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पा य म अ भक प स म त
अ य सद य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच 1. ो. एस.वी.एस. चौहान
कु लप त वन प त शा वभाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा बी.आर.अ बेडकर व व व यालय, आगरा

वषय सम वयक 2. ो. एन. सी. ऐर


ो. पी.सी. वे द वभागा य , वन प त शा वभाग

वन प त शा वभाग एम.एल.सुख ड़या व व व यालय ,उदयपुर

राज थान व व व यालय, जयपुर

सद य स चव / सम वयक 3. ो. एस.के. माहना


डॉ. अशोक शमा वभागा य , वन प त शा वभाग

सह- आचाय, राजनी त व ान मह ष दयान द सर वती व व व यालय,अजमेर

वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा


4. ो. भु वन संह
वन प त शा वभाग
राज थान व व व यालय, जयपुर
5. डॉ. डी. के. अरोड़ा
वन प त शा वभाग
राज थान व व व यालय, जयपुर
6. डॉ. ीमती मला शमा
वन प त शा वभाग
टे नी मेमो रयल कॉलेज,मानसरोवर, जयपुर
7. डॉ. आर. एस. धनखड़
वभागा य , वन प त शा वभाग
राजक य महा व यालय, कालाडेरा

स पादक एवं पाठ लेखन


स पादक
ो. भु वन संह
वन प त शा वभाग
राज थान व व व यालय, जयपुर

लेखक
1. डॉ. आर. एस. धनखड़ 3. डॉ. ीमती पु पा सांखला 5. डॉ. ीमती न लनी ववे द
वभागा य , वन प त शा वभाग या याता, वन प त शा या याता, वन प त शा
राजक य महा व यालय, कालाडेरा राजक य महा व यालय, कशनगढ़ वै दक क या महा व यालय
2. डॉ. ीमती मला शमा 4. डॉ. ीमती अचना पार क राजापाक, जयपुर
वन प त शा वभाग या याता, वन प त शा
टे नी मेमो रयल कॉलेज,मानसरोवर, संत जयचाय महा व यालय, जयपुर
जयपुर

पा य म नदशन एवं उ पादन


नदे शक(अकाद मक) नदे शक(साम ी उ पादन एवं वतरण)
ोफेसर(डॉ.) अनाम जे टल ोफेसर(डॉ.) ो. पी.के .शमा
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा

सवा धकार सु र त : इस साम ी के कसी भी अंश क वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी
भी प म ‘ म मया ाफ ’(च मु ण ) के वारा या अ यथा पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।
नदे शक(अकाद मक) वारा वधमान महावीर खुला व व व यालय , कोटा के लए मु त एवं का शत।

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BO-01
वन प त शा
वधमान महावीर खु ला व व व यालय, कोटा

शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा


इकाई सं. इकाई पृ ठ सं .
1. शैवाल के सामा य ल ण 7—33
2. शैवाल म जनन एवं जीवन च 34—53
3. शैवाल का वग करण 54—63
4. शैवाल का आ थक मह व 64—71
5. वॉलवॉ स एवं कारा :
72—100
आवास, संरचना, जनन एवं जीवन च
6. वाउचे रया एवं ए टोकापस :
101—127
आवास, संरचना, जनन एवं जीवन च
7. पोल साईफो नया :
128—148
आवास, संरचना, जनन एवं जीवन च
8. ायोफाइटा के सामा य ल ण 149—167
9. ायोफाइटा का वग करण, बंधु ता एवं आ थक मह व 168—179
10. ायोफाइटा म यु मको द एवं बीजाणु द वकास 180—194
11. रि सया 195—215
12. माकि शया 216—243
13. ए थो सरोस 244—268
14. यूने रया 269—292
15. शैवाक या लाइके स 293—307

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तावना
तु त पु तक “शैवाल, लाइकेन एवं ायोफायटा” वधमान महावीर बाला व व व यालय, कोटा
वारा ता वत पा य मानुसार बी.एससी. भाग थम के वन प तशा थम न-प के
अ यापन हे तु सृिजत क गई है। पु तक क भाषा-शैल को सरल, रोचक एवं सु ा य बनाने का
अथक यास कया गया है। आव यकतानुसार समानाथ अं ेजी श द, लोचाट, नामां कत च
एवं सार णयां भी द गई है। पु तक क व भ न इकाइय को व वान लेखक वारा लखा गया
है। लेखक ने पु तक को त यपरक बनाने के लये ामा णक थ क सहायता ा त क है, इन
रच यताओं के लए कृ त तापन इन पंि तय के मा यम से तु त है। यह पु तक व या थय के
लए पर ाओं हेतु भी सह मागदशन दान करने म सहायक होगी।
पु तक को अ धक उपयोगी एवं ामा णक बनाने हे तु बु पाठक एवं जाग क व या थय के
रचना मक सुझाव सादर आमं त है।

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इकाई - 1: शैवाल के सामा य ल ण (General character
of Algae)
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 आवास
1.2.1 जल य आवास
1.2.2 मृद य आवास
1.2.3 वायवीय आवास
1.2.4 असामा य आवास
1.3 थैलस संगठन
1.3.1 एक को शक य
1.3.2 बहु को शक य
1.4 को शका सरंचना
1.4.1 को शका भि त
1.4.2 के क
1.4.3 कशा भका
1.4.4 ने ब दु
1.4.5 लवक
1.4.6 पाय रनॉइड
1.4.7 सं चत भोजन
1.4.8 रि तकांए
1.5 वणक संगठन
1.6 सारांश
1.7 श दावल
1.8 स दभ थ
1.9 बोध न के उ तर
1.10 अ यासाथ न

1.0 उ े य (Objectives)
इस इकाई का उ े य
1. शैवाल के व भ न आवास अथात उनके ाि त थान का अ ययन करना है िजससे उनक
कृ त के बारे म आकलन कया जा सके ।

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2. शैवाल म पाए जाने वाले व भ न कार के पादप शर र का अ ययन कर सरंचना मक
वृ त को उजागर करना है ।
3. शैवाल को शकाओं के मु ख घटक जैस-े को शका भि त का संगठन, लवक, पाय रनॉइड
कशा भका तथा सं चत भोजन क कृ त का अ ययन एवं तुलना मक च ण करना है ।
4. वभ न कार के शैवाल म वणक क कार एवं तु लना मक मा ा का अ ययन करना है
य क यह ल ण व भ न वग क व श टता का नधारण करता है ।

1.1 तावना (Introduction)


शैवाल का उ लेख व व क सभी ाचीनतम स यताओं म मलता है । भारतीय थ आयुवद
(Ayurveda) म इ ह शैवाल (Sahival) नाम से व णत कया गया ह । ाचीन यूनानी, चीनी व
रोमन थ के अनुसार इ ह मश: फाइकोस (Phykos), साओ (Tsao) तथा यूकस
(Fucus) नाम से जाना जाता था । हवाई वीप म भी शैवाल का ान बहु त ाचीन समय से
है, जहाँ इ ह भोजन के प म यु त कया जाता था तथा ल मू (Limu) के नाम से जाना जाता
था।
ए गी (Algae) श द क उ प त ले टन भाषा से हु ई है िजसका अथ समु खरपतवार (Sea
weeds) होता है इस श द का सव थम उपयोग ल नयस (Linnaeus, 1753)ने कया । शैवाल
समू ह म लगभग 1800 वंश तथा 24,000 जा तयाँ सि म लत ह । शैवाल के अ ययन को
शैवाल व ान अथात ए गोलोजी (Algology) अथवा फाइकोलोजी (Phycology) कहते ह तथा
इसके अ ययनकता को ए गोलोिज ट (Algologist) अथवा फाइकोलोजी ट (Phycologist)
कहते है।
एम. ओपी आयंगर (M.O.P. Iyenger) को आधु नक भारतीय शैवाल व ान का जनक
(Father of Indian Phycology) माना जाता है । उ ह ने अपने श य के साथ भारतीय
शैवाल क अनेक जा तय तथा वंशो का ववरण दया एवं जीवन च का अ ययन कया ।
उ ह ने थल य शैवाल (terrestrial alga) टि चएला यूबरोसा (Fritschiella tuberosa)
क खोज क । उनके मु ख श य म बालकृ णन दे सकाचार , कानथ मा, रामानाथन तथा
सु ाम णयम आ द के नाम सि म लत ह ।
कई शैवालवाताओं जैसे श (Fritsch, 1935), ि मथ (Smith, 1955), चेपमेन (Chapman,
1962), े कोट (Prescott, 1969), संह (Singh, 1974)व अ य ने शैवाल को प रभा षत
करने का यास कया ले कन शैवाल क यापक व वधताओं के कारण एक मा य प रभाषा क
पुि ट नह ं हो सक ।
शैवाल लोरो फल यु त थैलाभ (thalloid) पौध का समू ह है िजनम ल गक अंग (sex
organs) एकको शक अथवा बहु को शक होते ह तथा येक को शका यु मक का नमाण करती
है।
इनम संवहन त का सवथा अभाव होता है तथा जीवन च म ण
ू का नमाण नह ं होता है ।
इन ल ण के कारण शैवाल अ य सभी पादप वग से भ न होते है ।

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1.2 आवास (Habitat)
अ धकांश शैवाल जल य होते है । जो अलवणीय तथा समु दोन कार के जल मे पाए जाते ह
। इसके अ त र त शैवाल नम मृदा , च ान , वृ क छाल , गम झरन तथा अ य अनेक कार
के आवास म पाए जाते है । व भ न कार के आवास को न न समू ह म वभ त कया जा
सकता है-
1. जल य आवास
2. मृद य आवास
3. वायवीय आवास
4. असामा य आवास
1.2.1 जल य आवास (Aquatic habitat)
अ धकांश शैवाल जल य होते है । जल य आवास मश : व छ जल य, लवणीय तथा समु
आवास म वभे दत कए जा सकते ह ।
(i) व छ जल य आवास (Fresh water habitat) - यह जल ि थर अथवा वाह कार
का होता है ।
(a) ि थर जल (Stagnant water) - पोखर, तालाब, झील, गदो आ द का जल ि थर होता है
िजसम लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas) हाइ ो डि टयोन (Hydrodictyon),
ि लयो ाइका (Gloeotricha), िजि नमा (Zygnema), को लयो कट (Coleochaete),
वॉलवॉ स(Volvox), ऊडोगो नयम (Oedogonium), नाइटे ला (Nitella), कटोफोरा
(Chaetophora) तथा कारा (Chara) आ द शैवाल पाए जाते ह ।
(b) वाह जल (Running water) : न दय , नहर , नाल तथा क ब के बहते जल म
लेडोफोरा (Cladophora), यूलो स (Ulothrix), ऊडोगो नयम(Oedogonium),
बै े को पमम (Batrachospermum), तथा ओ सलेटो रया (Oscillatoria) आ द शैवाल पाए
जाते ह ।
(ii) लवणीय जल आवास (Saline water habitat) लवणीय जल (जैसे खारे पानी क
झील ) म भी अनेक शैवाल पाए जाते ह । इ ह लवणोद भ (halophytes) कहते ह ।
लेमाइडोमोनास एहरे नबगाइ (Chlamydomonas ehrenbergii), डु ने लऐला (Dunaliella),
सेनेडे मस (Scenedesmus), पेडीआ म (Pediastrum), तथा ओ सलेटो रया
(Oscillatoria) आ द शैवाल अलवणीय जल म पाए जाते ह ।
(iii) समु आवास (Marine habitat) समु के खारे जल म फयोफाइसी तथा रोडोफाइसी
वग के अ धकांश सद य पाए जाते ह जैसे - ए टोकापस (Ectocarpus), यूकस (Fucus),
ले मने रया (Laminaria), सारगासम (Sargassum), पोल साफो नया (Polysiphonia),
ेसीले रया (Gracillaria), आ द । इनके अ त र त लोरोफाइसी के कुछ सद य जैसे - कालपा
(Caulerpa) तथा वेलो नया (Valonia) भी समु म पाए जाते ह ।

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1.2.2 मृद य आवास (Terrestrial habitat)
कु छ शैवाल अ थाई अथवा द घका लक शु क अव थाओं को सहने म स म होते ह । इ ह
थल य शेवाल कहते है । इस कार के शैवाल नम मृदा क उपर सतह अथवा सतह के नीचे
पाए जाते ह, िज ह मश : सेफोफाइ स (Saphophytes) तथा टोफाइ स
(Cryptophytes) कहते ह ।
(i) सेफोफाइ स (Saphophytes) : ये, शैवाल मृदा क सतह पर होती ह । साइनोफाइसी
वग के अ धकतर सद य नम मृदा क सतह पर वृ करते है । इनके अ त र त वाऊचे रया
(Vaucheria), शैवाल के सामा य लगा बा डयम (Botrydium) ि चएला (Fritschilla),
ऊडो ले डयम (Oedocladium), आ द अनेक सद य नम मृदा सतह पर वृ करते ह ।
(ii) टोफाइ स (Cryptophytes) ये शैवाल भू मगत (subterranean) होती ह अथात ्
मृदा सतह के नीचे पाई जाती ह । साइनोफाइसी समू ह के सद य जैसे- नॉ टॉक (Nostoc),
ऐनाबीना (Anabaena) आ द तथा लोरोफाइसी सद य जैसे- लोरे ला (Chlorella) भू मगत
होते ह ।
1.2.3 वायवीय आवास (Aerial habitat)
इन आवास के शैवाल वृ के तन , च ान , द वार , टे ल फोन के तार आ द तथा अ य वायवीय
आधार पर पाए जाते ह । इन शैवाल को अधो तर के आधार पर कई कार म वभ त कया
जाता है ।
(i) एपी फ लोफाइ स (Epiphyllophytes) ये शैवाल वृ क पि तय पर अ धपादपी
(epiphytic) प म मलते ह जैसे फाइकोपेि टस (Phycopeltis) तथा ए ले पया
(Asclepia) रोडोकाइ यम (Rhodochitrium) आ द ।
(ii) एपी लोफाइ स (Epiphloephytes) : वृ क छाल पर पाए जाने वाले शैवाल
एपी लोफाइ स कहलाते ह । ये सामा यतया: मॉस लवरव स के साथ पाए जाते ह ।
हे लोसाइफन (Haplosiphon), साइजा ी स (Schizothrix) तथा फॉर म डयम
(Phormidium) आ द इस ेणी म आते ह ।
(iii) लथोफाइ स (Lithophytes) अनेक शैवाल नम च ान तथा द वार पर उगती ह । इ ह
सामा यतया वषा ऋतु म दे खा जा सकता है । नॉ टॉक (Nostoc), वाऊचे रया (Vaucheria),
साइटोनीमा (Scytonema), फॉर म डयम (Phormidium) आ द इसके मु ख उदाहरण ह ।
(iv) एपीजूफाइ स (Epizoophytes) शैवाल जो थल य जीव के शर र पर पाई जाती ह
एपीजू फाइ स कहलाती ह । उदाहरण - कटोफोरे स (Chaetophorales) के कु छ सद य ।
1.2.4 असामा य आवास (Unusual habitat)
ऐसे आवास जो सामा य जीवन के लए उपयु त नह ं होते असामा य आवास कहलाते ह । ऐसे
आवास म पाऐ जाने वाले शैवाल म व श ट अनुकूलन पाए जाते हे । मु ख कार न न ल खत
है ।

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(i) ायोफाइटस (Cryophytes) : ये शैवाल बफ (snow) पर पाई जाती है । ऐसे आवास
म ाय : लोरोफाइसी व साइनोफाइसी के कु छ सद य पाए जाते ह । ये बफ को लाल, हरा,
पीला, या बगनी रं ग दान करते हे । उदाहरण - लेमाइडोमोनास येलो टोनेि सस
(Chlamydomonas yellowstonesis) बफ को हरा, ले. नवे लस (Clnivalis) लाल तथा
ना टॉक (Nostoc) एवं यूरोकोकस (Pleurococcus) पीला या पीला हरा रं ग दान करते ह

(ii) थम फाइ स (Thermophytes) : कु छ नीलर हत शैवाल जैसे - ओ सलेटो रया ी वस
(Oscillatoria brevis), सनेकोकोकस इले गटा (Synechococous eligata)
हे टरोहाम गो नयम (Heterochormogonium), आ द उ ण ोत (hot spring) म पाऐ जाते
ह िजनके जल का तापमान 50 – 70) C तक होता है । उ च ताप सहने क
0
मता का स ब ध
स भवत: जल क लवणीयता से ह । पर तु कु छ वै ा नक इस मता का स ब ध इनम
सु संग ठत के क क अनुपि थ त मानते ह ।
(iii) सहजीवी (Symbiotic) : लाइकेन म शैवाल कवक के साथ सहजीवन करते ह उदाहरण-
ोकोकस (Chrococcuss), माइ ो सि टस (Microcystis), नॉ टॉक(Nostoc), साइटो नमा
(Scytonema) आद साइनोफाइसी सद य तथा लोरे ला (Chlorella), ोटोकोकस
(Protococcus), पामेला (Pamella) आ द लोरोफाइसी सद य ।
(iv) अ धपादपी (Epiphytic) : कु छ शैवाल उ च वग य पादप अथवा बड़े आमाप के शैवाल
पर पाए जाते है, इ ह अ धपादपी शैवाल (epiphytic algae) कहते ह । उदाहरणाथ- क टोफोरा
(Chaetophora), ऊडोगो नयम(Oedogonium) तथा िजि नमा (Zygnema) वभ न
उ चवग य पादप पर अ धपादपी प म पाए जाते ह । ब बोक ट (Bulbochaete), ऊडोगो नयम
(Oedogonium) तथा माइ ो पोरा (Microspora) आ द शैवाल क बड़ी जा तय पर उगते ह ।
ए टोकापस (Ectocarpus) क कु छ जा तयाँ यूके स व ले मने रये स गण के भू रे शैवाल पर
पाई जाती ह ।
(v) अ ध ाणी (Epizoic) : ये शैवाल जल य ा णय , जैसे- मछल , कछुओं तथा मोल का
आ द क बा य सतह पर चपके हु ए पाए जाते ह । उदाहरण- लेडोफोरा (Cladophora) क
अनेक जा तयाँ घ घो (snails) पर पाई जाती है, इसी कार लोरोगो नयम(Chlorogonium)
तथा कारा सयम (Characium) आ द क जा तयाँ शटे सया के सद य (Crustaceans) पर
पाई जाती ह ।
(vi) अ त: पादपी (Endophytic) : कु छ शैवाल अ य पादप म अ त: पादपी सहजीवन
यतीत करते ह जैस-े ऐनाबीना शैवाल एजोला (Azolla) नामक टे रडोफाइट क प ती के उ तक
म तथा साइकस(Cycas) नामक अनावृतबीजी क जड़ो म पाई जाती ह ।

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(vii) अ तः ाणी पादप (Endozoophytic) -इसके अलावा कु छ शैवाल ा णय के शर र के
अ दर पाई जाती ह जैसे जू जै थीला (Zooxanthella) पज म तथा जु लोरेला
(Zoochlorella) हाइ ा के अ दर पाई जाती है ।
(viii) परजीवी (Parasitic) कु छ शैवाल अ य पादप पर परजीवी के प म पाए जाते ह जैसे
सफै थूरोस वाइरे से स (Cephaleuros virescens) चाय तथा काफ पर लाल र ट (Red
Rust) नामक रोग उ प न करता है ।

1.3 थैलस संगठन (Thallus organization)


शैवाल सु काय अथवा थैलस साधारण सू मदश य से लेकर अ य धक वशाल तथा ज टल संरचना
द शत करते ह । संगठन के आधार पर थैलस दो कार के होते है- 1. एक को शक य 2.
बहु को शक य ।
1.3.1 एक को शक य थैलस (Unicellular thallus):
फयोफाइसी वग के अ त र त अ य सभी वग के कु छ सद य म एक को शक थैलस भी पाए
जाते ह । चू ं क इनम जीवन च क सभी याएँ एक ह को शका म स प न होती है, इस लए
इ ह अको शक भी कहते ह। ये अ कार के हो सकते ह -
(A) अमीबीय या राइजोपो डयल (Amoeba or Rhizopodial) इनम को शका भि त का
अभाव होता है । जीव य ेप (Pseudopodia = कू टपादो) के कारण इनक आकृ त नि चत
नह होती । उदाहरण- सअमीबा (Chrysamoeba), राइजो लो रस (Rhizochloris),
राइजो ाइ सस(Rhizochrysis), आ द ( च 1.1 A) ।
(B) कशा भक (Flagellated) : ये कशा भका यु त ग तशील शैवाल ह जो यू ल नोफाइसी ,
लोरोफाइसी, ाइसोफाइसी, जै थोफाइसी, टोफाइसी आ द अनेक वग म पाये जाते ह । ये
कशा भकाओं क सं या तथा ि थ त म भ नता दशाते ह । उदाहरण- लेमाइडोमोनास
(Chalmydomonas) म दो तथा यू ल ना (Euglena) म एक कशा भका पाई जाती ह ( च
1.1 B C) ।

च 1.1 : एक को शक शैवाल; A स अमीबा; B यू ल ना ;


C लेमाइडोमोनास; D लोरे ला

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(C) अकशा भक (Nonflagellated) : ये गोलाकार या अ य आकृ त के अकशा भक शैवाल
है िज ह कोकाइड (Coccoid) अथवा ोटोकोकाइड (protococoid) भी कहते ह ( च 1.1 D)
उदाहरण- लोरे ला (chlorella), सनेकोकोकस (Synechococcus), ु कोकस (Chrococcus)
तथा डायट स(Diatoms) आ द ।
(D) स पलाकार (Spiral) : ये एक को शक य शैवाल स पलाकार अथवा कु ड लत आकृ त के
होते ह । उदाहरण- पा लाइनना(Spirulina) ।
1.3.2 बहु को शक य थैलस (Multicellular thallus)
बहु को शक शैवाल म मु यत: पांच कार के थैलस पाए जाते है । िजनका सं त ववरण न न
कार है
A. समू हन (Aggregation or Colony)
को शकाएं आपस म समू हन करके अ नय मत आकार क कॉलोनी बनाती है । इनक वशेषता यह
है क को शकाएँ वभािजत होती रहती ह िजससे को शकाओं क सं या म वृ होती रहती है ।
इस कार क कॉलोनी म को शका सं या तथा कॉलोनी का आकार अ नि चत होता है । सहन
न न कार का होता है
(i) पा मेलाभ (Palmelloid) : पा मेलाभ कॉलोनी म गोलाभ, अचल को शकाएं ले मी आधा ी
(gelatinous matrix) म अ नय मत प से अ त: था पत रहती ह । इनम न तो आकार
तथा न ह सं या नि चत होती है तथा येक को शका का यक य प से एक दूसरे से
वत होती है उदाहरण - टे ा पोरा (Tetraspora), पामेला (Palmella) आ द ।
कु छ शैवाल म पा मेलाभ अव था अ थायी होती है उदाहरण - लेमाइडोमोनास
(Chlamydomonas) ।
(ii) वृ ाभ (Dendroid) : इसम को शकाएं एक दूसरे से ले म वारा इस कार जु ड़ी रहती ह
क उनका व प सू म वृ के समान दखाई दे ता है । वृ ाभ कालोनी क भी आकार तथा
आमाप अ नि चत होता है । उदाहरण ाइसोडे ान (chrysodendron) स
े ीनो लेडस
(Prasinocladus) तथा केमीसाइफोन (Chamaesiphon) आ द ।
(iii) राइजोपो डयल (Rhizopodial) कॉलोनी क येक को शका आपस म जीव य े प -
राइजोपो डया (Rhizopodia) वारा जु ड़ी रहती है । उदाहरण - ाइसी डए म
(Chrysidiastrum), राइजो ाइ सस (Rhizochrysis) आ द ।
B. सम डल (Coenobium)
इस कार क कॉलोनी नि चत आकार व आमाप क होती ह िजसम नि चत सं या म
को शकाएं पाई जाती ह तथा एक व श ट म म व या सत रहती है । इसम को शकाओं क
सं या शशु अव था म ह नधा रत हो जाती है तथा उसके बाद केवल इनके आकार म वृ
होती है । इ ह सीनो बयम (coenobium) कहते ह । ये दो कार क होती ह -
(i) कशा भक अथवा ग तमय (Flagellaged) : इनम को शकाएं कशा भका यु त होती ह
जो आपस म लाजमोडे मेटा (plasmodesmata) वारा जु ड़ी रहती ह । ये सामा यत

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: आकार म गोलाकार होती ह । उदाहरण - पे डोराइना (Pandorina), यूडोराइना
(Eudorina), वॉलवॉ स (Volvox) आ द ( च 1.2) ।

च 1.2 : कोलो नयल शैवाल : A पे डोराइना ; B यूडोराइना ;


C वालवा स; D हाइ ो डि टओन
(ii) अकशा भक अथवा अचल (Non-flagellated) इनम को शकाएं अकशा भक होती ह ।
इनक आकृ त गोल, लेट स श अथवा जाल के समान होती है उदाहरण - ये पे डए म
(Padiastrum), सेनेडे मस (Scenedesmus), हाइ ो डि टयोन (Hydrodictyon)
आद (च 1.2 D) ।
C. त तु ल थैलस (Filamentous thallus)
त तु ल अव था क उ प त एक को शक काय से ग तशीलता के वलोपन व को शका के अनेक
अनु थ वभाजन से हु ई है । इसम संत त को शकाएं एक दूसरे से पृथक् न होकर रे खीय म म
जु ड़ी रहती है तथा एक त तु बनाती है । त तु ल थैलस तीन कार के होते है -
(i) अशा खत त तु (Unbranched filaments) : सरल व अशा खत त तु पाइरोगाइरा
(Spirogyra), ऊडोगो नयम (Oedogonium), ओ सलेटो रया (Oscillatoria), नॉन टॉक
(Nostoc), यूलो स (Ulothrix) आ द सद य म पाया जाता है ( च 1.3) ।
यूलो स, ऊडोगो नयम आ द के त तु अधो तर पर हो डफा ट (holdfast) वारा संल न
होते है जब क पाइरोगाइरा म वतं लावी (free floating) होते ह । ना टॉक म, ले मी
आ छद म घर कर कॉलोनी का नमाण करते ह ।

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(ii) शा खत त तु (Branched filament) : शा खत त तुल संरचना पथोफोरा (Pithophora),
लेडोफोरा (Cladophora) आ द म पाए जाते ह । शाखाओं का नमाण त तु के पट के
नचले भाग से पा व अ तवृ (lateral outgrowth) क उ प त तथा उसम अनु थ पट
नमाण या वारा होता ह ।

च 1.3 : अशा खत त तुल शैवाल : A पाइरोगाइरा; B यूलो स;


C ऊडोगो नयम; D ओ सलेटो रया
शाखन वारा न न तीन कार के थैलस वक सत होते है ।
(a) सरल (Simple) : थैलस एकल त तु का बना होता है जो आधार पर एक आधार को शका
वारा संल न रहता है । शाखाएं आधार को शका के अ त र त कसी भी को शका से उ प न
होती है? उदाहरण- लेडोफोरा (Cladophora) ( च 1.4 A) ।

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च 1.4 शा खत त तुल शैवाल : A लेडोफोरा; B ेपनि डयो पस;
C को लयोक ट पाि वनेटा; D ए टोकापस E बै े कोपस F को लयोक ट कूटाटा
(b) वषमत तुक (Heterotrichous) - इनम उ व (erect) तथा यान (prostrate) दोन
कार क शाखाएं होती है। । यह अव था सरल त तुल थैलस से अ धक वक सत मानी जा
सकती है । उदाहरण- ि चएला (Fritschiella), को लयो कट (Coleochaete),
ए टाकापस (Ectocarpus), ापरनेि डयोि सस (Draparnaldiopsis) आ द
(c) आभासी मृदु तक (Pseudoparenchymatous) इसका नमाण त तुओं अथवा शाखाओं
के ल बवत अथवा समा तर म म संग ठत होने से होता है । यह एक अ ीय (uniaxial)
अथवा बहु अ ीय (multiaxial) कार का होता है ।

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को लयोक ट ू टाटा म उ व त पूण वलु त हो जाता है तथ यान त बार बार शा खत
होता है । यान त क पा व शाखाएं पर पर संयोिजत होकर आभासी मृदुतक त तर नुमा
सरंचना का नमाण करती है ( च 1.4 F) ।
D. साइफनी थैलस (Siphonous thallus)
इस कार का थैलस न लकाकार , पट र हत (nonseptate), शा खत तथा बहु के क
(multinucleate) त तु ओं से बना होता है । ऐसी संरचना को संको शक (coenocytic) कार
कहा जाता है । इनम पट नमाण हु ए बना को शका वभाजन व द घन होता है । पट नमाण
केवल जनन संरचनाओं के आधार पर होता है । उदाहरण - बो ाइ डयम (Botrydium),
ोटोसाइफन (Protosipho), वाउचे रया (Vaucharia), ायोि सस (Bryopsis) तथा कॉलपा
(Caulerpa) आ द ( च 1.5 A-D) ।
लोरोफाइसी के ोटोसाइफन तथा जे थोफाइसी के बो डयम म थैलस छोटा अशा खत पु टका
समान होता है । वाउचे रया का थैलस शा खत व साइफनी व प होता है जब क ायोि सस
शा खत प छक के समान साइफनी संरचना दशाता है । कॉलपा म मू लाभाषी, अ ीय एवं प णल
वभाव यु त शाखाएं वभे दत होती है ।

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च 1.5 : साइफनी शैवाल : A ोटोसाइफन; B बो डयम; C कॉलपा; D वाउचे रया
E. मृदु तक थैलस (Parenchymatous)
इस कार के थैलस का वकास त तुल थैलस से माना गया है । त तु क को शकाओं म एक से
अ धक तल म वभाजन होता है । तथा वभाजन के फल व प बनी संत त को शकाएं पृथक नह ं
होती है िजससे मृदू तक संरचना का नमाण हो जाता है । लोरोफाइसी वग के वंश अ वा
(Ulva) का थैलस मृदूतक तथा प ती जैसा चौड़ा होता है जो आधार से एक वृ त (stalk) वारा
जु ड़ा रहता है।
मृदूतक थैलस का ज टल या वक सत व प भू रे शैवाल म दे खने को मलता है , उदाहरण -
डि टयोटा (Dictyota), सारगैसम (Sargassum), ले मने रया (Laminaria) न रयो सि टस
(Neriocystis) तथा मे ो सि टस (Macrocystis) आ द कु छ मृदूतक शैवाल म आ त रक
उ तक वभेदन भी पाया जाता है, िजनम सबसे बा य मे र टोडम (meristoderm), म य म
व कु ट (cortex) तथा के य मज़ा (medulla) उपि थत होता है ।

18
च 1.6 मृदु तक शैवाल : A सरगैसम; B यूकस ;
C अ वा; D न रयो सि टस

1.4 को शका सरं चना (Cell Structure)


साइनोफाइसी के अ त र त अ य सभी वग क को शकाओं का संगठन यूके रयो टक कार का
होता है । इनम सुसंग ठत के क तथा कलाब को शकांग पाए जाते ह ।
1.4.1 को शका भि त (Cell wall)
सामा यत: शैवाल म को शकाओं के चार ओर प ट को शका भि त का आवरण उपि थत होता
है । पर तु कुछ शैवाल , जैसे - ाइसोफाइसी वग के टामोनास (Cryptomonas) म
को शका भि त का अभाव होता है । इसके अ त र त चलबीजाणु (zoospores) तथा यु मक
(gametes) भी भि त र हत होते ह । को शका भि त मु यत: तो परत से बनी होती है ।
भीतर परत से यूलोज क बनी होती है तथा बा य परत पेि टन अथवा ले म क बनी होती है ।
फयोफाइसी वग के शैवाल म से यूलोज के अ त र त हेमीसे यूलोज (hemicellulose)
ए जी नक अ ल (alginic acid) तथा यूकोइ डन (fucoidin) पाया जाता है । जब क
रोडोफाइसी वग के सद य म

19
च 1.7 : शैवाल को शका क परासंरचना
जाइलान (xylon) तथा बैसीले रयोफाइसी वग के सद य म स लका (silica) का बाहु य होता
है।
साइनोफाइसी वग म भि त लूकोसेमाइन (glucosamine) एमीनो अ ल, यूरे मक अ ल तथा
डाइएमीनोपाइमी लक अ ल क बनी होती ह । इस कार क को शका भि त यूकोपो लमे रक
(mucopolymeric) कहलाती है ।
डेि म स (Desmids) तथा डायट स (Diatoms) म को शका भि त दो भागो (two halves)
म वभ त होती है तथा इनक भि तय मे छ उपि थत होते ह, िज ह गत संयोजन (pit
connections) कहते ह । गत संयोजन के मा यम से जीव य स पक बना रहता है । यू ल ना
(Euglena) तथा िज नोडी नयम(Gymnodinium) म वा त वक को शका भि त के थान पर
पे लकल (pellicle) उपि थत होता ह ।
1.4.2 के क (Nucleus)
साइनोफाइसी के सद य म के क आघ (Primitive) कृ त का पाया जाता है, िजसम के क
झ ल (nuclear membrane) केि का (nucleolus) व के क रस (nuclear sap) का
अभाव होता है तथा DNA त तुक ह टोन ोट न से संयोिजत होकर गुणसू का नमाण नह ं
करते ह । इस कार का के क ार भी के क (Incipient nucleus) कहलाता है तथा ऐसी
को शकाएं ोके रयो टक (Prokaryotic) को शकाएं कहलाती ह ।

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डाइनोपलैिजलेट (Dinoflagellatae) के सद य म भी के क स य के क नह ं होता है ।
इनम के कला तो उपि थत होती है पर तु सुसंग ठत गुणसू नह ं पाए जाते ह । इस कार के
के क संगठन को मीजोके रयो टक (Mesokaryotic) कहते ह। शैवाल के अ य सभी वग म
सु संग ठत क क पाया आता है तथा ऐसी को शकाएं यूके रयो टक(Eukaryotic) को शकाएं
कहलाती ह। सु संग ठत क क म क क झ ल , केि का, क क रस, ह टोन ोट न तथा
गुण सू पाए जाते है।
अ धकतर शैवाल को शकाएं एक के क अथवा संको शक (coenocytic) होती ह । एक के
क को शकाओं म के क ाय: को शका भि त के नकट ि थत होता है पर तु यदाकदा यह
को शका यी त तुओं वारा को शका के म य भाग म नलि बत रहता है (उदाहरण-
पाइरोगाइरा, िजि नमा)। बहु के क को शकाओं म के क सामा यत: लाि डस व रि तकाओं
के म य को शका य म ि थत होते ह । के क गोलाकार, ब बाभ अथवा द घत कार के
होते ह ।
1.4.3 कशा भका (Flagella)
रोडोफाइसी (लाल शैवाल )तथा साइनोफाइसी (नील ह रत शैवाल )के अ त र त सभी वग के शैवाल
म चल को शकाएं (motile cells) पाई जाती है जो कशा भकाओं वारा ग त करती ह । येक
कशा भका के के म एक अ ीय त तु होता है िजसे ए सोनीम (axoneme) कहते ह । यह
दोहर झ ल से घरा रहता है । अनु थ काट म यह 9 + 2 त तु क संरचना द शत करता है।
इनम 9 त तुक प र ध पर तथा 2 त तु क के म ि थत होते ह । येक प रधीय त तु क दो
उपत तु ओं से बना होता है पर तु के य त तु क एकल होते ह ।
सभी प रधीय त तु समीप थ छोर पर आधार क णका से जु ड़े रहते ह पर तु के य त तु क
आधार कणीका से कु छ उपर समा त हो जाते ह । दूर थ छोर पर ए सोनीम एक नोकदार शीष
बनाता है । आका रक एवं संरचना के आधार पर कशा भकाएं दो मु ख कार क होती है -

च 1.8 शैवाल म कशा भकाय

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(i) तोद कार (Whiplash type) -इन कशा भकाओं क सतह चकनी (smooth) होती,
है अथात ् इन पर रोम (flimmers or mastigoneme) अनुपि थत होते ह । इ हे ए ो नमे टक
(acronematic) भी कहते ह ।
(ii) कू च कार (Tinsel type) -इन कशा भकाओं पर एक या अ धक पंि तय म पा व
सतह पर रोम (flimmers) उपि थत होते है । इ ह लुरो नमे टक (pleuronematic) कार भी
कहते ह ।य द कशा भका पर रोम एक पंि तक (unilaterally) व या सत होते है तो उसे
टाइगो नमे टक (stigonematic) कार कहा जाता है। इसके वपर त य द कशा भका पर रोम
दो पंि तय म व या सत होते ह तो उसे पे टो नमे टक (pantonematic) कार का कहा जाता
है ।
कशा भकाओं क ि थ त व सं या म भी व भ नता पाई जाती ह, जैसे- लेमाइडोमोनास
(Chlamydomonas), म ये अ थ (terminal) इडोगो नयम (Oedogonium) म उप-अ थ
(sub-terminal) तथा ए टोकापस (Ectocarpus) म पा व ि थत होती ह । चल को शकाओं
(चलबीजाणु ओं एवं यु मक )पर सामा यत : दो कशा भकाएं पाई जाती ह । पर तु इनक सं या
एक (यू ल न, Euglena), चार (यूलो स Ulothrix) या अस य (इडोगो नयम
Oedogonium) भी पाई जाती है ।
कशा भकाओं क सं या एवं कृ त के आधार पर चल को शकाएं न न कार क हो सकती ह –
(a) समकशा भक (Isokontae) : जब कशा भकाएं समान ल बाई एवं समान संरचना
(आका रक ) क होती ह तो समकशा भक कहलाती ह (उदाहरण - लेमाइडोमोनास) ।
(b) वषम कशा भक (Hetrokontae) जब कशा भकाएं असमान ल बाई या असमान संरचना क
होती ह, तब इ ह वषम कशा भक कहते है (उदाहरण - ए टोकापस) ।
(c) टे फनोको ट (Stephanokontae) जब अनेक कशा भकाएं उप - अ त थ ि थ त म एक
वलय म उपि थत होती ह तो इस ि थ त को टे फनोको ट कहते ह (उदाहरण -
इडोगो नयम) ।
1.4.4 ने ब दु या इक ब दु (Eye spot or Stigma)
ग तशील अथवा कशा भक शैवाल को शकाओं म एक वण कत (pigmented) को शकांग पाया
जाता है िजसे क ब दु (eye-spot) कहते ह । यह गोलाकार, अ डाकार, रे खीय अथवा
ब दुसम लाल - नारं गी रं ग क संरचना होती है । इसके लाल - नारं गी रं ग के कारण ह इसे
लाल ने - ब दु (red eye-spot) भी कहते ह । क ब दु ाय : को शका के अ यदाकदा
म य या प च भाग म ि थत होता है । यह ह रतलवक या ामेटोफोर के बाहर को शका य म
अथवा ह रतलवक के भीतर ि थत होता है । लोरोफाइसी (Chlorophyceae) तथा
टोफाइसी (Cryptophyceae) वग के सद य म यह लाि टड म ि थत होता है तथा इसका
कशा भकाओं से कोई स ब ध नह ं होता ह । फयोफाइसी (Phaeophyceae) तथा जे थोफाइसी
(Xanthophyceae) वग के सद य म यह लाि टड म ि थत होता हे ले कन को शकाओं से
स बि ध होता है । यू ल नोफाइसी (Euglinophyceae) म यह को शका के अ भाग म

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लोरो ला ट के बाहर (को शका य म) ि थत होता है । लोरोफाइसी व डाइनोफाइसी वग के
कु छ सद य म क ब दु ल पड सम क णकाओं (lipid globules) से न मत होता है तथा
क णकाएं झ ल मय पट लकाओं मे पंि तब वि य सत होती ह । इन क णकाओं मे केरो टनाइड
वणक पाया जाता है । कुछ अ य सद य म यह लस (biconvex lens) तथा वण कत याले
(pigmented cup) से न मत होता है ।

च 1.9. क ब दु A एवं B
क ब दु को काश ाह तथा काश संवेद (Photosensitive and photoreceptive) अंग
माना जाता है जो चलको शकाओं क गमन क दशा नधा रत करता है । पर तु अनेक वै ा नक
(ले वन- 1962, बो ड एवं वाइने 1978 आ द) वारा लेमाइडोमोनास पर कए गए अ ययन से
यह प ट हुआ क काश हण करने का काय करते ह ।
1.4.5 लवक (Plastids)
नील ह रत शैवाल के अ त र त अ य सभी वग के शैवाल म संग ठत लवक (Plastids) पाए
जाते ह । लवक म लोरो फल तथा अ य काश सं लेषी वणक उपि थत होते ह । लवक
जीव य म वत प से बखरे हु ए या भि त ल न होते ह । व भ न सद य म लवक क
सका तथा आकृ त व आमाप म भ नता पाई जाती ह । लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas)
म एक, िजि नमा (Zygnema) म दो तथा कारा लेडोफोरा आ द म अनेक लवक उपि थत होते
ह । इनक आकृ त यालेनम
ु ा ( लेमाइडोमोनास), च क (काश वाऊचे रया), मेखलाकार
(यूलो स), स पलाकार ( पाइरोगाइरा), ताराकृ त (िजि नमा), अ नय मत (ए टोकापस) अथवा
जा लकावत ( लेडोफोरा) होती ह ।

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च 1.10 : शैवाल म व भ न आकृ त के लवक
शैवाल के लवक को वणक (मु यत : लोरो फल) के आधार पर दो कार म बांटा जाता है ।
(a) लोरो ला ट (chloroplast) : इनम लोरो फल a (ch,a), तथा लोरो फल b (ch,b)
दोन उपि थत होते ह।
(b) ोमेटोफोर (Chromatophore) : इनम लोरो फल a (ch,a) के अ त र त लोरो फल c
(ch,c), लोरो फल d (ch,d) या लोरो फल e (ch,e) उपि थत होता है । लोरो फल b
(ch,b) अनुपि थत होता है ।
लोरोफाइसी के सद य म लोरो ला ट जब क जे थोफाइसी, फयोफाइसी तथा रोडोफाइसी म
ोमेटोफोर उपि थत होते ह ।
उ च ेणी के पौध के समान शैवाल के लवक भी दोहर लाइपो ोट न झ ल वारा प रब होते
ह तथा इनके भीतर भाग आधा ी, ोमा(stroma) म काश सं लेषी पट लकाएं
(photosynthetic lamellae) अथवा थाइलेकॉइड (thylakoid) अ त: था पत रहती है ।
थाइलेकॉइड एक अथवा बहु तर य होते ह ले कन उ च ेणी पादप के ेना (grana) के समान
संयोिजत नह ं होते ह । शैवाल के लाि टडा लवक म सामा यत: पाय रनॉइड (pyrenoid)
उपि थत होता है । िजसका उ च ेणी के पादप म सवथा अभाव होता है ।
1.4.6 पाय रनॉइड (Pyrenoid)
पाय रनॉइड टाच सं लेषण तथा संचय क मु य संरचनाएं ह । पाय रनॉइड वण क लवक म
धंसी हु ई अथवा उनक सतह पर उपि थत होती ह । लोरोफाइसी म (साइफोने स के अ त र त)
पाय रनॉइड क अपि थ त अ त सामा य ह । रोडोफाइसी, फयोफाइसी तथा जै थोफाइसी तथा
बैसीले रयोफाइसी के कुछ सद य म पाय रनॉइड क उपि थ त होती है। साइनोफाइसी तथा
जै थोफाइसी म ये अनुपि थत होते ह । फयोफाइसी वग म पाय रनॉइड सवृंत (Stalk) संरचना
होती है । येक पायीरनॉइड ोट न त तु ओं के बने होते ह िजनक ोट न कोर टाच प काओं
से घर रहती ह । थ (Grifth, 1970) के अनुसार यह काश सं लेषण उ पाद का अ थायी
सं हण के है, जहाँ ये उ पाद बाद म टाच म प रव तत हो जाते ह । इसके वपर त कु छ
टाच न मत करने वाले शैवाल पायीरनॉइड अनुपि थत होते ह उदाहरण-माइ ो पोरा
(microspora) ।इसी कार इनम टाच का नमाण नह ं होता । अत: शैवाल म पाय रनाइड
का सह काय ात नह ं है ।

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येक लाि टड म पाय रनॉइड क सं या एक अथवा अ धक हो सकती है । कु छ शैवाल म यह
अ प थायी संरचना के प म हो सकती ह जो क ह अव थाओं म पाई जाती है अ य
अव थाओं म वलु त हो जाती है । इनक उ प त पूववत (pre-existing) पाय रनॉइड के
वभाजन से होती है।
1.4.7 सं चत भोजन (Reserve food)
शैवाल म सं चत भोजन मु यत बहु शंकराएं (polysaccharides) तथा वसा तेल के प म होता
है (सारणी 1.1) । उ च पादप के समान लोरोफाइसी वग म सं चत भोजन टाच के प म
होता है । टाच म एमाइलोज (amylose) तथा एमाइलोपेि न (amylopectin) मु ख घटक
होते ह । टोफाइसी म भी सं चत भोजन टाच के प म पाया जाता है पर तु कु छ सद य म
यह तेल बूँदो के प म पाया जाता है । यु ल नोफाइसी म पेरामाइलोन (paraamylon) टाच
सं चत भोजन होता है । जे थोफाइसी, बे सले रयोफाइसी व ाइसोफाइसी म यूकोसीन
(leucosin) के प म होता है । फयोफाइसी म मेनीटोल (mannitol) तथा लेमीने रन टाच
(laminarin starch) के प म होता है । रोडोफाइसी वग म मु यत लो र डयन टाच
(Floridian starch) सं चत भोजन के प म पाया जाता है । यह कवक तथा ज तु ओं के
लाइकोजन (glycogen) के समान होता है िजसम एमाइलोपेि टन (amylopectin) उपि थत
होता है । साइनोफाइसी वग म साइनोफाइ सयन टाच (cyanophycian strach) का संचय
होता है । इसके अ त र त इस वग के सद य मे लाइकोजन तथा कुछ ोट न (साइनोफाइ सयन
कण) मलते ह ।
1.4.8 रि तकाएं (Vacuoles)
शैवाल क प रप व को शकाओं म ाय रि तकाएं पाई जाती है । रि तका चार ओर से एक
सु प ट झ ल वारा प रब रहती है, िजसे टोनो ला ट (tonoplast) कहते ह । येक
को शका म ाय कई छोट -छोट अथवा एक बड़ी रि तका पाई जाती है । संको शक शैवाल
(उदाहरण-वाऊचे रया) म एक सतत ् रि तका स पूण पादप शर र म फैल रहती है । रि तकाओं
म को शका रस भरा होता है इस लए इ ह रस धा नयाँ (sap vacuoles) भी कहा जाता है ।
सारणी 1. 1 : शैवाल के व भ न वग म को शका भि त संगठन, कशा भका, सं चत भोजन
तथा पाय रनॉइड क ि थ त
वग को शका भि त क कशा भका सं चत भोजन पाय रनॉइड
कृ त
1. लोरोफाइसी से युलोज एवं पेि टन । 2 या 4 टाच (उ च उपि थत
अथवा उपि थत पादप के
अ धक, अ समान)

नवे शत,
समान
ल बाई क ,

25
तोद कार ।
2. यू ल नो- अनुपि थत,पेल कल एक, यदाकदा 2 पेरामाइलम अथवा अनुपि थत
फाइसी आवरण अपि थत या 3, अ वसा

नवे शत, कू च
कार क
3. ाइसो- से युलोज, 1 या 2 यूको सन, उपि थत
फाइसी स लकायु त समान या ाइसोले मने रन, या
काइ टन, यदाकदा असमान, अ वसा । अनुपि थत

अनुपि थत । नवे शत तोद


अथवा एक
तोद एवं एक)
कू च ।
4. जे थोफाइसी पेि टन, से यूलोज दो, असमान तेल, वसा या अनुपि थत
ाय: अनुपि थत या ल बाई क , यूकोसीन ।
अ प मा ा म अ नवे शत,
एक तोद व
एक कूच ।
5. बेसीले रय - पेि टन, व स लका एक यदाकदा 2, वसा, यूको सन , उपि थत
फाइसी यु त । दो कपाट य असमान अ वा यु टन कण ।
नवे शत कूच ।
6. फयोफाइसी से यूलोज(अ त: परत), दो, असमान ले मने रन, उपि थत
ए जी नक अ ल व ल बाई क , उपि थत मेनीटाल,
कोइ डन (म य परत) पाशव नवे शत, यदा-कदा वसा ।
एक तोद व
एक

7. रोड़ोफोइसी से यूलोज एवं पेि टन अनुपि थत लो र डयन टाच, उपि थत


जाइलान, गैले टोसाइड,
पोल मेनोज व लो रडोसाइड।
पोल गेले टाज ए टर

8. साइनो- यूकोपे टाइड एवं अनुपि थत साइनोफाइ सन अनुपि थत


फाइसी यूरे मक अ ल टाच
साइनोफाइ सन
कण

26
च 1.11 : शैवाल म रि तका : A. ज टल रि तकाएं B. व श ट रि तकाएं
साइनोफाइसी (Cynophycae) के अनेक लवक व प सद य म गैस रि तकाएं (gas
vacuoles) पाई जाती ह । इ ह कुट रसधा नयाँ (Pseudovacuoles) भी कहते ह । कुट
रसधा नय का काय गैस का सं हण उ लावकता दान करना तथा तेज काश से सु र ा दान
करना ह ।
रि तएं न न कार क होती ह -
(i) सरल रि तकाएं (Simple vacuoles) : कुछ शैवाल क को शकाओं म एक बड़ी रि तका
म य भाग म ि थत होती है तथा इनम को शका रस भरा होता है । ये रि तकाएं भो य
पदाथ के सं हण तथा लवण के अवशोषण व सं हण का काय करती ह, उदाहरण -
यूलो स (Ulothrix), पाइरोगाइरा (spirogyra) आ द ।
(ii) संकुचनशील रि तकाएं (Simple vocuoles) : लोरोफाइसी वग के वॉलवोके स
(Volvocales) गण के सद य म दो या अ धक छोट रि तकाएं पाई जाती ह । इन
रि तकाओं म आवत संकुचन (periodical contraction) पाया जाता है । अथात ् इनम
एका तर म म संकु चन (contraction) तथा सार (expansion) होता है । अत : ये
रि तकाएं परासरण नय ण (osmoregulation) का काय करती ह।
(iii) ज टल रि तकाएं (Complex vacuoles) इस कार क रि तकाएं यू ल नोफाइसी
(Euglinophyceae) तथा डाइनोफाइसी (Dinophyceae) वग के शैवाल म पाई जाती ह
। इनम को शका सनी (cytopharynx), सं ह (reservoir) तथा व भ न आकार क
अनेक रि तकाओं का समू ह (group of small vacuoles) समि वत प से एक त के
प म काय करते ह ।

27
(iv) व श ट रि तकाएं (Special vacuoles) फयोफाइसी (Phaephyceae) वग के शैवाल
क को शकाओं म के क के चार ओर यूकोसन कण (fucosan granules) यु त
पु काएं (vesicles) मलती ह । इ ह यूकोसन रि तकाएं अथवा फाइसो स या यूकोसन
पु टकाएं (fucosan vesicles or physodes) कहते ह ।

1.5 शैवाल का वणक य संगठन (Pigment Constitution of


Algae)
शैवाल म रं ग एक मह वपूण बा य ल ण है िजसके आधार पर इ हे हरे शैवाल, भू रे शैवाल, नील
ह रत शैवाल, लाल शैवाल आ द समू हो म वभ त कया गया है । शैवाल का रग वणक
(pigment) नामक व श ट रसाय नक यो गक के कारण होता है । व भ न शैवाल वग के
थैलस का रं ग उसम उपि थत अनेक वणक म से कसी एक क धानता पर नभर करता है ।
वणक लाि टड अथवा लवक का अभाव होता है । नील ह रत शैवाल म लवक म उपि थत होते
ह । अत : इनम वणक को शका य के प रधीय भाग म ि थत पट लकाओं म पाए जाते है ।
शैवाल म न न तीन मु ख कार के वणक पाये जाते ह.
1 लोरो फल, 2. केरो टनाइड एवं 3. फाइको ब लन ।
1.5.1 लोरो फल (chlorophyll)
ये मु य काश सं लेषी वणक है तथा हरे रं ग के होते ह । लोरो फल वणक पांच कार के होते
है । व भ न शैवाल वग म इनका वतरण न नानुसार ह -
(i) लोरो फल- a - यह वणक सभी शैवाल मे पाया जाता है इसका मुलानुपाती सू
C55H72N4Mg है ।
(ii) लोरो फल- b -यह लोरोफाइसी तथा यु ल नोफाइसी वग म पाया जाता है तथा इसका
मू लानुपाती सू C55H70O6N4Mg है ।
(iii) लोरो फल C -यह वण ाइसोफाइसी बेसीले रयोफाइसी तथा फयोफाइसी वग म पाया जाता
है ।
(iv) लोरो फल d -यह केवल लाल शैवाल (रोडोफाइसी) म पाया जाता है ।
(v) लोरो फल e - यह वणक केवल जे थोफाइसी वग के कुछ शैवाल मे पाया जाता है ।
लोरो फल अणु जल अ वलेय होते ह । पर तु वसीय व म सरलता से घुलनशील होते ह ।
ये वणक नीले तथा लाल तरं ग दै य काश का अवशोषण करते ह ।
बोध न
I. बहु वक पा मक न-
1. शै वाल का अ ययन कहलाता है ।
( अ) बायोलोजी
( ब) माइकोलोजी
( स) पै थोलोजी
( द) फाइकोलोजी ( )

28
2. न न मे वषमत तु क शै वाल का उदाहरण है :
(अ) वालवॉ स
( ब) कारा
( स) यू लो स
( द) ए टोकापस ( )
II. लघु तरा मक न
1. सम डल के दो उदाहरण बताइये ?
……………………………………………………………………………………………………………………………….
2. वषमत तु क शै वाल के दो नाम बताइये ?
……………………………………………………………………………………………………………………………….
3. जे ोफाइसी के मु ख वणक बताइये?
……………………………………………………………………………………………………………………………….
4. एक परजीवी शै वाल का नाम बताइये ?
……………………………………………………………………………………………………………………………….
5. मृ दु तक थै ल स यु त दो शै वाल के नाम बताइये?
……………………………………………………………………………………………………………………………….

1.5.2 केरो टनाइड (Carotenoids)


ये काश ऊजा का अवशोषण कर लोरो फल अणुओं को था त रत करते है इस लए केरो टनाइड
सहायक अथवा र ी वणक भी कहलाते ह । ये हरे, पीले, नारं गी अथवा भू रे रं ग के होते ह । इ हे
दो वग म वभ त कया जाता है -
(i) केरो टन (Carotene) पीले रं ग के वणक ह । तथा असंत ृ त रै खक हाइ ोकाबन ह । शैवाल
मे मु यत 5 कार के केरो टन पाए जाते ह । (i) α केरो टन (ii)  केरो टन, (iii) 
केरो टन, (iv) epsilon केरो टन (v) ले वसीन ।  केरो टन लगभग सभी शैवाल म 
केरो टन, साइनोफाइसी, लोरोफाइसी तथा रोडोफाइसी म तथा केरो टन साइनोफाइसी वग म
पाया जाता है । केरो टन िजसे लोइकोपीन भी कहते ह फयोफाइसी तथा जे थोफाइसी म तथा
ले पसी म सोफाइसी वग म पाया जाता है । केरो टन 430- 5oo mu तरं ग दै य
काश का अवशोषण करते है । इनका मू लानुपाती सू C40H56 होता है ।

29
सारणी 1.2: व भ न शैवाल वग म मु ख वणक
वग लोरो फल केरो टन जै थो फल फाइको ब लन
1. लोरोफाइसी लोरो फल-a  केरोट न यूट न, अनुपि थत
(हरे शैवाल) लोरो फल-b  -केरोट न िजयाजै थीन,
 -केरोट न, नयोजै थीन,
वायलोजै थीन,
साइफोनीन
2. जे थोफाइसी लोरो फल-a  केरोट न यूट न, अनुपि थत
(पीत-ह रत लोरो फल-e  -केरोट न यूकोजै थीन,
शैवाल) वयलोजै थीन,
लेवोजै थीन
3. बेसीले रयो- लोरो फल-a  केरोट न यूकोजै थीन, अनुपि थत
फाइसी लोरो फल-c  -केरोट न डायटोजै थीन,
(डायट स) डाय डनोजै थीन,
नयो यूकोजै थीन,

4. फयोफाइसी लोरो फल-a  केरोट न यूकोजै थीन । अनुपि थत


(भू रे शैवाल) लोरो फल-d  -केरोट न यूट न,
वायलोजै थीन,
डाय डनोजै थीन
लेवोजै थीन
5. रोडोफाइसी लोरो फल-a  केरोट न यूट न,  फाइकोइ र न
(लाल शैवाल) लोरो फल  -केरोट न िजयाजै थीन,  फाइकोसाय नन
d- लेवे सन । म सोजै थीन, B फाइकोइ र न

6. साइनोफाइसी लोरो फल N-केरोट न यूट न, फाइकोसाय नन


(नील-ह रत लेवे सन। िजयाजेचीन, फाइकोसाय नन
शैवाल) म सोजै थीन, एलोफाइकोसाय नन

म सोजै थो फल

(ii) जे थो फल (Xanthophyll) : ये वणक पीले अथवा भू रे रंग के होते ह तथा इनम काबन व
हाइ ोजन के अ त र त ऑ सीजन भी होता है । इनका मू लानुपाती सू C40H56O2 है ।
शैवाल म लगभग 20 कार के जे थो फल पाए जाते है । िजनम मु ख ह- युट न ,
िजयोजै थीन, वायलोजै थीन लेवोजै थीन, डायटोजै थीन, म सोजै थीन, यूकोजै थीन,
म सोजै थो फल, साइफोनोजै थीन तथा नयोजै थीन आ द । अनेक जै थो फल कु छ शैवाल

30
वग के मु ख वणक है जैसे यूकोजै थीन फयोफाइसी का मु ख वणक है । िजससे ये भूरे
रं ग के होते ह । इसी कार यूकोजै थीन व डायटोजै थीन बेसीले रयोफाइसी के तथा
म सोजै थीन व म सोजै थो फल साइनोफाइसी के मु ख वणक ह ।
1.5.3 फाइको ब लन (Phycobilin)
ये वणक लाल व नीले रं ग के होते ह । तथा जल म घुलनशीन होते ह । गहरे जल म पाए जाने
वाले शैवाल मे ये मु य काश अवशोषी वणक होते है । ये मु यत: लाल (रोडोफाइसी) तथा
नील- ह रत (साइनोफाइसी)शैवाल म पाए जाते ह ।
फाइको ब लन वणको को दो वग म वभ त कया गया है -
(i) फाइकोइ र न (Phycoerithrene) ये लाल रं ग के वणक ह । इनम फाइकोइ र न- c,
फाइकोइ र न- c तथा फाइकोइ र न- x सि म लत ह ।
(ii) फाइकोसाय नन (Phycocyanin) इनका रं ग नीला होता है । इनम फाइकोसाय नन- r ,
फाइकोसाय नन तथा ऐलोफाइकोसाय नन सि म लत ह ।
नील ह रत शैवाल म c- फाइकोइ र न, c- फाइकोसाय नन तथा ऐलोफाइकोसाय नन जबक
लाल शैवाल म r-फाइकोइ र न r फाइकोसाय नन पाये जाते ह । लाल शैवाल म r
फाइकोइ स न जबक नील-ह रत शैवाल म r-फाइकोसाय नन क बहु लता होती है िजससे ये
मश: लाल व नील-ह रत रं ग के होते है ।

1.6 सारांश (Conclusion)


शैवाल व भ न आकार एवं ल ण वाले पादप का समू ह है । ये ाय: जल म पाए जाते ह ।
इसके अ त र त जल से आ छा दत अथवा नमी यु त थान पर भी पाएं जाते है । कुछ शैवाल
असामा य आवास म भी पाए जाते है तथा अ थाई शु क अव थाओं को सहन करने म स म
होते ह । इनके आकार, आकृ त व संगठन म अनेक व वधताएँ पाई जाती ह । ये सू मदश य
(microscopic) अथवा सू मदश य (macroscopic) कार के हो सकते ह । इनम थैलस
संगठन एकको शक एकक, समू हन, सम डल य त तु ल, साइफनी अथवा मृदुतक कार का पाया
जाता है । सभी कार के शैवाल का शर र सु कायक (thalloid) कार का होता है । अथात
वा त वक जड़, तना एवं पि तय का वभेदन नह पाया जाता है । इनम उ तक वभेदन नह
पाया जाता है अथात ज टलतम सु काय म भी संवहनी ऊ तक, यांि क ऊ तक आ द का अभाव
होता है ।
शैवाल म को शका भि त ाय: से यूलोज क बनी होती है, पर तु कु छ म ये यमकोपे टाइड क
बनी होती है व भ न वग मे से यूलोज के अ त र त अ य पदाथ क उपि थ त भी पाई जाती
है । नील ह रत शैवाल के अ त र त अ य सभी वग म को शका संगठन यूके रयो टक कार का
होता है । सायनोफाइसी के अ त र त सभी वग के सद य म संग ठत लवक पाए जाते है ।
व भ न सद य म लवक क सं या एवं आकृ त म भ नता पाई जाती ह । इनम ह रतलवक
मु ख वणक होते ह । ह रतलवक के अ त र त केरो टन, जै थो फल तथा फाइको ब लन नामक
वणक भी पाए जाते ह । शैवाल का रग उसम उपि थत व भ न वणको म से उपि थत कसी

31
एक वणक (कभी- कभी एक से अ धक) धानता पर नभर करता है । शैवाल म सं चत भोजन
मु यत: टाच (म ड) के प म मलता है तथा कुछ म वसा या तेल के प मे मलता है ।

1.7 श दावल (Glossary)


1. ायोफाइटस (Cryophytes) - बफ पर पाए जाने वाले शैवाल
2. ए प फलोफाइ स (Epiphyllophytes) - वृ क पि तय पर पाई जाती ह ।
3. टोफाइ स (Cryptophytes) - मृदा सतह के नीचे पाई जाती है ।
4. ए डोफाइ स (Endophytes) अ य पादप के ऊतको मे पाई जाती है ।
5. एपीफाइ स (Epiphytes) - अ य पादप क सतह पर पाई जाती ह ।
6. लथोफाइ स (Lithophytes) - च ान पर पाई जाती है ।
7. पा मेलाइड (Palmelloid) - ले म मे अ त : था पत अ नय मत अचल को शकाओं क
कॉलोनी ।
8. सेफोफाइ स (Saphophytes) - मृदा सतह पर पाए जाने वाले शैवाल ।
9. थम फाइ स (Thermophytes) - उ ण ोत म पाए जाने वाले शैवाल ।
10. एपीजूफाइ स (Epizoophytes) - थल य जीव के शर र के अ दर पाए जाने वाले शैवाल ।
11. ए डोजूफाइ स (Endozoophytes) - ा णय के शर र के अ दर पाई जाने वाले शैवाल ।

1.8 स दभ ंथ (Reference Books)


1. चैपमेन: ए गी (मैक मलान, ल दन)
2. श: चर ए ड र ोड शन इन ए गी (कै ीज यू न ेस)
3. वेद , शमा धनखड : शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा (रमेश बुक डपो जयपुर )
4. संह, पांड,े जैन शैवाल, लाइकेन, ायोफाइटा (र तोगी काशन मेरठ)
5. पांडे : शैवाल, (एस. चा द. नई द ल )

1.9 बोध न के उतर


I. बहु वक पा मक
1. (द)2. (द)
II. लघु तरा मक
1. वालवॉ स यूडोराइना ।
2. को लयो कट ए टोकापस ।
3. लोरो फल - a, लोरो फल - e,  केरो टन एवं जे थो फल ( यूट न, यूकोजै थीन,
वायलोजै थीन, लेवोजै थीन)।
4. सफे यूरोस वाइरे से स (Cephaleuros)
5. अलवा (Ulva), सरगैसम (Sargassum) ।

32
1.10 अ यासाथ न (Questions)
1. शैवाल के व भ न आवास एवं थैलस संगठन का वणन क िजये ।
2. शैवाल म पाए जाने वाले व भ न कार के शर र का स च वणन क िजए ।
3. शैवाल म मुख को शक य घटक - को शका भि त, के क, लवक, पाय रनॉइड तथा
कशा भका क व भ नताओं का वणन क िजये ।
4. शैवाल मे वणक संगठन एवं सं चत भोजन पर लेख ल खये ।

33
इकाई 2 : शैवाल म जनन एवं जीवन च (Reproduction
and life Cycle in Algae)
इकाई क प रे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 शैवाल म जनन व धय
2.2.1 का यक जनन
2.2.2 अल गक जनन
2.2.3 ल गक जनन
2.3 अनुभागीय सारांश
2.4 शैवाल म जीवन च के कार
2.4.1 अगु णतक जीवन च
2.4.2 वगु णत क जीवन च
2.4.3 वगु णतागु णत क जीवन च
2.4.4 अगु णतागु णत क जीवन च
2.4.5 वगु णत वगु णतागु णतक जीवन च
2.5 सारांश
2.6 श दावल
2.7 संदभ थ
2.8 बोध न के उ तर
2.9 अ यास न

2.0 उ े य
इस इकाई का उ े य
1. शैवाल क व भ न का यक सरंचनाओं वारा संत त नमाण एवं चीर का लक सरंचनाओं क
जानकार ा त करना।
2. शैवाल म बनने वाले व भ न अल गक बीजाणु ओं वारा संत त नमाण का अ ययन करना।
3. शैवाल म जननांग एवं यु मक क व वधता एवं वकास म क जानकार ा त करना ।
4. जीवन च के आधार पर पी ढ़य के एका तरण को प ट करना ।

2.1 तावना (Introduction)


अ य सजीव के समान शैवाल भी जनन करते ह अथात ् अपनी संत त उ प न करते ह । शैवाल
मे जनन का यक संरचनाओं, बीजाणु ओं तथा ल गक या वारा होता है । स हवीं शता द के
म य शैवाल म जनन एवं जीवन च

34
तक जब सू मदश का आ व कार नह हु आ था शैवाल को ल गकता र हत समझा जाता था ।
सू मदश के आ व कार के लगभग 50 वष बाद आर. रयूमर (R. Reaumour) ने यूकस म
ल गक अंग का वणन कया । इस खोज के लगभग एक शता द बाद टनर ने यूकस म
नषेचन या का वणन कया । उ नीसवीं शता द के अ त म अरे सयोग (Areschoug) ने
यूरो पोरा (Urospora) तथा लेडोफोरा (Cladophora) मे चलबीजाणु ओं तथा यु मक के
नमाण क या का अ ययन कया । आज लगभग सभी ात शैवाल मे व भ न जनन
संरचनाओं एवं जनन व धय का व तृत अ ययन कया जा चूका है । इस अ याय म हम
शैवाल मे पाए जानी वाल व भ न जनन व धयो का सं ेप म अ ययन करगे ।
उन सभी जीव मे िजनम ल गक जनन होता है । जीवन च म दो अव थाएं पाई जाती है-
अगु णत तथा वगु णत । अगु णत अव था अधसू ी वभाजन के फल व प उ प न होती है ।
जबक वगु णत अव था नषेचन के प रणाम व प उ प न होती है । अलग - अलग शैवाल
म यु मनज अंकुरण के समय अथवा यु मक नमाण के समय अधसू ण (meiosis) होता है ।
अगु णत व वगु णत पी ढ़य या ाव थाओं का जीवन च म नय मत अनु मण होता है िजसे
पीढ़ एका तरण कहते ह । इस श द का योग सव थम हॉफमी टर (Hofmister) वारा कया
गया था । वेडे लयस म जीवन च को हे लोि टक, ड लोि टक तथा ड लोहे लोि टक कार
म वग कृ त कया । ि मथ तथा काय लन (1938)ने आका रक के आधार पर सम पी
(Homologous) तथा वषम पी (Heterologous) तकनीक श द का योग कया ।

2.2 शैवाल म जनन व धयां (Method of reproduction in Algae)


शैवाल म सामा यत: जनन क तीन व धयां पाई जाती है - (i) का यक, (ii)अल गक
(iii)ल गक। इन व धय के अ त र त इनम अनेक चरजीवी काय बनती है जो तकूल
प रि थ तय म जीवन म रहती ह ।
2.2.1 का यक जनन (Vegetative reproduction)
इस जनन म कसी कार क व श ट संरचना या बीजाणुओं का नमाण नह ं होता है । शैवाल
मे का यक जनन न न मु ख व धय वारा होता है -
1. ख डन वारा (Fragmentation) : व भ न शैवाल मे सु काय अनेक ख ड म
वभािजत हो जाता है तथा येक ख ड वत वृ कर नए पादप म वक सत हो जाता है ,
इस कार का जनन ाय : त तुल शैवाल जैसे - लेडोफोरा (Cladophora), यूलो स
(Ulothrix) ऊडोगो नयम (Oedogonium) आ द म पाया जाता है । नीलह रत शैवाल क
कॉलो नया भी ख डन वारा वधन करती है । उदाहरण- नॉ टॉक (Nostoc), एफेनोके सा
(Aphanocapsa) आ द ।
शैवाल म सुकाय (thallus) का ख डन अनेक कारण से होता है, जैसे- तेज जलधारा के भाव
से, जल य ज तुओं वारा जनन प ड नमाण के प चात ् न ट हो जाने से तथा अ य याि क
दुघटनाओं के कारण आ द ।

35
2. को शका वभाजन वारा (Cell division) इस व ध वारा एकको शक शैवाल वभाजन
वारा पु ी को शकाओं का नमाण करती ह । येक को शका वृ कर वत पादप क तरह
यवहार करने लगती है । यूि लना (Euglena), डेस मडस (Desmides), डायट स
(Diatoms) आ द म यह सामा य जनन व ध है ।
3. हाम गोन (Hormogon) इनका नमाण नीलह रत शैवाल म होता है । तकूल
प रि थ तय म त तु अथवा ाइकोम छोटे - छोटे ख ड म टू ट जाता है । ये ख ड हाम गोन
(Hormogon) कहलाते ह । इनका नमाण पृथककार ड क का नमाण अथवा अ तवेशी
को शकाओं के मृत होने से होता है । हाम गोन वृ कर नए थैलस म वक सत हो जाते है ।
उदाहरण - नॉ टॉक (Nostoc), ओ सलेटो रया (Oscillatoria), ऐनाबीना (Anabaena), आ द
(च 2.1)।
4. ोटोनीमा वारा (By protonema) इस कार क त तु वत संरचनाएँ कारा (Chara) म
वक सत होती ह । यु मनज से वक सत होने वाल ोटोनीमा - ाथ मक ोटोनीमा (primary
protonema) कहलाती है तथा पादप के का यक भाग से वक सत होने वाल ोटोनीमा -
वतीयक ोटोनीमा (Secondary protonema) कहलाती ह । इनक पवसि धय से कारा
पादप वक सत होते ह ( च 1.12)।
5. कंद वारा (By tubers)- कारा (Chara) क आधार पवसि धय या मूलाभास क
को शकाएं गोल टाच यु त संरचनाओं का नमाण करती है िज हे कंद (tuber) कहते ह । ये
अनुकू ल प रि थ तय म मातृ पादप से पृथक् होकर अंकुरण वारा नए पादप का नमाण करती
ह।

च 2.1 :
6. एमाइलम टार (Amylum star) कारा (Chara) पादप क आधार पव सि धय क
को शकाएं वभाजन वारा तारे स य संरचनाएं बनाती है िजनम एमाइलम (Amylum) नामक

36
टाच भरा रहता है, इ ह एमाइलम टार कहते ह । मातृ पादप से पृथक् होकर ये नव पादप
बनाते ह ( च 2.1 D)
7. प क लका वारा (By bulbils): कारा(Chara) के मू लाभास पर क लकास य
संरचनाएं उ प न होती ह िज ह प क लका (bulbil) कहते ह । येक प क लका मातृ पादप से
पृथक् होकर नव पादप का नमाण करती है ( च 2. 1A,B,C)।
2.2.2 अल गक जनन (Asexual reproduction)
अल गक जनन अनेक कार के बीजाणु ओं वारा होता है । िजनका नमाण बीजाणुधा नय म
एकल अथवा समूह म होता है । बीजाणु कशा भक अथवा अकशा भक कार के होते ह । शैवाल
मे न न कार के बीजाणु ओं वारा जनन होता है -
1. चलबीजाणु ओं वारा (By zoospores) : चलबीजाणु ग तशील कशा भकायु त ,
न न(को शका भि त र हत) तथा एक को शक संरचनाएं होती ह । थैलस क का यक को शकाओं म
ाटो ला ट के वख डन से इनका नमाण होता है । ये वकशा भक (ए टोकापस लेडोफोरा)
अथवा चतु कशा भक ( ेपनि डयोि सस, यूलो स) होते ह । वाऊचे रया म बहु के क,
बहु कशा भक संयु त चलबीजाणु (synozoospore) बनते ह ( च 2.2.4 A,B,C) ।
चलबीजाणु ओं का नमाण सामा यत: अनुकूल प रि थ तय (favourable conditions) म होता
है । इनका नमाण सामा यत: रा के समय होता है तथा बीजाणुधा नय से वमु ि त
(librated) ात: काल होती है । बीजाणुधानी से चलबीजाणु ओं क वमु ि त छ वारा अथवा
भि त के िजलेट नीकरण वारा होती है । बीजाणु धानी से मु त होने के प चात ये कु छ समय
तक तैरते ह तथा कशा भकाएं वलु त कर ि थर होकर वभाजन वारा थैलस का नमाण करते
ह ।
2. अचलबीजाणु ओं वारा (By aplanospores) : ये अकशा भक अथवा अचल होते ह जो
थल य शैवाल म अथवा जल य शैवाल म शु क प रि थ तय म उ प न होते ह । इनका
नमाण तकूल प रि थ तय म होता ह येक अचलबीजाणु अंकु रत होकर नए थैलस का
नमाण करता है । ये वा तव म (arrested) चलबीजाणु होते ह िजनम कशा भकाओं का
नमाण नह ं हो पाता है ( च 2.2.0)।
3. सु तबीजाणु ओं वारा (By hypnospores) ये अ य धक मोट भि त यु त अचन-
बीजाणु होते है िजनका नमाण तकूल प रि थ तय म होता है । तकूल प रि थ तय म ये
सु ताव था म पड़े रहते ह तथा अनुकूल प रि थ तयाँ आने पर अंकु रण वारा सीधे ह अथवा
चलबीजाणु ओं के नमाण वारा नव पादप म वक सत हो जाते ह, उदाहरण- वाऊचे रया
(Vaucheria), पे डया म(Pediastrum), लेमाइडोमोनास(Chlamydomonas) आ द ( च
2.2.8) ।
4. एकाइनीट वारा (By akinete) लोरोफाइसी के अनेक शैवाल म का यक को शकाएं
मोट भि त ा वत कर गोल या द घवृताकार एकाइनीट मे प रव तत हो जाती है । कभी कभी
इनका नमाण शृं खला म होता है । येक एकाइनीट एक नवीन पादप का नमाण करती है,

37
उदाहरण- ऊडोगो नयम (Oedogonium), वाऊचे रया (Vaucheria), यूलो स (Ulothrix)
आद (च 2.2 F,G,) ।
5. पामेला अव था (Palmella stage) जब जलाशय का जल सू खने लगता है उस समय
जनक को शका का जीव य वभािजत होकर संत त को शकाएं बनाता है । संत त को शकाएं एक
दूसरे से पृथक् न होकर मातृको शका के िजले टनीकरण से बनी ले म म प रब रहती ह । इस
कार एक कालोनी जैसी संरचना बनती है । कई बार पु ी को शकाएं पुन : वभािजत होकर पो ी
को शकाएं बनाती ह । अनुकूल प रि थ तयाँ आने पर ये को शकाएं चल या अचल बीजाणुओं का
काय करती है । उदाहरण- लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas), यूलो स (Ulothrix) आ द
(च 2.3 A)।
6. पु ी कालोनी वारा (By daughter colony) वॉलवोके स तथा लोरोकोके स म
अल गक जनन पु ीकालोनी नमाण वारा होता है । जनन को शका िजसे गोनी डयम
(gonidium) कहते ह वभाजन वारा एक कालोनी का नमाण कर दे ती ह । इस कार बनी
पु ी कॉलोनी मातृ कॉलोनी से मु त होकर वत जीवन यतीत करने लगती है । उदाहरण –
वॉलवॉ स(volvox), हाइ ो डि टयोन (Hydrodictyon) आ द ( च 2.3 C)।
7. काप पोर वारा (By Carpospores) रोडोफाइसी के सद य म जाइगोट के वभाजन
से इनका नमाण होता है । ये बीजाणु अचल होते ह तथा अंकु रण वारा वगु णत थैलस का
नमाण करते ह उदाहरण - पोल साफो नया (Polysiphonia) ( च 2.3 C)।
8. अ त: बीजाणु वारा (By endospores) बेसीले रयोफाइसी तथा साइनोफाइसी वग के
सद य क को शकाओं म अ त : बीजाणु बनते ह । उदाहरण - डम कापा (Dermocarpa),
लयूरोके सा (Pleurocapsa) आ द ( च 2.2 I)।
9. ब हबीजाणु वारा (By exospores) कमोसाइफोन (Chaemosiphon) नामक नील
ह रत शैवाल म त तु के शीष भाग पर को शका भि त फट जाती ह । इसका को शका य
वभाजन वारा गोल, अचल ब ह:बीजाणु बनाता है ( च 2.2 H)।

38
च 2.2 : अल गक जनन क व धय
10. मोनो पोर वारा (By monospores) इन बीजाणु ओं का नमाण बीजाणुधानी म एकल
होता है । ये सामा यत : रोडोफाइसी वग के सद य म बनते ह । उदाहरण - पोरफायरा
(Porphyra), पोरफायर डयम (Porphyridium), ब गया (Bangia) आ द ( च 2.3 K)।
11. टे ा पोर वारा (By tetraspores)- रोडोफाइसी वग के वगु णत सद य म अधसू ी
वभाजन (meiosis) वारा इनका नमाण होता है । येक बीजाणुधानी म (चतु क बीजाणु) का
नमाण होता है, जो अंकु रत होकर अगु णत पादप बनते ह, उदाहरण - पोल साइफ नया
(Polysiphonia) ( च 2.3 J)।

