You are on page 1of 314

1

2
पा य म अ भक प स म त
अ य
ो. (डॉ.) नरे श दाधीच
कु लप त
वधमान महावीर खुला व व व यालय ,
कोटा (राज थान)

संयोजक /सद य
संयोजक
डॉ. अशोक शमा
सह–आचाय, राजनी त व ान वभाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा
सद य
1. ोफेसर (डॉ.) एम. पी. दुबे 2. डॉ. ल ला राम गु जर
अ य , राजनी त व ान वभाग सह– आचाय, राजनी त व ान वभाग
इलाहबाद व व व यालय,इलाहबाद वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा
3. ोफेसर (डॉ.) अ ण चतु वद 4. डॉ. मंजू संह
सेवा नवृत आचाय सहायक आचाय, राजनी त व ान वभाग
मोहनलाल सुखा डया व व व यालय, उदयपुर राज थान व व व यालय, जयपुर
5. ोफेसर अनाम जैतल 6. डॉ. फूल संह गु ज र
आचाय, राजनी त व ान वभाग या याता, राजनी त व ान वभाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा राजक य महा व यालय, झालावाड़
7. ोफेसर (डॉ.) एस. एन. जै न 8. डॉ. उमे श शमा
आचाय, राजनी त व ान वभाग या याता, राजनी त व ान वभाग
राज थान व व व यालय, जयपुर राजक य एम. एस.जे . महा व यालय, भरतपुर

संपादन तथा पाठ लेखन


संपादक
ोफेसर (डॉ.) अनाम जैतल डॉ. ल ला राम गु जर डॉ. अशोक शमा
आचाय, राजनी त व ान वभाग सह– आचाय, राजनी त व ान वभाग सह–आचाय, राजनी त व ान वभाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा
पाठ–ले खक इकाई सं या
 ोफेसर (डॉ.) अनाम जैतल  1
आचाय, राजनी त व ान वभाग
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा
 डॉ. फूल संह गु ज र  2,14
या याता, राजनी त व ान वभाग
राजक य महा व यालय, झालावाड़
 डॉ. अ नल स से ना  3
या याता, राजनी त व ान वभाग
राजक य एम. एस. जे . महा व यालय, भरतपुर
 डॉ. अलका अ वाल  4
या याता, राजनी त व ान वभाग
राजक य एम. एस. जे . महा व यालय, भरतपुर
 ोफेसर (डॉ.) बी. आर. पु रो हत  5
से. न. आचाय, राजनी त व ान वभाग
मोहनलाल सुखा डया व व व यालय, उदयपुर
 डॉ. लता चंदोला  6,8
या याता, राजनी त व ान वभाग
बी. डी.के. कॉलेज, आगरा
 डॉ. द ि तमा शु ला  7

3
या याता, राजनी त व ान वभाग
कानो डया म हला महा व यालय, जयपुर
 डॉ. हु कमराम सु थार  9
या याता, राजनी त व ान वभाग
राजक य म हला महा व यालय,बाड़मेर
 डॉ. शखा अ वाल  10
या याता, राजनी त व ान वभाग
जे . बी. शाह म हला नातको तर महा व यालय,झु ंझु ंनू
 ो. (डॉ.) एस. एन. जैन  11,13
आचाय, राजनी त व ान वभाग
राज थान व व व यालय, जयपुर
 ो. (डॉ.) नरे श दाधीच  12
कु लप त
वधमान महावीर व व व यालय, कोटा
 डॉ. राधा कशन  15,16
या याता, राजनी त व ान वभाग
राजक य महा व यालय, सांभर

अकाद मक एवं शास नक यव था


ो. नरे श दाधीच ो. एम. के. घड़ो लया योगे गोयल
कु लप त नदे शक भार
वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा संकाय वभाग पा य म साम ी उ पादन एवं वतरण वभाग

पा य म उ पादन
योगे गोयल
सहायक उ पादन अ धकार
वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

उ पादन –पु नः मु ण: अग त, 2012 ISBN: 13/978–81–8496–089–1


इस साम ी के कसी भी अंश क वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा क ल खत अनु म त के बना कसी भी प म अथवा
म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ य पुनः तुत करने क अनु म त नह ं है ।

4
वधमान महावीर खु ला व व व यालय,कोटा (राज थान)

अनु म णका

इकाई–1: ाचीन भारतीय चंतन: मु ख वैचा रक आयाम 7—18


इकाई–2: मनु 19—36
इकाई–3: कौ ट य 37—57
इकाई–4: शु 58—85
इकाई–5: सामािजक – सां कृ तक पुन थान एवं रा वाद 86—102
इकाई–6: राममोहन रॉय 103—121
इकाई–7: मह ष दयानंद सर वती 122—145
इकाई–8: गोपाल कृ ण गोखले 146—161
इकाई–9: लोकमा य बालगंगाधर तलक 162—197
इकाई–10: ववेकान द 198—211
इकाई–11: सामािजक – राजनी तक प रवतन के व वध वैचा रक आधार 212—225
इकाई–12: महा मा गाँधी 226—241
इकाई–13: जवाहरलाल नेह 242—256
इकाई–14: भीमराव अंबेडकर 257—277
इकाई–15: मानव नाथ रॉय (एम. एन. रॉय) 278—296
इकाई–16: जय काश नारायण 297—313

5
तावना
राजनी त व ान के इस पा य म म आप भारतीय चंतन क मु ख धाराओं का
अ ययन करगे । ाचीन काल के वचारक म कौ ट य, मनु तथा शु आपके यान का के
ह गे जब क आधु नक काल के वचारक म राजा राजराममोहन रॉय, दयान द सर वती,
ववेकान द, बाल गंगाधर तलक, गोपालकृ ण गोखले, महा मा गाँधी, जवाहरलाल नेह , एम.
एन. रॉय तथा जय काश नारायण मुख प से आपके अ ययन क वषय – व तु का तपादन
करगे । उपरो त चंतक के संदभ म ह भारतीय चंतनधारा सतत वाह एवं भावी रह है।
भारतीय राजनी त चंतन यापक भारतीय चंतन एवं मनीषा का अनुगामी है । अपनी
मू ल कृ त म भारतीय चंतन कोरा बु – वलास नह ं बि क अनुभू त क गहनतम ि थ तय से
उपजा वह अि त व – कारण है जो यि त को यि त बनाता है । इस अथ म वह मूलत
आ याि मक व नै तक है । आपने इस प म भारतीय चंतन चेतना क सतत साधना व उसके
आधार पर ‘ ेयस’ संधान को सम पत है । यह साधना एवं संधान व तुत कालातीत और सनातन
है।
भारतीय राजनी तक चंतन म आ याि मकता और धम का सतत समावेश कट होता है।
‘ यि त या है’ और वह ‘ या होने चा हये’– ये दोन संगराजनी तक चंतक धारा को उसका
अभी ट वाह उपल ध कराते ह । अतएव, पुन थानवाद संक पनाएँ भी उनके अधीन रह ह और
रा वाद अ भ यंजनाएं भी । चाहे लोकमा य तलक ह या महा मा गाँधी धम और अ या म
राजनी तक चंतन म सतत व यमान दखाई दे ता है । भारत म उदारवाद वचारक भी वशु
यि तवाद नह ं वरन समि टवाद कट होते ह ।
हम व वास है क आप भारतीय राजनी तक चंतक वषयक तु त इकाइय के अ ययन
के दौरान भारतीय भावधारा का यथे ट अनुभव एवं अनुशीलन कर सकगे । भारतीयता के मूल
वर एवं उनक सांद भक तु त इन इकाईय म पया त प से सं ह त ह जो आपको व श ट
वैचा रक संदभ के साथ– साथ पशव कारक तथा नयामक प र े य से भी भल भां त प र चत
कराएंगी । इन दन के योग से ह भारतीय राजनी तक चंतन च रताथ होता है ।

6
इकाई–1
ाचीन भारतीय चंतन : मु ख वैचा रक आयाम
इकाई क परे खा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 ‘ ाचीन’ या?
1.3 भारतीयता का अ भ ाय
1.4 भारतीय चंतन के मु ख आयाम
1.4.1 धम और अ या म
1.4.2 भारतीय दशन का व प
1.4.3 भारतीय जीवन शैल तथा उसम न हत जीवन–मू य
1.4.4 जीवन और ान क सम ता
1.5 भारतीय चंतन के राजनी तक न हताथ
1.5.1 राजनी तक चंतन म सं कृ त और अ या म क पूव–भू मका
1.5.2 राजनी तक चंतन जीवन–सम ता का अनुगामी
1.5.3 एवं लोक–स भु ता का बल आ ह
1.5.4 राजनी त का साधना मक मू य
1.6 सारांश
1.7 संदभ एवं ट प णयाँ
1.8 अ यास न
1.9 संदभ थ सूची

1.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरांत आप जान पायगे–
 ाचीन भारतीय चंतन के आयाम से प रचय
 उसके पा व कारक (धम, दशन, ान, जीवन आ द) का अ भ ान
 भारतीय चंतन के राजनी तक न हताथ का' अनावरण
 राजनी त क साधना मकता का बोध, तथा
 जीवन–उ कषकार राजनी तक अ भ यंजनाओं का न पण।

1.1 तावना
' ाचीन' भारतीय चंतन और उसके आयाम परवत भारतीय –धारा म बु नयाद मह व
के ह। वहाँ कट वचार संकेत तथा ान–धाराएँ बाद के वैचा रक म भी यथावत ् रह ।ं जब यह
म टू टा तो न केवल वैचा रक पर परा क खृं ला टू ट बि क यि त, समाज और सं कृ त–
स यता के वकास म भी टू ट चले। भारत म पूव म यकाल का लगभग 400–500 वष का

7
चंतन, कम, मनन और अनुशीलन क ि ट से ाय: 'अ धकार युग का सा आभास दे ता।
चंतन के अ वरल वाह ने फर स यता–सं कृ त तथा समाज– यि त का उ थान दखाया जो
मु गलकाल म भि त, कला–सा ह य वमश म चु रता से दखाई दया। आधु नक काल म धम से
फर, आ म– व या से जु ड़ाव, मू य क धानता तथा सामािजक–राजनी तक सगठन क सा य
से मू यव ता आ द ने और अ धक उ कषकार जीवन– संग संयोिजत कये, उस समय व तु त:
'आ मा क पुनख ज' च रताथ हु ई। इस ऐ तहा सक संग म यह कहा जा सकता है क ाचीन
चंतन के आयाम भारत को उसक अि मता और अि त वगत वशेषताएँ दे ते ह। इनका व छे द
भारत को व मृ त और अचेतना दे कर भारतीय समाज के लये अपकषकार स होता है।
मू य क पुन : 'सं कृ त और अ या म का पुनरावतन तथा ेयस ् ाि त का पुन : संक प भारत
को सह अथ 'आधु नक' बनाता है।
इस इकाई म ाचीन भारतीय चंतन के वैचा रक आयाम का संधान कया जाएगा।
इसम मू ल वर ' ाचीनता' से पुन : जु ड़ाव का है य क ये वैचा रक आयाम भारत को उसक
ामा णक अथव ता दन करते ह। ये आयाम भारतीय अि मता व अि त व का ह। कौ ट य,
मनु, यास और अ य 'क थत ाचीन' वचारक उन वचार और चंतन– या का करते ह जो
परवत काल म बार बार मु ख रत होती है। 'स भवा म युगे –युगे ' जीवन क इसी का संधान
करता है। यह अकारण ह नह ं है क ाचीन वैचा रक संग और महाभारत तथा गीता क
आधु नक काल म भी अ भनव ट काएं और तपादन तु त कए गए। गाँधीजी समेत अनेक
वचारक ने इन ाचीन संग को यथा म पुन घा टत कया। यह सल सला बरकरार रहा।

1.2 ‘ ाचीन’ या?


य द भारतीय चंतन–धारा म ाचीन सतत ् व यमान है और वह भी है और त काल
आधु नक भी तो या उसे ' ाचीन' कहना ासं गक है? या ' ाचीन' खि डत व प म कभी भी
आधु नक कहा जा सकता है ?
भारत म काल क अवधारणा पि चम क भां त 'एक रे खीय' नह ं बि क 'च य' है।
एकरे खीय समय(काल) तो ' ाचीन', 'म य' और 'आधु नक' हो सकता है पर तु च य म तो
काल क बार बार पुनरावृि त होती रहती है। काल कभी खि डत, पुरातन और बदल कृ त का
नह ं होता। वह तो सदै व एक, सतत, अ वि छ न और पुनरावतक होता है। वह पुननवा है
(बार बार अपने आप नया होता रहता है)। अत: पि चम क खि डत और युगीन काल–चेतना
उस पर लग हो ह नह ं सकती।
भारतीय मनीषा म काल शा वत है और कालातीत कृ त के साथ उसका सा य है।
अतएव, काल न तो ' ाचीन' है और न 'आधु नक'। वह तो बार बार एक सू म बंधा हु आ
सतत कट होता रहता है। वह सू है शा वतता, सनातनता और था य व का सू । लेटो के
श द म काल “ शा वतता क प रवतनशील छ व है।“ इस अथ म शा वत त व धान है और
काल मा उसक अनुकृ त। ऐसी ि थ त म ' ाचीन' त काल 'आधु नक' है और 'आधु नक' अपनी

8
मू ल कृ त म ‘ ाचीन'। ‘ ाचीन’ भी नह ,ं बि क सतत भावी और अ ु ण। भारतीय धारा इस
वृि त का सजीव उदाहरण है।

1.3 भारतीयता का अ भ ाय
भारत य य प द ण ए शया म ि थत एक दे श– वशेष है। भौगो लक प से
पा क तान, बंगलादे श, ीलंका, नेपाल तथा चीन उसके पड़ोसी दे श ह। भारत का एक गौरवशाल
इ तहास है, एक व णम सं कृ त है, उसक शानदार और यवहारशील लोकतां क णाल है।
वहाँ बहु जातीयता तथा बहु धा मकता का बोलबाला है और वहाँ अनेकानेक वभू तयाँ बार बार
अवत रत होकर अपनी दे य भू मकाओं का भावी नवाह करती आई ह। ये सब य य प
वा त वकताएँ ह और इस कारण भारत क ामा णक प रचायक भी पर तु भारत क भारतीयता
इन वा त वकताओं से सवथा अछूती है। उसको तो कु छ सु नि चत गुणध मता से ह जाना
समझा जा सकता है।
भारतीयता अपने मूल प म सनातनता है या न वह सब कु छ जो सतत वाह और
भावी है। भारतीयता क सनातनता म सब रं ग और छ वयाँ एकसाथ खलती–खेलती दखाई
दे ती ह। कह ं कोई वरोधाभास नह ।ं आदश और यथाथ एक साथ ह, धम और व ान
सम थल य ह और राजा और मह ष ‘राज ष' प म एकसाथ कट होते ह। ववेक और कम
पर पर मल कर कम–कौशल का योग च रताथ करते ह। योग वयं वयोग से जु ड़ कर 'योग'
बनता है और इस कार आभा सत वरोधाभास का भारतीयता के तट पर ‘संगम' और 'समागम'
होता है। हर त व बेतरतीब दखाई दे ता है पर होता नह ।ं जो होता है वह और बहु त कु छ होने
क संभावनाएँ छोड़ जाता है। इन संभावनाओं क सतत साधना ह जीवन है और उसक स ावी
पराका ठा जीवन का उ कषशील स य – ''पूणमद पूण मदम ्।"
भारतीयता के ये त व भारतीय चंतनधारा म सदा भावी रहे ह। इसी कारण कौ ट य
शि तवाद और साम य– नपुणता के बावजू द कभी मे यावेल नह ं हो सका। महाभारत जय– वजय
का वा त वक च ण करते हु ए भी अपने मूल कलेवर म सब भू त को आ मसात करने
(सवभूता मवाद) का संक प प रपूण कर सका और वयं शि त सवदा नी त और शील का वरण
करते हु ए दखाई दे ती रह । ाचीन– चंतन काल के ये त व आधु नक काल– चंतन को भी
अनु ा णत करते रहे। इसी लए आधु नक भारतीय दशन म 'यथाथवाद आदशवाद ' (Realist
Idealism) का ासं गक समावेश हु आ और एक दूसरे संदभ म एका मवाद बहु लवाद
(Intergral Pluralim) का वतन भी। आभा सत वरोधाभा सयो का सि मलन और सदभावी
पांतरण भारतीयता का एक नैस गक त व है। इसी लए भारत म पर परा पि चम क ‘ े डशन'
नह ं बि क अपना प– वधान और गुणधम लगातार बदलने और 'पुननवा ' होने का एक सतत
वाह संग है। वा तव म जो वाह है वह सतत वाहशील रहता है और ठोस पा रि थ तक
कारण से अ सर दूटता है, णभंगरु हो जाता है।
बोध न – 1
1. ‘ ाचीनता ’ और ‘ भारतीयता ‘ कै से पर पर जु ड़े हु ए ह ?

9
उ तर : ………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………

1.4 भारतीय चंतन के मु ख आयाम


इकाई के इस ख ड म आपको भारतीय चंतन के मु ख आयाम का प रचय दया
जाएगा। ये वो आयाम ह जो भारतीय चंतन को सदै व अनु ा णत–अनु े रत करते रहे ह। इनके
म म ह भारतीय चंतन थायी है, नता त भारतीय है और साव क चेतना का प रचायक
भी।

1.4.1 धम और अ या म

भारतीय मनीषा म धम क धारणा ाय: कु छ सु नि चत नै तक स ांत के प म क


जाती रह है।' ये वो नै तक स ांत ह जो यि त और समाज को आधार उपल ध कराते ह। 'धृ'
धातु से कट धम वह त व है जो त वतः ''धारण करता है'' (धारय त इ त धम:)। अतएव
यि त से यह अपे ा क जाती है क वह ान और कम दोन तर पर धम अपनाए।
वैयि तक धमपरायणता सकल प से धम क सामािजकता का नवाह करती है।
ीम गव गीता म धम का रह य दय क नै तक ववेचना म न हत बताया गया है (धम य
'त वम ् न हतम गुहायाम)। गीता के अनुसार धम न केवल नै तक स ांत का जीवनपरक
संधान है बि क वह जीवन यवहार का नयामक भी है। इस प म धम साव क है और जहाँ
धम है वह ं वजय है (यतो धमस ् ततो जय:)। जीवन क साथकता धम से ह साकार होती है।
भारतीय चंतन म धम त व और उसका सार सतत ् वचारणीय रहा है। जीवन–मू य ,
सृजनध मता , जीवन के उ कष, सा य–साधन स प नता, लोकनी त के, द ड– वधान आ द के
संदभ म धम– या याओं ने भारतीय चंतन को नत नए आयाम कये ह। इस संदभ म ' ाचीन'
और 'आधु नक' चंतन म कह ं कोई भेद नह ं है। जहाँ अथशा का लौ कक प धम से
अनु ा णत है वह ं तलक, ववेकान द, गाँधी जैसे वचारक भी अपने–अपने वैचा रक संदभ म
धम का अनुशीलन करते रहे ह।
अ या म व या क भारतीय पर परा काफ समृ रह है। भारत' म ानी उसे माना
जाता है जो वा तव म आ म– ानी है। आ म ान से अ त ि ट द त होती है '' ानी क यह
तमा न पु तक के बोझ से दबे हु ए शा ी क है न उपकरण से लैस क । यह तमा है
आ म–सा ा कार तक पहु ँ चे हु ए जीवनमु ता पु ष क िजसका ान साम ी पर नभर नह ं करता,
न भौ तक न सामािजक।''4 इसी पर परा को जीवंत करते हु ए महा मा बु ने अपने अ त समय
म याकुल अपने भाई– म और श य आन द को सलाह द थी : ''अ प द पो भव” (अपना
द प अपने आप बनो)।
अ या म व या सरल अथ म अपने आप के सं ान और तदुपरांत आ म– स क
साधना है। यह साधना जीवन पय त चलती रहती है। इस साधना या म अन त के

