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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय
कोटा (राज थान)

संयोजक / सम वयक एवं सद य


वषय सम वयक सद य स चव / सम वयक
ोफेसर(डॉ.) एस.सी. कलवार डॉ. अशोक शमा
पूव ोफेसर एवं वभागा य , भूगोल वभाग सह आचाय, राजनी त व ान
राज थान व व व यालय, जयपुर(राज.) वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा

सद य
1. ोफेसर(डॉ.) स तोष शु ला 4. ोफेसर(डॉ.) एल.सी. ख ी
भूगोल वभाग भूगोल वभाग
एच.एस. गौड़ व व व यालय,सागर(म य दे श) एम.एल. सु ख ड़या व व व यालय, उदयपुर(राज.)
2. ोफेसर(डॉ.) एस.एम. राशीद 5. डॉ. ओ.पी. छ पा
जा मया म लया इ ला मया नई द ल वभागा य
3. ोफेसर(डॉ.) के .एन. जोशी राजक य महा व यालय,अजमेर(राज.)
वकास अ ययन सं थान जयपुर (राज.)

संपादन तथा पाठ ले खन


स पादक 4. डॉ. एन.के . जे तवाल 5. डॉ. मलन यादव
वभागा य , भूगोल वभाग व र ठ या याता, भूगोल वभाग
डॉ. के.के. शमा
राजक य महा व यालय, बू द राजक य महा व यालय, अजमेर
से वा नवृ त ाचाय
6. डॉ. वनोद कुमार 7. डॉ. अजय कुमार शमा
115/10, मे डकल ग स हॉ टल के सामने,
वभागा य , भूगोल वभाग व र ठ या याता, भूगोल वभाग
स वल लाइन , अजमेर
राजक य महा व यालय, सरोह राजक य महा व यालय, अजमेर
लेखक
1. डॉ. ओ.पी. छ पा 8. डॉ. ी त बाला 9. डॉ. रामा साद
वभागा य , भूगोल वभाग भूगोल वभाग अ ससटे ट ोफेसर, भूगोल वभाग
राजक य महा व यालय,अजमेर राजक य उ च अ ययन सं थान, राज थान व व व यालय, जयपुर
अजमेर
2. डॉ. आर.एन. शमा 10. डॉ. एम.जैड.ए. खान 11. डॉ. बी.एल. गु ता
एसो सये ट ोफेसर, भूगोल वभाग व र ठ या याता, भूगोल वभाग अ ससटे ट ोफेसर, भूगोल वभाग
राज थान व व व यालय, जयपुर राजक य महा व यालय, कोटा राज थान व व व यालय, जयपुर
3. डॉ. बी.एल. शमा 12. डॉ. आर.पी. शमा
वभागा य , भूगोल वभाग व र ठ या याता, भूगोल वभाग
राजक य महा व यालय, अजमेर राजक य महा व यालय, अलवर

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो.(डॉ.) नरे श दाधीच ो. (डॉ.) एम.के . घड़ो लया योगे गोयल
कु लप त नदे शक भार
वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा अकाद मक पा यसाम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

उ पादन : पु नः मु ण : जू न, 2010
इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु . व., कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पु नः तु त करने क अनु म त नह ं है ।
व. म. खु . व., कोटा के लये कु लस चव व. म. खु . व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत

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GE-01
भू गोल
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

भौ तक भू गोल
इकाई सं. इकाई पृ ठ सं .
इकाई - 1 : भौ तक भू गोल, पृ वी क उतपि त व आ त रक संरचना 7
इकाई - 2 : महा वीपीय व थापन तथा लेट ववत नक 27
इकाई - 3 : भू स तुलन का स ा त; भू सच
ं लन एवं प रणाम व प संरचना मक 49
प; वालामुखी एवं भू क प
इकाई - 4 : च ान एवं अना छादन (Rocks and Denudation) 80
इकाई - 5 : पवन , लहर , एवं भू मगत जल के काय, भूअपरदन व संर ण 101
इकाई - 6 : वायुम डल 118
इकाई - 7 : तापमान, उसका वतरण व तापमान क वलोमता 138
इकाई - 8 : वायुदाब 155
इकाई - 9 : पवन प रसंचरण 161
इकाई – 10 : आ ता, संघनन एवं वषा का वतरण व प 171
इकाई -11 : व व के जलवायु दे श 185
इकाई -12 : जल म डल 206
इकाई -13 : सागर य लवणता 224
इकाई -14 : महासागर य जल का संचलन : लहर, वार एवं धाराएँ 239
इकाई -15 : महासागर य न ेप एवं महासागर य जल का दूषण 256

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प रचया मक
इस पु तक का लेखन वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा दवारा अनुमो दत थम वष
भू गोल के थम न-प के पा य मानुसार कया गया है । इसम न-प से स बि धत
वभ यय को यथा स भव सरल भाषा म अ भ य त कया गया है । मान च तथा आरे ख
भू गोल के उपयोगी उपकरण ह । इनका यथा थान समावेश कया गया है, ता क वभ
भौगो लक पहलु ओं को समझने म आसानी हो ।
तु त पु तक का यह थम सं करण है । आशा है यह पाठक के लए उपयोगी स होगी ।
आपके सुझाव दवारा इस पु तक का प रमाजन शंसनीय होगा ।

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इकाई-1 : भौ तक भू गोल, पृ वी क उ पि त व आ त रक
संरचना

इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 भौ तक भू गोल
2.1.1 भौ तक भू गोल क कृ त
2.1.2 भौ तक भू गोल का वषय े
2.1.3 भौ तक भू गोल के मु य भाग
1.3 सौर म डल
1.4 पृ वी क उ पि त के स ा त का प रचय
1.4.1 एक तारक प रक पनाएं
1.4.2 वैतारक प रक पनाएं
1.4.3 नवीन प रक पनाएं
1.5 पृ वी क आ त रक संरचना
1.5.1 न हत ोत
1.5.2 आकि मक संचलन
1.5.3 उ कापात
1.5.4 वैस का वग करण
1.5.5 नवीन मा यता
1.6 सारांश
1.7 श दावल
1.8 संदभ थ
1.9 बोध न के उ तर
1.10 अ यासाथ न

1.0 उ े य
इस इकाई का उ े य-
 भौ तक भू गोल क कृ त एवं वषय े को समझना ,
 भौ तक भू गोल के मु य भाग व उनके अ तस ब ध को जानना,
 सौर म डल के वषय म जानना
 पृ वी क उ पि त के व भ न स ा त को समझना, तथा
 पृ वी क आ त रक संरचना क जानकार करना ।

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1.1 तावना
आपने दे खा होगा क मनु य ह नह ,ं सभी जीव -ज तु अपने नवास थान एवं वचरण े को
पहचानने तथा अ धका धक जानने का यास करते ह । क तु मानव इ तहास म यह यास
भौगो लक ान क ारि भक अव था रह है । धीरे - धीरे मानव का आवासीय प रवेश धरातल
( थल म डल) पर चार ओर फैलता गया । पृ वी के गु वाकषण बल के कारण उसके चार ओर
गैसीय आवरण (वायुम डल) रख जल के वभ न प (जल म डल) जकड़े हु ए ह । इनके
संयोजन से व भ न कार के जीव (जीव म डल) क उ प त हु ई है । इन सभी म डल का
स पक े उन सीमाओं तक या त है जहाँ तक धरातल से नीचे व ऊपर क ओर मानवीय पहु ंच
है । इस स पक े म सभी व तु ओ,ं त य व घटनाओं के म य अ य त ज टल पार प रक
अ तस ब ध है िजसे मानव-पयावरण त (man-environment system) कहा जाता है ।

1.2 भौ तक भू गोल
1.2.1 भौ तक भू गोल क कृ त

यह एक बहु पयोगी, मानवो चत रख समाजोपयोगी व ान है । इसक कृ त को ब दुवार इस


कार अ भ य त कया जा सकता है
1. अवि थ त का ान - अपनी अवि थ त एवं प रवेश को समझने म सभी यासरत रहते
ह । वयं क ि थ त जान लेने के प चात ् मश : आसपास एवं दूर थ े क ि थ त,
दशा व दू रयाँ जानने क आव यकता होती है । यह सु वधा भौ तक भू गोल म न हत है
2. पयावरण-मानव सहस ब ध का अवबोध - इस वृहत ् रख आधारभू त सहस ब ध का
अवबोध कराने म भौ तक भू गोल स म है । भू गोल के वकास के साथ साथ इस
सहस ब ध क गाढ़ता एवं ज टलता क अ धका धक जानका रयाँ उपल ध हु ई ह ।
3. सम ान म सहायक - पयावरण - मानव सहस बंध क व भ न व ान म अपने -
अपने ि टकोण से या या क गई है | क तु इसके सभी पहलु ओं का व साथ उ पि त
व आ त रक संरचना अ ययन करना अ धक उपयोगी होता है सम उपागम के आधार
पर इस सहस ब ध का पूण ान उपल ध कराना टा प के मतानुसार भौ तक भू गोल
का व श ट योगदान (unique contribution) है|
4. े ीय नयोजन म सहायक – थलाकृ ि तय वतरण ा प के अ ययन से े ीय
वशेषताओं एवं सम याओं क जानकार म वृ होती है | प रणाम व प ा त जानकार
के आधार पर े ीय नयोजन एवं वकास के यास भावी होते ह ।
5. लोकोपकार उपागम (humanistic approach) - भू गोल ह एक ऐसा व ान है जो
पयावरण - मानव स ब ध को सम प म अ ययन करता है । इस अ तस ब ध के
ज टल त य का अ ययन भू गोल लोकोपकार प र े य म करता है ।

1.2.2 भौ तक भू गोल का वषय े

य द हम अपने चार ओर दे ख तो पायगे क धरातल रख थलाकृ तयाँ सव समान नह ं ह ।


सव थलम डल का व तार भी नह ं है । थल से जलम डल का व तार लगभग ढाई गुना

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अ धक है । इनके अ त र त पृ वी के चार ओर वायुम डल का आवरण है । ये तीन म डल
ाकृ तक पयावरण के अंग ह रख पर पर घ न ठ प से स बि धत ह । ाकृ तक पयावरण जैव
म डल को भा वत करता है एवं उसके साथ अ त या करता है । इसका अ ययन भौ तक
भू गोल म कया जाता है ।
भौ तक भू गोल के अ ययन म जैवम डल को सि म लत करने के बारे म स भी भू गोलवे ता
एकमत नह ं ह । य य प अब अ धका धक भू गोलवे ता जैव म डल को भौ तक भू गोल क वषय
- व तु म सि म लत करने के प म होते जा रहे ह, तथा प कु छ भू गोलवे ता इसे केवल
ाकृ तक पयावरण का अ ययन मानते ह ।
आथर हो स के अनुसार ''भौ तक पयावरण का अ ययन ह अपने आप म भौ तक भू गोल है
िजसके अ तगत थलाकृ त (भू - आकृ त व ान), सागर व महासागर (समु व ान) एवं
वायुम डल (व जलवायु व ान) का अ ययन सि म लत है |” हो स ने अपनी प रभाषा म भौ तक
भू गोल के तीन घटक माने ह जो मोटे प म थलम डल, जलम डल व वायुम डल ह ।
ै लर (strahler) का मानना है क जै वक एवं भौ तक पयावरण के अ तस ब ध को भल -
भां त समझने के लए भौ तक भू गोल व भ न ाकृ तक व ान क वषय - व तु का उपयोग
करता है । उनके अनुसार मानव एवं उसके ाकृ तक पयावरण क अ त या एक अ य त
सी मत परत म होती है िजसे वे जै वक परत (Life layer) कहते ह । यह स पक े
(Contact zone) वायुम डल – थलम डल एवं वायुम डल -जलम डल के मलन क संकड़ी
परत है । उनके अनुसार इस स पक े को अ तरापृ ठ (interfaces) भी कहा जा सकता है|
इस स पक े म वभ न ाकृ तक शि तय क गहन याएं- त याएं होती रहती ह । इस
याओं- त याओं एवं उनके प रणाम का वतरण अ य त असमान पाया जाता है । इस लए
ै लर ने कहा है क भौ तक भू गोल म जै वक परत क था नक भ नता का अ ययन कया
जाता है । मनु य धरातल पर नवास करता है एवं ाकृ तक पयावरण से अपनी आव यकताओं
क पू त करता है । अत: ार भ से ह अपने ाकृ तक पयावरण एवं उसक था नक भ नताओं
को अ धका धक समझने क उसक िज ासा वाभा वक है । इसी कार के वचार मैक इ टायर
के थे, उ ह ने लखा है क ''भौ तक भू गोल के अ ययन म दो आधारभू त क तु वषम घटक -
भौ तक पयावरण एवं जीवन, का गहन अ ययन एवं व लेषण सि म लत है ।'' अत: भौ तक
भू गोल क वषय-व तु के त यापक ि टकोण रखते हु ए न कष व प हम यह प रभा षत
कर सकते ह क भौ तक भू गोल ाकृ तक एवं जै वक पयावरण के अ तस ब ध एवं उनके
वतरण ा प का व लेषणा मक अ ययन है । अत: भौ तक भू गोल के अ ययन का के ब दु
भू तल है । य प से िजस भू तल पर हम घूमते - फरते ह या रहते ह, उससे कह ं अ धक
यापक प को इसके अ ययन म सि म लत जाता है ( च - 1.1) । भौ तक भू गोल के अ ययन
म धरातल व उसके नीचे कई कलोमीटर गहराई तक का भाग सि म लत कया जाता है।

___________________________
1. A. Holmes. “The study of the physical environment by itself Geography, which includes
consideration of the surface relief of the globe (Geomorphology), of the seas and oceans
(Oceanography) and air (Meteorology and Climatology).”

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च - 1. 1
थलम डल के इस गहरे भाग से जल व व वध कार के ख नज ा त होते ह । पादप भी गहर
म य म उगते है व उससे पोषक त व ा त करते ह । धरातल य व प भी भू प ृ ठ एवं भू गभ
क शि तय वारा बनते ह । धरातल पर पाया जाने वाला गैसीय आवरण भी भू तल का ह अंग
है। वायुम डल म पाई जाने वाल प रि थ तयाँ मौसम व जलवायु को भा वत करती ह ( च -
1.2)। भू तल पर पाई जाने वाल वशाल जलरा श इसका तृतीय अंग है । जलम डल का मह व
स ते यातायात के साधन के अ त र त खा य व ख नज ा त करने के साधन के प म बढ़ता
जा रहा है । इस स पूण भू तल के वमीय े म वभ न कार के पादप व जीव- ज तु पाये
जाते ह । ये जैव म डल के अंग ह । इस कार भौ तक भू गोल के चार मु ख अंग ह ( च -1.1)।

च - 1. 2
बोध न- 1
1. ै लर के अनु सार जहाँ मानव व ाकृ तक पयावरण के म य अ त या होती
है , वह है -
(अ) स पक े (ब) वायु म डल
(स) जलम डल (द) थलम डल । ( )
2. पृ वी के चार ओर वायु म डल िजस कारण पाया जाता है , वह है -
(अ) जीव ज तु (ब) गै सीय दाब
(स) पृ वी का गु वाकषण बल (द) वन प त ( )

10
3 'जै वक परत' को भौ तक भू गोल के अ ययन म िजसने सि म लत कया, वह
है -
(अ) हो स (ब) ै लर
(स) मै क इ टायर (द) ट अस ( )

1.2.3 भौ तक भू गोल के मु य भाग

1. थलम डल - इसके अ तगत वह भाग सि म लत कया जाता है िजस पर हम वचरण


करते ह या रहते ह रख िजस गहराई तक हम इसका उपयोग करते ह । धरातल सव
समतल नह ं है, बि क यह अ य त असमान है । कह ं पर ऊँची -ऊँची पवत े णयाँ ह
तो कह ं पर गहर -गहर घा टयाँ, कह ं पर वशाल समतल मैदान ह तो कह ं पर छोटे
-छोटे वीप । महा वीप के नमाण से लेकर धरातल पर व भ न व प के नमाण
म भू ग भक शि तय व याओं का योगदान रहा है । भू ग भक शि तय के
प रणाम व प व भ न कार क शैल का नमाण होता है । इन शैल म संरचना मक
भ नताएँ पाई जाती ह । शैल म व वध कार के ख नज पाये जाते ह । इनके वघटन
से व भ न गुण वाल म य क उ पि त होती है । ये सभी त य थलम डल के अंग
ह ।

2. वायुम डल - पृ वी के चार ओर उसके गु वाकषण बल से जकड़ा हु आ गैसीय आवरण


मलता है िजसे वायुम डल कहते ह । इसक संघटक गैस हमारे लये अदभुत एवं
आधारभू त संसाधन ह । भौ तक भू गोल के अ य घटक क भाँ त वायुम डल भी अ य त
प रवतनशील घटक है । वायुम डल य अ प-का लक प रि थ तय को मौसम एवं
द घका लक प रि थ तय को जलवायु कहते ह । हवा का तापमान, दाब, पवन क ग त
व दशा, मेघा छादन, वृि ट आ द इसके मु ख अंग ह ।
3. जलम डल - धरातल के बहु त बड़े भाग पर जल य आवरण पाया जाता है िजसे
जलम डल कहते ह । यह भी पृ वी के गु वाकषण बल वारा जकड़ा हु आ जल य
आवरण है । जलाशय छोटे ह अथवा बड़े, इनम जल का संघटन भ न - भ न पाया
जाता है । जल क गहराई म भी यापक भ नताऐं पायी जाती ह । जलम डल म
वभ न कार क ग तयाँ होती है । लहर, धाराऐं, वार - भाटा आ द मु ख ग तयाँ ह
। जलम डल म जै वक व अजै वक संसाधन का अतुल भ डार पाया जाता है । इन
सभी त य का अ ययन जलम डल के अंग के प म कया जाता है ।

___________
1. Mc. Intyre- “Physical Geography is an insight into and analysis of the two basic but
heterogenous components-physical environment and life.”
2. “Physical Geografhy is an analytical of the interrelationships and areal patterns of the
natural and biotic environment.”

11
4. जैवम डल - थलम डल, वायुम डल व जलम डल म अनेक कार के जीव पाये जाते
ह | व वध कार के पादप, जीव -ज तु एवं मानव जैवम डल के अंग ह । मानव व
उसक याओं के े ीय ा प के अ ययन हे तु एक अलग शाखा-मानव भू गोल है ।
अत: भौ तक भू गोल म मानव को छो कर सभी कार के पादप व जीव -ज तुओं का
अ ययन सि म लत कया जाता है
भौ तक भू गोल के उपरो त चार अंग - थलम डल, वायुम डल, जलम डल व जैवम डल क
अ त नभरता व अ तस ब ध अनेक त य म दे खने को मलते ह । उदाहरण के लए म ी शैल
के वघटन से बनती है । इसके कण के म य र त थान म वायुम डल य गैस पाई जाती ह ।
म ी म जल य अंश भी होता है । कई जी वत व मृत जीव भी म य म पाये जाते ह ।
वायुम डल म असं य धू लकण, उन पर जमी पानी क बू द
ं , बीजाणु, जीवाणु, वषाणु आ द होते
ह । जल म डल म वशाल मा ा म तलछट, घुलनशील गैस व व वध कार के पादप एवं जीव -
ज तु पाये जाते ह । जलवायु पर ऋतु अप य (weathering),वन प त आ द क नभरता
भौ तक भू गोल के चार अंग के पार प रक स ब ध को दशाता है ।

1.3 सौर म डल
मा ड असी मत व अप र मत है । इसम अनेक तारे , न , ह, सौय प रवार, आकाशगंगाऐं
आ द ह । इनम से हमारा एक सौय प रवार भी है । ये सभी ह अपने उप ह के साथ सू य क
प र मा करते ह । सौय प रवार के कई संरचना मक गुण यह इं गत करते ह क इस प रवार म
सि म लत सभी ह क उ पि त एक ह समय एवं समान पदाथ से हु ई है । अत: सौय प रवार
क उ पि त से स बि धत प रक पनाएँ पृ वी क उ पि त के स दभ म भी लागू होती ह । सौय
प रवार क उ पि त के वषय म समय-समय पर कई प रक पनाएँ तु त क गई । इनम से
कोई भी प रक पना सवमा य नह है । इनके वषय म जानने से पूव सौय प रवार क कु छ
वशेषताओं क जानकार आव यक है –
1. हमारे सौय प रवार के ह को दो वग म वभािजत कया जाता है । थम वग म
आ त रक ह (Inner or Terrestrial Planets) आते ह । च सं या 1. 3 दे खये,
इस वग म बुध , शु , पृ वी और मंगल आते ह । ये ह अपे ाकृ त छोटे ह । इनका
घन व अ धक है । इनक प र मण ग त कम है| इसके कोई उप ह नह है अथवा बहु त
कम उप ह है, जैसे पृ वी के एक व मंगल के दो उप ह ह । वतीय वग म बा य ह
(outer planets) आते ह| इस वग म वृह प त, श न, अ ण, व ण व यम सि म लत
ह । आंत रक ह क अपे ा बा य ह का आकार बड़ा है । इनका घन व कम है ।
इनक प र मण ग त अ धक है । इनके उप ह भी अ धक ह । यम इसका अपवाद है
य क इसके वषय म अभी तक पूण जानकार नह हे ।
2. सभी ह के अ (axis) अपने क -तल (orbital plane) पर झु के हु ए ह । क तु
वभ न ह के अ का अपने क -तल पर झु काव भ न - भ न है ।
3. सभी ह अपने इन अ पर प र मण (rotation) करते ह ।
4. सभी ह सू य क प र मा घड़ी क सू ई के तकू ल दशा म करते ह ।
5. सभी ह के पथ लगभग वृ तकार अथवा द घवृताकार (elliptical) ह ।

12
6. आकार व यमान (mass) क ि ट से सभी ह सू य क तु लना म बहु त छोटे ह ।
सौय प रवार के कु ल यमान का लगभग 98 तशत भाग सू य म केि त है ।

च - 1.3 : सौर प रवार


7. सौय प रवार म कोणीय संवेग (ANGULAR MOMENTUM) का वतरण वशेष कार
का है| यां क (MECHANICS) म कसी प ड का कोणीय संवेग उसके यमान व
वेग (VELOCITY) का तफल ( यमान*वेग=mv) होता है । कसी के क पीर मा
करते हु ए प ड का कोणीय संवेग उसके यमान, वेग व उसक क ा (ORBIT) के
अ यास का तफल (अथात mvR) के बराबर होता है । कोणीय संवेग के संर ण
स ा त के अनुसार अंत र म कसी एकाक तं म कु ल कोणीय संवेग समान रहता है
। क तु सौय प रवार म कोणीय संवेग का वतरण समान नह ं है । ता लका 1 म सौय
प रवार के व भ न सद य का कोणीय संवेग दया गया है । इस ता लका म सू य व
अ य ह के कोणीय संवेग क तु लना करने पर ात होगा क कु ल कोणीय संवेग का
केवल 17 तशत भाग ह सू य म समा व ट है । शेष 98.3 तशत भाग सौय प रवार
के ह म केि त है । इसके वपर त सौय प रवार के कु ल यमान का 98 तशत
भाग सू य मे केि त है |
ता लका- 1.1 : कोणीय संवेग
सौय प रवार के सद य कोणीय संवेग
बुध 0.03
शु 0.69
पृ वी 1.00
मंगल 0.13
बृह प त 725.00
शन 294.00
अ ण 64.00
व ण 95.00
यम लगभग 1.00
सू य लगभग 20. 00
सौय प रवार का योग 1200. 85

बोध न- 2

13
1. जो बा य ह क े णी म नह ं है , वह है -
(अ) यम (ब) श न
(स) व ण (द) मं ग ल ( )
2. आ त रक ह नह ं है -
(अ) बु ध (ब) अ ण
(स) शु (द) मं ग ल ( )
3. सौय प रवार के यमान का िजतना तशत भाग ह म न हत है , वह है -
(अ) 98 (ब) 11
(स) 2 (द) 90 ( )

1.4 पृ वी क उ पि त के स ा त का प रचय
उपयु त वशेषताय ह सौय प रवार क उ पि त के वषय म द गई प रक पनाओं का आधार ह|
अत: इ ह ं वशेषताओं के प र े य म प रक पनाओं के गुण -दोष क समी ा क जाती है । इन
प रक पनाओं को तीन मु य वग म बांटा जा सकता है -
1. एक तारक प रक पनाएँ (ONE STAR HYPOTHESES) ।
2. वैतारक प रक पनाएँ (BINARY HYPOTHESES) ।
3. नवीन प रक पनाएँ (MODERN HYPOTHESES) ।
येक वग म कई व वान क प रक पनाएँ सि म लत ह । क तु इस इकाई म कु छ व वान
क प रक पनाओं को ह सि म लत कया गया है ।

1.4.1 एक तारक प रक पनाएँ

िजन प रक पनाओं म सौय प रवार क उ पि त एक तारे से मानी जाती है, उ ह एक तारक


प रक पनाएँ कहा जाता है । इन प रक पनाओं के अनुसार सौय प रवार क उ पि त एक मक
वकास या (GRADUAL EVOLUTIONARY PROCESS) का प रणाम है । बफ न,
का ट, ला लास, रोशे, लॉ कयर आ द व वान क प रक पनाएँ इस वग म सि म लत क जाती
ह । इस इकाई म का ट व ला लास क प रक पनाओं को ह सि म लत कया गया है ।
का ट क वाय य-रा श प रक पना (GASEOUS HYPOTHESIS OF KANT)
का ट ने सन ् 1755 म पृ वी क उ पि त स ब धी प रक पना का तपादन कया । का ट के
अनुसार ार भ म असं य आ य पदाथ (PRIMORDIAL MATTER) के कण मा ड म फैले
हु ए थे । ये सभी आ य कण पार प रक गु वाकषण के कारण टकराकर आपस म एक त होने
लगे । इन कण के टकराने से उनम ग त रण ताप उ प न हु आ । ताप से व तथा व से ये
कण गैसीय अव था म प रव तत हो गये । गैसीय पु ज
ं नर तर ती तर ग त से प र मण करने
लगा। प र मण ग त से गु वाकषण बल (GRAVITATIONAL FORCE) क अपे ा अपके य
बल अ धक बढ़ा । इस बल के अ धक बढ़ने से गैसीय पु ज
ं के म यवत भाग म उभार पैदा होने
लगा । उभार के बढ़ते जाने से एक -एक करके छ ले बनने लगे । इस या म नौ गोलाकार
छ ले बने । इससे नौ ह तथा इसी या क पुनरावृि त से इनके उप ह बने और जो

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अव श ट बचा वह सू य बना । इस कार सौय प रवार क रचना हु ई । इसी लये का ट ने कहा था
–‘'मु झे पदाथ दो, म पृ वी क उ पि त कर दखलाऊंगा ।'' (GIVE ME MATTER, AND I
WILL SHOW YOU HOW TO MAKE A WORLD OF IT).
आलोचना
1. 1. का ट के अनुसार आ य कण गु वाकषण शि त के कारण आपस म टकराने लगे ।
यह शि त पहले कहाँ थी और बाद म कैसे कट हो गई? यह न अनु त रत है ।
2. ग तक - व ान के अनुसार आ य कण के आपस म टकराने से उनम प र मण ग त
पैदा नह ं हो सकती है ।
ला लास क नहा रका प रक पना
ला लास (LAPLACE) ांसीसी यो तष थे । उ ह ने अपनी पु तक व व यव था क या या
(EXPOSTION OF THE WORLD SYSTEM) के मा यम से सन ् 1796 म सौय प रवार
क उ पि त के वषय म अपनी प रक पना तपा दत क । ला लास से पूव का ट ने नहा रका
प रक पना (NEBULAR HYPOTHESIS) द थी । ला लास ने का ट क प रक पना के
संशो धत प को अपने वचार का आधार बनाया । उ ह ने सौय प रवार क उ पि त क
या के ारि भक चरण म प र मण करती हु ई व अ य त उ ण एवं गैसीय नहा रका क
क पना क थी । उ ह ने अपनी प रक पना म नहा रका क उ पि त के वषय म कु छ भी नह ं
कहा । ला लास ने का ट क प रक पना के इस अंश को हटा दया क आ य पदाथ क
टकराहट से उनम ताप व ग त उ प न हु ई । इस संशोधन से ला लास ने अपनी प रक पना को
कोणीय संवेग के संर ण स ा त स ब धी आलोचना से बचा लया ।
यह उ ण एवं गैसीय नहा रका ला लास के अनुसार सू य के के से व ण के पीर मण माग से
भी काफ अ धक व तृत थी । गु वाकषण रण ताप हास के कारण यह नहा रका सकु ड़ने
लगी िजससे इसके यास म कमी होती गई । इसके कारण प र मण ग त एवं अपके य बल
म वृ हु ई । एक ि थ त ऐसी आई क भूम यरे खीय उभार (EQUATORIAL BULGE) मै
गु वाकषण व अपके य बल बराबर हो जाने से भारह नता हो गई । प रणाम व प सकु डती
हु ई नहा रका के भारह न भू म यरे खीय उभार से मश: एक के बाद एक वलय पृथक होती गई
( च - 1.4) । इन वलय के ठं डा होने से ह का
नमाण हु आ । वलय के ठं डा होने से पूव उनसे उप-
वलय भी इसी या के वारा अलग हु ई, िजनके ठं डा
होने से उप ह का नमाण हु आ । नहा रका का शेष
भाग सू य के प म व यमान रह गया ।
इस प रक पना म कई वशेषताय ह । अंत र म कई
नहा रकाएँ व यमान ह जो ला लास के मत क पुि ट
करती ह । श न ह के चार ओर पाई जाने वाल वलय
इस प रक पना क पुि ट का एक सश त माण है ।
प र मणशील प ड के यास म कमी होने से उसक
प र मण ग त म वृ होती है । ला लास का यह मत

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ग त व ान के नयम के अनुकू ल है । सब ह क रचना म एक जैसे त व क उपि थ त भी
ला लास क प रक पना को सह मा णत करती है । ला लास के अनुसार सभी ह गैसीय वलय
के ठं डा होने से बने ह । इनका ऊपर भाग तो ठोस हो गया क तु भीतर भाग अब भी तरल
अव था म है । भू तल पर वालामुखी उ गार से नकलने वाले तरल लावा से भी ला लास क
प रक पना क पुि ट होती है । इन गुण के कारण ला लास क प रक पना एक शता द से
अ धक अव ध तक मा य रह । सांि यक , भौ तक , खगोल भौ तक एवं ऊ मा ग तक आ द
व ान के वकास के साथ -साथ ला लास क प रक पना म कई क मयाँ उजागर होने लगी
िजनके आधार पर इस प रक पना क कई आलोचनाएँ क ग ।
आलोचना
1. ला लास ने अपनी प रक पना म उ ण व ग तशील नहा रका क उ पि त के वषय म
कु छ नह ं बताया ।
2. ला लास क प रक पना म यह प ट नह हो पाता क नहा रका से केवल नौ वलय ह
य पृथक हु ई । इससे कम या अ धक य नह ?

3. मो टन (MOULTON) के मतानुसार वलय के ठ डा होने से ह जैसे प ड बनना
स भव नह ं है । उ ह ने बताया क ऊ मा ग तक के नयम के अनुसार ऐसी ि थ त म
ह के वतमान व प से भ न अपे ाकृ त छोटे एवं असमान ह बनगे ।
4. आलोचक का मानना है क य द सू य नहा रका का अव श ट भाग है तो उसम भी
भू म यरे खीय उभार होना चा हए, जो नह ं है ।
5. ला लास क प रक पना वारा सू य व ह के म य कोणीय संवेग के वतरण क
वसंग त प ट नह ं हो पाती है । कु ल कोणीय संवेग का 17 तशत सू य म एवं शेष
98.3 तशत भाग ह मे समा व ट होने का प ट करण इस प रक पना मे नह
मलता|
6. कई भू गभशा ी ारि भक अव था म पृ वी को ठोस मानते ह । अत: वे ला लास क
प रक पना के इस त य से असहमत ह क ह मश: गैसीय व तरल प से ठोस
अव था म प रव तत हु ए ।

1.4.2 वैतारक प रक पनाएँ

दो तार से सौय प रवार क उ पि त मानने वाल प रक पनाओं को वैतारक प रक पनाएँ कहा


जाता है । इस वग क अ धकांश प रक पनाओं का तपादन बीसवां शता द के ार भ म हु आ
था । इस समय तक काफ नये त य क जानकार हो चु क थी । चै बरलेन -मो टन, जे स
जी स, जै ज, रसैल आ द वै ा नक क प रक पनाएँ इस वग म सि म लत क जाती ह ।
ले कन इस इकाई म जे स जी स क प रक पना का ह ववरण सि म लत कया गया है ।
जे स जी स क वार य प रक पना (TIDAL HYPOTHESIS OF JAMES JEANS)
जे स जी स ने सौय प रवार क उ पि त के स ब ध म वार य प रक पना सन ् 1919 म
तपा दत क थी । उनके अनुसार सू य अपने वतमान आकार से काफ बड़ा गैस का गोला था ।
सू य से भी कई गुना बड़ा एक तारा अपने पथ पर चलता हु आ सू य के नकट से गुजरा । जैसे -
जैसे यह तारा नकट आने लगा, सू य के बा यभाग म वार उठने लगा । इस तारे के सू य के

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नकटतम आने तक यह वार बल हो गया । सगार के आकार का यह वार य फलामै ट
करोड़ कलोमीटर ल बाई म व तृत था । मणशील तारे के नकट थ आने पर यह फलामै ट
सू य से अलग हो गया, क तु तब तक यह तारा अपने पथ पर आगे बढ़ चु का था ( च - 1. 5)|
अत: यह फलामै ट न तो तारे के साथ जा सका और न ह पुन : सू य से मल सका ।
गु वाकषण भाव म यह फलामै ट सू य क पीर मा करने लगा । फलामै ट क य रा श म
गु वाकषण के भाव से एवं घनीभू त होने से गाँठ या ि थयाँ पडने लगी । ि थल फलामै ट
ह घनीभू त होकर व भ न ह म प र णत हो गया । वार य भाव से नःसृत फलामै ट दोन
सर पर संकड़ा एव बीच मे अ धक फैला हु आ था । इस लए इस फलामै ट के घनीभू त होने से
बनने वाले ह भी दोन सर पर छोटे एव म य म बड़े. आकार के बने ( च - 1.3) । ठ क
उसी कार सू य क गु वाकषण शि त के कारण ह से उप ह बने । ह क य रा श पर
सू य क गु वाकषण शि त के कारण जो लघु वार य फलामै ट उ प न हु ए उनसे उप ह क
उ पि त हु ई । िजन ह के दो से अ धक उप ह ह, उनम भी म य थ उप ह बड़े एवं दोन सर
क ओर छोटे उप ह ि थत ह ।

च – 1.5 वार य फलामै ट


वशेषताएँ
इस प रक पना म कई वशेषताएँ ह, िजनके कारण यह प रक पना काफ ल बे समय तक मा य
रह ।
1. सौय प रवार के ह को एक रे खा म यवि थत कया जाये तो च सं या 1.1 के
अनुसार बड़े ह म य भाग म रच दोन सर पर छोटे ह ि थत ह । ह - यव था क
इस सगार जैसी आकृ त के कारण इस प रक पना क पुि ट होती है ।
2. जे स जी स क वार य प रक पना क दूसर वशेषता यह है क ह क भाँ त उप ह
क भी सगार जैसी वतरण यव था इसक पुि ट करती है ।
3. छोटे ह को ठं डा होने म अपे ाकृ त कम समय लगा । अत: इनके या तो उप ह नह ं
ह या बहु त कम ह । इसके वपर त बड़े ह अ धक ल बे समय तक गम रहे । इस लए
उनके उप ह अ धक सं या म ह । यह इस प रक पना क तीसर वशेषता है ।
4. इस प रक पना म सभी ह क उ पि त सू य से नःसृत फलामै ट से होने क क पना
क गई है । इस त य क पुि ट सभी ह क संरचना म समान पदाथ के योगदान से
होती है । अत: यह इस प रक पना क चौथी वशेषता है ।

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5. यह प रक पना इस त य का तकसंगत प ट करण दे ने म समथ है क सभी ह
समकाल न ह| इस प रक पना के अनुसार सभी ह का नमाण सू य से अलग हु ए
फलामै ट से एक साथ ह हुआ था । यह इस प रक पना क पाँचवीं वशेषता है ।

आलोचना
1. आलोचक के अनुसार अ त र म तार क पार प रक दू रयाँ बहु त अ धक ह । उनके
इतना नकट आने क स भावना नह ं है क तारे क गु वाकषण शि त के कारण सू य
से बहु त बडी मा ा म य रा श फलामै ट के प म अलग हो जाये ।
2. इस प रक पना म कोणीय संवेग के वतरण क वसंग त का प ट करण भी नह ं
मलता है|
3. कु छ वै ा नक क मा यता है क सू य से अलग हु ए गैसीय फलामै ट का शीतल होकर
ह म प र णत होना स भव नह ं है । बि क उतने उ च तापमान वाल ि थ त के
कारण उसे तो अ त र म वल न हो जाना चा हए था ।
4. रसैल के अनुसार सौय प रवार के बराबर व तृत फलामै ट का सू य से अलग होना
स भव नह ं है ।

1.4.3 नवीन प रक पनाएँ

पछल शता द म तीसरे दशक के बाद सौय प रवार क उ पि त के बारे म नवीन त य पर


आधा रत कई प रक पनाएँ तपा दत क गई । ल टलटन (Littleton), होयल (Hoyle), बैनज ,
ऑ फवैन (Alfven), ऑटो ि मड आ द वै ा नक ने नवीन प रक पनाएँ तु त क । इस इकाई
म केवल ऑटो ि मड क प रक पना का ह ववरण दया जा रहा है ।
ऑटो ि मड क अ तर - तारक धू ल प रक पना (OTTO SCHMIDT’S INTER STELLAR

DUST HYPOTHESIS)
सी वै ा नक ऑटो ि मड ने सन ् 1943 म अपनी अ तर -तारक धू ल प रक पना तपा दत क
। उनके मतानुसार मा ड म गैस एवं धू ल कण के बादल इधर -उधर बखरे हु ए ह । ऑटो
ि मड ने इ ह ं से सौय प रवार के ह क उ पि त क
क पना क है । गैस व धू ल कण के वषय म उ ह ने
बताया क इनक उ पि त तार से न:सृत परमाणुओं के
घनीभू त होने से हु ई है । ऑटो ि मड क मा यता है क
पहले से मौजू द सू य ने ऐसे ह एक गैसीय एव धू लकण
के पुज को अपनी गु वाकषण शि त वारा आक षत
कर लया । इस पु ज
ं से धीरे - धीरे ह का नमाण
हु आ ।
ऑटो ि मड के सहयोगी वै ा नक ले वन ने ह क
नमाण या म तीन ेरक कारक बताये ह । ये तीन
कारक ह - गु वाकषण शि त, याि क या भौ तक
ऊजा (MECHANICAL ENERGY) का ऊ मा
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(HEAT) म प रवतन एवं भौ तक -रासाय नक शि तयाँ (PHYSICO-CHEMICAL FORCES) |
ऑटो ि मड के अनुसार ार भ म मणशील पुज म उपल ध गैस रण धू लकण अ य त
अ यवि थत प से सू य क प र मा कर रहे थे । पु ज
ं के चपटा होने के साथ -साथ इन कण के
प र मण माग अ धक यवि थत एवं भूम य रे खीय तल के समाना तर होने लगे । गु वाकषण
शि त के भाव म यह पु ज
ं अपने भूम य रे खीय तल क ओर चपटा त तर नुमा भी होने लगा था
। गैस एव धू लकण के बादल म धू लकण क मा ा अ धक होती थी । भार होने के कारण
धू लकण भूम यरे खीय तल क ओर अपे ाकृ त अ धक मा ा म एक त होते गये एवं घनीभू त
होकर एक वशाल चपट त तर का प ले लया । पुँज के चपटा हो जाने से उसम उपल ध गैस
व धू लकण क पार प रक दू रयाँ कम होती गई िजससे उनम टकराहट होने लगी|
गैस के कण क टकराहट या थ (ELASTIC) होती है । इससे उनक ग त म द नह ं होने
पाती है तथा वे धीमी ग त से घनीभू त होते ह । इसके वपर त धू लकण क टकराहट अ या थ
(NON ELASTIC) होती है । धू लकण के घनीभू त होने से उनका एक ण होने लगा । ये
ारि भक एक ण ह के भू ण स हु ए । प रप व होते -होते ये ण
ू ु ह (ASTEROIDS)
के प म वक सत होते गये । सू य क प र मा करते हु ए ये ु ह अ य छोटे प ड व कण
को आ मसात करते रहे । इस कार धीरे -धीरे उ ह ने वतमान ह का प ले लया । ह -
नमाण के इस म को च - 1. 6 म द शत कया गया है ।
च सं या 1.6 : घनीभवन से ण
ू बनना
ह नमाण क या के उपरा त भी गैस व धू लकण के पु ज
ं का काफ पदाथ अप रप व
अव था म बचा था । यह पदाथ भी काला तर म घनीभू त होकर उप ह के प म अपने
नकट थ ह क प र मा करने लगे । इस कार व भ न उप ह का नमाण हु आ ।
वशेषताएँ
1. यह स ा त ह के समकाल न होने को मा णत करता है |
2. ऑटोि मड ने बताया क जब गैस व धू लकण त तर के प म संग ठत हो गये तो सू य
क करण उ ह भेद कर अ धक दूर तक नह ं जा सकती थी । अत: त तर के
सू य मुखी भाग से भार त व वाले ह बने । ये आ त रक ह ह - बुध , शु , पृ वी,
मंगल ( च सं या 1.3) । इनक संरचना म लोहा, न कल, स लका, ए यूमी नयम
आद क अ धकता है । इसके वपर त त तर के सू य वमु खी भाग के बा य ह
बृह प त, श न, अ ण, व ण व यम अपे ाकृ त ह के त व से बने ह ।
3. इस प रक पना से कोणीय संवेग के वतरण म वसंग त का प ट करण भी मल जाता
है, य क सू य व ह क रचना भ न प रि थ तय व घटक से हु ई है ।
4. इसी कार ऑटो ि मड क प रक पना से यमान के वतरण क भ नता भी प ट हो
जाती है ।
5. ऑटोि मड ने बताया क गैस व घू लकण तथा पार प रक टकराव के कारण उनक
प र मण ग त का सामा यीकरण हो गया । इसके प रणाम व प ह के प र मण पथ
लगभग वृ तकार अथवा द घवृ ताकार बने ह ।
6. ऑटो ि मड ने ह के बीच क दू रय का प ट करण दे ते हु ए बताया है क भ न-
भ न ग त व प रमाण वाले ह अलग - अलग दू रय पर ह संग ठत ह गे ।

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आलोचना
1. गैस व धू लकण से न मत बादल क उपि थ त से कई वै ा नक स तु ट नह ं ह ।
2. सै ोनोव ने आपि त क है क अ त र म तार क अ य धक दूर के कारण सू य वारा
गैस व धू लकण के बादल को आक षत करना स भव नह ं लगता है ।
3. इस प रक पना के अनुसार ह क ारि भक अव था शीतल एवं ठोस मानी गई है ।
इस त य से कई भू गभशा ी सहमत नह ह य क वे इसक ारि भक अव था को
मश: गैसीय व तरल मानते ह ।
बोध न- 3
1. कु ल कोणीय सं वे ग का जो भाग सू य म समा व ट है , वह है -
(अ) 1.7 % (ब) 1.17%
(स) 1.27% (द) 1.37%। ( )
2. अ तरतारक धू ल प रक पना के अनु सार सौय प रवार क उ पि त होती है -
(अ) नहा रका से (ब) आ य पदाथ के कण से
(स) वार य न:सू त फलामै ट से (द) गै स व धू लकण के बादल से । ( )
3. ला लास ने िजस वग क प रक पना तु त क , वह है -
(अ) एक तारक (ब) वै तारक
(स) ै तारक (द) नवीन ( )

1.5 पृ वी क आ त रक संरचना
पृ वी क आ त रक संरचना आज भी एक रह य है य क भू गभ य पयवे ण से परे है ।
अभी तक धरातल पर तेल के लये कु आं अ धकतम 6 कलोमीटर गहरा खोदा गया है । जब क
धरातल से पृ वी के के क दूर 6378 कलोमीटर है । इस दूर के सामने उ त कु ए क गहराई
नग य है, जो हमारे य ान क सीमा है । य य प पृ वी क आ त रक संरचना का वषय
भू गभशा के अ ययन े म आता है, क तु भू गोल म भी इसका अ ययन इस लये आव यक
है क पृ वी क थलाकृ ि तयाँ भू ग भक ग त व धय पर बहु त कु छ नभर करती ह । अत: पृ वी
क आ त रक संरचना के वषय म अ धका धक जानकार ा त करने के यास नर तर कये
जाते रहे ह । इन यास के अ तगत इस वषय पर काश डालने वाले कई माण जु टाये गये ह
। इ ह तीन मु य वग म वभािजत कया जा सकता है -
1. न हत ोत (Inherent Sources)
(अ) तापमान (Temperature)
(ब) घन व (Density)
(स) दबाव (Pressure)
2. आकि मक संचलन (Sudden Movements)
(अ) वालामु खी या (Volcanic Activity)
(ब) भू क प व ान(Srismology)
3. उ कापात

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1.5.1 न हत ोत

(अ) तापमान - अनेक त य से यह मा णत हो चु का है क भू गभ म गहराई के साथ -साथ


तापमान बढ़ता जाता है । यह वृ दर 1० सैि शयस त 32 मीटर है । इस दर से 5० क
मी. क गहराई पर ह तापमान 1500० सैि शयस हो जाता है । इतने उ च तापमान पर
कोई भी पदाथ ठोस अव था म नह ं रह सकता । वालामुखी उ गार से नकलने वाला लावा
5० कलोमीटर से कम गहराई से ह आता है । इससे यह अनुमान लगाया जाता है क पृ वी
का आ त रक भाग अ य त उ ण अव था म है |
(ब) घन व (DENSITY) - स पूण पृ वी का औसत घन व 5.5 है । जब क धरातल क ऊपर
च ान का घन व 2.7 है । इस त य से पता चलता है क पृ वी के के य भाग का घन व
अ धक होगा । वशेष वारा अनुमान लगाया गया है क पृ वी के भीतर भाग का घन व
11 से भी अ धक है । इससे यह न कष नकलता है क पृ वी का भीतर भाग अ या धक
भार पदाथ से, मु यत: धाि वक (METALIC) पदाथ से बना है । ऐसा माना जाता है क
पृ वी का के य भाग या भू- ोड़ (CORE) नकल-लौह - म ण (NICKEL-IRON
MIXTURE) है |
(स) दबाव - उपरो त बढ़ते तापमान क दर के अनुसार एक नि चत गहराई के बाद भू गभ क
शैल का ठोस प म रहना स भव तीत नह ं होता । क तु माण इसके प म नह है,
य क पृ वी एक ठोस प ड क तरह ग तमान है । भू गभशाि य का मानना है क गहराई
क ओर ऊपर दबाव बढ़ता जाता है िजसके कारण शैल का वणांक भी बढ. जाता है । अत:
भू गभ म तापमान उ च होते हु ए भी अ य धक दबाव के कारण शैल ठोस अव था म ह ह ।
भू ग भक घटनाओं के फल व प च ान के खसकने के कारण दबाव कम होने से शैल पघल
जाती ह । इससे वालामु खी- या उ प न होती है ।

1.5.2 आकि मक संचलन

(अ) वालामु खी या- वालामुखी या के फल व प पृ वी के आ त रक भाग म तरल मै मा


तथा धरातल पर तह तरल लावा वा हत होता है । इस आधार पर कु छ भू गभशाि य का
अनुमान है क पृ वी के आ त रक भाग म कम से कम एक ऐसी परत है जो हमेशा व
अव था म रहती है । इसी को वे मै मा भ डार (MAGMA CHAMBER) कहते ह, जहाँ से
मै मा के प म धरातल पर तम तरल लावा कट होता है । क तु कई भू गभशा ी इसे
यावहा रक नह ं मानते ह ।
(ब) भू क प व ान - भू क प व ान क ग त ने पृ वी क आ त रक संरचना का ान ा त
करने म बहु त सहायता पहु ँ चाई है । भू क प व ान म भू क प क तरं ग और उनक ग तय
का अ ययन कया जाता है । भू क पीय तरं ग का स ा त यह है क उनक ग त ह के
घन व के मा यम म धीमी और अ धक घन व के मा यम म तेज होती है । अथात ् मा यम
का घन व िजतना ह अ धक होगा, तरं ग क ग त भी उतनी ह अ धक होगी । इस गुण के
कारण भू क पीय तंरग के व लेषण से हम अनेक जानका रयाँ मलती ह । भू क प मू ल
(FOCUS) से तीन कार क तरं ग चलती ह । ाथ मक तंरग क ग त सावा धक होती है ।
ये तरं ग व पदाथ से होकर भी गुजर सकती ह । गौण तरंग व पदाथ से होकर नह ं गुजर

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सकती ह । धरातल य तले धरातल पर ह चलती ह । भू क प क ाथ मक तरं ग (Primary
Waves) पृ वी क ऊपर परत (SIAL) म साढ़े पाँच कलोमीटर त सैक ड क ग त से
और गौण तरं ग (SECONDARY WAVES) तीन कलोमीटर त सैक ड क ग त से आगे
बढती ह । म यवत परत सीमा (SIMA) म तरं ग क ग त छ: कलोमीटर त सैक ड पायी
गयी है । इससे प ट होता क सयाल क अपे ा सीमा क परत अ धक सघन (DENSER)
है ।
के य प ड (NIFE) म भू क पीय-तंरग क ग त कु ि ठत हो जाती है । वै ा नक का व वास
है क पृ वी के के य भाग म भार धातु एँ ह, िजनका घन व बहु त अ धक है क तु यहाँ च ान
तरल अव था म ह । अत: धान तरं ग इसम वेश तो करती ह पर उनका माग व ाकार हो
जाता है । वे इस परत म से होकर सीधी या ा नह ं कर सकती । लचील बनावट के कारण गौण
(आड़ी) तरं ग इसम नह ं घुस पाती और आगे बढ़ने म असमथ रहती ह । इन तरं ग क ग त और
अ धक घन व को दे खकर स भू गभशा ी गैमो (GAMOW) इस न कष पर पहु ँ चे क पृ वी
का के य भाग तरल अव था म होना चा हए ।

1.5.3 उ कापात

उ कापात से हम सभी प र चत ह । उ का प ड (METERITES) सौय प रवार के ह भाग ह, जो


ह क उ पि त के समय अलग होकर अ त र म फैल गये थे । उ काओं क रचना म नकल
और लोहा पाया जाता है । अत: सौय-प रवार क सद य पृ वी म भी चु बक व का गुण इसके
आ त रक भाग म नकल- म त लोहे के कारण बताया जाता है ।
उपयु त त य के आधार पर कई भू गभशाि य ने भ न कार से पृ वी क आ त रक संरचना
क या या क है । इनम सबसे अ धक लोक य वैस वारा सु झाया गया वग करण है ।

1.5.4 वैस (SUESS) का वग करण

वैस के अनुसार पृ वी क ऊपर परत तलछट (SEDIMENTS) से न मत है । इसम परतदार


शैल क अ धकता है। इसक गहराई व घन व बहु त कम है। इसक शैल के घन व का औसत
2.7 है । इसके नमाण मे स लका,फै सपार तथा अ क के रवेदार कण क अ धकता होती है |
इसके नीचे वैस ने पृ वी क आ त रक संरचना क तीन परत मानी ह ।
1. सयाल (SIAL)
इसक वश ट संरचना के कारण इस परत का
नामकरण सयाल हुआ है । इसके नमाण म
स लका(SILICA) व ए यूमी नयम (ALLUMINIUM)
क अ धकता होती है अतः इस परत को SIAL कहते है
इस परत मे शैल का घन व 2.7 से 2.9 तक पाया
जाता है । इस परत म ेनाइट व नीस शैल क
धानता होती है । इन शैल म अ ल य (ACIDIC) अंश
अ धक होता है| वैस के अनुसार महा वीप का नमाण
इ ह ं शैल से हु आ है । इस परत क गहराई 50 से

22
300 कलोमीटर तक आंक गई है ।
2. सीमा (SIMA)
स लका (SILICA) तथा मैगनी शयम (MAGNESIUM) से न मत होने के कारण इस परत का
नाम सीमा(SIMA)रखा गया है । इस परत म बैसा ट व गै ो शैल क धानता पाई जाती है ।
इसम शैल का घन व 2.9 से 4.7 तक पाया जाता है । यह परत महा वीप के नचले भाग म
व तृत है तथा महासागर य तल का नमाण भी सीमा से हु आ है । वैस क मा यता थी क
सयाल से न मत महा वीप सीमा पर तैर रहे ह । वालामुखी उ गार से नकलने वाले लावा का
ोत यह परत होती है |
3. नफे (NIFE)
इसके नमाण म न कल (NICKEL) तथा लोहे (IRON) क अ धकता होती है । इस लये इस
परत को नफे (NIFE) कहा जाता है । इसक संरचना म इन भार ख नज का म ण पाया
जाता है । अत: इसका औसत घन व 11 से अ धक है । लोहे क अ धकता के कारण इस परत
म चु बक य गुण पाया जाता है । इस परत का व तार दो हजार कलोमीटर से भू के तक है ।
अथात इस परत का यास चार हजार तीन सौ कलोमीटर से अ धक है । उनक मा यता थी क
धरातल से पृ वी के के क ओर कु छ सके य (CONCENTRIC) छ ले ह, िजनका घन व
गहराई क ओर बढता जाता है ।

1.5.5 नवीन मा यता

भू क प व ान एवं अ य नवीनतम जानका रय के आधार पर पृ वी के आ त रक भाग को


न नानुसार भी वभािजत कया जाता है |
1. भू पपट (CRUST)
इसका व तार धरातल से औसतन 8० कलोमीटर क गहराई तक पाया जाता है । इस कार यह
परत न केवल धरातल पर, बि क महासागर य तल के नीचे भी व तृत है ।
2. मै टल (MANTLE)
मै टल क मोटाई लगभग तीन हजार कलोमीटर आंक गई है । इसका औसत घन व 4.5 है ।
इस परत म भू क प क ाथ मक तरं ग क ग त बढ़ जाती है । दाब व घन व क अ धकता के
कारण ऐसा होता है ।
3. भू ोड़ (CORE)
इसका व तार मै टल क न न सीमा से पृ वी के के तक है । इस भाग म सवा धक घन व
(लगभग 11) पाया जाता है । इस भाग म केवल भू क पीय ाथ मक तरं ग ह वेश कर पाती ह
। इस परत म गौण तरं ग वेश नह ं कर पाती ह । इससे यह अनुमान लगाया गया है क यह
परत व अव था म होनी चा हये ।

बोध न- 4
1. सयाल क परत होती है |
( अ ) सबसे ऊपर ( ब ) भू के म
( स ) सीमा से ऊपर ( द ) 500 कमी . गहर ।

23
2. वै स के अनु सार महा वीप का नमाण िजस परत से हु आ है , वह है -
( अ ) ऊपर परत ( ब ) सयाल
( स ) सीमा ( द ) नफे ।
3. वै स के वग करण के प र े य म जो कथन गलत है , वह है -
( अ ) ऊपर परत का घन व 2.7 है
( ब ) सीमा म बै सा ट शै ल क धानता है
( स ) नफे म चु बक य गु ण व यमान है
( द ) सयाल नफे पर तै र रहा है ।

1.6 सारांश
1. अपने आवासीय प रवेश क जानकार , ि थ त व अवि थ त नधारण भौ तक भू गोल के
वकास का ारि भक चरण ।
2. भू गोल क कृ त म अवि थ त का ान, पयावरण -मानव सहस ब ध का अवबोध,
सम व ान का समावेश, े ीय नयोजन का ान, लोकोपकार उपागम सि म लत है|
3. भौ तक भू गोल क कु छ प रभाषाओं म केवल भौ तक पयावरण के अ ययन व कु छ अ य
म जै वक पयावरण को भी सि म लत करने पर बल, अत : इसक वषय व तु के मु य
घटक - थलम डल, वायुम डल, जलम डल, जैवम डल ।
4. सौय प रवार क सगार जैसी आकृ त है िजसके म य म बड़े व कनार पर छोटे ह
ि थत ह।
5. सौय प रवार के ह के दो वग ह - (अ) आ त रक ह - (बुध , शु , पृ वी व मंगल),
छोटा आकार व कम उप ह यु त; (ब) बा य ह - (बृह प त, श न, अ ण,व ण व
यम), बड़ा आकार व अ धक उप ह यु त|
6. सौय प रवार के कु ल यमान का 98 तशत एवं कु ल कोणीय संवेग का केवल 1.7
तशत सू य म तथा शेष ह म समा हत ।
7. का ट व ला लास क एक तारक नहा रका प रक पना - नहा रका से पृथक हु ई वलय के
शीतल होने से ह व उप ह का नमाण ।
8. का ट व ला लास क प रक पना म क मयाँ - उ ण व ग तशील नहा रका क उ पि त,
केवल नौ वलय पृथक होने, ऊ मा ग तक नयम के व ह के नमाण, सू य म
भू म यरे खीय उभार के अभाव, कोणीय संवेग के वतरण क वसंग त आ द के कारण
इस प रक पना से अ प ट ।
9. जे स जी स क ( वैतारक) वार य प रक पना -एक अ य नकट आते हु ए तारे के
गु वाकषण के कारण सू य से अलग हु ए फलामै ट से ह क उ पि त ।
10. जे स जी स क प रक पना म क मयाँ - अ त र के कसी तारे का इतना नकट
आना, सौय प रवार के आकार के फलामै ट का अलग होना, उस फलामै ट के ठ डा
होने से ह का बनना आ द कई वै ा नक वारा अस भव माने गये ।

24
11. ऑटो ि मड क अ तर -तारक धू ल प रक पना - गैस व धू लकण से यु त पु ज
ं पर
गु वाकषण, याि क तथा भौ तक -रासाय नक शि तय के भाव के कारण कण के
एक ण से ह का नमाण ।
12. ऑटो ि मड क प रक पना म क मयाँ - गैस व धू लकण के पु ज
ं से कई वै ा नक
असहमत, सै ोनोव वारा गु वाकषण भाव से कण के घनीभवन पर आपि त, ठोस
ारि भक अव था पर आपि त आ द ।
13. य पयवे ण से परे होने के कारण पृ वी क आ त रक संरचना क सी मत
जानकार ।
14. आ त रक संरचना के वषय म जानकार हे तु जु टाये गये ोत - (अ) न हत ोत -
तापमान, घन व, दबाव, (ब) आकि मक संचलन - वालामु खी याएं ,भू क प व ान (स)
उ कापात ।
15. वैस का वग करण- (अ) ऊपर परत- परतदार शैल, घन व 2.7 (ब) सयाल, स लका व
ए यूमी नयम न मत, अ ल य, ेनाइट व नीस शैल, घन व 275 से 2.9, गहराई 50 से
300 कलोमीटर (स) सीमा- स लका व मैगनी शयम न मत, बैसा ट व गै ो शैल, घन व
2.9 से 4.7, गहराई 1000 से 2000 कलोमीटर (द) नफे - के य परत, नकल व
लौह न मत, चु बक य, घन व 11 से अ धक, गहराई 2000 कलोमीटर से भू के तक।
16. नवीनतम मा यता के अनुसार पृ वी के आ त रक भाग का वग करण भू पपट , मै टल व
भू ोड़ के प म भी कया जाता है ।

1.7 श दावल
1. अ तरापृ ठ : जै वक परत
2. सौरम डल : सू य व उसके ह -उप ह
3. उ कापात : उ काओं का पृ वी पर गरना
4. सयाल/भू पपट : पृ वी क ऊपर परत
5. सीमा/मै टल : पृ वी क म यवत परत
6. नफे/भू ोड़ : पृ वी क के य परत

1.8 स दभ थ
ए.एन. ै हलर : इ ोड शन टू फजीकल यो ाफ , जॉन वाइल ए ड संस,
यूयॉक
आथर हो स : ं सप स ऑफ फजीकल यो ाफ , थॉमस नै सन ए ड संस,
यूयॉक , 1949
सी बी. मामो रया व रतन : भौ तक भू गोल,सा ह य भवन, आगरा, 2006
जोशी
जे .ए. ट यस : अन टे बल अथ, कैि ज, ल दन
सव संह : भू आकृ त व ान, वसु धरा काशन, गोरखपुर, 2006

25
शमा व म ा : भौ तक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2006

1.9 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1.(अ) 2. (स) 3. (ब)
बोध न - 2
1. (द) 2. (ब) 3. (अ)
बोध न - 3
1. (अ) 2. (द) 3. (अ)

1.10 अ यासाथ न
1. वायुम डल कस कारण पृ वी के चार ओर जकड़ा हु आ हे ?
2. भौ तक भू गोल क व भ न शाखाओं का व तृत वणन क िजए ।
3. जे स जी स क वार य प रक पना क या या क िजए ।
4. सयाल का घन व कतना है?
5. पृ वी क आ त रक संरचना के वषय म हमार जानकार सी मत य है?
6. मै टल क मोटाई कतनी है?
7. पृ वी क आ त रक संरचना के बारे म घन व के आधार पर या जानकार मलती है?
8. नफे म चु बक य गुण य पाया जाता है?
9. पृ वी क आ त रक संरचना के ोत का वणन क िजए ।
10. पृ वी क आ त रक संरचना का वणन क िजये ।

26
इकाई -2 महा वीपीय व थापन तथा लेट ववत नक

इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 महा वीप व महासागर क उ पि त
2.3 वैगनर का महा वीपीय व थापन स ा त
2.3.1 पृ ठभू म
2.3.2 महा वीपीय व थापन से स बि धत त य
2.3.3 महा वीपीय व थापन के कारण व दशाएं
2.3.4 महा वीपीय व थापन व उसके भाव
2.3.5 महा वीपीय व थापन के माण
2.3.6 वैगनर के महा वीपीय व थापन स ा त म क मयां
2.4 लेट ववत नक
2.4.1 अथ तथा या या
2.4.2 लेट के कार
2.4.3 मु ख लेट
2.4.4 लेट पा व
2.4.5 लेट ववत नक के भाव
2.5 सारांश
2.6 श दावल
2.7 संदभ थ
2.8 बोध न के उ तर
2.9 अ यासाथ न

2.0 उ े य
इस इकाई का उ े य -
 महा वीप व महासागर के वतरण क वशेषताओं को उजागर करना है,
 महा वीप व महासागर क उ पि त से स बि धत वैगनर के महा वीपीय व थापन
स ा त के सभी पहलु ओं क व तृत जानकार दे ना है, तथा
 लेट ववत नक के सभी पहलु ओं को समझना है ।

2.1 तावना
पृ वी क सतह पर थल एवं जल दोन का ह व तार है। क तु इसका वतरण समान नह ं है।
थल (महा वीप) एवं जल (महासागर) अपने असमान वतरण एवं वशेष आकृ त के कारण सदै व
से ह भूगोलवे ताओं, भूगभशाि य एवं भू भौ तक वद क िज ासा का वषय रहे ह। उनक

27
उ पि त के वषय म द गई अनेक प रक पनाओं को भल -भां त समझने के लये महा वीप व
महासागर के व यास (arrangement) क मु ख वशेषताओं के बारे म जानना आव यक है। ये
मु ख वशेषताऐं इस कार ह -
1. पृ वी क सतह के 71 तशत भाग पर जल व शेष 29 तशत भाग पर थल का
व तार है।
2. उ तर गोला म थल य व तार अ धक एवं जल य व तार कम है। इसे थल गोला
भी कहते ह य क इसके 81 तशत भाग पर थल का व तार है। द णी गोला म
जल य व तार अ धक है। अत: उसे जल गोला भी कहते ह।
3. थल एवं जल एक दूसरे के वपर त ि थत ह। भू गोल म इसे त ु व थ (Antipodal)
ि थ त कहते ह। इस त य के समझने के लये च - 2.1 का यानपूवक अ ययन
क िजये। थल-जल क त ु व थ ि थ त म कु छ ह अपवाद ह।

च - 2. 1 : महा वीप व महासागर क त ुव थ ि थ त


4. त ु व थ ि थ त के म म एक वल णता ु व के स दभ म भी है। उ तर ुव
आक टक महासागर म ि थत है तो इसके वपर त द णी ु व अ टाक टका महा वीप
पर ि थत है। च -2.2 एवं 2.3 क तु लना करने पर उ तर व द णी ु व एवं अ य
थल - जल क त ुव थ ि थ त प ट हो जायेगी।

च - 2. 2 : उ तर ुव च -2.3 : द णी ुव

28
5. महा वीप व महासागर क आकृ त मोटे
प से भु जाकार है। महा वीपीय भु ज
के आधार उ तर म तथा शीष द ण क
ओर ह ( च - 2. 4)। इसके वपर त
महासागर के आधार द ण म तथा शीष
उ तर क ओर ह।
च -2.4 : महा वीप व महासागर
क भुजाकार आकृ त
6. महा वीप एवं महासागर ु व से तीन दशाओं क ओर फैले हु ए ह। उ तर ु व से
ए शया, यूरोप (अ का स हत) व अमे रका द ण क ओर तथा द णी ु व से ह द,
अटलाि टक व शा त महासागर उ तर क ओर फैले ह।

2.2 महा वीप व महासागर क उ पि त


महा वीप व महासागर क उ पि त के वषय म कई प रक पनाऐं द जाती रह ह। इनम से
अ धकांश अब अमा य हो गई ह। अत: इस अ याय म अपे ाकृ त अ धक वीकृ त वैगनर के
महा वीपीय व थापन स ा त (Continental Drift Theory) एवं लेट ववत नक (Plate
Tectonics) स ा त का ह व तृत ववेचन दया गया है।

2.3 वैगनर का महा वीपीय व थापन स ा त


महा वीप के व थापन क प रक पना वैगनर क अपनी मौ लक वचारधारा नह ं है। उनसे पहले
पाइडर ने सन ् 1858 तथा टे लर ने सन ् 1908 म महा वीपीय व थापन स ब धी वचार कट
कये थे। क तु उन पर उस समय अ धक यान नह ं दया गया। अत: इस स ा त का ेय
अ ै ड वैगनर (Alfred Wegener) को दया जाता है य क उ ह ने इसक पुि ट के लये अनेक
माण एक त कये और इसे यवि थत प दान कया। उ ह ने सव थम इस स ा त का
तपादन सन ् 1914 म कया, क तु उस समय थम व व यु क प रि थ तय के चलते
इसक ओर वशेष यान नह ं दया गया। वैगनर ने अपने स ा त को सन ् 1922 म जमन भाषा
म का शत कया, िजसका सन ् 1924 म अं ेजी अनुवाद नकला। तभी से यह स ा त च चत व
च लत हु आ।

2.3.1 पृ ठभू म

भू ग भक अ ययन से ऐसे अनेक माण मलते ह िजनसे यह न कष नकलता है क पूवकाल म


जलवायु क प रि थ तयाँ वतमान से ब कु ल भ न रह ह गी। उदाहरण के लये अ टाक टका
महा वीप म कोयले के जमाव का पाया जाना वहाँ पर पूव म उ ण-आ जलवायु होने का तीक
है। वतमान प र े म इन भू ग भक वसंग तय (anomalies) का प ट करण सम यापूवक था।
इसके प ट करण हे तु दो ह स भावनाऐं हो सकती थी -
1. थलख ड ि थर रहे एवं जलवायु क टब ध म प रवतन होता रहा।
अथवा

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2. जलवायु क टब ध ि थर रहे एवं थल ख ड क ि थ त प रवतनशील रह । वैगनर ने
अपना स ा त दूसर स भावना पर आधा रत कया।

2.3.2 महा वीपीय व थापन से स बि धत त य

वैगनर वारा तपा दत महा वीपीय व थापन स ा त के सभी पहलु ओं को ब दुवार अ भ य त


कया जा सकता है -
1. वैस (Suess) क अवधारणा को आधार बनाते हु ए वैगनर ने माना क पृ वी क बा य
परत या पपडी सयाल (SIAL) है। इसके नीचे दूसर परत सीमा (SIMA) है तथा पृ वी
का के य आ त रक भाग नफे (NIFE) से बना है।
2. वैस के अनुसार सयाल पी पपडी एक मक परत है, जब क वैगनर ने महा वीप को
सयाल न मत माना है, तथा अगाध सागर य तल को सीमा का तल माना है।
3. सयाल क परत को ठोस अव था म तथा सीमा क ऊपर परत को लसील या चप चपी
(Viscous) माना गया है।
4. लसील सीमा क परत म सयाल पी महा वीप तैर रहे है।
5. वैगनर के अनुसार काब नीफैरस युग म एक वशाल थलख ड था िजसको उ ह ने
पैि जया (Pangea) कहा। इसके म य म टथीस सागर (Tethys Sea) नामक भू संन त
थी। इसके उ तर भाग को लॉरें शया (Laurasia) व द णी भाग को गौ डवानालै ड
(Gondwana Land) नाम दया गया।
6. पैि जया नामक वशाल थलख ड के चार ओर पै थालासा (Panthalasa) नामक
महासागर था।

2.3.3 महा वीपीय व थापन के कारण व दशाएँ

वैगनर ने महा वीपीय व थापन के दो कारण बताये ह। थम कारण सू य व च मा का


गु वाकषण बल है। यह बल सू य व च मा से नकटता के कारण सयाल (SIAL) पर अ धक
भावी रहता है। अत: पि चम से पूव को प र मण करती हु ई पृ वी पर इस बल के कारण
महा वीप पि चम क ओर पछड़ते (Dragged Westward) ह। इससे महा वीप का पि चम क
ओर व थापन होता है। व थापन के लये उ तरदायी दूसरा बल तैरती हु ई कसी व तु के गु व
के (Centre of Gravity of floating mass) एवं उसी व तु के उ लावन के (Center of
buoyancy) का स ब ध है।
यह भौ तक शा का एक नयम है। इस बल के कारण महा वीप का व थापन भूम यरे खा क
ओर हु आ। महा वीपीय व थापन तथा लेट ववत नक

2.3.4 महा वीपीय व थापन व उसके भाव

वैगनर महा वीपीय व थापन से स बि धत प रि थ तय का लेखाजोखा काब नीफैरस युग के बाद


से ार भ करते ह। इसका अथ यह नह ं है क वे इससे पूव महा वीपीय व थापन को नह ं
मानते। उनका कहना है क काब नीफैरस युग से पूव क प रि थ तय के बारे म अ धक जानकार
नह ं होने से नि चत तौर पर कु छ नह ं कहा जा सकता।

30
अत: वैगनर के महा वीपीय व थापन स ा त म ारि भक ब दु काब नोफैरस युग है। उस
समय पै थालासा नामक महासागर से घरा हु आ एक वशाल थलख ड पैि जया था, िजसम दरार
पड जाने उसे वह कु छ टु कड़ म वभ त हो गया। ये टु कड़े काला तर म पि चम एवं भू म यरे खा
क ओर वा हत होते-होते वतमान प म आये। इनके मक वाह को च - 2.5 म दशाया
गया है। उ तर व द णी अमे रका शेष थलख ड से अलग होकर पि चम क ओर व था पत
हु ए। अमे रका व शेष थलख ड के म य अटलाि टक महासागर बना। उ तर व द णी अमे रका
के पि चमी कनारे पर पूर ल बाई म एक भू संन त म जमा हुई तलछट म वलन पड़ते गये। इस
कार उ तर अमे रका के पि चमी तट पर रॉक तथा द णी अमे रका के पि चमी तट पर
ए डीज पवत क उ पि त हु ई। ऐसे ह गो डवानालै ड के भूम यरे खा क ओर व थापन से
टथीस सागर म जमा हु ई तलछट म वलन पड़ते गये। इसके प रणाम व प म य-महा वीपीय
पवतीय खृं ला (Mid-Continental mountain system) अथात आ स- हमालय पवतीय म का
उ व हु आ। इस कार वैगनर के वाह स ा त के वारा न केवल महा वीप व महासागर क
उ पि त बि क नवीन मोड़दार पवत क उ पि त के वषय म भी प ट करण ा त होते ह।

च -2.5 : महा वीपीय व थापन के म


वैगनर ने ु व क ि थ त भी बदलती हु ई मानी है, िजसे वे ुव क मणशीलता (Wandering
Poles) कहते ह। क तु ु व क यह मणशीलता वा त वक न होकर मणशील महा वीप से
सापे क थी। ु व व भूम यरे खा क प रवतनशील ि थ तय को च - 2.6 म दशाया गया है।
कई े के भू ग भक अ ययन से यह न कष नकाला जाता है क पूवकाल म उन े क

31
जलवायु वतमान से ब कु ल भ न रह होगी। अत: उनका भी प ट करण इस स ा त म
उपल ध होता है।

च 2.6 : वैगनर के अनुसार ुव क मणशीलता

2.3.5 महा वीपीय व थापन के माण

(अ) भौगो लक माण (Geographical Evidences)


1. अटलाि टक तट य सा य (Atlantic Coastal Similarity)- अटलाि टक महासागर के
पूव व पि चमी तट क अ ु त सामनता ने वैगनर को बहु त आक षत कया। च सं या
2.7 म अटलाि टक महासागर के तट क यह समानता प ट तीत होती है। यह
वभा वक ह है क य द ये महा वीप पृथक होकर व था पत हु ए ह तो पृथकता वाले
तट म समानता तो होगी ह । क तु एक न यह भी उठता है क इ ह पुन : पर पर
कस हद तक सटाया जा सकता है। वैगनर का मानना है क अटलाि टक महासागर के
दोन तट को पुन : पर पर सटाया जा सकता है, िजसे वे JIG-SAW-FIT कहते ह।
उनके अनुसार पि चमी अ क उभार कैर बयान सागर म तथा द णी अमे रका का
उ तर -पूव भाग गनी क खाड़ी म सट जाता है िजसे च - 2.8 म दशाया गया है।

2. पवत का संरेखण (Alignment of Mountains) - व था पत महा वीप को सटाकर


व थापन दे खने पर सभी युग क पवतमालाओं के संरेखण म काफ समानता दे खने को

32
मलती है। इसे च सं या 2.8 म दशाया गया है। यह संरेखण कैल डो नयन,
हस नयन, अ पाइन आ द सभी पवतमालाओं म दे खने को मलता है।
3. नवीन मोड़दार पवत क उ पि त का प ट करण - व व के थलाकृ तक मान च को
दे खने पर प ट तीत होगा क अमे रका महा वीप के पि चमी तट य े एवं
यूरे शया के म यमहा वीपीय े म ह व व के दो सबसे मु ख नवीन मोड़दार पवत
मश: रॉक ज - ए डीज तथा आ स- हमालय व तृत ह। वैगनर ने इ ह ं थान पर
भू संन तयाँ होने क क पना क है। इनम जमा हु ई तलछट म महा वीप के मश:
पि चम व भू म यरे खा क ओर व थापन के कारण इन नवीन मोड़दार पवत क
उ पि त हु ई।
(ब) भू ग भक माण (Geological Evidences)
1. संरचना मक समानता (Structural Similarities) - भूगभशाि य ने अटलाि टक
महासागर के दोन तट य े क शैल संरचना का अ ययन कया है। दोन तट य े
क शैल संरचना म भी अ ु त समानता पाई जाती है जैसा क च सं या 2.9 म दशाया
गया है। यह इस बात का माण है क ये दोन तट कभी मले हु ए थे।

च - 2.9 : संरचना मक समानताएँ


2. तर- व यास क समानता (Stratigraphical Similarities)- सरंचना क भां त ह
भू गभशाि य ने दोन तट क च ान क परत के म म भी समानता पाई है। यह
त य भी वैगनर के महा वीपीय व थापन स ा त क पुि ट करता है।
3. ववत नक समानता (Tectonic Similarities) भू गभशाि य ने दोन तट पर
अ भन त कोण (Dip angle) तथा वलन- ंश के रै खक व यास (alignment of fold-
fault lines) म भी समानता पाई है।
(स) भू- यॉ मतीय माण (Evidences of Geodesy)
ऐसे माण मले ह क ीनलै ड धीरे -धीरे कनाडा क ओर व था पत हो रहा है। यह इस बात का
माण है क महा वीप म व थापन स भव है।

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(द) जै वक माण (Biological Evidences)
1. पुराजीवा मीय समानता (Paleontological Similarities)- पुराजीवा म शा म
ाचीनकाल के जीव व पादप के अवशेष का अ ययन कया जाता है। ाचीनकाल के
जीवा म का अ ययन करने से पता चला है क अटलाि टक महासागर के दोन तट पर
पाये जाने वाले जीवा म समान कार के एवं समकाल न जीव ज तु ओं व पादप के ह।
2. जै वक आदत (Biological habits)- कई जीव शाि य ने अपने अ ययन म पाया है
क कु छ जीव क वच आदत होती ह। उदाहरण के लये नॉव से लै मंग (lemming)
पि चम क ओर चलते-चलते अटलाि टक महासागर म डू ब कर मर जाते ह।
ा णशाि य का मानना है क उनक यह आदत कदा चत उस समय क है जब उ तर
अमे रका यूरोप से जु डा हु आ था। उस समय लै मंग पि चम म उ तर अमे रका क ओर
थाना तरण करते होग। आज भी ठ क वैसे ह साइबे रयन सारस शीत ऋतु म घना
प ी वहार (भरतपुर ) तक आते ह तथा शीत ऋतु क समाि त पर वापसी या ा भी करते
ह।
3. पुराजीवा मीय वतरण (Paleontological Distribution)- भू ग भक अ ययन से ात
हु आ है क कई े म ाचीन हमयुगीन जीवा म मलते ह। ये े मु यत: भारत,
द णी अ का, द णी अमे रका, ऑ े लया, अ टाक टका आ द ह। ले कन वतमान
जलवायु के प र े म हमयुगीन जीवा म का उ त े म पाया जाना आ चयजनक
एवं नवाचक है। इसका समाधान वैगनर वारा काब नीफैरस युग म उ त े को
द णी ु व के नकट सटा कर कया गया है, जैसा क च - 2.10 से प ट है।

च -2.10: हमयुगीय जीवा म का प ट करण


(य) पुराजलवायु क माण (Paleoclimatological Evidences)
व व के कई भाग म ऐसे जमाव, जीवा म व माण मलते ह, िजनको उन े क वतमान
जलवायु प रि थ तय के स दभ म नह ं समझा जा सकता। वे इस बात का संकेत दे ते ह क उन
े म पूव काल न जलवायु ब कु ल भ न रह होगी। इस अ नय मतता को महा वीपीय
व थापन वारा हल कया गया है। ऐसा उ ह ने िज वापण (glossopteris) जीवा म के

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ऑ े लया, द णी भारत, द णी अ का, द णी अमे रका व अ टाक टका म वतरण को
समझने के लये कया था।

2.3.6 वैगनर के महा वीपीय व थापन स ा त म क मयाँ

(अ) भौगो लक क मयाँ (Geographical Weaknesses)


1. अटलाि टक तट य सा य म कमी - भू गोलवे ताओं ने अटलाि टक महासागर य तट के
Jig-Saw-Fit म क मयाँ बताते हु ए दशाया है क ये तट पर पर पूण पेण नह ं सटाये
जा सकते इनके कु छ भाग म दू रयाँ रह जाती ह तथा कु छ भाग एक दूसरे पर या त
(Overlap) हो जाते ह। य द उनके महा वीपीय नम तट को सटाया जाये तो यह
अ नय मतता और भी अ धक हो जाती है।
2. अटलाि टक तट को सटाने म म य-अटलाि टक कटक (Mid-Atlantic Ridge) बाधा-
वैगनर ने वतमान म अटलाि टक महासागर के म य म उ तर से द ण तक फैल हु ई
म य अटलाि टक कटक के बारे म कोई प ट करण नह ं दया है। दोन तट को सटाने
म इस कटक क उपि थ त बाधक होगी।
3. व थापन-वलन वरोधाभास- व थापन व वलन पर पर वरोधाभासी (Drift-Folding
Contradiction) ह। एक ओर वैगनर क मा यता है क सयाल पी महा वीप सीमा म
तैर रहे ह, जब क दूसर ओर बताया क जमा हु ई तलछट म व थापन के कारण वलन
पड़ने से नवीन मोड़दार पवत बने। भू गोलवे ता इसे वरोधाभासी मानते ह।
4. भू म य रे खा क ओर व थापन अ मा णत - कु छ भूगोलवे ताओं का कहना है क य द
यह सह होता तो भू म यरे खा के नकट महा वीप का एक ण हो जाता, जो नह ं हु आ
है।
(ब) भू ग भक क मयाँ
1. वैगनर ने अटलाि टक महासागर तट य े म संरचना मक तर व यास व ववत नक
समानता को अपने स ा त के प म सश त माण माना है। क तु कु छ
भू गभशाि य का यह भी मानना है क ये केवल आं शक समानताऐं ह। इ ह
महा वीपीय व थापन के प म पूण एवं सवागीण माण नह ं माना जा सकता।
2. काब नीफैरस युग से पूव महा वीपीय व थापन के वषय म कोई जानकार वैगनर वारा
उपल ध न कराना भी भू गभशाि य क आलोचना का वषय है। कु छ आलोचक का मत
है क यह स ा त इस ब दु को अनु त रत रखता है क पिजया के टू टकर व था पत
होने क कया काब नीफैरस युग से ह य शु हु ई।
(स) भू- यॉ मतीय क मयाँ (Geodesical Weaknesses)
वैगनर के अनुसार अमे रका का पि चम क ओर व थापन वार य बल के कारण हु आ।
ग णत ने स कया है क अमे रका को पि चम क ओर व था पत करने के लये िजतने बल
क आव यकता होगी वह वतमान बल से दस अरब गुना अ धक होना चा हए। आलोचक का
कहना है क अलब ता तो इतने बल का होना स भव नह ं है, फर भी य द इसे स भव मान
लया जाये तो उतने अ धक बल के कारण पृ वी का प र मण ह क जायेगा।
(द) जै वक क मयाँ (Biological Weaknesses)

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1. वैगनर ने अटलाि टक महासागर के दोन तट पर समान कार के एवं समकाल न
जीवा म पाये जाने को अपने स ा त के प म माण के प म माना था। क तु
आलोचक का कहना है क ये माण आं शक ह।
2. वैगनर ने पुराजीवा मीय वतरण का प ट करण महा वीप को ु व के स दभ म
सटाकर दया है। उदाहरणाथ िज वापण पुराजीवा म (Glossopteris Flora) के कई े
जैसे बहार, क मीर, उ तर -पि चमी अफगा न तान, उ तर -पूव ईरान, साइबे रया आ द
के वषय म यह स ा त कसी भी कार का प ट करण दे ने म असफल रहा है।
(य) पुराजलवायुक क मयाँ (Paleoclimatological Weakness)
ट यस के अनुसार उ तर -पि चमी अ का, यू.एस.ए. म बो टन े (जो उस समय भू यरे खा
पर था) और अला का म पाये जाने वाले हमयुगीन न ेप -टाइलाइट, कसी भी कार से वैगनर
के महा वीपीय पुनगठन (Reconstruction) से प ट नह ं होते।
न कष व प ट यस (J.A. Steers) का मानना है क य य प वैगनर के महा वीपीय
व थापन स ा त म बहु त क मय ह तथा प यह ववेचन रख वचार- वमश के यो य है। उनका
तो यहाँ तक कहना है क य द इस स ा त के सभी ब दु गलत ह तो भी भू गोलवे ताओं व
भू गभशाि य को यह नह ं भू लना चा हये क वैगनर के इस स ा त ने ववत नक (Tectonics)
पर आधा रत नवीनतम वचारधारा के लये आधार दान कया। अत: इस स ा त के अ धकांश
पहलु ओं को अ वीकृ त करते हु ए भी इसका मू ल संग सु र त रखा गया है। यह मू ल संग
तजीय व थापन (Horizontal Displacement) से स बि धत है जो महा वीप व महासागर
क उ पि त के लये नवीनतम वचारधारा- लेट ववत नक (Plate Tectonics) का आधार बना।
बोध न1 -
1. थल गोला है
( अ) उ तर गोला (ब) द णी गोला
( स) पू व गोला (द) पि चमी गोला ( )
2. उ तर ुव क त ु व थ ि थ त है-
( अ) उ तर ुव (ब) द णी ुव
( स) भू म य रे खा (द) कक रे खा ( )
3. वै ग नर ने महा वीप का िजस दशा म वाह नह ं माना , वह है ।
( अ) पि चम (ब) भू म य रे खा
( स) पि चम व भू म य रे खा (द) पू व ( )

2.4 लेट ववत नक (Plate Tectonics)


महासागर क तल पर व तारण (Sea-floor Spreading) पुराचु बक व (Paleomagnetism),
वालामुखी व भू कंप क याओं, आण वक ोत आ द से स बि धत नवीनतम जानका रय ने
महा वीप व महासागर क उ पि त से स बि धत एक नई संक पना को ज म दया, जो लेट
ववत नक के नाम से व यात हु ई।

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2.4.1 अथ तथा या या

थलम डल के ढ़ व कठोर प ड को लेट (Plate) कहा गया है। थलम डल (Lithosphere)


के अ तगत भू पपट (Crust) तथा उसके नीचे ि थत मटल (Mantle) का ऊपर भाग सि म लत
है। यह थलम डल ढ़ व कठोर लेट का एक समु चय है िजसके नीचे दुबलताम डल
(Asthenosphere) ि थत है। इन लेट क मोटाई लगभग 100 कलोमीटर आंक गई है। सभी
भू ग भक ग त व धयाँ इन लेट के पा व (Margins) पर होती ह। भू ग भक याओं को
ववत नक कहा जाता है। अत: लेट के उ व, कृ त व ग तय क स पूण या एवं उसके
प रणाम लेट ववत नक (Plate Tectonics) कहलाते ह। ै लर ने भी इस वषय म लखा है
क लेट ववत नक लेट के धीरे -धीरे कमजोर दुबलताम डल (Asthenosphere) पर फसलने
(Glide) क या है।
लेट ववत नक के दो आधारभू त पहलू ह - (1) महा वीपीय व थापन एवं (2) महासागर य तल
का व तारण। इन दोन ह पहलु ओं म ै तज ग त न हत है। वैगनर के महा वीपीय व थापन
स ा त से केवल यह त य लेट ववत नक म लया गया है।

