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पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज थान)

संयोजक एवं सद य
संयोजक
डॉ. एच.बी. न दवाना 5. डॉ. संजीव भानावत
पु तकालय एवं सूचना व ान वभाग अ य , जनसंचार के
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा राज थान व व व यालय, जयपुर

सद य 6. ी राजे बोडा
1. ो. दे वेश कशोर 2. डॉ. रमे श च पाठ थानीय संपादक, दै नक भा कर
नदे शक (से. न.) वभागा य जयपुर
इले ॉ नक मी डया ोड शन सटर प का रता एवं जनसंचार वभाग 7. ी राजन महान
इि दरा गांधी रा य मु त लखनऊ व व व यालय, लखनऊ राज थान यू रो चीफ
व व व यालय नई द ल एन.डी.ट .वी. जयपुर
3. ो. रमे श जै न 4. डॉ. अ नल कुमार उपा याय 8. ी न द भार वाज
वभागा य (से. न.) वभागा य नदे शक
प का रता एवं जनसंचार वभाग प का रता एवं जनसंचार वभाग दूरदशन, जयपुर
वधमान महावीर खुला व व व यालय, महा मा गांधी काशी व यापीठ,
कोटा वाराणसी

संपादन एवं पाठ ले खन


संपादक
डॉ. अ नल कुमार उपा याय
वभागा य , प का रता एवं जनसंचार वभाग
महा मा गांधी काशी व यापीठ, वाराणसी
पाठ ले खक
 ो. ओम काश संह (2,5,9,13)  ी न द भार वाज (11,12)
संकाया य नदे शक
महामना मदन मोहन मालवीय प का रता सं थान संकाय दूरदशन, जयपुर
महा मा गांधी काशी व यापीठ, वाराणसी

 डॉ. यो त सडाना (1,7)  ो. जवार म ल पारख (3,6)


या याता, समाजशा नदे शक, मान वक व यापीठ
एस.एस.जैन सु बोध महा व यालय, जयपु र इि दरा गांधी रा य मु त व व व यालय, नई द ल

 ो. मनोज दयाल (4, 8)  ओम काश (10)


डीन, मी डया अ ययन संकाय काय म अ धकार
गु ज भे वर व ान एवं तकनीक व व व यालय, हसार(ह रयाणा) दूरदशन, जयपुर

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो. नरे श दाधीच ो. एम..के . घड़ो लया योगे गोयल
कु लप त नदे शक भार
वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा संकाय वभाग, पा य साम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार ,
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

उ पादन : अग त- 2012 ISBN NO - 13/978-81-8496-251-2


इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या
अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।व. म. खु. व., कोटा के लये कु लस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत।

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JM/BJ-02
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा (राज थान)

संचार एवं वकासा मक संचार

इकाई सं इकाई का नाम पृ ठ सं या


इकाई - 1 संचार : अथ, व प एवं कार 8
इकाई - 2 संचार के व वध मॉडल 24
इकाई - 3 भारत मे संचार ाि त 37
इकाई - 4 संचार शोध प तयाँ एवं तकनीक 53
इकाई - 5 जनसंचार के नयामक स ा त 80
इकाई - 6 जनसंचार के सामािजक स ा त 93
इकाई - 7 वकास : अथ एवं अवधारणा 110
इकाई - 8 वकास संचार : अथ, अवधारणा एवं या 125
इकाई - 9 वकास म संचार मा यम क भू मका 136
इकाई – 10 कृ ष-संचार और ामीण वकास 150
इकाई – 11 ामीण लेखन और जनसंचार 178
इकाई – 12 ामीण लेखन क भाषा और श प 198
इकाई – 13 वै वीकरण, उदार करण एवं वकास 209

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पा य म प रचय
बी. जे. (एम. सी.) काय म का वतीय पा य म 'संचार एवं वकासा मक संचार' है । इस पाठय म
म 13 इकाइय को शा मल कया गया है, इनका प रचय न नानुसार है :
इकाई-1 संचार : अथ, व प एवं कार: इस इकाई म संचार के अथ, कार एवं व प पर
काश डाला गया है । इसके साथ ह संचार क अवधारणा, संचार एवं सं कृ त के
अंतःस ब ध, संचार क वशेषताओं तथा भारतीय समाज म संचार एवं वै वीकरण
पर चचा क गयी है ।
इकाई-2 संचार के व वध मॉडल : इस इकाई म संचार मॉडल के अथ, उपयो गता एवं कार
को प ट करने के साथ ह उसके वकास पर चचा क गयी है । इसके अंतगत संचार
के व भ न मॉडल को भी दशाया गया है ।
इकाई-3 भारत म संचार ां त : इस इकाई के अंतगत टे ल ाम, टे ल फोन, रे डयो, टे ल वजन
एवं सनेमा क वकास या ा के साथ ह भारत म संचार तकनीक से संबं धत
जानकार को भी तु त कया गया है ।
इकाई-4 संचार शोध प तयाँ एवं तकनीक : इस इकाई के अंतगत संचार शोध क व भ न
प तय जैसे- जनगणना प त, नदशन प त, वैयि तक प त, सांि यक
प त, अवलोकन प त, योगा मक प त, सा ा कार प त, अंतव तु व लेषण
प त स हत मु ख तकनीक जैसे नावल तकनीक, अनु सू ची तकनीक आ द को
व तार पू वक समझाया गया है ।
इकाई-5 जनसंचार के नयामक स ा त : इस इकाई के अंतगत जनसंचार के नयामक
स ा त - भु ववाद स ा त, उदारवाद स ा त, समाजवाद स ा त एवं
लोकताि क सहभा गता के स ा त से जु ड़ी सारग भत जानकार तु त क गयी
है ।
इकाई-6 जनसंचार के सामािजक र ा त : इस इकाई म जनसंचार के सामािजक स ा त
को समझाने के साथ ह समाज एवं मी डया केि त स ा त क या या तु त
क गयी है । इसके अ त र त सू चना समाज एवं जनमत नमाण पर भी काश
डाला गया है ।
इकाई-7 वकास : अथ एवं अवधारणा : इस इकाई के अ तगत वकास के अथ एवं या
को समझाने के साथ ह वै वीकरण, औ योगीकरण एवं आधु नक करण के संदभ
म वकास को समझाने का यास कया गया है ।
इकाई-8 वकारा संचार : अथ, अवधारणा एवं या : इस इकाई के अंतगत वकास संचार
के अथ, अवधारणा एवं या को समझाने के साथ ह आ थक वकास, लोकतां क
सहभा गता, वके करण, राजनै तक संशि तकरण एवं पयावरण संर ण म
वकास संचार क उपयो गता को रे खां कत कया गया है ।

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इकाई-9 वकास म संचार मा यम क भू मका : इस इकाई म वकास या म संचार
मा यम के योगदान को बताने के साथ ह वकास सहयोगी संचार पर चचा क गयी
है ।
इकाई-10 कृ ष-संचार और ामीण वकारा : इस इकाई के अंतगत कृ ष संचार को समझाते
हु ए उसके े , मह व, मा यम स हत उससे जु ड़े व भ न ब दुओं पर काश डाला
गया है । इसके साथ ह ामीण वकास संचार, वकासा मक जनसंचार आ द
मह वपू ण प को भी इस इकाई म समा हत कया गया है ।
इकाई-11 ामीण लेखन और जनसंचार : इस इकाई म ामीण लेखन के व प एवं
वषयव तु को प ट करने के साथ ह ामीण लेखन क तु त एवं स ेषण क
सम या पर काश डाला गया है । इसके अ त र त ामीण लेखन म च लत
सा ह य प को भी इस इकाई म शा मल कया गया है ।
इकाई-12 ामीण लेखन क भाषा और श प : इस इकाई म ामीण लेखन क भाषा और
श प से जु ड़ी साम ी को तु त कया गया है । इसके अंतगत ामीण प रवेश
के लए वषय व तु एवं मा यम पर भी चचा क गयी है ।
इकाई-13 वै वीकरण, उदार करण एवं वकास : इस इकाई के अंतगत वै वीकरण एवं
उदार करण क अवधारणा को समझाने के साथ ह समाज पर पड़ने वाले इनके
भाव को प ट कया गया है ।

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इकाई-1
संचार : अथ, व प एवं कार
(Communication: Meaning, Nature and Types)
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 स पक, संचार एवं सामािजक या: सामािजक व व क रचना के अवयव
1.3 संचार क अवधारणा: संचार एवं सं कृ त के म य स ब ध
1.4 संचार क वशेषताएं
1.5 संचार के व प
1.6 संचार के कार
1.7 संचार, भाषा एवं प का रता : य- य मी डया
1.8 भारतीय समाज म संचार एवं वै वीकरण
1.9 सारांश
1.10 श दावल
1.11 अ यासाथ न
1.12 संदभ थ

1.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप:
 ं से प र चत हो सकगेI
संचार तथा समाज के अ त: संबध
 ं को जान सकगेI
संचार क अवधारणा एवं संचार तथा सं कृ त के संबध
 संचार या के मु ख त व से जु ड़ी जानकार ा त कर सकगे ।
 संचार क वशेषताओं से अवगत हो सकगे ।
 संचार के कार को समझ सकगे ।
 संचार, भाषा एवं प का रता तथा य- य मी डया से जु ड़ी जानकार ा त कर सकगे।
 भारतीय समाज म संचार एवं वै वीकरण क अवधारणा को समझ सकगे ।

1.1 तावना (Introduction)


मानव के अि त व क नर तरता के लए अनेक आव यकताओं क पू त करना आव यक
होता है अ यथा उसका अि त व खतरे म पड़ सकता है । मनु य क अनेक मूलभूत
आव यकताओं के अलावा भी कु छ ऐसी आव यकताएं होती ह जो उसे सामािजक ाणी बनाती
ह । सामािजक ाणी बनने के लए उसे अ य यि तय से स पक व संचार करना पड़ा है,
समू ह का नमाण करना पडा है तब कह ं समाज अि त व म आया । यह ं से संचार का एक

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मह वपूण या के प म आर भ माना जाता है । संचार मनु य को न सफ समाज म
था पत करता है बि क सामािजक संबध
ं का ताना-बाना बुन कर सामािजक इकाई को सु ढ़ता
दान करता है ।

1.2 स पक, संचार एव सामािजक या: सामािजक व व क रचना के


अवयव (Relation, communication and social activities :
The elements of the creation of social world)
सामािजक व व क उपि थ त मानव चेतना म िजन याओं के मा यम से होती है उ ह
मश: अवलोकन एवं संचार क सं ा द जाती है । मेरे सामने कोई घटना उपि थत है, का
एहसास मु झे अवलोकन के मा यम से होता है । कोई घटना अतीत म घ टत हु ई है अथवा
भ व य म उसके घ टत होने क संभावना है, का एहसास मुझे सामा यत: उस समय होता
है जब म कसी के स पक म आता हू ँ और वह मु झे इन सबके वषय म स े षत करता
है । स ेषण क यह या िजन मा यम से होती है उ ह च , तीक, भाषा एवं शार रक
हाव-भाव इ या द के वारा अ भ य त कया है । इन सबका एक अथपूण, उ े यपूण एवं
अ तः नभर समु चय जो सामािजक इकाइय क चेतना का भाग होता है, सामा य अथ म
संचार कहलाता है ।
समाज वै ा नक ि ट से संचार एक सां कृ तक अवधारणा है िजसका अथपूण उपयोग
समाजीकरण क या म होता है । मनु य अथवा सामािजक इकाई जब भी अ तः या करती
है तो उसम जहाँ एक तरफ क ता, उ े य, कृ य, ेरणा एवं अ भमु खन तथा सामािजक ि थ त
जैसे अवयव सि म लत होते ह । वह ं दूसर ओर याओं क स यता, स पक एवं संचार
के मा यम से सु नि चत होती है । व तुत: संचार वयं को, वयं के मा यम से अ य को,
अ य के मा यम से वयं को, नकट के सामािजक प रवेश को, यापक सामािजक प रवेश
को एवं सामािजक प रवेश के मा यम से वयं क ि थ त को जानने का वह यास है जो
मेर एवं अ य क सामािजकता को सि म लत करने के लए अ नवाय है । वा तव म य द
संचार नह ं होता तो मेर चेतना म अथात यि त क चेतना म सामािजक व व का अि त व
ह नह ं होता । हमार ि ट म पार प रक स पक मानव स यता म संचार का ार भ है जो
ारि भक दौर म सरल, अ प ट एवं अ यवि थत था पर तु वकास या म भौ तक एवं
अभौ तक सं कृ त के व तार के साथ संचार के प इतने यापक होते चले गए क य द
हम वतमान व व को “संचार समाज” क सं ा द तो कोई अ त योि त नह ं होगी ।
वतमान पाठ इस पृ ठभू म के साथ संचार के व भ न प क न केवल ववेचना पर केि त
है अ पतु इसे वकास क या से भी स ब करता है । प का रता के व याथ के प
म यह पाठ इस त य को तकयु त प म था पत करता है क ''म व भ न संचार मा यम
एवं संचार याओं के उपयोग के वारा ह यह जान पाता हू ँ क समाज मेरे अ दर है और
समाज मेरे बाहर है और साथ ह म उन सामािजक अपे ाओं से प र चत हो जाता हू ँ जो मु झे
भावी समाज क रचना हेतु भू मका के लए े रत करती है । '' उपरो त ववेचन के आधार
पर हम सामािजक व व क रचना के लए उ तरदायी न न ल खत अवयव क चचा कर
सकते ह-
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1. जनसं या क सामािजक रचना अथात ् जा त, जा त, ल गक ि थ त, धा मक ि थ त
इ या द से न मत जनसं या।
2. जनसं या क इन व भ न सामािजक े णय के म य तमान से नद शत अथवा
तमान के वपर त अि त व म आयी सामािजक याएं, सामािजक अ तः याए एवं
सामािजक स बंध ।
3. सामािजक े णय से स ब जनसं या के जीवन म समय-समय पर दशा दे ने वाल
या दशा ा त करने वाल अथ णा लयां, राजनी त,सं कृ त एवं स ब ध नयमन के
व भ न साधन जैसे कानून , पर परा इ या द ।
4. सामािजक इकाइय के म य चेतनाशीलता हेतु य एवं परो स पक, उन स पक
को जीव त बनाएं रखने हेतु मौ खक एवं अमौ खक संचार और इन प म नर तरता
एवं प रवतन को बनाए रखने के लए समाजीकरण स हत श ण क अ य औपचा रक
एवं अनौपचा रक व धयाँ ।
य द आप इन सम त अवयव पर ग भीरता से पर तु व लेषणा मक ि ट से नजर डाले
तो आप पाएग क सामािजक व व के व भ न अवयव क स यता एवं उनके अि त व
क नर तरता को बनाए रखने के लए संचार को एक काया मक पूवाव यकता कहा जा सकता
है । हम यह कह सकते ह क संचार का सामू हक च र सामािजक इकाई को एक सजग
सां कृ तक ाणी बनाता है । यह वह प है जो प का रता को समाज व ान म एक मह वपूण
वषय के प म था पत करता है और मी डया अनुसध
ं ान क उपादे यता को स
करता है ।

1.3 संचार क अवधारणा : संचार एवं सं कृ त के म य स ब ध


(Concept of Communication : Relation between
communication and Culture)
संचार मानव जीवन क वह के य अवधारणा है, िजससे उसके जीवन के अि त व क
नर तरता नधा रत होती है । संचार एवं स पक सामािजक अंतः या के अ नवाय त व ह,
िजनक पुनरावृि त सामािजक स ब ध को न मत करती है । व तु त : सामािजक स ब ध
का जाल ह समाज कहलाता है । अत: संचार समाज के अि त व के लए अ नवाय है । संचार
को न न ल खत वचारक के वारा तु त प रभाषाओं के आधार पर समझा जा सकता है-
ऐलन के अनुसार ''संचार से ता पय उन सम त साधन से है िजसके वारा एक यि त अपनी
वचारधारा को दूसरे यि त के मि त क म डालने या समझाने के लए अपनाता है । यह
वा तव म दो यि तय के मि त क के बीच खाई को पाटने वाला सेतु है । इसके अ तगत
कहने, सु नने एवं समझने क एक वै ा नक या सदै व चलती रहती है’’ ।
आ सफोड ड शनर म संचार क प रभाषा न न कार से द गयी है- “ वचार , जानका रय
आ द का व नमय दूसर तक पहु ँ चाना, चाहे वे मौ खक, ल खत या संकेत म हो, संचार कहा
जाता है ।'’
मनोवै ा नक संदभ म ‘'संचार से ता पय यि तय के बीच वचार और अ भ यि तय के
आदान दान से है ।''
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लॉ मस और बेग स के श द म - ''संचार वह यव था है जो मानव स ब धो म धुर का
काम करती है ।''
उपयु त प रभाषाओं के आधार पर आप संचार क अवधारणा का अथ समझ चु के ह गे । अत:
यह तक दया जा सकता है क संचार सूचना ह तांतरण क एक ऐसी या है िजसम च न
एवं तीक का औपचा रक च र (Syntactic), च न / भाव एवं उनके योगकता के म य
स ब ध (pragmatic) तथा च न एवं तक के म य स ब ध का अ ययन (semantic)
इ या द प को आधार बनाया जाता है । संचार म न न ल खत मु य प क चचा क
जा सकती है-
1. अ तव तु (content) ( या संचा रत करना है)
2. ोत (source) ( कसके वारा करना है)
3. व प (forms) ( कस प म करना है)
4. चैनल (channel) (मा यम या होगा)
5. ापक/ सं ाहक (receiver) ( कसको करना है)
6. भाव (effect) (संदेश का या भाव पड़ा अथात तपुि ट)
संचार या के मु ख त व (Major elements of communication process)
आपने समझ लया होगा क संचार दो तरफा या है जो ेषक/ संचारक तथा ापक/ सं ाहक
के म य स प न होती है । इस या म संचारक का मु य काय संदेश भेजना है और ापक
का काय ा त संदेश क या या करना । संचार या म संचारक यह नणय लेता है क
उसे कब, या, कैसे और कस प म संचा रत करना है । दूसर तरफ ापक/ सं ाहक संचा रत
संदेश को हण करने के बाद उसक या या, व लेषण एवं त या करता है । यह एक
सतत या है जो संचारक एवं सं ाहक के म य या- त या के मा यम से च य प
म चलती रहती है । इस आधार पर संचार या म न न ल खत त व मह वपूण भू मका
नभाते ह-
1. संचारक (communicator)
2. संदेश (message)
3. मा यम (channels)
4. कू ट संकेतन (encoding)
5. संकेत या या (decoding)
6. ापक या सं ाहक (receiver)
7. तपुि ट (feedback)
8. संचार शोर (communication noise)
1. संचारक (communicator/ sender/ encoder) - संचारक वह सामािजक इकाई होता
है जो संदेश का नमाण करता है और उसे ापक क आव यकताओं के अनु प व प
दान करता है ता क ापक उस संदेश को सरलता से समझ सके और उ चत त या
कर सके 1 इसके लए संचारक म कु छ गुण का होना आव यक है, जैसे-
1. संचार कौशल ( लखना, बोलना, पढ़ना, सु नना और तक करना एवं च न व तीक
बनाना),

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2. मनोवृ त (आ म व वास, वचारधारा, यवहार कुशलता एवं वा पटु ता),
3. ान का तर ( वषयव तु क पया त समझ, सकारा मक सोच, संचार के लए उ चत
मा यम का चयन एवं ापक क वशेषताओं का ान होना),
4. सामािजक-सां कृ तक पृ ठभू म ( ापक क आ थक ि थ त, सं कृ त, श ा का तर,
समाजीकरण का तर) इ या द ।
इसके अ त र त संचारक को न न प का भी यान रखना चा हए- संचार का
उ े य, संचार मा यम का ान एवं उपयोग तथा ापक क कृ त (अथात ् वह श त है
या अ श त) ।
2. संदेश (message)- संदेश से अ भ ाय संचार क अंतव तु से है िजसे लखकर, बोलकर,
च बनाकर, या अ य कसी शैल से तु त कया जा सकता है । व तुत: भाषा, तीक,
च , श द, वा य, च , या मतीय आकृ तयाँ, शार रक हाव-भाव एवं व भ न कार
क व नयाँ संदेश नमाण के आव यक त व ह । अत: संदेश का नमाण करते समय
संचारक को न न प का यान रखना चा हए-
1. संदेश क वषयव तु या है?
2. संदेश क ववेचना कैसे क जा सकती है?
3. संदेश का भावी मा यम या हो सकता है?
4. संदेश का हणकता / ापक कौन है अथात ् संदेश का नमाण कस वग या समूह
को ल त करके कया जा रहा है?
व तु त: संदेश का नमाण करना एक मह वपूण या है य क इसी पर संदेश क सफलता
नभर करती है अ यथा संचार या भावह न हो जाती है । इसके साथ ह संदेश को भावी
बनाने के लए भी कुछ बात को सि म लत करना चा हए जैस-े
 संदेश क भाषा सरल व प ट होनी चा हए अथात संदेश सु ा ा होना चा हए ।
 संदेश अथपूण होना चा हए ।
 संदेश संग ठत व मब ढं ग से तु त होना चा हए ।
 संदेश ापक क सामािजक-आ थक पृ ठभू म, शै णक तथा मान सक तर के अनु प
होना चा हए ।
 संदेश आकषक होना चा हए ता क ापक त या करने के लए े रत अथवा बा य हो।
3. मा यम (channels) - संचारक वारा सूचना / संदेश को ापक तक पहु ँचाने तथा ापक
वारा त या को संचारक तक पुन : पहु ँचाने का मा यम चैनल है । यह चैनल ल खत,
मौ खक, शाि दक, गैर शाि दक एवं व भ न जनसंचार मा यम जैसे रे डयो, टे ल वजन,
प -प का, समाचारप , फ म इ या द कार के हो सकते ह । मा यम संचार का एक
मह वपूण साधन है िजसके बना संचार या संभव नह ं हो सकती । संचार मा यम
का चयन करते समय संचारक को न न प का यान रखना चा हए-
1. मा यम का चयन करते समय ोता / ापक क कृ त एवं सामािजक-सां कृ तक
पृ ठभू म का यान रखना चा हए ।
2. मा यम ऐसे हो जो ल त समू ह तक सफलतापूवक पहु ँ च सक ।

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व तु त : संदेश तभी भावशाल होता है जब क वह मा यम के अनु प हो एवं मा यम भी
तभी भावी होता है जब वह संदेश का सरल तुतीकरण कर सके । अत: संचार क सफलता
संदेश एवं मा यम के म य सामंज य पर नभर करती है । संचारक को व तु त संदेश स े षत
करने के लए उ ह ं मा यम को चु नना चा हए िजनसे ापक का तादा य था पत हो चुका
हो । कह -ं कह ं पर तो मा यम संदेश से भी यादा भावशाल दखलाई पड़ता है, अत: सह
मा यम का चयन संचारक के काम को आसान बना दे ता है ।
4. कू ट संकेतन (encoding)- संचारक वारा संदेश को कूट भाषा म प रव तत करना अथात ्
सू चनाओं को च ह , तक , मौ खक संकेत , भाव-भं गमाओं एवं श द के वारा ापक
तक पहु ँ चाना कू ट संकेतन कहलाता है । कुछ कू ट संकेत सावभौ मक/ सामा य होते ह
िजनके अथ सभी के लए बोधग य होते ह एवं कु छ संकेत व श ट होते ह जो उनसे स ब
यि त ह समझ सकते ह । अत: संचार क सफलता के लए ऐसे संकेत का चयन
आव यक है जो वचार को सह प म तु त कर सक तथा संदेश क साथकता को
स कर सक । संकेत का अ प ट होना उसके अथ को ववादा पद बना सकता है ।
अत: यह आव यक है क संचारक एवं ापक दोन को कू ट संकेत का उ चत ान हो
तभी संचार या सफल मानी जाती है ।
5. संकेत या या (decoding)- डको डंग एक ऐसी या है िजसके मा यम से ापक
सू चना/ संदेश म न हत अथ को समझने का यास करता है अथात ् ापक अपनी समझ
एवं बौ क मता के आधार पर ा त सूचनाओं क या या करने का यास करता है
िजसे संकेतवाचक या डको डंग क सं ा द जाती है । संचारक वारा संचा रत अथ तथा
ापक वारा हण अथ म समानता होने पर ह संचार सफल माना जाता है ।
6. ापक या सं ाहक (receiver)-सू चना/ संदेश ा त करने वाल इकाई को ापक या
सं ाहक क सं ा द जाती है । संदेश को समझने के लए या सू चना को डकोड करने
के लए ापक क बौ क मता, शै णक तर तथा भाषा ान मह वपूण भू मका
नभाते ह । य द ापक सू चना का अथ नह ं समझ पाता या गलत अथ समझ लेता है
तो संचार या असफल हो जाती है । अत: संचार क सफलता के लए आव यक है
क ापक सूचना को सावधानीपूवक हण करे , संचारक वारा दए गए दशा- नदश का
पालन करे तथा सू चना का सह अथ समझने का यास करे ।
7. तपुि ट (feedback)- संदेश को संचा रत करने के बाद यह जानना आव यक होता है
क कस सीमा तक और कस संदभ म ापक उ े य को समझ पाया, इसके लए फ डबैक
ा त करना आव यक होता है । तपुि ट से अ भ ाय ापक वारा संदेश के त अपनी
त या य त करना है । यह दो तरफा या है अथात ् जो संचारक से ापक और
ापक से संचारक के म य होती है । ापक अथवा ोता वारा संदेश का तउ तर अथवा
संदेश के बारे म य त क गयी त या ह तपुि ट कहलाती है । फ डबैक के आधार
पर ह संचारक यह नणय कर सकता है क उसे संदेश म प रवतन या प रमाजन क
आव यकता है अथवा नह ं । ापक क त या सकारा मक अथवा नकारा मक तथा
य या परो हो सकती है, पर तु संचार क सफलता के लए फ डबैक ा त करना

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आव यक होता है । यहाँ यह तक दया जा सकता है क फ डबैक संचार क सफलता/
असफलता को नधा रत करता है ।
8. संचार शोर (communication noise)- संदेश को अपने ल त थान तक न पहु ँचने
दे ना अथवा संदेश के माग म बाधा उ प न करना संचार शोर या संचार बाधा कहलाती
है । संदेश क सफलता नयं त वातावरण म कए गए संचार पर नभर करती है । जैस-े
वाहन का शोर, अ प ट लेखन, ती संगीत, संचार मा यम म तकनीक खराबी इ या द
ऐसे भौ तक अवरोध ह जो संचार या को बा धत करते ह िजन पर पूण नयं ण करना
स भव नह होता । पर तु कु छ अवरोध ऐसे होते ह िजन पर नयं ण करना स भव होता
है । जैसे सामािजक-सां कृ तक पृ ठभू म म अ तर होना, भाषा क ज टलता तथा
अनाकषक या असंगत होना इ या द । संचार शोर क उपि थ त म ांसमीशन चैनल पर
ा त और े षत सूचना/ संदेश ु टपूण हो जाता है और स भवत: इि छत भाव अथवा
प रणाम भी उ प न नह कर पाता । संचार शोर को मु यत: दो भाग म बांटा जा सकता
है -
1. तकनीक बाधा जैसे रे डयो पर खरखराहट या ट वी पर झल झलाहट ।
2. संचारक एवं ापक के बीच स ेषण या के दौरान सवमा य अथ का न होना।
इन सभी त व को पढ़कर आप समझ चु के ह गे क संचार एक ज टल सामािजक या है,
िजसम सं कृ त एक मह वपूण भू मका नभाती है । सां कृ तक व भ नताएं संचार क या
को भी व वधता दान करती ह । सं कृ त क एक मह वपूण वशेषता उसका संचा रत होना
है । तभी वह एक थान से दूसरे थान पर, एक सामािजक इकाई से दूसर सामािजक इकाई
को, एक समू ह से दूसरे समू ह को, एक दे श से दूसरे दे श को तथा एक पीढ से दूसर पीढ़
को ह तांत रत होती है । व तुत : य द संचार क या नह होती तो सं कृ त का भी अि त व
नह ं होता । इस लए हमार ि ट म मनु य क सामािजकता को केवल सं कृ त सु नि चत
नह ं करती अ पतु सं कृ त एवं संचार क अ तः नभरता सु नि चत करती है । सं कृ त सीखा
हु आ यवहार है जो एक यि त से दूसरे यि त, एक इकाई से दूसर इकाई तक संचार के
मा यम से ह ह तांत रत होता है ।
संचार कसी भी सामािजक यव था म सां कृ तक त व क कृ त पर आधा रत है । सं कृ त
म अंत न हत सां कृ तक तक के मा यम से संचार क या का व तार होता है । इन
तक क एक सु प ट या या है ता क कता जब भी इन तक का योग स पक एवं
संचार म करे तो उसके वारा एक नि चत अथ समझा जा सके । मनु य क सभी अंतः याएं
कु छ सावभौ मक तथा कुछ व श ट तक को सि म लत करती ह । उदाहरण के लए- ै फक
स नल के लाल होने पर वाहन का क जाना सावभौ मक तीक है जब क हाथ जोड़कर
स मान करना भारतीय सं कृ त का तीक है । इस अथ म लाल स नल पर कना सावभौ मक
तीक है और हाथ जोड़ना / नम कार करना व श ट तीक को अ भ य त करता है । चू ं क
संचार सदै व सं कृ त से स ब होता है अत: यह समय, थान एवं प रि थ त सापे अवधारणा
है । सं कृ त क ज टलता के कारण यह भी संभव है क एक सां कृ तक तीक व भ
प रि थ तय म अलग-अलग अथ तु त करे ।

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1.4 संचार क वशेषताएं (characterstics of communication)
संचार क ज टल या को न न ल खत वशेषताओं के आधार पर समझा जा सकता है-
1. संचार सूचना ह तांतरण क एक या है अथात ् संचार एक ऐसी या है जो मनु य
म वभ प तय के मा यम से सूचनाओं के व नमय को संभव बनाती है ।
2. संचार या तक , च न , भाषा, शार रक हाव-भाव, पश तथा ने स पक इ या द
के वारा स प न होती है । साथ ह इसम ौघो गक य वधाओं का भी योग होता है
जो थानीय/ लोकसंचार से जनसंचार क तरफ हु ए बदलाव को प ट करता है ।
3. संचार यि त- यि त, यि त-समू ह और समू ह-समूह के म य हो सकता है ।
4. संचार एक सृजना मक एवं ग तशील सतत ् या है ।
5. संचार क या का मु य उ े य मनु य के अि त व क नर तरता को बनाए रखना
है य क संचार के मा यम से ह मनु य अपनी सम त आव यकताओं क पू त करता
है ।
6. संचार क या के वारा ह सं कृ त का ह तांतरण होता है िजसके वारा मनु य समाज
का स य सद य बनता है और समाज के वकास म योगदान करता है ।
आपने अब तक यह अनुभव कर लया होगा क संचार एक मह वपूण सामािजक या है ,
िजसने मनु य को जैवक य ाणी से सामािजक ाणी म प रव तत कया ।
बोध न - 1
(क) संचार से आप या समझते ह?
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(ख) संचार या म तपुि ट का या मह व है ?
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(ग) रे डयो पर आवाज प ट सु नाई न दे ना संचार या का कौनसा त व है?
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(घ) संचार मानव जीवन के लए बु नयाद त व है , कैसे?
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1.5 संचार के व प (Forms of communication)
संचार मानव समाज का आधार है । मानव समाज के वकास के साथ-साथ संचार के व भ
व प वक सत हु ए िज ह मु यत: दो भाग म वग कृ त कया जाता है-
1. शाि दक संचार
2. अशाि दक संचार
1. शाि दक संचार : इस संचार म भाषा का मह वपूण थान होता है । भाषा तक , श द
एवं याकरण क एक संग ठत यव था है । सामा यत: मनु य भाषा बा यकाल म सीखता
है । शाि दक संचार का उपयोग मनु य वारा ह मु यत: कया जाता है । शाि दक संचार
को दो भाग म वग कृ त कया जाता है- (अ) मौ खक संचार (ब) ल खत संचार
(अ) मौ खक संचार- जब सूचनाएं अ ल खत हो अथवा मुख वारा संचा रत क जाए, उसे
मौ खक संचार क सं ा द जाती है । मौ खक संचार वारा सामू हक वचार का
वकास होता है जो ान के वकास म सहायक होता है । अत: मौ खक संचार, संचार
का सरल व भावशाल म यम है । टे ल फोन रे डयो, वातालाप, पैनल टॉक, सेमीनार,
स पोि यम स मेलन एवं भाषण इ या द मौ खक संचार के मु ख मा यम ह ।
जहाँ एक तरफ मौ खक संचार समय व धन क बचत करता है तथा समझने म आसान
होता है वह ं दूसर तरफ इसम भाषा व शोर क सम या तथा गोपनीयता का अभाव
होता है ।
(ब) ल खत संचार- जब सू चनाएं लखकर संचा रत क जाएं तो उसे ल खत संचार क
सं ा द जाती है । यह संचार का औपचा रक मा यम है िजसका योग मु यत:
सं थाओं के म य सूचनाओं के व नमय म कया जाता है । ल खत संचार मा यम
म फाम, समाचार बुले टन, पै पलै स प , नयम पुि तका, बुकले स , प काएं एवं
पो टस इ या द को सि म लत करते ह ।
ल खत संचार म व वसनीयता, गोपनीयता, सूचनाओं का संर ण एवं संशोधन व
प रवतन क संभावना होती है वह ं इस कार के संचार म ु टपूण या या , फ डबैक
का अभाव, लाल फ ताशाह को बढ़ावा एवं केवल श त के लए योग क संभावना
भी पायी जाती है ।
2. अशाि दक संचार : संचार केवल भाषा के मा यम से ह स भव नह होता अ पतु.. शार रक
हाव-भाव (gesture), मु ख अ भ यि त (facial expression) तथा आवाज का
उतार-चढ़ाव (pitch) इ या द के मा यम से भी संचार स भव होता है, िजसे अशाि दक
संचार क सं ा द जाती है । अथात ् बना श द के यि त वारा अपने वचार भावनाओं
तथा अ भ यि तय को दूसर तक पहु ँ चाना, अशाि दक संचार कहलाता है । यह भी संचार
का एक मह वपूण मा यम है य क सभी जगह और हर समय श द / भाषा का योग
करना स भव नह ं होता है, ऐसे म अशाि दक संचार ह भावी भू मका का नवाह करता
है ।

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1.6 संचार के कार (Types of communication)
संचार मनु य का वाभा वक गुण है । संचार या के वारा ह मनु य सामािजक स ब ध
को न मत करता है । स ब ध के सम से समाज बनता है । अत: संचार मानव समाज
क आधारभू त आव यकता है । इस कार संचार वयं के तर पर, अ य यि त के साथ,
समू ह के साथ और समाज के साथ स प न होता है । इस संदभ म संचार के न न कार
क चचा क जा सकती है-
1. अ तरावैयि तक अथवा आ या तर संचार (Intrapersonal communication)
2. अ तवैयि तक संचार (Interpersonal communication)
3. समू ह संचार (Group communication)
4. जनसंचार (Mass communication)
1. अ तराषैयि तक संचार (Intrapersonal communication) - मानव जीवन के सभी
कार के संचार का आधार अ तरावैयि तक संचार है । यह एक मान सक या है
िजसम यि त आ म-अवलोकन करता है । इस या म मनु य वयं से संवाद करता
है और वयं का व लेषण करता है । इसे सरल भाषा म “आ मा क आवाज” क सं ा
भी दे ते ह । उदाहरण के लए मनन करना, यान लगाना तथा ाथना करना इ या द
अ तरावैयि तक संचार के व भ न व प ह । व तु त: यह कहा जा सकता है क इस
कार का संचार अभौ तक एवं अ तमु खी वृि त का होता है । यह संचार नवीन ान
क उ पि त और वकास म भी सहायक होता है । अ तरावैयि तक संचार म वैयि तक
भ नता दे खी जा सकती है अथात ् एक ह वषय पर व भ प कार के लेखन म
अ तरावैयि तक संचार के कारण अ तर पाया जाता है ।
2. अ तवैयि तक संचार (interpersonal communication) - अ तवैयि तक संचार के
वारा ह समू ह का नमाण स भव हु आ । व तु त: दो या दो से अ धक यि तय के म य
स पक एवं अ तः या अ तवयि तक संचार को वक सत करती है । यह एक वमाग य
या है िजसम संचारक वारा े षत संदेश को ापक हण करके फ डबैक दे ता है ।
इस कार संवाद के आदान- दान से संचार म नर तरता बनी रहती है । यह संचार मौ खक
अथवा सांके तक प म हो सकता है । प यवहार, टे ल फोन संवाद, टे ल -का े संग
इ या द अ तवयि तक संचार के उदाहरण ह । यह एक सहभागी संचार क या है
िजसम एक यि त कभी संचारक क भू मका नभाता है और कभी ापक क । अथात ्
यि त संचार म स य भू मका का नवाह करता है । अ तवयि तक संचार म संचारक
व ापक के म य य सामािजक स ब ध होते ह और इस कारण इसका व प मू लत:
भावना मक होता है । इसे न न कार से समझा जा सकता है-

3. समू ह संचार (Group communication)- यह अंतवैयि तक संचार का ह यापक प


है । समू ह से अ भ ाय दो या दो से अ धक यि तय के म य अथपूण व उ े यपूण ढ़ं ग
से होने वाल अ तः या से है तथा िजसम यि त समू ह क सद यता के त चेतनशील

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होते ह । अत: समू ह संचार के अ तगत दो या दो से अ धक यि तय के म य वाद- ववाद,
वचार- वमश, गो ठ , सा ा कार, कायशाला तथा सभाओं को सि म लत कया जाता है
। समू ह संचार म य संवाद होता है । यह औपचा रक एवं अनौपचा रक कार का
हो सकता है । उदाहरण के लए कायशाला, गो ठ , बैठक इ या द के दौरान एक त समू ह
को औपचा रक समू ह कह सकते ह जब क चाय-ना ते, भोज, नृ य व जलसे आ द के लए
न मत समूह अनौपचा रक समू ह कहलाते ह । इस ि ट से समू ह क अवधारणा को कई
कार म वग कृ त कर सकते ह-
1. ाथ मक समू ह एवं तीयक समू ह
2. अ त: समू ह एवं बा य समू ह
3. लघु समू ह एवं वृह समू ह
4. थायी समू ह एवं अ थायी समू ह
5. हत समू ह एवं दबाव समू ह इ या द
चू ं क समूह संचार म समू ह के सद य के म य पर पर वचार एवं अनुभव का आदान- दान
होता है । अत: इस कार का संचार सम याओं के समाधान हे तु अ धक उपयोगी होता है ।
साथ ह इस, कार के संचार के वारा समू ह चेतना का वकास और सद य म दा य व बोध
का वकास होता है ।
3. जनसंचार (Mass communication) - जनसंचार एक यापक संचार क या है
िजसम वक सत संचार मा यम अथवा यं चा लत उपकरण के मा यम से व भ न
ापक तक संदेश एवं वचार को पहु ँ चाया जाता है । जनसंचार या म यापक े
म फैले हु ए ापक तक शी ता से स पक स भव है । नवीन सू चना ां त ने जनसंचार
के े को और भी अ धक व तार दया है । प रणाम व प जनसंचार ने भौगो लक
सीमाओं को समा त कया है और व व को एक गाँव के प म उ प न कर “वैि वक
गाँव” क अवधारणा को यथाथ प दान कया है । इसके साथ ह जनसंचार ने मनु य
के सम चयन हे तु अनेक वक प को भी उ प न कया है, अथात ् जो सू चनाएं उसे अपने
अनुकू ल लगती ह वह केवल उनका ह चयन कर सकता है । जनसंचार मा यम म
टे ल वजन, रे डयो, फ म, समाचारप , क यूटर, इंटरनेट, फै स इ या द को सि म लत
कया जा सकता है । वतमान म जनसंचार का काय केवल सूचना ेषण करना ह नह ं
है अ पतु उनका व लेषण, ान एवं मू य का सार तथा मनोरं जन करना भी है । आज
के युग म जनसंचार सजग हर क भाँ त समाज क येक ग त व ध पर नजर रखता
है और उसे सबके सम तु त कर दे ता है । जनसंचार क इस मह वपूण भू मका ने
समाज को 'सूचना समाज' के प म था पत कया है । यहाँ यह तक भी दया जा सकता
है क जनसंचार मा यम ने नजी पेस' एवं 'पि लक पेस'' के म य के अ तर को भी
समा त अथवा सी मत कर दया है ।

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1.7 संचार, भाषा एवं प का रता : य- य मी डया
(Communication, Language and Journalism :
Audio-visual media)
आपने अब तक पढ़ा क संचारक एवं ेषक के म य संदेश का व नमय होता है । यह कई
कार का और कई व प म होता है पर तु यह संदेश व भ कार के चैनल वारा संचा रत
होता है । संचार क सफलता और असफलता उ चत चैनल के चु नाव पर नभर करती है ।
चैनल के व भ व प के प म हम सामािजक अ तः या (social interaction), भाषा
(language) तथा तक (symbols) क चचा कर सकते ह ।
सामािजक अ तः या वह य या अ य या है जो उ तेजना एवं त या के
फल व प उ प न होती है । इस अ तः या का पार प रक भाव यि त- यि त,
यि त-समू ह और समू ह-समू ह के ग या मक स बंध पर पड़ता है । व तुत: यह कहा जा सकता
है क जब दो या दो से अ धक सामािजक इकाइय के म य संग ठत/असंग ठत, वाभा वक/
नयोिजत, अथपूण एवं उ े यपूण अ त: यवहार होता है तो उसे सामािजक अ तः या क
सं ा द जाती है । यह या सामािजक जीवन को ग या मक बनाती है ।
भाषा संचार का एक भावी मा यम है । समाज क संरचना, सं कृ त का नमाण, पर पराएं
और मानव स यता सब कुछ हमार भाषा पर ह आधा रत है । भाषा के वारा ह तक ,
च न एवं वचार के म य स ब ध का वणन कया जा सकता है । साथ ह भाषा के वारा
वचार एवं अ त: याओं का आदान- दान भी संभव होता है । इस आधार पर भाषा के तीन
मु ख व प क चचा क जा सकती है- वा चक भाषा (vocal language), आरे खीय भाषा
(graphic) एवं सांके तक भाषा (gestural language) ।
एक अ य मह वपूण चैनल तीक को माना जाता है । तीक ऐसे संकेत होते ह िजनक
अ भ यि त शार रक मु ाओं, हाव-भाव, नाच-गाने एवं भाषा व सा ह य के मा यम से होती
है।
इन सभी को समझ लेने के बाद संचार मा यम / मी डया क चचा करना आव यक हो जाता
है । संचार मा यम को मोटे तौर पर दो भाग म बाँटा गया है-
1. अ तवयि तक मा यम (Interpersonal medium) या पर परागत लोक मा यम
(Traditional folk medium)
2. अवैयि तक मा यम (Impersonal medium) या आधु नक जन मा यम (Modern
mass medium)

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अ तवयि तक मा यम (Interpersonal medium)- से अ भ ाय पर परागत लोक मा यम
से है । ये ऐसे मा यम होते ह जो यि तय को भावना मक प से भा वत करते ह । इस
कार के मा यम म आमने-सामने का स पक था पत कया जाता है तथा ये एक कार
से मौ खक वृि त के संचार से स बं धत होते ह । ये मा यम सू चना ह तांतरण के साथ-साथ
यवहार या अ भवृि त प रवतन म एक भावशाल भू मका नभाते ह । इन लोक मा यम
म मु ख ह- नौटं क , तमाशा, नु कड़ नाटक, रास, क व स मेलन, मु शायरा, लोक कला, जन
सभाएं, दश नयां, मेल का आयोजन, संगीत, प रसंवाद, सेमीनार एवं कायशालाएं इ या द
। इन मा यम के वारा जनसं या के बड़े भाग को वशेषकर ामीण जनसमू ह को न केवल
बौ क, भावना मक व सौ दयमू लक जानका रयां दान क जाती ह अ पतु उ ह मनोरं जन
के साथ-साथ वचार के सरल संचार हेतु एक वातावरण भी उपल ध कराया जाता है । कसी
भी वकासशील दे श क अ धकांश जनसं या तक वशेषकर अ श त जनसं या तक सूचनाओं
को पहु ँचाने का यह एक भावी मा यम है ।
दूसर तरफ अवैयि तक मा यम (Impersonal medium) ह, िज ह जनसंचार मा यम (मास
मी डया) क सं ा द जाती है । इस कार के संचार मा यम म वक सत यां क उपकरण
के मा यम से सूचना/ संदेश को एक ह समय म एक बड़े जनसमू ह तक पहु ँ चाया जाता है
। जन मा यम म हम टं मी डया (मु त मा यम) और इले ॉ नक मी डया को सि म लत
करते ह । अ तवयि तक संचार क अपे ा यह एक महंगी या है । य द दोन मा यम
म तु लना क जाए तो पहले कार के मा यम म भावना मक अपील स भव है जब क दूसरे
मा यम म ऐसा स भव नह ं । इसके साथ ह पर परागत मा यम हमार सां कृ तक धरोहर
का त न ध व करते ह जब क जन मा यम एक म त कार क सं कृ त का तनध व
करते ह । पर परागत मा यम वारा जनता (Mass) से सीधी अ तः या स भव है जब क
जनसंचार मा यम एवं जनता के बीच सीधी अ तः या का अभाव होता है ।

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1.8 भारतीय समाज म संचार एवं वै वीकरण (Communication in
Indian Society and Globalization)
वतमान समय म संचार मा यम के वकास व सार के फल व प सूचना ौ यो गक व सूचना
ां त क अवधारणाओं ने व प हण कया है । सूचना ां त ने संपण
ू व व को समेट कर
एक “वैि वक गाँव” म बदल दया है प रणाम व प व व के व भ भाग के बीच क भौगो लक
दू रयाँ मह वह न हो गई ह । इस आधु नक संचार को दूरसंचार (telecommunication) क
सं ा द जाती है िजसम रडार, क पयूट र, इंटरनेट, फै स, ई-मेल, फाइबर ऑि टकल केबल,
इनमारसेट पेजर, सेलल
ू र फोन, वी डयो का े संग सेवा, हाइ ड डाक सेवा, टे ल मेडी सन
इ या द को सि म लत कया जाता है । सूचना ौ यो गक ने दै नक काय णाल , उ योग,
श ा, व ान, कृ ष, व तीय णाल एवं च क सा व वा य इ या द े म ां तकार
प रवतन कए ह । इसके साथ ह हमारे सामािजक, सां कृ तक व राजनी तक मू य म भी
प रवतन दे खे जा सकते ह । वै वीकरण क अवधारणा व तुत: संचार मा यम के वारा ह
साथक हु ई तीत होती है । जहाँ तक भारतीय समाज म संचार एवं वै वीकरण क बात है
तो भारत म “वसुधैव कु टु बक ” क अवधारणा ह वै वीकरण क प ट या या कर दे ती
है । िजसम पूरे व व को एक प रवार क सं ा द गयी है । भारतीय संचार दशन को दे ख
तो पाते ह क हमारे समाज म धा मक संचार क या न सफ “वैसु धैव कु टु बकम''् क
अवधारणा पर बल दे ती है बि क बु , महा मा गांधी आ द संचार व ने इस कया पर
मह वपूण काश भी डाला है ।
बोध न - 2
(क) मनु य वारा भगवान क ाथना करना या है ?
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(ख) मा यम तादा मीकरण से आप या समझते ह?
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(ग) पर परागत संचार मा यम आधु नक संचार मा यम से कस कार भ न ह?
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(घ) सू चना ौ यो गक के व तार ने संचार या को कस कार भा वत कया है?
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1.9 सारांश (Summary)
इस पाठ म आपने पढ़ा क संचार कस कार मानव के अि त व का नधारण करने म
मह वपूण भू मका नभाता है । बना संचार के मनु य सामािजक ाणी नह ं कहलाता । संचार
ह वह या है जो समू ह व समाज को उ प न करती है । संचार के वारा ह सं कृ त का
ह तांतरण एक पीढ़ से दूसर पीढ़ को कया जाता है ।
संचार न सफ यि त के यि त व के वकास का आधार है अ पतु मनु य को सामािजक
ाणी बनाने म भी इसका वशेष योगदान है । यह यि त के ान तर को बढ़ाने के साथ
ह साथ उसके यवहार कौशल म नखार लाने का काय भी करता है । यि त के मू य एवं
मानक को प रव तत करके सं कृ त को िजंदा रखने एवं उसे एक जगह अथवा यि त से
दूसर जगह अथवा यि त तक पहु ँचाने का काय भी इस संचार वारा ह संभव है ।

1.10 श दावल (Glossary)


पर परागत मा यम )Traditional Media( : ये ऐसे मा यम होते ह जो
यि तय को भावना मक प से
भा वत करते ह । इस कार के
मा यम म आमनेसामने का -
स पक था पत कया जाता है ।
आधु नक मा यम )Modern Media( : इस कार के संचार मा यम म
वक सत यां क उपकरण के
मा यम से सू चना /संदेश को एक
ह समय म एक बड़े जनसमू ह तक
पहु ँ चाया जाता है ।
सं कृ त )Culture) : मनु य वारा अपनी
आव यकताओं क पू त हे तु िजन
भौ तक व अभौ तक व तु ओं का
वकास कया गया, वह सं कृ त है

सामािजक अ तः या )Social interaction) : दो या दो से अ धक सामािजक
इकाइय के म य अथपू ण एवं
उ े यपू ण अ त यवहार को :
सामािजक अ त: या क सं ा द
जाती है ।

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1.11 अ यासाथ न (Questions)
1. संचार क अवधारणा को प ट करते हु ए इसके आव यक त व एवं कार क चचा क िजए

2. “संचार एवं सं कृ त” अ तःस ब अवधारणाएं है” ववेचना क िजए ।
3. वै वीकरण क या ने संचार को कस कार भा वत कया है? आलोचना मक
व लेषण क िजए ।
4. सं त ट पणी ल खए-
1. संचार के व भ न व प
2. संचार एवं भाषा
3. पर परागत/ लोक मा यम

1.12 संदभ थ (Further Reading)


1. मै वेल, डे नस, 1994, मास क यू नकेशन थयर : एन इ ोड शन, सेज पि लकेशन,
द ल ।
2. डो म नक, जोसफ, आर., 1993, द डायने म स ऑफ मास क यू नके शन, मेक ा हल,
द ल ।
3. उपा याय, डॉ. अ नल कु मार, 2005, प का रता और जनसंचार स ा त एवं वकास,
भारती काशन, धमसंघ का ले स दुगाकु ड, वाराणसी-5
4. मै लुहान, माशल, 2001, अ डर ट डग मी डया, राटलेज, लंदन ए ड यूयाक ।
5. स धी, के. लाल, 1991, बयोडं मास क यू नकेशन, बी. आर. पि लकेशन, द ल ।
6. ड यू, ेम, 1993, द साइंस ऑफ यूम न क यू नकेशन, बे सक बु स ।

23
इकाई-2
संचार के व वध मॉडल
(Communication Models)
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 संचार मॉडल का अथ
2.3 संचार मॉडल क उपयो गता
2.4 संचार मॉडल के कार
2.5 संचार मॉडल का वकास
2.6 संचार णाल
2.7 संचार के मु ख मॉडल
2.7.1 एच डी. लासवेल का मॉडल
2.7.2 सी. ई. आसगुड का मॉडल
2.7.3 वलबर ेम का मॉडल
2.7.4 डी. फे योर का मॉडल
2.7.5 बी. एच. वे ल और एम. एस. मै ल न का मॉडल
2.8 सारांश
2.9 व मू यांकन
2.10 श दावल
2.11 अ यासाथ न
2.12 संदभ थ

2.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप:
 संचार मॉडल के अथ को जान सकगे ।
 संचार मॉडल क रचना के आधार को समझ सकगे ।
 संचार के व भ न मॉडल से अवगत हो सकगे ।
 संचार मॉडल एवं समाज के यवहार को समझ सकगे ।
 व भ न संचार मॉडल म अ तर कर सकगे ।
 मॉडल आधा रत संचार अ ययन क ओर अ सर ह गे ।
 संचार मॉडल क वषयव तु समझ सकगे ।

24
2.1 तावना (Introduction)
संचार जीवन के येक चरण से जु ड़ा है । संचार को समझने के लए मॉडल क समझ होना
ज र है । जैसे कसी भवन के न शे से उसक रचना समझ म आती है उसी तरह संचार
के मॉडल को जानने के बाद संचार क एक अ छ समझ यि त म बनती है । संचार के
'आ य तर', ' अ तवयि तक', 'समू ह' एवं 'जन' जैसे चार कार ह । इन चार कार के संचार
क वृि त एवं रचना अलग- अलग है । इस कारण चार कार क संचार णाल के मॉडल
अलग- अलग ह । यहाँ हम कु छ मु ख संचार मॉडल क चचा करगे ।

2.2 संचार मॉडल का अथ (Meaning of Communication Model)


मॉडल को सामा य बोल-चाल क भाषा म नमू ना, ा प, रे खांकन, न शा, त, आकृ त आ द
नाम से स बो धत करते ह । इसम रे खांकन आ द भी आता है । िजस तरह एक भवन डजाइनर
अपनी आकृ त के नमाण से न मत होने वाले भवन का ढांचा बनाता है तथा उस डजाइनर
वारा बनाये गये भवन के ढांचे को हम मॉडल कहते ह । वैसे ह संचार णाल के लए न शा
अथवा आकृ त बनायी जाती है, िजसे मॉडल कहा जाता है ।
सामािजक व ान म मॉडल का यावहा रक अथ थोड़ा भ न हो जाता है । सामािजक व ान
म मॉडल स ा त के ह एक भाग को कहते ह । वैसे मॉडल पूरे स ा त नह ं है, पर तु मॉडल
सामािजक व ान म स ा त एवं यवहार के मले-जु ले प होते ह । संचार के मॉडल, संचार
के यवहार एवं स ा त प को प ट करते ह । जैस-े कसी यि त को रे डयो सारण के
यवहार को समझना हो तो वह रे डयो टे शन के सारण टॉवर से लेकर रे डयो सेट के वारा
रे डयो सु नने वाले ोता के यवहार के आधार पर बनाये गये रे खा च से इसे समझ सकता
है । इस कार हम कह सकते ह क मॉडल के मा यम से संचार के यवहार एवं स ा त
को सरलता से समझाया जा सकता है ।

2.3 संचार मॉडल क उपयो गता (Utility of Communication Model)


संचार मॉडल के आधार पर संचार के यवहार को समझ सकते ह ।
संचार मॉडल संचार के स ा त को भी प ट करता है ।
संचार मॉडल से संचार के वषय म प ट ि ट बनती है ।
संचार मॉडल बदलते स ा त एवं यवहार को भी प ट करता है ।
संचार मॉडल के वारा व या थय क मृ त म संचार के वषय म एक थायी ान एवं ि ट
का नमाण होता है ।
संचार मॉडल के आधार पर संचार के कसी भी े को सरलता से समझा जा सकता है ।
संचार मॉडल से संचार के ान के लए भाषा स ब धी क ठनाई आड़े नह ं आती ।
संचार मॉडल संचार या को समझने म सहायक होते ह ।

2.4 संचार मॉडल के कार (Types of Communication Model)


आप संचार मॉडल के अथ को समझ चु के ह । अब आप जानना चाहगे क संचार मॉडल के
कतने कार होते ह? वा तव म इस न का उ तर वयं म भी यापक तथा क ठन को ट

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का है । संचार मॉडल को उसके वषय क क ठनता एंव सरलता के आधार पर (क) सरल संचार
मॉडल एंव (ख) दु ह संचार मॉडल म वभ त कर सकते ह । इसके अ त र त नमाण या
के आधार पर इसके (1) श दा मक, (2) च ा मक एवं (3) आकृ त प आ द कार हो सकते
ह । इस कार हम कह सकते ह क संचार मॉडल के कार पूणत: नि चत नह ं ह । सफ
मु ख कार का उ लेख हमने यहाँ कया है । संचार व ान क आव यकता के अनु प संचार
के मॉडल के कार नि चत होते ह । संचार के कु छ मॉडल संचार क कृ त अथवा कार
से जु ड़े हो सकते ह । साथ ह संचार के कु छ मॉडल, संचार के व वध संगठन तथा संचार
क वषयव तु, संचार माग, संचार के चरण, फ डबैक, संचार क र तता आ द से जु ड़े हो सकते
ह । इस ववेचन से प ट है क संचार के मॉडल का नधारण संचार क वषयव तु से जु ड़ा
है ।

2.5 संचार मॉडल का वकास (Development of Communication


Model)
सामािजक व ान एवं ाकृ तक व ान म वै ा नक ने वषय को प ट करने के लए मॉडल
का उपयोग कया है । संचार व ान भी एक सामािजक व ान है । संचार क कृ त को
प ट करने के लए शताि दय पूव से दाश नक , मनोवै ा नक , समाजशाि य,
मानवशाि य ने तथा संचार वै ा नक ने संचार के व भ न मॉडल का वकास कया ।
संचार अ ययन अपने ारि भक चरण म अ त वक सत नह ं था । इसका कारण भी वाभा वक
था य क समाज और समाज आधा रत संचार या का वकास भी ारि भक अव था म
था । समाज क यव था म धीरे - धीरे बदलाव आया । उसी के साथ-साथ संचार के यवहार
म भी बदलाव आया । एक समय ऐसा था, जब मनु य के हाथ म आज जैसे संचार के साधन
जैसे- मोबाइल फोन आ द नह ं थे । इसके वपर त उसके हाथ म उस समय बांसरु आ द
जैसे पर परागत मा यम थे । इस कारण बांसु र युग का संचार मॉडल धीरे- धीरे वकास क
दशा म आगे बढ़ता हु आ मोबाइल संचार युग म वेश कर गया । संचार मॉडल के वकास
के इस म म यां क वकास ने संचार मॉडल को भा वत कया । य क यह सच है क
संचार मॉडल अथवा संचार स ा त वा तव म सामािजक यवहार से ह जु ड़े होते ह तथा
सामािजक यवहार को ह प ट करते ह । इस कारण भी सामािजक वकास के साथ-साथ
वाभा वक प से सामािजक यवहार भी बदलता है । सामािजक यवहार म बदलाव के साथ
ह सामािजक यवहार पर आधा रत मॉडल म भी बदलाव वाभा वक ह है । यह यव था
संचार मॉडल पर भी लागू होती है ।
भारत म ाचीन काल म वै दक युग म संचार क व भ न अव थाओं का ान लोग को था
। उस समय क संचार यव था एवं संचार के मॉडल वतमान जैसे वक सत तथा ज टल थे
। वैसे पि चम म संचार मॉडल पर ारि भक वचार अर तु वारा कया गया । अर तु काल न
समाज म याि क संचार या वक सत अव था म नह ं थी । इसी कारण अर तु के संचार
म मी डया का अभाव है । अर तू के मॉडल को हम इस कार दे ख सकते ह –

(मॉडल 2. 1 अर तु का मॉडल)

26
इस के उपरा त रे डया के वकास के साथ सू चका वैध अथवा बुलेट मॉडल अि त व म आया
। इस मॉडल का वकास थम व वयु के कालख ड के समय हु आ । वतीय व वयु के
समय व-चरणीय संचार मॉडल तथा 1950 के दशक के प चात ् बहु चरणीय संचार मॉडल
अि त व म आया । इसी के उपरा त संचार के े म नर तर याि क वकास होने लगा
। इस वकास के साथ-साथ समाज का संचार यवहार बदला । इस बदलाव ने अनेक संचार
यवहार को ज म दया । उसी के प रणाम व प संचार के व वध मॉडल वक सत हु ए ।
डेवीड बेरकोज का एस.एम.सी.आर.मॉडल -
यह संचार मॉडल एक नि चत सामािजक संरचना म संचार क या म ोत या ोता के
भाव या अि त व को प ट करता है । इस मॉडल म सामािजक यव था एवं सं कृ त को
मु खता से थान दया गया है । इसम ानेि य के मह व को भी समझाया गया है ।

बोध न - 1
(1) संचार मॉडल या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(2) या संचार मॉडल' समाज यवहार पर आधा रत' होते ह ?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(3) संचार मॉडल के वकास को रे खां कत कर?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

2.6 संचार णाल (Communication System)


संचार मॉडल के वषय म आप पढ़ चुके ह । इस म म आप के मन म संचार के वषय
म भी जानने क इ छा होगी । य क िजस संचार मॉडल पर हम बात कर रहे ह, वा तव
म वह संचार या है? संचार को हम सूचना अथवा संदेश भेजने क या कहते ह । इसे
हम इस कार समझ सकते ह -

27
समाज म सूचना भेजने क या नरं तर चलती रहती है । वा तव म हम वचार कर तो
प ट होगा क यह संसार वा तव म सूचना संसार ह है । समाज और संचार दोन का आधार
मनु य है । इस कार समाज और संचार क सबसे छोट इकाई मनु य तथा बड़ी इकाई समाज
है । यि त और समाज के बीच और भी कई इकाइयां अथवा क ड़यां ह । इन क ड़य अथवा
इकाइय को हम ' लघु समूह ' एवं 'समू ह' आ द नाम से जानते ह । इस कार संचार क ि ट
से ' यि त', 'लघु समू ह', ' समूह' एवं ' यापक समाज' आ द चार त व मह वपूण ह । इन येक
चार इकाइय म संचार णाल का व प पर पर भ न कार का होता है । इसी आधार पर
हम संचार को भी कई भाग म बांटते ह ।
समाज क थम एवं छोट इकाई ' यि त' है । इस कारण यि त म होने वाले संचार को
हम ' आ य तर संचार' क सं ा दे ते ह । समाज क दूसर छोट इकाई 'लघु समू ह' है । इसम
दो अथवा पांच-दस यि त आते ह । इस लघु समू ह म होने वाले संचार को हम ' अ तवैयि तक
संचार' क सं ा दे ते ह । म , प रवार आ द म होने वाला संचार इसका प ट उदाहरण है
। मनु य अपनी आव यकताओं क पू त के लए समू ह का सद य बनता है । इन समू ह म
होने वाले संचार को हम 'समूह संचार' क सं ा दे ते ह । प कार संघ, व याथ संघ आ द
के म य होने वाला संचार समू ह संचार का उदाहरण है ।
इन संचार म सबसे दु ह अथवा क ठन कृ त का संचार वा तव म 'जनसंचार' है । जनसंचार
वा तव म जन एवं संचार श द से बना है । जन का अथ नजता अथवा नजी पहचान क
समाि त से है । इसका उदाहरण एक बू द
ं जल का घड़े के जल म मलने जैसा है । यह ि थ त
समाज क भी है । यि त क यि तगत पहचान के खोने से ह यापक समाज का अि त व
उभरता है । इस कार यापक समाज म सम त के उ े य से जु ड़े तथा जनसंचार मा यम
वारा जन के म य होने वाला संचार जनसंचार है । ये चार संचार णा लयां कसी न कसी
प म मानव समाज के येक कालखंड म रह ह । इस समय ह और भ व य म भी रहगी
। ोताओं क िज ासा को 'फ डबैक' नाम से जाना जाता है । ' फ डबैक' को हम ोता के
न के प म समझ सकते ह । यह भी नरं तर संचार यवहार का अवयव रहा है ।

2.7 संचार के मु ख मॉडल (Major Models of communication)


संचार म मॉडल का अथ, व प एवं संचार के कार आ द का अ ययन आप इस इकाई के
पछले भाग म कर चु के ह । अब संचार के मु ख मॉडल क चचा आव यक है । इस चचा
से संचार के मॉडल से अवगत होने के साथ-साथ उससे जुड़ी संचार या अथवा संचार यवहार
को समझ सकगे ।
वैसे तो संचार के यवहार म या क कोई भी सीमा सु नि चत नह ं है । इस कारण संचार
के मॉडल क भी कोई सीमा अथवा सं या नि चत नह ं हो सकती । इतना ह नह ं समाज
का यवहार भी नरंतर प रवतनशील है । इस कारण भी संचार के मॉडल क सं या नि चत
नह ं क जा सकती है ।
यहां हम संचार के मुख मॉडल क चचा करगे । इन मॉडल म – एच.डी.लासवेल, सी.ई.
आसगुड, वलबर ेम, डी. फे योर, बी.एच. वे सी एवं एम.एस. मै ल न के मॉडल सि म लत

28
ह । इस चचा के दौरान यह प ट हो सकेगा क संचार के उ त मॉडल कस कार के संचार
यवहार को प ट करते ह । वैसे उ त सभी मॉडल का वकास पि चमी प रवेश अथवा पि चम
क सामािजक पृ ठभू म म हु आ है । इस कारण भारतीय प रवेश अथवा सामािजक यवहार
से पूणत: सा य स भव नह ं है । वैसे भी सामािजक व ान म सावभौम स य जैसे स दभ
नह ं मलते । सामािजक व ान के स ा त का भी व प सामािजक पृ ठभू म अथवा
सामािजक यवहार से जु ड़ा होता है । इस कारण भी भारतीय प रवेश अथवा सामािजक यवहार
से इनका पूणत: सा य स भव नह ं है । वैसे भी सामािजक व ान म सावभौम स य जैसे
संदभ नह ं मलते । इस कारण भी सामािजक पृ ठभू म बदलने से स ा त अथवा मॉडल म
प रवतन वाभा वक है । इसी ि ट के आधार पर आप को मॉडल का अ ययन करना है।

2.7.1 एच.डी. लासवेल का मॉडल

वतीय व वयु के दौरान वक सत एच.डी. लासवेल का मॉडल श द के वारा न मत है


। इसम रे खांकन का योग नह ं है । इसम न के प म संचार के आधारभू त त व का
ववेचन कया गया है । एच.डी. लासवेल का मॉडल न न है –
कौन?
या कहा?
कस मा यम से?
कसके लए?
या भाव?
इस 5 क मॉडल म कौन? का अथ संदेश के ोत अथवा ेषक से है । या कहा? का अथ
संदभ, संदेश/ कथन से जु ड़ा है । कस मा यम से? के अ तगत मा यम अथवा चैनल न हत
है । कसके लए? का संदभ ोताओं से जु ड़ा है । या भाव? म फ डबैक एवं त या आ द
न हत है । संचार के लासवेल मॉडल को जानने से आपको संचार के आव यक पांच त व
का ान हो सकेगा । वा तव म लासवेल ने अपनी ना मक शैल म सव थम संचार के
त व को प ट कया है । इस मॉडल को प ने के उपरा त आप म संचार क आधारभूत कृ त
के स ब ध म भटकाव समा त हो सकेगा । साथ ह संचार के वषय म एक प ट ि ट का
भी वकास हो सकेगा ।

2.7.2 सी.ई आसगुड का मॉडल

सी.ई. आसगुड के संचार मॉडल का वकास 1960 के दशक म हु आ । इ ह ने 1954 म संचार


के पर परागत मानक अथवा ल क से हटकर एक रे खांकन आधा रत संचार मॉडल तु त
कया।''
आसगुड के ा प का आधार ोत एवं ोता ह । ोत एवं ोता, संदेश व लेषण भी करते
ह । ोत एवं ोता म कू ट संदेश क समझ भी होती है । िजसके आधार पर कू ट संदेश को
भेजने एवं कू ट संदेश को हण करने क या स प न होती है । आसगुड के मॉडल को
कु छ व वान वलबर ेम के मॉडल से भी जोड़ कर दे खते ह । वा तव म आसगुड का संचार
मॉडल, संचार म सि म लत लोग क भागीदार को प ट करता है । यि त कस कार

29
संदेश ा त करता है? तथा कस कार संदेश को हण कर उसका उ तर दे ता है? इसी यवहार
को आसगुड का मॉडल प ट करता है । सी.ई आसगुड का मॉडल इस कार है –

(मॉडल 2.3 : सी. ई आसगुड़ का मॉडल)

आप ऊपर लखे मॉडल 2. 3 सी.ई आसगुड के माडल को दे खकर समझ गये ह गे क समाज
म ोत वारा भेजी गयी सू चना अथवा संदेश को ोता हण करता है । ोता उस संदेश
को अपने अनु प हण करके पुन : संदेश अथवा त या का उ तर भेजता है । इस कार
ोत एवं ोता के म य संदेश और उसके आदान- दान का यवहार नरं तर चलता रहता है
। इस कार आसगुड का उपरो त मॉडल 2. 3 संचार के अ तवयि तक यवहार क कृ त
को मु यत: प ट करता है । इसे जानने के बाद आप यह समझ सकगे क यि तय अथवा
समाज म पर पर संदेश अथवा सूचना का आदान- दान कस कार होता है? इससे संचार
के ज टल यवहार को आप सह ढं ग से समझ सकगे ।

2.7.3 वलबर ेम का मॉडल

वलबर ेम का संचार ा प 1960 के दशक म अि त व म आया । 1954 म ेम ने शैनन


एवं वीवर के ा प पर अपने ा प का वकास कया । ेम क संचार या या अथवा संचार
का अ ययन संचार क तकनीक क अपे ा जनसंचार. के यवहार प से जु ड़ा था । वलबर
ेम संचार के े ठ व वान ह । इ ह ने संचार या तथा संचार के आव यक त व पर
अ धक बल दया । इ ह ने संचार के व वध कार को भी प ट कया । संचार यि त, समू ह
एवं यापक समाज म कन- कन प म य त होता है, इसका भी व लेषण वलबर ेम
ने कया । इ ह ने प ट कया क (1) ोत, (2) कू ट ेषण, (3) संकेत, (4) कू ट हण एवं
मंिजल सभी कार के संचार म ा त होते ह । इनका संचार ा प अथवा मॉडल जनसंचार
यवहार के साथ-साथ फ डबैक आ द को भी प ट करता है । वलबर ेम ने संचार क स पूण
या को प ट करने के लए मु यत: तीन मॉडल तु त कये । ले कन तीन मॉडल को
एक-दूसरे से जोड़कर नह ं दे खने से कभी-कभी म क ि थ त भी बनती है । वलबर ेम
के मॉडल न न ल खत ह –

30
(मॉडल 2. 4: वलबर ेम का मॉडल)

वलबर ेम के उ त तीन मॉडल वा तव म एक दूसरे के पूरक ह । ये तीन संचार क तीन


अव थाओं को प ट करने के साथ-साथ संचार के पांच मु य त व को ह संचार का आधार
मानते ह । ेम ने मंिजल को अपने ा प म सि म लत करके यह प ट कया है क ोत
िजस सूचना को भेजता है वह कू ट प म जनसंचार या म अि त व म आती है । उस
संकेत को ोता हण करता है । यह सूचना का वाह अपनी मंिजल तक पहु ंचने तक चलता
रहता है । इसी म म उ ह ने अपने मॉडल के दूसरे भाग म अनुभव े का उ लेख कया
है । वा तव म ोत अथवा ोता संदेश को अपनी सामािजक, राजनी तक, सां कृ तक, भाषा,
शै णक, आ थक आ द से जुड़े अनुभव से जोड़कर दे खता है । इस कारण वलबर ेम ने
अपने संचार मॉडल म अनुभव े का उ लेख कया है । यह सच है क सूचना अथवा संदेश
के प म यि त पर पर के अनुभव को ह भेजता अथवा दे ता है । इसे हम इस प म भी
दे ख सकते ह क जैसे य द कसी यि त ने अं ज
े ी कभी नह ं पढ़ अथवा सीखी हो । वह
यि त अं ेजी भाषा के संदेश को न तो हण करे गा और न ह उस पर अपनी त या
ह य त कर सकेगा, जब तक क उसको अं ज
े ी का संदेश उसक भाषा म न ा त हो ।
इसी कार तीसरे पूरक मॉडल म यि तय के म य संदेश क ाि त तथा उस पर
उ तर- यु तर का संदभ भी तु त कया गया है । वलबर ेम के उ त तीन मॉडल एक
दूसरे के पूरक होने के साथ-साथ जनसंचार क तीन अव थाओं को य त करते ह । इस मॉडल
से यह भी प ट होता है क जनसंचार म संचार के अ य कार एवं यवहार सि म लत होते
ह ।
वलबर ेम के इन मॉडल को एक साथ प ने और समझने से आप म जन संचार के वा त वक
यवहार के ान का वकास हो सकेगा । जनसंचार के अ तगत होने वाले सूचना वाह म

31
यि तय और यि तय के अनुभव का थान मह वपूण होता है । यह त य भी वलबर
ेम के मॉडल से प ट होता है ।

2.7.4 डी. लेयोर का मॉडल

डी. लेयोर एक संचार वद थे । उ ह ने जनसंचार को आधार बनाकर अपना अ ययन पूण


कया । इनका पूरा नाम एम.एस.डी. लेयोर था । इ ह ने शैनन और वीवर के मॉडल का
अ ययन कया । शैनन और वीवर के मॉडल और समाज म भावी जन संचार के यवहार
म भ नता को दूर करने के लए डी. लेयोर ने एक यावहा रक ा प अथवा मॉडल वक सत
कया । इनके मॉडल म संचार और फ डबैक या का प ट वणन है । सामा य प म
कह ं तो यह सह है क डी. लेयोर ने बाधा अथवा शोर अथवा बाधा संचार क येक इकाई
को भा वत कया है । वह इकाई चाहे कोई भी हो । डी. लेयोर का मॉडल न न कार है-

(मॉडल 2.5: डी. लेयोर मॉडल)

ऊपर व णत मॉडल 2. 5 म जनसंचार के मु ख त व - ोत, संदेश, स ेषक, संकेत, मा यम,


ोता, मंिजल, फ डबैक एवं शोर अथवा बाधा का उ लेख है । डी. लेयोर के मॉडल से आप
जनसंचार क आधारभू त इकाइय से प र चत हो सकते ह । साथ ह यह मॉडल प ट करता
है क शोर अथवा बाधा से जनसंचार क येक इकाई अथवा त व भा वत होता है । इस
मॉडल के आधार पर हम न कष नकाल सकते ह क बाधा र हत जनसंचार ह वा तव म
जनसंचार है ।

32
2.7.5 बी.एच.वे ल एवं एम.एस. मै ल न का मॉडल

बी. एच. वे ल एवं मै ल न ने 1957 म अपने संचार मॉडल का वकास कया । इसके पूव
यूक ब ने अ तवैयि तक संचार को प ट करने के लए एक मॉडल का वकास कया था
। वे ल और मै ल न ने यूक ब के मॉडल म संशोधन करते हु ए स पूण जनसंचार या
को अपने मॉडल म समेटने का यास कया । इ ह ने प ट कया क जनसंचार का संतु लन
स ेषक, जनसंचार संगठन, ोता, जनसंचार मा यम के एजट आ द नि चत करते ह । इस
कार यह मॉडल यह भी प ट करता है क जनसंचार म संदेश अथवा सू चना को नयं त
करने वाले अनेक ब दु अथवा इकाइयां होती ह । इन इकाईय से जांच-परख के उपरा त
समाचार ोता तक पहु ँचते ह । इ ह हम नयं ण अथवा ' गेटक पर' के प म जानते ह ।
इस मॉडल म यह प ट है क गेटक पर एवं ेषक भी भा वत होते ह । वे ले एवं मै ल न
का मॉडल न न है –

(मॉडल 2.6: बी.एच. वे ल एवं एम.एस. मै ल न मॉडल)

ऊपर व णत मॉडल 2. 6 म वे ल और मै ल न ने जनसंचार म सू चना के व वध एवं अन त


ोत को वीकार कया है । ोत से सूचना सामा य पमस ेषक के मा यम से गेटक पर
एवं ोता तक पहु ँचती है । पर तु कभी-कभी ोत गेटक पर तक भी सू चना पहु ँचाता है ।
कभी-कभी सूचना या एवं सू चना वाह को म , प रवार, सहयोगी आ द भी भा वत करते
ह । ले कन इस मॉडल म समाज क उन भावी इकाइय को सि म लत नह ं कया गया है
। इस मॉडल से जनसंचार मा यम क सूचना णाल को ठ क से समझ सकते ह । ले कन
व तृत एवं गहराई यु त ान के लए इसके अ त र त भी जानना एवं समझना होगा । फर
भी यह मॉडल जनसंचार मा यम के सू चना अथवा संदेश यवहार एवं काय णाल अथवा
संकलन या को समझने म सहायक एव मह वपूण है ।
बोध न - 2

33
(1) या एच.डी. लासवेल का मॉडल श दा मक है? समझाइये ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(2) डी. लेयोर का मॉडल शोर पर अ धक बल दे ता है ।' प ट क िजये ।
................................................................................................................
................................................................................................................
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(3) ' वलबर ेम के तीन मॉडल एक दूसरे के पूरक है। ' प ट क िजए ।
................................................................................................................
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2.8 सारांश (Summary)


इस इकाई का मु य ल य संचार मॉडल के वषय म प ट ि टकोण का वकास करना था
। संचार मॉडल श दा मक एवं च ा मक दोन होते ह । इस इकाई म संचार के श दा मक
एवं रे खीय अथवा च ा मक मॉडल का उ लेख है । संचार मॉडल के अ ययन से आपने
न न ल खत जानकार ा त क-
 संचार मॉडल के अ ययन से आप संचार के मू ल त व से प र चत हु ए ।
 संचार मॉडल से संचार के व भ न त व के अ त: स ब ध का ान ा त हु आ ।
 संचार के व भ न त व क संचार या म भू मका को प ट करने म संचार मॉडल
सहायक ह ।
 संचार मॉडल से संचार वाह का प ट ान ा त होता है ।
 संचार मॉडल से संचार क कृ त एवं व प को आसानी से आप समझ सके ।
 संचार, मॉडल से संचार को प रभा षत करने म सरलता होती है ।
 संचार मॉडल का अ ययन भावी शोध म भी सहायक होता है ।
इस इकाई म संचार के व वध संदभ से जुड़े एवं उपयोगी संचार मॉडल का उ लेख एवं
व लेषण है।

2.9 व-मू यांकन (Self- valuation)


आपको इस इकाई को यानपूवक पढ़ना चा हए। इसे प ने के बाद आप इसम लखी वषयव तु
को अपने मन म पुन: मरण कर । इसी म म आप नरं तर यह यास कर क मॉडल का
अथ, संचार, संचार मॉडल के कार, संचार के पड़े हु ए व वध मॉडल के वषय म कतनी
जानकार मल चु क है । जहां भी संदेह हो उस भाग को पुन: पढ़ कर समझने का यास
कर । इस इकाई म व णत संचार मॉडल क वषय-व तु को समाज के यवहार से भी जोड़कर
दे खने का यास कर ।

34
2.10 श दावल (Glossary)
इस इकाई म आने वाले मुख श द के अथ इस कार ह -
ोत (Source(  सू चना या संदेश एक करने वाला मी डया संगठन
संदेश )Message(  संचार मा यम वारा भेजी जाने वाल सू चना ।
मा यम )Medium(  संचार के य, य अथवा य य मा यम -।
स ेषक )Communicator(  सू चना या संदेश भेजने वाला ।
ोता )Receiver(  सू चना पाने वाला यि त ।
मंिजल )Destination(  सू चना क इ छा रखने वाले यि त / समू ह ।
गेटक पर )Gatekeeper)  सू चना को जन मा यम म सि म लत करने
वाल नयं क इकाई।
जन मा यम या जनसंचार मा यम (Mass Media)-जन के बीच सूचना वाह करने वाले मा यम
। जैसे - समाचार प -प का, रे डयो, टे ल वजन, फ म आ द ।

2.11 अ यासाथ न (Questions)


1. मॉडल से या अथ हण करते ह? इसे प रभा षत करते हु ए व वध कार का वणन
कर ।
2. मॉडल का अ ययन संचार के ान वकास म कतना उपयोगी है?
3. संचार मॉडल के वकास पर काश डाल ।
4. एच. डी. लासवेल के मॉडल का ववेचन कर ।
5. डी. लेयोर के संचार मॉडल पर काश डाल ।
6. वलबर ेम के संचार मॉडल का मू यांकन कर ।
7. या संचार मॉडल प रवतनशील ह? पर ण कर ।

2.12 स दभ थ (Further Readings)


1. डॉअ नल कुमार . : प का रता और जनसंचार स ा त एवं वकास,
उपा याय 2005, भारती काशन, दुगाकु ड, वाराणसी –5
2. ओम काश संह : संचार के मू ल स ा त, ला सकल पि ल शंग
क पनी, 28, शा पंग सटर, करमपु रा, नई द ल
– 15
3. ओम काश संह : संचार और प का रता के व वध आयाम,
ला सकल पि ल शंग क पनी, नई द ल – 15
4. ीका त संहस ेषण: : त प एवं स ा त भारतीय पि लशस ए ड
ड यू टस, लेखो वर कॉ ले स, फैजाबाद .उ)
(.
5. डॉअ नल कुमार . : प का रता एवं वकास संचार, 2007, भारती

35
उपा याय काशन, वाराणसी –5
6. James Watson and : A Dictionary of Communication and
Anne Hill Media Studies, Universal Book Stall,
Ansari Road, New Delhi.