10
आ मो कष के अनु प सी मत अनुभ यता का समायोजन होता ह5 अथात ् इि यज य अनुभ व
का सतत अ त मण, उनसे आगे सतत या ा और उस म म व भ न अनुभव सोपान को
पाते और छोडते हु ए परमाथ का उ तरो तर प ट होता सं ान। आ म– ान और आ म– स
कोई घटना या उपलि ध नह ं बि क एक अनि तम वृि त है जो साधक को साधना से लगातार
जोड़े रखती है। अभी ट परमाथ या अं तम यथाथ है और उसक ओर सतत याण जीवन का
संक प। यि त क चेतना इस याण का मा यम है और उ तरो तर बढ़ते हु ए वयं वैयि तक
चेतना का भी अ त मण करना होता है ता क सवचेतना से जु ड़ा जा सके। वयं सवचेतना
अ प, अ य त तथा अनुपमेय होती है। यह कभी न समा त होने का या ा– म यि त का
सतत प रमाजन और प र कार करता है। इससे स प न यि त आ म–बोध से का शत और
सतत उ कषशील होता है। अपने आप से पहचान का दायरा बढ़ते–बढ़ते उसे यथाथ के बेहद
कर ब तो लाता है पर तु िजतनी नजद क होती है उतना ह यह महसूस होता जाता है क
मंिजले अभी और ह, आसमान क और थाह पानी है, और अ धक ऊँची उड़ान अभी बाक है।
जीवन इस सतत साधना को सम पत रहता है, वह। चु क जाता है पर साधना फर भी शेष रह
जाती है।
यथाथ के इस संधान से वयं जीवन और अि त व का जु ड़ा होता है। दोन एक–दूसरे
को थामे–पकड़े बढ़ते जाते ह। इसी लए भारत म आदश और यथाथ के बीच कह ं कोई व व
नह ं है। भारत म यथाथवाद आदशवाद ( रए ल ट आइ डए ल म) और
6
यवहारशील आदशवाद'
( ग
ै मै टक आई डए ल म) क संक पनाएँ होती आई ह। जैसे बहती नद म नौकायन दो च पुओं
के सहारे कया जाता है उसी कार जीवन–वैतरणी पार करने के लये आदश और यथाथ दो
च पू बन कर च रताथ होते ह। उनके सहारे –जीवन नैया ठकाने लगाई जाती है।
भारतीय चंतन म म अ या मवाद संवेग सदै व उपि थत रहे ह। महाभारत, अथशा
या मनुसं हता आ म– ानी संवेदनशीलता का त न ध व करते ह। लौ कक उपलि ध मह वपूण
है पर तु यापक जीवन–स य म वह आ म मोि नत ह रहती है, उसको लांघना ह होता है
ता क आ म चेतना से कट यथाथ–बोध यि त को उसके मू ल अि त व–कारण से जोड़ सके।
केवल तभी सांसा रक या लौ कक उपलि धयाँ सहायक हो सकती है। अ यथा वे दुल य अवरोध
बन कर वयं चेतना–या ा को ह भंग कर दगी। उनके त सचेत आ ह अप रहाय है। इसी
चेतना को आधार बनाकर गाँधीजी ने वयं राजनी त के आ या मीकरण पर बल दया ता क
उससे जन–चेतना और तद तर जनो कष च रताथ हो सके।

1.4.2 भारतीय दशन का व प

भारत म दशन सफ ' फलॉसफ ' नह ं है य क फलॉसफ मू लत: बु – यापार और


ता कक– न म तय क एक सु यवि थत यव था मा ह है। ' फलॉसफ ' के वषय म स
भारतीय दाश नक के.सी. भ ाचाय का यह आकलन वचारणीय है क ''......... तक और
ानमीमांसा समेत फलॉसफ न केवल वा त वक ान ह ं नह ं है बि क वह तो श दत: चंतन
भी नह ं है; फर भी उसक वषय–व तु को व वासपूण ऐसा स य माना जाता है जैसे इस स य

11
के सहारे पूण स य जाना जा सकता है”। 8
आधु नक पा चा य फलॉसफ को तीन वकट
क मय से त माना जाता है– 1. उसम अ त न हत प से त व मीमांसा के वरोध क
वृि त व यमान है; 2. वह बल प से एने ल सस ( व लेषण) को सम पत ह, ' स थे सस'
(सं लेषण) को नह ं और 3. फलॉसफ का यावहा रक जीवन से स ब ध टू ट सा गया है।
भारत म ' फलॉसफ ' वा तव म दशन है–उसमे 'दे खना' मु ख है। दे खते समय बोलना
ज र नह ं होता, इस लए 'दशन' दे खने के म म छ वयाँ और संक पनाएँ तो सु झा सकता है
पर उन सब का संवेग दशन को और सू म दशना– मता से यु त कराना होता है िजससे ि ट
अंतत: सजीव अ त ि ट बन सके। इस अ त ि ट से उपजे संग बाद दशन को अ त ि ट से
समायोिजत करते ह। भारत म दशन पयवे ण आधा रत ता कक ि ट नह ं बि क अ त ि ट
यु त समझ से बा य को आ य तर वषय बनाने क वधा है ता क समूची दशन– या
9
अंत ान को संयोिजत कर सके।
फर दशन त काल य और टा से संयु त होता है। य–दशन और टा तीन म
टा सवा धक मह वपूण है य क टा थायी है जब क य और दशन पर पर अवलि बत
और उस कारण सतत प रवतनशील। टा–भाव का था य व य और उसके दशन का आधार
बनता है। टा क अ त चेतना दशन को उसक अथव ता दान करती है। भारतीय दशन म
स य क न म त नह ं होती, उसका केवल संघान होता है य क वह तो वयं उपि थत होता
है। दाश नक यास तो केवल उस अ व या का आवरण हटाने का उप म करता है जो क ुट
और संशय का कारण बनता है।
''भारत म दशन का पारसम ण जीवन है...... व ान, धम तथा कला म प र या त
सम त ग त व धयाँ इस अनुभू त को सम पत ह क मा ड न केवल एक वचार है बि क
उसम अंततः सोचने और होने, ान और अि त व (जीवन) म कोई भेद नह ं है..... (इस
अनुभू त से स प न टा या दाश नक) ‘सब' के प म वयं क परमानुभू त खोजता है और
'सब' को वयं म त बि बत पाता है। ''10
ऐसा दे खने–समझने के बाद लगातार दे खते रहना ज र नह ं रह जाता। दशन के बाद
आँख मू ंदनी भी होती ह ता क फर से य पर 'नई नजर डाल जा सके और टा–भाव को
और गाढ़ कया जा सके।

1.4.3 भारतीय जीवन शैल तथा उसम न हत जीवन–मू य

भारतीय जीवन–शैल अपनी सं कृ त के यापक प रवेश म सृि ट क व वधता और उस


व वधता म एकता प रल त करती है। भारत म अनेक मत, व वास, मा यताएँ सामािजक–
सां कृ तक समू ह इ या द एक साथ जीवन–यापन करते आए ह। इस म म उनम मत–मता तर,
संघष–सामंज य इ या द एक साथ च रताथ होते रहे ह पर अंतत: समाज क साव यक एकता ह
च रताथ होती आई है। भारतीय जीवन अपने म म सतत सनातनता खोजता है और रा ते क
हर कावट का इस म म अ त मण करता है। समाज यि त से बडा है पर बडे म छोटा।
दायरा अपने आप आ जाता है। 'बड़े' के लए 'छोटा' मटने को तैयार रहता है तो 'बड़ा' 'छोटे '

12
को म मलाकर उसके त व को पुनसंयोिजत कर लेता है। यि त प रवार के लए, प रवार ाम
के, ाम–शहर के लए, शहर रा य के लए और रा य रा के लए त पर है पर उतना ह
सच यह भी है क रा सभी को समे कत करता है, वह 'सब' बन कर ह 'एक' और 'अ भ न'
हो सकता है। भारत क यह समरसता उसको हमेशा उसक उ तरजी वता दे ती आई है।
भारतीय चंतन म ये जीवन–मू य बार बार कट और पुन : अ भ य त होते आए है।
ी अर व द णीत 'ज टल सा दा यक वतं ता' तथा महा मा गाँधी वारा तपा दत
'अि त व’ का सामु क वृ त ’ प इ ह ं मू य और सामािजक आदश को सम पत है।
आन द कु मार वामी जीवन, कला, सृजनध मता तथा सौ दय। स ांत तपादन म
इ ह ं जीवनशै लय आदश तथा मानक के प धर थे। उनके रा य आदशवाद' वषयक लेख
इ ह ं मू य के संधान का उदाहरण ह।

1.4.4 जीवन और ान क सम ता

भारत म जीवन और ान दोन पर पर प रपूरक ह और ' यावहा रक और ताि वक


अ तरावल बन या त है। इन अ तरावल बन को न न म म तु त जा सकता है:
(i) ान से सम जीवन ओर उसक नयामक सहज एका मक मलती है।
(ii) ान से कम का शत होता है और कम से कत य नधा रत है।
(iii) कत य से संसार के उतार–चढ़ाव से प र ाण मलता है।।
(iv) जीवन के उतार–चढ़ाव से प र ाण सावभौ मक भाव उपल ध है जो जीवन को और
अ धक उ नत करता है; तथा
(v) भि त कम और ान दोन समो नत करती है। उससे सावभौ मक भाव और प रपु ट
तथा थायी बनता है।
भारत म भगव गीता और उसके पुनरावत भा य लगातार ान, कम और भि त क
यी उ घा टत करते आए ह। हर भा य य य प इनम से कसी एक क धानता कट करता
रहा है पर तु स य तो यह हे क ये तीन एक साथ ह च रताथ हो सकते ह। गीता तीन को
आ मसात करके ह योगशा का दजा उपल ध कर पाता है।11
बोध न– 2
1. भारतीय चंत नधारा म धम और अ या म य मह वपू ण ह ?
उ तर : .............................................................................
.............................................................................

1.5 भारतीय चंतन के राजनी तक न हताथ


पछले ख ड म आपने भारतीय चंतन के व वध आयाम से प रचय ा त कया।
आपको यह ात हु आ क भारतीय चंतन मू लत: धा मक और आ याि मक है। धम और
आ या म मल कर यि त को उसक आ म–चेतना और क त य– बोध कराते ह और इस म

13
म जीवन अपने आ म–त व से प रपु ट होता है, उसे उसका अभी ट अि त व– कारण उपल ध
हो पाता है। दशन से जीवन को 'एक ' और 'सब ' म सदभाव था पत करने क मता मलती
है। अ त ि ट बढ़ कर व व– ि ट हो जाती है। धम, अ या म और दशन मल कर जीवन को
ान, कम और भि त से सराबोर करते ह। गीता म व णत और उससे उ घा टत यह यी
जीवन को और स प न बनाती है, उसे उसका अि त व–कारण उपल ध कराती है। इस ख ड म
जीवन म उपल ध स प नता के उन राजनी तक न हताथ का न पण कया जाएगा जो
भारतीय चंतन धारा और उसके सां कृ तक–राजनी तक मानक को सदै व आलो कत– व ले षत
करते आए ह।

1.5.1 राजनी तक चंतन म सं कृ त और अ या म क पूव – भू मका

भारत म राजनी तक चंतन और राजनी तक वमश अपने आप म वतं नह ं बि क


सां कृ तक नयामक के अधीन च रताथ होता है। जीवन के मननशील और वैचा रक ेरक त व
उसके दन दन या मक प को नद शत करते ह: राजनी त अपने आप म यथो ट नह ,ं वह
'अ छाई क राजनी त ' बन कर ह अपनी साथकता पाती है; सं कृ त से यि त और समाज
अपने सं कार और आधार– यवहार पाते है और इस कारण वह राजनी त को उसक
प रचालना मक ऊजा और संवेग दान करती. है। 12

अ या म क ि ट से सं कृ त और जीवन अपने अि त व और यथाथ के समीप आते


है। उससे ववेक और ान क वैयि तक और सामािजक त ठा संभव हो पाती ह। जो जानता
है वह ं कु छ कर सकता है। 'जानना’ अ या म और सं कृ त से स प न होता है जब क 'कु छ
करना’ सामािजक–राजनी तक संगठन और नेत ृ व से च रताथ होता है। इस ि ट से 'जान कर
करना' ह कम क ामा णकता का प रचायक है। जो जानते ह वह कु छ कर सकते है। इसी लए
‘राज ष' भारत म ति ठत रहे और 'महा मा' आ माओं का नायक व कर सके।
वा तव म ान क वा त वकता से कट त वमीमांसा– स ांत भारत म सामािजक
संगठन के ' थम स ांत’ रहे ह और वा त वक सामािजक–राजनी तक संगठन संग उनक
अनुकृ त के ' वतीयक स ांत’13 इसी लए भारतीय जीवन– संग म कम धान नह ं बि क
अनुगामी है। धानता ववेक ओर स बु को ा त है। जीवन सं ाम म ' योगे वर कृ ण
सारथी ह और अजु न धनुधार । धनुष वह ं और उसी दशा म चलेगा जहाँ सारथी रथ पहु ँ चाएगा।
तभी 'कु े ' ' धम े ' बन सकेगा।

1.5.2 राजनी तक चंतन जीवन–सम ता का अनुगामी

भारत म राजनी तक चंतन जीवन क यापक याओं और! मू य– यव थाओं से


अंतरं ग है। राजनी तक चंतन के पा व म आ याि मक चेतना सतत याशील रह है। भारतीय
सं कृ त का मू ल मं है: “आ मानं व '' (अपने को पहचानो)। अपने से पहचान यह भाव
मु ख रत करती है क एक चेतना समाज मे यि त क व वध भू मकाओं और भाव–भू मय को
त काल आवलो कत करती है। यि त केवल 'आण वक यि तवाद' से आरो पत नह ं रह सकता।

14
वह केवल प रवार तक ह सी मत नह ।ं उसका कम– े था नक नह ,ं साव क है। अनेक भाव,
अनुभाव, ेरणाएँ और भाव उसके वा त वक जीवन को सहज भा वत करते ह जो कसी
भौगो लक सीमा से नह ं बंधे ह। य द ऐसा होता तो सं कृ तय का अ तरावल बन' 14
हो ह नह ं
सकता था।
जीवन–सम है य क जीवन संग व वधतायु त ह। यि त एक साथ ह नै तक,
सामािजक, राजनी तक, यावसा यक, कला मक–सृजन धम भू मकाएं नभाता है। ये भू मकाएँ
प रवार, समाज, रा य, यापक व व बि क सम त सृि ट – या को स बो धत होती ह। वह ये
सब सां कृ तक चेतना क ऊजा से संभव कर पाता है। उसका श टाचार समू चे प रवेश को
सम पत है और वह पा रवेश भाव से बार बार सृिजत–घ टत भी होता है। ''वसु धैव कु टु बकं''
सफ योि त नह ं बि क जीवन क अप रहायता स होती है। अपने आप को बार–बाए
पहचानते हु ए वह लगातार इन यापक जीवन–दा य व का वरण और प र कार करता है। उसका
उ नयन सफ उसका नह ं ‘सब’ का उ नयन संभव करता है। 'आ मानं व ' से सत ् (स य),
चत (चेतना) और आन द (आ हाद, स नता, आन द) तो उपल ध होता ह है, साथ ह
अि त व क यापकता और उसके त सहज समपण भाव भी पैदा होता है। सम –जीवन
ाथ मक है और व श ट जीवन– संग (यथा यि तगत ग त व धयाँ, सां कृ तक–सामािजक
ाथ मकताएँ, राजनी तक झान) उसके अनुगामी।
य द जीवन सम है और चेतना अख ड तो राजनी तक चंतन ' म यह सम ता
त बि बत हु ए बना रह नह ं सकती। भारतीय चंतन इस वृ त का साथक उदाहरण तु त
करता है। ाचीन वा मय के यापक म म अथशा जहाँ राज यव था' के एक अ भनव
व ान का अ युदय ' करता है वह ं कौ ट य णीत अथशा के संकलन एवं तपादन
सं हताओं क वधा पर संर चत होते हु ए न केवल महाभारत क राजधम अवधारणा को
उ तरो तर द ता दे ते ह बि क उनसे मनु, या व य तथा वयं भी म के राजनी तक वचार
एक अ य आकलन के अनुसार ' ाचीन' भारतीय
15
को एक नया प र े य उपल ध होता है।
राजनी तक पर परा दो स ांत के यथो चत मलन को च रताथ करती है– ववेक तथा शि त।
म –व ण म– तथा धम व नी त के यु म इस मलन एवं संगम को च रताथ करते है।
भारत म धम पि चम के ाकृ तक कानून का यथे ट संभा वत समानाथक है जब क नी त
साधन के नयोजन क ऐसी यव था क प रचायक है िजसके अ तगत शि त का योग संभव
हो पाता ह। कसी गुणी शासन म बल का नयमन बोधग य नी त से और नी त का नयमन
नै तक तकसंग त से माना जाता था। बल आ ह यह था क स चर व उ चतर ववेक
स प न लोग ह कानून नमाता और शासक हो सकते ह। रा य के लए नै तक व
16
आ याि मक ववेक क जीव त पर परा अप रहाय है।

1.5.3 ऋत एवं लोक–स भु ता का बल आ ह

ऋत–स
17
भु ता का वचार व वनाथ साद वमा ने तपा दत कया है। अपने
यापकतर अथ म ऋत उन यापक आदश और नै तक अ भ यंजनाओ का सार है जो यि तय

15
को वत : व तत नयमब ता के आधीन कराते हु ए उ ह आ मानुशासन से संक ताओं के
र याग उगैर मानवतावाद के वरण क ेरणा दे ता है। इस अव था म पहु ँ च कर यि त
'अपने' और। 'दूसर ' के वरोधाभास से बचते ह और सव हतकार भाव को य दे ते ह। इसक
उपलि ध से मानवता का सम संसाधन होता है, यि तय के लये स माग श त हो जाता है
और मनु य व कृ त सहचर बन जाते ह।
ऋत का यह यापक भाव स भुता से जु ड़ कर उसका अ भभावी सां कृ तक–नै तक
प रवेश न मत करता है। ऋत–् स भुता का अ भ ाय यह है क रा य– वशेष क जनता अपने
आपको स भुता स प न मानकर मानवता क उपे ा न करे । ऋत–् स भुता आ म–मयादा और
आ मानुशासन को सामािजक–सां कृ तक चेतना का पर े य उपल ध कराती है िजससे
राजनी तक काय णाल भी सहज अ भ े रत होती है। व श ट राजनी तक संदभ म ऋत–
स भुता लोक–स भुता तथा संवध
ै ा नक स भुता क पूवगामी ि थ त है। फर भी, उसम तथा
लोक एवं संवध
ै ा नक स भु ताओं म काय–कारण स ब ध (Causal Relationships) य त
ह। 18
ऋत–स भुता के नै तक एवं एक करण भाव से लोक–स भुता बल चेतना ा त करती है
और नी तयु त एकताकार जन–चेतना संवध
ै ा नक स भु ता को समु चत भाव तथा वाह दे ती
है। इन तीन के पार प रक समायोजन से रा य अपनी साधनपरकता का भाव उपल ध करते ह।

1.5.4 राजनी त का साधना मक मू य

भारतीय चंतन पर परा म राजनी त सा य नह ं बि क सा य के साधन क णाल के


प म अवि थत है। अत: उसका मू य साधना मक है। भारत म लौ कक शि त आ याि मक
स ता के अधीन मानी जाती रह है। कम मह वपूण है पर तु वह ववेक और मनन के नदशन
म संचा लत है। इसी लए शि त से सामािजक संगठन बनता है, सामािजक संगठन सां कृ तक
यव था से प रपु ट होते हु ए उससे आब रहता है, वयं सां कृ तक चेतना वैि वक या
मा ड–चेतना से अनु ा णत है और इस प म वह यि त चेतना म उसी कार त बि बत
होती है जैसे एक ओस कण म समू चा सू य। चेतना क इस भावधारा म राजनी त वत: चा लत
नह ं बि क उस सां कृ तक स ता के अधीन पाई जाती है जो यि त क समूची याशीलता
को प रभा षत, प रचा लत और प रमािजत करती है। यि त क जीवन–साधना के व वध
ता का लक संग म राजनी तक संग एक अंग मा ह, समूची शर र– णाल नह ं और चेतना
क नयामक ाण–ऊजा तो ब कु ल नह ।ं
आधु नक काल म यह साधना मकता वलु त नह ं होती। आन द कु मार वामी,
रवी नाथ ठाकु र, महा मा गाँधी के व श ट चंतन म म वह यथे ट मु ख रत होती है। इस
अथ म राजनी त क साधना मकता सतत ् व यमान है। वह पहले भी थी, आज भी है और
आगे भी रहे गी। वह इ तहास का संग है और भारत म इ तहास ' 'ऐसा ह होता आया है' ' का
भाव तु त करता है।

16
1.6 सारांश
इस इकाई म आपने ाचीन भारतीय राजनी तक चंतन के मु ख आयाम दे ख–े समझे–
परखे। आपको यह ात हु आ क धम–अ या म, दशन, जीवन–मू य आ द भारतीय राजनी तक
चंतन के ेरक– नयामक त व ह। राजनी तक चंतन व कम म सारकृ तक कारक क नयामक
भू मका है। वह राजनी त को उसका काय–कारणत व व औ च य दान करती है। राजनी त
जीवन–साधना का एक सोपान है। उसका साधना मक मू य सदा भावी रहा है। ऋत–स भु ता
लोक व संवध
ै ा नक स भुता को स प न करती है। उससे मानवतावाद तथा रा य क
साधना मकता प रपु ट होते ह।
भारतीय चंतन के ये म सतत ् ह। ' ाचीन' व 'आधु नक' चंतन धाराएँ सकल प से
उनका यथे ट नवाह करती आई ह। चेतना क साधना के ये अनुगामी त व रहे ह।