2.4.2 लेट के कार

इस प रक पना म लेट को दो वग म वभािजत कया गया है - (1) महा वीपीय लेट


(Continental Plates) एवं (2) महासागर य लेट (Oceanic Plates)। िजस लेट म स पूण या
अ धकांश भाग थल होता है, वह महा वीपीय लेट कहलाती है। िजस लेट म पूण पेण अथवा
अ धकांश भाग महासागर य तल का सि म लत होता है, वह महासागर य लेट कहलाती है।

2.4.3 मु ख लेट

लोबीय तर पर छ: बड़ी लेट बताई गई ह। कु छ भू गोलवे ताओं ने अमे रक लेट को दो भाग


म बांटकर (उ तर अमे रक व द णी अमे रक ) इनक सं या सात बताई है। इ ह च सं या
2.11 म दशाया गया है। इसी कार इनके उप वभाजन के वारा उप लेट क सं या कु छ
भू गभशाि य ने 14 व कु छ ने 20 बताई है। यहाँ 6 मु य लेट का ह वणन दया जा रहा है -

च - 2.11 : व व क मु ख लेट
1. अमे रकन लेट (American Plate)- इसके अ तगत उ तर व द णी अमे रका क
महा वीपीय पपट (Continental Crust) एवं पूव क ओर म य अटलाि टक कटक तक
फैल महासागर य पपट (Oceanic Crust) सि म लत ह। अमे रकन लेट एक इकाई के

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प म पि चम क ओर ग तमान है इसके प रणाम व प अमे रक महा वीप के पूव
कनार पर कोई ववत नक हलचल नह ं होती। यह लेट अमे रका महा वीप के पि चमी
तट तक व तृत है एवं शा त महासागर य लेट से मलती है।
2. शा त लेट (Pacific Plate)- पूव शा त कटक (East Pacific Rise) से पि चम
क ओर सारे शा त महासागर पर फैल यह एक मा ऐसी लेट है जो पूण प से
महासागर य पपट से न मत है। अमे रकन लेट के साथ अ भसार सीमा त होने के
कारण इस लेट को नीचे धंसने के लये बा य होना पड़ता है।
3. अ क लेट (African Plate)- यह लेट पूव म भारतीय, द ण म अ टाक टका,
पि चम म म य अटलाि टक कटक व उ तर म यूरे शयन लेट के म य ि थत एक
म त (महा वीपीय व महासागर य) लेट है।
4. यूरे शयन लेट (Eurasian Plate)- यह एक मा ऐसी लेट है जो अ धकांशत:
महा वीपीय पपट से न मत है। यह लेट पूव म वीपीय चाप , द ण म आ स-
हमालय पवतीय म एवं पि चम म म य अटलाि टक कटक तक व तृत है।
5. भारतीय लेट (Indian Plate)- इसके अ तगत भारतीय उपमहा वीप व ऑ े लया क
थल य पपट तथा ह दमहासागर एवं शा त महासागर क द णी-पि चमी
महासागर य पपट सि म लत क जाती है।
6. अ टाक टका लेट (Antarctica Plate)- इसका व तार अ टाक टका महा वीप के चार
ओर म यमहासागर य कटक तक है। अ टाक टका लेट का अ धकांश भाग हमा छ दत
है।
भू पपट क इन ढ़ एवं कठोर लेट का समु चय दुबलताम डल के अि थर एवं कमजोर े के
ऊपर उठ कर दाय-बाय पा व क ओर सा रत होता रहता है िजसके भाव से लेट म हलचल
होती रहती है। ये हलचल लेट के पा व (Margins) पर होती ह। अत: लेट ववत नक म लेट
के पा व े अथवा सीमा त ह सवा धक मह वपूण होते ह। इन पा व पर ह सभी ववत नक
हलचल जैसे - भू क प व वालामु खी याऐं, पवत नमाण, वलन, ंशन आ द होती ह। अत:
लेट पा व या सीमा त क या या अलग से आव यक है।

2.4.4 लेट पा व या सीमा त (Plate Margins)

1. अपसार पा व या सीमा त (Divergent Margins)- ये वे पा व ह जहाँ से दो लेट


एक-दूसरे से वपर त दशा म ग त करती ह। अत: वे इस ग त के वारा एक दूसरे से
दूर हटती रहती ह ( च सं या 2.12)। इनके दूर हटते रहने से जो र त थान बनाता
है, उसम मै मा बाहर नकलकर लावा के प म जमा होता रहता है। प ट ह क ऐसे
सीमा त पर वालामु खी या (Vulcanism) अ धक होती है। यह भी प ट है क दोन
लेट के एक दूसरे से दूर हटने रख उसके प रणाम व प हु ए र त थान पर लावा
जमा होते रहने से वहाँ े ीय व तार होता है इस लये ऐसे पा व को रचना मक पा व
(Constructive margins) अथवा संवधनकार पा व (Accreting margins) भी कहते
है। अटलाि टक कटक पर ऐसे ह पा व मलते। वहाँ हो े ीय व तार को महासागर-
तल य व तारण (Sea-floor Spreading) कहते ह। ऐसे े म वालामुखी या के

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कई बार वीप बन जाते ह। म य अटलाि टक कटक म सटसे (Surtsey) वीप इसी
कार 14 नव बर 1963 को बना था।

च 2.12 : लेट पशव पर याएँ


2. अ भसार पा व या सीमांत (Convergent margins)- ये वे पा व है। िजनम दो लेट
एक दूसरे क ओर ग त करने के कारण उनका अ भसरण (Convergence) होता है।
अ भसरण के कारण एक लेट दूसर के ऊपर चढ़ जाती है तथा दूसर लेट का नीचे क
ओर धंसाव या अवतलन होता है, अत: इस पेट को अवतलन मेखला (Zone of
Subduction) कहा जाता है ( च -2.13)। अवत लत लेट का अ भाग मटल म वेश
करने पर वहाँ क ऊ मा के कारण पघल जाता है, अत: इसे भंजक (Destructive) या
ीणकार पा व (Consuming margins) भी कहते है। अ भसार पा व पर खाइयाँ
(Trenches) होती ह िजनसे होकर अवत लत लेट पघला हु आ पदाथ पुन : बाहर
नकलकर वालामु खय वालामुखी- खृं लाओं (Volcanic Chain) तथा वीपीय चाप
(Island arcs) का प धारण कर लेता है। महासागर य लेट के पि चमी पा व पर
ए यू शयन, यूराइल, जापान, म डानाओ, मै रयाना आ द खाइयाँ है, िजनके समीप कई
वीपीय चाप (Island Arcs) है ( च -2.13)।

3. पारवत पा व (Transcurrent Margins)- जब कसी श


ं के सहारे दो लेट भ न
दशाओं म सरकती (Slide) है तो उसे पारवत
पा व कहते है ( च -2.14)। लेट क इस ग त
से न तो े ीय संवधन (accretion) और न ह
भंजन (destruction) होता है। इसे अप ण
सीमा त (Shear Margins) भी कहते ह।

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उ तर अमे रका के पि चमी भाग म सैन एि यास (San Andreas) ंश के सहारे दो
उप- लेट का पारवत सीमा त ह है। जनवर 2001 म गुजरात म आये भू क प के
अ ययन से कु छ भू गभशाि य ने न कष नकाला है क उस े म भारतीय लेट क
दो उप- लेट के म य ऐसा ह सीमा त है।
पा व पर हलचल के कारण
लेट ववत नक के लये कसी चालक बल अथवा याि क (Driving Mechanism) क
आव यकता होती है। यह बल मटल म वा हत संवाह नक धाराओं (Convectional Currents)
के प म बताया गया है। च सं या 2.15 म स पूण मटल को घेरे हु ए संवाहन या का एक
तमान (Model) दशाया गया है। म य महासागर य कटक के े म भीतर से मै मा का ऊपर
आना एवं अ भसार पा व पर एक लेट का नीचे धंसकर मटल म पहु ँ चना इस संवहन तं क
मु य ग त व धयाँ ह। लेट के एकदम नीचे संवहन तरं ग का वाह ( च - 2.15) उ ह तजीय
ग त दे ता है। कु छ भू गभशाि य के अनुसार यह संवाहन या केवल दुबलताम डल तक ह
सी मत है ( च - 2.16)। कु छ अ य भू गभशाि य ने एक भ न तमान ( च - 2.17) दे ते हु ए
बताया है क दुबलताम डल म ग त लेट म ग त के ब कुल वपर त होती है। इस पहलू पर
उनका कहना है क नीचे धंसते हु ए सीमा त अपने गु वाकषण बल के वारा वयं ग तमान
ह गे।

च - 2.17 : संवाहन धाराओं क लेट से वपर त ग त


संवाह नक धाराओं क उ पि त के लये आव यक ऊजा ोत के वषय म भी मत भ नताएं ह।
रे डयो स य पदाथ ज नत ऊजा के वषय म अ धकांश भू गभशा ी सहमत ह।

2.4.5 लेट ववत नक के भाव

1. महासागर तल य व तारण (Sea-Floor Spreading) - इस संक पना का तु तीकरण


सव थम हैर हैस (Harry Hess) ने सन ् 1960 म कया। म य महासागर य क शैल
म पुराचु बक व (Paleomagnetism) के शोध ने उनक इस संक पना को ज म दया।
इस कारण म य महासागर य कटक म हु ए र त थान म नीचे से संवाहन या वारा
लावा ऊपर आकर जमा हो जाने से नई शैल क उ पि त होती है। यह या नर तर

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चलते रहने से नई शैल पपट बनती रहती है। प रणाम व प महासागर य तल का
व तारण होता रहता है।
वा तव म म य महासागर य कटक से महासागर य तल का व तारण होता है, इस
त य को मा णत करने के लये पुराचु बक य अ ययन कये गये। चु बक य धाराऐं
नर तर वा हत होती रहती है, क तु उनका म बदलता रहता है। अत: म य
महासागर य कटक म लावा के बाहर नकलकर शीतल पपट म प रवतन होने क
या म शैल पर उस समय च लत चु बक व के काल क गणना क जा सकती है।
म य महासागर य कटक के ंश से दोन ओर समान मा ा म तल का सारण ह नह ं
बि क समाना तर चु बक व के भाव क धा रयाँ भी अ ययन म पाई गई ह।
पुराचु बक व क ये धा रयाँ महासागर य तल के नर तर सा रत होते रहने क तीक
ह (च - 2.18)। तल के व तारण क ग त सभी थान पर समान नह ं रह है। यह
यान दे ने यो य त य है क तल के व तारण क दर म य महासागर य कटक के एक
ओर क ह व तारण दर होती है। अत: य द यह कहा जाये क कसी सागरतल क
व तारण दर दो से मी. तवष है तो इसका अथ होगा क वहाँ कु ल सारण 2+2 = 4
से मी. हु आ है। नवीनतम खोज से जानकार मल है क शा त महासागर म
अ धकतम व तारण दर 6 से 9 से. मी. तवष (अत: कु ल व तारण 12 से 18 से.
मी. तवष) है। ह द महासागर म यह दर 1.5 से 3 से. मी. तथा अटलाि टक
महासागर म दो से ट मीटर तवष है।
इस कार इन अ ययन से महा वीप व महासागर क अि थरता क संक पना भी
मा णत होती है। यह इस बात का प ट संकेत है क महा वीप व महासागर य बे सन
सदा से ग तशील रहे ह। इस त य को वीकारने पर महा वीपीय व थापन क
वचारधारा को लेट ववत नक संक पना से पुनः बल मला।

च - 2.18 : व भ न चरण म पुराचु बक व क धा रयाँ


2. महा वीपीय व थापन (Continental Drift)- पुराचु बक व (Paleomagnetism) व
महासागर तल य व तारण से स बि धत नवीनतम खोज से यह स हो चु का है क
महा वीप व महासागर य बे सन कभी भी ि थर व थाई नह ं रहे ह। इन खोज के
आधार पर पछले बीस करोड़ वष क ह अव ध म महा वीपीय व थापन से स बि धत
जानका रयाँ उपल ध हु ई ह। ले कन वै ा नक ने ऐसी तकनीक वक सत कर ल ह
िजनके वारा इसके पूव क अव ध के लये भी महा वीप व महासागर क ि थ त का
पुनगठन (Reconstruction) कया जा सके। ऐसे ह पुनगठन का यास वैले टाइन व
मू स (Valentine & Moors) ने कया। उनके अनुसार 70 करोड़ वष पूव एक वशाल

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भू ख ड था िजसे पैि जया थम (Pangea I) कहा गया। पचास से साठ करोड़ वष पूव
भू गभ से आने वाल तापीय संवाहन धाराओं के कारण उसम ंशन व व थापन हु आ।
आज से 20-30 करोड़ वष पूव ये व था पत भू भाग लेट ववत नक के कारण पुन :
मल गये िजससे पैि जया वतीय (Pangea II) बना। इसे एक तमान के प म
च - 2.19 वारा दशाया गया है। इसके प चात पुन : व थापन होने लगा एवं पैि जया
वतीय से ं शत थलख ड वतमान महा वीपीय व यास तक व था पत होते रहे ह।
लगभग 8 करोड़ वष पूव भारतीय लेट के टथीस सागर को संकु चत करते हु ए
यूरे शयन लेट क ओर बढने के साथ-साथ ह द महासागर बनने लगा। लगभग इसी
समय अ कन लेट से अलग होकर ऑ े लयन-अ टाक टकन लेट के द ण क ओर
व था पत होने से ह द महासागर का व तार होने लगा था। डीज व हो डन (Dietz &
Holden) ने भी महा वीप के 20 करोड़ वष पूव के इ तहास को पुनग ठत करते हु ए
लेट ववत नक के आधार पर 65 लाख वष आगे तक क ि थ त को च त कया है
(च - 2.20 से 2.25 तक)।

च -2.19 पैि जया के व थापन व पुनगठन क या का तमान


(वैले टाइन व मू स के आधार पर)
3. अ य भाव - लेट ववत नक के कई अ य भाव भी ह िजनका ववरण इस इकाई म
अ य ब दुओं के वणन म आ चु का है। पवत नमाण, भू क प, वालामुखी या,
वीपीय चाप (Island arcs/Festoons) का नमाण ( च - 2.16) आ द ऐसे अ य
भाव ह। िजन लेट पा व पर दरार घ टयाँ ह वे चौड़ी होती जा रह है। लाल सागर व
अदन क खाड़ी म व तारण क दर 1 से. मी. तवष है। कैल फो नया क खाड़ी का भी
व तारण हो रहा है।
इस कार न कष व प यह कहा जा सकता है क महा वीपीय व थापन अब एक
स चाई है िजसको अ धकांश भू गभशा ी एवं भू वै ा नक मानने लगे ह। ववाद मु यत:
इस ब दु पर है क व थापन के लये स म नोदकबल (Propelling Force) कौनसा
है। नवीनतम खोज ने तापीय संवाहन धाराओं क इस स दभ म व वसनीयता को
पुनज वत कया है। खोज काय नर तर जार है क व श ट जानका रयाँ भू ग भक गूढ़
संदभ को अ धक प ट कर सकेगी।

42
बोध न -2
1. जो ले ट पा व नह ं है -
( अ ) अ भसार ( ब ) अपसार
( स ) खि डत ( द ) पारवत ( )
2. पारवत पा व पर धान ग त व ध होती है -
(अ) वालामु खी ( ब ) भू क प
( स ) महा वीपीय व थापन (द) ंशन ( )
3. महासागर य तल क अ धकतम व तारण दर िजस महासागर म है , वह है -
(अ) ह द (ब) शा त
( स ) अटलाि टक ( द ) अ टाक टक ( )

2.5 सारांश
1. थल भूम डल का 71 तशत तथा जल 29 तशत; थल और जल क त ुव थ
ि थ त।

43
2. महा वीप व महासागर का भु जाकार आकार।
3. महा वीप व महासागर क उ पि त के वषय म वैगनर का महा वीपीय व थापन
स ा त - इस संक पना पर आधा रत क जलवायु क टब ध ि थर रहे तथा थल ख ड
क ि थ त प रवतनशील रह ।
4. सयाल पी महा वीप का सीमा क परत पर तैरना।
5. पै थालासा महासागर से घरे हु ए वशाल थलख ड पैि जया का टू टना एवं वखि डत
थलख ड का भू म य रे खा तथा पि चम क ओर व थापन।
6. पि चम क ओर व थापन च मा क गु वाकषण शि त तथा भू म य रे खा क ओर
व थापन उ लावन बल के कारण।
7. व थापन स ा त वारा तट य सा य, पवत के संरेखण, भू ग भक-संरचना मक
समानता, यॉ मतीय माण, जै वक माण, पुराजीवा मीय एवं पुराजलवायुक माण पर
आधा रत।
8. वैगनर के स ा त म क मयाँ-भौगो लक, भू ग भक, यॉ मतीय, जै वक, पुराजलवायुक
माण आ द पर आधा रत।
9. महा वीप व महासागर क त ु व थ ि थ त, भु जाकार आकार, उ तर गोला म
महा वीपीय तथा द णी गोला म महासागर य व तार क अ धकता आ द वशेषताएं।
10. महा वीप व महासागर क उ पि त के वषय म वैगनर का महा वीपीय व थापन
स ा त म सयाल पी महा वीप का सीमा क परत पर तैरना, पै थालासा महासागर
से घरे हु ए वशाल थलख ड पैि जया का टू टना एवं वखि डत थलख ड का भू म य
रे खा तथा पि चम क ओर व थापन माना गया।
11. वैगनर ने पि चम क ओर व थापन च मा क गु वाकषण शि त तथा भू म य रे खा
क ओर व थापन उ लावन बल के कारण माना था, िजसके प म अनेक माण
जु टाये गये।
12. क तु वैगनर के स ा त म अनेक क मयाँ पाये जाने के कारण इसका थान लेट
ववत नक ने लया।
13. लेट ववत नक - थलम डल ढ़ व कठोर लेट का एक समु चय, िजसके नीचे
दुबलताम डल क ि थ त।
14. लेट के उ व, कृ त व ग तय क स पूण या एवं उसके प रणाम लेट ववत नक
कहलाते ह।
15. महा वीपीय व महासागर य लेट - अमे रकन, शा त, अ का, यूरे शयन, भारतीय,
अ टाक टका लेट।
16. लेट पाथ - अपसार , अ भसार एवं पारवत पा व।
17. पा व पर अनेक हलचल।
18. पा व पर ग त के फल व प महासागर य व तारण, महा वीपीय व थापन, पवत
नमाण, भू क प, वालामु खी या, वीपीय चाप का नमाण आ द भाव पड़े।

44
2.6 श दावल
1. त ुव थ : अ ांशीय व दे शा तर य ि ट से लोब पर कसी थान से
बलकुल वपर त ि थ त।
2. लेट : थलम डल के ढ़ व कठोर प ड
3. लेट पा व : लेट के कनारे

2.7 संदभ थ
A.N. Strahler : Introduction to Physical Geography, John
Wiley & Sons, New York
Arthur Holmes : Principles of Physical Geography Thomas
Nelson & Sons, New York, 1949
सी बी. मामो रया व रतन जोशी : भौ तक भू गोल, सा ह य भवन पि लकेश स,
आगरा,2006
J.A. Steers : Unstable Earth, कैि ज, लंदन,1961
सव संह : भू आकृ त व ान, वसु धरा काशन, गोरखपुर, 2006
शमा व म ा : भौ तक भूगोल, पंचशील काशन,जयपुर , 2006

2.8 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. (अ) 2. (ब) 3. (द)
बोध न- 2
1. (स) 2. (द) 3. (ब)

2.9 अ यासाथ न
1. काब नीफैरस युग म वशाल थल ख ड का या नाम था?
2. वैगनर के महा वीपीय व थापन स ा त म या- या क मयाँ इं गत क गई ह?
3. अ भसार सीमा त को भंजक य कहते है?
4. पैि जया के चार ओर कौनसा महासागर था?
5. सवा धक वालामुखी या कस सीमा त पर होती है?
6. वैगनर के अनुसार महा वीप का व थापन कन दशाओं म हु आ?
7. लेट ववत नक या है? यह कैसे काय करती है?
8. लोबीय लेट का वणन करते हु ए लेट ववत नक के भाव बताइये।
9. पिजया का प रे खा च बताइये।
10. व व के मान च पर मु ख लेट का व तार बताइये।

45
इकाई – 3 : भू स तुलन का स ा त; भू संचलन एवं
प रणाम व प संरचना मक प; वालामु खी एवं
भू क प
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 भू स तु लन
3.2.1 भू स तु लन श द का योग
3.2.2 भू स तु लन संक पना का ादुभाव एवं व भ न मत
3.3 भू सच
ं लन एवं प रणाम व प संरचना मक प
3.3.1 पटल व पण
3.3.2 वलन
3.3.3 ंश
3.4 वालामुखी
3.4.1 वालामुखी के कारण
3.4.2 वालामुखी से नकलने वाले पदाथ
3.4.3 वालामुखी के कार
3.4.4 वालामुखी से न मत थलाकृ तयाँ
3.4.5 वालामुखी या का मानव जीवन पर भाव
3.4.6 वालामुखी का व व वतरण
3.5 भू क प - अथ एवं प रभाषा
3.5.1 भू क प के कारण
3.5.2 भू क प का वग करण
3.5.3 भू क पीय तरं ग
3.5.4 भू क प का व व वतरण
3.5.5 भू क प का मानव जीवन पर भाव
3.6 सारांश
3.7 श दावल
3.8 स दभ थ
3.9 बोध न के उ तर
3.10 अ यासाथ न

46
3.0 उ े य
 इस अ याय को प ने के बाद आप समझ सकगे -
 भू स तु लन से ता पय, 'भू स तुलन' श द का योग कब, य व कसने कया,
 महा वीप व महासागर के घन व क व भ नता, स तुलन स ब धी व भ न स ा त
 ं लन- अ तजात एवं ब हजात बल, महा वीप रख पवत नमाण,
भू सच
 स पीडन एवं तनाव मू लक बल वारा वलन एवं ंशन, वलन एवं ंश एवं के कार
 वालामुखी का अथ, वालामुखी के कार, वालामुखी वारा न मत बा य एवं
आ त रक थलाकृ तयाँ,
 भू क प का अथ, भू क प क उ पि त के कारण, र टर मापक, भू क पलेखी, अ धके
तथा भू क प के भाव।

3.1 तावना
धरातल पर उ च पवत, वषम पठार, समतल मैदान, झील, सागर य बे सन आ द ि थत ह।
इनक ऊँचाई तथा आकृ त समान नह ं है फर भी भू तल पर सम त थलाकृ तय के म य
'स तु लन' एवं ि थरता बनी रहती है, यह नःस दे ह आ चयजनक है।

3.2 भू स तु लन
‘प र मण करती हु ई पृ वी के ऊपर ि थत े (पवत, पठार एवं मैदान) तथा गहराई म ि थत
े (झील, सागर आ द) के म य भौ तक अथवा यां क ि थरता क दशा को ह भू स तुलन
कहते है।‘
‘Isostasy simply means a mechanical stability between the upstanding parts and
lowlying basins on the rotating earth.
''Isostasy'' ीक भाषा का श द है िजसका अथ है 'समान खड़ा होना' (Equal standing)। इसे
व वान ने 'भू स तु लन' या 'समि थ त' नाम दया है।

3.2.1 भू स तु लन श द का योग

भू स तु लन श द का सव थम उपयोग अमे रका के स भूगभवे ता सर जॉज डटन ने 1889 म


कया। उनका वचार था क घूमती हु ई पृ वी पर ऊपर उठे हु ए तथा नचले भू भाग के बीच एक
स तुलन क ि थ त होनी चा हए। इस स तुलन के लए उ ह ने सोचा क ऊपर उठे भाग
अपे ाकृ त ह के पदाथ वारा न मत होने चा हए अ यथा पृ वी पर ऊंचे-नीचे भू ख ड अ धक
समय तक ि थर नह ं रह सकते।
डटन के अनुसार ऊंचे उठे भूभाग का कम तथा नीचे धंसे भू भाग का घन व अ धक होगा, तभी
सबका भार एक तल पर बराबर होगा। इस रे खा अथवा आधार तल को समदाब तल /समतोल तल
अथवा तपू त तल कहा जा सकता है।

47
3.2.2 भू स तु लन संक पना का ादुभाव

स तुलन का वचार व वान के मि त क म उस समय आया जब सव थम (1735-45)


ा सीसी व वान पीयरे ग
ु रै (Pierre Bruguer) ने ए डीज पवत क च ाजो चोट का उ तर
व द ण दोन ओर भूसव ण कया तथा उसके आ चय का ठकाना न रहा जब उसने पाया क
ए डीज क च ाजो चोट साहु ल को बहु तकम आक षत कर रह है।
लगभग एक शता द बाद 1859 म गंगा- स धु के मैदान म हमाचल के पास अ ांश का
नधारण करते समय सवयर जनरल सर जॉज एवरे ट के सामने ऐसी ह गु व क वसंग त क
सम या आई। इसी समय 1849 म अमे रका म 'हे फोड, बोवी तथा जमनी के हैलमट ने भी अपने
भग णतीय सव ण के दौरान इसी तरह क वसंग त यु त प रणाम ा त कए। अत: व वान
का यान भू स तुलन संक पना क ओर गया।
(i) ाट Pratt) क संक पना
सन ् 1869 म गंगा- स धु के मैदान म ाट के नदशन म भू ग णतीय सव ण कया जा रहा था।
क याण व क याणपुर नामक दो थान के अ ांश नधारण हे तु भुजीकरण एवं खगोल य
व धय वारा कये गये माप के न न प रणाम ा त हु ए।

भु जीकरण व ध वारा 5023’ 42.294''


खगोल य व ध वारा 5023' 37.0.58''
अ तर 5.236''
उ त अ तर को दे खकर ाट के आ चय का ठकाना न रहा। क याण हमालय के नकट (96
कमी.) ि थत है तथा क याणपुर , क याण से द ण म 599 कलोमीटर दूर पर ि थत है। जब
ाट ने हमालय क नकटता के कारण साहु ल रे खा पर उसके आकषण गणना क शैल के औसत
घन व 2.7 के बराबर मानकर दुबाराक तो क याण व क याणपुर के म य का अ तर 5.236'' से
घटने के बजाय 15.885'' बढ़कर आया। इससे यह प ट हो गया क साहु ल रे खा का कम झु काव
हमालय म आकषण क कमी के कारण था।
ाट ने सम या के समाधान हे तु दो वक प दए
(i) हमालय पवत क शैल का घन व उतना (2.7) नह ं है िजतना माना गया।
(ii) पवतीय उ च भाग के अ धक पदाथ का स तुलन उसके नीचे कम घन व वाले पदाथ से
होता है।
ाट ने माना क पवत का घन व पठार से कम, पठार का घन व मैदान से कम तथा मैदान
का घन व समु तल से कम होता है। प ट है ाट ने ऊंचाई तथा घन व म उ टा अनुपात माना
है। ाट ने माना क पृ वी के आंत रक भाग म एक तपू त तल (Leavo of compensation)
होता है। इस तल के तल ऊपर घन व म अंतर होता है पर तु इस तल पर सभी का घन व
समान होता है। च म तपू त तल के सहारे ‘अ’ तथा ‘ब’ दो त भ है। ‘अ’ का घन व कम
तथा ‘ब’ का घन व अ धक है। इस कार ाट ने स करने का यास कया क पृ वी पर जो
त भ िजतना ऊंचा होगा उसका घन व उतना ह कम होगा तथा जो भाग िजतना नीचा होगा
उसका घन व उतना ह अ धक होगा।

48
ाट ने प ट कया क पृ वी के व भ न उ चावच ि थर इस लए है य क उनके घन व म
अंतर होता है पर तु उनका भार पृ वी के आंत रक भाग म तपू त तल पर बराबर होता है।
अपनी संक पना क पुि ट के लए उ ह ने व भ न धातुओं के टु कड़े लेकर एक योग कया।
उ ह ने एक टब म पारा भरकर उस पर व भ न घन व पर तु समान भार वाले अनेक धातुओं के
टु कड़े तैरा दए। येक टु कड़े का पारे म समान गहराई तक वेश था पर तु पारे के ऊपर टु कड़े
क ऊँचाइयां भ न- भ न थी।

च 3.1 : तपू त तल

च 3.2 : स तुलन क ि थ त ( ाट के मत का प ट करण)


ाट के मतानुसार पृ वी अध : तर (घन व 3.3) पी व म पवत, पठार, मैदान, समु भाग
आ द इ ह टु कड़ो क भां त तैर रहे है। इनके आधार व म एक नि चत गहराई पर समान प
म ि थत है। इस कार ाट ने समान गहराई क तु व भ न घन व वाले त भ (Columns of
uniform depth and varying density) क क पना क ।
(ii) एयर क संक पना
एयर क संतल
ु न संक पना तैराक के स ांत पर आधा रत है। आ क मडीज के तैराव स ांत के
अनुसार तैरती हु ई व तु अपने यमान के बराबर अपने नीचे से यमान को हटा दे ती है। य द
लावी हम शैल (Iceberg) जल म तैरता है तो उसका 9वां भाग पानी म डू बा रहता है तथा एक
भाग ऊपर उठा रहता है। य द इस स ांत के आधार पर सयाल (Sial) के सीमा (Sima) पर
तैरने क या या कर तो प ट होता है क सयाल का 9वां भाग सीमा के भीतर डू बा रहे गा।
इसी आधार पर एयर ने अपने स ांत का तपादन कया।
एयर के उ त मतानुसार य द हमालय के डू बे हु ए भाग क गणना तैराक के स ा त के आधार
पर कर तो त य प ट हो जायेगा। हमालय क ऊँचाई 8848 मीटर है तथा मैरामा ( त पू त
तल) म डू बा हु आ भाग 8848 x 9 = 79632 मीटर होगा। अ धक डू बे हु ए भाग से ऊपर का
हमालय स तु लन क अव था म रहता है।
एयर ने प ट कया क हमालय ह के पदाथ का बना है। इसक जड़ काफ गहराई तक लासी
मैरामा म वेश कए हु ए है। फल व प स तु लन क ि थ त व यमान है। हमालय के आधार
पर एयर ने बताया क धरातल के सभी ऊँचे भाग अ धक गहराई तक तथा नीचे भाग कम
गहराई तक डू बे ह।

49
एयर ने बताया क पृ वी के व भ न भू ख ड क शैले लगभग एक ह घन व क है। योग से
भी एयर क बात स य मा णत होती है। खान खोदने वाल का अनुभव है क ऊपर से नीचे तक
शैल का घन व लगभग एक समान रहता है।

च - 3.3 : एयर के अनुसार स तु लन क ि थ त


एयर ने अपनी संक पना क पुि ट के लए समान घन व क तु व भ न ऊँचाई वाले लोहे के
टु कड़ को पारे से भरे बे सन म डु बोया। ये टु कड़े अपने आकार के अनुसार भ न- भ न गहराई
तक डू बते गए। योग के लए हम लोहे क जगह लकड़ी के भी समान घन व एवं व भ न
मोटाई के टु कड़े ले सकते है वे भी भ न- भ न गहराई तक डू बते नजर आयगे। लगभग यह
यव था थल ख ड के स ब ध म लागू होती है। इस कार एयर ने व भ न गहराई क तु
समान घन व वाले त भ (columns of uniform density with varying depth) क क पना
क।
एयर तथा ाट क संक पना म अ तर
एयर के अनुसार धरातल के उ चावच पवत, पठार, मैदान, समु तल आ द सभी का घन व
समान ह केवल उनक ऊंचाई म अ तर होता है। थल भाग िजतने अ धक ऊँचे होते ह उतने ह
अ धक गहराई म सीमा ( तपू त तल) म डू बे रहते ह। जब क ाट के अनुसार भू पटल के
उ चवच के घन व म ऊँचाई के अनुसार भ नता होती है। जो थल भाग अ धक ऊँचे ह उनका
घन व कम है। ये तपू त म समान गहराई पर डू बे रहते ह।
बोवी (Bowie) ने इन दोन के वचार क तु लना सरल श द म क ह - 'एयर समान घन व
और व भ न गहराइय म पर तु ाट समान गहराई पर तु व भ न घन व म व वास करते ह।

च - 3.4 : एयर तथा ाट के मत क तु लना


(iii) हे फोड एवं बोवी क संक पना
हे फोड तथा बोवी का वचार ाट के वचार से सा य रखता है। हे फोड के अनुसार पृ ठ के नीचे
अलग-अलग घन व के भाग व यमान ह। पर तु धरातल के नीचे कु छ गहराई पर एक ऐसा तल
50
है िजसके ऊपर घन व म अ तर होता है तथा नीचे क तरफ घन व समान होता है। इसको हे फोड
ने ' तपू त तल' (Level of compensation) बताया है। इस तल के उपर घन व तथा ऊँचाई के
साथ उ टा अनुपात होता है। तपू त तल 100 कलोमीटर क गहराई पर ि थत है। इस तल के
उपर कम घन व वाले च ानी भाग क ऊँचाई अ धक तथा अ धक घन व वाले च ानी भाग क
ऊंचाई कम होगी।
बोवी (Bowie) ने अपने स ांत क पुि ट के लए एक योग कया। उ ह ने ज ता, पाइराइट,
चांद , टन, लोहा, तांबा, सीसा, नकल आ द धातु ओं के टु कड़े के लए िजनक ल बाई म भ नता
तथा मोटाई एवं चौड़ाई समान थी। इनको पारे से भरे बे सन म डू बोया। िजसका घन व अ धक था
वे कम ऊँचाई तक तथा िजसका घन व कम था वे अ धक ऊंचाई तक ि थत थे। इस योग के
आधार पर उ ह ने भू तल के वतमान वतरण को समझाने का यास कया।
बोवी ने प ट कया क पवत, पठार, मैदान तथा समु तल 100 कलोमीटर क गहराई म एक
तल (level) के सहारे बराबर रहते ह। पर तु धरातल पर िजनका घन व कम है वे अ धक ऊँचाई
तक व तृत ह। पवत का घन व सबसे कम है अत: वे सबसे ऊँचे उठे हु ए ह, पठार, मैदान तथा
समु तल क ि थ त इसके वपर त है।
हे फोड तथा बोवी क संक पना क न नानुसार आलोचना हु ई -
1. उ ह ने तपू त तल क क पना 100 कलोमीटर क गहराई पर थी, इतनी गहराई पर
थल प क जड़ अपनी मू लाव था म व यमान नह ं रह सकती य क पृ वी के
आ त रक भाग म गहराई के साथ ताप म वृ होती है। अत: 100 कलोमीटर क
गहराई पर च ान ठोस अव था म नह ं रह सकती।
2. हे फोड तथा बोवी के अनुसार भू तल पर थल प उ वाधर अव था म है जब क शैल के
व लेषण से ात होता है क इनम ै तज तर करण हु आ है।
(iv) आथर हो स क संक पना
आथर हो स का वचार भी सर जॉज एयर के मत से मलता जु लता है। जो भाग अ धक ऊँचे ह
उनका घन व कम तथा जो भाग नीचे ह उनका घन व अ धक होता है। भू क प व ान के आधार
पर हो स ने पृ वी के भीतर व भ न घन व क परत का पता लगाया। हो स के अनुसार पवतीय
े के नीचे सयाल परत क गहराई 110 कलोमीटर, तटवत मैदान के नीचे 10-12 कलोमीटर
तथा समु तल के नीचे सयाल परत बहु त पतल होती है, शा त महासागर क तल के नीचे
सयाल परत नह ं के बराबर है। हो स के अनुसार सयाल का घन व 2.70 सीमा का घन व 3.00
तथा सीमा के नचले भाग का घन व 3.40 है। हो स के अनुसार पवत, पठार, मैदान आ द का
नचला भाग सीमा म वेश कए हु ए है। पवत क जड़ सीमा म काफ गहराई तक ि थत ह
जब क मैदान , पठार एवं समु तल क ि थ त इसके वपर त है।
हो स ने बताया क ऊँचे उठे भाग इस लए ि थत ह य क उनके नीचे अ धक गहराई तक कम
घन व वाले पदाथ होते ह। हो स के अनुसार यवहार म य य प भू तल पर संतल
ु न क ि थत
पूण पेण नह ं पाई जाती, तथा प स तु लन क दशा ि टगत होती है।
भू तल पर स तु लन थायी प से व यमान नह ं है, य क भू ग भक शि तय इसम अ यव था
उ प न करती रहती ह। धरातल पर व यमान वषम थलाकृ तय म स तु लन पृ वी क

51
अ या त रक या पर नभर है। इसक स यता का ान तब तक स भव नह ं हो सकता जब
तक हम भू गभ के वषय म पूव ान न हो।

च - 3.5 : स तुलन क ि थ त ( सयाल तथा सीमा का वतरण)


बोध न-1
1. स तु लन श द का योग सव थम कसने व कब कया ?
………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………
2. ाट ने कन दो थान का सव ण कर स तु लन स ा त क क पना क ?
………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………
3. ाट ने हमालय क आकषण शि त ात करने के लए हमालय का घन व
कतना माना ?
………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………
4. हे फोड तथा बोवी के अनु सार तपू त तल कतनी गहराई पर उपि थत है ?
………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………
5. सर जॉज एवरे ट के नदशन म क याण व क याणपु र म अ ां शीय माप का
नधारण खगोल य व भु जन वध वारा ात करने पर कतना अ तर
आया ?
…………………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………………

3.3 भू संचलन एवं प रणाम व प संरचना मक प


भू तल पर हर ण प रवतन होते रहते ह। प रवतन कृ त का नयम है। ये प रवतन पृ वी तल
पर अ तजात एवं ब हजात बल वारा होते ह। अ तजात बल पृ वी तल पर असमानताओं को
सृिजत करते है जब क ब हजात बल समतल थापक बल कहलाते है। थल प को भा वत
करने वाले बल को न नानुसार वभािजत कया जा सकता है -

52
ता लका 3.1 म हमने अ तजात बल को दो भाग म वभ त कया है। पटल व पण
Diastrophic Force) बल तथा आकि मक अ तजात बल। (अ) आकि मक बल जैसे भू क प एवं
वालामुखी, वारा भू पटल पर अ पकाल म ह अनेक कार के भू य का ज म हो जाता है।
पटल व पण को द घकाल न शि त कहा जाता है जो द घाव ध तक वशाल े म भावी रहती
ह। इ ह हम महा वीप एवं पवत नमाणकार बल कहते ह।
ता लका-3.1

53
3.3.1 पटल व पण (Diastrophism)

यह अ य त मह वपूण तथा शि तशाल होता है। यह बल धीमी ग त से द घाव ध तक काय


करता है। अत: इसका भाव हजार वष बाद प रल त होता है। धरातल के नीचे याशील यह
बल ववत नक शि तय (tectonic force) के नाम से जाना जाता है। पटल व पण बल को
े ीय ि टकोण से दो उपवग म वभािजत कर सकते ह-
(i) महा वीपीय नमाणकार बल (Epeirogenetic force)
इस बल को महा वीपीय संचलन बल भी कहा जाता है। इससे महा वीप का उ वाधर उ थान
तथा न नवत ् पतन होता है। फल व प अ या य थल प का नमाण होता है। इसके भाव
समु तट पर वशेष प से ि टगोचर होते ह जहाँ तटवत भू म जलम न या उ म न होती है।
यह बल पृ वी क या क दशा म काय करता है। अत: इसे याई बल भी कहते ह। दशा
क ि ट से इसे दो उपवग म वभािजत कया जाता है - ऊ वगामी बल (Upward Force) तथा
अधोगामी बल (Downward force)
(ii) पवत नमाणकार शि तयाँ (Orogenetic force)
यह भू-पटल पर ै तज दशा म काय करता है अत: इसे पश रे खीय बल (Tangential force)
भी कहते ह। यह बल दो प म काय करता है। जब बल दो वपर त दशाओं म काय करता है
तो उससे तनाव क ि थ त उ प न हो जाती है िजसे तनावमू लक बल कहते ह। तनाव के कारण
भू पटल पर ंश (Fault), दरार (Fracture) तथा चटकने (Cracks) पड जाती ह। जब बल
आमने-सामने काय करता है तो संपीडन होने लगता है। इसे स पीडना मक बल कहते ह। इससे
भू पटल य च ान म वलन तथा संवलन पड़ जाते ह। भू पटल पर उ चावच के नमाण म पवत
नमाणकार संचलन (शि तय ) बहु त मह वपूण ह।

3.3.2 वलन (Folds)

भू पटल जब अवसाद शैल क रचना होती है तो ार भ म उसके तर समतल होते ह क तु,


पृ वी क स पीडन ग त के कारण इन पर वपर त दशा म दबाव पड़ता है तो उनम सकुड़न पैदा
होती है और वे मु ड़ जाती ह। शैल- तर के इस कार बहु त अ धक मु ड़ जाने को ह वलन कहा
जाता है।
स पीडन के कारण भू-पटल क शैल म पड़ने वाले मोड़ कभी भी सरल प म नह ं पाए जाते।
ाय स पीड़न और तनाव क ग त, दशा और ती ता म बड़ा अ तर होता है। फल व प भू-पटल
के व भ न भाग म शैल म पढ़ने वाले मोड़ भी व भ न आकार, व तार एवं झु काव के दे खे
जाते ह। वलन के मु ख कार न न ह -
1. सम मत वलन (Symmetrical folds) - इस कार के वलन म गु बद का आकार
सु डौल होता है पा ववत ढाल एवं उनक भु जाएँ समान होती है।

54
च - 3.7 : सम मत वलन
2. असम मत वलन (Asymmetrical folds) - िजस वलन म गु बद के पा ववत ढाल
वभ न वभाव वाले होते ह उसे असम मत वलन कहते ह। इस वलन क एक भु जा
म द ढ़ाल व साधारण झु काव वाल तथा दूसर भु जा ती ढाल तथा कम दूर वाल होती
है।

च - 3.8 : असम मत वलन


3. एकनत वलन (Monoclinal folds) - िजस वलन म एक ढाल समकोण तथा दूसरा ढाल
म द होता है उसे एकनत वलन कहा जाता है।

च - 3.9 : एकनत वलन


4. समनत वलन (Isoclinal folds) - इस वलन म पा ववत भु जाएँ ऊ वाधर प म
समाना तर होती है। समान स पीडना मक बल के वारा इनका नमाण होता है। इनक
भु जाएँ एक दूस रे के इतनी नकट होती है क इनके टू टने क स भावना बनी रहती है।

च -3.10 : समनत वलन

55
5. प रव लत वलन (Recumbent folds) - ै तजवत ् समाना तर भु जाओं वाले वलन को
प रव लत वलन क सं ा द जाती है।

च - 3.11 : प रव लत वलन
6. त वलन (Overturned folds) - स पीडन शि त अ य धक होने पर वलन क एक
भु जा दूसर पर उलट कर चढ़ जाती है तो उसे त वलन कहा जाता है।

7. अवनमन वलन (Plunging folds) - जब वलन के अ समाना तर न होकर एक दूसरे


के को णक होते ह तब इ ह अवनमन वलन कहा जाता है।
8. पंखाकार वलन (Fan-shaped folds) - स पीडन बार-बार होने से अपन लय तथा
अ भन तय म लहर उ प न हो जाती है। फल व प अनेक छोट -छोट अ भन तयाँ एवं
अपन तयाँ उ प न हो जाती है। इस कार के वलन को पंखा वलन कहते ह।
9. खु ला वलन (Open folds) - जब कसी वलन क दो भु जाओं के बीच का कोण 90० से
अ धक तथा 180० से कम होता है तो इसे खु ला वलन कहते ह।

च - 3.13 : खु ला वलन
10. ब द वलन (Closed folds) - जब कसी वलन क दो भु जाओं के बीच का कोण 90०
से कम होता है तब इसे ब द वलन कहते ह। इसम स पीडन शि त अ धक ती होती है
56
िजससे च ाने काफ ऊँची उठ जाती है। दोन भु जाएँ ऊ वाधर प म काफ पास आ
जाती है।

च - 3.14 : ब द वलन

3.3.3 ंश (Faults)

जब भू पटल पर कसी एक थान म स पीडन होता है तो दूसरे थान म तनाव उ प न होता है।
स पीडन के कारण भू पटल पर वलन तथा तनाव के कारण ंशन क उ पि त होती है। जब कसी
े म कायशील उद बल (Horizontal stress) म अ तर होता है तो ंशन का नमाण होता
है। कभी-कभी च ान म तनाव इतना अ धक और आकि मक होता है क वे न केवल टू ट जाती
है वरन ् इधर उधर खसक भी जाती ह। अत: च ान म तोड़-फोड़ क वह सतह जहाँ च ान म
आपे क ग त (Relative Movement) तथा व थापन (Displacement) होता है, ंश कहलाते
ह।
ंश के कार (Kinds of faults)
1. सामा य ंश (Normal fault) - जब शैल म तनाव के कारण दरार उ प न हो जाती है
और तनाव स य रहता है तो श
ं रे खा के सहारे दोन कगार का संचलन होना ार भ
हो जाता है तथा एक भाग नीचे धँस जाता है। इसे सामा य ंश कहा जाता है। इसम
ाय: ंश के दोन कनारे वपर त दशा म खसक जाते ह

च - 3.6 : ंश के व भ न कार
57
2. यु म श
ं (Reverse fault) - सामा य श
ं के वपर त जब भू ख ड म दरार पड़ने
पर दोन थलख ड एक दूसरे क ओर खसकते ह तो ंश तल के ऊपर वाला भू ख ड
नचले भू ख ड के ऊपर चढ़ जाता है, इसे यु म ंश कहते ह। ऐसे ंश स पीडन के
कारण बनते ह, अत: इ ह स पीडन ंश (compressional fault) भी कहते ह।
3. न तल बी ंश (Strike fault) - बहु त कम ऊँचे कगार वाला ंश िजसका नमाण
ै तज संचलन वारा होता है उसे न तल बी ंश कहते ह।
4. सोपानी ंश (step fault) - जब च ान पर समाना तर ंश रे खाओं का नमाण होता
है तथा ै तज संचलन होता है तब एक के बाद एक ख ड नीचे धँस जाते ह। फल व प
सोपानी ंश का नमाण होता है।
5. र ट घाट अथवा ोणी ंश (Rift Valley) - ंश या वारा जब दो सामा य ंश
इस कार पड़ते ह क म य का भाग नीचे धँस जाता है तो एक घाट का नमाण होता
है िजसे र ट या ंश घाट कहते ह ।

बोध न- 2
1. य द वलन क भु जाओं के म य 9 0 ० से कम कोण बनता हो तो वह वलन
कहलाता है ।
( अ ) एकनत ( ब ) प रव लत
( स ) बं द ( द ) खु ला ( )

2. वभं गत भू ख ड का एक दू स रे पर आरो पत होना िजस ं श पर होता है , वह


है -
(अ) उ म ( ब ) वदारण
( स ) कटक (द) समा य ( )
3. य द उपर व लत शै ल नीचे क शै ल सं र चना म भ न हो तो वह िजस कार
का वलन होगा , वह ,
( अ ) समनत (ब) ीवा ख ड
( स ) पं खाकार ( द ) असम मत ( )
4. र ट या दरार घाट कसका प रणाम है -
( अ ) वलन (ब) ंशन
( स ) सं व लन ( द ) खु ला वलन ( )
5. वलन का वकास होता है -
( अ ) सं कु चन से ( ब ) तनाव
( स ) फै लाव से ( द ) एक करण से ( )

58
3.4 वालामु खी एवं भू क प
3.4.1 वालामुखी के कारण

म क हाऊस (Monkouse) के अनुसार '' वालामुखी भू पटल के वे छ ह िजनसे भू गभ का मैगमा


आ द पदाथ उदगार के प म बाहर नकलता है। ''
वालामुखी या का अ भ ाय उस वनाशकार तथा दय वदारक घटना से है िजसम भू गभ से
गम त त गैस, जलवा प, लावा, धु ंआ, राख, ठोस प ड आ द भयंकर गजन के साथ भू पटल पर
कट होते ह। वाथ के अनुसार ''वे सभी याएं िजनसे वत शैल पृ वी क गहराई से भू पटल
के बाहर नकलती है, वालामु खी या कहलाती ह।''
वालामुखी या के कारण (Causes of Vucanism)
1. भू ग भक असंतु लन (Isostatic Disequilibrium) : अस तुलन के कारण शैल म ग त,
भू क प आ द घटनाएं होती ह। इनसे भू ग भक े म संरचना मक प रवतन होते ह। इन
प रवतन के कारण वालामुखी या होती है। यह कारण है क व व के अ धकांश
स य वालामुखी भू ग भक ि ट से अस तु लत े म पाए जाते ह। प र शा त
महासागर य मेखला (Circum Pacific Belt) ऐसा ह े है।
2. गैस क उ पि त (Formation of Gases) : भू गभ म चु र मा ा म जल सं ह त
रहना है। दरार से होकर य द जल पृ वी के आ त रक भाग तक पहु ंच जाता है तो वा प
म प रव तत हो जाता है। वा प कु छ अ य गैस वालामुखी उदगार म नोदक शि त
(Propelling force) का काय करती है।
3. भू गभ म तापवृ : भूगभ म व भ न कार के रे डयो स य पदाथ पाए जाते ह। इनके
वख डन से काफ ताप नकलता है। तापमान म अ धक वृ हो जाने पर शैल व
अव था म आ जाती ह। इससे उनके आयतन म वृ होती है। अत: पघला हु आ पदाथ
(मै मा) कमजोर दरार से होकर वालामुखी के प म धरातल पर पहु ंचता है।
4. दाब म कमी (Pressure release) : ऊपर परत के दबाव के कारण भू गभ क शैल
उ च तापमान पर भी ठोस अव था म बनी रहती है। भू ग भक हलचल के कारण कई
बार ऊपर शैल का दबाव कम हो जाता है। दबाव कम हो जाने से नचल शैल पघल
जाती है। प रणाम व प उनके आयतन म वृ होती है और मै मा वालामुखी या
को ो सा हत करना है। इसक ा यकता बैसा ट शैल के े म अ धक होता है।

3.4.2 वालामुखी से नकलने वाले पदाथ (Ejected Material from Volcano)

वालामुखी उ गार के समय भू गभ से तीन कार के पदाथ बाहर नकलनते ह। (i) ठोस (ii) व
एवं (iii) गैस।
1. ठोस पदाथ (Solid Material) : वालामुखी से नसृत ठोस पदाथ म बार क राख के
कण से लेकर बड़े-बडे. शलाख ड तक सि म लत होते ह। अ य त सू म कण का
वालामुखी धू ल या राख मटर या सु पार के आकार के दान को लै पल (Lapilee) चने
के आकार के कण को को रया (Scoria) के अंग ठत प को े सया (Breccia) े सया
के साथ गैस के बुलबुल से न मत छ मय प थर के टु कड़े भी नकलते ह िज ह झामक

59
(Pumice) तथा कई मीटर यास के बड़े शलाख ड को वालामुखी बम (Volcanic
Bomb) कहते ह।
2. व पदाथ (Lipuid Material) : भू गभ म शैल अ य धक ताप के कारण तरल अव था
म प रव तत हो जाती है िजसे मै मा कहते ह। धरातल पर आने के बाद इसे लावा कहा
जाता है। स लका क मा ा के आधार पर लावा दो कार का होता है।
(i) अ ल य लावा (Acid Lava) - यह बहु त अ धक गाढ़ा होता है य क इसम
स लका क मा ा 75% से भी अ धक होती है। वायुम डल के स पक म आते ह
यह शी जम जाता है। अ धकांश वालामुखी शंकु ओं व उ च पतत के नमाण म
इसी कार के लावा का योग होता है।
(ii) पै ठक लावा (Basic Lava) - यह लावा पतला होता है अत: यह दूर तक बहकर
चला जाता है एवं इससे उ च पवत के बजाय पठार क रचना होती है। इसम
स लका अंश 40% तक होती है।
(iii) गैसीय पदाथ (Gaseous Material) - भू ग भक उ णता के कारण कई पदाथ
भू गभ म गैसीय प म प रव तत हो जाते ह। वालामु खी के उदगार से जल वा प,
काबन-डाइ-ऑ साइड, स फर, डाइ-ऑ साइड, काबन मोनो ऑ साइड, हाइ ो लो रक
ए सड, अमो नयम लोराइड, हाइ ोजन स फाइड आ द गैस नकलती ह।

3.4.3 वालामुखी के कार (Types of Volcanoes)

वालामुखी कई कार के होते ह । इ ह मु यत: तीन आधार पर वग कृ त कया जा सकता है -


(i) उ गार क अव ध (ii) उदगार के व प, एवं (iii) संरचना। इन आधार पर वालामु खी के
वग करण को न न ता लका से समझा जा सकता है -

उ गार क अव ध के आधार पर वालामुखी के कार -


60
(1) स य या जा त वालामु खी (Active Volcano) : वे वालामुखी िजनसे हर समय
उ गार होते रहते ह। भू म य सागर म ि थत इटल के ससल व ससल से उतर म
लपार वीप ि थत एटना व ॉ बोल इसी कार के वालामुखी ह। भारत म कोई
स य वालामु खी नह ं है। व व म आज भी लगभग 500 स य वालामुखी है।
(2) सु षु त वालामुखी (Dormant volcano) : ऐसे वालामुखी जो एक बार स य होने
के प चात ् काफ ल बे समय तक शांत हो जाते ह और अचानक फर स य हो जाते
ह, उ ह सु षु त वालामुखी कहते ह। इटल का वसू वयस इसी कार का वालामु खी
है िजसम सन 1631, 1812, 1906 एवं 1943 म उदगार हु ए।
(3) शांत या नवा षत वालामुखी (Extinct Volcano) : िजन वालामु खय म द घाव ध
से उदगार नह ं हु ए और न आगे होने क संभावना तीत होती है, उ ह शांत या
नवा षत वालामु खी कहते ह। यानमार का माउ ट पोपा, ईरान का दे मवंद व कोहे
सु तान आ द शांत वालामु खी के उदाहरण ह। इनक नल माग व मु ख अव हो
जाने पर इनके े टर म पानी भर जाने से े टर झील बन जाती है।
उ गार के व प के आधार पर वालामु खी के कार
उ गार के व प के आधार पर वालामुखी को दो भाग म वभ त कया जा सकता है। (i)
के य उ गार वाले वालामु खी तथा (ii) दरार उ गार वाले वालामु खी।
(i) के य उ गार वाले वालामु खी (Central eruption type of Volcano( : िजन
वालामुखी से उ गार एक नल या मु ख से होता है उ ह के य उदगार वाले
वालामुखी कहते ह। इसम उ गार के समय नकले सभी पदाथ े टर के पास शंकु के
प म एक त हो जाते ह। इटल का ॉ बोल व जापान का यूजीयामा इसके
उदाहरण ह। के य उ गार वाले वालामु खय को न न उप भाग म वभािजत कया
जाता है।
(अ) हवाई तु य वालामुखी (Hawaian Type Volcano) : इस कार के वालामु खय म
उ गार उदगार बहु त ह शांत ढग से होता है। इनके उदगार म लावा पतला एवं गैस कम
होती है। वखि डत पदाथ भी कम होते ह। वखि डत पदाथ भी कम होते ह। इस कार के
उ गार हवाई वीप पर ि थत वालामु खय म होते ह। हवाई वीप का मोनालोवा इसका
उदाहरण है।
(ब) ॉ बोल तु य वालामु खी (Strombolian type of Volcano) : इटल म ससल के उतर
म लपार वीप पर ि थत ॉ बोल म भयंकर व फोट के साथ उ गार होते ह। न तृत
पदाथ काफ ऊँचाई तक उछलते ह। लावा के साथ गैस क मा ा अ धक होती है, धू ल,
झामक, को रया, बम आ द पदाथ वेग के साथ वायुम डल म ऊपर उठ जाते है तथा पुन :
े टर तथा शंकु के ढाल पर गरते है।
(स) व कैनो तु य वालामु खी (Vulcano type of Volcano): इस कार के वालामु खी से
उ गार के समय गाढ़ा लावा नकलता है। इस कार येक उदगार के बाद इसका े टर
मु ख अव हो जाता है। अत: पुन : उदगार के समय भयंकर व फोट के साथ अव े टर

61
को तोड़कर एक त गैस, धु आँ व लावा आकाश म फूलगोभी का प धारण कर लेते ह।
भू म यसागर म लपार वीप पर ि थत व कैनो इसी कार के वालामु खी का उदाहरण है।

च - 3.15
(द) पी लयन तु य वालामु खी (Pelean type of Volcano) : इस कार के
वालामुखी म व फोट सबसे भयंकर आवाज के साथ होता है। सन ् 1883 म
सु मा ा व जावा के म य सु डा जल डम म य म ि थत ाकाटोआ वीप पर
ि थत वालामुखी के व फोट से उस वीप का अि त व ह समा त हो गया।
इसके व फोट क आवाज 4800 कलोमीटर दूर ऑ े लया म भी सु नाई द । इससे
व तृत गैस व धू ल आकाश म 100 कलोमीटर क ऊँचाई तक छा गई है। ऐसे
वालामुखी का दूसरा उदाहरण पि चमी वीप समूह म ि थत पील पवत है।
(य) वसू वयस तु य वालामु खी (Vesuvius type of Volcano) : ाय: ये
वालामुखी वलके नयन कार के ह होते ह। उदगार के समय इनम गैस के साथ
लावा आकाश म काफ ऊंचाई तक चला जाता है। आकाश म फूल गोभी क भां त
मेघ छा जाते ह। इटल म माऊंट वसु वयस का उदगार 79 ई. म हु आ था। अत:
इस कार के उदगार वाले वालामु खी को वसू वयत तु य कहते ह।
(ii) दरार उ े दन वाले वालामु खी (Fissure eruption type of Volcanoes) : जब
लावा कई दरार अथवा मु ख से होकर बाहर नकलता है तो उसे दरार उ गार कहते ह।
अनेक दरार से लावा नकलने के कारण वह काफ बड़े े म फैल जाता है। इस कारण
62
लावा शंकु न बनकर लावा पठार या लावा मैदान बन जाता ह। ाय वीपीय भारत के
उ तर पि चमी भाग एवं संयु त रा य अमे रका के कोलि बया बे सन म इसी कार
उ गार हु ये थे। सन ् 1783 म आइसलै ड म तीस कलोमीटर ल बी दरार से भी ऐसा ह
उ गार हु आ था।
नसृत पदाथ (संरचना) के आधार पर वालामुखी के कार
वालामुखी पवत के नमा या म व भ न कार के नसृत पदाथ का योगदान रहता है। इस
आधार पर वालामु खय को तीन भाग म बांटा जाता है -
(i) राख वालामु खी (Cinder Volcano) - इसम उ गार के समय ाय: राख नकलती है।
अत: वालामुखी शंकु राख से बना होता है। ऐसे शंकु सामा यत: नतोदर ढाल वाले होते ह।
फल पीन के यूजोन वीप पर ि थत कैम खन, मैि सको का हो यो एवं अल सा वेडोर
का ईजा को ऐसे ह वालामु खी ह।
(ii) लावा वालामुखी (Lava Volcano) - इनसे नसृत पदाथ म लावा क धानता होती है।
अत: इनसे न मत शंकु लावा दान होते ह। व कैनो, मौनालोआ एवं संयु त रा य
अमे रका के वायो मंग रा य म ि थत डै व स टावर इसके उदाहरण है।
(iii) म त वालामु खी (Composite Volcano) - इनके शंकु ओं के नमाण म वालामुखी
से नसृत सभी पदाथ का योगदान रहता है। व व के अ धकांश वालामु खी इस ेणी म
आते ह। यूजीयामा , एटना, वसू वयस आ द इसके उदाहरण है।

3.4.4 वालामुखी से बनी थलाकृ तयाँ (Volcano Landforms)

वालामुखी के उ गार के समय कु छ लावा पदाथ पृ वी के आ त रक भाग म भी जम जाता है


िजससे कु छ थलाकृ तय का नमाण धरातल के नीचे भी हो जाता है। लावा का धरातल पर तथा
अ या तर म जमाव से वालामु खी न मत थल प को दो भाग म वभािजत कया जा सकता
है। अ या त रक तथा बा य थल प िजसे न न ता लका से समझा जा सकता है -

63
बा य थलाकृ तयाँ (Extrusive Landforms)
वालामुखी या के फल व प जो भू आकार धरातल पर बनते ह, उ ह बा य थलाकृ तय क
ेणी म रखा जाता है, इ ह दो े णय म वभ त कया जा सकता है-
(A) के य उ गार से न मत थलाकृ तयाँ
(i) राख शंकु (Cinder Cone)- कु छ के य उ गार वाले वालामु खय से केवल राख
नकलती है िजसके े टर के आसपास जमा होते रहने से राख शंकु का नमाण होता
है। इनक ऊँचाई कम होती है तथा ये नतोदर ढाल यु त होते ह। फल पीन का
कैमि वन, मैि सको का हो यो, अल सा वेडोर का इजालको इसके उदाहरण ह।
(ii) लावा शंकु (Lava Cone)- इसके नमाण म लावा क धानता होती है। इनक ऊँचाई
ढाल का व प एवं फैलाव लावा के गुण पर नभर करता है। लावा के गुण के आधार
पर इ ह दो भाग म बांटा जाता है-
(अ) अ ल य लावा शंकु (Acid lava cone)- यह शंकु अ ल य लावा से बना होता है
िजसमे स लका क मा ा अ धक होती है। यह लावा गाढ़ा एवं चप चपा होता है
तथा शी ठं डा होकर ठोस प ले लेता है। अत: इन शंकुओं का फैलाव अ धक नह ं
होता। ॉ बोल वालामुखी का शंकु इसका उदाहरण है।
(ब) पै ठक लावा शंकु (Basic Lava cone)- पै ठक लावा म स लका क मा ा कम
होती है। यह लावा पतला होता है अत: काफ समय तक ठं डा न होने से व तृत
े पर फैल जाता है। हवाई वीप का मौनालोआ वालामुखी का शंकु इसका
उदाहरण है।
(iii) म त शंकु (Mixed Cone)- जो शंकु वालामु खी से नसृत व भ न पदाथ लावा,
शलाख ड आ द से बने होते ह, उ ह म त शंकु कहते ह। लावा को साथ शलाख ड
का म ण संयोजक त व का काय करते ह। जापान का यूजीयामा, संयु त रा य
अमे रका का माऊंट शा ता इसके उदाहरण ह।
(iv) प रपो षत शंकु (Parasitic Cone)- कभी-कभी वालामु खी क मु य नल माग से
उपनल माग भी बन जाते ह। िजससे मु य शंकु के ढाल पर गौण शंकु बन जाते ह।
इनका पोषण मु यनल माग से होने के कारण इ ह प रपो षत शंकु कहते ह। संयु त
रा य अमे रका म माऊंट शा ता के ढाल पर बना शाि तना शंकु इसका उदाहरण है।

64
च -3.16
(v) लावा डाट (Lava plug)- वालामु खी के शांत हो जाने पर मु ख एवं नल माग म लावा
ठोस होकर जमा हो जाता है, इसे लावा डाट कहते ह। संयु त रा य अमे रका म लैक
ह स, डै व स टावर आ द इसके उदाहरण ह।
(vi) े टर (Crater)- वालामु खी के मु ख पर बने क पनुमा गत को े टर कहते ह।
वालामुखी के शांत हो जाने पर इनम पानी भर जाता है िज ह े टर झील कहते ह।
(vii) का डेरा (Caldera)- वृहत आकार के े टर को का डेरा कहते ह।
(B) दरार उ गार से न मत थलाकृ तयाँ
(i) वालामुखी मैदान - वालामु खी उ गार से नसृत राख, लावा शलाख ड आ द के उबड़-
खाबड़ े म भर जाने के कारण वालामु खी मैदान बन जाते ह। इटल मे नेप स नगर
के समीप उपजाऊ मैदान वसू वयस वालामु खी से नसृत राख, लावा आ द से न मत
है।

65
(ii) लावा पठार- उ च दे श म वालामु खी नसृत पदाथ के जम जाने से लावा पठार बन
जाते ह। संयु त रा य अमे रका का कोलाि बया पठार इसका उदाहरण है।
(iii) वालामुखी वीप- समु तल , पर वालामु खी उदगार से नसृत पदाथ जमा होते रहते
ह। ये न ेप जब समु तल से ऊपर उभर आते ह तो वालामुखी वीप बन जाते ह।
हवाई वीप ए यू शयन वीप आ द इसके उदाहरण ह।
आ त रक थलाकृ तयाँ (Intrusive Londforms)
(i) बैथो लथ (Batholith)- आंत रक शैल म म सा के वशाल एक ण को बैथो लथ कहते
है। ये कई हजार वग कलोमीटर म फैले होते ह। बैथो लथ के शीष पर मै मा के
अ त र त जमाव को कंध (Stock) कहते ह।
(ii) लैको लथ (Lacolith)- धरातल के नकट कु छ गहराई पर ह मै मा के गु बादाकार
एक ण को लैको लथ कहते ह। यह बैथो लथ क तु लना म छोटा होता है।
(iii) फैको लथ (Phacolith)- आंत रक शैल म अपन त शीष भाग म जमा मै मा फैको लथ
कहलाता है।
(iv) लैपो लथ (Lapolith)- आ त रक शैल म लावा के त तर नुमा जमाव को लैपो लथ
कहते ह।
(v) सल (Sill)- आ त रक शैल म मै मा के तजीय जमाव को सल कहते ह।
(vi) डाइक (Dyke)- आ त रक शैल म मै मा के लगभग ल बवत जमाव को डाइक कहते
है।
वालामुखी या के गौण प म गीजर (Geyser), धुआ
ं रे (Fumerols), सो फाटारा
(Solfatara), उ ण जल ोत (Hot Springs), पंक वालामु खी (Mud flow) आ द भू याव लय
का भी नमाण होता है।

च - 3.18 : वालामु खी न मत अ या त रक आकृ तयाँ

3.4.5 वालामुखी या का मानव जीवन पर भाव

रचना मक भाव- वालामु खी उ गार से नकले लावा के वघटन से न मत काल म ी अ य त


उपजाऊ होती है। भारत के ाय वीपीय पठार के उ तर पि चमी भाग म ऐसी ह उपजाऊ काल

66
म ी मलती है। वालामु खी उ गार के फल व प नकले लावा, शलाख ड, राख, धूल आ द उबड़
खाबड़ े म जमा होकर उसे समतल मैदान बना दे ते ह। समु े म नये वीप का अ वभाव
भी हो जाता है। वालामुखी या के फल व प जमा हु ई आ नेय शैल म अनेक ख नज पदाथ
मलते ह िजनम लोहा, ज ता, ए ट मनी, चांद , टन आ द मु ख ख नज ह। कई ख नज गरम
जल व गैस के साथ नकलकर धरातल पर जम जाते ह।
व वंसा मक भाव- वालामु खी के उ गार े म जन धन क अपार हा न होती है। बहता हु आ
लावा न दय के माग अव कर दे ता है। उदगार के फल व प जहर ल गैस से भी जीवन को
त पहु ंचती है। कई बार भीषण व फोट से वालामु खी वीप न ट भी हो जाते ह, सागर म
भीषण व फोट के कारण सु नामी जैसी ऊंची लहर उठती ह। इससे तट य े म अपार जन धन
क हा न होती है।

3.4.6 वालामुखी का व व वतरण (World distribution of Volcanoes)

व व म लगभग 500 स य वालामु खी ह। वालामु खय के वतरण क दो मु ख वशेषताएं


ह। थम वालामु खी, भू क प े म पाए जाते ह। वतीय महासागर के तट य भाग एवं
महा वीपीय नम न तट पर वालामु खी अ धक पाये जाते ह, य क यहां सागर य जल के
भू गभ म वेश करने क संभावनाएं अ धक होती ह। व व के मु ख वालामु खी े न न ह -
(i) प र- शा त महासागर य मेखला (Circum Pacific Belt)
(ii) म य महा वीपीय मेखला (Mid Continental Belt)
(iii) म य अटलाि टक कटक मेखला (Mid Continental Ridge Belt)
(iv) पूव अ क मेखला (East African Belt)
(v) अ य े (Other Areas)
(i) प र- शा त महासागर य मेखला (Cricum Pacific Belt) : व व के दो तहाई से
कु छ अ धक वालामु खी केवल इस मेखला म पाए जाते ह। अत: इस मेखला को अ
वलय (Fire Ring of Pacific) कहते ह। यह मेखला शा त महासागर के चार ओर
तटवत े म फैल हु ई है। इसका व तार कमचटका ाय वीप से द ण क ओर
पूव ए शया, द णी पूव ए शया, शा त महासागर य वीप व यूजीलै ड होते हु ए
अ टाक टका महा वीप तक है। यहां से उ तर क ओर इसका मक व तार द णी
व उ तर अमे रका के पि चमी भाग म होते हु ए ए यू शयन वीप एवं कमचटका
ाय वीप तक है। जापान का यूजीयामा, फल पीन का माउ ट ताल, द णी अमे रका
का च बरै जो, संयु त रा य अमे रका का माउ ट शा ता आ द इस मेखला के कु छ
वालामुखी ह।
(ii) म य महा वीपीय मेखला - यह मेखला मु य प से हमालय अ पाइन पवतीय खृं ला
के े म फैल हु ई है। भू म य सागर के वालामु खी इसी मेखला म सि म लत कए
जाते ह। इस मेखला के ये े भू ग भक ि ट से अस तु लत ह। इस मेखला का
व तार द ण पूव म इ डोने शया से लेकर मले शया, ह दचीन, यानमार, द णी

67
चीन होते हु ए भू म य सागर के पि चमी तट तक है। बैरन, माउ ट पोपा, अरारान,
एलबुज, ऐटना, वसू वयस, ॉ बोल आ द इस मेखला के मु य वालामु खी ह।

च - 3. 19 : वालामु खी के े
(iii) म य अटलाि टक मेखला - यह मेखला अटलाि टक महासागर के म य म S आकृ त
क समु वत कटक के सहारे -सहारे फैल हु ई है। है ला, कटला, एसेि शयन, सट हैलेना
इस मेखला के मु ख वालामु खी ह।
(iv) पूव अ क मेखला - यह मेखला मु यत: पूव अफ का क दरार घाट के े म फैल
हु ई है। इसका व तार उ तर म इजराइल से द ण म लाल सागर व पूव अ का क
दरार घाट े म होते हु ए मैडागा कर तक है। तबे ती, कल मंजारो आ द वालामुखी
इसी मेखला म ि थत है।
(v) अ य वालामु खी - इनम शा त महासागर के हवाई वीप व ह द महासागर के
मॉर शस, कमेरो, र यू नयन आ द वीप पर ि थत वालामुखी सि म लत ह।

बोध न - 3
1. वसु वयस वालामु खी कस कार का वालामु खी है ?
(अ) स य (ब) सु त
( स ) शा त ( द ) इनम से कोई नह ं ( )
2. व व के दो तहाई से अ धक वालामु खी पाए जाते ह -
( अ ) म य अटलां टक कटक मे ख ला म
( ब ) पू व अ क मे ख ला म
( स ) प र शा त महासागर य मे ख ला म
( द ) म य महा वीपीय मे ख ला म ( )
3. लावा पठार / लावा मै दान का नमाण होता है -
( अ ) हवाई तु य वालामु खी से

68
( ब ) के य उ गार वाले वालामु खी से
( स ) व कै नो तु य वालामु खी से
( द ) दरार उ े दन वाले वालामु खी से ( )
4. ॉ बोल वालामु खी ि थत है -
( अ ) इटल म ( ब ) ससल म
( स ) लपार वीप पर (द) ाकाटोआ वीप पर ( )
5. भयं क र आवाज के साथ व फोट ( लावा उ गार ) होता है -
( अ ) हवाई तु य वालामु खी म
( ब ) पी लयन तु य वालामु खी म
( स ) दरार उ े दन वाले वालामु खी म
( द ) व कै नो तु य वालामु खी म ( )

3.5 भू क प
भू क प का अथ एवं प रभाषा
भू क प का ता पय धरातल य क पन से है िजससे भू-पटल पर वनाशकार ि थ त उ प न हो
जाती है। ए.एन. ै लर के अनुसार भू क प भू पटल क क पन या लहर है जो धरातल के नीचे या
उपर शैल के लचीलेपन या गु वाकषण क ि थ त म णक व ोभ वारा उ प न होती है।
डॉ. माँकहाउस के अनुसार ''भू पटल क शैल म संचलन या समायोजन क या वारा संचार को
भू क प कहते ह।''

सैि सबर के अनुसार िजस कार सागर म प थर फकने से उसके चार ओर जल म लहर उठती
ह। इसी कार भू गभक शैल म व ोभ के ोत से चार दशाओं म तरं ग का स मण होता है
िजसे भू क प कहते ह।

3.5.1 भू क प के कारण (Causes of Earthqukes)

भू क प का मू ल कारण धरातल पर संतल


ु न म अ यव था का उ प न होना है फर भी कु छ अ य
मह वपूण कारण का यहां उ लेख कया जाना समु चत होगा-
1. वालामुखी या (Volcanic activity) - भू गभ म लावा, शलाख ड एवं गैस के बल
वेग से बाहर नकलने के कारण नकटवत े म क पन उ प न होता है। वालामु खी
े म मै मा के बाहर नकलने के माग म य द कठोर शैल का अवरोध आ जाये तो
उसके दबाव म भू क प उ प न होते ह। वालामुखी े म भू क प बहु धा आया करते
ह। जापान म ऐसे भू क प क बार बारता अ धक है।
2. भू स तु लन समायोजन (Isostatic Adjustment) - भू पटल पर व भ न भू आकार पाए
जाते ह। कह ं ऊँची पवत आकार के बीच संतल
ु न बना रहना आव यक है। अपरदन च
के कारण इन भू आकार के बीच असंतल
ु न बढ़ता रहता है। उ च पवतीय े से

69
अपरदनकार शि तय करोड़ टन शलाख ड व शलाचूण बहाकर सागर म जमा करते
रहते ह। इससे सागर तल पर न त पदाथ के भार से नरं तर दबाव बढ़ता जाता है।
दबाव के कारण सागर तल से नीचे क ओर तरं ग उ प न होती ह। भू स तुलन था पत
करने हे तु ये तरं ग उ च े को ऊपर क ओर धकेलती है। इस या म भू क प क
उ पि त होती है।
3. ंशन (Faulting) - श
ं न या के कारण उ प न भू क प को ववत नक भू क प कहते
ह। उदाहरणाथ 1906 म सैन ाि ससको म आये भू क प के समय 800 कलोमीटर
ल बी ं पड़ गई थी। इसे सैन एि यास ंश कहते ह। सन ् 1992 म उ तरकांशी म
आया भू क प भी श
ं ज भू क प था। ये ववत नक भूक प ि ट से दुबल े मे गने
जाते ह।
4. या थ त ेप स ा त (Elastic Rebound theory) - यह स ांत अमे रक
भू गभशा ी र ड (Reid) ने तपा दत कया। इसके अनुसार भू-ग भक शैल या थ
होती है अथात ् रबड़ क भां त लचील होने के कारण उनम घटने बढ़ने का गुण होता है।
तनाव पड़ने पर शैल अपने लचीलेपन क सीमा तक उसे सहन करती रहती है। लचीलेपन
क सीमा से अ धक तनाव पड़ने पर शैल मे दरार पड़ जाती है। दरार के दोन ओर के
शलाख ड वपर त दशा म हटते ह। इससे शैल मे तनाव समा त हो जाता है और
च ान के दोन ख ड पुन : अपने पूव थान को ा त करना चाहते ह। इस कार से
उ प न ग त भू क प क या वारा घ टत होते ह।
5. पृ वी का संकु चन (Contraction of the earth) - पृ वी धीरे -धीरे शीतल हु ई है। पृ वी
के शीतल होकर सकु ड़ने से इसक परत म अ यव था एवं तर ंश होता है िजससे
भू क प क उ पि त होती है।
6. गैस का फैलाव (Expansion of Gases) - कु छ भू गभशाि य का मानना है क
जलाशय के अंदर पड़ी दरार से जल व ट होकर भू गभ म पहु ंचता रहता है। अ धक
ताप के कारण मै टल म जल वा प तथा गैस के प म प रव तत हो जाता है। जब
इनक मा ा अ धक हो जाती है, तब ये ऊपर आने का यास करती ह। इससे भू पटल म
नीचे से ध के लगते ह िजससे भू पटल पर क पन होने लगता है िजसे भू क प कहा जाता
है।

3.5.2 भू क प का वग करण

भू क प के वभाव तथा उ पि त के कारण क भ नता के कारण भू क प म भ नता उ प न


होती है। इन आधार पर इ ह न नां कत प म वभािजत कया जाता है -
भू क प
1. उ पि त के कारण के आधार पर अ ाकृ तक मानवकृ त भूक प 3. भूक प क गहराई के आधार पर
ाकृ तक भूक प 2. ि थ त के आधार पर (i) साधारण भूक प
(i) वालामुखी भू क प (i) थल य भू क प (ii) म यवत भू क प
(ii) श
ं मूलक भूक प (ii) समु क प (iii) अ य धक गहराई वाले भूक प

(iii) संतल
ु नमूलक भूक प

70
(iv) लूटो नक भू क प
1. भू क प क उ पि त के कारण के आधार पर
ाकृ तक भू क प (Natural Earthquake)
तब भू क प का उ व पृ वी क बा य क शि तय वारा होता है तो उसे ाकृ तक भू क प
कहते ह। इ ह चार उप वभाग म बांटा जा सकता है।
(i) वालामुखीय भू क प (Volcanic Earthquake) : वालामुखी उदगार के समय
वालामुखी े म अनुभव कए जाते ह। इस कार के भू क प क ती ता वालामु खी
के उदगार क ती ता पर नभर करती है। 1883 म ाकटोआ का वालामु खी भू क प
बड़ा भयानक था। इस कार के भूक प थल पर सागर दोन पर ह अनुभव कए
जाते ह।
(ii) ंशमू लक भू क प (Tectonie Earthquake) : च ान म तनाव और दबाव के कारण
ंश उ प न होते है ंश या ती होने पर भू क प अनुभव कए जाते ह। िज ह
ंशमू लक भू क प कहते ह। ये भू क प बहु त ती एंव लयंकार होते ह। कैलोफो नया
भू क प (1872) जापान सगामी खाड़ी भू क प (1923) ऐसे मु य भू क प ह।
(iii) भू स तु लनमू लक भू क प (Isostatic Earthquake) - पृ वी म थोड़ा-सा असंतु लन
उ प न होने पर इनक उ पि त होती है। इस कार के भू क प नवीन मोड़दार पवतीय
े म आते है। ह दूकोह भू क प (1949) इस वग के भूक प का मह वपूण उदाहरण
है।
(iv) लू टो नक भू क प (Plutonic Earthquake) - धरातल से अ य धक गहराई पर
उ प न होने वाले भू क प को लूटो नक भू क प कहते ह। इनका उ गम े 250 से
700 कलोमीटर क गहराई पर होता है। इस कार के भू क प बहु त कम आते ह।
2. ि थ त के आधार पर भू क प
ि थ त के आधार पर भू क प के दो भाग म वभािजत कया जाता है।
(i) थल य भू क प (Earthquake) - जब भू क प थल भाग पर आता है तो उसे थल य
भू क प कहते ह। इनक सं या सागर य भू क प से बहु त अ धक होती है।
(ii) सागर य क प (Sea quake) - समु के गभ म आने वाले भू क प को सागर य भू क प
कहते है। इनसे अ य धक वनाशकार सागर य लहर उ प न होती है। िज ह सु नामी लहर
(Tsunamis) कहते ह। इसम तटवत भाग पर पया त त होती है।
3. भू क प क गहराई के आधार पर
ओ डहम ने प ट कया क पृ वी के 90 तशत से अ धक भू क प 8 कलोमीटर से भी कम
गहराई से उ प न होते ह। 8 तशत भू क प 8 से 30 कलोमीटर क गहराई से उ प न होते ह।
जब क शेष 2 तशत भू क प 30 कलोमीटर से अ धक गहराई से उ प न होत ह। गुटेन बग एवं
रटर ने गहराई म उ प न होने वाले भू क प क वै ा नक या या क है तथा गहराई के आधार
पर भू क प को तीन भाग म वभ त कया है।
(i) साधारण भू क प - जब भू क प मू ल क ि थ त धरातल से 50 कलोमीटर क गहराई
तक होती है तो उसे साधारण भू क प कहते ह।
71
(ii) म यवत भू क प - जब भू क प मू ल क ि थ त 50 से 250 कलोमीटर गहराई तक
होती है तो उसे म यवत भू क प कहते है।
(iii) अ य धक गहराई वाले भू क प (Deep focus earthquake) : जब भू क प मू ल 250
से 750 कलोमीटर क गहराई पर ि थत हो तो उसे गहराई वाले भू क प कहते ह।

3.5.3 भू क पीय तरं ग (Earthquake waves)

िजस कार कसी जलाशय म प थर फकने पर उस थान (के ) के चार और माग म लहरे
फैलती है, वैसे ह भू क प उ पि त के से भी भू क पीय तरंग वृताकार माग म सरण करती है।

च -3.20 : उ गम के व अ धके
भू क प क उ पि त धरातल के नीचे कु छ गहराई म होती है। यह गहराई कु छ कलोमीटर से
लेकर कई सौ कलोमीटर तक हो सकती है। भू गभ म िजस थान पर भू क प क उ पि त होती
है, उसे भू क प मू ल (Focus) कहते ह। भू क प मू ल के ठ क उपर धरातल पर ि थत ब दु
अ धके (Epicenter) कहलाता है। भू क प मू ल से चलने वाल तरं ग का भाव सव थम
अ धके पर अनुभव कया जाता है। यह पर क पन सवा धक होने के कारण जन धन क
सवा धक हा न होती है। इसके चार ओर भू क प का भाव कम हो जाता है। धरातल पर समान
क पन वाले थान को जोड़ने वाल रे खाएं सम क पन रे खाएं (Isoseismic lines) कहलाती ह।
समान क पन वाले थान पर आघात रे खाऐं भी कहलाती ह।
भू क प तरं ग (Earthquakes Waves) भू क प मू ल पर आघात उ प न होने से शैल म क पन
होता है िजससे तरं ग उ प न होती है । भू क पीय तरं ग सार र त व ग त के अनुसार तीन कार
क होती है- (i) P तरं ग (ii) S तरं ग,एवं (iii) L तरं ग।
(i) P-तरं ग (P-Waves) - ये ाथ मक तरं ग (Primary Waves) होती ह। इ ह
समाना तर तरं ग भी कहते ह । भू क प मू ल से ारं भ होकर ये तरं ग धरातल पर सबसे
पहले पहु ंचती ह। इनक औसत ग त 8 - 10 कलोमीटर त सैक ड होती है। ये तरं ग
शैल म स पीडन के कारण उ प न होती है। इन तरं ग के शैल से होकर गुजरने पर
शैल कण म क पन होता है। यह क पन तरं ग क ग त क दशा म आगे पीछे होता
है। आगे पीछे ग त होने के कारण इ ह ध का क तरं ग या तजीय तरं ग

72
(Longitudinal Waves) भी कहा जाता है। तजीय ग त होने के कारण इन तरं ग
वारा अ धक हा न नह ं होता।

च – 3.21 : भूक पीय तरं ग


(ii) S तरं ग (S Waves) - ये समाना तर तरं ग के साथ समकोण बनाती हु ई आगे बढ़ती
है। इ ह वतीयक (Secondary Waves) तरं ग क उ पि त शैल पर पड़ने वाले
अप पण बल (Shear Force) के कारण होती है। इनक ग त 5 कलोमीटर त सैक ड
होती है। P तरं ग क अपे ा इनक ग त कम होने के कारण ये धरातल पर दे र से
पहु ंचती है। इन तरं ग के शैल से होकर गुजरने पर शैल कण म तरं ग क दशा से
ल बवत रा त होती है अत: इन तरं ग से भू क प े म अ धक त होती है।
(iii) L तरं ग (L Waves) - ये बा य तरं ग ह य क इनक उ पि त अ धके से होती है
तथा ये केवल धरातल पर अ धके से चार ओर फैलती ह। अत: इ ह धरातल तरं ग भी
कहते ह ये तरं ग तीन कलोमीटर त सैक ड क ग त से चलती ह। इन तरं ग से
भू क प े म सवा धक त होती है।
भू क प व ान के बारे म जानकार
भू क प माप (Measurement of earthquake) भू क प क ती ता मापने के अनेक पैमाने ह।
उनम मु ख मरकेल (Mercali) तथा र टर मापक (Richter Scale) मु य है। इनम र टर
पैमाना सबसे अ धक मा य है। व व के सवा धक ती भू क प (सै ि ससको 1906) का
प रमाण र टर मापक पर 8.3 था। पी के वनाशकार भूक प (1970) का प रमाण केवल 7.8
था।
भू क प लेखी (Seismograph) - यह एक यं होता है िजससे हम PS और L तरं ग के पहु ंचने
का समय नापते ह। अ धके पर तीन तरं ग का अ भलेखन (Rcording) एक साथ होता है।
अत: इनम भ नता मालूम नह ं होती। क तु इनक ग त भ न- भ न होने के कारण अ धके
से दूर इनके पहु ंचने का समय अलग-अलग होता है िजससे इ ह प ट कया जा सकता है।
अ धके ात करने क व ध - P व S तरं ग के पहु ंचने के समय के अ तर को तीन व भ न
थान पर ात करते ह। इन समया तर वारा अ धके क दूर ात करते ह। येक के
क दूर को या (Radius) मानकर तीन ब दुओं पर तीन वृत खींचते ह। िजस ब दु पर यह
वृत पर पर मलते ह वह ब दु अ धके (Epicenter) होता है।

73
च - 3.22 : अ धके ात करने क वध

3.5.4 भू क प का व व वतरण (World distribution of Earthqukes)

य य प ह का धरातल य क पन कई े म होता रहता है, पर तु भू क पीय अ धके वश ट


े म ह केि त है। ये े अ धकांशत: वालामुखी व त ह अथवा भू ग भक ि ट से दुबल
े है। य द व व के मान च को दे ख तो पायगे क मु ख भू क प वृत े को न न
मेखलाओं म बांटा जाता है -
1. प र- शा त महासागर य मेखला (Cricum Pacific Belt)
2. म य महा वीपीय मेखला (Mid Continental Belt)
3. म य अटलाि टक कटक मेखला (Mid Allantic Ridge Belt)
4. पूव अ क मेखला (East African Belt)
5. अ य (Others)

