व का सवागीण वकास कया
जाता है। यह श ा कया अनेक त य पर आधा रत होती है िजनका वग करण न नां कत प
म कया जा सकता है :—
1. दाश नक आधार (Philosophical Bases)
दाश नक आधार श ा के उ े य और आदश का नधारण करता है। यह श ा क
नै तक कसौट दान करता है। यह श ा को जीवन से स बि धत कर मू य का न चय करता
है तथा शै णक कया को एक नि चत दशा का नदश दे ता है। दशन कसी दे श क
सामािजक, धा मक, आ थक एवं राजनै तक प रि थ तय के संदभ म श ा के उ े य क
आधारभू म तु त करता है ।
2.मनोवै ा नक आधार (Pshychological Bases)
श ा कया का उ े य व याथ म श क एवं वातावरण से अ तः कया कर वां छत
प रवतन करना तथा यि त व का सवागीण वकास करना होता है। इस कया का आधार
मनो व ान तु त करता है । यि त क मूल वृ तय , संवग
े , वकास क अव थाओं, वंशानुकम
व वातावरण के भावो, यि तगत व भ नताओं, अ भ चय यि त व अ धगम के स ा त
आ द का प र ान श ा मनो व ान से होता है जो श ा कया को वै ा नक प दान करता
है।
3.वै ा नक आधार (Scientific Bases)
श ा एक समाज व ान है य क इनके स ा त के नधारण क कया वै ा नक है।
वै ा नक व धय वारा ह श ा के नयम का न चयन एवं शै क सम याओं का समाधान
खोजा जाता है। अत: श ा का वै ा नक आधार है।
4. समाजशा ीय आधार (Sociological Bases)
सामािजक पयावरण श ा या म एक मह वपूण घटक होता है य क सामािजक
पयावरण से अ तः कया वारा ह व याथ म समाजोपयोगी एवं मा य मू य के अनु प
यवहारगत प रवतन होते है। इसके अ त र त श ा समाज के प रवतन के अनुकू ल ग तशील
रहती है तथा श ा समाज म था य व एवं उसके उ थान का य न भी है। समाजशा इस
ि ट से श ा का एक सु ढ़ आधार तु त करता है।
श ा म च लत आधा रत स यय (Basic concepts used in Education)
अनुदेशन (Instruction), व यालयीकरण (Schooling) तथा श ण (Training)
श ा के समानाथक प म चलन म है िजसम ि त उ प न हो गई है। इसम अनुदेशन,
व यालयीकरण तथा श ण श द को ाय: श ा का पयाय मानकर यु त कया जाता है,
जो अनु चत है। अत: श ा म इनका भेद समझना वांछनीय है।
(1) अनुदेशन (Instruction)

14
डी. एल. के. ओड के श द म ''अ यापक वारा क ा म दया गया त या मक एवं
आलोचना मक ान अनुदेशन कहलाता है। अनुदेशन के अ तगत श क का य त य, नो तर,
चचा, योग सभी आ जाते ह। अनुदेशन श ा का एक अंग है, स पूण श ा नह ं। च लत भाषा
म हम िजसे पढ़ना कहते ह वह इसी अथ का योतक है। अनुदेशन क ा म भी हो सकता है
क ा के बाहर भी। श क तथा छा के बीच पा य मीय ान के आदान— दान क या
अनुदेशन कहलाती है।'' ब े डरसेल (Burstrand Russell) के अनुसार ''अनुदेशन या के
अ तगत श क को व या थय म शनै: शनै: कु छ मान सक आदत के नमाण करने का अवसर
मलता है।'' गे स के श द म ''अनुदेशन वह या है जो व याथ को कु छ उ े य क ओर
भा वत करती है।'' इन प रभाषाओं म अनुदेशन व श ा का भेद प ट होता है। डा. एन. आर.,
व प स सैना ने इस अ तर को य त करते हु ए कहा है क जहां श ा का े यापक है
य क वह बालक क ज मजात शि तय का वकास करती है वहां अनुदेशन का े केवल
मान सक वकास तक सी मत है। श ा म बालक मु ख है जब क अनुदेशन म श क। श ा क
भां त अनुदेशन बालक क च व मान सक ि थ त का यान नह ं रखता। श ा जीवन के लए
तैयार करवाती है। जब क अनुदेशन का उ े य केवल पर ा पास करना होता है। श ा नजी
अनुभव के आधार पर अिजत ान को थायी बनाने पर बल दे ती है क तु अनुदेशन म ान
रटाया जाता है जो थायी नह ं होता।
(2) व यालयीकरण (schooling) —
व यालयीकरण ह द श द ' व यालय' तथा अं ेजी श द ' कू ल' (School) से न मत
है। कू ल श द क यु प त यूनानी श द (Skhole) से हु ई है िजसका अथ है 'अवकाश'
(Lesiure) जो 'आ म वकास' या ' श ा' हे तु यु त कया जाता था। काला तर म ये
अवकाशालय अथात ' कू स' एक नि चत योजनानुसार पा यकम नि चत समय म समा त करने
लगे। कू ल के वकास को प ट करते हु ए ए.एफ. ल च ने कहा है, ''वे वचार, गोि ठयॉ अथवा
वाता थल िजनम रहकर एथे स के युवक खेलकू द व यायाम तथा यु हे तु श ण म अपना
अवकाश का समय यतीत करने थे, शनै: शनै: दशनशा एवं उ चतर क ाओं के कू ल म
प र णत होने लगे। अकादमी के सु सि जत उ यान म यतीत कए गए अवकाश से कू ल
वक सत हु ए।''
समाजोपयोगी नाग रक तैयार करने म इनक भू मका का उ लेख करते हु ए जे. एस. रॉस
(J.S.Ross) ने कू ल को इस कार प रभा षत कया है, स य मानव वारा ‘ कू स’ सं थाओं
का आ वभाव कया िजनका उ े य युवक को समाज के कायकु शल एवं समायोिजत सद य क
तैयार म सहायता करना था।'' कू ल को एक वशेष पयावरण के प म दे खत हु ए जॉन डी वी
का कथन है, ' कू ल एक व श ट पयावरण है, जहां एक नि चत जीवन तर व नि चत कार
के या—कलाप तथा यवसाय का ावधान इस उ े य से कया जाता है क बालक का वां छत
दशा म वकास हो सके।''
इस कार व यालयीकरण श ा का औपचा रक प है अथात यह श ा के संकु चत
अथ को कट करता है। व यालयीकरण श ा का एक अंग है स पूण श ा नह ।ं डॉ. ओड के
श द म इसका ववेचन श ा के संकु चत अथ म कया गया है। नि चत अव ध म, नि चत

15
पा य म तथा नि चत व धय तथा नि चत यि तय वारा समू ह के प म द जाने वाल
श ा कू लंग कहलाती है।''
(3) श ण (Training)
डॉ. एल. के. ओड के श द म, 'एक ह कार के काय को पुन : आवृ त वारा उसम
द ता अिजत करना श ण कहलाता है। श ण बौ क न होकर द ता परक होता है।'' आर.
ए. शमा ने श ण मनो व ान को इन श द म प ट कया है, ''इस वचारधारा का आ वभाव
श ण क ज टल सम याओं एवं प रि थ तय पर कए गए शोध काय से हु आ है। इसके
अ तगत उन याओं को वशष मह व दया जाता है जो छा सीखते समय करता है। इसम
शु ता पर अ धक बल दया जाता है। श ण मनो व ान का उ े य या क प रे खा तैयार
करना और उनको इस कार यवि थत करना है िजनसे अपे त उ े य क ाि त क जा सके।
इच वचारधारा म काय व लेषण क धानता क जाती है। श ण मनो व ान श ण श ण
के लए एक उपागम है।'' प ट है क श ा का एक अंग या प मा ह है, श ा का पयाय
नह ं।

1.11 अनु देशन, व यालयीकरण, श ण व श ा म अ तर


(Difference between instruction,Schooling,Training
and Education)

.सं. श ा अनुदेशन व यालयीकरण श ण


(Education) (Instruction) (Schooling) (Training)
1. श ा आजीवन चलने अनुदेशन श क व व यालयीकरण व याथ को
वाल या है| व याथ के बीच नि चत थान बार बार आवृ त
पा य मीय ान के ,अव ध ,पा य म वारा कसी या
आदान दान क व ध तथा यि त के काय अवयव म
या है| वारा समू ह म द द ता अिजत
जाने वाल श ा कराना श ण है।
ह|
2. ल य बालक का ल य व श ट अव ध ल य एवं ल य कसी या
सवा गण वकास म पा य म पूरा नि चत वशेष म द ता
करना कराना है। पा यचयानुसार अिजत करना है।
व याथ को पर ा बालक का वकास यह वौ क क
म उ तीण कराना है। करना है। अपे ा शार रक
द ता अ धक है।
3. श ा के अ भकरण केवल औपचा रक औपचा रक प औपचा रक प
औपचा रक तथा प क ा तक कू ल तक सी मत केवल श ण
अनौपचा रक दोन है। सी मत है। है। सं थान या प रवार

16
तक सी मत है।

4. इसम अिजत ान ान अ थायी व ान थायी होता अिजत द ता


थायी एवं जीवन से जीवन से अस बंध ह| अ थायी ह|
स ब ध होता है। होता ह|
5. बालक का थान बालक क अपे ा अ यापक व श ण का मु ख
मह वपूण है। पा यकम पा यकम थान ह|
पर वशेष का वशेष थान
यान दया जाता है। है।
6. श ण व धय म या यान व वषय ,आयु व कु शलताओं (skills)
व भ नता ह| नो तर व ध पर क ानुसार के अनु प नि चत
वशेष आ ह ह| नधा रत व धयां व धयां ह|
होती है|
7. पा य म स पूण वषयानुसार अ य त नि चत वषय व नि चत येक
जीवन ह| सी मत ह| याकलाप तक काय के अनुसार ह|
सी मत है|
8. अव ध ज म से मृ यु अव ध सी मत ह| बहाय व नि चत अ प
कशोराव था तक अव ध ह|

1.12 श ा का जीवन म मह व : श ा आजीवन चलने वाल


कया है (Importance of Education in Life : Life Long
Process of Education)
व या बु क जड़ता को हरती (दूर करती) है। वाणी म स यता का संचार करती है,
मान—स मान फैलाती है, पाप कम से दूर रहती है, मन ( च त) को स नता दान करती है,
चार दशाओं म यश क त फैलाती है। क पलता पी व या या— या नह ं करती, अथात सब
कु छ कर सकती है।
भारतीय पौरा णक शा म क पवृ क क पना क गई है और यह माना गया है क
क पवृ से जो इ छा कट क जाती है, वह वृ उस इ छा क पू त करता है। यह व या को
भी इसी क पवृ के समान क पलता (बेल) माना है। और यह वीकार कया गया है क इस
व या पी क पलता से जो कु छ भी इ छा क जायेगी, वह यह पूर करे गा। अथात व या
मनु य क हर कामना को पूर कर सकती है। मनु य व या के वारा यश क त, वैभव आ द
सब कु छ ा त कर सकता है।
उप नषद म श ा को ‘सा व या या वमु तये' कहा गया है अथात व या वह है जो
मु ि त दान करे अथात श ा से वत ता क ाि त होती है। व या अ ानता से वत ता
दलाकर ान दान करती है, संक णताओं से मु ि त दलाकर यापकता लाती है। जड़ता या

17
ि थरता से वमु त कर ग या मकता लाती है, वचार को वत ता दान करती है तथा जीवन
के हर े म वत ता लाती है।
श ा सां कृ तक, धा मक तथा आ याि मक उ न त के लए भी अ नवाय है। श ा
समाज क सं कृ त को जी वत रखती है। सं कृ त का एक पीढ़ से दूसर पीढ़ को ह ता तरण
करती है। सं कृ त का प रमाजन करती है तथा सं कृ त को उपयु तता दान करती है।
आ याि मक उ न त व मान सक शि त के लए भी श ा अ नवाय है।
श ा मानव जीवन को सु खमय बनाती है। इसम भौ तक सु ख—सु वधाएँ भी ा त होती
ह। आज मानव ने कृ त पर जो वजय ा त क है वह भी श ा का प रणाम है। वै ा नक
उ न त तथा सु ख सु वधा के लए व ान वारा दत उपकरण श ा क ह दे न है। रे डयो,
चल च , व युत , वायुयान, रे लगा ड़यां, उ योग आ द सब व या वारा ह दये गये ह। श ा ने
मानव जीवन क र ाथ अनेक कार क औष धयाँ हम द ह। श ा हमारे जीवन को मा णत
करती है। इसस ह हम पशु व से ऊपर उठकर ई वर के नकट आ जाते है।

व—मू यां क न
(Self Evaluation)
1 श ा के आधार क ववे च ना क िजए ।
2 अनु दे शन, व यालयीकरण एवं श ण के स यय को प ट क िजए।
3 '' श ा आजीवन चलने वाल कया है । '' प ट क िजए।

1.13 सार सं ेप (Summary)


श ा का अथ एवं स यय (Meaning and concept of Education)
बालक के यवहार म वांछनीय प रवतन के लए श ा क परम आव यकता है। श ा
वह काश है िजसके वारा बालक क सम त शार रक, मान सक, सामािजक तथा आ याि मक
शि तय का वकास होता है।
(1) भारतीय मत (Indian view)
श ा श द सं कृ त क ‘ श ’ धातु से बना है िजसका अथ है सीखना या सीखाना। गीता
दशन के अनुसार ''सा व या या वमु तये'' अथात वह हव या है जो ब धन से मु त कराव।
(2) पा चा य मत (Western view)
श ा का अं ेजी पयाय 'Education' श द है िजसक यु प त ले टन श द
Educatum, Educare या Educere से हु ई है।
लेटो '' श ा उसे कहते है जो स गुण का वकास करती है।''
श ा का संकु चत अथ (Narrower meaning of Education)
ऐसी श ा का व प औपचा रक होता है अथात वह एक नि चत थान पर व यालय,
महा व यालय या व व व यालय म द जाती है।
श ा का यापक अथ (Wider meaning of Education)

18
श ा जीवन पय त चलने वाल कया है। श ा वह अ नयि त वातावरण है िजसम
रहते हु ए बालक अपनी कृ त के अनुसार वत तापूवक नाना कार के अनुभव ा त करता है।
श ा क कृ त—कला अथवा व ान (Nature of Education: Science and Art)
य द हम श ा क वषय व तु व प व ध तथा उ े य का व लेषण कर तो पायगे
क श ा न केवल कला है और न ह केवल व ान है। अ पतु कला व व ान दोन ह है।

श ा म च लत आधा रत स यय
1. श ा (Education)
2. अनुदेशन (Instruction)
3. व यालयीकरण (Schooling)
4. श ण (Training)

1.14 मू यांकन न (Evaluation Question)

.1 श ा के स यय क या या करते हु ए कसी एक प रभाषा क व तृत ववेचना


क िजए।
Discuss the concept of Education and elaborate in detail one of
the definition of Education.
.2 श ा के संकु चत एवं यापक अथ क या या करते हु ए श ा के समि वत अथ क
चचा क िजए।
Discuss the Narrow and broader concept of Education and
elaborate the Comprehensive.
.3 श ा से आप या समझते है? इसक कृ त एवं मह व बताइए।
What do you mean by Education? Mention its Nature and
importance.
.4 श ा और अनुदेशन म अ तर प ट क िजए।

19
Differentiate between Education and Instruction.
.5 श ा, अनुदेशन, व यालयीकरण एवं श ण क अवधारणाओं म अ तर प ट
क िजए।
Differentiate between concept of Education Instruction,Schooling
and Training.

1.15 स दभ थ सू ची (Bibliography)

1. अ वाल एस. के. : श ा के ताि वक स ा त


2. बंसल आर. ए. तथा शमा रामनाथ : श ा के स ा त
3. बटलर : फोर फलोसॉफ ज
4. भा टया : फलोसॉफ ऑफ एजू केशन
5. चौबे अ खलेश एवं चौबे सरयू साद : श ा के दाश नक, ऐ तहा सक और
समाजशा ीय आधार
6. ओड एल.के. : श ा क दाश नक पृ ठभू म
7. पार ख मथुरे वर शमा रजनी : उदयीमान भारतीय समाज तथा श ा
8. स सैना एन. आर. व प : श ा के दाश नक एवं समाजशा ीय
स ा त
9. डा. राधाकृ णन : भारतीय दशन

1.16 रपोट सू ची (Report List)


1. Report of secondary Education commission 1952.
2. Report of Education commission 1966.
3. National policy of Education 1986.
4. Programme of action : National policy of Education 1995.
5. International commission on Education on development of
Education,Learning to be,UNESSCO 1972
6. International commission on Education for the twenty first century :
learning the treasure within,UNESSCO Report of Delors,1996.

20
इकाई—2
श ा के ल य, वृ तयॉ
Aims of Education and its Trends

इकाई क परे खा (Outline of the Unit)


2.1 इकाई के उ े य (Objectives of the Unit)
2.2 वषय वेश (Introduction)
2.3 ल य (Aims)
2.4 उ े य (Objectives)
2.5 ल य व उ े य म अ तर (Difference between Aim and Objectives)
2.6 श ा के ल य (Aims of Education)
2.7 व भ न आयोग एवं स म तय के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education
According to Secondary)
2.7.1 व व व यालय आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education
According to Higher Education Commission)
2.7.2 मा य मक श ा आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education
According to Secondary Education)
2.7.3 कोठार आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education According to
Kothari Commission)
2.7.4 नई श ा नी त 1986 (New Education Policy 1986)
2.7.5 आचाय राममू त स म त वारा रा य श ा नी त क समी ा (Critical Analysis of
New Education Policy by Acharya Rammurti Committee)
2.7.6 डेलस आयोग क रपोट ''अ धगम अ त: न ठ'' (Repartof Dallors Commission
“Learning Treasure within”)
2.8 आधु नक भारतीय संदभ म श ा के ल य (Aims of Education in the
reference of Modern India)
2.8.1 यि त स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Individual)
 शार रक वकास (physical Development)
 चा र क वकास (Characteristics Development)
 मान सक वकास (Mental Development)
 सां कृ तक वकास (Cultural Development)
 आधु नक करण करना (Modernization)

21
 उ पादन का वकास करना (Development of Producation)
2.8.2 समाज स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Society)
 सामािजक बुराइय का अ त
 समाजवाद समाज क थापना
 लोकताि क नाग रकता का वकास
2.8.3 रा स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Nation)
2.9 श ा का ऐ तहा सक प र े य (Historical Prespactive of Education)
2.9.1 ाचीन भारतीय समाज का व प एवं श ा
2.9.2 म यकाल न भारतीय समाज का व प एवं श ा
2.9.3 वतमान भारतीय समाज का व प एवं श ा
2.10 श ा म प रव तत वृि तयाँ (Changing Trends In Education)
2.11 श ा का भावी प र े य (Future Perspectives of Education)
2.12 सार सं ेप (Summary)
2.13 मू यांकन न (Evaluation Question)
2.14 संदभ थ सूची (Bibliography)
2.15 रपोट सू ची (Report List)

2.1 इकाई के उ े य (Objectives of the Unit)


 श ा के ल य के स यय से अवगत हो सकगे।
 ल य और उ े य के स यय से अवगत हो सकगे।
 ल य और उ य म अ तर प ट कर सकगे।
 श ा के ल य का वग करण कर सकगे।
 व व व यालय आयोग के अनुसार श ा के ल य से प र चत हो सकगे।
 मा य मक श ा आयोग के अनुसार श ा के ल य से अवगत हो सकगे।
 कोठार आयोग के अनुसार श ा ल य के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
 नई श ा नी त एवं राममू त क स म त वारा नधा रत ल य को समझ सकगे।
 अ तरा य श ा आयोग या डेलस रपोट म बताएं श ा के ल य से अवगत हो
सकगे।
 आधु नक भारतीय समाज के स दभ म श ा के ल य के बारे म जानकार ा त कर
सकगे'।
 श ा का ऐ तहा सक प र े य समझ सकगे।

2.2 वषय वेश (Introduction)


मानव क येक कया का कोई न कोई उ े य अव य होता है। य द मानवीय याऐ
सु नि चत होगी तो प रणाम भी प ट व क याणकार होगा। इसके वपर त बना ल य या

22
उ े य का नधारण कये स प न क गई याऐ समाज व यि त के हत म बाधक भी हो
सकती है अत: श ा के स दभ म स पूण मानवीय या—कलाप को समाज के क याण क
दशा म े रत करने के लए श ा के ल य एवं उ े य क संक पना का उदय हु आ।
श ा ऐसी या है। िजसके वारा व याथ के यवहार म वां छत प रवतन लाया जा
सकता है। श ा का सीधा स ब ध अ धगम (Learning) से है। अ धगम अिजत करने के
फल व प व याथ के यवहार म अपे त प रवतन लाने हे तु यवि थत प से यास करना
होता है। िजसके लए श ा के ल य एवं उ े य नधा रत करने पड़ते ह।

2.3 ल य (Aims)
श ा को दशा दान करने वाले ल य होते ह। ये वे सा य है जो या के लए पथ
द शत करने का काय करते ह यथा छा म वै ा नक च तन का वकास करना, श ा का एक
ल य हो सकता है। इसक ाि त के लए
सी.वी. गुड (C.V.Good) — 'ल य पूव नधा रत सा य होता है, जो कसी काय या
या का मागदशन करता है।''
'Aims is a Foreseen and that gives direction to an activity.''
श ा क स पूण या अपने ल य पर आधा रत होती है। अत: श ा के ल य का
नधारण एक मह वपूण काय है। ल य वह न श ा क क पना भी नह ं क जा सकती है।

2..4 उ े य (Objectives)
उ े य, काय के फल या प रणाम का घोतक है जब या स प न क जाती है तो
नि चत प म वह कसी प रणाम क ओर उ मु ख होती है। हम काय को तब तक करते रहते
ह। जब तक नि चत उ े य को ा त न कर ल। हम जो ा त करना चाहते ह वे हमारे उ े य
है।
रॉबट मेगर (Robart Mager) —''उ े य वह मानद ड है िजसे छा वारा व यालय
या को पूण करके ा त कया जा सकता है।''
बी.एस. लूम (B.S.Bloom) — '' ान भावना व या म प रवतन लाना ह उ े य का
पूण होना है। यह अलग—अलग भी हो सकता है तथा कसी एक े म भी।''
अ त म हम कह सकते ह याओं के यवि थत प से संचालन हे तु उ े य होते ह।
य द उद े य सु प ट ह गे तो ल य क ाि त भी सरलता से होगी। उ े य को पूण करके ह
ल य क ाि त का यास कया जाता ह|

2.5 ल य एवं उ े य म अ तर (Difference between Aims and


Objectives)

23
. ल य उ े य
1. इनका नधारण दशन एवं समाज इ ह श क क ा—क क अपे ा के
आव यकता के अनु प कया जाता है। अनुसार मनोवै ा नक एवं श क तकनीक
आधार पर नधा रत
रहता ह।
2. ल य व तृत एवं द घकाल म ा त कये उ े य सट क व प ट होते है व इ ह
जाते ह। अ प अव ध म ा त कया जाता है।
3. ल य क ाि त हे तु पा य म नि चत नि चत पा यकम एवं श ण क यूह
नि चत नह ं होता व धय का व प भी रचनाओं के आधार उ े य को ा त कया
अ प ट होता है। जाता है।
4. ल य के नधारण म के य वचार उ े य छा को के मानकर नधा रत
स पूण समाज का होता है। कए जाते ह।
5. सै ाि तक व प होने के कारण ल य का काय को आधार मानकर बनाए गए उ े य
मापन क ठन एवं समय सा य होता है। स ा त के साथ—साथ योगा मक व प
के भी होते ह। अत: इनका मापन करना
अ नवाय होता है।
6. ल य मू य के अनु प नधा रत होते ह। उ े य का नधारण ल य के आधार पर
कया जाता है।

2.6 श ा के ल य (Aims of Education)


व तु त: श ा के संदभ म ल य क चचा क जानी उपयु त है। श ण—अ धगम
या के संदभ म उ े य एवं यवहारगत प रवतन क चचा क जाती है।
र व लन (Rivillin) – “व तु त: श ा एक स ायोजन एवं नै तक या है अत: ल य के
बना इसक क पना भी नह ं क जा सकती है।''
“Education is a purposeful and ethical activity,Hence it is
unthinkable without aims.''
ल य क अ प टता होने पर स पूण शै क या भावह न हो जाती है। श ा चाहे
वह औपचा रक हो, अनौपचा रक या नरौपचा रक उसे ग त व दशा दान करने का काय ल य
के आधार पर ह कया जाता है। समाज क सं कृ त को आगामी पीढ़ को ह ता त रत करने का
दा य व हो या यि त के सवागीण वकास का या परम स य क खोज का, ये सभी श ा के
ल य के व प म सि म लत कये जाते ह। श ा के ल य को न न ल खत वग करण वारा
भी समझा जा सकता है:—

24
इसके अ त र त जाताि क यव था म श ा के अ य ल य न न ल खत हो सकते
ह :—
1. सामािजक ि टकोण को वक सत करना
2. े ठ नाग रकता का श ण दे ने क यव था करना
3. अनुकू लन एवं साम ज य था पत करने क मता का वकास करना
4. अ छ आदत के तमान वक सत करना
5. आ थक स प नता हे तु तैयार करना
6. वै ा नक सोच वक सत करना
7. सामािजक याय हे तु तैयार करना
8. उ च आदश के नमाण क कया वक सत करना
9. वत एवं न प च तन मता का वकास करना
10. सवधम समभाव क भावना का वकास करना

25
वमू यां क न (Self Evaluation)
1. ल य और उ े य म अ तर प ट क िजए|
2. श ा के ल य का व गकरण पे ट क िजए|
3. जातां क यव था म श ा के ल य बताइए|

2.7 व भ न आयोग एवं स म तय के अनु सार श ा के ल य


(Aims of Education according to various
commissions and committees)
2.7.1 व व व यालय आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education
According to University Commissions —1948—49)
वत ता ाि त के प चात भारत सरकार का वशेष यान व व व यालय श ा पर
गया। िजसके आधार पर के य श ा सलाहकार बोड और अ त व व व यालय श ा प रष क
सफा रश को आधार बनाकर 1948 म डॉ. राधाकृ णन क अ य ता म व व व यालय आयोग
का गठन कया गया। आयोग के वचार से वत जात का जीवन सामा य समाज क
आव यकताओं को पूरा करने के लए व व व यालय का काय होना चा हए— ववेक का व तार,
नये ान के लए अ धक इ छा, जीवन के अथ को जानने के लए अ धक यास और
यावसा यक श ा क अव था। आयोग ने व व व यालय श ा के न न ल य बताये :—
1. व व व यालय को छा का सवागीण वकास (मान सक, शार रक, आ याि मक,
सामािजक, सां कृ तक, संवेगा मक) करना चा हए।
2. ान व सं कृ त का संर ण व उ न त करनी चा हए।
3. यि तय म ज मजात गुण क खोज एवं श ण वारा उनका वकास करना चा हए।
4. दूरदश , बु मान एवं साहसी नेताओं के नमाण वारा समाज सुधार पर बल दया जाना
चा हए।
5. ऐसे यि तय का नमाण करना जो राजनै तक, शासक य एवं यावसा यक े म
नेत ृ व कर सक।
6. सफल जात के लए यो य नाग रक का नमाण करना।
7. व व व यालय श ा का उ े य ऐसे ववेक यि तय का नमाण करना है जो जात
क सफलता के लए श ा का सार कर सक।
8. छा का च र नमाण करना।
9. छा म व व ब धुता क भावना का वकास करना।
2.7.2 मा य मक श ा आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education
According to Secondary Education Commissions —1952—53)
के य श ा सलाहकार बोड ने सरकार के सम मा य मक श ा क जॉच करने के
लए एक आयोग के गठन का वचार रखा। फल व प सत बर 1952 को डा. ए. ल मण वामी

26
मु दा लयर क अ य ता म 'मा य मक श ा आयोग क नयुि त क गई। आयोग के अनुसार
श ा के उ े य न नां कत है :—
1. जाताि क नाग रकता का वकास (Development of Democratic
Citizenship)
2. कु शल जीवनयापन क कला म श ण (Training in the Art of Living
Efficiency)
3. यि त व का वकास (Development of Personality)
4. यावसा यक कुशलता क उ न त (Improvement of Vocational Efficiency)
5. नेत ृ व के लए श ा (Education for Leadership)
6. च र नमाण (Character Formation)
7. दे श ेम क भावना का वकास (Development of Nationality)
2.7.3 कोठार आयोग के अनुसार श ा के ल य (Aims of Education According to
Kothari Commissions — 1964—66)
भारत सरकार के सम त तर पर श ा के व प स ा त एवं नी तय पर सलाह दे ने
के लए श ा आयोग क नयुि त क । डॉ. डी. एस. कोठार क अ य ता म काय करने के
कारण यह आयोग भी कोठार आयोग कहलाया। कोठार कमीशन रपोट म बहु त व तार से श ा
के उ े य पर चचा क गई। आयोग के वचार को सं ेप म दे ख तो ात होता है क श ा का
उ े य रा य ल य क ाि त है। रा के पुन नमाण हे तु श ा म प रवतन एवं न न चार
सम याओं का समाधान होना आव यक है —
1. खा य साम ी म आ म नभरता
2. आ थक वकास व बेरोजगार का अ त
3. सामािजक व राजनै तक एकता
4. राजनै तक वकास
इन सम याओं के समाधान के लए आयोग ने श ा को साधन के प म बताया।
आयोग के अनुसार जात म यि त वयं सा य है और श ा का मु ख काय है यि त को
अपनी शि तय के पूण वकास करने के लए अ धक से अ धक अवसर दान करना। सं ेप म
न न उ े य बताए गये ह :—
1. उ पादन म वृ करना (To incease Productivity)
2. सामािजक व रा य एकता का वकास करना (To Develop Social and
National Unity)
3. जात को सु ढ़ करना (To Consolidate democracy)
4. दे श का आधु नक करण करना (To Modernize the Country)
5. सामािजक, नै तक तथा आ याि मक मू य का वकास करना (To Develop
Social,Moral and Spiritual Values)

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2.7.4 नई श ा नी त 1986 (New Education Policy,1986)
नई श ा नी त म न न ब दुओं को यान म रखकर श ा क चु नौती का प
मानकर कायकम नयोिजत करने क बात कह गई है। वे ब दु न न ल खत ह :—
1. जाताि क नाग रकता का वकास
2. जीवन जीने क यो यता का वकास
3. यि त व का वकास
4. यावसा यक कौशल का वकास
5. नेत ृ व का वकास
6. संवेगा मक एवं रा य एकता का वकास
7. अ तर सां कृ तक समझ का वकास
8. अ तरा य स ावना का वकास
2.7.5 आचाय राममू त स म त वारा रा य श ा नी त क समी ा (Critical Analysis
of New Education Policy by Acharya Rammurti Committee)
नई श ा नी त के पुनरावलोकन एवं समालोचन हे तु भारत सरकार ने 7 मई, 1990 को
रा य श ा नी त समी ा स म त का गठन कया िजसका अ य आचाय राममू त नयु त
कए गए। इसी कारण इसे राममू त समी ा स म त के नाम से भी जाना जाता है। वतमान
प र े य म सामािजक प रवतन को दशा दान करने वाले समाज क रचना सव मु ख रा य
ल य है। श ा क भू मका, ल य और मू य को समझाते हु ए या या क गई है। मु ख ब दु
ह|
1. श ा छा को ाना मक आधार दान करे िजससे शि त सं चत कर वह आगे संव ृ
कर सके।
2. श ा उन संभावनाओं को भी श त करे जहां छा बहु त प रि थ तय व कयाओं म
संल न होते हु ए कौशल अिजत कर सके िजसके आधार पर बालक आगे चलकर व श ट
यावसा यक नपुणता या यवसाय आधा रत कौशल वक सत करने म स म हो सके।
3. श ा उन शा वत मू य के नमाण म सहायक हो जो यि त के अपने चा र क आधार
है। साथ ह सामािजक, सां कृ तक व रा य मू य को समा हत कर। वे मू य ऐसा
ढाँचा न मत करे िजसके संदभ म यि त अपने नणय व यवहार को वैयि तक व
रा य तथा सामािजक हत के म य समि वत कर सके। ये वे मू य ह जो यि त को
तब ता व समपण दे ।
4. रा य समाकलन और एकता क ाि त म श ा म य थ व उ ेरक क भू मका का
नवाह करे और छा क सामािजक प रवतन के अ भकता बनाने म सहायक हो।
आचाय राममू त क अ य ता म ग ठत रा य श ा नी त (1986) क समी ा स म त
(1990) ने तीन मु बताए —
 काम का अ धकार
 रा य एकता
 भारत के जन—जन म मानवीय भावना जागृत करना ।

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(6) डेलस आयोग क रपोट ''अ धगम अ त: न ठ (Repart of Dallors Commission
“Learning Treasure within”)
अ तरा य यूनो के रपोट (Learning treasure within) म श ा के चार त भ
four pillars of education, बताएं है :—
जानने का अ धगम (Learning to know) — पया त प से यापक सामा य ान
को थोड़े से वषय पर ग मीरता से काय करने के अवसर संयोिजत करने वारा। इसका अथ
सीखने का अ धगम भी है, ता क उन अवसर का लाभ उठाया जाए िजनका श ा, जीवन भर के
लए, ावधान करती है।
करने का अ धगम (Learning to Do) — न केवल यावसा यक कौशल पर तु और
अ धक व तृत प म, अनेक ि थ तय से नपटने तथा समू ह म काय करने हे तु भी मता
अिजत करना। इसका अथ युवा वग के लोग के व च सामािजक एवं काय अनुभव के संदभ म
करना सीखना भी है, जो थानीय अथवा रा य संग के प रणाम व प अनौपचा रक अथवा
औपचा रक हो सकता है िजसम पा य म, एका तर अ ययन तथा काय सि म लत होते ह|
इक े रहने का अ धगम (Learning to live together) — अ य लोग के त एक
समझ तथा अ यो या य के त सराहना वक सत करना, संयु त योजनाऐ कायाि वत करना
तथा झगड़ को नयि त करना, सीखना बहु लवाद, पार प रक सू झबूझ तथा शाि त के मू य के
त स मान भाव बनाए रखते हु ए।
बनने का अ धगम (Learning to be) — ता क यि त के यि त व का बेहतर
वकास हो तथा सदा ह बढ़ती वाय तता, नणय एवं यि तगत उतरदा य व स हत काय करने
क यो यता उ प न हो। इस स ब ध म, श ा को यि त क अ त: शि त के कसी भी प
क अवहे लना नह ं करनी चा हए: मरण शि त, तक शि त, सौ दय बोध शार रक मताएँ तथा
संचार कौशल।
औपचा रक श ा प तयाँ अ य कार के अ धगम के त अवरोधक बनकर ानाजन
बल दे ने के लए त पर रहती ह, पर तु अब श ा क एक ओर समा हत प म क पना करना
मह वपूण है। इस कार के ि टकोण को वषयव तु तथा व धय के स ब ध म भावी शै क
सु धार एवं नी त के त नद शत एवं सू चत करना चा हए।
जीवन पय त अ धगम (Life long learning)
(1) आजीवन अ धगम का यय ह तो वह कं ु जी है जो इ क सवीं शता द क ओर उपगमन
दान करता है। यह ारि मक तथा नर तर श ा के बीच क पार प रक व भ नता से कह ं परे
तक जाता है। यह एक अ य, ाय: े षत स यय, अथात अ धगम समाज क अवधारणा से
जोड़ता है िजसके अ तगत येक व तु अ धगम तथा वैयि तक अ त: शि त प रपूण करने का
अवसर दान करती है।
(2) अपने नये व प म, नर तर श ा, जो कु छ भी पहले अ यास म है, से कह ं दूर आगे
बढ़ती तीत होती है, वशेषतया वक सत दे श म, अथात वय क के लए पुन चया श ण,
पुन श ण तथा प रवतन अथवा ो साहन पा यकम वारा पदो न त। इसे सभी के लए श ा
के वार खोलने चा हए, अनेक कार के भ न उ े य हे तु उ ह दूसरा अथवा तीसरा अवसर दे ना,
ान और सु दरता के त उनक इ छा पूण करना अथवा वयं से ऊपर उठने क उनक कामना
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क पू त करना अथवा ायो गक श ण स हत, श ण के सह यावसा यक व प को
यापक एवं गहन बनाना संभव करना।
सं ेप म, 'आजीवन अ धगम' को समाज वारा दान कए गए सभी अवसर का लाभ
उठाना चा हए।

वमू यां क न (Self Evaluation)


1. कोठार आयोग के अनु सार नधा रत श ा के ल य क ववे च ना क िजए।
2. अ तरा य आयोग के अनु सार नधा रत श ा के त भ क ववे च ना क िजए।
3. व व व यालय आयोग के अनु सार श ा के ल य बताइये ।
4. मा य मक श ा आयोग के अनु सार श ा के ल य बताइए।

2.8 आधु नक भारतीय समाज के संदभ म श ा के ल य (Aims


of Education in the reference of Modern India)
येक समु दाय, समाज तथा रा अपनी व भ न आव यकताओं तथा उ े य क पू त
के लए श ा क यव था करता है। आधु नक जनताि क भारत म भी रा क क तपय
आव यकताओं क पू त के लए श ा का आयोजन कया गया है। वत एवं लोकताि क
भारत म भी आयोिजत श ा के अनुसार कु छ ल य है। इन ल य को समझने से पहले यह
उ चत होगा क हम आधु नक लोकताि क भारत क आव यकताओं को समझे, य क
आव यकताओं के संदभ म ह शै क ल य का नधारण कया जाता है। आज दे श क वभ न
शै क आव यकताएँ न नां कत है —
1. श ा वारा भारत के भावी नाग रक के च र का इस कार वकास करने क
आव यकता है क वे एक ईमानदार, कत य न ठ तथा प र मी नाग रक बन सक।
2. श ा वारा बालक के मन और मि त क से उन वृ तय को आमूलचूल न ट करने क
आव यकता है जो रा य एकता, धम नरपे ता तथा जनत ा मक शासन यव था के
वकास म बाधक है।
3. आज व व के सम त रा म वै ा नक वृ त क होड़ लगी है। भारत इस होड़ म तभी
खड़ा रह सकता है, जब उसके नाग रक म वै ा नक च तन एवं ि टकोण का वकास
हो।
4. आज भारत के यि तय क काय कु शलता बढ़ाने क आव यकता है िजससे कृ त
द त साधन का अ धकतम उपयोग कर रा को आ थक उ न त के पथ पर अ सर
कर।
5. आज भारत के नाग रक के वा य सु धार क भी आव यकता है।
6. आज आव यकता इस बात क भी है क भारतीय सं कृ त क र ा क जाए, उसका
प रमाजन कया जाए तथा उसके सह प को व व के स मु ख रखा जाए।

30
7. वतमान म आव यकता है क भारतीय जनता को अ ध व वास, यथ क ढ़वा दता
एवं अकम यता बढ़ाने वाल भा यवा दता के चंगल
ु से नकलकर उसका आधु नक करण
कया जाए।
8. आज भारत म ऐसी श ा क आव यकता है जो यावहा रक ान दान कर सक जीवन
से स बि धत हो तथा छा क काय कु शलता एवं काय मता को बढ़ा सक।
श ा के न नां कत ल य नि चत कर सकते ह
2.8.1 यि त स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Individual)
आधु नक भारत म यि त से स बि धत श ा के न नां कत ल य नधा रत कए जा
सकते है :—
 शार रक वकास (Physical Development)
इस ल य क पू त के लए श ा यव था म हमे यायाम, योग एवं ाणायाम, वा य
श ा, शर र व ान, खेलकू द, भोजन के पोि टक त व आ द से स बि धत यावहा रक सै ाि तक
श ा क यव था करनी होगी।
 चा र क वकास (Character Development)
आज भारत के यि तय के यि त व एवं रा य चर का वकास करने क नता त
आव यकता है। आज भारत के चा र क तर काफ गर गया है व इसम चारो ओर बेईमानी,
टाचार, बला कार, कामचोर , घूसखोर जैसी कु वृि तय का बोलबाला है। भारत, म कसी भी
कार के रा य चर का भी अभाव है। इन दोन ह ि टकोण से आज भारत म यि त व
एवं रा य चर के वकास क आव यकता है अत: श ा का ल य यि तय का चा र क
वकास करना भी है।
 मान सक वकास (Mental Development)
भारत के नाग रक का इस कार से मान सक वकास करने क भी आव यकता है क वे
वत प से ववेकयु त च तन कर सक, त य का व लेषण कर सके एवं उपयु त नणय
ले सक।
 सां कृ तक वकास (Cultural Development)
यह स य है क आज भारत अपनी महान एवं गौरवमयी सं कृ त धू मल कर बैठा है।
श ा के मा यम से हम अपनी सं कृ त का प पुन : नखारना है। सं कृ त के उ नयन हे तु हम
सं कृ त का प रमाजन एवं प र करण करना होगा। श ा के वारा भारतीय सं कृ त को जन—
जन म फैलाना होगा। श ा के वारा आज हम भारतीय पर पा चा य स यता का जो भू त सवार
है उसे भगाना होगा।
 आधु नक करण करना (Doing Modernization)
श ा के वारा यि तय को ढ़वा दता, भा यवा दता एवं अ ानता क वषैल कु डल
से बाहर नकालकर लाने क आव यकता है, िजससे आज के भारतीय नई वै ा नक दु नया के
आगे गव से अपना सर ऊँचा कर सक। आधु नक करण के वारा ह वे उ न त के नये—नये
साधन व ान का योग कर सकते।

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 उ पादन का वकास करना (Development of Productivity)
आज भारत के कसान एवं मक दोन ह त यि त औसत उ पादन मता एवं
काय मता व व के अ य रा म बहु त ह कम है। यह इस लए क भारत के कसान एवं
मक दोन ह अ श त है एवं आज भी भारत म उ पादन क पुरानी तकनीक का योग कया
जाता है। श ा के वारा उनक उ पादन मता बढ़ानी है।
2.8.2 समाज स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to society)
आज भारतीय समाज अनेक बुराइय तथा ह न भावनाओं से सत है, इसके कारण आज
का भारतीय समाज वां छत उ न त नह ं कर पा रहा है। सामािजक उ न त के लए श ा को
बहु त कु छ करना है। वा तव म आज के समाज म या त बुराइय , कु र तय तथा अ यव थाओं
का अ त करके उसे उ न त के पथ पर अ सर करने का काय केवल श ा ह कर सकती है। इस
काय हे तु श ा के न नां कत ल य नधा रत कए गए है :—
 सामािजक बुराईय का अ त (Educational of social Evils)
आज का भारतीय समाज व वध सामािजक बुराइय से त है। दहे ज, मृ युभोज ,
आड बर, ढकोसले, अ ध व वास, मू त—पूजा, बाल ववाह जैसी सकड बुराइय का धु न हमारे
समाज को शनै—शनै खाये जा रहा है। श ा वारा इन बुराइय के त एक आ दोलन जमाने क
आव यकता है। श ा वारा छा को इन बुराइय के त जाग क बनाकर उनको दूर करने के
यास करने ह गे।
 समाजवाद समाज क थापना (Establishment of Socialistic Society)
भारतीय सं वधान म यह घोषणा क गई है क भारत म समाजवाद समाज क थापना
क जायेगी। समाजवाद समाज म सबको सामािजक याय मलता है, सबके लए अवसर क
समानता होती है, सबको उपयु त े म पया त वत ता ा त होती है। इस संवध
ै ा नक
यव था क पू त एवं ाि त श ा के वारा ह संभव है। आज क श ा का उ े य यह भी है
क वह भारत म समाजवाद समाज क थापना के य न व यास कर।
 लोकताि क नाग रकता का वकास (Development of Democratic
citizenship)
आज क भारतीय श ा का मु य ल य भारत म लोकताि कता का वकास करना है।
इस कार क नाग रकता के वकास से ह भारत म लोकत ा मक शासन यव था सफल हो
सकती है। इस काय के लए रा के नाग रक म नेत ृ व के गुण का वकास करना होगा, िजससे
नाग रक वत नणय ले 'सक, वचार व भाषण म प टता ला सक, जा त ा त भाषा जैसी
संक णताओं से ऊपर उठ 'सके तथा धमा धता एवं प पात को याग रा के उ थान हे तु क टब
हो सक|
2.8.3 रा स ब धी शै क ल य (Educational Aims Related to Nation)
आज भारत रा के सामने भी अनेकानेक सम याएँ ह। इन रा य तर क सम याओं
के समाधान हे तु श ा के न नां कत ल य नधा रत कए जा सकते ह :—
1. रा य एकता क भावना का वकास करना
2. मानवीय मू य का वकास करना
3. जन— श ा क यव था करना

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4. आ थक उ न त के माग श त करना
5. आधु नक करण क या को ग त दान करना
6. अ तरा यता क भावना का वकास करना
उपयु त ल य क ाि त श ा वारा ह क जा सकती है। हम अपनी श ा णाल
को य प से यि तगत, सामािजक एवं आव यकताओं से स बि धत करना होगा।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. आधु नक भारतीय समाज के सं द भ म श ा के सामािजक ल य क ववे च ना
क िजए|
2. यि तगत एवं रा य ल य को बताइए|

2.9 श ा का ऐतहा सक प र े य, श ा म प रव तत वृ तयां ,


श ा का भावी प र े य (Historical Perspective of
Education,Changing Trends In Education,Future
Perspectives of Education)
2.9.1 ाचीन भारतीय समाज का व प एवं श ा
व व म भारतीय सं कृ त ाचीनतम एवं सव कृ ट मानी जाती है। भारतीय सं कृ त का
मू ल ोत वै दक सं कृ त है िजसका भाव श ा पर पड़ता रहता है तथा श ा ने भी बदलती
हु ई प रि थ तय के अनुकू ल भारतीय समाज एवं सं कृ त म आव यक प रवतन, संशोधन एवं
प रव न कये ह। भारतीय सं कृ त म सम वय क पर परा ाचीन काल से चल आ रह है।
ाचीन भारतीय समाज म वणा म यव था थी धम अथवा आ याि मकता पर वशेष बल दया
जाता था। इस लए श ा को एक काश के समान माना गया था िजसका काय यि त को
अ धकार (अ ान) से काश ( ान) क ओर ले जाना था।
भारतीय सं कृ त एवं श ा के संदभ म डॉ. अन त सदा शव अ तेयर का मत है क
'' ाचीन भारत म श ा अ त यो त और शि त का ोत मानी जाती थी जो शार रक मान सक,
बौ क और आ थक शि तय के संतु लत वकास से हमारे वभाव म प रवतन लाती थी तथा
उसे े ठ बनाती थी। इस कार श ा हम इस यो य बनाती थी क हम समाज म एक व नत
और उपयोगी नाग रक के प म रख सक। यह अ य प से हम इहलोक और परलोक दोनो
म आि मक वकास म सहायक थी।'' श ा क यव था समाज एवं सं कृ त के वकास म
सहायक थी। ाचीन काल म गु कु ल एवं आ म म रहकर श ा हण करते थे। आ म यव था
के अनुसार मचया म श ा ा त करने क अव ध नि चत थी। पा यचया के वषय भी
त काल न आव यकता के अनुसार समाजोपयोगी एवं बालक के सवागीण वकास म सहायक होते
थे। शनै—शनै गु कु ल आ म यव था के साथ—साथ बौ काल म त शला, नालंदा,
पाटल पु वलभी, एवं व म शला जैसे व व व यालय क थापना हु ई िजनम व या ययन हे तु
वदे श से भी आया करते थे।

33
2.9.2 म यकाल न भारतीय समाज का व प एवं श ा
म यकाल न भारत म मु ि लम आ मणका रय ने ाचीन श ण सं थाएँ न ट ट कर
द ं क तु जब शां त व यव था था पत हु ई तो द ल के सु लतान ने श ा क ओर कु छ यान
दया। य य प श ा क कोई सु यवि थत नी त मु ि लम शासक ने नधा रत नह ं क थी।
तथा प कई थान पर मि जद म मकतब और मदरसे खोले गए िजनम अरबी व फारसी का
अ ययन कया जाता था। मकतब ाथ मक श ा क सं थाऐ थीं तथा मदरसे उ च श ा के
के थे। पं डत व ा मण अपने घर म या मि दर म ह दू बालक को ाचीन प त से श ा
दे ते थे। मु सलमान म पदा था होने से म हला श ा उपे त रह । मु गल शासक के समय
श ा पर अ धक यान दया जाने लगा। उदू व फारसी शासन व याय क भाषा होने के कारण
इनके अ ययन क ओर लोग का यान अ धक जाने लगा ता क उ ह सरकार नौकर मलने
लगे।
भारतीय सं कृ त सदै व से सम वयकार रह है िजतने भी वदे शी आ मणकार —शक हु ण,
कु शाण, मु सलमान आ द भारत म आकर बस गये, भारतीय सं कृ त म उनक सं कृ त का वलय
हो गया। भारतीय समाज वदे शी भाव के कारण प रव तत होते हु ए भी अपनी ाचीन
सा कृ तक पर परा को अ ु ण बनाये रख सका तथा पर पर सा कृ तक आदान— दान वारा
नवीन सामािजक मू य का सृजन एवं वकास करता रहा। डा. आशीवाद लाल ीवा तव का मत
है क “'आधु नक भारतीय सं कृ त कसी एक जा त या स दाय क दे न नह है। यह म त
सं कृ त है िजसम ह दू, बौ , मु ि लम, ईसाई तथा अं ेज का योगदान है।'' म यकाल न
भारतीय समाज म जो सम वयकार प रवतन व प रवधन हु ए वे मु ि लम शासक क श ा नी त
से े रत थे।
2.9.3 वतमान भारतीय समाज का व प एवं श ा
मु गल सा ा य के पतन के बाद भारत म अं ेजी शासन आर भ हु आ। अं ेज क ई ट
ईि डया क पनी भारत म यापार के प म आई क तु शनै: शनै: अपने दे श के राजनै तक
मामल म ह त ेप कर अपनी स ता था पत कर ल । आरं भ म अं ेज ने दे श म श ा— सार
के त उदासीनता दखलाई क तु बाद म अपने शासन को सु ढ़ करने हे तु उ ह ने ऐसी श ा
प त क नींव डाल जो भारतीय को अं ेजी भाषा के मा यम से श त कर लक तैयार कर
सक। 1835 म गवनर जनरल क क सल के कानून सद य एवं श ा स म त के अ य लाड
मेकाले (Macauley) ने अं ेजी श ा और मा यम का समथन करते हु ए कहा, “हमे अपनी
सम त शि त लगाकर ऐसा य न करना चा हए क हम भारतवा सय क एक ऐसी ेणी बना
सक िजसम यि त जा त और रं ग म तो भारतीय ह रह पर तु च, वचार और भाषा म पूण
अं ेज हो।'' अं ेज वारा अपनाये गये ' न प दन स ा त' (Down ward filteration
theory) के अनुसार श ा यव था केवल उ च वग वशेष के लए क गई। काला तर म
अं ेजी श ा प त के चार व सार वारा भारतीय म अपनी सं कृ त के त घृणा उ प न
क गई।
य य प अं ेजी शासन के व भारतीय वाधीनता आ दोलन क अव ध म कु छ
भारतीय श ा वद एवं च तक ने रा य श ा प त को अपनाने पर बल दया िजनम वामी
ववेकान द, वामी दयान द, ीअर व द, महा मा गॉधी आ द मु ख है तथा प 1947 म दे श क

34
वत ता ाि त के बाद भी पर परागत अं ेजी श ा प त ह जार रह । फलत: भारतीय
समाज व सं कृ त का वघटन होता रहा जो रा के वकास म बाधक है। वतमान भारतीय
समाज के प रवतन म श ा प त अपनी वधायक भू मका नह नभा सक । वात ो तर काल
म दे श क श ा प त को रा य हत के अनुकू ल वक सत करने हे तु अनेक श ा आयोग ने
अपनी तु तयाँ तु त क है क तु अभी तक ऐसी रा य श ा प त का नधारण नह हो
पाया है िजससे क दे शवा सय क आशाओं एवं आकां ाओं के अनुकू ल वतमान भारतीय समाज
म श क अपनी ाि तकार भू मका नभाकर भावी भारतीय समाज का नव नमाण कर सक।

2.10 श ा म प रव तत वृि तय (Changing Trends in


Education)
श ा के ल य एवं उ े य दे शकाल के अनुसार प रव तत होते रहते है तथा वतमान एवं
भ व य क आव यकताओं के अनु प उनम सतत ् प रवतन, प रव न एवं संशोधन अपे त ह।
ऐ तहा सक प र े य म यह त य ि टगत होता है।
ाचीन भारत म श ा धा मक (आ याि मक) एवं नै तक गुण के वकास का साधन थी।
अत: उस समय श ा के ल य एवं उ े य भी आदशवाद दशन से भा वत थे। गीता के अनुसार
“सा व या या वमु तये”' अथात व या वह है जो मुि त दे , श ा का ल य था। फलत: श ा
प त, श ा म, श क, श ाथ आ द के आदश भी उसी ल य के अनुकू ल नधा रत कये गये
थे। जा त था के चलन के बाद श ा के ल य यावसा यक भी हो गये। म यकाल अथात
मु ि लम शासन के अ तगत श ा का ल य धा मक व यावसा यक बना रहा। इस काल म धम
क अपे ा नै तकता पर अ धक यान दया जाने लगा तथा जी वकोपाजन क यो यता दान
करना श क का मु य उ े य हो गया।
श ा के उ े य पि चमी दे श म भी नधा रत कये गये। यू नान के पाटा नगर रा य म
श ा का उ े य था शि त व साहस का वकास तथा रा य के त पूण ा। दूसरे नगर रा य
ऐथे स म श ा के उ े य म यि त को यथे ट मह व दे कर जीवन म सु ख ा त करना भी
अ भ ट समझा गया। ाचीन पा चा य श ा के उ े य दे श काल क ि थ त के अनुसार नधा रत
कए गए थे िजनम आगे चलकर काफ प रवतन हु आ।
वतमान काल म औ यो गक, लोकत , समाज धम नरपे ता, वै ा नक ग त आ द के
भाव व प श ा के ल य एवं उ े य म ाि तकार प रवतन हु ए। आज येक दे श अपने
दे शवा सय क आशा एवं आकां ा तथा च लत शासन यव था के अनु प नाग रक तैयार करने
हे तु आधु नक वचारधाराओं के प र े य म अपनी श ा के ल य और उ े य नधा रत करता है।
मनोवै ा नक एवं शै णक अनुसध
ं ान का श ा के ल य एवं उ े य के नधारण पर भाव हु आ
है। बालक क ज मजात मताओं के वकास तथा यवहारगत वां छत प रवतन पर भाव हे तु
यवहार के तीन प ाना मक ( ान, अवबोध व ानापयोग), भावा मक (अ भवृ त एवं
अ भ च) एवं कया मक (कौशल) को ि टगत रखते हु ए श ण उ े य नधा रत होने लगे ह।
इसके अ त र त जब श ा के वैयि तक एवं सामािजक उ े य म सम वय कया जाता है िजससे
क श ा एकांगी न होकर यि त एवं समाज दोन क ि ट से उपयोगी हो सके।

35
वमू यां क न (Self Evaluation)
1. “ श ा के ल य दे शकाल के अनु सार प रव तत होते रहते ह|” इस कथन क पु ि ट
क िजए|

2.11 श ा का भावी प र य (Future Perspectives of


Education)
यह एक सावभौ मक मा यता है क दे शकाल और प रि थ तय के अनुसार श ा म
प रवतन होता रहता है। येक युग म श ा म नवाचार फु टत होते ह। समय क मांग के
अनुसार श ा म आमूल —चल प रवतन होना एक आव यक एवं वाभा वक कया है। इसी कारण
श ा म प रवतन समाज म प रवतन का एक मु ख बल माना जाता है।
अतीत एवं वतमान क श ा पर पूण प से च तन मनन करने पर ह भावी श ा क
प—रे खा प ट हो सकती है। आज ती गत म ान का व फोट हो रहा है उससे मु काबला
करने के लए व यालय के पास कोई ठोस और नि चत योजना तक नह ं है। व यालय समय
म आज मा सू चनाऐ एक त करने वाल श ा कल के लए मह वह न स होगी। भावी श ा
म बालक व श क को सतत अ ययनरत बनाए रखना होगा। पु तकालय ह ान ाि त के
ोत के प म पया त नह है। इसके लए रे डयो, ट वी, क यूटर, इ टरनेट आ द दूर संचार
साधन को क ा क म लाना होगा।
भ व य म श ा दे ने क अपे ा श ा नी त के लए उपयु त वातावरण न मत करना
अ धक मह वपूण होगा। इस लए सु स वै ा नक आइ सट न ने कहा है “'म कभी भी कसी को
कु छ भी नह ं सखाता हू ँ क तु बालक के लए ऐसे अवसर का नमाण अव य कर दे ता हू ँ क
बालक वयं ह सीख ले।'' अथात भावी व यालय और उनके क ा क वतमान व यालय और
क ा क से नता त भ न ह गे।
व यालय म उपि थ त क अ नवायता, अनुपयोगी पाठ, पुरानी पा य—पु तक, कृ म
तथा वकृ त पर ा णाल तथा आदमकाल न भावह न वतमान श ण व धयाँ आ द बात भावी
श ा के लए नरथक और मह वह न ह गी।
भावी श ा क संभा हत संक पनाएँ
1. भ व य क श ा भ व य के त चेतनाशोल होनो चा हए।
2. भावी श ा एक यि त के भ व य के क पना च को व तृत, समृ एवं प र कृ त
करने म समथ होनी चा हए।
3. भावी श ा सीखने वाल को भ व य के ाकि पत व प को न मत करने यो य बनाने
वाल होनी चा हए। अगले 20—50 वष म कस— कस कार के यवसाय ह गे, कस
कार के प रवार व मानव स ब ध ह गे, कस कार क तकनीक होगी एवं कस कार
क संगठना मक संरचनाएँ ह गी आ द।
4. भावी श ा मानव तैयार करने तथा सामािजक एक करण क कु शलताऐ वक सत करने
यो य होनी चा हए।

36
5. भावी श ा द घगामी उ े य तथा उसको ा त करने के जाताि क तर क पर बल
दे नी चा हए।
6. यूने को क बहु च चत रपोट “अ धगम अ तः न ट” का नचोड़ यह है क भ व य क
श ा के चार मु ख उ े य ह गे —
1. एक अ तरा य समु दाय का नमाण करना
2. जात म व वास उ प न करना
3. मनु य का सवा गण वकास करना
4. जीवन पय त श ा दान करना
उ त तवेदन के अनुसार भावी श ा क मह वपूण वशेषताएँ :—
 वषय—व तु यि त वशेष हे तु होगी।
 चयन के थान पर मागदशन पर बल दया जायेगा।
 श ा यि तगत होगी।
 व यालय शासन वकेि त होगा।
 व यालय म जाताि क यव था लागू क जाए, वशेष सु वधाऐ वशेषा धकार
समा त कए जाएं।
 येक सीखने वाले को वयं ह अपनी श ा का उतरदा य व संभालना होगा।
 एक सीखने वाला समाज (Learning society) एवं सीखने वाला वातावरण
(Learning Enviornment) बनाया जाए।
 श ा क औपचा रक यव थाओं के थान पर पूणतया खु ल एवं ग तशील
यव थाऐ होनी चा हए। ता क कोई भी सीखने वाला अपनी इ छा, मता या ग त
के अनुसार अपने जीवन के लए उपयोगी ान कसी भी ोत से ा त कर सक।
 व यालय श ण साम ी के के के प म हो, श क आव यकता पड़ने पर
सहायता व मागदशन कर। समाज के व भ न औपचा रक एवं अनौपचा रक साधन
श ा ा त करने म सहायक हो।
 आयु सीमा, वषय , पा य मो तर , पर ाओं के कृ म अवरोधक समा त कर
दए जाएं।
 पूव ाथ मक एवं ौढ़ श ा पर वशेष प से अ धक बल दया जाए।
 श ा को अ याधु नक तकनीक श ा दान करने म अ धका धक योग कया
जाएं।
 अ त वषयी श ा व शोध काय पर बल दया जाएं।
 भावी श ा ग तशील, सामािजक असमानताओं और अ याय से मु ि त दलवाने
वाल तथा पर परागत मू य वाल होनी चा हए।
रा वशेष क सामािजक, आ थक व राजनी तक वकास क अव थाओं के अनुसार
सश त व स पूण होना चा हए। ऐसा तभी संभव होगा जब क श ाशा ी, सामािजक व
राजनी तक नेता, अ धकार सभी श ा के भ व य के बारे म खु ले दमाग से सृजना मक च तन
कर व यावहा रक काय कर।

37
2.12 सार सं ेप (Summary)

श ा के ल य एवं उ े य
ल य या के लए पथ द शत करते ह जब क उ े य काय के फल या प रणाम का
घोतक है।
श ा के ल य
(1). यि तगत ल य
 आ मानुभू त
 आ मा भ यि त
(2). सामािजक ल य
 उ प
 उदार प
(3). अ य ल य
 ान का ल य
 शार रक वकास का ल य
 चर वकास
 नाग रकता का ल य
 जी वकोपोजन का ल य
 सां कृ तक वकास का ल य
 सवागीण वकास का ल य
व भ न आयोग एवं स म तय के अनुसार श ा के ल य :—
1. व व व यालय आयोग के अनुसार श ा के ल य
2. मा य मक श ा आयोग के अनुसार श ा के ल य
3. कोठार आयोग के अनुसार श ा के ल य
4. नई नी त 1986 एवं राममू त स म त के अनुसार श ा के ल य
5. राममू त स म त वारा रा य श ा नी त क समी ा
6. अ तरा य श ा आयोग (डेलस आयोग ) ''अ धगम अ तः न ट न ध' म मु य
संकेतक एवं सफा रशे –
श ा के चार त म —
जानने का अ धगम Learning to Know
करने का अ धगम Learning to Do
इक े रहने का अ धगम Learning to live together
बनाने का अ धगम Learning to be
आधु नक भारतीय समाज के संदभ म श ा के ल य :—
 यि त स ब धी शै क ल य
 समाज स ब धी श ा के ल य
 रा स ब धी शै क ल य
38
श ा का ऐ तहा सक प र े य
1. ाचीन भारतीय समाज का व प एवं श ा
2. म यकाल न भारतीय समाज का व प एवं श ा
3. वतमान भारतीय समाज का व प एवं श ा
श ा का भावी प र े य
आज ती ग त से ान का व फोट हो रहा है उससे मु काबला करने के लए व यालय
के पास कोई ठोस और नि चत योजना तक नह ं है। भावी श ा म बालक व श क को सतत ्
अ यायनरत बनाए रखना होगा। पु तकालय ह ान ाि त के साधन के प म पया त नह ं है।
इसके लए रे डय , ट वी. इ टरनेट आ द दूर संचार के साधन को क ा—क म लाना होगा।

2.13 मू यांकन न (Evaluation Questions)

1. श ा के वैयि तक एवं सामािजक ल य म वरोधाभासी या ब दु है?


What are the points of contradiction between Individual and social
aims of Education?
2. आधु नक भारतीय समाज क आव यकताओं व आकां ाओं के स ब ध म श ा के
ल य क परे खा तु त क िजए ।
Give a brief outline of the aims of Education relvent for fulfillment
of the needs and aspiration of modern Indian Society.
3. आधु नक भारतीय समाज के लए श ा के ल य का वणन क िजए।
Enumerate the aims of education relevant to modern Indian
Society.
4. ल य एवं उ े य के स यय को बताइए। ल य एवं उ े य म अ तर प ट क िजए।
Write the concept of Aims and Objectives/Diffenciate between Aims
and Objectives.
5. वतमान भारत के लए उपयु त ल य का नधारण करते समय आप कन बात का
यान रखना चा हए।
What would you like to keep in your mind while formulat a
suitable aims of Education for present Indian Society.
6. श ा के व भ न ल य या है? उनम से आप कसे सबसे अ धक मह वपूण समझते
है? ववेचना क िजए।
What are the various aims of Education?Which of them is most
important according to you? Discuss.
7. वभ न श ा आयोग ने श ा के ल य के स ब ध म या वचार दये है?
व तारपूवक ववेचना क िजए।

39
Discuss the view of different Education Commission regarding the
aims of Education.

2.14 स दभ थ सू ची (Bibliography)

1. अ वाल एस. के. : श ा के ताि वक स ा त


2. बंसल आर. ए. तथा शमा : श ा के स ा त
रामनाथ
3. बटलर : फोर फलोसॉफ ज
4. भा टया : फलोसॉफ ऑफ एजू केशन
5. चौबे अ खलेश एवं चौबे सरयू : श ा के दाश नक, ऐ तहा सक और
साद समाजशा ीय आधार
6. ओड एल.के. : श ा क दाश नक पृ ठभू म
7. माथुर एस. एस. : श ा के दाश नक तथा समाजशा ीय आधार
8. पार ख मथुर वर शमा रजनी : उदयीमान भारतीय समाज तथा श ा
9. स सैना एवं आर. व प : श ा के दाश नक एवं समाजशा ीय स ा त
10. डा. राधाकृ णन : भारतीय दशन

2.15 रपोट सू ची (Report List)


1. Report of secondary Education commission 1952.
2. Report of Education commission 1966.
3. National policy of Education 1986.
4. Programme of action: National policy of Education1995.
5. International commission on Education on development of
Education,Learning to be,UNESSCO 1972
6. International commission on Education for the twenty first century:
Learning the treasure within, UNESSCO Report of Delars,1996.

40
इकाई—3
श ा के अ भकरण : औपचा रक, अनौपचा रक एवं
नरोपचा रक
(Agencies of Education : Formal,Non—formal and
Informal)
इकाई क परे खा (Outline of the unit)
3.1 इकाई के उ े य (Objectives of the unit)
3.2 वषय वेश (Introduction)
3.3 श ा के अ भकरण का वग करण (Classification of Agencies of Education)
3.4 श ा के औपचा रक अ भकरण (Formal Agencies of Education)
3.4.1 औपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Formal Agencies)
3.4.2 औपचा रक श ा के दोष (Demerits of Formal Education)
3.4.3 व यालय श ा के औपचा रक अ भकरण के प म (School as a Formal
Agency of Education)
 व यालय क प रभाषा (Definition of School)
 आधु नक व यालय क मु ख वशेषताएँ (Main Characteristics of
modern School)
 व यालय के काय (Function of School)
3.5 श ा के अनौपचा रक अ भकरण (Informal Agency of Education)
 घर या प रवार (Home or Family)
 समु दाय (Community)
 रा य (State)
 धम या धा मक सं थाएँ (Religion or Religies Institutions)
 जनसंचार के साधन (Mass Media)
3.5.1 अनौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Informal Education)
3.5.2 अनौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Informal Education)
3.6 श ा के नरोपचा रक अ भकरण (Non—Formal Agency of Education)
3.6.1 नरौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Non—Formal
Education)
3.6.2 नरौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Non—Formal Education)

41
3.7 श ा के औपचा रक, अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण म अ तर (Difference
among Formal Informal and Non—Formal Education)
3.8 खु ला व यालय, खु ला व व व यालय (Open School, Open universities)
3.8.1 खु ला व यालय (Open School)
3.8.2 खु ला व व व यालय (Open University)
(अ) व व व यालय के कार (Types of Open University)
 आवासीय व व व यालय (Residential University)
 अनुबि धत व व व यालय (Contact Bases University)
 आवासीय तथा अनुबि धत व व व यालय (Residential and Contact
Bases University)
(4) खु ला व व व यालय (Open University)
 खु ला व व व यालय क आव यकता (need of Open University)
 खु ला व व व यालय क काय व ध (Procedure of Open University)
 खु ला व व व यालय : वकास कथा (Open University : Development
History)
3.9 इि दरा गॉधी रा य खु ला व व व यालय (indira Gandhi National Open
University)
3.10 रा य तर य खु ला व व व यालय : वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
(State Open University : Vardhman Mahaveer Open University)
3.10.1 उ े य (Objectives)
3.10.2 वधमान महावीर खु ला व व व यालय क वशेषताएँ (Characteristics of
Vardhman Mahaveer Open University,Kota)
3.10.3 अ ययन साम ी एवं ेणांक (Study Material and Credit System)
3.10.4 वधमान महावीर खु ला व व व यालय वारा संचा लत व भ न पा यकम (Difference
Courses run by Vardhman Open University)
3.10.5 पर ा प त (Examination Pattern)
3.10.6 मू यांकन (Evaluation)
3.10.7 व याथ सहायता सेवाएँ (Student Support Services)
3.11 सार सं ेप (Summary)
3.12 मू यांकन न (Evaluations Question)
3.13 संदभ थ सूची (Bibliography)

3.1 इकाई के उ े य (Objectives of the Unit)


1. श ा के अ भकरण का अथ समझ सकगे।

42
2. श ा के अ भकरण का वग करण समझ सकगे।
3. श ा के औपचा रक, अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण के स यय से प र चत
हो सकगे।
4. इन तीनो अ भकरण म अ तर था पत कर सकगे।
5. व यालय एक औपचा रक अ भकरण के साधन के प म या या कर सकगे।
6. व यालय के काय को समझ सकगे।
7. घर—प रवार, समु दाय, रा य, धा मक सं थाएँ एवं जनसंचार साधन म अनौपचा रक
अ भकरण के साधन है, प र चत हो सकगे।
8. खु ल व यालय के व प म अवगत हो सकगे।
9. व व व यालय के कार से अवगत हो सकगे।
10. खु ला व व व यालय के व प, आव यकता के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
11. खु ला व व व यालय क काय व ध एवं वकास गाथा से प र चत हो सकगे।
12. रा य एवं रा य तर य खु ला व यालय के बारे म जानकार ा त कर सकगे।

श ा के अ भकरण : औपचा रक, अनौपचा रक एवं नरोपचा रक (Agencies of Education


: Formal,Non—Formal and Informal Agencies)

3.2 वषय वेश (Introduction)


जब हम श ा को आजीवन चलने वाल कया के प म दे खते ह तो हम श ा के
साधन के प म सफ व यालय को ह नह ं दे खते वरन ् उन अनेक सं थाओं को भी उसम
समि वत करते ह िजनम यि त जीवन पय त रहता है एवं िजसम यि त उपयोगी व
अनुपयोगी ान ा त करता है। इन सं थाओं को हम श ा के अ भकरण (Agencies of
Education) के नाम से पुकारते है। अत: श ा के अ भकरण वह त व, कारण या सं थाएं है
जो बालक पर य या परो प से शै क भाव डालते ह। य द हम यापक अथ म दे खते
तो मनु य का स पूण वातावरण ह उसक श ा को भा वत करता है पर तु इस वातावरण म
कु छ त व अ धक मह वपूण होते ह चू ं क इनका बालक क श ा से य स ब ध होता है।
श ा के अ भकरण का अथ प ट करते हु ए बी.डी. भ टया (B.D.Bhatiya) ने लखा है 'समाज
म श ा के काय को करने के लए अनेक व श ट सं थाओं का वकास कया है। इ ह ं सं थाओं
को श ा के अ भकरण कहा जाता है। (Society has developed a number of
specialized institutions to carry out the function of education.These
institutions are known as the agencies of Education).