1.7 संदभ एवं ट प णयाँ


1. काल और उसक शा वत कृ त के लए दे ख, एन.जी.दामले “इंटेले चुअल ऑटोबायो ाफ
और द फेथ ऑफ एन आइ डए ल ट”, राजधाकृ णन और यूरहे ड(सं.) कंटे पोरे र इं डयन
फलॉसफ ,
2. गो व द च पा डे ने समय क सात यता और उसक वतमान के म म पूणता क
संक पना क है। यह संक पना उनके कृ त व म सदै व व यमान रह है। दे ख पांडे क
कृ तयाँ फाउ डेश स ऑफ इं डयन क चर (दो ख ड म) बु स ए ड बु स, नई द ल ,
1984 तथा भारतीय पर परा फै वर, नेशनल पि ल शंग हाउसख, द ल , 1981।
3. गो व द च पांड,े फाउ डेश स ऑफ इं डयन क चर–ि प रचु अल वजन ए ड स बॉ लक
फॉमस इन ए यट इं डया (ख ड–I) एन .1
4. पांड,े भारतीय पर परा के मू ल वर, एन. 2, पृ ठ 27
5. भगवान दास ''आ म– व या' ऑर द साइ स ऑफ द से फ'' राधाकृ णन तथा यूरहे ड
(स) एन.1, पृ. 208
6. रए ल ट आइ डए ल म के व तार के लये दे ख इसी पर आधा रत ह रालाल हालदार का
लेख राधाकृ णन व यूरहे ड(सं) कृ त म, एन.1 पृ.सं.317–334
7. ' ेगमै टक आइ डए ल म वषयक लेख ए.आर. वा डया का, एन.1 पृं .स. 621–642
8. के.सी.भ ाचाय, '' द कॉ से ट ऑफ फलॉसफ '', राधाकृ णन व यूरहे ड(सं.) कृ त म,
एन1, पृ ठ 106।
9. डी.एम.द ता, ''नॉलेज, रए लट ए ड द अननोन'', एन.1 पृ.स. 289–292
10. वी.सु म य अ यर ''मै स इंटरे ट इन फलॉसफ '' एन.1, पृ.सं.616–17
11. गो व द च पांड,े एन.3 पृ॰सं. 146–152
12. सं कृ त वषयक इस चचा के लए दे ख अनाम जैतल , इं डयाज पो ल टकल क चर – इन
सच ऑफ े मवक, आलेख पि लशस, जयपुर , 1990, वशेषत: थम अ याय।
13. ए.के.सरन, ' द वे टन इ पै ट, से मनार, नं. 64 ( दस बर, 1964), पृ.26

17
14. भगवत शरण उपा याय, भारतीय सं कृ त के ोत, पीप स पि ल शंग हाउस, नई द ल ,
1973, व श ट उ रण अनाम जैतल वारा उ ृत, एन.12, पृ.सं. 120–21
15. यू. एन. घोषाल. ए ह टर ऑफ इं डयन पो ल टकल आई डयाज़ ऑ सफोड, 1966, पृ0.
155
16. 16.गो व द च पांड,े ' 'पो ल टकल ऑडर ए ड आइ डयाज ''फाउ डेश स ऑफ इं डयन
क चर(ख ड–II) एन. 2, पृ. 262 – 264
17. व वनाथ साद वमा, ऋत ्–स भु तावाद: वेद का वराट ' दशन ' (प र श ठ–2), वै दक
राजनी तशा से उ ृत।
18. वह , पृ. 259

1.8 अ यास न
1. ाचीन भारतीय चंतन के मु ख आयाम या ह ? ववेचना क िजए।
2. भारतीय चंतन के राजनी तक न हताथ प ट क िजए। या ये न हताथ भारतीय
चंतन म सतत भावी ह?
3. राजनी त का साधना मक मू य ' पर एक ट पणी ल खए।
4. भारतीय चंतन म या ाचीन व तु त: ाचीन है? प ट– क िजए।
5. भारतीय चंतन म न हत भारतीयता से या अ भ ाय है?

1.9 संदभ थ सूची


1. गो व द च पांडे  फाउ डेशन ऑफ इं डयन क चर (ख ड – 1,2), बु स ए ड
बु स, द ल , 1984
2. यू.एन.घोषाल  ए ह टर ऑफ इं डयन पो ल टकल आई डयाज़ ऑ सफोड,
1966।
3. वी.पी.वमा  टडीज इन ह दू पो ल टकल थॉट ए ड इ स मेटा फिजकल
फाउ डेशन,मोतीलाल बनरसीदास, वाराणसी, एन.डी.
4. अनाम जेतल तथा  राजनी त व ान के मूल स ां त, राजनी त व ान वभाग,
जमोहन शमा राज थान व व व यालय, जयपुर ,1982( वशेषत: अ याय
5,6,7,8,9)।

18
इकाई–2
मनु
इकाई क परे खा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 जीवन प रचय
2.3 मनु मृ त का काल एवं वषय–व तु
2.4 सामािजक वचार
2.4.1 वण यव था
2.4.2 आ म यव था
2.4.3 ी
2.5 राजनी तक वचार
2.5.1 रा य क उ पि त
2.5.2 रा य का स तांग स ा त
2.5.3 रा य का काय े
2.5.4 राजा के कत य
2.5.5 शासन यव था
2.5.6 द ड एवं अपराध
2.6 कर यव था
2.7 पररा स ब ध
2.7.1 म डल स ा त
2.7.2 ष गु य नी त
2.7.3 उपाय
2.7.4 यु
2.8 मनु और कौ ट य
2.9 सारांश
2.10 अ यास न
2.11 स दभ थ सू ची

2.0 उ े य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप समझ सकगे–
 मनु का जीवनवृ त तथा कृ त व
 मु न मृ त का रचनाकाल तथा वषय–व तु
 मनु के सामािजक वचार
 रा य का उ व, काय तथा उसक आरं भक ि थ त
 ाचीन भारत म राजतं क अवधारणा के व भ न पहलु ओं क या या
19
 द ड व अपराध जैसी मह वपूण अवधारणाएँ
 ाचीन भारतीय राजनी तक च तन क पर परा म मनु के योगदान क या या, एवं
 मनु और कौ ट य के वचार का तु लना मक मू यांकन।

2.1 तावना
ाचीन भारतीय राजनी तक च तक मनु के वचार को जानने का आधार मनु मृ त है।
इसम सृि ट क उ पि त से लेकर यि त, समाज एवं रा य के व वध काय एवं दा य व का
वशद ववेचन कया गया है। तु त अ याय म हम मनु के सामािजक, आ थक तथा
राजनी तक वचार को जानेग। मनु ने पूरे समाज को चार वण म वभािजत कर ज म के
आधार पर येक वण के नयम– नषेध तय कये ह। मनु क आ म यव था यि त के
जीवन को आयु के आधार पर वभािजत कर त नु प दा य व का नधारण करती ह। मनु मृ त
म ी–पु ष स ब ध पर भी व तार से काश डाला गया ह। ले कन ज म एवं लंग आधा रत
मनु क समाज यव था म ि य एवं शू को न नतम पायदान पर रखा गया ह।
इस अ याय म हम मनु के राजनी तक वचार क चचा करगे। मनु ने रा य क
उ पि त से लेकर राजा के काय दा य व, शासन एवं याय के व प कया का तपादन
कया ह। मनु का शासक दै वीय शि त स प न होते हु ये भी धम एवं द ड शि त के अधीन है।
मनु के रा य एवं राजा का व प जनक याणकार एवं नै तक मू य से यु त है। मनु ने रा य
के स तांग स ा त वारा रा य के मु ख अंग का ह ववेक–स मत ववेचन नह कया बि क
पररा स ब ध के लये भी साथक परामश दया गया है। इस स ब ध म दया गया म डल
एवं ष गु य स ा त एक सफल एवं सश त रा य क क पना का यथाथ माग बताता है जो
आधु नक काल म भी कू टनी तक ि ट से उतना ह ासं गक है। मनु वारा तपा दत कर
यव था रा य एवं यि त के आ थक लाभ क कामना पर आधा रत है। इसी संदभ म हम
ाचीन भारतीय राजनी तक चंतन के पि डत कौ ट य एवं मनु के वचार का सं ेप म
तु लना मक अ ययन करे ग।
इस अ ययन के बाद हम जान पायेग क भारतीय राजनी तक चंतन के पर परा अ त
ाचीन है। इसक मह ता व ासं गकता को समझने के लये हम पि चमी राजनी तक चंतन को
कसौट नह बनाकर इसका वतं अ ययन एवं मू यांकन कया जाना चा हए। इसी म इस
अ याय क भी उपादे यता नी हत ह।

2.2 जीवन प रचय


मनु के जीवन काल के वषय म ऐ तहा सक माण का अभाव है। इस लये मनु के
जीवन काल को जानने के लए तीका मक त य का अ धक सहारा लया गया है। मनु
एक ऐ तहा सक पु ष थे। िजनके नाम के साथ धा मक ि ट से ामा णत साम ी जु ड़ती
चल गई। न यह है क मनु मृ त को उ ह ने वयं लखा या यह ाचीन भारतीय
मनी षय के च तन का सं हण मा है, िजसे मनु के साथ जोड़कर ामा णकता का
आवरण पहनाया गया है। पौरा णक पर परा म मनु को थम व धवे ता माना गया है।
अ य व ध सं ह के म य मतभेद क दशा ' मनु मृ त को ाथ मकता द गई है। मनु

20
कौन था? इसका ज म कब हु आ और सृि ट का नमाण कैसे हु आ ' इन न का उ तर
जानने के लए ाचीन थ म मनु के बार म दो तरह क कथाएँ च लत है: –
I. जब स पूण व व महा लय के आवेग म व त होकर जल ला वत हो गया था,
तो मनु ह शेष रहे, िज ह ने नये सरे से मानव समाज क रचना क ।
II. महाभारत के शाि त पव के अनुसार , आर भ म यह संसार, बबरता, अराजकता
तथा अ धकार म ल न था। कोई नयम, कानून या संगठन नह ं था। ऐसी
अ धकारमयी असु र त ि थ त से सं थापक माना गया है।

2.3 मनु मृ त का काल एवं वषय व तु


मनु के सम त वचार का आधार मनु मृ त है। ले कन मनु के जीवन काल के वषय
म मतभेद होने के कारण यह कहना क ठन है क मनु मृ त क रचना कब हुईr। मनु मृ त म
ऐसे लोक व वचार ह, जो अ त ाचीनतम मृ त है यहां तक क महाभारत म भी कई थान
पर मनु का िज आता है। इस कार मनु के लोक का मूल अ त ाचीन होने के बावजू द
समय बीतने के साथ उनम वृ होती रह और अ त म उ ह मनु मृ त के प म पुन :
सं हत कर लया गया। जो बहु त बाद क रचना है। व वान ने इसके रचनाकाल को लेकर
मतभेद है जैसे। बी.ए.सालेटोर ने इसक रचनाकाल 1900 से 1800 ई.पूव माना है। मै समूलर
ने इसे चौथी शता द के बाद क रचना माना है। जब क हुलर का मत है क ईसा के प चात ्
दूसर शता द म मनु मृ त नि चत प से अि त व म थी। के.पी.एस. जायसवाल तथा पी.बी.
काणे ने भी हुलर के मत का समथन कया है। उ लेखनीय है क भारत म मनु मृ त का
सव थम मु ण 1813 ई. म कलक ता म हु आ।
वतमान मनु मृ त म 12 अ याय 2694 लोक है, जो सरल एवं वाह शैल म र चत
है। इसका याकरण अ धकांशत: पा ण न स मत है। भाषा एवं स ा त ि ट से मनु मृ त एवं
कौ ट य के अथशा म बहु त समानता है। मनु मृ त म व णत मु य न न है:–
1. संसार क उ पि त।
2. जा त कमा द सं कार व ध और मचय
3. पंच महा य , न य ा वध
4. नातक (गृह थ) के नयम
5. भ य तथा अभ य पदाथ
6. वान थ तथा सं यास आ म
7. यवहार के मु कदम का नणय, कर हण आ द राजधम।
8. सा य से न वध
9. ी तथा पु ष के धम स ब धी व ध, स पि त का वभाजन
10. आपि त काल के क त य, धम
11. पाप क नवृि त के लए ायि चत आ द
12. मो द आ म ान, नै तक मू य

21
इस कार मनु मृ त क उपरो त अ याय योजना म मानव जीवन के अ धकांश प
को शा मल करते हु ए उनके नयमन के लए आचार सं हता तु त क गई है, जो त काल न
प रि थ तय एवं जीवन मू य पर आधा रत है। यह सं हता इसके बाद क समाज यव था
और मू य के नयमन का आधार बनी है।

2.4 सामािजक वचार


मनु मृ त के राजनै तक वचार क तु लना म सामािजक वचार को अ धक या त ा त
हु ई है। इसम समािजक संगठन के स ात, व भ न वण के क त य तथा सामािजक यव था
के संबध
ं म रा य के दा य व आ द क स व तार ववेचना क गई है। मनु के अनुसार जो
यि त वण, धम और आ म यव था के अनुसार जीवन यतीत करे गा वह जीवन म धम,
अथ, काम और मो को ा त कर सकता है।

2.4.1 वण यव था

मनु मृ त म धम और कम के आधार पर समाज ो चार वग म बांटा गया है और


इन चार वग को वण का नाम दया गया है। ये वण इस कार ह ा मण, य, वै य और
शू । इन चार वण क उ पि त मा वारा क गई है। मा के मु ख से ा मण, भु जाओं से
य, उदर से वै य और पैर से शू का ज म हु आ है। मनु मृ त म इन चार वण का थान
एवं कम ज मानुसार नधा रत है, जैसे ा मण का ज म मा के मु ख से होने के कारण वह
वेद का ाता है। अत: उसका क त य पढना– पढना, य कराना. दान दे ना, दान लेना है। जहां
एक ओर मनु ा मण को समाज म सव च थान दे ता है वह दूसर ओर ा मण से अपने
थान के अनु प यवहार क अपे ा भी करता है, ता क उनके यवहार और कम म नरं कु शता
या वे छाचा रता ज म ना ले सके।
य का ज म मा क बाह से होने के कारण यह ताकत का तीक है, अत:
य का मु य दा य व जा क र ा करना, दान दे ना, य करना, अ ययन करना और
वषय म आसि त नह ं रखना आ द है। मनु इस बात पर भी बल दे ता है क य अपनी
ताकत के आधार पर अपने अ धकार का दु पयोग ना कर।
वै य का मु ख दा य व रा य क आ थक यव था का संचालन व वकास है। इसके
अलावा पशु ओं क दे खभाल, य करना, पढ़ना, यापार करना, याज लेना तथा कृ ष काय
करना भी उसके दा य व मे शा मल है।
शू का ज म मा के पैर से होने के कारण इनका काय शेष तीन वण क सेवा
करना है। मनु क वण यव था म शू का थान न नतम है। इनके लए वेद का अ ययन
भी ग भीर अपराध माना गया है।
उपयु त चार वण से मलकर समाज का नमाण हु आ है। इन वण के पृथक् –पृथक्
वशेषीकृ त काय होने के बावजू द भी मनु ने एक–दूसरे क नभरता पर बल दया है। मनु के
अनुसार , इनम से कसी एक वण के बना समाज यव था को चलाना संभव नह ं है। ले कन

22
मनु क इस वण यव था का कमजोर प यह है क यह ज म पर आधा रत वशेषा धकार
एवं नय यताओं का तपादन करती है।

2.4.2 आ म यव था

मनु मृ त के अनुसार मानव जीवन को चार आ म म बांटा गया है। चार आ म ह –


मचय आ म, गृह थ आ म, वान थ आ म एवं सं यास आ म।
(i) मचय आ म – इस आ म का समय ज म से 25 वष तक है।। इसम बालक गु
के साथ रहकर अ ययन करता है। इस अव था म बालक का शार रक, बौ क तथा
मान सक वकास होता है। बालक के बौ क वकास के लए वेदा ययन, य करना
और शा का ान ा त कराना आ द शा मल है। मचय क यव था ि य और
शू के लए विजत थी
(ii) गृह थ आ म – थम आ म के उपरांत मानव अपनी. ाकृ तक आव यकताओं क
पू त एवं वंश पर परा को बनाये रखने के लए गृह थ आ म म वेश करता है।
यि त ववाहोपरांत गृह थ हो जाता है और संतानो पि त वारा पूवज के ऋण से
तथा य आ द करके दे व के ऋण से मुि त पाता है। मनु मृ त म एक गृह थ ' के
लए धन संचयन तथा ि य के त अ य धक आसि त को स मान का नाश करने
वाला माना गया है।
(iii) वान थ आ म – गृह थ के वारा लगभग 5० वष क आयु ा त कर लेने पर वह
वान थ आ म म व ट होता है। मनु के अनुसार इस आ म म यि त का
काय े प रवार न होकर स पूण समाज होता है। उसे अब मान–अपगान, शीत–ताप,
सु ख–दुःख आ द के त वरि त भाव अपनाना चा हए तथा मानव मा के त म
भाव एवं दया भाव बनाए रखना चा हए।
(iv) सं यास आ म – मनु मृ त म मानव जीवन के अि तम चतु थाश को सं यास आ म के
प म वीकार कया है। मनु का मानना है क सं यास आ म म वेश से पूव
यि त को दे व ऋण, ऋ ष ऋण और पतृ ऋण से मु त हो जाना चा हए, अ यथा वह
नरकगामी होता है। वेद के व धपूवक अ ययन और पु र न क ाि त के उपरांत ह
सं यास आ म के वारा मो क ाि त संभव है।
इस यव था को बनाए रखना रा य का क त य ह. जब भी यह यव था खि डत होगी
समाज मे बखराव तथा टकराव आयेगा मानव को भी अपने आ म के अनु प कम करके
सहयोग करना चा हए। इस कार आ म यव था यि त क आयु के अनुसार उसके काय एवं
दा य व का वभाजन कर धम, अथ, काम और अ त म सव च ल य मो का माग श त
करती है, ले कन इस यव था क यह कमजोर है क सभी वण को समान प से आ म का
उपभोग करने क इजाजत मनु मृ त नह ं दे ती।

23
2.4.3 ी

मनु के अनुसार , कसी भी ी को घर म कोई काम वाधीन होकर नह ं करना


चा हए। उसे बा यकाल म पता, युवाव था म प त तथा वृ ाव था म पु के नयं ण व संर ण
म रहना चा हए। ई वर ने ह ि य क वृि त म कु छ ऐसे दुगु ण का सृजन कर दया है क
उ ह वतं छोड़ दया गया तो वे य भचार जैसे दोष म ल त हो जाएगी, अत: को अ य त
यानपूवक उन पर नयं ण रखना चा हए। मनु ने ी वतं ता का वरोध कया है, पर तु
ी का पु ी , प नी और माता के प म उ चत स मान करने क बात भी कह । मनु का यह
कथन बड़ा स है '' जहां ना रय क पूजा क जाती है, वहां दे वता वास करते ह। '' मनु ने
ी वतं ता पर ह नयं ण नह ं लगाया अ पतु पु ष के दा य व का भी नधारण कया है।
य द ववाह यो य लड़क का ववाह पता नह ं करता है तो पता न दा यो य तथा अपराधी
माना जायेगा। पता क मृ यु उपरांत माता का यान न रखने वाला पु भी न दा यो य है।
धा मक अनु ठान म ी–पु ष दोन क भागीदार का समान मह व है। ीधन पर उसी के
अ धकार क बात कह है। ी के संबध
ं म मनु मृ त अपने युग क मान सकता का
त न ध व करती है, जहां ी एक यि त न होकर पूणत : पु ष के अधीन है। मनु मृ त ने
ि य क ह नता का वैधानीकरण करने म मह वपूण भू मका नभाई है।
बोध न – 1
न 1. मनु मृ त क वषय व तु या ह
उ तर ……………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………