39
12. हाम पोर वारा (By hormospores) साइनोफाइसी वग के कुछ त तु क (filament)
सद य म त तु के दूर थ सरे पर ि थत हाम गो नया म व श ट मोट भि तयु त को शकाओं
का नमाण होता है । इ ह हाम बीजाणु अथवा हाम स ट (hormospor or harmocysts)
कहते ह । येक हाम बीजाणु अंकु रण वारा नए त तु का नमाण करता है ।
13. टे टो पोर वारा (By statospore) इनका नमाण बे सले रयोफाइसी तथा ाइसोफाइसी
वग के सद य म होता ह । को शका अथवा जीव य भाग के स लकायु त भि त वारा
प रब होने से इनका नमाण होता है । ये चरजीवी काय (perenating bodies) होते ह ( च
2.3 D)।
14. पु ब
ं ीजाणु वारा (By androspores) इस कार के बीजाणु ओं का नमाण ऊडोगो नयम
(oedogonium) म होता है । एक पु ब
ं ीजाणुधानी म एक पु ब
ं ीजाणु का नमाण होता है । ये
बीजाणु बहु कशा भक होते ह तथा अंकु रत होकर बौने नर (dwarf male) त तु का नमाण
करते ह ( च 2.3 B)।

च 2.3. अल गक जनन क व धयाँ

40
2.2.3 ल गक जनन (sexual reproduction)
साइनोफाइसी वग के अ त र त सभी शैवाल म ल गक जनन पाया जाता है । ल गक जनन म
यु मक (gametes) का संलयन होता ह, िजनका नमाण यु मक धा नय (gametangia) म
होता ह यु मक ाय : न न (gymnogametes) होते ह पर तु कुछ म (उदाहरण - ले
इडोमोनास) ये पतल भि त यु त (calyptogametes) होते ह । अ धकांश शैवाल म ल गक
जनन तकू ल प रि थ तय के ार भ होने के समय होता है िजसके फल व प यु मनज अथवा
न ष तांड (oospore) का नमाण होता ह जो ाय: व ामी अव था म रहता है । यह यु मनज
अनुकू ल प रि थ तय म अंकु रण वारा नव पादप बनाता है । इस कार ल गक जनन अ धकतर
शैवाल म गुणन क व ध न होकर चरका लक संरचना (perenating body) का नमाण कर
तकू ल प रि थ तय को टालने क एक व ध है ।
नील ह रत शैवाल (साइनोफाइसी वग)म जननांग नह ं पाए जाते ह तथा न ह यु मक
(gametes) का नमाण होता है । कुमार (Kumar, 1962)के अनुसार कु छ नील - ह रत शैवाल
(उदाहरण - एना सि टस सले ी पमम आ द)म पराल गक या वारा मश : पा तरण
तथा परा मण (transduction) याओं का होना पाया गया है ।
व भ न शैवाल म यु मक क आका रक तथा का यक (morphology and physiology) के
आधार पर ल गक जनन न न कार का हो सकता है ।
1. वयु मन (autogamy) जब एक को शका के दो के क संल यत होकर वगु णत
जाइगोट का नमाण करते है तो इसे वकयु मन कहते ह । चू ं क इस या म बा य जीन का
समायोजन नह होता अत: संत त म नए ल ण क उ प त नह ं होती है, उदाहरण - डायटम
(diatom)।
2. पूणयु मन (Hologamy) : अनेक एक को शक शैवाल ल गक जनन के समय एक
यु मक क तरह यवहार करने लगते है । दो भ न को शकाएं पर पर संयु त होकर यु मनज
(zygote) का नमाण कर दे ती ह उदाहरण- लेमाइडोमोनास मी डया (Chalamydomonas
media)।
3. समयु मन (Isogamy) : यह सरलतम तथा आ दम कार का ल गक जनन ह । दोन
संयु मन करने वाले यु मक कशा भक कार (motile) के तथा आका रक एवं का यक म एक
समान होते ह । इस कार इनम लंग वभेद करना स भव नह ं होता । अत : इ ह समयु मक
(isogametes) कहते ह तथा इ ह (+) व (-) भेद कहते ह । समयु मन मु यत : लोरोफाइसी
के सद य (उदाहरण- लेमाइडोमोनास नोबी (Chlamydomonas snowii), यूलो स
(Ulothrix) आ द म पाया जाता है ( च 2.4 A)।
ए टोकापस स लकु लोसस (Ectocarpus siliculosus) के चलयु मक आका रक म समान
पर तु का यक म भ न (Physiologically dissimilar) होते ह । मादा यु मक नर यु मक
क तुलना म कम स यता द शत करते ह । इन यु मको के संलयन को का यक असमयु मन
(physiological anisogamy) कहते ह । पाइरोगाइरा (spirogyra) के अकशा भक यु मक
41
भी आका रक म समान पर तु का यक म भ न होते ह । इनम एक यु मक युगमकधानी म
रहकर (मादा) सयु मन के लए दूसरे यु मक के आगमन (नर) क ती ा करता है । इस कार
पाइरोगाइरा म का यक असमयु मन पाया जाता है ।

च 2.4 : ल गक जनन - A. समयु मन B. असमयु मन


4. असमयु मन (Anisogamy) : जब संयु मन करने वाले यु मक चल कार के (motile)
तथा आकृ त व संरचना म समान पर तु आकार (आमाप) म भ नता द शत करते ह, तो इस
कार के ल गक जनन को असमयु मन (anisogamous) कहते ह । इनम नर यु मक आकार
म छोटे तथा अ धक याशील होते है लघु यु मक (male/microgametes) कहते ह जब क
मादा यु मक अपे ाकृ त बड़े तथा नि य होते ह िज ह गु यु मक
(female/microgametes) कहते ह । यु मक के आमाप म अ तर तुलना मक प से कम
अथवा अ धक (relatively small or pronounced) हो सकता है । असमयु मन के मु ख
उदाहरण ह- लेमाइडोमोनास ाऊनी (Chlamydomonas braunii) तथा ए टोकापस सेके डस
(Ectocarpus secundus) ( च 2.4 B)।
5. अ डयु मन (Oogamy) : यह सबसे गत (advanced) कार का जनन ह इसम नर
यु मक छोटा कशा भक (motile) अथवा अकशा भक (non motile) जब क मादा यु मक सदै व
अकशा भक अथवा ग तह न, बड़ा, गोल व सं चत भोजन यु त होता है । नर यु मक पुमणु

42
(antherozoid) कहलाता है तथा इनका वकास पुमणुधानी अथवा पु ध
ं ानी (antheridium) म
होता है जब क मादा यु मक अ ड (egg or ovum) कहलाता है तथा अ डधानी (oogonium)
म वक सत होता है । पु ध
ं ानी म सामा यत: अनेक पुमणुओं का नमाण होता है जब क अ डधानी
म केवल एक अ ड वक सत होता है ( च 2.5)।
अ डयु मन कार का ल गक जनन व भ न वग के अनेक सद य म पाया जाता है । उदाहरण-
लेमाइडोमोनास, का सीफेरा (Chlamydomonas coccifera), वॉलवॉ स (Volvox),
को लयोक ट (Coleochaete), कारा (chara), वाऊचे रया (Vaucheria), ऊडोगो नयम
(oedogonium) तथा पोल साइफो नया(Polysiphonia) आ द ( च 2.6 A,B)।

च 2.5. अ डयु मन क वध
पोल साइफो नया म नर यु मक अचल होते ह तथा पम शया (spermatia) कहलाते ह । मादा
जननांग फला कनुमा होता है तथा काप गो नयम (carpogonium) कहलाता है । इसके आधार
फूले हु ए भाग म अ ड (egg) ि थत होता है तथा इसका शीष थ न लकाकार भाग ाइकोगाइन
(trichagyne) कहलाता है । ाइकोगाइन का शीष ाह थल का काय करता है । पम शया
जल धारा वारा ाइकोगाइन के स पक म आता है तथा इसका के क काप गो नयम म
था त रत हो जाती है । नषेचन क इस या को पमटाइजेशन (spermatization) कहते है।

43
च 2.6 : अ डयु मन कार का ल गक जनन A. वाऊचे रया B. कारा
यु मनज (zygote) नषेचन के फल व प यु मनज (zygote) का नमाण होता है । समयु मन
(isogamy) तथा असमयु मन (anisogamy) के फल व प बने यु मनज को यु माणु
(zygospore) तथा अ डयु मन के फल व प बने यु मनज को न ष तांड (Oospore) कहते
ह।
वगु णत यु मनज मोट भि त ा वत कर लेता है तथा व ामी बीजाणु (resting spore)
कहलाता है । यह तकूल प रि थ तय म चरका लक काय (perenating body) का काय
करता ह । फयोफाइसी वग के सद य के यु मनज म व ामाव था का अभाव होता है । अनुकूल
प रि थ तय म यु मजन का अंकु रण होता है । लोरोफाइसी, कैरोफाइसी तथा जै थोफाइसी म
अंकु रण के समय अधसू ी वभाजन होता है िजसके फल व प अगु णत अव था पुन: था पत हो
जाती है । फयोफाइसी, रोडोफाइसी तथा लोरोफाइसी के समु वग म यु मनज के अंकुरण के
समय समसू ी वभाजन होते है, िजससे वगु णत पादप का नमाण होता है ।

2.3 अनु भागीय सारांश


शैवाल क जनन व धय अ य धक व भ न एवं यापक ह । अनेक शैवाल क का यक
को शकाएं बना कोई व श ट प रवतन के पादप से पृथक् होकर नए पादप का नमाण करती है ।
इसके अ त र त अ य म का यक को शकाएं या सुकाय भाग खि डत होकर वत पादप म
वक रत हो जाता है । इस कार का जनन का यक जनन कहलाता है । अल गक जनन म
वश ट कार क को शकाएं भाग लेती ह िज ह बीजाणु कहते ह । बीजाणुओं का नमाण
बीजाणुधानी नामक व श ट पा त रत को शकाओं म होता ह । सरचना एवं काय के आधार पर

44
ये वभ न कार के (जैस-े चलबीजाणु, अचलबीजाणु, सु सबीजाणु, पुबीजाणु अ त:बीजाणु
इ या द)होते ह । ल गक जनन म लंग का समावेश होता है अथात इस या म दो कार के
यु मक अथवा जनन को शकाओं का नमाण एवं संलयन (fusion) पाया जाता है िजससे
यु मनज का नमाण होता है । यु मनज के अंकु रण वारा नव पादप बनते है ।
नील ह रत शैवाल के अ त र त अ य सभी वग म ल गक जनन पाया जाता है । समयु मन
(isogamy) सबसे आ दम कार का ल गक जनन माना जाता है िजसम सयु मन करने वाले
यु मक समान आका रक के होते है । असमयु मन (anisogamy) म संयु मन करने वाले
यु मक आका रक म भ नता दशाते ह िजनम नर यु मक छोटे तथा मादा यु मक बड़े होते है ।
अ डयु मन सबसे गत कार का जनन है िजसम नर यु मक छोटा कशा भ क अथवा
अकशा भक जब क मादा यु मक सदै व अकशा भक एवं आकार म बड़ा होता है । नर व मादा
यु मक के संलयन को नषेचन कहते ह । िजसके फल व प वगु णत यु मनज का नमाण
होता है । सामा यत: यु मनज मोट भि त ा तकर कर चरका लक सरचना (perenating
body) का काय करता है तथा अनुकूल प रि थ तय के आगमन पर अंकुरण वारा नए पादप
का नमाण करता है ।
अ धकांश शैवाल म का यक तथा अल गक जनन वृ क अनुकू ल प रि थ तय म पाया जाता है
जबक ल गक जनन तकू ल प रि थ तयां ार भ होने के समय होता है । इस या म बना
न ष ता ड चरका लक संरचना के अ त र त व भ नता यु त होता है ।

2.4 शैवाल म जीवन च (Life cycle in Algae)


ल गक जनन क या म यु मक के संलयन ( नषेचन) से वगु णत यु मनज का नमाण
होता है । यु मनज या तो यूनकार वभाजन (meiosis) वारा अगु णत को शकाएं बनाता है
जो अंकु रण वारा अगु णत पादप बनाती ह अथवा यु मनज सीधे ह अंकु रत होकर वगु णत
पादप बनाता है । इस कार न मत पादप पर जननांग वक सत होते है िजनम यु मक का
नमाण होता है । कसी भी जीव म एक संत त से यु मनज के म य क व भ न अव थाओं के
म को जीवन च कहते ह । व भ न शैवाल वग म इस सामा य अव था म भ नता पाई
जाती है िजसके आधार पर शैवाल म न न कार के जीवन चक पाए जाते ह-
2.4.1 अगु णत जीवन च (Haplontic)
यूलो स वालवॉ स लेमाइडोमोनास को लयोक ट आ द म मु य पादपकाय यु मकोद भ अथात ्
अगु णत (haploid) कार का होता है । इस पर उ प न यु मकधा नय म यु मक (gametes)
उ प न होते ह । यु मक के संलयन से वगु णत यु मनज बनता है जो अधसू ी वभाजन
वारा अगु णत बीजाणु (meiospore) बनाता है । अगु णत बीजाणु अंकुरण वारा अगु णत
यु मकोद भ पादप का नमाण करते ह । समजा तक जा तय (homothallic) म बीजाणु
(meiospore) अंकु रत होकर समजा लक यु मकोद भ उ प न करते है जबक वषमजा लक
जा तय (heterothallic) म चार बीजाणुओं म से दो नर यु मकोद भ तथा दो मादा
यु मकोद भ उ प न करते ह । इस कार जीवन च म अ धकांश अव था अगु णत होती है ,

45
वगु णत अव था केवल यु मनज वारा द शत होती है । अत: इसे अगु णतक कार का
जीवन च कहते ह । इसे सबसे आ य कार (primitive) का जीवन च माना जाता है ( च
2.7)।

च 2.7: अगु णतक जीवन च का आरे ख


2.4.2 वगु णतक जीवन च (Diplontic)
लेडोफोरा लोमेराटा कालपा ायोि सस यूकस सरगैसम आ द म मु य पादप काय वगु णत
अथवा बीजाणुद भ कृ त का होता है । ल गक जनन के समय इन पर यु मकधा नयां उ प न
होती है ।
इन यु मकधा नय म यु मक बनते समय अधसू ण (meiosis) वभाजन होता है अथात
अगु णत यु मक बनते ह । नषेचन या के समय यु मक संलयन वारा वगु णत यु मनज
का नमाण हो जाता है।
तथा यु मनज समसू ी वभाजन वारा वगु णत पादप का नमाण करता है । उपरो त जीवन
च क अ धकांश अव था वगु णत होती है तथा अगु णत अव था केवल यु मको वारा ह
न पत होती है । अत : इसे वगु णत जीवन च कहते ह ( च 2. 8)।

46
च 2.8 : वगु णतक जीवन च का आरे ख
2.4.3 वगु णता गु णतक जीवन च (Diplohaplontic)
इस कार के जीवन च म दो कार के सु कायक अथवा दो का यक अव थाएं होती है - एक
अगु णत अथवा यु मकोद भ (gatetophyte) तथा दूसर वगु णत अथवा बीजाणु द भ
(sporophyte) । यु मकोद भ तथा बीजाणुद भ दोन अव थाएं जीवन च म एका तर म
म उ प न होती है अत: इस कार के जीवन च म प ट पीढ़ एका तरण (alternation of
generations) पाया जाता है । बीजाणु द भ म बीजाणु बनते समय अधसू ी वभाजन होकर
अगु णत अव था ार भ हो जाती है । अगु णत पादप (यु मकोद भ ) पर उ प न यु मक
धा नय , म यु मक उ प न होते ह तथा यु मक के संलयन से वगु णत यु मनज का नमाण
होता है । यु मनज सीधे ह वगु णत पादप (बीजाणु द भ का नमाण करता है । इस कार
जीवन चक म दोन पी ढ़य का नय मत अनु म पाया जाता है ( च 2.9)।
दोन का यक व प क आका रक के आधार पर उपरो त पीढ़ एका तरण या जीवन च दो
कार के हो सकते ह।
1. सम पी (Isomorphic) : इसे समाकृ तक - व भावी (isomorphic-diphasic)
जीवन च भी कहते ह । इस कार के जीवन च म यु मकोद भ तथा बीजाणु द भ सु काय म
आका रक वभेद नह ं पाया जाता है अथात आका रक म दोन एक समान होते ह । यह
लेडोफोरा अ वा ए टोकापस तथा डि टयोटा आ द शैवाल म पाया जाता है ।

47
च 2.9 : वगु णतागु णतक जीवन च का आरे ख
2. वषम पी (Heteromorphic) : इसे वषमाकृ त - व ावथी (heteromorphic)
जीवन च कहते ह । इसम वगु णत तथा अगु णत पादप सु काय आका रक प से असमान
होते ह । दोन म से एक सु काय आका रक प से असमान होते ह । दोन म से एक सु काय
अ धक वक सत पाया जाता है तथा वह भावी अव था कहलाती है । अ धकांश वषम पी पीढ़
एका तरण म बीजाणुद भद अव था भावी पाई जाती है उदाहरण- ले मने रया (Laminaria) ।
पर तु यूरो पोरा (Urospsa) म यु मकोद भ भावी होता है ।
2.4.4 अगु णतागु णतक जीवन च (Haplobiontic)
कुछ लाल शैवाल जैसे - पोरफायरा(Porphyra), बि नया(Bangia), नीमे लयोन (Nemalion)
तथा बै े को पमम (Batrachospermum) आ द के जीवन च म दो प ट अगु णत अव थाएं
होती है । वगु णत अव था केवल यु मनज वारा न पत होती है ।
इनम पादपकाय यु मकोद भ तथा अगु णत होता है िजस पर ल गक जननांग उ प न होते है ।
जननांग म उ प न यु मक संलयन वारा यु मनज का नमाण करते ह । यु मनज म अधसू ी
वभाजन वारा अगु णत सु कायक संरचना का नमाण होता है िजसे काप पोरोफाइट
(Carposporophyte) कहते ह । यह काप पोरोफाइट अगु णत काप बीजाणु ओं (Carpospore)
का नमाण करता है । काप बीजाणु क णन के प चात ् अंकु रण वारा यु मकोद भ का नमाण
करते ह । उपरो त जीवन च म दो अगु णत अव थाएं (यु मकोद भ एवं काप पोरोफाइट) पाई
जाती ह इस लए अगु णतागु णतक कार का जीवन च कहलाता है ( च 2.10)।

48
च 2.10 : अगु णतागु णतक जीवन च का आरे ख
2.4.5 वगु णतागु णतक जीवन च (Diplo-diplohaplontic)
पोल साइफो नया (Polysiphonia) के जीवन च म एक अगु णत तथा दो वगु णत अव थाएं
पाई जाती है । जीवन च म तीन अव थाएं होने के कारण इसे ाव थी अथवा पीढ़ य
(triphasic or trigenetic) जीवन च कहते है ।
इसक यु मकोद भ अव था म नर व मादा पादप होते ह । यु मकोद भ न मत यु मको के
संलयन से यु मनज का नमाण होता है । यु मनज सू ी वभाजन वारा काप पोरोफाइट नामक
वगु णत सुकायक संरचना का नमाण करता है । इस पर वगु णत काप बीजाणु
Carpospores) बनते ह जो अंकुरण वारा वत वगु णत सुकाय बनाते ह । इसे
टे ा पोरोफाइट (tetrasporophyte) कहते ह जो आका रक म यु मकोद भ के समान होता ह ।
टे ा पोरोफाइट पर चतु क बीजाणुधा नय म अधसू ी वभाजन वारा अगु णत चतु क बीजाणु
(tetraspores) बनते ह । चतु क बीजाणु अंकु रत होकर अगु णत यु मकोद भ पादप बनाते ह
। इस कार पोल साइफो नया के जीवन च म अगु णत पादप (यु मकोद भ का दो बीजाणुद भद
सु काय (काप पोरोफाइट व टे ा पोराफाइट)से नय मत एका तरण पाया जाता है । अत इसे
पी अ ध वगु णतक अथवा वगु णत वगु णतक (diplo diplohaplontic) कार का
जीवन च कहते ह ( च 2.11)।

49
बोध न
I. बहु वक पा मक -
1. अनु कू ल प रि थ तय म अल गक बीजाणु बनते ह ।
( अ) चलबीजाणु
( ब) अचलबीजाणु
(स) सु तबीजाणु
( द) उपरो त कोई नह ं ()
2. सवा धक वक सत ल गक जनन है ।
( अ) समयु मन
( ब) असमयु मन
( स) अ डयु मन
( द) अ नषे क जनन
3. न न म पीढ़ एका तरण पाया जाता है ।
( अ) यू लो स म
( ब) ए टोकापस म
( स) वॉलवॉ स म
( द) कारा म ()
II. अ तलघु उ तरा मक न
1. पु ं बीजाणु नमाण कस शै वाल म होता है?
-------------------------------------------------------------------------------------
2. कर ट कशा भक यु मक पाया जाता है ।
-------------------------------------------------------------------------------------
3. रोडोफाइसी के पोल साइफो नया म नर व मादा जननां ग या कहलाते है ?
-------------------------------------------------------------------------------------
4. अ नषे क जनन या है ?
-------------------------------------------------------------------------------------
5. यू स तथा सरगै स म म कस कार का जीवन च पाया जाता है ?
-------------------------------------------------------------------------------------

2.5 सारांश
उन सभी शैवाल मे जहां ल गक जनन पाया जाता है जीवन-चक म दो ाव थाएं पाई जाती है
अगु णत तथा वगु णत । अगु णत अव था अधसू ी वभाजन के प चात उ प न होती है ।
व भ न शैवाल म यु मनज के अंकुरण के समय अथवा यु मक। नमाण के समय अथवा बीजाणु
नमाण के समय अधसू ी वभाजन पाया जाता ह ।

50
बीजाणुद भद का नमाण यु मनज म समसू ी वभाजन के फल व प जब क यु मकोद भद का
वकास यु मनज म अधसू ी वभाजन अथवा बीजाणु द भ म बीजाणु नमाण के समय अधसू ी
वभाजन से बने बीजाणु ओं वारा होता है इस कार ल गक जनन के कारण के क संगठन म
गुणसू क सं या वगु णत अथवा अगु णत होती रहती है । इस कार जीवन च म
वगु णत एवं अगु णत होती रहती है । इस कार जीवन च म वगु णत एवं अगु णत
अव थाओं के नय मत अनु म को पीढ़ एका तरण (alteration of generations) कहते ह ।
उपरो त वणन म अगु णतक जीवनच म पीढ़ एका तरण का अभाव होता है य क इसम
वगु णत अव था केवल यु मनज वारा न पत होती है जो भावी अव था नह ह । इसी
कार वगु णतक जीवन च म अगु णत अव था अ पका लक यु मक वारा न पत होती है
। अत: पी ढ़य का एका तरण नह होता । अ य सभी कार के जीवन च म (उदाहरण-
वगु णतागु णतक , अगु णतागु णतक तथा वगु णत वगु णतागु णतक दोन अथवा तीन
ाव थाएं मु ख अव थाओं के प मे पाई जाती है । अत: इनम प ट पी ढ़य का एका तरण
पाया जाता है ।

च 2.11 : वगु णत वगु णतागु णतक जीवन च का आरे ख ।

2.6 श दावल (Glossary)


1. समयु मन (isogamy) : समान आकार के चलयु मक का संलयन ।

51
2. असमयु मन (anisogamy) : असमान आकार के चलयु मक का संलयन ।
3. अ डयु मन (Oogamy) : छोटे कशा भक नरयु मक तथा बड़े अकशा भक मादा यु मक का
संलयन ।
4. पूणयु मन (hologamy) : एक को शक शैवाल जब यु मक क तरह यवहार कर संलयन
करते है ।
5. वयु मन (Autogamy) : एक को शका के दो के क का संलयन ।
6. सयु मन (Conjugation) : अमीबीय ग तह न यु मको का संलयन ।
7. समजा लक (Homothallic) :एक सु काय पर न मत यु मको का संलयन ।
8. वषमजा लक (Heterothallic) :दो अलग सुकाय पर न मत यु मक का संलयन ।
9. सम पी (isomorphic) : जीवन च म दोन सुकाय अथवा ाव थाएं आका रक प से
समान होते ह ।
10. वषम पी (heteromorphic) : जीवन च म दोन सु काय अ थक ाव थाएं आका रक
प से एक दूसरे से भ न होती है ।

2.7 संदभ थ
चैपमेन एवं चैपमेन : लाइफ ह ज इन ए गी
श : चर एंड र ोड सन इन ए गी
व श ठ : शैवाल
संह, पांड,े जैन : शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा
वेद , शमा, धनकड़ : शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा

2.8 बोध न के उ तर
I. बहु वक पा मक
1. (अ),2. (स), 3. (ब)
II. अ तलधु तरा मक
1. ऊडोगो नयम
2. ऊडोगो नयम
3. पमेटेि जयम एवं काप गो नयम ।
4. जब यु मक बना संलयन के यु मनज क तरह यवहार करता है ।
5. वगु णतक कार ।

2.9 अ यास न
1. शैवाल म पाई जाने वाल व भ न जनन व धय पर लेख ल खए ।
2. शैवाल म बनने वाले व भ न कार के बीजाणु ओं का वणन क िजए ।
3. शैवाल मे पाए जाने वाले व भ न जीवन क का वणन क िजए ।
4. शैवाल म पीढ़ एका तरणो का वणन क िजए ।

52
5. न न पर ट पणी लखे-.
(अ) शवाल म का यक वधन क व धयां ।
(ब) शैवाल मे ल गक जनन क व भ नता ।
(स) सम पी एवं वषम पी पीढ़ एका तरण ।

53
इकाई 3 : शैवाल का वग करण (Classification of Algae)
इकाई संरचना
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 वग करण का आधार
3.3 व भ न वग करण त
3.3.1 श वारा तु त वग करण
3.3.2 ि मथ वारा तु त वग करण
3.3.3 राउ ड वारा तु त वग करण
3.3.4 चैपमेन व चैपमेन वारा तु त वग करण
3.4 मु ख वग के वभेदा मक ल ण
3.4.1 लोरोफाइसी
3.4.2 जै थोफाइसी
3.4.3 फयोफाइसी
3.4.4 रोडोफाइसी
3.4.5 म सोफाइसी
3.5 सारांश
3.6 श दावल
3.7 संदभ थ
3.8 बोध न के उ तर
3.9 अ यासाथ न

3.0 उ े य (Objective)
इकाई का उ े य
1. शैवाल के वग करण क वृि तय क जानकार ा त करना तथा इनके आधार पर व भ न
वग म वग कृ त करना।
2. मु ख वग के ल ण का नधारण कर व भ न वग के म य जा तवृ तीय स ब ध था पत
करना तथा शैवाल समू ह क वैधता का आकलन करना ।

3.1 तावना (Introduction)


शैवाल एक बड़ा एवं वषमांगी पादप का समू ह है, िजनके थैलस संगठन, वणक संयोजन,
को शका भि त के रसाय नक संगठन, उपापचयी उ पाद एवं जीवन च म व वधता पाई जाती
है । इनके मब अ ययन के लए ाकृ तक ब धु ता के आधार पर इ ह व भ न वग म
वग कृ त करना आव यक है । ल नयस ने सव थम 'ए गी' (Algae) श द का योग कया था,
िजसम उ ह ने शैवाल, लाइकेन तथा थैलाभ लवरवट को सि म लत कया था । ए.एल.डी. जु यु

54
(1789) ने शैवाल को अ य पादप से पृथक कर इनका वतमान व प नधा रत कया । अनेक
वष तक वणक संगठन के आधार पर शैवाल म केवल चार वग ह माने जाते थे । ये वग ह-
सायनोफाइसी (नील ह रत शैवाल), लोरोफाइसी (ह रत शैवाल), फयोफाइसी (भूरे शैवाल)तथा
रोडोफाइसी (लाल शैवाल)। बाउचर (1803) ने सव थम जीवन च के आधार पर शैवाल को
वग कृ त कया । इसके प चात ् सी.ए. आगाथ (1824), लू थर (1899), ए गलर एवं ा टल
(1912), आ टमा स(1922) आ द ने शैवाल क संरचना, कशा भका तथा वणक के आधार पर
इ ह वग कृ त कया । पा चर (1937) ने शैवाल के आधु नक वग करण क आधार शला रखी ।
उ ह ने शैवाल समू ह को जा तवृ तीय एवं अ तस ब ध के आधार पर वग कृ त कया । इसके
प चात ् अनेक शैवाल व वारा अलग- अलग वग करण तु त कये गये ।

3.2 व गकरण का आधार अथवा वृि तयाँ (Criteria of


Classification)
शैवाल के अ ययन से जैस-े जैसे व तृत जानका रयाँ ा त होती ग , उनके वग करण के आधार
भी समय-समय पर प रव तत होते गये । आधु नक समय म इनम वणक के संगठन, को शका
भि त क रसाय नक कृ त, कशा भकाओं क संरचना, थैलस संगठन तथा जनन व धय को
आधार मान कर व भ न वै ा नक ने अलग-अलग वग करण तु त कए ह । वै ा नक वारा
अपने वग करण म यथा स भव य न कया गया क शैवाल का जा तवृतीय एवं ब धु ता
आधा रत वगींकरण कया जा सके । िजन ल ण के आधार पर वतमान म शैवाल को वग कृ त
कया जाता है, उ ह वग करण क आधु नक वृि तयाँ कहते ह । शैवाल के वग करण के आधार
अथवा वृ तयाँ न न कार ह :
1. काश सं लेषी वणक का संगठन एवं मा ा ।
2. को शका भि त का रसाय नक संगठन ।
3. शैवाल को शकाओं म सं चत भोजन क कृ त ।
4. को शक य संगठन (संग ठत के क क उपि थत/ अनुपि थत) ।
5. कशा भकाओं क सं या, कृ त एवं ि थ त ।
6. थैलस संगठन एवं का यक ।
7. पा रि थ तक य वतरण एवं आवास ।
8. जनन व धयाँ एवं जीवन च ।

3.3 वभ न वग करण त (Different systems of


Classification)
समय- समय पर तु त शैवाल के मु ख वग करण न न कार ह

55
3.3.1 श वारा तुत वग करण:
शैवाल का व तृत एवं आ धका रक वग करण सव थम एफ.ई. श (F.E. Fritsch) वारा
तु त कया गया था। श का वग करण मु यत: न न त य पर आधा रत है
(i) वण क संगठन,
(ii) सं चत भो य पदाथ एवं
(iii) कशा भका क कार ।
उपरो त मुख ल ण एवं कु छ सू म ल ण (को शका भि त का संगठन, आका रक एवं जनन
व धय ) के आधार पर श ने शैवाल को 12 वग म वभ त कया । उ ह ने जी वत सद य
को 11 वग म वभ त कया तथा सभी जीव मी शैवाल को 12 वग म रखा । ये वग न न
कार ह
(1) लोरोफाइसी (Chlorophyceae)
(2) जे थोफाइसी (Xanthophyceae)
(3) ाइसोफाइसी (Chrysophyceae)
(4) बे सले रयोफाइसी (Bacillariophyceae)
(5) टोफाइसी (Cryptophyceae)
(6) डाइनोफाइसी (Dinophyceae)
(7) लोरोमोने डनी (chloromonadineae)
(8) यू ल नाइनी (Euglenineae)
(9) फयोफाइसी (Phaeophyceae)
(10) रोडोफाइसी (Rhodophyceae)
(11) म सोफाइसी (Myxophyceae)
(12) नमेटोफाइसी (Nematophyceae)
3.3.2 ि मथ वारा तु त वग करण :
गलबट एम. ि मथ (G.M. Smith, 1955) ने शैवाल का वग करण का यक व जनन संरचनाओं
के ल ण के आधार पर कया । उ ह ने समान ल ण दशाने वाले कई वग को एक वभाग
(Division) के अ तगत रखा । उ ह ने शैवाल को वभाग एवं 14 वग म वभ त कया ।
ि मथ के वग करण क प रे खा न न कार है :

56
वभाग (Division) वग (Class)
(1) लोरोफाइटा (chlorophyta) 1. लोरोफाइसी (Chlorophyceae)
2. कैरोफाइसी
(2) यू ल नोफाइटा (Euglenophyta) 1. यू ल नोफाइसी (Euglenophyceae)
(3) पायरोफाइटा (Pyrrophyta) 1. डेसमोफाइसी (Desmophyceae)
2. डायनोफाइसी (Dinophyceae)
3. टोफाइसी (cryptophyceae)
(4) ाइसोफाइटा (Chrysophyta) 1. जै थोफाइसी (Xanthophyceae)
2. बै सले रयोफाइसी (Bacillariophyceae)
3. ाइसोफाइसी (Chrysophyceae)
(5) फयोफाइटा (Phaeophyta) 1. आइसोजेनरे ट (Isogeneratae)
2. हटरोजेनरे ट (Hetrogeneratae)
3. साइ लो पोर (Cyclosporeae)
(6) रोडोफाइटा (Rhodophyceae) 1. रोडोफाइसी (Rhodophyceae)
(7) सायनोफाइटा(Cyanophyta) 1. म सोफाइसी (Myxophyceae)

3.3.3 राउ ड वारा तुत वगींकरण:


एफ. ई. राउ ड (F. E. Round, 1965) ने को शक य संगठन, थैलस संरचना, वणक एवं
कशा भकाओं के आधार पर शैवाल को वग कृ त कया । उ ह ने को शक य संगठन के आधार पर
''दो मु ख समू ह ोके रयोटा एवं यूके रयोटा म वभ त कया । अ य ल ण के आधार पर
ोके रयोटा को एक तथा यूके रयोटा को 7 फाइलम म वभ त कया । राउ ड के वग करण क
प रे खा न न कार है:
मु ख समू ह फाइलम वग
(Major Group) (Phylum) (class)
A. ोके रयोटा (1) सायनोफाइटा 1. सायनोफाइसी
(Prokaroyta) (Cyanophyta)
B. यूके रयोटा (1) यू ल नोफाइटा 1. यू ल नोफाइसी
(Eukaryota) (Euglenophyta)
(2) लोरोफाइटा 1. लोरोफाइसी
(Chlorophyta) 2. ायोि सडोफाइसी
3. क जु गेटोफाइसी
4. उडोगो नयोफाइसी
5. लोरोफाइसी
6. ेसीनोफाइसी

57
(3) ाइसोफाइटा 1. जे थोफाइसी
(Chrysophyta) 2. ाइसोफाइसी
3. हे टोफाइसी
4. बे सले रयोफाइसी
(4) पायरोफाइटा 1. डे मोफाइसी
(Pyrrophyta) 2. डाइनोफाइसी
(5) फयोफाइटा 1. फयोफाइसी
(Phaeophyta)
(6) रोडोफाइटा 1. रोडोफाइसी
(Rhodophyta)
(7) टोफाइटा 1. टोफ़ाइसी
(Cryptophyta)
3.3.4 चैपमेन एवं चैपमेन वारा तु त वग करण
बी. जे. चैपमेन एवं डी. जे. चैपमेन (V.J. Chapman & D. J. Chapman, 1973) ने भी
राउ ड (1965) तथा टे सन (1962) के समान शैवाल को के क संगठन के आधार पर
ोके रयोटा एवं यूके रयोटा समूह म वभािजत कया है । चैपमेन एवं चैपमेन के वग करण क
परे खा न न कार है।
मु ख समू ह भाग (Division) वग (class)
(Major Group)
A. ोके रयोटा (1) सायनोफाइटा 1. सायनोफाइसी
(Prokaroyta) (Cyanophyta)

B. यूके रयोटा (1) रोड़ोफाइटा 1. रोड़ोफाइसी


(Eukaryota) (Rhodophyta)
(2) लोरोफाइटा 1. लोरोफाइसी
(Chlorophyta) 2. ेसीन फाइसी
3. केरोफाइसी
(3) यू ल नोफाइटा 1. यू ल नोफाइसी
(Euglenophyta)
(4) लोरोमोनेडोफाइटा 1. लोरोमोनेडोफाइसी
(Cloromonadophyta)

(5) जै थोफाइटा 1. जे थोफाइसी


(Xanthophyta)

58
(6) बे सले रयोफाइटा 1. बे सले रयोफाइसी
(Bacillariophyta)
(7) ाइसोफाइटा 1. ाइसोफाइसी
(Chrysophyta) 2. है टोफाइसी
(8) फयोफाइटा 1. फयोफाइसी
(Phaeophyta)
(9) पायरोफाइटा 1. डाइनोफाइसी
(Pyrrophyta) 2. डे मोफाइसी
(10) टोफाइटा 1. टोफ़ाइसी
(Cryptophyta)

3.4 मु ख वग के वभेदक ल ण (Distinguishing Characters


of major classes)
3.4.1 लोरोफाइसी (Chlorophyceae) :
(i) इस वग के शैवाल हरे शैवाल कहलाते ह । मु ख वणक लोरो फल - a, लोरो फल - b,
जै थो फल तथा केरोट न पाए जाते ह ।
(ii) इनका काश सं लेषी भो य पदाथ टाच होता है ।
(iii) सामा यत: लोरो ला ट पर एक या अ धक पाय रनॉइड उपि थत होते ह, जो टाच नमाण
एवं सं हण का काय करते ह ।
(iv) चल को शकाओं म कशा भकाएं समान आकार क , तोद एवं अ ि थत होती है ।
(v) को शका भि त से यूलोज एवं पेि टन क बनी होती है ।
(vi) ल गक जनन समयु मक (Isogamy) से वषमयु मक (Oogamy) कार का होता है ।
जीवन च ाय : अगु णतक (Haplontic) कार का होता है ।
(vii) अ धकांश जा तयाँ अलवणी जल (fresh water) म पाई जाती ह ।
8.4.2 जै थोफाइसी (Xanthophyceae):
(i) ये शैवाल हरे - पीले शैवाल कहलाते ह । इनम लोरो फल - a, केरोट न तथा जे थो फल
वणक उपि थत होते ह । जै थो फल क बहु लता के कारण इनका रं ग हरा - पीला होता है ।
(ii) सं चत भो य पदाथ तेल अथवा यूको सन होता है । टाच अनुपि थत होता है ।
(iii) ोमेटोफोर पर पाय रनॉइड अनुपि थत होते ह ।
(iv) चलको शकाएँ वषमकशा भक अथवा हे ोको ट कार क होती ह । एक कशा भका छोटा
तोद कार का तथा दूसरा ल बा कू च कार का होता है

59
(v) को शका भि त म पेि टन का बाहु य होता है । कुछ सद य म अध का अ त यापन पाया
जाता है ।
(vi) ल गक जनन यदाकदा ह पाया जाता है । जीवन च ाय : अगु णतक (haplontic) कार
का होता है ।
(vii) अ धकांश जा तयाँ अलवण जल य, कुछ समु , यदाकदा थल य होती ह ।
3.4.3 फयोफाइसी (Phaeophyceae) :
(i) इ ह भूरे शैवाल भी कहते ह । मु ख वणक लोरो फल - a, लोरो फल - c, कैरोट न एवं
जै थो फल पाए जाते ह । इनम यूकोजेि थन नामक जै थो फल क बहु लता के कारण इनका
रं ग भूरा होता है ।
(ii) सं चत भोजन एलकोहल, मै नटाल तथा ले मने रन होते ह ।
(iii) पाय ररनाइड एकल, संव ृत एवं ोमेटोफोर म धँसे हु ए होते ह ।
(iv) चलको शकाएँ नाशपाती के आकार क तथा वषमकशा भक होती ह । कशा भकाएँ पा व
ि थत होती ह ।
(v) को शका भि त म एि ज नक एवं यू स नक अ ल उपि थत होता है ।
(vi) ल गक जनन समयु मक से वषमयु मक तक होता है तथा जाइगोट म व ाम काल नह ं
पाया जाता है ।
(vii) जीवन च व भ नता दशाता है तथा प ट पीढ़ एका तरण पाया जाता है ।
(viii) अ धकतर सद य समु होते ह ।
3.4.4 रोडोफाइसी (Rhodophyceae):
(i) इ ह लाल शैवाल भी कहते ह । इनके ोमेटोफोर म r- फायकोसाय नन, r-फाइकोइर न
नामक फाइको ब लन, लोरो फल- a, लोरो फल- d, केरोट न व जै थो फल नामक वणक
पाए जाते ह । फाइको बल न (r-फाइकोर न) के कारण ये लाल रं ग के होते ह ।
(ii) सं चत भो य पदाथ पॉल सैकेराइड, लो र डयन टाच तथा लो रडोसाइड नामक शकरा के
प म होता है ।
(iii) ोमेटोफोर म पाय रनॉइड का अभाव होता है ।
(iv) कशा भकाओं का सवथा अभाव होता है ।
(v) ल गक जनन वक सत वषमयु मक कार का होता है तथा जीवन च म प ट पीढ़
एका तरण पाया जाता है।
(vi) सामा यत: समु जल म मलते ह । कुछ जा तयाँ अलवणी जल म पाई जाती ह ।
3.4.5 म सोफाइसी (Myxophyceae):
(i) इ ह नील-ह रत शैवाल भी कहते ह । इनम कलाब लवक अनुपि थत होते ह । वणक
थाइलेकाइ स म पाए जाते ह । मु य वणक लोरो फल- a, केरोट न जै थो फल तथा c-
फाइकोसाय नन एवं c-फाइकोइ र न नामक फाइको बल न होते ह ।
(ii) सं चत भोजन वशेष कार के म ड ( म सोफाइ सन टाच) तथा ोट न यु त कण
(सायनोफाइ सयन कण ) के प म पाया जाता है ।

60
(iii) को शका भि त यूकोपे टाइड (Mucopeptide) क बनी होती है ।
(iv) कशा भकाओं का अभाव होता है ।
(v) ल गक जनन अनुपि थत होता है ।
(vi) अ धकांश सद य अलवण जल य ह, पर तु कुछ सद य समु एवं थल य आवास म भी
पाए जाते ह ।

बोध न :
I. बहु वक पी न :
1. न न म कस वग के शै वाल म कशा भकाएँ अनु प ि थत होती ह
(अ) ह रत शै वाल
( ब) भू रे शै वाल
( स) पीत-ह रत शै वाल
( द) लाल शै वाल ( )
2. भू रे शै वाल म धानता होती है .
( अ) के रोट न
( ब) लोरो फल- a
( स) फायकोसाय नन
( द) यू कोजै ि थन ( )
II. अ तलधु तरा मक न :
1. श के वग करण के मु ख आधार बताइये ।
------------------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------------------
2. शै वाल के दो वग के नाम बताइये , िजनम कशा भक अनु प ि थत होती है ।
------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------- ----------------------------
3. ोके रयो टक शै वाल को कस वग म रखा गया है ।
------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------- ----------------------------

3.5 सारांश (Conclusion)


शैवाल सरलतम पादप का वशाल समू ह है । शैवाल को को शका भि त के रासाय नक संगठन,
के क संगठन, कशा भकाओं क ि थ त एवं कार, वणक तथा जनन अंग म भ नता के
आधार पर कई वग (जैसे लोरोफाइसी, यू ल नोफाइसी, ाइसोफाइसी, डाइनोफाइसी,
जै थोफाइसी, बेसीले रयोफाइसी, टोफाइसी, फयोफाइसी,रोडोफाइसी तथा सायनोफाइसी आ द)

61
म वभ त कया गया है । पर तु कु छ वग म अ तर इतने प ट होते ह क शैवाल व इ हे
वभाग (Division) का दजा दया जाना अ धक उपयु त मानते ह । इसके अ त र त कु छ वग
के ल ण मे इतनी अ धक समानता है क उ ह एक वभाग के अ तगत रखना उ चत होगा ।
इस कार अ धकतर शैवाल व ने शैवाल समूह को कई वभाग (Divisions) म वभ त कया
है तथा येक वभाग म एक या अ धक वग (Classes) को सि म लत कया गया है । ये
वै ा नक इन वभाग को पादप जगत के अ य वभाग के समक रखना अ धक उपयु त मानते
ह ।
शैवाल के व भ न वभाग म जा तवृ तीय वकास (Phylogenetic evolution) एक-दूसरे से
वत तीत होता है तथा इनके पूवज (ancestors) एक अथवा भ न- भ न थे, अनुमान
लगाना क ठन है । इसी कार कौन सा शैवाल समूह सब से पूव वक सत हु आ, यहाँ नि चत
करना भी स भव नह ं है । सायनोफाइसी म को शका संरचना तथा कालोनी व प सरल कार
का होने के आधार पर उ ह अ य वग क तुलना म पूव वक सत हु आ वग माना जाना क ठन
है। इसी कार ाइसोफाइसी, पायरोफाइसी तथा यू ल नोफाइसी म का यक संरचना तथा जनन
व ध सरलतम कार क होती है । इसके आधार पर इ ह भी आ दम कहना क ठन है ।
इसके वपर त रोडोफाइसी व फयोफाइसी के सद य तुलना मक प से बड़े तथा बा य व
आंत रक ज टलताओं यु त होते ह, पर तु इ ह भी वक सत मानने म क ठनाई है, य क इनके
कसी भी सद य से थल य पादप के वकास क वृि त कट नह ं होती । इस कार शैवाल के
व भ न वग के म य पूण प से जा तवृ तीय स ब ध था पत करना स भव नह ं है । शैवाल
के व भ न वभाग या वग म एक कार क संरचनाओं, का यक तथा जनन याओं का
पाया जाना इस मत क पुि ट करता है जैसे -
1. लोरोफाइसी एवं यू ल नोफाइसी वग म लोरो फल- b पाया जाता है ।
2. फयोफाइसी, बेसीले रयोफाइसी, ाइसोफाइसी तथा जै थोफाइसी वग म लो फल- c
उपि थत होता है ।
3. साइनोफाइसी, टोफाइसी तथा रोडोफाइसी वग म बाइलो ोट न पाए जाते ह ।
4. वाउचे रया म लोरोफाइसी तथा जे थोफाइसी दोन के ल ण पाए जाते ह ।
5. साइफो नन तथा साइफोनोजेि थन नामक जै थो फल वणक केवल लोरोफाइसी के
साइफोने स गण म पाए जाते ह।
6. लोरोफाइसी के कटोफोरे स गण के सद य म अ डधानी (Oogonium) रोडोफाइसी क
काप गो नयम (Carpogonium) से समानता दशाती है ।
7. फयोफाइसी म एकको शक सद य का अभाव होता है, जब क अ य वग म एकको शक
सद य भी पाए जाते ह।
इस कार व भ न वग म आपसी समानताएँ तथा असमानताएँ जा तवृ तीय वकास क दशा को
इं गत करने म असमथ है ।

62
3.6 श दावल (Terminology)
1. लोरो ला ट (Chloroplast) : वे लवक, िजनम लोरो फल - a व लोरो फल - b दोन
उपि थत ह ।
2. ोमेटोफोर (Chromatophore) : वे लवक, िजनम लोरो फल - b अनुपि थत हो ।
3. कूच कशा भका (Tinsel Flagella) : वे कशा भकाएँ, िजन पर उपांग उपि थत होते ह ।
4. तोद कशा भका (Whiplash Flagella) : वे कशा भकाएँ, िजनक बा य सतह चकनी
तथा उपांग र हत होती है।
5. ोके रयोट (Prokaryote) : वे पादप या जीव, िजनक को शकाओं म सु संग ठत के क
अनुपि थत होता है ।
6. (Eukaryote) : वे पादप या जीव, िजनक को शकाओं म सु संग ठत के क पाया जाता है ।

3.7 संदभ ंथ (Reference Books)


1. श : ' चर ए ड र ोड शन ऑफ ए गी'
2. श : ' ेजे ट डे लासी फकेशन ऑफ ए गी'
3. पेपनफस : ' लासी फकेशन ऑफ ए गी'
4. ि मथ : ' टोगे मक बोटनी भाग - 1'
5. व श ठ : 'शैवाल'
6. संह, पा डे, जैन : 'शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा'
7. वेद , शमा, धनखड : 'शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा'

3.8 बोध न के उ तर
I. 1 (द) 2. (द)
II. 1. वणक संगठन, सं चत भोजन क कृ त एवं कशा भका कार
2. म सोफाइसी एवं रोडोफाइसी
3. म सोफाइसी (नील-ह रत शैवाल)

3.9 अ यासाथ न (Questions)


1. शैवाल के वग करण के मु ख आधार बताइये ।
2. श वारा तु त शैवाल वग करण का आधार एवं वग करण क परे खा का वणन क िजये।
3. लोरोफाइसी फयोफाइसी रोडोफाइसी तथा म सोफाइसी वग के वभेदा मक ल ण का
वणन क िजये ।
4. श के वग करण क परे खा बताइये तथा व भ न शैवाल वग के म य जा तवृ तीय
स ब ध बताइये ।

63
इकाई 4 : शैवाल का आ थक मह व (Economic
Importance of Algae)
इकाई संरचना
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 शैवाल का लाभदायक मह व
4.2.1 भोजन के प म
4.2.2 कृ ष म मह व
4.2.3 दवाइय म मह व
4.2.4 उ योग म मह व
4.3 शैवाल क हा नकारक याएँ
4.4 सारांश
4.5 श दावल
4.6 बोध न के उ तर
4.7 संदभ थ

4.8 अ यास काय

4.0 उ े य:
इस इकाई म आप यह जान सकगे क शैवाल का हमारे दै नक जीवन म या मह व है । हम
जानते ह क पौध के बना जीवन स भव ह नह ं है तथा शैवाल बहु त सू म पौधे ह तो ह । ये
अकाब नक पदाथ को काब नक पदाथ म बदलते ह व काश सं लेषण क या वारा वायु क
CO2 तथा पानी को शि तशाल भो य पदाथ म प रव तत करने क मता रखते ह । इस
इकाई म हम इनके लाभदायक एवं कु छ हा नकारक भाव का अ ययन करगे ।

4.1 तावना
'ए गी' (Algae) एक ले टन श द है, िजसका अथ है, समु घास (sea weed) पर तु आज
इसका वन प त जगत म बहु त बड़ा मह व है । इस समू ह म एक को शक य पौधे से लेकर बड़े -
बड़े ज टल के स (Kelps) तक सि म लत ह । यह समु घास अथवा खरपतवार कहलाने वाला
समू ह सोडा, स लका, पोटाश, ोमीन व आयोडीन से भरपूर होता ह । इसके अलावा व व म
90% काश सं लेषण क या शैवाल वारा स प न क जाती है । अत: ऐसा कहना
अ त योि त नह ं होगी क सरलतम रचना वाले शैवाल वारा होने वाल काश सं लेषण क
या स प न होने से ह धरती पर जीवन का वकास स भव हो सका है ।
शैवाल अपने लाभदायक उपयोग के फल व प हमारे दै नक जीवन को भा वत करते ह, य य प
इसके कु छ सद य हा नकारक भाव भी डालते ह । इन सभी का हम व तार से आगे वणन
करगे ।

64
4.2 शैवाल का लाभदायक मह व (Beneficial Important of
Algae)
4.2.1 भोजन के प म:
(i) मानव- भोजन के प म (As human food)
शैवाल का सबसे बड़ मह व यह है क मनु य ाकृ तक समु शैवाल को भोजन के प म योग
करता है । आज मनु य समु शैवाल से काब हाइ े स, वटा म स व अकाब नक पदाथ जैसे
आयोडीन ा त कर सकता है ।
लाल तथा भूरे शैवाल क लगभग 70 जा तय का योग ल बे समय से मनु य कर रहा है ।
अनेक दे श जैसे जापान, चीन, इ डो न शया, फ लपाइन व द णी अमे रका के लोग शैवाल के
सद य को सीधा भोजन के प म योग करते ह।
वै ा नक ने यह स कर दया है क लोरे ला (Chlorella) म जो एक हरा शैवाल है ोट न
तथा ल पड चु र मा ा म होते ह । साथ ह अ य भोजन क अपे ा इसम वटा मन भी बहु त
अ धक होते ह । इसको सीधे भोजन के प म उपयोग करने के य न कये जा रहे ह ।
भोजन के लए लाल शैवाल (Red Algae) बहु त अ छा साधन है । पोरफाइरा परफोरे टा
(Porphyra perforate) तथा पी. टे नेरा (P. tenera) के लफो नया व चीन म खाये जाते ह ।
इसी कार को डयम (Codium), अ वा (Ulva), एले रया (Alaria), सारगासम (Sargassum)
आ द समु शैवाल भी भोजन के प म यु त होते ह । पोरफाइरा म तो ोट न लगभग 50%,
काब हाइ ेट लगभग 50% तथा अ छ मा ा म वटा मन A, B, C तथा E पाये जाते ह ।
ले मने रया सैके रना (Laminaria) से को बू व मोनो ोमा से ऐनोर (Anori) भो य पदाथ
बनाया जाता है । एक नमक न भो य पदाथ, िजसे 'ड स' (Dules) कहते ह । रो डमे नया
(Rhodymenia) से बनाया जाता है । कॉटलै ड म इसे त बाकू क पि तय क तरह चबाया
जाता है ।
चीन म एक नीलह रत शैवाल नो टॉक क यून (Nostoc commune) से रोम स जी (Hair
Vegetable) बनाई जाती है । कॉटलै ड म अ वा लै टू का (Ulva lactuca) का सलाद बनाकर
खाया जाता है । इसी कार अ य शैवाल लौरे ि सया पने ट फडा (Laureucia pinnatifida) का
मसाले के प म योग कया जाता है । को स पस (Chondrus crispus) को सुखाकर
जैल (Jelly) बनाने के काम म लया जाता है । इससे कैरागीन (Carageen) नामक भो य
पदाथ भी बनाया जाता है ।
द णी भारत म उडोगो नयम (Oedogonium) और पाईरोगाइरा (Spirogyra) से हरा लेवर
नामक भो य पदाथ बनाया जाता है । एक और अ त मह वपूण बात यह है क लोरे ला
(Chlorella) का उपयोग आज अंत र या य के भोजन के प म कया जा रहा है । अंत र
यान म जै वक अप श ट पर इसका संवधन करके ऑ सीजन तथा भोजन ा त कये जा सकते
ह ।

65
केवल उपयु त शैवाल ह भोजन के लए मह व नह ं रखते वरन ् बहु त से शैवाल ऐसी भी ह, जो
भोजन के य ोत न होकर अ य ोत होती ह (Indirect Source of Food)। अनेक
छोटे -छोटे जीव ज तु शैवाल को भोजन के प म हण करते ह । इन छोटे जीव ज तुओं को
बड़ी मछ लयाँ खाती ह तथा इन मछ लय को मनु य भोजन के प म यु त करता है । इस
कार शैवाल हमार खा य शृंखला (food chain) के वारा अ य प से खाने के काम आती
है ।
(ii) पशु भोजन के प म (As fodder)
समु शैवाल (Marine Seaweeds) को अनेक दे श म भू से अथवा चारे क तरह पशु ओं को
खलाया जाता है । समु खरपतवार कहलाने वाले लै मने रया (Laminaria), यूकस (Fucus),
ए को फ लम (Ascophyllum), सारगासम (Sargassum) आ द को डेनमाक, - ा स, चीन,
कॉटलै ड, अमे रका आ द म पशु ओं को चारे के प म खलाते ह । ऐसा पाया गया है क िजन
मु गय को ए को फ लम यूकस म त खा य दया गया, उनके अ ड म आयोडीन, चु र मा ा
म मल । इसी कार समु शैवाल म त भोजन दे ने पर पशुओं के दूध म फैट अ धक पाया
गया । पशु भोजन म माइ ो सि टस का सवा धक योग होता है, य क इसम वटा मन 4 व 8
चु र मा ा म होता है । जापान म पे वे शया को गाय को खलाया जाता है । इरा कार यह
दे खा गया क हरे शैवाल के अ त र त भूरे व लाल शैवाल पशु भोजन के लए हर कार से
उपयु त है।
(iii) मछ लय तथा जल य जीव के भोजन के प म
(As fodder for fish and aquatic animals)
समु अथवा अलवणीय जल म रहने वाले जीव शैवाल को भोजन के प म खाते ह । अलवणीय
जल म रहने वाले लेडोफोरा (Cladophora), पथोफोरा (Pithophora) व उडोगो नयम
(Oedogonium) को मछ लयाँ खाती ह । समु म डाइएट स का योग भी जीव भोजन के प
म करते है ।
4.2.2 कृ ष म मह व (Important in Agriculture)
अ य उपयोग के अलावा शैवाल का कृ ष के े म बहु त अ धक मह व है । जैसा क हम सब
जानते ह क हरे पौधे भू म से ख नज लवण तथा अमो नयम यौ गक के प म नाइ ोजन हण
करते ह । कुछ शैवाल वायुम डल क नाइ ोजन का ि थर करण (N2 - Fixation) करते ह । यह
काय आ सलेटो रया ि सपस (Oscillatoria principus), आ. फॉरमोसा (O. formosa),
एनाबीना (Anabaena) तथा फॉरमी डयम (Phormedium) वारा कया जाता है ।
कु छ नील हर शैवाल जैसे नॉ टॉक (Nostoc) तथा एना बना (Anabaena) उ च ेणी के पौध
के ऊतक म रहते ह जैस,े ए थो सरोस, एजोला तथा साइकस म । ये वायुम डल क नाइ ोजन
का ि थर करण करके सहजीवन का उदाहरण तुत करते ह ।
समु कनारे के पास वाले े म कृ षक उपज बढ़ाने के लए खेत म समु शैवाल का खाद के
प म योग करते ह । अ धकांशत: समु शैवाल का योग कया जाता है । जैसे ाउन शैवाल

66
बा स (Warcks) तथा के स (Kelps) आ द खाद क तरह यु त होती है । अ वा (Ulva)
तथा ए टरोमोरफा (Enteromorpha) भी इसी काय के लए उपयु त होती ह ।
इनके अलावा लै मने रया (Laminaria), यूकस (Fucus), ए को फ लम (Ascophyllum),
सारगासम (Sargassum) इ या द भी खाद के प म काम म ल जाती ह । कैि शयम क
कमी वाल म ी म कारा (Chara), लथो फ लम (Lithophyllum) का उपयोग होता है ।
चावल के खेत म नील- ह रत शैवाल का योग चावल क उपज को लगभग 30% तक बढ़ा दे ता
है । भूरे व लाल शैवाल म पोटे शयम अ धक मा ा म होता है व नाइ ोजन और फॉ फोरस कम
मा ा म । इस कार य द नील ह रत शैवाल का योग भू र-े लाल शैवाल के साथ मलाकर योग
कया जाय तो म ी क उपजाऊ शि त को कई गुना बढ़ाया जा सकता है । इनका योग ऊसर
अथवा बंजर भू म को आसानी के साथ उपजाऊ बना सकता है । द ण को रया, म आलोसाइरा
(Aulosira) के वारा यह काय सफलतापूवक कया गया है । यह हर नील शैवाल ऊसर भू म
को नाइ ोजन ि थर करण से उपजाऊ बना दे ती है । ार य मृदा कृ ष के लए पूणत: अनुपयोगी
होती है । साइटोनीमा (Scytonema), नॉ टॉक (Nostoc), एनाबीना (Anabaena) आ द
ार य नम भू म म आसानी से उगते ह तथा भू म का pH कम करके ार यता कम करते ह ।
इससे भू म उपजाऊ व खेती के यो य बन जाती है । द ण को रया म अ ल य अनुपजाऊ भू म
को ओलोसाइरा फ ट लि समा का उपयोग कर खेती यो य बनाया जाता है । इसी कार िजस
भू म म कैि शयम क कमी होती है, उसम लथो फ लम व कारा मलाया जाता है । थीवी
(Thivi) के अनुसार य द भ डी क फसल क उपज बढ़ानी हो तो म ी म समु शैवाल मला
दे ने चा हए । आज कई दे श म समु शैवाल का म ण बाजार म उपल ध कराया जाता है ।
4.2.3 दवाइय म मह व (Importance in Medicine)
कई शैवाल जैसे लोरे ला (Chlorella), लेडोफोरा (Cladophora), पो ल सफो नया
(Polysiphonia), लै मने रया (Laminaria) आ द से ए ट बायो ट स बनाई जाती ह । सबसे
पहले लोरे ला से लोरे लन (chlorellin) बनाई गई । ये ए ट बायो ट स कई कार के
हा नकारक जीवाणुओं वारा होने वाले रोग को ठ क करती ह । ए कोफाइलम नोडोसम
(Ascophyllum nodosum) का योग दोन ाम ाह (Gram Positive) व ाम अ ाह
(Gram Negative) कार के जीवाणुओं के वारा होने वाले रोग म होता है ।
डाइजी नया (Digenia) नामक लाल शैवाल से बनाई औष ध हे लमी स (Helminthes) नरोधक
होती है । फरसीले रया फॉ ट गेटा (Furcellaria fastigata) नामक लाल शैवाल भी दवाइयाँ
बनाने म यु त होता है ।
कु छ भूर शैवाल जैसे लै मने रया, यूकस , लोसो नया से एि ज नक ए सड (Alginic acid)
ा त कया जाता है । इसका उपयोग औष ध, गो लयाँ, कै सू ल व े संग का सामान बनाने म
होता है य क यह एक अ त गाढ़ा व अ तशी जैल बनाने क मता रखता है । इससे दाँत के
खाँच के साँचे भी बनाये जाते ह । इसक खोज 1881 म टे नफोड ने क थी ।

67
इसी कार को डयम (Codium) का उपयोग वृ क (Kidney) के रोग म लाभकार स हु आ
है। कॉ स (Chondrus) पेट के रोग म, सारगासम (Sargassum) तथा के स (Kelps)
ि धय के रोग म (Glandular diseases) इलाज के लए उपयोग म लाए जाते ह ।
जे ल डयम का उपयोग भी पेट के रोग म लाभकार रहता है । भूरे शैवाल का योग गलग ड
रोग म होता है य क इनम आयोडीन चुर मा ा म होती है । कारा म म छर के लावा को
मारने का गुण होता है । अत: इसका योग म छर वारा होने वाले रोग को न ट करने म हो
सकता है । इस पर शोध आव यक है ।
4.2.4 उ योग म मह व (Importance in Industry)
(i) आयोडीन उ योग म (In iodine Industry) : भू र शैवाल जैस-े लै मने रया डिजटे टा
(Laminaria digitata), यूकस बे स खोसस (Fucus vesiculosus) तथा एस नया
(Eisenia) इ या द से आयोडीन ा त कया जाता है ।
(ii) रबर उ योग म (In rubber industry) : रबर उ योग म शैवाल का योग मंग
(Creaming) तथा टे बलाइिजंग (Stabilizing) एजे ट के प म कया जाता है । यह
ाकृ तक तथा कृ म रबर बनाने के काम आते ह । यूकस , लै मने रया क को शका भि त
से एि वन ा त होता है, िजसे रबर उ योग म यु त कया जाता है ।
(iii) आइस म उ योग म (In ice-cream industry) : के स से ा त हु आ क लल जैल
(Colloidal gel) एि वन (Algin) बहु त से उ योग म काम आता है । इसका सबसे मु ख
उपयोग आइस म उ योग म है । आइस म जमाने से पहले उसम थोड़ा एि वन मला
दया जाता है, िजससे वह ब कु ल नम व चकनी रहती है ।
(iv) काब नक पदाथ म (In organic compounds) : समु खरपतवार जैस,े रौडमे नया
(Rhodmenia) के शु क आसवन से ोमीन ा त क जाती है । इ ह ं से बहु त से काब नक
पदाथ जैस,े एसी टक ए सड, फो मक ए सड, एसीटोन इ या द ा त कये जाते ह ।
(v) कृ म स क बनाने म (In manufacturing artificial silk) : जापान म सारगासम तथा
सोडे को मलाकर एक ग द जैसा पदाथ ा त कया जाता है , िजससे कृ म स क बनाई
जाती है ।
(vi) साबुन उ योग म (In soap Industry) : पोरफाइरा (Porphyra) के समान लाल शैवाल
यूरोप तथा जापान म साबुन बनाने के उपयोग म लाया जाता है । समु कनार , समु
शैवाल को जलाकर राख ा त क जाती है और उससे ार (Alkalies) बनाए जाते ह । इन
ार से साबुन व फटकर बनती है ।
(vii) यापा रक व तु ओं के नमाण म (In other commercial products) :
(1) को स (chondrus) नामक लाल शैवाल व कैराजी नयम (Carragenium) क
वभ न जा तय से एक लेि मक पदाथ (Mucalgenous substance) ा त कया
जाता है । यह रं ग, शै पू टू थपे ट, चमड़े क सफाई, दु ध उधोग, डबलरोट उ योग,

68
जू त क पॉ लश तथा दूध क चॉकलेट आ द बनाने म यु त होता है । इसे कैरे ग नन
(Carragenin) कहते ह ।
(2) समु शैवाल जै ल डयम (Gelidium), ेसीले रया (Gracilaria), िजगा टना
(Gigartina), हफ नया (Hyphnea) आ द लाल शैवाल से एक नाइ ोजन र हत जैल
के समान लेि मक पदाथ मलता है, िजसे अगर- अगर कहते ह जापान म संसार का
95% अगर का उ पादन होता है । यह सू म जीव का संवधन मा यम है । उसके
अलावा इसे सौ दय साधन , फल क जैल , खाध साम ी, औष धय म यु त कया
जाता है ।
(3) लाल शैवाल फरसेले रया फॉि टगेटा (Furcellaria fastigata) से फरसेलेरन
(Fuscellan) नकाला जाता है, िजसका उपयोग जैल , मुर बा जैन, दवाइयां बनाने म
कया जाता है ।
(4) व व के कुछ भाग म समु के पदे पर ल बे समय से जमते रहने के कारण
डाईटोमाइट बहु त मोट परत म पाया जाता है । इसम स लका क मा ा 88 तशत
तक होती है । यह छ यु त (porous) रासाय नक याओं से अ भा वत
(Chemically inert), भार म ह का तथा उ तम अवशोषक (Rightly absorbant)
होता है । अत: इससे व का छाना जाता है । इसके अलावा श कर शोधन तथा उ च
ताप क भ य क ट बनाने के लए भी इसका योग होता है।

बोध न
(1) मानव भोजन म काम आने वाल दो शै वाल के नाम बताइये ।
..................................................................................................
..................................................................................................
(2) नाइ ोजन के ि थर करण म काम आने वाल शै वाल अ धकतर ’
................... कार क होती है ।
................................................................ ..................................
..................................................................................................
(3) ऊसर भू म को उपजाऊ बनाने के लए कौन सी शै वाल का उपयोग करगे?
....................................................... ...........................................
..................................................................................................
(4) मनु य क मृ यु के लए उ तरदायी शै वाल के नाम बताइये ।
.................................................. ................................................
..................................................................................................

69
4.3 शैवाल क हा नकारक याएँ (Harmful activities of algae)
हमने दे खा क शैवाल हमारे दै नक जीवन म अ य धक मह व रखते ह व इनके बना जीवन क
क पना नह ं क जा सकती । पर तु कभी - कभी कुछ कारण से ये हम हा न भी पहु ँचा सकती
ह । हालाँ क लाभ क तुलना म हा न अपे ाकृ त कम ह है ।
(1) परजीवी शैवाल : एक ओर शैवाल भोजन के प म यु त होती है, तो दूसर ओर बहु त
से पु पीय पौध व औ यो गक पदाथ पर परजीवी के प म रहती ह । जैसे, सफे यूरोस
(Cephaleuros) चाय क पि तय पर परजीवी तथा अ धपादपी (Epiphyto) के प म रहती है
। यह पौध म रे ड र ट (Red Rust) नामक बीमार करती है । यह चाय के पौध क सबसे
भयानक बीमार कहलाती है । कु छ जा तयाँ काँफ पर भी परजीवी होती ह ।
(2) कई हर नील शैवाल जलाशय म उगकर जल को रं गीन, दुग धयु त व दू षत कर दे ती
ह (Water blooms) एक शैवाल माइ ो सि टस एरयूिजनोसा (Microcystis aeruginosa)
जल को वषैला कर दे ती है । िजससे जीव ज तु मर जाते ह । इसी कार िज नोगो डयम
(Gymnogodium) तथा गो नओले स (Gonyaulax) आ द भी जल को वषैला कर दे ती ह,
िजससे मछ लयाँ मर जाती ह ।

4.4 सारांश
शैवाल व ान क बीसवीं शता द म बहु त ग त हु ई है । यह सव व दत है क शैवाल णी

जगत के लए अ य त मह वपूण ह व इनके बना धरती पर जीवन ह स भव नह ं है । शैवाल
काश सं लेषण क या वारा ऑकर जन मु त करते ह तथा सौर ऊजा का रासाय नक ऊजा म
प रवतन करते ह । एक वशेष बात यह है क आज तक लगभग स तर तशत समु तथा
ताजे पानी म पाए जाने वाल शैवाल क खोज ह नह ं हु ई है । शैवाल क अनेक जा तयाँ
भोजन, दवाइय , खाद, चारे , कला मक व तु एँ व व भ न उ योग म यु त क जाती ह ।
व व म लगभग 90 तशत काश सं लेषण शैवाल वारा ह स प न कया जाता है ।
अ धकांश शैवाल लाभदायक व कुछ हा नकारक होते ह ।

4.5 श दावल
1. अगर – अगर: लाल शैवाल क को शका भि त म पाया जाने वाला बहु शकरा से बना पदाथ ।
2. एि लनेट : अ वष, गाढ़ व अ तशी जैल बनाने वाला पदाथ । भू र शैवाल क म य
पट लका व ाथ मक भि त से ा त होने वाला ।
3. ए ट बायो टक : सू मजीव से ा त पदाथ, जो दूसरे सू मजीव क वृ रोकते ह ।
4. लूम : लोरोफाइसी के कई सद य जलाशय म अ य धक मा ा म उगकर उसे रं गीन व
बदबूदार बना दे ते ह।
5. परजीवी शैवाल : दूसरे पौध पर नभर रहने वाल शैवाल ।
6. के स : ले मने रए स गण के सद य का नाम ।

70
4.6 संदभ थ
1. डॉ. पी. सी. वेद , नरं जन शमा, आर. ए स. धनखड - 2005 सू म जैवीय एवं अपु पो द
व वधताएँ रमेश बुक डपो, जयपुर ।
2. ो. एच. सी. ीवा तव - 1991, ए गी, फ जाई, बै ट रया, वाइरस, लाइके स भाग ।
यू नवसल पि लकेशन, आगरा।
3. डॉ. जी. पी. शमा, एम. डी. शमा - 2006 सू म जीव तथा टोगे स म व वधता - सा ी
पि ल शंग हाउस, जयपुर।
4. ओ. पी. शमा, 1986 – Text book of Algae –Tata Mcgraw Hill Publecation1 New
Delhi.
5. संह, पा डे, जैन – 2004 Diversity of microbes and cryptogams र तोगी
पि लकेश स, मेरठ ।

4.7 बोध न के उ तर
1. नॉ टॉक, अ वा
2. नील ह रत
3. नॉ टॉक, एनाबीना .
4. गो नएले स केटे नेला

4.8 अ यास काय


1. शैवाल क लाभदायक याओं का वणन कर ।
2. शैवाल के आ थक मह व पर काश डाल ।
3. शैवाल के उ योग म महल पर लेख लख ।

71
इकाई 5 : वॉलवॉ स एवं कारा : आवास, संरचना, जनन एवं
जीवन च (Volvox and Chara : Habitat,
Structure , Reproduction and Life cycle)
इकाई संरचना
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 वॉलवॉ स
5.2.1 वग कृ त ि थ त
5.2.2 ाि त थान
5.2.3 संरचना
5.2.4 जनन
5.2.5 पु ध
ं ानी का वकास
5.2.6 अ डधानी का वकास
5.2.7 नषेचन
5.2.8 न ष ता ड
5.2.9 न ष ता ड अथवा यु मनज का अंकु रण
5.2.10 जीवन च
5.3 कारा
5.3.1 वग कृ त ।ि थ त
5.3.2 ाि त थान
5.3.3 थैलस संरचना
5.3.4 को शका संरचना
5.3.5 वृ
5.3.6 जनन
5.3.7 पु ध
ं ानी या लो यूल
5.3.8 अ डधानी या यू यूल
5.3.9 नषेचन
5.3.10 न ष ता ड
5.3.11 न ष ता ड का अंकुरण
5.3.12 पीढ़ एका तरण
5.4 सारांश
5.5 श दावल
5.6 संदभ थ
5.7 बोध न के उ तर
5.8 अ यास काय

72
5.0 उ े य
इस इकाई म आपको वॉलवॉ स एवं कारा के बारे म जानकार द जाएगी । दोन शैवाल
लोरोफाइसी (Chlorophyceae) के सद य ह, िज ह ह रत शैवाल कहा जाता है । इस इकाई
म दोन सद य क वग कृ त ि थ त, थैलस एवं को शका संरचना, जनन व स पूण जीवन च के
बारे म बताया जाएगा । साथ ह बोध न दये जायगे, िजनसे व याथ वयं को जाँच सकगे ।

5.1 तावना
े कोट (Prescott) के अनुसार लोरोफाइसी समू ह म लगभग बीस हजार जा तयाँ मलती ह ।
अ धकतर सद य अलवणीय जल म पाए जाते ह । कुछ ह रत शैवाल बफ म मलते ह, िज ह
हमोद भद (Cryptophytes) कहते ह (Chalamydomonas nivalis) । वॉलवॉ स एक हरा
शैवाल है जो जल क सतह पर तैरता रहता है व ग तशील होता है । कारा अलवणीय जल म
नम न (Submerged) । रहता है व जलाशय के कनार पर उथले जल कु ड म भी पाया
जाता है । का. हे टाई थल य होता है । वॉलवॉ स को रो लंग शैवाल के नाम से भी जाना जाता
है । सबसे अ धक पाई जाने वाल वॉलवॉ स क जा त का नाम है वॉ. लोबेटर । व व म कारा
क लगभग 188 जा तयाँ मलती ह, िजनम 30 भारत म पाई जाती ह जैस.े का. यूडा (C.
nuda), का. वैल ची (C.. Wallichii) इ या द ।
वभेदा मक ल ण :
वग - लोरोफाइसी
1. सद य म मु य वणक लोरो फल 6 व 5, केरो टन तथा जे थो फल ।
2. केरो टन व कार के तथा जे थो फल यू टन ए ाजे थीन, नयोजेि थन तथा िजयाजेि थन
होते ह ।
3. सं चत भोजन मु यत: टाच ।
4. ल गक जनन समयु मक , असमयु मक व वषमयु मक कार का होता है ।

5.2. वॉलवा स
5.2.1 वग कृ त ि थ त
वभाग : थैलोफाइटा (Thallophyta)
वग : लोरोफाइसी (Chlorophyceae)
गण : वॉ वके स (Volvocales)
कु ल : वॉलवाकेसी (Volvocaceae)
वंश : वॉ वॉ स (Volvox)
गण - वॉ वोके स :
1. लगभग सभी जा तयाँ अलवणीय जल य होती ह ।
2. सद य ग तशील अथवा कॉलो नयल ।

73
3. ल गक जनन समयु मक , असमयु मक अथवा वषमयु मक ।
कु ल - वॉलवोकेसी :
1. सभी सद य ग तशील एवं कॉलो नयल ।
2. सद य खोखले वृ त क प रधी पर यवि थत ।
3. कॉलोनी म को शकाओं क सं या नि चत व सभी को शकाएँ व श ट म म ि थत ।
4. ल गक जनन समयु मक , असमयु मक तथा वषमयु मक कार का होता है ।
5.2.2 ाि त थान (Occurrence)
वॉ वॉ स एक हरा शैवाल है, जो व छ व गहरे जल म दखाई दे ता है । यह खाई, तालाब, छोटे
पोखर व घर म पानी क टं कय म जल क सतह पर तैरता रहता है । वषा ऋतु म यह सं या
म इतना बढ़ जाता है क जल को सतह को पूरा हरा कर दे ता है और गद के प म सतह पर
तैरता रहता है । इसका नाम वॉलवॉ स एक लै टन भाषा के श द (Volvere) से लया गया है,
िजसका अथ होता है - लु ढ़कना । यह कारण है क इसे लु ढ़कना शैवाल (Rolling Alga) भी
कहा जाता है । इस श द से शैवाल क व श ट ग त (characteristic Movement) का संकेत
भी मलता है । इसक लगभग बीस जा तयाँ पाई जाती ह, िजनम सबसे अ धक मलने वाल
जा त है - वॉ वॉ स लोबेटर (Volvox globator)

च 5. 1 : (A) कॉलोनी (B) को शका संरचना

74
च 5.1 (C) को शका क आंत रक संरचना
5.2.3 संरचना (Structure)
यह एक हरा कॉलोनीय शैवाल है । इसक सभी को शकाएँ एक िजले टनी आधा ी (Gelatinous
Matrix) म एक परत म यवि थत रहती ह । इसक आकृ त गोल अथवा अ डाकार (Ovoid)
होती है । कॉलोनी का आकार ऑल पन क नोक से थोड़ा बड़ होता है, िजसम लगभग 500 से
60, 000 तक को शकाएँ पाई जाती ह । अब तक ात ग तशील कॉलो नयल शैवाल म यह
सबसे बड़ शैवाल है । कॉलोनी म को शकाओं क एक नि चत सं या होती है, िजसके कारण
कॉलोनी को ' सनो बयम' (Coenobium) कहा जाता है । सभी को शकाएँ आपस म जीव य
डोर (Proptoplasmic Thread) से जु ड़ी रहती ह ( च 5.1 A)। कॉलोनी ग तशील होती है व
सभी को शकाओं को ग त के लए कशा भकाओं को एक साथ सि म लत करके ग त करनी होती
है । इससे घूणन (Rotation) होता है, िजसम जल व िजले टनी पदाथ भरा होता है । कॉलोनी
पर ले मा आवरण पाया जाता है । येक को शका का भी अपना ले मी आ छाद होता है ।
को शकाओं का आकार गोल (Spherical) द घवृ तीय (Elliptical) या नाशपातीनुमा होता है ।
येक को शका म एक यालेनम
ु ा लोरो ला ट (Chlorplast), एक पाइर नॉइड (Pyrenoid),

75
एक ने ब दु (Eye spot)( च 5.2) तथा अ भाग म यूरोमीटर उपकरण से संल न दो तोद
कार क काशा भकाएँ होती ह ।
सनो बयम क येक को शका एक वत इकाई के प म काय करती है, अथात ् जै वक प
से येक को शका अलग होती है । ( च 5.1 B)
वॉलवॉ स क जा तय अगु णत होती ह । वा. लोबेटर व वा. ऑ रयस (V. aureus) म गुण
सू क न या n = 5 होती है । कु छ जा तय म यह सं या n = 14 भी हो सकती ह ।