36
इकाई-3
भारत म संचार ां त
(Communication Revolution)
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 संचार का इ तहास
3.3 आधु नक युग म संचार मा यम
3.3.1 टे ल ाफ क खोज
3.3.2 टे ल फोन का आ व कार
3.3.3 रे डयो और रे डयो तरं ग
3.4 य मा यम के युग म वेश
3.4.1 सनेमा का आ व कार
3.4.2 टे ल वजन का युग
3.5 संचार ां त का नया दौर
3.6 भारत म संचार ां त
3.6.1 डाक सेवाओं का व तार
3.6.2 प -प का रता का व तार
3.6.3 टे ल ाफ और टे ल फोन सेवाएं
3.6.4 संचार के े म नयी ौ यो गक
3.7 सारांश
3.8 श दावल
3.9 अ यासाथ न
3.10 थ सू ची

3.0 उ े य (objectives)
इस इकाई का संबध
ं भारत म संचार ां त से है । संचार के े म पछले तीन दशक म
तेजी से बदलाव हु आ है उसक तरफ लगभग सभी का यान गया है । इसने लोग के जीवन
पर गहरा असर डाला है । इस इकाई म संचार के े म होने वाले प रवतन का उ लेख करते
हु ए भारत म संचार के े म हु ई उ लेखनीय ग त का ववरण भी तु त कया गया है
। इस इकाई को प ने के बाद :
 आप संचार के वकास क जानकार ा त कर सकगे ।
 संचार के व भ न े जैसे टे ल ाफ, टे ल फोन, रे डयो आ द का प रचय जान सकगे।

37
 य मा यम जो संचार का मह वपूण े है , उसम हु ए नये योग वशेषत: सनेमा
और टे ल वजन से भी आप अवगत हो सकगे ।
 कृ म उप ह णाल , इले ॉ नक और डिजटल णाल आ द के आने से संदेश के
नमाण, सारण, भंडारण आ द म जो उ लेखनीय ग त हु ई है, वशेषत: इंटरनेट और
म ट मी डया के जो नये े खुले ह उनक जानकार ा त कर सकगे ।
 संचार ौ यो गक के आगमन ने भारत पर या असर डाला और उसने इस ां त को
कामयाब बनाने म या योगदान दया है, इसका ववरण ा त कर सकगे ।

3.1 तावना (Introduction)


मनु य म दूसरे के संवाद था पत करने क इ छा आ दम युग से रह है । उसक इसी इ छा
ने उसे भाषा और ल प का आ व कार करने को े रत कया । स यता के साथ-साथ मनु य
ने जीवन के दूसरे े म जो ग त क उसने उसे े रत कया क वह संवाद के े म भी
नयी-नयी खोज कर । आ दम मनु य या सोचता था, उसका जीवन कैसा था और उसने अपने
जीवन म आने वाल चु नौ तय का अपने सा थय के साथ मलकर कस तरह मु काबला कया
इसके बारे म हम बहु त नह ं जानते । ले कन भाषा और ल प के कारण तथा बाद म कागज
ने उसे यह मता दान क क वह अपने अनुभव को ल पब करके आगे आने वाल पी ढ़य
के लए सु र त छोड़ सके । जैसा क मनु य का वभाव है , वह इतने से संतु ट नह ं रह
सकता था, उसने लखने और उसे सुर त रखने के े म ह नह ं संचार के दूसरे े म
भी नये साधन और नये मा यम क खोज करना जार रखा । इरा ि ट से मानवजा त के
इ तहास के पछले दो सौ साल बहु त मह वपूण रहे । ऊजा के नये ोत, व युत क खोज,
यातायात के नये ती साधन और यां क के े म नये योग ने उ पादन के साधन म
ह आमूलचूल प रवतन नह ं ला दया था बि क इसका असर संचार के े पर भी दखाई
दे ने लगा । मु ण, फोटो ाफ , टे ल ाम, टे ल फोन, रे डयो, सनेमा आ द नये मा यम का
आगमन व ान के े म हु ई नयी खोज ने ह संभव बनाया था । भारत इस दौर म
औप नवे शक दासता म जकड़ा हु आ था । इस लए संचार के इन नयी खोज का आगमन कब
और कस प म होगा इसका नधारण भारत क जनता नह ं बि क उसके औप नवे शक शासक
कर रहे थे ।
संचार के े म पछल अ शता द म हु ई नयी खोज ने फर एक छलांग लगाई है । इस
नयी संचार ां त को अपनाने के मामले म ह नह ं बि क उसम अपने योगदान के मामले
म भी भारत क मह वपूण भू मका है, य क भारत अब न सफ राजनी तक प से वाधीन
है बि क अपना भ व य अपने ढं ग से न मत करने के मामले म भी वह वतं है । संचार
क इस नयी ां त के भारतीय प का ह ववरण इस इकाई म तु त कया गया है । (इस
इकाई म दए गए सभी आकड़े ामा णक ोत से ा त कए गए ह । इनम भारत सरकार
के सूचना और सारण मं ालय के काशन वभाग के वारा का शत 'इं डया 2004, ए रे फरस
एनुअल' मु ख है । इनके अलावा बहु त से आकड़े व कपे डया इं डया के वेबसाइट से उ ृत
कए गए ह ।

38
3.2 संचार का इ तहास (History of Communication)
संचार के इ तहास को जानने से पहले इस बात को समझ लेना ज र है क संचार से ता पय
या है? संचार का शाि दक अथ है एक थान से दूसरे थान तक जाना । चर का अथ ह
है चलना । इस कार संचार म आवागमन का भाव न हत होता है । यह आवागमन भौ तक
भी हो सकता है और मान सक भी । ले कन आज जब हम संचार पर वचार करते ह तो एक
वशेष अथ म । वह वशेष अथ संदेश के आवागमन से संबं धत है । इस कार संचार का
अथ है अंत या या संवाद । जब दो या दो से अ धक यि त एक दूसरे तक अपना संदेश
पहु ंचाते ह तो उसे संचार कहा जाता है । संचार के लए ऐसे संकेत क ज रत होती है िज ह
दोन प समझ सक । इसे भाषा या मा यम कहा जाता है । इसका अथ यह है क संचार
संकेत या भाषा या फर मा यम के बना संभव नह ं है । हम सभी जानते ह क संचार के
लए आज हम िजन मा यम का उपयोग करते ह या संकेत का जो प आज हम उपल ध
ह, वे सदै व से उपल ध नह ं थे । इसे मानव जा त ने स यता के वकास के साथ वक सत
कया है । संचार के बहु त से थूल प जानवर वारा भी उपयोग म लाए जाते ह । वे भी
तरह-तरह क व नय के वारा अपने साथी जानवर को अपनी मौजू दगी या बाहर खतरे
का या अ य कसी तरह का संदेश पहु ंचाते ह । ले कन मनु य वारा संचार मा यम का जो
वकास संभव हु आ है, उसक क पना कु छ सौ साल पहले तक वयं मनु य नह ं कर सका
था । वैसे तो संचार के े म कसी भी तरह क नयी पहल एक ां तकार पहल ह कह
जाएगी । जब पहल बार भाषा का इ तेमाल मनु य ने करना शु कया होगा, तो वह कसी
ां त से कम बात नह ं रह होगी । धम थ
ं म श द को जो म कहा गया है उसके पीछे
भाषा क उस मता का वकास है िजसके बना मनु य के बीच न सफ संवाद संभव था
बि क इस संवाद के अभाव म मानव स यता का वकास भी संभव नह ं था । संचार के िजन
संसाधन का वकास मनु य ने कया है , उनके अभाव म मनु येतर ाणी जगत आज भी अपनी
आ दम अव था म ह जीने के लए ववश है । इस बहस म पड़े बना क मनु य यह वकास
य कर सका और अ य ाणी य नह ं कर सके, हम इस बात को वीकारना होगा क संचार
मा यम का वकास दरअसल स यता के वकास का ह एक मह वपूण घटक है ।
मनु य के बीच संवाद क बढ़ती ज रत और संदेश को न सफ दूसरे तक पहु ंचाने बि क
उ ह लंबे समय तक सु र त रखने क ज रत ने भी संचार के साधन के वकास म अहम ्
भू मका नभाई है । भाषा ने य द लोग को अपने वचार और भावनाओं को भावी प म
सं े षत करने का साधन दया तो, ल प के वकास ने उन वचार और भावनाओं को सु र त
रखने का साधन भी दान कया । कागज, कलम और याह के अभाव म आरं भ म प थर
और भोजप पर वचार अथवा आकृ तय को दशाया गया । संचार मा यम का इ तहास
बहु त पुराना है । भाषा, ल प, च , वा य यं , लेखन के साधन जैस,े कागज, कलम, याह ,
लैक बोड, मु ण णाल आ द ये सभी कसी न कसी प म संचार के लए यु त होते
रहे ह । उदाहरण के लए नगाड़े का योग यु के दौरान या कसी वपि त के समय लोग
तक सू चनाएं पहु ंचाने के लए होता रहा है । कबूतर का योग एक थान से दूसरे थान तक
च ी पहु ंचाने के लए होता रहा है । इसी कार डाक णाल भी एक परं परागत णाल है

39
जो अपनी ारं भक अव था म कई सौ साल पहले आरंभ हो चुक थी । भारत म शेरशाह सूर
ने डाक णाल क नींव डाल थी । ले कन संचार के इन परं परागत मा यम के वपर त
आधु नक मा यम इस ि ट से मह वपूण ह क इ ह ने संचार को आसान, ती , यापक बनाने
के साथ-साथ बहु वध और बहु आयामी भी बना दया है । संदेश को लंबे समय तक सुर त
रखना और उनक अ प समय म त ल पयां बनाना बहु त आसान कर दया है । इसे ां त
से कम नह ं कहा जा सकता ।

3.3 आधु नक यु ग म संचार मा यम (Media in Modern Era)


ार भ म औ यो गक समाज म सूचना और संचार ौ यो गक के वकास क शि त यह
थी क उसने संदेशो को दूरपर तक सं े षत करने के लए मा यम क तलाश क । ऐसे मा यम
िजनसे संदेश को सह और पूरे प म तथा ज द से ज द भेजा सके । दूसरा, उ ह ने संदेश
को भंडा रत करने और उसक तयां बनाने क को शश क । ता क संदेश को यादा से यादा
लोग तक पहु ँचाया जा सके । तीसर को शश थी, समय क बचत करते हु ए ज द-से-ज द
संदेश को सं े षत करना । औ यो गक समाज म यह सारे काम और यादा बड़े पैमाने और
यापक जन समु दाय के लए करने क आव यकता महसूस क गई । ले कन जो सबरने
मह वपूण काम इस दौर म कया गया वह यह क सूचनाओं को एक थान से दूस रे थान
तक पहु ंचाने के लए ऐसे मा यम का योग करना जहां सूचनाओं को सफर करने के लए
मानवीय मा यम क ज रत न पड़े और दूर भी इतनी ती ग त से तय क जा सके क
समय के गुजरने का अनुभव ह समा त हो जाए ।
औ यो गक युग म सू चना ौ यो गक का वकास वतं प से नह ं हु आ । इनका संबध

दूसरे आ व कार से है , िजसने उ पादन के साधन म ां तकार प रवतन ला दए । इन साधन
म ऊजा और यां क बल क उ पि त क नयी ौ यो गक शा मल है । इनम व युत और
भाप से उ प न ऊजा का वशेष प से उ लेख कया जा सकता है । भाप इंजन ने न सफ
रे ल को संभव बनाया बि क प रवहन के और कई साधन का भी व प बदल दया । रे ल
ने सू चना के सार म अहम ् भू मका नभाई है । रे ल के वारा डाक का एक थान से दूसरे
थान तक जाना आसान भी हो गया और समय क बचत भी हु ई । इसी तरह अखबार और
कताब का सार े भी यापक हु आ । आज िजसे हम रा य समाचारप कहते ह वह
मु म कन ह नह ं हु आ होता य द रे ल यातायात का चलन शु नह ं हु आ होता । भाप इंजन
और दूसरे आ व कार ने उ पादन के साधन म भी तेजी से प रवतन ला दया । इन सबने
ह उस युग क शु आत क िजसे हम औ यो गक युग के नाम से जानते ह । इस नयी
ौ यो गक ने कम मानव म से अ धक उ पादन को संभव बनाया । नयी ौ यो गक क
यह वशेषता थी क इनका लाभ तभी पूर तरह से उठाया जा सकता था य द उनके वारा
जनो पादन कया जाए । पहले क तकनीक मु य प से हाथ से काम करने पर नभर थी
और िजसम एक-एक उ पादन को अलग- अलग बनाया जाता था । ले कन अब ऐसा नह ं है
। उदाहरण के लए हम छापेखाने क तकनीक को ह ल । जब छापने क तकनीक नह ं थी
मु ण काय अ य त ज टल था । अत: ं टग ेस ने इस काम को गुणा मक प से बदल
डाला । अब एक बार कताब के पूरे मैटर को कंपोज करके उसक सैकड़ तयां नकाल जा

40
सकती ह । इस पूर या म म और समय दोन क बचत है । बचे हु ए समय और म
के वारा अ धक पु तक और अ धक तय का उ पादन संभव हो गया है । इस तरह ान
और संदेश का व तार अ धक बड़े े और अ धक यादा आबाद के बीच संभव हु आ ।

3.3.1 टे ल ाफ क खोज (Invention of Telegraph)

औ यो गक समाज म सूचना और संचार ौ यो गक म जो सबसे लड़ा प रवतन हु आ वह


यह था क पहल बार संदेश और संदेश के मा यम म अलगाव पैदा हु आ । अभी तक आमतौर
पर जो संदेश होता था, उसे उसी प म भेजा जाता था । यथा- लखकर, च बनाकर या मौ खक
प म । ले कन अब ऐसी ौ यो गक खोजी गई िजसम भेजा गया संदेश उसी प म े षत
नह ं होता था, वह संकेत वारा यु त भाषा म े षत कया जाने लगा । वैसे तो भाषा भी
एक तरह का संदेश मा यम है, ले कन अब जो तकनीक अपनाई गई उसम संकेत क यह
भाषा भी ऐसी सांके तक णाल म भेजी जाने लगी िजसका संबध
ं आधु नक ौ यो गक से
है । आधु नक टे ल ाफ का आ व कार इसी प त से कया गया । 1753 ई. म काटस मैगजीन
म चा स मौ रसन ने व युत टे ल ाफ क भ व यवाणी क थी । व युत ऊजा के वारा पैदा
क गई चु ंबक य शि त के ज रए संदेश भेजने का काम उ नीसवीं सद के चौथे दशक म आरं भ
हो गया । धीरे - धीरे इसका व तार यूरोप, अमर का और ए शया म भी हुआ । भारत म इसको
तार के नाम से पुकारा गया य क यह
संदेश तार के मा यम से एक थान से दूसरे थान क या ा करते थे । तार वारा संदेश
भेजने क तकनीक का असर यापा रक और राजनी तक दोन े म दखाई दया । अब
समाचार को भी तार के ज रए एक थान से दूसरे थान तक व युत ग त से भेजा जा सकता
था । 1857 के महा व ोह के दौरान ां तका रय ने अं ेज सेनाओं म पर पर संदेश के आदान-
दान को असंभव बनाने के लए कई जगह तार के खंभे उखाड़ दए थे और तारघर को न ट
कर दया था । शु म व युत तार वारा ा त संदेश को हाथ से लखना पड़ता था । ले कन
1845 म संदेश को छापने क प त का योग अमर का म कया जाने लगा । 1880 म टे न
म संदेश को सीधे छापने क प त का योग तेजी से होने लगा था । सफ एक मनट म
180 - 190 श द को यह यं सं े षत कर दे ता था । इसने तार क उपयो गता इतनी बढ़ा
द क उ नीसवीं सद के अंत तक लगभग नौ करोड़ टे ल ाम भेजे गये थे । 1889 म तार
का योग मनी ऑडर भेजने के लए भी कया जाने लगा । टे ल ाम के े म मह वपूण
प रवतन तब आया जब बना तार क मदद के भी टे ल ाम भेजना संभव हु आ ।

3.3.2 टे ल फोन का आ व कार (Invention of telephone)

व युत क चु ब
ं क य शि त का उपयोग संदेश भेजने म सफलतापूवक करने के बाद क
मह वपूण उपलि ध थी, टे ल फोन का आ व कार । तार के वारा संदेश भेजने म संदेश भेजने
वाला और संदेश ा त करने वाला सीधे बात नह ं कर सकते थे । ले कन एले जडर ाहम
बेल ने 1876 म टे ल फोन का आ व कार कया िजसके मा यम से आवाज को एक थान से
दूसरे थान तक तार के मा यम से भेजा जाना संभव हो सका । बेल को टे ल फोन क ेरणा
तार से ह मल । बेल ने वचार कया क य द इले ोमै ने टक माइ ोफोन के साथ तार

41
को जोड़ दया जाए और उसम व युत वा हत क जाए तो आवाज को भेजा जा सकता है
। टे ल फोन का आ व कार संचार के े म मील का प थर सा बत हु आ । कु छ ह साल म
टे ल फोन के तार एक शहर से दूसरे शहर म फैलते चले गए । अनुमान लगाया गया है क
1934 म सार दु नया म तीन करोड़ तीस लाख टे ल फोन थे जो 1947 म बढ़कर 38 करोड़
हो गए । टे ल फोन अब ाहम बेल के समय से काफ बदल चुका है । अब दु नया के कसी
कोने म बैठा हु आ यि त बना तार क मदद के टे ल फोन वारा बात कर सकता है ।

3.3.3 रे डयो और रे डयो तरं ग (Radio and Radio Frequencies)

तार के वारा संदेश भेजने म कुछ यावहा रक क ठनाइयां थीं । सबसे बड़ी क ठनाई यह थी
क तार को समु के बीच बछाना आसान काम नह ं था । दूसरे, तार का रख-रखाव भी
अपने म बड़ी सम या थी । इस लए यह ज र था क कोई ऐसा तर का खोजा जाता िजसम
तार के बना ह संदेश को दूर तक भेजना संभव हो सके । जमन वै ा नक हे न रक हेज ने
अपनी योगशाला म व युत चु ंबक य तरं ग के साथ कुछ योग कए और 1888 म उ ह ने
िजसे हम आज रे डयो तरं ग कहते ह, उसका दशन कया । इटल के माक नी ने 1895 म
पया त दूर तक संदेश भेजने म सफलता ा त क । रे डयो तरं ग ने संदेश भेजने के लए
ेषक और े षत थल के बीच तार क ज रत को समा त कर दया । इ ह ं रे डयो तरं ग
क खोज ने पहले बना तार के टे ल ाम, बाद म टे ल फोन और रे डयो क शु आत क । जहां
टे ल फोन ने यह संभव बनाया क बना तार के भी दु नया के एक ह से से दूसरे ह से के
बीच सीधे बातचीत करना मुम कन हो सकता है , वह ं रे डयो टे शन ने सावज नक सारण
के एक नये युग क शु आत क ।
अभी तक सफ समाचारप , कताब आ द ह जनता के बीच वचार स े षत के सावज नक
मा यम थे । श ा के सार के बावजू द अभी वक सत दे श क आबाद भी पूर तरह सा र
नह ं हो पाई थी । ऐसे म रे डयो सारण क शु आत ने सावज नक सारण का ब कुल नया
प ह तु त कर दया । अब रे डयो के वारा लोग सु नकर तरह-तरह क जानकार हा सल
कर सकते थे । ार भ म रे डयो वारा सारण के दौरान मास कोड का योग कया जाता
था । रे डयो ने गीत, संगीत और नाटक को जनसाधारण के लए भी उपल ध करा दया ।
यह सब इस लए संभव हो सका य क सैकड़ -हजार मील दूर से सा रत होने वाल आवाज
को घर म रखा छोटा सा रे डयो पकड़ने क मता रखता था । आरं भ म यह सम या ज र
सामने आई थी क भ न- भ न आवाज को कैसे पकड़ा जाए ले कन इस सम या का समाधान
भी कर लया गया । व भ न वेब और अलग- अलग वसी पर अलग- अलग जगह से
सा रत होने वाल आवाज को सु ना जा सकता था । आज हम रे डयो को िजतना साफ सु न
सकते ह, वैसा आरंभ म नह ं था । पहले रे डयो को हम हे डफोन लगाकर सु नना पड़ता था
। बाद म बड़े आकार के रे डयो आए ले कन ांिज टर ने रे डयो के े म गुणा मक प रवतन
ला दया । ांिज टर ने रे डयो का आकार छोटा कर दया अब उसे उठाकर ले जाया जा सकता
था और बना बजल क मदद से भी चलाया जा सकता था । इसने इस यं क क मत को
भी कम कर दया ।

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3.4 य मा यम के यु ग म वेश (Entry in the Era of Visual
Media)
औ यो गक युग क सबसे बड़ी उपलि ध य मा यम के े म हु ई । ाक्- औ यो गक
समाज म य को दो प म पुनर चत कया जाता था । एक तो च के प म और दूसरे
नाटक के प म । ले कन ये दोन प आमतौर पर का प नक होते थे । च और नाटक
म यथाथ को यथावत तुत भी कया जाता था तो वह मृ त के आधार पर ह । ले कन
फोटो ाफ ने यथाथ के कसी एक ण को यथावत अं कत करना संभव बना दया । इसी
का वक सत प सनेमा था जो ि थर फोटो ाफ को ग तशील बना दे ता है ।

3.4.1 सनेमा का आ व कार (Invention of Cinema)

ि थर छाया च के संयोजन से ग तशील च का वकास उ नीसवीं सद के आ खर दशक


म हु आ । ग तशील च के आ व कार का ेय थॉमस ए डसन को जाता है । ले कन शु आत
म दूसरे कई लोग ने सहयोग दया था । ए डसन ने ग तशील त वीर का योग 1888 म
ड यू.के.एल. ड शन के नदशन म शु कया जब उसने वे स सलंडर पर फोटो ाफ को
रकाड करने का यास कया । 1889 म ड शन ने इस े म जबरद त पहल क जब
उसने जॉज ई टमेन क से युलाइड फ म का इ तेमाल कया । से युलाइड फ म बाद म
ग तशील छायांकन का े ठ मा यम बन गई । य क इसे गोल-गोल समेटा जा सकता था
और मनचाह लंबाई द जा सकती थी । ड सन ने ए डसन के कैमरे का इ तेमाल करते हु ए
15 सेकंड क फ म का अंकन कया ।
ले कन ए डसन इन च के सावज नक दशन के लए इनके ेपण क सम या नह ं सुलझा
सका । इस सम या को सुलझाया ांस के लु ई यु मयरे और ऑग ट यु मयरे ने । उ ह ने
आधु नक पोटबल कैमरे का नमाण कया जो टं र और ोजे टर के प म भी काम कर
सकता था । यु मयरे क सनेमेटो ाफ ए डसन के यं पर आधा रत थी । कह सकते ह क
28 दसंबर 1895 को फ म के इ तहास क वा त वक शु आत हु ई जब यु मयरे बंधओ
ु ं
ने पे रस के एक। कैफे के बेसमट म दशक से पैसे लेकर ग तशील त वीर का सं त-सा
दशन कया । उ नीसवीं सद के अंत तक आते- आते दु नया के कई ह स म मू वी कैमरे
का योग होने लगा था, शु म सनेमा बना आवाज का था । ले कन लगभग तीन दशक
के बाद फ म म आवाज का योग होने लगा । भारत म सव थम फ म का दशन 7 जु लाई,
1896 को यु मयरे बंधु ओं ने मु बई के वॉटसन होटल म कया । इसके लए वीटाफोन णाल
का योग शु कया गया िजसने अलग फोनो ाफ ड क के साथ च का संयोजन कया
। इस कार च के साथ संवाद और संगीत का सि म ण आरं भ हु आ । आरं भ म सनेमा
वेत- याम होता था ले कन बाद म वह रं गीन हु आ । आज सनेमा का तकनीक वकास
बहु त आगे बढ़ चु का है । यह अब भी सवा धक लोक य जनमा यम है जो जीवन को लगभग
उसी प म तु त कर देता है, िजस प म हम उसे जीते ह । का प नक सृि ट को वा त वकता
के नकट सनेमा ने ह संभव बनाया ।

43
3.4.2 टे ल वजन का युग

सनेमा के साथ कुछ सम याएं जु ड़ी थीं । इसके नमाण और दशन दोन म काफ धन खच
करना पड़ता है । नमाण के साथ-साथ दशन के लए सनेमाघर क ज रत होती है जहां
जाकर लोग को फ म दे खनी होती ह । इसम समय और धन दोन खच करने होते ह ।
भावशाल मा यम होते हु ए भी यह रे डयो क तरह सवसुलभ नह ं था । इस कमी को पूरा
कया टे ल वजन ने । टे ल वजन एक य- य मा यम है िजसक शु आत बहु त पुरानी
नह ं है । टे न के वै ा नक जॉन लॉगी बेयड ने 1926 म टे ल वजन का पहल बार दशन
कया 11927 म फलो फॉ सवथ ने इले ॉ नक टे ल वजन संकेत वा हत कर टे ल वजन
क न पर छ व को साकार कया । इस काम को सफलता वै ा नक लाद मीर वो रकन
वारा प चर यूब बनाने म कामयाबी से हा सल हु ई । यह पहल तकनीक थी िजससे बजल
क धारा को छ व के प म प रव तत कया जा सकता था । इसके बाद इस दशा म लगातार
योग होते रहे । टे ल वजन सारण के लए व न और च ( य) पहले व युत चु ंबक य
तरं ग म प रव तत कए जाते ह और बाद म टे ल वजन कैमरे म एक आ थकॉन यूब होती
है जो लस से बनी छ व इस यूब क च संवेदन लेट पर पड़ते ह लेट से इले ॉन नकलते
ह जो के नंग के बाद व युत तरं ग म बदल जाते ह । इस कार के व युत तरं ग को ह
व डयो संकेत कहते ह । इसी कार व न को भी माइ ोफोन व युत तरं ग म प रव तत करता
है िजनक वसी को बढ़ाकर बाद म सा रत कया जाता है । इ ह ऑ डयो संकेत कहा
जाता है । य और व नय को यह व युत चु ंबक य तरं ग ह ट वी एं टना से टकराती है
िज ह टे ल वजन सेट वापस य और य म बदल दे ता है ।
तकनीक प म टे ल वजन क खोज तीसरे -चौथे दशक से शु होने के बावजू द जनमा यम
के प म लोक य होने म उसे लगभग दो दशक और लगे । सनेमा क तरह टे ल वजन
का तकनीक व प भी बदलता गया । आरंभ म इसका सारण े बहु त सी मत था, ले कन
कृ म उप ह णाल ने संचार के सभी मा यम के सारण के नये े खोल दए । आज
रे डयो और टे ल वजन का सारण उप ह के ज रए दु नया के कसी भी ह से म कया जा
सकता है । इसी तरह पहले एक-दो चैनल उपल ध थे, ले कन अब एक। ट वी सैट पर सैकड़
चैनल दे खे जा सकते ह । पहले यह सब चैनल केवल ट वी के मा यम से उपल ध थे, ले कन
डीट एच यानी डायरे ट टू होम तकनीक के आने के बाद केबल ट वी पर नभरता समा त हो
रह है । अब कोई भी यि त डीट एच के ज रए मनचाहे चैनल आसानी से हा सल कर सकता
है ।
दरअसल, टे ल वजन, कं यूटर, कृ म उप ह णाल और डिजटल तकनीक के साथ हम संचार
ौ यो गक के एक नये युग म वेश कर चुके ह । इसी नये युग म भारत ने संचार ां त
के े म अमू य योगदान दया है, िजसक चचा हम आगे के पृ ठ पर करगे । खास बात
यह है क संचार ां त क इन नई खोज को अपनाने म भारत कभी पीछे नह ं रहा ।

44
3.5 संचार ां त का नया दौर (New Era of Communication
Revolution)
संचार ां त क य द क य वशेषता को जानना हो तो उसे हम इन श द म कह सकते ह
क सूचना और संचार को पूर तरह से एक दूसरे म समा हत कर दया है । बीसवीं सद के
पूवा म मी डया के दो े ऐसे थे िज ह ने भूमंडल य तर पर अपना व तार कया था ।
एक रे डयो सारण और दूसरा सनेमा । ले कन आज संचार का कोई े ऐसा नह ं है िजसका
व तार भूमंडल य तर पर न हो रहा हो । इसको संभव बनाया है उप ह संचार णाल ने
। उप ह संचार णाल ने ह केबल ट वी के लए माग श त कया ।
सू चना और संचार के े म जो नयी खोज हु ई ह और िजस नयी टे नोलॉजी का व तार
हु आ है, उसे सह प र े य म समझना ज र है । आज जो युवा इन नयी ौ यो ग कय का
उपयोग कर रहे ह वे इस बात का अनुमान नह ं लगा सकते क तीन-चार दशक पहले तक
इस तरह क खोज का उ लेख सफ व ान कथाओं म ह पढ़ने या व ान आधा रत
कथा- फ म म ह दे खने को मलता था । िजस मोबाइल फोन को भारत जैसे दे श म अमीर,
म यवग और गर ब लोग के हाथ म भी दे खा जा सकता है, वह कसी चम कार से कम नह ं
है । एक पांच-छह इंच के छोटे से उपकरण िजसे आसानी से जेब म रखा जा सकता है, उसके
वारा दु नया के कसी भी कोने म बैठे हु ए यि त से कसी भी समय और कसी भी जगह
से बात क जा सकती है । इसके लए न कसी तार क ज रत है और न ह कसी तरह
के श ण क । इसी तरह इंटरनेट का उपयोग सफ लखने-प ने वाले नह ं करते । व व यापी
इले ो नक नेटव कग ने सफ सूचनाओं के आदान- दान को ह आसान नह ं बनाया है,
यातायात, वा ण य, यवसाय, ब कं ग, श ा, सु र ा, चु नाव, अ म आर ण आ द कई े
म हर तरह क ग त व धय को आसान, सु र त और ती बना दया है । इसका लाभ सफ
श त और संप न लोग ह नह ं उठा रहे ह बि क सामा य यि त भी इसका लाभ उठा
रहे ह । आप अपने छोटे से कं यूटर से सभी भाषाओं के पचास हजार समाचारप के बराबर
सू चनाओं को हा सल कर सकते ह । इंटरनेट पर आप इतनी सूचनाओं का भंडारण कर सकते
ह िजतनी दु नया क सबसे बड़ी लाइ ेर क सम त पु तक वारा भी उपल ध नह ं होती
। आपके घर तक आने वाले टे ल फोन के एक तार के मा यम से आप टे ल फोन, फै स, केबल,
टे ल वजन और ॉडबड क सु वधा ा त कर सकते ह । ॉडबड यानी इंटरनेट क ती ीकृ त
सु वधा िजसके मा यम से आप कसी भी तरह का संदेश कसी भी प म अ यंत ती गत
से हा सल कर सकते ह । यह नह ं अपने वारा कसी भी प म न मत कसी भी तरह का
संदेश आप दु नया के कसी भी कोने म उतनी ह ती ग त से पहु ंचा सकते ह ।
संचार के े म दूसर मह वपूण उपलि ध यह हु ई क ऑ डयो और वी डयो के े म
पुन पादन क ऐसी ौ यो गक का वकास हु आ है िजसके कारण कसी भी ऑ डयो और
वी डयो काय म को आसानी से लाख क सं या म बार-बार पुन पा दत कया जा सकता
है । छोटे से कैसेट म लंबे टे प पर आवाज को अं कत कया जाता है िजसे कैसेट लेयर पर
बजाया जा सकता है । इसी तरह वी डयो कैसेट पर य को रकाड कया जा सकता है और
ले कया जा सकता है । कसी भी ऑ डयो और वी डयो काय म क हजार तयां बनाई

45
और बेची जा सकती ह । ले कन कैसेट क यह तकनीक अब पुरानी पड़ गई है और धीरे - धीरे
इसका थान ड क ले रह है । सीडी यानी ' कांपे ट ड क' का आ व कार प चीस साल पहले
1982 म हु आ था । इसने कैसेट क णाल को लगभग पूर तरह ख म कर दया । सीडी
और सीडी रॉम (कांपे ट ड क एवं र ड ऑनल मेमोर ) का संबध
ं नई म ट मी डया तकनीक
से है िजसम डिजटल णाल के वारा सूचनाओं को अं कत और भंडा रत कया जाता है ।
ऑ डयो सीडी म आवाज और व नय को रकाड कया जाता है िजसे सीडी लेयर पर बजाया
जाता है । जब क वी डयो सीडी म आवाज और य बंब दोन को अं कत कया जाता है
। इन दोन का उपयोग ऐसे कं यूटर पर भी कया जा सकता है िजसम म ट मी डया क सु वधा
हो । सीडी का लाभ यह है क कैसेट के टे प क तुलना म यह कम थान म अ धक सूचनाओं
का भंडारण कर सकता है और यह सूचनाएं कैसेट क तु लना म लंबी अव ध के लए यथावत
सु र त रहती ह । इनक गुणव ता कैसेट क तु लना म कई गुना बेहतर होती है ।
कांपे ट ड क क यह तकनीक भी अब पुरानी पड़ती जा रह है । इसका थान डिजटल णाल
लेती जा रह है । वी डयो के े म डिजटल वी डयो ड क (डीवीडी) ने इस णाल म मूलगामी
प रवतन ला दया है । अब एक ड क म ह एक ह वी डयो काय म को कई भाषाओं म
सु ना जा सकता है । मसलन, य द कोई अं ेजी फ म कई भाषाओं म डब क गई है जो यह
दशक पर नभर है क वह एक ह डीवीडी से इन तीन भाषाओं म से िजस भाषा को वह जानता
हो उस भाषा म फ म दे ख सकता है । इसी तरह एक ह फ म म कई भाषाओं म सबटाइटल
दये जा सकते ह । गुणव ता क ि ट से डीवीडी वीसीडी क तु लना म कई गुना बेहतर होती
है, कई गुना अ धक लंबे समय तक सुर त रहती है और कम थान पर बहु त अ धक साम ी
का भंडारण कया जा सकता है । हालां क अभी भारत म वीसीडी क तुलना म डीवीडी महंगी
ह ले कन धीरे- धीरे उनक क मत भी कम होती जा रह है । एक अ छा डीवीडी लेयर दो
से तीन हजार पये म खर दा जा सकता है ।
डिजटल णाल ने मा ा और गुणव ता दोन ि टय से ां त ला द है । व न और य
दोन ह क - गुणव ता म चम का रक फक आया है । उनम नये-नये योग कए जा सकते
ह । अब म ट मी डया नमाण, फ म और टे ल वजन काय म म डिजटल णाल के कारण
ऐसे-ऐसे योग कए जा सकते है िजसक कभी क पना भी नह क जा सकती थी । फ म
'जु रा सक पाक' म डायनासोर युग के जानवर क जीवंत तु त कं यूटर क वजह से ह संभव
हु ई है । हेर पॉटर ंखला क फ म क लोक यता के पीछे भी संचार के े म हु ए इन
नये योग का ह हाथ है । कं यूटर के कारण ह ए नमेशन फ म सनेमा क एक लोक य
वधा बन गई ह । म ट मी डया ने पूरे संचार प र य को बदलकर रख दया है ।
बोध न - 1
(क) ार भ म रे डयो वारा सारण के दौरान श द क जगह या यु त होता था?
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................................................................................................................
(ख) 'संचार के बना मनु य िज दा नह ं रह सकता । ' स क िजए ।
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(ग) म ट मी डया ने पूरे संचार प र य को बदल दया है ' समझाइये ।
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(घ) मू क सनेमा से आप या समझते ह?
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3.6 भारत म संचार ां त (Communication Revolution in India)


भारत म संचार के े म आधु नक वकास क शु आत तो औप नवे शक शासन के दौरान
ह हो गई थी, जब यहां ेस क थापना हु ई, रे ल के साथ डाक यव था का व तार हु आ,
टे ल ाफ और टे ल फोन का व तार हु आ तथा फ म दशन और नमाण के े म भी बीसवीं
सद के आरंभ से ह तेजी से ग त होने लगी थी । सू चना और संचार के े म भारत ने
वतं ता ाि त के बाद तेजी से व तार आरंभ कया । नगर के साथ-साथ गांव को भी संचार
के आधु नक दायरे म लाने क को शश क जाने लगीं । इस ि ट से 1990 के दशक म जब
भारत संचार उप ह के े म अपने कदम तेजी से बढाने लगा था, टे ल फोन सेवाओं, टे ल वजन
और रे डयो का भी तेजी से व तार होने लगा था । अ य दे श के वपर त भारत म इले ो नक
मा यम ने टं मी डया क ग त को बा धत नह ं कया बि क उनका और अ धक व तार
हु आ । इसी तरह टे ल वजन के व तार का सनेमा उ योग पर नकारा मक असर नह ं पड़ा
बि क बीसवीं सद के अंत और इ क सवीं सद के आरं भ म तो सनेमा उ योग के े म
जबरद त ग त दे खी जा सकती है । आज भारत म सनेमा पहले के कसी भी समय क
तु लना म तकनीक , यवसाय और तर क ि ट से अ धक बेहतर और स म है ।

3.6.1 डाक सेवाओं का व तार

भारत ने डाक सेवाओं क शु आत 1837 म क गई थी । पहल बार डाक टकट कराची से


1852 मे जार कया गया था । इन डाक सेवाओं म साल से होते जा रहे व तार का ह
प रणाम है क आज दु नया क सबसे बड़ी डाक सेवा यव था भारत म मौजू द है । वतं ता
ाि त के समय भारत म 23, 344 पो ट ऑ फस काम कर रहे थे जो अब बढ़कर 1, 55,
295 हो गए ह । और इनम से 1, 38, 818 केवल गांव म ह । एक डाकघर औसतन 21
वग मील े म रहने वाले साढे छह
़ हजार से अ धक लोग के बीच डाक का वतरण करता
है । भारत म डाक सेवाओं के कई प शा मल ह । इनम व रत ग त से जाने वाल पीड
पो ट सेवा, पंजीकृ त डाक सेवा, मनी- आडर, पासल, बुक पो ट आ द शा मल ह । डाक सेवाओं
के व तार का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है क सन ् 2001 - 02 म 1103
करोड़ से अ धक प आ द का वतरण कया गया । इसी तरह इस अव ध के दौरान 6188

47
करोड़ पये मू य के कु ल 1122 करोड़ मनीआडर ा तकता तक पहु ंचाए गए । डाक सेवाओं
का व तार अंतरा य तर तक है । भारत दो सौ से अ धक दे श के साथ थल और वायु
माग वारा मेल का आदान- दान करता है ।

3.6.2 प -प का रता का व तार

सन ् 2001 म भारत म 45, 974 समाचारप का शत होते थे, िजसम से 8, 364 दै नक


समाचारप थे जो सौ से अ धक भाषाओं म का शत हो रहे थे । सबसे अ धक समाचारप
हंद म का शत होते ह । 2001 म अकेले हंद म 20, 589 समाचारप का शत होते थे
। इसके बाद अं ेजी म 7, 596 समाचार प का शत होते थे । वतमान म लगभग 46%
पाठक सं या पर ह द समाचारप का क जा है और शीष पांच म से चार थान पर ह द
समाचारप ह ह । पहले थान पर ' दै नक जागरण' दूसरे पर 'दै नक भा कर' का बज है
। हंद म समाचारप क सार सं या दो करोड़ तीस लाख से अ धक थी जब क अं ज
े ी
म सार सं या अ सी लाख । भारत म कई बड़े -बड़े काशन सं थान ह िजनम 'टाइ स ऑफ
इं डया' समू ह, 'इं डयन ए स ेस' समू ह, ' हंद ु तान टाइ स' समू ह, ' द हंद ू समू ह, '
आनंदबाजार प का' समू ह, 'इि डया' समू ह, 'मलयालम मनोरमा' समू ह, 'मातृभू म' समूह,
'सहारा' समू ह, ' भा कर' समू ह और 'दै नक जागरण' समू ह शा मल ह । भारत म चाल स से
अ धक समाचार एज सयां काम कर रह ह िजनम ' ेस ट ऑफ इं डया' और यूनाईटे ड यूज
ऑफ इं डया' मु ख ह ।

3.6.3 टे ल ाफ और टे ल फोन सेवाएं

भारत म पहल बार टे ल ाफ सेवाओं क शु आत 1851 म कोलकाता और डायमंड हाबर के


बीच हु ई थी । टे ल फोन क शु आत 1881 - 82 म कोलकाता म क गई थी । 700 टे ल फोन
लाइन वाला पहला वचा लत टे ल फोन ए सचज शमला म 1913 - 14 म था पत कया
गया था । दे श के आजाद होने के बाद दूरसंचार सेवाओं म जबद त ग त हु ई है । अब
वचा लत ए सचज का थान डिजटल इले ॉ नक ए सचज ने ले लया है । लगभग दो
दशक पहले इसक शु आत हु ई थी तब सफ 300 ऐसे ए सचज था पत कए गए थे ले कन
आज सभी टे ल फोन ए सचज इले ॉ नक णाल से संचा लत होते ह । टे ल कॉम सेवाओं क
ि ट से भारत 2003 म दु नया का पांचवां सबसे बड़ा दे श था । जु लाई 2007 तक के आकड़
के अनुसार, भारत म टे ल फोन के उपभो ताओं क सं या तेईस करोड़ से अ धक थी । इनम
लडलाइन का उपयोग करने वाल क सं या चार करोड़ से अ धक है और सेलफोन का उपयोग
करने वाल क सं या उ नीस करोड़ से अ धक है । भारत म हर साल लगभग सात करोड़
सेलफोन बढ़ जाते ह । यह अनुमान लगाया जाता है क 2010 तक भारत म टे ल फोन के
उपभो ताओं क सं या वतमान के 20.4 फ सद से बढ़कर चाल स फ सद हो जाएगी ।

3.6.4 संचार के े म नयी ौ यो गक

1980 म टे ल वजन के व तार क यापक योजना से ऐसा तीत हु आ था क रे डयो सारण


के दन लद गये ह ले कन उप ह और डिजटल णाल ने रे डयो के े म भी ां त ला
द है । अंत र के े म भारत भी ग त कर सके इस बात को यान म रखते हु ए उप ह

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संचार के े म अनुसध
ं ान को बढ़ावा दे ने के लए भारतीय अंत र अनुसध
ं ान संगठन क
थापना क गयी थी । इसी का प रणाम था क भारत ने कृ म उप ह के नमाण और उ ह
अंत र म ि थत करने क तकनीक का धीरे - धीरे वकास । आज भारत म ह बने कई कृ म
उप ह अंत र म मौजूद ह । कृ म उप ह के े म ग त का नतीजा है क दु नया म
भारत एकमा ऐसा दे श है िजसने एडु सेट के नाम से सफ श ा के सारण के लए कृ म
उप ह था पत कर रखा है । इसी के ज रए ान दशन के नाम से चार दूरदशन चैनल से
श ा संबध
ं ी काय म का सारण हो रहा है । एडु सेट से ह रे डयो के भी नये चैनल उपल ध
हो सके ह । उप ह ने रे डयो, टे ल वजन और इंटरनेट सेवाओं म यापक व तार को संभव
बनाया है । इसी तरह उप ह से ा त होने वाले स नल के लए भी भारत ने कई अथ टे शन
क थापना क है । भारत ऑि टक फाइबर क नयी तकनीक को अपनाने के मामले म पीछे
नह ं है और नजी तथा सावज नक कंप नयां इस काय म लगी हु ई ह िजसके कारण टे ल फोन
और इंटरनेट सेवाओं म गुणव ता और मा ा दोन ि टय से व तार हु आ है ।
इन नयी ौ यो गक के कारण आज भारत म रे डयो सारण के टे शन क सं या वशेषत:
एफएम टे शन क सं या म जबरद त ग त हो रह है । सन ् 2001 म रे डयो के ोताओं
क सं या साढ़े बारह करोड़ से यादा थी । सामु दा यक रे डयो टे शन क प रक पना एफएम
के मा यम से पूर होती नजर आ रह है । श ा के े म रे डयो क भू मका को दे खते हु ए
व व व यालय को अपने एफएम रे डयो टे शन था पत करने क अनुम त दान क गई
है । अकेले इं दरा गांधी रा य मु त व व व यालय के पास व भ न शहर म तेईस एफएम
टे शन ह िजनके नकट भ व य म ह चाल स तक हो जाने क संभावना है । ऐसा ह व तार
टे ल वजन का भी हो रहा है । भारत म लगभग यारह करोड़ टे ल वजन सेट होने का अनुमान
लगाया जाता है । केबल ट वी आने के बाद भारत म टे ल वजन सारण पर दूरदशन का
एका धकार समा त हो गया है और व भ न भाषाओं म व भ न टे ल वजन सारण कंप नयां
काम कर रह ह । उनम टार और सोनी जैसी बहु रा य कंप नयां ह तो जी ट वी, इनाडू
ट वी, इं डया डे, एनडीट वी, आ द मी डया क कई भारतीय कंप नयां भी स य ह । अं ेजी
के अ त र त हंद स हत भारत क सभी मुख भाषाओं म कई-कई चैनल आज दखाए जा
रहे ह । इनम समाचार, मनोरं जन और खेलकू द से संबं धत चैनल सबसे अ धक लोक य ह
। इनके अलावा श ा, ान और ब च के मनोरं जन के लए व श ट चैनल भी दखाए जाते
ह । टे ल वजन पर फ म का दशन करने वाले भी कई वतं चैनल ह और वे भी काफ
लोक य ह । संभवत: चैनल क सं या के ि ट से वकासशील दे श म भारत सबसे अ णी
है और पूरे व व म अमेर का के बाद संभवत: इतने अ धक चैनल भारत म ह दखाए जाते
ह । भाषाओं क व वधता क ि ट से तो भारत क तु लना कसी भी अ य दे श से नह ं क
जा सकती ।
इंटरनेट सेवाओं म भी भारत ने जबरद त ग त क है । जू न 2007 तक ॉडबड कने शन
रखने वाले उपभो ताओं क सं या प चीस लाख से अ धक हो चुक है । एक अनुमान के
अनुसार इंटरनेट का उपयोग करने वाले दे श म भारत का थान चौथा है । दसंबर 2005
तक भारत म पांच करोड़ से अ धक लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे थे और यह अनुमान
लगाया गया है क यह सं या 2007 के अंत तक दुगन
ु ी यानी दस करोड़ हो जाएगी ।

49
सू चना और संचार ौ यो गक के े म भारत ने पछले दो दशक म जबरद त तर क क
है । कं यूटर के लए सो टवेयर के नमाण के मामले म भारत का अ णी थान है । सू चना
और संचार के े म उपल ध नवीनतम ौ यो गक को सावज नक और नजी दोन े
म अ धका धक उपयोग करने के यास भी सफलतापूवक कए जा रहे ह । ले कन इस बात
को यान म रखने क ज रत है क इस े क ौ यो गक म के यूनतम उपयोग पर
आधा रत हो । इस तकनीक म यु त कौशल भी उपयो गता के े म कम तथा नमाण,
उपभो ताओं तक पहु ंचाने और रख- रखाव म यादा ज र है । भारत क वशाल मानवशि त
इस ि ट से इस ौ यो गक को अ धकतम े और अ धकतम लोग तक पहु ंचाने म
मददगार हो सकती है । यह रोजगार के नये े के वार भी खोल रह है और इसने अंतरा य
तर पर रोजगार के ऐसे े भी खोल ह िजसका अ धकतम लाभ भारत को मल रहा है ।
कॉल सटर और बीपीओ ( बजनेस ोसे संग आउटसो सग) इसी तरह का े है जहां श त
युवाओं को रोजगार मल रहा है । इले ॉ नक वा ण य (ई-कामस) के वकास ने रे ल और
हवाई या ाओं म आर ण और टकट खर दने को आसान बना दया है । अब घर बैठे इंटरनेट
के मा यम से आप दु नया के कसी भी ह से म या ा के लए अ म आर ण करवा सकते
ह और इंटरनेट से ह टकट ा त कर सकते ह । इले ॉ नक ब कं ग ने े डट और डे बट
काड का चलन आरंभ कया है िजसक वजह से लोग को हर कह ं रोकड़ पैसे लेकर चलने
क ज रत नह ं रह गई है । कुछ भी खर दने पर वे इन काड से भु गतान कर सकते ह ।
अब दे श के कई शहर म बजल , पानी, टे ल फोन, बीमा आ द का भु गतान भी इंटरनेट के
मा यम से घर बैठे कया जा सकता है । इसी तरह उपभो ता े म शकायत दज कराने,
आयकर के रटन दा खल करने और श ा के े म ऑन लाइन अ ययन करने के े
का व तार भी हो रहा है । पर ाओं के प रणाम तो अब अ धकांश व याथ या तो इंटरनेट
से या फर मोबाइल फोन पर एसएमएस वारा हा सल कर लेते ह ।
संचार के े म सरकार ने ' भारत संचार नगम ल मटे ड', ' वदे श संचार नगम ल मटे ड'
और 'महानगर टे ल फोन नगम ल मटे ड' आ द सं थाओं का नमाण कया है जो टे ल फोन
सेवाओं के व तार के लए उ तरदायी है । इस े म अब नजी कंप नयां भी स य हो
गई ह िजनम 'टाटा इं डकॉम', ' भारती टे ल कॉम' और ' रलायंस इ फोकॉम' मु ख ह । इसी
तरह कं यूटर के े म नमाण, रखरखाव और व भ न तरह क सेवाएं दान करने वाल
कंप नय म 'इ फो सस', ' व ो' और 'टाटा कंस टसी' स वस का मुख थान ह ।
संचार के े म इस ग त के बावजूद यह नह ं कहा जा सकता है क हम वक सत दे श
के समक पहु ंच गये ह । भारत अब भी हाडवेयर के मामले म दूसरे दे श पर नभर है ।
इसी तरह संचार क व भ न सेवाओं का व तार होने के बावजूद आबाद के एक चौथाई ह से
तक भी उसक पहु ंच नह ं बनी है । जहां तक रोजगार का मामला है, संचार के े म रोजगार
महानगर और बड़े शहर म क त है और बहु त कम मा ा म रोजगार छोटे शहर, क ब और
गांव तक पहु ंच सका है । अब भी भारत म एक तहाई आबाद गर बी रे खा के नीचे जीवन
जीने के लए ववश है और एक तहाई आबाद नर र भी है । इनम द लत एवं म हलाओं
क सं या आधे से अ धक है । इस लए यह समझ लेना क संचार के े म वकास से भारत
क मूलभूत सम याओं का हल हो जाएगा, सह नह ं है । संचार के साथ- साथ श ा, रोजगार

50
के े म व तार उतना ह ज र है । भारत म संचार ां त के बारे म अ ययन के साथ
इस प को भी यान म रखना चा हए ।
बोध न - 2
(क) ' सनेमा समाज क स ची त वीर दखाता है । ' इस कथन को प ट क िजए ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) या भारत म ह द समाचारप ने अं ज
े ी समाचारप को काफ पीछे छोड़ दया
है?
................................................................................................................
(ग) ई- कॉमस या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) या भारत म इंटरनेट उपयोगकताओं क सं या तेजी से बढ़ रह है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

3.7 सारांश (Summary)


आपने इस इकाई के अ ययन वारा संचार के वकास और भारत म संचार ाि त के व भ न
पहलु ओं का ान ा त कया । इस इकाई को प ने से आप जान गये ह गे क भारत म आज
संचार क या ि थ त है और पछल दो स दय म जो संचार ौ यो गक और मा यम का
वकास हु आ है उसका कतना लाभ भारत को मल चु का है । जब दु नया म संचार ौ यो गक
का व तार हो रहा था, तब भारत औप नवे शक दासता म जकड़ा हु आ था । संचार के े
म भारत को वा त वक वकास करने का अवसर आजाद के बाद ह ा त हु आ । इस ि ट
से भारत म डाक सेवाओं, तार और टे ल फोन सेवाओं का व तार क व तृत जानकार आपने
ा त क है । इनके अलावा आपने इन सेवाओं म नयी तकनीक के कारण हु ए प रवतन का
भी प रचय ा त कया है । संचार के े म इंटरनेट का वेश एक नयी प रघटना है । इसने
हमारे नजी और सावज नक जीवन को दूर तक भा वत कया है । इसके कारण सूचना, श ा,
मनोरं जन, वा ण य और यातायात के े म गुणा मक प से प रवतन हु ए ह । वा ण य
के े म इले ॉ नक णाल के उपयोग ने तो ब कं ग, आर ण और अ य तरह क सेवाओं
को न केवल सरल बना दया है बि क सुर त बना दया है । संचार के े म भारत सफ
उपभो ता ह नह ं है । वह सफ बहु रा य कंप नय के उ पाद का वशाल बाजार ह नह ं
है बि क वयं भी नमाण, रखरखाव और व भ न तरह क सेवाओं को उपल ध कराने म
अ णी है । संचार के े म जबरद त ग त के बावजू द अभी भारत को वकास के े म

51
बहु त लंबी या ा तय करनी है । संचार क ां त को इस प र े य म भी दे खने क ज रत
है ।

3.8 श दावल (Glossary)


इंटरनेट : वभ न थान पर उपल ध क यू टर को आपस म
)Internet( जोड़कर सू चना स ेषण के लए बनाई गयी तकनीक।
एडू सेट) Edusat( : एजु केशन सैटेलाइट का सं त प
समाचारप : कसी संगठन वारा समाचार उपल ध कराने हेतु कया जाने
)News paper( वाला नयतकाल न काशन
सीडी )CD( : का पै ट ड क िजसका यास लगभग .से 12मीहोता है .।
म ट मी डया : मु त, य एवं य य तीन मा यम के संगठन को -
)Multi Media( दशाने वाल वह तकनीक िजसने अ र, आवाज तथा य
तीन क तु त को एक साथ स भव कर दया है ।

3.9 अ यासाथ न (Questions)


1. 'टे ल ाफ क खोज ने संचार के े म ां त ला द है ।' प ट क िजए ।
2. सनेमा क इ तहास गाथा पर काश डा लए ।
3. भारत म वतमान सूचना ौ यो गक क ि थ त प ट क िजए ।
4. 'वतमान युग सूचना का युग है । ' प ट क िजए ।

3.10 संदभ थ (Further Readings)


1. जवर म ल पारख : जनसंचार मा यम का वैचा रक प र े य, 2000 थ
ं श पी (इं डया)
ा. ल द ल ।
2. पूरनचं जोशी : सं कृ त, वकास और संचार ां त, 2001, थ
ं श पी (इं डया) ा. ल
द ल ।
3. सु भाष धू लया : संचार ां त क राजनी त और वचारधारा, 2001, थ
ं श पी (इं डया)
ा. ल द ल ।
4. ट फन से सबी : द एज ऑफ इनफोमशन 1990, द मैक मलन स
े ल. लंदन ।
5. रॉबट एल. ट वंसन : क यू नकेशन, डेवलेपमट एंड द थड व ड, 1988, लांगमैन,
यूयाक ।
6. उपा याय, डॉ. अ नल कु मार, प का रता एवं वकास संचार, 2007 भारती काशन,
दुगाकु ड, वाराणसी-5
7. इं डया 2004 ए रे फरस एनुअल, काशन वभाग, सू चना एवं सारण मं ालय, नई द ल ।

52
इकाई-4
संचार शोध प तयाँ एवं तकनीक
(Communication Research Methods and
Techniques)
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 जनगणना प त
4.3 नदशन प त
4.4 वैयि तक प त
4.5 सांि यक प त
4.6 अवलोकन प त
4.7 योगा मक प त
4.8 सा ा कार प त
4.9 अंतव तु- व लेषण प त
4.10 नावल तकनीक
4.11 अनुसू ची तकनीक
4.12 अनुमापन तकनीक
4.13 सारांश
4.14 वमू यांकन
4.15 श दावल
4.16 अ यासाथ न
4.17 संदभ थ

4.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप:
 जनगणना प त से अवगत हो सकगे,
 वैयि तक प त से प र चत हो सकगे,
 सांि यक प त क जानकार ात हो सकेगी,
 अवलोकन प त को समझ सकगे,
 योगा मक प त से -ब- हो सकगे,
 सा ा कार प त का ान ा त कर सकगे,

53
 अंतव तु- व लेषण प त का ान हा सल कर सकगे.
 नावल तकनीक से अवगत हो सकगे,
 अनुसू ची तकनीक क जानकार ा त कर सकगे, और साथ ह
 अनुमापन तकनीक से भी प र चत हो सकगे ।

4.1 तावना (Introduction)


िजस कार रोट , कपड़ा और मकान हमार भौ तक आव यकता ह, उसी कार संचार हमार
सामािजक व मनोवै ा नक आव यकता है । संचार ां त के कारण संचार का े अ यंत ह
यापक एवं व तृत हो गया है । इस कारण संचार शोध क मह ता भी तेजी से बढ़ने लगी
है । इस लए समयानुसार नयी-नयी संचार प तयाँ एवं तकनीक का अ ययन एवं इसे वक सत
करने क आव यकता महसूस क जाने लगी है । हाल के वष म संचार शोध ने अनुसध
ं ान
के नये े म भी वेश कया है । इन े म संचार मा यम के व भ न सामािजक एवं
मनोवै ा नक पहलू भी सि म लत ह । संचार शोध िज ासा, ान पपासा को शांत तो करता
ह है, साथ ह कई बार अ य प से भी संचार शोध मनु य के सामािजक जीवन के लए
अ य त ह उपयोगी स होता है । भारत जैसे वकासशील दे श म जहाँ संचार शोध अभी
शैशवा था से बा य-काल म वेश करने के लए तरस रहा है, वह इस कार के शोध क
मह ता अ ानता उ मूलन, नये वचार का वकास, अंध व वास से मु ि त, आ थक, सामािजक,
राजनै तक, सां कृ तक, धा मक, शै क, आ याि मक सम याओं का समाधान एवं रा य
एकता के ि टकोण से काफ बढ़ जाता है । इसी लए संचार शोध तभी भावी एवं कारगर
हो सकगे जब सह , सट क एवं उपयु त शोध व धयाँ एवं तकनीक को शोध म इ तेमाल
कया जाए । साथ-साथ आव यकतानुसार ऐसी नयी शोध व धयाँ एवं तकनीक भी वक सत
क जाएँ, जो संचार शोध को नई दशा एवं नया आयाम दान कर सक ।

4.2 जनगणना प त (Census Method)


इसके अंतगत शोध कये जाने वाले संपण
ू े व सम त इकाइय का अ ययन कया जाता
है । उदाहरण के लए य द हम कसी छोटे गाँव से गाँव के लोग के वारा ह गाँव के लोग
को एक समाचार प का शत करने के लए े रत करना है, तो आरं भक ि थ त म गाँव
के लोग क राय जानने के लए गाँव के सभी लोग का अ ययन कया जाना आव यक होता
है । इस कार के अ ययन को जनगणना या संगणन का अ ययन कहा जाता है । अथात ्
सम क सम त इकाइय का अ ययन करना जनगणना प त या संगणना प त कहलाता
है । भारत सरकार वारा येक दशक म एक बार संपण
ू जनसं या का जनगणना प त
से ह अ ययन कया जाता है ।

4.3 नदशन प त (Sampling Method)


इस प त म सम क संपण
ू इकाइय का अ ययन नह ं कया जाता है बि क सम म से
कु छ ऐसी इकाइयाँ चु न ल जाती ह, िजनम सम त इकाइय के सभी गुण समान अनुपात
म व यमान ह । उदाहरण के लए य द हम समाचारप म कायरत सम त प कार का
अ ययन न करके कुछ ऐसे चु ने हु ए प कार का अ ययन कर जो सारे प कार क ि थ त

54
का त न ध व करते ह । इस कार सम का अ ययन न करके उसके एक चु ने हु ए भाग
का अ ययन करना नदशन प त के वारा अ ययन करना कहलाता है ।
नदशन कसी संपण
ू समू ह का ऐसा भाग है जो सम का त न ध व करता है । इससे समय,
एवं ऊजा के साथ-साथ धन क भी बचत होती है । उदाहरण के लए चावल पकाते समय चावल
पका या नह ं इसक जाँच चावल के एक-एक दाने पर न करके मा चावल के कुछ दान से
कर ल जाती है । अ धक संतु ि ट के लए चावल को ऊपर-नीचे से कई बार बड़े च मच से
चलाकर उसके कु छे क दान को ह दे खा जाता है और उनसे ा त प रणाम को सम पर लाग
कर दया जाता है । इस कार चावल के कु छ दान को दे खा जाना नदशन कहा जाता है
एवं चावल चु नने के इस ढं ग को नदशन प त कहा जाता है ।
इस कार सम से चु ने हु ए भाग को सम का वा त वक प म त न ध व करना चा हए
। उस भाग पर कया गया अ ययन सम पर कया गया अ ययन माना जाता है । पर तु
यह भाग कैसे चु ना जाये? अथवा चु नी हु ई इकाइयाँ सम क वा त वक त न ध ह इसका
या उपाय कया जाये? इ ह ं न का उ तर नदशन प त है । अथात ् नदशन या तदश
या तदशन चु ना हु आ भाग है और नदशन प त इस भाग को चु नने का तर का है ।
नदशन के चु नाव म काफ सावधानी बरतनी पड़ती है, ता क इन व वधताओं के बावजू द भी
एक पता ढू ँ ढ जा सके । एक पता रहने पर नदशन का चु नाव सरल है । जब क व वधता
रहने पर नदशन का चु नाव ज टल है । व वधता क ि थ त म तदशन के आकार को बड़ा
या बहु मु खी भी करना पड़ता है, ता क वह सम का त न ध व कर सके । कहने का अथ
यह है क सम य द एक प है तो नदशन के बहु त ह छोटे या नग य आधार से भी काम
चल जाता है । जैसे: खू न जाँच, खू न क एक बूँद से हो सकती है । चावल का पकना. चावल
के कु छ दान से पता चल सकता है । ले कन य द सम म बहु पता है तो कई बार सम
पर पायलट अ ययन करके सभी कार क इकाइय को सि म लत करते हु ए नदशन के आकार
को नि चत कया जाता है ।
संपण
ू समू ह म से कु छ इकाइयाँ तनध प म चु नी जा सकती है । अथात ् य द सभी वग
क इकाइयाँ नदशन म आ जाय तो उ ह सम का त न ध कहा जाता है । उदाहरण के
लए कसी वशाल समूह से केवल एक या दो इकाइय के चु न लेने से ह उस समू ह के बारे
म हमारा न कष त न ध वपूण नह ं होगा । नदशन क सं या समू ह क वशालता के
अनुसार होनी चा हए । उसी कार यह भी आव यक है कसी वशेष गुण या गुण समू ह के
आधार पर संपण
ू समू ह को कुछ नि चत वग म वभािजत कर लया जाये और येक वग
क कु छ इकाइय को चु न लया जाये तो इस कार चु नी हु ई सभी इकाइय के लए सम
समू ह क आधारभूत वशेषताओं का त न ध व करना संभव होगा ।
वैसे तो कोई भी नदशन अपने सम का शत- तशत त न ध व कभी नह ं करता । येक
इकाई म कुछ-न-कु छ अंतर होता है । पर नदशन के न कष पया त मा ा म सम पर लागू
हो सकते ह । उदाहरण के लए य द कसी समाचार प म 500 प कार ह और उनम से 100
इकाइय का अ ययन करने पर पता चलता है क 25 तशत प कार सगरे ट पीते ह, तो
यह कहना पया त मा ा म सह होगा क इस समाचार प के 25 तशत प कार सगरे ट
पीते ह । हो सकता है क सम प से 500 इकाइय का अ ययन करने पर प रणाम 24.7

55
तशत नकले । इस अंतर को नदशन ु ट कहते ह । परं तु यह अंतर इतने बड़े समूह के
अ ययन म वशेष मह व नह ं रखता । अत: नदशन क तीसर मा यता यह है क प रणाम
काफ सीमा तक शु होते ह - शत- तशत नह ं । नदशन प त यह मानकर चलती है क
शोध म शत- तशत शु ता अ नवाय नह ं ।
नदशन का चयन करने से पहले शोधक ता को सम का नधारण करना पड़ता है । शोधक ता
को यह नि चत करना होता है क नदशन का चु नाव कौन से मानव-समू ह म से होता है
। वह समूह िजससे नदशन का चु नाव करना है, सम कहलाती है । यह सम य द भौगो लक
ि ट से नधा रत करना हो तो सरलता से सम का न चय कया जा सकता है । पर तु
ऐसा भी हो सकता है क वे सम जनसं या न होकर कोई गुण, या अथवा घटना होती
है और उस अव था म सम का नधारण करना बहु त क ठन हो जाता है य क इनके बहु त
ज द घटने-बढ़ने क संभावना हो सकती है । अत: हम कह सकते ह क सम का नधारण
उसके कार पर नभर करता है ।
सम को भल -भां त नधा रत करने के बाद उस इकाई या इकाइय का न चय करना होता
है, जो नदशन के चु नाव का आधार होगी । ता पय यह है क नदशन का चु नाव करने से
पूव हम यह नि चत करना होता है क हम कन- कन चीज से नदशन क इकाइय को चु नना
है । य द हम कसी मानव समू ह का अ ययन कर रहे ह तो यह आव यक नह ं है क केवल
कु छ यि त ह हमारे नदशन क इकाई बन सकते ह । यि तय के अ त र त, िजन मोह ल
म वे रहते ह, िजन पेश को वे अपनाये हु ये ह, िजस प रवार के वे सद य ह या िजस घर
म वे रहते ह उनम से येक क कु छ-कु छ इकाइयाँ नदशन क इकाइयाँ हो सकती नदशन
प त का अगला मह वपूण चरण साधन-सू ची का नमाण करना है । साधन-सूची म सम
क सम त इकाइय के नाम इ या द लखे रहते ह । यह सूची तैयार भी मल जाती है या
शोध के लए तैयार करनी पड़ती है । उदाहरण के लए टे ल वजन उपभो ताओं, कसी समाचार
प के प कार क बनी बनायी सूची ा त क जा सकती है । सामा यत: सू ची बहु त व तृत
होती ह तथा शोधक ता को अपनी नदशन प त के अनुसार संबं धत इकाइय को उसम से
छाँटना पड़ता ह
साधन-सू ची न मत करने के बाद नदशन का आकार नधा रत कया जाता है । नदशन का
आकार कतना बड़ा या छोटा होगा, इस संदभ म कोई ढ़ नयम नह ं है । उसका आकार
बड़ा हो अथवा छोटा, वह व वसनीय और ामा णक हो इसी बात का यान रखा जाता है
। नदशन के आकार का नधारण करते समय इस बात का यान रखना चा हये क उसम
अ ययन वषय क सभी आधारभू त वशेषताओं का समावेश हो जाये । नदशन का आकार
सम क कृ त, अनुसंधान क कृ त, इकाइय क कृ त, अ ययन प त व व धयाँ,
नदशन प त, उपल य समय, धन, संसाधन आ द वचार बंद ुओं को यान म रखकर करना
चा हए । सम य द व प हो तब तो नदशन के बहु त छोटे या नग य आकार से भी काम
चल जाता है । जैसे - खू न जाँच, चावल का पकना आ द ले कन य द सम म बहु पता है,
तो कई बार सम पर पायलट अ ययन करके सभी कार क इकाइय को सि म लत करते
हु ए नदशन के आकार को नि चत कया जाता है ।

56
नदशन प त का चु नाव नदशन या का अगला मह वपूण चरण है । सम का नधारण
हो जाने पर तथा इकाइय क वृि त के नदशन का आकार नधा रत कर लेने पर नदशन
क उपयु त प त का चु नाव कर लेना चा हए । यह चु नाव सावधानीपूवक करना चा हए, ता क
नदशन वा तव म सम का त न ध व कर सके ।
नदशन का चु नाव, नदशन या का अं तम मह वपूण चरण है । वा तव म उपयु त णाल
के मा यम से व वसनीय, ामा णक तथा त न ध वपूण नदशन चु नना ह संपण
ू नदशन
या का वा त वक उ े य होता है । ऐसा इस लये भी अ त मह वपूण है , य क इसी पर
शोध प रणाम क यथाथता मु य प से आ त ह ।

4.4 वैयि तक प त (Case-study method)


संचार शोध म आजकल िजन व धय का योग हो रहा है, उ ह मु यतया दो भाग म बाँटा
जा सकता है । मा ा मक एवं गुणा मक । य द सांि यक य प त एक मा ा मक व ध है
तो वैयि तक प त एक गुणा मक व ध है । पीवी. यंग के अनुसार, वैयि तक अ ययन जीवन
क खोज तथा ववेचना करने क प त है, चाहे वह इकाई एवं यि त, प रवार, सं था,
सां कृ तक समू ह अथवा संपण
ू समूह समु दाय हो । ''
सन पाओ यांग के श द म, ''वैयि तक अ ययन क प रभाषा कसी यि त के सू म, गहन
तथा संपण
ू अ ययन के प म क जा सकती है, िजसम शोधक ता अपनी सम त मताओं
तथा व धय का उपयोग करता है । ''
एमे वाटसन के मतानुसार, ''जब हम कसी इकाई का उसक सामािजक, सां कृ तक, सांचा रक
पृ ठभू म म रखकर प रपूण प से अ ययन करते ह, तो उसे वैयि तक अ ययन कहते ह
। ऐसी इकाई हम कसी यि त वशेष को अथवा कसी प रवार, सामािजक समू ह, सामािजक
सं था, या समु दाय को बना सकते ह । वशु सांि यक य प त के वपर त वैयि तक अ ययन
म हम एक वशेष कार के सतत ् अनुभव का एक खृं लाब च तु त करते ह । इस
प म समय वाह म व वध अनुभव , सामािजक शि तय तथा भाव क पृ ठभू म म कसी
इकाई का गहन तकयु त अ ययन ह वैयि तक अ ययन है ।''
बरनौ ड के वचारानुसार 'सव थम इसका उपयोग अनुमान वारा कसी नवीन उपक पना
पर पहु ँ चने क अपे ा तावना एवं मत को समझाने व समथन करने के लए कया गया
था ।
ओडम तथा जोचर ने भी लखा है, वा तव म इस प त को सबसे पहले इ तहासकार तथा
रा के ववरणा मक लेख म दे खन को मलता था । इनका बाद म छोटे -छोटे समू ह तथा
यि तय के व तृत अ ययन वारा अनुसरण कया गया । उदाहरण के लए अबुल फजल
का लेख वैयि तक अ ययन के आधार पर ह तु त कया गया था । उनके वारा तु त
ववरण के आधार पर म यकाल न भारत का सजीव च ण तु त होता है । इसी कार
मैग थनीज और यूनसांग के या ा ववरण भी आरं भक वैयि तक अ ययन के अ छे उदाहरण
ह । मशहू र मनोवै ा नक सगम ड ायड ने अपने अनेक मर ज का वैयि तक अ ययन कर
उस पर अपने तवेदन तु त कये । दूसर और अथशाि य एवं मी डया वशेष ने भी
एफ.सी.सी. के लए केवल ट वी. उ योग पर वैयि तक अ ययन कर अलग-अलग लेख लखे

57
और तवेदन पेश कये । उसी कार ाउने (1983) ने वायस ऑफ अमे रका, बीबीसी एवं
यूच - वेल,े रे डयो टे शन के समाचार क पर तुलना मक वैयि तक अ ययन कया ।
अ ययन से पाया गया क कस कार वैयि तक अ ययन म व भ न ोत का इ तेमाल
कया गया । इसम तीन टे शन के 55 मी डयाक मय का सा ा कार कया गया । यह पाया
गया क तीन रे डयो टे शन क वदे शी भाषा के संदभ म लगभग समान कार क सम याएं
ह ।
संपण
ू ता वैयि तक अ ययन क आ मा है । इकाई के वषय म िजतनी अ धक सू चनाएँ एक
क जा सकगी, इस प त को साथकता एवं उपयो गता क ि ट से उतना ह सफल माना
जायेगा । व भ न उपल ध ल खत साम ी तथा सा ा कार के आधार पर लंबी अव ध तक
जानकार एक त करके छ ा वेषी अवलोकन के वारा उनके यावहा रक स य का पर ण
करने के उपरांत ह यि त के जीवन के यथाथ एवं संपण
ू ता का च ण कया जा सकता है
। एक ह यि त क ि थ त को भ न- भ न ि टकोण से दे खने क चे टा क जाती है ।
मनोवै ा नक त य का ान ा त करना भी इस अ ययन म आव यक होता है । पर तु
यह सब करना इतना सरल नह ं होता, िजतना कहना या लखना । इसी कारण वैयि तक
अ ययन म शोधक ता को बहु त ह सोच- वचार कर और यवि थत एवं नयोिजत का से अपने
शोधकाय को आगे बढाना होता है ता क उसम संपण
ू ता आ सके । इसी संपण
ू ता को हण
करने के लए वैयि तक अ ययन व ध का योग करते समय न न ल खत काय णाल
का योग कया जाता है-
1) वैयि तक अ ययन प त म सव थम शोध सम या के व प क या या, वणन एवं
ववेचना अ या नवाय है । साथ ह , यह भी आव यक है क उस वशेष सम या के हर
पहलू क प ट या या भी कर ल जाये । सम या का न चय तथा या या करने के
न न ल खत चरण ह :
(क) वैयि तक वषय का चु नाव
(ख) इकाइय क सं या
(ग) व लेषण क संपण
ू ता
सव थम वैयि तक वषय का चु नाव कया जाता है । इस बात का न चय करना आव यक
होता है क वे इकाइयाँ सामा य ह या व श ट अथवा असाधारण ह । यह भी तय करना
ज र है क वैयि तक अ ययन का कार या होगा अथात ् इकाई के प म यि त को लया
जायेगा अथवा समू ह, वग, सं था या समुदाय को ।
इकाइय के कार नि चत करने के बाद उनक सं या नि चत करना भी ज र है । सं या
इतनी हो जो संबं धत सम या पर पया त काश डाल सके । वैयि तक अ ययन म गंभीर
एवं गहन अ ययन करना पड़ता है । अत: इकाइय क सं या िजतनी कम हो, उतनी अ छ
बात वैयि तक अ ययन क सम या क या या करते समय यह न चय करना भी ज र
है क सम या का संपण
ू अ ययन करने के लए कन- कन संबं धत प का अ ययन कया
जा रहा है । इन तमाम पहलु ओं का वणन व लेषण, या या एवं ववेचन कर दे ना भी ज र
होता है ।