2.5 राजनी तक वचार


मनु के मु ख राजनी तक वचार को हम न न ब दुओं के अ तगत समझने का
यास करगे: –
2.5.1 रा य क उ पि त :– मनु मृ त के सातव अ याय म राजधम का तपादन करते हु ए
मनु ने लखा है क आ दकाल म राजा (रा य) के न होने से चार ओर अराजक तथा
अशा त ि थ त थी। बलवान के डर से जा इधर–उधर भाग कर जीवन यापन कर रह
थी। इस बबर, अराजक ि थ त से सबक र ाथ मा ने राजा क सृि ट क । ई वर ने
इ , वायु, यम, सू य, अि न, व ण, च मा, और कु बेर का सारभू त न य अंश लेकर
राजा क सृि ट क ह। इ जैसे े ठ दे वताओं के अंश से उ प न राजा सब ा णय
म परा मी और े ठ होता ह। वह बालक भी हो तो भी उसका कोई अनादर नह ं कर
सकता, य क वह मानव प म दे वता है। अथात ् रा य एवं राजा क दै वीय शि त का
मनु ने समथन कया है।
2.5.2 स तांग स ा त :– मनु मृ त म रा य के लए स तांग स ा त दया है। मनु मृ त के
9व अ याय म रा य के न न सात अंग बताए गए है :– (i) वामी (राजा) (ii) मं ी

24
(iii) पुर ( कला, परकोटा आ द से सु र त राजधानी) (iv) रा (v) कोष (vi) द ड
(vii) म । ये सात राज वृि तयाँ है।
I वामी (राजा) :– मनु ने राजा के लए वामी श द का योग कया है, िजसका ता पय
यह है क स पूण यव था म राजा को सव च थान ा त है। मनु के अनुसार , राजा
के बना रा य क क पना भी नह ं क जा सकती। राजा को नै तक गुण , शास नक
मता तथा दा य व के त न ठा से यु त होना चा हए।
II म ी :– मनु का मत है क रा य–काय यो य और कु शल मं य के बना नह ं चलाया
जा सकता। अत: राजा के वारा सु यो य मि य से परामश ा त करते हुए ह रा य
काय कया जाना चा हए। मनु ने मि य के लए आव यक गुण ' यो यताओं का भी
व तार से वणन कया है। जैसे मं ी को कु ल न, शा ाता, व वान, शू रवीर,
व वसनीय कमठ आ द गुण से स प न होना चा हए।
III पुर :– पुर का अथ कला, परकोटा या राजधानी है। मनु का है क पुर पूणतया सु र त
हो तथा उसम र ा एवं भरण–पोषण क सनु चत यव था होनी चा हए। मनु ने पुर क
कई े णय यथा:– ध व दुग, म ह दुग, जल दुग, व दुग मनु य दुग एवं ग र दुग
का उ लेख कया है।इसम ग र दुग को े ठ बताया गया ह अत: राजा को इसे ा त
करने का यास करना चा हए। व भ न दुग क संरचना एवं वशेषताओं भी वणन कया
गया ह।
IV रा य:– रा य के अंगो म एक अंग के प म मनु वारा रा य का उ लेख म उ प न
करता है। वा तव म मनु ने रा य श द का योग जनपद के अथ म कया है। यहां
रा य का ता पय है – रा य क भू म तथा उसम नवास करने वाल जनता।
V कोष:– मनु के अनुसार कोष रा य का अ नवाय तथा अ त मह वपूण अंग है। कोष के
अभाव म राजा, जा क सु र ा तथा उनके क याण क व भ न योजनाओं को पूरा
नह ं कर सकेगा। इस लए राजा के पास समु चत मा ा म कोष होना।
VI द ड :– द ड का आशय रा य क र ा करने वाल शि त अथात सेना से है। मनु ने
सेना के अनेक अंगो यथा हि त सेना, रथ सेना, अ व सेना, जल सेना पदा त सेना का
उ लेख कया है। मनु ने रा य को परामश दया है क वह सेना के सम त '' को
मजबूत बनाकर रा य क र ा क उ चत यव था करे ।
VII म :– म का अथ है–अ तरा य राजनी त म एक रा य अ य रा य के साथ
मै ीपूण संबध
ं । रा य को अपनी र ा तथा अ य उ े य क के लए अ य रा य से
मै ीपूण संबध
ं बनाने चा हए। ये म ऐसे होने चा हए जो वपि त पर साथ दे सक।
रा य के इन सात अंग म पूण सम वय आव यक है। एक वृि त जी वनाश स पूण
रा य यव था के वनाश का कारण बन सकता है, अथात ् उपरो त ' त व का सश त
एवं साम ज य पूण अि त व रा य क ताकत का आधार है।
2.5.3 रा य का काय े – मनु मृ त का मत है क रा य का े यापक है। रा य पु लस
काय ह नह ं करता, अ पतु यह समाज क र ा एवं क याण भी करता है। इसके

25
अलावा आ त रक और बा य आ मण से र ा तथा शि तशाल से कमजोर क र ा
करना भी रा य का दा य व है। मनु का मानना था क रा य क र 'म सय याय' से
जा क र ा हे तु हु ई है। रा य मानव से वण–धम एवं आ म–धम का पालन कराता
है। मनु के अनुसार रा य का काय सु र ा– यव था तक ह सी मत न होकर लोक
क याणकार भी है।
2.5.4 राजा के क त य – मनु राजा के दै वीय उ पि त के स ा त के समथक होने के
बावजू द राजा क नरं कु श स ता के समथक नह ं है। राजा व ध तथा धा मक नयम
के अधीन है। वह (राजा) धा मक द ड को याि वत करने का साधन मा है।
वा त वक राजा तो धम का वधान है। एक ओर तो राजा को दे व व का अंश मानकर
उसके का पालन करने को जा का धम कहा गया है, वह ं दूसर ओर राजा वारा धम
– व काय करने पर संहासन युत करना या मार डालना भी उ चत ठहरा कर मनु
ने राजा (रा य) को नरं कु शवाद होने से बचाया है। इन दोन वपर त धारणाओं के
पीछे मू ल प से दो वचार –रहे ह गे – (i) भारतीय च तक ने वण तथा आ म
यव था को अ ु ण बनाये रखने के लए व आने वाले काल म सामािजक
अ यव थाएँ पैदा न हो, इस लए राजा को दे व व दान कया ता क जा उसक
आ ाओं का पालन करती रहे । यह धारणा सामा य जन के लए बतायी गयी है। (ii)
पर तु बुराइय से त या धम व काय म ल त राजा या मं ी का वत: ह नाश
या मृ यु हो जायेगी, यह धमक भी द गई है।
राजा को राजधम का पालन करते हु ए श ओ
ु ं से जा– ाण तथा स पि त क र ा
करनी चा हए। उसे गाँव और नगर क सु यव था के लए यो य, अनुभ वी, ईमानदार,
लगनशील, व वान तथा कमचा रय का आदर–स कार करना चा हए। अयो य, ट, लापरवाह,
र वतखोर, दे श ोह कमचा रय को पदमु त कर उनको नजी स पि त से वं चत कर दे श
नकाला दे दे ना चा हए। राजा को शासन यव था के सुचा संचालन के लए यो य, अनुभवी
मं य क नयुि त करनी चा हए। अपने नकट थ मं य के साथ अ छा बताव करना चा हए,
पर तु समय–समय पर अपने गु तचर से मं य के इराद एवं यवहार क जानकार भी लेते
रहना चा हए। मनु के अनुसार , राजा अ व वासी पर व वास न करे , व वासी पर भी अ धक
व वास न करे , बगुले के समान अथ च तन करे , संह के समान परा म दखाये, भे ड़ये के
समान श ु का नाश करे और खरगोश के समान श ु के घेरे से नकल जाए।
श ओ
ु ं के आ मण से र ा के लए ऐसे दुग का नमाण करना चा हए जो पहाड़ी पर
न मत हो, जहां से श ु पर वार कर जीता जा सके। दुग को अ –श , धन–धा य, वाहन,
ा मण , कार गर , यं तथा चारा–पानी से भरपूर रखना चा हए, य क यु म इन चीज क
कमी सै नक शि त का पतन करती है। पूरे साज–सामान से सु सि जत रा य को उ चत अवसर
दे ख कर यु भी करना चा हए। यु का नेत ृ व राजा को वयं करना चा हए। मनु के अनुसार
जो वीर यु म श ु को परािजत करता है, वह पृ वी के सुख को भोगता है और जो यु भू म

26
म वीरग त को ा त होता है, वह वग म जाता है। यु म वीरग त को ा त राजा का
गुणगान चार दशओं म होता है। जो यु थल से भागकर जान बचता है, वह कायर कहलाता
है।
मनु के अनुसार , राजा को वृ , अंध , वधवाओं, अनाथ एवं असहाय क सहायता
करनी चा हये तथा उ योग या यवसाय वारा द न–ह न, य , वै य एवं शू क समय–
समय पर सहायता करनी चा हए।
एक राजा को हमेशा चु त–दु त रहने के लए कु छ नयम का पालन करना चा हये
जैसे – ात: नान, यान, अ ययन, पूजा। इसके बाद याय, जनता क शकायत का
नवारण, मं य से मं णा, वदे श म ि थत दूत और गु तचर के साथ वातालाप, सेनाप त से
सेना संबध
ं ी जानकार ा त करनी चा हए। म या तथा रा म राजा क दनचया इस कार
नधा रत क गई है :– यायाम, नान, आराम और नवास। सेना और यु साम ी का
नर ण, सांय ाथना, गु त परामश तथा संगीत और अ त म सोना। ये राजा को नय मत
दनचया होनी चा हए।
मनु मृ त के अनुसार राजा बालक ह य न हो, उसका अपमान नह ं करना चा हए।
मनु के इस कथन से कु छ वचारक ने यह अथ लगा लया क राजा पूण वतं है। उसक
आ ाओं का पालन मानव–क त य है। न यह है क या राजा नरं कु श है ?जब क मनु और
या व कय ने राजा को धम के अधीन रखा है। राजा को हमेशा जापालन, व र ाथ तैयार
रहना चा हये। मनु ने धम और द ड को ह राजा कहा है। इन दोन संग से समझ म आता
है क मनु ने सव थम तो राजा को नरं कुश स ता दान क । इससे असी मत शि त का
दु पयोग होने लगा। फर असी मत शि त को नयं त करने के लए धम और द ड क
थापना कर राजा को इसके अधीन कर दया। इस कार मनु मृ त म दो वरोधी मत दखाई
दे ते है – एक असी मत राजतं का और दूसरा सी मत राजतं का।

2.5.5 शासन यव था

मनु के अनुसार शासन का मु य योजन – धम, अथ, और काम क ाि त म साधक


बनना है। अत: राजा को अपने मं य क सहायता से इन उ े य क ाि त हे तु यासरत
रहना चा हये। मनु क ि ट म राजा (शासन) को अ ा त भू म और धना द को ा त करना
चा हये। जो कुछ भी ा त हो गया, उसक र ा करना, जो र त है उसम व भ न कार से
बढ़ो तर . करना और जो कु छ भी बढ़ो तर हो, उसे सु पा म बांट दे ना चा हए। राजा को
पतातु य पालन करना चा हए।
मनु मृ त म बताया गया है क सरल काय भी अकेले यि त के क ठन होता है।
अतएव रा य जैसा महान फल दान करने वाला काय अकेले राजा से कैसे हो सकता है'
इस लए राजा को उ चकु ल न, शा ाता, व वान, शू रवीर, श चलाने म न नपुण , आल य
र हत, कमठ, व वसनीय यि तय को मह वपूण काय म सलाह लेने के लए म ी नयु त
करने चा हए। यो य मं य क नयुि त के उपरा त राजा को पहाड या एका त वास म मं य

27
से मं णा करनी चा हये। मं णा के समय राजा को यान दे ना होगा क जड, मू क, बहरे , वृ ,
ी, मले छ रोगी और अंगह न को मं णा भवन से हटवा दे , य क ये सब मं णा का भेदन
करने वाले होते है। म या या आधी रात को मान सक खेद तथा शार रक ख नता से मु त
राजा को अपने मं य के साथ मं णा करनी चा हये।
मनु के अनुसार राजकाय को स प न करवाने के लए एक होगी, िजसम राजा, मं ी
और अ य कमचार ह गे। आधु नक मं म डल क भां त येक म ी के अधीन कु छ वभाग
ह गे। वे म ी अपनी सफलता और असफलता के लए राजा के त होने चा हए। यास यह
कया जाना चा हए क नणय बहु मत से हो। राजा एक व वान को महामं ी नयु त करे ।
महाम ी के व वास एवं परामश से शासन कया जाना चा हए। मं प रषद' छोट , सु यवि थत
और ऐसे यि तय से बनी होनी चा हए क वह रा य काय का सह ओर प से नदे शन कर
सके। इन मि य के चा र क गुण क जांच राजा को गु तचर से करवानी चा हये। केवल
उ ह ं लोग को इन पद पर लया जाना चा हए, जो सवगुण स प न और च र वान ह ।
भू म के आधार पर मनु ने रा य को दो भाग – पुर तथा म बांटा है। पुर से ता पय
राजधानी तथा रा से ता पय दे श के सारे भू–भाग से है। मनु का कहना था क सफल शासन
के लये रा य को इकाइय म वभािजत कया जाना चा हये। मनु मृ त ' यह वभाजन 1 गांव,
10 गांव, 20 गांव, 100 गांव तथा 1000 गांव क शास नक इकाइय म क यव था द
गई है। इसम शासन क सबसे छोट इकाई गांव है, िजसका अ धकार ा मक कहलाता है।
ा मक का क त य गांव म शाि त यव था बनाये रखना है तथा गांव म पैदा होने वाल
फसल म से राजांश इक ा कर उसे – शासन क अगल इकाई– 10 गांव के अ धकार
‘दश ामपती’ को सौपन क है। दश ामप त ह ा मक के व शकायत क सु नवाई करता
है। इसी कार बीस, सौ तथा हजार ाम के अ धका रय को कमश: वंश त, शता य तथा
सह प त कहा गया है।
मनु के उपरो त शासन संगठन म शासन क छोट इकाई को मश: ऊपर क इकाई
के त उ तरदायी बनाकर शासन क पदसोपानीय यव था को गाँव, गाँव, पुर तक जोड़कर
संग ठत कर दया गया है।
सरकार का वतीय अंग वधा यका प रष है, िजसका मु ख दा य व कानून क
यव था करना है। मनु के अनुसार प रष श द का ता पय ऐसे यि तय के संगठन से है, जो
तीन वेद (ऋ वेद, यजु वद, सामवेद) के ाता ह । इसक सद य सं या अ धकतम दस होनी
चा हये। इसके नमाण का आधार सं या मक न होकर वैयि तक यो यता और बौ कता होनी
चा हए।
मनु मृ त म राजा को यायपा लका के औपचा रक अ य का दजा दया गया है।
इसके अनुसार या यक काय के सफल स पादन के लये राजा को याय सभा म सदा ऐसे
ा मण तथा पाषद के साथ बैठना चा हए, जो व धवे ता, ान म पारं गत ह तथा जो
या यक काय म दोषमु त सलाह दे सक। मनु ने याय े म राजा क भू मका को पयवे क
कृ त का माना है ले कन याय काय व ध स मत है या नह ,ं यह दे खना भी राजा का ह

28
दा य व है। मनु मृ त के अनुसार यायाधीश वारा उ चत याय न दान करने पर अधम के
अंश म न न लोग बराबर के भागीदार ह गे – अधम करने वाला, गवाह, यायाधीश तथा राजा।
इस कार फ रयाद को याय न मलने क ि थ त म इसके लये राजा को भी समान प से
भागीदार या उ तरदायी माना गया है। य क याय दान करने वाला यायाधीश राजा के
अधीन रहकर काय करता है।
मनु मृ त म सामािजक नयम के वपर त कये गये काय को अपराध क सं ा द गई
है। मनु के अनुसार , दूसर को त पहु ंचाने वाला अपराधी है। मनु के अनुसार द वानी तथा
फौजदार े के मु ख अपराध म चोर , झू ठ गवाह , खा य पदाथ म मलावट, यापा रय
वारा अ धक मू य वसू ल , धा मक अपराध, रा य के अ न भ डार या श ागार को तोड़ना,
शार रक हंसा, बला कार, धन चोर , धोखाधड़ी, कजा न चु काना, जेब कतरना गवाह के लए
उपि थत न होना तथा डकैती आ द मु ख है। इन अपराध के लए अलग –अलग कार के
द ड क यव था क गई ह। हम जानते ह क इन अपराध क सु नवाई और न पादन के लए
मनु ने यो य ा मण यायाधीश क नयुि त क यव था क है। ा मण यायाधीश उपल ध
न होने पर य तथा वै य को भी यायाधीश बनाया जा सकता है। ले कन शू क नयुि त
का इस पद के लए पूणत: नषेध कया गया है।

2.5.6 द ड एवं अपराध

मनु ने द ड क मह ता तपा दत करते हु ए कहा है क द ड ह सम त जा पर


शासन करता है, जब जा सोती है, तो द ड जागता है। चोर द ड के भय से चोर नह ं करते
ह। द ड धम है, राजा का क त य है। द ड का योग व हत म न करके जन हत म करना
चा हये, अ यथा वह राजा के न ट होने का कारण बन सकता है। मनु मृ त के अनुसार द ड का
योग धम–स मत तथा अपराध क मा ा के अनुसार होना चा हए।
मनु ने अपराध के अनुसार न न मु ख चार कार के द ड का वधान कया है :–
(I) वा द ड (समझाना–बुझाना )
(II) धनद ड (जु माना)
(III) कामद ड एवं वधद ड (शार रक यातना एवं ाणद ड)
(IV) ध द ड ( न दा–भ सना करना)।
मनु वारा द ड क मा ा व कृ त के नधारण म इस त य पर यान दे ना ज र है
क संबं धत अपराधी अपराध के गुण –दोष के बारे म जानता था या नह ।ं अ ानतावश कये गये
अपराध को जानबूझकर कये गये अपराध से कम ग भीर माना गया है। ले कन मनु क याय
यव था का कमजोर प यह है क यह वण यव था के आधार पर अपराध क ग भीरता का
नधारण करती है, िजसम समान अपराध के लये सभी को समान प से दि डत नह ं कया
जाता। वण के आधार पर यि त से यवहार क अपे ा क जाती है। उदाहरणत: ा मण को
कटु वचन कहने के अपराध म य व वै य को कमश: सौ पण तथा दो सौ पण का द ड दे ना
होगा, क तु उसी अपराध के लए शू को अंग छे द का द ड दे य होगा। इसी तरह अगर

29
ा मण कसी को कटु वचन बोलता है तो उसे आ थक द ड दे कर छोड़ दया जाय, जब क ये
ह काय कोई शू करता है तो उसक जीभ काट ल जानी चा हए। मनु वारा ा मण वग के
त वशेष वशेष यवहार तथा शू के त पूवा ह से नि चत प से वण धा रत भेदभाव
दखाई दे ता है, िजसका कोई ववेक स मत आधार नह ं है।

बोध न 2
न 1 मनु के अनु सार रा य का मु य काय या है ?
उ तर : ..............................................................................
.................................................................................