च 5.2. ने बड
वॉलवॉ स म सम वय व म वभाजन प ट प से दे खने को मलता है । यह कारण है क
वॉलवॉ स को अलग- अलग बहु को शक य जीव के समान माना जा सकता है, िजसम को शकाएँ
अलग-अलग काय के लए सु नि चत होती ह । इसम न न कार क को शकाएँ होती ह
1. का यक को शकाएँ : ये ग त तथा पोषण का काय करती ह ।
2. अल गक को शकाएँ : ये पु ी कॉलोनी का नमाण करती ह ।
3. नर ल गक को शकाएँ : ये पु ध
ं ानी का नमाण करती ह, िजनम पुमणु बनते ह ।
4. मादा ल गक को शकाएँ : ये अ डधानी का नमाण करती है िजनम अ ड का नमाण होता
5.2.4 जनन (Reproduction)
वॉलवॉ स म दो कार क जनन या पाई जाती ह ।
1. अल गक (Asexual)
2. ल गक (Sexual)
1. अल गक जनन (Asexual Reproduction) :
यह या वृ क अनुकू ल प रि थ तय म होती ह । कॉलोनी के प च भाग क 5 - 20
को शकाएँ आकार म बढ़ जाती ह व गोल, कशा भका र हत पर तु अनेक पाइर नाइड यु त व
सघन जीव य वाल होती ह । ये उ पादक को शकाएँ गोनी डया (Gonidia) कहलाती ह । ये
कॉलानी के म य भाग म पहु ँच कर ि थत हो जाती ह ।
येक गोनी डयम के जीव य म अनेक अनुदै य वभाजन होते ह, िजससे संत त कॉलोनी
(Daughter Colony), बनती है । पहले गोनी डयम क अ तव तु ल बवत ् वभाजन करती है ।
दूसरा वभाजन पहले से समकोण पर होता है , िजसके फल व प चार को शकाएँ बन जाती ह ।

76
येक को शका म फर से ल बवत ् वभाजन से ॉस अव था म 8 को शकाएँ बनती ह । इस
अव था को ले कया (Plakea) अव था कहते ह । इसके बाद ल बवत ् वभाजन से 16
को शकाएँ बनती है, जो एक खोखले गोले के प' म यवि थत हो जाती ह । इसके अ ु व पर
एक छ होते ह, िजसे फायलोपोर (Phalopore) कहते ह ( च 5.3)।

च 5.3 वॉलवॉ स - अल गक जनन क व भ न अव थाएँ


इस कार साथ-साथ वभाजन होते रहते ह । वॉलवॉ स रोजेलैटई (V. rousseletli) म सबसे
अ धक वभाजन होते ह, िजससे कर ब 16,000 तक को शकाएँ बन जाती ह ।
सभी को शकाएँ न न, कशा भका र हत तथा पास-पास सह रहती ह । येक को शका का अ
नुक ला भाग गोलक के के क क ओर द ट होता है । यह संत त कॉलोनी होती है , िजसम
को शका व यास सामा य कॉलोनी के वपर त होता है । सामा य व यास क ाि त संत त
कॉलोनी के पूर तरह उलट जाने से होती है । उलटने (inversion) क स पूण या म 3 से 5
घ टे लगते ह । फर संत त कॉलोनी क सभी को शकाओं म को शका भि त का व कशा भकाओं
का नमाण होता है।

77
च 5.4 : वॉलवॉ स - जनन वॉलवॉ स म पु ी व पौ ी कॉलोनी व उनक वमु ि त
को शकाएँ एक दूसरे से अलग होकर ले म आवरण बना लेती ह । संत त कॉलोनी के न ट होने
पर वत हो जाती है। कुछ जा तय संत त कॉलोनी ल बी अव ध तक मातृ कॉलोनी से मु त
नह ं होती ह । कुछ जा तय म संत त कॉलोनी म भी पौ ी कॉलो नयाँ दखाई दे ती ह । कु छ और
जा तय म संत त कॉलोनी नि चत छ म से बाहर नकल आती ह ( च 5.4)।
2. ल गक जनन (Sexual Reproduction) :
वृ क तकूल अव थाओं म जब भोजन य कम रह जाता है , तब वॉलवॉ स म ल गक
जनन होता है । जनन वषमयु मक (Oogamous) कार का होता है । कुछ जा तय म जैसे
वॉलवॉ स लोबेटर (Volvox Globator) एक लंगा यी (Dioecious) होती ह ( च 5.5)।

च 5.5 : वॉलवा स : (A) उभय लंगा यी (B) एक लंगा यी


ल गक जनन म भी सनो बयन के प च भाग क कु छ व श ट को शकाएँ सामा य आकार से
कु छ बड़ी हो जाती ह । इनक काशा भकाएँ (Flagella) न ट हो जाते ह व को शकाएँ गोल हो

78
जाती ह, िजनसे पु ध
ं ानी (Antheridium) व अ डधानी (Oogonium) का प रवधन होता है ।
इ ह मश: एंडरोगो नयम (Androgonium) व गायनोगो डयम (Gynogodium) कहा जाता है

च 5.6 : वॉलवॉ स : सनो बयम म ल गक संरचनाएँ


बोध न - 1
1. वॉलवॉ स................. पानी म पाया जाता है ।
2. वॉलवॉ स म अल गक जनन के दौरान बनने वाल आठ को शक य अव था
को............................. कहते ह ।
3. वॉलवॉ स क दो भारतीय जा तय का नाम बताइए ।
..................................................................................................
..................................................................................................
4. वॉलवॉ स म ल गक जनन................... कार का होता है ।
..................................................................................................
..................................................................................................
ं ानी का वकास (Development of Antheridium)
5.2.5 पु ध
सनो बयम के प च भाग क कु छ को शकाएँ आकार म बड़ी होकर गोल हो जाती ह व इनक
काशा भकाएँ न ट हो जाती ह । इ ह पुध
ं ानी कहा जाता है । पु ध
ं ानी का जीव य उ तरो तर
ल बवत ् वभाजन वारा 64 से 128 व कभी -कभी 512 तक वभािजत हो जाता है । यह ख ड
लेटनुमा (Plakea) हो सकते ह (वा. लोबेटर)अथवा खोखले गोले के प म यवि थत रह
सकते ह (वा. आ रयस)। इनका पा तरण पुमणु ओं (Antherozoids) म होता है । येक पुमणु
तकु पी वकाशा भक (Spindle shaped, bifagellate) होता है ( च 5.7)।

79
कु छ जा तय म पुमणु समू ह म पाये जाते ह । इनका वमोचन भी समू ह म ह होता है । वा.
ऑ रयस म एक - एक पुमणु बाहर नकलता है ।
येक पुमणु ल बा, तकु पी (Spindle shaped) व एक के क होता है । यह पीला, हरा रं ग
लये होता है व इसके अ भाग पर दो काशा भकाएँ होती ह । पुमणु म पाइर नोइड यु त एक
ह रत लवक व एक लाल ने ब दु भी पाया जाता है ।

च 5.7 : कॉलोनी म पुध


ं ानी व पुमणुओं का वकास
5.2.6 अ डधानी का वकास (Development of Oogonium)
सनो बयम के प च भाग म गायनोगो डयम को शकाएँ होती ह, िजनसे अ डधानी वक सत होती
है । को शका आकार म बड़ी होकर कशा भका र हत व लाल ने ब दु र हत हो जाती है ।
को शकाएँ सव थम गोल व बाद म ला कनुमा हो जाती है । यह संरचना अ डधानी व इसका
जीव य अ ड (Egg) कहलाता है । इसम सं चत भोजन चु र मा ा म होता है । प रप व अ ड
के सरे पर एक च चनुमा रं गह न ब दु (Hyaline Spot) बन जाता है, जो ाह थल
(Receptive Spot) कहलाता है ( च 5.8)।

च 5. 8 : वॉलवॉ स म अ डधानी का वकास व जाइगोट

80
5.2.7 नषेचन (Fertilization)
पुमणु तैरते हु ए अ डधानी के नकट आक षत होते ह । एक पुमणु अ ड तक पहु ँ च कर नषेचन
क या स प न करता है । ले डर (Lander) के अनुसार एक लगा यी जा तय म पुमणु
अ डधानी (Oogonium) म वेश करते ह व केवल एक अ ड से संय लत (Fuse) होते ह व
यु मनज (Zygote) बनाते ह । मेयर व पोकोक (Mayor and pocock) के मतानुसार पुमणु
अ ड से चपक जाते ह । इनके बीच क द वार गलने से पुमणु का जीव य अ ड म था त रत
हो जाता है । को शका य लयन (Plasmogamy) व के क संलयन (Karyogamy) होने से
न ष ता ड (Oospore) का नमाण होता है ।
5.2.8 न ष ता ड (Oospore)
यह एक गोल व लाल रं ग क संरचना होती है । को शका य म ह मैटो ोम
(Haematochrome) बनने स इसका रं ग लाल दखाई पड़ ता है । न ष ता ड पर तीन परत
वाला एक आवरण होता है । इसका बा य चोल (Exposer) चकना होता है (वा. लोबेटर)
अथवा कटकमयी (वा. परमैट फेरा) हो सकता है । म यचोल म ह मैटो ोम उपि थत रहता है ।
इसम तेल का संचय होता है । अ त: चोल, म यचोल व बा यचोल यु त यह आवरण बहु त
मजबूत होता है , जो इसे कई वष तक सु र त रखता है । यह ल बे समय तक सु ताव था म
रहने के बाद सनो बयम के वघटन होने से वमो चत हो जाता है । न ष ता ड अथवा यु मनज
(Zygote) जल कु ड तल पर बैठ जाता. है अथवा पानी के सू ख जाने पर हवा के वारा क णत
हो जाता है ( च 5.9) ।

च 5.9 : वॉलवॉ स : (A) चकनी भि त का यु मनज; (B) कंट य भि त का यु मनज


5.2.9 न ष ता ड अथवा यु मनज का अंकुरण (Germination of Zygote)
अनुकू ल ि थ तय म यु मनज का अंकु रण होता है । जल के अवशोषण से इसका जीव य फूल
जाता है । दबाव के कारण इसका बा य व म यचोल फट जाता है व अ त:चोल एक थैले के प
म बाहर नकल आता है ( च 5.10) ।

81
च 5.10 : वॉलवा स यु मनज का अंकु रण
वभाजन के फल व प इसम चार अगु णत जीव य ख ड बन जाते ह । पोकोक के अनुसार चार
जीव य ख ड चल बीजाणु ओं म प रव तत हो जाते ह । इनम से एक बचता है व बाक सभी
न ट हो जाते ह ।
कभी-कभी यह चलबीजाणु अ त:चोल से बाहर आकर जल म वत ता पूवक तैरने लगता है व
कभी उसी म बना रहता है ।
नर तर समसू ी वभाजन के फल व प एक खोखल गदनुमा संरचना बन जाती है, िजसम 126
से 150 तक को शकाएँ होती ह । इनम तलोमन से एक सनो बयम बनता है । इस पूर या
म 8- 9 घ टे का समय लगता है । इस सनो बयम क को शकाएँ वभािजत होती रहती ह और
एक सु नि चत सं या वाला प रप व सनो बयम बन जाता है । भि त के फटने से यह वत
होकर जल म तैरने लगता है ।
5.2.10 जीवन च (Life Cycle)
वॉलवॉ स अगु णत होता है । न ष ता ड के नमाण के फल व प वगु णत अव था का
नमाण होता है । अंकुरण के समय अधसू ी वभाजन होते रहते ह व पुन: अगु णत अव था का
नमाण होता है । जीवनकाल म वगु णत अव था अ पका लक होती है । अत: जीवन च
धान प से अगु णतक होता है (Haplontic) ( च 5.11 एवं 5.12) ।

82
च 5.11 : वॉलवॉ स - जीवन च का आरे खी च

83
च 5.12 : वॉलवॉ स - जीवन च का च ा मक न पण
बोध न 2
1. वॉलवॉ स का न ष ता ड......... ............ के कारण लाल रं ग का दखलाई
पड़ता है ।
2. वॉलवॉ स का जीवन च ..... ........... कार का होता है ।

5.3 कारा (Chara)


5.3.1 वग कृ त ि थ त
वभाग  थैलोफायटा (Thallophyta)
उप वभाग  शैवाल (Algae)
वग  लोरोफाइसी (Chlorophyceae)
गण  कैरे ल ज (Charales)
कु ल  कैरे सी (Characeae)

84
वंश  कारा (Chara)
वभेदक ल ण :
गण कैरे ल ज :
1. सभी सद य मु यत: अलवणीय जल म पाये जाते ह । कुछ जा तयाँ खारे पानी म भी पाई
जाती ह ।
2. सु काय द घकाय, संग ठत व मू लभास एवं उ व शा खत अ म वभे दत होता है ।
3. को शका भि त सै यूलोिजक होती है ।
4. सं चत भोजन टाच के प म होता है ।
5. ल गक जनन ज टल व गत वषमयु मक होता है ।
कु ल कैरे सी
1. इस कुल म सात सद य ह । सभी सद य म थैलस उ व, शा खत तथा पव और पवसि धयो
म वभ त होता है।
2. को शका भि त म कैि शयम न े पत होता है, िजसके कारण इ ह टोनवट भी कहा जाता
है।
3. ल गक जनन वषमयु मक होता है ।
5.3.2 ाि त थान
कारा अलवणीय जल म रहने वाला नम न जल य (Submerged Aquatic) शैवाल है । यह
म द ग त से बहते जल के कनारे पं कल (Muddy) और रे तीले तल पर जल नम न गु छ के
प म पाया जाता है । का. हताई (Chara hatei) थल य जाती होती है । का. ै गीलस (C.
fragilis) गम पानी के झरन म पाई जाती है । का. बा ट का (C. Baltic) खारे जल म मलती
है । कठोर जल म उगने वाल जा तय क सतह कैि शयम काब नेट के न ेपण (Deposition)
के कारण इसे टोनवट भी कहा जाता है । भारत म इसक लगभग 30 जा तयाँ पाई जाती ह ।
5.3.3 थैलस संरचना
कारा का पादप द घकाय, 20 से 40 से.मी. तक ल बा हो सकता है । कु छ वष य जा तय म
पादप 80 से 120 से.मी. तक ल बे हो सकते ह तथा इ वी सटम (टे रडोफाइटा) जैसे दखाई दे ते
है । पादप मूलाभास (Rhizoids) मु य अ तथा शाखाओं म वभे दत होता है ( च 5.13 A)।

85
च 5.13 कारा : A. पादप वभाव B. मू लाभास
मू लाभास :
पादप इनक सहायता से तालाब के अधो तर पर ि थर रहता है । ( च 5.13 B) मू लाभास भू रे
शा खत, बहु को शक, एकपंि तक, बेलनाकार होते ह । इनम तरछे पट (Oblique septa) होते
ह, जो कारा का व श ट ल ण है । इनके तीन मु य काय होते ह.
1. ये पादप को आधार से चपकाए रखते ह ।
2. ये तल से लवण अवशोषण का काय करते ह ।
3. ये क लका (Bulbil) व वतीयक ाथ मक त तु (Secondary Protonema) का
नमाण करते ह व जनन म सहायक होते ह ।
मु य अ (Main axis) :
मु य तना मु यत : उ व व कभी - कभी तलसप (Trailing) होता है (का. हे टाई) । तना
अ नि चत काल तक वृ करता है तथा अ पव (Internodes) व बेलनाकार होते ह ।
इ वी सटम क भां त यह संघ टत (Jointed) तीत होता है, िजससे इसे जल य हॉसटे ल
(Aquatic horsetail) कहा जाता है । कुछ बहु वष य जा तय के पादप 80 - 120 से. मी. तक
ल बे होते ह ।
मु य अ पर चार कार क संरचनाएँ होती ह.
1. सी मत वृ क शाखाएँ (Branched of Limited Growth)
इ ह थम पा वशाखाएँ (Primary Laterals) अथवा पण (Leaf) भी कहते ह । इनक अ थ
को शका क या कुछ समय तक ह रहती है, िजसके फल व प इनक वृ सी मत रह जाती
है । सी मत वृ शाखाओं क पवसि ध पर छोट , हर , एकको शक , कट जैसी वतीयक

86
पाि वकाएँ (Stipules) या सहप (Bracts) लगे रहते ह ( च 5. 14 है) । इन पवसि धय पर
जननांग भी पाये जाते है।

च 514. मै सी मत वृ क शाखा; B एक अनुपणक अ ; p वअनुपणक अ


2. असी मत वृ क शाखाएँ (Branches of unlimited Growth)
इ ह क थ शाखाएँ (Axillary Branches) या द घ पा व (Long laterals) भी कहा जाता है
।इनक संरचना मु य अ के समान ह होती है । ये शाखाएँ च क प से लगी रहती ह तथा
मु य अ क तरह असी मत वृ करती ह ।
3. अनुपणक (Stipulodes) :
ये छोटे , शू ल (Spine) के समान, एक को शक य सरचनाएँ होती ह । ये असी मत वृ क
शाखाओं अथवा मु य अ क आधार य पव सि धय पर पाई जाती ह । ये एक या दोन तरफ
क प रधीय को शकाओं से उ प न हो सकती ह, अत: इनक सं या उपशाखाओं क सं या के
बराबर अथवा दोगुनी हो सकती है । अत: इ ह एकअनुपणक (Unistipulate) अथवा
वअनुपणक (Bistipulate) कहा जा सकता है । कारा क अ धकांश जा तयाँ वअनुपणक क
होती ह ( च 5.14 B,C) । का. ाउनाई (C. braunii) म अनुपणक एक वलय म लगे रहते ह
। इस ि थ त को एकवलयक (haplostephanous) कहा जाता है । य द अनुपण दो च म
उपि थत हो तो ववलयक (Diplostephanous) जैसे का. बाि टका म तथा य द तीन च म

87
हो तो वलयक (triplostephanous) जैसे का सरे टोफाइला कहलाता है । कुछ जा तय म जैसे
का. यूडा म अनुपणक अ पव धत (Rudimentary) होता है । कभी-कभी ये पणतया
अनुपि थत होते ह जैसे का. पाशानाई म ।
4. व कुट (Cortex) :
कारा क कई जा तय म पव को शका को चार ओर से उद प से द घ कृ त (Vertically) कम
चौड़ी को शकाएँ घेरे रहती ह और व कुट का नमाण करती ह । िजनम व कुट उपि थत होता है,
उन जा तय को कोट केटड (Corticated) कहते ह जैसे का. कोरे लाइना
का. ाउनाई, का. यूड़ा आ द । िजन जा तय म व कुट नह ं पाया जाता उ ह ईकोट केटे ड
(Ecorticated) कहा जाता है। कोट केटड, जा तय म नचल व ऊपर पव सि धय से को शकाएँ
वक सत होकर वपर त दशा म वृ कर आपस म संल न होकर व कुट का नमाण करती ह ।
जब व कुट त तुओं क पवसि ध को शकाएँ वभािजत नह ं होती तो व कु ट क को शकाएँ थम
व कुट ेणी क कह जाती ह । ऐसे व कु ट को सरलाव लक (Haplostichous) कहा जाता है ।
जब ब कुट त तु ओं क पव सि ध म पा व वभाजन होता है, तब एक या दो पंि त प रधीय
को शकाओं क बनती है । इ ह वतीयक ेणी क को शकाएँ कहते ह । ये थम ेणी क
को शकाओं के बीच रहकर वव लक (diplosltichous) या व लक (triplostichous) कार
का व कुट बनाती ह । व कु ट त तु ओं म शीष को शका तथा पव व पवसि ध पाये जाते ह ।
व कुट त तु पव को घेरे रहते ह ।
5.3.4 को शका संरचना (Cell Structure)
कारा म दो कार क को शकाएँ होती ह । पवसि ध (Nodal) को शकाएँ व पव (Internodal)
को शकाएँ । पव सि ध को शकाएँ छोट व सम यासी (Isodiametric) होती ह, जब क पव
को शकाएँ ल बी व बेलनाकार होती ह ( च 5.15)

च 5. 15 : A. पव सि ध को शका B. पवको शका

88
येक को शका से यूलोज क भि त से घर रहती है । यह को शका क भीतर परत होती है ।
बाहर परत िजले टनी होती है, िजस पर कैि शयम काब नेट का न ेपण (deposition) होता है।
को शका एक के क होता है, िजसम सघन, क णकामय को शका य होता है । इसक प र ध म
अनेक ब बाकार (Discoid) लोरो ला ट पाये जाते ह । को शका य दो भाग म वभािजत
रहता है, िजसे बा यजीव य (Exoplasm) व अ त: जीव य (Endoplasm) कहा जाता है ।
सभी को शकाएँ जीव य मण (cyclosis) क या द शत करती ह । स भवत: को शका
भि त म उपि थत ोट न त तु मानुकं चन करते ह, िजससे जीव य मण क या होती है
। को शकाएँ एक के क होती ह व समसू ी वभाजन के वारा बहु के क हो जाती ह । इनम
छोटे , द घवृ तीय लोरो ला ट पाये जाते ह व सं चत भोजन टाच के प म रहता है ।
5.2.5 वृ (Growth)
कारा के मु य क , क ीय शाखाओं व उपशाखाओं क वृ एक गु बदाकार शीष थ को शका
(dome shaped apical cell) के वारा होती है । इस को शका म उ तरो तर अनु थ
वभाजन के फल व प यु प न (Derivative) को शकाएँ बनती ह । येक को शका म दोबारा
अनु थ वभाजन होता है और एक ऊपर उभयावतल (Biconcave) पव सि ध ारि भक
(Nodal Initial) व नीचे क ओर उभयोतल (Biconvex) पव ारि भक (Inter Nodal
Initial) का नमाण होता है । पव ारि भक वभािजत नह ं होती व द घत होकर पव को शका
(axial inter nodal cell) का नमाण करती ह । इसम उदय वभाजन (vertical division)
के फल व प दो के य को शकाएँ (Central division) व 6-20 तक प र ध को शकाएँ
(Peripheral cells) बनती ह । बा य प र ध को शकाएँ ाथ मक पा व (Primary Lateral)
के लए शीष को शकाएं (Apical cell) के प म काय करती ह । आधार पव सि ध क
प रधीय को शकाएँ मू लाभास का नमाण करती ह ( च 5.16) ।

च 5.16. शीष थ को शका तथा वृ

89
5.3.6 जनन (Reproduction)
कारा म का यक (Vegetative) तथा ल गक (Sexual) जनन पाया जाता है । कारा म अल गक
जनन का पूणतया अभाव होता है ।
1. का यक जनन (vegetative Reproduction) : कारा म का यक जनन मु यत :
तीन कार से होता है
(i) कंद व प क लकाओं के वारा (By Tubers and Bulbils) मु य अ क नचल पव
सि धय व मुलाभास वारा न मत बहु को शक य उ धो (Outgrowths) को कंद या प -
क लता कहा जाता है ( च 5.17 A, B) । का. ए परा (C. aspera) म गोल व का. बाि टका
(C. baltica) म अ नय मत कार क प क लकाएँ होती ह । अ नय मत (amorphous) प
क लका म अनेक छोट व फूल हु ई को शकाएँ होती ह जैसे का. डेल के यूला (C. delicatula) म
क के नीचे पव सि ध तथा का. े गीफेरा (C. fregifera) म अनेक छोट को शकाएँ गु छे के
प म पाई जाती ह । ये अ नय मत प क लकाएँ अ के पव सि ध क प र ध को शकाओं व
मू लाभास क को शकाओं के अ नय मत वभाजन के फल व प बनती ह ( च 5.17 C) । सभी
संरचनाएँ (Perennating Organs) के प काय करती है तथा मु य पादप से अलग होने पर
नये पादप का नमाण करती ह ।

च 5.17 : कारा - का यक जनन संरचनाएँ


(ii) ऐमाइलम तार वारा (By amylum stars) : मु य अ क नचल पव सि धय पर
प रव धत को शकाओं के समु चयन से बनी तारे के समान संरचनाएँ बनती ह । इ ह एमाइलम
तारे कहते ह । इनम एमाइलम टाच भरा रहता है । मातृ सु काय से अलग होने पर ये अंकु रत

90
होकर नया पादप बना लेते ह । उदाहरण का. ट ल जेरा (C. steilligera) व का. ै के था (C.
trachantha) ( च 5.17) ।

च 5.18 : कारा - यूकूल एवं लो यूल


(iii) वतीयक ोटोनीमा वारा (By Secondary Protonema) जीण पौधे पर सजीव पव
सि धय अथवा मु य अ क नचल पव सि धय या सु त शीष से कु छ बेलनाकार
अप था नक शाखाएँ उ प न होती ह । इ ह वतीयक ोटोनीमा कहते ह ये ाथ मक ोटोनीमा
क पव सि ध से भी उ प न हो सकती ह । नया पादप इन त तु ओं पर पा व शाखाओं के प म
उ प न होता है ।
2. ल गक जनन (Sexual Reproduction) : कारा म ल गक जनन सबसे अ धक
वक सत होता है अ डयु मक (Oogamous) कार का होता है । जननांग म भी उ च तर क
व श टता तथा ज टलता होती है । कारा म नर जननांग पु ध
ं ानी या लो यूल (Globule) तथा
मादा जननांग अ डधानी अथवा यू यूल (Nucule) कहलाते ह । दोन थूलदश
(Macroscopic) होते ह । दोन एक ह सुकाय पर पाये जा सकते ह । तब उभय लंगा यी
(Monoecious) कहलाते ह व कु छ जा तय म दोन अलग पादप पर पाये जाते ह । तब इ ह
एक लंगा यी (Dioecious) कहते है।
5.3.7 पु ध
ं ानी या लो यूल (Antheridium or Globule)
लो यूल का वकास उपशाखाओं क पव सि धय अथवा लाल रं ग क ज टल संरचना होती है ।
यह पव सि ध क अ य (Adaxial) सतह पर वृ त (Pedicel) से जु ड़ी रहती है । वृ त
लो यूल के म य तक धँसा रहता है । इसके खोखले भोले क बाहर भि त पास-पास जु ड़ी आठ
व अवलो तल (Concavo-Convex) को शकाओं क बनी होती ह, िज ह शी ड को शकाएँ
(Shield cells) कहते ह । येक शी ड को शका के के म एक अ ड पी, बेलनाकार को शका

91
होती है, िजसे मेनु यम (Menubrium) कहते ह ( च 5.18 B) । येक मेनु यम को शका
के दूर थ छोर पर एक या अ धक गोलाकार को शकाएँ होती ह, िज ह ारि भक कैपी यूलम
को शकाएँ कहते ह । इनम येक से वतीयक को शकाएँ उ प न होती ह । इ ह ं को शकाओं के
ं ानी त तु (Antheridial Filament) बनते ह ।
शीष पर पुध ं ानी त तु एकपंि तक,
येक पु ध
बहु को शक संरचना होती है तथा इनक येक को शका एक पुमणु क रचना करती है । एक
ं ानी म 20,000 से 50,000 तक पुमणु बनते ह ।
पु ध येक पुमणु द घत, स पल व
वकशा भक संरचना होती है ।
(i) ं ानी का वकास (Development of Globule) : नि चत वृ
पु ध क शाखा क पव
सि ध क अ य सतह क प रधीय को शका पुध
ं ानी मातृ को शका का काय करती है । इन
को शकाओं म प रना भक वभाजन से दो को शकाएँ बनती ह । बाहर को शका पु ध
ं ानी ारि भक
(Antheridial Initial) कहलाती है । भीतर क को शका म पुन : वभाजन होता है और दो
ं ानी क आधार पवसि ध (Basal node) बनाती ह तथा
को शकाएँ बनती ह । ऊपर को शका पुध
नीचे वाल को शका पव को शका के प म रहती है ।
पु ध
ं ानी ारि भक म अनु थ वभाजन होता है व दो को शकाएँ बनती ह । पु ध
ं ानी मातृ को शका
(Globule Mother cell) वृ करके गोल हो जाती है । फर दो उद न वभाजन से चार
को शकाएँ बनती ह । इसे चतुथाभक (Quadrant) कहा जाता है । चार को शकाओं म फर से
अनु थ वभाजन होते ह और अ टांक (Octant) बनता है । इसक सभी को शकाओं म एक
प रन लक (Periclinal) वभाजन होता है, िजससे आठ-आठ को शकाओं क दो परत बनती ह ।
दोन परत म पुन : वभाजन होता है व 8-9 को शकाओं क तीन अर य परत (Radial Layers)
बनती ह । इनम से बा य परत क को शकाएँ फैलकर चपट हो जाती ह । इ ह शी ड को शकाएँ
कहते ह । म य परत क 8 को शकाएँ अर य दशा म द घत होती ह । इ ह मै यू यम
को शकाएँ कहते है। अ त: परत क 8 को शकाएँ व आठ कै पटु लम को शकाएँ बनती ह । येक
ाथ मक कै पटु लम को शका वभािजत होकर 6 को शकाएँ बनाती ह । इसी कार कई कै पटु लम
को शकाएँ बन जाती ह । अि तम कै पटु लम क येक को शका से वभाजन के फल व प 2 -
4 तक ल बे, पतले, शा खत व बहु को शक य त तु बनते ह । इ ह पुध
ं ानी त तु कहते ह । इस
पुत तु को पुमणु मातृ को शका कहते ह । इस को शका म काया तरण (Metamorphosis)
वारा पुमणु बनते ह । (च 5.19) पुमणु के नमाण क या पुमणुजनन
(spermatogenesis) कहलाती है । पुमणु बनते समय केि का (nucleolus) लु त हो जाता
है । प रप व पुमणु स पल व वकशा भक होता है ।

92
च 5.19 : पुध
ं ानी प रवधन क व भ न अव थाएँ
पुमणु का वमोचन (Liberation of Antherozoids) :
पुमणुओं के प रप व होने के साथ ह पु ध
ं ानी क शी ड को शकाएँ अलग हो जाती ह और इसके
आवरण म दरार बन जाती है । इन दरार म से पुमणु मु त होते ह । च (Fritsch, 1935)
ं ानी को शकाओं के िजले टनीकरण (Gelatinisation) के कारण शी ड को शकाएँ
के अनुसार पुध
अलग हो जाती ह व पुमणु मु त हो जाते ह ।
5.3.8 अ डधानी अथवा यू यूल (Oogonium or Nucule)
यू यूल एक अ डाकार लगभग 7 म. मी. ल बी संरचना होती है, जो सी मत वृ शाखा क
अ य सतह पर पवसि ध से सू म वृ त वारा लगी रहती है । उभय लंगा यी जा तय म
यू यूल , लो यूल के ठ क ऊपर साि न य म ि थत होती ह । अ डधानी एक अ डाकार संरचना
होती है, िजसम एक अ ड पाया जाता है । अ ड म सघन जीव य होता है तथा इसम टाच व
तेल के प म सं चत भोजन होता है । अ ड के शखा पर एक ाह ब दु (receptive Spot)
होता है । अ डधानी के चार ओर पाँच, ल बी द णवत (Clockwise) स पल को शकाएँ होती
है। इ हे न लका को शकाएँ (Tube Cell) कहते ह । येक को शका के शीष पर एक छोट
को शका होती है । इस कार अ डधानी के शीष पर एक छोट को शका होती है । इस कार

93
अ ड धानी के शीष पर पाँच छोट को शकाओं का ताज होता है, िजसे कोरोना (Corona) कहते
ह । (च 5. 18 D) अ डधानी म आवरण क उपि थ त कारा का गत व ला णक गुण है ।

च 5.20 : यूकू ल प रवधन क व भ न अव थाएँ


अ डधानी का प रवधन (Development of nucule) :
उभय लंगी जा तय म अ डधानी का वकास पुध
ं ानी के आधार पर ि थत आधार पवसि ध
को शका (Basal Node cell) से यु प न को शका वारा होता है । इस को शका म अनु थ
वभाजन से तीन को शकाओं क पंि त बनती है । इनम नीचे वाल वृ त (pedicel) म य
को शका, ब य आवरण को शकाओं और ऊपर क को शका अ डधानी मातृको शका (Oogonial
Mother Cell) का नमाण करती है । नीचे वाल को शका द घकृ त होकर अ डधानी के वृ त का
नमाण करती है । अ त थ को शका म अनु थ वभाजन के फल व प एक आधार व छोट

94
वृ त को शका (Stalk cell) व एक ऊपर व बड़ी अ डधानी बनती है । अ डधानी म वृ के
बाद इसम अ ड बनता है । अ ड का वकास होने के साथ आ छाद ारि भक (Sheald Initial)
म उदय वभाजन होते ह व दो सोपान बनते ह । येक सोपान म पाँच को शकाएँ होती ह ।
ऊपर परत क पाँच को शकाएँ कोरोना को शका (Corona cell) का काय करती ह और नचल
परत क को शकाएँ अ डधानी के चार ओर र ी आवरण (Protective Cover) बना लेती ह ।
इन को शकाओं को न लका को शकाएँ कहते ह । शीष पर ाह ब दु बनता है व अ ड म चुर
मा ा म टाच व तेल जमा हो जाता है ( च 5.20)।
5.3.9 नषेचन (Fertilization)
नषेचन क कया का डी. बेर ने का. ब गे रस (C. vulgaris) म अ ययन कया और पाया क
न लका को शकाएँ ौढ़ होने पर कोरोना को शकाओं से थोड़ा नीचे अलग हो जाती है । इसके
कारण अ डधानी के चार ओर पाँच दरार बन जाती ह । नषेचन के समय अ डधानी के शीष
भाग क को शका भि त का िजले टनीकरण हो जाता है । यह भाग पुमणु के लए ाह ब दु का
काय करता है । पुमणु इन दरार से अ डधानी म वेश करते ह व इनके के क के संयोजन के
फल व प न ष ता ड (Oospore) बनता है ।
5.3.10 न ष ता ड (Oospore)
यह एक मोट भि त वाल संरचना होती है । न ष ता ड अपने चार ओर से यूलोज क भि त
बनाता है, जो पीले या भू रे रं ग क होती है । न लका को शकाओं क भीतर भि त पर सुबे रन व
स लका का जमाव होता है । न ष ता ड क भि त चार परत म वभे दत रहती है । दो बा य
परत वणयु त व भीतर वणह न होती ह । न लका को शकाओं क अ त: भि त न ष ता ड से
लगी रहती है, िजससे वह स पल लहर यु त पाया जाता है । इसका के क वगु णत
(Diploid) व अ सरे पर थाना त रत होता है । टाच तेल बु दक म बदल जाता है और
न लका को शकाओं क बा य भि त का य (Decay) हो जाता है । न ष ता ड टू टकर तालाब
के पदे म बैठ जाता है ।
5.3.11 न ष ता ड का अंकुरण (Germination of Oospore)
अंकु रण के समय न ष ता ड का वगु णत के क अधसू ी वभाजन के वारा चार अगु णत
के क बनाता है । शखा के नकट अनु थ भि त के नमाण से दो असमान को शकाएँ बनती
ह । छोट मसू राकार अ को शका (Lenticular Apical Cell) म एक के क और बड़ी आधार
को शका म तीन के क होते ह । मसू राकार को शका म उद वभाजन हारा ोटोनीमा ारि भक
(Protonemal Initial) व मू लाभास ारि भक (Rhizoidal Initial) बनते ह । दोन को शकाएँ
वपर त दशा म वृ करके ाथ मक थम त तु (Primary protonema) व मू लाभास
ारि भक (Rhizoidal Initial) बनाती ह । ाथ मक मूलाभास पर पव व पवसि धयाँ होती ह ।
इसक पवसि ध से वतीयक मू लाभास के च (Wheels) वक सत होते ह और ोटोनीमा ऊपर
क ओर वृ करता है । इस पर ाथ मक त तु आधार को शका (Promotional Basal cell),
मू लपव सि ध को शका (Root Nodal Cell) पव को शका (Intercsalary), रोह पवसि ध

95
को शका (Stem Nodal Cell) तथा 3 - 5 को शक य अ त: थ सरा होता है । आधार
को शका पीले रं ग क ह रहती है । दोन पवसि ध को शकाओं म वभाजन होकर पवसि ध बनती
है । कुछ प रधीय को शकाएँ वतीयक ाथ मक त तु भी बना लेती ह । ौढ़ प रधीय
को शकाओं से नये व मु य अ का नमाण होता है ( च 5.21) ।

च 5.21: न ष ता ड - अंकुरण व त ण पादप का नमाण


5.3.12 पीढ एका तरण (alternation of Generation)
कारा का पादप अगु णत (Haploid) होता है । इसके स पूण जीवन च म वगु णत अव था
केवल न ष ता ड म ह पाई जाती है । न ष ता ड के अंकु रण के समय अधसू ी वभाजन होने
से अगु णत अव था पुन : ार भ हो जाती है । अत : कारा म जीवन च मु यत : अगु णत
धान (Haplontic) पाया जाता है ( च 5.22, 5.23) ।

96
च 5.22 : कारा - जीवन च का च ा मक न पण

97
बोध न 3
1. कारा क को शकाओं म..................... म ह रत लवक होते ह ।
2. कारा क नर जनन सं र चना को.................... कहते ह ।
3. कारा के न ष ता ड क सतह कै सी होती है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. कारा बाि टका कै से जल म पाया जाता है ?
...................................................................................................
...................................................................................................

5.4 सारांश
वॉलवॉ स एक हरे रं ग का कॉलोनीय शैवाल होता है, िजसने सभी को शकाएँ िजलेटनी आधा ी क
प र ध के अ दर एक परत म यवि थत रहती ह । को शकाएँ लगभग 500 से 60, 000 तक
एक ।एक नि चत सं या म होती ह । ऐसी कॉलोनी को सनो बयम कहा जाता है । इसक
लगभग बीस जा तय का ान है, जो सभी अलवणीय जल म तैरती पाई जाती ह । सनो बयम
क सभी को शकाएँ जनन म भाग नह ं लेती। केवल वे को शकाएँ, जो प च भाग मे होती है,
जनन म भाग लेती है और इ ह गोनी डया कहा जाता है । सनो बयम का अ धकांश भाग का यक
ह रहता है । टार ने नर सनो बयम म से ल गक कारक को खोजा था । बाद म डरडन ने
तपा दत कया क यह कारक नर और मादा संरचनाओं के बनने के लए उ तरदायी है, जो
कैि शयम लाइको ोट न है । दूसर तरफ कारा अलवणीय जल म नम न जल य शैवाल है ।
कठोर जल म उगने वाल जा तय क सतह पर कैि शयम काब नेट न ेपण हो जाता है । इसी
कारण कारा को टोनवट भी कहा जाता है । इसका सु काय द घकाय संग ठत तथा मूलाभास एवं
उ व शा खत अ म वभे दत होता है । कारा का पादप अगु णत होता है , अत: जीवन च भी
अगु णतक होता है ।

5.5 श दावल
1. िजलेटनी आधा ी (Gelatinous Matrix) : एक लेि मक पदाथ क झ ल , िजससे
को शकाएँ घर रहती हँ।
2. गोनी डया (Gonidia) : सनो बयम के प च भाग म ि थत वे को शकाएँ, जो जनन म भाग
लेती ह ।
3. अगु णतक (Haplontic) : पादप के जीवन च म वगु णत अव था अ पका लक व पादप
मु खत: अगु णत।
4. वषमयु मक (Oogamous) : दो वषम यु मक (पुध
ं ानी व अ डधानी) से यु मनज का
नमाण ।
5. यूकू ल (Nucule) : कारा क मादा जनन संरचना है।
6. सनो बयम (Coenobium) : वह कॉलोनी, िजसम को शकाओं क सं या नि चत होती है।

98
7. ने ब दु (Eye spot) : यह काश हण करने वाला, ाय: ह रत लवक के अ भाग पर
ि थत अंश है ।
8. कशा भका (Flagella) : पतल , ल बी, धागेनम
ु ा संरचनाएँ, जो चलबीजाणु ओं म पाई जाती
ह । यह ग त दान करती ह ।

5.6 संदभ थ
1. ओ.पी. शमा 1986 – Textbook of Algae – Tata Mc Grawhill Publication New
Delhi
2. डा पी सी वेद , नरं जन शमा, आर.एस. धनखड़ - 2005 सू म जैवीय एवं अपु यो द
व वधताएँ, रमेश बुक डपो, जयपुर ।
3. संह, पा डे, जैन - 2004 – Diversity of Microbes and Cryptogams र तोगी
पि लकेश स, मेरठ ।
4. जे.पी. सैनी, कैलाश अ वाल, मंजल
ु ा के . स सैना, अनुजा यागी 2003 - सू म जैवीय एवं
अपु पो द व वधताएँ - कॉलेज बुक हाउस , जयपुर ।
5. जे. पी. शमा, एम. डी. शमा - 2006 - सू म जीव तथा टोगे स म व वधता सा ी
पि ल शंग हाउस, जयपुर
6. ो. एच. सी. ीवा तव - 1991 - ए गी, फ जाई, बै ट रया, वाइरस, लाइके स - भाग 1,
यू नवसल पि लकेशन, आगरा
7. डा. पी. सी. वेद , आर. एस. धनखड़, रे खा र तोगी - 2004 ायो गक वन प त शा ,
रमेश बुक डपो, जयपुर
8. डा. अशोक बै े , अशोक कुमार - 2000 यो गक वन प त व ान, र तोगी पि लकेश स,
मेरठ
9. ए. एम. बै े - 20049 Practical Botany र तोगी पि लकेश स, मेरठ
10. बी. आर. व श ठ - 2004 ए गी एस. चाँद ए ड क पनी, नई द ल
11. डा. पी. सी. वेद , नरं जन शमा, आर. एस. धनखड - 2005, ायो गक वन प त शा ,
रमेश बुक डपो, जयपुर

5.7 बोध न के उ तर
बोध न 1
1. व छ व गहरे 2. ले कया अव था
3. वा. लोबेटर, वा. ो ल फकस 4. वषमयु मक
बोध न 2
1. ह मैटो ोम 2. अगु णतक
बोध न 3

99
1. ब बाकार 2. लो यूल
3. उभारयु त व स पल लहर यु त 4. खारे जल म ।

5.8 अ यास काय


नबंधा मक न
1. वॉलवॉ स के ाि त थान एवं थैलस संरचना का स च वणन क िजए ।
2. वॉलवॉ स म ल गक जनन का स च वणन क िजए ।
3. वॉलवॉ स के जीवन च का स च वणन क िजए ।
4. कारा क सु काय संरचना का ववरण द िजए ।
5. कारा म जनन तथा प रवधन का स च वणन क िजए ।
6. कारा के जीवन च एवं पीढ़ एका तरण का वणन क िजए ।

100
इकाई 6 : वाउचे रया एवं ए टोकापस : आवास, संरचना,
जनन एवं जीवन च (Vaucheria and
Ectocarpus : Habitat, Structure,
Reproduction and Life cycle)
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 वाउचे रया
6.2.1 वग कृ त ि थ त
6.2.2 ाि त थान
6.2.3 थैलस संरचना
6.2.4 को शका संरचना
6.2.5 जनन
6.2.6 पु ध
ं ानी
6.2.7 अ डधानी
6.2.8 नषेचन
6.2.9 न ष ता ड का अंकुरण
6.2.10 जीवन च
6.3 ए टोकापस
6.3.1 वग कृ त ि थ त
6.3.2 ाि त थान
6.3.3 थैलस संरचना
6.3.4 को शका संरचना
6.3.5 वृ
6.3.6 जनन
6.3.7 नषेचन
6.3.8 यु मनज का अंकु रण
6.3.9 अ नषेक जनन
6.3.10 पीढ़ एका तरण
6.4 सारांश
6.5 श दावल
6.6 संदभ थ

6.7 बोध न के उ तर

101
6.8 अ यास काय

6.0 उ े य
तु त इकाई म आप वाउचे रया व ए टोकापस के बारे म जानकार ा त करगे । दोन सद य
के ाि त थान अथात ् सं ह हेतु उ चत थान के बारे म बताया जायेगा । साथ ह इनके थैलस
के बा य ल ण, आंत रक संरचनाएँ, जनन व स पूण जीवन च का वणन दया जायेगा, िजससे
वधाथ गण इन दोन शैवाल के बारे म जान पायगे ।

6.1 तावना
इस इकाई म दो शैवाल सि म लत कये गये हँ । पहला सद य वाउचे रया जै थोफाइसी वग का
सद य है और पीत-ह रत शैवाल कहलाता है । इसम लोरो फल वणक क तुलना म
केरो टनोइ स क अ धकता होती है, िजससे ये पीला-हरा दखाई पड़ता है ।
कु छ वै ा नक ने ( श, 1954, आयगर 1951) इसे लोरोफाइसी वग के साइफोने स गण म
रखा । पर तु बाद म राउ ड, कॉट, ि मथ आ द ने इसे जै थोफाइसी म थाना त रत कर
दया । इनके कारण आगे वग करण म समझाये जायगे ।
वाउचे रया क लगभग 54 जा तयाँ पाई जाती ह, िजसम से भारत म केवल 9 मलती ह ।
र धावा ने 1942 म वा. टे रेि स (V. terrestris) क खोज क थी ।
ए टोकापस फयोफाइसी वग का सद य है । इस वग के शैवाल को भू रा शैवाल (Brown
Algae) कहते ह । इसक लगभग 1500 जा तय का ान है, िजनम से भारत वष म 93
जा तयाँ मलती ह । अ धकतर सद य समु जल म पाये जाते ह । इसक च ान पर मलने
वाल जा त का नाम है ए. अरे बकस । ए टोकापस क को शकाओं म भूरे रं ग का वणक
यूकोजै थीन चुर मा ा म पाया जाता है । यह कारण है क शैवाल भू रा दखाई दे ता है ।

6.2 वाउचे रया


6.2.1 वग कृ त ि थत
वभाग  थैलोफाइटा (Thallophyta)
उप वभाग  शैवाल (Algae)
वग:जे थोफाइसी  (Xanthophyceae)
गण:साइफोने स  (Siphonales)
कु ल:वाउचे रया  (Vaucheria)
वभेदा मक ल ण :
वग - जे थोफाइसी
1. वणक लवक म वण लोरो फल a, b, , - केरोट न व जे थो फल । केरोट नोइ स क
अ धकता से थैलस पीले, हरे रं ग के ।
2. को शका भि त म कलन अ धक मा ा म उपि थत ।
गण - साईफोने स

102
1. थैलस एक को शक य, पटर हत, संको शक य (Coenocytic)
2. सं चत खाध तेल बूँद के प म ।
कु ल - वाउचे रएसी
1. ल गक जनन वषमयु मक (Oogamous)
2. चल बीजाणु बहु कशा भक य ।
6.2.2 ा त थान
सु काय व वध आवास म पाया जाता है । जा तयाँ अ धकांशत: अलवणीय या थल य होती ह ।
इसक लगभग 54 जा तय का पता ह, िजनम कु छ मु त प से ला वत रहती ह व अ धकांश
संल न (fixed) होती ह । कु छ जा तयाँ जैसे वा. से स लस, वा. हे माटा व वा. टे रि स नमी
वाल म ी पर पाई जाती है ।
भारत म इसक कर ब 9 जा तयाँ मलती ह । उनम कु छ ह- वा. अन सनेटा, वा. से स लस, वा.
पोल पमा आ द । इराडी (Erady) ने वा. मेया डेि सस (V. mayyandensis) को केरल क
खारे पानी क झील से खोजा था ।
6.2.3 थैलस संरचना
वाउचे रया का थैलस पीत-ह रत (yellow-green) , सघन काल न (felt) के प म पाया जाता
है। थल य तथा संल न जा तय म यह शा खत संल नक या मू लाभास (branched holdfast)
से आधार पर चपका रहता है । शा खत संल नक को थापनांग (hapteron) कहा जाता है ।
थैलस पीला-हरा, शा खत, नाल नुमा (siphonaceous) व खु रदरे त तु ओं वारा न मत होता है।
शैवाल पटर हत, बहु के क संको शक (Coenocytic) होता है । वृ असी मत कार क तथा
अ थ (apical) होती है । शाखन ाय: एकला ी (monopodial) व कु छ जा तय म
समशा खत होता है । त तु ढ़ को शका भि त से घरा रहता है । वाउचे रया के त तु
काशनुवतन (phototropism) द शत करते ह ( च 6.1) ।

च 6.1 : वाउचे रया थैलस

103
च 6.2 (A) : वाउचे रया थैलस का उद काट

च 6.2 (B) : वाउचे रया थैलस का अनु थ काट


6.2.4 को शका संरचना
को शका भि त थल य जा तय म ह मोट होती है । जब क जल य जा तय म अपे ाकृ त
पतल होती है । को शका भि त दो परत क बनी होती है । बाहर परत पैि टन (Pectin)
यौ गक क तथा अ तःपरत से यूलोज़ (Cellulose) क बनी होती है । को शका भि त क
सतह पर चू ने का न ेपण (deposition) होता है ।
को शका भि त के अ दर के भाग म को शका य क पतल प ी पाई जाती है तथा त तु के
म य म सतत ् के य रि तका (continuous central vacuole) पाई जाती है । थैलस
पटर हत होता है, िजससे यह एक बड़ी को शका जैसा दखाई दे ता है । के य रि तका म
को शका रस (Cell Sap) भरा होता है । को शका य म कई ब बाकार (Disc shaped)
ोमेटोफोर पाये जाते ह, जो पाइर नोइड र हत होते ह । ती काश म यह गोल हो जाते ह ।

104
वाउचे रया म सं चत भोजन तेल बूँद के प म पाया जाता है । त तु संको शक होते ह और
इनम कई के क को शका य म पाये जाते ह (6.2 A, B) ।
त तु जैस-े जैसे वृ को ा त होता है , के क भी समसू ी वभाजन के वारा सं या म वृ
करते है।

च 6.8 : वाउचे रया - मु दराकार चलबीजाणु


6.2.5 जनन
वाउचे रया म जनन का यक, अल गक व ल गक कार का होता है ।
1. का यक जनन : यह वख डन (fragmentation) वारा होता है । जब कभी दुघटनावश
त तु अलग - अलग ख ड म टू ट जाता है, तब येक ख ड एक वत व सू म सुकाय के
प म यवहार करने लगता है । त के थान पर नया पट बन जाता है ।
2. अल गक जनन : अल गक जनन व भ न कार से होता है तथा यह व भ नता वाउचे रया
के आवास पर नभर करती है । थल य जा तयाँ व जल य जा तयाँ जब जल से ढक जाती
ह, तब इनम चलबीजाणु (Zoospores) का नमाण होता है । थल य जा तय म अल गक
जनन न चे ट, अचल अथवा सु त बीजाणु ओं से होता है।

105
च 6.4 : चलबीजाणु के अंकु रण क अव थाएँ
(i) चलबीजाणु (Zoospores) : जल य जा तय म अल गक जनन चलबीजाणुओं वारा होता है
। इनका नमाण चलबीजाणुधा नय म होता है । कसी भी शाखा के अ त थ भाग म
को शका य एक त होने पर वह फूलकर चलबीजाणुधानी म पा त रत हो जाती है । यह
एक गदाकार अथवा मु दराकार (Club Shaped) संरचना होती है ( च 6.3) । इनम अनेक
के क व वणक लवक इक े हो जाते ह । इसके आधार पर पट नमाण होने से यह शेष
त तु से कट जाती है । चलबीजाणु धानी म वणक लवक व के क क उ ट हो जाती है,
िजससे के क प रधीय व वणक लवक म य भाग म आ जाते ह । इस या को तलोमन
(inversion) कहते ह । येक के क के वपर त दो असमान कशा भकाएँ आधार य
क णका से उ प न होती ह । चलबीजाणु धानी के अ सरे क भि त का िजले टनीकरण हो
जाता है और एक छ बन जाता है । इस छ के वारा चलबीजाणु का वमोचन होता है ।
(च 6.4)

106
च 6.5 : अचल बीजाणु ओं का अंकु रण
चलबीजाणु क संरचना (Structure of Zoospores) :
चलबीजाणु अ डाकार अथवा गोल, बड़ा और बहु को शकय संरचना होती है । जीव य म बाहर क
ओर अनेक के क और अ दर क ओर अनेक ोमेटोफोर होते ह । इसम एक के य रि तका
(Vacuole) होती है । कशा भकाओं क ल बाई असमान होती है ।
चलबीजाणु का अंकुरण :
चलबीजाणु बीजाणुधानी से वमु त होकर कुछ समय तैरता रहता है । इसके बाद कसी अधो तर
पर चपक जाता है तथा कशा भकाओं का याग करके अपने चार ओर पतल भि त का नमाण
कर लेता है । अंकु रत होने पर यह एक या दो न लकाकार अ तवृ य को ज म दे ता है, िजनम
एक थापनांग तथा दूसर का यक त तु उ प न करती है ।
(ii) अचलबीजाणु (Aplanospores) : थल य जा तय म तथा कुछ समु जा तय म
अचलबीजाणु तकूल ि थ तय म बनते ह । इनका नमाण छोट पा व य शाखाओं के शीष
पर होता है । अचलबीजाणु धानी म पतल भि त वाला बहु के क अचलबीजाणु उ प न होता
है तथा अचलबीजाणुधानी के अ त थ सरे क भि त के िजलेटनीकरण वारा वमु त हो
जाता है ( च 6.5) ।
(iii) न चे ट बीजाणु (Akinetes) : ये कम ताप म तथा जल क कमी के समय बनते ह ।
तकू ल प रि थ त म त तु पट नमाण वारा मोट भि त बनाकर न चे ट बीजाणु
पा त रत हो जाते ह । प रप व होने पर यह अंकु रत होकर नया सु काय बना लेते ह । कु छ
जा तय म सु काय का जीव य त तु म पट बन जाने से छोटे-छोटे टु कड़ म बँट जाता है ।
येक टु कड़े के चार ओर मोट भि त बन जाती है तथा पूरे सुकाय म न चे ट बीजाणुओं
क माला बन जाती है । इस अव था को ो गोसीरा अव था (Grongosira Stage) कहते
ह (च 6.6) ।

107
च 6.6 : न चे ट बीजाणु का नमाण

च 6.7 : वाउचे रया - पु ध


ं ानी व अ डधानी
3. ल गक जनन (Sexual Reproduction) :
यह वषम यु म क कार का अ डयु मन (Oogamous) होता है । नरजननांग को पुध
ं ानी
(Antheridium) तथा मादा जननांग को अ ड धानी (Oogonium) कहते ह । ( च 6.7)
अ धकतर जा तयाँ उभय लंगा यी (Monoecious) तथा कुछ एक लंगा यी (Dioecious) होती
ह । दोन जननांग, पु ध
ं ा नयाँ तथा अ डधा नयाँ पास - पास उ प न होती ह ।
6.2.6 पु ध
ं ानी (Antheridium):
इनका प रवधन मु य त तु अथवा उसक शाखाओं पर होता है । शाखा के दूर थ छोर म
को शका य सघन हो जाता है, िजससे यह न लकाकार दखाई दे ता है तथा कु ड लत हो जाता
है । इसम अनेक के क होते ह तथा एक पट वारा यह शेष थैलस से अलग हो जाता है ।

108
येक के क म समसू ी वभाजन होते ह और येक के चार ओर जीव य एक त हो जाता
है । इस कार बना येक ख ड काया तरण वारा एक वकशा भक पुमणु (giflagellated
antherozoid) बना लेता है । पु ध
ं ानी के शीष पर एक छ के वारा पुमणु ओं का वमोचन
ातःकाल से कु छ समय पूव होता है।
बोध न 1
1. वाउचे रया म ो गोसीरा कसे कहते है ।
........................................ .....................................................
.............................................................................................
2. वाउचे रया म..................... शाखन होता है ।
3. वाउचे रया का ोमे टोफोर ..............होता है ।
6.2.7 अ डधानी (Antheridium) :
अ डधानी का प रवधन छोट पा व शाखाओं के अ त थ भाग पर अ तवृ के प म आर भ
होता है । यह गोलाकार अथवा अ डाकार संरचना होती है । इसके नचले भाग म पट बनने से
यह मु य त तु से अलग हो जाती है । इसम अनेक के क, ोमेटोफोर और तेल क णकाएँ पाई
जाती ह । कु छ समय बाद इसम एक ह के क बचता है । अ डधानी के अ त थ भाग का
िजलेटनीकरण होने से एक छ बनता है, िजससे पुमणु अ डधानी म वेश करते ह । अ डधानी
का जीव य को शका भि त से अलग होकर सकु ड़ ता है व अ ड (Egg) म पा त रत हो
जाता है । अ ड के अ भाग पर ाह थल (receptive spot) होता है ।
6.2.8 नषेचन (Fertilization)
पु ध
ं ानी से पुमणु ओं का वमोचन तथा अ डधानी क भि त म छ का नमाण लगभग एक ह
समय पर होता है । अ डधानी से रसते हु ए ले मा म तैरते हु ए कई पुमणु अ डधानी म वेश
कर जाते ह, क तु केवल एक पुमणु ाह ब दु वारा अ ड म वेश कर पाता है । नर तथा
अ ड के क के संयोजन से वगु णत यु मनज (Zygote) का नमाण होता है । ( च 6.8)
ह रत लवक क लोरो फल न ट होकर हमटो ोम बनने से यु मनज लाल रं ग का दखाई पड़ता
है । इसका वमोचन अ डधानी क भि त के फटने से होता है ।

109
च 6.8 : वाउचे रया - जननांग का प रवधन व नषेचन

110
च 6.9 : न ष ता ड का अंकु रण

च 6.10 : वाउचे रया : जीवन च का आरे खी च


6.2.9 न ष ता ड का अंकु रण (Germination of zygote)
अनुकू ल प रि थ तय म न ष ता ड अथवा यु मनज का अंकु रण होकर नए सुकाय का नमाण
होता है । अंकु रण से पहले इसके के क म अधसू ी वभाजन वारा चार अगु णत के क बनते

111
ह । इसके बाद सभी के क म समसू ी वभाजन होते ह । न ष ता ड का जीव य जल
अवशो षत करके फूल जाता है, िजसके दबाव से न ष ता ड क भि त टू ट जाती है तथा
अंतः भि त से घरा जीव य जनन न लका के प म बाहर आ जाता है । पहले थापना ग
(Hapteron) का नमाण होता है और बाद म थैलस बनता है ( च 6.9) ।
6.2.10 जीवन च (Life cycle)
वाउचे रया का जीवन च अ य लोरोफाइसी के सद य के समान अगु णतक कार का होता है ।
पादप अगु णत होता है तथा वगु णत अव था यु मनज तक ह सी मत होती है । यु मन ज म
अधसू ी वभाजन से पुन: अगु णत अव था ा त होती है , अत: पूरे जीवन च म वगु णत
अव था अ पका लक होती है और जीवन च अगु णतक (Haplontic) कहलाता है ( च 6.10,
6.11) ।

च 6.11 : वाउचे रया - च ा मक जीवन च

112
बोध न 2
1. वाउचे रया म पु ंधानी. ...... .......... ....... होती है ।
2. वाउचे रया म न ष ता ड के अं कु रण से . . ....... के क बनते ह ।
3. वाउचे रया के चलबीजाणु को या कहते ह ?
...................................................................................................
...................................................................................................
...................................................................................................

6.3 ए टोकापस
6.3.1 वग कृ त ि थ त
वभाग  थैलोफाइटा (Thallophyta)
उप वभाग  शैवाल (Algae)
वग  फओफाइसी (Phaeophyceae)
गण  ए टोकापल ज (Ectocarpales)
कु ल  ए टोकापसी (Ectocarpaceae)
वंश  ए टोकापस (Ectocarpus)
वभेदा मक ल ण :
वग - फओफाइसी (Phaeophyceae)
1. सद य वषमता तु क (Heterotrichous), आभासी मृदुतक (pseudoparenchymatous)
व मृदूतक (Parenchymatous)
2. काश सं लेषी वणक लोरो फल a, b केरोट न, यूकोजेि थन , वाइलाजैि थन डाइटोजैि थन।
3. खा य पदाथ ले मने रन टाच व मे नटोल के प म सं चत होता है ।
गण - ए टोकापल ज
1. पादप त तु वत,् वषमत तु क , बेलनाकार, शा खत ।
2. अ तवशी (Intercalary) वृ ।
3. वषमयु मक ल गक जनन अनुपि थत ।
कु ल - ए टोकापसी
1. पादप वषमता तु क तथा एक पंि तक वभािजत त तु ओं का बना हु आ होता है ।

113
च 6.12 : ए टोकापस - पादप वभाव
6.3.2 ाि त थान
ए टोकापस मू ल प से ठ डे व ु वीय े म पाया जाने वाला समु , भू रा शैवाल है । यह ठ डे
समु म तट य व उपतट य े म प थर व च ान पर पाया जाता है । भारत म यह पि चमी
तट पर समु पौध अथवा पथर ल च ान पर मलता है । उदाहरण व प ए. कोनीफेरस (E.
Coniferous) व ए. ा वआ ट यूलेटस (E. braviarticulatus) यूकस व लै मने रया क
जा तय पर अ धपादप (Epiphyte) के प म कया जाता है । भारत म ए. फेसी यूलेटस क
लगभग सोलह जा तयाँ पाई जाती ह । इनम कु छ वत व अ य अ धपादप होती ह ।
6.3.3 थैलस संरचना
थैलस मु यत: वषमत तु क (Heterotrichous) जो क यान (prostrate) व उ व (erect)
भाग म वभे दत रहता है । यान भाग थैलस को आधार (substrate) से संल न रखता है ।
मु त लावी (free floating) जा तय म यह भाग सु वक सत होता है । यान त क
शाखाओं के समकोण पर एक दूसरे से अलग उद त तु पाये जाते ह ।
उ व भाग त तु ओं के गु छ से बना होता है । यह शा खत व सु वक सत होता है । सभी त तु
ाय: एकपंि तक (uniseriate) होते ह । कुछ जा तय म पा व शाखाएँ सरे पर नुक ल होती ह
(tapering) व रोम (hairs) के स य दखाई पड़ती ह । ये रोम ले मा ा वत करते ह ( च
6.12) ।
6.3.4 को शका संरचना
ए टोकापस म येक को शका वगाकार अथवा बेलनाकार होती है । येक को शका एक के क
होती है व दो तर य को शका भि त से ढक रहती है । इनम बा य परत पेि टन (Pectin) व

114
अ तःपरत से यूलोज (Cellulose) क बनी होती है । पेि टन क परत म मु यत: एि जन
(Algin) व यूकोइ डन (Fucoidin) पाये जाते ह, जो फयोफाइसी वग क को शका भि त के
वश ट ल ण ह ।

च 6.13 : ए टोकापस - को शका संरचना


येक को शका म एक या अ धक प ी पी, अ नय मत अथवा च काभ वणक लवक
(chromatophores) उपि थत होते ह । वणक लवक पायर नायड (Pyrenoid) र हत होते ह
एवं इनम लोरो फल a, c, केरोट न, यूकोजैि थन अथवा यूकोजैि थन अ धक मा ा म पाये
जाते ह । यूकोजैि थन क अ धकता से वणक लवक का रंग भू रा दखाई पड़ता है । को शका म
सं चत भोजन मै नटॉल (Mannitol) व लै मनै रन टाच (Laminarin Starch) के प म पाया
जाता है ( च 6.13) ।

115
च 6.14 : (A) बहु को ठ य बीजाणु धानी (B) एकको ठ य बीजाणुधानी
6.3.5 वृ (Growth)
ए टोकापस म थैलस क वृ यान व उद त तुओं म अलग कार से होती है । यान भाग म
वृ शीष (Apical) कार क होती है । उद अथवा उ व भाग म उद शाखा क आधार के
पास वाल को शकाएँ वभा योतक हो जाती ह । इनम वृ अ तवशी (Intercalary) कार से
होती है।
6.3.6 जनन (Reproduction)
जनन मु य प से दो कार का होता है- अल गक तथा ल गक ।
1. अल गक जनन (Asexual Reproduction) :
इस कार का जनन बीजाणुधानी वारा होता है । यह दो कार क होती ह ( च 6.14 A, B)
(क) एकको ठक बीजाणुधानी
(ख) बहु को ठक बीजाणुधानी
(क) एकको ठक बीजाणुधानी (Unilocular Sporangium) :
ये वगु णत थैलस पर पाई जाती ह । इनका नमाण छोट उपशाखाओं के शीष पर होता है ।
उपशाखा क शीष को शका बढ़कर गोलाकार अथवा द घवृ ताकार हो जाती है । इसका के क
पहले अधसू ी (Meiosis) व बाद म समसू ी वभाजन के वारा 32 से 64 अगु णत के क
(nucleus) बना लेता है । जीव य भी वभािजत (cleavage) होकर एक ह को ठक म कई
ख ड बना लेता है, िजसके कारण इसे एक को ठक बीजाणु धानी कहते ह । इनम येक ख ड
एकके क अगु णत (uninuecleate haploid) व वकशा भक चलबीजाणु (Biflagellate
Zoospores) म काया त रत हो जाता है । बीजाणुधानी म शीष भि त पर एक छ बन जाता
है व सभी चलबीजाणु जीवनच इस छ म से ले म से घरे रहकर एक साथ ह बीजाणुधानी
से बाहर आ जाते ह । कु छ समय सु ताव था म रहने के बाद जल म तैरते हु ए सभी चलबीजाणु
अपने शीष के वारा अधो तर पर संल न हो जाते ह । कशा भकाओं का काय समा त हो जाने

116
पर वे न ट हो जाती ह व बीजाणु अपने चार ओर एक भि त ा वत कर लेते ह । इसके प चात ्
इनका अंकुरण (germination) होता है व जनन न लका बनती ह (Germ Tube) । इस जनन
न लका के पुन वभाजन के फल व प यान त तु बनता है । इसी त तु क को शकाएँ अ
त तु ओं का नमाण भी करती है । येक चलबीजाणु अगु णत होता है, अत: थैलस भी अगु णत
ह बनता है ( च 6.15) ।

च 6.15 : ए टोकापस - एकको ठ य बीजाणुधानी प रवधन क अव थाएँ


(ख) बहु को ठक बीजाणुधानी (Pleurilocular Sporangium)
यह वृ तयु त (Stalked) अथवा अवृ तीय (sessile) होती ह एवं उद शाखाओं व उपशाखाओं
के शीष पर वक सत होती ह । ये बीजाणुधा नयाँ भी वगु णत पादप (diploid plant) पर पाई
जाती ह । ये बहु को शक य अथात ् कई सौ को शकाओं से यु त 20 - 40 अनु थ सोपान
(tires) म यवि थत रहती ह । इसम येक को शका घनाकार (cuboidal) होती है ।
बीजाणुधानी ारि भक (initial) के वभाजन के समय इसके वगु णत के क म मा समसू ी
वभाजन होते ह । येक को शका का जीव य काया तरण के वारा एक वगु णत चलबीजाणु
बनाता है, जो एक के क होता है । जब बीजाणुधानी प रप व हो जाती है , तब एक छ से
चलबीजाणु मु त हो जाते हँ । येक चलबीजाणु के पा व म दो कशा भक होते ह जो बाद म

117
न ट हो जाते ह व बीजाणु अपने चार ओर भि त क नमाण कर लेते ह । कुछ समय प चात ्
अंकु रण (germination) के वारा एक जनन न लका का नमाण होता है । इसके पुन वभाजन
से एक यान त तु (Prostate filament) बनता है । क त तु ओं का नमाण जीवन- करती ह
। इस कार वगु णत थैलस बनता है , जो प रप व होकर दोन कार क अथात ् एकको ठक
बीजाणुधा नय का नमाण करता है ( च 6.16)
ल गक जनन (Sexual Reproduction) :
ए टोकापस म अ धकांशत: असमयु मक (Anisogamous) कार का ल गक जनन पाया जाता
है । बहु को ठक यु मकधा नयाँ अगु णत पादप पर बनती ह, िजनम यु मक का नमाण होता है ।
यु मकधानी अवृ त अथवा वृ तयु त हो सकती है । ये पा व उपशाखाओं क अ थ को शका
(Apical cell) से उ प न होती ह । शीष को शक यु मकधानी ारि भक का काय करती है ।
इसम समसू ी वभाजन (Mitotic Division) वारा एक त तु बनता है, जो अनु थ व
अनुदै य वभाजन से बहु को शक य यु मकधानी बना लेता है । यु मकधा नय क संरचना
बहु को ठय बीजाणुधा नय के समान होती है । इ ह बहु को ठ य यु मकधानी कहते ह । इसक
येक को शका घनाकार (Cuboidal) होती है, िजसम एक के क (Uninucleate) व एक ह
वणक लक होता है । येक को शका का जीव य पा त रत होकर एक नाख पी, वकशा भक ,
एकके क अगु णत यु मक म प रव तत हो जाता है । बाद म पा व भि त पर एक छ के
वारा ये मु त हो जाता है ।

च 6.16 : ए टोकापस : बहु को ठ य बीजाणु धानी प रवधन क अव थाएँ


118
(क) ए टोकापस म कायक असमयु मन (Physiological Anisogamy) पाई जाती है (ए.
स ल यूलोसस) । इसम संयु मन करने वाले यु मक आकार (Shape) व संरचना
(Structure) म समान होते ह, पर तु कायक (Physiology) म भ न होते ह । मादा
यु मक शी कशा भका र हत हो जाते ह, जब क नर यु मक कंशा भक ह रहते ह व स य
होते ह । नर यु मक मादा यु मक के स पक म आने के प चात ् उसके साथ संयोिजत हो
जाता है । इस कार वगु णत यु मनज बन जाता है ( च 6.17)।

119
च 6.17 : ल गक जनन - बहु को ठ य यु मकधानी :
(1) समयु मक, (2) पु ज
ं ी भवन, (3) नषेचन, (4) न ष ता ड

120
(ख) ए टोकापस क कुछ जा तय म (ए. सक डस) आका रक असमयु मन (Morphological
anisogamy) पाई जाती है । इसम दोन यु मक आकार म असमान. होते ह । साथ ह
दोन दो असमान यु मक धा नय म वक सत होते ह । छोटे यु मक लघुयु मकधा नय
(Microgametangia) म, जब क बड़े यु मक गु यु मकधा नय (Megagametangia) म
वक सत होते ह । दोन संयोिजत होकर वगु णत (Diploid) यु माणु (Zygospore) का
नमाण करते ह ( च 6.18) ।

च 6.18 : ए टोकापस - थैलस आका रक असमयु मन दशाते हु ए


(ग) ए टोकापस क कुछ अ य जा तय जैसे, ए. पेडाइनी (E. Padinae) म अ डयु मन
(Oogamy) पाया जाता है । नर ल गक अंग अथवा पुध
ं ानी (Antheridium) एक को शक
या बहु को शक होते ह, जो एक अथवा अ धक यु मक बनाते ह । अ डधानी (Oogonium)
एकको शक होती है, िजनम एक अ ड प रव धत होता है ( च 6.19) ।

121
च 6.19 : ए टोकापस - वषमयु मन
6.3.7 नषेचन (Fertilization)
नषेचन जल म होता है । यु मक भ न- भ न सुकाय से बनते ह और संयोिजत होते ह (ए.
स ल यूलोसस) । इस कारण ए टोकापस म अनुवां शक भ नता पाई जाती है । नषेचन क
ं ीभवन (clump formation) दखाई पड़ता है (बथ ड, 1881) । मादा यु मक
या से पूव पु ज
का नर यु मको के साथ अपने अ ं ीभवन , कहलाता है ।
कशा भक से जु ड़कर घरे रहना ह पुज
दूसरा कशा भक ग त करने म मदद करता है । यु मन के प चात ् शेष नर यु मक वतं होकर
तैरते रहते ह । समयु मक जा तय म संय लत होने वाले यु मक सभी ल ण म समान होते है
व एक ह यु मक धानी म वक सत दो यु मक संय लत हो सकते ह ।

122
च 6.20 : ए टोकापस - जीवन च

123
बोध न 3
1. ए टोकापस का रं ग भू रा................... क उपि थ त के कारण होता है ।
2. ए टोकापस म सं चत भोजन................. होता है ।
3. ए टोकापस क एक परजीवी जा त का नाम बताइए ।
....................................................................................
...................................... ..............................................
4. ए टोकापस म पु ंजीभवन कसे कहते ह, बताइये ।
....................................................................................
...................................................................... ..............