3.3 श ा के अ भकरण का वग करण (Classification of the


Agencies of Education)

43
ाउन (Brown) ने श ा के अ भकरण को चार े णय म वग कृ त कया है :—

यूवी (Duewy) ने श ा के अ भकरण को न न दो भाग म वभािजत कया है :—

सामा यतया हम श ा के अ भकरण को बालक के वारा क गई अ तः याओं के


आधार पर न न दो भाग म वभािजत कर सकते ह :—

44
उपयु त सभी वग करण को दे खते हु ए हम श ा के अ भकरण को मु यत:
न न ल खत तीन े णय म वग कृ त कर सकते ह :—

3.4 श ा के औपचा रक अ भकरण (Formal Agencies of


Education)
औपचा रक अ भकरण से ता पय उन अ भकरण से ह जो पूव नि चत योजना के
अनुसार नि चत उ े य क ाि त के लए बालक को नयि त वातावरण म रखते हु ए नि चत
यि त वारा न चत पा य म ( ान) को नि चत व ध वारा नि चत थान पर नि चत
समय म समा त कर दे ते ह। औपचा रक अ भकरण वारा श ा को प ट करते हु ए
जे.एस.थॉमसन (J.S.Thomson) ने कहा है, '' श ा एक ऐसी यॉ है िजसम तथा िजसके
वारा बालक के ि टकोण, ान, च र , यवहार एवं आदत को थायी प से आकृ त दे ने का,
ढालने का य न कया जाता है।'' इस कार व यालय एवं महा व यालय म दान क जाने
वाल श ा को औपचा रक श ा के अ तगत सि म लत कया जाता है। जहाँ नि चत
समयाव ध म नि चत पा यकम, नि चत श क वारा नि चत ल य, उ े य क पू त हे तु
पूण कया जाता है। औपचा रक प से श ा व यालयीकरण क कया है। औपचा रक
अ भकरण के लाभ पर काश डालते हु ए जॉन यवी (John Dewey) ने कहा है, ''औपचा रक
श ा के बना ज टल समाज के साधन और उपलि धय को ह ता त रत करना संभव नह ं है।
यह एक ऐसे अनुभव क ाि त का वारा खोजती है, िजसको बालक दूसर के साथ रहकर
अनौपचा रक श ा के वारा ा त नह ं कर सकते।''
3.4.1 औपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Formal Education)
 यह श ा पूव नयोजन, आयोजन एवं स य नशील उपाय वारा दान क जाती है ।
 औपचा रक श ा मू लत: व यालय के वारा ह दान क जाती है ।
 इसका ार भ व यालय जाने पर होता है एवं अ त भी व यालय छोड़ने पर हो जाता
है ।
 यह श ा भौ तक मू य से जु ड़ी होती है और हम भौ तक साधन को जु टाने हे तु े रत
करती है।
 इसका उ े य बालक को पर ा उ तीण कराकर माण—प ा त कराना है ।
 औपचा रक श ा म श ा के उ े य, पा यकम, थान, समय, अ यापक आ द
सु नि चत कर लए जाते ह|

45
3.4.2 औपचा रक श ा के दोष (Demerits of Formal Education)
 यह श ा सै ाि तक अ धक व यावहा रक कम है।
 औपचा रक श ा बालक को यह सखाती है क उसके जीवन का मु ख उ े य पर ा
उ तीण करना है एवं माण—प ा त करना है।
 यह श ा अ यापक को भी पा य म पूरा करने तक सी मत कर दे ती है।
 श ा व यालय क चार द वार म बँध जाती है।
3.4.3 व यालय— श ा के औपचा रक अ भकरण के प म (School as a Formal
Agency Of Education)
ाचीनकाल म ीक म बालक िजस थान पर अपने आ मा के वकास हे तु जाता था
उ ह कू ल कहते थे। धीरे —धीरे इन सं थाओं का वकास श ा दे ने के एक पूव नयोिजत थान
के प म हु आ जो बालक को नि चतकाल म नि चत समय म नि चत कार क श ा दान
करने का काय करते थे।
भारतीय दशन क मा यता व यालय के बारे म वह व या+आलय अथात ् व यालय वह
थान है जहाँ श ा का आदान— दान होता है। वा त वकता म दे खा जाए तो व यालय
औपचा रक श ा दान करने का स य साधन है।
(1) व यालय क प रभाषा (Definition of School)
जॉन यूवी (John Dewey) के अनुसार, ' कू ल एक ऐसा व श ट वातावरण है जहाँ
बालक के वां छत वकास क ि ट से व श ट याओं तथा यवसाय क श ा द जाती है।''
"School is a special environment where a certain quality of life
and certain type of activities and occupation are provided with the object
of securing the child's development along desirable lives."
रॉस (Ross) के अनुसार, '' व यालय वे सं थाएँ ह िजनको स य मनु य ने इस उ े य
से था पत कया है क समाज म सु यवि थत तथा यो य सद यता के लए बालक को तैयार
करने म सहायता मले।''
"Schools are institutions desired by civilized man for the purpose
of aiding in the preparation of the young for well adjusted and efficient
members of society."
व यालय क अवधारणा क चचा हम दो प म कर सकते ह :—
 व यालय क पर परागत अवधारणा (Traditional Concept of Education)
 व यालय क आधु नक अवधारणा (Modern Concept of Education)
व यालय क पर परागत अवधारण म व यालय को ान दान करने के एक साधन
के प म दे खते है। इनक मा यता है क व यालय म ान का य व व य होता है।
अ यापक ान को बेचते है व बालक ान खर दते है। यह वचारधारा श ा क या को
नीरस व नज व बनाती है एवं कूल के वातावरण को भी कृ म बनाकर वा त वकता से दूर ले
जाती है। इन व यालय म ान दान करने का तर का मनोवै ा नक होता था। चू ं क बालक क
च, यो यता व मताओं पर ये यान नह ं दे ते थे।

46
व यालय क आधु नक आवधारणा के अ तगत समाज व यालय से कु छ अ धक
अपे ाएँ करता है। अब व यालय सू चना तथा ान दान करने के के मा नह ं रहे है। आज
के व यालय का उ े य लोकत ा मक शासन णाल के लए एक कु शल व सफल नाग रक का
नमाण करना भी है।
(2) आधु नक व यालय क मु ख वशेषताऐ (Main Characteristics of Modern
School)
 छा के त नवीन ि टकोण (New Attitude towards Students)
 श ा म या के स ा त पर बल (Emphasis on principle of Activity in
Education)
 सामु दा यक भावना का वकास (Development of Community Feeling)
 स य वातावरण होना (Have an active Environment)
 रा व व व के त ि टकोण का नमाण (Formation of the Healthy
Attitude for Nation and the World)
(3) व यालय के काय (Function of School)
व भ न व वान ने व यालय के काय के स ब ध म अपने—अपने वचार य त कये
ह िजनम से मु ख इस कार है —
ू ेकर (Brubacher) ने व यालय के काय को तीन
ब े णय म वभ त कया है:—

थॉ पसन (Thompson) ने व यालय के काय को इस कार वभ त कया है:—

47
नै सी कैट (Nancy Catty) ने व यालय के न न काय बताएं है :—

व—मू यां क न(Self Evaluation)


1. श ा के अ भकरण का स यय प ट क िजए|
2. श ा के अ भकरण का वग करण तु त क िजए|
3. औपचा रक अ भकरण के स यय को प ट क िजए|
4. व यालय एक औपचा रक अ भकरण के साधन के प मे ह| य? प ट क िजए|

3.5 श ा के अनौपचा रक अ भकरण (Informal Agency of


Education)
श ा के अनौपचा रक साधन श ा को एक जीवनपय त चलने वाल कया के प म
दे खते ह। इनका मानना है क लखना, पढ़ना या अ र ान ा तकर लेना ह श ा नह ं है।
श ा इसम बहु त अ धक यापक तथा व तृत यय है। श ा वा तव म वह है जो हम अपने
जीवन के अ छे —बुरे अनुभव से सीखते ह और यह अनुभव यि त जीवन पय त ा त करता है।
डि वल (Dumvile) के श द म " श ा के यापक प म वे सभी भाव आ जाते है
जो यि त को ज म से लेकर मृ यु तक भा वत करते ह।"
बै टाक (Bentak) के श द म " श ा सभी कार के अनुभव का योग है िजसे मनु य
अपने जीवनकाल म ा त करता है और िजसके वारा वह जो कु छ है, उसका नमाण होता है।''
जे.एस.रॉस (J.S.Ross) ने इस स ब ध म लखा है, "अनौपचा रक श ा बालक वारा
सभी भाव हण करना और उसे अपनी कृ त से उ तेिजत कर पूणतया वक सत करना
सखाती है।'' वा तव म दे खा जाए तो अनौपचा रक श ा जीवन से स बि धत वे अनुभव है
िज ह हम बना कसी यवि थत यास सं था तथा साधन के वाभा वक ि थ त से ा त करते
ह। इस कार क श ा य प से जीवन से स बि धत होती है। यह श ा वाभा वक प
म होती है इसक न तो कोई नि चत योजना होती है और न ह कोई नि चत नयमावल । यह

48
बालक के आचरण का पा तरण करते ह पर तु पा तरण क या अ ात, अ य व
अनौपचा रक होती है।
इन अ भकरण म घर या प रवार, समु दाय, रा य, धम या धा मक सं थाएं एवं जन—
संचार के साधन यथा रे डयो, ट वी, चल च आ द क गणना क जाती है।
 घर या प रवार (Home or Family)
घर या प रवार ाचीनकाल से ह मानव के सामािजक जीवन का आधार रहा है। घर या
प रवार म ह बालक ारि मक श ा हण करता है तथा बाद म भी अ य प से उसके
यि त व पर भाव डालता है। वह बालक क आ थक, धा मक, सामािजक और शै क सभी
कार क आव यकताओं क पू त करता है। बालक अपने प रवारजन को दे खकर अनुकरण वारा
अथवा घर के काय म हाथ बटाकर अनेक चा र क गुण को सीखते है। अत: घर या प रवार का
कत य है क वह अपने बालक क अ य श ा वारा उनके त ेम, नेह व सहानुभू त का
यवहार कर उनके यि त व का वकास करे । व यालय अथवा औपचा रक अ भकरण के काय म
भी घर या प रवार का सहयोग अपे त है।
 समु दाय (Community)
थानीय समाज या समु दाय म रहकर बालक र त— रवाज, पर पराएँ, धारणाएँ तथा
जीवन प त का अ य श ण ा त करता है। समुदाय सामािजक जीवन का े है।
व यालय अथात ् औपचा रक अ भकरण क कायकु शलता एवं भावो पादकता समु दाय पर ह
नभर होती है। थानीय समु दाय के सहयोग, सदभावना एवं जन—सहयोग वारा ह श ा के
औपचा रक अ भकरण या सं थाओं क थापना होती है एवं उनका श ण काय उ च तर य बन
पाता ह|
 रा य (State)
अनौपचा रक श ा अ भकरण म रा य का भाव आज क ि थ त म सव पर है।
बालक क समु चत श ा—द ा हे तु पया त धनरा श आवं टत कर उपयु त श ा सं थाओं क
थापना करने व श ा के समान अवसर समाज के सभी वग के बालक को उपल ध कराने म
रा य का योगदान ह नणायक स होता है। इसके अ त र त रा य क राजनै तक ग त व धयाँ
भी बालक क श ा पर अ य क तु नणायक भाव डालती है। भारत जैसे लोकताि क
शासन णाल के दे श म वधायक एवं सांसद के यवहार एवं लोकताि क सं थाओं क काय
णाल बालक को भा वत करती है तथा उ ह भावी नाग रक क भू मका नभाने हे तु तैयार
करती है। अत: रा य का यह कत य है क वह श ा के त अपने उ तरदा य व को समझे।
 धम या धा मक सं थाएँ (Religion or Religies Institutions)
धम या धा मक सं थान (मि दर, मि जद, गु वारा, चच आ द) का बालक के
यि त व पर अ य भाव पड़ता है। य य प भारत एक धम नरपे लोकताि क रा है
क तु धम का भारतीय जनमानस पर सदै व से ह गहरा भाव बना रहा है। अत: इन धा मक
सं थाओं का यह कत य है क वे अपने स यय के बालक म धम—स ह णु ता तथा दूसर के
धम के त आदर क भावना वक सत कर िजससे क सा दा यक भेदभाव के कारण रा य
एकता था पत करने म कोई बाधा न आये।

49
 जनसंचार के साधन (Mass Media)
जनसंचार के साधन म समाचार प , चल च , ट वी. आ द का इस युग म श ा के
अनौपचा रक अ भकरण के प म भाव अ य धक ि टगत होता है। ये अ य प से बालक
के मानस पर भाव डालते ह। श ा सं थाओं म व याथ असंतोष, अनुशासनह नता,
अपराधवृि त, अ ल ल यवहार आ द अनेक असामािजक त व का समावेश जनसंचार के इन
साधन का दु भाव है। अत: इन साधन का दु पयोग न होकर बालक क अ य श ा हे तु
सदुपयोग कया जाना आव यक है।
3.5.1 अनौपचा रक श ा क वशेषताऐ (Characteristics of Informal Education)
1. अनौपचा रक श ा वाभा वक होती है अथात ् यह कृ मता से परे होती है।
2. यह श ा जीवनपय त चलती है अथात ् जब बालक इस संसार म ज म लेता है तब से
ार म होकर मृ यु पय त तक चलती है।
3. इस श ा को दे ने का मु ख साधन प रवार, पड़ौस, समाज, रा य, धम आ द है।
4. इसम बालक अपने अनुभव के मा यम से श ा ा त करता है।
5. इसम बालक वत वातावरण म श ा हण करता है। उसके ऊपर कोई कठोर
नय ण नह ं होता है|
6. यह श ा बालक क च एवं िज ासा पर आधा रत होती है।
3.5.2 अनौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Informal Education)
1. इसके वारा दान कया गया ान अ प ट होता है।
2. इसम श ा का समय व थान अ नि चत होने के कारण श ा क ि थ त सदै व
अ प ट रहती है।
3. ान हण करते समय बालक गलत धारणाओं का वकास कर लेता है|
4. इस श ा के वारा हम कौशल एवं तकनी कय का वकास नह ं कर सकते ह।
5. इसक नयमावल व अनुशासन ढ ला होता है।

व—मू यां क न(Self Evaluation)


1. श ा के अनौपचा रक अ भकरण के स यय प ट क िजए|
2. श ा के अनौपचा रक अ भकरण के साधन कौन—कौन से ह? प ट क िजए|

3.6 श ा के नरौपचा रक अ भकरण (Non—formal Agencies of


Education)
नरौपचा रक श ा का व प उसके के ब दु ''जन—समुदाय'' पर आधा रत है। जन—
साधारण को श ा दान करने हे तु श ा क जो यव था क जाती है वह नरौपचा रक श ा
है। इसे प ट करते हु ए अहमद एवं कू ब ने कहा है —' नरौपचा रक श ा औपचा रक व यालयी
श ा यव था के ढाँचे से परे एक संग ठत व सु यवि थत शै क या है वे चाहे ौढ़ हो या
बालक।'' नरौपचा रक श ा का स ब ध सीखने से है। श ाथ अपने ग त से सीखता है यह
श ा यव था उन सभी के लए है जौ औपचा रक प से श ा हण नह ं कर सकते।
50
यूने को वारा नरौपचा रक श ा के ल य को प ट करते हु ए बताया गया है क यह
यव था यि त और रा य वकास के त जन—चेतना जागृत करने हे तु तथा यह जन—समु दाय
म उ पादन कौशल, ब ध कौशल का वकास कर मानव संसाधन वक सत करने के लए यह
व प उपयोगी स हो सकता है।
नरौपचा रक श ा वह है िजसम श ा का व प पूण प से नय ण म होता है। यह
श ा क एक सचे ट या के प म दे खते ह एवं श ा के व भ न आयाम पर नय ण
रखते ह अथात ् इसम श ा का वेश, पा य म, श ण व ध, अ यापक, छा , श ा के उ े य
व श ा क यव था पूर तरह औपचा रक होती है पर तु इसके साथ ह श ा के अनौपचा रक
अ भकरण को भी नयि त कया जाता है। नरौपचा रक श ा म श ा न तो पूणतया
नयि त होती है और न पूणतया अ नयि त वरन यह दोन का सि म ण है ।
श ा क इस अवधारणा के अ तगत श ाथ कई े म नयि त होता है एवं कई
े म अ नयं त होता है। इसम ाय: आयु, थान, श ण व ध पर नय ण नह ं होता
जब क पा य म, पर ा, समय आ द क सीमा नि चत होती है।
नरौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characterstics of Non—formal Education)
1. यह श ा छा को व यालय के तनावपूण वातावरण से दूर रखती है।
2. एक समय म बहु त अ धक लोग को श त कया जा सकता है। अत: िजन दे श म
जनसं या ती ग त से बढ़ रह ं है, वह पर बहु त उपयोगी है।
3. इसम श ा पर यय कम होता है।
4. यह श ा अनौपचा रक श ा से अ धक उपयोगी है य क इसम छा उ े य के त
जाग क रहता है साथ ह छा क यो यता का मू यांकन एवं मापन करना स भव होता
है।
5. इसका पा य म नि चत होता है िजसम छा अपने उ े य के त जाग क रहता है।
6. इस श ा को दूर थान पर रहने वाले या यवसाय म संल न यि त भी ा त कर
सकते ह।
नरौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Non—formal Education)
1. छा के मन म उ प न शंका का तु र त समाधान स भव नह ं है।
2. कभी—कभी डाक यव था गड़बड़ होने के कारण छा क पढ़ाई म यवधान पड़ जाता
है।
3. सभी यि त अकेले म श ा हण करते ह इस कारण उनम समूह भावना का वकास
नह ं हो पाता।
4. अ यापक व छा के म य य स ब ध था पत नह ं हो पाता अत: उन दोन के
म य पर पर अ तः या का अभाव रहता ह|

51
1.7 श ा के औपचा रक, अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण
म अ तर (Difference among Formal,Informal and
Non— formal Agencies of Education)

.सं. श ण के े औपचा रक श ा अनौपचा रक श ा नरौपचा रक श ा


Areas of Formal Education informal Non—formal
Education Education Education
1 छा 1. नि चत होते ह। 1. सीखने वाल क 1.छा नि चत होते
(Student) 2. आयु सीमा सं या नि चत है।
नधा रत होती है। नह ं होती |
2. आयु सीमा पर
कोई नय ण नह ं
होता।
2 अ यापक 1.अ यापक श त 1. अ यापक कोई 1 श ा दे ने वाले व
(Resource होता है। भी हो सकता है। श ा हण करने
person 2.अ यापक नि चत 2. आयु सीमा पर वाले के म य कोई
Teacher) होता है। कोई नय ण नह ं स ब ध य नह ं
होता है। होता है।
3 वषय—व तु 1. सै ाि तक होते 1 यावहा रक होती 1. पा यकम
(Content) है। है। नि चत होता है।
2. नि चत होती है। 2. अ नि चत होती
3. यावहा रकता कम है।
होती है। 3. सीखने वाले क
च पर आधा रत
होती है।
4 श ण प त 1. पा यकम के 1 प त लचील 1. ल खत पाठ के
(Teaching अनुकू ल होती है। होती है। मा यम से श ण
Method) 2. यह या पर कम 2. इसम होता है|
बल दे ती ह| यावहा रकता, 2. अ यापक व
नर ण आ द पर श ाथ के म य
बल दया जाता है। अ तः या अस भव
होती है।
5 ढाँचा 1 श ण काय म 1.ढॉचे म कोई 1. ढाँचा नि चत
(Structure) यवि थत होता है। यव था नह ं होती होता है।

52
2.यह वभ न है। 2. सीखना क मक
इकाइय म वभ त 2. सीखना एक प से नह
होता है। अचानक होता है।
3.सीखना एक मक होने वाल या 3. इसक यव था
कया के प म है। सचे ट होता है।
होता है।
6 नय ण 1. इसके ऊपर 1 यह सीखने वाले इसम श ा के कु छ
(Control) याि क प से के नय ण पर े पर नय ण
नयं ण होता आधा रत होता है। होता है |
होता ह| कु छ पर नह ं।
2. सीखने वाले
पर श ा के येक
े को लाया जाता
है।
7 थान 1. थान नि चत 1. थान नि चत 1 थान छा के
(Location) होता है। नह ं होता है। लए नि चत नह ं
ले कन श ा दे ने
का थान नि चत
होता है।

8 समय 1.समय नि चत 1.समय अ नि चत 1 अव ध नि चत है


(Time) होता ह| होता ह| क तु श ा
हण करने का
समय नह ं
9 मू यांकन 1. छा का 1. छा का 1. छा के
(Evaluation) मू यांकन स भव मू यांकन स भव मू यांकन क
नह ं है। नह ं है। यव था है।
10 प रतो षक 1 अंक या उपा ध के 1 शंसा के प म 1 अंक या उपा धक
(Reward) प म मलता है। ा त होता है। के प म मलता
है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. श ा के नरौपचा रक अ भकरण के स यय प ट क िजए|
2. श ा के अनौपचा रक व नरौपचा रक अ भकरण म अ तर प ट क िजए|

53
3.8 खु ला व यालय एवं व व व यालय (Open School,Open
Universities)
3.8.1 खु ला व यालय (Open Schooling)
श ा जगत म ईवान इ लच क 'डी कू लंग सोसायट ' और एडवड रे मर क ' कू ल इज
डेड' पु तक ने नयी— वचारधारा को ज म दया है। रे मर के अनुसार हमार पर प रत व यालय
प त मर गई है और हम श ा के नये साधन क खोज करनी है। इ लच का वचार है क हम
व यालय को व था पत कर सकते ह अथवा हम अपनी सं कृ त को व यालय र हत बना
सकते ह। य क व यालय अथह न हो गये ह। इ लच ने व यालय को कारागाह माना है
इस लए वह खेल या वत व यालय क थापना करना चाहता है। उसके मत से इन वत
व यालय क दो मु ख आव यकताएँ ह :—
1. उ ह ेड व माण प से मु त होना चा हए।
2. उ ह व यालयी समाज के छुपे हु ए मू य से वत होना चा हए।
उसके अनुसार इस वत व यालय के लए वत अ यापक क आव यकता है।
अभी अ यापक का े पा य म और व यालय के े तक सी मत है। उसे बढ़ाकर स पूण
मानव जीवन से स बि धत करना है। उसके अनुसार इस तकनीक युग म कु छ चु ने हु ए
शि तशाल लोग वारा वै ा नक ान और संचार साधन पर भु व पा लेने के कारण जन—
साधारण उन सु वधाओं से वं चत रहता है। अत: इस समाज यव था म प रवतन क आव यकता
है।
एडवड रे मर के अनुसार जब छा क सं या अ य धक है और श ा के साधन यून ह
तब कसी कार क श ा नह ं द जा सकती है। उसके मतानुसार अ नवाय नःशु क श ा का
वचार दोषपूण है। इस वचार के कारण असमानता का वकास होता है। साधन क यूनता के
कारण कु छ साधन स प न यि त ह व यालय का लाभ उठा सकते ह और बचे हु ए अ य लोग
समाज म न न तर बनाए रखने को बा य कए जाते ह। भारत जैसे वकासशील दे श म अनेक
वष तक इस प त के कारण केवल कु छ साधन स प न यि त ह श ा ा त करने क
वला सता का उपभोग करते ह।
इस कार हम दे खते ह क स पूण व व म च लत श ा यव था के त अस तोष
है और उसम प रवतन क मांग बराबर क जा रह है। इसी प रवतन को मू त प दे ने के वचार
से मा य मक तर पर के य मा य मक श ा बोड द ल वारा खु ला व यालय क थापना
क गई। इस योजना के अ तगत 14 वष क आयु से ऊपर के सब वय क के लए मा य मक
तर तथा उ चतर मा य मक तर क श ा ा त करना तथा माण प ा त करने क
यव था है। मा य मक श ा के लए कोई पूव वेश यो यता आव यक नह ं है। वेशाथ म
केवल प ने— लखने क मता होनी चा हए। उ चतर मा य मक पा य म के लए मा य मक
पर ा का माण—प आव यक है। मा य मक श ा के लए एक भाषा तथा अ य कोई 4
वषय म पर ा उ तीण करना आव यक है। कोई पर ाथ चाहे तो एक साल म अथवा धीरे —धीरे
एक—एक, दो—दो वषय क पर ा दे ते हु ए पाँच साल म भी पा य म पूरा कर सकता है। श ा
का मा यम ह द अथवा अं ेजी हो सकता है।

54
व—मू यां क न (Self Evaluation)
1. खु ला व यालय के व प क ववे च ना क िजए|

3.8.2 खु ला व व व यालय (Open University)


व व व यालय क श ा हण करने के इ छुक सभी छा —छा ाओं को व व व यालय
म वेश नह ं मल पाता और कई बार ऐसा भी होता है क उ च तर श ा क कामना करने
वाले बहु त से यि त अपनी वशेष ि थ तय के कारण जी वकोपाजन करने के लए कसी न
कसी काम—ध ध को अपना लेते ह। पर तु उनक यह अ भलाषा बराबर बनी रहती है क वे
व व व यालय तर क श ा कसी न कसी प म अव य ा त कर। इस कार क
व या थय के लए खु ला व व व यालय क यव था क गई।
व व व यालय के कार (Types of Universities)
उ च श ा ा त करने के लए व भ न कार के व व व यालय क यव था इस
कार से क गई है —
(1) आवासीय व व व यालय (Residential University)
इस कार के व व व यालय म श ा क सार यव था व व व यालय प रसर म ह
उसके भ न— भ न वभाग म क जाती है। बनारस ह दू व व व यालय और अल गढ़ मु ि लम
व व व यालय आवासीय व व व यालय ह ह।
(2) अनुबं धत व व व यालय (Contract bases University)
ऐसे व व व यालय म श ण क सम त यव था व व व यालय से अनुबं धत
महा व यालय म क जाती है। इस कार के व व व यालय का काम केवल पर ा लेना और
उपा ध दे ना होता है। आगरा व व व यालय, हे लख ड व व व यालय, अजमेर व व व यालय
ह।
(3) आवासीय तथा अनुबं धत व व व यालय (Residential and Contract bases
University)
इस कार के व व व यालय म दोन ह बात होती है :—
1. व व व यालय प रसर म श ण यव था
2. अनुबं धत महा व यालय म श ण काय
इस कार के व व व यालय एक ओर तो श ण काय करते है और दूसर पर ा लेकर
उपा ध भी दे ते ह। जैसे मोहनलाल सु खा ड़या व व व यालय है।
(4) खु ला व व व यालय (Open University)
ो. नू ल हसन ने कहा था क दे श म सामा य श ण का एक वशाल काय म एक
खु ले व व व यालय (िजसका े ा धकार सम त रा हो) के वारा स प न कया जाना
चा हए। इस खु ले व व व यालय के वारा दे श के दूर थ े के व या थय क , उनक अिजत
करने क और अपने प रवार क मता को कोई हा न पहु ंचाये श ा ा त करने के अवसर ह गे।

55
खु ला व व व यालय से ता पय एक ऐसे व व व यालय से है जो उन सभी के लए है
जो उ च श ा ा त करना चाहते ह। इन व व व यालय म वेश ा त करने के लए —
1) कसी भी कार क उपा ध या माण प क ज रत नह ,ं
2) इसम आयु क कोई सीमा नह ,ं
3) कोई सी मत प रसर नह ं होता
4) छा कसी भी े का नवासी हो सकता है ।
खु ला व व व यालय अ य सामा य व व व यालय से अलग ह हो सकता है। इसम
सीमा का कोई ब धन नह ं होता है। अ यापक के थान पर इस व व व यालय म य— य
उपकरण यथा—दूरदशन, लघु चल च , य साधन यथा— व नलेख संयं (टे प रकॉडर), रे डयो,
ामोफोन, लं वाफोन वारा काय स प न होता है। साथ ह साथ उनके वारा छा के पास
सु झाव भेजे जाते ह और उनसे कु छ वषय पर ल खत उ तर मांगे जाते है। कभी—कभी थानीय
श ण समू ह क सहायता के लए श ण क यव था भी क जाती है।
भारतवष म कु छ व व व यालय प ाचार पा य म वारा भी व व व यालय तर क
श ा दान करते है। प ाचार पा य म म अ धगम साम ी डाक के वारा ह भेजी जाती है
तथा उ तर को ा त करने क भी यव था है कभी—कभी दे श के व भ न थान पर स पक
काय म (Contact Programmes) आयोिजत कए जाते ह। इस कार के कायकम एक माह
म दो बार अथवा वष म दो या तीन बार आयोिजत कए जाते ह, जहां अ यापक श ण करता
है।
इस बात को यान म रखना होगा क खु ला व व व यालय, प ाचार महा व यालय से
सवथा भ न है। इनम श ा के य— य उपकरण का योग िजस कार और िजस भाषा म
कया जाता है वैसा प ाचार व व व यालय म नह ं होता है।
खु ला व व व यालय क आव यकता (Need of Open University)
आज जो श ा छा को द जा रह है, वह मा औपचा रक बनकर रह गई है। जीवन
के कसी भी े म सम या समाधान म उनका योगदान नह ं हो पाता। छा कृ त से दूर रहकर
श ा ा त कर रहे ह। हमार श ा का एकमा उ े य अ छ नौकर ा त करना ह रह गया
है। जो श ा हम ा त कर रहे ह उसका वह ं अंश उपयोगी हो जाता है िजसका उपयोग हम
अपने यवसाय या कायालय म कर पाते ह। इस लए यह आव यक हो गया है क हम वतमान
प रि थ तय म औपचा रक, व यालय वह न, खु ला व व व यालय क तकनीक क ओर यान
द।
वै ा नक उपलि धय ने सामािजक ाि त तो उ प न क है, पर तु अनेक ज टलताओं
को भी बढ़ा दया है। श ा क औपचा रक यव था नधा रत ल य क ाि त म असमथ रह
है। उ चतर श ा के े म भी मू य का हास नर तर हो रहा है। श ण सं थान क
उपल खयॉ भी न के बराबर ह। वे केवल बेरोजगार क सेना ह तैयार कर रह है। इन श ण
सं थान से नकले युवक म से दूर भागते ह, उनक वा य म कोई च नह ं। भाषा क
ि ट से वे कमजोर ह तथा उनम सामािजक और रा य उ तरदा य व को पूरा करने क कोई
भावना नह ं। इन क मय का नराकरण करने के लए खु ला व व व यालय क आव यकता है।

56
व—मू यां क न(Self Evaluation)
1. व व व यालय के कार क ववे च ना क िजए|
2. खु ला व व व यालय के व प को समझाए|
3. खु ला व व व यालय क आव यकता प ट क िजए|

खु ला व व व यालय क काय व ध (Procedure of Open University)


खु ला व व व यालय क काय— व ध का अ ययन करने पर इसके स ब ध म न न
बात कह ं जा सकती ह—
1. पाठ व वान वारा तैयार कये जाते ह। येक पाठ म कु छ काय—भार व या थय को
स प दया जाता है।
2. व या थय का मू यांकन नर तर कया जाता है।
3. छा के लए स पक या यान का आयोजन कया जाता है।
4. व भ न काय म के लए यो य यि तय का चयन कया जाता है िजनक दे ख—रे ख म
सब काम होते ह|
5. खु ले व व व यालय म आमतौर पर श ण प ाचार पर आधा रत है इसके लए
अ यापक क नयुि त क जाती है ता क —
1) वे छा का मागदशन कर।
2) वे उनके काय का मू यांकन कर।
6. लगभग सभी पा य म म खु ला व व व यालय के छा को एक स ताह अथवा दो
स ताह के लए आवासीय महा व यालय म उपि थत रहना होता है। वशेष प से
बी.एड. क ाओं के लए यह उपि थ त अ नवाय है।
7. छा को व भ न उपकरण क सु वधा दान करने के लए येक े म एक
अ ययन के था पत कया जाता है। इन के म टे प रकॉडर, दूरदशन, य—
य, कैसेट आ द क यव था भी होती है।
खु ला व व व यालय : वकास कथा (Open University Development Story)
इं लै ड म खु ले व व व यालय का वचार सबसे पहले वहां क धानम ी हे रो ड
सन ने सत बर 1963 म लासग को दया। उ ह ने उसे हवाड व व व यालय का नाम दया
जो बाद म 'खु ले व व व यालय' म प रव तत कर दया गया। जनवर 1969 म लेबर पाट क
सरकार ने इस वचार को वीकृ त दान क । वहां के श ा और व ान म ी ने इसे आगामी
कु छ वष का सबसे मह वपूण शै क ग त का काय माना। खु ले व व व यालय को मू त प
दे ने का काय 1971 म हु आ।
ार म म इस व व व यालय म 25 हजार लोग को श ा ा त करने के लए वेश
दया गया। 1985 म व या थय क सं या एक लाख तक पहु ंच गई। इं लै ड म इस खु ले
व व व यालय वारा 300 के चलाये जाते ह। इन व व व यालय क सफलता को दे खकर
जापान, जमनी, फांस, इटल , स, चीन, हॉले ड, पेन, थाईलै ड, को रया, ीलंका और भारत
जैसे दे श म भी खु ले व व व यालय था पत कए गए। वतमान म इजराइल, ईरान, इ डोने शया,

57
बेनेजु एला, कनाडा और पा क तान जैसे दे श म खु ले व व व यालय श ा के े म बड़ी तेजी
से सार काय कर रहे ह।
भारतवष म 1970 से ह यह यास कया जा रहा था क यह पर भी खु ला
व व व यालय था पत हो। 1970 को अ तरा य शै क वष घो षत कया गया। उस समय
यह संक प कया गया क भारत वष म भी ऐसे व व व यालय क थापना क जायेगी।
भारतवष म रा य तर पर सबसे पहला खु ला व व व यालय 1982 म आ दे श म
ार भ कया गया। इसम िजन पा य म क यव था क गई, वे थे (1) बी.ए., बी.एस.सी.,
बी.कॉम. (2) नातको तर पा य म (3) पु तकालय व ान (4) पि लक अकाउ टे सी।

व—मू यां क न(Self Evaluation)


1. खु ला व व व यालय क काय व ध बताइए।
2. खु ला व व व यालय क वकास गाथा को बताइए।

3.9 इि दरा गॉधी रा य खु ला व व व यालय (Indira Gandhi


National Open University)
जनवर , 1985 ई. म धानम ी ने रा य तर पर खु ला व व व यालय क थापना
का अनुमोदन कया और सत बर 1985 म इि दरा गॉधी खु ला व व व यालय क थापना
द ल म क गई। इस व व व यालय का मु ख योजन दूरगामी श ा एवं श ण को
वक सत करना है। इस व व व यालय का व प रा य है। अत: इस व व व यालय के के
सम त दे श म था पत कए गए। इसके संगठन का जो व प नधा रत कया गया है वह इस
कार है —
1. शास नक एवं शै क काय का संचालन के वारा होगा।
2. रा य एवं िजला तर पर व व व यालय के अ ययन के ह गे।
3. इसके अ त र त चलते— फरते Moobile के भी ह गे।
4. के के काय के संचालन के लए एक संयोजक होगा।
5. छा के श ण के लए आधु नक तकनीक —आकाशवाणी, दूरदशन, व डयो आ द का
ब ध के पर होगा।
6. दूरदशन पर सा रत पाठ, इस कार के ह गे क सम त दे श के व याथ लाभ उठा
सक।
7. स ेषण का मा यम ह द तथा अं ेजी होगा।
8. छा को गहकाय दया जायेगा।
9. छा के मू यांकन के तीन प ह गे —
(अ) व याथ वारा वमू यांकन (ब) अ यापक वारा मू यांकन
(स) व व व यालय वारा मू यांकन
पर ा अ ययन के पर ह ल जायेगी और उ तीण होने पर व व व यालय वारा
उपा ध या माण प दये जायगे।

58
रा य तर य खु ला व व व यालय (State Open University)
व मान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा
व मान महावीर कोटा खु ला व व व यालय क थापना सन ् 1987 म रा य वधान
सभा के पा रत अ ध नयम के अ तगत क गई। सरकार ने यह अनुभव कया क वत ता
ाि त के पाँच दशक बाद भी भारत म उ च श ा के लए उपल ध अवसर असमान एवं
अपया त है। पार प रक श ा णाल क सीमाओं को यान म रखते हु ए दूर थ श ा पर
आधा रत इस नए व व व यालय क थापना से उ च श ा से वं चत समाज के कमजोरवग,
म हलाएँ एवं रोजगार ा त यि त अपनी िज मेदा रय को पूरा करने के साथ—साथ इस
व व व यालय के वारा अपनी शै णक यो यताओं म वृ का लाभ ा त कर सकते ह।
(1) उ े य (Objectives)
1. उ च श ा के जाताि करण के उ े य से श ा ाि त के इ छुक समू ह , रोजगार
ा त यि तय , म हलाओं, वकलांग एवं वय क को श ा ाि त का अवसर दान
करना।
2. कम लागत पर गुणा मक एवं रोजगारो मुखी उ च श ा उपल ध कराना।
3. दे श के उ च श ा से वं चत दूर थ े , आ दवासी एवं म थल य े म उ च
श ा का सार करना।
4. रोजगारो मु खी पा यकम के मा यम से रोजगार अवसर का सृजन करना।
(2) व मान महावीर खु ला व व व यालय क वशेषताएँ (Characteristics of
Vardhman Mahaveer Open University)
 वेश स ब धी लचीले नयम
 बना भेद—भाव सबको समान अवसर।
 दूर थ श ा तकनीक पर आधा रत वषय वशेष वारा तैयार पा य—साम ी
व या थय को घर बैठे उपल ध करवायी जाती है यह प त वयं पाठ के प म
पर ा दे ने एवं प ाचार प त से े ठ है।
 व या थय को अपनी च व यो यता के अनुसार पर ा दे ने क वत ता।
 नय मत उपि थ त क बाधा नह ं।
 आधु नक संचार एवं शै णक तकनीक का उपयोग कर य— य साम ी अ ययन
के पर उपल ध कराई जाती है।
 सतत ् मू यांकन क ि ट से स ीय काय एवं स ांत पर ा का आयोजन।
 येक के लए तशत अंक क बा यता नह ं।
(3) अ ययन साम ी एवं ेणांक (Study of Material and Credit System)
खु ला व व व यालय म व भ न पा य म के अ धकतम के डट नधा रत है। वषय
वशेष क राय म कसी पा य म के अ ययन म लगने वाले समय के आधार पर इनका
नधारण कया जाता है। सामा यतया एक े डट को 30 घंट के अ ययन के बराबर माना गया
है।

59
इसम पा य—साम ी को पढ़ना एवं समझना, बोध न के उ तर लखना, उस वषय से
स बि धत स ीय काय को पूरा करना। इसम स बि धत य एवं य साम ी म लगने वाले
समय को सि म लत कया गया है। इस कार पा य म य द 8 े डट का है तो छा से यह
अपे ा क जाती है क वह 8 गुणा 30=240 घंटे का समय उस पा य म के अ ययन करने म
लगायेगा। इसके अ त र त इस अ ययन प त म अ ययन के पर परामशदाताओं के साथ
एवं अपने साथी व या थय के साथ वचार— वमश क सु वधा, स ताह त एवं अवकाश के दन
म द जाती है।
(4) व मान महावीर खु ला व व व यालय वारा संचा लत व भ न पा यकम (Different
Courses Run by Vardhman Mahaveer Open University)
1. नातक उपा ध कायकम (B.A./B.Com.) कला एवं वा ण य।
2. प का रता (जनसंचार) म नातक उपा ध काय म BJ(MC)
3. श ा म नातक उपा ध (B.ED.)
4. श ा म नातको तर उपा ध कायकम (M.A.)
5. प का रता (जनसंचार) म नातको तर उपा ध काय म MJ(MC)
6. ब ध पा यकम (Management Course)
7. इस व व व यालय वारा व भ न े म ड लोमा एवं स ट फकेट पा य म संचा लत
कए जाते है यथा सं कृ त एवं पयटन, पु तकालय व ान, सू चना व ान, म कानून ,
औ यो गक स ब ध एवं का मक ब ध, होटल ब ध, वा य श ा, भोजन एवं
भोजन कायालय ब ध, क यूटर श ण आ द।
(4) पर ा प त (Examination Pattern)
इस व व व यालय क पर ा णाल के दो मु ख त व है—
(अ) स ीय काय (Internal Assignment)
व याथ वारा चु ने गए पा य म के येक पेपर म व व व यालय स ीय काय दान
करता है। यह आ त रक मू यांकन काय व याथ वारा अपने घर पर बैठकर ह कया जाता है।
यह अपे ा क जाती है क आ त रक मू यांकन क प त के कारण व याथ नर तर
अ ययनरत रहे गा। आ त रक मू यांकन के ा तांक अि तम पर ा प रणाम म सि म लत कए
जाते ह जो कु ल ा तांक का 30 तशत होता है।
(ब) स ांत पर ा (Term End Examination)
काय म क यूनतम अव ध पूर होने के बाद व व व यालय वारा स ा त पर ा
आयोिजत क जाती है। इसका अंक भार 70 तशत होता है। व व व यालय वारा वष म दो
स ांत पर ाएं आयोिजत क जाती ह। जो सामा यत: जू न एवं दस बर माह म होती है।
अ ययन क यूनतम अव ध समा त होने पर व याथ जू न या दस बर क स ा त पर ा म
अपनी सु वधानुसार भाग ले सकता है।
(6) मू यांकन (Evaluation)
1. पर ाथ को स ा त पर ा एवं स ीय काय म अलग—अलग पास होना अ नवाय है ।
2. पर ाथ को दोन कार क पर ाओं म 'सी' ेड ा त करना अ नवाय है ।

60
3. स ा त पर ा म 'सी' ेड ा त करने के लए 70 म से कम से कम 35 अंक तथा
स ीय काय म 30 म से कम से कम 15 अंक ा त करना अ नवाय है। अ यथा
व याथ अनु तीण माना जायेगा।
(7) व याथ सहायता सेवाएँ (Student Support Services)
व मान महावीर खु ला व व व यालय ने राज थान म अब तक 6 थान पर े ीय
के एवं 53 थान पर अ ययन के ार भ कर दए ह। येक े के म न न ल खत
सु वधाएं दान क जाती ह:—
 श ण तथा परामश सु वधाएं
 य— य उपकरण तथा उनके उपयोग के अ य साधन
 पु तकालय सु वधा
 सू चना सेवा

व—मू यां क न(Self Evaluation)


1. रा य खु ला व व व यालय के व प को बताइए।
2. रा य खु ला व व व यालय के उ े य एवं उनक वशे ष ताओं क ववे च ना
क िजए।

3.1.1 सार—सं ेप (Summary)


श ा के अ भकरण (Agencies of Education)
िजनम यि त जीवन पय त रहता है एवं िजसम यि त उपयोगी व अनुपयोगी ान
ा त करता है। इन सं थाओं को हम श ा के अ भकरण के नाम से पुकारते ह।
श ा के अ भकरण का वग करण (Classification of Agencies of Education)
श ा के अ भकरण को अलग—अलग व वान ने अलग—अलग तरह से वग कृ त कया
है। सभी वग करण के आधार पर हम श ा के अ भकरण को मु यत: न न ल खत तीन े णय
म वग कृ त कर सकते ह :—
श ा के औपचा रक अ भकरण (Formal Agencies of Education)
औपचा रक अ भकरण से ता पय वे अ भकरण जो पूव नि चत योजना के अनुसार
नि चत उ े य क ाि त के लए बालक को नयं त वातावरण म रखते हु ए नि चत यि त
वारा नि चत पा य म क नि चत व ध वारा नि चत थान एवं समय म समा त कर दे ते
ह।
औपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Formal Education)
 औपचा रक श ा मू लत: व यालय वारा ह दान क जाती है।
 इसका ार भ व यालय जाने पर होता है एवं अ त भी व यालय छोड़ने पर हो जाता
है।
औपचा रक श ा के दोष (Demerits of Formal Education)
 यह श ा सै ाि तक अ धक व यावहा रक कम है।
61
 यह श ा व यालय क चार—द वार म बंध जाती है।
व यालय : श ा के औपचा रक अ भकरण के प म (School as a Formal agency of
education)
भारतीय दशन क मा यता व यालय के बारे म व या+आलय अथात ् व यालय वह
थान है जहाँ श ा का आदान— दान होता है। वा तव म व यालय औपचा रक श ा दान
करने का स य साधन है।
व यालय क प रभाषा (Definition of school)
जॉन यूवी (Jhon Dewey) के अनुसार, '' कू ल एक ऐसा व श ट वातावरण है जहाँ
बालक के वां छत वकास क ि ट से व श ट याओं तथा यवसाय क श ा द जाती है।''
व यालय के काय (Function of School)
व भ न व वान ने व यालय के काय के स ब ध म अपने—अपने वचार य त कए
ह िजनम से मु ख ह –
नै सी कैट (Nancy Catty) ने व यालय के न न काय बताएँ है :—
श ा के अनौपचा रक अ भकरण (Informal Agency of Education)
बै टाक (Bentak) के श द म, '' श ा सभी कार के अनुभव का योग है, िज ह
मनु य अपने जीवनकाल म ा त करता है और िजसके वारा वह जो कु छ है, उनका नमाण
होता है।''
अनौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Charactristics of Informal Education)
 अनौपचा रक श ा कृ मता से परे वाभा वक होती है।
 यह श ा बालक के ज म से ार भ होकर मृ युपय त चलती है।
अनौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Informal Education)
 इसम श ा का समय व थान अ नि चत होने के कारण श ा क रथ त सदै व
अ प ट रहती है।
 इस श ा के वारा हम कौशल एवं तकनी कय का वकास नह ं कर सकते।
श ा के नरौपचा रक अ भकरण (Non Formal Agencies of Education)
जनसाधारण को श ा दान करने हे तु श ा क जो यव था क जाती है वह
नरौपचा रक श ा है।
नरौपचा रक श ा क वशेषताएँ (Characteristics of Non—formal Education)
 यह श ा छा को व यालय के तनावपूण वातावरण से दूर करती है।
 इस श ा को दूर थान पर रहने वाले या यवसाय म संल न यि त भी ा त कर
सकते ह।
नरौपचा रक श ा के दोष (Demerits of Nonformal)
 छा के मन म उ प न शंका का तु र त समाधान संभव नह ं है।
 अ यापक—छा के म य पर पर अ तः या का अभाव रहता है।
श ा के औपचा रक, अनौपचा रक एवं नरौपचा रक अ भकरण म अ तर

62
औपचा रक श ा का ार भ व यालय से होता है तथा अ त भी व यालय म ह हो
जाता है। अनौपचा रक श ा बालक के ज म से लेकर मृ युपय त तक चलती है। नरौपचा रक
श ा का व प उसके के ब दु 'जन—समु दाय'' पर आधा रत है।
खु ला व यालय (Open School)
मा य मक तर पर के य मा य मक श ा बोड, द ल वारा खु ला व यालय क
थापना क गई। इस योजना के अ तगत 14 वष क आयु से ऊपर सब वय क के लए
मा य मक तर तथा उ च मा य मक तर क श ा ा त करना तथा माण प ा त करने
क यव था है।
खु ला व व व यालय (Open University)
खु ला व व व यालय से ता पय एक ऐसे व व व यालय से ह, जो उन सभी के लए है
जो उ च श ा ा त करना चाहते है। इस व व व यालय म वेश ा त करने के लए कसी भी
कार क उपा ध या माण प क ज रत नह ,ं इसम आयु क कोई सीमा नह ं एवं समय व
थान क भी सीमा नधा रत नह ं है।

इि दरा गॉधी रा य खु ला व व व यालय


सत बर, 1985 म इि दरा गाँधी खु ला व व व यालय क थापना द ल म क गई।
इस व व व यालय का मु ख योजन दूरगामी श ा एवं श ण को वक सत करना है।
रा य तर य खु ला व व व यालय (State Open University)
व मान महावीर खुला व व व यालय,कोटा
इस व व व यालय क थापना रा य वधान सभा म पा रत अ ध नयम के अ तगत क
गई। पार प रक श ा णाल क सीमाओं को यान म रखते हु ए दूर थ श ा पर आधा रत इस
नए व व व यालय को थापना से उ च श ा से वं चत समाज के कमजोर वग, म हलाओं एवं
रोजगार ा त यि त िज मेदा रय को पूरा करने के साथ—साथ इस व व व यालय के वारा
अपनी शै णक यो यताओं म वृ का लाभ ा त कर सकते ह|

3.12 मू यांकन न (Evaluation Questions)


1. श ा के अ भकरण से आपका या अ भ ाय ह? श ा के अ भकरण का वग करण
तु त क िजए।

63
What do you mean by Agencies of Education? Present the
classification of agencies of Education.
2. '' व यालय श ा का औपचा रक अ भकरण है।'' इस कथन क पुि ट हे तु तक तु त
क िजए।“
School is formal agency of Education.”Gove Logic to Explain.
3. श ा के अनौपचा रक अ भकरण का अथ प ट क िजए। अनौपचा रक अ भकरण के
गुण —दोष को ल खए।
Explain the Meaning of Non—formal agency of Education.Write Merits and
Demerits of Non—formal Agencies.
4. नरौपचा रक अ भकरण का अथ बताइए। श ा के औपचा रक, अनौपचा रक एवं
नरौपचा रक अ भकरण म अ तर प ट क िजए।
Write the meaning of informal agency.Differentiate among formal,Non
formal and informal Agencies of Education.
5. खु ला व यालय एवं खु ला व व व यालय के स यय को प ट क िजए।
Explain the concept of Open School and Open University.
6. रा य एवं रा य तर य खु ला व व व यालय का व तृत ववेचन क िजए।
Discuss in detail National and state Level Open Universities.

3.13 स दभ थ सू ची (bibliography)

1. Sharma,R.A.,(1994),Distance Education:Theory, Practice and Research,


Loyal Book Depot, Meerut.
2. Reddy,G.Ram(1984),’Open Education system in India’.Its Place and
potential Hyderabad : Andhra Pradesh Open University.
3. Parmaji, S.C.(Ed.) (1984), Distance Education, New Delhi, Sterling
publishers.
4. Lewis, B.N. (1974) : Educational Technology at the Open University. An
Approach to the problem of Quality in British Journal of E.T.
5. Keegan, Dermond (1986) : The Foundation of distance Education,
London, Croom Helm.
6. Foks,J. (1987) : Towards Open Learning, in P.Smith and M.Kelly (Eds.)
Distance Education and the mainstream, London, Croom Helm.
7. Cunninghan(1987) : Openness and learning to Learn. Beyond distance
teaching to wards open learning. Open University Press.
8. अ वाल एस. के. : श ा के ताि वक स ा त
9. बंसल आर. ए. शमा रामनाथ : श ा के स ा त
10. बटलर : फोर फलोसॉफ ज
64
11. भा टया : फलोसॉफ ऑफ एजू केशन
12. चौबे अ खलेश एवं चौबे सरयू : श ा के दाश नक, ऐ तहा सक और
साद समाजशा ीय आधार
13. ओड एल.के. : श ा क दाश नक पृ ठभू म
14. पार ख मथुरे वर शमा रजनी : उदयीमान भारतीय समाज तथा श ा
15. स सैना एन. आर. व प : श ा के दाश नक एवं समाजशा ीय स ा त
16. डा. राधाकृ णन : भारतीय दशन

3.14 रपोट सू ची (Report List)


1. Report of secondary Education commission 1952.
2. Report of Education Commission 1966.
3. National policy of Education 1986
4. Programme of action:National policy of Education 1995.
5. International commission on Education on development of
Education,Learning to be, UNESSCO1972.
6. International commission on Education for the twenty first
century:Learning the treasure within.UNESSCO Report of Delars,1996.

65
इकाई—4
श ा को भा वत करने वाले कारक
Factors affecting Education

इकाई क परे खा (Outline of the unit)


4.1 वषय वेष (Introduction)
4.2 राजनै तक कारक (Political Factors)
4.3 सामािजक कारक (Social Factor)
4.4 आ थक कारक (Economic Factor)
4.5 शै क कारक (Educational Factor)
4.5.1 अ यापक का अभाव (Lack of Teachers)
4.5.2 अ धगम (सहायक) साम ी का अभाव (Lack of Indian Teaching Method)
4.5.3 भारतीय श ण वधाओं का अभाव (Lack of Indian Teaching Method)
4.5.4 दोषपूण पर ा णाल (Defective Examination System)
4.6 भौगो लक कारक (Geography Factor)
4.7 सारांश (Summary)
4.8 मू यांकन न (Evaluation Question)
4.9 संदभ (References)

उ े य (Objectives)
1. व याथ राजनै तक कारक से प र चत हो सकगे।
2. सामािजक कारक के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
3. आ थक कारक श ा को भा वत करता है, समझ सकगे।
4. शै क कारक के बारे म जानकार ा त कर सकगे।
5. भौगो लक कारक से प र चत हो सकगे।

4.1 वषय वेश (Introduction)


रा य वकास क ग त तेज करने के लए श ा म सु धार करने तथा उसका नर तर
वकास करने के लए मह वपूण कदम बढ़ाने क आव यकता है। रा य वकास म श ा का
मह वपूण योगदान रहे गा। रा क आशाओं, आव यकताओं एवं आकां ाओं के अनु प श ा
यव था म रा का भ व य न हत है। आधु नक युग म येक रा राजनै तक, आ थक,
सामािजक, धा मक एवं सां कृ तक आ द सभी े म ग त कर अपने दे शवा सय के जीवन
तर को उ नत करना चाहता है।

66
व व क येक व तु, वचार तथा काय से लाभदायक प रणाम तभी मल सकते है
जब क उनके पूव नि चत उ े य ह । श ा सामािजक वकास क आधार शला है। समाज म जैसी
श ा होगी वैसा ह समाज होगा। अत: श ा का व प एवं उ े य दे श काल एवं प रि थ तय
के अनु प हो। समय—समय पर श ा के व प एवं उ े य म प रवतन होते रहते ह। वै दक युग
म श ा का उ े य बालक का सवागीण वकास करना था। ाचीन रोम म श ा का उ े य '
रा य का क याण करना था।' यूनान म श ा का उ े य नै तक एवं सामािजक वकास करना
था। वतमान युग म सामािजक संरचना म प रवतन आने के साथ—साथ श ा के उ े य म भी
प रवतन होता रहता है। सामािजक ग त हे तु श ा काश त भ का काय करती है। अत: कह
सकते ह क श ा क समय—समय पर अनेक कारक ने भा वत कए ह। कु छ मु ख कारक का
व तार से वणन करगे—

4.2 राजनै तक कारक (Political Factors)


कहावत है ' 'यथा राजा तथा जा' ' अथात ् जैसा शासक होगा वैसी ह जा भी होगी।
इ तहास इस कथन का सा ी है।
क यु न ट, फा स ट, लोकताि क, तानाशाह िजस कार क सरकार होगी, वह सरकार
अपने येय ाि त हे तु श ा के उ े य का त नुसार ह नमाण करती है। ाउन के न न ल खत
कथन से ह यह त य वत: ह प ट हो जाता है। “ कसी भी दे श क ओर सभी युग क श ा
शासक वग क वशेषताओं को य त करती है।'' “Education in any country and at all
period reflects values of rulling class.”
—J.D.Brown
दे श म लोकत को सु ढ करने हे तु भावी नाग रक को अपने कत य एवं अ धकार के
त जा त कर उनके स ावना, ेम, सहयोग, आदर, सेवाभाव, याग, न ठा आ द क भावनाओं
का वकास करते है ता क नाग रक लोकताि क जीवन शैल अपना कर दे श के शासन म अपना
मह वपूण योगदान कर सके।
वतमान म भारत एक लोकत ा मक गणरा य है। फलत: श ा के उ े य का नधारण
यि त और समाज का हत करने क ि ट से कया गया है। ये न न ल खत ह —
(अ) यि त के ि ट म श ा के उ े य अथात ् वैयि तक उ े य।
(ब) समाज क ि ट से श ा के उ े य अथात ् सामािजक उ े य।
तानाशाह शासन यव था म वैयि तक प क ओर यान नह ं दया जाता। वह
राजनै तक प मु ख होता है। वतमान युग म क यु न ट दे श इसके वल त माण ह।
अमे रक श ा णाल म वैयि तक उ े य पर बल दया गया है। राजनै तक और सामािजक
उ े य पर केवल उतना ह यान दया गया है िजतना सामािजक एकता के लए आव यक है।
अत: प ट है क समाज म यथाथवाद आधार म श ा के उ े य नधारण म भारत को
वत ता तो अव य मल क तु टश सरकार चलते—चलते दे श का दो टु कड़ म वभाजन कर
गई और सा दा यकता क आग भ का गई। फलत: आजाद के प चात ् सरकार दे श का
वभाजन, सा दा यक दं ग,े क मीर सम या, आ त रक सम याएँ, जातीयता, ा तीयता, चीन का

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आकमण, पा क तान का आ मण आ द म य त रहने के कारण श ा पर अ धक यान नह ं दे
पाई । प रणामत: श ा के े म उ लेखनीय एवं आशातीत ग त नह ं हो सक ।
भारत म श ा का दा य व के और रा य के शासन पर है। ये दोन शासन अपनी
सु वधानुसार यव था का काय करते ह। इन दोन शासन म सह—स ब ध का भी आभाव है।
थानीय शासन को चलाने वाले लोग राजनै तक येय को यान म रखते हु ए सारे काय करते
ह। अत: आव यकता इस बात क है क सरकार को चा हए क श ा क प ट नी त का नमाण
कर और अपनी नी त को नि चत ढं ग से कराने का संक प ल। इसके लए श ण सु वधाएँ
दान करायी जानी चा हए।
भारत के सं वधान नमाताओं ने खैर स म त के ि टकोण को अपनाते हु ए सं वधान के
अनु छे द 45 म सावभौम श ा के लए प ट प से उ लेख कया है क —
यह रा य उस सं वधान के याि वत कए जाने के समय से 10 वष के अ तगत जब
तक सभी ब चे 14 वष क आयु को पूरा नह ं कर लेते, नःशु क एवं अ नवाय होने दे ने का
यास करे गा।
हमारे दे श क वतमान राजनी त का कोई मानद ड नह ं है और न कोई च र , वाथ
पू त ह सव च मापद ड है और वह सबसे बड़ा नेता है जो सवा धक चाल चल कर अपना उ लू
सीधा कर सके। प रणामत: श ा के येक े म राजनी त या त है जो न न ल खत ब दुओं
से प ट हो जायेगी —
(1). श क थाना तरण — वतमान सरकार नेताओं का एक मा काय श क काय का
थाना तरण है। राज थान इस काय म अ णी है। श क को फुटबाल बनाकर अपना
वाथ स करना उनका मु य काय है।
(2). व यालय थापना — कसी गाँव, ढाणी, मु ह ला या गल म व यालय खु लना चा हए
अथवा नह ,ं वह भी थानीय नेता पर नभर करता है। वरोधी प के बालक को श ा
से वं चत रखना तथा उनके गाँव अथवा गल म व यालय खु लवाना उसके शतरं ज के
पतरे क मु य चाल होती है। सरकार भी इस काय म मददगार होती है।
(3). व यालय यव था म ह त ेप — थानीय ट नेता व यालय यव था म ह त ेप
करते रहते ह। प रणामत: धाना यापक शै क ग त हे तु वत प से काय नह ं
कर पाता। य द कोई उ साह धाना यापक थानीय नेताओं को मु ह नह ं लगाता तो
उसके सरदद बन जाता है और उसके व नाना कार क शकायत उ चा धका रय
को करते ह। उ चा धकार भी उनके भाव एवं अपनी कु स बाधाओं के कारण कान म
तेल डालकर थानीय नेताओं को स न करने के लए उनक इ छानुसार काय कर दे ते
ह।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. " श ा के ये क े म राजनी त या त ह"इस कथन को प ट क िजए|

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4.3 सामािजक कारक (Social Factor)
कसी भी दे श क सामािजक प रि थ तयाँ वॅहा क श ा के उ े य के नमाण म
मह वपूण होती है। उदाहरणाथ— ाचीन भारत म श ा का उ े य ' 'ई वर ाि त' ' था। भारत
धम परायण दे श था। फलत: ' 'नर से नारायण' बनने पर बल दया जाता था। अपरा व या से
परा व या को े ठ बतलाया गया था। युग बदला, समाज म प रवतन आया। मृ तकाल म
“वण यव था” गुण , कम, वभाव पर आधा रत न रहकर ज म पर आधा रत हो गई थी। फलत:
श ा का उ े य ' 'बालक को उनके वणानुसार कम करने के लए तैयार करना था। वतमान
भारतीय समाज जा त, वह न समाज क थापना करना चाहता है। प रणामत: श ा का उ े य
“सामािजक समानता” है िजसम जा त, रं ग, वण, समुदाय के थान पर यि त के गुण , कम,
वभाव पर अ धक बल दया गया और इ ह ं के मा यम से यि त उ च से उ च पद पर
आसीन हो सकता है। भारतीय सं वधानानुसार सम त भारतीय समान है। धम, स दाय, जा त,
वण के आधार पर न कोई छोटा है और न कोई बड़ा। “अ पृ यता” अपराध है । अत: ि मथ के
अनुसार “ व यालय को यापक काय संभालना चा हए एवं उसे नि चत प से ऐसी यव था
करनी चा हए िजससे क सामािजक कृ तइाता एवं समु दाय भि त को उ प न तथा पो षत कए
जाने का काय हो सके।''
"School should assume wider functions and definitely set itself to
the task of creating and fostering the sense of obligation loyalty to the
community.”
—W.P.Lister Smith
भारतीय सं वधान क धार 29 व 30 म अ पसं यक को अपनी भाषा, सं कृ त को
सु र त रखने तथा श ा सं थाओं क थापना करने व संचा लत करने का अ धकार दान कया
गया है। सं वधान क धारा 350 (क) म कहा गया है — येक रा य और रा य के अ तगत
थानीय ा धकार का यह यास होगा क भाषायी अ पसं यक वग के ब च को ाथ मक तर
पर श ा उनक मातृभाषा म दे ने क पया त सु वधा दान कर।
श ा के सामािजक उ े य से ता पय सामािजक नपुणता से है । श ा यि त को
समाजोपयोगी बनाने म सहायक होती है और यह तभी स भव है जब श ा के उ े य समाज क
प रि थ तय के अनुकू ल ह । रॉस के अनुसार— ''सामािजक वातावरण से भ न वैयि तकता का
कोई मू य नह ं है और यि त व अथह न श द है।''
“Individuality isof on value and personality is a meaningless term a
part from the social environment.”
—J.Ross
समाज म रहकर यि त एक—दूसरे के स पक म आता है। उसके साथ वचार का
आदान— दान करता है। यह तभी स भव है जब क श ा के उ े य सामािजक प रि थ तय के
अनुकू ल ह । ठ क इसके वपर त य द वे यि त व के अनुसार भ न— भ न हु ए तो यि त म
टकराहट होगी और ऐसा समाज कभी ग त पथ पर अ सत नह ं हो सकता।

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अ धकांश बालक के अ भभावक वयं अ श त है। फलत: वे श ा के मह व से
अप र चत ह। वे अपने बालक को श ा दलाने म च नह ं रखते और साथ म भा यवा दता का
सहारा लेते ह। अ श त अ भभावक बालक क श ा के लए अ भशाप स होते ह। और वे
स प न होते हु ए भी बालक क श ा क ओर यान नह ं दे ते।
छोटे —छोटे बालक को ववाह ब धन म बॉध दया जाता है। राज थान म तो बाल ववाह
का अ य धक चलन है। प रणामत: बाल ववाह के कारण उन बालक क श ा का कोई न
नह ं उठता। जा त था अनुसार श ा ा त करने का अ धकार ाहमण वग का है। शु अथवा
वतमान ह रजन को श ा ा त करने का कोई अ धकार नह ं है। दूर—दराज के गाँव म यह
वचार याशील है।
भारत दे श पु ष धान दे श है। यहाँ पु को अ य धक मह व दया जाता है तथा पु ी को
पराया धन समझ कर उसका तर कार कया जाता है। ामीण े म यह भेद प टतया
ि टगोचर होता है। फलत: बा लकाओं को पढ़ाने को हे य ि ट से दे खते ह। व यालय भवन क
दूर , श क का अभाव, व यालय म सु वधाओं का न होना, बा लका व यालय म पु ष क
नयुि त, नधनता ढ़वा दता आ द अनेक ऐसे सामािजक कारण ह िजनक वजह से ाथ मक
श ा का सावभौ मकरण नह ं हो पा रहा है।

व—मू यां क न(Self Evaluation)


1. सामािजक कारक कस कार श ा को भा वत करता ह?

4.4 आ थक कारक (Economic Factor)


दे श के अ धकांश लोग नधनता क सीमा रे खा से नीचे जीवनयापन कर रहे ह। जब क
कु छ लोग वैभव, समृ व भोग वलास का जीवनयापन कर रहे ह। ये वला सता लोग क
वैमन य, कटु ता एवं अस तोष उ प न कर दे श के लए घातक ि थ त बना रह है। एक ओर
शोषण एवं दमन को ो सा हत करती है तो दूसर ओर वग संघष, व ोह, अपराध आ द
असामािजक त व से दे श का वघटन हो रहा है। भोजन जीवन का आधार है। भोजन ाि त हे तु
कोई न कोई काय करना आव यक है। व व म मानव तथा सम त ाणी जी वका के कारण
याशील ह। रोट , कपड़ा और मकान मानव जीवन क ाथ मक आव यकता है। अत: आ थक
प रि थ तयाँ श ा के उ े य नमाण म अहम ् भू मका रखती ह। ाचीन काल म भारत धनधा य
म स प न था। माता वसु ध
ं रा क कोख से येक क आव यकताओं क पू त सरलता से हो
जाती थी। फलत: भारतीय ऋ ष, मह ष, स त, सा वी, मनीषी एवं वचारक “दाल रोट ” क च ता
से मु त कृ त क सु र य गोद म आ याि मक च तन करते थे और जंगल क दमूल , प पु प,
फल आ द खाकर उदर पू त कया करते थे। उस काल म श ा का उ े य "ई वर ाि त"
“परोपकाराय पु याय” था। समय बदला, भारत दासता क बे ड़य म जकड़ा गया। वदे शी
आ मणका रयो ने भारत को जी भरकर कू ट र उ योग—ध ध न ट कर दये। व व म औ यो गक
वकास ार भ हु आ वत भारत क सरकार व व के वकासशील दे श क ेणी म भारत का
थान बनाने हे तु य नशील है। प रणामत: श ा का उ े य वतमान युग म “वै ा नक एवं

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तकनीक ” उ न त है ता क इस आ थक दौड़ म हम भी भागीदार कर सके। हाटशोन का कथन है
“जी वकोपाजन क श ा सबसे अ धक भावशाल श ा है। इसके बना वे लोग आजीवन क ट
उठाते ह जो केवल व यालय ह जाते ह।''
“Vocational Education is an Eduction of most effective and for lack
of which those who merely go to school suffer all their lives."
—Hartshorne
अत: श ा के उ े य नमाण म आ थक प रि थ तयाँ वशेष योग दे ती ह। भारत एक
वकासोमु ख रा है। आ थक उ न त एवं येक नाग रक को रोजगार उपल ध कराने हे तु हमार
सरकार य नशील है और इसक पू त हे तु यावसा यक व यालय का सम त दे श म जाल बछा
दया गया है ता क येक भारतीय नाग रक वत यवसाय कर सके । कहावत है “भू खे भजन
न हो ह गोपाला डाल अपने क ठ माला”। अत: आ थक प रि थ तयाँ श ा के उ े य नमाण म
मह वपूण भू मका अदा करती ह। कोई भी समाज, दे श, रा तब तक आ म नभर नह ं हो सकता
जब तक क उसके येक नाग रक को जी वकोपाजन के साधन उपल ध नह ं हो। अत: श ा के
उ े य नधारण म आ थक कारक मह वपूण भू मका अदा करती है।
वतमान युग अथत का युग है। िजस दे श क अथ यव था सु ढ़ होगी, वह ह उ न त
पथ पर अ सर हो सकेगा। आज व व म आ थक वकास एवं भौ तक समृ के पीछे पागलपन
सा छाया हु आ है। भारत क अ धकांश जनता गर बी रे खा से नीचे तर क है। नधन अ भभावक
माता— पता अपने ब च को व यालय नह ं भेज पाते। आज श ा पर होने वाला यय यथा—
पौशाक, पा य—पु तक एवं अ धगम (सहायक) साम ी का भार वहन करना उसक सीमा से बाहर
क बात होती है। इसके थान पर वे नधन माता— पता बालक को अथ पाजन का एक मा यम
बनाते ह। गाँव म पशु चराना, खेत म काय करना, माता— पता के खेतीहर काय म लगे होने के
समय छोटे भाई—बहन क दे खभाल उनका मु य काय होता है। शहर े म नधनता क
सम या और भी अ धक उजागर होती है। ग द बि तय के बालक कचरे के ढे र अथवा कचरा
पा से कागज, पॉल थीन के टू कड़े, फटे — चथड़े एक त करते, चाय क दुकान पर काय करते
अथवा भ ावृ त करते हु ए साधारणतया दखलाई पड़ते ह। नधनता के इस ता डव नृ य के
कारण अ भभावक उन मासूम ब च क अथ पाजन स ब धी काय म लगाना अ छा समझते है न
क व यालय भेजना।
भारत सरकार ने ाथ मक श ा को रा य का वषय बना रखा है। फलत: रा य म होने
वाला श ा यय का के य सरकार कु छ ह सा ह रा य सरकार कु ाए दे ती है। वा तव म दे खा
जाए तो श ा का वषय के य सरकार का होना चा हए। श ा को के य सरकार सव च
ाथ मकता दान करे । क तु अब सम या के कारण के य सरकार श ा पर होने वाले यय
का कु छ अंश दे कर अपने उ तरदा य व से मु ि त ा त कर लेती है।
एक सव ण के अनुसार भारत म वतमान व यालय भवन म 33 तशत भवन ह ऐसे
ह िज ह कसी कार उपयु त नह ं कहा जा सकता अथात ् 67 तशत भवन अनुपयु त है। ये
अनुपयु त भवन अंधकार से पूण , घुटन से यु त तथा वष भर सीलनयु त रहते ह। इसम दुग ध
यु त वातावरण रहता है, न ह काश क यव था है और न ह व छ तथा ताजा वायु क ।

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बालक को भेड—बक रय के समान क ा—क पी बाड़े म बैठा दया जाता है िजसम न तो
आसन यव था ह है और न ह शै क सु वधाएँ। खेल स ब धी सु वधाएँ तो दवा व न मा ह।
आ थक क ठनाइय के कारण उपयु त भवन का नमाण नह ं करवा पाते। फलत:
मि दर , मि जद , धमशालाओं, अनाथालय , टू टे —फूटे , पुराने भवन , वृ के नीचे व यालय चलते
ह िजनम आए दन कसी न कसी कारण अवकाश करना पड़ता है और वषा ऋतु म भवन के
दुघटना त होने क सम याएँ बराबर बनी रहती ह।
भारत म अ धकांश ाथ मक व यालय क ि थ त अ त सोचनीय है। आ थक
क ठनाइय के कारण व यालय छा को शै क सु वधाएँ नह ं जु टा पाते शै क सम याऐ
न न ल खत ह—
(अ) व यालय म पया त सं या म श क क नयुि त नह ं क जाती। ाथ मक श ा म
अ यापक छा अनुपात 1:40 का है जो क शै क ि ट से अनुप यु त है एक श क
40 बालक को श ण काय नह ं करा सकता।
(ब) ाथ मक व यालय म शै क सहायक अ धगम साम ी का नता त अभाव होता है।
पा य—पु तक ह एक मा श ा का आधार होती है।
(स) अ धकांश ाथ मक व यालय म चतुथ ेणी कमचा रय क यव था नह ं है फलत:
भवन क सफाई से लेकर सम त काय छोटे —छोटे बालक को ह करने पड़ते ह। अत:
उनका यान श ा से हट जाता है।
(द) ाथ मक व यालय म पु तकालय एवं वाचनालय तो ह ह नह ं। प रणामत: व या थय
के साथ—साथ श क क भी कू पम डू क जैसी ि थ त हो जाती है।
अ धकांश ाथ मक व यालय म थानीय यि तय को श क पद पर नयुि त क
जाती है इन नयुि तय म पूणत: राजनी त काम करती है। प रणामत: श क व यालय क
ओर यान नह ं दे ता। बस अपना नजी काय खेती—बाड़ी, दुकानदा रयॉ अ य काय करता है। न
तो समय पर व यालय आता है न पूण समय व यालय म कता है। यहाँ तक क छा से
नजी घरे लू काय करवाता है। फलत: अ भभावक ब च को कू ल से नकाल लेते ह।
सरकार क वतमान नी त के अनुसार येक 500 जनसं या क आबाद के पीछे एक
ाथ मक व यालय होना चा हए। क तु अभी दे श म लगभग 3.50 लाख ामीण ऐसे ह िजनक
आबाद 500 से कम है। प रणामत: इनके ब च को अ य थान पर प ने जाना पड़ता है । वन,
नाले, नद , दूर तथा छोटे —छोटे बालक इन कारण म से अ य गाँव म जाकर बालक के लए
पढ़ना स भव नह ं है। प रणामत: अ भभावक छोटे बालक को वशेषत: बा लकाओं को इतनी दूर
भेजना उ चत नह ं समझते और ये बालक श ा से वं चत रह जाते ह।

4.5 शै क कारक (Educational Factor)


श ा जगत म च लत पा यकम अ त दोषपूण है इस पा यकम म थानीय
आव यकताओं पर कोई बल नह ं दया गया है। राज थान म राज थान रा य शै क अनुसंधान
एवं श ण सं थान (SIERT) इस काय को करती है। पा यकम म पु तक य ान पर बल
दया गया है। साथ ह स पूण राज थान म एकसा ह पा य म

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नधा रत कया गया है। े ीय भ नता, थानीय प रि थ तयाँ आ द का कोई यान नह ं रखा
गया है। वतमान पा य म न तो जीवन से स बि धत है और न यावहा रक ह है। पा य म म
न तो सरलता है न आकषण ह । रचना मक याओं को इनम कोई थान नह ं दया गया है।
य द यह कहा जाए क पा य म केवल सा र बनाने का काय करता है तो कोई अ त योि त
नह ं होगी।

(i) अ यापको का अभाव (Lack of Teachers)


ाथ मक पाठशालाओं म श क क नतांत कमी रहती है। एक अ यापक य पाठशालाएँ
तो और भी अ धक सम या त होती ह। पर तु रा य श ा नी त 1986 के प र े य म '' लेक
बोड ऑपरे शन'' के तहत येक व यालय म कम से कम दो श क कायरत ह। अ यापक छा
का अनुपात 140 है। प रणामत: श क सम त छा को मा घेर कर बैठता है और उ ह भा य
के भरोसे छोड़ दे ता है।
यो य, अनुभवी एवं श ा के े म च रखने वाले यि त श ा के े म कम ह
आ पाते है जो आ भी जाते ह दे र सवेर अ य सेवाओं के े म चले जाते ह। कारण क श क
क सेवा ि थ त, वेतनमान अ य सेवाओं से कम है अब तो इस े म वह यि त आते ह
िज ह अ य े म थान नह ं मल पाता। अत: यो य श क को आक षत करने के लए
उनक सेवा शत के सु धार, आकषक वेतनमान, पहाड़ी रे ग तानी एवं ामीण े म पृथक से
भ ता दे ना चा हए ता क यो य, अनुभवी एवं अ छे यि त श ा जगत क ओर आक षत हो
सक।

(ii) अ धगम(सहायक) साम ी का अभाव (Lack of Teaching


Aids)
ाथ मक व यालय म सहायक अ धगम साम ी नाम मा क उपल ध होती है और वह
भी बाबा आदम के जमाने क । प रणामत: श क व याथ को मौ खक ान दे ता है।
यावहा रकता के अभाव म छा क च, िज ासा शा त नह ं हो पाती और वे व यालय से जी
चु राने लगते ह। आधु नक तकनीक आधा रत उपकरण य व साधन को यु त कया जाए।

(iii) भारतीय श ण वधाओं का अभाव (Lack of Indian


Teaching Methods)
श ा के े म भी जो श ण प तयाँ च लत ह वे यादातर पा चा य ह। भारतीय
प रि थ तय म उनक सफलता सं द ध है। श ा—शाि य क भारतीय प रवेशानुसार श ण
प तय क खोज करनी चा हए ता क वे भारतीय व यालय म सफल हो सक। शै क नवाचार
पर आधा रत नवीनतम व ध अपनायी जाए।

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(iv) दोषपू ण पर ा णाल (Defective Education System)
पर ा णाल भी दोषपूण है। केवल सै ाि तक प पर जोर दया जाता है। यावहा रक
प शू य रहता है। मू यांकन क अ व वसनीयता बनी रहती है। एक ह न के मू यांकन म
व वधता आ जाती है।
ाथ मक व यालय म नर ण एवं मागदशन हे तु सरकार ने अ धका रय क ल बी
फौज खड़ी कर रखी है। फर भी अनेक व यालय ऐसे दुलभ थान पर ह क यह पर पॉच—पाँच
वष तक कोई अ धकार नह ं जा पाता। मागदशन एवं नर ण नाम मा का होता है।
उपयु त शै क कारक के अ त र त अ य अनेक कारण है जैसे बालक क च,
अ भ च का यान नह ं रखना, श ा का जीवन से स बि धत न होना, यि तगत भ नता को
नजर अ दाज कर दे ना आ द।

4.6 भौगो लक कारक (Geographical Factors)


भारत एक वशाल दे श है िजसम दुगम रे ग तान, अग य पवतमालाऐ तथा भीषण जंगल
ह। इस भौगो लक व वधता के प रणाम व प ह श ा को अ नवाय नह ं बनाया जा सका और
इसके सार म अनेक क ठनाइयाँ ह। पवतीय े म आवागमन के कारण बालक एक थान से
दूसरे थान पर श ा हण करने नह ं जा सकता है। वशाल म थल म गाँव और आबाद
छतर हु ई है। येक ढाणी म व यालय नह ं है। अत: म थल य दे श म वशेषत: ी मकाल
म जब अंधड़ चलते ह, बालक का श ा हण करने एक थान से दूसरे थान पर जाना स भव
नह ं है। असम, नगाले ड आ द ऐसे दे श ह जहाँ जंगल , नाल आ द क बहु तायत है और जंगल
पशु वचरण करते ह। ऐसी प रि थ तय म ब च का व यालय जाना टे ढ़ खीर है।

4.7 सारांश (summary)


राजनै तक कारक — हमारे दे श क वतमान राजनी त का कोई मानद ड नह ं है और न
कोई च र , वाथ पू त ह सव च मापद ड है। वह ं सबसे बड़ा नेता है जो सवा धक चाल चल
कर अपना उ लू सीधा कर सक। प रणामत: श ा के येक े म या त है जो न न ल खत
ब दुओं से प ट हो जायेगी —
 श क ताना तरण
 व यालय थापना
 व यालय यव था
सामािजक कारक — समाज म रहकर यि त एक—दूसरे के स पक म आता है। उसके
साथ वचार का आदान— दान करता है। यह तभी स भव है जब क श ा के उ े य सामािजक
प रि थ तय के अनुकूल ह । ठ क इसके वपर त य द वे यि त व के अनुसार भ न— भ न हु ए
तो यि त म टकराहट होगी और ऐसा समाज कभी ग त पथ पर अ सत नह ं हो सकता।
अ धकांश बालक के अ भभावक वयं अ श त ह। फलत: वे श ा के मह व से
अप र चत ह। वे अपने बालक को श ा दलाने म च नह ं रखते और साथ म भा यवा दता का
सहारा लेते ह। अ श त अ भभावक बालक क श ा के लए अ भशाप स होते है और वे
स प न होते हु ए भी बालक क श ा क ओर यान नह ं दे ते।

74
आ थक कारक — श ा के उ े य नमाण म आ थक प रि थ तयाँ वशेष योग दे ती ह।
भारत एक वकासो मुख रा है। आ थक उ न त एवं येक नाग रक को रोजगार उपल ध कराने
हे तु हमार सरकार य नशील है और इसक पू त हे तु यावसा यक व यालय का सम त दे श म
जाल बछा दया गया है ता क येक भारतीय नाग रक वत यवसाय कर सके। कहावत है
''भू खे भजन न हो ह गोपाला डाल अपने क ठ माला”। अत: आ थक प रि थ तयाँ श ा के
उ े य नमाण म मह वपूण भू मका अदा करती है। कोई भी समाज, दे श, रा तब तक
आ म नभर नह ं हो सकता जब तक क उसके येक नाग रक को जी वकोपाजन के साधन
उपल ध नह ं हो। अत: श ा के उ े य नधारण म आ थक कारक मह वपूण भू मका अदा करती
है।
शै क कारक —वतमान पा यकम न तो जीवन से स बि धत है और न यावहा रक ह
है। पा य म म न तो सरलता है न आकषण ह । रचना मक कयाओं को इनम कोई थान नह ं
दया गया है। य द यह कहा जाए क पा य म केवल सा र बनाने का काय करता है तो कोई
अ त योि त नह ं होगी। अत: अ यापक का अभाव अ धगम सहायक साम ी का अभाव, भारतीय
श क व धय का अभाव तथा दोषपूण पर ा णाल पायी गई।

4.8 मू यांकन न (Evaluation Questions)

1. श ा को भा वत करने वाले मु ख कारक कौन—कौन से ह? शै क कारक क ववेचना


क िजए।
What are the main factors affecting Education?Disuss the Educational
Factor.
2. राजनै तक व सामािजक कारक श ा को कस कार भा वत करते ह? व तार से
बताइए।
How Political and Social Factor is affecting Education?Write in detail.

4.9 संदभ थ (References)

1. अ वाल एस. के. : श ा के ताि वक स ा त


2. बंसल आर. ए. तथा : श ा के स ा त
शमा रामनाथ
3. बटलर : फोर फलोसॉफ ज
4. भा टया : फलोसॉफ ऑफ एजू केशन
5. चौबे अ खलेश एवं : श ा के दाश नक, ऐ तहा सक और समाजशा ीय
चौबे सरयू साद आधार
6. ओड एलके. : श ा क दाश नक पृ ठभू म
7. पार ख मथुरे वर शमा रजनी : उदयीमान भारतीय समाज तथा श ा
8. स सैना एन. आर. व प : श ा के दाश नक एवं समाजशा ीय स ा त
9. डा. राधाकृ णन : भारतीय दशन

75
इकाई 5
समाज क संरचना श ा और सामािजक प रवतन
Structure of Society Education and Social Change

इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)


5.0 उ े य (Objectives)
5.1 समाज का अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition of Society)
5.1.1 समाज का अथ एवं प रभाषाय(Meaning and Definition of Society)
5.1.2 समाज क वशेषताएँ (Characteristics of Society)
5.1.3 समाज क संरचना (Structure of Society)
5.1.3.1 अथ एवं अवयव (Meaning and Organs)
5.1.3.2 सामािजक संरचना क वशेषताएँ (Characteristics of Social
Structure)
5.2 जा त (Caste)
5.2.1 जा त क प रभाषा (Definition of Caste)
5.2.2 जा त क वशेषताएँ (Characteristics of Caste)
5.2.3 जा त यव था म प रवतन (Changes in Caste System)
5.3 वग (Class)
5.3.1 वग : अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition)
5.3.2 वग क वशेषताएँ (Characteristics of Class)
5.4 धम (Religion)
5.5 श ा और सामािजक प रवतन (Education and Social Change)
5.5.1 सामािजक प रवतन : प रभाषा (Social Change : Definition)
5.5.2 सामािजक प रवतन क वशेषताएँ (Characteristics of Social Change)
5.5.3 श ा और सामािजक प रवतन (Education and Social Change)
5.6 श ा वारा सामािजक प रवतन (Social Change Through Education)
5.7 सारांश (Summary)
5.8 मू यांकन न (Evaluation Question)
5.9 संदभ (Reference)

5.0 उ े य (Objectives)
1. मु ख उ े य समाज को सामािजक तर के प रभा षत करना,
2. समाज क संरचना का या अथ है, जानना
76
3. संरचना के मु ख अंग के बारे म जानना,
4. समाज क उपसंरचना या अंग को जानना और समझना,
5. सामािजक प रवतन को प रभा षत करना, और
6. श ा सामािजक प रवतन कस कार लाती है?