2.6 कर यव था

मनु का मानना है क रा य क सु र ा, समृ , सु ढ़ता तथा जा श सु ख–सु वधा के


लये राजकोष क आव यकता होती है। यह कोष जा पर कर लगाकर ह कया जा सकता है।
मनु का प ट नदश है क राजा को वाथपूण उ े य तथा मनमाने से कर सं ह नह ं करना
चा हये। िजस कार ज क, बछड़ा एवं मधुम खी थोड़ा थोड़ा करके अपनी के लये मश: र त,
दूध व शहद लेते है, उसी कार राजा को अपनी जा से थोड़ा –. करके कर वसू ल करना
चा हए।
मनु मृ त म कर क दर के बारे म भी लखा गया है। यापा रय से कर उनके काय
एवं लाभ को दे ख कर लया जाना चा हए। भू म क गुणव ता , उपजाऊपन ' प र म आ द पर
वचार कर कसान से आय का छठा, आठवां तथा बारहवां भाग गृहण कया चा हए। वृ ,
मांस, घी, गंध, औष ध, चमड़ा, म ी के बतन तथा प थर से बनी व तु ओं का छठा भाग कर
के प म लया जाना चा हए। मनु ने यह भी नदश दया है क सकट काल म राजा के चौथे
भाग तक कर के प म वसूल कर सकता है, ले कन कार गर, बढ़ई, लौहार आ द अ त नधन
यि तय पर रा य वारा कसी कार का कर नह ं लगाया जाना चा हए। इसके थान पर को
ऐसे यि तय से त माह एक दन म करवाना चा हए। मनु ने ा मण, बूढ़े , अंध,े पंग,ु
असहाय लोग से कसी कार का कर वसू ल ना करने क सलाह द है। मनु ने रा य क आय
का एक ोत जु माने (द ड कर) को भी माना है।
इस कार मनु ने कर नधारण व वसू ल म राजा क वे छाचा रता को अ वीकार
करते हु ये इस संबध
ं म नि चत एवं प ट नयम का तपादन कया है। मनु मृ त कर सं ह
को रा य का उ े य न मानकर जा क र ा तथा क याण के लए एक साधन माना गया है,
अत: यह आव यक है क कर यव था जा–क याण क मूल धारणा के अनु प हो।

2.7 परारा स ब ध
मनु ने एक रा य को अ य रा य से कस कार के स ब ध वक सत कर वजयी
एवं शि तशाल ि थ त हा सल करनी चा हए, इसके कई स ा त एवं वक प दये है। इसम

30
म डल स ा त, ष गु य नी त, उपाय, यु आ द के अलावा राजदूत व कू टनी त स बि ध
वचार पर हम यहां काश डालेगे :

2.7.1 म डल स ा त

म डल स ा त अ तरा य स ब ध के सुचा संचालन के लए रा य के वग करण


पर बल दे ता है। यह स ा त इस मा यता पर आधा रत है क एक सफल और वजय चाहने
वाले शासक को श ओ
ु ं क सं या कम से कम और म क सं या अ धक से रखने का
यास करना चा हए। मनु के म डल (समू ह) स ा त म कु ल 12 सद य रा य बताये गये है,
िजसका के वजी गषु ( वजय चाहने वाला राजा) है। रा य म डल के अ य रा य का
वग करण इसी वजी गषु के संदभ म कया गया है।
रा य म डल म सि म लत इन 12 रा य को चार भाग म बांटा गया है, म , श ,ु
उदासीन एवं म यम। िजन रा य क भौगो लक सीमाएं आपस म मलती है, उ ह मनु ने श ु
रा य माना है, जब क िजस रा य क सीमाएं श ु और म दोन कार के रा य से मलती
है, उसे म यम रा य कहा गया है। इन सभी से भ न रा य को मनु ने उदासीन रा य क
ेणी म रखा है।
वजी गषु के रा य क पीछे क सीमा से लगा हु आ रा य 'पाि ण ाह' (पीठ का श ु
और पाि ण ाह क सीमा से लगा हु आ रा य पाि ण ाह सार और आ ा दा सार कहे गये है।
इन रा य के अलावा म यम तथा उदासीन दो रा य ओर है। म यम रा य वजी गषु तथा अ र
रा य क सीमा से लगा हु आ होता है, जब क उदासीन रा य क सीमाओं से दूर होता है। इस
कार बारह रा य का यह समू ह 'रा य म डल' या म डल स ा त कहलाता है। िजसम रा
म डल के पांच सद य रा वजी गषु के अ भाग के तथा चार पृ ठ भाग के, एक म यम,
एक उदासीन एवं वजी गषु वयं शा मल है।
रा य म डल म शि त संतु लन को हा न पहु ँ चने पर रा य क सु र ा खतरे म पड़
सकती है। अत: राजा को ऐसी नी त और योजना बनानी चा हए क शि त संतल
ु न हमेशा उसके
प म रहे । मनु ने येक राजा का यह क त य माना है क म डल स ा त के आधार पर
जो रा य उसके म हो सकते है वह उनके साथ मै ी संबध
ं को और अ धक मजबूत करे तथा
जो रा य उसके श ु है, उन रा य को कमजोर करे और श ु रा य को इस कार से नयं त
करे क वे श ु के प म स य होने का साहस न कर सक।
इस कार म डल स ा त के मा यम से मनु ने शासक के सम , उसके सीमावत व
अ य नकटवत रा य का एक ववेक स मत व वै ा नक वग करण तु त कया है, ता क
शासक कसी रा य– वशेष के संबध
ं म नी त– नधारण करते समय यह सोच– वचार कर ले क
उसक नी त क अ य रा य से या त या आयेगी। शासक को चा हए क श ु राजाओं से
पृथक –पृथक या मलकर साम, दाम, द ड और भेद आ द उपाय से तथा पु षाथ और नी त से
अ य रा य को वश म कर। शासक को ऐसी योजना बनानी चा हए क अपने रा य का भेद
अ य रा य न जान सके तथा अ य रा य क गु त योजना वयं के पास आती रहे।

31
2.7.2 ष गु यनी त

म डल स ा त म जहाँ वजी गषु रा य के अ य रा य से स ब ध का आंकलन


कया गया है, वह ं ष गु य नी त एक रा य वारा दूसरे रा य के त कसी वशेष प रि थ त
म अपनायी जाने वाल नी त के ऐसे वक प तु त करती है, जो रा य के लये लाभदायक
हो। इसके लए मनु मृ त म िजन छ: वशेष गुण का वणन कया गया है, उ ह ह ष गु य
नी त कहा जाता है। इसके मु ख त व इस कार है:–
(i) सि ध:– राजा वारा अपने रा य के ता का लक अथवा भावी लाभ को यान म रखते हु ये
कसी दूसरे रा य से म ता कर लेनी चा हये। इसे ह मनु ने सं ध नाम गुण क सं ा द है
मनु ने सं ध के दो कार बताये है:– पहला लाभ क इ छा से कसी दूसरे राजा से मलकर श ु
पर चढ़ाई करना समानधम सं ध है। दूसरा कसी राजा से आप इधर जाइए, म उधर जाता हू ं
ऐसा कह कर अलग–अलग चढ़ाई करना असमान धम 'सं ध कहलाती है।
(ii) व ह (यु ):– राजा वारा दूसरे रा य पर कये गये आ मण को व ह कहा जाता है।
इसके दो भेद है :– पहला, श ु क कमजो रय क पूण और पूर जानकार लेने के बाद वजय
के उ े य से कया गया आ मण और व ह तथा दूसरा, अपने म पर कये गये आ मण के
जवाब म उसक र ा के लये कया गया व ह। ले कन मनु का नदश है क अपने रा य'
सभी ि थ तयां अनुकूल होने पर ह व ह क नी त अपनायी जानी चा हए।।
(iii) यान:– वजय ा त करने अथवा श ु को पी ड़त करने के उ े य, से एक रा य वारा दूसरे
रा य पर कये गये आ मण को यान कहा गया है। यान के दो कार है :– श ु को संकट म
दे खकर समथ रा य वारा उस पर कया गया आ मण थम यान कहा है, जब क
आ मणक ता रा य वयं समथ न होने पर म क सहायता से कये जाने वाले को वतीय
यान कहा गया है। यान के संदभ म मनु का नदश है क वयं क सेना के होने तथा श ु प
के दुबल होने पर ह इस गुण का सफल योग संभव है।।
(iv) आसन:– श त
ु ा पूण संबध
ं के बावजू द रा य वारा यु क ि थ त को न अपनाकर थोड़े
समय के लये उदासीन या तट थ रहकर ती ा करना आसन है। यह थोड़े के लये अपनायी
जाने वाल नी त है ता क श ु को शा त रखकर वयं शि त अिजत क जा। मनु ने आसन के
दो प बताये है:– थम, सेना या कोष के कमजोर होने पर अपनाया गया आसन तथा दूसरा,
म के आ ह पर अपनाया गया आसन।।
(v) ैधी भाव :– मनु के अनुसार , जब राजा अपनी सेना को दो भाग ' बांट कर एक भाग को
कसी थान पर सेनाप त के अधीन रखता है तथा दूसरे भाग को वंय अपने अधीन दूसरे
थान पर रखता है तो यह ैधी भाव कहलाता है। इस गुण के योग के बारे म मनु क राजा
को राय है क य द वह श ु को अ धक शि तशाल समझता है तो सेना को उपरो त दो ' म
बांट ले। सेनाप त के अधीन सेना का भाग श ु प क सेना को रोके रखने का काम करे ! तथा
बाक सेना के साथ राजा सु र त थान पर रहते हु ए म आ द क सहायता से शि त कार
संचय करे ।

32
(vi) सं य:– सं य का अथ है बलवान का आ य लेना। य द राजा ' ैधी ' भाव क रणनी त
अपनाकर भी अपनी र ा करवाने म असमथ हो, तो उसे बलवान राजा का आ य लेना चा हए।
ले कन मनु का मानना है क सहारा ऐसे राजा का लेना चा हए जो श ु यादा ताकतवर हो।
यह सं य श ु से पी ड़त होने रार या पी ड़त होने क आशंका पर आ मर ाथ लया जा सकता
है। ष गु य नी त यु क आशंका तथा यु काल म राजा वारा जाने वाल साम रक नी त एवं
रणनी त का ववेचन करती है। जहां तक शाि तकाल म पर रा स ब ध के संचालन का
सवाल है, मनु ने कू टनी त पर बल दया है। िजसक मह वपूण कड़ी राजदूत है। मनु क
मा यता है क रा य को आपस म राजदूत क अदला – बदल करनी चा हए। ' मनु ने
राजदूत क यो यता के लये उसका श , मनो व ान, ष गु य नी त का ाता होने के साथ–
साथ चतुर , कु ल न, नल भी होना आव यक माना है। उनके अनुसार , राजदूत ह म को व
बगाड़ने वाला होता है तथा यु एवं शाि त क चाबी भी उसी के हाथ म होती है। इसके कु शल
गु तचर यव था को भी रा य क शि त का आधार माना गया है।
बोध न – 3
न : ष गु यनी त मे व णत छ: गु ण कौन से है
उ तर : ……………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………….

2.7.3 उपाय

उपाय का अथ उस साधन से है िजसे वदे श नी त के सफल संचालन के लये अपनाया


जाता है। अ य भारतीय राजनी तक च तक के समान मनु ने भी चार उपाय का वधान कया
है जो साम, दाम, द ड, भेद के नाम से जाने जाते है
(i) साम:– साम का अथ है वशेष ेम तथा स मान दशन वारा दूसरे राजा को अपने
प म करने का यास करना।
(ii) दाम:– धन – स पि त अथवा अ य कसी प म सहायता दे कर तप को अपने
अनुकू ल बनाने का उपाय 'दाम’ कहा जाता है।
(iii) भेद:– सबल श ु को कमजोर करने के उ े य से उसके प म फूट डालने क नी त
'भेद' है। भेद के उपाय को दो तर क से अपनाया जा सकता है। थम, सबल श ु
रा य तथा उसे म राजाओं के म य मतभेद पैदा करना। दूसरा स बि धत राजा और
उसके रा य क अ य कृ तयां – यथा, अमा य, सेनाप त, जाजन आ द के बीच
मतभेद क ि थ त पैदा करना। मनु क मा यता है क इस उपाय का योग दूत तथा
गु तचर क सहायता से कया जा सकता है।
(iv) द ड – 'द ड' से ता पय, शि त के योग से ह है। इस उपाय का उ े य है बलपूवक
अथवा यु वारा श ु को अपने अनुकू ल बनाने के लए बा य करना। ले कन मनु का
यह भी वचार है क द ड के उपाय का योग तभी कया जाना चा हए जब क अ य
तीन उपाय साम,दाम,भेद साथक ना ह । मनु के अनुसार राजा साम, दाम और भेद क

33
नी त का एक–एक करके या सि म लत प से योग करके अ य रा य क जीत म
य न करे , यु वारा नह ।ं य क यु से दोन प का ह नाश होता है। ले कन
आव यक होने पर नःशंक होकर यु करना का आ य लया जाना चा हए।

2.7.4 यु

ाचीन भारतीय पररा स ब ध का धान व नणायक आधार यु होने के कारण


मनु ने तैयार आव यकता, यु संचालन से लेकर वजय ाि त तक क रणनी त का ववेचन
कया है। यु म श ु से सामना करने क ि थ त को न वक प बताते हु ये मनु ने अ ान कया
है क यु म वजय ा त करने से रा य को लाभ होता है तथा लड़ते हु ये मरने से वग लाभ
होता है। इस लए मनु ने यु से डरकर न भागने को राजा का धम (क त य) कहा है।
मनु मृ त म यु म काम आने वाले अ –श के वणन के साथ ह यह भी कहा गया है क
सोते हु ये, कवच र हत, नंग,े श से र हत, यु न करते हु ए और दूसरे के साथ यु म भड़े
यो ा को नह ं मारना चा हए। ये नयम बताते है क मनु भी धम यु का समथन करते थे।
मनु के अनुसार , वजेता राजा वारा परािजत राजा के त स दयता का यवहार कया
जाना चा हए तथा परािजत रा य के लोग के धम, र त– रवाज, मयादाओं एवं पर पराओं का
स मान कया जाना चा हए।

2.8 मनु और कौ ट य
ाचीन भारतीय राजनी तक च तन के पुरोधा मनु तथा कौ ट य क सं त क तु
तु लना मक चचा अ ययन को सम ता दान करे गी। सव थम, य द हम समानता क बात कर,
तो पाते है क दोन ने अपने समय म च लत वणा म यव था को वीकार करते हु ये
ा मण वण को सव च तथा शू वण को न न थान दया है। मनु तथा कौ ट य दोन ने
चार पु षाथ – धम, अथ, काम और मो को जीवन के ल य के प म तपा दत कया है।
रा य क उ पि त के बारे म मतभेद होते हु ये भी दोन वचारक नरं कु श राजतं के वरोधी है,
और इसी लये ' राजा के गुणो , श ण तथा क त य पर बल दे ते हु ये राजा क दनचया भी
नधा रत करते है। मनु क भां त कौ ट य ने भी रा य को स तांग माना है, भ नता यह है
क मनु का रा कौ ट य जनपद है और मनु का पुर कौ ट य का दुग। दोन क ि ट म
रा य के उ े य ाय: समान है द डनी त के सव च मह व को वीकार करते है। इसी कार
ं ी ' वचार म समानता दखाई दे ती है।
याय तथा कर यव था संबध
उपरो त समानताओं के अ त र त दोन के च तन म असमानता पायी जाती है।
सव थम मनु ने सृि ट नमाण क बात क ले कन कौ ट य इस वषय म मौन है। रा य क
उ पि त के दै वीय स ा त के प धर है जब क कौ ट य ने सामािजक अनुब ध पर दया है।
कौ ट य ने मनु क अपे ा शास नक यव था का अ धक वरतृत वणन कया। इन
समानताओं तथा असमानताओं के संदभ म मह वपूण त य यह है क कौ ट य तथा वशेष प
से मनु के जीवन तथा रचनाकाल के बारे म व वान म बहु त अ धक मतभेद होने के कारण
यह है क कसने कसका अनुसरण कया है। क तु इतना नि चत है क दोन के च तन म

34
व यमान मह वपूण समानताओं ने स दय तक भारतीय सामािजक तथा राजनी तक च तन
एवं यवहार को नणायक प से दशा द है।

2.9 सारांश
मनु भारतीय सामािजक तथा राजनी तक च तन के मु ख सं थापक है। मनु मृ त
मु यत: राजनी तक कृ त का थ न होने के कारण राजनी तक यव था को अि त व दान
करने क अपे ा उसे सामािजक यव था क उपलखता के प म न पत गया है, क तु फर
भी मनु ने राजनी तक सं थाओं के सै ां तक एवं यावहा रक प पर अपे त भाव डाला है।
इसम जीवन के व वध प का इतना व तृत ववेचन कया गया है क यह जीवन ' जनता
के लए एक सम आचार सं हता के प म मह वपूण बन गई।
मनु ने सामािजक दशन के वभ न प पर व तार से काश डाला। सामािजक
यव था के स ब ध म नै तक आधार , समाज के संगठन एवं व भ न वण के म य स ब ध '
के वषय म व तृत नयम का तपादन करके मनु ने एक समृ सामािजक दशन दया। इसी
दशन के अनु प मनु ने मानव मा के क त य एवं वधम पालन पर भी बल दया। उनके
च तन 'यथाथ और नै तकता क धानता है, क तु उ लेखनीय है क वणा म पर आधा रत
उनक समाज यव था मानवीय समानता एवं वतं ता पर आधा रत नह ं है। व तु त: शू और
ि य के त' का ग भीर पूवा ह है। मनु शू को वतं नाग रक नह ं मानते और ी
वतं ता का भी उ होने' नषेध कया है। इस कार सामािजक असमानता का पोषण मनु के
सामािजक च तन का एक दुबल प है।
मनु ने रा य क उ पि त के दै वीय स ा त को अपनाते हु ये भी नरं कु श राजतं को
अ वीकार कर राजा को धम तथा सदाचरण के नयम से बांधा है। मनु मृ त म स भु ता,
राजधम तथा रा यता जैसे आधु नक न क उस समय ववेचना क जब क पा चा य
दाश नक उनक क पना भी नह ं कर सकते थे।
मनु ने यायाधीश क यो यताओं, यायपा लका के संगठन, या यक या,अपराध
तथा द ड के वग करण आ द का यवि थत तपादन कर भारतीय याय शा फ़ मौ लक
योगदान दया, तथा प समान अपराध के लए सभी वण के लए समान द ड का वधान नह ं
कया गया है।
मनु के पररा नी त स ब धी वचार अ तरा य राजनी त के मह वपूण स ा त है।
ष गु य नी त एवं म डल स ा त कसी दे श क वदे शनी त के लये आज भी मानक स ा त
है। मनु का यह वचार भी दूरद शतापूण एवं मानव जा त के हत के लए है क दो रा य के
म य यु के वक प को अं तम वक प के प म ह अपनाया जाना चा हए।
इस कार मनु के च तन का मह व इस त य म न हत है क मनु ने यूनान के
राजनी तक दाश नक से भी स दय पहले राजनी तक सं थाओं के व वध प का यवि थत
ववेचन कया। ले कन हमारे यहाँ मनु क अपे ा यूनानी राजनी तक च तन को अ धक मह व
दे कर उसी के मानद ड पर मनु तथा अ य भारतीय राजनी तक मनी षय का अ ययन कया
जाता रहा है। व तु त: मनु कसी एक रा व जा त के न होकर सारे व व के ह। य य प

35
उनके ी तथा शू स ब धी वचार अ ासं गक है क तु इससे उनके च तन का मह व कम
नह ं हो जाता है। उनके च तन ने आज तक ह दू समाज यव था का माग न द ट कया है।
क तपय दुबलताओं के साथ, मनु के वचार का मह व सावभौ मक एवं सावका लक है।

2.10 अ यास न
न 1 मनु के राजनी तक दशन क ववेचना क िजये।
न 2 मनु के पररा स ब धी वचार पर काश डा लये।
न 3 मनु के स तांग स ा त क या या क िजये।

2.11 संदभ थ सू ची
1. बी.ए. सैलेटोर : ए येट इं डयन पोलो टकल थॉट एंड इनि ट यूश स, ए शया पि ल शंग
हाउस , नई द ल
2. कु लू क भ : मनु मृ त , चौख भा सं कृ त सं थान,वाराणसी,1992.
3. पी. वी. काणे : धमशा का इ तहास , उ तर दे श ह द सं थान, लखनऊ(भाग
4. थम, वतीय) चतुथ सं कारण 1992.
5. परमा मा शरण : ाचीन भारत मे राजनी तक वचार एवं सं थाएँ, मीना ी काशन,
मेरठ. 1979
6. वी.आर.मेहता : फाउ डेश स ऑफ इं डयन पो ल टकल थॉट – एन.इं ड शन, मनोहर, नई
7. द ल 1966

36
इकाई –3
कौ ट य
इकाई क परे खा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 कौ ट य का जीवन प रचय
3.3 कौ ट य के अथशा क वषय व तु
3.4 कौ ट य के राजनी तक वचार
3.4.1 रा य क उ पि त संबध
ं ी वचार
3.4.2 रा य का योजन एवं स भु ता
3.4.3 रा य क यो यता एवं दनचया
3.4.4 राजा पर नय ण
3.4.5 रा य के उ े य
3.4.6 कौ ट य क सा तॉग रा य क धारणा
3.4.7 रा य का काय– े
3.4.8 मं प रषद गठन एवं काय
3.4.9 शास नक यव था
3.5 कौ ट य के सामािजक यव था संबध
ं ी वचार
3.5.1 वण यव था
3.5.2 आ म यव था
3.6 कौ ट य के याय यव था एवं कानून संबध
ं ी वचार
3.6.1 यायालय के कार
3.6.2 यायालय का संगठन
3.6.3 व ध (कानून ) के स ोत
3.6.4 द ड यव था
3.7 कौ ट य के आ थक वचार
3.8 कौ ट य क पर–रा नी त स ब धी धारणा
3.8.1 पर–रा स ब ध का सै ाि तक प
3.8.2 पर–रा स ब ध का यावहा रक प
3.9 राजनी तक च तन को कौ ट य क दे न
3.10 सारांश
3.11 अ यास न
3.12 स दभ थ सू ची