च 6.21 : ए टोकापस - समाकृ तक पीढ़ एका तरण


6.3.8 यु मनज का अंकु रण (Germination of zygote)
यु मनज व ामाव था द शत नह ं करता है इसका अंकु रण नषेचन के तु र त प चात हो जाता
है । अंकु रण के समय समसू ी वभाजन पाया जाता है । यह कारण है क इससे उ प न सु काय
वगु णत होता है ।

124
6.3.9 अ नषेक जनन (Parthenogenesis)
यु मक संय लत नह ं हो पाते है। वे अंकुरण वारा यु मकोद भद बना लेते ह (पेपेनफस, 1935) ।
E. Viresuns और E. padinae म यु मकोद भ ाव था क मु खता का कारण स भवत:
यह या है ।
6.3.10 पीढ एका तरण (Alternation of generation)
ए टोकापस स ल यूलोसस (E. Siliculosus) के जीवन च (Life Cycle) का अ ययन
सव थम नाइट, फायन व पेपनफस ने कया था । इनके अनुसार ए टोकापस स ल यूलोसस के
जीवन च म यु मकोद भद व बीजाणुद भद पी ढ़याँ आका रक प से समान होती ह । इनम
एका तरण पाया जाता है । इसे समाकृ तक पीढ़ एका तरण (Isomorphic Alternation of
Generation) कहा जाता है ( च 6.20, 6.21) ।

6.4 सारांश
वाउचे रया व छ जल य, समु अथवा थल य आवास म पाया जाता है । थैलस शा खत,
नल य अथवा साइफनी एवं त तुल होता है , िजसम शीष थ वृ पाई जाती है । पट का नमाण
केवल जननांग के नमाण के समय ह होता है । जनन का यक, अल गक एवं ल गक तीन
कार से होता है । च (Fritsch) ने वाउचे रया के चलबीजाणु को सनजू पोर माना है ।
वाउचे रया म ल गक जनन वषमयु मक क कार का होता है तथा यु मनज बनता है ।
वाउचे रया का जीवन च अगु णतक कार का होता है ।
ए टोकापस का थैलस वषमत तुक होता है , जो याम तथा उ व भाग म वभे दत होता है ।
को शकाएँ वगाकार या बेलनाकार और एक के क होती ह । येक को शका म सं चत खा य
मे नटोल और ले मने रन के प म होता है । अल गक जनन संरचनाएँ एक को ठक व
बहु को ठक बीजाणु धा नयाँ कहलाती ह । ए टोकापस क अ धकांश जा तयाँ असमयु मक होती ह।
यु मनज व ामाव था द शत नह ं करता तथा अंकु रत होकर वगु णत सु काय का नमाण
करता है ।

6.5 श दावल
1. न लकाकार शैवाल (Siphonaceous) : वे शैवाल, िजनम थैलस बहु के क तथा पटर हत
हो ।
2. वषमत तुक (Heterotrichous) : थैलस म दो भाग पाये जाते ह । एक भाग आधार के
समाना तर व दूसरा उ व त तुओं से बना होता है ।
3. न चे ट बीजाणु : कुछ को शकाएँ वषम प रि थ त म भोजन. संचय कर मोट भि त यु त
हो जाती ह, िज ह न चे ट बीजाणु कहते ह ।
4. सचल बीजाणु अथवा संयु त बीजाणु: वाउचे रया म अनेक वकशा भक चलबीजाणु सं यु त
होते हँ, िज ह सचल बीजाणु कहते ह ।
5. कशा भक (Flagellated) : कशा भका यु त, ग तशील शैवाल ।
125
6. परजीवी शैवाल : वे शैवाल, जो भोजन के लए अ य पादप पर नभर ह ।

6.6 संदभ ंथ
1. ो. एच. सी. ीवा तव, 1991 - ए गी, फ जाई, बै ट रया, वाइरस, लाइके स - भाग 1 -
यू नवसल पि लकेशन, आगरा।
2. संह, पा डे, जैन - 2004, Diversity of Microbes and cryptogams - र तोगी
पि लकेश स, मेरठ ।
3. जे. पी. शमा, एम. डी. शमा - 2006 - सू म जीव तथा टोगे स म व वधता - सा ी
पि ल शंग हाउस, जयपुर।
4. डॉ. पी. सी. वेद द , नरं जन शमा, आर. एस. धनखड़q - 2005, सू म जैवीय एवं
अपु पो द व वधताएँ - रमेश बुक डपो, जयपुर ।
5. जे. पी. सैनी, कैलाश अ वाल, मंजल
ु ा के . स सेना, अनुजा यागी - 2003, सू म जैवीय एवं
अपु पो द व वधताएँ - कॉलेज बुक हाउस , जयपुर ।
6. ओ. पी. शमा - 1986 – Textbook of Algae – Tata Mcgraw Hill, New Delhi
7. बी. आर. व श ठ - 2004, ए गी - एस. चाँद ए ड क पनी, नई द ल ।
8. डॉ. पी. सी. वेद , नरं जन शमा, आर. एस. धनखड - 2005 - ायो गक वन प त शा ,
- रमेश बुक डपो, जयपुर ।
9. ए. एम. बै े - 2004, Practical Botany - र तोगी पि लकेश स, मेरठ ।
10. डॉ. अशोक बै े , अशोक कुमार - 2000 - योगा मक वन प त व ान - र तोगी
पि लकेश स, मेरठ ।
11. डॉ. पी. सी. वेद , आर. एस. धनखड़, रे खा र तोगी - 2004 - ायो गक वन प त शा
- रमेश बुक डपो, जयपुर ।
12. जे. पी. सैनी 1998 - ायो गक वन प त व ान - कॉलेज बुक हाउस , जयपुर ।

6.7 उ तरमाला
बोध न 1
1. ो गोसीरा 2. एकला ी 3. च क
बोध न 2
1. मु दाकार 2. अनेक अगु णत 3. स जू पोर
बोध न 3
1. यूकोजेि थन 2. लै मने रन व मे नटॉल 3. ए.फे स यूलेटस
4. ए टोकापस म नषेचन के समय मादा यु मक अनेक नरयु मक के वारा घर जाता है ।
इस अव था को पुज
ं ीभवन कहते ह ।

6.8 अ यास काय


1. वाउचे रया क पुध
ं ानी व अ डधानी प रवधन का च स हत वणन क िजए ।

126
2. वाउचे रया के व श ट ल ण दे ते हु ए उसक वग कृ त ि थ त का वणन क िजए ।
3. वाउचे रया के जीवन च का स च वणन क िजए ।
4. ए टोकापस म ल गक जनन का स च वणन कर ।
5. ए टोकापस म व भ न जीवन च के कार बताइये ।
6. ए टोकापस क एक को ठक व बहु को ठक बीजाणुधानी का स च वणन कर ।

127
इकाई 7 : पोल साइफो नया-आवास संरचना, जनन व
जीवनच (Polysiphonia – Habitat Structure,
Reproduction and Life Cycle)
इकाई सरचना
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 वग कृ त ि थ त
7.3 आवास
7.4 थैलस संरचना
7.4.1 आधार यान त
7.4.2 उ व त
7.4.3 द घ शाखाय
7.4.4 लघु शाखाय
7.4.5 को शका संरचना
7.4.6 वृ
7.5 जनन व जनन के कार
7.5.1 अल गक जनन
7.5.2 ल गक जनन
(a) नर जननांग
(b) मत जननांग
(c) नषेचन
(d) नषेचनोपरा त प रवतन
(e) स टोकाप या काप बीजाणु द भ
(f) चतु क य बीजाणु द भ
7.6 जीवनच व पीढ़ एका तरण
7.7 सारांश
7.8 श दावल
7.9 स दभ थ
7.10 बोध न के उ तर
7.11 अ यासाथ न

7.0 उ े य
इस इकाई का उ े य लवण जल य लाल शैवाल पोल साइफो नया के जीवन च के सम त
पहलु ओं से अवगत कराना है । इस हे तु स बि धत वग रोडोफाइसह के सामा य ल ण तथा

128
पोल साइफो नया के आवास, वभाव सु काम सरंचना व पीढ़ एका तरण आ द का व तृत
अ ययन करना है ।

7.1 तावना
पोल साइफो नया रोडोफाइसी संवग (class) का सद य है । यह लाल शैवाल कहलाता है ।
रोडोफाइसी म 831 वश ( ड सन 1973) तथा लगभग 4000 जा तयाँ ह, जो अ धकतर समु
जल (Marine Water) म पाई जाती है । लगभग 200 जा तयाँ अलवणीय जल (Fresh
Water) म पाई जाती है । भारत म इस संवग के 117 वंश तथा 348 जा तयाँ (शमा व खान
1980) मलती है । शैवाल के इस संवग को साधारण भाषा म लाल शैवाल (Red Algae)
कहते है । इस वग के व श ट ल ण न नानुसार है : -
1. अ धकांश लाल शैवाल समु जल (Sea Water) म पाये जाते है। जो ाय: महासमु म
वशेषकर द णी गोला के उ ण (Tropical) एवं गम शीतो ण (Warm temperate)
े म सामा य प से मलते ह ।
2. लाल शैवाल समु म च ान या दूसरे अकाब नक अ य: तर (Substrate) पर उगती है,
क तु कभी कभी दूसर शैवाल पर अ धपादप (Epiphytic) के प म उगती है तथा कुछ
अ य जा तयाँ अ य लाल शैवाल के रयो नमा (Choreonema) पर परजीवी (Parasite) के
प म पाई जाती है । कु छ जा तयाँ अ तर वार य े (Intertidal zone) और उपवेला
चल य (Sub-littoral) े म पाई जाती हो कुछ लाल शैवाल जा तयाँ तो समु जल म
200 मीटर गहराई तक मलती है।
3. इस समू ह का कोई भी सद य चल (Motile) नह ं है। यह तक क जनन को शकाएं
(Reproductive cells) भी बना कशा भकाओं (non-flagellated) क होती है।
4. अ धकांशत: लाल शैवाल बहु को शक होते है, क तु कुछ जा तयाँ एक को शक भी होती है।
थैलस संगठन एकल अ ीय (Uniaxial) जैसे डु मोि टया (Dumontia) बे े को पमम
(Batracrospermum) अथवा बहु अ ीय (Multiaxial) जैसे पोल साईफो नया होता है।
5. शैवाल का लाल रं ग उनम उपि थत फाइकोइ र न व फाइकोसाइ नन (r -
Phycoerythrin) नामक फाईको ब ल नन वणक के कारण होता है।
6. लाल शैवाल के वणक लवक (Chromoplasts) ए म लोरो फल a एवं b तथा  व 
कैरो ट स, जै थो फल व बल ोट स होते है।
7. सं चत भोजन पलो र डयन टाच और ले टोसाइड, लो रडोसाइड होते है।
8. वणक लवक म बैगीओइडी उपकुल के सद य के अलवास अ य म पाइर नाइड का अभाव
होता है ।
9. को शका भि त का नमाण सेलु लोस पेि टन, तथा पोल स फेट ए टस (Polysulphate
esters) वारा होता है ।

129
10. थैलेस के पट म गत (Pits) उपि थत होते है ।
11. का यक जनन केवल एकको शका सद य म पाया जाता है ।
12. अल गक जनन एकल बीजाणु या मानो पोटर (Monospores) वबीजाणु, या बाई पोर या
पोल पोर (Polyspires) वारा होता है ।
13. ल गक जनन वषययु म क (Oogamous) कार का होता है । नर यु मक घानी को
अचलपुमणुधानी (Spermatangium) तथा ी यु मक धानी को काप गो नयम कहते है ।
14. सद य के जीवन वृत अ यागु णत या हे लोबाय टक अथवा अ धगु णत या ड लोबाय टक
कार के होते है।
वग करण :
रोडोफाइसी भाग म एक संवग रोडोफाइसी है, तथा इस संवग म दो उपसंवग बनाये गये है ।
इस भाग का व तृत वग करण इस कार है । यह श वारा तपा दत है । ड सन (1881)
ने भी रोडोफोम भाग म एक वग रोडोफाइसी क रे खा तथा इसे दो वग म इस कार बांटा –

एक आडर इसे छ: आडर म वभािजत कया गया है।


(1) बगी एल ज़ (Bangiales)
1. नयो लयोनेल ज़ (Nemialionales)
2. िजले डएल ज़ (Gelidales)
3. टो लयेल ज़ (Cryplsnemiales)
4. िजंडार नएल ज (Gigartinates)
5. रोडो न मएल ज़ (Rhodomeniales)
6. सरे मएल ज़ (Ceramiales)

7.2 व गकरण ि थ त
वग  रोडोफाइसी
उपवग  लो रडी
गण  सरे मएल ज
कु ल  रोडोमीलेसी
वंश  पो लसाइफो नया
1. उपसंवग तो रडी (Florideae)
(i) थैलेस आभासी मु तक य िजसक वृ गु बदाकार (dome shaped) शीष को शका से
होती है ।
(ii) पड़ोसी को शकाओं म गत संयोजन (pit connection) होते है

130
(iii) थैलस संगठन एक अ ीय (uniaxial) अथवा बहु अ ीय (multiaxial) होता है।
(iv) नषेचन के उपरा त काप गो नयम से उ प न सहायक को शका (auxillary cell) अ य
को शकाओं से काप गो नयम का संबध
ं बनाती है ।
(v) नषेचनोपरा त प रवतन से काप पोरोफाइट बनता है, िजसम वगु णत काप पोर
उ प न होता है ।
(vi) काप पोर अंकु रत होकर वगु णत चतु क चतु क बीजाणु द भ बनाता है । इसम
चतु क बीजाणु धानी म अध सू ी वभाजन से अगु णत चतु क बीजाणु (Tetraspores)
का नमाण होता है । ये अगु णत यु मकोद भ बनाते है ।
2. गण - सरे मएल ज (Ceramiales)
(i) थैलस संगठन एक अ ीय होता है । अ म पव सि ध (node) पाये जाते है ।
(ii) बेलनाकार अ ीय त तु के वभाजन से व कुट का नमाण होता है, िजससे पादपकाय
बहु साइफनी (Polysiphonous) हो जाता है ।
(iii) शाखाएं सं धता ी (Sympodial) कार से उ प न होती है ।
(iv) नषेचन उपरा त सहायक को शका का वभेदन धारक को शका (supporting cell) से
होता है ।
इस गण को चाल कुल म बांटा गये है । इस अ याय म कु ल - रोडो मलेसी व उसके वंश पोल
साइफो नया का वणन कया जा रहा है ।
1. कुल - रोडो मलेसी (Rhodomelaceae)
(i) थैलस बहु साइफनी (Polysiphonous) होते है ।
(ii) थैलस पर पा व वभाजी शाखाएं पाई जाती है ।
(iii) अचल पुमणु धानी (Spermatangium) तथा ोकाप जननशील ाइको ला ट (Fertile
tricoblasts) पर उ प न होते है ।
(iv) स टोकाप कलश के आकार (Urn Shaped) का होता है । जो पेर काप से ढका रहता
है, िजसम नि चत छ होते है ।

7.3 आवास (Occurrence)


पोल साइफो नया क लगभग 150 जा तयाँ है, जो समु जल म पाई जाती है । समु म इसक
जा तयाँ अ तरा वार य (intertidal) तथा वेलांचल य (littoral) दे श म उगती है । ये
अटलां टक महासागर (Atlantic) के अमर क महा वीप के कनारे अ धकता से मलती है। भारत
म इसक 16 जा तयाँ पाई जाती है। (शमा व खान 1980)। इसक जा तयां इन आवास म
मलती है।
(i) पोल साइफो नया इलोगेटा (Polysiphonia elongata) समु कनार के प थर पर ।
(ii) पोल साइफो नया वेर गेटा (Polysiphonia verigata) म वू (Mangroves) पर अ धपादप
(Epiphytic) तथा मु हान पर दू षत जल म ।

131
(iii) पोल साइफो नया आ सओलेटा (Polysiphonia elongata) ले मने रया (Laminaria)
नामक भू रे शैवाल पर अ धपादप (Epithytic) प म ।
(iv) पोल साइफो नया फे ट िजएटा (Polysiphonia festigiata) ऐ कोफाइलम
(Ascophyllum) भू र शैवाल पर अध परजीवी के प म पाया जाता है ।

7.4 थैलस संरचना


पोल साइफो नया का थैलस त तु क होता है । तंतु ओं के बार बार शा खत होने से पोल साइफो नया
का थैलस, कोमल सु दर तथा परवीय (Feathery) दखाई दे ता है। पादप शर र वा तव म वषय
तंतु क (Heterotrichous) है जो दो तरह से त तुओं (Filaments) से बना होता है ।

च - 7.1 : पोल साइफो नया : A. वभाव, B. थापनांग त , C. आधार य भाग D.


याम एवं वायवीय त तथा संल नक ब ब (Attachment disc)
7.4.1 आधार य यान अथवा वसपीं (Prostrate creeping):
ये त तु अध तर (Substratum) के समाना तर फैले रहते है। इनक अधोसतह (Lower
surface) से कई एक को शक (Unicellular) रं गह न मोट भि त वाले मू लाभास (Rhizoids)
उ प न होते है। ये मूलाभास थैलस को अध तर पर चपकाये रहते है। पोल साइफो नया इलोगेटा

132
तथा पोल साइफो नया वायले सया म यान त तुओं का अभाव होता है तथा उ वभाग क
आधार य को शकाओं से मूलाभास उ प न होते है।

च 7.2 : पोल साइफो नया : A. शीष भाग का आव धत व प


B-C. के य तथा प र धय साइफन

133
च - 7.3 : पोल साइफो नया : A. थैलस का अनु थ काट को टकल साइफन र हत.
B. वृ थैलस को अनु थ काट को टकल को शकाओं स हत
7.4.2 उ वतं या उ वत तु (Upright or vertical filament)
इनक उ पि त यान त तु ओं से होती है। यह भाग कोमल पंख नुमा (Feathery) उ व सरल
तथा वभाजी शा खत होता है। थैलस का मु य भाग एक दूसरे के समाना तर ि थत त तुओं
वारा बना होता है, इ ह साइफन कहते है। इनका शीष भाग नर तर वृ करता है। एक अ ीय
या के य साइफन (Axial or central siphon) होता है िजसके चार ओर 4 से 20
समाना तर त तु लगे रहते है । इनक सं या येक जा त म नि चत होती है। येक साइफन
म को शकाएं एक के उपर एक म से लगी रहती है। अत: पव सि ध (node) व पव
(Internode) यु त तीत होती है। अ ीय साइफन क को शकाएं अपे ाकृ त अ धक बड़ी तथा
एक के क होती है। साइफन से बना थैलस बाहर से िजले टनी आवरण से ढका रहता है।
पोल साइफो नया न ीकस म थैलस क पुरानी शाखाओं म पेर से ल को शकाएं प रनत प म
वभािजत होकर अपे ाकृ त छोट को शकाएं बनाती है। ये को शकाएं कोट स (Cortex) न मत
करती है, इन थैलस पर दो कार क शाखाएं उ प न होती है।
7.4.3 द घ अथवा पोल साइफोनस शाखाएं (Polysiphonous Branches)
इनक वृ असी मत होती है , अत: इ ह असी मत वृ शाखाएं (Unlimited growth
Branches) कहते है। इनक संरचना मु य अ के समान होती है अथात ् ये बहु साइफनी होती
है ।
7.4.4 लधु अथवा मोनोसाइफोनस शाखाएं (Monosiphonous branches)
सी मत वृ वाल छोट एक साइफनी शाखाएं ाइको ला ट (Trichoblast) कहलाता है। ये
वभािजत शाखाएं होती है, तथा मु य अ से उपर भाग म स पल म म व या सत पाई
जाती है। जैसे जैसे थैलस वृ करता है , ाइको ला ट झड़ जाते है। इनक उ पि त मु य त तु
क उपशीष थ को शका के तरछे वभाजन के फल व प होती है। ाईको ला ट फलद (Fertile)
व ब ध (sterile) ए होते है। फलद ाइको ला ट पर जननांग उ प न होते है।

134
7.4.5 को शका संरचना (Cell Structure)
को शकाएं ाय: द घत एवं बेलनाकार होती है। येक को शका व तर य भि त से घर रहती
है। बाहर भि त पैि टन तथा भीतर सै कूलोज क बनी होती है। को शका के म य म वृहद
के य रसधानी (Central Vacuole) तथा प र ध पर जीव य न हत होता है। येक
को शका म अनेक ब बाभ, वणक लवक (Chromatophores) पाये जाते है। जो पायीरनोइड
र हत होते है। शीष को शका एवं ाइको ला ट क को शकाओं म वणक लवक
(Chromatophores) अ प अथवा अनुपि थत होते है। वणक म लोरो फल a, b तथा  व
 कैरो टन, जै थो फल, r- फाइकोसाइ नन रख ,r-फाइकोइ र न नामक फाइको ब ल स पाये
जाते है। को शका य म पलोरोडीन टाच सं चत भो य पदाथ के प म पाया जाता है। संल न
को शकाएं गत जोड़ (Pit - Connection) से जु ड़ी रहती है।

च -7.4 : पो लसाइफो नया को शका संरचना (Polysiphonia – Cell Structure)


7.4.8 वृ (Growth)
थैलस क वृ गु बदाकार शीघ को शका से होती है। यह के य साइफन के अि तम न न सरे
पर ि थत रहती है। यह शीष को शका अनु थ वभाजन से के य अ (Central axis)
बनाती है। पा व य शाखा बाडी को शका के नीचे कु छ दूर पर ि थत के य अ को शका से
उ प न होती है । के य अ को शकाएँ उ त वभाजन वारा 'प रधीय को शकाएँ बनाती ह ।
अत: बहु साइफनी संरचना का नमाण अ ीय साइफन के वभाजन से होता है ।

135
च -7.5 : पोल साइफो नया A-D थैलस क वृ क अव थाय

7.5 जनन (Reproduction)


पोल साइफो नया जीवन च म तीन कार के थैलस पाये जाते है। इनम से एक यु मकोद भ
तथा दो बीजाणुद भ होते है-
(i) यु मकोद भ (Gametophyte)
(ii) काप बीजाणु द भ (Carposporophyte)
(iii) चतु क यबीजाणु द भ (Tetrasporophyte)
(i) यु मकोद भ (Gametophyte) : यह वतं अगु णत पादप है जो ल गक जनन म भाग
लेता है। नर यु मकोद भ म पुमणु धा नयां (Spermatangia) तथा ी यु मकोद भ से
काप गो नयम (Carpogorium) का वकास होता है।
(ii) काप बजाणु द भ (Carposporophyte) : यह वगु णत पादप है। इसका नमाण ल गक
जनन से बने यु मनज (Zygote) से होता है। यह पादप मादा यु मकोद भ पर ि थत होता
है तथा उस पर परजीवी के प म नवाह करता है। इससे वगु णत काप पोस का नमाण
होता है।
(iii) चतु क बीजाणु द भ (Tetrasporophyte): ये पादप वगु णत काप बीजाणुओं से वक सत
होते है। यह पादप चतु क य बीजाणु ओं (Tetraspores) के बनने के समय अधसू ी
वभाजन करता है अत: ये बीजाणु अगु णत होते है। चतु क यबीजाणु द भ अल गक जनन
करते है।

136
पोल साइफो नया म जनन अल गक (Asexual) एवं ल गक (Sexual) व धय से होता है।
7.5.1 अल गक जनन (Asexual reproduction)
पोल साइफो नया म अल गक जनन चतु क बीजाणुओं (Tetraspores) ए वारा होता है। तथा
अल गक जनन वगु णत पादप करता है। इन बीजाणुओं का नमाण चतु क बीजाणु धानी
(Tetrasporangium) म होता है। चतु क य बीजाणुधानी प रके य (Pericentralcells) से
बनती है। प रके य को शका म उद वभाजन से एक बाहर व एक भीतर को शका बनती है।
इनम से बा य संत त को शका अनु थ वभाजन वारा दो आवरण को शकाएँ (Cover cell)
बनाती है। आ त रक को शका बीजाणुधानी मातृको शका (Sporangial Mother cell) के प म
काय करती है। आ त रक को शका (बीजाणुधानी मातृ को शका ) वभाजन वारा वृ त को शका
तथा चतु क बीजाणु को शका बनाती है। यह को शका बड़े आकार क हो जाती है , इसका
वगु णत के क अधसू ी वभाजन से चार अगु णत के क बनाता है। चार अगु णत के क
चतु कफलक य (Tetrahedral) म म यवि थत हो जाते है तथा इसके प चात को शका य
के वदलन से चार अगु णत चतु क बीजाणु (tetraspores) बनते है।
जब चु त क यबीजाणु प रप व हो जाते है तथा बीजाणुधानी क भि तयाँ घुल जाने के कारण यह
फट जाती है। दोन आवरण को शकाओं (Covercell) के ल बवत ् थक होने से चु त क यबीजाणु
मु त हो जाते है। मु त हु ए चतु क बीजाणु ओं का अंकु रण काप बीजाणु ओं के समान होता है। चार
चतु क बीजाणुओं म से दो नर यु मकोद भ तथा दो मादा यु मकोद भ को ज म दे ते है।
7.5.2 ल गक जनन (Sexual Reproduction)
पोल साइफो नया म ल गक जनन अ डयु मक (Oogamous) कार का होता है । पादप
वषमजा लक (Heterothallic) या (Dioecious) होते है । अथात नर व मादा जननांग अलग
अलग यु मकोद भ पादप पर उ प न होते ह एवं अका रक प से सम प होते हे । ल गक
जनन क या म कई पद (Steps) न हत है, िजनका वणन इस कार है ।
(a) नर जननांग (Male reproductive organs) : नर जननांग को पुघ
ं ानी (Antheridum
or spermatangium) कहते है, यह नर यु मकोद भ के शीष के नकट ि थत फलद लघु
शाखाओं (Trichoblast) म सघन समू ह म वक सत होते है । कुछ जा तयां म जैसे पो.
लेनोसा (P - lanosa) म ाइको ला ट क दोन शाखाय पुघा नय यु त होती है , जब क
ं ानी समू ह होता है, दूसर शाखा सामा य रोम
अ धकांश जा तय म केवल एक शाखा पर पु घ
कारक के समान होती है जो बं य होती है । बं य शाखाएं पुन : वभािजत होकर ब ध अ
(Sterile Axis) का नमाण करती है । पु घ
ं ानी शाखा अशा खत होती है एवं सफेद अथवा
ह के पीले वण क होती है ।

137
च - 7.6 : पोल साइफो नया : नर जननांग. A. जनन म ाइको ला ट के साथ
पमटे ि जया, B - C. पमटे ि जयम को शका का प रवधन, L - S म
D. पमटे ि जयम समू ह का T.S.
(i) पु ध
ं ानी क संरचना (Structure of Antheridium) : येक पु घ
ं ानी एक गोलाकार
संरचना होती है, यह एक को शक य तथा एक के क होती है, इसक भि त तीन परत
म वभे दत होती है । इनम से बा य परत मोट , अ यपरत िजले टनी तथा भीतर परत
अ य त अपवतक (refrective) होती है । पुधानी का एक क य जीव य काया त रत
होकर अणु का नमाण करता है । प रप व होने पर पुधांनी के शीष पर भि त के फटने
से पुमणु मु त हो जाते है । पुमणु पतल भि त यु त अचल कार के होते है । िज ह
जल क तरं गे बहाकर ीधानी के मु ख तक पहु ंचा दे ती है ।
(ii) पुधानी का प रवधन (Development of Spermatangia) : पु ध
ं ानी , शाखा
(Antherilial Branch) क नीचे क दो को शकाओं को छोड़कर सभी को शकाएं
वभािजत होकर म य साइफन तथा पेर से ल साइफन को ज म दे ती है। पेर से ल
साइफन को येक को शका पुधानी मातृ को शका (Antheridial Mother Cell) का
काय करने म स म होती है । ऐसी येक को शका वभाजन प चात (2 से 4) तक
पुघा नय का नमाण करती है ।
(b) मादा जननांग (Female reproductive organ) : यु मकोद भ पादप पर ी जननांग
काप गो नयम (Carpogonium) उ प न होते है । ी पादप के फलद ाइको ला ट
(Fertile Trichoblast) या 'काप गो नयम शाखा ' (Carpogonial Branch) पर मु य
अ के सामने काप गो नयम उ प न होती है ।

138
(i) काप गो नयम क संरचना (Structure of Carpogonium) : काप गो नयम ला क
नुमा संरचना होती है । इसका आधार य भाग फूला हु आ तथा शीष भाग न लकाकार
ाइकोगाइन या ीधानी रोम (Trichogyne) के प म होता है । काप गो नयम का
ाइकोगाइन ाह थल (receptive organ) होता है । काप गो नयम 4 को शकाओं के
बने व त काप गो नयम त तु (Carpogonial Filament) के शीष पर ि थत होती है
। काप गो नयम त तु क आधार य को शका को धारक को शका (Supporting Cell)
कहा जाता है । धारक को शका के नचले भाग म दो को शक आधार बं य त तु
(Basal sterile filament) होते है ।

च -7.7 : पोल साइफो नया : काप गो नयम व ोकाप के प रवधन क व भ न अव थाएं


(Various stages of carpogonium and procarp development in
Polysiphonia)

139
(ii) काप गो नयम का प रवधन (Development of Carpogonium) : ी
यु मकोद भ क फलद ाइको ला ट पर काप गो नयम का प रवधन होता है। ी
ाईको ला ट ारि भक का प रवधन मु य अ के शीष को शका के 3- 4 को शका नीचे
ि थत भाग क अ ीय को शका (Axial cell) से होता है।
ाईको ला ट 5 से 7 को शका ल बा होता है। ी ाईको ला ट क आधार य को शका
के वभाजन से प रधीय को शका का नमाण होता है । यह प रधीय को शका जो अ के
स मु ख होती है, धारक को शका (Supporting Cell) म पा त रत हो जाती है। धारक
को शका एक ारि भक (initial) को शका उ प न करती है । इसके वभाजन से 4
को शक व त (Curved) काप गो नयम त तु (Carpogonial Filament) बनाता है।
इस त तु क अ त थ (Terminal) को शका काप गो नयम मातृ को शका का काय
करती है। यह मातृ को शका ला कनुमा काप गो नयम म पा त रत हो जाती है। इस
प रवतन के साथ साथ धारक को शका नीचे तथा पा व म एक एक बं य को शकाएं
उ प न करती है। ये मश: आधार य बं य त तु ारि भक (Basal Sterile filament
initial) तथा पा व बं य त तु ारि भक (Lateral Sterile filament initial)
पा व य बं य त तु ारि भक, वभािजत होकर 2 को शका ल बा पा व य बं य त तु
बना दे ती है।

च - 7.8 : पोल साइफोनया : नषेचनोपरा त प रवतन A. नषे चत काप गो नयम तथा


सहायक को शका का ज म B. सहायक को शका तथा काप गो नयम का जुड़ना C. सहायक
को शका तथा काप गो नयम त तु म अगु णत के क का लु त होना D. बीजाणु द भ का
उ व E. एक प रप व स टोकाप F. काप बीजाणु का वमोचन ।

140
इस अव था पर काप गो नयम नषेचन के लए तैयार रहती है तथा धारक को शका क
पडौसी प र धय को शका म भी वभाजन ार भ हो जाता है।
(c) नषेचन (Fertilization) : काप गो नयम के प रप व होने पर इसक ाइकोगाइन के शीष
से ले मा ा वत होता है। पेमटे ि जया (Spermatangia) से वतं हु ए पम शया
नि य प से समु जल क लहर वारा ाइकोगाइन के नकट आने पर उसके ले मा से
चपक जाते है, तथा दोन के स पक थल क भि तयां धु ल जाती है तथा नर के क के
ाइकोगाइन म आने के प चात काप गो नयम क रि तयाँ सकुड़ती है, िजससे नर के क
धीरे धीरे नीचे क ओर अ ड़के क के समीप पहु ंचकर संलयन कर यु मनज (Zygote)
के क बना दे ता है। इस या को नषेचन कहते है। इस या के साथ साथ ाइकोगाइन
का को शका य संकु चत हो जाता है, िजससे ाइकोगाइन काप गो नयम से अलग हो जाती
है।
(d) नषेचनोपरा त प रवतन (Post fertilization changes and development of
Carposporophyts) : नषेचन के उपरा त मादा जननांग एवं उसक सहयोगी संरचनाओं
म प रवतन होने से काप बीजाणु द भ इस कार से बनते है -
1. दो को शक य ब य त तु (Lateral sterile filament) बार बार वभािजत होकर 4 से
10 को शकाओं का ल बा त तु बनाती है। आधार य ब य त तु ारि भक भी वभािजत
होकर दो या तीन को शक य त तु बनाती है। दोन कार के ब य त तु पोषक होते है।
ये आवरण परत को प रव धत गो नमो ता ट (Gonimoblast) से अलग रखते है।
2. धारक को शक (Supporting cell) के ऊपर भाग म सहायक को शका, (Auxiliary
cell) उ प न होती है यह धारक को शका एवं काप गो नयम के म य म उ प न होती
है। इसम अगु णत के क होता है ।
3. शी ह सहायक को शका एक न लकाकार संरचना वारा काप गो नयम से सब था पत
कर लेती है । इस न लका को ऊ ला ट (Ooblast) कहते हँ ।
4. काप गो नयम का वगु णत के क समसू ी कार से वभािजत होकर दो पु ी
वगु णत के क को ज म दे ता है । इनम से एक वगु णत के क ऊ ला ट वारा
सहायक को शका म आ जाता है । इसके बाद काप गो नयम शाखा का हास होने लगता
है तथा अ त म लु त हो जाती है । इस समय सहायक को शका म एक अगु णत तथा
दूसरा वगु णत के क होता है ।
5. सहायक को शका का अगु णत के क लु त हो जाता है। इ के साथ धारक को शका के
पास क पेर से ल को शकाएँ वभािजत हो प रव धत काप बीजाणु द भ के चार ओर
फल भि त बनाती है।
6. सहायक को शका वगु णत के क समसू ी वभाजन से दो क क है । एक इसी म बना
रहता है तथा दूसरा के क सहायक को शका के ऊपर भाग पर उ प न पा व य उ व

141
(Lateral out growth) म वेश करता है । इस उ व को गो नमो ला ट ार भ कहते
ह । यह अपनी मातृको शका से पट वारा अलग हो जाती है ।
7. गो नयो ला टर ारि भका से कई दो को शक य गो नयो ला ट तंतु (Gonimoblast
filament) को नमाण होता है। जो एक सघन संह त बनाते है।
8. गो नमो ला ट तंतु क शीष थ को शका नाशपाती नुमा काप बीजाणु म पा त रत हो
जाती है । येक काप बीजाणु के ोटो ला ट के काया तरण से एक वगु णत अचल
काप बीजाणु बनता है ।
9. गो नमो ला ट के प रवधन के साथ-साध धारक को शका एवं सहायक को शका संयु त हो
जाती ह, इसके बाद इससे आधार य व पा वींय बं य को शकाएँ संयु त होकर एक बड़ा
अ नय मत आकार क बीजा डासन को शका बना दे ती है।
10. अ तत मादा ाइको ला ट क पेर से ल को शकाएँ वृ कर काप बीजाणु द भ के चार
ओर आवरण (Pericrap) बनाती है । इसके शीष पर छ होता है जो ओि टयोल
(Ostiole) कहलाता है । बीजा डासन काप बीजाणुधानी वाले गो नमो ला ट तंतु तथा
फल भि त (Pericrap) मलकर संयु त ज टल कु भाकार संरचना बनाते ह िजसे
स टोकाप (cystocrap) कहते ह । यह आं शक प से अगु णत व आं शक प से
वगु णत होता है । यह बहु को शक य वृ त पर लगा रहता है ।

च - 7.9 : काप बीजाणु द भ


(f) काप बीजाणु द भ (Carposporophyte) : स टोकाप का वगु णत भाग स टोका पक
पादप (cystocrapic plant) या काप बीजाणु द भ कहलाता है । यह ी यु मकोद भद

142
पादप पर परजीवी होता है । यह वगु णत काप बीजाणु उ प न करता है । जो अगु णत-
को शकाओं के दो परतीय आवरण पेर काप से ढका रहता है । प रप व स टोकाप म
बीजाणुधानी के फटने पर काप बीजाणु मु त होकर आि टयोल से बाहर आकर समु जल म
लहर के साथ तैरते ह ।
काप बीजाणु ओं का अंकु रण (Germination of Carpospores) : कसी ठोस अ यो तर
के स पक म आने पर न न काप बीजाणु अपने चार ओर भि त ा वत कर ले मा वारा
चपक जाते है । थम समसू ी वभाजन से दो असमान आकार क को शकाओं का नमाण
होता है । नीचे वाल को शका छोट तथा ऊपर को शका बड़ी होती है । दोन ह को शकाएँ
एक अनु थ वभाजन वारा वभािजत होती ह, िजनसे चार को शकाओं का रे खीय चतु क
बनता है । इसक सबसे ऊपर वाल को शका अ थ को शका (Apical cell) कहलाती है,
इसके मक वभाजन से अ ीय को शकाएँ उ प न होती है जो म य साइफन बनाती है ।
नचल आधार य को शकाएँ उ त वभाजन से पर से ल को शकाओं का नमाण करती है,
यह या चलती रहती है, तथा एक नया वगु णत पादप चतु क बीजाणुद भद जाता है ।
चतु क बीजाणुद भद (Tetrasporophyte) : इस वगु णत वतं जीवी (Free living)
बीजाणु द भ क संरचना अगु णत यु मकोद भद के समान होती है । इसम अ ीय तथा
पेर से ल को शकाएँ लगभग समान आकार क होती है । इस पादप म पु टका के समान
बीजाणुधानी म चतु क बीजाणु (Tetraspores) उ प न होते ह । इसम केवल अल गक
जनन पाया जाता है ।

च -7.10 : पोल साइफो नया A-C काप बीजाणु के अंकु रण क अव थाएँ

143
च -7.11 : पोल साइफो नया : A। टे ा पोरे ि जया यु त टे ा पोरोफाइट
B. टे ा पोर का प रवधन C. प रप व टे ा योरिजया

7.6 जीवन च एवं पीढ़ एकांतरण (Life cycle and Alternation


of generation)
पोल साइफे नया म प ट पीढ़ एका तरण पाया जाता है । इसका जीवन च तीन प ट
अव थाओं म मश: (i) यु मकोद भद (Gametophyte) (ii) काप बीजाणु द भ
(Carposporophyte) तथा (iii) चतु क बीजाणुद भद (Tetrasporophyte) म पूण होता है ।
इस जीवन च को ाव थी (Triphasic) कहते ह ( च -7.12)।
1. यु मकोद भद नर तथा ी यु मको को ज म दे कर, ल गक या से जनन करता है । यह
वत पीढ़ है । नषेचन (Fertilization) के साथ यह अव था पूण होती है ।
2. काप बीजाणु द भ वगु णत (2n) अव था है, जो ी यु मकोद भद पर परजीवी ह । यह
नषेचन से ार भ होती ह, तथा काप पोस (Carpospores) के बनने पर पूण होती है ।
3. चतु क बीजाणु द भ (Tetrasporophyte) ये वगु णत (2n) अव था ह, जो काप बीजाणु
के अंकुरण से ार भ होती है, तथा चतु क बीजाणु ओं (Tetraspores) के बनने पर पूण हो
जाती ह । चतु क बीजाणु अध सू ी वभाजन से बनते ह, फल व प अगु णत होते ह, ये
अंकु रत होकर अगु णत यु मकोद भद बनाते ह । चू ं क पोल साइफो नया म एक अगु णत (n)
तथा दो वगु णत (2n) ाव थाएँ होती ह । अत: इसका जीवन च ड लोबायोि टक या
अ ध वगु णत कहलाता है । इसम एक यु मकोद भद (gametophytic) पीढ़ नय मत प
से दो बीजाणुद भद (Sporophytic) पीढ़ से एका त रत होती है । ( च - 7.12 जीवन च
का आरे खी)

144
चं -7.12 : पोल साइफो नया : जीवन च का रे खा च ण
बोध न
बहु वक पा मक न ( Objective Questions)
.1 पोल साइफो नया म जननां ग उपि थत होते ह ।
(अ) शीष पर (ब)पा व बहु साइफनी शाखा पर
(स) फलद टाइको ला ट पर (द) मु य अ पर ( )
.2 पोल साइफो नया का फलन काय कहलाता है ।
(अ) पमटे ि तया (ब) गे मटे ि जया
(स) स टोकाप (द) पे र काप ( )
.3 पोल साइफो नया म जीवन च पाया जाता है ।
(अ) है ल टक (ब) ड ल टक
(स) हे लोबायो टक (द) ड लोबायोि टक ( )
. 4 पोल साइफो नया स टोकाप होती है ।
( अ) अगु णत (ब) वग णत
(स) तगु णत (द) बहु ग णत ( )
. 5 पोल साइफो नया म पीढ़ एका तरण कहलाता है ।
(अ) सम पी (ब) व पी
(स) पी (द) उपरो त ( )

145
7.8 सारांश
इस अ याय का ब दुवार सारांश इस कार है –
1. पोल साइफो नया संवग का एक लाल समु जल य शैवाल ह जो राज थान म नह ं पाया
जाता है ।
2. इसका मु य यु मकोद भद थैलस बहु अ ीय होता है ।
3. पोल साइफो नया म कशा भक को शकाओं का नमाण नह ं होता है ।
4. इन शैवाल का लाल रं ग इनम उपि थत r- फाइकोइ र न नामक वणक क धानता के
कारण होता है ।
5. सं चत भो य पदाथ लो र डयन टाच तथा ले टोसाइड लो रडोसाइड होते ह ।
6. पोल साइफो नया म ल गक जनन वषमयु मक कार का होता है । नर यु मकधानी को
अचल पुमणु धानी (Spermatangium) तथा ी जननांग को काप गो नयम
(Carpogonium) कहते है ।
7. इस वंश के जीवन च म तीन कार के थैलस बनते ह । इनम से एक यु मकोद भद तथा
दो बीजाणुद भद । (काप पारोफाइयट त य टे ो पोरोफाइट) होते ह ।
8. यु मकोद भद वत जीवी होता ह तथा दोन बीजाणु द का नमाण मक प से होता
है।
ह । इनम से काप बीजाणु द भ यु मकोद भद पर परजीवी जब क चतु क य बीजाणुद भद वतं
जीवी होता है।
9. पोल साइफो नया म नषेचनोपरांत प रवतन काफ ज टल तथा व तृत होते ह ।
10. नषेचन के उपरा त सव थम काप बीजाणु द भ बनता है िजसम वगु णत काप बीजाणु ओं
का नमाण होता है।
11. काप बीजाणु अंकु रत होकर वगु णत चतु क बीजाणुद भद बनाता ह, िजसम अगु णत
चतु क य बीजाणुओं का नमाण होता ह ।
12. चतु क बीजाणु अंकु रत होकर यु मकोद भद पादप उ प न करते ह ।
13. पोल साइफो नया का जीवन चतु ाव थी या पीढ़ य होता है । इसे समाकृ तक
अ ध वगु णत या वगु णतागु णत भी कहते ह ।

7.9 श दावल
1. अचल बीजाणु (Aplanospores) : यह अ य त पतल भि त वाले अचल बीजाणु होते ह
िजनम ग त हेतु कोई संरचना नह ं ह ।
2. काप गो नया (Carpogonia) : यह ला वानुमा संरचना होती है िजसका आधार य भाग .
फूला हु आ होता है तथा शीष भाग न लकाकार ाइकोगाइन या ीधानी रोम के प म होता
है।
3. काप गाइन (Carpogyne) : काप गो नयम का आधार य फलद (Basal fertile) एवं फूला
हु आ भाग काप गाइन कहलाता है ।

146
4. काप पोरोफाइट या काप बीजाणुद भद (Carposporophyte) : यह यु मनज से उ प न
वगु णत (2n) पादप ह जो ि यु मकोद भद पर परजीवी होता है तथा वगु णत
काप बीजाणु बनाता है, जो अंकु रत होकर चतु क बीजाणुद भद बनाता है ।
5. स टोकाप (Cystocarp) : ी ाइको ला ट क प रधीय को शकाओ से उ व अ तवृि टयाँ
उ प न होकर फल भि त (Pericarp) का नमाण करती है, यह फल भि त बीजा डासनी
को शका तथा काप बीजाणुधा नय को चार ओर से ढक लेती है इस ज टल संरचना को
स टोकाप कहते ह ।
6. अ धपादप उप ररोह (Epiphytes) : दूसरे पादप पर उगने वाले पौधे जो उनसे भोजन नह ं
केवल सप ट ा त करते है ।
7. अ ध वगु णत (Diplobiotic) : िजस पादप के जीवन च म एक अगु णत (n) तथा दो
वगु णत (2n) ाव थाय होती है उसे ड लोबायो टक या अ धगु णत कहते ह ।
8. वषमतंतक
ु (Heterotrichous) : जब पादप म दोन (Prostate and erect) यान
तथा उधव कार के थैलस पाये ह ।
9. शैलोद भ (Lithophyte) : च ान पर उगने वाले पौधे शैलोद भ कहलाते ह ।
10. चतु क बीजाणु (Tetraspores) : ये अधसू ी वभाजन के प चात ् बनते ह व अगु णत
रहते ह, चार के समूह म बनने के कारण इ ह चतु क य बीजाणु कहते ह ।
11. रोमकोरक (Trichoblast) : ये सी मत वृ वाल लघुशाखाय होती ह तथा ब य या
जननांग धारण करती है ।
12. ाइकोगाइन (Trichogyne) : काप गो नयम का शीष भाग न लकाकार ाइकोगाइन या
ीधानी के प म होता है ।
13. एक अ ीय (Uniaxial) : इस कार के संगठन म थैलस एक अ ीय या के य तंतु
(Central Siphon) के प म होता है ।

7.10 स दभ थ
1. Vasistha B.R –Algae for degree students
2. Gemawat, Kapoor and Naryana – A Text book of Algae
3. वमा, गेना व चौधर - शैवाल, लाइकन व ायोफाइटा
4. शमा, जी.पी. व राय संघानी - सू म जीव क व वधता
5. वेद पीसी., शमा, धनकड़ व गु ता - सू म जैवीय व वधताएँ ?

7.11 बोध- न के उ तर
बोध न- 1
1. स 2. स 3. द 4. ब 5. स

147
7.12 अ यासाथ न
लघु तरा मक न
1. लाल शैवाल के पादप शर र कतने कार के होते ह ।
2. लाल शैवाल पोल साइफो नया म कस कार का जीवन च पाया जाता है ।
3. पोल साइफो नया म सं चत भोजन कस प म पाया जाता है ।
4. पोल साइफो नया म गत जोड़ से या ता पय है ।
5. पोल साइफो नया म लेसे टल को शका के नमाण म कौन सी संरचनाएँ भाग लेती ह
नब धा मक न
1. पोल साइफो नया के जीवन च का स च वणन करो ।
2. पोल साइफो नया म ल गक जनन का स च वणन करो ।
3. पोल साइफो नया के चतु क बीजाणु द भद क संरचना व उससे होने वाल जनन व ध का
वणन कर ।
4. पोल साइफो नया म नषेचन परा त प रवधन का वणन करो ।
5. पोल साइफो नया म पीढ़ एका तरण का वणन कर ।

148
इकाई 8 : ायोफाइटा के सामा य ल ण (General
Character of Bryophyta)
इकाई संरचना
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 ायोफाइटा के सामा य ल ण
8.2.1 आवास
8.2.2 वभाव
8.2.3 पोषण
8.2.4 वतरण
8.2.5 थैलस संगठन
(i) थैलाम व प
(ii) प णल व प
8.3 जनन
8.3.1 का यक जनन व उसके कार
8.3.2 ल गक जनन
8.4 एपोगैमी व एपो पोर
8.5 ायोफाइटा म बीजाणु उदामस का वकास
8.6 जीवन च व पीढ़ एका तरण
8.7 सारांश
8.8 श दावल
8.9 स दभ थ

8.10 बोध न के उ तर
8.11 अ यासाथ न

8.0 उ े य
इस इकाई का उ े य ायोफाइटा वग के व भ न पहलु ओं का अ ययन कर इस वग के सामा य
ल ण जैसे-आवास, थैलस संगठन का यक व ल गक जनन, जीवन च तथा पीढ़ एका तरण
आ द से अवगत कराना ह।

8.1 तावना
ायोफाइटा, ए ोफाइटा वग का थम, सरल व आ य पादप सद य का समूह ह। ायोफाइटा
नाम सव थम ाउन (Brown in 1864) ने 1864 म दया। यह श द ीक भाषा के दो श द
मश: ायोन (Bryon) मास (Moss) तथा फाइटोन (Phyton) पादप से मलकर बना ह,

149
िजसका ता पय है मांस जैसा पादप। पर तु ाउन ने इस वग म शैवाल, कवक, लाइकेन व मांस
(Mosses) को भी सि म लत कया था। हैकल (Haeckel) 1866 ने ायोफाइटा तथा
टे रडोफाइटा नाम दये ले कन इ ह भाग नह ं माना। श फर (Schimper) ने 1876 म इसे
सव थम भाग का तर दान कया।
ायोफाइटा भाग म सि म लत पादप को सामा य प म लवरवट (Liver wort), हानवट
(Horn wart) तथा मास (mosses) के नाम से पुकारा जाता ह। इस याग म लगभग 960
वंश तथा 24,00 जा तयां ह, जो व व यापी है। इस वग के पादप, थल य, छोटे एवं कोमल होते
ह, जो ाय: छायादार नम थान पर सघन समू ह म उगते ह। समू ह म उगने वाल वृ त को
यूथी वभाव (Gregarious habit) भी कहते ह। जीवन वृत को पूण करने के लये जल
आव यक होता है। इस लये इ हे पादप जगत के अभयचर (Amphibian of plant kingdom)
कहा जाता है।.

8.2 ायोफाइटा के सामा य ल ण


पादप जगत म ायोफाइटा, जैव वकास क कड़ी म एक ऐसा वग ह िजसके पादप ने सव थम
अपना जीवन च पूण करने म सफलता ा त क।
ये पादप समु म नह ं पाये जाते है। इन पादप म संवहनी ऊतक (Vascular tissues) नह ं
पाये जाते है, इस लये इनके जीवा म नाम मा के ह मलते ह। यह कारण ह क इस वग क
उ पि त का पूण ान नह ं है।
इस भाग म पौध क वशेषताएं इस कार ह -
(i) इस भाग के अ धकांश पादप थल य होते ह, जो नम छायादार थान पर पाये जाते है।
(ii) जीवनच म सु प ट यु मकोद भ (Gametophytic) व बीजाणुद भद (Sporophytic)
अव थाएं पाई जाती है।
(iii) मु य पादप यु मकोद भद (Gametophytic) द घका लक वयंपोषी एवं मु तशाखी होता
है।
(iv) मु य पादप यान (Prostrate) या उ व थैलाभ (Thalloid) होता है। उ व थैलस जो
त भ के समान अ तथा पि तय के स य पा व उपांग (Appendages) म वभे दत
(v) मू लभास एक को शक य एवं अशा खत अथवा बहु को शक य शा खत होते है।
(vi) यु मकोद भ म आंत रक वभेदन नह ं पाया जाता है, अथात ् पौधे का शर र एक ह कार
क को शकाओं का बना होता ह। इनम जनन का यक व ल गक व धय वारा होता है।
(vii) का यक जनन (Vegetative reproduction) थैलस के पुराने भाग क मृ यु एवं य से
(By death and decay of older parts) अप था नक शाखाओं वारा, कंद तथा
गेमी वारा होता है।
(viii) ल गक जनन वषमयु मक व ध वारा होता है।
(ix) नर जननांग पु ध
ं ानी तथा मादा जननांग ीधानी होती है।
(x) पु ध
ं ानी म चल व वकशा भक अणु उ प न होते है।

150
(xi) ला क स य ीधानी के आधार भाग म अचल अ ड ि थत रहता ह। अ ड नषेचन
(Fertilization) के समय बाहर नह ं आता है।
(xii) नषेचन जल क उपि थ त म होता है।
(xiii) यु मनज (Zygote) के वभाजन वारा ू ण बनाता है, ू ण का वकास बह मु खी होता है।
(xiv) ू ण प रवधन एवं वभेदन वारा बीजाणुद भ का नमाण करता है जो पाद सीटा एवं
कै सूल म वभे दत होता है।
(xv) बीजाणुद भद अव था यु मकोद भद पर आ त तथा अ पका लक होता है।
(xvi) बीजाणुद भद के कै सूल से अगु णत बीजाणु बनते है।
(xvii) ायोफाइटा के यु मकोद भद और बीजाणुद भद के बीच वषम पी पीढ़ एका तरण पाया
जाता है।
8.2.1 आवास (Habitat)
ये पादप सामा यत: छायादार नमी वाले थान पर यूथी कृ त (Gregarious habit) अथात ्
समू ह म च ान , प थर , वृ के तन , शाखाओं, पण तथा नमी यु त भू म पर उगते ह। कु छ
जा तयां जैसे - रि सया फलूटे स (Riccia fluitans) रि सयोकापस नेटस (Ricciocarpus
natans) रयेला (Riella)फोि टने लस (Fontinalis) व फेगन (Sphagnum) आ द जल य
(Aquatic) होती है। दूसर ओर कु छ ायोफाइट पादप जैस,े पोरे ला लेट फलो डया (Porella
Plalyphylloidea) च ान तथा वृ क छाल पर कई मह न तक , बना जल के, सफलता
पूवक जीवनयापन कर लेते ह। मांस (Moss) क एक जा त म थल म पाई जाती ह।
डे ो सरोस तथा मसाई क अ धकतर जा तय , उ णक टबंधीय वषा के जंगल (Tropical Rain
Forest) म वृ पर अ धपादपी के प म पाई जाती है।
8.2.2 वभाव (Habit)
ये पादप-थैलाभ (Thalloid) या प णल थैलसय (Leafy) होते है। थैलसी कृ त वाले पादप
अध: तर (Substratum) पर पृ ठे धर (Dorsiventral) होते ह। िजनक नचल सतह पर
भू लाभास पाये जाते ह। प णल पादप उ व (Erect) या लटकते हु ए हो सकते ह। पण म य
शरायु त या बना म य शरा वाल होती है।
8.2.3 पोषण (Nutrition)
अ धकांश ायोफाइट पादप हरे पणह रत यु त तथा वयंपोषी होते ह। पर तु कु छ मृतोपजीवी
(Saprophytic) होते ह। जो सड़े गले का ट के काब नक पदाथ से पोषण लेकर वृ करते ह,
उदाहरण : ब सबो मया (Buxbaumia)
8.2.4 वतरण (Distribution)
ायोफाइटा व व म सभी थान पर वृ के लये अनुकू ल , वातावरण म पाये जाते ह। ये
अ घकांश: उ ण क टब ध (Tropics) तथा उपो ण े (Sub tropics) से लेकर द ण ुव
(Antarctic) एवं उ तर ु व (Arctic) दे श तक पाये जाते ह। यापक वतरण (Wide

151
distribution) वाल जा तयां ाय: कई कार के आवास मे उगती है। कु छ जा तयां व व यापी
होती ह, जैसे यूने रया हाइ ोमे का (Funeria hygrometrica) एवं माक शया पॉल माफा कु छ
जा तयां वशेष े ी होती है।
8.2.5 थैलस संगठन (Thallus organization)
ायोफाइट के यु मकोद भद को दो भाग म वभे दत कया जा सकता ह।
(i) थैलाभ व थ (Thalloid form)
(ii) प णल व प (Leafy form)
(i) थैलाभ व प (Thalloid form) : इस कार के थैलस चपटे , पृ ठाधार (Dorsiventral)
तथा वभाजी (Dichotomously Branched), जो आधार (Substratum) पर यान
(Prostrate) - न म वृ करते ह रि सया(Riccia) माकि शया (Marchaytia)
डे सरोस (Dendroceros) इ या द वंश म थैलस अपा सतह (Dorsal surface) पर
प ट म य शरा (mid rib) पाई जाती ह। जब क ए थो सरोस (Anthoceros) इ या द म
थैलस क अपा सतह पर म य सरा का अभाव होता ह ( च -8.1)
थैलाभ व प म एक को शक य मू लाभास अ य सतह से उ प न होते ह। माकि शए स
(Marchantiales) म च कनी भि त वाले smooth walled तथा ग तक य
(Tuberculated) मू लाभास होते है, जब क जंगरमे नए स (Jungermanniales) एवं
एथो सरोटोि सड़ा (Anthocerotopsida) म केवल चकनी भि त वाले मूलाभास होते ह।
गु लक य मूलाभासो क अ त : भि त (inner wall) अ तव लत होकर खू ट नुमा (Peg like)
ऊभार बनाती ह। माकि शएल ज गण के सद य म थैलस क अ य तह पर दो या चार
पंि तय म बहु को शक, बगनी-लाल रं ग के श क (Scales) पाये जाते है। श क वैजाकार
(Wedge shaped) उपांग र हत या उपांग (Appedage) यु त होते ह। ये तकू ल
प रि थ त म थैलस को सुर ा दान करते ह । जल य जा तय जैसे - रि सयोकापस,
रि सया फ यूटेस (R. fluitans) म मू लाभास एवं श क दोन ह नह ं मलते ह।

152
च -8.1 व भ न कार के थैलाभ ायोफाइटा:
A. रि सया B. माकि शया C. पे लया D. ऐ थो सरोस
(ii) प णल व प (Leafy Form) : इनम एक केि य अ (Central axis) होती है। िजस
पर पि तय के समान संरचनाएं दो पंि तय या स पल म म व या सत रहती ह। अ
त भ के समतु य होता ह, जो अशा खत या शा खत होता ह। यु मकोद भद यान (पोरे ल=
Porella) या उ व (मांस Moss) होता है। ( च -8.2) मसाई (Musci) वग के वंश के अ
के आधार से बहु को शक एवं शा खत मू लाभास उ प न होते ह। मूलाभास पौधे के ि थर करण
व जल तथा ख नज लवण के अवशोषण म सहायक होते ह । मू लाभास कायक प से उ च
पादप के मूल त भ तथा पि तय के समान होते ह। इ ह समवृ त अंग (Analogous
organ) कहते है ।

153
च -8.2 : प णल ायोफाइट : A. पोरे ल B. पोल ाइकम C. फैगनम
थैलाभ व प क आ त रक संरचना (Internal structure of thalloid forms)
अलग-अलग वंश म आंत रक व वधता पाई जाती है। ए थो सरोस, मेगा सरोस तथा मोनो ल य
इ या द के सरल थैलस म आंत रक वभेदन नह ं पाया जाता ह तथा थैलस मृदुऊतक य
(panarchymatous) होते ह।
रि सया (Riccia) माक शया (Marchantia) लेिजयो याजया (Plagiochasma) इ या द म
थैलस आंत रक प म ऊपर काश सं लेषी एवं नचला संचयी े म वभ त रहता ह। काश
सं लेषी े क को शकाओं म लोरो ला ट होते ह जब क संचयी े क को शकाओं म भोजन
का संचय टाच कण के प म होता है । कई वंश म ऊपर अ धचम के नीचे ै तज वायु
को ठक (Horizontal air chamber) क एक परत पाई जाती है । जो एक दूसरे से उद पट
(Vertical Septa) वारा अलग रहते ह । उदाहरणत: माकि शया (Marchantia), टािजयो नया
(Torgionia) आ द। लेिजयो याजया वायु को ठक क कई पंि तयां होती ह। वायुको ठक म
वांगीकारक तंतु (Assiomilatory filaments) पाये जाते ह। उदाहरण रि सया (Riccia) म
समाना तर म म लगे वांगीकारक तंतु होते है। िजनके म य वायुको ठक ि थत होते ह।
वायुको ठक थैलस क अपा सतह पर छोटे -छोटे छ के प म खु लते ह। रि तयाँ सरल छ
होते ह जो 4 से 8 को शकाओं म घरे रहते ह। मकि शया ज टल ढोलकाकार (Barrel shaped)
वायु छ होते ह। इनका नमाण 4 से 8 को शकाओं के अ यारो पत सोपान से होता ह। येक
सोपान म 4-5 को शकांग एक वलय (Ring) के प म यवि थत होती ह।
प णल व प क आंत रक संरचना (Internal structure of leafy form)
प णल हपेट को सीड (Hepticopsid) क को शकाएं सम प होती ह अथात ् ऊतक वभेदन नह ं
पाया जाता ह। व कु ट को शकाओं (Cortical cells) व के य भाग (Central region) या
मै यूला (Medulla) क को शकाओं के आकार व भि तय क मोटाई म केवल अ तर पाया

154
जाता ह। इनम प ट वभे दत संवहन े ड (conducting stand) नह ं होते ह तथा रोह
(Shoot) बाहर सतह के कसी भी भाग से जल अवशो षत कर सकती है। अत: इ ह
ए टोहाइ क (Ectohydric) कहा जाता ह। फैगनम(Sphagnum) , पोल ाइकम
(polytrichum) म नयम (Minium) इ या द म त भ आंत रक प से व कु ट व के य भाग
म वभे दत रहता ह।
इन पौध म जल का संवहन मू लाभास से त भ वारा पि तय तक केि य क संवहन े ड
वारा होता है। इन पौध को ए ोहाइ क (Endrohydric) कहा जाता ह।
पि तय क आंत रक संरचना (Internal Structure of leaf) : सामा तः पि तयां एक को शका
तर य मोट होती है, उदाहरण फोस ा नय(Fossmbrounia) । पि तयाँ समान प से मृदूतक
को शकाओं से न मत होती है तथा म य सरा का अभाव होता है। पि तय क को शकाओं म
अनेक लोरो ला ट तथा तेल काय (Oil body) वभ न व प क होती ह।
फैगनम(Sphagnum) क पण एक को शका मोट होती है ले कन म य सरा अनुपि थत होती
ह। फ टे लस (Fontails) , एि या (Andreaea) इ या द क पि तय म म य सरा पाई जाती
ह। म य सरा के े क को शकाय बेलनाकार व संकर होती है।

8.3 जनन (Reproduction)


इनम (1) का यक (Vegetative) तथा (2) ल गक (sexual) दोन कार का जनन मलता ह।
8.4.1 का यक जनन (Vegetative reproduction)
ायोफाइटा के अ धकांश सद य का यक जनन व भ न व धय वारा करते ह िजससे इनम
ती ता से वंश वृ होती ह यह कई व धय से होता ह, िजनका वणन इस कार है -
(a) ख डन (Fragmentation) - एक सामा य व ध ह। पुराने भाग का मृत एवं यन जब
वभाजी शाखन के आधार तक पहु ंचता ह, तो दोन शाखाएं पृथक हो जाती है और वतं
प से वृ करती ह ।
(b) अप था नक शाखाएं (Adventitious branches) – माकि शया तथा ए थो सरोस ले वस
इ या द म थैलस क अ य सतह से अप था नक शाखाएं उ प न होती ह, जो मातृ पौधे से
थक होकर नये पौधे के प म वृ करती है।
(c) नवाचार (Innovation) शाखाय - अनेक ए ोगाइनस, जंगर म नए लज तथा फै नम म
नवाचार (Innovation) शाखाएं उ प न होती ह तथा उनके अलग होने से नये पादप उ प न
होते ह।
(d) ले डया (Cladia) वारा – ायोि स (Bryopteris) तथा फुल रया (Frullaria) वंश म
तंभ तथा पि तय पर अलग होने वाल शाखाय उ प न होती है जो नया पौधा बनाती ह
इ हे ले डया कहा जाता ह ।

155
च -8.3 : A. ायोफाइटा म का यका जनन के कार A. रि सया म वख डन B. र.
लु टे स म अप था नक शाखाओं वारा C. माकि शया म जेमी वारा D. मटजी रया म गेमी
शीष पर E. यू यूले रया म जेमी F. रि सया क द G. मसाई का ोट नीमा
(e) क लका वारा : ायम (Bryum) क कु छ जा तय म पांत रत शाखाएं क लका प म
अलग हो जाती है व नया पौधा बनाती है।
(f) कंद वारा : रि तयाँ, ए थो सरोस, मटजी रया इ या द म कंद वारा का यक जनन होता
है।
(g) जेमी वारा : माकि शया, ए थो सरोस, मटजी रया इ या द म बहु को शक जेमी थैलस क
अ य सतह पर उ प न होती ह, जब क ायस क जा तय म तंभ के आधार म उ प न
होती है।
(h) ोटो नया वारा : मसाई (Musci) वग के सद य म का यक जनन ाथ मक एवं वतीयक
ोटोनीमा वारा होता है।

156
8.4.2 ल गक जनन (Sexual reproduction)
ायोफाइटा म ल गक जनन वक सत वषमयु मी क (Advanced oorgamous) कार का
होता ह। जननांग बहु को शक तथा जैकेट (Jeacket) यु त होते ह। नर जननांग को पुध
ं ानी
(Antheridium) तथा ी जननांग को ीधानी (Archegonium) कहते ह। पौधे एक
लंगा यी (Dioecious) या व लंगा ी (Monoecious) होते ह। नर व मादा जननांग का
वणन इस कार है-
(a) पु ध
ं ानी (antheridium) : पु ध
ं ानी वृ त यु त तथा बहु को शक (Multicellular) द घकृ त
(Ellipsoidal) या मु दराकार (Club shaped) संरचना होती ह। पुध
ं ानी म एक को शक
बं य आवरण या जैकेट होता है। पुध
ं ानी म असं य वकशा भक अणु (Biflagellated
antherozoids) प रव धत होते है। प रप व होने पर पुध
ं ानी आवरण क को शकाय टू ट
जाती ह, तथा अणु मु त हो जाते ह। येक अणु स पलाकार व त (spirally curved)
होते है।
(b) ीधानी (Archegonium) : प रप व ीधानी एक ला क क आकृ त क संरचना होती
ह इसका नचला चौड़ा व फूला हु आ भाग अ डधा (Venter) कहलाता है तथा ऊपर ल बा,
संकरा भाग ीवा (Neck) कहलाता है। अ डधा का आधार य भाग यु मकोद भद के ऊतक से
संल न रहता ह। ीवानाल (Neck canal) को एक को शक य बं य आवरण घेरे रहता है।
मांस (Musci) म अ डधा का आवरण एक से अ धक को शक मोटा होता ह। ीवा 5 या 8
उद पंि तय क बनी होती ह। यह 6 से 9 को शका या अ धक को शका ल बी होती ह,
िजसके भीतर भाग म 4 या अ धक ीवा नाल को शकाएं (Neck canal cell) होती ह।
ीवा के मु ख पर चार ढ कन को शकाय होती ह। अ डधा के आधार म अ ड (Ovum) तथा
उसके ऊपर क ओर अ डधा नाल को शका (Ventral Canal cells) ि थत होती है।
(c) नषेचन (Fertilization) : यह या उस समय होती है जब जननांग प रप व हो जाते
ह। जननांग क प रप वता तथा पुमणु (Sperm) क ग त के लये जल आव यक है।
ं ानी अपने शीष भाग से फट जाती ह, तथा अणु मु त हो जाते है। इसी समय
प रप व पुध
प रप व ीधानी क ीवा नाल को शकाएं तथा अ डधा नाल को शका वघ टत होकर
लेि मक (Mucilaginous) पदाथ बनाती हँ जो जल अवशो षत कर फूल जाता है। ले मा
के फूलने से उ प न दाब के कारण ढ कन को शकाएं अलग-अलग हो जाती है, िजससे एक
खु ल संकर नाल बन जाती ह। ले मा ीधानी के मु ख पर आ जाता है, इसम मै लक
अ ल तथा पोटे शयम होता ह, जो पुमणु ओं के लये रासाय नक आकषक का काय करते है।
इस कार ीधानी ीवा म अणु का वेश रसायन अनुचलनी (Chemotatic response)
या वारा होता ह। जल क पतल फ म म तैरकर अणु ीवा नाल वारा वेश कर अ ड
तक पहु ंचते ह पर तु इनम से एक अ ड (Egg) से संल यत होकर यु मनज (Zygote)
बनाता ह, इसम समसू ी वभाजन से ण
ू (Embryo) बनता ह, जो बीजाणु द भ म

157
प रव धत होता है। जब नषेचन पूण हो जाता है, तब यु मकोद भद संत त समा त हो जाती
ह, तथा बीजाणुद भद संत त ारं भ होती है।

च - 8.4 : ायोफाइटा के जननांग A. पु ध


ं ानी B. ीधानी
(d) बीजाणुद भद (Sporophyte) : ायोफाइटा के जीवन च म नषेचन के उपरा त दूसर
अव था ार भ होती ह। नषे चत अ ड या यु मनज अपने चार सै यूकोज क

च -8.5 : ायोफाइटा म नषेचन या

158
भि त ा वत करके व ष तांड बनाता है । यह वगु णत होता ह। न ह यह यु मकोद भ
संत त से वतं होता ह और न ह सु त अव था म वेश करता ह। न ष ता ड से ूण
का प रवधन ीधानी क अ डधा म ारं भ होता है। ू (Embryo) बार बार वभािजत

होकर बहु को शक ू ण (Multicelluar embryo) बनाता ह। यह ू ण पोषण यु मकोद भद
से ा त करता ह। ायोफाइटा म ू ण अव था अ पका लक होती है।
(e) पोरोगो नय (Sporogonium) : ू ण म पुन: व भ न तल म वभाजन होते ह तथा यह
वभेदन के प चात ् एक बीजाणुद भद इकाई बनाता ह, इसे पोरोगो नयम कहते ह।
ायोफाइटा म यह पूण एवं मूल र हत होता है तथा अपने स पूण जीवनकाल तक
यु मकोद भद से संल न रहता ह। कु छ सद य म यह यु मकोद भद म धंसा रहता ह,
उदाहरण- रि सया (Riccia)। सामा यत: यह यु मकोद भद से बाहर ि थत होता है तथा
तीन भाग पाद, (Foot), सीटा (Seta) तथा कै सू ल (Capsule) म वभे दत होता है।
रि सया म पाद व सीटा दोन अनुपि थत होते ह। पाद जल व पोषण यु मकोद भद से
अवशो षत करता ह। सीटा पाद वारा अवशो षत पोषण 7को कै सूल तक संवा हत करता ह।
कै सू ल अ त थ होता ह िजसम बीजाणु मातृ को शकाओं (Spore Mother Cells) म
अधसू ी वभाजन वारा अगु णत बीजाणु (Haploid Spores) बनते ह िज ह मयोबीजाणु
(Meiospore) कहते ह। कै सूल म उ प न सभी बीजाणु आका रक प से समान होते ह
अत: सभी ायोफाइटा समबीजाणुक (Homosporous) होते है। बीजाणु मु त होकर
क णत (Disperse) हो जाते है तथा अनुकूल प रि थ त म अंकु रत होकर लवरवट पादप
म सीधे ह नव यु मकोद भद को तथा मसाई म तंतु नुमा हर संरचना ाटोनीमा
(Protonema) को ज म दे ते ह।

159
च -8.6 : ायोफाइटा मे बीजाणु द भ

8.5 एपोगेमी तथा एपो पोर (Apogamy and Apospory)


थैलाम तथा प णत दोन ह कार के ायोफाइटा म एपोगेमी या एपो पोर कभी-कभी पाई जाती
है । एयोगेमी म पबगैर यु मक संलयन के बीजाणु द भद वक सत होता है अथात ् यु मकोद भद
का कोई भाग बीजाणु द भ बनाता है। इस कार का बीजाणु द भ अगु णत तथा अ पका लक
होता ह। एपो पोर के अ तगत बीजाणुद भद म बीजाणु बने बगैर या अधसू ी वभाजन के बगैर
यु मकोद भद उ प न होते ह। इस कार के यु मकोद भद वगु णत होते ह। रंक (Rink 1935)
ने मसाई तथा ए थो सरो टो सडा म एपो पोर को खोजा था।

8.6 ायोफाइटा म बीजाणु द भ का वकास (Evolution of


Sporophyte in Bryophyta)
ायोफाइटा वग म बीजाणु द भ एक सघन व र य (radial) संरचना है । इसका वकास
यु मनज से होता है इसम पा व अंग तथा वपोषण (Self Nutrition) का अभाव होता ह।
इस लये यह

160
च -8.7 : ायोफाइ स म बीजाणु उद भ क गामी वकासीय वृि त A. रि सया
B. फेरोकापस C. टािज नया D. माक शया E. पे लया F. यूने रया
आं शक या पूण प से यु मकोद भद पर पोषण के लये नभर रहता ह । इसका मु य काय
बीजाणु नमाण एवं उनका क णन करना है । ायोफाइटा के व भ न वंश के अ ययन से यह
प ट होता ह, क आकार व संरचना म रि तका का बीजाणुद भद सबसे सरल व यूने रया
(Funaria) म ज टल कार का मलता ह । रि सया से यूने रया अथवा वपर त बीजाणुद भद
का वकास हु आ है । इस संबध
ं म वै ा नक के मत को दो वग म इस कार बांटा गया ह -

161
(i) गामी ब यकरण स ा त (Theory of Progressive Sterilization) : गामी
बं यकरण स ा त के अनुसार रि सया का बीजाणु उद भ सरल व आ दम (Primitive) ह।
इस कार के बीजाणुद भद से ज टल बीजाणु उद भ का वकास फलद बीजाणु ऊतक
(Fertile Sporogenous tissue) के गामी ब यकरण (Sterilization) हो जाने से
हु आ ह। यह भी माना जाता ह क वकास एक दशा म न होकर कई दशाओं म हु आ ह।
केवस (Cavers1911) बावर (Bower, 1935) और कै पबैल (Campbell 1940) ि मथ
(Smith 1952) आ द इस स ा त के समथक रहे है। बावर वारा तु त मत क अ ययन
ायोफाइटा के कु छ वंश ( रि सया से यूने रया तक) के बीजाणु उद भ ऊतक के बं यकरण
का अ ययन इसके सभी वंश म उनक मक अव थाओं के आधार पर होता ह यह सभी
वंश के साथ व तार से दया गया है। व भ न ायोफाइटस म बीजाणुद भद क गामी
वकासीय वृ त के अनु सार है।
(ii) गामी सरल करण स ा त (Theory of Progressive simplification) : कसयप
(Kashyap 1919) चच (Church 1919) गोबेल (Gobel 1930) और इवा स (Evans
1939) आ द वै ा नक के अनुसार रि सया का बीजाणु द भद आ दम (Primitive) न होकर
अत वक सत ह तथा इसका वकास उ तक के गामी सरल करण अथवा हास
(Reduction) से हु आ है। चच (church 1919) के अनुसार ायोफाइटा के बीजाणु द भद
(ए थ सरोटोि सडो, ायोि सडा) के पूवज प णल व वयंपोषी थे। अत: वे यु मकोद भद पर
परजीवी नह ं थे। चच के अनुसार इस प णल बीजाणु द भद म वपोषण का हास
(Reduction) हु आ और इसके यु मकोद भद से संप कत हो जाने के प चात ् मश:
सरल करण होता गया िजसके फल व प रि सया म पाये जाने वाले सरलतम बीजाणुद भद
का वकास हु आ। इसके न न च है।
(i) फुटन उपकरण का सरल करण हु आ।
(ii) कै सू ल भाग म काश सं लेषी ऊतक का मस होता गया तथा बीजाणुद भद क
आ यता का यु मकोद भद से संबध
ं हो गया।
(iii) इस प रवधन के साथ-साथ रं तथा अ तर को शक थान लु त हो गये।
(iv) बहु तर य कै सू ल भि त यूनीकरण वारा एक तर य भि त म प रव तत हो गई।
(v) इसके साथ-साथ सीटा अपह सत हो पाता है तथा अ त म पाद भी लु त हो जाता है।
(vi) ब य ऊतक म कमी के साथ-साथ बीजाणुजन ऊतक क फलदता बढ़ती गई इसके
कारण ब य को शकाएं एवं इलेटर कै सूल म घटते गये। तु लना मक अका रक तथा
अनुवं शका के भाव के आधार पर यह प ट होता गया क बीजाणुद भद वक सत
ले कन य सत संरचना है।

8.7 पीढ़ एका तरण (Alteration of generation)


व लयमसन (Williamson 1904) केवस (Cavers1935) तथा कै पवेल (Campbell 1940)
अ तवशन (Anthithetic theory) स ांत के ढ़ समथक है। इस स ांत के अनुसार मू ल पीढ़
यु मकोद भद ह जो पादप म ारंभ से थी। काला तर म वकास क या म दो उतरो तर
162
यु मकोद भद पी ढ़य के म य एक नव पीढ़ बीजाणु द भद अंतव शत हो गई। इसका अ तवशन
नषेचन व अधसू ण (Meiosis) के म य म हु आ है अत: ारंभ से ह बीजाणुद भद
यु मकोद भद के समान न होकर र त भ न संरचना है। इस मत के समथक का मानना है क
ारं भक थानीय पादप क उ पि त शैवाल से हु ई है। ारं भक थल य पादप उभयचर
प रि थ तय (Amphibious situations) से अ भग मत (Migrate) हु ए ह, जहां पर ल गक
जनन के लये अ य धक मा ा म जल ा त था। इस कार क अव था म ारं भक थल य
पादप केवल ल गक जनन पर ह नभर नह ं कर सकते थे अत: इनम ल गक जनन के यु मनज
से ण
ू प रव धत हु आ जो अ ततः वगु णत बीजाणुद भद म वक सत हो गया एवं यह अव था
जीवन वृत क धान अव था बन गई तथा यह दे खा गया है क सम त ण
ू ीय पादप म
बीजाणुद भद क को शकाओं म गुण सू क सं या वगु णत (2
nd
diploid) होती ह यह
वगुणन नषेचन के कारण होता ह। जैसे -जैसे थल य अव था वक सत होती गई। गुणसू क
सं या के अगु णत होने क घटना (अधसू ण) वलि बत होती गई, और इस कार दो वगु णत
पी ढ़य के म य बीजाणु द भद पीढ़ का अ तवेशन हो जाता है। बीजाणु उद भ का वकास ह रत
शैवाल के यु मनज (Zygote) से हु आ ह। काला तर म जनन अंग तथा बीजाणुद भद के वकास
क या न न संभा वत व प म प रवतन के फल व प हु ई िजनका वणन इस कार है -
(i) जननांग के चार ओर जैकेट का प रवधन होना।
(ii) ीधानी म ह नषे चत अ ड रहता ह, िजससे वह उ चत मा ा म पोषण ा त कर सकता
है।

च -8.8 : ायोफाइटा के पीढ़ एका तरण का रे खा च

163
(iii) यु मनज म समसू ण होने से वगु णत ू ण उ प न होता ह। इसी कार क जैकेट यु त
कई वगु णत को शकाएं या बीजाणु मातृ को शकाएं आ य थल य पादप म दे खी जा
सकती है । अत: ायोफाइटा पादप का जीवन वृत दो पी ढ़य मश: यु मकोद भद
(Gametophytic) तथा बीजाणुद भद (Sporophytic) वारा पूण होता ह। इन दोन
पी ढ़य म सु प ट एका तरण दे खा जाता ह य क दोन पी ढ़याँ एक दूसरे से अका रक
(iv) प (Morphologically) से भ न होती ह अत: ऐसे पीढ़ एका तरण को वषम पी पीढ़
एका तरण (Heteromorphic alternation of generation) कहते ह।
बोध न
Objective Questions
.1. थम थल य पादप कहा जाता है ।
( अ) शै वाल (ब) शै वाक
( स) ायोफाइटस (द) फं गाई ( )
. 2. ायोफाइटा समू ह म सबसे सरल प पाया जाता है ।
( अ) रि सया (ब) पे लया
( स) पोरे ला (द) ए थो सरोस ( )
. 3. गे मा वारा अल गक जनन पाया जाता है ।
( अ) ए थो सरोस (ब) फन
( स) साइकस (द) माक ि शया ( )
. 4. यु मकोद भद भावी पीढ़ के प म पाई जाती है ।
( अ) फन (ब) टे रडोफाइट
( स) ायोफाइट (द) पाइनस ( )
. 5. बीजाणु का वकास बना यु मकसं ल यन के कहलाता है ।
( अ) एपोगमी (ब) नषे च न
( स) ए फ मि सस (द) पारथे नोकाप ( )
. 6. ायोफाइटा के मादा जननां ग कवक के मादा जननां ग से भ न होते है , य क
उनम पाया जाता है ।
( अ) र त को शका (ब) बं य जै के ट को शका
( स) टाक को शका (द) उपरो त सभी ( )
.7. मां स पादप का कै सु ल त न ध व करता ह ।
( अ) यु मकोद भ (ब) बीजाणु द भद
( स) ल गक जननां ग (द) सोरसका भाग ( )
. 8. कसके पोस म ह रतलवक पाया जाता है ।
( अ) फयू ने रया (ब) ाय े रस
( स) राइजोपस (द) यी ट ( )

164
.9. ायोफाइटा मे ोमोसोमका वगु णत न बर पाया जाता ।
( अ) यु मक (ब) पोस
(स) यु मको दका का के क (द) पो भू त को शका ( )
लघु उ तरा मक न
.1. ायोफाइटा सद य को उभयचर य कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………
.2. ायोफाइटा व शै वाल के जनन अं ग म भे द क िजये ?
……………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………
.3. ायोफाइटा के बीजाणु द भ शर र को या कहते ह ?
……………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………
.4. ायोफाइटा के बीजाणु द भ को कतने भाग म बां टा गया ह ?
……………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………
.5. थम थल य पादप क हे कहा जाता ह ?
……………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………

9.9 सारांश
इस अ याय का सारांश इस कार है -
(1) ायोफाइटा (Bryophyta) को पादप का उभयचर (Amphibians) कहा जाता ह य क
यह जल य व थल य दोन जगह रहते ह अथात ् इनक पादप संरचना थल य आवास के
अनुकू ल, पर तु जनन के लये जल क आव यकता होती है। यह मु यत: नमी वाल
जगह पर पाये जाते है।
(2) इन पादप क संरचना थैलस क तरह होती हँ िजनम वा त वक जड़ तना तथा प ती का
अभाव होता है। इन पादप के मू लाभास भू म से जु ड़े रहते ह जो जल तथा लवण का
अवशोषण करते है।
(3) ायोफाइटस म संवहन ऊतक का अभाव होता ह, इनके जीवन च म यु मकोद भ
अव था मु य अव था के प म होती है तथा बीजाणु उद भ अव था यु मकोद भ
(Gametophyte) पर नभर होती है।
(4) इनम जनन का यक (Vegetative) एवं ल गक (Sexual) व धय से होता है।

165
(5) अल गक जनन थैलस के पुराने भाग क मृ यु एवं यन , अप था नक शाखाओं, कंद व
गेमी वारा होती है।
(6) ल गक जनन वषमयु मक व ध वारा होता है ।
(7) नर जननांग पु ध
ं ानी तथा माना जननांग ीधानी कहलाती है ।
(8) पु ध
ं ानी म चल व वकशा भक (Biflagellated) अणु उ प न होते ह।
(9) ला क स य ीधानी के आधार भाग म अचल अ ड ि थत होता ह। अ ड नषेचन
(Fertilization) के समय बाहर नह ं आता ह, नषेचन चल क उपि थ त से होता है ।
(10) यु मनज सु ताव था म नह ं जाता ह तथा अनेक वभाजन वारा ू ण बनता ह। है। ण

का वकास होता ह।
(11) ू ण प रवधन एवं वभेदन वारा बीजाणु उद भ का नमाण करता है, जो पाद (Foot) सीटा
(seta) एवं कै सूल (Capsule) म वभे दत होता है।
(12) बीजाणु उद भ अव था यु मकोद भद पर आ त तथा अ पका लक होती है।
(13) बीजाणु उद भ के कै सूल म बीजाणुजनक को शकाओं से बीजाणु बनते ह।
(14) बीजाणु अंचल होते ह, जो अनुकूल प रि थ तय म अंकु रत होकर एक नया यु मकोद भद
अथवा ोटोनीमा बनाते ह। ोटोनीमा से नये यु मकधर (Gametophyte) वक सत होते
ह।
(15) ायोफाइटा म वषम पी पीढ़ एका तरण पाया जाता है।

9.10 श दावल
(1) उभयचर (Amphibians) : जो पादप जल व थल दोन जगह उगते ह।
(2) वयंपोषी (Autotrophs) : हरे पादप िजनम लोरो फल पाया जाता है, इस कारण ये
अपना भोजन बनाने म स म होते ह।
(3) ीधानी (Archegonium) : मादा जननांग िजसम आधार य भाग फूला हु आ तथा
न लकाकार गदन पायी जाती है।
(4) पसू तक (Archesporium) : बीजाणुद भद पादप के कै सूल क फलद परत जो
बीजाणुओं को बनाती ह।
(5) ति भका (Collumella) : बीजाणुद भद पादप के कै सूल के बीच क ब य को शका
समू ह।
(6) समबीजाणुक (Homosporous) : इसम सभी बीजाणु आकृ त म समान होते है तथा
समान कार का यु मकोद भ बनाते ह।
(7) वषयबीजा णक (Heterosporous) : वषय क जाि वक बीजाणु आकृ त व सं या म
भ न ( वषय) होते ह तथा वे भ न- भ न आकृ त वाले यु मकोद भद बनाती है।
(8) वभा योतक (Meristematic) : इस उ तक क को शकाओं म जीवन पय त वभाजन क
मता पाई जाती ह।
(9) आभासी इलेटर (Psedoelaters) :- इलेटर िजसम थूलन नह ं पाई जाती है ।