च – 3.23 : भूक प का व व वतरण


1. प र- शा त महासागर य मेखला - इस मेखला का व तार यूराइल वीप व कमचटका
ाय वीप से द ण म पूव ए शया, पूव वीप व यूजीलै ड होते हु ए अ टाक टका
महा वीप तक है। उ तर अमे रका के पि चमी पवतीय े म होते हु ए ए यू शयन
वीप समू ह तक है। इस कार यह मेखला शा त महासागर के चार ओर तट य े म
व तृत है। व व के दो- तहाई से अ धक भू क प इसी मेखला म आते ह।

74
2. म य महा वीपीय मेखला - इस मेखला का व तार हमालय -अ पाइन पवतीय म के
े म है। यह मेखला द ण पूव म इ डोने शया से लेकर मले शया, ह दचीन,
यानमार, हमालय एवं आ स पवतीय े म होते हु ए भूम य सागर के पि चमी सरे
तक फैल है। इस मेखला म भू क प क औसत ती ता प र शा त महासागर य मेखला
क तु लना म कम रहती है।
3. म य अटलाि टक कटक मेखला - अटलाि टक महासागर के म य म S आकार क
समु वत कटक पाई जाती है। इसके कु छ उ च भाग वीप के प म व यमान ह। यह
मेखला उ तर म आइसलै ड से लेकर म य अटलाि टक कटक के सहारे सहारे द ण म
अ टाक टका महा वीप तक व तृत है।
4. पूव अ का मेखला - इस मेखला का व तार पूव अ का क दरार घाट के े म है
जो उ तर म इजराइल से द ण म लाल सागर व पूव अ का क दरार घाट म
व तृत है। यहां अ धकांशत: ववत नक भू क प आते ह।
5. अ य े - उपयु त े के अ त र त ह द महासागर व शा त महासागर के कु छ
वीप भी भू क प वृ त े म सि म लत कए जाते ह।

3.5.5 भू क प का मानव जीवन पर भाव

भू क प एक आकि मक घटना है िजससे जन, धन क अपार हा न होती है। मानव जीवन एवं
उसके सां कृ तक पयावरण को इस आकि मक घटना से त पहु ंचती है। भू क प के वनाशकार
भाव अ धक और रचना मक कम है।
वनाशकार भाव
(1) ाकृ तक कोप - भू क प के कारण भू खलन होता है। बड़े-बड़े शलाख ड टू टकर कई
बार न दय के माग अव कर दे ते ह िजससे बाढ़े आती ह। 1950 म असम म आए
भू क प के कारण ब मपु व उसक सहायक नद दहांग का माग अव हो गया ह।
तट य े म भू क प आने पर ऊँची-ऊँची तरं ग चलने लगती ह िजससे जहाज , तट य
बि तय आ द को अपार त होती है।
(2) जै वक एवं सां कृ तक पयावरण को त - भू क प का सबसे पहला शकार मकान
होते ह, कारखाने, रे लमाग, सड़क, बांध, नहर आ द टू ट जाते ह। कई लोग व जीव
ज तु मर जाते ह। अ टू बर 1993 के लातूर (Latur) नामक थान पर आये भू क प
म सरकार आकड़ के अनुसार तीस हजार से अ धक यि त मारे गए। अनेक मकान
व त हो गए एवं भू म म दरार पड़ गई।
रचना मक भाव
भू क प के रचना मक भाव बहु त कम ह। इनसे अचानक कई बार सोते फूट पड़ते ह। भू म के
उ ेण से सागर य वीप उभरते ह। ह दमहासागर म माल वीप तथा ल वीप सागर तल से
उि थत वाल वीप ह। धरातल पर दरार खु लने पर नीचे के ख नज धरातल पर आ जाते ह। नद
माग के अव होने से झील क उ पि त होती है।

75
भू क प एक आकि मक आ त रक या है िजसका शाि दक अथ भू पटल का कांपना है। ए. एन.
ै लर के अनुसर भू क प भू पटल क क पन या लहर है जो धरातल के नीचे या ऊपर शैल के
अ पका लक व ोभ वारा उ प न करती है।
पृ वी पर भू क प आना सामा य ाकृ तक घटना है। इसम भू मगत उ े य के कारण कसी एक
या अ धक के से ऊपर नीचे दाऐं-बाऐं सारक तरं ग उठती ह जो अपनी ग त या उ वेग क
बलता के अनुसार व भ न े तक पहु ंचती ह। महासागर य भाग म इन तरं ग के पहु ंच जाने
पर ऊंची वार य लहर उठती ह, िज ह सु नामी (Tsunami) कहते ह।
बोध न - 3
1. वसु वयस वालामु खी कस कार का वालामु खी है ?
(अ) स य (ब) सु त
स ) शा त ( द ) इनम से कोई नह ं ( )
2. व व के दो तहाई से अ धक वालामु खी पाए जाते ह -
( अ ) म य अटलां टक कटक मे ख ला म
( ब ) पू व अ क मे ख ला म
( स ) प र शा त महासागर य मे ख ला म
( द ) म य महा वीपीय मे ख ला म ( )
3. लावा पठार / लावा मै दान का नमाण होता है -
( अ ) हवाई तु य वालामु खी से
( ब ) के य उ गार वाले वालामु खी से
( स ) व कै नो तु य वालामु खी से
( द ) दरार उ े दन वाले वालामु खी से ( )
4. ॉ बोल वालामु खी ि थत है -
( अ ) इटल म ( ब ) ससल म
( स ) लपार वीप पर (द) ाकाटोआ वीप पर ( )
5. भयं क र आवाज के साथ व फोट ( लावा उ गार ) होता है -
( अ ) हवाई तु य वालामु खी म
( ब ) पी लयन तु य वालामु खी म
( स ) दरार उ े दन वाले वालामु खी म
( द ) व कै नो तु य वालामु खी म ( )

3.6 सारांश
वा तव म, स तु लन यव था एक कार क दशा है। अपरदन तथा न ेप, हम -चादर, भू ग भक
हलचल आ द के कारण स तुलन क ि थ त अ यवि थत हो जाती है। गु वाकषण क शि तयाँ

76
इस अस तु लन को दूर करने का य न करना ार भ कर दे ती है। इससे भू पटल म स तुलन
बना रहता है।
प रवतन- कृ त का नयम है। भू पटल पर प रवतन मु यत: दो बल वारा होता है। (1)
अ तजात बल एवं (2) ब हजात बल। अ तजात बल से पृ वी म दो तरह के संचलन उ प न होते
ह- (1) ै तज संचलन एवं (2) ल बवत संचलन। अ तजात बल को अ ययन क सु वधा क
ि ट से दो भाग म बांट गया है- (1) पटल व पण बल तथा (2) आकि मक अ तजात बल।
पटल व पण बल म द ग त से काय करता है पर तु द घकाल के प चात ् इनके वारा वृह
थल प का नमाण होता है। े ीय व तार क ि ट से पटल व पण बल को दो भाग म
वभ त कया गया है-
(1) महा वीप नमाणकार एवं (2) पवत नमाणकार बल।
महा वीप नमाणकार बल मूलत: ऊ वाधर शि तय वारा धरातल को भा वत करता है। फलत:
भू ख ड ऊपर उठते ह या नीचे धँसते ह।
पवत नमाणकार बल ै तज शि तय वारा धरातल को भा वत करते ह। ै तज संचलन से
तनाव एवं स पीडन वारा पवत नमाण होता है। पवत नमाण अक मात नह ं होता। केवल
वालामुखी पवत नमाण ह आकि मक घटना है। ै तज संचलन म स पीडन वारा च ान म
वलन एवं तनाव वारा धरातल पर ंश उ प न होते ह।
आकि मक अ तजात बल म वालामु खी एवं भू क प को शा मल कया जाता है । वालामुखी
उ गार के फल व प धरातल पर अक मात ह लावा शंकु, लावा गु बद लावा न मत पवत का
नमाण हो जाता है। जब कभी लावा उ गार के समय गैस क मा ा कम होती है तो दरार
उदभेदन होते ह िजससे लावा पठार, लावा मैदान का नमाण होता है। इसी तरह भू क प भी
आकि मक अ तजात बल वारा घ टत होती जो ण भर म ह पृ वी तल पर अनेक प रवतन
ला दे ते ह। पृ वी तल पर वा तव म भू क प तब महसू स कए जाते ह जब आकि मक व ोभ
शैल क तरोधक मता से अ धक हो जाता है। भू क प आने पर इमारत गरना, रे ल क
पट रय का उखड़ना, सड़क माग का त त होना आ द घटनाओं के साथ-साथ य द गहरे
समु भाग म भू क प तरं ग कट होती है तो उनसे सु नामी लहर का ा य होता है िजससे
अपार जन-धन क हा न होती है।

3.7 श दावल
Crustal Fracture : भू पटल वभंरा
Endogenetic force : अ तजात बल
Epeirogenetic force : महा वीप नमाणकार बल
Exogenetic force : ब हजात बल
Isostatic earthquake : स तुलन मू लक भू क प
Law of Floatation : तैराव स ा त
Level of compensation : तपू त तल
Sudden endogenetic force : आकि मक अ तजात बल

77
3.8 स दभ थ
1. Monkhouse, F.J. : Principles of Physics Geography,University
of London Press. 1962
2. Wooldridge, S.W. : An outline of Geomorphology,Oxford,1959
and Morgan, R.S.
3. Lobeck,A.K. : Geomorphology. McGraw- Hill book Co.,
New York, 1939
4. Longwell and Flint : An Introduction to Physical Geology,
JhonWiley & Sons, Inc., New York, 1961
5. Holmes,A : Principles of Physical Geology, Thomas
Nelson & Sons, New York, 1949
6. Tikha,R.N. : Physical Geography, Kedar Nath Ram
Nath, 132, R.T. College Road, Meerut,
2006

3.9 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. डटन, 1889 म 2. क याण व क याणपुर 3. 2.75 4. 140 कलोमीटर 5. 5.236
बोध न-2
1. (स) 2. (अ) 3. (ब) 4. (ब) 5. (अ)
बोध न-3
1. (ब) 2. (स) 3. (स) 4. (स) 5. (ब)
बोध न-4
1. (अ) 2. (अ) 3. (स) 4. (अ) 5. (स)

3.10 अ यासाथ न
1. भू स तु लन से या अ भ ाय है? उससे स बि धत सभी वचार क सच व तृत
या या क िजये।
2. भू स तु लन क प रभाषा दे ते हु ए एयर तथा ाट के मत क तु लना मक या या
क िजये।
3. पटल व पण से या ता पय है? इससे संबं धत भू आकार का ववरण द िजये।
4. पटल व पण क प रभाषा दे ते हु ए व भ न कार के ंश का वणन क िजए।
5. वलन कसे कहते ह? व भ न कार के वलन को स च समझाइये।
6. वालामुखी या से आप या समझते ह? इनक उ पि त के कारण बताते हु ए
वालामुखी का वग करण क िजये।

78
7. वालामुखी वारा न मत बा य एवं आ या त रत थलाकृ तय का व तार से वणन
क िजए।
8. वालामुखी या को समझाते हु ए, वालामु खी का व व वतरण स च बताइये एवं
इनका मानव जीवन पर भाव बताइये।
9. भू क प क उ पि त के कारण बताते हु ए व भ न भू क पीय तरं ग क या या क िजये।
10. भू क प का वग करण करते हु ए भू क प व ान को समझाइये।
11. भू क प का व व वतरण बताते हु ए इसका मानव जीवन पर भाव प ट क िजये।

79
इकाई-4 : च ान एवं अना छादन (Rocks and
Denudation)

इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 च ान
4.2.1 च ान का वग करण
4.2.2 आ नेय च ान
4.2.3 अवसाद च ान
4.2.4 काया त रत च ान
4.3 अना छादन
4.3.1 अप य के कार एवं भाव
4.3.2 अप य को नयं त करने वाले कारक
4.3.3 भौ तक अप य
4.3.4 रासाय नक अप य
4.3.5 ा णवग य अप य
4.4 अपरदन
4.2.1 अपरदन च क संक पना
4.2.2 अपरदन च का मू यांकन
4.5 बहते हु ए जल के काय
4.5.1 अपरदना मक थल प
4.5.2 न ेपा मक थल प
4.6 हमनद
4.6.1 हमनद के कार
4.6.2 हमनद के काय
4.6.3 अपरदना मक थल प
4.6.4 न ेपा मक थल प
4.7 सारांश
4.8 श दावल
4.9 स दभ थ
4.10 बोध न के उ तर
4.11 अ यासाथ न

80
4.0 उ े य
इस अ याय म भौ तक भू गोल के दो मह वपूण प -च ान एव अना छादन पर चचा क गयी है।
इस अ याय का अ ययन करने के प चात ् आप -
 च ान के बारे म जानकार ा त कर सकगे तथा च ान का वग करण कन आधार
पर कया जाता है तथा वे कतने कार क होती ह एवं उनक वशेषताएँ या होती ह
इस बारे म जानकार हा सल कर सकगे।
 अना छादन एवं इसके अ तगत सि म लत याओं को समझ सकगे।
 भौ तक भू गोल म अप य कसे कहते ह, अप य कतने कार का होता है तथा इसका
भाव या होता है आ द के बारे म जानकार हो जायेगी।
 डे वस वारा द गयी अपरदन च क संक पना तथा इसक व भ न अव थाओं क
जानकार हो जायेगी।
 अपरदन के कारक के अ तगत बहते जल तथा हमनद के काय के बारे म आपको
जानकार हो जायेगी।

4.1 तावना
पृ वी सतह पर अनेक कार के च ानीय कण एवं टु कड़े पाये जाते ह, जो साधारण यि त के
लए मह वह न ह ले कन भौ तक भू गोल के व या थय को च ान क उ पि त, भ नता एवं
कार के बारे म पूर जानकार रहती है। व भ न थलाकृ तय के नमाण म अनेक शि तयाँ एवं
म स य रहते ह तथा थलाकृ तय का व प नधा रत करने म च ान क संरचना का
कसी भी े क थलाकृ तय के वकास पर मु य प से नयं ण रहता है, य क
थलाकृ तय का वकास आधारभू त च ान के ऊपर ह होता है। व भ न कार क थलाकृ तयाँ
भ न संरचना वाले े म वक सत होती है।
अप य, अपरदन एवं न ेपण आ द वारा न मत थल प क आका रक , वकास एवं उ पि त
का गहन अ ययन ब हग त म के वारा कया जाता है। इस कार के थल प का नमाण,
उ ह भा वत एवं प रमािजत करने वाले म को सि म लत प से अना छादना मक म
(Denudational Processes) कहा जाता है। इसके अ तगत मु य प से अप य एवं अपरदन
याओं को रखा जाता है। सव थम डे वस ने व भ न थल प के नमाण तथा वकास से
स बि धत अपना स ा त अपरदन च के नाम से तपा दत कया, िजसम उ ह ने थल प
क तीन अव थाओं के बारे म व तार से जानकार दान क । थल प क च य संक पना का
तपादन करते हु ए डे वस ने बताया क व भ न म वारा एक नि चत म म थल प
का च य प म वकास होता है तथा वह तीन अव थाओं युवा, ौढ़ एवं वृ ाव था से होकर
गुजरता है।
इस अ याय को मु य प से छ: ख ड म वभािजत कर उससे स बि धत चचा क गयी है।
थम ख ड के अ तगत च ान के बारे म व तृत जानकार द गयी ह, िजसम इनका वग करण
भी तु त कर व भ न कार क च ान के बारे म जानकार द गयी है। वतीय ख ड म
अना छादन च ान एवं अना छादन के बारे म चचा क गयी है।

81
तृतीय ख ड म अप य के बारे म जानकार दान करते हु ए अप य के कार एवं उसके भाव
का ववेचन तु त कया गया है। चौथे ख ड अपरदन या के स दभ म चचा क गयी है।
पांचवे ख ड म डे वस वारा दये गये अपरदन च क संक पना पर काश डाला गया है।
अि तम ख ड म अपरदन के अ भकता अथवा कारक के प म बहते हु ए जल के काय एवं
हमनद के स ब ध म जानकार दान क गयी है।

4.2 च ान
पृ वी के बाहर म डल को ट, भू पपट अथवा पपड़ी के नाम से जाना जाता है, जो क ठोस
अव था म है। थल को द शत करने वाले ट का ऊपर उठा भाग थल म डल
(Lithosphere) तथा जल ला वत भाग जल-म डल (Hydrosphere) कहलाता है। साधारण प
म थलम डल से आशय ''च ान म डल'' से ह है, य क ' लथोस' (Lithos) का शाि दक अथ ह
च ान होता है। पपड़ी क रचना अनेक त व से मलकर हु ई है। क तु चार त व ऐसे ह जो उसके
98 तशत भाग का नमाण करते ह, जब क शेष दो तशत भाग का नमाण लगभग 90 त व
से हु आ है। पपड़ी के पदाथ को च ान कहा जाता है। साधारण अथ म च ान से आशय कसी
कठोर अथवा ढ़ भाग से लया जाता है, क तु भू गोल एवं भू गभशा म च ान श द का उपयोग
यापक अथ म कया जाता है। इसके अ तगत पपड़ी के कठोर अथवा कोमल सभी पदाथ को
सि म लत कया जाता है। ऐसा माना जाता है क पपड़ी क च ान लगभग 2000 ख नज से
बनी ह, क तु इनम केवल छ: ख नज -फे सपार, वा ज, पायरो सीन, ए फ बो स, अ क या
ओ लवीन का भाग अ धक रहता है। भू पपट क च ान के गुण , संगठन, आकार आ द भ न-
भ न होते ह, जैसे कु छ च ान कठोर एवं संग ठत होती ह, तो कु छ च ान कोमल ढ ल तथा
असंग ठत होती ह, जब क कु छ च ान आकार म बड़ी, कु छ छोट तो कु छ एक समान तो कु छ
भ न- भ न कार क होती ह। पृ वी सतह पर पाये जाने वाले व भ न थल प का व प
और आकार मु य प से च ान क बनावट पर आधा रत होता है। अत: कहा जा सकता है क
च ान के वभाव एवं बदलते प के कारण ह वभ न थल प का नमाण एवं वकास,
समयानुसार उनके आकार एवं प म प रवतन, थान- थान पर उनम भ नताएँ दे खने को
मलती ह। लोबेक के अनुसार च ान अपने पयावरण का तफल होती ह। जब पयावरण वशेष
प रव तत होता है, तो च ान भी प रव तत हो जाती है। (A rock should be conceived as a
product of its environment. When environment is changed the rock changes.-
Lobeck)

4.2.1 च ान का वग करण (Classification of Rocks)

सामा य प म च ान क रचना पपड़ी के ऊपर अथवा भू प ृ ठ के नीचे इन दो प म होती है।


वैसे च ान अनेक कार क होती ह क तु अ ययन के लए संरचना के आधार पर च ान के
न न मु ख कार ह -

82
ऐसा माना जाता है क अवसाद तथा पा त रत च ान क उ पि त य अथवा अ य प
से आ नेय च ान से ह होती है। सबसे पहले आ नेय च ान का नमाण पृ वी के तरल अव था
से ठोस होने के प रणाम व प हु आ। त प चात ् अपरदन के व भ न कारक वारा आ नेय
च ान के अपर दत पदाथ के दूसरे थान पर जमा करने के प रणाम व प संग ठत होने के
कारण अवसाद च ान का नमाण हु आ। इसके प चात ् बाद म ताप एवं ग त व प रवतन के
कारण आ नेय एवं अवसाद च ान का प प रव तत होने से तीसरे कार क पा त रत अथवा
काया त रत च ान का नमाण हु आ।

4.2.2 आ नेय च ान (Igneous Rocks)

ले टन भाषा के 'Iginis' श द से आ नेय लया गया है, िजसका शाि दक अथ 'अि न' है। इन
च ान का नमाण गम एवं व पदाथ के ठ डा होकर जमने के कारण हु आ है। इन च ान म
रवे (Crystals) भी होते ह, इसी लए इ ह रवेदार च ान (Crystalline Rocks) भी कहा जाता है।
आ नेय च ान को भू प ृ ठ क ाचीनतम च ान माना जाता है क तु इनका नमाण वतमान म
भी हो रहा है, वालामु खी या वारा इन शैल का नमाण भू पटल पर सदै व होता रहता है। इन
च ान के अप य या एवं पा तरण के कारण ह य अथवा परो प से अ य च ान
का नमाण होता है। अत: आ नेय च ान को मौ लक अथवा ाथ मक च ान (Primary rocks)
भी कहा जाता है। आ नेय च ान के मु ख उदाहरण ेनाइट, साइनाइट, मोनोजाइट, डायोराइट,
रायोलाइट, गे ो, बैसा ट, पोर फर , ऑ सी डयन आ द ह। ये च ान परतह न, रं ह न एवं सघन
होती ह। इस कार च ान क कठोरता के कारण इन पर अपरदन बहु त धीमी ग त से होता है।

4.2.3 अवसाद अथवा परतदार च ान (Sedimentary Rocks)

ऐसा माना जाता है क धरातल का लगभग 75 तशत भाग अवसाद च ान से बना हु आ है।
शेष 25 तशत भाग पर आ नेय एवं काया त रत च ान पायी जाती ह। अवसाद च ान भू पटल
के केवल ऊपर भाग पर दे खने को मलती ह। अवसाद च ान का नमाण शैल पदाथ के इक ा
होकर परत के प म जमा होने से होता है। वॉस टर के अनुसार परतदार च ान का नमाण
पुरानी च ान एवं ख नज के अवसाद के परत के प म संग ठत होने से हु आ है।
(Sedimentary rocks,as the sediment implies, are composed largely of fragments
of older rocks and minerals that have been more or less thoroughly consolidated
and arranged in layers or strata - Worcester).
अप य एवं अपरदन क याओं वारा च ान के वघटन, अपघटन तथा टू ट-फूट होने से
अवसाद च ान का नमाण होता है। अवसाद च ान के उदाहरण के प म बालुका प थर
(Sandstone), काँ लोमरे ट (Conglomerate), चीका (Clay), स ट (Silt), चू ना प थर
(Limestone), शैल लवण (Rock salt), लोयस, ै वरटाइन, डोलोमाइट, िज सम, चॉक, पीट,
ल नाइट, कोयला, आ द का नाम मु खता से लया जा सकता है। ये च ान तर के प म
(Stratified) पायी जाती ह तथा कई कार के असंग ठत छोटे -बड़े कण से न मत होने के कारण
अ धकांशत सर ी (Porous) होती है। इन च ान म रवे (crystals) तथा जीवावशेष (Fossils)
पाये जाते है, तथा कोमल होने के कारण इनम अप य तथा अपरदन सरलतापूवक होता है। इन

83
च ान पर अ तजात बल (तनाव एवं स पीडन) का भाव अ धक पड़ने से वलन सरलतापूवक
पड़ जाते ह। इन च ान का नमाण जल, हम एवं पवन जैसे अपरदन के साधन वारा मु य
प से होता है।

च - 4.1 अवसाद च ान क उ पि त

4.2.4 पा त रत अथवा काया त रत च ान (Metamorphic Rcoks)

जैसा क नाम से ह प ट है क अ य च ान के प प रवतन के प रणाम व प ह पा त रत


च ान का नमाण होता है। आ नेय तथा परतदार च ान के प प रवतन के कारण ह इनका
नमाण होता है। इस कार का प प रवतन मु यत: ताप के अ धक होने अथवा भू ग भक
हलचल के कारण भार एवं दबाव अ धक होने से होता है। च ान का पा तरण दो प -भौ तक
पा तरण अथवा रासाय नक पा तरण के प म होता है, क तु कभी-कभी ये दोन पा तरण
साथ-साथ भी होते ह। ये च ान परतदार एवं आ नेय च ान से अ धक कठोर तथा संग ठत होती
ह। इनक बनावट भी पैत ृक च ान से भ न होती है तथा इनके रं ग, प, ग ध रण चमक आ द
म भी भ नता दखायी दे ती है। पा त रत शैल के मु ख उदाहरण नीस (Gneiss), फाइलाइट
(Phyllite), श ट (Schist), वाटजाइट (Quartzite), संगमरमर (Marble), लेट आ द ह। इन
शैल म बहु मू य ख नज एवं धातु एँ पायी जाती ह तथा पा तरण क या के वारा व भ न
एवं व श ट भू आकृ तय का नमाण होता है।
बोध न- 2
1. पृ वी के बाहर म डल को िजस नाम से जाना जाता है , वह है -
(अ) ोड ( ब ) मै टल
( स) ट ( द ) उपरो त म से कोई नह ं
2. च ान मु य प से कतने कार क होती ह -
( अ ) दो ( ब ) तीन
( स ) चार ( द ) पाँ च
3. आ ने य च ान का नमाण कस कार हु आ है ?
…………………………………………………………………………………………………..

84
…………………………………………………………………………………………………..
4. पा त रत शै ल के कोई तीन उदाहरण द िजये ।
…………………………………………………………………………………………………..
…………………………………………………………………………………………………..

4.3 अना छादन (Denudation)


पृ वी के आ त रक भाग म अ तजात बल के स य होने से भू पटल पर अनेक वषमताएँ
उ प न होती ह, जब क भू पटल पर बा य शि तयाँ इन वषमताओं को दूर करने का यास
लगातार करती रहती है। इस कार के बल को वनाशकार बल कहा जाता है, य क ये धरातल
पर ि थत थल प को घसकर तथा काट-छाँट कर सपाट बनाने का लगातार काय करते ह।
इसके मु ख अ भकता या कारक (Agent) बहता हु आ जल, पवन, हम आ द ह। गु वाकषण
(Gravitation) तथा पृ वी का घूणन (earth’s rotation) भी इसम अपना योगदान दे ते ह। कसी
न कसी ग तशील साधन का योग बा हजात बल को स य बनाने म अव य होता है। इन
ग तशील साधन म बहता जल, पवन, हम आ द धरातल पर काँट-छाँट करने का काय करते ह
इस कार च ान को काटने-छाँटने, उ ह घसने तथा ीण बनाने क याओं को ह अना छादन
(denudation) कहा जाता है।
माँकहाउस (Monkhose) के अनुसार अना छादन के अ तगत उन सभी साधन के काय को
सि म लत कया जाता है, िजनके वारा भू पटल के कसी भाग का पया त वनाश, अप यय तथा
हा न होती है। इस उपल ध पदाथ का अ य न ेप होता है तथा इनसे अवसाद शैल का नमाण
होता है। भू पटल पर अना छादन म दो म या शि तयाँ थै तक एवं ग तशील मु ख ह। च ान
के अपने ह थान पर टू टने-फूटने क या को थै तक या (Static Process) कहा जाता
है, िजसके कारण च ान का चू ण बन जाता है। वे ढ ल हो जाती ह, िजसे अप य
(Weathering) क या के नाम से जाना जाता है। इसी कार च ान को बहता जल, पवन,
हमानी, लहर आ द साधन तोड़ते-फोड़ते ह तथा इस अप यत पदाथ को उठाकर अ य न े पत
कर दया जाता है। इसके अ तगत वृहत ् रण (Mass movement) तथा अपरदन (Erosion)
को सि म लत कया जाता है। अत: अना छादन मु य प से अप य एवं अपरदन याओं का
सि म लत भाव कहलाता है। प रवहन एवं न ेप भी अपरदन से ह स ब है।

4.3.1 अप य के कार एवं भाव (Weathering-Types and Effects)

पा स के अनुसार ''पृ वी सतह पर ाकृ तक साधन वारा च ान के अपने ह थान पर


यां क वध वारा टू टने अथवा रासाय नक अपघटन क या अप य कहलाती है।''
(Weathering may be defined as the mechanical fracturing or chemical
decomposition of rocks, in situ by natural at the surface of the earth’’-Sparks)
अप य के अ तगत च ान अपने ह थान पर टू ट-फूट कर अथवा ढ ल पड़कर बखर जाती ह,)
िजसम दो कार के म मु य प से स य रहते है। थम, भौ तक म (Physicsal
Processes) के अ तगत च ान का मौ लक प से वघटन (Disintegration) तथा अपदलन

85
(Exfoliation) मु य प से तापीय प रवतन, तु षार या, जीव-ज तु एवं वन प त आ द वारा
होता है, क तु उसम कोई रासाय नक प रवतन नह ं होता है। वतीय रासाय नक म
(Chemical processes) होते ह, िजसके अ तगत जल, ऑ सीजन, काबन-डाइ-ऑ साइड आ द
वारा च ान म रासाय नक प रवतन होते ह तथा शैल कण ढ ले हो जाते ह। इसे अपघटन
(decomposition) क या कहा जाता है।

4.3.2 अप य को नयं त करने वाले कारक (Factors controlling weathering)

अप य को भा वत करने वाले अनेक कारक ह, िजनका सं ेप म वणन इस कार है -


1. च ान का संगठन एवं उसक संरचना (Rock composition and structure) :
अप य क या उन शैल पर अ धक भावकार होती है जो कोमल, सर (Porous),
सि धयु त, असंग ठत एवं ढ ल होती है।
2. वन प त क मा ा (Quantity of Vegetation) : कम वन प त वाले े म ताप क
अ धकता के कारण शैल म अप य अ धक होता है जब क अ धक वन प त वाले थान
पर सू य क करण कम मा ा म पहु ँ चने के कारण च ान म वख डन का काय कम हो
पाता है।
3. भू म का ढाल (Slope of Land) : कम ढाल वाले थान पर अप य या कम होती
है, य क च ान का संगठन शी ता से कमजोर नह ं हो पाता है जब क खड़ा ढाल होने
पर ढ ल शैल का थाना तरण सरलता से होने के कारण अप य अ धक होता है।
4. जलवायु दशाएँ (Climatic conditions) : अप य क ती ता के लए जलवायु क
भ नता उ तरदायी है। रासाय नक अप य क अ धक स यता उ णा जलवायु म
दे खने को मलती है, जब क दूसर ओर यां क अप य क या उ ण एवं शु क
जलवायु दशाओं म तापा तर क अ धकता के कारण शैल के सार एवं संकु चन के
कारण दे खने को मलती है।

86
4.3.3 अथवा यां क अप य (Physical or Mechanical Weathering)

भौ तक अप य म शैल का वघटन सू यातप, तु षार, जल, वायु, दबाव एवं गु व के कारण होता
है। ताप के बढ़ने पर शैल के कण फैलते ह तथा ताप के घटने पर संकु चत होते ह। इस कार
शैल म तनाव के कारण बार-बार सार एवं संकुचन से सि धयाँ वक सत होती ह। इन सं धय
के सहारे बड़ी च ान प ड के प म टू टती ह िजसे प ड वघटन कहा जाता है। इसी कार
ऊ ण म थल म दै नक तापा तर क अ धकता के कारण एक ह शैल के भीतर तनाव उ प न
होता है तथा शैल का छोटे टु कड़ म वघटन होने लगता है, िजसे शैल का कणदार वघटन कहा
जाता है।
म थल म आकि मक वषा के कारण गम शैल पर पानी के छ ट पड़ते ह, तो वे चटकने लगती
ह तथा छोटे कण म टू टकर बखरने लगती ह, िजसे शैल का भंजन कहा जाता है। उ च
अ ांशीय एवं उ च पवतीय शीत धान हमा छा दत दे श म जब जल बार-बार जमता तथा
पघलता है तो तु षार क या से बड़े-बड़े शला ख ड का वघटन हो जाता है। िजसे तु षार वारा
प ड वघटन कहा जाता है। शु क, अ शु क तथा मानसू नी म थल म वायु एवं ताप के कारण
रवेदार शैल म ै तज परत ढ ल होकर याज के छलक क भाँ त उखड़ती रहती है। तापा तर
के कारण शैल म सार एवं संकु चन क या से ऊपर परत ढ ल हो जाती है, िजसे अपप ण
कहा जाता है। दाब मु ि त के कारण भी शैल म दरार तथा चटकने पड़ जाती ह एवं शैल वघ टत
हो जाती ह।

4.3.4 रासाय नक अप य (Chemical Weathering)

वायुम डल के नचले तर म ऑ सीजन, काबन-डाइ-ऑ साइड गैस तथा जलवा प क धानता


होती है। इनके सहयोग से जल स य घोलक साधन हो जाता है तथा च ान म रासाय नक
प रवतन होने ार भ हो जाते ह। पृ वी क सतह के ऊपर तथा नीचे दोन े म रासाय नक
अप य का काय होता रहता है। शैल के ख नज को ऑ सीजन जल से मलकर ऑ साइड म
प रव तत करती है िजससे शैल म अपघटन होता है। इसे ऑ सीकरण कहा जाता है। इसी कार
जल के साथ म त होकर काबन-डाइ-ऑ साइड गैस काब नेट उ प न करती है िजससे शैल के
घुलनशील त व अलग हो जाते ह। इसे काब नेशन या कहा जाता है। जल वारा रासाय नक
व ध से स लका यु त शैल म स लका त व के पृथक होने क या को स लका पृथ क करण
कहा जाता है। जल से जब च ान का स पक होता है तो च ान के ख नज म हाइ ेशन क
या होती है। य क च ान के जल सोख लेने से उनके आयतन म वृ हो जाती है।

4.3.5 ा णवग य अप य (Biological Weathering)

च ान के वघटन म वन प तय तथा जीव-ज तु सहयोग दान करते ह। वन प तय वारा


भौ तक तथा रासाय नक दोन कार से अप य होता है। थम वन प त क जड़ भू म म गहराई
म व ट होकर फैलती ह तथा शैल क दरार म व तार करती ह िजससे शैल म तनाव तथा
वघटन होता है। वतीय वन प तय क जड़ म जीवाणु होते ह जो शैल ख नज को ढ ला करते
ह। वन प तय के सड़ने से भी रासाय नक अप य होता है।

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इसी कार अनेक कार के क ड़े-मकोड़े एवं बलकार जीव पृ वी क ऊपर परत म रहते ह, जो
भू म को खोदकर उसे ढ ला व पोला बना दे ते ह, िजसके कारण जै वक अप य क या होती है।
शैल के अप य म मनु य भी अपनी व भ न आ थक याओं के वारा सहयोग दे ता है। वन
के काटने से मानव वारा वान प तक अप य कया जाता है। सु रंग,े खदान तथा सड़क खोदकर
भी मानव अप य म अपना योगदान दे ता है।
बोध न 2-
1. अना छादन क या म सहयोग दे ते ह -
( अ ) अ तजात बल ( ब ) बा हजात बल
( स ) प रवतनकार बल ( द ) उपरो त म से कोई नह ं
2. अप य मु य प से कतने कार का होता है -
( अ ) दो ( ब ) तीन
( स ) चार ( द ) पाँ च
3. अप य को भा वत करने वाले कोई दो कारक ल खये ।
………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………
4. ा णवग य अप य के तीन कारक अथवा अ भकता ल खये ।
………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………

4.4 अपरदन (Erosion)


धरातल के ऊपर बहता हु आ जल, भू मगत जल, पवन, हमा नयाँ, लहर आ द ग तशील साधन
ऊपर परत पर काट-छाँट और घषण करते ह एवं उन पदाथ का प रवहन भी करते ह। इस या
को अपरदन (Erosion) कहा जाता है।

1. भौ तक अपरदन (Physical Erosion) : व भ न आकार के शलाख ड, गोला म,


कंकड़, प थर, बालू कण ग तशील साधन के साथ धरातल य शैल को काटते, घसते
और छाँटते ह, इस या को अपघषण कहा जाता है। जब ये पदाथ आपस म टकराकर

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टू टते ह तो उसे स घषण क या कहा जाता है। इसी कार पवन के काय के
अ तगत शु क अथवा अ शु क े म ढ ले व बार क कण पवन वारा उड़ाकर दूर ले
जाने क या को अपवाहन क या कहा जाता है। गु हकायन या म जल क ती
तरं ग से भंवर उ प न होने पर नद तल म वशाल छ बन जाते ह, जैसे जल
ग तकाऐं (Pot holes) एवं अवन मत कु ड (Plunge pools) आ द। उ पाटन या के
अ तगत अपने माग म पड़ने वाले शलाख ड को हमानी उखाड़ कर अपने साथ वा हत
करके ले जाती है।
2. रासाय नक अपरदन (Chemical Erosion) : जल के कारण रासाय नक या होती है
िजसम पाँच म घुलन या, काब नेट करण, जलयोजन, ऑ सीकरण, जल अपघटन
आ द सि म लत ह। इन याओं से शैल ख ड ढ ले पड़ जाते ह तथा शैल के मू लभू त
ख नज म प रवतन होता है।

4.4.1 अपरदन च क संक पना (Concept of Cycle of Erosion)

अमे रक भू गोल व व लयम मौ रस डे वस ने 1899 म 'सामा य अपरदन च ' (Concept of


Normal Cycle of Erosion) क संक पना तु त क । उनका वचार था क थलाकृ तय का
नमाण व वकास पृ वी क सतह पर ऐ तहा सक म म होता है। पृ वी क सतह पर नवीन
थलाकृ तय का नमाण अ तजात बल वारा होता है, जब क उ ह समा त करने का काय बा य
अपरदनकार शि तयाँ करती ह। इन दोन म अनवरत संघष चलता रहता है एवं अ तत: ऊँचा
उठा हु आ भाग अप य एवं अपरदन क शि तय वारा समतल ाय मैदान के प म प रव तत
हो जाता है। डे वस ने इसे ह सामा य अपरदन च अथवा भौगो लक च (Geographical
Cycle) कहा। अपरदन के कारक म न दयाँ सबसे मह वपूण कारक ह, य क इनके वारा ह
धरातल पर अपरदन का अ धकांश काय स प न होता है।
डे वस के अनुसार 'अपरदन च अथवा भौगो लक च समय क वह अव ध है, िजसके वारा एक
उि थत थल प अपरदन के म वारा अपर दत होकर एक न न आकृ त वह न सम ाय
मैदान म व तत होता है।'' (The cycle of erosion or geographical cycle is a period of
time during which an uplifted landmass undergoes its transformation by the
process of landsculpture ending into a low featureless plain or peneplain). डे वस
ने अपनी संक पना म थल प को संरचना, म तथा अव था का सि म लत प रणाम बताया
है। (Landscape is a function of structure, process and stage). डे वस ने अपनी
संक पना म बताया क जब कोई भू-भाग समु तल से ऊपर उठता है तो अपरदन के कारक
अपना काय ार भ कर दे ते ह, तथा यह ं से अपरदन च का ार भ हो जाता है। डे वस का
वचार था क जब तक थल प का उ थान समा त नह ं हो जाता है तब तक अपरदन ार भ
नह ं होता। उनका वचार था क उ थान क अव ध छोट होती है और अपरदन का म ल बे
समय तक चलाता है। उनका यह भी वचार था क थल प के वकास म संरचना, म एवं
अव था तीन आव यक त य ह िजनके व लेषण वारा ह थल प के वकास को समझा जा
सकता है। बहते जल का काय सबसे अ धक यापक होने के कारण इसके अपरदन च ह
सामा य अपरदन च (Normal cycle of erosion) कहलाता है। डे वस का वचार था क कोई

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भी थलख ड नर तर अपरदन के वारा मश: अपने वकास क व भ न अव थाओं से
गुजरता है। धरातल क सम त वषमताएँ अ त म समा त हो जाती है तथा उि थत भू ख ड एक
सम ाय मैदान के प म बदल जाता है। उ ह ने अपरदन च क तीन अव थाय बतायी ह
िजसको उ ह ने ाफ वारा भी द शत कया है।

च - 4.2 : डे वस का अपरदन च
1. थम अथवा युवाव था (Youth Stage) : इस अव था म थल ख ड का उ थान
समा त होने के प चात ् अपरदन क या ार भ हो जाती है। इस अव था म पहा ड़य
के शखर अपरदन वारा अ धक भा वत नह ं होते, इस लए स रताय छोट तथा दूर-दूर
होती ह। ऊँचे ि थत भाग पर यूनतम वषमताएँ दे खने को मलती ह तथा नद तल म
कटाव वारा अपनी घाट को गहरा करती है। न दय का वाह इस अव था म ती ढाल
के कारण तेज होता है। न दय क घा टयाँ अ य त संकर तथा गहर होती ह। 'V'
आकार क घा टय का नमाण होता है तथा जल पात बनते ह।
2. वतीय अथवा ौढ़ाव था (Mature Stage) : ऊँचे उठे भाग अपरदन क अ धकता के
कारण मश: नीचे होते जाते ह। नद इस अव था म अपनी घाट क चौड़ाई बढ़ती
जाती है। कनार पर अपरदन ौढ़ाव था के ार भ होते ह ार भ हो जाता है। नद
घाट का गहरा होना कम हो जाता है। इस अव था म म द ढाल होने के कारण न दय
क प रवहन मता भी कम हो जाती है।
3. तृतीय अथवा वृ ाव था (Old age) : इस अव था म भू पटल क वषमताएँ कम हो
जाती ह। तथा जहाँ-तहाँ केवल कठोर शैल के ट ले अव श ट के प म दखायी दे ते ह।
पूरा े सम दाय मैदान के प म प रव तत हो जाता है। इस अव था म घा टयाँ
अ धक चौड़ी और उथल हो जाती ह। न दयाँ न न उ चावच के कारण वसप
(Meanders) एवं व तृत बाढ़ के मैदान का नमाण करती ह।

4.4.2 अपरदन च का मू यांकन

डे वड क संक पना को ारि भक वष म यापक या त मल । क तु वतमान म इस संक पना


के आलोचक क सं या म वृ हु ई ह। डे वस वारा थल प के उ थान को कम समय म

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व रत प से होना बताया है जब क यह या म द सतत ् है। इसी कार डे वस का वचार था
उ थान के प चात ् ह अपरदन ार भ होता है जो क ामक है य क उ थान क समाि त क
अपरदन ती ा नह करता। डे वस क संक पना को जमन व वान पक ने गलत, असंगत एवं
न े य बताते हु ए इस संदभ म अपने भ न वचार तु त कये। उनका वचार था क उ थान
एवं अपरदन साथ-साथ स य होते ह, तथा अपरदन च को उ ह ने 'उ थान एवं न नीकरण क
दर एवं दोन के आपसी स ब ध क अव था का योग' बताया।
बोध न-3
1. अपरदन च क सं क पना द -
(अ) ह बो ट ने (ब) रटर ने
(स) डे वस ने (द) उपरो त म से कोई नह ं
2. डे वस ने अपरदन च क सं क पना द वह वष था-
(अ)1899 (ब)1999
(स)1750 (द)1860
3. अपरदन के दो मु य कार ल खये ।
..............................................................................................
..............................................................................................
4. डे वस के अपरदन च क तीन अव थाय ल खये ।
..............................................................................................
................................................. .............................................

4.5 बहते हु ए जल के काय (Working of Running Water)


पृ वी क सतह पर समतल थापक बल के अ तगत बहते हु ए जल का काय सबसे अ धक
मह वपूण है। नद मु य प से तीन कार के काय करती है - अपरदन, प रवहन एव न ेपण।
नद क अपरदन मता जलोढ़क क मा ा अ धक होने से बढ़ जाती है नद के अपरदन का काय
मु य प से अपघषण (Abrasion or Corrasion), सि नघषण (Attrition), जल य या
(Hydraulic Action), घोल करण अथवा स ारण (solution or corrosion) आ द याओं वारा
होता है। अपरदन को नयं त करने वाले कारक के अ तगत मु य प से शैल क सरं चना
(Structure of rocks), जल का आयतन (Volume of water) नद का वेग (Velocity of
river), जलोढ़क क मा ा (Load) आ द को रखा जा सकता है।

4.5.1 अपरदना मक थल प (Erosional Landforms)

(i) गॉज या महाख ड (Gorge) : यह वी आकार क घाट का ह वश ट प है,


िजसके पा व ती होते ह तथा इनक रचना ाय: कठोर च ान यु त े म
होती है। यह अ य त संकड़ी व गहर घाट होती है। यू एस. ए. म इसे कै नयन
(Canyon) कहा जाता है।

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(ii) V-आकार क घाट (V-Shaped Valley) : नद के अपरदन के कारण वी
आकृ त क घाट का नमाण होता है।
(iii) काएँ तथा जल पात (Rapids and Waterfalls) : तल म शैल क
संरचना असमान होने पर नद का जल जब कह ं म द रख कह ं ती ग त से
बहता है तो काओं क उ पि त होती है। दूसर ओर नद का ढाल जब खड़ा
होता है तो जल ऊंचाई से गरता है, िजसके कारण पात उ प न होते ह।

च - 4.3 : जल पात
(iv) जल ग तकाएँ (Pot Holes) : जब नद क तल म व भ न संरचना वाल कठोर
एवं कोमल शैल पायी जाती ह तो बड़े शलाख ड तथा व भ न आकार क शैल
के घसटने व लु ढ़कने से कोमल शैल के थान पर व भ न कार के ग ड का
नमाण हो जाता है बाद म इन ग ड के थान पर जलोढ़क क छे दन (drilling)
या वारा भंवर उ प न होते ह जो गत को ओर गहरा कर दे ते ह, इन गत को
जल ग तका कहते ह ।
(v) नद वे दकाएँ (River Terraces) : नद घाट के े म उ ेपण होने से घाट
का तल ऊपर उठने के कारण वह फर से गहर होने लगती है। इस कार पुरानी
घाट के भीतर एक और संकर घाट बन जाती है और पुरानी घाट के पा व
सोपान क तरह दखायी दे ते ह। अत ' कसी घाट म अनेक बार पुन य वन से
अनेक सोपानी पा व बन जाते ह।
(vi) शैल सोपान (Rocks Benches) : य य प नद वे दकाएँ एवं संरचना मक
सोपान एक समान दखायी दे ते ह क तु इनम अ तर यह है क संरचना मक

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सोपान का नमाण नद माग म पा व पर कोमल व कठोर शैल क ै तज परत
बछ होने पर होता है, य क कोमल शैल शी अपर दत हो जाती ह तथा कठोर
शैल उभर रहती ह।
(vii) नद अपहरण (River Capture) :
इससे आशय एक नद वारा दूसर नद
के जल का अपहरण करने से है, यह
अव था ाय: नद क युवाव था म शीष
अपरदन (Headward erosion) के
कारण होती है।
(viii)नद वसप (River meanders) :
' मये डर' श द क उ पि त तु क म
बहने वाल इस नाम क नद के कारण
हु ई है य क इस नद का माग सपाकार
है। ौढ़ाव था म नद मैदानी भाग म
सीधे माग से नह ं बहकर टे ढ़े-मेढ़े माग
से तथा बल खाती हु ई वा हत होती है
िजसके कारण नद माग म अनेक छोटे -
बडे मोड़ पड़ जाते ह। इ ह ं मोड़ को
नद वसप क सं ा द गयी है।
(ix) सम ाय मैदान (Peneplain) : नद क
अि तम अव था म सम ाय मैदान का
नमाण तब होता है जब नद वारा
ै तज अपरदन करके सतह क
असमानताएँ दूर कर द जाती ह।
यह काय ै तज अपरदन तथा न ेप दोन के वारा
कया जाता है। सामा यत: तरोधी शैल के भाग अवशेष के प म य -त ऊँचे उठे रहते ह,
िज ह मोनाडनॉक (Monadnocks) कहा जाता है।

4.5.2 न ेपा मक थल प (Depositional Landforms) '

(i) जलोढ़ पंख तथा जलोढ़ शंकु (Alluvial fans and alluvial cones) : पवतीय
ढाल से जब न दयाँ जलोढ़क के साथ समतल भाग म वेश करती ह तो उनका वेग
अचानक कम हो जाता है िजससे जलोढ़क पवतीय ढाल के आधार के पास अ वृ ताकार
प म न े पत हो जाते ह, इ ह जलोढ़ पंख कहते ह। य द न ेपण शंकु के आकार
म होता है तो उसे जलोढ़ शंकु कहते ह।
(ii) गर पद य जलोढ़ मैदान (Piedmont alluvial plain) : कई जलोढ़ पंख प र ध क ओर
व तार होने पर पर पर प से मल जाते ह जो संयु त जलोढ़ पंख क रचना करते है।

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प रणाम व प एक व तृत मैदान क रचना कई व तृत पंख के मलने से होती है, उसे
ह गर पद य जलोढ़ मैदान (Piedmont alluvial plain) कहा जाता है।
(iii) गोखु र झील (Ox-how Lake) : बाढ़ के समय वसप क ीवा अ य त सँकर हो जाने
पर कट जाती है, िजससे नद सीधा माग हण कर लेती है। कटे हु ए वसप म जल
भरा रह जाता है, िज ह गोखु र झील कहते ह।

च - 4.5 : नद मोड़ गोखु रनुमा झील का नमाण


(iv) ाकृ तक तटबंध (Natural Levees) : म य के जमाव के कारण नद के दोन पा व
पर कम ऊँचाई वाले कटक के समान ल बे -ल बे ब ध का नमाण हो जाता है, िज ह
तटबंध कहते ह। ये कगार ाकृ तक प से बनते ह, अत : इ ह ाकृ तक तटबंध कहा
जाता है।
(v) बाढ़ के मैदान (Flood Plains) : नद क ौढ़ाव था म वषा के समय जब बाढ़ का
जल ाकृ तक तटबंध को तोड़कर व तृत भाग म फैल जाता है। इन बाढ़ से कांप
म ी का व तृत े म न ेपण हो जाता है, तो उससे उवर मैदान क रचना होती है।
इसी कार के मैदान को बाढ़ का मैदान कहा जाता है।
(vi) डे टा (Delta) : कांप म ी के न ेप से न मत नद क वृ ाव था म न मत यह
मह वपूण थलाकृ त है। ले टन भाषा के ∆ (डे टा) वण के नाम पर भु जाकार आकृ त
का नामकरण कया गया है।

4.6 हमनद (Glaciers)


हम का योगदान थलाकृ तय के नमाण म बहु त ह मह वपूण है। वॉरसे टर महोदय के अनुसार
'' हमदन अथवा हमानी हम क एक ऐसी रा श है जो धरातल पर अपने संचय के थान से धीरे -
धीरे खसकती है।'' (A glacier is mass of snow and ice that moves slowly over the
land away from its place of accumulation.” Worcester) हम े से गु व के कारण
बहु त धीमे सरकने वाले हम के समू ह को हमनद कहा जाता है। हम रे खा (snow line) हम
े क नचल सीमा को कहा जाता है, इस रे खा के ऊपर सदै व हम जमी रहती है। हम े के
वकास तथा उ पि त के लए जो त य आव यक ह, उनम मु य ह - हमपात वष पय त अथवा
पया त अव ध म हो, हम पघल न जाये इस लये वष भर तापमान कम रहने चा हये, हम के
सं चत रहने के लए थल का ढाल सामा य सू यातप तथा ती पवन से सु र त होना चा हये।

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4.6.1 हमनद के कार (Types of Glaciers)

हमनद आकार, नमाण, या, व प आद क ि ट से कई कार के होते ह। हमनद प


एवं आकार के आधार पर चार कार के होते ह जैसे हमटोपी, हमचादर, घाट तथा गर पद य।

4.6.2 हमनद के काय (Work of Glaciers)

हमनद अपरदन के साथ-साथ प रवहन एवं न ेपण का काय भी करते ह।

4.6.3 अपरदना मक थल प (Erosional Landforms)

(i) यू आकार क घाट (U-shaped valley): घाट हमनद पवतीय भाग म इस कार
क घा टय से होकर वा हत होते ह, िजनके पा व खड़े ढाल वाले होते ह तथा तल
चौरस एवं सपाट होती है। अं ेजी के 'यू, अ र से हमनद क ये घा टयाँ मलती हु ई
होती है। इसी कारण इ ह 'यू, आकार क आकार क घा टयाँ कहा जाता है।

(ii) लटकती घाट (Hanging Valley) : हमनद क मु य घाट गहर तथा यू आकार क
होती है। मु य घाट म ऊँचाई से मलने वाल सहायक घाट लटकती हु यी दखाई दे ती
है। इस लये ऐसी सहायक हमनद क घा टय को लटकती घा टयाँ कहा जाता है।

च - 4.7 : लटकती या नलि बत घाट (Hanging Valleys)


(iii) सक अथवा हमग र (Cirque or Corrie) : एक अ वृ ताकार या कटोरे के आकार
का वशाल गहरा गत हमनद क घाट के शीष भाग पर सक के प म दखाई दे ता है।
इसका पा व या कनारा खड़े ढाल वाला होता है। गहर सीट वाल आरामकुस के समान

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इसका आकार होता है। ये ाय: हम से भरे हु ए होते ह। इसी कारण इ ह हमग र या
हमगत कहते ह।

(iv) टान (Tarn) : जल भरने पर सथ पी बे सन एक लघु झील के प म बदल जाता


है, िजसे सथ झील या टान कहा जाता है।
(v) हॉन या ग र ग ृं (Horn) : कसी पहाड़ी के दोन ओर जब सक एक-दूसरे क ओर
पीछे क तरफ कटने लगते ह, तो उनके म य का भाग अपर दत होकर नुक ला होने
लगता है। धीरे -धीरे पूण पेण वक सत चोट का नमाण हो जाता है।

च - 4.9 : हॉन या ग र ग ृं (Horn)


(vi) नुनाटक(Nunatak) : व तृत हम े म उभरे हु ए ट ले जो वीप के समान
दखायी दे ते ह, नुनाटक कहलाते ह।
(vii) ग ृं व पु छ (Crag and Tail) : वालामु खी लस, बेसा ट या अ य कोई शला के
स मु ख ढाल पर हमानी के वाह माग म हम क घषण या से उबड़-खाबड़ ढाल
बन जाता है, िजसे ग ृं कहा जाता है। म द व सम वमु ख ढाल पर हम सरलता से
उतर जाता है, उसे पु छ कहा जाता है।

च - 4.10 : ग ृं व पु छ (Crag and Tail)

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(viii) मेष शला या रॉश मु टाने )Roche moutonne) : हमनद के माग म ट ले के
सामने वाले ढाल पर अपघषण या से चकना व सपाट ढाल बन जाता है। ले कन दूसरे
ढाल पर ऊबड़-खाबड़ ढाल बना रहता है। दूर से दे खने पर इस कार क आकृ त भेड़
क पीठ के समान दखायी दे ती है।

(ix) हम सोपान (Glacial Steps) : शैल संरचना क भ नता के कारण हमनद के


अपरदन वारा उ प न थल प हमसोपान होता है। इन सोपान को वृहदाकार प के
कारण दै याकार सोपान (Giant Staircases) भी कहते ह।

च - 4.12 : हम सोपान (Glacial Steps)


(x) फयोड (Fiords): जलम न हमानीकृ त घा टय को फयोड कहा जाता है। फयोड एक
तरह का यू आकार का तट होता है। ये गहरे जल के सागर य भाग होते ह िजनके पा व
खड़े ढाल वाले होते ह।

4.6.4 न ेपा मक थल प (Depositional Landforms)

च - 4.13 : ले सयर वारा न े पत थल प


1. हमोढ़ (Moraines) : हम नद वारा न े पत पदाथ को हमोढ़ कहते ह। हमानी के
व भ न भाग म के अनुसार इनका नामकरण कया जाता है, जैसे पाि वक हमोढ़,
म य थ हमोढ़, तलवत हमोढ़, अि तम हमोढ़ आ द।

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च -4.14 : हमोढ़ के कार
2. म लन (Drumlin) : म लन गोला म मृि तका (Boulder clay) वारा न मत एक
कार के ट ले ह जो हमनद के न ेप वारा न मत थल प ह। इनका आकार कटे हु ए
उ टे अ डे या उ ट नौका क तरह होता है।

च - 4. 15 : म लन (Drumlin)
3. ए कर (Esker) : ये लहरदार ती ढाल वाले ल बे, संकरे तथा स पल आकार वाले
कटक होते ह, िजनक रचना बजर , रे त, कंकड़-प थर आ द से होती है।

च -4.16 : मालाकार ए कर
4. केम (Kame) : रे त व बजर से न मत हमानी के अ भाग म तीव ढाल यु त ट ल को
केम कहा जाता है।
5. के टल (Kettle) : बड़े हमख ड के पघलने से इनक रचना होती है ये केम के वपर त
गत प मे होते ह।

बोध न -4
1. बहते जल वारा न मत अपरदना मक थल प है -
( अ ) दै य सोपान ( ब ) रॉशमु टाने
( स ) नद वसप (द) म लन

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2. हमनद वारा न मत न े पा मक थल प है -
( अ ) फयोड ( ब ) हमोढ़
( स ) गॉज (द) ाकृ तक तटबं ध
3. बहते हु ए जल वारा न मत दो न े पा मक थल प के नाम ल खये ।
4. हमनद वारा न मत दो अपरदना मक थल प के नाम ल खये ।

4.7 सारांश
थलाकृ तय के नमाण म अनेक शि तयाँ एवं म स य रहते ह। शैल संरचना एवं वकास
क अव था थलाकृ तय का व प नधा रत करने म वशेष योगदान दे ती ह भू पटल पर
अ तजात याओं वारा थल प क रचना होती है तथा बा हजात बल व भ न साधन एव
म वारा धरातल क काँट-छाँट म संल न रहते ह। धरातल पर थल प का वकास च य
प म अपरदना मक म करते ह। डे वस ने अपनी संक पना म थल प के वकास क
च य संक पना तु त करते हु ए बताया क येक थलख ड वकास क तीन अव थाओं -
युवा, ौढ़ एवं वृ ाव था से गुजरता है। न दयाँ व हमन दयाँ अपरदन, प रवहन व न ेपण वारा
व वध थलाकृ तय का नमाण करती ह।

4.8 श दावल च ान
च ान(rocks) : शैल
थलम डल (Lithosphere) : पृ वी क सतह का ऊपर भाग
अवसाद (Sedimentary) : परत से बनी
अना छादन (Denudation : च ान के काटने, छाँटने, घसने तथा ीण बनाने क या
अप य (Weathering)) : च ान का अपने ह थान पर टू टना-फूटना
सू यातप (Insolation) : सू य से ा त होने वाला ताप

4.9 स दभ थ
1. Holmes, A. : Principles of Physical Geology, Thomas
Nelson and Sons, Newyork.
2. Mohkhouse, F.J. : Principles of Physical Geology, University
of London Press, 1962
3. Steers, J.A. : The Unstable Earth, Metheu & Company
Limited, London, 1961
4. Strahler, A.N. : Physical Geography, John Wiley & Sons,
New York.
5. Thornbury : Principles of Physical Geomorphology.
6. Savindra Singh : Physical Geography, Prayag Pustak
Mandir, Allahabad, 2006
99
7. शमा एवं म ा : भौ तक भूगोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2005
8. चौहान एवं गौतम : भौ तक भूगोल, र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2003

4.10 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. स 2. ब
1. गम एवं व पदाथ के ठ डा होकर जमने के कारण हु आ
2. नीस, वाटजाइट, श ट, संगमरमर
बोध न-2
1. ब 2. ब
1. अ च ान का संगठन व संरचना, ब. वन प त क मा ा
2. अ वन प त, ब. जीवज तु
बोध न-3
1. स 2. अ
1. अ भौ तक अपरदन, ब. रासाय नक अपरदन
2. अ युवाव था, ब. ौढ़ाव था, स वृ ाव था
बोध न-4
1. स 2. ब
1. अ जलोद, ब. बाढ़ के मैदान
2. अ यू - आकार क घाट , ब. सक अथवा हमग वर

4.8 अ यासाथ न
1. अवसाद च ान से या आशय है?
2. सम ाय मैदान कसे कहते ह?
3. अप य से या ता पय है?
4. स घषण कसे कहते ह?
5. शैल म काया तरण से आप या समझते ह?
6. अपघषण के बारे म जानकार द िजये।
7. अपरदन च क अव थाय या ह?
8. जल- पात कसे कहते ह?
9. सक अथवा हमग वर क जानकार द िजये।
10. च ान का वग करण करते हु ए आ नेय च ान क वशेषताऐं बताइये।
11. अप य से या आशय है? अप य को भा वत करने वाले कारक का वणन क िजये।
12. डे वस वारा दये गये अपरदन च क या या क िजये।
13. बहते हु ए जल के काय एवं उससे न मत थल प का वणन क िजये।
14. हमानी के अपरदन वारा न मत व भ न थलाकृ तय का वणन क िजये।

100
इकाई - 5 : पवन , लहर एवं भू मगत जल के काय,
भू अपरदन व संर ण

इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 पवन के काय
5.2.1 पवन वारा अपरदन
5.2.2 अपरदन ज य भू आकार
5.2.3 पवन का प रवहन काय
5.2.4 न ेप ज य भू आकार
5.3 लहर के काय
5.3.1 लहर
5.3.2 लहर वारा अपरदन
5.3.3 अपरदन ज य भू आकार
5.3.4 लहर का प रवहन काय
5.3.5 न ेप ज य भू आकार
5.4 भू मगत जल के काय
5.4.1 अपरदन ज य भू आकार
5.4.2 प रवहन काय
5.4.3 न ेप ज य भू आकार
5.5 भू म संसाधन एवं संर ण
5.5.1 भू म अवनयन
5.5.2 भू संर ण
5.6 सारांश
5.7 श दावल
5.8 संदभ थ
5.9 बोध न के उ तर
5.10 अ यासाथ न

5.0 उ े य
इस अ याय के अ ययन से आप -
 अपरदन के साधन के प म पवन के काय को समझ सकगे,
 अपरदन के साधन के प म लहर के काय को समझ सकगे,
 अपरदन के साधन के प म भू मगत जल के काय को समझ सकगे तथा

101
 भू अपरदन क सम याओं व उनके संर ण के मह व को जानगे।

5.1 तावना
भू तल को भा वत करने वाले अनेक अपरदन के साधन ह जो अपनी याओं वारा व भ न
थलाकृ ि तय का नमाण करते रहते ह। पछले अ याय न दय तथा हमन दय वारा न मत
थलाकृ ि तय का वणन कया जा चु का है। उससे प ट हो गया होगा क अपरदन के व भ न
साधन भ न- भ न कार के थल प बनाते ह। यह त य पवन , लहर व भू मगत जल के
काय पर भी लागू होता है। इनके काय को इस अ याय म सि म लत कया गया है। ये सभी
अपरदन के साधन मलकर भू-अपरदन अथवा भू- रण क सम या को ज म दे ते ह। मानव
स हत सम त जीव जगत के लये भू म एक मह वपूण संसाधन है। अत: इसके संर ण क
आव यकता है।

5.2 पवन के काय


ग तशील वायु (Air in Motion) को पवन कहते ह। पवन के काय का धान े ऊ ण शु क
म थल होते ह। पृ वी का लगभग एक- तहाई थल भाग शु क और अ शु क है। इन े म
सू यताप या पाले के भाव के कारण च ान म भौ तक ऋतु अप य होता रहता है। भौ तक
अप य वारा वखि डत च ान पर पवन याशील रहती ह।
पवन के काय तीन कार के होते ह - (1) अपरदन, (2) प रवहन, (3) न ेप। इन काय वारा
पवन व वध भू व प का नमाण करती ह।

5.2.1 पवन वारा अपरदन

पवन वारा अपरदन चार कार से होता है -


1. अनावृतण- ये माग म पडने वाल म ी क परत को उडा ले जाती ह, िजससे धरातल
का वह भाग काला तर म म ी, बालू कंकड़ इ या द से वह न होकर ठोस च ान के प
म उभर आता है। उसके बाद वहाँ भौ तक अप य याशील हो जाता है। इस या को
अनावृतण कहते ह।
2. अपवाहन- कभी-कभी पवन इतनी वेगवती व बल होती ह क वे अप य वारा ढ ल क
गई च ान क पूर परत को उडा ले जाती ह। इस या को अपवाहन (Deflation)
कहते ह।
3. अपघषण- पवन वारा अपरदन क तीसर या अपघषण (Abrasion or Corrasion)
है। बालू के कण से यु त पवन अपरदन का शि तशाल कारक बन जाती ह। बालू के
कण पवन वारा अपघषण के यं का काय करते ह। न न च ान पर पवन के ये यं
सरे स कागज (Sand Paper) के जैसा काम करते ह। पवन वारा अपघषण धरातल के
समीप तो होता ह है, कु छ ऊपर उठ च ान पर सबसे अ धक होता है। य क वहाँ
पवन क ग त अ धक तेज रहती है और उसके साथ उड़ाये गये बालू के कण क मा ा
भी सवा धक रहती है। अ धक ऊँचाई पर पवन के यकार काय कम होते ह, य क
वहाँ बालू के सू म कण ह जा पाते ह। इससे वहाँ पया त घषण नह ं होता।
4. सि नघषण- शलाख ड व च ानचू ण आपस म घ षत होकर या रगड़ खाकर भी टू टते ह।

102
इस या को सि नघषण (Attrition) कहते ह।

5.2.2 अपरदन ज य भू आकर

1. पवनगत (Blow-Outs) - पवन क अपवाहन या से म थल दे श म ग डे बन


जाते ह। सहारा म थल म कतारा गत सागरतल से 128 मीटर नीचा है। ती गामी व
बल पवन वारा कई बार च ान क मोट परत के उखाड़ दये जाने के कारण भी ऐसे
गत बन जाते ह।
2. जाल दार शला (Stone-Lettice) - जहाँ च ान म कु छ मु लायम और कु छ कठोर रवे
एक साथ होते ह या कठोर और मु लायम शलाख ड म त रहते ह, वहाँ पवन के हार
से मु लायम रवे या मुलायम संयोजक घस जाते ह जब क कठोर रवे कम घस पाते ह।
इससे च ान क सतह खु रदर व जाल दार हो जाती है। ऐसी सतह वाल च ान को
जाल दार शला कहते ह।
3. यारडांग (Yardang) - पवन क अपघषण या से उ प न शु क दे श क यह एक
व श ट आकृ त है। च लत पवन
क दशा म जब कठोर और
मु लायम च ान क परत कुछ झुक
हु ई होती ह तभी इस आकृ त का
नमाण होता है। य क बीच बीच
क मुलायम परत पवन के घषण
के वारा अ धक कट जाती ह तथा
दोन ओर क कठोर परत कम कटती ह। दूर से दे खने पर एक दूसरे के समाना तर खड़ी
च ान और इनके बीच नाल नुमा ग ढे वच
य उपि थत करते ह।
4. छ क (Gara) - पवन क घषण या से
च ान का नचला भाग अ धक कट जाने के
फल व प बनी यह छ क जैसी आकृ त होती है।
जब पवन वभ न दशाओं से चलती ह तो
च ानी ट ला चार तरफ से कट जाता पवन ,
लहर रख भू मगत जल के काय, भू अपरदन व
है। उससे इस कार क आकृ त बन जाती है।
5. यूजे न (Zeugen) - ऐसी आकृ त के
नमाण के लए यह आव यक है क
मु लायम और कठोर च ान क परत
ै तज अव था म एक के नीचे दूसर
समाना तर बछ हु ई ह । ऊपर कठोर
शैल क परत क दरार म ओस भर जाती
है और रात म जब तापमान अ यंत न न

103
हो जाता है तब वह हम बनकर दरार को चौड़ा कर दे ती है। दन के समय पवन उन
दरार से शलाचूण को उड़ा ले जाती है। इससे गहराई म च ान का अपरदन होने लगता
है। ऊपर कठोर च ान क अपे ा नचल मु लायम च ान का अपरदन अ धक तेजी से
होता है। ऐसी आकृ तय म य -त कठोर च ान क टो पयाँ बची रहती ह िजसे यूजेन
कहते ह।
6. भू त भ (Demoiselles) -
पवन के अपरदन के कारण कठोर
शलाख ड कम घसने से ख भे क
तरह खड़ा रहता है। जब क इसके
आसपास क मु लायम च ान अ धक
घसकर नीची हो जाती ह। इन कठोर
च ान क उभर हु ई त भनुमा आकृ त को भू त भ कहते ह।
7. गु बदाकार ट ले (Inselberge) - म थल म पवन के भावकार अपरदन के
फल व प मु लायम च ानी
भाग कट-छँ टकर समतल ाय:
बन जाता है। ले कन य -त
कठोर च ान से न मत गु बदाकार च ानी ट ले उभरे रह जाते ह। इ ह गु बादाकार ट ले
कहते ह।

5.2.3 पवन का प रवहन काय

पवन वारा बालू का प रवहन दो कार से होता है -


(1) पवन के साथ उडता हु आ और (2)पवन वारा सरकता हु आ (Surface Creep)। सू म और
ह के कण उड़ते हु ए प रव हत होते ह। अपे ाकृ त मोटे कण बार-बार उठाकर आगे सरकाये जाते
ह। तेज ग त होने पर, जैसे आँ धय म, ये कण उड़ने भी लगते ह। भार कण या छोटे -बड़े कंकड़
धरातल पर लु ढ़कते हु ए आगे बढते ह।

5.2.4 न ेप ज य भू आकार

1. बालु का- तूप (Sand-dune) - ये तेज पवन के साथ लु ढ़कते हु ऐ बालू कण के न ेप से


बने बालू के ट ले या तू प होते ह जो म थल म मलते ह। ये तू प एक जगह ि थर
न रहकर खसकते रहते ह। ये तू प पवन क दशा म आगे क ओर खसकते रहते ह।
इसके नमाण के लए चु र मा ा म बालू का वाह तथा पवन म माग म बाधा होना
आव यक है। बालु का तू प आकार के अनुसार दो कार के होते ह - (क) पवनानुवत
बालु का तूप (Longitudinal sand dune or Seif) (ख) अनु थ बालु का तू प
(transverse sand dune or Barkhan)।

च - 5.6 : बालु का तू प का खसकना

104
1. पवनानुवत बालु का तू प- ये तूप पवन क दशा के सामाना तर बनते ह। ये ल बे
ट ले के प म रहते ह। इनका पवनो मुखी ढाल धीमा तथा पवन वमु खी ढाल ती होता
है। सहारा म इ ह सीफ (Seif) कहते ह।
2. अनु थ बालु का तू प -ये तू प पवन क दशा के आड़े या ल बवत ् होते है। अथात ्
इनका व तार पवन क दशा के समकोण होता है। कई अनु थ तू प अध च ाकार
आकृ त म फैले रहते ह। इ ह बरखान कहते ह। इनक अधच कार भु जा नतोदार तथा
दूसर भु जा उ नतोदर ढाल क होती है।
3. उ म च ह (Ripple Marks) - जहाँ पवन म द ग त से चलती ह, वहाँ बालु का धरातल
पर लहरनुमा च न मलते ह। इ ह उ म च न कहते ह। पु कर व बूढा पु कर तथा
जैसलमेर के नकट सम के ट ल पर इस कार के उ म च ह दे खे जा सकते ह।

च - 5.7 : बरखान
4. लोयस (Loess) - म थल म धू ल भर आं धयाँ चला करती ह। इन आँ धय म बहु त
बडी मा ा म म ी एक थान से दूसरे थान तक उडक़र जमा होती रहती है। इसे
लोयस कहते ह। लोयस के मु य े उ तर चीन, म य यूरोप तथा उ तर अमे रका का
मसी सपी- दे श है। लोयस म ी बड़ी उपजाऊ होती है।
5. लाया (Playa) - पवन क अपवाहन या वारा बने पवन गत म जल एक त हो
जाने से खारे पानी क झील बन जाती है, िज ह लाया कहते ह।
बोध न - 1
1. पवन के अपरदन ज य भू आकार यु म है -
( अ ) बालु का तू प - छ क ( ब ) यारडां ग - यू जे न
( स ) बरखान - भू त भ ( द ) लोयस - छ क। ( )
2. पवन का भाव े होता है -
( अ ) शीत म थल ( ब ) नद बे सन
( स ) बाढ़ के मै दान (द) उ ण म थल। ( )
3. जो पवन के अपरदन क व ध नह ं है -
( अ ) अपवाहन ( ब ) अपघषण
( स ) घोल ( द ) सि नघषण। ( )

5.3 लहर के काय


व भ न आ त रक एवं बा य शि तय के कारण जलरा श सदै व ग तशील रहती है। सामु क जल
क ग त व धय के तीन मु य प ह। (1) लहर, (2)धाराएं व (3) वार भाटा। इस अ याय म
लहर एवं उनके काय का वणन कया गया है।

105
5.3.1 लहर

जैसे जलाशय म प थर फकने पर तेज हवाएँ चलने पर जल म लहर चलने लगती ह। वैसे ह
महासागर य जल म भी लहर चला करती है।
य प से ऐसा तीत होता है क लहर म
जल आगे बढ़ता है। क तु वा तव म जलकण
आगे नह ं बढ़ते, वरन ् एक ह थान पर ऊपर-
नीचे ग त करते ह। यह ग त गोलाकर होती है
जैसा क च सं या 5.8 म दशाया गया है।
जलकण क ग त गोलाकार पथ म होने के
कारण यह म होता है क जलकण आगे बढ़ रहे ह। यह गोलाकार ग त जल के एक कण से

दूसरे कण म आगे क ओर थाना त रत होती है। इसके कारण यह म पैदा होता है क लहर
आगे बढ़ रह ह। जल क गोलाकार ग त म सबसे ऊपर के भाग को शीष (Crest) एवं सबसे
नीचे के भाग को ोणी (Trough) कहते ह। दो शीष के म य क दूर लहर क ल बाई कहलाती
है। इ ह च सं या 5.9 म द शत कया गया है।

5.3.2 लहर वारा अपरदन

लहर वारा अपरदन क या चार कार क होती है -


1. घोल या (Solution) -सामु क जल एवं च ान क रासाय नक संरचना के कारण
तट य शैल के कु छ भाग घुल जाते ह। िजसे घोल या कहते ह।
2. घषण या (Corrasion) -लहर के साथ वेग से कंकर-प थर तट य शैल से टकराते ह
िजससे होने वाले तट य शैल के अपरदन को घषण या कहते ह।
3. सि नघषण या (Attrition) -लहर के साथ बहकर आये कंकर-प थर आपस म भी
टकराकर टू टते रहते ह। िजसे सि नघषण कहते है।
4. जल य या (Hydraulic Action) - लहर जब तट य शैल से टकराती ह तो शैल क
दरार म उपि थत हवा पर इनका दबाव पडता है। लहर के लौटने पर दबी हु ई हवा पुन :
फैलती है। इस कार दरार म लहर के कारण बार-बार हवा के दबने व फैलने से शैल
म य होता है।
लहर के तीन काय होते ह - (1) अपरदन, (2) प रवहन एवं (3) न ेप। लहर के अपरदन एवं
न ेप काय से तट य े म वभ न कार के भू आकार बनते ह।
लहर के अपरदन काय को कई कारक भा वत करते ह।

106
(अ) लहर क शि त -लहर का वेग, उनक ऊँचाई एवं उनके साथ वा हत होने वाले शलाख ड
क मा ा उसक शि त का तीक होते ह। लहर िजतनी ऊँची एवं वेगवती होती ह, उनक
हार मता उतनी ह अ धक होती है। लहर के साथ बहकर आने वाले शलाख ड औजार
का काय करते ह।
(ब) तट य शैल क संरचना - तट य शैल र मय ह तो उनम लहर का जल बार-बार वेश
करके उ ह कमजोर बनाता रहता है। अत: ऐसी शैल म अपरदन शी और ती दर से होता
है। इसके वपर त अर च ान म अपरदन कम एवं धीमी ग त से होता है।
(स) तट य शैल क कठोरता -तट य े क कठोर च ान म अपरदन कम तथा मु लायम शैल म
अपरदन अ धक होता है।

(द) शैल परत का नमन (Dip of Layers) - य द शैल परत झु काव तट क ओर हो तो इनक
दरार एवं चटकन म जल वेश से ये ढ ल पड़ जाती ह। इससे इनका अपरदन शी होता
है। तट से वमु ख नमन होने पर य काय धीमी ग त से होता है ( च सं या 5.10)।
(य) शैल परत का व यास - तट य े म शैल क परत ल बवत ् दशा म होने पर अपरदन
काय धीमी ग त से होता है। परत आड़ी होने पर अपरदन काय ती ता से होता है य क
मु लायम शैल का य अ धक हो जाने से उनके ऊपर क कठोर शैल क परत के ह से
वयं टू ट कर गरते रहते ह ( च सं या 5.11)।
(र) लहर के आ मण क दशा - य द लहर तट य शैल पर तरछ टकराती ह तो उनसे अपरदन
काय कम तथा सीधे आ मण से उनका अपरदन अ धक होता है।

5.3.3 लहर के अपरदन से बने भू आकार

सामु क भृगु (Sea Cliff) - तट य े म सबसे अ धक


य शैल क नचल परत म होता है। ऐसा नर तर होने
से ऊपर का काफ भाग आधारह न हो जाता है एवं वत:
टू टकर गरता रहता है। इससे तट य े म ल बवत
कनार क रचना होती है िजसे सामु क भृगु कहते ह,

(च - 5.12)।
खा ड़याँ तथा समु ा भमुख कगार (Bays and
Promonteries) - तट य े से आड़ी दशा
म मश: जमाव पर ये भूआकृ तयाँ बनती ह।
मु लायम परत अ धक घसने से खा ड़याँ बन
जाती ह। कठोर शैल क परत कम अपरदन
के कारण समु क ओर बाहर नकल रहती ह। ( च सं या 5.13)।

107
अ डाकार कटान (Coves)- मु लायम व कठोर शैल क
परत का मक जमाव तट के समाना तर होने पर इस
कार क भू आकृ त का नमाण होता है। कठोर शैल क
परत म दरार से होकर लहर का जल भीतर भाग तक
वेश कर जाता है। अ दर पहु ँच कर वह मुलायम शैल
क परत को अ धक काटता है िजससे उसम अ डाकार
कटान बन जाते ह। द णी इं लै ड के तट पर इस कार
क भू आकृ त मलती है ( च सं या 5. 14)।
सागर य गुफाएं (Sea Caves) -तट य े म कठोर शैल के नचले भाग म कोई कमजोर भाग
होने पर लहर वारा अ धक कट जाता है। उस खोखले थान म लहर का जल हवा को दबाता
रहता है। लहर के पीछे हटने पर दबी हु ई हवा पुन : फैलती है। इस या क पुनरावृि त के
कारण यह खोखला ग डा गहरा होकर गुफा का प धारण कर लेता है।
धम छ (Blow Holes)- सागर य
गुफाओं के पूरे वार पर लहर का
अ सत जल चढ़ जाने से उसके भीतर
क हवा दबती है। यह दबाव कभी-कभी
इतना अ धक होता है क उससे गुफा क
छत का कोई ह सा टू ट कर छे द बन
जाता है। उसे ध म छ कहते ह।
मेहराब (Arch) - समु क ओर फैल हु ई शैल का कु छ भाग य द कमजोर हो तो लहर के वाह
से वह भाग शी ह कट कर एक आर-पार छ बन जाता है। धीरे -धीरे यह छ बड़ा होकर एक
वशाल वारा का प ले लेता है इसे मेहराब कहते ह ( च सं या 5.15)।
अल त भ (Stacks) -उ त मेहराब क कभी-कभी छत टू ट कर गर जाती है तो मु य शैल से
उसका एक भाग त भ के प म अलग खडा रह जाता है। िजसे अल त भ कहते ह।
तरं ग घ षत चबूतरा (Wave cut platform) - सामु क भृगु के नमाण क या सतत चलती
रहने से भृगु पीछे हटता रहता है एवं उसके स मु ख छछले जल म डू बा हु आ चबूतरा बन जाता है
िजसे तरं ग घ षत चबूतरा कहते ह।

5.3.4 लहर का प रवहन काय

तट य े म अपरदन से लहर अपने साथ म याँ, कंकर-प थर आ द बहा कर लाती है। इसका
कु छ भाग सागर तट य े म जमा हो जाता है एवं ह के म ी के कण पानी म मले रहते ह
जो लहर वारा अपरदन क या म औजार का काय करते ह।

5.3.5 न ेप ज य भू आकार

तरं ग न मत चबूतरा - तट य े म अपरदन से ा त शलाख ड समु कनारे पर जमा होते


रहते ह िजसके प रणाम व प एक समतल चबूतरे जैसी आकृ त बन जाती है। यह तरं ग न मत
चबूतरा कहलाता है।

108
पु लन (Beaches) - लहर वारा तट य शैल के अपरदन से ा त शलाख ड तट के नकट ह
जमा हो जाते ह। इससे तट य भाग उथला हो जाता है। बालू,कंकर-प थर आ द के बने इस उथले
भाग को पु लन कहते ह जो पयटक के लए समु तट य सैर का मनोरंजन थल होता है।
रो धका (Bars) - समु तट पर अपर दत
शलाख ड का जमाव कई बार एक
समाना तर भि त का प ले लेता है। इसे
रो धका कहा जाता है। तट से कु छ दूर पर
इस कार के न ेप हो जाने से अपतट य
रो धका बनती है।
संल न भि त (Spit) - लहर वारा अपर दत शलाख ड के आडी भि त के प म जमाव को
संल न भि त कहा जाता है। इसका एक सरा थल से जु डा रहता है और दूसरा सरा समु क
ओर नकला रहता है ( च सं या 5.16)। मु य भू म को कसी वीप से अथवा दो वीप को
आपस म जोड़ने वाल भि त को संयोजक
रो धका कहा जाता है।
अंकु श (Hook)- यद कसी भि त का
समु वत व तार-चाप क आकृ त म हो
जाये तो वह भि त अंकु श कहलाती है ( च -
5.17 : अंकुश)। थल से जु ड़ी हु ई यह
भि त हु क क आकृ त समु क ओर फ़ैल
रहती है इस के म य घर हु ई खाड़ी को लैगन
ू कहते है।

बोध न- 2
1. पर पर स बि धत भू आकार ह -
( अ ) अकं ु श व भृगु ( ब ) पु लन व मे ह राब
( स ) मे ह राब व ध म छ ( द ) गु फाएँ व पु लन ( )
2. अल न त भ िजस भू - आकार के य से बनता है , वह है -
( अ ) भृगु ( ब ) अ डाकार कटान
( स ) पु लन ( द ) मे ह राब ( )
3. लहर के औजार के टकराने से होने वाला अपरदन कहलाता है -
( अ ) घोल ( ब ) सि नघषण
( स ) जल य दाब ( द ) घषण ( )
4. लहर क िजस या म शलाख ड पर पर टकरा कर टू टते ह , वह है -
( अ ) घोल ( ब ) स घषण
( स ) घषण ( द ) जल य दाब। ( )

109
5.4 भू मगत जल के काय
धरातल पर बहते हु ए जल क भाँ त भू मगत जल भी काफ बड़े े म प रवतन करने म सफल
होता है। बहते हु ए जल के वपर त इसक या बहु त म द और भ न होती है। इसका काय
भौ तक अपरदन के थान पर रासाय नक अ धक होता है। य य प इसके वारा अपरदन, प रवहन
और न ेपण तीन काय कये जाते ह तथा प भू मगत जल का भू आकार पर जो भाव होता है,
वह मु यत: वलयन और न ेपण के कारण ह होता है। चू ना दे श म इन याओं वारा बनने
वाले भू आकार को का ट भू य (Karst Topography) कहते ह।

5.4.1 अपरदन ज य भू आकार

भू मगत जल शैल रं वारा भू म के अ दर वेश करता है। अत: उसका काय े वह ं घोल
र तक सी मत रहता है। इसी कारण भू मगत जल क ग त बहु त ह म द होती है। म द ग त
होने से भू मगत जल वारा भौ तक अपरदन
बहु त ह कम होता है। क तु रासाय नक
अपरदन (Chemical erosion) के प म
इसका काय अ वतीय है। रासाय नक
अपरदन मु यत: घोल के प म होता है।
काबनयु त वषा का जल चू ने क शैल पर
गरता है तो वह उ ह शी ता से घुला दे ता है। इस घोल- या से ह भू मगत चू ने एवं ख ड़या
दे श म व श ट भू आकार का नमाण करता है।
1. घोल र (Sink Holes) - जब काबन-डाइ-ऑ साइड यु त वषा का जल चू ने क
च ान पर बहता है तो घोल- या वारा उसम छोटे -छोटे र बना दे ता है। इन र
से होकर जल भीतर वेश करता रहता है। इन र क आकृ त क प (Funnel
Shaped) के जैसी होती है। लगातार जल व ट होते रहने से इनके नचले भाग म
बेलनाकार चौड़ी न लकाऐं बन जाती है। िज ह पोनोर (Ponor) कहते ह।
2. वलय र (Swallow Holes) - घोल र धीरे -धीरे घोल या वारा चौड़े होते जाते
है। ऐसे अपे ाकृ त बड़े र को ह वलय र कहते है।
3. डोलाइन (Doline) - ये अपे ाकृ त और भी बड़े आकार के वलय र होते ह। इनक
आकृ त बेलनाकार (Cylindrical) अथवा क प के समान होती है। समा यत: ये 10 मीटर
चौड़े और 2 से 15 मीटर गहरे होते ह।
4. उवाला (Uvala) - नर तर पाि वक अपरदन के कारण अनेक डोलाइन आपस म मल
जाते ह, िजससे व तृत गत बन जाता है। इन व तृत गत को उवाला कहते ह। इनम
ाय: न दयाँ लु त हो जाती ह िजससे उनके आगे क घा टयाँ सू ख जाती ह। इ ह शु क
घा टयाँ (Dry Valleys) या अ धी घा टयाँ (Blind Valleys) कहते ह।
5. पो जे (Polje) - कई उवाला के मल जाने से अ य त व तृत खाइयाँ बन जाती ह। ये
व तृत खाइयाँ ह पो जे कहलाती ह। इनक द वार ती ढाल वाल होती ह इनका
व तार 250 वग कलोमीटर तक पाया जाता है। पंचमढ़ के नकट वाटसमेट नामक
थान पर यह भू आकार दे खने को मलता है ।
110
6. ह स (Hums) - मु लायम च ान क अपे ा कठोर चू ने क च ान कम घस पाती ह।
अत: कठोर च ान से न मत भाग छोटे -छोटे ट ल के प म उभरे रहते ह। ऐसे ट ले
उवाला एवं पो जे क सतह पर पाये जाते
ह। ये ट ले एका त शं वाकार पहाड़ी क
भाँ त तीत होते ह।
7. लैपीज (Lapies) - धरातल य
चू ने क च ान पर बहते जल के कण के
कारण अनेक आकार के र बन जाते ह। साथ ह इस जल का भाव च ान के जोड़
व दरार पर भी पड़ता है। जल व ट होकर इनको गहरा कर दे ता है। इन र व
गहरे -गहरे गत के कारण सम त धरातल अ य त ऊबड़-खाबड़ तथा नुक ला सा हो जाता
है, िजसे लैपीज कहते ह ।
8. क दराएं (Caves) - र व दरार से व ट जल भीतर ह भीतर चू ने क च ान को
घोलकर उ ह खोखला करता जाता है। यह खोखला भाग बडा होकर गुफा क आकृ त
धारण कर लेता है। भू मगत जल क अपरदन या के साथ-साथ इनका व तार होता
जाता है। व व के कई चू ना दे श म काफ बड़ी-बड़ी गुफाऐं मलती ह। यू एस ए. के
कै टक रा य क 'मैमथ केव' (Mammoth Cave of Kentucky) लगभग 13
कलोमीटर ल बी है।
9. ाकृ तक पुल (Natural Bridge) - य द गुफा क छत का कु छ अंश कमजोर होकर टू ट
जाये तो शेष बचा हु आ अंश ाकृ तक पुल जैसा तीत होता है।