58
2) सम या के या या के बाद घटनाओं को म म रखना अ यंत आव यक है । सम या
के व प म एक नि चत अव ध म या- या प रवतन हु आ एवं भ व य म या- या
प रवतन संभव है इनका व तार से यवि थत वणन करना आव यक है ।
3) घटनाओं को मब करने के बाद घटना के नधारक अथवा ेरक कारक का अ ययन
करना अ त आव यक है । इसम उन कारक का अ ययन करना वांछनीय है, िजनके कारण
घटना घट या उस वैयि तक ि थ त क वतमान दशा पैदा हु ई । उदाहरण के लए एक
प कार य द आतंकवाद बन जाये तो उस प कार के जीवन ववरण के अ ययन के बाद
उसके अंदर न हत उन मू ल कारण को भी जानना आव यक है, िजनके आधार पर वह
आतंकवाद बना है । वह कौन-कौन से नधारक कारण थे अथवा कन- कन कारण से
े रत होकर वह आतंकवाद बना? इन सभी कारण का पूण अ ययन आव यक है ।
4) वैयि तक अ ययन प त क काय णाल के अं तम चरण म ा त त य अथवा
सू चनाओं का व लेषण करके कु छ सामा य न कष नकाले जाते ह । कन- कन कारक से
वैयि तक ि थ त म या- या प रवतन हु ए एवं कन- कन प रवतन क संभावना है । इन
सबका व लेषण इस चरण म कया जाता है ।
ता पय यह है क वैयि तक अ ययन प त म कसी यि त, समू ह, वग, सं था का गुणा मक
व ध से सा ा कार तथा ल खत उपल य साम ी क सहायता लेकर सू म गहन तथा
समय म के अनुसार शोध कया जाता है । इस कार यह प त सम या क या या, इकाइय
का न चय, घटना म का ववरण, नधारक कारक का व लेषण तथा प रणाम का
प ट करण आ द क याओं से होती हु यी इकाई का संपण
ू च पेश करती है ।
वैयि तक अ ययन प त संबं धत सम या के संदभ म अ धका धक सूचनाएँ एक त करने
क प त है । इसम न केवल यि त के कट यवहार का ह अ ययन कया जाता है बि क
उसके यवहार को े रत करने वाले कारक का ान भी ा त करने क चे टा क जाती है
। इकाई का सू म छ ा वेषी, गहन तथा गंभीर शोध करने के लए इस प त म न न ल खत
यं तथा णा लय का उपयोग कया जाता है -
1. डायर - यह इस प त का अ यंत ह मह वपूण यं है । इसम यि त अपने जीवन
क मह वपूण घटनाओं, त य एवं सं थान को समय के अनुसार मब तर के से वयं
लखता है । मनु य क आंत रक भावनाओं, गु त याओं, त याओं, संक प ,
इ छाओं, सफलताओं और असफलताओं क अ भ यि त वयं उसी के वारा केवल मा
डायर म ह मल सकती है । गुणा मक यवहार और मान सक झु काव का अनुमान डायर
म ल खत साम ी से ह मल सकता है और तो और य द हम यि त के जीवन का
वा त वक त य खोजना है तो हम उस यि त क डायर से ह वह सू चना ा त हो सकेगी
य क ऐसी बहु त सी बात जो क य सा ा कार वारा नह ं पूछ जा सकतीं । हम
आसानी से डायर वारा ा त हो सकती ह । इस लये यि तगत अ ययन प त म
डायर को साथक एवं उपयोगी यं माना गया है ।
2. प - लेख, आलेख आ द य द मनु य के मि त क क उपज ह, तो प मनु य के दय
क उपज है उसक भावनाओं का च ण है । यि त वशेष का दूसरे यि तय से संबध
ं ,
जीवन-दशन, यि त क अपनी भावनाएँ एवं धारणाएँ, जीवन के त ि टकोण आ द

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बहु त सी घटनाओं का ववरण प से ा त हो सकता है । ता पय यह है क प के
मा यम से यि त वशेष का आंत रक व यि तगत जीवन अ ययन आसानी से कया
जा सकता है । ीमती यंग के श द म, यि तगत लेख अनुभ व क न तरता कट
करते ह, जो न प , वा त वक एवं आ म ववेचन म अ भ य त लेखक के यि त व
सामािजक संबध
ं तथा जीवन-दशन पर काश डालने म सहायक होते ह । आलपोट के
अनुसार वे वयं का शत रकाड होते ह जो जानबूझकर अथवा अनायास ह लेखक के
मान सक जीवन क रचना अथवा ग तशीलता का वणन करते ह ।
3. जीवन-इ तहास - कसी यि त का एक मह वपूण यं है जीवन-इ तहास । य द
जीवन-इ तहास को वैयि तक अ ययन प त का ह एक अंग समझा जाये, तो कोई
अ त योि त नह ं है । ऐसा इस लये य क िजस कार वैयि तक अ ययन प त म
एक इकाई वशेष से संबं धत संपण
ू जानकार ा त क जाती है , उसी कार जीवन-
इ तहास म भी यि त का संपण
ू जीवन च त होता है ।
ीमती पी.वी.यंग के अनुसार ' यि तगत प यि त के अनुभव क मब ता कट
करते ह, िजनम यि त के यि त व सामािजक संबध
ं आ द के बारे म ान ा त करना
सरल होता है । साथ ह यि त क मान सक वचारधारा तथा भावनाओं का भी अ ययन
हो सकता है । उसी कार पा रवा रक फोटो, एलबम, कू ल, जेल, पु लस कोट, द तर
आ द के रकाड आ द से भी मह वपूण सू चनाएँ ा त हो सकती ह । पर तु इन सबक
अपनी नजी सीमाएँ ह । अत: योग ब कुल आँख मू ंदकर नह ं करना चा हये । साथ
ह उ चत संदभ को जाने बना य द मनमाने का से उनका योग कया गया, तो प रणाम
वपर त भी हो सकता है ।
4. सं हत साम ी - सं हत साम ी ाय: न न ल खत ोत से मल पाती है –
(क) सरकार वभाग के रकाड के अंश
(ख) वंशावल
(ग) जीवन घटनाओं क सूची
(घ) कूल, जेल, पु लस, यायालय आ द के रकाड
(ङ) माण प तथा शंसा प
(च) जनगणना का रकाड
(छ) इकाई से यि तगत सा ा कार
(ज) इकाई के म , संबं धय तथा प र चत से सा ा कार
(झ) फोटो एलबम
(ञ) का शत सा हि यक रचनाएँ तथा सं मरण इ या द ।

4.5 सांि यक प त (Statical Method)


लौ वट के मतानुसार, 'सांि यक प त के अंतगत कसी घटना क या या, ववरण तथा
तु लना के लए सं या मक त य का संकलन, उनका वग करण व सारणीयन कया जाता है
। सांि यक प त म यि तगत इकाई के तर पर अ ययन क तु लना म सामू हक अ ययन
अ धक सरलता से कया जा सकता है । साथ ह चूँ क इस प त म सं या मक त य को

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ह न कष का आधार माना जाता है । इस कारण अ य कसी भी प त क तु लना म इसके
न कष या नयम अ धक यथाथ हो सकते ह । बशत क वे सं या मक त य सह ह । इस
प त म सव थम हम अपने अ ययन वषय से संबं धत सं या मक त य या आकड़ को
एक त करते ह और फर उन आकड़ को यवि थत व संग ठत करते ह अथात ् सं हत आकड़
का संपादन उनका वग करण व सारणीयन या संकेतीकरण करते ह । इसके प चात ् उन त य
का व लेषण करते हु ए एक नि चत न कष पर पहु ँचते ह । इस कार इस प त म आरंभ
से अंत तक सं या मक त य को ह अ ययन व न कष को आधार माना जाता है और इस लए
घटनाओं का व तु न ठ मू यांकन संभव होता है । पर तु इस प त क सबसे बड़ी कमी यह
है क इसक सहायता से केवल उ ह ं घटनाओं का अ ययन संभव है िजनको हम सं या म
य त कर सकते ह ।
मी डया शोध म सांि यक या को मु यतया तीन भाग म बांटा जा सकता है -
(क) आकड़ का संकलन
(ख) आकड़ का व लेषण
(ग) आकड़ का दशन
मी डया या संचार सम याओं से संबं धत आकड़े एक त करना सांि यक के वारा काफ सरल
एवं सहज है ।
तकशा ीय प त म गुणा मक व लेषण होता है जब क सांि यक प त म आकड़ का
व लेषण सं या मक आकड़ के मा यम से होता है । सांि यक व लेषण दो त य का
पार प रक संबध
ं ह नह ं बतलाता अ पतु उनक माप तथा मा ा भी बतलाता है । दो घटनाओं
का काय-कारण संबध
ं तथा उस संबध
ं क नि चत माप सांि यक य व लेषण म क जाती
सांि यक य या का अं तम चरण ा त आकड़ का दशन करते हु ए न कष तु त करना
है । आकड़ म भटकना कोई भी पसंद नह ं करता है । अत: आकषक शैल म त य का तु त
करना आव यक एवं उपयोगी दोन है । साथ ह इस प त म च तथा रे खा च का बहु त
मह व है । च का उ े य, घटनाओं क वृि त, सह-संबध
ं , झु काव, वचलन तथा पूवानुमान
आ द का द दशन कराना होता है ।

4.6 अवलोकन प त (Observation Method)


ऑ सफोड श दकोश म नर ण क प रभाषा इस कार द गयी है 'घटनाएं काय कारण अथवा
पार प रक संबध
ं के संबध
ं म िजस प म वे उपि थत होती ह, का यथाथ नर ण एवं वणन
है ।'
सी.ए. मोजर के श द म, 'अवलोकन का अथ कान तथा वाणी क अपे ा ने का योग
करना है ।''
पी.वी.यंग के अनुसार, नर ण को ने वारा सामू हक यवहार एवं ज टल सं थाओं के साथ
ह साथ संपण
ू ता क रचना करने वाल पृथक इकाइय के अ ययन क वचारपूण प त के
प म पा रभा षत कया जा सकता है ।''
ता पय यह है क नर ण प त उस प त को कहते ह, िजसम आंख वारा ाथ मक आकड़
का ववेकपूवक सं हण कया जाता है । साथ ह इस प त म शोधक ता शोध के अंतगत

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आये समू ह के दै नक जीवन म भाग लेते हु ए अथवा उससे दूर बैठकर उनके सांचा रक
सामािजक, मनोवै ा नक, सां कृ तक, यि तगत तथा संपण
ू यवहार का अपनी ान य
वारा नर ण करता है ।

4.7 योगा मक प त (Experimental Method)


ीनबुड के अनुसार, '' योगा मक प त म ऐसी प रि थ तयाँ उ प न क जाती ह िजसम
वषयव तु पर पड़ने वाले अ य सभी भाव पर नयं ण कर लया जाता है और केवल एक
कारक को वतं प से भाव डालने के लए लागू कर दया जाता है । इस कार इस वशेष
कारक के भाव क पर ा करना ह ायो गक व ध का उ े य होता है ।
फेि टं जर के श द म, कसी नयं त त य पर प रव तत ि थ तय म वतं कारक के भाव
का अवलोकन करना ह योग है । जहोदा तथा अ य के योग क उपक पना क पर ा
के माण एक त करने क व ध कहा है । उ त प रभाषाओं से ायो गक, व ध क दो
वशेषताएँ प ट होती है -
1. उपक पना क पर ा - ायो गक प त के लए यह आव यक ह नह ं बि क
अ नवाय है क इसम कोई न कोई उपक पना हो । इस उपक पना क स यता क जाँच के
लए ह योग कया जाता है ।
2. प रि थ तय पर नयं ण - ायो गक व ध क दूसर मह वपूण वशेषता यह है
क िजन प रि थ तय म उपक पना क जाँच क जाए, उन पर अव य ह नयं ण हो । ता पय
यह है क सभी भावशाल कारक ि थर ह और केवल अ ययन कये जाने वाले कारक म
प रवतन कया जाये ।
बोध न - 1
(क) भारत म संचार शोध क ि थ त या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) या जनगणना प त सम इकाइय के अ ययन पर बल दे ती है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ग) या' सह नदशन का चु नाव बेहद आसान काय है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) ‘डायर सूचना संकलन का मुख ोत है। ’ कैसे?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

62
4.8 सा ा कार प त (Interview Method)
वी.एम.पायर के अनुसार 'सा ा कार दो यि तय के बीच एक सामािजक ि थ त है, िजनम
अंत न हत मनोवै ा नक या के अंतगत यह आव यक है क दोन यि त पर पर
उ तर- त-उ तर करते रह य य प सा ा कार के शोध उ े य म संबं धत प से अ ययन
वषय के संबध
ं म काफ , कु छ व वध उ तर ा त होने चा हये ।
एम.एन.बसु के अनुसार 'एक सा ा कार को कुछ वषय को लेकर यि तय के आमने-सामने
का मलन कहा जा सकता है ।
पी.वी.यंग के श द म, सा ा कार को ऐसी मब प त के प म माना जा सकता है िजसके
वारा एक यि त दूसरे यि त के आंत रक जीवन म थोड़ा-बहु त क पनाब प से वेश
करता है जो क उसके लए सामा यतया तुलना मक प से अप र चत है । ''
सन पाओ यांग के मतानुसार, 'सा ा कार े ीय काय क एक ऐसी व ध है, जो क एक
यि त या यि तय के यवहार क नगरानी करने, कथन को अं कत करने व सामािजक
या सामू हक अ त: या के वा त वक प रणाम का नर ण करने के लए योग म ल
जाती है ।
गूडे एवं ह के अनुसार 'सा ा कार मूल प से एक सामािजक या है । हे डर तथा लंडमैन
ने सा ा कार क प रभाषा दे ते हु ए लखा है, सा ा कार के अंतगत दो यि तय या अ धक
यि तय के बीच संवाद अथवा मौ खक यु तर होते ह । '
सा ा कार प त क वशेषताएं
उ त प रभाषाओं के आधार पर सा ा कार क न न ल खत वशेषताएँ प रल त होती ह-
1) सा ा कार शोध के लए साम ी संकलन क प त है ।
2) यह दो या दो से अ धक यि तय के बीच संवाद है ।
3) इसम य त: आमने-सामने के ाथ मक संबध
ं होते ह ।
4) कसी मु े पर सूचना या वचार ा त करने के उ े य से सा ा कार कया जाता है ।

4.9 अंतव तु- व लेषण प त (Content- Analysis Method)


अंतव तु- व लेषण या साम ी व लेषण मी डया या वषयव तु व लेषण संचार शोध क एक
अ यंत ह मह वपूण एवं व श ट प त है । इसे सांके तकरण के नाम से भी जाना जाता
है । इसके अंतगत व भ न कार क संचार साम ी का संकलन एवं व लेषण कया जाता
है । यह गुणा मक हो सकता है , सै ां तक हो सकता है और यावहा रक भी ।
अंतव तु- व लेषण का उ व एवं वकास
अंतव तु- व लेषण का उ व व व यु के समय हु आ जब खु फया तं ने यूरोप और जमनी
दोन तरफ के रे डयो को गंभीरता से सु नना आरंभ कया । रे डयो के साम ी व लेषण एवं
सै नक के यवहार म अंतस ब ध का अवलोकन कया गया । उदाहरण के लए यह पाया
गया क जब जमनी के रे डयो टे शन के सारण के पर संगीत क धु न बजने लगी, तो
ऐसा अनुमान लगाया गया क सै नक उन े पर क जा करके संगीत का आनंद उठा रहे
ह । इस कार जब रे डयो से संगीत का सारण हु आ तब तक यूरोपीयन ने जमन क सफलता
या े पर क जे का अनुमान लगाया । उसी कार अमे रका के खु फया तं ने जापानी

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सारण के गोपनीय कोड को डकोड करके मह वपूण सूचनाओं को सै नक तक पहु ँ चाने म
सफलता हा सल क ।
वतीय व वयु के बाद अंतव तु व लेषण को एक नया आयाम मला । प रणाम व प
यह प त अ धक लोक य होने लगी । कालांतर म यह न केवल रे डयो पर ह सी मत रह ,
बि क धीरे -धीरे अ य मु ख मी डया क ओर कु कुरमु ता क तरह फैलने लगी ।
इस कार अंतव तु- व लेषण का वकास मी डया के अ य े जैसे - समाचारप , समाचार
स म त, प का, टे ल वजन, सनेमा, पा यपु तक, कहानी, उप यास, व ापन, चु नाव चार,
नारे बाजो भाषण आ द तक हु आ । वतमान म इस प त का योग इंटरनेट प का रता, उप ह
प का रता एवं डी.ट .एच. आ द पर भी कया जाने लगा है ।
बनाड बेरे सन ने अपनी पु तक 'क टे ट-एना ल सस इन क यु नकेशन रसच' म अंतव तु-
व लेषण क चचा व तर से क और इसे मी डया शोध का ऐसा संयं बताया जो मी डया
क छपी हु ई अ य साम य को भी ल त जनसमू ह तक पहु ँ चाने म कारगर है ।
वष 1968 म टनेनबम एवं ीनबग ने अपने अ ययन के दौरान पाया क समाचारप का
अंतव तु- व लेषण जनसंचार म नातको तर तर य शोध के प म अब तक बड़े पैमाने पर
कया जाता रहा है । 'इं डयन जनल ऑफ क यु नकेशन (जनवर -माच, 1988) ' ने भी अपने
तवेदन म भारत म नातको तर तर पर शोध म अंतव तु व लेषण का तशत अ धकतम
बताया । वष 1971 से 1965 तक का शत 'जनल ऑफ ाडकाि टं ग' म गणना मक अ ययन
का 21 तशत अंतव तु- व लेषण ह हे । 'क यु नकेशन एब टरह टस' क वृि तय से पता
चलता है क वष 1990 एवं 1991 म 70 तशत से अ धक मी डया शोध अंतव तु- व लेषण
ह था । इससे यह पता चलता है क अभी भी यह शोध क सवा धक लोक य एवं बहु च चत
प त है ।
प रभाषा
बनाड बेरे सन ने सव थम अंतव तु- व लेषण को प रभा षत करते हु ए बताया क अंतव तु
व लेषण संचार के य त, संदभ के वषया मक, मब एवं प रणा मक वणन क एक
अनुसंधान व ध है ।
चा स आर. राईट ने अपनी पु तक 'मास क यु नकेशन: ए सोशलोिजकल पर पेि टव’ (1966)
म अंतव तु- व लेषण को इस कार प रभा षत कया है, 'अंतव तु- व लेषण मब वग करण
एवं संचार साम ी का सामा य प से पूव गणना मक या दोन कार के व लेषण हो सकते
ह । '
अरथर असा बरजर ने अपनी पु तक 'मी डया रसच टै क न स म लखा है, अंतव तु व लेषण
लोग पर पर ण करके उनके बारे म कुछ जानने का साधन है, जो लोग लखते ह, टे ल वजन
के लए कुछ उ पा दत करते ह या फ म बनाते ह, उन पर पर ण करके उन लोग के बारे
म जानने का साधन है ।
दूसर तरफ जाज बी. जीटो के अनुसार 'अंतव तु- व लेषण के वारा मी डया उपभो ताओं के
बारे म भी अ य प से यह जाना जा सकता है क वे या पढ़ते ह, या सु नते ह या
या दे खते ह । '

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एफ.एन. क ल जर के मतानुसार, 'अंतव तु व लेषण मब व तु न ठ एवं गुणा मक तर के
से चर को मापने के लए संचार के अ ययन एवं व लेषण क एक प त है ।'
क ल जर क प रभाषा तीन अवधारण से संबं धत है, िजसका वणन यहां वांछनीय है ।
सव थम अ तव तु- व लेषण मब होता है । ता पय यह क अंतव तु का चयन व धवत
होना चा हये तभी अंतव तु क सह पहचान संभव है । इस लये सांके तकरण एवं व लेषण
व ध म एक पता होनी चा हए । मब ता का अथ यह भी है क मू यांकन के लए एक
और केवल एक ह तर का शोध म आरं भ से अंत तक अपनाया जायेगा ।
दूसरा अंतव तु- व लेषण व तु न ठ होता है । ता पय यह क शोधक ता का यि तगत
प पात या भाव शोध पर नह ं आना चा हये ।
तीसरा अंतव तु- व लेषण मु यतया गणना मक होता है । अंतव तु- व लेषण का उ े य संदेश
साम ी का यथाथ त न ध होना चा हये । इस उ े य क ाि त सफ प रमापन से ह संभव
है । ले कन प रमापन का अथ यह नह ं क शोधक ता अ य पहलु ओं के संदभ म ब कुल
अंधा ह हो जाये ।
फेि टं जर तथा डे नयल ने बेरे सन का उदाहरण दे ते हु ए अंतव तु- व लेषण को इस कार
य त कया है, 'अंतव तु- व लेषण संचार से प ट वषय क वैयि तक, यवि थत तथा
गुणा मक या या करने क अनुसध
ं ान णाल है । '
दूसरे श द म अंतव तु- व लेषण वह या है िजसके वारा ज टल तथा अ प ट गुणा मक
सामािजक त य के व प को सरल तथा बोधग य बनाने का य न कया जाता है । वै ा नक
व धय के योग को संभव बनाने के लए तीका मक, सामािजक यवहार को वै ा नक त य
म प रवतन करने क या को सं ेप म अंतव तु- व लेषण कहते ह ।
अंतव तु व लेषण के व भ न योग
डी.पी. फाटराइट ने अपनी पु तक 'एना ल सस ऑफ वाल टे टव मैट रयल' म अंतव तु-
व लेषण के व भ न योग क चचा क है, जो न न ल खत है -
1) संचार साम ी म पाई जाने वाल वृि तय का वणन करना ।
2) व वता के वकास का पता लगाना ।
3) संचार साम ी के अंतगत अंतरा य भ नताओं को प ट करना ।
4) संचार के मा यम अथवा तर क तु लना करना ।
5) संचार मानदं ड का नमाण करना एवं उ ह योग म लाना ।
6) ा व धक अनुसध
ं ान याओं म सहायता दान करना ।
7) चार क व धय को प ट करना ।
8) संचार साम ी क पठनीयता का प रमापन करना ।
9) संचार साम ी क शैल संबध
ं ी वशेषताओं का अ वेषण करना ।
10) संचारक ताओ के इराद एवं अ य वशेषताओं का पता लगाना ।
11) यि तय एवं समू ह क मनोवै ा नक ि थ त का पता लगाना ।
12) चार के अि त व का मु ख प से वै ा नक उ े य के लए पता लगाना ।
13) राजनै तक एवं सै नक गु तचर शि त क जानकार ा त करना ।

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14) व भ न समू ह क अ भ चय , मनोवृि तय , मू य अथात ् सां कृ तक तमान को
प रव तत करना ।
15) यान के क ब दु को प ट करना ।
16) संचार के त मनोवृ तीय एवं यावहारा मक यु तर का वणन करना ।
अंतव तु- व लेषण का उ े य-
वृह प म अंतव तु - व लेषण का उ े य मी डया संगठन क बा य एवं आंत रक वत ता
का अ ययन करना होता है । साथ-साथ यह भी जानना क मी डया संगठन कस कार से
साम ी का चयन एवं या करण करता है ।
इसके अलावा इसका उ े य अ भ ल खत वा त वक घटनाओं को ऐसे आकड़ के प म
प रव तत करना है िजनके साथ आव यक प से वै ा नक ढंग क सहायता से काय कया
जा सके ता क मी डया या संचार संबध
ं ी ान के कोष का वकास संभव हो सके । इस उ े य
क ाि त के लए यह आव यक है क अंतव तु यो य वषया मक त य क उ पि त संभव
हो सके जो प रमापन एवं प रणा मक या के त संवेदनशील हो, वै ा नक स ांत के
नमाण क ि ट से मह वपूण हो तथा िजनके आधार पर अ ययन के े से पूरे अ य समू ह
के वषय म भी सामा यीकरण करने म सहायता ा त हो सके । इ ह ं उ े य को के मानकर
अंतव तु- व लेषण कया जाता है ।
अंतव तु- व लेषण के कार-
अंतव तु- व लेषण का सबसे व तृत योग एच.डी. लासवेल वारा कया गया है, िज ह ने
न न ल खत संचार ा प तैयार कया था -
ा प शोध े
कौन कहता है ोत व लेषण
या संदेश व लेषण
कससे सं ाहक व लेषण
कस मा यम से मा यम व लेषण
कस भाव के साथ भाव व लेषण
उ त ा प के आधार पर अंतव तु- व लेषण को केवल या या न क मी डया के
संदेश व लेषण तक ह सी मत रखना यायो चत नह ं है । इसके अंतगत मी डया से संबं धत
कौन या न, कसको या न सं ाहक, चैनल या न क मा यम तथा भाव आ द का भी अ ययन
व तार से कया जाता है ।
दूसर ओर अंतव तु- व लेषण न केवल समाचारप तक ह सी मत है बि क प का, समाचार
स म त, रे डयो, टे ल वजन, फ म, इंटरनेट, पा यपु तक, कहानी आ द पर भी यापक
अ ययन कया जाता है ।
इस कार अंतव तु- व लेषण को या मक एवं संरचना मक ि ट से न न ल खत कार
म बांटा जा सकता है-

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3) कसको (ल त जन समू ह) 3) समाचार स म त
4) चैनल (मा यम) 4) रे डयो
5) भाव 5) टे ल वजन
6) फ म
7) इंटरनेट
8) पा यपु तक
9) कहानी
अंतव तु- व लेषण क वध
ऊपर व णत अंतव तु के मु ख चरण व लेषण क परे खा का नमाण एवं व लेषण क प
रे खा के योग के आधार पर यह कहा जा सकता है क शोधक ता, अंतव तु- व लेषण का
उ े य नधारण के बाद व लेषण क इकाई क पहचान करना है । समाचारप के अंतव तु-
व लेषण म समाचार, आलेख, वशेष आलेख, फ चर, संपादक य, संपादक के नाम प , फोटो,
काटू न आ द को व लेषण क इकाई कहा जाता है । श द, वा य, पैरा ाफ पृ ठ आ द भी
व लेषण क इकाई ह । उसी कार रे डयो एवं दूरदशन काय म को भी व लेषण क इकाई
कहा जाता है ।
व लेषण क इकाई क पहचान के बाद व लेषण क े णयाँ नधा रत क जाती ह । जैसे
य द आ थक प का रता का अंतव तु- व लेषण कया जा रहा है तो आ थक प का रता को
कृ ष, उ योग, प रवहन, ऊजा, आयात- नयात, वदे शी व नमय, बेरोजगार , मु ा फ त, बजट,
जनसं या, कर, आ थक नी तयाँ, आ थक योजनाएँ आ द े णय म बांटा जा सकता है । उसके
बाद सूचना के ोत का नधारण कया जा सकता है । जैसे समाचारप म आ थक प का रता
का अंतव तु- व लेषण म सूचना के ोत, वदे शी समाचार स म तयां जैसे रायटर, ए.एफ.पी.,
ए.पी. या अ य भारतीय समाचार स म तयाँ जैसे यू.एन.आई., पी.ट .आई, यूनीवाता, भाषा एवं
रपोटर, संवाददाता, संपादक, पाठक, वतं प कार या अ य हो सकते है ।
समाचार का संतु लन एवं व तु न ठता मापते समय यह दे खा जा सकता है पूणत: संतु लत,
अंशत: संतु लत या असंतु लत तथा पूणत: व तु न ठ, अंशत: व तु न ठ या अव तु न ठ ।
इसके बाद आ थक प का रता का थानीयकरण अ ययन करने म दे खा जाता है क वे कह ं
पर छपे ह -
थम पृ ठ, संपादक य पृ ठ, प का पृ ठ, प र श टांक ति ठत पृ ठ, वा ण य पृ ठ या अ य
। त प चात ् आ थक प का रता क दशा का अ ययन कया जाता है जैसे सूचना मक,

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श ा द, व लेषणा मक या अ य । फर आ थक प का रता के तर का अ ययन कया जाता
है जैसे अंतरा य, रा य, े ीय, थानीय या अ य ।
उसके बाद आ थक प का रता के कॉलम आकार का अ ययन कया जाता है । जैसे एक कॉलम,
दो कॉलम, तीन कॉलम, चार कॉलम, पांच कॉलम, बैनर या अ य ।
त प चात आ थक प का रता के आकार को कॉलम सट मीटर म मापा जाता है । बाद म इस
सू को अपनाया जाता है ।
आ थक प का रता को दये गये थान का तशत=
आ थक प का रता को दया गया थान (कॉलम सट मीटर म)
X 100
कु ल थान
यहाँ एक बात गौरतलब है क जब सम म से तदश का चु नाव कया जाता है तो उस तदश
को सम का त न ध होना चा हये । ता पय यह क िजस अनुपात म सम म वभ न
इकाइय का तशत है, उसी अनुपात म तदश म भी इकाइय का तशत होना चा हये।
अंतव तु- व लेषण म बहु तर य तदश का इ तेमाल कया जाता है । उ त अ ययन म
तदश को कई तर पर बांटा जाता है । जैसे -
1) समाचार प का तदश - य द इंदौर के समाचारप म आ थक प का रता का
अंतव तु- व लेषण करना है, तो सबसे पहले इंदौर के संपण
ू समाचारप म से ऐसे
समाचारप का चयन करना होगा, जो इंदौर के सभी, समाचारप का त न ध करते
ह । उदाहरण के तौर पर य द हम इंदौर के पाँच समाचारप - 'नई दु नया', 'दै नक
भा कर', 'चौथा संसार', 'नवभारत एवं ' ेस' को चु नते ह, तो ये इंदौर के सभी
समाचारप का त न ध व करगे । सार सं या के आधार पर 'नई दु नया' एवं 'दै नक
भा कर' हंद के बड़े समाचारप ह जब क 'चौथा संसार' एवं 'नवभारत' ह द के म यम
समाचारप ह एवं ' ेस' अं ेजी का छोटा समाचारप है । इस कार इन पांच
समाचारप म बड़े म यम, छोटे , ह द एवं अं ेजी के समाचारप सि म लत ह । इस लये
इ ह इंदौर के समाचारप का तनध तदश माना जा सकता है । इसे तदशन तर-
1 कहा जा सकता है ।
2) समय का तदश - य द उ त अ ययन म 2 नरं तर स ताह एवं 2 न मत स ताह लखे
जाते ह, तो यह पूरे वष का बहु त हद तक त न ध व कर सकता है । दो नरंतर स ताह
का अथ है दो स ताह लगातार ।
3) आ थक प का रता का तदश - इसम आ थक प का रता क व भ न ेणी जैसे - कृ ष,
उ योग, प रवहन, ऊजा, आयात- नयात, वदे शी व नमय, बेरोजगार , मु ा फ त, बजट,
जनसं या, कर, आ थक नी त नयोजन आ द को लया जाता है । ये े णयाँ इतनी यापक
एवं व तृत ह क ये संपण
ू आ थक प का रता का त न ध व कर सकती ह । इसे
तदशन तर-III कहा जा सकता है ।
4) पाठक का तदश - इसके अंतगत व भ न पाठक वग जो आ थक प का रता को
समाचारप म पढ़ते ह, उ ह कई वग म बांटा जाता है । जैसे - यापार वग, सरकार
कमचार वग, अ धकार वग, व याथ वग, गृ हणी वग, नजी े म कायरत कमचार

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वग, यावसा यक वग आ द । ये सभी वग मलकर पाठक के सम का तनध व
कर सकते ह । इसे तदशन तर-IV कहा जा सकता है ।
इसी कार चार व भ न तर पर तदश चु नने के कारण इसे बहु तर य नदशन प त
भी कहा जाता है ।

4.10 नावल तकनीक (Questionaire Method)


व भ न सामािजक वै ा नक एवं संचार वशेष ने नावल क अलग-अलग प रभाषाएँ
द ह । गूड़े तथा ह ने नावल को प रभा षत करते हु ए लखा है 'सामा य प से नावल
से ता पय न के उ तर ा त करने क प त से है । िजनम एक प क का योग कया
जाता है, िजसे उ तरदाता वयं भरता है । ' बोगाडस के अनुसार, ' नावल व भ न यि तय
को उ तर दे ने के लए द गयी न क एक ता लका है । यह माणीकृ त प रणाम को ा त
करती है, िजनका सारणीयन तथा सांि यक य उपयोग कया जा सकता है । पोप के श द
म 'एक नावल को न के समूह के प म प रभा षत कया जा सकता है िजसका उ तर
सू चनादाता को बना एक अनुसध
ं ानक ता क यि तगत सहायता के दे ना होता है ।
व सन गी के अनुसार, ' नावल बड़ी सं या म लोग से अथवा छोटे चु ने हु ए एक समू ह
से िजसके क सद य व तृत े म छटके हु ए ह, सी मत मा ा म सूचना ा त करने क
एक सु वधाजनक णाल है ।
सन पाओ यांग के अनुसार, अपने सरलतम पम नावल न क एक अनुसू ची है िजसे
क नदशन के प म चु ने हु ए यि त के प म डाक वारा भेजा जाता है ।
जॉन गालटं ग ने नावल को ल खत - शाि दक उ तेजना एवं ल खत शाि दक यु तेजना
बताया है ।
लु डबग ने नावल को ेरणाओं का समू ह बताया है । वा तव म य वातालाप म इ छा
होते हु ए भी यि त बहु त से त य कट करने म संकोच करता है । डाक वारा नावल
भेजने से उ तरदाता वतं प से नःसंकोच अपने वचार क अ भ यि त कर दे ता है । यह
कारण है क लु डबग ने नावल को ऐसा यं बताया है जो उ तरदाता को नःसंकोच
वा त वकता कट करने के लए े रत करता है 1 लु डबग के ह मतानुसार ' नावल मू ल
प से ेरणाओं का एक समू ह है, िजसके कारण श त लोग उन ेरणाओं के अंतगत अपने
मौ खक यवहार को कट करते ह ।
नावल क वशेषताएँ-
1) नावल म न का उ तर वयं उ तरदाता को ह लखना होता है ।
2) इसम न क श दावल एवं भाषा ब कुल सरल, सहज एवं प ट रखी जाती है य क
बना शोधक ता क सहायता के ह उ तरदाता को उ तर दे ना होता है ।
3) इसम उ तरदाता शोधक ता क उपि थ त से बना भा वत हु ए ह उ तर दे ता है अथात ्
इसके उ तर म आ थक यथाथता एवं वाभा वकता क आशा नावल के मा यम से
क जा सकती है ।
4) नावल डाक वारा अथवा कसी यि त के मा यम से उन सम त यि तय के पास
भेजी जाती है िजनसे सूचना ा त करनी होती है ।

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5) नावल ाय: छपी होती है ।
6) यह अ ययन सम या से संबं धत सूचना एक त करने क एक व ध या यं है ।
7) यह दूर-दूर तक फैले हु ए समू ह के वषय म सू चना सं ह क सरल प त है ।
8) इस तकनीक मे चू ं क शोधक ता उ तर दे ते या लखते समय उ तरदाता के सामने नह ं
होता, इस कारण अनेक गु त एवं आंत रक बात या सू चनाओं को भी बना संकोच के
लखने म उ तरदाता को क ठनाई नह ं होती है ।
9) नावल तकनीक म डाक वारा ह उ तरदाताओं के साथ संपक था पत कया जाता
है । अत: यह सू चना ा त करने का एक कम खच ला एवं सरल साधन है ।
10) यह सम या पर काश डालने के लए येक प से संबं धत न का समू ह है जो एक
सू ची के प म होता है ।
11) नावल के मा यम से सूचना ा त करने के लए यह आव यक है क उ तरदाता श त
ह ।
12) चू ं क डाक वारा नावल को एक ह साथ एक ह समय पर अनेक यि तय तक
पहु ँ चाया जा सकता है और चू ं क शोधक ता को वयं कसी के पास जाना नह ं पड़ता
इस लये नावल के मा यम से सू चना शी ा त करना संभव होता है ।
13) नावल म न ेरणादायक हो ऐसी चे टा क जाती है ता क उ तरदाता जवाब दे ने
म लापरवाह न बरत ।
न क वृि त के आधार पर भी नावल के भ न- भ न कार नि चत कये जा सकते
ह, िजनम से मु ख ये ह -
1) बंद नावल - इसे सी मत या तबं धत नावल भी कहते ह । इसम न के
सामने उसके कु छ उ तर दये होते ह । उ तरदाता को उ ह ं उ तर म से मा टक करना
होता है । इस कार क नावल के उदाहरण न न ल खत है -
(क) आपको कौन सा ट वी चैनल सबसे यादा पसंद है?
(i) जी
(ii) जी यू ज
(iii) जी इं डया
(iv) जी सनेमा
(v) टार
(vi) टार यू ज
(vii) टार लस
(viii) टार पो स
(ix) ड कवर
(x) एम.ट .वी .
(xi) सोनी
(xii) अ य (उ लेख कर)
(ख) या इन काय म को दे खकर आप भा वत होते ह?

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(i) बहु त अ धक
(ii) अ धक
(iii) सामा यत:
(iv) थोड़ा
(v) ब कु ल नह ं
(ग) या इन काय म को दे खकर आप चचाएँ करते ह ?
(i) हमेशा
(ii) ाय:
(iii) कभीकभी-
(iv) शायद ह कभी
(v) कभी नह ं
बंद नावल के वारा सू चना एक त करने म सबसे बड़ा लाभ यह है क ा त साम ी का
वग करण करने म बहु त सु वधा रहती है । उ तर क सं या पहले से ात रहती है और वग
वभाजन भी पूण नधा रत रहता है । इस कार क नावल म उ तरदाता को भी न
का उ तर दे ना आसान होता है, य क उ तर संपा दत तर के से वक प के प म उपि थत
रहते ह और उ तरदाता को केवल टक लगाना रहता है ।
2) खु ल नावल - खु ल नावल को असी मत या अ तबं धत नावल भी कहते ह
। इसम संभा वत उ तर नह ं दये जाते ह । उ तरदाता कसी बंधन म नह ं रहता है ।
वह अपनी इ छानुसार जैसा और िजतना बड़ा या छोटा उ तर लख सकता है । न
के आगे कु छ भी नह ं लखा जाता है, केवल कु छ खाल थान छोड़ दया जाता है ।
उदाहरणाथ न न ल खत न के उ तर र त थान म उ तरदाता वारा इ छानुसार
भरे जाते है -
1. आपक राय म मी डया से बाजारवाद कैसे कम कया जा सकता है?
2. पीत प का रता को कैसे रोका जा सकता है?
3. प कार म आचार-सं हता कैसे वक सत क जाएं?
इसम उ तरदाता क वा त वक आंत रक भावनाओं क अ भ यि त संभव होती है । सू चनादाता
के यि त व का येक गुण जो वषय के संदभ म होता है अपने यथाथ प म प ट हो
जाता है । गुणा मक त य क जानकार ा त करने के लए खु ल नावल बहु त उपयोगी
है ।
3) च मय नावल - इसम न के उ तर च के प म तु त कये जाते ह ।
यह भी एक कार से बंद नावल का ह एक व प है । इसम भी न के उ तर न द ट
होते ह और उ ह ं म से सूचनादाता उ तर का चु नाव करता है । च के वारा कट होने
वाले उ तर म से जो च सू चनादाता क सहम त य त करता है, उसी पर वह नशान लगा
दे ता है । च मय नावल शोधकता का काय सु गम तथा रोचक बना दे ती है । आज के युग
म आकषण तथा समयाभाव दोन का अ य धक मह व है । न को रोचक बनाने तथा
सू चनादाता को उ तर दे ने क ेरणा म च मय नावल अ यंत ह लाभकार , ासं गक,

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मह वपूण एवं उपयोगी होती है । च के मा यम से उ तरदाता सरलता से उ तर दे दे ता
है ।
4) म त नावल - यह बंद या खु ल नावल का ह म त प है । इसम दोन
नाव लय का लाभ उठाया जा सकता है । आज मी डया या संचार शोध म ाय: म त
नावल का ह उपयोग कया जाने लगा है । ऐसा इस लए य क त य का ववरण एक
दो तर तक ह सी मत नह ं कया जा सकता और न ह उ ह इतनी व तृत वत ता द
जा सकती है क येक उ तर ह एक वग बन जाएं । सामा य न तो बंद हो सकते ह,
पर तु व श ट न का उ तर खुले न वारा ह संभव है । इस लए म त नावल
को अ धक पूण माना जाता है ।
अ छ नावल क वशेषताएँ
ए.एल बाउले ने एक अ छ नावल क न न ल खत वशेषताओं का उ लेख कया है -
1. तु लना मक प से न क सं या कम होनी चा हए ।
2. ऐसे न का होना े ठ है िजनका उ तर सं या म अथवा 'ह ' या 'नह 'ं म दया जा
सकता है ।
3. न इतने सरल, सीधे तथा एक अथ वाले ह क शी समझे जा सक ।
4. न क रचना इस कार क जाए क उनका उ तर दे ते समय म या झु काव के वेश
क संभावना यूनतम हो ।
5. न अ श टतापूण अथवा घृ ठतापूण एवं पर ा मक नह ं होने चा हए ।
6. न जहाँ तक संभव हो एक-दूसरे को पु ट करने वाले ह ।
7. न इस कार का हो क इि छत सूचना य प से ा त क जा सके ।
ता पय यह है क नावल इतनी बड़ी भी नह ं होनी चा हए क उ तरदाता को ऊब एवं नीरसता
महसूस हो और इतनी छोट भी नह ं होनी चा हए क उ े यपूण त य क ाि त ह न हो
सके । नावल उ साहव क, ेरणादायक एवं सरस होनी चा हए तथा उ तरदाता से अ धक
से अ धक 15-20 मनट का समय ह लेने का यास कया जाना चा हए । नावल इतनी
बंद भी नह ं होनी चा हए क उ तरदाता वत तापूवक अपना वचार ह नह ं तुत कर सके
और इतनी भी खुल नह ं होनी चा हए क आकड़ का व लेषण एक ज टल सम या बन जाए
। इस लए अ छ नावल म बंद एवं खु ल नावल का संतु लत सम वय होना चा हए ।
नावल म न वैचा रक एवं भाषाई ि टकोण से सरल, सहज, प ट एवं एकाथक होने
चा हए । न म मब ता एवं आकषक त व भी होने चा हए ।
न ऐसे नह ं होने चा हए जो प पाती या पूवा ह से सत या अ भम तपूण ह । न
म शाल नता एवं श टता भी होनी चा हए । कुल मलाकर ऐसे न होने चा हए, िजससे
उ तरदाता आनं दत, े रत, उ सा हत हो और त प चात ् वह पूर लगन और त मयता से उ तर
दे ने के लए त पर हो जाए । इसके अलावा नावल क पूव पर ा न न ल खत बात को
यान म रखकर अव य करनी चा हए -
(i) पूव पर ण क नावल एवं वा त वक नावल म कोई अंतर नह ं होना चा हए ।
(ii) पूव पर ण क नावल सम के त न ध यि तय के पास भेजी जानी चा हए ।

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(iii) पूव पर ा के आधार पर भी कई बार सम क एक पता या बहु पता का पता चलता
है । इससे कई बार तदशन का आकार भी नधा रत करने म सहायता मलती है ।
(iv) य द पूव पर ा के दौरान बहु त अ धक ु टयाँ मल जाए तो पुन : पूव पर ा करनी चा हए।
(v) पूव पर ा से कई ु टयाँ प ट हो जाती ह जैसे -
(i) पता नह ं या खाल उ तर
(ii) उ तर क मब ता का दोष
(iii) अनाव यक तथा असंबं धत उ तर
(iv) न तरता
पूव पर ा के बाद येक नावल के साथ एक यि तगत अनुरोधा मक प अव य भेजना
चा हए । इसम ऐसे श द एवं वा य का योग कया जाना चा हए िजससे उ तरदाता कसी
भी हालात म आपके अनुरोध को तु कराने म श मदगी महसूस करे । फर वह उ तर दे ना ह
ेय कर समझेगा । साथ-साथ एक वापसी लफाफा भी अव य लगाना चा हए । टकट लगे
लफाफे क तु लना म यापा रक वापसी लफाफा अ धक उपयुका समझा जाता है । इसके बाद
भी उ तर न मले, तो एकाध अनुगामी प अनुरोधा मक एवं अनुनया मक शैल म अव य
लखा जाना चा हए ।

4.11 अनु सू ची तकनीक (Schedule Method)


न तथा सार णय से यु त एक ऐसी सूची है िजसम न के उ तर उ तरदाता से पूछकर
नकता वयं भरता है । उसे अनुसू ची कहते ह ।
गूड़े तथा ह के श द म अनुसच
ू ी उन न के एक समू ह का नाम है जो सा ा कारक ता
वारा कसी दूसरे यि त से आमने-सामने क ि थ त म पूछे और भरे जाते ह ।
मै को मक के मतानुसार, अनुसू ची उन न क एक सूची से अ धक कु छ नह ं है िजनका
उ तर दे ना उपक पना या उपक पनाओं क जाँच के लए आव यक तीत होता है ।
ता पय यह क अनुसच
ू ी न क आयोिजत यवि थत एवं मब सूची है िजसक सहायता
से शोधक ता उ तरदाता से त य का ान ा त करता है । न के जो उ तर उ तरदाता
वारा दये जाते ह, उ ह यथा थान अनुसच
ू ी म भर लया जाता है । अनुसच
ू ी ा त सूचना
का रकाड बन जाती है । न के उ तर आमने-सामने वातालाप के आधार पर ा त कये
जाते ह । दूसरे श द म अनुसच
ू ी एक अ ययन यं है िजसक सहायता से शोधकता सूचना
एक करता है ।
े ठ अनुसच
ू ी क वशेष ताएँ
ीमती यंग के अनुसार एक े ठ अनुसू ची क न न ल खत दो मु ख वशेषताएँ ह -
1. सह संदेशवाहन
2. सह यु तर
1. सह संदेशवाहन का ता पय यह है क न का अथ सभी उ तरदाता वारा वह लगाया
जाए, जो अथ शोधक ता वारा लगाया गया है । अनुसच
ू ी क भाषा इतनी सरल, प ट
तथा संदेह र हत होनी चा हए क प ने या सु नने वाले को उसका नि चत अथ लगाने

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म क ठनाई न हो । अथात ् शोधकता वा तव म जो कुछ पूछना चाहता है, उ तरदाता उसे
उसी प म समझता है ।
2. एक े ठ अनुसच
ू ी क यह वशेषता है क अनुसच
ू ी ऐसी हो िजसके आधार पर उ तरदाता
वह उ तर दे जो शोधक ता के लए उपयोगी लाभकार तथा आव यक हो । उदाहरण के
लए य द उ तरदाता से पूछा जाए क वह कतने समाचारप को पढ़ता है और वह मवश
केवल अं ेजी के समाचारप क सं या बता दे और ह द एवं अ य भाषा के समाचारप
को छोड़ दे , तो यह उ तर सह नह ं होगा । अनुसच
ू ी के वारा वां छत एवं सह उ तर
ा त होना चा हए ।
सं ेप म एक े ठ अनुसच
ू ी म न न ल खत वशेषताएँ भी होनी चा हए-
(i) अनुसू ची का आकार तथा प आकषक होना चा हए ।
(ii) न प ट, सरल तथा म र हत होने चा हए ।
(iii) न ऐसे होने चा हए िजनका उ तर दे ने म उ तरदाता कसी कार का संकोच न
करे ।
(iv) न क कृ त ऐसी होनी चा हए िजसके वारा वैध न कष नकालने यो य उपयु त
एवं पया त सू चना मल सके ।
(v) न के वारा ा त सू चना सारणीयन तथा सांि यक य ववेचन के यो य होनी
चा हए ।
(vi) न क यव था इस म म होनी चा हए क उनम पर पर तारत य तथा संबध

बना रहे ।
(vii) अनुसू ची जहाँ तक संभव हो सं त होनी चा हए, वशेषकर उसम सि म लत न
इतने लंबे न ह क सू चनादाता उ तर दे ते-दे ते थक या ऊब जाएं ।
(viii) सम त अनुसच
ू ी के शीषक तथा उपशीषक को यव थानुसार म वभािजत
कर दे ना चा हए ।
से ट के अनुसार एक े ठ अनुसच
ू ी के नमाण से पूव ह ं न न ल खत न का युि तयु त
समाधान होना चा हए-
1. सम या या है?
2. सम या म सांि यक के उपयोग क या आव यकता है?
3. व लेषण तथा समाधान के लए कस कार के त य चा हए?
4. या अ य त य का उपयु त व प ा त होना संभव होगा?
5. या वे त य उ े य के लए पया त ह ग?
6. या उनम प रशु ता, नरं तरता तथा तुलना मकता संभव होगी?
7. या नधा रत समय म त य ा त कये जा सकगे?
8. या ा त त य के योग पर कोई तबंध होगा?
9. त य क ाि त के लए कस- कस क अनुम त ा त करनी होगी तथा कस
काय णाल क आव यकता होगी?
ओ.पी. वमा के अनुसार एक े ठ अनुसच
ू ी म न न ल खत कार के न होने चा हए -
1. छोटे , सरल तथा उ तर दे ने म सहज न ।

74
2. सारणीयन के यो य न ।
3. वषय से संबं धत न ।
4. सह उ तर ाि त के लए पर ा न ।
5. जाँच करने यो य न ।
6. पूव ामा णक अथ से यु त न ।
7. अवैयि तक न ।
8. सं त अथवा च ह म उ तर लखे जाने यो य न ।
9. संदेश र हत न ।
10. काय-कारण को य त करने यो य न ।
न न ल खत कार के न को अनुसू ची म नह ं रखना चा हए-
1. लंबे तथा ज टल न ।
2. यि तगत जीवन से संबं धत न ।
3. असमंजस म डालने वाले न ।
4. संदेहजनक न ।
5. ेरक न ।
6. ऐसे न िजनक सू चना अ य साधन से ा त हो सकती है ।
7. ऐसे न िजनका सह उ तर मलना संभव नह ं होता ।
8. सवमा य वीकृ त आदश से संबं धत न ।
इसके अलावा एक े ठ अनुसच
ू ी क यह भी वशेषता होती है क वह पूव पर त होतीं है ।
गूडे एवं हॉ के मतानुसार कतना ह तकपूण बु तथा चतु र अंत ि ट से कया गया वचार
हो, सतकतापूण यावहा रक पर ा का थान नह ं ले सकता ।
पूव पर ा करते समय शोधक ता को हर दोष, कमी, ु ट पर वशेष यान रखना चा हए ।
पूव पर ा से ाय: न न ल खत क मयां सामने आती ह :-
1. ऐसे न क जानकार हो ह जाती है, िजनका उ तर 'मालूम नह ं ' के प म दया
जाता है ।
2. वे न िजनका उ तर दया जाना पसंद नह ं कया जाता ।
3. सा ा कारकता क परे शा नयाँ ।
4. ऐसे न िजनके अलग-अलग अथ लगाये जा सकते ह ।
5. सामा य ान अथवा तक के आधार पर उ तर दोषपूण दखायी पड़े ।

4.12 अनु मापन तकनीक (Measurable Method)


कसी अमू त मु अथवा गुणा मक पहलु ओं क गणना करना या मापना अ यंत ह ज टल
काय है । पर तु धीरे-धीरे शोध शा के वकास ने इन काय को भी अ त सरल कर दया
है । यह ता पय है क अमू त घटना अथवा गुणा मक पहलु ओं के मापने के यं को ह अनुमापन
तकनीक कहा जाता है ।
संचार व ान या मी डया क वषयव तु अ धकांशत: गुणा मक होती है , िजनको सं या म
अथवा मा ा म तुत करना अ यंत ज टल काय है । मी डया के कु छ वषय जैसे - सार

75
सं या, पाठक सं या, सारण का आकार, व ापन दर आ द क माप सु वधापूवक हो सकती
है । पर तु अखबार का तर, रे डयो क लोक यता, दूरदशन क व वसनीयता व ापन क
भावशीलता, इंटरनेट क सं ेषणीयता आ द का माप सामा य पैमाने से नह ं हो सकता ।
अत: प ट है क इस कार के पैमान का नमाण करना आव यक है, िजनके वारा संचार
व ान या मी डया क वषयव तु अथात ् मी डया उपभो ताओं के यवहार अथवा उनक
मनोवृि तय क माप हो सके । मनोवृि तय तथा यवहार क मा ा को कट करने के लए
िजन पैमान या यं का नमाण कया जाता है, उ ह मी डया पैमाना कहते ह ।
पैमाना प तय के कार
गुणा मक मी डया शोध म मब ता, ता ककता एवं वै ा नकता लाने के लए पैमान के योग
को अ य धक मह वपूण समझा जा रहा है । ीमती यंग के अनुसार मानवीय यव था क
माप के लए न न ल खत दो कार के यं का नमाण हु आ है-
(i) मनु य के संचार यवहार तथा यि तगत यवहार को मापने वाले पैमाने िजनके वारा
वृि तयाँ , ि टकोण, नै तकता, च र , सहयोग आ द क माप ल जाती है ।
(ii) संचार, सं कृ त तथा सामािजक पयावरण को मापने वाले पैमाने िजनके वारा सं थाओं,
सं थागत यवहार, सांचा रक व सामािजक ि थ त, आवास अव था, रहन-सहन आ द क
माप ल जाती है ।
मी डया या संचार के े म मुख पैमाने न न ल खत ह -
1. अंक पैमाना - इस पैमाना म कुछ श द लख दये जाते ह । येक श द का एक अंक
होता है । सूचनादाता िजन श द को स नता दे ने वाला समझता है उसके आगे सह
() का च ह लगा दे ते ह । िजतने सह के नशान होते ह उनक गनती कर ल जाती
है । इस कार कुल योग ह ा तांक होते ह । इन अंक के आधार पर यि त के मनोभाव
तथा वृि तय का पता लग जाता है ।
2. संचार र तता मापक यं - इस तरह के पैमान वारा भ न- भ न वग अथवा यि तय
के बीच पाये जाने वाले संचार र तता का पता लग जाता है । इस कार के दो पैमाने
स है-
(i) बोगाडस का पैमाना
(ii) मी डया मतीय पैमाना
3. ती ता मापक यं - लोग क चय , अ भ चय , वृि तय , मनोवृि तय , मनोभाव
आ द क ती ता या गहनता को मापने के लए इन पैमान का योग कया जाता है ।
4. पदसू चक पैमाने - भ न- भ न पद को तु लना म म रखकर जो अनुमापन पैमाना बनाया
जाता है । उसे ह पदसूचक पैमाना कहते है । इन पैमान को न न ल खत णा लय
वारा न मत कया जाता है-
(i) यु म तुलना
(ii) हारो वज णाल
(iii) थसटन णाल
5. आंत रक ि थरता मापक पैमाने
6. मी डया नदशांक

76
मनोवृि तय के माप क णा लयाँ
मी डया संचार या समाज से जु ड़े यि त अथवा समू ह क मनोवृि त दो कार से मापी जा
सकती है -
1) अ भमत सव ण - यि त अथवा समू ह क मनोवृि तय के संदभ म उपयु ता पैमाने
वारा माप क सु वधा न होने के कारण ाय: उनक मौ खक राय के वारा ह उनक वृि तय
का अनुमान कया जाता है । जब तक वा त वक घटना न घ टत हो जब तक शार रक यवहार
संभव नह ं होता और उसके बना अनुमापन भी संभव नह ं होता ।
लु डबग के मतानुसार यह यवहार अपने अ धक पूण व प म मत क भाषा का प ले
लेता है ।
अत: यह कहा जा सकता है क यि त अथवा समू ह क मनोवृि त का अनुमान उनके वारा
य त मतानुसार ह कया जाता है ।
2) अनुमापन णाल - यि त या समू ह क मनोवृि त उनके यवहार से प रल त होती
है । शर र क भाषा से ह यि त क वा त वक मनोवृि त क अ भ यि त होती है । वा त वक
यवहार को मापने से ह मनोवृि त का वा त वक प रचय ा त हो सकता है । मौ खक संचार
के वारा यि त ाय: अपने वा त वक व प को कट नह ं करता । अत: शर र भाषा क
माप ह मनोवृि त को समझने क सव े ठ णाल है ।
बोध न - 2
(क) नावल सफ श त वग के लए ह य उपयोगी है?
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
(ख) अंतव तु- व लेषण संचार शोध क सवा धक च लत य व ध है?
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
(ग) सा ा कार या है?
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
(घ) अनुसू ची और नावल म या अ तर है?
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………
………………………………………………………………………………………..…………………………………………

77
4.13 सारांश (Summary)
इस इकाई को पढ़कर हम नदशन प त, वैयि तक प त, सांि यक प त, अवलोकन प त,
योगा मक प त, अंतव तु- व लेषण प त, नावल तकनीक, अनुसू ची तकनीक एवं
अनुमापन तकनीक से प र चत हो जाते ह । संचार शोध को याि वत करने से ये व धयाँ
व तकनीक अलग-अलग प रि थ तय म अलग-अलग तर के से सहायक स होती है

4.14 व-मू यांकन (Self-evaluations)


आपको इस इकाई को यानपूवक प ने के बाद सात: संचार शोध म यु त होने वाल व भ न
व धय एवं तकनीक का ान हो जायेगा । जो आपको शोध करते समय अ य त ह लाभकार
एवं उपयोगी स हो सकता है ।

4.15 श दावल (Glossary)


शोध )Research)  कसी सम या का समाधान ा त करने के लए
कये गये यवि थत य न को ह शोध कहते ह।
नदशन (Sample(  सम म से चु नी गयी वह इकाई जो सम इकाइय
का त न ध व करती है, नदशन कहलाती ह
उपक पना )Hypothesis(  शोधाथ वारा तु त शोध सम या के संभा वत
हल को, िजसका पर ण होना अभी बाक होता है,
उपक पना कहते ह ।
व तु न ठता )Objectivity)  जब शोधकता अ ययन के दौरान त य का संकलन
बना कसी प पात अथवा पू वा ह के, तट थ
रहकर करता है तो इसे व तु न ठता कहा जाता है ।
अ तव तु )Content(  जनसंचार मा यम वारा द त साम ी अ तव तु
कहलाती

4.16 अ यासाथ न (Questions)


1. जनगणना प त एवं नदशन प त म या अंतर है? संचार शोध म यु त नदशन
प त क आलोचना मक या या कर ।
2. वैयि तक अ ययन प त से आप या समझते ह? इसके काय णा लय पर काश डाल।
3. अंतव तु- व लेषण के उ व एवं वकास क चचा करते हु ए, इसे प रभा षत कर ।
4. सांि यक प त, अवलोकन प त, योगा मक प त एवं सा ा कार प त के मह व
पर काश डाल ।
5. एक अ छ नावल क वशेषताओं क चचा कर ।
6. एक े ठ अनुसू ची क वशेषताओं क चचा कर ।
7. अनुमापन णाल या है? इसके व भ न कार क चचा कर ।

78
4.17 संदभ थ (Further Readings)
1. वमा ओम काश )1973)  सामािजक अनुसंधान' काशकसर वती :
सदन, द ल ।
2. संह, सु रे )1975)  'सामािजक अनु संधान' (खंड : काशक (।-
उ तर दे श ह द ंथ अकादमी, लखनऊ ।
3. दयाल, मनोज )2003)  'मी डया शोध'', काशक ह रयाणा सा ह य :
अकादमी, पंचकू ला
4. Dominick, Joseph R & Wimmer Roger, D (1998) - ''Mass Media Research:
An Introduction published by International Thomson Publishing.
5. पाठ , ो. रमाशंकर, सामािजक शोध एवं सांि यक ता ककता (2005), वजय काशन
मं दर, सु डया, वाराणसी ।

79
इकाई-5
जनसंचार के नयामक स ा त
(Regulating Principal of Mass Communication)
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 जनसंचार का अथ एवं व प
5.3 स ा त का अथ एवं व प
5.4 जनसंचार के स ा त का े
5.5 जनसंचार के स ा त एवं समाज
5.6 जनसंचार के मुख स ा त:
56.1 भु ववाद स ा त
56.2 उदारवाद स ा त
56.3 समाजवाद स ा त
56.4 लोकताि क सहभा गता का स ा त
5.7 सारांश
5.8 व-मू यांकन
5.9 श दावल
5.10 अ यासाथ न
5.11 संदभ थ

5.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप न न ब दु समझने म स म ह गे -
 मी डया और सरकार के स ब ध के वषय म ।
 मी डया और नाग रक के स ब ध के वषय म ।
 मी डया और समाज के स ब ध के वषय म ।
 मी डया और सामािजक प रवतन के स ब ध म।
 मी डया के सामािजक स ा त के वषय म ।

5.1 तावना (Introduction)


वतमान समय म जन संचार का भाव जीवन के येक े म दखाई पड़ता है । यि त
का नजी एवं सावज नक जीवन भी जनसंचार के भाव से परे नह ं है । इस कारण जनसंचार
पर यापक वचार आव यक है । जनसंचार के बदले भाव के प रणाम व प इसके सै ाि तक
प पर वचार- वमश ार भ हु आ । समाज वै ा नक ने इसके भाव का मू यांकन
समय-समय पर कया । समाज वै ा नक अ ययन के कारण जनसंचार का व प प रभा षत
हु आ । इसके साथ ह समाज के आ थक, राजनी तक, सामािजक, धा मक, सां कृ तक,
80
मनोवै ा नक आ द े पर इसके भाव का मू यांकन भी हु आ और इस कार येक े
म स ा त का वकास हु आ । इस कारण जनसंचार के राजनी तक, सामािजक, सां कृ तक,
धा मक, मनोवै ा नक, आ थक आ द स ा त अि त व म आये ।
जनसंचार और राजनी तक यव था तथा जनसंचार और सामािजक यव था का ववेचन
येक काल-ख ड म मह वपूण रहा है । जनसंचार यव था को राजनी तक यव था अपने
वचार एवं ि टकोण के अनु प नयं त करने का यास करती है । सामािजक मू य, यव था
एवं मानक आ द भी जनसंचार यव था के वकास अथवा वनाश का माग श त करते ह
। इस कारण राजनी तक यव था एवं सामािजक यव था का जनसंचार यव था से या
स ब ध है? इस पर चचा आव यक है ।
वा तव म आप दे ख तो यह प ट एवं खुला सच है क राजनी तक यव था जनसंचार मा यम
को अपने हत के अनु प ह वत ता दान करती है । ले कन समय-समय पर राजनी तक
यव था जनसंचार मा यम को नयं त भी करती रहती है । इसी म म यह भी जानना
आव यक है क जनसंचार मा यम क वत ता आव यक है । ले कन वत ता के नाम
पर व छ दता अथवा नाग रक हत क उपे ा को उ चत नह ं कहा जा सकता । जनसंचार
मा यम अपने यावसा यक हत तथा आ थक लाभ के आगे य द वत ता का दु पयोग
कर तो उस पर भी अंकु श लगाना आव यक है । इस कारण जनसंचार के अनेक स ा त
म हम रा य यव था एवं सामािजक यव था से जु ड़े मुख स ा त क चचा इस इकाई
म करगे । इसके साथ ह जनसंचार के अथ, कृ त तथा स ा त का अथ, कार एवं कृ त
को भी हम जानगे ।

5.2 जनसंचार का अथ एवं व प (Meaning and Forms of Mass


Communication)
आप जनसंचार के स ा त के वषय म जानना चाहते ह । ले कन सबसे पहले आप के मन
म यह न होगा क जनसंचार है या? आप क इस िज ासा का उ तर दे ने के लए जनसंचार
के अथ एवं व प पर वचार करना होगा । सामा य अथ म वचार कर तो प ट है क संचार
के व भ न कार म जनसंचार एक कार है । संचार वा तव म सूचना अथवा संदेश भेजने
क या का नाम है । इसे हम इस प म समझ सकते ह-

(मॉडल 5.1. एक माग य संचार)


ोत सूचना अथवा संदेश ार भ करता तथा भेजता है । ोत के वारा भेजी गयी जानकार ,
त य अथवा संदभ को हम संदेश कहते ह । इन संदेश को ोता तक पहु ंचाने का काय मा यम
अथवा मी डया वारा कया जाता है । मी डया- य, य एवं य- य कार म वभ त
होता है । ोता का अ भ ाय सूचना अथवा संदेश हण करने वाले यि त या इकाई से है
। मंिजल का अथ सूचना के वाह के वराम अथवा ठहराव क ि थ त तक है । स ेषण अथवा
संचार क ऊपर क ि थ त को हम (मॉडल 5. 1) एक माग य संचार कहते ह 1 ले कन ऊपर
क ि थ त (मॉडल 5. 1) म फ डबैक यु त होने पर यह व-माग य संचार (मॉडल 5. 2) होता
है । इसे हम रे खा च से इस कार समझ सकते ह –

81
(मॉडल 5. 2. -माग य संचार)
ऊपर के मॉडल 5. 2 से प ट है क संचार म ोताओं के उ तर- युतर अथवा त या
को फ डबैक के प म जानते ह । फ डबैक ोता एवं ोत के म य होने वाला सूचना यवहार
है । येक कार का संचार एक माग य अथवा व-माग य होता है ।
संचार के वषय म जानने के उपरा त आप के मन म संचार के मुख कार के वषय म
जानने क इ छा होगी । अब हम संचार के मुख कार क चचा करगे । संचार वदो ने संचार
को सामािजक यवहार के आधार पर व भ न वग म बाँटा है । समाज म वा तव म हम-चार
कार के यवहार समूह मलते ह । सबसे छोट सामािजक इकाई का नाम यि त है । एकाक
यि त सफ यि त ह है । ले कन जब यि त, प नी, ब च आ द के साथ समाज म
उपि थत होता है तो उस समय प रवार नामक इकाई अि त व म आती है । यि त और
प रवार के बाद यापक समाज के म य एक और इकाई अि त व म आती है । इस इकाई
का नाम समू ह है । इसके बाद यापक समाज अि त व म आता है । ले कन समाज म यि त,
प रवार एवं समू ह सभी का वलय अथवा समापन हो जाता है । समाज क पहचान म अ य
सभी इकाइय क पहचान समा त हो जाती है । इस कार समाज म यवहार एवं स ब ध
क चार मु ख इकाइयाँ ह । इन चार इकाइय का सू चना यवहार पर पर भ न होता है ।
इसी आधार पर संचार के चार भेद हु ए । संचार के इन चार कार का वणन हम आगे करगे-

(मॉडल 5. 3 संचार के कार एवं सामािजक इकाइयां)


उ त संचार मॉडल 5. 3 से प ट है क आ य तर संचार यि त आधा रत है । दो से पांच
या दस यि तय के लघु समू ह के म य होने वाला संचार, अ तवयि तक संचार तथा समू ह
के म य होने वाला संचार, समू ह संचार, यापक समाज अथवा जन के म य होने वाला संचार
जनसंचार है । इस कार आप समझ गये ह गे क संचार के चार कार म जनसंचार एक
कार का संचार है । चू ं क हम जनसंचार के स ा त पर वचार करना है । इस कारण जनसंचार
के अथ एवं व प पर वचार करना समीचीन जान पड़ता है ।

82
जनसंचार को अं ज
े ी म (Mass Communication) मास क युनीकेशन कहते ह । मास
(Mass) श द का अ भ ाय नजी अथवा यि तगत पहचान के अ त से है । संचार का अथ
आप पहले पढ़ ह चुके ह । इस कार हम कह सकते ह क जनसंचार या वह संचार या
है, िजसम सू चना पाने वाले यि त अथवा इकाई क यि तगत पहचान समा त होकर ोता,
दशक, पाठक जैसी जन अथवा यापक पहचान म बदल जाती है । जनसंचार क कु छ आधारभू त
वशेषता भी ह जैस-े गूढ़ , संगठन या, यापक ोता, खु ल सू चना, भ न कृ त का ोता
वग, बखरा ोता समू ह, स ेषक ोता म भी नजी पहचान का अथवा एवं ोताओं क
अ भ च एवं सूचना म समानता । इन वशेषताओं के आधार पर हम जनसंचार क कृ त
एवं इसके व प को समझ सकते ह ।

5.3 स ा त का अथ एवं व प (Meaning and Forms of Theory)


स ा त, वा तव म समाज के यवहार से जुड़ा है । यि त अथवा समू ह का यवहार जब
यापक तर पर समाज के यवहार का अंग बन जाता है तो उस ि थ त म उसे स ा त
का नाम दे ते ह । जब तक यवहार क यापकता नह ं होती, तब तक वह स ा त क सं ा
नह ं पाता है । ाकृ तक व ान क तुलना म सामािजक व ान म सावभौम स ा त नह ं
के बराबर ा त होते ह । जैसे शू य से नीचे तापमान म पानी बफ का प ले लेगा । यह
सावभौम यवहार दु नया के कसी भी कोने म आप को मलेगा । ले कन दु नया म मनु य
के यवहार म इस कार क पानी और बफ जैसी ि थ त सदा और हर जगह नह ं मलेगी
। इसी कारण यह कहा जाता है क सामािजक व ान म सावभौम स ा त नह ं मलते ।
इसके अलावा आप यह भी जानते ह क समाज का आधार एवं केि य इकाई मनु य है ।
मनु य का यवहार एवं कृ त भी नरं तर प रवतनशील है । बालक, युवा एवं वृ प म वयं
एक ह यि त के यवहार. पर पर भ न कार के होते ह । इससे भी प ट है क जब वयं
यि त का यवहार प रवतनशील है तो उस पर आधा रत स ा त ि थत एवं सु नि चत कैसे
हो सकते ह? इस कारण सामािजक व ान म स ा त प रवतनशील को ट के होते ह ।
अब आप क इ छा स ा त क मूल कृ त को जानने क होगी । आप उसे इस उदाहरण
से समझ सकगे । जैसे आप ने कसी पेड़ से एक पीला प ता गरते हु ए दे खा । वा तव म
यह एक त या मक ि थ त हु ई । ले कन जब आप अनेक बार और अनेक थान पर पीले
प त को पेड़ से गरते हु ए दे ख तथा समाज के अ य यि तय को भी इसी कार के त य
का बोध हो तो उसे हम स ा त कहगे । इस कार हम कह सकते ह क स ा त सामा य
यवहार के म य व यमान यवहार के सामा यीकरण का सामा यीकरण है अथवा इसे हम
सामा यीकरण क एक पता क सं ा दे ते ह ।
स ा त के लए अं ेजी म Theory श द का योग होता है । अं ेजी के Theory श द क
यु पि त ीक श द Theory से हु ई है । यो रया का अथ 'समझने क ि ट' अथवा कसी
'मान सक ि ट' से है, जो व तु के अि त व एवं कारण को कट अथवा प ट करती है ।
यह स ा त त य से यापक है । त य म घटना क कुछ वशेषताएं होती ह, जब क स ा त
घटना क सामा यीकृ त वृि त को प ट करता है । इस कार स ा त सामा यीकरण क
एक माला जैसी ि थ त को य त करता है । स ा त इं य के अनुभव पर आधा रत होते

83
ह । स ा त घटना को समझने के साधन होते ह । स ा त अनुभव पर आधा रत तथा
वै ा नक प तय वारा ा त होते ह । स ा त का नमाण सामािजक व ान म इस कार
होता है-

व तु, घटना, वचार, ि थ त /सम या आ द


(मॉडल 5.4 : स ा त नमाण के चरण)
मॉडल 5. 4 म द गयी ि थ त से येक स ा त को गुजरना पडता है । संचार को शा वत,
स भावना यु त एवं वृि त यु त भागो म बांटते ह । जैसे मनु य एक सामािजक ाणी है
। यह शा वत स ा त है । समान आ थक ि थ त म मनु य के यवहार म समानता होती
है, यह एक स भावना यु त स ा त है । मनु य हमेशा अपने हत साधने म लगा रहता है
। यह स ा त वृि त अथवा यवहार को दशाने के कारण वृि त आधा रत स ा त है ।
चू ं क जनसंचार एक सामािजक व ान है । इस कारण संचार के स ा त म भी यह वशेषताएं
ा त ह गी ।

5.4 जनसंचार के स ा त का े (Area of the Theory of Mass


Communication)
आप इस इकाई के भाग 5.2 म जनसंचार के वषय म पढ़ चुके ह । उससे प ट है क जनसंचार
वा तव म ोत और जन के बीच होने वाल संदेश ेषण- या है । यह या जनमा यम
वारा स प न होती है । जनमा यम म - समाचारप , प का, रे डयो, टे ल वजन आ द
सि म लत ह । अब हम वचार करना है क जनसंचार के स ा त का े व तार कहां तक
ह? वा तव म जनसंचार के स ा त का व तार अथवा स ब ध जनसंचार क स पूण या
से है । इसके अ तगत जनसंचार के सभी लोग अथवा इकाई सि म लत होते ह ।
जनसंचार के स ा त का स ब ध ोत, संदेश, मा यम, चैनल, ोता, मंिजल, फ डबैक,
ओ प नयन ल डर, संचार बाधा, जनसंचार के संगठन, जनसंचार मा यम के कमचा रय ,

84
जनसंचार मा यम क संचालन या आ द से ह । इस कार आप समझ गये ह गे क
जनसंचार के स ा त का े व तार जनसंचार के सभी चरण , इकाइय एवं यवहार से
है । कोई भी इकाई अथवा यवहार ऐसा जनसंचार के े म नह ं ह, िजसके स ब ध म
स ा त का वकास नह ं हु आ हो । य क स ा त यवहार के सामा यीकरण का
सामा यीकरण है । इस कारण जनसंचार के े म जो भी यवहार जनसंचार या म
आव यक एवं उपयोगी होते ह, उनके यापक सामा यीकरण का हम अ ययन करते ह । वह
जनसंचार का े व तार है ।
बोध न - 1
(1) जनसंचार या है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(2) जन संचार का एक माग य व प या है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(3) जनसंचार का व-माग य व प या है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(4) स ा त या है? प ट कर ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(5) जनसंचार का े व तार बताये ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

5.5 जनसंचार के स ा त एवं समाज (Theories of Mass


Communication and Society)
इस भाग म जनसंचार के स ा त और समाज के स ब ध क चचा करगे । वा तव म
सामािजक व ान म स ा त का वकास सामािजक यवहार से जु ड़ा होता है । स ा त
का ार भ सम या अथवा घटना से होता है । इसी स ब ध म त य वग करण एवं
सामा यीकरण आ द के उपरा त जो यापक यवहार हम मलता है, उसे स ा त क सं ा

85
दे ते ह! इसे हम मॉडल 5. 4 से भी समझ सकते ह । इस कार प ट है क स ा त सामािजक
व ान म समाज आधा रत होते है ।
जनसंचार वा तव म एक सामािजक व ान है । इस कारण जनसंचार के े म भी सामािजक
व ान के नयम ह लागू होते ह । जनसंचार के स ा त का नमाण एवं वकास भी सामािजक
यवहार पर आधा रत है । कोई भी स ा त ऐसा नह ं मलेगा, िजसका स ब ध सामािजक
यवहार से न हो । य क जनसंचार के े म जो भी घटता है, वह सामािजक यवहार
से य या परो प रो जु ड़ा होता है । इस कारण जनसंचार को ठ क से समझने के लए
कसी क पना को नह ं बि क सामािजक यवहार को ह समझना आव यक है । इस कार
आप समझ गये ह गे क जनसंचार के स ा त एवं समाज का स ब ध मह वपूण एवं एक-दूसरे
का पूरक है । समाज के बना जनसंचार क क पना नह ं कर सकते । इसी कार जनसंचार
के बना समाज क भी क पना एव संचालन स भव नह ं है । इस कार समाज एंव जनसंचार
का स ब ध अ यो या त या पर पर नभरता का है ।

5.6 जनसंचार के मु ख स ात (Main Theories of Mass


Communication)
जनसंचार के कतने स ा त ह अथवा हो सकते ह? इसका सह -सह अनुमान लगाना क ठन
है । सफ इतना कह सकते ह क जनसंचार के उतने स ा त स भव ह, िजतने सामािजक
यवहार । इस कार जनसंचार के अन त स ा त क सफ चचा कर तो भी इस पर एक
वत पु तक तैयार हो सकती है ।
जनसंचार के स ा त क असं य सं या के म य यहाँ कुछ मु ख स ा त क चचा करगे
। स ा त क इस भीड़ के म य रा य यव था और जनसंचार के स ब ध पर चचा आव यक
है जनसंचार और रा य यव था के स ब ध को रे खां कत करने वाले मुख स ा त क
चचा हम यहाँ करगे । वा तव म यह स य है क रा य यव था के ि टकोण के आधार
पर जनसंचार के स ा त एवं जनसंचार क यव था भावी होती है । तानाशाह रा य यव था
म जनसंचार मा यम कठोर नयं ण म काय करते ह । जब क उदारवाद रा य यव था म
जनसंचार मा यम वत ता पूवक अपनी भू मका नभाते ह । इसी कार समाजवाद
(सा यवाद ) यव था म जन- मा यम एक वचारधारा के लए काय करते ह । इसके अलावा
जाताि क सहभा गता क यव था म जनमा यम नाग रक एवं समाज के त आ थक
िज मेदार एवं सहभा गता के आधार पर काय करते ह । ये स ा त उपयोगी ह । इसी लए
आगे हम इ ह ं क चचा करगे ।

5.6.1 भु ववाद स ा त (Authortarian Theory)

भु ववाद स ा त को हम अ भनायकवाद अथवा एका धकारवाद या तानाशाह स ा त


के नाम से भी जानते ह । पि चम के स जनसंचार वद - वलबर ेम, फैड रक सबट और
थओडोर पेटरसन ने 1956 म अपनी पु तक ( ेस के चार स ा त) फोर थयर ज ऑफ द
ेस म रा य यव था और स
े के स ब ध पर चचा क है । चचा के इस म म उ ह ने
ेस के भु ववाद स ा त का ववेचन कया । इसके अनुसार भु ववाद अथवा तानाशाह

86
यव था म स
े रा य यव था के अधीन थ के प म काय करती है । स ताधार वग के
हत का संर ण ह स
े का मु य दा य व होता है । अ धनायकवाद यव था म ेस वत
नह ं होती । जनता के हत क अपे ा अ धनायकवाद यव था के हत क पू त ह इसका
मु य काय होता है । ऐसी ि थ त म मी डया यापक समाज के हत क उपे ा करती है
। मी डया को कठोर ससर एवं मानक नदश क सीमा म काय करना पड़ता है । इतना ह
नह ं स ताधार तानाशाह के हत के व काय करने पर मी डया से जु ड़े लोग को कठोर
द ड भी दया जाता है । कभी-कभी मी डया का संचालन भी ब द कर दया जाता है । तानाशाह
यव था म स
े पर सरकार क कठोर नगरानी होती है ।
जनसंचार मा यम का ार भ तानाशाह यव था के दौरान हु आ । 15वीं एवं 16वीं शता द
म ेस पर कठोर नयं ण थे । एक समय ऐसा भी था जब पूर दु नया म राजशाह का शासन
था । उस समय स
े पूर तरह राजशाह के नयं ण म था । वतमान समय म दु नया म भले
ह जनताि क यव था भावी है । इस दौर म भी यु अथवा आपातकाल या स ता को जबरन
अपने नयं ण म लेने वाले तानाशाह वारा स
े पर कठोर नयं ण लगाया जाता है । भारत
म भी 1975 - 77 के आपातकाल के दौरान स
े पर कठोर पाब द लगायी गयी थी । वतमान
म दु नया के अ य दे श म जहाँ सै नक तानाशाह या अ य कार के तानाशाह शासन म ह,
वहां ेस वत नह ं है । यांमार (वमा) आ द इसके उदाहरण ह । इस कार हम यह कह
सकते ह क भु ववाद रा य यव था म नाग रक और ेस दोन क ि थ त गुलाम जैसी
होती है ।

5.6.2 उदारवाद स ा त (Libertarian Theory)

इस इकाई के भाग 5.6.1 म आप पढ़ चु के ह क वलबर ेम और सा थय ने ेस के चार


स ा त पर वचार कया था । इन स ा त म ेस का उदारवाद स ा त भी था । अब
यहाँ हम स
े के उदारवाद स ा त क चचा करगे । वा तव म उदारवाद रा य यव था म
रा य नाग रक के मौ लक अ धकार, नाग रक अ धकार, जाताि क अ धकार के साथ-साथ
उनक अ भ यि त क वत ता को मा यता दे ता है । साथ ह साथ नाग रक के अ धकार
म रा य के ह त ेप क भी सीमा एवं शत नि चत रहती है । उदारवाद यव था म यि त
एवं ेस पर रा य का नयं ण व ध यव था के अनु प एवं सी मत होता है । ऐसी रा य
यव था म स
े नाग रक के हत एवं अ धकार का संर क होता है । पि चम म उदारवाद
ेस यव था का समथन ार भ म जॉन म टन, थामस जेफसन एवं जॉन टु अट मल ने
कया । इसम ोटे टे ट सुधारवा दय ने भी अपनी भू मका नभायी । अमे रका के सं वधान
म वत ेस क यव था को थम सं वधान संशोधन के वारा सि म लत कया गया ।
उदारवाद ेस स ा त वा तव म ेस क वत ता को मा यता दे ता है । इसके साथ-साथ
संचार मा यम सरकार नयं ण तथा दबाव से मु त होकर उदारवाद यव था म काय करते
ह । संयु त रा संघ के चाटर म भी ेस एवं नाग रक के अ भ यि त क वत ता को
मा यता द गयी है । इस कार आप समझ गये ह गे क उदारवाद रा य यव था म ेस
वत होता है । रा य, ेस एवं नाग रक वत ता म ह त ेप नह ं करता है ।

87
5.6.3 समाजवाद स ा त या सा यवाद स ा त (Socialist or Communist
Theory)

वलबर ेम और उनके सा थय ने ेस के चार स ा त म समाजवाद स ा त क चचा भी


क है । इसे हम क यु न ट स ा त के नाम से भी जानते ह । सा यवाद सो वयत संघ अथवा
सा यवाद चीन अपने को समाजवाद रा य के प म य त करते ह । उनक रा य यव था
समाजवाद तथा मानक स ा त सा यवाद ह । इस कार सा यवाद , क यु न ट एवं
समाजवाद स ा त म नाम भेद भले ह हो पर तु सब यवहार म एक ह यव था को य त
करते ह । समाजवाद स ा त का वकास काल मा स एवं एं ग स ने कया । इस वचारधारा
के आधार पर 1917 म सो वयत संघ म सव थम म सा यवाद रा य अि त व म आया ।
इसके उपरा त सा यवाद यव था चीन, यूबा, पोलै ड आ द रा य म अि त व म आयी।
समाजवाद यव था क मा यता मु यत: आ थक आधार पर टक है । समाजवाद वचारक
काल मा स के अनुसार पू ज
ं ी अथवा स पि त के नयं ण के स ब ध के आधार पर यि त
एवं रा य के स ब ध तय होते ह । पू ज
ं ी के स ब ध म प रवतन से रा य यव था भा वत
होती है । समाजवाद यव था म ेस समाजवाद मू य के लए काय करता है । सा यवाद
यव था मानती है क अमे रका स य पि चमी रा य म स
े पू ज
ं ीवाद यव था क र क
है । इसी कारण समाजवाद रा य यव था म ेस क वत ता समाजवाद अथवा सा यवाद
मू य से जु ड़ी होती है । समाजवाद यव था म आलोचना अथवा समालोचना का अ धकार
ेस को नह ं होता । स
े एवं जन मा यम समाज म श ा, सूचना के साथ-साथ समाजवाद
मू य का चार करते ह । स
े अथवा जनमा यम पर समाजवाद रा य का नयं ण रहता
है । स
े के वारा तु त संदभ भी समाजवाद रा य यव था क संचालक क यु न ट पा टय
अथवा इसके त न धय वारा नयं त होती है ।
पि चमी संचार व सा यवाद अथवा समाजवाद स
े को वैचा रक तानाशाह यव था क सं ा
दे ते ह । जब क समाजवाद यव था के समथक का मानना है क पू ज
ं ीवाद यव था म ेस
दखावे के लए वत है । जब क पूजीवाद
ं रा य और स
े दोन ह यि त के थान पर
पू ज
ं ीप तय के हत का ह संर ण करते ह । इस कार समाजवाद रा य यव था म स

एवं जनमा यम रा य के नयं ण म समाजवाद मानक एवं मू य के लए काय करते ह
। ऐसी यव था का उदाहरण चीन क स
े यव था म आप दे ख सकते ह ।

5.6.4 लोकताि क सहभा गता का स ा त (Theory of Democratic


Participation)

लोकताि क सहभा गता का स ा त भी मी डया और समाज के स ब ध पर आधा रत ह


। इस स ा त को वक सत करने का ेय स संचार व डे नस मै ल को है । मी डया
क जाताि क सहभा गता के स ा त का वकास नये संचार मा यम के साथ-साथ मी डया
के नजी अथवा सावज नक एका धप य क समालोचना के साथ वक सत हु आ । पि चम म
1960 के दशक म वैकि पक, नचले तर से जु ड़े जनमा यम नाग रक क आव यकताओं
को य त करते थे । इस स ा त क मा यता के अनुसार थानीय सू चनाओं को मह व दे ना,

88
उ तर के अ धकार को वीकारना एवं नवीन संचार के साधन का उपयोग छोटे - तर पर करके
अ त: या तथा ऐसी सामािजक कायवाह का नधारण करना िजसका स ब ध उप-सं कृ त
एवं हत समू ह से जु ड़ा होना आ द लोकतां क सहभा गता के स ा त है । यह स ा त उ च
तर य के यकरण एवं रा य के नयं ण को चु नौती दे ता है । रा य के नयं ण थान पर
बहु ल, छोटे , थानीय एवं ेषक तथा सूचना ा तकता के स ब धयु त अ त: या वाल संचार
यव था को मा यता दे ता है । यह स ा त भू मगत प का रता या वैकि पक ेस, ाइवेट
रे डयो, सामु दा यक केवल टे ल वजन, लघु तर य मी डया क ामीण यव था को यावहा रक
आधार पर मा यता दे ता है । इसके अ तगत पड़ोसी भावयु त, म हलाओं एवं व भ न
अ पसं यक समु दाय के लए भी मी डया होना चा हए । यह वाल पो टर आ द को भी मा यता
दान करता है । यह स ा त उ च तर य यवसा यकता के थान पर सहभा गता एवं
अ त: या क मू ल अवधारणा पर आधा रत है ।
यह स ा त यापक जन समाज क अवधारणा के थान पर जाताि क सहभा गता पर
बल दे ता है । इसक मा यता है क पू ज
ं ी के आ धप य के कारण वत स
े क यव था
समा त हो गयी । जन समाज म यि त के आ था क उपे ा क गयी । सामािजक दा य व
क यव था नौकरशाह के कारण समा त हो गयी । इस कारण वत ता तथा व- नयं ण
भी यवसायवाद के कारण न ट हु आ । अ तु जाताि क सहभा गता ह एक अ छा रा ता
है, िजसके वारा यि त जन मा यम म भागीदार हो सकता है । इस कार आप समझ
गये ह गे क यह स ा त छोटे एवं थानीय तर पर मी डया के संचालन पर बल दे ता है
। इसक मा यता के अनुसार बहु ल अथवा अनेक मा यम का संचालन हो । मी डया एवं यि त
के म य नजद क र ता है । यह स ा त उब यावसा यकता , रा य का मी डया पर नयं ण
एवं के यकरण को अ वीकार करता है । इस स ा त के अनुसार राजनी तक यव था एवं
मी डया म यि त क भागीदार बढ़े । यि त तथा मी डया के म य नकट का र ता है ।
मी डया और यि त के म य नकटता के लए मी डया का थानीय तर पर संचालन ज र
है ।

5.7 सारांश (Summary)


इस इकाई म जनसंचार के व भ न स ा त क चचा क गयी है इसे आप समझ सकगे
क समाज एवं जनमा यम म कस कार का स ब ध है और रा य यव था जनमा यम
को कस कार से भा वत करती है? इस इकाई को पढ़ने के बाद,आप समझ गये ह गे क
पूर दु नया म जनसंचार क यव था एक जैसी नह ं है । जैसी रा य . यव था, उसी के अनुसार
जनसंचार यव था काय करती है ।
तानाशाह रा य यव था मे मी डया या ेस वत नह ं होती । उदारवाद यव था म स

क भू मका वत होती है । समाजवाद या सा यवाद यव था म स
े समाजवाद वचार
क सीमाओं के बंधन के कारण वत नह ं रहे जाती । इतना ह नह ं यापक जन समु दाय
अथवा जन समाज वाल मी डया यव था म यि त एवं थानीय सू चनाएं उपे त रह जाती
है । इस कारण थानीय मी डया एव मी डया से यि त का जु ड़ाव भी ज र है ।

89
इस कार आप इस इकाई को प ने के उपरा त जनसंचार के स ा त, ेस एवं समाज के
स ब ध से प र चत ह गे । यह इकाई आप म मी डया एवं समाज के स ब ध के वषय म
प ट ि ट बनाने म उपयोगी तथा मह वपूण है ।
बोध न - 2
1) जनसंचार के स ा त और समाज के स ब ध या ह?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
2) भु ववाद यव था म स
े वत य नह ं होता?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
3) या उदारवाद यव था म स
े वत होता है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
4) या समाजवाद यव था म े पर वचार के नाम पर नयं ण थोपा जाता है?