5.1 समाज का अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition of


Society)
‘’समाज’ श द का अथ बड़ा ववादा पद एवं उलझा हु आ है। दै नक जीवन म हम समाज
का योग यि तय के सामू हक संगठन या समू ह के लए करते ह और कहते ह क समाज
समू ह से बना है। उदाहरण के लए जैसे आय—समाज, मु ि लम—समाज, ह दू—समाज, ह रजन—
समाज आ द। ये समाज के सामा य योग ह जहाँ कु छ यि तय ने समाज का योग यि तयो
के समू ह के प म कया है कु छ ने सं था के प म और कु छ ने स म त के प म। यि तय
के त भी सामा य धारणा यह है क जो मनु य समाज म मलता—जु लता है तथा समाज क
मा यताओं, आकां ाओं एवं आदश के अनु प आचरण करता है, वह 'सामािजक यि त' कहलाता
है। इसके ठ क वपर त जो यि त समाज म स यवहार एवं समाज क याण—स ब धी काय नह ं
करता या समाज म मलता—जु लेता नह ं है, वह 'असामािजक यि त’ कहलाता है।
व भ न सामािजक व ान क प र े य क व भ नता के कारण 'समाज' श द का
योग व भ न अथ म करते ह। राजनी त व ान समाज को रा य सरकार, स ता, कानून
इ या द के प म यि तय के समू ह के प म प रभा षत करता है। मानव—शा समाज का
अ भ ाय आ दम समु दाय के प म लगाता है एवं आ थक याओं म संल न य कय के समूह
को मानता है। समाजशा ीय श दावल म 'समाज' श द का अ भ ाय अ धक व तृत एवं यापक
है।

5.1.1 समाज का अथ एवं प रभाषाय (Meaning and Definition of


Society)
समाजशा ीय सा ह य म 'समाज' श द का योग दो भ न—एक तो संकु चत अथ म
एवं दूसरे व तृत अथ—म कया जाता है।
समाज का संकु चत अथ म योग
कु छ समाजशा ी ऐसे ह जो समाज का योग संकु चत अथ म करते ह। संकु चत अथ
म समाज का आशय यि तय के एक समू ह वशेष के स दभ म कया जाता है। इस कार
भारत, चीन, अमे रका, टे न, लंका आ द म रहने वाल जनसं या को उस दे श का समाज कहा
जा सकता ह। ऐसे समाज नि चत एवं मूत होते ह िजनको सी मत सामािजक स पक वाला समू ह
भी कहा जा सकता है। दूसरे श द म हम यह कह सकते ह क संकु चत अथ म 'समाज' श द
का योग कसी व श ट यि तय के समूह के प म कया जाता है। यह ऐसा समाज होता है
िजसका संगठन क तपय वशेष उ े य व योजन से कया जाता है।
समाज संकु चत अथ म प रभा षत करने वाल म मो रस िज सबग एवं फेयरचाइ ड के
नाम लए जा सकते ह।
77
मो रस िज सबग ने समाज को प रभा षत करते हु ए लखा है क ''एक समाज यि तय
का वह समू ह है जो क ह ं स ब ध या यवहार के तर क वारा संग ठत ह और जो उ ह उन
अ य से पृथक् करते ह जो इन स ब ध से नह ं बंधे है या जो उनसे भ न यवहार करते ह।
एचपी. फेयरचाइ ड ने ' डमानर ऑफ सो योलॉिज म लखा है क ''समाज मनु य का
एक समू ह है जो अपने अनेक मु य हत क प त के लए अ नवाय प से वयं को बनाये रखने
व वयं क नर तरता के लए पर पर सहयोग करते ह।
इस कार समाज क उपयु त प रभाषाऐं संकु चत ह, य क इनम समाज का आशय
एक—समाज से है, जब क व तृत अथ म समाज का आशय कसी व श ट समाज से नह ं होता,
ब लक उसका आशय सामा य समाज से होता है।
समाज का व तृत अथ म योग.
अनेक ऐसे समाजशा ी भी ह िज ह ने समाज का योग व तृत एवं यापक संदभ म
कया है। व तृत अथ म समाज का योग सामािजक स ब ध क कु ल यव था के संदभ म
कया जाता है। जब कसी नि चत दे श और काल म सी मत समाज का नाम न लेकर हम
'मानव—समाज' या 'समाज' श द का योग करते ह, तो समाज से हमारा अ भ ाय उसके व तृत
अथ से ह होता है।
मेकाइवर एवं पेज ने 'सोसायट ' नामक अपनी कृ त म समाज का योग अ य त व तृत
अथ म कया है। आपके अनुसार समाज र तय (Usages) तथा काय— णा लय
(Procedures) क अ धकार (Authority) तथा पार प रक सहायता (Mutual Aid) क अनेक
समू ह (Many Groupings) तथा वभाग क मानव— यवहार के नय ण (Controls) तथा
वत ताओं (LIberties) क एक यव था है। इस सतत प रवतनशील, ज टल यव था को हम
समाज कहते ह। यह सामािजक स ब ध का जाल है और यह सदै व प रव तत होता रहता है।
टालकॉट पारस स ने भी समाज क वशद प रभाषा तु त क है। आपके अनुसार
'समाज क मानवीय स ब ध , ताि वक या तीका मक पूण ज टलता के प म प रभा षत कया
जा सकता है, जो जहाँ तक सघन—सा य (Means—ends) के स ब ध के वारा या करने से
उ प न होते ह चाहे वे यथाथ ह अथवा तीका मक (Smybolic)।
पारस स क उपुयका प रभाषा को न न ल खत ब दुओं म रखकर समझा जा सकता है।

1. समाज मानवीय स ब ध क एक ज टल यव था है।


2. समाज का नमाण केवल उ ह ं मानवीय स ब ध से होता है जो कसी या के
प रणाम— व प उ प न हु ए ह ।
3. मनु य के सम त यवहार या (Action) नह ं होते, अ पतु वे ह यवहार या होते
ह जो कसी सा य क ाि त के लए एक साधन के प म कये गये ह ।
4. सामािजक याय चाहे वे यथाथ ह या तीका मक, सामािजक स ब ध को वक सत
करती है िजसके प रणाम— व प समाज का नमाण होता है।
इस कार व तृत अथ म समाज यि तय का एक ऐसा अमूत संग ठत समूह है जो
सामािजक स ब ध पर आधा रत है िजसक एक संरचना है और जो यि तय के यवहार एवं

78
वत ताओं पर नय ण रखता है। और भी सरल श द म समाजशा म समाज श द के
प ट करण के लए तीन आव यक त व ह।

5.1.2 समाज क वशेषताएँ (Characteristics of Society)


समाज क कृ त क प ट ववेचना के लए यह आव यक है क हम समाज क कु छ
मु य वशेषताओं का उ लेख कर। समाज क मु ख वशेषताय न न ल खत हो सकती ह' —
1. समाज अमूत है : समाज क सव— मु ख वशेषता उसक अमू तता है। समाज कोई ऐसी
व तु नह ं है िजसे इि य वारा अनुभव कया जा सके। इसे न तो दे खा जा सकता है और न
ह छुआ जा सकता है। अमू त सामािजक स ब ध से न मत समाज क अमू त है। इ.बी. रयटर
ने लखा है क 'िजस कार जीवन एक व तु नह ,ं अ पतु जीवन रहने क एक या है, उसी
कार समाज भी एक व तु नह ,ं अ पतु स ब ध था पत करने क एक या।
2. पार प रक जाग कता : जाग कता का आशय है कसी ि थ त के त मान सक
चेतनता। समाज का अि त व वह ं संभव है जहाँ सामािजक ाणी पर पर जाग क रहते हु ए
यवहार करते ह । पार प रक जाग कता के अभाव म न तो सामािजक स ब ध बन सकते ह
और न ह समाज।
3. समानता एवं व भ नता : येक समाज म समानता एवं व भ नता दोन ह अ नवाय
प से पायी जाती ह। ता कक ि ट से समानता एवं व भ नता दोन एक दूसरे क पूरक ह।
समानता का आशय यि तय के उ े य , मनोवृ तय तथा वचार म एकता का होता है।
मैकाइवर एवं पेज लखते ह क 'समाज का अि त व उ ह ं लोग म होता है, जो एक दूसरे से
शर र या मि त क म कसी अंश के समान है और जो इसे जानने के लए पया त नकट एवं
बु मान है। ग ड स के अनुसार “समाज का आधार सजातीयता क भावना है।''
व भ नताओं का आशय लोग म पायी जाने वाल व भ नताओं म है। मैकाइवर एवं पेज
ने लखा है क '”य द लोग एक दूसरे के समान ह होते तो ाय: ची टय या मधुम ि खयो क
भाँ त ह उनके सामािजक स ब ध भी बहु त सी मत होते। उनम पार प रक आदान— दान क
या अथवा पार प रक सहयोग नह ं के बराबर होता। अत: समाज समानता एवं व भ नता दोन
पर आधा रत है।
4. सहयोग एवं संघष : य य प सहयोग एवं संघष भी दोन एक दूसरे के वपर त सामािजक
याय ह, तथा प दोन ह समाज क आव यक एवं मह वपूण वशेषताय है। कोई भी समाज
ऐसा नह ं है जो केवल सहयोग पर आधा रत हो। मैकाइबर एवं पेज के अनुसार “जैसे भौ तक
जगत ् म आकष एवं वकषण क शि तयाँ ह, वैसे ह सामािजक जगत ् म सहयोग और संघष का
एक संयोग होता है, जो मनु य म और समूह के स ब ध म कट होता है।“ चा स कु ले ने भी
लखा है क “इस संयोग के बारे म जो िजतना अ धक सोचता है, उसे उतना ह अ धक दखायी
दे ता है क संघष और सहयोग अलग करने यो य व तु य नह ं ह, क तु एक ह या क
अव थाय है िजसम दोन के कु छ अंग सदै व ह सि म लत रहते ह। इस कार समाज म सहयोग
व संघष दोन पाये जाते ह।
5. अ योया तता : समाज म सद य अपनी आव यकताओं क पू त हे तु एक—दूसरे पर
आ त रहते ह। व तु त: अ योया तता क आव यकता यि त को अपने ज म के साथ ह हो

79
जाती है और यह उसके स पूण जीवन—पय त चलती है। यि त अपने सामािजक, आ थक,
सां कृ तक आ द काय के लए एक दूसरे पर आ त रहते ह।
6. एक प रवतनशील ज टल यव था : समाज को सामा यत: सामािजक स ब ध का एक
जाल सामािजक स ब ध अ य त ज टल एवं प रवतनशील होते ह। उदाहरण के लए ारि भक
समाज एवं वतमान समाज के अ तर को दे खा जा सकता है यह अ तर प रवतन का प रणाम
है। जो सामा यत: और ज टल महसूस होते ह।
7. समाज केवल मनु य म ह नह ं है : मैकाइवर एवं पेज क यह उि त व तु त: स य है
जहाँ कह ं जीवन ह, वह समाज है। “4 इससे प ट होता है क समाज केवल मनु य तक ह
सी मत नह ं है, अ पतु ब दर , चीं टय , क ड़े—मकोड़ , मधुमि खय आ द म भी समाज के ल ण
एवं सामािजक संगठन दे खा जा सकता है। श ा के व याथ होने के नाते यहाँ हमारा स ब ध
केवल 'मानव—समाज'से ह ह।

5.2 समाज क संरचना (Structure of Society)

5.2.1 अथ एवं अवयव (Meaning and Organs)


सामा यतय: संरचना श द का अथ 'बनावट' या ढांचे से लखा से लखा जाता है। एक
कार से यह एक तमान होता है। जब कसी भवन को बनाया जाता है, तो उस भवन का ढांचा
या व प एक कार क संरचना कह ं जाती है। यथाथ म येक भौ तक एवं अभौ तक व तु क
कोई न कोई संरचना अव य होती है। इस कार संरचना का सामा य आशय उस व तु के बाहर
व प या बनावट से होता है।
हमारा यह शर र हाथ , पैर , आख , कान , नाम, मु ँह आ द व भ न अंग का एक ढे र
मा नह ं है, बि क इन सबका एक यवि थत प से 'शर र' कहलाता है। शर र क इन सम त
संघटक इकाइय को एक म म रखने के प रणाम— व प शर र का जो प या व प कट
होता है, उसी को हम शर र या सावयवी संरचना कहते ह। इस कार संरचना को बनाने वाले
व भ न अंग म एक ' काया मक स ब ध' पाया जाता है अथात ् एक अंग का काय दूसरे अंग
से पृथक् न होकर उससे स बि धत होता है। इसी स ब ध के कारण 'सरंचना का अि त व संभव
होता है। इसका सीधा अथ यह हु आ क संरचना और काय को एक दूसरे से पृथक् नह ं कया
जा सकता। यह बात समाज पर भी लागू होती है। समाज क भी अपनी एक संरचना होती है
िजसे 'सामािजक संरचना' कहा जाता है, और िजसका नमाण अनेक सामािजक इकाइय वारा
होता है।
सामािजक संरचना क अवधारणा का योग समाजशा एवं मानवशा दोन म होता
है। इन दोन व ान म इसका अलग—अलग योग होता है। यहाँ हम आर भ से सामािजक
संरचना का जो अथ 'समाजशा ' म लया जाता है उसक ववेचना करगे।
मो रस िज सबग ने ' रजन ए ड अन रज इन सोसायट म सामािजक संरचना के मु ख
व प अथात ् समू ह , स म तय तथा सं थाओं के कार एवं इन सबके संकु ल िजनसे क समाज
का नमाण होता है, से स बि धत है। '' पारस स सामािजक संरचना को एक मब ता के प म

80
दे खते ह। पारस स ने सामािजक संरचना क व भ न इकाइय (सं थाओं, एजेि सय , तमान )
क मब ता के प म सामािजक संरचना को समझने का यास कया है। ये इकाईयाँ आपस म
मलकर मब प से सामािजक संरचना का नमाण करती ह, एक—दूसरे से पृथक् रहकर नह ं।
5.1.3.2 सामािजक संरचना क वशेषताएँ
1. सामािजक संरचना अनेक अंग या इकाइय से मलकर बनती है। वा तव म व भ न
अंग या इकाइय को यवि थक प से मब होना ह आव यक नह ं वरन ् उनम
अ त: स ब ध का होना भी आव यक है।
2. सामािजक संरचना का स ब ध समाज म बा य व प से होता है।
3. सामािजक संरचना एक कार से शर र रंचना क तरह है और इसका योग भी इसी अथ
म कया गया है
4. सामिजक संरचना का योग यापक अथ म सामािजक संगठन सामािजक यव था या
सामािजक व प अथ म हु आ है, तथा सामािजक समू ह, सं थाय, स म तयाँ आ द इसक
इकाइयाँ है।
5. सामािजक 'संरचना अपे ाकृ त 'ि थर और ' थायी होती है।

5.2 जा त (Caste)
इस ि ट से जा त मनु य म ह नह ,ं पौध और जड़ पदाथ म भी होती है। एक अ य
धारणा के अनुसार यूरोपवा सय म सबसे पहले पुतगा लय ने 'का ट' श द का योग कया जो
पुतगाल श द 'का टा से बना है िजसका अथ है 'वंश' या 'न ल'। भारत म जा त यव था वण
यव था का उ पाद है। ज म के आधार पर पहचान का नधारण पर परागत होते ह वण से
जा तय का नमाण ार म हो गया। पर परागत यवसाय ने जा त यव था के वकास म
सहयोग दया है। त प चात ् कई अ य आधार का योगदान म उपजा त एवं उप—उपजा तय के
उ व का कारण बनी।

5.2.1 जा त क प रभाषा (Definition of Caste)


एस.वी. केतकर ने “ ह ऑफ का ट इन इि डया” म जा त को प रभा षत करते हु ए
लखा है क ”जा त एक सामािजक समू ह है िजसम एक वशेष जा त क सद यता केवल उ ह ं
यि तय तक सी मत होती है िज ह ने उसी जा त म ज म लया हो, तथा िजसके सद य पर
एक ढ़ सामािजक नयम वारा अपने समू ह के बाहर ववाह करने पर नषेघ लगा दया जाता
है।'' केतकर ने कु छ थान पर जा त के एक “सामा य नाम” और “सं तरण” क भी चचा क है।
मजूमदार और मदन जा त को एक ब द वग कहते ह। ब ट के अनुसार “जा त एक
अ त ववाह समू ह या समू ह का संकलन है, िजसका एक सामा य नाम होता है, सद यता
आनुवां शक होती है, सामािजक सहवास के े म अपने सद य पर' कु छ तब ध लगाता है,
इसके सद य या तो एक सामा य पर परागत यवसाय करते ह अथवा कसी सामा य आधार पर
अपनी उ पि त का दावा करते ह और इस कार एक सम प समु दाय के प म मा य होते ह।
उपयु त पर परागत प रभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है क जा त एक
ऐसा समािजक समूहै िजसक सद यता ज म से नधा रत हो जाती है और दै नक जीवन एवं

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वशेष अपवर पर खान—पान, यवसाय, ववाह एवं सामािजक सहवास स ब धी अनेक नषेध क
यव था जु ड़ जा त है और सद य को उ ह वीकार करना होता है, जा त को भारतीय समाज
यव था क एक संरचना के प म, वयं म एक सामािजक—सां कृ तक यव था के प म व
सं तरण के आधार के प म दे खा जा सकता है।

5.2.2 जा त क वशेषताएँ (Characteristics of Caste)


जा त क वशेषताएँ संरचना मक और सां कृ तक संदभ म दे खी जा सकती है। ो.
जी.एस धू य ने आठ वशेषताओं का वणन कया है
1. समाज का ख डा मक वभाजन : जा त यव था ने भारतीय समाज को व भ न ख ड
म वभािजत कर रखा है। या न एक जा त के सद य क सामु दा यक भावना स पूण
समु दाय के त न होकर अपनी ह जा त तक सी मत रहती है।
2. सं तरण : जा त यव था के अ तगत ऊँच—नीच का एक सं तरण दे खा जा सकता है।
इस पद—सोपा नक यव था म ा मण का थान सबसे ऊपर एवं शु का न नतम
होता है। ज म पर आधा रत होने के कारण इस सं तरण म ि थरता एवं ढ़ता पायी
जाती है।
3. ज मजात सद यता : जा त क सद यता ज म के साथ ह नधा रत हो जाती है और
मृ युपय त इसम कोई प रवतन संभव नह ं होता।
4. जा त का राजनी तक च र भी : जा त एक राजनी तक इकाई भी है। जा त पंचायत,
काय और जा त संगठन उसके राजनी तक च र का नमाण करते ह। जा त के वारा
वधा यक या यक और कायका रणी स ब धी काय भी स प न कए जाते ह। उ च
जा तय क अपे ा न न जा तय म जा त पंचायत का संगठन अ धक मजबूत रहता
है।
5. भोजन और सामािजक सहवास पर तब ध : जा त यव था म पर पर जा तय के बीच
भोजन व यवहार से स बि धत अनेक नषेध पाए जाते ह। ये नयम नधा रत करते ह
क उनके सद य कस जा त के यहाँ क चा, प का या फलाहार भोजन कर सकते ह
अथवा नह ं। सामा यत: नीची जा तय वारा न मत भोजन उ च जा तय वारा नह ं
कया जाता।
6. सामािजक एवं धा मक नय यताएँ एवं वशेषा धकार : जा त यवसाय म उ च जा तय
को कई सामािजक एवं धा मक वशेषा धकार ा त है जब क न न जा तय को इनसे
वं चत रखा गया है या न नय यताएं है।
7. पर परागत यवसाय : येक जा त का एक पर परागत यवसाय होता है जो पीढ़ दर
पीढ़ ह ता त रत होता रहता है। कई जा तय के नाम से उनके यवसाय का बोध होता
है। येक जा त के सद य नधा रत यवसाय पर जोर दे ते ह और अपना यवसाय
बदलने से रोकते ह ले कन कु छ यवसाय ऐसे ह िज ह सभी जा तय के यि त करते ह,
वशेषकर कृ ष, यापार, सेना म नौकर आ द।
8. ववाह स ब धी तब ध : जा त अ त ववाह समू ह होते ह। येक जा त के सद य
अपनी ह जा त या उपजा त म ववाह करते ह। जा त या उपजा त से बाहर ववाह करने
वाले को जा त से ब ह कृ त कर दया जाता है।

82
5.2.3 जा त यव था म प रवतन (Changes in Caste System)
जा त यव था के सामािजक एवं सां कृ तक व प म यापक प रवतन, श ा,
औ योगीकरण, नगर करण, आधु नक करण एवं अब लोबलाईजेशन के कारण दे खा जा सकता है।
जा त सं तरण के आधार के प म अपना मह व खोती जा रह है। कई व ान का मानना है
क जा तय म वग यव था उ प न हो रह है अत: जा त समू ह म सामािजक ग तशीलता बढ़
रह है। ले कन पर परागत जा तगत सं तरण अब भी व यमाने है। यह सोच अब पुराना हो चु का
है। न न जा तयाँ सामािजक, आ थक और राजनी तक ि थ त म सुधार कर रह ह और नगर म
बढ़ती अप र चतता का लाभ उठाकर न न जा त के व प वयं को उ च जा त का घो षत कर
रहे ह।
कई जा तगत वशेषताएँ ा मण क उ च ि थ त, पेशे का चु नाव, भोजन एवं खान—
पान स ब धी तब ध, ववाह स ब धी तब ध आ द—तेजी से कमजोर होती जा रह है। इनक
मह वता लगभग समा त हो चु क है। नवीन कानून ने सामािजक—सां कृ तक स ब ध क
पर परागत ि थ त म प रवतन कया है। धम नरपे ीकरण एवं जातं ीय मू य ने जा तगत
भेद म कमी क है और नवीन व व तर के यवसाय ने पैसे और पद क मह वता को बढ़ाते हु ए
पर परागत मू य म तेजी से बदलाव लाने म अपना सहयोग बढ़ाया है। कु छ व ान ने जा त म
वग के उ व क बात क है और कु छ इसे णक प रवतन का ह सा मानते ह। ले कन यह
स य है क जा तगत जडताएँ अब तेजी से समा त होती जा रह ह और नवीन ान क धाराओं
के भाव से जा तगत मू य का अि त व और उनका च र अब राजनी तक उपयोग तक अ धक
सी मत होता जा रहा है। सामािजक—सां कृ तक वशेषताएं धीरे —धीरे लु त हो रह ह। फलहाल
उनके नए व प क चचा करना दु कर काय है।

वमू यां क न न—1 (SelfEvaluation Question)


1. मै काइवर एवं पे ज वारा तु त समाज क प रभाषा द िजए|
2. समाज क तीन मु ख वशे ष ताएं द िजएं|
3. ‘जा त‘ क प रभाषा द िजए|

5.3 वग (Class)
सामािजक संरचना म सामािजक सं तरण का एक मु ख आधार सामािजक वग भी है।
सामािजक प रवतन क याओं — औ योगीकरण, नगर करण, श ा ौ यो गक वकास,
आधु नक करण आ द के भाव के प रणाम व प सामािजक वग यव था के संदभ म भारतीय
समाज क या या क जाने लगी है। आ थक वकास ने जा तगत सं तरण को जहां कमजोर
करना ार भ कया है, वह ं वगगत वशेषताओं को बढ़ाने म अपनी अहम ् भू मका नभाई है।
बोटोमोर का कथन मह वपूण है – “वग त यत: समूह होते ह। वे अपे ाकृ त उ मु त होते ह, ब द
नह ं। उनका आधार न ववाद प से आ थक है, ले कन वे आ थक समूह से अ धक ह। वे
ओ यो गक समाज के ला णक समू ह ह।
83
वग यव था आधु नक औ यो गक एवं खु ले समाज क व श ट वशेषता है। िजसका
आधार अिजत ि थ त है। अिजत ि थ त यि तगत यो यता और मता के आधार पर ा त
उपलि ध पर नभर करती है। कोई भी यि त अपने जीवनकाल म एक वग से दूसरे वग म
अपनी उपलि दय के आधार पर नीचे से उपर जा सकता है। इसके वपर त एक उ च तर का
यि त या अमीर यि त कसी काल वशेष न न तर तक आ सकता है, या न उसका वग
बदल जाता है।
वग यव था के आधार पर हम समाज को मोटे तौर पर तीन वग म बांट सकते ह —
उ च वग, म यम वग और न न वग। व भ न समाज म तरण का आधार समान नह ं होता।
वशेषकर वक सत एवं वकासशील दे श म। वकासशील दे श म न न वग का आधार बहु त बड़ा
होता है। जब क वक सत दे श म म यम वग का आकार शेष दोन वग से बड़ा होता है। भारत
म म यम वग का आकार तेजी से नह ं बढ़ रहा। वरन ् इसक मह वता म भी वृ हो रह है।

5.3.1 वग : अथ एवं प रभाषा (Class : Meaning and Definition)


वग का आधार आ थक ह ं नह ं अ पतु सामािजक—सां कृ तक भी होता है। ऑगबन के
अनुसार “एक सामािजक वग ऐसे यि तय का योग है, िजनक उस समाज म अ नवाय प से
समाजन सामािजक ि थ त होती है। मैकाइबर व पेज के श द म “एक सामािजक वग समु दाय का
वह भाग है जो सामािजक ि थ त के आधार पर दूसर से पृथक कया जा सके। '' व ान क ये
प रभाषाएँ प ट करती ह क समाज सामािजक ि थ त वाले समूह ह समाज म वग का
नमाण करते ह। लक, अ यापक, इंजी नयर, डाँ टर, यापार , कसान आ द क सामािजक
ि थ तयां समाज म भ न— भ न होने से अलग—अलग कार के वग बन गए ह।
कु छ प रभषाएं वग के आ थक आधार को वीकार करती ह। मा स का कहना है क
जी वका उपाजन के व भ न साधन के कारण मनु य पृथक—पृथक वग म वभािजत हो जाते ह।
उनके मतानुसार एक सामािजक वग को उसके उ पादन के साधन और स पि त के वतरण के
साथ होने वाले स ब ध के संदभ म ह प रभा षत कया जा सकता है।
मै स वेबर के अनुसार, “एक समू ह को तब वग कह सकते ह जब क उस समू ह के लोग
को जीवन के कु छ अवसर समान प से ा त ह यहां तक क वह समू ह व तु ओं पर अ धकार
या आमदनी क सु वधाओं से स बि धत आ थक हत वारा पूणतया नधा रत तथा व तु ओं या
मक बाजार क अव थाओं के अनु प ह ।
कु छ व वान वग को सामािजक—सां कृ तक समूह के प म दे खते ह। िज सबग का
कहना है क “एक सामािजक वग ऐसे यि तय का समू ह है जो यवसाय, धन, श ा, जीवन
यापन क व धय , वचार , भावनाओं, मनोवृि तय और यवहार म एक दूसरे के समान होते ह
या वे एक—दूसरे से समानता का अनुभव करते हु ए अपने को एक समू ह का सद य समझते ह।
इस कार यह कहा जा सकता है क एक वग के सद य क सां कृ तक वशेषताएं समान होती
ह।

5.3.2 वग क वशेषताएँ (Characteristics of Class)


वग क धारणा को ओर प ट करने के लए वग क वशेषताओं का जानना बेहतर
रहे गा। मह वपूण वशेषताएँ न न कार है—

84
1. पद—सोपान यव था : समाज म वग क एक ेणी होती है जो उ च से न न क ओर
या न न से उ च क ओर होती है। उ च वग के सद य क त ठा एवं शि त अ य
वग क तु लना म सबसे यादा होती है। इनक सं या भी कम होती है। वकासशील
समाज म न न वग के सद य क सं या सवा धक होती है, जब क वक सत समाज
म म यम वग का आकार न न व उ च वग क तु लना म सबसे बड़ा होता है।
2. खु ल यव था :वग यव था जा त क तरह कठोर और ज म पर आधा रत नह ं होती।
वग क सद यता म प रवतन संभव है। यि त अपनी यो यता एवं मता का योग
कर अपने से उ च वग क सद यता अिजत कर सकता है, जा त क तरह यि त
जीवन पय त उसी वग का सद य रहे गा, यह आव यक नह ं है और ना ह ज म से
वग का नधारण ह होता है ।
3. समान ि थ त समूह : एक वग के लोग क ि थ त एक समान होती है। ि थत
नधारण के कई आधार ह। स प त, श ा, यवसाय, आय, राजनी त आ द कई आधार
हो सकते ह। फर भी कोई एक ह आधार सामािजक ि थ त का नधारण नह ं करता।
दो या अ धक आधार मलकर भी सामािजक ि थ त का नधारण करने म अपना
योगदान करते ह। एक वग के लोग समान ि थ त के आधार पर उ चता या न नता
क भावना रखते ह तथा उनम 'हम' क भावना वक सत होती है।
4. सी मत सामािजक स ब ध : एक वग के सद य के बीच सामािजक स ब ध अपने ह
वग के लोग तक सी मत रहते ह। अ य वग (उ च या न न) से एक नि चत
सामािजक दूर बनाए रखते ह। आ थक, सामािजक एवं सां कृ तक समानता के कारण
एक वग के सद य के स ब ध अपने ह वग म अ धक पाए जाते ह। इसम श ा,
यवसाय, आय, मकान का कार, मोह ले क त ठा, रहन—सहन, पहनावा, बोलने का
तर का, आ द मह वपूण ह। उ च, म यम एवं न न वग के सद य से इन आधार पर
प ट भ नता दे खी व पहचानी जा सकती है।
5. प रवतनशीलता : वग यव था म प रवतनशीलता का गुण व यमान रहता है। इसका
कारण श ा, यवसाय, आय, शि त, आ द अिजत वशेषताओं से यु त होती है। और
इनम प रवतन भी आसान है। वग प रवतन स भव है, ले कन इसम समय लग सकता
है।
6. जीवन अवसर : मै स वेबर का कहना है क एक वग के लोग को जीवन के कु छ
व शट अवसर और सु वधाएं समान प से ा त होते ह। मजदूर के अवसर गर ब वग
को नए उ योग—धंध खोलने के एवं उ च जीवन तर बनाए रखने के अवसर
स प न लोग को समान प से ा त होते ह।

5.4 धम (Religion)
धम तीक का ऐसा संकलन है िजससे लोग के अनुभव और भावनाएं मान सकता का
ह सा बन जाते ह और सं कार और उ सव से जु ड़ जाते ह। अलग—अलग धम म अलग—अलग
ि थ तयां दे खी जाती ह। कह ं धा मक पु तक तो कह ं मू त त आकृ त मह वपूण होती है। कह ं
आ याि मक और लौ कक व प मह वपूण होता है। इसी लए अलग—अलग धम के तीक एवं
सं कार के व प म भी अ तर दे खा जा सकता है। सं कार म ाथना, लोक आ द का

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उ चारण, भजन या गायन, वशेष कार का भोजन, त या उपवास आ द व यमान होते ह। ये
सब यि तगत एवं सामू हक दोन तर पर आयो य होते ह।
धम कसी भी समाज क संरचना का मह वपूण अंग है। हजार वष से मानव जीवन पर
धम का कठोर भाव रहा है। सभी ात समाज म धम का अ त व कसी न कसी व प म
व यमान दे खा जा सकता है। पुराताि वक अवशेष ारि भक समाज म धम के तीक एवं
उ पक क कहानी कहते ह। स पूण मानव इ तहास म धम ने मानवीय अनुभव एवं स ब ध के
व प म के य भू मका नबाह है। साथ ह िजस भौ तक एवं सामािजक—सां कृ तक पयावरण
म वे समाज रहते रहे थे उस पयावरण से अ तः या म धा मक या याएँ दे खी जा सकती ह।
धम क कोई एक सवमा य प रभाषा दे ना अ य धक क ठन है। इसम यि त और
समु दाय क भावना मकता अ त न हत होती है। व भ न कार के धा मक व वास और संगठन
इतने अ धक ह क व ान को धम क सामा य वीकृ त प रभाषा वक सत करने म अ य धक
क ठनाई आती है। धम एक सामािजक सं था है। इसका ताना—बाना आ धदै वक तथा उ ाकृ तक
है। समाजशा ीय ि टकोण से धम को मु यत: ताि वक और काया मक ि ट से प रभा षत
कया जा सकता है। ताि वक प रभाषाएं धम क या या “ या” है? के आधार पर वक सत है,
जब क काया मक प रभाषाएं समाज म धम क भू मका (धम या करता है?) को प ट करती
है।
19वीं शता द के मानवशाि य म टायलर क धम क या या ताि वक ि टकोण को
तु त करती है। टायलर के अनुसार धम दे वी—दे वताओं तथा अ य अ धमानवीय ा णय जैसे
पूवज, आ माओं के त व वास तथा उनसे स बि धत कमका ड क एक यव था है।
समाजशा म धम क काया मक या या अ य सामािजक सं थाओं क तरह ह प रभा षत क
गई है। धम सामािजक यव था को बनाए रखने म अपनी व श ट भू मका नबाहता है। दख म
ने टायलर क धम क या या को अ वीकार करते हु ए काया मक ि टकोण से इसे प रभा षत
कया है।
दख म के अनुसार धम प व व तु ओं से स बि धत व वास तथा कमका ड क एक
संग ठत यव था है। धम वशेष के अनुया यय को एक एकल सामािजक—नै तक समु दाय म
बांधता है जो इनका अनुसरण करते ह। दूसरे श द म “ कसी आलौ कक ाणी, शि त अथवा
स ता पर केि त व वास , मू य व आ था प व ता क धारणा पर आधा रत होते ह, तथा इनसे
स बि धत कमका ड के पु ज
ं को धम कहते ह। यह नै तक नणु य को लेने क या म
उ प न क ठन असमंजस क ि थ त म यि त क सहायता करता है। सामा यत: धम मानवीय
जीवन के अ ात एवं अबुक प जैसे जीवन, मृ यु , बीमार , वृ ाव था और उसके अि त व के
रह य को जानने और उनके साथ यवहार करने का तर का है।
दख म के अनुसार धम कमका डीय याओं का प रणाम है। व तु त: धम का व प
सामािजक है, वैयि तक नह ं। उसने तक दया है क “सभी समाज म 'प व व अप व व तु ओं
म भेद कया जाता है और प व व तु ओं से स बि धत व वास व याओं क एक संयु त
यव था को धम कहते ह। प व व तु एँ वे व तु एँ ह जो पृथक रखी जाती ह और न ष मानी
जाती है। इनका दु पयोग न ष होता है। व वास और याएं जो एक अकेले नै तक समु दाय म
संग ठत होती है, िजसे धम कहते ह, सभी लोग उसे अपनाते ह।

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मा स के अनुसार धम मानव को यथाथ जगत से बचाने या दूर करने के बजाय कायर
बना डालता है। मा स क ि ट म धम अफ म क गोल है, िजसके नशे म गर ब जनता को
सु लाकर उ ह नभयता से लू टा जाता है। उनके अनुसार धम जनता या समाज के वकास म
बाधक है।
मै स वेबर के धम के बारे म वचार न तो मानवशा ीय सै ाि तक यूि त दोष से
मु ता थे और ना ह उ ह ने धम क ववेचना म पूजा और व वास क वैचा रक यव था को
कोई य दया। वेबर का मु य उ े य व भ न समाज क सं थागत यव थाओं पर धा मक
नी तय के भाव को प ट करके यह ात करना था क व भ न समाज क आ थक तथा
सामािजक व भ नताओं को धा मक आधार पर कस तरह प ट कया जा सकता है। कस कार
और कौन से धा मक मू य पू ज
ं ीवाद यव था को वक सत करने म सहायक होते ह। ोटे टट
ए थक म वे पू ज
ं ीवाद क आ मा पाते ह।

5.5 श ा और सामािजक प रवतन (Education and Social


Change)
श ा एक मह वपूण सामािजक सं था है। समाज म श ा का वच व आ दम समाज से
अब तक अनुभव के आधार पर वक सत हु आ है और समाज का वकास इस कार उ प न ान
के आधार पर बढ़ता रहा है। श ा का औपचा रक व प अलग—अलग समाज म अलग—अलग
तरह से फलता—फूलता रहा। मू ल म शहर के सार व औ योगीकरण ने श ा के वतमान व प
को था पत कया है। ले कन आज इसका जो सावभौ तक व प उभरा है उसने समाज म ान—
व ान और ौ यो गक को दै नक जीवन का अंग बना दया है और उसे यावसा यकता और
जीवन—यापन के व भ न तर से तर पर नह ं जोड़ा वरन ् रा और समाज के वक सत व प
का नधारक बना दया है। श ा सामािजक प रवतन का ोत और यं बन चुका है।

5.5.1 सामािजक प रवतन : प रभाषा (Social Change :


Definitions)
आप यह जानते ह है क सामािजक प रवतन क ग त दन त दन ती होती जा रह
है। वक सत एवं वकासशील समाज के ामीण व नाग रक े म या न सभी जगह सामािजक
प रवतन बहु त अ धक व वधता और ती ता से हो रहा है। सामािजक प रवतन म श ा क
भू मका बहु त गंभीर व मह वपूण है। इससे पूव क श ा क भू मका जाने व समझे, यह जानना
मह वपूण है क सामािजक प रवतन या है? समाज म होने वाला येक कार का प रवतन
सामािजक प रवतन नह ं कहलाता। आइये, हम दे ख क समाजशाि य ने सामािजक प रवतन को
कस कार प रभा षत कया है।
जो स का कहना है क “सामािजक प रवतन एक सं यय है िजसका योग सामािजक
याओं, सामािजक तमान , सामािजक अंतः या या सामािजक संगठन के कसी भी अंतर या
संशोधन का वणन करने के लये कया जाता है।
मेकाइवर और पेज के अनुसार “सामािजक प रवतन सामािजक स ब ध म होने वाले
प रवतन को कहते ह।

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कं सले डे वस के अनुसार “एक समाज के सामािजक संगठन क संरचना और कायाँ म
होने वाले प रवतन को सामािजक प रवतन कहते ह।
मो रस िज सवग “सामािजक प रवतन से म समझता हू ँ सामािजक संरचना म एक
प रवतन। '' मो रस िज सवग क प रभाषा सव तम है।
आधु नक समाजशा ीय भाषा म समाज श द के बदले सामािजक यव था पद का
योग कया जाता है, तथा सामािजक यव था के तीन भाग या अंग व लेषण हे तु बताये गये है।
(i) 'सामािजक संरचना' — सामािजक संरचना िजसका अथ है सामािजक सं थाओं क ठोस
तमाना मक यव था। इसी पर मू लत: सामािजक यव था टक होती है। जैसे भारतीय
सामािजक संरचना जा त, धम, वग आ द मह वपूण सामािजक सं थाओं से मलकर बनी है।
(ii) सं कृ त — सं कृ त जो क वा तव म मू य क एक यव था है। यह हमार जीवन
शैल या जीवन का ढं ग है।
(iii) यि त व यव था — समाज के सद य के यि त व उनक मनोवै ा नक वशेषताओं,
वृ तय आकां ाओं, सु झाव आ द अनेक ज टल मनोवै ा नक व सां कृ तक कारक से न मत
होते ह।
इस कार एक समाज या सामािजक यव था म होने वाले कसी भी मह वपूण प रवतन
को ''सामािजक प रवतन'' कह दया जाता है और मोटे प म यह ठ क ह मान लया जाता है।
ले कन वा तव म य द बार क से व लेषण कया जाये तो यह कहना चा हये क जब सामािजक
संरचना म प रवतन आये तो वह स चा हु आ, जब सं कृ त म प रवतन आये तो वह हु आ और
जब यि त व यव था म प रवतन आये (जो बहु त मु ि कल से यदाकदा ह आता है) तो वह
यि त व प रवतन हु आ।

5.5.2 सामािजक प रवतन क वशेषताएँ (Characteristics of


Social Change)
व बट मू र व अ य समाजशाि य के अनुसार सामािजक प रवतन क कु छ मह वपूण
वशेषताएँ न नां कत ह—
1. येक सामािजक प रवतन म ग भीरता, द घकाल न अथवा था य व क वृ त दे खने
म आती है— णक या दो चार दन या कु छ लोग के जीवन या संबध
ं म होने वाले
अ थायी प रवतन को सामािजक प रवतन नह ं कहते।
2. सामािजक प रवतन ज टल होते ह।
3. सामािजक प रवतन अचानक नह ं होते, उनक भ व यवाणी नह ं क जा सकती है, वे
धीरे —धीरे होते ह। अ धक से अ धक कोई प रवतन क संभावना बतला सकता है ले कन
नि चत प से यह नह ं बता सकता है क कब, कहां और कैसा सामािजक प रवतन
होकर ह रहे गा। प रवतन कह ं भी हो सकता है और उसका भाव कह ं भी हो सकता है।
4. सामािजक प रवतन से यि त न केवल अपने यि तगत जीवन म भा वत होते ह
बि क स पूण सामािजक संरचना और यव था क काय—प त म भी प रवतन आ
जाता है।
5. कसी भी समाज के ह स म कसी एक सामािजक प रवतन का असर एक—सा और
एक साथ नह ं होता।
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6. आधु नक समाज म सामािजक प रतवन क ग त बहु त ती होती है। जब क सरल
समाज (गांव , जन जा तय आ द म) म सामािजक प रवतन धीरे —धीरे आता है।
7. प रवतन योजनाब ढं ग से हो सकता है और अयोजनाब ढं ग से भी हो सकता है।
भारत क पंचवष य योजनाओं के ज रये दे श म योजनाब सामािजक प रवतन लाया जा
रहा है। कई प रवतन वत: बना सोचे वचार भी अ नयोिजत ढं ग से हो रहे ह जो अपने
भाव से अ छे या बुरे हो सकते ह।
8. सामािजक प रवतन समाज के भीतर से भी उ प न कया जा सकता है, और समाज के
बाहर से भी। उदाहरणाथ, आय समाज वारा लाया गया सामािजक—प रवतन आंत रक
प से े रत कहा जाता है, जब क नयोिजत प रवतन बा य शि तय के प रणाम
व प होता ह|
9. सामािजक प रवतन एक या अ धक कारक का प रणाम हो सकते ह।
10. आजकल सामािजक प रवतन यि तगत अनुभव और समाज के व वध प को
व तृत प स भा वत करते ह।
11. चू ं क मानव अपने पयावरण पर पूण अ धकार पाने तथा आदश मू य क ाि त करने
म अब तक पूणतया सफल नह ं हु आ है, अत: सामािजक प रवतन के ये दो मु ख ोत
है।
12. वय क मता धकार, स या ह, मनोवै ा नक ि ल नक, सामािजक कानून आ द समाज म
व वध कार के सामािजक प रवतन लाते ह।
13. कई सामािजक प रवतन तो नसंदेह नये अनूठे या अ वतीय होते ह और उ ह “नवाचार”
कहा जाता है, ले कन ाय: बहु त सामािजक प रवतन (जैसे कपड़ के फैशन) होते ह
य क वे समय—समय पर आते ह और लु त होते रहते ह।
14. यह आव यक नह ं है क येक सामािजक प रवतन वागत करने यो य अ त थ ह
य क कई सामािजक प रवतन समाज को पहले से अ धक खराब, वघ टत, वफल,
दुखी भी बना सकते ह।
15. सामािजक प रवतन क कई याएँ हो सकती है। भारत म होने वाले सामािजक
प रवतन क कु छ याएँ ह—
(i) पि चमीकरण, (ii) सं कृ तकरण, (iii) धम नरपे ीकरण, (iv) सामािजक ग तशीलता
या ग या मता, (v) जातं ीयकरण (vi) आधु नक करण, (vii) नगर करण, (viii)
औ योगीकरण, (ix) भारतीकरण
16. सामािजक प रवतन के भाव का व लेषण जब कोई सामािजक प रवतन होता है तो
उसका न नां कत प पर भाव पड़ता है—
(i) लाग के आपसी स ब ध पर भाव;
(ii) लोग के व वास , सोचने—समझने के तमान म अंतर;
(iii) लोग क आकां ाओं म प रवतन;
(iv) सामािजक सं थाओं (जैसे ववाह, प रवार, श ा, राजनी त, अथ यव था, कानून
आ द) क प रचना, काय दशा, काय मता, भावो पादकता आ द पर
भाव।
(v) लोग के सामािजक एक करण/संगठन पर भाव
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(vi) समाज क सामािजक ग त (Social progress) को बढ़ावा मलना या
ध का लगना।
(vii) लोग क आदत , च र , नै तकता, मनोबल, आ द पर भाव।
(viii) सामािजक वघटन से बढ़ावा मलना या उसम कमी आन।
(ix) लोग के काय करने, वचार व यवहार करने के तर क पर भाव।
(x) लोग के सामािजक व सां कृ तक मू य म प रवतन।
17. यह एक अजीब बात है क िजन सामािजक प रवतन का आरंभ म लोग वारा बहु त
वरोध कया गया, वे बाद म चलकर बहु त उपयोगी सा बत हु ए।
18. सामािजक प रवतन के कई प हो सकते ह यथा — सामा य सामािजक प रवतन,
ाि त, आ दोलन, वघटन, संघष आ द।

5.5.3 श ा और सामािजक प रवतन (Education and Social


Change)
सामािजक प रवतन और श ा के पर पर स ब ध को हम तीन प म व ले षत कर
सकते ह —
(क) कसी दे श म सामािजक प रवतन लाने के लए अ नवाय शत या आव यकता के प म
श ा।
(ख) एक दे श म सामािजक प रवतन लाने के साधन या अ भकता के प म श ा।
(ग) एक दे श म सामािजक प रवतन के भाव के प म श ा।
(क) सामािजक प रवतन लाने के लए अ नवाय शत या आव यकता
श ा के समु चत आधार या यास के बना एक समाज म सामािजक प रवतन लाना
क ठन हो जाता है। कई वकासो मु ख दे श म यह दे खने म आया है क वहाँ लगाये गये
क मती व उ च तर य यं , कल—कारखाने और अ य उ पादन के वहां ाय: अपना
पूरा लाभ नह ं दे सकते ह, य क उनके लए उपल ध होने वाले कायकताओं या मक
म या तो अ श ा ह या त होती है अथवा अ प श ा। वे यं तथा उ च औपचा रक
यव थाओं को भल भाँ त चलाने के लए आव यक सावधा नयाँ, नयम , सू झ—बूझ
आद को नह ं बरत पाते ह। अत: उ पादन क दर अथवा कायकु शलता के तर अ य त न न
बने रहते ह तथा वां छत समािजक प रवतन नह ं होता है। यह भी दे ख सकते ह क
सामािजक सु धार के काय म भी तभी सफल हो पाते ह, जब जनता म श ा का कोई—
न—कोई तर व यमान हो। भारत म शारदा मैरेज ए ट, छुआ—छूत स ब धी अ ध नयम
सफलतापूवक अपना काय नह ं कर पाये ह। य क अ धकतर ामीण भारतीय जनता
अश त है और वह इन यास के मह व को नह ं समझ पायी है। इसी कार व छ
जीवन, उ तम वा य, तकपूण चंतन आ द के वकास म श ा का अभाव अ य त
बाधक रहा है। भारतीय ामीण े म अश त पंच व सरपंच ने अपनी अ श ा के
फल व प समाज म अभी तक अ नवाय सा रता और नःशु क ाथ मक श ा दान

90
करने क यव था न हो पाने तथा श क— श ण के तर न न होने के कारण
वां छत सामािजक प रवतन नह ं हो पा रहा है।
(ख) सामािजक प रवतन लाने के साधन या अ भकता के प म श ा :
सामािजक प रवतन के लए इ छुक एक समाज कई कार के कारक सं थाओं, संय
अथवा अ भकताओं को काम म लाता है। उनम से एक मह वपूण यं श ा है। यह व वास
कया जाता है क श ा वारा यो य वशेषीकृ त कायकता तैयार कये जा सकगे— जो उ च
तर य श ा सं थाओं, औ यो गक— यापा रय त ठान तथा अ धकार तं म काय कर सकगे,
लोग म नये सामािजक मू य वक सत कये जा सकगे तथा उनको परं परागत मू य क जकड़
से बहु त अ धक छुटकारा दलवाना संभव होगा, लोग के यि त व म परानुभू त ग तशील
बु वता तथा अ यवसाय क आधु नक वशेषताएँ उ प न क जा सकगी तथा पछड़ेपन
संकु चतता तथा अ ान को न ट कया जा सकेगा। श ा के वारा लोग के सामा य ान,
जीवन तर, व छता, वा य, नै तकता तथा नव—प रवतन के त ेरणा अथवा जाग कता के
तर को वक सत कया जा सकेगा तथा सामािजक वभेद करण या तरण तथा शोषण को कम
कया जा सकेगा।
एम.एन. ी नवास तथा अ य कई सामािजक े क ने इस स ब ध म दो मह वपूण वचार दये
ह—
1. श ा सामािजक प रवतन का भावशाल संयं तभी बन सकती है, जब क वह वयं
व थ अथवा दोषमु त हो। दुभा यवश, आधु नक भारतीय श ा क यव था के भीतर ह इतने
अ धक रोग— वेष, सामािजक अ याय, वषमताएँ, शोषण तथा अनाचार क वृ तयाँ फैल हु ई ह
क अब उससे यह आशा करना क वह समाज म सु धार और प रवतन लायेगी केवल एक
वंचना ह है। व व व यालय म श ण पा रहे भ व य के डाँ टर , इंजी नयर , नौकरशाह ,
मैनेजर और अ य पदा धका रय म से कतन के दय म यइ इ छा नह ं है क नौकर लगते ह
समाज म लू ट—खसोट कर अपना घर भरने का यास नह ं करगे?
2. श ा सामािजक यव था से वयं ह भा वत होती है। अत: वह कस कार सामािजक
यव था को भा वत व प रव तत कर सकती है?
आज का भारतीय सामािजक संदभ ह तमानह नता तथा वरोधाभास से त ह अत:
वह श ा सं थाओं पर भी बुरे सामािजक भाव डाल रहा है। हमारे पा य म, श क क
नयुि तयाँ , श ा सं थाओं के शासन, श ा सं थाओं म उपल ध साधन—सु वधाएँ, ये सभी तो
समाज पर ह नभर है। जब समाज म ह प रवतन के थान पर पर परागत यव था अथवा
सामािजक ि थरता फैल हु ई है तो फर यह कैसे आशा क जा सकती है क श ा सं थाएँ ऐसी
मनोवृि तय से भा वत नह ं हो पायगी और समाज को सु धार पायगी?
इस आलोचना का उ तर दया जा सकता है। यह सह है क समाज क वतमान अथवा
पर परागत यव थाओं, मू य व पर पराओं का श ा सं थाओं पर बहु त अ धक भाव पड़ता है।
ले कन यह कहना पूणतया स य नह ं है क श ा सं थाएँ ऐसी ि थ त म समाज सुधार अथवा
सामािजक प रवतन लाने क दशा म कु छ भी नह ं कर सकती। वा तव म यह वैधा नक
उ तरदा य व है क वे सामािजक सम याओं पर न प तापूवक सोच— वचार कर यह तय करे क
कस कार समाज म च लत अ काया मक यव थाओं म मह वपूण प रवतन लाया जा सकता

91
है। य द श ा सं थाएं ऐसा नह ं कर पाती ह, तो वे अपने त क जा रह समाज क मह वपूण
आकां ा को धू मल कर रह ह।
भारतीय श ा सं थाएं वयं म सु धार अथवा प रवतन नह ं ला पा रह ह। वे समाज म
प रवतन भी नह ं ला पा रह ह। इस मह वपूण प पर वचार करने के लए हम उन सभी बात
पर यान दे ना होगा, िजनका संबध
ं प रवतन क ेरणा, प रवतन के अ भकताओं क पृ ठभू मय ,
मू य वाथ , आकां ाओं, सामािजक नयं क आ द से होता ह।
हमार श ा सं थाओं के भीतर और बाहर दोन ह ओर ऐसे यि तय क भरमार होती
है, जो कसी भी कार का प रवतन पस द नह ं करते। शो षत व द लत यि त भी अपनी
वतमान प रि थ तय से ह एक कार क संतु ि ट अनुभव करते ह। वे प रवतन से हच कचाते
ह। उ च शास नक, आ थक, सामािजक, राजनै तक ि थ तय म ि थत यि त प रवतन को
इस लए नह ं चाहते क ऐसा होने से उनके नजी वाथ क पू त नह ं होगी। आज व याथ श ा
सं थाओं के शासन को चलाने म अपना हक मांग रहे ह ले कन हमारे बूढ़े धानाचाय, यापक
व श ा शास नक अ धकार इसी लए उनक इस मांग को ठु करा रहे ह क ऐसा हो जाने पर
उ ह कौन पूछेगा और वे कस कार श ा सं थाओं के धन और साधन—सु वधाओं, नौकर—
चाकर , मोटरगाड़ी फन चर आ द का यि तगत लाभ उठा सकगे? आज भारतीय व व व यालय
क पर ाएँ पूणतया बदनाम हो चु क है। ले कन इस ओर से उनके व उठने वाल आवाज के
बावजू द उनम सुधार व प रवतन नह ं आ रहा है।
ा यापक और काशक के गठबंधन के फल व प कई पा य म और पा य पु तक
व ता वत पु तक म कोई प रवतन वष तक नह ं लाया जाता। जो लोग नजी श ा सं थाएँ
चलाते ह वे अपनी मनमानी करते ह तथा नौकरशाह , व या थय के दबे हु ए माता— पताओं तथा
थानीय राजनी त क सहायता से तथा अपनी जोड—तोड क वृि त या तकडमबाजी के बल
पर श ा दान करने तथा अंधाधु ध
ं धनाजन करने म लगे हु ए ह। भला वे कस कार श ा
यव था म सु धार होने दे सकते ह? जब तक श ा यव था म सु धार नह ं होगा तब तक कस
कार श ा समाज म प रवतन ला सकती है?
हमारे उ च शास नक अ धकार , नेता तथा पर परागत सं थाओं के भावी सद य
अपने अ तमन म नह ं चाहते क वा तव म कोई ऐसा मह वपूण सामािजक प रवतन दे श म हो—
िजसम उनक कु स हल जाय या उनके वाथ क पू त म लेशमा भी कमी आ जाय। यह
कारण है क शै क अवसर पर समता, समाजवाद, धम नरपे ता, जातं , सामा य शाला प त
आ द के नारे तो लगाये जाते ह, ले कन वा तव म जो कु छ होता है, वह उनके ठ क व ह है।
ये पर परागत सामािजक नयं क श ा यव था को परं परागत ह बने रहने को बा य करते ह।
बार—बार हमारे उ च राजनै तक नेता श ा म आमूलचूल प रवतन क ल बी—चौड़ी बात करते ह।
तस पर भी य द भारतीय श ा प त के भीतर और न उसके वारा समाज म कोई मह वपूण
प रवतन नह ं लाया जाता तो इसका सबसे बड़ा रह य यह है क हमारे भावी यि त व समू ह
वा तव म ऐसा नह ं चाहते। न ठावान ्, बु , शि तशाल व वतं प रवतन अ भकताओं के
बना तथा अनाव यक ह त ेप न डालने वाले सामािजक नयं क के बना कस कार ऐसे
प रवतन लाये जा सकते ह? सभी राजनै तक दल अपनी—अपनी ढफल पर अपना—अपना राग
अलाप रहे ह। सामािजक प रतवन लाने के लए हमारे दे श म भ य सं थाओं म बड़ी—बड़ी
नौकरशाह क यव थाओं, यो यताओं व आराम करने क वृ त पर बल दया जाता है, ले कन
92
वा तव म या काय होता है और कैसे होता है, इसक ओर कोई वशेष यान नह ं दया जाता।
बड़ी—बड़ी श ण और शोध सं थाओं को खोला गया है। ले कन फर भी, वांछनीय कार का न
तो श ा—सु धार ह हु आ और न सामािजक प रवतन। उनम जैसा सामाजीकरण च लत है, वह
यि तय म ग या मक व सावभौ मकता के गुण का वकास नह ं होने दे ता तथा पर परावाद
यव था पर ह अ य धक बल दे ता है। श ा सं थाओं के वातावरण म ह अनेक कार क
सां कृ तक, सामािजक वल बनाएँ व यमान ह, िजनके कारण श ा सामािजक वघटन से त
हो रह है तथा सामािजक प रवतन लाने म असमथ बनती जा रह है।
न कष यह नकलता है क य यप श ा सामािजक प रवतन का एक मह वपूण
साधन या अ भकता बन सकती है तथा प भारतीय प रि थ तय म यह अनेक ज टल कारण के
फल व प ऐसा बनने म सफल नह ं हो पा रह है।
(ग) सामािजक प रवतन के भाव के प म श ा—
सामािजक प रवतन और श ा के पर पर संबध
ं को व ले षत करने का तीसरा
पा य म यह हो सकता है क श ा को घ टत हो चु के सामािजक प रवतन के प रणाम के प
म दे खने का यास कया जाये। भारतीय समाज म यह दे खने म आता है क गांव म डाकखाने,
बक, सहकार बक, दुकान तथा शहर म बक, सु परमाकट,आयकर वभाग आ द अनेकानेक
औपचा रक व ज टल कायालय खु ल गये ह िजनसे अपना काम नकालने के लए लोग को कई
कार के प को भरना होता है, कई कार के नयम का पालन करना पड़ता है तथा
अ याय य कार क औपचा रकताओं का अनुपालन करना होता है। अ श त यि त को ऐसा
करने म बहु त—सी असु वधाओं का अनुभव होता है। अत: अब उनम यह भावना उ प न होने लगी
है क हम नह ं पढ़े तो न सह , ले कन अपने ब च को अव य ह पढ़ाना है। यह कारण है क
गांव के नर र कसान और न न जा तयाँ तक भी अपने ब च को प ने के लए भेजने लगे
ह। कई ौढ़ वयं भी अब श ा ा त करने म च लेने लगे ह। इसी कार िजस थान पर
कोई बड़ा कल—कारखाना था पत हो जाता है, वहाँ और उसके आस—पास के लोग म पढ़ने तथा
श ण ा त कर उस कल—कारखाने या सं था म काम के अवसर पाने क इ छा जागृत हो
जाती है। बड़े—बड़े नगर के इद— गद या छोर के क व और गाव म हम यह दे खते ह क
अश त प रवार म भी अपने ब च को श त कराने क इ छा पनपने लगी है। द ल म
टे ल वजन के काय म के आसपास के गांव के अ श त कृ षक और ामीण म उपलि ध
सं ाि त तथा उनम श ा ाि त क इ छा बढ़ने लगी है।
य य प सामािजक प रवतन और श ा के पर पर संबध
ं के ये तीन प आपस म
संबं धत है, तथा प हमने प ट व लेषण के लए इ ह पृथक—पृथक रखकर समझाने का यास
कया है। इस कार हमने दे खा क श ा और सामािजक प रवतन के बीच गहन संबध
ं है।
इसी लए आधु नक युग म येक दे श श ा के मह व को समझ रहा है और इस पर बहु त धन
यय करता है।

वमू यां क न न—2 (Self Evaluation Question)


1. धम क समाजशा ीय या या क िजए|
2. सामािजक प रवतन क कोई एक प रभाषा द िजए|
3. श ा और सामािजक प रवतन के बीच स ब धो के तीन आधार बताइये |

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5.6 श ा वारा सामािजक प रवतन (Social Change Through
Education)
सामािजक प रवतन लाने म श ा क मह वपूण भू मका हो सकती है। इस स ब ध म
न नां कत मु ख ब दुओं को भल भां त समझ लेना चा हए—
1. सामािजक प रवतन लाने के कई संयं या साधन होते ह जैसे कानून , पु लस, म लटर ,
आ थक— यव था, श ा। श ा उनम से केवल एक संयं है।“अकेला चना भाड़ नह ं फोड़
सकता है” केवल श ा ह सामािजक प रवतन नह ं ला सकती है। अत: सभी संयं को
मलकर काय करना चा हये। ऐसा आज भारत म नह ं हो रहा है।
2. सामािजक प रवतन और आधु नक करण लाने के लए पहल अ नवाय शत यह है क
दे श के सभी बु जीवी व प रवतन लाने वाल को आधु नक करण के हमारे दे श के मॉडल
का प ट ान हो। अब तक तो ऐसा हु आ भी नह ं है। दूसर शत है, उनम उपयु त
कार का प रवतन लाने क स ची भावना, लगन या न ठा हो। न ठावान ् राजनी त ,
शासक श क व प रवतन के अ भकताओं का घोर अभाव है।
3. संयं या साधन के प म श ा ह जब वयं खोखल , ढोगी, ट, पर परागत भाव
से संचा लत तथा संकु चत हो (जैसा क आज हम उसे पाते ह) तो वह कैसे भारतीय
समाज को प रव तत कर सकती है। पहले श ा के े म ह प रवतन व सुधार करना
होगा, उसके मॉडल को बदलना होगा। नारे बाजी के उसके वतमान मॉडल के थान पर
हम पावलो े रे के आ मा को झकझोरने वाले मॉडल को लाना होगा।
4. श ा म जब तक न नां कत त व को अ धक मह वपूण थान नह ं दया जायेगा,
भारत म उपयु त कार का सामािजक प रवतन नह ं आ सकेगा—
1. श ा के उ े य — श ा के उ े य को भारत के समाज और सं कृ त के
भू त,वतमान और भ व य के इि छत व प क मांग के अनुसार बदला व सश त
कया जाये।
2. श ा का मॉडल — श ा का मॉडल बदला जाये, वतमान मॉडल कोरे नार , आदश
क हाई मा को ो सा हत करना है। सामािजक सम याओं क ब कु ल सह
जानकार येक को मले, लोग क आ मा इस कार क जानकार से झकझोर
जाय, तथा वे वयं अपनी दशा को बदलने व सुधारने के लए अपनी लड़ाई वयं
लड़े। गांधीजी व पावलो े रे के वचार इस संदभ म बहु त लाभ दे सकते ह ।
3. श ण प तयाँ — सामू हकता क भावना वक सत करने वाल श ण व धय को
अपनाया जाये।
4. शासन — श ण सं थाओं का शासन जातं ीय, वकेि त तथा बु हो।
तानाशाह , गुटब द , राजनै तक दखल तथा शोषण क वृ तय को दूर कया जाये।
5. श क का काय — श क वयं को पढ़ाने का काम करने वाला व ता ह न
समझे, उसे वयं को सामािजक प रवतन का अ भकता समझना होगा। उसे समाज—
श ा, समाज सु धार तथा सं कृ त वकास व सार म योग दे ना होगा।
6. पा य म — पाठशालाओं और महा व यालय के पा य म म भारतीय समाज क
सम याओं को बहु त अ धक थान दया जाये। पा य म आधु नक ह , व तृत ह ,
94
सावभौ मक ह , तथा उनम उ कृ ट स ा त व भारतीय जीवन क वा त वकताओं
का सु दर मलन हो। सामािजक प रवतन व सु धार पर वशेष बल दया जाय।
7. शै क तकनीक का योग – वै ा नक और शै क के इस युग म हमार श ण
सं थाओं को बाबा आदम के जमाने क श ण व धय व उपकरण से श ा दे ना
शोभा नह ं दे ता। वे अपार समय व साधन को न ट कर रह ह। उ ह शै क
तकनीक के नये साधन टे ल फोन, रे डयो, ो ाम ल नग आ द का योग करना
चा हए। श ा जगत के नवाचार से उ ह लाभाि वत होना चा हये।
8. सीखने के पयावरण का नमाण — कू ल, कॉलेज के श क के पढ़ाते रहने मा से
न तो श ा फैलेगी और न वां छत सामािजक प रवतन आयेगा। आव यकता इस
बात क है क व भ न सं थाएं आपस म मल तथा थान— थान पर सीखने को
े रत करने वाले पयावरण या सीखने के जाल बनाय। उनम पहु ँ च कर सीखने वाले
को वत: ह सीखने के लए ेरणा मले।
9. जीवन पय त श ा — ऐसी शै क यव थाएं व सु वधाएं बनाई जाय क हर आयु
के येक यि त को अपनी जीवन क आव यकताओं और अपनी इ छाओं के
अनु प जीवन—पय त श ा मलती रहे। पा यो तर पा य म, अंशकाल न श ा
सं थाओं, ौढ़ श ा आ द क इस दशा म बहु त अ धक भू मका होनी चा हए।

5.7 सारांश (Summary)


समाज श द का योग मानव समाज के लए कया जाता है। समाजशा समाज,
समाज के अंग , यव था, सरं चना, सामािजक स ब ध , आ द का स पूण अ ययन करना है।
समाज के अंग म सामािजक संरचना का नमाण करने वाले सभी त व आते ह। इनम जा त,
वग, धम, श ा आ द सभी मह वपूण है। मानव समाज क संरचना, यव था और स ब ध म
होने वाला कोई भी प रवतन सामािजक प रवतन है। संरचना के सभी त व समाज और यि त
को भा वत करते ह और समाज एव प रि थ त के अनुसार वयं भी प रव तत होते ह। इस
अ याय म स बि धत सभी अवधारणाओं को प रभा षत कया गया है एवं वशेषताएं बताई गई
ह, ता क यु त सभी अवधारणाओं को छा समझ सक।

5.8 मू यांकन न (Evaluation Quations)


1. समाज क संरचना से आप या समझते ह? जा त, धम, एवं वग को समझाएं।
What do you understand by Social Structure?Explain Caste,Religion and
Class.
2. श ा एवं सामािजक प रवतन के स ब ध को प ट कर।
Explain the relationship of Education and Social Change.

5.9 संदभ (References)


1. Maxiver and Page,Society,Macmillan India,Delhi,1985.
2. Ginsberg Morris,Sociology,1944.

95
3. Fairchild,H.p.,Dictionary of Sociology,The Free Press,New
York,1951.
4. Parsons,Talcott,The Social System,The Free Press,New York,1951.
5. Majumdar,D.N.and Madam,T.N.An Introduction to Social
Anthropology,Asia Publishing House,Bombay,1957.
6. Ghurye,G.S.Caste and Class in India,Popular Book
Depot,Bombay,1950.
7. Max Weber,The Protestant Ethic and Spirit of
Famiralistum,Charles skikmers and sons,New York,1958.
8. Max Weber,Social and Economic Organisation,Charles skikmers
and Sons,New York,1958.
9. Karl Mars,Communist Manifesto,Ref.in Mishel Duncum’s.A New
Dictionary of Sociology,Rewattege and Kegan Raw,London,1979.
10. Dau’s kingsley,Human Society,Macmillan,New York,1949.
11. Moore,Willbert,Social Change,Prentice Hall,Analysed,1974.
12. Srinivas,M.N.Caste in Modern India and Other Eassys,Asia
Publishing House,Mumbai,1962.

96
इकाई 6
व यालय का सामािजक संदभ : व यालय और समु दाय
स ब ध;
Social Context of School : School and Community
Relation;
इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)
6.0 उ े य (Objectives)
6.1 तावना (Introduction)
6.2 व यालय का सामािजक संदभ (Social Context of School)
6.2.1 सामािजक संदभ (Social Context)
6.2.2 व यालय का सामािजक संदभ (Social Context of School)
6.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community Relation)
6.3.1 समु दाय (Community)
6.3.2 समु दाय क मु ख वशेषताएँ (Characteristics of Community)
6.3.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community Relation)
6.4 व यालय और जातं ीय समाज (School and Democratic School)
6.4.1 व यालय एक जातं ीय यव था (School and Democratic System)
6.4.2 जातं ीय समाज यव था (Democratic Social System)
6.4.3 व यालय और जातं ीय समाज (School and Democratic Society)
6.5 सारांश (Summary)
6.6 मू यांकन न (Evaluation Question)
6.7 संदभ पु तक (References)

6.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई को प ने के बाद आपको इतना ान ा त जो जाएगा क
1. सामािजक संदभ से या ता पय है?
2. व यालय का सामािजक संदभ या होता है?
3. व यालय और समु दाय का पार प रक स ब ध या है?
4. जातं और जातं ीय समाज से या अथ है?
5. जातं ीय सामािजक यव था म व यालय का या व प होता है?

6.1 तावना (Introduction)


श ा के सामािजक संदभ को जानना आव यक एवं मह वपूण है। व यालय,
महा व यालय एवं व व व यालय समाज म श ा सं था का मह वपूण ह सा है। िजस
97
सामािजक यव था म ये सं थाएँ ह उनको समझे बना श ा को समझा भी नह ं जा सकता।
जा त, धम, अथ यव था, राजनी त आ द सभी श ा को भा वत करते ह और श ा से भा वत
होते ह। श ा के शाि दक अथ म दो बात नी हत ह: थम, यह सीखने—सीखाने क या है,
और दूसरा इस या से मनु य व समाज का प रवतन के साथ नर तर वकास होता है।
एड स ने श ा को वमु खी कहा है। िजसके एक मु ख पर श क है तो दूसरे पर
व याथ । यह दो ु वीय भी है। इसम एक यि त व ( श क) दूसरे यि त व ( व याथ ) को
भा वत करता है, यह या सचेतन ह नह ं अ पतु उ े य पर आधा रत होती है। श ा समाज
क आव यकताओं एवं अपे ाओं को यान म रखकर संग ठत क जाती है। प रणाम व प एड स
क वमु खी अवधारणा के साथ तीसरा मह वपूण प समाज है। श ा का सारा सामािजक
संदभ इसी पर केि त है। यह कारण है क श ा को समाजशा ी सामािजक सं था कहते है।
वशेषकर इस लए य क बालक क श ा सामािजक वातावरण म होती है। पा य म का
नधारण समाज व सामािजक प रि थ तयां करती ह और इसम ौ यो गक एव व ान के
वक सत व प का भाव थान व कालख ड के अनुसार दे खा जा सकता है। यह अ याय
व यालय, समु दाय और जातं ीय सामािजक यव था के बीच अ तः या एवं स ब ध पर
आधा रत है।

6.2 व यालय का सामािजक संदभ (Social Context of School)

6.2.1 सामािजक संदभ (Social Context)


जब सामािजक संदभ क बात करते ह तो हम यि त और सामािजक समू ह को समाज
के के म रखकर दे खते ह। यि त समू ह (प रवार, नातेदार, जा त, वग, अ य स म तयां व
संगठन िजसका यि त सद य होता है) का और समू ह समाज का अ वभा य अंग होता है।
व भ न सामािजक याएं, सं थाएं और नय ण
ं क यव थाएं समाज के वातावरण म होती ह
और यि त व समूह उसम स पूण जीवन यापन करते ह। यि त, समू ह व समाज क
आकां ाएं, अपे ाएं, मू य एवं मानक समय म प रवतन के साथ बदलते रहते ह। वाभा वक है
क समय व प रि थ तयां सामािजक संदभ को प रव तत करती ह। ऐसे म श ा एवं व यालय
का व प एवं भू मकाएं भी बदल जाती ह। अत: सामािजक संदभ वे प रि थ तयां है िजनम
व यालय ( व याथ , श क एवं रा य) अपनी भू मकाएं नभाते ह। सामािजक यव थाओं के
प रव तत होने से सामािजक संदभ भी बदल जाते ह।

6.2.2 व यालय का सामािजक संदभ (Social Context of School)


सामािजक संदभ जानने के लए सामािजक यव था को जान लेना अ य त आव यक है।
सामािजक यव था वे प रि थ तयां ह िजनम व यालय का संचालन, अ ययन—अ यापन एवं
समाज के मू य को सीखाया जाता है। या न व यालय अपने श क के मा यम से व या थय
को या सीखा रहे ह, मह वपूण है। सामािजक प रि थ तय का भाव व यालय पर अ नवायत:
पड़ता है। ऐ तहा सक संदभ म भारतीय समाज यव था म व यालय क ि थ त और प रवतन
दे खना मह वपूण ह गा :

98
1. ाचीन भारतीय सामािजक यव था और व यालय ाचीन भारतीय समाज यव था
वणा म पर आधा रत थी। काया मक ि ट से भारतीय समाज चार वग म वभािजत था। ये
चार वग चार वण के नाम से जाने गए। इन चार वण ( ा मण, ीय, वै य और शू ) के काय
का वभाजन गुण तथा काय के अनुसार कया गया। उसी के अनु प सामािजक एवं श ा
यव था व यमान थी।
दूसर ओर आ म यव था के अ तगत स पूण मानव जीवन को आयु के आधार पर
चार अव थाओं म बांटा गया। ये ह: 1. यचय, 2. गृह थ 3. वान थ और 4. स यास
आ म। इन चार आ म म से थम मचय आ म श ा हण करने एवं समाज को समझने
क अव था थी। जीवन के थम प चीस वष ाचीन भारतीय समाज यव था म श ा अजन
हे तु रखे गए थे। स पूण जीवन का आधार थम आ म ह था। इस आ म का उ े य बालक का
शार रक, मान सक, बौ क, नै तक, आ द या न सवागीण वकास कर उसे सांसा रक जीवन
(गृह था म) म वेश के लए तैयार करना था। इस तैयार का थल व यालय था। इस कार
वै दक भारतीय समाज म पर परागत व यालय (गु कु ल) यव था का मह व अ य धक था।
2. वतमान भारतीय सामािजक यव था और व यालय. प रवतन के म म गुण एवं
काय का थान और सामािजक तर करण म वण का थान ज म पर आधा रत जा त यव था
ने लया तो पर परागत व यालय का मह व कम होता चला गया और प रवार व जा त म
पर परागत यवसाय मह वपूण होने लगे। फल व प श ा के के व यालय से हटकर
प रवार' बनने लगे। अनुभव पर आधा रत संयु त प रवार पर परागत यवसाय क श ा और
श ण के के बनते चले गए। ान अजन हे तु व यालय का पहले वाला व प और उसक
मह वता उ च वग तक सी मत रह गई और भारत म व व तर य व या के के धीरे —धीरे
अपनी त ठा खोने लगे।
वतं ता से पूव अं ेज शासक ने पि चमी सं कृ त पर आधा रत औपचा रक श ा के
व यालय क यव था ार भ क । समय एवं प रि थ तय क आव यकता के अनु प नये
व यालय का सामािजक उ े य त काल न सामािजक—सां कृ तक कारक पर आधा रत था।
वतं ता के प चात ् समानता, ातृ व, याय, वतं ता, आ द पर आधा रत लोकतां क
समाजवाद धम नरपे समाज क थापना ने व यालय के व प को धीरे —धीरे बदलना ार भ
कया। श ा समाज के सभी वग एवं जा त के सद य के लए खोल द गई। भारतीय
जातां क समाज यव था वण, जा त, धम एवं लंग धानता पर आधा रत समाज यव था के
प म नह ं है। सभी यि त समान ह, उनम वभेद नह ं कया जाना चा हए। हांला क भारतीय
सामािजक यव था सं मण काल से गुजर रह है अत: व यालय वारा श ा एवं श ण दन
त दन मह चपूण होते जा रहे ह। प रवतन क आधु नकतम या के प रणाम व प स पूण
व व म व यालय के योगदान क मह वता को वीकार कया जा चुका है। अब तो वैि वक
श ा यव था क बात क जा रह है। अत: नकट भ व य म ह श ा यव था म पुन : नए
समाज के अनु प श ा यव था को वक सत करना होगा।

99
6.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community
Relationship)
व यालय तथा समुदाय दोन ह श ा के अ भकरण ह। व यालय औपचा रक
अ भकरण ह तो समु दाय अनौपचा रक। बालक सव थम माता फर पता उसके बाद प रवार के
अ य सद य के स पक म आता है। इसके बाद जब वह घर क चार द वार लांघता है तो पास—
पड़ोस एवं समु दाय के स पक म आता है और स पक क यापकता के म म वह व यालय
तथा अ य संगठन से स प कत हो, वकास के पथ पर आगे बढ़ता जाता है। समाजशा के े
म वशेषत: सामािजक मनो व ान के े म हु ए अनुसंधान से यह संकेत मलता है क ज म के
बाद बालक जो भी कु छ इस संसार म सीखता है, उसका अ धकांश भाग वह अपने सामु दा यक
स पक के कारण सीखता है।अत: बालक क श ा म समु दाय क अहम ् भू मका है।

6.3.1 समु दाय (Community)


समु दाय श द का अनेक अथ म जा त, धम, वग, यवसाय, थान आ द गलत प से
योग कया जाता है। यथा बा मण समु दाय, मु ि लम समुदाय, ईसाई समु दाय, ध नक समु दाय,
श क समु दाय, नगर य समु दाय, आ द का योग समाजशा ीय ि ट से सह नह ं है। कु छ लोग
मौ खक एवं ल खत दोन ह प म समु दाय को समाज का पयायवाची प म योग कर दे ते ह
जो क सह नह ं है। व तु त: समाज एक अमूत यय है। सामािजक स ब ध के जाल को
समाज के प म तु त कया जाता है। जब क समु दाय इसका मू त प है। पारसंस के अनुसार
'समाज उन मानव—स ब ध के सम म ण के प म प रभा षत कया जा सकता है जो
मू लभू त अथवा सांके तक साधन एवं सा य के प म क गई याओं से उ प न हु ये ह ।
समु दाय या है? — समु दाय क प रभाषा अनेक समाजशाि य ने द है। ोनेल ने
अपनी पु तक 'कॉलेज ए ड क यु नट ' म समु दाय को प रभा षत करते हु ए लखा है क “यह
य ाथ मक समू ह है िजसम जीवन के मु ख या—कलाप समूह के अ दर ह सहयोग के
साथ कये जाते ह। यह एक छोटा समू ह है जहाँ लोग एक—दूसरे को स पूण यि त के प म
जानते ह न क व श ट अंग के प म तथा िजसम अपन व क भावना व यमान होती है।
िज सबग के अनुसार एक नि चत भू भाग म रहने वाल उस सम त जनसं या को समुदाय कहा
जा सकता है जो उनके जीवन को नयि त करने वाले नयम क सामा य यव था म बंधी
होती ह।
व तु त: समु दाय एक मू त सामािजक संगठन है जो क नि चत भू भाग म ि थत
यि तय का एक समू ह है,िजनक सामा य जीवन—शैल , भाषा, समान उ े य एवं यवसाय होते
ह। सभी लोग सामु दा यक—क याण क भावना से े रत होते ह।
1. यि तय का समू ह. कसी भी समु दाय के लए यि तय का समू ह थम आव यकता
ह|
2. नि चत भौगो लक े : येक समु दाय के लए एक नि चत भौगो लक े का होना
भी आव यक है। एक े वशेष म साथ—साथ रहने और जीवन क सामा य ग त व धय म भाग
लेने से अपन व क भावना पनपती है।

100
3. सामु दा यक भावना : समु दाय के नमाण के लए यि तय के समू ह और नि चत
भौगो लक े के अलावा सामु दा यक भावना का होना भी अ य त आव यक है। इसम तीन बात
का होना ज र है।
(अ) हम क भावना क अ भ यि त,
(ब) दा य व नवाह क भावना, और
(स) नभरता क भावना

6.3.2 समु दाय क मु ख वशेषताएँ (Major Characteristics of


Community)
1. वत: वकास : समु दाय का नमाण लोग के वारा जान—बूझ कर या नयोिजत य न
से स भव नह ं है। इसका वकास वत: होता है। जब कु छ लोग थान वशेष म रहने लगते ह
तो धीर—धीरे उनम 'हम क भावना' वक सत होने लगती है और सभी सद य को अपना समझने
लगते ह। यह भावना समु दाय का वकास करती है।
2. अ नवाय सद यता : े वशेष म रहने वाला यि त अपनी आव यकताओं के अ य
यि तय से अ तः या करता है। एक े वशेष म ल बे समय तक लोग के साथ रहने से
अपने समु दाय के त अपन व का भाव पैदा होने लगता है।
3. थायीपन : येक समुदाय एक नि चत भौगो लक े म थायी प म रहता है। हाँ,
भू क प, तू फान, वालामु खी, बाढ़ या अकाल के कारण न ट होना अलग बात है अ यथा े के
नाम से ह वहां के समु दाय के अि त व को वीकारा जाता है।
4. मू तता : समु दाय एक मू त समूह है। नि चत भू—भाग पर बसे मनु य के समू ह के प म
इस समु दाय क बात करते ह। समु दाय से स बि धत नयम को तो नह ं दे खा जा सकता ले कन
मनु य के प म इसे अनुभव अव य कया जा सकता है।
5. व श ट नाम : येक समु दाय का अपना व श ट नाम अव य होता है। इसके नाम के
साथ व श ट इ तहास जु ड़ा होता है जो उसे एक यि त व दान करता है।
6. यापक उ े य : समु दाय का वकास कु छ व श ट उ े य तक ह सी मत नह ं होता। यह
सभी यि तय एवं समूह के सभी कार के उ े य क पू त हे तु काय करता है।
7. सामा य जीवन : येक समु दाय के अपने सामा य, र त— रवाज, पर पराएं, व वास,
उ सव, यौहार तथा सं कार आ द होते ह जो समु दाय के सद य के जीवन म एक पता उ प न
करने म योग दे ते ह। यि त इसी म अपनी आ थक, सामािजक, राजनी तक, धा मक आ द
आव यकताओं क पू त कर लेते ह। इस कार समु दाय म सद य का स पूण जीवन सामा य
प से यतीत होता है।
8. सामा य नयम— यव था सद य के यवहार को नद शत एवं नयं त करने के लए
नयम क यव था है। इ ह ं के कारण समु दाय वशेष के लोग के यवहार म बहु त कु छ
समानताएं दे खी जा सकती ह।
9. आ म नभरता : समु दाय को आ म नभर समू ह माना जाता है। यि तय क स पूण
आव यकताओं क स पूण समु दाय म ह हो जाती है। यह वशेषता आ दम जनजातीय एवं
ामीण समु दाय म पायी जाती है। वतमान म यह वशेषता तेजी से समा त होती जा रह है।

101
कु छ लोग समान यवसाय, समान धम, आ म— नभरता को भी समु दाय के आव यक
ल ण म मानते ह क तु आज क प रि थ तय म सभी दे श म ि थत समुदाय म ल ण नह ं
पाये जाते ह। अत: इ ह आव यक ल ण म नह ं रखा जा रहा है। समु दाय के व प क
उपयु त ववेचना के बाद यह दे खना है क इस समु दाय क शै क—भू मका या है अथात
समु दाय का श ा— े म योगदान या है?

6.3.3 व यालय और समु दाय स ब ध (School and Community


Relationship)
ऑगबन तथा नमकॉफ ने सी मत े के अ तगत सामािजक जीवन के स पूण संगठन
का समु दाय कहा है। क सले डे वस इसे ऐसा छोटा े ीय समूह मानते ह िजसके अ तगत
सामािजक जीवन के सम त पहलू आ जाते ह। न केवल इन दो व ान के अनुसार बि क
यापक मा यता के अनुसार समु दाय के अ तगत सामािजक जीवन के सम त पहलू सि म लत
होते ह। श ा भी समु दाय के काय े म आती है।
श ा तथा समु दाय — श ा मानवीय कु शलता म वृ करती है। साथ ह उ पादन म
वृ करते हु ये भौ तक संसाधन का वकास करती है। इससे यह प ट होता है क एक ओर तो
श ा मानवीय संसाधन क उ न त करती है तो दूसर ओर भौ तक संसाधन का वकास करती
है। ले कन दूसर ओर समु दाय के सहयोग के बना श ा अपनी भू मका ठ क से नह ं नभा
सकती। चाहे औपचा रक श ा हो या अनौपचा रक।
सु मदाय क शै क भू मका — समु दाय क शै क भू मकाओं के अनेक प ह :
1. समाजीकरण क भू मका — समुदाय य एवं परो प से अगल पीढ़ का
समाजीकरण करने म मह वपूण भू मका नभाता है। बालक के सामाजीकरण क या म दो
त व याि वत होते ह। थम, सम वय तथा दूसरा वभेद करण। सम वय एवं तादा मय का
काम माता करती है और वह भी एक नि चत अव था तक। इसके बाद प रवार म वभेद करण
क या शु होती है। इन दोन याओं से ह समाजीकरण पूरा नह ं होता। सह सामाजीकरण
तो समु दाय म आकर होता है जहाँ पर पर अ तः या वारा वह सामािजक—जीवन के त व को
आ मसाप करता चला जाता है। व तु त: वह िजन आदश और मू य को अपनाता है उ ह वह
अ य यि तय के साथ अ तः या के प रणाम व प ह सीखता है।
2. सां कृ तक भू मका : समु दाय बालक क वेशभू षा, रहन—सहन, भाषा, आ द के वकास म
य त: योगदान करता है। इन बाहर बात से भी अ धक मह वपूण योगदान बालक क
अ भवृ तय , चय , आकां ाओं को दशा दे ना है। जीवन—ल य नधा रत करना है। इसी से
उसका सामािजक यवहार नधा रत होता है, सामािजक स ब ध का व प तय होता है। इस
कार बालक के असल और आधारभू त शै क वकास म समु दाय का योगदान रहता है।
3. औपचा रक श ा म समु दाय क भू मका अनौपचा रक श ा— े म सामािजक एवं
सां कृ तक भू मका के अ त र त औपचा रक श ा के े म भी समु दाय का य एवं
अ य योगदान रहता है। औपचा रक श ा— े म समु दाय का य योगदान तो उन
समु दाय म रहता है, जहाँ व यालय का व प सामु दा यक है। अ य योगदान क ि ट से
समु दाय श ा के उ े य , पा य म, व यालयी वातावरण, अ यापक—छा स ब ध, छा —
अनुशासन, आ द को भा वत करता है।
102
उदाहरण के लये, अं ेजी शासन क थापना से पूव भारतीय व यालय समु दाय क
आव यकताओं एवं ि टकोण के अनु प थे। प रणामत: औपचा रक श ा के मा यम व यालय
क सम त व तीय यव थाय समु दाय करता था। श क समु दाय का सवा धक आदरणीय
यि त था। व यालय पु तक य ान के अ त र त सामुदा यक या—कलाप का के था।
व यालय समु दाय के सां कृ तक नै तक एवं अ य कार के वकास के लये यास करता था।
अं ेजी शासन—काल म व यालय के सामु दायीकरण के थान पर सरकार करण हु आ। श ा
सरकार क आव यकताओं एवं ि टकोण क पू त का साधन तो बन गई, क तु वह समु दाय से
ब कु ल अलग—थलग पड़ गई। व यालय समु दाय से कट गये।
इस कार श ा के अनौपचा रक एवं औपचा रक दोन प म समु दाय क महती
भू मका है। कु छ व वान ने बालक के व भ न प ीय वकास म समु दाय क भू मका को आँकते
हु ए श ा के े म उसके मह वपूण योगदान का उ लेख कया है। आ शक प म यह त य
पूण भी है क श ा के अनौपचा रक अ भकरण के प म समु दाय बालक के व भ न प को
भा वत करता है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. सामािजक सं द भ से आप या समझते ह?
2. समु दाय से या अथ ह?
3. समु दाय क शै णक भू मका के तीन ब दु द िजए|

6.4 व यालय और जातं ीय समाज (School and Democratic


Society)
व व के अ य कई समाज म वशेषत: अमे रका जैसे उ नत समाज म अब औपचा रक
श ा के व यालय को ान एवं सू चना— सारण क ि ट से अनाव यक समझा जा रहा है
य क वहाँ व ान एवं ो यो गक क उ न त के कारण जनसंचार के साधन वारा अ यतन
त य, सू चनाय आ द मल जाती ह तथा समु दाय म ह वभ न कार के कौशल के श ण का
अवसर मल जाता है। अत: वह तो ‘डी कू लंग सोसायट ' के नाम से एक आ दोलन चला है।
सारांश यह है क इस कार के उ नत समाज म तो व यालय क उपयो गता पर न च ह लग
गया है क तु भारतीय समाज म ि थ त इसके ठ क वपर त है। इसका कारण यह है क भारतीय
समाज एक नधन समाज है, यहाँ के अ धसं य लोग नर र है। अत: श ा के अनौपचा रक
अ भकरण प रवार एवं समु दाय आ द वतमान म अपने शै क दा य व के नवाह म स म नह ं
ह। इससे भी ऊपर भारत एक पर परागत एवं ब द समाज से आधु नक एवं खु ले समाज म अपने
को पांत रत करने का यास कर रहा है। 'ऐसी ि थ त म प रवार आ द अ य शै क अ भकरण
इस सं मण काल म अपनी भू मकाये नभाने म अ म ह, सारे समाज क आँखे व यालय क
ओर लगी हु ई है। व तु त: भारत क वतमान प रि थ तय म व यालय ह एकमा सश त साधन
हो सकते ह जो लोकताि क समाजवाद समाज के तमान के अनुसार बालक एवं कशोर का

103
समाजीकरण कर सक। अत: भारतीय समाज— यव था म व यालय का अ य त मह वपूण
थान है।

6.4.1 जातं ीय समाज यव था (Democratic Social System)


जातं ीय समाज— यव था का अथ 'जनता क शि त' होती है अथात ् वह शासन जहाँ
असल शि त जनता के हाथ म न हत होती है। वतमान भारतीय समाज यव था का के
भारतीय जनता क समृ म केि त है। इसक वशेषताओं म न न ब दु मह वपूण ह :
1. यि त क ग रमा का आदर — यि त के यि त व क ग रमा का आदर धान ल य
होता है। िजसके अनुसार यि त के यि त व का वकास अि तम ल य होता है।
2. यि तय म समानता — सं वधान के अ तगत मू ल अ धकार के अ तगत राजनी तक,
सामािजक, आ थक सभी े म सभी यि त बना कसी वग, जा त, लंग, वंश, धम, थान
आ द के भेद के समान ह और उ ह समान अ धकार दान कये गए ह। सं वधान के अनु छे द
14 से 18 म समानता के अ धकार क यव था क गई है।
3. यि त वातं य : येक यि त को जीवन के सभी े म वत ताय दान क
जाती ह| ले कन ये वतं ताय दूसर क वतं ता को यान म रखकर उपयोग क जानी चा हए।
4. सामािजक याय पर आधा रत भारतीय समाज यव था सामािजक याय पर आधा रत
समाज— यव था वह समाज— यव था होती है जहां वण, जा त, वंश, लंग, थान आ द का भेद
नह ं होता। वतमान भारतीय समाज— यव था म उपुय त भेद से र हत समाज यव था है।
इसका उ लेख यि तय म 'समानता के स ा त' के अ तगत कया जा चु का है िजससे यह
प ट है क वतमान भारतीय समाज सामािजक याय पर आधा रत समाज है। पर परागत
समाज के द लत, कमजोर एवं पछड़े वग को सामािजक याय दलाये जाने क संवध
ै ा नक
यव था क गई है। साथ ह इ ह सामािजक याय एवं हत का र ण पर यान केि त कया
गया है।
वतमान भारतीय समाज क दूसर वशेषता 'सामािजक याय' क भावना है। ाचीन
भारतीय समाज म वग—भेद होने के कारण समाज म असमानता आ गई थी। ऊँच—नीच क
भावना फैल गई थी। समाज म एक वग द लत एवं शो षत वग के प म ति ठत हो गया था।
उ ह सामािजक याय मलना अस भव हो गया था। समाज का उ च वग वशेषा धकार ा त
था। अ य वग उपे त रह गये। इस ि ट से 'सामािजक याय' क यव था क गई।
5. धम— नरपे समाज धम— नरपे ता का शाि दक अथ तो धम से नरपे रहने से है।
अत: धम— नरपे समाज म धम का कोई थान नह ं होता जैसा क सा यवाद समाज म
उ लेख है। क तु भारत जैसे धम— ाण दे श म यह अथ नह ं लया जा सकता। प टत: भारतीय
समाज म इसका जो अथ हण कया गया है, वह है — सव धम सदभाव, अथात ् रा य क ि ट
से सभी धम समान ह गे, कसी भी धम वशेष को रा य य नह ं दे गा। पर परा से भारतीय
समाज एक बहु धम समाज है। संवध
ै ा नक आधार पर सभी धम के लोग समानता से रहते हु ए
अपनी—अपनी आ था के अनुसार उपासना कर सक। इसक यव था क गई है। यह एक बहु त
संवेदनशील वषय था और इस कार क यव था से राजनै तक एवं आ थक लोकत के वकास
म बहु त यवधान उपि थत हो सकता था, इस लये एक धम नरपे समाज क यव था का
न चय कया गया और उसक याि व त पर यान केि त कया गया है।

104
6.4.2 व यालय एक जातं ीय यव था (School as a
Democratic System)
व यालय एक संर चत सामािजक समू ह के प म काय करता है। व वान व यालय को
एक कार का समाज ह कहते ह िजसक अपनी सामािजक यव था है। कु छ ने इसे समु दाय क
सं ा दे ना उपयु त समझा है य क इसके सद य के उ े य समान होते ह। पस रपोट के
अनुसार आज के त न ध व यालय को केवल व याजन का थान नह ं माना जा सकता। वह
एक सामािजक इकाई अथवा एक व श ट कार का समाज है िजसके सभी छोटे —बड़े सद य,
अ यापक, छा साथ—साथ रहते ह। वे ऐसे सं वधान के अधीन काय करते ह, िजसके लये कई
कार से सबक सहम त और सबका सहयोग रहता है । व यालय वयं म एक लोकतां क
उपसामािजक यव था के प म काय करता है। अत: व यालय के सद य ( श क, कायक ता
एवं व याथ ) का यवहार भी लोकतां क होगा। यह प रि थ त लोकतां क समाज यव था के
नमाण म सहायक होती है।
य द हम लोकतां त समाज यव था के लये यावहा रक नाग रकता क श ा दे ना
चाहते ह तो उसके लये व यालय एक उपयु त थल है। िजस कार के समाज म छा आगे
चलकर रहगे, उसके अनुकू ल व यालय स य सद य तैयार कर सकता है। व यालय को यह
सब मक प म करना चा हये। व यालय म राजनी तक लोकत के नमू ने क तज पर पूण
वाय तता यावहा रक नह ं होगी।
अ धकतर समाजशाि य ने व यालय को एक औपचा रक सामािजक सं था माना है।
इ ह ने इसे अ धकार तं का ह एक प माना है। अ धकार त म व भ न अ धकार एवं
कत य के बंधे हु ए कई पद या थान होते ह िजनम ऊँच—नीच का एक सामािजक सं तरण या
वभेद करण होता है। गु डनर के अनुसार अ धकार त दो कार का हो सकता है —
1. त न ध अ धकार त ,
2. द ड केि त अ धकार त ,
लोकतां क सामािजक संगठन म त न ध अ धकार त ह उपयु त रहता है। अत:
भारतीय व यालय के लये इस कार का त ह उपयु त होगा। इसम अ यापक और
व या थय के बीच काय एवं अ धकार वभाजन कया जा सकता है।
अ यापक क भू मकाएँ : व यालय म सामा यत: शै क नी त का नधारण का काय
अ यापक एवं धाना यापक मलकर करते ह। कु छ नयम के नधारण म छा के साथ वचार—
व नमय भी करते ह। पा य म तथा श ण— व धयाँ इनका ह अ धकार े होगा। यथा
आव यकता व या थय से वचार— व नमय तथा परामश करते ह और यह उपयोगी होगा।
व या थय क भू मकाएँ : नयम एवं व यालय—संगठन के े म व या थय का
परामश आव यक है। यह व याथ — त न ध समू ह के मा यम से कया जा सकता है। व यालय
प रष इसका उपयु त मा यम है।
व यालय प रषद — इनम सभी क ाओं का त न ध व होता है। त न ध व या थय
का चयन क ाओं के सभी व याथ मलकर करते ह। व यालय प रषद म अ यापक वग के
त न ध भी धाना यापक या ाचाय वारा नयु त होते ह। प रषद का अ धकार े नधा रत
होता है। व यालय प रषद न मत सं वधान क सीमा म रहकर काय करती है। इस प रषद क
105
ग त व धय से व याथ वचार— व नयम, वमश, स ह णु ता, सहयोग, आ द लोकतां क वृि तय
को सीखते ह। आ मानुशासन का वकास भी होता है। इस प रष के अ तगत व भ न काय के
लए व या थय क स म तयां बनाई जाती ह और वे स बि धत ग त व धय का संचालन
अ यापक के नदशन म करते ह। पु तकालय, खेलकू द, सां कृ तक ग त व ध आ द से स बि धत
स म तयां बनाई जाती ह। इनका संचालन व याथ अ यापक क दे ख—रे ख म करते ह। इस कार
व याथ व यालय म लोकतां क समाज यव था का अ यसात करते ह।
सि म लत उ तरदा य व क भावना का वकास — लोकतां क आधार पर संग ठत
व यालय का एक लाभ यह भी है क इसम सभी सद य म उ तरदा य व क भावना का वकास
होता है। समू ह म कसी नि चत भू मका के अदा करने से बालक म उ तरदा य व क भावना का
वकास होता है। वह यह महसू स करता है क समू ह म उसका मह व है। वह समू ह उसका है,
समू ह का हत उसका हत है। इसके अलावा छोटे — छोटे काय को पूरा कर वह बड़े एवं क ठन
काय का नवाह करना सीखता है। ार भ म छा को क ा सजाना, च का थान बदलना,
ना ता— वतरण, क ा—सफाई, दे ख—रे ख जैसे काय सौप जाते ह। धीरे — धीरे वह गोि ठय ,
खेलकू द, मनोरं जन—काय म आ द के संचालन और संयोजन तक के काम करने लगता है।
व यालयी स ब ध के आधार लोकताि क मू य ह गे तो व यालय का सामािजक
वातावरण भी लोकताि क होगा। अत: अ यापक— व याथ , धाना यापक—अ यापक तथा अ य
व यालयी सद य के स ब ध वत ता, ातृ व, याय आ द के लोकताि क मू य पर
आधा रत होने लगते ह। य द व यालय का काय सामािजक जीवन क तैयार है तो व यालय म
मानवीय स ब ध का मह व बढ़ जाता है।
सारांश यह है क भारत क ाचीन समाज— यव था म व यालय को अ य त
मह वपूण थान ा त था और आज भी वतमान समाज— यव था म उसको अ य त मह वपूण
थान दये बना, वतमान समाज— यव था का चलना मु ि कल होगा य क वतमान समाज के
िजस व प क संक पना हमने क है, उसके लये नाग रक तैयार करने का काय वतमान
प रि थ तय म व यालय ह करता है। अत: नवीन भारतीय समाज— यव था म व यालय का
अ य त मह वपूण थान है।

6.4.3 व यालय और जातं ीय समाज (School and Democratic


Society)
जब लोकताि क समाज— यव था हमारा रा य ल य है तो श ा का उ े य भी इस
यव था क पुि ट एवं वकास होगा और इस ि ट से भारतीय श ा के मु ख उ े य न न
कार ह गे—
1. लोकताि क मू य का वकास — येक समाज क ह —
ं न— क ह मू य के अनुसार
आचरण करता है। मू य क आधार शला हट जाने पर सामािजक भवन धराशायी हो जाता है।
अत: लोकत के वकास के लये श ा का दा य व होगा क वह बालक एवं यि तय म
लोकताि क मू य का वकास कर और इन मू य का श ण दे । ये मू य ह : यि त क
वैयि तकता या यि त व क ग रमा का आदर; याग; नेत ृ व; आ म— नय ण; सहनशीलता;
पार प रक सदभाव; यि तगत एवं सामािजक उ न त म सम वय।

106
2. लोकत के जीवन—शैल के प म अपनाना — लोकत को केवल शासन— णाल के
प म न अपनाकर जीवन जीने क शैल के प म अपनाने का यास श ा का मु ख उ े य
होना चा हये। भारतीय स दभ म यह इस लए आ याव यक है य क यहां धम एवं भाषाएँ
भ न— भ न ह। यहाँ व भ न जा तय , जा तय एवं वग के लोग नवास करते ह। ऐसी ि थ त
म ह लोकत का सह पर ण होता है। लोकत को जीवन—शैल के प म अपनाने पर ह
उपयु त व वधता म एकता लायी जा सकेगी। यह बहु त क ठन काम है क तु य द श ा इस
ि थ त का सामना न कर सक तो वह श ा लोकत के लये कोई अथ नह ं रखेगी।
3. सामािजक याय एवं भारतीय श ा के उ े य सामािजक याय का आधार आ थक है।
य द सभी नाग रक को आ थक वकास के अवसर मल तो ह सभी को समु चत सामािजक याय
मल सकता है।
1. आ थक उ े य : भारतीय श ा का एक मु ख उ े य आ थक वकास करना है। इसके
लए आव यक ह क हम मानवीय संसाधन का वकास कर; भौ तक संसाधन का वकास कर;
म के त न ठा पैदा कर; और रोजगार के अवसर म वृ कर।
2. सामािजक याय क भावना के वकास का उ े य — भारतीय समाज म अनेक वग,
अनेक तर, अनेक सोपान बन गये ह िजससे समाज का एक बहु त बड़ा ह सा सामािजक याय
से वं चत रह जाता है। नीचे से ऊपर सामािजक ग तशीलता क कमी है। व भ न वग के बीच
काफ अ तर है। इस ि ट से आव यक है क —
(i) सामािजक याय क भावना क ि ट से वतमान भारतीय श ा णाल म समान
शै क अवसर क या या करनी होगी इसके लए न न कदम उठाए गए है:
(अ) नःशु क एवं अ नवाय श ा यव था;
(ब) समान कू ल णाल ;
(स) ौढ़ श ा काय म को बढ़ावा दे ना।

(ii) लोकताि क समाज— यव था एवं रा य एक करण को सु ढ़ करने के उ े य से


न न काय करने ह गे :
(अ) रा य चेतना को बढ़ावा दे ना;
(ब) सभी आधु नक भारतीय भाषाओं को श ा म मह वपूण थान दे ना; इसके अ तगत
ाथ मक तर पर मातृ भाषा म, उ च तर पर े ीय और ह द भाषा म तथा दूसर
भाषा के प म अं ेजी भाषा अ तरा य स पक एवं अ तः या के लए ज र है।
3. सामािजक एवं रा य सेवा काय म वारा रा य एकता को बढ़ावा दे ना : इसके
अ तगत च र नमाण, अनुशासन, शार रक म के त न ठा और सामािजक सहयोग और
उ तरदा य व क भावना का वकास कया जाता है।
4. कू ल एवं कॉलेज को सामु दा यक जीवन का के बनाना : यह आव यक है क हमारे
व यालय एवं महा व यालय को सामु दा यक या कलाप का के बनाया जाए। इससे
लोकतां क नाग रकता का वकास जीवन के ार भ म ह होगा।

व—मू यां क न (Self Evaluation)

107
1. जातं से या अथ है |
2. व यालय एक जातं ीय यव था है | कै से ?
3. जातं ीय समाज यव था के तीन मह वपू ण ब दु द िजये |

6.5 सारांश (Summary)


यवहार यव था क एक मह वपूण अवधारणा सामािजक संदभ है। जब व यालय क
एक श ा के के के प म चचा करते ह तो उसका सामािजक संदभ समु दाय और सामािजक
यव था का व प है। भारतीय सामािजक यव था वतमान म जातां क है। जातां क
यव था जनशि त पर आधा रत होती है। पर परागत भारतीय सामािजक यव था से एकदम
अलग वतं ता के बाद िजस जातां क यव था क थापना हु ई है, उस सामािजक यव था म
कई जडताएं, अ ध व वास और जा तगत दू रयां तेजी से समा त हु ई ह। भारतीय सं वधान ने
यि त क ग रमा, यि त वातं और समानता पूण यवहार पर जोर दया है। सामािजक
याय, धम नरपे ता और लोकताि क मू य के वकास ने नई सामािजक यव था क थापना
क है। या न भारतीय समाज का सामािजक स दभ तेजी से बदला और वक सत हु आ है।
दूसर ओर श ा मह वपूण सामािजक सं था है और अपने आप म सामािजक उप
यव था है। भारत म ती प रवतन से न सफ श ा यव था या व यालय के व प म ह
अ तर आया है वरन ् समु दाय क संरचना और व यालय व समु दाय क पर पर भू मका म भी
बदलाव आया है। व यालय क भू मकाओं म प रवतन श ा के उ े य म प रवतन से आ रहा है
तो दूसर और सामािजक यव था और समु दाय क बदलती आव यकता से श ा एवं व यालय
के व प म प रवतन है।

6.6 मू यांकन न (Evaluatory Question)


1. व यालय के सामािजक स दभ के बारे मे आप या जानते ह? व यालय व समु दाय के
संब ध को प ट करे |
What do you know about the social context of school?Explain the
relationship of school and community.
2. व यालय को एक जात ीय यव था के प म प ट कर|
Explain the school as a democratic system.