37
3.0 उ े य
इकाई के अ ययन के उपरांत आप जान पायगे–
 कौ ट य के अथशा क वषय व तु
 कौ ट य के राजनी तक वचार वशेषत: रा य व रा य का स तांग स ा त
 अथशा म व णत सामािजक–आ थक तथा याय स ब धी वचार
 कौ ट य क पर–रा स ब धी धारणा, एवं
 राजनी तक च तन को कौ ट य का योगदान।

3.1 तावना
'कौ ट य' भारतीय राजनी तक वचारक म मह वपूण थान रखता है। कौ ट य क
रचना 'अथशा ' राजनी तशा क मह वपूण पु तक म से एक है। कौ ट य' के स दभ म
अ ययन राजनी त व ान के व याथ के लए अ य त आव यक है। अत: अ ययन सु वधा क
ि ट से स पूण अ याय को कु छ ख ड म वभ त कया गया है ता क कौ ट य के वचार का
साँगोपॉग अ ययन स भव हो सके।
अ याय के ख ड 3.2 म कौ ट य के जीवन च र को उ घा टत कया गया है तथा
ख ड 3.3 म उनक रचना 'अथशा ' के वषय म बताया गया है। इसके प चात ् कौ ट य के
वचार का उ लेख ख ड 3.4 म उसके राजनी तक वचार का वश ववेचन कया गया है एवं
ख ड 3.5 म सामािजक वचार क जानकार द गयी है। ख ड 3.6 म कौ ट य वारा व णत
याय यव था के बारे म ववेचन कया गया है तथा ख ड 3.7 उनके आ थक वचार से
स बि धत है। ख ड 3.8 कौ ट य के 'पर–रा ' स ब धी वचार को उ ृत करता है इस ख ड
को अ ययन सु वधा क ि ट से पुन : दो भाग म वभ त था। पर–रा स ब ध के
सै ाि तक एवं यावहा रक प क जानकार समा हत क गयी।

3.2 जीवन प रचय


ाचीन भारतीय राजशाि य म कौ ट य का बहु त मह वपूण थान है, क तु हमारा
समाज िजस आचाय को कौ ट य के नाम से जानता है, उसका वा त वक नाम व णु गु त शमा
है और भारतीय जनमानस उसे ह चाण य के नाम से जानता है। य य प चाण य नाम उसके
पता का है, क तु जनमानस ने वयं कौ ट य को चाण य नाम से याद करता है। गणप त
शा ी के अनुसार को ट य नाम एक ु ट का प रणाम है जो लेखक एवं पाठक वारा क गई
ह उनके अनुसार ' कौ ट य' एक ृ ष का नाम है िजसने ' कौटल ' गौ क थापना क ।
कौटल गौ म ज म लेने के कारण व णु गु त को कौट य कहा गया कौ ट य नह ।ं कौ ट य
कपट एवं झू ठ के अथ म यु त कया जाने वाला नाम है। अथशा म रा य क सु र ा के
उपाय क ववेचना के म म कौ ट य ने अनेक ऐसे उपाय का च ण कया है िज ह नै तक
नह ं माना जा सकता। संभवत: इसी कारण कु टलता या धू तता के अथ म भी कौ ट य श द का
उ लेख कया जाने लगा।

38
कौ ट य के काल के वषय म व वान म मतै य नह ं है। द कैि ज ह ऑफ
इि डया म अथशा क रचना का समय 300 वष ईसा पूव माना गया। बी० ए० सालेटोर ने
कौ ट य के काल और अथशा के रचना काल को 400 से 300 ई०पू० माना है।
कौ ट य के ज म थान के संबध
ं म म भी व वान म मतै य नह ं है। वैसे बौ
म थ म कौ ट य का ज म थान त शला माना है। जब क जैन थ
ं म ' कौ ट य का ज म
थान अवणवेई मैसू र रा य का गोल दे श माना है। कु छ ने नेपाल के तराई इलाके को
कौ ट य का ज म थान माना है।
कौ ट य ने एक श क के प म तथा श एव शा के ाता के प म अ छ
या त अिजत क । कहा जाता है क उस समय का कोई ऐसा शासक नह ं जो इनक नी त से
भा वत न हु आ हो। कौ ट य को एक ढ न चयी तथा अ ु त इ छा शि त के व वान के प
म जाना जाता ह उनक इस या त के साथ एक घटना जुड़ी हु ई है, कहते ह मगध के अि तम
महाराजा न द (योगान द) थे अपने मं ी शकटार को ा के लये ा मण को एक करने के
लए कहा। शकटार राजा वारा पूव म कये गये कसी अपमान से पी डत था अत.' वह एक
ऐसे ोधी ा मण क तलाश म था जो ा म उपि थत होकर राजा को अपने म तेज
भरम कर दे । खोज करते हुए उसने एक कु प, कृ णकाय ा मण को दे खा जो कसी जंगल म,
कांटेदार झा ड़य को काट रहा था और उनक जड़ म ख ा दह डाल रहा था। शकटार वारा '
कारण पूछे जाने पर उस ा मण ने कहा, इन झा ड़य के क ट के चु भने से मेरे पता दे हा त
हु आ, अत: म इ ह समूचा न ट कर रहा हू ँ। '' इस ोधी ा मण को शकटार ने उपयु त
नम ण–यो य ा मण जाना और उससे महाराजा न द वारा आयोिजत मभोज म उपि थत
होने क ाथना क । ा मण ने इस नम ण को सहष वीकार कर लया। नयत समय पर
जब ा मण म भोज के लए उपि थत हु आ, म ी शकटार ने आदरपूवक उसे सव थम
आसन पर वराजमान। मभोज आर भ होने पर जब महाराज न द ा मण का दशन करने
के लए आये तो सव थम एक कु प, कृ णकाय, भीषण यि त को दे खकर अ त कु होकर
कहने लगे, “इस चा डाल को म भोज म य लाया गया है' ' ा मण इस अपमान को सहन
न कर सका और उसने भोजन छोड़कर त काल अपनी शखा खोलते हु ए यह त ा क क
'जब तक म न द वंश को समूल न ट करके अपने इस अपमान का बदला नह ं ले लूँगा, तब
तक म शखा ब धन न क ँ गा और इ तहास इस बात का सा ी है क उसने ऐसा ह कया।

3.3 कौ ट य के अथशा क वषयव तु


अथशा के रचनाकाल के बारे म व वान एक मत नह ं है। जहाँ ए०वी० क थ जैसे
व वान अथशा को ईसा क मृ यु के बाद तीसर शता द क रचना मानी ह। वह शाम
शा ी, डा० के० पी० जयसवाल, बी०ए० ि मथ एवं आर के मु खज जैसे व वान ् इसे क रचना
मानते ह। कौ ट य का अथशा , अं ेजी के श द 'इकोनो म स' का पयावाची नह ं है। वा तव
म यह शासन कला एवं राजनी त पर लखा गया एक महान ् ं है। मथ ह कु ल 15 अ धकरण

है। थम अ धकरण म रा य के शास नक वभाग , संगठन और पदा धका रय से स बि धत

39
ह तीसरे व चौथे अ धकरण मश: रा य क द वानी और फौजदार या यक से स बि धत है।
पाँचवे अ धकरण म राजक य कमचा रय के अनुशासन, अ धकार और दा य व का वणन है।
छठे अ धकरण म रा य क सात कृ तय का ववेचन मलता है। आठवाँ अ धकरण यु ,
वजय, पराजय तथा सेना स ब धी यव थाओं से स बि धत ह नव अ धकरण म वजय के
लए जाने से पूव वचार करने यो य वषय से स बि धत है। दसव अ धकरण म यु नी त से
स बि धत है। यारहव अ धकरण म आपातकाल न ि थ त म श ु नाश अथवा उसके वश म
करने उपाय का वणन ा त होता है। बारहव और तैरहव अ धकरण म व श ट प रि थ तय म
राजा वारा अपनाये जाने वाले र ा स ब धी उपाय का ववेचन है। चौदहव अ धकरण म श –ु
नाश के वषैल औष धय , म आ द का वणन है। प हवाँ अ धकरण मु यत: अथशा के
अथ क से स बि धत है।
इस कार अथशा क वषय व तु रा य क सम त आव यकताओं का व तृत
ववरण है और इसी लए यह एक महान थ
ं है।

3.4 कौ ट य के राजनी तक वचार


अथशा म उपल ध रा य स ब धी सम त ववरण का अ ययन अ ल खत ब दुओं
के मा यम से कया जा सकता है।

3.4.1 रा य क उ पि त

कौ ट य ने रा य क उ पि त के स दभ म सं वदावाद वचार को वीकार कया है।


कौ ट य अपने रा य क उ पि त के स ा त म मनु क अपे ा हा स के यादा नकट है।
कौ ट य ने रा य को मानवीय य न का प रणाम माना। उसके अनुसार यि तय को अपनी
सु र ा के लए रा यस ता को वीकार कया। उनके अनुसार रा य 'धम' के मा यम से जनता
के यवहार को नयं त करता है।
कौ ट य ने अथशा म रा य से पूव क अव था का च ण करते हु ए कहा है क
समाज म रा य के अभाव म अराजकता या त थी और चार ओर अ याय, उ पीड़न व भय का
वातावरण या त था। इस ि थ त से मु ि त के लए लोग ने वव वान के पु (वैव वत मनु)
को अपना शासक नयु त कर दया और उससे यह समझौता कया क वे अथात ् जाजन
उसके अथात शासक के त सदै व आ ाका रता का भाव रखगे और उसक आय का एक
नि चत भाग शासक को कर प म दान करगे और शासक इसके बदले जा के योग ेम
क यव था करे गा। इस कार कौ ट य ने प टत: रा य क उ पि त के सं वदावाद स ा त
को वीकार कया है।

3.4.2 रा य योजन और स भु ता

कौ ट य ने रा य क उ पि त के संग म यह प ट कर दया है क रा य एक
नि चत योजन को पूरा करने के लऐ अि त व है। अत: वह ाकृ तक सं था नह ं है।
कौ ट य के अनुसार रा य का उ े य जा क सु र ा व उसके क याण को सु नि चत कराना है।
कौ ट य ने ान या व या क व भ न शाखाओं के ववेचन के संग म यह प ट कया है
40
क रा य सं था का उ े य, यि तय के लौ कक और पारलौ कक, नै तक व भौ तक उ े य क
पू त तथा उनके म य याय–स मत स तुलन को बनाये रखाना है।
कौ ट य ने ान क शाखाओं के ववेचन तथा इनके म य पार प रक स ब ध के
न पण के मा यम से व तु त: रा य के अि त व के योजन को प ट करने का यास कया
है। ान क चार शाखाओं यी, वाता, आ वी क व द ड नी त को कौ ट य ने मश: मानव
जीवन के नै तक व भौ तक योजन के त यि त के संतु लत ि टकोण तथा इन योजन
को यि त के जीवन म घ टत करने के लऐ उ तरदायी सं थागत यव था के प म च त
कया है।
कौ ट य ने यी का स ब ध नै तक और पारलो कक उपलि धय से माना है। वाता को
कौ ट य लौ कक उपलि धय और भौ तक स पदा तथा उसके अजन के लऐ कये जाने वाले
मानवीय याकलाप से स बि धत मानते है। आं व क यी और वाता के त यि त के
य न तक, ववेक, संतल
ु न व याय के योग से स बि धत है और आन व क से न द ट
होने पर यि त के आचरण म नै तक और भौ तक क याण के त य न का याय स मत
संतु लन बना रहता है। द ड नी त, यी और वाता के लए कये जाने वाले य न , नदशन
तथा आनव क वारा नधा रत मापद ड क याि वती के लऐ उ तरदायी है। कौ ट य द ड
नी त अ ा त को ा त करने, ा त को संर त करने, संर त का संव न करने, संव त को
सु यो य यि तय को म य वत रत करने के लए याशील माना है। रा य को द डनीय नी त
को याि वत करने का सं थागत मा यम माना है।
कौ ट य ने द ड को एक ऐसी भौ तक शि त माना ह, िजसे धम क र ा व तपादन
के लए यु त कया जाता है। ले कन यह द ड शि त केवल भौ तक शि त ह नह ं है, बि क
तीन अ य त व, भौ तक शि त को संचा लत करते ह।
थम– शि त का योग धम क सु र ा के लऐ हो, वाथ पू त के लए नह ।ं
वतीय–यह शि त मा ा तथा कृ त म ऐसी हौ िजसे लोग अलग–अलग या संग ठत प म
चु नौती न दे सक।
तृतीय – इस शि त का योग कसी अ धकृ त सं था वारा कया जाये।
कौ ट य ने रा य को ऐसी अ धकृ त सं था माना है। जो धम के संर ण के लऐ
भौ तक शि त का योग करती है। िजसके वैध नयं ण का लोगो वारा चु नौती नह ं
द जा सकती, अत: रा य वारा युकाशाक को कौ ट य ने द ड क सं ा द है। यह
द ड शि त ह रा य क स भु ता का आधार है।

3.4.3 राजा क यो यता एवं दनचया

कौ ट य के अनुसार यो य राजा ह जा से राजभि त पा सकता है और जा से


अपनी आ ा का पालन करा सकता है। कौ ट य राजा के गुण को ‘आ मस पदा अथवा
वामीस पद का नाम दे ता ह। आ मस पद के अ तगत आि मक, बौ क गुण एवं यो यताओं
का उ लेख कया गया है। उसके अनुसार वह उ चकु ल का हो, उसम दै वीय बु तथा दै वीय

41
शि त हो, स य भाषण करने वाला हो, पररपर वरोधी बात न करे , कृ त हो, उसका ल य
ऊँचा हो था वह साम त राजाओं को अपने वश म रखने क साम य रखता हो। कौ ट य का
मत है क का श त होना तथा ानी होना आव यक है। राजा को षटताप से अपने को
बचाये रखना झा हए। ये षटताप ह– काम, ोध, मद, लोभ, मोह एवं मतसर। जो राजा अपनी
इि य पर नय ण नह ं रख सकता है वह रा य करने यो य नह ं ह। शासन को चलाने के
लए राजा म राजनी त, कू टनी त, यु व या , वदे शनी त, श एवं सै य–संचालन क पूण
यो यता एवं द ता होगी चा हए।
कौ ट य मानता है क जा राजा का अनुसरण करती है य द राजा आलसी और माद
होगा तो जा भी आलसी और माद होगी। अतएव राजा को सदा उ न तशील बना रहना
चा हए ता क सारे राजकमचार व जा भी उ न तशील बन सक। इस लए कौ ट य ने राजा क
य त दनचया का उ लेख कया है उसने दन और रात को 16 भाग म बाँटा है– दन के
आठ भाग अथवा आठ घड़ी तथा रा के आठ भाग अथवा आठ घड़ी। दनचया दन क थम
घडी म राजा को जा क र ा– यव था तथा गत दवस के आय– यय का अवलोकन करना
चा हए। दूसर घड़ी म उसे वरा य जन का अवलोकन तीसर घड़ी म नान, भोजन,
वा याय तथा व ाम चौथी घड़ी म व त वभाग का नर ण पाँचवी घड़ी म मि य व ' से
परामश, छठ घडी म आमोद– मोद सातवीं घडी म सेना का नर ण आठवीं घड़ी म योजनाओं
पर वाताय एवं योजना का नमाण करना चा हए।
रा क थम घड़ी म गु तचर से वाता दूसर घड़ी म नान, भोजन एवं वा याय,
तीसर घड़ी म मनोरं जन, चौथी एवं पाँचवी घड़ी म शयन छठ घड़ी म अगले दन क योजना
का नमाण सातवीं घड़ी म गु तचर से वचार वमश व काय नधारण और रा अि तम हर
अथात आठवीं घड़ी म मंगलपाठ करना चा हए। सं ेप म राजा को वयं रहकर नधा रत नी तय
के अनुसार काय करना चा हए।

3.4.4 राजा पर नयं ण

राजा को यापक शि तयाँ दान करते हु ऐ भी कौ ट य ने उसक शि तय को


असी मत अथवा नरं कु श नह ं माना है। राजा को अनुशा सत रखने के लए अनेक कार के
नयं ण क यव था क है। िज ह न न अनुसार समझा जा सकता है :–
(i) जनमत का नयं ण
कौ ट य ने राजा को जनता तथा जनमत का पूण स मान करने का परामश दया है।
कौ ट य का यह प ट मत है क शासक जनमत क अवेहलना नह ं कर। य द वह जनता के
हत एवं मत क अवेहलना करता है तो उसके ग भीर प रणाम हो सकते है। इस स दभ म
कौ ट य का वचार है क, '' नरं कु श राजा क अपे ा राजा का आ य ा त नह ं होना ह
अ धक अ छा है।“
(ii) धम एवं सदाचार का नयं ण
कौ ट य ने राजा क स ता को धम के अधीन माना है। यहां धम का अथ वेद एवं
मृ तय (धम शा ) म व णत नै तक मू य के पालन से ह, िजनम स य, अ हंसा, दया,
42
इि य संयम आ द मु ख है। राजा को जाजन वारा वीकृ त सदाचार का भी पालन कराना
चा हऐं, जो पर परा, र त– रवाज, धा मक अनु ठान आ द के प म हो सकता है। कौ ट य के
अनुसार राजा को परािजत रा क जा के धम का भी स मान करना सहयोग करते है।
क तु जब राजा धम व सदाचार का उ लंघन करता है और वे छाचार एवं अमया दत प से
राजस ता का योग करता है तो अनेक लौ कक व पारलौ कक क ट को भोगता है।
(iii) राजा क श ा तथा श ण
कौ ट य ने राजक य दा य व जैसे ग मीर काय को स पादन करने के लऐ राजा म
वशेष गुण का होना आव यक माना ह और इन गुण के वकास के लए राजा के उपयु त
श ण व श ण पर बल दया है। कौ ट य के अनुसार य द समु चत श ा व श ण वारा
नै तक गुण को राजा के आचरण का ह सा बना दया जाये तो वह अनुशा सत रहे गा।
(iv) मं प रष का परामश
कौ ट य के अनुसार राजा शासन शि त का योग अकेले नह ं कर सकता। वह इस
शि त का योग मं –प रष के परामश से ह कर सकता है। य क वह मानता ह क
रा य पी रथ के दो प हये ह:–राजा तथा मं –प रषद। कौ ट य ने प ट कया है क यद
मं प रष को कोई परामश यायो चत है क तु राजा क इ छा के अनुकू ल नह ं है। फर भी
उसे वीकृ त करना होगा। य द राजा मं –प रष के परामश को नह ं मानता तो उसके ग भीर
प रणाम हो सकते है। इस लए राजा को मं य के ववेकपूण परामश को मानना चा हऐ। इस
कार मं –प रष का परामश राजा क शि त पर एक भावशाल नयं क है।
कौ ट य के अनुसार रा य क आ त रक वपदाओं म सबसे अ धक भयावह जा का
कोप होता है, अत: उ ह ने राजा को परामश दया है क वह सदै व ऐसे य न कर क जाजन
उसक नी तय व आचरण से स तु ट रह।
कौ ट य के अनुसार राजा को त दन अपने दरबार म जाजन क सम याओं को
सु नना चा हये और जा के क ट क य जानकार के लए रा य का मण, कराना चा हए।
इसी कार राजा को गु तचर क मदद से यह पता लगाते रहना चा हऐ क जाजन उसक
नी तय से स तु ट ह अथवा नह ।ं कौ ट य काल न राजतं के बारे म एम० वी० कृ णराव का
मत है क 'राजा वंय को जा के त न ध के प म मानता है। '
सं ेप म यह कहा जा सकता है क य य प कौ ट य ने राजा शासन क सव च
शि त दान क ह, क तु उ ह ने कसी भी प म राजा क नरं कु शता एवं का समथन नह ं
कया है। बी० डी० केला के अनुसार कौ ट य ने अयो य राजा को ग ी से उतारने और उसक
जगह दूसरा राजा बैठाने तथा अधम और जा का तर कार करने वाले राजा के मारे जाने क
य तथा परो सू चना द है। अथशा म कौ ट य ने मया दत व ' राजतं का समथन
कया है, इस स य क पु ट इ तहास के इस त य से ह मा णत जाती है क वयं कौ ट य
िजस स ाट का धानमं ी था, वह च गु त मौय कसी भी अथ म वे छाचार व नरं कु श
'राजा' नह ं था। अलतेकर के अनुसार “कौ ट य का राजा बहु त से लौ क सामािजक, धा मक
तथा अ याि मक ब धन से मया दत है।''