……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
5) 'जनताि क सहभा गता का स ा त थानीय एवं सामु दा यक मी डया यव था का
समथन करता है । ' स क िजए ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

5.8 व-मू यांकन (Self- Valuation)


आपको इस इकाई को यानपूवक पढ़ना चा हए । प ने के बाद आप इस इकाई को वत:
दोहराएं । आप मन ह मन यह टटोल क जनसंचार, स ा त, जनसंचार स ा त, जनसंचार
और समाज, जनसंचार के मुख स ा त - भु ववाद , उदारवाद , समाजवाद एवं जनतां क
सहभा गता क जानकार आप को ठ क कार से हो चुक है । इन स ा त के मह व को
आप समझ चु के ह तथा स ा त के सामािजक प को भी जान चु के ह । इस कार का
व-मू यांकन आप को नर तर करते रहना चा हए ।

90
5.9 श दावल (Glossary)
इस इकाई म आने वाले पा रभा षक श द के अथ इस कार है -
जनमा यम )Mass Media( : समाचार प , प का, रे डयो, टे ल वजन
आद ।
मी डया )Media( : सू चना को ोत से ोता तक पहु ं चाने वाला
म य थ या सू
सामा यीकरण )Generalization( : यापक समाज म मलने वाले यवहार का
एक मा य व प
ेस (Press) : समाचारप , प का, रे डयो, टे ल वजन,
केबल आ द का समाचार भाग
स ा त )Theory or Principal( : सामा यीकरण का सामा यीकरण

5.10 अ यासाथ न (Questions)


1. स ा त से आप या समझते ह? इसक वकास या का वणन कर?
2. ' स ा त का नमाण समाज आधा रत है ।' काश डाल ।
3. जनसंचार या है? जनसंचार के अथ एवं व प को प ट कर ।
4. जनसंचार स ा त के े व तार को प ट कर ।
5. 'अ धनायकवाद यव था म मी डया वत नह ं होती ।' प ट कर ।
6. 'समाजवाद यव था म मी डया पर रा य का कठोर नयं ण होता है ।' पर ण कर ।
7. 'उदारवाद यव था म मी डया नाग रक के अ धकार क र क होती है ।' अपनी स म त
द ।

5.11 संदभ थ (Further Readings)


1. डॉअ नल कुमार .  प का रता और जनसंचार स ा त एवं वकास,
उपा याय 2005, भारती काशन, दुगाकु ड, वाराणसी-5
2. ओम काश संह  संचार, ला सकल पि ल शंग क पनी, 28,
शॉ पंगसे टर, करमपु रा, नई द ल -15.
3. ओम काश संह  संचार और प का रता के व वध आयाम,
ला सकल पि ल शंग क पनी, 28, शॉ पंग
से टर, करमपु रा, नई द ल -15
4. ीका त संह  स ेषण त प एवं स ा त ., भारतीय
पि लशस एंव ड यू टस, लोके वर
का ले स, (नजद क अवध व व(., फैजाबाद
.उ) (.

91
5. डॉ अ नल .कु मार उपा याय  प का रता और वकास संचार, 2007, भारती
काशन, दुगाकु ड, धमसंघ बि डंग,
वाराणसी-5
6. Denis Mcquail  Mass Communication Theory An
Introduction, Sage Publication Ltd., 32,
M-Block Market, Greater Kailash-I, New
Delhi-48

92
इकाई-6
जनसंचार के सामािजक स ांत
(Social Theories of Mass Communication)
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 जनसंचार के सामािजक स ांत का अथ
6.3 जनसंचार मा यम के आधारभूत स ांत
6.4 समाज क त जनसंचार के सामािजक स ांत
6.4.1 जनसमाज स ांत
6.4.2 मा सवाद स ांत
6.4.3 आलोचना मक आ थक-राजनी तक स ांत
6.5 मी डया क त जनसंचार के सामािजक स ांत
6.5.1 कायमू लकता स ांत
6.5.2 वकास संबध
ं ी स ांत
6.5.3 संचार ौ यो गक संबध
ं ी नय तवाद स ांत
6.5.4 सू चना समाज स ांत
6.6 सू चना समाज : यथाथ या मथक
6.7 जनमत नमाण (एजडा से टंग)
6.8 सारांश
6.9 व-मू यांकन
6.10 श दावल
6.11 अ यासाथ न
6.12 स दभ थ

6.0 उ े य (Objectives)
जनसंचार के सामािजक स ांत से संबं धत इस इकाई म आपको जनसंचार से संबं धत कु छ
ऐसे स ांत से प र चत कराया जाएगा िजनके अ ययन से आपको जनसंचार क सामािजक
भू मका और समाज से उसके संबध
ं को समझने का अवसर मलेगा । इस इकाई को प ने
के बाद आप.
 जनसंचार के सामािजक स ांत का ता पय समझ सकगे,
 जनसंचार मा यम के आधारभूत सामािजक स ांत क या या कर सकगे,
 जनसंचार मा यम के समाज क त सामािजक स ांत का व लेषण कर सकगे,
 जनसंचार मा यम क मी डया क त सामािजक स ांत का ववेचन कर सकगे और

93
 जनसंचार मा यम वारा सू चना, समाज और जनमत नमाण के प को प ट कर
सकगे।

6.1 तावना (Introduction)


जनसंचार मा यम के अ ययन क भारत म बहु त लंबी परं परा नह ं रह है । ले कन अमेर का
और यूरोप के दे श म दूसरे व वयु के बाद से जनसंचार मा यम का अ ययन कया जा
रहा है । इस अ ययन का एक मह वपूण ह सा है जनसंचार से संबं धत व भ न स ांत
का नमाण और इस तरह जनसंचार मा यम के संबध
ं म वभ न ि टकोण समय-समय
पर सामने आते रहे ह । संचार मा यम का ाथ मक काम है, संदेश को सं े षत करना ।
यह सं ेषण यि तय और समूह को कया जाता है इस लए यह वाभा वक है क जनसंचार
के संदभ म ये न पूछे जाएं क सं ेषण के लए कौन से संदेश उपयु त ह, इनका नधारण
कनके वारा होता है, या अलग- अलग यि तय और समू ह के लए संदेश भी अलग-
अलग ह गे और या संदेश के त त या भी यि तय और समू ह के अनुसार बदलेगी?
या संदेश को पेश करते हु ए तोता अपने हत के अनुसार संदेश को खास कृ त म ढालता
है? जनसंचार मा यम क ज रत समाज को ह होती है और समाज क संरचना और कृ त
के अनुसार ह जनसंचार मा यम के स ांत न मत होते ह । जनसंचार के व भ न सामािजक
स ांत अमर का और यूरोप के व वान वारा तु त कए गए ह । उनके अ धकांश अनुभव
अमेर का और यूरोप से ह संब ह । इसके बावजू द यह नह ं कहा जा सकता क इनका भारतीय
संदभ म कोई मह व नह ं है । भारत म भी उसी तरह क लोकतां क यव था है िजस तरह
क अमेर का और यूरोप के अ धकांश दे श म ह । इसी तरह इनम से बहु त से दे श म भी
व भ न जा तय , धम और व भ न भाषा बोलने वाले लोग रहते ह । इस लए जनसंचार के
व भ न स ांत का नमाण भारतीय संदभ म भी ासं गक है और इसी लए इनका अ ययन
आव यक है ।

6.2 जनसंचार के सामािजक स ांत का अथ (Meaning of Social


Theory of Mass Communication)
जनसंचार मा यम और समाज के पार प रक संबध
ं को समझना आव यक है । जनसंचार
मा यम का आधु नक वकास आधु नक समाज के वकास के साथ जु ड़ा है । जब हम समाज
क बात करते ह तो समाज के कई प हमारे सामने आते ह । आमतौर पर जब हम मनु य
को सामू हक प म प रभा षत करते ह तो उसे समाज क सं ा द जाती है । मनु य कई
प म एक दूसरे से जु ड़ा होता है । लोग प रवार, जा त, धम, न ल, लंग, भाषा, े , श ा,
यवसाय आ द कई प म समू हब होते ह । उनका इस तरह समू हब होना उनको व श ट
पहचान दे ता है । एक यि त एक ह समय म कई पहचानो का त न ध व करता है । वह
एक ह समय म ी, द लत, प नी, अ या पका, म यवग, हंद भाषी आ द हो सकती है ।
ऐसा होते हु ए वह अपने व श ट समाज का नमाण कर रह होती है । जब हम समाज क
बात करते ह तो वह काफ हद तक अमू त होती है ले कन जब हम कसी व श ट संदभ म
समाज क बात करते ह तो हम संपण
ू मानव जा त क बात नह ं कर रहे होते ह और उस

94
समय अ य बहु त से समाज भी अि त व म होते ह जो इस समाज से भ न होते ह । ले कन
य द हम कसी अ य तरह के समाज क बात कर रहे ह तो संभव है क पहले तरह के समाज
के कु छ लोग अब इस नये समाज म समूहब हो जाएं । मसलन, जब हम भारतीय समान
क बात करते ह तो इसका मतलब यह है क भारत का येक नाग रक इस समाज क
सामू हकता म आब है ले कन वे सभी जो भारतीय नह ं है इस समाज म शा मल नह ं ह गे
। इसी तरह जब हम नार समाज क बात करते ह तो दु नया क सभी ि य क बात कर
रहे होते ह और उनम जा हर है क पु ष को शा मल नह ं करगे । ले कन जब हम भारतीय
नार समाज क बात करगे तो भारत के नाग रक म से सफ ना रय को ह प रग णत करगे।
समाज व तु त: एक प रक पना है । इस प रक पना का उ े य मानव जा त को व भ न
समु दाय के प म समझना है । इस तरह समझने क ज रत इस लए होती है य क मनु य
के याकलाप म उनक इन व श ट पहचानो का गहरा असर दे खा जा सकता है । एक ी
का जीवन एक पु ष के जीवन से भ न होगा । एक पु के दा य व, एक पता के दा य व
से अलग ह गे, एक अ यापक का काय, एक लक के काय से भ न होगा । यह नह ं लोग
े , जा त, धम, न ल, लंग, भाषा आ द के कारण एक दूसरे से नफरत करते ह, एक दूसरे
पर अ याचार करते ह और एक दूसरे से यु करते ह । मनु य जा त का इ तहास इन पहचानो
के कारण होने वाले संघष का इ तहास भी है । इसका मतलब यह नह ं है पहचाने सदै व
संघषशील होती है । इन सबके बावजू द पहचान का अपना मह व है और जनसंचार मा यम
पर वचार करते हु ए इस बात को यान म रखना ज र हो जाता है ।
जैसा क कहा जा चु का है, जनसंचार मा यम का ाथ मक काम सं ेषण करना है । िजसे
सं े षत कया जाता है उसे संदेश कहा जाता है । संदेश क अंतव तु का नधारण करने वाला,
संदेश का सं ेषण करने वाला और संदेश को हण करने वाला ये तीन अलग- अलग घटक
ह । संदेश कौन और य सा रत कर रहा है, संदेश कसे, कब, कैसे और कहां सा रत कया
जा रहा है और संदेश या है, उसका नमाण कसने कया है, इन सभी बात का संबध

कसी-न- कसी प म समाज से है बि क कहना चा हए क संचार क सम त या दरअसल
एक तरह क सामािजक या है ।
संचार को जब जनसंचार कहा जाता है तब इसका मतलब है क वह सं ेषण का ऐसा मा यम
है जो यापक जनसमू ह के लए है । मसलन, रे डयो पर जब समाचार सु नाया जाता है तो
वह दो-चार लोग के लए नह ं बि क उस रे डयो सारण के दायरे म आने वाले उन सभी
लोग के लए होता है जो उस भाषा को जानते ह । इसी तरह टे ल वजन पर दखाया जाने
वाला धारावा हक या सनेमा घर म द शत होने वाल फ म कुछ मु ी भर लेना के लए
नह ं बनाई जाती । वह उन लाख लोग के लए बनाई जाती है जो उस फ म के संभा वत
दशक होते ह । इस कार जन (मास) संचार के संदभ म एक मह वपूण श द हो जाता है
य क इस जन को यान म रखकर मा यम वशेष पर सा रत होने वाले काय म का
नधारण कया जाता है । य द हॉल बुड म बनने वाल फ म हंद ु तान म बनने वाल हंद
फ म से अलग ह तो इसका कारण यह है क हॉल वुड का दशक वग और हंद फ म का
दशक वग अलग- अलग है । यह महज भाषा का फक नह ं है बि क अ भ चय का फक
भी है । अ भ चय के फक का कारण उन समाज के इ तहास, सं कृ त, परपरा और

95
राजनी तक-सामािजक संरचना म न हत होता है । यह नह ं येक भाषाई समाज अपनी
अ भ चया सा ह य, कला और सं कृ त क अपनी परं परा से ह न मत करता है । ये
अ भ चया थायी नह ं होती बि क प रवतनशील होती ह । ले कन ऐसा समाज म होने वाले
प रवतन के कारण होता है । कोई भी समाज ऐसा बंद कमरा नह ं होता िजसम न बाहर से
हवा आती हो और न ह रोशनी बि क िजसम नरं तर आवागमन बना रहता है । इस लए संचार
मा यम के संदभ म कसी भी तरह का वचार उस व श ट समाज के संदभ म कया जाना
िजतना ज र है उतना ह ज र है उस समाज के ग त व ान को भी समझना । जनसंचार
के सामािजक स ांत को समझने का ता पय यह है क हम जनसंचार मा यम क कृ त,
व प और भू मका को ह न समझ बि क समाज क कृ त, व प और उसके ग त व ान
को भी समझ । सं ेप म कह तो इसका अथ यह है क जनसंचार और समाज के संबध
ं को
दे श और काल के संदभ म समझा जाना चा हए । मी डया के वशेष वारा कए गए ऐसे
ह यास को हम जनसंचार के सामािजक स ांत के नाम से जानते ह और आगे पृ ठ म
हम इ ह ं पर वचार करगे ।

6.3 जनसंचार मा यम के आधारभू त स ांत (Basic Theories of


Mass Media)
जनसंचार मा यम के सामािजक स ांत क चचा का आधार इस बात म न हत है क
जनसंचार मा यम समाज क ज रत से अि त व म आते ह और दोन एक-दूसरे 'को भा वत
करते ह । इसके आधार पर जनसंचार और समाज के संबध
ं को न न ल खत आधार पर समझा
जा सकता है ।
1. जनसंचार मा यम और समाज एक दूसरे पर नभर होते ह और एक दूसरे को भा वत
करते ह ।
2. जनसंचार मा यम पूर तरह से समाज पर नभर करते ह ।
3. समाज जनसंचार मा यम से गहरे प म भा वत होते ह ।
4. दोन एक दूसरे से वतं होते ह और एक दूसरे पर नणायक भाव नह ं डालते ।
यान द तो पाएंगे क जनसंचार मा यम और समाज के अंत: संबध
ं का नषेध नह ं कया
गया है ले कन दोन के अंत: संबध
ं म बराबर का फक कया गया है । इस बात को इस प
म समझ सकते ह क जनसंचार मा यम सामािजक यथाथ को अपने गृ हताओं तक पहु ंचाने
का साधन है या न क गृ हता सामािजक यथाथ को जनसंचार मा यम के ज रए हण करता
है । ले कन यहां यह न उठता है क जनसंचार मा यम यथाथ को कस प म सं े षत
करता है । इस संबध
ं म डे नस मेक़ेल ने ' मास क यू नकेशन, थयर ' नामक अपनी पु तक
म कई ि टकोण तु त कए गए ह । इनम मु ख ह :
1. जनसंचार मा यम उस खड़क क तरह है िजसके वारा गृ हता यथाथ को बना कसी
बाहर बाधा के हण करता है । इस स ांत म यह न हत है क गृ हता जनसंचार मा यम
वारा सं े षत संदेश वारा अपने अनुभव का व तार करता है ।
2. जनसंचार मा यम दपण क तरह है िजसके मा यम से समाज अपने को जैसा वह है उसी
प म त बं बत करता है । जा हर है क यथाथ को गृ हता उतना ह हण करता है
96
िजतना मा यम के वारा त बं बत होता है और िजस प म वह अपने को त बं बत
करता है । इस स ांत के अनुसार दशक िजस प म यथाथ को हण करना चाहता
है उस प म यथाथ अपने को य त नह ं करता ।
3. जनसंचार मा यम गेटक पर क तरह है जो यथाथ को उतना ह य त करता है िजतना
क वह करना चाहता है, शेष को वह रोक लेता है । ऐसा वह जानबूझकर भी कर सकता
है और अनजाने म भी ।
4. जनसंचार मा यम यथाथ को अपनी या या और नदश के साथ य त करता है । वह
यथाथ को यथावत तु त नह ं करता । एक गृ हता के प म हम संदेश को कभी भी
उसके यथाथ प म नह ं पहचान सकते । जब भी जनसंचार मा यम यथाथ को य त
करे गा अपनी या या और अपने नदश के साथ य त करे गा।
5. जनसंचार मा यम एक मंच क तरह है जो समाज के यथाथ, वचार आ द को य त
करता है । इस स ांत म यह बात भी न हत है क जनसंचार मा यम का अपने संदेश
को सं े षत करने के लए कोई भी इ तेमाल कर सकता है ।
6. जनसंचार मा यम एक ऐसा अवरोध है जो यथाथ क मपूण या म या रचना वारा
गृ हता को वा त वकता से दूर रखता है । यानी क जनसंचार मा यम गृ हता को यथाथ
से दूर ले जाता है । वह उसक ामक और म या त वीर पेश करता है और इस तरह
वह यथाथ के बारे म गुमराह करता है ।
जनसंचार मा यम क भू मका के बारे म कसी भी तरह क धारणा बनाने से पहले यह जानना
ज र है क इन मा यम ने सं थागत प हण कर लया है । इसका कारण सफ यह नह ं
है क ये मा यम लोग क ज रत को पूरा करते ह बि क ये आ थक और यावसा यक हत
को पूरा करने और स ता पर अ धकार हा सल करने के मा यम भी ह । इस ि ट से जनसंचार
मा यम और समाज के संबध
ं पर वचार करते हु ए न न ल खत न पर वचार करना भी
आव यक हो जाता :
 जनसंचार मा यम पर कसका नयं ण होता है?
 जनसंचार मा यम से कसके हत पूरे होते ह?
 जनसंचार मा यम कसके ि टकोण का त न ध व करता है?
 जनसंचार मा यम वारा कस यथाथ क या या तु त होती है?
 जनसंचार मा यम अपने ल य को ा त करने म कहां तक कामयाब होता है?
 या जनसंचार मा यम समाज के हत म काम करते ह या न समाज म या त असमानता
और अ याय को दूर करने म इनक या भू मका है?
इस कार, उपयु त बात के संदभ म ह हम जनसंचार मा यम के मु ख सामािजक स ांत
को समझ सकगे । डे नस मे े ल ने न न ल खत सामािजक स ांत क चचा अपनी पु तक
म क है :
 जनसमाज स ांत
 मा सवाद स ांत
 कायमू लकता स ांत

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 आलोचना मक आ थक-राजनी तक स ांत
 वकास संबध
ं ी मी डया स ांत
 संचार ौ यो गक संबध
ं ी नय तवाद स ांत
 सू चना समाज स ांत
यहाँ इस बात का उ लेख करना आव यक है क मी डया से संबं धत ये सामािजक स ांत
दो तरह के ह । एक वे जो समाज को क म रखते ह और दूसरे वे जो मी डया को क म
रखते ह । जो मी डया को क म रखते ह वे स ांत भी इस बात को वीकार करते ह क
मी डया क एक सामािजक भू मका है ले कन वे उसे नणायक नह ं मानते । जब क समाज
को क म रखने वाले स ांत मी डया से संबं धत हर प को सामािजक ग त व ान िजसम
राजनी तक, आ थक और सां कृ तक प भी शा मल ह, के संदभ म जांचते-परखते ह । इन
स ांत क व तृत चचा आगे के पृ ठ म क गई है ।

6.4 समाज क त जनसंचार के सामािजक स ांत (Social Theory of


Mass Communication Based Society
जैसा क पूव म उ लेख कया जा चु का है समाज क त जनसंचार के सामािजक स ात म
मु य बल समाज पर होता है । या न क जनसंचार मा यम का उ व, वकास और समाज
पर पड़ने वाले उसके भाव और इन मा यम वारा सामािजक ग त व धय क अ भ यि त
और उसक अ भ यि त का च ण ये सभी प इस ि ट से ववे चत कए जाते ह िजससे
यह उजागर हो क जनसंचार मा यम समाज से भ न और बाहर कोई ऐसी चीज नह ं है िजसे
सामािजक स ांत वारा नह ं समझा जा सकता । जनसंचार मा यम का समाज से संबध

ाय: दो तरह का होता है । एक, जहां जनसंचार मा यम और समाज म एक तरह का टकराव
दखाई दे ता है । दो, िजसम जनसंचार मा यम और समाज म पर पर सहम त और सहयोग
का भाव रहता है । यहां कु छ स ांत का उ लेख कया जा रहा है जो इनके पर पर टकराव
को दखाते ह ।

6.4.1 जनसमाज स ांत

जनसंचार मा यम के संदभ म जन क चचा का उ लेख पूव म कया जा चुका है । रे मंड


व लय स ने जन (मास) श द पर अपनी पु तक 'क वड ' म वचार कया है । उनके अनुसार,
जन श द सामािजक वणन म यु त होने वाला श द ह नह ं है बि क अ यंत ज टल श द
भी है । 'जन' श द का सामा य अथ है, बहु त बड़ी सं या म लोग । ले कन यह बहु त बड
। सं या लोग क कृ त और च र का पता नह ं दे ती । आमतौर पर जब जन श द का
योग कया जाता है तो समाज का उ च वग अपने को उसम शा मल नह ं करता बि क जब
उनके वारा इसका योग कया जाता है तो उसम जनसमू ह के त हकारत का भाव न हत
होता है । उनक नजर म जनसमूह का जो अथ है , वह उनसे भ न और न न है । जनसमाज
क प रक पना आधु नक पूज
ं ीवाद दौर म उ योगीकरण और नगर करण क ती हु ई या
से जुड़ी है । जनसमाज म लोग को ऐसे समू ह के प म दे खा जाता है िजनक ज रत, इ छाएं
और अ भ चया एक सी ह या कम- से-कम ऐसी इकाई के प म दे खा जाता है जो

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कसी-न- कसी मकसद के लए आपस – मे जु ड़ी होती ह । मसलन, दशक, उपभो ता, मतदाता
के प म लोग को ऐसे ह समू ह के प मे दे खा जाता है । जनसंचार मा यम के संदभ म
भी यह स य है । जनसंचार मा यम जब कसी संदेश का सारण करता है तो वह जनता
के वशाल समूह के प म अपने गृ हताओं क संक पना करता है । इसके ल ए यह ज र
हो जाता है क सा रत कया जाने वाला संदेश ऐसा हो जो दशक क सामा य अ भ चय
और वृि तय के अनु प हो ।
जनसंचार पर नयं ण रखने वाले उस वशाल जनसमूह को अपने संदेश को हण करने के
लए े रत भी करते ह । वे उ ह यह बताते ह क हमारे वारा' सं े षत संदेश ह उनके लए
सवा धक उपयु त संदेश ह । जनसंचार मा यम चू ं क यापक जनसमू ह के लए संदेश का
सं ेषण करते ह इस लए सं ेषण के लए आव यक अ धरचना के नमाण के लए बड़ी पूज
ं ी
क आव यकता होती है । इतनी अ धक पू ज
ं ी या तो बड़े पू ज
ं ीप त जु टा पाते ह या सरकार
। दोन ि थ तय म जनसंचार मा यम का व तीय नयं ण या तो बड़ी पू ज
ं ी वाल के हाथ
म होता है या सीधे सरकार के नयं ण म होता है । जनसंचार मा यम संदेश का सारण
यापक जनसमू ह तक करने म कामयाब तो होता है ले कन यह सं ेषण एकतरफा ह होता
है । मनोरं जन, श ा और सू चना के लए लोग इन मा यम पर नभर होते ह । इन मा यम
पर नयं ण करने वाले ह यह तय करते ह क कस तरह के संदेश सा रत कए जाने चा हए
। ऐसा करते हु ए ये मा यम लोग म इनके त ललक पैदा करते ह । वे उनक कसी-न- कसी
सामािजक और सां कृ तक ज रत को पूर करने के मा यम बन जाते ह । यह नह ं उनक
यह भी को शश होती है क लोग इसके साथ अपनी सामािजक और सां कृ तक पहचान को
जोड़ सक । यह काम तभी हो सकता है जब जनसमूह क ऐसी पहचानो को अ भ यि त का
मा यम बनाया जाये जो लोक य ह और िजसे पूरे समू ह वारा आसानी से वीकार कया
जा सके । इसके लए वे उनक आहत भावनाओं का भी सहारा लेते ह । इस कार जनसमाज
स ांत म जनता को एक उ े यह न, ववेकह न समू ह के प म हण कया जाता है ।

6.4.2 मा सवाद स ांत

मा सवाद वचारक ने काल मा स और े ड रक एंगे स के मूल स ांत को आधार बनाकर


जनसंचार मा यम पर गहनता से वचार कया है । मा सवाद वचारक ने वैसे तो जनसंचार
मा यम के ाय: सभी प पर वचार कया है िजनक सम चचा यहां संभव नह ं है । ले कन
यहाँ मा सवाद स ांत के मु ख प पर काश डाला जा सकता है । मा सवाद के अनुसार
जनसंचार मा यम पर नयं ण शासक वग का होता है और वह शासक वग के हत के प
म काय करता है । य द शासन पर पूज
ं ीप त वग का अ धकार है तो उस दे श का जनसंचार
मा यम भी उसी वग के हत म काम करे गा । ऐसा वह यां क प म नह ं करता बि क वह
मक वग के अंदर म या चेतना के सार का काम भी करता है । वह लोग म यह भावना
पैदा करने क को शश करता है क इन मा यम के वारा जो दखाया जा रहा है वह समाज
का स य है । जनसंचार मा यम क को शश यह भी होती है क वह शासक वग के हत
का वरोध करने वाले प को अपनी बात रखने ह न दे और ऐसा मजबूर वश करना ह पड़े
तो वह उन वचार को तोड़-मरोड़कर और वकृ त प म पेश करता है ता क वह एक तरफ

99
तो लोग म यह व वास पैदा कर सके क वह व तु गत और ईमानदार है और दूसर तरफ
वह वरोधी वचार क सीमाओं को भी कट कर दे ता है । इस स ांत के राजनी तक प र े य
के बारे म हम आगे एजडा से टंग के अंतगत चचा करगे । मा सवाद स ांत का यह ता पय
नह ं है क जनसंचार मा यम वारा शासक वग वरोधी वचार क अ भ यि त संभव ह नह ं
है । इसके वपर त मा सवाद इस बात पर बल दे ता है क जनता के बीच राजनी तक काम
का एक पहलू यह भी है क लोग के 'बीच इस बात का भी चार कया जाए क जनसंचार
मा यम शासक वग क वचारधारा और उसके हत के चार का मंच है और उसके इस वग
च र को जानना ज र है । दूसरे , जनता को शासक वग क वचारधारा मक चार का वरोध
वैकि पक मा यम का वकास करते हु ए करना चा हए ।

6.4.3 आलोचना मक आ थक -राजनी तक स ांत

इस स ांत के अनुसार जनसंचार मा यम पर आ थक नयं ण नणायक होता है । जनसंचार


मा यम भी उ योग है इस लए उसके ढांचे और ग त व धय पर वे सब नयम लागू होते ह
जो एक उ योग पर लागू होते ह । इसी लए जनसंचार मा यम के बारे म बात करते हु ए उसक
आ थक ग त व धय को यान म रखना चा हए । जैसा क अ य े म होता है जनसंचार
मा यम भी मु नाफे के लए होते ह और वहां भी को शश बड़े बाजार को नयं त करने क
होती है । इसका असर जनसंचार क अंतव तु पर दखाई दे ता है । जनसंचार मा यम वारा
सा रत होने वाले संदेश भी उपभो य व तु मान लए जाते ह । इसी तरह दशक और ोता
भी जनसंचार मा यम वारा सा रत होने वाले सां कृ तक उ पाद का एक उपभो ता ह ।
चू ं क जनसंचार मा यम क ग त व धयाँ भूमंडल य व तार ले चुक है और ऐसे बड़े नगम
भू मंडल य तर पर अपनी ग त व धय का व तार कर रहे ह इस लए उनके वारा सा रत
होने वाले संदेश भी भूमंडल य व प हण करते जा रहे ह ।दूसरे श द म, उनम व वधता
कम होती जा रह है । इसका असर इस प म भी दखाई दे ता है क जनसंचार मा यम ऐसे
संदेश को जो वच ववाद कृ त के नह ं ह या जो वच ववाद संदेश का वरोध करते ह उनको
हा शए पर डाल दे ता ह । जनसंचार मा यम आज नजी नगम के वारा नयं त होते ह
इस लए इनके वारा नजी नगम के हत को ह ऐसे पेश कया जाता है जैसे यह जनता
का हत है, रा य हत है ।
बोध न - 1
(1) समाज नमाण म संचार क या भू मका है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(2) या जनसंचार स ेषण का आधु नक तर का है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

100
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(3) गेटक पर से या आशय है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(4) डे नस मेके ल क कताब का नाम या है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

6.5 मी डया क त जनसंचार के सामािजक स ांत (Social


Theory of Mass Communication Based Media)
मी डया क त जनसंचार मा यम म जनसंचार और समाज म टकराव क ि थ त नह ं होती
बि क एक तरह से सहम त और सहयोग का भाव रहता है । अगर इसे समाज क त स ांत
के नज रए से दे ख तो कह सकते ह क ये वे स ांत ह जो मी डया का इ तेमाल स ता के
समथन म करना चाहते ह और सामािजक प रवतन क ऐसी कसी या से इसका वरोध
होता है जो स ता के लए खतरा बनता हो । वे मानते ह क जनसंचार मा यम को स ता
वारा वकार। का जो मॉडल पेश कया गया है वे उसके प म जनमत तैयार करने का काम
करे और उसको याि वत करने म मदद कर । इसी तरह वे ऐसे नय तवाद म भी व वास
करते ह िजसके अनुसार जनसंचार मा यम म ौ यो गक सवा धक मह वपूण है और वह
यह तय करती है क इन मा यम क या भू मका हो । इसी ौ यो गक ने समाज को पू ज
ं ीवाद
समाज से भ न सूचना समाज म प रव तत कर दया है । आगे इनम से कु छ स ांत का
उ लेख व तार से कया गया है ।

6.5.1 कायमू लकता स ांत

कायमू लकता (फं शन ल ट) स ांत का ता पय उन काय से है जो समाज के लए जनसंचार


मा यम वारा संप न कए जाते ह । इस स ांत म इस बात पर यादा बल नह ं दया जाता
क इन मा यम पर कनका नयं ण है और वे जनता को राजनी तक प से जनसंचार मा यम
का कैसे इ तेमाल करते ह । इस स ांत के तोता इस बात क भी उपे ा करते ह क
जनसंचार मा यम के याकलाप का लाभ कसे मल रहा है । यह तो माना जाता है क
मा यम वारा संप न काय का कोई न कोई उ े य होता है, उनका समाज पर भाव भी
पड़ता है और वे इस बात को भी अ वीकार नह ं करते क जनसंचार मा यम और समाज म
कोई संबध
ं नह ं होता । ले कन उनका बल मा यम क कायमूलकता पर होता है न क उनके
नतीज पर । इस स ांत के अनुसार जनसंचार मा यम के मु य काय न न ल खत ह :

101
 सू चना दान करना: इसके अनुसार सूचना दान करना जनसंचार मा यम का मु य काय
है । समाज म जो कु छ भी घ टत हो रहा है, समाज और व व क जो भी दशा है उसके बारे
म लोग को अवगत कराना । राजस ता और समाज के बीच संबध
ं को बताना और समाज
म होने वाले प रवतन के बारे म जानकार दे ना ।
 सू चनाओं क अंत:संब ता पर वचार करना: जनसंचार मा यम सफ सूचनाओं का सं ेषण
ह नह ं करता उसक या या और व लेषण भी तु त करता है । वह राजस ता को समथन
दान करता है, उसक ताकत ओर उसके वारा बनाए गए नयम के त लोग को आगाह
करता है । वह व भ न मु पर लोग म आम सहम त बनाने का काम करता है । वह लोग
को उसक ाथ मकताओं को चु नने म मदद करता है और लोग को इस बात का एहसास कराता
है क वे समाज के अंग ह और इस तरह समाजीकरण क या को समथन दान करता
है ।
 सं कृ त को अ भ यि त दान करना : समाज म सं कृ त के िजन प का वच व होता है
जनसंचार मा यम उनको अ भ यि त दान करता है । वह सं कृ त के ऐसे प को भी तु त
करता है िजनका वच व नह ं है ले कन जो कसी-न- कसी प म मौजू द ह । वह सं कृ त
के े म होने वाल नयी ग त व धय और वकास को भी जगह दे ता है । सामािजक मू य
का नमाण करना और उनको बनाए रखना भी जनसंचार मा यम का एक मु य काय है ।
 मनोरं जन दान करना : मनोरंजन दान करना जनसंचार मा यम का मु य काय है । लोग
अपने आराम के समय का उपयोग कस तरह और कतने व वधतापूण ढग से कर सकते
ह, उसके साधन दान करना भी इनका काय है । इस तरह वह समाज म या त तनाव को
कम करने म भी भू मका अदा करता है ।
 चार करना: जनसंचार मा यम चार का एक अ यंत यापक पहु ंच वाला साधन है । इसका
उपयोग राजनी त, अथनी त, धम आ द के दायर म आने वाले ऐसे सभी प के चार के
लए कया जाता है िजसका संबध
ं समाज से होता है । यु या ऐसे ह कसी रा य संकट
के समय भी सामा यत: शासक वग के प म जनसंचार मा यम चार का काम करते ह।
ये सभी काम जनसंचार बहु त यवि थत प म करे यह ज र नह ं है । इसी तरह इनम से
बहु त- से काम एक दूसरे के साथ जु ड़कर भी सामने आते ह । मसलन, कसी मनोरं जन धान
संदेश साथ-ह -साथ खास तरह क राजनी तक वचारधारा के चार का भी काम कर सकता
है । इसी तरह येक संदेश कसी-न- कसी प म सां कृ तक त प का भी तनध व
कर रहे होते है ।

6.5.2 वकास संबध


ं ी स ांत

इस स ांत के अनुसार जनसंचार मा यम समाज के आधु नक करण क या का प रणाम


है और वह आधु नक करण म मददगार भी होता है । समाज के आधु नक करण का अथ है
समाज का वकास । वकास का ता पय सफ आ थक वकास से नह ं है बि क उसम श ा,
वा य आ द भी शा मल है । वकास आधु नक ौ यो गक पर नभर भी है और ौ यो गक
के वकास से भी संब है । जनसंचार मा यम ौ यो गक के वकास म मदद भी करता है
और ौ यो गक के त लोग के ान को बढ़ाने और उसके उपयोग के त जाग क बनाने

102
म सहायक होता है । जनसंचार मा यम लोग को इस बात के लए े रत करता है क वह
वयं आगे बढ़े और इस तरह अपने वकास वारा समाज के वकास म सहायक बन । जनसंचार
मा यम लोकतं क भावना को भी वक सत करता है । वह लोग को उनके लोकतां क
अ धकार के त जाग क बनाता है । उ ह एक नाग रक और एक उपभो ता के तौर पर
जाग क बनाता है । जनसंचार मा यम लोग को सा र होने के लए े रत करता है । उ ह
उ च श ा और रोजगार के बारे म जाग क बनाता है । वह उ ह यह भी बताता है क वयं
कैसे रह, प रवार के नयोजन से वयं उनके प रवार को और रा को या लाभ ह । इस
तरह जनसंचार मा यम सामािजक और रा य वकास म अहम ् भू मका नभाता है ।

6.5.3 संचार ौ यो गक संबध


ं ी नय तवाद स ांत

जनसंचार के मुख स ांतकार माशल मे लू हान ने कहा था, मा यम ह संदेश है । य द मा यम


का अथ यापक करते हु ए जनसंचार क ौ यो गक कह तो इसका अथ यह है क जनसंचार
क ौ यो गक ह उसक अंतव तु को तय करती है । इस स ांत के अनुसार जनसंचार क
ौ यो गक समाज के वकास का आधार है । ौ यो गक सामािजक वकास को तय करती
है । जनसंचार क येक ौ यो गक संचार क व श ट अंतव तु, प और उपयोग के त
आ ह होती है । इस लए जनसंचार मा यम क ौ यो गक म होने वाले प रवतन ह
सामािजक प रवतन को भा वत करते ह । संचार के े म होने वाल ां त ह सामािजक
ां त को संभव बनाती है । यह स ांत जनसंचार क सामािजक भू मका को राजनी तक और
सामािजक वचारधारा के प र े य म समझने का नषेध करता है ।

6.5.4 सू चना समाज स ांत

इस स ांत के अनुसार जनसंचार क नयी ौ यो गक ने सू चना के उ पादन और उनके वाह


को एक मह वपूण काय बना दया है । इस काय का इतना व तार हो गया है क इसम
न केवल बड़ी पू ज
ं ी लगी है बि क इसी के कारण सेवा े म मानव म क खपत पहले के
कसी भी समय क तुलना म कई गुना यादा हो गई है । सू चना के इस वाह के कारण
लोग के बीच पर पर याशीलता म वृ हु ई है । मानव ग त व धयां छतर हु ई न रहकर
वे समे कत हु ई ह और उनम पर पर अ भमुखता म वृ हु ई है । जनसंचार मा यम क
ग त व धयां भूमंडल य हो गई ह । इसने भू मड
ं लय वृि तय को बढ़ावा दया है । इस तरह
समाज का थानीय च र धीरे -धीरे भूमंडल य हो रहा है । सं कृ त का व प भी बदल रहा
है । एक नयी भू मड
ं ल य सं कृ त पनप रह है िजसे उ तर आधु नक सं कृ त नाम दया गया
है । इन सब ग त व धय का कारण सूचना के अबाध वाह म दे खा जा रहा है इस लए इस
नये तरह के समाज को सू चना समाज क सं ा द जा रह है । जनसंचार के उपयु त सामािजक
स ांत का सं त प रचय यह बताने के लए पया त है क जनसंचार मा यम का अ ययन
समाज से नरपे होकर नह ं कया जा सकता । जनसंचार मा यम और समाज के बीच संबध

का व प टकराव वाला होगा या सहम तपरक यह इस बात पर नभर करे गा क आप जनसंचार
मा यम क सामािजक भू मका को कस प म दे खते ह । जनसंचार मा यम आज वकास
क िजस अव था पर पहु ंचे हु ए ह उसका लाभ न चय ह जनता को भी मल रहा है । ले कन

103
इसका अथ यह नह ं है क जनता इन मा यम का अपने हत म इ तेमाल करने के लए
वतं है । इसके वपर त यह दे खा जा रहा है क जनसंचार मा यम का वकास जनता को
राजनी तक प से एक वशेष दशा म ढकेलने और एक वग वशेष के हत म उ ह लामबंद
करने के लए कया जा रहा है । जनसंचार मा यम केवल सूचनाओं का आदान- दान करने
का मा यम नह ं रह गया है बि क वह यह भी तय करता है क कौन-सी सूचना कब और
कस प म लोग तक पहु ंचाई जानी चा हए । जनसंचार मा यम व भ न राजनी तक वचार
और संगठन के त व तु गत दूर बनाये रखकर उनके त जनता को जाग क बनाने क
बजाए वयं एक नज़ रये का वाहक और चारक बन गया है । यह जनसंचार मा यम का
एक मह वपूण काय हो गया है और इसे एजडा से टंग के नाम से जाना जाने लगा है ।
इसी तरह जनसंचार मा यम लोग को यह भी बता रहा है क यह समाज कैसा है और उसे
कैसा होना चा हए । जनसंचार मा यम के व तार और सू चना के अबाध वाह ने जो सू चना
समाज क अवधारणा को तुत कया है उसे भी सह प र े य म समझने क ज रत है
। इसक सं त चचा हम पूव म कर चुके ह आगे इन पर व तार से काश डालगे ।

6.6 सू चना समाज : यथाथ या मथक (Information Society: Reality


or False)
सू चना समाज एक नया पद है । इसका संबध
ं जनसंचार मा यम के अधु नातन वकास से
है । संचार और सूचना के े म जो अभूतपूव ग त हु ई है, उसी का प रणाम है क अमेर का,
पि चमी यूरोप और जापान जैसे वक सत औ यो गक दे श के समाज को औ यो गक समाज
क बजाए अब सू चना समाज कहा जाने लगा है । इन दे श म सूचना अपने म एक वशालकाय
उ योग बन चु का है । सूचना और संचार के े म ग त भी अ य े क तरह असमान
रह है । कुछ दे श सू चना और संचार के े म अभी काफ पछड़े हु ए ह । वे सूचनाओं के
लए काफ हद तक इन वकासशील दे श पर नभर ह । सू चना युग म सूचना ह शि त है
। इस पर िजसका नयं ण है वह शि तशाल है । सू चना समृ और सू चना वकासशील
के बीच का संघष भी एकतरफा हो गया है ।
उ तर औ यो गक समाज या सूचना समाज को प रभा षत करते हु ए अमेर क व वान एवेरे
एम. रोजस ने लखा है क, 'सूचना समाज वह रा है जहां अ धकांश म शि त सूचना मक
के प म संग ठत होती है और जहां सू चना सबसे मु ख त व होता है । इस कार सू चना
समाज औ यो गक समाज से एक प ट प रवतन का त न ध व करता है जहां म शि त
नमाण यवसाय से जु ड़ी होती है, जैसे ऑटो एसबल और ट ल उ पादन का काम और जहां
का मु य त व ऊजा होती है । इसके वपर त सू चना मक वे यि त होते ह िजनक मु य
ग त व ध सूचना के उ पादन, ोसे संग और वतरण तथा सूचना ौ यो गक के उ पादन क
होती है । सू चना के व श ट कामगार म श क , वै ा नक , समाचारप के संवाददाता और
अ य प कार, कं यूटर ो ामर, परामशदाता, से े टर और बंधक क गणना क जाती है
। ये यि त लखते ह, पढ़ाते ह, परामश बेचते ह, आदे श लेते और दे ते ह और सूचनाओं का
संचालन करते ह । उनक मु य ग त व ध भोजन पैदा करना नह ं है और न ह नट और बो ट
कसना है और न ह भौ तक व तु ओं का संचालन करना है (क यु नकेशन टे नोलॉजी, द

104
ेस, यूयाक, 1986, पृ. 1) । सू चना समाज क वशेषताओं पर वचार करते हु ए व वान
ने न न ल खत वशेषताओं को रे खां कत कया है:
 जहां सूचनाओं का आ थक प म इ तेमाल कया जाता है । उ पा दत व तु के प म
वह बाजार पधा म शा मल है ।
 येक यवसाय म आज काम करने वाल का अ छा-खासा ह सा सूचनाओं का उ पादन
करने, उनको पुनराव तत करने और उनको बनाए रखने के काम म लगा हु आ है ।
 सू चना ौ यो गक और सं थाओं के बीच अंत:संब ता म बढ़ोतर हो रह है ।
 सू चना ने वै ा नक ान को भी यवसा यक संसाधन म बदल दया है ।
 संचार के साधन और संदेश के चुर वृ क वजह से यथाथ क या या और उनको
खास प दे ने का काम जनसंचार मा यम करने लगे ह ।

 सू चना ौ यो गक क आसान उपल धता क वजह से यि त भी सूचना का नमाण कर
सकता है, उसको भंडा रत कर सकता है, सं े षत कर सकता है और उसे भा वत कर
सकता है । ले कन इसके लए उसके पास सूचना ौ यो गक को हा सल करने के लए
ज र आ थक मता हो ।
भारत जैसे तीसर दु नया के दे श म जहां औ यो गक वकास भी पया त नह ं हु आ है, सू चना
को एक िजस बनने क वृि त को रा य प रघटना नह ं कहा जा सकता, जैसा क अमेर का
और पि चम यूरोप के दे श के बारे म कहा जाने लगा है । सूचना ह शि त है , यह सू चना
ां त के दौर का मु य संदेश है । ले कन इससे यह समझना क सूचना के वाह म कसी
तरह क बाधा नह ं पहु ंचाई जाती है । आमतौर पर अ भजात वग उन सू चनाओं को जो उनके
हत म नह ं होती, लोग तक पहु ंचने से रोकता है । सू चना समाज ने कई तरह के मथक
खड़े कए ह । कहा जा रहा है क सू चना समाज पूज
ं ीवाद क समाि त का गवाह होगा ।
औ यो गक उ पादन िजसके साथ क करण, व तार, मानक करण, सं मण और शोषण जैसी
बुराइयां व यमान ह, उससे छुटकारा मल जाएगा । औ यो गक उ पादन के थान पर
एका धकारवाद से र हत और व वधताओं वाले बाजार म सेवाओं का ाधा य होगा । या
वा तव म ऐसा होता दखाई दे रहा है? नह ं । एक तो इसक वजह यह है क इले ॉ नक
आधा रत ये प तयां उ पादन के बहु त सी मत े म उपयोगी ह और बहु त हद तक उ पादन
क संपण
ू या के कुछ चरण म उपयोगी ह । दूसरे इसने उ पादन से अ धक सहायक सेवाओं
के े को भा वत कया है । इसक वजह से सेवा े का व तार भी हु आ है और मह व
भी बढ़ा है । ले कन अ धकांश सेवा े अपने अि त व के लए औ यो गक उ पादन े
पर नभर ह । मसलन बंधन, माक टंग क प रक पना बना औ यो गक उ पादन के कैसे
क जा सकती है?
कहा जा रहा है क सू चना समाज म राजनी त सहभा गता वाल होगी । सहभा गता से य द
ता पय यह है क समाज के सभी तबक क भागीदार शासन पर नयं पा और उसके संचालन
म होगी, तो यह ज र है क सबरने पहले समाज म या त हर तरह क असमानता को समा त
कया जाए । या सूचना समाज म ऐसा हो पाएगा? कम-से-कम अभी तो ऐसा नह ं तीत
हो रहा है । इसके वपर त राजस ताएं पहले क तु लना म यादा शि तशाल और दमनकार

105
वृि त क होती जा रह है । या न लोकतं कमजोर पड़ता जा रहा है । अगर यह कहा जा
रहा है क सूचना पर सबका अ धकार होगा, सभी अपने पास सू चना को भंडा रत कर सकगे,
तो यह भी एक भुलावा है । त य यह है क सू चनाओं के अबा धत और ती वाह ने वयं
सू चनाओं को ज टल और वशेषीकृ त बना दया है । इसका नतीजा यह हु आ है क आज चार
ओर सूचनाओं का अंबार तो है , ले कन लोग का ान घट रहा है । सूचना सफ उ ह ं के लए
ताकत बनती है िजनके हाथ म सू चना को उ पा दत करने, ोसे संग करने, भंडा रत करने,
सु धारने और सं े षत करने के साधन ह । जा हर है क यि तय और समु दाय क बात तो
दूर रह , वयं व भ न दे श म भी इनका वतरण एक सा नह ं है । तीसर दु नया के दे श
इस लहाज से काफ पीछे ह और वक सत दे श पर काफ हद तक नभर है ।

6.7 जनमत नमाण (Agenda Setting)


परं परागत प से जनसंचार मा यम के तीन मु ख काय माने जाते रहे ह, सूचना, श ा और
मनोरं जन दान करना । ले कन इन तीन काय के अलावा हाल के वष म एजडा से टंग को
भी उसके काय म शा मल कर लया गया है । इसे स अमर क व वान नोम चो क
ने सहम त का नमाण करना या जनमत नमाण कहा है । ऐसा जनसंचार मा यम क बढ़ती
राजनी तक भू मका के कारण हु आ है । शासक वग जनसंचार मा यम के वारा जनता को
अपने पीछे लामबंद करने के लए ऐसे वचार का चार करते ह िज ह जनता न केवल सहज
प से वीकार करे बि क उसके अनु प वह राजनी तक नणय भी ले । जनसंचार मा यम
के िजन तीन परं परागत काय का उ लेख कया गया है उन काय के संदभ म भी अब यह
माना जाने लगा है क मी डया इनक तु त इस बात से तय करता है क इससे कस तरह
क राजनी त को मदद मलती है । जनसंचार मा यम न प और व तु गत प से संदेश
का सारण नह ं करता । वह सफ उन संदेश को ह सा रत करने म दलच पी लेता है
िजसे सा रत करना वह अपने हत म समझता है । यहां जनसंचार मा यम के हत का मतलब
है, जनसंचार मा यम के वा मय का हत । वे सफ यह तय नह ं करते क कौन से संदेश
सा रत कए जाने चा हए वरन ् यह भी तय करते ह क कनको मु खता द जानी चा हए
। इसके लए वे संदेश के उ पादन को भी नयं त करते ह । यानी क वे यह तय करते
ह क कस तरह के संदेश क ज रत है और उ ह कब और कस तरह सा रत कया जाना
चा हए । यह नह ं ऐसा करते हु ए वे बहु त से संदेश के नमाण और सारण को रोकते भी
ह । जनसंचार मा यम वारा सा रत संदेश के बारे म वे यह भी तय करते ह क उनके
बारे म कस तरह क बहस क जानी चा हए और बहस क दशा या होनी चा हए ।
आधु नक समाज म जहां अ धकांश दे श म लोकतां क णा लय पर आधा रत यव था है,
वहां जनमत का मह व बहु त यादा होता है । ले कन चु नाव के समय को छोडकर जनता
के मत को जानने का कोई ठोस और ामा णक तर का अभी तक सामने नह ं आया है । इस
मु ि कल का सरल सा रा ता है- जनसंचार मा यम जो समय-समय पर व भ न मसल पर
जनता के मत को तुत करने का दावा करते ह । इस प म जनता के मत को सामने लाने
का मह वपूण काय ेस वारा होता रहा है । ले कन जनता के मत को सामने रखने का दावा
करते हु ए या यह माना जा सकता है क स
े या यूज चैनल सदै व जनता के मत को ह

106
तु त कर रहे होते ह । कह ं ऐसा तो नह ं क वे जनता के एक बहु त छोटे से ह से क राय
को ह जनता के मत के पम तु त कर रहे ह । जहां जनता व भ न वग , जा तय , धम ,
े आ द म बंट हो, वहां कोई अखबार िजसके ोता कु छ लाख ह , ये दावा नह ं कर सकता
क वे जो वचार चा रत कर रहे ह वे जनता के बहु मत का वचार है । दे खा यह गया है
क जनता के नाम पर जनसंचार मा यम ऐसे मु को यादा चा रत करते ह, जो उनक
वा त वक ज रत से जु ड़े नह ं होते । उन मु को वे इस हद तक ले जाते ह क जनता के
कु छ ह से उसके फेर म पड़कर आंदो लत हो उठते ह और उ ह ं से े रत और भा वत होकर
वह अपने वा त वक मत के बजाए दूसर वारा उन पर थोपे गए मु को ह अपने मु े मानकर
अपना समथन दान कर दे ते ह । जनमत नमाण के इन अंत वरोधी प को यान म रखना
बहु त ज र है ।
बोध न - 2
(1) सू चना समाज या है?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(2) एजे डा से टंग से आप या समझते ह?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(3) 'मी डया चार का सश त मा यम है । ' कैसे?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
(4) या मा यम ह संदेश है, कहना सह है-
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………

6.8 सारांश (Summary)


जनसंचार मा यम के सामािजक स ांत का अ ययन आपने इस इकाई म कर लया है ।
आपने इस अ ययन से जान लया होगा क जनसंचार मा यम और समाज का पार प रक
संबध
ं य मह वपूण है । हमने इस बात क भी चचा क थी क जनसंचार मा यम के
सामािजक स ांत का ता पय या है और इन स ांत का आधार या है । जनसंचार मा यम
के सामािजक स ांत को दो वग म बांटा जा सकता है । एक वे स ांत जो समाज को क
म रखते ह और दूसरे वे जो मी डया को क म रखते ह । समाज क त सामािजक स ांत
म हमने जनसमाज स ांत, मा सवाद स ांत और आलोचना मक आ थक-राजनी तक

107
स ांत क चचा क थी । मी डया क त सामािजक स ांत के अंतगत कायमूलकता स ांत,
वकास संबध
ं ी स ांत, संचार ौ यो गक संबध
ं ी नय तवाद स ांत और सू चना समाज
स ांत पर वचार कया था । इसके अलावा हमने सामािजक स ांत के दो मु ख प सू चना
समाज क अवधारणा और जनमत नमाण पर भी व तार से वचार कया है । हम आशा
करते ह क इस इकाई के अ ययन वारा आप जनसंचार मा यम के सामािजक स ांत को
समझ सकगे ।

6.9 व-मू यांकन (Self Evaluation)


आप इस इकाई म तु त साम ी को प ने के साथ ह समझने का यास कर । यह इकाई
आपको समाज एवं जनसंचार के अंतःसंबध
ं को समझने क अ त ि ट दान करे गी । इस
इकाई को प ने के बाद आपको जनसंचार मा यम वारा द त साम ी के मह व एवं भाव
को समझने म भी मदद मलेगी, इसके लए आपको यावहा रक प अथात ् समाज पर मी डया
के भाव को दे खना समीचीन होगा ।

6.10 श दावल (Glossary)


जनमत (Public Opinion( : कसी मु े पर कसी समय वशेष के दौरान कसी
समाज वशेष के सद य वारा वीकृ त मत
जनमत कहलाता है ।
जनमा यम )Mass media( : Mass media is the vehicle of Mass
Communication.
जन )Mass) : वह जनसमू ह जो जनसमाज का तनध व
करता है ।
सू चना )Information ( : त य के वह समू ह, जो कसी नि चत अथ को
दशाते ह, सू चना कहलाते ह ।

6.11 अ यासाथ न (Questions)


1. जनसंचार मा यम के मु ख काय पर काश डा लये?
2. वतमान समय म जनमा यम ' एजे डा सटर ' के प म दखलाई पड़ते ह । ' प ट
क िजए ।
3. जनसंचार के आधारभू त स ा त पर काश डा लये?
4. आधु नक जनमा यम का समाज से गहरा संबध
ं है । स क िजए?

6.12 संदभ थ (Further Readings)


1. जवर म ल पारख : जनसंचार मा यम का वैचा रक प र े य, 2000, थ
ं श पी
(इं डया) ा. ल. द ल ।
2. पूरनचं जोशी: सं कृ त, वकास और संचार ां त, 2001, ंथ श पी (इं डया) ा.
ल. द ल ।

108
3. सु भाष धू लया: संचार ां त क राजनी त और वचारधारा, 2001, थ
ं श पी (इं डया)
ा. ल. द ल ।
4. ट फन से सबी : द एज ऑफ इनफोमशन, 1990, द मैक मलन ेस ल. लंदन

5. रॉबट एल. ट वंसन क यु नकेशन, डेवलेपमट एंड द थड व ड, 1988, लांगमैन,
यूयाक ।
6. उपा याय, डॉ. अ नल कु मार, 2005, प का रता ओर जनसंचार स ा त एवं वकास,
भारती काशन, धम संघ का पले स, दुगाकु ड, वाराणसी -5
7. डे नस मे े ल : मास क यु नकेशन थयर , 2005, सेज पि लकेशंस, नई द ल ।
8. नोम चो क : जनमा यम का मायालोक, 2006, थ
ं श पी, नई द ल ।
9. रे मंड व लय स संचार मा यम का वग च र , 2000, थ
ं श पी, नई द ल ।
10. उपा याय, डॉ. अ नल कुमार, 2007, प का रता एवं वकास संचार, भारती काशन,
धम संघ काम ले स, दुगाकु ड, वाराणसी - 5

109
इकाई-7
वकास : अथ एवं अवधारणा
(Development: Meaning and Concept)
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 वकास आधु नक समाज क काया मक पूवाव यकता
7.3 वकास या इ तहास एवं समकाल नता
7.4 वकास या का अथ: अवधारणा मक ग तशीलता
7.5 वकास, औ योगीकरण एवं संचार. सामािजक प रवतन क शैल
7.6 सामािजक जीवन के व भ न े पर वकास का भाव
7.7 वै वीकरण, आधु नक करण एवं वकास
7.8 सारांश
7.9 श दावल
7.10 अ यासाथ न
7.11 संदभ थ

7.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप :
 वकास के अथ एवं' अवधारणा से प र चत हो सकगे ।
 वकास कया को जान सकगे ।
 वकास, औ योगीकरण एवं संचार के अंत: संबध
ं को जान सकगे ।
 वै वीकरण, आधु नक करण एवं वकास को समझ सकगे ।
 वकास से जुड़े व भ न प से संबं धत जानकार ा त कर सकगे ।
 मानव जीवन पर वकास के भाव को प ट कर सकगे ।

7.1 तावना (Introduction)


इस पाठ म आप वकास का अथ, अवधारणा तथा वकास से स ब अनेक अ य अवधारणाओं
क जानकार ा त करगे । वकास को सामा यत: प रवतन के संदभ म यु त कया जाता
है । समाज व ान म हम अनेक कार के वकास क चचा करते ह जैसे मानव का वकास
समाज का वकास, स यताओं का वकास, सं कृ त का वकास, आ थक वकास, राजनी तक
वकास इ या द । इस पाठ म हम यह भी पढ़ने क वकास और संचार कस कार पर पर
स बं धत ह ।

110
वकास कसी भी समाज क मू लभू त आव यकता है । कसी भी समाज का वकास उस समाज
के सामािजक, आ थक, राजनै तक स हत सम प म सुधार पर नभर करता है । यह एक
सतत ् चलने वाल बहु आयामी या है जो एक ल बी अव ध क मांग करती है । जहाँ तक
वकास एवं संचार के अत:संबध
ं क बात है, दोन के बीच एक गहरा र ता प रल त होता
है । वतमान समय म तो वकास और संचार एक दूसरे के पयाय ह बन चु के ह ।

7.2 वकास: आधु नक समाज क काया मक पू वाव यकता


(Development: Functional pre-needs of Modern
Society)
समाज व ान म वकास या का समूचा चंतन अनेक व वधताएं लए हु ए ह । इन
व वधताओं को जानने के पूव संयु त रा सं घ के वारा तुत मले नयम डेवलपमट गो स
(शता द वकास उ े य) के वषय म चचा करना आव यक हो जाता है । चरम तर क
नधनता एवं भू ख को समा त करना, सावभौ मक तर पर ाथ मक श ा क ाि त, ल गक
समानता को बढ़ावा एवं म हलाओं का सबल करण बाल मृ यु दर म कमी , मातृ व से स बं धत
वा य म सुधार, एचआईवी. ए स, मले रया एवं अ य बीमा रय पर नयं ण, पयावरणीय
ि थरता (environmental sustainability) को सु नि चत करना तथा वैि वक तर पर एक
ऐसी सहभा गता को न मत करना जो वकास को सु नि चत दशा दे ती हो आ द वे अवयव
ह जो वकास के साथ जोड़े जा सकते ह । संयु त रा संघ का मत है क वकास के इन
आठ ल य को सन ् 2015 तक ा त कया जाना ज र है । सत बर 2000 म व व के
नेताओं ने इन उ े य क ाि त को वीकार करने के त सहम त जतायी । हालां क मानव
वकास रपोट (UNDP, 2006) यह दशाती है क व व के व भ न दे श क सरकार के वारा
इन दशाओं म कए गए यास के म त प रणाम नकले ह ।

7.3 वकास या : इ तहास एवं समकाल नता (development


Process: History and contemporary)
वकास एक यापक अवधारणा है, इसे अनेक संदभ म यु त कया जाता रहा है । यहाँ वकास
से हमारा अ भ ाय मानव वकास से है िजसक अ भ यि त जीवन तर तथा जीवन क
गुणव ता के मा यम से होती है । वकास वयं म एक सकारा मक अवधारणा है और इसे
सदै व एक नि चत ल य के संदभ म यु त कया जाता है । ार भ म वकास को एक
ऐ तहा सक या माना जाता था जो कु छ नि चत वाभा वक तथा पूव अनुमा नत नयम
के कारण अि त व म आती थी । पर तु बाद म वकास को सम याओं के संदभ म दे खने
के कारण यह या ज टल होती गई िजसने रा य को ह त ेप करने के लए े रताबा य
कया । 1980 के दौरान तृतीय व व' के दे श क नधनता क या या औप नवे शक पृ ठभू म
के संदभ म क जाती क तु इसके वपर त तृतीय व व के दे श को टाचार, तानाशाह तथा
गलत आ थक नी तय के लए उ तरदायी माना जाता था । ऐ तहा सक शोषण क तपू त
करने के बजाय उनक आ थक संरचनाओं को न ट कर दया गया । औ यो गक दे श ने व व

111
बाजार को व नयोिजत करने वाले नयम के साथ अनुकू लन करने के लए उ ह आ थक
सहायता दे ना ार भ कया । इसे संरचना मक सहयोग (structural co-operation) क सं ा
द जाती है िजसका उ े य आ थक उदार करण एवं यापक आ थक संतल
ु न करना है ।
वै वीकरण के दौर ने पछले दस वष के दौरान बाजार को प रव तत कर दया है । पूज
ँ ी, ान
एवं म शि त के मु ता वाह ने यि तय , रा एवं े के म य अ य धक असमानता
के प म नए खतरे उ प न कए ह । वै वीकरण क या के कारण उ प न नए दबाव
ने पेशा / यवसाय क सु र ा तथा वा य सु र ा के सम नई चु नौ तयाँ एवं खतरे उ प न
कए ह । -हाल के कु छ वष म अ तरा य व तीय सं थाओं क ग त व धय म नई कार
क वृि तयाँ उभर ह । इन सं थाओं ने आ थक मु के परे भी दे खना ार भ कया । अब
ये सं थाएं सामािजक मु एवं सावज नक सं थाओं के मा यम से वकास पर बल दे रह
ह । जुलाई, 2000 म ओक नावा स मेलन (Okinawa summit) के दौरान आठ मु य
औ यो गक लोकतां क दे श के नेताओं तथा यूरो पयन कमीशन के अ य ने इस बात पर
बल दया क '' वा य स प नता का मु य सूचक है' । उनके अनुसार अ छा वा य य
प से आ थक वृ म योगदान करता है जब क खराब वा य नधनता को बढ़ावा दे ता
है । सामा यत: अ धक आ थक वृ व व के 21 वीं सद म वेश करने के लए अ नवाय
है । पर तु उस वृ क संरचना एवं गुणव ता पर अ धक यान दे ने क आव यकता है ।
यह नि चत करना चा हए क वह वृ मानव वकास को दशा दे ने म, नधनता कम करने,
पयावरण को संर ण व ि थरता दे ने म सहायक होगी ।
मानव वकास वतं ता के बना अधू रा है । इ तहास इस बात का सा ी है क लोग रा य
वतं ता और यि तगत वतं ता को पाने के लए अपने जीवन का ब लदान करने को तैयार
रहते थे । वकास वा त वक वतं ता को व तार दे ने क एक या है िजससे लोग को
खु शी ा त होती है । यह वा त वक वतं ता येक यि त के वारा अनुभव क जानी चा हए
। पर तु अनेक सामािजक, राजनी तक एवं आ थक कारक के कारण यह स भव नह ं हो पाता
। अत: एक ऐसी सामािजक यव था वारा मनु य क वतं ता को ा त व बनाए रखा जा
सकता है जो वतं ता के लए तब हो । वतं ता मा अमू त अवधारणा नह है वशेषत:
सामािजक, आ थक एवं राजनी तक वतं ता य होनी चा हए । ये सभी वतं ताएं पर पर
अ त-स ब होती ह और एक दूसरे को े रत करती ह । अत: यह तक दया जा सकता है
क अधीनता क समाि त और वतं ता का व तार वकास क या को उ प न करता
है और इसे सहयोग दे ने के लए सं थाओं क बहु लता पर बल दे ता है । अम य सेन सं थाओं
क बहु लता पर बल दे ने के म म बाजार, रा य तथा लोकतं क चचा करते ह । उ ह ने
वकास का मु ख ल य मानव क याण बताया है ।

7.4 वकास या का अथ : अवधारणा मक ग तशीलता (Meaning


of Development Process: Conceptual Mobility)
सामािजक वकास एक ऐसी या है िजसके वारा तुलना मक प से एक सरल समाज
ज टल समाज के प म बदल जाता है । वकास का मु य उ े य मनु य को एक ऐसा वातावरण
दान करना है िजससे वह एक ल बा, व थ तथा सृजना मक जीवन जी सके । व तु त: मानव

112
वकास लोग क इ छाओं को व तार दे ने क या है । सै ां तक ि ट से मनु य क ये
इ छाएं अन त हो सकती ह और समय के साथ बदल भी सकती ह । पर तु वकास के सभी
चरण म तीन मु य इ छाएं हमेशा रह ह- (1) द घका लक जीवन जीना (longevity) (2)
ान ा त करना (3) स मा नत जीवन तर (decent living standard) । इसके अ त र त
राजनी तक वतं ता, मानवा धकार क गारं ट तथा आ म स मान वे आव यकताएँ ह जो
एक स मा नत व े ठ जीवन जीने के लए अ नवाय मानी जाती ह । वकास क कृ त को
न न वशेषताओं के आधार पर समझा जा सकता है-
1. वकास एक सावभौ मक अवधारणा है ।
2. वकास आ थक एवं ौ यो गक शि तय म होने वाला ऐसा प रवतन है जो भौ तक
पयावरण को नयि त करने म मानव क बढ़ती मता को प ट करता है ।
3. वकास का मु य आधार आ थक एवं ौ यो गक प रवतन है जब क सामािजक व
सां कृ तक प रवतन इसका गौण आधार है ।
4. वकास सरलता से ज टलता क तरफ होने वाले प रवतन को य त करता है ।
5. वकास ऐसा प रवतन है िजसम म वभाजन, वशेषीकरण तथा श ा म वृ होती है
और धम व पर परागत मू य का भाव कम होता जाता है ।
6. वकास प रवतन क ऐसी या है जो मनु य के सामने अनेक वक प को तु त करती
है ।
7. वकास क कृ त बहु रे खीय प रवतन को य त करती है ।
8. वकास या के अ तगत अवैयि तक स बंध (impersonal relations) म वृ होती
है ।
वकास के लए आव यक दशाएं-
1. आ व कार
2. औ योगीकरण
3. ान का संचय
4. श ा का सार
5. अ य सं कृ तय से स पक
6. ग तशीलता
7. ग तशील नेत ृ व
8. नयोजन
ार भ म वकास को आ थक याओं के संदभ म समझा जाता था जब औप नवे शक रा
ने वतं होने के बाद अपने-अपने वकास के संदभ म सोचना ार भ कया । इस संदभ
म भारत सरकार वारा द गई वकास क प रभाषा मह वपूण है '' वकास वह या है िजसके
मा यम से कसी समु दाय के संसाधन का योग वीकृ त ल य के लए कया जाता है'' ।
पर तु संसाधन का उपयोग करने के लए कु शलता व तकनीक क भी आव यकता होती है
। अत: आव यकता इस बात क है क न केवल संसाधन का उ चत उपयोग कया जाए अ पतु
नए संसाधन क खोज तथा उ पादन म वृ करने वाल तकनीक को भी वक सत कया
जाए ।