166
(10) प रमु खदंत (Peristomial) :- कै सू ल के पर (आवरण) म दं त जैसी संरचना।

9.11 संदभ थ
(i) Sharma P. D. Study of Bryophyta, Rastogi Publication
(ii) Vashishtha – Bryophyta for Degree Classess, S. Chand & Co.
(iii) Sarabhai Saxena- Study of Bryophyta VOL I
(iv) पांड,े जैन व सैनी - शैवाल, शैवाक एवं ायोफाइट, तोगी पि लकेशन, मेरठ
(v) वमा, पैना व चौधर - शैवाल, लाइकेन व ायोपाइट, अलका पि लकेशन, अजमेर
(vi) शमा व राय संघानी - क टोगे स क व वधता

9.12 बोध न के उ तर
Objective Questions
न 1. (स) न 2. (अ) न 3. (द) न 4. (स) न 5. (अ)
न 6. (स) न 7. (अ) न 8. (अ) न 9. (द)
लघु तरा मक न के उ तर
न 1. य क यह जल व थल दोन थान पर पाये जाते ह।
न 2. ायोफाइटा के मादा जननांग म जैकेट पाये जाते है।
न 3. ायोफाइटा के बीजाणु उद भ को पोरोफाइट कहते ह।
न 4. बीजाणुद भद को तीन भाग म बांटा जाता है।
न 5. थम थल य पादप को ायोफाइट कहते ह।

9.13 अ यासाथ न
न 1. ायोफाइटा के व श ट ल ण का वणन कर।
न 2. ायोफाइटा म यु मकोद भद के वमास पर एक लेख लख।
न 3. ायोफाइटा म ल गक जननी सच वणन कर।
न 4. ायोफाइटा म पीढ़ एका तरण का वणन कर।
न 5. ायोफाइटा म का यक जनन व धय का उ लेख कर।

167
इकाई 9 : ायोफाइटा का वग करण, बंधत
ु ा एवं आ थक
मह व (Classification, Affinities and
Economic Important)
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 ायोफाइटा का वग करण
9.3 ायोफाइटा क ब धु ता
9.3.1 शैवाल से ब धुता
9.3.2 टे रडोफाइटा से ब धु ता
9.4 ायोफाइटा का आ थक मह व
9.4.1 य आ थक मह व
(i) फै नम का मह व
(ii) औषधीय मह व
(iii) त जै वक उपयो गता
(iv) भोजन के प म
(v) रासाय नक के प म ।
9.4.2 परो आ थक मह व
(i) सू चक (पादप इंडीकेटर) के प म
(ii) माग दशक के प म
(iii) पादप अनुकूलन म
(iv) लघु उ योग म
9.5 सारांश
9.6 श दावल
9.7 संदभ थ
9.8 बोध न के उ तर
9.9 अ यासाथ न

9.0 उ े य
इस इकाई का उ े य ायोफाइटा वग के व भ न पहलुओं का अ ययन कर इसका वग करण
करना, ायोफाइटा वग क अ य वग से ब धुता था पत करना तथा ायोफाइटा के आ थक
मह व से अवगत कराना है ।

168
9.1 तावना
ायोफाइटा एक ीक श द है (Greek Bryos = Moss – Phytin = Plant) िजसका आशय
उभयचर पादप से ह । वग करण म इनका थान एक ओर मु य प से जल य थैलोफाइटा तथा
दूसर ओर थल य टे रडोफाइटा के म य म है । ायोफाइटा श द का योग सव थम (Braiin)
ान ने 1884 म कया था । श पर ने 1879 म सव थम इ ह भाग (Division) का तर
दत कया । यह ए बोफाइटा वग का थम, सरल व अ य (Primitive) पादप सद य का
समू ह ह । एंगलर (Engler) ने थैलोफाइटा तर के सभी उन पौध को एं ोफाइटा म रखा िजनम
यु मनज (Zyogate) के वभाजन से ू ण बनता ह । इस भाग के पौधे व व यापी ह ।
सामा यत: ये पादप नम व छायादार थान पर उगते ह । कु छ जा तयाँ जल य भी ह । इनके
जीवन च क पूणता के लये जल आव यक है य क नषेचन या हे तु जल आव यक होता है
। य क नर यु मक कशा भक होते है । ायोफाइटा बहु त छोटे आकार के सरल पौधे होते है
तथा ये समूह म उगते है ।
इस भाग म लगभग वंश 960 एवं जा तयाँ 2400 से अ धक ह । ये वयं पोषी पादप ह ।
क तु टोथैलेस मरा ब लस ब सबो मया ए फला तथा ब सबो मयां म नकोटा (Buxbomia
minikota) आ द काब नक पदाथ से भोजन ा त करते है अथात ् ये मृतोपजीवी है । भारतवष
म ये अ धकांशत: द ण हमालय व नील गर क पहा ड़य पर मलते है, क तु रि सया
(Riccia) लेिजयोकै मा आ द क जा तयाँ व कई कार के माँस वषा ऋतु म मैदानी भाग म
मलते है ।

9.2 ायोफाइटा का वग करण


ायोफाइटा के वग करण का इ तहास इस कार है ।
1. सव थम इस श द का योग ोन ने कया (1664 म कया) तथा इस समू ह म शैवाल
कवक, लाइकेन तथा माँस को भी शा मल कया
2. श फर (Schimpher 1892) ने ायोफाइटा को भाग (Division) का थान दान कया
िजस प म ायोफाइटा को आज हम जानते है ।

169
3. इकलर (Eichler, 1883) ने ायोफाइटा को दो वग हपे टसी तथा मसाई म वग कृ त कया
ह ।
4. एंगलर (Engler 1892) ने इकलर के दोन वग को तीन-तीन गण (orders) म वभ त
कया ।
5. बेसे (Bessy 1911) श (Fritsch 1929) , इवा स (Evans 1938) बाडरमेन एंगलर
(Eingler Melchain and Warder mann, 1954) सभी ने इसी वग करण का अनुसरण
कया ।
6. केवस (Cavers 1911) ने ायोफाइटा को न न दस आडरो (orders) म वभािजत कया -
1. फेरोकापल ज (Spharocarpales)
2. माकि शए स (Marchantiles)
3. जंगरमे नएल ज (Jungermaniales)
4. ए थ सरोटे ल ज (Anthocerotales)
5. फैगनेल ज (Sphagnales)
6. ए ीएल ज (Andreales)
7. टे ा फडेल ज (Tetraphidales)
8. पोल ाइकेल ज (Polytrichales)
9. बा सबाउ मएल ज (Buxbaliales)
10. यू ायेल ज (Eubryles)
7. हावे (Howe 1899) ने ए थो सरोटे ल ज गण को वग का थान दे कर ायोफाइटा
Bryophyta को तीन समू ह म बांटा गया ।

8. त ताजान (Takhtajan 1953) ि मथ (smith 1955) एवं बाडला (wordlaw 1955,


1962) ने भी ायोफाइटा को तीन वग म वभ त कया पर तु उ ह ने ए थो सरोटे ल ज के
थान पर ए थो सरोट श द का योग कया ।
9. राथमेलर (Rothmalar 1951) ने वग के नाम बदलकर तथा ायोफाइटा को न न तीन
वग म बांटा

170
10. ो कर (Proskauer 1957) ने ए थो सरो सीडा का नाम बदल कर ए थो सरोि सडा
(Anthocerotopsida) रखा । इनके वारा तुत वग करण क प रे खा नीचे द गई है ।

व भ न वग (Classes) के मु ख ल ण तथा उनके मु य गण (orders) व कु ल के


वभेदा मक ल ण का व तृत ववरण संबं धत उदाहरण के साथ कया जायेगा ।

9.3 ायोफाइटा क ब धु ता
ायोफाइटा भाग को वग करण म थैलोफाइटा तथा टे रडोफाइटा के म य रखा गया ह । इस
भाग के सद य के कुछ ल ण एक ओर थैलोफाइटा म शैवाल से समानता रखते ह तथा कुछ
ल ण टे रडोफाइटा से समानता रखते है । इस कार ायोफाइटा दोन भाग से ब धु ता रखता
ह।
9.3.1 शैवाल से ब धु ता (Affinities with algae)
(A) समानता (Similarities) :
(1) दोनो म पादपकाय थैलाय (Thalloid) यु मकोद भद (gametophytic) होता है ।
(2) इनम हरे शैवालो के समान लोरो फल a व b,  व  कैरोसीन, तथा जे यो फल वणक
पाये जाते है ।
(3) संवहन ऊतक (Vascular tissue) अनुपि थत होते है ।
(4) मू लतं अथात, जड़ अनुपि थत होती है ।
(5) दोन समूह म को शका भि त क संरचना एवं संगठन समान होता है ।
(6) ए धो सरोटे लस गण के सद य म लोरोफाइसी के समान पायर नायड (Pyrenoid)
उपि थत होता है ।
(7) सं चत भोजन ायोफाइटा हरे शैवालो म वा त वक टाच (True Starch) होता है ।

171
(8) पुमणु वकशा भक तथा लोरोफाइसी के समान दोन कशा भकाएं तोद कार क होती है।
(9) जीवन च म यु मकोद भद ाव था (dominant) होती है ।
(10) मास म ारि भक यु मकोद भद त तु जैसे ोटो नया (Protonema) होता ह जो हरे
शैवालो के त तु नम
ु ा थैलेस से समानता दशाता ह ।
B. असमानताएं (Dissimlarities)
(1) शैवाल (Algae) एक को शक, बहु को शक, त तु नम ु क (Pseudo
ु ा अथवा आभासी मु दत
paranchymatous) होते है जब क ायोफाइट मृदुतक (Parenchymatous) होते है ।
(2) अ धकांश शैवाल जल य जब क ायोफाइटस थल य होते है तथा तम व छायादार थल पैर
उगते है ।
(3) अ धकांश शैवालो म मूलाभासो का अभाव होता है । जब क ायोफाइटा मे यह पाये जाते है।
(4) शैवालो म र (pore or stometa) का अभाव होता है । जब क ायोफाइटा म ये
उपि थत होते है ।
(5) शैवालो म अल गक जनन व भ न व धय वारा होता है, जब क ायोफाइटा म अल गक
जनन उपि थत होता है ।
(6) शैवालो म जननांग एक कौ शक व जैकेट र हत जब क ायोफाइटा म अल गक जनन
उपि थत होता है ।
(7) शैवालो म ल गक जनन समयु मक (Isogamous) असमयु कमी (Anisogamous) तथा
वषय यु मक (Oogamous), कार का होता है । जब क ायोफाइटा मे सदै व वषम
यु मक (oogamous) कार का होता है । सदै व वषय यु मक (oogamous) कार का
होता है।
(8) सदै व वषमयु मक (oogamous) कार का होता है । शैवालो म यु मनज व ामाव था
ा त करता ह, जब क इनम व ामाव था का अभाव ह ।
(9) शैवालो म यु मनज व ामाव था ा त करता हँ, जब क इनम व ामाव था का अभाव होता
है।
(10) शैवाल म ण
ू का अभाव होता है । जब क ायोफाइटा म ू (embryo) का नमाण

होता है ।
(11) शैवाल म बीजाणु द भद व यु मकोद भद वतं होते ह जब क ायोफाइटा म बीजाणुद भद
यु मकोद भद आ त होता है ।
9.4.2 टे रडोफाइ स से बंधु ता (Affinities with Pteridophytes)
(A) समानताएं (Similarities) :
(1) दोन ह थल य कृ त (Terrestial) के है ।
(2) टे रडोफाइटा के साइलो फाइटे स वग म ायोफाइटा के समान मू ल वपण अनुपि थत होते है।
(3) दोन म ह जननांग ( ीधानी व पु ध
ं ानी) जैकेट से प रब रहते ह ।
(4) दोन म पुमणु (नर यु मक) कशा भक एवं नषेचन हे तु जल आव यक होता है ।

172
(5) दोन मे ह यु मनज व ाम अव था को नह ा त होता ह ( व ामाव था का अभाव) तथा
वभािजत हो ू ण नमाण करता है ।
(6) दोन म ू ण के वभेदन से बीजाणुद भद बनता है ।
(7) साइलो गण के सद य क को युमेला यु त (Collumella) शीष थ क बीजाणुधा नयाँ माँस
के सू ल से समानता दशाती है ।
(8) दोन समू ह के पादप म वषम पी पीढ़ एका तरण (heteromorphic alternation of
generation) पाया जाता है।
(B) असमानताएं (disimilarities)
(1) ायोफाइटा म मु य पादप यु मकोद भद होता है, जब क टे रडोफाइटा म बीजाणु द भद होता
है।
(2) ायोफाइटा म मु य पादप शैलाभ या प णत होता है, िजसम जड, तना व पि तय म
वभेदन नह ं होता ह, क तु टे रडोफाइटा म मु य पादप जड, तना व पि तय म वभे दत
होता है ।
(3) ायोफाइटा म संवहन ऊतक नह ं होते है क तु टे रडोफाइटा म उपि थत होते है ।
(4) ायोफाइटा म बीजाणु पोरोगो नयक के के सू ल म बनते ह जब क टे रडोफाइटा म
बीजाणुधानीयाँ, बीजाणुधानीपण (sporophyll) पर बनती ह ।
(5) ायोफाइटा समबीजाणु क (Homosporous) होते है ।
(6) ायोफाइटा म ीधानी क ीवा 6 उ ग को शकाओं क बनी होती है एवं एक या दो ीवा
नाल को शकाएं होती है ।
(7) ायोफाइटा म नर यु मक वशा भक या बहु कशा भक होते है ।
(8) ायोफाइटा म बीजाणु द भद पीढ यु मकोद भद पर पूण या आं शक परजीवी होते है क तु
टे रडोफाइटा म वतं वयंपोषी पीढ़ होती है ।
उपरो तानुसार ायोफाइटा वग क ब धुता शैवाल एवं टे रडोफाइटा वग से होती है ।

9.4 ायोफाइटा का आ थक मह व (Economic Importance of


Bryophyta)
ायोफाइटा एक छोटा पादप समू ह ह, तथा पयावरण वशेष म उगने के कारण इनका आ थक
मह व सी मत है । ये पादप जहां उगते ह वहां मृदा बनाने तथा उसके संर ण म कृ त के
संतु लन म मह वपूण भू मका नभाते ह । इसके अ त र त मानव के लये सामा य प से
खा य व औष धय के प म लाभकार स हु ए है । जो भी इन पर आ थक ि ट से शोध काय
हु ए है, उनके आधार पर इनका य व परो मह व है जो इस कार है :
9.4.1 य मह व (Direct importance)
फै नम का मह व-

173
(A) फै नम (Sphagnum) के मृत भाग दलदल म जमा होते जाते है इनका आं शक
अपघटन होता है तथा मृत पौध के सतत जमाव के कारण नचल सतह के मृत पदाथ पर
दबाव बढ़ता जाता है, प रणामत: नचले तर का काब नीकरण (Carbonization) होता जाता
है। इस काब नक पदाथ को पीट (peat) कहते है । यह गहरे भू रे रं ग का पंजी पदाथ होता है ।
पीट के कई उपयोग है ।
(i) उ तर यूरोप, आयरलड तथा काटलड म पीट को खंडो म काटकर धन के प म उपयोग
कया जाता है ।
(ii) काला तर म पीट के नचले तर काब नकरण के कारण कोयले म प र णत हो जाते ह यह
भी ईधन के काम म आता है ।
(iii) ओडेल तथा हु ड (Odel & Hood, 1926) के अनुसार पीट के सै कूलोज से रासाय नक
याओं वारा इथाइल एलकोहल बनाया जाता है ।
(iv) जमनवा सय ने एक ऐसी व ध खोजी िजसम पीट से गैस बनाने के समय अमो नयम
स फेट उप उ पाद (By product) के प म ा त होता है ।
(v) पीट से टै नन पदाथ, भू रा रं ग, नाइ े टस, अमो नया पीट टार (Peat Tar) तथा अमो नया
ा त होती है ।
(vi) पीट को साफ करने के प चात. कागज बनाने, कृ म का ठ रे शे बनाने पालतू जानवर के
फश पर बछाने के लये उपयोग कया जाता है ।
(vii) अमे रका म पीट पदाथ का उपयोग नग धीकरण (Deodorisation) व अवशोषण करने म
होता है ।
(viii) पीट को चकनी म ी म मला दे ने से उसम जल अवशोषण मता बढ जाती है, तथा बालू
म ी म मलाने से उसम जलधारण मता एवं काब नक ययूमस बढ जाता है । इस कार
भू म अ धक उवरक होती है ।
(ix) डे वस (Davis 1910) के अनुसार इसम (पीट म) पोषक त व भी होते ह, इस लये इसे
मोलेसज के साथ मलाकर पशुआहार बनाया जाता है ।
(B) फै नम पौध म अ य धक जल अवशोषणक मता होती है । इस लये इसका उपयोग,
बीज के अंकुरण,. कलम क जड़ो को लपेटने और शु क म ी म नमी बनाये रखने मे कया
जाता है । क म तथा पौध (seedling) इ या द को एक थान से दूसरे थान तक भेजते समय
इनको कै नम मे लपेट कर भेजा जाता है ।
(C) फै नम म ए ट सैि टक (Antiseptic) गुण होता है । इसके अ त र त इसम अवशोषण
क मता होती है । इस कारण थम व व यु के समय स व जापान म मरहम प ी के लये
ई (Cotton) के थान पर इसका उपयोग कया गया । पोटर (1919) के अनुसार फै नम क
प ी ई से अ धक कोमल होती है ।
(D) कृ त म इनक ारि भक या से जलाशय क सतह पर क चे दलदल बनते है ।
इसके बाद यह दलदल सघन दलदल वृ को आधार दान करता है । अ तत : यह दलदल घने
जंगल वारा व था पत हो जाता है ।

174
(ii) औषधीय मह व (Medicinal uses of Bryophyta)
इस वग के कु छ पादप म औषध गुण का उ लेख मलता है :
(i) वाट (watt 1891) ने माकि शया पोल माफा, फैगेटेला को नका, जंगरमै नया ए थो सरोस
(Anthoceros) एवं रि सया (Riccia) क कु छ जा तय म औषधीय गुण का वणन कया
गया ।
(ii) हटवैल (Harlwell 1971) के अनुसार पोल ाइकन क यून म त अबु द (antiturmor) के
गुण है।
(iii) मा. पोल माफा (M. polymorpha) का उपयोग यकृ त तथा फुफफुसीय य (Pulmonary)
रोग म कया गया है । (वारे न = Wern 1956) इसम तअबु द (Antitumor) गुण भी ह।
(iv) जल म उबाले गये काढे (Decocction) को चीन म धर ाव (Haemorrhage) और
आंखो के रोग के उपचार म काम म लेते है ।
(v) पो ल ाइकम (Polytrichum) से बनी चाय गुद व पताशय(Gall bladder) क पथर
(Stone) को गलाने म सहायक है ।
(vi) ] फै नोल (Sphagnol) जो पीटटार का आसु त ह । चम रोग के उपचार म उपयोग म लेते
है।
(iii) त जै वक य उपयो गता (Antibiotic use of Bryophytes)
पछले कु छ दशक म वै ा नक क ची इस दशा म बढ़ है तथा कुछ त जै वक गुण खोजे
गये जो इस कार है:
(i) कोनो सफेलम को नयम (Conocephalum) का जल य अक (aqueous extract) त
जै वक य प से स य है।
(ii) मैडसन एवं पे स (Modsem and pates 1952, 1955) ने को को ननम (Conicum)
डयमोरटायरा हरसु टा (Dumortiera hirsute) तथा फैगनम टम (Sphagnum
strictum) का उनम त जै वक गुण के लये पर ण कया और पाया पहल दो जा तयाँ
कैि डडा ए बीकै स (Candida albicans) के त याशील ह तथा फैगनम क जा त
टै फलोकोकस आ रयस (Staphyllcocus aureus) तथा यूडोमोनास (Pseudomanas)
के त याशील है।
(iii) रफैगनम का अक सरसीनीया यू टका (Sarcinia lutea) क वृ म अवरोध पैदा करता है।
(iv) कुछ अ य ायोफाइटस जैसे एनामोडोन (Anomodom), ए ाइकम (Atrichum),
पोल ाइकम, गोफ कया (Goffkeya) इ या द म (Gram + ve) ाम धना मक एवं ाम
ऋणा मक (Gram -ve) जीवाणुओं तथा करबूले रया (Curvularia) है मै यो पो रयम
(Helimenthosporium) तथा ए पिजलस (Aspergillus) के लये त जै वक गुण पाये
जाते है ।
(iv) भोजन के ोत (Bryophyta as a source of food)

175
(i) सामा यत: ायोफाइटस य प से मानव के भोजन के प म उपयोग नह कये जाते ह
फर भी फैगनम का खा य प म उ लेख होता है । कह ं कह ेड बनाने म इसका उपयोग
होता ह, पर तु व भ न ज तु इ हे अपने खा य प म उपयोग म लेते ह ।
(ii) अला का के हरन : (Alaskain Reinders) लाइकेन के अ त र त पो ल ाइकम
आसको नयम तथा डाइ े नम (Diecranum) क जा तयाँ को चरते ह ।
(iii) रे ड ा स (Redgids chicks) जोल ाइकम तथा ायम कै सू ल खाते है ।
(v) रासाय नक पदाथ (Bryophyta Chemical Substances)
ायोफाइटस म कुछ रासाय नक पदाथ जैस-े वसा, अ ल, फले वनोइड (Flavonoids) असंत ृ त
वसा (unsaturated fats), फनो ल स (Phenolics) ाइटर पनोइड आ द पाये जाते है ।
9.4.2 परो मह व (Indirect Use)
ायोफाइआ के परो मह व इस कार है ।
(i) माँस मृदा को ढक लेते है । इस कारण वषा के जल से भू म का कटाव नह होता है । साथ
ह भू म म जलधारण मता बढ़ जाती है ।
(ii) ये पादप अनु मण म सहायक होते ह । लाइकेन व माँस च ान को धीमी ग त से मृदा म
प रव तत करते ह तथा च ान पर पादप अनु म क ारि भक अव था बनाते है ।
(iii) ब लंग तथा टे लर (Rubling and Tyler1979) के अनुसार वायु शु क , माँस मैट स को
अवशो षत कर सकते ह । इस कारण इनम अका रक प रवतन हो जाते है । अत: इनका
उपयोग दूषण सू चक (Pollution idicator) के प म भी कया जाता है ।
(iv) डाइ नेम इलोगटा (Dicranum elongeta) को लै प क बि तयां बनाने म उपयोग म
लया जाता है ।
(v) सू चक के प म (Plant indicator) कु छ ायोफाइटस व भ न पदाथ क सूचना दे ते है ,
इ हे सूचक (Plant indicators) कहते है ।
(a) ायन अजि टयम क उपि थ त भू म म ार यता दशाता है ।
(b) रे को म यम व यूको ायम लेडकम भू म म अ ल यता के सू चक है ।
(c) मो सया ल यूलेटा भू म म तांबे क उपि थ त को दशाता है ।
(d) सफेलोिजया बाइि पडेटा क उपि थ त भू म म ज ता तथा िज सम क उपि थ त को
दशाता है ।
(vi) माग दशक के प म (As Pioneer) : च ान आ द शु क थल पर सव थम लाइकेन
होते है तथा इनके प चात माँस इन थान पर उगते है। काला तर म मृत भाग के इक ा
होने से काब नक पदाथ क मा ा बढ जाती है । िजसे उस थान का वातावरण प रव तत
होता जाता है । इन थान पर अ य पादप के बीज अंकु रत होने लगते ह इस कार
लाइकेन के प चात माँस अ य पादप के लये माग दशक के प म काय करते है।
(vii) अ य उपयोग (Other uses) पो ल ाइकम जा तय के पौध को रे शे के प म यु त
कया जाता है । इससे टोक रयां व टो पयां बनाई जाती है ।

176
(a) डाइ े नम इलोगटा (Dicranum elongata) नामक माँस को लप क बि तयां बनाने म
यु त कया जाता है ।
(b) माँस को बाग बगीच म उगाया जाता है जो भू म का कटाव रोकने म लाभदायक होते
माँस है।
बोध न
बहु वक पी न ( Multiple Choice Question)
1. ायोफाइटा का नाम सव थम उपयोग कया था ।
( अ) एं ग लर
( ब) ोन
( स) ि मथ
( द) के वस ( )
2. ायोफाइटा वग म सवा धक व बहु पयोगी पादप है ।
( अ) रक सया
( ब) माक ि शया
( स) फयू ने रया
( द) फै गनम ( )
3. बहु पयोगी पीट का नमाण कस पादप व कन कया वारा होता है ।
( अ) अपचयन व पोरे ला
( ब) काब नीकरण व फै नम
( स) ऑ सीकरण व ए थो सरोस
( द) ऑ सीकरण व पोल ाइकम ( )
4. ायोफाइटा वग क बं धु ता न न वग से है ।
( अ) एि जयो पम व िज नो पम से
(ब) शै वाल व टे रडोफाइट से
( स) शै वाल व कवक से
( द) जीवाणु व लाइके न से ( )

9.5 सारांश
1. ायोफाइटा को पादप जगत का उभयचर (Amphibans) कहा जाता है । य क यह
जल य तथा थल य दोनो थानो पर रहते है ।
2. इनक पादप सरंचना थैलाभ होती ह जो थल य आवास के अनुकूल है पर तु जनन के लये
जल क आव यकता होती है । यह मु यत: नमी वाले थानो म पाये जाते है ।
3. इनम संवहन ऊतको का अभाव होता है । तथा इनम जीवनच म यु मकोद भद अव था
धान होती है तथा बीजाणु उद भ अव था यु मकोद भद पर नभर होती है ।

177
4. आधु नक ायोलोिज ट इस पादप जगत को तीन वग म वग कृ त करते है । इनको 1.
वपेट कोि सडा 2. एथो सरोटोि सडा 3. ायोि सडा वग म वभािजत कया गया है ।
5. वकास म म ायोफाइटा वग शैवाल ( न न पादप ) तथा टे रडोफाइटा (उ च पादप वग) के
बीच के ल ण को द शत करने के कारण इनके बीच क कड़ी कहे जाते है ।
6. ायोफाइटा वग क ब धु ता शैवाल तथा टे रडोफाइटा दोन वग से है ।
7. पादप संरचना, संवहन ऊतको का अभाव तथा नषेचन के लये जल क आव यकता इनक
शैवाल के त ब धु ता दशाती है ।
8. बहु को शक य जननांग मय जैकेट को शकाओं के, मु यत: थल य आवास तथा नषेचन
प चात ण
ू का नमाण इनक ब धु ता टे रडोफाइटा से दशाते है ।
9. य व परो प से इस वग का आ थक मह व है । फैगनम बहु त मह वपूण ह िजससे
कई काय जु डे है जैस-े फै नोल च क सा े म तथा पीट ईधन के प म, शु कपादप
पै कं ग (Packing) तथा बडेज (Bandage) के प म यु त होता है ।
10. माकि शया व अ य ायोफाइ स भी बहु त उपयोगी है । माक शया को यकृ त के उपचार म
काम म लेते ह तथा यह मृदा संर ण म भी मह वपूण योगदान दे ते है ।

9.6 श दावल
ब धु ता Affinities
समानता Similarities
थैलाभ Thalloid
उपांग Appendges/leaves
समजात अंग Analogous oragans
यां क उ तम Mechanical tissue
चर थाई Persistant
छ या र Heteromorphic
वषम वजाणु क Heterosporous
औषधीय उपयो गता Medicinal uses
त जै वक उपयो गता Anti biotic Uses
अनु मण Succession
पृ ठाधार Dorsiventral

9.7 स दभ थ
(1) Bandre and Pandey – Introductary Botany
(2) Sharma P.D. – Introduction of Bryophyta
(3) Saxena and sarabhani – Botany Vol I
(4) शमा जी. पी एवं राय संघानी- टो गे स क व वधता
(5) वेद , शमा धनखड व गु ता - अपु पोद भद व वधताएं

178
(6) वमा, गेना चौधर - शैवाल, शैवाक व ायोफाइटा

9.8 बोध नो के उ तर
बहु वक पी न
1. (ब) 2. (द) 3. (ब) 4. (ब)

9.9 अ यासाथ न
1. ायोफाइटा को वगींकृत कर व भ न वग तथा मु य गुण के ल ण का वणन क िजये।
2. लवरवट व माँस म वभेद किजये ।
3. ायोफाइटा वग क शैवालो के साथ ब धु ता क ववेचना किजये ।
4. ायोफाइटा वग के आ थक मह व का व तृत वणन किजये ।
5. न न पर ट पणी ल खये ( क ह दो पर) ।
(1) ायोफाइटा वग का औषधीय व त जै वक उपयोग
(2) ए थो सरोटो सीडा वग क वशेषता
(3) ायोफाइटा क टे रडोफाइटा से ब धु ता

179
इकाई 10 : ायोफाइटा म यु मकोद भ एवं बीजाणुद भद
वकास (Evolution of Gametophyte and
Sporophyte in Bryophyta)
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 ायोफाइटा म यु मकोद भद का वकास
10.2.1 ायोफाइटा म यु मकोद भद का वकास
10.2.2 ायोफाइटा म पीढ़ एका तरण
10.3 ायोफाइटा म बीजाणुद भ का वकास
10.4 सारांश
10.5 श दावल
10.6 संदभ थ
10.7 बोध न के उ तर
10.8 अ यासाथ न

10.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आप न न ब दुओं को समझ पायगे -
1. ायोफाइटा म यु मकोद भद वकास क व तृत जानकार ।
2. ायोफाइटा म पीढ़ एका तरण।
3. ायोफाइटा म बीजाणुद भद के वकास के बारे म व तृत जानकार ा त करना ।

10.1 तावना
ायोफाइटा नाम सबसे पहले ान (Braun) ने 1864 म कया । ऐं लर (Engler) ने
थैलोफाइटा तर के उन सभी पौध को एि योफाइटा म रखा िजनम जाइगोट (zygote) के
वभाजन से ू ण बनता है । इस भाग म लगभग 900 वंश (Genera) एवं 24000 जा तयाँ
(species) है जो व व यापी है ।
इस इकाई म ायोफाइटा के यु मकोद भद और बीजाणुद भद के बारे म व तार से चचा करगे
तथा ायोफाइटा म पीढ़ एका तरण के बारे म वणन करगे ।

10.2 ायोफाइटा म यु मको एवं वकास (Evolution of


Gmetophyte in Bryophyta)
ायोफाइटा ण
ू नमाण करने वाले पादप वग के सबसे सरल एवं आ दम (Primitive) पादप
समू ह है एवं आवासीय कृ त के कारण इ ह पादप उभयचर, (Plant amphibious) भी कहा
जाता है । ायोफाइटा म थैलस का अ ययन करने के लये न न कम का अ ययन करगे ।
180
10.2.1 ायोफाइटा म यु मकोद भद का वकास (Evolution of Gametophyte in
Bryophyta)
ायोफाइटा क उ पि त पै लयोजोइक महाक प के डवो नयन काल (Devonian period) म
लगभग 3600 लाख वष पहले हु ई थी । इ ह थम थल य पादप एवं सरलतम थल य पादप के
प म जाना गया है । इनम यु मकोद भद के वकास के बारे म न न ल खत दो पर पर वरोधी
स ांत च लत है ।
थम स ा त (First Theory) आ य यु मकोद भद एक उ व, प णल रोह, या समा मत
यु त था । (The primitive gametophyte was an erect leafy shoot radial in its
symmetry) । इस स ांत के समथक के अनुसार कुछ मह वपूण ववरण इस कार है -
वेट ट न (Wettestein 1903 - 1908), क यप (Kashyap1919), इवा स (Evans, 1939)
के अनुसार रि सया का थैलस सबसे यादा वक सत थैलस प है । वै ा नक ने यह भी प ट
कया क पृ वी पर सबसे पहले ायोफाइटा के पादप माँस के समतु य उ व (Erect), प णल
रोह (Leafy Shoot) थे । इन उ व यु मकोद भद से ज गरमे नए स कार के पोषाधार पर
लेटे हु ए पृ ठाधार अगु णत सुकायक से दूसरे कार के चपटे (flatten), पण वह न (Leaf
less), पृ ठाधार यु मको द भद माकि शए स के सद य जैस,े माकि शया, रि सया आ द का
वकास हु आ ।
माँस ( ायोप सडा) आ दम - जंगरमे नए स (पोरे ला)
माक ि शए स ( रि सया) वक सत यु मकोद भद पादप [सहनन (compaction), संघनन
(Condensation) संयोजन (fusion) याओं वारा]
इस स ा त म केलो ायेरै स (Calobryales) गण के सद य जैसे कैलो ायम (Calobryum)
एवं है लो म यम तथा अनेक वा त वक माँस जैसे पोल ाइकम (Polytrichum), फोि टने लस
(Fontinalis) तथा ायम (Bryum) इ या द म सै ाि तक प से उ व, प णल यु मकोद भद
(Leafy gametophyte) को आ दम कार का बताया गया है । इस कार के आ दम
यु मकोद भद ह भू म पर लेटकर वृ करने वाले पणयु त , यु मकोद भद (Postrate leafy
gametophyte) प णल सु कायक (Leafy thallus like), जंगरमे नऐ स तथा अ त म
पृ ठधार चपटे पण वह न (Dorsiventrally flattened and leafless) यु मकोद भद जैसे
हपैटेसी (Hepaticeae) सु काय का वकास हु आ ।
क यप (Kashyp1919) ने भारत म मलने वाले माकि शए स के सद य पर अनुसध
ं ान वारा
इस प रक पना क और मा णत कया है । पी एन मेहरा (P.N. Mehra 1957) ने इस
स ा त के लये. माक शीएल स गण के कई वंशो म अ ययन के आधार पर यह न कष
नकाला क माक ि शए स गण के पादप क उ पि त को पणयु त सु कायक जंगरमे नऐ स से
बताया है । इनके अनुसार यह उ पि त तीन म सहनन (compaction), संघनन
(Condensation) संयोजन (fusion) का प रणाम है।

181
च 10.1 : ' व भ न पादप के सु काय
वतीय स ा त (Second Theory) इस स ा त के अनुसार आ य यु मकोद भद सरल
पृ ठधार यान सु काय था जो बा य संरचना म सरल तथा आंत रक संरचना म ऊतक य था ।
केवस (Cavers, 1910) तथा कै पवेल (Campbell, 1891 - 1940) इस स ा त के बल
समथक थे । केवस के अनुसार फेरोकापस (Sphaerocarps) सबसे आ दमतम यु मकोद भद
था । पर तु के पबेल ने रका डया (Riccardia) तथा मेटािज रया (Metzeria) को सबसे
आ दमतम यु मकोद भद कहा है । सरल यु मको से अ त वक सत यु मकोद भद
(Advanced gametophytes) का वकास दो म वारा हु आ है ।
(i) पहले कार के वकास म म फ रोकापस जैसे सरल आ दम यु मकोद भ से माकि शऐ स
क व भ न जा तय के यु मकोद भद का उ व (origin) हु आ था । यु मकोद भ ब संरचना
म सरल रहे ले कन आ त रक संरचना म ज टल हो गये । आ त रक (Anatomy) के
अ तगत इनक बा य वचा म वायु - छ (Air pores) का बनना, वायु को ठ (Air
Chambers) का काश सं लेषी त तु ओं स हत न मत होना तथा साथ साथ ल गक अंग
का नि चत पा (Define receptacles) म समू हन के कारण सु काय का : का यक
(Vegetative) जनन शाखाओं म वभेदन हो गया, उदाहरण माकि शया ( च 10.2) ।

182
च 10.2 : ायोफाइटस म यु मकोद भद का वकासीय म (केवस के अनुसार)
(ii) दूसरे कार के वकास म म जंगरमे नए स एवं केलो ायऐ स कार के यु मकोद भद का
उ व हु आ । इन यु मकोद भद म आंत रक संरचना सरल (अथात ् वायु छ एवं वायु
को ठ का अभाव) ले कन बा य संरचना म अ धक ज टलता के कारण प णल यु मकोद भद
का वकास हु आ । प णल यु मकोद भद अपना पूण वकास ायो सीडा (Bryopsida) म
दशाते ह जहां यु मकोद भद म आंत रक ऊतक वभेदन उ चतम प म मलता है । इस
कार पृ ठाधार सु काय से ऊ व यु मकोद भ वक सत हु आ माना जाने लगा है ( च 10.3)
। बा य आका रक

183
च 10.3 : ायोफाइटस मे यु मको द का वकासीय म (कै पबेल के अनुसार) बा य
आंत रक आकृ तय का न पण
10.2.2 ायोफाइटा म पीढ़ एका तरण (Alteration of generation in Bryophytes)
हॉफ म टर (Hofmeister 1851) ने पीढ़ एका तरण श द को सबसे पहले पादप जगत के लये
कट कया । इ ह ने बतलाया क माँस (Moss) तथा फन (Fern) के जीवन च म दो प ट
आका रक पी ढ़य का उ तरो तर एका तर म मलता है । उसके बाद ासवगर
(Strasburger, 1894) क अधसू ी वभाजन के खोज के प चात ् यह दे खा गया क गुणसू
क सं या म यूनीकरण (Reduction) के कारण जीवनवृत म नई पीढ़ वक सत होती है ।
यूनकार वभाजन से अगु णत यु मको द भद (Haploid gaemetophyte) उ प न होता है जो
यु मकोद भद पीढ़ (Gaemetophytic generation) दशाती है । इस पर जननांग उ प न होते
ह िजनम यु मक (gametes) बनते ह । अगु णत यु मक संलयन (Fusion) के प चात
वग णत यु मनज (Zygote) बनता है जो बीजाणु उ द अव था क ारि भक को शका है ।
यह अंकु रत होकर ू बनाता है िजसम बीजाणुद भद वक सत होता है । इसे Sporopytic

184
generation कहते ह इस वगु णत बीजाणुद भद पर बीजाणुधानी उ प न होती है िजनम
अधसू ण (Meiosis) से अगु णत बीजाणु बनते ह । बीजाणु अगु णत यु मकोद भद क
ारि भक अव था है । बीजाणु के अंकु रण से यु मकोद भद बनता है । सलो क व क
(Celaskovaky, 1874) ने पीढ़ एका तरण के म म दो नये पद ए ट थे टक (Antithetic)
तथा समजात (Homologous) पीढ़ एका तरण क या या क है ।
(i) ए ट थे टक पीढ एका तरण (Anthtitic alternation of generation) : इसके अ तगत
दो पूववत पी ढ़याँ (यु मकोद भद के म य एक नई पीढ़ (बीजाणुद भद) अ तव शत
(Interpolates) हो जाती है, अत : यु मकोद भद और बीजाणुद भद पी ढ़यां प टत: भ न
होती ह । इस कार का पीढ़ एका तरण ायोफाइटा तथा टे रडोफाइटा (आ कगो नएट -
Archegonitae) म दखाई दे ता है ।
(ii) समजात पीढ एका तरण (Homologous alternation of generation) : इसम दोन
पी ढ़याँ जा तवृत (Phylogeny) क ि ट से समान और समका लक (Simultaneous)
मानी गई है । इस कार का पीढ़ एका तरण ऐ गी व फ जाई म मलता है ।
इन दोन कार के एका तरण के लये रे ले हा टर (Rau Lankaster, 1870) ने मश:
अ तवशन (interpolation) और पा तरण (transformation) पद का योग कया है ।
उपरो त मत व वचार के तु तीकरण के बाद भी पीढ़ एका तरण क घटना और उसका
बीजाणुद भद के उ व और वकास पर भाव एक ववेचना का वषय बना हु आ है । यह एक
ववादा पद वषय है और उपरो त व णत दोन ह मत कई पहलु ओं क वजह से स य ह । दोन
मत न न कार से ह
समजात या पा तरण स ा त (Homologous or Transformation Theory)
इस स ा त के अनुसार बीजाणु द भद और यु मकोद भद दोन संत त मूलभू त प से समान या
पर पर समजात है और बीजाणुद भद एक नवीन संरचना नह ं है, वरन ् यह यु मकोद भद का ह
सीधा पा तरण है ।
इस स ा त को सव थम ं शीम (Pringsheim, 1876, 1878) ने
ग तु त कया था और
कॉट (Scott, 1896) ने इसे पुनव णत कया था । चच (Church, 1919), िजमरमैन
(Zimmermann, 1930, 1932) इवा स (Evans, 1939) , च (Firitsch, 1945) तथा
बो ड (Bold, 1938, 1948) इनके मु ख समथक है।
इस स ा त के समथन म कई माण तु त कये गये ह िजनका वणन नीचे दया गया है -
1. सम पी पीढ एका तरणा पाया जाना (Existence of Isomorphic alternation of
generation) : अ वेसी (Ulvaceae), लेडोफोरे सी (Cladophoraceae), ए टोकापल ज
(Ectocarpales) और डि टयोरे ल ज (Dictyorales) के शैवाल सद य म सम पी पीढ़
एका तरण पाया जाता है । इन पादप म अगु णत यु मकोद भद म यु मको वारा ल गक जनन
होता है तथा वगु णत बीजाणु द भद म अल गक जनन म बीजाणु उ प न होते ह । समजात
स ा त के अनुसार मूल प म दोन पी ढ़यां सम पी , एक दूसरे वत और बा य संरचना म

185
एक समान होती थी । काला तर म, वकास या म बीजाणुद भद यु मकोद भद पर थायी प
से संल न हो गया तथा आं शक प से यु मकोद भद पर आ त हो गया । इस प रवतन से
बीजाणुद भद क ज टलता म मश : हास होता गया ।
2. बीजाणुद भद का पोषण (Nutrition of sporophyte) : हपे टकॉि सड़ा
(Hepaticopsida), ए थो सरोटोि सडा(Anthocerotopsida) और ायोि सडा (Bryopsida)
के बीजाणुद भद सी मत सीमा म काश सं लेषण कर सकते ह । यह ल ण इं गत करता है क
दोन पी ढ़य म एका त रत अव थाओं म वपोषकता (Self nutrition) क मू ल वृ त एक
समान है ।
3. आ द टे रडोफाइट के यु मकोद भद और बीजाणुद भद म संरचना मक समानताएँ
(Structural similarity between primitive gametophyte and sporophyte of
ptoridophyta) साइलोटम (psilotum), मेसी टे रस (Tmesipteris), ऑा फओ लॉसम
(Ophiglossum), लाइकोपो डयम (Lycopodium) के नर तर शीष वृ वाले बेलनाकार,
वभाजी यु मकोद भद, साइलोटम व राई नया (Rhynia) के बीजाणुद भद के समान है यह
समानता समजात स ा त क पुि ट करता है ।
4. अपयु मकता और अपबीजाणु ता (Apogamy and Apospory) यु मक संयोजन के
बगैर, यु मकोद भद से बीजाणुद भद अपयु मन (Apogamy) कहलाता है । इस कार प रव धत
बीजाणुद भद अगु णत होते ह । इस कार बीजाणुद भद क कसी भी को शका से यु मकोद भद
का प रवधन अपबीजाणु ता कहलाता है । अनेक ायोफाइटा तथा टे रडोफाइटा पादप म
अपबीजाणु ता और अ धकांश टे रडोफाइटा पादप म अपयु म मलता है । यह दोन घटनाएं
समजात स ा त क पुि ट करती है ।
5. टे रडोफाइटा पादप के यु मकोद भद म वा ह नकाओं क उपि थ त (Presence of
tracheids in the gametophytes of pteridophytic plants) : ट ल (Steil, 1939) के
अनुसार फन के यु मकोद भद म शीष खांचे (Apical notch) के ठ क पीछे वा ह नकाओं का
पाया जाना अपयु मन (Apogamy) का उ तम माण है । यह ल ण दो पी ढ़य म पर पर
संरचना मक समानता को दशाता है ।
(i) अ तवशन स ा त (Interpolation or Antithetic theory) : इसे वोवर (Bower)
ने दया था । ओवरटोन (Overton, 1893) कॉट (Scott, 1896) ासवगर
(Strasburger, 1897), व लयमसन (Williamson, 1904) के वस (Cavers, 1935),
कै पवेल (Campbell, 1940) आ द इस स ा त के ढ़ समथक ह ।

186
च 104 : कु छ ायोफाइटा-पादप के बीजाणुद भद : A. रक सया B. ि फअरोकापस
C. टािजओ नया, D. माकि शया E. पे लया F. ऐ थो सरोस व G. यूने रया

187
इस स ा त के अनुसार पीढ़ यु मको द भद है जो पादप म ार भ से थी । काला तर म वकास
क या म दो उ तरोतर यु मकोद भद पी ढ़य के म य एक नव पीढ़ बीजाणुद भद अ तव शत
हो गई । इसका अ तवशन नषेचन व अधसू ण (Meiosis) के म य म हु आ है । अत: ार भ
से ह बीजाणु उद भ यु मकोद भद के समान न होकर एक भ न संरचना है ।
इस मत के समथक का मानना है क ारि भक पादप क उ पि त शैवाल से हु ई है ।
ारि भक थल य पादप उभयचार प रि थ तय (Amphibious situations) से अ भग मत
(Migrate) हु ए ह, जहां पर ल गक जनन के लये अ य धक मा ा म जल ा त था । थल य
अव था म ल गक जनन के लये जल केवल वषा या अ धक ओस के समय ह उपल ध होता है
। इस कार क अव था म ारि भक थल य पादप केवल ल गक जनन पर ह नभर नह ं कर
सकते थे अतः जनन के लये इनम उपयु त व ध वक सत हो गई । इनम ल गक जनन के
यु मनज से ण
ू प रव धत हु आ जो अ तत: वगु णत बीजाणु द भद म वक सत हो गया ।
के पबेल (1940) के अनुसार शैवाल जैसे पादप का यु मनज जो क बीजाणु द भद को न पत
करता है, वा तव म यु मकोद भद क जल य अथवा उभयचार अव था क तु लना म थल य
अव था का एक न पण है । जैसे-जैसे थल य अव था अ धक मु ख होती गई, उसी अनुसार
बीजाणुद भद भी अ धक मु ख होता गया और अ तत: यह अव था जीवन वृत क एक धान
अव था बन गई ।
इस स ा त के पु ट करण म यह तक तु त कया गया है क सम त ण
ू ीय पादप म
बीजाणुद भद क को शकाओं म गुणसू क सं या वगु णत (Diploid) होती है और यह
वगुणन नषेचन के समय होता है । गुणसू क सं या के अगु णत होने क घटना (meiosis)
वल ब से होती है और इस कार एक वगु णत पीढ़ का थाप य हो जाता है । इस कार दो
उ तरो तर अगु णत पी ढ़य यु मकोद भद के म य एक वगु णत पीढ़ बीजाणु उद भ का
अ तवशन हो जाता है । अ तवशन स ा त के अनुसार बीजाणु द भद के उ व को पूवज ह रत-
शैवाल के यु मनज म खोजना चा हए । यु मनज , सबसे सरल कार के एक को शक
बीजाणुद भद का न पण करता है । इस अव था से काला तर म हु ई वकास या म
सु प रव धत बीजाणुद भद का वकास हु आ है ।
बोध न
1. ायोफाइटा के सद य को उभयचर य कहा जाता है ?
.........................................................................................
.........................................................................................
2. ायोफाइटा को एि योफाइटा म य रखा जाता है ?
.........................................................................................
.........................................................................................
3. वै प र य (ऐ ट थे टक) पीढ़ एका तरण या है ?
.........................................................................................
.........................................................................................
4. अपयु मकता (ऐपगै मी) कसे कहते ह ?

188
.........................................................................................
.........................................................................................
5. अपबीजाणु ता (एपो पोर ) कसे कहते ह ?
........................................................... ..............................
.........................................................................................
6. ायोफाइटा म पीढ़ एका तरण कस कार का होता है ?
............................................................................. ............
.........................................................................................

10.3 ायोफाइटा म बीजाणु द भ का वकास (Evolution of


sporophyte in Bryophyte)
ायोफाइटा समू ह के पादप म बीजाणुद भद वगु णत अल गक पीढ़ को न पत करता है ।
िजसका वकास यु मनज से होता है । बीजाणु द भद आं शक या पूण प से यु मकोद भद पर
आ त रहता है य क इसम काश सं लेषण ऊतक का अभाव होता है । आकार व संरचना म
सरल रि सया (Riccia) के बीजाणुद भद से लेकर फै नम (Sphagnum) व यूने रया
(Funaria) म मलने वाल पाद (Foot), सीटा (Seta) कै सूल (Capsule) म वभे दत ज टल
कार के बीजाणुद भद पाए जाते ह । रि सया से यूने रया व यूने रया से रि सया के
बीजाणुद भद का वकास हु आ है, यह एक ववाद का वषय है । ायोफाइटा म बीजाणुद भद के
वकास को समझने के लये दो कार के स ा त तुत कये ह
A. गामी ब यकरण का स ा त (Theory of Progressive sterilization)
B. गामी सरल करण अथवा हासकरण स ा त (Theory of progressive simplification
or reduction)
A. गामी ब यकरण का स ा त
इस स ा त के अनुसार रि सया का बीजाणु द भद, सरल तथा आ दम (Primitive) है । इस
कार के सरल बीजाणुद भद से प रवधन व वकास के दौरान फलद बीजाणु जन ऊतक (Fertile
Sporogenous tissues) के गामी ब यकरण (Sterilization) से ज टल व वक सत कार
के बीजाणुद भद का वकास हु आ है । यह भी माना जाता है क इस कार गामी ब यकरण
वारा वकास केवल एक दशा म न होकर कई दशाओं म हु आ है । केवस (Cavers - 1911)
बावर (Bower- 1935) और कै पबेल (Campbell - 1940) आ द इस स ा त के ढ़ समथक
ह ।
बावर (Bower) वारा तुत इस स ा त के अनुसार रि सया का बीजाणु द भद सबसे सरल
तथा आ दम है तथा इस कार के आ दम बीजाणुद भद से बीजाणुजन ऊतक के गामी बं यकरण
वारा ज टल कार के बीजाणुद भद वक सत हु ए है । ब यकरण के फल व प बनी अफलद
(sterile) को शकाओं ने व भ न काय जैसे अवशोषण व ि थर करणा (पाद नमाण) काश

189
सं लेषण (पण ह रत यु त होकर) बीजाणु क णन (इलेटर, प रमुख, प र छद आ द) बलकृ त
आधार दान करना (को यूमेला) आ द को अपना लया । बीजाणुद भद म बीजाणुजन ऊतक क
ब यकरण क कृ म अव थाएँ रि सया - ि पयरोकापस - टािजगो नया - माकि शया - पे लया
- ए थो सरोस - यूने रया वारा न पत होती है ।
रि सया (Riccia) का बीजाणुद भद अ यंत ह सरल है और इसम पाद व सीटा नह ं होते ह ।
स पूण पोरोगो नयम म केवल मा कै सूल ह होता है । सबसे बाहर वाला बं यको शका तर
कै सू ल का जैकेट बनाता है । इस जैकेट वारा प रब सभी को शकाएँ पादप होती ह और बीजाणु
मातृ को शकाएँ बन जाती ह । केवल कु छ मातृ को शकाओं से बीजाणु प रव धत नह ं होते ह और
ये मातृ को शकाएँ वृ पोषक - को शकाएँ (nurse cell) बन जाती ह । कै सू ल म फुटन व
बीजाणु - क णन के लये कोई वशेष या व ध या साधन नह ं होते ह । बीजाणुद भद अपने
पोषण के लये पूणतया, पोषक को शकाओं को छोड़ यु मकोद भद पर आ त रहता है ।
वकास का अगला चरण क स नआ (Corsinia) और ि फअरोकापस (Sphaerocarpus) के
पोर गो नया (बीजाणु द भद) म मलता है। बीजाणु द भद का स पूण आधार- े ब य या
अफ लत होता है जो क कॉ स नआ म एक छोटा पाद और ि फअरोकापस म फूला हु आ पाद तथा
एक छोटा दो को शका-चौड़ा, संक णन के समान सीटा बन जाता है । पाद का मु ख काय
यु मकोद भद से जुड़े रहने के लये ि थर करण अंग बनाना तथा पोषण का अवशोषण करना है ।
ि फअरोकापस म सीटा आध व काय- वह न होता है । बीजाणुद भद के शेष भाग-कै सूल म बहु त
अ धक बं यकरण नह ं होता है । कै सूल का जैकेट एक को शका तर का बना होता है । इसके
अलावा कुछ बीजाणु जन ऊतक अफ लत होकर पोषक को शकाओं (nurse cell) का काय करते
है।
इन पोषक को शकाओं म लोरो ला ट (Chloroplast) भी अ प मा ा म पाए जाते ह । इस
कार इन सद य म पाद के प रवधन से ु वता था पत हो जाती है । यह बीजाणुद भद
यु मकोद भ पर पूणतया आ त होते ह । पर तु इनम फुटन व बीजाणु क णन क
या व ध पाई जाती है ।
बीजाणुद भद के वकास क अगल अव था टािजओ नआ (Targionia) वारा न पत होती है ।
इस वंश म चौड़ा पाद, संक ण सीटा और जैकेट का एक को शका तर बं य (अफ लत) ऊतक का
बना होता है । बीजाणुजन को शकाओं का लगभग आधा अनुपात बं य इलेटेर म प रव धत हो
जाता है । इलेटेर म 2 या 3 स पल न ेपण (deposition) भी मलते ह । इस कार
टािजओ नया का बीजाणुद भद ि फअरोकापस- कार के बीजाणु उद भ से अ धक वक सत ह,
य क इसम फुटन व क णन म सहायक व श ट इलेटर पाये जाते ह । इसके अलावा,
अपे ाकृ त ल बा सीटा कै सूल को, सहप च के ऊपर, बीजाणु क णन के लये उपयु त ि थ त
म रखता है ।
माकि शया (Marchantia) बीजाणुद भद म ब यकरण तथा वकास क अगल अव था मलती
है । इस वंश के बीजाणुद भद म चौड़ा, लंगर स य पाद तथा ल बा याशील सीटा होता है ।
कै सू ल का जैकेट एक को शका तर का बना होता है ले कन शीष थ भाग म जैकेट के नीचे ि थत

190
को शकाएँ भी अफ लत ह रहती ह और इस कार, कै सूल के शीष थ भाग म जैकेट एक से
अ धक को शका तर वाला हो जाता है । टािजओ नआ के समान इलेटर भी पाये जाते ह ।
कै सू ल का फुटन अ नय मत द त स य कपाट के बनने से होता है और इलेटर बीजाणु-
क णन म सहायक होते ह । बीजाणुद भद वयं के पोषण के लये यु मकोद भद पर पूणतया
आ त रहता है।
वकास क अगल अव था पे लआ (Pellia) के बीजाणुद भद म दे खी जा सकती है ।
बीजाणुद भद म ऊतक-बं यकरण और भी अ धक मलता है जो क पाद, सीटा व कै सू ल म
वभे दत होता है पर तु इसम व- से बहु तर य कै सूल- जैकेट होती है तथा इलेटर और
इलेट रोफोर म भी पाये जाते ह । इलेटर व इलेट रोफोर य (Potential) बीजाणुजन ऊतक
(अंत थी सयम) के बं य होने से बनते ह । इस कार बीजाणुद भद के स पूण ऊतक का अ प
तशत ह बीजाणु जन ऊतक के प म फल रह जाता है । बीजाणु क णन के लये कै सूल को
अनुकू ल ि थ त म रखने के लये सीटा अ धक ल बा होता है । कै सू ल का फुटन चार अनुदै य
रे खाओं पर होता है और इलेटर, फुटन व क णन म सहायक होते ह ।
ए थो सरोस के बीजाणुद भद म बीजाणुजन ऊतक का अ य धक ब यकरण पाया जाता है । इस
बीजाणुद भद म बं य ऊतक पाद, 4 - 6 तर य कै सूल भि त, के य कालूमेला और आभासी-
. इलेटर के प म मलता है, ऐ धो सरोस के कै सूल म स पूण अ त: थी सयम बं य
कोलयूमेला का नमाण करता है तथा बीजाणु जन ऊतक (फल भाग = Fertile part) केवल ब ह
: थी सयम के अतरतम ् एक तर का ह बना होता है । बीजाणुजन ऊतक (Fertile Layers)
क आधी को शकाएँ बं य होकर आभाषी (Pseudo) इलेटर बनाती है । इस कार अ प भाग ह
बीजाणु मातृ को शकाओं का काय करता है ।
कै सू ल क बा य वचा म याशील र पाये जाते ह तथा बहु तर य कै सू ल भि त क
को शकाओं म लोरो ला ट व अ त को शक अवकाश, उपि थत होते ह । इस कार क
बीजाणुद भद काश सं लेषण वारा सी मत खा य नमाण करता है, फल व प आं शक प से
यु मकोद भद पर नभर रहता है । पाद फूला हुआ होता है और यु मकोद भद म गहराई म अंत:
था पत रहता है । यह माना गया है क य द इस बीजाणुद भद को उपयु त व अनुकू ल
प रि थ तयाँ मल जाय तो यह यु मकोद भद से वत होकर भी जी वत रह सकता है । ऐसी
ि थ त म संवहन के साथ ह साथ बलकृ त आधार के य कालू मेला से ा त हो जायेगा ।
कै सू ल - फुटन चार अनुदै य कपाट वारा होता है और इलेटर , बीजाणु क णन म सहायक
होते ह । बीजाणुद भद क नर तर वृ के लये इसम एक व श ट वभ यो तक े होता है
जो क अ य कार के बीजाणुउ द भद म नह ं पाया जाता है । यूने रया म बीजाणु द भद का
संघटन और भी अ धक ज टल व वक सत होता है । बं य ऊतक, पाद, सीटा, 4 - 7 तर य
कै सू ल भि त, कालू- मेला, छद, प रमु ख और अधः फ तका के प म पाया जाता है ।
अधः फ तका े क कै सूल भि त क अ धचम म याशील रं और को शकाओं म
ह रतलवक तथा अ तराको शक थल होते ह । ऐ थो सरोस के समान यह भी वत

191
जीवनयापन क ओर एक गामी चरण है । बीजाणुद भद कु छ अंश तक अपना खाध वयं ह
न मत कर सकता है ले कन क ची साम ी को ा त करने के लये इसे यु मकोद भद पर आ त
रहना पड़ ता है । कालू मेला म भोजन व जल का सं हण होता है । कै सूल के फुटन और
बीजाणु क णन के लये व श ट, याशील उपकरण छद, प रमु ख व ऐ युलस ह । उपयु त
ा पत बीजाणुद भद के अ ययन से यह प ट होता है क रि सया का बीजाणुद भद सबसे
सरल तथा आध है, िजसम अ धक ऊतक उवर या फलद (Fertile) होता है । इस कार के सरल
व आध बीजाणुद भद के ऊतक के गामी बं यकरण तथा ब धय (Sterile) ऊतक क बढ़ती
ज टलता से माँस कार के वक सत व ज टल बीजाणुद भद का वकास हु आ है ।
B. गामी सरल करण का स ा त (Theory of progressive Simplification)
इस स ा त के समथक क यप (Kashyap, 1919) , चच (Church, 1919) , गीबल
(Goebel, 1930) तथा इवा स (Evans, 1939) थे । इस स ा त के अनुसार रि सया का
बीजाणुद भद आ दम व सरल न होकर अ त वक सत (advanced) है जो ऊतक के गामी
सरल करण अथवा हास (simplification) से वक सत हु आ है । इन वन प त के अनुसार
ायोफाइटा वग म तगामी वकास (retrogressive evolution) क शृं खलाएँ मलती ह ।
इनके अनुसार ायोफाइटा के बीजाणु द भद के का प नक पूवज वत , ऊ व, प णल व वपोषी
थे क जो यु मकोद भद से स प कत हो जाने के बाद मश: सरल कृ त होते गए ।
एंथो सरोटोि सडा व ायोि सडा के ज टल काश सं लेषी ऊतकयु त , अ तरको शक अवकाश व
बा य वचा पर स य र यु त बीजाणु द भद आ दम व पूवज वंश के अ य धक सि नकट ह ।
इस कार के बीजाणुद भद से सरल करण व हास वारा जगंरमे नएलर व माकि शएलर के
बीजाणुद भद का वकास हु आ है । इस तगामी वकास खृं ला का अि तम प रि सया के
बीजाणुद भद वारा न पत होता है िजसे सवा धक माना गया है । चच के अनुसार पूवज
बीजागुण द भद म वकास या वारा गामी
सरल करण के न न चरण हु ए िजनके फल व प सरलतम बीजाणु द भ का वकास हु आ-
1. वत , ऊ व, प णल बीजाणुद भद थायी प से यु मकोद भद से संल न हो गया ।
2. बीजाणुद भद के पाथ य (isolation) व नजल करण (dessication) के कारण पि तय का
हास हो गया ।
3. कै सू ल भाग म काश सं लेषी ऊतक का हास होता गया तथा बीजाणुद भद यु मकोद भद
पर आ त हो गया ।
4. र तथा अ तरको शक अवकाश लु त हो गए ।
5. बहु त तर य कै सूल भि त यूनीकरण वारा एक तर य भि त म प रव तत हो गई ।
6. पाद व सीटा जो सु वक सत होते थे धीरे-धीरे अप या सत हो गए तथा अ तत वलु त हो
गए।
7. कै सू ल म ऊतक के यूनीकरण के साथ बीजाणुजन ऊतक क फलदता (fertile) बढ़ती गई।
रि सया म स पूण अ त' थी सयम बीजागुजन ऊतक का नमाण करता है । इलेटर व
को यूमेला का पूणत : अभाव होता है ।

192
8. फूटन उपकरण का मक सरल करण हो गया ।

10.4 सारांश
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपको ायोफाइटा के यु मकोद भद एवं बीजाणुद भद के बारे म
जानकार ा त हु ई । ायोफाइटा के यु मकोद भ के वकास के बारे म दो पर पर वरोधी,
स ा त के बारे म पता चला । थम स ा त के अनुसार आध यु मकोद भद एक उ व, प णल
रोह, या सम मत यु त था (The primitive gametophyte was an erect leafy
shoot radical इन its symmetry) जब क वतीय स ा त के अनुसार आध यु मकोद भद
सरल पृ ठाधार यान थैलाभ था जो बा य व प के साथ ऊतक संरचना म भी सरल था ।
(The primitive gametophyte was a simple dorsiventral prostrate, thallus
which was simple in its external forms as well as in histological structure)
यु मकोद भद अगु णत पीढ़ को न पत करता है िजस पर क यु मक उ प न करने वाले
जननांग पु ध
ं ा नयाँ व ीधा नयां प रव धत होते ह ।
बीजाणुद भद वगु णत अल गक पीढ़ को न पत करता है । इसका वकास यु मनज से होता
है। बीजाणुद भद आं शक प से यु मकोद भद पर आ त रहता है बीजाणुद भद के वकास को
समझने के लये दो कार के स ा त बतलाये गये ।
(a) गामी बं यकरण का स ा त
(b) गामी सरल करण का स ा त

10.5 श दावल
पीढ एका तरण (Alternation of generation) : जीवन च िजसम यु मक उ प न करने
वाल यु मकोद भद अगु णत अव था, बीजाणु उ प न करने वाल वगु णत बीजाणुद भद अव था
एका तर म म मलती है ।
स पु टका (Capsule) पोरोगो नयम का बीजाणु उ प न करने वाला भाग
ए डोथी सयम (Endothecium) : ायोफाइटा म त ण पोरोगो नयम क भीतर परत
पाद (Foot) . ायोफाइटा तथा टे रडोफाइटा के ण
ू बीजाणुद भद का व श ट अंग जो
यु मकोद भद से पोषण अवशोषण करने वाला तथा अ थाई थापनांग दे ने वाला अंग
यु मकोद भद (Gametophyte) : जीवनच क वह अव था जो यु मक उ प न करती है ।
बीजाणुद भद (Sporophyte) : ायोफाइटस म नवेचन से उ प न वगु णत बीजाणु उ प न
करने वाल संरचना ।

10.6 स दभ थ
1. Sharma G. P. & Sharma M.D. Microbes and Cryptogaurs S.P.H.
Shakshi.
2. Sharma P. D. – Introduction of Bryophyte, Ramesh Book Depot.

193
3. Trivedi, Sharma, Dhankhad & Gupta Diversity of Cryptogems Ramesh
Book Depot.

10.7 बोध न के उ तर
1. ायोफाइटा थम थल य पादप है िजसे नषेचन के लये जल क आव यकता होती है,
इस लये इ ह उभयचर कहा जाता है ।
2. य क यह ण
ू नमाण करने वाले पादप वग के सबसे सरल एवं आ दम पादप समू ह है ।
3. वैपर य (Antithetic) कार के पीढ़ एका तरण के अ तगत दो पूववत (यु मकोद भद) का
अ तवशन (interpolation) हु आ है ।
4. यु मक - संयोजन के बना, यु मकोद भद से बीजाणुद भद का प रवधन अपयु मन
(Apogamy) कहलाता है।
5. बीजाणु के बना बीजाणु उद भ से यु मकोद भद का प रवधन अपबीजाणु ता (Apospory) है।
6. यु मकोद भद और बीजाणुद भद पीढ़ एका तरण

10.8 अ यासाथ न
1. ायोफाइटा म यु मकोद भद के वकास पर लेख ल खए ।
2. ायोफाइटा म बीजाणुद भद के वकास के स ब ध म तपा दत मत का वणन क िजये ।

194
इकाई 11 : रि सया (Riccia)
इकाई क परे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 वग कृ त ि थ त
11.3 वतरण एवं आवास
11.4 यु मकोद भद
11.4.1 बा य संरचना
11.4.2 आ त रक संरचना
11.5 जनन
11.5.1 का यक जनन
11.5.2 ल गक जनन
11.6 बीजाणु द य अव था
11.7 पीढ एका तरण
11.8 सारांश
11.9 श दावल
11.10 संदभ थ
11.11 बोध नो के उ तर
11.12 अ यासाथ न

11.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आप न न ब दुओं को समझ पायगे-
1. रि सया वग कृ त ि थ त, आवास एवं ाि त थान ।
2. रि सया बा य एवं आ त रक संरचना।
3. रि सया क यु मकोद भद (Gametophyte) ाव था क व भ न संरचनाओं के बारे म
व तृत जानकार ा त करना.
4. बीजाणुद भद (sporophytic) ाव था क व भ न संरचनाओं के बारे म व तृत जानकार
ा त करना।
5. रि सया के जीवन च क व वध ाव थाओं क जानकार ा त करना ।

11.1 तावना
लोरटाइन के राजनी त पी. एफ. र सी (P. F. Ricci) के स मान म इस वंश का नाम
रि सया (Riccia) रखा गया । इस वंश का वतरण व वजनीन है ले कन इसक अ धकांश

195
जा तयाँ द णी गोलाध म बहु तायत म मलती है, सामा यत' ये पादप वषा ऋतु म मलते है ।
पादप रोजेट जैसी आकृ त मे उगते है ।
पादप शर र यु मकोद भद होता है िजसे थैलस (Thallus) कहते है । थैलस क उद काट म
आ त रक रचना प ट होती है - (i) काश संशले णी े (ii) संचयी े
रि सया म अनुकूल वृ काल मे का यक जनन होता है । ल गक जनन म (antheridium)
पु ध
ं ानी और ीधानी (archegonium) का वकास थैलस के प रप व होने के साथ होता है ।
इनका प रवधन अ ा भसार (acropetal) मे होता है । न ष ता ड होने के साथ होता है । यह
वभाजनो वारा बीजाणुद भद का नमाण करता है । बीजाणुद भद एक अ य त सरल संरचना
होती है, जो केवल गोलाकार कै सू ल वारा न पत होती है । बीजाणुद भद म पाद व सीटा
अनुपि थत होते है । रि सया बीजाणु द भद पोषण के लए पूण प से यु मकोद भद थैलस पर
नभर रहता है । कै सूल म फूटन क कोई व ध नह होती है अथात ् यह कु टत नह होता
है। बीजाणु का क णन वायु वारा होता है । बीजाणु यु मकोद भद थम को शका होता है ।
अनुकू ल प रि थ त मलने पर बीजाणु अंकु रत होता है । िजसम वभाजनो से थैलस क वृ
होती है ।

11.2 वगींकरण ि थ त
ायोफाइटा
हपे टकोि सडा
माकि शएल ज
माकि शएसी
रि सया

11.3 वतरण एवं आवास


रि सया व व यापी वंश है व व म इसक लगभग 140 जा तयाँ है, िजनम से भारत म 31
जा तयाँ मलती है । इनम से मु ख जा तयाँ है - रि सया आबूएि सस, रि सया जोधपूरेि सस ,
रि सया लूटे स, रि सया अरावले सस, रि सया रे टकु लेटा ।
रि सया क भारत म पाई जाने वाल जा तयाँ – रि सया डसकलर, रि सया पठान काटो सेस,
रि सया मैलेनो पोरा, रि सया क टे लाइना, रि सया गै गै टका ।
रि सया क भारत म पाई जाने वाल जा तयाँ थल य है । इस वंश क केवल दो जा तयाँ है ।
रि सया लूटे स , रि सया आबुएि सस ।

11.4 यु मकोद भद
11.4.1 बा य संरचना (External Structure)
पादप शर र यु मकोद भद होता है । िजसे थैलस कहते है । यह यान, चपटा, पृ ठाधार व
वभाजी शा खत होता है । शाखन थैलस क आकृ त को नधा रत करता है । शाखाएं भ न
भ न आकृ त क जैसे वैजाकार (Wedge Shaped) , दयाकार अथवा फ तेनम
ु ा हो सकती है

196
(च 11.1 A) । कमी कभी वभाजी शाखन बहु त शी ता से होता है और स पूण थैलस रोजेट
आकृ त का दखाई दे ता है । थैलस क येक शाखा के शीष पर एक खांच (notch) होती है ।
िजसम वृ ब दु ि थत होता है ( च 11.1 B, C) । थैलस का म य भाग कनार क अपे ा
मोटा होता है । जो म य शरा को न पत करता है । थैलस क पृ ठ य सतह पर म य शरा
े म (median longitudinal groove) होता है, जो शीष थ खाँच म समा त होता है इसे
शीष थ खाँच (Apical groove) अनु ै य खाँच (Apical groove) कहते है । जनन अंग का
नमाण इसी अनु ै य खांच म होता है ।

च 11.1. रि सया : A. पादप वभाव, A-C. थैलस क पृ ठ सतह, D. अधर सतह,


E. श क, F. चकनी भि त यु त मूलाभास, G. गु लक य मू लाभास ।
197
थैलस क अ य (ventral) सतह पर दो कार क संरचनाएं - मू लाभास (rhizoids) तथा
श क (scales) पाये जाते है । मू लाभास पतल धागे के समान संरचनाएं होती है जो क
अ धकांशत: म य शर य े म मलती है । मू लाभास एक को शक, अशा खत व कोमल संरचनाएं
है, जो थैलस क नचल अ धचम से वक सत होते है । ये दो कार के होते है (i) चकनी
भि त यु त (Smooth) ( च 11.1 F) (ii) गु लक य मूलाभास (tuberculated) ( च 11.1
G) । आभास पौधे को अध: तर पर जमाये रखते है और नमी का अवशोषण करते है ।
श क बहु को शक, बगनी रं ग के तथा एक को शका मोटाई क लेट स य संरचनाएँ होती है ( च
11.1 E) । थैलस के अ त थ सरे पर शीष थ खांच (apical notch) के नकट ये सघन होते
है और सरे से भी कु छ आगे क और नकले रहते है । इस कार श क शीष थ वृ ब दु को
संर ण दान करते है । त ण थैलस म श क एक पंि त म व या सत रहते है ले कन जैसे -
जैसे थैलस वृ करता है , म य शरा पर येक श क दो ख ड म टू ट जाता है । इसी कारण
य क थैलस म इनक दो पंि तयां पायी जाती है । अत: य क अव था म येक श क वा तव
म आधे श क को न पत करता है ( च 11.1 D) ।
जल य जा तय म थैलस ल बा अपे ाकृ त संक ण, कोमल, चपटा, रबन समान वभाजी शा खत
होता है । मूलाभास व श क का अभाव होता है । सतह पर तै रने वाले (Free floating) या
आं शक जल न मन (submerged) पादप ब धय (sterile) होते है । और अ य अंग का
प रवधन केवल उसी दशा म होता है जब जल कम होने पर थैलस जलाशय क म ी से चपक
कर थल य (terrestrial) हो जाता है । थल य अव था म अ य सतह से अनेक मूलाभास
प रव धत हो जाते है । थैलस क येक पा ल के अंत थ सरे के नकट अपे ाकृ त छोटे श क
भी प रव धत हो जाते है जो क रं गह न या बगनी रं ग के होते है । श क टू ट कर दो श क म
प रव धत नह ं होते है ।
11.4.2 आ त रक संरचना (Internal Structure)
आ त रक संरचना बा य. संरचना क तुलना म अ धक ज टल होती है । प रप व थैलस क उद
काट दो प ट े म वभे दत रहती है । ऊपर क ओर का े (dorsal) काश सं लेषी े
(Photosynthetic) नीचे क ओर का े (ventral) संचयी े (storage region) कहलाता
है ( च 11.2 A) ।
(a) काश सं लेषी े (Photosynthetic region) इस े क को शकाय उदग ् पंि तय
मे व या सत होती है । ये पंि तयां काश सं लेषी त तु (Photosynthetic filament) कहलाते
है ( च 11.2 B) ।
येक त तु क शीष थ को शका आकार म कु छ बड़ी काचाभ होती है । इन को शकाओं म
ह रतलवक के कारण थैलस का यह े काश सं लेषण का काय करता है । इसी कारण इसे
काश सं लेषी े कहते है । काश सं लेषी त तु ओं के बीच संक ण चौड़े वायु को ठ (air
chamber) पाये जाते है ।
येक वायु को ठक चार से आठ त तु ओं वारा घरा होता है तथा थैलस क अपा सतह पर
वायु छ (airpore) वारा खु लता है । वायु छ वारा काश सं लेषण के समय गैस का
198
आदान दान होता है । इन वायु छ के कारण ह ऊपर अ धचम व छ न (air continuous)
होती है । च 3.3 A कु छ जा तय जैसे क रि सया लूटे स तथा रि सया ु सयेटा म वायु
को ठक मे एक से अ धक तर का बना होता है । ये को ठक एक दूसरे से एक को शक मोटाई
के अ नय मत पट (Septa) वारा पृथक रहते है । रि सया लू टे स के थल य आवास वाले
पादप म वायु को ठक के य भाग म ि थत अ य त सू म रं ो वारा बाहर क ओर खु लते है।
जब क जल नम न (submerged) पादप म वायु को ठ तो मलते है ले कन यह सभी ओर
से ब द होते है ( च 3.3 B) ।

च 11.2 : रि सया : थैलस का अनु थ काट - A. आरे ख च , B. को शक य च ।

199
(b) संचयी े (Storage-region) थैलस के अ य सतह क ओर ि थत यह े
मृदुतक य को शकाओं से न मत होता है । इनके म य अ तराको शक अवकाश ( थल)
(Intercellular Space) नह होते है और न ह इनम ह रतलवक होते है । काश सं लेषी भाग
वारा न मत भोजन का संचय म ड के प मे इ ह को शकाओं म सं हत होता है । इस े
क सबसे नचल पत नचल बा य वचा (Lower epidermis) का नमाण करती है बा य
वचा क को शकाओं से मू लाभास व श क नकलते है ।

च 11.3. रि सया लू टे स : A. बा य आका रक , B. थैलस का काट।

11.5 जनन
रि सया म जनन का यक (Vegetative) व ल गक (sexual) व धयो वारा होता है ।
11.5.1 का यक जनन:
अनुकू ल वृ ऋतु म होता है । रि सया थैलस क यूथी कृ त (Gregarious habit) का एक
मु य कारण का यक जनन है । यूथी कृ त म बहु त से थैलस एक दूसरे के समीप उग कर एक
समू ह बना लेते है । का यक जनन न न म से एक या अ धक व धय वारा हो सकता है ।
(a) वख डन वारा (By Fragmentation) : थैलस का पुराना आधार य भाग धीरे -धीरे मृत
होकर गल जाता है । यह या जब वभाजी शाखन वाले भाग तक पहु ंच जाती है तब
दोनो शाखाएँ एक दूसरे से पृथक् हो जाती है । इस कार पृथक् हु ई शाखाएँ वत थैलस
के प मे वृ करने लगती है ।

200
(b) अप था नक शाखाओं वारा (By adventitious) : रि सया क कु छ जा तय म ( रि सया
फलू टे स) थैलस क अ य (ventral) सतह पर म य शरा म अप था नक शाखाएँ
वक सत होती है । यह शाखाएँ मातृ पादप से अलग होकर नए पादप का नमाण करती है ।
(c) चर थायी शीष वार (By persistent apices) रि सया क वह जा तयाँ जो शु क े
म उगती है ( रि सया ड कलर) म थैलस के वृ भाग को छोडकर बाक भाग तकू ल
प रि थ त म न ट हो जाता है । अनुकूल प रि थ तय के आने पर यह भाग वृ कर नए
थैलस का नमाण करता है ।
(d) क द वारा (By tubers) कु छ जा तय जैसे रि सया पे र नस, रि सया ब बीफेरा आ द
म तकु ल प रि थ तय म जी वत रहने के लये व श ट अंग 'क द' (tubers) बनते है
व भ न जा तय मे ये व भ न थल पर प रव तत होते है । ( च 11.4) वृ - ऋतु के
अ त म, थैलस - पा लय के अगले सरे खाध सं हत होने के कारण मोटे हो जाते है और
इनके चार तरफ अपे ाकृ त मोटा संर णी तर (Protective layers) न नाता है, जो क
तकू ल प रि थ तय म जी वत क तु सु षु त रहती है अनुकू ल प रि थ तय म पुन: लौटने
पर येक कंद नये थैलस मे वक सत होता है ।
(e) मू लाभास वारा (By rhizoids) : रि सया लाँका म मूलाभासो के शीष पर एक हरे रं ग
का एक कोशीक य प ड वक सत होता है । िज ह गेमा (Gemma) कहते है । ये गेमा
अनुकू ल प रि थ तय मे नव पादप का नमाण करते है ।
11.5.2 ल गक जनन (Sexual Reproduction)
रि सया क अ धकांश जा तयाँ उभय लगा यी (Monoecious) होती है । िजनमे नर व ी
जननांग एक ह थैलस पर वक सत होते है । मु ख उभय लंगा यी जा तयाँ ह -
रि सया टे लाइना (R. crystallina)
रि सया ू ि यटा (R. cruciata)
रि सया प डाई (R. pandei) आ द
कु छ जा तयाँ जैसे
रि सया ड कलर (R. dicolor)
रि सया ो टाई (R. frostii)
रि सया पयरसोनाई (R. pearsonii)
एक लगा यी (dioecious) है, िजसमे नर व ी जननांग अलग - अलग थैलस पर वक सत
होते है।
ल गक जनन वषमयु मक (oogamous) होता है नर व ी जननांग मश : पुधानी
(antharidium) व ीधानी (archegonium) कहलाते है ।
जननांग का वकास थैलस के प रप व होने के साथ साथ ार भ हो जाता है । ये थैलस क
अपा सतह पर म य खांच (Median groove) म वृ ब दु के पीछे अ ा मसार म
(acropetal succession) म प रव धत होते है । इस म म सबसे त ण जनन अंग शीष के
201
सि नकट और शीष के पीछे क और मश: प रप व होते हु ए जननांग मलते है । ी धानी क
ीवा का शीष थ भाग थैलस के ऊपर नकला हु आ रहता है ।
(a) पु ध
ं ानी (Antheridium)
(i) ं ानी प रवधन (Development of Antheridium) : पुधानी का प रवधन थैलस क
पु ध
अपा सतह पर शीष को शका से 2 - 3 को शका पीछे ि थत म य खांच (median groove)
क सतह को शका से होता है यह को शका पुधानी ारि भक को शका (antheridial initital)
कहलाती है । जो अ य को शका से बड़ी व सघन साइटो ला म यु त होती है ( च 11.4 A) ।
इसम अनु थ वभाजन (transverse division) वारा ऊपर बा य को शका (outer cell) व
नचल आधार को शका (basal cell) का नमाण होता है ( च 11. 4 B) । आधार को शका
से पुधानी वृ त का अ त : था पत (embedded) भाग बनता है जब क शेष पुध
ं ानी का नमाण
बा य को शका से होता है ।
बा य को शका उ तरो तर (successive) म म अनु थ वभाजन वारा चार को शका त तु
का नमाण करती है । त तु क ऊपर दो को शकाएं ं ानी को शकाएं (Primary
ाथ मक पुध
antheridial cells) तथा नचल दो को शकाएं ाथ मक वृ त को शकाएं (Primary stalk
cells) कहलाती है ( च 11.4 C, D)।
ाथ मक वृ त को शकाओं म कु छ वभाजन से दो को शका मोटाई के बहु को शक वृ त (Stalk)
का नमाण होता है।
ाथ मक पु ध
ं ानी को शकाओं म दो उद वभाजन एक -दूसरे के समकोण पर होते है, िजससे
चार- चारको शकाओं के दो सोपान (tier) बन जाते है ( च 11.4 E)।

202
च 11.4 रि सया: पुध
ं ानी प रवधन क अव थाएँ
इन आठ को शकाओं म प रनत वभाजन वारा आठ बा य ाथ मक जैकेट को शकाएं
(Primary Jacket Cells) तथा आठ भीतर ाथ मक जैकेट को शकाएं अपन तक (anticlinal)
वभाजन वारा एक ं ानी जैकेट (antheridial jacket) का
तर य पुध नमाण करती है ।
ं नक को शकाएं बनाती है, िजसक अि तम पीढ़ पुमणु मातृ को शकाएं (androcyte
ाथ मक पु ज
mother cell) कहलाती है ।( च 11.4 H, I) पुमणु मातृ को शका म एक वकण (diagonal)
वभाजन वारा दो ं ो शकाए अथवा शु ाणु मातृ को शकाएं (androcyte or
कोणीय पुक
sperm mother cells) बन जाती है, जो येक काया तरण (metamorphosis) वारा एक
वक ा भक पुमणु (antherozoids) का नमाण करती है ( च 11.4 J, N)।

203
(ii) ं ानी (Mature antheridium)
प रप व पु ध ं ानी गोल, अ डाकार
येक प रप व पु ध
(Oval) या मु दराकार (clubbed shaped) सरं चना होती है ( च 11.5) । पु ध
ं ानी एक छोटे,
बहु को शक, दो को शका मोटाई के वृ त (stalk) वारा पु ध
ं ानी को ठ (antheridial) के आधार
पर संल न रहती है । येक पुध
ं ानी को ठ थैलस क अपा सतह पर एक संक ण छ
(Ostiole) वारा खुलता है। पुध
ं ानी का एक तर य जैकेट अनेक पुमणु मातृ को शकाओं अथवा
पुमणुओं को प रप व कये रहता है । एक पुध
ं ानी म सैकड़ो पुमणु (sperms or
antherozoids) वक सत होते है । येक पुमणु कु ड लत (sprial) तथा वकशा भक
(biflagillated) संरचना होती है ।

च 11.5 : रि सया : प रप व पुध


ं ानी क संरचना
(iii) पु ध
ं ानी का फूटन (Dehiscence of antheridium) पु ध
ं ानी के फूटन के लये जल
का होना अ नवाय है । प रप वाव था म को शकाओं अथवा पुमणु मातृ को शकाओं के भि त के
य होने से ले मी य बन जाता है । कु छ शेष बचा को शका य भी घुलकर ले मी य
ं ानी को जब जल उपल ध होता है । तो यह जल, शीष पर ि थत एक सू म
बन जाता है । पु ध
रं के वारा पुध
ं ानी को ठ म पहु ँच जाता है । पुध
ं ानी जैकेट के शीष क को शकाएँ नमी
अवशो षत कर अंत: वघ टत हो जाती है । पु ध
ं ानी गुहा से ले मी य म प रब पुमणु बाहर
नकल कर थैलस क सतह पर आ जाते है । जल के स पक मे आने पर पुमणु स य होकर
कशा भकाओं वारा जल म तैरने लगते है ।
(b) ीधानी (Archegonium)
(i) ीधानी का प रवधन (Development of archegonium) ीधानी का प रवधन भी
थैलस क अपा सतह पर ि थत एक पृ ठ य को शका (Superficial Cell) से होता है िजसे
ी धानी ारि भक को शका या आधार को शका (Archegonial initial) कहते है ( च 11.6
A) । इसका आकार समीप ि थत अ य को शकाओं से बड़ होता है यह ारि भक को शका एक

204
अनु थ वभाजन वारा ऊपर बा य को शका (outer cell) तथा नचल आधार को शका
(Basal cell) बनाती है (91.6 B) । आधार को शका थैलस ऊतक म अंत: था पत रहती है
और ीधानी के प रवधन म भाग नह लेती है । बा यको शका से ी धानी का मु य शर र
बनता है । अत : इसे ीधानीय मातृ को शका (archegonial mother cell) कहते है ।
ीधानी मातृ को शका म तीन उद व तयक ( तरछे ) (vertical interesting division) होते
है । िजसके फल व प एक के य ाथ मक अ ीय को शका (Primary axial cell) तथा तीन
प रधीय को शकाओं (Peripheral cells) का नमाण होता है ( च 11.6 D) । प रधीय
को शकाओं के वभाजन वारा ीधानी का ब धय जैकेट प रव धत होता है और अ ीय को शका
से ी धानी क गुहा म अ ीय को शका पंि त बनती है ।

च 11.6 : रि सया : ीधानी - प रवधन क अव थाएँ


तीन प रधीय को शकाओं म से येक अर य अनुदै य वभाजन वारा (radial longitudianal
division) वभािजत होती है, इस कार छ : जैकेट ारि भक को शकाएं (Jacket-initial) बन

205
जाती है । ये को शकाएं अनु थ वभाजन वारा छ: को शकाओं वाल दो को शका सोपान बनाती
है । ऊपर सोपान क को शकाएं ारि भक ीवा (Neck initial) तथा नचले सोपान क
को शकाएँ ारि भक अ डधा (Venter initials) बनाती है ।
(ii) प रप व ीधानी (Structure of Mature archegonium) प रप व ीधानी एक
ला क के समान सरं चना होती है ( च 11.7) । जो क थैलस क ऊपर सतह पर ीधानी
को ठ म एक छोटे अ प ट वृंत वारा लगी रहती है । इसका ऊपर संक ण व ल बा भाग ीवा
कहलाता है जो क आधार म फूले हु ए गोलाकार भाग अ डधा म वभे दत हो जाता है । ीवा का
जैकेट एक को शका तर का होता है । िजसक ऊंचाई 8 - 9 को शक य होती है । ीवा के शीष
पर 4 आ छद को शकाएँ (cover cell) ि थत होती है । ीवा नाल म 4 - 6 ीवा नाल
को शकाओं (NCC) क एक पंि त होती है अ डधा के चार और को शकाओं का एक तर य
जैकेट उपि थत होता है । अ डधर गुहा म एक बड़ गोलाकार अ ड (egg) तथा ऊपर छोट
अ डधा नाल को शका (vcc) होती है ।

च 11.7 : रि सया : एक पूण प रप व ीधानी


(iii) नषेचन (Fertiliation) : िजस कार पु ध
ं ानी के फूटन के लए जल का होना अ नवाय
है उसी कार से ीधानी के खु लने व नषेचन के लये जल क उपल धता अ नवाय है । जब
ीधानी नषेचन से पूव प रप व हो जाती है तो (NCC) ीवानाल को शका और अ डधानाल
को शका (VCC) अपघ टत होकर एक ले मी पदाथ का नमाण करती है । यह ले मी पदाथ
का नमाण करती है । यह ले मी पदाथ जल अवशो षत कर फूल जाता है । और बाहर क तरफ

206
दबाव डालता है। िजसके फल व प शीष थ आ छद को शकाएं एक दूसरे से अलग हो जाती है ।
ीधानी का मु ख खुलने पर अ डधा म ि थत अ डाणु तक एक माग बन जाता है । ले मी
पदाथ म कु छ रासाय नक यौ गक जैसे क ोट न, अकाब नक लवण और वशेषकर पौटे शयम के
लवण होते है जो क ीधानी के आस-पास पाये जाने वाले जल म तैरते हु ए पुमणु ओं को अपनी
ओर आक षत करते है ।
इस रसायन अनुचलनी (Chemotactic) अनु या के प रणामत: कई पुमणु अपनी कशा भकाओं
क सहायता से ीधानी क ओर तैरते है और इनमे से कई ीधानी क नाल म वेश कर जाते
है । इनम से एक अंतत: अ ड म व ट होकर अ ड के के क से संयोिजत होकर यु मनज
(zygote) बनाता है । इस या को नषेचन (fertilization) कहते है । नषेचन के प चात ् शेष
पुमणु न ट हो जाते है तथा अ डधा का ऊपर भाग ले मी य वारा अव हो जाता है ।
नषे चत अ ड या यु मनज अपने चार ओर सै कू लोज भि त ा वत क न ष ता ड
(oospore) म प रव तत हो जाता है ।
बोध न
1. सबसे सरल बीजाणु द भद कस ायोफाइटस म पाया जाता है ।
......................................................................... ..................
............................................................ ...............................
2. रि सया म यु मकोद भ पीढ़ क थम को शका कौन सी है ।
...........................................................................................
...........................................................................................
3. रि सया क ीधानी ीवा जै के ट कसक बनी होती है ।
...........................................................................................
............................................................................... ............
4. रि सया क दो जा तय के नाम बताइए जो राज थान म पाई जाती है ।
...........................................................................................
............................................................................... ............
5. रि सया म जननां ग क ि थ त या होती है ।
...........................................................................................
...........................................................................................
6. रि सया कु ल म यु मको द पीढ़ क अि तम सं र चना है ।
...........................................................................................
...........................................................................................
7. रि सया क कन जा तय म वायु को ठ पू ण त: ब द होते है ।
...........................................................................................
...........................................................................................