5.4.2 प रवहन काय

भू मगत जल बड़ी मा ा म घोल के प म पदाथ का प रवहन करता है। समा यत: इस घोल म
कैि शयम काब नेट, मै ने शयम, लोहा व स लका क मा ा अ धक होती है। भू मगत जल क
प रवहन मता कम हो जाने पर इन ख नज का व भ न आकृ तय म न ेपण होने लगता है।

5.4.3 न ेप ज य भू आकार

1. आ चुता म व न चु ता म (Stalactite
and Stalagmite) - चू ने के दे श म
गुफाओं क छत से धीरे -धीरे रसता हु आ
जल चू ने व अ य ख नज का न ेपण
करता रहता है। जल म घुले हु ए चु ने का
कु छ अंश छत पर ह चपकता रहता है।
इस या से काला तर म छत के आधार
पर नीचे लटकते हु ए चू ना- त भ बन जाते ह। ये त भ छत क ओर मोटे एवं गुफा के
नीचे क ओर पतले होते ह। इ ह आ चुता म कहते ह। छत से टपक कर गुफा क तल
पर गरने वाल जल क बूँद से भी इसी कार के ऊपर उठते हु ए इन त भ क रचना
होती रहती है। गुफा क तल से ऊपर उठे हु ए इन त भ को न चुता म कहते ह। ये

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त भ क दरा क छत से लटकने वाले त भ क अपे ा छोटे क तु मोटे होते ह।
साधारणत: ये त भ स लका और चू ने से बने होते ह। जब कभी गुफा क छत से
लटकते हु ए और तल से ऊपर उठे हु ए त भ मल जाते ह तो वहाँ तल से छत तक
एक पूण त भ बन जाता है। इसे चू ना त भ कहते ह।
2. ख नज शराएं (Mineral Veins) - च ान क दरार व सं धय म भू मगत जल के
वारा कई ख नज का न ेपण हो जाता है। यह न ेपण रै खक प म अथवा शराओं
के प म होता है। अत इ ह ख नज शराएं कहते ह। इन शराओं म सामा यत वा ज
व कै साइट के अ त र त बहु मू य ख नज जैसे -सोना, चाँद , सीसा, ज ता, टन, तांबा,
आ द भी मलते ह।

5.5 भू म संसाधन एवं संर ण


भू म कृ त वारा दया गया एक ाकृ तक उपहार है, जो ाकृ तक वन प त और समृ ता के
साथ-साथ जैवम डल के घटक के लए आव यक खा य पदाथ उपल ध करवाती है। भू म के
अ तगत थलख ड के व भ न भू-आकार (पवत-पठार-मैदान इ या द) सि म लत ह जो य
और अ य प से मानव के याकलाप को भा वत करते ह। जैवम डल क जै वक
आव यकताओं क पू त भू भाग वारा ह होती है।
भू म सम त जैव जगत क आवास थल है जहाँ कृ त और जीव-ज तुओं के बीच पर पर
अ तर या नर तर चलती रहती है। व व म लगभग 37 तशत उपयोग यो य भू म है
िजसका सवा धक े वन के लए आर त है। उपयोग यो य भू म के केवल 11.2 भू म पर
कृ ष क जा रह है। व व के ए शया महा वीप म सवा धक (16.9 तशत े पर) कृ ष होती
है। म य अमे रक दे श म थाई चारागाह का वकास अपे ाकृ त अ धक है। इसी कार द णी
अमे रका म लगभग आधी से अ धक भू म वन के लए आर त है। अ का महा वीप म
लगभग 39.6 तशत भू म अ य काय इ या द म यु त हो रह है।
भारत क लगभग 42 तशत भू म पर मैदान व तृत ह। 28 तशत े म पठार तथा 30
तशत से कम भाग म पवत व पहा डयाँ फैल ह। इस कार लगभग 62 तशत भू-भाग ह
थलाकृ तक ि ट से उपयोग यो य है। राज थान के 58 तशत भाग पर म थल य दशाएँ ह
जब क लगभग 15 तशत भू-भाग म अरावल पवत खृं ला का व तार है।

5.5.1 भू म अवनयन

भू म जीवम डल का मह वपूण घटक है, जो जीव-ज तुओं के लए आव यक पोषक त व व


आवास उपल ध करवाता है। भू म अवनयन से ता पय ाकृ तक व मानवीय कारक वारा भू म
म लाये गये प रवतन से ह िजनसे शनै:-शनै: भू म क उपादे यता कम होती चल जाती है।
य य प भू म के अ तजात म (भू क प, वालामुखी आ द) तथा ब हजात म ( वा हत जल,
भू मगत जल, सागर य लहर , पवन, हमनद आ द) वारा नर तर अपरदन होता रहता है क तु
मानव के याकलाप, जैसे वन वनाश, खनन, पशु चारण, भू म उपयोग म प रवतन, भू म
ब धन क अनदे खी इ या द, इसक ग त को बढ़ाते ह। आव यकताओं क उपे ा आ द कई
कारक ने धीरे -धीरे लगातार भू म का अवनयन ह कया है। भू खलन, मृदा अपरदन, िजनके
कारण भू सस
ं ाधन क उपादे यता घटती जाती है। अत: इसका संर ण करना अ य त आव यक है।
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5.5.2 भू सरं ण (Soil Conservation)

भू अपरदन भारत के व भ न े क एक मु ख सम या है। राज थान रा य म 33 तशत से


अ धक भू म पर भू-अपरदन व ार यता का भाव है। रा य क बढ़ती हु ई जनसं या के लये
समु चत खा या न क आव यकता है। ामीण े म आ थक सु धार करने के लए मृदा संर ण
एक ता का लक आव यकता है। रा य म ार य मृदाओं को कृ ष-यो य बनाने पर आजकल
अ धक बल दया जा रहा है। मृदा संर ण के कु छ उपाय नीचे दये गये है।
(i) नयि त पशुचारण (Restricted Grazing) अ यवि थत पशुचारण से जंगल और
घास के मैदान म जल और पवन अपरदन अ धक होते ह। भू म पर वन प त आवरण
न होने से बरसात म जल वारा और ी म ऋतु म पवन वारा कटाव अ धक होता
है। ग मय म जब घास क कमी हो जाती है तब पि चमी राज थान के रायका,
प रहार, बलोची और स धी आ द घुम कड़ पशु पालक अपनी भेड़ और गाय के झु ड
को लेकर उ तर व द णी राज थान क ओर जाकर पशु चारण करवाते ह। इससे भी
मृदा का न नीकरण होता है। अत पशु पालक के इस वशाल समु दाय के लये थायी
आवास व चारागाह बनाना आव यक है।
(ii) हल वारा जु ताई (Tilling soil by Plough) आजकल खेत क जु ताई ै टर वारा
क जाने लगी है। इससे जु ताई गहर होती है और जु ताई के बाद तेज वायु से म ी क
ऊपर परत उड़ जाने का भय रहता है। ै टर क जु ताई से छोटे -छोटे जंगल पेड़-प धे
भी उखड़ जाते ह। ै टर वारा जु ताई से पि चमी राज थान म खेजडी के छोटे पौध
को बहु त हा न हु ई है। खेजडी का पौधा ाकृ तक प से वत: ह उगता है। इसके
बीज से नसर म पौधे नह ं उगाये जा सकते। अत: खेजडी के छोटे पौध को ै टर
वारा जु ताई करके उखाड़ने से म ी अनुपजाऊ हो जाती है य क खेजडी क जड़ म
नाइ ोजन इक ा करने वाले जीवाणु होते ह जो म ी को उपजाऊ बनाते ह। इसी लये
राज थान म खेत क जु ताई हल वारा करना ह अ धक उपयोगी है।
(iii) समो च बंध (Contour Bunding) इस भू सरं ण व ध म पहाड़ी ढाल पर समो च
रे खा (Contour) के सहारे -सहारे म ी, प थर या घास और झा ड़य के बाँध बनाये
जाते ह। ये बंध, बहते हु ए पानी म रो धका का काम करते ह और जल के वेग को
कम करते ह। इस उपाय से पहाड़ी भाग पर जल अपरदन अ धक नह ं होता और ऊपर
से बहकर आई म ी भी ब ध के सहारे क जाती है। बालु ई म ी और काल म टयार
म य को छो कर मेड़ब धी का काय अ य सभी म य म सफलतापूवक कया जा
सकता है। बालु ई म ी के कण ढ ले होते ह और पानी के वाह के साथ शी बहने
लगते ह और इन बंध पर शी जमा हो जाते ह। म टयार म ी म ग मय म दरार
पड़ जाती ह और उसम बने हु ए बंध भी शी टू टकर बह जाते ह। इसके अ त र त
य द म ी क गहराई 8 सेमी. से कम हो तो वहाँ भी मेड़ब धी नह ं क जा सकती ।
(iv) नाला बंध (Stream Bunding) छोटे नद -नाल म आव यकता अनुसार कम ऊँचाई
वाल प क द वार बनाकर जल के वेग को कम कया जा सकता है। इ ह ए नकट

113
(Anicut) भी कहते ह। इन प के अवरोध के बनाने से भू मगत जल तर बढ़ जाता है
और भू म-कटाव कम हो जाता है।
(v) वे दकाकरण (Terracing) इस व ध म पहाड़ी ढाल क व भ न ऊँचाइय पर प क
या क ची, छोट द वार बनाई जाती ह जो वे दकाओं के समान दखाई दे ती ह। इससे
बहते हु ए वषा के जल का वेग कम हो जाता है और म ी म जल का अवशोषण भी
होता है। इस व ध का उपयोग उदयपुर, राजसम द, च तौड़गढ़, डू ँगरपुर, बाँसवाड़ा
आ द िजल म सफलतापूवक कया जा सकता है जहाँ अरावल पवत े णयाँ
समाना तर प म फैल हु ई है।
(vi) ख ड उ ार (Ravine Rejuvenation) इस वध म मेड़ब धी, नाला-ब धी,
वे दकाकरण आ द उपाय के अ त र त वन प त आ छादन भी कया जाता है िजससे
पडे पौध क जड़ म ी को संग ठत रख और म ी का वघटन न हो। राज थान के
60 तशत ख ड े सरकार भू म म ह। इ ह चारागाह उगाने, पौधरोपण करने और
छोटे -छोटे बगीचे बनाने के काम म लया जा सकता है। वष 1967 म के य ख ड-
उ ार बोड क थापना क गई थी िजसके अ तगत कोटा, बाराँ, सवाई माधोपुर और
धौलपुर िजल म ख ड-उ ार काय म चल रहा है।
(vii) बालु ई ट ल का थायीकरण (Stabilization of Sand-dunes) म ी संर ण क
यह प त पि चमी राज थान म रे तीले ट ल से पवन वारा म ी अपरदन को रोकने
के लये अपनाई गई है। इस व ध म ट ल पर कंट ले तार को लगाकर उस े को
सु र त कया जाता है और फर ट ल पर घास व छोट झा ड़य का रोपण कया जाता
है। पवन क च लत दशा म ल बी घास और झा ड़य को 3-3 मीटर के अ तराल
पर रो पत कया जाता है। घास और झा ड़य क जड़ बढ़ जाने पर वे रे तील व ढ ल
म ी को थाम रखती ह और पवन अपरदन कम हो जाता है।
म थल करण या को रोकने और म ी अपरदन को कम करने के लये राज थान म म
वकास काय म (Desert Development Programme), सू खा स भा य े काय म
(Drought Prone Area Programme) तथा जल-भरण वकास काय म (Watershed
Development Programme) भी चलाये जा रहे ह। इन सभी काय म म म ी संर ण मु ख
उ े य है य क उपजाऊ म ी पर ह अ छ फसल पैदा क जा सकती ह और इसी पर हमार
ामीण अथ यव था नभर करती है।
बोध न - 3
1. जो भू म अवनयन से स बि धत नह ं है -
अ ) मृ दा अपरदन ( ब ) बीहड़
( स ) पवत नमाण ( द ) भू खलन ( )
2. अपरदन - ज य भू आकार यु म है -
( अ ) उवाला - न चु ता म ( ब ) पो जे - ख नज शराऐं
( स ) डोलाइन - लै पीज ( द ) पोनोर - आ चु ताशम। ( )

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3. का ट-भू य िजन दे श म बनते ह -
( अ ) चू ना (ब) म थल
( स ) हमा छा दत ( द ) बलु ई। ( )
4. भू मगत जल के वारा िजस कार का अपरदन होता है , वह है -
( अ ) भौ तक ( ब ) रासाय नक
( स ) जै वक ( द ) ऑ सीकरण। ( )

5.6 सारांश
1. पवन उ ण - शु क े म भावी रहती ह।
2. पवन के तीन काय - अपरदन, प रवहन व न ेपण ह।
3. अपरदन क व धयाँ - अनावृतण, अपवाहन, अपघषण व सि नघषण।
4. अपरदन ज य भू आकार-पवन गत, जाल दार शला, यारडांग, छ क, यूजेन , भू त भ,
गु बदाकार ट ले।
5. प रवहन - बालुका उड़ाना व सरकना (creep)
6. न ेप ज य भू आकार - बालु का तू प (पवनानुवत व अनु थ), उ म च न, लोयस,
लाया आ द।
7. लहर म जल कण क गोलाकार ग त।
8. गोलाकार ग त म सबसे ऊपर का भाग-शीष सबसे नीचे का भाग- ोणी।
9. दो शीष के म य दूर -लहर क ल बाई।
10. ोणी व शीष के बीच का अ तर-लहर क ऊँचाई।
11. लहर वारा अपरदन चार कार से - जल य दाब या, घषण या, सि नघषण व
घोल या।
12. लहर के अपरदन को भा वत करने वाले कारक - लहर क शि त, तट य शैल क
संरचना, तट य शैल क कठोरता, शैल परत का नमन, शैल परत का व यास, लहर के
आ मण क दशा।
13. अपरदन ज य भू आकार - सामु क भृग,ु खा ड़याँ समु ा भमु ख कगार, अ डाकार कटान,
सागर य गुफाएँ, ध म छ , मेहराब, अल न त भ, तरं ग घ षत चबूतरा आ द।
14. न ेप ज य भू आकार- तरं ग न मत चबूतरा, पु लन, रो धका, संल न भि त, संयोजक
रो धका, अंकु श आ द।
15. भू मगत जल चू ना दे श म रासाय नक अपरदन के वारा भावी होता है।
16. अपरदन ज य भू आकार-घोल र , पोनोर, वलय र , डोलाइन, उवाला, पो जे, अ धी
घा टयाँ, ह स, लैपीज, क दराऐं, ाकृ तक पुल।
17. न ेपज य भू आकार-आ चुता म, न चु ता म, चू ना त भ, ख नज शराऐं आ द।
18. भू म संसाधन सम त जीव -जगत के लये अ य त उपयोगी संसाधन है।
19. ऋतु अप य व अपरदन के साधन भू म अवनयन के मु ख साधन ह।

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20. भू खलन, मृदा अपरदन, बीहड़ आ द भू अवनयन के ह प ह।
21. भू म संसाधन का संर ण अ य त आव यक है। यह काय अनेक व धय को अपना कर
कया जा सकता है।

5.7 श दावल
1. इस अ याय म सभी श दाव लय को आसान भाषा तथा यथास भव च के मा यम से
प ट समझा दया गया है।

5.8 स दभ थ
1. Arthur Holms : Principles of Physical Geography, Thomas
Nelson & Sons, New York, 1949
2. A.N. Strahler : Introduction to Physical Geography, John Wiley
& Sons, London
3. J.A. Steers : Unstable Earth, Metheu & Company, London,
1961
4. स व संह : भूआकृ तक व ान, वसु ंधरा काशन, गोरखपुर
5. मामो रया व रतन जोशी : भौ तक भू गोल, सा ह य भवन, आगरा, 2004
6. शमा व म ा : भौ तक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर ,2005

5.9 बोध न के उ तर
बोध - 1
1. (ब) 2. (द) 3. (स)
बोध - 2
1. (स), 2. (द), 3. (द) 4.(ब)
बोध - 3
1. (स), 2. (स) 3. (अ) 4. (ब)

5.10 अ यासाथ न
1. पवन -गत पवन क कस या वारा बनते ह?
2. पवन वारा अपरदन कन व धय से होता है?
3. छ क कस कार बनते ह?
4. पवन के काय े क या या करते हु ए उसके अपरदन ज य भू आकार का वणन
क िजये।
5. पवन के काय को समझाते क िजये ।
6. लहर म जलकण क ग त कस कार होती है।
7. लहर क ल बाई कसे कहते ह?
8. लहर के अपरदन काय का व तार से वणन क िजए।

116
9. लहर के न ेप काय से ज नत भू आकार का वणन क िजये।
10. छत से लगे त भ को या कहते ह?
11. ऊबड़-खाबड़ व नुक ले चू ना दे श को या कहते ह?
12. चू ना त भ कैसे बनते ह?
13. भू मगत जल के काय का व तृत वणन क िजये।

117
इकाई-6 : वायुम डल

इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 वायुम डल का संघटन एवं सरचना
6.2.1 वायुम डल क सामा य वशेषताएं
6.2.2 वायुम डल का व तार
6.2.3 वायुम डल का संघटन
6.2.4 वायुम डल क संरचना
6.3 पयावरणीय दूषण
6.3.1 दूषक व उनके कार
6.3.2 पयावरणीय दूषण के कार
6.4 वायुम डल य आपदाएँ
6.4.1 आपदाओं का कार
6.4.2 वायुम डल य आपदा ब ध
6.5 सारांश
6.6 श दावल
6.7 स दभ थ
6.8 बोध न के उ तर
6.9 अ यासाथ न

6.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन से आप समझ सकगे :
 वायुम डल का संघटन व व तार,
 वायुम डल क संरचना,
 पयावरण दूषण व ाकृ तक आपदाएँ, तथा
 दूषण व आपदाओं पर नयं ण व नवारण के उपाय।

6.1 तावना
इस अ याय म वायुम डल क सामा य वशेषताओं, उसके व तार, संघटन व संरचना पर व तार
से चचा क गई है। वतमान म पयावरण दूषण एवं ाकृ तक आपदाओं क सम याएँ वकराल
प लेती जा रह ह। इनका व तृत ववरण इस अ याय म दया गया है। साथ ह दूषण एव
आपदाओं के भाव को कम करने अथवा उन पर नय ण करने क व धयाँ भी बताई गई ह।

118
6.2 वायु म डल का संघटन एवं संरचना
पृ वी के चार और हजार कलोमीटर ऊँचाई तक फैले गैसीय आवरण को वायुम डल कहते ह।
थलम डल तथा जल म डल क भां त यह भी हमार पृ वी का अ भ न अंग है। इसम उपि थत
व भ न गैस, धूलकण, जलवा प, तापमान व दन त दन घटने वाल मौसमी घटनाएँ इसक
उपि थ त का आभास कराती ह। फ च और वाथा के अनुसार ''वायुम डल गैस का आवरण है
जो धरातल से सकड़ कलोमीटर क ऊँचाई तक व तृत है तथा पृ वी का अ भ न अग है।''
इस कार से वायुम डल लफाफे क भाँ त पृ वी को चार ओर से घेरे हु ए है। पृ वी क
गु वाकषण शि त के कारण यह इससे अलग नह ं हो सकता।

6.2.1 वायुम डल क सामा य वशेषताएँ

वायुम डल पृ वीतल पर समान प से फैला हु आ है। इसम घटने वाल सम त वायुम डल य


घटनाओं एवं म का मू ल कारण सू य से वक ण होने वाल ऊजा है। वायु का न कोई रं ग होता
है, ना ग ध और ना ह वाद। इसका एक अ य मु य गुण इसक ग तशीलता (Mobility),
नमनशीलता (Elasticity) तथा स पीडनशीलता (Compressibility) है। वायु म ै तज संचलन
होने पर ह इसक ग तशीलता क अनुभू त होती है। जल तथा थल से कम सघन होने पर भी
वायु तथा इसके संघटक का भार होता है तथा दबाव डालते ह। तरोधी होने के कारण यह
वायुम डल के बाहर से वेश करने वाले उ का प ड को रगड़ वारा न ट कर दे ता है।
इसम स पीडनशीलता का गुण होने के कारण धरातल से ऊँचाई म वृ के साथ ह इसके घन व
म कमी होती जाती है। वभावत: धरातल के नकट वायु भार तथा ऊँचाई क ओर ह क होती
जाती है। आधु नकतम रॉकेट े ण एवं अ त र ि थत भू-उप ह से एक त सू चनाओं से पता
चलता है क धरातल से 50 कमी क ऊँचाई तक गैस का अनुपात ि थर रहता है। वायुम डल के
कु ल भार का लगभग आधा भाग धरातल से 5500 मीटर क ऊँचाई तक ह पाया जाता है तथा
30 कमी क ऊँचाई तक इसका 99 तशत भाग केि त है ।
वायुम डल का एक अ ु त गुण सू य से आने वाल ती व हा नकारक पराबगनी करण से पृ वी
क र ा करना है तथा पा थव व करण को अवशो षत कर ह रत गृह भाव (Green House
Effect) वारा पृ वी तल के तापमान को नीचा नह ं होने दे ना है। प रणाम व प वायुम डल य
तापमान जीवधा रय के लए उपयु त बना रहता है। वायुम डल म उपि थत जलवा प व भ न
कार क मौसमी घटनाओं जैसे मेघ, पवन, तू फान, वषा आ द को ज म दे ती है। मौसम एवं ऋतु
प रवतन भी वायुम डल य घटनाओं के ह प रणाम ह।

6.2.2 वायुम डल का व तार

वायुम डल क ऊँचाई के स ब ध म य त वचार म समय-समय पर संशोधन होता रहा है।


नवीनतम जानका रय के आधार पर इसक ऊँचाई 80,000 क.मी. से भी अ धक मानी गयी है।
य य प 1600 कमी क ऊँचाई के प चात ् वायुम डल बहु त वरल हो जाता है।

6.2.3 वायुम डल का संघटन

वायुम डल का गठन अनेक कार क गैस , जल वा प, धु एँ के कण आ द से हु आ है।

119
1. गैस (Gases) : वायुम डल वभ न कार क गैस का यां क म ण है िजसम
मु यत: 9 कार क गैस पायी जाती ह। ऑ सीजन, नाइ ोजन, आगन, काबन-डाइ-
ऑ साइड, हाइ ोजन, नयॉन, ह लयम, टॉन तथा ओजोन आ द मु ख संघटक गैस
है। इन सभी गैस म नाइ ोजन (78.08%) तथा ऑ सीजन (20.94%) मु ख ह। ये
सि म लत प, से वायुम डल य गैस के 99 तशत भाग का नमाण करती ह। भार
गैस वायुम डल क नचल परत तथा ह क गैस ऊपर परत म ि थत होती ह।
न नां कत ता लका - 6.1 शु क वायु म व भ न गैस क अनुपा तक औसत मा ा को
द शत करती ह।
ता लक - 6.1 : धरातल से 25 कमी. क ऊँचाई तक शु क वायु
म व भ न गैस क औसत मा ा
गैस तीक शु क वायु का आयतन भार का तशत
का तशत
नाइ ोजन N2 78.08 75.527
ऑ सीजन O2 20.94 22.43
आगन Ar 0.93 1.282
काबन डाइ ऑ साइड Co 20.03 0.0456
नयोन Ne 0.0018 -
ह लयम He 0.005 -
ओजोन O3 0.00006 -
हाइ ोजन H 0.00005 -
टॉन K2 यूना धक -
वायुम डल म जीवनदा यनी कहलाने वाल सवा धक मह वपूण गैस ऑ सीजन है। इसके अभाव म
कोई भी ाणी जी वत नह ं रह सकता। ऑ सीजन अ य रासाय नक त व के साथ सु गमता से
मलकर अनेक कार के यो गक (compounds) क रचना करती है तथा वलन के लए यह
गैस अ नवाय है। नाइ ोजन दूसर मह वपूण गैस है िजसका वायुम डल म मु ख काय ऑ सीजन
को तरल (dilute) करके वलन का नयमन करना है। अपरो प से नाइ ोजन व भ न कार
के ऑ सीकरण (Oxidation) म सहायता पहु ँ चाती है। व भ न कार के जीव म पाये जाने वाले
नाइ ोजनी यौ गक म वायुम डल य नाइ ोजन का उपयोग होता है। काबन-डाइ-ऑ साइड तीसर
मु ख गैस है जो व तु ओं के जलने से व जीवधा रय क वसन या वारा उ प न होती है।
वायुम डल म उपि थत काबन-डाइ-ऑ साइड का मु य काय ह रतगृह भाव (Green House
Effect) को वक सत कर भू तल से उ सिजत पा थव ऊजा के प म नकले द घतरं ग व करण
को सोख कर वायुम डल के नचले भाग को गम रखना है। वायुम डल के ऊपर भाग म पाई
जाने वाल ओजोन गैस सू य से आने वाल पराबगनी (Ultraviolet) करण का अवशोषण कर
उनके जहर ले भाव से पृ वी क र ा करती है।
जलवा प (Water Vapour)
जलवा प वायुम डल का सवा धक प रवतनशील त व है। आ ता तथा ताप म के अनुसार
जलवा प क मा ा म प रवतन होता रहता है। धरातल के नकट इसक मा ा 0 से 5 तशत

120
तक पायी जाती है। वायु को जलवा प क ाि त झील , न दय , सागर तथा वन प तय के भीतर
क वा पीकरण या वारा होती है। तापमान, वायुम डल म जलवा प क मा ा को सवा धक
भा वत करता है। भूम य रे खा पर अ धक वषा व मेघ क उपि थ त के कारण जलवा प क
मा ा अ धक होती है। म थल य े म उ च तापमान के कारण यूनतम जलवा प पायी जाती
है। ु वीय े म वा पीकरण कम होने से शु क वायुम डल म जलवा प क मा ा बहु त कम
होती है। जलवा प वायुम डल क नचल पत तक ह सी मत रहती है। ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ
जलवा प क मा ा म कमी होती जाती है। एक अनुमान के अनुसार वायुम डल के स पूण
जलवा प का 90 तशत भाग धरातल से 8 कमी क ऊँचाई तक सी मत है। इसके उपर
जलवा प नह ं पायी जाती। अनुमानत: सू य ताप के भाव से त सैक ड पृ वी के व भ न जल
ोत से 1.6 करोड़ टन जल वा प बन कर उड़ जाता है। य द वायुम डल म मौजू द सम त
जलवा प घनीभू त (condense) होकर वषा म बदल जाये तो सम त धरातल पर 2.5 से.मी. वषा
होगी।
जलवा प वायुम डल का अ य धक मह वपूण त व है। यह आं शक तौर पर सौर व करण (Solar
radiation) तथा पा थव व करण (Terrestrial radiation) को अवशो षत कर भू तल के तापमान
को सम रखने म सहायक होती है। इसके अ त र त वायुम डल म घनीभू त आ ता के व वध प
जैसे बादल, वषा, कु हरा, अ स, तु षार, पाला व हम आ द का ा त ोत है। वायुम डल य
जलवा प ह पृ वी के व भ न भाग म चलने वाले च वात , तच वात , तू फान , त ड़त,
झंझावत व टाइफून इ या द को शि त दान करती है।
धू लकण (Dust particles)
वायुम डल क नचल परत म असं य धू लकण तैरते रहते ह। वायुम डल य गैस रख जलवा प
के अ त र त िजतने भी ठोस पदाथ कण के प म उपि थत रहते ह उ ह धूलकण क सं ा द
जाती है। इनक उ पि त म थल क रे त के उड़ने, वालामु खी उ गार व उ कापात तथा पु प
पराग एवं धु एँ से नकले कण से होती है। इन धू लकण क उपि थ त भी वायुम डल के नचले
भाग म ह यादा पायी जाती है।
धू लकण का सौर व करण के परावतन (reflection), क णन (scattering) तथा अवशोषण
(absorption) करने म वशेष योगदान रहता है। गोधू ल क अव ध व ऊषाकाल क ती ता तथा
अव ध इन धू ल कण क उपि थ त के आधार पर नधा रत होती है। धू लकण का वायुम डल य
गैस के साथ मलकर जो वणना मक क णन (Selective Scattgering) होता है उसके प रणाम
व प आकाश नीला दखाई पड़ता है तथा सू या त व सू य दय के समय इसका रं ग लाल होता है।
वायुम डल म घनीभवन (condentation) या के लए जल ाह ना भक (Hydroscopic) का
होना आव यक है। कु छ व श ट धू लकण ऐसे ना भक का काम करते ह इनके चार ओर
जलवा प के कण जमा हो जाते ह जो वषा, कु हरा व मेघ नमाण म मदद करते ह।

6.2.4 वायुम डल क संरचना (Structure of Atmosphere)

भू तल के चार ओर फैले वायुम डल का नचला भाग ह मनु य के लए युग से मह वपूण रहा


है। 20वीं शता द म हु ई आधु नक खोज तथा व भ न कार के मौसम सू चक गु बार , राकेट ,
वायुयान , व न व रे डयो तरग , कृ म उप ह , अ त र यान आद वारा एक क गई

121
सू चनाओं के आधार पर वायुम डल का ऊपर भाग भी हमारे लए अब मह वपूण हो गया है।
वायुम डल के इस भाग के बारे म (1957-62) के म य कये गये अनेक शोध काय से नये-नये
त य काश म आये ह। तसरा दे बोर, सर नै पयर शॉ, पकाड , फैरल व बार मकेनल जैसे
अ तर वै ा नक ने वायुम डल के बारे म अनेक रह यो घाटन कये है। अभी तक ा त
सू चनाओं तथा ा त ान के आधार पर वायुम डल को अनेक समाना तर परत म वभािजत
कया गया है।
1. ोभ म डल (Troposphere) : यह वायुम डल क सबसे नचल स य तथा सघन
परत है। इसम वायुम डल के कु ल आण वक भार का 75 तशत केि त है। इस प त
म आ ता, जलकण, धू लकण, वायुधु ध (aerosal) तथा सभी कार क वायुम डल य
व ोभ व ग तयाँ स प न होती है। धरातल से इस परत क औसत ऊँचाई 14 कमी.
मानी गई है। यह परत ु व से भू म य रे खा क ओर जाने पर पतल होती जाती है।
भू म य रे खा पर इसक ऊँचाई 18 कमी. तथा ु व पर 8 - 10 कमी के म य मानी
गई है। इस परत क सबसे मु ख वशेषता इसम धरातल से ऊँचाई म जाने पर तापमान
म कमी होना है। चर (Crutcher) के अनुसार इस परत म औसत ताप य दर (Lapse
0
rate) 6.5 C त कमी. है। ताप य क दर ऋतु प रवतन, वायुदाब व थानीय
धरातल क कृ त से भी भा वत होती है। तट य े म शीत ऋतु म ताप य क दर
कम होती है जब क महा वीप के आ त रक भाग तथा पवत से घर घा टय म ताप
य दर ऋणा मक होती है। इसम ऊँचाई के साथ ताप बढ़ता है। यह परत सभी कार
के मेघ तथा तू फान क बाहर सीमा बनाती है। वायु यहाँ पूणत: अशा त रहती है।
इसम नर तर व ोभ बनते रहते ह तथा संवाहन धाराएँ चलती रहती ह। यह भाग
व करण (Radiation), संचलन (Conduction) तथा संवाहन (Convenction) वारा
गरम और ठ डा होता रहता है। इसम संवाहन धाराएँ अ धक चलने से इसे संवाहनीय
दे श (Convectional zone) या उ वे लत संवाहन तर (Turbulent convective
strata) भी कहते ह।
2. ोभसीमा त तर (Tropopause) : यह वायु म डल का वह भाग है जहाँ ोभ म डल
क सीमा समा त होती है तथा समतापम डल य पेट ार भ होती है। इस सं मण परत
म समताप म डल व ोभ म डल दोन के गुण व यमान रहते ह। इस परत क चौड़ाई
लगभग 1.5 कमी है। इस पेट म संवाहनीय धाराएँ तथा प रवतन म डल क हवाएँ
चलना ब द हो जाती ह। सम त मौसमी घटनाएँ इस परत से नीचे तक ह ोभम डल
क ऊपर सीमा म घ टत होती ह। अत: इसे मौसमी प रवतन क छत भी कहा जाता
है।
3. समताप म डल (Stratosphere) : ोभ सीमा त या म य तर (Tropopause) के
ऊपर ि थत वायुम डल के इस भाग को समताप म डल कहते ह। ट जरे स डबोट ने
समताप म डल परत क जानकार दे ते हु ए बताया क तापमान प रवतन क घटनाएँ
ोभ म डल तक ह सी मत ह। ोभसीमा के ऊपर 50 कमी. तक एक ऐसा े
व तृत है जहाँ तापमान ि थर रहते ह। इस कारण से इसे समताप म डल (Isothermal
zone) कहते ह

122
च - 6.1 : वायुम डल का व तार एवं परत
यह म डल जल वा प तथा धूलकण से लगभग र हत होता है िजससे इसम मेघ नह ं
बनते। कभी-कभी कु छ व श ट कार के मेघ िज ह मु ताभ मेघ (Mother of Pearl
Cloud) कहते ह, उ पि त इस म डल म होती है। इस म डल के ऊपर भाग म ओजोन
गैस क अ धकता होने के कारण यह पराबगनी व करण का अवशोषण करता है। इस
म डल क ऊपर सीमा पर तापमान आं शक प से बढ़ने लगते ह।
समताप म डल म अ ांशीय ताप वतरण ोभ म डल से भ न होता है। भू म य रे खा
० ० ०
पर -80 C तथा 60 अ ांश पर -45 तापमान रहते ह। भू म य रे खीय े पर
मेघा छादन अ धक होने से वहाँ ु व क अपे ा कम तापमान होते ह। समताप म डल
के ऊपर भाग म तापमान वृ का मु य कारण ओजोन गैस है। वायुम डल म ओजोन
गैस का सा ण (Concentration) 15 से 45 कमी. क ऊँचाई के बीच सी मत है।
इसक अ धकतम सा ता 22 कमी क ऊँचाई पर पायी जाती है जहाँ पर सू य से आ
रह अ धकतम पराबगनी व अ य व करण का अवशोषण होता है इसके प रणाम व प
इसके ऊपर भाग म उ च तापमान पाया जाता है।
4. ओजोन म डल (Ozonosphere) : उ काएँ, जो वायुम डल के ऊपर भाग म ह जल
कर न ट हो जाती है, के अ ययन से समतापम डल के ऊपर भाग म एक गम पत के
होने का संकेत मला था। त प चात ् ल डेमान तथा डॉबसन ने पता लगाया क 50 से
80 कमी क ऊँचाई पर उ काएँ अ य हो जाती ह। राकेट व व न तरं ग वारा ा त
सू चनाओं के आधार पर एवं ओजोन गैस क यहाँ उपि थ त के आधार पर यह पता
लगाया क इस परत म पृ वी तल से कई गुना अ धक तापमान है तथा इसका नमाण
ओजोन गैस वारा पराबगनी करण व व करण के अवशोषण से हु आ है। इस परत म
ओजोन गैस क अ धकता के कारण ह इसे ओजोन म डल कहते ह। यहाँ पर रसाय नक
याएँ अ धक होने से इसे रसायन म डल (Chemosphere) तथा म य म डल
(Mesosphere) भी कहते ह। सामा यत: इस परत क मोटाई 30 से 50 कमी. के बीच
पायी जाती है।
वायुम डल म ओजोन क मा ा बहु त प रवतनशील है। ऑ सीजन अणुओं के का शक
नयोजन (Photoclissociation) या वारा ओजोन गैस का नमाण होता है। इससे

123
ऑ सीजन ओजोन म तथा ओजोन ऑ सीजन म बदलती रहती है। ओजोन का ै तज
वतरण ऋतु ओं म प रवतन के साथ भी बदलता रहता है। उ तर गोला म NASA के
वै ा नक वारा कये गये योग से ा त न कष बताते ह क ओजोन गैस क मा ा
भू म य रे खा से अ ांश के बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है। 60० अ ांश पर इसक मा ा
अ धकतम होने के बाद ु व क ओर पुन : घटने लगती है। ऋतु ओं के अनुसार बस त
ऋतु म इसक मा ा अ धकतम व पतझड़ के अि तम दन म यूनतम होती है।
वतमान म ती ग त से चलने वाले जेटयान, क
ै ैन ड पे सर, वातानुकू लक (Air
conditioner), शीतलक (Refrigerator) व फसल पर दवाओं के छड़काव से नकल
लोरो लोरो काबन गैस (CFC), ओजोन गैस को तेजी से न ट कर रह है। ो. मील
है रस ने इस परत के न ट होने से बढ़ते दु भाव को उ ले खत करते हु ए बताया है क
उ तर यूरोप के आक टक ै म ओजोन परत का तेजी से पतला होना व इस पतल
परत का द ण क ओर खसक कर टे न के ऊपर तक आ जाना भ व य म भू तापीय
वृ (Global warming) को बढ़ावा दे गा। नवीन खोज बताती ह क ओजोन परत के
लोरो लोरो काबन जैसी गैस वारा न ट होने से अ टाक टका तथा ह द महासागर के
ऊपर ओजोन परत म अनेक छ बन गये ह िजससे पृ वी तल पर पराबगनी व करण
का हा नकारक भाव बढ़ने लगा है व भू तापवृ (global warming) एवं व व जलवायु
प रवतन जैसी घटनाओं म अ भवृ होने लगी है।
5. म य म डल : समताप म डल के ऊपर ताप म नर तर 50 कमी. से 80 कमी. के
म य तेजी से कमी होती है। यहाँ तापमान घटकर -80०C रह जाता है। 80 कमी. क
ऊँचाई से पुन : तापमान म वृ होने लगती है। अत: 20 कमी. से 80 कमी. के म य
व तृत इस परत को म य म डल कहा गया है। इस परत म ी मकाल म म य
अ ांशीय दे श म नशाद त मेघ (Noctilus cent cloud) दखाई दे ते ह। यहाँ
उ काओं के अ धक वख डन के कारण उ का धू ल कण अ धक मा ा म एक त हो जाते
ह जो आ ता ाह ना भक (Hydroscopic nuclei) का काय करते ह। तथा हमकण के
नमाण म सहायक होते ह। उ च तर य संवहन के कारण जलवा पकण इतनी ऊँचाई
पर पहु ँ च कर नशाद त मेघ का नमाण करते ह।
वायुदाब इस परत म यून होता है। 50 कमी. पर यह मा एक मल बार तथा 90
कमी. ऊँचाई पर .01 मल बार होता है। इस परत के ऊपर भाग को जहाँ यूनतम
तापमान मलता है, मेसोपाज (Mesopause) कहते ह। इससे ऊपर जाने पर तापमान म
पुन : वृ होने लगती है।
6. आयन म डल : इसक ऊँचाई 80 से 640 कमी. के बीच पायी जाती है। इस परत म
आयनीकृ त कण क धानता होने से इसे आयन म डल भी कहते ह। परा बगनी
व करण तथा बा य अंत र से आने वाले परा बगनी ग तवान कण जब वायुम डल के
आण वक ऑ सीजन से टकराते ह तो वायुम डल य ऑ सीजन तथा नाइ ोजन का
आयनन (Ionization) हो जाता है। इससे व युत आवेश उ प न होता है। 100 से 300
कमी. के म य जहाँ वत आयन क सं या अ धक होती है, व मयकार व युत

124
तथा चु बक य घटनाएँ अ धक होती ह। वायुम डल म 1000 कमी. क ऊँचाई तक
आयनन का भाव दखाई पड़ता है। इस परत म तापमान म वृ होती है।
7. बा य म डल (Exosphere) या चु बक य म डल : वायुम डल क इस सबसे बाहर
परत का वशेष अ ययन लेमैन ि प जर (Lyman Spitzer) ने कया है। इसक ऊँचाई
640 से 1000 क मी. तक मानी गई है। इतनी अ धक ऊँचाई पर वायुम डल एक
नहा रका (Nebula) के प म हो जाता है। यहाँ उपि थत वायु म हाइ ोजन तथा
ह लयम गैस क धानता होती है। वायुम डल क इस बा य सीमा म तापमान

5568 C तक पहु ँ च जाता है। पर तु इस तापमान क कृ त धरातल य तापमान से
भ न होती है। अ त र म या ा कर रहे या ी यहाँ य द अपना हाथ यान के बाहर
नकाले तो उ ह शायद गरम भी नह ं मालू म होगा।
बोध न - 1
1. वायु म डल य गै स जो थाई नह ं है -
( अ ) नाइ ोजन ( ब ) ऑ सीजन
( स ) आगन ( द ) ओजोन
2. ोभ म डल व समताप म डल को अलग करने वाल परत है
( अ ) ओजोन म डल (ब) ोभ सीमा त
( स ) म य म डल ( द ) आयन म डल
3. नशाद त मे घ दखाई दे ते ह -
(अ) ोभ म डल म ( ब ) समताप म डल म
( स ) म य म डल म ( द ) सभी म
4. वायु म डल म नाइ ोजन गै स का तशत बताइये ।
...................................................................................................
...................................................................................................
5. ोभ म डल म ताप य क दर कतनी है ?
...................................................................................................
...................................................................................................

6.3 पयावरणीय दूषण (Environmental pollution)


हमारे चार ओर पाये जाने वाले जै वक व अजै वक त को ह पयावरण कहा जाता है। पयावरण
ांसीसी श द एनवायरनर (environner) से बना है िजसका अथ जीव के आसपास क सम त
प र ध (Surrounding) से है। पा रि थ त व टा सले (Tansley) क प रभाषा के अनुसार ''उन
भावशाल अव थाओं व दशाओं का सम त योग िजसम जीव नवास करते ह'' पयावरण कहलाता
ह।
पयावरण दूषण : प रभाषा
भू तल पर कायरत भौ तक एवं जै वक म पर मानवीय या कलाप वारा अि थरता पैदा क
जाती है तो पयावरण म म लनता आ जाती है अथवा शु ता म गरावट आती है। अशु ता फैलाने

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वाले इन त व को दूषक (Pollutents) कहते ह तथा इनके दु भाव से आये वकार को
पयावरणीय दूषण कहते ह। साधारण श द म ाकृ तक संसाधन म अवांछनीय त व या पदाथ
क मलावट को पयावरणीय दूषण कहते ह। ओडम (Odum) ने दूषण को प रभा षत करते हु ए
बताया है क ''पयावरणीय दूषण हमार भू म, वायु तथा जल क भौ तक, रासाय नक एवं जै वक
व श टताओं म होने वाला अनचाहा प रवतन है, िजससे मानव जीवन व अ य जा तय पर
हा नकारक भाव पड़ते ह। लॉड केनेट ने बताया है क ''पयावरण म उन त व या ऊजा क
उपि थ त को दूषण कहते ह जो मनु य वारा अनचाहे उ पा दत कये गये ह तथा िजनके
उ पादन का उ े य अब समा त हो गया हो एवं मनु य के वा य पर हा नकारक भाव डालते
ह।
रा य पयावरण शोध प रष ने माना है क मनु य के याकलाप से उ प न अप श ट उ पाद
के प म पदाथ रख ऊजा के वमोचन से ाकृ तक पयावरण म होने वाले हा नकारक प रवतन
को दूषण कहते ह। पयावरण दूषण क तीन अव थाएँ ह -
(i) मानवीय याओं के प रणाम व प उ प न अप श ट पदाथ,
(ii) अप श ट पदाथ के नपटान (Disposal) से पयावरणीय त व क त तथा
(iii) इस त का सम त जै वक एवं अजै वक त व पर दु भाव।
उ त त य क पृ ठ भू म म पयावरणीय दूषण को सरल ढं ग से इस कार बताया जा सकता है
क जब मनु य के नि चत या अ नि चत काय वारा ाकृ तक पा रि थ तक तं म इतना
अ धक प रवतन हो जाता है क वह इस तं क सहन शि त से अ धक हो जाता है।
प रणाम व प पयावरण क गुणव ता म अ य धक गरावट आ जाने से मानव समाज पर
दूरगामी हा नकारक भाव पड़ने लगते ह।

6.3.1 दूषक व उनके कार

पा रि थ तक तं के ाकृ तक स तुलन म वकार उ प न करने वाले पदाथ या ऊजा के कसी भी


प को दूषक (Pollutant) कहा जाता है। ये दूषक अनेक कार के होते ह। इनका वग करण
ता लका म दशाया गया है।

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पयावरणीय दूषण के ोत
भू तल पर घ टत होने वाल ाकृ तक घटनाओं जैसे वालामुखी से नकल राख व धू ल, भू क पीय
घटनाओं वारा भू तल पर पड़ी दरार से आ त रक भाग के बाहर आये तरल पदाथ, बाढ़ के जल
के साथ बहकर आये अप श ट पदाथ, भू म, पवन, जल व हम अपरदन वारा एक त कये गये
दूषक ाकृ तक दूषण के मु ख ोत ह।
मानवीय याकलाप म औ यो गक उ पादन, कृ ष याओं तथा जनसं या क ती वृ
पयावरण दूषण के मु ख कारक ह। अ धकांश दूषक इनसे ह उ प न होते ह। औ यो गक
उ पादन के समय अप श ट के प म नकले ठोस, वत व गैसीय दूषक, कई कार के
हा नकारक रसायन से म त अप श ट जल व चम नय से नकले काबन यु त धु एँ के कण
मानवज नत दूषण के ो ह। कृ षज नत दूषक म रासाय नक उवरक, क टनाशक व कृ म
रसायन ह। जनसं या क ती वृ पयावरणीय दूषण का मु ख कारण है िजसने भू तल के मु ख
संसाधन जैसे जल, मृदा व वायु का अ य धक दू षत कया है। अत पयावरणीय दूषण के
अ तगत हम वायु, जल, भू म तथा वन दूषण को सि म लत करते ह।

6.3.2 पयावरणीय दूषण के कार

वायु मानव जीवन का आधार है तथा वायुम डल य पदाथ म सवा धक मह वपूण त व है। वायु म
स तु लत अनुपात म व भ न गैस व यमान रहती है। पर तु ाकृ तक घटनाओं एवं मानवीय
याकलाप से उ प न त व वायु म म त होकर इसके स तु लन म वकार उ प न कर दे ते ह।
इससे वायुम डल य तापमान म प रवतन होता है। प रणाम व प वायुम डल य त व का स तु लन
अ यवि थत हो जाता है जो जै वक समु दाय के लए हा नकारक होता है इसी ि थ त को
वायुम डल य वायु दूषण कहते ह।
वायु दूषण क प रभाषा
व व वा य संगठन क प रभाषा (WHO) के अनुसार ''वायु दूषण उन पा रि थ तक दशाओं
क ओर संकेत करता है िजनसे वायु म डल म दू षत पदाथ क सा ता (Concentration)
मनु य तथा पयावरण को हा न पहु ँ चाने क सीमा तक पहु ँ च जाती है।
वायु दूषण के कारण एवं कार
वायु दूषण के ो ाकृ तक व दूषक मानवज नत ह। ाकृ तक वायु दूषक के अ तगत
वालामुखी उ गार के समय नकल राख, धू ल, धू , काबन-डाइ-ऑ साइड, हाइ ोजन व अ य
गैस वायु म मल कर इसे वायुम डल को दू षत कर दे ती ह। इसी कार पृ वी से टकराने वाले
आकाशीय प ड जैसे धू मकेतु, उ काओं के कारण नकल काबन-डाइ-ऑ साइड, वन म लगने
वाल आग से नकला धु ंआ व धरातल के शु क दे श से उड़ने वाल धूल व म य के कण तथा
सागर व महासागर से नकलने वाले लवण फुहार वायुम डल म पहु ँ च कर इसे दू षत करते ह।
मानवज नत वायु दूषण
मानवीय याकलाप व ग त व धय के प रणाम व प वायुम डल म अनेक जहर ल गैसे व
अवि थत दूषक पहु ँ चकर वायु दूषण को ज म दे ते ह। यह हम गैसीय तथा क णक य प म
ा त होते ह। गैसीय वायु दूषक म जीवा म धन (ख नज तेल व कोयला) को जलाने से,
वाहन से नकले धु ँऐ से, औ यो गक याओं तथा कचरे के सड़ने से उ प न काबन-डाई-

127
ऑ साईड, काबनमोनो ऑ साइड एयरोसॉल कैन तथा रे जरे शन णाल से नकल लोरो लोरो
काबन (CFC), ग धक यु त जीवा म के जलने से नकल स फर-डाइ-ऑ साइड (SO2) व
स फर-डाइ-ऑ साइड (SO3), हाइ ोजन स फाइड (H2,S), स यू रक ए सड (N2SO4), ऊँचाई पर
उड़ने वाले वायुयान से नकल गैस, धन के दहन व रासाय नक उवरक से नकल नाइ ोजन
ऑ साइ स (H2O) नाइ क ऑ साइड (NO), नाइ ोजन डाइ ऑ साइड (NO2) एवं सू ती व
के ल चंग व अ य रासाय नक याओं से नकल लोर न वायुम डल के दूषण को ज म दे ती
है।
क णक य वायु दूषक म कारखान , बजल घर , वच लतवाहन , आवास के गम करने व कृ ष
काय के कारण नकले दूषक िजनका आकार एक माइ ोन से 10 माइ ोन के बीच होता है
वायुम डल म पहु ँ च कर दूषण क मा ा को बढ़ाते ह। इससे बड़ी ठोस धूल क णकाएँ, सभी कार
क दहन याओं, कारखान , वसन काय , नमाण काय , कृ ष काय के प रणाम व प बनती ह
व उड़कर वायुम डल म पहु ँ चकर दूषण क मा ा को बढ़ाती ह।
वायु दूषण के तकूल भाव
वायु दूषण से पड़ने वाले भाव को दो े णय म रखा जाता है। (1) ता का लक भाव
(Immediate effects) तथा (2) द घका लक भाव (Long term effects)
ता का लक वायु दूषण के भाव मानव, पादप व जीवज तुओं पर प ट दे खे जा सकते ह। वायु
दूषण से वायु म आ सीजन क मा ा कम हो जाती है। मनु य म वसन स ब धी रोग, दमा,
काइ टस का कोप बढ़ने लगता है। वषैल गैस के प रणाम व प वचा रोग, कसर, नाक व
गले क या धयाँ व उ च र त चाप जैसे रोग बढ़ने लगते ह। ाजील के साओपोलो म नगर के
पास ि थत औ यो गक बि तय म दूषण के कारण पछले वष म वसन रोग व र त कसर
रो गय क सं या म वृ हु ई है। शशु मृ युदर भी बढ़ है, इसी कारण ाजील क कु आताओ
घाट को 'मौत क घाट '' कहा जाता है।
वायु दूषण के ाकृ तक कारण म वालामु खी उ गार के समय नकल स फर यु त जहर ल
गैस, व युत कड़कने से नकल नाइ ोजन ऑ साइड व वृ से नकला टारपीन नामक
हाइ ोकाबन वायुम डल को दू षत करता है। पर तु ाकृ तक दूषण का कृ त म तरोधी
याओं वारा वत: न तारण होता रहता है। अत: मानवीय याओं वारा होने वाले दूषण से
यह कम हा नकारक होता है।
द घकाल न भाव
औ योगीकरण, नगर यकरण, आधु नक करण व वाहन क सं या म वृ ने वायु दूषण क
मा ा म तेजी से वृ क है िजसके द घकाल न भाव सामने आने लगे ह। इसके प रणाम व प
वायुम डल क नचल परत ोभम डल म घटने वाल घटनाएँ भा वत होने लगी है इसम
उपि थत जलवा प क मा ा म प रवतन हु आ है। समतापम डल व ोभ म डल क गैसीय
संरचना भी इससे भा वत हु ई है इससे ह रत ह भाव (Greenhome Effect), अ ल य वषा
(Acid Rain) ओजोन णण (ozone depletion) क सम याएँ तेजी से बढ़ ह।
वायुम डल म काबन डाई ऑ साइड के सा ण म वृ होने से वायुम डल म ह रत ह भाव
(green home effect) म वृ हो रह है। प रणामत: धरातल य तापमान बढ़ रहे ह। इससे

128
भू म डल य तपन क मु ख घटना के कारण महा वीप व पवतीय े क हम पघल कर
महासागर म जलतल म वृ कर रह है। इसके द घकाल न दु भाव तेजी से नजर आने लगे ह।
अ ल य वषा (Acid rains) वायु दूषण के कारण स फर डाई ऑ साइड, काबन-डाइ-ऑ साइड व
नाइ ोजन गैस वायुम डल म पहु ँ च कर घनीभू त जल कण से मलकर अ ल का नमाण करती
है जो वषा के मा यम से धरातल पर पहु ँ च कर झील , तालाब , जलाशय व जलभ डार के जीव
समु दाय को हा न पहु ँ चाते ह। इसी लए अमे रका व पि चमी दे श म अ ल य वषा को कभी-कभी
झील का तल (Lake Killer) भी कहते ह। कनाडा के ओ टो रयो ा त क 2.5 लाख झील म से
50 हजार छोट बड़ी झील अ ल वषा से बुर तरह भा वत ह। अ ल य वषा से म ी क
उवरकता न ट होती है तथा वन पर भी इसका तकू ल भाव पड़ता है।
ओजोन रण
वायु दूषण से वायु म डल के ऊपर भाग म ि थत ओजोन परत को खतरा पैदा हो गया है।
लोरो लोरो काबन तेजी से ओजोन क परत को पतल करती जा रह है। एक अ ययन के
अनुसार अग त से अ टू बर 1987 के म य अ टाक टका म ओजोन का ाकृ तक संके ण 50%
घट गया है। कु छ थान पर ओजोन संके ण 100% घट जाने से ओजोन र हत े या ओजोन
छ बन गये ह। ओजोन परत के पतल होने या रत होने से वायम डल य दूषण बढ़ा है व
जहर ल पराबगनी करण पृ वी धरातल के जीवधा रय के लए खतरा बन गई है।
वायु दूषण रोकने के उपाय
वायु दूषण एक व व यापी सम या बन गई है। इससे उ प न दो ग भीर सम याओं भू म डल य
तापमान म वृ (Global warming) तथा ओजोन रण (Ozone deplection) के नवारण के
लए साझा व व तर य यास करने चा हये। 1992 म ाजील के '' रयो डी जनेरो'' नगर म
संयु त रा संघ के त वावधान म स प न हु ए व व स मेलन म भाग लेने वाले 170 दे श के
त न धय म पयावरण दूषण के नयं ण पर यापक चचा हु ई। वायु दूषण पर नयं ण के
लए न न उपाय कये जाने चा हये।
1. समाज के येक वग को वायु दूषण के घातक प रणाम से प र चत करवाने के लए
जन चेतना जागृत करते हु ए इसके त सावधान कया जाना आव यक है।
2. वायुम डल के दूषक क कु ल मा ा कम करने के भावी उपाय करने चा हये।
3. मानव समाज को असा य त पहु ँ चाने वाले घातक तथा आपदा प वायु दूषण को
पूणतया समा त करना चा हये।
4. पुराने वाहन पर रोक, वाहन क नय मत जाँच तथा कम दूषण फैलाने वाले वाहन
जैसे सौर-च लत मोटर कार के उपयोग को बढ़ावा दे ना।
5. ाण घातक दूषण फैलाने वाल साम य तथा त व के उ पादन एव उपयोग पर तु र त
रोक लगनी चा हये जैसे ओजोन का य करने वाले लोरो लोरोकाबन (CFC), के
उ पादन व उपयोग म भार कटौती होनी चा हये।
6. भारत सरकार वारा पा रत ''वायु दूषण रोकथाम ए ट व नयं ण बल 1981 क
अनुपालना येक नगर य, महानगर य े व दूषण फैलाने वाले वाहन वारा
इमानदार से क जानी चा हये।

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7. जीवा म धन क दहन णाल म प रवतन करके काबन मोनो ऑ साइड के उ सजन
को कम कया जाना चा हये।
8. कारखान क चम नय क ऊँचाई बढ़ाई जानी चा हये ता क धरातल य सतह पर दूषक
को सा ता को कम कया जा सके।
9. वृ ारोपण व वन क सु र ा होनी चा हये इससे ह रत गृह भाव म कमी आवेगी य क
यादा से यादा वन प त व वन काबन डाई ऑ साइड को अ धकतम मा ा म
अवशो षत ह गे।
जल दूषण (Water Pollution)

भू तल पर ाकृ तक जल ो म कचरा, अप श ट व अ य अवांछनीय पदाथ के मल जाने से


जल दू षत हो जाता है तथा वह जीवधा रय पर हा नकारक भाव डालता है अत: मानवज नत
कारण से जल क गुणव ता म एसे प रवतन को दूषण कहते ह। साउथ वक के अनुसार ''मानव
- याकलाप या ाकृ तक याओं वारा जल के रासाय नक, भौ तक तथा जै वक गुण म
प रवतन को जल दूषण कहते ह।
सामा य प से '' व भ न ोत एवं भ डार के जल क भौ तक, रासाय नक तथा जै वक
वशेषताओं म ाकृ तक तथा मानव-ज नत याओं व कारक से उस सीमा तक अवनयन एवं
गरावट को जल दूषण कहते ह िजससे जल उपयोग लायक नह ं रहता।''
जल दूषण के ोत

जल क शु ता व गुणव ता को कम करने वाले त व को जल- दूषक (Water pollutents) कहते


ह। इन दूषक क कृ त के आधार पर जल दूषण ाय: दो कार से होता है। ाकृ तक ोत
वारा जैसे मृदा अपरदन, भू म खलन, वालामुखी उ गार व पौध के सड़ने गलने तथा मृत
जीव के वघटन व व नयोजन होकर शु जल म घुलकर उसे दू षत कर दे ती ह। मानवीय
याओं के प रणाम व प औ यो गक, नगर य, कृ ष तथा अ य सामािजक याकलाप से
नकले मानवीय अप श ट जल क शु ता को न ट कर उसम अवाि छत ग दगी मला दे ते ह।
यह पाया गया है क ाकृ तक दूषक को जल म आ मसात करने क मता होती है। केवल
मानवज नत दूषक ह जल के दूषण को बढ़ाते ह। मानव ज नत जल दूषण के ोत न न ह
नगर य अप श ट
नगर य अप श ट या शहर य कचरे म भार मा ा म घर व रसोई का कू ड़ा कचरा, पोल थीन क
थै लयाँ, अनाज मि डय व स जी-मि डय के सड़े गले पदाथ को कई बार शहर के जल ोत म
डाल दया जाता है जहाँ वे जल के साथ मलकर उसे दू षत कर दे ते ह। द ल , कानपुर , बनारस,
जैसे महानगर के पास बहने वाल न दय म जल दूषण इसी कारण बढ़ा है।
औ यो गक अप श ट
औ यो गक इकाइय से अप श ट (Waste) के प म वभ न कार के रसायन व घुलनशील
गैस से म त जल के बाहर नकलने को ब ह ाव (effuents) कहते ह। इस कार के अप श ट
को ये इकाई सीधे कसी झील, तालाब या न दय म छोड़ दे ते ह जो वहाँ पहु ँ च कर जल को दू षत
कर दे ते ह। कपड़ा, रं गाई, छपाई, चीनी के कारखाने, चम उ योग, धातु कम, औष ध न मत करने
वाले कारखाने तथा खा य संसाधन म काम आने वाले रसायन, क टनाशक बनाने वाले कारखान

130
का तरल वषैला ब ह ाव, जैसे तेल, लवण, ार, अ ल, जहर ले ख नज म त अप श ट बहकर
ाकृ तक जल ोत म पहु ँ चकर उ ह दू षत कर रहे ह।
तेल का भाव
सागर य व महासागर य जल म क चे ख नज तेल से भरे टकर म कई बार रसाव होने से तेल
नकल कर जल म फैल जाता है। िजससे बड़ी सं या म समु जीव ज तु ओं क मृ यु हो जाती
है तथा भा वत तट य भाग के सागर य अंचल म पा रि थ तक य कोप (Ecological
disaster) तथा वनाश क ि थ त उ प न हो जाती है।
कृ ष ज नत जल दूषण
कृ ष उ पादन बढ़ाने क होड़ ने कसान को कम से कम भू म से अ धका धक पैदावार ा त
करने के लए व भ न कार के रासाय नक उवरक , क टनाशक, जीवाणु नाशक कवकनाशक के
उपयोग करने को े रत कया है। यह उवरक संचाई वारा तथा वषा जल के साथ भू म म रस
कर भू मगत जल ोत जैसे नलकू प , है डप प आ द के जल को दू षत कर रहे ह िजसका
अ धकतम उपयोग पीने के लए कया जाता है।
जल दूषण के हा नकारक भाव (Harmful effects of water pollution)
दू षत जल के उपयोग से पादप व मानव समु दाय को ग भीर सम या का सामना करना पड़ रहा
है अनेक जल-जनक रोग (Waterborne diseases) का कारण दू षत जल का उपयोग करना
है। दू षत जल के उपयोग से ह तपे दक, पी लया, अ तसार, मयाद वर, पैराटाइफाइड, पे चस
आ द खतरनाक बीमा रयाँ फैलती ह। वषा त रसायन यु त जल के सेवन से जल य पौध तथा
ज तु ओं क मृ यु हो जाती है न दय , झील व तालाब के दू षत जल वारा संचाई करने से
फसल न ट हो जाती ह, म य क उवरकता न ट हो जाती है। अ धक लवणता यु त जल से
संचाई करने पर म य म ार यता बढ़ जाती है।
जल दूषण का नयं ण
जल दूषण पर भावी नयं ण के लए अनेक नवारक उपाय का करना आव यक है -
1. घरे लू अप श ट को सीधा नद , झील व अ य ाकृ तक जल ोत म मलाने पर रोक
लगानी चा हये।
2. कृ ष म क टनाशक व अ य रसायन का योग सी मत मा ा म होना चा हये।
3. मृत शर र व जीव ज तु ओं को जल ोत म नह ं डालना चा हये।
4. औ यो गक इकाइय को इस बात के लए मजबूर कया जाना चा हये क वो अप श ट
को बना शो धत कये ाकृ तक जल ोत म नह ं डाल।
5. सरकार व शासन को जल दूषण नयं ण नयम को दूषण फैलाने वाल इकाई पर
कठोरता से लगाने चा हये।
मृदा दूषण
भू म के भौ तक, जै वक अथवा रासाय नक गुण म ऐसा अवाि छत प रवतन या बदलाव िजसका
असर जीव-ज तु ओ,ं पादप तथा िजसम भू म क ाकृ तक गुणवता व उपयो गता न ट हो भू म
दूषण कहलाता है। मृदा क गुणव ता म अवनयन पवन या जल य याओं वारा तेजी से मृदा
का अपरदन व अप य होना, म ी म रहने वाले सू म जीव क कमी हो जाना, म ी म नमी
क मा ा आव यकता से अ धक या कम हो जाना, तापमान म अ य धक उतार चढ़ाव हो जाना,

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म य म यूमस क कमी हो जाना, तथा म य म दूषक क मा ा बहु त अ धक बढ़ जाने
आ द कारण से होता है।
ाकृ तक ोत वारा मृदा दूषण वालामु खी से नकले पदाथ अथवा भू खलन व वषा मु य
कारण है जब क मानवीय ग त व धय म औ यो गक अप श ट, नगर य अप श ट, व अ य धक
खनन एंव कृ ष आ द म अ नयं त रसायन व क टनाशक का योग करना है।
नयं ण के उपाय
य द हम मृदा संसाधन को सं चत रखना है तो औ यो गक अप श ट व नगर य अप श ट को
उपचार कये बना न का सत करने पर पाब द लगानी होगी। कृ ष म उवरक व रसायन के
कम से कम योग व यूमस तथा ाकृ तक खाद का योग बढ़ाना होगा। अ धक से अ धक
वृ ारोपण तथा क दूर कृ ष प त अपनानी होगी, जल ससांधन का संर ण करना होगा ता क
म थल यकरण के भाव को रोका जा सके। जल ब ध के भावी उपाय अपना कर जहाँ एक
ओर सतह जल को संर त करने व बाढ़ नयं ण वारा भू मगत जल तर बढ़ाने म मदद
मलेगी वह बीहड़ (Ravines) व जल कटाव वारा भू तल के वनाश को रोका जा सकेगा।
अ नयं त खनन पर रोक लगा कर हजार टन च ान चू ण भू म पर फैला कर कये जाने वाले
नुकसान को रोका जा सकेगा।
वन दूषण
अवां छत शोर के कारण मानव वग म उ प न अशाि त एवं बेचैनी क दशा को वन दूषण
कहते ह। आधु नक यूग म कल-कारखान , आ तशबाजी, रे डयो, ट वी., यूिजक स टम, हवाई
जहाज तथा सड़क पर दौड़ते व भ न कार के वाहन से नकल ककस आवाज हमार मान सक
शाि त को भंग करने के लए उ तरदायी है इन याओं वारा वातावरण क शाि त को भंग
कये जाने से मनु य के वा य, शार रक व मान सक याओं म अनेक वकार उ प न हो
जाते है तथा वातावरण के अ य घटक भी इससे भा वत होते ह। इसे ह हम धव न दूषण
कहते ह। दूसरे श द म व न क ती ता जब इतनी अ धक हो जाये क इसे सहन करना स भव
ना हो तब वह वन दूषण कहलाता है। व व वा थय सगंठन वारा िजनेवा म द एक
प रभाषा के अनुसार ''ऐसी अवां छत व न िजसका मनु य के अथवा समि ट के वा य पर
दु भाव पड़ता है वन दूषण कहलाता है''।
वन दूषण के दु भाव
वन दूषण के मनु य पर पड़ने वाले तकू ल भाव सामा य प से व थ नींद नह आना,
वभाव मे चड़ चड़ापन पैदा हो जाना, बोलने मे क ठनाई पैदा होना है। स जी म डी, मछल
बाजार, हाट, मेले, रे लवे लाइन के पास क बि तय म अ धक शोर होने से मनु य क नींद म
यवधान होता है इसी से वभाव म चड़ चड़ापन व मि त क म अनेक वकृ तया पैदा हो जाती
ह। वन दूषण जीव ज तु और प य क जीवन दशाओं को भी भा वत करता है। अ धक
शोर वाले थान को छो कर प ी अ य चले जाते ह। व य जीव के पास से सड़क, रे ल माग
बनाने पर उनके शोर से वो भी उस थान को याग दे ते ह। इससे अनेक पा रि थ तक स तु लन
स ब धी सम याएँ पैदा हो जाती ह। हमार वण शि त पर इसका वपर त भाव पड़ता है। य द
वन ोत कान के नकट हो तो कान का परदा फूटना व थायी बहरापन होने जैसे दु भाव
दे खने को मल रहे ह।

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वन दूषण का हमार शा र रक याओं जैसे र त वा ह नय का सकं ु चन, दय ग त म
प रवतन, मांसपे शय म तनाव, आँख क ि ट कम हो जाना, वसन त व मि त क याओं
पर वपर त भाव पड़ता है।
वन दूषण पर नय ण

वन दूषण पर नयं ण के लए हम अपने घर तथा सड़क पर चलने वाले वाहन तथा
उ योग व कारखान से उ प न ककश व न को कम करने के लए भावी उपाय करने ह गे।
घर म रे डयो, टे ल वजन, कू लर, कु ट र उ योग के प म घर म लगाई जाने वाल आटाच क ,
सलाई मशीन, व न व तारक य आ द पर तब ध लगाने चा हए। पुराने वाहनो क जो
सडक पर बहु त अ धक आवाज करके चलते ह क समय सीमा तय कर तब ध लगाने चा हए।
दूषण नयं ण बोड को अ य धक व न उ प न करने वाले उ योग व कारखान को नगर व
बि तय से दूर थाना त रत करवाकर रण व न अवरोध को काम म लेने के लए े रत करना
चा हए। इस कार सामािजक चेतना, शासक य नयं ण तथा जाग कता पैदा कर हम वन
दूषण को नयं त कर सकते ह।

बोध न - 2
1. हम शखर पघलकर महासागर के जल तल म वृ करते ह -
( अ ) अ ल य वषा के कारण ( ब ) भू म डल य तपन के कारण
( स ) अ तवृ ि ट के कारण ( द ) गु वाकषण बल के कारण ( )
2. न न म से क णक य वायु दू ष क है -
(अ) लोर न गै स ( ब ) अमो नया गै स
( स ) जला हु आ काबन ( द ) कोई नह ं ( )
3. वन दू ष ण के कोई दु भाव बताइये ।
...................................................................................................
...................................................................................................
4. तीन जल दू ष क के नाम बताइये ।
...................................................................................................
...................................................................................................
5. वायु दू ष ण के तीन तकू ल भाव बताइये ।
...................................................................................................
...................................................................................................

6.4 वायु म डल य आपदाएँ (Atmospheric Hazards)


मौसम और जलवायु क चरम घटनाएँ कभी-कभी वायुम डल क नचल पत म स य होकर इस
भाग को इतना अ धक उ वे लत कर दे ती ह क धरातल पर लय जैसी ि थ त उ प न हो जाती
है। जन और धन क अपार हा न होती है। ऐसी घटनाऐं वायुम डल य आपदाय कहलाती ह।

133
6.4.1 आपदाओं के कार

वायुम डल य आपदाओं के अ तगत उ णक टब धीय च वात, तू फान, च ड बाढ़, सू खा एवं


हे तर आपदाओं को सि म लत कया जाता है। इनम उ ण क टब धीय च वात सवा धक
शि तशाल व वंसक तथा ाणघातक वायुम डल य घटना है। संसार के व भ न दे श म इनको
अलग-अलग नाम से जानते ह। उ तर अटलाि टक महासागर म इ ह ह रकेन, उ तर शा त
महासागर म टाइफून तथा बंगाल क खाड़ी म च वात कहते ह।
12 नव बर, 1970 को बां ला दे श के द णी तटवत य भाग म आये वनाशकार च वात ने तीन
लाख से भी अ धक लोग को अपने काल का ास बना लया था । कमल क खाड़ी म तवष
इस कार के वनाशकार च वात 12 से 13 क सं या म आते ह िजनम हवाओं क ग त 65
कमी. त घ टा से अ धक होती है।
ह रकेन ाय: संयु त रा य अमे रका के द ण पूव भाग म खाड़ी तट य रा य (लू सयाना,
टै सास, अलाबामा तथा लो रडा) म वनाश ल ला रचते ह। यू.एस.ए. म टोरनेडो नामक च वात
भी चलते ह।
बाढ़
अ तवृि ट एवं यूनवृि ट वायुम डल य आपदाएं ह। वायुम डल य व श ट मौसमी दशाओं के
प रणाम व प होने वाल अ तवृि ट से भू तल जलम न हो जाता है िजससे मानव बि तय , जीव
ज तु व कृ ष फसल को भार नुकसान पहु ँ चता है। बाढ़ के आने के अनेक कारण है -
1. वषा काल म अचानक वायुम डल य दशाओं म प रवतन से द घका लक घनघोर जल
वृि ट का होना।
2. शु क व अ शु क े म अचानक एवं अ या शत जलवृि ट के कारण स रताओं के
ाकृ तक वाह वक सत ना होने से बाढ़ का आ जाना।
3. अनेक न दय के वाह े म वसप क सं या अ धक होने से जल वसजन म बाधा
उ प न होने के कारण समीपवत े म जल फैल जाना।
नदान
वृ ा रोपण के वारा जल वाह के वेग को कम करके बाढ़ क ती ता व स भावना को कम
कया जा सकता है। दूसरा अ य धक वसप यु त स रताओं के माग को सीधा कर दे ना चा हये
ता क अ तवृि ट के समय जल वाह म बाधा उ प न ना हो। तीसरा न दय के ऊपर भाग म
बाढ़ नयं ण भ डारण जलाशय (Flood Control Storage reservoirs) के नमाण वारा
अ त र त जल का इनम संचय कर न दय म जल के आयतन को कम कया जा सकता है।
सरकार व शासन वारा भी बाढ़ भ व यवाणी तथा चेतावनी णाल को वक सत कर इस
सम या से नजात पायी जा सकती है।
सू खा
सू खा भी एक घातक वायुम डल य वपदा है भारतीय मौसम वभाग के अनुसार उस वायुम डल य
दशा को सू खा कहते ह ''जब कसी भी े म सामा य वषा से वहां ा त वषा 75 तशत से
कम होती है।'' ल बे समय तक सू खे क ि थ त रहने से उस दे श के अनेक पादप तथा ज तु
जा तयाँ न ट हो जाती है। आज भी व व के 25 तशत े सू खे क ग भीर सम या से जू झ
रहे ह।
134
सू खा नयं ण उपाय
सू खे क व भ षका वनारोपण, शु क कृ ष प त अपनाने तथा रे ग तान सार पर नय ण
ं करने
के उपाय पर बल दे कर इसे कम कया जा सकता है। राज थान म इि दरा गांधी नहर का
वकास कर सू खे क सम या को रोकने म काफ सफलता मल है।
हे तर आपदाऐं, कारण एवं भाव
वै ा नक क मा यता है क टे सयस युग के अ त तथा टा शयर युग के ारं भ म आज से
65 म लयन वष पूव पृ वी व एक वृहदाकार उ का प ड क ट कर के कारण कु छ ज तु ओं का
सामा य प से व डायनासौर का सामू हक प से वलोप हु आ है। इस ट कर ने वायुम डल म
धू लरा श का वशाल आवरण बना दया था। प रणामत: पृ वी पर कई वष तक घना अ धकार
छाया रहा। इससे सौय वकरण पृ वी पर नह पहु चँ पाये व यहाँ पर शीत-पयावरण बन जाने से
जीव ज तु व वन प त न ट हो गये। सम त आहार खृं ला समा त हो गई।
बोध न -3
1. न न म से कौन सी घटना वायु म डल य आपदा नह ं है -
( अ ) च वात ( ब ) अ तवृ ि ट
( स ) सू खा ( द ) अना छादन ( )
2. टोरने डो का भाव े हे -
( अ ) बं गाल क खाड़ी ( ब ) फारस क खाड़ी
( स ) यू ए सए . (द) द णी चीन ( )
3. डायनासोर ज तु ओं के सू मा हक वलोप का कारण माना गया है -
( अ ) अ तवृ ि ट ( ब ) उ का प ड क पृ वी से ट कर
( स ) सू यताप ( द ) कोई नह ं ( )
4. बाढ़ नयं ण के दो उपाय बताइये ।
...................................................................................................
...................................................................................................

6.5 सारांश
उ त इकाई म वायुम डल के अ ययन से पता चलता है क यह अनेक कार क गैस , जलवा प
तथा धू लकण का यां क म ण है। ये सभी त व इसक नचल पत म स य होकर
वायुम डल य घटनाओं को ज म दे ते ह। अनेक परत ने मलकर इसक संरचना क है। सबसे
नचल परत ोभ म डल सवा धक स य परत है जहाँ सम त मौसमी घटनाएँ यथा वषा, मेघ
नमाण, कोहरा, च वात, तच वात, च ड आं धयाँ व अनेक कार क मौसमी घटनाएँ घ टत
होती रहती ह।
पयावरणीय दूषण वायुम डल क अनेक घटनाओं का ह प रणाम है। अनेक कार के दूषक इसे
ज म दे ते ह िजनके आधार पर इसे वायु दूषण, जल दूषण, वन दूषण तथा मृदा दूषण म
बाँटकर उनके वारा पड़ने वाले हा नकारक भाव क ववेचना क है।

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तीसर वायुम डल य मु ख घटना वायुम डल य आपदाएँ ह जो भू तल पर च वात , तच वात ,
अ तवृि ट, सू खा व अकाल तथा आकाशीय प ड के भू तल पर हार का प रणाम ह। ये जन एवं
धन को अपार हा न पहु ँ चाती ह। इ ह समा त तो नह ं कया जा सकता पर इनके भाव को
वायुम डल य आपदा ब धन व धय अपना कर कम कया जा सकता है।

6.6 श दावल
ु वीय े : उ तर व द णी ु व के पास पाये जाने वाले े
दावाि न : वन म लगने वाल आग
जलोढ़ : जल म म त च ान चू ण
काइ टस : वसन स ब धी रोग
अ ल य वषा : वायु म डल म उपि थत काबन-डाइ- ऑ साइड, स फर डाई-
ऑ साइड व नाइ ोजन का वषाजल म घुलकर अ ल य प म जल
पर पहु ँ चना
भू म डल य तपन : तल के तापमान म वृ
ओजोन रण : वायुम डल के ऊपर भाग म लोरो लोरो काबन जैसी गैस क
अ धकता से ओजोन परत को त पहु ँ चना।

6.7 स दभ थ
1. Critch Field H.J. : General Climatology, Prentice Hall Inc.,
Englewood N.J.U.S.S., 1975
2. Kendrew, W.G. : Climatology, Oxford, 1957
3. स व संह : पयावरण भू गोल, याग पु तकालय, इलाहाबाद, 1997
4. डी एस. लाल : जलवायु व ान, शारदा पु तक भवन, इलाहाबाद, 2003
5. वी. एस. चौहान : भौ तक भूगोल, र तोगी पि लकेश स, मेरठ, 2006

6.8 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. (द) 2. (ब) 3. (स)
4. 78.08 तशत 5. 6.5० C त कमी.
बोध न - 2
1. (ब) 2. (स)
3. (i) नींद नह ं आना, (ii) वभाव म चड़ चड़ापन आ जाना
4. (i) औ यो गक ब ह ाव, (ii) नगर य अप श ट, (iii) वषैले रसायन
5. (i) वचा रोग, (ii) कसर, (iii) वसन स ब धी
रोग
बोध न - 3

136
1. (द) 2. (स) 3. (स)
1. (i) स रता शीष दे श म बाढ़ नयं ण भ डारण जलाशय का नमाण
1. स रता वाह े म पड़ने वाले वसप क सं या कम करके

6.9 अ यासाथ न
1. वायुम डल क व भ न परत क संरचना तथा वशेषताओं को बताइये।
2. पयावरण दूषण के व भ न कार व उनसे पड़ने वाले हा नकारक भाव को सं ेप म
समझाइये।
3. वायुम डल य आपदाओं वारा पड़ने वाले वनाशकार भाव क ववेचना क िजए।

137
इकाई 7 : तापमान, उसका वतरण व तापमान क वलोमता

इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 सू यातप का प रचय
7.2.1 धरातल पर सू यातप का वतरण
7.2.2 सू यातप के वतरण को भा वत करने वाले कारक
7.2.3 वायुम डल तथा पृ वी का उ मा स तु लन
7.3 तापमान
7.3.1 दै नक औसत तापमान
7.3.2 मा सक औसत तापमान
7.3.3 वा षक औसत तापमान
7.3.4 अ धकतम तापमान
7.3.5 यूनतम तापमान
7.3.6 तापमान के वतरण को भा वत करने वाले कारक
7.3.7 तापमान का उ वाधर वतरण
7.3.8 तापीय वलोमता
7.3.9 तापीय वलोमता के कार
7.3.10 तापीय वलोमता के लये उ तरदायी कारक
7.4 तापमान का ै तज वतरण
7.4.1 जनवर का वतरण
7.4.2 जु लाई का वतरण
7.5 सारांश
7.6 श दावल
7.7 संदभ थ
7.8 बोध न के उ तर
7.9 अ यासाथ न

7.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ सकगे :-
 सू यातप का वतरण व उसको भा वत करने वाले कारक
 वायुम डल तथा पृ वी का उ मा बजट
 वायुम डल य तापमान का उ वाधर व ै तज वतरण,
 तापमान के वतरण को भा वत करने वाले कारक तथा
 तापीय वलोमता के लये उ तरदायी कारक।

138
7.1 तावना
तापमान का अथ सामा यतया उ मा से लया जाता है। क तु दोन म पया त भ नता होती है।
उ मा कसी पदाथ के अणु ओं क स पूण ग तज ऊजा का योतक है। इसके वपर त तापमान
पदाथ के अणु ओं क औसत ग तज ऊजा का मापन करता है। टे लर के अनुसार तापमान कसी
पदाथ क वह वशेषता है जो चालन के वारा उ मा के वाह क दशा नि चत करता है। उ मा
कसी व तु म उपि थत ऊजा क मा ा का योतक है, जब क तापमान उस व तु क उ मीय
अव था कट करता है। यहाँ तापमान का अ भ ाय वायुम डल य ताप से है, जो पूणतया सू यातप
एव पा थव व करण पर नभर करता है। पृ वी क धरातल य बनावट एक सी नह ं है। इस पर
छोटे बड़े जमु और महा वीप का वतरण है। इनके अलावा छोटे प म म थल मैदान, पवत,
पठार आ द के कारण सू यातप भा वत होता है।

7.2 सू यातप का प रचय


अं ेजी भाषा म इ सोलेशन श द In + Sol + ation अथात ् Incomming solar radiation का
सं त प है। अथात ् सू य के व करण (radiation) वारा जो ऊजा नकलती है उसे सू यातप
कहते ह। के ड़ू (Kendrew) के अनुसार ''सू य लगातार िजस ऊजा को सा रत करता रहता है वह
सू यातप कहलाता है।'' वाथा के श द म ''लघु तरं ग के प म ा त सौ यक ऊजा को सू यातप
कहते ह।
सौय व करण तरं ग के प म सू य से पृ वी तक पहु ँ चता है। इन तरं ग को पृ वी तक पहु ँ तने म
8 मनट 20 सैके ड लगते ह। इन व युत चु बक य तरं ग का माप माइ ोन (µ) म कया जाता
है।
I
1 माइ ोन = Cm होता है ।
10.000
सू यतल के तवग इंच से 100,000 अ व शि त वक ण ऊजा ा त होती है। पृ वी तथा सू य के
बीच क औसत दूर 149 म लयन कमी. है। सू य के धरातल का तापमान 6000०C अथवा
11000०F है जब क सू य के के य भाग का तापमान 50,000,000०F बताया जाता है।

7.2.1 धरातल पर सू यातप का वतरण

धरातल पर सू यातप का वतरण सभी थान पर समान प से नह ं पाया जाता है। सू यातप का
सवा धक वतरण भू म यरे खा के पास होता है। ु व क ओर इसक मा ा म नर तर कमी आती
जाती है। इसका मु य कारण सू य क करण का पृ वी के साथ बनने वाला कोण एवं सू य काश
क अव ध है। माच व सत बर म बस त व शरद वषुव के समय जब सू य भू म य रे खा पर
ल बवत ् चमकता है, उस समय दोन गोला म सभी अ ांश पर लगभग एक समान सू यातप
पाया जाता है। ी म व शीतकाल म जब सू य कक व मकर रे खा पर मश: ल बवत ् चमकता है
सू यातप क अव ध स द भत गोला म सवा धक होती है। य द लोब पर वा षक सू यातप के
अ ांशीय वतरण पर यान दया जाय तो इसे 3 अ ांशीय पे टय म बाँटा जा सकता है -
1. न न अ ांशीय म डल (Low Latitudional Zone) : इसका व तार कक तथा मकर
रे खाओं के बीच पाया जाता है। इस े को दस बर व जनवर म लगभग 400 इकाई

139
सू यातप क मा ा ा त होती है जब क माच व सत बर म लगभग 500 इकाई सू यातप
क मा ा ा त होती है। इस कार सं ां त तथा वषुव के बीच लगभग 100 इकाई
सू यातप क मा ा का अ तर पाया जाता है। इस म डल म सू य क करण वष म दो बार
ल बवत ् पड़ती ह, िजस कारण वष म दो बार अ धकतम तथा दो बार यूनतम सू यातप
ा त करता है। इसम ऋतु प रवतन कम पाया जाता है।
2. म य अ ांशीय म डल (Mid Latitudinal Zone) : इसका व तार 23 1/ 2 ० से 66
1/ 2 ० अ ांश के बीच दोन गोला म पाया जाता है। दो सं ां त के बीच लगभग 400
इकाई का अ तर जब क एक सं ां त तथा एक वषुव के बीच लगभग 200 इकाई का
अ तर पाया जाता है। इस म डल के येक थान पर वष म एक बार अ धकतम एवं
एक बार यूनतम सू यातप क मा ा ा त होती है। ऋतु वत ् असमानताय अ धक पायी
जाती ह।
3. उ च अ ांशीय म डल (High Latitudinal Zone) : इसका व तार 66 1/ 2 ० से 90०
अ ांश के म य दोन गोला म पाया जाता है। एक सं ां त तथा वषुव के बीच
लगभग 300 इकाई का अ तर पाया जाता है। यहाँ वष म एक बार उ चतम तथा एक
बार यूनतम सू यातप ा त होता है।

7.2.2 सू यातप के वतरण को भा वत करने वाले कारक

धरातल पर सू यातप क ाि त सव समान नह ं होती। इसे नयि त करने वाले कारक


न न ल खत ह:-
1. सू य क करण का कोण (Angle of Sun’s Rays) : सू य क करण येक थान पर
सीधी नह ं पड़ती। भू म य रे खा पर ाय: सू य करण सीधी पड़ती ह। पर तु जैसे-जैसे
उ च अ ांश क ओर जाते ह, सू य करण तरछ ं होती जाती है। सू य क करण का
कोण धरातल के साथ िजतना अ धक होगा, सू यातप क मा ा भी उतनी ह अ धक ा त
होगी। य य प इससे धरातल का कम भाग भा वत होगा। सू य क करण का धरातल
के साथ बनने वाला कोण य द कम होता है तो उस ि थ त म धरातल का अ धक भाग
सू यातप से भा वत होगा, पर तु यह भाग कम सू यातप क मा ा ा त करे गा।

च 7.1 : आपतन कोण व भा वत े


2. दन-रात क अव ध : भू म य रे खा पर काश क करण लगभग वषभर ल बवत होती
ह। अत: यहाँ पर सदै व 12 घ टे का दन तथा 12 घ टे क रात होती है। भूम य रे खा
और ु व के बीच म दन क ल बाई बदलती रहती है। कसी अ ांश वशेष के येक
थान पर दन क अव ध एक जैसी होती है पर तु अपने से ऊँचे व नीचे अ ांश के
थान से भ न होती है ।

140
व भ न अ ांश म दन क अ धकतम अव ध
अ ांश ( ड ी म) 0 17 31 41 49 58.5 63.4 66.5 67.4 69.8 78.2 90.0
दन क अव ध 12 13 14 15 16 18 20 24 1 माह 2 माह 4 माह 6 माह
(घ ट म)

दन क अव ध िजतनी अ धक होगी उतना ह सौय व करण अ धक ा त होगा ।


3. पृ वी से सू य क दूर (Distance between earth and sun) : सू य से पृ वी क दूर
वष भर समान नह ं रहती बि क घटती बढ़ती रहती है। 3 जनवर को पृ वी रण सू य के
बीच नकटतम दूर 14,70,00,000 कमी. होती है। इस ि थत को उपसौर
(Perihelion) कहते ह। 4 जु लाई को सू य तथा पृ वी के बीच अ धकतम दूर
15,20,000,00 कमी. होती है। इस ि थ त को अपसौर (Aphelion) कहते है।

च 7.2 : सू य तथा पृ वी क सापे क ि थत


4. सौर कलंक (Sun spots) : च मा के समान सू य तल पर ध बे पाये जाते ह। औसत
प से 11 वष य च के प म सौर कलंको क सं या पृ वी क ओर अ धकतम होती
है। अ धक ध बे होने पर सू यातप क मा ा भी अ धक होती है।
5. वायुम डल क शु ता : वायुम डल म िजतनी शु ता होती है उतना ह अ धक सू यातप
पृ वी पर आसानी से पहु ँ चता है। िजतनी अ धक वायुम डल म अशु ता होती उतना ह
कम सू यातप पृ वी तक पहु ँ च जाता है।
6. थल एवं जल का भाव : जल भाग म सू यातप अ धक गहराई तक पहु ँ चता है (लगभग
17 m तक) एवं थलभाग पर कम गहराई तक वेश कर पाता है (लगभग 1 m तक)।
इसके अ त र त थल क अपे ा जल म अनेक याय जैसे धाराओं का चलना, वार
भाटा, लहर आ द का संचलन होता रहता है। जल पर जलवा प क अ धक मा ा पायी
जाती है जो सू यातप क मा ा को अवशो षत करती है। अत: थल भाग जल भाग क
तु लना म ज द गम होता है।
7. धरातल का रं ग एवं व प : धरातल के रं ग एवं वभाव के अनुसार सू यातप भ न-
भ न मा ा म ा त होता है। य द वन प त के कारण धरातल का रं ग हरा है तो वहाँ
सू यातप क कम मा ा ा त होगी। य द धरातल का रं ग लाल है तो वहाँ सू यातप क
अ धक मा ा ा त होगी। धरातल का व प जैसे पवत, पठार, मैदान आ द पर सू यातप
अलग-अलग मा ा म ा त होता है। मैदान क अपे ा पवत के सू य मुख ढाल पर
सू यातप क अ धक मा ा ा त होती है।

141
7.2.3 वायुम डल तथा पृ वी का उ मा संतल
ु न

पृ वी को अ धकांश उ मा (heat) सू य से व करण वारा ा त होती है। सू य से वक ण ताप लघु


तरं ग (shoot waves) वारा पृ वी को ा त होता है। वायुम डल सू य से वक ण ऊजा
(energy) का केवल 14% य प से ा त करता है। वायुम डल को अ धकांश ताप क
ाि त (अ य प से) पृ वी से वक ण ऊजा वारा ा त होती है जो क द घ तरं ग के प म
होती है। इस कार पृ वी एवं वायुम डल नर तर सू य से उ मा ा त करते ह। ले कन यह
उ लेखनीय है क फर भी पृ वी तथा वायुम डल का उ मा भ डार बढ़ता या घटता नह ं अ पतु
सदै व संतु लत रहता है। अथात ् पृ वी तथा वायुम डल िजतना ताप ा त करता है उतना ह शू य
म लौटा दे ते ह।
सू य से वक ण ऊजा का 35% भाग मौ लक प से शू य म वापस लौटा दया जाता है। इसम से
6% वायुम डल से क णन वारा, 27% वायुम डल म ि थत बादल से परावतन वारा तथा
2% पृ वी क सतह से परावतन वारा शू य म वापस लौटा दया जाता है। अत: सौ यक ऊजा
के इस 35% भाग का वायुम डल तथा पृ वी को गम करने म कोई हाथ नह ं होता। शेष 65%
भाग म से वायुम डल वारा (जलवा प, बादल, धू लकण , गैस आ द) 14% भाग का अवशोषण
कर लया जाता है। इस तरह केवल 51% उ मा ह पृ वी को ा त हो पाती है। इसम से 34%
भाग य सू य काश से ा त होता है तथा शेष 17% वस रत दवा काश (diffuse Day
Light) वारा ा त होता है। सू य से ा त यह 51% उ मा ह पृ वी क वा त वक बजट है।
वायुम डल का उ मा बजट सौ यक ऊजा का 48% होता है। इसम से वायुम डल सौय व करण से
14% ऊजा का य अवशोषण कर लेता है तथा शेष 34% पृ वी से होने वाले द घ तरं ग
व करण से ा त करता है।

च -7. 3 : पा थव तथा वायुम डल य उ मा का संतल


ु न
सू य से उ मा ा त करने के प चात ् पृ वी भी उ मा का व करण करना ार भ कर दे ती है ता क
धरातल पर लगातार उ मा का संचलन न हो सके। पृ वी वारा होने वाला व करण द घ तरं ग के
प म होता है। इसी पा थव व करण (Terrestrial Radiation) से वायुम डल का नचला भाग
गम होता है। पृ वी वारा ा त उ मा का 23% भाग धरातल से द घ तरं ग के प म व करण
हो जाता है, इसका 17% भाग सीधे शू य म चला जाता है। 6% भाग भावी व करण के प म
वायुम डल को गम करता है। धरातल से 9% उ मा व ोभ तथा संवहन के प म खच हो जाती
है तथा शेष 19% उ मा वा पीकरण व संघनन म खच हो जाती है। इस कार धरातल से 51%
उ मा वा पस व करण हो जाती है िजससे धरातल पर उ मा का स तुलन बना रहता है।

142
वायुम डल कु ल 48% (14+6+9+19) उ मा ा त करता है। ये उ मा वायुम डल वारा पुन :
शू य म लौटा द जाती है। इस कार वायुम डल तथा पृ वी वारा 65% उ मा का 17% भाग
पृ वी से तथा 48% भाग वायुम डल से शू य म वापस चला जाता है।
बोध न- 1
1. वषु व क ि थ त कब पायी जाती है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. उपसौर से आप या समझते ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. पा थव व करण या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. लघु तरं ग को सू य से पृ वी तल तक पहु ँ च ने म कतना समय लगता है ?
.................................................................................... ...............
...................................................................................................