6.7 संदभ (References)


1. Ogburn and Nimkoff,A Hand Book of Sociology.
2. Joan Ferentte, Sociology : A Global Perspective, Thomson WoodSworth,
USA, 2003.
3. Pareek and Sharma,Udiyaman Bhartiya Samaj Aur Shiksha,Shiksha
Prakashan, Jaipur, 2004, (Hindi)

108
इकाई 7
श ा मानव संसाधन और वकास
Education Human Resource and Development

इकाई क परे खा (Outline of the Unit)


7.0 उ े य (Objectives)
7.1 तावना (Introduction)
7.2 श ा और आ थक वकास (Education and Economic Development)
7.2.1 श ा उपभोग एवं व नयोग के प म (Education as a Consumption
and Investment)
7.2.2 आ थक वकास भारतीय प र े य म (Economic Development in
Indian Context)
7.2.3 मानव संसाधन एवं वकास (Human Resource and Development)
7.3 आ थक वकास या है? (What is Economic Development)
7.4 आ थक वकास के कारण (Causes of Economic Development)
7.4.1 आ थक कारक (Economic Factor)
7.4.2 आ थक वकास के अना थक कारण (Uneconomic Causes of
Economic Development)
7.5 मानव संसाधन वकास (Human Resource Development)
7.5.1 मानव संसाधन वकास य ? (Why Human Resource Development)
7.7 सारांश (Summary)
7.8 मू यांकन न (Evaluation Question)
7.9 संदभ पु तक (Referemces)

7.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई को प ने के बाद आपको इतना ान ा त हो जाएगा क
1. आ थक वकास या है?
2. श ा और आ थक वकास कस कार एक दूसरे से स बि धत ह?
3. श ा कस कार मानव संसाधन के वकास म सहयोगी होती ह?

7.1 तावना (Introduction)


सामा यत: आ थक वकास का मतलब रा य आय म वृ से लया जाता ह। या न
एक नि चत समय म त यि त वा त वक व तु ओं और सेवाओं के ऐसे उ पादन को आ थक
वकास कहते ह िजसक माप सामा य प से 'सकल रा य उ पादन' म क जा सकती है। जब
109
कसी दे श क सकल रा य आय म वा षक वृ , जनसं या क वा षक वृ से अ धक होती है
तब यह ि थ त आ थक वकास क प रचायक है। आज संसार के सभी दे श वकास क या से
जु ड़ चु के ह। वतीय व व यु के बाद जो दे श गर ब और अ वक सत थे और वतं ता ा त
कर चुके ह, अब नधनता, अ श ा और बीमा रय से लड़ने के लए तेजी से कदम उठा चु के है।
य क उ ह ने यह जान लया है क राजनै तक वतं ता आ थक और सामािजक सां कृ तक
उ थान के बना बेमतलब है। इसके लए श ा के आधु नक काय म एवं ो यो गक के बना
आ थक वकास संभव ह नह ं है। पर परागत सामािजक—सां कृ तक मू य वकास क या म
बाधा उ प न करते ह।

7.2 श ा और आ थक वकास(Education and Economic


Development)
आज संसार के सभी दे श वकास क ओर अ सर होने क या म जु टे हु ये दखाई दे
रहे ह। जो दे श एक ल बे समय से गर ब व अ वक सत थे और िज ह ने वतीय व वयु के
प चात ् ह राजनै तक वत ता ा त क है, वे अब नधनता, अ श ा व बीमा रय से लड़ने के
लये ाि तकार कदम उठा रहे ह। इन दे श ने अब यह अ छ तरह से जान लया है क
राजनै तक वत ता बना आ थक, सामािजक सां कृ तक उ थान के यथ है। इसके लये
वकासशील दे श श ा के ेश ो ाम चला रहे ह। पर तु वष पुराने पर परागत मू य वकास क
या म बाधा डालते ह। वकास क या म कई त व ह जो इस कार ह —

7.2.1 श ा उपभोग एवं व नयोग के प म (Education as a


Consumption and Investment)
श ा क भू मका व नयोग के प म है या उपभोग क है, इसको जानने के लए
उपभोग और व नयोग को जानना पड़ेगा। जब अथ यव था म कु छ साधन का आवंटन भ व य
म उ पादन वृ के लये कया जाना है तो उसे हम व नयोग कहते है। आज से कु छ वष पूव
श ा को केवल श ा के लये हण कया जाता था। श ा का उ े य केवल यि त व का
वकास करना था। पर तु वतमान म श ा वद ने श ा को अ य कोण से दे खना शु कया है।
उनके अनुसार श ा पर कया गया यय एक व नयोग है और िजतना अ धक हम श ा के े
म व नयोग करगे हम उतने ह अ छे प रणाम ा त ह गे। अथशा ी तो श ा को आ थक
वकास क कड़ी मानते थे पर तु शै क वचारभू म म यह यय नया है। श ा वद के
ि टकोण म यह प रवतन कई कारण से हु आ है।
पछले दो दशक म अमे रका, सो वयत स, इं लै ड जैसे वक सत दे श म हु ये
अ ययन ने श ा और व नयोग के स ब ध को बताया है। यूने को ने श ा को एक अ छा
नवेश बताया है और बताया है क यह उतना ह अ छा नवेश है िजतना क लोहा, कोयला व
अ य क चे माल पर कया गया नवेश, जो क उ योग के लये आव यक है। तीसरे
जनसाधारण म श ा क मांग बढ़ है। यह मांग केवल वक सत दे श म ह नह ं वकासशील
दे श म भी बढ़ है। वक सत दे श म अ नवाय श ा का तर ऊँचा है और ौ यो गक के
वकास के साथ—साथ यह अभी और ऊँचा होना है।

110
बढ़ती हु यी श ा क मांग के कारण संसाधन को श ा के े म आवं टत कया जा
रहा है। शै क यय क वृ सरकार के बजट पर भाव डाल रह है। इसके लये व भ न दे श
क सरकार यह भी जानना चाहती ह क यय के बदले म उ पादक तफल कतना ा त हो रहा
है। कुछ लोग श ा को व नयोग नह ं मानते ह उसका कारण है श ा म द घकाल न व नयोग
होना| हम सभी जानते ह क श ा पर जो आज हम यय कर रहे ह उसका तफल हम तुर त
नह मलता। इसका तफल 10 या 15 वष के प चात ् मलता है। य क जो यि त आज
श ा ा त कर रहे ह वे अपने ऊपर खच कये जा रहे ह। इस ि ट से श ा उपभोग है। आज
से 15 वष बाद वे समाज के लये उ पादन या म शा मल हो सकगे। इस ि ट से यह
व नयोग है य क तफल अव य ा त होता है। साथ ह यह तफल यय क तु लना म
अ धक होता है।
श ा पर यय का तफल उस पर कये गये यय से अ धक है या नह ,ं इस को
मापने के लये कोई भी व ध पूणतया व वसनीय नह ं ह। य क उ पादन म जो वृ होती है
उसम कई त व का योगदान होता है जैसे वातावरण, ो साहन, अनुशासन, सरकार नी तयां,
जलवायु ब ध, तकनीक, ब ध व े नंग, आ द। उ पादन वृ म श ा के योगदान को अलग
से मापना पूर तरह संभव नह ं है। ले कन इसम कोई संदेह नह ं है क उ पादन—वृ म श ा व
श ण क मह वपूण भू मका है।
श ा एक व नयोग है और मानव संसाधन वकास म सहायक होती है। श ा के कारण
ह म शि त अ धक आय ा त करने म सफल होती है। इस त य क पुि ट के लये कई
अ ययन हु ये है। वी.के.आर.वी रॉव म द ल से कये अ ययन म पाया क मै क, हायर
सैक डर , नातक व नातको तर तर क श ा ा त कये हु ये यि तय क आय व श ा के
तर म उ च सहसंबध
ं है। दूसरे श द म िजतना यादा श ा का तर ऊँचा होगा, उतनी ह
लोग क आय भी अ धक होगी|
वी.के.आर.वी रॉव के अ ययन के वपर त हम ऐसे लोग भी दे खने को मलते ह िज ह ने
उ च श ा ा त क है पर तु उनक आय उनके शै क तर के अनु प नह ं है। हमारे दे श म
हजार नवयुवक—नवयुव तयाँ नातक व नातको तर तर क श ा ा त करने के प चात 300
या 400 पये म व भ न व यालय म अ यापन यवसाय म कायरत है। इनका कारण हमारे
दे श म संसाधन को सामा य श ा पर यय कया जाना है। हमारे दे श म तकनीक व
यावसा यक आकड़े बताते ह क श त यि त बेरोजगार या अ वरोजगार क ि थ त म जी रहे
ह। य द श त यि त बेरोजगार रहते ह तो उन पर कया गया यय अनु पादक होगा। वतमान
भारत म 6.5 तशत यि त तकनीक प से कु शल, 0.1 तशत शास नक अ धकार , 13.4
तशत कु शल मक व 50.2 तशत अकु शल मक ह जब क वक सत दे श म 15 तशत
टे क न शयन, 2 तशत शास नक अ धकार , 25 तशत कु शल मक, 50 तशत अकुशल व
अ वकुशल मक व 8 तशत टे नो े स होते ह।
श ा पर कया गया स पूण यय उ च तफल दान नह ं करता उस नाते श ा
व नयोग नह ं है। ऐसा करने से श ा क मह ता व उपयो गता कम नह ं हो जाती है। श ा पर
कया गया स पूण यय उ च तफल दान करे , यह न तो संभव है और न ह वांछनीय है।
श ा से ा त तफल केवल आ थक ह नह ं होते। तफल सामािजक व सां कृ तक भी होते

111
ह। श ा के वारा यि त एक स पूण व उ च तर क िज दगी जीने के का बल बनता है। इस
नाते श ा उपभो य पदाथ है।
स पूण श ा को आ थक वकास से जोड़ने का अथ होगा श ा के दायरे को संकु चत
करना। िज दगी केवल खाना, पीना या कमाना ह नह ं है। भारत म ऐसे समाजसुधारक , च तक
व ानी पु ष के उदाहरण मलते ह िज ह ने श ा के सामािजक व सां कृ तक मू य के कारण
श ा को बढ़ावा दया है। दयान द सर वती राजा राममोहन राय ने ी श ा पर बल इस लये
नह ं दया क ि याँ आ थक वकास क या म सहायक होगी। ी श ा पर बल उ ह ने
एक अ छे व सु दर समाज के नमाण के लये दया। श ा के वारा अना थक तफल को
ा त कया जाता है जो आगे जा कर आ थक वकास क या को व रत करता है। इस कार
श ा अ य प से भी आ थक वकास को लाती है। उदाहरण के लये भाषाओं का ान सीधे
प म आ थक वकास म योगदान नह ं दे ता है। सामा य यि त के लये भाषा का ान र त
रवाज को जानने और धम व सं कृ त को जानने म मदद करता है। यह संचार या को
सु गम बनाता है पर तु इंजी नयर के लये वदे शी भाषा का ान वदे शी तकनीक को जानने म
सहायक होता है। इस कार श ा य प म उ पादन वृ म कई बार सहयोग नह ं दे ती
पर तु अ य प म अव य सहायक होती है।
अ त म न कष प म हम यह कह सकते ह क श ा उपभोग व व नयोग दोन ह
है।
श ा और आ थक वकास के स ब ध को सबसे पहले एडम ि मथ ने अपनी पु तक
'”वे थ ऑफ नेश स” म बताया था। जैसा क आप जानते ह उ पादन के लये हम दो कार क
पू ज
ं ी क आव यकता होती है। एक है ि थर पू ज
ं ी और दूसर है कायशील पू ज
ं ी। एडम ि मथ ने
म को ि थर पू ज
ं ी माना है व कॉटलै ड के वकास को दे खकर कहा था क वहाँ के लोग क
बु मता व अ छ आदत का ेय श ा को ह है। श ा ने वहाँ एक अ छ सरकार और एक
अ छ जनता को ज म दया। इसके साथ ह आ थक याओं व तर क का ेय भी श ा को
है। रकॉड और माशल जैसे अथशाि य ने भी श ा के प म कहा है क यह मनु य म
अ छ आदत वक सत करती है। श ा के कारण सी मत प रवार का ज म होता है जो
जनसाधारण के आ थक क याण म सहायक होता है। इस कार श ा आ थक वकास के लये
अ य प से योगदान दे ती है।

7.2.2 आ थक वकास भारतीय प र े य म (Economic


Development in Indian Context)
भारत म आ थक वकास क ि थ त का जायजा लेने के लये सबसे पहले हम अपने दे श
क त यि त आय पर नजर डाल। हमारे दे श म त यि त आय वक सत दे श क तु लना म
बहु त कम है। 1984—85 क गणना के अनुसार यह 2344 पये त वष है। वक सत दे श और
अ वक सत दे श क त यि त आय को दे ख तो पता चलता है क अ वक सत दे श क त
यि त आय वक सत दे श क त यि त आय से 50 से 75 गुना कम है। भारत क त
यि त आय 200 डालर है जब क जापान क 10088 डालर, कनाडा क 11400, अमे रका क
12820 व प.जमनी क 13450 डालर है।

112
कायशील जनसं या से कसी दे श क म शि त तथा उसक यवसा यक संरचना से
वहां के आ थक वकास के तर का ान कया जा सकता है। िजस दे श म अ धकांश जनसं या
कृ ष पर नभर होती है वह दे श वकास के थम चरण पर माना जाता है। ऐसे दे श अ वक सत
दे श कहलाते ह। िजस दे श म उ योग जैसे व , चीनी, तेल, कागज, ख नज, आ द का व य
उ त उपयोग भी अपने उ नत तर पर होता है उसे वकास के वतीय चरण म माना जाता है।
ऐसे दे श वकासशील दे श कहलाते ह। िजन दे श म भार उ योग 7 पू ज
ं ीगत उ योग का
अथ यव था म योगदान अ धक होता है उ ह वक सत दे श क को ट म रखा जाता है। भारत म
कृ ष 71 तशत, नमाण उ योग म 13 तशत तथा अ य काय म 16 तशत लोग लगे हु ए
ह जब क अमे रका जैसे वक सत दे श म 2 तशत यि त कृ ष, 32 तशत उ योग तथा 66
तशत यि त सेवाओं म लगे हु ए ह। अत: दे श के वकास के ि टकोण से यह आव यक है क
दे श को वक सत करने के लये कृ ष पर आ त जनसं या को अ य कु ट र एवं भार उ योग म
लगाया जाये। भार उ योग म म शि त को लगाने के लये औपचा रक एवं तकनीक श ा दे ने
क ज रत है। भारत क जनसं या का इ तहास इस त य को घो षत करता है क यहाँ क
आबाद ती ग त से तवष बढ़ती जा रह है। इस समय भारत क जनसं या एक अरब से ऊपर
हो चु क है और ज म दर 2.5 तशत त वष से कु छ कम ह है। जब क वक सत दे श म यह
दर 1 तशत है। जनसं या वृ के कारण बेरोजगार क सम या और अ धक वकट होती जा
रह है। 2007 के “भारतं” के अनुसार हमारे दे श म लगभग 5821 हजार लोग रोजगार कायालय
म पंजीकृ त ह। बेरोजगार क सं या म लगातार वृ हु ई है जब क त दन यह दे खने म आया
है क रोजगार दे ने के लये सरकार वारा व भ न योजनाएँ चालू क गई ह।
व भ न पंचवष य योजनाओं म भौ तक पू ज
ं ी म वृ के यास कये गये पर तु बढ़ती
हु ई जनसं या म शि त म वृ करती है, िजसके कारण त यि त पू ज
ं ी का मा ा म अ धक
प रवतन नह ं हो पाता है। दूसर और मानवीय पू ज
ं ी का तर भी हमारे दे श म स तोषजनक नह ं
है। मानवीय पू ज
ं ी का वकास वा य सेवाओं, श ा व श ण पर नभर करता है। श ा क
ि थ त को दे खने पर पता चलता है क 64 तशत यि त अभी भी हमारे दे श म नर र ह
जब क अमे रका, कनाडा, इं लैड जैसे वक सत दे शो म 5 तशत यि त नर र ह। आज हमारे
दे श म आव यकता इस बात क है क मानवीय पू ज
ं ी को इस कार से तैयार कया जाये क वह
भौ तक पू ज
ं ी का ठ क कार से ल बे समय तक उपयोग कर सके। वतमान म भौ तक पू ज
ं ी
तकनीक प से बहु त ज टल हो गई है। एक ल बे समय तक मशीन व य को ठ क कार के
उपयोग करने के लये यि तय म कौशल का वकास करना ज र है। अत: औ यो गक सं कृ त
को लाने के लये मानवीय शि त का नमाण करना होगा।

7.2.3 मानव संसाधन एवं वकास (Human Resource and


Development)
भारत म वष पुरानी पर पराओं से े षत ि टकोण ती वकास क या म बाधा
डाल रह ह। ि टकोण पू ज
ं ी व म क ग तशीलता, साह सक यो यता व व श ट करण को
संकु चत कर दे ते ह। वक सत अथ यव था के लये ज र है क लोग के यवहार व मू य म
प रवतन लाया जाये। यह सब श ा के वारा ह संभव है।

113
य द योजनाओं म ाथ मकताओं को दे ख तो पता चलता है क श ा व े नंग को
न न ाथ मकता द गई है। योजनाओं म श ा पर नर तर यय म वृ क गई पर तु इसे
सव च ाथ मकता नह ं द गई है। थम योजना म जहां श ा पर 164 करोड़ . खच कया
गया था। वह ं सातवीं योजना म 6383 करोड़ पये खच करने क योजना है। वक सत दे श म
कु ल बजट का 6 से 8 तशत खच कया जाता है। जब क भारत म 3 तशत के लगभग ह
खच कया गया ह|
हमारे दे श म श ा पर िजतनी भी मा ा यय क जा रह है उसका तफल उसके
अनु प नह ं मल पा रहा है य क श ा के व भ न तर और श ा के कार पर कये जाने
वाले यय का वतरण सह प म नह ं हो पा रहा है। ाथ मक श ा को वातावरण से न जोड़ने
के कारण इस पर कया गया यय यथ जा रहा है। ाथ मक श ा और वातावरण को न जोड़
पाने से ामीण यि तय के सोचने के ढं ग व अ भवृि तयो म कोई प रवतन नह ं आया है। साथ
ह व यालय छोड़ने वाल क सं या बढ़ रह है। उ च तर य श ा ा त यि त भी बेरोजगार
ह िजसके कारण उनका उ पादन म योगदान नह ं मला है। इस कार श ा के े म कया
गया नवेश अ यु त रहा है और यह साधन क बरबाद का उदाहरण है। जहां मानवीय पू ज
ं ी को
वकास के अवसर नह मले ह वहां बु —पलायन दे खने को मला है। इसके लये हमारे दे श म
आव यकता है तकनीक व यावसा यक श ा पर खच करने और उसको ाथ मकता दे ने क न
क सामा य श ा पर अ धक यय करने क । साधन के कु शल उपयोग के लये मानवीय शि त
के नयोजन क आव यकता है। मानवीय शि त क माँग व पू त म स तु लन था पत करना ह
मानवीय शि त का नयोजन है। मानव नयोजन करने वाले साधन को यथ जाने से बचाया जा
सकता है। इससे व भ न कौशल को वक सत करने क लागत व लाभ का पता लगा कर साधन
का अनुकू लतम उपयोग संभव हो सकेगा। बढ़ती हु ई श त बेरोजगार को दे खते हु ये मानवीय
शि त का अनुमान करके सी मत साधन व जाताि क धम नरपे रा य के सामािजक आ थक
दशन के अनुसार साधन का अंकन कया जाना चा हये। साथ ह यह वचार कया जाना चा हये
हम कतनी श ा मानवीय शि त को द, कस कार क श ा द व कतने यि तय को द।

7.3 आ थक वकास या है ? (What is Economic


Development)
वकास अथशा म आ थक वकास से स बि धत दो मु य धारणाएं पाई जाती ह :
पहल धारणा िजसे “पर परागत धारणा” कहा जा सकता है, आ थक वकास को आ थक प म
प रभा षत करती है। पर परागत वचारधारा म आ थक वकास एक ऐसी ि थ त है िजसम सकल
रा य (या घरे लू उ पाद 5 से 7 तशत तवष क दर से बढ़ता रहे और उ पादन एवं रोजगार
संरचना म इस कार प रवतन हो क उसम कृ ष का ह सा कम होता जाए और व नमाण े
तथा तृतीयक े का ह सा बढ़ता जाए। इस कार इस वचारधारा के अ तगत ऐसे कदम उठाने
क बात क जाती है िजससे कृ ष के थान पर औ योगीकरण क ग त को तेज कया जा सके।
गर बी नवारण, आ थक असमानताओं म कमी और रोजगार के अवसर म वृ जैसे उ े य क
मा चचा भर क जाती है और यह मा यता ले ल जाती है क सकल रा य (या घरे ल)ू उ पाद
म वृ तथा त यि त उ पाद म वृ होने से बाक उ े य को अपने आप धीरे —धीरे ा त

114
कर लया जाएगा। अथात सकल रा य (या घरे ल)ू उ पाद और त यि त आय म वृ के
लाभ रस— रसकर अ य े को भा वत करगे। इसे संव ृ का रसाव भाव कहा जाता है।
बीसवीं शता द के छठे और सातव दशक म कोई लाभ नह ं हु आ तो बहु त से
अथशाि य ने 'पर परागत’ वकास क वचारधारा को छोड़ दया। आठव दशक म आ थक
वकास क संक पना को पुन : प रभा षत कया गया और आ थक वकास का मु य उ े य
गर बी, असमानता और बेरोजगार का नवारण रखा गया। इस दूसर धारणा को पुन वतरण के
साथ संव ृ का नारा दया गया।
इस संदभ म चा स पी. क डलबगर और स
ू है रक का यह कथन मह वपूण है आ थक
वकास क प रभाषा ाय: लोग के भौ तक क याण म बढ़ोतर होती है। जनसाधारण को अ श ा,
बीमार और छोट उ म मृ यु के साथ—साथ गर बी से छुटकारा मलता है। लोग का मु य
यवसाय न रहकर औ योगीकरण होता है िजससे उ पादन के व प म और उ पादन के लए
इ तेमाल होने वाले कारक के व प म प रवतन होता है। कायकार जनसं या का अनुपात बढ़ता
है और आ थक तथा दूसरे क म के नणय म लोग क भागीदार बढ़ती है तो अथ यव था का
व प बदलता है और हम कहते है क दे श वदे श म आ थक वकास हु आ है।
या गर बी के तर म कमी हो रह है? या बेरोजगार का तर कम हो रहा है? या
अथ यव था म असमानताएँ कम हो रह है' य द इन तीन न का उ तर सकारा मक है तो
न चय ह अथ य था म आ थक वकास हु आ है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. व नयोग कसे कहते ह?
2. श ा को अ छा नवे श कसने कहा ह?
3. गर बी,बे रोजगार और असमानताएं अगर कम होती ह तो यह कसका सं के त ह?

7.4 आ थक वकास के कारण (Factors of Economic


Development)
आ थक वकास एक ज टल या है। आ थक वकास के नधारक त व आ थक और
अना थक दोन ह है। जहां तक आ थक त व का संबध
ं है इनम सबसे अ धक मह वपूण है—
पू ज
ं ी टॉक तथा संचयन ह दर, व भ न े म पू ज
ं ी—उ पाद अनुपात, जनसं या का आकार एवं
वृ दर, कृ ष े म आ ध य तथा भु गतान शेष क ि थ त। अना थक कारक म मह वपूण है
— राजनी तक वतं ता (या, दूसरे श द म औप नवे शक शोषण से मु ि त), यायपूण सामािजक
संगठन, तकनीक ान क उपलि ध टाचार से मुि त, सामािजक यव था और वकास के त
लोग क 'ती इ छा' एवं ढ़ संक प। इन सबके अ त र त ाकृ तक साधन क उपलि ध भी
मह वपूण भू मका अदा करती है और ाय: वकास क सीमाएं नधा रत करती है।
इस शता द के चौथे दशक तक बहु त से अथशा ी व भ न दे श के वकास अथवा
अ प— वकास का ववेचन उनम ाकृ तक संसाधन क सापे क उपलि ध के वारा करते थे।
जेकब वाइनर, व लयम जे. बॉमाल तथा आथर युइस ने आ थक वकास के नधारक म

115
ाकृ तक संसाधन को बहु त मह वपूण माना है। जेकब वाइनर के श द म, “आ थक वकास बहु त
कु छ इसी बात पर नभर करता है क भौ तक पयावरण अथवा मेर श दावल म ाकृ तक
संसाधन क ेणी या गुण व ता उ पादन क ि ट से या है। तकू ल भौ तक पयावरण वकास
म एक मु ख बाधा बन सकता है। इसम स दे ह नह ं है क कई दे श के वकास और समृ म
उनके ाकृ तक संसाधन के भ डार ने अ य धक योगदान दया है। उपजाऊ भू म और संचाई के
लए उ चत यव था कृ ष वकास के लए अनुकू ल वातावरण पैदा करते ह। अ प— वक सत दे श
के कायाक प म कोयले और पे ो लयम के भ डार, जल व युत नमाण करने क सु वधाएं, लोहा,
टन, तांबा, बॉ साइट आ द व वध ख नज पदाथ क उपलि ध, वन तथा पशु स पि त, इ या द
अ य त मह वपूण भू मका अदा कर सकते ह। आथर युइस का मत ठ क ह है क कसी भी
दे श के वकास का तर तथा व प उस दे श के संसाधन वारा सी मत होता है। पर तु यहाँ इस
बात पर जोर दे ना आव यक है क मा ाकृ तक संसाधन क उपलि ध वकास के लए काफ
नह ं है। लै टन अमेर का, अ का और ए शया के बहु त से दे श ऐसे ह िजनम पया त ाकृ तक
संसाधन तो है पर तु िजनका वकास का तर अ य त नराशाजनक है। अ सर कहा जाता है क
अफगा न तान और तबत के अ प— वकास का कारण वहाँ ाकृ तक संसाधन का न होना है।
पर तु इस बात पर यादा जोर इस लए नह ं दया जा सकता य क बहु त से दे श ऐसे भी है
जहाँ ाकृ तक संसाधन का अभाव है पर तु िज ह ने उ साहव वक आ थक वकास ा त कया
है। उदाहरण के लए, ि वटजरलड के पास कोई ाकृ तक संसाधन नह ं है और न ह भौ तक
पयावरण अनुकू ल है फर भी उस रा ने काफ उ न त क है और वहां क त यि त आय
तथा स प त अमे रका, बटे न तथा जमनी जैसे दे श क तु लना म कम नह ं है।

7.4.1 आ थक कारक (Economic Factor)


कसी भी दे श के आ थक वकास म आ थक कारक क अ य त मह वपूण भू मका होती
ह। पू ज
ं ी टॉक और पू ज
ं ी संचयन क दर अ सर इस बात का नधारण करते ह क कसी समय—
वशेष पर उस दे श म संव ृ हो पाएगी अथवा नह ं (या फर संव ृ क दर या होगी)। अ य
कारक म जनसं या का आकार तथा उसम वृ , शहर जनसं या क आव यकता को पूरा करने
के लए खा या न का आ ध य, भु गतान शेष क ि थ त, आ थक णाल का व प इ या द
मह वपूण है पर तु इन सब कारक का मह व उतना अ धक नह ं है िजतना क पू ज
ं ी नमाण का।
1. पू ज
ं ी नमाण क ऊंची दर अथ यव था समाजवाद हो अथवा पू ज
ं ीवाद , आ थक वकास
क ग त तेज रखने के लए पू ज
ं ी नमाण क दर ऊँची रखी जानी चा हए। जापान म आ थक
वकास का एक मु य कारण यह था क उसम पू ज
ं ी नमाण क दर बहु त अ धक रखी गई।
1970 के दशक के अि तम वष म जापान म बचत का तर सकल रा य उ पाद के 37
तशत तक पहु ंचा दया गया। 2001 म भी जापान म पू ज
ं ी नमाण का तर सकल रा य
उ पाद का 26 तशत था। कई वक सत दे श जैसे जमनी, ऑि या, नीदरलड, डेनमाक तथा
नाव म आज भी पू ज
ं ी नमाण क दर 22 तशत या उससे अ धक है। चीन, हांगकांग, द ण
को रया, संगापुर , थाइलै ड तथा मले शया जैसे अ प— वक सत दे श म पू ज
ं ी नमाण क दर 23
तशत या उससे अ धक है। इन सभी दे श म उ च संव ृ दर ा त करने के पीछे उनक यह
ऊँची पू ज
ं ी नमाण दर है। इस सबके वपर त भारत म 1960 के दशक म पू ज
ं ी नमाण क दर
20 तशत के आसपास रह है और केवल हाल ह म यह 24 तशत तक पहु ंची है।

116
2. मानव संसाधन : आ थक वकास म जनसं या एक मह वपूण कारक है। मानव से ह
उ पादन काय के लए म क उपलि ध होती है। य द कसी दे श म म शि त कु शल होने के
साथ—साथ काय करने क मता भी है तो उसक उ पादन साम य न चय ह अ धक होगी।
दुबल, अ श त, अकु शल और ढ़य म फंसे हु ए यि तय क उ पादकता कम होती है और
आ थक वकास म उनका योगदान भी अ धक नह ं होता। पर तु इस स दभ म इस बात का
यान रखना भी आव यक है क य द मानव शि त का युि तपूण उपयोग नह ं कया जाता, सभी
यि तय को उ पादक काय म नह ं लगाया जाता या फर मानव संसाधन का बंधन अकु शल
और अनुपयु त तर के से कया जाता है तो वह लोग जो आ थक वकास म मह वपूण योगदान
दे सकते थे, अथ यव था पर बोझ बन जाते ह। यह कारण है क अथशा ी जना ध य को
आ थक वकास म बाधा मानते ह।
3. कृ ष का व य अ धशेष — दे श के आ थक वकास के लए न स दे ह कृ ष उ पादन
तथा उ पादकता म वृ मह वपूण है पर तु इससे भी अ धक मह वपूण है कृ ष के व य
अ धशेष म वृ । व य अ धशेष (या ब यो य अ धशेष) कृ ष उ पादन का वह ह सा है जो
ामीण जनसं या क नवाह क आव यकताओं को पूरा करने के बाद बच जाता है। इस व य
अ धशेष पर ह शहर े के लोग का गुजर बसर होता है। शहर जनसं या क आव यकताओं
क तु लना म खा या न का ब यो य अ धशेष कम था इस लए सरकार को इनका भार मा ा
म आयात करना पड़ा। इससे खा या न क सम या का तो समाधान हो गया पर तु वदे शी मु ा
के प म बहु त अ धक खच करना पड़ा। इस मु ा का योग ऐसे अ य उ े य के लए कया जा
सकता था िजनसे आ थक वकास क दर को और यादा बढ़ाना संभव हो सकता था। इससे यह
स होता है क य द कोई दे श औ योगीकरण क ग त को तेज करना चाहता है तो उसे इस बात
का भी यान रखना पड़ेगा क कृ ष े पछड़ न जाए।
4. वदे शी यापार क शत : बहु त ल बे समय तक कई अथशाि य ने यापार के
ला सकल स ांत का सहारा लेकर यह तक दया है क अ तरा य यापार उन सब दे श के
लए लाभदायक है जो यापार म ह सा लेते ह। इस संदभ म यह कहा जाता रहा है क
अ प वक सत दे श को कृ ष पदाथ तथा क चे माल का उ पादन व नयात करना चा हए य क
इसी म उनका तु लना मक लागत लाभ है। इसके वपर त वक सत दे श को न मत व तु ओं का
उ पादन व नयात करना चा हये य क इनका तु लना मक लागत लाभ इसी म है।
वदे शी यापार से उन दे श को ह अ धक लाभ हु आ है िज ह ने तेजी के साथ
औ योगीकरण से न मत माल को ह वदे शी बाजार म बेचा है। इस लए अ प— वक सत दे श के
सामने भी यह ल य होना चा हए क तेजी से औ योगीकरण कर, औ यो गक व तु ओं और
पू ज
ं ीगत व तु ओं के े म आ म नभर बन तथा अपने नयात म कृ ष पदाथ और क चे माल
का ह सा घटाकर औ यो गक व तु ओं का नयात बढाएं।
5. आ थक णाल — आ थक वकास क ि ट से अथ णाल बहु त मह वपूण है। एक समय
ऐसा था जब सरकार ह त ेप र हत पू ज
ं ीवाद अथ णाल को अपना कर तेजी से आ थक वकास
करना संभव था जैसा क इं लैड ने कया पर तु आज क बदल हु ई प रि थ तय म इं लैड क
भां त वकास कर पाना असंभव है य क अ प— वक सत दे श के पास औप नवे शक शोषण क
वैसी संभावनाएं नह ं ह जैसी क इं लैड के पास थी। आज के अ प— वक सत दे श को अपना
वकास पथ वयं चु नना होगा। इन दे श के सामने अब दो रा ते ह। थम, पू ज
ं ीवाद णाल म
117
आ थक आयोजन जैसा क भारत म कया गया है। इसम वकास क दर धीमी रहती है। ले कन
द ण को रया तथा कु छ दूसरे दे श ने पू ज
ं ीवाद ढांचे म ह सरकार सहयोग से तेजी के साथ
वकास कया है। दूसरा रा ता समाजवाद आ थक आयोजन का है। चीन ने इस रा ते को
अपनाया है और इसके वारा तेज आ थक वकास ा त करने म सफलता पाई है।

7.4.2 आ थक वकास के अना थक कारक (Non—Economic


Factors of Economic Development)
1. राजनै तक वत ता : व व इ तहास पर ि टपात करने से प ट है क संसार म
वकास और अ प— वकास क याएं एक साथ चल है। भारत, पा क तान, बंगलादे श, ीलंका,
मले शया, क नया आ द दे श का अ प— वकास इं लैड के वकास का प रणाम है। आ े गु द
ं र क
ने व तार के साथ प ट कया है क ाजील और चल का अ प— वकास अमे रका भाव का
प रणाम है। दादाभाई नौरोजी ने अपनी व यात पु तक म प ट कया है क भारत म अं ेजी
शासन काल म जो संप त और पू ज
ं ी का नयात हु आ, उससे दे श म नधनता बढ़ है और आ थक
वकास म बाधा पड़ी है। व पन च के अनुसार टश शासनकाल म भारत म औ यो गक
वकास मु य प से उन वष म अ धक हो सकता है जब व वयु के कारण भारत और इं लैड
के बीच संबध
ं म श थलता थी। सं ेप म ऐसा कोई उदाहरण नह ं मलता क औप नवे शक
शासन के अ तगत कसी दे श का आ थक वकास हु आ हो। अत: आ थक वकास के लए
राजनै तक वतं ता का वशेष मह व है।
2. यायपूण सामािजक संगठन : वकास क या उसी समय तेज हो सकती है जब दे श
के वकास काय म म सभी यि तय क भागीदार हो और यह तभी संभव होगा जब क
सामािजक संगठन यायपूण हो। िजस समाज क रा य वृ दे श के सबसे अ धक स प न वग
के पास पहु ँ च जाती है वहां जनसाधारण से आ थक वकास म योगदान क आशा करना यथ है।
भारत म उदार करण और नजीकरण क नी तय से औ यो गक े म एका धकार त व के हाथ
म आय और संपि त का के करण बढ़ा है तथा ामीण े म ह रत ां त के प रणाम व प
धनी कसान क आय अपे ाकृ त तेजी से बढ़ ह। इन दोन वृि तय के प रणाम व प आ थक
असमानाए बढ़ है िजससे भारत म सामािजक ढांचा यायपूण नह ं है। यह कारण है क आज
साधारण भारतीय को वकास योजनाओं म कोई च नह ं है।
3. तकनीक ान एवं सामा य श ा : सभी लोग इस बात को वीकार करते है क
तकनीक ान का वकास दर पर सीधा भाव पड़ता है। जैसे—जैसे वै ा नक तथा तकनीक गत
होती है वैसे—वैसे उ पादक को अ धक उ पादकता वाल तकनीक का ान होता है िजससे
उ पादन का तर तेजी से बढ़ता है। शमपीटर ने तो उ य मय वारा कए जाने वाले नव— वतन
को पू ज
ं ीवाद वकास म अ य त मह वपूण थान दया है। रॉबट एम. सोलोव ने अपने एक लेख
म यह स करने का यास कया है क अमे रका म रा य आय म होने वाल वृ म
सवा धक योगदान तकनीक प रवतन का है। ट .डब यू.शु व और अम य कु मार सेन के अनुसार
मानव पू ज
ं ी म नवेश (अथात श ा पर यय) से आ थक वकास म तेजी आती है। पर तु श ा
पर नवेश से आ थक वकास म कतना योगदान मलता है इसक प रमाणा मक जांच आसान
नह ं है।

118
4. भ ाचार से मु ि त : अ प— वक सत दे श म या त टाचार का इन दे श के आ थक
वकास पर यापक तकूल भाव पड़ा है। जब तक सरकार त है उस समय तक
लोकतां क णाल म स प न पू ज
ं ीप त यापार तथा अ य लोग वभ न कार से अपने
यि तगत हत म रा य साधन का दु पयोग करगे। ट समाज म योजनाओं पर होने वाले
यय का एक भाग तो सरकार अफसर और दूसरे कमचार हड़प कर जाते ह। सरकार गलत लोग
को लाइसे स दे ती है।
5. वकास के लए आकां ा — वकास या को एक मशीनी या नह ं समझा जाना
चा हए। कसी भी दे श म आ थक वकास क या क ग त उस दे श के लोग क वकास के
लए आकां ा पर नभर होती है। य द चेतना का तर नीचा है तो जनसाधारण म आकां ा होनी
चा हए।
इस कार यह प ट है क आ थक वकास क ि ट से जहां वक सत दे श क भां त
ह अ प वक सत दे श म ढ़ भौ तक आधार का नमाण करना आव यक है, वहां वकास के
राजनै तक, सामािजक तथा मनोवै ा नक नधारक पर भी यान दया जाना चा हए। मानवीय
त व क उपे ा कर वकास के कसी भी काय म को सफल नह ं बनाया जा सकता है। आ थक
और अना थक दोन ह कारक श ा, श ण एवं तकनीक ान से जु ड़े ह। अत: आ थक
वकास के लए समाज के येक सद य क जाग कता के लए आधु नक वै ा नक श ा एव
ान क त आव यक है, साथ ह ौ यो गक के उपयोग क मान सकता भी इतनी ह
मह वपूण है।

7.5 मानव संसाधन वकास (Human Resource Development)


1990 म सव थम का शत रपोट ने मानव वकास को लोग के सामने वक प के
व तार क या के प म प रभा षत कया है। इनम सवा धक मह वपूण है ल बा और व थ
जीवन यापन, श ा ाि त, और अ छा जीवन तर पाना। अ य वक प है राजनी तक वतं ता,
अ य मानवा धकार क गांरट और आ म—स मान के व वध त व। ये सभी ज र वक प है
िजनके अभाव म दूसर अवसर म बाधा पड़ती है। अत: मानव वकास लोग के वक प म
व तार के साथ—साथ ा त होने वाले क याण के तर को ऊँचा करने क या है। पॉल
टन ने ठ क ह लखा है क मानव वकास क संक पना मानव को कई दशक के अंतराल के
बाद पुन : के य मंच पर था पत करती है। इन बीते दशक म तकनीक संक पनाओं क
भू ल—भु लय
ै ा म यह बु नयाद ि ट अ प ट बनी रह थी।
महबूब उल हक के अनुसार “आ थक संव ृ और मानव वकास क वचारधारा म
प रभाषा मक अंतर यह है क जहां आ थक संव ृ म केवल एक वक प अथात ् 'आय' पर ह
यान केि त कया जाता है वहाँ मानव वकास म सभी मानवीय वक प का व तार आ जाता
है। ये वक प चाहे आ थक, सामािजक, सां कृ तक अथवा राजनी तक हो। यह कभी कभी कहा
जाता है क आय म वृ से अ य सभी वक प का व तार होता है। ऐसा हो तो सकता है,
ले कन व भ न कारण से ऐसा ाय: होता नह ं है। थम, आय का वतरण असमान हो सकता
है। अत: िजन लोग क आय तक पहु ँ च बहु त कम है अथवा ब कु ल नह ं है उनके वक प बहु त
सी मत होग। इस ि थ त म आ थक संव ृ का रसाव नह ं होता। वतीय, जो अ धक मह वपूण

119
है, यह क समाज और शासक वारा ऐसी रा य ाथ मकताएं नधा रत क जा सकती ह
अथवा समाज का राजनै तक ढांचा ऐसा हो सकता है क आय के व तार से लोग के सामने
वक प का व तार न हो। उदाहरण के लए '' समाज म लोकतं के लए उसका संप न होना
आव यक नह ं है। प रवार म एक—दूसरे के अ धकार को मह व दे ने के लए उसका धनी होना
आव यक नह ं है। रा म ी—पु ष को समानता दान करने के लए उसका समृ होना
आव यक नह ं है। बहु मू य सामािजक एवं सां कृ तक पर पराओं को आय के सभी तर पर
बनाए रखा जा सकता है।

7.5.1 मानव संसाधन वकास य ? (Why Human Resource


Development)
मानव वकास न न कारण से आव यक है
1. मानव वकास उ े य है जब क आ थक संव ृ इस उ े य का साधन मा है।
2. आ थक वकास क स पूण या का अि तम उ े य ि य , पु ष और ब च क
वतमान और भावी पी ढ़य के प म दे खना, मानव क ि थ तय म सु धार करना और लोग के
वक प म व तार करना है।
3. मानव वकास ऊँची उ पादकता का साधन है। भल कार से पो षत, व थ, श त,
कु शल और सतक म शि त सवा धक मह वपूण उ पादक प रसंप त होती है। अत: पोषण,
वा य सेवा और श ा म नवेश उ पादकता के आधार पर उ चत है।
4. श ा म सु धार से लोग म छोटे प रवार के फायद के त चेतना पैदा होती है और
वा य म सु धार व बाल मृ युदर म कमी से लोग यादा ब च क ज रत महसूस नह ं करते।
5. यह मानव पुन थान को धीमा करके प रवार के आकार को छोटा करने म सहायता
पहु ँ चाता है। यह सभी वक सत दे श का अनुभव है क श ा के तर ( वशेष प से लड़ कय के
श ा के तर) म सु धार, अ छ वा य सु वधाओं क उपल दता और बाल मृ युदर म कमी से
ज म दर म गरावट आती है।
6. पर परागत ि टकोण यह है क इनका पयावरण पर बुरा भाव पड़ता है ले कन पॉल
टन ने हाल के शोध काय के हवाले से प ट कया है क भू म अ धकार सु र त होने क
ि थ त म जनसं या म तेजी के साथ वृ और जनसं या के ऊंचे घन व से म ी और वन का
संर ण होता है।
7. भौ तक पयावरण क ि ट से भी मानव वकास अ छा है। गर बी म कमी से वन के
वनाश, रे ग तान के व तार और भू रण म कमी आती है। जनसं या म वृ और जनसं या
का घन व कस तरह पयावरण को भा वत करते ह यह ववाद का वषय है।
8. गर बी म कमी से एक व थ समाज के गठन, लोकतं के नमाण और सामािजक
ि थरता म सहायता मलती है।
9. मानव वकास से सामािजक उप व को कम करने म सहायता मलती है और इससे
राजनी तक ि थरता बढ़ती है।
उपयु त या या से यह प ट है क मानव वकास तमान म केवल अथ यव था ह
नह ं आती उसम इसके अ तगत राजनी तक, सां कृ तक और सामािजक कारक को उतना ह
मह व दया जाता है िजतना क आ थक कारक को और भी यादा मह वपूण बात यह है क
120
उ े य और साधन के बीच सावधानी के साथ अ तर कया जाता है। य य प लोग को वकास
का ल य माना जाता है तथा प साधन को भु लाया नह ं जाता है। ले कन आ थक संव ृ के
व प और वतरण का माप लोग के जीवन म समृ के प म कया जाता है। लोग व तु ओं
के उ पादन करने वाले उपकरण मा नह ं रहते। उ पादन याएं अमू त शू य प म नह ं दे खी
जाती है, उनका व तु त: मानवीय संदभ होता है।
इस कार मानव संसाधन वकास जीवन के गुणा मक प से जु ड़ा है एक ओर यह
आ थक एवं भौ तक प से जु ड़ा है तो दूसर ओर मानव जीवन के सामािजक—सां कृ तक प
से 1 कोई भी प हो वह सं कृ त व स यता से जु ड़ा है। समय व थान के अनु प सं कृ त व
स यता का वकास ान के तर से जु ड़ा है और ान का तर व ान व ौ यो गक के तर
से व ान और ौ यो गक क श ा व श ण से सीधा स ब ध है। ऐ तहा सक तर पर
वकास क ग त और व या को दे ख तो मानव संसाधन के वकास को उससे जु ड़ा पाते ह। अत:
श ा मानव संसाधन वकास का बहु त बड़ा और महान ोत है|

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. आ थक वकास के कोई दो आ थक कारण बताइये |
2. आ थक वकास के कोई दो अना थक कारण बताइये |
3. मानव सं साधन वकास जीवन के कन प से जु ड़ा ह?

7.7 सारांश (Summary)


श ा और आ थक वकास पर पर अ तस बि धत ह। जैसी सामािजक—सां कृ तक
प रि थ तयां होती ह उसी प र े य म आ थक एवं शै णक ि थ तयां होती ह। एक ओर श ा
आ थक यव था को भा वत करती है तो दूसर ओर आ थक प रि थ तय म बदलाव शै णक
यव था को म प रवतन करता है। इन दोन का भाव उपल ध मानव संसाधन पर भी पड़ता है।
श ा मानव संसाधन को ानवान एवं कु शलता व ववेकशीलता दान करती है और आ थक
प रि थ त को भा वत करती ह। आ थक वकास कसी भी रा के मानव संसाधन का वकास
भी करता है। वशेषकर तब प रवतन क ग त क दशा को यान म रख श ा के वकास क
ओर आगे बढ़ते ह। श ा व ान एवं ो यो गक के समु चत उपयोग के लए मानव संसाधन को
तैयार करती है और मानव संसाधन एवं मानव वकास दोन ह कसी भी समाज म दे ख जा
सकते ह।

7.8 मू यांकन न (Evaluation Question)


1. “ श ा उपयोग भी है और नवेश भी” तक द।
“Education is Consumption as well as Investment.”Give Arguments)
2. कसी भी दे श के लए मानव संसाधन वकास एक मह वपूण मु ा य ह?
Why Human Resource Development is an Important issue for nation?

121
7.9 स दभ पु तक (Important Books)
1. SK Mishra and V.K. Suri, Bhartiya Arth Vyavastha, Himalaya Publishing
House, Delhi, 2006, pp. 5.27.
2. Mahboob, ULHag, ”Employment and Income Distribution in 1970; A New
Perspective, ”Pakistan Economic and Social Reviews, June—
December,1971.
3. Foll Stretion and Others, First Things First : Meeting Basic Needs In
Human Needs In Developing Countries,New York,1981.

122
इकाई 8
श ा मानव अ धकार के प म : भारत म ब च क
ि थत
Education As Human Rights : Situation Of
Children In India

इकाई क परे खा (Outline of Unit)


8.0 उ े य (Objectives)
8.1 तावना (Introduction)
8.2 मानव अ धकार (Human Rights)
8.2.1 भारत म मानव अ धकार (Human Rights in India)
8.2.2 भारतीय सं वधान म मू ल अ धकार (Fundamental Rights in India
Constitution)
8.3 नवीन सामािजक यव था के ल ण (Characteristics of New Social System)
8.4 मानवा धकार श ा (Education for Human Rights)
8.4.1 मानवा धकार श ा के ल य (Aims of Human Rights Education)
8.4.2 मानव धकार के त जाग कता हे तु यास (Efforts for the Awareness
of Human Rights)
8.5 श ा का अ धकार (Rights of Education)
8.6 ब च के अ धकार (Rights of Children)
8.7 सारांश (Summary)
8.8 मू यांकन न (Evaluation Question)
8.9 संदभ (Reference)

8.0 उ े य (Objectives)
1. भारतीय सं वधान म मू ल अ धकार को जानना
2. सामािजक यव था के ल ण को जानना,
3. मानवा धकार श ा और उसके त जाग कता के यास,
4. भारत म ब च के अ धकार को जानना

8.1 तावना (Introduction)


वै दक काल से ह हमारे दे श म सबको श ा के समान अवसर दान करने पर बल
दया गया था।काला तर म समाज म या त कु र तय के प रणाम व प श ा दान करने म
भेदभाव रखा जाने लगा। कु छ वशेष जा त वशेषकर न न जा तय के सद य एवं म हलाओं को
123
श ा दे ना उस समय क ठन हो गया। प रणाम व प ऐसी जा तयाँ श ा े म पछड़ गई।
वतं ता के बाद नए सं वधान के अ तगत शै क अवसर क समानता से हमारा ता पय जा त,
धम, रं ग, लंग तथा े के आधार पर प पात न करते हु ए सबके लए श ा के उपयु त
अवसर दान करना है। इन अवसर को अ त र त सु वधाएँ जु टाकर दान कया जाना रा य के
काय े म सि म लत कया गया है ता क जो वग क ह ं कारण से श ा म पछड़ा है उसे
अ त र त अवसर दान कर सामा य धारा म मलाया जा सके। श ा आयोग ने भी इस त य
को वीकार करते हु ए कहा है मु य — श ा का एक मह वपूण सामािजक उ े य शै क अवसर
क समानता दान करना है एवं पछड़े अथवा अपया त सु वधाएँ ा त वग या यि तय को
अपने वकास के लए श ा ा त करने के यो य बनाना है।
यि त एक सामािजक ाणी है, अ य यि तय के साथ जीवन यापन करता है। समाज
म ह उसके यि त व का वकास होता है तथा वह पूणता को ा त करता है। य द उसे वकास
के लए समु चत अवसर व सु वधाएँ न मल तो वह अपूण रह जायेगा। इसके लए रा य यि त
को सु वधाएँ दान करता है। कु छ सु वधाएँ यि तगत होती ह, कु छ सावज नक क याण क ।
ाय: समाज उन मांग को वीकार कर लेता है जो समाज के हत म होती ह। समाज स मत
इन मांग को ह अ धकार कहते ह। समाज से बाहर अ धकार क सृि ट नह ं होती है। अ धकार
का मू लभू त आधार “सामािजक क याण का भाव” है। समाज का मु ख आधार त भ मानव
अ धकार है।
भारतीय सं वधान क उ े शका भारतीय सं वधान का वह सार—त व है िजसम
मानवा धकार क सावज नक धोषणा तथा नाग रक और राजनी तक अ धकार एवं आ थक,
सामािजक और सां कृ तक अ धकार से स बि धत आधारभू त स ा त त बि बत हु ए ह।
भारतीय सं वधान उ े शका म मानवा धकार का स पूण नचोड़ दे खा जा सकता है।
उ े शका : हम, भारत के लोग, भारत को एक स पूण यु व—स प न समाजवाद
पंथ नरपे लोकतं ा मक गणरा य बनाने के लए, तथा उसके सम त नाग रक को :
सामािजक आ थक और राजने तक चाय' वचार अ भ यि त, व वास',धम और
उपासना क वंत ता त ठा और अवसर क समता ा त कराने के लए तथा
उन सबम यि त क ग रमा, और रा क एकता और अख डता सु नि चत करने
वाल बंधु ता बढ़ाने के लए ढ संक प होकर अपनी ड़स स वधान सभा म आज
तार ख 26 नव बर 1994 ई. ( म त माग शीष शु ला स तमी सवंत दो हजार छह
व मी) को एतद वारा इस स वधान को अंगीकृ त अ ध नय मत और आ म पत
करते ह|
भारतीय सं वधान का सबसे खू बसू रत अंग भारत के नाग रक के मू ल अ धकार और
रा य क नी त के नदशक त व ह।

8.2 मानव अ धकार (Human Rights)


मानव अ धकार को सामा यत: ऐसे अ धकार के प म प रभा षत कया जाता है
िजनका उपयोग करने और िजनक र ा क अपे ा रखने का अ धकार येक मनु य को है। सभी
समाज और सं कृ तय म कु छ ऐसे अ धकार क अवधारणा को वक सत कया है िजनका आदर
करना आव यक समझा गया है। भारतीय सं कृ त एवं स यता म मानवतावाद पर परा और

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स ह णुता क पर परा तथा व वधता व अनेक पता के त आदर क पर परा रह है| वसु धैव
कु टु बकम ् क अवधारणा इसका उदाहरण है। भारतीय दशन म बंधु व और स पूण व व को एक
प रवार के प म दे खने जैसे मू य अ त न हत ह। ये अवधारणाएं अनेक धा मक एवं समाज
सु धार आदोलन म भी त बि बत हु ई ह। इसी कार के वचार अ य सं कृ तय और स यताओं
म भी वक सत हु ए ह। यूरोप म 'पुनजागरण' और ' ानोदय' मानवतावाद का मूलमं बना है।
मानवतावाद ने मनु य को सबसे ऊपर ति ठत कया है। इस काल म िजस समय यूरोप म
मानवतावाद क थापना हो रह थी लगभग उसी समय अमर का के यूरोपीय—पूव सं कृ तय के
व वंस, इंसान क तजारत और व व के कई भाग म उप नवेशीकरण के ार भ का भी काल
था। मानवतावाद का सारा संदभ मानवा धकार है।
मानवा धकार क अवधारणा के वकास क या 18वीं सद म उ दत ां तकार
आ दोलन के प रणाम व प तेजी से फैल और 19वीं व 20वी शता द म परवान चढ़ । इसम
सबसे बड़ा योगदान अमर क वतं ता क घोषणा और ांस क मनुषय तथा नाग रक के
अ धकार क घोषणा का रहा। अमर का और अ य सभी दे श जो मानवा धकार क बात करते रहे
सवा धक अ धकार का हनन उ ह ं जातां क, समाजवाद जनवाद दे श म ह हु ए ह।1914 से
1945 दो व वयु तक का कालख ड ' व वसं का काल' था। इसी काल के अि तम वष म
अ तरा य तर पर मानवा धकार क अवधारणा और अ भ यि त वतमान अश म क जाने
लगी, संयु त रा संघ के अ धकार—प को लेकर कोई तीन वष बाद ज द क गई।
मानवा धकार क सावजनीक घोषणा (1948) व तु त: ऐसे मानवा धकार क एक ल बी सू ची है।
िजनक ग त सभी जन सभाओं और रा के लए 'सामा यत: आव यक मानी जाती है।
मानवा धकार क इस अवधारणा क चचा सामा य प से इसके तीन चरण को यान म
रखकर क जाती है —
1. थम चरण के अ धकार : वतं ता अ भमु ख अ धकार — इनका स ब ध मु य प से
यि त के नाग रक तथा राजनी तक अ धकार से ह। इनका उ े य सरकार को यि तगत
वतं ताओं म ह त ेप करने से रोकने के लए नषेधा मक दा य व आरो पत करना था।ये
अ धकार 19वीं सद से आरं भ हाने वाले सभी उदारवाद और लोकतां क आदोलन के मु ख
योजन म से थे।
2. दूसरे चरण के अ धकार सु र ा अ भमु ख अ धकार — इनम सामािजक, आ थक और
सां कृ तक सु र ा क यव था है। इसक कृ त सकारा मक है। इनके कारण यह ज र हो जाता
है क रा य इन अ धकार क पालना सु न चत कर।
3. तृतीय चरण के मानवा धकार वकास का अ धकार — इनका वकास हाल ह म हु आ है।
वतमान म पयावरण स ब धी, सां कृ तक तथा वकासा मक अ धकार का समावेश हु आ है।
इनका स ब ध यि तय क बजाय समू ह और जन—समाज के अ धकार से है। इनम आ म—
नणय और वकास का अ धकार, आ द आते ह। इन अ धकार पर अ तरा य तर पर आम
सहम त पैदा करने म वकासशील दे श क महती भू मका रह है।

8.2.1 भारत म मानव अ धकार (Human Rights in India)


मानवा धकार से स बि धत सभी द तावेज म श ा के अ धकार को सवा धक
मह वपूण थान दया गया है। उनम मानवा धकार के अ भवषन म श ा के मह व पर भी जोर

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दया गया है। संयु त रा क महासभा म “मानवा धकार क इस सावज नक घोषणा का ल य”
यह बताया है क
“ येक यि त और समाज का येक अंग... अ यापन और श ा वारा इन
अ धकार व वतं ताओं के त स मान क भावना का अ भवधन करे गा |”
ब च के अ धकार से स बि धत कई अनु छे द श ा के अ धकार के व भ न पहलू ओं
और श ा क वषय—व तु के बारे म है। इसक वषय—व तु म इस बात का भी समावेश है क
“ब चे क श ा... मानवा धकार ओर वतं ताओं के त स मान क भावना का वकास करने
क और अ भमु ख होगी|
ब च के लए श ा का अ धकार आज आधार भू त अ धकार है। इस मानवा धकार के
अ तगत 14 वष क आयु दे श के सभी ब च के लए श ा अ नवाय कर द गई है। यह
इस लए अ नवाय है य क श ा का भाव मानव वकास पर सवा धक होता है। इस गुणा मक
सु धार का भाव यि त व नमाण के साथ ह समाज के वकास से सीधा जु ड़ा है। बालक य क
भ व य का नाग रक होता है अत: उसका श त होना, ानकाल होना और अब तक के अिजत
ान को अपनी अगल पीढ़ को थाना त रत करने का कत य होता है। ऐसे म वा य एवं
सामािजक सु र ा के अ त र त श ा का अ धकार ब च का है। वह दे श जो ब च क श ा का
अ धकार नय मत प से दे ता है वह वकास के उ च तर पर रहता है।
संभवत: मानव अ धकार से संबं धत भारतीय जीवन मू य क उ पि त सबसे ाचीन है।
सबसे ाचीन माने जाने वाले ऋ वेद म यह घो षत कया गया है क सभी मानव बराबर है और
वे सब भाई—भाई ह। अथवद के अनुसार खा य पदाथ तथा जल जैसे ाकृ तक संसाधन पर सभी
मानव का बराबर अ धकार है। उप नषद ( ु त) स हत वेद धम के मौ लक ोत ह। 'धम' उन
सभी मानव अ धकार और कत य के लए एक ऐसा सारग मत श द है िजसका पालन करना
यि त और समाज के सु ख एवं शाि त के लए आव यक माना गया। मृ त और पुराण म धम
के उन नयम का संकलन कया गया है िजनम नाग रक कत य, यवहार, धम तथा रा य धम
भी शा मल है और जो वेद म न हत मूलभू त आदश के आधार पर वक सत कए गये थे। इनके
राजधम संबध
ं ी अ य अ धकृ त थ
ं भी ह िजनम सबसे अ धक मह वपूण काम डक, 'शु नी त'
तथा कौ ट य का 'अथशा ह। इन सबका उ े य सब को सु खी बनाना था।
धम के नयम के व लेषण से यह ात होता है क अ त ाचीन काल से ह भारत म
मू यवान मानव अ धकार को नधा रत कर मा यता द गयी और इन मानव अ धकार क र ा
रा य तथा नि चत यि तय का कत य माना गया। इससे यह भी ात होता है क जीवन
मू य म अनेक मानव अ धकार न हत थे जो अब “ व व मानव अ धकार घोषणा” प तथा
भारतीय सं वधान के तृतीय भाग म अनेक मू लभू त अ धकार म स म लत कए गये ह। यह
वषय मेनका गांधी बनाम भारतीय संघ वाले मु कदमे म (1978(1) एस.सी.सी. 248) नयम
कार उजागर कया है।
“ये मू ल अ धकार उन आधारभू त मू य के योतक ह िज ह इस दे श के लाग ने वेद के
काल से ह मू यवान समझा और िज ह यि त के मान क र ा के लए ऐसी ि थ तयाँ न मत
करने के लए आव यक माना गया िजनम येक मानव अपने यि त व का पूण वकास कर
सकता है।

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इस दे श क स यता तथा सं कृ त को आदश प दान करने वाले महान वचारक ने
येक यि त के अ धकार क र ा के लए दूसरे यि तय के सहगामी कत य नधा रत करने
का अ वतीय उपाय नकाला।
अतएव, इस दे श के ाचीन दाश नक ने अ धकार पर आधा रत समाज न बनाकर कत य
आधा रत समाज बनाना अ धक अ छा समझा िजसम यि त को दया हु आ अ धकार उसक
कत य पू त का अ धकार है।
मानव अ धकार जीवन का आधारभूत मू य है जो भगवतगीता क अ य त लोक य
तथा मह वपूण घोषणा है जो इस कार है,
तु हारा अ धकार अपने कत य क पू त करना है।
समानता का अ धकार सभी अ धकार म सबसे मह वपूण अ धकार है। इसके बना सु खी
जीवन असंभव है। अ यायपूण भेदभाव से उन यि तय म दुख और संताप पैदा होता है िजनके
व भेदभाव कया जाता है इस लए ज र है क येक यि त को समाज म मान ा त हो।
अ यंत ाचीनकाल से ह मानवीय याकलाप के येक े म समानता और अवसर क
समानता को आव यक माना गया है।
ऋ वेद और अथवेद म समानता के अ धकार क घोषणा क गयी है। वे उदाहरण है।
जैसे—''समाज म ऊँचनीच का भेदनह ं है, सभी भाई ह। सबको सबक भलाई और उ न त
करनी चा हए।''
''मानव अ धकार के घोषणाप (1948) क धारा 1 और 7 के अनुसार सभी मनु य
ज म से ह मान और अ धकार म बराबर ह। मनु य वभाव से ह तकशील और ववेक है,
इस लए भाई—चारे क भावना के साथ उ ह एक दूसरे के त यवहार करना चा हए।''
''सभी, कानून क ि ट से समान ह। कानून बना भेदभाव के उनक समान संर ण
दान करे गा। इस घोषणा के उ लंघन व प कसी भी भेदभाव के खलाफ और भेदभाव से े रत
कसी भी यवहार के खलाफ समान संर ण का सबको अ धकार है।''

8.2.2 भारतीय सं वधान म मू ल अ धकार (Fundamental Rights in


India Constitution)
भारतीय सामािजक यव था के अ तगत भारतीय सं वधान म उन अ धकार को मू ल
अ धकार कहा गया है जो यि त के जीवन के लए मौ लक एवं अप रहाय होने के कारण
सं वधान वारा नाग रक को दान कये गए ह और िजनम सामा यतया रा य वारा ह त ेप
नह ं कया जा सकता। मु ख मौ लक अ धकार न न है :
1. समता का अ धकार (अनु छे द 14—18),
2. धा मक वत ता का अ धकार (अनु छे द 25—28),
3. वत ता का अ धकार (अनु छे द 19—22),
4. सं कृ त और श ा स ब धी अ धकार (अनु छे द 29—30),
5. शोषण के व अ धकार (अनु छे द 23—24), और
6. संवध
ै ा नक उपचार का अ धकार (अनु छे द 32)

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8.3 नवीन सामािजक यव था के ल ण(Characteristics of New
Social System)
भारतीय —सामािजक यव था का एक नि चत, नधा रत व प वतमान समय म ती
ग त से प रव तत हु आ है। यि त, प रवार, समु दाय, समाज एवं रा क आकां ाओं, उपे ाओं
के प रव तत तमान के कारण यह यव था ती ग त से नवीन सामािजक व प को ा त
कर रह है। कु छ मु ख ल ण न न ल खत है :

 सामािजक समानता  अ पृ यता नवारण


 ल गक समानता  पछड़े समु दाय का वकास
 सामािजक याय  मानवतावाद ि टकोण
 पंथ नरपे ता  आधु नक करण
 बा लका श ा  वै ा नक च तन
 अ नवाय ाथ मक श ा
थम व वयु क यापक हंसा के प चात ् 'शाि त थापना ल ग नामक संगठन का
गठन कया गया था। जू न 1915 म फलाडेि फया म इसका थम अ धवेशन हु आ। 1920 म
रा संघ का गठन हु आ। 1941 म अमे रका रा पत क लन जवे ट ने मनु य क चार
मू लभू त वत ताओं क चचा क । 1948 म एलोनोर जवे ट क अ य ता म मानवा धकार
आयोग का गठन कया गया। 10 दस बर 1948 को इसे वीकार कया गया। इसी लए 10
दस बर को मानवा धकार दवस के प म मनाया जाता है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. भारतीय सं वधान उ े शका मानवा धकार का नचोड़ ह,समझाइये |
2. मानवा धकार के तीन चरण कौन—कौन से ह?
3. भारतीय सं वधान म से मु ख पाँ च अ धकार के नाम द िजए|

8.4 मानवा धकार श ा (Education for Human Rights)


मानवा धकार से स बि धत सभी द तावेज म श ा के अ धकार को सवा धक
मह वपूण थान दया गया है। उनम मानवा धकार के अ भवषन म श ा के मह व पर भी जोर
दया गया है। संयु त रा क महासभा म ''मानवा धकार क इस सावज नक घोषणा का ल य''
यह बताया है क
“ येक यि त और समाज का येक अग .... अ यापन और श ा वारा इन
अ धकार व वत ताओं े त स मान क भावना का अ भवधन करे गा|''
भारत जैसे रा म जहाँ सामािजक, सां कृ तक व आ थक वषमताएँ अ य धक ह।
मानवा धकार श ा क आव यकता अ धक अनुभव क जा रह है। ात: दन का ार भ होते ह
समाचार—प अथवा दूरदशन पर आने वाले काय म एवं समाचार से मानवा धकार के हनन क

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सम या को उजागर करने वाले त य हम इस दशा म सोचने के लए बा य करते ह क इस
श ा को दान करने के लए कन ल य का नधारण कया जाना ाथ मकता है? ऐसे ह
क तपय ल य का वणन तु त है

8.4.1 मानवा धकार श ा के ल य (Goals of Education Human


Rights)
मानवा धकार श ा के मू लभूत मू य आ याि मकता, अ हंसा तथा नै तकता ह। इ ह ं के
आधार पर इस श ा के ल य को भी नधा रत कया जा सकता है :
1. शां त थापना हे तु सामािजक मू य को त था पत करना।
2. सामािजक मू य के वकास हे तु ान, भावना एवं कौशला मक प रवतन लाना।
3. यि त क ग रमा को समझने क मता उ प न करना।
4. पार प रक सामंज य था पत करने क नपुणता का वकास करना।
5. ववेकयु त एवं समाज स मत यवहार म कु शलता क ाि त करना।
6. यि तगत वकास के साथ द घकाल न रा य हत का संर ण करने क संवेदनशीलता
उ प न करना।
7. शोषण मु त समाज के नमाण क आव यकता के त अ भवृ या मक का प रवतन
करना।
8. सां कृ तक वरासत का ान ा त कर अ धकार व कत य म सम वय था पत करना।
9. मौ लक वत ताओं का आदर करना सखाना।
10. पूवा ह ो यागने एवं दूसर के त दुभावनाओं को समा त करने हे तु तैयार करना।
11. काय—सं कृ त के त सकारा मक ि टकोण वक सत करना, यि तय क ग त व धय
म सहयोग करना सखाना।

8.4.2 मानव धकार के त जाग कता हे तु यास (Efforts for the


Awareness of Human Rights)
मानव अ धकार के त जाग कता के कई तर पर यास कये जाते रहे ह और कये
जा रहे ह कु छ भावशाल यास न न ह :
 सा रता काय म म सि म लत करके
 पा य म म सि म लत करना
 संचार—मा यम का अ धका धक योग
 वैि छक संगठन का गठन करके
 राजक य वभाग म मानवा धकार जाग कता अ भनवीकरण वारा

8.5 श ा का अ धकार (Rights of Education)


वेद म येक यि त वारा तीन प व कत य को नभाने का उ लेख है। धम के अंश
के प म एक आधारभू त जीवन मू य कृ त ता से प व कत य क भावना पैदा हु ई। येक
यि त इस खेत के त उ तरदायी है, जहाँ से उसे येक कार का लाभ ा त होता है, िजसम
उसका अपना अि त व भी सि म लत है। वेद म घो षत तीन प व कत य है 1. दे वऋण, 2.