43
3.4.5 रा य के उ े य

कौ ट य रा य के मु यत: तीन उ े य नधा रत करता है: (i) आ त रक शाि त व


सु र ा (ii) रा य क ु ं से र ा करना (iii)
बा य श ओ जा क सु ख, समृ के लए
क याणकार काय क यव था करना। उपयु त तीन उ े य वा तव म एक ह उ े य। के
तीन ख ड है और मु य उ े य है ' जा का हत', उसक सु र ा एवं स ब न करना है।
कौ ट य का कहना है क ' जा सु ख ह राजा का सु ख है। ' कौ ट य राजा और रा य म कोई
वभेद था पत नह ं करता ह वह राजा और रा य को एक दूसरे का पयायवाची श द मानता है।

3.4.6 कौ ट य क सा ताँग रा य क धारणा

मनु, भी म तथा शु ने भारतीय राजनी त के अ तगत एक सात अंग वाले सावयव


व प अथात ् जी वत शर र के प म क पना क ह। अत: कौ ट य ने भी रा य क सात
कृ तय का उ लेख अपनी पु तक अथशा म कया ह। यह सात अंग न न ल खत है:–
(i) वामी:– कौ ट य ने राजा या वामी को रा य क सव च 'अंग माना है। कौ टलय के
अनुसार राजक य शि त का उपयोग राजा वारा ह कया जीता है। अत: वह ं रा य के
दा य व को पूरा करने के लए अि तम प करता है क वह उ चच र और सदाचार
हो।
(ii) अमा य:– कौ ट य का अमा य से अ भ ाय मं य से है। कै ट य मानता है क राजा
को बना अमा य के परामश के कोई नणय नह ं करना चा हए अत: उसने यो य
यि तय को ह अमा य पद पर नयुि त का पा माना है। य य प ने मं य क
सं या का नधारण नह ं कया है। क तु फर भी वह यह मानता है क। मं य क
सं या 3 या 4 से अ धक नह ं होनी चा हए।
(iii) जनपद:– कौ ट य के अनुसार जनपद वह 'जनयु त ' भू म है िजस पर राजा का
नयं ण है अथवा जो राजा के रा य े म आती है। कौ ट य का मत है क जनपद
क भौगो लक ि थ त इस कार क होनी चा हए िजससे क उसक र ा आसानी से हो
सके। जनपद क भू म उपजाऊ, न दय एवं तालाब से यु त हो ता क रा य खा या न
के मामले म आ म नभर हो।
(iv) दुग:– कौ ट य के अनुसार दुग रा य का वह थान होता है जहॉ राजा एवं मं य तथा
उ च अ धका रय के नवास थान होते ह। अत: कौ ट य को रा य क कृ त का
मह वपूण अंग मानता है और उसक सु र ा हे तु चि तत है। अत: वह दुग को ऐसे
थान पर बनाने का नदश दे ता है जो थान श ु क पहु ँ च से दूर हो अथवा श ु को
उस थान. तक पहु ँ चने म बहु त अ धक यास करना पड़े। कौ ट य ने कार के दुग
क बात अथशा म क है। 1.औदक दुग– यह ऐसा दुग होता है िजसके चार ओर
पानी भरा रहता है। 2. पवत दुग– वह दुग होता है जो पवत के म य बना हु आ हो।
3. धा दन दुग– उसे कहा जाता है जो मरण दे श म बना हो अथात जल एवं घास

44
र हत हो। 4. वन दुग– उसे कहा जाता है, जो वन के म य म हो। अथात वृ व
झा ड़य से घरा हु आ हो। इस कार कौ ट य ने दुग क े णय का वभाजन कया है
िज ह रा य अपनी प रि थ तय एवं आव यकतानुसार न मत कर सकता है।
(v) कोष :– कौ ट य के अनुसार कोष रा य क जीवन न लका के समान है। बना कोष के
रा य का शासन चलाना एवं उस पर नय ण रखना संभव नह ं है। अत: उसका मत
है क रा य के पास पया त कोष होना चा हए तथा उसके आय के ोत थायी होने
चा हए। राजकोष के सं ह म संल न एवं उसके र ाथ लगे कमचा रय एवं अ धका रय
पर पूण नयं ण रहना चा हए। कोष का उपयोग रा य क र ाथ तथा रा य म
उ प न आपातकाल हे तु कया जाना चा हए। इस स दभ म कौ ट य ने प ट लखा है
क ''कोष धमपूवक एक त कया जाना चा हए तथा वह मा ा म इतना अ धक हो क
उससे आपि तकाल म ल बे समय तक नवाह हो सके।
(vi) द ड :– कौ ट य का द ड का अ भ ाय सेना से है। कौ ट य का मत है क एक रा य
क शि त का मु ख आधार उसक सेना होती है। कौ ट य ने चतु र ग ण सेना का
उ लेख अथशा म कया है इसम ह रत सेना, अ व सेना, रथ सेना तथा पदा त
(पैदल) सेना शा मल होती है। कौ ट य यि तय के शौय गुण क पर ा के प चात ्
ह सै नक के प म नयुि त को उ चत मानता ह इस हे तु वह य वग के लोग
को सेना के लए सबसे अ धक उपयु त मानता है। इनके अलावा वै य व शू को भी
सेना म भत क बात करता है क तु उसने ा मण को जहॉ तक स भव हो सेना म
भत न करने क बात क है। इसका कारण वह यह बताता है क श ओ
ु ं वारा आदर
या स मान करने पर वह उसे माफ कर सकता है।
कौ ट य राजा को नद शत करता है क सै नक को पया त वेतन एवं अ य सु वधाय
समय पर दान करे ता क वे स तु ट रह और पा रवा रक च ता से मु त रहे । य क
स तु ट सेना ह वजय क कं ु जी मानी जाती है।
(vii) म :– कौ ट य के अनुसार अ तरा यीय े म राजा को अपने म क सं या पर
खासा यान दे ना चा हए। िजस राजा ने अ तरा यीय े म िजतने अ धक म होते
ह वह रा य उतना ह शि तशाल तथा वकासशील होता है। अत: उसे लगातार अपने
म क सं या म वृ करते रहना चा हए।

3.4.7 रा य का काय– े

कौ ट य ने अथशा म रा य के काय– े का व तृत वणन कया है। इन काय म


सामािजक, आ थक और नै तक सभी कार के काय सि म लत ह। इस कार कौ ट य ने
अथशा म लोक–क याणकार रा य क अवधारणा प ट क ह कौ ट य के अनुसार राजा को
न न ल खत काय करने चा हए:–
(i) जा क र ा का काय
कौ ट य ने जा क र ा को राजा का सबसे मु ख काय माना है। कौ ट य का मानना
है क राजा को जा क सभी बा य एवं आ त रक संकट से र ा करनी चा हए। उसे रा य म

45
समाज कंटक पर नयं ण रखना चा हए तथा जनता के जीवन, संपि त व सदाचार क र ा
करनी चा हए। राजा को बा य आ मण से भी जनता को खतरा कम से कम उपि थत हो,
अथात ् उसे अपने म क सं या म वृ करनी चा हए। राजा को ाकृ तक आपदाओं यथा
अकाल, बाढ़ आ द म भी जा क थायी व ता का लक सहायता के उपाय करने चा हए। ''
राजा को परामश दे ता है क उसे यथा–स भव यु से बचना चा हए, अ त आव यक होने पर ह
ऐसे समय यु करे जब क जा क यूनतम हा न होने क आशंका हो।
(ii) जन हत स ब धी काय
कौ ट य के रा य का व प जनक याणकार है। अतएव वह राजा से अपे ा करता है
क वह रा य क जा के हत का संर ण करे गा। इस हे तु वह वृ , ' अनाथ तथा बालक क
हर स भव सहायता को आव यक मानता है। जन हताथ काय मनोरं जन क यव था मध– नषेध
लागू करना, पयावरण क र ा, सफाई, च क सा, उ यान वन, सड़क एवं पुल के नमाण को
भी सि म लत करता ह कौ ट य इसके केवल सै ाि तक नदश ह ' दे ता अ पतु राजा से अपे ा
करता है क वह यवहार म इन पर अमल कर। तभी वह जनता कर ा त कर कता है। अत:
कौ ट य क यह बात उपयु त ह है क ''अ ा त क ाि त, का संर ण, संर त का संव न
तथा संव त का उपयु त या से यो य एवं उपयु त यि तय म वतरण ह रा य मु ख
दा य व है।
(iii) आ थक काय
कौ ट य रा य म अथ– यव था के नयं ण हे तु राजा के नय ण को आव यक माना
है, ता क समाज म साधन का अ य धक के यकरण न हो तथा जनता के वग के हत
सु र त रह। कौ ट य व भ न यवसाय को नयं त करने के साथ ह ' मू य नधारण को भी
आव यक मानता है ता क यापार जनता का शोषण न कर सके। ऐसी कर णाल अपनाने क
भी राजा से अपे ा करता है िजससे यापा रय म उ पादन क ेरणा बनी रहे ।
कौ ट य ने कृ ष क उ न त तथा कसान क ि थ त म सु धार लए भी रा य के
दा य व नधा रत कया ह। कौ ट य का प ट मत है क कृ ष भू म पर उसी का अ धकार हो
जो उसे जोत रहा हो। कौ ट य ने प ट प से कहा क य द कोई अपनी भू म पर वयं कृ ष
नह ं कर रहा है तो उससे भू म छ न कर भू मह न कसान को दे दे नी चा हए ता क वह उस पर
कृ ष काय कर सक।
(iv) सामािजक यव था बनाये रखने संबध
ं ी काय
कौ ट य का मानना है क समाज यव था के संचालन हे तु वग व आ म यव था का
समु चत पालन करना चा हए। यि तय को अपने दा य व का इसी कार नवाह करना चा हए
क तु कौ ट य यि तय के काय म अनाव यक राजक य ह त ेप के व है।
कौ ट य का मत है क राजा को रा य म असहाय वृ , अपंग यि तय क सहायता
करनी चा हए। क तु कोई यि त य द समथ होने पर भी अपने माता– पता भरण पोषण नह ं
करता तो उसे दि डत कया जाना चा हए। इसी कार य द कोई यि त अपनी प नी एवं ब च

46
के भरण पोषण क यव था कए बना स यास ले लेता है तो ऐसे यि त को भी 'दि डत
कया जाना चा हए।
(v) या यक काय
कौ ट य का मानना है क रा य क उ पि त ह याय क थापना करने के लए हु ई
है। अर तू क भां त कौ ट य ने भी याय के दो प बताये ह:–
(क) वतरणा मक याय
(ख) सु धारा मक याय
वतरणा मक याय के अ तगत रा य का मु ख दा य व है क जनता का कोई भी
काय अभाव त जीवन यतीत न करे । जब क सु धारा मक याय का ता पय है क य द कोई
यि त अ य कसी के अ धकार का अ त मण को तो रा य वारा उसे दि डत कया जाना
चा हए।
(vi) पर–रा संबध
ं का संचालन
कौ ट य का मत है क पर–रा संबध
ं का संचालन एक शासक के तथा उसके रा य
के अि त व के सं या म नरं तर वृ करनी चा हए तथा अनाव यक यु से बचना चा हए।
उसे यु तथा शां त का नणय सदै व इस बात को यान म रखकर करना चा हए क जा का
क याण और उसक सु र ा ह सव प र है।

3.4.8 मं प रष –गठन एवं काय

कौ ट य ने मं य को रा य पी गाड़ी का दूसरा प हया माना है और वह राजा से यह


अपे ा करता है क वह कोई भी नणय बना मं प रष क सलाह के नह ं करे गा।
मं प रष का गठन– कौ ट य ने मं प रष म नयुि त के लए व भ न यो यताओं
का होना आव यक माना है िजसम साहसी, दे शभ त, नल भी, धम नरपे एवं वासनार हत होना
मं पद क आव यक यो यता है। डा. वेनी साद ने इस स दभ म लखा है क, '' कौ ट य के
अनुसार न कलंक, बौ क, तु राई, उ चत नणय दा य व क उ च भावना लोक यता आ द एक
मं ी क आव यक यो यताएँ होनी चा हए।
मं प रषद क सं या के बारे म कौ ट य ने यावहा रक ि टकोण अपनाते हु ए समय
और प रि थ त के अनुसार इसक सं या नि चत करने का नदश दया है। क तु सामा यतया
वह तीन या चार मं य क मं प रष म नयुि त क बात करता है। ता क शासक य काय
भल –भाँ त संचा लत कये जा सक। इस हे तु उसका तक यह है क मं य को अ धक सं या के
कारण अनाव यक वाद– ववाद उ प न होने क संभावना तथा मं क गोपनीयता भंग हो सकती
है।
कौ ट य ने परामाश दे ने हे तु दो सं थाओं का उ लेख कया है। राजसभा तथा
मं प रषद कौ ट य ने मं य क यो यताओं के आधार पर तीन भाग म बाँटा है, उ तम,
म यम तथा ु । इस कार जो यि त मं य के लए नधा रत सभी यो यताएँ रखता है वह
उ तम, जो तीन–चौथाई यो यताएँ रखता ह वह म यम तथा जो आधी यो यताएँ रखता है वह
ु मं ी होगा।

47
(i) मं य क यो यताएं
कौ ट य के अनुसार मं य के लए आव यक है क वह व ान, कायकुशल, शी
नणय लेने वाला, अ छे आचरण वाला, भावशील, उ साह , दे शभ त, ओज वी व तेज भाव से
र हत हो। इ ह ं यो यता वाले यि तय को मं पद पर नयु त कया जाना चा हए।
मं य के उ त गुण के अ त र त कौ ट य समय–समय पर मं य क व वसनीयता
क गोपनीय पर ा लेने क बात भी करता है। यह पर ा चार कार क ह िजसे उसने
धम पया, कामोपया अय पया तथा भपोषया का नाम दया है। कौ ट य का मानना है क इन
पर ाओं के मा यम से राजा को मं य क व वसनीयता एवं दे शभि त क जानकार होती है।
(ii) मं य से परामश का े व या
कौ ट य राजा को मं य से वचार वमश हे तु े भी नधा रत करता है इनम रा य
के काय क प रे खा तैयार करना, कर का नधारण करना, उ च पद पर रा य के सम से
कर उ प न होने पर उससे नकलने हे तु परामश, रा य म तथा पड़ौसी रा य म व यमान
ि थ तय व प रि थ तय का मू यांकन एवं राजक य योजन हे तु सामा यत: अपनाई जाने वाल
नी त सि म लत है।
कौ ट य का मत है क य द कसी वषय पर सवस मत नणय न लया जा सके तो
बहु मत से नणय लया जाना चा हए। इसके साथ ह कौ ट य का मत है क मं यो वारा दये
गये परामश का ववेकपूण व लेषण राजा को अव य कर लेना चा हए। उसके प चात ह नणय
लाग कया जाना चा हए।
कौ ट य का मत है क य द कोई मं ी अपने लाभ–हा न को यान म रखकर राजा को
परामश दे ता है तो रा य के ख म होने क संभावना है। अत: मं य का यह दा य व है क वह
मं णा के समय सम त आव यक सू चनाय राजा को द ता क उन पर नणय लया जा सके।
इस कार कौ ट य ने मं य के मह वपूण दा य व म सूचनाऐं, उपयु त परामश दे ना तथा
उपयु त नणय को याि वत करवाना सभी कु छ सि म लत है।
(iii) म णा क गोपनीयता।
कौ ट य राजा वारा मं य से परामश को अ य धक गोपनीय है। अत: वह मं णा हे तु
ऐसे थान को उपयु त मानता है जहाँ बातचीत को कोई सु न न सके यहाँ तक क उस थान
पर पशु–प ी भी नह ं होने चा हए। कौ ट य राजा को सचेत करता है उसक भाव–भं गमाओं से
भी यह प ट नह ं होना चा हए क उसने या नणय लया।
गोपनीयता भंग राज ोहा मक काय माना जाऐगा और इस हे तु मृ यु द ड तक दे ने क
बात कौ ट य ने क ह

3.4.9 शास नक यव था

कौ ट य ने रा य के कु शल संचालन हे तु एक सु ढ़ शास नक यव था का भी वश
वणन अथशा म कया है। कौ ट य का रा य एक लोक क याणकार रा य है और रा य क
शास नक यव था का सव च अ धकार राजा है। राजा के प चात ् 'अमा य तथा अ य मं य
को सि म लत कया गया है। कौ ट य ने इस शास नक यव था का पद भी तपा दत कया
48
है। इस पद म म अ य एवं अधीन थ कमचार आते ह। कौ ट य संपण
ू शास नक
यव था को राज व, वा ण य व यापार, कृ ष, वन, सेना, आ द व भ न वभाग म वभािजत
कया है। इसी कार कौ ट य ने रा य के व भ न अ धका रय को कु छ े णय म वभ त
कया है। ये े णयाँ न न ल खत है:–
(i) मं ी, पुरो हत, सेनाप त तथा युवराज
(ii) दौवा रक अ तव शक शा ता, समाहता, सि नधाता एवं व भ न वभाग के भार ।
(iii) दे टा, नायक पौर, यावहा रक, कमाि तक स य, द डपालक, दुगपाल एवं अ तपाल।
शास नक यव था म काय अ य त यो य शास नक अ धका रय के वारा ह
स प न कये जाने चा हए। राजा इन अ धका रय के काय पर पूण नगरानी रखे।' रा य इस
बात का सदै व यान द क ये अ धकार संग ठत न हो। य द ये अ धकार संग ठत हो। जायगे
तो राजा के व व ोह भी कर सकते ह। इसी तरह उ च अ धकार अपने अधीन थ
कमचा रय के आचरण व काय पर पूण नयं ण रख।
कौ ट य ने तीन े णय के शास नक अ धका रय के वा षक वेतन भी नधा रत कये
जो मश: 48000 पण, 24000 पण तथा 12000 पण है।

बोध न– 1
1. कौ ट य ने रा य क उ पि त के कस स ा त को वीकार कया है ?
उ तर .......................................... ............................................
2. कौ ट य ने रा य क कृ त के कतने अं ग बताए ह ?
उ तर: .......................................................................................
3. कौ ट य ने मं य क कतनी े णयाँ बताई ह ?
उ तर: ....................... ..............................................................