7.3 तापमान
7.3.1 दै नक औसत तापमान

दन के अ धकतम तथा यूनतम तापमान के औसत को औसत दै नक तापमान (Mean Daily


Temperature) कहते ह।

7.3.2 मा सक औसत तापमान (Mean Monthly Temperature)

मह ने के त दन के औसत तापमान के योग म उस मास के कु ल दन क सं या का भाग दे ने


से मा सक औसत तापमान ा त होता है।

7.3.3 वा षक औसत तापमान (Mean Annual Temperature)

12 मह न के मा सक औसत तापमान के योग को 12 से वभािजत करने पर वा षक औसत


तापमान ा त होता है।

7.3.4 अ धकतम तापमान

दन भर के सबसे ऊँचे ताप को दै नक अ धकतम ताप (Daily or Diurnal Maximum


Temperature) कहते ह। य द मह ने भर के सबसे ऊँचे ताप को नोट कया जाये तो मह ने भर
म पाये जाने वाला अ धकतम ताप मा सक उ चतम ताप (Monthly Maximum Temperature)
होता है। इसी कार वष का भी अ धकतम ताप मालू म कया जा सकता है। िजसे वा षक

143
उ चतम ताप (Annual Maximum Temperature) कहते ह। य द मह ने भर तक त दन के
उ चतम ताप का औसत नकाला जाये तो उसे औसत मा सक उ चतम ताप (Mean Monthly
Maximum Temperature) कहते ह। इसी तरह वष के लये भी औसत वा षक उ चतम ताप
(Mean Annual Maximum Temperature) भी नकाला जा सकता है। उ चतम ताप 2 से 5
p.m.के बीच होता है।

7.3.5 यूनतम तापमान

दनभर के यूनतम ताप को दै नक यूनतम ताप (Daily or Diurnal Minimum


Temperature) कहते है। ऊपर बताई गई व ध के आधार पर मा सक यूनतम ताप एवं वा षक
यूनतम ताप भी मालू म कया जा सकता है। यूनतम ताप 4 से 5 a.m. के बीच होता है।

7.3.6 तापमान के वतरण को भा वत करने वाले कारक

पृ वी के धरातल पर एक समान तापमान क दशाय नह ं मलती ह। तापमान के वतरण को


भा वत करने वाले न न कारक ह:-
1. अ ांश : भू म य रे खा पर वष भर सू य क ल बवत ् करण के कारण सू यातप क
अ धकतम मा ा ा त होती है। इसके वपर त ु व क ओर करण के तरछे पन म वृ
के कारण सू यातप क मा ा कम ा त होती है। अत: भू म य रे खा से ु व क ओर
तापमान म ाय: कमी पायी जाती है।
2. सागर तल से ऊँचाई : सागर तल से ऊँचाई के साथ-साथ तापमान म कमी आती जाती
है। जो भाग धरातल से िजतना नजद क होता है वह उतना ह अ धक तापमान वाला
होता है। इसके समीप क वायु भी सघन होती है तथा इसम वायु क ऊपर परत क
अपे ा जलवा प एवं धू लकण आ द अ धक मा ा म पाये जाते ह जो पा थव तथा सौर
व करण का अ धक मा ा म अवशोषण करते ह।
3. सागर से दूर : जो भाग सागर के नजद क होता है वहाँ का तापमान सम बना रहता है।
इसके वपर त जो भाग सागर से िजतनी ह दूर पर होता है उसके तापमान म उतनी ह
अ धक वषमता होती है।
4. जल एवं थल का वभाव : तापमान थल य भाग को जल क अपे ा अ धक तेजी से
भा वत करते ह य क यह जल क अपे ा सू यातप से ज द गम तथा ज द ठ डा
भी हो जाता है।

7.3.7 तापमान का ऊ वाधर वतरण

वायुम डल म ऊँचाई क ओर जाते हु ए तापमान मश: घटता है। औसत प से तापमान त



एक हजार मीटर पर 6.5 C क दर से कम हो जाता है। तापमान के इस पतन को सामा य पतन
दर (Normal Lapse Rate) कहते ह। यह हास ोभम डल तक ह जार रहता है। इसके प चात ्
तापमान का हास क जाता है। ऊँचाई के साथ तापमान के घटने के न न कारण है।
1. नचल परत पृ वी के गम तल से पश के कारण गम हो जाती है। यह ताप संवहन
तरं ग वारा धीरे -धीरे ऊपर क पत को गम करता है। अत: ऊपर क पत नचल पत
क अपे ा कम गम होती ह।
144
2. नचल वायु म ऊपर क वायु क अपे ा जलवा प, धू ल के कण एवं घनी वायु होती है
इस लये नचल पत पृ वी के तल से उ मा का शोषण करके अ धक गम हो जाती ह।

3. वायुम डल क नचले भाग म ऊपर ि थत वायु क परत का भार अ धक होता है तथा


ऊपर जाने पर हवा का घन व कम हो जाता है।
बोध न- 2
1. सामा य ताप पतन दर या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. दै नक औसत तापमान या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. धरातल का औसत तापमान या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. व व म सवा धक ऊँ चा तापमान कहाँ पाया जाता है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
5. दै नक तापा तर या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................

7.3.8 तापीय वलोमता

ऐसी दशा जब क वायुम डल म नीचे कम ताप, उसके ऊपर अ धक ताप तथा पुन : ऊपर कम
तापमान मलता है, तापीय वलोमता या ताप का यु मण (Inversion of temperature)
कहलाता है। वाथा के अनुसार ''ऐसी दशा िजसम शीतल वायु धरातल के नकट तथा उ ण वायु
उससे ऊपर पायी जाती है, तापीय वलोमता कहते ह। ''यह ि थ त घा टय , हमा छा दत दे श ,
ु वीय दे श , म य अ ांश आ द भाग म अ धक पायी जाती है।

7.3.9 तापीय वलोमता के कार

तापीय वलोमता को उ प न करने वाल वभ न याओं तथा धरातल से तलोमन तर क


सापे त ऊँचाई (Relative height) के आधार पर इसे न न ल खत भाग म वभािजत कया
जाता है –
1. धरातल य अथवा न न तर य वलोमता (Ground Inversion)
(अ) पा थव व करण तलोमन (Rediation Inversion)

145
(ब) अ भवहन या स पक य वलोमता (Advection Inversion)
2. उ च तर य वलोमता (Upper Air Inversion)
(अ) व तृत वायु रा शय के अवतलन से उ प न वलोमता
(ब) व ोभ एवं संवहन वारा उ प न वलोमता (Turbulence and Convective
Inversion)
(स) तापीय उ च वायुम डल य वलोमता (Thermal Upper Atmosphere Inversion)
3. वाता ी वलोमता (Frontal Inversion)
पा थव व करण तलोमन
इस कार क वलोमता धरातल से संल न वायु क परत म कु छ ऊँचाई तक पायी जाती है।
इसक उ पि त का मु य कारण पा थव व करण (Terrestrial Radiation) ज नत रा काल न
शीतलन है। रा म थल भाग शी एवं काफ ठ डे हो जाते ह। इस कारण इसके स पक म
आने वाल वायु भी ठ डी हो जाती है, जब क इसके ठ क ऊपर उ मा का हास कम होने से गम
वायु क पत होती है। प रणाम व प नीचे तापमान कम तथा ऊपर अ धक होने से तापीय
वलोमता क ि थ त हो जाती है।
न न तर य तापीय वलोमता पूण वक सत प म पवतीय अथवा पठार दे श क घा टय म
उ प न होती है। शीतकाल क ल बी रात म पा थव व करण के कारण पवत के ऊपर ढाल
अ य धक ठ डे हो जाते ह और उससे संल न वायु का तापमान काफ नीचे गर जाता है। इसके
वपर त घा टय के तल थ भाग म व करण से अपे ाकृ त कम उ मा हास के कारण तापमान
ऊँचा होने से वायु गम तथा ह क रहती है। फल व प ऊपर ि थत ठ डी वायु भार होने के
कारण नीचे बैठने लगती है। इस कारण वायु म अधोमुखी संचार (Downward Circulation)
ार भ हो जाता है। ये ठ डी हवाएँ घाट क तल म पहु ँच कर गम तथा ह क वायु को ऊपर
धकेलने लगती है िजस कारण उसम ऊ वाधर संचार (Upward Circulation) ार भ हो जाता है।
प रणाम व प ऊपर भाग म गम तथा नचले भाग म ठ डी वायु के कारण वलोमता क ि थ त
उ प न हो जाती है। इसे घाट वलोमता (Valley Inversion) कहते ह।

च - 7.4 : घाट तलोमन

146
अ भवहन तलोमन (Advection Inversion)
शीतल तथा उ ण वायु रा शय के पर पर मलने से व तृत े म तापमान क वलोमता
उ प न हो जाती है। शीतकाल म महा वीप के धरातल अ धक ठ डे हो जाते ह जब उनक ओर
समीपवत महासागर के ऊपर से चलने वाल हवाएँ अथवा उ ण क टब धीय वायु रा शयाँ, िजनका
तापमान अपे ाकृ त अ धक होता है, चलती ह, तब ठ डी वायु क परत के ऊपर उनक थापना
हो जाती है िजससे तापीय वलोमता उ प न हो जाती है। इसी कार ी म ऋतु म महासागर
महा वीप क अपे ा ठ डे होते ह। जब महा वीप पर से अ धक उ ण थल य वायु रा शयाँ ठ डे
महासागर क ओर आती ह, तब वहाँ भी तापीय वलोमता उ प न हो जाती है। इसी कार
महासागर से चलने वाल ठ डी वायु रा श महा वीप पर पहु ँ चकर उनके धरातल के नकट क
वायु को ऊपर उठा दे ती है तथा तापमान वलोमता उ प न कर दे ती है।
अवतलन वलोमता (Susidence Inversion)
इस कार क वलोमता वायुम डल म धरातल से कु छ ऊँचाई पर वायु के नीचे उतरने से उ प न
होती है। वायुम डल म गहर और व तृत वायु रा शय के बड़े पैमाने पर अवतलन तथा नीचे
उतरती हु ई वायु के पा ववत फैलाव से भी तलोमन उ प न हो जाता है। उपो ण क टब धीय
उ च वायुदाब े (Subtropical High Pressure Areas) म, जहाँ तच वातीय दशाय
उ प न होकर अ धक समय तक रहती ह, उ च तर य तापीय वलोमता वशेष प से उ प न
होती है।
व ोभ एवं संवहन वारा उ प न वलोमता (Turbulence and Convective Inversion)
कभी-कभी धरातल से कु छ ऊँचाई पर तापीय वलोमता वलयकृ त याओं के वारा उ प न होती
है। धरातल य घषण से उ प न वायु भँवर (Eddies) वायु को नीचे से ऊपर तथा ऊपर से नीचे ले
जाती है। इसके अ त र त धरातल के गम होने पर वायुम डल म उ प न संवाहन धाराय गम
वायु को ऊपर ले जाती ह और शीतल वायु नीचे क ओर उतरती है। वायुम डल क िजन परत म
संवहन व व ोभ क याय होती ह, उसम वायु का भल भाँ त म ण हो जाता है वायु म ण
क इस ऊपर सीमा पर तापीय वलोमता उ प न हो जाता है।
तापीय उ च तर य वलोमता (Thermal Upper Atmospherice Inversion of
Temperature)
वायुम डल म धरातल से 32 से 80 कमी के बीच ओजोन गैस मलती है जो क सौय व करण
क पेराबैगनी करण (Ultra Violet Rays) का शोषण करती ह, िजससे इस परत का तापमान
अ धक हो जाता है। इस कारण इसके ऊपर तथा नीचे दोन ओर कम तापमान होने से वलोमता
क ि थ त बन जाती है।
वाता ी वलोमता (Frontal Inversion of Temperature)
जब उ ण तथा शीतल वायु रा शयाँ आस-पास होती ह तब शीतल वायु रा श उ ण वायु रा श के
नीचे फान (Wedge) क भाँ त फैल जाती है। इन दोन वायुरा शय क ढालु आ सीमा (Sloping
Boundary) को वाता (Front) कहते ह। वाता पर गम वायु ऊपर तथा ठ डी वायु उसके नीचे
होती है।

147
7.3.10 तापीय वलोमता के लये उ तरदायी कारक

तापीय वलोमता के लये ाय: न न ल खत कारक उ तरदायी होते ह –


1. ढालू घा टय : अ धक ती ढाल वाल गहर घा टय म ठ डी वायु ती ता से नीचे उतर
कर एक त हो जाती ह, िजससे तापीय वलोमता उ प न हो जाती है।
2. ठ डी वायु रा श का आगमन : जब ठ डी वायु रा श कसी गम वायु रा श को ऊपर उठा
दे ती है तो तापीय वलोमता क ि थ त पैदा हो जाती है।
3. शु क वायु : उ णा वायु पृ वी से व करण वारा नकलने वाल उ मा को साख लेती है
और ताप गरने म बाधा डालती है। ठ डी व शु क वायु म यह गुण न होने के कारण
पृ वी शी ह ठ डी हो जाती है।
4. ल बी रात : रात ल बी होने पर व करण अ धक होता है एवं तापीय वलोमता क
स भावना बढ़ जाती है। उ च अ ांश म रात ल बी होती ह िजससे वहाँ तापीय
वलोमता होती है।
5. ि थर मौसम : ि थर मौसम म उ मा व करण बना के होता रहता है। मौसम म
प रवतन न होने से एक जैसी प रि थ तयाँ बहु त समय तक बनी रहती ह। अत: तापीय
तलोमन म बाधा नह ं पड़ती।
6. आकाश क व छता : रात के समय पृ वी से नकलने वाल उ मा बादल से टकराकर
वापस लौट जाती है िजससे पृ वी ठ डी नह ं हो पाती। व छ आकाश म यह उ मा
वा पस नह ं लौटती िजससे पृ वी का तल शी ता से ठ डा हो जाता है और तापीय
तलोमन क स भावना बढ़ जाती है।
7. हमा छा दत दे श : उ च दे श तथा ु वीय भाग म जहाँ बफ जमी रहती है, वहाँ पर
सौय व करण उ मा का 90% तक पराव तत हो जाता है। इस कारण धरातल से
व करण कम मा ा म होता है बफ के भाव से स पूण संल न वायु क परत एकदम
ठ डी हो जाती है। तापीय वलोमता क यह एक आदश दशा कह जा सकती है।
बोध न- 3
1. तापीय वलोमता या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. एनाबे टक पवन कसे कहते ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. तापीय उ च वायु म डल य वलोमता क ि थ त कहाँ पायी जाती है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. तापीय वलोमता के लये मु य उ तरदायी कारक कौन से ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................

148
7.4. तापमान का ै तज वतरण
लोब पर तापमान का तजीय वतरण वशेष प से अ ांश रे खाओं के आधार पर पाया जाता
है। सामा य प से तापमान भू म य रे खा से ु व क ओर कम होता जाता है। ाचीन यूनानी
व वान ने अ ांश के आधार पर स पूण पृ वी को तीन तापीय क टब ध म न न कार से
वभािजत कया -
1. उ ण क टब ध (Torrid Zone) : इसका व तार दोन गोला म 23 1/2o अ ांश तक
(अथात ् कक रे खा से मकर रे खा तक) होता है। उ तर गोला म 23 1/2o N तक और
द णी गोला म 23 1/2० S तक सू य एक बार ल बवत (vertical) चमकता है।

च - 7.5 : ताप क टब ध
2. शीतो ण क टब ध (Temperate Zone) : इसका व तार दोन गोला म 23 1/2० से
66 1/2० अ ांश के बीच पाया जाता है। यहाँ सू य क करण सदै व तरछ पड़ती ह,
अत: सू यातप क ाि त कम होती है। इस भाग म न तो अ धक सद पड़ती है और न
ह अ धक गम । यहाँ ी म तथा शीत ऋतु म व श ट अ तर होता है।
3. शीत क टब ध (Frigid Zone) : यह दोन गोला म 66 1/2० C से ु व तक पाया
जाता है। यहाँ सू य क करण अ य धक तरछ पड़ती ह, िजससे यह क टब ध सदै व
शीतल ह रहता है। यहाँ दन तथा रा क अव ध 24 घ टे से अ धक होती है।

7.4.1 जनवर का तापमान

मान च म तापमान के दशन के लये समताप रे खाओं का उपयोग कया जाता है। समान
तापमान वाले थन को मलाने वाल रे खा को समताप रे खा (Isotherm) कहते ह। समताप
रे खाय वा त वक तापमान न बताकर समु तल का तापमान बताती ह। सव थम सभी थान का
वा त वक तापमान ात करते ह। इसके प चात ् यह ात कया जाता है क वे थान य द सागर
तल पर होते तो कतना तापमान होता।

149
उ तर गोला म जनवर का मह ना अ धक ठ डा होता है तथा इसके ठ क वपर त द णी
गोला म जनवर के मह ने म अ य धक गम होती है। उ तर गोला म थल होने के कारण
समताप रे खाय अ धक व तथा पर पर नकट दखाई पड़ती ह। इसके वपर त द णी गोला
म जलम डल क धानता के कारण समताप रे खाय अपे ाकृ त दूर-दूर एवं कम व क होती ह।
द णी गोला क अपे ा उ तर गोला म समताप रे खाओं क सं या अ धक होती है। जनवर
म यूनतम तापमान उ तर पूव साइबे रया म अं कत कया जाता है। उ तर गोला म
महा वीप पर जनवर क समताप रे खाओं के बीच क कम दूर तापमान क अ धक वणता का

योतक है। इस मह ने म धरातल पर सव च तापमान क पेट 30 द. अ ांश के नकट
महा वीप के ऊपर पायी जाती है।

च - 7. 6 : जनवर माह क समताप रे खाय

7.4.2 जु लाई का तापमान

उ तर गोला म जु लाई का मह ना अ य धक गम पर तु द णी गोला म ठ डा होता है। जु लाई


म अ धकतम तापमान उ तर गोला के महा वीप पर पाया जाता है। इस मास म उ च

तापमान (लगभग 32 C) क एक ल बी व तृत पेट उ तर अ का से द णी पि चमी ए शया
होती हु ई पि चमो तर भारत तक फैल हु ई है। जु लाई म उ तर पूव साइबे रया समान अ ांश म
ि थत अ य भाग क अपे ा अ धक गम हो जाता है। इसका कारण महा वीपीय भाव है।
उ तर गोला म जु लाई म महासागर क अपे ा महा वीप अ धक गम होते ह। इस गोला म
जनवर क अपे ा जु लाई क समताप रे खाय कम तथा दूर-दूर पायी जाती ह। इस मह ने म
द णी गोला मे. समताप रे खाय लगभग समाना तर होती ह। जब क ए शया, अ का एवं
उ तर अमे रका मुहा वीप पर अ डाकार होती ह िजनके के म उ च तापमान मलता है।

150
च - 7.7 : जु लाई माह क समताप रे खाय

7.5 सारांश
सू य से ा त होने वाले सौर व करण को सू यातप कहा जाता है। भू म य रे खा से ु व क ओर
सू यातप क मा ा कम होती जाती है। सू यातप के वतरण को भा वत करने वाले मु य कारक
म सू य क करण का कोण, दन -रात क अव ध, पृ वी से सू य क दूर , सौर कलंक क सं या,
थल एवं जल का भाव एवं धरातल का रं ग व व प ह। पृ वी लघु तरं ग के प म उ मा का
अवशोषण करती है तथा पुन : इस अवशो षत उ मा को द घ तरं ग के प म वक रत करती ह।
सू य से ा त होने वाल कु ल ऊजा का 35% पृ वी के धरातल तक पहु ँ चने से पूव ह बादल, हम
आ द से पराव तत होकर अंत र म लौट जाता है िजसे एि बडो कहा जाता है। कसी भी दन के
उ चतम एवं यूनतम तापमान के औसत को औसत दै नक तापमान कहा जाता है। पवतीय
घा टय म जाड़े क रात म केटाबे टक पवन (पवत समीर) घाट के तापमान को नीचा कर दे ती है
जब क एनाबे टक पवन (घाट समीर) के कारण ऊपर भाग का तापमान आधा हो जाता है।
वायुम डल म ऊँचाई क ओर जाते हु ए तापमान म त एक हजार मीटर पर 6.5०C क दर से
कमी आती है। ऐसी ि थ त िजसम शीतल वायु धरातल के नकट तथा उ ण वायु उससे ऊपर
मलती है, तापीय वलोमता कहते ह। इसके लये मु य उ तरदायी कारक म ढालू घा टयाँ, शु क
वायु, ल बी रात, ि थर मौसम, व छ आकाश, बफ से आ छा दत दे श आ द ह।

7.6 श दावल
सू यातप : सू य से पृ वी को ा त होने वाला सौय व करण
माइ ोन : व युत चु बक य तरं ग के मापन क इकाई
लघु तरं ग : इसक ल बाई 0.44 माइ ोन से कम होती है एवं स पूण
सू य शि त का 6 7' भाग इन तरं ग का होता है ।
वषुव : 21 माच व 23 सत बर का दन जब सू य भू म य रे खा
पर ल बवत ् चमकता है ।
स ां त : स ां त दो होती ह। 21 जू न को जब सू य कक रे खा पर

151
ल बवत होता है, कक स ां त एवं 22 दस बर को जब
सू य मकर रे खा पर ल बवत ् होता है, मकर स ां त।
उपसौर : 3 जनवर का दन जब सू य तथा पृ वी के बीच नकटतम
दूर 417, 000,000 क मी. रहती है ।
अपसौर : 4 जु लाई का दन सू य तथा पृ वी के बीच अ धकतम दूर
152, 000, 000 क मी. रहती है ।
सौर कलंक : सू य क सतह पर दखाई पड़ने वाले ध बे ।
एि बडो : सू यताप का वो 35% भाग जो पृ वी के धरातल पर
पहु ँ चने से पूव ह बादल, धू लकण, हम आ द से पराव तत
होकर अंत र म लौट जाता है।
चालन : इस या वारा एक अणु पश वारा दूसरे अणु को
उ मा दान होता है।
व करण : कसी व तु म उ मा ा त करने के प चात ् गम सतह से
उ सिजत तरं ग।
औसत दै नक तापमान : दन के अ धकतम तथा यूनतम तापमान का औसत ।
दै नक तापा तर : दन के अ धकतम तथा यूनतम तापमान का अ तर ।
सामा य ताप पतन दर : तापमान का ल बवत प से त 1000 मी. पर 6.5०C
क दर से कम होना।
तापमान क वलोमता : ऐसी दशा िजसम शीतल वायु धरातल के नकट तथा उ ण
वायु का उससे ऊपर पाया जाना।
घाट समीर : शीतकाल म घा टय क तल से अपे ाकृ त जो वायु
पवतीय भाग क ओर चलती है।
संवहन : तापीय वलोमता से उ प न वायु क भँवरे िजसम वायु
नीचे से ऊपर व ऊपर से नीचे आती ह।
उ ण क टब ध : कक रे खा से मकर रे खा के बीच का भाग।
शीत क टब ध : दोन गोला म 66 1/2० से ु व के बीच का भाग।
तापमान वसंग त : कसी थान का औसत तापमान तथा अ ांशीय औसत
तापमान का अ तर।

7.7 स दभ थ
1. स व सह : भौ तक भूगोल, याग पु तक भ डार, इलाहाबाद,
2006
2. आर. एन. त खा : भौ तक भूगोल, केदारनाथ, रामनाथ, मेरठ, 1998
3. चौहान एवं अलका गौतम : भौ तक भूगोल, र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2003
4. जगद श संह : भौ तक भू गोल, राधा पि लकेशन, नई द ल , 2001

152
5. मामो रया : भौ तक भू गोल, सा ह य पि लकेशन, आगरा, 2006
6.एच.एस.शमा,एम.एल.शमा व : भौ तक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2005.
आर. एन. म ा
7. Stahler, A.N. : Physical Geography, John Wiley & Sons,
London.
8. Lake, P. : Physical Geography, Cambridge University
Press, Cambridge,m London.

7.8 बोध न के उ तर
बोध न – 1
1. वषुव क ि थ त भू म य रे खा पर 21 माच व 23 सत बर को पायी जाती है।
2. 3 जनवर को पृ वी एवं सू य के बीच नकटतम दूर 147,000,000 क.मी.।
3. पृ वी सू य वारा अवशो षत उ मा को द घ तरं ग के प म वक रत करती है िजसे
पा थव व करण कहते ह।
4. लघु तरं ग को सू य से पृ वी तल तक पहु ँ चने म 8 मनट 20 सैक ड लगते ह।
बोध न- 2
1. ोभ म डल म ऊँचाई के साथ तापमान म 1०C त 165 मीटर क दर से कमी।
2. दन के अ धकतम तथा यूनतम तापमान के औसत को दै नक औसत तापमान कहते
ह।
3. पृ वी के धरातल का औसत तापमान 10०C है।
4. व व म सवा धक ऊँचा तापमान अजीिजया म पाया जाता है।
5. दन के अ धकतम व यूनतम तापमान के अ तर को दै नक तापा तर कहते ह।
बोध न- 3
1. दशा िजसम शीतल वायु धरातल के नकट तथा उ ण वायु उससे ऊपर पायी जाती है।
तापीय वलोमता कहते ह।
2. पवतीय घा टय म जाड़े क ल बी रात म पवतीय भाग से ठ डी व भार वायु घाट
तल क ओर जाने लगती है जब क घाट तल से गम तथा ह क वायु ऊपर क ओर
आने लगती है। पवन के इस उप रमु खी संचार को एनाबे टक पवन कहते ह।
3. वायुम डल म धरातल से 32 से 80 कमी. के बीच।
4. ढालू घा टयाँ, शु क वायु, ल बी रात, ि थर मौसम, व छ आकाश, हमा छा दत दे श
आ द।

7.9 अ यासाथ न
1. धरातल पर तापमान के तजीय वतरण को भा वत करने वाले कारक का वणन
क िजये।
2. तापीय वलोमता के व भ न कार का उ लेख क िजये।

153
3. सू यातप से आप या समझते ह? इसके वतरण को भा वत करने वाले कारक का
वणन क िजये।
4. पृ वी के उ मा बजट का ववरण द िजये।

154
इकाई-8 : वायुदाब

इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 वायुदाब
8.2.1 भू म यरे खीय न न वायुदाब पेट
8.2.2 उपो ण उ च वायुदाब पे टयाँ
8.2.3 उप ु वीय न न वायुदाब पे टयाँ
8.2.4 ु वीय उ च वायुदाब पे टयाँ
8.3 वायुदाब पे टय का मौसमीक खसकाव
8.4 वायुदाब का ऊ वाधर वतरण
8.5 सारांश
8.6 श दावल
8.7` संदभ थ
8.8 बोध न के उ तर
8.9 अ यासाथ न

8.0 उ े य
इस अ याय के अ ययन के उ े य न न ल खत ह :
 ं को जान पायगे,
आप वायुदाब के अथ व उसके तापमान से संबध
 आप यह समझ जायगे क वायुदाब का वैि वक त प कैसा है, उसक पे टयाँ कतनी
ह, तथा ये वायुदाब पे टयाँ मौसम के अनुसार कैसे खसकती ह तथा
 आप धरातल पर वायुदाब के उ वाधर वतरण के बारे म जानकार ा त करगे।

8.1 तावना
1. वायुम डल म व भ न गैस पाई जाती ह। इनम दाब अथवा भार होता है िजसका अनुभव
मानव को ऊँचाई प रवतन पर होता है। जब मनु य ऊँचे पवत पर जाता है तो उसके
नाक तथा कान म से खू न नकलने लगता है। ऐसा ऊँचाई पर वायुदाब क कमी के
कारण होता है।
2. सागर तल के त इकाई े पर वायुम डल क सम त परत के पड़ने वाले भार को ह
वायुदाब कहते ह। वायुदाब मापने के लए वायुदाबमापी (Barometer) का उपयोग कया
जाता है। इसके न न कार ह - (1) फो टन वायुदाब मापी (Fortin’s Barometes)
(2) न व वायुदाबमापी (Aneroid Barometer) तथा (3) वायुदाब वलेखी
(Barography)।

155
सवा धक वायुदाब सागर तल पर पाया जाता है। इसका मापन मल बार, इंच या सट मीटर म
कया जाता है। कसी थान पर वायुदाब नरं तर प रव तत होता रहता है। समान वायुदाब वाले
थान को मलाने वाल रे खा को समदाब रे खा (Isobar) कहते ह। वायुदाब व तापमान म वपर त
संबध
ं है अथात ् तापमान अ धक होने पर वायुदाब कम तथा तापमान कम होने पर वायुदाब
अ धक होता है। त 600 फ ट क ऊँचाई पर एक इंच या 3.4 मल बार क दर से बायुदाव म
कमी आती है। वायुदाब का वैि वक त प भ न होने से इसक अलग-अलग पे टयां पायी जाती
ह। धरातल पर इसके ऊ वाधर या ल बवत ् वतरण म भी भ नताएँ मलती ह। वायुदाब पे टय
म मौसम के अनुसार खसकाव होता रहता है।

8.2 वायु दाब पे टयाँ (Pressure Belts)


धरातल पर वायुदाब का वतरण समान नह ं है। वायुदाब को तापमान, आ ता, ऊंचाई, दन व
रात, जल व थल तथा पृ वी क दै नक ग त आ द कारक भा वत करते ह। दो थान के म य
वायुदाब के अ तर को वायुदाब वणता (Pressure Gradient) कहते ह। वायुदाब म अचानक
कमी भयंकर तू फान क सू चक होती है।
लोब पर समान दबाव वाले े को एक पेट या क टबंध (Belt) कहते ह। इन पे टय क
उ पि त क या के आधार को दो भाग म वभािजत कर सकते ह - (1) तापज य वायुदाब
पे टयाँ (Thermally Induced Pressure Belts) (2) ग तज य वायुदाब पे टयाँ (Dynamically
Induced Pressure Belts)। तापज य वायुदाब के अ तगत भू म यरे खीय न नवायु दाब पेट
तथा ु वीय उ च वायु दाब पेट को शा मल कया जाता है। ग तज य वायुदाब पे टय के अ तगत
उपो ण उ च वायुदाब तथा उप ु वीय न न वायुदाब पेट को शा मल करते ह।

8.2.1 भू म यरे खीय न न दाब पेट (Equatorial Low Pressure Belt)

यह पेट भू म यरे खा के उ तर व द ण म 5० अ ांश के म य मलती है। यह पेट मौसम के


अनुसार सू य के उ तरायण व द णायन होने पर उ तर -द ण को खसकती रहती है। इसे
तापज य पेट के समू ह म रखा जाता है य क इस कम दाब क पेट का तापमान से य
संबध
ं है। यहां का तापमान भू म यरे खा पर सू य क करण ल बवत ् पड़ने से अ धक रहता है।
वायुम डल म नमी का अ धक होना भी कम वायुदाब के लए उ तरदायी है। इस े म वायु क
ऊ वाधर ग त होने के कारण इसे शांत े (Calm Area) या डोल म (Doldrum) कहते ह। इस
पेट म उ तर व द णी गोला से आने वाल यापा रक हवाओं (Trade winds) का अ भसरण
(Convergence) भी होता है ।

च - 8.1 : वायुदाब पे टयाँ

156
8.2.2 उपो ण उ च दाब पे टयाँ (Sub-Tropical High Pressure Belts)

ये उ च वायुदाब पे टयाँ उ तर व द णी गोला म 30० से 35० अ ांश के म य पायी जाती


ह। इन अ ांश को अ व अ ांश (Horse Latitudes) भी कहते ह। ऐसा माना जाता है क
ाचीन समय म जब पालदार नाव म पेन से घोड़े लेकर नई दु नया (उ तर अमे रका) क ओर
जाते थे तो इन अ ांश म उ चदाब होने से ये नाव डगमगाने लगती थी। ऐसी ि थ त म नाव
के भार म कमी लाने हे तु कु छ अ व को समु म फक दया जाता था। इसी लये इनको अ व
अ ांश कहा जाने लगा। इन पे टय क उ पि त म ग या मक कारक का वशेष योगदान होने से
इ ह ग तज य पे टयाँ कहा जाता है। यहाँ सदै व मेघ र हत आकाश तथा उ च वायुदाब मलता है।
व व के सभी उ ण म थल महा वीप के पि चमी कनार पर इसी पेट म ि थत ह।

8.2.3 उप ु वीय न न वायुदाब पे टयाँ (Sub-Polar Low Pressure Belts)

ये पे टय 60० से 65० अ ांश के म य दोन गोला म पायी जाती ह। ये ग तज य वायुदाब


पे टयाँ ह। पृ वी क घूणन ग त (Rotation) के कारण इन अ ांश म वायु फैलकर थानांत रत
हो जाती है। इस कारण तापमान कम होते हु ए भी न न वायु दाब का आ वभाव हो जाता है।
इसका व तार आक टक तथा अ टाक टक वृ त के समीप मलता है। उ तर गोला म थल
भाग क अ धकता के कारण उसक नरं तरता म कमी पायी जाती है जब क द णी गोला म
महासागर य व तार के कारण यह पेट चार ओर नय मत प से पायी जाती है।

8.2.4 ु वीय उ च वायु दाब पे टयाँ (High Pressure Belt)

इन पे टय का व तार 80० से 90० उ तर व द णी अ ांश म है। ये तापज य वायुदाब पे टयाँ


ह। यहाँ पर वायु क अ य धक शीतलता तथा भार पान के कारण उ च वायुदाब पाया जाता है।
यहां तापमान सामा यत: हमांक से नीचे ह रहता है।
बोध न -1
1. अ धक ऊँ चाई पर जाने से नाक - कान म से खू न य आने लगता है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. वायु दाब मापने क इकाइयां कौन - कौनसी ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. वायु दाब व तापमान म या सं बं ध है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. वायु दाब वणता या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
5. डोल म तथा अ व अ ां श कसे कहते ह ?

157
...................................................................................................
...................................................................................................

8.3 वायु दाब पे टय का मौसमी खसकाव


सू य उ तरायण व द णायन होने के कारण ह वायुदाब पे टय का भी खसकाव होता रहता है।
सू य कक रे खा पर 21 जू न को ल बवत ् चमकता है, इससे सभी वायुदाब पे टयां उ तर दशा म
खसक जाती ह। सू य द णायन होने पर 23 दस बर को मकर रे खा पर 'ल बवत ् चमकता है,
इससे वायुदाब पे टयाँ द ण क ओर सरक जाती ह। सू य के 21 माच तथा 23 सत बर को
भू म यरे खा पर ल बवत ् चमकने पर ह वायुदाब पे टय क आदश ि थ त रहती है।

8.4 वायु दाब का ऊ वाधर वतरण


ऊ वाधर वतरण से ता पय ऊँचाई के साथ वायुदाब क दशाओं से है। ऊँचाई के साथ वायुदाब
सदै व घटता जाता है ले कन इसके घटने क दर एक समान नह ं होती है। इसका घटना बढ़ना
वायु के घन व, तापमान, गु वाकषण शि त व जल वा प क मा ा आ द कारक पर नभर
करता है। ये सभी कारक प रवतनशील होते ह, फर भी सामा यत: यह मानते ह क ोभम डल
म वायुदाब औसत प से त 300 मीटर क ऊँचाई पर लगभग 34 मल बार कम हो जाता है।
अ धक ऊँचाई पर वायु वरल हो जाने से वायुदाब अ धक शी ता से घटता है। लगभग 5500
मीटर क ऊँचाई पर यह केवल एक चौथाई रह जाता है। मानव इतने कम वायुदाब म जी वत नह ं
रह सकता है। इस लये रॉकेट व अ त र यान म वशेष कार के यं के साथ ह मानव जाता
है।

च 8.2 : वायुदाब पे टय का खसकाव

158
बोध न -2
1. वायु दाब पे टय के खसकाव का सं बं ध कससे है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
2. 21 जू न व 23 दस बर को सू य ल बवत ् प से कहाँ चमकता है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
3. सामा य प से ऊं चाई क ओर वायु दाब कस दर से कम होता है ?
..............................................................................................
..............................................................................................

8.5 सारांश
वायुदाब मौसम एवं जलवायु म प रवतन का मह वपूण कारक है। वायु के भार को ह वायुदाब
कहते ह। वायुदाब फो टन, एनीरॉइड वायुदाबमापी व बैरो ाफ से मापा जाता है। इसे मल बार,
सट मीटर या इंच म मापते ह। समान वायुदाब वाले थान को मलाने वाल रे खा को समदाब
रे खा कहा जाता वायुदाब को आ ता, तापमान, समु तल से ऊँचाई, दन-रात क अव ध, जल व
थल तथा पृ वी क दै नक ग त आ द भा वत करते ह। धरातल पर वायुदाब का वतरण समान
नह ं है। इसम ऊ वाधर तथा तजवत ् भ नताएँ मलती ह। धरातल क वायुदाब पे टयां दो प
म उ प न होती ह - (1) ताप ज नत व (2) ग त ज नत।
1. भू म य रे खीय न न वायुदाब पेट : 5 ड ी उ तर से 5 ड ी द णी अ ांश के म य
मलती है। हवाय शांत रहने से इसे शांत े या डोल म कहते ह।
2. उपो ण उ च वायुदाब पे टयाँ : 30 ड ी से 35 ड ी उ तर व द णी आ ांश के म य
मलती ह। इ ह अ व अ ांश भी कहते ह।
3. उप ु वीय यून वायुदाब पे टयाँ : 60० से 65० अ ांश के म य दोन गोला म मलती
है।
4. ु वीय उ च वायुदाब पे टयाँ : इनका व तार 80 ड ी से 90 ड ी उ तर व द णी
अ ांश के म य है।
सू य क उ तरायण व द णायन ि थ तय के अनुसार वायुदाब पे टय का मौसमी खसकाव होता
है। ऊँचाई क ओर जाने पर 300 मीटर यह 34 मल बार वायुदाब कम हो जाता है।

8.6 श दावल
वायुदाब पेट (Air Pressure Belt) : समान दाब वाला नर तर े
वायुदाबमापी (Barometer) : वायुदाब को मापने वाला यं
वायुदाब वणता (Air Pressure : वायुदाब का ढाल
Gradient)

159
तापज य वायुदाब पेट (Thermal Pressure : ताप के कारण ज नत
Belt)
ग तज य वायुदाब (Dynamically induced : ग त के कारण ज नत
Pressure Belt)
अ भसरण (Convergence) : दो भ न वायु रा शय का मलना
यापा रक हवाय (Trade Winds) : भू म य रे खीय यून दाब व उपो ण उ च
दाब के म य चलने वाल पवन
पछुवा हवाय (Westerlies) : उपो ण उ च दाब व उप ु वीय यून दाब के
म य चलने वाल पवन
अ व अ ांश (Horse Latitude) : उपो ण उ च दाब के े

8.7 स दभ ंथ
1. शमा, शमा व म ा : भौ तक भूगोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2005
2. स व संह : भौ तक भूगोल, याग पु तक भ डार, इलाहाबाद, 2006
3. F.J. Monkhouse : Principles of Physical Geography, London, 1962

8.8 बोध न के उ तर
बोध न-1
1. वायुदाब क यूनता के कारण।
2. इंच, सट मीटर व मल बार
3. वपर त संबध
ं है।
4. दो थान के म य वायुदाब का अ तर।
5. डोल म भू म यरे खीय यून वायुदाब तथा अ व अ ांश उपो ण उ च वायुदाब क पेट
को।
बोध न- 2
1. सू य के उ तरायण व द णायन होने से।
2. सू य 21 जू न को कक रे खा तथा 23 दस बर को मकर रे खा पर ल बवत ् चमकता है।
3. सामा यत: 300 मीटर पर 34 mb क दर से कमी आती है।

8.9 अ यासाथ न
1. वायुदाब को भा वत करने वाले कारक कौन -कौनसे ह?
2. वायुदाब पे टय का व तृत वणन क िजये ।
3. धरातल पर वायुदाब पे टय के वतरण का च बनाइये।
4. वायुदाब पे टय के मौस मक खसकाव को प ट क िजये।
5. वायुदाब के ऊ वाधर वतरण के बारे म ल खए।

160
इकाई-9 : पवन प रसंचरण

इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 पवन व उनके कार
9.2.1 थायी पवन
9.2.2 साम यक पवन
9.2.3 थानीय पवन
9.3 वायु रा शयाँ व उनका वग करण
9.4 च वात व उससे संबं धत मौसम
9.4.1 उ णक टबंधीय च वात
9.4.2 शीतो ण क टब धीय च वात
9.5 तच वात व उससे संबं धत मौसम
9.6 सारांश
9.7 श दावल
9.8 संदभ थ
9.9 बोध न के उ तर
9.10 अ यासाथ न

9.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के उपरा त आप समझ पायगे :
 पवन संचरण के लये उ तरदायी कारक तथा पवन के व भ न कार,
 वायुरा शय का नमाण व उनका वग करण,
 च वात व तच वात क उ पि त तथा उनसे संबं धत मौसम तथा
 मेघ नमाण क या तथा उनके कार ।

9.1 तावना
धरातल के गम होने क दर अलग-अलग होती है। इससे वायुदाब म भ नता उ प न होती है।
िजस कार जल ऊंचे से नचले भाग क ओर बहता है ठ क वैसे ह पवन उ च वायुदाब े से
न न वायुदाब क ओर वा हत होती ह। वायुम डल म होने वाले सभी कार के इन प रसंचरण
को तीन वग म रखा जा सकता है : ाथ मक, वतीयक व तृतीयक। सभी थायी पवन
ाथ मक प रसंचरण तं के अ तगत आती ह। चू ं क ये अ य सभी प रसंचरण के लये बु नयाद
ढाँचा दान करते ह इस लये इसे ाथ मक प रसंचरण कहा जाता है। वतीयक प रसंचरण म
च वात, तच वात, वायुरा शयाँ व मानसू न आते ह जब क तृतीयक प रसंचरण म वे सभी
संचरण सि म लत ह जो थानीय मौसम को भा वत करते ह।

161
9.2 पवन व उनके कार
हवा का ै तज वाह पवन कहलाता है। हवा के उ वाधर वाह को वायु धारा (Air Current)
कहते ह। पवन का नामकरण उस दशा से होता है िजधर से वह आती है। पि चम से आने वाल
हवाय पछुआ हवाय कहलाती ह। वायु द दश यं (Wind Vane) से पवन क दशा ात क
जाती है। पवन क ग त जानने के लये पवन वेगमापी (Anemometer) का उपयोग होता है।
धरातल पर पवन का वेग कलोमीटर त घंटा म तथा समु पर नॉट त घंटा म दशाया जाता
है।

च - 9.1 : थायी हवाय


घूमती हु यी पृ वी का भाव पवन क दशा पर पड़ता है। इसे फेरल का नयम (Ferrel’s Law)
कहा जाता है। इसके अनुसार घूणन करती हु ई पृ वी पर सभी वतं तापूवक ग तमान व तु य
उ तर गोला म अपने दायीं ओर व द णी गोला म अपने बायीं ओर व था पत हो जाती ह।

9.2.1 थायी पवन

ये स पूण भू म डल पर चलने वाल हवाय ह जो साल भर एक नि चत दशा म चलती रहती ह।


ये व व क थायी वायुदाब पे टय क ि थ त के अनु प संच रत होती ह। इ ह ाथ मक अथवा
ह य या थायी पवन कहा जाता है। इन थायी पवन म यापा रक, पछुआ व ु वीय पवन
शा मल ह ( च - 9.1)।
 यापा रक पवन : ये पवन उपो ण उ च वायुदाब पेट से भू म य रे खीय यून वायुदाब
पेट क ओर वा हत होती ह। इनका वाह े दोन गोला म 50 से 300 अ ांश
के बीच है। दोन गोला क यापा रक हवाय भू म य रे खा के समीप जहाँ आपस म
मलती ह उसे अंतर-उ टक टबंधीय अ भसरण े (Inter-Tropical Covergence
Zone) े कहते ह। उ तर गोला म ये उ तर -पूव तथा द णी गोला म
द ण-पूव दशा से चलती ह।
 पछुआ पवन : ये पवन उपो णक टबंधीय उ च वायुदाब पेट से उप ु वीय न न वायुदाब
म 350 से 60
0
पेट क ओर वा हत होती ह। ये दोन गोला अ ाश के म य
चलती ह। द णी गोला म थलख ड अपे ाकृ त कम ह। थल य बाधाओं के अभाव

162
म यहाँ पछुआ पवन च ड वेग से वा हत होती ह। इन वेगवती पवन को ‘'गरजने
वाल चाल सा' ' च ड पचासा' व 'चीखती साठा' के नाम से पुकारा जाता है। उ तर
गोला म ये पवन द ण-पि चम तथा द ण गोला म उ तर-पि चम से चलती ह।
 ु वीय पवन : ु वीय उ च वायुदाब पेट से उप ु वीय न न वायुदाब पेट क ओर बहने
वाल हवाय ु वीय पवन के नाम से जानी जाती ह। उ तर गोला म ये पवन उ तर-
पूव तथा द णी गोला म द ण-पूव से चलती ह।

9.2.2 साम यक पवन

 मानसू नी पवन : मानसू न श द 'मौ सम' श द से बना है। मौ सम का शि दक अथ


होता है -ऋतु । यह श द उन पवन के लये यु त होता है जो ऋतु प रवतन के साथ
अपनी वाह दशा म पूण उ मण करती ह। भारतीय उपमहा वीप म मानसू नी हवाओं
का सव तम वकास हु आ है। ी म ऋतु म ए शया भूख ड त त हो जाता है और
उ तर-पि चमी भारत म न न वायुदाब े न मत हो जाता है। ह द महासागर पर
ि थत उ च वायुदाब े से हवाय यून वायुदाब के क ओर बढ़ती ह। भू म य रे खा
के द ण म इन हवाओं क दशा द ण-पूव होती है ले कन जैसे ह ये उ तर गोला
म वेश करती ह फेरल के नयमानुसार इनक दायीं ओर व था पत होने से द ण-
पि चम हो जाती है। ये पवन भारतीय उपमहा वीप पर भार वषा करती ह। स दय म
उ तर -पि चमी भारत म उ च वायुदाब े व हंद महासागर म यून वायुदाब के
बन जाते ह। अब मानसू नी पवन क दशा भारतीय महा वीप से महासागर क ओर
होती है। इस लये ये सामा यत: वषा नह ं कर पाती ह। इसे शीतकाल न मानसू न कहा
जाता है।

9.2.3 थानीय पवन

इस वग म ऐसी हवाय आती ह जो अपे ाकृ त छोटे भू भाग के मौसम को भा वत करती ह। ये


पवन अपनी थानीय प रि थ तय से भा वत होती ह।
 सागर- थल समीर : ये समु तट य े म चलने वाल दै नक पवन ह। दन के समय
तट य े सागर क तु लना म शी गम हो जाते ह और थल भाग पर न न
वायुदाब न मत हो जाता है। इस समय समु पर उ च वायुदाब होने के कारण पवन
सागर से तट क ओर चलने लगती ह। चू ं क हवा सागर क ओर से आ रह है इस लये
इसे सागर अथवा जल समीर कहा जाता है। इसके चलने से तट य दे श म तापमान
यादा नह ं बढ़ पाते ह य क सागर से आने वाल पवन अपे ाकृ त शीतल होती है।
रा के समय थल शी ता से ठ डे हो जाते ह ले कन समु गम रहता है। अथात ् उ च
वायुदाब थल भाग पर व यून वायुदाब समु पर ि थत होते ह। अत: हवाओं का वाह
तट से समु क ओर होता है। इसे थल समीर कहा जाता है। सागर - थल समीर से
तट य दे श म दै नक व वा षक तापा तर कम रहते ह।

163
 पवत-घाट समीर : पवतीय े म दन के समय सू यताप से घा टयाँ गम हो जाती ह
और उसके स पक म आने वाल वायु गम होकर ह क हो जाती है तथा हवा घाट से
पवतीय ढलान के सहारे ऊपर क ओर उठती है। चू ं क हवा घाट क ओर से आती है
इस लये इसे घाट समीर कहा जाता है। रा के समय ि थ त वपर त हो जाती है।
पवतीय उ च ढाल रा के समय शी ता से ठ डे हो जाते ह। यहाँ ि थत वायु भी ठ डी
होने से भार हो जाती है। शीतल पवन ढलान के सहारे घाट म नीचे क ओर उतरती
है। इ ह पवतीय समीर के नाम से जाना जाता है।
 लू (Loo) : उ तर भारत के मैदान म मई -जू न के गम मह न म दोपहर के बाद लू
चलती है। यह व त त व शु क हवा है। इस हवा का तापमान 45० से 50० सैि सयस
के बीच होता है। इसके झु लसाने वाले भाव से अनेक लोग बीमार हो जाते ह।
 काल बैशाखी (Norwester) : उ तर भारत के मैदान म अ ेल से जू न म आने वाल
आँ धयां जो ाय: धूल भर होती ह, काल बैशाखी के नाम से जानी जाती ह। ये गरज-
चमक के साथ वषा दान करती ह। आसाम म चाय क फसल के लये यह वषा
अ य धक लाभकार होती है।
 चनूक (Chinook) : यह एक शु क व गम हवा है जो संयु त रा य अमे रका व
कनाडा के मौसम को भा वत करती है। बसंत ऋतु म यह थानीय पवन रॉक पवत
को पार कर ेयर घास के मैदान म वेश करती है और कु छ ह घंट म 15० से 20०
सेि सयस तापमान बढ़ जाता है। इस कारण धरातल पर जमी हु ई बफ क परत तेजी
से पघल जाती है। बफ पघलने के साथ ह गेहू ं क बुवाई ारं भ हो जाती है। रै ड
इि डयन वारा बोल जाने वाल भाषा म चनूक का अथ होता है - एक हमभ ी।
 फोन (Foehn) : चनूक क तरह यह भी एक गम व शु क हवा है जो शीत ऋतु म
आ स पवत को पार कर यूरोप म राहत दान करती है। इसके आगमन से तापमान
10 सेि सयस तक बढ़ जाते ह और अंगरू क फसल को पकने म मदद मलती है।

 हारम न (Harmattan) : यह उ तर -पि चमी अ का म चलने वाल नम व धू ल


भर पवन है। इस पूव हवा के आगमन से भीषण गम म राहत मलती है। इसे
थानीय लोग डाँ टर ' क सं ा दे ते ह।

बोध न- 1
न न ल खत के लये एक पा रभा षक श द बताइये ।
1. धरातल के सहारे वायु का ै तज वाह।
..............................................................................................
..............................................................................................
2. उ वाधर प से बहने वाल वायु ।
..............................................................................................
..............................................................................................
3. थायी पवन जो उपो ण उ च वायु दाब पे ट से भू म य रे खीय न न वायु दाब
पे ट क ओर बहती है ।

164
..............................................................................................
..............................................................................................
4. रॉक पवत के पू व क ओर बहने वाल गम और शु क पवन।
..............................................................................................
..............................................................................................
5. उ तर भारत म ी म ऋतु म चलने वाल गम व शु क हवा।
..............................................................................................
..............................................................................................
6. आ स पवत क उ तर ढलान से होकर बहने वाल गम थानीय पवन।
...................................................................................................
.........................................................................................
7. पवन जो ऋतु ओं के अनु सार अपनी बहाव दशा म प रवतन करती ह।
..............................................................................................
..............................................................................................
8. पवन जो उपो ण उ च वायु दाब पे ट से उप ु वीय यू न वायु दाब पे ट क ओर
वा हत होती ह।
..............................................................................................
..............................................................................................

9.3 वायु रा शयाँ व उनका वग करण


जब वायु ल बे समय तक एक थान पर बनी रहती है तो उसम धरातल क वशेषताय आ जाती
ह। जैसे साइबे रया के ठ डे दे श क वायु म शीतलता का गुण पैदा होना या महासागर पर ि थत
वायु म आ ता बढ़ना। वायु क व व तृत सम प रा श जो एक बड़े भू भाग पर छायी रहती है
और िजसम तापमान, आ ता आ द वशेषताओं क एक पता पायी जाती है, वायुरा श (Airmass)
कहलाती है। इनका व तार कई बार हजार वग कलोमीटर े म होताहै। एक वायुरा श सम प
प ड के प म यवहार करती है।
तापीय वशेषताओं के आधार पर वायु रा शय के दो कार होते ह: उ णक टबंधीय (T) तथा
ु वीय (P)। आ ता के आधार पर इ ह पुन : दो भाग म बांटा जा सकता है : महा वीपीय (c) व
समु (m)। इस कार तापमान व आ ता के आधार पर वायु रा शय के चार मु ख कार होते ह
उ णक टबंधीय महा वीपीय (cT), उ णक टबंधीय समु (mT), ु वीय महा वपीय (cP), ु वीय
सागर य (mP)।
वायुरा शय के गुण म उस समय प रवतन आ जाता है जब वे एक थान से अ य थानांत रत
होती है य क माग म पड़ने वाल पृथक मौसमी दशाओं से वे भा वत होती ह। जैसे त त
धरातल पर गुजरते समय वायुरा श क नचल परत गम हो जाती ह और इससे वायुरा श म
अि थरता भी आ सकती है। ु वीय व उ णक टबंधीय वायुरा शय के येक के 14 कार होते ह।
वायुरा शय का वग करण यहां तु त ह:

165
9.4 च वात व उनसे स बि धत मौसम
न न वायुदाब के के चार ओर उ च वायुदाब के नमाण से च वात वक सत होते ह। इसम
हवाय बाहर से भीतर क ओर तेजी से च ाकार प म गमन करती ह। हवाओं का गमन यहाँ भी
फेरे ल के नयम का अनुसरण करता है। उ तर गोला के च वात म हवा क दशा घड़ी क
सु इय के वपर त (Counter Clockwise) होती है जब क द णी गोला म ये घड़ी क सु इय के
अनु प (Clockwise) होती ह ( च - 9. 2)।

च - 9.2 : च वात

9.4.1 उ णक टबंधीय च वात (Tropical Cyclone)

उ णक टबंधीय च वात दोन गोला म 8० से 15० अ ाश के बीच उ प न होते ह। इस े म


आ हवाओं क बहु तायत होती है। साथ ह डोल म े से उठती वायुधाराय मददगार सा बत

166
होती ह। इनका आकार अपे ाकृ त छोटा होता है। ाय: इनका यास 80 से 320 कलोमीटर का
होता है। दाब वणता अ धक होने के कारण इनम हवाओं क ग त 100 से 200 कलोमीटर त
घंटा होती है। हवाओं क तेज ग त के कारण ये वनाशकार होते है। समु पर इनक ग त तेज
होती है ले कन थल पर गुजरते समय ये धीमे व कमजोर हो जाते ह और अंतत: समा त हो
जाते ह। चीन व जापान म इ ह 'टाइफून' कहते ह जब क उ तर अमे रका म 'हर केन' व
ऑ े लया म इ ह ' वल - वल ज' के नाम से जाना जाता है। उ णक टबंधीय च वात के आगमन
से पूव हवा शांत हो जाती है। इस दौरान तापमान व आ ता दोन का तर ऊंचा बना रहता है।
वायुदाब म अचानक कमी आ जाती है तथा आसमान म घने बादल घर आते ह। हवा चलने के
साथ ह बा रश ारं भ हो जाती है। ये भार वषा लाते ह। च वात के के को 'च वात क आँख'
कहा जाता है। वेगवती हवाओं से पेड़ उखड़ जाते ह। भवन के साथ व युत व संचार क लाइन
त त हो जाती ह।

9.4.2 शीतो ण क टब धीय च वात (Temperate Cyclones)

दोन गोला म 35० से 65० अ ांश के बीच के े म गम वायुरा श ठ डी ु वीय वायुरा श से


मलती है तो तकू ल वभाव के कारण इनका म ण नह ं हो पाता बि क वे एक स पक सतह
से पृथक बनी रहती ह। इस स पक तल को वाता (Fronts) कहते ह। शीतो ण क टब धीय
च वात क उ पि त इ ह ं वाता से होती है। इनका यास 1500 से 3000 कलोमीटर तक का
हो सकता है। बड़े आकार व कम दाब वणता के कारण इनम हवाय अपे ाकृ त कम वनाशकार
होती ह। भार भरकम होने के कारण ये धीमे होते ह। इनक औसत ग त 30 से 40 कलोमीटर
त घंटा होती है। कई बार तो ये एक थान पर कई दन तक जमे रहते ह। शीतो ण च वात
के आगमन पर सबसे पहले आसमान म ऊंचे प ाभ मेघ दखायी दे ते ह और मेघा छादन बढ़ता
जाता है। इसके बाद वषा शु हो जाती है। इनसे क- क कर भार वषा होती है।

9.5 तच वात
तच वात के के म उ च वायुदाब तथा चार ओर यून वायुदाब होता है। इसम हवाय के
से बाहर क ओर अपसा रत होती ह। इसम हवाओं क दशा उ तर गोला म घड़ी क सू इय के
अनु प व द णी गोला म घड़ी क सू इय के वपर त होती ह। तच वात का त प च वात
से ठ क वलोम होता है ( च - 9. 3)।

च - 9.3 : तच वात

167
वायुदाब म बढ़ो तर तच वात के आगमन क पूव सू चना होती है। इसम मौसम साफ रहता है।
आकाश मेघ र हत बना रहता है तथा वषा भी नह ं होती है। तच वात के के म ह क हवा
के साथ मौसम शांत रहता है।
बोध न - 2
1. प रभा षत क िजये :
(i) वायु रा श
..............................................................................................
..............................................................................................
(ii) वाता
................................................. .............................................
.............................................................................................
(iii) च वात
..............................................................................................
..............................................................................................
(iv) त च वात
..............................................................................................
.............................................. ................................................
(v) टाइफू न
..............................................................................................
..............................................................................................
(vi) च वात क आँ ख
..............................................................................................
..............................................................................................
2. वायु दाब नापने क इकाई बताइये ।
..............................................................................................
..............................................................................................
3. हवाओं क दशा बताइये :
(i) उ तर गोला के च वात म
..............................................................................................
.............................................................................................
(ii) उ तर गोला के तच वात म
..............................................................................................
..............................................................................................

168
9.6 सारांश
वायु प रसंचरण अनेक कार के होते है - थायी पवन, च वात, तच वात, मानसू न, जल-थल
समीर, घाट -पवतीय समीर, थानीय पवन आ द। ये सभी संचरण वायुदाब म भ नताओं के
कारण उ प न होते है। व श ट वायु रा शयाँ भी इनम योगदान करती ह।

9.7 श दावल
डोल स (Doldrums) : शांत दशाओं वाल यून दाब क भू म यरे खीय पेट ।
अ व अ ांश (Horse : दोन गोला म 30० से 35० आ ांश के बीच ि थत
Latitude) उपो ण उ च वायुदाब का े ।
तापा तर (Range of : एक नि चत अव ध म कसी थान के न नतम व
Temperature) उ चतम तापमान के बीच का अ तर।

म लबार (Millibar) : वायुदाब मापने क इकाई


आभाम डल (Halo) : च मा व सू य के चार ओर बनी काश वलय।
संघनन (Condensation) : वा प का व अथवा हम म प रवतन।
ओसांक (Dew Point) : ताप िजस पर वायु ठ डी हो जाने से जलवा प क ि ट
से संत ृ त हो जाती है।
हमांक (Freezing Point) : वह तापमान िजस पर कोई भी व, ठोस अव था म
प रव तत हो जाता है।
ोभम डल (Troposphere) : वायुम डल क सबसे नचल परत िजसम मौसमी घटनाय
घटती ह।

9.8 संदभ थ
1. Critchfield, H.J. : General Climatology, Prentice Hall Inc.,
(2002) Englewood N.J. U.S.S. 2002
2. Lal, D.S. (2003) : Climatology, Sharda Pustak Bhawan
Allahabad India, 2003
3. संह, स व (2006) : भौ तक भू गोल, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2006
4. गौतम, अ का : वायुम डल व महासागर, र तोगी पि लकेशन, मेरठ,

9.9 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. पवन (Wind) 2. वायुधारा (Air Current)
2. यापा रक पवन 4. चनूक
3. लू (Loo) 6. फॉन
4. मानसू न 8. पछुआ पवन

169
बोध न - 2
1. (i) हवा क एक वशाल रा श िजसम तापमान व आ ता संबध
ं ी गुण एक समान ह ।
(i) भ न गुण वाल दो वायुरा शय के बीच क स पक रे खा।
(ii) बाहर से के य यून दाब क चलने वाल पवन।
(iii) के य उ च दाब से बाहर क अपसा रत होने वाल पवन।
(iv) चीन व जापान म उ णक टबंधीय च वात
(v) च वात का के य भाग
2. म लबार, इंच व सट मीटर
3. (i) घड़ी क सू इय के वपर त (Anti Clockwise) बाहर से भीतर क ओर।
(i) घड़ी क सू इय के अनु प (Clock wise) के से बाहर क ओर।

9.10 अ यासाथ न
1. पवन कतनी कार क होती ह?
2. थानीय पवन कसे कहते ह? :
3. साम यक पवन क या या क िजये।
4. थायी पवन क व तृत या या क िजये।
5. वतीयक पवन पर एक लेख ल खये।

170
इकाई - 10 : आ ता, संघनन एवं वषा का वतरण ा प

इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 आ ता - कार एवं व व त प
10.2.1 नरपे आ ता
10.2.2 व श ट आ ता
10.2.3 सापे त आ ता
10.2.4 व व त प संघनन के प
10.3 संघनन के प
10.3.1 ओस
10.3.2 पाला
10.3.3 कोहरा
10.3.3.1 कोहरे के कार
10.3.3.2 कोहरे का ववरण
10.3.3.3 मेघ
10.4 वषा के कार
10.4.1 संवाहनीय वषा
10.4.2 पवतीय वषा
10.4.3 च वातीय वषा
10.5 वषा का व व वतरण
10.6 सारांश
10.7 श दावल
10.8 संदभ थ

10.9 बोध न के उ तर
10.10 अ यासाथ न

10.0 उ े य
इस इकाई के उ े य न न लखत ह -
 इस इकाई के अ ययन के उपरा त आप जान पायगे क वषा कतने कार क होती
है,
 आ ता क प रभाषा एवं उसके व भ न कार म अंतर को आप समझने यो य ह गे,
 इसके अ ययन से आप आ ता के व व त प को समझ पायगे,
 आप संघनन क प रभाषा एवं उसके व भ न प को समझ जायगे तथा

171
 इससे आप व व म वषा के वतरण क जानकार ा त करने म स म ह गे।

10.1 तावना
जलवायु तथा मौसम के व भ न त व म से वषा एवं आ ता का वशेष मह व है। जल जीवन
का आधार है तथा जल का अ धकांश भाग वषा से ह ा त होता है। वषा का आधार आ ता है।
वायुम डल म आ ता क मा ा भी सव समान नह ं पायी जाती है। आ ता अनेक प म पायी
जाती है। आ ता म थानीय, े ीय व ादे शक तौर पर भ नता पायी जाती है। जलवा प का
संघ नत होकर बरसना ह वषा कहा जाता है। ओस, पाला व कोहरा भी संघनन के ह प ह।
भू तल पर अनेक व भ नताओं के कारण ह वषा के वतरण ा प म भी असमानताएँ मलती ह।

10.2 आ ता (Humidity)
जलवायु तथा मौसम के व भ न त व म आ ता का व श ट मह व है। वायुम डल म उपि थत
जलवा प को आ ता कहते ह। जलवा प गंधह न, रं गह न तथा वादह न एवं अ य होती है।
व भ न गैस के साथ जलवा प व भ न अव थाओं म व यमान रहती है, िजसे वायु म डल य
आ ता कहते ह। वायुम डल को जलवा प क ाि त न दय , जलाशय , वन प तय , झील एव
सागर य भाग म वा पीकरण से होती है। जब कोई व नि चत ताप पर शनै: शनै: वा प म
प रव तत होता है तो इस प रवतन क या को वा पीकरण कहते ह। जल के गैसीय प को
जलवा प कहा जाता है।
कसी नि चत तापमान पर वायु म नि चत आयतन पर अ धकतम जल वा प धारण करने क
मता को वायु क 'आ ता साम य' कहा जाता है। वायु का तापमान िजतना अ धक होगा, उसक
आ ता धारण करने क मता भी उतनी ह अ धक होगी। आ ता को मापने के लए हाइ ोमीटर
(Hygrometer) यं का उपयोग कया जाता है। आ ता व भ न कार क होती है -

10.2.1 नरपे आ ता (Absolute Humidity)

वायु के नि चत आयतन पर इसम मलने वाल कु ल आ ता क मा ा को नरपे आ ता या


वा त वक आ ता कहा जाता है। यह आ ता वायु के नि चत आयतन पर जल वा प के भार को
बताती है। इसे हम त घन फुट पर ेन म या त घन से ट मीटर पर ाम म बताते ह। वषा
क संभावना इसक मा ा पर ह नभर करती है। दन म तथा ी मकाल म नरपे आ ता क
मा ा 16 अ धक पाई जाती है। ु व से भू म य रे खा क ओर तथा महा वीप के आंत रक भाग
से सागर तट क ओर नरपे आ ता क मा ा म वृ होती जाती है। नरपे आ ता को सौर
व करण क मा ा, तापमान म कमी व अ धकता, पवन क दशा, महासागर से दूर आ द
भा वत करती है।

10.2.2 व श ट आ ता (Specific Humidity)

जल वा प के भार और नम हवा के भार के बीच के अनुपात को व श ट आ ता कहा जाता है।


इसे त कलो ाम नम हवा म ाम जल वा प मा ा म द शत कया जाता है।

172
10.2.3 सापे क आ ता (Relative Humidity)

कसी नि चत तापमान पर वायु म आ ता धारण करने क मता (आ ता साम य) तथा उसम


उपल ध आ ता क वा त वक मा ा ( नरपे आ ता) के अनुपात को सापे त आ ता कहते ह।
इसका सू
सापे क आ ता
नरपे आ ता = आ ता साम य
x 100
तापमान व सापे क आ ता म वपर त संबध
ं पाया जाता है, अथात ् तापमान घटने पर सापे क
आ ता अ धक तथा तापमान बढ़ने पर सापे क आ ता कम हो जाती है। सापे क आ ता का
जलवायु व दै नक जीवन म बहु त मह व है। इसके मह व के मु ख त य ह -
1. इसक मा ा पर ह वषा क संभावना नभर करती है। अ धक तशत पर वषा क
संभावना अ धक रहती है।
2. सापे क आ ता पर ह वा पीकरण क मा ा नभर करती है। अ धक सापे क आ ता
पर वा पीकरण कम तथा कम सापे क आ ता पर वा पीकरण अ धक होता है।
3. सामा यत: 60 तशत आ ता वा य के लए सह रहती है।

10.2.4 व व त प

व व म सापे क आ ता क अ धकतम मा ा भू म य रे खीय दे श म पायी जाती है। 30० उ तर


से 30० द णी अ ांश के म य ि थत े म सापे क आ ता शीत ऋतु क अपे ा ी म ऋतु
म अ धक होती है। उ च अ ांश म शीत ऋतु म सापे क आ ता अ धक पायी जाती है। इसका
कारण महा वीप का शीतकाल म अ य धक ठ डा होना माना गया है। व व म सापे क आ ता
का त प अ ांश से अ धक भा वत है। भू म य रे खा से उपो ण क टबंधीय उ च वायु दाब
पे टय क ओर सापे क आ ता क मा ा म नरं तर हास होता है। 30० उ तर तथा द णी
अ ांश के पास यह यूनतम पायी जाती है।
बोध न- 1
1. आ ता कसे कहते ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................
2. वा पन या है ?
..............................................................................................
............................................. .................................................
3. आ ता को मापने वाले यं का या नाम है ?
..............................................................................................
............................................................. .................................
4. व श ट आ ता को प रभा षत क िजये ।
..............................................................................................
..............................................................................................
5. सापे क आ ता सवा धक कहां पायी जाती है ?

173
..............................................................................................
..............................................................................................

10.3 संघनन के प (Forms of Condensation)


वायु का घनीभू त होना ह घनीभवन या संघनन है। जलवा प का जल या उसके व भ न प म
पा तर ह संघनन है। संघनन वायुम डल म उपि थत सापे क आ ता क मा ा पर आधा रत
है। जब वायु म सापे क आ ता शत- तशत होती है तो उस वायु को संत ृ त वायु (Saturated
Air) कहा जाता है। िजस तापमान पर वायु संत ृ त हो जाती है, उसे ओस ब दु या ओसांक
(Dew Point) कहते ह।
कृ त म संघनन अनेक प म होता है जैसे ओस, पाला, कोहरा, बादल, वषा, हम वषा, ओला
वृि ट आ द।

10.3.1 ओस (Dew)

रा म धरातल ठ डा हो जाता है तथा इसके स पक क वायु भी ठ डी होने लगती है। वायु के


ठ डी होने पर इसम जो जलवा प रहती है, वह घनीभू त होकर जल ब दुओं के प म ठ डे तल
पर पर बैठ जाती है। इसे ह 'ओस' कहते ह। इसे ात: काल फूल , घास आ द पर दे खा जा
सकता है। ओस के लए व छ आकाश, शा त वायु, ल बी रा , ओसांक क 0०C से अ धकता
का होना आव यक है।

10.3.2 पाला (Frost)

य द ओसांक हमांक से कम रहता है तो ओस जल बू द


ं क बजाय बफ के छोट-छोटे कण के प
म जम जाती है। इसे ह पाला कहा जाता है। पाला बनने हे तु आव यक है क वायु का ताप
शी ता से गरे , आकाश म बादल न ह , वायु म जलवा प रहे आ द। सामा यत: पाला पवतीय
घा टय म पड़ता है। ऊंचे अ ांश के मैदान म भी यह ि थ त दे खने को मलती है।
बादल म जल कण क उ पि त होने पर य द वायु रा श कसी कार अ धक ऊँचाई पर चल
जाती है, तो जलकण ठोस हम कण म प रव तत हो जाते ह। इन हमकण के आपस म मलने
से ये बड़े आकार के हो जाते ह तथा धरातल पर तेजी से गरते ह इसे ह ओला (Hail) वृि ट
कहते ह। ये व भ न आकार म धरती पर गरते ह।

10.3.3 कोहरा (Frog)

अ तरा य समझौते के अनुसार कोहरा श द मौसम संबध


ं ी वणन (Weather Reports) म
वायुम डल य अ यता के लए योग कया जाता है। इसम एक कलोमीटर क दूर क चीज भी
दखाई नह ं दे ती ह। धरातल के पास वायु का तापमान जब ओसांक ब दु को ा त कर लेता है
तब उसक आ ता के कण वायुम डल म या त धूल एवं धु एँ के कण पर बैठ जाते ह। इसके
कारण वायुम डल म यता कम हो जाती है। इसके ह के प को धु ध
ं या कु हासा (Mist) कहा
जाता है। इसम 1-2 कलोमीटर तक क व तु एँ ह ि टगत होती ह।

174
कोहरे म धु ंध क अपे ा जलकण अ धक छोटे व घने होते ह इसम धूल व धु एं का समावेश रहने
से यह अ धक घना हो जाता है। घने कोहरे म बलकुल पास क व तु भी प ट ि टगत नह ं
होती है। धरातल पर न दय , झील व तालाब आ द जल य रा शय के नकट कोहरा अपे ाकृ त
सघन रहता है। कोहरे क उ पि त सागर य सतह पर भी होती है, जहाँ पर ठ डी व गम धाराय
पर पर मलती ह। उदाहरण के लए उ तर अमे रका म यू फाउ डलै ड के तट पर गम
ग फ म व ठ डी ले ेडोर धारा के मलने से सघन कोहरा उ प न होता है।

10.3.3.1 कोहरे के कार (Types of Fog)

व प के आधार पर इसे मॉग (Smog), मेज (Smaze) तथा पाला धू म (Frost Smobe) म
बाट सकते ह। बड़े-बड़े औ यो गक शहर म कारखान से नकलने वाले धुएं यु त वातावरण म
उ प न मटमेले रं ग का कोहरा मॉग (Smog) कहा जाता है (Smoke + Fog = Smog)। धुएं
व धु ध
ं के म ण से बने कोहरे को मेज (Smaze) कहा जाता है। आक टक दे श म तापमान
हमांक से नीचे पहु ंचने पर हम कण से न मत कोहरे को पाला-धू म (Frost Smobe) कहते ह।
इसे उ तर अमे रका के पि चमी पवतीय े म पोगो नप (pogonip) नाम से जाना जाता है।
यता के आधार पर कोहरा चार कार का होता है -
1. अ त सघन कोहरा ( यता 300 मीटर से कम)
2. सघन कोहरा ( यता 300 से 550 मीटर)
3. साधारण कोहरा ( यता 550 से 1100 मीटर)
4. ह का कोहरा ( यता 1100 मीटर या कु छ अ धक)
स व वान वलेट (Willet) ने कोहरे को नमाण व ध के अनुसार इस कार वभािजत कया
है –

1. अ त: वायु रा श कोहरा - इस कोहरे का नमाण वायु के तापमान का ओसांक तक आ


जाने पर होता है। इसके दो कार ह -
(i) व करण कोहरा - ठ डे धरातल के समीप गम एव आ वायु आ जाने पर इसका
नमाण होता है। इसके नमाण के लए पछले दन वषा, रा के तापमान का
धरातल य तलोमन (Surface inversion of temperature), रा म व छ
आकाश तथा वायु का मंद संचार होना आव यक दशाय ह।

175
कोहरे का नमाण रा म धरातल के नकट होता है। यह धीरे -धीरे ऊँचाई म बढ़ता है।
ाय: ताप तलोमन के समा त होते ह अ य हो जाता है य क सू यताप के कारण
जल कण का वा पीकरण हो जाता है। व करण कोहरा बड़े नगर के ऊपर तथा इनके
नकटवत भाग म होता है। औ यो गक शहर से नकलने वाले कोयले व गंधक के
कण से इसका प अ य धक घना हो जाता है।
(ii) स पक य व करण कोहरा - इसे अ भवहन कोहरा भी कहते ह। ऐसा कोहरा ठ डे
धरातल पर गम या आ हवा के आगमन से उ प न होता है। इस कार का कोहरा
ाय: थल य भाग पर जाड़े म तथा सागर य भाग पर ग मय म होता है। इसका
कारण शीतकाल म थल य भाग का, सागर क अपे ा ठ डे रहना है। ग मय म
उ च अ ांश म हम पघलने से सागर य जल ठ डा हो जाता है। स पक य व करण
कोहरा भी दो कार का होता है। (अ) वा पीय कोहरा (ब) पहाड़ी कोहरा।
2. सीमा त कोहरा - दो भ न गुण वाल गम एवं ठ डी वायु रा शय के एक दूसरे के
सामने से आकर मलने से वाता नमाण होता है। इसी वाता के सहारे गम वायु
ठ डी वायु के ऊपर उठती है तथा ठ डी हो जाती है। इसम उपि थत नमी के संघनन
से कोहरा उ प न होता है।

10.3.3.2 कोहरे का वतरण (Distribution of fog)

सामा यत: व व म न न ल खत े व व भ न ि थ तय म कोहरा पाया जाता है -


1. ठ डी एवं गम जलधाराओं के मलने के थान कोहरे के मु ख े ह जैसे-ग फ म व
लै ेडोर का मलन थल- यूफाउ डलै ड का ा ड बक तथा यूराइल व यूरोसीवो का
मलन थल-जापान का उ तर पूव तट।
2. अ धकतर कोहरा महा वीप के पि चमी तट पर बहने वाल ठ डी धाराओं के तटवत
े म पाया जाता है, जैसे -पी , ब वेला व कैल फो नया धाराय आ द।
3. ऊँचे अ ांश तथा हमा छा दत े म शीत ऋतु म जलाशय के नकट कोहरा मलता
है।
4. न न अ ांश म शीत ऋतु म कोहरा पाया जाता है।
5. उ तर अटलां टक एवं उ तर शांत महासागर के पूव भाग के म य अ ांश म उ प न
च वात के कारण कोहरा उ प न होता है।
6. शीतकाल म थल पर अ धकतर तथा ी मकाल म समु पर कोहरा उ प न होता है ।

10.3.3.3 मेघ (Clouds)

बादल वा तव म जल और हम कण का बड़े पैमाने पर समू हन है। बादल को ऊँचाई, प व


व तार के आधार पर व भ न भाग म बांटा जाता है।
महासागर व जलरा शय से वा पीकरण होता रहता है। ा त आ ता उ वगामी वायुधाराओं वारा
धरातल से काफ ऊँचाई पर पहु ँ चा द जाती है। यहाँ आ वायु म सार होता है और वह ठ डी
होने लगती है। ओसांक ब दु (Dew Point) पर यह संघ नत होकर जल क सू म बू द
ं म
प रव तत होने लगती ह। य द तापमान हमांक बंद ु (Freezing Point) से नीचे होता है तो बू द

176
हम के सू म कण म त द ल हो जाती ह िजनका आकार 0.025 से 0.1 म लमीटर के बीच
होता है । वायुम डल म ऊपर सू म बू द व हम कण क नलि बत रा श मेघ कहलाती है।
मेघ को आकार, कार व ऊंचाई के आधार पर चार वग म रखा जा सकता है:
 उ च मेघ : इनक ऊंचाई समु तल से 6000 से 12000 मीटर के बीच होती है। इसम
दो कार के मेघ शा मल ह।
(i) प ाभ मेघ : रे शमी धाग क तरह हम कण से बने मेघ जो साफ मौसम के
सू चक होते ह।
(ii) प ाभ- तर मेघ : ये आकाश म सफेद चादर क तरह दखाई पड़ते है। इनक
उपि थ त म सू य व चं मा के चार ओर आभाम डल न मत होता है।
 म यम ऊंचाई के मेघ : ये समु तल से 2100 से 6000 मीटर क ऊँचाई के बीच पाये
जाते ह। इसम दो कार के मेघ सि म लत ह।
(i) कपासी म य मेघ : ये गोलाकार उभार वाले मेघ होते ह िजनका आधार चपटा
होता है। ये साफ मौसम के सू चक होते है।
(ii) तर म य मेघ : इनका रं ग लेट से काला हो सकता है। इनसे भार वषा
होती है।
 न न मेघ : इनक ऊंचाई 2100 मीटर से कम होती है। इस कार के मेघ को तीन
उपवग म रखा जा सकता है।
(i) तर कपासी मेघ : ये ह के काले रं ग के लहरदार बादल होते ह।
(ii) वषा तर मेघ : इनका रं ग गहरा काला होता है। ये मू सलाधार वषा करने म
स म होते ह।
(iii) तर मेघ : ये कोहरे क भां त दखने वाले बहु त नीचे बादल होते ह। इनसे
ाय: बू द
ं ा-बांद होती है।
 उ वाधर व तार वाले मेघ : इनका व तार 1500 मीटर से लेकर 9000 मीटर तक हो
सकता है। इनके दो मु ख कार ह।
(i) कपासी मेघ: ये धु नी हु यी ई के समान गोलाकार सफेद चमक ले बादल होते ह।
कई बार इनके आधार ह के काले रं ग के होते है। ये साफ मौसम के सू चक होते
ह।
(ii) कपासी-वष ले मेघ : यह एक व श ट कार का कपासी मेघ होता है। इसका
आकार गोभी के फूल जैसा होता है। इसका रं ग सफेद व काला होता है। इससे
गरज व चमक के साथ वषा हाती है।

बोध न- 2
1. ओसां क क प रभाषा बताइये ।
..............................................................................................
..............................................................................................
2. सामा यत : पाला अ धक कहाँ पड़ता है ?
..............................................................................................