129
पतृऋण, 3. ऋ ष ऋण आचाय / श ा शा ी। िजनम भगवत गीता भी सि म लत है। उनके
अनुसार तीन प व कत य अधूरे ह उ ह ने चौथा कत य 'मानव ऋण' बताया है। चौथे कत य को
पव कत य म सि म लत करने म मह ष वेद यास का मह वपूण योगदान है।
येक मनु य को चार पु य कत य दे वऋण, पतृऋण, ऋ ष ऋण और मानवऋण का
पालन करना चा हए।
येक पीढ़ के यि त अपनी पूव पीढ़ के व ान , आचाय तथा श ा वद के त
ऋण को चु काने को बा य है िज ह ने ान को दूसर पीढ़ के लए सं चत, वक सत और
ह ता त रत कया। ठ क वैसे ह पु अपने प व कत य को कृ त तापूवक नभाता है जैसे उसके
पता ने अपने प रवार के क याण के लए अपने धा मक कत य को नभाया था। यह यि त
का प व कत य बनता है क वह उस ान को सं चत कर, हण कर और तब उसम उपयोगी
सु धार, शोघ, या या, श ण तथा लेखन वारा नए वचार का वकास करके उसे अगल पीढ़
को ह ता त रत कर।
इस लए सह श ा हण करना और ान ा त करना येक यि त का कत य है। उसे
ारि भक श ा से लेकर उ च तर तक ान ा त करने के लए यास करना चा हए।
फर भी, आचाय पर ाथ मक से लेकर उ च तर तक अ धक उ तरदा य व है। आचाय
का उ तरदा य व अपने छा को न केवल ान दान करना है अ पतु उनके च र को बनाना है
िजससे वे ा त ान का उपयोग वृि तस हता तथा समाज के लाभ के अनुसार कर सक।
ाचीन भारत म श ा क मह ता का वणन भतृह र (ईसा से पूव थम शता द ) के
लोक म मलता है। श ा मनु य क वशेष अ भ यि त है, श ा वह धन है िजसे हा न के भय
के बना सुर त रखा जा सकता है। ' ' श ा से भौ तक आनंद, सु ख और या त ा त होते ह।
श ा गु थ क गु है। ' श ा ह उसका म है, श ा परमा मा का अवतार है। “जब यि त
वदे श जाता है, उधर रा य से स मान क ाि त श ा से होती है न क धन से।“ श ा के
अभाव म मनु य पशु तु य है।“ भतृह र उ जैन का नरे श जो दाश नक बन गया था के उपरो त
लोक म श ा क मह ता के साथ—साथ अ श त यि त को पशु समान माना गया है। ऐसा
कहकर उसने सभी को ान ा त करने और अगल पीढ़ को उसका सार करने क ेरणा द ।
हमार स यता के इस प का संकेत भारत के सव च यायालय के मो हनी जैन के
मु कदमे म कया गया िजसम श ा के अ धकार को मौ लक अ धकार माना गया है। उ नीकृ णन
के मु कदमे म आदे श दया गया क श ा का अ धकार सं वधान क इ क सवीं धारा के अधीन
मौ लक अ धकार का एक भाग है।
पातंज ल ने सं त मगर साथक अनु छे द म श ा के इन चार मह वपूण सोपान
अथवा अव थाओं को पूण करने के लए येक यि त को आदे श दे ते हु ए कहा है—
1. अपने माता— पता तथा आचाय से ान / श ा ा त करो।
2. वयं अ ययन करके ान म वृ करो।
3. मह वपूण ान को दूसर को दान करो। अथात ् माता पता के प म अपनी संतान को
अ यापक के प म छा को अथवा अ य कसी प म दूसर को।
4. ान का उपयोग प रवार के लाभ के लए तथा अपने यापार, पेशे या रोजगार से समाज
के लाभ पहु ँ चाने के लए करो।

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श ा के मानवीय अ धकार के उ े य सु ख ा त करना है इस लए इसे सा रता तक
सी मत नह ं करना चा हए। श ा का उ े य तो यि त का बौ वक, मान सक, नै तक, शार रक,
अथात ् सवागीण वकास कर यि त को समाज क संपदा बनाना है। जब रा और समाज
अ धक सं या म ऐसे यि तय का नमाण करने म सफल होता है, तभी वह सु ख ा त करता
है। इस त य को तै तर य उप नष के श ावल के आठव पाठ म बताया गया है।
यह पाठ घो षत करता है क श ा का अथ बौ क, नै तक और शार रक श ा है।
इसम यह भी न हत है क कसी भी रा का सु ख और उसक समृ लोग क शार रक,
बौ क और नै तक शि त के अनुपात म होती है। श ा के वारा सभी के यि त व का पूण
वकास होता है।
इस लए यह प ट है क यि तगत और सामू हक प से सभी के सु ख के लए न सफ
केवल आ थक नयोजन ह पया त है अ पतु ऐसी मौ लक शै णक योजना भी आव यक है जो
अ धक सं या म च र वान ् ानी, ढ़ संक पी, नै तक तथा शार रक प से यो य युवक का
नमाण कर। रा का सु ख ऐसी ह युवा पीढ़ क सं या के अनुपात म होगा िजसे हम सह
श ा वारा सजन कर सकते ह। सभी श ाशाि य और अ यापक का यह प व और दुःसा य
कत य है।
सभी लोग के पास सु खी जीवन बताने क मता अथवा साधन नह ं होते। अनेक
यि त घोर र ता, श ा के अभाव, धनोपाजन क अ मता, शार रक अपंगता, बीमार ,
ाव था तथा प रवार म कमाने वाले सद य के नधन आ द से पी डत होते ह। पर तु इस कार
के सभी लोग को घोर र ता क अव था म भी, सु खी जीवन जीने का मू ल मानव अ धकार है।
उनके इस अ धकार क सु र ा उन लोग तथा रा य को, कत य बोध कराने से होता है िजन
लोग पर वे आ त ह।

8.6 ब च के अ धकार (Rights of Children)


इस बात को याद करते हु ए क मानवा धकार क सावज नक घोषणा म संयु त रा संघ
ने ऐलान कया है क बचपन वशेष दे खभाल और सहायता का पा है। भारत म भी ब चे के
अ धकार—संबध
ं ी घोषणा म न द ट कया गया है, “अपनी शार रक तथा मान सक अप रप वता
के कारण ब च को ज म लेने से पूव और उसके बाद भी वशेष संर ण और दे खभाल क
आव यकता है, िजसम उपयु त कानूनी संर ण का भी समावेश है।
रा य तथा अ तरा य तर पर लालन—पालन और गोद लेने क यव था के वशेष
संदभ म ब च के संर ण एवं क याण के बारे म सामािजक तथा कानूनी स ा त से संबं धत
घोषणा बाल याय शासन संबध
ं ी संयु त रा मानक यूनतम नयम (बेिजंग नयम ) तथा
आपात और सश संघष क ि थ तय म म हलाओं एवं ब च के संर ण स ब धी घोषणा क
याव थाओं को सि म लत कया गया। येक दे श म, खास तौर से वकासशील दे श म, ब च
के ज वन क अव थाओं को सु धारने के लए अ तरा य सहयोग के मह व को वीकार कया।
वतमान अ भसमय के योजन के लए ब चे का अथ अठारह साल से कम उ का
येक मनु य है, बशत क ब च के लए लागू कानून के अनुसार वह इससे कम उस म ह
वय क नह ं माना गया :

131
1. येक रा य अपने—अपने अ धकार े के अ दर, अ भसमय म उि ल खत अ धकार
को येक ब चे के संदभ म ब चे क याद उसके माता— पता या कानूनी अ भभावक क न ल,
रं ग, लंग, भाषा, धम, राजनी तक या अ य मत, रा य, नृजातीय या सामािजक मू ल, संपि त,
नयो यता ज म या अ य ि थ तय के आधार पर कोई वभेद कए बना, स मान दे गे और
सु नि चत करगे।
2. ब च से स बि धत सभी कायवाइय म, चाहे वे कायवाइयां सरकार या समाज क याण
सं थाओं वारा क जाए या यायालय वारा अथवा शास नक ा धका रय या वधायक
सं थाओं वारा, ब च के वा त वक हत मु य वचारणीय त व ह गे।
3. सभी रा य का क त य है क वे ब चे के माता— पता, कानूनी अ भभावक या उसके
लए कानूनन अ य िज मेदार यि तय के अ धकार तथा कत य को यान म रखते हु ए उसके
लए ऐसा संर ण और दे खभाल सु नि चत करगे जो उसके क याण के लए आव यक हो और
इस ल य क ाि त के लए सभी उपयु त वैधा नक तथा शास नक उपाय करगे।
4. रा य यह भी सु नि चत करगे क ब चे को उसके माता— पता क इ छा के व उनसे
अलग नह ं कया जाएगा, िजसका अपवाद मा वह ि थ त होगी जब स म ा धकार लागू कए
जाने यो य कानून और याओं के अनुसार यह नणय कर।
5. ब चे क अ भ यि त क वतं ता का अ धकार होगा। इस अ धकार म कसी कार क
सीमाओं क कोई बाधा माने बना, मौ खक या ल खत अथवा मु त प म या कला के प म
या ब चे क पसंद के अ य मा यम से सभी कार क जानकार और वचार ा त करने और
सं े षत करने का य न करने तथा उ ह ा त और सं े षत करने क वतं ता के अ धकार का
समावेश होगा।
6. कसी भी ब चे के नजीपन, प रवार या घर या प — यवहार म मनमाना या गैर कानूनी
ह त ेप नह ं कया जाएगा और न उसके स मान और त ठा पर कोई गैर—कानूनी हार कया
जाएगा।
7. ब चे के अपने माता या पता या दोन या कानूनी अ भभावक या उसक दे खभाल के
लए िज मेदार कसी अ य यि त क दे ख—रे ख म रहते हु ए उसे सभी कार क शार रक या
मान सक हंसा से, चोट या दु पयोग से, उपे ा या उदासीन यवहार से, दु यवहार या शोषण से,
िजसम लै गक दु यवहार भी शा मल है, बचाने के लए प कार रा य सभी उपयु त वैघा नक
शास नक, सामािजक और शै क उपाय करगे।
8. यह रा य सरकार का दा य व है क मान सक या शार रक ि ट से वकलांग ब चे को
ऐसी प रि थ तय म सवागीण और े ठ जीवन जीना चा हए जो मानवीय ग रमा सु नि चत करने
वाल , वावलंबन को बढ़ावा दे ने वाल और समाज म ऐसे ब चे क स य भागीदार कामाग
सु गम बनानेवाल ह ।
9. सभी रा य ब च के वा य के लए हा नकर पारं प रक थाओं को समा त करने के
लए सभी भावकार और उपयु त उपाय करगे।
10. िजन रा य म नृजातीय, धा मक या भाषाई अ पसं यक समु दाय या मू लवासी समू ह के
लोग रहते ह उनम ऐसे अ पसं यक समु दाय या मू लवासी समू ह के ब चे को अपने समु दाय या
समू ह के अ य सद य के साथ अपनी सं कृ त का उपभोग करने, अपने धम को मानने या

132
उसका आचरण करने अथवा अपनी भाषा का उपभोग करने के अ धकार से वं चत नह ं कया
जाएगा।
11. नशील दवाओं तथा मनः— भावी (साइको ॉ पक) पदाथ क ासं गक अंतरा य सं धय
मे जो प रभाषाएं क गई है उन प रभाषाओं के अंतगत आनेवाल ऐसी दवाओं या पदाथ के
नष उपयोग से ब च को बचीने के लए तथा ऐसे पदाथ के न ष उ पादन तथा यापार म
ब च के उपयोग को रोकने के लए प कार रा य वैधा नक, शास नक, सामािजक और शै क
सभी उपये त उपाय करगे।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. सं यु त रा महासभा म मानवअ धकार क घोषणा का ल य बताइये|
2. मानवअ धकार के त जाग कता हे तु कए गए भावशाल यास के नाम द िजए|
3. श ा का उ े य तो यि त का बौ क,मान सक,नै तक शार रक अथात सव गक
वकास कर यि ट को स पदा बनाना है | प ट कर|

8.7 सारांश (Summary)


मानव होने के नाते जै वक एवं अजै वक आव यकताओं का होना वाभा वक है। इन
आव यकताओं क पू त के लए यि त ाकृ तक एवं सामािजक सां कृ तक (मानव संसाधन)
ोत पर नभर रहता है। इसके लए येक यि त के अ धकार एवं क त य क यव था रहती
है और सामािजक यव था के लए यह आव यक भी होता है।
मानव समाज के वकास के वतमान तर पर ान, व ान एवं ौ यो गक वकास ने
भौगो लक एवं सामािजक ग तशीलता म ती वृ क है। संचार एवं यातायात के साधन क ग त
म ती वृ हो रह है। ान का अक पनीय भंडार इंटरनेट के मा यम से येक यि त के लए
उपल ध है। और इसम नरतंर वृ हो रह है। ान का ोत जन—जन तक पहु ँ चने और पहु ंचाने
का काय श ा के मा यम से आसानी से कया जा सकता है। इसी लए श ा मानवा धकार के
प म वीकृ त कया जा चु का है। जात ीय यव थाओं म ब च को श ा का अ धकार मौ लक
अ धकार के े म आते ह। भारत म भी ब च के इस अ धकार को संवध
ै ा नक प से वीकार
ह नह ं कया गया है, व भ न योजनाओं के मा यम से इसका या वयन भी कया जा चु का
है।

8.8 मू यांकन न (Evaluation Question)


1. भारतीय सं वधान म कौनसे मू ल अ धकार दये गये ह? मू ल अ धकार क श ा के या
उ े य ह?
What fundamental human rights are given in Indian Constitution?What are
the aims of Education for Human Rights?
2. बाल अ धकार एवं श ा के अ धकार के बारे म आप या जानते ह? लख।
What do you know about rights of children and right of education?Write
down.
133
8.9 स दभ (References)
1. Brown,Educational Sociology
2. Rich Johan Martin,Education and Human Values.
3. Thomson,A Modern Philosophy of Education.
4. Mathur,S.S.,A Sociology Approach to Indian Education.

134
इकाई 9
बाल केि त श ा
(Child Centered Education)
इकाई क परे खा (Outline of Unit)
9.0 उ े य (Objectives)
9.1 तावना (Introduction)
9.2 बाल केि त श ा (Child—Centered Education)
9.2.1 बाल के त श ा का अथ (Meaning of Child—Centered Education)
9.2.2 बाल केि त और श क केि त श ा (Child—Centered and
Teacher— Centered Education)
9.3 बाल केि त श ा और श क क भू मका (Child—Centered Education and
the Role of Teacher)
9.4 बाल केि त श ण क व धयाँ (Types of Child—Centered Education)
9.4.1 श ण व ध अथ एवं वशेषता (Meaning and Characteristic of
Teaching Method)
9.4.2 व भ न व धयाँ (Types of Method)
9.4.3 बाल केि त श ा के लए योजना (Plan of Child—Centered
Education)
9.5 मू यांकन एवं आंकलन (Evaluation and Analysis)
9.5.1 मू यांकन : वशेषता एवं आव यकता (Evaluation : Characteristics
and Need)
9.5.2 सतत— यापक मू यांकन, आ त रक—बा य मू यांकन (Continued—Broad
Evaluation,Internal—External Evaluation)
9.6 शै क ौ यो गक (Education Technology)
9.7 सारांश (Summary)
9.8 मू यांकन न (Evaluation Quaestions)
9.9 संदभ (Reference)

9.0 उ े य (Objectives)

इस अ याय के अ ययन के न न उ े य ह —
1. बाल केि त श ा को समझना।
2. श क क भू मका को जानना।
3. श ा क व धय क जानकार ।
135
4. बाल केि त श ण का मू यांकन कैसे हो?
5. बाल केि त श ा म आधु नक ौ यो गक क मह वता जानना।

9.1 तावना (Introduction)


पर परागत श ा के व वान गुणा मकता क बात करते ह और उसे बनाये रखने के
लए पा य म क अ तव तु को अ धक मह व दे ते रहे ह। इस हे तु श ा यव था म श ा वद
के बाद मनोवै ा नक ने मह वपूण भू मका नभाई है। कई बार तो वे अपना भु व बनाने के
यास म लगे नजर आते ह। आधु नक मनो व ान के दशन म बालक को के म रख श ण
को दान करने क बात बाल मनोवै ा नक अ सर करते है। बाल मनोवै ा नक का कहना है क
श ा क अ तव तु बालक के सवा गण वकास को यान म रखकर नधा रत क जानी चा हए।
बालक क मता, चयाँ और झान को मह व दया जाना चा हए ता क बालक के यि त व
का चहु ँ मख
ु ी वकास हो सके। ले कन वतमान श ा यव था म प रवार और मानव समाज या न
सामािजक स ब ध क मह वता कम होती जा रह है। इसे नकारने का प रणाम ब च म बढ़ती
वे छाचा रका एवं उ छृं कलता म दे खा जा सकता है। अत: बाल केि त श ा म आधु नकतम
श ा के बीज तो होने ह चा हए, साथ क मनोवै ा नक एवं सामािजक—सां कृ तक प को भी
समा हत कया जाना चा हए।

9.2 बाल केि त श ा (Child—Centered Education)


व यालयी श ा म ार भ म पा य म को अ धक मह व दया जाता था। ले कन
श ा के दशन के वकास के साथ बालक को मह व दया जाने लगा है। पा य म के नधारण
म बालक क मता, चयाँ और उनके झान को यान म रखा जाने लगा है।

9.2.1 बाल केि त श ा का अथ (Meaning of Child—Centered


Education)
बालक क श ा का के पा य म के थान पर बालक बन गए ह। या पढ़ाया जाना
चा हए, य और कैसे पढ़ाया जाना चा हए, आ द ब दु मह वपूण होते जा रहे ह। अ यापक
अपने पां ड य को द शत करने क जगह ब च के मि त क म बात कैसे पहु ँ चायी जाए को
यान रखने लगे ह। य क इस बालकेि त श ा का उ े य बालक का चहु ँ मु खी वकास करना
है। बालक क चय और मताओं को यान म रखकर ह स पूण श ा का आयोजन कया
जाता है| इसम बालक को सरल ढं ग से नवीन ान चपूण तर के से दान करने का श ा का
मह वपूण तर का है। इसम बालक को अ य धक अवसर ा त होते ह। बालकेि त श ा वा तव
म बालक क यावहा रकता और सामािजकता पर केि त है।

9.2.2 बाल केि त तथा श क केि त श ा (Child—Centered


and Teacher— Centered Education)
बाल केि त श ा जैसा क उपर बताया जा चु का है बालक पर केि त होती ह। यह
बालक क च, सीखने क ग त, व वाभा वकता पर आ त होती है। सीखने क कया म
बालक स य रहता है। बाल केि त श ा म यि त को मह व दया जाता है। इसम बालक का

136
वाभा वक प से घर के बाहर समाजीकरण होता है। बालक क यि तगत सम याओं को भी
दूर करने का यास कया जाता है। वावल बन एवं वतं ता क भावना बालक सीखता है और
उसके यि त व का ह सा बन जाता है। उसे जीवन म व भ न सा य और उनक ाि त हे तु
साधन क जानकार ा त होती है और व भ न साधन म से अपनी इ छानुसार कसी भी
साधन का चयन कर उ े य क पू त करता है और इस कार अनुभव से वह शार रक एवं
मान सक शाि त के साथजीवन पथ पर आगे बढ़ता चला जाता है। अत: बाल केि त श ा
श ण णाल है। यह श ा णाल जैवक य शशु से एक वक सत ौढ़ बनने म सहायता करती
है। इसम सीखने क सभी या णा लय का समावेश होता है।
दूसर ओर, श क—केि त श ा णाल अब तक मु ख रह है। इसम बालक के थान
पर श क के म होता है। सम त श ा काय म श क को के म मानकर आयोिजत होते
ह। वा तव म यह सामू हक क ा श ण पर आधा रत होता है और भय न मत बा य अनुशासन
था पत कया जाता है। इस णाल म अ सर बालक क भावा भ यि त खु लकर सामने नह ं
आती। छा अ ययन के लए उतना वतं नह ं होता िजतना क बाल केि त श ा म होता है।
इस णाल म श ा एवं नर ण पर श क का पूण नय ण
ं रहता है। इसम बालक क चय
और मताओं का यान नह ं दया जाता है। बालक को वह पढ़ना होता है जो श क चाहता है।
इस णाल म सभी योगा मक काय श क करते ह। बालक को मौका दया ह नह ं जाता और
इसी लए बालक को आ मा भ यि त का अवसर नह ं मलता। प रणाम यह होता है क बालक म
न तो आ म व वास वक सत होता है और ना ह वह आ म नभर हो पाता है। सबसे बड़ी बात
सृजना मक शि त वक सत नह ं हो पाती।

9.3 बाल केि त श ा और श क क भू मका (Child—Centered


Education and the Role of Teacher)
बाल केि त श ा म श क क भू मका मागदशक एवं सहयोगी क होती है। श क
बालक का येक तर पर यि तगत प से मागदशन करता है। इसके लए श क को श ा
के वा त वक उ े य के त जाग क रहना आव यक होता है। श क का उ े य बालक को
केवल पु तक य ान दान करना ह नह ं होता वरन ् बाल केि त श ा म श क का एक मा
उ े य बालक के यि त व का सवा गण वकास करना है। इसके लए ज र है क श क,
स बि धत सभी बालक क सहायता एवं उनको मागदशन दे ने का काय अ तरं गता वक सत
करके ह क जा सकती है। बाल केि त श ा म बालक के म होता है, ले कन श क क
भू मका बालक के यि त व के सवा गण वकास म नी हत है।
ऐसी ि थ त म श क क भू मका और उसक मह वता श क क यो यता एवं मता
पर नभर करती है। बाल केि त श ा म इसी लए श क क त ठा भी अ धक होती है।
श क पूणत: बालक के स पूण यि त व को नखारने और भ व य म वकास के लए
मागदशन दे ता है। ाचीन भारत म श क को गु के प म ई वर से भी अ धक मह वता एवं
ति ठा ा त थी। यह न न दोहे से भी प ट हो जाता है :
गु गो व द दोन खड़े, काक लागू पांव,
ब लहार गु आपक , गो व द दयो मलाय।

137
श क वारा दया गया ान जगत और सृि ट से, यहाँ तक क वयं से प रचय
कराता है। यह ान प रवार के सद य, स ब धी या सामा य जन नह ं दे सकते। सू म एवं
यापक तर का ान श क ह दे ता है। तक, व लेषण एवं ववेचन क मता श क ह
बालक को दे ता एवं वक सत करता है। श क बालक म वचारधारा या प र े य क मता भी
वक सत करते ह।
बाल केि त श ा म श क, माल वारा पौध क दे खभाल के समान, बालक का
पोषण करके उनका शार रक, मान सक तथा सामािजक वकास करता है। बालक को जै वक य से
मानवीय वृ त क ओर उ मु ख करने म श क क भू मका प रवार के सद य से अ धक
मह वपूण मानी जाती ह वशेषकर ‘ ान क शि त‘ से ओत— ोत करने का काय श क ह करता
ह। बाल केि त श ा म श क को बना प पात के वतं रहकर नणय लेना होता है क
बालक को या और कैसे सखाए? थानीय पयावरण, पा य म, शाला समय, शाला का दै नक
काय म, आ द का नणय थानीय समाज क प रि थ तय और आव यकताओं को यान म
रखकर श क को करना होता है।
अत: सं ेप म यह कहा जा सकता है क बालक केि त श ा म श क क मागदशक
के प म सदै व महती भू मका रहती है। इसके अभाव म श ा का मू य एवं मह व दोन ह
समाज म घटने लगते ह।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. बाल के ि त श ा या ह|
2. बाल के ि त श ा तथा श क के ि त श ा म मु ख अ तर बताइये|
3. बाल के ि त श ा म श क क भू मका कै सी होती ह?

9.4 बाल केि त श ण क व धयाँ (Types of Child—


Centered Education)
वतमान युग म श क व ध से स बि धत दो वचारधाराएँ मु ख प से च लत ह।
थम वचारधारा के अनुसार श क को व भ न श ण व धय का ान होना आव यक है,
िजनके वारा वह अपने अ यापन काय को सफलतापूवक संचा लत कर सकता है, िजससे उनक
वषय व तु स ब धी ान क कमी क पू त होती है। दूसर वचारधारा के अनुसार य द श क
को वषयव तु साम ी क पूण जानकार है तो उसे कसी भी कार क श ण व धय को
जानने क आव यकता नह ं होती है। इस कार थम वचारधारा श ण व ध को मह व दे ती है
जब क दूसर वचारधारा वषय व तु को समझने पर बल दे ती है। ये दोन वचारधाराएँ अपने म
पूण नह ं ह। श क को सफल एवं भावी अ यापन काय हे तु वषय व तु तथा श ण व धय
दोन का पया त ान होना चा हए। श ण व ध के मह व के स ब ध म मु दा लयर आयोग ने
लखा है क “यहाँ तक क सव तम पा य म एवं सवागीण वषय व तु ( सलेबस) भी मरे के
समान ह जब तक क उसके लए उ चत श क एवं उ चत श ण व धय क यव था न हो।''
इस लए श क को उ चत श ण व धय का ान होना अ य धक आव यक है।

138
ीमती एस.के. ीधर का भी मानना है क “िजस कार एक सै नक को यु े म
लड़ने के लए व भ न ह थयार का ान आव यक होता है, उसी कार अ यापक को भी श ण
व धय का ान होना आव यक है।'' इस कार श ा के े म कायरत श क को श ण
व धय का इगन बहु त ह मह वपूण है।

9.4.1 श ण व ध का अथ एवं वशेषता (Meaning and


Definition of Teaching Method)
श ण व ध का आशय इस त य से लगाया जा सकता है क कसी भी वषय के ान
को छा तक कस कार पहु ँ चाया जाय? कसी भी वषय के श ण म व ध का वह मह व है
जो कसी न द ट थान तक पहु ँ चने के लए स य माग का होता है। अत: ान को छा म
े षत करने का काय व धय वारा होता है। एस.के. कोचर लखते है क “िजस कार एक
सै नक के लए लड़ने के अनेक ह थयार का ान होना आव यक है। उसी कार श क को भी
श ण क व भ न प तय का ान होना चा हए। कस समय कौन—सी व ध अपनानी चा हए?
यह उसके नणय पर नभर है।“
श ण वध क न न ल खत वशेषताएँ है—
(1). श ण व ध योग करने यो य, यावहा रक तथा सु नि चत होती है।
(2). श ण व ध वैयि तक श ण के स ा त पर आधा रत होती है।
(3). श ण व ध छा को अ धगम ेरणा दान करने म स म होती है
(4). श ण व ध पूव नधा रत उ े य क पू त म सहायक होती है
(5). श ण व ध छा म अपे त यवहारगत प रवतन लाने म स म होती है
(6). श ण व ध के वारा श क को वांछनीय तथा अवाछनीयता का ान होता है, य क
व ध कला मक होती है।

9.4.2 व भ न व धयाँ (Types of Method)


श ण व धय श क का काय व ध के तर के को प ट करती है। यह ान को
व या थय के मि त क म पहु ँ चाता है और तक एवं व लेषण क मता वक सत करता है।
मु ख व धयां न न, कार ह :
1. ोजे ट योजना व ध : ोजे ट व ध एक योजना है, िजसका योग कसी उ े य को
पूरा करने के लए कया जाता है। उसके लए पहले श क बालक के सामने एक सम या
उपि थत करता है। त प चात ् उस सम या को सु लझाने के लए सभी बालक अपनी—अपनी
चय के अनुसार व भ न वषय का वाभा वक प से ान ा त करते ह।
2. कहानी व ध : बालकेि त श ा म कहानी कहना एक ाचीन कला है। कथा णाल म
कहना, बातचीत करना एवं भाषण दे ना आ द का समावेश होता है। छोट क ाओं म इ तहास और
भू गोल— श ण म यह सव तम व ध है। छा वाभा वक प से कहानी— य होते है। लेट ने
भी इस व ध को छोटे बालक के लए लाभ द तथा उपयोगी बताया था। कु छ श क म कहानी
कहने क कला ज मजात होती है। येक श क को उस कला का जानना आव यक है। य द
कसी श क को यह कला नह ं आती है तो उसे य न करके यह कला अिजत करनी चा हए।
ऐसा करने से ह वह सफल श क बन सकता है।

139
3. अ भनय व ध : बाल केि त श ा म अ भनय व ध का योग एक आधु नक दे न है।
इस व ध के वारा क ठन वषय को मनोरं जन बनाया जा सकता है। उसी के फल व प छा
या म च दखाने लगते ह। अ भनय व ध का अथ अ भनय करने का अथ कसी यि त का
अनुसरण करना होता है। छा कसी पा , याप रय तथा फेर लगाने वाल का अ भनय करते ह।
इस कार छा म वयं करके सीखना आ जाता है। इ तहास और भाषा जैसे वषय म अ भनय
व ध का योग सरलता से कया जा सकता है।
4. मण व ध : छा क ा— श ण के ान को ज द भू ल जाते ह, य क क ा— श ण
के वा त वक अनुभव ा त नह ं होते और न ह व याथ को य सूचना ह मलती है। य द
ताजमहल पढ़ाना है तो उसका वा त वक अनुभव दान करने के लए ताजमहल दखाना
आव यक होता है। े ीय पयटन से केवल शै णक ान ा त नह ं होता, बि क वा त वक ान
का योग करने का अवसर भी ा त होता है और छा क नर ण शि त का वकास होता है।
मण के वारा छा को वयं य अ धगम अनुभव ा त करने का अवसर मलता
है। सबसे पहले ोफेसर रान ने व यालय मण क शु आत क थी। मनोवै ा नक ि टकोण के
आधार पर छा क िजतनी अ धक इि याँ कसी काय को करने म याशील होती है, वह वषय
उतना ह शी एवं द घका लक मृ त म रहता है। े ीय मण म ानेि याँ कायरत होती ह,
िजनके मा यम से उ े य क ाि त क जाती है।
5. अवलोकन व ध : बालकेि त श ा म अवलोकन व ध ाथ मक क ाओं म वषेष प
से उपयोगी है, य क इस व ध के अ तगत छा वयं अवलोकन कर, अपने तथा वातावरण के
स ब ध का अनुभव कर उनके वषय म सोचता है और उनसे अ धक स पक था पत कर अपने
ान म वृ करता है। अवलोकन व ध म यह आव यक है क िजस थान का अवलोकन करना
हो, उसके वषय म श क को पूव जानकार होनी चा हए िजससे वह छा के स मु ख न और
नदशन वारा उसका ववेचन कर सके।
6. इकाई व ध : श ा के े म सव थम इसका योन सन ् 1920 ई. म कया गया था।
इकाई को श ा के े म लाने का ेय हरबट महोदय को है। िजस कार हम एक शीषक अथवा
ख ड को पढ़ाने के लए कालांश क दै नक पाठ योजना बनाते ह, उसी कार पूरे अ याय क एक
योजना बनायी जाती है, िजसके अनतगत पा य—व तु से स बि धत श क एवं छा क याएँ,
सहायक साम ी एवं मू यांकन क व धय को समा हत कर एक योजनाब एवं यवि थत ढं ग
से लखा जाता है। इकाई योजना कु ल मलाकर एक वषय के स पूण पा य म के उ े य क
पू त करती है। इकाई स पूण पा य म और दै नक पाठ के बीच क मह वपूण कड़ी है।
7. आगमन व ध : आगमन व ध म कु छ उदाहरण छा के सम तु त कये जाते ह।
इन उदाहरण क सहायता से छा सामा यीकरण करते ह। इस कार छा का ान थायी हो
जाता है।“जब कभी छा के सम अनेक त य, उदाहरण या व तु एँ तु त करते ह तथा फर
न कष नकलवाने का य न करते ह, तो श ण क आगमन व ध का योग कया जाता है।''
आगमन व ध म श ण के तीन सू का योग कया जाता है — (i) ात से अ ात क ओर,
(ii) व श ट से सामा य क ओर तथा (iii) थूल से सू म क ओर।
8. नगमन व ध : बालकेि त श ा म नगमन व ध से छा को श ा दे ते समय
सामा य नयम का ान करा दया जाता है उसके प चात ् योग, अवलोकन आ द क सहायता
से उसे स य स करने का य न कया जाता है। इस अथ म नगमन व ध आगमन व ध के
140
ठ क वपर त तीत होती है। ले डन के अनुसार “ नगमन व ध वारा श ण म थम प रभाषा
या नयम का ान करा दया जाता है। त प चात ् उसके अथ क सावधानी से या या क जाती
है। अ त म त य का योग करके उसे पूण प से प ट कया जाता है। “इस व ध म दो सू
का योग कया जाता है। ये सू इस कार है — (ii) सामा य से व श ट क ओर तथा (ii)
सू म से थू ल क ओर।
9. प रचचा व ध : प रचचा व ध श ण क वह व ध है िजसम श क तथा छा मलकर
कसी करण, न या सम या के स ब ध म वत तापूणक सामू हक वातावरण म वचार का
आदान— दान करते ह। इसके अथ को और अ धक प ट करने के लए आगे कु छ प रभाषाएँ द
जा रह ह :— जे स एल.ल के अनुसार प रचचा एक शै क समू हक या है, िजसम श क
तथा छा सहयोगी प से कसी सम या या करण पर बातचीत करते ह।'' योकम तथा
स पसन के अनुसार “प रचचा बातचीत का एक व श ट व प है, इसम सामा य बातचीत क
अपे ा अ धक व तृत एवं ववेकयु त वचार का आदान— दान होता है। सामा यत: प रचचा म
मह वपूण वचार एवं सम याओं को सि म लत कया जाता है।''
10. यापरक या ग त व ध आधा रत श ा व ध : पर परागत श ा णाल म यापरक
श ण पर लेशमा यान नह ं दया जाता था तथा अ यापक वारा छा के मि त क म
पु तक य ान को ठू ँ स—ठू ँ स कर भरने का यास कया जाता था। इस श ण व ध का
कॉमे नयस ने वरोध कया तथा छा याशीलता के स ा त पर वशेष बल दया। सो को इस
स ा त का वतक कहा जाता है। सो का कथन है क 'य द आप अपने छा क बु का
वकास करना चाहते ह तो उस शि त का वकास करना चा हए, िजसे इसको नयि त करता है।
उसको बु मान और तकपूण बनाने के लए उसे ह ट—पु ट और व थ बनाना ज र है।''
या मक व ध का अथ है — छा का अपनी वयं क या के वारा ान ा त करना। छा
क या से ता पय है क िजस या को बालक कसी उ े य से पूण करता है और उसको पूण
करने म उसका शर र और मि त क दोन याशील रहते ह। इस आधार पर यह ात होता है
क छा क याएँ दो कार क होती ह — शार रक तथा मान सक। पहल कदमी, आ म या
एवं आ म अ भ यि त इसके मु ख अंग माने जाते ह। या मक या या परक व ध का थान
क ा—क और इसका साधन स हक श ण होता है। यापरक व ध का योग पा य म के
स पूण वषय के श ण के लए कया जाता है।
11. श क समा या योजना श क समा या योजना का या वयन यूनीसेफ क सहायता
से मानव संसाधन वकास मं ालय एवं रा य सरकार का श ा वभाग चरणब तर के से
संचा लत कर रहा है। श क समा या एक ऐसी व ध है िजसम अ यापक के अ यापन काय को
इतना समथ एवं चकर बनाया जाय, िजससे वह बालक को रोचक ढं ग से पढ़ा सके, िजससे
छा भी सरलतापूवक पठन—पाठन कर सक। इस व ध के वारा श क एवं उसके श ण क
गुणव ता से स ब धत ऐसी योजना बनायी जाती है, िजससे छा प ने— लखने के त आक षत
होकर एक े ठ शै क वातावरण म श ा हण कर सक। श ण के वातावरण सृजन हे तु
अ यापक उन सभी साधन का उपयोग करे गा, जो श ा के आव यक उपयोगी, रोचक और
भावकर उ े य को पूरा करने म सहायक ह गे।

141
9.4.3 बाल केि त श ा आयोजना (Plan of Child—Centered
Education)
कसी काय को सफलतापूवक करते हु ए नि चत उ े य को ा त करने का साधन
'योजना कहलाता है। इसके अ तगत करणीय काय के व भ न प पर पूव च तन कया जाता
है, ता क वह काय कु शलतापूवक एवं भावशाल ढं ग से पूण कया जा सके। योजना वारा काय
करने म मब ता आ जाती है। इस लए बालकेि त श ा म श ण को उ े य न ठ बनाने के
लये काय का योजनाब होना अ य त आव यक है।
श ण योजना को मु य प से दो वग म वभािजत कया जाता है —
(i) द घका लक योजना : इसके अ तगत स पूण स के लए श ण योजना (वा षक
योजना) तैयार क जाती है तथा उसके वभािजत अंश के प म मा सक और सा ता हक
योजनाएँ तैयार क जाती है।
(ii) अ पका लक योजना : इसके अ तगत इकाई तथा दै नक पाठ योजना का सि म लत
कया जाता है।

9.5 मू यांकन एवं आंकलन (Evaluation and Analysis)


एक समय था जब व यालय श ा का मु य काय छा को व भ न वषय का ान
दान करना था और इस उ े य से ह छा क ग त का मापन कया जाता था। अ य श द म
छा क ग त का मापन करने के लए व भ न पर ाओं का आयोजन कया जाता था जो
आज भी च लत ह। इस कार क पर ाओं का आयोजन करने का मु य ल य यह पता लगाना
था और है क छा ने पा यव तु को कस सीमा तक हण कया है। पर तु इस कार क
पर ाओं का सबसे बड़ा दोष है क इनके वारा छा के यि त व के अ य प का ान नह ं
हो पाता, अथात ् ये पर ाएँ छा क शै क ग त या उपलि ध क ह जाँच करती ह, उनके
स पूण यि त व क नह ं। पर ाओं के इन दोष को दूर करने के लए ह मू यांकन क
अवधारणा का नए व प म ज म हु आ है। इसका ेय अमे रका के स श ा—शा ी राइस
को जाता है। बाल केि त श ा म मू यांकन क आव यकता बालक के शै क वकास का
आधार है।

9.5.1 मू यांकन : वशेषता एवं आव यकता (Evaluation :


Characteristics and Need)
श ा म मू यांकन व ध क अवधारणा का योग पछले द —तीन दशक म ह हु आ है।
इसके अनुसार श ण के उ े य को सीखने के अनुभव तथा पर ण म घन ठ स ब ध
था पत कया जाता है। इससे श ण तथा पर ण — दोन ह याएँ साथ—साथ चलती ह। ये
दोन याएँ पूव नधा रत उ े य पर आधा रत होती है। मू यांकन एक यापक या मानी
जाती है। इस या म छा क सफलताओं का सह अनुमान लगाया जाता है। इसम छा क
कमजो रय का भी ान कर लया जाता है। मू यांकन म छा के शार रक, मान सक, सामािजक
और नै तक इ या द सभी गुण क पर ा सि म लत रहती है। मू यांकन के वारा श ा जगत ्
म अनेक आ चयजनक प रवतन हु ए ह।

142
मू यांकन का अथ : मू यांकन दो श द से मलकर बना है — मू य और अंकन इस
कार मू यांकन का शाि दक अथ हु आ छा के गुण दोष क या या करके उसके स ब ध म,
उ चत नणय करना अथवा उसके यथाथ मू य का नघारण करना। वा तव म मू यांकन एक
या है िजसके वारा श क व छा यह नणय करते ह क श ण के ल य को ा त कया
जा रहा है अथवा नह ं।
उपरो त ववेचन के आधार पर कहा जा सकता है क मू यांकन वह या है, िजसके
वारा कसी काय का मू य नि चत कया जाता है। हम येक कार क यो यता का मू यांकन
कर सकते ह।
मू यांकन क वशेषताएँ : मू यांकन क कु छ मु ख वशेषताएँ —
(1). मू यांकन का काय यह मापन करना है क कसी बालक क नि चत उ े य क ओर
य ग त हु ई ह?
(2). मू यांकन क या म वे सभी यि त भाग लेते ह, िजनके वारा यह संचा लत क
जाती है।
(3). मू यांकन क या नर तर चलती रहती है।
(4). मू यांकन नदाना मक होता है। इसके वारा बालक क वतमान दशा म सु धार कया
जाता है तथा सम याओं के कारण का पता चलता है।
(5). मू यांकन क या यह न चत करती है क आगामी समय के लए नयोजन करने
हे तु या कया जा चु का है।
(6). मू यांकन म म, धन और समय क अ धक आव यकता होती है।
(7). मू यांकन म कई पर ाओं का समावेश होता है।
(8). मू यांकन म साथकता के साथ भ व यवाणी भी क जा सकती है।
(9). मू यांकन क सरलता उस व तु पर नभर रहती है, िजसका मापन कया जा सकता है।
कु छ व तु ओं का मापन सरलता से कया जा सकता है और कु छ व तु ओं के मापन म
क ठनाई आती है।
(10). मू यांकन वारा श ा के उ े य कस सीमा तक ा त हो चु के ह? इसका ान कया
जा सकता है।
(11). यह श ा णाल का अ भ न एवं आव यक अंग है।
(12). मू यांकन अगले तर के लए आधार तु त करता है तथा यापक प से सू मत:
ग त का भी ान ा त करता है।
मू यांकन क आव यकता : बालक को श ा दे ने के कु छ उ े य होते ह। इ ह ं उ े य
क पू त के लए पा य म बनाया जाता है। मू यांकन से यह ात कया जाता है क या
पा य म का नमाण सह दशा म कया गया है? या श ण प त ठ क है? श क अपने
यास म कह ं तक सफल रहा है? पर ा का उ े य इसी सफलता का मापन करना होता है।
प ट है क मू यांकन श क, माता— पता तथा छा तीन के लए आव यक होता है। सं ेप म
मू यांकन क आव यकता न न ल खत तीन पहलु ओं के लए होती है —
(i) मू यांकन क शास नक आव यकता
(ii) मू यांकन क शै क आव यकता
(iii) मू यांकन क शै क अनुसंधान म आव यकता
143
9.5.2 सतत ् एवं यापक मू यांकन : आ त रक एवं बा य मू यांकन
(Continued—Broad Evaluation,Internal—External
Evaluation)
छा —छा ाओं क अ धगम या का नमाण होता है। इसके लए उनका मू यांकन
रचना मक तथा वकासा मक ि ट से कया जाता है। इसके लए द ताधा रत मू यांकन का
योग कया जाता है, िजसके तहत छा वारा सीखे गये रचना मक कौशल का आकलन होता
है। इसके वपर त छा के स पूण यि त व म कौन—कौन से प रवतन हो रहे ह, इस हे तु
यापक मू यांकन का योग कया जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है क
द ताधा रत मू यांकन, यापक मू यांकन का के ब दु है, क तु आकार एवं कार म यह
यापक मू यांकन से छोटा है।
सतत ् मू यांकन : सतत ् मू यांकन योजना को नर तर मू यांकन योजना भी कहते
ह|सतत ् मू यांकन का आशय उस पर ण से है, िजससे छा के अ ययन एवं उपलि धय का
तमाह लेखा—जोखा लया जाता है। सतत ् मू यांकन प त म आमतौर पर स पूण पा य म को
दस इकाईय म वभ त कर दया जाता है। येक माह उस इकाई का अ ययपन कराने के बाद
वाभा वक प से पर ण कया जाता है। िजसका यवि थत अ भलेख रखा जाता है। वष के
अ त म स पूण मू यांकन के ाथ मक और पूव मा य मक क ाओं म सतत ् मू यांकन प त
कह —
ं कह ं च लत है, क तु यह उस प म नह ं है, जैसा क सतत ् मू यांकन के मौ लक व प
म होना चा हए। इससे मा ानाजन के शै क कौशल का ह मू यांकन कया जाता है।
शै केतर उपलि धय का कोई मू यांकन नह ं कया जाता है।
वा तव म सतत ् मू यांकन साथक ान के लये नदान एवं उपचार का पथ श त
करता है। य द एक ाथ मक श क अपने ापन एवं कायकु शलता क सहायता से मू यांकन का
योग व याथ के ानाजन क क ठनाईय और उसके कारण का नदान करने के लये कर
सके, तो वह उ चत उपचारा मक साधन अपनाकर उसके ग त—रोध एवं त को कम कर सकता
है और इस तरह उसे अ धकतम ान ा त करने म सहायता कर सकता है। साथक ान का
अथ है — व याथ क वांछनीय काय मताओं एवं यो यताओं का वकास, िजससे क वह भ व य
म अ धकतम लाभ ा त कर सके। साथक ान कई त य पर नभर करता है जैसे व याथ क
च, श ा का तर ानाजन के लए उपल ध समय एवं श ा से लाभ उठाने क मता आ द।
यापक मू यांकन : द ता आधा रत मू यांकन त दन क ा म श ण के अ तगत
छा म द ता सखाने के बाद कया जाता है, क तु छा क द ता के अ त र त उनम
सं ाना मक प , भाव प तथा या मक प भी सि म लत होते ह, िजनका मू यांकन
द ताधा रत व ध से स भव नह ं होता है। इस लए छा के चहु ँ मख
ु ी वकास हे तु यापक
मू यांकन क आव यकता होती ह|
आ त रक एवं बा य मू यांकन : ाथ मक श ा म गुणा मक सु धार लाने के लए
ाथ मक व यालय के श क म सतत ् एवं यापक मू यांकन क तब ता को वक सत करने
का यास कया जा रहा है। ाथ मक श ा म आ त रक मू यांकन क यव था को कायम रखा
गया है, क तु उ च ाथ मक व यालय म बा य मू यांकन क यव था है। यूनतम अ धगम

144
तर क संक पना के लागू होने के बाद बा य मू यांकन अनुपयु त सा तीत होने लगता है,
फर भी इसे यूना धक प म लागू कया गया है। आ त रक मू यांकन से आशय है क
ाथ मक व यालय म अ यापक वारा सतत प से बालक क उपलि धयो का मू यांकन,
िजससे बालक का दै नक सा ता हक, मा सक, ष मा सक एवं वा षक वकास तथा अ धगम दर का
सह ान हो सके, जब क बा य मू यांकन का स ब ध छा क बा य पर ा से होता है,
िजसका अंकन अ य अ यापक वारा कया जाता है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. बाल के ि त श ण क मु ख व धय के नाम द िजये |
2. मू यां क न का अथ बताइये |
3. सतत एवं यापक तथा आं त रक एवं बा य मू यां क न के कार बताइये|

9.6 शै क ौ यो गक (Education Technology)


श ाशा का कोई भी अंग चाहे वह व धय तथा व धय का हो, चाहे उ े य का हो,
चाहे श ण— या का हो, चाहे शोध का हो, बना तकनीक के अपंग, ववश और कमजोर
महसूस होता है। छा ा यापक क चाहे सै ाि तक सम याएँ ह , चाहे उसके योगा मक श ण के
े म अड़चन हो, तकनीक हमार सहायता करती है। सच तो यह है क तकनीक व ान इतना
समृ और शि तशाल होता जा रहा है क बना इसका अ ययन कये छा ा यापक का श ण
स ब धी ान या उनके पर ण तथा श ण म ा त ान और कौशल अधूरे समझे जाते ह।
शै क तकनीक ने श ा के े म पुरानी अवधारणाओं म आधु नक स दभ के साथ—साथ
अभू तपूव ाि तकार प रवतन कर उ ह एक नवीन व प दान कया है।
पहले शै क तकनीक को य— य साम ी से और क ा म अ यापन साम ी से
स बि धत माना जाता था ले कन अब इसका व व य— य के सामन नह ं है। अ यापक
या के मशीनीकरण के कारण शै क तकनीक का खू ब वकास हु आ है। आजकल श ण
या म अ ययन मशीन, रे डय , दूरदशन, टे प रकॉडर, क यूटर और भाषा योगशालाओं म
खू ब योग हो रहा है। दूर बैठा छा बना अ यापक के अ ययन कर रहा है। अ यापन या म
मशीनीकरण से शै क तकनीक के स यय का वकास हु आ है।

9.7 सारांश (Summary)


पर परागत श ा णाल से अलग बाल केि त श ा औ योगीकरण, नगर करण एवं
आधु नक करण क याओं का प रणाम है। पर परागत श ा णाल म पा य साम ी या न
ान अजन क मा ा का ान पर ाओं के मा यम से हो पाता था। ले कन प रवतन क
याओं ने श ा और श ण प त को लेकर नई वचारधाराओं को ज म दया है। आधु नक
श ा यव था म ान क अ तव तु के साथ ह बालक ह मता एवं यो यता का मू यांकन भी
आव यक माना है। य क आधु नक श ा का उ े य बालक के यि त व का सवा गण वकास
करना है।

145
आधु नक श ा प त ने बालक के मू यांकन क प त को बदलने पर भी जोर दया
है। अब सतत एवं यापक मू यांकन पर जोर दया जाने लगा है। अत: आत रक मू यांकन क
मह वतता बढ़ गयी है। ऐसी ि थ त म श क क भू मका ओर भी गंभीर होती चल जा रह है।

9.8 मू यांकन न (Evaluation Questions)


1. बाल केि त श ा से आप या समझते ह? यह श क केि त श ासे कैसे भ न है?
What do you understand by child centered education?How it is different
than teacher centered education?

146
इकाई—।0
जनसं या श ा
Population Education

इकाई क परे खा (Outline of Unit)


10.0 उ े य (Aims and Objectives)
10.1 भू मका (Introduction)
10.2 जनसं या श ा क आव यकता (Need of Population Education)
10.3.1 जनसं या श ा का अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition of Population
Education)
10.3.2 जनसं या श ा के उ े य (Objectives of Population Education)
10.3.3 जनसं या श ा — श ण क अवधारणा (Concept of Teaching— Population
Education)
10.4 जनसं या सांि यक — भारत एवं राज थान (Population Statistics—India and
Rajasthan)
10.5 जनसं या श ा क वषय—व तु (Content of Population Education)
10.6 जनसं या श ा क श ण व धयॉ (Methods of Population Education)
10.7 जनसं या श ा के संदभ म श क— श ण कायकम के उ े य (Objectives of
Teachers Training Programme in Reference of Population
Education)
10.8 श क श ण कायकम के लये पा य— ब दु (Content for Teacher Training
programme)
10.9 सारांश (Summary)
10.10 मू यांकन न (Evaluation Question)
10.11 संदभ (References)

10.0 उ े य (Aims and Objectives)


जनसं या श ा पाठ को प ने के बाद आप यवहार म न न प रवतन पायेगे :—
1. जनसं या श ा के अथ व आव यकता से प र चत हो सकेग।
2. जनसं या श ा व सामा य श ा म अ तर कर सकेग।
3. जनसं या श ा के उ े य व वषय—व तु का नधारण कर सकेग।
4. जनसं या श ा के पा य म और श ण व धय से प र चत हो सकेग।
5. श क श ण कायकम म जनसं या श ा के उ े य व वषय—व तु का नधारण कर
सकेग।
147
10.1 भू मका (Introduction)
कसी भी दे श एवं उसके समाज क आव यकताओं क पू त के लए नाग रक को यो य
बनाने तथा उनके वकास करने का काय श ा का है। श ा के वारा बालक का सवागीण
वकास कया जाता है, तथा उसे इतना स म बनाया जाता है क वह समाज क दे श क
आव यकताओं क पू त कर सके, जब समाज क आव यकताओं म
अब हम दे ख क भारत म जनसं या का इ तहास या रहा है? भ व य म जनसं या का
अनुमान व वतमान म जनसं या क ि थ त या है और भारत वष म जनसं या श ा क य
आव यकता है? इंचरवतन होता है, तो श ा के उ े य म भी प रवतन होना वाभा वक है। आज
भारत क जनसं या व फोट ि थ त म पहु ँ च गई है। भारत म ती ग त से जनसं या वृ के
कारण हमारे सभी ाकृ तक संसाधन म होती जा रह है। नधनता और बेरोजगार वकराल प
धारण कर चुक है, पयावरण दू षत हो चु का है, जल का तर त दन गरता जा रहा है।
वकास योजनाओं का समु चत लाभ नह ं मल पा रहा है। इन सब का मू ल कारण है— भारत म
जनसं या वृ ।

10.2 जनसं या श ा क आव यकता (Need of Population


Education)
आजाद के प चात ् 1951 म भारत क जनसं या 36.10 करोड़ थी और 2001 म
102.70 करोड़ हो गई अथात 50 वष म भारत क जनसं या तगुनी से भी अ धक 66.50 करोड़
बढ़ गई। भारत क भू म म 1951 से अब तक एक क भी वृ नह ं हु ई भारत म त म नट
50 यि त और जु ड़ जाते ह। भारत का े फल व व क तु लना म 2.5 तशत है तथा व व
क तु लना म 16 तशत जनसं या नवास करती है, अथात 25 तशत भू म पर 16 तशत
आबाद है। भारत म जनसं या क व फोटक ि थ त उ प न हो गई है। इसके लए जनसं या
नय ण हे तु भावी नाग रक म भी वैचा रक प रवतन करना आव यक है।
वगत 25 वषा से प रवार क याण कायकम म सवा धक यान दे ने तथा अ य धक धन
खच करने पर भी वां छत प रणाम सामने नह ं आए ह। इसका कारण है— भारतीय क जनसं या
के त जाग कता का न होना, हमार ऐसी ढ़गत ाचीन पर पराएं एवं मा यताएं ह, जो क
जनसं या वृ म सहायक है। इन कारण को दूर करने के लए यह आव यक हो गया है क
बालक म वैचा रक तर पर सु धार लाया जाए। कशोराव था म प रपु ट वचारधाराएं, मा यताएं
तथा व वास थायी हो जाते ह और बालक, युवक बनने पर उन वचार क याि व त करता है
इस लये यह आव यक है क व यालय म जनसं या श ा द जाए।

10.3.1 जनसं या श ा का अथ एवं प रभाषा (Meaning and


Definition of Population Education)
जनसं या श ा को ार भ म प रवार नयोजन श ा या यौन श ा के प म श ा
प त के एक भाग के प म जाना जाता था पर तु यह प ट समझना आव यक है क
जनसं या श ा तो प रवार नयोजन है और न ह यौन श ा। यह दूसर बात है क इन दोन

148
से स बि धत बात का समावेश जनसं या श ा के अ तगत कया जा सकता है। जनसं या
श ा जैसा क नाम से प ट होता है मू लत: तीन श द का योग है िजसका अथ है—

व तु त: जनसं या श ा का यय नवीन है : जनसं या श ा जीवन तर उ च बनाने


तथा सु खी जीवन क स भावन क वृ करने वाल श ा ह है। जनसं या श ा मानव के
ान, बोध एवं यवहार को जागृत करने, प र कृ त करने एवं नवीन अथवा समयानुसार वचार
दान करने क श ा है।
प रभाषाऐ (Definitions)
जनसं या श ा एक शै क नवाचार है। यह शै क काय म है जो श ाथ म
जनसं या स ब धी वचारधारा को वक सत करता है।
''जनसं या श ा वह श ा है िजसके वारा छा को जनसं या वृ और जीवन तर
के म य अ तस ब ध क जानकार द जाती है, ता क वे उ च तर के जीवनयापन क धारणा
बनाकर जनसं या वृ से उ प न सम याओं का हल ढू ं ढने के त य नशील हो।“
रा य शै क अनुसंधान एवं ष ण प रषद (NCERT) के अनुसार :—
''जनसं या श ा एक शै क या है िजससे सीखने वाल म सतत ् वकास एवं
जनसं या के म य अ तस ब ध , जनसं या प रवतन के कारण, प रणाम तथा जनसं या
ि थर करण क आव यक दशाओं के स ब ध म बोध वक सत हो सके।''
“जनसं या श ा एक ऐसा शै क काय म है िजसके वारा व याथ जनसं या वृ से
उ प न सम याओं को समझकर, उनके समाधान के त जाग क ह तथा गुणा मक जीवनयापन
के लये अपने—अपने प रवार, समाज व दे श के हत म, प रवार के संग म उ चत नणय ले
सक।“

च नं. 1 — जनसं या श ा
149
जनसं या श ा एक शै क काय म है, जो श ाथ म वकास करता है —
1. जनसं या एवं जीवन गुणव ता के म य अ तसंबध
ं का बोध।
2. जनसं या सम याओं के त उ तरदायी ख एवं यवहार।
3. जनसं या से स बि धत सम याओं पर उ चत नणय लेने क मता का वकास।
पुनब धीकरण (Reconceptulization)
जनसं या श ा के व भ न त व का पुनब ध करने क आव यकता को यान म रखते
हु ए 1984 म यूने को क े ीय सेमीनार (बकाक) म इसे पुन : प रभा षत करने का यास कया
गया। पुनब धीकरण क या म मु य यान इस त य पर केि त कया गया क जनसं या
श ा के अथ को जनसं या नयं ण उपागम अथवा शु जनां कक के े से हटा कर एक
यापक सतत ् वकास के उपागम से जोड़े, जो क पयावरण, संसाधन, गर बी एवं पुन रउ पादक
वा य से स बि धत ब दुओं को पश करता है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. “जनसं या श ा” को अपने श द म प रभा षत क िजये |

10.3.2 जनसं या श ा के उ े य (Objectives of Population


Education)
ार भ म तो जनसं या श ा को प रवार नयोजन एवं यौन श ा से स बि धत ह
माना गया पर तु अब जनसं या श ा को जीवन को सु खी बनाने तथा जीवन मूल उ नत बनाने
क श ा के प म मा य कया जाता है, जनसं या श ा का अि तम ल य यह है क बालक
अवधारणा म ऐसा प रवतन कया जाय क िजससे वह वय क होने पर छोटे प रवार के मह व
को जानकर, गुणा मक जीवन यापन के लये अपने प रवार एवं समाज दोनो के हत म उ चत
नणय ले सके। इस कार वैचा रक प रवतन करना इसका सामा य उ े य है। इन उ े य को
न न कार से भी य त कया जा सकता है —
1. बढ़ती हु ई जनसं या से उ प न सम याओं के त बालक म जाग कता उ प न करना।
2. बालक को अपने प रवार एवं दे श के हत म उ चत नणय ले सकने के यो य बनाना।
3. जनसं या एवं जीवन क गुणव ता के म य अ तस ब ध को जानना।
4. पयावरण दूषण एवं उसके कु भाव को समझना।
5. ाकृ तक संसाधन एवं मानवीय आव यकताओं के म य स तुलन क अ भवृि त का
वकास करना।
6. जनसं या नय ण के त सजग एवं सचे ट होना।
7. उपजनसां यक य यय के त वै ा नक ि टकोण का वकास करना।
8. नार को समाज म उ चत थान दलाने क अ भवृि त का वकास करना।
उपयु त जनसं या के उददे य को ा त करके बालक को इस योगय बनाया जा सकेगा
क वे उ तरदा य वपूण जीवन जी सकगे तथा अपने प रवार को सी मत रखने स ब धी

150
युि तयु त तथा उ चत नणय लेने म समथ ह गे। उनम जनसं या स ब धी उ चत ि टकोण भी
वक सत होगा िजससे समाज, दे श एवं व व का क याण स भव होगा।

व—मू यां क न—2 (Self Evaluation)


1. जनसं या श ा के मु य उ े य ल खये|

10.3.3 जनसं या श ा श ण क अवधारणा (Concept of


Population Education Teaching)
रा य शै क अनुसंधान एवं श ण प रषद (N.C.E.R.T.), नई द ल वारा
संयु त रा जनसं या कोश (U.N.F.P.A.) क आ थक सहायता से भारत म यह ायोजना
ार भ क गई है।
राज थान म जनसं या श ा क ायोजना अ ेल 1980 से आर भ क गई। इसके
या वयन का दा य व,राज थान रा य शै क अनुसंधान एवं श ण सं थान (S.I.E.R.T),
उदयपुर को दया गया। इस सं थान वारा न नां कत काय कये गये है और अब भी नये
आयाम लेकर ायोजना का व तार कया जा रहा है :—
1. पा यकम एवं अ धगम साम ी का नमाण एवं वकास।
2. अ यापक को श त करना
3. सह शै क वृि तय का संचालन
4. वभ न वषय म जनसं या श ा संबध
ं ी पाठ का नमाण एवं पा यपु तक म
सि म लत करना।
5. अनुसंधान एवं मू यांकन
6. प का, एकांक , पक, कहानी, क वता आ द पु तक का काशन एवं सार, जनसं या
श ा संबध
ं ी सा ह य का नमाण
7. चा स, च ावल , लाईड आ द का नमाण।
8. श क श ण कायकम म जनसं या को सि म लत करना।
9. तयो गताएं काय म म जनसं या को सि म लत करना।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. जनसं या श ा क अवधारणा को प ट क िजए|

10.4 जनसं या सांि यक —भारत एवं राज थान (Population


Statistics—India and Rajasthan)
भारत एवं व व —

151
2001 क जनगणना के आधार पर व व क जनसं या 650 करोड़ थी औ इसम
भारत क 102.70 करोड़ थी। व व क जनसं या का 17 तशत भाग भारत म नवास करता
है। व व के भू—भाग क तु लना म भारत का भू—भाग 240 तशत है। इससे प ट होता है क
भारत म जनसं या का दबाव अ धक है।
व व क जनसं या वृ दर 17 तशत है जब क भारत म 2.1 तशत तवष है।
भारत म तवष एक आ े लया महा वीप क जनसं या के बराबर जनसं या बढ़ जाती है और
भू म म एक इंच भी वृ नह ं होती है, इसी लये भारत अभी तक वकासशील दे श म गना जाता
है।
भारत क जनसं या (1901 से 2001 तक)

. वष जनसं या 10 वष म ज म दर मृ यु दर जनसं या घन व लंगानु पात सा ारता


स. करोड़ जनसं या त 1000 1000 त वृ दर त एक त कमी 1000
वृ करोड़ त दशक दशक (गुणो तर) वग म पु ष
तशत त
दशक
1 1901 23.84 — — — — 77 972 5.35
2 1911 25.21 1.37 49.20 42.60 6.6 82 964 9.92
3 1921 25.13 —.08 48.10 47.20 —0.9 81 955 7.16
4 1931 27.89 2.76 46.40 36.30 10.1 90 950 9.50
5 1941 31.86 3.97 45.20 31.20 14.0 103 945 16.10
6 1951 36.10 4.24 38.90 27.40 11.5 117 946 28.02
7 1961 43.92 7.82 41.71 22.80 18.9 142 941 28.02
8 1971 54.81 10.89 41.20 19.00 24.89 177 930 34.45
9 1981 68.33 13.51 37.20 15.00 24.66 216 934 43.57
10 1991 84.33 16.30 29.30 9.08 23.86 267 927 52.21
11 2001 102.70 18.06 — — 21.34 324 933 65.38

जनसं या स ब धी भारत क उपयु त सांि यक को य द यान पूवक दे ख तो


जनसं या वृ क भयावह ि थ त ात होती है। व व क जनसं या जो 6 ब लयन पार कर
चु क है पहले क अपे ा तेजी से बढ़ रह है। 3 यि त त सेक ड एवं 250000 से अ धक
यि त त दन इसम जु ड़ जाते ह। य द इसी तरह से जनसं या वृ होती रह तो भारत म
नधनता, कु पोषण, बेरोजगार आ द सम याएं वकराल प धारण कर लगी।

राज थान म जनसं या क ि थ त (Population Status in


Rajasthan)
े फल क ि ट से राज थान दे श का सबसे बड़ा रा य है। इसका े फल 3,42,239
वग कमी है। यह े फल भारत के े फल का 10.4 तशत है। राज थान क जनसं या
2001 म 5,64,73122 है।
2001 क जनसं या के अनुसार भारत एवं राज थान का तु लना मक ववरण न नां कत
कार से है –
.सं. वृ दर घन व लंगानुपात शहर करण सा रता
1 भारत 21.34 324 933 27.76 65.38

152
2 राज थान 28.33 165 922 23.38 61.3
इस कार हम दे ख राज थान क जनसं या वृ दर भारत क जनसं या वृ दर से 7
तशत अ धक है।अ य कारक का व तृत व लेषण कर पाना यहां संभव नह ं है।

व—मू यां क न—4 (Self Evaluation)


1. भारत एवं राज थान म जनसं या क ि थ त बताइये |

10.5 जनसं या श ा क वषय—व तु (Content of Population


Education)
पा य म के मा यम से जनसं या श ा के उ े य एवं ल य क पू त कया जाना
संभव है। पा य म ह प ने वाले को े रत करता है तथा सीखकर जीवन को उ नत बनाने क
ेरणा दे ता है अत: यह आव यक है क जनसं या श ा का अ छा पा य म वक सत कया
जाए। जनसं या श ा के उ े य के आधार पर जनसं या श ा क वषयव तु के संबध
ं म
व भ न व वान ने अपने मत व कमेट ने रपोट द है :—
सन 1912 म समाजशा ी व जनसं या व हाउसर ने पा य म म जनां कक
(Demography) क आव यकता को बताया।
1. कु ल जनसं या वृ ( ागे तहा सक से आधु नक काल तक )
2. जनसं या वृ के कारक, वास, उ पि त—दर, आयु के अनुसार वग करण एवं मृ यु दर
3. जनसं या वतरण
4. जनसं या का आ थक सामािजक एवं राजनै तक भाव
5. जनसं या अनुसंधान क व धयां
पर तु हाउसर ने जनसं या श ा के लये जनां कक को ह मह वपूण बताया व
जनसं या श ा के अ य पहलु ओं को छोड़ दया है। इस कार यह परे खा संकु चत ि टकोण
लये हु ए है।
1970 म NCERT ने जनसं या श ा म पांच े को बताया —
1. जनसं या वृ
2. आ थक वकास व जनसं या
3. सामािजक वकास व जनसं या
4. वा य पोषण व जनसं या
5. जैवीय कारक — पा रवा रक जीवन व जनसं या
व भ न मत को जानने के प चात हम यह कह सकते ह क जनसं या श ा म सबसे
पहले हम —
1. जनसं या स ब धी ऑकड़ को लेना चा हये। इसके अ तगत ज मदर, शु पुन पादन
(Net Production rate) व मृ युदर , कसी दे श वदे श म या हो रहा है, इसका
ववेचन कया जाता है।
2. आ थक वकास एवं जनसं या वृ :—
153
इस वषय े के अ तगत जनसं या वृ से संसाधन म कमी, नधनता, बेरोजगार ,
अ श ा रा य आय म कमी, कृ ष, उ पादक भू म म कमी, ख नज पदाथ का अभाव,
आ थक वकास का अव होना आ द सभी आयाम क जानकार द जाती है।
3. सामािजक वकास और जनसं या वृ —
जनसं या वृ से समाज म अनेक सम याएं उ प न हो गई है जैसे — गर बी, दहे ज,
शहर भीड—भाड, ग द बि तय , बेरोजगार , सामािजक अपराध, बाल ववाह, अ श ा,
अ ध व वास, पानी, च क सा, नवास म कमी आ द। इस े म इ ह करण पर
श ण करवाया जाता है।
4. वा य व पोषण और जनसं या वृ :—
व थ रहने के लये वा य द नवास, व छ वायु, संतु लत एवं पोषक त व से
यु त भोजन, शु पेयजल आ द क परम आव यकता होती है। खा या न क वृ
च क सा सु वधाओं म आ द म तवष वृ से ये अपया त रहते है। इन सभी वषय
का अ ययन इस े म कराया जाता है।
5. जै वक त व, प रवार एवं जनसं या वृ
लड़के —लड़क क ववाह क आयु, ब च के बीच का अ तराल, गभवती ि य क
दे खभाल, सव के पूव व प चात ् लगने वाले ट क क जानकार आ द बात जनसं या
श ा का अंग है।
6. संसाधन का वकास एवं पयावरण संर ण
जलवायु बढ़ने से आज जी वत रहने के लये उपभो य व तु ओं क मांग म वृ हो गई
है। कृ त द त साधन सी मत है। असी मत जनसं या वृ एवं सी मत ाकृ तक
संसाधन एवं उ पादन म अस तु लन हो गया है, वन का वनाश हो रहा है, जल का
तर नीचे जा रहा है, ओजोन परत म छे द हो गया है, ख नज पदाथ का अ नयि त
दोहन हो रहा है — इन सबको यान म रखते हु ए पयावरण संर ण अ नवाय है।
इन सभी वषय का अ ययन इस े म करवाया जाता है।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. जनसं या श ा पा य म के मु य ब दु ओं को बताइये|

10.6 जनसं या श ा क श ण व धयाँ (Content of Population


Education)
जनसं या श ा सम या केि त तथा मू य आधा रत श ा है अत: जनसं या श ण
के लये ऐसी श ण व ध उपयु त रहती है जो सम याओं तथा मू य से संबं धत हो। जनसं या
श ा के लए वह श ण व ध उपयु त होगी जो बालक को जनसं या व फोट क सम या का
बोध करा सके और जनसं या वृ के कारक, मा यताओं, मू य को छो कर नवीन धारणाएं,
मा यताओं व मू य को अपना सके।

154
इ ह ं आधार पर जनसं या श ा श ण के लये न नां कत व धयां उपयु त हो
सकती है :—
1. िज ासा उपागम व ध (सम या समाधान व ध)
2. मू य प ट करण व ध
3. ायोजना व ध
4. खेल और ना य व ध
5. य व य 'साम ी के मा यम से जनसं या श ा
6. वयं श ण व ध ( ो ा ड ल नग व ध) —
7. सव ण व ध

व—मू यां क न न (Self Evaluation)


1. जनसं या श ा श ण क व धय के नाम ल खए।

10.7 जनसं या श ा के संदभ म श क— श ण कायकम के


उ े य (Objectives of Teachers Training Programme in
Reference of Population Education)
(क) ान व अवबोध :—
1. इस उ े य क सं ाि त पर जनसं या श ा का अथ, वषय—व तु े व मह व का
अवलोकन।
2. भारत व व व क जनसं या के ग या मकता (Population Dynamics) का अवबोधन।
3. जनसं या वृ का मानवीय जीवन के आ थक, सामािजक, शै क, सां कृ तक,
राजनै तक पहलु ओं पर भाव।
4. व भ न अनुसंधान व खोज का जनसं या वृ पर भाव का अवबोधन।
5. ती जनसं या वृ का कृ त के स तुलन, जीवन तर, जीवन क गुणा मकता व
जनसं या वृ म सबंध।
6. जैवीय कारक व जनन स ब धी त व जो क जा त क नर तरता बनाये रखने के
लये उ तरदायी है, इसका अवबोधन करना।
7. जनसं या श ा को व यालयी पा यकम म लाने से सामािजक प रवतन व रा य
वकास संभव है, इसका अवबोध करना।
8. भारत के भावी अ भभावक म छोटे प रवार का सामािजक मानक अपनाने म श क क
भू मका मह वपूण है, इसका अवबोधन।
ि टकोण —
1. नयोिजत अ भभावकता व प रवार के आकार क सीमा आव यक है, इसक आव यकता
क लाघा।

155
2. ती जनसं या वृ को रोकने म व यालय क एक सं था के प म भू मका क
लाघा।
3. प रवार नयोजन नी त, कायकम व दे श म हो रहे यास क लाघा।
कौशल —
1. 6 से 14 वष व 15 से 17 वष तर के बालक क जनसं या श ा का अ ययन करने
का कौशल।
2. जनां कक (Demography) द त का तु तीकरण व व लेषण।
3. वभ न य— य सहायक साम ी के वारा जनसं या श ा का ान दान करने का
कौशल वक सत करना।
4. जनसं या श ा कायकम को सहभागी कयाओं वारा आयोिजत करने का कौशल
वक सत करना।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. जनसं या श ा के सं द भ म श क श ण काय म के उ े य ल खये ।

10.8 श क श ण कायकम के लये पा य— ब दु (Content for


Teacher Training programme)
जनसं या श ा क वषय—व तु श क श ण काय म के उ े य पर नभर करती
है। पूव ल खत उ े य के आधार पर न न वषय—व तु क अनुशस
ं ा क गई है :—
थम इकाई — जनसं या श ा क तावना (An Introduction of Population
Education Programme)
(अ) जनसं या श ा का अथ व े — प रवार श ा, यौन श ा, गभ नरोधक श ा,
यय म भ नता।
(ब) जनसं या श ा का उ े य, आव यकता व मह व
(स) सामा य श ा म जनसं या श ा का थान व जनसं या श ा का मु य े ।
वतीय इकाई :— जनसं या क ग या मकता (Dynamics of population)
(अ) वतरण. घन व व जनसं या वृ क वृि त — भारत क वशेष ि थ त व संसार के
सामा य े म।
(ब) जनसं या वृ क वशेषताय — ज म दर, मृ युदर , आयु व लंग के आधार पर
जनसं या क संरचना।
(स) अ त जनसं या के नधारक त व व प रणाम — औ यो गक नगर करण के वास क
सम याएं।
(द) जनसं या वृ क मा यताऐं (Implications) दे श क सामािजक, आ थक व शै क
संदभ म।

156
(य) जनसं या वृ व साधन — जनसं या वृ का जीवन तर पर व जीवन क
गुणा मकता पर भाव।
(र) जनसं या वृ व श ा का गुणा मक प ।
तृतीय इकाई — जनसं या श ा म श क क भू मका (The Role of Teacher in
Population Education)
(अ) सामािजक प रवतन म श क क भू मका एक एजे ट के प म।
(ब) श क का वयं का व वास क श ा के वारा सामािजक प रवतन व वकास लाया
जा सकता है।
(स) जनसं या श ा रा य उ े य क ाि त के लये सश त उपाय है। श क का यह
व वास मह वपूण है। (द) अ यापक क व भ न रा य सम याओं क जानकार क
मह ता।
(य) अ यापक जनसं या श ा, यौन श ा व प रवार श ा क जानकार दे ने म मह वपूण
भू मका अदा करता है।
चतुथ इकाई —जनसं या श ा का पा य म (Curiculum of Population Education)
(अ) व यालय म पा य म बदलने क आव यकता
(ब) व यालयी पा यकम म जनसं या श ा का थान
(स) पा यकम को व भ न े को पहचानना ता क जनसं या श ा के यय व स ा त
को सि म लत कया जा सके।
(द) पा य म वकास के स ा त — संग ठत पा यकम, या मक ए ोच व लैडर टाइप
ए ोच
(य) पा य म द दशन का वकास।
पंचम इकाई — श ण प तयां व मू यांकन (Teaching methods & Evaluation)
(अ) संग ठत व सह—स ब धा मक तर के से जनसं या श ा का श ण।
(ब) जनसं या श ा के श ण म एकल वषय अ ययन प त व सम या समाधान प त
का योग।
(स) अ य व यालयी वषय तथा सामािजक ान, सामा य व ान भाषा, वा य श ा,
जीव व ान के करण के साथ जनसं या श ा का संगठन।
(द) जनसं या श ा व सह—शै क याओं का संगठन।
(य) आव यक श ण साम ी का नमाण व योग।
(र) जनसं या श ा के वारा आये यवहारगत प रवतन का मू यांकन।
(ल) जनां कक (Demography) त य का तु तीकरण व ववेचन कौशल।
ष टम इकाई — ववाद और सम याएं (Controversied & Issues)
(अ) पा रवा रक जीवन श ा, यौन श ा, नषेधा मक उपाय क श ा, जनसं या श ा व
वा य श ा म या मक अ तर।
(ब) जनसं या श ा के त धा मक, सामािजक व सां क तक अ भम त।

157
व—मू यां क न न (Self Evaluation)
1. जनसं या श ा के सं द भ म श क श ण काय म के पा य ब दु ल खए।

10.9 सारांश (Summary)


भू म, म व पू ज
ं ी इन तीन साधन के वारा उ पादन संभव होता है, य द इन साधन
म सामंज य नह हो पाता तो दे श आ थक व सामािजक वकास नह ं कर पाते। य द मानव
शि त या जनसं या वृ इसी तरह होती गई तो मानव जा त को भयावह तकल फ का सामना
करना पड़ेगा। अत: यह आव यक है क जनसं या श ा सभी को द जाये।
जनसं या श ा को दे ने के लये उसे श क श ण कायकम के अ तगत जनां कक ,
प रवार प रसीमन जनसं या क ग या मकता और जनसं या श ा से स बि धत सहायक
साम ी के योग को सि म लत कया जाना चा हये।

10.10 मू यांकन न (Evaluation Question)


1. जनसं या श ा से आप या समझते है?
What do you understand by Poulation Education?
2. जनसं या श ा व यालयी तर पर व या थय तक कस कार पहु ँ चायी जा सकती
है?
How Population Education can be transferred to school level?

10.11 संदभ (References)


1. Mallayaa K.C. : “Population Education”1992,Vinod Pustak Mandir
Agra
2. Sharma Radheshyam : “Teaching of Population Education,2005”,Puneet
Prakashan,Jaipur
3. Rajput J.S. : “Encyclopedia of Indian Education”,(NCERT)
Vol—II(L—Z)

158
इकाई—11
पयावरण श ा
(Environmental Education)
इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)
11.1 उ े य व ल य (Objectives and Aims)
11.2 तावना (Introduction)
11.3 पयावरणीय श ा का वकासा मक इ तहास (Developmental History of
Environment Education)
11.4 पयावरण श ा का अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition of
Environment Education)
11.5 पयावरण श ा के उ े य (Objectives of Environment Education)
11.6 पयावरण श ा क आव यकता (Needs of Environment Education)
11.7 पयावरण दूषण के कार (Types of Environment Education)
11.7.1 कार (Types)
11.7.1.1 मृदा दूषण (Soil Pollution)
11.7.1.2 जल दूषण (Water Pollution)
11.7.1.3 वायु दूषण (Air Pollution)
11.7.1.4 वन दूषण (Noise Pollution)
11.8 अ यापक श ण (Teacher Training)
11.9 पयावरण श ा यवहार म (Environmental Education in behaviour)
11.10 सारांश (Summary)
11.11 मू यांकन (Evaluation)
11.12 संदभ थ (References)

11.1 उ े य व ल य (Objectives and Aims)


इस अ ययन के प चात आप इस यो य हो सकगे क :—
1. पयावरण श ा का अथ, प रभाषा, आव यकता, उ े य, पयावरण दूषण, अ यापक
श ण, यवहार म आ द का या मरण, पुनपहचान व पुनकथन कर सकगे।
2. पयावरण श ा स ब धी सम याओं का व लेषण कर सक तथा उदाहरण दे सकगे।
3. पयावरण दूषण से स बि धत सम या का व लेषण, वग करण, संबध
ं थापना कर
सकगे, उदाहरण दे सकगे।
4. पयावरण श ा स ब धी कायकम तथा सा ह य म च उ प न कर सकग।
5. पयावरण श ा स ब धी कायकम व ना य म के त वै ा नक व सकारा मक
मनोवृि तयॉ उ प न कर सकगे।
159
11.2 तावना (Introduction)
मानव तथा पृ वी के अ य जीवधा रय के जीवन का उनके चतु दक व यामान पयावरण
के साथ अ यो या तता का स ब ध रहा है। पृ वी ह पर ा णय का अि त व एवं वकास
आस—पास के पयावरण से नयि त एवं नधा रत होता रहा है। भौ तक और जै वक पयावरण के
अवयव एक दूसरे के पूरक ह तथा एक दूसरे के अि त व को बनाये रखने के लए आव यक है,
पर तु भौ तक व औ यो गक ग त के कारण मानव ने पयावरण को ह न ट करना आर भ कर
दया।
भोपाल गैस कांड, ताजमहल पर गैस का भाव, जंगल क कटाई के कारण भू म का
बंजर होना, ओजोन परत म छ , बढ़ता वाहन दूषण आ द ने मानव को मजबूर कर दया है क
वह आ मघाती औ यो गकरण क योजनाओं तथा वाथपरक आ थक ग त व धय को रोके। इसके
लए यह उ चत है क पयावरण क र ा व इसके वकास के लये नाग रक को श त कया
जाये।
इस ईकाई म आप यह अ ययन करगे क ''पयावरण श ा'' या है? इसका
वकासा मक इ तहास या है? इसके उ े य या है? इसके मु ख घटक, व भ न कार के
दूषण स ब धी सम याएँ या ह? य द श क ''पयावरण श ा'' के मह व को समझ लेता है,
तो वह श ा थय को भी इसक श ा दे सकता है। शाि तमय सु दर सु खमय जीवन के लये
पयावरण श ा क अ य त आव यकता है।

11.3 पयावरण श ा का वकासा मक इ तहास (Developmental


History of Environment Education)
1. पयावरण श ा का इ तहास इस वचारधारा पर आधा रत है क पयावरण मानव जीवन
को अनेक प म भा वत करता है। ाचीन काल म श ा का चार सार ऐसा
नह था, जैसा आजकल है, वै दक ऋ ष अपने अनुकू ल ान क श ा जनसाधारण
तक अ ल खत व धय वारा दया करते थे —
(1). पूजा — उपासना के मा यम से
(2). य के आयोजन वारा पयावरणीय श ा 1899 म पै क गे डस ने इं डनवग इं लै ड
म “द आउटलु क टावर'' नामक अंगठ
ू सं था क थापना क , िजसका मु ख ल य
पयावरण व श ा म सुधार लाना था। उनका मानना था क पयावरण व श ा क
गुणव ता एक दूसरे से जु डी हु ई है य द बालक को पयावरण क वा त वकताओं के समीपं
लाया जा सकेगा तो न केवल श ा म सु धार होगा अ पतु पयावरण म वां छत सु धार
होगा।
2. सो, डयुवी तथा एड स ने वातावरण के साथ स पक को मा यम से श ा का चार
करने पर जोर दया था; प रणाम व प संयु त रा य अमे रका के े सडे ट पवै ट
(1933 — 45) ने रा यपालो क एक का स हाइट हाउस म बुलाई तथा उसम कृ त
के संर ण पर बल दया, यह नी त अमे रका म आज तक नभाई जा रह है।

160
3. समय—समय पर पयावरण श ा स ब धी पहलु ओं पर व भ न सं थाओं वारा यान
दया जाता रहा है। पर तु 1965 म पहल बार क ले व व व यालय अमे रका वारा
पयावरण श ा क पा यकम के आव यक अंग के प म वीकार कया गया।
4. 1975 म IEEP ने बेल ेड म ए तहा सक पयावरण श ा अ तरा य कायशाला
आयोिजत क गई िजसम यूने को ने 136 दे श से पयावरण श ा से स बि धत
जानकार एक त क ।
संयु त रा संघ क मु ख सं थाय जैसे — WHO, WMO,ILO,FAO आ द य
व अ य प से पयावरण श ा म सहयोग दे रह है।
बेल ेड अ धवेशन (1975) क मह वपूण उपलि ध “पयावरण घोषणा प ”ं (Charter) था,
िजसम चार भाग है
(अ) पयावरण क ि थ त
(ब) पयावरण के उ े य
(स) पयावरण के शै क उ े य तथा ल य
(द) पयावरण के शै क ल य
1976 से 1982 व व के कतने ह दे श म पयावरण र ा स ब धी कानून बने तथा
पयावरण र ा स ब धी सं थाओं क थापना हु ई है।
भारत म ''पयावरण श ा” सं कृ त का एक ऐसा अंग रह है। इसके संर ण के लये
समाज को श त कया जाता रहा है। वेद—पुराण म वृ आ द क र ा के लए संग आते है।
भारत म पयावरण संर ण स ब धी रा य कायकम चलाए जा रहे है िजसम से 1972
म टाकहोम म आयोिजत ''मानव और जीव म डल'' नामक अ तरा य संगो ठ से ा त क,
तथा भारत म पयावरण संर ण के काय म आर भ कये।
भारत सरकार वारा सन 1897 से लेकर 1992 तक पयावरण संर ण कानून बनाये गये
तथा उनक पालना क जा रह है।

व—मू यां क न न (Self Evaluation)


1. पयावरण श ा के इ तहास से सं ब ि धत मु ख घटनाएँ ल खए।

4. पयावरण श ा का अथ एवं प रभाषा(Meaning and


Definition of Environment Education)
वह श ा िजसके वारा लोग म पयावरण के त सह समझ, संवेदनशीलता तथा
सकारा मक ि टकोण का वकास हो तथा जो लोग म पयावरणीय सम याओं के त जाग कता
पैदा करे ''पयावरणीय श ा' कहलाती है। पयावरणीय श ा का ल य मानव और पयावरण के
बीच के स ब ध क या या करना है, िजससे लोग अपने आस—पास के पयावरण के मह व को
ठ क से समझ सक तथा अपने पयावरण को संर त व सु र त करने के लये े रत हो।
पयावरण श ा के अथ को सह —सह समझने के लये इसे अधो ल खत तीन आयाम म समझना
आव यक ह:—
161
1. पयावरण के बारे म (About the Environment)
इसके अ तगत यि त को अपने आस—पास के भौ तक व जै वक पयावरण के व भ न
अवयव क जानकार होनी चा हये। श ा वारा बालको म पयावरण के त सह समझ पैदा क
जानी चा हये।
2. पयावरण से (From the Environment)
इसके अ तगत श ा वारा लोग को यह ान दान करना आव यक है क आस—पास
के भौ तक एवं जै वक पयावरण से या और कैसे ा त कर क उनका पयावरण अस तु लत न
हो।
3. पयावरण के लये (For the Environment) :—
इसके अ तगत बालक अथवा यि तय को ऐसी श ा दान करना आता है, िजससे वे
अपने पयावरण को सु र त रखने म समथ बने।
कभी—कभी पयावरण श ा को ''पा य म का उपागम (Approach) भी कहा जाता है
न क पर परागत आधार पर न मत एक वषय। इस 'उपागम'' के आधार पर पयावरण श ा को
अ त: अनुशासना मक (Inter Disciplinary) वषय माना है, िजसक वषय व तु जीव व ान,
सामािजक व ान, अथशा , राजनी तशा , भू गोल, समाजशा तथा वन प त व ान आ द
सभी वषय से ल जाती है।
''पयावरण श ा'' क प रभाषा मरजैल (1982) क एनसाइ लोिज डया ऑफ
ए यूकेशनल रसच के अनुसार — ''पयावरण श ा अ त: अनुशासना मक होनी चा हये।
अवधारणा मक आगम पयावरण श ा दे ने के लये सव तम है|
एल. बी. संह व सी एस संह (1990) ने पयावरण श ा को एक कृ त कया के प म
प रभा षत कया —''पयावरण श ा एक ऐसी एक कृ त या है जो ाकृ तक एवं मानव न मत
वातावरण के साथ मान के अंतस
ं बंध क या या करती है। इसके अ तगत वे सभी ग त व धयां
आ जाती ह जो ा णय के ाकृ तक, सामािजक व सां कृ तक जीवन को भा वत करती है।
इसका मु ख उ े य है पयावरण के अ भ ान वारा जीवन का गुणा मक सुधार करना तथा
पयावरण संर ण के त अपने दा य व को वीकार करना।
उपयु त सभी प रभाषाओं के व लेषण के आधार पर पयावरण श ा क एक सामा य
प रभाषा न नवत क जा सकती है :—
पयावरण श ा वह कया है जो यि तय म उन मू य , अ भवृि तय , चय , कौशल
का वकास करती है, िजनके आधार पर वे अपने आस—पास के पयावरण को ठ क—ठाक समझ
सक तथा उसके संर ण और संवधन के लये स म बन सके।

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. पयावरण श ा को अपने श द म प रभा षत क िजये ?
2. पयावरण श ा का अथ बताइये ?