207
11.6 बीजाणुद भद (Sporophyte)
न ष ता ड बीजाणु द भ पीढ क थम को शका होती है । न ष ता ड न मत होने के तुर त
बाद वृ करने लगता है और इसम व ामाव था (resting period) का अभाव होता है यह
आकार मे वृ करके अ डधा क स पूण गुहा को घेर लेता है । इसके साथ अ डधर क भि त
को शका प रन तक तथा अपन तक वभाजन वारा एक व तर य संर ी आवरण गोपक
(Calyptra) का नमाण करती है । गोपक प रव धत होते हु ए बीजाणुद भद को प रब कये
रहता है य क इसक वृ पोरोगो नयम के साथ-साथ समान दर से होती है ।
(a) बीजाणु द भ का प रवधन (Development of sporogonium) : न ष ता ड म
थम वभाजन अनु थ होता है िजसके फल व प दो को शकाएँ ऊपर उप-आधार (epibasal)
और इसके नीचे अधोआधार (hypobasal) को शकाएँ बनती है ( च 11.8 C)। अगला
वभाजन सामा यत: उद भि त वारा होता है। िजससे चार को शकाओं का नमाण होता है।
पर तु कु छ जा तय म दूसरा वभाजन भी पहले के समान अनु थ होता है, िजससे चार
को शकाओं क एक उद पंि त बन जाती है। इस कार क अव था को 'सू ी ण
ू '
(filamentous embryo) अव था कहते ह। तीसरा वभाजन उद भि त वारा होता है िजससे
फल व प आठ-को शक य अ टांशक (octant) का नमाण होता है ( च 11.8 C)।
अ टांशक अव था के बाद को शका वभाजन सभी तलो से होता है । और 20-40 को शकाओं क
गोलाकार संरचना का नमाण होता है ( च 11.8 D)। इस अव था म प रनत वभाजन वारा
एक बा य तर ब ह थी सयम (amphithecium) बनता है जो क के य को शका संह त
(cell mass) अत: तर या अंत थी सयम (endothecium) को ढके हु ए रहता है ( च 11.8
E, F)।
बा य तर क को शकाओं म केवल अपन तक वभाजन वारा एक को शका मोटा संर णी ले कन
ब धय (sterile) जैकेट का नमाण होता है जब क अंत थी सयम क को शकाओं ( सू तक
को शकाएं) बार बार वभािजत होकर बीजाणु जन ऊतक (sporogenous tissue) का नमाण
करती है । ( च 11.8 G, H) इस वभािजत म म अं तम वभाजन वारा बीजाणु मातृ
को शकाएं (Spore mother cell) बनाती है । बीजाणु मातृ को शकाएं एक दूसरे से पृथक होकर
गोलाकार हो जाती है इनम से कु छ बीजाणु मातृ को शकाएं वृ (abortive) हो जाने से
अपघ टत होकर पोषक को शकाओं (nurse cell) का काय करती ह । इन वृ पोषक
को शकाओं को माकि शऐ स गण के अ य सद य म मलाने वाले इलेटरस ् का पूवाभास माना
गया है ।
येक याशील बीजाणु मातृ कोशीका अधसू ी वभाजन वारा बीजाणु चतु क का नमाण करती
है । ( च 11 .8 चतु क के चार बीजाणु मातृ को शका वारा घरे रहते है । चतु क क येक
को शका अपने चार और संभाग केलोज (Callose) परत ा वत करती है । िजसके भीतर क

208
और भि तय का नमाण होता है । कैल ज परत और मातृ-को शका के लु त होने पर चतु क के
चार बीजाणु पृथक हो जाते है । रि सया क अ धकांश जा तय म अगु णत गुणसू सं या n=8
(2n = 16) होती है ले कन व भ न जा तय म व भ न वन प त ने भ न- भ न सं याओं
का उ लेख कया है ।
सल र (sileir-1934) रि सया आि टनाई और रि सया कै लफो नकास म n = 9, रि सया
गै गै टका । n = 24 (Udar & chopra) आ द, जैसे जैसे बीजाणु चतु क का नमाण होता
जाता है, जैकेट तथा गोपक क भीतर परत क को शकाएं न ट होती जाती है या म केवल बा य
गोपक परत ह शेष बची रहती है ।

च 11.8 : रि सया : बीजाणु द भ प रवधन क ाव थाएँ ।

209
(b) प रप व बीजाणुद भद (Structure of Mature sporogonium) रि सया का
प रप व बीजाणुद भद एक अ य त सरल संरचना होती है, जो केवल गोलाकार कै सू ल वारा
न पत होती है । पाद (Foot) व सीटा (Seta) अनुपि थत होते है । इस संरचना को
पोरोगो नयम (Sporogonium) कहते है । त ण बीजाणुद भद (Young sporophyte) एक
तर य जैकेट व दो तर य गोपक वारा घरा रहता है । िजसमे अनेक बीजाणु चतु क (Spore
tetrad) व बीजाणु (spores) प रब रहते है ( च 11.9) । अ य ल वर वट के समान यह
बाहर थैलस सतह पर द शत न होकर थैलस क अपा सतह पर धंसा (embded) रहता है ।
रि सया बीजाणुद भद पोषण के लये पूण प से यु मकोद भद थैलस पर नभर रहता है ।

च 11.9 : रि सया : प रप व बीजाणु द भ क संरचना


कै सू ल का फूटन (Dehiscence of Capsule) : बीजाणु प रप व होते ह मु त नह होते है,
और लगभग 6 से 12 मह ने तक थैलस मे ह रहते है । रि सया के कै सू ल या पोरोगो नयम
के फूटन क कोई व श ट फूटन व ध नह होती है । अथात ् यह कु टत नह होता है ।
कै ल ा क बा य तर तथा उसके चार और के थैलस ऊतको के मृत होकर य (decay) हो
जाने पर ह बीजाणु मु त होते है । इस कार मु त बीजाणु वायु वारा क णत हो जाते है ।
(c) त ण यु मकोद भद (Young gametophyte) -
(i) बीजाणु Spore - बीजाणु यु मकोद भद पीढ क थम को शका होती ह । अ धकांश
जा तय म प रप व बीजाणु चतु कफल य अथवा परा मड आकार (tetrahedral or pyramids)
के होते है । बीजाणु ल बे समय तक बीजाणु चतु टय (Spore tetrads) म व या सत रहने के
कारण इनक आकृ त चतु फलक य होती है ( च 11.10 A) । येक बीजाणु एक बीजाणु
आवरण वारा प रब रहता है । यह चोल या आवरण पोरोडम (Sporoderm) कहलाता है ।
यह आवरण तर य होता है । इन तर को मश : बाल, म य व अंत : चोल कहते है ।
बा य चोल (exosporium) सबसे बाहर वाला तर होता है । यह मोटा और यू टन यु त होता
है । म य तर (mesosporium) भी अपे ाकृ त मोटा और यू टनी होता है जो क तीन
210
संके तर (बा य : तर पीला व ले मनेट, म य तर गहरे रं ग के पदाथ का तथा आ त रक
तर सघन ले मनेट) परत क बनी होती है । कुछ जा तय म ( रि सया पेटूला) म अर य
कटक (triradiate) सु प ट होता है जब क अ य म ( रि ससा ड कलर) म यह अ प ट होता
है।
बीजाणु का यास 0.05 से 0.12 म.मी. तक होता है, िजसके को शका य म खा य पदाथ तेल
लो यूल के प म होता है । लोरो ला ट अनुपि थत होता है ।
(ii) बीजाणु अंकुरण (Germination of spore) अनुकू ल प रि थ तयां उपल ध होने पर
बीजाणु अंकु रत होते है । अंकुरण से पूव बीजाणु नमी अवशो षत कर फूल जाता है । बीजाणु
ब हचोल व म यचोल अर य कटक (triradiate ridge) के थान पर फट जाती है । तथा
अ त: चोल एक न लका के प म बाहर आ जाती है, िजसे जनन न लका (germ tube), कहते
है । जनन न लका तेजी से वृ कर ल बी मु दराकार (club-shaped) संरचना बन जाती है ।
इस बीजाणु का स पूण को शका य न लका के दूर थ सरे पर एक हो जाता है । इसमे
लोरो ला ट दखाई दे ता है ( च 11.10 B) । जनन न लका के शीष भाग पर अनु थ
वभाजन वारा एक अ त थ को शका (terminal cell) बन जाती है ( च 11.10 C) अ त थ
को शका के बनने के साथ ह जनन न लका के व तारण से मूलाभास वक सत हो जाता है ।
अ त थ को शका मे दो उद (vertical) वभाजन एक-दूसरे से समकोण पर तथा एक अनु थ
(transverse) वभाजन होता ह । इस कार चार-चार को शकाओ के दो सोपान (tier) बन जाते
है ऊपर सोपान क चार को शकाओ से एक शीष थ को शका (apical cell) का काय करती है
(च 11.10 D, E) । ऊपर सोपान क शेष तीन को शकाएं कु छ बार वभािजत होकर थैलस का
आधार भाग बनाती है जब क एक शीष को शका से उद वभाजनो वारा शीष थ को शकाओ
क एक पंि त बन जाती है, िजनके वभाजनो से थैलस क वृ होती है ( च 11.10 F, G)।

211
च 11.10 : रि सया : बीजाणु क संरचना तथा बीजाणु अंकुरण क ाव थाएँ

11.7 रि सया म पीढ़ एका तरण


(Alternation of generation in Riccia)
रि सया के जीवन वृ त को दे खने पर हमे ात होता है क मु य पादप शर र एक थैलस समान
संरचना है । िजसक क अ य सतह पर एक को शक अशा खत मू लाभास तथा श क होते है ।
पृ ठ य सतह पर म य भाग म एक पृ ठ य खांच होता है । थैलस क आ त रक संरचना दो े
सं हण े तथा काश सं लेषी े म वभे दत रहती है । म य पृ ठ य खांचे म ल गक जनन
के लए पु ध
ं ा नयाँ व ीधा नयाँ प रव धत होती है । पु ध
ं ानी एक छोटे वृंत पर लगी अंडाकार
संरचना होती है िजसम क अनेको नर यु मक (पुमणु ), एक को शक - तर वाले जैकेट वारा
प रब रहते है । ीधानी ला क के समान होती है । और इसके फूले हु ये आधार भाग को

212
अ डधा कहते है जो क ऊपर क और एक संक ण ीवा से जु ड़ा होता है । ीधानी क अंडधा म
एक अंडाणु होता है । पुध
ं ानी के फु टत होने पर पुमणु मु त हो जाते है । और इनमे से कु छ
ीधानी क ीवा म वेश कर अ डधा तक पहु ंच जाते है । अंतत: इनम से एक अंड से
संयोिजत होकर यु मनज या न ष ता ड बनाता है ।
न षता ड सम सू ण वारा एक नव संरचना पोरोगो नयम बनाता है । पोरोगो नयम एक
अ य त सरल संरचना है िजसम अल गक (asexual) जनन होता है । इसम एक को शका मोटा
आवरण जैकेट होता है जो बीजाणु मातृ को शकाओ को प रब कये रहता है । येक बीजाणु
मातृको शका अधसू ण वारा चार बीजाणु बनाती है। पोरोगो नयम के मु त होने पर बीजाणु
अंकु रत होकर एक नया थैलस बनाता है ।
इस कार रि सया के जीवन-च म दो प ट अव थाएं मलती है । एक अव था मु य पादप
वारा न पत होती है िजस पर क जनन अंग मलते है तथा ल गक जनन होता है । दूसर
अव था पोरोगो नयम वारा न पत होती है । िजसम बीजाणु ओं वारा अल गक जनन मलता
है । जीवन वृंत क दोनो अव थाओं को ''पीढ़ '' कहते है । पादप शर र जो क यु मको को बनाता
है यु मकोद भद पीढ कहलाता है । पोरोगो नयम जो क बीजाणुओं वारा अल गक जनन करता
है, बीजाणु पीढ कहलाता है । यु मकोद भद जनन वारा नव यु मकोद भद न बनाकर
बीजाणुद भद बनाता है। जब क बीजाणुद भद भी अल गक जनन वारा नव बीजाणुद भद न
बनाकर यु मकोद भद बनाता है । यु मकोद भद और बीजाणुउद भ के एका तरण (alternation)
ए क इस घटना को पीढ एका तरण (alternation of generation) कहते है ।
यु मकोद भद – बीजाणुद भद – यु मकोउ - बीजाणुद भद
य क बीजाणुद भद नर व ी यु मको के संयोजन से बनता है अत: को शक य
(Cytologically) ि ट से इसमे गुण सू ो के दो सेट होते है । इसी कारण इसे दगु णत
(diploid) (2n) पीढ़ भी कहते है । यु मकोद भद गुणसू क सं या बीजाणु उद भ तुलना म
आधी होती है ।इस सं या के आधी हो जाने का कारण बीजाणु मातृ को शका से अ सू ण
(meiosis) वारा बीजाणु ओं का बनना है । अत: यु मकोद भद को अगु णत (n-haploid) पीढ़
भी कहते है ।
पीढ़ एका तरण वा तव मे वगु णत व अगु णत पी ढ़य का एका तरण है । रि सया के जीवन
वृ त म दो पी ढ़य क आका रक म व भ नता द शत होती है । यु मकोद भद थैलस के प म
जीवन वृ त क मु ख व प ट पीढ अपे ाकृ त अ पजीवी और उतनी मुख नह है ।
बीजाणु उ के प मे पोरोगो नयम बीजाणुद भद का ार भ न षकांड से होता है और बीजाणु
मातृ को शका इस पीढ़ क अं तम अव था है । यु मकोद भ का ार भ बीजाणु से होता है और
यु मक (gametes) इस पीढ क अं तम अव था है ।

11.8 सारांश
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आपको रि सया यु मको ाव था तथा बीजाणुद भद
ाव था के बारे म व तृत जानकार ा त हु ई । यु मकोद भ ाव था म थैलस क अ य

213
(ventral) सतह पर दो कार क संरचनाएँ - मू लाभास (rhizoids) तथा श क (scales) पाये
जाते ह । रि सया के प रप व थैलस क आ त रक संरचना ऊपर क ओर काश सं लेषी े
तथा नीचे क ओर संचयी े म वभ त रहती है ।
रि सया म जनन का यक व ल गक व धय वारा होता है । का यक जनन अनुकू ल वृ काल म
होता है । ल गक जनन नर व ी जननांग, िज ह पुध
ं ानी (Antheridium) व ीधानी
(archegonium) कहते ह, के वारा होता है । रि सया क अ धकांश जा तयाँ उभय लंगा यी
(monoecious) होती है । िजनम नर व ी जननांग एक ह थैलस पर वक सत होते ह ।
कु छ जा तयाँ एक लगा यी है, िजनम नर व ी जननांग अलग - अलग थैलस पर वक सत
होते ह । न ष ता ड यु मकोद भद पीढ़ क थम को शका होता है तथा वभाजन वारा
बीजाणुद भद का नमाण करता है । रि सया का प रप व बीजाणुद भद म पाद (Foot) व सीटा
(Seta) अनुपि थत होते ह । बीजाणु यु मकोद भ पीढ़ क थम को शका होती है । अनुकू ल
प रि थ तयाँ उपल ध होने पर बीजाणु अंकु रत होते ह । िजसके वभाजन से थैलस क वृ
होती है ।

11.9 श दावल (Glossary)


अ भसार (Acropetal) : अंगो का मक प से शीष क और प रवधन : पुराने भाग नीचे
तथा त ण भाग शीष के पास ।
बा य - चोल (Exine) : बीजाणु क बा य परत
अ त: भि त (Intine) : बीजाणु क भीतर को शका भि त
ीवा नाल को शका (Neck canal cell) : ीधानी क गदन म पाई जाने वाल को शकाएं
पोरोगो नयम (Sporogonium) : ायोफाइटस म नषेचन से उ प न वगु णत बीजाणु
उ प न करने वाल संरचना

11.10 संदभ ंथ
1. पा डे, जैन, सैनी - शैवाल, शैवाक एवं ायोफायटा, कॉलेज बुक हाउस
2. शमा पी. डी - ायोफाइटा, प रचय, रमेश बुक डपो
3. वेद , शमा, धनखड़, गु ता - अपु पो द व वधताएं, रमेश बुक डपो

11.11 बोध न के उ तर
1. रि सया
2. बीजाणु
3. छ: उद को शका पंि तय क
4. 1. रि सया लू टे स
2. रि सया आबूएि सस
5. जननांग थैलस क अपा सतह पर एकल प म को ठ म ि थत होते है
6. यु मक

214
7. जल नम न जा तय म .

11.12 अ यासाथ न
1. रि सया के बा य व आ त रक संरचना का च स हत वणन क िजये ।
2. रि सया म पु ध
ं ानी व ीधानी प रवधन का च स हत वणन क िजये ।
3. रि सया म बीजाणुद भद प रवधन तथा प रप व बीजाणुद भद क संरचना का स च वणन
क िजये ।
4. न न ल खत पर ट पणी ल खए ।
(अ) रि सया के बीजाणु क संरचना एवं अंकुरण
(ब) रि सया म का यक वधन
(स) रि सया म पीढ़ एका तरण
5. रि सया म यु को क बा य व आंत रक संरचना का स च वणन क िजये ।

215
इकाई 12 : माकि शया (Marchantia)
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 वग कृ त ि थ त
12.3 वतरण एवं आवास
12.4 यु मकोद भद
12.4.1 बा य संरचना
12.4.2 आ त रक संरचना
12.5 जनन
12.5.1 का यक जनन
12.5.2 ल गक जनन
12.6 बीजाणु द य अव था
12.7 पीढ़ एका तरण
12.8 रि सया एवं माकि शया का तुलना मक प रपे य
12.9 सारांश
12.10 श दावल
12.11 स दभ थ
12.12 बोध न के उ तर
12.13 अ यासाथ न

12.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आप न न ब दुओं को समझ पायगे.
1. माकि शया क वग कृ त ि थ त, आवास एवं ाि त थान ।
2. माकि शया क बा य एवं आ त रक संरचना ।
3. माकि शया क यु मकोद भद (Gametophyte) ाव था क व भ न संरचनाओं के बारे म
व तृत जानकार ा त करना।
4. बीजाणु भ (Sporophytic) ाव था क व भ न संरचनाओं के बारे म व तृत जानकार
ा त करना ।
5. माकि शया के जीवन च क व वध ाव थाओं क जानकार ा त करना ।

12.1 तावना
माकि शया का नाम ांस के एक स वन प त नकोलस मच ट के नाम पर रखा गया ।
भारत म सबसे पहले थ (Griffith) ने 1849 म माकि शया को खोजा था । माकि शया क

216
लगभग 67 जा तयाँ व व यापी है । भारत म इसक अ धकांश जा तयां हमालय े व द ण
भारत क पहा ड़य पर पाई जाती है । राज थान म माउ ट आबू तथा गंगानगर म भी एक जा त
मलती है ।
पादप शर र एक थैलस वारा न पत होता है । थैलस क आ त रक तंचना का अ ययन करने
पर यह दो े (i) संरचना सं लेषी (ii) संचयी े म वभे दत रहता है ।
माकि शया मे का यक जनन थैलस क अपा सतह पर म य शरा े म यालेनम
ु ा संरचना
िजसे गेमा धा नयाँ कहते ह के वारा होता है । ल गक जनन वषमयु मक कार का पाया जाता
ं ा नयाँ (antheridiophore) व
है । यह एक लंगा यी पादप है । इसम जननांग पु ध ीधा नयां-
वश ठ उद सवृ त शाखाओं (Gametophore) पर वक सत होते ह । पुमणु
(Antherozoids) अ ड से संयु त होकर जाइगोट का नमाण करता है । यह अपने चार और
भि त ा वत कर न ष तांड म प रव तत हो जाता है । यह बीजाणुद भद क थम को शका
होती है । इसके वभाजन से पोरोगो नयम का नमाण होता है । प रप ब पोरोफाइट पाद
(Foot) सीटा (Seta) और (Capsule) मे प ट भाग म वभे दत होता है । बीजाणु का
क णन वायु वारा होता है । बीजाणु यु मकोद भद पीढ़ क थम को शका है । बीजाणु अंकु रत
होकर नया थैलस बनाते है।

12.2 वगींकृत ि थ त (Systematic Position)


भाग : ायोफाइटा
1. अ धकांश पादप थल य होते ह जो नम छायादार थान पर पाये जाते ह ।
2. जीवन च म सु प ट यु मकोद भद व बीजाणुद भद अव थाएं पाई जाती है।
वग : हपे टकोि सडा
1. मु य पादप शर र यु मकोद भद होता है जो सु कायक (thalloid) अथवा अ धक सामा यत:
प णल (Leafy) कार का होता है।
2. सु कायक पादपकाय यान, पृ ठाधार तथा वभाजी शा खत होता है।
गण : माकि शए स
1. पादपकाय सुकायक, पृ ठाधार व वभाजी शा खत होता है।
2. थैलस क आ त रक संरचना दो े - अपा काश सं लेषी े और अ य सं हन मे म
वभे दत रहती है।
कु ल : माकि शएसी
1. काश सं लेषी े म प ट वायु को ठ मलते ह जो वायु छ वारा बाहर खु लते ह ।
इन को ठ म से छोटे अथवा ल बे को ठ म से छोटे अथवा ल बे सरल या शा खत
काश सं लेषी सू होते ह।
2. बीजाणु उ पाद, सीटा व कै सूल म वभे दत होता है और कै सू ल म बीजाणु व इलैटर होते
ह।

217
3. थैलस क आ त रक संरचना दो े - अपा काश सं लेषी े और अ य सं हण े
म वभे दत रहती है।
वतरण एवं वंश : माकि शया

12.3 आवास (Habitat)


माकि शया व व यापी वंश है। यह ठं ड,े नम व छायादार आवास म पाया जाता है । इसक
लगभग 85 जा तयाँ है । भारत म इसक 12 जा तयाँ मलती है । माकि शया पामेटा,
माकि शया नेपालइ संस, माकि शया पोल माफा, माकि शया शमलाना, माकि शया इि डका
मु ख भारतीय जा तयाँ है। जल हु ई म ी म माकि शया पोल माफा पुरोगामी के प म उ प न
होती है। राज थान म बापना एवं यास ने माऊ ट आबू से मा. पोल माफा को ा त कया था ।
यह सवा धक यापक प से वत रत जा त है।

12.4 यु मकोद भद (Gametophyte)


12.4.1 बा य संरचना (External Structure)
पादप शर र यु मको होता है। यह गहरा हरा, अ य धक वभाजी शा खत (Dichotomously
branched) चपटा एवं पृ ठाधार (Dorsiventral) थैलस होता है । सामा यत: थैलस क
ल बाई 5 से 10 से.मी. तक हो सकती है। येक शाखा के शीष पर दो शीष पा लय (Apical
lobes) के म य एक खांच होता है िजसके तल म वृ ब दु ि थत होता है । थैलस क अपा
सतह (Dorsal surface) क अनुदै य अ (Longitudinal axis) पर एक म य शरा एक
ह के खांचे के प म होती है ले कन अ य सतह पर ह के उभार के प म दखाई दे ती है।
थैलस क अपा सतह चतु कोणीय (Rhomboidal) से बहु भु जी (Polygonal) े म वभ त
रहती है। इन े को ए रयोल (Areolae) कहा जाता है। ये ए रयोल बा य वचा के नीचे वायु
को ठ के सीमांकन को इं गत करते ह। येक बहु भु जी या चतु कोणीय संरचना के के म एक
काला ब दु दखाई दे ता है जो रं होता है। थैलस क अपा सतह पर म य शरा े म
दांतेदार (Toothed) या पा लत कनारे वाल ु ा समान संरचनाएँ होती ह, िज ह जेमा
यालेनम
कप (Gemma Cup) कहते ह । इन कप म का यक जनन क व श ट काय (Body), जेमी
(Gemmae) होती है।
थैलस म ल गक प रप वता आने पर अंत थ ि थ त म व श ट ऊ व (Erect) शाखाएँ उ प न
होती ह। इ ह यु मकधानीधर (Gametophore) कहते ह। ये शाखाएँ दो कार क होती है - नर
थैलस पर पुध ं ानीधर (antheridiophore) तथा मादा थैलस पर
ं ानी धारण करने वाल शाखा पुध
ीधानी धारण करने वाल शाखा को ीधानीधर (Archegoniophore) कहते है। अत:
माकि शया एक लंगा यी (Dioecious) पादप है ( च 12.1 A, B)।
थैलस क नचल या अ य (Ventral) सतह से अनेक मू लाभास एवं श क उ प न होते ह।
मू लाभास रि सया के समान चकनी भि त यु त (smooth walled) एवं गुल क य

218
(Tuberculated) होते ह ले कन रि सया से ल बे होते है ( च 12.2 A B C) । मूलाभास
ि थर करण तथा जल एवं ख नज लवण के अवशोषण का काय करते ह ।

च 12.1 : A. नर थैलस, B, मादा थैलस

च 12.2 : मूलाभास - A. चकनी भि त यु त, B - C. गुल क य


थैलस क अ य सतह पर म य शरा के दोन ओर श क दो या चार अ यारो पत
(Overlapping) पंि तय म व या सत रहते है । मा. पोल माफा (M. polymorpha) म श क
म य शरा के दोन ओर तीन - तीन कभी - कभी चार - चार पंि तय म यवि थत रहते ह
श क बगनी रं ग के थू लत भि त वाले एवं एक को शका मोटे होते ह । संरचना के आधार पर
श क दो कार के होते है । ( च 12.2 D, E)

219
च 12.3 : श क - A. उपांगी, B. सरल
(1) सरल (Simple) एवं (2) उपांगी या अनुब धी (Appendiculate) । सरल श क लेट
के समान होते है, इनम उपांग नह ं होती है । अनुब धी श क वेज पी (Wedge-shaped) जो
एक संकरे खांचे वारा श ककाय (scale body) तथा अ डाकार उपांग म वभािजत रहता है ।
मा. पोल माफा म भीतर श क बड़े उपांगी होते है । म य एवं बा य श क छोटे व उपांग र हत
होते है । गेले टस व एपो टोलेकोस (Galatis and Apostolakos, 1977) ने पाया क
माकि शया के श क क प र ध पर लेि मक पे पल (Mucilage papillae) पाई जाती ह। ये
पे पल ले मा ा वत करती है तथा यह ले मा थैलस के वृ े को जल शु कन
(Desiccation) से बचाती है।
12.4.2 आ त रक संरचना (Internal Structure)
माकि शया थैलस क आ त रक संरचना रि सया क तुलना म ज टल होती है। थैलस क
उद काट म दो सु प ट े वभे दत होते है । काश सं लेषी े (Photosynthesis) तथा
संचयी े (storage region) ( च 12.4 A, B)।

220
च 12.4 : थैलस क उद काट (A-B) र (C-D)
(1) काश सं लेषी े (Photosynthesis region) : थैलस क अपा सतह क ओर
काश सं लेषी े वभे दत रहता है िजस पर ऊपर अ धचम (Upper epidermis) का-आवरण
होता है । अ धचम क को शकाएँ पतल भि त व लोरो फल यु त होती ह । अ धचम म अनेक ,
ढोलक क आकृ त के र (pores) उपि थत होते ह जो नीचे ि थत वायु को ठ (air
chamber) म खुलते ह । येक र 4-8 अ यारो पत को शका वलू य या सोपान हारा प रब
रहता है तथा येक सोपान (tier) म 4-5 को शकाएं होती ह । इस कार येक र 16 से
40 को शकाओं वारा घरा रहता है । ( च 12.4 C, D) येक छ म य म चौड़ा व कनार
पर संकरा होता है िजसके कारण ढोलक स य (barrel shaped) दखाई दे ता है. । इसके
अतर त छ का कुछ भाग अ धचम सतह, पर उभरा हु आ व शेष अ धचम से नीचे रहता है ।,

अ धचम के नीचे वायु को ठ (air chambers) क एक ै तज पंि त होती है जो एक-दूसरे से


एक को शक पंि त के पट वारा पृथक् रहते ह । पट 3-4 लोरो ला ट यु त को शकाओं से
न मत होता है। येक को ठक के तल (floor) से अनेक सरल या शा खत, लोरो फल यु त

221
को शकाओं के तंतु वक सत होते ह। इ ह काश सं लेषी त तु (photosynthetic filament)
कहते ह, जो थैलस का मु ख काश सं लेषी ऊ तक है।
(2) संचयी े (Storage region) काश े के नीचे संचयी े ि थत होता है । यह
े पतल भि त क लोरो ला ट र हत मृदुतक क को शकाओं का बना होता है । इनके म य
अ तरको शक अवकाश (intercellular spaces) का अभाव होता है । अ धकांश को शकाओं म
मंड कण (starch grains) के प म खाध सं चत रहता है इसी लए इसे सं चत े कहते है ।
कु छ को शकाओं म तेल या ले मी पदाथ (mucilaginous substance) सं चत होता है। म य
े क कुछ को शकाओं क भि तय म जा लका पी थूलन (reticulated thickening) पाया
जाता है। संचयी े क सबसे नचल परत नचल अ धचम (lower epidermis) के प म
होती है िजसक कु छ को शकाएँ द घत होकर मू लाभास (rhizoids) व श क (scales) का
नमाण करती है।

12.5 जनन (Reproduction)


माकि शया म का यक व ल गक जनन पाया जाता है।
12.5.1 का यक जनन
का यक जनन वृ क अनुकू ल प रि थ तय म होता है। इस व ध से न मत नव पादप सब
कार से पर पर व जनक पादप के समान होते है। उ ह एक-दूसरे का थक = कृ तक
(clones) कहते है। का यक जनन क धानता के कारण ह यह पादप समू ह म उगकर पूर
सतह को एक लेते है। का यक जनन न न व धय से होता है :-
(a) ख डन वारा (By fragmentation) सु काय के आधार पर वृ को शकाएँ मृत होकर य हो
जाती है। यह मरण एवं य क या नर तर अ सर होकर जब व वभाजन तक पहु ँचती
है तो ख ड पृथक हो जाते है। येक ख ड म वृ व वभाजी शाखन होकर नव पादप बन
जाता है। इस व ध से कसी एक े म इन पादप क सं या तेजी से बढ़ती है ।
(b) अप था नक शाखा (By adventitious) : कुछ जा तय म सु काय के नचले तल से कनार
के नकट अप था नक शाखाओं का नमाण होता है । मा. पामेटा म अप था नक शाखाओं का
नमाण यु मकधानीधर के वृ त अथवा पा से पाया जाता है। क यप ने 1919 म इ ह
ीधानीधर से वक सत होते हु ए पाया । क यप ने ह मा. पामेटा के पुध
ं ानीधर पा क
नचल सतह पर ख ड के म य से अप था नक शाखाओं का नमाण होते हु ए पाया। मातृ
पादप से अलग होने पर येक शाखा एक नव पादप बनाती है।
(c) जेमा (Gemma) : माकि शया म जेमा नमाण मह वपूण घटना है । जेमा बहु को शक य
का यक जनन काय होती है िजनका नमाण जेमा धा नय म होता है। जेमाधानी कप के
आकार क संरचना होती है िजसके कनारे द ती अथवा पा लत (toothed or lobed) होते
है। जेमाधा नयाँ सु काय के पृ ठ तल पर म य शरा े म एक पंि त म पाई जाती है।
जेमाधानी के तल म जेमा व ले म रोम पाये जाते ह। जेमा एक हर , व बाम, थोड़ी
उभयो तल (biconvex) संरचना होती है जो एक को शक य लघु वृ द वारा जेमाधानी के

222
तल से संल न रहती है। ले मी रोम मु दगर जैसे (club shaped) होते है। ये ले म का
ावण करते है।
जेमाधानी का प रवधन शीष थ वृ ब दु के थोड़ा पीछे क ओर एक वृताकार उभार से ार भ
होता ह जो शी ह यालेनम
ु ा संरचना बन जाती है । इस कार जेमाधानी क भि त सुकाय का
व तारण अथवा अ तवृ है । इसी लए जेमाधानी क भि त म सुकाय क आ त रक संरचना के
समान संरचना व संगठन पाया जाता है । इसक भि त म भी बाहर क ओर (अपा =
Abaxial सतह) काश सं लेषणी े तथा भीतर क ओर (अ य = Adaxial सतह) सं ह
े पाया जाता है ।
वषा अथवा ओस के जल का अवशोषण करके ले म फूलता ह िजसम जेमा अपने वृ त से
आसानी से अलग हो जाती ह ये जेमी जल तरं ग वारा जनक पादप से दूर चल जाती ह । जब
वे उ चत आवास म पहु ँचती है तो अंकुरण होकर नवपादप बरते ह । वोथ व हे मर (Voth &
Hammer) - 1940 तथा लॉकबुड (Lock wood) - 1975 ने यह दशाया क लधु द ि तका लता
जेमा बनने के लए आव यक है।

जेमी क सरंचना (Structure of Gemma)


प रप व जेमा उ यो तल ले स के समान, बहु को शक य, सवृ त , हर व वपा व (Bilateral)
संरचना होती है । म य म मोट व कनार पर पतल पाई जाती है । दो वपर त कनार पर
पा व म खाँच होती है िजसम वृ ब दु होते है । जेमा क अ धकांश को शकाएँ हर होती ह ।
पर तु कनार के पास पृथक- पृथक तेल को शकाएँ (Oil cells) पाई जाती है । इनम ह रतलवक
नह ं होते । इनके अ त र त सतह पर मूलाभास को शकाएँ (rhizoidal cells) भी पायी जाती है।
ये मोटे े म होती है तथा आमाप म बड़ी एवं सघन रवेदार जीव य यु त होती है ।
जेमा चपट संरचना होते हु ए भी दोन सतह पर एक जैसी होती है । अंकुरण के समय वह
पृ ठधार हो जाती है िजसका नय ण काश ती ता, तापमान एवं अ य वातावरणीय कारक से
होता है ।
जेमा का अंकुरण (Gemination of Gemma) : जब जेमा उ चत वातावरण म मृदा के स पक
मे होती ह तो स पक थल क ओर क मू लाभास को शकाओं से मूलाभास न मत होते है । दोनो
वृ ब दु वपर त दशाओं म वृ करके दो त ण सु काय बनते ह । जेमा का म य भाग
अ तत: मृत होकर य हो जाता ह िजससे दोन सु काय पृथक हो जाते ह । जेमा का वः थाने
(in-situ) अंकु रण नह ं पाया जाता । डी. ला. व नारायण वामी 1957 (De La Rue -
223
Narayanswami) के अनुसार वृ ब दु से ा वत ऑाि स न के कारण जेमा का जेमा कप म
अंकु रण अव रहता है ।
जेमा का प रवधन (Development of Gemma)
जेमा का प रवधन जेमाधानी के तल पर उपि थत एक सतह को शका से ार भ होता है । इसे
जेमा ारि भक (Gemma initial) कहते है । ऐसी येक को शका आमाप म अ य को शकाओं
से बड़ी व सतह से उभर हु ई पे पला (Papilla) के समान दखाई दे ती है । जेमा ारि भक म दो
अनु थ वभाजन होकर तीन को शक य उद पंि त का नमाण होता है । सबसे नीचे क
को शका सु काय के ऊतक म अ तः था पत रहती ह इसे आधार को शका (basal cell) कहते ह।
म य को शका को वृ त को शका (stalk cell) कहते है । इसम ओर कोई वभाजन नह ं पाया
जाता । सबसे उपर वाल को शका को ाथ मक काय को शका (Primary Body cell) कहते है।
इसम स पूण जेमा न मत होती है । इसम अनु थ वभाजन (Vertical and horizontal)
तल म वभाजन होकर एक को शका तर क लेट जैसी संरचना बन जाती है । के य भाग म
प रनतीय (Periclinal) तल म वभाजन होकर यह कई को शका मोट हो जाती है । प रवधन
काल म इसके पा व कनार पर म य भाग म दो खांच (Notch) बन जाती है ।

च 12.6 : माकि शया म गेमा का प रवधन


12.5.2 ल गक जनन (Sexual Reproduction)
माकि शया म ल गक जनन वषमयु मक (Oogamous) कार का पाया जाता है । ल गक
जनन पौधे के जीवन म वृ काल म अ धक आ ता , ल बे दवसकाल (Longer days) तथा
नाइ ोजन क कमी क अव था म स प न होता है। यह एक बार ह होता है ।

224
माकि शया एक लंगा यी (Dioecious) पादप है। इसम जननांग पु ध
ं ा नयाँ व ीधा नयाँ -
वश ट शीष थ या अ त थ (Apical or terminal), उद शाखाओं पु ध
ं ानीधर
(Antheridiophore) व ीधानीधर (Archegoniophore) पर उ प न होते ह । दोन ह
शीष थ को शका (Apical) से प रव धत होते ह िजससे थैलस क भावी का यका वृ क जाती
है । पु ध
ं ानीधर एवं ीधानीधर अलग-अलग थैलस पर मलते है । येक यु मकधर वृ त
अ य सतह का व तारण है य क इसके अनु थ काट म दो खांच म आभास एवं श क
मलते ह । वृ त का ऊपर भाग थैलस के समान काश सं लेषी े का बना होता है । अत:
यु मकधर थैलस का व श ट शा खत त द शत करता है ।
येक यु मकधर (Gametophore) म वृ त तथा पा लत ड क (Lobed disc) होती है ।
ड क क पा लय क अपा सतह के म य शरा भाग म जनन अंग प रव धत होते ह । कभी-
कभी असामा य यु मकधर माकि शया म पाये जाते है । इन पर नर व ी दोन जननांग एक
साथ उ प न होते ह । इन व लंगी पा को ए डोगयास पा (Androgynous) कहते ह । इस
कार के पा को मा. पामेटा तथा मा. पोल माफा म दे खा गया है।
(A) ं ानीधर (Antheridiophore) :
पु ध येक पु ध
ं ानीधर म बेलनाकार वृ त तथा इसके
अ त थ सरे पर आठ पाल यु त तथा कभी-कभी चार पाल यु त ड क (Disc) या नर पा
(Male receptacle) होता है ।
वृ त 1 से 3 से.मी. तक ल बा होता है तथा पा क पा लय के कनार पर गोलाकार दं त होते
ह । येक पाल के शीष पर वृ ब दु ि थत होता है । पु ध
ं ा नयाँ ड क क पा लय क अपा
सतह पर वृ ब दु के पीछे आठ अर य पंि तय (Radial rows) म, अ ा भसार म
(Acropetal succession) म उ प न होती है। पु ध
ं ा नयाँ ऊपर सतह पर ला क के आकार के
ं ानी को ठक (Antheridial chamber) म प रव धत होती है ।
पु ध
पु ध
ं ानीधर म वपा व सम म त (Bilateral symmetry) मलती है। इसका थैलस क ओर का
भाग प च (Posterior) जो थैलस क सतह को न पत करता है और इस भाग म थैलस के
समान को ठ, वायुरं एवं काश सं लेषी त तु मलते है ( च 12.7 A, B)। इस वृ त का
थैलस के वपर त ओर का भाग अ (Anterior) होता है जो थैलस क अ य सतह को दशाता
है। यह भाग सघन मृदूतक क को शकाओं का बना होता है । पा व भागो म गहर अनुदै य खांच
होती है िजसम मू लाभास एवं श क मलते ह ( च 12.7 C)।
पु ध
ं ानीधर के ड क के ऊ व काट को दे खने से पता चलता है क इसका के य भाग मोटा होता
है जो प र ध क ओर मश: पतला होता जाता है। ड क म ऊपर ओर काश सं लेषी को ठ,
वायुरं एवं काश सं लेषी सू और नीचे क ओर सघन मृदूतक भाग दखाई दे ता है। ऊपर भाग
म वायु को ठ एवं पुध
ं ानी को ठ (Antheridial chambers) एका तर म म ि थत होता है।
येक पु ध
ं ानी को ठ म एक पुध
ं ानी ि थत होती है ।
(i) पु ध
ं ानी क संरचना (Structure of Antheridium) : प रप व पु ध
ं ानी म छोटे, बहु को शक
ं ानीकाय (Antheridial body) ि थत रहती है । वृ त पुध
वृ त पर अ डाकार पुध ं ानी को ठ

225
के आधार से संल न रहता है । पुध
ं ानीकाय के चार ओर ब य को शकाओं का एक तर य
जैकेट होता है जो अनेक पुमणु मातृ को शकाओं (Androcyte mother cells) को प रब
ं ो शकाएँ (Androcytes) बनती है िजनके काया तरण से
कये रहते है। इनके वभाजन से पु क
वकशा भक पुमणु (Antherozoids) प रव धत होते है ।
(ii) पु ध
ं ानी का फूटन (Dehiscence of Antheridium) : जब वषा या ओस क बू द
ं नरपा
(Male receptacle) क अवतल सतह पर पड़ती है तो जल ऑि टओल (Ostiole) वारा
पु ध
ं ानी को ठ म चला जाता है। इस जल के कारण पु ध
ं ानी क शीष को शकाएँ वग लत
(Degenerate) होकर एक छ बनाती है। इस छ वारा ले मी य से घरे हु ए पुमणु
धु एँ के कॉलम के प म बाहर आ जाते है। जल सतह के स पक म पुमणु पृथक होकर जल
म तैरने लगते है।
(iii) पु ध
ं ानी का प रवधन (Development of antheridium) : ( च 12.8 A – H) पु ध
ं ानी
का नमाण थैलस क अपा (Dorsal) सतह पर शीष को शका (Apical cell) से 2-3
को शका पीछे ि थत म य खांचे (Median groove) मे सतह ारि भक को शका
(Superficial initial cell) से होता है । इसे पुधानी ारि भक (Antheridial initial)
कहते ह ( च 12.8 A) । यह अ य समीप थ को शकाओं से आकार म बड़ी पे पलामय
(Papillate) तथा सतह से कुछ उभर दखाई दे ने लगती है । ( च 12.8 B) यह को शका
अनु थ भि त (Transverse wall) वारा वभािजत होकर ऊपर क ओर उभर बा य
को शका (Outer cell) व नीचे क ओर अ त: था पत आधार को शका (Basal cell)
बनाती है ( च 12.8 C) । आधार को शका म सू म प रवधन होता है और पुधानी वृ त
(Antheridal stalk) का अ त : था पत भाग बनाती ह । जब क स पूण पुधानी
बा यको शका से उ प न होती है ।

226
च 12.7 : मा े ि शया : A. पु ध
ं ानीधर का ऊ वकाट B. प रप व पु ध
ं ानी
C. पु ध
ं ानीधर वृ त का अनु थ काट
थैलस क सतह से उभर बा य को शका (Outer cell) म उ तरो तर म म अनु थ वभाजन
(Transvers division) होने से चार अ यारो पत (Superimposed) को शकाओं का त तु
बनता है ( च D) । इस त तु क ऊपर को शकाएँ (Primary stalk cell) कहलाती है ।
ाथ मक वृ त को शकाएँ (Primary stalk cell) कु छ वभाजन वारा दो को शक य मोटा
बहु को शक य वृ त बनाती है जो पुध
ं ानी के मु य काय को आधार दान करता है ( च E) ।

227
ऊपर दोन ं ानी को शकाओं (Primary antheridal cells) म उ तरो तर दो उद
ाथ मक पु ध
वभाजन (Vertical division) एक-दूसरे के समकोण पर होते ह िजससे चार को शकाओ वाले दो
सोपान (Tiers) बन जाते ह । इन दो सोपान म व या सत आठ को शकाएँ प रन तक
(Periclinal) वभाजन से आठ बाहर तथा आठ भीतर को शकाएँ उ प न होती है ( च F) है।
बाहर आठ को शकाओं को ाथ मक जैकेट को शकाएँ (Primary Jacket cell) या जैकेट
ारि भकाएँ (Jacket Initial) व भीतर आठ को शकाओं को ाथ मक पुज
ं नक को शकाएँ
(Primary Androgonial Cells) कहते है।
यह उ तरो तर म म बार-बार वभािजत होकर अनेक घनाकार (Cuboidal) पु ज
ं नक को शकाएँ
(Androgonial cells) बनाती है ( च H) । पु ज
ं नक को शकाओं के वभाजन से उ प न
अि तम संत त, पुमणु मातृ को शकाएँ (Androcytes mother cell) कहलाती है ( च H) ।
येक घनाकार पुमणु मातृ को शका म एक वकण वभाजन (Diagonal division) और होता
है । प रणामत: दो ं ो शकाएँ (Androcytes) या शु ाणु मातृ को शकाएँ (Sperm
कोणीय पुक
mother cell) बन जाती है। ये दोन को शकाएँ पुमणु मातृ को शका क भि त से घर रहती
ह। ाथ मक जैकेट को शकाओं म अपन तक वभाजन होता है िजससे एक को शका मोटा पु ध
ं ानी
का जैकेट बनता है।

च 12.8 : माकि शया : पु ध


ं ानी प रवधन क वभ न ाव थाएँ

228
(iv) पु क
ं ो शकाओं से पुमणु बनना (Formation of antherozoids from Anerozoids from
Androcytes) : ं ो शका (Androcytes) काया तरण (Metamorphosis)
येक पु क वारा
पुमणु बनाती है । पु क
ं ो शका म के क अ धक प ट होता है तथा येक को शका म एक
सू म ल फेरो ला ट (Blepharoplast) के के बाहर ोटो ला ट क प र ध पर कट होता
ं ो शका लगभग गोल हो जाती है तथा ल फेरो ला ट (Blepharoplast) के
है। प रव धत पु क
समान द घ कृ त हो तीन चौथाई को शका क प र ध को घेर लेता है। क क च ाकार
(Crescent shaped) होकर ल फेरो ला ट क ओर ग त कर उससे पूणतया संयु त हो
जाता है। ल फेरो ला ट का एक सरा थू लत होता है, जो म तक बनाता है िजससे दो
कशा भकाएँ उ प न होती ह। काया तरण या के समय पु ध
ं ानी मातृ को शका क भि त
वघ टत हो ले मी पदाथ बनाती है। जब पुध
ं ानी प रव धत हो रह होती है तब उसके साथ-
साथ पुध
ं ानी ारि भका के समीप के ऊ तक ऊपर क ओर वृ करते ह और प रव धत
पु ध ं ानी एक गु हका (cavity) म प रब
ं ानी को चार ओर से घेर लेते ह िजससे पुध रहती है।
इस गु हका को पुध
ं ानी को ठ (Antheridial chamber) कहते है।
(v) प रप व पुमणु (Mature antherozoids) : प रप व पुमणु कं ु ड लत वकशा भक होता
है। येक पुमणु म समांगी के क भाग (Homogenous nuclear portion) पुमणु का
अ धकांश भाग बनाता है िजसके म तक पर ल फेरो ला ट से दो कशा भकाय संल न रहती
है। कशा भकाय यु मक को ग त दान करती है और वपर त भाग म समान तर पर लगी
रहती है। एक कशा भका यु मक को आगे बढ़ाने का काय करती है जब क दूसर कशा भका
यु मक को च का ग त (Rotatary movement) दे ती है व इसक ग त क दशा म
प रवतन करती ह।
पु क
ं ो शका के को शका य का कुछ भाग कशा भकाओं के बनने म उपयोग होता है, बाक भाग
पुमणु के प च भाग म पु टका (vesical) के प म संल न रहता है ।
(A) ीधानीधर (Archegoniophore) : ीधानी शाखा भी उसी ि थ त म प रव धत होती
है िजसम क पुध
ं ानीधर का प रवधन होता है। ीधानी धारण करने वाल जनन म शाखा
(Sexual branch) को ीधानीधर कहते ह। ीधानीधर 2 से 3 से.मी. ल बा वृ त होता है
िजसके शीष पर आठ-पा लत (Eight lobed) ड क या पा छतर के समान होती है । ड क
क प र ध से वृ ब दुओं के बीच म वृ के कारण छ या 9 ल बी हर , बेलनाकार, ल बी
अ तवृ याँ उ प न होती ह िज ह करण (Rays) कहते है। इन करण के कारण ीधानीधर
ताराकार (Stellate) दखाई दे ता है।
ीधानीधर के वृ त क संरचना पु ध
ं ानीधर के समान होती है। पा (Receptacle) के संरचना
भी नरपा के समान होती है िजसम ऊपर भाग काश सं लेषी को ठ, वायुरं तथा
वांगीकारक त तुओं तथा भीतर भाग सघन मृदूतक को शकाओं का बना होता है ( च 12.9
A)।

229
(i) ीषा नय क ि थ त (Position of archegonia) (12.10 A-D) त ण ीधानीधर
के पा पर ीधा नय , वृ ब दु के ठ के पीछे , अपा सतह पर अ भसार म (Acropetal
succession) म आठ अर य पंि तय म एक-दूसरे से वत प म प रव धत होती है ।
येक पाल (Lobe) पर ीधा नय क एक पंि त होती है तथा येक पाल म 12 से 14
ीधा नयाँ होती है। इस अव था परवृ त लगभग अनुपि थत होता है या अ य त छोटा होता है।
इस ीधानी क ीवा (Neck) ऊपर क ओर (Directed) न द ट रहती ह तथा अ डधा
(Venter) नीचे क ओर छोटे वृ त पर लगा रहता है । इसी ि थ त म ीधा नयाँ नषे चत
(Fertilized) होती है । नषेचन के उपरा त वृ त , ल बाई म बढ़ता है । इसी के साथ ड क क
अपा के य (Dorsal central) बं य भाग क सतह क वृ ती ता से होती है । प रणामत
: वृ ब दु नीचे क ओर व भीतर क ओर , वृ त क तरफ खसकते जाते ह और इससे ी
धा नय वाला तटवत े तलो मत (Inverted) हो जाता है । अब ीधा नयाँ नलि बत
(Pendulous) दखाई दे ती है अथात ् इनक ीवा नीचे क ओर होती है ।

च 12.9 : माकि शया : A. ीधानीधर का उद काट B. एक ीधानी

च 12.10 : ीधानी वकास क व भ न ि थ तयाँ

230
तलोमन (Inversion) के फल व प नव न मत ीधा नयाँ, वृ त के नकट व सबसे प रप व
ीधानी ड क क प र ध क ओर ि थत होती है तथा ीधानी पंि त के दोन ओर एकको शका
मोट , लेट के समान, झ ल नुमा आ छद प रव धत त हो जाता है । इसे पर लंगधानी
(Perichaetium) या प रच (Involucre) कहते ह । येक ीधानी, अपने आधार म
उ प न, एक आवरण से घर जाती है िजसे प र ीधानी (Perigynium) या आभासी प रदलपुज

(Pseudoperianth) कहते ह । इसी समय ड क क प र ध से ल बे, बेलनाकार हरे वध
(Proces) ीधानी समू ह के म य से उ प न होते है िज ह करण (Rays) कहते ह ।
(ii) ीधानी का प रवधन (Development of Archegonia) : पु ध
ं ानी के समान
ीधानी का प रवधन थैलस क अपा सतह (Dorsal surface) पर, अ थ को शका के
सि नकट, सतह को शका (Superficial cell) से होता है । इसे ीधानी ारि भक को शका
(Archegonial) कहते ह। यह को शका पडौसी को शकाओं से बड़ी तथा सघन जीव य यु त
तथा पेपीलामय (Papilliate) हो जाती है ( च 12.11 A)। यह ारि भक को शका एक
अनु थ वभाजन वारा एक आधार को शका (Basal cell) व एक बा य को शका (Outer
cell) बनाती है। आधार को शका ीधानी थैलस म अ तः था पत भाग बनाती है तथा बा य
को शका ीधानी का नमाण करती है ( च 12.11 B)।
बा य को शका को ीधानी मातृ को शका (Archegonial mother cell) कहते है । इस
को शका म उतरो तर तीन उदय प र छे द (Vertical intersecting) वभाजन इस कार
उ प न होते ह क तीन प रधीय को शकाएँ (Peripheral cells) बनती है जो चतु थ के य
ाथ मक अ ीय - को शका (Primary axial cell) को घेरे रहती है ( च 12.11 C)।
येक प र ध को शका अर य अनुदै य (Radial longitudinal) भि त वारा वभािजत होती है
तथा छ: जैकेट - ारि भक को शकाएँ (Jacket initial cells) बनाती है। सभी जैकेट ारि भक
अनु थ वभािजत होकर छ: को शकाओं वाले दो सोपान (Tiers) बनाती है। ऊपर सोपान क
को शकाएँ ीवा ारि भकाएँ (Neck initials) व नीचे के सोपान क को शकाएँ अ डधा
ारि भकाएँ (Venter initials) कहलाती ह। ीवा ारि भक को शकाएँ बार बार अनु थ
वभािजत होकर एक न लकाकार संकर ीवा (Neck) बनाती है जो 6 से 9 को शका ल बी होती
है, िजमसे 6 उद पंि तयाँ होती है।

अ डधा ारि भक को शकाएँ बार बार अनु थ तथा उद वभाजन वारा 12 से 20 को शका
वाला अ डधा (Venter) का एक को शक य मोटा जैकेट बनाती है ( च G - K)।
ीधानी के जैकेटे के प रवधन के साथ-साथ अ ीय को शका (Axial cell) म अनु थ वभाजन
होता है िजससे ऊपर क ओर ाथ मक आ छद को शका (Primary cover cell) और इसके
नीचे एक बड़ी के य को शका (Central cell) बनती है ( च 12.11 C)। ाथ मक आ छद
को शका, एक-दूसरे के समकोण पर उद वभाजन होते है िजस से चार आ छद को शकाएँ

231
(cover cell) बनती ह। के य को शका पुन: अनु थ वभािजत होकर, ऊपर ाथ मक ीवा
नाल को शका (Primary neck canal cell) तथा नचल बड़ी ाथ मक अ डधा को शका
(Primary ventral or venter cell) बनाती है। ाथ मक ीवा नाल को शका बार-बार
अनु थ वभाजन वारा 4 से 6 ीवा नाल को शकाय (Neck canal cells) बनाती है जो क
एक ह पंि त म ि थत रहती ह। इसके साथ-साथ ाथ मक अ डधा को शका एक अनु थ
वभाजन वारा दो असमान को शकाएँ बनाती है। ऊपर वाल छोट अ डधा नाल को शका
(Venter canal cell) और नचल बड़ी अ ड को शका (Egg cell) कहलाती है ( च G - K)।
ीधानी के प रवधन के साथ-साथ ीधानी ारि भक को शका को घेरे चार ओर क का यक
को शकाय भी स य हो ीधानी के चार ओर पु ध
ं ानी के समान ीधानी को ठ
(Archegonial chamber) बनाती है। यह को ठ ीधानी क आ छद को शकाओ के
अ त र त स पूण ीधानी को प रब कर लेता है।

च 12.11 : ीधानी प रवधन क वभ न ाव थाएँ

232
(iii) ीधानी क संरचना (Structure of archegonia) : ी धानी क संरचना मू ल प
म रि सया के समान होती है । प रप व, ी धानी ड क क अ य सतह पर एक छोटे
बहु को शक वृ त वारा संल न रहती है । ीधानी एक आधार य, फूले, गोलाकार अ डधा
(Venter) तथा द घ एवं संक ण ीवा (Neck) म वभे दत होती है । अ डधा चार ओर बं य
(Sterile) को शकाओं क एक तर य जैकेट होती है, इसक प र ध 20 को शकाओ क होती है ।
अ डधा म एक बड़ी अ ड को शका (Egg cell) तथा एक अपे ाकृ त छोट अ डधा नाल को शका
(Venter canal cell) होती है । ीवा 6 उद पंि तय का बना होता है । ीवा क ीवानाल
म 4 - 8 तक ीवानाल को शकाएँ (Neck canal cell) होती है । ीवा के मु ख पर चार
आवरण को शकाएँ (Cover cell) होती है । येक ीधानी के अ डधा के आधार भाग के चार
ओर कालर स य पर ीधानी (Perigynium) होती है ।
(C) नषेचन (Fertilization)
नषेचन के लए जल आव यक होता है । चू ं क नर तथा ी जननांग अलग - अलग थैलस म
वक सत होते है । अत : इसम नषेचन तभी संभव है जब क दोन कार के थैलस पास - पास
ह । नषेचन यु मकधर (Gametophore) के द घ करण के पूव होता है । ाय: पुध
ं ानी से
पुमणुओं का न तारण वषा क बू द
ं वारा होता है । पुमणु जल म तैरकर ी धानी तक पहु ँचते
ह । इसके साथ-साथ ीवा नाल को शकाएँ व अ डधा नाल को शका बढ़ती है िजससे ीधानी का
अ त थ सरा (Terminal end) खु ल जाता है । लेि मक य मुख के बाहर आता है िजसके
रसाय नक अनुचलनी (Chemotactic) भाव से पुमणु ीधानी पा पर पतले जल तर म
तैरकर ीवा क ओर आक षत होते है। ीवा मु ख से ीवा नाल म अनेक पुमणु वेश करते है
पर तु एक पुमणु, अ ड से संयोिजत (Fuse) होता है। नषेचन से बनी वगु णत संरचना
यु मनज (Zygote) कहलाती है। यु मनज के चार ओर सेलल
ु ोस भि त ा वत हो जाती
है। इस संरचना को अब न ष ता ड (Oospore) कहते ह।
बोध न
1. जल हु ई भू म पर पु रोगाभी के य म उ प न माक ि शया क कौन सी जा त
पाई जाती है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. माक ि शया के वायु छ क वशे ष ता या है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. माक ि शया म कतने कार के श क पाये जाते है ? और कहाँ ?