177
..............................................................................................
3. उ तर अमे रका म यू फाउ डलै डल के पास कन दो धाराओं के मलने से
कोहरा उ प न होता है ?
................................................................ ..............................
..............................................................................................
4. मे ज या है ?
..............................................................................................
.............. ................................................................................
5. मे घ कसे कहते ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................
6. सबसे अ धक ऊँ चाई पर पाये जाने वाले मे घ का नाम बताइये ?
..............................................................................................
..............................................................................................
7. उन मे घ के नाम बताइये जो वषा दे ते ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................

10.4 वषा के कार


वायुम डल म उपि थत जलवा प जब घनीभू त होकर जल बू द के प म धरातल पर गरती है
तो उसे वषा कहा जाता है। वषा के लए वायु का अ त संत ृ त (Super saturation) होना तथा
मेघ कण का पर पर मलना अ त आव यक है।
वषा का मापन वषा मापी (Rain gauge) वारा कया जाता है। वषा का मापन मल मीटर या
इंच म कया जाता है। आजकल वचा लत वषा मापी का उपयोग कया जा रहा है, िजसे रे नो ाफ
(Rainograph) कहते ह। जब वायु के ऊपर उठने क ग त मंद हो तो सामा य घनीभवन से छोटे
- छोटे जलकण नीचे गरते ह िज ह फुहार या बौछार (Drizzle) कहा जाता है। जब घनीभवन
हमांक के नीचे होता है तो वषा हम के प म होती है। इसे हम वषा कहा जाता है।
वषा होने के लए वायु का ऊपर उठना अ य त मह वपूण है। सामा य तीन अव थाओं म वायु
ऊपर उठती है और ठ डी होकर वषा करती है -
1. गम धरातल के स पक म गम हो जाने पर वायु संवहनीय धारा के प म ऊपर उठ
जाती है अथवा
2. पवतीय अवरोध आने पर वायु इसके सहारे ऊपर उठती है अथवा
3. च वात म वाता या सीमांत के सहारे ऊपर उठती है।

178
उपरो त तीन कारक म से एक से अ धक कारक
भी स य हो सकते ह। इस ि थ त म सवा धक
भावकार कारक के आधार पर ह वषा के कार
को कहा जाता है। वषा को तीन कार म बांटा जा
सकता है -

10.4.1 संवाहनीय वषा (Convectional


Rainfall) इस कार क वषा भू म य रे खीय दे श

(Equatarial Regions) म होती है। यहाँ दन म


धरातल के स पक म आकर वायु गम होने से
ह क होकर ऊपर क ओर उठने लग जाती है इसी
या को संवाहन कहते ह। ऊपर उठने से वा प
यु त वायु ठ डी होकर वषा करती है। ऐसी वषा को ह
संवाहनीय वषा कहते ह।

10.4.2 पवतीय वषा (Orographical Rainfall)

इसको थलाकृ तक वषा भी कहते ह। जब आ ता से भर हु ई वायु के माग म पवत का अवरोध


आ जाता है तो वायु बा य होकर ऊपर उठती है। ऊपर उठने से वायु ठ डी होने लगती है तथा
घनीभू त होकर वषा करती है। ऐसी वषा ह पततीय वषा कहलाती है। पवतीय वषा को पवत क
ि थ त व इनक ऊँचाई, समु से दूर आ द भा वत करते ह। व व क अ धकांश वषा पवतीय
वषा के प म ह होती है। पवत के पवनमु खी ढाल (Windward slope) पर वषा के उपरांत
पवत को पार करके पवन जब दूसर ओर नीचे उतरती ह तो उसके तापमान म वृ हो जाती है।
इससे उसके आ ता साम य म वृ होती है। फलत: उनक आ ता जल ब दुओं म नह ं बदल
पाती है। इस लए इस वायु से पवन वमु खी ढाल (Leeward slope) वाले भाग म वषा नह ं हो
पाती। ऐसे भाग को वृि टछाया दे श (Rain Shadow areas) कहा जाता है।

10.4.3 च वातीय वषा (Cyclonic Rainfall)

जब ठ डी व गम वायु आपस म मलती ह तो ठ डी वायु गम वायु को ऊपर उठाती ह। गम वायु


ऊपर उठने से ठ डी हो जाती है तथा संघ नत होकर वषा करती है। ऐसी वषा ह च वातीय वषा
कहलाती है। च वात गुजर जाने के साथ ह वषा भी समा त हो जाती है। शीतो ण क टबंधीय
े म अ धकांश वषा इसी कार क होती है। ऊ ण े म ग मय म च वातीय वषा होती है।
भारत के उ तर -पि चमी भाग म सद क ऋतु म होने वाल वषा पि चम से आने वाले च वात
से ह होती है। भारत के पूव तट पर भी कभी-कभी च वातीय वषा होती है।
बोध न - 3
1. वषा कसे कहते ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................

179
2. वषा मापन करने वाले वचा लत यं का या नाम है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
3. बौछार व हमवषा या है ?
.......................................... ....................................................
..............................................................................................
4. भू म य रे खीय दे श म कस कार क वषा होती है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
5. पवत के वषा न होने वाले पवन वमु खी ढाल को या कहते ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................
6. च वातीय वषा अ धकां श त : कस क टबं ध म होती है ?
..............................................................................................
.............................................................................................

10.5 वषा का व व वतरण (World Distribution of Rainfall)


व व म वषा का वतरण असमान है। वषा के वतरण को जल एवं थल क ि थ त, च लत
पवन क दशा, वायुदाब पे टय का खसकाव, तापमान, जलधाराय, पवत णय क ि थ त व
दशा आ द कारक भा वत करते ह।
व व म वषा क 6 पे टय का नधारण कया जा सकता है -
1. अ य धक वषा वाल भू म यरे खीय पेट - इसका व तार 100 उ तर से 100 द णी
अ ांश के म य है। यहाँ पर संवाहनीय वषा होती ह जो क त दन दोपहर के बाद
गजन के साथ होती है। यहाँ पर वा षक वषा क मा ा 175 से 200 सट मीटर तक रहती
है। इसम मु यत: अ का के कांगो बे सन का म यवत भाग, यू गनी, फल पी स एवं
मैडागा कर के पूव तट य भाग, म य अमे रका व द णी अमे रका का अमेजन े
शा मल ह।
2. यापा रक पवन क वषा पेट - इसका व तार 100 से 300 अ ांश के म य उ तर व
द णी गोला म महा वीप के पूव भाग म है। यहाँ यापा रक पवन सागर को पार
करके महा वीप के पूव भाग म वषा करती ह। महा वीप के पि चमी भाग तक पहु ँ चते
- पहु ँ चते ये पवन शु क हो जाने से वषा नह ं कर पाती ह। इसी कारण इन अ ांश म
महा वीप के पि चमी भाग म उ ण म थल मलते ह।

180
च -10.2 : व व मे वषा का वतरण
3. उपो ण क टबंधीय यूनतम वषा क पेट - इसका व तार भू म य रे खा के दोन ओर
आ ता, संघनन एवं वषा का वतरण ा प 20० से 30० अ ांश के म य महा वीप के
पि चमी भाग म पाया जाता है। यहाँ उ च वायुदाब मलता है। फलत: तच वात के
आ वभाव से वषा नह ं होती। इस पेट म व व के स उ ण म थल भी है जहां पर
वा षक वषा का औसत 25 सट मीटर से भी कम है।
4. भू म य सागर य वषा क पेट - इस पेट का व तार 300 से 400 अ ांश के म य
उ तर व द णी गोला म पाया जाता है। यहां वषा शीतकाल म च वात व पछुआ
पवन वारा होती है। यहां का वा षक औसत 100 सट मीटर है। इस पेट क वशेषता
शु क ी म ऋतु है य क इस समय यापा रक पवन अथवा त च वातीय दशाओं
का भाव रहता है। इस पेट म कैल फो नया, म य चल , ऑ े लया का द ण
पि चमी भाग तथा द णी अ का का द ण पि चमी भाग शा मल ह।
5. म य अ ांशीय अ धक वषा क पेट - यह पेट 400 से 600 आ ांश के म य दोन
गोला म व तृत है। यहां वषा का वा षक औसत 100 से 125 सट मीटर है। उ तर
गोला क अपे ा द णी गोला म च वात के कारण अ धक वषा होती है। इस पेट
म महा वीप के पि चमी भाग म पछुआ पवन से अ धक वषा होती है तथा आंत रक
भाग क ओर मश: घटती जाती है।
6. ु वीय यून वषा क पेट - इसका व तार 600 अ ांश से ु व तक दोन गोला म
है। यहां पर अ धकांश वषा हमपात के प म होती है। यहाँ वृि ट का वा षक औसत 25
सट मीटर ह है।

10.6 सारांश
वायुम डल म उपि थत जलवा प को आ ता कहते ह। आ ता को मापने के लए हाइ ोमीटर का
उपयोग कया जाता है। आ ता के व भ न प ह- नरपे या वा त वक आ ता, व श ट आ ता
एवं सापे क आ ता। नरपे आ ता त घन फुट पर ेन या तघन सट मीटर पर ाम म

181
तथा सापे क आ ता तशत म मापी जाती है। सापे क आ ता क मा ा पर वषा क संभावना
नभर करती है। इसक अ धकतम मा ा भूम य रे खीय दे श म पायी जाती है।
संघनन जलवा प का व भ न प म पा तर है। यह ओस, पाला, कोहरा व बादल आ द प म
होता है। वायु के ठ डी हो जाने पर उपि थत जलवा प घनीभू त होकर धरातल पर जल ब दुओं
के प म बैठ जाती है, इसे ह ओस कहा जाता है। जल ब दुओं का हम कण के प म पृ वी
पर इक ा होना पाला कहलाता है। वायुम डल म लटके हु ए संघ नत सू म जलकण समू ह के प
म होने से धु एं क तरह दखाई दे ते ह इसे कोहरा कहा जाता है। इसके ह के प को धु ंध कहते
ह। धरातल पर न दय , झील , तालाब आ द जल य रा शय के नकट कोहरा अपे ाकृ त घना होता
है। कोहरे को प प, यता व नमाण के आधार पर वग कृ त कया जाता है। व प के आधार
पर मॉग, मेज, पाला धू म, यता के आधार पर अ त सघन, सघन, साधारण व ह का कोहरा
तथा नमाण व ध के आधार पर मु खत: अ त: वायु रा श कोहरा व वाता या सीमांत कोहरा
कहलाता है। ाय: गम व ठ डी जलधाराओं के मलन थल पर घना कोहरा मलता है, जैसे -
ग फ म व लै ेडोर का मलन थल।
वषा तथा आ ता जलवायु व मौसम के मह तपूण घटक ह। वायुम डल म उपि थत जलवा प का
संघ नत होकर जल बूदं के प म गरना ह , वषा कहा जाता है। वषा होने के लए वायु का ऊपर
उठना आव यक है। वषा के तीन मु ख कार ह - संवहनीय वषा, पवतीय वषा तथा च वातीय
वषा। संवहनीय वायु धाराओं के उ प न होने पर आ वायु ठ डी होकर जो वषा करती है, उसे
संवहनीय वषा कहते ह। पवत के अवरोध से ऊपर उठने वाल वायु म जलवा प के संघ नत होने
पर हु ई वषा पवतकृ त वषा कह जाती है। च वात के कारण वायु के ऊपर उठने और ठ डी होकर
वषा करने को च वातीय वषा कहते ह।
व व म वषा का असमान वतरण है। सामा यत: व व को वषा क 6 पे टय म वभािजत कया
जाता है - अ य धक वषा वाल भू म य रे खीय पेट , यापा रक पवन क वषा पेट , उपो ण
क टब धीय यूनतम वषा पेट , भू म यसागर य वषा पेट , म य अ ांशीय अ धक वषा पेट तथा
ु वीय यून वषा क पेट ।

10.7 श दावल
संवहन (Convection) : वायु क ऊ वाधर धाराएँ
संत ृ तवायु (Saturated) : वायु म उसक साम य के बराबर आ ता क उपलि ध
वृि ट छाया दे श (Rainshadow : पवन वमु खी ढाल
region)
ओस (Dew) : जलवा प का ठ डे तल पर जल-बू द के प म बैठना
पाला (Frost) : ओस का हमकण म प रवतन
कोहरा (Fog) : यता को कम करने िजतनी सघनता लए हु ए
धु लकण पर बैठ – बू द
धु ध (Mist) : कोहरे का ह का प
अहता (Humidity) : वायु म उपल ध जल वा प

182
हाइ ोमीटर (Hygrometer) : आ तामापी

10.8 संदभ थ
शमा, शमा, व म ा : भौ तक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2005
सव संह : भौ तक भू गोल, वसु ंधरा काशन, गोरखपुर, 2006
F.J. Monkhouse : Principles of Physics Geography,London,1962
लाल, डी. एस. : जलवायु एव समु व ान, शारदा पु तक भवन, इलाहाबाद,
2003
Critch Field,H.J. : General Climatology,Prentice Hall Inc.,
Engleswood N.J.U.S.S.,2002

10.9 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. वायुम डल म उपि थत जलवा प क मा ा।
2. कसी व का वा प क अव था म बदलना।
3. हाइ ोमीटर।
4. जलवा प के भार तथा नाम हवा के भार के म य के अनुपात को व श ट आ ता कहते
है।
5. भू म य रे खीय दे श म।
बोध न - 2
1. िजस तापमान पर वायु संत ृ व हो जाती है, उसे ओसांक कहते ह।
2. पवतीय घा टय म।
3. ग फ म एवं लै ेडोर
4. धु एं व धु ंध के म ण से बना कोहरा।
5. ऊपर वायु म नलि बत जल या हम के सू म कण क संह त
6. प ाभ मेघ
7. तर म य मेघ - (i) वषा तर मेघ, (ii) तर मेघ, (iii) कपासी वष ले मेघ ह।
बोध न- 3
1. वायु म उपि थत जलवा प का संघ नत होकर जल के प म गरना ह वषा है।
2. रै नो ाफ।
3. जलवा प का संघ नत होकर छोटे -छोटे जलकण के प म गरना बौछार तथा जब
घनीभवन हमांक के नीचे होता है तो वषा हम के प म होती है, इसे हम वषा कहते
ह।
4. संवाहनीय वषा।
5. वृि ट छाया दे श।
6. शीतो ण क टबंध।

183
10.10 अ यासाथ न
1. वषा के कार का वणन क िजये।
2. व व म वषा के वतरण को समझाइये।
3. सापे क व नरपे आ ता म अ तर प ट करने के साथ ह सापे त आ ता के
मह व व वतरण क ववेचना क िजये।
4. वृि ट छाया दे श को प ट क िजये।
5. संघनन या है? इसके व भ न प को समझाये।

184
इकाई-11 : व व के जलवायु दे श

इकाई क प रे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 जलवायु
11.2.1 जलवायु वग करण के उपागम
11.2.2 कोपेन का जलवायु वग करण
11.2.3 थॉन वेट का जलवायु वग करण
11.2.4 कोपेन व थॉन वेट के वग करण क तु लना
11.3 व व के जलवायु दे श एवं उनक वशेषताएँ
11.4 जलवायु एवं मानव वा य
11.5 सारांश
11.6 श दावल
11.7 संदभ थ
11.8 बोध न के उ तर
11.9 अ यासाथ न

11.0 उ े य
इस इकाई को प ने के उपरा त आप समझ सकगे : -
 जलवायु का अथ,
 जलवायु वग करण के आधार,
 व भ न व वान वारा दये गये जलवायु वग करण,
 व व के व भ न जलवायु दे श क सामा य वशेषताएँ,
 जलवायु के मानव वा य पर पड़ने वाले भाव।

11.1 तावना
जलवायु कसी थान क द घकाल न मौसमी दशाओं के औसत तथा उन दशाओं म पायी जाने
वाल भ नताओं को दशाती है। मानव जीवन पर भौ तक पयावरण के िजन त व का भाव
पड़ता है, उनम जलवायु का थान मु ख है।
वभ न े क भौगो लक ि थ त व उ चावच क असमानता के कारण उनक जलवायु म
भ नता होना वाभा वक है। जलवायु त व क इ ह ं े ीय समानताओं रख असमानताओं के
आधार पर जलवायु वद ने जलवायु के वग करण दये ह ता क व भ न कार क जलवायु को
कु छ व श ट े णय म रखा जा सके। जलवायु वग करण से एक सामा य च तु त कया जा
सकता है। येक जलवायु दे श म ऐसे े को रखा जाता है, िजनम जलवायु क समांगता
मलती है।

185
11.2 जलवायु
जलवायु के व भ न त व तापमान, वायुदाब, पवन, आ ता, वायु रा शयाँ आ द जलवायु को
प रभा षत करते ह। जब आकाश व छ एवं शीतल मंद पवन चलती है तो हम कहते ह क आज
मौसम सु हावना है। य द दूसरे दन अचानक वषा हो जाती है और घने बादल छा जाते ह तो हम
कहते ह क आज मौसम खराब है। अत: प ट है क मौसम वायुम डल क अ पका लक दशा
होती है, जब क जलवायु श द से कसी थान के मौसम क द घकाल न औसत दशाओं का बोध
होता है। वष भर क व भ न ऋतु संबध
ं ी औसत दशाओं के सि म लत प को ह जलवायु कहते
ह.
माँकहाउस के अनुसार - ''जलवायु सामा यत: कसी थान वशेष क द घकाल न मौसमी दशाओं
के ववरण को शा मल करती है।
बोध न - 1
1. जलवायु एवं मौसम म या अ तर है ।
..............................................................................................
..............................................................................................
2. जलवायु के मु ख त व कौन-कौन से ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................

11.2.1 जलवायु वग करण के उपागम

जलवायु का वग करण करने के लए िजस व ध का सहारा लया जाता है, उसे उपागम कहा
जाता है। जलवायु वग करण के तीन मु य उपागम ह - (i) आनुभा वक (Empirical), (ii)
जन नक (Genetic) तथा (iii) यावहा रक या या मक (Applicational or Functional)।
आनुभा वक वग करण

इसम जलवायु क े त वशेषताओं के आधार पर जलवायु का वभाजन करते ह। इस उपागम


म व भ न त व के उपल ध आकड़ अथवा भाव के आधार पर जलवायु के व वध कार एवं
उनक सीमाओं का नधारण करते ह। कोपेन तथा थॉन वेट ने ाकृ तक वन प त को जलवायु का
सू चक मानकर जलवायु वग करण कया। थॉन वेट ने 1940 म अपने संशो धत वग करण म
तापमान व वषा के त व के आधार पर जलवायु वग करण कया।
जन नक वग करण
इस वग करण म व भ न कार क जलवायु क उ पि त के कारण को आधार माना जाता है।
सामा यत: यह वग करण सै ां तक हो जाता है, उपयोगी नह ,ं य क इसम धरातल पर
जलवायु वक व भ नता के कारण का व लेषण करना पड़ता है। इसके अलावा यह वग करण
भू गोलवे ताओं क आव यकताओं को पूण करने म सहायक नह ं हो सकता य क जन नक
वग करण पर आधा रत जलवायु के एक कार म एक से अ धक आनुमा नत जलवायु समू ह आ
जाते ह।
यावहा रक या या मक वग करण

186
जलवायु का अ य व तु ओं पर पड़ने वाला भाव ह इस वग करण का आधार है। इस वग करण
से उन व श ट सम याओं को सु लझाने म सहायता मलती है, िजसका संबध
ं जलवायु के एक या
दो त व से होता है। इसम जलवायु तथा मानव जीवन के व वध प के सहसंबध
ं का ववेचन
करते ह।

11.2.2 कोपेन का जलवायु वग करण

स जमन जलवायुवे ता डॉ. ला द मर कोपेन ने सव थम सन ् 1900 म जलवायु वग करण क


योजना तु त क िजसका मु ख आधार वन प त दे श थे। सन ् 1931 म तापमान, वषा के
मा सक व वा षक औसत के आधार पर संशो धत वग करण तु त कया िजसका अि तम प
1936 म अपनी संशो धत पु तक Hand buch der Kilatologle म कया। यह पु तक 5 ख ड
म जादूगर के साथ नकलकर लखी गई थी, इस लए इसे कोपेन जादूगर वग करण भी कहा जाता
है।
कोपेन का वग करण आनुभा वक है िजसम ाकृ तक वन प त के वतरण के अनुभव को दे खकर
यह वग करण कया है। कोपेन का मानना है क वन प त का वकास केवल वषा क मा ा पर
नभर न होकर वषा क भावशीलता पर नभर करता है। वषा क भा वता, वषा क मा ा और
वा पन क ती ता पर नभर करती है।
कोपेन के जलवायु वग करण के आधार
तापमान

कोपेन ने तापमान क वशेषताओं को सांके तक श दावल वारा कट कया। मा सक औसत


तापमान के आधार पर 5 जलवायु वग बनाये ह –
(A) उ ण क टब धीय जलवायु - इसम सबसे ठ डे माह का तापमान 18 ड ी सैि सयस से
अ धक रहता है।
(B) शु क जलवायु - यह म थल य जलवायु है िजसम वा पीकरण क मा ा, वषा क मा ा से
अ धक होती है।
(C) उ णा समशीतो ण जलवायु - यह म य तापीय जलवायु है िजसम सबसे ठ डे मह ने का
औसत तापमान 18 ड ी सैि सयस से नीचे और 1 ड ी सैि सयस से ऊपर रहता है।
(D) शीतो ण जलवायु - इसे न न तापीय जलवायु भी कहा जाता है। इसम सबसे ठ डे माह को
औसत तापमान -3 ड ी सैि सयस से कम और सबसे गम माह का औसत तापमान 10
ड ी सैि सयस से अ धक रहता है।
(E) ु वीय जलवायु - इस जलवायु म सबसे गम माह का औसत तापमान 10 ड ी सैि सयस
से नीचे रहता है अथात ् इस जलवायु म ी म ऋतु नह ं होती।
शु कता
शु कता का ता पय वषा एवं वा पीकरण क मा ा के अनुपात से है। कोपेन ने वषा के मौसमी
वतरण एवं शु कता के आधार पर मु य जलवायु वभाग को न न संकेता र वारा उप
वभाग म बांटा है-
S - अ शु क ( टै स) तथा W - शु क (म थल)

187
S व W बड़े अ र को केवल B समू ह क जलवायु के लए काम म लया है जब क अ य
दशाओं के लए न न छोटे अ र का योग कया है -
f = वषभर वषा, कोई भी शु क काल नह ं
m = घनघोर ी मकाल न मानसू न वषा, वष के कु छ मह ने पूणत: शु क
s = ी मकाल शु क (भूम य सागर य दे श)
w = शीतकाल शु क
तापमान क गौण वशेषताएँ
तापमान क अ य वशेषताओं के आधार पर उपरो त जलवायु वभाग को उप वभाग म
वभािजत करने के लए न न अ र समू ह को तीसरे अ र के प म योग कया है –
(a) जब ी म ऋतु म सबसे गम माह का औसत तापमान 22 C होता है। इस अ र का
0

उपयोग C व D वग क जलवायु के साथ कया है।


(b) ी म ऋतु म सबसे गम माह का औसत तापमान 220C से कम होता है अथात ् ी म
ऋतु साधारण होती है।
(c) सबसे ठ डे माह का तापमान -380C से अ धक तथा 4 माह तक तापमान 100C से
अ धक रहता है। लघु एवं कम गम ी मकाल।
(d) सबसे ठ डे मह ने का औसत तापमान -380C से कम होता है। शीत ऋतु अ या धक सद
रहती है।
(e) औसत तापमान 180C से अ धक, यह गम व शु क जलवायु छोट है जो B वग क
जलवायु का गौण भाग है।
(f) औसत तापमान 180C से कम, यह ठ डी व शु क जलवायु होती है जो B वग क जलवायु
का गौण भाग है।
(g) वष भर कोहरे क अ धकता।
इस कार उपरो त आधार पर कोपेन ने व व क जलवायु को पांच मु ख समू ह , यारह
उपसमू ह तथा इ ह पुन : गौण भाग म वभािजत कर कु ल 24 कार के जलवायु दे श बताये ह-

1. Af : उ ण क टब धीय आ जलवायु, वष भर वषा, शु क ऋतु नह ,ं चु र वन,


शु क मह ने म भी 6 सेमी से अ धक वषा।
2. Ab : उ ण क टबधीय मानसू नी जलवायु, लघु शु क काल, शी म ऋतु म वषा
अ धकतम तथा सघन वन।
3. Aw : उ ण क टब धीय सवाना घास के मैदान, शीत ऋतु शु क, अ धकशु क
माह म 6 सेमी. से कम वषा होती है।

188
4. Bsh : उ ण क टब धीय टै प जलवायु, औसत वा षक तापमान 180C,
अ पकाल न वषा ऋतु ।
5. Bsk : शीतो ण क टब धीय टै प जलवायु, औसत वा षक तापमान 180C से
कम, अ शु क शीत धान े ।
6. Bwh : उ ण क टब धीय गम म थल य जलवायु, औसत वा षक तापमान 180C
से अ धक, गम व शु क े ।
7. Bwk : शीतो ण म थल य जलवायु, औसत वा षक तापमान 18 C, शु क व
0

शीतल े ।
8. Cfa : आ उपो ण क टब धीय जलवायु, शीत ऋतु साधारण ठ डी, सभी ऋतु ओं
म वषा, ी मऋतु ल बी व गम।
9. Cfb : सागर य जलवायु, शीत ऋतु सामा य, सभी ऋतु ओं म वषा, ी प ऋतु
साधारण गम।
10. Cfc सागर य जलवायु, शीत ऋतु सामा य, सभी ऋतु ओं म वषा, ी म ऋतु
: छोट एवं शीतल।
11. Csa : आंत रक भू म य सागर य जलवायु, शीत ऋतु सामा य व वषा, ी म ऋतु
ल बी व गम।
12. Csb : तट य भू म य सागर य जलवायु, शीत ऋतु सामा य व वषा, ी म ऋतु
सामा य गम।
13. Cwa उपो ण क टब धीय मानसू नी जलवायु, शीत ऋतु साधारण ठ डी, शीत
: ऋतु शु क, ी म ऋतु उ ण।
14. Cwb : अयनवत उ च दे श, शीत ऋतु साधारण एवं शु क, ी म ऋतु साधारण
गम।
15. Dfa : आ महा वीपीय जलवायु, शीत ऋतु कठोर, वष भर वषा, ल बी एवं गम
ी म ऋतु ।
16. Dfh : आ महा वीपीय जलवायु िजसम वष भर वषा, शीत ऋतु कठोर, ी म
ऋतु साधारण गम।
17. Dfc : उप आक टक जलवायु, शीत ऋतु ठ डी, वष भर वषा, ी म ऋतु छोट व
शीतल।
18. Dfd : आक टक जलवायु, शीत ऋतु अपे ाकृ त अ धक ठ डी, वष भर वषा, ी म
ऋतु छोट व शीतल।
19. Dwa : आ महा वीपीय जलवायु, शीत ऋतु कठोर व शु क, ी म ऋतु साधारण
शु क।
20. Dwb : आ महा वीपीय जलवायु, शीत ऋतु कठोर व शु क, ी म ऋतु साधारण
गम।
21. Dwe : उप आक टक जलवायु, शीत ऋतु कठोर व शु क, ी म ऋतु छोट व

189
शीतल।
22. Dwd : उप आक टक जलवायु, शीत ऋतु अ य धक ठ डी एवं शु क, ी म ऋतु
छोट व शीतल।
23. ET : टु ा जलवायु, अ य त छोट ी म ऋतु, सबसे गम माह का औसत
तापमान 0० C से 10० C के म य रहता है।
24. FE : ु वीय जलवायु, वष भर हमा छा दत तथा वष भर तापमान 0० C से
कम रहता है।
कोपेन के वग करण का मू यांकन
कोपेन के वग करण का मू यांकन न न गुण दोष के आधार पर कया जा सकता है -
गुण
(a) सांि यक य चर पर आधा रत होने के कारण, येक जलवायु दे श को वा त वक प म
प रभा षत कया जा सकता है।
(b) कोपेन वारा तपा दत जलवायु दे श क सीमाएँ ाकृ तक वन प त दे श क सीमाओं के
अनु प होने के कारण इसक भौगो लक उपादे यता बढ़ जाती है।
(c) कोपेन ने वषण भा वता को वग करण का आधार बनाया है जो क ाकृ तक वन प त से
घ न ठ संबध
ं रखती है।
(d) इनका वग करण सरल, आनुभ वक एवं अ ययन व अ यापन म सु वधाजनक है।
दोष
(a) अनेक बार संशोधन के बावजू द वयं कोपेन अपने वग करण क शु ता से संतु ट नह ं हो
सके, य क वषण भा वता का शु मापन संभव नह ं है।
(b) कोपेन ने अपने वग करण म तापमान व औसत मा सक वषा को आव यकता से अ धक
मह व दया पर तु मौसम के अ य त व म मेघा छादन, वषा क गहनता, ताप क
वषमता, पवन आ द क उपे ा क है।
(c) इस वग करण म वायु रा शय को कोई थान नह ं दया गया है।
(d) कोपेन का वग करण जलवायु नर ण से ा त आकड़ पर आधा रत है जब क जलवायु
उ पि त कारक पर वचार नह ं कया गया है।
कोपेने के जलवायु वग करण क कु छ क मय के बावजू द इसका अ य धक मह व है, य क यह
व व क जलवायु क सामा य त वीर तु त करता है ।
बोध न - 2
(1) कोपे न के जलवायु वग करण के आधार या ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................
(2) कोपे न के अनु सार पृ वी तल पर कतने जलवायु दे श पाये जाते ह ?
..............................................................................................
. .............................................................................................

190
(3) कोपे न के वग करण म मु ख दोष या ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................

11.2.3 थॉन वेट का वग करण

अमे रका के जलवायुवे ता सी. वारे न थोन वेट ने उ तर अमे रका क जलवायु दशाओं का सव ण
करने के उपरांत सन ् 1931 म म ी-पानी बजट को मू ल आधार मानकर व व के जलवायु का
वग करण कया। इनका मानना था क ाकृ तक वन प त के वकास म वषण के साथ साथ
वा पन क दर का उतना ह मह व है। थॉन वेट ने दो वग करण तु त कये ह -
1931 का वग करण - थॉन वेट ने वन प त के वकास म केवल ताप या वषा क मा ा को ह
नह ं बि क वषण भा वता, तापीय द ता तथा वषा के मौसमी वतरण को भी मह वपूण माना
है–
वषण भा वता
वषण भा वता से अ भ ाय स पूण वा षक वषा का वह भाग जो पौध , वन प त के नवास तथा
वृ म भावशाल होता है। यह अनुपात ात करने के लए उ ह ने कु ल मा सक वषा को
मा सक वा पीकरण से वभािजत कया है तथा 12 माह के P/E तह अनुपात ात करके P/E
सू ची तैयार क जाती है। इसके लए न न सू का उपयोग कया जाता है -
10
 r  9
P/E अनुपात =  11.5  
 t  10 
10
12 9
 r 
P/E सू ची =  11.5  
i 1  t  10 
(r = औसत मा सक वषा इंच म, t = औसत मा सक तापमान इंच म)
थॉन वेट ने P/E सू ची के आधार पर जलवायु को 5 दे श म बांटा है िजनम व श ट कार क
वन प त मलती है -
आ ता दे श वन प त कार P/E सू चकांक
A अ य धक आ वषा के वन 128 से अ धक
B आ घास के मैदान 64 से 127
C उपा वन 32 से 67
D अ शु क टै प 16 से 31
D शु क म थल 16 से कम
वषा का मौसमी ववरण
ी म काल व शीतकाल म वषा के असमान वतरण के कारण मौसमी प रवतन आ जाता है।
अत: थॉन वेट ने छोटे अ र वारा येक अ ता दे श को चार उपभाग म बांटा है -
(a) r = वष भर भार वषा
(b) s = ी मकाल म कम वषा

191
(c) w = शीतकाल म कम वषा
(d) d = सभी ऋतु ओं म कम वषा
तापीय द ता
थॉन वेट ने तापमान को वन प त क उ पि त तथा वकास म मह वपूण माना है। तापमान के
भाव को प ट करने के लए उ ह ने येक तापीय द ता T/E ात कर तापीय द ता सू ची
बनायी है -
 T  32 
1. तापीय द ता अनुपात (T/E) =  
 4 
12
 T  32 
2. तापीय द ता सूची (T/C इंडे स) =   
i 1  4 
तापीय द ता सूची के आधार पर थॉन वेट ने व व को 6 तापीय दे श म वभािजत कया है -
तापीय दे श T/E सू चकांक
A उ णक टब धीय दे श 128 से अ धक अ य धक
B म य तापीय दे श 64 से 127
C सू म तापीय दे श 32 से 63
D टै गा दे श 16 से 31
D टु ा दे श 1 से 15
F हमा छा दत दे श 1 से 15
थॉन वेट के अनुसार वषण भा वता, वषा के मौसमी वतरण एवं तापीय द ता के आधार पर
सै ां तक तौर पर जलवायु के 120 ख ड बनते ह, पर तु थॉन वेट ने केवल 32 जलवायु ख ड
का मान च ण कया है-
1. AA’r : उ ण क टब धीय आ जलवायु, वष भर वषा
2. AB’r : म यतापीय आ ज यायु, वष भर वषा
3. AC’r : सू य तापीय आ जलवायु, वष भर वषा
4. BA’r : उ ण क टब धीय आ जलवायु, वष भर वषा
5. BA’r : उ ण क टब धीय आ जलवायु, शीतकाल म कम वषा
6. BB’r : म य तापीय आ जलवायु, वष भर वषा
7. BB’w : आ जलवायु, शीतकाल म कम वषा
8. BB’w : म य तापीय आ जलवायु, ी मकाल म कम वषा
9. BC’r : सू म तापीय आ जलवायु, वष भर वषा
10. BC’r : सू म तापीय आ जलवायु, वषा ी मकाल म कम वषा
11. CA’r : उ ण क टब धीय उपा जलवायु, वष भर वषा
12. CA’w : उ ण क टब धीय उपा जलवायु, शीतकाल म कम वषा
13. CA’d : उ ण क टब धीय उपा जलवायु, वष भर कम वषा
14. CB’r : म य तापीय उपा जलवायु, वष भर वषा
15. CB’w : म य तापीय उपा जलवायु, शीतकाल म कम वषा

192
16. CB’s : म य तापीय उपा जलवायु, ी म काल म कम वषा
17. CB’d : म य तापीय उपा जलवायु, वष भर कम वषा
18. CC’r : सू म तापीय उपा जलवायु, वष भर
19. CC’r : सू म तापीय उपा जलवायु, ी म काल म कम वषा
20. CC’d : सू म तापीय उपा जलवायु, वष भर कम वषा
21. .DD’w : उ ण क टब धीय अ शु क जलवायु, शीतकाल म कम वषा
22. DA’d : उ ण क टब धीय अ शु क जलवायु, वष भर कम वषा
23. DB’s : म य तापीय, अ शु क जलवायु, शीतकाल म कम वषा
24. DB’s : म य तापीय अ शु क जलवायु, ी मकाल म कम वषा
25. DB’d : म य तापीय अ शु क जलवायु, ी मकाल म कम वषा
26. DC’d : सू म तापीय अ शु क जलवायु, वष भर कम वषा
27. EA’d : उ ण क टब धीय जलवायु, वष भर कम वषा
28. EB’d : म य तापीय शु क जलवायु, वष भर कम वषा
29. ED’d : सू मतापीय शु क जलवायु, वष भर कम वषा
30. D’ : टै ग तु य जलवायु
31. E’ : टु ा तु य जलवायु
32. F’ : सतत हमा छा दत या ु वीय जलवायु
मू यांकन
(a) थॉन वेट वारा तपा दत व व वग करण अ य धक ज टल होने के कारण व व मान च
पर द शत नह ं कया जा सकता।
(b) थॉन वेट ने अपने वग करण म ाकृ तक वन प त के कार एवं वन प त दे श का कोई
यान नह ं रखा है।
(c) संभा य वा पो सजन के आकड़े उपल ध करना क ठन है। इसे दूर करने के लए थॉन वेटने
एक ज टल सू तपा दत कया ।
(d) इसके वग करण के आधार सहज मापनीय नह ं है। अत: थॉन वेट के वग करण को पया त
लोक यता नह ं मल पायी।

11.2.4 कोपेन व थॉन वेट के जलवायु वग करण क तु लना

(1) इनका वग करण सं या मक है। (1) यह भी सं या मक वग करण है।

(2) यह पूणत: सै ां तक वग करण है। (2) यह केवल जलवायु त व पर नभर है।


(3) इ ह ने जलवायु सीमाएं ताप व वषा के (3) थॉन वेट ने तापीय द ता एवं वषण
आधार पर मानी ह जो क अ य त द ता का उपयोग कया है, अत
सरल ह। जलवायु सीमाएँ ज टल ह।
(4) इसम छोटे अ र वाले संकेत अ धक (4) छोटे अ र के संकेत कम होने के कारण
ह, िज ह मरण रखना क ठन है। अ धक सरल है ।
(5) इ ह ने 24 जलवायु दे श नधा रत (5) थॉन वेट के 32 जलवायु दे श बताये

193
कये ह। ह।

बोध न- 3
1. थॉन वे ट के जलवायु वग करण के आधार या ह ?
..............................................................................................
..............................................................................................
2. थॉन वे ट ने तापीय द ता के लए कस सू का उपयोग कया ?
..............................................................................................
..............................................................................................
3. थॉन वे ट वारा तपा दत वषण भा वता को प ट क िजये ।
..............................................................................................
..............................................................................................
4. कोपे न व थॉन वे ट के जलवायु वग करण म मु य अ तर या ह ?
........................................................................................... ...
..............................................................................................

11.3 व व के जलवायु दे श एवं उनक वशेषताएं


कोपेन व थॉन वेट के जलवायु वग करण के अ ययन से आप यह समझ गये ह गे क पृ वीतल
पर ऐसे े पाये जाते ह जहाँ जलवायु के मु ख त व म समानता पायी जाती है। जलवायु त व
म समानता वाले दे श को जलवायु दे श कहा जाता है। व भ न भूगोलवे ताओं ने व व को कु छ
सामा य जलवायु दे श म बांटने का यास कया है। व भ न जलवायु त य के आधार पर
व व को 14 जलवायु दे श म बांटा है -

मान च - 11.1 व व के जलवायु दे श

194
भू म यरे खीय जलवायु दे श
ि थ त एवं व तार - यह जलवायु दे श भू म यरे खा के दोन ओर 5० उ तर व 5० द णी
अ ांश तक व तृत है। पर तु सू य के उ तरायण एवं द णायन ि थ त के कारण कभी-कभी
इसका व तार 10० अ ांश तक भी मलता है। इस दे श म द णी अमे रका का अमेजन
बे सन, म य अमे रक े , अफ का का काँगो बे सन व गनी तट एवं ए शया के पूव वीप
समू ह व मलाया ाय: वीप शा मल ह।
जलवायु दशाऐं - भू म यरे खा पर सू य वषभर ल बवत ् चमकने के कारण दन रात बराबर होते ह
तथा सू यातप ाि त समान प से होती है। औसत वा षक तापमान 26०C या 27०C रहते ह।
वा षक तापा तर केवल 2०C से 3०C तक पाये जाते ह। वषा का औसत 250 से मी. तक रहता
है। वषा ाय: संवाह नक है जो त दन दोपहर बाद होती है। कभी-कभी यापा रक हवाओं के
आगमन से अ तर उ ण क टब धीय अ भसरण क ि थ त बन जाती है। च वातीय दशाओं के
कारण त ड़त झंझावात उ प न होते ह। इस दे श म शु क ऋतु नह ं होती है।
ाकृ तक वन प त - वष भर ऊँचे तापमान, अ धक वषा एवं उ च आ ता के कारण इस दे श म
चौड़ी प ते वाले सदाबहार सघन वन पाये जाते ह। इस दे श म वृ इतने सघन होते ह क
धरातल पर सू य क रोशनी भी नह ं पहु ँ च पाती। रबड़, एबोनी, गटापाचा, ताड़, बाँस, बत, च दन,
सनकोना आ द इस जलवायु के मु ख वृ है।
जीव ज तु - सघन वन प त के कारण इस दे श म व वध कार के जीव ज तु पाये जाते ह।
यहाँ चार कार के जीव पाये जाते ह -
(a) असं य क ड़े -मकोड़े, वषैले क ट आ द।
(b) भू म पर वचरण करने वाले वशाल जीव हाथी, शेर, गडा, चीता, जंगल सू अर आ द।
(c) न दय म रहने वाले, मगर, घ ड़याल, द रयाई, घोड़े आ द।
(d) वृ पर रहने वाले गर गट, सांप, ब दर, चमगादड़ आ द मु ख ह।
अ वा य कर जलवायु एवं जहर ले क ड़े -मकोड़ के कारण ये दे श मानव नवास के यो य नह ं
है।
सवाना तु य जलवायु
ि थ त एवं व तार - भू म य रे खा के दोन ओर 5०C से 2०C अ ांश के म य दोन गौला म
इसका व तार मलता है। इसम द णी अमे रका के वै न वे, कोलि बया, गायना, द णी म य
ाजील, पैरा वे, अ का म जायर का द णी भाग, अंगोला, जाि बया, मोजाि बक, युगा डा, एवं
सू डान व उ तर ऑ े लया के कु छ भाग शा मल ह।
जलवायु - भू म यरे खीय दे श क भां त इस दे श म वष भर उ च तापमान रहते है। औसत

वा षक तापमान 25 C तथा औसत वा षक वषा 100 से 150 सेमी होती है। अ धकांश वषा
ी मकाल म होती है और शीतकाल शु क रहता है। इस दे श के उ तर भाग म शु क व
धू लभर हवाऐं चलती ह िज ह सहारा के म य म खम सन व द ण म हारम न कहते है।
ाकृ तक वन प त - इस दे श क ाकृ तक वन प त सवाना घास है िजसके आधार पर इस
जलवायु दे श का नामकरण कया गया है। बीच-बीच म वरले वृ भी पाये जाते ह।
भू म यरे खीय दे श के नकट सदाबहार एवं सवाना के शु क े म पणपाती वृ मलते ह।
जैसे-जैसे वषा क मा ा कम होती जाती है, वैसे-वैसे घास व वृ क ऊँचाई कम होती जाती है।
195
जीव ज तु - सवाना घास के मैदान ाणी उ यान के नाम से जाने जाते ह अथात ् यहाँ व य
जीवन व वधतापूण पाया जाता है। यहाँ दो कार के ज तु पाये जाते ह।
(i) शाकाहार - हरण, िजराफ, कंगा , जे ा, ए ट लोप, बारह संगा, नीलगाय, बंदर आ द।
(ii) मांसाहार - मांसाहार जीव म शेर, चीते, ते दुए, गीदड़, मगर, लकड़ब घे, द रयाई घोड़े,
गडे आ द ु ु ग, हाथी एवं जंगल भसा भी यहाँ के व श ट ज तु
मु ख ह। इसके अलावा शु तम
ह। जैव व वधता के कारण ह सवाना दे श व व के मु ख आखेट थल (Hunting
Grounds) कहलाते ह।
मानसू नी जलवायु
ि थ त एवं व तार - इस जलवायु का व तार भू म य रे खा के दोन ओर 5० से 30० अ ांश के
म य मलता है। इसम द णी पूव ए शया के भारत, पा क तान, बां लादे श, यानमार, थाईलै ड,
क बो डया, लाओस, उ तर व द ण वयतनाम आ द, द ण पूव संयु त रा य अमे रका,
अ का का पूव तट य े तथा उ तर ऑ े लया शा मल ह।
जलवायु - तापमान रख वषा के आधार पर यहाँ तीन मौसम ( ी मकाल, शीतकाल एवं वषाकाल)
पाये जाते है। ी मकाल म औसत तापमान 26०C से 32०C तथा शीतकाल म 10०C से 27०C
रहते ह। वा षक तापा तर अ धक रहते ह। ी मकाल म सागर से थल क ओर तथा शीतकाल
म व व के जलवायु दे श थल से सागर क ओर हवाऐं चलती ह िज ह मश: भारत म
द ण-पि चमी मानसू न तथा उ तर पूव मानसू न कहते ह। मानसू नी दे श म वषा का अ धकांश
भाग ी मकाल म होता है, पर तु वषा अ नि चत, अ नय मत और असमान होती है। वषा का
औसत भारत के मेघालय म 300 से. मी. तो थार के म थल म 25 से. मी. रहता है।
ाकृ तक वन प त - मानसू नी जलवायु दे श म वषा क व भ नता के कारण ाकृ तक वन प त
म भी व भ नता पायी जाती है। 200 सेमी से अ धक वषा वाले भाग म उ ण क टबंधीय
सदाबहार वन िजनम महोगनी, सनकोना, बांस, रबड़, गटापाचा आ द वृ मलते ह। 100 से
200 सेमी वषा वाले मानसू नी वन पाये जाते ह। 50 से 100 सेमी वषा वाले भाग म खैर, बबूल ,
नीम, क कर जैसे वृ वाले पतझड़ वन एवं घास के मैदान तथा 50 सेमी से कम वषा वाले भाग
म शु क कंट ले वन मलते ह। न दय के डे टाई भाग म वार य वन एवं ऑ े लया म
यूके ल टस के वन पाये जाते ह।
जीव-ज तु : - मानसू नी दे श म व भ न कार के जीवज तु पाये जाते ह। यहाँ क ड़े-मकोड़े,
प ी, रगने वाले ज तु, गीदड़, शेर, बाघ, चीते, हरण, भे ड़या आ द व यजीव, घ ड़याल,
मगरम छ जैसे जलचर एवं ऑ े लया म कंगा पाये जाते ह। इसके अलावा गाय, बैल, भस,
घोड़ा, भेड़, बक रयां, सु अर आ द पालतु पशु भी मलते ह।
उ ण शु क म थल य जलवायु
ि थ त एवं व तार - दोन गोला म 15oC से 30oC अ ांश के म य महा वीप के पि चमी
भाग म यह जलवायु पायी जाती है। इसका व तार ए शया के थार, संध, द ण बलु च तान,
अरब, अ का के सहारा, कालाहार , द णी अमे रका के अटाकामा, पि चमी ऑ े लया एवं
द णी पि चमी संयु त रा य अमे रका म पाया जाता है। व व के 17 तशत े म उ ण
म थल य भाग पाये जाते ह।

196
जलवायु - तापमान के आधार पर यहाँ दो ऋतु एँ ी मकाल व शीतकाल मलती ह । ी मकाल
o o
म यहाँ उ च तापमान 35 C से 22 C ड ी सैि सयस तक रहते ह। अब तक का सवा धक
तापमान ल बया के अजीिजया नामक थान पर 58oC (सन ् 1922) म अं कत कया गया है।
वषा का वा षक औसत 12 सेमी रहता है। पर तु वषा अ नि चत होती है। कभी-कभी वष तक
एक बू द
ं नह ं गरती तो कभी एक साथ इतनी वषा होती है क बाढ़े आ जाती ह। वा पीकरण वषा
से अ धक होता है। धूलभर आँ धय के कारण वायुम डल क पारद शता कम हो जाती है।
ाकृ तक वन प त - यहाँ ाकृ तक वन प त के प म म थल य वन प त पाई जाती ह जो
शु क, कंट ल , चकनी व चमकदार पि तयाँ, मोट छाल, ल बी जड़ वाल होती है। यहाँ क
वन प त उ च तापमान, यापक शु कता एवं उ च वा पीकरण सहन करने म समथ होती है।
नागफनी बबूल , क कर, कै टस, एने शया, ताड़, खजू र आ द यहाँ क मु ख वन प त ह।
जीव ज तु - गम व शु क कठोर जलवायु के कारण म थल य जलवायु म व श ट जीवन पाया
जाता है। ऊँट, भेड़, बकर यहाँ के मु ख पालतू पशु ह। शु तम
ु ु ग आ थक मह व का प ी है िजसके
पंख का यापार कया जाता है। लोमड़ी, खरगोश, गीदड़, चू हा, छपकल , गर गट, ए ट लोप
आ द मु य: व य जीव बहु तायत से पाये जाते ह।
ि थ त एवं व तार - इस जलवायु दे श क ि थ त 300C से 450C उ तर व द णी अ ांश म
महा वीप के म यवत भाग म मलती है जो क उ ण म थल य दे श एवं आ जलवायु
दे श के बीच सं मण दे श म ि थत ह। इसका व तार ए शया म कैि पयन सागर से सी
तु क तान क सीमा तक, यूरोप म स के द णी पूव भाग व डै यूब घाट , उतर अमे रका म
मसी सपी बे सन, ऑ े लया म मरे -डा लग बे सन तथा अ का म वै ड दे श तक है। ए शया के
टै प दे श के आधार पर इसका नामकरण कया गया है।
जलवायु - महा वीप के आ त रक भाग म ि थत होने के कारण ी म ऋतु साधारण गम एवं
0
शीत ऋतु बहु त कठोर होती है। ी मकाल म औसत तापमान 27 C तथा शीतकाल म हमांक से
नीचे रहते ह। यहाँ मौसमी वषमता अ धक नह ं होती पर तु दै नक तापा तर अ धक पाया जाता
है। वषा का वा षक औसत 25 से 50 से.मी. रहता है। उ च अशां वाले भाग म शीतकाल म
अ धक वषा तथा न न अ ांश वाले भाग म ी मकाल म अ धक वषा होती है।
ाकृ तक वन प त - अ प वषा के कारण यहाँ झा ड़याँ, घास उ प न होती ह। छोट घास वाले ये
े उ तर अमे रका म ेर ज, ए शया म टै प, द ण अ का म वै ड, अज ट ना म पा पास
तथा ऑ े लया म डाउ स कहलाते ह। इन मैदान म भेड़, बक रयाँ पाल जाती ह पर तु जहाँ
संचाई सु वधाय वक सत हो गयी ह, वहाँ यापा रक कृ ष क जाने लगी है।
जीव-ज तु - इस दे श म क ड़े, मकोड़े, ट ड याँ बहु तायत से पायी जाती ह। ए शयाई टै स म
हरण, घोड़े, जंगल गधे, ऊँट, भे ड़ये आ द, अमे रक ेयर म गोफर, खरगोश, ेयर कु ते,
बाइसन आ द तथा ऑ े लया म कंगा , एमू, डंगो आ द मलते ह।
भू म य सागर य जलवायु
ि थ त एवं व तार - इसक ि थ त 300C से 400C अ ांश के म य दोन गोला म महा वीप
के पि चमी कनार पर पायी जाती है। सी रया, इजरायल एवं अ जी रया, उ तर अमे रका म
कै लफो नया के तट य भाग, द णी अमे रका म म य चल , द णी अ का का द णी

197
पि चमी भाग तथा द णी ऑ े लया के भाग तक व तृत है। भू म य सागर के आस-पास
इसका सवा धक व तार होने के कारण भू म य सागर य जलवायु नामकरण कया गया है।
जलवायु - इस जलवायु क तीन मु ख वशेषताऐं ह - (i) ी मकाल गम व शु क तथा शीतकाल
साधारण, (ii) शीतकाल म वषा तथा (iii) वषभर पया त मा ा म धू प।
ी मकाल न औसत तापमान 20 से 270C तथा शीतकाल न और तापमान 50C से 100C रहते
ह। शीतकाल न तापमान हमेशा हमांक से ऊपर रहने के कारण यह जलवायु आनंददायक होती है।
शीतकाल म शीतो ण च वात से वषा होती है। वषा का औसत 35 से 75 सेमी के बीच रहता है।
ी मकाल म यहाँ त च वातीय दशाऐं रहती ह।
ाकृ तक वन प त - यहाँ ी म ऋतु म शु कता को सहन करने वाल ल बी जड़ , चकनी मोट
छाल, कम व छोटे प ते वाल सदापण वन प त पायी जाती है। इस दे श म वालनट, साइ स,
ओक, चै टनट, सीडर, फर, पाइन, लॉरे ल आ द वृ पाये जाते ह। इस दे श म सघन झा ड़याँ भी
पायी जाती ह, िज ह मैटोरल (Mattoral) और ऑ े लया म माल (Mallee) कहते ह। यह
जलवायु दे श रसीले फल नीबू संतरा, जैतू न, अंजीर, अंगरू , खू बानी आ द के लए व व स
है।
जीव-ज तु - इस दे श म व य जीव क अपे ा पालतू पशु ओं क धानता है। चरागाह क कमी
के कारण पततीय भाग पर भेड़ बकर पालन एवं अ य भाग म घोड़े, गधे, ख चर, सु अर पालन
होता है। टक म अंगोरा, बकर एवं अ य शु क पठार भाग म मै रनो भेड़ पाल जाती है।
चीन तु य जलवायु
ि थ त एवं व तार - चीन तु य जलवायु का व तार दोन गोला म 250C से 400C अ ांश
के बीच महा वीप के पूव भाग म पाया जाता है। इसम द णी पूव एवं द णी चीन, डे यूब
बे सन, पो बे सन, द. पू. संयु त रा य अमे रका, द. पू. ाजील, यु वे, द. अ का का द. पू.
भाग एवं द. पू. ऑ े लया शा मल ह।
जलवायु - चीन तु य जलवायु एक कार क ठ डी मानसूनी जलवायु है। यहाँ महासागर य उ ण
क टब धीय वायु रा शय क मु खता रहती है, िजसके कारण ी म ऋतु म संवाह नक वषा एवं
त ड़त झंझाओं का वकास होता है। ी मकाल न औसत तापमान 240C से 260C तथा
शीतकाल न औसत तापमान 40C से 120C रहता है। वषा के मौसमी व ादे शक वतरण म
अ य धक वषमता मलती है। तट के आंतीरक भाग क ओर तथा द ण से उ तर क ओर वषा
क मा ा घटती जाती है।
ाकृ तक वन प त - पया त वषा एवं तापमान के कारण इस जलवायु दे श म सघन सदापण
वन प त मलती है । ऊँचे दुगम पवतीय भाग म कोणधार वन, नचले भाग म चौड़ी प ती वाले
पतझड़ी वन तथा शु क भाग म केवल घास पायी जाती है । मु यत: वृ रोजवुड, साइ स, ऐश,
चै टनट आ द ह। द णी अमे रका म पराना बे सन म पाइन व पणपाती म त वन म व श ट
मोटे वृ पाये जाते ह ।
जीव-ज तु - इस जलवायु दे श के व भ न े म जैव व वधता पायी जाती है। संयु त रा य
अमे रका म हरण, लोमड़ी, गलहर , छछु दर, बक, ऊद बलाव, रै कू न, घ ड़याल, सारस आ द रण
ऑ े लया म कंगा , एमू तथा ओपोसम आ द व य जीव मलते ह।
ईरान तु य जलवायु (म य अं ाशीय म थल)

198
ि थ त एवं व तार - इस कार क जलवायु महा वीप के आ त रक भाग म 23०C से 48०C
अं ाश के म य पायी जाती है। इसका व तार ए शया म ईरान, अफगा न तान, ता रम बे सन,
गोबी म थल, संयु त रा य अमे रका म ेट बे सन, अज ट ना म पैटागो नया म थल म
मलता है।
जलवायु - ये दे श न न अं ाशीय म थल क भां त शु क एवं भीषण गम होते ह पर तु
शीतकाल अ य त कठोर होता है। ी मकाल न औसत तापमान 27०C से 32०C तक तथा
शीतकाल न औसत तापमान 3०C से 8०C तक रहते ह। वषा बहु त कम केवल ी मकाल म होती
है। वषा का औसत 3० से 35 से मी. है।
ाकृ तक वन प त - पठार धरातल, उ च तापमान एवं अ पवषा के कारण यहां वन प त के प
म केवल कंट ल झं डयाँ व घास मलती है। ईरान के पठार के उ तर भाग म पहाड़ी ढाल पर
वन पाये जाते है तथा मैि सको, टक व ता रम बे सन म कंट ल झा ड़याँ मलती ह।
जीव-ज तु - झा ड़य एक् घास क धानता के कारण इस दे श म शाकाहार , मांसाहार एवं रगने
वाले जीव ज तु ओं क व वधता मलती है। उ तर अमे रका म ए टलोप, खरगोश, गोफर, कोयोट,
ए शया म जंगल घोड़े, गधे, बैि यन ऊँट, भे ड़ये, अ का म .ू जे ा तथा ऑ े लया म कंगा
व एमू पाये जाते ह।
पि चमी यूरोप तु य जलवायु
ि थ त एवं व तार - इस जलवायु का व तार दोन गोला म 40०C से 65०C अं ाश के बीच
महा वीप के पि चमी भाग म पाया जाता है। इस दे श म पि चमी यूरोप के टश वीप
समू ह, नॉव, डेनमाक, उ तर पि चमी जमनी, उ तर पि चमी ांस, कनाडा म टश कोलि बया,
संयु त रा य अमे रका म वा शंगटन तथा ओर गन, द णी चल , ऑ े लया का द णी पूव
तट, त मा नया एवं यूजीलै ड शा मल ह।
जलवायु - इस दे श क जलवायु पर सागर य जल धाराओं रख पछुआ हवाओं का भाव पड़ता है।
० ०
ी मकाल न औसत तापमान 15 C से 21 C तक रहते ह। शीत ऋतु सामा य ठ डी होती है।
उ तर पि चमी यूरोप के तट य भाग म गम उ तर अटलां टक वाह के कारण तापमान सामा य
से अ धक रहते ह। यह दे श पछुआ पवन रथ च वात के भाव म रहने के कारण वष भर
पया त वषा ा त करता है। वषा को औसत 50 से 75 से.मी. के बीच रहता है, पर तु तट य
भाग से आ त रक भाग क ओर इसक मा ा कम होती जाती है।
ाकृ तक वन प त - इस दे श म वषभर वषा के कारण सघन वन प त का आवरण मलता था
जो वतमान म मावन अ धवास एवं कृ ष भू म म प रव तत हो गया है। अब केवल उ च पहाड़ी
भाग म वन पाये जाते ह िजनम ओक, ए म, डगलस फर, स
ू , सीडर, हे मलॉक आ द मु ख
वृ ह।
जीव-ज तु - इस जलवायु दे श म व यजीव म भालू लोमड़ी, खरगोश, हरन, भे ड़या, गलहर
आद मु ख ह। यहाँ बड़े पैमाने पर मछ लयाँ पकड़ी जाती ह।
से ट लारे स तु य जलवायु
ि थ त एवं व तार : - दोन गोला म 45० से 65० अं ाश के बीच यह जलवायु दे श व तृत
है। उ तर अमे रका म सट लॉरै स नद के े म ि थ त के कारण इसे सट लॉरै स तु य
जलवायु कहते ह। इसका व तार उ तर अमे रका म कनाडा के सागर य ा त ि वबेक,

199
ओ टे रयो, संयु त रा य अमे रका म यू इं लै ड दे श, ए शया म मंचू रया, को रया, उ तर
जापान एवं द णी अमे रका म पैटागो नया म मलता है ।
जलवायु - यहाँ सू य क करण वष भर तरछ पड़ने के कारण शीत ऋतु अ य त कठोर एवं
ी म ऋतु साधारण होती है । ी मकाल न औसत तापमान 17 से 22०C के बीच रहते ह। शीत
ऋतु म बफ ल हवाओं के कारण तापमान हमांक के नीचे गर जाते ह और कई दन तक
हमपात होता है। वषा वष भर होती ह पर तु ी मकाल म अ धक होती है। वषा का औसत 50
से 125 से मी. है पर तु तट से आ त रक भाग क ओर कम होती जाती है।
ाकृ तक वन प त - अ धक वषा वाले पवतीय भाग म कोणधार वन तथा कम वषा वाले भाग
म घास के मैदान पाये जाते ह। उ तर अमे रका व यूरोप के उ च भाग म पाइन, स
ू ,
हे मलॉक, फर आ द सदापण वृ तथा न न भाग म बच, बीच, पोपलर, सेवल, चे टनट आ द
चौड़ी प ती वाले पतझड़ी वृ पाये जाते ह। ए शया के भाग म कोणधार व चौड़ी प ती वाले
म त वन पाये जाते ह। संयु त रा य अमे रका व कनाडा म इन कोमल लकड़ी के वन के
आधार पर कागज व लु द उ योग का अ य धक वकास हु आ है। घास के मैदान अब कृ ष फाम
म बदल दये गये ह। यहाँ फर वाले ज तु, भालू लोमड़ी एवं खरगोश पाये जाते ह।
टै गा या साइबे रया तु य जलवायु
ि थ त एवं व तार - यह दे श केवल उ तर गोला म 55 से 70०C अं ाश के म य पायी
जाती है। इसके अ तगत यूरे शया के उ तर भाग म नॉव, फनलै ड, वीडन, उ तर कनाडा
शा मल ह। इस जलवायु का सवा धक व तार स के टै गा दे श अथात ् साइबे रया म मलता है।
अत: इस जलवायु का नामकरण टै गा या साइबे रया जलवायु रखा गया है।
जलवायु - यह जलवायु ल बी, कठोर, वषम एवं अ य धक ठ डी शीत ऋतु के लए स है।

यह दे श वष के 6 से 9 माह तक बफ से ढका रहता है। ी मकाल न औसत तापमान 1 C तथा
शीतकाल म हमांक से नीचे रहता है। व व का यूनतम तापमान इसी जलवायु दे श के

वख या क म -69 C (फरवर 1892 म) अं कत कया गया है। बफ ल हवाऐं एवं तू फान इस
दे श क सामा य बात है। वषा वष भर होती है, पर तु अ धकांश वषा ी मकाल म होती है। यह
वषा हमपात के प म होती है। वषा का औसत साइबे रया म 38 से मी. तथा उ तर कनाडा म
38 से 50 सेमी. है।
ाकृ तक वन प त - स पूण टै गा दे श कोणधार वन से आवृत है। हमपात के कारण वृ क
पि तयाँ कठोर व नुक ल होती ह। इन वन म स
ू , फर, पाइन, सीडर, लाच, चीड़, ऑ डर आ द
वृ मलते ह। उ तर म ु व क ओर वन प त वरल होती जाती है।
जीव-ज तु - इन दे श म फर वाले ज तु ओं म रे ि डयर, बारह संगा, फशर, हरण, बीयर, वीजल,
लोमड़ी मु खतया मलते ह। इसके अलावा तीतर, कठफोड़वा आ द प ी एवं क ड़े-मकोड़े पाये जाते
ह। शीतकाल म आक टक पशु -प ी यहाँ वास करते ह।
टु ा जलवायु ि थ त एवं व तार - यह जलवायु उ तर गोला म 55 से 70० उ तर अं ाश के
म य व तृत है। इसम कनाडा के उ तर वीप ीनलै ड, अला का, तटवत साइबे रया आ द े
आते ह।
जलवायु - अ य धक ल बी व कठोर शीत ऋतु, छोट व ठ डी ी म ऋतु इस जलवायु दे श क

मु ख वशेषताऐं ह। वष के 9 माह तापमान 0 C से नीचे रहते ह। औसत वा षक तापमान -

200
12०C तथा सबसे गम माह का तापमान 10०C से कम ह रहते ह। वषा का औसत 30 से मी. से
कम रहता है। ी मकाल म च वातीय वषा होती है। अ धकांश वषा हमपात के प म होती है।
ाकृ तक वन प त - टु ा दे श म केवल माँस व लाइकेन मु ख वन प त के प म मलती है।
ी मकाल म हम पघलने के बाद छोट -छोट झा ड़य , फूल वाले पौधे, बच, आ डर आ द
वन प त उग आती ह। शीत ऋतु के आगमन के साथ ह सभी कार क वन प त न ट हो जाती
है ।
जीव-ज तु - इस दे श म रे ि डयर, ु वीय भालू लोमड़ी, खरगोश आ द समूर वाले जानवर पाये
जाते ह। समु ठ डे पानी म अनेक कार क मछ लयां एवं सागर य तनधार जीव मलते ह।
ी मकाल म दलदल भू म पर म छर, मि खयाँ एवं क ट-पतंगे भी पाये जाते ह।
हमा छा दत या आक टक जलवायु
ि थ त - इस जलवायु दे श म अ टाक टका, आइसलै ड एवं ीनलै ड के आ त रक भाग शा मल
है। यह पृ वी के सवा धक े म पायी जाती है।
तापमान - सू यातप क यूनतम ाि त के कारण इस दे श का तापमान सदै व 0०C से नीचे रहते
ह। ीनलै ड म आईि मट नामक थान पर गम मह ने का औसत तापमान -11०C तथा
शीतकाल म औसत तापमान 40०C रहता है। अ टाक टका व व का सबसे ठ डा दे श है। यहाँ
भयंकर बफ ले तू फान चलते ह। वषा केवल हम के प म ा त होती है।
ाकृ तक वन प त - अ य त कठोर व शीत जलवायु के कारण यहाँ वन प त का अभाव मलता
है। ी मकाल म माँस, लाइकेन व काई जहाँ-तहाँ उग आती ह।
जीव-ज तु - इस जलवायु दे श म अनेक कार के समु जीव पाये जाते ह। यह ं सील, हे म तथा
वालरस मछ लयाँ, पि वन प ी, ु वीय भालू आ द जीव मलते है।
उ च पवतीय जलवायु
ि थ त एवं व तार- यह जलवायु पवतीय े म पायी जाती है, जहाँ ऊँचाई जलवायु को
भा वत करने वाला मु ख कारक है। रॉक ज, ए डीज, आ स, हमालय, एटलस, सु लेमान,
यानशान, अ टाई आ द उ च पवतीय भाग म इस जलवायु का व तार मलता है।
जलवायु - ऊँचाई के साथ-साथ तापमान क भ नता पायी जाती है। द णी ढाल पर तापमान
अ धक तथा उ तर ढाल पर तापमान कम मलते ह। दै नक तापा तर अ धक पाये जाते ह।
शीतकाल म हम वषा के कारण उ च भाग सदै व हमा छा दत रहते ह। इस दे श क जलवायु
पर सह तल से ऊँचाई के अनुसार वन प त म अ तर मलता है। तलहट म चौड़ी प ती वाले वन
एवं ऊँचे ढाल पर नुक ल प ती वाले वन पाये जाते है। कोणधार वन के बाद घास मलती है।
तापमान व वषा क मा ा म प रवतन के कारण कु छ दूर पर वन प त म अ तर आ जाता है।
जीव-ज तु - इस दे श म पयावरण समायोजन के अनु प जीव-ज तु पाये जाते ह। इनके शर र म
घने बाल व समू र पाये जाते ह। नील गाय, या , जंगल भे ड़ये आ द मु खता से पाये जाते ह।

बोध न- 4
1. पि चमी यू रोप तु य जलवायु क या वशे ष ता है ?
..............................................................................................
............................................................................... ...............

201
2. भू म य रे खीय जलवायु दे श म कस कार क वन प त मलती है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
3. टै प तु य जलवायु क मु य या वशे ष ता है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
4. मानसू नी जलवायु दे श म आने वाले मु ख े के नाम ल खये ।
..............................................................................................
..............................................................................................
5. टै गा जलवायु दे श के जीव ज तु ओं का उ ले ख क िजये ।
..............................................................................................
..............................................................................................

11.4 जलवायु एवं मानव वा य


मानव जहाँ भी नवास करता है जैसे - पवत, पठार, मैदान, वन या म थल आ द म, उसे
जलवायु के भाव के अनुसार यवहार एवं याऐं करनी पड़ती ह। भौगो लक त व म जलवायु
सबसे मह वपूण त व है जो मानव क सम त शार रक व मान सक याओं पर गहरा भाव
डालती है। यहाँ तक क मनु य के भोजन, व , मकान, वा य, सामािजक जीवन एवं सं कृ त
पर जलवायु क छाप प ट नजर आती है।
मानव शर र कु छ नि चत जलवायु दशाओं म ह सह ढं ग से याशील हो सकता है। अ य धक
ऊँचाई पर मानव को ऑ सीजन क कमी के कारण वास लेने म क ठनाई आती है। अ य धक
उ ण तथा आ दे श म मानव शर र तथा मि त क का वकास अव होता है। उ ण व शु क
म थल य भाग व अ य धकतर शीत दे श म बीज का अंकु रण नह ं होने से खा या न उ प न
करना असंभव होता है। गम व अ धक आ ता मानवीय ऊजा को कम कर दे ती है िजससे मनु य
को शी थकान हो जाती है। अ य धक ठ डी जलवायु भी मानवीय वा य व मान सक ऊजा के
लए हा नकारक होती है। शीत दे श के लोग क अ धकांश ऊजा जीवन भी नता त
आव यकताओं क पू त म ह खच हो जाती है जब क शीतो ण जलवायु के नवासी शार रक एवं
मान सक दोन कार से प र मी होते ह तथा व थ व फुत ले होते ह। यह कारण है क टे न,
ांस, जमनी, संयु त रा य अमे रका, जापान आ द दे श ने इतनी अ धक उ न त क है।
जलवायु एवं रोग
 गम व आ जलवायु म क टाणु अ धक पनपते ह, िजससे जल ज नत रोग अ धक
उ प न होते ह जैसे - मले रया, हैजा आ द।
 गम व शु क जलवायु म अ धक तापमान के कारण मानव क चमड़ी म मेले नन का
ाव अ धक होने से चमड़ी का रं ग काला हो जाता है।

202
 शीत जलवायु वाले दे श म क टाणु सु षु त अव था म रहने से यि त व थ रहते ह
तथा चमड़ी का रं ग पीला या गेहु ंआ होता है।
 शीत जलवायु को अ थमा रोग से जोड़ा जाता है। 1965 म डे रक ने एक अ ययन म
प ट कया क वष म िजस समय तापमान, आ ता एवं वषा म गरावट होती है, उस
समय अ थमा क घटनाओं म वृ होती है।
 शोध म यह दे खा गया है क कु छ रोग म मौसमी कृ त होती है - जैसे ि वटजरलै ड
म शीतकाल म लो हत वर, पी लया तथा ड थी रया एवं बसंत म चेचक व
इ लुए जा अ धक दे खा गया है।
 आ ता भी मानव वा य को भा वत करती है। उ ण दे श म अ धक आ ता बेचैनी
पैदा करती है तो अ य त कम आ ता भी वा य के लए हा नकारक होती है।
बोध न -5
1. मानव क कौन सी याओं पर जलवायु का भाव पड़ता है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
2. मानव वा य क ि ट से कौन सी जलवायु सव पयु त है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
3. गम व शु क दे श म मनु य क चमडी काले रं ग क य होती है ?
..............................................................................................
..............................................................................................
4. अ थमा एवं मले रया रोग का सं बं ध कस जलवायु से है ?
..............................................................................................
..............................................................................................

11.5 सारांश
भौगो लक ि थ त एवं उ चावच क असमानताओं के कारण जलवायु दशाओं म भ नताऐं पायी
जाती ह। जलवायु त व क समानताओं रख असमानताओं के आधार पर कोपेन एवं थॉन वेट ने
जलवायु का वग करण कया है। जहाँ एक ओर कोपेन ने तापमान एवं वषा के आधार पर जलवायु
सीमाओं का नधारण कया है, वह ं दूसर ओर थॉन वेट ने वषण भा वता एवं तापीय द ता का
उपयोग कर ज टल सीमाऐं नधा रत क ह। अ धकांश व वान ने जलवायु क सामा य दशाओं
क समानता के आधार पर व व को 14 जलवायु दे श म बांटा है िजनका नामकरण दे श
वशेष क भौगो लक ि थ त के आधार पर कया गया है। येक दे श म तापमान, वषा,
ाकृ तक वन प त रण जीव ज तुओं म अ य धक भ नताऐं पायी जाती ह। जलवायु मानव क
सम त शार रक, मान सक, आ थक रख सामािजक याओं पर भाव डालती है। मनु य के रहन
सहन, भोजन, व , आवास, वा य, शार रक बनावट, मान सक मता आ द पर जलवायु का

203
प ट भाव नजर आता है। कु छ रोग जैसे मले रया, अ थमा आ द जलवायु वशेष म उ प न
होते ह। कु छ रोग मौसम प रवतन के साथ भी उ प न होते ह। अत: न कष प म कहा जा
सकता है क जलवायु भौ तक पयावरण का एक मह वपूण घटक है जो पयावरण के सभी प
एवं घटक को भा वत करता है।

11.6 श दावल
मौसम : वायुम डल क अ पका लक अव था
जलवायु : वायुम डल क द घका लक अव था

11.7 स दभ थ
1. गौतम, अ का : वायुम डल व महानगर, र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2006
2. ड यू जी. के यू : द लाइमेट ऑफ द कॉ ट ने ट, आ सफोड, 1957
3. ई. ट . जर : फाउ डेशन ऑफ लाइमेटोलॉजी
4. Lal, D.S. : Climatology, Sharda Pustak Bhawan, Allahabad,
2003
5. तवाड़ी एवं शमा : जलवायु व ान के मू ल त व
6. Criteh Field H.J. : General Climatology, Prientice Hall, Inc.,
Englewood, N.J.U.S.S., 2002

11.8 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. कसी भी थान क वायुम डल य दशाओं के अ पका लक योग को मौसम कहते ह,
जब क द घकाल न मौसमी दशाओं के ववरण को जलवायु कहते ह।
2. तापमान, वायुदाब, हवाऐं, आ ता, वायुरा शयाँ आ द जलवायु के मु ख त व ह।
बोध न- 2
1. तापमान एवं वषा क भावशीलता के आधार पर वन प त दे श कोपेन के जलवायु
वग करण का आधार है।
2. 24 जलवायु दे श ।
3. कोपेन ने मौसम के अ य त व मेघा छादन, वषा क गहनता, ताप क वषमता, पवन ,
वायु रा शय आ द क उपे ा क है तथा इनका वग करण नर ण से ा त आकड़ पर
आधा रत है जब क जलवायु उ पि त कारक पर वचार नह ं कया गया है।
बोध न- 3
1. थॉन वेट ने ' म ी पानी बजट' को मू ल आधार मानकर वषण के साथ -साथ वा पन क
दर को भी आधार बनाया है।
2. थॉन वेट ने तापीय द ता के लए न न सू का योग कया है -
T/E Ratio = T - 32 / 4

204
3. वषण भा वता से ता पय स पूण वा षक वषा का वह भाग है जो पौध , वन प त के
वकास तथा वृ म भावशाल होता है।
4. कोपेन का वग करण सै ाि तक, सरल सीमाओं वाला एवं अ धक संकेत वाला है, वह ं
थॉन वेट का वग करण तापीय द ता, वषण द ता जैसी ज टल सीमाओं एवं कम
संकेता र वाला है।
बोध न- 4
1. प. यूरोपीय जलवायु म पछुआ पवन एवं सागर य धाराओं के भाव के कारण कम
तापा तर, शीतकाल सामा य ठ डा, ी मकाल साधारण, वष भर पया त वषा आ द
मु ख वशेषताएँ ह।
2. चौड़ी प ती वाल सदाबहार सघन वन प त।
3. महा वीप के आ त रक भाग म ि थत होने के कारण ी म-ऋतु साधारण गम, शीत
ऋतु, कठोर, दै नक तापा तर अ धक एवं घास के मैदान का व तार पाया जाता है।
4. द.पू. ए शया म भारत, बां लादे श, पा क तान, यानमार, थाईलै ड, क बो डया, लाओस,
उ. व. द. वयतनाम, द. पू. संयु त रा य अमे रका, अ का का पूव तट य भाग, उ तर
ऑ े लया आ द शा मल ह।
5. टै गा दे श म फर वाले ज तु जैसे - रै ि डयर, बारह संगा, फशर, हरण, वीपर, वीजल,
लोमड़ी, आ द जीव ज तु मु खता से मलते ह।
बोध न - 5
1. मानव क सम त शार रक, मान सक, आ थक एवं सामािजक याओं पर जलवायु का
भाव पड़ता है।
2. शीतो ण जलवायु
3. चमड़ी म मेले नन के ाव के कारण।
4. अ थमा का स ब ध शीत जलवायु से रख मले रया रोग का स ब ध गम व आ
जलवायु से कया जाता है।

11.9 अ यासाथ न
1. कोपेन वारा तपा दत व व जलवायु वग करण का वणन क िजये।
2. थॉन वेट वारा सु झाये गये जलवायु वग करण क आलोचना मक या या क िजये।
3. सवाना तु य एवं मानसू नी जलवायु दे श क ं मु ख वशेषताओं का वणन क िजये।
4. भू म यसागर य एवं टै गा तु य जलवायु दे श का तु लना मक ववेचन क िजये।
5. जलवायु एवं मानव वा य पर एक लेख ल खये।

205
इकाई – 12 : जल म डल

इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 सागर व ान
12.2.1 सागर व ान क प रभाषा
12.2.2 वषय े रख कृ त
12.2.3 सागर व ान का मह व
12.3 जल य च
12.4 महासागर य नतल
12.5 ह द महासागर का नतल
12.5.1 महा वीपीय नम न तट
12.5.2 महा वीपीय नम न ढाल
12.5.3 महासागर य गत
12.5.4 म यवत कटक
12.5.5 महासागर य बे सन
12.5.6 ह द महासागर के वीप
12.6 सारांश
12.7 श दावल
12.8 स दभ थ
12.9 बोध न के उ तर
12.10 अ यासाथ न

12.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आप समझ सकगे :
 सागर व ान क प रभाषा, मह व, वषय े एवं इसक कृ त,
 जल य च
 महासागर य नतल (प रकि पत)
 ह द महासागर नतल का व तृत अ ययन।

12.1 तावना
पृ वी तल का 3/4 भाग जलम डल से घरा हु आ है, िजसका भौगो लक ि ट से अ ययन करना
वशेष मह वपूण रख आव यक है। समु व ान भौ तक भू गोल क वह शाखा है िजसके अ तगत
स पूण जलम डल का अ ययन कया जाता है। जलम डल म संसाधन का वपुल भ डार है,
िजनम अनेक कार के जै वक एव अजै वक संसाधन मलते ह।

206
12.2 सागर व ान
12.2.1 सागर व ान क प रभाषा

समु व ान के अ तगत महासागर क भौ तक - रासाय नक वशेषताएँ, तापमान, लवणता,


लहर, वारभाटा, महासागर य नतल, महासागर य न ेप रख इसके अ तगत पाए जाने वाले
संसाधन का अ ययन कया जाता है। सु नामी के भाव का व लेषण भी महासागर के अ ययन
म आव यक है।
मारमर एस. ए. के अनुसार - ''समु व ान, सागर का व ान है िजसम समु बे सन के
आकार एवं कृ त, बे सन के जल क वशेषताओं एवं ऐसी शि तयाँ जो जल क ग तय से
स बि धत ह, का अ ययन मु य प से सि म लत कया जाता है।''
ाउडमैन (Proudman) के अनुसार - ''समु व ान महासागर य जल के भौ तक गुणधम के
स दभ म ग तक तथा उ माग त क के मू लभूत स ा त का अ ययन करता है।''
मैन (Freeman) ड यू के अनुसार - ''मौसम व ान क भाँ त समु व ान भी भौगो लक
पृ ठभू म से उ प न व ान है। यह जलम डल से स बि धत है जो पृ वी का अ य त ग तशील
भाग है।
वडू प जाँ सन तथा ले मंग (H. V. Sverdrup, M.W. Johnson and R.H. Fleming) के
अनुसार''समु व ान समु से स बि धत सभी प का अ ययन करता है। इसके साथ ह यह
सागर य व ान (Marine Science) जो महासागर य सीमाओं तथा उनके नतल के उ चावच
सागर य ज म क भौ तक एवं रासाय नक वशेषताओं, धाराओं तथा सागर य जीव व ान का
अ ययन करता है।
अत: सागर व ान, पृ वी के धरातल के उस 70.8 तशत जलावृत भाग िजसे जलम डल
(Hydrosphere) कहते ह, का अ ययन करने वाला व ान है िजसके अ तगत जलम डल के
भौ तक एवं जै वक प तथा उनक ज टलताओं का अ ययन और या या समा हत है। इ ह ं
ज टलताओं का अ ययन करने के म म सागर व ान अ त वषयक (Inter-disciplinary)
व ान के प म जाना जाता है।

12.2.2 सागर व ान का वषय े एवं कृ त

सागर व ान क कृ त व भ न कार क घटनाओं एवं त


ु गामी सामु क प रवहन का वकास
होने से अ य धक भा वत हु ई है । मानव अपने वकास के लए समु का व भ न प म
उपयोग करता है, ऐसी ि थ त म भू म डल यकरण के भाव एवं आ थक, तकनीक वकास का
इसके ऊपर भाव पड़ा है । धरातल पर जल का अ धक व तार होने के कारण इसे कई वै ा नक
जल य ह (Water Planet) कहना अ धक उपयु त समझते ह। ग तशीलता जलम डल क
वशेषता है। महासागर य व ान या समु व ान के अ तगत महासागर एवं सागर क भौ तक
एवं रसाय नक अव था, वहाँ के जैवजगत के वकास क व वधता का बहु आयामी व प, जल के
घुलनशील व अघुलनशील त व एवं उनके जमाव, महासागर य नतल एव यहाँ क तर य
ग तय का सकारण अ ययन कया जाता है। इस कार समु व ान के जल संसाधन के सभी
संबं धत पहलु ओं क व तृत एवं सकारण या या अपे त है।

207
महासागर का व वध कार से मह व चौदहवीं सद के प चात ् तेजी से बढ़ने लगा। उस काल से
ह मानव क उ क ठा व व के सु दरू क तु अ ात अथवा स भा वत े क खोज हे तु समु
माग का उपयोग म लाने के त बढ़ । महासागर का उपयोग सै नक एवं असै नक दोन ह
काय के लए ार भ से ह होता रहा है। अरब सागर एवं भू म यसागर हजार वष से यापार के
वकास के मू त भागीदार बने रहे । कोल बस, वा को डगामा, स
ं हे नर , मेगलन, केलटलॉज,
कमान कु क जैसे महान ना वक ने अपना जीवन संकट म डालकर भी महासागर के अ ात भाग
क या ा क रण व व यातायात णाल के वकास म महासागर के मह व को त था पत
कया। महासागर वारा यापार सु गम माना गया एवं तेजी से इस पर नभरता बढ़ती गयी।
उपरो त त य को न न ल खत रे खा च वारा द शत कया गया है -
सागर व ान

12.2.3 सागर व ान का मह व (Importance of Oceanography)

वै ा नक के अनुसार महासागर म सभी कार के ख नज को ा त कया जा सकता है।


क यूटर तथा कृ म उप ह के योग ने समु व ान म ां तकार प रवतन कया है। स पूण
लोब के 70.8 तशत पर महासागर फैले हु ए ह। इनक औसत गहराई 3800 मीटर है। ऐसा
अनुमान है क सभी महासागर एवं संल सागर म जल का कु ल आयतन 1.37 x 109 घन
कलोमीटर है। इस कारण इस वशाल जलरा श का मानव जीवन के लए अनेक प म मह व है
य क महासागर वयं संसाधन है। इनम मछ लयाँ, घ घे, अनेक खा य पदाथ, वभ न
वन प तयां, वशालकाय जीव आ द ह। महासागर क तल से अनेक कार के ख नज वशेष प
से ख नज तेल, ाकृ तक गैस आ द ा त होता है। महासागर क ग तज शि त से ( वारभाटा,
वार य लहर, ग तशील तेज धाराऐं) के वारा व युत उ पादन कया जाने लगा है। महासागर
अ तरा य तर पर व व यापार महासगर के समु चत वतरण एवं व व यातायात एवं संचार
यव था म सबल सहयोगी मा णत हो रहे ह।

208
अ तरा य पर परा के अनुसार येक दे श क महासागर य सीमा उपयु त तट से 20 क.मी.
तक है जब क उसका महासागर के संसाधन का वदोहन करने का अ धकार उपयु त तट से 200
क.मी. तक क दूर पर माना गया है। इसके मह व को न न ब दुओं वारा समझाया गया है -
(i) महासागर एवं खा य साम ी : आज व व क जनसं या 6.30 अरब से अ धक हो गई है।
इस कारण मु ख प से वकासशील दे श के अ तगत खा या न क सम या बढ़ती जा रह
है, ऐसी ि थ त म कृ ष उ पाद के बाद मानव के लए दूसरा सबसे बड़ा भोजन का ोत
समु म पाई जाने वाल मछ लयां व अ य समु जीव ह, िज ह समु भोजन (See,
Food) के लए बड़े पैमाने पर पकड़ा जाता है। आ दम ढं ग से म य आखेट मानव
आ दकाल से करता आया है। अनेक दे श वा णि यक तर पर मछल पकड़ने का काय करते
ह। जापान, आइसलै ड, को रया, स, संयु त रा य अमे रका, नॉव, कनाडा, ेट टे न
आ द मछल पकड़ने वाले मु ख दे श ह। यूरोप म ऑइ टर, ईल, मु लैट आ द, जापान म
प व संयु त रा य अमे रका म ऑइ टर के पालन पर वशेष बल दया जा रहा है।
(ii) अ तरा य यापार : प रवहन लागत कम होने से आज वक सत और वकासशील दे श के
बीच म सामु क माग के वारा अ तरा य यापार ती ग त से हो रहा है। इसी
ि टकोण को यान म रखते हु ए अं ेज ने पनामा एवं वेज नहर का नमाण करवाया
था। सामु क प रवहन माग क मता एवं वशेषता के अनुसार उ ह अ तरा य सामु क
माग के प म वक सत कया, िजससे जापान रख यू रोपीय दे श तथा संयु त रा य
अमे रका से सीधे यापार कया जाता है। इ ह ं माग के कारण द णी पूव ए शया अपने
यहां से बागाती फसल उ पाद का वक सत दे श के साथ यापार करते ह। इस कार
अ तरा य यापार के साथ-साथ साम रक ि ट से भी महासागर का वशेष मह व है।
(iii) महासागर एवं ख नज संसाधन : औ यो गक ाि त एवं तकनीक वकास के कारण ख नज
के अ य धक दोहन के कारण थल पर व भ न ख नज के भ डार समा त होते जा रहे ह।
समु म ख नज के अकू त भ डार पाए गए ह। समु म पाए जाने वाले ख नज पदाथ
नलि बत या वलयन के प म पाए जाते ह। पृ वी तल पर पाए जाने वाले लगभग सभी
त व समु जल म भी पाए जाते ह।
(अ) जल म घुले हु ए ख नज - सागर य जल म नमक, मैगनी शयम, लोर न, पोटे शयम,
आयोडीन, ोमीन आ द व भ न कार के ख नज घुले रहते ह। तवष सागर य जल
से बड़ी मा ा म नमक तैयार कया जाता है। कु छ मा ा म िजंक, तांबा, शीशा, चांद
आ द के संकेि त कण भी पाए जाते ह।
(ब) असंघ ठत ख नज - इस कार के ख नज समु क गहराई के अनुसार वत रत पाए
जाते ह। इसम बालू बजर , चू ना, स लका, आग नाइट, लूकोनाइट, मै ेटाइट, टाइल,
मोनोजाइट, िजरकॉन, ोमाइट, कैसीराइट, ह रा, लै टनम, सोना, तांबा, फॉ फोराइट,
फेराम नीज ऑ साइड, धातु मय पंक, तांबा 300 मीटर तक क गहराई म पाये जाते ह।
कोबा ट, न कल, तांबा, लाल पंक, कैि शयम, एव व भ न कार के पंक, 4000 से
6000 मीटर तक क गहराई तक सागर -महासागर के अ तगत पाए जाते ह।
महासागर य तल पर लोहे-मैगनी शयम क ि थकाएं भी पाई जाती ह। यहां तक क

209
अकेले शांत महासागर म 10,000 करोड़ टन से अ धक मै नी शयम क ि थकाएं
पाई जाती ह।
(iv) शि त के ोत- व व के उजा संकट का समाधान महासागर म है। आज व व का लगभग
40 तशत ख नज तेल महासागर य तल से मलता है। ख नज तेल उ तर सागर, फारस
क खाड़ी, मैि सको क खाड़ी, कै लफो नया तट, ऑ े लया तट, बॉ बे हाई आ द अपतट य
समु से नकाला जाता है। महा वीपीय नम न तट पर पाई जाने वाल तेलयु त अवसाद
शैल (Combusible shate) म अनुमानत: 40,000 करोड़ बैरल नकाले जाने यो य
ख नज तेल उपल ध है। महासागर म ख नज तेल के साथ ह ाकृ तक गैस के भी वशाल
भ डार ह। अनेक समु े म कोयले के भ डार भी पाए जाते ह। ेट टे न के पूव म
उ तर सागर क तल म कोयले के बड़े भ डार पाए गए ह।
(v) ऊजा के पर परागत ोत के अलावा गैर पर परागत या वभव ऊजा (Potential
Energy) के भी ोत ह, िजसम वार य उजा तथा भू तापीय ऊजा उ लेखनीय है।
महासागर य जल के नय मत प से ऊपर उठने व नीचे गरने से संयं , लगाकर ऊजा
ा त क जाती है। ांस म रे स नद क ए चुर पर थम वार य संयं था पत कया
गया, िजसक व युत उ पादन मता 204 लाख कलोवाट है। स, कनाडा, संयु त रा य
अमे रका, जापान, ांस आ द दे श के तटवत भाग म वार य संयं था पत कए जा रहे
ह। महासागर के तट य भाग म भू तापीय उजा का भी पया त स भावनाऐं ह।
(vi) महासागर एवं जलवायु - थल क अपे ा जल क व श ट उ मा (Specific heat)
अ धक होने के कारण थल क अपे ा जल दे र म गम और शीतल होता है। अत: समु
के नकटवत े क जलवायु सम (Moderate) बनी रहती है।
(vii) महासागर य वन प त एवं जीव - महासागर म कई कार के जीव तथा वन प तयां पाई
जाती है। इसम पादप लवक (Phytoplankton) तथा ा ण लवक (Zoo Plankton)
अ तसू म होते हु ए भी अ य महासागर य जीव क उ पि त एव वकास म मह वपूण
भू मका नभाते ह। महासागर क सतह पर पड़ने वाले सू य ताप क सहायता से ये लवक
समु जल म घुले हु ए रासाय नक त व से जीव क उ प त करने म सहायक होते ह।
(viii) पेयजल के ोत - बढ़ती जनसं या क मू लभू त आव यकताओं म पेयजल मु ख है। व व
के व भ न भाग म गहराते पेयजल संकट का समाधान महासागर य जल ह य य प
अ य धक खारा होने के कारण महासागर के जल का उपयोग अब तक पेयजल हे तु अ धक
नह ं हो पाया है, क तु अब वै ा नक तर क से समु के पानी से खारापन नकालकर
पानी को शु कया जा रहा ह, सोलर, ि ट स रवस औ मो सस और इले ोडाइले सस
आ द तकनीक से सागर य जल को पेयजल के प म बदला जा रहा है। व भ न दे श म
समु तट पर वलवणीकरण संयं (Desalinization Plant) था पत कए गए ह,
िजनम उ योग व नगर म पेयजल क आपू त हो रह है। गुजरात म भावनगर म भी
एक वशाल वलवणीकरण संयं था पत कया गया है।

210
बोध न- 1
1. सागर व ान कसे कहते ह ?
...........................................................................................
...........................................................................................
2. पृ वी के धरातल का कतना तशत जलावृ त है ?
.............................................................. .............................
........................................................................................
3. कई वै ा नक इसे जल य ह () करना य उपयु त समझते ह?
...........................................................................................
...........................................................................................
4. महासागर का व वध कार का मह व कौनसी सद के प चात ् ते जी से बढ़ने
लगा ?
...........................................................................................
...........................................................................................
5. अ तरा य पर परा के अनु सार ये क दे श का महासागर के सं साधन का
वदोहन करने का अ धकार तट से कतने कलोमीटर छू तक माना गया है ?
..........................................................................................
.........................................................................................
6. कौनसे दे श क नद पर थम वार य सं यं था पत कया गया ?
...........................................................................................
........................................................................................