113
पछले कुछ वषा से वकास क प रभाषा म अ तर आया है तथा इसका उ े य मा आ थक
वृ करने से नह ं रह गया है , बि क लोग के जीवन तर म गुणा मक प रवतन व सुधार
लाने से भी है । अत: ' वकास प रवतन क एक ऐसी या है जो मानव जीवन म गुणा मक
सु धार लाने के लए सामािजक संरचना म प रवतन करता है'' । मेधा पाटे कर, बाबा आ टे ,
अ ं धती राय एंव सु दर लाल बहु गुणा कुछ ऐसे पयावरण व ह िजनके अनुसार वकास एक
ऐसी या है जो अ धक से अ धक लोग को लाभाि वत कर सके । इसके साथ ह वकास
केवल वतमान पीढ़ के लए ह नह ं है अ पतु आने वाल पीढ़ के लए भी लाभदायक हो सके
। इसके साथ ह ाकृ तक संसाधन का यूनतम उपयोग करते हु ए लाभ एवं उ नयन के
अ धकतम अवसर को द घका लक अव ध तक बनाए रखना वह वकास है िजसे ''द घकाल न
वकास' क सं ा द गई । वकास क अवधारणा बहु-आयामी है िजसके अ तगत हम न न
आयाम को सि म लत कर सकते ह-
1. सामािजक वकास (social development)
2. द घकाल न वकास (sustainable development)
3. सहभागी वकास (Paticipatory development)
4. जन हत केि त वकास (people’s interest centric development)
1. सामािजक वकास (Social development) -सामािजक वकास से अ भ ाय व तु त:
राजनी तक, आ थक और सां कृ तक वकास से है । अथात ् इन सभी े म होने वाले
संरचना मक प रवतन को सामािजक वकास क सं ा द जाती है । उदाहरण के लए
गाँव व नगर के म य अ तर क समाि त, े ीय असंतल
ु न म कमी आना, नवीन रोजगार
के अवसर क संभावना म वृ , नधन एवं वं चत जनसं या क बु नयाद आव यकताओं
क पू त हो सके, ाथ मक श ा, वा य सुर ा, आवास व छ जल क उपलखता एवं
पा रि थतक य संतल
ु न इ या द सामािजक वकास को य त करने वाले कारक ह ।
व तु त: सामािजक वकास तो वकास का एक आयाम है जो वभ न कार के
संरचना मक प रवतन को सि म लत करता है ।
2. द घकाल न वकास (Sustainable development)- द घकाल न वकास, वकास का
एक अ य आयाम है । ल बी अव ध तक चलने वाला वकास वा तव म आने वाल पी ढ़य
के भ व य को भी सु र त रखता है । व व पयावरण और वकास कमीशन (1987)ए
ने मानव के सम वकास के लए द घकाल न/ सु ि थर वकास (sustainable
development) क अवधारणा पर बल दया । यह एक ऐसा वकास है िजसका उ े य
ाकृ तक वातावरण एवं मानव याओं म संतल
ु न था पत करना है तथा उपल ध
संसाधन को इस कार यु त करना है ता क भ व य म भी उसका लाभ ा त कया
जाता रहे ।
3. सहभागी वकास (Participatory development)- ऐसे वकास काय म िजनम
सामा य जन क भागीदार हो, सहभागी वकास कहलाता है । वकास व तु त: लोग के
वारा एवं लोग के लए होता है अत: इसम येक यि त को श ा, राजनी त, उ पादन
इ या द पर मत य त करने का अ धकार होता है । सहभागी वकास म पंचायतीराज
यव था (जमीनी लोकतं ) क मह वपूण भू मका होती है । इस कार के वकास को

114
बढ़ाने के लए गाँव म वैि छक संगठन , ाम सभाओं एवं थानीय लोग को ो सा हत
करने क आव यकता है ।
4. जन हत केि त वकास (People’s interest centric development)-जन हत
केि त वकास को लोकतां क वकास के प म दे खा जाता है । संयु त रा संघ वकास
काय म (UNDP) ने 'लोग का, लोग वारा और लोग के लए' वकास को जन हत
केि त वकास क सं ा द है । पर तु इसम वचारधारायी व वधता दे खी जा सकती
है जैसे मानवतावाद वकास, जातां क वकास, समाजवाद वकास व नार वाद वकास
इ या द । इस वकास को भी जमीनी वकास (Grassroot development) के साथ जोड़ा
जा सकता है ।
व तु त: यह कहा जा सकता है क ' वकास कसी वांछनीय दशा म होने वाला नयोिजत
प रवतन है जो नि चत अव ध म होता है । यह एक मू य नरपे अवधारणा है अथात ् वकास
म मतै य (consensus) पाया जाता है । वकास क या समू ह क याण पर आधा रत
होती है । ' इस आधार पर वकास वशेषत: सामािजक वकास के के य मु क चचा क
जा सकती है, जो न न ल खत ह-
1. जीवन क गुणव ता म सुधार लाना ।
2. आय, संसाधन एवं उ पादन का समान वतरण ।
3. शि त का वके करण ।
4. मानव संसाधन का वकास ।
5. असमानता एवं शोषण क समाि त ।
6. श ा का सावभौ मक करण ।
7. नधन व धनी के म य क दूर को पाटने का यास ।
8. वा य तर व वा य सु वधाओं म सुधार ।
9. व छ पयावरण क उपल धता ।
10. संवध
ै ा नक मू य (समानता, वतं ता, धम नरपे ता, समाजवाद एवं सामािजक याय
आ द) का वकास ।
अब तक आप समझ चु के ह गे क वकास को व भ न समाज वै ा नक जैसे अथशा ी,
समाजशा ी, इ तहासकार एवं राजनी तक वै ा नक अलग-अलग संदभ म यु त करते आए
ह । अत: हम कह सकते ह क ' वकास वह या है िजसके मा यम से अतीत का अ ययन
कया जाता है, वतमान क या या क जाती है तथा भ व य का व लेषण कया जाता है
। इस कारण वकास के अ तगत इ तहास, समाजशा , अथशा इ या द प र े य को
सि म लत कया जाता है । इसके साथ ह वकास क अवधारणा अनेक अ य अवधारणाओं
के अथ म यु त क जाती रह है , जब क यथाथ म ये सभी अवधारणाएं भ न अथ रखती
ह िजनक चचा नीचे क जा रह है ।
1. सामािजक ग त (Social progress)- ग त एक मू यपरक अवधारणा है जब क
वकास एक मू य तट थ अवधारणा है । सामािजक ग त वांछनीय दशा एवं उ े य का
त न ध व करने वाल सामािजक या है िजसम वैचा रक भ नता पायी जाती है
अथात ् वांछनीय दशा को कु छ इकाईयां सामािजक पतन का तीक भी मान सकती ह।

115
2. सामािजक उ वकास (Social evolution)- उ वकास आंत रक ोत से होने वाला वह
प रवतन है जो सरलता से ज टलता क तरफ, समानता से असमानता क तरफ एवं
सम पता से वषम पता क तरफ होता है । यह एक वाभा वक एवं मंद ग त से होने
वाल सामािजक या है ।
3. सामािजक वृ (Social growth)- सामािजक वृ प रवतन क वह या है जो
प रमाणा मक/ मा ा मक वृ को य त करती है । अथात ् ऐसा प रवतन िजसे सं या
के आधार पर मापा जा सके सामािजक वृ कहलाता है ।
4. सामािजक ां त (Social revolution)- ां त ती ग त से होने वाले प रवतन को य त
करती है िजसम हंसा अथवा हंसा के योग क धमक को साधन के प म यु त कया
जाता है । ां त के मा यम से स पूण समाज अथवा उसके भाग को कसी वक प के
वारा त था पत कया जाता है । अत: कहा जा सकता है क सामािजक ां त था पत
सामािजक मू य एवं प रवेश के व जन संघष का त न ध व करती है ।
5. सामािजक ग तशीलता (Social mobility)-ऐसे सामािजक प रवतन जो संरचना को बनाए
रखते ह पर तु इकाइय क भू मका म बदलाव लाते ह, सामािजक ग तशीलता को य त
करते ह ।
उपयु त सभी अवधारणाओं का अ ययन करके आप जान चुके ह गे क वकास कस कार
अ य अवधारणाओं से अथ क ि ट से भ न है तथा प ये सभी अवधारणाएं पर पर
अ त:स बं धत भी ह ।
बोध न - 1
(क) वकास या है?
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(ख) वकास क अवधारणा को प ट क िजए ।
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(ग) द घकाल न वकास से आप या समझते वकास ह?
……………………………………………………………………………………………………………………………………
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(घ) सामािजक वकास पर काश डा लए ।
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116
7.5 वकास, औ योगीकरण एवं संचार : सामािजक प रवतन क शैल
(Development,Industrilization and communication :They
way of social change)
वकास को यापक प र े य म प ने के बाद संचार को वकास क आव यक शत माना जा
सकता है । वकास एवं प रवतन क याएं बना संचार के संभव नह ं होती, अत: हम संचार
को वकास का एक मह वपूण आधार मान सकते ह । आधु नक वचारक ऑमी न डया (Oumy
Ndiaye) यह मानते ह क 'लोग इस लए नधन नह ं ह य क उनके पास ान नह ं है अ पतु
उनके पास उस ान के संचार का अभाव है इस लए वह नधन ह । ' इस संदभ म संचार
वयं म कोई ल य नह ं है अ पतु सु ि थर/ द घकाल न वकास (स टे नेबल डेवलपमट) का एक
साधन है । संचार को वकास के एक मह वपूण साधन के प म वक सत करने म
औ योगीकरण ने के य भू मका नभाई है । वकास म ती ता लाने के लए उ योग को
था पत करने पर बल दया गया और प रणाम व प मशीनीकरण को बढ़ावा मला । इस
मशीनीकरण के दौर म सू चनाओं का व नमय पर परागत तर के से करना संभव नह ं था अथवा
वकास को अव करना था । व तुत : यह तक दया जा सकता है क औ योगीकरण ने
संचार को वकास या क काया मक पूवाव यकता बना दया है । पर तु इसके साथ ह
यह भी यान रखने क बात है क वकास के लए संचार ौ यो गक नद शत नह ं होनी
चा हए, यह सामािजक मु व सम याओं पर केि त होनी चा हए । वकास क ाि त म
ौ यो गक एक उपयु त उपकरण व सहायक इकाई हो सकती है । वतमान म ौ यो गक
के बढ़ते भाव ने 'सू चना ां त' को संभव बनाया, व तु त: इस युग म वकास को संचार से
पृथक नह ं कया जा सकता । इस संदभ म ' वकास संचार' क 'अवधारणा क चचा करना
आव यक हो जाता है ।
वकास संचार (Development Communication)- से अ भ ाय मानव जीवन म गुणा मक
बदलाव लाने के लए संचार को वकास के साधन के प म योग करना है । अथात ् के वां छत
उ े य क ाि त के लए आधु नक संचार मा यम एवं उपकरण का योग करना ह वकास
संचार है- (1) यह संचार को और आगे के वकास के लए यु त करने क या है । (2)
यह तृतीय व व के दे श के वारा प का रता के एक कार के प म यु त हु आ है जो रा य
ल य और आ थक वकास पर बल दे ता है । (3) यह उ े यपूण एवं अथपूण या है िजसका
ल य सामािजक-आ थक वकास म सहयोग करना है । वकास संचार का उ े य लोग को
केवल सूचनाएं दे ना नह ं है अ पतु उ ह श त करना भी है । इसके लए मी डया के व भ
व प , मौ खक एवं गैर मौ खक, य एवं य मी डया, जन मा यम इ या द का योग
कया जाता है । थानीय रे डयो /क यू नट रे डयो, थानीय ट . वी. चैनल, सामु दा यक केबल
नेटवक इ या द संचार के े ीय मा यम ह िज ह ने वकास को ती ता दान क है । यहाँ
यह तक दया जा सकता है क ' वकास संचार एक वृ मूलक या है िजसके वारा नई
सू चनाओं, ान एवं नई तकनीक/ ौ यो गक का व तार ार भ हु आ तथा िजसने लोग को
े रत कया क वह अपनी मता तथा उपल ध संसाधन का अ धकतम योग करके उ पादन
म वृ व व छ पयावरण वक सत कर ता क मानव जीवन तर म सुधार लाया जा सके
117
। ' इस प रभाषा से प ट हो जाता है क मी डया एवं संचार साधन वारा अपनी पर परागत
भू मका से परे भू मकाओं का नवाह करना ' वकास संचार' है । व तु त: हम वकास संचार
क न न ल खत वशेषताओं क चचा कर सकते ह-
1. वकास संचार एक उ े यपूण या है िजसका मु य ल य सामािजक-आ थक वकास
म सहायता करना है।
2. यह यि त अथवा समू ह क कृ त, वशेषताओं और प रि थ त के अ ययन पर आधा रत
या है ।
3. वकास संचार क या एक अकेले यि त पर नभर नह ं करती अ पतु अनेक यि तय
के जाल/ नेटवक के कारण संचार स भव होता है तथा जहाँ सामू हक नणय लए जाते
ह ।
4. इसका उ े य मा सूचनाओं का वतरण करना नह ं है अ पतु लोग को श त करना
भी है ।
5. यह या अनेक संचार मा यम पर परागत या आधु नक, मौ खक या गैर मौ खक और
मास (Mass) मी डया के वारा मू त प हण करती है ।
6. वकास संचार एक नयोिजत एवं सचेतन प रवतन है जो समाज म वां छत प रवतन लाने
के लए आव यक है ।
7. वकास संचार के मा यम से लोग क मान सकता एवं अ भवृि तय म भी प रवतन लाना
स भव हु आ है ।
8. साथ ह संचार साधन ने वकास एवं सकारा मक प रवतन को भी ती ता दान क है।
9. वकास काय म के भाव (सकारा मक या नकारा मक) को संचार साधन वारा लोग
के फ डबैक के मा यम से जाना जा सकता है ।
10. इस या ने सरकार व जनता के म य संवाद को सरल बनाया है िजसके कारण वकास
काय म जन सहभा गता बढ़ है ।
व तु त: यह दे खा जा सकता है क सूचना ां त ने वकास संचार को उ प न कया और वकास
संचार ने ''सू चना समाज'', ''मी डया समाज'' और '' ान समाज'' क उपि थ त को स भव
बनाया । इसके साथ ह ई-बुक, ई-ल नग, ई-शा पंग ई-माक टंग, ई-बै कं ग ई-क यू नट जैसी
अवधारणाएं भी अि त व म आई ह िजसने व भ क याण और वकास काय म को यापक
जनसं या तक पहु ँ चाया है । न केवल शहर अ पतु गाँव म भी संचार साधन ने वकास
काय म को ती ता दान क है जैसे कसान े डट काड, दूर थ श ा, इ या द ामीण
वकास संचार के उदाहरण ह । फल व प गाँव व शहर के म य क दूर समा त हु ई है और
' ामीण-नगर य सात य' क या ने '' ामनगर यकरण'' (Ruurbanization) क अवधारणा
को उ प न कया । आप अपने आस-पास के गाँव म इस कार के प रवतन को तलाशने
का यास कर तब वकास संचार क या और अवधारणा को यादा अ छ तरह समझ
सकगे ।
यहाँ यह सवाल भी मह वपूण हो जाता है क ' वकास के लए संचार' अथवा 'संचार के लए
वकास' आव यक है । जब हम '' वकास के लए संचार. क बात करते ह तो फर संचार वकास
केि त होना चा हए, मानव जीवन म भौ तक प रवतन के साथ-साथ अभौ तक प रवतन

118
( वचार एवं मू य म बदलाव) भी ला सक । दूसर तरफ जब हम ''संचार के लए वकास''
क बात करते ह तो ौ यो गक केि त वकास मह वपूण होने लगता है, जहाँ मानव और
मशीन म अ तर करना मु ि कल हो जाता है । आप समझ सकते ह क संचार वकास म कतनी
अहम ् भू मका नभाता है । ये सभी प हम यह सोचने पर मजबूर करते ह क व ान,
ौ यो गक / तकनीक एवं संचार, वकास क सहयोगी याएं ह या वरोधी ।

7.6 सामािजक जीवन के व भ न े पर वकास का भाव


(Development on Different areas of social life)
भारत म आ थक व सामािजक वकास क या ने मानव के सामािजक जीवन को यापक
प से भा वत कया है । भारत म नयोिजत प रवतन के प म वकास को पंचवष य योजना
से स बं धत कया जा सकता है । िजसके अ ययन से प ट हो जाता है क वतमान म इन
योजनाओं का उ े य मा आ थक वकास करना नह ं है । अ पतु मानव जीवन म गुणा मक
प रवतन लाना व उसे स मानपूण जीवन जीने के लए सु वधाएं उपल ध कराना है । अथात ्
वकास समाज क संरचनाओं म ऐसा प रवतन है जो उस समाज के सभी वग / समूह के
जीवन म प रल त हो । वकास एक ज टल या है जो आ थक, राजनी तक, सामािजक
व सां कृ तक सभी े म होने वाले प रवतन को सि म लत करती है । व तुत: रा य
और अ तरा य तर पर मानव वकास को मापने के लए न न आधार को सि म लत
कया जाता है-

अनवरत वकास समकाल न संदभ म समाज के जी वत होने क एक आव यक शत है जो


एक तरफ सामािजक इकाइय को तयो गता के लए स म बनाती है वह ं दूसर ओर एक
अ प आधु नक समाज को आधु नकतम समाज क तरफ ले जाती है । मी डया इन सबको
समूचे व व के सामने तु त करने का एक मा यम है । जब एन.डी.ट .वी. पर म हलाओं
के मु से स ब चचा सा रत होती है तो वह एक कार का सहभा गतामूलक वकास' है
। पार प रक वमश से न केवल मु े प ट होते जाते ह अ पतु उ ह के म रखकर वकास
या क दशा या होनी चा हए, के वषय म रा य के व भ अवयव सजग हो जाते ह
। अथात ् मी डया ज नत संचार वकास क कृ त एवं उसक दशा को नद शत करने म
मह वपूण भू मका नभाता है वह ं दूसर ओर वकास कस कार का है, वकास क वसंग तयाँ
या है, और इन े म वकास क या के साथ जन सहभा गता का च र या है, जैसे
सवाल को मी डया तुत करता है ता क वकास के इन व भ न पहलु ओं को जाना जा सके

119
। इस कार रा य, स वल सोसायट , नाग रक, मी डया, वकास एवं अचार का एक ऐसा च
बन जाता है िजसम एक-दूसरे पर पार प रक भाव पड़ता है और उससे ये सभी प मजबूती
ा त करते जाते ह । इस ि ट से संचार एक ऐसा सामािजक आंदोलन है जो समाज और
वकास के म य कैसे अ त:स बंध होने चा हए, के लए सामू हक स यता को ज म दे दे ता
है । इस लए समकाल न व व म संचार के बना वकास और वकास के बना संचार एक
प ीय हो जाता है ।
वकास क या एक ि ट से आ तता के स ांत का नषेध है य क वकास के
प रणाम व प हु ए उ पाद आयात अथात ् नभरता को कम करते ह और नयातो मुख णाल
को व तार दे ते ह िजसम न केवल आ म नभरता का भाव न हत है अ पतु अ य को सहयोग
और वकास के लए ो सा हत करने हे तु साधन क उपल धता का आ वासन भी न हत
है और इस लए एक दे श म संचा लत वकास क या काला तर म समूचे व व को भा वत
करने क मता रखती है । हम यह भी यान रखना चा हए क वकास से एक त हु आ
अ धशेष य द दूसरे दे श के काम न आए अथवा उसका वतरण/ व य अपने दे श म शी तशी
न हो तो उ प न हु आ मंद का दौर स बं धत दे श के वकास को वघ टत कर सकता है ।
अत: य एवं व य तथा उ पादन एवं वतरण के म य काया मक संतु लन वकास को
संतु लत बनाए रखने के लए आव यक हो जाता है । इस संतल
ु न को यवि थत व प दे ने
म संचार क भू मका अ यंत मह वपूण होती है । कौन सा उ पादन कन आव यकताओं को
पूरा करे गा? उस उ पाद क या वशेषताएं ह? तथा उस उ पाद क गुणव ता को कैसे
सु नि चत कया जाएं? जैसे अनेक प संचार के वारा ह ''टारगेट' जनसं या को े षत होते
ह । साथ ह जनसं या को कन उ पाद क कब-कब आव यकता हो सकती है, का ान भी
संचार वारा स भव हो पाता है और इस कारण संचार का व तार वकास क प रभाषा का
एक अवयव बन जाता है ।
न य उदारवाद अथ यव था म वकास के असंतल
ु न ने के य समाज (Central society)
एवं प र धमू लक समाज (Peripheral society) का वग करण तु त कया है । इस कार
के समाज के म य संचार का असंतल
ु न भी व यमान है । सूचनाओं का भेदभावमू लक वतरण
एवं संचार म आधु नकतम ौ यो गक के योग एवं स ब उ पाद के वतरण (जैसे
आधु नकतम लैपटॉप, मोबाइल इ या द) म भेदभाव वे प ह जो समू चे वकास को कह ं न
कह ं असमानता के साथ जोड़ दे ते ह और यह असमानता वक सत दे श को े रत करती है
क वे भु वकार नयं ण (Hegemonic control) न मत कर वयं को वकास या म
इतना आगे ले जाएं क अ य दे श तयो गता म सहभा गता करने क सोच भी न सक ।
इस ि ट से संचार रा य के लए एक ऐसा उपकरण बन जाता है िजसे शि त स बंध म
आ धप य था पत करने के लए यु त कया जा सके ।

7.7 वै वीकरण, आधु नक करण एवं वकास (Globalization,


Modernization and Development)
आधु नक करण एवं वै वीकरण क याओं ने वकास क अवधारणा को न केवल व तार
दया है अ पतु ववादा पद भी बनाया है । वकास ने नगर यकरण और औ योगीकरण को

120
ती कया है िजसने मानव जीवन म अनेक वसंग तयाँ भी पैदा क ह । वकास ने जहाँ एक
तरफ मानव जीवन म गुणा मक बदलाव उ प न कए ह वह ं दूसर तरफ लोग के बीच दू रयाँ
भी बढ़ायी ह । आज मनु य भावना मक स बंध से दूर यां क स बंध म जीवन बताने लगा
है प रणाम व प सामू हकता का हास हु आ है । सू चना ां त के इस युग म संचार मा यम
मह वपूण भू मका नभाते ह िज ह ने व व को एक ''बॉ स म (क यूटर/लैपटॉप) उपि थत
कर दया है और एक गाँव क भाँ त कु छ ह समय म पूरे व व का मण कया जा सकता
है । इससे भौगो लक दू रयाँ तो समा त हु ई ह पर तु भावना मक दू रयाँ बढ़ ह । व भ मी डया
चैन स पर दखाए जाने वाले धारावा हक इस त य को तुत करते है । लगभग येक
धारावा हक पा रवा रक सद य को एक दूसरे के त ष यं करता दखाता है या सफ वाथ
केि त जीवन जीता दखाई दे ता है िजस पर यि तवाद मू य इतना हावी होता है क वह
पूरे प रवार के हत को दर कनार करने म'' भी संकोच नह ं करता । दूसर तरफ कु छ चैन स
''काल-कपाल-महाकाल' अथवा 'मन म हो' व वास' जैसे धारावा हक के मा यम से समाज
म वै ा नक सोच/ ि टकोण पर य हार करते दे खे जा सकते ह । आज के इस आधु नक
सू चना व ौ यो गक आधा रत समाज म वा तुशा एवं यो तषशा को व व व यालय
के पा य म म सि म लत करने पर वचार करना वै ा नक ि टकोण को चु नौती दे ना है
। वकास का यह अथ कह ं समाज को पुन : आ दम समाज क तरफ ले जाने क तैयार को
तो य त नह ं कर रहा, जहाँ धम व जादू का भु व था और ता ककता का अभाव था । यह
वकास का ऐसा ा प है जो हमारे सामने अनेक न को उ प न करता है जैस-े या इसे
मानव जीवन म गुणा मक बदलाव क सं ा द जा सकती है ? या वकास मू यपरक
अवधारणा ह जहाँ मत भ नता पायी जाती है? या फर वकास एक म है, ये ऐसे प ह
जो वै वीकरण व आधु नक करण के इस युग म वकास को ववादा पद बना दे ते ह ।
बोध न - 2
(क) वकास संचार या है?
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................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) संचार ने वकास को कस तरह भा वत कया है?
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................................................................................................................
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(ग) ' वकास और संचार एक दूसरे के पूरक ह । ' कैसे?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) वै वीकरण के इस युग म वकास को रे खां कत क िजए ।

121
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................................................................................................................
................................................................................................................

7.8 सारांश (Summary)


इस पाठ म आपने पढ़ा क वकास मानव के सामािजक जीवन म होने वाले गुणा मक प रवतन
को अ भ य त करता है । वकास का वा त वक अथ तकनीक या रा य उ पादकता म वृ
नह ं है बि क ान एवं चेतना म हु ए बदलाव से है जो मनु य को समाज अथवा दे श के वकास
म सहभा गता करने हे तु े रत करे । व तु त: वकास का अ भ ाय सदै व आ थक वृ से नह ं
होता है अ पतु वकास सामािजक, सां कृ तक, आ थक एवं राजनी तक सभी े म बदलाव
को अ भ य त करता है । इसके साथ ह आपने यह भी जाना क वकास कस कार वृ ,
ग त, उ वकास, ां त और ग तशीलता से भ न अथ रखता है । इस पाठ के मा यम से
आप वकास और संचार क अंत:स ब ता को भी समझ चु के ह गे क कस कार संचार के
बना वकास और वकास के बना संचार संभव नह ं है ।

7.9 श दावल (Glossary)


वकास )Development) : वकास से हमारा अ भ ाय मानव
वकास से है िजसक अ भ यि त
जीवन तर तथा जीवन क
गु णव ता के मा यम से होती है
। वकास वयं म एक
सकारा मक अवधारणा है ।
सामािजक वकास )Social Development( : सामािजक वकास तो वकास का
एक आयाम है जो व भ न कार
के संरचना मक प रवतन को
सि म लत करता है ।
द घकाल न वकास )sustainable Development( : ल बी अव ध तक चलने वाला
वकास वा तव म आने वाल
पी ढ़य के भव य को भी
सु र त रखता है, द घकाल न
वकास /स टे नेबल वकास
कहलाता है ।
वकास संचार )Development Communication( : वकास संचार से अ भ ाय मानव
जीवन म गु णा मक बदलाव लाने
के लए संचार को वकास के
साधन के प म योग करना है।
122
)वै वीकरण Globalization) : वै वीकरण, प रवतन क ऐसी
या है , िजसने व व के
वभ न दे श के म य क
भौगो लक दूर को समा त करके
उसे ''वैि वक गाँव म प रव तत
कर दया है ।
आधु नक करण) -Modernization) : प रवतन क ऐसी या जो
पार प रकता का वरोध तथा तक
का योग करती है'
आधु नक करण है ।
सू चना समाज )Information Society) : एक ऐसी समाज यव था जहाँ
व तु ओं के थान पर सू चनाओं
का उ पादन एवं व नमय कया
जाता है, सू चना समाज कहलाता
है ।
वैि वक गाँव )Global village( : ऐसा व व जो ौ यो गक य
संचार या के वारा पर पर
अ तस बं ध:त हु आ है तथा जो
वैि वक सं कृ त क ओर अ सर
है ।

7.10 अ यासाथ न (Questions)


1. वकास क अवधारणा को प ट क िजए तथा प रवतन क अ य अवधारणाओं से उसक
भ नता को प ट क िजए ।
2. ' वकास न केवल आ थक अवधारणा है अ पतु सामािजक सां कृ तक अवधारणा भी है,
प ट क िजए ।
3. वकास संचार का अथ प ट क िजए । वकास एवं संचार कस कार अंत: स बं धत
है?
4. औ योगीकरण एवं वै वीकरण ने समाज म वकास और प रवतन को ती ता दान क
है, के प म तक द िजए ।
5. वकास क या सामािजक जीवन को कस कार भा वत करती है?

7.11 संदभ थ (Further Readings)


1. उपा याय, डॉ. अ नल कुमार, 2007, मास मी डया एवं वकास के आयाम, भारतीय काश,
धमसंघ कॉ पले स दुगाकु ड, वाराणसी-5

123
2. ीज,जीन एवं सेन, अम य, 1995, इि डया : इकॉनॉ मक डेवलपमट एंड सोशल
अपारचु नट , आ सफोड यू नव सट स
े , आ सफोड व नई द ल ।
3. गु ता,वी,एस, 2004, क यू नकेशन डेवलपमट ए ड स वल सोसायट , कंसे ट पि ल शंग
कंपनी, नई द ल ।
4. व ड बक रपोट, 2000, एनट रंग द 2। सचु र , आ सफोड यू नव सट स
े , आ सफोड

5. राइट, सी.,1959, मास क यू नकेशन: ए सो शयोलािजकल पसपेि टव, यूयाक रे डम
हाउस ।
6. उपा याय, डी. अ नल कुमार, 2007, प का रता और वकास संचार, भारती काशन,
दुगाकु ड, वाराणसी-51

124
इकाई-8
वकास संचार : अथ. अवधारणा एवं या
(Development Communication: Meaning,concept
and Process)
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 वकास का अथ
8.3 संचार का अथ
8.4 वकास संचार का अथ
8.5 वकास संचार क अवधारणा
8.8 वकास संचार क या
8.7 सारांश
8.8 व-मू यांकन
8.9 श दावल
8.10 अ यासाथ न
8.11 संदभ थ

8.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप:
 वकास का अथ समझ सकगे ।
 संचार के अथ से अवगत हो सकगे ।
 वकास संचार के अथ से प र चत हो सकगे ।
 वकास संचार क अवधारणा समझ सकगे ।
 वकास संचार क या क जानकार ा त हो सकेगी ।

8.1 तावना (Introduction)


वकास संचार के अथ, अवधारणा एवं या को समझने के लए सव थम वकास का अथ
समझना आव यक है । वकास और ग त म या अंतर है? वकास के मापदं ड या है? वकास
के कतने कार ह? वकास क व भ न अवधारणाएँ या- या ह? कोई वकास और गत
को एक-दूसरे का पयाय मानता है , तो कोई इसे एक-दूसरे का पूरक मानता है । एक ि टकोण
म जो वकास है, दूसरे ि टकोण म वह वनाश है । शराब का सेवन कसी के लए वकास
है, तो कसी के लए वनाश का सू चक । इस लए यहाँ वकास क अलग-अलग अवधारणाओं
एवं इसके समि वत अथ को समझना-समझाना अ त आव यक है ।

125
8.2 वकास का अथ (Meaning of Development)
वकास का अथ अलग-अलग यि तय एवं वचारधाराओं के अनुसार अलग-अलग है । इसका
अथ अलग-अलग काल म भी अलग-अलग ह समझा जाता है या अलग-अलग थान पर
वकास का अथ अलग-अलग है । वकासशील दे श के लए जो वकास है, वक सत दे श के
लए उसे ह वकास नह ं भी समझा या माना जा सकता है । भारत म वत ता से पूव जो
वकास क अवधारणा थी, वत ता के बाद वह अवधारणा ह बदल गई ।
वत ता से पूव भारत को एक सू ई का भी आयात वदे श से करना पड़ता था । पर तु
वत ता के बाद भारत का अ या शत वकास हु आ है । वत ता के बाद योजनाब आ थक
नी तयाँ, औ यो गक नी तयाँ, कृ ष नी तयाँ आ द बनायी गयीं और भारत छोट -छोट चीज
के आयातक से आज बड़ी-बड़ी चीज का नयातक बन गया है ।
वत ता ाि त के छ: दशक म भारत के वकास म जनसंचार क मह वपूण भू मका रह
है । वा तव म वकास के लए संचार एक नवेश है । इस लए वत ता के बाद भारत म
एक पृथक संचार नी त बनाई गई ।
वा तव म वकास के त व वान के बीच अनेक अवधारणाएँ ह । राजनी तशा ी लोकतां क
सहभा गता को वकास मानते ह । अथशा ी सामािजक याय के साथ आ थक वृ को वकास
कहते ह । समाजशा ी के अनुसार संपण
ू सामािजक यव था का ऊपर क ओर अ सर होना
ह वकास है । दशनशा ी अ धकतम सुख, अ धकतम संतोष, अ धकतम शां त को ह वकास
मानते ह । वे असंतोष से संतोष क ओर बढ़ने को भी वकास मानते ह । मनोवै ा नक
अ भवृि त म प रवतन को वकास कहते ह । दूसर ओर, पयावरण व वान संसाधन के
अ धकतम उपयोग को ह वकास मानते ह । संचार वै ा नक के ि टकोण म वकास
सकारा मक दशा म सं या मक एवं गुणा मक प रवतन क एक नर तर या है । कु छ
लोग मा आ थक या वै ा नक उ थान को ह वकास मानते ह । पर तु इसे वकास के त
एक व तु न ठ अवधारणा नह ं कह जा सकती है ।
वकास सम दशा म संतु लत वृ को कहा जा सकता है । ता पय यह क य द कोई दे श
आ थक, राजनै तक, सामािजक, सां कृ तक, धा मक, शै क, बौ क, आ याि मक सभी.
दशाओं म समानुपात म आगे बढ़ रहा हो, तो उसे वकास के रा ते पर अ सर होता हु आ
माना जायेगा ।
वकास का संबध
ं न केवल मानव के वकास से है, बि क मानवीयता के वकास से भी है ।
कोई भी वकास मानवीय संसाधन के वकास से जु ड़ा है । यह मू लत: मानवीय अि त व से
जु ड़ी या है । यह केवल एक यि त को भा वत नह ं करती है, बि क यह कसी समू ह,
सं था और समाज को भा वत करने वाल या है । वकास का मू ल उ े य मनु य म
सकारा मक ि टकोण तथा प रप वता के गुण वक सत करना है ता क जीवन तर म
गुणा मक वृ आ सके और पयावरण म सुधार हो सके । वकास क साथकता के लए उसके
येक नाग रक क सहभा गता अ य त आव यक है । जन सामा य को वकास योजनाओं
से जोड़ने तथा वकास सम याओं के त जाग क बनाने म संचार मा यम का प ट प
से भावी मह व है । संचार का सीधा संबध
ं है, समाज के सभी सद य के बीच सू चनाओं,

126
योजनाओं, त य , भावनाओं तथा ान का वत वाह । संयक
ु ा रा क साधारण सभा
क 1953 क बैठक म भी सू चना मा यम क शै क, आ थक और सामािजक वकास म
मह वपूण भू मका मानी गयी है ।

8.3 संचार का अथ (Meaning of Communication)


संचार ोत एवं सं ाहक के बीच क दूर को पाटने क एक या है । वा तव म वकास
के लए संचार एक नवेश है । संचार और वकास एक दूसरे के पूरक ह । एक ह स के
के दो पहलू ह । एक दूसरे से अ यो या य संबध
ं है । जैसा क पूव म भी बताया गया है
क संचार का सीधा अथ है, समाज के सभी सद य के बीच सू चनाओं, योजनाओं, त य ,
भावनाओं तथा ान का वतं वाह संचार है । दूसर ओर, संचार मा यम कसी समाज
क भौ तक तथा अभौ तक सं कृ त के वकास क अ भ यि त है । संचार मा यम सं कृ त
का घटक भी है । इसक दशा एवं दशा का नधा रत थी । इस अथ म संचार मा यम मानव
अनुभू त, उसके व तार एवं ऊँचाई सबको अ भ य त करने क मता रखता है ।

8.4 वकास संचार का अथ (Meaning of Development


Communication)
वकास संचार उस संचार को कहते ह, जो न केवल यह बताता है क अब तक कतना वकास
हु आ है, बि क जो समाज और सरकार को वकास क या म भाग लेने के लए अ भ े रत
एवं अनुन यत करता है । इस कार का संचार सामािजक, आ थक, राजनै तक, सां कृ तक,
धा मक एवं व भ न कार क सम याओं के मूल कारण को ढू ँ ढ़ने क को शश करता ह ।
वकास संचार आज अ य त मह वपूण है । िजस कार रोट , कपड़ा और मकान हमार मौ लक
आव यकता है, उसी कार वकास संचार हमार सामािजक एवं मनोवै ा नक आव यकता है।
संचार ां त के कारण संचार का े अ य तह यापक एवं व तृत हो गया है । इस कारण
वकास संचार क मह ता भी तेजी से बढ़ने लगी है । कसी समाज के सम वकास म जनसंचार
मा यम क मह वपूण भू मका होती ह । ये जनसंचार मा यम हमारे जीवन के व भ न प
से इस कदर जु ड़ते जा रहे ह िजनके बना हम खु द असहाय महसू स करते ह । वकास संचार
के मह व को समझने के लए समसाम यक व व म व वध यापक लोक क याणकार वषय
पर इसके भाव का अवलोकन आव यक है ।
यह व वध वषय न न ल खत ह:
1. आ थक वकास एवं वकास संचार,
2. लोकतां क सहभा गता एवं वकास संचार,
3. वके करण एवं वकास संचार,
4. राजनै तक सशि तकरण एवं वकास संचार,
5. पयावरण संर ण एवं वकास संचार ।
1. आ थक वकास एवं वकास संचार (Economical Development and
Development communication) :- आ थक वकास के लए मह वपूण त व है
जनसं या नय ण । जनसं या व फोट से नि चत प से आ थक वकास के अनेक काय

127
अव हु ए ह । उ च जनन दर, मृ युदर म कमी एवं अ श ा के कारण जनसं या नर तर
बढ़ती जा रह है । आज व व का हर छठवां आदमी भारतीय है । ऐसे म भारत सरकार क
व भ न वकास योजनाओं क वफलता के पीछे जनसं या का बहु त ह बड़ा हाथ है ।
पछले कुछ दशक म िजस तरह जनसं या वृ हु ई है, सरकार क सम याओं का वकराल
होना वाभा वक है । मी डया क सहायता से लोग को प रवार नयोजन संबध
ं ी काय म से
जोड़ने का नर तर यास कया जा रहा है । समाज म हम दो हमारे दो जैसे नारे को चा रत
व सा रत कर मी डया ने एक साथक पहल क है । इसके मा यम से सरकार नर तर यास
कर रह है क जनसामा य को वह व फोट का प ले रह जनसं या वृ के खतर से अवगत
करा सके । 'छोटा प रवार ह सु खी प रवार है' क अवधारणा समाज म वक सत करने का
यास कया जा रहा है ता क समाज के सभी अंग तक उसक मू लभू त आव यकताओं को
पहु ँ चाया जा सके ।
हालाँ क जनसं या नयं ण के अनेक यास मी डया और सरकार क सहायता से कए जा
रहे ह, क तु जनसं या पर भावी नयं ण के लए लोग को सचेत व जाग क करना होगा
। ता पय यह क वकास संचार क या म तेजी लानी होगी । जनसं या श ा को चा रत
सा रत करना होगा तथा लोग को प रवार नयोजन के त जाग क करना होगा । इस काय
म मी डया क अहम ् एवं अगुआई भू मका है । इसम रे डयो, ट वी., फ म, मु ण मा यम
एवं पार प रक मा यम सभी क अ य त ह भावी भू मका है ।
2. लोकतां क सहभा गता एवं वकास संचार (Democratic Participation and
Development communication) :- लोकतां क सहभा गता के बना कसी भी कार
के वकास क कोई क पना नह ं क जा सकती । चूँ क वकास म जनक याण का उ े य
हमेशा छपा रहता है । अत: इसके लए लोकतां क सहभा गता एक अ नवाय घटक है । सरकार
अन त योजनाएँ बनाती है । पर तु ये योजनाएँ सुचा प से याि वत नह हो पाती । य द
दे खा जाए, तो इसका एक मह वपूण कारण सरकार क उन योजनाओं म जनता का उदासीन
रवैया है । इस कारण ये योजनाएँ फल भू त नह ं हो पाती । अब यहाँ वांछनीय न यह उठता
है क लोग इन योजनाओं म उदासीन व नि य य रहते ह? इसके दो मु ख कारण हो
सकते ह:-
(i) जाग कता क कमी
(ii) योजना संबध
ं ी सू चना व नी त को नह ं समझ पाना ।
ता पय यह क मनु य कमवाद होने के बावजू द भी जाग कता के अभाव म एवं नी तय को
नह ं समझ पाने के कारण अपना योगदान नह ं दे पाता है । अत: यहाँ जनसंचार मा यम
क अ य त ह अहम ् भू मका है ।
3. वके करण एवं वकास संचार (Decentralization and Development
communication) :- वके करण वकास क आ मा होती है । कसी भी समाज के सम
एवं संतु लत वकास के लए वके करण आव यक ह नह ं बि क अप रहाय है । थम
पंचवष य योजना से लेकर आज यारहवीं योजना तक व भ न तर पर एवं व भ न प
म वके करण णाल अपनाई गई है । चाहे सामािजक याय क बात हो अथवा आ थक

128
असमानता क बात हो या राजनै तक ि थरता क बात हो, वके करण के मा यम से ह
उ ह मूत प दया जा सका है ।
वा तव म वके करण एवं वकास संचार एक दूसरे के पूरक ह । एक ह स के के दो पहलू
ह । एक दूसरे पर आ त ह । दोन का एक दूसरे से अ यो या य संबध
ं है । दोन के उ े य
म वकास क भावना अंत न हत नजर आती है । वके करण जहाँ संसाधन के बराबर वतरण
क ओर इशारा करता है, वह ं वकास संचार क या भी सम वकास से जु ड़ी है । दोन
का ल य वकास को जन-जन तक पहु ँ चाना है । भले ह इसके व प अलग- अलग ह ।
कसी भी लोकतां क समाज क बु नयाद उस समाज के लोग क भागीदार पर टक होती
है । लोकतं म सभी जनता को समान वत ता का अ धकार होता है । ऐसी ि थ त म
दे श के स यक् वकास के लए वके करण अ याव यक है ता क योजना के नमाण से लेकर
या वयन तक सबको इससे जोड़ा जा सके ।
4. राजनै तक सशि तकरण एवं वकास संचार (Political empowerment and
Development Communication) : कसी दे श का राजनै तक सशि तकरण उस दे श
क जनता क सहभा गता एवं योगदान पर नभर करता है । यह कारण है क आज स ता
क अ धकतम शि त ाम पंचायत म समा हत करने का यथो चत यास कया जा रहा है
। राजनै तक सशि तकरण के लए यह भी आव यक है क लोग अपने राजनै तक अ धकार
से अवगत ह एवं उनका उ चत योग कर । इस काय म मी डया क अहम ् एवं भावी भू मका
होती है । मी डया का परम पुनीत दा य व है क इसके मा यम से लोग म ान, चेतना,
क त य व अ धकार क भावना वक सत हो जाए । मी डया का यह भी दा य व है क लोग
के अ धकार के संदभ म यह भावना सव दय एवं अ तोदय दोन क रहे । इसके लए मी डया
को अपनी िज मेदा रय को गहराई से समझते हु ए उसे अमल जामा पहनाना चा हए ।
5. पयावरण संर ण एवं वकास संचार (Environment Conservation &
Development Communication) : - पयावरण संर ण और वकास का मह वपूण
अंतस बंध है । पयावरण के वकास से भी दे श का सम एवं संतु लत वकास जुड़ा है । दूषण
न केवल वकास म बाधक का काम करता है वरन ् वह वकास के लए संभा वत पूँजी को
दूषण के नुकसान क भरपाई म लगने पर भी ववश कर दे ता है । पयावरण संर ण म वकास
संचार क अहम ् भू मका होती है । यहाँ मी डया उ रे क, नयं क एवं आलोचक तीन क
भू मका नभाता है । लोग को पयावरण संर ण से जोड़ने म मी डया क उ रे क भू मका
अ त वांछनीय एवं मह वपूण है । वह संसाधन संर ण, उपभोग नयं ण, अघुल नशील त व
के उपयोग पर नयं ण आ द क दशा म अपे त जनमत न मत करता है । आज पयावरण
वकास का एक मह वपूण सूचक बन गया है । 70 के दशक तक औ यो गकरण को वकास
का सू चक माना जाता' था । पर तु अ य धक औ यो गक वकास से अ य धक पयावरण दूषण
हु आ है । इस लए 80 के दशक से पयावरण को भी वकास का एक मह वपूण सूचक माना
जाने लगा है । वकास संचार औ यो गक वकास क नकलची दौड़ म पयावरण को होने वाले
नुकसान पर नजर रखता है और पयावरण संर ण उपाय को लागू करने का माहौल बनाने
का काय करता है । ता पय यह क मी डया के भावी उपयोग से पयावरण संर ण संभव
है, जो दे श के व रत वकास के लए अ य त ह साथक स हो सकते ह ।
129
बोध न - 1
(क) वकास का अथ प ट क िजए?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) वकास और प रवतन म या अ तर है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ग) वके करण से आप या समझते ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) पयावरण संर ण वकास के लए अ नवाय य है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

8.5 वकास संचार क अवधारणा (Concept of Development


communication)
जैसा क सव व दत है वकास सम दशाओं म संतु लत वृ को कहते ह और यह संचार
ोत एवं सं ाहक के बीच को पाटने क एक या है । वकास संचार वह है, जो न केवल
यह बताता है क अब तक कतना वकास हु आ है, बि क वह जो सरकार और समाज को
वकास म भाग लेने के लए अ भ े रत, अनु ा णत तथा अनुन यत करता है । इस कार
के संचार सामािजक, आ थक, राजनै तक, सां कृ तक, धा मक एवं व भ न कार के
सम याओं के मूल कारण को ढू ँ ढते ह तथा इसके यावहा रक समाधान भी ढू ँ ढ़ने क को शश
करती है ।
अनेक शोध काय एवं प रयोजनाओं से यह मा णत होता है क भारतीय मी डया ने अब
तक वकास संचार को काफ उपे त रखा है । मी डया क अब तक यह वृि त रह है क
वह वकास संचार के नाम पर वकास संबध
ं ी नजी े एवं सावज नक े क उपलि धय
को तु लना मक प से अ धक उजागर कया है । इसके अलावा, इन मा यम ने वैसे समाचार
व वचार को नग य थान व समय दया है, जो सरकार एवं समाज को वकास क या
म भाग लेने के लए अ भ े रत करते ह ।

130
8.6 वकास संचार क या (Process of Development
communication)
वकास संचार क या म वकासा मक संदेश ोत से इनकोड होने के बाद मा यम के वारा
तथा सं ाहक वारा डकोड होने के बाद हण होता है िजसक तपुि ट सं ाहक क
त याओं वारा होती है । पर तु वकास संचार क या म अनेक कार के अवरोध ह
। भौ तक अवरोध, यां क अवरोध, मनोवै ा नक अवरोध, सां कृ तक अवरोध एवं तकनीक
अवरोध के अलावा भी अनेक यावहा रक अवरोध है, जो वकास संचार क या म बाधक
त व का काम करते ह ।
अब यहाँ न यह उठता है क वकास संचार क वा त वक सम याएँ या- या ह?
भारत का ती औ यो गकरण के साथ-साथ, उदार आ थक नी तय को अपनाना, गैट समझौता
करना तथा व व यापार संघ के सद य बनना आ द वकास संचार के आगे चु नौ तयाँ बनने
लगे ह । वदे शी पू ज
ं ी नवेश के कारण दे श क आ थक उ न त क आशा क गयी थी । पर तु
हम दे खना परखना होगा क वदे शी नवेशक पे सी, कोका कोला, पोटै टो च स, चटनी, आचार
के यापार म पूज
ँ ी नयोजन से दे श के वकास संचार को कतना आघात पहु ँ चा है? लघु और
कु ट र उ योग का ल त होना भी वकास संचार म बाधक स होने लगे ह ।
आज इलै ॉ नक मी डया, इंटरनेट से वकास क जो धारा का शत हो रह है, इसम मौ लकता
एवं सृजना मक क वशेष कमी दे खने को मलती है । आधु नक ान- व ान के युग म
यां कता के चरम वकास म मानव मि त क तथा तभा क अपे ा नह ं क जा सकती
। परमाणु-युग क आकां ाएँ हमारा वचारो तेजन कर रह है । व व ां त और मानवता क
मंगलकामना क भावना के बना वा त वक वकास नह ं हो सकता । आज मानव का वकास
तो हो रहा है पर मानवीयता का वनाश हो रहा है । मनु य एक-दूसरे के त आ थक वषमताओं
के कारण एक-दूसरे से दूर होता जा रहा है । सुख -दुख क प रि थ तय म धैय और स ह णुता
के साथ रहना लोग भू ल रहे ह । अगल-बगल के कमर म रहते हु ए भी एक-दूसरे क हम
न कोई खबर होती है और न हमार सहानुभू त ह रहती है । ऐसी ि थ त म वकास संचार
से जु ड़े मी डयाक मय का यह भी दा य व बनता है क वे मानव- दय म ऐसी भावधारा एवं
वचारधारा का चार- सार कर िजससे वकास युग क दौड़ म हम अपनी अि मता क उपे ा
न कर । राजनै तक, सामािजक, आ थक एवं धा मक वकास के साथ-साथ मनु यता क मौ लक
भावनाओं को जी वत एवं जागता न रख पाना ह वकास प का रता म बाधक त व ह ।
डे नयल लनर, हे र ड लॉसवेल, माशल मै लु हान, रौजस इ या द ने वकास और संचार म
धना मक सह-संबध
ं था पत करने म सफलता ा त क है । डे नयल लनर ने तो वकास
या म संचार के साथ-साथ श ा, जाग कता एवं संल नता को भी भावी त व न पत
कया है । पर तु लोग एवं खासकर ामीण म जाग कता श ा एवं संल नता क कमी भी
वकास प का रता के लए हा नकारक स हो रहे ह ।
भारत एक ाम धान दे श है । इसक अ धकांश आबाद ामीण अंचल म ह नवास करती
है । ऐसी ि थ त म ामीण प का रता करने वाले मी डयाक मय क िज मेदा रयाँ काफ बढ़
जाती है, य क ' लोबल वलेज' या न क ' व व ाम' क नई अवधारणा को इस संचार ां त

131
के युग म मी डयाक मय क वशेष िज मेदा रयाँ ह । कारण क भारत का वतमान, आ थक,
सामािजक, सां कृ तक, भौगो लक, राजनै तक एवं शै क ढांचा इस कार का है क बना
आँच लक या ामीण वकास कये दे श. का सम वकास संभव नह ं तीत होता ।
वकास एवं सा रता म गहरा संबध
ं है । सा रता क कमी भी वकास एवं वकास प का रता
क आधारभू त सम या है । सा रता का अथ मा अ र ान से नह ं है । इसका अथ चेतना
वकास एवं कौशल वकास से है । यह चेतना और कौशल का वकास सार श ा के मा यम
से ह संभव है िजसम इलै ॉ नक प का रता एवं भाषायी प का रता का वशेष योगदान हो
सकता है ।
दूसर ओर समाचारप -प काओं क एका धकार नी त भी वकास संचार के लए बाधक त व
का काम कर रहे ह । समाचारप क अथ यव था पर डा. भवतोष द त क अ य ता म 'सच
खोजो स म त' ने इस बात को उजागर कया है क समाचारप क एका धकार वृि तय
ने वकास संचार म पया त यवधान उ प न कया है । भवतोष स म त के न कष थम
ेस आयोग के न कष से पया त मलते जुलते ह । भवतोष स म त के न कष यह भी ह
क बडे-बडे समाचारप क ि थ त उतनी दयनीय नह ं है, िजतना क च त कया गया है
। पर तु बड़े-बड़े समाचारप वारा अ धक लाभ कमाने क वृि त भी वकास संचार के लए
बाधक स हो रह है ।
राजनी त भी वकास संचार क मु ख सम याओं से एक है । व भ न राजनै तक दल वारा
अलग-अलग समाचारप नकाले जा रहे ह, िजनके अलग-अलग उ े य ह । इन उ े य म
वकासा मक उ े य शायद ह कसी राजनै तक पाट का है । ऐसी ि थ त म वकास संचार
काफ बा धत होती है । दूसर ओर, आज बड़े-बड़े समाचारप म भी राजनै तक खबर या वचार
को अ धका धक थान दे ने क वृि त काफ बढ़ गयी है । राजनै तक समाचार एवं वचार
को सवा धक थान दे ना भी हमार प का रता क एक बहु त बड़ी ासद सा बत हु ई
दूसर ओर भारत के जो सरकार तं ह वे भी वकास प का रता को व ापन या नै तक
समथन के प म भी कोई वशेष सहयोग नह ं दे पाता है । आज सरकार व ापन उन
समाचारप को कम उपल ध ह, जो प वकास संचार को बढ़ाना चाहते ह ।
प का रता का आज बाजार करण भी इस संदभ म बहु त बड़ा बाधक त व सा बत हु आ है ।
आज प का रता म प का रता के स ांत कम एवं वा ण य के स ांत अ धक लागू हो रहे
ह । इसने वकास प का रता को सबसे यादा तकू ल प से भा वत कया है ।
दूसर ओर के तथा महानगर म बैठे नी त नधारक को वकास प रयोजनाओं क पूण
जानकार नह ं रहती है और यह जानकार मलती भी है तो काफ वल ब से । सू चना अंतरण
अथवा अ तराल (गैप) के कारण इन प रयोजनाओं क साथकता स नह ं हो पाती है । इन
सू चना दूर को पाटने का काम भी आच लक प कार ह कर सकते ह य क अंचल से नकलने
वाल प -प काएँ या समाचारप उस े वशेष क भाषा व आव यकता के अनु प का शत
होते ह, िज ह उस े के नवासी भल -भाँ त समझ लेते ह । अं ेजी म नकलने वाले
समाचारप िजसे आज भी भारत क मा डेढ़ या दो तशत जनता ह पढ़ व समझ सकती
है, से वकास क आशा नह ं क जा सकती है । अत: वकास क इस चु नौती को आच लक
व भाषायी प का रता वारा ह पूरा कया जा सकता है ।

132
इसके अलावा, वकास संचार य द अनुसध
ं ान एवं खोजबीन पर आधा रत हो, तो क टब
प कार को कई कार क चु नौ तय का सामना करना पड़ता है । ऐसी ि थ त म समाज के
सहयोग क बात तो दूर, कई बार प कार को अपने ह संपादक एवं मा लक का भी सहयोग
नह ं मल पाता । अभी हाल ह म एक प कार वकास प का रता के सल सले म गढ़वाल
गये । पर तु आज तक उनका कोई पता ठकाना नह ं मल पाया । ता पय यह क आज मी डया
म अव य ह कु र तयाँ एवं ु टयां आई ह । पर तु दूसर ओर, जो प कार त परता, त काल न,
त मयता एवं क टब ता से काम करते ह, उ ह भी अन गनत चु नौ तय का सामना करना
पड़ता है । द ल के एक प कार ने लखा क य द अमु क अ धकार के पास राजनै तक वैशाखी
न होती, तो यो यता के आधार पर वह अ धकार चपरासी भी नह ं बन पाता । बस फर या
था? उसक नौकर से छु ी हो गयी । ऐसे लाख उदाहरण है, िजसके तहत प कार को अपनी
नौकर , अपने तथा अपने प रवारजन के ाण हथेल पर रखकर अनेक जो खम उठाने पड़ते
ह ।
अत: आज वकास संचार को बढ़ावा दे ने के लए यह आव यक है क सरकार एवं समाज इस
े म इसे नै तक एवं आ थक सहयोग दान कर । ामीण, आच लक एवं भाषायी प का रता
को भी अपनी पहचान बनाने म वशेष सहयोग क आव यकता है, य क इनका संबध
ं वकास
से बड़े पैमाने पर होता है । अत: भारत सरकार एवं रा य सरकार को चा हए क वे ऐसे
प -प काओं को अ धक व ापन द, जो वकास प का रता को अ धक थान दे ती ह ।
साथ-साथ आज वकास संचार के संदभ म पाठक क च व सोच बदलने क भी आव यकता
है । इसम समाज क व र ठ हि तयाँ एवं मी डया से जुड़े शीष थ लोग क अहम ् भू मका
हो सकती है, य क ये लोग ह पाठक म वकास संचार के त वशेष च पैदा कर सकते
ह । यहाँ आपू त का नयम है क नर तर आपू त से मांग वत : न मत होती है, को भी
बड़े पैमाने पर लगाने क आव यकता है ।
बोध न - 2
(क) वकास संचार क अवधारणा को प ट क िजए?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) भारतीय समाज के वकास के संदभ म वकास प का रता के योगदान को रे खां कत
क िजए ।
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................................................................................................................
................................................................................................................
(ग) भवतोष स म त कससे संबं धत है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) हमारे समाज म' वकास के' सम या चु नौ तयां है?
133
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

8.7 सारांश (Summary)


इस इकाई को पढ़कर आप वकास का अथ, संचार का अथ, वकास-संचार का अथ, वकास
संचार क अवधारणा, आ थक वकास एवं वकास संचार, लोकतां क सहभा गता एवं वकास
संचार, वके करण एवं वकास संचार, राजनै तक सशि तकरण एवं वकास संचार, पयावरण
संर ण एवं वकास संचार, वकास संचार क . या म अवरोध एवं बाधक त व व उनक
व भ न सम याओं से अवगत हो जाते ह । इस कार यह इकाई आपको वकास-संचार के
ल य को हा सल करने म एक नवेश क तरह है और वकासा मक उ े य को लोग म
लोक य बनाने म उपयोगी, ासां गक एवं साथक भी है ।

8.8 व-मू यांकन (Self-valuation)


आपको इस इकाई को प ने के बाद वत: वकास का अथ, अवधारणा, या, या म
अवरोध, बाधक त व एवं व भ न सम याओं का ान हो जायेगा, जो आपको भी वकास क
या म भाग लेने म अ य त ह लाभकार एवं सहायक स हो सकता है ।

8.9 श दावल (Glossary)


वकास )Development( : कसी भी यि त अथवा व तु का पहले क
ि थ त म गु णो तर सु धार ।
वके करण : कसी भी शि त को छोटे छोटे टु कड़ म -
)Decentralization) वखि डत कर दे ना ।
समाज )Society) : मािजक संबंध का जाल ।
लोकतं )Democracy( : जा, जा के लए, जा के वारा संचा लत
शासन यव था ।
सशि तकरण )Empowerment) : कसी सामािजक इकाई को शि त अथवा
अ धकार दान कर उसक ि थ त को
मजबू त करने क कया ।

8.10 अ यासाथ न (Questions)


1. वकास या है' वकास म जनसंचार मा यम क भू मका पर काश डाल ।
2. वकास संचार क अवधारणा या है? वकास संचार क या को उजागर कर ।
3. वकास संचार क व भ न सम याओं पर काश डाल ।
4. पयावरण संर ण म वकास संचार क भू मका को उजागर कर ।
5. राजनै तक सशि तकरण म वकास संचार क भू मका को उजागर कर ।
6. जनसं या नयं ण म वकास संचार क मह ता पर काश डाल ।

134
7. वके करण म वकास संचार क या भू मका है? चचा कर ।
8. लोकतां क सहभा गता म वकास संचार क भू मका पर काश डाल ।

8.11 संदभ थ (Further Readings)


1. उपा याय, डा. अ नल कुमार (2007) - 'प का रता एवं वकास संचार', 'भारती काशन',
दुगाकु ड, वाराणसी-5
2. झा, मु ि तनाथ (2003) - 'जनसंचार के पार प रक मा यम का उ व एवं वकास', भावना
काशन, द ल
3. उपा याय, डा. अ नल कुमार (2007) - 'मास मी डया एवं वकास के आयाम', भारती
काशन, दुगाकु ड, वाराणसी-5
4. शमा, राधे याम (2006) - 'जनसंचार', ह रयाणा सा ह य अकादमी, पंचकू ला

135
इकाई-9
वकास म संचार मा यम क भू मका
(Role of Communication Medias in Development)
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 वकास का अथ, इ तहास एवं वशेषता
9.3 संचार का अथ एवं कार
9.4 संचार मा यम का अथ एवं कार
9.5 वकास संचार
9.6 वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०)
9.7 भू मका का अथ एवं व प
9.8 वकास म संचार मा यम क भू मका
9.9 सारांश
9.10 व-मू यांकन
9.11 श दावल
9.12 अ यासाथ न
9.13 संदभ थ

9.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप समझने म स म ह गे -
 वकास के अथ एवं व प को ।
 वकास संचार को ।
 वकास सहयोगी संचार (डी०एस०सी०) ।
 संचार मा यम के कार ।
 वकास और संचार के स ब ध ।
 भू मका के अथ एवं व प को ।
 वकास म संचार मा यम क भू मका ।

9.1 तावना (Introduction)


वकास वा तव म इस संसार के येक े म मलने वाल वाभा वक वशेषता है । मनु य
पैदा होता है तो चलने- फरने म असमथ होता है । धीरे -धीरे वह बड़ा होने के साथ-साथ
चलता- फरता है । इतना ह नह ं बचपन म बोलने म असमथ बालक धीरे -धीरे भाषा और बोलना
भी सीखता है । यह सब वकास को ह दशाते ह । यह यवहार पेड-पौध म भी पाया जाता

136
है । बीज को धरती म बोने के बाद उसम अंकु रण ार भ हो जाता है और धीरे-धीरे यह अंकु रत
छोटा सा पौधा वक सत होकर वशाल वृ अथवा पेड म बदल जाता है । यह वकास क
वाभा वक दशा है । समय के वाह के साथ संसार क हर एक व तु का व प एवं कृ त
बदलती है । इस बदलाव म गुण और मा ा दोन बदलते ह । इसी प रवतन के सकारा मक
प अथवा दशा को हम वकास कहते ह । यह तो वकास का ताि वक व प रहा । इसे
हम कह सकते ह क न न से उ च दशा म बढ़ना या प रवतन वकास का सू चक है । इस
कार वकास को हम नजी जीवन, सामािजक जीवन तथा व व प रवेश के वषय म भी दे ख
सकते ह ।
वा तव म मानव यवहार एवं समाज यवहार म मलने वाले येक गुण अथवा संदभ का
हम जब कसी नि चत सामािजक आधार पर चंतन करते ह तो उसक ि थ त या व प
म भी कु छ सीमा तक वकास- म म मूल से भ नता आती है । वा तव म यह भ नता
अपनी मू ल कृ त या वभाव से अलग नह ं होती । भले ह यह दखाई पड़े । यह यवहार
या व प वकास का भी है । वकास नरंतर चलने वाल या है । वकास क ि थ त
समय के साथ बदल जाती है । वकास का अथ एवं व प सदा एक जैसा नह ं रहता है ।
वकास का ान दो ि थ तय अथवा दो व तु ओं म तुलना करके भी हम ा त कर सकते
ह ।
वकास के सै ाि तक संदभ क चचा वा तव म वतीय व वयु के बाद मानव एवं समाज
क जीवन दशाओं म प रवतन के प म अि त व म आयी । ार भ म इसे आ थक प रवतन
से जोड़कर दे खा जाता था । पर तु धीरे-धीरे यह ि थ त बदल और वकास म पयावरण,
जनसं या, भोजन, रोजगार, मानवीय भावनाओं, व ान एवं तकनीक वकास आ द को वकास
क अवधारणा म सि म लत कया गया । इस कार वतमान समय म वकास का अथ यापक
है । हम यह भी कह सकते ह क समय के साथ-साथ वयं वकास के संदभ म प रवतन
आया है । वकास क प रभाषा, कृ त एवं व प आ द म प रवतन हु ए ह ।
वकास क गाड़ी पर लोग सवार ह , इसके लए एक म य थ क भी ज रत होती है । यह
म य थ मी डया अथवा संचार मा यम ह । लोग को वकास क सू चना रे डयो, ट ०वी०,
समाचार-प , प काओं आ द के मा यम से पहु ंचती है । संचार मा यम से य द वकास को
अलग कर दया जाय तो वकास अथवा वकासा मक सूचनाओं क ि थ त वह होगी, जैसे
जंगल म मोर नाचा कसने दे खा । इस लए वकास क सूचना को वयं समाज म फैलाने अथवा
वकास के लए संचार मा यम क सहायता क ज रत है । इस कार हम कह सकते ह क
संचार मा यम वकास म अपनी भू मका नभाते ह ।
इस इकाई म वकास के अथ, व प एवं कार पर वचार करने के साथ-साथ संचार मा यम
के भी अथ, व प एवं कार पर चचा करगे । इस इकाई म वकास म संचार मा यम क
भू मका का भी उ लेख होगा ।

137
9.2 वकास का अथ, इ तहास एवं वशेषताएँ (Meaning, History and
Characteristics of Development)
वकास, समाज एवं स पूण जगत ् का वाभा वक यवहार है । ले कन वकास क अवधारणा
का मानव समाज के स ब ध म उपयोग वतीय व वयु के उपरा त ार भ हु आ । वकास
का अथ मानव के वकास से जु ड़ा । इस कार ारि मक दन म वकास का अथ मानव
जीवन म गुणा मक तथा मा ा मक प रवतन के प म लया जाता था । वा तव म वतीय
व वयु के बाद के समय म वकास का अथ वा तव म मा आ थक वकास तक सी मत
था । ले कन 1950 के बाद इस अवधारणा म नवीन अथ, के साथ-साथ सामािजक संदभ भी
सि म लत हु ए । इसी म म वकास का अथ बदलता रहा । 1970 के दशक म वकास क
अवधारणा और भी यापक हु ई तथा इसम पयावरण, जनसं या, भोजन, मानवीय संवेदना,
वा य, रोजगार, व ान एवं तकनीक वकास, सं कृ त, सू चना, आवास, श ा, उ पादन,
उपभोग आ द को भी सि म लत कया गया ।
1960 के दशक म वकास को औ यो गक पछड़ापन, नर रता, बेरोजगार आ द से जोड़ा
गया । सबसे बड़ी वशेषता यह रह क वकास के संदभ म पि चम को वक सत माना गया
। ले कन पि चमी वकास क अवधारणा म नरं तर प रवतन जार रहा । पि चमी मॉडल के
वकास के कारण व व के व भ न भाग म पयावरण का असंतु लन एवं कु पोषण तथा गर बी
का संकट बढ़ने लगा है । अवै ा नक तथा वाथ तर क से कृ त एवं ाकृ तक संपदा का
दोहन करने के कारण ाकृ तक कोप बढ़ने लगे तथा दूषण आ द का संकट बढ़ा । इस कारण
बीसवीं शता द के अं तम दशक म ाजील के ' रयो ड जे नरो म थम पृ वी स मे लन संतु लत
वकास एवं पयावरण के मु े पर बुलाया गया । इसी कड़ी म द ण अ का के जोहांसवग
म 2002 म दूसरा पृ वी स मेलन स प न हु आ । इसम 106 दे श के रा ा य स हत लगभग
60 हजार त न धय ने भाग लया । इस स मेलन का वषय संतु लत वकास' था । पयावरण
क र ा के साथ सतत ् वकास इसका उ े य था । इसम जल एवं व छता, वा य, दूषण
र हत ऊजा, गर ब दे श क व तीय सहायता, टाचार पर नयं ण एवं लोकतं का वकास,
रासाय नक दूषण पर नयं ण, गर बी उ मूलन, जैव व वधता क र ा पर सहम त हु ई ।
सभी दे श ने यह न चय कया क पृ वी के संसाधन का संतु लत उपयोग करते हु ए सुर त
प से उसे भावी पी ढ़य के लए सुर त रखा जाय । इसी से संतु लत वकास क अवधारणा
अि त व म आयी । वतमान समय म वकास का अ भ ाय संतु लत वकास' से है । आप
संतु लत वकास का अथ जानना चाहगे । इसक चचा हम आगे करगे । वा तव म 'संतु लत
वकास' क अवधारणा नवीन क तु यापक है । इसम वकास का दायरा वतमान के थान
पर भ व य म आने वाल पी ढ़य से भी जु ड़ा है । वकास के इस म म हम पृ वी के संसाधन
का उपयोग इस कार एवं संतु लत प म कर क िजससे पृ वी के संसाधन सु र त प
से भावी पी ढ़य को भी मल सक । इसे हम इस उदाहरण से समझ सकते ह । जैसे गंगा,
यमु ना आ द न दयां हम ा त ह । इन न दय क जल स पदा का इस कार उपयोग कर
िजससे क इन न दय का वाह भी नरं तर बना रहे और आगे आने वाल पी ढ़य को गंगा
एवं यमु ना क जल स पदा उसी मौ लक प म ा त हो । जैसे कृ त वारा हम उपल ध

138
करायी गयी थी । इस कार 'संतु लत वकास' क अवधारणा म कृ त के साथ बबर यवहार
के थान पर म ता पूण यवहार क मा यता को वीकार कया गया । इसी म म यह
माना गया क पृ वी के सभी संसाधन पर सफ हमारा ह नह ं बि क भ व य म आने वाल
पी ढ़य का भी अ धकार है । इस तरह हमारा कत य है क भावी पी ढ़य के लए पृ वी के
संसाधन को सुर त रख । इस कार वतमान म वकास का अथ 'संतु लत वकास' से है
। अब आप समझ सकते ह क वकास का अ भ ाय मा ा मक एवं गुणा मक ि ट से ऊपर
क ओर हु आ सकारा मक प रवतन है । पृ वी पर उपल य सम त संसाधन का संतु लत
उपयोग इसम सि म लत है । उपल ध सम त संसाधन को भावी पीढ़ के लए सु र त रखना
वकास क यापक एवं नवीन प रभाषा म सि म लत है । इस कार आप समझ गये ह गे
क वतमान समय म वकास का अथ संतु लत वकास से है ।
वकास को कस कार मापा जा सकता है? इसे भी जानना ज र है । पर परागत प म
त यि त औसत आय से आ थक वकास का मापन होता है । इसम सकल रा य आय
को सकल जनसं या से वभािजत कया जाता है । यह मापन णाल संयु त रा संघ वारा
अपनायी गयी । इसी त यि त औसत आय के आधार पर संयु त रा संघ वारा वक सत
एवं वकासशील रा का नधारण कया गया । आप वक सत एवं वकासशील रा क
मु य वशेषताओं को जानना चाहगे । यह न नानुसार ह-

9.2.1 वक सत एवं वकासशील रा क वशेषताएं (Characteristics of


Developed and Developing Countries)

वा तव म वक सत दे श अपनी वशेषताओं के कारण ह वकासशील दे श से भ न ेणी म


आते ह । वक सत रा म मु यत: अधो ल खत वशेषताएं मलती ह-
 उ च तर य उ पादन
 सी मत/ नयं त जनसं या वकास
 उ च तर य जीवन प त
 औ यो गक वकास
 त यि त अ धक औसत आय
 उ च सा रता
 इसके वपर त अ वक सत रा म अधो ल खत वशेषताएं दखलाई दे ती ह-
 त यि त कम औसत आय
 अ धक मा ा म बेरोजगार
 ती एवं अ नयं त जनसं या वकास
 कृ ष पर नभरता
 न न जीवन तर
 न न उ पादन तर
 नर रता
वकासशील रा म सामा यत: अधो ल खत वशेषताएं मलती ह-
1. त यि त सामा य औसत आय

139
2. सामा य तर य जीवन प त
3. जनसं या नयं ण हे तु य नरत ि थ त
4. औ यो गक वकास के लए सतत ् य नरत अव था
5. सामा य तर य उ पादन
6. सामा य सा रता
इ ह ं आधार पर हम वक सत एवं वकासशील अथवा अ वक सत रा का नधारण करते
है?
बोध न - 1
(1) वकास क अवधारणा मानव समाज के स ब ध म कब ार भ हु ई?
................................................................................................................
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(2) या वकास के अथ म नरं तर बदलाव आये है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(3) संतु लत वकास या है?
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................................................................................................................
................................................................................................................
(4) वक सत रा क या वशेषताएं ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

9.3 संचार का अथ एवं कार (Meaning and types of


communication)
संचार मनु य के वाभा वक यवहार का अंग है । साथ ह संचार मानव समाज का आधार
भी है । संचार श द के लए अं ज
े ी म क यु नकेशन श द का योग होता है । अं ज
े ी भाषा
के क यु नकेशन श द क उ पि त लै टन भाषा के क यु नस श द से हु ई है । क यु नस श द
का अथ सहभा गता, सामा यीकरण, वेश एवं स ेषण होता है । इसी कार ह द के 'संचार'
श द क उ पि त सं कृ त क चर धातु से हु ई है । िजसका अथ बढ़ना, फैलना, चलना आ द
होता है । इस कार संदेश या सूचना को दूसर तक भेजना संचार है । संदेश अथवा सूचना
भेजने क या को संचार कहते ह । संचार या कु छ मु ख इकाइय अथवा घटक के
मा यम से मू त प लेती है । संचार के मु ख घटक इस कार ह -

140
(मॉडल 9.1. संचार के कार)
ऊपर लखे गये घटक अथवा इकाइय म सि म लत ोत का अ भ ाय मी डया संगठन (रे डयो,
समाचार प /प का, ट ०वी0 आ द के संगठन) ह । संदेश का अथ ोत वारा भेजी जाने
वाल सूचना है । मा यम का अथ संदेश को ोता तक पहु ंचाने वाला उपकरण आ द है । ोता
का अथ सू चना संदेश पाने वाले से ह । मंिजल का अथ समाज म सूचना के अं तम पड़ाव
से है । फ डबैक वा तव म संदेश के वषय म ोता वारा ोत को भेजी गयी त या है
। समाचारप के संपादक के नाम पाठक वारा भेजा गया प वा तव म फ डबैक ह है ।
संचार के कार संचार का अथ जानने के बाद आप के मन म संचार के कार को जानने
क इ छा होगी । वा तव म मनु य और मानव समाज म संदेश भेजने क या के आधार
पर संचार को न न कार से वभ त कर सकते ह -

(मॉडल 9.2 : संचार के कार)


ऊपर से प ट है क संचार के मु ख चार कार हु ए । वा तव म आ त रक का अथ है मनु य
के अंतःकरण या शर र / मन म होने वाला संचार । इसे संचार क भाषा म आ य तर संचार
क सं ा दे ते ह । मनु य के शर र के बाहर मु यत: तीन कार से संदेश भेजने क या
स प न होती है । दो अथवा पांच या दस लोग के म य अथात ् जाने-पहचाने लोग म होने
वाल संदेश भेजने क या को 'अ तवयि तक संचार' कहते ह । इसी कार नि चत उ े य
के लए ग ठत समू ह म समूह संचार स प न होता है । इन संचार से भ न एवं यापक
तथा बखरे ोताओं के म य 'जनसंचार' अि त व म आता है । जनसंचार वा तव म संदेश
भेजने क वह णाल है, िजसम ोता क नजी पहचान यापक पहचान म मल जाती है
। अथात ् जनसंचार म यि त अपने नजी नाम या पहचान से नह ं बि क ोता के प म
जाना जाता है ।
बोध न - 2
(1) संचार या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(2) संचार के मु ख घटक कौन-कौनसे ह?