162
11.5 पयावरण श ा के उ े य (Objectives of Environmental
Education)
पयावरण श ा के उ े य को व भ न पयावरण वै ा नको ने अलग—अलग कार से
दये ह, जो न नवत है –
(अ) टे प और उनके साथी (1970) —
टे प और उनके सा थय ने सन 1970 म पयावरण श ा के अधो ल खत उ े य नधा रत कये

1. लोग को यह अवबोध कराना क मानव उस यव था का अ भ न अंग है िजसम मानव,
भौ तक और जै वक पयावरण आते ह।
2. जनसामा य म पयावरण के त समझ उ प न करना
3. मू लभू त पयावरणीय सम याओं का अवबोध कराना
4. पयावरण के त नाग रक के उ तरदा य व नधा रत करना।
5. अनुकू ल मनोवृि तय (Attitudes) का नमाण करना।
(ब) वदात (Vidart) (1978) के अनुसार —
वदात ने पयावरण के उ े य को न न ल खत े णय म वभािजत कया —
1. ाना मक उ े य (Cognitive Aims) —
(1). पयावरण का ान कराना।
(2). सोचने व सम या समाधान क मता का वकास करना।
2. मानक उ े य (Normative Aims) —
(1). पा रि थ तक जाग कता का वकास करना
(2). पयावरणीय मू य का नमाण करना
3. तकनीक तथा ायो गक उ े य (Technical & Experimental Aims) —
(1). पयावरण के संवधन व संर ण के लये सामू हक् यावहा रक याओं क
योजनाएं बनाना तथा उ ह याि वत करना।
(2). सामु दा यक प से समाज के वीकृ त मानद ड के अनुसार औपचा रक व
अनौपचा रक श ा क यव था करना, िजससे आ थक वकास पयावरण के
जै वक चक को भा वत न कर सके।
(स) यूने को (1981) के अनुसार —
1. पयावरण श ा को औपचा रक श ा के साथ स ब कया जाना।
2. पयावरण श ा को अ त: अनुशासना मक कृ त दान करना।
3. सम ता के ि टकोण का वकास, िजसम इकोलोजीकल सामािजक व सां कृ तक प
सि म लत हो।
4. पयावरणीय श ा को मानव जीवन से स बि धत करना।
5. पयावरणीय मू य का नधारण करना, िजससे श ा के मा यम से बालका बा लकाओं म
उनका वकास कया जा सके।
(द) UNEP के अनुसार —

163
यूनाइटे ड नेश स ए दायरमे टल ो ाम (UNEP) के अनुसार पयावरण श ा के उ े य
न नवत नधा रत कये गये —
(1). जाग कता (Awareness)
पयावरण श ा का मु ख उ े य जनसामा य म पयावरण के त जाग कता पैदा करना
है। यह काय औपचा रक एवं अनौपचा रक श ा का नयोजन कर स प न कया जाना चा हये।
(2). ान (Knowledge)
पयावरण श ा का मह वपूण काय समाज के सभी आयु वग के तथा लंग के लोग को
पयावरण से स बि धत ान का चार व सार करना ता क लोग पयावरण के संर ण क
च ता कर।
(3). मू यांकन (Evalution) —
यि तय एवं सामािजक समू ह म पयावरण के मू यांकन क द ता का वकास करना।
(4). अ भवृि तय म प रवतन (Change in Attitude) –
पयावरण श ा वारा लोग म पयावरण के त अनुकू ल अ भवृि तय एवं मू य का
वकास कया जाए। न नां कत पयावरणीय मू य का वकास करना है —
(अ) ेम (ब) उदारता (स) सह—अि त व (द) अ हंसा (प) क णा
(फ) पर पर पूरकता (ब) समानता (भ) याय (म) ब धु व।
(5). कौशल का वकास—
इसके अ तगत पयावरण श ा वारा लोग म उन कौशल का वकास कया जाना
आव यक है, िजसके वारा वे पयावरणीय सम याओं को पहचान कर उनको हल करने म समथ
हो सक।
(6). सहभा गता (Participation) —
इसके अ तगत पयावरण श ा वारा दूषण नवारण के लए वृ ारोपण, सफाई
काय म के संचालन, जनसं या श ा के कायकम के नयोजन व काया वयन म समाज के सभी
वग के लोग क भागीदार सु नि चत करना है।

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. पयावरण श ा के मु य उ े य ल खये ?
2. पयावरण श ा म सं यु त रा सं घ क या भू मका रह ?

11.6 पयावरण श ा क आव यकता (Needs of Environmental


Education)
आज के इस जनसं या व फोट तथा औ यो गक वकास के युग म पयावरण का
बगड़ता हु आ संतल
ु न व व तर पर च ता का वषय बना हु आ है।

164
1. आज के व याथ कल के नाग रक, शासक, नेता, नणयकता तथा नयोजक है। य द
मानव जीवन को सु खमय व शाि तमय बनाना है तो व या थय को पयावरण से
स बि धत सभी कार क जानकार व कौशल का वकास करवाना आव यक है।
2. औ यो गकरण के वकास के साथ मू य का यास हु आ है। आज मानव भौ तक सु ख
क ओर अ धक अ सर है। मानव को अपने जीवन मू य पर पुन वचार करना होगा,
इसके लये व याथ व श क दोन को पयावरण स ब धी श ा आव यक है।
3. अ भवृि तय यवहार को भा वत करने वाले आव यक ेरक होते ह। कसी थान,
व तु, या व जीव के त जैसी हमार मनोवृ त होगी, हम वैसा ह यवहार करगे।
पयावरण स ब धी सकारा मक व वै ा नक ि टकोण अथवा मनोवृ तय के वकास के
लये पयावरण स ब धी श ा क आव यकता है।
4. पयावरण के त यान आक षत करने के लये उ चत चय का वकास व यालय म
ह कया जा सकता है। पा यकम म प रवतन, ाकृ तक वातावरण म छा को ले
जाना, समय—समय पर पयावरण स ब धी तयो गताएँ आ द आयोिजत करके पयावरण
स ब धी चय का वकास कया जा सकता है, इस कार स होता है क श ा म
पयावरण स ब धी जानकार क आव यकता है।
5. पयावरण स ब धी सम याओं को समझने, व लेषण करने व उनके समाधान के लये
बौ क मताओं तथा नणय लेने के लये स बि धत कौशल के वकास क आव यकता
है। यह काय व यालय म ह हो सकता है, अत: पयावरण क श ा आव यक है।
6. जल, वायु, व न, भू म, वाहन दूषण क सम याओं ने पयावरण म बड़ी सम याओं को
ज म दे दया है — जैसे — ओजोन परत म छ , ीन हाउस भाव, अ ल य वषा आ द
य द इस सम याओं क जानकार व या थय को दे ना आव यक है,अत: पयावरण श ा
क परम आव यकता है।

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


पयावरण श ा क आव यकता को अपने श द म प ट क िजये ?

11.7 पयावरणीय दूषण—संक पना, कार(Environmental


Pollution—Concept and Types)
संक पना (Concept)
पयावरण दूषण आज व व यापी सम या बन गई है। वतमान जनसं या व फोट, ती
औ यो गकरण एवं नगर करण जन वा य, व छता तथा ाकृ तक स तु लन से जु ड़ी सम याऐं
च ता का वषय बन गई है। इन सभी सम याओं का सामू हक नाम ' दूषण है। दूषण एक
घातक सम या है जो न केवल पयावरण स तु लन को बगाड़ती है एवं वा य संकट उ प न
करती है, बि क रा अथ यव था को भी अनेक कार से त पहु चाती है। वशेष च ता का
वषय तो है क ाकृ तक संसाधन पर जनसं या के बढ़ते दबाव के कारण पयावरण का जीवन

165
पोषक तं (Life Supporting System) कमजोर हो रहा है और हमारे सं वकास क संक पना
(Concept of Sustainable Development) को गहरा आघात लग रहा है।
पयावरण दूषण के सामा य कारण न न ल खत ह —
1. अ नयि क ाकृ तक घटनाएं
2. जनसं या वृ एवं संसाधन पर उसका बढ़ता दबाव
3. ठोस अप श ट न तारण एवं मल वाह क अपया त सु वधाऐं
4. उ योग से नकले वाले जहर ले रसायन एवं ठोस पदाथ
5. आधु नक कृ ष तकनीक व क टनाशक का योग
6. नधनता एवं अ प वकास
7. बढ़ते हु ए प रवहन के साधन एवं बढ़ता शोर
मानव वारा छोड़े गये अव श ट पदाथ व उजा के पयावरण म सि म लत होने से
पा रि थ तक त क सामा य याओं म प रवतन को दूषण कहते ह।

11.7.1 कार (Types)


दूषण सामा यत: छ: कार के होते ह —
1. मृदा दूषण (Soil Pollution)
2. जल दूषण (Water Pollution)
3. वायु दूषण (Air Pollution)
4. वन दूषण(Sound Pollution)
5. ना भक य दूषण (Nuclear Pollution)
6. सामािजक दूषण (Social Pollution)

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. पयावरण दू ष ण को प ट क िजये व दू ष ण के मु ख कार के नाम ल खये?

उपरो त सभी कार क व तार से या या कर पाना यह संभव नह ं है, अत: हम


सं त म इसका अ ययन करगे सबसे थम कार है –

11.7.1.1 मृदा दूषण (Soil Pollution)


कोई भी ऐसा पदाथ जो म ी म मलकर उसक उवरता को भा वत करे , मृदा दूषक
कहलाता है।
Causes मृदा दूषण के कारण —
(1) वायुम डल य दूषक —
औ यो गक नगर के वायुम डल म उ सिजत धू लकण तथा ना भक य व फोट से
उ सिजत रे डयोधम पदाथ वायुम डल से पृ वी पर गरते ह तथा म ी म मलकर उसक उवरता
को भा वत करते ह।
166
(2) औ यो गक अव श ट —
व भ न उ योग से मु यत: तीन दूषक ा त होते ह —
1.स फर डाईऑ साइड
2.पलोराइड
3.नाइ क ऑ साइड तथा पारा, कैड मयम आ द।
फर व नाइ क ऑ साइड म ी क ार यता को बढ़ाते है, िजससे मृदा क उवरता घटती
है।
(3) घरे लू कचरा —
कॉच के टु कडे, लाि टक व रबर के टु कडे, चमड़े के टु टे —फूटे टकड़े ऐसे घरे लू कचरे ह
जो अपचा यत नह ं हो पाते तथा मृदा को दू षत करते ह।
(4) क टनाशक दवाएं —
डी. डी. ट ., टक20, बी.एच.सी. टै सोफेन आ द क टनाशक का योग हम फसल क
र ा के लये करते ह|
(5) रासाय नक खाद :—
रासाय नक खाद के योग से मृदा क उवरकता का मास हु आ तथा खा या न क
गुणवता घट गई
(6) भू रण :— भू रण दो कार से होता है —
(1) वायु वारा (2) जल वारा
मृदा दूषण रोकने के उपाय (Preventive measures to control soil Pollution)
1. वृ ारोपण को ो साहन
2. गोबर व क पो ट खाद के योग को बढ़ाना
3. घरे लू व औ या गक कचरे को खाद म प रव तत करने के लये संयं लगाना
4. क टनाशक दवाओं का सी मत एवं संय मत योग

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. मृ दा दू ष ण से आप या समझते ह?
2. मृ दा दू ष ण के कारक या ोत बताइये?

11.7.1.2 जल दूषण (Water Pollution)


सभी कार के जीव के लये जल अ त आव यक है, इसके बना जीवन संभव नह ं ह।
व छ शु जल क उपयो गता वयं स है। पृ वी के 2/3 भाग पर जल भरा है पर तु वा तव
म कु ल जल का 3 तशत भाग ह उपयोगी है, शेष 97 तशत भाग मनु य के लये अनुपयोगी
है, उपयोगी 3 तशत जल ह भू मगत व वायुम डल म वा प के प म होता है। केवल 0.6
तशत जल ह सतह जल ोत के प म मलता है वा तव म इस जल क मा ा का कु छ अंश
ह पीने के काम आता है, शेष नहाने, धोने, संचाई उ यान आ द म खच होता है।
जल के मु ख ोत ह—

167
(1) धरातल ोत (Surface sources)
(2) भू म ोत (Ground sources)
जल दूषण क प रभाषा (Definition of Water pollution):—
ाकृ तक जल म कसी अवांछनीय बाहय पदाथ का वेश िजससे जल क गुणव ता म
अवन त आती हो, जल दूषण कहलाता है।
1. भौ तक दूषण
2. रासाय नक दूषण
3. शर र या मक दूषण
4. जैवीय दूषण
जल दूषण नय ण के उपाय (Preventive measures to control of water
pollution)—
जो ग दगी मानव वारा उ प न है उसक रोकथाम भी वह कर सकता है। इसे रोकने के
लये सामा य उपाय व सु झाव न न ल खत ह—
1. कसी भी कार के अप श ट या अप श टयु त पदाथ को जलाशय म मलने से रोका
जाय।
2. घर से नकलने वाले मल न जल को संशोधन संयं ो म उपचा रत करके ह नद तालाब
म डाला जाये।
3. पेयजल के ोत जैसे— तालाब, नद व कु एँ इ या द के पास द वार बनाकर व भ न
कार क ग दगी को ड़नम वेश से रोका जाए।
4. जलाशय के पास नान करने कपड़े धोने आ द को रोका जाये।
5. नद व तालाब म जानवर के वेश व नहाने आ द पर रोक लगाई जाये।
6. छोटे बड़े उ योग को नद तालाब , झील के पास बनाने पर रोक लगाई जाए।
7. कृ ष काय म आव यकता से अ धक उवरक तथा क टनाशक के उपयोग पर रोक लगाई
जाए।
8. जलाशय म मछल पालन पर अ धक जोर दया जाए य क ऐसा करने से मछ लय
म छर के अ डे, लावा व जल य खरपतवार को न ट करने म सहायता मलती है।

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. उन व तु ओं के नाम ल खये , जो आपके पडौस या मोह ले वाले कचरे के प म
पानी म बहाते ह?
2. आपक राय म जल दू ष ण को रोकने म—
(अ) प रवार (ब) समु दाय व (स) सरकार क या भू मका है ?

11.7.1.3 वायु दूषण (Air Pollution)


वसन के लये हम ऑ सीजन क आव यकता होती है। यह ऑ सीजन हम वायुम डल
से ा त होती है। शु वायु सामा यत: ाकृ तक प से पायी जाने वाल कई गैस का म ण
168
होती है, इसम 21 तशत ऑ सीजन, 78 तशत नाइ ोजन, 0.03 तशत काबनडाई
ऑ साइड तथा 0.97 तशत जल तथा अ य गैस होती ह।
वायु दूषण मु य प से मानव याओं — जंगल जलाने, भोजन पकाने, जंगल
जानवर को दूर भगाने, भवन को गरम रखने, ईधन जलाने तथा वतमान म 'नगर य—
ओ यो गक—तकनीक स यता से उ प न हु आ है।
व व वा य संगठन (WHO) ने वायु दूषण को न न प से प रभा षत कया है :—
''वायु दूषण वह सी मत दशा है िजसम चतु दक फैले वायुम डल म ऐसे पदाथ का
संके ण हो जाता है, जो मानव तथा उसको घेरने वाले पयावरण के लये हा नकारक होते ह।''
वायु दूषण के कारण को मु यतया दो वग म बाटा जा सकता है :—
1. ाकृ तक (Natural)
2. मनु यकृ त (Man—made)
मु य वायु दूषण (Major Air Pollutants)
(1) स फरडाई ऑ साइड —
यह गैस कसी भी कार के ग धक यु त ईधन के जलने से बनती है। कोयले तथा
ख नज तेल का उपयोग बड़े कल—कारखान म ईधन के प म होता है अत: ऐसे कल कारखान
के आस—पास क वायु म स फरडाई ऑ साइड क अ य धक मा ा पाई जाता है। SO का वायु म
उ च तर होने पर कई वसन संब धी सम याऐं उ प न हो जाती है। सर दद, अ न ा,
अ नय मत वसन आ द या धयां उ प न हो जाती है।
स फरडाई ऑ साइड जीव —ज तुओं के अलावा पौध के लये भी अ य त हा नकारक
गैस है।
(2) काबन मानो ऑ साइड —
यह एक रं गह न व गंधह न गैस है। काबन मोनो ऑ साइड मनु य के लये शार रक व
मान सक दोन ि टयो से हा नकारक है। 10 से 30 P.P.M. तक काबन मोनो ऑ साइड का
तर हमारे ति का तं को भा वत करता है। इसका तर 30 P.P.M. से अ धक होने पर दय
तथा फेफड पर बुरा भाव पडता है।
वायु दूषण के दु भाव :—
1. कल कारखान से नकलने वाल हा नकारक गैस जैसे — स फरडाई ऑ साइड, लो रन,
अमो नया, काबनडाई ऑ साइड आ द ऑखो म जलन, वसन संबध
ं ी अनेक रोग उ प न
करती है।
2. रासाय नक उ योग से नकलने वाल वा प अनेक कार के फु फुस स ब धी रोग
उ प न करती है।
3. ए यु म नयम तथा सु पर फा फेट का उ पादन करने वाले कारखान से लो रएन गैस
नकलती है जो दाँत ह डय म रोग उ प न करती है।
4. वाहन से नकलने वाल गैस — काबन मोनो ऑ साइड व स फरडाई ऑ साइड वसन
स ब धी रोग उ प न करती है।
वायु दूषण को रोकने के उपाय (Preventive measures to control of Air
pollution)

169
1. कल कारखान क चम नय पर ऐसे यं लगाये जाने चा हये क उनसे नकलने वाल
धु ए,ं गैस व धू ल कण का अवशोषण हो सके।
2. वाहनो से नकलने वाले धु एं को नयि त कया जाए। वाहनो को C.N.G. योजना के
अनुसार उपयोग म लाया जाए।
3. भ य व कल कारखान म ईधन का इस कार योग कया जाए िजससे उसका पूण
ऑ सीकरण हो सके।
4. ऐसे थान पर जहाँ जनसं या घन व अ धक हो, कल कारखाने नह ं लगाये जाए।
5. वन संर ण के वशेष उपाय कये जाने चा हये।

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. वायु दू ष ण के ोत बताइये?
2. वायु दू ष ण के मानव जीवन पर भाव बताइये?

11.7.1.4 वन दूषण (Noise Pollution)


शोर एक कार का अ य वायु दूषण है। इसके भाव से मनु य क सु नने क मता
म कमी आतीं है। अवां छत तथा अनचाह व न ह शोर है।
व न एक कार क ऊजा है, जो मा यम (वायु) म तरं ग ग त के प म संच रत होती
है। इ ह व न तरं ग अथवा वायु म उ प न क पन को हमारे कान हण करते ह, िजससे हमे
सु नाई दे ता है।
व न क ती ता को या बलता को डेसीबल (Decibels) म मापा जाता है। डेसीबल
पैमाने पर शू य व न ती ता का वह तर है जहाँ से हम सु नाई दे ना आर भ होता है, जैसे—जैसे
डेसीबल सं या बढ़ती जाती है व न क ती ता भी बढ़ती जाती है।
व न क ती ता (डेसीबल म) तथा मनु य वारा अनुभव कये जाने वाले व न के तर क ेणी

व न क ती ता व न के तर क ेणी
(डेसीबल म )
1 0—30 डेसीबल शांत
2 30—60 डेसीबल म यम
3 60—90 डेसीबल ती
4 90 — 120 डेसीबल अ तती (हा नकारक)
5 120 एवं इससे अ धक डेसीबल असु वधाजनक प से ती (खतरनाक)

शोर ( व न) के ोत (Source of Noise Pollution)


वन ोत को दो भाग म वभ त कर सकते ह –
1. ाकृ तक ोत (Natural Sources)

170
बादल क गरज, उ कापात, वालामु खी व फोट, भू खलन, भू क प से भवन का गरना,
समु लहर आ द।
2. मानव न मत ोत (Man—made Sources)
इ ह पुन : दो भाग म वभ त कया जा सकता है —
(अ) अचल ोत (Stationary Sources) :— इनम वभ न कार के उ योग, रे डयो,
टे ल वजन, मल के सायरन, लाउड पीकर, ववाह उ सव आ द।
(ब) सचल ोत :— इनम सड़क प रवहन, रे ल प रवहन तथा वायु प रवहन सि म लत ह। मोटर
गा डयां, रे ल गा डयां तथा वायुयान ऐसे ह ोत ह।
शोर के दु भाव (Effect of Noise Pollution)
1. सु नने क या पर :—
अ ययन से ात होता है क ल बी अव ध तक शोर त थान के संपक म रहने पर
मनु य पूण अथवा आ शक प से बहरा हो सकता है।
2. शर र क या णाल पर —
शोर केवल बहरापन ह उ प न नह ं करता वरन दय, पाचन तं तथा तं का तं पर
भी तकू ल भाव डालता है।
3. मान सक याओं पर :—
शोर के कारण मनु य के अनेक या कलाप म यवधान उ प न होता है िजसके
प रणाम व प असु वधा, दुघटना तथा थकान उ प न हो जाती है। कई क ट द व नय से
मान सक तनाव उ प न हो जाता है िजसके प रणाम व प दुघटना, लड़ाई—झगड़े मान सक
अि थरता, कु ठा, पागलपन आ द दोष उ प न हो जाते ह।
शोर दूषण को नयं ण करने के उपाय (Preventive measures to control Noise
Pollution)
1. शोर उ प न करने वाले वाहन क जांच क जानी चा हये तथा तकनीक दोष के
नवारण के प चात ह वाहन चलाने क अनुम त द जावे।
2. वाहन क अ धकतम शोर सीमा नधा रत कर दे नी चा हये।
3. उ योग तथा कल कारखान को अ धक जनसं या वाले े से दूर था पत कया जाए।
4. अ धक शोर उ प न करने वाले कारखान म शोर शोधक व धयां अपनाई जानी चा हये।
5. भार यातायात वाल स क तथा रे लमाग के दोनो ओर घने वृ ारोपण वारा शोर क
ती ता को कम कया जा सकता है।
6. शोर नयं ण हे तु भावी कानून बनाये जाने चा हये|

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. वन दू ष ण से आप या समझते है ?
2. वन दू ष ण को रोकने के उपाय का उ ले ख क िजये ?

171
11.8 अ यापक श ण (Teacher Training)
यूने को ने पयावरण श ा को अ यापक के श ण कायकम म सि म लत करने क
अनुशंसा 1982 म क थी इसी अनुशंसा के अनुसार जो अ यापक पहले से ह सेवारत है, उनके
लये अ भनवीकरण काय म तथा नये अ यापक के लये श ण काय म म पयावरण श ा
को सि म लत कया गया है।
श ा स ब धी कोई भी नवीन काय म बना अ यापक के स कय सहयोग के सफल
नह ं हो सकता। पयावरण श ा' को भी सफल बनाने के लये अ यापक क पयावरण श ा
स ब धी मनोवृि तय का वकास, पयावरण स ब धी आव यक जानकार , पयावरण श ा
स ब धी पठन व धय क जानकार व कौशल का वकास आव यक है।
अ यापक के लये पयावरण श ा स ब धी पा य म के न न ल खत उ े य होने
चा हये।
 अ यापक क पयावरण स ब धी जानकार म अ भवृ करना।
 थानीय सम याओं का सु यवि थत ढं ग से अ ययन करने क मता का वकास
करना।
 पयावरण स ब धी नई सम याओं के नबटने के लये उनको गहन प से श त
करना।
 अ यापक को इस कार के कौशल का श ण दे ना िजससे वे क ा म पयावरण
स ब धी सम याओं से उ प न भाव के वषय म छा को जानकार दे सक।
मटजैल (1982) ने अ यापक के श ण को भावी बनाने के लये कु छ सु झाव दये
ह। उनके अनुसार अ यापक क पयावरण श ा क न न ल खत वशेषताय होनी चा हये —
1. काय म का स ब ध मू ल व ान से होना चा हये पर तु वह पूर तरह से
व ान(Science ominated) मु ख नह ं होनी चा हये।
2. काय म व वध कार क चय तथा पृ ठभू म रखने वाले अ यापक के अनुकू ल होना
चा हये।
3. काय म का मू ल उ े य अ यापक को पयावरण श ा के त अपे त करने वाला
होना चा हये।
4. वह अ यापक को पयावरण वशेष के साथ संल नता उ प न करने वाला होना चा हये।
5. पा य म ऐसा होना चा हये िजसके वारा अ यापक अपनी मा यताओं, मू य तथा
भावनाओं और ाकृ तक वातावरण के साथ स ब ध के बारे म पुन वचार करने पर
मजबूर हो सक।
अब न यह उठता है क उपयु त वशेषताओं के आधार पर अ यापक के श ण का
व प या हो? स सेना (1983) ने इस स ब ध म न न ल खत व प का सु झाव दया है —
आमने—सामने श ण
इस स ब ध म वश ट वशेष गने—चु ने अ यापक को सामने बठाकर उनको
पयावरण श ा म श त करते है तथा ये श त अ यापक पुन : कु छ अ यापक को
श त करते ह इस कार क व ध म गुणव ता क ोल (Quality Control) क वशेष
आव यकता होती है।
172
व—अ धगम मो युल (Self Learning Module)
व अ धगम मो युल को बनाने म बहु त अ धक समय तथा अथ क आव यकता होती
है, पर तु एक बार इनके नमाण के प चात अ यापक श ण आसान व स ता हो जाता है।
INCERT म ऐसे Module का नमाण कया गया है।
Mass Media दूर संचार साधन
रे डय , टे ल वजन, क यूटर, वी डय , कॉ े ि संग, इंटरनेट आ द का उपयोग भी
आव यकतानुसार अ यापक को पयावरण स ब धी श ा के लये कया जा सकेगा।
प ाचार पा य म (Corrospondance courses)
प ाचार के मा यम से भी 'पयावरण श ा पा यकम चलाया जाता है। इसम े ीय
अ ययन, योजना, सव ण आ द का भी ावधान रहता है।

व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)


1. अ यापक श ण म पयावरण श ा के सं द भ म अपने सु झाव द िजये ?

11.9 पयावरण श ा यवहार म (Environmental Education


Question)
9.1 वतमान काल म "पयावरण श ा" पा य म म अनेक कार क याऐं यवहार म लाई
जा रह है े , वभ न कार क व धयाँ आ द ह।
9.2 पयावरण श ा के समथक व भ न पहलु ओं पर पा य म के नमाण म जोर दे ते ह।
उदाहरण के लये — कु छ या आधा रत पा य म, कु छ लोग सम या समाधान कया
पर जोर दे ते ह जो कु छ लोग पयावरण के साथ मानव के स ब ध को पा यकम म
शा मल करने पर जोर दे ते ह।
9.3 इस कार "सम या समाधान व ध" वारा छा गण सम या से स बि धत वभ न
पहलु ओं क जानकार , समझ व सम या समाधान कौशल का वकास कर सकते ह।
9.4 सीखने का मा यम "पयावरण" इस उपागम के समथक "पयावरण" को के ब दु
बनाकर छा म उनके त जाग कता तथा पयावरण के त सकारा मक ि टकोण
उ प न करने के लये जोर दे ते ह। इस उपागम म ''पयावरण'' एक योगशाला का काम
करता है। अ यापक के नदशन म छा गण पयावरण स ब धी व तु ओं जैसे पेड—पौधे,
पु प आ द का अ ययन करते ह।
9.5 वतमान समय म ''पयावरण श ा'' को लगभग येक दे श ने अपनाया है व इसे
ाथ मक तर से लेकर व व व यालय क श ा तक मह वपूण थान दया गया है।
राज थान सरकार ने भी पा य म म ''पयावरण श ा'' को मह व दया है। येक वष
व यालय म पयावरण जाग कता के लये मा य मक तर पर पयावरण श ा
स ब धी तयो गताओं का आयोजन '' व व पयावरण दवस'' पर श ा वभाग वारा
करवाया जाता है। इस कार यह कहा जा सकता है क पयावरण श ा यवहार म
सफलता पूवक ला जा रह है।
173
व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)
1. आप अपने व यालय म पयावरण श ा कस कार दे ना चाहगे ? पा य म,
अ ययन व ध तथा समय वभाग च को यान म रखकर इसका उ तर
ल खये ?

11.10 सारांश (Summary)


भौ तक व औ यो गक वकास के साथ पयावरण को न ट कया जाने लगा है। ''पयावरण
श ा" का इ तहास से प ट होता है क मानव इसके त जाग क रहा है। ''पयावरण'' स ब धी
जानकार व समझ उ प न करने क या को पयावरण श ा कहा जा सकता है। य य प
व वान ने पयावरण श ा को अलग—अलग प से प रभा षत कया, व व संगठन क सं था ने
पयावरण श ा के वभ न उ े य ता वत कये है, िजनम पयावरण के त जाग कता,
समझ, कौशल, मनोवृि तय आ द का वकास मु ख है। पयावरण श ा आज अ य त आव यक
है य क मानव व पयावरण एक दूसरे के पूरक है।

11.11 मू यांकन (Evaluation)


.1 पयावरण श ा से आप या समझते है? दो वा य म ल खये?
What do you mean by Environmental Education? Write in two
sentences?
.2 पयावरण श ा को अ त: अनुशासना मक य माना है, दो वा य म समझाइये?
Why Environment Education is considered as interdisciplinary?
Explain in two sentences.
.3 वदाथ ने पयावरण श ा के उ े य को कतनी ेणी म बांटा है? नाम ल खये?
Mention objectives of Environmental Education in Teacher
Education?
.4 अ यापक क ''पयावरण श ा' से स बि धत उ े य कौन—कौन से ह?
How Viddarth has classified objectives of Environmental
Education?Give names?
.5 पयावरण श ा —''पा यकम'' के प म कस कार यवहार म लाई जा रह है?
How Environmental Education Practically used in curriculum?
.6 आपके मतानुसार वतमान भारत म ''पयावरण श ा' म या दोष है? क ह तीन दोष
क चचा तीन वा य म क िजये?
What are the limitations of Environment Education in India?Give
your own views three limitations?

11.12 संदभ थ (References)

174
1. Soxena,A.B.” Environment Education”National Psycholigical corporation,
Agra,1986
2. Agrawal, Anil 1982, ”For on Altermation Development” The Vnaco courier,
August—September 23—26
3. Chourasia R.A.1998 ”Elements of Environment Education” Sahitya
Prakashan Agra.
4. Senger Shivraj singh” Environment Education” Sahitya Prakashan Agra.
5. EEP (Environment Education Project),1981.
“Environment Education; A source book for primary Education.”Curriculum
development center canbera,Austrlia.
6. NCERT 1990 A Teacher’s Guide for Environmental studies Part II
Class—V NCERT,New Delhi.
7. Rajput J.S.1978”Teaching through Environmental Paper presented at the
meeting of UNESCO study group on development of curriculum material
held during 4—19 December at Vdan them Thailand.

175
इकाई 12
भारत म वं चत वग के लए श ा
(Education of Deprived Class in India)
इकाई क परे खा (Outline of the Unit)
12.1 तावना (Introduction)
12.2 सामािजक—आ थक प र य (Socio—economic Scenerio)
12.3 वं चत वग का अथ (Meaning of Deprived Class)
12.4 ै ा नक मू य (Constitutional Values)
संवध
12.4.1 याय (Justice)
12.4.2 वतं ता (Liberty)
12.4.3 समता (Equality)
12.4.4 ब धु व (Fraternity)
12.5 संवध
ै ा नक मू य के शै क न हताथ (Educational Implications of
Constitutional Values)
12.6 संवध
ै ा नक ावधान (Constitutional Provisions)
12.7 वं चत वग क श ा (Education of Deprived Class)
12.7.1 अनुसू चत जा त क श ा (Education of Schedule Class)
12.7.2 अनुसू चत जनजा त क श ा (Education of Schedule Tribe)
12.7.3 न द ट जनजा त क श ा (Education of DT)
12.7.4 मणशील जनजा त क श ा (Education of NT)
12.8 वं चत वग क श ा के लए सु झाव (Suggestion for Education of Deprived
Class)
12.8.1 शै क सु वधाओं क सु लभता (Availability of Educational Facilities)
12.8.2 अंशका लक एवं दूर थ श ा यव था (Part Time and Distance
Education System,)
12.8.3 तपूरक श ा (Supportive Education)
12.8.4 श क क भू मका (Role of a Teacher)
12.8.5 श ण म सां कृ तक प र े य (Cultural Perspective in Teaching)
12.8.6 ेरक ग त व धयाँ (Motivational Activities)
12.9 सारांश (Summary)
12.10 मू यांकन न (Evaluation Questions)
12.11 संदभ (Reference)

176
12.1 तावना (Introduction)
भारत ' व वधता म एकता के लए स मा नत दे श है। इसे आ याि मक ि ट से उ चतम
तर पर आ मसंतु ि ट के ोत के प म दे खने क पर परा रह है। मु य प से कृ षक समाज
रहा। आ थक ि ट से वप नता के बावजू द आ म नभरता, संतोष और येक गाँव म काय करने
क वाय तता पर जोर दया जाता रहा। अतीत म सामािजक स ब ध क पहचान भी व तीय
भू मकाओं क जमावट, रोजगार एवं श ा से थी। यौहार समाज के आत रक संगठन के व भ न
अंग के प म अ य त वाभा वक तर के से मनाए जाते थे। धा मक व दाश नक लोकाचार
आ म ान क ाि त के मु य उ े य से उसके आस—पास केि त रहते थे।

12.2 सामािजक—आ थक प रवतन (Socio—Economic Change)


वतमान भारतीय समाज म एक बड़ा वग इस धा मक और दाश नक लोकाचार, सामािजक
रचना क चेतना और अतीत क वरासत क समझ से दूर चला गया है। आधु नक ौ यो गक से
भा वत होकर माता— पता तथा शै क सं थाएं केवल सू चना ौ यो गक जैसे ान अिजत करने
पर जोर दे ने लगी ह। क तु गाँव म रहने वाले तथा सामािजक—आ थक प से वं चत वग इन
वकास के त आज भी अन भ सा है। इस कार एक नये कार का वभाजन पैदा हो गया है
जो ामीण—शहर , कृ षक—औ यो गक, समृ — नधन, सा र— नर र के प म तेजी से दखाई दे
रहा है।
कृ ष धान समाज के प र य म बाद क पी ढ़याँ अपने पार प रक ध ध और
पा रवा रक ल य या मोटे तौर पर जातीय ल य का ह अनुसरण करती थी। आगे चल कर
ौ यो गक वकास के नये यवसाय शु हु ए और प रणाम व प नये ल य ब दुओं का उदय
हु आ। संयु त एवं व तृत प रवार णाल के वपर त अब समाज म लघु प रवार का चलन,
माता— पता दोन के बजाय केवल 'माँ' या केवल ' पता', अ ववा हत स ब ध और ऐसी अनेक बात
दख रह ह। आधु नक औपचा रक म या काय रोजगार संगठन से सह—समू ह का ज म हु आ।
टश श ा णाल जो इस दे श म आजाद के बाद तक भी जार रह , ने इस कार के तौर—
तर क के वकास म काफ , योगदान दया। यह हमारे कृ ष धान समाज क काय—रचना के
एकदम वपर त था।
इस कार पूव म ि थत जा तगत भेद के साथ ह साथ आ थक वग यव था ने भी
समाज म असमानताएँ उ प न कर द ह। एक बड़ा वग है जो इस ि ट से वं चत वग म
समा हत है। इस वं चत वग को श ा के वारा ऊपर उठाया जाना आव यक है। िजससे
सामािजक सम पता था पत क जा सके।

12.3 वं चत वग का अथ (Meaning of Deprived Class)


वं चत वग मे वे सम त लोग आते ह जो कसी न कसी कारण से समाज म ह न
ि थ त म रहे ह वह सामािजक कारण भी हो सकते ह तथा आ थक भी। ऐसे यि त समाज म
आगे आने म असमथ रहे ह। ये श ा के अवसर भी नह ं पाते। प रणाम व प आ थक एवं
सामािजक ि ट से ऊपर नह ं उठ पाते ह।
भारतीय सं वधान क धारा 341—342 म अनुसू चत जा त तथा अनुसू चत जनजा त को
पछड़ी जा तय म रखा गया है। सं वधान म यह भी ावधान है क रा य अपने े म

177
सामािजक आधार पर िजन जा तय को वं चत वग माने वह वीकाय होगा। इनम अनुसू चत
जा त (Schedule Class), अनुसू चत जनजा त (Schedule Tribe), न द ट जनजा त
(Deprived Education of Schedule Tribes) एवं मणशील जनजा त (Numadic
Tribes) को रखा गया है।
'वंचन' मूल प से आ थक स यय है। जब एक प रवार को अ धका धक समय
जी वका के लए यय करने के बाद भी पया त भोजन एवं पोषण ा त नह ं होता है तब उसे
गर ब कहा जाता है। ऐसे प रवार के बालक भी आ थक याओं म जु ट जाते ह तथा श ा—द ा
के अवसर से वं चत रहने के कारण वं चत वग म आते ह।
इसी कार सामािजक मा यताओं एवं र त— रवाज के कारण म हलाओं को समाज म
समान अवसर नह ं मल पाते। भारत के ामीण एवं सु दरू वत इलाक म अभी भी बा लकाओं को
बालक से भ न मानकर यवहार कया जाता है। उनके लए श ा अजन से अ धक घर क
िज मेदार का नवाह करना है। अत: पढ़ाने के अवसर से वं चत रखा जाता है। कई बार सु र ा
क ि ट से भी ऐसा कया जाता है।

व—मू यां क न—1 (Self Evaluation Question)


1. समाज म कस कार के सामािजक—आ थक प रवतन हो रहे ह?
2. वं चत वग से आप या समझते ह?
3. हमारे सं वधान म कौनसी जा तय को वं चत वग म रखा गया है ।

12.4 संवैधा नक मू य (Constitutional Values)


समाज म कोई भी वं चत वग न रहे । सभी को समान अवसर मल इस लए भारतीय
सं वधान क तावना म कहा गया है क — याय—सामािजक, आ थक एवं राजनै तक, वचार ,
अ भ यि त, व वास, आ था तथा पूजा क वत ता, तर तथा अवसर क समानता तथा
इनको सबम ो सा हत करगे। To Constitute India in to a sovereign, socialists,
secular and democratic republic and to secure to all its citizens :
Justice—social, economis and political ; liberty and thought, expression,
faith, belief and worship, equality of status and opporturnty, and to
promote among them all fratemity assuring and the dignity of the
individual and the integrity of the nation.’
ब धु व, यि त क ग रमा तथा रा क एकता का व वास दलाते हु ए अपनी सं वधान
सभा म सन ् 1949 नव बर के छबीसव दन अब अपनाते ह, अ ध नयम बनाते ह अपने आपको
यह सं वधान दे ते ह।
हमारे सं वधान म चार आदश — याय, वत ता, समता एवं ब धु व सि म लत करने
का उ े य यह रहा क सामािजक असमानताएं, आ थक— वभेद तथा राजनै तक वशेषा धकार
समा त कये जा सक। कानून क ि ट से येक यि त का तर बराबर है। येक क आ म—

178
त ठा को मा यता द गई है। इन चार आदश का शै क मह व है। इ ह तभी ा त कया जा
सकता है जब क श ा के वारा समाज के वं चत वग को उसके मह व को समझाया जाये।
सामािजक वगभेद को दूर करने के लए ये चार अ धकार दये गये ह। ये वो मू ल अ धकार ह जो
उन सब बात का त न ध व करते ह जो क भारतीय समाज के लए मू यवान ह। यह नदशन
स ा त ह, आचरण के नयम ह िजन पर भ व य के कानून एवं वधान नमाण कये जाने
चा हए।

12.4 संवैधा नक मू य के शै क न हताथ (Educational


Implications of Constitutional Values)
12.4.1 याय (Justice)
मू ल अ धकार के स दभ म याय श द क अवधारणा से अ भ ाय है — सबको बराबर
का थान व अवसर। इसके अ तगत रा य नाग रक म भेद—भाव धम, जा त, जा त, लंग भेद
या ज म थान के आधार पर नह ं करे गा। इस लए श ा यव था म शै क सं थाओं का
संगठन इस कार करना चा हए क उनके दरवाजे दे श के कसी भी नाग रक के लए सदै व खु ले
रह। कोई भी शै क सं था वशेष धम, जा त या जा त या े के लए ह केवल आर त नह ं
क जा सकती। हमारे व यालय म कसी कार का भेदभाव समाज के व भ न वग या जा तय
म नह ं कया जा सकता है। सभी को अपने आ म वकास तथा ानाजन के लए अवसर ा त
ह । श ा सु वधा सहज उपल ध हो िजससे सामािजक—आ थक प से वं चत कसी भी नाग रक
के वकास के अवसर अव न ह । य द कसी भी यो य व याथ को साधन के अभाव म
श ा के अवसर दान नह ं कये जाते ह तो यह सामािजक अ याय होगा तथा सं वधान के
व होगा।
12.4.2 वत ता (Liberty)
हमारे सं वधान के अ तगत कोई भी नाग रक अपना नवास थान चयन करने, मण
करने, अ भ यि त करने, संगठन न मत करने, रोजगार करने, स पि त अिजत करने हे तु
वत है। इस लये कसी भी यवसाय, धम, जा त, े , भाषा के आधार पर शाला म वेश से
वं चत नह ं कया जा सकता। इस अ धकार के उ चत उपयोग क श ा दे ना अ य धक आव यक
है। उ च अ धकार , उ च जा त, उ च आ थक तर वाले यि त को येक कार क वत ता
एवं अ धकार ा त ह । रा य या कानून उनके इस वत ता के अ धकार के उपयोग करते
समय यह न दे खे क इससे कसी यि त, वग, समु दाय या जा त क वत ता या अ धकार
का हनन हो रहा है, उनका शोषण कया जा रहा है — तो यह सं वधान क अवहे लना होगी। अत:
सं वधान म इस अ धकार को दे ने क भावना को समझना होगा। वयं क वत ता का अ धकार
दूसर के लए शोषण नह ं बनाना चा हए। इस भावना को श ा यव था के वारा ह वक सत
कया जा सकता है।
12.4.3 समता (Equality)
पूव त सामािजक याय क अवधारणा म समता का अ धकार समा हत है। यह अ धकार
दे श के कानून के स मु ख सबको बराबर मानने का है। येक नाग रक को कानून का संर ण
ा त करने का अ धकार है। कानून कसी भी नाग रक के साथ जा त, वग या धम के आधार पर

179
भेद—भाव नह ं कर सकता है। कानून सब के लए चाहे ह दू हो, मू सलमान हो, युवा हो, वृ हो,
ी या पु ष एक समान है। इसके अ तगत श ा यव था म वेश, चयन, मू यांकन, यवहार
आ द म समानता का यान रखा जाये। सामािजक एवं आ थक प से वं चत वग के साथ
भेदभाव कया जाना गैर संवध
ै ा नक होगा।
12.4.4 ब धु व (Fraternity)
रा य एकता एवं स ावना बनाए रखने के लए ब धु व क भावना अ य धक आव यक
है। उ त तीन मू ल अ धकार— याय, वत ता एवं समानता का ववेकपूण उपयोग न कया जाये
तो समाज म कई यि त शो षत होते रहगे। जब क इन अ धकार को समा व ट करने का उ े य
यह था क रा य एकता व स ावना बनी रहे | इसी लए ब धु व का अ धकार सि म लत कया
गया है। य क मू ल अ धकार के योग म दूसरे यि तय क वत ता म कावट पड़ती है या
वह समाज वरोधी है या वह अनै तक है तो उ ह यवहार म लाने क अनुम त नह द जा
सकती है। इसम कोई स दे ह नुह ं है क हमारे सं वधान म यि त क मान—मयादा को बहु त
ऊँचा थान दया गया है क तु यह रा क एकता के बीच म कावट नह ं बन सकती है। अत:
रा य स ावना हे तु ब धु व के अ धकार क पालना आव यक है। श ा यव था म वं चत वग
के त स ाव तथा सहयोग क भावना को पो षत कया जाना आव यक है।
उपरो त संवध
ै ा नक ावधान के अ तगत सामािजक वकास के ल य को ा त करने
तथा सामािजक सम पता था पत करने क ि ट से यथे ट गुणा मक तथा यापक श ा एक
बहु त ह शि तशाल साधना है। कु छ मह वपूण रा य ल य ह पंथ नरपे ता, लोकत ,
समानता, वत ता, ब धु व, याय, रा य एकता और दे शभि त। श ा का दा य व है क वह
ब च म मानव अ धकार और कत य के त स मान क भावना वक सत कर। नबल समु दाय
िजनम अनुसू चत जा त, अनुसू चत जनजा त, म हलाएं, वकलांग ब चे 'और अ पसं यक आते
ह, अब और दे र तक सु वधा वं चत नह ं रखे जा सकते।

12.5 संवैधा नक मू य के शै क न हताथ (Educational


Implications of Constitutional Values)
12.6 संवैधा नक ावधान (Constitutional Provisions)
महा मा गाँधी श ा को समाज के पुन नमाण एवं चेतना जा त करने के लए मु ख
साधन मानते थे। इसके अनु प सं वधान नमाण स म त ने रा य वकास के लए सं वधान म
श ा को के य थान दया। इसी लए व भ न धाराओं म श ा के चार व सार ह नह ं
वरन ् अ नवाय प से लागू करने क यव था द है।
इस यव था म आ थक एवं सामािजक प से वं चत वग को आगे लाने का ावधान भी
सि म लत है।
समािजक—आ थक वं चत वग म शहर / ामीण, गर ब—अमीर, पु ष—म हला आ द
आधार बनते ह। इन सभी आधार को यान म रखा गया है। क तु कु छ जा त—आ दवासी जा त,
आ दवासी जनजा त, अ य पछड़ा वग आ द के लए वशेष आर ण यव था भी क गई है। इन
सबसे स बि धत व भ न धाराएं न न कार ह :—

180
 धारा 45 के अ तगत यह नद शत कया गया है क सं वधान लागू होने के दस वष के
अ दर 14 वष तक के येक बालक को नःशु क अ नवाय श ा द जायेगी।
 सं वधान क धारा 29(1) के अ तगत ावधान है क नाग रक का कोई भी वग दे श के
कसी भी भाग म भारत दे श क सीमा म रहता हो, चाहे कसी भी भाषा या धम का हो, को उ त
लाभ ा त होगा।
 सं वधान क धारा 29(2) के अनुसार कोई भी शै क सं था कसी भी नाग रक को धम,
जा त, भाषा या अ य कसी भी कारण से वेश दे ने से मना नह ं कर सकती।
 धारा 30(1) म दये ावधान के अनुसार धम अथवा भाषा के आधार पर अ पसं यक
वग को उनक च के अनुसार श ण सं थाएँ था पत करने एवं चलाने का अ धकार होगा।
 धारा 30(2) के ावधान के अनुसार धम अथवा भाषा के आधार पर वग कृ त अ पसं यक
समू ह वारा बं धत शै क सं थाओं को रा य अथवा के सरकार अनुदान हे तु भेदभाव पूण
यवहार नह ं कर सकती।
 धारा 350(4) के अनुसार भाषा के ि ट से घो षत अ पसं यक वग के बालक क
ाथ मक तर तक क श ा के लए उनक मातृभाषा म श ण क सु वधा दान करने क
िज मेदार थानीय अ धकृ तयो क होगी।
 धारा—46 के अ तगत वं चत वग के आ थक एवं शै णक च का वशेष प से यान
रखने क िज मेदार रा य सरकार को द गई है। इस धारा के अनुसार कमजोर वग म शै क
च जा त करना एवं आ थक सु वधा का यान रखा जाना चा हए। वशेष प से, आ दवासी एवं
आ दवासी जनजा त समू ह का, श ा के लए कसी भी कार का शोषण न हो, स पूण सामािजक
याय ा त हो, यह आव यक है।
भारतीय सं वधान म 42वे संशोधन से श ा को एक मा रा य सरकार के दा य व से
हटा कर समवत सू ची म सि म लत कर लया है। इस प रवतन का उ े य था क श ा के े
म जार सम त रा य नी तय व ायोजनाओं को यवि थत प से सु वधाऐ ा त हो सक।
इस यव था म के एवं रा य सरकार क साथक सहभा गता हो सकेगी।

12.7 वं चत वग क श ा (Education of Deprived Class)


सव थम सन ् 1882 म दादा भाई नारोजी ने भारतीय श ा आयोग के सम ाथ मक
श ा को अ नवाय करने का ताव कया था। क तु अं ेज ने इसे अ वीकार कर दया।
1910—12 म गोपाल कृ ण गोखले ने पुन : यह ताव रखा। इस पर भी यान नह ं दया गया।
1937 म गाँधीजी ने बु नयाद श ा योजना दे कर अ नवाय एवं नःशु क श ा का ावधान
रखा। यो यता एवं साधनह नता के आधार पर छा वृि तयाँ भी ार म क गई। वतं ता के
प चात ् ये यास अ य धक बढ़े ह।
12.7.1 अनुसू चत जा त क श ा (Education of Schedule Caste)
इनक ि थ त समाज म अलग—थलग सी थी। प रणाम व प ये श ा से वं चत रहे ।
सं वधान क धारा 17 म अ पृ यता नवारण का ावधान कया गया है। अछूत को सभी
सावज नक थान , धा मक थान का उपयोग करने क छूट सं वधान क धारा 15 एवं 25 म
उ ले खत है। धारा 29 म सरकार अथवा अनुदा नत श ण सं थाओं म वे शत होने का

181
अ धकार ा त है। इसके अ त र त भारतीय सं वधान क धारा 16,46, 164, 335 एवं 338 म
भी अनुसू चत जा त को अ धका धक अवसर दान कर आगे लाने हे तु ावधान कये गये ह।
इन व भ न संवध
ै ा नक ावधान के अनुसार अनुसू चत जा त के वं चत वग को शै क
अवसर दान करने हे तु अनेक ो साहन दये जा रहे ह। नःशु क श ा, आवासीय यव था,
छा वृ लयॉ आ द। नई श ा नी त म इन सब सु वधाओं के साथ गणवेश, पु तक, टे शनर आ द
भी नःशु क उपल ध करवाने क सु वधा द गई है।
12.7.2 अनुसू चत जनजा त क श ा (Education of Schedule Tribe)
अनुसू चत जा तय क भाँ त अनुसू चत जनजा त के लोग भी सामािजक, आ थक एवं
शै क ि ट से पछड़े हु ए रहा है। इस समू ह म भील, मीणा आ द आ दवासी सि म लत ह। ढे बर
कमीशन(1960—61) के सु झाव के अनु प सरकार ने अनुसू चत जनजा त के ब च के लए
नःशु क श ा यव था के साथ नःशु क म याहन भोजन, व , पु तक, लेखन साम ी आ द
भी दान क जाती है। कोठार कमीशन (1964—66) ने अनुसू चत जनजा त के वरल आबाद
(Spreadly Populated Agrees) वाले े म आ म कू ल िजसम नःशु क श ा, आवास,
भोजन, व , प ने— लखने क यव था आ द क सफा रश क ।
12.7.3 न द ट जनजा त क श ा (Education of Denotified Tribes)
इ ह अपराधशील अथवा जरायम पेशा जनजा त भी कहा जाता है। ये जनजा त भी
अनुसू चत जनजा त क भां त सु दरू पहाड़ी, जंगल , रे ग तानी आ द े म बसने वाल जा त ह।
इस जा त के लोग पहले चोर , डकैती तथा अपराध करते थे। वाधीनता के प चात ् इ ह वह
शै क सु वधाएँ ा त हो रह ह जो अनुसू चत जा त/ जनजा त को ा त ह। सरकार नौक रय
म आर ण होने के कारण ये जा तयाँ अपराधी वृि त याग चुक ह। इसी लए इ ह जरायम पेशा
या अपराधशील जनजा त न पुकार कर न द ट जनजा त कहना ार भ कर दया है।
12.7.4 मणशील जनजा त क श ा (Education of Nomadic Tribes)
अनुसू चत जा त अथवा जनजा त क तु लना म मणशील अथवा खानाबदोश जनजा त
सामािजक—आ थक ि ट से अ धक पछड़ी रह है। जैसे बंजारे , गाडो लया लु हार आ द का कोई
थायी नवास नह ं होता। ये एक थान से दूसरे थान पर मण करते रहते ह। ऐसे ब च क
श ा यव था होना बहु त क ठन ह। इ ह सरकार क ओर से अनेक सु वधाएं ा त ह फर भी ये
घुम कड़ जीवन नह ं छोड़ते। ऐसे लोग के लए मणशील पाठशालाएं, दूर थ श ा, मु त
व यालय, आ द ह अ धक उपयोगी स हो सकती ह।

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. वं चत वग के लए सं वधान म या — या ावधान दये गए है ?
2. ' याय'एवं 'समता' के मू य वं चत वग को कै से ऊपर उठा सकते ह?
3. आ दवासी जा त एवं जनजा त के लए या सु वधाएँ वीकृ त क गयी ह|

12.8 वं चत वग क श ा के लए सु झाव (Suggestion for


Education of Deprived Group)
182
12.8.1 शै क सु वधाओं क सु लभता (Availability of Educational Facilities)
वत ता के प चात ् शै क सु वधाओं का व तार होता ह रहा है। तथा प ऐसे अंश
जहां पर वं चत वग क जनसं या क बहु लता हो— वशेष यान दे कर अ धक सु वधाएँ उपल ध
करवाना आव यक है िजससे वे सामािजक—आ थक लाभ को यान म रखते हु ए अपने ब च को
शाला म भेजने के लए आक षत ह । य द समीप ह सु वधा हो तो अवसर का लाभ लेने क
स भावना बढ़ जाती है। भारत सरकार ने नई श ा नी त के अ तगत याम प संचालन
(Operation Black Board) नाम से काय म भी चलाया है। उ च श ा वशेष प से
यावसा यक श ा क यव था भी ऐसे े म हो तो वं चत वग लाभाि वत हो सकेगा।
ामीण तकनीक (Rural Technology), ामीण अथशा (Rural Economics),
ामीण ब धन (Rural Management) आ द के पा य म हे तु वशेष ो साहन होने पर
बालक वयं के गाँव के लए अ धक उपयोगी हो पायेगा। इसके लए वशेष आ थक सहयोग दया
जाना चा हए।
12.8.2 अंशका लक एवं दूर थ श ा क यव था (Part time and Distance
Education)
आ थक प रि थ तय , पा रवा रक काय अथवा उ तरदा य व , घर वाल क श ा के त
उदासीनता अथवा क ह ं सामािजक असमानताओं आ द के कारण अनेक ब चे बीच म ह
व यालय छोड़ दे ते ह। इन प रि थ तय के कारण अनेक छा को तो पूव मा य मक, मा य मक
अथवा उ च श ा ार भ करने का अवसर ह नह ं मल पाता। ऐसे छा क शै क असमानता
दूर करने के लए यह आव यक है क अंशका लक तथा दूर थ श ा क यव था हो जो
औपाचा रक श ा के ब धन से मु त हो। जहाँ ाथ मक व यालय होते हु ए भी अनेक ब चे
व यालय म नह ं आ सकते अथवा व यालय बीच म छोड़ दे ते ह उनके लए अनौपचा रक श ा
के क यव था क गई है। के सरकार ने 1979—80 म यह योजना शै क ि ट से पछड़े
हु ए रा य म ार भ क थी। इसके अ तगत नाग रक बि तय , पवतीय, म थल य तथा
जनजातीय े के ब च व कायरत ब च के लए भी इस कार के के चलाये जा रहे ह।
श ा नी त 1986 म अनौपचा रक श ा काय म को एक काय म के प म संचा लत करने का
संक प कया गया है। इन अनौपचा रक श ा के म ब च क सु वधा को ि टगत रखते हु ए
थान एवं लगभग 2 घ टे का समय नि चत कर ाम अथवा मु ह ले के कसी श त यि त
िजसे अनुदेशक कहते है वारा श ा दान क जाती है और यह ल य रखा जाता है क 2 वष
क अव ध म छा ाथ मक तर का पा य म पूण कर औपचा रक श ा क धारा म सि म लत
हो जाय। रे डय एवं दूरदशन के कायकम वारा भी इन ब च को श त करने क यव था क
गई है। के के सहायता अनुदान से इस कार के अनौपचा रक श ा के रा य सरकार वारा
भी संचा लत कये जा रहे ह।
ाथ मक तर के समान ह मा य मक एवं व व व यालय तर पर भी अंश—का लक
श ा एवं साथ ह दूर थ श ा क यव था क गई है। मा य मक तर पर खु ला व यालय
(Open School) द ल म सन ् 1979 से काय कर रहा है इसके अ तगत वेश हे तु अव था
और शै क यो यता स ब धी कोई तब ध नह ं है। यह मु य प से एक प ाचार पा य म
संचा लत करता है जो वा तव म दूर थ श ा है। इसके साथ ह यह वैि छक आधार पर

183
स पक क ाओं (Contact Classes) अथवा आमने—सामने क श ा (Face—to—Face) क
यव था करता है। यह भी उ लेखनीय है क खु ला— व यालय अब +2 तरपर पा यकम ार भ
कर रहा है।
उ च श ा के े म अनेक व व— व यालय नातक, नातको तर एवं उपा ध
(Diploma) तर के पा य म चला रहे ह। यह प ाचार के साथ—साथ स पक क ाओं अथवा
आमने—सामने क श ा यव था भी करते ह। दे श म इस समय व भ न व व व यालय ऐसे भी
ह जो खु ले व व व यालय के प म काय कर रहे ह। ऑ दे श खु ला व व व यालय(1982)
इि दरा गाँधी मु त व व व यालय(1965) और कोटा खु ला व व व यालय (1987) प ाचार
पा यकम वारा यह दूर थ श ा क यव था करते ह एवं व श ट थान पर महा व यालय म
अ ययन के था पत कर स पक क ाओं, मु त साम ी के वतरण, परामश आ द क
यव था भी करते ह। इन खु ले व व व यालय के पा य म म रे डयो एवं दूरदशन का उपयोग
कया जा रहा है। खु ले व व व यालय म जो छा नातक पा य म म वेश लेते ह उ ह कसी
शै क अहता (Educational Qualifications) क आव यकता नह ं होती पर तु य द +2
पर ा उ तीण नह ं ह तो उ ह एक वेश पर ा दे नी पड़ती है और उसम उ तीण होने पर ह
उनका वेश हो पाता है। इन यास के भाव को बढ़ाने क आव यकता है।
12.8.3 सहयोगी श ा (Supportive Education)
सहयोगी श ा का अथ है ऐसी व श ट श ण सु वधाओं और ो साहन का ावधान
जो सामािजक एवं आ थक प से पछडे अथवा सां कृ तक प से वं चत वग के ब च क
ारि भक जीवन म होने वाल असु वधाओं अथवा ह नताओं क तपू त कर दे । प ट है क
नधनता अथवा आ थक असमानता, घर के वातावरण, सामािजक तर क ह नता तथा यो न
अ तर के कारण उ प न होने वाल शै क अवसर क असमानताओं को सहयोगी श ा के वारा
कम कया जा सकता है। सहयोगी श ा के कु छ ावधान जैसे नःशु क श ा क यव था,
छा वृि तयॉ, बना मू य के पु तक, कागज, काँपी, पेि सल आ द के वतरण क यव था तथा
अनौपचा रक श ा, के , खु ले व यालय तथा खु ले व व व यालय क चचा हम पहले ह कर
चु के ह।
इसके अ त र त अनुसू चत जा त एवं अनुसू चत जन—जा तय के लए सं वधान के
अ तगत कमश: 15 तशत एवं 7.5 तशत आर ण श ा सं थाओं एवं नौक रय म कया
गया है।
साथ ह ह रजन छा ावास क यव था क गई है एवं िजला मु यालय पर सामा य
छा ावास म अनुसू चत जा तय के छा के लए सु वधाय दान क गई है। अनुसू चत जा त
एवं अनुसू चत जनजा त के युवक को सावज नक सेवाओं म चयन से स ब नधत तयो गताओं
के हे तु तैयार करने के लए श ण दया जाता है। दे श के मु ख नगर म यह योजना चल रह
है। ि य क श ा को ो साहन दे ने के लए क या व यालय आ धका रक सं या म खोले जा
रहे ह तथा म हला श क क अ धका धक एवं वर यता के आधार पर नयुि त क जा रह है।
ि य को तकनीक एवं यावसा यक पा य म म वेश ा त करने पर तथा पर परागत ध ध
म लगाये जाने हे तु ो साहन दया जा रहा है।

184
चालक य डचलचज बाधाओं और सामा य बाधाओं से त ब च क श ा जहॉ तक
स मव है, अ य ब च के समान तथा इसके साथ ह एक कृ त श ा के अ तगत क जा रह ।
इस नी त पर आगे चलने क घोषणा नी त म भी गई है।
िज हे अपने ारि मक जीवन म श ा ा त करने का कोई अवसर नह ं मल सका
उनके लए ोढ़ श ा क यव था वत ता पूव से ह क जा रह है।
ौढ़ श ा के कायकम म रे डयो, दूरदशन और चल— च का पूण सहयोग लया
जायेगा। साथ ह अ धगमकताओं (सीखने वाल ) क चय को यान म रखते हु ए यावसा यक
एवं तकनीक श ा के अनौपचा रक काय म वृहत तर पर आयोिजत कये जायगे।
12.8.4 श क क भू मका (Role of a Teacher)
श ा यव था म असमानता को दूर करने, वं चत वग को पूण सु वधा दे ने क कया
म श क क भू मका अ य धक मह वपूण है। य द संवध
ै ा नक ल य को ा त करने म श क
सकारा मक भू मका का नवाह करना चाहते ह तो यि तगत सोच को व तार दे कर सामा य
हत म काय कर। भारतीय दशन तथा सां कृ तक मू य को आ मसात करते हु ए सांवध
ै ा नक
ावधान को सह स दभ म समझे। य क समाज के सम त वगभेद को मटाने के लए
सं वधान म दये गये ावधान मा दखावा नह ं है, केवल सै ाि तक नह ं है वरन ् समाज क
प रवतनशील ि थ तय म समाज के संर ण के यावहा रक नदश है। अत: श क के श ण
के दौरान इनके मू ल त व को समझते हु ए श क को संवेदनशील होना चा हए।
दाश नक अथ म याय, वत ता, समानता एवं ब दु व अ तस बि धत ह एवं एक—
दूसरे पर नभर है। अत: इ ह अलग—अलग भी समझना होता है। याय म श क को समझना
होगा क राजनी तक, आ थक, सामािजक कसी भी आधार पर भेद—भाव न करते हु ए छा जो भी
यो यता रखते ह उसके अनुसार यवहार करना होगा। समाज के वं चत वग के लए आर ण के
नयम क पालना करनी चा हए। अत: दूसरे श द म श क को छा के साथ समान यवहार तो
करना ह चा हए साथ ह छा को भी सामािजक याय क माँग करने के लए जागृत करना
चा हए। इससे समाज जागृत होगा। श क को यह समझना होगा क अ याय होता रहे तथा
समाज का एक वग सु वधा स प न हो। इससे रा म शाि त कभी नह ं रह सकती। न ह
वकास हो सकता है। अत: सामािजक मू य के प म ‘ याय' क श ा द जानी चा हए।
इसी कार वत ता का अथ ब धन से मु ि त है। क तु समाज म मा यताओं, आदश
एवं सं कार के ब धन म रहना होता है। तभी वत ता समाज के लए हतकार होती है।
श णाथ को महा व यालय के सम त नयम क पालना करनी चा हए तथा इसे अपने
यवहार का अंग बनाना चा हए। िजससे वानुशा सत जीवन जी कर खाज म एक यव था
था पत क जा सके। इससे येक यि त के यि त व को वक सत होने का पूरा अवसर
मलेगा। रा के लए एक िज मेदार सु नाग रक के प म सभी का वकास हो सकेगा। यह
श क को वयं भी समझाना पड़ेगा क वत ता का अथ नबाध व छ दता नह ं होता।
समाज एवं रा य वारा नधा रत नै तक सीमाओं के अ तगत यवहार करना होगा। अत:
वानुशासन के साथ वत ता के अ धकार का उपयोग श क को सीखना एवं सीखाना होगा।
समानता का अथ यवहार म शु ता से होता है। वैसे ाकृ तक, भौ तक, वंशानुगत,
जै वक एवं इसी कार क अ य असमानताओं के लए श क कु छ नह ं कर सकता। क तु

185
समाज वारा रखी गई असमानताओं को कम करने म पया त सहयोग दे सकता है। श क—
श ा वारा इसका ावधान कया जा कर समाज क वसंग तय को दूर कया जा सकता है।
इसका अथ यह है क अश त एवं वं चत वग के लए वशेष सु वधाएं वक सत क जाय। िजससे
वे भी बेहतर जीवन जी सक। हमारे दे श म रा य वारा व भ न कार के संर ण, सहयोग एवं
सु वधाऐं दान क जा रह है।
12.8.5 श ण म सां कृ तक प र े य (Cultural Perspective in Teaching)
' व वधता म एकता' के वचार म काफ अ तर आता जा रहा है। े ीयता जा तवाद, वग
एवं व भ न समु दाय म इतनी मत भ नता हो गई है क रा क एकता म खतरा सा अनुभव
होने लगा है। ”..........Social harmony and brotherhood,the feeling of
associative living and neighbourhood have received a set back.Social
solidarity and cohesion are being gradually replaced by a fractured
society caste identities are turning into caste conflict.From a social
category caste has become a political force and recieved political
overtone and value …………………The “Curriculum Framework of Teacher
Education”(1998)suggested certain concrete steps to be taken by teacher
education,……………”(NCTE,2004,36)
रा य अ यापक श ा प रष का यह मानना रहा है सां कृ तक प र े य को यान म
रखते हु ए श ा क यव था होनी चा हए। जनजा त े के बालक एवं शहर े के बालक क
पृ ठभू म एवं अनुभव अलग है। अत: एक ह तर के से पढ़ाना उपयु त होता। "It is this
context that special mention may be made of some cultural practices
such as story telling ,dramatics and aesthetics which should become a
strong basis for our pedagogy rather than one uniform,mechanistic way of
student learning.”(NCTE,1996,14)
12.8.6 वं चत वग के बालक को ो साहन हे तु ग त व धय (Activities for Encourage
ment of Deprived Children)
वं चत वग क श ा पर यान दे ने के लए क ा—क श ण के अ त र त भी कई ग त व धयॉ
सु झाई गई है। िजससे शाला—समु दाय स ब ध म वृ हो सके। जैसे :—
 छा के ज म दन का आयोजन
 अ भभावक दवस का आयोजन
 अ भभावक श क संघ को स य बनाना
 सामु दा यक खेल—कू द एवं अ य तयो गताएँ
 सामु दा यक संसाधन का योग
 छा क पृ ठभू म को जानना/समझना
 रा य दवस के आयोजन म सभी समु दाय क सहभा गता
 पयावरण श ा म स यता
 सामािजक वा नक एवं पौधारोपण म सहयोग

186
 व यालय वकास म समु दाय का सहयोग
 वा य चेतना के प का आयोजन
 समाजोपयोगी उ पादक काय (SUPW) करना
 सां कृ तक मू य (Cultural Specific Value) का संपोषण करना।
उ त सम त ग त व धय म श क— श ा म ऐसी यव था क जाये क वं चत वग
वयं को सबके साथ महसू स करे । उनम आ म व वास जागत हो। इसके लए कहा गया है,
Teacher Education has twin responsibility in this regard, first to evolve a
new pedagogy of education for children coming from the neglected
rections like this and second, to develop positive attitudes among
teachers for its success.(NCTE—2004,39).
रा य अ यापक श ा प रष ने श क श ा के जो उ े य नधा रत कये ह, उनम
थम उ े य है :
''...........to promote capabilities for inculcating national values and
goals as enshrined in the constitution of India.”(NCTE—1928,24).
Curriculum Framewark for Teacher Education—2004 के द तावेज म
प ट लखा गया क”Teacher need to be sensitized in the provisions of
Indian condtitution regarding underprivilkeged groups like scheduled
castes,scheduled tribes, other backward classes,woman etc.on one hand
and justice,liberty,equality of status and opportunity on the other.(Pg.10).

12.9 सारांश (Summary)


समाज म होने वाले व भ न कार के सामािजक—आ थक प रवतन से एक बड़े समू ह के
यि त शै क यव थाओं व उ न त के अवसर से वं चत रह जाते ह। समाज दो वग म
वभािजत होता जा रहा है। समाज म ह न ि थ त म रह रहे लोग वं चत वग के लोग कहे जाते
ह। इसम वशेष प से आ दवासी जा त,आ दवासी जनजा त न द ट जनजा त एवं मणशील
जनजा त वाले लोग सि म लत ह। भारतीय सं वधान म याय, समानता, वत ता एवं ब धु व—
चार मू य ऐसे दये गये ह जो समाज म होने वाल व भ न ग त व धय म मानव मा को
समान अवसर दान कर। इसम वं चत वग के लए वशेष सजगता भी सि म लत ह । सं वधान
क व भ न धाराओं म इसके लए वशेष ावधान दये गये ह। वं चत वग क श ा के लए
वशेष सु झाव है—शै क सु वधाओं क सुलभता, अंशकाल न एवं दूर थ श ा क यव था,
तपू त श ा आ द के साथ यह भी बताया गया है क श ण म थानीय एवं सां कृ तक शैल
को आधार बनाया जाये। श क— श ा के वारा श क को अ धक संवेदनशील बनाया जाये।
िजससे श क क भू मका सश त बने। वं चत वग को यान म रखते हु ए ेरक ग त व धय को
उपयुका थान भी दे ना चा हए।

187
12.10 मू यांकन न (Evaluation Questions)
1. वं चत वग के लए सं वधान म या शै क ावधान दये गये ह।
What educational Provisions are given in the Constitution for the deprived
class?
2. वतमान म वं चत वग क श ा के लए मु य सु झाव द िजये।
Give important suggestions for the education of deprived class.

12.11 स दभ सा ह य (References)
1. व यालयी श ा के लए रा य पा यचया क परे खा, 2000, एन.सी.ई.आर.ट ., नई
द ल।
2. डी. एस.एस. माथु र, श ा के दाश नक सामािजक आधार, 1995, वनोद पु तक मि दर,
आगरा।
3. Some Specific Issues and Concerns of Teacher Eduction, 2004, N.C.T.E,
New Delhi.
4. Curriculum Framework For Teacher Education(1996)—NCTE,New Delhi.
5. Curriculum Framework For Quality Teacher Education(1998),NCTE,New
Delhi.
6. Curriculum Framework For Teacher Education,2004,NCTE,New Delhi.
7. Sinha, Tripathi and Mishra, Deprivation (1982), Concept Publishing
Company, New Delhi.
8. Tqwards Meeting a Commitment—Achievements Under Education for All:
A Statuse paper—dept. of Education, MHRD, Govt.of India, July, 1995.

12.12 BIBLIOGRAPHY:
1. Sharma,R.A.(1994),Distance Education:Theory,Practice and Research,Loyal
Book Depot,Meerut.
2. Reddy,G.Ram(1984,’OpenEducation System in India Its Place and
Potential Hyderabad’:Andhra Pradesh Open University.
3. Parmaji,S.C.(Ed.)(1984),Distance Education,New Delhi,Sterling publishers.
4. Lewis,B.N.(1974): Educational Technology at the Open University. An
Approach to the problem of Quality in British Journal of E.T.
5. Keegan,Desmond(1986):The Foundation of Distance
Education,London,croom Helm.,
6. Foks,J (1987): Towards Open Learning,in P.Smith and m.kelly (eds.)
Distance Education and the Mainstream, London Croom helm.
7. Cunningham (1987) : Openness and Learning to Learn. Beyomd distance
teaching towards Open Learning, Open University Press.

188
इकाई—13
ी श ा एवं भारत म ल गक असमानता
(Women Education and Gender Inequality in India)
इकाई क परे खा (Outline of the Unit)
13.1 इकाई के उ े य
13.2 ी श ा क आव यकता
13.3 भारत म ी श ा का वकास
13.3.1 ाचीन भारत म ी श ा
13.3.2 टश काल म ी श ा
13.3.3 वतं भारत म ी श ा
13.3.4 वतमान समय म ी श ा
13.4 ी श ा क सम याएँ
13.5 ी श ा के वकास हे तु कये जा रहे यास
13.5.1 अनौपचा रक श ा
13.5.2 म हला समा या—म हला समानता हे तु श ा म हला संघ
13.5.3 म हला संघ
13.5.4 ऑपरे शन लेक बोड
13.5.5 िजला ाथ मक श ा कायकम
13.5.6 सव श ा अ भयान
13.6 भ व य के लए योजनाऐ
13.7 सार—सं ेप
13.8 ग त का मू यांकन
13.9 स दभ पु तक

13.1 इकाई के उ े य (Objectives of the Unit)


इस इकाई क स ाि त के प चात ् आपको इस यो य होना चा हये क
 ी श ा के अथ को भल —भां त बता सक।
 ी श ा के ऐ तहा सक व प को समझ सक।
 ी श ा क सां कृ तक व े ीयता के आधार पर व भ नताओं और उसके पीछे
आधारभू त कारण को समझ सक।
 छा ा यापक इस पाठ को पढ़कर इस बात से अवगत हो सकगे क ी श ा के वकास
के लए सरकार वारा या यास कये जा रहे ह और इसम पूण सफलता नह ं मलने
के पीछे या कारण ह?
 इस इकाई के अ ययन से छा ा यापक ी श ा के मह व से अवगत हो सकगे और
साथ ह जातां क युग म ी श ा क मह ती भू मका से अवगत हो सकगे।

189
 इस इकाई के अ ययन से छा ा यापक अपनी ओर से भी ी श ा के वकास हे तु
आव यक सु झाव दे सकगे।

13.2 ी श ा क आव यकता (Need of the Education)


आधु नक युग म ह नह ं वरन ् ाचीनकाल म भी ी श ा क आव यकता एवं मह व
को वीकार कया गया था। ाचीन काल म अनेक वदुषी ि य के नाम प ने को मलते ह।
ले कन धीरे —धीरे ि य क समानता व श ा को अ वीकार कया जाने लगा। वतमान समय म
ी श ा क आव यकता व मह व को वीकार कया जाने लगा है। पं. जवाहर लाल नेह ने
ी श ा के मह व पर काश डालते हु ए कहा था क एक लड़के क श ा केवल एक यि त
क श ा है, क तु एक लड़क क श ा स पूण प रवार क श ा है। व व व यालय श ा
आयोग ने भी ी श ा के मह व को वीकार कया और लखा श त ि य के बना श त
लोग नह ं हो सकते ह। य द सामा य श ा को ि य अथवा पु ष तक सी मत करने का न
हो तो यह अवसर ि य को दे ना चा हए य क तब यह श ा नि चत प से भावी स तान
तक पहु ँ चेगी।
रा क उ न त म पु ष के योगदान के साथ—साथ ि य का भी योगदान मले, इस
ि ट से भी, ी श ा क आव यकता एवं मह व को वीकार कया गया है। आज ि यॉ—
श ा, च क सा, न सग, कानून , याय आ द े म ह नह ं वरन ् इंजी नय रंग, वायुयान
संचालन, सु र ा संबध
ं ी काय आ द सभी ोत म पु ष के समान ह सेवा कर रह ह। वतं ता
के बाद भारत के वकास म ी के मह व को महसूस कया गया है। सं वधान के वारा ी व
पु ष दोन को सभी े म समान माना गया और यह कहा गया क लंग के आधार पर कसी
भी कार का भेज—भाव नह ं कया जायेगा। 1962 म ीमती हंसा मेहता स म त ने ी श ा के
मह व को वीकार करते हु ए लखा था क य द भारत म जातां क समाजवाद और धम नरपे
समाज का नमाण करना है तो ि य को भावशाल ढं ग से पु ष के समान अवसर दये बना
यह काय स भव नह ं है।
वतं ता के प चात ् बने सभी श ा आयोग ने ी श ा के मह व को वीकार कया।
1964—66 के श ा आयोग ने भी ी श ा क आव यकता बताते हु ए लखा था क पु ष क
तु लना म ी श ा अ धक मह वपूण है य क ी श ा के बना मानवीय संसाधन का पूण
वकास संभव नह ं है और घर का सुधार श त म हलाओं वारा ह संभव है। ी श ा का
शैशव काल म बालक के च र नमाण और जनन दर घटाने पर वशेष भाव पड़ता है। मु गल
व टश काल म हमारे दे श म ि य को आ थक ि ट से वावल बी बना कर अपने अ धकार
व कत य के त जाग क बनाया जा सकता है। जातां क भारत म आधा मता धकार ि य
के पास है। अत: यह महसू स कया गया क श त ि य वारा मता धकार का उ चत एवं
अ धका धक योग कया जा सकेगा। इन सभी कारण से ी श ा क आव यकता महसूस क
गई।

190
13.3 भारत म ी श ा का वकास (Development of Women
Education in India)
भारतीय सं कृ त म ी श ा का मह व ाचीन काल से ह रहा है। इसके वकास को
हम न न कार से समझ सकते ह –

13.3.1 ाचीन भारत म ी श ा (Women Education in


Ancient India)
ाचीन भारत म ी श ा को हम वै दक काल से दे ख सकते ह। उस समय क ि य
को पु ष के समान ह श ा द जाती थीं। श ा ा त करने एवं य करने म ी—पु ष क
समान ि थ त थी। उस समय अनेक ि य ने अनेक सू त क रचना क । उन ि य को
ऋ षका कहा जाता था। ि य का भी उपनयन सं कार होता था और वे वेद का अ ययन एवं
गाय ी मं का जाप करती थीं। उस समय म हम अपाल इ ाणी, उवषी, धोसा, ज रता जु ह,ू
यमी, रोमशा, दे वयामी, पोलोमी लोपामु ा, बाग भृणी, व वधारा ागा, ा—कामायनी, सा व ी,
नोधा, गोपायना स ता— नवावर आ द ऋ षकाओं के नाम मलते ह। मनु मृ त म यह कहा गया
है ''य नाय तु पू य ते रम ते त दे वता:'' अथात ् जहां नार क पूजा होती है वहां दे वता नवास
करते ह। इसी कार मनु मृ त म यह भी लखा है क राजा का कत य है क वह सभी लड़क व
लड़ कय के लए नयत समय तक हमचय आ म म रहने क यव था कर
उ तर वै दक काल म ि य क वह ि थ त नह ं रह । इससे उनक श ा क ओर उतना
यान नह ं रहा। उस समय ि य को न न व शू के प म माना जाने लगा। ले कन उस
समय क काद बर क कथा म भी ि य के लए य पवीत धारण करना आव यक बताया था।
महाक व का लदास क प नी व यो तमा ने अनेक पं डत को शा ाथ म हराया था ले कन इन
ि य को अपवाद के प म दे खा जा सकता है।
उ तर वै दक काल के बाद बौ काल म ि य क ि थ त व श ा म काफ सु धार
हु आ। ि य क श ा के लए पृथक संघ था पत कये गये। बौ बहार म भ —
ु भ ु णयां
रहा करते थे और उनक श ा क समु चत यव था होती थी। इसके बावजू द भी ि य को
पु ष के समान नह ं समझा जाता था। उस समय यह नयम था क सौ वष क भ ुणी भी नये
भ ुक का आदर करती थी।
मु ि लम काल को तो ी श ा के अंधकार युग के नाम से स बो धत कया जाता है।
मु सलमान क पदा था व ी श ा को गौण समझने क भावना ह दुओं म भी आ गई। इसके
साथ ह बाल— ववाह, सती था, अंध व वास आ द ने भी ी श ा के माग को अव कया।
य य प मु ि लम राजप रवार म ी श ा च लत थी| इसी कार ह दु व मु ि लम उ च
प रवार म भी ी श ा क यव था घर पर होती थी।

13.3.2 टश काल म ी श ा (Women Education in


British Period)
ई ट इं डया क पनी के शासन काल म भी ी श ा के त उदासीनता ह रह । इसका
कारण यह था क क पनी का उ े य कु छ बालक को श ा दे कर लक बनाना मा था। इस लए
191
ह एड स महोदय ने अपने तवेदन म उस समय क श ा के संदभ म लखा ''सम त था पत
श ण सं थाएं पु ष के लाभाथ है, सम त म हला जगत अ ानता के अंधकार म भटक रहा ह '
ले कन ईसाई मशन रय ने धम चार के लए श ा का सहारा लया और वशेषकर ी श ा
के वारा ईसाई धम का चार कया। 1820 म बा लकाओं के लए कलक ता म डे णहे यर ने
पहल पाठशाला था पत क । बंगाल क श ा प रष के धान जे.ई.बे यून ने 1849 म अपने
आय से बा लका व यालय क थापना क । इस समय तक म ास म 150, ब बई म 56 व
बंगाल म 188 बा लकाओं के व यालय था पत हो गये थे।
1854 के बुड घोषणा प म भी ी श ा के वकास पर जोर दया गया और इसके
बाद बा लकाओं के लए अनेक व यालय था पत हु ए। 1870 म इंगलै ड क समाज सु धारक
मेर कारपे टर ने भारत म आकर थम म हला श क श ण महा व यालय क थापना
क ।1882 म ह टर आयोग ने भी ी श ा क ि थ त को दयनीय मानते हु ए लखा ''यह प ट
है क ी श ा अभी तक अ य धक पछड़ी दशा म है। इस बात क आव यकता है क हर
कार से इसक ग त के लए यास कये जाय।
इस काल म ी श ा के लए राजक य यास क तु लना म नजी यास क भू मका
मह वपूण रह । उस समय च क सा यवसाय म भी बा लकाओं ने वेश लेना ार भ कर दया
था।
इसी दौरान भारत म सां कृ तक जागृ त ार भ हु ई। राजा राम मोहन राय, वामी
दयान द सर वती आ द समाज सुधारक ने ी श ा के लए काफ काय कया। वामी
दयान द ने आय समाज क थापना क और इस सं था ने ी क याण के लए अनेक काय
अपने हाथ म लया। बंगाल म रामकृ ण मशन ने ी श ा के लए काफ काय कया। इन
सभी के साथ रा य आदोलन व वतं ता आदोलन के दौरान ी श ा व जागृ त को ेरणा
मल । भारतीय म हलाओं म रा ेम व भि त क भावना का संचार हु आ और उ ह ने
वाधीनता सं ाम म काफ स य सहयोग दया।
1947 म बा लका व यालय व बा लकाओं क सं या —
. स. तर सं या बा लकाओं क सं या
1 ाथ मक व यालय 21,479 34,75,165
2 मा य मक व यालय 2,370 6,02,280
3 महा व यालय 59 20,340

13.3.2 वतं भारत म ी श ा (Women Education in


Free India)
वतं ता ाि त के बाद सं वधान वारा सभी नाग रक को समान माना गया है। ी के
सामािजक एवं शै क तर म वतं ता के बाद काफ ग त हु ई है। ले कन इस ग त को
संतोषजनक नह ं कहा जा सकता। वतं ता के प चात ् ी श ा के संदभ म दये गये सु झाव
को दे खना भी हमारे लए आव यक है।
सबसे पहले 1948—49 म व व व यालय आयोग ने ी श ा के संदभ म अ ल खत
सफा रश क —
192
(1). ि य के लए श ा स ब धी अवसर म वृ करना।
(2). अ या पकाओं को समान काय के लए अ यापक के समान ह वेतन मलना चा हये।
(3). ि य को उनक आव यकताओं के अनु प श ा ा त हो िजससे क वे अ छ माता व
गृहणी बन सक।
(4). गृह व ान व बंध के त वशेष भावना दूर करने के लए शै क परामश क
यव था हो।
(5). नये सह— श ा कॉलेज खोजते समय यह यान रखा जाये क वे सह अथ म सह— श ा
कॉलेज के प म काय कर।
इसके प चात ् 1952 म नयु त मा य मक श ा आयोग ने भी लड़ कय के लए अलग
से व यालय खोलने एवं गृह व ान क वशेष यव था पर बल दया।
ी श ा के लए पहल बार रा य स म त 1958 म ीमती दुगा बाई दे शमु ख क
अ य ता म ग ठत क गई। इसने 1959 म अपनी सफा रश इस कार तु त क —
(1). ी श ा को मु य सम या मानते हु ए उसके वकास काय को ाथ मकता द जाये।
(2). ी श ा के बंध के लए अलग से मशीनर का बंध कया जाये — जैसे श ा के
लए रा य सं थान, ी श ा के लए ा तीय सं थान आ द न मत ह ।
(3). ी श ा का स पूण भार के य सरकार वहन कर।
इन सफा रश के आधार पर 1959 म नेशनल काउं सल ऑफ वीमेन एजू केशन क
थापना क गई।
इसके बाद 1962 म ीमती हंसा मेहता क अ य ता म ी श ा के लए एक स म त
ग ठत क गई। इस स म त ने मु य प से यह सफा रश क क लंग के आधार पर पा यकम
म वभेद करने क आव यकता नह ं य क श ा का संबध
ं वैयि तक च व समझ से होता है।
ाथ मक तर तक एक समान पा य म हो और म डल तर पर गृह व ान मू ल वषय के प
म लड़के—लड़ कय के लए होना चा हए। यहा अ यापक—अ या पकाओं का सि म लत टाफ होना
चा हए। मा य मक तर पर व वध पा य म को सि म लत कया जाये। लड़ कय के य
वषय —संगीत व च कला के लए वशेष यव था क जाये। यो य व अनुभवी अ यापक वारा
यौन श ा क यव था क जाये। ग णत व व ान का अ ययन करने वाले लड़ कय को
ो साहन दया जाये।
इसके प चात ् 1963 म भ तव सलम ् क अ य ता म एक स म त ग ठत क गई। इस
स म त का ी श ा म सावज नक समथन के कारण को जानने के लए गठन कया गया।
इस स म त ने अपनी सफा रश म कहा क व यालय भवन के नमाण, मर मत, आवास आ द
म समाज का सहयोग लया जाये और अ यापक म सह— श ा के त सकारा मक ि टकोण
वक सत कया जाये। कू ल सु धार समारोह मनाकर, गो ठ का आयोजन करके, नामांकन
अ भयान चलाकर, आकाशवाणी व प —प काओं वारा इसके प म लोकमत जागृत करना
चा हए। ाथ मक व यालय म अ या पकाओं क ह नयुि त क जाये और इनक नयुि त के
नयम म उदारता बरती जाये।
1964व श ा आयोग ने अपनी सफा रश म दे शमुख स म त, हंसा मेहता स म त व
भ तव सलमू स म त क सफा रश को वीकार कया। इसके साथ ह कु छ और सु झाव भी दये।
आयोग ने कहा क ी—पु ष क श ा के म य अ तर समा त कया जाये, ी श ा के
193
सार के लए आ थक सहायता अ धकतम द जाये, आठवीं क ा तक गृह व ान क श ा द
जाये ले कन उ च मा य मक तर पर गह व ान को वैकि पक वषय के प म रखा जाये।
उ त श ा के अ ययन हे तु छा ाओं के लए स ते छा ावास क यव था क जाये।
1970 म ी श ा क रा य स म त ने भी अपने सु झाव म कहा क दे श के वकास
के लए ी श ा क ओर वशेष यान दया जाये। ी श ा और रा य वकास पुन नमाण
काय म दोन को एक साथ जोड़ा जाये। लड़ कय के व यालय म उन अ या पकाओं क
नयुि त क जाये जो गाँव म जाने को तैयार ह । इस स म त ने भी लड़ कय क श ा के लए
वशेष आ थक यव था क आव यकता पर जोर दया और छा —छा ाओं क श ा के अ तर को
कम करने पर बल दया।