233
...................................................................................................
...................................................................................................
4. माक ि शया म अल गक जनन कन व श ट सं र चनाओं वारा होता है ?
............................................................................................ .......
...................................................................................................
5. एक गे मा अं कु रण के बाद कतने थै ल स बनाता है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
6. माक ि शया पु धानीधारण करने वाल सं र चना को या कहते ह?
............................................................................................... ....
...................................................................................................
7. माक ि शया म पु ं धानीघर क ि थ त व सं या बतलाइये ?
............................................................................................. ......
...................................................................................................
8. माक ि शया म ीधानी पर रि मय कब वक सत होती है ?
....................................................................................... ............
...................................................................................................
9. माक ि शया म ीधानी क ड क म कतनी पा लयां होती है ?
............................................................................ .......................
...................................................................................................
10. नषे च न के बाद माक ि शया के ीधानी क ड क या द शत करती है ?
...................................................... .............................................
...................................................................................................
बीजाणुद भद (sporophyte)
न ष तांड बीजाणुद भद क थम को शका होती है । इसम कई वभाजन से पोरोगो नयम का
नमाण होता है । नवेचन होने के बाद ीधानी के चार ओर ि थत यु मकोद भद उ तक स य
हो जाता है तथा उसम कई प रवतन होते है।
(a) ीधानी घर (Archegoniphore) का वृ त तेजी से ल बा होता है ।
(b) ड क / पा (Receptable) म य म स य हो कर ीधा नयां यु त पा लय को
तलो मत (Inverted) अव था दान करता है । पा लय के म य से ल बी - ल बी
करण के समान करण (rays) वक सत होती है । इसके अ त र त अंडधा (Venter) एवं
पर ीधानी (perigynium) क को शकाएं भी स य होती है ।
(c) इसके साथ ह ीधानी अ डधा को शकाएं प रनत व अपन तक प से वभािजत होती है ।
िजससे 2 - 3 को शका मोटा, संर ी आवरण गोपक वक सत होता है । यह नव न मत
पोरोगो नयम के चार ओर संर ी आवरण बनाता है।

234
पोरोगो नयम का प रवधन (Development of Sporogonium)
येक ीधानीपा पर अनेक ीधा नय म नषेचन पाया जाता है पर तु सभी म बीजाणुजनक
नह ं बनते । नषेचन होने के बाद जीव य वारा एक भि त का नमाण होकर न ष तांड
बनता है । इसम स य वभाजन होकर ण
ू का नमाण होता है । वभाजन क या
नषेचनोपरा त 48 घ टे के भीतर शु हो जाती है । थम वभाजन ीधानी के ल बवत अ
के समकोण पर होता है । दूर थ सरे (distal end) = ीवा क ओर उपआधार (epibasal)
समीप थ सरे अंडधा क ओर (hypobasal) को शका बन जाती है । स पुट (Capsule) क
ि थ त बीजाणु जनक म अ थ (apical) होती है तथा इसका नमाण (epibasal) को शका से
होता है अत : ू ो व (embryogeny) ब हमु खी (exoscopic)
ण कार का कहा जाता है ।
वतीय वभाजन पहले वभाजन तल के समकोण पर ( ै तज) होता है । इस कार न मत
संरचना को चतुथाश (quadrant) कहते ह ( च C - D) । तृतीय वभाजन पहले दोन
वभाजन के समकोण पर उद ि थ त म होता है िजससे अ टाशंक (Octant) बन जाता है ।
माकि शया क व भ न जा तय म ारि भक वकास म व भ नताएँ पाई जाती है । मा.
चीनोपोड़ा म दो अनु थ वभाजन से तीन को शक य सू ी ू (Tricelled filamentous

embryo) बनता है । ऐसे ू ण म आधार को शका से पाद (Foot) म य को शका से सीटा
(Seta) तथा बा य को शका ( ीवा के पास) से स पुट (Capsule) बनता है ।
मा. पोल मोफा व अ य जा तय म अ टाशंक क नचल 4 को शकाओं से पाद व सीटा तथा
ऊपर 4 को शकाओं से स पुट का नमाण होता है ।
वक सत होते हु ए ू ण के साथ-साथ ीधानीधर के वृ त का द घनन , प र ीधानी, पर लंगधानी
एवं करण वक सत होती ह ।
पाद के े म अ नय मत वभाजन होते ह ओर एक गोलाकार फूल हु ई सरचना बन जाती है ।
मा. पोल मोफा म यह लंगर (anchor) के समान संरचना होती है । मा. चीनोपोडा म यह ि थ
समान (gland) होता है।
सीटा के ारि भक प रवधन म कु छ ह वभाजन होते ह । प रणामत: सीटा ार भ म लघु होता
है। स पुट म बीजाणु जनन के बाद जब बीजाणु एक-दूसरे से पृथक होने लगते है तो को शकाओं म
अनु थ वभाजन व द घ करण करके सीटा शी ता से वृ करके 3-4 म म ल बा हो जाता है
और स पुट गोपक को भेदता हु आ प र ीधानी व प र लंगधानी से बाहर नकल आता है ( च
E-F)

ू के स पुट नमाण े म ार भ म प रनतीय वभाजन होकर दो ण
ू ीय े (1)
ब ह थी सयम (amphithecium) व (2) अ त थी सयम (endothecium) बन जाते ह ( च
8) । ब ह थी सयम म अप रनत वभाजन होकर एक को शका तर का स पुट आवरण (Jacket)
बनता है। प रप व अव था म इस तर क को शकाओं क अ त: तर पर वलयाकार थू लन
पाया जाता है। स पुट अ त:थी सयम से पसू तक को शकाएँ (archesporial cells) बनती ह ।
पसू तक को शकाओं म बार बार सू ी वभाजन होकर मु ख ऊतक बन जाता है ।

235
इसे बीजाणु जन ऊतक (sporogenous tissue) ऊतक कहते ह। इसक लगभग आधी को शकाएँ
फलद (fertile) तथा शेष आधी ब य (sterile) होती है। ब य को शकाएँ कुछ ल बी होती ह व
इलेटर मातृ को शकाएँ कहलाती ह ( च J)। इनसे इलेटर वक सत होते ह । इलेटर वगु णत,
बं य, अ य धक ल बे व दोन सर पर नु कले होते ह । इनक सतह पर दो स पल थू लत
प याँ पायी जाती ह। जीव य नह ं पाया जाता है। इलेटर आ ता ाह (hygroscopic) होते ह
तथा नुक ले कं ु ड लत अथवा बल खाते हु ए होते ह।
आधे बीजाणु जन अनु थ तल म बार बार वभाजन करके को शकाओं क उद कतारे बनाते है ।
इ ह बीजाणु मातृ को शकाएँ (spore mother cells) कहते ह ( च K)। ये घनाकार होते ह
बाद म ये गोल हो जाते ह । एक कतार म 8-32 तक को शकाएँ पाई जाती ह । इनम अ सू ी
वभाजन होकर बीजाणुचतु क (spore tetrad) बनते ह। ये अगु णत बीजाणु प रप व होने के
प चात ् अलग-अलग हो जाते ह ।
प रप व बीजाणुजनक क संरचना (Structure of mature sporogonium) : प रप व
बीजाणुजनक म तीन भाग होते ह (1) पाद (2) सीटा व (3) स पूट ( च A, B)।
(1) पाद (Foot) : यह बीजाणु जनक का आधार भाग होता है तथा यह मृदुतक को शकाओं
का बना होता है। इसक आकृ त गोल अथवा लंगर (anchor) जैसी होती है । यह ीपा के
नचले तल पर को शकाओं म धँसा पाया जाता है । यह अवशोषणी व संल नी (anchoring)
संरचना होती है जो यु मकोद भद से जल व पोषण का अवशोषण करके वक सत होते हु ए
बीजाणुजनक को दान करता है।
(2) सीटा (Seta) : ार भ म यह लघु मृदुतक े होता ह जो पाद व स पुट को जोड़ता
है । इसक को शकाएँ उद कतार म होती है । बीजाणुचतु क बनने पर सीटा क को शकाएँ
अक मात ल बी होती है िजससे सीटा थोड़ा सा द घत हो जाता है और स पुट गोपक को तोड़
कर प र ीधानी व प र लंगधानी आवरण से बाहर नकल जाता है । इस कार सीटा वृ त के
समान होता है । इसका मु य काय स पुट को आसपास के का यक ऊतक से बाहर धकेलना होता
है ता क बीजाणु ओं को भावी क णन हो सके । पाद से स पुट तक जल व पोषण का संवहन
सीटा म से होकर ह होता ।
(3) स पुट (Capsule) : यह गोलाकार / अ डाकार और पीले रं ग का होता है । इसका
आवरण एक को शका तर का होता है । को शका भि तय पर अप रनत तल म = वलयाकार
थू लन प याँ (Thickening blands) पायी जाती है । कु छ जा तमय म शीष थ सरे पर
बहु को शक य तर क टोपीनुमा संरचना पाई जाती है । उदाहरण- मा. चीनोपो ड़यम (M.
chenopodum) मा. डो मजेि सस (M. domigensis) आ द । यह बीजाणु जन ऊतक क बनी
होती है ( च 4) ।
स पूट भि त के भीतर क ओर उपि थत गुहा म अनेक बीजाणु एवं इलेटर पाये जाते है । इले टर
अ य धक ल बे, बेलनाकार दोन सर पर नुक ले व एक को शक य होते ह । ये जीव य र हत
एवं दो स पल थू लन प य यु त होते ह । अत: इलेटस मातृ को शकाएँ होती है । इनक कृ त
आ ता ाह (hygroscopic) होती है । नमी प रवतन के साथ ये कं ु ड लत व अकं ु ड लत होते रहते

236
ह । अत: इनम बल खाती ग तयाँ पाई जाती है । इलेटर क ये ग तयाँ बीजाणुओं को एक-दूसरे
से पृथक करने एवं बीजाणुओं के क णन (dispersal) म सहायक होती है ( च B) । जल
याग करने पर इलेटस कं ु ड लत अव था (twisted) म तथा जल अवशो षत करने पर इलेटस
अकं ु ड लत अव था (untwisted) म आ जाते ह । आ ता ाह ग तयाँ से युलोज भि त व
थू लत प य के असमान फैलने व सकु ड़ने के कारण पाई जाती है । बीजाणु द भ पोषण के
लए यु मकोद भद पर आं शक परजीवी होता है ।
स पुट का फूटन : (Dehiscence of capsule)
बीजाणुद भद म बीजाणु बनने पर सीटा का थोड़ा सा द घनन होता ह स पूट गोपक (calyptra)
को तोड़कर बाहर नकल आता ह तथा अ तत: प र ीधानी एवं प र लंगधानी (Perigynium) से
बाहर नकल आता है । स पुट क को शकाएँ शीष पर सू खने से तड़क कर अ नय मत ख ड म
टू ट जाती है । येक ख ड का टू टना शीष से ार भ होकर स पुट के म य भाग तक होता है ।
अ तत: ख ड पृथक होकर पीछे क ओर मु ड़ जाते ह । बीजाणु संह त व इलेटस अनावृत हो जाते
ह ।
बीजाणुओं का क णन : (Dispersal of spores)
माकि शया के बीजाणु ओं का क णन वायु वारा होता है । इलेटर सू खने पर कं ु ड लत हो जाते है।
िजससे बीजाणु संह तय पर दबाव पड़ता ह स पुट भि त ख ड : के मु ड़ने पर भी बीजाणु
संह तय पर दबाव पड़ता है । उपरो त घटनाओं के कारण बीजाणु अनावृत सतह पर दखने लगते
है । वायु क ग त से बीजाणु दूर -दूर तक उड़ जाते ह ।
ीधानी पा पर बीजाणुजनक उ टे और भी सहज प से बाहर नकल जाते ह । ीधानीधर
का वृ त अ धक ल बा व बीजाणु जनक का सीटा कम ल बा होने से बीजाणुओं का वायु क णन
और अ धक सु वधाजनक हो जाता है।
बीजाणु का अंकु रण (Germination of spore) : ओ. हेनलॉन के अनुसार मा. पोल माफा के
बीजाणुओं को उपयु त आधार न मलने पर वे लगभग एक वष तक जी वत रहते ह अथात ्
सु ताव थाकाल (dormant period) एक वष तक का हो सकता है। उपयु त आधार मलने पर
अंकु रण आर भ हो जाता है। बीजाणु वारा जल का अ तःशोषण होकर बीजाणु आमाप म लगभग
दुगने हो जाते ह तथा लोरो ला ट बनने लगते ह । बा यचोल तड़क कर फट जाता है। एक तल
म वभाजन होकर दो को शकाएँ बन जाती है। एक को शका का द घनन होकर थम समतल
मू लाभास बन जाता है । दूसर को शका म सतत ् वभाजन होकर 6-8 को शकाओं का अ नय मत
सू बन जाता है। सू शीष पर दो को शका चौड़ा हो सकता है। वतीय मूलाभास क उ पि त
ाय: सू क 3-4 को शक य अव था म होता है। त ण यु मकोद भद म सभी मूलाभास समतल
भि त वाले पाये जाते ह। ओ. हे नलॉन (O’ Hanlon) - 1926 के अनुसार मा. पोल मोफा म जब
त ण यु मकोद भद लगभग को शक य अव था म होता है तो शीष पर को शका क पा व कतार
येक शाखा पर पाई जाती है। इसके बाद वृ एकल को शका क स यता से नह ं बि क इन
पा व को शकाओं क पंि त से होती है। जब त ण यु मकोद भद 30-40 को शकाओं वाला हो

237
जाता है तो शीष सरे पर कनार क को शकाओं म वभेदक वृ होकर एक खाँच (notch) का
नमाण हो जाता है ( च A-L)।
पीढ़ एका तरण (Alternation of Generation)
माकि शया के जीवन च का अ ययन करने पर न न वशेषताएँ गट होती है । जीवन म दो
प ट अव थाएँ पाई जाती है : (1) यु मकोद भद अव था (2) बीजाणुद भद अव था ।
यु मकोद भद अव था मु य पादप वारा न पत होती है। यह हरा, चपटा, पृ ठाधार , सु कायक
व वभाजी शा खत कार का होता है। नर व मादा यु मकोद भद अलग-अलग पाये जाते ह। नर
ं ानीधर (antheridiophores) पाये जाते ह ।
सु काय के कु छ ख ड के अ त थ सर पर पुध
इनके पा ं ा नयाँ पाई जाती है िजनम पुमणु (antherozoid) वक सत होते है। मादा
पर पुध
सु काय के कुछ ख ड पर ीधानीधर पाये जाते ह। इनके पा पर ीधा नयाँ पाई जाती ह ।
इनम अ ड वक सत होता है। पुमणु व अंड के सायु ज (fusion) से न ष तांड का नमाण होता
है । न ष तांड एक वगु णत को शका होती है। इससे ण
ू तथा ण
ू से बीजाणुद भद
( पोरोफाइट) प रव धत होता है । अत: न ष तांड बीजाणुद भद अव था क थम को शका होती
है तथा बीजाणु जनक बीजाणुद भद का पूण वक सत व प होता है। माकि शया म यह
यु मकोद भद पर संल न व आ त पाया जाता है। यह पाद (Foot) सीटा (Seta) व स पुट
(capsule) मे वभे दत पाया जाता है। स पुट म उपि थत बीजाणु मातृको शका म अ सू ी
वभाजन (meiosis) होकर बीजाणु बनते है । बीजाणु अगु णत (haploid) पाया जाता है तथा
यु मकोद भद क थम को शका कहा जाता है । इनम से आधे बीजाणु ओं का प रवधन होकर
वक सत नर यु मकोद भ व शेष आधो से मादा यु मकोद भद बनते है । बीजाणु से
यु मकोद भदाएं का प रवधन व उन पर यु मक के नमाण तक क अव थाएँ यु मको द भद
अव था (gametophytic phase) अथवा अगु णत अव थाएँ कह ं जाती ह। ये बीजाणु , हरे
सु काय, पु ध
ं ानीधर, पु ध
ं ानी व पुमणु, ीधानी व अ ड होते ह। यु मक नमाण के साथ ह
अगु णत अव थाएँ समा त हो जाती है ।
नषेचन होते ह जीवन च क दूसर अव था का ार भ हो जाता है। न ष तांड से ू ,

बीजाणुजनक व बीजाणु मातृ को शकाओं के नमाण तक क अव थाएँ बीजाणु द भद अव थाएँ
अथवा वगु णत अव थाएँ (sporophytic phase=diploid phase) कह जाती है । इसम
मु ख अव था बीजाणु जनक होती है । इसे वतीयक का यक शर र कह सकते ह बीजाणु
मातृको शका नमाण के साथ ह अगु णत अव थाएँ समा त हो जाती है ।
उपरो त जीवन च का अवलोकन करने पर यह प ट हो जाता है क एक जीवन च म
यु मकोद भद एवं बीजाणु भ अभ न प से स बि धत पाये जाते ह । इन दो शर र को पी ढ़याँ
(generation) कहते है । एक पीढ़ क जनन को शका से प रवधन हो कर एका त रत पीढ़
(alternate generation) का नमाण होता है जैसे :
यु मको बीजाण यु मको
जीवन च क दो मह वपूण घटनाएँ है : - नषेचन एवं अ सू ण । थम से वगु णत अव था
= बीजाणुद भद पीढ़ तथा वतीय घटना से अगु णत अव था) यु मकोद भद पीढ़ का उ व होता

238
है । जीवन च म एक अव था का दूसर अव था से नय मत एका तरण को पीड़ एका तरण
(alternation of generation) कहते ह ।
बीजाणुद भद नर व मादा यु मक के सायु जन से बनता है अत : को शक य ि ट से इसम
गुणसू के दो समु चय होते ह । इसी कारण इसे वगु णत (diploid) पीढ़ भी कहते ह ।
बीजाणु मातृ को शका म अधसू ण होने से बीजाणु म अत: यु मकोद भद म गुणसू क तुलना
म आधी होती है । इसी लए इसे अगु णत (haploid) पीढ़ भी कहते है । पीढ़ एका तरण
वा तव म वगु णत व अगु णत पी ढ़य का एका तरण है इसी कारण इसे वगु णतागु णत
(diplohaplontic) कार का पीढ एका तरण कहते है । माकि शया के जीवन- च म दो
पी ढ़य क आका रक म भी व भ नता पाई जाती है । इसी कारण पीढ़ एका तरण वषमाकृ तक
(heteromorphic) कार का कहा जाता है।
बोध न
1. माक ि शया के कै सू ल म पसू तक कन सं र चनाओं का नमाण करता है?
...................................................................................................
...................................................................................................
2. माक ि शया म इले ट र कै से होते है ?
...................................................................................................
...................................................................................................
3. माक ि शया के बीजाणु भद ( Sporophyte ) के सं र ी आवरण के नाम
बतलाइये ?
...................................................................................................
...................................................................................................
4. रि सया और माक ि शया के बीजाणु द भद म कोई दो अ तर ल खये ।
...................................................................................................
...................................................................................................
रि सया एवं माकि शया का तुलना मक प रपे य
रि सया माकि शया
1. पादप छोटे आकार के अपे ाकृ त कम पादप अपे ाकृ त बड़े थैलस म अ धक
शाखा वाले होते है । थैलस के अनुदै य अ पर वभािजत शाखाएं मलती है । पृ ठ य खांचा
पृ ठ य सतह पर पृ ठ य खांचा होता है । नह ं होता है ।
2. थैलस क पृ ठ य सतह पर बहु भु जी पृ ठ य सतह पर प ट बहु भु जी े मलते है
े नह ं होते ह । जो क नीचे ि थत वायु को ठ क उपि थ त
को दशाते है । इन े के के य भाग म
एक सू म वायु-रं होता है ।
3. पृ ठ य सतह पर उपांग नह ं होते है । पृ ठ य सतह पर गैमा- धा नयां होती है ।

239
उपांग के प म पु घ
ं ानीघर व ीधानीघर
मलते है जो क वा तव म अ त थ होते है ।
4. वायु को ठ, संक ण नाल के समान वायु को ठ मु ख होते है और एक पंि त म
होते है जो क 4 से 8 उद को शका पंि तय व या सत रहते है ।
वारा घरे रहते है ।
5. को ठ म कार सं लेषी सू नह ं होते वायु को ठ म बहु को शक शा खत एक
ह । पंि तक काश सं लेणी सू होते है ।

6. ऊपर अ धचम अ प ट होती है । प ट होती है ।


7. साधारणतया गैमा नह ं पाया जाता है । थैलस क पृ ठ य सतह पर म य शर य े म
व श ट गैमाधा नयोगेमा पाये जाते है
8. कु छ जा तयां उभय लंगा यी कु छ सभी जा तयां एक लंगा यी होती है ।
एका लंगाषयी होती है।
9. थैलस के पृ ठ य म य खांचे म जननांग समू ह म कुशन के समान जनन पा
जननांग पाये जाते ह। पर मलते है । नर व ीजनन पा अलग-
अलग होते है ।
10. ीधानी म ाय: चार ीवानाल ीधानी क ीवा म ाय: 8 ीवानाल
को शकाएं होती है । को शकाएं होती है
11. बीजाणु द भद क संरचना अ यंत सरल बीजाणु द भद ज टल होता है । इसम पाद,
होती है । इसम पाद व सीटा नह ं होते है केवल सीटा व कै सू ल होते है ।
मा केपसूल ह पाया जाता है।
12. कै सू ल म इलैटर नह होते है । केवल बीजाणुजन ऊतक से बीजाणु और इलेटर
बीजाणु चतु टय प रव धत होते है । प रव धत होते है
13. इलैटरो के न होने के कारण बीजाणु इलेटर आ ता ाह होते ह अत: नम या शु क
क णन वत: ह होता है । प रि थ तय म इनम कु ड लत व अकु ड लत
होने वाल ग तयां होती है जो क बीजाणु
क णन म सहायक है ।

12.9 सारांश
इस इकाई का अ ययन करने के प चात ् आपको माकि शया के बारे म व तृत जानकार ा त
हु ई होगी । यह व व यापी वंश है । पादप एकवष य होता है । जू न के मह ने म वषा के साथ ह
यह वृ करना ार भ करता है । इसम कै सू ल अ टू बर माह म बनते ह । ले कन यह ग मयां
आने पर मृत हो जाता है । माकि शया एवं लगा यी (dioecious) पादप है । थैलस क नचल
सतह रि सया के समान मूलाभास व श क उ प न करता है ले कन मूलाभास रि सया से ल बे
होते ह । आंत रक संरचना रि सया के थैलस से अ धक ज टल होती है । थैलस क आंत रक
संरचना काश सं लेषी व संचयी े म वभे दत रहती है । जनन का यक व ल गक दोन कार

240
का होता है । का यक जनन एक वशेष संरचना िजसे जेमा कहते ह के वारा होता है । थैलस
क अपा सतह पर म य शरा के पास जेमा धा नय उ प न होती है । िजनम जेमी प रव धत
होती है । जेमी कप से अलग होने के उपरा त अंकु रत हो नया पादप बनाती है । ल गक जलन
वषमयु मक कार का पाया जाता है । ल गक जनन पौधे के जीवन म वृ काल म अ धक
आ ता, ल बे दवस काल तथा नाइ ोजन क कमी क अव था म स प न होता है ।
माकि शया म पुध
ं ा नयाँ व ीधानी अलग-अलग थैलस म वक सत होते है । नषेचन के लए
जल आव यक होता है । नषेचन से बनी वगु णत संरचना यु मनज (zygote) कहलाती है ।
इसके चार ओर सैलल
ु ोस भि त ा वत हो जाती है । इस संरचना को न ष ता ड (oospore)
कहते ह । यह बीजाणुद भद ाव था क थम को शका है । यह अपने पोषण के लए
यु मकोद भद पर आं शक परजीवी रहता है । प रप व पोरोगो नयम पाद, सीटा व कै सूल म
वभे दत रहता है । माकि शया म कै सूल के फूटन होने पर बीजाणु बाहर नकलते है तथा
इनका क णन हवा के वारा दूर-दूर तक हो जाता है ।

12.10 श दावल (Glossary)


1. पीढ़ एका तरण (Alternation of generation) : जीवन च िजसम यु मक उ प न
करने वाल यु मक अगु णत अव था, बीजाणु उ प न करने वाल वगु णत
बीजाणु उ अव था एका तर म म मलती है।
2. टोगे स (Cryptogams) : इस श द का योग सव थम ल नयस ने 1754 म कया ।
इस समू ह म वे सभी पादप आते है, िजनम ल गक जनन अ प ट होता है ।
3. अंगु तान (Calyptra) : ीधानी के (Venter) अ ड से उ प न होने वाला आवरण जो
त ण बीजाणु उ द को संर ण दे ता है ।
4. कै सू ल (Capsule) : पोरोगो नयम का बीजाणु उ प न करने वाला भाग ।
5. एक लंगा यी (Dioecious) : वह अव था जब ीधानी व पु ध
ं ानी अलग - अलग ोथैलस
पर वक सत होते है : उदाहरण - कु छ फन ।
6. इलेटरस (Elaters) : को शका या को शका का भाग जो बीजाणु क णन के लए आ ता ाह
स पलाकार थू लत संरचना बनाती है ।
7. ए डोथी सयम (Endothecium) : ायोफाइटा म त ण पोरोगो नयम क भीतर परत ।
8. यू मको (Gametophyte) : जीवन च क वह अव था जो यु मक उ प न करती है ।
9. गेमा (Gemma) का यक जनन का अंग एक या अ धक को शकाओं का बना, मातृ पौधे से ,
अलग होने पर नये पादप को उ प न करने क मता होती है ।
10. बीजा डपण (Sporophyte) : वह पण िजस पर बीजा ड धा नयां वक सत होती है । जीवन
च म बीजाणु उ प न करने वाल वगु णत पादप या संरचना ।
11. Venter : ी धानी का आधार य फूला अ ड यु त भाग ।

241
12.11 स दभ थ
1. सैनी, अ वाल, स सेना, यागी 2006 सू म जैवीय एवं अपु पोद म ी व वधताएं
कालेज बुक हाउस ।
2. संह, पा डे, जैन Diversity of microbes and cryptogams. Rastogi
publication.
3. शमा पी. डी. ायोफाइटा प रचय रमेश बुक डपो
4. शमा एंड शमा : सू मजीव तथा टोगे स म व वधता सा ी पि ल शंग हाउस
5. वेद , शमा, धनखड़ - सू म जैवीय एवं अपु पो ह व वधताएं, रमेश बुक डपो,
जयपुर

12.12 बोध न के उ तर
बोध न - 1
1. माकि शया पोल माफा
2. ऊपर अ धचम म बैरल पी वायु छ काशसं लेषी को ठ म खु लते ह । येक छ 4 -
8 अ यारो पत को शका सोपानो वारा घरा रहता है । तथा येक सोपान म 4 - 5
को शकाएं होती है । इस कार येक वायु र 16-40 को शकाओं वारा घरा रहता है ।
3. दो/ भीतर पंि त म उपांगीयु त (appendicult) जब क बा य पंि त म सरल
(Simple)/पी भकाकार Ligulate श क उपि थत होते है ।
4. गेमा वारा ।
5. दो ।
6. पु ध
ं ानघर ।
7. पु ध
ं ानीघर क ऊपर सतह पर आठ अर य पंि तय म पुध
ं ा नया ि थत होती । तथा येक
पंि त म 1 2- 15 पु ध
ं ा नया ि थत होती है ।
8. नषेचन के बाद ।
9. आठ
10. तलोमन
बोध न - 2
1. बीजाणु और इलेटर
2. वगु णत
3. तीन / कै ल ा (Calyptra) पै रगाइ नयम (Perigynium) और पै रकाइ टयम
(Perichaetium)

12.13 अ यासाथ न
1. माकि शया थैलस क बा य व आ त रक संरचना का स च वणन क िजये ।
2. माकि शया म गेमा-कप क संरचना व गेमा प रवधन का वणन क िजये ।

242
3. माकि शया म पु ध
ं ानीघर का च स हत वणन क िजये ।
4. माकि शया ीधानीघर म रि म का काय बताइये तथा इनका नमाण कस समय होता है?
5. माकि शया म ीधानीघर क संरचना व ीधानी प रवधन का वणन क िजये ।
6. माकि शया के बीजाणुद भद ने सीटा का या काय है?
7. माकि शया के प रप ब बीजाणु भेद क संरचना का स च वणन क िजये ।
8. माकि शया के बीजाणु द भद 'के प रवधन का वणन क िजये ।

243
इकाई 13 : ए थो सरोस (Anthoceros) --
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 वग कृ त ि थ त
13.3 वतरण व आवास
13.4 यु मकोद भद
13.5 जनन
13.6 बीजाणु जनक
13.7 बीजाणु क संरचना
13.8 बीजाणु का अंकुरण
13.9 पीढ़ एका तरण
13.10 ए थो सरोस क बंधत
ु ा
13.11 सारांश
13.12 श दावल
13.13 संदभ थ
13.14 बोध न के उ तर
13.15 अ यासाथ न

13.0 उ े य
(1) इस पादप वग के यु मकोद भद म पाये जाने वाले व श ट ल ण क जानकार ा त होना

(2) बीजाणुजनक क ज टल संरचना क जानकार ा त करना ।
(3) इस पादप वग का अ य पादप समू ह (शैवाल, लवरवट, माँस तथा टे रडोफाइटा) से संबध
ं के
बारे म व तृत ववरण ा त करना ।

13.1 तावना
तु त इकाई - 13 म ए थो सरोस के जीवन च के व तृत अ ययन से आपको यह जानकार
ा त होगी क इस पादप वग म व श ट ल ण पाये जाते ह िजसके कारण यह पादप अ य
ायोफाइट से भ नता दशाते ह । इनका यु मकोद भद आ दम (Primitive) कार का है पर तु
बीजाणुजनक संरचना मक ि ट से ज टल व वक सत कार है । इनम अ य वग के ल ण भी
मलते ह प रणाम व प इ ह सं े षत वग (Synthetic group) भी कहा जाता है।
वश ट ल ण :
1. ए थो सरोस का थैलस छोटा, हरा पृ ठाधार व पा लत होता है ।
2. थैलस म म य शरा का अभाव होता है ।
3. इनम मूलाभास चकनी भि त वाले होते ह ।
4. थैलस म काशसं लेषी व संचयी े म वभेदन नह ं होता है ।

244
5. संपण
ू थैलस मृदूतक को शकाओं का बना होता है ।
6. थैलस क येक को शका म ह रत शैवाल के समान एक बड़ा ह रतलवक पाया जाता है ।
7. ह रतलवक के के म पाइर नॉइड होता है ।
8. थैलस म सहजीवी नॉ टाक के साथ संबध
ं था पत होता है ।
9. जननांग थैलस म धंसे हु ये पाये जाते है।
10. यु मकोद भद क तु लना म बीजाणु जनक ज टल कार का है । यह यु मकोद भद पर
आं शक प से आ त रहता है ।
11. कै सू ल पतला, ल बा व सींग के समान होता है ।
12. सीटा के थान पर अ तवशी वभ योतक (intercalary meristem) पाया जाता है ।
िजससे कै सूल क असी मत वृ होती है।
13. कै सू ल भि त म र व ह रत लवक पाये जाते है ।
14. आभासी इलेटर उपि थत होते है ।

13.2 वग कृ त ि थ त
Dirision, वभाग : ायोफायंटा (Bryophyta)
Class वग : ए थो सरोटोि सडा (Anthocerotopsida)
Oreder गण : ए थो सरोटे स (Anthocerotales)
Family कुल : ऐ थो सरोटे सी (Anthocerotaceae)
Genus वंश : ए थो सरोस (Anthoceros)

13.3 वतरण व आवास (Distribution - Habitat)


ए यो सरोस क लगभग 200 जा तयाँ पायी जाती है िजसम से भारत म 25 जा तयाँ पायी जाती
है यह एक व व यापी (Cosmopoltan) पादप है, परं तु अ धकांश जा तयाँ उ ण व शीतो ण
दे श पाई जाती ह । भारत म ये पादप 5000 - 8000 फ ट क ऊँचाई पर अ धकतया पाये जाते
ह िजनम मु यत : थो सरोस हमा येि सस (A himalaensis) ए थो सरोस इरे टस (A.
erectus) तथा ए थो सरोस च बाऐि सस (A. chambaensis) है । राज थान म आबू पवत
पर ए. इरे टस एवं ए. हमा यि सस पाई जाती ह ।
ए यो सरोस क अ धकांश जा तयां नम चकनी म ी पर अथवा नम छायादार थान पर मलती
है कु छ जा तयां सड़े - गले का ठ पर भी उगती ह । अ धकांश जा तयां शु क प रि थ तय मे
जी वत नह ं रह प त। ह । ए. हमा येि सस बहु वष य जब क ए. इरे टस एकवष य पादप है ।

13.4 यु मकोद भद (Gametophyte)


13.4.1 बा य संरचना (External structure)
ए थो सरोस पादप यु मकोद भद है पादप काय यान (Prostat) पृ ठधार (dorsiventral) चपटा
उपवृ ताकार व छोटा होता है ।

245
सू काय (थैलस) वभाजी, शा खत अथवा व भ न प से पा लत (lobed) होता है । पा लयां
सामा यत : कट फट कनार यु त, मांसल व अ त या पत होती ह । ए. हैलाई का थैलस ल बा व
प छाकाटय वभािजत (Pinnatefy divided) होता है, जब क ए. इरे टस (A. erectus) के
थैलस एक मोटे एवं उ वृ त पी सं रचना पर वक सत होते ह एवं ए. हमालेयेि सस का
थैलस वपा लत होता है ।

च 13.1 : ए थो सरोससु काय (थैलस) : (A) ले वस; (B) ए. क पुलस;


(C) ए यूफा मस; (D) ए. इरे स
थैलस क पृ ठ य (dorsal) सतह चकनी (ए. ल वस) , मखमल (ए. क युलस) तथा खुरदर व
कट फट (ए. यू सफा मस) होती है । रि सया, माकि शया के वपर त ए थो सरोस थैलस म
म य शरा का अभाव होता है ।

246
थैलस क अ य (ventral) सतह के म य भाग से अनेक एक को शक य, चकनी भि त यु त,
अशा रवत मूलाभास पाये जाते ह । इनम गु लक य मूलाभास व श क अनुपि थत होते ह अ य
सतह पर मूलाभास के अ त र त अनेक छोटे , गोलाकार, गहरे नीले े दखायी दे ते ह । इन
े म नॉ टाक (Nostoc) नामक नील-ह रत शैवाल क कॉलोनी पायी जाती है ।
प रप व थैलस क उपर सतह / प सतह पर सत बर- अ टू बर माह म ल बा, बेलनाकार व
सींग के समान दखाई दे ने वाला बीजा डजनक ( पोरोगो नयम) वक सत होता है । इस संरचना
के कारण इन पादप को हॉनवट (Horn-Wort) भी कहा जाता है ।
13.4.2 आंत रक संरचना
संपण
ू थैलस मृ तक को शकाओं का बना होता है । इनक आंत रक संरचना म रि सया व
माकि शया क तरह तक वभेदन नह ं होता है । थैलस क उपर अ धचम क को शकाएँ शेष
थैलस को शकाओं अपे ा छोट होती ह । ए. हेलाई म सु प ट अ धचम का अभाव होता है ।
थैलस का म यभाग मोटा व उपांग ( कनार ) पर पतला होता है । थैलस के म यभाग क मोटाई
अलग- अलग जा तय म अलग- अलग होती है । ए. ल वस के म यभाग क मोटाई 6 - 8
को शक य, ए- प टे टस म 8 - 10 को शका तथा ए. पुलस म यह 30 - 40 को शक य होती
है । थैलस म वायु को ठ तथा वायु छ नह ं पाये जाते ह ( च 13.2 A-B-C) ।

च 13. 2 : आंत रक संरचना (A) ए. ले वस व (B) ए. पं टे टस के थैलस का अनु थ काट


(C) को शकाएं

247
थैलस के अ य े म कु छ अ तरा को शक ले म गुहाय (intercellular muscilaginous
cavities) पायी जाती ह व येक ले मी गुहा अ य सतह पर एक ले मी रं (slime
pore) वारा खु लती ह इन रं गो को सामा य रं ो के आधावशेष (rudiments) माना जाता है ।
यह अ य सतह क दो सतह को शकाओं के एक दूसरे से पृथक् होने के कारण बनते ह । इन
लेषमी गुहाओं म नॉ टॉक (Nostoc) नामक नील - ह रत शैवाल कॉलोनी पायी जाती है ।
नॉ टाक के तंतु ले मी रं ो के वारा ले मी गुहाओं म वेश करते ह ए थो सरोस क कुछ
जा तय (ए. लै वस, ए. पं टे टस) म ले म से भर को शकाएँ पायी जाती ह ।
नॉ टाक तथा ए थो सरोस थैलस के पार प रक संबध
ं के बारे म अलग - अलग मत है :
को शका (cell) : थैलस क येक को शका म एक बड़ा, चपटा या अ डाकार ह रतलवक
(chloroplast) पाया जाता है िजसके के म एक पाइर नॉइड (Pyrenoid) होता है ।
पाइर नॉइड क उपि थ त ए थो सरोस का हरे , शैवाल ( लोरोफाइसी) के साथ संबध
ं दशाता है ।
पाइर नॉइड क उपि थ त ए थो सरोटॉ सीडा का एक मु ख ल ण है । येक को शका मे ह रत
लवक के समीप एक के क ि थत होता है ।
13.4.3 शीष वृ (Apical Growth)
ए थो सरॉस म थैलस क वृ एक शीष थ को शका (Single apical cell) अथवा उपांत थ
मे र टे मी को शकाओं (Marginal meristematic cell) के समू ह वारा होती है । यह
को शकाएँ ले मी पदाथ से ढक रहती ह ।
शीष को शका परा मड आकार क होती है, िजसम दो पा व, एक अ य तथा एक अपा
वभाजन होते हँ अपा व अ य वभाजन वारा थैलस क मोटाई म वृ व जननांग का
नमाण होता है जब क पा व वभाजन से उ य को शकाओं से थैलस क चौडाई म वृ होती
है।

13.5 जनन (Reproduction)


ए थो सरोस म का यक (vegetative) व ल गक (Sexual) जनन होता है ।
13.5.1 का यक जनन (Vegetative Reproduction)
का यक जनन न न व धय से होता है
(a) वख डन (Fragmentation) : ए थो सरोस म अ य ायोफाइटस के समान थैलस के
प च भाग मे गामी गलन व मृ यु या जब वभािजत (dichotomy) े पर पहु ंचती है
िजससे थैलस पा लयां अलग हो जाती ह तथा ये अलग हु ई पा लयां वतं पादप के प म
वक सत होती ह ।
(b) कंद वार (Tuber) : ए. हे लाई, ए. ल वस, ए. पयरसोनाई व ए. युबरोसस मे थैलस
के शीष कनार तथा अ य सतह पर गोलाकार फूल हु ई संरचनाएं बनती ह िज ह क द कहा
जाता है । इन कंदो क बाहर 2 - 3 को शक य मोटा तर कॉक समान होता है तथा इसम
भोजन (जैसे टाच, तैल, ोट न) का सं ह होता है । तकू ल प रि थ तय म यह चर थायी

248
होते ह तथा अनुकू ल प रि थ त ा त होने पर अंकुरण वारा नये थैलस का नमाण करते ह
(च 13 A,B.) ।

च 13.3 : ए थो सरस म क द
(c) जेमी वारा (By Gammae) : ए. ले डु लोसस, ए. ोपे यूल फेरस आ द म थैलस क
सतह व कनार पर वृ दानुमा जेमी वक सत होती ह तथा मातृ पौधे से अलग होने पर यह नये
पादप का नमाण करती ह ।
(d) चर थायी वृ शीष वारा (By persistent growing apices) : ए थो सरोस क
कु छ जा तयाँ जैसे १. युसीफॉ मस ए. पयरसोनाई म शु क वातावरण ( ी म ऋतु) म वृ ब दु
े के अ त र त थैलस का शेष भाग सू ख जाता है शीष वृ े शु क वातावरण म अधो तर
के नीचे सु षु ता अव था म रहते ह व अनुकू ल प रि थ तय म स य होकर नये थैलस का
नमाण करते ह ।
(e) अपबीजाणु ता वारा (By apospory) : कुछ प रि थ तय म थैलस (यु मकोद भद
पोरोगो नयम क का यक को शकाओं (संपटु क उप - बा य वचा बीजाणु जन े तथा
वभ योतक े ) से सीधे उ प न होता है इसे अपबीजाणुता (Apospory) कहते है इस वक सत
थैलस वगु णत होता है ।
13.5.2 ल गक जनन (Sexual Reproduction)
ए थो सरोस क अनेक जा तयां एक लंगा यी (Dioecious) होती है जैसे ए. ल वस, ए. इरे टस,
ए. पयरसोनाई अथवा व लंगा यी (Monoecious) होती है जैसे ए. लोगी ए. पुलस ए.
युजीफॉ मस ए. पं टे टस व लंगा यी / उभय लंगा यी जा तयाँ सामा यत : पूप
ं व

(Protandrous) होती है अथात ् पुध
ं ा नयाँ ीधा नय से पहले प रप व हो जाती है जननांग
थैलस क अपा सतह पर अ त: था पत (embded) रहते है जननांग का प रवधन वृ के
ब दु के ठ क पीछे ार भ होता है व प रवधन द ि तकाल (photoperiod) पर नभर करता है।

249
(a) ं ानी (Antheridium) : ए थो सरोस म पु ध
पु ध ं ा नयाँ अ तजात (endogenous) होती
है जो थैलस क अपा / उपर सतह पर एकल अथवा समू ह म ब द पुधानी को ठ (closed
ntheridial chamber) म ि थत होती है पुधानी को ठ थैलस क सतह पर छ वारा नह ं
खु लते है । येक पुधानी को ठ दो तर य छत (roof) वारा ढके रहते ह ( च 13.4 J)।
(b) पु ध
ं ानी प रवधन ( च 13.4 A - K) (Development of antheridium) 1. पु ध
ं ानी
का वकास वृ ब दु के ठ क पीछे ि थत कसी भी सतह को शका से होता है िजसे ाथ मक
ं ानी को शका (Primary antheridial cell) कहते ह इस को शका म अपनत वभाजन
पु ध वारा
एक बा य को शका, छत ारि भक (roof initial) तथा भीतर को शका को पुध
ं ानी ारि भक
(Antheridial initial) कहते ह ( च A B C)।
2. वभाजन के तु रंत प चात ् दोन को शकाओं के म य एक ले मी गुहा वक सत हो जाती
है जो बढकर पुध
ं ानी को ठ (Antheridial chamber) बनाती है ( च D E)।
3. छत ारं भक (roof initial) : पु ध
ं ानी नमाण म भाग नह ं लेती है यह को शका
अपन तक व प रन तक वभाजन वारा 2-3 तर य पुध
ं ानी को ठ क छत बनाती है ( च E)।

च 13. 4 : ए थो सरोस पु ध
ं ानी प रवधन क व भ न अव थाएँ
250
4. पु ध
ं ानी का वकास पुध
ं ानी ारि भक से होता है इस कार पुधानी ारि भक क ि थ त
अपअ धचम (sub-epidermal) होती है िजसे अ तजात (endogenous) प रवधन कहते है।
5. ए. पयरसोनाई म पुध
ं ानी ारि भक से एक ह पु ध
ं ानी प रव धत होती ह जब क ए.
हमालयेि सस म उद वभाजन वारा 2/4/ या अ धक संत त को शकाएं बनती है और येक
ं ानी प रव धत होती है ए. इरे टस म 22 व ए. गेमु लोसस म
संत त या पु ी को शका से एक पुध
30 पु ध
ं ानी उ प न होती है ( च F)।
6. पु ध
ं ानी ारि भक या सम त पु ी को शकाओं म एक दूसरे के समकोण उद वभाजन
से चार को शकाएं बनती है इन चार को शकाओं मे अनु थ वभाजन वारा 4 - 4 को शकाओं
के दो सोपान / तर बनते है ( च F) नीचे क 4 को शकाएं वृ त को शकाएं कहलाती है ।
7. वृ द को शकाएँ अनु थ वभाजन वारा बहु को शक य वृ त का नमाण करती है ।
8. उपर सोपान क चार को शकाएँ अनु थ वभाजन वारा अ टांशक (Octant) का
नमाण करती है । ( च H)
9. अ टांशक क येक को शका म प रन तक (Periclinal) वभाजन वारा 8 बा य
ाथ मक जैकेट को शकाएं (Primary androgonial cells) तथा 8 भीतर ाथ मक पुजनक

को शकाएं (Primary androgonial cells) म वभे दत हो जाती है ( च I)।
10. ाथ मक जैकेट को शकाओं म अपन तक (anticlinal) वभाजन वारा पु ध
ं ानी का एक
तर य जैकेट का नमाण होता है ।
11. ाथ मक पु ज
ं नक को शकाओं म अनेक वभाजन से पुज
ं नक को शकाओं क संह त
(mass) उ प न होती है । पु ज
ं नक को शकाओं म अं तम वभाजन से पुमणु मातृको शकाएँ
(Androcye mother cell) बनती है ( च J)।
12. येक पुमणु मातृ को शका म तयक (Oblique) वभाजन वारा दो शु ाणु मातृ
को शकाएँ (Sperm mother cell) बनती है येक शु ाणु मातृ को शका म काया तरण वारा
एक वकशा भक पुमणु (Antheriozoid) बनता है ( च L) ।
(c) ं ानी (Mature Antheridium) प रप व पुधानी मु दराकार या अंडाकार
प रप व पु ध
संरचना होती है जो पतले ल बे वृ त वारा पुध
ं ानी को ठ (antheridial chamber) के आधार
से लगी रहती है । वृ त चार उद पंि तय का बना होता है । पुधानी का जैकेट एक तर य
बं यको शकाओं क बनी होती है यह को शकाएँ छोट व अ नय मत (ए. ल वस) अथवा ल बी व
नय मत व या सत चार सोपानो क (ए. पं टे टस) बनी होती है । पूण प रप व पु ध
ं ानी म लाल
या नारं गी वणक पाये जाते ह । पु ध
ं ानी का जैकेट अनेक पुमणु मातृ को शकाओं या पुमणु ओं को
प रब कये रहती है ( च 13.5)।
पु ध
ं ानी का फूटन (Dehiscence of antheridium) : ( च 13.6) पु ध
ं ा नय के प रप व होने
पर पुध
ं ानी को ठ क छत (roof) अ नय मत प से फट जाती है िजससे पु ध
ं ानी अनाव रत हो
जाती है । जल उपल ध होने पर पुध
ं ानी जल अवशो षत करती है प रणाम व प जैकेट के शीष

251
भाग क को शकाएँ अलग हो जाने से पुध
ं ानी के शीष पर एक अ नय मत छ बन जाता है व
पुमणु समू ह इसी छ वारा मु त होते है एवं जल क सतह पर वतं प से तैरते है ( च
13.4 K, 13.6 A)।

च 13.5 : प रप व पुध
ं ानी
येक पुमणु वकशा भक (Biflgellate) होता है । इसका शर र रे खाकार स पल अथवा
कु ड लत होता है । इसका अ सरा संकरा होता है िजस पर दो कशा भकाएं ि थत होती ह ।
कशा भकाओं क ल बाई पुमणु के शर र क ल बाई के बराबर होती है । ( च 13.6 B)
(d) ीधानी (Archegonium) : ीधा नओं का थैलस क उपर / अपा सतह पर वृ
ब दु के ठ क पीछे अ ा भसार म (acropetal order) म होता है । उभय लंगा यी पादप म
ीधानी का प रवधन पुध
ं ानी के बाद होता है । ीधानी थैलस ऊतक म अ त : था पत /
थैलस ऊतक म धँसी हु ई रहती है । थैलस क सतह पर इनक पहचान लेषमी उभार
(mucilaginous mound) वारा होती है ( च 13.6 C)।
(e) ीधानी का प रवधन (Development of Archegonium) : ( च 13.7)

252
(1) ीधानी का वकास वृ ब दु के पीछे सतह को शका से होता है थैलस क सतह
को शका जो ीधानी ारि भक का काय करती है यह को शका सघन जीव य व के क यु त
होती है ।
(2) यह को शका ाथ मक ीधानी को शका (Primary archegonial cell) का काय
करती है ( च A)।
(3) ाथ मक ीधानी को शका म तीन उद तछे दत वभाजन (Vertical
intersecting division) वारा तीन बाहर जैकेट ारं भक (Jacket initial) तथा एक के य
ाथ मक अ ीय को शका (Primary axial) का नमाण होता है ( च B, C)। यह को शकाएं
थैलस म अ तः था पत (embeded) रहती ह ।

च 13.6 : जननांग का फूटन


253
(4) ाथ मक अ ीय को शका म अनु थ वभाजन वारा बा य को शका (outer cell)
तथा के य को शका (Central cell) बनती है । यह को शका ाथ मक अ डधा को शका का
काय करती है ( च D)।
(5) बा य को शका अनु थ वभाजन वारा एक ाथ मक आवरण को शका (Primary
cover cell) तथा आधार ाथ मक ीवा नाल को शका (Primary Neck canal cell) बनाती
है ( च E)।
(6) ाथ मक आवरण को शका म एक दूसरे के समकोण दो उद वभाजन से चार आवरण
को शकाओं (cover cell) के रोजेट बनता है । ाथ मक ीवा नाल को शका (Primary neck
canal cell) म अनु थ वभाजन वारा h - 6 ीवानाल को शकाएँ (Neck canal cells)
बनती है ( च F)।
(7) ाथ मक अ डधा को शका म अनु थ वभाजन वारा उपर क ओर एक छोट को शका
अ डधा नाल को शका (Venter canal cell) व नीचे क ओर एक बड़े आकार का अ ड (egg)
को शका का नमाण करती है ( च G - H)।
(8) तीन जैकेट ारं भक को शका (Jacket initial) म अनु थ वभाजन से तीन - तीन
को शकाओं के दो सोपान / तर (tier) म वभे दत हो जाती है । उपर सोपान क तीन 6
को शकाओं म उद वभाजन वारा 6 को शकाओं का नमाण होता है । यह 6 को शकाओं पुन :
अनु थ वभाजन वारा 6 उद पंि तय क एक तर य ीवा का नमाण करती है । नीचे
वाले सोपन क 3 को शकाओं म अनु थ व उद वभाजन से अ डधा जैकेट बनता है चू ं क
ीधानी थैलस म धँसी रहती है इस लये थैलस ऊतक व जैकेट को शकाओं म प ट वभेदन नह ं
कया जा सकता है ।

254
च 13.7 : ीधानी प रवधन क व भ न अव थाएँ
(f) प रप व ीधानी (Mature Archegonium) : ीधा नयाँ थैलस के ऊतक म धँसी
रहती ह । यह ला क समान संरचनाऐं है । इसक चार आवरण को शकाएँ थैलस सतह पर उभर
रहती है व इनके चार तरफ ले मी पदाथ पाया जाता है, िजसे ले मी - उभार (mucilage
mound) कहते है।
येक ीधानी ीवा (Neck) व अ डप (venter) म वभे दत होती है. इसक ीवा 6 उद
पंि तय क बनी होती है इसम 4-6 ीवानाल को शकाएँ पायी जाती ह । ीधानी के चौड़े भाग

255
को अ डधा (Venter) कहते ह । इसम अ डधानाल को शका (Venter canal cell) व एक बड़ा
अ ड होता है ( च 13.7 G-H)।
(g) नषेचन : ीधानी के प रप व होने पर ीवानाल-को शकाएँ व अ डधा नाल को शका
वघ टत होकर ले मी पदाथ मे प रव तत हो जाती ह । यह ले म जल अवशो षत कर फूल
जाता है िजससे आवरण को शकाएँ एक दूसरे से अलग हो जाती ह, और ीधानी का मुख खुल
जाता है । ले म पदाथ ीधानी के मु ख पर उभार बनाता है । इस ले मी उभार के वारा
पुमणु अ डधानी म वेश करते ह व अ ड के साथ संयोिजत होकर वगु णत यु मनज का
नमाण करते ह । यह यु मनज वृ करके अ डगुहा को घेर लेता है । तथा अपने चार
तरफ भि त ा वत कर न ष तांड (Oospore) म प रव तत हो जाता है ( च 13.6 C-F)।
बोध न :
A
(1) भारत म पायी जाने वाल ए थो सरोस क दो जा तय के नाम द िजये ।
...................................................................................................
(2) ए थो सरोस का सामा य नाम या है व य है ?
...................................................................................................
(3) ए थो सरोस म कस कार के मू लाभास पाये जाते ह?
...................................................................................................
(4) ए थो सरोस थै ल स को शकाओं म पाइर नॉइड कससे सं बं ध दशाता है ।
B. र त थान भ रए ( Fill in the blanks )
(1) राज थान म ए थो सरोस क ........... व ....... जा तयां पायी जाती है ।
(2) ए थो सरोस हे लाई का थै ल स ................... वभािजत होता है ।
(3) ए थो सरोस के लोरो ला ट म.................. उपि थत होता है ।
(4) ए थो सरोस मे थै ल स क वृ ........व...... को शकाओं के समू ह वारा होती है ।
(5) ए थो सरोस थै ल स म उपि थत नॉ टाक ..........सं बं ध द शत करता है ।
(6) ए थो सरोस म का यक जनन ....... व...... वारा होता है ।
(7) ए थो सरोस म पु ं धानी प रवधन................... कार का है ।
(8) ए थो सरोस क ले म गु हाओं मे .............. क कालो नयाँ पायी जाती है ।

13.6 बीजाणु जनक


बीजाणुद भद (Sporophyte)
(a) प रवधन (Development) : ( च 138 A- J) न ष तांड (Oospore) बीजाणुद भद
क थम को शका है । इसम थम वभाजन उद होता है इसके बाद अनु थ वभाजन वारा
चार को शकाएँ बनती है । ए. पुलस (A. crispulus) म थम वभाजन अनु थ व वतीय
वभाजन उद होता है । इस चार को शक य ण
ू क उपर दो को शकाय नचल दो को शकाओं
से अपे ाकृ त बड़ी होती है । इन चार को शकाओं म तीसरा वभाजन थम उद वभाजन के

256
समकोण होता है इस कार आठ को शकाओं का त ण ू , अ टांशक (octant) बनता है ( च

A- D)।

च 13.8 : पोरोफाइटा के प रवधन क व भ न अव थाय


इन आठ को शकाओं के वभाजन म व भ न जा तय म व वधता पायी जाती है ।
257
मेहरा और हांडू (Mehra and Handoo) के अनुसार उपर सोपान से कै सूल व म यवत े
बनता है व नचले सोपान क चार को शकाओं से पाद (Foot) का नमाण होता है
ए थो सरोस क अ धकांश जा तय म उपर सोपान क चारको शकाओं म पुन : अनु थ वभाजन
होने से ण
ू म चार-चार को शकाओं के तीन सोपान बन जाते है । नचले सोपान क को शकाओं
पाद, म य सोपान से वभा योतक े व उपर सोपान से कै सू ल का वकास होता है । ( च
E)।
ू ण के पाद े (foot region) क को शकाएं व भ न तल म वभािजत होकर एक गोलाकार
मृदुतक पाद (Foot) का नमाण करती हँ । ए थो सरोस क कु छ जा तय म (A. crispulus,
A. erectur) पाद क सतह को शकाएं ख भ को शकाओं (palisade) के समान ल बी होती ह
(च J) ।
कुछ जा तयां जैसे क A. himalayensis म प रधीय को शकाएं मूलाभास स य होकर
यु मकोद भद ऊतक म गहराई तक वेश कर भोजन अवशोषण का काय करती है ।
ू ण के उपर सोपान क को शकाएं - कै सू ल का नमाण करती है । इनम थम एक या दो
अनु थ वभाजन होते ह । इन सभी को शकाओं म एक प रन तक (Periclinal) वभाजन से
प रधीय को शकाओं ब ह थी सयम (amphithecium) तथा भीतर से अ त: थी सयम
(endothedium) बनता है ।
अ त थी सयम क सभी को शकाएँ कॉ यूमेला बनाती ह । यह कै सू ल का म य भाग है । ार भ
म यह चार उद पंि तय का बना होता है पर तु प रप व कै सूल म इसम 16 उद पंि तयां
होती है ( च G-H)।
ए. यूजीफा मस (A. fusiforuis) व ए. जे युलोसस (A. gemmulosus) म कॉ यूमेला 36-
48 उद पि तय का बना होता है ।
ब ह थी सयम क को शकाओं म पुन: प रन तक वभाजन (periclinal division) वारा बा य
वं य ारि भक जैकेट (Jacket initial) तथा भीतर फलद तर सु लक (archesporium)
का काय करती है ( च I)। ारं भक जैकेट क को शकाएँ प रन तक व अपन तक वभाजन वारा
4-6 को शका तर क कै सूल भि त (capsule wall) का नमाण करती है ( च J) । भि त
क सबसे बाहर परत बा य वचा बनाती है िजसक को शकाएं ल बी, सकर व यू टन यु त
होती है इनम कुछ को शकाएं अ डाकार होती है । येक अ डाकार को शका उद वभाजन वारा
दो वार को शकाएं से घरा र का नमाण करती है । बा य वचा के भीतर तर क
को शकाएं मृदुतक तथा अ तराको श क य अवकाश यु त होती है। इन को शकाओं मे ह रतलवक
पाया जाता है ।
सु तक (archesporium)
त ण पोरोगो नयम म सु तक का यूमेला को गु बद के समान ढके रहता है । सु तक
कै सू ल के का यमेला (शीष भाग) से आधार भाग वभा योसक े तक फैला रहता है ।
ारि भक अव था म यह एक तर य होता है तथा बीजाणुजनक के वकास के साथ-साथ
बहु तर य हो जाता है । सू तक क को शकाएँ छोट घनाभ व सघन को शका य यु त होती

258
है । ये को शकाएँ तला भसार म (Basipetal succession) म प रप व होती है । सु तक
के प रप व होने पर इनक को शकाओं म दो कार का वभेदन होता है ( च 13.9 A)।
(1) बीजाणु मातृ को शकाएँ (Spore mother cell)
(2) इलेटर मातृ को शकाएँ (Elater mother cells)
बीजाणु मातृ को शकाएँ : ये को शकाएँ बड़ी गोल अथवा अ डाकार, सघन क णकामय को शका
य व सु प ट के क यु त होती है । इलेटर मातृ को शकाएं छोट , चपट व छोटे के यु त
होती ह । ये दोन कार क को शकाएँ एकांतर म म यवि थत होती है ।
बीजाणु मातृ को शकाओं म अधसू ी वभाजन से बीजाणु चतु क (spore tetrad) बनते ह व
इलेटर मातृ को शकाएँ तयक या अनु थ (oblique or transverse) वभाजन से 3 - 4
को शक य, शा खत आभासी इलेटरो का नमाण करती है । इनक भि तय पर स पल थू लन
(spiral thickening) का अभाव होता है तथा ये मृत होते है ( च 13. 9 A)।

च 13.9 : प रप व बीजाणु (A- E)

259
कै सूल म कॉ यूमेला सु तक तथा जैकेट के वभेदन के प चात ् इसक शीष वृ क जाती ह
। इस अव था म पाद व कै सू ल के म य अ तवशी वभा योतक (intercalary meristem) का
नमाण होता है । कै सू ल क सतत ् वृ इन वभ योतक को शकाओं से होती रहती है ।
बीजाणुद भद प रवधन के साथ साथ ीधानी जैकेट को शकाएँ तथा थैलस उसके वभािजत होकर
बीजाणुद भद के चार ओर एक संर ी आवरण कै ल ा (Calyptra) अथवा प रच (involuce)
का नमाण होता है त ण बीजाणु द भद बीजाणु प रच से पूण प से ढका रहता है परं तु बाद
म बीजाणुद भद क ती वृ के कारण यह प रच को भेदकर उपर नकल जाता है इस लये
प रप व बीजाणुद भद म प रच कै सूल के आधार पर कॉलर प म घेरे रहता है व आधार य
भाग को संर ण व ढ़ता धान करता है ।
प रप व बीजाणु द भद (Mature Sporophyte) : बीजाणुद भद थैलस क अपा सतह (dorsal
surface) पर उ व बेलनाकार संरचना है प रप व बीजाणुद भद पाद, वभ योतक े व कै सूल
म वभे दत होता है । बीजाणुद भद का आधार भाग प रच (involucre) वारा घरा रहता है
(च 13. A-E) ।
(1) पाद (foot) : यह चपटा या गोलाकार मृदूतक को शकाओं का बना होता है जो
यु मकोद भद उ तक म अ त: था पत (embeded) होता है इसक प रधीय को शकाएँ
ख भाकार अथवा मू लाभासीय कृ त क होती है इसका मु य काय पोषक पदाथ का अवशोषण
करना है ।
(2) वभ योसक े (Meristematic) : यह कै सू ल व पाद के म य ि थत है । इसक
को शकाएँ वभािजत होकर कै सूल क नर तर वृ करती है ।
(3) कै सू ल (Capsule) : यह कॉ यूमेला, बीजाणु कोष व भि त म वभे दत होता है । यह
एक बेलनाकार, 1 - 5 से.मी. ल बी संरचना है । कुछ जा तय म इसक ल बाई 15 से.मी. तक
होती है ।
(i) कॉ यूमला : यह कै सू ल का म य भाप है जो वं य उ तको का बना है । इसक
को शकाएँ पतल , द घत तथा समान मोटाई क होती है । यह कै सू ल को यां क बल दान
करता है व बीजाणु क णन व संवहन म सहायक है ।
(ii) बीजाणुकोष (Spore sac) : यह बेलनाकार संरचना है जो शीष पर कॉ यूमेला को
गु बादाकार (dome shape) प मे आ छद कये होता है । आधार भाग म सू तक
(archesporium) एक तर य तथा कुछ ऊपर यह 2 - 4 तर का होता है । प रप व े म
बीजाणु मातृ को शका व इलेटर मातृ को शकाएं वभे दत होकर , एकांत रत म मे यवि थत
रहती है । पूण प रप व े म बीजाणु व आभासी इलेटर पाये जाते ह । बीजाणु गहरे - भू रे या
काले रं ग के व चतु फलक य होते है । आभासी इलेटर बहु कोशक य, शा खत सू वत होते ह । यह
एक से चार को शकाओं क बनी होती है तथा इनम स पल न ेपण (spiral thickening) का
अभाव होता है ।
(iii) कै सू ल भि त (Capsule Wall) यह 4 - 8 तर क बनी होती है । सबसे बाहर
तर को अ धचम (epidermis) कहा जाता है । अ धचम क को शकाएँ उद दशा म ल बी व

260
संकर होती है तथा इनक बा य सतह पर यु टन का न ेपण होता है । अ धचम म र पाये
जाते है व येक र दो र ा को शकाओं (Guard cell) वारा घरा रहता है । अ धचम म 1
- 4 तक अनुदै य फूटन रे खाएँ होती है । इन रे खाओं पर दो को शका के बीच क भि त पतल
होती है िजसके टू टने से कै सूल का फूटन होता है ।
अ धचमके नीचे वाल भि तको शकाएँ मृदु तक होती है । इनम ह रत लवक (chloroplast)
पाया जाता है ।
(iv) कै सू ल का फूटन (Dehiscence of capsule) :
प रप व कै सूल का फूटन शीष से आधार क ओर होता है । प रप व अव था म यह गहरे भू रे
या काले रं ग का जाता है । कै सू ल का फूटन उद फूटन रे खाओं (line of dehiscence) क
को शका भि तय के अलग होने से होता है व कै सू ल दो से चार कपाट म वभािजत होता है
एवं यह वभाजन मश: नीचे ओर बढ़ता जाता है । इससे बीजाणु व इलेटर अनावृत हो जाते है ।
आभासी इलेटर म ऐठन होने लगती ह िजससे बीजाणु संह त ढ ल हो जाती है तथा कै सू ल
भि त के सू ख जाने से आ ता ाह कृ त (hygroscopic nature) के कारण कपाट यव तत
(twisted) हो जाते ह िजससे बीजाणु झड़ते है व इनका वायु वारा क णन हो जाता है ( च
13.10)।

च 13.10 : कै सू ल फूटन

261
त ण यु मकोद भद (Gametophyte)

13.7 बीजाणु
बीजाणु यु मकोद भद क थम को शका है । यह गहरे भू रे या काले (ए. इरे टस, ए पं टे टस) या
पीले (ए. हमा येि सस) होते है । बीजाणु क बा य भि त या बा यचोल (exospore) मोटा,
कठोर व अलंकृत होता है जब क अ त:चोल (endospore) पतला व कोमल होता है । येक
बीजाणु म एक के क, वणह न लवक, सं चत खाध व जीव य पाया जाता है । बीजाणु के एक
ओर अर य कटक (Triradiate ridge) होता है ( च 13.11 A)।

च : 13.11 ए थो सरोस : बीजाणु अंकु रण क मक ाव थाय (A- F)

13.8 बीजाणु अंकुरण (Germination of spores)


ए थो सरोस क कुछ जा तय म बीजाणु का अंकुरण क णन के तु र त प चात ् (ए. इरे टस, ए.
हमालेयेि सस) व (ए. युजीफा मस) म सु ताव था के बाद होता है । अंकु रण के समय बीजाणु
जल अवशो षत कर फूल जाते ह व बा य चोल अर य कटक (Triradiate ridge) से फट
जाता है तथा अ त: चोल जनन न लका प मे वक सत हो जाता है ( च 13.11 C - D) ।
के क का जनन न लका के शीष पर थानांतर होता है तथा उ तरो तर दो अनु थ वभाजन
वारा दो शीष को शकाएँ बनती है ( च CD) । दोन अ त थ को शकाओं म दो उद एक दूसरे
के समकोण वभाजन वारा आठ को शक य (अ टाशंक octant) का नमाण होता है । अ टाशंक

262
(octant) क चार अ त थ को शकाएँ ( च E) शीष थ वभा योतक (apical meristem) म
वभे दत हो जाती है ये को शकाएँ व भ न तल म वभािजत होकर थैलस का नमाण करती है ।
त ण थैलस क अ य सतह क कसी भी एक को शका से मूलाभास का नमाण होता है ( च
13. 11 पृ) ।

13.9 पीढ़ एका तरण (Alternation of Generation)


ए थो सरोस के जीवन च म दो प ट ाव थाय पायी जाती ह ।
(1) यु मोको द ाव था : जो क मु य अव था है । यह ाव था अगु णत होती है ।
(2) बीजाणुजनक ाव था : यह वगु णत ाव था होती है जो क आं शक प से अपने
पोषण के लये अगु णत यु मोको द पर नभर रहती है । यह जीवनपय त यु म कोद भ से
जु ड़ी रहती है । यु मोको द अव था क शु आत अगु णत बीजाणु ओं से होती है । यह बीजाणु,
बीजाणु मातृको शकाओं (spore mother cell) म अधसू ी वभाजन से बनते ह एवं संपटु के
फुटन वारा वमु त होते ह । येक बीजाणु अ ल वातावरण म अंकु रत होकर नया
यु मकोद भद बनाता है ।

263
ए थो सरोस का यु मकोद भद थैलस छोटा, चपटा व पृ ठधार होता है । इसम म य शरा का
अभाव होता है । अ य सतह पर चकनी भि त वाले मूलाभास व ले म गुहाय पायी जाती ह
िजनम नॉ टाक कॉलोनी पायी जाती है ।
जनन के समय थैलस क अपा / ऊपर सतह पर जननांग का वकास होता है । तथा जनंनाग
थैलस म अ त: था पत होते है ।
पु ध
ं ानी एकल अथवा समू ह म वक सत होती है । पु ध
ं ानी म पुमणु मातृको शकाओं से
वकशा भक पुमणु ओं का नमाण होता है ।
ीधा नयां सदै व एकल पायी जाती है (च इनक पहचान थैलस पर पाये जाने वाले ले मी उभार
(Muscilagenous mound) से होती है । येक ीधानी क संरचना ला क के समान होती
है । इनम 4 - 8 ीवानाल को शकाएँ एक अ डधा नाल को शका व अंड होता है परं तु ीवा व
अ डधा क जैकेट को शकाएं थैलस क को शकाओं से वभे दत नह ं होती है।
नषेचन जल वारा होता है । पुमणु ीधानी क ीवानाला म वेश कर अंड के साथ संयोिजत
होकर एक वगु णत (diploid) न ष तांड (Oospore) बनाता है । यह बीजाणुद भद अव था
क थम को शका है ।
न ष तांड वभािजत होकर बीजाणुजनक का वकास करता है । बीजाणुजनक / पोरोगो नयम
पाद अ तवशी वभ योतक व स पुट / कै सू ल म वभे दत होता है । पाद थैलस से पोषक पदाथ
का अवशोषण कर बीजाणुजनक को भोजन दान करता है । अ तवशी वभ योतक क
को शकाओं म नरंतर वभाजन के कारण कै सूल म असी मत वृ होती है । कै सूल म मु यत '
तीन े होते ह - कै सूल भि त, बीजाणु कोष एवं को यूमेला ।
स पुट/कै सूल भि त म काश सं लेषण क मता होती है अत बीजाणुजनक यु मको द भद पर
पूण प से आ त न होकर आं शक प से आ त होता है ।
बीजाणुकोष म बीजाणु मातृ को शकाएँ व इलेटर मातृ को शकाएँ होती है । बीजाणु मातृ को शका म
अधसू ी वभाजन वारा बीजाणु चतु क बनता है । चतु क क को शकाएँ पृथक होकर बीजाणु
कहलाते है ।
ए थो सरोस म दो प ट ाव थाय पी ढ़यां कहलाती है जो पादप के जीवन च म नय मत प
से एकांतर म से एक के बाद दूसर पीढ़ आती ह िजसे पीढ़ एका तरण कहते ह ।
इनम पीढ़ एका तरण वगु णतागु णत (diplohaplontic) कार का पाया जाता है ।
बोध न 2
(1) ए थो सरोस के कै सू ल म पाये जाने वाले व भ न भाग के नाम द िजये ।
...................................................................................................
(2) ए थो सरोस म सू त क ( archesporium) का नमाण कस परत से होता है ।
...................................................................................................
(3) ए थो सरोस के पोरोगो नयम म सीटा ( Seta) के थान पर पाये जाने वाले
े का या नाम है ।
...................................................................................................
(4) ए थो सरोस म कै सू ल भि त क वशे ष ता बताइए ।

264
...................................................................................................
(5) ए थो सरोस थै ल स क को शकाओं म पायर नोइड क उपि थ त कससे सं बं ध
दशाता है ।
..................................................................................................
र त थान भ रए ( Fill in the blanks)
(1) ए थो सरोस के अ त ' थीसीयम से ....... ........ वकास होता है ।
(2) ए थो सरोस म............ इले ट र पाये जाते है ।
(3) को यू मे ला......... उद पं ि तय का बना होता है ।
(4) ए थो सरोस के बीजाणु द भद का आधार भाग ..... वारा प रब रहता है ।
(5) ए थो सरोस कै सू ल भि त म .......उपि थत होते है ।
(6) ए थो सरोस कै सू ल म यु डोइले ट र ............ म सहायक है ।

13.10 ए थो सरोस क ब धु ता (Affinities of Anthoceros)


शैवाल से समानता (Similarities with Algae) : ए थो सरोस हरे शैवाल / लोरोफाइसी से
न न समानताएँ दशाते ह।
(1) थैलस क येक को शका म एक बड़ा, नि चत आकार का ह रतलवक ( लोरो ला ट) पाया
जाते ह ।
(2) शैवाल के समान ए थो सरोस म भी लोसे ला ट के के म पाइर नॉइड पाया जाता है ।
(3) थैलस क आकृ त व शारवन े सओला शैवाल के समान होती है ।
(4) पुमणु वकाशा भक होते है तथा दोन कशा भकाएँ तोद (whiplash) कार क होती है ।
(5) नषेचन के लये जल क आव यकता होती है ।
लवरवटस से समानता (Similarities with Liverwort) :
(1) ए थो सरोस का थैलसनुमा यु मको द भद सरल तथा अ वभे दत आंत रक संरचना, पे लया
(Pellia) से समानता दशाता है ।
(2) थैलस म शीष थ वृ होती है ।
(3) श क का अभाव (जंगरम नए स के समान) होता है ।
(4) चकनी भि त यु त मू लाभास उपि थत होते ह जो जंगरमे नए स से समानता दशाते है।
(5) जननांग थैलस क पृ ठ सतह पर धँसे हु ये होते ह । यह ल ण रि सएसी कुल
(Ricciaceae) से समानता दशाता है।
(6) ं ानी क आधारभू त संरचना (Fundamental structure) हपे टकोि सडा
ीधानी एवं पुध
समान होती है ।
(7) बीजाणुद भद म सुसक (Archesporium) से बीजाणु तथा बं य को शकाओं से इलेटर का
नमाण होता है।
ायोि सडा से समानता (Similairities with Bryopsida)

265
(1) सु तक का प रवधन ब ह थी सयम (Amphithecium) क भीतर परत से होता है ।
(2) कॉ यूमेला का नमाण अ तः थी सयम (endothecium) से होता है।
(3) सु तक (archesporium) कॉ युमेला (Columella) को गु बद के समान ढके रहता है।
(4) कै सू ल क बा य वचा म र पाये जाते है ।
(5) कै सू ल क भि त म ह रतलवक यु त को शकाएं उपि थत होती है ।
(6) बीजाणुजनक ऊतक (Sporogenous tissue) क को शकाओं क सं या म हास होता है।
टो रडोफाइटा से समानता (similarities with Pteridophyta) :
(1) ए थो सरोस के थैलस क संरचना फन ोथेलस के समान होता है ।
(2) जननांग थैलस म धंसे हु ये होते ह ।
(3) जननांग क संरचना समान होती है ।
(4) पोरोगो नयम क वृ मह न तक जार रहती है । यह ल ण साइलोफाइटे स के समान है।
ए थो सरोस के व श ट ल ण : (Special features of Anthoceros) :
(1) थैलस क येक को शकाय पाइर नॉइड यु त लोरो ला ट पाया जाता है ।
(2) थैलस म ले म गुहा पायी जाती है िजसम ना टॉक कॉलोनी उपि थत रहती है ।
(3) पु ध
ं ानी का अ तजात (endogenous) प रवधन होता है ।
(4) पोरोगो नयम पतला, ल बा, बेलनाकार व सींग के समान संरचना वाला होता है ।
(5) सीटा के थान पर अ तवशी वभ योतक (Intercalary meristem) े होता है िजससे
कै सू ल क असी मत वृ होती है ।
(6) आभासी इलेटर (Pseudo - elaters) पाये जाते ह ।
इस कार ए थो सरोस म अपने व श ट ल ण के सवाय व भ न वग के ल ण का समावेश
मलता है । इस लये इस वंश को सं ले षक वग (Synthetic Class) कहना उपयु त है ।

13.11 सारांश
ए थो सरोस पादप यु मकोद भद अगु णत अव था है इसका थैलस पृ ठ य , यान व पा लत होता
है । इसके यु मकोद भद क संरचना अ यंत सरल कार क है व इसम जड़, तना व पण जैसा
वभेदन नह ं पाया जाता है । इस लये इन पादप के यु मकोद भद को थैलस कहा जाता है ।
थैलस क आंत रक संरचना म व भ न े का वभेदन नह ं पाया जाता है व संरचना क ि ट
से टे रडोफाइट के ोथेलस से समानता दशाते है । येक को शका म पाया जाने वाला ह रतलवक
व उसके के क म पाइर नॉइड क उपि थ त हरे शैवाल के समान ल ण है ।
जननांग पु ध
ं ानी व ीधानी अ त: था पत होते ह । जननांग क मु य संरचना टे रडोफाइट के
समान है । नषेचन के लये जल आव यक है ।
इसका बीजाणुद भद ज टल कार का है व आ दम-जीवा म साइलोफाइटे ल ज (Psilophytales)
के समान है । इस कार ये पादप टे रडोफाइटा से समानता दशाते ह । इसका बीजाणुद भद पाद,
वभ योतक े व कै सूल म वभे दत रहता है । कै सूल भि त म पाये जाने वाले ह रतलवक व

266
र के कारण इसका बीजाणुद भद, यु मकोद भद पर आं शक प से आ त रहता है ।
वभ योतक े म सतत ् वभाजन से कै सूल क नरं तर वृ इन पादप का व श ट ल ण ह।
इस कार ए थो सरोस के जीवन च के संपण
ू अ ययन से हम यह न कष नकाल सकते ह क
यह वग ऐसे पादप का समू ह है िजसके यु मकोद भद मे ह रत शैवाल से समानता दशाने वाले
ल ण पाये जाते ह । वह ं दूसर तरफ इसका बीजाणुजनक ज टल संरचना वाला तथा टे रडोफाइटा
से समानता दशाता है । । इस कार यह पादप आ दम व वक सत ल ण का सि म ण है।

13.12 श दावल
(1) अ त:चोल : बीजाणु क भीतर को शका भि त ।
(2) अ त: थी सयम : ायोफाइटा मे त ण पोरोगो नयम क भीतर परत ।
(3) एकवष य : पौधे अपना जीवन च क संपण
ू याएं एक वष म ह पूण कर लेता है ।
(4) पाइर नॉइड : लोरो ला ट म पायी जाने वाल टाच सं लेषण करने वाल संरचना ।
(5) बहु वषय : इन पादप का जीवन काल दो या दो से अ धक वष म पूरा होता है ।
(6) ू ण : न ष तांड म वभाजन वारा बनने वाल संरचना ।

13.13 संदभ ंथ
(1) R. Vashishtha, A. K. Sinha, Adarsh Kumar Botany for degree students
– Bryophyta S. Chand, New- Delhi.
(2) N. S. Parihar An introduction to Embryophyta Vol. I., Bryophyta Central
Book Depot। Allahabad.
(3) डॉ. पी. सी. वेद , डॉ. नरं जन शमा, डॉ. आर. एस. धनखड़, स वता गु ता सु म जैवीय
एवं अपु पोद भद व वधताएँ रमेश बुक डपो, जयपुर

13.14 बोध न के उ तर
बोध न 1
(a)
(1) भारत म पायी जाने वाल ए थो सरोस क दो जा तयां ए थो सरोस हमा येि सस, व
ए थो सरोस इरे स है।
(2) थैलस क उपर सतह पर बीजाणु जनक उ व, ल बा बेलनाकार व सींग के समान दखायी
दे ता है । िजससे इन पादप को ''हॉनवट'' कहा जाता है ।
(3) थैलस क अ य सतह पर चकनी भि त यु त मू लाभास पाये जाते है ।
(4) ए थो सरोस थैलस को शकाओं म पाइर नॉइड क उपि थ त हरे शैवाल / लोरोफाइसी से
संबध
ं दशाना है ।
(b) र त थान :
(1) राज थान म ए थो सरोस इरे स व ए थो सरोस हमा पेि सस जा तयां पायी जाती है ।

267
(2) ए थो सरोस हेलाई का थैलस प छाकार वभािजत होता है ।
(3) ए थो सरोस के लोरो ला ट म पाइर नॉइड उपि थत होता है ।
(4) ए थो सरोस म थैलस क वृ एकल शीष थ को शका व को शका समूह वारा होती है ।
(5) ए थो सरोस थैलस म उपि थत नॉ टाक सहजीवी संबध
ं द शत करता है।
(6) ए थो सरोस म का यक जनन क द व जैमी वारा होता है ।
(7) ए थो सरोस म पु ध
ं ानी प रवधन अ तजात होता है ।
(8) ए थो सरोस ले मी गुहाओं मे नॉ टाक कॉलोनी पायी जाती है ।
बोध न 2
(1) कै सू ल भि त, बीजाणु कोष व कॉ यूमेला
(2) सू तक का नमाण ब ह थी सयम क भीतर तर क को शकाओं से होता है ।
(3) सीटा के थान पर वभा योतक े पाया जाता है िजसके कारण कै सू ल क नरं तर वृ
होती है ।
(4) कै सू ल भि त के अ धचम (epidermis) म र उपि थत होते ह एवं भि त क भीतर
परत क को शकाओं म ह रत लवक पाये जाते ह । इस कारण यह भाग काश सं लेषण का
काय करता है ।
(5) थैलस को शकाओ मे पाइर नॉइड क उपि थ त हरे शैवाल / लोरोफाइसी से संबध
ं दशाता है ।
र त थान भ रए के उ तर :
(1) ए थो सरोस के अ तः थी सयम से कॉ यूमेला का वकास होता है ।
(2) ए थो सरोस म आभासी इलेटर पाये जाते है ।
(3) कॉ यूमेला 4-6 उद पि तय का बना होता है ।
(4) ए थो सरोस के बीजाणुद भद का आधार भाग प रच वारा प रब रहता है ।
(5) ए थो सरोस कै सू ल भि त म र ह रत लवक उपि थत होते है ।
(6) ए थो सरोस कै सूल म आभासी / युडोइलेटर बीजाणु क णन म सहायक है ।

13.15 अ यासाथ न
(1) ए थो सरोस क बा य व आंत रक संरचना का स च वणन क िजये ।
(2) ए थो सरोस, रि सया तथा माकि शया के थैलस व बीजाणुद भद म अंतर द िजये ।
(3) ए थो सरोस म पु ध
ं ानी प रवधन, संरचना व फूटन का वणन क िजये ।
(4) ए थो सरोस के बीजाणुद भद के अनुदै य काट का नामां कत च बनाइये ।
लघुतरा मक न :
(a) बीजाणु का (b) आभासी (c) बीजाणु (d) अल गक जनन
संरचना, इलेटर, क णन,

268
इकाई 14 : यूने रया (Funaria)
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 वग कृ त ि थ त
14.3 आवास व वतरण
14.4 यु मकोद भद ाव था
14.5 जनन
14.6 बीजाणुद भद ाव था
14.7 बीजाणु का क णन
14.8 बीजाणु अंकुरण
14.9 जीवन च एवं पीढ़ एका तरण
14.10 सारांश
14.11 श दावल
14.12 संदभ थ

14.13 बोध न के उ तर
14.14 अ यासाथ न

14.0 उ े य
(1) यूने रया पादप क बा य व आंत रक संरचना के बारे म जानकार ा त करना ।
(2) बीजाणु जनक म पायी जाने वाल ज टल व वक सत संरचना का व तृत अ ययन करना ।
(3) बीजाणु संरचना व क णन का अ ययन

14.1 तावना
यूने रया पादप यु मकोद भद ाव था होती है, जो अगु णत है । इसम प ट मू लाभास, अ व
पण का वभेदन पाया जाता है । यह ाव था वपोषी होती है ।
मू लाभास भू रे रं ग क बहु को शक य संरचनाएँ ह, जो पादप को था पत करने के साथ-साथ जल व
ख नज लवण का अवशोषण भी करते ह ।
अ ल बा व उ व वृ द शत करता है, िजस पर पण स पल म म यवि थत रहते ह ।
आंत रक संरचना क ि ट से रि सया व माकि शया क तुलना म इसम बा य वचा, व कु ट व
के य संवहन र जु का वभेदन पाया जाता है ।
यु मकोद भद पादप के नरशाखा के अ भाग पर पुध
ं ानी वक सत होती ह । इनम पु ध
ं ानी
मातृको शका से पुमणु का प रवधन होता है । ी शाखा के शीष पर अ डधानी वक सत होती है
व अ डधानी म अ ड होता है । पुमणु व अ ड के नषेचन से वगु णत न ष ता ड बनता है ।

269
इनके वभाजन से ण
ू का नमाण होता है व ण
ू के प रवधन वारा स पूण पोरोगो नयम
बनता है ।
पोरोगो नयम म प ट पाद (Foot), सीटा (Seta) व संपट
ु (Capsule) म वभेदन होता है ।
संपटु म बीजाणु मातृको शकाओं म अधसू ी वभाजन वारा अगु णत (Haploid) बीजाणु बनते
ह व इसके अंकु रण से नया यु मकोद भद पादप का नमाण होता है ।
यूने रया (Funeria)

14.2 वगींकृत ि थ त
ड वजन (Division) : ायोफाइटा (Bryophyta)
वग (Class) : ायोि सडा (Bryopsida) या मसाई (Musci), अ या त भ पर पि तयाँ
स पल म म व या सत होती है बीजाणु कोष (Sporesac) संपटु क भि त से वायुकोष
(Airsac) वारा पृथक रहता है ।
उपवग (Sub class) : यू ायेडी (Eubridae)
संपटु चौड़ा, ढ कन स हत, ढ कन म ल बी च च का अभाव होता है ।
प रमु खदंत दो वलय म लगे रहते हँ ।
कु ल (Family) : यूने रयेसी (Funariaceae) कुल के पादप सघन गु छ के प म उगते ह ।
पि तयाँ सरल, जो म य शरा े के अ त र त एकको शका मोट होती है।
जा त (Genus) : यूने रया (Funaria)

14.3 वतरण व आवास (Distribution and Habitat)


यूने रया एक व व यापी माँस है, इसक लगभग 117 जा तयाँ व व के सभी भाग म पायी
जाती है । भारत म इसक 15 जा तयाँ पाई जाती ह । यूने रया हाइ ोमे का (Funaria
hygrometrica) व व यापी जा त है ।
इसके पौधे नमभू म, द वार , पेड़ के तन आ द पर पाये जाते ह । ार धान भू म म ये वशेष
प से उगते ह ।
आग लगने के बाद जहाँ राख होती है, वहाँ ये सघन प से उगते ह । यूने रया हाइ ोमे का
(Funaria hygrometrica) शमला, मसूर , नैनीताल आ द पहाड़ म बहु तायत से मलती है ।
इसके पौधे ाय: सघन गु छ म उगते हँ ।

14.4 यु मकोद भद ाव था (Gametophytic)


(1) बा य संरचना : यूने रया का यु मकोद भद (Gametophyte) यान, भू मगत
थमत तु (Protonemes) व उ व प णल यु मकधर (Gametophore) मे वभे दत होता है ।
यह अ (axis), तना (stem), पि तय (Leaves) व मू लाभास (Rhizoids) म वभे दत होता
है। ( च 14.1)।

270
मू लाभास अ के आधार य भाग से उ प न होते ह । यह पतले, ल बे, शा खत, बहु-को शक य
ह। इनक को शकाओं म तयक पट (Oblique septa) पाये जाते ह । यह भू म से जल, भोजन
के अवशोषण व पादप को ि थर रखने का काय करते ह ।
अ पतला, सीधा, बेलनाकार व एकल शा खत (Monopodial Branched) होता है । अ 1
से 3 से.मी. ऊँचा होता है, िजस पर पि तयाँ स पल म (Spiral) म यवि थत रहती ह ।
पि तयाँ छोट हर सरल (Simple), अवृ त (Sessile) तथा अ डाकार (Ovate) होती ह ।
प ती म म य शरा (Midrib) प ट होती है ।

च : 14.1 : A बीजाणु यु त पादप: B प ती; C. मूलाभास: D जेमा


(2) आंत रक संरचना (Internal Structure)
अ : मु य अ के अनु थ काट म न न ल खत तीन सु प ट े दखायी दे ते ह । ( च
14.2 A)
(a) बा य वचा (Epidermis) (b) व कु ट (Cortex) (c) के य संवहन र जु (Central
conducting stand)

271
(a) बा य वचा (Epidermis) : यह एक को शक य बा य परत होती है । इसक को शकाएँ
पतल भि त, छोट व ह रतलवक यु त होती है। ौढ़ त भ म को शकाओं क भि त मोट
होती है व इनम ह रतलवक अनुपि थत होते ह । बा य वचा म यु टकल (Cuticle) व र
(Stometa) का सदै व अभाव होता है ।
(b) व कु ट (Cortex) : यह बा य वचा के भीतर क ओर चौड़ा मृदुतक को शकाओं का बना
े है । त ण त भ म व कु ट क को शकाओं म ह रतलवक पाया जाता है । ौढ़ त भ म
बा य व अ त: े प ट प से वभे दत होते ह । बा य े क व कु ट को शकाएँ मोट
भि त वाल व भूरे रं ग क होती ह तथा अ त: े म यह पतल भि त क होती है ।
(c) के य संवहन र जु (Central Conducting strand) : व कु ट के अ त: भाग को
के य संवहन र जु कहते ह । इसक को शकाय ल बी, संकर , पतल भि त यु त होती ह ।
इन को शकाओं म जीव य का अभाव होता है । वन प त शा ी इस े को यां क बल दान
करने वाला तथा ख नज संवहन के लये उ तरदायी मानते ह ।

च : 14.2 : (A) अ का अनु थ काट; (B) प ती का अनु थ काट


(3) प ती (Leaf) : प ती के अनु थ काट म म य शरा का भाग बहु तर य तथा पणफलक
का भाग एक तर य होता है । म य शरा का के य भाग मु यत: मोट भि त यु त संकर
पैर काइमी को शकाओं का बना होता है । के य को शकाओं के बाहर क तरफ पतल भि त
यु त को शकाएँ होती ह । यह को शकाएँ ऊपर तथा नचल बा य वचा से घर होती ह । प ती
के फलक का भाग पतल भि त वाल को शकाओं का बना होता है । इनम ह रतलवक पाया
जाता है, पर तु र का अभाव होता है ।

बोध न 1
(1) यू ने रया क वग कृ त ि थ त ल खये ।
....................................................................