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................................................................................................................
................................................................................................................
(3) संचार कतने कार का होता है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

9.4 संचार मा यम का अथ एवं कार (Meaning and types of


Communication media)
ह द के संचार मा यम श द का समानाथक श द अं ेजी म 'मी डया है । इस का अथ दो
ब दुओं को जोड़ने वाला है । संचार मा यम, ोत और ोता को जोड़ते ह । संचार मा यम
वा तव म संचार या क वह आधारभू त कड़ी ह, िजसके सहयोग से ोत वारा भेजी गयी
सू चना को ोता पाता है । समय एव वकास का भाव संचार मा यम पर भी पड़ता है ।
इसी कारण संचार मा यम पर परागत (पुराने ) एवं आधु नक (नये) प म मलते ह । इसके
साथ ह यह भी आप जानना चाहगे क संचार मा यम के कार या है?
वा तव म सभी सू चना के के शर र म ह व यमान ह । इ ह ं अंग के वारा संचार मा यम
क सूचना शर र हण करता है । मानव शर र म संचार मा यम से सू चना ा त करने वाले
शर र के मु ख दो अंग ह - आँख और कान । इ ह ं दोन क सहायता से तीन कार क सूचनाएं
एवं तीन कार के मा यम हम ा त होते ह । आंख से ा त सू चना दखती है । इस कारण
या मक है । इसी से (क) य मा यम अि त व म आया । य मा यम के उदाहरण-मू त,
फोटो, च आ द ह । कान क कृ त व न अथवा य सूचना हण करने क है । इस
कारण (ख) य मा यम अि त व म आया । य मा यम के उदाहरण-रे डयो, टे प, गायन
आ द ह । ले कन कभी-कभी सू चना आख और कान दोन को एक साथ मलती है । इस कार
क सूचना का प य- य होता है । इसी कारण संचार मा यम का कार, (ग) य- य
मा यम अि त व म आया । य- य मा यम के उदाहरण टे ल वजन, फ म एवं नाटक
आ द ह । इसे हम इस कार भी समझ सकते ह' -

(मॉडल 9.3 : संचार मा यम के कार)

142
'मी डया अथवा संचार मा यम' वा तव म सफ उपकरण मा नह ं है । इसम संदेश सि म लत
होता है । संदेश से जु ड़ कर मी डया वा तव म दो भाग म बंट जाती है । एक भाग सफ
मशीनी अथवा उपकरण मा होता है । इसका दूसरा भाग चेतना सं ान का होता है । वा तव
म संदेश चेतना अथवा सं ा ह है । इस कार मी डया या संचार मा यम (क) यां क उपकरण
एवं (2) सं ाना मक भाग म बंटे ह । इसे हम इस कार समझ सकते ह-

इस कार आप समझ सकते ह क संचार मा यम सफ यां क या उपकरण मा नह ं है ।


इसम चेतना या सं ान का प भी होता है । जैसे रे डयो एक संचार मा यम है । इस रे डयो
म रे डयोसेट एक उपकरण है । इस रे डयो के वारा ा त होने वाला सारण या संदेश वा तव
म रे डयो का चेतना प है । इसी चेतना प के प म मनु य क उपि थ त होती है । रे डयो
म इन दोन भाग क उपि थ त से ह रे डयो का सारण काय स प न होता है ।

9.5 वकास संचार (Development Communication)


वकास के संदभ पर हम पूव म वचार कर चुके ह । इतना ह नह ं हम संचार क कृ त,
व प एवं कार को भी पढ़ चुके ह । अब आप के मन म यह न होगा क वकास संचार
या है? वा तव म संचार संदेश भेजने क या है ।
' वकास संचार कसी भी बंधन तं वारा उपयोग म लायी जाने वाल वह या है िजसका
योग वह अपनी योजनाओं अथवा नी तय को संबं धत लोग अथवा ल त जनता तक पहु ँचाने
के लए करता है ।'
वकास संचार का मु ख उ े य ल त जनता क आव यकता को यान म रखकर उ ह
आव यक सू चनाएं मु हैया कराना होता है ।
वकास संचार या का ाणत व संदेश है । संचार या क सभी इकाइयां संदेश के लए
काय करती ह । जैस-े ोत वारा संदेश के लए सू चना सं ह, लेखन एवं संपादन का काय
कया जाता है । मा यम वारा संदेश को ह भेजा जाता है । ोता तो संदेश को ह ा त
करता है । मंिजल तक संदेश क ह या ा होती है । फ डबैक म ोता, ोत से संदेश के वषय
मह न एवं िज ासा य त करता है । चू ं क संचार संदेश भेजने क या है । इस कारण
वकास संचार भी संदेश भेजने क ह या है ले कन इसम संदेश का व प भ न कार
का होता है । चू ं क संदेश ह संचार या म व यमान सभी इकाइय अथवा घटक से जु ड़ा
है । इस कारण पूर संचार या का व प संदेश पर नभर होता है । वकास संचार म
संदेश . वकासा मक होता है अथवा हम कह सकते ह क ' वकास संचार वा तव म वह संचार
या है िजसम वकासा मक अथवा वकास संदेश े षत कया जाता है ।'
वकास संचार म संदेश उ े या मक, सकारा मक एवं यावहा रक होता है अथात ् वकास का
संदेश या संचार वारा वशेष कार का वकासा मक भाव न मत करना मु य उ े य होता

143
है । वकास संदेश संचार व प सकारा मक होता है । वकास संदेश या संचार को यावहा रक
धरातल पर अमल म लाने का भी गुण होता है ।
वकास संचार क अवधारणा जनसंचार के े म वतीय व वयु के बाद ए शया, अ का,
लै टन अमे रका क नव वत दे श वारा शी ता से गर बी, नर रता, बेरोजगार से मु ि त
के लए, अि त व म आयी । पि चम के मु ख संचार वदो ने वकास क अव था को ा त
करने के उपाय के प म ' वकास संचार को अमल म लाने का सुझाव दया ।
अब न यह उठता है क वकास संदेश या है? वा तव म वकास संदेश का आशय ोत
वारा स े षत उस संदेश से है जो ोता के जीवन तर म सुधार के सारे गुण समा हत कये
होता है । वह संदेश जो लोग के सामािजक आ थक सुधार क बात करता है , लोग के जीवन
तर को ऊँचा उठाने क बात करता है, िजसम मानव क याण के त व न हत होते ह, वकास
संदेश कहलाता है ।
बोध न - 2
(1) वकास संचार या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(2) वकास संदेश या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(3) या वकास संदेश ह वकास संचार का आधार है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

9.6 वकास सहयोगी संचार (डी०एस०सी०) (Development Support


Communication)
अब आप के मन म यह जानने क इ छा होगी क वकास सहयोगी संचार या है? आप इस
के पूव वकास संचार पढ़ चु के ह । वा तव म वकास संचार वकास संदेश आधा रत संचार
या है । वकास संचार से वकास के वषय म ान अथवा सं ान बढ़ता है । ले कन इस
सं ान को यावहा रक धरातल से जोड़ने क भी सम या रहती है । इसी कम म यह भी एक
मह वपूण ब दु है क वकास वत: हो अथवा संचार वकास के यावहा रक प को भी बढ़ाने
म मदद करे ? अथात ् संचार का उपयोग नवीन ान को यवहार म अपनाने म भी सहयोगी
बने, िजससे क वकास का म चले । वकास कृ ष, श ा, वा य, प रवार क याण आ द
े म ह । इसके लए यह ज र है क इन े म उपल ध एवं नवीन वक सत सै ाि तक
तथा यावहा रक ान को उपयोग म लाया जाय और इस या म संचार एक सहयोगी
भू मका नभाये । इसे ह हम वकास सहयोगी संचार (डी०ऐस०सी०) कहते ह ।
144
वा तव म 1950 के दशक म कृ ष के सार एवं कृ ष उ पादन म वृ के लए तकनीक
ान के सार हेतु वकासशील दे श के संदभ म वकास सहयोगी संचार क अवधारणा अि त व
म आयी । इसके वारा ामीण एवं पछड़े े म वकास क ग त व धय का संचालन ार भ
हु आ । वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०) क अवधारणा को संयु त रा संघ, यूनीसेफ ,
व व बक आ द ने अ धक चा रत कया । इस कार संचार का योग कृ ष एवं वा य
आ द के सार म होने लगा । इस तरह संचार के स ा त एवं यवहार का उपयोग वकास
या म होता है । यह वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०) है । वकास सहयोगी संचार
- सं ान, अ भ च, मान सक ि ट, यास एवं अनुकरण आ द याओं के वारा यवहार
म आता है । इसका योग कृ ष के अलावा वा य, सा रता, प रवार क याण, पयावरण
संर ण आ द े म हो रहा है ।

9.7 भू मका का अथ एवं व प (Meaning and Form of Role)


आप जानते ह क इस इकाई म वकास म संचार मा यम क भू मका का उ लेख है । ऊपर
आप वकास, संचार मा यम आ द के वषय म पढ़ चु के ह । अब आप के मन म यह न
होगा क भू मका (Role) या है? इस लए भू मका पर चचा करना ज र है । वा तव म जब
हम सामािजक संदभ म भू मका (Role) पर वचार करते ह तो इसका अथ कसी वशेष
सामािजक ि थ त से स बि धत एवं अनुमा नत वशेष यवहार से होता है । इस कार आप
समझ सकते है क भू मका का स ब ध सामािजक ि थ त एवं उसके वषय म अनुमा नत
यवहार से है । जैसे हम एक प कार क भू मका पर वचार कर तो उसका अथ होगा क
प कार क सामािजक ि थ त उसके अनुमा नत यवहार से जु ड़ी होती है । इसी अनुमा नत
यवहार के संदभ म वह अपनी भू मका अदा करता है । यि त क भू मका कसी योजन
अथवा संदभ से जु ड़ी होती है । भू मका के साथ िज मेदार , अ धकार एवं शत आ द भी जु ड़ी
होती है । भू मका को कसी सामािजक संदभ से ह जोड़ कर दे खना चा हए । एक मनु य
अथवा यि त समाज म कई प म अपनी भू मका नभाता है । जैस-े श क के प म,
प त के प म, प नी के प म, पु -पु ी के प म, माता- पता के प म, म के प म,
पड़ोसी के प म आ द । यि त ह इन सम त भू मकाओं को नभाता है । इसके अलावा
संचार के े म यि त क भू मका-लेखक, संपादक, प कार आ द प म होती है । यि त
क ह भां त संचार मा यम समाज म व भ न कार क भू मका अथवा भू मकाएं नभाते
ह । इसम पहचान वारपाल (वाचडाग), चौथा ख मा, वकास स ेषक एवं वकास सहयोगी
आद प म होती है । आगे हम वकास म संचार मा यम क भू मका पर वचार करगे ।

9.8 वकास म संचार मा यम क भू मका (Role of Media in


Development)
अब आप जानना चाहगे क वकास म संचार मा यम क या भू मका होती है? ऊपर आपने
संचार मा यम, वकास एवं वकास सहयोगी संचार आ द के वषय म पढ़ लया । भू मका
के भी अथ एवं कृ त को आप जान गये । इस कारण संचार मा यम क भू मका को समझना
अब आपके लए सरल होगा । वा तव म संचार के य, य एवं य- य मा यम, चाहे

145
आधु नक ह अथवा पर परागत इनक भी भू मका कई प म हो सकती है । ले कन संचार
मा यम कौन सी भू मका नभायगे । यह वा तव म उनके उपयोग पर नभर करता है । इसे
हम इस कार समझ सकते ह । जैसे रे डयो या टे ल वजन का उपयोग कोई सफ समाचार
के लए करता है । कोई रे डयो या टे ल वजन का उपयोग मनोरं जन के लए करता है । कोई
रे डयो एवं टे ल वजन का उपयोग मौसम एवं बाजार क सूचना के लए करता है । इस कार
प ट है क मी डया क भू मका इसके उपयोग पर नभर है ।
आप एक ऐसे समाज क क पना कर िजसम रे डयो, टे ल वजन के हजार के एक साथ
सारण करते ह । ले कन उन सारण को उस समाज का कोई यि त न दे खता हो । ऐसे
समाज म चू ं क रे डयो एवं टे ल वजन के सारण सु ने एवं दे खे नह ं जा रहे ह । इस कारण
रे डयो एवं टे ल वजन क भू मका शू य होगी । इससे प ट है क संचार मा यम क भू मका
समाज म उनके उपयोग पर नभर करती है । य द संचार मा यम का उपयोग बढ़े गा तो इनक
भू मका भी बढ़े गी और य द संचार मा यम का उपयोग घटे गा तो इनक भू मका भी घटे गी
। इस कार प ट है क संचार मा यम क समाज म भू मका इनके उपयोग पर नभर है
। इस वमश के बाद आप के मन म यह जानने क इ छा होगी क वकास म संचार मा यम
या भू मका नभाते ह? वा तव म संचार मा यम क भू मका वकास म दो प म दे ख
सकते है । थम वकास संचार म मा यम क भू मका का मू यांकन आव यक है । इसी
का मू यांकन एवं ववेचन इस इकाई का आधार है । सबसे पहले आप वकास संचार के संदभ
म संचार मा यम क भू मका को जानना चाहगे । वा तव म संचार मा यम वकास संचार
से जु ड़े वकास के संदभ म आगे व णत भू मकाओं को नभाते ह-
1. समाज म वकास क सूचना का सार करते ह ।
2. प रवतन क वकासा मक दशा को प ट करते ह ।
3. वकास के माग क बाधाओं को प ट करते ह ।
4. वकास क स भावनाओं को य त करते ह ।
5. नवीन आ व कार क सूचना दे ते ह ।
6. वकास के लए उपयोगी एवं आव यक वातावरण का नमाण करते ह ।
7. वकास के त नकारा मक ि ट क समाि त म सहयोगी ।
8. वकास के तुलना मक संदभ को य त करते ह ।
9. वकास क ि थ त का मू यांकन ।
10. वकास क चु नौ तय को प ट करते ह ।
11. वकास क समी ा आ द भू मकाएं नभाते ह ।
इसके बाद आप वकास सहयोगी संचार (डी0एस0सी0) से जुड़े वकास के संदभ म संचार
मा यम क भू मका को जानना चाहगे । वा तव म संचार मा यम, वकास सहयोगी संचार
से जु ड़े वकास के संदभ म मु यत: आगे व णत भू मकाओं को नभाते ह-
1. थानीय ल त समू ह क आव यकताओं को जानना,
2. थानीय संसाधन का मू यांकन
3. यि तय क पसंद-नापसंद के े का ान,
4. वभ न कार के संचार का ान

146
5. काय म क आव यकता उ प न करना,
6. नी त नधारक को वै ा नक तथा व श ट सूचनाएं उपल ध कराना,
7. सहयोगी ि ट का नमाण,
8. काय क शैल म बदलाव के वक प दे ना,
9. जाताि क एवं सहयोगी यवहार पैदा करना,
10. नवाचार सीखने का' वातावरण बनाना,
11. यावहा रक ान का सार आ द भू मकाएं सि म लत ह ।
इस कार आप समझ गये ह गे क संचार मा यम वकास क सू चना के व तार तथा वकास
को यवहार म अपनाने के स दभ म अपनी भू मका नभाते ह ।
बोध न - 3
(1) वकास संचार एवं वकास सहयोगी संचार (डी०एस०सी०) म या अ तर है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(2) वकास संदेश म संचार मा यम क या भू मकाएं ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(3) वकास सहयोगी संचार (डी०एस०सी0) म संचार मा यम या भू मका नभाते ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

9.9 सारांश (Summary)


इस इकाई का ल य वकास म संचार मा यम क भू मका को प ट करना था । वकास
म संचार मा यम दो प म अपनी भू मका नभाते ह । पहल भू मका वकास संचार म होती
है तथा दूसर भू मका वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०) म होती है । इसका उ लेख इस
इकाई म है । इसके साथ ह इस इकाई के अ ययन से न न लाभ ह गे -
 वकास से आप प र चत हु ए ।
 संचार के कार से आप अवगत हु ए ।
 संचार मा यम के कार एवं भाग को जान सके ।
 भू मका के अथ को समझ सके ।
 वकास संचार म संचार मा यम क भू मका जान सके ।
 वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०) म संचार मा यम क भू मका जान सके ।
 वकास संचार एवं वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०) के अ तर को समझ सके ।
 वकास म संचार मा यम क व वध भू मका जान सके ।

147
9.10 व-मू यांकन (Self-Valuation)
आप को इस इकाई को यानपूवक पढ़ना चा हए । इसे प ने के बाद इस इकाई म लखी
वषयव तु को अपने मन म दुहराना चा हए । इसी म म आप नरं तर यह यास कर क
वकास, वकास संचार, संचार मा यम, वकास म संचार मा यम क भू मका आ द के वषय
म आप को कतनी जानकार मल चु क है । जहां भी संदेह हो, उस भाग को पुन : पढ़े एवं
समझ । इसम लखे संदभ को समाज से भी जोड़कर दे ख । आप को व-मू यांकन का यवहार
हमेशा करते रहना चा हए ।

9.11 श दावल (Glossary)


इस इकाई म उ ले खत मु ख श द के अथ इस कार ह -
वकास )Development( : गु णा मक एवं मा ा मक प रवतन ।
संचार मा यम )Media( : पर परागत एवं आधु नक य), य एवं
य( य मा यम-
भू मका )Role( : कसी सामािजक ि थत से स बि धत
यवहार ।
वकास संचार (Development : वकासा मक संदेश आधा रत या।
communication)
वकास सहयोगी संचार : उपल ध सै ाि तक एवं यावहा रक ान को
)Development Support
Communication) उपयोग म ०सी0एस०डी))
लाने म सहयोगी संचार यवहार ।

9.12 अ यासाथ न (Questions)


1. वकास का अथ प ट करते हु ए इसके ऐ तहा सक संदभ का वणन कर?
2. संचार मा यम के कार को प ट कर?
3. वकास संचार को प ट कर । भारत म वकास संचार का मू यांकन कर?
4. वकास सहयोगी संचार (डी०एस0सी०) या है? व तार से समझाइये ।
5. वकास म संचार मा यम क भू मका को व भ न संदभ म प ट कर ।

9.13 संदभ थ (Further Readings)


1. उपा याय, डॉअ नल कु मार .  प का रता एवं वकास संचार, 2007, भारती
पि लकेशन, दुगाकु ड, धमसंघ कॉ पले स
वाराणसी-5
2. ओम काश संह  संचार के मू ल स ा त, ला सकल

148
पि ल शंग क पनी, 28, शॉ पंग से टर,
करमपु रा, नई द ल -15.
3. Kewal J.Kumar  Mass Communication, Jaico
Publishing house, Delhi, in India
4. O.P Dahama  Extension and Rural, Ram Prasad &
Sons, Agra, Welfare
5. उपा याय, डॉअ नल कु मार .,  प का रता और जनसंचार स ा त एवं
वकास, 2007, भारती पि लकेशन,
दुगाकु ड, धम संघ कॉ पले स वाराणसी-5

149
इकाई-10
कृ ष संचार और ामीण वकास
(Agricultural Communication and Rural
Development)
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 कृ ष संचार अथ, े एवं मह व
10.3 कृ ष संचार उपकरण या मा यम
10.3.1 समाचारप और प काएं
10.3.2 कृ ष संचार म रे डयो
10.3.3 कृ ष संचार और टे ल वजन
10.3.4 कृ ष संचार और फ म
10.3.5 क यूटर, इंटरनेट, ई-चौपाल और ई-गवनस
10.3.6 पार प रक मा यम
10.3.7 मेले, उ सव और दश नयाँ
10.4 दूसर ह रत ाि त क आव यकता
10.5 कृ ष संचार का भावी मा यम
10.6 कृ ष संचार क भाषा, पाठक, ोता या दशक क कृ त
10.7 कृ ष संचार और म हलाएँ
10.8 कृ ष संचार कल, आज और कल
10.9 ामीण वकास संचार
10.9.1 ामीण वकास का अथ एवं े
10.9.2 ामीण वकास का मह व
10.9.3 ामीण वकास क दशा एवं दशा
10.9.4 कृ ष व ामीण वकास क तु लना व सह-संबध

10.10 वकासा मक जनसंचार
10.11 वकासा मक संचार क कृ त
10.12 वकासा मक जनसंचार क स भावनाएँ
10.13 स पक-स प नता का मॉडल
10.14 एक उ योग के प म पी.यू आर.ए. योजना
10.15 श दावल

150
10.16 अ यासाथ न
10.17 संदभ थ

10.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का उ े य कृ ष, संचार और ामीण वकास तीन का अथ, े , मह व और
उपयो गता को समझाते हु ए, वतमान म हर तरह के संचार के लए उपल ध व भ न संचार
मा यम क कृ ष और ामीण वकास म भावी भू मका को दशाना है । इस े म और
या, कु छ कया जा सकता है । इसको भी इं गत कया गया है । इस इकाई का अ ययन
करने के बाद आप-
 कृ ष संचार का अथ, े तथा मह व को जान सकगे ।
 कृ ष संचार के मा यम से प र चत हो सकगे ।
 दूसर ह रत ां त क आव यकता को समझ सकगे ।
 कृ ष संचार क भाषा, पाठक, ोता या दशक वग से जु ड़ी जानकार ा त कर सकगे

 कृ ष संचार क ि थ त को प ट कर सकगे ।
 ामीण वकास संचार से जु ड़ी जानकार ा त कर सकगे ।
 वकासा मक संचार से जु ड़ी अवधारणा को प ट कर सकगे ।
 एक उ योग के प म पी.यूआर.ए. योजना से प र चत हो सकगे ।

10.1 तावना (Introduction)


भारतीय समाज औसत प म पर परावाद , शांत और आराम पसंद है । कृ ष े म पूर
तरह से पर परागत खेती का अ यास है । हमारा कसान जमीन छोड़ दे ता है बरसात के भरोसे
और बीज कर दे ता है जमीन के हवाले । समय बीतने पर फसल सह सलामत पक जाती है
तो वाह-वाह अ यथा उलाहना ' राज' ' और ' राम ' के नाम ।
नई खेती, उ नत बीज, खाद और उपकरण, जै वक खेती, फसल व व धकरण, जल बचत और
जल सदुपयोग, माइ ो संचाई प व त, बागवानी, फल-स जी उ पादन, नकद फसल क
आदत, औषधीय खेती, वपणन आधा रत खेती और वपणन आधा रत कृ ष व तार सेवाओं
के लए भारतीय कसान को नय मत श ण दये जाने क आव यकता है । एक तरफ
जहां कसान को नई जानका रयां चा हएं, वह ं व तार ा त कायकताओं क काय वृ त म
'भी स पूण बदलाव क आव यकता है । '' पूरे दे श म फैले करोड़ कसान के श ण के
लए, दूसर ह रत ां त क सफलता के लए और पौि टकता से भरपूर कृ ष उ पादन के लए
सम त मी डया चैनल और संचारक मय वारा कृ ष संचार को नई ग त दया जाना वाँ छत
एवं परम आव यक है ।
अखबार, रे डयो, ट वी., गैर सरकार संगठन, सामािजक कायकता आ द सभी सरकार के साथ
मलकर दे श म खेती और कसान के लए अनूठा सहकार सूचना अ भयान चलाकर गर ब,
ामीण और कसान के सामने सहका रता क सफलता के सजीव पाठ का सीधा सारण संभव
बना सकते ह । अब तक के तमाम मी डया सव ण से यह स हो चु का है क हरे क कसान

151
के लए सूचना का े ठ साधन उसके दूसरे साथी कसान खु द ह हो सकते ह, य क कसान
कसी बाहर जन नेता को अपनी यि तगत जीवन शक और काय कृ त म दखल दे ने या
कसी तरह का बदलाव करने क अनुम त नह ं दे सकता । अत: कसान को कसान से जोड़कर
सहका रता का नया आंदोलन चलाकर नये सू चना सारण घेरे का नमाण करना होगा ।

10.2 कृ ष संचार का अथ. े एवं मह व (Meaning, scope &


Importance of Agricultural Communication)
कृ ष संचार म ' 'कृ ष' ' और ' 'संचार' ' दो बड़े और मह वपूण श द, यवसाय या य कह
क जीवन दशन समा हत ह । दोन श द का मानवता के प रपोषण म एक अहम ् थान है
। कृ ष जहां सभी ा णय के उदर पालन म सहायक है, वह ं संचार ा णय म आपसी मलन
का मु ख ज रया है । इन दोन श द का अथ समझने के लए, हम इ ह पहले अलग-अलग
समझना होगा ।
आइये, पहले कृ ष का अथ समझते ह :-
 ह द श द सागर म कृ ष का अथ खेती, का त और कसानी बताया गया है ।
 वे टस श दकोश के अनुसार कृ ष जमीन को जोतने क कला अथवा व ान है ।
“Agriculture is the art or science of cultivating the ground.”
हम भारतीय के लए कृ ष या खेती कोई नए श द नह ं ह । ाचीन काल से अब तक स दय
से अ न उ पादन के लए धरती क जुताई-बुवाई करके यह काय बहु सं यक समाज वारा
लगातार कया जा रहा है । मनु य के लए रोट , कपड़ा और मकान क आपू त म सवा धक
मह वपूण भू मका नभाने वाला यवसाय कृ ष ह रहा है । बि क खेती हमार भारतीय
अथ यव था का मू ल आधार है । आजाद के 60 साल पूरे होने क ि थ त म भी दे श क
लगभग 70 तशत आबाद खेती अथवा खेती से संबं धत काय म संल न है ।
यहा यान दे ने यो य बात यह है क पहले पर परागत तौर पर कृ ष का मतलब जहां केवल
जमीन को जोतकर अ न उ पादन करना माना जाता था । वह ं अब फल स जी उ पादन स हत
बागवानी, औषधीय उ पादन, पशु पालन, म य पालन, मु ग पालन, मधु म खी पालन, शु कर
पालन और बतख पालन आ द सब कु छ कृ ष म ह समा हत ह ।
आइये संचार को भी समझ ल.
संचार के व याथ होने के नाते, इसका अथ हम सभी समझते ह । ऐसा माना जाए तो
युि तयु त ह होगा । फर भी आइये कु छ पुन वचार कर लेते ह .
 वचार, ान, सूचना और मानवीय सं यवहार को एक दूसरे के साथ बांटने क कला संचार
है ।
 कु छ व वान वारा संचार को 'अथ का मलन' भी कहा गया है ।
 शेनन एवं वेवर के अनुसार ' 'संचार म वे सब याएं समा हत ह, जो एक दूसरे के
मि त क को भा वत करती ह । ''
संचार को सं ेषण भी कहते ह । अ त:वैयि तक, अ तवयि तक और कसी समू ह के बीच
संचार होना इसके मुख कार कहे जाते ह ।

152
संचार तरह-तरह के असं य लोग के लए भी कया जा सकता है । इसे वशेष वारा
जनसंचार कहा गया है ।
कृ ष और संचार दोन का अथ समझ लेने के बाद हम कह सकते ह क कृ ष, खेती, का तकार
और कसानी से संबं धत वचार , सू चनाओं, ान और सं यवहार का आपसी आदान- दान
ह कृ ष संचार है । यह इक तरफा भी हो सकता है और दो तरफा भी । इसम मु खतया सूचना
कसान को द जाती है । इस संचार को दो तरफा बनाने के लए कसान से सू चनाएं लेना
भी शा मल कया जा सकता है ।

कृ ष संचार का े (Scope of Agricultural Communication)

कृ ष संचार भी सामा य संचार एवं जनसंचार क तरह दो तरफा संचार है । संचार एक या


है । संचार म ोत, मा यम और संदेश शा मल ह । कृ ष संचार म भी संचार के तीन त व
ोत, मा यम और संदेश समा हत ह । ये तीन त व जहां थायी ह, वह ं आव यकता और
समय के अनुसार ये तीन ह अथवा इनम से कसी एक अथवा दूसरे का व प, कृ त या
अ तव तु बदलती रहती है ।
व भ न समाजशा ीय ि टकोण से दे ख तो कृ ष संचार का व प, कृ त अथवा अ तव तु
लगातार प रवतनीय अनुभव क जा सकती ह । समाजशा ीय ि ट से कृ ष संचार पूर
मानवता के भरण-पोषण, उदर पालन के लए एक मह वपूण और उपयोगी यवसाय रहा है
। कृ ष संचार के ऐ तहा सक व प म मानव क पशु पालक और कृ ष अव थाएं शा मल ह
। तब से अब तक लगातार, नबाध मानवीय ाणी कृ ष के े म उ तरो तर वकास करता
हु आ, आज के इस लोबल कृ ष संचार युग तक पहु ंचा है । अथशा ीय ि टकोण से कृ ष
संचार मांग और आपू त के म य संतल
ु न बनाये रखने का साधन है । भौगो लक तर पर
कृ ष संचार थायी ान के वा म व का और राजनै तक तर पर कृ ष संचार शि त और
स ता का ोत रहा है । वै ा नक सोच के लए कृ ष संचार मानवता, स यता और ामीण
वकास का मा यम न कषत: हम कह सकते ह क कृ ष संचार मानवीय स ेषण, संचार
अथवा संवाद क वह वधा है, िजससे स पूण लोबल गांव क आ मा पं दत, स य और
साथक हो सकती है, होती है । पूरा व व एक बाजार बन गया है । बाजार क स पूण नयं क
शि तयां शहर ाहक क सं या म कमी और उनक य शि त म आई ि थरता के कारण
अब केवल गांव और कसान तक पहु ंचने, उ ह लु भाने के लए बा य हो गई ह । कसान,
बाजार और सरकार का स मेलन भारत के समाजवाद लोकतं को मजबूत कर सकता है ।

कृ ष संचार का मह व एवं उपयो गता (Important & Utility of Agricultural


Communication)

आज का युग सूचना का युग है । कृ ष हमारे दे श का मु ख यवसाय है । सकल रा य


आय म लगभग 20 तशत ह सा कृ ष का है । लगभग 60 से 70 तशत लोग कृ ष काय
से अपनी आजी वका ा त करते ह ।
ऐसी ि थ त म कृ ष सूचनाओं का आदान- दान कृ षक समु दाय स हत स पूण मानव जगत
के लए एक ज र और उपयोगी ग त व ध कह जा सकती है ।

153
वकास के सरपट भागते दौर म आज सू चना ने आम आदमी के जीवन म रोट , कपड़ा और
मकान जैसी अह मयत हा सल कर ल है । बि क यू ं कहा जाए क आदमी एक बार रोट के
बना रह सकता है, सू चना के बना नह ं । इसी लए हमार लोक य, लोकतां क भारत सरकार
ने आम आदमी को सूचना का अ धकार दे दया । अ तु ! अब आम आदमी क दो सामा य
े णयां 'साधन स प न' और 'साधन वह न' या न अमीर और गर ब न होकर 'सूचना स प न'
और 'सू चना वह न' बनती जा रह ह । वकास के उठाव से, उ न त क र तार से और सू चना
के सार से दर- कनार रहना अब हमारे कसान को भी वीकार नह ं है ।
इसके लए सम त सरकार अफसर, कृ ष वै ा नक, कृ ष पयवे क, सामािजक कायकता, कृ ष
प कार, संचारकम मी डया वशेष , जन नेता और अ भनेता सभी आपस म मलकर पूरे
मनोयोग से कसान से सूचना ा त करने और कसान तक सूचना पहु ँ चाने का दो तरफा साझा
संचार यास कर तो ह सह कृ ष संचार संभव है ।
आज कृ ष संचार क स यता और व वसनीयता क पूरे व व पी लोबल (वैि वक) गांव
म परम आव यकता है ।
उप ह संचार क असल और सह सफलता भावी कृ ष संचार (Effective Agricultural
Communication) म न हत है ।
शहर और बंद कमर ' 'म और से' ' सूचना का दो तरफा वाह (Two way flow of
Information) व फोटक व प या ि थ त तक न पहु ंच,े इसके लए भी अब कृ ष संचार
को यादा भावी बनाया जाना हम सभी संचारक मय के लए आव यक हो गया है, एक चु नौती
बन गया है ।
भारत के पूव रा प त डी. ए.पी.जे. अ दुल कलाम ने दे श के व रत कृ ष वकास हे तु गांव
के लए एक टा क फोस बनाकर, सन ् 2020 से पहले दे श के लए सवागीण आ म नभरता
ाि त का आ वान कया है । सहभा गता और स यता स हत आ म नभरता ाि त के इस.
महाय म शा मल होने हे तु उ ह ने सभी दे शवा सय को पुकारा है ।
पहल ह रत ां त म दे श ने खा य सु र ा का ल य ा त कया । दूसर ह रत ां त के मा यम
से हमारे धानमं ी जी ने ' 'पोषण सु र ा' ' का ल य दखाकर स पूण कृ ष संल न समु दाय
का आ वान कया है । अपने स बोधन, भाषण के मा यम से कृ ष वकास, बारामती मॉडल
और दूसर ह रत ां त म जन सहभा गता क बात करत ह, हमारे धानमं ी जी ।
'खा य सु र ा' और 'पोषण सु र ा' के बीच के भेद को, ान वभाजन को हमारा कसान कैसे
समझे?
यह है य न ।
इस कार के सभी सवाल का एक मा स टक जवाब भावी कृ ष संचार हो सकता है ।

10.3 कृ ष संचार के उपकरण या मा यम (Tools or Media of


Agricultural Communication)
व व यापी संचार ां त ने छोटे -बड़े, दे श- वदे श, गांव-शहर, बाल-वृ सभी को भा वत कया
है । संचार ां त के इस भाव से कृ ष े भी कैसे अछूता रह सकता है? कृ ष े म जहां
पार प रक तौर पर गीत-संगीत, नाटक-चाटक याल-धमाल, राग-रं ग, वांग-कार के वारा

154
खास संदेश को पहु ँ चाया जाता था । वह ं आजकल अखबार, प -प काएं, दशनी, मेले, उ सव,
रे डयो, फ म टे ल वजन, टे ल फोन, मोबाईल फोन, क यूटर, इंटरनेट, ई-चौपाल ई-गवनस
आ द सभी उप ह संचार मा यम के बीच गांव , कसान एवं उनके खेत तक पहु ंचने क एक
य होड़ लगी हु ई है । बाजार क शि तयां सभी संचार मा यम को कसान तक पहु ँचाने
के लए लाला यत कर ऐसा करने के लए लगातार बा य कर रह ह ।
पार प रक तौर पर चार, संचार या संवाद, नट, भांड, बहु पया, मीरासी, ढोल , दमामी जैसी
जा तय का यवसाय हु आ करता था । पर तु आधु नक युग म इन पार प रक संचारक मय
का काय अखबार, रे डयो, फ म, टे ल वजन आ द वारा बड़े से बड़े पैमाने पर कया जा रहा
है । पार प रक मा यम जहां सीधे कृ ष, कसान और गांव से जु ड़े हु ए थे । वह ं आज के ट
और इले ॉ नक आ द सभी मा यम शहर और आधु नकता क दे न होने के बावजू द भी अब
बाजार के इशारे पर गांव , कसान , खेत तक पहु ंचने के लए बा य और लाला यत हो रहे
ह ।
कृ ष संचार के लए सवा धक उपयोगी, उपयु त मा यम कौनसा है ?
कृ ष संचार के लए कसी भी मा यम के लए ज र बात या ह?
कृ ष संचार म यु त मा यम क वयं क कौनसी वशेषताएं और बा यताएं है ? कसान
क अपनी आव यकता, आदत और यवहार के अनुसार वह कस मा यम को कब और य
पसंद करता है? उसके लए कस तरह क कौनसी भाषा उपयु त है ? कृ ष संचार स पूण दे श
के लए एकसा हो या रा य , िजल व ता लुक के लए अलग यव था व णाल लागू क
जाए ।
ऐसे सभी सवाल का समाधान खोजने का यास हम इस अ याय म ह करगे । पर तु, आइये
पहले जानकार लेते ह, कृ ष संचार म संल न व भ न मा यम क ।

10.3.1 समाचारप और प काएं (Newspaper & Magazines)

दे श- दे श म रोज छपने और पाठक तक पहु ंचने वाले दै नक समाचारप क पहु ंच गांव तक


भी है । गांव के व यालय, पंचायत घर, औषधालय आ द म दै नक अखबार रोज पहु ंचते ह
। आजकल बड़े अखबार के थानीय सं करण क वशेष मु हम के तहत दै नक समाचार-
प ाय: शहर क ह भां त गांव म भी सु बह समय पर ह पहु ंच जाते ह । समाचारप क
वतरण यव था इतनी मजबूत हो गई है क रोज सु बह के अखबार के मामले म भी कसान
के पास अपनी पसंद का वक प उपल ध होता है । वे अपनी पसंद का अखबार प ने के लए
वतं है ।
पढ़े लखे, ग तशील कसान और कसानपु संचार के साधन का मह व समझने लगे ह ।
अब वे यि तगत तर पर अखबार मंगवाने और रोज अखबार प ने के आद होते जा रहे
ह । वभ न तयोगी पर ाओं के ामीण उ मीदवार के लए समाचारप मंगवाना और
उ ह नय मत तौर पर पढ़ना एक आव यकता बन गई है ।
ामीण , कसान के लए वशेष तौर पर तैयार कृ ष और गैर-कृ ष प काएं भी अब गांव
तक लगातार पहु ंच रह ं ह । इन प काओं के मा यम से न केवल कसान का कृ ष ान

155
बढ़ता है, बि क कसान वारा हण क गई कृ ष व गैर- कृ ष सूचनाओं का असर अब उनके
खेत और यवहार दोन म ि टगत होता दखाई दे ता है ।
शरद कृ ष, व व कृ ष संचार,उ नत कृ ष, कृ षक जगत, त ब ब, हलधर टाइ स, ह रत ां त
इंटे सव ए ीक चर और कृ ष व ान जैसी अनेक कृ ष प काएं और समाचारप लगातार
कसान क सूचना सेवा म लगे हु ए ह ।
समाचारप और प काओं को छपे होने के कारण कसान जब चाहे तब पढ़ सकता है । समझ
म नह ं आये तो बार-बार, लगातार या क- क कर भी पढ़ सकता है ।
बस, द कत तब होती है, जब कसान खु द पढ़ा- लखा ना हो । अथात बना पढ़ा- लखा या
कम पढ़ा- लखा कसान आज के समाचारप और प काओं का लाभ नह ं ले सकता । सा रता
के आकड़े और श ा का सामािजक तर इस वा त वकता को आसानी से उजागर कर सकता
है ।
अत: भावी कृ ष संचार के लए समाचारप और प काओं के मा लक को कसान के शै क
तर और उनक सामािजक समझ या को यान म रखकर ह अ र क साईज, पृ ठ
और कॉलम का डजाइन और समाचार , सू चनाओं क अ तव तु का नधारण करना चा हए
। अखबार म न केवल कसान के लए सूचनाएं या समाचार छप बि क कसान के खु द
के समाचार, सू चनाएं भी अखबार म शा मल ह , तभी भावी कृ ष संचार म समाचारप और
प काओं क भू मका यादा अ छ हो सकती है ।
राज थान म तेजी से बढता हु आ कृ ष समाचार का सा ता हक अखबार है, हलधर- टाइ स
। इसके स पादक से इन पंि तय के लेखक क बात हु ई । वषय था, कसान के लए अखबार
म छपाई के अ र के आकार क उपयु तता । उ ह ने अपने अखबार म अ र का आकार
बड़ा कया, ता क कसान आसानी से उस अखबार क लखावट को पढ़ सक ।

10.3.2 कृ ष संचार और रे डयो (Agriculture Communication & Radio)

िजस तरह से बक रय को गर ब क गाय कहा गया है । उसी तरह रे डयो को कसान का


मा यम कह तो अ तशयोि त नह ं होगी । आजाद के बाद से अब तक रे डयो ने लगातार
अपनी पहु ंच को बढ़ाया है । रे डयो क व वसनीयता और रे डयो के समाचार के त ामीण,
कसान का व वास अपने आप म एक दुलभ और सु खद संयोग है । रे डयो के मा यम से
कसान अपने घर और खेत पर काम करते हु ए भी जानकार, मनोरं जन या श ा हण कर
सकता है । रे डयो के लए सफ सु नने तक सी मत रहना होता है । इस वजह से कसान
अपनी सु वधानुसार रे डयो के काय म म च रख सकता है । कसान चाहे तो - चलाते
हु ए भी रे डयो सु न सकता है । सूचना, श ा और मनोरंजन क ि ट से रे डयो कसान के
लए व वध काय म तैयार कर सा रत करता है । ले कन 'बहु जन हताय:-बहु जन सु खाय:
' वाला रे डयो का येय तभी साथक है, जब रे डयो जैसा लोक य मा यम 'रे डयो मच या
' केट' जैसे काय म क मान सकता से बाहर नकल कर केवल कृ ष को सम पत होकर
दे श के वकास के वृह तर येय के साथ कदम ताल मला सके ।

156
रे डयो के काय म को सु नने और समझने के लए ामीण , कसान क अ श ा आड़े नह ं
आ सकती । रे डयो आज के आधु नक युग मे अ य मा यम क तुलना म कम खच ला और
आसानी से उपल ध होने वाला मा यम है ।
भारतीय सारण नगम के आकाशवाणी संगठन क पहु ंच पूरे भारत के गांव तक आसान और
भावी है । रे डयो के ोता कृ ष आधा रत काय म के वारा ग तशील, नवीन और वै ा नक
खेती सीख सकते ह । आज तेजी से बदलते युग म भारत सरकार को कसानवाणी जैसे कसान
के सम पत चैनल क शु आत करनी होगी ।
हमारे सं वधान के तहत सारण काय केवल संघ सरकार के अ धकार े का मामला है ।
पर अब समय आ गया है क थानीय खेती-बाड़ी और उसक आव यकताओं क पू त के लए
युि तयु त और उपयोगी सारण सेवा के ल ए रा य सरकार और थानीय संगठन को भी
सारण अ धकार दए जाने चा हए । के सरकार के सूचना और सारण मं ालय क पहल
पर सामु दा यक रे डयो के क एक मह वाकां ी योजना के तहत थानीय संगठन को
सारण अ धकार दए जा रहे ह । ले कन ऐसे के म कृ ष संचार को ाथ मकता दया जाना
दूर क कोड़ी नजर आ रहा है ।
सरकार चाहे तो आकाशवाणी के सार काय म के तहत िजला और ता लुका तर पर रे डयो
के को आर भ करके कृ ष संचार का एक। अ भनव अ भयान चला सकती है ।
दूर थ श ा के काय म , वभाग और संगठन के तहत रे डयो के सारण शा मल करके
दूर-दराज के गर ब कसान को भी रे डयो नेटवक से जोड़ा जा सकता है । य क आज नेटवक
का जमाना है । हर वग हर समु दाय कसी नेटवक क छतर के नीचे फल-फूल रहा है । ऐसे
म कृ ष पीछे य रहे? कसान का नेटवक बना कर उ ह कृ ष संचार के दूर थ श ण
काय म से जोड़कर भारतीय कसान को यादा त पध बनाया जा सकता है । ऐसा करके
भारत अपनी बढ़ती जनसं या को सकारा मक और उ पादक जनसमु दाय म त द ल कर सकता
है ।
रे डयो और टे लफोन के सु खद संजोग से दे श म कृ ष संचार के े म योग करके दूसर
ह रत- ां त को शी संभव और सफल बनाया जा सकता है ।

10.3.3 कृ ष संचार और टे ल वजन (Agriculture Communication & Television)

जैसा क हम जानते ह क भारत म टे ल वजन क शु आत 15 सत बर 1959 को ऑल


इं डया रे डयो के एक सहयोगी वभाग के प म हु ई । धीरे-धीरे यथा सु वधा और यथा अवसर
भारत के टे ल वजन सारण म एक के बाद एक क ड़यां जु ड़ती गई । 1975 से आरंभ हु आ
' 'सैटेलाइट इ स े शनल टे ल वजन ए सपेर मे ट' ' सफल रहा । पहल अ ल
ै 1976 से भारत
म टे ल वजन आकाशवाणी से अलग होकर दूरदशन बना और एक वतं संगठन के प म
कायरत हु आ । 15 अग त 1982 से भारत म दूरदशन के टे ल वजन पर रं गीन सारण शु
हु आ । अब दूरदशन टे रे यल सारण के साथ-साथ उप ह क मदद से डी.ट .एच. (डायरे ट
टू होम) सेवा भी उपल ध करा रहा है । दूरदशन के सारण को अब डजीटल मोड म उपल ध
करा दया गया है । शी ह उ च गुणव ता (H.D.T.V.) सारण शु हो रहे ह । कृ ष सारण
के े म दूरदशन तब रहा है ।

157
चौपाल, कृ ष दशन, ाम दशन, ाम जगत और कृ ष जगत आ द कई शीषक से दे श के
व भ न दूरदशन के वारा लगातार कृ ष काय म का सारण कया जा रहा है ।
आकाशवाणी क ह भां त दूरदशन म भी ाय: खेती-गृह थी इकाई (Farm & Home Unit)
अलग से केवल कृ ष और ामीण काय म , वषय का सारण करती है । इन काय म
को पूरे दे श म ामीण, कृ षक समु दाय वारा लगातार पूरे जोश और लगन के साथ दे खा जाता
है । उ नत कृ ष, उ नत उपकरण, उ नत खाद और बीज स हत जै वक खेती, बागवानी और
फसल व वधीकरण के त भारतीय कसान क बढ़ती हु ई च का ेय दूरदशन के कृ ष
सारण को दया जाए तो यह कमोबेश युि तयु त ह होगा ।
गांव म सफ दूरदशन को दे खा जाता है । दूरदशन के काय म म से कृ ष काय म को
सवा धक पसंद कया जाता है । दूरदशन के कृ ष काय म के मा यम से कृ ष वशेष ,
वै ा नक और व भ न तर य कृ ष पयवे क और कृ ष अ धकार एक ह बार म अपनी बात
लाख करोड़ कसान तक तथा उनके घर तक पहु ंचा सकते ह । कृ ष काय म क लोक यता
के कारण ह आज आकाशीय आ ामक अव था म भी गांव म दे खा जाने वाला एक मा चैनल
दूरदशन है ।
भारत सरकार ने दूरदशन के कृ ष काय म क ामीण जन के म य बढ़ती हु ई लोक यता
को वीकार कया है । प रणाम व प 2 मई 2005 से कृ ष व तार हे तु जन मा यम का
स बल (Mass Media Support for Agricultural Extension) योजना के तहत 'कृ ष दशन'
नाम से भारत के व भ न े ीय और थानीय ॉडका ट और नैरोका ट दो े णय म व भ न
के से सा रत कया जा रहा है । इन काय म के लए भारत सरकार का कृ ष मं ालय
पूरा व तीय सहयोग दे रहा है ।
दूरदशन के व वध चैनल को दे खकर अब पूरे दे श म अलग ' कृ षदशन ' चैनल क एक मांग
जोर पकड़ती जा रह है । य क खेल. ान, मनोरं जन, लोकसभा अ य कई चैनल को दे खकर
लगातार चलने वाले कृ षदशन चैनल को दे श के कृ ष वकास और दूसर ह रत ां त क
सफलता के लए अ त आव यक माना जा रहा है ।
आइये बात करते ह, टे ल वजन काय म क ।
टे ल वजन पर सु नने के साथ-साथ दे खने का भी सु अवसर मलता है । मनोवै ा नक का दावा
है क कोई भी यि त कसी दे खे हु ए काय को यादा याद रख सकता है । अत: दूरदशन
पर दे खे गए काय म का जन मानस पर सवा धक भाव होता है । टे ल वजन काय म के
मा यम से पूरे दे श म दूर थ श ा प त के तहत अगर कृ ष काय म का लगातार सारण
कया जाए तो दूसर ह रत ां त क ग त अपने आप बढ़ जाएगी ।
हमारे दे श के कसान पर परागत खेती के साथ उ नत खेती, उपकरण, खाद और बीज को
अपनाकर अपनी खेती को लाभ का यवसाय बना सक । यह एक महती रा य आव यकता
है । दे श क बढ़ती हु ई आबाद के लए रोजगार के नए अवसर का सृजन एक रा य चु नौती
है । टे ल वजन काय म के मा यम से बेरोजगार युवा वग को खेती और इससे जु ड़े दूसरे
काय क ओर आक षत करके एक नी तगत अ भयान चलाकर बेरोजगार क सम या का हल
नकाला जा सकता है । आव यकता है ढ़ इ छा शि त और सामू हक कायशीलता क ।

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10.3.4 कृ ष संचार और फ म (Agriculture Communication & film)

भारत म फ म का अपना अलग और खास थान रहा है । फ म को शहर लोग क ह


भां त ामीण , कसान वारा भी बड़े चाव से दे खा जाता है । आजाद के बाद से प रवहन
सु वधाओं म हु ई उ तरो तर वृ का लाभ लेकर ामवासी भी आसानी से फ म दे खने के
लए शहर आने के आद हो गए । चलते- फरते सनेमाघर ने गांव और क ब के लए फ म
दखाने क वशेष सु वधा उपल ध कराई ।
भारतीय कृ षक, ामीण समु दाय के रहन-सहन, खान-पान, आचार- वचार म फ म का भाव
प ट दे खा जा सकता है । धीरे -धीरे सनेमाघर का थान गांव म छोटे पद या न टे ल वजन
ने ले लया । अब गांव म फ म दे खने का सवा धक सश त, लोक य और सवसुलभ साधन
टे ल वजन है । य क टे ल वजन सैट के सामने बैठकर पूरा कसान प रवार, कु नबा या समु दाय
एक साथ फ म दे ख सकता है । फ म क वी डयो कैसे स और वी डयो सीडी क सवसुलभता
और आसान क मत ने सोने म सु गध
ं पैदा करने वाल ि थ त ला द है । फ म और टे ल वजन
के सहयोग से भारत क सां कृ तक व वधता क कसान को घर बैठे ह झलक मल जाती
है । इससे भारत क रा य एकता क भावना को स बल मलता है ।
कसान के जीवन, कसान क ग त व धय , उ नत कृ ष के व भ न तर क , आधु नक
उपकरण के योग पर आधा रत फ म बनाकर, कृ ष संचार के े म फ म क भू मका
को और यादा स य, सकारा मक और भावी बनाया जा सकता है ।

10.3.5 क यूटर. इंटरनेट. ई -चौपाल और ई-गवनस (Computer, Internet,


e-panchayat, e- governance)

क यूटर के बारे म आजकल सभी जानते ह । क यूटर का ान श ा के े म आव यक


हो गया है । ाथ मक व यालय से लेकर, मा य मक और उ च मा य मक व यालय तक
सभी म क यूटर श ा ाय: अ नवाय हो गई है । क यूटर के मा यम से न केवल टाइप
या डजाइन का काम कया जा सकता है । बि क क यूटर के मा यम से मु ण, साज-स जा,
लेखन-स पादन, वी डयो-ऑ डयो ए नमेशन, एकाउ टंग, ॉ टग आ द सभी कु छ कया जा
सकता है । क यूटर के ज रए सव थम हम लोग डे क टॉप पि ल संग (डी.ट .पी) से प र चत
हु ए । उसके बाद लैप टॉप (Lap Top) आ गया । क यूटर का तकनीक वकास इतना तेज
ग त से हु आ है क पुराने क यूटस तकनीक ि ट से बेकार होते जा रहे ह । दन- त दन
तकनीक बदल रह है । क यूटर आगे बढ़ रहा है । बड़ा सा टे ल वजन जैसा बॉ स रखने
क बजाय अब लोग पाम-टॉप (Palm Top) के अ य त होते जा रहे ह । डजीटल तकनीक
ने सारा य और यवहार ह बदल दया है । आजकल लैट क यूटर न लोग क पहल
पसंद बनता जा रहा है ।
क यूटर के साथ इंटरनेट क सु वधा जुड़ जाने से कह ं भी, कभी भी, कोई भी जब चाहे दु नया
के कसी भी वषय क जानकार ले सकता है । इंटरनेट स फग आज क युवा पीढ़ का शगल
बन गया है । नेट पर चै टंग करके युवा वग मनोरंजन के नए रं ग दे ख रहा है । क यूटर
और इंटरनेट का ह सुखद संयोग है क आज कसान के लए कु छ स म सं थाओं वारा
ई-चौपाल के काय म चलाये जा रहे ह । सरकार तर पर गांव क सू चनाएँ लेने और गांव
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तक सू चनाएँ पहु ँ चाने के लए कुछ भावी शासक वारा ई-गवनस का यवसाय शु कर
दया गया है ।
कृ ष े के लए यह क यूटर और इंटरनेट नई तकनीक, नई जानकार , बाजार भाव, म डी
भाव, वायदा बाजार, टॉक माकट, टम नल माकट, आयात- नयात आ द सबकु छ जान लेने
का साधन बनता जा रहा है । आज कसान भी क यूटर काम म लेते ह । इंटरनेट सेवा उपयोग
करते ह ।

10.3.6 पार प रक मा यम (Folk Media)

पार प रक मा यम का उपयोग हमारे पर परागत समाज क जीवन शैल का एक ह सा है


। लोकसंगीत, नाटक-चाटक याल-धमाल आ द के मा यम से मनोरं जन करना ामीण, कृ षक
समु दाय क आदत है । वशेष का दावा है क कसान , ामीण के अ भ ेरण के लए लोक
मा यम, पर परागत मा यम सबसे यादा सश त मा यम ह ।
पार प रक मा यम के कई व प हो सकते ह
(1) लोकसंगीत (2) लोक कथाएँ
(3) लोक नृ य (4) लोक ना य
इन चार े णय म पर परागत मा यम क ाय: सभी वधाएँ समा हत हो सकती ह ।
कसान के बारे म व वान का एक और वशेष मत है क कोई भी कसान अपने दूसरे कसान
सा थय अथवा प र चत क बात पर ह सवा धक व वास करता है । हमारे पर परागत
भारतीय समाज म ाय: सभी लोक कलाकार थानीय वा श दे होते ह । इस कारण वे आस-पास
के कसान , ामीण के प र चत भी होते ह । वे ामीण क जीवन शैल , र त रवाज और
भाषा के अ छे जानकार होते ह । ऐसी ि थ त म उनका सारा कला मक दशन सभी दशक
ामीण , कसान , म हलाओं, ब च और वृ के लए मनोरं जक, आनंददायी और व वसनीय
होता है ।
भारत म पर परागत लोक कलाएं वलु त ाय: होती जा रह ह । इस े म सरकार संर ण
और लोककलाओं के प रर ण और प रव न क मह ती आव यकता है । दूसर ह रत ां त
को स य बनान म, कृ ष संचार को सफल बनाने म हमारे पार प रक लोक मा यम क
उपयोगी भू मका हो सकती है ।

10.3.7 मेले, उ सव और दश नयाँ (Fair, Function, & Exhibition)

कसान को कृ ष संबध
ं ी उपयोगी जानका रयां उपल ध कराने के लए कृ ष िज स के
यापा रय के साथ कसान का संबध
ं बढाने के लए लाँक, िजला, रा य तर और रा य
तर पर कसान मेल , स मेलन , उ सव आ द के आयोजन कये जाते ह । इन मेले उ सव
से अपने खेत पी योगशाला तक सी मत रहकर काम करने वाले ग तशील कसान को
नई जानका रयां मलती ह । उनका ान बढ़ता है । उ ह अ य कसान के अनुभव और योग
को समझने का अवसर मलता है । कृ ष ान के आपसी आदान- दान का सभी कसान को
लाभ मलता है । मेल , उ सव म मल सरकार , गैर सरकार कृ ष सूचनाओं को कसान
अपने खेत पर अपनाता है, योग करता है । इससे उ नत खेती, ग तशील खेती का माग

160
श त होता है । ामीण, कृ षक समु दाय के लए मेल म शा मल होना, जान-पहचान के लोग
से बातचीत करना पर परागत तौर पर उनके वभाव म शा मल है । मेल म भाग लेकर लौटने
के बाद कसान लोग अपने प रवारजन और पड़ो सय से चचा करते ह । अपने अनुभव को
अ य कसान के साथ बांटते ह । इससे उपयोगी और मह वपूण कृ ष संचार संभव होता है।
आजकल ाय: येक िजला तर पर कृ ष व ान के या िजला कृ ष अ धकार कायालय
क दे ख-रे ख म 'फल-स जी दश नय ' के आयोजन का एक रवाज चल पड़ा है । कसान अपने
खेत क कसी वशेष उपज को दशनी म लाकर रखता है । दशनी म दखाई गई सि जय
और फल का वशेष क टम वारा अवलोकन, नर ण और मू यांकन कया जाता है
। वशेष दल वारा तय कए अनुसार वजेता फल और सि जय के उ पादक को पुर कार
और माण-प दए जाते ह । इन सब ग त व धय से कृ ष के े म हो रहे नए-नए और
अ छे उ पादन क जानकार मलती है, दशनी दे खने आये सभी कसान को । द शत
फल-सि जय को कसान जब खु द दे खता है तो यह उसके अ भ ेरण का सवा धक सश त
तर का सा बत होता है ।
इस कार मेले, उ सव और दश नयां कृ ष संचार म अपने आप सहायक और भावी बन
जाते ह । इस कार के संचार म एक के साथ एक क बातचीत (One to One
Communication) होने के कारण संचार यादा सरल, सह , सरस और साथक हो पाता है
। संचार के कार म अ तवयि तक संचार सबसे यादा अ छा और प रणामदायक संचार
कहा जा सकता है । कृ ष संचार म यह यादा उपयोगी है । कसान आपसी बातचीत को यादा
मह वपूण मानकर उससे सीधे-सीधे भा वत होने क आदत रखता है ।

10.4 दूसर ह रत ाि त क आव यकता (Need of Second Green


Revalution)
हमारा कसान! सु बह से शाम तक, जीवनभर खेती और केवल खेती को सम पत है । इसी
कसान क मेहनत का प रणाम आया, खा या न उ पादन म हमार आ म- नभरता । आजाद
मलने के बाद से हमारे दे श के कृ ष वशेष और वै ा नक ने दन-रात जु टकर, हमार खेती
क उ न त, खेती म उ पादन वृ और वै ा नक खेती के वकास वा ते कसान क मदद
क । उ ह रा ता दखाया । नई खेती के तर के बताये । आज ि थ त यह है क हमारे कसान
खु द कृ ष पं डत कहलाने क ि थ त म आ गये । भारत के कसान क मेहनत का यह
आ चयजनक नतीजा एक ओर जहां कसान क सफलता को इं गत करता है । वह ं यह पूरे
भारतवष क जनता के लए उपलि ध और गौरव का वषय है ।
उ पादन बढ़ाने क चाह म, आ म नभरता को ा त करने के लए खा या न उ पादन म
जो बड़े-बड़े योग कए गए, वे इस कार ह-भू जल वारा संचाई और जमीन म रासाय नक
उवरक और क टनाशक का योग । जल और जमीन के इस अंधाधु ध
ं दोहन के प रणाम ऐसे
रहे क आज भारत म डा टर के वारे - यारे होते जा रहे ह । पार प रक जै वक खेती का थान
आधु नक रासाय नक योग ने ले लया । जनता को, कसान को तथा ामीण को पता ह
नह ं चला क उ होन कौनसी बीमा रय को कब आमं ण दे दया । रासाय नक योग से न
केवल लोग का वा य खतरे म पड़ा, बि क जमीन का वा य भी बुर तरह से भा वत

161
हु आ । एक अ ययन आकलन के अनुसार राज थान क कु ल कृ ष यो य भू म म से 89 तशत
भू म म न जन क कमी, 80 तशत भू म म फॉ फोरस क कमी और 50 तशत भू म
म पोटाश क कमी है । इसका बड़ा कारण असंतु लत एवं अंधाधु ध कृ ष और क टनाशक का
योग है । दे श के वै ा नक और पूव रा प त भारत र न डॉ.ए.पी.जे अ दुल कलाम ने अ ा कत
मशन मोड काय म वारा पहल और दूसर ह रत ाि त को समझाया है :
मशन मोड काय म : ह रत ाि त
थम वतीय
बीज म ी के गु ण दोष
बीज का मलान
उवरक उवरक बंध (जै वक खेती)
जल बंधन जल बंधन
बू ंद –बू ंद सचाई
जल उपभोग आधा
कसान को श ण श ण
कृ ष
कृ ष बंधन फ़सलोतर (साइलोज)
नगम = 400 मै.ट.अनाज
फसल के दौरान और खा य सं करण
फसल के बाद (मू य संवधन)
नगम अनाज वपणन
)200 मल यन टन(
1960 2004-2020
आजाद के सात साल पूरे होत-होते 'यह बात लगभग सभी को समझ आने लगी । हमारे
धानमं ी ने के य कृ ष मं ी के गह रा य और गह नगर बारामती म कए गए अ भनव
कृ ष एवं सहका रता योग क सराहना क । उन योग को पूरे दे श म आजमाने, अपनाये
जाने क आव यकता बताई । साथ ह उ ह ने_ स पूण कृ षक मय कसान का आ वान कया,
दूसर ह रत ां त के लए । दूसर ह रत ां त जै वक खेती, कृ ष व वधीकरण, नकद फसल
का चलन, मलवाँ खेती, बागवानी फसल क शु आत, औषधीय खेती, जल बचत और जल
सदुपयोग आ द पर आधा रत है ।
दे श म दूसर ह रत ां त को संभव और सफल बनाने म मह वपूण और भावी भू मका होगी,
सू चना के संजोग क । आज का युग सूचना का युग है । हम सबको सूचना का अ धकार ा त
है । पूर दु नया आज एक गांव बन चु क है । व व यापार संगठन पूर दु नया म स य
है । माक टंग का दौर चल रहा है । अब केवल उ पादन वृ तक खेती सी मत नह ं हो सकती
। अ छ पैदावार के साथ-साथ कसान अपनी उपज का लाभकार मू य भी ा त कर सक
। इसम सहयोग के लए सरकार और नजी मि डय स हत, सभी यापार और बाजार सहयोगी

162
बन । यह सब कु छ दूर क कौड़ी ज र लग सकता है । पर तु हम सभी को येय यह रखना
होगा ।
कसान को सूचना चा हए । सूचना कह ं , कब और कैसे उपल ध हो । इसक िज मेदार और
जवाबदे ह तय करनी होगी । सात साल के जातां क ढांचे म चल रहे मनमानी के दौर को
कृ ष े म लागू नह ं कया जा सकता । अगर कसी क भी मनमानी अथवा लापरवाह से
कृ ष े म मनमानी का दौर आ गया तो सौ करोड़ से यादा आबाद वाले दे श को अपना
इ तहास फर खंगालना पड़ जाएगा । दो जू न रोट को, एक बार फर तरसना पड़ सकता है
। केवल कृ ष े को 25000 करोड़ पया दे दे ना पया त नह ं कहा जा सकता । इसके लए
एक मजबूत कृ ष सू चना तं वक सत करना होगा । कृ ष सूचना तं केवल क यूटर आधा रत
हो । ऐसा भी ज र नह ं है । गांव के लए, कसान के लए उसक सु वधा और ान म उपयुका
बने रहने वाला सूचना तं ह भावी हो सकता है ।
व तार कायकता पछले 60 साल म अपनी साख खो चु के ह । इस खोई हु ई त ठा को हा सल
करना होगा । राजनी तक झांसो के लए कृ ष और कृ ष व तार म कोई थान नह ं हो सकता
। ठोस प रणाम दे ने वाले कृ ष व तार कायकताओं क एक नई पीढ़ तैयार करनी होगी ।
यह पीढ़ तैयार होने पर एक ओर जहां दूसर ह रत ां त परवान चढ़े गी और सफल होगी वह ं
दूसर ओर ामीण बेरोजगार क सम या भी अपने बो रया- ब तर समेट कर दबे पांव कह ं
अ य चल जाएगी । आज के कृ ष ि ल नक को इसी दशा म एक सह और साम यक कदम
कहा जा सकता है । ले कन अभी यह योजना और इसम संल न कृ ष कायकताओं क सं या
ऊँट के मु ँह म जीरे के समान है ।
रा य तर पर कृ ष ि ल नक क कोई अ भनव योजना बनाकर इस े म सु नि चत
प रणामो मु ख पहल क जा सकती है ।
कसान के लए न केवल सूचना क आव यकता है । बि क उ ह सूचना के सदुपयोग का
श ण भी दया जाना आव यक है । इस श ण से कसान सभी तरह के सूचना तं
का बेहतर योग कर सकता है ।
कसान सभी सू चनाओं पर, सरकार योजनाओं पर, सभी सू चना तं पर और सभी कृ ष व तार
कायकताओं पर व वास कर सके । यह हम सभी के लए एक बड़ी एवं मह वपूण चु नौती
है ।

बोध न-1
(क) पार प रक मा यम गांव के लए वशेष उपयोगी य ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) ामीण लेखन करते समय कसान के बोध तर का ान होना य आव यक है?
................................................................................................................
................................................................................................................

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................................................................................................................
(ग) ‘रे डयो गाँवो मे यादा भावी है।’ य ?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) गाँव के वकास के लए कृ ष संचार का वकास य ज र है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

10.5 कृ ष संचार का भावी मा यम (Effective Media of


Agricultural Communication)
कृ ष संचार के लए लगभग सभी संचार मा यम का आजकल उपयोग कया जा रहा है ।
हर मा यम क अपनी वशेषताएँ ह । सबक अपनी-अपनी पहु ँ च ह । कसान क खु द क
अपनी-अपनी समझ ह । सभी मा यम क अपनी सीमाएँ भी ह । ऐसी ि थ त म कसी एक
मा यम को यादा उपयोगी या सह बताना यायो चत नह ं लगता । फर भी कृ ष संचार
वषय के व याथ के नाते व भ न मा यम क वशेषताओं और प रसीमाओं को यान म
रखकर च तन-मनन कया जाना वां छत है । कृ ष संचार के अ ययनाथ इस ि ट से वयं
च तन कर, मनन कर और अपनी एक राय बनाय ता क कृ ष संचार को यादा भावी बनाने
म वे अपनी भू मका अदा कर सक ।

10.6 कृ ष संचार क भाषा. पाठक. ोता एवं दशक क कृ त (The


Nature of Language, Reader, Audience and Viewer of
Agricultural Communication)
समाचारप , प काएँ, रे डयो, फ म, टे ल वजन स हत सभी च लत मा यम भाषा क ि ट
से अपनी खास पहचान बनाने के लए अपने ोता, पाठक या दशक क बोलचाल क भाषा
को यान म रख, तभी सह संचार संभव है ।
कृ ष संचार का पाठक, ोता या दशक ामीण एवं गर ब कसान आ द ह । इन सबका भाषायी
नज रया सामा य से सामा य श द तक सी मत होता है । ऐसी ि थ त म संचारक मय के
लए ामीण, गर ब, कसान क भाषा को ह अपने मा यम क भाषा बनाया जाना आव यक
है । अ यथा समाचारप , रे डयो, फ म, टे ल वजन या अ य कसी मा यम से कसान एवं
खेती के लए कह गई बात का कोई खास मतलब नह ं रह जाता । कसी भी मा यम के
लए काम करने वाले लोग ामीण, गर ब, कसान क भाषा को समझ कर, उसक आदत
बनाकर अपने संदेश , काय म या समाचार को उसी भाषा म बनाकर कृ ष संचार म उपयोगी
खास भू मका अदा कर सकते ह ।

164
हमारा पूरा दे श शहर और ामीण दो धड़ म बंटा हु आ है । पार प रक लोक कलाकार,
संचारक मय के अलावा लगभग सभी मी डया कम या तो शहर म रहते ह, शहर वभाव
के ह या पूर तरह से शहर भाव म है । ऐसी ि थ त म ामीण , कसान , गर ब क जानकार
रखना, खेती-बाड़ी का यावहा रक ान रखना या उसक सूचनाएँ रखना यादा यावहा रक
और भावी नह ं हो पा रहा ह । कसी भी संचार मा यम के लए उसके पाठक, ोता या दशक
क पूव जानकार होना माद संचार क थम शत है । संचार म त या (फ ड बैक) का
मु ख थान है । समु चत फ डबैक के मा यम से सभी संचार मा यम अपने काय म ,
सू चनाओं, संदेश या श ाओं को पाठक, ोता या दशक के अनुकू ल और यादा उपयोगी बना
सकते है?
पाठक, ोता अथवा दशक कस माहौल म रहता है । उसका रहन-सहन या है? उसका
जीवन- तर या है? शै क, सामािजक तर या है? वह कस भाषा का योग करता है?
उसक बातचीत क वशेषताएँ या ह? वह कन सू चनाओं से यादा आक षत होता है? कौनसे
मा यम का वह सवा धक योग करता है? मा यम से स पक का सवा धक उपयु त समय
दशक, पाठक या ोता के लए कौनसा है?
पाठक, दशक या ोता से संबं धत सूचनाओं को हम दो-दो े णय म बांट सकते ह :-
1. जीवन तर संबध
ं ी सू चनाएँ (Demographic Information)
2. सं यवहार एवं मनोवै ा नक सूचनाएँ (Psychographic Information)
इन दोन कार क सू चनाओं क जानकार कर लेने और जानकार लेते रहने से अ य संचार
क भां त कृ ष संचार को भी यादा भावी और कसान उपयोगी बनाया जा सकता है ।
उदाहरणाथ :
1. समाचारप -प काओं म कृ ष संचार के लए समाचार, व ापन, आलेख, सू चना आ द
म कसान के सामािजक शै क तर को यान म रखकर ह छापा जाए । जो कुछ भी
छपे, उसे कसान पढ़ सक, समझ सक, तभी सह संचार संभव है ।
2. रे डयो के कथानक और उनक भाषा कसान क अपनी हो तभी रे डयो के कृ ष काय म
के ोता उनसे आक षत और भा वत ह गे ।
3. टे ल वजन काय म म भी वह दखाया जाए जो कसान को अपना-सा लगे । वह बोला
जाए, उसी शैल म बोला जाए िजसे कसान पसंद कर और समझ सक ।

10.7 कृ ष संचार और म हलाएँ (Agricultural Communication and


Women)
स दय से म हलाओं को समािजक तर पर दूसरा दजा दया जाता रहा है । यह सव व दत
है । पर तु कृ ष का यावहा रक य बलकु ल अलग है और पूर तरह से म हलाओं क
भागीदार , मता और स मता को ात करता है । चाहे कृ ष काय हो, पशु पालन काय हो
या डेयर उ पादन । सभी म म हलाओं का सवा धक योगदान है । आज ि थ त यहां तक है
क ामीण पु ष चौपाल म प रचचा करते ह या शहर चले जाते ह । घर के सभी कृ ष काय
म मेहनत करती ह घर क म हलाएँ ।

165
अत: कृ ष संचार क सफलता के लए कसान म हलाओं को श त करना होगा । कसान
म हलाओं तक पहु ँचने के लए म हला संचारक मय क एक बड़ी फौज रा य तर पर तैयार
करनी होगी । जो उ नत कृ ष को समझकर म हला कसान को समझा सक, तभी दूसर ह रत
ाि त सफल होगी ।

10.8 कृ ष संचार : कल. आज और कल (Agricultural


Communication: Yesterday, Today and Tomorrow)
हमारे दे श को आजाद मलने के बाद से अब तक कृ ष संचार के े म अनेक यास हु ए
ह । आजाद से पहले कसान के बीच जहां केवल थानीय पार प रक मा यम क पहु ँच थी
। वह ं आजाद के बाद फ म , रे डयो और टे ल वजन स हत व भ न समाचार-प और
प काओं ने कृ ष े म अपना व तार कया ले कन इसे पया त नह ं कहा जा सकता ।
आज पूर दु नया बाजार क पकड़ म है । धीरे -धीरे भौ तक सु ख-सु वधाओं क ाि त और
वा णि यक ि टकोण पूरे समाज म अपनी पैठ बना चुका है । इंटरनेट, अखबार, रे डयो व
टे ल वजन पर अलग-अलग मं डय के भाव जानकर आज का कसान सैकड़ कलोमीटर दूर
क मं डय म यादा लाभ लेने के लए पहु ँ च सकता है । यातायात सु वधाओं म वृ ने कसान
क सु वधा बढ़ाई ह । कसान अब बाजार को, उसक बात को समझने लग गया है । हमारा
भारतीय मी डया भी बाजार क पकड़ से अछूता नह ं है । मी डया के व ापन, सारण, काशन
और वतरण, ववेचन म हर वचार, ान या संचार को उ पाद के प म तु त कया जा
रहा है । आकषक तु त के लोभ म फूहड़ता को परोसा जा रहा है ।
कृ ष े , खेती-बाड़ी और खेत-ख लहान भी मौजू दा मी डया के इस अ नयं त, अशोभनीय,
गैर-िज मेदाराना यवहार से वं चत नह ं है ।
अभी हाल ह म एक समाचार चैनल ने वशेष प से जनमत क जानकार क गरज से
टे ल वजन पर एक सवाल पूछा
 खब रया चैनल वारा या दखाया जाना चा हए.
(अ) ह या, बला कार, लू ट-खसोट और अपराध क घटनाएँ ।
(आ) जादू टोना, नाग-ना गन, तं - व या और अपराध क घटनाएँ ।
(इ) िज मेदार पूवक समाचार तु त ।
इस सवाल को टे ल वजन दशक से पूछते व त काय म के सू धार वारा कहा गया क
आमतौर पर समाचार चैनल का एक ह जवाब होता है क जनता या न दशक जो दे खना चाहते
ह, उसे ह वे दखाते ह ।
'एस.एम.एस. ' के मा यम से कए गए इस सव के प रणाम पूरे मी डया, तं और समाज
के लए आ चयजनक हो सकते ह ।
जवाब म मा एक तशत लोग ह या, बला कार, लू ट-खसोट और अपराध दे खना चाहते ह
। दो तशत लोग जादू-टोना, नाग-ना गन, तं - व या और मसखर को दे खना चाहते ह ।
कु ल उ तरदाताओं म से अ धकांश या न 97 तशत दशक सभी खब रया चैनल पर
िज मेदार पूवक दखाई गई खबर का आनंद लेना चाहते ह ।

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अगर समाचार के लए जनता का ऐसा जवाब है तो कृ ष काय म या संचार के लए जवाब
भी इसके आस-पास ह होगा । फर भी कृ ष संचार अगर नमाण पूव सव ण करवाकर कसान
क अपने संचार मा यम के बारे म राय लेव तो वतमान कृ ष संचार का व प ह बदल सकता
है । ऐसे संचार से कसान पूर तरह से आक षत होग, उसे पसंद करगे और समय-समय पर
यथा संभव इसका लाभ उठायगे ।
आज के व व-गांव म कसान को स म बनाने के लए सरकार लगातार यासरत है । कृ ष
े म वा षक वृ का ल य 4 तशत रखा गया है । हाल ह म धानमं ी डी. मनमोहन
संह ने कृ ष े के लए 25000 करोड़ पये का वशेष ावधान कया है ।
अत: आने वाले समय म कसान और कृ ष दोन को वकास क मु यधारा म लाने के लए
मी डया को वशेष संचार अ भयान क तैयार करनी होगी । इसम छोटे -बड़े कसान के
साथ-साथ कृ ष वशेष , कृ ष व या थय , अ ययना थयो, सामािजक कायकताओं, कृ ष
पयवे क , कृ ष अ धका रय , नेताओं-अ भनेताओं और संचारक मय , मी डयाक मय को
मलकर काम करना होगा । एक वशेष कृ ष संचार प रयोजना ' लोबल गांव म भारतीय कृ ष
और कसान का सह और बदला हु आ व प दखा सकती है । इसम समि वत यास क
आव यकता है ।

10.9 ामीण वकास संचार (Rural Development Communication)


इसी अ याय म हमने संचार क बात पहले ह कर ल है । इस लए अब केवल ामीण वकास
क बात करते ह । आइये ामीण वकास को समझते ह । कृ त और येक ाणी मा का
एक वभाव है, वकास । वकास या न उ तरो तर आगे बढ़ना । छोटे से बड़ा बनना । कमजोर
से शि तशाल बनना । सामा य से वशेष बनना । गर ब से अमीर बनना और साधन वह न
और सूचना वह न से साधन स प न और सूचना स प न बनना । सामा य श द म यह
है वकास । वकास यि तगत, पा रवा रक, सामािजक, सां कृ तक, आ थक, राजनै तक,
थानीय, ादे शक या रा य आ द कसी भी तर पर हो सकता है ।
रा य तर पर जब त यि त आय म वृ होती है ।
या
 लोग के जीवन तर, शै क तर और सु ख-सु वधाओं म वृ होती है ।
या
 लोग भू ख से पी ड़त नह ं होते । उ ह समय पर वा य सेवाएँ उपल ध होती ह । ब च
क मृ यु दर कम होती है ।
उपरो त सभी ि टकोण से रा य वकास क गणना क जाती है । उसका अनुमान लगाया
जाता है । अगर इ ह ं आधार पर हम गाँव म रहने वाले सभी लोग यानी ामवा सय के
बारे म आकलन कर तो जो नतीजा आएगा, उससे हम ामीण वकास का अनुमान लगा सकते
ह । उसक दशा और दशा स हत उसक ग त, नी त और नय त को समझ सकते ह ।

167
10.9.1 ामीण वकास का अथ एवं े (Meaning and Scope of Rural
Development)

हमारे दे श को गाँव का दे श कहा जाता है । भारत म कुल मलाकर 6 लाख गाँव ह । राज थान
म गाँव क सं या लगभग 41 हजार है । हमारे दे श क लगभग 70 तशत आबाद गाँव
म रहती है । गाँव म रहने वाले अ धकांश लोग का मु ख यवसाय कृ ष और पशु पालन है
। गाँव के शेष बचे लोग खेती से जु ड़े अ य यवसाय पर नभर ह ।
गांव म रहने वाले सभी लोग को रा य वकास म शा मल कया जा सके । सभी ामीण
तक रा य वकास का लाभ पहु ँ च सके । ामीण तर पर रा य वकास को दे खा जा सके
। उसे महसू स कया जा सके । इसके लए सरकार वारा ामीण क मदद के लए, उनके
रोजगार म वृ के लए, उ ह वरोजगार उपल ध कराने के लए, ामीण के लघु-उ योग
के संर ण के लए अनेक योजनाएँ चलाई जा रह ह । उदाहरणाथ - समि वत ामीण वकास
योजना (आई.आर.डी.पी.) वण जयंती ाम वरोजगार योजना, सु नि चत रोजगार योजना,
इि दरा आवास योजना, सामािजक वा नक योजना, अपना गाव अपना काम योजना स हत
ऐसी अनेक योजनाएँ चल रह है, िज ह भारत सरकार और रा य सरकार का ामीण वकास
मं ालय मलकर चलाता है । पूरे दे श म िजला तर पर ामीण वकास अ भकरण कायरत
ह ।
गाँव म रहने वाले लोग क त यि त आय म जब वृ होती है । ामीण का जीवन तर
सु धरता है । उनके दै नक, पा रवा रक, सामािजक जीवन म उपयोगी सु ख-सु वधाओं म वृ
होती है । गांव के लोग को भू ख का सामना नह ं करना पड़ता । जब दो व त भरपेट खाने
क यव था, सु वधा सभी ामीण के पास हो तथा बीमार क ि थ त म सभी को वा य
एवं च क सा सेवाएँ उपल ध ह तब गांव क ऐसी ि थ त को हम ामीण वकास का नाम
दे सकते ह ।
गांव म गर ब और अमीर, म हला-पु ष, ब चे, बूढ़े , जवान, अगड़े और पछड़े सभी रहते ह
। ामीण म से कुछ गर बी क रे खा से नीचे जीवनयापन करने वाले (बी.पी.एल.) प रवार
भी होते ह । इन बी.पी.एल. प रवार के लए भी सभी आव यक सु वधाएँ उपल ध कराई जा
सक । पूरे गाँव के लोग को अभाव, भु खमर और बीमा रय क ि थ त म यथा आव यक
एवं यथासंभव मदद क जा सके । यह है ामीण वकास का दायरा या न े । येक ामीण,
गाँव, िजले, दे श और दे श के वकास क मु यधारा से जु ड़ सके । उसम शा मल हो सके
। उसका लाभ ले सके तभी होगा साथक ामीण वकास ।