12.3 जल य च
व व तर य जल य च क या व ध म सव थम समु जल सू यताप वारा गम होता है
िजससे समु जल का कु छ भाग वा पीकृ त होता है िजससे वायुम डल य आ ता का नमाण होता
है। यह जलवा प पवन वारा महासागर एवं महा वीप के ऊपर ले जायी जाती है। त प चात ्
ऊपर उठती हवाओं के कारण वायु म संर त नमी का संघनन हो जाता ह तथा वषण
(Precipitation) ार भ हो जाता है। भू तल पर स प न इस वषण के कई प एवं अव थाय
होती ह - (1) कु छ वषा सीधे न दय , झील तथा थल ि थत अ य जल भ डार म होती ह िजसे
य वषा अथवा सीधा वषण (Direct Fall) कहते ह। वषा के इस जल का न दय के मा यम
से सीधे सागर म वलय हो जाता है। (2) जल वषा का कुछ भाग वन प तय वशेषकर वन के
शीष (ऊपर भाग) वारा अ तरारो पत (Intercepted) हो जाता है य य प इस अ तरारो पत जल
के कु छ भाग का वा पीकरण हो जाता है तथा शेष भाग वृ क शाखाओं एवं वन से होकर तना
वाह (Stem Flow) या हवाई स रता (Aerial Streamlets) के प म जमीन म पहु ँ चता है, (3)

211
जल वषा का कु छ ह सा वरल वन प त या वन प त वह न े म सीधे जमीन म पहु ंचता है।
जल वषा का कु छ भाग वन प तय वारा वा पो सजन (Evapo-Transpiration) होने से खच हो
जाता है तथा कु छ जल का न दय , तालाब , झील आ द से वा पीकरण के मा यम से य हो
जाता है।

च -12.1:
भू तल पर होने वाल जल-वषा का एक बड़ा भाग भावी थल वाह (Effective Overland) का
प धारण कर लेता है। भू-सतह पर फैलकर बहने वाले जल को वाह -जल या बहता हु आ जल
(Run off) के नाम से जाना जाता है। यह भू-सतह के नचले ह से अथात ् न दय म समा हत
हो जाता है। वषा के जल के कु छ भाग का भू-सतह के नीचे अंत: संचरण (Infilteration) हो जाता
है जो मृदा शैल म भ डा रत होता है। इसे मृदा जल भ डार करते ह। इस भ डार से कु छ जल
का वा पीकरण वारा एवं कु छ जल का पौध के मा यम से वा पो सजन वारा वायुम डल म
न ट हो जाता है। य य प कु छ जल झरन (Springs) के प म पुन : सतह पर आ जाता है,
जब क मृदा जल भ डार का कु छ जल नीचे क तरफ अ त: संच रत होकर भू मगत जल भ डार
का प ले लेता है। इस भू मगत जल भ डार से कु छ जल आधार- वाह (Base Flow) के प म
न दय म पहु ंच जाता है, जब क कु छ जल को शका - या वारा ऊपर उठता है तथा मृदा -
जल भ डार म मल जाता है तथा शेष जल और भी नीचे छनते हु ए गहराई म ि थत आधार -
शैल (Bed rocks) म अव हो जाता है ।
भू म डल य ( व व तर य) जल -च के घटक एवं जल का अनुपात
घटक जल क मा ा ( तशत म)
समु 97.200
थल य जल 0.017
हम स रयाय 2.150
भू मगत जल 0.620

मृदा क आ ता 0.005
वायुमंडल य आ ता 0.001
अ य 0.007
कु ल 100.00

212
इस कार समु एवं थल य भाग से जल क िजतनी मा ा वा पीकरण एवं वा पो सजन वारा
वायुम डल को जाती है उतनी मा ा वषण वारा व अथवा हम को प म धरातल से होते हु ए
समु को वापस ा त हो जाती है। जल य णाल म संच रत होने वाला यह जल धरातल और
महासागर को अनवरत ा त होता रहता है िजससे धरातल य, महासागर य एवं वायुम डल य जल
म पर पर संतु लन बना रहता है।
जल य च एवं मानवीय ह त ेप
वतमान समय म, मानव के क तपय काय वारा े ीय तर पर जल य -च म जो यवधान
उ प न हो रहे ह, वे न नवत ह -
1. ओजोन के तर म ास, वायुम डल म जलवा प क मा ा म प रवतन आ द वारा
थल एवं महासागर के ऊपर जलवा प के गमन रख थाना तरण म प रवतन हो रहा
है।
2. मानव वारा न मत कल-कारखान से अ धका धक मा ा म ठोस-कण का वायुम डल म
वसजन होता है। ये ठोस-कण वषा क बू द
ं के नमाण के लए 'आ ता ाह ना भक' का
काय करते ह। इस तरह वायुम डल म ठोस-कण- दूषण (Particulate Pollution) वारा
बादल का नमाण तथा वषा क कृ त एवं मा ा भा वत होती है।
3. वन वनाश, नगर करण आ द याओं से वा पीकरण म ास हु आ है जब क बांध एवं
जल भ डार के नमाण, वृ ारोपण एवं फसल क संचाई आ द वारा वा पीकरण म
वृ होती है।
4. वन के वनाश के कारण जल य च भा वत हु आ है। नगर य के के वकास के
चलते भी अ त: संचरण भा वत हु आ, िजससे अनेक भाग के भू मगत जल-तल म
वगत कु छ वष म उ लेखनीय गरावट दे खने को मल रह है।
बोध न -2
1. मृ दा जल भ डार कसे कहते ह ?
...........................................................................................
...........................................................................................
2. भू म डल य जलच के कौन - कौन से घटक ह ?
.............................................................................................
.............................................................................................
3. भू म डल य जलच घटक म सवा धक जल का अनु पात कौन - से घटक म
मलता है ?
...........................................................................................
........................................................................................

213
12.4 महासागर य नतल (Ocean Floor)
महासागर य तल के व यास तथा उ चावच ल ण से अ भ ाय महासागर म जल के महासागर
भी महा वीप क भां त थम ेणी के उ चावच ह। िजस कार महा वीप पर पवत, पठार,
मैदान, आ द के प म धरातल य वषमता दखायी दे ती है, ठ क इसी कार महासागर य तल
पर भी पवत, पठार, मैदान, घा टयाँ, गत आ द पाये जाते ह।
स पूण भू तल का े फल 50 करोड़ 99 लाख 50 हजार (50,99,50,000) वग क.मी. है। इसका
70.8 तशत अथात ् 36 करोड़ 10 लाख 50 हजार वग कलोमीटर म महासगर या जल े का
व तार है। जलम डल का लगभग सारा ह भाग चार महासागर एवं संल सागर म आता है।
यह न न कार से है।
. सं. महासागर े फल औसत गहराई
(लाख वग कमी) (मीटर)
1. शा त महासागर 1655 5000
2. अ ध या अटलां टक महासागर 821 3920
3. ह द महासागर 736 4000
4. आक टक महासागर 140 1280
महासागर क खु ल का माप व उनक गहराई जहाज के पैदे म लगे वशेष यं से ा त वन
तरं ग के वारा मालू म क जाती ह
च म महासागर क गहराई एवं थल क ऊंचाई उ चतादश व वारा द शत क गई है।

च - 12.2 : उ चतादश च (Hypsographic Curve)


समु पदे से ऊपर उठ हु ई लगातार पवत ेणी कटक (Ridge) कहलाती है। आयताकार उठा
हु आ भाग उभार (Rise) और चपटा उभार पठार कहलाता है। समु पदे पर फैल हु ई व ाकार
पहा ड़य को चाप (Arc) कहते ह। गहरे ल बे ग ढे को च और द घ वृ ताकार ग ढे को ोणी
(Basin) कहा जाता है। समु ह के ढाल पर संकर ना लयाँ सी पाई जाती ह िज ह सामु क

214
क दराएं (Submarine Canyons) कहलाती ह। समु म पायी जाने वाल वे पहा ड़यां जो बड़ी
ह , अलग-थलग हो, तो उ ह समु क ''उठान'' कहते ह। ''सी माउ ट और नम वीप'' पानी के
नीचे डू बी चो टयां होती है जो क समु के तल से ार भ होती ह, क तु पानी से ऊपर नह ं
पहु ँ चती। िजन नम वीप क वालामुखी चो टयां चपट होती ह, वे '' योट'' कहलतो ह।
महासागर य आकृ तय को न न उ चावच म डल म वभ त कया जा सकता है।
1. महा वीपीय नम तट (Continental Shelf)
2. महा वीपीय नम ढाल (Continental Slope)
3. गहरे समु मैदान (Deep Sea Plain)
4. महासागर य गत (ocean Deeps or Trenches)
1. महा वीपीय नम तट (Continental Shelf) : यह भाग सागर तल से 100 फैदम क
गहराई तक पाया जाता है। इसका व तार भ न- भ न पाया जाता है। उ तर और
द णी अमे रका के पि चमी तट पर शा त महासागर से सटा हु आ महा वीपीय नम
थल केवल 16 कमी. ह चौड़ा है, जब क उ तर अमे रका के उ तर पूव भाग पर यह
360 कमी., साइबे रया के आक टक तट पर 1350 कमी., गुजरात म 100 कमी.,
आ दे श, त मलनाडु तट पर 5 क मी. तक चौड़ा है। महा वीपीय नम तट का
े फल कर ब 1.75 करोड़ वग क. मी. माना जाता है जो पूरे समु े फल का केवल
8 तशत के लगभग है। अटलाि टक महासागर म स पूण जल य े का 13.3
तशत, शा त महासागर म 5.7 तशत और ह द महासागर म 4.2 तशत भाग
पर ह महा वीपीय नम न तट का व तार है। औसत प से इसक चौड़ाई 72 क मी.
मानी जाती है। महा वीपीय नम न तट क ये वशेषताएं ह क यह ार भ म थल का
भाग रहा है तथा छछला होता है। इसम लकटन, मछ लयाँ आ द यहाँ खू ब पनप जाती
ह। इनका ढाल बहु त धीमा होता है अथात ् औसतन एक कलोमीटर म 2 मीटर होता है।
2. महा वीपीय नम ढाल (Continental Slope) : महा वीपीय नम तट क समाि त
एवं गहरे सागर य मैदान के म य ि थत ती ढाल को महा वीपीय ढाल कहा जाता है।
इसक गहराई 100 फैदम से 1700 फैदम तक होती है। इसका ढाल 35 से 61 मीटर
त कलोमीटर होता है। पहाड़ी तट पर महा वीपीय ढाल अ धक और तट य मैदान के
पास कम होता है। काल कट तट के पास महा वीपीय ढाल 5o से 15o तक दे खा गया है।
जब क औसत महा वीपीय ढाल 4o17' होता है। सट हैलेना वीप के पास महा वीपीय
ढाल 40० और सट पॉल के नकट ढाल 62० तक पाया जाता है। महा वीपीय ढाल का
कु ल े फल 5 करोड़ वग क मी. है। सम त सागर य े फल के केवल 85 तशत
भाग पर ह नम ढाल पाये जाते ह। ह द महासागर म 6.5 तशत, अटलाि टक
महासागर म 12.4 तशत एवं शा त महासागर म 7 तशत पर नम न ढाल पाये
जाते है।
3. गहरे सागर य मैदान (Deep Sea Plain) : यह महासागर य नतल का सबसे अ धक
े फल वाला भाग होता है िजसक गहराई 3000 मीटर से 6000 मीटर के म य पाई
जाती है। महा वीपीय ढाल के आगे अगाध समु मैदान पाए जाते ह। िजनका े फल
स पूण समु े का कर ब 75 तशत है। अटलां टक महासागर म 54.9 तशत

215
भाग पर इनका व तार है तो ह द महासागर म यह तशत 80 एवं शा त महासागर
म 80.3 है। समु जल के भीतर ये मैदान अ य त व तृत होते ह तथा कह -ं कह ं इन
पर कटक मलते है। गहरे सागर य मैदान पर समु जीव , वन प तय एवं ार य
पदाथ के जमाव मलते ह।
गहरे समु मैदान म पटल व पणी एवं वालामु खी भू क प क याय स य रहती ह
िजसके वारा मैदान के नतल पर व भ न थालाकृ तय का उ व हु आ है। इन गहरे
समु मैदान पर महासागर य कटक, सीमाउ टस, खाइयां आ द पायी जाती ह।
4. महासागर य गत (Oceanic Deeps Trenches) : महासागर य नतल पर व भ न
याओं से सृिजत सवा धक गहरे भाग को महासागर य गत कहा जाता है जो स पूण
सागर य नतल के 7 तशत भाग पर फैले हु ए ह। महा वीप पर व तृत पवतीय
खृं लाओं एवं सागर म ि थत वीप के तट य े के नकट महासागर य गत क
ि थ त होती है िजनके ढाल अ य त ती होते ह। आकार य वषमता के आधार पर इन
गत को दो वग - (1) महासागर य ोणी तथा (2) महासागर य खाई म वभािजत कया
जाता है। जो गत गहरे ह उ ह महासागर य गत कहते ह। इसके वपर त जो गत ल बे,
संकरे , अ य त गहरे एवं चापाकर होते ह, उनको महासागर य ोणी कहा (Oceanic
Trenches) कहा जाता है। महासागर य गत क सबसे अ धक सं या शा त महासागर
(57 गत) म है जब क अटलाि टक महासागर म 19 गत ह। सबसे कम महासागर य
गत क सं या ह द महासागर (6 गत) म है। व व का सबसे गहरा गत चैले जर
(मै रयाना) गत है जो शा त महासागर म फल पी स के नकट ि थत है। सु डा
(7,450 मी.) पूव ह द महासागर, रोमेश (1,631 मी.) द णी अटलाि टक महासागर,
यूराइल (10,498 मी.), सखा लन, पोट रको (8,385 मी.) प. द प समू ह, वायर
(10,475 मी.) उ तर -पि चमी शा त महासागर, ट गा (10,882 मी.) तथा चैलजर
(11,022 मी.) शा त महासागर म ि थत मु ख गत ह।

12.5 ह द महासागर का नतल (Floor of the Indian Ocean)


ह द महासागर उ तर एवं पूव म ए शया, द ण-पूव म ऑ े लया, द ण म अ टाक टका तथा
पि चम म अ का महा वीप से घरा हु आ है। इसका आकार अं ेजी के 'M' अ र क तरह है।
सु दरू द ण म इस महासागर क सं ध अटलाि टका एवं शा त महासागर से भी हो गई है। इस
महासागर क औसत गहराई 4000 मीटर है। उ तर म भारतीय ाय वीपीय भाग इसको दो भाग
म वभािजत करता है, जो मश: अरब सागर एवं बंगाल क खाड़ी ह। ह द महासागर के तट य
भाग का अ धकांश भाग गो डवाना शैल से न मत होने के कारण कठोर तथा सघन हो गया है।
अ तरा य ह द महासागर खोज काय अ भयान (International Indian Ocean Expendition)
(IIOE) के त वाधान म सन ् 1959 से 1969 तक पूव सो वयत संघ, संयु त रा य अमे रका,
भारत, टे न, ांस और दो दजन अ य रा ने सि म लत यास से ह द महासागर क कई
रह यमयी थालाकृ तय का रह यो घाटन कया। ह द महासागर अपने कई सीमा त सागर से
भी आवृ त है जैसे फारस क खाड़ी, लाल सागर, अदन क खाड़ी, अ डमान सागर, म नार क

216
खाड़ी, मोजा बीक चैनल आ द। पूव - वीप समू ह के तट य भाग के समाना तर व लत पवत क
खृं लाएँ भी पायी जाती ह। ह द महासागर क अ य वशेषताऐं इस कार ह -
(अ) ह द महासागर के नम तट क चौड़ाई म बहु त भ नताय ह।
(ब) इस महासागर का म यवत भाग छछला है जहां महासागर य कटक तथा उसके ऊपर वीप
ि थत है एवं ो णय क बहु लता है तथा खाइय एवं गत क सं या कम है।
(स) ह द महासागर का पूव भाग अ य त गहरा है, िजसक गहराई 3000 फैदम तक भी मलती
है। इस लए इस भाग म नम तट संकरे एवं ती ढाल वाले ह।
(द) इसका पि चमी भाग अ का महा वीप के सहारे फैला है िजसक गहराई 2000 फैदम से कम
ह है तथा इसम अनेक वीप ि थत ह।
(य) इसका म य भाग उठे हु ए 'कटक' के प म है िजसक गहराई 1200 फैदम से भी कम है
तथा इस भाग म भी कई वीप ि थत ह।

12.5.1 महा वीपीय नम न तट (Continental Shelf)

ह द महासागर के नम तट का व तार बहु त अ धक नह ं ह पर तु चौड़ाई म व वधता भी


या त है। अरब सागर के पूव तट , अ का के पूव भाग रख बंगाल क खाड़ी म चौड़े नम तट
मलते ह, जब क अ य भाग म अपे ाकृ त कम चौड़े नम न तट पाये जाते है। तट, पूव - दशा
म संक ण है जब क पि चम म यह औसतन 640 कमी. तक चौड़ा है। सु मा ा रख जावा के
नकटवत के भाग म ये मा 160 कमी तक व तृत रह गये है जब क अ धकतम चौड़े नम न
तट मेडागा कर (मलागासी) के पास ि थत ह। ह द महासागर य नम न तट क उ पि त
वभ न थान पर भ न- भ न प म हु ई है। अ डमान नकोबार द पसमू ह, ल वीप एव
ीलंका तथा भारत के म य पाक-जलडम म य नम तट, वाल भि त एवं जमाव के कारण
न मत है जब क तट य भाग के नम तट ंशन के वारा उ प न हु ए ह, क तु पि चमी बंगाल
के मदनापुर से मदुराई तक के नम तट का नमाण जमाव एवं अवतलन के कारण हु आ है।
भारत के नम नतट क अि तम सीमा रे खा 180 मीटर क गहराई वाल समो च रे खा से
सीमां कत है। पूव तट पर इन नम तट क औसत चौड़ाई 50 कलोमीटर है जब क अरब
सागर य तट पर ये औसतन 17 कलोमीटर तक चौड़े ह। इसी कार गंगा, महानद , कृ णा,
गोदावर तथा कावेर जैसी बड़ी न दय के मु हाने अपे ाकृ त कम चौड़े नम तट (30 से 35
क.मी.) वाले ह, नमदा, ता ती एव माह आ द न दय क ए चु अर के स मु ख नम न-तट का
सामा य ढाल 29० है जब क पि चमी तट पर यह द ण से उ तर क तरफ मश: 1० से 10०
तक होता गया है।

12.5.2 महा वीपीय नम न ढाल (Continental Slope)

ह द महासागर के नम ढाल पया त गहरे ह। पि चमी ऑ े लया क तरफ तो यह सीढ़ क


आकृ त म बहु त अ धक गहरा हो गया है।

12.5.3 महासागर य गत (Oceanic Deeps)

ह द महासागर म गत क सं या अपया त है। जावा के द ण म सु डा वीप के पास एक


गहरा गत है िजसक गहराई सवा धक (लगभग 4224 फैदम) है। उ त मु ख नतल भाग के
217
बीच म कई मु ख कटक (Ridges) एवं ो णयां (Basins) पाई जाती ह जो ह द महासागर य
नतल के उ चावच क नधारक संवा हका है।

12.5.4 म यवत कटक (Central Ridges)

ह द महासागर का म यवत भाग छछला है यहां पर कई महासागर य कटक एवं उनके ऊपर
' वीप' भी ि थत ह। इस महासागर म ि थत यह कटक ाय वीपीय भारत के द ण से ार भ
होकर सु दरू द ण म अ टाक टका तक एक मक कड़ी के प म फैल हु ई है।
1. लंकाद व - चौगा स कटक - यह उ तर म ाय वीपीय म न तट से ार भ होती है जहां
पर यह 320 कमी चौड़ी है।
2. चौगास - से टपॉल कटक - लंकाद व - चौगास कटक का द णी व तार ह चौगास -

से ट-पॉल कटक कहा जाता है जो भू म य रे खा एवं 30 द णी अ ांश के म य
अवि थत है।
3. ए टडम से ट-पॉल कटक - यह कटक 30० द णी अ ांश से 50० द णी अ ांश के
म य ि थत है जो चौगस - से ट-पॉल कटक का अगला व तार है। इस कटक क
चौड़ाई 1600 क.मी. तक हो गई है। 50० द णी अ ांश के द ण म इसक दो शाखाय
० ०
हो गई ह - (अ) पि चमी कटक - गुलेन कटक, जो 50 से 63 द णी अ ांश के म य
फैल है, (ब) पूव इि डयन - अ टाक टक कटक, िजसका व तार पूव म अ टाक टका
महा वीप क तरफ है।
मु य कटक क शाखाय
मु य कटक से थानीय तर पर शाखाय नकल हु ई ह जो महा वीपीय तट क तरफ फैल गई
ह। उ लेखनीय शाखाय न न ह -
(क). सोको ा - चौगास कटक - 50० द णी अ ांश के समीपवत भाग म मु य कटक से
अलग नकला यह कटक उ तर-पि चम दशा म पूव अ का के गुदाफई अ तर प तक
चला गया है।
(ख). सेश स कटक - यह शाखा 18० द णी अ ांश के आस-पास मु य के य कटक से
नकलकर सोको ा-चौगास कटक के समाना तर पूव अ का तट क तरफ बढ़ गयी है।
(ग). मलागासी (मेडागा कर) कटक - मेडागा कर के म तट य भाग से आर भ होकर द ण
दशा क तरफ यह कटक फैल हु ई है। 48० द णी अ ांश के पास इस कटक को

ं एडवड कॉजेड कटक कहा जाता है।
(घ). अ डमान- नकोबार कटक - बंगाल क खाड़ी म इरावद के डे टाई भाग से शु होकर
नकोबार वीप तक इस शाखा का व तार है। इसी कार भारत तथा अ का
महा वीप के बीच म कॉ सबग नामक कटक पाई जाती है।
वीप (कटक स ब धी) - क तपय कटक यं -तं समु तल से ऊपर ि टगत होते हु ए वीप क
आकृ त म हो गई है। के य (म यवत ) कटक के ऊपर मश: ल वीप, मालद व, चौगास, यू
ए सटडम, से ट-पॉल एवं करगुलेन वीप अवि थत है। कटक क शाखाओं पर सेश स, ोजेट
एवं स
ं एडवड आ द वीप पाये जाते ह।

218
12.5.5 महासागर य बे सन (Ocean Basins)

' ह द महासागर क म यवत कटक इस महासागर के बे सन को पूव तथा पि चमी महासागर य


बे सन म वभािजत कर दे ती है। इस महासागर के मु ख बे सन न नां कत है -
1. पूव इि डयन अ टाक टक बे सन - यह अ टाक टका के उ तर म तीन ओर म यवत
कटक से घरा है। इसक गहराई 4,800 मीटर है।
2. पि चमी आ े लयन बे सन - यह ऑ े लया के पि चम तथा म यवत कटक के पूव से
० ०
10 उ तर से 5 द णी अ ांश तक व तृत है। इस बे सन म कटक क छोट -छोट
अनेक शाखाय व यमान ह। इसे कोकोस क लंग बे सन के नाम से भी जाना जाता है।
इसक गहराई 3,500 मी. से 5500 मीटर है।
3. अ डमान बे सन - यह अ डमान के पि चम म बंगाल क खाड़ी म व तृत है। इसक
गहराई 2,000 से 3,600 मीटर है।
4. अटलाि टक अ टाक टक बे सन - यह अ टाक टका महा वीप के उ तर तथा स
ं एडवड
काजेट कटक के द ण म व तृत है। इसक गहराई 5000 से 5500 मीटर है।
5. नेटाल बे सन - यह केप कटक तथा द णी मैडागा कर कटक के म य व तृत एक लघु
आकार य बे सन है। इसक गहराई लगभग 3600 मीटर है।
6. मॉ रशस बे सन - यह द णी मैडागा कर कटक, द णी-पि चमी भारतीय कटक तथा
सेश स कटक से घरा एक व तृत आकार वाला बे सन है। यहाँ जल क गहराई 3600
से 5500 मीटर है।
7. सोमाल बे सन - यह अ का के सोमाल तट से पूव म सोको ा चौगास कटक एवं
सेश स से घरा है। इस पर जल क गहराई लगभग 3500 मीटर है।
8. कारगु लन बे सन - यह चार और कटक यथा कारगु लन, म य भारतीय, द णी-
पि चमी भारतीय तथा स
ं एडवड ाजेट कटक से घरा एक वृ ताकार बे सन है जो
द ण म अटलाि टक-अ टाक टक बे सन से मला हु आ है तथा गहराई 3532 मीटर है।
9. अरे बयन बे सन - यह अरब सागर म ाय वीपीय भारत के पि चम म सोको ा-चौगास
कटक एवं चौगास कटक के म य ि थत है। यह वृ ताकार है। इसक गहराई 3500 मीटर
से 4500 मीटर तक है।
10. मासके टन बे सन - यह मैडागा कर के पूव तथा सेश स कटक के पि चम म व तृत
एक ल बा बे सन है। इसक गहराई 3700 मीटर है।
11. अगुलहास बे सन - यह केप कटक के पूव तथा स
ं एडवड ाजेट कटक के पि चम म
व तृत एक संक ण बे सन है। इसक गहराई 4200 मीटर है।
12. म य इि डयन बे सन - यह म य भारतीय कटक के द ण म व तृत है जो पूव म
पूव कटक तथा पि चम म चैगोस कटक से घरा हु आ उ तर से द ण म फैला है।
इसक गहराई 5000 मीटर है।
महासागर य गत (Ocean Deeps)
जावा के नकट सु डा गत (7450 मी.) सबसे गहरा गत है। इस महासागर म गत क सं या है।

219
12.5.6 ह द महासागर के वीप (Island)

ह द महासागर म अ य महासागर क अपे ा वीप कम ह। इसम मैडागा कर, ीलंका,


सोको ा, जंजीवार, कोमोरो, सेश स, अ डमान- नकोबार वीप पु ज
ं , ल वीप, मालद व, ोजेट,

ं एडवड, यू ए सटडम, से ट-पॉल, अ भग ते, फुकुहर, कोकोस, चागोस, न कानस, मॉ रशस,
र यू नयन आ द छोटे बड़े वीप है। संभवत: इन वीप क उ पि त न नां कत याओं वारा
हु ई है -
1. व थापन के समय महा वीप के कु छ भाग पीछे छूट गये थे जो बाद म वीप के प
म जाने गये।
2. ह द महासागर म अतीत म वालामुखी का उ ार कई बार हु आ था िजससे अनेक छोटे -
बड़े वीप का सृजन हु आ था िजनम ोजेट, स
ं एडवड, यूए सटडम, सेन-पॉल आ द
मु ख है।

च - 12. 3 : ह द महासागर- नतल क आकृ तयाँ


3. ह द महासागर म अनेक वीप का नमाण वाल भि तय के प म हु आ है। वाल
वीप म ल वीप, मालद व, अ मरा ते, फुकुहट, कोकोस, चागौस आ द मु ख ह।
4. ह द महासागर क कटक अनेक थान पर वीप के प म सागरतल के ऊपर उभर
हु ई है इनम ल द व, मालद व, तथा म य कटक पर उभरे अनेक छोटे -छोटे वीप आते
ह।

220
तटवत समु (Marginal Seas) - लाल सागर, फारस क खाड़ी, अ डमान सागर, मोजाि बक
चैनल, अरब सागर, बंगाल क खाड़ी आ द मु ख तटवत सागर ह। लाल सागर जलडम म य के
वारा पृ क होकर सीमा त सागर है। इसका नमाण अरे बयन लेट तथा सोमाल लेट के एक
दूसरे के वपर त दशा म खसकने तथा ंशघाट के सृजन से हु आ है। फारस क खाड़ी एक
छछले सागर के प म है। अरबसागर एवं बंगाल क खाड़ी का पृथक व ाय वीपीय भारत के
वारा होता है।
बोध न- 3
1. महासागर य नतल कसे कहते ह ?
...........................................................................................
.............................................................. ..........................
2. महासागर य नतल के उ चावच को वग कृ त क िजए।
...........................................................................................
........................................................................................
3. ह द महासागर के मु य कटक बतलाइए।
...........................................................................................
.........................................................................................
4. IIOE का या ता पय है ।
........................................................................................
.... ...................................................................................

12.6 सारांश
सागर व ान म समु बे सन के आकार एवं कृ त, बे सन के जल क वशेषताओं एवं जल क
ग तय से स बि धत शि तय का अ ययन कया जाता है। मानव अपने वकास के लए समु
का व भ न प म उपयोग करता है िजससे भूम डल यकरण के भाव एवं आ थक, तकनीक
वकास का इसके ऊपर भाव पड़ता है। स पूण लोब के 70.8 तशत भाग पर महासागर फैले
हु ए ह। येक दे श क महासागर य सीमा तट से 20 क मी. तक है जब क उसका महासागर को
संसाधन का वदोहन करने का अ धकार 200 क.मी. तक क दूर तक माना गया है। महासागर
खा य साम ी, यापार, ख नज, शि त के ोत व पेयजल ोत क ि ट से मह वपूण होते ह।
जल य च म समु जल का वा पीकरण, वायुम डल म जल वा प का महासागर रख महा वीप
के ऊपर प रवहन, वायुम डल य आ ता का संघनन, वायुम डल य जल वा प का वषण तथा
धरातल पर ा त जल व भ न मा यम (नद आ द) से पुन : महासागर म वा पस पहु ँ चता है।
समु , थल य जल, हम-स रताएँ, भू मगत जल, मृदा क आ ता व वायुम डल य आ ता आ द
जल च के घटक ह।
महासागर य आकृ तय को महा वीपीय नम न तट, महा वीपीय नम न ढाल, गहरे समु मैदान
एवं महासागर य गत म वभािजत कया जाता है। ह द महासागर का आकार अं ेजी को 'M' क

221
तरह है। ह द महासागर का म यवत भाग छछला है जहाँ महासागर य कटक तथा उसके ऊपर
वीप ि थत है एवं ो णय क बहु लता है जब क खाइय एवं गत क सं या कम है। ह द
महासागर का पूव भाग अ य त गहरा है जब क पि चमी भाग क गहराई 2000 फैदम से कम है
तथा इसम कई वीप ि थत ह।

12.7 श दावल
जलम डल : पृ वी के धरातल के 70.8% जलावृत भाग को जलम डल कहा
जाता है।
जै वक समु व ान : इसके अ तगत महासागर म पाए जाने वाले सभी पादप एवं
जीवन का अ ययन कया जाता है।
वलवणीकरण संयं : इस यं के वारा सागर य जल को पेय जल के प म बदलकर
भ न नगर एवं उ योग म पेयजल क आपू त क जाती है।
योट : िजन नम न वीप क वालामु खी चो टयाँ चपट होती है उसे
योट कहा जाता है ।
उ चतादश व : इस व के वारा महासागर क गहराई एवं थल क ऊँचाई
द शत क जाती है।

12.8 स दभ- थ
1. डी.पी. उपा याय एवं डॉ. रामा य संह : जलवायु व ान और समु व ान, वसु धरा
काशन, गोरखपुर
2. चतु भु ज मामो रया एवं डॉ. रतन जोशी : भौ तक भूगोल, सा ह य भवन पि लकेशन,
आगरा
3. स व संह : भौ तक भू गोल, वसु धरा काशन, गोरखपुर,
2006

12.9 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. समु व ान सागर का व ान है, िजसम महासागर य उ चावच एवं जल क
वशेषताओं का अ ययन कया जाता है।
2. पृ वी के धरातल का 70.8 तशत जलावृत है।
3. धरातल पर जल का अ धक व तार होने के कारण कई वै ा नक इसे जल य ह कहना
अ धक उपयु त समझते ह।
4. चौदहवीं सद के प चात ् महासागर का व वध कार से मह व तेजी से बढ़ने लगा।
5. अ तरा य पर पराओं के अनुसार येक दे श उपयु त तट से 200 क मी. तक क
दूर तक महासागर य संसाधन का वदोहन कर सकता है।
6. ांस म।
बोध न - 2

222
1. वषा जल का कु छ भाग भूसतह के नीचे अत: संचरण होकर मृदा शैल म भ डा रत होता
है उसे मृदा जल भंडार कहते ह।
2. भू म डल य जल च के घटक समु , थल य जल, हम स रताएँ. भू मगत जल, मृदा
क आ ता, व वायुम डल य आ ता आ द है।
3. समु म।

बोध न- 3
1. िजस कार महा वीप पर पवत, पठार एवं मैदान पाए जाते ह, ठ क उसी कार
महासागर य तल पर भी पवत, पठार मैदान व घा टयाँ गत आ द पाए जाते िजसे
महासागर य नतल कहा जाता है।
2. महासागर य उ चावच को महा वीपीय नम न तट, महा वीपय नम न ढाल, गहरे
सागर य मैदान एवं महासागर य गत म वग कृ त कया गया है।
3. ह द महासागर के न न ल खत कटक है -
(अ) चौगस कटक
(ब) श स कटक
(स) मलागासी कटक
(द) अ डमान - नकोबार कटक।
4. IIOE - (International Indian Ocean Expendition) ''अ तरा य ह द महासागर
खोज काय अ भयान'' कहा जाता है िजसके अ तगत व भ न दे श के सि म लत यास
से ह द महासागर क कई रह यमयी थलाकृ तय का अ ययन कया जाता है।

12.10 अ यासाथ न
1. महासागर को भ व य का संसाधन य कहा जाता है? समझाइये।
2. जल च य एवं इसके घटक का वणन ल खए।
3. ह द महासागर के नतल का व तार से वणन क िजए।

223
इकाई 13 : सागर य लवणता

इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 महासागर य जल का संघटन
13.3 महासागर य लवणता के ोत
13.4 खु ले महासागर म लवणता का वतरण
13.4.1 लवणता का ै तज वतरण
13.4.1.1 अ ांशीय वतरण
13.4.1.2 ादे शक वतरण
(i) अटलाि टक महासागर
(ii) शा त महासागर
(iii) ह द महासागर
13.4.2 लवणता का ल बवत वतरण
13.5 आं शक ब द सगर
13.6 थलब सागर
13.7 लवणता क असमानता के कारण
13.8 सारांश
13.9 श दावल
13.10 बोध न के उ तर
13.11 स दभ थ

13.12 अ यासाथ न

13.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन से आप :
 सागर य जल के संघटन,
 सागर य लवणता के ोत,
 खु ल,े आ शक ब द व थलब सागर म लवणता तथा
 लवणता क असमानता के कारक आ द को समझ सकगे।

13.1 तावना
महासागर , आं शक ब द समु एवं थलब सागर का जल खारा (लवणीय) होता है। इनम
अनेक कार के ख नज पाये जाते ह, िजनम सो डयम लोराइड (Sodium Chloride) क
अ धकता होती है। व तु त: जल क लवणता उसम घोल प म पाये जाने वाले सभी कार के

224
लवण का योग होता है। लवणता क मा ा वारा जल का वभाव भी भा वत होता है, जैसे
लवणता के कारण जल का हमांक ब दु बदल जाता है।

13.2 महासागर य जल का संघटन


महासागर य जल एक स य घोलक होता है, इसम कई कार के ख नज घुल अव था म पाये
जाते ह। तवष न दय वारा महासागर म लवण लाया जाता है िजससे लवणता म नर तर
वृ हो रह है। जोल , मरे एवं लाक नामक व वान ने महासागर म लवणता क मा ा मश:
50 अरब टन, 5 अरब टन एवं 2.7 अरब टन बतायी है ।
सन ् 1884 के चैले जर अ वेषण म डटमार नामक वै ा नक ने महासागर के लवण व समु के
जल म 47 कार के लवण का पाया जाना नि चत कया। इनम सात कार के लवण सवा धक
मह वपूण ह। इनम सवा धक मा ा म साधारण नमक अथात सो डयम लोराइड होता है। इन
लवण के अ त र त महासागर य जल म ोमाइन, काबन, बोरान, स लकॉन ॉि टयम तथा
लो रन आ द भी थोड़ी-थोड़ी मा ा म पाये जाते ह। वायुम डल य गैस क थोड़ी मा ा (आ सीजन
तथा काबन डाइ ऑ साइड) महासागर य जल म घुल अव था म पायी जाती है। इन गैस क
उपि थ त महासागर य जीव व वन प त म पाये जाने वाले व भ न जै वक म के लये
वशेष मह वपूण होती है।
वै ा नक ये मानते ह क पृ वी तल पर पाये जाने वाले सभी त व कसी न कसी प व मा ा म
सागर तल म भी पाये जाते ह। सोना, चांद , तांबा, ज ता, सीसा, न कल, कोबा ट, मगनीज,
ए यूमी नयम, लोहा, स लकॉन आ द बहु त थोड़ी मा ा म महासागर के जल म घोल के प म
व यमान ह। वै ा नक गणनानुसार तघन मील महासागर के जल म 14 पौ ड सोना तथा
500 पौ ड सीसा घोल प म व यमान है। िजस कार महासागर के जल से वतमान म
सो डयम लोराइड (नमक) और मैगनी शयम नकाला जाता है, उसी कार भ व य म अ य
ख नज का दोहन भी संभव हो जायेगा।
व भ न महासागर व समु म लवण क कु ल मा ा म अ तर हो सकता है, पर तु उसक
संरचना के अनुपात म सभी थान पर समानता पायी जाती है। व भ न महासागर व समु म
0/00 0/00
लवण क मा ा 33 से 37 (अथात 1000 ाम जल म 33 से 37 ाम लवण क मा ा) के
बीच पायी जाती है।
डटमार (Dittmar) वारा दया गया व भ न लवण का भार एवं तशत न न सारणी वारा
य त कया जा रहा है, जो चैले जर अ वेषण अ भयान वारा ा त आकड़ पर आधा रत है -
ता लका- 13.1 : महासागर य जल म व भ न लवण का भार एवं तशत
लवण मा ा % ( त हजार ाम) कु ल लवण का तशत
सो डयम लोराइड 27.213 77.8
मैगनी शयम लोराइड 3.807 10.9
मैगनी शयम स फेट 1.658 4.7
कैि शयम स फेट 1.260 3.6
पोटे शयम स फेट 0.863 2.5
कैि शयम काब नेट 0.123 0.3
225
मैगनीशयम ोमाइड 0.076 0.02
35.000 100.0

बोध न -1
हाँ या नह ं म उ तर द िजये
1. पृ वी तल पर 70.8% भाग पर जल पाया जाता है । हाँ / नह ं
2. महासागर य लवणता त हजार ाम 35% म अं कत क जाती है । हाँ / नह ं
3. शा त महासागर का े फल सम त थल य भाग से भी अ धक है । हाँ / नह ं
4. द ण गोलाध के 80.9% भाग पर जल पाया जाता है । हाँ / नह ं

13.3 महासागर य लवणता के ोत


महासागर जल के वशाल ोत ह। क तु इस जल का उपयोग पीने के लए नह ं कया जाता है
य क इसम लवणता अ धक पायी जाती है। महासागर म यह लवणता कहां से आयी? इस न
पर व भ न मत दये गये ह। वषा के जल म घुलकर लवणता महा वीप से ह पहु ंची है।
लवणता ख नज एवं रसायन का ह व प है िजसे न दय वारा महासागर म पहु ँ चाया गया है।
महा वीप क शैल म अनेक कार के रसायन एवं लवण पाये जाते ह, िज ह न दयां बहाकर
महासागर म ले जाती ह।
महासागर य जल म वा पीकरण या वारा भी लवणता क मा ा म वृ होती है। लवण क जो
मा ा न दय वारा महासागर म पहु ंचायी जाती है, वह महासागर म उपि थत कु ल लवण पदाथ
का सू म अंश होता है। क तु महासागर म वा पीकरण या के फल व प व छ या मीठा
जल, जल वा प म प रव तत होकर वायुम डल म मल जाता है तथा इसके फल व प महासागर
के जल म धीरे -धीरे लवणता क मा ा बढ़ती जाती है। कु छ व वान के मतानुसार पृ वी क
उ पि त प चात ् उसक थम ठोस पपड़ी म लवणता क मा ा अ धक थी। इस थम अपरदन के
कारक वारा भार मा ा म लवण पदाथ महासागर म पहु ंचाये गये, िजस कारण महासागर य
जल क लवणता म वृ होती चल गयी। न दयां इस या म लवण पहु ंचाने वाले कारक म
सव मु ख थी। न दय के अ त र त पवन , वालामुखी उदगार वारा भी महासागर म लवणता
वृ क गयी है।
बोध न -2
र त थान भरो –
1. चै ल जर अ वे ष ण अ भयान सन .् ....................... म स प न हु आ ।
2. महासागर य खारे जल म सवा धक मा ा म .....................नाम ख नज लवण
पाया जाता है ।
3. जाँ ल नामक व वान के अनु सार महासागर य जल म
......................लवणता क मा ा है ।

226
4. व भ न महासागर व समु म लवणता क मा ा म सवा धक वु करने वाला
कारक .........................ह ।

13.4 खु ले महासागर म लवणता का वतरण


महासागर म लवणता सव एक समान नह ं पायी जाती है। लवणता के वतरण म असमानता
मु य प से तीन कारक - (i) वषा व न दय वारा ताजे पानी क ं आपू त (ii) वा पीकरण क
दर (iii) महासागर के जल म म ण से उ प न होती है।
लवणता का वतरण मान च पर द शत करने के लए समलवण रे खाओं (Isohaline Lines) क
सहायता ल जाती है। समलवण रे खाएं समान लवणता वाले थान को मलाकर खींची जाती ह।
इन रे खाओं वारा केवल सतह जल क लवणता का दशन होता है। सतह से नीचे जाने पर
लवणता म भ नता आती जाती है। महासागर का ै तज एव ल बवत लवणता का वतरण
सदै व भ न होता है। महासागर क औसत लवणता म भ नता 35%0है।

13.4.1 लवणता का ै तज वतरण (Horizontal distribution of Salinity)

लवणता के ै तज वतरण म मु य प से अ ांशीय रख दे शक वतरण पर यान दया जाता


है। ादे शक वतरण के अ तगत खु ले महासागर क लवणता का अलग-अलग वतरण तु त
कया जाता है। महासागर के साथ-साथ सीमा त सागर , खुले , आ शक ब द रख थलब समु
क लवणता वतरण का भी अवलोकन कया जाता है।

13.4.1.1 अ ांशीय वतरण

सारणी- 13.1 : जॉ टन वारा दया गया लवणता का अ ांशीय वतरण


अ ांश म डल लवणता %
50 -70 उ तर
० ०
30 - 31
40०-50० उ तर 33 - 34
15o-40o उ तर 35 - 36
15 उ तर - 10 द ण
o ०
34.5 - 35
10o -30० द ण 35 - 36
30 -50 द ण
o ०
34 - 35
50o -70० द ण 33 - 34
उपरो त सारणी एवं समलवण रे खाओं (Isohalines) वारा बने मान च का अ ययन करने के
प चात ् यह ात होता है क उ तर गोला क अपे ा द णी गोला म लवणता अ धक पायी
जाती है। इसका मु य कारण द णी गोला म थल य व तार का कम पाया जाना है, िजसके
फल व प जल का म ण व भ न अ ांश म बना कसी अवरोध के होता है। उ तर गोला म
थल य भाग अ धक पाये जाने के कारण इसम बाधा उ प न होती है। उ तर गोला म 34%0
एवं द ण गोला म 35%0 औसत लवणता पायी जाती है।

227
 महासागर म सवा धक लवणता उपो ण क टब धीय े म 30० उ तर व द णी
अ ांश के नकट पायी जाती है। इन े म कम वषा तथा अ धक वा पीकरण अ धक
लवणता पाये जाने के मु य कारण ह। इसके अ त र त न दय वारा लाये गये जल
क मा ा भी इन े म बहु त कम होती है। मेघ र हत व छ आकाश, तच वाती
अव था एवं सू यताप अ धक पाया जाता है।
 भू म यरे खीय पेट म अ धक वषा, कम वा पीकरण तथा न दय वारा बहाकर लाये गये
जल क मा ा अ धक होती है, िजसके फल व प कक एवं मकर रे खाओं से भू म य
रे खा क ओर जाने पर लवणता म कमी आती जाती है। यहां वषा अ धक होने के
कारण मीठे या लवणता र हत जल का म ण होता रहता है।
 ु वीय े म तापमान वा पन कम होने तथा गम म बफ पघलने से पानी क
अ धकता हो जाने से लवणता यूनतम पायी जाती है।
 म य अं ाशीय दे श म तापमान एवं वा पीकरण क दर अ धक होने से महासागर म
लवणता अ धक पायी जाती है।
 न दय के मु हान पर लावणता कम पायी जाती है, य क वहां न दय का मीठा जल
सागर म आकर गरता है।
 महासागर और अधखु ले सागर के जल म भल कार से सि म ण न होने के कारण
लवणता म अंतर पाया जाता है। भू म य सागर म िज ा टर जल डम म य के पास
लवणता 36.5%0 मलती है। यह लवणता पूव क तरफ जाने पर बढ़ती चल जाती है,
सी रया तट के पास आते-आते 39%0तक पहु ँ च जाती है। इसी कार लाल सागर म
द ण क ओर लवणता 36.5%0पायी जाती है, जो उ तर क ओर बढ़ती जाती है।
लाल सागर म एक भी नद आकर नह ं मलती है। काला सागर म एक भाग ओजोव
सागर म कई न दय के मलने के कारण लवणता कम पायी जाती है। बाि टक सगर
म लवणता का कम पाया जाना उसक उ च अं ाश म ि थ त, कम वा पन एवं हम
का पघला जल ा त होने के कारण है।
 ब द सागर या झील म लवणता का वतरण अलग पाया जाता है। िजन सागर म
न दयां गरती ह एवं जल का नकास है, वहां लवणता कम पायी जाती है य क इनम
लवणता एक त नह ं हो पाती। पूणत: ब द सागर व झील म न दयां आकर गरती
तो ह ले कन उनका नकास नह ं होने के कारण इनम लवणता बहु त अ धक पायी जाती
है। संयु त रा य अमे रका के यूटाह (Utah) रा य म ि थत ' ेट सॉ ट लेक' (Great
Salt Lake) के जल क लवणता 220%0है, इसी कार टक म पायी जाने वाल वान
झील (Van lake) म लवणता 3305%0एवं मृत सागर (Dead Sea) म 237.5%0
लवणता पायी जाती है। कैि पयन सागर के उ तर भाग म वॉ गा एवं यूराल न दय
वारा मीठा जल ा त होने के कारण लवणता 130%0 तथा द णी भाग म वशेष
कर द ण पूव म ि थत कारा बोगाज क खाड़ी (Gulf of Kara Bogaz) म
लवणता 170%0 पायी जाती है। ये झील अ शु क दे श म ि थत ह िजससे इनम

228
वा पन क दर ती पायी जाती है। इन झील म सो डयम लोराइड क मा ा खु ले
महासागर क अपे ा अ धक पायी जाती है।
उपरो त त य के आधार पर महासागर म लवणता के चार म डल बताये गये ह - (1) भू म य
रे खीय े का अपे ाकृ त कम लवणता का म डल, (2) अयनवत अ धकतम लवणता का म डल
(3) शीतो ण क टबंधीय म यम लवणता का म डल एवं (4) ु वीय तथा उप ु वीय यूनतम
लवणता का म डल।

13.4.1.2 ादे शक वतरण

ादे शक वतरण से ता पय व भ न महासागर म लवणता के वतरण से है। लवणता के


ादे शक वतरण को समझने के लए दो कार क व धयां योग म लायी जाती ह। थम व ध
के अनुसार अलग-अलग महासागर म लवणता के वतरण क ववेचना क जाती है। दूसर वध
म जेन क स (Jenkins) ने महासागर व सागर म पायी जाने वाल लवणतानुसार तीन वग
नि चत कये ह - (1) सामा य से अ धक लवणता वाले सागर (37%0 से 41%0), (2) सामा य
लवणता वाले सागर (35%0 से 36%0) तथा (3) तीसरा वग सामा य से कम लवणता वाले
सागर (20%0 से 35%0) से संबं धत ह। ले कन थम व ध वारा सु गम एवं सवमा य है।
इस लए यहाँ व भ न महासागर म पाये जाने वाल लवणता का ववेचन महासागरानुसार कया
गया है।
(i) अटलाि टक महासागर : 20० से 30० उ तर अ ांश के म य (उ तर अटलाि टक)
लवणता का तर 37%0 है जो अ य महासागर क तु लना म सबसे अ धक है।
अटलाि टक महासागर के उ तर म सतह जल क औसत लवणता 35.5%0 है, जब क
द ण अटलाि टक क औसत लवणता 34.5%0 है। उ तर व द णी भाग म पायी
जाने वाल इस लवणता के अ तर का मु य कारण महासागर य जल म म ण क मा ा
का भ न- भ न होना है। भू म य सागर का अ धक खार पन का कारण ती वा पीकरण
है। भूम य सागर का अ धक खारा जल िज ा टर जलडम म य से होता हु आ उ तर
अटलाि टक के सतह जल म मलता है, िजससे यहां क लवणता खु ले महासागर क
तु लना म सवा धक होती है। इस महासागर के भू म य रे खीय े म वा पन क तु लना
म वषा वारा व छ जल क आपू त अ धक होती है, यहाँ सतह जल क औसत
लवणता 35%0 रहती है। इसके वपर त 20० - 25० उ तर तथा 20० द णी अ ांश के
नकट वषा क अपे ा वा पन अ धक होता है, िजससे इन े म लवणता 37%0पायी
जाती है। अयनवत े से ु व क ओर जाने पर वा पन क अपे ा वषा अ धक होने
से सतह लवणता धीरे -धीरे कम होती जाती है, इन े म लवणता 35%0 पायी जाती
है।

229
मान च - 13.1 : व व: लवणता का ै तज वतरण (समलवणता रे खाओं वारा)
ग फ म अपने साथ 35%0 लवणता वाल जल रा श को बहाकर अटलाि टक

महासागर के उ तर-पूव भाग म 78 उ तर अ ांश पर ि थत ि प जबगन तक ले
जाती है, िजससे वहां पर लवणता बढ़ जाती है। इसी जल धारा के भाव व प उ तर
सागर, नाँव के तटवत सागर आ द े म लवणता अ धक पायी जाती है। इसी कार
आक टक सागर का 34%0 लवणता वाला जल ठ डी जलधाराओं के मा यम से 45०
उ तर अ ांश तक पहु ंचा दया जाता है। ु वीय े म लवणता क मा ा 30%0से
33%0 तक पायी जाती है। अटलाि टक महासागर के पि चमी कनारे पर ले ेडोर धारा के
कारण लवणता कम पायी जाती है। अ का के कनारे गनी क खाड़ी म लवणता कम
होती है, य क यहां यापा रक पवन वारा सतह जल हटा दया जाता है, िजससे
आंत रक कम लवणता वाला जल उभर आता है। इस या को उ वाह (Upwelling)
कहते ह।
अटलाि टक महासागर के तटवत े तथा छछले लैगन
ू म लवणता 34%0से कम
होती है। यूफाउ डलै ड के नकट सतह लवणता 34%0 से भी कम पायी जाती है।
अटलाि टक महासागर के म य म 25० उ तर अ ांश के नकट ि थत सारगोसा सागर
म ी मकाल न लवणता 57%0से भी अ धक पायी जाती है।
द णी अटलाि टक महासागर के पूव भाग क अपे ा पि चमी भाग म अ धक लवणता
पाई जाती है। वशेष प से ऐसा 10० से 30० द णी अ ांश के म य दे खा जाता है।
इ ह ं अ ांश के पूव तट के पास महासागर क गहराइय से शीतल और कम खारे जल
का उ वाह होता है िजससे पूव भाग म खारापन कम पाया जाता है। इस महासागर म
गरने वाल न दय के महान के नकट सतह लवणता कम पायी जाती है। अमेजन

230
(15%0), काँगो (34%0), नाइजर (20%0) एवं सेनेगल (34%0) तशत न दय के
मु हान के नकट लवणता कम पायी जाती है।
(ii) शा त महासागर : शा त महासागर के भू यरे खीय े म लवणता कम पायी जाती
है। यहां लवणता 34%0 पायी जाती है। 15० उ तर व द णी अं ाश के नकट लवणता
क मा ा बढ़कर 34%0 से 35%0 तक हो जाती है। इस महासागर म अ धकतम लवणता
क मा ा 36%0 द ण पूव भाग म पायी जाती है। उ तर शा त महासागर म
यापा रक पवन के े म लवणता क मा ा 36%0 से अ धक नह ं पायी जाती है।
शा त महासागर के उ तर -पि चमी भाग म 150से 30o उ तर अ ांश के म य
लवणता क मा ा 35.55%0 पायी जाती है।
द णी शा त महासागर म लवणता क मा ा 36%0 तशत तक पायी जाती है।
अ टाक टका के समीप सतह लवणता 34%0 से भी कम पायी जाती है। इसी कार
शा त महासागर के बलकुल उ तर े म लवणता 32%0 से भी कम अं कत क
जाती है। इस महासागर के पि चमी भाग म भार वषा व मानसू न णाल के फल व प
लवणता क मा ा घट कर 31%0 के लगभग आ जाती है। पूव एवं पि चमी शा त क
लवणता म अ तर मु य प से धाराओं क कृ त रख मौसमी प रवतन होता है। उ तर
चीन के तट के पास यूराइल ठ डी धारा के कारण लवणता केवल 31%0 पायी जाती है,
पर तु यूरोसीवो गम जलधारा के कारण पूव भाग पर लवणता अपे ाकृ त अ धक पायी
जाती है। कै लफो नया के तट के पास उ तर दशा से कै लफो नया धारा वारा हम का
पघला जल लाने से लवणता कम होती है। कोलि बया और पी के तट के समीप
लवणता मश: 28%0और 33%0अं कत क जाती है। यहाँ ठ डी चल जल धारा का
भाव भी दे खने को मलता है। न दय के मु हान पर लवणता कम पायी जाती है जैसे
वांगह के मु हाने पर 30 0 0 0 के यांग टसी यांग के मु हाने पर 33%0लवणता अं कत

क जाती है।
(iii) ह द महासागर : ह द महासागर म लवणता का वतरण अलग कार का पाया जाता
0
है। यहाँ भू म य रे खा और 10 उ तर अ ांश के बीच लवणता 25%0 पायी जाती है।
बंगाल क खाड़ी म लवणता घटती जाती है तथा गंगा के मु हाने पर यह 30%0 ह रह
जाती है, इसी कार गोदावर , कृ णा रख कावेर न दय के मु हान पर भी लवणता कम
पायी जाती है। अरब सागर क ओर लवणता बढ़ती जाती है। लाल सागर के मु हाने पर
लवणता क मा ा 36.5%0 एवं फारस क खाड़ी के मु हाने पर यह बढ़ कर 37%0हो
जाती है। लाल सागर म वेज नहर के पास यह बढ़कर 41%0और फारस क खाड़ी के
आ त रक भाग म लवणता बढ़कर 40%0 हो जाती है। दजला एवं फरात न दय के
मु हान पर लवणता मा 35%0ह पायी जाती है। इस महासागर के पूव तर भाग म
लवणता क मा ा 32%0से 34%0 तशत तक पायी जाती है जो उ तर पि चमी भाग
म पायी जाने वाल लवणता 32%0 से 37%0 क अपे ाकृ त कम है। उ तर -पूव भाग
म कम लवणता यहाँ होने वाल भार वषा एवं बड़ी सं या म न दय वारा मु हाने बनाने
के कारण पायी जाती है।

231
इस महासागर म 400 द णी अ ांश से अ टाक टका महा वीप के कनार तक लवणता घटती
जाती है। इन े म लवणता क मा ा 35%0 से घटकर 33.5%0 तक पहु ँच जाती है। इसका
मु य कारण अ टाक टका म फैल हम चादर एवं हम ख ड के पघलने से ा त व छ जल
है। ऑ े लया महा वीप के पि चमी तट के नकट जलवायु शु क होने से वा पन अ धक होता है
िजसके कारण यहाँ लवणता अ धक पायी जाती है।

13.4.2 लवणता का ल बवत (ऊ वाधर) वतरण (Vertical distribution of Salinity)

महासागर म उपि थत व भ न जलरा शय क भौ तक एवं रासाय नक वशेषताओं के कारण


सतह के नीचे अलग-अलग गहराइय म लवणता एवं तापमान आ द के वतरण म अ य धक
ज टलताय पायी जाती ह । लवणता के वतरण रख गहराई म कोई वशेष नयम नह ं होता है।
40o उ तर से 50o द ण अ ांश के म य लवणता (ल बवत) म तेजी से गरावट आती है।
800 मीटर क गहराई पर लवणता 34.3%0से 34.9%0 तक पायी जाती है। इसी कार 1600 से
2000 मीटर क गहराई पर लवणता 34.8%0से 34.9%0 तक बढ़ती है। इसके प चात ् लवणता
धीरे -धीरे कम होती जाती है।
द ण अटलाि टक महासागर म सतह लवणता 33o/oo पायी जाती है। यह 400 मीटर (200
फैदम) क गहराई म बढ़कर 34.5%0 हो जाती है तथा 1200 मीटर (600 फैदम) पर 34.75%0
हो जाती है। पर तु 200 द ण अ ांश पर सतह लवणता 37% है जो तल म घटकर 35 0 0 0 हो

जाती है। इसके ठ क वपर त भू म य रे खा पर सतह लवणता 34%0पायी जाती है जो गहराई म


बढ़कर 35%0 हो जाती है।
ह द रख शांत महासागर म लवणता के ल बवत वतरण म समानता पायी जाती है। लवणता
म 2000 मीटर तक वृ होती है, उसके बाद धीरे -धीरे कम होती जाती है।
सामा यत: यह पाया गया है क उ च अ ांश म सतह लवणता कम तथा गहराई म बढ़ती जाती
है। म य अ ांश म 400 मीटर तक लवणता म वृ तथा उसके प चात ् कम होती जाती है।
भू म य रे खा पर सतह लवणता कम, गहराई म अ धक तथा तल म पुन : कम होती है।

बोध न- 3
10 श द म उ तर द िजये ।
1. महासागर य लवणता के मु ख ोत बताइये ?
.....................................................................................
.....................................................................................
2. वा पीकरण एवं लवणता म या सं बं ध है ?
.....................................................................................
.....................................................................................

3. व वान के अनु सार पृ वी उ पि त प चात ् उसक थम पपड़ी पर (Crust)


कस ख नज क मा ा सवा धक थी ?

232
.....................................................................................
.....................................................................................

13.5 आं शक ब द सागर (Partially Enclosed Seas)


आं शक ब द सह वे जलरा शयाँ होती ह जो आं शक प से दो या तीन तरफ से थल य भाग
वारा घर होती ह। इन जल रा शय के जल म भल कार से सि म ण न होने के कारण
लवणता म अ तर पाया जाता है। भूम य सागर के िज ा टर जलडम म य पर लवणता 36.5%0
मलती है यह लवणता पूव क ओर बढ़ती हु ई सी रया तट पर 39%0 हो जाती है। लाल सागर से
द ण क ओर लवणता 36.5%0 तथा वेज क खाड़ी के पास 41%0 पायी जाती है। यह
लवणता क अ धक मा ा वा प के अ धक बनने व वषा के कम होने के कारण है। काला सागर म
लवणता 18%0 तथा ओजोव सागर म इससे भी कम पायी जाती है। इनम व छ जल क न दयां
व छ जल क आपू त करती ह। बाि टक सागर उ च अ ांश म ि थत है, िजससे वा पन कम
होता है तथा हम के पछले जल क अ धक ाि त होने से लवणता क मा ा कम पायी जाती है।
बाि टक सागर क औसत लवणता 7%0 पायी जाती है। मैि सको क खाड़ी तथा कै र बयन सागर
म लवणता 3%0पायी जाती है। फारस क खाड़ी म लवणता 37%0 तथा आ त रक भाग म
40%0पायी जाती है।

13.6 थलब सागर (Landlocked Seas)


थलब या अ त थल य सागर वे जल रा शयाँ होती ह िजनका संबध
ं महासागर से नह ं होता
है तथा वे चार तरफ से थल य भाग से घरे होते ह। िजन थलब सागर म न दयां आकर
मलती ह तथा उनका नकास भी होता है, उनम लवणता क मा ा बहु त कम पायी जाती ह।
इसके वपर त अगर इन सागर से न दय का नकास नह ं होता तो यहां लवणता क मा ा
अ धक पायी जाती है। ऐसे थलब सागर म महासागर क अपे ा लवणता बहु त अ धक पायी
जाती है। ेट सॉ टलेक म जल क लवणता 220%0, टक क लेक वान म लवणता लवणता
तर 330%0 तथा मृत सागर म 237%0 लवणता पायी जाती है। कैि पयन सागर के उ तर म
न दय के मु हाने बनाने के कारण लवणता मा ा 13o/oo तथा द णी पूव भाग म 170%0पायी
जाती है। इन द ण पूव भाग म अ शु क जलवायु होने के कारण वा पन अ धक होता है तथा
लवणता क मा ा भी अ धक अं कत क जाती है।
बोध न- 4
10 श द म उ तर द िजये -
1. महासागर य लवणता कस त प म दशाई जाती है ?
...........................................................................................
...........................................................................................
2. भू म य रे खा से ु व क ओर जाने पर लवणता म या बदलाव आता है ?

233
...........................................................................................
...........................................................................................
3. उ तर गोला एवं द णी गोला क औसत लवणता बताइये ।
...........................................................................................
...........................................................................................
4. व व म सवा धक लवणता कहां पायी जाती है ?
...........................................................................................
........................................................................................

13.7 लवणता म असमानता के कारण (Causes of inequalities


in salinity)
व भ न महासगर , आ शक ब द एवं थलब सागर या झील म लवणता का वतरण बहु त
असमान पाया जाता है। इतना ह नह ं एक महासागर या समु के व भ न भाग म लवणता
वतरण म अंतर पाया जाता है। महासागर , समु तथा झील म लवणता क मा ा को भा वत
करने वाले ' नयं क कारक' (Controlling factors) न न ल खत है -
(i) वा पीकरण (Evaporation) - वा पीकरण सौयताप पर नभर करता ह। अ धक ताप,
अ धक वा पन एवं कम ताप कम वा पन से स बि धत है। वा पन या वारा जल
वा प वायुम डल म वल न हो जाती है, लवण जल म शेष रह जाते ह। इससे लवणता
का अनुपात बढ़ता जाता है। भू म य रे खा पर तापमान व सापे क आ ता दोन अ धक
पाये जाते ह। आ ता अ धक होने एवं बादल क अ धकता के कारण यहां वा पीकरण
क दर कम पायी जाती है। कक एवं मकर रे खाओं पर वायु के अवतलन के कारण
तच वातीय दशाएं बनी रहती ह िजससे वायुम डल शु क एवं आकाश मेघ र हत
पाया जाता है। इसी कारण से इन े म वा पीकरण सवा धक मा ा म पाया जाता है
िजससे लवणता क मा ा भी यहां सवा धक होती है। ु वीय े म तापमान एव
वा पन कम होने से लवणता क मा ा भी बहु त कम पायी जाती है। महासागर म
वा पीकरण क मा ा वु ट के अनुसार तवष 93 सट मीटर एवं ि मट के अनुसार 74
सट मीटर अं कत क गई है।
(ii) वषा (Rainfall) - वषा वारा व छ या मीठे जल क ाि त होती है, अत: अ धक
वषा वाले े म लवणता कम एवं कम वषा वाले े म लवणता अ धक पायी जाती
है। इसी लए भू म यरे खीय े म लवणता कम एवं कक-मकर रे खाओं पर लवणता
अ धक पायी जाती है। हमवषण का भाव भी जल वषण के समान ह होता है। ु वीय
एवं उप ु वीय े म हमवषा वारा ा त जल के कारण लवणता कम पायी जाती है।
(iii) न दय का जल (Raver Water) - न दय के जल म लवण (सो डयम लोराइड)
कम पाये जाते ह। िजन सागर एवं महासागर म न दय वारा मु हाने बनाये जाते ह,

234
उन े म तु लना मक प से लवणता कम पायी जाती है। गंगा, अमेजन, काँगो,
मसी सपी आ द न दय के मु हाने पर व छ जल क ाि त के कारण लवणता क
मा ा कम अं कत क जाती है।
(iv) पवन क दशा (Wind Direction) - नर तर एक ह दशा म पवन के चलने का
भाव भी लवणता को भा वत करता है। यापा रक पवन वारा महासागर का जल
पूव भाग से पि चमी भाग म एवं पछुआ पवन वारा महासागर का जल पि चमी
भाग से पूव भाग म ले जाया जाता है। यापा रक पवन पि चमी भाग म तथा पछुआ
पवन पूव भाग म लवणता क मा ा म वृ करती ह। अत: थाई पवन के े म
पूव एवं पि चमी भाग म लवणता म भ नता दे खने को मलती ह।
(v) महासागर य ग तयां (Oceanic Movements) - महासागर य ग तय जैसे धाराओं,
वार य तरं ग एवं संवाहनीय धाराओं वारा भी लवणता म बदलाव आता है।
भू म यरे खीय गम धाराएं महा वीप के पि चमी भाग से लवणता को पूव भाग म
पहु ंचा कर वहाँ क लवणता म वृ करती ह। मैि सको क खाड़ी म इसी कारण से
लवणता अ धक पायी जाती है। ग फ म रण यूरोसीवो क उ ण धाराएं अपने साथ
लवणयु त जल बहाकर ु व क ओर ले जाती ह, िजसके फल व प यहाँ पर लवणता
क मा ा अ धक पायी जाती है। वार य तरं ग भी जल म लवणता के अ तर को
भा वत करती ह। संवाह नक धाराएं महासागर म ल बवत ग त उ प न करती ह।
इससे जल का कह ं अपसरण तो कह ं अ भसरण होता है ले कन यह ग त महासागर म
येक थान पर सुचा प से नह ं होने के कारण लवणता म अंतर पाया जाता ह।
(vi) मौसमी प रवतन (Seasonal Change) - मौसमी प रवतन के फल व प पृ वी के
सभी भाग म तापमान बदलते रहते ह, यहाँ तक क एक ह अं ाश पर शीतकाल म
ठ डा एवं ी मकाल म गम मौसम पाया जाता है। तापमान बढ़ते व घटने के कारण
एक ह अं ाश पर लवणता म भी अंतर आ जाता है, या न ी मकाल म लवणता
अ धक एवं शीतकाल म लावणता कम पायी जाती है। इसी कार सू य के उ तरायण
एवं द णायन होने से भी उ तर व द णी गोला म लवणता क मा ा बढ़ती घटती
रहती है।

बोध न- 5
1. जे न क स नामक व वान ने महासागर एवं समु म पायी जाने वाल लवणता
के .......................... वग नि चत कये ।
2. लवणता म सवा धक असमानता ................. महासागर म पायी जाती है ।
3. न दय के ................................... पर लवणता बहु त कम पायी जाती है ।
4. ह द महासागर के उ तर - पू व भाग म कम लवणता पाये जाने के या कारण
ह?

235
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….
5. ह द महासागर के उ तर - पि चमी भाग म अ धक लवणता के या कारण ह ?
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….
सह /गलत म उ तर द िजये -
6. ल बवत लवणता वतरण एवं गहराई म अ य धक ज टलताएं पायी जाती ह।
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….
7. महासागर व आ शक बं द समु क लवणता म भार समानता पायी जाती है ।
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….
8. थलब समु का स ब ....................................... से नह ं होता है ।
9. वान झील का लवणता तर .................................... होता है ।
10. े ट सॉ ट ले क सं यु त रा य अमे रका के ......................... रा य म ि थत
है ।
11. कै ि पयन सागर के उ तर भाग म लवणता का तर ....................... एवं
द ण भाग म लवणता का तर ................................. पाया जाता है ।
12. महासागर य लवणता म असमानता के दो मु ख कारण बताइये ।
…………………………………………………………………………………………………………….
13. न दय के मु हान पर लवणता तर कम य पाया जाता है ?
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….
14. ग फ म गम जलधारा कस दे श क लवणता तर को बढ़ाती है ?
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….
15. थायी पवन लवणता को कै से भा वत करती ह ?
…………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………….