रा य श ा नी त (1968) के सु झाव
शै क अवसर क समानता के लए रा य श ा नी त (1968) म अनेक सु झाव दये
गये। मु ख सु झाव न न ह —
(1). श ा के अ तगत या त े ीय असमानता को दूर करना। ामीण तथा पछड़े े म
श ा क अ छ सु वधाय उपल ध कराना।
(2). सामािजक और रा य एक करण के लए ''काँमन कू ल स टम'' (Common School
System) णाल लागू करना, सामा य व यालय के शै क तर का उ नयन करना,
पि लक व यालय म वेश क शत छा क यो यता के अनुसार रखना तथा कमजोर
वग के छा को नःशु क श ा क सु वधाय दान करना।
(3). सामािजक प रवतन के लए बा लकाओं क श ा पर वशेष यान दे ना।
(4). पछड़े वग ( वशेषकर अनुसू चत जा तय एवं जनजा तयाँ) क श ा के सार पर
सवा धक बल दान करना।
(5). मान सक एवं शार रक प रो वकलांग बालक क शै क सु वधाओं म वृ करना।
रा य श ा नी त (1986) म कहा गया है क ''लाभ उठाने से अब तक वं चत वग को
उनक आव यकताओं के अनु प शै क अवसर क समानता उपल ध कराकर वषमताओं के
उ मूलन पर बल दया जाएगा। 'रा य श ा नी त के अ तगत शै क ि ट से पछड़े वग को
न न ल खत भाग म वभ त कया गया है —
(1). म हलाय
(2). अनुसू चत जा त
(3). अनुसू चत जनजा तयाँ
(4). अ पसं यक वग
(5). शार रक वकलांग
रा य श ा नी त (1988) के अ तगत उपयु त पाँच वग म शै क अवसर क
समानता लाने पर वशेष बल दया गया ह|
म हलाओं को श ा के समान अवसर उपल ध कराने के लए न नां कत ावधान कये
गये ह —
(1). म हलाओं क नर रता का उ मू लन करना।
(2). तकनीक और यावसा यक काय म म हलाओं क भागीदार सु नि चत करना।
194
(3). बालक—बा लकाओं क श ा म कोई भेदभाव न करना।
(4). म हलाओं के त दुरा ह वाले अंश को पा यकम से न का सत करना।
(5). अनुसंधान काय म म हलाओं को ो सा हत करना।

13.3.4 वतमान समय म ी श ा (Women Education at


present)
ी श ा के इ तहास को दे खने से यह तो प ट हो जाता है क इसम नर तर सुधार
हो रहा है ले कन अपे त तर का नह ं। ी श ा के े म अभी बहु त कु छ करना शेष है।
हमारे दे श म आज ि य क सा रता सभी थान पर पु ष क सा रता से कम है। इसी कार
नगर य ी सा रता से ामीण ी सा रता कम है।भारत म ी सा रता सबसे अ धक केरल
म 73.39 तशत है और यूनतम ी सा रता राज थान म 13.36 तशत है। गुजरात,
कनाटक, महारा , पंजाब, पि चमी बंगाल एवं त मलनाडु म ी सा रता का तशत 30से 40
के म य है और शेष अ य रा य म ी सा रता 15 से 30 तशत के म य है। के य श ा
सलाहकार प रष क सं तु त पर भारत सरकार ने ी श ा पर एक उ चा धकार ा त समत
ग ठत क है। इस स म त ने यह सु झाव दया क क ा 1 से 12 तक क छा ाओं के श ा
शु क को सरकार दे गी।
भारत म ी—पु ष सा रता ( तशत मे)

वष ी पु ष
1901 0.6 9.83
1911 1.05 10.56
1921 1.81 12.20
1931 2.93 15.59
1941 7.30 24.90
1951 7.93 24.95
1961 12.95 34.44
1971 16.89 34.95
1981 24.82 46.89
1991 39.29 64.13
2001 54.16 75.85

उपयु त सारणी से प ट हो जाता है क पु ष सा रता क तु लना म ी सा रता का


तशत बहु त ह कम है।1981 म ी सा रता से पु ष सा रता लगभग दुगन
ु ी है और शेष वष
म दुगन
ु ी से लेकर दस गुनी अ धक रह है। इस सारणी से यह भी प ट हो जाता है क 1901
से 1981 तक पु ष सा रता म हु ई तशत वृ से ी सा रता म वृ बहु त अ धक हु ई है
ी पु ष सा रता दे खने के बाद ी सा रता म ामीण व नगर य ी सा रता क
तु लना आव यक है।

195
सारणी म आये वग के अनुसार ामीण व नगर य े म ी सा रता तशत म 2001 के
अनुसार
आयु वग सम त ामीण नगर य
5—9 25.79 19.63 48.38
10—14 44.85 36.44 73.39
15—19 43.28 33.66 70.40
20—24 37.18 27.16 65.16
25—29 28.96 19.64 56.98
35 और ऊपर 14.44 8.62 35.91
सभी आयु 24.82 17.46 47.82

उपयु त सारणी से प ट हो जाता है क ामीण ि य क सा रता का तशत


नगर य ि य क सा रता क तु लना म बहु त कम है। अत: आज आव यकता इस बात क है
क ी सा रता म वृ म तेजी लाई जाये और वशेष कर ामीण े क ि य म सा रता
के लए वशेष यव था क जाये। अत: हमारे दे श क ी श ा क वतमान ि थ त अ छ नह ं
कह जा सकती।

13.3.5 बा लका श ा क मु य चु नौ तयाँ


ारि मक श ा म बा लकाओं क भागीदार के माग म अनेक अवरोध है। डी.पी.ई.पी.
योजना तगत वशेष शोध अ ययन के मा यम से ारि मक श ा म बा लकाओं क भागीदार म
बाधा उ प न करने वाले मु य कारण क पहचान करने हे तु एक सु नयोिजत काय योजना बनाई
गई। इन कारक म सामािजक, सां कृ तक आ थक कारक मु य प से चहनां कत कये गए यह
कारक व यालयी वातावरण म भी जड़ जमाए हु ए थे। शोध अ ययन के अनुसार बा लका श ा
को भा वत करने वाले मु य कारक इस कार है।

13.4 ी श ा क सम याएँ (Problems of Women


Education)
ी श ा क ि थ त दे खने और व भ न स म तय व आयोग के सु झाव को दे खने के
प चात यह प ट हो जाता है क ी श ा क अपनी बहु त सम याएँ ह य य प सरकार इस
दशा म जाग क है और येक दशा म य नशील है। ले कन कु छ सम याएं ऐसी ह, िजनके
कारण ी श ा का अपे त वकास नह ं हो पा रहा है।
1. प पातपूण धारणा — ी श ा के त समाज क उ चत धारणा नह ं है। समाज के
न न व गर ब तबके और वशेषकर ामीण े म ी श ा को अनाव यक व वला सता के
प म दे खते ह इसके साथ ह बाल ववाह, दहे ज था व पदा था आ द कु थाओं ने भी ी
श ा म बाधा डाल है।
2. नधनता — प रवार क आ थक क ठनाइयाँ भी ी श ा म बाधक ह। लड़ कय क
पढ़ाई पर खच करने के बदले उस पैसे को उनके दहे ज म दे ना लोग अ धक अ छा मानते ह।

196
3. शासन — ी श ा का वकास कु शल शासन के अभाव के कारण नह ं हो पा रहा है।
बा लका व यालय के नर ण व शासन हे तु ठ क कार क यव था नह ं क गई। इसके लए
पृथक यव था का अभाव है। यो य धाना या पकाओ का अभाव है। ी श ा के वकास क
गलत योजनाओं के कारण भी इसका वकास नह ं हो पाया है|
4. अ या पकाओं क कमी — अ या पकाओं क कमी भी ी श ा म एक बहु त बड़ी बाधा
है। वशेषकर ामीण व पछड़े े म अ या पकाओं का अभाव है। इसका कारण वहाँ आवास,
यातायात, व युत आ द सु वधाओं का अभाव होना है।
5. अप यय क सम या — ी श ा म फजू लखच क सम या भी है। कु छ ि याँ
अ ययन करने के बाद घर बैठ रहती है। हमारे यहां ी अ या पकाओं क कमी है ले कन कु छ
ि याँ काम नह ं कर रह ।ं इसका कारण उनके माता— पता या प त क अ न छा अथवा सु वधाओं
के अभाव के कारण काम नह ं कर पाना है। इसके साथ ह व भ न कारण से लड़ कय का अपने
अ ययन के बीच म ह पढ़ाई छोड़ दे ना भी अप यय ह है।
6. पृथक बा लका व यालय का अभाव — ामीण े म बा लका व यालय का बहु त
अभाव है। शहर म भी आव यकतानुसार पृथक बा लका व यालय का अभाव है। ामीण व पुराने
वचार के अ भभावक अपनी बा लकाओं को सह श ा दलवाने के प म नह ं होते। इस लए ाय:
ाथ मक श ा के बाद अ भभावक अपनी बा लकाओं को अ ययन करने से रोक लेते ह।
7. पा य म स ब धी दोष — व भ न श ा आयोग व स म तय के अनुसार पा य म म
सु धार हे तु सु झाव दये गये। छा —छा ाओं के लए समान पा य म क यव था है। उसम छा
का तु लना मक प से अ धक यान रखा गया है। छा ाओं से संबं धत वषय अ नवाय के थान
पर वैकि पक वषय के प म रखे गए ह। जैसे संगीत गृह व ान आ द। च लत पा य म म,
सै ाि तकता अ धक है, यावहा रकता कम। इस लए यह पा रवा रक व सामािजक ि ट से
उपयु त नह ं है।
8. शोध का अभाव — ी श ा से संबं धत व भ न पहलु ओं पर पया त शोध काय नह ं
हु आ। लड़के व लड़ कय क शार रक, मनोवै ा नक व यावहा रक आव यकताओं पर बहु त कम
यान दया गया है।

व—मू यां क न—1


1. भारत म ी श ा य आव यक ह?
2. ाचीन भारत म ानी ि यॉ ं का नाम बताएं |
3. 1882 म कौनसा आयोग था पत हु आ?
4 . व व व यालय आयोग ने ी श ा के लए या सफ़ा रश क ?
5. रा य श ा नी त (1986)म ी श ा के स ब ध म कस बात पर बल दया ह?

197
13.5 ी श ा के वकास हे तु कये जा रहे यास
बा लकाओं एवं म हलाओं के शै क उ नयन हे तु रा य एवं रा य तर पर अनेक
कायकम के मा यम से यास कए गए, जो बा लका एवं म हला श ा के े म मील का
प थर सा बत हु ए। इनका सं त ववरण इस कार है।

13.5.1 अनौपचा रक श ा
के ायोिजत योजना तगत 6—14 वय वग के व यालय न जाने वाले ब च के लए
वष 1979—80 से माच 31,2001 तक अनौपचा रक श ा काय म चलाया गया। श ा के दायरे
से छूट रहे कामकाजी ब च एवं एक बड़ी सं या म बा लकाओं को चहना कत करते हु ए
अनौपचा रक श ा योजना के अ तगत वकेि त बंधन यव था वारा आव यकतानुसार
पा य म क संब ता एवं अ धगम याओ म व वधता को अपनाकर सभी तक श ा क पहु ँ च
सु नि चत करने हे तु छूट दान क गई है। इस योजना तगत आवासीय े तक श ा सु वधा
क पहुच सु नि चत करने हे तु लचील काय योजनाओं हे तु आवासीय श वर व यालय वा पस
चलो श वर सेतु पा य म इ या द का ावधान है। इस योजना का यह नवीन प इन के को
सामु दा यक बंधन यव था हे तु आदे शत करता है।

13.5.2 म हला समा या : म हला समानता हे तु श ा


रा य श ा नी त के उ े य को मू ल प म या वयन तर पर लाने हे तु म हला
समा या योजना के अ तगत शै क वातावरण सृजन कर ामीण म हलाओं को श ा हे तु े रत
कर संग ठत कया गया। वष 1989 म इस योजना का व तार कु छ रा य म िजला ाथ मक
श ा कायकम क सहायता से कया गया। वतमान म दे श के इस रा य म लगभग 9000 से
ऊपर गांव म इस योजना का या वयन चल रहा है।

13.5.3 म हला संघ


म हला समा या योजना तगत येक गाँव मे म हलाओं क बैठक हे तु जगह दे ने का
ावधान है जहॉ पर म हलाएं मलकर सामू हक प से सम याओं पर काश डाल सक, न कर
सक, भयमु त होकर अपनी—अपनी बात कह सक, वचार कर सक, समी ा कर सक, एवं सबसे
मह वपूण बात यह है क आ म व वास से अपनी आव यकताओं के बारे म वचार— वमश कर
अपनी बात कह सक। म हलाओं वारा उजागर क गई आव यकताओं एवं ाथ मकताओं के
आधार पर शै क अनुसमथन दान करने हे तु ौढ़ श ा, अनौपचा रक श ा, यवसा यक
श ण, अनुसमथन सेवाएं, म हला श ण के और पूव बा यकाल एवं प रचया के क
चरणब तर के से थापना क गई।

13.5.4 ऑपरे शन लैकबोड


वष 1987—88 म ाथ मक व यालय को बु नयाद सु वधाएं उपल ध कराना सु नि चत
करने हे तु ऑपरे शन लैकबोड क योजना ार भ क गई। वतमान म इसे सव श ा अ भयान म
सि म लत कर लया गया है। ऐसे वकास ख ड जहाँ म हला सा रता दर कम है वह पर इस
योजना के अ तगत ाथ मक व यालय के मता संव न म अ त र त म हला श क एवं
198
श ण अ धगम साम ी क यव था करने का ावधान है। इस योजना तगत मु य प से
म हला श क क नयुि त पर जोर दया गया इसके लए वष 1993—94 म योजना को पुन :
संशो धत कर यह ावधान कया गया क कम से कम 50 तशत श क म हलाऐ होनी चा हए।

13.5.5 िजला ाथ मक श ा काय म (DPEP)


काय म योजना के सम त पहलू ल गक और समानता पर मु य प से केि त ह। यह
काय म कम—म हला—सा रता दर वाले िजल म लागू कया गया| य य प, डी.पी.ई.पी. के
अ तगत मब प रवतन हे तु यास कए गए इसके अ तगत ल गक असमानता को दूर करने
हे तु समे कत यास कए गए, जैसे— योजना का नयोजन एवं बंधन, बाल— श ण व या म
सु धार, बा लका श ा हे तु वशेष यास एवं सामुदा यक जाग कता एवं भागीदार हे तु काय
योजना का नमाण एवं बंधन इ या द।
प रयोजना नमाण, या वयन और अनु वण क स पूण या लै गक समानता के
पर े य म क गई। वा षक काय योजनाओं म ल गक—आधा रत—काय म प ट प से
उि ल खत कए गए। काय म के अ तगत लै गक असमानता के पहलू को आधार बनाकर तु त
कया गया, रा य एवं िजला तर पर ल गक—सम वयक क नयुि त क गई। कु छ रा य म
ामीण तर पर, ाम श ा स म त म म हला त न ध का होना अ नवाय प से ा वधा नत
कया गया। सभी कायकताओं का ल गक संवेद करण काय म एम मु य एवं लगातार चलने वाल
या है। शै क सु वधा उ नयन के अ तगत, ब ती के नकट नवीन व यालय क थापना,
पेयजल एवं शौचालय सु वधा क यव था करना इ या द से बा लका नामांकन एवं ठहराव पर
दूरगामी भाव पड़ेगा।

13.5.6 सव श ा अ भयान
ारि मक श ा के सावभौमीकरण हे तु दे श यापी काय म के प म सव श ा अ भयान
के रा य काय म के वारा ाथ मक श ा काय म को सफलता ा त हु ई है।वष 2007 तक
सभी ब चे पाँच वष क ाथ मक श ा पूण कर सक एवं ल गक असमानता दूर हो जाए। वष
2010 तक सभी ब च को आठ वष क ारि मक श ा, उ च ाथ मक तर तक पूर करने का
ल य है।
शै क प से पछड़े वकास ख ड (दे श के लगभग एक तहाई लाँक) म से वशेष प
से म हला श ा के े के प म चहनां कत कए गए वकास ख ड के लए एक वशेष पैकेज
का नमाण कया गया िजसम बा लका श ा पर वशेष बल दे ते हु ए वशेष सामु दा यक
जाग कता एवं थानीय आव यकतानुसार यास कए गए इसके अ तगत व यालय वातावरण,
अनुसमथन सेवाएं जैसे—पूव बा यकाल प रचया के एवं सव श ा अ भयान के अ तगत
ारि मक तर पर बा लका श ा हे तु रा य कायकम के प म वशेष यास कए गए।

13.6 भ व य के लए योजनाएँ
रा य काय योजना म दो तरफा रणनी त तैयार क गई है िजसके अ तगत ल गक
आधार को मु यधारा म लाना एवं वशेष योजना तगत बा लका और म हला श ा को ो सा हत
करना। ारि भक श ा के सावभौमीकरण हे तु सव श ा अ भयान एवं इसके अ य भाग, िजला
ाथ मक श ा कायकम, लोक जु ि बश कायकम, म या तर भोजन योजना के अ तगत

199
बा लकाओं को श ा क मु यधारा म सि म लत करने का ावधान कया गया है। इन काय म
के मु य े इस कार है:
 बा लका श ा को समथन दान करने म समु दाय क स यता सु नि चत करना, वशेष
प से गाँव एवं व यालय म ग त का नय मत अनु वण कर, शै क वातावरण तैयार
करना।
 योजना तैयार करने वाल , श क और शै क ब धक का श ण एवं ल गक
संवेद करण काय म का आयोजन। इस काय म म बा लका श ा के े पर वशेष बल
दया जाएगा।
 क ा—क , पा य—पु तक एवं श ण—अ धगम साम ी को बा लका हे तु म वत ्
बनाना।
 वशेष यास क यव था करना।
म हला एवं बा लका श ा हे तु नधा रत कये गए उपयु त ता वत उ े य को पूरा
करने हे तु तीन काय म चलाये जा रह है, म हला समा या काय म, सव श ा अ भयान के
अ तगत ारि मक तर पर बा लका श ा का रा य काय म और क तु रबा गॉधी वतं
व यालय योजना। इन तीन योजनाओं के अ त र त, मा य मक तर पर नवीन मु त बा लका
श ा योजना ता वत क गई। इस योजना तगत, न नां कत ावधान कये गए है :—
 शै क प से पछड़े 500 वकास ख ड को चहनां कत कर मा य मक एवं उ चर
मा य मक व यालय का नमाण करना। इसके लए दसवीं पंचवष य योजना अव ध हे तु
इस काय हे तु 5000 म लयन पये क धनरा श का ावधान, 100 म लयन पये त
व यालय क दर से कया गया है।
 शै क प से पछड़े वकास ख ड म गर बी रे खा से नीचे रहने वाले प रवार क क ा
IX एव X क बा लकाओं हे त,ु दसवीं पंचवष य योजना तगत 6577.76 म लयन पये
लागत क नःशु क पा य—पु तक वत रत करने का ावधान है।
इन दो काय योजनाओं के सम वय से ल गक असमानता को कम करने म कये गए
यास से न केवल नामांकन, ठहराव एवं स ाि त म ह अ तर आएगा, बि क व यालय का
वातावरण भी ल गक समानता एवं संवेदनशीलता से यु त होगा।

व—मू यां क न—2


1. ी श ा क पाँ च मु ख चु नौ तयाँ बताएँ|
2. ‘म हला समा या या ह?
3. म हला श ा के मु ख तीन काय म लख|
4. सव श ा अ भयान या ह?

13.7 सार—सं ेप
आधु नक काल म ह नह ं वरन ् ाचीनकाल म भी ी श ा क आव यकता व मह व
को वीकार कया गया था। ाचीनकाल म अनेक वदुषी ि य के नाम प ने को मलते ह।

200
ले कन धीरे —धीरे ि य क समानता व श ा को अ वीकार कया जाने लगा था। उ तर वै दक
काल म ि य क ि थ त बहु त खराब हो गई। उ तर वै दक युग के बाद बौ काल म ि य क
ि थ त म सुधार हु आ। मुि लम काल को ी श ा क ि ट से अ धकार युग के नाम से
स बो धत कया जाता है। टश काल म भी सरकार ी श ा के त उदासीन ह रह ।
वतं ता के बाद ि य के सामािजक एवं शै क तर म काफ ग त हु ई। वतं ता के बाद बने
सभी श ा आयोग ने अपनी अनुशस
ं ाओं म ी श ा पर बल दया और उ ह ने ी श ा के
सार के लए अपने—अपने सु झाव दये।
ी श ा के लए 1958 म ीमती दुगाबाई दे शमु ख क अ य ता म, 1962 म ीमती
हंसा मेहता क अ य ता म और 1963 म भ तव सलम ् क अ य ता म स म तयाँ ग ठत क
गई। इ ह ने ी श ा के सार के लए ग भीर च तन करके अपने सु झाव दये। ी श ा
क सा रता को दे खने से प ट हो जाता है क ामीण े क तु लना म नगर य े क
सा रता के तशत म वृ अ धक हु ई है। वतं भारत म ी श ा क अनेक सम याएँ ह—
जैसे ी श ा के त प पातपूण धारणा, नधनता, अ या पकाओं क कमी, शासन, अप यय,
पा य म स ब धी दोष, पृथक् बा लका व यालय का अभाव, शोध का अभाव आ द। इन
सम याओं के समाधान के लए भी सु झाव दये गये ह। इसके अ तगत पृथक बा लका व यालय
क थापना, पया त धन क यव था, अ या पकाओं क नयुि त, अलग नदे शालय, व शासन
क यव था करने, व थ ि टकोण का वकास, पा य म एवं शासन म सु धार करना आ द
मु य ह। ी श ा क धीमी ग त के बावजू द भी इसम और ग त क स मावनाएं काफ
बढ़ती जा रह है। सरकार इसके लये वशेष यास कर रह है। नई श ा नी त म भी ी श ा
व सा रता पर अ धक बल दया गया है।

13.8 ग त का मू यांकन
1. ाचीन काल न पाँच ऋ षकाओं के नाम ल खये।
Write down the names of five learned women of ancient India..
2. कस युग को ी श ा क ि ट से अ धकार का युग कहा जाता है?
Which period wos dark period from education point of view of women?
3. बा लकाओं के लए सबसे पहले कसने पाठशाला था पत क ?
Who established the first school for girls?
4. भारत म थम म हला श क— श ण क थापना कसने क ?
Who founded the first Women Teachers Training Colleg in India?
5. ी श ा के लए पहल बार रा य समत क थापना कसक अ य ता म हु ई?
In whose chairmanship the first national committee for women education
was established?
6. ी श ा के मह व के पाँच कारण ल खए।
Write down five points for importance of women education.
7. ी श ा क या सम याएँ ह? इनके नवारण के लए या कदम उठाये गये ह?
What are the problems of Women Education in India?What measures are
being taken to solve it?

201
8. वत ता के प चात ् ी श ा क ग त का ववरण ल खए।
Write down the development of Women Education in free India.

13.9 स दभ पु तके
1. अि नहो ी रवी — भारतीय श ा क वतमान सम याएँ, 1987 रसच, नई द ल ।
2. अि नहो ी रवी — भारतीय श ा : दशा और दशा, मेरठ, 1975
3. अ वाल, जे.सी. — वतं भारत म श ा का वकास, द ल , 1968
4. अदावल, सु बोध तथा माधवे उ नयाल — भारतीय श ा क सम याएँ तथां वृ तयॉ
उ तर दे श ह द थ अकादमी, लखनऊ, 1975
5. संघल, महे शच — भारतीय श ा क वतमान सम याएँ, राज थान ह द थ
अकादमी, जयपुर , 1971
6. रपोट ऑफ द सैक डर एजू केशन कमीशन, 1952—53
7. रपोट ऑफ द एजू केशन कमीशन, 1964—66
8. योजना मई 16—31,1988, योजना भवन, पा लयामे ट ट, नई द ल ।

202
इकाई—14
मू यपरक श ा
(Value Education)
इकाई क संरचना (Outline of the Unit)
14.0 उ े य और ल य
14.1 मू य का अथ
14.2 मू यपरक श ा का अथ
14.3 मू यपरक श ा क आव यकता
14.4 मू यपरक श ा क व धयॉ
14.5 मू यपरक श ा स ब धी आव यक शै क यव थाएं
14.6 सार—सं ेप
14.7 इकाई का मू यांकन
14.8 संदभ साम ी

14.0 उ े य (Objectives)
इस पाठ को भल —भाँ त पढ़ लेने के उपरांत आप बता सकगे क :—
1. मू य (Values) या ह?
2. सामािजक और सां कृ तक मू य म अ तर या है?
3. मू यपरक श ा का या अथ है?
4. मू यपरक श ा के आ दोलन क व व और भारत म या आव यकता है?
5. मू यपरक श ा क व धयाँ या ह?
6. मू यपरक श ा के लए उपयु त शै क यव था या हो सकती है?
7. भारत म मू यपरक श ा के या त प (Models) हमारे सामने अब तक आये ह?
8. मू यपरक श ा के बारे म हमार रा य श ा नी त या कहती है?
9. मू यपरक श ा के आ दोलन को सफल बनाने के लए भारत म या— या मु ख कदम
उठाये जा रहे ?

14.1 मू य का अथ (Meaning of Value)


‘Value’ श द क उ पि त लै टन भाषा के ‘Valere' श द से मानी जाती है जो कसी
व तु क क मत या उपयो गता को य त करता है।
मू य (Value) क कु छ मह वपूण प रभाषाएँ न नां कत ह:
ऑ सफोड ड शनर के अनुसार — ''मू य साथकता, उपयो गता और औ च य होते है।''

203
“Value : worth, utility, desirability and the qualities on which these
depend.”
दाश नक आर.बी. पेस के अनुसार — ''मू य कसी के लए च क व तु होता है,
य क यह च और व तु के म य के वशेष स ब ध से नकलता है।''
“Value is an object of interest to someone,for it emenates from
Particular relation between the interest and its object.''
—R.B.Percy
इ टरनेशनल ड शनर ऑफ ए यूकेशन के अनुसार — ''मू य या उ चत या अनु चत है
उसके बारे म व वास है।'' (Valeues are beliefs about what is desirable of
undesirable'')
भारतीय समाजशा ी ो. राधाकमल मु खज के अनुसार — ''मू य वे सामािजक प से
वीकृ त इ छाएं और ल य होते ह जो कि डश नंग, सीखना या सामाजीकरण क कया के वारा
आ मसात कर लये जाते ह और जो यि तगत पस द , तमान और मह वाकां ाओं का व प
धारण कर लेते ह।
“Value are socially approved desires and goals that are
internalized through the process of conditioning,learning or socialization
and that become subjective preferences,standards and aspirations.''
—Prof R.K.Mukerjee
ो. मु खज क उपरो त प रभाशा बहु त उपयु त है। वा तव म मू य एक समाज म
वीक त यि त क पस द या मा यता ह होते ह।

14.1.1 मू य क कृ त (Nature of Values)


मू य क कृ त के बारे म दाश नक के तीन ि टकोण ह —
(1). यि तपरक ि टकोण (Subjective view) : इस ि टकोण के अनुसार इ छा, पस द,
च, यास, काय स तु ि ट आ द के व वध कारक होते ह िजन पर मू य नभर होते ह।
यि त के यि तगत जीवन म इन अव थाओं के प रणाम व प मू य का अि त व
होता है।
(2). व तु परक ि टकोण (Objective view) : इस ि टकोण के अनुसार मू य यि त म
नह ं होते अ पतु व तु म होते ह, जैसे क रं ग, सु ग ध, ताप म, आकार और व प
आ द लेटो अर तु आर.बी.पेर जैसे दाश नक का ऐसा ह मत था।
(3). सापे क ि टकोण (Relativistic view) : इस ि टकोण के अनुसार मू य एक
मू यांकन करने वाले (Valuing human being) तथा उसके पयावरण
(Environment) के बीच का स ब ध होता है। मू य को कुछ भावना (feeling) और
कु छ तक माना जाता है।
इन तीन ि टकोण को यान म रखते हु ए ह हम मू य क सह कृ त को समझ
सकते ह।

204
14.1.2 मू य का वग करण (Classification of Values)
मू य को दो कार से वग कृ त कया जा सकता है :
(1) जीवन के व वध पहलुओं के अनुसार मू य (Values in the different spheres of
life)
1. शार रक मू य (Physical Values)
2. सामािजक मू य (Social Values)
3. राजनै तक मू य (Political Values)
4. सौ दया मक मू य (Aesthetic Values)
5. धा मक मू य, (Religious Values)
6. आ याि मक मू य (Spiritual Values)
7. मान सक मू य (Mental Values)
8. बौ क मू य (Intellectual Values)
9. आ थक मू य (Economic Values)
10. नै तक मू य (Moral Values)
11. सां कृ तक मू य (Cultural Values)

(2) भारतीय ि टकोण से ‘What is desired by man’ के स दभ म चार पु षाथो को प ट


कया गया है:—

205
व—मू यां क न—1
1. मू य का या अथ होता है ?
2. मू य क दो मु ख प रभाषाएँ बताइये|
3. मू य का सामा य व गकरण कै से होता है ?
4. मू य का भारतीय ि टकोण बताएँ|

14.2 मू यपरक श ा का अथ (Meaning of Values education)


मू यपरक श ा िजसे अं ेजी म Value Education या “Value—Oriented
Education” कहा जाता है, का अथ यह है क श ा ऐसी हो जो व या थय म शा वत मू य
(Universial) तथा दे श, काल, मानव क याण, व मानव एकता के संदभ म आव यक व भ व य
म मानवीय आ मा के उ थान म सहयोगी, तकसंगत व तु परक (Objective) और उ चत मू य
से अनु ा णत हो।
“Value Education is that education which is inspired by universal
values and the logical,objective and proper value necessary in the
context of country,age,human welfare,unity of mankind and upliftment of
the spirit of man in future.”
मू यपरक श ा का उ े य व याथ को आदश मानव बनाना है जो मानवीय आदश ,
गुण व यवहार के तमान के अनुसार यवहार करने लगे। योगीराज ी अर व द के श द म

''मनु य जैसा क वह आज है, उ वकास का अि तम पद नह ं है। एक नये कार क
न ल का होना न केवल स भव है, अ पतु आव यक है, मनु य म भगवान का नमाण हो रहा है।
“Man as he is can not be the last term of evolution. A new type
of man,a new race is not only possible but irressitable as man was in
the making to the animal, “God is the making” in the man.
ी अर व द ने अ य यह लखा था क :
मानव मन और जीवन का उ वकास एक बढ़ती हु ई सावभौ तकता क ओर अ नवायत
अ सत होना चा हए।
“The evolution of human maind and life must necessarily lead
towards an increasing universality.”
……….A life of unity mutuality and harmony born of a deeper and
wider truth of our being is the only truth that can successfully replace
which is a creation of the mind.
ी स य साई बाबा, िज ह ने आजकल व वभर म मू यपरक श ा का जबरद त
आ दोलन चला रखा है, ने मू यपरक श ा के वषय म यह कहा है —

206
' श ा को मू लत' आ मा से कृ त क ओर अ सत होना चा हए। इसे यह बतलाना
चा हये क मानवजा त का दै वक प रवार है। समाज म व यमान दै वी व यि तय के मा यम से
ह अनुभव कया जा सकता है। न ता, आदर, दया, सहनशीलता याग और इि य नयं ण गुण
है जो स ची श ा के प रणाम को बतलाते ह।''
“Education must proceed primarily from the spirit of nature,it must
show that mankind constitutes one divine family.The divinity that is
present in the society can be exoerienced only through individuals.
Humility, tolerance, sacrifice and sense control are the qualities
which reveal the outcome of the Education.
सं ेप म हम कह सकते है क मू यपरक श ा ऐसी श ा है जो उ चत मू य से
अनु ा णत होती है तथा व याथ म ऐसे ि टकोण, आ था तथा संक प को वक सत करती है,
िजससे वह अपने जीवन के सभी काय व यवहार को उ चत मू य क कसौट पर परखता हु आ
तथा मानव क याण तथा मानव क आ मा के उ थान को सव प र मानता हु आ करता है।
यह श ा धा मक श ा का न तो कोई दूसरा प है और न तथाक थत ''नै तक श ा'’
(Moral Education) है। िजसम पर परा तथा आधु नकता शा वत मू य तथ उ चत सामािजक,
सां कृ तक तथा पयावरण स ब धी मू य और भू त—वतमान तथा भ व य का ऐसा संतु लत
म ण होता है िजसम मानव जीवन म आ याि मक उ थान तथा व व बंधु व और स ाव का
वकास होता है। उसम आ याि मकता, भौ तक व ान अथवा व ान एवं नै तकता का सु दर
सम वय है। इसे व तु त: “एक कृ त श ा” (Integrated Education) ह समझना चा हए।
इसका उ े य मानव उ कृ टता (Human Excellance) तथा चर आका त मू य
(Cherished Values) का वकास करना है जो धम नरपे ता और व व के सभी मत व
धम क एकता पर आधा रत है।
अपने लेख “Education in Human” Value म ी स य साई बाल वकास ट क
क वीनर ीमती के. म ण ने लखा है क मू य परक श ा के न नां कत दो मु ख उ े य ह —
1. च र नमाण
2. यि त व का नमाण
ी स य साई बाल वकास ट वारा का शत पुि तका “Curriculum and
Methodology for Integrated Human Values in Education :(International
Edition)म E.H.V.Movement(Education Human Values Movement) अथात ्
मू यपरक श ा का यह अथ बताया गया है।
“To enable balanced and wholesome development of all aspects of
child’s personality namely Physical,Intellectual,Emotional,Psychic and the
Spiritual.The present education covers to first two and and partly to the
third(emotional)that leaves a wid in the Personality of the child,as has
been confirmed by various studies and causes behavioural distortations.

207
The developments of all the five domains that the E.H.V. attempts
is synchronous with inculcation of five basic human values, Righteous
with inculcation of five basic human values.Righteous
conduct,truth,peace,love and non—violence.These five values represent an
integral perfection at all levels of personality.these have further logical
correspondence with five ideas of education namely,knowledge
skill,balance,insight,and identity.
सारांश यह है क मू यपरक श ा पाँच मु ख मानवीय मू य —स य, धम, शां त, ेम
और अ हंसा के वकास पर बल दे ती है। िजससे क यि त व के सभी तर या प का
संतु लत वकास हो सके।

14.3 मू यपरक श ा क आव यकता (Need of Value


Education)
आज व वभर म भयंकर अशां त और भय या त है, अनाचार, अ याय, हंसा,
अनै तकता तथा धन क पूजा का ता डव नृ य हो रहा है।
भारत म भी आज टाचार, अ याय, हंसा कु ि सत धमा धता, अपराध तथा सभी े
म मानव मू य का अवमू यन हो रहा है। ऐसा तीत होता है क मनु य जंगल पशु ओं से भी
नीचा गरता जा रहा है तथा वह अपनी लोभ, हंसा तथा वाथपरकता क भावना से एक—दूसरे
को न ट कर दे गा ई वर तथा समाज का भय तथा सदाचार क मयादाएँ आज मानव यवहार को
नयं त नह ं कर रह है। जहाँ एक ओर मानव ने आज व ान एवं टे नोलॉजी के े म
आ चयजनक उ न त ा त कर ल है, वह ं दूसर ओर मानव के वचार, आदश और काय इतने
गंदे और भयंकर होते जा रहे ह क स पूण मानव जा त के न ट और प तत होने का भय पैदा हो
गया है।
भारतीय श ाशा ी ो. वेदम ण मेनअ
ु ल के श द म — ''आज हमारा सामािजक जीवन
अनसु लझे तनाव संघष और हंसा से खोखला हो गया है। झू ठे मू य और झू ठे नायक क पूजा
ने आज इतना अ धक मह व ा त कर लया है क नई पीढ़ के ग भीर व याथ वरोधाभास
और म त मता के ढे र म खो गये ह। आज हम ट राजनी त , गैर—िज मेदार यापा रय ,
बेईमान भाषणकताओं, मतलबी लोग , शरा बय और अनै तक लोग को पूणता के त प (मॉडल)
मानते हु ए पूजे जाते हु ए दे खने के सा ी है।
कोठार आयोग (1964—66) के अ य ो. दोलत संह कोठार के श द म — '' व ान
और तकनीक का वकास हो रहा है ले कन बु का स हो रहा है। ान फैल रहा है ले कन
मानव यि त व सकु ड़ रहा ह।.............हम आजकल अनेक कार के व च काय अस तु लन
वपदाएँ दे ख रहे ह, हंसा के व भ न प सामने आ गये ह। लालच घृणा और म त म बढ़ रहे
ह। संसार भर के वै ा नको और इंजी नयर का आधा भाग मानव वनाश के अ के नमाण म
लगा हु आ है। जो संसार को आज से और अ धक खराब बनायगे।
सु स भारतीय समाज वै ा नक ो. एम.एस. गोरे के श द म — ''हमारे यहां
सम यागत श ा सं थाओं के प रसर (Campus), छ न— भ न मक आ दोलन, अस तु ट
208
और आ त कसान लॉबी शहर म बगड़ी हु ई याय और यव था क ि थ त है। ........हम
आतंकवाद (Terrorism) के य न य त दन दे ख रहे ह। ....... वकास क कया क गई
है। हम बहु त बड़े तर पर जात को न न तर तक (Grass—root level) तक नह ं ले
जा पाये ह। .............राजनै तक यव था का पतन राजनै तक शि त को येन—केन कारे ण
ह थयाने क तरक ब के प म हो गया है। ............राजनी त म आदश और वचारधारा का लोप
हो गया है। अथ यव था लघु—काल न तथा लाभ अिजत करने के उ े य पर आधा रत है और
बु जीवी अपना अि त व बचाये रखने म लगे हु ए ह। जब क उ च वग य लोग (Elites)
न कृ ट कार के उपभो तावाद म लगे हु ए ह।
सु स भारतीय ले खका तारा अल ने अपने लेख म Value—old and new(The
Hindustan Times,Sept.,16,1989) म लखा है –“राजनै तक दल ने टाचार, धम और
जा त को राजनै तक शि त पाने क तरक ब म यु त कया है। इससे हंसा और सा दा यकता
भ क है और इससे 1947 से अब तक 3000 सा दा यक दं गे भारत म हु ए है। .............जनता
कु कम , पशु वत यवहार और टाचार के दै नक वणन से उकता गई है।
स भारतीय व धशा एल.के. पालक वाला के श द म —''चार दशक क वतं ता
के बाद........हो गया है और मनु य बबरता क ओर ह जा रहा है।
इस संकट से मानवमा को उबारने का मह वपूण समाधान मू यपरक श ा है इसी लये
तो संसार भर के धमगु , महान श ा वचारक, मु ख च तक इस कार क श ा
का................कर रह ह। भारत सरकार के श ा मं ालय, एनसीईआरट . वतं प से काय
करने वाल श ा सं थाओं जैसे दाश नक, साधु बाबा पासवान, ी स य साई बाबा, च मयान द
मशन, अर ब द आ म कई ईसाई संगठन व भारतीय व या भवन क श ा सं थाओं म
मू यपरक श ा के कायकम को बहु त उ साह और लगन से उठाया गया है।

14.3 मू यपरक श ा क व धयॉ


ो. कर ट जोशी ने अपनी उ कृ ट लेख “An Outline Programme of Value
Oriented Education'' म बहु त सु दर बात लखी है
'मू य क श ा दे ने का रह य है व या थय म वयं के च र और ान के अ धकार
के उ रण वारा खोज क भावना को ज लत करना वयं म मू य को आ म ान करके ह
व या थय म मू य का शत कर सकते है। मू य—अनु था पत (Value Orienceted) श ा
को 'करो या 'मत करो क एक ंखला के प म तु त नह ं कया जाना चा हए।
प ट है मू यपरक श ा दे ने वाले श क या वय क का वयं का च र आदश होना
चा हये तथा उसे वयं उन मू य से अनु ा णत हो कर काय करना चा हये िज ह वह व या थय
म फूँ कना चाहता है।
मू य परक श ा क मु ख व धयाँ न नां कत है :—
1. उपदे श आदश व ध (Precept ideal method)
2. भा वत करने क त व ध (Influencential Method.)
3. पहचान व ध (Identification Method)
4. सहचय व ध (Association Method)
209
5. वे ट लेशन व ध (Ventilation Method)
6. सा ा कार व ध (Interview Method)
7. कहानी कहने क व ध (Story telling method)
8. (Proble Method)
9. मनो व ान अ भनय व ध (Psychological—Drama Method)
10. भू मका नवाह व ध (Role Plaing Method)
पाठशाला तर पर भाषण व ध, अथवा उपदे श दे ने क वृि त अनुपयोगी है। व या थय
म, वशेषकर छोट क ाओं म, कहा नय वारा सह कार के मू य को वक सत करना चा हए।
ऊँची क ाओं म सेमीनार या वचार गोि ठयाँ होनी चा हए। सभी तर पर व वध व धय का
योग करके वषय को रोचक बनाना चा हए। उपयु त कार क श ा सहायक साम ी का योग
करना चा हए। वभ न कार के पा यो तर कायकलाप तथा खेल , अ भनय, मदान, ाम
सव ण, नारायण सेवा ( नधन को भोजन कराना), भजन, सामू हक गान व नृ य, वाद— ववाद
तयो गता, आ द के वारा उ तम कार क मू यपरक श ा दान क जानी चा हए।
व यालये तर प रि थ तय पर जब तक अनुकू ल नय ण न हो, व यालय क भू मका
छा —छा ाओं म मानवीय मू य के वकास म लाभ द नह ं हो सकती। मू य के इस सं मण
काल म भी व यालयी श ा को यह उ तरदा य व वहन करना ह होगा क छा —छा ाओं क नई
पीढ़ को सं का रत कर और इसके लये (भारतीय सां कृ तक मू य वकास हे त)ु पया त
व यालयी पयावरण तु त कर। श टाचार, सदाचार जैसे मानवीय मू य का वकास केवल
भाषण के वारा स भव नह ं हो सकता य क ाय: यह भी दे खा गया है क हम अपने भाषण
म िजन मू य के थापन, पुन थापन करने क या या करते ह, अपने जीवन म उ ह ं मू य
क ाय: अवहे लना करते ह। मू य को जीवन का एक यावहा रक अंग के प म च रताथ करने
वाले श क क आज सवा धक आव यकता है।
इन सब वपर त प रि थ तय म भी व यालय म ऐसा वातावरण श त करना होगा
िजसम छा —छा ाएं वयं ह भारतीय मू य को आ मसात ् कर सक। व यालय म आयोिजत
व वध पा य—सहगामी वृि तयाँ इस उ े य क पू त म वशेष सहायक होती ह। व तु त: हम यह
वीकार कर श ण करना चा हये क मानवीय मू य या श टाचार श क के य —अ य
आचरण से ह हण कये जा सकते ह। इनका औपचा रक श ण इतना लाभ द नह ं रहता।
व यालय का सम त वातावरण ह ऐसा व थ व अनुकरणीय हो क छा —छा ाएँ वयं
सदाचरण क ओर वृ त रह। समय—समय पर सां कृ तक कायकम म श ा द झल कय का
दशन कया जाए इससे एकता, सहयोग एवं आव यकता पड़ने पर एक—दूसरे क सहायता करने
के साथ—साथ अ य गुण भी वक सत हो सक । शै क श वर एवं मण से भी बहु त कु छ
सीखा जा सकता है।
व यालय अपने य न और अ भभावक के सहयोग से छा —छा ाओं म िजन वां छत
आदत का वकास करने क पहल कर सकता है उनम से कु छ न न ल खत ह —
1. स मान एवं अ भवादन करना
(1). मलने पर बड़ का अ भवादन करना।
(2). छोट के त नेह द शत करना।

210
2. बोलने स बि धत आदत :—
(1). न ता से बोलना।
(2). क ा म अपनी बात न ता से कहना।
(3). आदरसूचक श द का योग करना।
(4). गाल —गलोच तथा तू तकार से नह ं बोलना।
(5). च लाकर नह ं बोलना।
3. समय क पाब द —
(1). समय पर व यालय जाना।
(2). खेल के समय खेलना एवं प ने के समय पढ़ना।
(3). समय पर गृहकाय करना।
(4). घर के काम को समय पर करना।
4. व छता —
(1). थान क सफाई
 व यालय प रसर क सफाई
 प ने के थान क सफाई
 क ा क सफाई
(2). व क सफाई
 अपने व क धु लाई वयं करना।
 उ ह तहकर रखना।
 बटन टू टने पर वयं लगाना।
 व को ग दे होने से बचाना।
 जू ते मोजे साफ रखना|
(3). शार रक सफाई
 समय पर शौच जाना एवं नान करना।
 नाखू न समय पर काटना।
(4). काम म आने वाल चीज क सफाई
 पु तक —कॉ पयो पर कवर लगाकर रखना।
 पेन ब ते, साइ कल आ द को साफ रखना।
 प ने क मेज, थान को यवि थत रखना।
 भोजन करने के बतन क सफाई करना।
5. अनुशासन एबं शाि त बनाये रखना
(1). बैठक , सभाओं म तथा क ाओं म शाि त एवं अनुशासन रखना।
(2). बड़ी सभाओं म नधा रत थान पर बैठना।
(3). सभा के नयम का पालन करना।
(4). घर म यवहार करते समय न ता व शाि त रखना।
6. अपनी बार क ती ा करना(धैय)
(1). उपि थ त बोलते समय
(2). बस म चढ़ते समय
211
(3). ट कट लेते समय
(4). व यालय म पानी पीते समय
7. भोजन स ब धी आदत
(1). हाथ स ब धी आदत ।
(2). जू ठन नह ं छोड़ना।
(3). भोजन करने के बतन को यथा थान रखना।
(4). थान क सफाई करना।
8. खेल स ब धी
(1). खेल म जानबूझ कर दूसर को चोट न पहु ंचाना।
(2). वप ी क जीत पर उसे बधाई दे ना।
(3). नणायक के आदे श को मानना।
(4). खेल म ईमानदार रखना।
9. कु छ व श ट आदत
(1). पहल करना
(2). काम म नेत ृ व दान करना
(3). काय आर भ कर बीच म नह छोडना
(4). म के काम म सहयोग दे ना
(5). म और भई—बहन के साथ मल बैठ कर और बांट कर खाना।
अगर इस कार छा —छा ाओं म कु छ आदत का नमाण होगा तो उनम न नां कत
जीवन मू य वत: ह वक सत ह गे :—
(1) सहयोग, (2) साहस, (3) सफाई, (4) ण न चय, (5) आ म वशवास, (6)
परोपकार, (7) कत य परायणता, (8) ईमानदार , (9) वन ता, (1०) म म न ठा, (11) याग
क भावना, (12) वन ता, (13) ेम, (14) दया, (15) सहानुभू त, (16) स ह णु ता (17) धैय
(18) मा, (19) दूसर का आदर, (20) त परता, (21) म ता, (22) दूसर का आदर करना,
(23) नभ कता, (24) वावल बन, (25) अनुषासन, (26) दे ष भि त।
कसी एक व यालय वातावरण क अनुकू लता / तकूलता के अनुपात म ह उस
व यालय क छा —छा ाओं म व थ मानवीय मू य का नमाण व वकास होता है। इस त य
परक स य क ओर य द आज का ष क वग यान दे तो इसम कोई स दे ह नह ं क नवपीढ़ के
छा —छा ाओं का अपे त यवहार प रवतन कर उ ह सं का रत कया जा सकता है। जो आज
क वशम सामािजक ि थ त म अ याव यक है।

14.6 सार—सं ेप (Summary)


मू य मानव के उ चत यवहार का तीक होती ह। जो समाज वारा वीकृ त ह। ये
यि तपरक, व तु परक एवं सापे क कृ त के होते ह। मू य के कार को मु य प से दो
कार से दे खा गया है। थम—जीवन के व भ न आयोमो के अनुसार मू य—शार रक, सामािजक,
राजनै तक, सौ दया मक, धा मक, आ याि मक, मान सक, बौ क आ थक, नै तक एवं सां कृ तक

212
कार के बताये गये ह। भारतीय च तन म मू य को दाश नक ि ट से लौ कक एवं
आ याि मक दो कार से वभािजत कया गया है — इसम काम, अथ, धम एवं मो आते ह।
मू यपरक श ा उस श ा को कहते ह जो व या थय म व थ ि टकोण, आ था
तथा संक प को वक सत करती है। यह धा मक श ा एवं नै तक श ा भ न क तु एक कृ त
होती है। पाँच मु ख मानवीय मू य स य, धम शाि त, ेम और अ हंसा के वकास पर बल दे ती
है। मू यपरक श ा क अनेक व धयाँ है। छोटे तर पर भाषण के थान पर सहगामी वृि तय
क सहायता से मू य का वकास करना उ तम रहता है। इसके लए व यालय का वातावरण
भावी होना चा हए। व भ न कार क व थ आदत का वकास हो सकेगा।

14.5 इकाई का मू यांकन (Evaluation of the Unit)


1. मू य से आप या समझते है?
What do you understand for values?
2. मू यपरक श ा क आव यकता य ह?
What is the need of Value Oriented Education?
3. मू यपरक श ा को दान करने क व धयाँ या ह
What are the methods of teaching value education?
4. मू य सखाये नह ं जा सकते बि क पकड़े जाते ह ।
“Values are not to be taught but to be caught”Explain it.

14.9 स दभ साम ी
1. Ruhela S.P.(Ed.),Human Values and Education,New Delhi,Sterling
Publishers,1989.
2. Ruhela S.P. “Education in Humjan Values”,: a ”Synotic View”
University News, July 13,1987, P.P.3—8.
3. Curriculum and Methodology for Intergrating Human Values in
Education (International Edition), Prasnthi Moyam Sri Sathya Sai
Bal Vikas Education Trust.
4. “National Symposium on Value Orientation in Hither Education”
University News, Oct.22, 1987.
5. Downay,M & Kelly,A.V.Moral Education : Theory and Practice,
London, Harper & Raw,1978.
6. Durkheim, E. Moral Education, New York, Fee Press of Clencoe,
1953.
7. ी स य साई बाबा, व या वा हनी। द ल , ी स य साई बु स ए ड पि लकेशन ट,
1984

213
8. Prashad Nayaran education for a New Life, Pondicherry, Shri
Aurobindo Asram1976.
9. Joshi, Kireet, An Outline Programme of Value Oriented Education
and Relevent Pedegogical Suggessions.
10. Sharma, S.K., सां कृ तक वरासत एवं श ा, बाल भवन, एं लो एकेडेमी, उदयपुर ,
2005.

214
इकाई—15
भारत म रा य एवं भावना मक एक करण और श ा
National and Emotional Integration in Indian and
Education
इकाई क संरचना (Outline of the Unit)
15.1 उ े य
15.2 रा य एक करण का अथ
15.3 भावा मक एक करण का अथ
15.4 श ा का अथ
15.5 रा य एवं भावा मक एक करण क आव यकता
15.6 रा य एवं भावा मक एक करण म बाधक त व
15.7 रा य एवं भावा मक एक करण हे तु व भ न स म तय के सु झाव
15.8 रा य एवं भावा मक एक करण और श ा
15.9 सारांश
15.10 ग त का व—मू यांकन
15.11 संदभ थ

15.1 उ े य (Objectives)
इस इकाई क स ाि त पर आपको इस यो य होना चा हए क :—
1. आप रा य एवं भावा मक एक करण के अथ के बारे म बता सक।
2. आप रा य एवं भावा मक एक करण को अतीत के संदभ म दे ख सक।
3. रा य एवं भावा मक एक करण क वशेष आव यकता य है? बता सक।
4. आप यह समझ सक क कस कार से श ा रा य एवं भावा मक एक करण के
वकास म सहायक होती है और सु यवि थत श ा के अभाव म रा य एवं भावा मक
एकता के वकास म बाधा पहु ंचती है।
5. आप रा य एवं भावा मक एक करण के संदभ म भारत म श ा स ब धी वांछनीय
प रवतन को गना सक।
6. आप व या थय म भ व य म रा य एवं भावा मक एक करण के त जाग कता
उ प न करने के लए उपाय बता सक।
7. आप म व भ न सां कृ तक जहां े ीय व भ नताओं स ब धी ि टकोण का वकास हो
सके और उनके त लाघा उ प न हो सके।

215
15.2 रा य एक करण का अथ (Meaning of National
Integration)
मानव क महानता उसके मान सक, चा र क, व आ याि मक गुण वारा होती है और
वृ का वैभव उसके पु प क सु गध
ं एवं माधु य तथा का ठ क उपयो गता पर नभर है। ठ क
इसी कार रा का गौरव एवं उसक महानता रा य एकता से पहचानी जा सकती है। अब न
यह उठता है क रा य एक करण या है?
रा य एकता स मेलन म पं. जवाहरलाल नेह ने रा य एकता को प ट करते हु ए
कहा था ' रा य एकता एक मनोवै ा नक और शै क या है िजसके वारा सभी लोग के
दल म एकता क भावना, समान नाग रकता का अनुभव और रा के त न ठा और ेम क
भावना को वक सत कया जाता है । '' ब
ू ेकर के अनुसार रा वाद एक ऐसा श द है जो
पुन थान काल और मु य प से ासीसी ाि त के बाद काम म आने लगा है। यह
सामा यतया दे श क अपे ा न ठा के एक यापक े क ओर संकेत करता है। रा वाद
थानगत स ब ध के अ त र त जा त, भाषा, इ तहास, सं कृ त और पर परा जैसे स ब ध के
मा यम से भी य त होता है। “रा य एक करण क इन प रभाषाओं से प ट हो जाता है क
रा यता क भावना से यि त म संक ण न ठाओं से ऊपर उठकर रा के त न ठावान
बनने क भावना आ जाती है। हमारे दे श म धम, जा त, भाषा, े , सं कृ त आ द सभी क
व वधता है। रा यता क भावना म इन व वधताओं क संक णता को नाग रक नह ं मानता”
इसम यि त रा य अपे ाओं व आव यकताओं को ाथ मकता दे ता है।

15.3 भावा मक एक करण का अथ (Meaning of Emotional


Integration)
भावा मक एक करण से ता पय भावनाओं से एक होना है। इसम यि त क भावनाओं
को इस कार से प रव तत कया जाता है िजससे क वह रा के त सम पत हो सके।
भावा मक एक करण का स ब ध दय से है। वामी दयान द सर वती के अनुसार भावा मक
एक करण से ता पय भाषा, वचार और भावना म एकता आ जाने से है।
भावा मक एक करण के लए डॉ. स पूणान द क अ य ता म ग ठत स म त के
अनुसार भावा मक एक करण— ातृ व एवं रा यता क बल भावना है जो दे श के सभी
नवा सय को वचार एवं काय के सम त े म ेरणा दान करती है और उनको अपनी सब
व भ नताओं (धा मक, वैयि तक, थानीय या भाषा स ब धी) का व मरण एवं ब ह कार करने
म मदद दे ती है। “हमारे भू तपूव धानम ी जवाहरलाल नेह के अनुसार “भावा मक एकता से
मेरा ता पय अपने मि त क एवं दय के सम वय तथा पृथ व क भावनाओं के दमन से है।
हम अनुदार, संक ण, सा दा यकता, ातीयतावाद व जा तवाद नह ं बनना चा हए य क हम
एक बड़ा मशन पूरा करना है। राजनी तक एक करण एक सीमा तक हो चु का है। म िजस बात क
चचा कर रहा हू ं वह इसी काफ गहर चीज है— भारतीय लोग का भावा मक एक करण, ता क हम
सब एक बन सक, एक शि तशाल रा य इकाई बन सक साथ ह अपनी अ ुत व वधता को भी
बनाये रख।“

216
15.4 रा य एवं भावा मक एक करण क आव यकता (Need of
National and Emotional Integration)
हम य द अपने दे श क इ तहास को उठाकर दे ख तो रा य एवं भावा मक एक करण क
आव यकता वत: प ट हो जायेगी। हमने दे खा क हमारे दे श म एकता का अभाव रहा और
एकता के अभाव के कारण ह हम वदे शय से परािजत होते रहे। ाचीन एवं म यकाल म भारत
अनेक छोटे —छोटे रा य म वभािजत रहा और ये सभी रा य पर पर तो झगड़ा करते ह थे, साथ
ह वदे शी आ मणकार को भी अपने ह दे श म दूसरे रा य के व सहायता दे ते थे। इससे दे श
का बहु त पतन हु आ। इन सबके बावजू द भी भारत म भौगो लक व सां कृ तक एकता बनी रह ।
ले कन टश शासन काल म हमार रा य एवं भावा मक एकता को समा त करने का बहु त
यास कया गया य क अं ेज क ''फूट डालो और रा य करो'’ क नी त थी। उ ह ने हमम
व भ न संक णताओं को ज म दया। हम सभी म ह पर पर जा त, धम, सं कृ त, आ थक तर
आ द के आधार पर द वार खड़ी कर द । हमारे दे श का वभाजन अं ेज अ धका रय के ो साहन
एवं प पात के कारण हु आ। भारत म अ पसं यक म भय एवं शोषण क भावना भर द । इसका
आज भी असर व यमान है। वतं ता के बाद से अब तक के इ तहास का अ ययन कया जाये
तो प ट हो जायेगा क अनेक अवसर ऐसे आये है, जब क छोट सी बात को लेकर रा यता
एवं भावा मक एक करण का अभाव कट हु आ। 1962 के समय चीन के आकमण और 1965 व
1971 म पा क तान के आ मण के समय हमारे दे शवा सय ने रा य एवं भावा मक एकता का
अपूव उदाहरण तु त कया है।
अत: हमारे दे श क व भ नताओं को यान म रखते हु ए यह प ट हो जाता है क
दे श हत म यह रा य एवं भावा मक एकता क बहु त आव यकता है। जैसा क पं. जवाहर लाल
नेह ने कहा था '' क मेरे जीवन का मु य काय भारत का एक करण ह|''

व—मू यां क न—1


1. रा य एक करण से नाग रक म कस वृ त का वकास होगा?
2. हमारे दे श म कस सं क ट के समय रा य एवं भावा मक एक करण दे खने को
मला?
3. हमारे दे श म रा य एवं भावा मक एक करण क आव यकता या ह

15.5 रा य एवं भावा मक एक करण म बाधक त व (Problems in


National and Emotional Integration)
हमारे दे श क रा य एवं भावा मक एकता म आज भी अनेक बाधक त व है। जैसा क
ो. ी नवास ने लखा है क वभाजनकार वृि◌तयॉ आज भी अि त व म है’' और भ व य म
कई वष तक बनी रहे गी। दे श क अ धकांश जनता के लए ''भारत’' एक नई क पना है और इस
क पना के स य प होने से कु छ समय लगेगा। हमारे दे श म रा य एवं भावा मक एक करण
के माग म मु य प से न न ल खत बाधाएँ ह—

217
15.5.1 जा त (Caste)
हमारे दे श क रा य एवं भावा मक एकता म सबसे बड़ी बाधा जा त है। हमारे यह कोई
भी कह ं रहे , वह जा त के संसार म ह रहता है। ह दू जैन, मु ि लम, सख, ईसाई आ द सभी
व भ न जा तय म बटे हु ए है। उ च जा त वाल म े ठता क भावना है। उ च व न न जा त
वाल म तनाव होता रहता है। राजनी तक दल जा तय म बंटे हु ए है। उ च जा त वाल म े ठता
क भावना है। उ च व न न जा त वाल म तनाव होता रहता है। राजनी तक दल जा तय के
संगठन का उपयोग चु नाव के समय करते ह। हमारे अनेक रा य म चु नाव के समय जातीय
त व दता बहु त जबरद त दखाई दे ती है। बहार म राजपू त, भू महार, व काय थ जा तय ,
त मलनाडू म ाहमण व गैर ाहमण, आक म रे डी व क मा, मैसू र म लंगायत व वो क लग
का संघष सव दे खने को मलता है।

15.5.2 सा दा यकता (Communalism)


हमारे दे श के लए तो सा दा यकता बहु त हा नकारक वृि त स हु ई है।
सा दा यकता के कारण ह दे श का वभाजन हु आ है। वतं ता के बाद भारत धम नरपे रा य
है ले कन फर भी हमारे दे श म ह दू मु ि लम, स ख, ईसाई आ द अनेक स दाय है। इन
स दाय म छोट —छोट बात को लेकर वाथ त व व वेश फैलाते रहते ह। सा दा यक दं ग
के कारण पार प रक सौहाद म दरार उ प न हो जाती है। जातं के कलंक के प म
सा दा यकता बनी हु ई है। मु रादाबाद, अल गढ़, जमशेदपुर , मेरठ, भवंडी, अहमदाबाद आ द
थान पर अनेक बार सा दा यक दं गे हो चु के है।

15.5.3 े ीयता (Regionalism)


हमारे दे श म े ीयता क भावना भी रा य एक करण म बाधक बनी हु ई है। हमारे यह
कु छ े वाले अलग रा य क मांग करते ह और कु छ े तो भारत से अलग होने क ह बात
करते ह। े ीयता क भावना से संघ व रा य के स ब ध पर तो भाव पड़ता ह है साथ ह
व भ न रा य म भी पर पर स ब ध खराब हो जाते ह। इन रा य म भी भाषा, सीमा आ द
न को लेकर झगड़े होते ह। त मलनाडु म डी.एम.के. पाट ने अलग से वड थान क मांग
क । आज भी महारा व कनाटक, केरल व कनाटक, असम व नागालै ड, उ तर— दे श व बहार
के बीच सीमा ववाद क सम या है। बंगाल—बंगा लय के लए, महारा महाराि य के लए इस
कार के संक ण नारे े ीयता क भावना को ो सा हत करते है।

15.5.4 भाषा (Language)


एक करण म बाधक त व भाषा क व वधता भी है। हमारे यहां रा य का पुनगठन भाषा
के आधार पर हु आ है। आं दे श के नमाण के लए आक नेता पो ी ी रामलू ने आमरण
अनशन करके ाण याग दये। उसके बाद यापक दं गे हु ए और आं दे श बना। 1966 से
अं ेजी के थान पर ह द को ह पूणतया लागू करने क संवध
ै ा नक त थ पर अ ह द े म
बहु त अस ताष व आ दोलन हु ए, म ास म दो मु क नेताओं ने आ मदाह तक कया। इसके
प रणाम व प रा य भाषा अ ध नयम ावधान संशोधन पा रत कया गया, िजससे वातावरण शांत

218
हु आ। इसम यह कया गया क जब तक एक भी रा य चाहे गा, के म ह द के साथ—साथ
अं ेजी राज भाषा के प म रहे गी|

15.5.5 हंसा मक ग त व धयॉ (Voilent Activities)


हमारे दे श म हंसा मक आ दोलन बहु त बढ़ते जा रहे ह। आज अपनी मांग को पूरा
करवाने के लए असंवध
ै ा नक साधन का योग बहु त यादा कया जा रहा है। सावज नक
स पि त को बहु त नुकसान पहुचाया जाता है। वतमान म आर ण के लए राज थान म जाट
आ दोलन इसका य उदाहरण ह इसके अ त र त न सलवा दय ने दे श म हंसा का खु लकर
योग कया है। पंजाब व बंगाल म इस समय आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर है। इन वष म
न जाने कतने यि त आतंकवाद के शकार हो चु के ह। गोरखालै ड रा य मु ि त मोच
(जी.एन.एल.एफ) ने भी हंसा व आतंकवाद का रा ता अपनाया य य प गोरखालै ड क सम या
का शां तपूण हल नकल आने से हंसा समा त हो गयी है। हंसा व अराजकता के बढ़ने से सारा
वातावरण अशा त हो गया और रा य एकता को खतरा नजर आने लगा है।

15.5.6 आ थक वषमता (Economic Disparities)


हमारे दे श के एक करण म आ थक वषमता सी अ य धक बाधक त व ह। वा त वकता
यह है क अ सी तशत पैसा 20 तशत यि तय के पास है। गर ब व मजदूर म शोषण के
व व ोह क भावना उ प न होती जा रह है। हमारे व भ न रा य म भी आ थक वषमता
है। कु छ रा य आ थक ि ट से स प न ह और कु छ रा य बहु त पछड़े हु ए ह।

15.6 रा य एवं भावा मक एक करण हे तु व भ न स म तय के


सु झाव (Suggestions of Different Committees for
national and Emotional Integration)
हमारे दे श म रा य एवं भावा मक एक करण के लए अनेक यास हु ए। इस संदभ म
ह व भ न स म तय का गठन हु आ। इन व भ न स म तय ने अपने—अपने सु झाव दये।

15.6.1 व व व यालय अनु दान आयोग गो ठ 1958 (UGC


Conference — 1958)
इस गो ठ ने यह सु झाव दया क भारतीय इ तहास से सा दा यकता क भावना वाले
अंश को हटाकर इ तहास पुन : लखा जाये। छा ावास व छा वृि तय का आधार जा त, धम व
स दाय नह ं होना चा हए। साथ ह रा य एकता क वृ करने वाले उ सव को व यालय म
मनाया जाना चा हये।

15.6.2 स पू णान द स म त 1961 (Sampurnanand


Committee — 1961)
डॉ.स पूणान द क अ य ता म बनी स म त ने पा य म के पुनगठन पर बल दया।
ाथ मक क ाओं म रा गान व रा ेम के गीत के अ यास पर बल दया गया। स म त के
अनुसार भाषा म बा यता लागू नह ं क जानी चा हए अथात ् कसी भी भाषा को इ छा के व

219
न थोपे,रा य वज एवं रा य गान के मह व व आदर क भावना का वकास कर और रा य
दवस को अ नवाय प से मनाय। श ा क नी तयाँ अ खल भारतीय तर पर लागू हो और
उनम सामािजक अ ययन एवं पा य म सहगामी याओं पर बहु त अ धक बल दया जाना
चा हए य क इनके मा यम से रा य एवं भावा मक एक करण लाने म सहायता मलेगी।
ाथना सभा म व या थय से रा हत क त ाएं नय मत प से करवाई जानी चा हए।

15.6.3 उपकु लप त स मेलन 1961 (Vice Chancellor’s


Conference — 1961)
द ल म उपकु लप तय का स मेलन 1961 म हु आ। उसम यह सु झाव दया गया क
व व व यालय म सभी रा य के छा के वेश क सं या नि चत हो। छा संघ के थान पर
सां कृ तक काय म को ो साहन दे । सा दा यक भावना को समा त करके धा मक स ह णु ता
का वकास कया जाना चा हए। साथ ह व भ न भाषाओं के मा यम से अ ययन क यव था
व व व यालय म होनी चा हए।

15.6.4 रा य एकता प रष 1962 (National Unity


Council)
इस प रष ने रा य एकता के लए श ा पर ह बल दया। मा य मक तर तक
े ीय भाषा श ा का मा यम हो तथा भाषा सू लागू करने पर बल दया जाए। श ा के
मा यम से ेम, स ावना व रा य भावनाओं का सार कया जाना चा हए। यि तय के
मि त क व दय म पार प रक ेम व स ावना का वकास श ा वारा ह कया जा सकता है।

15.6.5 कोठार आयोग 1964—64 (Kothari Commission —


1964 — 66)
कोठार आयोग ने रा य एकता के वकास म श ा क भू मका ह अ धक वीकार क ।
श ा के सभी तर पर सामािजक व रा य सेवा अ नवाय हो और मा य मक तर पर वशेष
काय म सभी श ण सं थाएं आयोिजत कर। ादे शक भाषा ह उ च श ा का मा यम होने
चा हए। इन ादे शक भाषाओं म अ छे सा ह य का काशन कया जाना चा हए। अ तरा य
भाषा के प म अं ेजी अ नवाय हो और स पक भाषा के प म ह द का वकास हो।

15.6.6 रा य एकता स म त 1968 (National Unity


Committee—1968)
1968 म रा य एकता स म त का पुनगठन कया गया। इस स म त ने भी श ा को
रा य ए ीकरण का बल साधन वीकार कया, इस लए श ा के वकास व शै क असंतु लन
को समा त करने पर बल दया। सा दा यक स ाव वाले अ यापक क नयु का क जाये। दे श
म रा य या े ीयता का तब ध नह ं होना चा हए। अ त व व व यालय मलने व दे श के
मण क यव था क जानी चा हए।

220
रा य एवं भावा मक एक करण था पत करने हे तु दये गये व भ न सु झाव के
बावजू द भी हमारे दे श क यह सम या य क य बनी हु ई है। इसका कारण यह है क इन
सु झाव के या वयन पर अ धक यान दया गया है।

15.6.7 'हम एक है ' दशनी का आयोजन 1979 (Exhibition


on “We are one” — 1979)
2 अ टू बर, 1979 को गांधी जय ती के अवसर पर ''हम एक ह' वषय पर दशनी का
आयोजन, व ापन और य चार नदे शालय वारा कया गया। इसम यह दखाया गया क
सा दा यक दं ग के वारा अ छे नाग रक व नद ष ी पु ष व बेसहारा ब च को कतना
क ट उठाना पड़ता है।

15.7 रा य एवं भावा मक एक करण और श ा (Education and


National Education Integrated)
रा य एवं भावा मक एक करण के लए ग ठत व भ न आयोग व स म तय के सु झाव
एवं सफा रश को य द हम दे ख तो यह वत: प ट हो जायेगा क सभी ने इस काय के लये
श ा को बहु त मह वपूण एवं आधारभू त प म वीकार कया है। श ा के वारा ह व या थय
एवं भावी नाग रक क अ भवृ तयो एवं ि टकोण को वक सत कया जा सकता है। यि त क
संकु चत वृ त को हटाकर व तृत वृि त वक सत करने का काय श ा ह ठ क कार से कर
सकती है। रा य एवं भावा मक एक करण के लए समु चत श ा यव था म यापक प रवतन
क मांग क जाती रह है। रा य श ा नी त 1986 म इस बात का यान रखा गया है।
ो. तीथ के अनुसार एक करण क ि ट से हमार श ा के उ े य को इस कार से
तु त कया जाना चा हए क व या थय म लोकतां क जीवन से स बि धत व वास व
यवहार उ प न हो सके और अ पसं यक व बहु सं यक म तारत य था पत हो सक।
अ यापक व व या थय म अपने सं वधान के आदश व मू य क ाि त और वभ न
सां कृ तक व भ नताओं के त लाघा उ प न हो सके।
श ा के येक तर पर इस कार के पा य म को हटा दया जाना चा हए िजनसे
आपसी फूट, धमा धता व े वाद को बल मलता हो। इसके थान पर ऐसे मू य व आदश को
पा य म म सि म लत कया जाना चा हए, जो सवस मत हो जैसे जातं , समाजवाद, धम
नरपे ता, बंधु व, सामािजक याय, समानता, वत ता आ द। स पूणान द स म त क
सफा रश के अनुसार सामािजक अ ययन क पु तक म आमूलचूल प रवतन करके उनके
भारतीय महापु ष , दे शभ त , सा ह यकार , समाज धारक आ द को मह वपूण थान दे कर उनके
या कलाप को पा य म म सि म लत करना चा हए। इस स दभ म यह भी यान रखा जाना
आव यक है क रा य एवं भावा मक एक करण स ब धी पा य म केवल सामािजक अ ययन
वषय तक ह सी मत न रखा जाये। हमने दे खा क रा य एवं भावा मक एक करण म नै तक
श ा का भी बहु त भाव होता है। इस लए नै तक श ा को भी पा य म म मह वपूण थानं
दया जाना आव यक है। रा य श ा नी त म नै तक श ा पर इस लए बहु त बल दया गया
है| इसके मा यम से मानव धम का ान दया जा सकता है। िजसम सभी धम क अ छाइय
को सि म लत कया जाना चा हए।
221
व यालय एवं महा व यालय तर पर पा य सहगामी याओं पर भी अ धक बल दया
जाना चा हए। इन याओं म रा य कायकम का आयोजन कया जाना चा हए। ये याएं
व भ न रा य म आयोिजत करके व या थय को व भ न रा य म भेजा जा सकता है। इसके
साथ ह वाद— ववाद तयो गता, एकांक , नाटक आ द आयोिजत कये जा सकते ह। रा य
दश नयाँ भी आयोिजत क जा सकती ह।
रा य एवं भावा मक एक करण म अ यापक क भू मका भी मह वपूण होती है।
अ यापक क वचार एवं ि टकोण का छा पर बहु त भाव पड़ता है। अत: य द अ यापक का
ि टकोण यापक हु आ तो छा के ि टकोण को भी यापक बनाने म अ धक क ठनाई नह ं
आयेगी। के.एल. ीमाल ने भी श क के वशाल दय, ि टकोण व रा के त उनक
सम ता क ि ट को मह वपूण वीकार कया है। श क श ण म भी रा य एवं भावा मक
एक करण पर अ धक बल दया जाना आव यक है। इसके लए ो. तीथ ने श क क समूह—
श ण व ध पर बहु त अ धक बल दया है। इसम सामू हक याओं, च तन, वचार वमश
आ द के मा यम से सीखने—सीखाने क या पर बल दया जाना चा हए।
हम दूरदशन पर कई ऐसे सी रयल दे खते रहे ह। िजससे क रा य एकता आये।
उदाहरण के लए अमीर खु सर नामक सी रयल म औरं गजेब के लये यह कहा गया क वह
ह दूओं के लए ह आ मक नह ं था वरन ् अपने भाइय , बहन व पता को भी नह ं छोड़ा अत:
उसे हमक आ ामक के प म ह दे खना चा हए। इस कार के अ य काय म रे डय , ट वी.
आ द संचार मा यम के वारा दये जाने चा हए, िजससे क रा य एवं भावा मक एकता आ
सक।

15.8 सारांश (Summary)


रा य एवं भावा मक एक करण से यह ता पय है क हम व भ न संक णताओं से दूर
रहकर अपने आपक अ य कु छ (जा त, धम, भाषा, े आ द) मानने से पूव भारतीय वीकार
कर। हमारे दे श के इ तहास व वतमान प रि थ तय को दे खने पर रा य एवं भावा मक
एक करण क आव यकता वत: प ट हो जाती है। हमारे पर पर फूट का वदे शी ताकत ने बहु त
पहले से ह लाभ उठाया है। हमारे रा य एवं भावा मक एक करण म जा त, सा दा यकता,
े ीयता, भाषावाद, हंसा मक साधन, आ थक वषमता आ द अनेक बाधक त व ह। इनके आधार
पर भारतीय म फूट डालना व इससे लाभ उठाना रा वरो धय के लए बहु त आसान है।
रा य एवं भावा मक एक करण हे तु व भ न स म तयां व आयोग ने अपने सु झाव म श ा पर
ह बहु त अ धक बल दया। अत: श ा को अपने उ े य , — श ण व ध, श क क भू मका
आ द सभी वषय इस कार नि चत करने ह गे िजससे क भारतीय म रा य एवं भावा मक
एक करण क भावना उ प न एवं वक सत हो सक।

15.8 ग त का व—मू यांकन (Evaluation of Unit)


1. न न म से कौन –कौन से कथन आपके वचारानुसार भारत क भावी श ा के स ब ध
म ठ क ह गे| उनके सामने सह का चहन अं कत कर।
(अ) भारत क श ा म भाषा का वशेष मह व नह ं होगा।
(ब) हमारे दे श म धा मक श ा का मह व नह ं होगा।

222
(स) रा य एवं भावा मक एक करण धान पा य म होगा।
(द) पा य म—सहगामी वृि तयाँ श ा म नह ं रहगी।
2. रा य एवं भावा मक एक करण के अथ को प ट क िजये।
3. रा य एवं भावा मक एक करण म श ा क भू मका ल खये।
4. रा य एवं भावा मक एक करण हे तु व भ न स म तय ने या सु झाव दये है?
5. रा य एवं भावा मक एक करण के माग म मु य बाधाएँ या ह? सं ेप म लखे।
1. Out of following statement,which statements are true from
futuristics point of views of education?Tick the correct statement:
A. Inguage will not have specific importance in Indian
Education.
B. Religeous education will not have any importance in our
contry.
C. National and Emotional Integration based curriculum will
prevail.
D. There will be no co—curricular activities in education.
2. Explain the meaning of National and Emotional Integration.
3. Write down the role of National and Emotional Integration.
4. What suggestions are given by different committees for National
and Emotional Inregration?
5. What are themain problems in National and Emotional
Integration?Write in short.