10.9.2 ामीण वकास का मह व (Importance of Rural Development)

आधी सद आजाद क ,
नव- नमाण म बीती है ।
अब बार है ामीण वकास क
भारत के स पूण वकास क ।

168
जी हां! आजाद के बाद से ह रा य सरकार और रा य सरकार के सम ढे र सार सम याएँ
और चु नौ तयां थीं । गुलामी क जंजीर म जकड़ा भारतीय शहर और ामीण दोन ह अपना
जीवन चलाने के संघष म लु टे थे ।
भारतीय सं वधान के लागू होते ह , दे श म नई स ता, नई यव था ने काम करना शु कर
दया । रा य पंचवष य योजनाओं क शु आत हु ई । इन योजनाओं के तहत ामीण वकास
को भी शा मल कया गया । अभी यारहवीं पंचवष य योजना म ामीण वकास पर सबसे
यादा यान दए जाने का ल य रखा गया है ।
ामीण लोग म से भी वकास के अि तम छोर पर जीवनयापन करने वाले लोग को मु यधारा
से जोड़ा जा सके । उ ह अपना रोजगार चलाने म मदद द जा सके । ामीण, गर ब जनता
भी रा य वकास म अपनी भागीदार महसूस कर सके । यह है येय, ल य एवं उपयो गता
ामीण वकास क ।

10.9.3 ामीण वकास क दशा एवं दशा (Position of Rural Development)

सम त भारतवष म पछले लगभग सात साल म ामीण वकास क अनेक योजनाएँ चलाई
गई ह । ामीण वकास के लए के और रा य तर पर अलग मं ालय एवं कई वभाग
कायरत ह । ामीण वकास म संल न सरकार अ धका रय , गैर-सरकार संगठन और
सामािजक कायकताओं का एक वशाल तं कायरत है । सभी मं ालय एवं वभाग क तरह
ामीण वकास मं ालय के तहत स य सभी वभाग और संगठन वारा लगातार वा षक
ल य नधा रत करके काम कया जाता है ।
सभी ामीण वकास काय और योजनाओं के लए बहु त बड़ी धनरा श सालाना खच व प
उपल ध कराई जाती है । प रणाम जो भी ह, हम सबके लए वचारणीय ह । भारत के धानमं ी
वारा बहु त पहले एक सावज नक सभा म कहा गया था क भारत सरकार वारा ामीण
के लए जब एक पया दया जाता है तब ामीण तक पहु ंचते-पहु ंचते वह पया मा दस
पैसे रह जाता है । यह ि थ त आज भी य क य है । बि क उसके लए काय करने वाला
तं अब तक अपने वभाव और तर क को यादा मजबूत व वीकाय बना चु का है ।
ऐसी ि थ त से उबरने और नबटने के लए प पात र हत शासन, टाचार मु त आचरण
और ल य व प रणाम आधा रत काय वृि त वक सत कया जाना परम आव यक है । इसके
लए लोग म एक खास रा य च र क भावना बन सके, तो ह ामीण वकास या अ य
कोई भी रा य व सामािजक हत का काय पूर लगन, ईमानदार एवं मेहनत के साथ कया
जा सकता है । अब तक योजनाएँ बनाने म यादा और लागू करने म अपे ाकृ त कम खच
हो रहा है । इसे हम रा य, ादे शक और थानीय तर पर पूर तरह से सोच-समझकर
लागू करना होगा ।
ामीण वकास क सभी योजनाओं को, इसके लए नधा रत धनरा श को ज रतमंद हाथ
तक पहु ंचाकर, उसके साथक या वयन को सु नि चत करके ह व रत ामीण वकास को
संभव बनाया जा सकता है ।

169
10.9.4 कृ ष व ामीण वकास क तुलना व सह-संबध
ं (Difference & Co- relation

in Agriculture & Rural Development)


िजस तरह खेत म कए जाने वाले काय को कृ ष कहा जाता है । वैसे ह गांव के वकास
के लए कए जाने वाले काय को ामीण वकास कहते ह । ामीण वकास गाँव के सवागीण
वकास से संबं धत है । जब क कृ ष, खेती और कसानी के काय तक सी मत है । कृ ष काय
म कसान, उनके प रवार और खे तहर मजदूर शा मल होते ह । जब क ामीण वकास म
इनके साथ-साथ गाँव म रहने वाले अ य गैर-कृ ष काय म संल न लोग भी शा मल होते ह।
कृ ष काय के लए रा य एवं रा य सरकार के कृ ष मं ालय, वभाग और कृ ष पयवे क
कायरत ह । इन मं ालय के तहत ् कृ ष वकास और सुधार के लए कई तरह क योजना
बनाकर उ ह लागू कया जाता है । कसान को समु नत खाद, बीज, उवरक, उपकरण और
अनुदान उपल ध कराये जाते ह । कृ ष उपज मं डय और अ य यापा रक संगठन वारा
कसान क उपज को खर द कर उ ह वपणन सहायता उपल ध कराई जाती है ।
ामीण वकास के लए के य ामीण वकास और रोजगार मं ालय स हत रा य के ामीण
वकास वभाग, िजला ामीण वकास अ भकरण और पंचायत स म तयां काय कर रह ह ।
गाँव म ाम पंचायत के तहत ाम-सभाओं क बैठक म बनाई गई योजनाओं को पंचायत
स म त तक पहु ंचाया जाता है । पंचायत स म त क अनुशस
ं ा के साथ ाम सभा वारा
अनुमो दत ाम वकास योजनाएँ िजला ामीण वकास अ भकरण के पास पहु ँच जाती ह ।
वहां इन ताव पर तकनीक एवं व तीय वचार- वमश के बाद वीकृ तयां द जाती ह ।
इस तरह ामीण वकास क यह - तर य यव था लगातार कायरत है । योजना चाह कृ ष
क ह या ामीण वकास क । अब तक क यव था म इनम कोई आपसी सह-संबध
ं या
सम वय नह ं होता है । इस कारण अपनी-अपनी ढपल और अपना-अपना राग क ि थ त
म प रणाम होता है, वह 'ढाक के तीन पात' जैसा ।
दसवीं पंचवष य योजना के तहत पछले पांच साल म राज थान रा य को के सरकार से
ा त हु ई कुल धनरा श म से रा य सरकार लगभग 600 करोड़ पये खच ह नह ं कर पाई
। के क ओर से यह धनरा श रा य सरकार को ामीण वकास क वण जयंती पर वण
जयंती ाम वरोजगार योजना, संपण
ू ामीण रोजगार योजना, 'बायो गैस योजना, ' धानमं ी
ाम योजना', म वकास -काय म और सू खा भा वत े वकास' काय म म खच करने
के लए उपल ध कराई गई थी ।
यहाँ यान दे ने यो य बात यह है क ामीण वकास क योजना बनाने वाले और उन योजनाओं
को लागू करने वाल क काय वृ त, वभाव और सोच म जमीन आसमान का फक है । इस
फक का प रणाम होता है बना कसी साथक प रणाम के योजना का धराशायी हो जाना ।
योजनाओं के या वयन म आकड़ का म कड़-जाल इतना हावी- भावी हो गया है क लाख
सकारा मक को शश के बावजू द भी िज मेदार नी त- नमाताओं तक स य या वा त वकता
पहु ंच ह नह ं पाती ।
कृ ष संचार ामीण वकास संचार को एक छतर के नीचे वकासा मक जनसंचार के तहत
समझा जा सकता है । आइये वकासा मक जनसंचार को समझते ह ।

170
10.10 वकासा मक जनसंचार (Developmental Mass
Communication)
वकासा मक जनसंचार एक ऐसी या है, िजसम कु छे क वां छत उ े य एवं ल य क ाि त
के लए लोग के समू ह या समाज के वशेष वग या तबक के यवहार एवं वृि तय को
बदलने का सकारा मक यास कया जाता है । वृह तर समाज का हत-साधन ह वकासा मक
जनसंचार का परम ल य होता है । इसका मु ख संबध
ं दे श, समाज और यि त के सामािजक
एवं आ थक वकास म 'सू चना एवं संचार' क भू मका से है । इसका सरोकार नगर या ामीण
े म जन-सामा य के जीवन क गुणव ता म सुधार लाने के लए जनसंचार मा यम (मास
मी डया) कर य -अ य भू मका क पहचान करना है ।
वकासा मक संचार योजनाब एवं सु वचा रत हो सकता है । यह मानवीय स ब ध -स पक
के प रणाम व प वा तः सु खाय भी हो सकता है । दोन ह व धय से वकासा मक संचार
मानवीय समाज को भा वत, उ वे लत एवं स तु लत करने वाल एक सतत या है ।

10.11 वकासा मक संचार क कृ त (Nature of Development


Communication)
संचार क व वध व पी उपल धताओं ने ' लोबल-गांव म अनेक स भावनाओं को ज म दया
है, स भव बनाया है । नै तक-अनै तक, भले-बुरे , य -अ य , जन- हतैषी और जन-
वरोधी सभी कार का स ेषण या संचार, वकासा मक संचार नह ं हो सकता । इसके लए
संचार के साथ वकास का उ े य जु ड़ा होना आव यक है । यह वकास का उ े य प ट भी
हो सकता है और छ य भी । य भी हो सकता है तो परो भी । वा त: सु खाय हो सकता
है तथा सु नयोिजत भी । संचार कैसा भी हो अगर वह जनसंचार (मासक यू नकेशन) क ेणी
का है और उसके साथ मानवीय वकास का ि टकोण तथा उ े य संल न है तो इसे
वकासा मक जनसंचार ह कहा जाएगा ।
1. वकासा मक जनसंचार मानवीय कृ त है ।
2. वकासा मक जनसंचार रा य वकास का वशेष सु नयोिजत यास है ।
3. वकासा मक जनसंचार सामािजक बदलाव और मत- नमाण क या है ।

10.12 वकासा मक जनसंचार क स भावनाएँ (Scope of


Developmental Mass Communication)
सृि ट के ार भ से मानव ने सांसा रक जीव म अपना वच व बनाए रखा है । आज वह दु नया
का बेताज बादशाह है । मानव ने हर काल, दे श एवं प रि थ त म हर बार अपनी े ठता स
क है । यह नह ,ं उसने अपनी े ठता को संवाद के ज रये एक-दूसरे के साथ बांटा है ,
आदान- दान कया है । हमने अपनी मानव जा त को कभी कमजोर नह ं होने दया । अपनी
साम य, शि त, भि त एवं शौय को एक-दूसरे के साथ आदान- दान करते हु ए ह सफल एवं
स पूण महसू स कया है ।

171
आज हम संवाद एवं आपसी स ेषण का वकास करते हु ए ऐसे युग म जी रह ह, िजसे सू चना
का युग कहा जाता है । सूचना का दो तरफ वाह(Two way communication) आज इतना
स य एवं भावी है क संचार वशेष क भाषा म हम आज 'सू चना- व फोट' क ि थ त
तक पहु ंच गए ह । सूचना क यह व फोटक ि थ त कसी भी प रि थ त म, समाज के लए
साथक एवं उपयोगी नह ं कह जा सकती । सूचना का सदुपयोग केवल सु वचा रत, सु नयोिजत,
सकारा मक-संवाद, स ेषण, संचार एवं जनसंचार से ह स भव है । इसका स भव माग श त
करता है, वकासा मक जनसंचार ।
(1) ती वकास करते ' लोबल-गांव म वकासा मक जनसंचार वारा सभी क वकास म
यि तगत साझेदार -भागीदार के यथा संभव साथक यास कए जा सकते ह ।
साझेदार -भागीदार के लए पहले उनको सूचना दे नी होगी । यह सू चना पहु ंचाने का मा यम
वकासा मक जनसंचार ह हो सकता है । यह वकासा मक जनसंचार यि तगत उ रे ण
तक सफल हो सकता है ।
(2) वकास को येक यि त तक पहु ंचाना वकासा मक जनसंचार से ह स भव है । संचार
का अ य तर का य : यि तगत उ रे णा एवं संसच
ू ना दान करने का यादा भावी
तर का नह ं हो सकता । वकासा मक जनसंचार वारा दया गया स दे श येक यि त
को वां छत तर क सूचना दान करते हु ए उसे य -अ य बदलाव क ओर आक षत
करते हु ए अपने जीवन तर म सुधार के लए वयं ह काय णाल म प रवतन एवं
स यता के लए े रत करता है । काला तर म वकासा मक जनसंचार वारा द त
यह ेरणा सामािजक बदलाव एवं सुधार के लए मजबूत स होती है ।
(3) वकासा मक जनसंचार सकारा मक सामािजक ि टकोण नमाण का े ठ साधन है ।
व भ न समाचारप , ाइवेट ट वी. चैन स और अ य जनसंचार मा यम वारा आज
जो सामािजक नकारा मक सोच वक सत क जा रह है, उस पर अ वल ब रोक लगाना
या उसे नयि त कया जाना आव यक है ।
हमारे पूव रा प त भारत र न डॉ. ए.पी.जे. अ दुल कलाम साहब ने कृ ष, गाँव, कसान और
ामीण स हत सभी के लए रा य तर पर लागू करने का एक स पक-स प नता मॉडल
दया है ।

10.13 स पक-स प नता का मॉडल


नजी और सावज नक भाव े म सरकार व बहु आयामी सं थाओं क सहभा गता एक अरब
लोग क समृ , स प नता के लए इले ो न स स पक स प नता ह मुख मॉडल है ।
मल -जु ल उ न त और आ थक स प नता के लए इस सहभा गता क वशेषता है क ान
और सू चना के मु त वाह वारा अथ यव था के तीन े - कृ ष, नमाण और सेवा क
सीमाओं और वभेद को समा त कया जा सके । इस मॉडल म अथ यव था के इन तीन
े म आपसी स पक स प नता चार ड के मा यम से संभव है । ये चार ड है :
1. ान ड
2. वा य ड
3. ई-गवनस ड और

172
4. पुरा ड (सात हजार पी.यू.आर.ए. इकाइयां)
येक ड बहु आयामी स पक क एक यव था है ।
एक अरब लोग क सेवा के लए अ त: और बा य इले ो न स स पक- स प नता क
यव था के साथ सह- याशील येक े क मता को अ धकतम करने के लए धरती
और लोग के घरे लू उ पादन मता को अ धकतम करना ह उ े य है । इससे ामीण े
म 70 करोड़ और शहर े म 30 करोड़ से यादा लोग को समृ बनाया जा सकता है
। इस या म गर बी क रे खा से नीचे जीवनयापन करने वाले 28 करोड़ लोग के जीवन
को बेहतर बनाया जा सकता है ।
सामािजक ड श ा, वा य सेवाएं, ई-गवनस, ामीण वकास के व भ न पुज म
सह- याशीलता को अ धकतम करने के लए हम इनम स पक-स प नता था पत करनी
होगी । ये स पक नि चत तौर पर मु त पहु ंच को संभव बनाएंगे । व भ न भाव े म
सू चना के आदान- दान को आसान करते हु ए सकल घरे लू उ पाद और उ पादकता को
अ धकतम तक ले जाएंगे । इस लए ान ड, वा य सेवा ड, ई-गवनस ड और पुरा
ान ड को था पत कया जाना आव यक है । यह आपसी स पक-सू स प नता ड
ह सामािजक ड कहलाएगी ।
ान का आदान- दान, ान का सदुपयोग और ान का पुन योग बहु आयामी वकास के
ो साहन वा ते, समाज के सभी तबक के लए वृहद है ,
सामािजक ड म अधो ल खत शा मल ह :
 ान ड - व व व यालय के साथ, सामािजक-आ थक सं थाओं, उ योग और आर.
ए ड .डी. संगठन का आपसी तालमेल और जु ड़ाव ।
 वा य सेवा ड - सरकार वा य सेवा सं थाओं, काप रे ट और अ त व श ट
अ पताल , अनुसध
ं ान सं थान , श ण सं थान और अं तम तौर पर फामा आर. ए ड
डी. सं थाओं का आपसी तालमेल और जु ड़ाव ।
 ई-गवनस ड - जी2सी स पक सू के लए के य सरकार, रा य सरकार और िजला
व लाँक तर य कायालय का आपसी तालमेल और जु ड़ाव ।
 पुरा ान ड - घरे लू सेवादाताओं और ाम ान के के साथ पुरा नोडल के क
स पक सू स प नता । ामीण वकास का आधार तंभ होने के नाते पुरा ड के साथ
सभी अ य ड अपना योगदान, अंशदान कर ता क वकास वा य सेवाओं और अ छे
शासन को लगातार संभव बनाया जा सके ।
उदाहरण के लए : पे रयार े के पांच पुरा यु त गाव आज वी-मै स स पक सू काम म
ले रहे ह । समे कत ा य- ान के , पुरा ान ड के मा यम से दूर- श ा, दूर-दवा और
शासन सेवाओं के लए पर पर वतरण मशीनर क तरह काय करने के अलावा गाँव म और
गाँव से बाहर ा य ान के तक लोग क यि तगत पहु ंच को भी बल दान करगे ।
अब तक हमने सभी चार तरह क स पक-सू स प नताओं क चचा कर ल है । सामािजक
बदलाव के लए इनक आव यकता है । इनके मा यम से सामािजक बदलाव के लए आधार

173
और थान उपल ध हो सकता है, जो सामािजक सशि तकरण को संभव बनाता है । पूरे कारोबार
म आ था और व वास के माहौल स हत यह समाज को महका दे गा ।
भारत सरकार ने खासकर ामीण भारत म आधारभू त ढांचा नमाण हे तु ' 'भारत- नमाण' '
शीषक से एक चार वष य कारोबार योजना को तैयार कया है ।
भारत नमाण का मॉडल :

बोध न - 2
(क) ' ामीण वकास म म हलाओं का वशेष योगदान है । कैसे?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) वकासा मक संचार का मुख ल य या है ?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ग) या ामीण वकास से जु ड़ी योजनाओं का या वयन ठ क ढं ग से कया जा रहा
है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(घ) ामीण वकास के सम सबसे बड़ी चु नौती या है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

174
10.14 एक उ योग के प म पी.यू.आर.ए.योजना (P.U.R.A
Programme as a Industry)
अ धकांश बक उ य मता वकास काय म चलाते ह । व भ न े म अलग-अलग तरह के
लघु उ योग को भी बक वारा पया उपल ध कराया जाता है । एक समि वत तर के से
पी. यू.आर.ए. (पुरा) इकाई को चलाने के लए लघु उ यमी सवा धक उपयु त मु ख कायकार
उ मीदवार है ।
पी.यूआर.ए. (पुरा) उ य मता इकाइयां कूल , वा य इकाइय , यवसा यक श ण के ,
अवशीतन इकाइय , भ डार गृह और बाजार नमाण, बक णाल और े ीय यापार या
औ यो गक इकाइय का संचालन भी कर सकती है । पी.यू.आर.ए. (पुरा) इकाइय के लए
एक नया मशनर ब ध का तर का वक सत करना होगा । य य प संर क कानून के सहयोग
क इ ह अपे ा न हो तथा प फर भी सह बात तो यह है क इ ह दूसर के साथ त पधा
म स म बनाना होगा ।
इस नये पी.यू.आर.ए. (पुरा) उ योग को बक , सरकार और नजी उ य मय क भागीदार क
ज रत है । बक वारा पुरा उ य मय को ब ध का श ण दया जा सकता है । पुरा इकाइय
क संरचना और संचालन के लए बक वारा यापा रक अनुपात म ऋण दया जा सकता
है ।

175
इन सभी य न म पि लक- ाइवेट स वल समाज क भागीदार के बारे म सो चए ।

10.15 श दावल (Glossary)


)1 पर परागत मा यम (  आधु नक जनमा यम से इतर वे गैर
तकनीक आधा रत मा यम जो पर परागत
जीवन (Traditional Media) शैल से जु ड़ी
तु तयां दे ते ह ।
)2) ॉडकाि टं ग (Broadcasting (  रे डयो अथवा टे ल वजन वारा काय म के
सारण क या
(3) साइट )Site (  1975-76 म जार सैटेलाइट इं शनल
टे ल वजन ए सपे रमट ो ाम, िजसके
वारा वकास संबंधी काय म को सैटेलाइट
के मा यम से भारत के 6 रा य के 2400
गाँव तक ट वी काय म का सारण कया
गया ।
)4) वैि वक गांव )Global Village (  वह अवधारणा िजसम संचार मा यम के
बढ़ते संजाल ने व व क दू रय को घटा
दया है ।
)5) ई) गवनस-E-Governance (  इंटरनेट के मा यम से सरकार के काय को
संचा लत करने क या ।

10.16 अ यासाथ न (Question)


1. कृ ष संचार को प रभा षत करते हु ए इसके मह व को प ट क िजए?
2. कृ ष संचार के मा यम पर काश डा लये?
3. ामीण वकास संचार से आप या समझते ह, स व तार समझाइए?
4. वकासा मक संचार पर काश डालते हु ए इसक कृ त एवं स भावनाओं को प ट
क िजए?

10.17 संदभ थ (Further Readings)


1. वकास एवं व ान संचार, स पादक : डी. संजीव भानावत, जनसंचार के , राज थान
व व व यालय, जयपुर ।
2. 'कृ ष प का रता का सै ां तक एवं यवहा रक प , ी राम कृ ण एवं नकु ल पाराशर,
ह द मा यम काया वयन नदे शालय. द ल व व व यालय ।
3. मास मी डया एवं वकास के आयाम, 2007, उपा याय, डॉ. अ नल कु मार, भारती
पि लकेशन, दुगाकु ड, वाराणसी-5

176
4. सहभा गता स मेलन 2006 के तहत कलक ता म त काल न रा प त डॉ.ए.पी. जे.
अ दुल कलाम का सी.आई.आई के आयोजन म उ घाटन भाषण 17 जनवर 2006.
रा य कृ ष प का ''शरद कृ ष'' अंक जू न 2006 से सत बर 2006.

177
इकाई - 11
ामीण लेखन और जनसंचार
(Rural Writing and Mass Communication)
इकाई क परे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 ामीण लेखन का व प
11.2.1 ामीण जीवन पर आधा रत लेखन
11.2.2 ामीण के लए लेखन
11.3 ामीण लेखन क वषयव तु
11.3.1 आ थक और जी वकोपाजन संबध
ं ी
11.3.2 सामािजक संरचना और पा रवा रक जीवन संबध
ं ी
11.3.3 गाँव के समि वत वकास संबध
ं ी
11.3.4 उ सव मेले और तीज- यौहार
11.3.5 लोक-कलाएं और लोक सा ह य
11.4 ामीण लेखन म च लत सा ह य- प
11.4.1 ामीण का य
11.4.2 लोक कथाएं और कहा नयां
11.4.3 फ चर और रपोताज
11.4.4 लोक ना य और अ य कला प
11.5 ामीण लेखन क तु त और सं ेषण क सम याएं
11.5.1 सह मा यम के चयन क सम या
11.5.2 असमान सामािजक-आ थक प रि थ तयां
11.5.3 संवाद के समान धरातल का अभाव
11.5.4 सा ह य प क संि ल ट कृ त
11.5.5 ामीण लेखन क भाषा और रचना- श प
11.6 ामीण लेखन के लए कुछ आव यक बात
11.7 सारांश
11.8 व-मू यांकन
11.9 श दावल
11.10 अ यासाथ न
11.11 संदभ थ

178
11.0 उ े य (Objectives)
ामीण जीवन और उससे जु ड़े हु ए लेखन से संबं धत इस इकाई म आप ामीण लेखन क
वषयव तु, भाषा, सा ह य के व भ न प और उनसे जु ड़ी सं ेषण क सम या के बारे म
यावहा रक ान ा त करगे । इसे प ने के बाद आप
 ामीण जीवन पर आधा रत लेखन और ामीण के लए लखे जाने वाले सा ह य का
अ तर समझ सकगे ।
 जनसंचार क ि ट से ामीण लेखन क कृ त, वषयव तु और उसके लए यु त होने
वाले च लत सा ह य- प क जानकार ा त कर सकगे ।
 ामीण के लए र चत सा ह य क तु त और उससे संबं धत संचार मा यम से प रचय
कर सकगे ।
 ामीण को संबो धत सा ह य के सं ेषण क मता और उससे जु ड़ी सम याओं को समझ
सकगे ।
 ामीण के लए लखे जाने वाले सा ह य को अ धक सं ेषणीय और बोधग य बनाने के
तर के समझ सकगे ।

11.1 तावना (Introduction)


भारत का दे हात बहु त वशाल है । यहा के 5 लाख 76 हजार गांव म रहने वाल 80 फ सद
आबाद के बीच संवाद और स ेषण क सम या आज जनसंचार के वशेष के स मु ख सबसे
बड़ी चु नौती है । यह बात द गर है क अब दे हात के बड़े क ब म शहर और महानगर क
कु छ सु वधाएं और साधन अनायास ह पहु ंच गये ह, या य भी कह सकते ह क गाव के कु छ
भावशाल लोग उन सु वधाओं को गाव तक खींच ले गये ह, ले कन इससे गाव के लोग क
जीवन-दशा बदल गयी है या उनके सोचने-बोलने का ढं ग बदल गया है, ऐसी बात नह ं है ।
उनक जीवन- शैल और बोध- तर म भी कोई ाि तकार बदलाव नह ं आया है । सवाय
इसके क कु छ साधन-स प न लोग म शहर सु वधाओं क ओर ललक बढ़ है, आम ामीण
क ाथ मकताएं और चयां लगभग वह ह । उनक गर बी यथावत है । भू ख से मरने वाले
लोग के बारे म अब समाचारप और मी डया म खबर अव य पहु ँच जाती है । कु छ लोग
उस पर भी अपनी राजनी त कर लेते ह । पेयजल और खेती के लए पानी अब भी उनक
पहल ाथ मकता है । श ा और वा य-सु वधाओं के बारे म अभी वे यादा नह ं सोचते।
आजाद के बाद सरकार और वयंसेवी संगठन क वष क को शश से गांव म सा रता का
एक आधारभू त ढांचा अव य खड़ा हो गया है । अ धकतर गांव म कम-से-कम एक या दो
ाथ मक या मा य मक तर क पाठशालाएं भी खुल गई ह, लोग म अपने ब च को सा र
बनाने क वृि त भी वक सत हु ई है, ले कन श ा या सा रता को अपने वकास का आधार
मानने क समझ अभी वक सत होना बाक है । आज भी हालात ऐसे ह क लोग को रोट
और श ा के बीच चु नाव करना पड़े तो वे रोट को ह पहल तरजीह दगे, जो वाभा वक
भी है । दरअसल श ा ऐसी कोई गार ट भी नह ं दे ती क श त हो जाने के बाद उसक
रोट और रोजी क सम या हल हो जाएगी । गांव म सा रता का तशत कम रहने के पीछे
यह एक मूलभूत कारण है ।
179
इस प रि थ त से यह न कष नकाल लेना उपयु त नह ं होगा क शहर लोग क तुलना
म ामीण लोग क संवाद या संचार से जुड़ी आव यकताएं सी मत होती ह । संवाद और संचार
मनु य के लए रोट -कपड़े जैसी ह बु नयाद आव यकता है और यह मां ग नर र आदमी
भी उतनी ह तलब से करता है िजतना क सा र । लोग अपनी अ भ यि त और च को
कई तरह से कट करते ह । वह उनके रोजमरा के काय- यवहार, खान-पान, पहनावे,
र त- रवाज, तीज- यौहार और उनके आचरण म अ सर कट होती रहती है । इसी से संवाद,
कला और सा ह य के व भ न प आकार हण करते ह । वष तक ऐसे प एक मौ खक
पर परा या ु त पर परा के मा यम से लोग के बीच च लत रहे ह, इस लए आज नर र
से नर र आदमी को भी यह समझाने क ज रत नह ं है क क वता, कथा या वाता म या
फक है । सभी भारतीय भाषाओं म ल खत या का शत सा ह य के समाना तर लोक-सा ह य
या वा चक सा ह य क ऐसी समृ वरासत उपल ध है जो इन ामीण लोग क अ भ च
और अनुभव-समृ ता का जीवंत माण है ।
आज वह प रि थ त भी काफ बदल गई है । ु त पर परा से च लत वह लोक सा ह य तो
ल पब होकर का शत हु आ ह है, ामीण के जीवन को आधार बनाकर बड़ी मा ा म नया
सा ह य भी उसी उ साह और आव यकता से रचा गया है । दे खने और समझने क बात यह
है क इस सा ह य क मू ल कृ त कैसी है, यह ामीण क कैसी छ व तु त करता है, कन
सम याओं को सामने लाता है और आम लोग तक कस प म पहु ंचता है । ऐसे समय म
जनसंचार के मा यम से यह अपे ा ज र क जाती है क वे मा शहर या साधन-स प न
समाज तक ह सी मत न रह बि क उनके व तार और असर का कु छ लाभ उन ामीण लोग
तक भी अव य पहु ंच,े िजसक उ ह सबसे अ धक ज रत है ।

11.2 ामीण लेखन का व प (Form of Rural Writing)


ामीण जीवन को लेकर अब तक जो सा ह य लखा गया है या लखा जा रहा है वह उसके
ल त या स बो धत पाठक वग क ि ट से एक जैसा नह ं है और सं ेषण क ि ट से उसका
वैसा होना 'उपयु त' भी नह ं है । खास तौर से आजाद के बाद दे श के ामीण-जीवन पर
सवा धक लखा गया है, बि क सा ह य का े ठतम प इसी ामीण जीवन से स ब ध रखने
वाला रचना मक सा ह य माना जाता है । ह द के आधु नक युग के रचनाकार म मु श
ं ी

े च द, फणी वरनाथ रे ण,ु अमृतलाल नागर जैसे व र ठ कथाकार और महाक व नराला,
नागाजु न, लोचन और केदारनाथ अ वाल जैसे ा य-बोध वाले क व इसके े ठ उदाहरण
ह । ले कन यह े ठ सा ह य ामीण जीवन क सम याओं पर आधा रत होते हु ए भी सफ
उ ह ं लोग को स बो धत सा ह य नह ं है बि क उसका ल त पाठक-समु दाय बहु त बड़ा है,
वह पढ़े - लखे शहर पाठक को भी उतनी ह गहराई से झकझोरता है, िजतना क उस प रि थ त
म जीने वाले ामीण यि त को । ऐसी ि थ त म उसे ामीण या शहर सा ह य म सीधे-सीधे
बांटकर दे खना संभव नह ं है । प - प काओं और काशन के मा यम से ामीण जीवन से
स बि धत जो सा ह य सामने आ रहा है उसे सहू लयत के तौर पर दो े णय म रखकर दे खा
जा सकता है -
1. ामीण जीवन पर आधा रत लेखन और

180
2. ामीण के लए लेखन ।
इन दोन ह तरह के लेखन (सा ह य) क वषय-व तु, सा ह य- प और तु त के मा यम
ाय: समान ह, ले कन दोन का ल त या स बो धत पाठक या ोता-दशक अलग- अलग
होने क वजह से इनके रचना- श प, वभाव और सरोकार एक जैसे नह ं ह और यह इनके
बीच अ तर का मू ल कारण है ।

11.2.1 ामीण जीवन पर आधा रत लेखन

आपने अ सर समाचारप और प काओं म ामीण जीवन के व भ न पहलु ओं पर खोज-परक


लेख, रपोताज, ट प णयां या क वताएं, कहा नयां, नाटक आ द पढ़े ह गे । यह सारा लेखन
नाव के लोग क िज दगी के बारे म होता है, ले कन उसका ल त पाठक शहर या बड़े क ब
म रहने वाला श त समु दाय भी होता है । ऐसे लेखन का उ े य होता है गांव क िज दगी
और सम याओं के बारे म उन पढ़े - लखे पाठक का यान आक षत करना, उ ह गांव क
सम याओं के बारे म अ धक संवद
े नशील बनाना और गांव के पी ड़त या भा वत लोग के
लए उनका आव यक समथन जु टाना । लोकतां क यव था म यह जाग कता और
जन-समथन ह सम याओं से नपटने का एक कारगर तर का है । मसाल के तौर पर ामीण
समाज म म हलाओं का उ पीड़न एक वलंत सम या है और पछले वष म इस तरह क
सम याओं पर समाचारप म बड़े पैमाने पर रपो टग हु ई है । ऐसी ह रपो टग का अंश दे ख.
' 'हमारे तमाम सामािजक अपराध म बला कार भी एक है । द ल से लेकर दे श के दूर-दराज
के गांव तक जहां और जब भी पु ष क पाि वक वृि त को मौका मलता है , वह अपना
रं ग दखाती है । कई बार तो मासू म और नाबा लग बि चयां भी इस ू रता का शकार हो
जाती ह । समाज के एक भावशाल वग क इस हंसक मनोवृि त के व अ सर सभाओं,
गोि ठय और अखबार म आवाज उठती रहती ह, म हला संगठन के दबाव ने सरकार म
बला का रय के व कड़े कानून बनवा लये ह, ले कन ऐसी घटनाओं क तादाद बढ़ती ह
जाती है ।
भंवर बाई के साथ जो हु आ, वह हंसक ृखंला क एक नई कड़ी है । दरअसल भंवर बाई गांव
क सामा य म हलाओं से यादा जाग क थी । इसी लए वह राज थान सरकार के समाज
क याण वभाग वारा सामािजक कु र तय के खलाफ चलाए जा रहे अ भयान क थानीय
कायकता 'सा थन' के प म स य थी । बाल ववाह के खलाफ सरकार वारा चलाए जा
रहे अ भयान म उसक भागीदार गांव के भावशाल वग को इतनी अखर गई क उ ह ने
उसके प त के सामने ह उसे सामािजक और शार रक प से बुर तरह अपमा नत ह नह ं
कया, बि क उसका सप रवार सामािजक ब ह कार भी कर दया । अखबार म छपी खबर
के मुता बक गांव के इन क थत भावशाल लोग के डर से भंवर बाई के त कोई यि त
सहानुभू त तक नह ं य त कर रहा है । द ल म बैठकर म हलाओं के अ धकार पर चचा
करने और मैदान म जाकर जमीनी स चाई से जू झने म कतना फक है, ' भंवर बाई' इसका
तीक बन गई है । ' (फे मना: ' भंवर बाई' - वनोद अ हो ी, नवभारत टाइ स, 3 नव बर
1992, पृ. 9)

181
भंवर बाई के संघष पर आधा रत यह रपोट सीधे तौर पर गांव क सम या से जु ड़ी होने के
बावजू द सफ गांव के लोग को ह संबो धत नह ं है, इसे तैयार करते हु ए ट पणीकार के सामने
गांव और शहर का एक वशाल पाठक समु दाय रहा है, ले कन यह रपोट य द गांव के कम
पढ़े - लखे या नर र लोग को यान म रखकर तैयार क जाती तो इसक बनावट शैल और
भाषा- व यास म काफ फक रहता ।

11.2.2 ामीण के लए लेखन (Writing for Rural Public)

समाचारप -प काएं चू ं क शहर और क ब के पढ़े - लखे लोग को संबो धत होते ह, इस लए


उनम का शत होने वाल साम ी व भ न चय या आयु-वग वाले पाठक क अपे ाओं के
अनु प होती है , ले कन उसे शहर या ामीण पाठक को अलग- अलग करके नह ं तैयार कया
जाता । इसके बावजू द गांव के बारे म का शत क जाने वाल साम ी वभावत: अ य रचनाओं
से अलग तरह क होती है । कृ ष, पशु पालन, कु ट र- यवसाय या ामीण सम याओं पर
आधा रत अ धकतर लेख ाय: ामीण लोग के बोध- तर को यान म रखकर तैयार कये
जाते ह, ता क उससे सीधे तौर पर जुड़े हु ए लोग के लए वह अ धक उपयोगी हो सक ।
रचना मक सा ह य म कु छ कहा नयां, क वताएं या फ चर-लेख भी ऐसे ज र होते ह, जो सीधे
तौर पर ामीण लोग को ह ल त करके तैयार कये जाते ह । हमारे पार प रक लोक सा ह य,
लोक कथाओं और पार प रक शै लय म जो भी सा ह य उपल ध है, वह ाय: ामीण लोग
को ह संबो धत सा ह य रहा है । इस तरह का सा ह य ाय: सरल और सहज बोधग य होता
है, वह अ धक संि ल ट, कला-बो झल या उलझाव भरा नह ं होता । ले कन इसका अथ यह
भी नह ं है क ामीण के लए रचा गया सा ह य कला- वह न या सौ दयबोध से र हत होता
हो, बि क सरलता और सहजता अपने आप म कोई छोटे कला-मू य नह ं ह । ामीण को
ल त ऐसी बहु त-सी कला मक लोक कथाओं म से चु नी हु ई यह बानगी दे ख:
''एक जंगल म सयार- सयारनी का जोड़ा रहता था । लपी हु ई साफ-सु थर खोह । चारे क खेत
क दूर पर नमल पानी का पोखर । जंगल म दे र के अन गनत झाड़-झंखाड़ । चु न-चु न कर
मीठे बेर खाते । सु ख आनंद क कोई सीमा नह ं । पर पर बेहद ेम । एक-दूसरे क छाया
पर जान दे ते । सयारनी सीता से भी सवाई सतवंती । म छर-म खी तक को शर र का पश
नह ं करने दे ती । नखरे और नजाकत के मारे सयार को चैन नह ं लेने दे ती । सयारनी क
आ म- शंसा सु न- सु नकर सयार भी हांकने लगा क एक बार उसने शेर को पूछ
ं से फटकार
लगाई जो उसने सात कुलाच खा । आ खर मु ह
ं म तनका लेने पर ह उसे माफ कया ।
बाघ तो तनी हु ई भ ह दे खते ह भाग छूटते ह । अब इस जंगल का राजा मानो तो वो, बादशाह
मानो तो वो । सयार न चाहे तो जंगल का एक प ता तक न हले । एक बार तैश म आकर
उसने एक ट ले को लात मार तो वो घर दे क तरह बखर गया । उसक दहाड़ सु नकर बादल
फटने लगते ह । सयारनी को अपने पर बेहद गुमान था । ''
(सावचेती : वजयदान दे था, 'दु वधा और अ य कहा नयाँ', पृ. 53)
ामीण के बीच च लत यह लोक य कला- प और सा ह य पहले जहां वा चक परं परा के
मा यम से पहु ँचता था, आधु नक युग म वह काशन और य- य मा यम के ज रये

182
भी ामीण तक पहु ँचने लगा है । इस दशा म स ेषण सीधा होता है, इस लए इस लेखन
क शैल और उसक तु त और सहज हो जाती है ।
बोध न - 1
1. ामीण लेखन के दो मु ख े बताइये ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
2. ामीण लेखन क मु ख वशेषताएं बताइये ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
3. ामीण जीवन पर आधा रत लेखन और ामीण के लए लेखन के म य अ तर प ट
क िजये ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

11.3 ामीण लेखन क वषय- व तु (Subject-Material of Rural


Writing)
ामीण लेखन क कृ त और उसके व प पर वचार करते हु ए हमने, उसक वषय- व तु
पर भी ासं गक चचा क है । इसक थोड़ी ओर सल सलेवार चचा अपे त है । गांव के आदमी
क क ठन दनचया से हम सभी भल - भां त प र चत ह । उसके जीवन - नवाह, सामािजक
संगठन, सावज नक वकास और सं कृ त से जु ड़ी सम याएँ इतनी मू त और य होती है
क उन पर वचार करते हु ए त य जु टाने के लए कह ं दूर नह ं जाना पड़ता । इस लए इन
वषय पर लखा गया सा ह य अ धक मू त और सहज स े य होता है । सु वधा के लए
हम इस लेखन क वषय- व तु को न न े णय म बांटकर दे ख सकते ह -

11.3.1 आ थक और जी वकोपाजन स ब धी -

कृ ष, पशु पालन और पु तैनी काम- धंधे आज भी हमार ामीण अथ- यव था के मु य आधार


ह । इसी आधार से लोग का आ थक और सामािजक जीवन तथा उनक पहचान नधा रत
होती है । उनके आपसी र त और र त- रवाज पर भी इरा आ थक - या का गहरा भाव
पड़ता है । ामीण जीवन पर आधा रत रचना मक सा ह य (क वता, कहानी, उप यास, नाटक,
फ चर आ द) पर भी इस का असर दे खा जा सकता है ।
सं ेषण क ि ट से रचनाकार और पाठक दोन का उस ामीण प रवेश और उसके मु ख
आ थक आधार से प र चत होना आव यक है, अ यथा रचना को भावशाल बनाने के सारे
य न के बावजू द यह संभव है क वह अपना अपे त भाव न पैदा कर सके। उदाहरण
के लए कृ ष या पशु पालन को अपने लेखन का वषय बनाने से पूव इन दोन ह काय े

183
क बु नयाद जानकार आव यक है, खासतौर से लेखक के लए तो उसका यावहा रक ान
उतना ह आव यक है, िजतना वयं कसान या पशु पालक को वह काम अपने हाथ म लेने
से पूव होना चा हए । यह कृ ष या पशु पालन भी सारे दे श म एक जैसा नह ं है । अलग -
अलग भौगो लक प रि थ तय म इसका व प बदलता जाता है । म ी और मौसम - च
के अनुसार खेती क क म, तर के और उपकरण भी काफ कु छ बदल जाते ह । हर तरह
के पशु भी हर जगह नह ं पाये जाते, इस लए पशु पालन भी अ छे - खासे यावहा रक ान
क अपे ा रखता है, यह बात गाँव म पाये जाने वाले पु तैनी काम- धंध और कार गर वाले
कु ट र उ योग पर भी लागू होती है ।

11.3.2 सामािजक संरचना और पा रवा रक जीवन संबध


ं ी (Social Structure and
Family Life) -

गांव म रहने वाले लोग का सामािजक एवं पा रवा रक जीवन भी मूलत: अपने आ थक आधार
से ह जु ड़ा हु आ होता है । इ ह ं काम- ध ध के अनु प हमारे समाज म वण और जा तय
का ढांचा बना है - कृ ष और पशु पालन तो फर भी ऐसे काय ह जो गांव म ाय: सभी जातीय
समु दाय के लोग करते ह, ले कन पु तैनी काम- धंधे जैसे बढ़ई गर , लोहे का काम, कपड़ा
बुनना, चमड़े का काम, हजामत बनाने का काम, बतन बनाना, धातु के जेवर बनाना आ द
ऐसे काम ह, िज ह करने वाले कु छ वशेष लोग ह होते ह और उसी पेशे के अनुसार उ ह
अलग जा त से पहचाना जाता है । वह एक तरह से उनका सामािजक आधार बनता है और
उसी से उनके पा रवा रक र ते तय होते ह ।

शहर म बड़े-बड़े कारखान , सावज नक तहान या यापार- यवसाय का काम करते हु ए लोग
के बीच का यह सामािजक वग करण बेशक मट जाता हो, ले कन ामीण समाज म यह आज
भी एक ठोस स चाई है । ामीण जीवन पर लखने के लए कलम उठाने से पूव इस स चाई
को संयत भाव से जान लेना ज र है । यहां वैसे तो हर काम एक दूसरे से जु ड़ा हु आ है, ले कन
उनके बीच के अ त वरोध भी उतने ह मह वपूण ह । ामीण जीवन पर लखने वाले रचनाकार
को इन सार ि थ तय से थोड़ा ऊपर उठना ज र होता है, तभी वह उस सामािजक संरचना
और पा रवा रक जीवन पर सट क बात कह सकता है - उनके सकारा मक और नकारा मक
प क सह समी ा कर सकता है ।

11.3.3 गांव के समि वत वकास संबध


ं ी (Development of Village) -

समि वत वकास का अथ होता है जीवन के हरे क पहलू का समु चत वकास । कई बार लोग
आ थक वकास को ह सम वकास का पयाय मान लेते ह, जब क यह कतई आव यक नह ं
है क आ थक ि ट से स प न समाज नै तक और सां कृ तक ि ट से भी उतना ह वक सत
और स तु लत हो । इस बात को अमे रका और यूरोप के तथाक थत वक सत दे श से तुलना
करके दे खा जा सकता है, जहां समृ तो छलकती हु ई दखाई दे ती है, ले कन सामािजक एवं
सां कृ तक ि ट से वह पूर तरह व ख ृं लत समाज है ।

184
भारत का ामीण प रवेश अभी इस तरह के खतर से नरापद है, ले कन आजाद के बाद दे श
म ामीण वकास क जो योजनाएं बनी ह, उनका सह लाभ अभी गाँव के सभी लोग तक
नह ं पहु ंच पाया है । संचाई, बजल , प रवहन, च क सा, श ा जैसी बु नयाद सु वधाएं
कमोबेश गांव म पहु ँ च ज र गई ह, ले कन उनक वा त वक दशा बहु त च ताजनक है ।
इस दशा को ठ क करने म जहां वयं गाँव के नवा सय को य नशील होना होगा, वह ं कु छ
जाग क वयंसेवी संगठन भी इसम मह वपूण भू मका नभा सकते ह । वकास क इस
प रक पना म अभी कुछ अरसे तक श ा या सा रता को थोड़ी और ाथ मकता दे नी होगी,
ता क लोग सा र होकर अपने मौ लक अ धकार और कत य को जान सक, वे अपनी अव था
और मता को पहचान सक ।
ामीण-लेखन पर वचार करते हु ए हम इस पहलू पर और गहराई से सोचना होगा । िजस
कसी े म अस तु लन दखाई पड़ता है, वहां वशेष प से य नशील होकर उस कमी क
ओर लोग का यान आक षत करना होगा । ऐसे य न य द ठोस अ ययन और त य पर
आधा रत ह गे तो वहां स ेषण क सम या आड़े नह ं आएगी ।

11.3.4 उ सव-मेले और तीज- यौहार (Fair and Festival) -

उ सव-मेले और तीज- यौहार ामीण सं कृ त के अ भ न अंग ह । इन आयोजन म गाँव


के सारे लोग िजस आपसी भाईचारे और उमंग से भाग लेते ह, उसम जात- बरादर , छोटे -बड़े
और अमीर-गर ब के सारे भेद समा त हो जाते ह । जहां होल , द वाल , ज मा टमी, दशहरा,
ईद-उल- फतर, ईद-उल-जु हा, गु पव या बैसाखी जैसे यौहार सारे दे श म उ लासपूवक मनाये
जाते ह, वह ं केरल म ओणम, त मलनाडु म प गल, महारा म गणेश चतुथ , बंगाल म
दुगापूजा, उड़ीसा म रथ या ा, राज थान म गणगौर, आसाम म बीहू अजमेर शर फ,
फतहपुरसीकर और नजामु ीन औ लया के उस भी बहु त बड़े पैमाने पर पार प रक ा और
उ लास के के माने जाते ह । ामीण लोग म इन यौहार को लेकर जो आंत रक उमंग
और फू त दखाई दे ती है, वह शहर चमक-दमक और दखावे म दुलभ है । इन यौहार के
अलावा गांव म कृ ष और पशु पालन के आ थक आधार के चलते पशु-मेल और यौहार के
अवसर पर एक ओर जहां ामीण लोग को अपनी कार गर और कला-कौशल को द शत करने
का मौका मलता है, वह ं दूसर ओर अ य कला- प और जीवनपयोगी व तु ओं को ा त करने
का अवसर मलता है ।
ामीण जीवन पर लखने वाले लोग के लए ये उ सव-मेले और तीज- यौहार सवा धक
आकषण का के होते ह । प -प काओं और अ य कला-मा यम म भी ाय: इ ह ं वषय
पर सवा धक उ साह दखाई दे ता है । बहु त से समाचारप और प काएं तो ऐसे अवसर पर
अपने वशेषांक भी का शत करती ह । उनके आम सा ता हक प र श ट म ामीण जीवन
के इस सां कृ तक प पर पया त साम ी का शत रहती है, िजनके मा यम से हम समूचे
दे श के ामीणजन और उसके सौ दयबोध को जान सकते ह ।

11.3.5 लोक कलाएं और लोक सा ह य (Folk Arts and Folk Literature) -

185
ामीण जीवन के सां कृ तक प पर वचार करते ह हमारे चार ओर फैले वशाल ामीण
समाज म पाई जाने वाल लोक-कलाओं, लोकगीत , लोक-कथाओं और बात-बात म जु बान पर
आने वाल लोकोि तय क ओर आक षत होना वाभा वक है । इन लोक प और लोक
सा ह य क व भ न वधाओं के बारे म जो भी लखा गया है, वह कारा तर से उस
ामीण-सा ह य का ह ह सा है । इस लोक-स पदा का ऐसा बहु त बड़ा भाग है, जो अभी
तक लेखन और काशन क या म शा मल नह ं हो पाया है । इसके बावजू द सभी भारतीय
भाषाओं म इस लोक-स पदा को संर त करने के अ छे यास हु ए ह और संचार के नये
मा यम ने भी इस लोक-स पदा और उससे जुड़े लोक-कलाकार को एक नया जीवन दया
है ।
ामीण-जीवन पर लखने वाले रचनाकार के जीवन के इन तमाम वषय पर काम करने क
अपार स भावनाएं ह । वषय-व तु के अनु प रचना क बनावट और उसक भाषा- शैल बनती
है । धम, सं कृ त और लोक मा यताओं के बारे म भी ामीण लोग क अपनी एक सीधी
और सहज समझ होती है, िजसक बदौलत वे तथाक थत शा क बजाय अपनी लोक-पर परा
और लोक- व वास पर यादा भरोसा करते ह । इन ामीण वषय पर लखते हु ए समूचे
ामीण प रवेश, वहां के काम- ध ध , सामािजक ढांच,े उनके उ सव-मेल और ामीण यि त
के मनो व ान क अ तरं ग जानकार होना अ यंत आव यक है, िजसके अभाव म इन ामीण
वषय पर कुछ भी साथक रच पाना क ठन है । हर वषय क अपनी अलग श दावल और
अलग या है, इस लए ामीण वषय पर लखते हु ए अपनी च एवं वशेष ता के अनु प
उपयु त वषय- े का चु नाव कर लेना यादा बेहतर होता है, ता क रचे हु ए पर कसी को
अंगल
ु उठाने का मौका न मले ।
बोध न - 2
(क) ामीण लेखन क वषयव तु कन- कन े से ल जा सकती है?
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(ख) ामीण सा ह य म उ सव-मेले और तीज- यौहार का मह व बताइये ।
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(ग) लोक सा ह य और लोक कला का ता पय प ट क िजये ।
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186
11.4 ामीण लेखन के च लत सा ह य- प (Popular Literature
Form of Rural Writing) –
ामीण लेखन िजन च लत सा ह य- प के मा यम से सामने आता है, वह बहु त कु छ बाहर
प रि थ तय पर नभर करता है । वहां पढ़े - लखे शहर समाज क तरह प -प काओं, पु तक ,
रं गमंच या सभी तरह के वक सत जनसंचार मा यम क सु वधाएं सहज प म उपल ध नह ं
होती । फर गांव के आदमी के पास फुरसत के समय और साधन का अभाव भी एक ऐसा
प है, जो उससे स बि धत लेखन को भा वत करता है । गांव म अब सा रता का वकास
तो ज र हु आ है ले कन अ धक ऊंची श ा क अपे ाएँ वहां नह ं क जा सकती, ऐसी ि थ त
म ामीण के लए लखा जाने वाला सा ह य उनके बोध तर और च लत सा ह य प
के ज रये ह अपे त वीकृ त और लोक यता अिजत कर सकता है । ामीण-लेखन
सामा यत: िजन सा ह य प के ज रए काश म आता है, वे इस कार ह -

11.4.1 ामीण-का य (Rural Poem) -

ामीण-का य सा ह य क सामा य का य- वधा से कोई अलग तरह का प नह ं है, ले कन


ामीण के बोध- तर, च और उनक अपे ाओं के अनु प उसका व प और शैल सरल
और सहज बोधग य अव य होती है, ता क ामीण लोग को उसे समझने और उसे अपनी
सु च का ह सा बनाने म कोई वशेष क ठनाई न हो, बि क वे उसक तरफ आक षत ह
और वैसा का य बगैर कसी य न के उनक मृ त का ह सा बन जाए ।
ामीण लोग अपनी सां कृ तक वरासत से ऐसी का य-कृ तय को सहज ह पहचान लेते ह,
जो उनके जीवन और सु च के अनुकू ल होती ह । वे बेशक पुराने सा ह य (का य) के_ बड़े
मम या जानकार न ह , ले कन पुराने संत-क वय और जन-क वय क बहु त-सी क वताएं
आप कसी भी ामीण से सहज ह सु न सकते ह, जो उनके बीच लोक-भजन या लोक-का य
के प म बखू बी च लत होती ह । सू र, कबीर, तु लसी, मीरा, नरसी आ द उस लोक- वरासत
म ऐसे घुल- मल गए ह, क एक तरह से वे उस ामीण चेतना का अंग बन गये ह । आज
कोई क व सू र-तु लसी बेशक न बन पाए ले कन ामीण के बीच लोक यता ा त करने वाल
क वता के इस गुण और शैल को अपनाकर वह ामीण क चेतना और उनके मन पर एक
गहर छाप अव य छोड़ सकता ह द म क तपय गीतकार/ क वय ने ामीण लोक जीवन
को आधार बनाकर कु छ बेहतर गीत अव य लख ह, उ ह ं म कु छ बान गयाँ यहाँ तु त ह-
1. पास नह ं ह बैल - बदरा पानी दे !
जा लम है यूबल
ै - बदरा पानी दे !
इ जतदार गर ब पुकारे
ढ गी मारे दूध छुआरे
चटख रह खपरै ल - बदरा पानी दे !
इतने ठनगन दखा न भाई
खू बसू रत और नाई
तू भी हु आ रखैल - बदरा पानी दे !

187
(रमेश रं जक के लोकगीत. पृ ठ - 9)
2. हमरे गुगना के ले गइल बुखार सजना
नह ं दवा-दा नह ं उपचार सजना
तोर मेहनत-मजदूर सब बेकार सजना
अस िजनगी िजअल घरकार सजना
चले मेहनत से सबके अहार सजनी
बना रोट के न झनके सतार सजनी
हमार मेहनत से रे ल और तार सजनी
हमार मेहनत से प और संगार सजनी
(गोरख पा डेय ' मेहनत के बारहमासा: वग से वदाई, पृ ठ- 90)
3. पढ़ना- लखना सीखो, ओ मेहनत करने वाल
पढ़ना- लखना सीखो, ओ भू ख से मरने वाल !
क ख ग घ को पहचानो
अ लफ को पढ़ना सीखो ।
अ आ इ ई को ह थयार
बनाकर लड़ना सीखो ।
ओ सड़क बनाने वाल , ओ भवन उठाने वाल
खु द अपनी क मत का फैसला अगर तु ह करना है
ओ बोझा ढोने वाल , ओ रे ल ' चलाने वाल
अगर दे श क बागडोर को क जे म करना है
(सफदर हाशमी: सफदर: पृ ठ- 69)
ामीण जीवन क साम यक सम याओं, च लत ामीण- ढ़य , अंध- व वास , कु र तय
और ामीण पव के अनु प ऐसी बहु त सी क वताएं रची जाती रह ह, जो ामीण के बीच
खू ब लोक य होती ह । ामीण के बीच अपनाई जाने वाल ऐसी अ धकांश क वताएं ाय'
छं द-ब और अपनी बनावट म सरल होती ह । दोहा, सोरठा, क व त, सवैया, चौपाई जैसे छं द
और तुकबंद वाल क वताएं / गीत ामीण के बोध- तर और च के अ धक नजद क पड़ती
ह, इस लए ामीण लोग को ल त करके लखने वाले अ धकांश क व ाय' इ ह ं छं द और
का य- शैल का योग करते ह ।

11.4.2 लोक कथाएं और कहा नयां (Folk Stories)

लोक कथाएं और ामीण प रवेश को आधार बनाकर लखी जाने वाल कहा नयां ामीण लेखन
का सवा धक लोक य सा ह य- प है । ामीण लोग के अ धकांश जीवन- अनुभव क से -
कहा नय के प म ह एक-दूसरे को स े षत होते ह, यह कारण है क क सागोई ामीण
के बीच वचार के आदान- दान क एक मु ख शैल -के प म जानी जाती है । गाँव म
ऐसे क सागोह लोग क अपनी अलग ह पहचान और या त होती है ।

188
पुराने जमाने म इस तरह क कथाएं जहां एक पीढ़ से दूसर पीढ़ के बीच मौ खक-वाचक
पर परा का मु य आधार थी, वह ं ामीण जीवन म रचे-बसे रचनाकार ने अ छ मौ लक
कथाएं भी लखी ह, ले कन लोक यता क ि ट से लोक-कथाएं अपना वशेष मह व रखती
ह । काशन सु वधाओं के वकास के साथ ह चू ं क इन लोक-कथाओं को अब लंबे समय तक
सु र त रख पाना संभव हो गया है, इस लए इस लोक- वरासत के यापक सार और बहु-
आयामी उपयोग क संभावनाएं अब धीरे - धीरे उजागर हो रह ह । सरसता, रोचकता और सहज
स ेषण क ि ट से ये कथाएं बेजोड़ ह । दे श के अ य भाग क तरह राज थान क लोक
कथाओं का अपना अलग ह रं ग है, ऐसी ह एक लोक कथा है ' दवाले क बपौती', िजसका
आरं भक अंश उदाहरण के प म यहां तु त है -
“यह बात बीज िज ती पुरानी और ह रयाल व फल-फूल िज ती नयी । यह बात बादल िज ती
ाचीन और बरसात िज ती नवीन । यह बात चांद िजतनी चरकाल न और चांदनी िजतनी
ताजी है । एक था ा मण । पुराने शा का पं डत । ानी । संतोषी । आ म-तु ट । नपट,
नबल और साम य-टू ट गवाड़ी । पांच जन का बेघर-बार । एक घरवाल और तीन लड़ कयाँ
। दो व त क रोट मु ि कल से सध पाती थी । ा मण न य-नेमी था । सवेरे दो घड़ी पूजा-पाठ
करता । सं या-व दन करता । पुराने शा पड़ता ।गुजारे के लए भ ा मांग लाता, ले कन
मनु य के संसार मे अधम, अंधा, म लन, झू ठा और लालची बने बगैर कमाई नह ं होती ।
इ सान होकर जानवर से भी गये-गुजरे हु ए बगैर माया नह ं जु ड़ती । इ सा नयत रखने पर
मु ि कल ह मु ि कल । पर उस ा मण के तो मरते दम तक झू ठ न बोलने क त ा । तब
कमाई क गुज
ं ाइश ह कहां? ा मण क घरवाल सदा
कुड़मु डाती रहती । कमाई के लए कु रे दती रहती । बार-बार दोहरता क य ठाले-बैठे रहने से
कैसे गुजारा होगा? लड़ कयां तो दनो- दन बड़ी हु ई जा रह ह और घर का मा लक हर तरफ
से बेखबर और नि च त । ''
('इस लए' अंक- 2, माच 1984, पृ ठ- 50)
भारतीय भाषाओं म ऐसी अनेक लोक कथाएं ह, िज ह पछले वष म व भ न भाषाओं के
लेखक ने अपने ढं ग से ल पब ओर सं हत कया है और यह लोक- वरासत वाकई आज
ामीण लेखन का मु ख आधार है । ह द म म
े च द, फणी वरनाथ रे ण,ु अमृतलाल नागर
ओर नागाजु न जैसे दे हाती सं कार और ामीण भाषा-बोध वाले कथाकार क लोक यता का
मु ख कारण भी उनका वह आधार है । ेमच द क मशहू र कहानी 'पूस क रात' का यह
उदाहरण दे ख-
“पूस क अंधे र रात । आकाश पर तारे भी ठठु रते हु ए मालूम होते थे । ह कू अपने खेत के
कनारे ऊख के प त क एक छतर के नीचे बांस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े क चादर
ओढ़े पड़ा काप रहा था । खटोले के नीचे उसका संगी कु ता जबरा पेट म मु ंह डाले सद से
कं ू -कं ू कर रहा था । दो म एक को भी नींद नह ं आती थी । ह कू ने घुटन को गदन म चपकाते
हु ए कहा - य जबरा जाड़ा लगता है! कहा तो था क घर म पुआल पर लेट रह, तो यहां
या लेने आए थे? अब जाओ ठं ड, म या क ं ? जानते थे, म यहां हलवा-पूर खाने आ रहा
हू ँ, दौड़े-दौड़े आगे चले आये । अब रोओ नामी के नाम को ।“

189
11.4.3 फ चर और रपोताज (Feature and Reportaz)-

आधु नक प का रता के वकास के साथ ह ग य लेखन क कु छ नयी वधाएं भी वक सत


हु ई ह । आपने फ चर और रपोताज के बारे म पढ़ा होगा । काशन मा यम म फ चर क
वधा एक अलग तरह क ज रत से पैदा हु ई है । यह एक तरह से कहानी, नबंध और घटनाओं
क रपो टग का मला-जु ला प है, िजसम इन तीन ह वधाओं के भावकार त व का
समावेश हो गया है । रपोताज भी कुछ इसी तरह क वधा है, ले कन फ चर से वह इस अथ
म अलग है क रपोताज म सारा बल कसी घटना- संग या एक संग- वशेष का सल सलेवार
यौरा तुत करने पर रहता है, जब क फ चर म कसी वषय या मसले के चार तरफ क
ासं गक जानका रय को कथा, नब ध और रपो टग के ताने-बाने म गूथ
ं कर तु त कया
जाता है, ता क पाठक के सामने सारा मसला एक चल च क भां त प ट हो जाए और इस
मायने म फ चर आज के समाचार- जगत क सबसे अ धक लोक य वधा है । ामीण जीवन
पर लखने वाले लेखक / प कार ने इस वधा का सवा धक उपयोग कया है और आज तो
आप जो भी समाचारप उठायगे, उसम इस तरह क फ चर- आलेख क इफरात पायगे ।
ऐसे ह ामीण फ चर- आलेख के कु छ अंश यहां तु त ह -
1. '' अनेक ऐ तहा सक मह व के थल , मारक और मि दर क भू म कु लू के नलपुर
मैदान पर साल म सात दन ऐसे आते ह, जब धरती पर वग उतरता है । दे श- वदे श
के ी- पु ष क भार - भीड़ जु टती है । ढोल, नगाड़ , खड़ताल, कणाल और शहनाई
आ द वा ययं से यहां क घा टयाँ गू ज
ं ती ह । ढालपुर मैदान दूर-दराज के ऊंचे पहाड़ी
शखर से बखू बी दखाई दे ता है । 16वी शता द म राजा बहादुर संह ने अपने भाई मयां
ढाल संह के नाम पर इसे ढालपुर नाम दया था । दे व त ठा का जग स यौहार
'कु लू दशहरा' यह ं मनाया जाता है । ''
(र ववार जनस ता, 4 अ टू बर 1992, पृ ठ- 4)
2. '' एक समय था जब म थला क लोक च कला का आ चयजनक अ तरा य बाजार
बन गया था । यूरोप और अमे रका म 'मधु बनी च कला' को समकाल न भारतीय कला
के मुकाबले म अ धक मह व दया जा रहा था । मधु बनी यानी शहद के बलर क अ ुत
दु नयां , जहां जमीन सपाट थी, न प थर थे न च ान । कृ ष यहां के जीवन का मुख
आधार थी । औ योगीकरण इस दु नयां म एक। बाहर चीज थी । मधु बनी का नाम शायद
इस लए भी लोक य हु आ, य क इस नाम का अपना एक जादू था । उ तर बहार के
संपण
ू म थला े क कला को मधु बनी नाम से पहचाना जाने लगा । सचाई यह थी
क यह कला मधु बनी, दरभंगा, सहरसा और पू णया िजले के सारे लोक-जीवन क कला
थी । बहरहाल, मधु बनी इस कला का के तो है ह । ''
(नवभारत टाइ स इ धनुष : 5 सत बर 1992, पृ ठ- 1)

11.4.4 लोक-ना य और अ य कला- प (Folk Arts) -

वा चक सा ह य और दशनकार कला प म लोक-ना य के व भ न प ामीण-हलक


म च लत रहे ह । आधु नक संचार-मा यम (रे डयो, ट वी., फ म आ द) के व तार के
बावजू द इन लोक-ना य के त ामीण म एक खास तरह का आकषण और लगाव बराबर

190
बना हु आ है, य क ये लोक -ना य आज भी लोक-जीवन म गहराई तक रचे-बसे ह । यौहार
और वशेष अवसर पर होने वाले लोक-ना य क अपनी अलग सां कृ तक पृ ठभू म है- दशहरा,
दुगापूजा, द वाल , होल , गणगौर आ द के अवसर पर होने वाले याल, तमाशा, वांग, जा ा,
र मत, नौटं क आ द लोक-ना य के आयोजन क एक सु द घ पर परा है ।
ामीण जीवन पर लखने वाले रचनाकार के लए इस सां कृ तक पृ ठभू म और ामीण के
बीच लोक य इन कला- प क ताकत से प र चत होना आव यक है । अगर कोई रचनाकार
लोक- मंच के मा यम से ामीण के बीच अपने संदेश को रखना चाहे तो उसे इन कला- प
को जानना आव यक है । इन लोक- ना य म यु त होने वाले कथानक के यौरे और संवाद
समय और थान के अनु प थोड़े -बहु त बदलते रहते ह, ले कन मू ल कथानक लगभग वह
रहता है । अब नये जमाने के साथ इन लोक-ना य के कथानक म भी प रवतन आने लगा
है, और ामीण जीवन से जु ड़े हु ए नये रचनाकार ने इसी तकनीक और श प का बेहतर उपयोग
करते हु ए अपने जमाने के नये नाटक भी तैयार कये ह, जो इ ह ं अवसर पर गाव क
ना य-मंड लय और सं थाओं वारा खेले जाते ह, और उ ह ामीण वारा पस द भी कया
जाता है । मु श
ं ी म
े च द क ऐसी बहु त सी कहा नयां ह, िज ह व भ न ना य-दल ने ऐसे
ह लोक-नाटक के प म ढालकर गांव म तु त कया और उ ह खू ब सराहा गया है । म
े च द
क मशहू र कहानी 'ठाकु र का कं ु आ' के आधार पर वाराणसी के ' जागृ त' ना य दल ने ऐसा
ह एक सफल नाटक तैयार कया है 'एक गांव क कहानी', िजसे उ तर भारत के बहु त से गाँव
और क ब म खेला गया और उसे पया त सफलता मल । इसी नाटक का एक छोटा सा
अंश यहां तु त है -
“( बरजू कसान का घर, बरजू चारपाई पर छटपटाता है)
बरजू क मां : थोड़ा पानी पीयेगा बेटा?... र ा करो भगवान..........
( ामीण म हलाओं का वेश, उ ह दे खकर बरजू क मां रोती है)

थम म हला : (हाथ म लालटे न लेकर वेश) मत रो ब हन, घर म बैठकर रोने से कुछ


न होगा । रात हो गई, पहले इसे दो रोट बनाके खलाओ - फर म सर
पं डत के घर जाकर इसका पैर धर लो, ा मण दे वता क करपा हु ई, तो
ठाकु र का दोष दूर हो जाएगा............
वतीय म हला : पैर पड़ने से पं डत जी भले ह स न हो जाएं, पर ठाकुर नरम न होगा।
बरजू क मां : वह तो हम बेघर करने पर तुला है , बरजू को कल तड़के फर बुलाया है।
अब तो इसक जान चल जाएगी।
वतीय म हला : तो फर रात ख म होने से पहले ह कु छ दन के लए तुम बरजू को गांव
के बाहर और कह ं भेज दो । (राधा का वेश)
राधा : नह ,ं बरजू भैया कह ं नह ं जायगे । तु हार भी या अकल है भाभी, ठाकु र
तो यह चाहता है क उसक गु डागद के आगे या तो सब लोग सर झु का
कर रह, नह ं तो गांव छोड़कर चले जाय । गांव म सफ औरत ह रह जाएं
और वह बदमाश इसे वृ दावन बना ले । '
(उ तरा : अंक- 21, मई 1983, वतीय खंड ,पृ ठ- 86)

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बोध न – 3
(क) ामीण लेखन के च लत प ' ामीण का य' से या ता पय है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ख) ामीण लेखन के लए कौन-कौन सी वधाएं उपयु त ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(ग) लोक कथाओं और कहा नय का ामीण पर कैसा भाव होता है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

11.5 ामीण लेखन क तु त और स ेषण क सम याएँ (Problems


of Presentation and Communication of Rural Writing)
ामीण रचनाकार के सामने लेखन के लए वषय-व तु के चु नाव और उसे उपयु त सा ह य- प
म ढालने से भी बड़ी सम या यह होती है क वह उस सा ह य या लेखन को उन ामीण लोग
तक कैसे पहु ंचाए । य स ेषण क अपनी सीमाएं ह, िजसे हम सभी जानते ह, इसके
बावजू द ामीण के लए लखने वाले रचनाकार के सामने सुलभ वक प वह है क वह उनके
लए लखे और जहां भी चौपाल, मंच या समू ह के सामने संवाद का अवसर उपल ध हो, उन
तक अपनी बात पहु ंचाने का य न करे ।

11.5.1 सह मा यम के चयन क सम या (Problem of Selection of Media) -

समाचारप , प काएं और पु तक गांव तक बहु त कम पहु ंच पाती ह और पहु ंच भी जाएं तो


वहां उनक खपत और उपयो गता उतनी नह ं है । अ वल तो गांव म पढ़ाई क सु वधाएँ ह
उपल ध नह ं है, और जो लोग थोड़ा बहु त अ र- ान रखते ह, पढ़ना- लखना उनके
दै नक- यवहार म ाय: कम ह हो पाता है, ऐसे म समाचारप , प काएं या पु तक कौन
पढ़े ? ामीण रचनाकार के सामने सम या यह आती है क वह काशन के ज रये अपने ल त
पाठक वग तक कैसे पहु ंच?े
आजाद के बाद सारण मा यम का काफ व तार हु आ है और उनम भी रे डयो ने खासतौर
से गांव के जीवन म अपनी जगह बनाई है, ले कन सूचना और संवाद के एक ज र मा यम
के प म उसक एक नि चत पहचान बनना अभी बाक है । अ धकतर लोग के लए वह
आज भी सफ गीत-संगीत सु नने का शौ कया उपकरण मा है । उप ह णाल के व तार
के बाद नव दशक म दूरदशन का शहर आबाद पर तो चम का रक असर पड़ा, ले कन ामीण
आबाद उसके भाव से लगभग अछूती है । ऐसी सूरत म ामीण रचनाकार इन मा यम
के ज रये एक सी मत ोता-दशक वग तक ह अपनी बात पहु ंचा पाता है । ले कन काशन

192
मा यम क तुलना म इन सारण मा यम क पहु ंच और पैठ का दायरा न चय ह बड़ा है
और ामीण रचनाकार के लए इन मा यम के उपयोग क पया त संभावनाएं मौजू द ह ।

11.5.2 असमान सामािजक - आ थक प रि थ तयां (Different socio-economic


conditions) -

ामीण लोग के बीच संवाद और सं ेषण का अनुकूल वातावरण न बन पाने के पीछे सबसे
बड़ा कारण वहां क असमान सामािजक और आ थक प रि थ तयां ह । िजन लोग का जमीन,
खेती- बाड़ी और उ पादन के साधन पर क जा रहा है, वे हमेशा अपने मातहत को दबाकर
रखते आए ह । एक जमींदार और आम कसान के बीच िजस तरह के आ थक स ब ध रहे
ह, उनके बीच व थ मानवीय संवाद क या अपे ा क जा सकती थी, बि क वयं कसान ,
कार गर और अ य जात- बरादर वाले समु दाय के आपसी र ते भी उतने कम अंतरं ग और
उ साहह न मनोदशा के रहे ह क उनके बीच भावना मक सं ष
े ण का कोई आधार आज तक
वक सत नह ं हो पाया है । त पधा और संक ण जा तगत सं कार ने उनके बीच के अ तराल
को और बढ़ाया ह है ।

11.5.3 संवाद के समान धरातल का अभाव (No common platform for


communication)-

सामािजक- आ थक असमानता के बावजू द वक सत लोकतां क समाज म लोग के बीच


मानव- अ धकार को लेकर संवाद का एक समान धरातल कायम हो सकता है, ले कन उसके
लए भी आव यक है आ थक आ म नभरता, सह- अि त व क भावना और पार प रक स ाव
। ये े ठ 'मानवीय गुण एक दबाव-र हत लोकतां क समाज म ह संभव ह । ऐसे ह समाज
के नाग रक म संवाद का एक समान धरातल वक सत होता है जहां रचना या कला का सह
मान-स मान मल सकता है ।
भारत म आजाद और लोकतां क यव था चार दशक बीत जाने के बावजू द यहां लोकतं ीकरण
क या अभी ठ क तरह से शु नह ं हो पाई है । गांव के गर ब और नर र लोग को
वोट का अ धकार तो ा त है, ले कन उस वोट का मू य और मह व वे नह ं जानते । अपने
ववेक और आ म- नणय से उसका सह उपयोग करने क छूट भी उनके पास नह ं है । हर
व त कोई-न- कोई बाहर दबाव उन पर बना रहता है । ऐसे हालात म अगर कोई रचनाकार
उ ह उनके अ धकार और उनक दशा के बारे म बताता है, तो वे कु छ भी तय नह ं कर पाते,
बि क वे उस पर एतबार तक नह ं कर पाते । ऐसी प रि थ त म कसी रचना के सह स ेषण
क या संभावना बन सकती है?