13.8 सारांश
हमार पृ वी जल य ह है। इस पर 70.8% जल क उपि थ त है। िजसका अ धकांश भाग
महासागर , समु म पाया जाता है। महासागर य जल म लवणता क मा ा अ धक होती है।
इस लए यह पीने यो य नह ं होता है। वतमान म इस महासागर य खारे जल को नयी तकनीक से
236
फ टर कर पीने यो य बनाया जा रहा है ले कन ये तकनीक बहु त महंगी है। महासागर म
उपि थत खारे पन पर वै ा नक म मतभेद पाये जाते ह। महासागर य जल म 7 कार के मु य
ख नज लवण पाये जाते ह िजनम सो डयम लोराइड सवा धक मा ा म होता है। महासागर का
औसत खारापन 35%0 से 37%0 ( त हजार ाम) अं कत कया गया है। लवणता का ै तज एवं
ल बवत कार से वतरण कया जाता है। ै तज वतरण म अ ांशीय एवं ादे शक तर क से
लवणता वतरण को समझा जाता है। सामा यत: यह दे खा गया है क आ शक एवं थलब
समु म लवणता क मा ा खु ले महासागर क अपे ा अ धक पायी जाती है। महासागर व
समु म लवणता का दशन समलवणता रे खाओं क सहायता से कया जाता है। ये समलवण
रे खाएं समान लवणयु त थान को जोड़ने का काय करती ह। लवणता के असमान वतरण को
वा पीकरण, वषा, जल, न दयो का जल, पवन दशा एवं सागर य जल ग तयां आ द कारक
भा वत करते ह।

13.9 श दावल
लवणता : सागर य जल म लवण क मा ा
समलवण रे खाएँ : समान लवणता के थान को मलाने वाल रे खाएँ
थलब सागर : थल से घरे हु ए जलाशय
आं शक ब द सागर : खु ले महासागर से संकड़े जलमाग वारा जु ड़े हु ए सागर

13.10 स दभ थ
1. गौतम : ‘जलवायु एवं समु व ान' र तौगी ए ड क पनी मेरठ,
2006
2. लाल : ‘जलवायु एवं समु व ान' शारदा पु तक भवन, इलाहाबाद,
2003
3. संह : ‘भौ तक भू गोल' वसु ध
ं रा काशन, गोरखपुर , 2006
4. कुल े ठ, कामता साद : ‘समु व ान' कताब घर, कानपुर।

13.11 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1.हां 2. हां 3. हां 4. हां
बोध न- 2
1. 1884 2. सो डयम लोराइड
3. 50 अरब टन 4. 33 से 37 न दय
बोध न- 3
1. महासागर य लवणता के मु ख ोत न दयां एवं वा पीकरण है।
2. अ धक वा पीकरण अ धक लवणता, कम वा पीकरण कम लवणता का संबध
ं ।

237
3. पृ वी उ पि त प चात ् थम पपड़ी पर सवा धक लवणता वाले ख नज थे।
बोध न- 4
1. महासागर य लवणता को ै तज एवं ल बवत त प म दशाया जाता है।
2. भू म य रे खा से ु व क ओर जाने पर तापमान एवं लवणता तर म कमी आती जाती है।
3. उ तर गोला 34 एवं द ण गोला 35 त हजार ाम औसत लवणता तर रखते ह।
4. व व म सवा धक लवणता लेक वॉन (टक ) 330 त हजार ाम म पायी जाती है।
बोध न- 5
1. तीन वग 2. अटलां टक महासागर
2. मु हान पर
3. ह द महासागर के उ तर पूव भाग म वषा अ धक एवं बड़ी सं या म न दय वारा
मु हाने बनाये जाते ह।
4. ह द महासागर के उ तर पि चमी भाग म कम वषा एवं अ धक वा पीकरण पाया जाता
है।
5. सह
6. गलत
7. महासागर से 9. 330
8. यूटाह रा य म। 11. 13 एवं 17 त हजार ाम
9. महासागर य लवणता म असमानता वा पीकरण एवं वषा क मा ा से भा वत होता है।
10. न दय वारा व छ जल महासागर म लाया जाता है िजससे मु हान पर लवणता तर
कम होता है।
11. ग फ म गम जल धारा नाव के तट य दे श क लवणता तर को बढ़ाती है।
12. थायी पवन अ धक लवणता वाले जल को कम लवणता वाले े म ले जाकर लवणता
तर बढ़ाती ह।

13.12 अ यासाथ न
1. लवणता का अथ प ट करते हु ए इसके ोत क या या क िजये।
2. लवणता के अ ांशीय एवं ादे शक वतरण को समझाइये।
3. व भ न महासागर म पायी जाने वाल ै तज एवं ल बवत ् लवणता को प ट क िजये।
4. महासागर य एवं सागर य लवणता क असमानता को नयं त करने वाले कारक बताइये।

238
इकाई 14 : महासागर य जल का संचलन : लहर, वार एवं
धाराएँ

इकाई संरचना
14.0 उ े य
14.1 तावना लहर
14.2 लहर
14.2.1 लहर क संरचना
14.2.2 लहर क उ पि त के कारण
14.2.3 अ य लहर
14.3 वार
14.3.1 वार का ता पय
14.3.2 वार को नयं त करने वाले कारक
14.3.3 वरो पादक शि तयाँ
14.3.4 वारभाटा आने का समय
14.4 धाराएँ
14.4.1 धाराओं क उ पि त
14.4.2 उ तर अटलाि टक महासागर क धाराएँ
14.4.3 द णी अटलाि टक महासागर क धाराएँ
14.4.4 शा त महासागर क धाराएँ
14.4.5 ह द महासागर क धाराएँ
14.4.6 धाराओं का भाव
14.5 सारांश
14.6 श दावल
14.7 संदभ थ
14.8 बोध न के उ तर
14.9 अ यासाथ न

14.0 उ े य
इस इकाई के मु य उ े य इस कार ह -
 महासागर य लहर क उ पि त तथा उनके संचलन क जानकार दे ना,
 महासागर म वार - भाटा क उ पि त, कार आ द का व तार से वणन करना तथा
 महासागर य धाराओं के कार, वतरण आ द से अवगत कराना।

239
14.1 तावना
महासागर य जल ि थर न रहकर ग तमान रहता है। महासागर य जल म ै तज तथा उ वाधर
दोन कार क ग तयाँ पायी जाती ह। महासागर म ै तज ग त लवणता एवं तापमान म अ तर,
जल के घन व म भ नता तथा पवन वेग के कारण उ प न होती है। महासागर य लहर व धाराएँ
ै तज ग त से स बि धत ह। वार-भाटा उ वाधर ग त से स बि धत है। सू य एवं च मा के
गु वाकषण बल तथा पृ वी के अपके य बल के कारण महासागर य जल एक दन म दो बार
ऊपर उठता तथा नीचे गरता है िजसे मश: वार व भाटा कहा जाता है।

14.2 लहर
लहर या तरं ग महासागर य जल क सबसे यापक ग त होती है। पवन के कारण जल क सतह
पर ग त होने तथा जल के आगे बढ़ने व पीछे लौटने क या को लहर कहा जाता है। लहर म
सामा यत: जल आगे क ओर बढ़ता दखाई दे ता है, क तु वा तव म जल ब दु आगे नह ं बढ़ते,
अ पतु एक थान पर ह जल ऊपर नीचे तथा आगे पीछे होते रहते है। इसे जल क दोलन ग त
(Oscillation) कहा जाता है।

14.2.1 लहर क संरचना (Structure of Waves)

दोलन ग त के कारण महासागर य जल ऊपर नीचे होता रहता है। प रणाम व प लहर को दो
भाग म वभािजत कया जाता है। उ चतम भाग शखर (Crest) तथा सबसे नचला भाग गत
(Trough) कहलाता है। शखर व गत के म य अ तर को लहर क ऊँचाई तथा दो शखर या दो
गत के म य क दूर को तरं ग क ल बाई कहते ह।

च - 14.1 : तरं ग संरचना

14.2.2 लहर क उ पि त के कारण

लहर या तरं ग का आकार, आकृ त तथा उ पि त को न न ल खत कारक भा वत करते ह -


(i) पवन क ग त: पवन क ग त जल को ऊजा दान करती है िजससे लहर उ प न
होती ह। वायु के कारण लहर महासागर म ग त करती ह तथा ऊजा तटरे खा पर
समा त ( नमु त) होती है।
(ii) सागर का व तार : व तृत तथा खु ले महासागर म लहर बना कसी बाधा के
वा हत होती ह। लहर जब महासागर तट के समीप पहु ँ चती है तो उसक ग त कम हो
जाती है। ऐसा ग या मक जल के म य घषण होने के कारण होता है तथा जब जल
क गहराई तरं ग के तरं गदै य के आधे से कम होती है तब तरं ग टू ट जाती है।

240
14.2.3 अ य लहर

सामा य तरं ग के अ त र त अ य तरं ग भी होती ह जो अपे ाकृ त अ धक वनाशकार होती ह।


ये न न ह -
(i) सु नामी (Tsunamis) : भू क प के भाव से सागर य भाग म उ प न होने वाल
काफ ऊँची तथा ती ग त वाल लहर को सु नामी के नाम से जाना जाता है। ये तट य
भाग म पहु ँ च कर काफ जान और माल का नुकसान करती ह। 26 दस बर 2004
को इ डोने शया के सु मा ा वीप के समु क तलहट के 40 क.मी. नीचे भू क प के
कारण समु जल से उठने वाल सु नामी लहर के वारा द णी पूव ए शया के
इ डोने शया, मले शया, थाइलै ड, भारत, ीलंका व माल वीप जैसे दे श म कर ब डेढ़
लाख लोग को जान गँवानी पड़ी।
(ii) तू फानी लहर (Stormy Waves) : सागर य जल म भँवर क भाँ त अि थर और
प रवतनशील हवाओं के भँवर के प रणाम व प च वात क उ पि त होती है, िजनसे
इन तू फानी लहर क उ पि त होती है। मानसू न, च वात तथा ह रकेन के भाव से
हा नकारक तू फान आते ह। ऐसी तरं ग से आ दे श, उड़ीसा व बां लादे श आ द के
तट य भाग म हा न होती है।

बोध न - 1
1. लहर या है ? .
…………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………
2. महासागर य लहर से ऊजा कै से उ पल होती है ?
……………………………….………………………………………………………………..
…………………………………………………………………………………………………
3. लहर का शखर कसे कहा जाता है ?
…………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………
4. सु नामी या है ?
…………………………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………………………

14.3 वार
वार-भाटा समु क ल बवत ् ग तय के योतक ह। जब सू य तथा च मा क गु वाकषण
शि त अथवा पृ वी के अपके य बल के फल व प जल ऊपर उठता है तब उसे वार कहा
जाता है। इसके वपर त जब समु का जल नीचे गर जाता है उसे भाटा कहते ह। समु का जल

241
नर तर एक दन अथात ् 24 घ टे और 52 म नट म दो बार ऊपर उठता है तथा दो बार नीचे
गरता है।
व तृत खु ले महासागर म वार भाटा के जल तर का अ तर कम (0.3 से 0.6 मीटर) होता है,
क तु कम गहरे तट य भाग म अ तर 10 मीटर तक पाया जाता है। भारत म वार क ऊँचाई
के अ तर को ओखा (गुजरात) के उदाहरण वारा द शत कया जाता है जहाँ वार क ऊँचाई 2
- 5 मीटर पायी जाती है। फ डी क खाड़ी (Bay of Fundy, U.S.A.) म वार क ऊँचाई 15 से
18 मीटर के बीच होती है।
वार क कृ त और प रणाम को नयि त करने वाले कारक ह - पृ वी के स दभ म च मा
क ि थ त, पृ वी के स दभ म च मा और सू य क ि थ त म प रवतन, पृ वी पर जल का
अ नय मत वतरण, समु क आकृ त म असमानताएँ आ द।

14.3.3 वारो पादक शि तयाँ

यूटन के गु वाकषण स ा तानुसार व व म सभी प ड एक दूसरे को आक षत करते ह। यह


बल प ड के यमान के गुणनफल का अनु मानुपाती तथा उनके बीच क दूर के वग का
युत मानुपाती होता है। खगोल य प ड के यमान क अ धकता के कारण उनके म य
आकषण बल का प रणाम काफ अ धक होता है। इसी बल के कारण इन प ड म आव यक
अ भके य बल (Centripetal Force) उ प न होता है। प रणामत: पृ वी सू य के चार ओर तथा
च मा पृ वी के चार ओर प र मा करता है।
सू य का आयतन च मा क अपे ा 2 करोड़ 60 लाख गुना अ धक है पर तु च मा पृ वी के
के से 3.87 लाख क.मी. तथा ऊपर सतह से 3.79 लाख कमी दूर है। पृ वी और सू य के
बीच क दूर 14,90,00,000 क.मी. है जो च मा और पृ वी के म य क दूर क अपे ा 380
गुणा अ धक है। अत: सू य क अपे ा च मा का गु वाकषण अ धक भावी होता है। प रणामत:
वार भाटा क उ पि त म सू य क अपे ा च मा का गु वाकषण बल अ धक मह वपूण होता
है।
वार क उ पि त
महासागर के जल तर म नय मत प से ऊपर उठने व नीचे गरने क या उ प न करने म
दो शि तय का योगदान होता है -
1. गु वाकषण बल (Gravitational Force) : सू य व च मा के गु वाकषण का भाव
पृ वी पर पड़ता है क तु थल क अपे ा जल अ धक आक षत होता है। इस कारण
च मा के ठ क सामने वाले भाग पर समु का जल ऊपर उठता है।
2. अपके य बल (Centrifugal Force) : अपनी धु र पर घूमती हु ई येक व तु म
अपके य बल होता है। इस बल के कारण येक पदाथ अपने घूणन के के से दूर
जाने क वृि त रखता है िजसके भाव म वपर त ओर वार आते ह।

242
14.3.4 वार भाटा आने का समय

सामा यत: महासागर य तट पर चौबीस घ ट म दो बार वार आता है। त दन आने वाले इन
दो वार म से एक य वार एवं एक अ य वार होता है। पृ वी के 24 घ टे म अपना
प र मण पूरा कर लेने के कारण सै ाि तक प से एक य वार के बाद दूसरा य वार
भी 24 घ टे बाद आना चा हए। ले कन वा तव म अगला वार 24 घ टे 52 मनट के बाद
आता है। इस वल ब का मु य कारण च मा क पृ वी के चार ओर क जाने वाल प र मण
ग त है जैसा क च - 14.3 म दशाया गया है। मान ल िजए इस च के अनुसार थान अ पर
आज म या न 12 बजे

च 14.3 : वार आने के समय म अ तर


वार आया है, तो अगले दन वार आया है, तो अगले दन उसी थान पर 12 बजकर 52
मनट पर आयेगा। इन 24 घ ट म च मा अपने प र मण माग पर थान द से य तक आगे
बढ़ जाता है। अत: अब थान अ को च मा के स मु ख आने के लये 52 मनट का अ त र त
समय लगता है। च मा त दन अपने अ त र त समय लगता है। इसी कार कसी थान पर
य तथा अ य वार के म य 26 मनट का अ तर पड़ता है।
वार भाटा के कार
वृहत ् वार - पृ वी, च मा एवं सू य तीन ह के एक सीधी रे खा म आने पर वृहत ् वार
उ प न होते ह। यह ि थ त येक पू णमा एवं अमाव या को होती है। तीन ह के एक सीध म
आ जाने के कारण गु वाकषण बल का सागर य जल पर सवा धक भाव पड़ता है। अत: जल म
सवा धक उठाव आता है। इसे वृहत ् वार कहते ह जो च सं या 14. 4 म दशाया गया है।

च 14.4 : वृहत ् वार

243
अमाव या के दन ह क ि थत मश: सू य, च मा और पृ वी के म म होती है। य
वार वाले थान पर सू य व च मा का सि म लत गु वाकषण भाव 20 तशत है।
अनुमानत : इस ि थ त म वार क ऊँचाई सामा य से 20 तशत अ धक होती है ।
लघु वार (Neap Tide)
पू णमा व अमाव या को छो कर अ य कसी भी दन तीन ह एक रे खा म नह ं आते। अत:
उनक सि म लत शि तयाँ अ य कसी भी दन काय नह ं करती। च मा क अपने प र मण
माग पर बदलती हु ई ि थ तय के कारण इन ह के बल बँट जाते ह। इसका प रणाम यह होता
है क वार क ऊँचाई अपे ाकृ त कम रहती है। अ टमी के दन सू य व च मा का गु वाकषण
बल पृ वी पर एक दूसरे के समकोण पर काय करते ह। अत: इस शि त का भाव यूनतम हो
जाता है। इसके प रणाम व प लघु वार आते ह। लघु वार सामा य से लगभग 20 तशत
कम ऊँचे होते ह।

च 14.5 : लघु वार


अपभू वार एवं उपभू वार (Apogean and Perigean Tide)
च मा अपनी द घवृ ताकार क ा म पृ वी क प र मा करता है। अत: वह कभी पृ वी के
समीप थ तो कभी दूर थ होता है। जब च मा पृ वी के समीप थ दूर अथात ् 3,56,000 क.
मी. पर ि थत होता है तो उपभू (Perigy) और अ धकतम दूर अथात ् 4,07,000 क.मी. पर
ि थत होता है तो उसे अपभू ि थ त (Apogee) कहा जाता है। उपभू ि थ त म सामा य वार
क अपे ा 20 तशत अ धक ऊँचा होता है। इसके वपर त च मा क अपभू ि थ त म उ प न
वार क ऊँचाई सामा य से 20 तशत कम

च 14.6 : च मा व पृ वी क सापे क ि थ तयाँ


244
दै नक वार (Diurnal Tide)
कसी एक बल के वारा एक दन म एक बार उ प न वार को दै नक वार कहते ह। ऐसे वार
24 घ टे 52 म नट के अ तराल पर उ प न होते ह।
अ दै नक वार (Semi Diurnal Tide)
कसी थान पर दन म दो बार आने वाले वार को अ दै नक वार कहते ह। येक वार
12 घ टे 26 म नट बाद आता है।
म त वार (Mixed Tide)
कसी थान पर आने वाले असामन अ दै नक वार को '' म त वार'' कहते ह अथात ् दन म
दो वार तो आते ह, पर तु एक वार क ऊँचाई दूसरे वार क अपे ा कम तथा एक भाटे क
नीचाई दूसरे क अपे ा कम होती है।
वार भाटा क उ पि त क प रक पनाएँ

संतु लन स ा त (Equilibrium Theory)


सन ् 1687 ई. म वार भाटा क उ पि त क या या करने हे तु सर आइजक यूटन ने स तुलन
सा य को तपा दत कया। इ ह ने पहल बार बतलाया क येक आकाशीय प ड पर पर
गु वाकषण के वारा अपने थान पर टका हु आ है। सू य, पृ वी तथा च मा भी इसी
गु वाकषण बल से अपनी अपनी क ाओं म नर तर ग तशील ह। य य प सू य का गु वाकषण
बल च मा से अ धक है, क तु पृ वी के अ य धक कर ब होने के कारण च मा के आकषण
बल का भाव पृ वी क सतह पर सू य क अपे ा अ धक होता है।
आलोचना - यूटन के स ा त क आलोचना इस आधार पर क गई है क पृ वी पर जल और
थल दोन पाए जाते ह। अत: च मा के आकषण बल का भाव उतना स य नह ं हो सकता
िजतना क केवल जल पर। अत: वार के समय जल का ऊपर उठना बना कसी ै तज ग त के
स भव नह ं है।
गामी तरं ग स ा त (Progressive Wave Theory)
इस स ा त का तपादन 1833 ई. म व लयम हे वल
ै ने कया। इस स ा त के अनुसार
द णी गोला म थल के अभाव के कारण दो वशाल वार य तरं ग क उ पि त होती है। ये
तरं ग च मा से े रत होकर पूव से पि चम क ओर आगे बढ़ती ह। इ ह ाथ मक तरं ग कहते
ह। इन तरं ग के शखर को वार तथा ो णय को भाटा तथा न न वार कहते ह।
द णी गोला म उ प न वार य तरं ग जब पूरब से पि चम क ओर बढ़ती ह, तब थल ख ड
के अवरोध के कारण इनक ि थ त उ तर क ओर होती जाती है। इस तरह द ण म उ प न
होकर ये वार य तरं ग नर तर उ तर क ओर ग तशील होती जाती ह। उ तर क ओर ग तशील
तरं ग के शखर से उ च वार क उ पि त होती है। व भ न थान पर एक ह समय पर
उ प न होने वाले वार को द शत करने वाल रे खाओं को सम वार य रे खाएँ (Co-tidal line)
कहते ह।
आलोचना - इस स ा त के अनुसार वार य तरं ग द णी महासागर से पूव से पि चम क ओर
ग तशील होती है और उ तर क ओर अ सर होती ह। अत: उ तर क ओर दूर बढ़ने के साथ
इनके पहु ँ चने म अपे ाकृ त अ धक समय लगेगा। एक ह दे शा तर पर द ण म ि थत थान क

245
अपे ा उ तर म ि थत थान पर वार दे र से उ प न होना चा हए। क तु नर ण के वारा
दे खा जाता है क अटलाि टक महासागर म हॉन अ तर प से ीनलै ड तक द घ वार का समय
लगभग समान होता है। अत: वार क उ पि त को द ण सागर म मान लेना तथा उनका उ तर
क ओर अ सर होना तकसंगत नह ं लगता।

अ गामी तरं ग का स ा त (Stationary Wave theory)


अ गामी तरं ग स ा त का तपादन आर ए. है रस नाम अमे रक वै ा नक ने 19वीं सद के
दशक म कया था। इनके अनुसार पृ वी पर वार भाटा क या द ण महासागर से उठने
वाल गामी तरं ग के कारण नह ं होती। अ पतु येक महासागर म वतं प से वार भाटे के
उ पि त होती है।
है रस ने अपने स ा त को मा णत करने के लए एक योग कया। इनके अनुसार एक छछले
आयताकार बे सन को ध का दया जाए तो एक सरे क ओर जल क सतह ऊपर उठ जायेगी
और दूसरे सरे का जल तर नीचा हो जायेगा। इसके प रणामत: जल म दोलन या ार भ हो
जायेगी। इसे थायी तरं ग कहते ह। पा के के य भाग म जल के तर म कोई प रवतन नह ं
होता। इस ब दु को के य ब दु कहते ह। पा म जल तल म प रवतन एक सीधी रे खा के
सहारे होता है। इस रे खा को न पंद रे खा कहते ह। इन तरं ग क दशा और इनक ग तशीलता
पा म लगाये जाने वाले ध के क कृ त पर नभर करती है। तरं ग का दोलन उस पा क
ल बाई, गहराई तथा लगाये गये बल पर नभर करता है।
इस कार है रस ने प ट कया क पृ वी पर व भ न महासागर जल से भरे व भ न पा के
समान ह। पृ वी पर सू य और च मा के आकषण बल के कारण समु म दोलन या चलती
रहती है। पृ वी क प र मण ग त के कारण ि थर तरं ग एक सीधी रे खा म चलने क बजाय एक
के के चार ओर चलती ह। िजस कारण कई भंवर ब दु बन जाते ह। इस ब दु पर
महासागर य जल तल समान तथा शांत रहता है तथा चार और जल तल असमान रहता है।
इसके चार ओर तरं ग दाएँ से बाई ओर च कर लगाती ह। इस तरह क या सभी महासागर म
होती है। इनका सि म लत प दोलन णाल कहलाता है। इन तरं ग के शखर और ोणी मश:
वार और भाटा कहलाते ह। दोलन से उ प न तरं ग क दशा और उनके वेग के अनुसार वार
का समय एक कनारे से दूसरे कनारे क ओर आगे बढ़ता जाता है।
वार भाटा महासागर य जल क एक ऐसी ग त है िजसका भाव पयावरण तथा मानव दोन पर
पड़ता है। वार भाटा म य उ योग और जहाजरानी उ योग को वशेष भा वत करता है।
कोलकाता, ल दन एवं अ य ब दरगाह तक बड़े मालवाह पोत को वार के समय जल तर
ऊँचा होने के समय पहु ँ चाया जाता है।
बोध न- 2
1. वार भाटा कसे कहते ह ?
……………………………………………………………………………….………………………..
…………………………………….………………………………………………………………..
2 दघ वार से आप या समझते ह ?

246
..………………………………………………………………………………………………………..
………………………………………….………………………………………………………………..
3. लघु वार से आप या समझते ह ?
………………………………………………………..…………………………………………………..
……………………………………………………………..………………………………………………..
4. सम वार य रे खाएँ क ह कहते ह ?
…………………………………………………………………………………………………….…..
………………………..…………………………..…………………………………………………..

14.4 धाराएँ
थल पर न दय क भाँ त महासागर म भी जल का वाह एक थान से दूसरे थान पर होता
रहता है। इ ह महासागर य धाराएँ कहा जाता है। ग त के आधार पर धाराओं को दो भाग म बाँटा
जाता है - (i) वाह एवं (ii) धारा।
(1) वाह (Drift)
वाह म जल क ग त अ य त म द होती है। इसम जल का वाह काफ चौड़े व उथले प म
होता है। उ तर अटलां टक तथा द णी अटलां टक वाह इसके उदाहरण ह।
(2) धारा (Currents)
इसम वाह एक नि चत सीमा म, नि चत दशा म एवं ती ग त से होता है, जैसे यूरोसीवो,
पी , ब वेला आ द।
गुण के आधार पर धाराएँ दो वग म वभािजत क जाती ह : (i) गम धाराएँ (ii) ठ डी धाराएँ।
(i) गम धाराएँ (Warm Currents) : इन धाराओं म उ ण े का जल शीतल े क
ओर वा हत होता है। इन धाराओं क दशा मोटे प से भू म यरे खीय दे श से ु वीय
दे श क ओर होती है।
(ii) ठ डी धाराएँ (Cold Currents) : ठ डे े से उ ण े क ओर चलने वाल
धाराएँ ठ डी धाराएँ कहलाती ह। ये सामा यत: ु वीय दे श से भू म य रे खीय दे श
क ओर चला करती ह। अपने साथ शीतल जल को वा हत करने के कारण िजन े
से ये गुजरती ह वहाँ तापमान म गरावट लाती ह।

14.4.1 धाराओं क उ पि त (Origin of Currents)

धाराओं क उ पि त म कई कारक का योगदान होता है। इसम से कु छ कारक महासागर य


धाराओं क दशा एवं शि त को भी भा वत करते ह। इन कारक को चार मु य वग म
वभािजत कया जाता है - (अ) महासागर य कारक, (ब) बा य सागर य कारक, (स) धाराओं क
दशा म प रवतन लाने वले कारक तथा (द) पृ वी से स बि धत कारक ।
(अ) महासागर य कारक

247
1. तापमान क भ नता - सू य ताप के वतरण म असमानता के कारण सागर य जल
भा वत होता है। तापमान क अ धकता के कारण भू म य रे खीय जल का घन व कम हो
जाता है, और ह का जल सतह के नकट जल ु व क ओर से अ सर होता है। ु वीय
ठ डा भार जल गहराई पर भू म य रे खा क ओर वा हत होता है।
2. लवणता म भ नता - वा पीकरण के कारण लवणता तथा घन व म अ तर आता है, इस
अ तर के कारण धाराओं क उ पि त होती है।
(ब) बा ा सागर य कारक
1. वायुदाब तथा पवन - पृ वी पर वायुदाब म भ नता पाई जाती है। इस भ नता के
कारण पवन म ग त उ प न होती है। जब पवन सागर क सतह पर होकर गुजरती ह
तो जल को ग त दान करती ह। पवन के घषण के कारण जल पवन क दशा म
ग तशील हो जाता है।
2. वा पीकरण तथा वषा क मा ा - वा पीकरण क मा ा का सागर य जल क लवणता तथा
घन व पर धना मक भाव पड़ता है। जहाँ वा पीकरण कम होता है, वहाँ लवणता और
घन व कम होता है, सागर य जल क सतह पर वषा का भी वैसा ह भाव पड़ता है।
अ धक वषा से सतह ऊँची और कम वषा से सतह नीची हो जाती है। सतह का नीचा-
ऊँचा होना सागर य जल के संचार पर भाव डालता है, िजससे धाराएँ वा हत होती ह।
(स) धाराओं दशा म प रवतन लाने वाले कारक
1. महा वीप के तट क आकृ त - तट य आकार का सागर य धाराओं क दशा पर भाव
पड़ता है। जब कोई धारा तट के समीप से गुजरती है तो उसक दशा तट य आकार के
अनु प हो जाती है, जैसे ाजील तट के साथ-साथ ाजील क धारा वा हत होती है।
2. महासागर तल य आकृ तयाँ - महासागर तल य उ चावच का धाराओं क वाह दशा पर
भाव पड़ता है। जैसे उ तर भू म यरे खीय धारा अटलां टक कटक को पार करते समय
दा हनी ओर मु ड़ जाती है।
3. मौसमी प रवतन - मानसू न जलवायु वाले े म भ न मौसम म पवन क दशा
एकदम वपर त हो जाती है। इसके प रणाम व प जल धाराओं क दशा भी एकदम
वपर त हो जाती है। उदाहरण के लए ाय वीपीय भारत के तट के सहारे मानसू न ट
ी म ऋतु म पि चम से पूव एवं शीत ऋतु म पूव से पि चम को चलती है। मौसम म
प रवतन के अनु प वायुदाब क पे टयाँ खसकती ह। इनका भाव थायी पवन क
पे टय पर पड़ने के कारण महासागर य जलधाराओं पर भी पड़ता है।
(द) पृ वी क प र मण ग त
पृ वी अपनी धु र पर नर तर पि चम से पूव को प र मण करती है। पृ वी क प र मण ग त
के कारण उ तर गोला म अपने पथ के दाँयी तथा द णी गोला के बाँयी और मु ड़ जाती ह।

248
च 14.7 : अटलाि टक महासागर क धाराएँ

14.4.2 उ तर अटलाि टक महासागर क धाराएँ

1. उ तर भू म यरे खीय धारा - अटलाि टक महासागर म भू म यरे खा के उ तर म उ तर-पूव


यापा रक पवन के वारा एक उ ण जल धारा वा हत होती है जो भू म य रे खा के गम
जल को पूव से पि चम क ओर वा हत करती है। उसे उ तर भू म य रे खीय धारा कहते
ह। कै र बयन सागर म पि चमी वीप समू ह के म य म आने के कारण यह धारा दो
भाग म वभ त हो जाती है। एक शाखा उ तर क ओर अमे रका के पूव तट के साथ
बहकर ग फ म म मल जाती है। दूसर शाखा द ण क ओर चलकर मैि सको क
खाड़ी म पहु ँ च जाती है।
2. लो रडा धारा - यह उ तर भू म यरे खीय धारा का ह अ भाग है जो बड़ी मा ा म जल
लेकर युकाटन जल सि ध वारा मैि सको क खाड़ी म वेश करती है। जल क
अ य धक रा श के कारण मैि सको क खाड़ी का तल अटलाि टक महासागर के तल से

249
ऊँचा हो जाता है इस कारण यहाँ एक गरम धारा का ज म होता है िजसे लो रडा क
धारा कहा जाता है।
3. ग फ म - इस जल धारा क उ पि त मैि सको क खाड़ी म होती है । यह एक गम
जल धारा है। यह धारा उ तर पूव दशा क ओर 60० उ तर अ ांश तक पि चमी यूरोप
के पि चमी तट तक वा हत होती है। यह धारा उ तर म उ तर अटलाि टक वाह
कहलाती है। यह वाह फर पि चमी यूरोप म नॉव क ओर चला जाता है और उ तर
ु व सागर य जल से मल जाता है।
4. कनार धारा - उ तर अटलाि टक वाह पेन के नकट दो शाखाओं म वभ त हो जाता
है। एक शाखा उ तर क ओर चल जाती है और दूसर शाखा द ण क ओर मु ड़कर
पेन, कनार वीप व उ तर पि चमी अ का के तट के सहारे बहती हु ई भू म य रे खीय
धारा से मल जाती है। यह ठ डी धारा है।
5. लैबोडोर धारा - यह ीनलै ड के पि चमी तट से होते हु ए लै ोडोर पठार के सहारे -सहारे
वा हत होते हु ए यूफाउ डलै ड के नकट ग फ म से मल जाती है। यह एक ठ डी
धारा है।
6. त भू म यरे खीय धारा - ये उ तर तथा द णी भू म यरे खीय धाराओं के म य भू म य
रे खा के सहारे पि चम से पूव क ओर चलती है। दोन धाराओं के म य उ ण जल के
इस उ टे बहाव को त भू म यरे खीय धारा कहा जाता है।

14.4.3 द णी अटलाि टक महासागर क धाराएँ

1. द णी भू म यरे खीय धारा - यह गम धारा द णी पूव यापा रक पवन से उ प न होती


है और भू म यरे खा के समाना तर पूव से पि चम को वा हत होती है।
2. ाजील धारा - यह गम धारा है जो ाजील के पूव तट के सहारे सहारे द ण क ओर
बहती है। यह धारा ाजील के पूव तट पर भाव डालती है।
3. द णी अटलाि टक ट - यह एक ठ डी जल धारा है जो 40० द णी अ ांश के
नकट ाजील धारा के पछुआ हवाओं के भाव म आ जाने से बनती है। यह धारा पूव
क ओर बहती हु ई आशा अ तर प तक जाती है।
4. ब वेला धारा - यह ठ डी जलधारा है। यह धारा अ का के पि चमी तट के सहारे सहारे
बढ़ती हु ई उ तर क ओर गनी क खाड़ी तक जाती है। वहाँ यह द णी भू म य रे खीय
धारा से मल जाती है।
5. फॉकलै ड धारा - द णी अमे रका के फॉकलै ड वीप के सहारे -सहारे बहती हु ई यह

धारा 40 द णी अ ांश के नकट पहु ँ चकर ाजील धारा से मल जाती है। यह एक
ठ डी जल धारा है।
6. अ टाक टक वाह - अ टाक टक महासागर म पि चम से पूव ह ओर चलने वाल यह
ठ डी धारा है। इसका वाह पछुआ पवन के भाव म होता है।

14.4.4 शा त महासागर क धाराएँ

250
1. उ तर भू म य रे खीय धारा - यह गम धारा है जो म य अमर क तट से ार भ होकर
पि चम म फल पी स क ओर चल जाती है। यहाँ यह धारा दो शाखाओं म वभ त हो
जाती है। थम शाखा द ण क ओर मु ड़कर अपनी दशा पूव को कर लेती है, िजसे
त भू म य रे खीय धारा कहते ह, वतीय शाखा उ तर क ओर यूरोसीवो धारा के नाम
से चलती है।
2. यूरोसीवो धारा - यह एक गम धारा है जो फल पीन वीप समू ह, ताइवान तथा जापान
के तट के समीप उ तर क ओर बहती है। यूशू वीप के समीप यह धारा दो शाखाओं
म बँट जाती है। एक शाखा उ तर क ओर अला का तट के सहारे बहती हु ई पुन : शा त
वाह म मल जाती है तथा एक शाखा द ण क ओर मुड़ कर कैल फो नया क ठ डी
धारा से मल जाती है। यूरोसीवो क एक शाखा जापान के पि चमी तट के सहारे उ तर
म जापान सागर म चल जाती है, जो सु शीमा क धारा के नाम से व यात है।
3. यूराइल धारा - यह एक ठ डी जल धारा है, जो बे रंग जल डम म य से द ण म
साइबे रया तट के साथ बहती हु ई यूराइल वीप समूह के नकट यूरोसीवो गम धारा से
मलती है।
4. द णी भू म य रे खीय धारा - भू म य रे खा के द ण म लगभग 3० से 10० द णी
अ ांश के सहारे सहारे यह गम धारा पी से ऑ े लया तक चलती है।

च - 14. 8 : शा त महासागर क धाराएँ


1. पूव ऑ े लयन धारा - यह गम जल धारा है जो ऑ े लया के पूव तट के सहारे
सहारे द ण क ओर वा हत होती है। त मा नया के नकट पहु ँ चकर यह धारा
अ टाक टक वाह से मल जाती है।
2. अ टाक टक वाह - यह अ टाक टक महासागर म पि चम से पूव क ओर चलने वाल
वृहत ् धारा का एक अंग है। यह ठ डी जलधारा है। हॉन अ तर प के नकट पहु ँ च कर
इसक एक शाखा द ण अमे रका के पि चमी तट के सहारे सहारे उ तर क ओर चलती
है।
3. पी धारा - यह एक ठ डी धारा है। िजसे पी के तट के सहारे वा हत होने के कारण
पी क धारा कहा जाता है। आगे यह धारा द णी भू म यरे खीय धारा से मल जाती है।

251
14.4.5 ह द महासागर क धाराएँ

ह द महासागर क धाराएँ शा त एव अटलाि टक महासागर य धारा वाह म से भ नता


रखती ह य क ह द महासागर म मानसू नी पवन चला करती ह। मानसू नी पवन ी म तथा
शीतकाल म वपर त दशा म चलती ह। अत: ह द महासागर म चलने वाल धाराएँ भी मानसू न
के साथ अपनी दशा बदल लेती ह।
1. उ तर पूव मानसू न धारा - शीत ऋतु म उ तर पूव मानसू न पवन थल से जल क
ओर चलती ह । इन पवन के भाव से ए शया के द णी -तट के सहारे धारा वा हत
होती है जो पूव से पि चम क ओर बहती है। अ का के समीप यह पूव क ओर मु ड़
कर पूव वीप समू ह क ओर चलती है।
2. त भू म यरे खीय धारा - यह शीत ऋतु म चलने वाल धारा है। यह एक गम धारा है।
यह धारा 2० से 8० द णी अ ांश के म य पि चम से पूव को चलती है।
3. द णी पि चमी मानसू न धारा - ी म ऋतु म द णी पि चमी मानसू न पवन के भाव
से ए शया के तट य भाग पर इस धारा का व तार होता है। यह धारा द ण-पूव से
उ तर - पूव दशा क ओर वा हत होती है।
4. द णी भू म यरे खीय धारा - 10० से 15० द. अ ांश के म य चलने वाल धाराओं को
भू म य रे खीय धारा कहा जाता है। यह द णी पूव यापा रक पवन के भाव से
ऑ े लया के पि चम से पूव क ओर चलती है। मैडागा कर तट पर यह द ण क ओर
मु ड़ जाती है।

च 14.9 : ह द महासागर क धाराएँ


5. मोजाि बक धारा - यह एक गम जल धारा है। द णी भूम यरे खीय धारा क ह एक
शाखा है। यह अ का तथा मैडागा कर के म य वा हत होती है।
6. अगुलहास धारा - अ का के द ण म चलने वाल एक गम धारा है जो अ तत: यह
अ टाक टक वाह से मल जाती है।

252
7. अ टाक टक वाह - ह द महासागर के द णी भाग म पि चम से पूव क ओर चलती
है। यह ठ डी जल धारा है। यह वाह पछुआ पवन के भाव म चलती है।
8. पि चमी ऑ े लयन धारा - अ टाक टक वाह से कु छ ठ डा जल उ तर क ओर मु ड़कर
आ े लया के पि चमी तट के साथ वा हत होता हु आ द णी भूम यरे खीय जल धारा
म मल जाता है। यह पि चमी ऑ े लयन धारा कहलाती है।

14.4.6 धाराओं का भाव

1. जलवायु पर भाव - िजन तट के सहारे ठ डी धाराएँ चलती ह वहाँ क जलवायु ठ डी


हो जाती है। गम जल धाराओं के कारण स बि धत तट क जलवायु गम हो जाती है।
2. वषा पर भाव - ठ डी जल धाराओं के भाव म आने वाले े क जलवायु शु क रहती
है। गम जलधाराओं के भाव म आने वाले े क जलवायु आ रहती है।
3. कोहरा - जहाँ पर गम व ठ डी धाराएँ मलती ह उन े म घना कोहरा छाया रहता है।
घने कोहरे के कारण यापा रक ग त व धय पर वपर त भाव पड़ता है।
4. म य यापार पर भाव - गम जल धाराओं के साथ साथ चु र मा ा म लकटन
बहकर आती है जो मछ लय का मु ख भोजन है। ठ डी व गम धाराओं के मलन थल
पर व व के मु ख मछल े बन गए ह।

बोध न- 3
1. कस कार क धारा है ?
……………………………………………………………………………………….……..
……………………………………………………………………………………………….
2. उ तर भू म यरे खीय धारा कस दशा म चलती है ?
……………………………………………………………………………………………….
………………………………………………………………………………………………
3. यू राइल धारा क कृ त कै सी है ?
……………………………………………………………………………………………….
………………………………………………………………………………………………

14.5 सारांश
धाराओं म महासागर य जल नर तर ग तशील रहता है। धाराओं के वारा जल एवं उ मा का
महासागर म ै तज रख उ वाधर वतरण कया जाता है। महासागर य धाराएँ न दय क तरह
एक नि चत माग पर और नि चत वेग से चलती ह। तापमान के आधार पर धाराओं को दो वग
म वभािजत कया जाता है - उ ण और ठ डी धारा। इन धाराओं क उ पि त के लए तापमान,
घन व, लवणता, वायुदाब, पवन वा पीकरण, वषा आ द कारक उ तरदायी ह। य धाराएँ अपने
तटवत भाग पर अनेक भौगो लक, आ थक व मानवीय भाव डालती ह।

253
14.6 श दावल
लहर : पवन के कारण जल तल पर होने वाल ग त
वार-भाटा : जल तर का मश: ऊपर उठना व नीचे गरना
अपभू-उपभू : च मा क पृ वी से मश: दूर थ व नकट थ ि थ त

14.7 स दभ थ
1. डी. एस. लाल : जलवायु एवं समु व ान, शारदा पु तक भवन,
इलाहाबाद, 2003
2.ई. एच. एस. शमा : भौ तक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2005
3.वी. एस. चौहान, अ का गौतम : भौ तक भूगोल , र तोगी पि लकेशन, मेरठ, 2003
5.स व संह : भौ तक भू गोल, वसु धरा काशन, गोरखपुर , 2006
6. B.S. Negi : भू-आकृ त व ान, र तोगी काशन, मेरठ, 1981
7.Monkhouse, F.J. : Principles of Physical Geography,
University Press, London, 1982

14.8 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. पवन के वेग से उ प न जल कण क गोलाकार क ग त
2. पवन के वेग से
3. लहर के उ चतम भाग को
4. समु -क प वारा उ प न लहर
बोध न - 2
1. सागर य जल का नय मत प से ऊपर उठना व नीचे गरना
2. सू य, च मा व पृ वी के सीधी रे खा म आने पर उ प न वार
3. सू य, पृ वी व च मा के समकोणी ि थ त म उ प न वार
4. एक ह समय पर उ प न वार वाले थान को मलाने वाल रे खाएँ
बोध न - 3
1. गरम
2. पूव से पि चम
3. ठ डी

14.9 अ यासाथ न
1. त भूम यरे खीय धारा या है?
2. ग फ म धारा का व तृत ववरण द िजए।
3. सारगैस का ववरण द िजए।
4. धाराओं का वग करण द िजए।

254
5. ह बो ट धारा कहाँ चलती है?
6. महासागर य धाराएँ या ह? इनक उ पि त कस कार होती है? कसी एक महासागर
क धाराओं का वणन क िजए।
7. शा त या ह द महासागर क धाराओं का वणन करते हु ए तट य भाग पर इनके भाव
का व तृत वणन द िजए।
8. अटलाि टक महासागर क धाराओं का ववरण द िजए।
9. महासागर य धाराओं क उ पि त के कारण का व तार से वणन क िजए।
10. महासागर य धाराओं के भाव का उदाहरण स हत व तार से वणन क िजए।

255
इकाई - 15 : महासागर य न ेप एवं महासागर य जल का
दूषण

इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 महासागर य न ेप
15.2.1 महासागर य न ेप के ोत
15.2.2 महा वीपीय नम न तट एवं म न ढाल के न ेप
15.2.3 जै वक तथा काब नक न ेप
15.2.4 ग भीर सागर य मैदान तथा सागर य गत के न ेप
15.3 वाल भि तय
15.3.1 वाल के वकास के लए आव यक दशाएँ
15.3.2 वाल भि तय के कार
15.4 वाल भि तय क उ पि त स ब धी स ा त
15.4.1 डा वन का नम जन स ा त
15.4.2 डेल का हमनद नयं ण स ा त
15.4.3 मरे का ि थर थल स ा त
15.4.4 आगाल ज का अपरदन स ा त
15.4.5 डे वस क प रक पना
15.5 महासागर य संसाधन
15.6 महासागर य दूषण
15.7 सारांश
15.8 श दावल
15.9 स दभ थ
15.10 बोध न के उ तर
15.11 अ यासाथ न

15.0 उ े य
इस अ याय को प ने के बाद आप न न बात को समझने के यो य हो जायगे ' -
 महासागर य न ेप या होता है तथा ये न ेप कन - कन कारण से होते ह?
 महासागर य न ेप के ोत कौन-कौन से ह,
 वाल भि तयाँ या होती ह एवं इनके वकास के लए आव यक दशाएँ या ह,
 वाल भि तय कतने कार क होती ह,
 महासागर हमारे लए आ थक प से कतने मह वपूण ह,

256
 महासागर म जल दूषण के या कारण ह तथा उनके या प रणाम होते ह।

15.1 तावना
महासागर म न ेप के ोत कई होते ह। समु म कह -ं कह ं व भ न कार क वाल न मत
थलाकृ तयाँ दखाई पड़ती ह िजनका नमाण चू ने का उ वण (Secretion) करने वाले वाल
क ट (Coral Polyps) से होता है। वाल भि तय का नमाण अ धकतर उ ण क टब धीय
समु क मु ख वशेषता होती है। वाल भि तय क उ पि त के स ब ध म कई प रक पनाएँ
ह। वाल भि तय से अनेक कार क थलाकृ तय का नमाण होता है िजनम से कु छ वाल
भि तयाँ ाकृ तक सौ दय का उदाहरण बन चुक ह।
महासागर का मानव जीवन म बहु त ह अ धक आ थक मह व है। इनम जल दूषण बढ़ रहा है
जो मानव जीवन के लए खतरनाक है । इन सभी का मह व इस इकाई म बताया गया है।

15.2 महासागर य न ेप (Ocean Deposits)


जैसे अनावृि तकरण के साधन वारा भू-आकृ तय को काटकर उसके मलवे का न ेपण होता है
उसी कार कु छ साधन वारा महासागर के नतल पर व भ न कार क व तु एँ और म ी
जमती है। ये समु जमाव ह ''महासागर य न ेप'' कहलाते ह। समु का नतल जै वक एवं
अजै वक ोत से ा त अवसाद क मोट -मोट परत से ढका हु आ है।

15.2.1 महासागर य न ेप के ोत (Sources of Ocean Deposits)

वभ न थान से उ ू त पदाथ और वा हत करने वाले साधन के आधार को लेकर महासागर य


न ेप को न न ोत म वभािजत कया जा सकता है -
(i) थलजात न ेप : व भ न अपरदनकार शि तयाँ (जैसे न दयाँ, पवन, हमन दयाँ,
लहर आ द) थलख ड पर पाई जाने वाल च ान को तोड़-फोड़ दे ती ह िजनका मलवा
वा हत करके महासागर य तल पर बछा दया जाता है।
(ii) वालामुखी न ेप : वालामु खी भू प ृ ठ य तथा अ त:समु दोन ह कार के होते ह।
(iii) महा वीप पर वालामुखी के व फोट होने पर उससे नकले पदाथ जैसे लावा, सु ख,
झांका (Pumice) आ द सव थम थल पर ह जमा होते ह। त प चात उनके अप य
तथा अपरदन से ा त अवसाद को न दयाँ समु म पहु ँ चाने का काय करती ह। अ त:
समु वालामुखी उ गार से नकले हु ए पदाथ का भी सागर य तल पर न ेपण हो
जाता है।
(iv) ग भीर महासागर य न ेप : समु जीव और वन प तय के कवच तथा खोल के
अवशेष गहरे समु म वशेष प से न े पत होते ह। समु य जीव के खोल और
सू म समु जीव के ढांच का वख डन तथा रासाय नक प रवतन होता है। समु
अवसाद म चू ना धान तथा स लका धान पदाथ को आसानी से पहचाना जा सकता
है। चू ना धान अवशेष दो वग म वभ त कए जा सकते ह। पहला समु जीव के
अवशेष तथा दूसरा समु के जल म उ प न वन प तय के अवशेष।

257
(v) अजै वक : जब कसी पदाथ का वलेयता गुणनफल (Solubility Product) अ य धक
हो जाता है तब अजै वक अव ेप का नमाण होता है। अनेक रासाय नक याओं के
वारा समु के जल म ऐसे अव ेप बनते ह।
(vi) रासाय नक न ेप : इस वग म उन पदाथ को सि म लत कया जाता है िजनक
उ पि त समु के जल तथा ठोस कण क पार प रक या के कारण होती है।
अ त या वशेष प से वालामुखी से नसृत पदाथ तथा समु के जल के बीच होती
है। रासाय नक प रवतन के फल व प उ प न पदाथ म लाकोनाइट फे सपार,
फॉ फोटाइट तथा मृि तका ख नज (Clay minerals) आ द वशेष उ लेखनीय ह।
(vii) उ का धू ल : अ त र से पृ वी पर अनेकबार उ काएँ गरती रहती ह। जब समु क
सतह पर उ का के कण गरते ह तब धीरे -धीरे वे नतल पर जमा हो जाते ह। क तु
उ का से ा त अवसाद क मा ा बहु त कम होती है। इन पदाथ का पता लगाने का
ेय मरे तथा रे नाड को है।

15.2.2 महा वीपीय नम न तट एवं म न ढाल के न पे (Deposits of the


Continental shelf and slope)

थल के अपरदन तथा अप य से ा त पदाथ - महा वीप के म न तट तथा म न ढाल पर


न त पदाथ म थल के अपरदन से ा त तलछट क धानता होती है। इन थलजाल
पदाथ को न दयाँ अपने जल म बहाकर ले आती ह। इनके अ त र त, समु म उ प न तरं ग
अथवा लहर तट को काटकर व भ न कार के पदाथ को समु के नतल पर डाल दे ती ह।
च ान के बड़े टु कड़े अपने आकार एवं भार के कारण तट के नकटवत भाग म ह न त होते
ह। क तु शैल के बार क कण समु के तट से काफ दूर तक पहु ँ चा दये जाते ह। कण का
आकार िजतना छोटा होगा उतने ह दूर तक उनका न ेप पाया जायेगा। इस कार आकार के
आधार पर इन पदाथ का वग करण कया जाता है। शैल चूण म आकार म पया त भ नता के
कारण उनका न ेपण उनके आकार के अनुसार होता है। तट के नकट नम न छछले भाग के
नल पर बजर (gravel) जैसे मोटे पदाथ का न ेप होता है। जब क रे त, स ट, मृि तका
(clay) तथा पंक का जमाव अपे ाकृ त अ धक गहरे भाग से होता है। इन पदाथ का न ेप
महा वीपीय म न तट के अि तम छोर तक सी मत होता है।
गाद (Silt) अ य धक बार क शैल-चूण को कहते ह, िजनका यास 3.9 से 31.2 माइ ॉन होता है।
मृि तका - कण से भी छोटे आकार वाले कण को पंक (Mud) क सं ा दान क जाती है।
वभ न कार के शैल का नमाण करने वाले ख नज के सू म कण से पंक का नमाण होता है।
पंक म ख नज कण के साथ-साथ अ त सू म मृि तका के कण भी मले होते ह। इनका ोत भी
धरातल पर पाई जाने वाल वभ न कार क शैल ह। उपयु त थलजात पंक के रं ग के आधार
पर जॉन मरे ने उनका न न ल खत वग करण तु त कया है -
(i) नीला पंक (Blue Mud) : नीला पैक सबसे अ धक व तृत े म मलता है। इसका
मू ल ोत थल ख ड के अपरदन से ा त अवसाद होता है। महा वीप के नकटवत
गहरे समु तथा आं शक प से घरे हु ये समु म यह पंक अ धक मलता है।

258
(ii) लाल पंक (Red Mud) : लोहे के ऑ साइड क मा ा अ धक होने से कु छ पंक लाल
रं ग के होते ह। इसका े सी मत होता है। इस पंक म कैि शयम काब नेट क मा ा
का औसत 32 तशत होती है। रे डयोले रया तथा डायटम जैसे स लका धान जीव
का इसम ाय: अभाव पाया जाता है। इसम लौह त व अ य धक ऑ सीकृ त प म
उपि थत रहते ह जो इसके लाल रं ग का मु य कारण है।
(iii) हरा पंक (Green Mud) : इस पंक के हरे रं ग का मु य कारण लॉकोनाइट नामक
ख नज के कण ह। लॉइकोनाइट लोहे का स लकेट होता है, िजसका नमाण जै वक
पदाथ के वयोजन क उपि थ त म ह स भव है। फोरा म नफेरा क खोल म यह
ख नज पाया जाता है, और जब इन जीव के खोल घुल जाते ह, तब लॉकोनाइट के
छोटे -छोटे गोलकण बच जाते ह।
उ तर अमे रका के शा त तथा अटलां टक महासागर य म न तट, जापान का तटवत समु
नतल, ऑ े लया तथा द णी अ का के म न तट हरे पंक के न ेप के लए उ लेखनीय ह।

15.2.3 जै वक तथा काब नक न ेप (Organic and Carbonic Deposits)

कु छ ऐसे भी नम न तट ह िजनके नतल पर अनेक कार क वन प तयाँ तथा जीव पाये जाते
ह। अत: इन म न तट के नतल पर वहाँ पायी जाने वाल वन प तय तथा जीव के अवशेष का
न ेप पाया जाता है। उ ण क टब धीय समु म वाल क ट तथा चू ना धान शैवाल अ धक
मा ा म पाये जाते ह। इनके मरणोपरा त इनके कंकाल तथा इनक खोल लहर के वारा
वखि डत होकर रे त अथवा पंक म प रव तत हो जाती है। इस कार न मत रे त अथवा पंक म
कैि शयम काब नेट क भार मा ा होती है, जब क थलजात अवसाद से न मत इ ह ं पदाथ म
इसक कमी पाई जाती है। पि चमी वीप समू ह के समीपवत समु के नतल पर उपयु त
जै वक न ेप सवा धक मा ा म मलते ह। बहामा वीप का नमाण पवन वारा उड़ाकर लाये
गये समु जीव के कवच तथा वाल न मत रे त से हु आ है। उसके समीपवत समु के नतल
पर इसी कार के पंक का न ेप मलता है। मैि सको क खाड़ी तथा कैर बयन सागर म भी
ऐसे जै वक न ेप पाये जाते ह।

15.2.4 ग भीर सागर य मैदान तथा सागर य गत के न ेप (Depopsits of the


Deep Sea Plain and Ocean Deeps)

ग भीर महासागर य न ेप (Pelagic) का संघटन (Composition) समु म पाये जाने वाले उन


असं य जीव तथा वन प तय के अवशेष से होता है, जो ाय : समु क सतह पर तैरते रहते
ह। कभी-कभी इन न ेप के नमाण म पवन वारा उड़ाकर लाई गई वालामुखी धू ल का भी
कु छ अंश पाया जाता है।
ऐसे न ेप जब समु से नकाले जाते ह, तब मू लत: वे तरल पैक के प म होते ह। इस लए
इ ह ऊज (ooze) कहा जाता है। यह स धु पंक होता है। सू ख जाने पर यह स धु पंक मह न
कण वाले पाऊडर के प म प रव तत हो जाता है। इसम कु छ पदाथ तो रवाह न होता है तथा
कु छ थोड़ी मा ा म अ य त सू म आकार वाले कवच के अवशेष से बना होता है। इन न ेप
का नमाण िजन समु जीव अथवा वन प तय के अवशेष से होता है, उनम िजस वग के
259
अवशेष क धानता रहती है उसी के आधार पर उनका नामकरण अथवा वग करण कया जाता
है। अत: इन न ेप को दो वग म वभ त कया जाता है -
(अ) चू ना धान (Calcareous) ऊज : चू ना धान न ेप म कैि सयम काब नेट क मा ा 30
तशत से अ धक होती है।
(ब) स लका धान (Siliceous) ऊज : िजन समु जीव क खोल (Shells) से उपयु त
न ेप का नमाण होता है, उनके आधार पर इनका न नां कत वग करण कया जाता है: -
(i) टे रोपॉड ऊज (Petropod Ooze) : इस वग के न ेप म एक वशेष कार के समु
जीव क खोल के अवशेष क ं धानता रहती है। टे रोपॉड समु के जल म तैरने वाला
एक मोल क (Mollusc) अथवा मृदु कवची जीव होता है। इसक खोल मुलायम तथा ाय:
शं वाकार होती है, जो अ य त पतल हु आ करती है। इनके नमाण म चू ने के काब नेट
का वशेष योगदान होता है।
(ii) लोबीजेर ना ऊज(Globigerina ooze) : फोर मनीफेरा (Forminifera) जा त के
लोबीजेराइना तथा अ य जीव के चू ना धान खोल से इस स धु पैक का नमाण होता
है। इनक खोल पन के सरे अथवा उससे भी कम आकार क होती है। इनका वतरण
अनेक महासागर के व तृत े म पाया जाता है। इस कार के पंक अटलां टक, द णी
शा त महासागर तथा ह द महासागर के व तृत े म पाये जाते ह। यह स धु पंक
उ ण एव शीतो ण दोन कार क जलवायु वाले समु म मलता है। ीनलै ड तथा नाँव
के बीच म गम समु धारा के भाव से लोबीजेर ना आक टक वृत से कु छ उ तर तक
पाया जाता है।
इस जा त के वकास के लए जल क अनुकू लतम गहराई 1500 - 2000 फैदम होती है।
गहराई म वृ के साथ-साथ इस जीव क सं या नर तर कम होती जाती है। य य प कह -ं
कह ं लोबीजेर ना 3000 फैदम क गहराई तक मलता है, क तु महासागर य गत
(Oceanic deeps) म ये जीव ब कुल नह ं मलते ह।
(iii) डायटम ऊज (Diatom ooze) : ठ डे समु म वक सत होने वाल समु वन प तय के
अवशेष इस पंक का नमाण करते ह। इनम स लका त व क धानता होती है। य य प इन
वन प तय का वकास 600 - 2000 फैदम के म य सवा धक होता है, क तु कह -ं कह ं
4000 फैदम गहराई तक इनको दे खा जाता है। द णी अटलाि टक महासागर म एक चौड़ी
पेट म इस कार का स धु पंक मलता है। शा त महासागर क उ तर सीमा पर भी एक
सँकर पेट म इस कार का पंक पाया जाता है।
(iv) रे डयोले रयन ऊज (Radiolarian ooze) : फोरा म नफेरा जा त का ह एक जीव
रे डयोले रया होता है, िजसक खोल स लका धान होती है। इसम चू ने के अंश का अभाव
होता है। इस स धु पंक म स लका धान खोल के अ त र त मृि तका (clay) का अंश
मला होता है। रे डयोले रया गहरे समु म मु य प से पाया जाता है। 2000 फैदम से
कम गहरे समु म इसे नह ं दे खा जाता।
इस जीव का वकास 5000 फैदम गहराई तक होने के फल व प इसके अवशेष से न मत
न ेप सागर य मैदान तथा गत म भी पाये जाते ह। यह उ ण क टब धीय समु म ह

260
सी मत होता है। शा त महासागर म रे डयोले रयन पैक वशेष प से मलता है, क तु
ह द महासागर म भी सी मत े म इस पंक का न ेप मलता है। अटलां टक महासागर
म यह स धु पंक कह ं नह ं पाया जाता है।
(v) लाल स धु पंक (Red clay) : अ य सभी ग भीर सागर य न ेप क तु लना म लाल
स धु पंक अ धक व तृत े म पाया जाता है। इसम अ यूमी नयम का जलयोिजत
स लकेट(hydrated silicate of aluminium) तथा लोहे का ऑ साइड होता है। जॉन मरे के
अनुसार अ त: सागर य शैल तथा अ यू म नयम के स लकेट के रासाय नक वयोजन
(decomposition) से ह लाल स धु पंक का नमाण होता है। अ धक गहराई वाले समु
के नतल पर यह पंक मलता है। इस पंक के नमाण म समु क सतह पर तैरने वाले
यू मस (Pumice) तथा पवन वारा उड़ाकर लायी गई धूल जैसे वालामु खय से नकले
पदाथ का भी मह वपूण योगदान होता है। इस लए वालामु खय के समीपवत समु के
नतल पर यह पंक भार मा ा म मलता है। इस स धु पंक म रे डयोधम पदाथ भी पाये
जाते ह। अ य त धीमी ग त से जमा होने के कारण लाल स धु पंक के न ेप म शाक
मछल के दाँतो तथा वेल के कान क ह डय के अवशेष मलते ह।
लाल संधु पंक लगभग सभी महासागर के नतल पर पाया जाता है। शा त महासागर के
आधे से अ धक भाग पर यह न ेप मलता है। अटलां टक तथा ह द महासागर के बहु त
बड़े भाग म और सवा धक गहराई पर लाल स धु पंक पाया जाता है। उ तर अटलां टक म
इस पंक का रं ग लाल ( ट के रं ग का) तथा ह द एव शा त महासागर म गाढ़े चॉकलेट
क तरह होता है। सू खने पर यह पंक लाल भू रे रं ग का हो जाता है।
पृ वी के बाहर से आने वाले पदाथ (Extra-terrestrial Deposits)
उ कापात के कारण महासागर के नतल पर न त वभ न कार के जै वक एव अजै वक
पदाथ के अ त र त उ काओं के वख डन से ा त पदाथ के अ य त सू म कण का भी न ेप
होता है। क तु इस कार के ख नज के कण क मा ा बहु त कम होती है। इनके रं ग ाय: काले
अथवा भूरे होते ह। इन ख नज म लौह त व अथवा लोहे ऑ साइड से न मत मै नेटाइट वशेष
उ लेखनीय होते ह। अ य धक सू म मा ा म होने के बावजू द इन ख नज का वै ा नक के लए
वशेष मह व होता है। इन ख नज कण का यास 30- 60 माइ ोमीटर होता है। यह अ य धक
गहरे समु के नतल पर न त पदाथ म पाया जाता है।
बोध न- 1
1. वालामु खी रे त के नाम से कौन से पदाथ जाने जाते ह ?
…………………………………………………………………………………..
…………………………………………………………………………………..
2. महासागर य न े प मु यत : कतने कार के होते ह ?
…………………………………………………………………………………..
…………………………………………………………………………………..
3. चू ना धान स धु पं क कौनसा होता है ?
…………………………………………………………………………………..

261
…………………………………………………………………………………..

15.3 वाल भि तयाँ


समु क कौतु हल पूण व तु ओं म वाल (मू ंगा) भी एक है। इनसे फूनाफूट , बरमू डा, मीजी, टु क
वीप, वेनीकोरो, ेट बै रयर र फ, ल वीप, माल वीप, बंकर वीप, सोसाइट वीप आ द क
रचना हु ई है। इन सभी वीप क रचना मू ंग से हु ई है। वीप पयटक और वै ा नक के
आकषण का के बने हु ए ह। हैरन वीप म एक शोध सं थान क थापना क गई है जहाँ व व
भर के वै ा नक वाल क च ान के बारे म अ ययन करके वै ा नक ान के भंडार म वृ कर
रहे ह।
वाल भि तय का नमाण मु य प से बहु पाद ा णय क याओं से होता है। इनका रं ग हरा,
लाल और पीला होता है। यह ाणी यास से आधे इंच तक के होते ह और आकार म खोखले
बेलनाकार होते ह। इनके खोल चू ने से बने होते ह। जब वपर त प रि थ तयाँ आती ह तो ये
समा त हो जाते ह तथा उनम न हत चू न से भि तय का और अ त म वाल वीप का
नमाण होता है। इन भि तय और वीप म न केवल कोरल पो ल स ह होते है वरन ् अ य
समु जीव-ज तु भी पाये जाते ह जो मरणोपरा त इनके साथ सि म लत हो जाते ह। इन सबके
ढांच के एक थान पर जु ड़ जाने से वाल भि त का नमाण हो जाता है। वाल समु तल के
नीचे या वार भाटा के तल से 5 मीटर तक ऊँची पाई जाती है। वाल च ान क यह एक
वशेषता है क जब तक ये पानी क सतह को नह ं छू लेती तब तक बढ़ती है।

15.3.1 वाल के वकास के लये आव यक दशाएँ (Necessary conditions for the


growth of corals)

सागर के येक थान म वाल ा त नह ं होते ह। संसार म केवल 13 लाख वग कमी. े म


ह वाल े णयाँ फैल हु ई ह। वाल भि तयाँ कु छ वशेष प रि थ तयाँ होने पर ह उदय होती
ह। ये दशाय न न ल खत ह -
(i) तापमान : वाल के ज म और वकास के लये नि चत आव यकताएँ चाहते ह उनम
ताप म मु ख है। इसके वकास के लये 20० सेि सयस तक तापमान होने चा हये।
(ii) गहराई (depth) : यह छछले समु का जीव है। यह साधारणतया 50 फैदम तक क
गहराई म वक सत हो पाता है। क तु 50 फैदम से अ धक गहराई बढ़ने पर इनक
बि तयां वरल होती जाती ह। गाड नर ने 150 से 170 फैदम तक क गहराई को भी
उपयु त बताया है। वाल के पनपने क गहराई वा तव म इस बात पर नभर रहती
है क पानी म कहाँ तक सू य क करण वेश कर पाती ह। अत: व छ जल म जहाँ
करण अ धक गहराई तक वेश कर पाती ह वाल अ धक गहराई तक और गंदले
पानी म कम गहराई तक पाये जाते है।
(iii) व छ जल : इनके लए व छ जल क आव यकता होती है। समु तल पर अ धक
मा ा म तलछट आने पर उस े म वाल जी वत नह ं रह सकते। इस लये वाल

262
न दय के मु हाने के सामने भी नह ं पाये जाते ह य क न दयाँ अ य धक मा ा म
तलछट लाकर जमा करती ह िजससे इनक मृ यु हो सकती है।
(iv) उ ण जल : इसके लये उ ण सामु क जल उपयु त रहता है। िजन समु थान म
ठं डा जल पाया जाता है वहाँ वाल नह ं पनपता है। महा वीप के पि चमी कनार पर
यापा रक हवाय तट से दूर समु क ओर बहती ह िजससे उ ण समु जल पवन के
भाव म आकर तट से दूर हट जाता है। उसका थान हण करने के लए नीचे का
ठं डा जल ऊपर उठता है। फल व प ऐसे ठं डे जल म वाल नह ं पनपते ह। महा वीप
के पि चमी भाग म ठं डी जलधाराय भी बहती ह। अत: इन धाराओं के े म वाल
अपनी बि तयाँ नह ं बनाते ह। इसके वपर त गम धाराओं वाले दे श म ये पनपते ह।
(v) लवणता (Salinity) : वाल के लये अ धक खारापान भी हा नकारक है। अ धक
लवणता वाले सखी भाग म चू ने क मा ा कम हो जाती है। चू ना वाल का भोजन
और कंकाल को वक सत करने का साधन है।

15.3.2 वाल भि तय के कार (Types of Coral Reefs)

कृ त और उ पि त के अनुसार वाल भि तयाँ


वाल भि तयां, उनक उ पि त, आकृ त और कृ त के आधार पर तीन कार क होती है।
इनका वणन अ कार है -
(i) अनुतट या तट य वाल भि तयाँ
अनुतट वाल भि तयाँ कसी वीप या महा वीपीय तट के समीप या संल न प से वक सत
होती ह। िजस मंच पर वाल ेणी का वकास होता है उसके तथा वाल भि त के म य कोई
खु ला पानी या लैगन
ू झील नह ं पाई जाती है। वाल ेणी कम चौड़ी और समु क ओर खड़े
ढाल वाल होती है। इनक चौड़ाई एक कलोमीटर के कर ब होती है। क तु कु छ अपवाद व प
अ धक चौड़ी भी होती ह। अनुतट वाल का ऊपर भाग समतल नह ं होता बि क उबड़ खाबड़
होता है। अनुतट वाल भि तय के उदाहरण यू है ीडीज म मसकेलान वीप समू ह के समाऊ
वीप, द णी लो रडा वाल भि त, महे तमा वीप आ द ह। ( च 15.1)

च 15.1 : अनुतट वाल भि त


(ii) परातट या अवरोधक वाल भि त (Barrier Reef)
यह वाल भि त बड़ी और व तृत होती है। यह महा वीप तट से 100 मीटर से लगाकर 5
कमी. तक दूर ि थत होती है। वाल भि त और मु ख थल के म य एक अनूप झील होती है।
य द यह भि त कसी वीप के चार ओर होती है तब इसक आकृ त गोलाकार और कसी
महा वीप के तट के सहारे होने पर लगातार ल बी होती है। परातट वाल े णयाँ अनुतट वाल

263
े णय से अ धक ऊंची, अ धक व तृत, और तट से अ धक दूर होती ह। अवरोधक वाल भि त
o o o
का ढाल 45 तक होता है। क तु साधारणतया यह 15 से 25 के म य ह होता है।

च 15.2 परातट या अवरोधक वाल भि त


परातट भि त का सव तम उदाहरण ऑ े लया के पूव तट पर ि थत 9० द ण से 22० द णी
अ ांश के म य उ तर म टोट जलडम म य से लगाकर द ण म टे न भि त तक 1900
कमी. क दूर म फैल हु ई ेट बै रयर र फ है। यह वाल भि त 100 से 200 मीटर ऊँची और
लगभग 13000 वग कमी. े म फैल हु ई है। यह परातट वाल ेणी समु कनारे से उ तर
म 130 कमी. म य म 32 कमी. और द ण म 13 कमी. तक दूर ि थत है। इसक चौड़ाई
11 से 128 कमी. तथा अनूप झील क गहराई 15 से 20 फैदम तक है। इसी कार क स
अवरोधक वाल भि त कैरोलाइन वीप म क
ु समू ह (Truck Group) म भी ि थत है।

(iii) वलयाकार वाल भि त (Atoll)


यह घोड़े क नाल के समान वलयाकार वाल भि तयाँ होती ह िजनके म य एक छछल अनूप
झील होती है। कु छ वलयाकार वाल भि तयाँ वीप के चार और बन जाती है और वीप तथा
वाल ेणी के म य अनूप झील ि थत होती है। अनूप झील क गहराई 40 से 70 फैदम के
म य होती है।
वलयाकार वाल भि त महा वीपीय तट से सैकड़ कलोमीटर दूर होती है तथा इनका समु क
ओर ढाल ती होता है। समु तरं ग वारा यह टु कड़ म वभ त हो जाती है।

च 15.4 : वलयाकार वाल भि त

264
वलयाकार वाल े णय को उनक कृ त के आधार पर दो भाग म वभ त कया जा सकता
है।
(i) वे वलयाकार वाल े णयाँ िजनका आकार गोल होता है तथा म य म वीप नह ं होता
है।
(ii) वह वाल भि त िजसके म य क अनूप झील म वीप होता है।
वलयाकार वाल भि तय क सं या द ण चीन सागर, ए ट ल ज, लाल सागर, ऑ े लया
सागर, मैलागासी के उ तर पि चमी तट पर, शा त महासागर म फुनाफुट , फजी, केरालाइना के
ुक वाल आ द म पाई जाती है। फुनाफुट (Funafuti) ेणी 12 कमी. चौड़े, 20 कमी. ल बे
लैगन
ू को घेरती है। यह पूव क ओर से कई जगह से कट हु ई है। वहाँ पर अनेक वीप पाये
जाते ह।

15.4 वलयाकार भि तय क उ पि त स ब धी स ा त
व वान म अनुतट वाल ेणी क उ पि त के वषय म कोई मतभेद नह ं है। उनका मत है क
अनुतट- वाल भि त कसी वीप या महा वीप के थल भाग के चार और जलम न चबूतर पर
बनती है। इस कार वीप या थल ख ड म सटकर जु ड़ी हु ई वाल भि त िजसका ढाल तट क
ओर धीमा और समु क ओर ती होता है, अनुतट वाल भि त होती है।
अवरोधी वाल भि त और वलयाकार वाल भि त क उ पि त के वषय म व वान म ती
मतभेद है। इसके लए कई स ा त तपा दत कये गये है िजनम से उ लेखनीय न न कार
है।

च 15.5 : वाल स ब धी स ा त का आं कक व लेषण

265
15.4.1 डा वन का नम जन स ा त (Darwin’s Subsidence Theory)

डा वन के समय तक समु व ान, समु नतल, गहराई, तापमान, भू-आकृ तय , खारापन आ द


के वषय म पया त जानकार उपल ध नह ं थी। अत: वाल भि तय के स ब ध म कोई
सम या ह नह ं थी। सन ् 1842 म सबसे पहले डा वन ने बताया क वाल भि तयाँ नमि जत
होते हु ए आधार पर ज म लेती ह। डा वन के अनुसार अनुतट, परातट और वलयाकार तीन ह
कार क वाल भि तयाँ एक ह म म उ व होकर वकासो मुख ि थ त को ा त होती है।
उनका मत है क सव थम कसी वीप अथवा थल भाग के सहारे अनुकू ल प रि थ तय म
वाल समु क ओर बढ़ना ार भ कर दे ते ह। काला तर म वह वाल भि त समु क ओर
बढ़ती है थल क ओर नह ं। इस कार थल और वाल भि त के म य अनूप झील बन जाती
है। इस कार अनुतट वाल भि त बन जाती है। डा वन का व वास है क समु तल के धंसाव
से लैगन
ू अ धक चौड़ी हो जाती है तथा अनुतट वाल भि त वीप के चारो ओर या आं शक प
से फैलकर परातट या अवरोधक वाल भि त को ज म दे ती है। पुन : डा वन महोदय का वचार है
क इतने पर ह थल का धंसाव समा त नह ं हो जाता वरन ् यह या और अ धक ती हो
जाती है। म य म ि थत वीप अंततोग वा पानी म ''डू ब जाता है तथा वाल ऊपर क ओर
भि त को बढ़ाते रहते ह। प रणाम व प या तो वीप का कु छ भाग ह लैगन
ू के म य दखाई
दे ता है या स पूण वीप के नमि जत हो जाने पर वाल भि त से घर हु ई लैगन
ू झील ह
दखाई दे ती है। इस कार वलयाकार वाल भि त का ज म होता है।

च 15. 6 : डा वन-डाना का थल घंसाव मत

266
स ा त के प म माण (Evidences in Support of the Theory)
भू तल नम जन का स ा त कई माण वारा सम थत कया गया। डाना इसके सश त समथक
रहे ह िज ह ने वाल भि त के ज म के बारे म समान वचार तु त कये। डा वन के स ा त
के प म न न ल खत माण तु त कये -
1. अवरोधक वाल भि तय से आर त कनार पर जल म न घा टय और भृगु वह न
तट के माण पाये जाते ह। य द कभी भृगु रहे भी ह गे तो वे नमि जत हो गये। डाना
का मत है क जलम न तट रे खा वा तव म नम जन स ा त के प म एक ठोस
माण है।
2. वाल भि तय क मोटाई और गहराई भी नम जन का समथन करती है। वाल केवल
30 फैदम क गहराई तक ह पनपते ह। कु छ ऐसी वलयाकार वाल भि तयाँ ह िजनक
मोटाई 500 से 600 फ ट है। यह कैसे स भव हु आ? प ट है य - य धरातल धंसकता
गया य - य वाल ऊपर बढ़ते गये। इस लये यह इस स ा त के प म बल माण
है।
आलोचना (Criticism)
1. टयूर े म थल के धंसाव के माण नह ं मलते ह क तु वहाँ पर परातट और
वलयाकार वाल भि तयाँ पनप गई ह।
2. य द तीन कार क वाल भि तयाँ एक ह म क भ न- भ न अव थाओं के
प रणाम है तो एक ह तट या वीप पर अनुतट और परातट वाल भि तयाँ साथ-साथ
कैसे पाई जाती ह? यह भी धंसाव स ा त से प ट नह ं हो सकता।

15.4.2 डेल का हमनद नयं ण स ा त (Glacial Control Theory of Daly)

सन ् 1909 म डेल महोदय ने हवाई वीप क मौना क (Mavna Kea) नामक वाल भि त पर
हमनद के भाव दे खे और उनका पूण अ ययन करने पर उसने सर 1915 म अपना हमनद
नय ण स ा त तपा दत कया। उसके मि त क म एक वचार आया क वाल भि तय के
वकास और तापमान म घ न ठ स ब ध है। हवाई वीप का वतमान शीतकाल न तापमान वाल
भि तय के वकास के लये आव यक तापमान से कु छ ह ऊपर रहता है। उससे यह न कष
नकला क ल टोसीन हमयुग म हवाई का तापमान के वकास के लये बहु त कम था। अत:
हवाई वीप का वाल भि तय के वकास और तापमान म घ न ठ स ब ध है।
डेल महोदय का मत है क हमयुग म समु जल तल उन 33 से 39 फैदम तक नीचा चला
गया था। इसी समय समु तापमान भी काफ कम हो गया था। लहर ने इस समय जल के
बाहर नकलती हु ई वाल भि तय को काटना ार भ कर दया। तापमान के कम होने से वाल
अ धकांशत: समा त हो गये। वाल भि तय के म य ि थत वीप को लहर ने काटकर चबूतरे
के समान बना दया िजन पर आगे चलकर वाल भि तय का उदभव हु आ।
काला तर म तापमान को ऊँचे उठने से बफ पघलने लगी तथा समु जल तल ऊपर उठा। वाल
भी धीरे -धीरे पानी के तल के उभार के साथ-साथ वाल भि त का वकास ार भ कर दया।
लेटफाम क प र ध पर वाल बि तय का वकास अ धक हु आ।
स ा त के प म माण (Evidences in Support of the Theory)

267
1. डेल महोदय के अनुसार अपर दत लेटफॉम पर हमयुग के बाद वाल भि त का ज म
हु आ। यह त य भू ग भक इ तहास से मा णत होता है। वाल भि त के नमाण के
समय उसका आधार ि थत रहा और प रणाम व प अनूप झील क गहराई समान नह ं
थी।
2. वाल हमयुग के बाद जल-तल म वृ के साथ-साथ वक सत होते गये। यह ग त त
तीस वष म एक मीटर बताई गई थी जो संगत लगती है।

च 15.7 : डेल का हमनद नय ण स ा त


आलोचना (Criticism)
डे वस महोदय ने इस स ा त के व आपि तयाँ उठाते हु ए कहा क -
1. डेल महोदय ने लैगन
ू झील क गहराई समान बताई है क तु कु छ लैगन
ू 20, 120,
300 और 600 फैदम तक गहरे ह। यह गहराई क भ नता कैसे आई है।
2. डेल ने ि थर सतह पर वाल के ज म क बात कह है क तु कु छ ात य ऐसे
अि थर े भी ह जहाँ वाल भि तयाँ पाई जाती ह।
3. िजन समु लेटफॉम का नमाण डेल के अनुसार लहर वारा माना गया वे इतने
व तृत ह क उ ह लहर का काय नह ं माना जा सकता जैसे मालद व के समीप नजोरस
लेटफॉम 350 कमी. ल बा 100 ममी. चौड़ा और 100 मीटर ऊँचा है।

268
15.4.3 मरे का ि थर थल स ा त (Muray’s Stand Still Theory)

मरे और पै सर महोदय ने काफ समान वचार कट कर परातट और वलयाकार वाल े णय


क उ पि त के वषय म दये है। उ ह ने अपने स ा त को दो त य के आधार पर आगे बढ़ाया
है।
1. वाल भि तयां केवल छछले पानी म ह वक सत होती ह। अत: उ ह ने ऊँचे लेटफाम
क उपि थ त के बारे म वचार कया िजन पर वाल वक सत हो सके।
2. समु का तल अप रवतनशील रहा।

च - 15. : मरे का ि थर थल स ा त
मरे ने यह वचार कया क समु म कई जलम न चो टयाँ पाई जाती ह। इनम से कु छ समु
तल से भी ऊपर उठ हु ई ह। इन ऊपर उठ हु ई चो टय पर लहर ने नर तर ग त से आ मण
करना आर भ कर दया। उसका मत है क ये चो टयाँ समु लहर वारा इतनी काट द गई क
उन पर वाल जीव अपने को वक सत कर सक। मरे महोदय के वचारानुसार जब वाल भि त
जल तल तक बनती हु ई पहु ँ च जाती है तब उसके आ त रक भाग म घुलन या ार भ हो
जाती है। इसी घुलन या के कारण बीच म लैगन
ू झील का नमाण होता है।
स ा त के प म माण (Evidences in Support of the Theory)
1. समु तल और नतल पर पवतीय चो टयाँ अव य पाई जाती ह। इन पर लहर वारा
अपरदन होता है िजसके माण भी मलते ह।
2. चू ने का प थर समु जल से नि चत प से घुल सकता है और उससे लैगन
ू झील का
नमाण संभव है।
आलोचना (Critisism)
1. समु पानी उ तम घोलक नह ं है। अत: इतनी बड़ी और गहर अनूप झील घुलन या
वारा नह ं बन सकती है।
2. डे वस ने मरे वारा भू-आकृ त के नयम का उ लंघन करने क ती आलोचना क है।

269
15.4.4 आगासीज का अपरदन स ा त (Agassiz’s Erosional Theory)

आगासीज, गाड नर (Gardiner), एटल (Atal) आ द व वान ने एक से ह वचार तु त कए।


उनका मत है क समु लहर के वारा थल और वीप को काटकर जलम न लेटफॉम क
रचना कर द जाती है। इन पर वाल का पतल परत के प म वकास ार भ हो जाता है।
आगासीज के मत म ऑ े लया क ेट बै रयर र फ, फजी क वाल भि तयाँ, ता हती आ द
सभी इसी कार बनी ह। वलयाकार वाल भि त के नमाण के स ब ध म उनका मत है क
परातट भि तय के नमाण के बाद भी लहर का कटाव म य भाग म नर तर याशील रहता
है िजससे लैगन
ू का नमाण हो जाता है। उनके मत म लैगन
ू म ि थत वीप भी कटाव से
समा त हो जाते ह।

स ा त के प म माण (Evidences in Support of the Theory)


1. लहर के कटाव से लेटफॉम का बनना वाभा वक है।
2. लहर के म यवत कटाव से लैगन
ू का नमाण भी समझा जा सकता है तथा वीप का
अपरदन भी वाभा वक है।
3. हाटन (Wharton) ने इस मत का समथन करते हु ए लैगन
ू क समान गहराई को इस
मत से समझे जाने पर जोर दया है।
आलोचना (Criticism)
1. इस मत के अनुसार वाल सागर म भृगु पाये जाने क बात कह है। क तु वा तव
वाल समु म बहु त ह कम भृगु पाये जाते ह। अत: स ा त अप रप व है।
2. सबसे मह वपूण आलोचना इस त य को लेकर है अवरोधक वाल भि त के नमाण के
बाद भी लहर वारा भावशाल कटाव और लैगन
ू का बनना जार रहता है। यह स भव
नह ं है।

15.4.5 डे वस क प रक पना (Davis’s Hypothesis)

डे वस ने कसी नये स ा त का तपादन नह ं कया वरन ् डा वन के नम जन स ा त को ह


वतमान भू आकृ तय क खोज के आधार पर आगे बढ़ाया। डे वस ने तट रे खाओं क बनावट के
अ ययन वारा ह वाल रो धकाओं तथा वाल वलय क उ पि त के म को समझाने का
यास कया है। डे वस का न कष यह है क अवतलन स ा त के साथ साथ य द हम युग म
होने वाले समु के तल एवं उनके तापमान म उतार-चढ़ाव को मलाकर भी दे खा जाए, तो सभी
कार के वाल भि तय क उ पि त क सम या का हल नकल सकता है। वाल भि तय का
उनके आधार के साथ वषम व यासी सं पश (Unconformable contact) तथा वाल भि तय
से घरे हु ए वीप के अपरदन से ा त मलवे का वसजन दो अ य मह वपूण बात ह िजनक
ओर डे वस ने यान दलाया।

बोध न- 2
1. व व क सबसे बड़ी अवरोधक वाल भि त कहाँ ि थत है ?
………………………………………………………………………………………………

270
………………………………………………………………………………………………
2. वाल के वकास के लए अनू कू ल समु तापमान या है ?
………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………
3. वाल या है ?
………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………
4. भारत म वाल क रचना कहाँ पाई जाती है ?
………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………
5. लहर के कटाव स ा त के तपादक कौन थे ?
………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………
6. हमनद नय ण स ा त के तपादक कौन थे ?
………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………

15.5 महासागर य संसाधन


15.5.1 महासागर - भ व य के संसाधन (The storehouse future)

व व म जनसं या क ती वृ से खा य पदाथ तथा ाकृ तक संसाधन के अभाव का संकट


उ प न होना नि चत है। भारत जैसे अनेक दे श इस संकट का ारि भक दौर झेल भी रहे ह।
उपयु त ि थ त से नपटने हे तु भ व य म महासागर एव उनके संसाधन पर सहज ह ि ट
ठहरे गी जो सम त मानव जा त को इस भयावह संकट से नकाल सकने म स म है। भ व य म
मानव जा त को महासागर से न न आव यकताओं क पू त होने क स भावना है -

15.5.1.1 महासागर एवं खा य आपू त (Ocean and food supply)

व व के कु ल भोजन का 10 तशत भाग जल य भाग से उपल ध होता है। मछल जो ोट न


यु त उ तम खा य पदाथ है महासागर य संसाधन है। ती ग त से बढ़ती जनसं या हे तु थल य
संसाधन के व तार क स भा यता अ य प रह गयी है। जनसं या क वृ के साथ-साथ
खे तहर भू म कम होती जा रह है। य क इनका उपयोग आवास आ द के प म होता जा रहा
है। ऐसी अव था म महासागर य संसाधन क ाि त के त नयोिजत अ भयान चलाने क
आव यकता है। समु म अनेक कार के शैवाल तथा पादप लावक उगते ह, जो ोट न स प न
होते ह। महासागर इन वन प तय के अन त भ डार ह। मछ लय क कु ल 30 हजार के लगभग
जा तय म से 20 हजार जा तयाँ महासागर म पायी जाती ह। म यो पादन मु य प से

271
जापान, टे न, संयु त रा य अमे रका, कनाडा एवं नॉव म होता है। स पूण व व म भोजन के
उ े य से हर वष लगभग 10 करोड़ टन मछल पकड़ी जाती है।

15.5.1.2 महासागर एवं ख नज संसाधन (Ocean and Minerals)

समु जल एवं इसके नतल म व भ न कार के आ थक मह व वाले ख नज व यमान ह।


समु जल लवणयु त होता है िजसम घुला लवण कु ल जल का 3.5 तशत होता है। कु ल
लवण का 78 तशत खाने यो य होता है। संसार का लगभग 40 तशत ख नज तेल (Mineral
Oil) महासागर य े से ा त होता है। भारत म वतमान समय म कु ल तेल उ पादन का 50
तशत से भी अ धक ह सा ''बॉ बे हाई'', ख भात क खाड़ी एवं गोदावर बे सन आ द अपतट य
समु े से ा त हो रहा है। उ योग म क चे माल के प म यु त अनेक ख नज जैसे
पोटे शयम आयोडीन, फॉ फोराइ स, मै नी शयम, ोट न आ द भी समु नतल से ा त होते ह।
महासागर य कटक म टाइटे नयम यु त वशाल लौह-मै नी शयम के भ डार भरे पड़े ह। अकेले
शा त महासागर म ह 10,000 करोड़ टन ख नज ह, िजनम मगनीज, लौह अय क, कोबा ट
न कल आ द मु ख ह। आण वक ख नज म यूरे नयम, थो रयम आ द समु नतल म
व यमान ह। संसार के कु ल ोमीन का दो तहाई भ डार सागर य जल म है।

15.5.1.3 महासागर शि त के ोत (Ocean as source of Energy)

महासागर य लहर म असी मत ऊजा होती है। ये लहर कु छ सेमी से लेकर 15 मीटर तक क
ऊँचाई क होती ह। वै ा नक के अनुसार 5 मीटर से अ धक ऊँचाई वाल लहर वाले समु े
पर तरं गीय जल व युत ऊजा संयं था पत कया जा सकता है। समु तरं ग को ऊजा म
पा त रत करने हे तु कई दे श म यास कया जा रहा है। इसम ांस अ णी है। न दय म शु
जल एवं समु खारे जल का संगम े भी समु ऊजा के लए मह वपूण ोत स हो सकता
है। इनके जल म वतमान लवणता क मा ा का अ तर ह ऊजा का ोत है। समु जै वक पदाथ
भी ऊजा उ पादन का काय कर रहे है। समु घास आजकल गैसीय धन हे तु योग म आ रहा
है।

15.5.1.4 महासागर पेयजल के ोत के प म

लवण यु त होने के कारण समु जल य प से पेयजल के प म काम म नह ं आता है।


क तु भ व य म आव यकता पड़ जाने पर इसको पेय बनाया जा सकता है। अत: अ य वक प
के अभाव म समु खारे जल को पीने यो य बनाने के लए इसको लवण र हत करना ह एक
मा उपाय है। इसके लए व व भर म 500 संयं लग चुके ह, जो समु जल को पीने यो य
बनाते ह।

15.3.1.5 अ य (Others)

वै ा नक ने योगशालाओं म समु वन प तय एवं ा णय म से व भ न औष धयाँ व


रासाय नक यौ गक खोज नकाले ह, िजनका उपयोग व भ न रोग के उपचार म कया जाता है।
इसके अ त र त महासागर हमार जलवायु को अ य धक भा वत करते ह। ये प रवहन रख
यापार के मु ख माग दान करते ह। पयटन क ि ट से भी इसका काफ मह व है।

272
15.6 महासागर य दूषण (Marine Pollution)
सागर य जल का दूषण मु य प से सागर तटवत य भाग म नगर य एवं औ यो गक अप श ट
पदाथ के वसजन के कारण होता है। महासागर य जल म आव यकता से अ धक काब नक तथा
अकाब नक पदाथ, औ यो गक संयं के रासाय नक अप श ट (मृत ा णय के दै हक वसजन
आ द से जल क सहज ( ाकृ तक) संरचना एवं व प दू षत हो जाता है िजसका मनु य तथा
अ य ा णय पर घातक भाव पड़ना अव य भावी है।
महासागर य दूषण के कारण (Causes of Marine Pollution)
समु दूषण के अनेक कारण ह - रे डयोधम पदाथ का वसजन, तटवत नगर के घरे लू मल
एवं औ यो गक अप श ट वशेषकर वषैले (Toxic) पदाथ का सागर म वाह, तेल टकर का
समु म प रवहन, अपतट य तेल वेधन (Oil drilling) आ द।
सघन आबाद े तथा जल के सी मत आदान- दान वाले समु े ती दूषण के े बन
जाते ह, यथा कैि पयन सागर, भू म य सागर, बाि टक सागर आ द।
महासागर य जल म सबसे अ धक दूषण पै ो लयम पदाथ के न कासन एवं प रवहन से होता
है। संसार भर के 60 तशत तेल का आयात- नयात समु माग से होता है और इस तेल रा श
का कु छ भाग सागर सतह पर फैल जाता है जो दूषण का कारण बनता है। इसके अ त र त
समु तट य भाग एवं गहरे भाग (Off shores) से ख नज तेल के नकाले जाने के दौरान
व भ न तरह क असावधा नयाँ रख दुघटनाओं के कारण समु जल म तेल क मा ा फैल जाती
है। इसके दूषण से समु जीव एवं वन प तय के लए खतरा उ प न हो जाता है। सन ् 1991
म जनवर -फरवर म हु ये खाड़ी यु के दौरान ईराक ने ख नज तेल को साम रक अ के प म
योग करते हु ए लाख टन तेल फारस क खाड़ी म उं डेल दया िजस कारण उ तर खाड़ी का जल
पूणतया दू षत हो गया। आयल टकर से रसा हु आ तेल सागर य सतह पर ती ता से फैल जाता
है। इस तरह फैले हु ए तेल को आयल ि लक कहते ह। इसके वारा सागर य जल वषैला हो जाता
है। इस कारण बहु मू य मछ लय स हत अनेक सागर य जीव मर जाते ह।
क टनाशक (Pesticides) एवं वषैले औ यो गक पदाथ से तट य समु भाग म दूषण होता
है। वचा लत वाहन के धु एँ से पयावरण म सीसे (Lead) क मा ा बढ़ जाने पर वायुम डल म
या त ये दू षत पदाथ सागर य पयावरण पर भी तकू ल भाव डालते ह। डटज ट, उवरक
तथा सीवरे ज एवं जै वक अप श ट जैसे दूषक (Pollutants) भी पयावरणीय असंतल
ु न म सहायक
बनते ह।
सागर य दूषण पर नयं ण
समु म तेल के फैलने एवं रे डयोधम दूषण को रोकने हे तु अ तरा य सहयोग अ नवाय है
िजसके लए 1962 म एक मह वपूण यास कया गया िजसम न न कानून क यव था क
गई -
1. सभी समु प तन पर ऐसे जलाशय बनाये जाने चा हये िजसम तेल अप श ट फका जा
सके।
2. येक जलयान म उसक तल से तेल एवं चकने पदाथ के रसाव को रोकने हे तु
यव था होनी चा हये।

273
3. टकर को उनक टं कयाँ समु म धोने क मनाह हो।
4. टकर के डू बने तथा तेल पाइप लाइन के टू टने से होने वाले दूषण को रोकने का उपाय
अपे त ह।
5. अ य महासागर य जल दूषक यथा मल एवं कचरा छोड़ने वाल न दय से दूषण को
नवा रत करने हे तु न दय के समु म गरने से पूव जल को वशु करने क
आव यकता पर जोर दया जाना चा हये।
बोध न- 3
1. भ व य के संसाधन का भ डार कसे बताया गया है?
…………………………………………………………………............................................
..............................................................................................
2. समु दूषण का मु य कारण या है?
..............................................................................................
...............................................................................................
3. समु जल से ा त सबसे मह वपूण खा य व तु कौनसी है?
....................................................................................................
.....................................................................................................

15.9 सारांश
भू म डल के दो तहाई भाग पर ि थत महासागर म तलछट का न ेप होता है। इनका वतरण
सभी जगह समान नह ं है वाल के वारा अनेक भि तय और वीप क रचना हु ई है। वाल
भि तय और वाल वीप वलय क उ पि त क सम या बड़ी ज टल है। य य प व वान म
यथे ट मतभेद है तथा प डा वन व डाना के अवतलन स ा त को अ धक मा यता ा त हु ई है।
डैल ने वयं अवतलन क थानीय घटना को अ वीकार नह ं कया है। वा तव म वाल
भि तय के ज म व वकास को समझने के लए दोन स ा त पर पर पूर क ह वरोधी नह ं।
महासागर हमारे लए भ व य के भंडार ह िजनम अनेक कार के संसाधन सं चत ह। इनका
आ थक मह व है। पर तु इनम होने वाला दूषण भी एक मु ख सम या है िजसके अनेक कारण
ह। महासागर म होने वाले दूषण को रोकने के लए हम कड़े-कड़े से उपाय क आव यकता है।

15.10 श दावल
थलजा : इसम कंकड़, मलबा, रे त और क चड़ सि म लत होते ह।
संधु पंक : समु जीव के अवशेष।
लाल मृ तका : समु के िजस भाग म समु जीव के पंक क मा ा बहु त कम होती है वहाँ
लाल मृि तका बनती है।
वाल : यह एक समु जीव होता है इसे मू ंगा भी कहते ह।
वाल भि त : वाल के कंकाल क पत के जमने से इनका नमाण होता है।
पे ट साइ स : क टनाशक पदाथ।
दूषक त व : जो त व पयावरण को दू षत करते ह।

274
15.11 स दभ थ
1. लाल., डी. एस. : जलवायु एवं समु व ान, शारदा पु तक भवन,
इलाहाबाद, 2001
2. म कहाउस, एफ. जे. : ं सपल ऑफ फ जीकल यो ाफ , यू नव सट ऑफ
ल दन, ल दन ेस, ल दन, 1962
3. नेगी, बी. एस. : भू आकृ त व ान के स ा त, मेरठ, 1981
4. ट अस, जे. ए. : द अन टे बल अथ, मे यू ए ड कं. ल., ल दन, 1961
5. शमा, एच. एस. एवं अ य : भौ तक भू गोल, पंचशील काशन, जयपुर , 2003

6. त खा, आर.एन.(2005) : भौ तक भू गोल, मेरठ, 2005


7. वूर लज, एस. ड यू ए ड : एन आउट लाइन ऑफ योमोरफोलोजी ल गमे स,
मोरगन, आर. एस. 1963

15.12 बोध न के उ तर
बोध न- 1
1. बड़े कण वाले वालामु खी पदाथ 2. 2
2. लो बजे रना
बोध न- 2
1. ऑ े लया 2. 20oC
3. एक समु जीव 4. अ डमान वीप समू ह म
5. गा डनर 6. डेल
बोध न- 3
1. महासागर
2. औ यो गक अप श ट
3. लो रन

15.13 अ यासाथ न
1. महासागर य न ेप क ववेचना क िजए।
2. सागर य न ेप के ोत या ह? इनके कार का व तृत ववरण ल खए।
3. ऊज से आप या समझते ह। व भ न कार के ऊज का वणन क िजये।
4. महासागर य न ेप को वग कृ त क िजए तथा उनका व तृत वणन क िजये।
5. वाल भि त या है? व भ न कार क वाल रचनाओं का वग करण क िजये।
6. वाल भि त के वकास के लए अनुकू ल दशाएँ या ह?
7. डा वन तथा मरे के वाल क उ पि त स ब धी स ा त क ववेचना क िजए।
8. वाल भि त एवं वलन क उ पि त के स दभ म कसी एक स ा त क आलोचना मक
या या क िजये।

275
9. “महासागर भ व य के संसाधन के भ डार ह'' या या क िजए।
10. महासागर य दूषण के कारण, भाव तथा नयं ण के उपाय बताइये।

276

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