15.10 स दभ थ (Reference book)


1. कु पु वामी, बी, सोशल चे ज इन इि डया, वकास पि लकेशन, द ल , 1972
2. कोठार , रजनी, पॉ ल ट स इन इि डया'।
3. 'द रपोट ऑफ द एजू केशन कमीशन 1964—66 भारत सरकार, श ा मं ालय, नई
द ल।
4. कु लद प नायर, श ा मं ालय, नई द ल, द क टकल इयस, वकास पि लकेश स,
1971
5. द रपोट ऑफ द सैक डर एजू केशन कमीशन 1952 —53 भारत सरकार, श ा मं ालय,
नई द ल ।
6. नेह , जे.एल. ' पीचेज', तृतीय ख ड।
7. द रपोट ऑफ यू नव सट कमीशन 1948—49 भारत सरकार श ा मं ालय, नई द ल ।
8. संघल, डी. एम.सी. भारतीय श ा क सम याएँ, राज थान ह द म थ अकादमी ।
9. ीमाल के.एल., एजु केशन इन चिजंग इि डया, ए शया पि ल शंग हाऊस, ब बई ।
10. तीथ, एन.बी. नेशनल इंट ेशन, यू नव सट पि लशस, जालधर, 1988

223
इकाई 16
खु ला अ धगम समाज,उसक वशेषताएँ एवं खु ल अ धगम
णाल
Open Learning Society,its Features and Open
Learning System
इकाई क परे खा (Out Line of the Unit)
16.1 इकाई शीषक (Unit Title)
16.2 अ धगम उ े य (Learning Objectives)
16.3 तावना (Introduction)
16.4 खु ला अ धगम समाज का उ गम/उ व (The Emergence of Open Learning
Society)
16.4.1 तकनीक एवं ान अथ यव था (Technology and knowledge economy)
16.4.2 वै वीकरण एवं ान अथ यव था (Globalization and Knowledge Economy)
16.4.3 रोजगार एवं नवीन मक बाजार (Employment and the new labour market)
16.4.4 खु ला अ धगम समाज म बदलते जीवन तमान (Changing life patterns in
Open Learning Society)
16.5 जीवन पय त अ धगम एवं अ धगम समाज (Life Long Learning and The
Learning Society)
16.5.1 अ धगम अव था— श ा नी त के वचार (Learning Age—Educational Policy
Issues)
16.5.2 अ धगम समाज — मु य वशेषताऐ (The Learning Society—Characteristics
Features)
16.6 खु ला अ धगम णाल (Open Learning Systems)
16.6.1 प रवतन को चु नौती— व व व यालय नवीनीकरण हे तु केस (Challenge of Change—
case for University Renewal)
16.6.2 शै क णाल म तकनीक भ व य के त ि ट (Vision of the Technological
Future in Educational System)
16.6.3 ि ट को वा त वकता म प रव तत करने हे तु पूव आव यकताएँ/पूवकां ा
(Prerequisites for Translating from Vision to Reality)
16.6.4 उ च श ा म अवसर एवं चु नौ तयॉ (Challenges and Opportunities for
higher Education)

224
16.7 ान युग का ज म — शै क स ा त एवं अ यास म प रवतन (Birth of
Knowledge Era—changes in Educational Theory and Practice)
16.8 न कष (Conclusion)
16.9 सारांश (Summary)
16.10 इकाई का मू यांकन (Evaluation of the Unit)
16.11 स दभ थ सू ची (References)

16.2 अ धगम उ े य (Learning Objectives)


 खु ला अ धगम समाज के स यय को प रभा षत करना एवं अवबोध वक सत करना।
 खु ला अ धगम समाज क कया के उ व क खोज करना।
 खु ला अ धगम समाज के नमाण म अ णी कारक क पहचान करना।
 खु ला अ धगम समाज क वशेषताओं का पता लगाना ( वभे दत)।
 खु ला अ धगम णाल को प रभा षत करना एवं अवबोध उ प न करना।
 खु ला अ धगम णाल के सम आने वाल चु नौ तय क पहचान करना।

16.3 तावना (Introduction)


20वी शता द के म य म, वतीय व व यु के प चात ् संयु त रा य एवं म दे श
वारा भ व य म अ य व व यु को रोकने के लए कु छ आ यूह अपना गए। उनम से पहला था
नाग रक क ि ट से तकनीक वकास म सभी शोध एवं वकास को अनु े षत करना। इससे
तकनीक म ती ग त से वकास हु आ जो मानव के लए अ य त मह वपूण रहा इनम भी
अ य त मह वपूण रहा सू चना स ेषण तकनीक का वकास।
इसके पीछे आधारभू त भावना यह थी क अ धक से अ धक रा , रा य व उनके
नाग रक को आ थक उ पादकता व सामािजक रचना मक ग त व धय म कु छ इस कार लगाया
जाय क भ व य म यु वचार भी न कर पाए। लोकतं को व व यापी बनाने क नी त के तहत
इसी उ े य से काय कया गया।
सू चना तकनीक के वेश से सावभौ मकरण क या को ग त मल और व व
संकु चत हो गया। तकनीक ान तेजी से बदल रहा है। सकारा मकता इसी म आ रह है। अब
ान को यादा मह व दया जाने लगा जो क योगशाला तक सी मत न रहकर काय े तक
पहु ँ च रहा है। नये तफल दे ने वाले पा य म सभी तर पर ार म कए जा रहे है। क ा के
बना अ धगम के नए तर क क खोज क जा रह है, पूव अनुभवज य अ धगम के ह ता तरण
को वीकृ त कया गया है। व तु त: अ धगम के स ा त वत: ह बदल रहे ह और अनुभवज य
बन रहे ह।
तेजी से बढ़ते हु ए वकास व सू चना तकनीक के व तार से, यह अ धक आ चय क बात
नह ं है क सं थाएँ श ा व श ण भी उसी कार दे रह ह।
21 वीं सद म मानव के लए बहु वध चु नौ तयॉ अपे त ह। भौ तक संसाधन के अभाव
के कारण भौ तक वातावरण का उ नयन स भव नह ं होगा अत: यह व व के श ा वद पर
225
नभर होगा क येक यि त कौशल एवं बु के असी मत े म अपनी मताओं का वकास
कर सके। वकासशील व व म बढ़ती हु ई जनसं या को श ा व श ण दे ना अपने आप म
एक बहु त बड़ी चु नौती है। पर तु यह आव यक भी है य क मानव क स पूण सु र ा इस पर
नभर करती है। यान रखने यो य बात यह है क व व क 50 तशत जनसं या 20 वष से
कम उ क है। वकासशील दे श म इसका अनुपात बढ़कर पैले ट न म 70 तशत व द ण
अफ का म 80 तशत है। य द इस दशा म शी ह स य प से ह त ेप न कया गया तो
इसम से बहु त बड़ा युवा वग बेरोजगार, अि थर एवं एकांगी रह जाएगा। अत: काय के लए समू ह
श ण व रोजगार के उपयु त अवसर ह एक मा समाधान है। साथ ह साथ यि त के लए
यह आव यक है क वह व— नयं त होने के लए अपने आदश व मू य को अिजत करे ।
जब क नवीनतम स ेषण ने इसे अ य त ज टल बना दया है। अत: श ा व श ण ह
िज मेदार नाग रक बनाने के लए बेहतर न तर के सा बत हो सकते ह।

16.4 खु ले अ धगम समाज का उ गम /उ व (The Emergence of


Open Learning Society)
खु ला अ धगम समाज का उ गम वै वीकरण एवं ान के व फोट के प रणाम व प
हु आ। वतमान प र े य म हमारे च तन म प रवतन आया है। अब हमारा यान कौशल अिजत
करने तथा ान के ब धन पर केि त हो गया है। इससे बड़ी सं या म यि त बाजार क
अथ यव था म स य भागीदार हो सकते ह। ान समाज म अ धक भावी ढं ग से काय करने
हे तु श ा एक उपकरण के प म काय करती है। आ थक च के नवीनीकरण के साथ 'अ धगम'
कई दे श क श ा नी त का के ब दु बन गया है। श ा को वतमान म नवेश के प म
माना जाता है। जो यि तगत एवं सामािजक पू ज
ं ी के मू य म वृ करती है।

16.4.1 तकनीक एवं ववेकपू ण अथ यव था (Technology and


knowledge Economy)
ान आधा रत अथ यव था म औ यो गक अथ यव था को प रव तत कर दया है। यह
व वास हो गया है क ान के गणना से व तु के मू य बन रहे ह न मत व तु ओं से नह ं।
उदाहरण के लये ाचीन अथ यव था म कसी व तु के उ पादन म नयात क भू मका मह वपूण
हु आ करती थी क तु लागत मू य क चे माल एवं म से नधा रत होती थी। क तु वतमान
समय म जैसे क यूटर के नमाण म क चा माल एवं म अ य धक कम है क तु लागत म
इसके आकार— कार इसक मशीन एवं काय म को तैयार करने म लगाये गये च तन व समय,
मि त क य कया एवं ान क गणना मह वपूण हो जाती है। इसको काम म लेने स ब धी
श ण और भी अ धक महंगा हो जाता है।
इस कार तकनीक प रवतन ने ान क अथ यव था को भा वत कया है।
ICT ने सामािजक, आ थक, श ा आ द े को बहु त सु ढ़ कया है, इससे स ेषण
म बहु त ती ता आयी है । पुरानी व नयी अथ यव था म तु लना करने पर प ट होता है क
पुरानी अथ यव था म सू चनाओं का अभाव रहता था ले कन नयी अथ यव था म सू चनाएं तो

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बहु त अ धक उपल ध होती ह ले कन मु य ब दु यह है क कस कार इन सू चनाओं का चयन
कर उनका ब धन कया जाए िजससे वो वयं तथा उपभो ताओं के लए अ धक मू यवान बन
सके। इसके लए मानवीय म क अपे ा बौ क कौशल क आव यकता होती है। साथ ह साथ
बौ क लचीलापन तथा थाना तरण यो य कौशल का सि म ण बहु त आव यक है।
तकनीक प रवतन का मु य भाव यह हु आ है क अथ यव था म अ धक कौशलयु त
यवसाय म वृ हु ई है। काम—कौशल वाले यवसाय म अवसर यूनतम हो गये ह। इस कारण
औ यो गक फम को लाभ अ धक होने लगा है।
Rich (1993) ने मक बाजार (Labour market) म आने वाले प रवतन को प ट
करते हु ए एक नये भावी सामािजक वग के बारे म बताया िजसका मु य यवसाय ान का
व नमय एवं ब धन करना है। इस वग को तका मक व लेषक कहा गया। वतमान
अथ यव था म उ प न न न तीन वग को लेकर रच ने च ता अ भ य त क है —
1. तका मक व लेशक (Symbolic Analyst)
2. सेवा वग (Service Class)
3. अि थर आ थक भू मका वाले य काय का बड़ा समू ह (A large group of people
with no stable economic role)

व—मू यां क न(Self Evaluation)


1. तकनीक , ान, आ थक वकास च को प ट क िजये |
2. तकनीक म होने वाले प रवतन काय थल को कस कार भा वत करते ह|

य क एक बड़े समू ह के प म बेरोजगार यि तय का होना कसी भी अथ यव था के


लए अ छा नह ं होगा।

16.4.2 समाज का उ गमू /उ व(Origin of Open Learning


Society)
भ व य म होने वाले व व यु को रोकने क कया के प म आ थक एवं राजनै तक
मु को लेकर वै वीकरण पर अपना यान केि त कया। खु ल आ थक वै वीकरण ने अनेक दे श
क आ थक ि थ त, सामािजक अ तः या एवं संरचना क कृ त को प रव तत कर दया। इससे
श ा एवं श ण सं थाओं क आव यकताओं म प रवतन आ रहा है। इससे कसी वशेष श ा
एवं श ण दाताओं क त प ा भी बदल रह है।
स ेषण म सु गमता तथा कौशल का यास वैि वक आ थक त प ा का प रणाम है।
इससे आ थक ग त व ध म बहु त ती ग त से वृ हु ई तथा रा क सीमाओं से परे भी
ग त व धयाँ चल रह ह।
ऐसे प र य म रा के पास न न मू य, न न कौशल तथा न न द त उ पादन
(Low paid production) अथवा उ च मू य, उ च कौशल तथा उ च द त काय म से कसी
एक को अपनाने के अ त र त अ य कोई वक प नह ं है। भारत जैसे दे श म दोन कार क

227
मानव शि त बहु तायत म है अत: एक नवीन यूह रचना को अपनाना आव यक है। इसक छ व
यारहवीं पंच वष य योजना म उ च एवं यावसा यक श ा को मह व दे ने से प ट हो जाती है।
रा य ान कमीशन ने भी अपनी रपोट म इसक आधारभू त संरचना (Infra Structure) म
वृ हे तु सु झाव तु त कए।
वै वीकरण एक सामािजक शि त भी है। कसी भी रा अथवा समु दाय के लए अपनी
पहचान और मू य को था पत करने का ाथ मक तर का श ा है। ीरे —धीरे स ेषण क
सु वधा वक सत हो गई।
दूररथा श ा एवं क यूटर वारा श ा का बहु त सार हो रहा है। अं ेजी भाषा क
श ा का चलन बढ़ा है|

16.4.3 रोजगार तथा नवीन मक बाजार (Employment and


the new labour market)
बड़े उ पादन संगठन, औ यो गक वकास के लए आधार के प म काय कर रहे ह।
उ पाद एवं सेवाओं के सम वय से ये संगठन थानीय तर से रा य एवं वैि वक तर पर काय
का व तार कर रहे है।
नवीन तकनीक के आगमन के कारण कल—कारखान के े म ाि तकार प रवतन
आया। इससे बहु त बड़ी मा ा म एक जैसी व तु ओं का उ पादन स भव हो सका। नवीन तकनीक
के कारण यि तगत इले ॉ नक समाचार प का उपयोग भी स भव हो सका। इसम सूचनाओ
को प ने वाला व श ट सू चनाओं को छांट सकता है, उ ह अपने क यूटर पर थाना त रत कर
सकता है। इस प रवतन के कारण मक क श ा एवं श ण के तकनीक शान म प रवतन
आया। रोजगार के अवसर के अनु प ह श ण—द ण आव यक हो गया।
तकनीक के कारण दो सं थाओं के स ब ध म भी प रवतन दे खने को मलता है।
स ेषण म ती ता के कारण समय पर व तु ओं का उ पादन स भव हो सका है। तकनीक के
कारण उपभो ताओं को त व द उ पाद के बारे म अ धक सूचनाएँ आसानी से ा त हो जाती
ह। इस कारण उ पादन पर उ च गुणवता तथा समय पर व तु ओं क पू त हे तु दबाव बढ़ गया।
इन सम त औ यो गक प रवतन से दो कार के भाव हु ए। एक ओर तो मक को
आव यकतानुसार कौशल के श ण होने क आव यकता हु ई जो क ती ग त से बदलती रहती
है दूसर ओर सू चनाओं को समझना, सं हत करना तथा उसका यव थापन करना अ य धक
मह वपूण हो गया। अत: उ च एवं कौशलयु त श ा का मह व बढ़ गया है |

16.4.4 खु ले अ धगम समाज म बदलती जीवन शैल


(Changing life patterns in Open Learning Society)
वतमान म यि त एवं उसक जीवन शैल म बहु त प रवतन आया है। जीवन म बढ़ती
हु ई आशाएँ, मक बाजार म यि त के वेश क बढ़ती उ , म हला श ण एवं रोजगार क म
वृ , अ तरा य ग तशीलता तथा जीवन के लए काय करने क भावना म कमी आ द कारक
प रव तत जीवन शैल के लए उ तरदायी ह। इससे समाज के स मु ख सामािजक एवं आ थक
चु नौ तयाँ उभर कर आई। येक यि त अपने जीवन का अ धकांश भाग उ पादन कयाओं म
लगाता है िजससे समाज के धन म वृ होती है तथा नष य यि तय (जैसे सेवा नवृत तथा
228
बालक ) के उ पादन क कमी भी पूण हो पाती है। न उठता है क सेवा नवृि त या है?
शार रक प से व थ तथा बौ क प से स म यि तय का ब धन कैसे कया जाए?
सेवा नवृत यि त क सेवा हे तु मांगे बहु त अ धक नह ं होती ह। अ धकांश यि तय के लए यह
धन के साथ—साथ पहचान तथा सामािजक तर दलाती है। कई यि तय के लए काय थल
कम थायी वातावरण होता है तथा कु छ यि त अपनी सेवा नवृ त त एक ह सं था म काय
करते ह तथा उ च उड़ान क इ छा रखने वाले यि तय का वकास नयोजन एक यव था के
अनुसार होता है। (वा स 1999) म यम वग म इस कार क वशेषताऐ सवा धक होती ह।
OECD’s के काय अ ययन (1994) म पाया गया क वक सत व व म औसत प से
यि त को अपने जीवन म पाँच कार के अलग—अलग काय करता है िजनम से येक के लए
वशेष श ण आव यक होता है। इसके प रणाम व प अपने काय थल पर वयं के काय
जीवन के ब धन कौशल के वकास एवं वयं क तभा का नये तर क से उपयोग करने म
यि त बहु त अ नि चतता क ि थ त म होता है।
बीसवीं शता द के वतीय भाग म म हलाओं के काय म वेश से प रवतन आया।
य य प उनक कु ल आय पु ष क तु लना म न न होने पर काय े म भी सं या मक ि ट
से आगे है। म हलाओं का शै क तर पु ष क तु लना म उ च होने के कारण वे आसानी से
यवसाय ा त कर लेती ह। म बाजार म उनके आगमन के कारण काया यास तथा काय के
घ ट म प रवतन हे तु दबाव बना है। इसके अ त र त कु छ पार प रक यवसाय जो पु ष वारा
ह कए जाते थे उन े म भी म हलाओं के आगमन के कारण पु ष को सामािजक तथा
आ थक सम याओं का सामना करना पड़ता है।
उपयु त प रवतन के लए दो मु य कारक उ तरदायी ह—पहला बेरोजगार एवं रोजगार
क सीमाओं का धु ंधला होना। एक बड़ा वग अंशकाल न काय करता है। कु छ कायकता अंशकाल न
ह सेवा नवृत हो जाते ह तथा दूसरा वह संरचना, जो यि त को जीवनपय त रोजगार दे ती थी
उसका कमजोर होना। अत: वतमान समय म व ब धन हे तु प रवतन का पूवानुमान,
समायोजन एवं सबसे ऊपर एक अ छा व याथ बने रहने के लए कु शलताओं का वकास
आव यक ह।

व—मू यां क न न(Self Evaluation Question)


1. आ थक वै वीकरण को भा वत करने वाले कारक का उ ले ख क िजए|
2. वै वीकरण के कारण श ा म कस कार के प रवतन रहे ह|
3. वै वीकरण के कारण व भ न सं ग ठन म आने वाले प रवतन का उ ले ख क िजए|
4. खु ला बाजार अथ यव था के कारण जीवन शै ल म होने वाले प रवतन का उ ले ख
क िजए तथा शै क वातावरण एवं अ धगम इससे कस कार भा वत हु आ|

229
16.5 जीवन पय त श ा एवं अ धगम समाज (Life Long
Learning and The Learning Society)
जीवन पय त श ा के स यय का उदय अमे रका म यूवी के इस कथन से “The
Melination to learn from itself and to make the condition of life such that
all will learn in the process of living in the finest product of schooling.” से
हु आ। इसका मु य भाव तब पड़ा जब UNESCO ने अपनी रपाट म इसे वीकार कया िजसे
डेलस रपोट के नाम से जाना जाता है। इस रपोट ने जीवन पय त श ा के स भा वत भाव
का दावा करते हु ए बताया क श ा सावभौ मक तथा जीवन पय त होनी चा हए िजससे न केवल
यि त आ थक वकास हे तु तैयार हो वरन ् वह भ व य के समाज के लए भी तैयार रह।
शोन (Schon, 1971) वारा तपा दत ''अ धगम समाज'' के नमाण को यान म
रखते हु ए जीवन पय त श ा क बात कह गयी।
रानसन (1998:2) ने अ धगम समाज को ऐसे समाज के प म प रभा षत कया जो—
 स पूण तथा इसम होने वाले प रवतन के बारे म सीखे।
 सीखने के तर के म प रवतन क आव यकता महसूस कर।
 िजसके सभी सद य सीखने वाले ह ।
 जो अ धगम क प रि थ तय म जातां क तर के से प रवतन लाना सीखे।
जीवन पय त श ा तथा अ धगम समाज कई दे श म चचा म है य य प उनक ग त व
समय म भ नता है। 1980 के म य म कई पा चा य दे श क अथ यव था म धीम आ थक
वकास के कारण सरकार क च जीवन पय त श ा म जागत हु ई। 1983 के ार भ म
कौशल म गरावट अनुभव क गयी िजससे शै क सु धार क आव यकता महसूस क गयी।
श ा म गुणवता हे तु न मत रा य कमीशन ने अपनी रपोट म तक दया क शै क सुधार
का मु य ल य अ धगम समाज का नमाण होना चा हए तथा श ा सावभौ मक एवं जीवन
पय त होनी चा हए।
1998 म UK सरकार ने ीन पेपर ''अ धगम अव था'' का शत कया। अ धगम
अव था का वा त वक अथ पर चचा एवं वाद— ववाद हु ए। वक सत रा म अ धगम आयु,
अ धगम समाज तथा जीवन पय त श ा आ द श द मी डया म बहु त सामा य ह। जहॉ सरकार
अपने काय को वहां के नाग रक के स दभ म पुनप रभा षत कर रह है वह इन श द का
उपयोग कया जाता है।
वतमान म पुराने समय क अपे ा ज टलताओं म काफ वृ हु ई है। अत: नई सद के
ार म म व—मू यांकन का मह व बढ़ गया है। हम वयं को प ट प से सीखने क अव था
म पाते ह वह बार—बार न उभरते है। जैसे यह क श ा या करती है या करे और श ा है
या? यह कसके लए है? इसके अ तगत या समा व ट कया जाए? श ा व कसके त
उ तरदायी है?

230
व—मू यां क न न (Self Evaluation Question)
1. 1972 तथा 1996 क यू ने को क रपोट को भा वत करने वाल मु ख
वै ि वक घटनाओं को प ट क िजए।
2. जीवन पय त श ा से स बि धत मु यनी तय का वणन क िजए।

16.5.1 अ धगम अव था एवं श ा नी त (Learning Age and


Educational Policy)
यूरो पयन तथा यूरो पयन समु दाय से परे दे श म अ धगम समाज, ान समाज तथा
अ धगम संगठन आ द स यय श ा यव था के मु य वषय ह। वतमान अ धगम बाजार म
श ा यापार क एक व तु हो गई है। अत: इसका पर परागत अथ को भय उ प न हो गया है।
अब अ धगम एक त पधा का वषय है तथा काय जगत वारा अ धगृ हत कर लया गया है।
वीडन म लगभग आधे वय क यि त संग ठत अ धगम याओ म सं वल न रहते ह|
1996 म यूरो पयन—जीवन पय त अ धगम के घोषणा प से इस वचार का बहु त मह व द शत
होता है।
1995 म यूरोपीयन कमीशन ने एक वेत प श ण एवं अ धगम : अ धगम समाज क
ओर'' का शत कया िजसका मु य उ े य यूरोप को सामािजक एवं आ थक वकास के लए ान
आधा रत समाज के नमाण के लए े रत करना था। इस प म समाज को अि थर करने वाले
तीन भावी कारक पर काश डाला गया—
1. सू चना समाज का भाव
2. औ योगीकरण का भाव
3. वै ा नक एवं तकनीक व व का भाव
इसके लए व—सू ी समाधान भी इस प म तु त कया गया—
1. स य नाग रक के नमाण म मह व को पुन : सि म लत करवाना।
2. रोजगार क यो यता का सृजन।
आ थक एवं राजनी तक कारण म आजीवन सीखने(Life time Learning) को मह वपूण
माना। इससे काय े म ग तशीलता आती है तथा रोजगार के अवसर म वृ होती है। अ धगम
एक दे श को दूसरे दे श के यापार तथा एक यि त क दूसरे यि त से त प ा को सहारा दे ते
हु ए उ पादक समु दाय के नमाण म सहायक होता है। वृ यि त भी जो सतत ् प से अ धगम
से जु ड़े रहते ह। वे ल बे समय तक आ थक एवं सामुदा यक ग त व धय म स य भागीदार
करते ह।
अ धगम समाज, सभी नाग रक म सामािजक स ब ता, सामािजक याय तथा आ थक
उ न त के लए यासरत रहता है।
कॉटले ड म अ धगम समाज को प रभा षत करते हु ए Scotlish Community Co
Education Council ने लखा है— “A Society Whose Citizens value, support
are engage in learning,as a matter of course,in all areas of activity” इनके
अतर त इसम सामािजक, राजनै तक तथा सां कृ तक कारक जो जातां क या,
231
समी ा मक जाग कता, पयावरण संर ण तथा कू ल म सु धार हे तु भी ऐसे नाग रक सजग रहते
ह।
केनेडी रपोट ने अ धगम समाज को मह वपूण मानते हु ए लखा है क अ धगम समाज
के वा य तथा आ थक ग त के लए के य थान पर रहता है। इनका यह मानना है क
आ थक उ े य एवं सामािजक स ब ता एक—दूसरे से जु ड़े हु ए ह। अ धगम से जु ड़ाव
(Interwining) के कारण यि त यि तगत, सामािजक तथा आ थक े म ग त करते ह।
केनेडी रपोट म इस वषय पर भी चचा क गयी क तकनीक नवाचार के कारण काय
जगत म बहु त ती ग त से प रवतन आ रहे ह तथा इन प रवतन म वयं को टकाने के लए
यह आव यक है क हमारे कौशल म प रवतन कया जाए।
अ धगम समाज के अ धकांश स ा त सावभौ मक अ धगम के प म तक दे ते ह।
रानसन (1998,163—67) के अनुसार “Developing the capacity of everyone to
contribute to and benefit from the economic,personal,social and cultural
dimensions of their lives is central to achieveing the whole range of
goals we set ourselves as a nation.”
टॉनी लेयर के अनुसार श ा हमारे पास हमारे सव तम आ थक नी त है। डे वड
ल के स (David Blunkett’s) के अनुसार सीखना स प नता क कं ु जी है— यि त के प म
हम सबके लए एवं सम के प म स पूण रा के लए, 21वी सद क ान आधा रत वैि वक
अथ यव था म मानवीय पू ज
ं ी म नवेश करना सफलता का अ धकार बनाना होगा। अत: सरकार
भी श ा को के ब दु मानती है। श ा कौशल अजन करने, स य नाग रक के नमाण तथा
वयं क सहायता हे तु े रत करती है।

व—मू यां क न न(Self Evaluation Question)


1— What are the dilemmas facing the Educational system in
the life long learning age.

16.5.2 अ धगम समाज — मु य वशेषताऐ (The Learning


Society — Characteristics Features)
''जीवन पय त सखते रहना'' आज के औ यो गक जगत क श दावल का अ भ न
ह सा बन गया है। लोग के जीवन श ण व श ण सखने क आव यकता है यो क
प रव तत आ थक प रि थ तय एवं वकासशील समाज म एका धक यवसाय काय करने ह गे।
'' सखने वाला' श द अब यि त के थान पर भू मका से अथ रखता है। श ण का आ थक
लाभ बेरोजगार यि त के लए वशेष नह ं होता है। य द काय म रहते हु ए यि त श त कर
तो उ पादन एवं मजदूर म उ न त ( वकास) होती है। (Economists, 1963) इसके अलावा ऐसे
माण ह क िजन ब च के माता— पता भी सीखते ह उनके वे ब चे प र म अ धक करते ह।
ऐसे सा य ह।

232
16.6 खु ल अ धगम णाल (Open Learning System)
वतमान समय म सीखते रहने क आव यकता के अनु प सतत ् सखते रहने के लए
वतमान श ा यव था अपया त सा बत हो रह है। दूर थ श ा का तर का वतमान व भ व य
क बढ़ती हु ई मांग व आव यकता पू त हे तु है। व ान व तकनीक ान मह वपूण ताकत सा बत
हो रहे ह। यह सफ आ थक वकास हे तु ह नह ं बि क मानव काय के हर े म आव यक है।
वक सत रा के बीच खाई पाटने हे तु दूर थ श ा (DE) क आव यकता है।
दूर थ श ा तीस साल पूव ार भ हु ई है और अपनी युवाव था म है। यह ए शया म ह
नह ं बि क पि चमी यूरोप संयु त रा य तथा कनाडा म वरदान स हो रह है। बहु मा यमी
श ा क रा य जापानी सं था वारा कए अ ययन के अनुसार ए शया ह नह ं वरन ् यू.के. एवं
अ का, ले टन अमे रका एवं तीसर दु नया म आजीवन श ा के लए दूर थ श ा को नर तर
रखना बहु त आव यक है।
य क उन रा म अपने वकास हे तु नयी तकनीक को शा मल कया है। व व तर य
तयो गता हे तु वक सत द ता तथा नये ान को पकड़ना आव यक है। उपरो त सम याओं के
समाधान एवं आ थक चु नौ तय का सामना करने हे तु वक सत उ च श ा के लए पूव म
था पत व व व यालय को वगत प चीस वष म नये कार के व व व यालय म प रव तत
कये गये ह ऐसे व व व यालय दूसरे व व व यालय के मु काबले बहु त कम लागत म श ण
काय होता है। ऐसे व व व यालय अपने व या थय को उनक सु वधानुसार— कहा व कब
अ ययन करना है इसके लए चयन करने क वतं ता दे ते ह।
वतमान अनुभव यह है क तकनीक ान एवं यि त के स ब ध म गुणा मक
प रवतन करता है। ान के भावी उपयोग के लए सामू हक य न क आव यकता रहती है।
जोन डे नयम के अनुसार उपरो त प रवतन का मु काबला करने के लए कम लागत तथा श ण
दे ने का भावी तर के क आव यकता है। अ ययन से ात होता है क वृत व अ नयोिजत लोग
को सुधारा मक श ण दे ने क अपे ा नौजवान को नयोजन के लए श ा व नपुणता का
ान दे ना यादा भावी है। उ च श ा अकेले व याथ को एवं सामू हक प से सभी
व या थय को लाभ दे ती है।
कई दे श म यह पाया गया क वहां क सरकार युवा के श ण व ाथ मक व
सैक डर श ण के सावभौ मक एवं भावी बनाने के लए सी मत लोक संसाधन पर का बहु त
यान दे ती है।
उपरो त पा लसी लोकताि क समाज एवं बाजार क अथ यव था हे तु उपयु त है। कई
व व व यालय ने ौढ़ यि तय क बढ़ती सं या के लए जीवनपय त श ण का वरोध नये
ो ाम व सेवाओं के लए कया है। ले कन पूण का लक श ण यव था नातक तर के
व या थय के लए पूववत चालू रहे गी। उनके अनुसार दूर थ श ा से सम त सम याओं का
समाधान स मवन नह ं है।

233
16.6.1 प रवतन क चु नौती— व व व यालय नवीनीकरण हे तु
केस (Challenge of Change—case for University
Renewal)
नई मले नयम के बदलते प रवेश म व व व यालय के लए वा त वक प रवतन क
आव यकता महसू स क गई। वगत हजार वष के वै ा नक, तकनीक एवं सामािजक प रवतन म
मु य सहयोगी रहे ह। तथा प वे प रवतन म असफल रहे है।
यह कहना सु र त है क जीवनपय त श ण क फैलती सं कृ त युवाओं के अ नवाय
श ण के बाद ि टकोण म प रवतन लायेगी। य द अ ययन एवं काय दोन जीवन भर साथ—
साथ रह तो य नह ं ार भ म ह साथ—साथ कये जाव ता क पाट टाइम ड ी भी ले सक व
काम भी मल सके। वतमान समय म रोजगार ा त करना क ठन है ब न पत ड याँ लेने के।
रोजगार के लए अनुभव का भी होना ज र है। अत: नौजवान के लए ड ी एवं काय का
गठजोड़ आव यक है। व व व यालय को नवीनीकृ त करने का उ े य लोग को जीवन पय त
श ण के अवसर उपल ध कराना है।
कई व व व यालय ने अपने सह अथ म तकनीक का योग कर लागत व पहु ंच क
चु नौ तय का सामना कया है। बड़े—बड़े व व व यालय ने दूर थ श ा से लाख व या थय को
सेवा दे कर सफलता ा त करती है।

16.6.2 शै क णाल म तकनीक भ व य के त ि ट(Vision


of the Technological future in Educational
system)
व व व यालय के नवसं करण म मु ख वषय अकाद मक गुणव ता से जु ड़ा है। इस
वषय क आपू त क याि व त के लए तकनीक सहयोग पर च तन कया जा रहा है।
वकासशील दे श मै उ च श ा क अ धक मॉग के कारण इसम नवीनीकरण क आव यकता हो
गई है। औ यो गकृ त दे श म इसम व वधता क भी आव यकता है। उ च श ा के नवीनीकरण
एवं व वधता के प रवतन म गुणा मकता पर यान बनाये ह रखना होगा। इस स ब ध म
तकनीक का अथ होता है उ च गुणा मकता सामा यतया उ च तकनीक को लागत भावी (Cost
Effective) माना जाता है। बशत वह गुणा मक श ा से स बि धत व भ न वचार से अलग
रहे—
1. एक सं था क आयु एवं त ठा म सश त सह—स ब ध होता है।
2. व श टता एवं गुणा मकता समान बात है।
3. भरपूर संसाधन वाले व व व यालय बेहतर होते ह।
4. छोट क ाएं एवं पया त अ तः या वाल श ा यव थाएं बेहतर होती ह।
5. अ यापक एवं छा के म य स पक क गाढ़ता गुणा मकता का तीक है।
तकनीक के नये आ व कार ''The Media'', गणना, स ेषण एवं सं ाना मक व ान
क याि व त से प रणाम ा त होते ह। श ा के व भ न प का नवसं करण होता है। इसम
नयी तकनीक व गुणा मकता समीप आते ह|
234
16.6.3 ल य को वा त वकता म प रव तत करने हे तु पू व
आव यकताएँ (Prerequisites for translating from
vision to reality)
वतमान युग तकनीक का युग है। कु छ सं थाओं का यह मानना है क तकनीक भ व य
म उनक त प ा पर भाव डालेगी। जन—मानस का यह सु झाव है क नयी श ा, तकनीक
पर आधा रत है तथा सभी यि तय के साथ मलने हे तु तैयार है। ले कन वकासशील दे श म
यह ि थ त स य से बहु त परे है। यह तक क औ यो गक दे श म भी तकनीक से श ा का
सार स भव नह ं हो पाया है। ऐसी कौनसी प रि थ तयॉ है जो इसको भा वत कर रह है? इस
हे तु संगल (1995:10) ने 7 पूवाकां ाए सु झायी।
1. सव यापी णाल (Universal System) : येक घर म क यूटर ाड बे ड से जु ड़ा
होना आव यक है।
2. जीवन पय त अ धगम (Life Long Learning): तकनीक ने अ धगम एवं काय को
एक ब दु पर मला दया। इसके लए यह आव यक है क यि त जीवन पय त सीखने हे तु
तैयार रहे ।
3. अ धगम केि त च तन (Learner Centered Thinking) : मंग (1995:13) ने
च लत श ण अ धगम तमान पर काश डालते हु ए लखा है क वतमान म अ यापक से
क ठन प र म क आशा क जाती है जब क व याथ नि य ोता के प म बैठे रहते ह वे
इस प रि थ त को उलट दे ना चाहते ह।
जोन टोन (1995) ने इसी से स बि धत वचार य त करते हु ए एक नया श द दया
''अ धगम उ पादकता” िजसका अ ध ाय है व याथ अ धगम के लए वयं िज मेदार ल, अपना
यान उ े य पर केि त कर, वयं समय सारणी बनाएं तथा अ यापक क भू मका मा
म य थ क तरह हो।
4. पुन : अ भयाि क वतरण णाल (Re—engineered delivery system) :
व व व यालयी श ा को अ धगम—केि त बनाना एक बड़ी चु नौती है य क संकाय सद य
तकनीक को च लत णाल का पूरक मानते है अत: उसके लए अ त र त लागत लगती है।
मंगल के अनुसार अवबोध पुन : अ भयां क श ा के तपादन हे तु नयी कार क सं थाओं क
आव यकता पड़ेगी।
5. बौ क स पदा (Intellectul assets) : अ धगमक केि त णाल के लए सव थम
आव यकता अ छ बु क होती है िजससे छा सीख।
6. तफल ाि त (Productivity gains) : व लय स (1996—V) के अनुसार श ण
अ धगम प रि थ तय को पुन : संग ठत कर, ब धन म सुधार कर तथा कॉलेज व
व व व यालय के मलने क बहु त आव यकता है ता क भ व य म आने वाले दबाव से नपटा
जा सके।
7. कोष नयमन एवं मू यांकन (Funding, Regulation and Accrediation) : हाल
ह के वष म सरकार का यह यास रहा है क वह व व व यालयी कायाँ पर नय ण रखे

235
ले कन तकनीक आधा रत ड लवर णाल से इस नी त के या वयन म बाधा उ प न होगी।
सरकार वारा नवीन नी त नधारण से व व व यालय के सम कोश एवं नयमन से स बि धत
सम या उ प न हो जाएगी।
तकनीक आधा रत श ण वारा नयी शै क णाल का सृजन होगा जो भौगो लक एवं
अ धका रक बाधाओं को पार कर शै क एवं वा त वक जगत म सम वय कर सकेगा। इससे
व या थय को व तृत एवं सु वधाजनक चयन म आसानी होगी।

16.6.4 सारांश : उ च श ा म अवसर एवं चु नौ तयॉ


(Summary: Challenges and Opportunities for
higher Education)
सं ेप म वतमान म के पस व व व यालय के सम कई चु नौ तयाँ एवं अवसर आते ह —
1. अ धकांश यि त जो भ व य म व व व यालयी श ा क आकां ा रखते ह उनके लए
उ च श ा क लागत बहु त अ धक है।
2. य द आ थक संसाधन उपल ध हो जाए तब भी श त अकाद मक टाफ के अभाव म
यह स भव नह ं हो पाएगा।
3. यि त जीवन पय त सीखने वाले होने चा हए।
4. ऐसे व याथ जो काय एवं अ ययन एक साथ करना चाहते ह वे उपा ध ा त करने का
लचीला अवसर तलाशते ह िजसका भाव उ च श ा पर पड़ता है।
5. व व जनसं या म बड़े शहर म रहने वाल जनंस या का अनुपात बढ़ रहा है जहाँ या ा
अपे ाकृ त धीमी तथा टे ल फो नक वातालाप ती ग त से स भव हो सकता है।
6. यि त उपभो तावाद ि टकोण को अपनाएगा तथा यि तगत प से श ण एवं
श ण क अपे ा करगे।
7. उ च श ा का सार त व यि तय को अ धगम समु दाय से जोड़ना है।
चु नौ तय एवं अवसर म स ब ध बहु त आसान है ले कन न यह उठता है क
प रवतन के सम कौनसी बधाएं उपि थत हो रह ह तथा या अवसर मल रहे ह?

व—मू यां क न न(Self Evaluation Question)


1. तकनीक कस कार व व व यालय के लए त प ा के वचार म
सहायता करती है ?

16.7 ान यु ग का ज म : शै क स ा त एवं यवहार म प रवतन


(Birth of knowledge era—changes in educational
theory and practices)

236
चु नौ तय का सामना करने के स ब ध म हमार क ा—क यव था बहु त अपया त है
इस लए साव भो मक श ा, सतत तथा शै क अवसरो क समानता का सम य सव सु नाई
दे ता है
ार भ म श ा ब च एवं वय क को सा र बनाने के उ े य से द जाती थी ले कन
अब वै ा नक आ व कार यि तय को इस ब दु के लए जाग क कर रहे ह क वे अपनी श ा
एवं श ण व यालय एवं व व व यालय के बाद भी जार रख। अ म श ण, सेवारत
श ण, सतत श ा एवं कई अ य समान यय का उ व हो रहा है। हॉल (Houle 1961) ने
बताया क वय क व— नद शत अ धगमक होते ह। ान म इतनी ती ता से होने वाले प रवतन
के अनु प श ा के सभी तर म भी प रवतन आव यक है।
केट et al, (1973) ने सु झाव दया क श ा औ योगीकरण का मु य ब दु है।
उपयु त व णत े म तमान थाना तरण न न कार से हु आ।
1. बा याव था एवं वय क अव था से जीवन पय त श ा।
2. अ यापक केि त श ा के थान पर छा केि त श ा।
3. शा ीय पा यचया से व च (Romantic) पा यचया से काय म।
4. ान का प रवतनीय तर (The Changing Status of Knowledge)
5. मृ त अ धगम से अनुभव आधा रत व त छाया अ धगम (from rote learning to
learning as experiemental and Reflection)
6. आमने—सामने से दूर तक (From face to face to distance)
7. कु छ से बहु त तक (From few to the many)
8. वतं वचार से यवसाय पर बल (From emphasis on the libral to the
vocational)
9. सै ाि तक से ायो गक (From theoretical to practical)
10. समि वत शान हे तु एक वषयी से अ त वषयी, अ त वषयी से ान का सम वय (From
Single discipline to multidisciplinary to integrated knowledge).
11. क याण क आव यकता से बाजार क माँग तक (From welfare needs to
market demands)
12. श ा एवं श ण से अ धगम क ओर (From Education and Training to
learning)

व—मू यां क न (Self Evaluation)


1. नवीन अ धगम आयु म श ा के सै ाि तक एवं यो गक काय म होने वाले
क ह 5 प रवतन का उ ले ख क िजए|
2. ान यु ग म श ा क ड लवर म आने वाल बाधाओं क सं े प म या या
क िजये |

237
16.8 न कष (Conclusion)
यि त ान ा त करना चाहता है, अ धगम साम ी क पहु ंच व व यापी हो गयी है।
येक यि त वयं के सीखने क ग त तथा उपल ध समय के अनुसार वयं के प रवेश के
अनु प सीख सकता है। यह अ धगम आयु का ार भ है।
पूरे व व म वशेषतया औ यो गक समाज म अमू य श त होते ह और मु त
बाजार अथ यव था (Free Market Economy) के कारण अ धकांश दे श यह महसू स करते ह
क उ च श ा, सामा य दर पर उपल ध होनी चा हए िजससे सव साधारण भी ऐसी श ा ा त
कर सक।
इसके लए यह आव यक है क श ण दाता अ धगम हे तु एक नवीन रा ता तलाश
कर। श ा वद को इस कार क योजना बनानी चा हए िजससे सामु दा यक यव था
(Community Setting) एवं काय थल पर अ धगम म सम वय कया जा सके।
उपयु त उ े य व समय क मांग क पू त हे तु दूर थ श ा का उ व हु आ िजससे बहु त
अ धक सं या म लोग के श ण एवं श ण क यव था हो सक ।

16.9 सारांश (Summary)


तकनीक के इस युग म जब येक यि त ान ा त करना चाहता है, अ धगम साम ी
क पहु ंच व व यापी हो गयी है। येक यि त वयं के सीखने क ग त तथा उपल ध समय के
अनुसार वयं के प रवेश के अनु प सीख सकता है। यह अ धगम आयु का ार भ है।
पूरे व व म वशेषतया औ यो गक समाज म श त यि त मू यवान होते ह और
खु ला बाजार अथ यव था; (Free Market Economy) के कारण अ धकांश दे श यह महसू स
करते ह क उ च श ा, सामा य दर पर उपल ध होनी चा हए िजससे सवसाधारण भी ऐसी श ा
ा त कर सके।
इसके लए यह आव यक है क श ण दाता अ धगम हे तु एक नवीन रा ता तलाश
कर । श ा वद को इस कार क योजना बनानी चा हए िजससे समु दाय यव था
(Community Setting) एवं काय थल पर अ धगम म सम वय कया जा सके।
उपयु त उ े य व समय क मांग क पू त हे तु दूर थ श ा का उ व हु आ िजससे बहु त
अ धक सं या म लोग के श ण एवं श ण क यव था हो सक ।

238
इकाई—17
श ा और भ व य का भारतीय समाज
(Education and the future of the Indian Society)
इकाई क परे खा (Outline of the Unit)
17.0 उ े य और ल य
17.1 भ व यशा
17.2 भ व य के त संवेदनशीलता वक सत करने का मह व
17.3 भ व य चेतना कैसे वक सत कर?
17.4 भ व य चेतना वक सत करने म श ा क भू मका
17.5 भ व य का भारतीय समाज कैसा होगा?
17.6 भ व य क भारतीय श ा सं थाएँ कैसी ह ?
17.7 भ व य के भारतीय श क कैसे ह ?
17.8 भव य म या नए, शै क प रवतन आव यक ह गे?
17.9 सारांश
17.10 मू ल श द और स यय
17.11 ग त का मू यांकन
17.12 संदभ सा ह य

17.0 इकाई के उ े य (Objectives of the Unit)


इस इकाई क समाि त पर आप इस यो य होने चा हए क —
 भ व यशा के आ दोलन के वतक के बारे म बता सक,
 भ व यशा क प रभाषा बता सकगे।
 भ व य के व भ न कार बता सकगे
 शाला के व या थय म भ व य के त संवेदनशीलता उ प न करने के लए उपाय बता
सक।
 भ व य चेतना वक सत करने म श ा क भू मका बता सकगे।
 भ व य म भारतीय समाज का वणन कर सकगे।
 भारत क भावी श ण सं थाएं, श क एवं आव यक शै क प रवतन बता सकगे।

17.1 भ व यशा (Futurology)


(।) भ व यशा का आ दोलन —
पछले बीस वष म अमे रका तथा अ य वक सत दे श म ''भ व यशा (Futurology)
अथवा Futuristics तेजी से वक सत हो रहा है। वकासशील दे श म भी अब इस आ दोलन के
त गहर दलच पी दे खने म आ रह है। यह कहना अ त योि त न होगी क आज स पूण
व व म भ व यशा के त बहु त आकषण दे खने म आ रहा है। लोग भ व य म या— या
प रवतन ह गे उनके बारे म बहु त गंभीरतापूवक चंतन करने लगे ह।

239
भ व यशा के मु ख आराि भक वचारक म हम अमे रका के एल वन टोफलर (Alvin
Toffler) ड यू.एल. जैगलर (W.L.Zeigler), डी.बैल (F.Bell), ब ल रोजास (Billy Rojas),
ू फक लन (H.Bruce Franklin), आथर सी. लाक (Arthur C.Clarks), पोलक
एच. स ेड
(Polak Fred) आ द अनेक मह वपूण व वान के नाम का उ लेख कर सकते ह।
इन सब म ए लन टोफलर सबसे अ धक भावशाल व बहु च चत वचारक और लेखक ह।
उनक न न पु तक है जो भ व य क बात करती है —
(i) Future Shock (1970)
(ii) Learning for Tomarrow (1974)
(iii) The Third Wave (1980)
(iv) Power Shift
आपक पहल पु तक “Future Shock” ने संसार भर के लोग के मि त क को
झकझोर दया है। उ ह ने यह बतलाया है क भ व य म ऐसे अ या शत औ यो गक, सामािजक
तथा सां कृ तक प रवतन बहु त तेजी से होने जा रहे ह। िजनसे उन लोग को जो उनके लए
पहले से मनोवै ा नक प से तैयार नह ं ह गे ग भीर झटका लगेगा।
टोर टे न हयुसेन (Torsten Husen) जो को डने वया के एक मु ख श ा वद ह, ने
एक बहु त मह वपूण तवेदन “Education in the year 2000” (1971) म तैयार कया था।
उनक गणना भी मु ख वदे शी भ व यशाि यो म होती है।
भारत म एस.सी.सेठ (S.C.Seth), ो.जे.एन.कपूर (J.N.Kapur), ो. लेमकोम
ै ा (Malcom Adisheshiah) आ द
आ दशैषय मु ख भ व यशा ी ह।
इन वदे शी तथा भारतीय व वान के अ त र त आज व भ न ान— व ान म असं य
व वान भ व यशा के आदोलन म सि म लत हो रहे ह।
इस नये े को बडल बैल (Wendell Bell) ने इन श द म भल —भां त प रभा षत
कया है—
भ व यशा क प रभाषा (Definition of the Futurology)
''भ व यशा का मु ख के द ब दु न तो केवल मा वणन करना है और न या या
करना है, और न यह मूलत: भ व यवाणी करना ह है। यह नव—प रवतन और माग दशन है।
इसके अ तगत मू य और ल य क या या और मू याकंन, ग त व धय का ववरण, वक प,
भ व य के बारे म ि ट तथा अ नभरताओं के वतमान म का ववरण आता है।''
भ व यशा एक अ त वषयी अ ययन े है। य य प इसे समाजशा का एक
उप वषय माना जाता है तथा प इसका संबध
ं इ तहास, अथशा , राजनी त, भू गोल, पयावरण
व ान अ य सामािजक व ाकृ तक व ान , ौ यो गक और श ा से भी है। मानव जीवन के
भ व य से संबं धत होने के कारण जीवन के येक पहलू म इसक च होती है।
यहां न खड़ा होता है. कस कार क भ व य म भ व यशाि य क च होती है?
(B) भ व य के कार (Types of Future)
भ व य तीन कार के हो सकते ह :—

240
1. संभा वत भ व य : ऐसे भ व य होते ह जो घ टत हो सकते ह पर तु ऐसा होना कोई
आव यक नह ं है। हमार बहु त सी क पनाएं इस ेणी के भ व य म आयेगी ।
2. नि चततापूण संभा वत भ व य : ये ऐसे भ व य होते ह िजनके घ टत होने क क हं
तकपूण आधार पर बहु त कु छ संभावना क जा सकती है । ऐसे भ व य ब कु ल
नराधार या बना सर—पैर क क पनाओं पर आधा रत नह ं होते ।
3. पस द कये गए भ व य : ये ऐसे भ व य होते ह िज ह हम पस द करते ह, िजनको
साकार बनाने के लए हम न केवल बहु त लाला यत होते ह अ पतु बहु त कु छ यास भी
करने को तैयार होना चाहते ह।
भ व यशा न केवल वषय—व तु पर बल दे ता है बि क उससे भी अ धक भ व य के
त झु काव, झान या ि टकोण रखने व भ व य के त चेतनता या सजगता वक सत करने
पर बल दे ता है । भ व यशा पस द कये हु ए ''भ व य (Preferred future) म अ धक
दलच पी रखता है ।
ब ल रोजास का यह कथन पूणत: स य और हम सबके लये वचारणीय है —
“भ व य वत: ह घ टत नह ं हो जाता, हम इसे बनाते ह और हम इसका उपयोग कर
सकते ह । यह अनुभू त क हम भ व य को पहले से ह दे ख सकते ह तथा हम आने वाले कल
के मू य , प रवार क संरचनाओं, ौ यो ग कय , नगर या पाठशाला के व प क साथक पूव
क पना कर सकते ह, का अथ यह है क भ व य एक सीखने क साम ी (Lrarning
Resourse) है ।“
वा तव म हम सबको अब यह महसू स करने क बड़ी जबरद त ज रत है क हम यह
सोचना आर भ कर क भ व य म या— या वक प (Alternatives) हो सकते ह, उनम से
कौन से हम चु नने ह तथा कैसे भ व य के अ या शत झटके (Future Shock) से हम अपनी
आगामी पी ढ़य और समाज को बचाना है ।

व— मू यांकन न 1
1. बतलाइये इनम से कौन कौन से कथन आपके वचारानुसार भारत क अभीि सत भ व य
(Preferred Future) को इं गत करने वाले है ।

241
(1). भारत कृ ष धान दे श नह ं रह पायेगा, यह तो ाय: औ यो गक समाज ह बनकर
रहे गा।........................
(2). भारत म युवक—युव तय को डेनमाक और के डने वया जैसे दे श क भां त पूण यौन
स ब ध म वतं ता होगी ।..........................
(3). भ व य के भारत म पर परागत मू य तथा नये मू य का एक सह मेल दे खने म
आयेगा ।............................
(4). भ व य के भारत म सती था, क यावध, ि य के त दमनकार भावना का
नामो नशान तक नह ं होगा । ..................................................
(5). भ व य के भारत म वह सब कु छ नह ं होगा जो आज क कु ि सत राजनी त म हो रहा
है— टाचार, वोट का खर दना, जा तवाद व धम के आधार पर चु नाव जीतना, मानव
मू य क ह या आ द ।...............................
2. भ व यशा का मू लभूत झु काव कस ओर ह?

17.2 भ व य के त संवेदनशीलता वक सत करने का मह व


(Signification of development of sensitivity towards
future)
टौफलर ने अपनी पु तक “Future Shock'' म बहु त व तार तथा संतोषजनक ढं ग से
बतलाया है क मानव जा त के लए भ व य के े नशील (Sensitive) होना अ य त
त संवद
आव यक हो गया है। यह संसार क एक अ य त बहु च चत और भ व य क गंभीर सम याओं पर
च तन े रत करने वाल अ वतीय पु तक है ।
टौफलर भ व य के त संवेदनशीलता या सजगता को वक सत करने के पीछे
न नां कत ठोस त य तु त करते ह —
1. आजकल के सामािजक प रवतन अथवा समकाल न सामािजक प रवतन
(Contemporary Social Changes) व व के पछले 200—250 वषा, वषेशकर
हाल के 50—60 वष म (इसी पीढ़ के जीवन काल म) बहु त तेजी से होने वाले वै ा नक
व ौ यो गक आ व कार व खोज के फल व प हो रहे ह । त दन ऐसे आ व कार
क सं या दल को दहला दे ने वाल तेजी से बढ़ती चल जा रह है िजनसे मानव जीवन
के सभी पहलु ओं पर ग भीर भाव पड़ रहे ह ।
2. आज मनु य के सामने मनु य ह सीखने के ा प या माडल (Models for
Learning) नह ं रहे, बि क नत, नयी बने वाल ज टल मशीन सीखने के मॉडल बनती
जा रह ह ।
3. व ान और ौ यो गक क खोज य य प अ य धक औ यो गक (Super Industrial)
समाज म अ धक हो रह ह, तथा प उनका चलन या उपभोग और उनके सामािजक,
सां कृ तक, मनोवै ा नक तथा आ थक भाव सार दु नया म दे खने म आ रहे ह। संसार
का कोई भी कोना, कोई भी समाज उनसे भा वत हु ए बना नह ं रह सकता ।

242
4. अ यंत दुत ग त से होने वाले वै ा नक, यां क व सामािजक प रवतन के कारण आज
मानव जीवन म अ था य व अथवा नरथकता (Transience), पृथक व अथवा वलगाव
(Alienation) तथा उपभोग कर और फक दो' (Throw Away) मनोवृ त वक सत हो
रह है । कोई भी संबध
ं , व तु या यि त इस ती ग त से चलने वाले वतमान म (जो
क भ व य को बना रहा है आज हमारे लये थायी लगाव क व तु नह ं रह गया है ।
भ व य म इन वृ तय क गंभीरता और भी भयंकर प से बढ़े गी ।
5. भ व य क अजीब—अजीब कार क सं थाओं, समू ह , उप—समू ह , आचरण के प म
दे खेने म आयगे। आज का वतमान भ व य का गंभीर प से पूवानुमान कर रहा है ।
ववाह, प रवार, श ा, यवसाय, नै तकता, राजनी त, सं कृ त आ द सभी े म हम
अनजाने म मनचाहे ग भीर ध के या झटके लगगे ह य द हमने अभी से उनके लए
वयं को तैयार नह ं कया । भारत म हम अभी तक वतमान युग क सम याओं गर बी,
सा दा यकता, राजनी तक धांध लय , नर रता आ द को भी नह ं हल कर पाये । आगे
या और कैसे करगे? यह तो अभी तक हमने ग भीरतापूवक सोचा नह ं ह ।
6. न केवल नयी वै ा नक व ौ यो गक खोज हमारे जीवन को बहु त दुतग त तथा
मनोवै ा नक प से असुर त बना दगी, बि क नयी—नयी सामािजक खोज और
अजीब—अजीब सामािजक सम याएँ हमारे जीवन म ग भीर वघटन उ प न कर दगी ।
अभी से ह परखनल म शशुओं के ज म कराये पर लए हु ए गभाशय म ू ण का
वकास व शशु का ज म, महान ् तभावान ् लोग के वीय के बक थापन तथा उनसे
उ तम न ल उ प न करने, क यूटर व प —प काओं म व ापन क सहायता से कु छ
वष के लए ब चे गोद लेन,े सम लंगीय ववाह आ द क चचाय जोर पकड़ने लगी ह,
तो भ व य म या— या हो सकता है और उनके या— या अ छे व बुरे प रणाम नकल
सकते ह, यह अभी से सोचना ज र है ।
7. भ व य म मानव मू य म भयंकर व वधताये और टकराहट आकर रहगी।भ व य के
मानव क जीवन शैल आज जैसी न हो कर बहु त व वधता, ज टलता तथा ग भीरता
होगी ।
8. टौफलर अपनी तीसर पु तक ''TheThird Wave'' म यह ग भीर संभावना बताता है
क भ व य म घर' “इले ो नक कॉटे ज” (Electronic cottages) ह गे और अ धकांश
लोग द तर या काम के थान पर जाने के थान पर घर पर ह रह कर, व युत यं
वारा अपने द तर , अ य कायालय , के , पु तकालय , सं थाओं, यि तय से स पक
बनाते हु ए, अपनी जीवन सा थय के साथ मलकर अपना काम करते ह गे ।
9. ती प रवतन तथा असं य कार के दुतग त वाले उपकरण से प रपूण भ व य म
टौफलर के अनुसार मानव क पस द म जबरद त प रवतन आकर रहे गा । उदाहरणाथ
भ व य का प त ऐसी प नी चाहे गा जो न केवल सु दर हो अ पतु जो मान सक प से
बहु त सजग, बहु त श त, बहु त प र मी, क यूटर चलाने म जादुई द ता रखने वाल
ऊंग लय वाल व अ या य गुण से यु त हो । हो सकता है, भ व य का प त यह ेम
गीत गाये

243
''I love your eyes, your cherry lips, the love that always lingers,
your ways with words and random blips, skilled computer figures''
प ट है, इस कार क असं य व च ताओं, संभावनाओं, ज टलताओं और ग भीरताओं
से भरे अनजान भ व य म य द हम अपना व अपनी भावी संत त का मान सक व सां कृ तक
संतु लन नह ं खोने दे ना चाहते तो हम अभी से ग भीरतापूवक सोचना होगा क हम कैसा भ व य
चाहते ह, उसे साकार करने के लए हम अभी से या— या काय और प रवतन कर, िजससे हम
भ व य क भयंकर प ाओं और असु र ाओं के युग म संतल
ु न के साथ जी सक ।
न कष यह नकलता है क हम सभी लोग म, वशेषकर नई पीढ़ म अ वल ब भ व य
चेतना (Future Consciousness) जा त करनी ह होगी।

17.3 भ व य चेतना कैसे वक सत करे ' (How to Develop Future


conscieousness?)
आप इस बात से सहमत ह गे क दो—चार अ यंत बु मान लोग ह एक मानव समाज
क सम याओं के हम के लए सारे सु झाव दे द तो उससे कु छ नह ं बनता । कु छ सु झाव , कु छ
त य या आकड़ या वषय साम ी से सम याओं के हल नह ं होते, उनके हल होते ह सम याओं
के त सह कार क जागृ त चेतना या झु काव उ प न करने से। भ व य पर अ धकार ा त
करने के बारे म भी यह बात लागू होती है।
भ व य चेतना जागृत करने के लए सामा यतया दो व धयाँ अपनाई जाती ह :—
1. का प नक च लेखन व ध (Scenerio Writing Technique) ‘सीने रय ’ श द का
अथ होता है घटनाओं का कि पत म, या भ व य का एक का प नक इ तहास। अपने
या कसी भी समाज, यि त या सं था के जीवन के बारे म भ व य म या घटनाओं के
घ टत होने के तकपूण या आधारपूण संभावनाएं हो सकती ह उनको यवि थत कम से
उसी कार से लखा जाये जैसे भू तकाल क घटनाओं को इ तहासकार लखता है। प ट
ह है, ऐसा करना तभी स भव है जब क भ व य क घटनाओं का पूव लेखक या मक
तथा सवागीण ढं ग से सोचे क भ व य म या— या हो सकता है, या— या होने क
बहु त अ धक स भावनाएँ ह तथा या— या घ टत होना वह पस द करे गा। ऐसा यास
नःस दे ह उस यि त म भ व य के त जाग कता व चेतना वक सत करे गा।
2. डे फ व ध (Delfi—Technique) इसम कसी मा यम (अ य यि त) क सहायता से
वशेष क स म तयाँ एक क जाती ह। उन स म तय को गुमनाम ढं ग से पुन :
वशेष म वत रत कया जाता है। लगातार कई बैठक म उन स म तय पर वचार—
वमश ( बना कसी स म तदाता का नाम बताये) कया जाता है और अ त म, इस
कार से समू ह क सहम त वक सत क जाती है िजसे भ व य क ग भीर स भावना
माना जाता है । इस व ध से भी भ व य चेतना का वकास कया जाता है ।
इनके अ त र त श ा सं थाओं म श क व वध कार से व या थय म भ व य के
त चेतना या जागृ त वक सत कर सकते ह ।

244
17.4 भ व य चेतना उ प न करने म श ा क भू मका (Role of
Education in Development of Future Consciousness)
भ व य के त सह कार क चेतना अथवा झान उ प न करने म श ा सं थाओं क
बहु त मह वपूण भू मका होनी चा हए ।
यह इस लये आव यक है क
1. अ धकांश प रवार म ( वशेषकर भारत जैसे अ धकतर अ श त व वकासशील दे श म)
माता— पता को न तो इतना खाल समय ह होता है और न उनम इतनी श ा, ान
और भ व य के त िज ासा और चेतना ह होती है क वे अपनी संतान म भ व य
चेतना को ो सा हत कर सक । य द उनम से कु छ करते भी ह (जैसा क कु छ म यम
वग के माता— पता करते ह) तो वे अपने बालक म भ व य के त भय, ह न—भावना
तथा अ त— य त व अ व थ कार के भाव उ प न कर दे ते है।
2. समाज क अ य सं थाएं तथा अ य काय थल, यापा रक व औ यो गक के अत
आधु नक बनने का यास भले ह करते ह पर तु उनम न तो यह ई छा ह पायी जाती
है और न यह मता ह होती है क वे जनता म भ व य के त सह चेतना उ प न
कर सक।
श ा सं थाओं का काम ह यह है क वे व या थय म सह कार का ान, सह कार
के मू य, सह कार क कु शलताऐ सह स मान तथा सह कार का च तन उ प न
कर । श ा सं थाएँ व या थय का सामाजीकरण, श ण, यि त व नमाण, च र
नमाण, तथा प रवतन व प रमाजन करती है अत: उ ह भी भ व य चेतना जागृत करने
का उ तरदा य व नभाना उ चत ह नह ं अ पतु आव यक भी है । ऐसा काय वे
न नां कत कार से कर सकती ह —
1. य श ण (Direct Teaching) वारा भी श क व व ता अपनी क ाओं म
व या थय को भ व य क व वध कार क स भावनाओं के बारे म, तथा व व के
अ त—आधु नक समाज म हो रहे दुतगामी तथा व च तापूण प रवतन व उनके
सामािजक प रणाम के बारे म ठोस जानकार , ऑकड़े, च तु तीकरण तथा उस पर
अपने मत दे सकते ह ।
2.भ व य स ब धी खेल (Future Related Game) वारा व वध कार क
का प नक प रि थ तय के वक प को सोचने जैसे, घटनाओं क संभावनाओं
स ब धी च तन के अ यास तथा मौनोपोल (Monopoly), सॉप—सीढ़ , चाइनीज
चैकर, यापार जैसे खेल वारा व या थय म भ व य चेतना का चुर मा ा म
भावषाल ढं ग से वकास कया जा सकता है । ब ल रोजास जैसे भ व यशा ी के
वारा सु झाये गए भ व य स ब धी खेल इस कार के हो सकते है ।
भ व य चेतना वकास हे तु कु छ खेल (Few Games for Development of Future
Consciousness)
1. सन ् 2020 म का शत होने वाल आपक पाठशाला क वा षक प का कैसी होगी?
(1). उसका कवर पृ ठ कैसा होगा?

245
(2). उसका या शीषक होगा?
(3). उसम कैसे—कैसे लेख, क वता आ द ह गे?
(4). उसका कौन स पादन करे गा?
(5). उसक या— या अ य वशेषताएँ ह गी जो आजकल क शाला प का से भ न
ह गी ।
2. सन ् 2000 म अंत र म या— या हो सकता है
1.अपराध
2. नमाणकाय
3.अ य प रवतन
3. सन ् 2020 म भारत म सबसे अ धक बकने वाल दस पु तक के नाम या ह गे?
4. सन ् 2010 म एक भारतीय का पा रवा रक जीवन कैसा होगा? तब हमारे समाज म एक
गभवती कुँ वार क या के साथ उसके माता— पता, भाई व अ य र तेदार कैसा यवहार
करगे? क पना करके बताय ।
5. न नां कत वषो म आपके जीवन म या— या मह वपूण घटनाय ह गी — 2010, 2025,
2050
6. श क व ान क एक का प नक कहानी (Science—fiction) का पहला अनु छे द
(पेरे ाफ) यामप पर लख। क ा के सभी व या थय से कह क वे अपनी—अपनी
क पना के आधार पर उसके आगे एक या दो अनु छे द लख कर उस कहानी को पूरा
कर ।
7. भ व य को 10 वष म ख म हो जाने वाले यवसाय (रोजगार) के नाम लख ।
8. सन ् 2020 म भारतीय समाज क पाँच मु ख सामािजक कु र तयाँ या ह गी? उनको दूर
करने के लए कैसे—कैसे सामािजक कानून बनाने पड़ सकते ह?
9. सन ् 2021 म भारतीय राजनै तक यव था क या— या नयी वशेषताएँ ह गी?
10. अगले दस वष म ऐसी या नयी खोज / आ व कार हो सकते ह ( क ह पाँच क
क पना करे ) िजनसे हमार श ा णाल बहु त कु छ बदल सकती है ।
3. भ व य से संबं धत पा ये तर याओं का आयोजन (Organization Co—curricular
Activities Related to Future) पाठशालाओं, कॉलेज तथा व व व यालय म
“ यूचर क सल”,” यूचर लब”, “ यूचरोलोजी ऐसा सयेशन” आ द संग ठत कये जा
सकते ह िजनम नर तर भ व य संबध
ं ी कसी वषय पर भाषण, चचा, गो ठ ' सेमीनार,
फ म—शो, लाइड—शो, नाटक, ामा, रोल— ले आ द आयोिजत कये जा सकते ह ।
भ व य के त जागृत करने के लए च व काटू न क दश नयॉ लगायी जा सकती ह
। जनसाधारण को भी इन या—कलाप के मा यम से भ व य चेतना के वकास म
लाभाि वत कया जा सकता है ।
4. पा य म म भ व यो मुखता वक सत करना (Future orientation of
Curriculum) अब यह नतांत आव यक हो गया है क पाठशालाओं और उ च श ा
सं थाओं के सभी कार के पा यकम म चाहे वे ाकृ तक व ान के पा यकम ह या
सामािजक व ान के, अ वल ब आधु नीक करण कया जाये ता क उनके भ व य क

246
सम याओं के त सजगता प रल त हो । घसे— पटे , संकु चत व गले—सड़े पा यकम
से कैसे हम लोग नई पी ढ़य का भ व य बना सकते ह? यह न सभी श क को
अपने से और आप को भी वयं से पूछना होगा ।

वमू यां क न — 2
अब तक आप या समझे ? आप इसका वं य मू यां क न न नां कत अ यास नो दवारा
कर ल िजये
1. क ा आठ के बालक के लए दो भ व य चे त ना े र क खे ल बनाइये ।
(1)
(2)
2. भ व य के त चे त ना को वक सत करने के लए तीन सबसे मह वपू ण तक
तु त क िजये
(1)
(2)
(3)

17.5 भ व य का भारतीय समाज (Fururiatic Indian Society)


आपको यह याद रखना चा हये क य य प भ व य म कई घटनाएँ अ या शत या
अचानक हो सकती ह, तथा प यह मानना ह तक संगत होगा क हमारा भ व य बहु त—कु छ वैसा
ह होगा जैसा क हमारे आज के वतमान म हो रहा है और जो सि म लत भाव के प म हमारे
सामने आयेगा ।
य द आपसे ह पूछा जाये क बतलाइये क आज के समकाल न भारत क मू लभू त
वा त वकताएँ या ह? तो या आप गर बी, बेकार , टाचार, मानव मू य का घोर पतन,
ढोगीपन वग—भेद का बढ़ना, धन ल सा क घेर अ भवृ , थोथी नारे बाजी, सामािजक जीवन म
बढ़ती हु ई अलगाव क भावना, सां कृ तक जीवन म भयंकर संकट, राजनै तक जीवन म आदश
क मजाक, और बढ़ती हु ई हंसा, आतंकवाद, यौन—अनाचार और वाथ पन क वृ तय का
उ लेख कये बना रह सकते ह?
कई समाजशाि य तथा अ य सामािजक वै ा नक ने भी वतमान भारत क इ ह ं
प रवतन स ब धी वशेषताओं का उ लेख अपनी शोध तथा अवलोकन के आधार पर कया है ।
उदाहरणाथ, एम.एन. ी नवास (N.M.Srinivas) ने भारतीय म यम वग म दे श के त बढ़ती
हु ई अना था (Loss of faith), अता ककता तथा उ वाद झगड़ालू वृ तय का उ लेख कया है।
एस.सी.दूबे (S.C.Dube) ने भारतीय जनता क मह वाकां ाओं और दे श क वा त वक
उपलि धय म ग भीर खाई के अि त व, समाज म व वध कार क ौ यो गक व शै क
ग तय के बावजू द बढ़ती हु ई संकु चत मनोवृ त, टाचार, जड़ता तथा शि त स प न वारा
जनसाधारण के शोषण का च ण कया है । रजनी कोठार जैसे राजनी त शाि य ने भारतीय
राजनै तक जीवन म तेजी से बढ़ते हु ए आदश भीड़तं , अनुशासनह नता, हंसा व टाचार आ द
को इं गत कया है । व ान, श ा व यो गक म अनेकानेक महान ् सफलताओं को पाने पर

247
भी हमारा समाज आज पर परा और आधु नकता, तक और अंध व वास, धम नरपे ता और
धमा धता, समृ और बेकार , उ च आदश और कु ि सत यवहार णा लय व टाचार के
वरोधाभास म उलझा हु आ है
ऐसे भारतीय समाज का भ व य 10— 15 या 20 वष म अचानक नह ं बदल सकता ।
ये ग भीर सामािजक, सां कृ तक, आ थक और राजनै तक सम याएँ और अ धक उ होकर हमारे
भ व य को हमारे वतमान से कह ं अ धक दु:खपूण , वकट और असहनीय बना सकती ह। वदे श
क भ व य क खोज , उनके अ छे और बुरे सामािजक भाव ( वशेषकर बुरे भाव ) तथा भ व य
क अ या शत घटनाओं जैसे यु , ाकृ तक वपदाओं आ द से भारतीय समाज के भ व य का
व प और भी ज टल, वषम और क ट द हो सकता है। समाज वै ा नक का च तन तो यह
संकेत दे रहा है। दूसर ओर ऐसे अनेक वचारक भी ह जो भारत म राम रा य के शी लौट
आने, दूध—घी क न दयाँ पुन : बहने तथा भारत वारा व व को नै तक, आ याि मकता, शां त,
व व—बंधु व के पाठ पढ़ाने वाले धम गु बनने क आशाएँ कर रहे ह । कु छ वै ा नक यह
सोचते ह क भारत म व ान व ौ यो गक क वदे श जैसे जबरद त ग त होगी और हम
गर बी, बेकार , सां कृ तक पछड़ाव आ द सम याओं का 8— 10 वष म ह सदै व के लए हल
लगे। आ दशेषय
ै ा जैसे अथशा ी व भ व यशा ी इसके वपर त यह अनुमान लगा रहे ह क
21वीं शता द के भारत म भी मू ल प से कृ ष— धान अथतं ह होगा और जनसं या का भयंकर
व फोट हमारे समाज को बहु त परे शानी क आ थक प रि थ तय म झ क दे गा। बढ़ती हु ई
मंहगाई, कालाधन वग—भेद, शोषण स भवत: नकट भ व य म तो समा त नह ं हो पायगे।
इतनी सार स भावनाऐ ह हमारे समाज के भावी व प के बारे म। अत: हम कैसा
भ व य चु नना है अथवा बनाना है, उसके बारे म अब ग भीरता से समाज के येक यि त को
सोचना आव यक है और उसके लए उपयु त तैयार शु करनी है।
न केवल राजनी त , आयोजक व शासक का इस दशा म ग भीर प से सोचना
आव यक है अ पतु सभी तर क श ा से स ब सभी कायकताओं को अब इस दशा म तु र त
सोचना व काय करना आव यक हो गया है। वतमान शता द के जो थोड़े से वष अब बचे ह
उनका एक—एक दन, एक—एक पल इस कार के च तन व तैयार म यय कया जाना चा हए,
उनको बबाद होने दे ना भावी भारतीय समाज के त कया गया ग भीर अपराध ह माना
जायेगा।

17.6 भ व य क भारतीय श ण सं थाऐ (Indian Educational


Institution in Future)
उपयु त व लेषण के संदभ म हम यह दे खना होगा क हमार भ व य क श ा कैसी
हो? हमार श ा सं थाएँ कैसी हो? हमारे श क कैसे ह और या अ य यव थाएँ व तैया रयाँ
कर ।
भ व य के भारत क श ा को सु धारवाद , नव नमाणकार , आधु नक, ग तशील तथा
उ च तर य, कु शलताओं को वक सत करने वाल श ा बनाना पड़ेगा । आज क श ा नारे बाजी
क श ा है जो थोथे आदश, नार पी अफ म के नशे म जनता को गुमराह रखती है, जो जन
साधारण को शोषणकताओं का भौ तक, मान सक और सां कृ तक तीन प से दास बनाए हु ए ह।

248
जब तक श ा का यह वतमान ा प (मॉडल) िजसे “ब कं ग मॉडल ऑफ एजुकेशन (Banking
Model of Education) कहा गया है, नह ं बदला जाता है और उसके थान पर आ मा को
झकझोर दे ने वाल तथा अपनी लड़ाई वयं लड़ने क साम य उ प न करने वाल श ा का तथा
आ मा को सश त बनाने वाला श ा का मॉडल (Conscientization Model of
Education), िजसे मैि सको के सु स दे शभ त व श ाशा ी पावलो फेरे (Paole Friere)
ने अपनी बहु च चत पु तक (Education of Oppressed (1973) म तु त कया है, नह ं
अमल म लाया जाता, भारतीय समाज का शोषण और अ य सम याओं का अ त नह ं हो पायेगा।
आज स पूण व व म यह वीकार कया जा रहा है क बजाय सखाने—पढ़ाने
(Teaching) पर ह जोर दे ने के, आव यकता इस बात क है क हर कह ं सीखने का वातावरण
(Learning—Enviroment) तैयार कया जाये। िजसम सीखने वाला वयं व भ न ेरणाओं से
े रत होते हु ए तथा व वध ाकार के ान के अवसर तु त करने वाल सं थाओं, स म तय व
औपचा रक व अनौचा रक यव थाओं का लाभ उठाते हु ए अपने ल य क ओर अपनी ग त से
बढता जाये |
व वभर म जो महान ् आ चयजनक वै ा नक ौ यो गक वकास हो रहे ह उनक
चु नौ तयाँ भी भारतीय श ा को वीकार करनी है। पधा के इस युग म भ व य के भारत क
श ा को अ यंत उ च को ट का बनना ह पड़ेगा। वरना हम दु नया के ग तशील दे श से काफ
पीछे रह जायगे। य द हमने अपनी श ा सं थाओं को आगामी 5—7 वष म ह बहु त कया मक
भावी चेतना और तकपूण सोच— वचार के आधार पर नह ं सु धारा, तो भार का भ व य नःस दे ह
भयंकर प से धू मल हो सकता है।
इस कार क चु नौ तय का सफलतापूवक सामना करने वाल श ा दान करने वाल
सं थाओं का व प न नानुसार बनाना होगा
1. बहु त भार वशाल पैमाने पर टे ल वजन, वी डयो तथा रे डयो का उपयोग करते हु ए हम
सभी आयु वग व े के लोग को श त करना होगा ।
2. वतमान श ा सं थाओं को चौबीस घंट , पा रय म चलाकर, हम उनके भवन व साधन
का पूणतया उपयोग श ा सार के लए करना होगा ।
3. वभ न थान पर पर परागत कार के कू ल कॉलेज खोलते रहने क अपे ा, हम
सीखने के जाल (Learning webs) न मत करने ह गे ।
4. वभ न कार क सं थाओं, पु तकालय , अजायबघर , रोजगार के. कायालय , जन
सारण के के , कल—कारखान के म य घ न ठ स पक बनाना होगा । अनौपचा रक
श ा (Non—formal Education) क यव थाओं से खु ले व व व यालय , प ाचार
पा य म , ौढ़ श ा के को बहु त व तृत पैमाने पर बढ़ाना होगा।
5. श ा सं थाओं के योग , नवाचार (Innovations) तथा नये वचार के पर ण क
योगशालाएँ बनानी होगी।

249
17.7 भावी भारतीय श क (Indian Teacher in Future)
भ व य के भारतीय श क को आजकल के सामा य श क क तु लना म बहु त अ धक
प रव तत और नये कार का होना आव यक होगा, अ यथा वे भावी समाज म नेत ृ व नह ं कर
पायगे ।
भ व य का सफल भारतीय श क ऐसी वशेषताओं से स प न होगा :—
1. जो साथक पर परागत मू य और आव यक नये मू य का सह स तु लन अपने
यि त व म रखता हो।
2. वह न केवल अपने वषय म अ पतु व भ न वषय म उ कृ ट तर का पां ड य रखता
हो।
3. वह व भ न कार क यावहा रक कु शलताओं म द हो।
4. वह सामािजक प रवतन, सामािजक सुधार तथा भ व य के वषय म सश त सामािजक
दाश नक सै ाि तक आ था रखता हो।
5. वह ानाजन व ान दान करने क व भ न व धय व नई कु शलताओं म द ता
रखता हो ।
6. जो वषय साम ी को रखने—रखाने के थान पर न य हो रहे ान के व फोट म
उपयु त साम ी का चयन करना जानता हो।
7. जो पा य म के नमाण, टे ल वजन व रे डयो के पाठ के नमाण व अ य श ण
उपकरण के योग म द हो।
8. जो अ धकारवाद या नरं कु श यि त व वाला श क होने के थान पर स दय
ेरणादायक, जनत ीय श क हो।
9. जो व भ न कार क सं थाओं, समूह व स म तय से उ तम तालमेल रख सकता हो ।
10. जो आ मा को झकझोर दे ने वाल श ा को यथाथता और पूण आ था के साथ दान
कर सके ।

17.8 भ व य म या नये शै क प रवतन आव यक ह गे (Do we


need Educational Change in Future?)
हमार नयी श ा नी त, जो 1986 म लागू क गई है, म यह बतलाया गया है क
भारतीय श ा के येक प म सु धार व नवाचार का समावेश कया जायेगा िजससे भ व य का
भारतीय समाज व थ, स न व सु ढ़ हो। आपको नयी श ा के इस द तावेज को अव य
पढ़ना चा हए । आज उसम दे खगे क श ा सं थाओं के संगठन, शासन यव थाओं, पा य म ,
काय—कलाप , मू य , साधन—साम य श क— श ण, अनौपचा रक श ा व यवसा यक श ा
जैसे व भ न वषय पर कई मह वपूण वचार उ त द तावेज म तु त कये गए ह ।
पछले अनु छे द म कई मह वपूण आव यक शै क प रवतन का उ लेख कया गया है।
उनके अ त र त न नां कत प रवतन भी कये जा सकते ह —
1. नई श ा नी त म भी श ा के पुराने ा प को बदलने क बात नह ं कह गई है ।
आव यकता है पुराने ा प को तु र त बदलने क ।

250
2. पावल फेरे के सश त ाि तकार वचार से उ प न आ मा को झकझोर दे ने वाल
श ा का ा प भारत म यथाशी लागू कया जाये।
3. भारतीय श ा जगत क वतमान कमजो रय — टाचार, भाई—भतीजावाद, लापरवाह ,
कत य युतता, दलब द , घ टयापन तु र त समा त कये जाय ।
4. नजी और कई सहायता ा त सं थाओं म जो आ थक शोषण श क व व या थय का
आज हो रहा है उसे समा त कया जाये ।
5. सभी तर के पा यकम म नवीनता व भ व यो मुख ता को लाया जाये ।
6. श ण व धय व श ा के उपकरण म सु धार व नयापन लाया जाये ।
7. श ा के तर को ऊँचा उठाने के लए श ा—सं थाओं, श क के काय तथा
व या थय क ग त का एक सह व कठोर मू यांकन समय—समय पर हो।
8. पर ा णाल के दोष को पछले 40 वष से दोहराया जाता है पर तु उसे न तो
साहसपूवक समा त ह कया जाता है और न सु धारा ह जाता है। 21वीं शता द म भी
य द बोड और व व व यालय क पर ाओं म नकलबाजी, धांधल पूवक उ तर—
पुि तकाओं का मू यांकन, तृतीय ेणी व असफल छा के अनुपात क अ धकता,
पर क क नयुि तय म राग— वेष आ द चलता रहे गा तो फर हमार भ व य क
श ा भी चौपट ह हो जायेगी। तु र त अभी से हम इस दशा म ठोस कदम उठाने ह गे।
9. भ व य क श ा को सभी वग , आयु समू ह , लंग , े के लए काय करना है । अत:
वह बहु त व वधता वाल व भावशाल हो । हमारे पा यकम म व वधता व उपयो गता
के त व का बहु त अ धक वकास करना होगा।
10. भ व य क श ा को मू लत: सह कार के मू य क श ा होना आव यक है । इसके
लए समु चत यवि थत ढं ग से वशाल पैमाने पर यव थाएं करनी ह गी।
आप इस वषय म सो चये । ग भीर चंतन क िजये, अपने सा थय से वचार— वमश
क िजये तथा यह तकपूण नणय क िजये क भ व य के भारतीय समाज म कैसी श ा
यव थाओं का होना आव यक होगा ।

17.9 सारांश (Summary)


इस इकाई म हमने यह बताया है क समकाल न व व म िजस त
ु ग त से व भ न
कार के अ या शत आ व कार और खोज न य— त हो रहे ह, उनसे यह ढ़ संकेत मलता है
क भ व य म व वभर म अनेकानेक कार के सामािजक प रवतन और सामािजक वघटन क
अजीब कार क ग भीर सम याएँ उ प नहो सकती ह । उनसे हमक एक भयंकर कार का
सां कृ तक व मनोवै ा नक झटका लग सकता है। उससे बचने के लए आव यक है क भ व य
के मह व को समझा जाये, भ व य क स भावनाओं के त चेतना या सजगता वक सत क
जाये तथा सभी लोग को, वशेषकर नयी पीढ़ को उसका सामना करने तथा भ व य को सीखने
के एक संसाधन (Learning Resource) के प म योग करने का मह व और ान दान
कया जाये । हमने भ व य चेतना को वक सत करने के लए व भ न उपाय का भी उ लेख
कया है ।
समकाल न भारतीय समाज क प रवतन स ब धी वशेषताओं और सम याओं क
पृ ठभू म म हमने यह बताने का यास कया है क हमारे समाज क भ व य क श ा क

251
या— या मांगे ह और पूण करने के लये हम नकट भ व य म ह या— या सुध र हु ई व नयी
श ा— यव थाएँ लानी ह गी?

17.10 मू ल श द और स यय
1. Futurology भ व यशा : एक अ तर—अनुशासनीय अ ययन—जो कृ त, कला और
व ान दोन ह भ व य का अ ययन।
2. Futuristic भ व य का अ ययन Futurology का पयायवाची व अ य त च लत
श द।
3. Future Consciousne : भ व य चेतना भ व य के त सजगता, जाग कता अथवा
झु काव ।
4. Future Focused Role Image (F.F.R.I.) : भ व योनमुखी भू मका क झांक
भव य म यि त वशेष को या उ तरदा य व नवाह करना होगा, इसके बारे म
ग भीर पूवानुमान ।
5. Cope—ability : अ या शत घ टत होने वाल घटनाओं या बदल हु ई प रि थ तय म
भी सामंज य था पत करने क यो यता जो भ व य म बहु त अ धक आव यक होगी ।
6. Transience : अ थायी, तेजी से लु त या न ट होने क अनुभू त ।
7. Throw away culture : शी तापूवक व तु ओं का उपभोग करने और त प चात ् उ ह
बेकार समझकर बाहर फक दे ने क वृि त जो आजकल के धनवान औ यो गक समाज
म दे खने म आ रह है ।
8. Learning Resoures : सीखने क साम ी । अब भ व य को सीखने क साम ी
समझा जा रहा है ।

17.11 ग त का मू यांकन (Evalution)


1. न नां कत कथन क सं त या या क िजये
(1). ''भ व य एक मह वपूण सीखने क साम ी है ।''(टौफलर)
“Future is an Important Learning Resource''
(2). श ा म भ व यवाद का मू ल उ े य भ व य क शानदार, ज टल, सु यवि थत, सह
छ वय का नमाण करना नह ं है, बि क सीखने वाल को वा त वक जीवन के
संकट , अवसर और खतर के साथ सामंज य थापन करने म सहायता दे ना है ।
(टौफलर)
''The ultimate purpose of futurism is not to create elegantly
complex, well ordered, accurate image of the future, but to
help learners cope with real life crises, opportunities and peils.''
2. आपके वचार से भ व य क भारतीय श ा क या— या मह वपूण मांगे (Demands)
ह गी?
(1).
(2).

252
In your opinion what will be the important demands of Indian
Education?
(1).
(2).
3. भ व य के भारतीय शाला— श क म कौन—कौन सी वशेषताएँ व कु शलताऐ आव यक
समझी जायगी?
(1).
(2).
(3).
(4).
(5).
(6).
(7).
(8).
(9).
(10).
What characteristics and skill will be necessary in future Indian
school teacher?
(1).
(2).
(3).
(4).
(5).
(6).
(7).
(8).
(9).
(10).
4. आपके शहर या गांव क उस ाथ मक पाठशाला को याद क िजये िजसम आपने
ाथ मक श ा पाई थी। सन ् 2010 म आप उस पाठशाला का व प कैसा दे खना
चाहगे? लगभग एक पृ ठ म अपनी क पनाओं को तु त क िजये।

17.12 संदभ तथा आगे अ ययन हे तु पु तक व लेख


1. Toffler,Alvin,FutureShock. NewYork, Rendom House, 1970.
2. Toffler,Alvin, (Ed.) Learning for Tommorow
3. Tofllen,Alvin The Third Wave, London, Pan Books, 1980

253
4. husein Torsten, Education in the Year 2000,Stockholm, University
of Stockholm, 1972
5. Learning To Be, Paris, UESCO, 197
6. Adisheshiah, Malcolm Indian Education in 2001, New Delhi
N.C.E.R.T, 1972
7. Seth, S.C., “Education in An outlook for India’s Future(200A.D)
New Delhi, National Committee in Science & Technology, 1978,
pp. 153—154
8. Friere Paolo Pedalogy of the Oppressed.
9. Ruhela, S.P. Trends of Social Change and Future Demand of
Education, paper Presented to the “Futurology Awareness
programme” Algappa university, Karaikudi, May 11—13, 1968
(Mimeographrd)
10. Ruhela, S.P. (Ed.), Human Values and Education, New Delhi,
Sterling Publishers, 1986.
11. हे ला, स यपाल, ''भ व यशा तथा श ा का भावी व प”, एल.के.ओड़ (स पा दत)
श ा के नूतन आयाम, जयपुर , राज थान ह द थ
ं अकादमी, 1988 ( वतीय
सं करण) पृ ठ 52—59

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