11.5.4 सा ह य प क संि ल ट कृ त (Nature of Literature) -

लेखन के लए आमतौर पर िजन सा ह य प का योग कया जाता है, उनक कोई यवि थत
जानकार सामा य पढ़े - लखे लोग या ामीण को ाय: कम ह होती है । क व,. कहानीकार,
नाटककार या फ चर लेखक अपने पाठक से कुछ बु नयाद ान और सं कार क अपे ा ज र
रखता है, ता क वह अपनी बात एक नधा रत सा ह य- प म लोग तक पहु ंचा सके । यह

193
श ण ाय: दो तरह से स प न होता है - एक तो पाठशाला क औपचा रक श ा के ज रये,
जहां उब- ाथ मक या मा य मक श ा ा त करने तक व याथ इन सा ह य प के
बु नयाद फक को बार-बार क आवृि तय और श क के सहयोग से जान लेता है और दूसरा
तर का है अपनी लोक- वरासत से सतत ् संपक और लोक- वधाओं के च लत प क
सावज नक तु तय को बार-बार दे खने और उ ह सु नने-समझने क अनवरत या के
मा यम से । आपको येक गाव म ऐसे सैकड़ लोग मल जाएंग,े जो नता त नर र होते
हु ए भी अपनी लोक-पर परा क अनेक बात आपको इस तरह से सु ना जाएंगे, मान उ ह ने
बरस उनका व धवत अ ययन कया हो - सू र, कबीर, मीरा, तुलसी, रै दास जैसे भ त क वय
के भजन इसी लोक-पर परा के मा यम से लोग के बीच च लत रहे ह । ऐसी सैकड़ लोक
कथाएं और कं वदं तयां ह, जो वे बात क बात म आपको सु ना जाएंगे । इसी लोक-पर परा
से गहरे स पक के कारण वे का य, कथा या वचन के फक को बगैर कसी खास तैयार के
समझ जाते ह, ले कन आज के लेखन के व प और उसके सौ दय को जानने-समझने क
ि ट से इन सा ह य- वधाओं क कृ त को ठ क तरह से समझ लेना अ य त आव यक है।
सम या यह है क आज क क वताओं, कहा नय , नाटक या फ चर क संरचना अब उतनी
सरल नह ं रह गई है । हर रचनाकार अपने समय क भाषा- शैल और सा हि यक संरचना
से पछड़कर नह ं रहना चाहता, वह अपनी रचना को अ धक कला मक, रोचक और असरदार
बनाने क हर- संभव को शश करता है, और इस या म रचना क बुनावट और संि ल ट
होती जाती है । ले कन ामीण लोग के लए रचना करने वाले लेखक को अपने पर कु छ
संयम तो रखना ह होगा । वह अपने ामीण पाठक क च और बोध- तर क उपे ा करके
उनके बीच कायम नह ं रह पायेगा, बि क अपनी रचनाओं के मा यम से ह धीरे - धीरे उनके
बोध- तर को भी ऊंचा उठाना होगा । यह काम मु ि कल ज र है ले कन असंभव नह ं । ामीण
के बीच सा ह य को सामािजक बदलाव का मा यम बनाने क ि ट से यह काम िजतना क ठन
है, उतना ह ज र भी ।

11.5.5 ामीण लेखन क भाषा और रचना- श प (Language of Rural Writing and


Creative Architect) -

भाषा लेखन या अ भ यि त का आधार होती है । कोई भी बात अपने पूरे आकार और व प


म भाषा के मा यम से ह समझी या समझायी जा सकती है, ले कन ामीण लेखन क भाषा
का मसला थोड़ा अलग क म का है । यहां वचारणी बात यह नह ं है क कस रचनाकार
ने भाषा के वकास म कैसा और कतना योगदान दया, या क उसक भाषा कतनी कला मक
या यंजनापूण है , बि क वचारणीय बात यह है क उसक भाषा अपने ल त पाठक-
ोता-दशक के लए कतनी अनुकूल और असरकार है, वह बोलचाल क आम भाषा से कतना
मेल खाती है, कतने बड़े समु दाय तक अपनी बात पहु ंचा पाती है । बोलचाल क भाषा को
लेखन का आधार बनाने के बावजू द लेखक को उसे याकरण क सामा य भूल से अव य बचाना
चा हए, साथ ह अगर भाषा के मानक व प को सु र त रखा जा सके तो यादा बेहतर है
। कई बार रचनाकार आंच लकता के अ त र त मोह म भाषा से अनाव यक छे ड़खानी करने
लगते ह, और इसका अ तत: उस ामीण पाठक-वग पर उ टा असर पड़ने लगता है । अगर

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कु छ ामीण श द सहज प म उस भाषा म सहे जे जा सक, तो इससे ामीण लोग क उस
भाषा और रचना से अ तरं गता बढ़े गी ह ।
भाषा के साथ रचना- श प का भी सं ेषण क ि ट से कम मह व नह ं है । सा ह य शैल
को लेकर बड़े-बड़े योग हो चु के ह और रचनाकार का एक वग ऐसा भी है, जो शैल या प
को ह सा ह य का पयाय मानता है, ले कन ामीण-लेखन के लए शैल का आदश प यह
है क वह उनके लोक- श प और कला-सं कार से मु ंहजोर न करे और उनके लहजे और मुहावरे
क क करे ।
सा ह य म रचना- श प पर शा ीय चचा करते हु ए अ सर श द- शि तय , ब ब , तीक
और श प के बार क नु तो क बड़ी व तार से या याएं क जाती ह, ले कन ामीण लेखन
के संदभ म वह अ धक ासं गक नह ं है । रचना को रोचक और भावशाल बनाने क या
म अगर इस तरह का व यास वाभा वक ढं ग से उसके लेखन का अंग बनता है, तो उस
पर अलग से वचार करना अपे त नह ं है । सम या यह है क ामीण रचनाकार ने इस
न पर बहु त कम यान दया है ।
ामीण लेखन क भाषा और रचना- श प पर हम अपनी अगल इकाई म थोड़ी और व तार
से चचा करगे ।

11.6 ामीण लेखन के लए कुछ आव यक बात (Some Important


things of Rural Writing)
ामीण लेखन के व भ न पहलु ओं पर वचार कर लेने के बाद यह बात प ट हो गई होगी
क गाँव के जीवन पर कु छ भी लखना अ छ -खासी तैयार और सावधानी क अपे ा रखता
है । गाँव क िज दगी ऊपर से िजतनी सरल दखाई दे ती है, वह अपने व प और संरचना
म उतनी ह गहर और संि ल ट होती है । सं ेषण जनसंचार क ि ट से इस तरह के लेखन
म ग तशील होने से पहले न न ल खत बात को ठ क तरह से समझ लेना अ य त आव यक
है -
1. ामीण लेखन से जुड़ने से पूव अपने ल त पाठक या दशक- ोता वग को भल - भां त
पहचान लेना चा हए, य क ामीण जीवन पर लखना एक बात है और ामीण के लए
लखना ब कुल दूसर बात ।
2. चाहे आप ामीण िज दगी पर लख या ामीण के लए लख, अपने मन से इस बात
को अव य नकाल द क आप उनसे अ धक स य और सु सं कृ त ह, या क आप उनसे
सहानुभू त रखकर उनके त खास तरह का उपकार कर रहे ह ।
3. ामीण लेखन के लए वषयव तु का चु नाव करते हु ए अपनी जानका रय और त य
क ठ क तरह से जांच-पड़ताल अव य कर ल, य क ामीण जीवन पर लखते हु ए
क पना या अनुमान पर यादा भरोसा करना ठ क नह ं होगा
4. ामीण लेखन म स य होने से पूव ामीण क चय , उनके दै नक काम-काज,
जीवन-संघष, उनक सम याओं और आकां ाओं को अ छ तरह से समझ ल । आप इस
िज दगी म सीधे भागीदार भले न ह , ले कन उस भागीदार आदमी के ि टकोण को पूर
आ मीयता से समझ अव य ल ।

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5. ामीण लोग अपने पारं प रक सा ह य- प से बहु त लगाव रखते ह, हालां क नये सा ह य
प के त भी उनक उ सुकता इधर बढ़ रह है । जनसंचार के नये मा यम ने भी
उनके दायरे को बड़ा कया है, ले कन ामीण लेखन म च रखने वाले लेखक को उनके
लोक य सा ह य- प को अव य यान म रखना चा हए ।
6. ला णक या यंजनापरक भाषा और दूर क कौड़ी जैसा लगने वाला कला- श प ामीण
लेखन के लए ब कुल अनुपयु त और अनुपयोगी है । ामीण लेखन क भाषा िजतनी
बोल- चाल क भाषा के कर ब होगी, सं ेषण क ि ट से वह उतनी ह अ धक कारगर
होगी । लोकोि तयाँ और मु हावरे इस तरह के लेखन के वा त वक अलंकरण ह । जो
रचनाकार इस श प को जान लेता है, वह न चय ह ामीण लेखन के े म अपनी
अलग पहचान बनाने म कामयाब हो सकता है ।
7. ामीण लोग क भाषा और लोक- श प को अपनाते हु ए रचनाकार से यह भी अपे ा क
जाती है क वह इस भाषा और श प क सीमाओं को भी समझे और भाषा-सं कार को
नयी दशा दे ।
8. ामीण लोग अपनी लोक- वरासत और लोक- व वास के त एक गहरा भावना मक
र ता महसूस करते ह । वै ा नक ि ट से वचार करने पर आज उनके बहु त से व वास
म या और समय से पछड़े हु ए भी लग सकते ह, ले कन उन व वास के त उपे ा
का भाव रखना उ चत नह ं होगा । ामीण के लए रचना करने वाले लेखक को सव थम
उन लोक परं पराओं और लोक व वास को पूर आ मीयता से समझना होगा और ामीण
लोग का व वास अिजत करते हु ए उ ह वै ा नक ि टकोण अपनाने क ओर े रत करना
होगा, तभी वह अपने लेखन के वा त वक उ े य म कामयाब हो सकेगा ।

11.7 सारांश (Summary)


इस इकाई म आपने ामीण लेखन और जनसंचार म मह व, उसक वषयव तु, काय म
के व प, तु त और सं ेषण क सम या के बारे म अ ययन कया है । ामीण जीवन
पर लखना और ामीण के लए लखना दो अलग- अलग बात ह । ामीण के लए लखते
समय उनके बोध- तर को यान म रखना ज र होता है । उसी के अनु प वषयव तु, कला-
प और भाषा- शैल का चु नाव आव यक होता है ।
वषयव तु आ थक, सामािजक, पा रवा रक, गांव के समि वत वकास संबध
ं ी उ सव मेले
तीज- यौहार और लोक सा ह य पर आधा रत हो सकती है ।
ामीण लेखन म च लत सा ह य- पह- ामीण का य, लोक कथाएं और कहा नयां फ चर
रपोताज तथा लोक- ना य आ द ।
ामीण लेखन को ामीण तक सहज, सु लभ ढं ग से पहु ँचाने क सम या कु छ कम नह ं है
। सह मा यम के चु नाव क सम या, ामीण के असमान सामािजक आ थक तर मुख
सम या है ।

11.8 व- मू यांकन (Self-Valuation)


आप इस इकाई को सव थम ठ क ढं ग से पढ़े , त प चात ् पाठ म लखी हु ई बात को समझने
का यास कर । य द कसी चीज को समझने म परे शानी हो रह है तो उसे दोबारा पढ़े । अब

196
आपको ामीण लेखन से जु ड़ी व भ न जानका रय को म के साथ आदान- दान करना
चा हए ।

11.9 श दावल (Glossary)


ामीण लेखन  लेखन का वह व प जो ामीण पृ ठभू म से जु डाव रखता
)Rural Writing) हो ।
मा यम )Media (  संदेश को ोत से ोता तक पहु ं चाने का ज रया।
रपोताज (Reportaz (  कसी संग वशेष से जु ड़े सल सले बार यौरे -का
तु तकरण
फ चर )Feature (  एक कार का ग यगीत िजसम दय प धान होता -
है ।

11.10 अ यासाथ न (Questions)


1. ामीण लेखन म वतमान व प पर काश डा लए ।
2. ामीण वषय पर लखते समय लेखक को कन- कन बात का यान रखना चा हए?
3. ामीण रचनाकार के सम तु त एवं स ेषण क या- या सम याएँ ह ।
4. ामीण लेखन के वषय व तु पर काश डा लए ।

11.11 संदभ थ (Further Readings)


1. उपा याय, अ नल कु मार, प का रता एवं वकास संचार, वाराणसी : भारती काशन,
2007
2. बनज , अंजन कु मार, जनसंचार और वकास, वाराणसी : बी.एच.यू 1995
3. भारत 2006, काशन वभाग, भारत सरकार
4. झा, मु ि तनाथ, जनसंचार मा यम का वकास म योगदान, वाराणसी: बी.एच.यू 1995

197
इकाई-12
ामीण लेखन क भाषा और श प
(Language and Skills in Rural Writing)
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 ामीण जीवन, सा ह य और भाषा-शैल
12.3 ामीण सा ह य- प और भाषा
12.4 मा यम क कृ त और भाषा का व प
12.4.1 काशन मा यम और भाषा
12.4.2 सारण मा यम और उनक भाषा
12.5 भाषा- श प क ि ट से कु छ वचारणीय बात
12.5.1 वषय चयन और तु त
12.5.2 श द योग म सावधा नयां
12.5.3 वा य- व यास
12.5.4 वातालाप का लहजा और तर का
12.5.5 आलेख क तु त
12.6 सारांश
12.7 श दावल
12.8 अ यासाथ न
12.9 संदभ थ

12.0 उ े य (Objectives)
ामीण लेखन से संबं धत इस इकाई के मा यम से आप ामीण लेखन म यु त होने वाल
भाषा और उस रचना- श प से प र चत हो सकगे जो इस लेखन या सा ह य को अ य तरह
के सा ह य से अलग करता है । इस इकाई को पढ़ने के बाद आप –
 ामीण सा ह य म भाषा और रचना- श प क भू मका के मह व को समझ सकगे.
 जन-संचार के व भ न मा यम क कृ त और उनम यु त होने वाल भाषा के व प
और उसके भाव के बारे म बता सकगे तथा
 ामीण लेखन क उस तकनीक और बार कय के बारे म सह ान ा त कर अपनी
लेखन मता का वकास कर सकगे ।

198
12.1 तावना (Introduction)
ामीण पाठक तक जो सा ह य या साम ी छपे हु ए श द के मा यम से पहु ंचती है, उसका
स ेषण और असर सी मत होता है, जब क जनसंचार मा यम , खास, तौर से रे डयो और
टे ल वजन के ज रये उ ह ं ामीण तक जो जानका रयां पहु ँचती ह, उनका भाव और त या
कई गुना अ धक होती है । यह आज के ामीण जीवन को वै ा नक युग क मु ख दे न है,
ले कन ये जानका रयां अगर ामीण को कसी गैर-भाषा या कसी अजनबी शैल म उपल ध
करवाई जाए तो वह सारा य न असरह न हो जाता है । सामािजक वातावरण के अनुसार
प र चत भाषा न सफ संदेश क ा यता को बढ़ा दे ती है बि क उसक भावशीलता म भी
बढ़ो तर कर दे ती है । प र चत भाषा म तु त लोग को सहज ह आकृ ट करती है । इससे
लोग भावना मक प से जुड़ जाते ह िजससे सा रत संदेश का असर उस समाज पर यादा
पड़ता है । अत: ामीण अंचल के लए काशन या सारण के दौरान ामीण प रवेश को
यान म रखकर तु त करनी चा हए ।

12.2 ामीण जीवन, सा ह य और भाषा-शैल (Rural Life, Literature


and Language Style)
ामीण को संबो धत करके लखे जाने वाले लेखन म भाषा और श प क भू मका काफ
अहम ् होती है । उसी से सा ह य और कला प क पहु ँ च और उसके भाव क प र ध तय
होती है । भाषा से ह उनके बीच संवेदन और सौ दय-बोध क या वक सत होती है ।
इसके लए लेखन का वषय या वधा चाहे जो भी हो, उसक भाषा और श प का ामीण
क जीवन-शैल , उनके बोध- तर च और लोक-सं कार के अनु प होना आव यक है । इस
बोध- तर, च और सं कार क भी अपनी एक अलग कृ त होती है । येक लेखक से पहल
अपे ा तो यह क जाती है क वह उस कृ त को ठ क तरह से जान ले, अ यथा ामीण
के लए कुछ भी साथक लख पाने क बात तो दूर रह , वह ठ क 'तरह से उन तक सं े षत
भी हो पायेगा, इसम स दे ह है ।
असल म ामीण क जीवन-शैल और उनक सम याओं पर यापक श त वग के लए
लखना उतना क ठन नह ं होता,. िजतना उन ामीण लोग को संबो धत करके लखना, जो
ल खत भाषा के मु हावरे को कम समझ पाते ह । ामीण को संबो धत करके लखने म पहल
बात तो यह यान म रखनी होती है क वह आलेख उनक अपनी श दावल , भाषा और उ ह ं
के प र चत लहजे से अलग नह ं होना चा हए, जब क ऐसा कर पाना ाय: उन लेखक के लए
भी थोड़ा क ठन होता है, जो ामीण जीवन के य अनुभव से सीधे जु ड़े होते ह । ामीण
लोग अपनी बातचीत म अ सर ऐसे मु हावर , लोकोि तय और बेलाग भाषा का खुलकर योग
करते ह, िज ह एक मा यम या सा ह य- प क भाषा म ढालते हु ए काफ सावधानी बरतनी
होती है । साथ ह ामीण लेखक से यह भी अपे ा क जाती है क वह उनक सु च और
कौतु हल को बढाने वाल अपनी एक अलग शैल भी वक सत करे, जो अलग होते हु ए भी उ ह
अपनी-सी लगे । भाषा शैल ामीण को अपन व का बोध कराने वाल होनी चा हए िजससे
ामीण जीवन क जीवंत तु त स भव हो सके ।

199
12.3 ामीण सा ह य- प और भाषा (Rural Literature form and
Language)
क वता, कथा, चौपाल-चचा, संवाद और लोक-ना य ाय: ामीण लोग के बीच योग म आने
वाले मु ख सा ह यक प ह । जनसंचार के मा यम ने इन सा ह यक प को और भी लचीला
बना दया है, जहां ामीण वारा अपनी भाषा और लहजे को यथावत अपना लये जाने के
अवसर काफ बढ़ गये ह ।
इन सा ह यक प के बारे म हम पहले चचा कर चु के ह, उसम वचारणीय बात यह है क
ये सभी सा ह यक प अपनी व श ट ामीण भाषा और शैल के कारण समकाल न सा ह य
क मु य धारा के समाना तर अपनी एक अलग पहचान रखते ह और यह पहचान वयं उस
क थत मु य धारा के लए भी एक चु नौती है । ामीण सा ह य क भाषा ामीण म ी क
स धी महक वातावरण म घोलती हु ई जब कान को झंकृत करती है तो इससे अनायास ह
अपन व का बोध हो उठता है । ामीण जीवन शैल को सीधे एवं सहज श द के मा यम
से तु त करने वाल सा हि यक वधा जमीनी मू य से खासा जु ड़ाव रखती है । आम बोल
चाल क भाषा इस वधा को और भी ासं गक बना दे ती है । ऐसी ह कु छ रचनाओं के उदाहरण
दे ख
1. तगार भर जमीं
आकाश रखते हाथ को
होकर कलमची
ग णत के उप नषद क
हर लखावट को बदलना है
िज ह अपने समय को आज रचना है ।
(खु ले अलाव पकाई घाट / हर श भादानी, पृ ठ- 19)
2. ''आ खर रआया का दुःख दे खकर रानी का दल भर आया । साहस बटोर
कर राजा से अरज क , पर चकने घड़े पर भला पानी कहां ठहरा है ।
उलटे उसी को कपड़ का महातम समझाने लगा, 'पंछ जानवर और आदमी
म यह तो फक है । फकत कपड़ से ह आदमी, आदमी कहलाता है ।
जंगल का राजा शेर नंगा घूमता है । न शम, न हया । पंछ नंगे उड़ते
ह, मछ लयां नंगी तैरती है । ढोर-डंगर नंगे डोलते ह । घोड़ और गध
को नंगा दे खकर म तो शम से गड़ जाता हू ं । ''
(अद ठ लबास / उलझन / वजयदान दे था, पृ. 36)

12.4 मा यम क कृ त और भाषा का व प (Nature of Media and


forms of Language)
हम अपने यावहा रक अनुभव से यह बात भल -भां त जानते ह क जनसंचार के सभी मा यम
क कृ त एक जैसी नह ं है । उनका भौ तक व प, काय णाल और जन मानस पर पड़ने

200
वाला भाव भी एक जैसा नह ं है और इसी लए जा हर है क उनम तुत कये जाने वाले
कला प क भाषा और शैल भी एक-दूसरे से काफ अलग तरह क होती है । मोटे तौर पर
इन मा यम को हम दो े णय म बांट सकते ह - काशन मा यम और सारण मा यम।
काशन मा यम के अ तगत सामा यत: समाचारप , प काएं और पु तक आती ह तथा
सारण मा यम के अ तगत रे डयो, टे ल वजन और फ म जैसे मा यम को लया जा सकता
है और यह बात हम अपने अनुभव से जान गये ह क इन दोन ह मा यम क भाषा शैल
म पया त अ तर होता है । इस अ तर का मू ल कारण है, इन मा यम क भ न कृ त और
इनका ल त या स बो धत समाज ।

12.4.1 काशन मा यम और भाषा

समाचारप और प काएं एक बड़े सा र समाज को यान म रख कर तैयार क जाती ह ।


उनम का शत होने वाल साम ी और उसका भाषाई व प भी उसी यापक समाज क सु च
और यवहार के अनु प तय होता है । इन समाचारप और प काओं म ामीण समाज क
सम याओं और उसक जीवन प त के बारे म आये दन लेख, फ चर और सू चनाएं भी का शत
होती रहती ह, ले कन इस तरह क साम ी क भाषा उसी समाचारप या प का म का शत
आम दूसर साम ी से बहु त भ न नह ं होती । वषय-व तु और प रवेश के अनुसार थोड़ी बहु त
श दावल ज र बदल जाती है, ले कन शैल और लहजा वह रहता है । इस बात को गांव म
पेयजल क सम या पर का शत इन दो फ चर-आलेख के अंश से समझा जा सकता है
1. “ उ नीसवीं सद के अंत तक यह गांव समृ रहा, य क यहां का कृ त-च लगातार
बना रहा । अ छ जमीन, संचाई के लए जोहड़, वन और पशुपालन के अ छे गोचर थे
। जोहड़ म बरसात के पानी को इक ा करने क पर परा यहां बहु त पुरानी थी, िजसके
ऊपर यहां क आ थक, सामािजक और ाकृ तक समृ टक थी । इस े का जल तर
ऊपर ह था । इस लए इसे 'नेड़ा’ भी कहते ह । ले कन धीरे-धीरे लोग पर परागत तर के
भू लते गये और स दय से चला आ रहा कृ त-च टू ट गया । क ची शराब, ओसन नु ता,
अ श ा, बाल- ववाह और रोजगार के नाम पर मायूसी का आलम यहां बढ़ता गया । यहां
के युवा लोग घर छोड़कर मजदूर के लए बाहर जाते रहे । ''
(पुराने जोहड़ क खोज म / राजे संह: जनस ता, 12 जु लाई 1992, पृ. 3)
2. “ हमारे दे श म पानी क सम या बाक वकासशील दे श क तु लना म यादा नाजु क है
। एक सव ण के मु ता बक दु नयां के हर तीन यासे यि तय म एक यासा भारतीय
है । मजे क बात तो यह है क यह दे श सबसे यादा वषा वाला दे श है । यहां क औसत
वा षक वषा 1170 ममी. है । इसम चेरापू ज
ं ी जैसे अ धक वषा वाले थान क औसत
वा षक वषा 11400 ममी है । एक अनुमान के अनुसार वषा से भारत को लगभग 40
करोड़ है टे यर मीटर जल मलता है, इसम से 21.5 है टे यर मीटर भू-पृ ठ जल के प
म उपल ध रहता है । दे श क भौगो लक हालत का जायजा ल िजये तो यह न दय वाला
दे श है । भारतीय स यता का वकास ह न दय के कनारे हु आ है । इन न दय म बहु त
कम ऐसी न दयां ह, जो कसी और म समा हत हो अपना नाम खो गई, मगर न दयां

201
अभी भी ह । सवाल उठता है क नद -नाल वाले इस दे श म फर पानी का टोटा य
है । ''
(कहां गया हमारा पानी कु लद प शमा जनस ता, 12 जुलाई 1992 पृ.- 1)
इन दोन ह उदाहरण को बार क से पढ़ने पर आप पाएंगे क गांव म पानी क सम या का
िज करते हु ए भी ये दोन आलेख ामीण जनता को यान म रखकर नह ं लखे गये ह,
न ह उनको संबो धत ह, बि क इनका ल त पाठक वह शहर का सामा य पढ़ा- लखा तबका
है । समाचारप म छपने वाल यादातर ट प णयां, फ चर-आलेख या रपोताज इसी तरह
के होते ह और इसी लए इनके लखने वाले ठ क-ठाक ामीण लेखक क ेणी म नह ं आते
। यह कारण है क बहु त बार ऐसे लेखक क ामीण जीवन पर आधा रत रचनाएं या
फ चर-आलेख काफ का प नक और अ तरं िजत भी होते ह ।

12.4.2 सारण मा यम और उनक भाषा

रे डयो और टे ल वजन सारण के मु ख मा यम ह और इन मा यम के ज रए ामीण ोताओं


और दशक के लए कु छ काय म सा रत कये जाते ह । इन मा यम के यादातर काय म
तो शहर वग को ह स बो धत होते ह ले कन 'कृ ष लोक', ' ाम संसार', 'चौपाल' या ामीण
म हलाओं के लए सा रत होने वाले मले-जु ले काय म आमतौर पर ामीण लोग क च,
उनके बोध- तर और उस े वशेष क बोल या भाषा म ह सा रत कये जाते ह, जो
तु तीकरण क इसी लोक शैल और लोक भाषा के कारण सवा धक लोक य भी होते ह ।
सारण मा यम के इन ामीण काय म म आलेख का योग होते हु ए भी संचालक और
तु तकता आमतौर पर ामीण को समझ म आने वाल उ च रत भाषा का ह योग करते
ह, इस लए वहां स ेषण क सम या आड़े नह ं आती । कई बार कृ ष, पशु पालन या च क सा
से संबं धत वशेष अपने वषय को उतने सरल श द म नह ं तु त कर पाते, िजतना, उ ह
करना चा हए । ऐसे म काय म का क पीयरर या संचालक उन वशेष क मु य बात को
ामीण भाषा म पा त रत करके या थोड़े और खुलासे के साथ उ ह समझाता है । इस या
म इन काय म क भाषा और भी सरल और बोधग य हो जाती है । इस बात के लए आप
अपने अंचल के कसी भी रे डयो टे शन के ामीण काय म को सु नकर इस बात क पुि ट
कर सकते ह । क यू नट रे डयो एवं टे ल वजन के प म आज रे डयो, टे ल वजन ामीण
जीवन से गहराई से जुड़ते जा रहे ह । िजससे े ीय तु तय को एक नया मंच मल गया
है । इन मा यम क भाषा ामीण मू य से गहराई से जु ड़ी होती है ।
बोध न
1) ामीण लेखन के लए भाषा और श प क भू मका के अहम ् होने के कारण बताइए।
................................................................................................................
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................................................................................................................
2) जनसंचार मा यम कौन-कौन से ह?
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202
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3) ामीण पर कस मा यम का भाव अ धक है और य?
................................................................................................................
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................................................................................................................
4) जनसंचार मा यम क भाषा-शैल म अंतर का या कारण है?
................................................................................................................
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12.5 भाषा श प क ि ट से कु छ वचारणीय बात


ामीण के लए कसी भी मा यम को यान म रखकर लखे जाने वाले सा ह य क भाषा
और उसके श प म कुछ बु नयाद बात ऐसी ह, िजनके बारे म येक ामीण लेखक का
सचेत होना आव यक है । ऊपर से बहु त सरल और साधारण-सी दखने वाल इन बात का
नवाह अ सर सधे हु ए अनुभवी लेखक भी नह ं कर पाते और ऐसे म उनका बहु त-सा म
अकारथ हो जाता है ।
जनसंचार के मा यम म रे डयो और दूरदशन ामीण के बीच अ धक लोक य और सहज प
से उपल ध मा यम ह इस लए यहां हम इ ह ं मा यम के लए तैयार कये जाने वाले सा ह य
क भाषा-शैल पर वचार करगे । इन मा यम के लए आलेख तैयार करते समय िजन पहलुओं
पर यान दे ना आव यक होता है, वे इस कार ह -

12.5.1 वषय चयन और तु त

ामीण लेखन के लए सह वषय का चयन सबसे अहम ् मसला है । ामीण जीवन म च


रखने वाले बहु त से लेखक ाय: वषय चयन के मामले म ठ क नणय नह ं कर पाते और
नाकामयाब रहते ह । वे कसी ामीण सम या पर तब लखना शु करते ह, जब बहु त से
उस सम या से पी ड़त होकर नुकसान उठा चु के होते ह, या वह सम या अपनी ासं गकता
खो चु क होती है । लेखक से यह अपे ा क जाती है क वह सामा य आदमी से थोड़ा अ धक
दूरदश होना चा हए, जो व त से पहले लोग को आने वाल क ठनाई के त सचेत कर सके।
कई बार लेखक वषय का चयन करते हु ए उसी वषय से मेल खाते अ य बहु त से वषय
क साम ी को उसी म समेटने का य न करता है, इससे आलेख म बखराव पैदा होने का
खतरा उ प न हो जाता है और लेखक उस व श ट वषय पर केि त रहकर अपनी बात ठ क
तरह से नह ं कह पाता इस लए एक बार म एक ह वषय को चु नना चा हए । वषय चयन
के साथ इस बात का भी वशेष यान रखा जाना चा हए क उसम साम यक जानका रय को
अव य ह शा मल कया जाए और त य का उ लेख करते समय उनके उ तरदायी ोत का
उ लेख अव य कया जाए ।
ामीण लोग के लए लखे जाने वाले आलेख म अ सर ह का-फु कापन पाया जाता है ।
अनौपचा रक होना अ छ बात है, ले कन आलेख लखते समय अपे त गंभीरता न बरतना

203
कतई उपयु त नह ं है । इस बात का भी यान रखा जाना चा हए क गांव के ोताओं या
पाठक को आप नासमझ या अनपढ़ मानकर उ ह उपदे श या नसीहत दे ने क गलतफहमी
के शकार न ह । इससे न केवल लेखक क बात को गंभीरता से नह ं लया जायेगा बि क
उस आलेख क ग रमा भी न ट हो जायेगी ।
ामीण लोग के लए सफलता क चकर कहा नयां सबसे अ धक आकषक और भावशाल
होती ह । उ ह कोई बात वचारपूण लेख या क पनाशील तीक उपमान म कहने-समझाने
क बजाय सफलता क चकर कहा नय के मा यम से यादा बेहतर तर के से समझाया जा
सकता है । ले कन ये सफलता क कहा नयां भी तब तक चकर नह ं ह गी, जब तक उनक
शु आत रोचक न हो, द लत हर तरह के आलेख क शु आत का रोचक होना बहु त ज र है,
इसी से ामीण लेखन अपनी एक अलग पहचान कायम कर सकता है ।

12.5.2 श द योग म सावधा नयां

ामीण के लए लखने वाले लेखक अ सर सह श दावल का चयन नह ं कर पाते । वे वयं


िजस तरह क भाषा म द होते ह या िजस तरह के माहौल म रहकर जीवन जीते ह, उसी
के आस-पास क भाषा और श दावल से काम चला लेना चाहते ह । कई बार उनक यह तरक ब
काम भी कर जाती है ले कन यापक ामीण त य के लए अ सर यह तरक ब काम नह ं
दे पाती । इसके लए तो उ ह कु छ अ त र त सावधा नयां रखनी ह होती है, जैसे सबसे पहल
बात तो यह है क लेखक क अपनी भाषा जैसी भी हो, अगर उसे ामीण के लए लखना
है तो उसे ामीण लोग क भाषा और श दावल से गहरा र ता जोड़ना होगा उस श दावल
को अपनाना होगा और उस सार सीखी हु ई क ठन और ि ल ट भाषा को छोड़ दे ना होगा, िजसका
योग अ सर बु जीवी लोग अपनी बौ क धाक जमाने के लए कया करते ह । ामीण
के लए लखने वाले रचनाकार को भड़काऊ श द के योग से भी बचना चा हए । लेखक क
श दावल ऐसी होनी चा हए जो सभी को चकर लगे । उसक भाषा म ामीण मु हावर और
लोकोि तय का भी सु ंदर योग अपे त है, इसी से आलेख म एक असर पैदा होगा ।

12.5.3 वा य- व यास

श द योग म बरती जाने वाल सार सावधा नयां तब तक असरह न ह, जब तक आलेख का


वा य- व यास उपयु त न हो । ल बे-ल बे संि ल ट वा य आलेख को गंभीर तो बना सकते
ह, ले कन इससे आलेख सु चपूण और बोधग य भी बना रह सकता है, इसक गार ट दे
पाना क ठन है । ढ ले-ढाले वा य- व यास या अधू रे वा य से काम-चलाऊ आलेख तो तैयार
हो सकता है, ले कन सु ग ठत और सु दर आलेख के लए वा य का बहु त ल बा न होना और
उनका सु ग ठत बना रहना आव यक है । वा य िजतने छोटे और सरल ह , उतना ह बेहतर
है । यथा -

उपयु त: चूहे हमार खा य साम ी न ट करते ह । वे रोग भी फैलाते ह । इन चू ह


पर काबू पाने के लए कर, फे रन, वष का उपयोग करना चा हए ।

204
अनुपयु त: यह दे खा गया है क चालाक और शैतान चू हे हमार बहु त सी बहु मू य
खा य-साम ी को उदर थ कर लेते ह और कसान के घर म सं ामक बीमा रयां
फैलाने के अलावा ग दगी भी फैलाते ह । उन पर नयं ण के लए समि वत चू हाकार
अ भयान चलाने का आ दोलन चलाए बना मानव जा त के अि त व क र ा क ठन
ह नह ं वरन ् अस भव भी है ।
(जनसंचार: व वध आयाम / बृजमोहन गु ता, पृ. 22)
सरल और छोटे वा य के योग के साथ ह वा य व यास म वराम च ह का सह उपयोग
अ य त आव यक है । रे डयो या ट वी के आलेख म इन वराम च ह को उपयु त अ तराल
के प म इ तेमाल कया जा सकता है, सह जगह पर अ तराल दे ने से वाचक के उ बोधन
म प टता और असर पैदा होता है ।

12.5.4 वातालाप का लहजा और तर का

य या य मा यम के लए तैयार कये जाने वाले आलेख म श दावल या वा य- व यास


से भी अ धक यान वातालाप के लहजे और तर के पर रहता है । श दावल उपयु त हो और
वा य रचना भी बेहतर हो, ले कन बात कहने का अंदाज अगर सह न हो या फर वाताकार
के लहजे म वह अपे त लोच न हो, तो सारा आलेख असरह न हो सकता है ।
ामीण लोग को संबो धत करते समय तो इस लहजे का मह व और भी बढ़ जाता है, य क
गांव का आदमी कसी व ता को अपना मन तभी दे पाता है, जब उसे अपनेपन और म वत
लहजे से स बो धत कया जाए । बात को व वसनीय और असरदार बनाने के लए वर म
समु चत उतार-चढ़ाव और वन ता का होना भी आव यक है । इस सल सले म 'हम और
आप' तकनीक बड़ी उपयोगी सा बत होती है -
उपयु त: हमार सबसे बड़ी सम या है बचत क सम या । मंहगाई के इस जमाने
म हम कु छ भी नह ं बचा पाते । म आपको आज ऐसा तर का बताता हू ं क आप
आसानी से दस पये रोज बचा सक........
अनुपयु त: हमारे दशक या ोता चाह तो मु झसे दस पये रोज बचाने के तर के सीख सकते
ह ।
(जनसंचार. व वध आयाम / बृजमोहन गु ता, पृ. 27)

12.5.5 आलेख क तु त

दरअसल कसी मा यम के लए एक अ छा आलेख तैयार कर लेना पया त नह ं है, उस अ छे


आलेख को उपयु त ढं ग से तु त करने के तर क पर भी हम यान दे ना चा हए । ऊपर
से ये बात बहु त छोट और सामा य दखाई दे ती ह । बहु त बार एक अ छा आलेख इस लए
लौटा दया जाता है क उसे तु त करने का तर का ठ क नह ं होता ।
बेहतर आलेख क पहल शत यह है क उसे सु दर और सु पा य ह त ल प म लखा जाए
अथवा उसे टं कत करवा कर तुत कया जाए । खराब लखावट या दोषपूण टं कण से आलेख
क शि त आधी रह जाती है । आलेख लखते समय लेखक को दो पंि तय के बीच क अपे त
दूर , हा शये और पैरा ाफ वगैरह का समु चत यान रखना चा हए । य- य मा यम के

205
लए तैयार कये जाने वाले आलेख म तो और भी कई बात यान म रखनी होती ह, जैसे
आलेख के बीच म यादा उप-शीषक न ह , सू चय , ता लकाओं और रे खा च का योग
यूनतम हो, आलेख के बीच बहु त सारे आकड़े भी म पैदा करते ह । इस लए आकड़ का
योग सी मत और बहु त आव यक होने पर ह करना चा हए । हरे क आलेख का शीषक बहु त
आकषक और सट क होना चा हए, जो अ धक ल बा भी न हो । सह ढं ग से बात को समझाने
का एक उपयोगी तर का यह भी है क आलेख क मु य-मु य बात को अपनी बात पूर करने
से पहले दोहरा भी द । यह तकनीक और शैल ामीण लोग के लए वशेष प से उपयोगी
सा बत होती है, इस लए इस पर समु चत यान दया जाना आव यक है ।
ामीण समाज से जुड़े कसी भी मु े पर आलेख तैयार करते समय ामीण समाज क पृ ठभू म
का वशेष यान रखना चा हए । य द आलेख म आकड़ का योग करना ज र है तो यह
यान दे ना ज र हो जाता है क आकड़ से आलेख बो झल अथवा नीरस न हो जाय, इसके
लए आकड़ को कसी उदाहरण के मा यम से समझाना यादा समीचीन होगा; भार -भरकम
आकड़े को कम पढ़ा लखा अथवा नर र ामीण समझने म क ठनाई महसूस करता है अत:
उसके बोध, समझ इ या द बात को यान म रखकर ह आलेख तैयार करना चा हए ।
टे ल वजन वारा े षत साम ी को तो य के सहयोग से समझाने म सफलता मल भी
सकती है परंतु रे डयो जहां श द के मा यम से ह वषय-व तु का बोध करना होता है,
उसम आलेख लेखक को बेहद सावधानी बरतनी चा हए ।
बोध न - 2
1. रे डयो और दूरदशन मा यम के लए आलेख तैयार करते समय कन- कन पहलु ओं
पर यान दे ना आव यक है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
2. वा य के मह व पर ामीण के लए एक रे डयो आलेख तैयार कर ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
3. या ल बे-ल बे वा य आलेख को बो झल बनाते ह?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

12.6 सारांश (Summary)


 ामीण के लए लेखन से संबं धत इस इकाई म आपने ामीण सा ह य क भाषा और
श प का अ ययन कया । आपने जाना क भाषा और श प कस तरह ामीण सा ह य
म अहम ् भू मका नभाते ह ।

206
 ामीण सा ह य के कुछ च लत प ह- क वता, कथा, लोक ना य, चौपाल चचा और
संवाद । इन सा ह य प को जनसंचार मा यम -रे डयो, टे ल वजन, फ म आ द ने और
भी लचीला बना दया है । ामीण भाषा और शैल के कारण ये सा ह य प अपनी अलग
पहचान रखते ह ।
 जनसंचार मा यम को काशन मा यम और सारण म बांटा जा सकता है । काशन
मा यम के अंतगत मु यत: समाचारप , प काऐं और पु तक आती है और सारण
मा यम के अंतगत रे डयो, ट .वी. और फ म आते ह । व भ न उदाहरण वारा आपने
दोन मा यम क भाषा-शैल के अंतर को जाना-परखा । यह अंतर दोन मा यम क
भ न कृ त और इनके वारा ल त या संबो धत समाज क भ नता के कारण पाया
जाता है ।
 ामीण पर रे डयो और दूरदशन के यापक भाव को दे खते हु ए इन मा यम के लए
आलेख तैयार करते समय भाषा- श प क ि ट से कु छ े म सावधानी बरतना
आव यक है । ये े ह- वषय चयन, श द योग, वा य- व यास, वातालाप का लहजा
और तर का तथा आलेख क तु त । आशा है ामीण के लए उ ह ं क भाषा और
शैल म बेहतर आलेख तैयार करने म यह इकाई आपक मददगार होगी ।

12.7 श दावल (Glossary)


क यू नट रे डयो )Community Radio(  कसी सं था वारा सामु दा यक वकास
को यान म रखकर कये गये रे डयो
सारण का साधन
लेख )Article(  आकड़ा एवं त य धान ग य रचना
ल त समाज )Target Audience(  कसी समाज क वह इकाई िजसे यान
म रखकर मी डया संगठन काशन
अथवा सारण करते ह ।
कॉ पीयरर (Compeerer(  कसी रे डयो अथवा टे ल वजन काय म
का तोता ।

12.8 अ यासाथ न (Questions)


1. पर परागत मा यम एवं आधु नक जनसंचार मा यम क लेखन शैल म अ तर प ट
क िजए?
2. ामीण अंचल म कौन सा मा यम अ धक भावी है और य?
3. कसी सम या को रे खां कत करने के लए रे डयो आलेख तैयार करते समय कन- कन
बात पर यान दे ना चा हए?
4. आधु नक जनमा यम ने पर परागत मा यम को नया जीवन दया है? या या क िजए?

207
12.9 संदभ थ (Further Readings)
1. उपा याय, डॉ. अ नल कु मार, 'गांधी : वकास एवं प का रता, 2003 मी डया इि डया
पि लकेशन, वा लयर (म. .)
2. झा, डॉ. मु ि त नाथ, 'जनसंचार के पार प रक मा यम का उ व एवं वकास', 2003,
भावना काशन, द ल
3. न ला, डॉ. उमा, 'डेवलपमट क यू नकेशन', 2005, हर आन द पि लकेशन, नई द ल
4. गु त, बृजमोहन, 'जनसंचार व वध आयाम'

208
इकाई-।3
वै वीकरण, उदार करण एवं वकास
(Globalization, Liberalization and Development)
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 वै वीकरण का अथ एवं कृ त
13.3 वै वीकरण एवं उदार करण का ऐ तहा सक संदभ
13.4 उदार करण का अथ एवं कृ त
13.5 वकास: एक प रचय
13.6 वै वीकरण, उदार करण एवं वकास
13.7 वै वीकरण एवं उदार करण का भाव
13.8 सारांश
13.9 व-मू यांकन
13.10 श दावल
13.11 अ यासाथ न
13.12 संदभ थ

13.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का अ ययन करने के बाद 'आप समझने म स म ह गे -
 वै वीकरण के अथ एवं कृ त को ।
 उदार करण के व प को ।
 वकास क वतमान कृ त को ।
 वै वीकरण के इ तहास को ।
 वै वीकरण और वकास के स ब ध को ।
 उदार करण और वकास के स ब ध को ।

13.1 तावना (Introduction)


वतमान समय म वै वीकरण एवं उदार करण का भाव येक े म दखाई पड़ रहा है ।
वै वीकरण के इस दौर म व व एक बाजार म बदल गया है । कु छ दशक पूव भारत म वदे शी
व तु ओं के वेश पर कठोर पाब द थी । ले कन अब तो फल, स जी तथा खलौने भी भारत
म वदे श के बक रहे ह । व व एक बाजार के दौर म लोग को नाग रक के थान पर उपभो ता
का दजा मला है । नाग रक क स भु ता के थान पर उपभो ता क स भुता का चार- सार

209
हो रहा है । इतना ह नह ं व भ न रा म यापार करने वाल बहु रा य क प नय का
बोलबाला है । इस दौर म बाजार तथा बहु रा य नगम का वै वीकरण हु आ है ।
इसी के साथ-साथ यह भी न आप के मन म होगा क नाग रक क ि थ त एवं रा य यव था
क ि थ त इस दौर म या है? वा तव म वै वीकरण के इस यावसा यक दौर म नाग रक
क ि थ त उपभो ता क है । रा य धीरे -धीरे 'क याणकार उ े य से हट रहा है । रा य वारा
नजी े को बढ़ावा दया जा रहा है । सरकार क प नय का भी नजीकरण जार है । नाग रक
एवं कसान को मलने वाल छूट भी कम हो रह ह । श ा एवं वा य तक का नजीकरण
जार है । इसी नजीकरण के ो साहन क या का नाम उदार करण है । इसक चचा हम
इस अ याय म करगे ।
इस कार आप दे खगे क वै वीकरण एवं उदार करण से वकास को भी जोड़कर दे खा जा रहा
है । जो रा अथवा दे श, िजस सीमा तक वै वीकरण एवं उदार करण को अपना रहा है उसी
मा ा म उसे वकास क या से जु ड़ा माना जा रहा है । इस वैि वक पूजीवाद
ं के जमाने
म रा को बाजार के प म दे खा जा रहा है । इस बाजार म नाग रक सफ उपभो ता है
। इस नवीन चंतन या का के व व यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) बन कर उभरा
है । संयु त रा संघ से जु ड़े सभी संगठन म वा तव म व व यापार संगठन एक शि तशाल
नकाय बनकर उभरा है । बहु रा य नगम के हत क ि ट से आयात- नयात सीमा कर
को कम या समा त करने का यास करने, सरकार छूट को कम करने, यापार के लए कृ ष,
सेवा, टे सटाइल एवं ाकृ तक संपदा आ द े को खोलने से भारत स हत व व के तमाम
वकासशील दे श इस अवधारणा से सबसे यादा भा वत हु ए ह । इस यापा रक वै वीकरण
एवं उदार करण म मनु य एवं उसके क याण क चंता नह ं है । यह एक कार से यि तवाद
का नया उभार है । इसका आधार डा वन के स ा त से मेल खाता है । डा वन ' े ठतम
के ह अि त व को वीकारता था । ' अथात ् त पधा अथवा चु नौतीपूण संघष म 'जो उ तम
है, वह जीने यो य है, का स ा त वतमान म भावी है । चार ओर त पधा का दौर है
। इसक भी चचा इस इकाई म होगी । वै वीकरण और उदार करण के प रणाम व प कसान
क आ मह या, बढ़ती बेरोजगार एवं हंसा आ द भाव क भी चचा इस इकाई म होगी ।

13.2 वै वीकरण का अथ एवं कृ त (Meaning and Nature of


Globalization)
वै वीकरण के लए ह द म भू मंडल करण श द भी यु त होता है । भू म डल करण के लए
अं ेजी म ' लोबलाइजेशन' श द का योग होता है । वा तव म वै वीकरण अथवा भूमंडल करण
का अथ सामा यत: व व यापी होना है । वै वीकरण के कई कार या व प व यमान है
। एक अवधारणा भारतीय या पूरब क है । उसका आधार है वसु धैव कु टु बकं' अथात ' व व
एक प रवार' क है । इसका ल य है -
सव भव तु सु खन:, सव स तु नरामयाः ।
सव भ ा ण प य तु मा कि च दुःख भाग भवेत । ।
या
लोका सम ता सु खनः भव तु ।

210
(अथात ् सभी नरोग एवं शुभ दशन यु त ह । कोई दुःखी न हो , सभी सु खी ह ) या (स पूण
लोक सुखी हो) । यह भारतीय व व ि ट अथवा भारतीय ि ट के वै वीकरण का ि टकोण
रहा । इसके वपर त पि चम के वै वीकरण का अथ -वा तव म भ न तथा भौ तकवाद है
। िजसका ल य उ योग, यापार एवं आ थक याओं तक सी मत है । इस कार जहाँ भारतीय
ि टकोण के वै वीकरण म ' व व एक प रवार' क धारणा भावी होती है । वह ं पि चमी
नज रये के वै वीकरण म ' व व एक बाजार' क धारणा भावी प म अि त व म आती है
। वा तव म मनु य से जु ड़कर वै वीकरण क दो ि थ तयां बनती ह । इनम एक है वचारवाद
तथा दूसर है व तु वाद । चू ं क मनु य वचारवाद है । इस कारण परमाथवाद , क याणकार
आ द वचार 'वसु धैव कु टु बकं' या ' व व एक प रवार' से जु ड़े ह । इसके वपर त व तु वाद
अथवा भौ तकता से वा तव म बाजारवाद ह आ सकता है । वचारवाद म मनु य सा य है
अथवा मनु य ह इस सृि ट का के है । इसके वपर त व तु वाद या भौ तकतावाद म बाजार
के लए मनु य ह । अथात ् बाजार ह सव प र है । 'मनु य के लए बाजार' क अवधारणा
म मनु य एवं उसका अि त व सव प र है । इसी लए वतमान वै वीकरण म बाजार के लए
मनु य क धारणा ह सव प र है ।
वै वीकरण का स ब ध व व के व भ न लोग , े एवं दे श के म य सामािजक एवं आ थक
े म अ तः- नभरता म वृ से है । इसके बावजू द आ थक े वै वीकरण म मु ख है
। 1980 के दशक म व व अथ यव था म प रवतन का शुभार भ हु आ । इस समय तक
जमनी का एक करण हो चु का था और सा यवाद सो वयत संघ का समापन भी हो चु का था
। शीतयु का भी समापन हो चुका था । ऐसी ऐ तहा सक पृ ठभू म म वै वीकृ त अथ यव था
ार भ हु ई । वैसे तो वतीय- व वयु के उपरा त पर पर नभर यापार क अवधारणा ार भ
हु ई । इस अवधारणा को वै वीकरण का नाम दया गया । वा तव म हम कह सकते ह क
व व बाजार का अथ है, िजसम लोग म व व तर य यापा रक एवं व नवेश क चेतना व व
तर पर भावी हो । वकासशील दे श ने अपना बाजार व वबाजार के लए खोला । व व
यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) ने व व अथ यव था को भावी प म बढ़ाया । वै वीकरण
क अवधारणा एक तरफ तो एक-दूसरे दे श को आ म नभर बनाने पर बल दे ती है परंतु इसने
वकासशील दे श के असंत ृ त बाजार को वक सत दे श के लए उपल ध करवाकर कई कार
क सम याओं को पैदा कर दया है ।
इस कार हम कह सकते ह क वै वीकरण वह या है िजसम आ थक ग त व धयां वत
प से व व तर पर संचा लत होती ह । इसम रा य क राजनी तक सीमाओं क बाधाएं
समा त हो जाती ह । यह व व के दे श म आ थक एकता एवं पर पर नभरता को व व
के रा म बढ़ाती है । इसका स ब ध रा य क भौगो लक सीमा के बाहर तथा भीतर व तु ओं,
सेवाओं, स पदा, तकनीक एवं सूचना के वाह के साथ-साथ आ थक ग त व धय को बढ़ावा
दे ने से है । इस कार वै वीकरण का स ब ध बाजार आधा रत नजीकरण को बढ़ावा दे ना
है । आ थक े म सरकार क भू मका को कम करना है । इस कार वै वीकरण म व तु ओं,
कामगार एवं तकनीक वशेष का दे श क सीमाओं के पार वत आवागमन भी सि म लत
है । वै वीकरण मूलत: आ थक या से जु ड़ी यव था है । इसका ल य व व सरकार क
थापना है, िजसम एक सरकार, एक मु ा एवं एक कानून है । इस कार हम कह सकते ह

211
क वै वीकरण वकास क ऐसी रणनी त पर आधा रत है, िजसम व व अथ यव था का तेजी
से एक करण हो । वै वीकरण 'एक सु ढ़ व व अथ यव था के लए सु ढ़ व व व तीय
यव था का ढांचा उपल ध कराता है । अब आप समझ गये ह गे क वै वीकरण का अथ है
'बाजार का वै वीकरण । अथात ् व व एक बाजार है । व व के कसी भी दे श क साम ी एवं
उ पादन दूसरे दे श क सीमा म वत तापूवक वेश कर । सीमा कर एवं यापार कर आ द
क बाधाएं न आय । अब अपने ह दे श क नह ं बि क व व के कसी भी दे श क क पनी
दु नया के कसी भी दे श म वत प से यापार कर सकती है । इसे ह 'वै वीकरण' क
सं ा द गयी है ।
इस इकाई के उपरो त भाग को पढ़ने के बाद आप यह समझ गये ह गे क वै वीकरण व व
अथ यव था से जु ड़ा वचार है । इसका ल य पूरे व व को एक बाजार म बदलना है । दु नया
म राजनी तक ि ट से भले ह अनेक वत एवं स भु रा ह पर तु यापार अथात ्
बाजार या यावसा यक ग त व ध के लए रा क स भु ता एवं कानून कोई बाधा न उ प न
कर बि क व व के व भ न रा व व तर पर यापार के लए था पत व व यापार संगठन
(ड लू0ट 0ओ0) के यापा रक नयम एवं यव थाओं का पालन कर, िजससे व व एक बाजार
के प म प रव तत हो तथा व व के एक कोने क व तु व व के दूसरे कोने म वत ता
पूवक जा सके । यापार के लए रा क सीमा का भेद मटाना ह वै वीकरण का मुख
उ े य है । इस लए हम कह सकते ह क ' व व एक बाजार' ह का दूसरा नाम वै वीकरण
है । इसम नजीकरण एवं मु नाफा भी सि म लत ह । वै वीकरण उ मु त बाजार क बात
तो करता है परंतु इसक आड़ म वक सत दे श, वकासशील दे श के बाजार को भी चौपट कर
रहे ह, इस स य से इंकार नह ं कया जा सकता ।
बोध न - 1
(1) वै वीकरण या है?
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................................................................................................................
................................................................................................................
(2) ‘वै वीकरण बाजार पर बल दे ता है।’ प ट क िजए।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(3) या वै वीकरण व व अथ यव था से जु ड़ा है?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(4) या वै वीकरण नजीकरण को बढावा दे ता है?
................................................................................................................
................................................................................................................

212
................................................................................................................
(5) वै वीकरण म जन-क याण क जगह मु नाफे पर अ धक जोर होता है । स
क िजए ।
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................

13.3 वै वीकरण एवं उदार करण का ऐ तहा सक संदभ (Historical


context of globalization and liberalization)
वा तव म वै वीकरण क अवधारणा नई नह ं है । ले कन पि चम से वतमान समय म िजन
वै वीकरण एवं उदार करण के नार क शु आत हु ई है, उसका अथ एवं व प नया है । वा तव
म यह 'नयी बोतल म पुरानी शराब' जैसा ह है । कभी दु नया पर शासन करने वाले यूरोपीय
रा का सा ा य दु नया म फैला था । वतमान म उनका राजनी तक सा ा य भले ह समा त
हो गया हो पर तु आ थक एवं यापा रक सा ा यवाद आज भी कायम है । भौ तकवाद
मान सकता से जु ड़े पि चम म मु नाफा एवं बाजार सदा ह मु ख रहे ह । यह वतमान म
वै वीकरण एवं उदार करण के प म अि त व म आये ह । वा तव म वै वीकरण एवं
उदार करण पर पर जुड़े वचार ह । वै वीकरण म जहां बाजार व व यापी होती है वह ं
उदार करण म नजीकरण को बढ़ावा मलता है तथा सरकार क भू मका आ थक े म घटती
है । इस कार आप समझ गये ह गे क वै वीकरण क वतमान पि चमी अवधारणा या वचार
नया नह ं है । यह वै वीकरण का वचार टे न से ह ार भ हु आ । इसक मूल सोच है क
यापार एवं व तु ओं का आवागमन बना बाधा के दु नया के एक कोने से दूसरे कोने तक हो
न क मानवता का । इसे कहते ह 'मु त यापार नी त' । टे न म 1846 ई. म मु त यापार
क नी त क संक पना अि त व म आयी थी । यह 1846 ई. से थम व व यु तक यूरोप
म कायम रह । ांस ने 1660 ई. म अपनाया तथा 1892 ई. म छोड़ दया । वतीय व व
यु के बाद सन ् 1946 म पुन: संयु त रा संघ क आ थक और सामािजक प रषद ने
अ तरा य यापार संगठन (आई0ट 0ओ0) बनाने का ताव कया ले कन सन ् 1948 म
अमे रक कां स
े वारा आई0ट 0ओ0 के ताव को अ वीकार करने के कारण यह अि त व
म नह ं आ सका वरन ् इसक जगह 'गैट' अि त व म आया । वा तव म 'गैट' एक बहु उ े यीय
समझौता था । इस समझौते म सि म लत रा यापा रक यु का समापन चाहते थे । इसका
स ब ध यापार एवं सीमा शु क से था ।
'गैट' वाता के थम सात च का ववरण इस कार रहा- थम च -जेनेवा (ि व जरलै ड,
1947), वतीय च - ांस (1949), तृतीय च - टे न (1950-51)ए, चतुथ च -जेनेवा
(ि व जरलै ड, 1955-56), पंचम ् च -जेनेवा (ि व जरलै ड, 1960-62), छठा च -जेनेवा
(ि व जरलै ड, 1964-67) एवं स तम ् च - (टो कयो-1973) म ार भ हु ए । इन येक
च म यापा रक व तु ओं पर तटकर म कमी नरं तर बढ़ । थम च क वाता म 45000
उ पाद पर तटकर कटौती क गयी थी । तीसरे च म 8700 नये उ पाद सि म लत हु ए
। जब क दूसरे च म सफ 500 नयी व तु एं सि म लत हु ई थी । पाँचव च म कु ल60000

213
व तु ओं पर तटकर कटौती लागू क गयी । गैट वाता के थम च म 10 अरब डालर मू य
के उ पाद पर तटकर/ सीमा कर म कटौती लागू क गयी थी । यह छठे च म 40 अरब
डालर मू य के उ पाद पर पहु ँची तथा सातव दौर क वाता म 60000 से अ धक व तु एं व
300 अरब डालर से अ धक क साम ी पर 20, से 30 तशत सीमा शु क क कटौती क
गयी । इससे व व के यवसाय को कई अरब डालर का मु नाफा हु आ तथा सरकार का बजट
घाटा बढ़ा ।
सातव च क वाता के बाद व व क यापा रक क प नयां (िजसम सवा धक अमे रका क
ह) ने सीमा शु क वारा मलने वाल रयायत को बढ़ाने के लए दबाव बनाना आर भ कया
। इनका ल य था क सीमा शु क क दर यूनतम हो तथा नये े एवं व तुओं को गैट
के अ दर सि म लत कया जाय । इसी दबाव के दौर म गैट वाता का आठवां च -उ वे
(1986) म ार भ हु आ । इसम सीमा शु क क दर को अ धक मा ा म कम करने तथा
नये े एवं उ पाद (टे सटाइल, कृ ष, सेवा, ाकृ तक संपदा एवं उ ण क टब धी उ पाद)
के साथ एक व व यापार नयमावल एवं संगठन के मसौदे पर एक यापक ताव गैट के
महास चव आथर डंकल ने 1991 म तु त कया । लगभग 440 पृ ठ वाले इस मसौदे को
'डंकल ा ट' के नाम से जाना जाता है ।
कहने को तो यह ताव डंकल ने पेश कया । ले कन इसक तैयार क कहानी कु छ और
ह है । इस डंकल ताव का ा प अमे रका क सबसे बड़ी क पनी 'कार गल ' ने तैयार
कराया था । इसके लए 200 अमे रक क प नय के गठब धन ने त काल न अमे रक
रा प त रोना ड र गन पर दबाव डाला था । र गन वारा ताव के लए बनाये गये पैनल
म अमे रक बहु रा य क प नय के त न ध थे । इस पैनल का समथन यूरोपीय क प नय
ने भी कया था । कहा जाता है क अमे रक क प नय ने अपने-अपने यवसाय से स बि धत
े के लए लाभकार ताव तैयार कराया । इस कार सभी क प नय वारा स पे गये
ा प को सि म लत कर तु त कया । इसी एक कृ त मसौदे को डंकल ा ट कहा जाता
है । इसी के वारा ता वत व व यापार संगठन (ड लू0 ट 0 ओ0) 1 जनवर , 1995 को
अि त व म आया । लगभग 85 सं थापक सद य के समथन से व व यापार संगठन
(ड लू0ट 0ओ0) अि त व म आया । इस समय लगभग 132 दे श इसके सद य ह । वतमान
म व व यापार संगठन ह वै वीकरण एवं उदार करण क नी त को व व तर पर याि वत
करा रहा है । आज संयु त रा संघ क व भ न सं थाओं म व व यापार संगठन
(ड लू0ट 0ओ0) वा तव म सबसे शि तशाल संगठन है । इसका भाव एवं दबाव व व यापार
पर ह नह ,ं व व क सरकार पर भी है । यह व व यापार संगठन कसान को मलने
वाल छूट, सरकार क प नय को ाइवेट हाथ म बेचने आ द के नयम तथा दशा- नदश
व भ न दे श क सरकार को दे ता है और सरकार उसका पालन भी करती ह । इस कार
आप समझ गये ह गे क वै वीकरण, उदार करण आ द का वचार अब संगठना मक प ले
चु का है । इनका संचालक के व व यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) है । यह संगठन अब
दु नया म वै वीकरण एवं उदार करण को बढ़ावा दे ते ह साथ ह इसक कृ त एवं व प को
भी नि चत करता है ।
बोध न - 2

214
(1) उदार करण क शु आत टे न म कब हु ई?
................................................................................................................
................................................................................................................
................................................................................................................
(2) गैट वाता का थम च कब हु आ?
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(3) गैट वाता म मु यत: कन बात पर समझौता हु आ?
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(4) डंकल ा ट कस अमे रक क पनी ने तैयार कया?
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(5) डंकल ताव के प रणाम या रहे?
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13.4 उदार करण का अथ एवं कृ त (Meaning and Nature of


Liberalization)
अब आप उदार करण का अथ एवं कृ त जानना चाहगे । आप पढ़ चु के ह क वै वीकरण
म सामािजक और आ थक स ब ध का व वभर म व तार सि म लत है । यह व तार कुछ
आ थक नी तय के वारा ो सा हत कया जाता है । सामा य प म आ थक नी तय के
ो साहन क या को उदार करण कहा जाता है । उदार करण का अथ ऐसे नणय से है
जो व व के रा य वारा अपनी अथ यव था को व व-बाजार के लए खोलने के उ े य से
लए गये थे । जैसे 1991 म भारतीय अथ यव था को व व-बाजार के लए खोला गया ।
इसी उदार करण के साथ अथ यव था पर अ धक नयं ण रखने के लए सरकार वारा इससे
पहले अपनायी जा रह नी त पर वराम जैसा लगा । वत भारत क सरकार वारा अनेक
ऐसे कानून बनाए गये थे । िजससे यह सु नि चत कया गया था क भारतीय बाजार और
भारतीय वदे शी यवसाय यापक व व क तयो गता से सु र त रह । इसके पीछे यह कारण
रहा क उप नवेशवाद से मु त दे श बाजारवाद क ि थ त म नुकसान म ह रहगे । बाजार
स पूण जन-क याण या वं चत वग के क याण का यान नह ं रख सकेगा ।

215
इस कार आप समझ सकते ह क अथ यव था के उदार करण का अथ भारतीय यापार को
संचा लत करने वाले नयम और व तीय नयम को हटा दे ना है । इ ह ह आ थक सुधार
कहा । 1991 म भारत म कृ ष, उ योग, वदे शी नवेश, यापार, ौ यो गक , सेवा आ द े
म ल बी सुधार क पर परा ार भ हु ई । उदार करण के लए व व क सं थाओं, व व बक,
अ तरा य मु ा कोष (आई0एम0एफ0) से ऋण भी लेना ज र हो गया । इसके प रणाम व प
सरकार को श ा, वा य एवं सामािजक सु र ा जैसे यय म कमी करनी पड़ी ।
उदार करण का अथ मु यत: आ थक े म सरकार क भू मका को घटाना है । इसके साथ
ह यापार एवं नजी े क भू मका उदार करण म बढ़ाना है । उदार करण का अथ ऐसी
उदार सरकार से है जो सावज नक े म भी धीरे - धीरे नजीकरण करे । साथ ह नजी े
तथा व व के बहु रा य यापा रक हत को यान म रखकर सरकार अपनी भू मका नभाये
। इस कार उदार सरकार का कृ य नजीकरण को बढ़ाना है । एक तरह से हम कह सकते
ह क व भ न दे श म यापार करने वाल वशाल बहु रा य क प नय का मु नाफा एवं यापार
बढ़ाने म सहयोगी नी त ह उदार करण का आधार है । इस उदार करण म सरकार न तो भार
मा ा म सीमा शु क, आयात अथवा नयात पर लगा सकती है और न ह सरकार अपने
नाग रक को छूट अथवा सि सडी ह दे सकती है । इस कार हम कह सकते ह क व व
यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) वतमान म व व उदार करण का मु य नगरानी नकाय है
। इसी क नगरानी म उदार करण का या वयन एवं मू यांकन व व तर पर हो रहा है
। हांला क अमे रका जैसे वक सत दे श आज भी सि सडी दान कर रहे ह ।
इस कार आप समझ गये ह गे क उदार करण का अथ नजी उ योग एवं यापार के लए
सरकार वारा उदार ि ट रखना है । इस उदार करण का नारा है क 'सरकार शासन के लए
है न क यापार एवं उ योग के लए । ' इस कार उदार करण म सरकार के काय े सी मत
होते ह । दशक पूव जब यि तवाद का उफान था, उस समय भी यह कथन भावी था क
सरकार सी मत काय करे तथा यि त को वत छोड़ द । अथात ् सरकार सुर ा, मु ा, वदे श
नी त के संचालन जैसा सी मत काय करे । यह यि तवाद ि टकोण डा वन के वचार पर
आधा रत था, िजसम े ठतम क वजय को ह मु य ल य माना जाता था । इस कार
वतमान उदारवाद यव था म यि त का क याण एवं द न- ह न का वकास मु य ल य
न होकर यापार के लए बाधा र हत एवं नजीकरण को बढ़ावा दे ना ह मु य ल य है । इस
कार उदार करण वा तव म यापार अथवा बाजार का उदार करण है । वा तव म वतमान
का उदार करण सावज नक हत वरोधी एवं सरकार क आ थक स भुता का वरोधी तथा
क याणकार रा य का भी वरोधी है । यह बहु रा य नगम के व व तर य बाजारवाद एवं
उनके व व तर य आ थक शासन को ो साहन दे ने वाला भी है । इस कार आप समझ
गये ह गे क उदार करण का स ब ध सामा य प से बाजार एवं नजीकरण को बढ़ावा दे ने
वाल अथ यव था से है ।
बोध न- 3
(1) उदार करण का या अथ है?
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(2) 'उदार करण, वै वीकरण का सहयोगी है । ' कैसे?
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(3) 'उदार करण म यापार मु त होता है । प ट क िजए ।
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(4) 'उदार करण म नजीकरण को भी बढ़ावा मलता है । स क िजए ।
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(5) या उदार करण से सावज नक े म भी नजी े का वेश होता है?
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13.5 वकास: एक प रचय (Development: An Introduction)


इसके पूव क इकाई म हम वकास के अथ व प एवं कृ त को पढ़ चु के ह । वा तव म
वकास नरं तर चलने वाल या है । इसम मा ा मक एवं गुणा मक ि ट से हु ए सकारा मक
प रवतन सि म लत है । वा तव म वकास का अथ ार भ म आ थक वकास से लया जाता
था । बाद म वकास का अथ भी वचारधाराओं के साथ बदला । जैसे पू ज
ं ीवाद यव था म
वकास का अथ पूज
ं ी, मु नाफा, उ पादन आ द म वृ से है । जब क सा यवाद अथवा
क यु न ट वचारधारा म वकास का अथ सवहारा वग क ि थ त म सुधार से है । इसी कार
सव दयवाद वचार के अनुसार वकास का अथ 'सव भव तु सु खनः' अथात ् सब सुखी ह
से है । क याणकार वचारधारा के अनुसार वकास का अ भ ाय रा य के क याणकार काय
म वृ से है । इसी कार वतमान म पयावरण व के अनुसार वकास क अवधारणा वतमान
म संतु लत वकास से जु ड़ी है । संतु लत वकास का अ भ ाय है क ' कृ त वारा द त
एवं पूवज से ा त सम त स पदा का सुर त प म उपभोग करते हु ए सम त स पदा को
सु र त प म अगल पीढ़ को स पना ।
अब आपके मन म न होगा क वै वीकरण और उदार करण क ि ट से वकास का या
अथ बदला है? वा तव म वै वीकरण क ि ट से वकास का अथ है क ' व व बाजार' क
ि ट से कतना वकास हु आ । बहु रा य नगम को कतना मु नाफा हु आ । सरकार नयं ण
कतना घटा? व भ न दे श क सरकार ने कस मा ा म नजीकरण को बढ़ावा दया? इ ह ं
आधार पर वकास क परे खा तय होती है । इतना ह नह ं वकास क प रभाषा एवं व प
को व व यापार संगठन, व व बक, व व मु ा कोष आ द तय करते ह । इस कार प ट

217
है क वकास का या वा त वक अथ होगा वह वा तव म व व यापार संगठन वारा
समय-समय पर प रभा षत एवं सु नि चत होगा । वकास का अथ एवं कृ त सु नि चत नह ं
है, वरन ् इसम ि टकोण, यव था एवं वचार के आधार पर प रवतन आता है । अब आप
समझ गये ह गे क ' वकास' एक है, पर तु इसके अथ अनेक ह । इस कारण वकास के अथ
एवं व प तथा कृ त म वचार एवं थान तथा समय एवं समकाल न ि थ तय के कारण
प रवतन आते ह । इसी कारण वकास के भ न- भ न अथ हम ा त होते है ।

13.6 वै वीकरण उदार करण एवं वकास (Globalzation,Libralization


and Development)
वतमान म व व के तीन-चौथाई दे श वकासशील दे श क को ट म है । इन वकासशील दे श
वारा दु नया के मा एक-चौथाई संसाधन का ह उपयोग कया जाता है । गैट एवं व व
यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) ने वकासशील दे श को वशेष दजा दया है । वकासशील
दे श का यापा रक संतु लन आयात के प म है । इनके वारा नयात के े म सी मत
योगदान दया जाता है ।
वा तव म वै वीकरण का अथ मु त व व बाजार से है । इस ि ट से उदार करण एवं वकास
वै वीकरण के पूरक ह । वै वीकरण क या म रा क सीमा के भीतर तथा बाहर
उदार करण को बढ़ावा मलने से वै वीकरण तेजी से बढ़ता है । इसी म म बाजारवाद एवं
उदार करण के बढ़ने से वकास क भी या बदलती है । ऐसी ि थ त म वकास का मू यांकन
वै वीकरण एवं उदार करण से जोड़कर होता है ।
इसी कार उदार करण के दौर म भी नजीकरण को बढ़ावा दया जाता है । सरकार वारा
सावज नक े के कारखान के भी शेयर नजी हाथ म बेचे जाते ह । सरकार यापार यवसाय
के थान पर सी मत काय तक अपने को समेट लेती है । ऐसी ि थ त म वकास का मू यांकन
सरकार या सरकार वारा कये जा रहे उदार करण क या से होता है । इससे यह प ट
है क वकास को नरपे प म न दे खकर वै वीकरण एवं उदार करण के साथ दे खा जाता
है ।
वतमान समय म वै वीकरण, उदार करण एवं वकास जैसी अवधारणाओं का मू यांकन एवं
नधारण वा तव म व व यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) पर केि त है । यह तवष
व भ न रा क आ थक नी तय का मू यांकन करके यह सु नि चत करता है क कस
सद य रा म वै वीकरण, उदार करण एवं वकास क ि थ त या है? तथा कस मा ा म
इनम प रवतन हो रहा है । इस ववेचन से आप समझ गये ह क वा तव म वै वीकरण,
उदार करण एवं वकास दे खने म भले ह अलग-अलग अवधारणाएं ह ले कन तीन म पर पर
स ब ध भी है । वै वीकरण के लए उदार करण क अथ नी त चा हए । वकास वा तव म
इसके मू यांकन का प रणाम जैसा है । फर यवहार म इन तीन का नधारक एवं
मू यांकनकता व व यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) है । इस कारण भी हम इनक पर पर
एकता को समझ सकते ह ।

218
13.7 वै वीकरण एवं उदार करण का भाव (Impact of Globalization
and Liberalization)
अब हम चचा वै वीकरण एवं उदार करण के भाव क करगे । वा तव म वै वीकरण एवं
उदार करण से व व तर पर यापार करने वाल बहु रा य नगम क आय बढ़ है । ले कन
इसी म म सरकार का बजट घाटा भी बढ़ा है । वै वीकरण एवं नजीकरण या उदार करण
के दबाव म सरकार ने एक ओर सीमा शु क को कम कया । साथ ह सावज नक े क
मु नाफे क भी क प नय को नजी हाथ म बेचा । इसी तरह अ य उदारवाद यापा रक नी तय
के कारण सरकार क आय म कमी हु ई है । इसी के साथ अब यह प ट हो चु का है क
वै वीकरण से सभी सम याओं का समाधान नह ं है । नर रता, बेरोजगार , भु खमर , कु पोषण
जैसी सम याय व व म बढ़ है । इसका अ छा भाव वक सत दे श तथा अथ यव थाओं
पर पड़ा है । ले कन व व यापार संगठन (ड लू०ट 0ओ0) केि त वै वीकरण के मु य भाव
न न कार रहे -

क- दुराज अथवा दुहरा शासन :-

ई ट इं डया क पनी के शासन म िजस कार बंगाल के नवाब शासन चलाते थे और आ थक


नणय ई ट इं डया क पनी के हाथ म था । ठ क उसी कार वतमान म रा क आ थक
नी तयां व व यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) वारा संचा लत है । सरकार सफ शासन चलाती
है । इस कार दुराज शासन वतमान वै वीकरण एवं उदार करण क स चाई है ।

ख- स भुता का न :-

वतमान के वै वीकरण एवं उदार करण म नाग रक स भु ता का चलन : आया है । आ थक


मामल म सरकार क शि त घट रह है । सरकार क आ थक नणय या व व यापार
संगठन, व व बैक एवं व व मु ाकोष के वारा संचा लत एवं भावी है । इस कार सरकार
के नणय क वत ता समा त हो रह है तथा इससे स भु ता का संकट बढ़ रहा है ।

ग- सवैधा नक वचलन :-

दु नया के व भ न दे श के सं वधान को बना बदले उसम वै वीकरण एवं उदार करण क


या जु ड़ गयी । भारत के सं वधान क तावना म समाजवाद' के रहते हु ए भी सावज नक
े के उप म का नजीकरण जार है । इस कार संवध
ै ा नक वचलन भी मु य सम या
है ।

घ- सरकार को घाटा एवं क प नय को मु नाफा :-

वै वीकरण एवं उदार करण के कारण व व तर पर सरकार का बजट घाटा बढ़ा है । सावज नक
स पि त नरं तर नजी स पि त म बदल रह है । सरकार स भु है ले कन उ योग- यापार
म उसक भुता कम हो गयी है । इतना ह नह ं आयात- नयात पर लगने वाले सीमा कर
म कटौती से भी सरकार का बजट घाटा बढ़ा है तथा इस छूट से क प नय का मु नाफा भी
बढ़ा है ।

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ड़- क याणकार रा य का अ त :-

वै वीकरण का नारा है क सरकार का काय न तो क याण है और न ह यापार है । अत:


सरकार श ा, वा य एवं सामािजक सु र ा जैसे काय से धीरे -धीरे अपना हाथ खींच रह
है।

च- मनु य बाजार एवं यापार के लए :-

वा तव म वै वीकरण एवं उदार करण के दौर म यि त क ग रमा घट है । मनु य के लए


बाजार एवं यापार न होकर मनु य वयं बाजार एवं यापार के लए है । इस कार 'बाजार
एवं यापार' के हत क र ा म मनु य का हत और अ धकार पीछे हो गये है ।
अब आप समझ गये ह गे क वै वीकरण एवं उदार करण से बहु रा य नगम एवं वक सत
रा को तो लाभ हु आ ले कन वकासशील रा एवं व व मानवता पर नये प म आ थक
सा ा यवाद का दबाव बढ़ा है । इस कार वै वीकरण एवं उदार करण के प म नयी आ थक
गुलामी एवं नया आ थक सा ा यवाद इस समय अपनी या ा म है ।
बोध न-4
(1) वै वीकरण से सरकार का घाटा बढ़ा है । स क िजए ।
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(2) या वै वीकरण से बहु रा य नगम का मु नाफा बढ़ा है?
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(3) 'वै वीकरण से दुराज या दुहरा शासन भावी हु आ । प ट क िजए ।
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(4) वै वीकरण से सरकार क स भुता भा वत हु ई है । कैसे ।
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(5) ै ा नक वचलन बढ़ा है । ' स
वै वीकरण से संवध क िजए ।
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13.8 सारांश (Summary)
इस इकाई म वै वीकरण, उदार करण एवं वकास पर चचा क गयी है । इसे पढ़ने के बाद
आप समझ गये ह गे क वै वीकरण का अथ 'बाजार के व व यापी होने से है । उदार करण
के वारा सरकार वै वीकरण या व व बाजार के लए आव यक सहायता एवं सहयोग दान
करती ह । इतना ह नह ं सावज नक े क भू मका धीरे -धीरे घटती है तथा नजीकरण को
बढ़ावा मलता है । वकास का मू यांकन वै वीकरण एवं उदार करण के अनुपालन से होता
है । इस कार आप समझ गये ह गे क वै वीकरण म यि त बाजार के लए है । बाजार
एवं बाजार के हत सा य ह । इस या म सरकार बाजार के हत को ो साहन दे ने वाल
साधन मा है । यि त के हत का संर ण एंव यि त का क याण अब सरकार क
ाथ मकता म नह ं रहा । यापार ह सरकार क ाथ मकता है । इस इकाई को पढ़ने से
आप वै वीकरण, उदार करण एवं वकास को समझ सकते ह । इस इकाई को पढ़ने से आप
म वै वीकरण एवं उदार करण के वषय म प ट ि ट का नमाण होगा ।

13.9 व-मू यांकन (Self Valuation)


आपको इस इकाई को यानपूवक पढ़ना चा हए । पढ़ने के बाद आप इस इकाई क वषयव तु
को वत: दुहराए । आप मन ह मन यह जाँच क या आप को वै वीकरण एवं उदार करण
आ द क ठ क-ठ क जानकार हो चुक है । आप वै वीकरण एवं उदार करण के इ तहास को
भी समझ चुके ह गे । इस कार का व-मू यांकन आप को नरं तर करते रहना चा हए ।

13.10 श दावल (Glossary)


इस इकाई म आने वाले पा रभा षक श द के अथ इस कार ह -
वै वीकरण )Globalization)  यापार एवं बाजार का व व तर पर एक करण।
उदार करण )Liberalization)  यापार के लए सभी े को खोलना एवं
नजीकरण ।
डंकल ा ट )Dankal Draft (  उ वे क आठव च क गैट वाता म गैट के
महास चव आथर डंकल वारा व व यापार के
लए तु त थायी मसौदा ।
सीमा या तटकर कटौती  आयात एवं नयात के लए व भ न दे श वारा
लगाये जाने वाले सीमा या तटकर म कमी ।
सि सडी )Subsidy(  सरकार वारा कृ ष एवं अ य व तु ओं पर द
जाने वाल मू य स ब धी छूट ।

13.11 अ यासाथ न (Questions)


1. वै वीकरण से आप या समझते ह? इसके इ तहास को प ट कर ।
2. उदार करण या है? इसके मह व को प ट कर ।
3. वै वीकरण एवं क याणकार रा य के स ब ध पर व तृत ट पणी लख ।

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4. व व यापार संगठन (ड लू0ट 0ओ0) क भू मका को प ट कर ।
5. 'गैट वाता से बहु रा य नगम का मु नाफा बढ़ा है' प ट कर ।
6. वै वीकरण एवं उदार करण एक दूसरे के पूरक ह' प ट क िजए ।
7. वै वीकरण एवं उदार करण के भाव का वणन कर ।

13.12 संदभ थ (Further Readings)


1. Kumar Ratnesh  WTO ) ( व व यापार संगठन)World
Trade Organisation), Deep & Deep
Publications Pvt. Ltd., F-159, Rajouri
Garden, New Delhi-27.
2. उपा याय, डॉ अ नल कु मार .  मास मी डया के वकास के आयाम, 2007,
भारती पि लकेशन, दुगाकु ड, वाराणसी-5
3. पा डेय, डॉर व काश .  वै वीकरण एवं समाज, 2005, शेखर
काशन, इलाहाबाद (उ तर दे श)
4. म.गांकाशी व यापीठ ., वाराणसी  मी डया जगत -अंक जू न)2005 - काशक (
प का रता एवं जनसंचार वभाग, (शोध
प का(
5. James Waston & Anne Hill  A Dictionary of Communication and
Media Studies, Universal Book Stall,
New Delhi.
6. रा य शै क अनु संधान और  भारत म सामािजक प रवतन एवं वकास नई
श ण प रषद द ल ।

222
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