272
(2) मू लाभास का या काय है ?
....................................................................
(3) इसके मु य अ क ऊँ चाई कतनी होती है ?
....................................................................
(4) यू ने रया का आवास बताइये ।
....................................................................

14.5 जनन (Reproduction)


यूने रया म का यक व ल गक दोन कार का जनन पाया जाता है ।
14.5.1 का यक जनन (Vegetable Reproduction)
यूने रया म का यक जनन न न कार से होता है
1. ाथ मक थम (Primary Protonema) त तु के वख डन वारा : बीजाणुओं के
अंकु रण से ाथ मक थम त तु का नमाण होता है । ाथ मक थम त तु क अ तवशी
को शकाओं के मृत हो जाने पर या त तु त त होने पर यह छोटे -छोटे टु कड़ म टू ट जाता है
तथा येक ख ड नया पौधा बनाता है ।
2. वतीयक ाथ मक त तु (Secondary Protonema) : नम वायु क उपि थ त म
तने, प ती व मू लाभास से बने ाथ मक थम त तु को वतीयक ाथ मक त तु कहते ह ।
इससे यु मकोद भद पा व क लकाओं के प म वक सत होते ह ।
3. जेमा (Gemma): जैमा का नमाण तकूल प रि थ त म ाथ मक त तु क अ त थ
को शका से होता है । जैमी 10-30 को शकाओं क ह रत लवक यु त संरचनाएँ ह । अनुकूल
प रि थ तय म यह नये पादप म वक सत होती है । इसका नमाण तने व पि तय क
को शकाओं से भी होता है।
4. प - क लकाएँ (Bulbils) : प - क लकाएँ मूलाभास पर वक सत बहु को शक य रं गह न
संरचनाय ह जो क अनुकू ल प रि थ तय म नये पादप का नमाण करती ह ।
5. अपबीजाणु ता (Apospory) : इसम यु मकोद भद बीजाणु से उ प न न होकर
बीजाणुद भद क कसी भी का यक को शका से वक सत होता है । य य प ये अपबीजाणु
यु मकोद भद बा य ल ण म सामा य यु मकोद भद के समान होते ह पर तु यह वगु णत
(2n) होते ह ।
14.5.2 ल गक जनन (Sexual Reproduction)
यूने रया उभय लगा यी (Monoecious) व एका यी (autoecious) पादप ह अथात ् इन
पादप म पु ध
ं ानी व ीधानी एक ह पौधे क अलग-अलग शाखाओं पर वक सत होते है ।
ं ा नयाँ, मु य शाखा के शीष पर समू ह म वक सत होती ह । इसके आधार से पा व शाखा
पु ध
नकलती है, िजसे ीशाखा कहते ह । यह वृ करके मु य शाखा (नर शाखा) से अ धक ल बी

273
हो जाती ह, िजसके अ भाग पर समू ह म ी धा नयाँ वक सत होती ह । युने रया म पू प
ं व
ू ता
(Protandry) पायी जाती है ।
A. नरशाखा अथवा पुधां नीधर (Male Branch or Antheridiophore)
नरशाखा का अ भाग चपटा व उ तल होता है िजसम पुध
ं ा नयाँ समू ह म होती ह व न न आँख
से यह लाल या नारं गी रं ग के ध ब के प म दखायी दे ती है । पु ध
ं ानीधर या (नरशाखा) के शीष
भाग पर पण गुलाब क पंखु ड़य के समान यवि थत होकर एक कप के समान संरचना बनाते
ह। यह पण पु ध
ं ा नय को चार तरफ से घेरकर संर ण दान करते ह । इन पण को
पे रगो नयल पण (Perigonial leaves) कहते ह ।
नरशाखा एक पु प के समान दखायी दे ती है , िजससे इसको आसानी से पहचाना जा सकता है ।
ं ा नय का वकास एक साथ नह ं होता है, अत: पु ध
नरशाखा म पुध ं ा नयाँ येक नर शाखा म
वकास क वभ न ाव थाओं म पायी जाती है ।
पु ध
ं ा नय के म य अनेक रोम समान ह रतलवक यु त बं य बहु को शक य संरचनाय पायी जाती
ह, िजसम को शकाय एक तर म यवि थत होती ह, िज ह सहसू (Paraphysis) कहते ह ।
इन सहसू क शीष को शका अधगोलाकार व प रमाण (Size) म बड़ी होती है । येक सहसू
4 - 6 को शकाओं का बना होता है । इनक अ थ फूल हु ई को शकाय एक दूसरे के स पक म
रहकर पु ध
ं ानी के ऊपर आवरण बना लेती है तथा पुध
ं ा नय को संर ण दान करती ह । सहसू
क सभी को शकाओं म ह रतलवक पाया जाता है ।

च : 14.3 : 1. नर शाखा : B. नरशाखा के शीष थ भाग का अनुल ब काट;


C. एक पु ध
ं ानी

274
A-1 पु ध
ं ानी का प रवधन (Development of antheridium)
नर शाखा के शीष थ भाग क कसी भी सतह को शका (Superficial cell) से पुध
ं ानी का
वकास होता है । िजसे पु ध
ं ानी ारि भक को शका कहते ह । ( च 14.4 A) यह को शका अ य
को शकाओं से थोड़ी उभर हु ई होती है । इसम अनु थ वभाजन से दो को शकाएँ बनती ह ।
नचल को शका को आधार को शका कहते ह, िजससे पुध
ं ानी वृ त का धँसा हु आ भाग बनता है।
ऊपर या बा य को शका (Outer cell) से पु ध
ं ानी व वृ त के शेष भाग का नमाण होता है ( च
14. 4 B) इसे पु ध
ं ानी मातृ को शका (Antheridial mother cell) कहा जाता है । पुध
ं ानी मातृ
को शका म अनु थ वभाजन वारा 2 - 3 को शक य सू का नमाण होता है । ( च 14.4
C) िजससे पुध
ं ानी वृ त का शेष भाग वक सत होता है । इस सू क अ त थ को शका
(Terminal) म एक दूसरे को काटते हु ए दो वकण - उद वभाजन वारा एक शीष को शका
का नमाण होता है । ( च 14.4 D) शीष को शका म दाँये - बाँये एकांतर म म वभाजन के
कारण 5 - 7 को शकाओं क एक संरचना बनती है ( च 14.4 D) शीष को शका के नीचे क
तरफ क 3 - 4 को शका म वकण - उद (Diagonal-Vertical) वभाजन वारा दो असमान
को शकाएँ बनती ह ( च F) । छोट को शका आवरण ारि भक (Jacket initial) को शका के
प म काय करती है । जब क बड़ी संत त को शका पुन : वभािजत होकर बाहर क तरफ
आवरण ारि भक को शका (Jacket initial) व अ दर क तरफ ाथ मक पुज
ं नक को शका
(Primary androgonial cell) के प म वक सत होती ह ( च 14.4 G) । सभी आवरण
ारि भक को शकाय अप रनतीय वभाजन से एक तर य पुधानी आवरण (Jacket layers)
बनाती है । शीष थ को शका म वभाजन वारा ढ कन को शका / ा छद को शका
(Capcell/Operculum cell) न मत होती है ।
ं नक को शकाय बार बार वभािजत होकर पूव पुमणु मातृ को शकाएँ (antherozoid
ाथ मक पु ज
mother cell) बनाती है ( च I - K)। येक पुमणु मातृ को शका म एक तयक / वकण तल
(Oblique/diagonal plaue) वभाजन से दो पुमणु मातृ को शकाओं का नमाण होता है ।
पुमणु मातृ को शका का जीव य काया त रत होकर वकशा भक पुमणु बनाते ह ( च 14.4
LM)।

275
च 14.4 : A - M पु ध
ं ानी प रवधन : A -J. यूने रया के पु ध
ं ानी प रवधन क वभ न
अव थाएँ : K. प रप व पु ध
ं ानी; L - M. पुमणु
A-3 पु ध
ं ानी क संरचना (Structure of Antheridium)
एक पूण प रव धत पुधानी मु दराकार (Club Shaped) सवृ त (Stalked) संरचना है । वृ त
छोटा व बहु को शक य होता है । काय (Body) म एक को शक य मोट भि त या जैकेट
(Jacket) होती है । इसके अंदर अनेक पुमणु मातृको शकाय (Antherozoid mother cell)
होती ह, येक पुमणु मातृको शका के के क तथा को शका य से पुमणु पा त रत होते ह
तथा शेष को शका य ले म (Mucilage) म प रव तत हो जाता है । प रप व पुध
ं ानी
वण लवक (Chromoplast) के कारण नारं गी या लाल भूरे रं ग क दखाई पड़ती है ।
येक पुमणु (Antherozoid) चल (Motile) वकशा भक य (Biflagellate) कु ड लत
(Coiled) व स पल आकार य संरचना है ( च 14.4 K)।
A-4 पु ध
ं ानी फुटन (Dehiscence of Antheridium)
प रप व पु ध
ं ानी का फूटन जल के स पक म आने से होता है । ढ कन को शका के बा य व
आंत रक भि तयाँ ओस अथवा वषा क बूद
ँ को अवशो षत कर लेती है फल व प यह को शकाएँ
ले मी होकर फूल जाती है तथा ढ कन को शकाओं म दाब वृ से पु ध
ं ानी के सरे पर एक छ
बनता है, िजससे पुमणु यु त व बाहर आता है तथा पुमणु पतल -पतल परत के प म फैल
जाते ह । पुमणु क झ ल नुमा भि तयाँ जल म घुल जाती ह फल व प स पल कु ड लत
वकशा भक य पुमणु वमु त हो जाते ह ( च 14.3 B)।
B. ीधानीधर या ीशाखा (Archegoniophore or Female Branch)
ीधानीधर के शीष भाग पर ीधा नयाँ समूह म सहसू (Paraphyses) के साथ लगी रहती
ह । सहसू फूले हु ए नह ं होते । पु ध
ं ा नय के समान ीधा नयाँ भी वशेष कार क पण से
276
घर रहती है, िज ह प र लंगधानी पण (Perichaetial) कहते हे, िजनके अ सरे आपस म
जु ड़कर ीधा नय को ढक लेते ह ( च 14.5 A-B)।

च 14.5 ीधानीधर के शीष थ भाग का अनुल ब काट


B-1 ीधानी प रवधन (Development of Archegonia) ( च 14.6)
ीधा नय का प रवधन ी शाखा क अ थ सरे क सतह को शकाओं से होता है । िजस
को शका से ीधानी का प रवधन होता है, उसे ी धानी ारि भक (Archegonial initial)
(च A) कहते ह । इसम अनु थ वभाजन वारा एक आधार को शका (Basal cell) व दूसर
अ त थ (Terminal) को शका का नमाण होता है ( च 14.5 B) आधार को शका से ीधानी
वृ त का नमाण होता है । अ त थ को शका (Terminal) ी धानी मातृको शका
(Archegonial mother cell) के प म काय करती है । इस को शका म तीन तयक -
वभाजन एक दूसरे को काटते हु ए होता है, िजसके फल व प के म एक अ ीय चतु कफलक य
को शका (Axial –tetrahedral cell) तथा तीन परधीय को शकाएँ (Peripheral cell) बनती ह
। (च 14.6 C -G) प रधीय को शकाओं के वभाजन से अ डधा भि त / जैकेट बनती है ।
अ ीय चतु कफलक य को शका अनु थ वभाजन से एक ऊपर ाथ मक ढ कन को शका
(Primary cover cell) व एक नचल के य को शका (Central cell) का नमाण करती है
। के य को शका के पुन : अनु थ वभाजन से ाथ मक ीवा नाल को शका (Primary Neck

277
Canal) व ाथ मक अ डधानी को शका (Primary venter cell) का नमाण होता है । ( च
I) ाथ मक ीवा नाल को शका बार बार अनु थ वभाजन वारा ीवा नाल को शकाएं (Neck
Canal cells) बनाती ह, जब क ाथ मक अ डधानी को शका एक बार अनु थ वभाजन वारा
वभािजत होती है, िजससे एक अ ड को शका (Egg cell) व एक अ डधानी नाल को शका
(Venter Canal Cell) बनती है ( च 14. 6 J - K) । ाथ मक ढ कन को शका म दो
उद वभाजन वारा चार ढ कन को शकाओं (Cover cell) का नमाण होता है ( च 14.6
L) ।

च 14.6 ीधानी प रवधन क अव थाएँ


B-2 ीधानी क संरचना (Structure of Archegonium)
ीधानीधर पर अनेक ीधा नयाँ प रवधन क व भ न अव थाओं म दे खी जा सकती ह ।
ीधानी (Archigonium) ला क के आकार क संरचना है, िजसके आधार म एक
बहु को शक य वृ त होता है । ीधानी दो प ट भाग म वभे दत होती है । िजसका आधार फूला
हु आ भाग अ डधा (venter) व ल बा संकरा ीवा (Neck) कहलाता है । अ डधा पर 2 - 3
को शका तर क जैकेट होती है व अ डधा म एक अ डधा नाल को शका (Venter Canal
Cell) तथा आधार भाग म एक अ ड (Egg) होता है । ीवा एक को शका मोट व छ: उद
को शका पंि तय क बनी होती है, इसम 6 या 8 ीवा नाल को शकाय (Neck Canal Cell)
एक पंि त म यवि थत होती ह । ीधानी ीवा के मु ख पर चार ढ कन को शकाएँ ि थत होती
ह (च 14.6 L)।

278
B-3 नषेचन : युने रया म भी अ य ायोफाइटस क तरह नषेचन के लए जल आव यक
होता है ।
प रप व ीधानी के अ दर वशेष प रवतन होते ह । इसम अ ड को छोड़कर सभी नाल
को शकाएँ लेषमी पदाथ म बदल जाती है। यह ले म जल क उपि थ त म फूलने लगता है ।
इस कार ीधानी के अंदर दबाव बढ़ जाता है । इस दबाव के कारण ढ कन को शकाएँ एक
दूसरे से अलग हो जाती ह और ीवा खु ल जाती है तथा ले म पदाथ ीधानी के ीवा से बाहर
नकलने लगता है । पु ध
ं ानी से वमु त पुमणु ले मी पदाथ म उपि थत शकरा के कारण ीवा
क ओर आक षत होते ह वे ऋ ीवा नाल से होते हु ए अ डधा म वेश करते ह तथा केवल एक
पुमणु अ ड से संयोिजत होकर यु मनज(Zygote) बनाता है । यु मनज अपने चार तरफ
से युलोज भि त ा वत कर न ष ता ड (Oospore) म प रव तत हो जाता है । यह
वगु णत (2n) होता है तथा बीजाणुद भद (Sporophyte) क मातृ को शका के प म काय
करता है।
बोध न 2
1. यु ने रया म जननां ग कहाँ वक सत होते है ।
...................................................................................................
...................................................................................................
2. यु ने रया म पु ं धा नय के साथ पायी जाने वाल त तु मय सं र चनाएँ या ह?
...................................................................................................
................................................................................... ................
3. पु म णु क सं र चना कस कार क होती है ।
...................................................................................................
............................................................................................... ....
4. जननां ग के चार तरफ पायी जाने वाल पण स श रचनाओं को या कहा जाता
है ।
...................................................................................................
........................................................................ ...........................
5. ीधानी के कु ल कतने भाग होते ह?
...................................................................................................
...................................................................................... .............

14.6 बीजाणुद भद ाव था: (Sporophyte phase)


अ ड नषेचन के प चात ् प रव तत न ष ता ड (Oospore) अ डधा (Venter) के अ दर रहता
है, िजसम गुणसू (Chromosomes) क सं या वगु णत (Diploid) होती है, इस तरह एक
नई पीढ़ क शु राआत होती है, िजसे बीजाणुद भद (Sporophyte) ाव था कहते ह । यूने रया
का बीजाणुद भद जल व भोजन के लए यु मकोद भ पर आ त रहता है ।

279
14.6.1 पोरोगो नयम का प रवधन (Development of Sporogonium)
न ष ता ड वभािजत होकर आ का नमाण करता है । न ष ता ड क धीरे - धीरे आमाप
(Size) म वृ होती है । यह अनु थ वभाजन वारा वभािजत होकर एक ऊपर अ याधर
को शका (Epibasal cell) तथा नचल को शका (Hypobasal cell) का नमाण करती है
(च -B) इसके साथ ह अ डधा/जैकेट क को शकाएँ स य होकर ू ण के चार तरफ एक र क
आवरण बनाती ह, िजसे गोपक (Calyptra) कहा जाता है । दोन ह को शकाओं म अब दो - दो
तयक भि तयाँ इस कार बन जाती ह क एक - एक शीष थ को शका (Apical cell) दोन
तरफ बन जाती है ( च - D) । नचल अ थ को शका बार बार वभािजत होकर
पोरोगो नयम का पाद (Foot) व वृ त या सीटा (Seta) का आधार भाग का नमाण करती है।
ऊपर शीष को शका स पुट (Capsule) व सीटा के ऊपर भाग का नमाण करती है ( च - E -
F)।

च 14.7 : A – F बीजाणु जनक प रवधन;


B - F बीजाणुजनक प रवधन क ारि भक अव थाय
14.6.2 स पुट प रवधन (Development of Capsule) ( च 14.8)
स पु टका का प रवधन ऊपर शीष को शका से होता है । शीष को शका म थम उद वभाजन
से दो समान आकार क को शकाएँ बनती ह ( च - A)।
पुन : उद वभािजत हो जाती ह । इस कार इस अव था म ण
ू म चार को शकाएँ होती ह ।
(च - B) इन चार को शकाओं म एक - एक प रन लक (Periclinal) वभाजन होता है,
िजसके फल व प चार के य अ त थी सयम को शकाएँ (Endothecium cells) तथा चार
बा य ब ह थी सयम को शकाएँ (Amphithecium) म वभे दत होती ह । इस तरह ण
ू आठ
को शक य (Octant) हो जाता है ।

280
ब ह थी सयम क को शकाएँ अपन तक भि त वारा वभािजत होकर आठ को शकाओं का नमाण
करती ह । इस अव था म अ त थी सयम क चार को शकाएँ ब ह थी सयम क आठ को शकाओं
से घर रहती हँ ( च - C -D)।
ब ह थी सयम तथा अंत थी सयम ू ण क दो मूलभूत परत ह, िजनसे स पुट (Capsule) के
व भ न भाग का वकास होता है । ब ह थी सयम क को शकाएँ प रन तक भि त वारा
वभािजत होकर आठ - आठ को शकाओं क दो समकेि क परत का नमाण करती ह, िजनक
भीतर आठ को शकोओं को थम वलय कहा जाता है । ( च F)
बाहर परत क आठ को शकाओं म अपन तक (Anticlinal) वभाजन होता है, िजससे 16
को शकाओं का नमाण होता है, त प चात ् इनम प रन तक वभाजन होता है, िजससे 16 – 16
को शकाओं के दो तर बनते ह, िज ह वतीय वलय (Second ring) कहा जाता है ( च .-F-
G) ।
बाहर परत पुन : अपन तक व प रन तक वभाजन वारा 32-32 को शकाओं क दो तर का
नमाण करती ह इसक भीतर परत तृतीय वलय (Third ring) कहलाती है ( च H) ।
32 को शकाओं क बाहर परत म पुन: एक प रन तक वभाजन होता है, िजससे मश: चतुथ
(Fourth) व पंचम (Fifth) वलय का नमाण होता है । ( च I)
थम वलय (First ring) क को शकाओं म अपन तक तथा प रन तक वभाजन के वारा 32
को शकाओं का नमाण होता है । यह को शकाएँ तर य बा य बीजाणु कोष भि त (Outer
spore sac wall) का नमाण करती ह ।
वतीय वलय (Second ring) क को शकाय वभािजत होकर ल बी हो जाती ह, िजसके
फल व प इनके बीच वायु थान (Air space) वक सत हो जाते ह । येक 2 से 3 बार
वभािजत होकर एक 3-4 को शक य त तु बनाती है, यह त तु बाहर बीजाणु कोष भि त स पुट
भि त से जु ड़ा रहता है । इन त तु ओं को े बीकु ल (Trabeculae) कहते ह ।
तृतीय वलय को शकाएँ वभािजत नह होती ह , वरन ् इनम ह रतलवक वक सत होता है ।
चतुथ वलय क को शकाएँ प रन तक (Periclinal) वभाजन वारा 2-3 रं गह न भि त परत
(Wall layers) बनाती है । िजसे अधः वचा (Hypodermis) कहते ह ।
पंचम वलय क को शकाओं म अपन तक वभाजन वारा मोट भि त यु त बा य वचा का
नमाण होता है, यह उप वचा यु त होती है ।
अ त थी सयम (Endothecium) क चार को शकाएँ तयक प रन तक वभाजन वारा चार
भीतर व आठ बाहर को शकाएँ बनाती ह । चार भीतर को शकाएँ पुन: वभािजत होकर 16
को शक य ति भका-(Columella) का नमाण करती है तथा बाहर आठ को शकाएँ प रन तक
वभाजन वारा दो परत का नमाण करती ह । इनम बाहर पत क को शकाओं के पुन:
वभाजन से सूतक (Archesporium) बनता है तथा आंत रक परत को शकाओं के वभाजन
से आंत रक बीजाणु कोष तर (Innerspore sac wall) का नमाण होता है ।

281
पसू तक को शकाओं म नर तर वभाजन वारा बीजाणु मातृको शकाएँ बनती ह । यह को शकाएँ
वगु णत (Diploid) होती ह तथा अधसू ी वभाजन वारा बीजाणु चतु क (Spore tetrad)
बनाती है।
स मु टका शीष थ छद भाग (Operculum region) का नमाण : ब ह थी सयम क आठ
को शकाएँ वभािजत होकर छ: वलय का नमाण करती ह । इनम बाहर तीन वलय वारा
प रमु ख (Peristome) व भीतर तीन वलय छद (Oprculum) का नमाण करते ह ।
14.6.3 अध: क तका का प रवधन (Development of apophysis)
अध: फ तक े म ब ह थी सयम के पाँच वलय बनते ह, जो वक सत होकर भि त (Wall)
बनाते ह । अ त थी सयम क को शकाएँ वभािजत होकर संवहनी ै ड (Conducting
Strand) बनाती ह । यह सीटा के संवहनी े से नर तरता बनाये रखता है । थम, वतीय,
तृतीय व चतुथ घेरे क को शकाएँ अ तःको श क य ह रतलवक यु त हरे रं ग क होती ह । पाँचव
घेरे क को शकाएँ बा य वचा बनाती ह । यह बा य वचा र व उप वचा यु त होती ह ।

च 14. 8 : A-L स पुट प रवधन; A – D ब ह; थी सयम व अ त:थी सयम का वभेदन


E-I स पुट भाग म पांच ब ह: थी सयम का नमाण
14.6.4 प रप व बीजाणु क संरचना (Structure of Mature Sporophyte)
यूने रया का बीजाणुजनक मादा शाखा के अ त थ सरे पर लगा रहता है । यूने रया के
बीजाणुद भद म तीन भाग होते ह ( च 14.1 A).
पाद (Foot), सीटा (Seta), स पुट (Capsule)
1. पाद (Foot) : यह एक शंकु पी संरचना है, जो ीशाखा के शीष को शकाओं म धँसा
रहता है तथा यु मकोद भद से जल व भोजन का अवशोषण करता है ।

282
2. सीटा (Seta) : यह पतला ल बा वृ त समान रचना है । इसका समीप थ भाग
(Proximal) पाद से जु ड़ रहता है तथा इसका दूर थ भाग (Distal end) स पुट से संल न
रहता है । इसक आंत रक संरचना तने के समान ह होती है ।
बा य वचा : एक तर य होती है तथा इसके ऊपर उप वचा (cuticle) का आवरण पाया जाता
है।
व कुट (Cortex) : मोट भि तयु त को शकाओं का बना होता है तथा यां क शि त दान
करता है।
केि य ड (Central Strand) संवहन का काय करता है ।
सीटा का मु य काय :
(अ) स पुट को वां छत ऊँचाई तक पहु ँचाना
(ब) जल व पोषक पदाथ का संवहन करना
(स) बीजाणु ओं के क णन म सहायता करना

च 14.9 (A) प रप व स पुट का अनुदै य काट (B) को शक य आरे खी (C) सीटा का


अनु थ काट

283
3. स पुट : यह एक नाशपाती के आकार क संरचना है । स पुट को तीन मु य े म
वभे दत कया जा सकता है ( च 14.9)
(1) अधः फ तका (Apophysis)
(2) ावरक (Theca)
(3) ा छदा/ऑपरकुलम (operculum)
(a) अध: क तका : यह स पुट का आधार य (Basal) , ठोस तथा हरा भाग होता है ।
इसक बा य वचा म र पाये जाते ह । र दो र क को शकाओं का बना होता है । बा य
वचा के अ दर ह रतलवक यु त को शकाओं का व कु ट होता है तथा के म संवहन ड होता
है, जो सीटा व तं भका के संवहन ै ड से जु ड़ा रहता है।
(b) ावरक (Theca) : यह स पुट का मु य भाग है, िजसम बीजाणुओं का नमाण होता
है। इसक संरचना न न कार से है:
तं भका (Columella) : यह स पुट का म य भाग है , जो क मृदूतक को शकाओं का बना होता
है । इसक को शकाएँ बं य होती ह तथा भोजन सं ह करती ह । यह नीचे सँकरा व ऊपर क
तरफ चौड़ा होता है ।
(c) बीजाणुकोष (Spore sac) : यह एक बेलनाकार संरचना है, जो क ति भका के चार
ओर ि थत है । बीजाणु कोष क भीतर भि त एक तर य व बाहर भि त 3-4 को शका तर
क होती है । बीजाणु कोष क मातृको शकाएँ वगु णत होती ह व अधसू ी वभाजन वारा
वभािजत होकर चार को शकाओं वाले चतु फलक य बीजाणु चतु क (Spore tetrad) बनाती ह ।
वायुको ठ (Air Chamber) बीजाणु कोष के बाहर चार ओर एक बड़ा वायुकोष होता है । इसके
म य म अनेक को शक य एक पंि तक (Uniseriate) पणह रत यु त (Chlorophyllous) सू
पाये जाते हँ । इन सू को े बीकु ल (Trabeculae) कहते है ।
(d) स पु टका भि त (Capsule wall) :
वायुको ठ के बाहर 4-5 को शका मोट स पू टका बहु तर य भि त होती है । इस भि त म तीन
तर पाये जाते ह
A बा य वचा (Epidermis) : एक को शका मोट सबसे बाहर परत होती है, िजस पर
उप वचा व र पाये जाते ह।
B अध: वचा (Hypodermis) : बा य वचा के भीतर रं गह न को शकाओं के 2-3 तर
पाये जाते ह ।
C काश सं लेषी ऊतक (Photosynthetic) : अध: वचा के नीचे 2-3 को शका मोटा
ह रत लवक यु त मृदुतक तर होता है । इन को शकाओं के बीच म आ तरको श क य अवकाश
(Intercellular spaces) पाये जाते ह ।
(e) ा छद (Operculum) यह स पु टका के शीष थ भाग के ऊपर एक ढ कननुमा
संरचना है । इसका समीप थ भाग ावरक े (Theca region) से संल न होता है, जब क
दूर थ भाग एक च च के प म होता है । यह भाग स पु टका के प रप व होने पर ढ कन क
तरह अलग हो जाता है ।

284
(f) प रमु ख (Peristome) : बीजाणु ओं के वसजन (Discharge) को नयि त करने के
लए स पुट (कै सू ल) के मुख पर व ा छद के ठ क नीचे एक वशेष संरचना होती है , िजसे
प रमु ख (Peristome) कहते ह । प रमु ख म ल बे शंकु प दाँत क दो पंि तयाँ पायी जाती ह,
िजसक येक पंि त म 16 दाँत होते ह । बाहर दाँत क पंि त को बाहर प रमु ख दंत (outer
Peristome teeth) व भीतर पंि त को भीतर प रमु खदंत (innerperistome teeth) कहते
ह । बाहर प रमुख दं त लाल , जब क अ दर के प रमु ख दंत रं गह न व कोमल होते ह । प रमु ख
दं त आ ता ाह होने के कारण बीजाणु ओं के क णन म सहायक होते ह ( च 14.10 A-C)।
(g) वलय (Annulus) छद व ावरक े के बीच एक वलयाकार खाँच होती है, िजसे
रम (rim) कहते ह । इसके ऊपर वल यका (Annulus) होती है, जो ा छद को ावरक से
अलग करती है ।

च 14. 10 (A) प रमु ख द त दशाता हु आ प रप व कै सूल : (B) प रमु ख का सतह भाग


(C) बाहर व आंत रक प रमु ख द त

14.7 स पु टका का फुटन : बीजाणु ओं का क णन (Dehiscence


of Capsule : Dispersal of Spores)
प रप व अव था म स पुट का के य बं य भाग वघ टत हो जाता है । इस कार न मत
गु हका म बीजाणु वतं प से बखरे रहते ह । शु क वातावरण म स पु टका क को शकाएँ
सू खकर सकु ड़ जाती ह, िजससे वल यका (Annulus) फट जाती है व छद ढ कन क तरह
अलग होकर गर जाता है, फल व प प रमुख शु क वायु के सीधे स पक म आते ह । जल
अवशो षत करने पर प रमु ख द त फैले हु ए तथा मु ख को ढके रहते ह । जल के वा पीकरण के
285
कारण शु क वातावरण म यह ऐंठकर सीधे हो जाते ह । इस कार प रमु ख द त क आ ता ाह
ग तयाँ धीरे - धीरे बीजाणु क णन म सहायक होती ह । इन अव थाओं म सीटा भी आ ता
ाह ग तयाँ द शत करता है । शु क मौसम म यह ऐंठता है तथा नम मौसम म ऐंठन खुल
जाती है, इस कारण स पु टका म झटका लगता है व बीजाणु स पु टका से बाहर आते ह तथा
वायु के वारा बीजाणु ओं का क णन होता है ।

14.8 बीज क संरचना व अंकु रण (Spore structure and


germination)
14.8.1 बीजाणु क संरचना
येक बीजाणु, बीजाणु मातृको शका म अ सू ी वभाजन (Meiosis) के कारण बनते ह, अत:
इसम गुणसू (Chromosomes) क सं या अगु णत (Haploid) होती है । यह यु मकोद भद
(Gametophyte) पीढ़ (Generaion) का ार भ है ।
येक बीजाणु का यास 0.012 से 0.020 ममी. तक होता है । बीजाणु भि त बीजाणु
बा यचोल (Exosporium or exine) तथा अंतचोल (Endosporium) म वभे दत होती है ।
बा यचोल कड़ा, चकना व गहरे रं ग का मोटा खोल होता है जब क अंत: चोल पतला कोमल व
काचाभ (Hyaline) होता है । बीजाणु के को शका य म एक के क, तेल क बूँद व
ह रतलवक पाये जाते ह ( च 14.11 A)।

च 14.11 : A बीजाणु, B-C अंकु रत बीजाणु, D- F अंकुरण क मक ाव थाएँ एवं


ाथ मक व वतीयक थम त तु का नमाण
14.8.2 बीजाणु ओं का अंकुरण (Germination of spores)
अनुकू ल प रि थ तय म बीजाणु म अंकुरण होता है । नम भू म पर बीजाणु जल अवशो षत करके
फूलने लगता है, िजसके कारण बा यचोल (Exosporium) फट जाती है तथा अ त: चोल

286
(Endosporium) एक जनन न लका (Germtube) के प म बढ़ती है ( च 14.11 B - C)।
जनन न लका क ती वृ होती है , िजससे एक शा खत, पटयु त त तुल (Filamentous)
बहु को शक य संरचना का नमाण होता है, िजसे ाथ मक थम त तु (Primary Protonema)
कहते ह, यह शैवाल क तरह दखाई दे ती है ( च 14.11 D-E)।
ाथ मक थम त तु से दो कार क शाखाएँ नकलती ह (1) ह रत त तु शाखाएँ (2) आभासी
शाखाएँ ह रत त तु शाखाएँ भू म क सतह पर वृ करती ह व मूलभासी शाखाय रं गह न , संकर
व भू म के अ दर क ओर बढ़ती ह । इनम तयक पट पाये जाते ह । ह रत त तु शाखाओं पर
पा व क लकाये (Buds) वक सत होती ह, जो वृ कर उ व प णल यु मकधर (Leafy
Gametophores) का नमाण करती ह ( च F) । इस कार एक ाथ मक थम त तु से
अनेक यु मकधर बनते ह । यु मकधर के वक सत होने के प चात ् ाथ मक थम त तु
वघ टत हो जाता है ।

14.9 पीढ़ एका तरण (Alternation of Generation)


यूने रया के जीवन काल म दो प ट पी ढ़याँ यु मकोद भ , बीजाणुद भ होती ह, इनम
यु मकोद भद मु य अव था है, जो मूलाभास अ व पण म वभे दत होती है । यह पीढ़ पूण
प से वत , वपोषी (Autotrophic) व बहु को शक य होती है । इस पर पुध
ं ानी
(Antheridia) तथा ीधानी (Archegonia) वक सत होते ह । पु ध
ं ानी व ीधानी शाखाओं के
अ सरे पर मश: वक सत होते ह ।

287
च 14.12 : (1) यूने रया के जीवन च का आरे खी च ण: (2) युने रया का च
क सहायता से दशाया गया जीवन च

288
यु मक (पुमणु व अ ड) के संयु मन से न ष ता ड (oospore) बनता है । इसम गुणसू
सं या वगु णत (Diploid) हो जाती है, जो एक नई पीढ़ का नमाण करती है, िजसे
बीजाणु द भद कहते ह ।
न ष ता ड वभािजत होकर बहु को शक य ण
ू (Embryo) बनाता है, जो प रव धत होकर
आं शक परजीवी पोगो नयम
का नमाण करता है । पोरोगो नयम म अगु णत (Haploid) बीजाणु बनते ह । यह बीजाणु
अंकु रत होकर थम त तु का नमाण करते ह, िजस पर प णल यु मधर का वकास होता है ।
इस कार उपरो त ववरण से प ट होता है क अगु णत यु मकोद भद व वगु णत -
बीजाणु द भ यूने रया के जीवन
च म एका तर म म आते हँ, िजसे पीढ़ एका तरण (Alternation of Generation) कहते
ह ।
बोध न
1. यू लने रया के बीजाणु जनक के भाग के नाम बताइये ।
............................................................................................
............................................................................................
2. ब ह थी सयम से कतने वलय क उ पि त होती है ?
............................................................................................
............................................................................................
3. अ त थी सयम से समु ट का कौन सा भाग बनता है ?
............................................................................................
............................................................................................
4. यू ने रया के स पु ट का कौन सा भाग फलद (Fertile) हे ?
............................................................................................
............................................................................................
5. बीजाणु कस अव था को दशाते ह?
............................................................................................
............................................................................................
6. यू ने रया म कतने प रमु ख द त पाये जाते ह?
..................................................... .......................................
............................................................................................
7. प रमु खद त का वभाव या है ?
........................................................................................... .
............................................................................................
8. स पु ट के शीष पर ि थत ढ कननु मा सं र चना का नाम बताइये ।
............................................................................................

289
............................................................................................
9. ाथ मक थम त तु क सं र चना बताइये ।
............................................................................................
....................................... .....................................................

14.10 सारांश
1. नम व छायादार भू म म ये पादप पाये जाते ह ।
2. यु मकोद भद म मू लाभास तना (अ ) व पण म वभेदन होता है ।
3. मू लाभास भूरे रं ग के बहु को शक य तरछे पटयु त होते ह ।
4. यह पौध को था पत करने म व अवशोषण का काय करते ह ।
5. तना, पतला, ल बा व सीधा होता है ।
6. पि तयाँ अ पर स पल म म यवि थत, छोट , सरल ह रतलवक यु त, अवृ त अ डाकार
संरचनाय ह ।
7. अ क आंत रक संरचना म बा य वचा, व कुट व के य ड का वभेदन होता है ।
8. जनन दो कार का : का यक, लंगी
9. का यक जनन ाथ मक थम त तु, वतीयक त तु जैमी व क लकाओं वारा होता है ।
10. लंगी जनन : पुध
ं ानी व ीधानी, यह अलग-अलग शाखाओं के सर पर समू ह म वक सत
होते ह । पुध
ं ानी म पुमणु व ीधानी म अ डप पाया जाता है ।
11. पुमणु व अ डप के नषेचन से न ष ता ड बनता है व इसके वभाजन से ण
ू बनता है ।
12. ू ण म प रवधन से पाद (Foot), सीटा (Seta) व स पु टका (Capsule) का नमाण होता
है ।
13. स पु टका म बीजाणु मातृकोष म अधसू ी वभाजन वारा बीजाणु क उ पि त होती है ।
14. यह बीजाणु पुन : अंकु रत होकर यु मकोद भद का नमाण करते ह ।
15. इस कार युने रया के जीवन च म यु मकोद भद (अगु णत) व बीजाणुजनक ( वगु णत)
ाव था एका तर म म आती है ।

14.11 श दावल :
अ त थी सयम : त ण बीजाणु जनक क भीतर पत
अ तराको शक य अवकाश : दो को शकाओं के म य पाये जाने वाला र त थान
एका यी : एक पौधे पर एक ह कार के जननांग (नर या मादा) पाये जाते ह ।
पाइर नॉइड : ह रतलवक म पायी जाने वाल टाच सं लेषण करने वाल संरचना ।
बीजाणु चतु क : मातृको शका के अधसू ी वभाजन वारा बनने वाल चार बीजाणु ओं का समू ह
यु मकोद भद : कसी पादप क यु मक बनाने वाल पीढ़
र : बा य वचा म ि थत व र क को शकाओं से घरे वायु छ
स पुट : पोरोगो नयम का बीजाणु उ प न करने वाला भाग

290
पोरोगो नयम : ायोफाइटस म नषेचन से. उ प न वगु णत बीजाणु उ प न करने वाल
संरचना ।

14.12 संदभ थ
जी.पी शमा शैवाल, लाइकेन एवं ायोफाइटा, सा ी पि ल शंग हाउस, जयपुर ।
जे.पी. सैनी, कैलाश अ वाल, मंजु ला के. स सैना, अंजल
ु ा यागी सू मजैवीय एवं अपु पो द
व वधताय ।
एन.एस. प रहार इ ोड शन टू ए ीयोफाइटा, अंक (1) ायोफाइटा - से ल बुक डपो,
इलाहाबाद ।
संह, पा डे एवं जैन. सू म जैवीय एवं अपु पो व वधताय । र तोगी पि लकेश स, मेरठ ।

14.13 बोध न के उ तर
बोध न 1
(1) यूने रया क वग कृ त ि थ त न न कार से है
ड वजन  ायोफाइटा
वग  ायोि सड़ा
उप वग  यू ाया
गण  यूने रएल ज
कु ल  यूने रयेसी
जा त  यूने रया
(2) मू लाभास पादप को था पत करने म व भू म से जल व भोजन के अवशोषण म सहायक होते
ह ।
(3) इसका मु य अ 1 - 3 से.मी. ऊँचा, उ व व बेलनाकार संरचना है ।
(4) यूने रया सामा यत: नम व छायादार जगह पर पाया जाता है ।
बोध न 2
(1) यूने रया के जननांग नर शाखा के शीष पर समू ह म बं य सहसू के साथ समूह म लगे
रहते ह । नर जननांग को पु ध
ं ानी कहा जाता है ।
अ डधा नयाँ ी शाखा के शीष पर समू ह म सहसू के साथ लगी रहती ह ।
(2) पु ध
ं ा नयो के साथ पाये जाने वाल बं य संरचनाओं को सहसू कहा जाता है । सहसू 4 - 5
को शका ल बी धागे के समान रचना है ।
(3) येक पुमणु (Antherozoid) चल (Motile) वकशा भक य (Biflagellate) कु ड लत
(Coiled) स पल (Spiral) आकार वाल संरचनाएँ ह ।
(4) पु ध
ं ानी घर (नर शाखा) व ीधानीधर के शीष पर पि तयाँ जननांग को घेरे रहती ह, िज ह
सहप या प र लंगधानी प (Involucre leaves or Perichaetial leaves) कहा जाता
है।

291
(5) ीधानी एक ला क के आकार क संरचना है, िजसके आधार पर एक छोटा बहु को शक य
वृ त होता है । इसका फूला हु आ आधार अ डधा (Venter) तथा ल बी सँकर ीवा होती है।
बोध न 3
(1) बीजाणुजनक पाद (Foot), सीटा (Seta) व स पुट (Capsule) का बना होता है ।
(2) ब ह थी सयम से 5 वलय बनते ह
थम वलय  8 को शकाएँ
वतीय वलय  16 को शकाएँ
तृतीय वलय  32 को शकाएँ
चतुथ वलय  32 को शकाएँ
पंचम वलय  32 को शकाएँ
(3) अ त थी सयम क को शकाओं से को यूमेला का नमाण होता है ।
(4) बीजाणुकोष स पुट का फलद भाग है ।
(5) बीजाणु अगु णत होते ह व इनसे यु मको द भद बनता है ।
(6) प रमु ख द त क सं या 32 होती है व ये दो वलय म यवि थत रहते ह ।
(7) प रमु खदंत आ ता ाह होते ह व बीजाणु ओं के क णन म सहायक होते ह ।
(8) स पुट के शीष पर ढ कननुमा संरचना को छद (Operculum) कहते ह ।
(9) ाथ मक थमत तु धागे के समान बहु को शक य शा खत, एक को शका मोट , ह रतलवक
यु त संरचना है , इनका नमाण बीजाणुओं के अंकुरण से होता है ।

14.14 अ यासाथ न
(1) यूने रया संपटु का स च वणन क िजये ।
(2) यूने रया यु मकोद भद का वणन क िजये ।
(3) यूने रया म पीढ़ एका तरण को च क सहायता से समझाओ ।
(4) न न ल खत पर सं त उ तर द िजये
(a) तने/मु य अ क आंत रक संरचना ।
(b) का यक जनन ।
(c) नर- शाखा के अ भाग का उद काट ।
(d) प रमु ख दं त ।
(e) बीजाणुओं का क णन ।

292
इकाई 15 : शैवाक या लाइके स
इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 वतरण व आवास
15.3 वग करण
15.4 संरचना
15.5 जनन
15.6 नषेचनोपरांत प रवतन
15.7 फलनकाय
15.8 बीजाणुओं का क णन
15.9 आ थक मह व
15.10 सारांश
15.11 श दावल
15.12 संदभ थ

15.13 बोध न के उ तर
15.14 अ यासाथ न

15.0 उ े य
(1) व भ न कार के दो पादप घटक से बने लाइकेन थैलस के जीवन च क व तृत
जानकार ा त करना।
(2) लाइकेन क आ थक व पा रि थ तक महल क संपण
ू जानकार ा त होना ।

15.1 तावना
वालामुखी पवत से नकले लावा अथवा च ान के टु टने से बना, अि न या पवन के कारण बना
ऐसा े जहाँ अ य वन प त वक सत नह ं होती ह लाइकेन के लये उपयु त े होता है ।
ऐसे े म लाइकेन पुरोगामी (pioneer) पादप के प म वक सत होते ह तथा अनु म का
ार भ करते ह ।
ऐसी न न च ान पर जहाँ मृदा क कमी हो उ च ताप म हो तथा पोषण नग य हो वहां
सव थम पपट मय लाइकेन वक सत होते ह । लाइकेन अनेक कार के काब नक अ त (जैसे
ऑ से लक अ त) उ सिजत करते ह िजनके कारण च ान का वघटन होता है इसके फल व प
मृदा का काय करते है जो क अ य पादप के वकास के लये उपयोगी होती है ।
लाइकेन उपयोग का योग दूज (Perfume) तथा अ य पदाथ को बनाने म कया जाता है ।
यह योगशालाओं म कवक व जीवाणु ओं के संवघन मा यम के मु य घटक है । लाइकेन म
एि टबायो टक पदाथ पाये जाते ह । यह एि टबायो टक ाम पॉजी टव जीवाणु ओ,ं फफूं द व

293
वषाणु ओं के लये भावकार ह । लाइकेन से ा त अि नक अ त एक ाड पै म (Broad
speetrum) एि टबायो टक है । इस कार लाइकेन हमारे दै नक जीवन म अ त उपयोगी पादप
है ।
शैवाक या लइके स (Lichens)
लाइकेन श द का योग थयो े टस (Theophrastus 371-284 B. C.) ने वृ क छाल पर
पायी जाने वाल अ त र त वृ य के लये कया था ।
लाइकेन का थैलस शैवाल व कवक के साहचय से बना होता है िजसम कवक घटक को
माइकोबायो ट (mycobiont) व शैवाल घटक को फाइकोबायो ट (Phycobiont) कहते ह ।
लाइकेन के थैलस म कवक घटक मु य होता है एवं शैवाल घटक अपे ाकृ त गौण होता है ।
कवक भाग थैलस के नमाण म सहायक होता है तथा शैवाल को आवास दान करने के साथ -
साथ वषम प रि थ तय जैसे ताप शु कता से र ा करता है । थैलस के कवक भाग म जनन
मता पायी जाती है । थैलस का शैवाल घटक कवक को जल व ख नज पोषण दान करता है ।
इस कार के पार प रक सहजीवन के कारण यह पादप तकू ल प रि थ तय म भी अपना जीवन
च आसानी से पूरा कर लेता है ।
लाइकेन म मु यत : लोरोफाइसी वग क शैवाल बो सीया (Trebauxia), े ट फो लया
(Trentipholia) तथा म सेफाइसी वग क शैवाल कैलो थ स (Calothrix) ोटोकोकस
(Protococcus), नॉ टाक (Nostoc) व र युले रया (Rivularia) पायी जाती है । कवक घटक
म मु यत: ए कोमाइ सट ज, बेसीडोमाइ सट ज, ड ोमाइ सट ज के सद य होते है।

15.2 वतरण व आवास (Distribution & Habitat)


लाइकेन व व यापी है ये ु वीय दे श (Polar region) से लेकर वषुव ृत दे श (equatorial
regions) तक के व वध आवास म पाये जाते है । इनके 400 वंश व 1600 से अ धक
जा तयाँ है । सामा यत: ये पादप च ान , द वार , वृ क छाल , वालामुखी का ठं डा लावा ,
ु वीय - दे श के बफ ले मैदान म पायी जाती ह । लेडो नया- रे जीफेर टना (Cladonia-
rangiferina) ु वीय दे श म पाया जाता है िजसे रे डीयर माँस (Reindeer moss) भी कहते
ह । पे ट जेरा मारगे सया (Peltigera margacea) जैसी जा तयाँ समु म पायी जाती ह ।
भारतवष म लाइकेन मु यत: हमालय े म अ धक पाये जाते है । राज थान म यह आबू
पवतीय े म पाये जाते है । भारत म पाये जाने वाले मु ख शैवाल लेडो नया (Cladonia),
े फस (Graphis), गायरोफोरा (Gyrophora), अि नया (Usnea) तथा पे ट गेरा
(Peltigera) है । चौपड़, अव थी तथा भा टया ने भारतीय शैवाको पर मह वपूण शोध काय
कया ह । च ान पर पाये जाने वाले शैवाक को म ी नमाता (Soilbuilders) अथवा कृ त के
कसान (Farmers of nature) क सं ा भी जाती है ।
आवास के आधार पर लाइकेन को न न कार से वभे दत कया जा सकता है ।
वृ वासी (Arboreal) : का ट पि तय व श क पर पाये जाते ह । उदाहरण : पाइर नुला
व कवासी (Corticolous) : वृ क छालो पर पाये जाते ह उदाहरण पारमी लया (Parmelia)

294
शलावासी (Saxicolous) : च ान , शलाखंड तथा प थर पर पाये जाते ह । उदाहरण :
उमटोकप न (Dermatocarpon)
भू मवासी (Terrilolous) : भू म पर पाये जाने वाले शैवाक उदाहरण लोडो नया
सववासी (Omnicolous) : व वध आवास जैसे चमड़े, अि थ, मृत सड़े गले पदाथ पर पाये
जाने वाले ।
जल य (Aquatic) : जल म पायी जाने वाल च ान पर । उदाहरण पे ट जेरा (Peltigera)

15.3 वग कृ त (Classification)
वा प तक नामकरण क अ तरा य नयम प त के अनुसार इ ह वतं वग म रखा गया है।
जैहल क
ु वर (1907) ने लाइकेन के कवक घटक व फलनकाय क आकृ त के आधार पर दो भाग
म वभािजत कया है ।
15.3.1 ए कोलाइकेन (Ascolichen)
(1) इनम कवक घटक ए कोमाइ सट ज वग का सद य होता है फलन पंड क संरचना के आधार
पर इ ह दो े णय म बांटा गया है ।
(a) िज नोकाप (Gymnocarpae) : इनम फलनकाय लेटनुमा एपोथी सयम (Apoythecium)
होता है । उदाहरण : पारमे लया
(b) पाइ रनोकाप (Pyrenocarpae) फलनकाय ला क स य पेर थी सयम (Perithecium)
होता है । उदाहरण डमटोकारप न (Dermatocarpon)
(2) बेसी डयोलाइकेन (Basidiolichens) इन लाइकेन का कवक घटक बेसी डयोमाइ सट ज़ वग
का सद य होता है । कोरे ला (Corella), ड टोयो नमा (Dictyonema) आ द इसके
उदाहरण ह ।
15.3.2 एले सोपोलस तथा म स (Alexopoulos and Mims): म लाइकन को तीन भाग
म बाँटा है ।
(i) ए कोलाइकेन
(ii) बेसी डयोलाइकेन
(iii) यूटेरोलाइकेन / लाइकेन - इ परफेकटाई
शैवाल घटक के आधार पर लाइकेनो को दो समू ह म बाँटा गया है ।
(iv) समावयवी (Homeomerous) : इन लाइकेन थैलस म कवक घटक म म य शैवाल घटक
समान प से यवि थत रहते है । उदाहरण. कोलेमा (Collema) इफ बी (Ephebe)
(v) वषमावयवी (Heteromerous) : इनम शैवाल घटक कवक तंतओ
ु ं के बीच असमान प से
यवि थत रहते है । उदाहरण. पारमे लया (Parmelia)

295
15.4.1 बा य आका रक (External Morphology)
लाइकेन के थैलस म व भ न कार के वणक पाये जाते ह िजससे इनका रं ग नीला, हरा, नारं गी
लाल या भू रा होता है । इनके थैलस म आकृ त व संरचना मक व वधताएँ पायी जाती है । बा य
आका रक के आधार पर लाइकेन को तीन समू ह म बांटा गया है ।

च 15.16. मु ख कार के लाइकेन (lichen) थैलस: A. पपट य लाइकेन


(Crustose lichen); B.लाइकेन क सतह पर उपि थत फलन प ड C. प णल लाइकेन
(Foliose lichen) D. ु पल लाइकेन (Fruticose lichen), E. ु पल लाइकेन
(Fruticose lichen) अि नया (Usnea) क बा य संरचना
(a) पपट मय लाइकेन (crutose) : इस कार के लाइकेन का थैलस चपटा कठोर व
पपडीनुमा होता है तथा यह थैलस अपने अ पव धत कवक जाल के वारा आधार थल म वेश
कर च ान या वृ क छाल से ढ़तापूवक जु ड़ा रहता है । कुछ पपट मय लाइकेन का थैलस
च ान या वृ क छाल म पूण या आं शक प से घंसा रहता है । इन थैलस का प रमाण
(size) आल पन के उपर सरे (pinhead) से लेकर कई इंच यास तक का हो सकता है । यै
थैलस सामा यत: भू र,े लाल, धू सर, पीले व गुलाबी रंग के होते है । उदाहरण ह मेटोमा
(Haematoma) लेसी डया (Lecidia), ा फस (Graphis)
(b) प णल लाइकेन (Foliose Lichens) ये थैलस चपटे , पि तय के समान व पा लत
(lobed) होते है इनम पा लयां नय मत होती है । थैलस क नचल सतह मू लाभास के समान
कवक तंतु उ प न होते है िज ह राइजीन (Rhizines) कहा जाता है । इनक सहायता से थैलस
अधो तर से चपका रहता है । कु छ प णल लाइकेनो म राइजीन एक दूसरे से जु ड़कर एक
लेटनुमा संरचना बनाते ह । यह ले टनुमा संरचना ले म ा वत करती है िजससे यह अधो तर

296
से चपके रहते है । यह थैलस ाय: गहरे भू रे रं ग के होते है । उदाहरण : कोलेमा (Collema)
गायरोफोरा (Gyrophora) पारमे लया (Parmelia) इ या द ।
(c) ु पल लाइकेन (Fructicose Lichens) : इनका थैलस बेलनाकार, शा खत तथा झाड़ी
नुमा होता है । इनक चपट , बेलनाकार शाखाओं म उ व वृ होती है इनक शाखाय रो मल तथा
पण जैसी होती है । इस कार के थैलस अधो तर से एक आधार ले म ड क क सहायता से
चपके रहते है । उदाहरण : एले टो रया (Alectoria), लेडो नया (Cladonia), अि नयां
(Usnea) इ या द ।

च 15.2. लाइकेन (lichen) आ त रक संरचना A. वषमावयवी लाइकेन


(heteromerou lichen) : B. समावयवी लाइकेन (homogenous lichen)
15.4.2 आंत रक संरचना (Internal Structure)
लाइकेन का थैलस कवक व शैवाल घटक से न मत होता है अत: इस कार के थैलस को संकाय
(consortium) कहते है ।
थैलस क आंत रक संरचना म चार प ट े दखायी दे ते है ( च 15.2) ।
(a) ऊपर बा य वचा (Upper epidermis) : यह थैलस क उपर सतह कवक क बनी
एक तर य बा य वचा होती है इस तर क को शकाओं के बीच म कह -ं कह ं वसन छ
(Breathing pores) पाये जाते है िजनके वारा गैस का व नमय होता है ।
(b) ऊपर व कुट (upper cortex) : यह मोट सु र ा मक परत है । इस भाग म कवक त तु
पर पर संघन ं कर आभासी मृदुतक (pseudo parenchymatous) ऊतक का
प से गु थ
नमाण करते है । इस े म अ तकोशक य अवकाश नह ं पाये जाते है अथवा बहु त थोड़े
पाये जाते ह । यह े लेि मक पदाथ (mucil agenous substance) से भरे रहते है ।

297
(c) शैवाल े (Algal zone) : यह े नीले हरे या हरे रग का होता है जो ऊपर व कु ट के
नीचे पाया जाता है । इस भाग म कवक त तु दूर-दूर ढ ले गु थ
ं े हु ये रहते है िजनके बीच म
शैवाल को शकाएं यवि थत रहती है । कु छ लाइकेन क जा तय के थैलस म कवकसू ो से
चुषकांग उ प न होते है जो शैवाल को शकाओं म वेश कर पोषण पदाथ का अवशोषण करते
ह । यह े थैलस का काश सं लेषी भाग है िजसे गोनी ड़यल परत (Gonidial layer) भी
कहा जाता है ।
लाइकेन थैलस म मु यत: नील ह रत शैवाल (साइनोफइसी) या ह रत शैवाल ( लोरोफाइसी) वग
के सद य पाये जाते है ।
शैवाल वग क उपि थ त के आधार पर लाइकेन को तीन वग म बाटा जा सकता है ।
(1) साइनोफाइको फलस (Cyanophycophillous) यह भाग नील ह रत शैवाल या
सायनोबे ट रया का बना होता है,
उदाहरण नॉ टाक, साइटोनीमा, र युले रया, ि लओके स ।
(2) लोरोफाइको फलस (Chlorophycophillous) थैलस म शैवाल घटक के प म ह रत
शैवाल ( लोरोफाइसी) वग के सद य पाये जाने है ।
उदाहरण ाटोकोकस, स टोकोकस आ द ।
(3) डाइफाइको फलस (Diphycophillous) इस कार थैलस म नील ह रत व ह रत शैवाल
दोन ह वग के घटक पाये जाते है ।
लाइकेन थैलस म शैवाल को शकाएँ कवक त तु के बीच म समान प से यवि थत रहती है तो
इरा कार का थैलस समावयवी (Homoisomerous) कहलाता है । उदाहरण कॉल मा
(Collema) य द शैवाल सु प ट परत के प म यवि थत रहती है तो थैलस वषमावयवी
(Heteromerous) कार के कहलाते है ।
(d) म जा (Medulla) यह थैलस का के य या म य म ि थत बड़ ै है । इस भाग म
कवक -त तु ढ ले गुथे हु ए रहत है िजसके कारण इस भाग म बड़े अवकाश (spaces) पाये जाते
ह । इस े म कवक तंतु ल बवत यवि थत रहते है ।
(e) नचला व कु ट (Lower cortex) इस परत म कवक- तंतु सघन प से तथा थैलस
सतह के समाना तर यवि थत होते है । इसक नचल सतह से राइजीन (rhizine) उ प न होते
ह िजनक सहायता से थैलस अधो तर से चपका रहता है ।
15.4.3 लाइकेन थैलस क सतह पर पाई जाने वाल संरचनाएँ (Structure found on the
thalli of lichens):
लाइकेन थैलस क सतह पर अलग- अलग तरह क का यक संरचनाय पायी जाती है । कुछ मु ख
संरचनाएँ न न कार से है ।
(a) वसन छ : प णल लाइकेन क कुछ जा तय म उपर बा य वचा क को शकाओं के
बीच म छ पाये जाते ह िज ह वसन छ कहते ह । इस भाग म कवकतंतु ढ ले रहते है
यह छ थैलस क सतह पर शंकु पी उभार के प म अथवा सामा य सतह के बराबर पाये
जाते है । छ के आंत रक भाग म ऊतक म जा के समान होते है ( च 4 A, B)।

298
(b) सफेलो डया (Cephaldlia) : कुछ प णल लाइकेन म थैलस क सतह पर छोट , गहरे रं ग
क कठोर, व म से के समान संरचनाएँ उ प न होती है इनको सफेलो डया कहते है ।
सफेलो डया म कवक भाग थैलस के समान होता है पर तु शैवाल भाग भ न होता है । इन
संरचनाओं का थैलस से कसी कार का संबध
ं नह ं होता है ( च 4 C)।
(c) इसी डया (Isidia) यह थैलस क ऊपर सतह पर पर सू म सवृ त काले व घूसर रं ग क
संरचनाएँ है । येक इसी डया म बा य व कु ट तर व शैवाल भाग थैलस के समान होता
है। ये लाइकेन थैलेस के काश सं लेषी े को बढ़ है । इनका आकार छड़ नुमा (rod like-
parmelia), कोरल समान (coral like-peltigera) केल स य (scale like-collema)
अथवा सगार समान (cigar like-usnea) होता है ।

च 15.3 : लाइकेन थैलस पर पाइ जाने वाल व श ट संरचनाय A. थैलस का य वसन


छ दशाता हु आ : B. थैलस का काट वसन छ दशाता हु आ; C. सफेलो डयम : D.
सफेल : E. इसी डया : F. सोर डयम
(d) सोर डया (Soredia), यह सू म गोल चपट छोट क लकाएँ अथवा क णका जैसी
अ तवृ यां है । येक सोर डयम म एक या एक से अ धक शैवाल को शकाएँ कवक तंतओ
ु ं से
आव रत रहती है एवं थैलस क सतह पर सफेद या भू रे हरे रं ग क क णकामय परत बनाती है व
मातृ थैलस से हवा या वषा के कारण अलग होकर नये थैलस के नमाण म स म होती है ।

15.5 जनन (Reproduction)


लाइकेन म जनन तीन व धयो के वारा होता है ।

299
15.5.1 का यक जनन (Vegetative -Reproduction)
(a) वख डन : (Fragmentation) : थैलस का ख डन थैलस के आकि मक छने अथवा इसके
पुराने भाग क मृ यु अथवा गलन के कारण होता है । येक ख ड वभािजत होकर नये
थैलस का नमाण करता है ।
(b) सोर डया (Soredia) : यह थैलस सतह पर गोलाकार क णका या क लका पी अ तवृ यां
ह िजनम एक या एक से अ धक शैवाल को शकाएं कवक तंतु से प रब रहती है । यह
संरचनाय अनुकू ल प रि थ त म मातृ थैलस से अलग होने के प चात ् अंकु रत होकर नया
थैलस बनाते है ( च 15.3 F)।
(c) इसी डया (Isidia) यह लाइकेन थैलस क सतह पर शंकुकार अथवा गोलाकार संरचनाएँ है व
मातृ थैलस से अलग होने के प चात अनुकूल वातावरण म नये पादप के नमाण म स म
होती है ( च 15.3 E)।
15.5.2 अल गक जनन (Asexual-Reproduction)
अल गक जनन कवक घटक से प नी डय बीजाणु (Pynidiospores) के वारा होता है । ाय:
ए कोलाइकेन वग के सद य म थैलस क उपर सतह पर फला क के समान अ त : था पत
प नी डयम (Pycnidium) वक सत होते ह । यह प नी डयम एक छ या ओि टऑल
(ostiole) वारा बाहर क ओर खुलते ह । प मीडीयम क भीतर भि त के कवक त तु
पांत रत होकर प वीयोफोर उ प न करते है । प नीयोफोर के शीष पर प नी डयो बीजाणु
(Pycnidiospores) उ प न होते है यह बीजाणु अंकु रत होकर नया कवकतंतु बनाते है तथा यह
कवक त तु शैवाल को शकाओं के संपक म आते है तब नया लाइकेन थैलस बनाते है ।
15.5.3 ल गक जनन (sexual Reproduction)
लाइकेन म ल गक जनन कवक घटक वारा होता है । अ धकांश लाइकेन म कवक घटक
ए कोमाइ सट ज वग के सद य है अत: इनम ल गक जनन ए कोमाइ सट ज वग के सद य के
समान होता है ।
ी जननांग काप गो नयम (Carpogonium) तथा नर जननांग पम गो नयम
(Spermogonium) कहा जाता है।

300
च 15.4 : लाइकेन (licen) जनन संरचनाएं A. पम गो नया (Spermogonia) : B.
काप गो नया (Carpogonia)
(a) पम गो नयम (Spermogonia) यह फला कनुमा सरंचनाएँ थैलस क उपर सतह पर घंसी
हु ई होती है एवं बाहर क ओर एक छ (Ostiole) वारा खु लते है । इनक गुहा म बं य व
फलद कवक सू पाये जाते ह । फलद (Fertile) सू के शीष पर गोलाकार सु म संरचनाय
उ प न होती ह । िज ह पम शयमं (spermatium) कहते ह । ये अ य धक सं या म
उ प न होते है तथा नरयु मक का काय करते ह । प रप व होने पर पम शया ले मी
पदाथ के साथ ओि टओल (ostiole) छ वारा बाहर नकलते ह ( च 15.4 A)।
(b) काप गो नयम (Carpogonium) : यह एक बहु को शक य संरचना है िजसका आधार भाग
कं ु ड लत होता है । िजसे ए कोगो नयम कहते है तथा इसका ऊपर भाग बहु को शक य
न लकाकार होता है, िजसे ाइकोगाइन (Trichogyne) कहते है । काप गो नयम क उ पि त
म जा के कसी भी कवक से हो सकती है तथा इसका ए कोगो नयम वाला भाग म जा े
म धंसा रहता है व ाइकोगाइन थैलस क सतह से बाहर नकला रहता है ( च 15.4 B)।
(c) नषेचन (Fertilization) पम शया मु त हो जाने के प चात ् ाइकोगाइन के उपर भाग से
चपक जाते ह । इन दोन के बीच क भि त गल जाती है व पम शया क अ तव तु एं
ाइकोगाइन के अंदर वेश कर जाती है । पर तु यह प ट नह ं कहा जा सकता है क इन
दोन का संलयन होता है या नह ं ।

15.6 नषेचनोपरांत प रवतन (Post-Fertilization changes)


काप गो नयम म न न प रवतन होते है -

301
ाइकोगाइन धीरे - धीरे न ट हो जाती है । ए कोगो नयम से अनेक ए कोजन तंतु वक सत होते
है । ए कोजन तंतु ओं के शीष पर हु क या ोिजयर (Crozier) का नमाण होता है व िजनसे
एसाई (Asci) प रव धत होती है ।
ए कस के दोन के क संयोिजत होकर एक वगु णत के क बनाते है त प चात ए कस का
वगु णत के क अधसू ी तथा समसू ी वभाजन वारा आठ ए कोबीजाणु (Ascospores)
बनाते ह ।
ऐसाई व ए को जन कवक त तु ए कोगो नयम के चार ओर ि थत का यक कवक सू स य
होकर एक फलनकाय (Fruiting Body) बनाते ह । लाइकेन म फलनकाय एपोथी सयम या
पेर थी सयम कार का होता है ।

15.7 फलनकाय (Fruiting Body)


15.7.1 एपोथी सयम (Apothecium)
एपोथी सयम एक कप या याल नुमा गोलाकार संरचना है । यह संरचना ए कोमाइ सट ज म पायी
जाने वाल फलनकाय एपोथी सया के समान होती है । ले डो नया (cladonia) पारमी लया
(Parmelia) एवं लेसी डया (Lecidia) म इस कार के फलनकाय जाये जाते ह । इनका रं ग
लाल, भू रा, पीला, गुलाबी या काला होता है । लेसी डया तथा लेडो नया म एपोथी सयम केवल
कवक तंतु ओं का बना होता है जब क फाइ सया व पारमे लया के एपोथी सयम म कवक घटक के
साथ- साथ शैवलांश भी पाया जाता है ।
एपोथी सया क संरचना म मु य दो भाग ह - (1) ड क 7 ब ब (2) कोर
इसके ल बवत ् काट म न न भाग होते है ।
(a) हाइमी नयम (Hymenium) : यह एपोथी सयम का बाहर , फलद भाग है जो एसाई व
सहसू (Paraphyses) से मलकर बनता है ।
(b) इपीथी सयम (Epithecium) : यह सहसू के अ त थ सर के आपस म यु सलेज/ ले मा
वारा जुड़ने से बनती है तथा यह एसाई के उपर भाग क परत है ।
(c) सब-हाइमी नय (sub-Hymenium) : यह हाइमी नयम का नचला भाग है जो कवक तंतु ओं
के पास-पास सटे रहने से बनता है ।
(d) कनारे (Margin) : ले स डया कार के एपोथी सयम म यह कवक कांश का बना होता है
तथा लेकाने रन कार म कवककोष तथा शैवालांश भाग से मलकर बनता है ।

302
च 15.5 A. पारमे लया थैलस एपोथे लया के साथ ; B. ऐ कोलाइकेन एपोथी सयम का
उ ग काट; हाइमे नयम का ऐसकस और ऐसको पोर का सहसू दशाता भाग
15.7.2 पेर थी सयम (Perithecium)
इस कार के ला कनुमा फलनकाय सामा यत पाइर नोका पक लाइके स म पाये जाते है ।

15.8 ए कोबीजाणु ओं का क णन (Dispersal of Ascopores)


अ धकांश जा तय म ए कोबीजाणु एसाई से तेजी से बाहर नकलते ह । सामा यत क णन
छ वारा या एसाई क भि त के फटने से होता है । ये ए कोबीजाणु पेर ला म के वघटन से
उ प न यु सलेज के साथ वमु त होते ह ।
बोध न 1
(1) लाइके न के नील-ह रत शै वाल सद य के नाम ल खये ।
..............................................................................................
(2) लाइके न के व भ न आवास के नाम ल खये ।
...............................................................................................
(3) आका रक ृ ि ट से लाइके न कतने कार के होते ह ?
..................................................................................................
(4) पपट मय लाइके न का उदाहरण द िजये ।
.............................................................................................. ....
(5) लाइके न थै ल स क आं त रक सं र चना के आधार पर कतने े म बं टा रहता
है ?
..................................................................................................
(6) समु म पायी जाने वाल लाइके न का नाम बताइये ।
..................................................................................................

303
(7) लाइके न थै ल स पर पायी जाने वाल व श ट सं र चनाओं के नाम द िजये ।
..................................................................................................
(8) भारत म पायी जाने वाल लाइके न का नाम द िजये ।
..................................................................................................
(9) प णल लाइके न के दो उदाहरण ल खये ।
..................................................................................................

15.9 लाइकेनो का आ थक मह व (Economic important of


Lichens)
लाइकेन व वध कार से हमारे लये उपयोगी है िजसका व तृत वणन न न कार से है ।
(1) भोजन व चारे के प म (Food & Fodder) : लाइकेन म लाइके नन नामक
काब हाइ ेट पाया जाता है । पारमे लया का पाउडर सू प, चॉकलेट तथा पे बनाने म काम म
लया जाता है ।
टु ं ा दे श म लेडो नया ऐ जीफे रना, से ो रया आइसलि डका का आइसले ड म तथा लेकानोरा
ए कू लटा का इज़राइल म व अ बी लके रया ए कूले टा का जापान म भोजन के लये उपयोग
कया जाता है ।
भारत म पारमे लया का स जी के प म उपयोग कया जाता है ।
लोबे रया पलमोने रया, एव नया न
ू ॉ रै मालाइना ै सी नया का चारे के लये उपयोग कया
जाता है । टु ं ा दे श म बारा संघा (reindeer) का मु य भोजन लैडो नया रजीफेरा है ।
(2) औष ध के प म (As Medicine) लाइकेन का उपयोग व भ न रोग के उपचार के
लये कया जाता है । उदाहरणाथ
पे ट जेरा के नना  का उपयोग हाइ ोफो बया रोग म
लोबो रया प मने रया  फेफड़ क बीमा रय म
एव नया फरफे सया  खांसी के उपचार म तथा
स े रया आइसल डका, अि नया, लेडो नया का उपयोग तजै वक औष ध के प म कया
जाता है ।
(3) सु गं ध एवं इ उ योग म (Perfumery) : रे मे लना व एव नया के पादप म व श ट
कार क सु गध
ं पायी जाती है अत : इन पादप का उपयोग धू प हवन साम ी एवं साबुन बनाने
म कया जाता है । एव नया ून ाई एवं लोबे रया प मोने रया से इ तैयार कया जाता ह ।
(4) चमड़ा रं गाई व रं जक उ योग (Tanning and Dyeing Industry) : सी े रया
आइसलैि डका तथा लोबे रया लमोने रया का उपयोग चम शोधन के लये कया जाता है । इनके
थैलस म ल केनो रक अ व व इ र न नामक पदाथ पाये जाते ह । इनक अमो नया से या
कराने पर ऑरसीन व काब नक अ त ा त होने ह।
रोसैला टं टो रया से कपड़ो के लये बगनी रग एवं अ ल तथा ार प र ण के लये लटमस
ा त होता है । आ चल लाइकेन से नीला रं ग ा त होता है । िजसका उपयोग ऊनी व रे शमी

304
व रं गने के लये कया जाता है तथा इस पादप से ा त आ सन का उपयोग गुणसू के
अ भरंजन म काम म लया जाता है ।
(5) क वन व आसवन (Fermentation and Distillation) : लेडो नया रे जीफैरा,
रे मा लना े सी लया एवं एव नया न
ू ॉ आ द लाइकेन जा तय का उपयोग क वन व
आसवन से शराब बनाने म कया जाता है।
(6) अ य उपयोग :
(i) लाइकेन म नीलह रत शैवाल घटक नाइ ोजन ि थ रकरण (N2 Fixation) का काय करती
(ii) लेकानोरा ए कूले टा से केि सयम ऑ सेलेट ा त होता है ।
(iii) लाइकेन म पाया जाने वाल लाइके नन शकरा से युसीलेजीनस घोल बनता है । िजसका
उपयोग संवधन मा यम के लये कया जाता है ।
(6) प रि थ तक मह व (Ecological importance) : शैल अकु मण (Lithosere) क
या म सव थम पपट मय लाइकेन व इसके प चात ् प णल लाइकेन (Pioneer vegetation)
वन प त के प म काय करते ह यह पादप न न च ान व वषम प रि थ तय म उ प न होते
ह । यह लाइकेन काब नक अ ल एवं ऑ से लक अ ल का ाव कर च ान का जै वक वदरण
(weathering) करके मृदा नमाण का काय करते ह । इसे मृदा जनन (Pedogenesis) भी
कहा जाता है । यह भू म अ य पादप के लये अनुकू ल होने के प रणाम व प पादप अनु मण
या को आगे बढ़ है । इस कार च ान पर पाये जाने वाले लाइकेन को ''मृदा नमाता '' (soil
builder) या कृ त के कसान भी कहा जाता है ।
(7) वायु दूषक सूचक (Air Pollution indicator) लाइकेन वायु दूषण के त अ य त
संवेदनशील होते है । स फर डाई आ साईड तथा लोराइड उपि थ त म इनक मृ यु हो जाती ह ।
इस कार यह पादप वायु दूषण के सूचक ह ।
(8) हा नकारक काय : यह न न प से हा नकारक होते ह ।
(a) वन प त वनाश (Damaging the vegetation) : लेडो नया तथा ऐ फ लोमा से माँस
तथा अि नया से वृ न ट हो जाते ह ।
(b) वषालु ता (toxicity) : लेथे रया वि पना एवं स े रयाजु नीपेरेना म पाये जाने वाला पदाथ
पनोएि क अ ल वषैला होता है अत: लाइकेन को खाने से जानवर क मृ यु हो जाती है।
(c) दावानल (Forest fire) अि नया का थैलस ी म ऋतु म सू खने पर वलनशील हो जाता है
व सू खा थैलस आसानी से आग पकड़ लेता है । प रणाम व प जंगल व अ य वृ एवं पौधे
भी आग पकड़ लेते है । इस कार से हमार वान प तक संपदा का नुकसान होता है ।
बोध न 2
(1) भोजन के प म उपयोगी लाइकेन के नाम बताइये ।
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(2) उन लाइकेन क जा तय के नाम द िजये िजनसे रं जक ा त होता है ।
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(3) औष ध के प म उपयोगी लाइकेन के नाम ल खये ।
...........................................................................................................

15.10 सारांश
लाइकेन का थैलस कवक व शैवाल घटक के साहचय से बना है इस कार के पार प रक
सहजीवन से यह पादप तकू ल प रि थ तय म भी अपना जीवन च सफलता पूवक पूरा करते
ह ।
यह पादप सव यापी है जो व भ न कार के आवास म मलते ह । यह अ त ठं डे ु वीय दे श
से गम व अ धक वषा वाले वषुव ृत दे श म भी पाये जाते ह ।
लाइकेन सामा यत: रे तील म ी, सड़ी गल पि तयाँ, वालामुखी का ठं डा लावा, बफ ले मैदान,
द वार, जैसी वषम आवासीय प रि थ तय म पाये जाते ह । च ान पर पाये जाने वाले लाइकेन
को मृदा नमाता (soil builder) या कृ त के कसान (farmers of Nature) क सं ा द
जाती है ।
लाइकेन का थैलस पपट मय, प णल व ु पल कार का होता है । आंत रक संरचना म प ट
बा य वचा, व कु ट व शैवाल े का वभेदन होता है । थैलस म शैवाल को शकाओं के वतरण
के आधार पर से समावयवी या वषमावयवी कार के होते ह ।
ल गक जनन म कवक घटक ह भाग लेते ह । का यक जनन वखंडन, इसी डया तथा सोर डया
वारा होता है । अल गक जनन पि कय बीजाणु वारा होता है ।
नरजननांग पम गो नयम तथा मादा जननांग को काप गा नयम कहा जाता है । नषेचन के
प चात ् फलन काय एपोथी सयम या पेर थी सयम कार का होता है । ए कोबीजाणु के क णन
के बाद अंकु रत होकर नये थैलस का नमाण होता है ।

15.11 श दावल
चू षकांग  परजीवी म पोषण अवशोषण करने वाला अंग ।
ाइकोगाइन  काप गो नयम क ल बी ीवानुमा ाह संरचना
पूरोगामी  सव थम, अ सर
शैलो  च ान पर ि थत

15.12 संदभ ंथ
डा. पीसी. वेद , डॉ. नरं जन शमा, डॉ. आर. एस. धनखड़, स वता गु ता, सू म जैवीय एवं
अपु पो द व वधताएँ रमेश बुक डपो, जयपुर ।

15.13 बोध न के उ तर
बोध न 1
(1) लाइकेन म नील - ह रत शैवाल जैसे नॉ टाक, ि लयेके सा, साइटो नना तथा र यूले रया
उपि थत होती है ।

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(2) लाइकेन का आवास तकूल वातावरण म होता है । जैसे न न च ान, वृ क छाल ,
पि तयां, लवणीय जल, वालामुखी का लावा व बफ ले टु ा दे श म इ या द म।
(3) लाइकेन म बा य आका रक के आधार पर तीन कार के थैलस पाये जाते ह ।
पपट मय, प णल व ु पल ।
(4) पपट मय लाइकेन के उदाहरण ह मोटोमा, लेसी डया, ा फस, राइज़ोकाप न इ या द ।
(5) लाइकेन थैलस क आंत रक संरचना म पाँच े पाये जाते ह ।
(1) ऊपर बा य वचा, (2) ऊपर व कुट, (3) शैवाल य े , (4) म जा, (5) नचला
ब कु ट
(6) समु जल म पे ट जेरा लाइकेन पाये जाते ह ।
(7) लाइकेन क थैलस सतह पर पायी जाने वाल मह वपूण संरचनाएँ सो र डया, सफेलो डया,
इसी डया, लघुकोट रकाएँ एवं वसन छ ह ।
(8) लेडो नया ए ीगेटा, गै फस डु ि लकेटा, ह मोटोमा यूनी सयम, पे ट गेरा कू टे टा, अि नया
ए पेरा आ द लाइकेन क भारतवष म पायी जाने वाल मु य जा तयाँ ह ।
(9) प णल लाइकेन पारमे लया, फाइ सया ।
बोध न 2
(1) ल केनोरा ए कूले टा परमे लया, लेडो नया ऐ जीफेरा, खटू रया आइसलेि डका व
ए डोकाप न म नएटम आ द का व व के व भ न भाग म भोजन प म योग कया जाता
है ।
(2) रोसेला टं टो रया व अ चल म से रं जक ा त कया जाता है ।
(3) औष धय के प म लाइकेन अ य धक मह वपूण है तथा इनका योग व भ न रोग के
उपचार म कया जाता है ।
लाइकेन रोग
पे ट जेरा के नना हाइ ोफो बया
लो ब रया प मेने रया वसन स बि धत रोग के लये
एवं नया फरफे सया खासी
' स े रया आइसल डका, अि नया, तजै वक (antibiotic) औष ध
लेडो नया
अि नया बारबेटा मू रोग के लये उपयोगी है ।

15.14 अ यासाथ न
(1) लाइकेन थैलस को बा य आका रक व आंत रक संरचना का स च वणन क िजये ।
(2) लाइकेन के आ थक मह व का व तार पूवक वणन क िजये ।
(3) लाइकेन म ल गक जनन व फलनकाय का वणन क िजये ।

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