3.5 कौ ट य के सामािजक यव था स ब धी वचार


कौ ट य ने सामािजक यव था को अ य त मह वपूण माना है तथा नै तक मू य ,
सामािजक संगठन, व भ न वण के म य स ब ध तथा सामािजक यव था के नवाह म रा य
क भू मका आ द न पर प ट वचार का तपादन कया है। कौ ट य ने सामािजक जीवन
को धम पर आधा रत भाग है।

3.5.1 वण यव था

कौ ट य ने भी समाज को ा मण, य, वै य व शू चार वण मे वभ त कया है।


कौ ट य के अनुसार ा मण के मु ख दा य व म य करना व कराना, अ ययन तथा
अ यापन सि म लत है। य का मु ख कत य जनता क र ा करना है। वै य का मु ख
दा य व कृ ष, पशु पालन तथा यापार है, तथा शू का मु ख कत य ा मण , य तथा
वै य क सेवा करना है।

49
3.5.2 आ म यव था

कौ ट य ने मनु क भाँ त ह यि त के जीवन को चार भाग म वभािजत कया है


तथा जीवन के इन चार भाग को चार आ म क सं ा द है। मचय आ म म यि त
वा याय, हवन भ ावृि त एवं गु के पास रहते हु ए व याजन करे । गृह थ आ म म यि त
वैवा हक जीवन के दा य व को पूरा करते हु ए धमानुसार जी वका का नवाह करे । वान था म
म यि त संयम से रहे, सादा व को धारण कर, एवं पूजा–पाठ एवं य करे । स यास आ म
म यि त पूणतया सं ह वृि त को छोड़ दे ता है। कौ ट य के अनुसार स यासी का नगर म
नवास विजत है। स यासी अपने जीवन म प व ता, मा, याग व स य को अपनाएँ तथा
ई या, वैष आ द को छोड़ दे ।
कौ ट य मनु क तरह सामािजक स ब ध म भेद–भाव के वचार का समथन नह ं
करते। जहाँ मनु ने समाज म शू और ि य क ह न ि थ त का वणन कया है वह ं कौ ट य
इनके अ धकार क र ा का समथन करता है।

3.6 कौ ट य के या यक यव था एवं कानू न स ब धी वचार


कौ ट य ने अथशा म राजा को सव च या यक ा धकार के प म च त कया
गया है, तथा रा य को याय का ोत बताया गया है। कौ ट य ने राजा को सव च या यक
ा धकार मानते हु ए भी, उसक या यक शि त को व ध के अधीन माना है।

3.6.1 यायालय के कार

कौ ट य ने अथशा म दो कार के यायालय का वणन कया है :–


(ए) धम थीय यायालय:– इन यायालय के े ा धकार म सभी द वानी मामले आते ह,
जैसे स पि त, उ तरा धकार, ववाह, ऋण, साझेदार , सं वदा, मजदूर , कृ ष, भू म
स ब धी ववाद आ द मामले सि म लत ह।
(बी) क टक शोधन यायालय:– कौ ट य ने क टक–शोधन यायालय का े ा धकार सम त
फौजादार मामल से स बि धत है। इनका काय रा य तथा राजा के व कये जाने
वाले अपराध के स ब ध म वचार करना है। इन अपराध म मु ख ह, ह या, तथा
रा य अ धका रय के वारा जा के त कये जाने वाले अपराध।

3.6.2 यायालय का संगठन

कौ ट य ने े ीय आधार पर संग ठत यवि थत या यक णाल पर बल दया है।


इसके अ तगत दो गाँव के बीच था पत यायालय जनपद सि ध यायालय, 10 गाँव के बीच
था पत याय सं हण यायालय, 400 गाँव के म य ि थत यायालय ोणमु ख तथा 800
गाँव के म य ि थत यायालय थानीय यायालय होगा एवं स पूण का यायालय सव च
यायालय कहलायेगा।

50
3.6.3 व ध (कानून ) के ोत

कौ ट य ने कानून क मह ता को वीकार करते हु ए उसके कई ोत वीकार कए ह–


यथा धमशा , यवहार, जा तथा याय। इसके अ त र त राजा के आदे श भी कानून का ोत
माना है। कौ ट य ने प ट कहा क धम कानून, थागत कानून एवं यावहा रक म य द कोई
ववाद है तो राजा को धा मक कानून को ाथ मकता दे नी चा हए और उसके अनुसार नणय
करना चा हए।

3.6.4 द ड यव था

कौ ट य ने अथशा म द ड यव था का भी वशद ववेचन कया है। इस संदभ म


वह प ट करता है क राजा पूण प से वचार– वमश उपरा त ह द ड करे । कौ ट य ने द ड
के तीन ि टकोण क ववेचना क है:–
(i) तकारा मक :– इस द ड के अ तगत अपराधी वारा कये गये का तशोध न हत
रहता है।
(ii) नवारक :– कौ ट य के अनुसार इस द ड के वारा लोग के सम ऐसे उदाहरण
तु त कये जाय क लोग इस तरह का अपराध करने का साहस कर।
(iii) सु धारक :– इसके अ तगत अपराधी को ऐसा द ड दया जाये उसके आचरण म सु धार
आ सक और अपराध क पुनरावृि त न हो सक।
कौ ट य ने कर– नधारण करने क ि थ त को प ट करते हु ए। लखा है क व तु ओं
के उ पादन, आयात– नयात पर कर क दर, व तु क कृ त, उसक माँग, उ पादन क लागत
आ द बात को यान म रखते हु ए कर– नधारण कया जाना चा हए तथा राजा को जा पर
मनमाना कर लगाकर अनु चत प से कर सं हण नह ं करना चा हए।
कौ ट य ने राजा को परामश दया है क वह अकाल, बाढ़, महामार क ि थ त म
जनता को कर म राहत दान कर पर तु आपात ि थ त म राजा को नधा रत मा ा से अ धक
कर वसू लने का अ धकार भी दे ता है।

3.8 कौ ट य क पर–रा नी त स ब धी धारणा


कौ ट य ने अपने पर–रा स ब धी वचार को दो भाग म वभ त कया है:–

3.8.1 पररा स ब ध का सै ाि तक प

(अ) म डल स ा त
म डल स ा त के वारा कौ ट य ने रा य का एक यावहा रक वग करण तु त
कया है। कौ ट य के अनुसार येक राजा अपने रा य के व तार क कामना रखता है। उसी
आधार पर उसने म डल स ा त क 72 कृ तय का वणन कया है। इनके के – ब दु को
इ ह ने ' विजगीषु', कहा है। कौ ट य मानता है क एक रा य के अ भाग का पड़ोसी रा य
वाभा वक प से श ु रा य होता है। इसे 'अ र' रा य कहा जाता है। त प चात ् मश: म ,

51
अरम म –म , अरम –म यह पाँच रा य आते ह। इसी कार उसके पृ ठ भाग(पीछे ) म
मश: पाि ण ाह, आ द, पाि ण ाहसार और आ दसार ि थत होते ह।
इसी कार कौ ट य के अंत म विजगीषु के अ भाग क भाँ त ह पृ ठ भाग म भी
मश: श ु तथा म रा य क पर परा होती है। इस तरह कौ ट य ने विजगीषु तथा उसके
अ भाग के 5 तथा पृ ठ भाग के 4 रा य को म डल का अवयव वीकार कया है। इसके
अ त र त म यम व उदासीन रा य भी होते है। म यम रा य वह रा य होता है, िजसका दे श
विजगीषु एवं आ द–रा य क सीमा से मला होता है। उदासीन रा य वह रा य होता है, िजसका
दे श विजगीषु एवं आ द–रा य क सीमा से दूर होता है। इस तरह 12 रा य के समू ह को
म डल कहते ह। इसे इस कार भी समझा जा सकता है :–
विजगीषु रा य अ भाग के रा य पृ ठ भाग के रा य म यम रा य उदासीन रा य
1 5 4 1 1
कौ ट य के अनुसार येक रा य क कु ल 6 कृ त होती है– एक मु य कृ त (राज
कृ त) तथा पाँच य कृ त। यहाँ मु य या राज कृ त का अथ है उस रा य का राजा तथा
य कृ तयाँ, अमा य, जनपद, दुग, कोश तथा द ड आते ह।
इस कार म डल म रा य क सं या =12
य कृ त क सं या 5 x 12 = 60
रा य कृ त + 12 = 72
इस कार म डल स ा त क कु ल 72 कृ तय का वणन कौ ट य ने अथशा म कया है।
(ब) षड़गुण नी त
यह अ तरा य संबध
ं के नधारण म दूसरे रा य के त प रि थ त वशेष के संदभ म अपनाई
जा सकने वाल नी तय के छ : यावहा रक वक प ह जो न नानुसार है :–
(i) सं ध– अथात ् दो राजाओं म कु छ शत पर मेल हो जाना।
(ii) व ह अथात श ु का कोई अपकार करना।
(iii) आसन– इसका अथ यु क ती ा म शॉत बैठे रहना है।
इस ि थ त म दोन ह प आ मण नह ं करना चाहते क तु आ म र ा हे तु पूणतया
तैयार रहते ह।
(iv) यान– इसका ता पय है विजगीषु राजा वारा श ु पर चढाई करना।
(v) सं य:– इसका अथ नबल राजा वारा आ म र ाथ अपने से अ धक शि तशाल राजा
क शरण म जाना है।
(vi) वैधीभाव– इसका ता पय एक साथ को दो वपर त कृ तय को अपनाया जाना है
ता क वरोधी वा त वक म त य को न जान पाये। कौ ट य के अनुसार संधी एवं व ह
दोन का एक साथ योग वैधी भाव
(स) नी त के चार उपाय

52
कौ ट य ने एक रा य वारा दूसरे रा य के त सं यवहार के संबध
ं म अपनाई जाने
वाल नी तय के चार वक प को कौ ट य ने उपाय कहा है ये उपाय इस कार ह:–
(i) साम :– कौ ट य के अनुसार दूसरे रा य को समझा–बुझा कर अपने अनुकूल करना 'साम'
कहलाता है।
(ii) दान:– कौ ट य के अनुसार य द 'साम' से काम न चले तो धन आ द दे कर अपने उ े य को
ा त करना 'दान' कहलाता है।
(iii) भेद:– श ु के दय म शंका पैदा कर दे ना तथा गु तचर क मदद से वप ी रा य म फूट
पैदा कर दे ना 'भेद' क ेणी म आता है।
(iv) द ड– कौ ट य के अनुसार 'द ड' का अ भ ाय है श ु पर वजय क इ छा से आ मण कर
दे ना। क तु कौ ट य ने अ य आचाय क भां त इसे अि तम उपाय के प म वीकार कया
है।

3.8.2 पररा स ब ध का यावहा रक प

कौ ट य ने पर–रा स ब ध के यावहा रक प म दूत एवं गु तचर यव था का


वशद कया है साथ ह उसने यु के बारे म भी अपने वचार कट कये ह।
(अ) दूत यव था
कौ ट य ने दूत को 'राजा का मु ख' कहा है। उसने राजा को यह परामश दया है क
दूत क नयुि त। करते समय उसे यि त क यो यता व न ठा का पता अव य लेना चा हए।
उसने दूत क तीन े णय क चचा क है।
(i) नसृ टाथ :– कौ ट य के अनुसार यह ऐसा दूत होता है, िजसमे आमा य के सभी गुण
व यमान होते ह तथा इसे अ य रा य से सि ध करने का पूण अ धकार होता है।
(ii) प र मताथ – इस ेणी के दूत म अमा य के गुण का 174 भाग ह व यमान होता
है, यह वह काय कर सकते ह िजसका आदे श इ ह दया जाता है।
(iii) शासनहर:– इस ेणी के दूत क ि थ त कम मह वपूण होती है और यह साधारणत या
संदेश लाने और ले जाने का काय करते है।
(ब) गु तचर यव था
कौ ट य ने रा य क ग त व धय एवं दूत क ि थ त का पता लगाने के लए गु तचर
यव था को मह वपूण थान दया है। कौ ट य के अनुसार 'गु तचर ' राजा के आँख तथा कान
के समान होते ह। कौ ट य ने गु तचर को व भ न े णय म वभ त कया है:–
(i) काप टक :– यह दूसरे के रह य को मानने वाला दबंग और व याथी को वेशभू षा मे
रहन वाला होता है।
(ii) उदासीन– ये गु तचर स यासी क वेशभू षा म रहकर अपना काय करते थे।
(iii) गृहप तक :– कौ ट य के अनुसार ये गु तचर गर ब कसान के वेश म रहकर अपना
काय करते थे।
(iv) वैदेहक :– ये गु तचर यापार के वेश म रहकर अपना काय करते थे।

53
(v) तापस :– तप वी के वेश म रहने वाला गु तचर इस ेणी म आता था।
(vi) स ी :– यह गु तचर यो तष व या म पारं गत होता था इसी आधार पर अपना काय
करता था।
(vii) ती ण :– यह गु तचर बहु त साहसी होते थे तथा अपने काय हे तु हाथी, शेर आ द से
भी भड़ सकते थे।
(viii) रसद :– यह गु तचर बड़े ू र होते थे तथा अपने काय के लए अपने सगे संबध
ं ी तक
को जहर दे सकते थे।
(ix) प र िजका:– यह वह ी होती थी जो स या सनी के वेश म रहकर गु तचर का काय
करती थी।
(स) यु स ब धी वचार
(क) यु के कार
कौ ट य ने यु को अि तम वक प के प म वीकार कया है और उसका मानना है क यु
से सभी प क हा न होती है। अत: उसने राजा को आव यक होने पर ह यु करने क
सलाह द है। कौ ट य के अनुसार यु तीन कार के होते ह :–
(i) काश यु :– कौ ट य के अनुसार जब व धवत प से एवं पूण तैयार के साथ
यु कया जाता है तो पु ष एवं व वान का स मान करना चा हऐ। द न व अनाथ
क आ थक सहायता करनी चा हऐं। दान कया जाता है। साथ ह छल से श ु का वध
भी कया जाता है।
इस कार कौ ट य ने पर–रा स ब धी वषय म एक यावहा रक ि टकोण
तपा दत कया है िजसक उपादे यता वतमान समय म भी है।
(ख) यु के नयम
कौ ट य ने यु के नयम का तो व तृत ववेचन है। उसे परािजत जा के शील, वेश भाषा,
उ सव व आचार को अपनाना चा हये, ता क वह जा का व वास अिजत कर सक। वजेता
राजा को अपनी वाणी व काय के वारा यह द शत करना चा हऐ क उसम परािजत राजा क
भि त व न ठा ा त होगी।
कौ ट य ने वजेता रा य को विजत रा य के त यवहार म सावधानी व सतकता
बरतने का परामश दे ते हु ऐ कहा है क उसे :–
(iv) श ु के कमचा रय को त ानुसार धन, स मान, आ द स तु ट कराना चा हए।
(v) श ु के उपकृ त मं ी, पुरो हत, सेना मु य, आ त या चोर कृ त लोग को एक साथ
नह ं रहने दे ना चा हए।
(vi) श –ु प ीय यि तय को िजनसे वरोध का भय या आशंका हो, समु चत द ड दया
जाना चा हए।
(vii) वदे श के नाग रक एवं श ु वारा अव पु ष को मह वपूण पद पर नयु त करना
चा हए

54
3.9 राजनी तक च तन को कौ ट य क दे न
ाचीन भारतीय राजनी तक च तन म कौ ट य का योगदान है। कौ ट य को य द
भारतीय राजदशन का जनक कहा जाये, तो कोई अ त योि त नह ं होगी। कौ ट य ने रा य से
स बि धत मु ख न सभी राजनी तक वचार का सार कौ ट य का ‘अथशा ’ है। कौ ट य ने
राजनी तक वचार का वै ा नक ढं ग से ववेचन कया है। भारतीय वचार पर कौ ट य का
भाव इतना अ धक है क काम दक अपने को उसका श य मानने। भारतीय राजनी तक
च तन को कौ ट य के योगदान को न नानुसार समझा जा सकता है।:–
(i) कौ ट य ने रा य का समझौतावाद स ा त तु त करके रा य को साधन और जा
हत को सा य माना ह। साथ ह नाग रक को शासन स ता का अं तम ोत मानते
हु ए शासक को अपद थ करने का अ धकार दे कर आधु नक लोकतां क यव थाओं
जैसी यव था तु त क है।
(ii) वा तव म कौ ट य एक यथाथवाद वचारक था, जैसा क उ होने शासन यव था,
सेना, यु , यव था राज व णाल आ द वषय क व तृत ववेचना क है। उससे
यह वत: स होता है क वह यथाथवाद च तक था। उ ह ने शास नक यव था
का यवि थत प तु त कया है।
(iii) ान क व भ न शाखाओं क यव था वारा कौ ट य ने रा य के अि त व के
सै ाि तक आधार तथा रा य के लोक क याणकार व प को भल भां त प ट कया
है। साथ ह यह भी उ लेख कया है क वतरणा मक याय को सु नि चत करना
रा य का मु ख कत य ह।
(iv) कौ ट य को रा य के हतकार काय क यव था करने के लोक–क याणकार रा य
यव था का णेता माना जाता ह। उ ह ने रा य म नै तक, सामािजक एवं आ थक
सभी े म जा के क याण के लऐ शासक को समपण भाव से काय करने क बात
क है।
(v) राजतं ा मक यव था का समथन करते हु ये भी कौ ट य ने शासक क नरं कु शता के
वचार का समथन नह ं कया है। कौ ट य ने शासन से सदै व अनुसार आचरण करने
एंव द ड शि त का समु चत र त से योग कये जाने क अपे ा क ह तथा ऐसा न
करने पर वयं शासक को भी द ड का पा माना गया है। इसके अ त र त शासक पर
सदै व ह परामशदा ी सं था के प म मं ीप रष के नयं क को भी कौ ट य ने कया
ह। साथ ह जनता को यह अ धकार दया ह क वह शासक वारा उसके दा य व का
उ लघंन कये जाने पर उसे अपद थ कर सक।
(vi) कौ ट य ने रा य क सु र ा को सव प र माना ह। इस ि ट से उ ह ने पर–रा
स ब ध के ववेकपूण संचालन पर जोर दया है। कौ ट य का मानना है क राजा को
अनाव यक यु से बचना चा हए तथा अ तरा य े म अपने म क सं या म
नरं तर वृ करते रहना चा हऐ।

55
(vii) कौ ट य एक कार से धम नरपे वचार का णेता है। कौ ट य ने राजा को यह
परामश दया है क उ ह जा के धम म ह त ेप नह ं करना चा हए। येक यि त
को धम–पालन क वत ता होनी चा हए। ये वचार उसके धम– नरपे रा य के आदश
को तु त करते है।
अत: कहा जा सकता है क कौ ट य के वचार एक पूण राजनै तक दशन का तपादन
करते ह। इससे कौ ट य क गणना व व के महानतम राजनी तक दाश नक म क
जाय तो कोई अ त योि त नह ं होगी।
बोध न –2
नोट:– बोध न के उ तर दये गये र त थान म लख।
न:1 कौ ट य ने यायालय के कतने कार बताये ह ?
उ तर ...........................................................................
..............................................................................
न:2 कौ ट य ने म डल स ा त म कु ल कतने रा य बताये ह ?
उ तर: ......................................................................................
.......................................................................................
न:3 कौ ट य वारा बताये गये नी त के उपाय कतने ह ?
उ तर: ......................................................................................
.......................................................................................
न:4 कौ ट य ने दू त क कतनी े णय बतायी ह ?
उ तर: ......................................................................................
.......................................................................................

3.10 सारांश
भारतीय राजनी तक च तन म कौ ट य का योगदान अ व तय है। कौ ट य के वचार
के ववेचन से यह प ट हो जाता है क कौ ट य ने रा य से जु ड़े सै ाि तक, सं थागत व
यावहा रक न का ग मीरता से ववेचन कया है। कौ ट य ने राजत ा मक यव था का
समथन करते हु ए भी शासक क नरं कु शता के वचार का पूर तरह नषेध कया है। उसने
रा य के लोक–क याणकार व प क घारणा को वीकार कया है और इस हे तु शास नक
यव था का एक यवि थत व प भी तु त कया है। रा य क सु र ा क आव यकता को
कौ ट य ने सव प र माना है। इस उ े य से उसने अ तरा य स ब ध के ववेक स मत
संचालन पर बल दया। इसके साथ ह द ड, याय व यायपा लका पर कौ ट य का ि टकोण
अ य त ववेक स मत है। ि टकोण
'इस कार कौ ट य के वचार एक पूण राजनी तक दशन को करते ह। उनक गणना
भारत के ह नह ,ं अ पतु व व के महानतम राजनी तक दाश नक म जानी चा हए। रा य के
सै ाि तक और यावहा रक प का िजतना समृ एवं सट क ववेचन कौ ट य के च तन म
मलता है, वैसा अ य दुलभ है।

56
3.11 अ यास न
1. कौ ट य वारा बताये गये रा य के काय क ववेचना क िजए।
2. कौ ट य के स तांग स ा त क या या क िजये।
3. कौ ट य वारा व णत म डल स ा त क या या क िजए।
4. कौ ट य वारा बताये गये 'पर–रा ' स ब धी स ा त क क िजये।

3.12 स दभ थ सू ची
1. एम.बी. चंदे :कॉ ट यन अथशा , एटलां टस, द ल , 1982
2. सु नी त सेन सरमा :कॉ ट याज अथ, शा इन द लाइट ऑफ मॉडन साइ स ए ड,
टे नोलोजी, डी.के. टव ड, नई द ल , 1998
3. पी.के यागी :भारतीय राजनी तक वचारक, व वभारत पि लकेशन, नई द ल ,
2006

57
इकाई–4
शु
इकाई क परे खा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 शु नी त प रचय
4.3 शु नी त म द डनी त क े ठता
4.4 रा य स ब धी वचार
4.5 राजा एवं राजपद
4.6 मि –प रष
4.7 रा क शासन एवं का मक यव था
4.8 समाज यव था
4.9 कर नी त
4.10 याय एवं यायपा लका
4.11 अपराधी एवं द ड
4.12 पर रा नी त
4.13 शु का मू यांकन या योगदान
4.14 सारांश
4.15 अ यास न
4.16 संदभ थ सूची

4.0 उ े य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप जान पायगे:–
 ाचीन भारतीय च तन म शु के राजनी तक वचार
 शु क मु ख प से द डनी त शा ी (राजनी त शा ी) क भू मका
 मनु एवं कौ ट य के साथ शु क तु लना, एवं
 शु के उदार व यथाथवाद वचार एवं आज के संदभ म उनक ासं गकता।

4.1 तावना
ाचीन भारतीय रानी तक चंतन म शु नी त का मह वपूण थान है। शु नी त के
रच यता शु ाचाय का नाम ाचीन भारतीय चंतन म स मा नत थान रखता है। द डी के
‘दशकुमारच रतम' म राजनी त शा कार के नामो लेख म सव थम थान शु ाचाय को ह
शन कया है। शु नी त इतना ाचीन थ
ं होते हु ए भी इसम ऐसे अनेक वषय का ववरण
है, जो भी ासां गक ह और उपयोगी भी है। शु नी त चंतन क गौरवशाल एवं समृ पर परा
का ान होता है। कौ ट य के 'अथशा ' एवं मै कयावल के 'द ं ' के समान शु
स क

58
शु नी त म भी! राजा को शासन करना सखाया गया है। इस कार इसम राजनी त का
सै ाि तक नह ं वरन ् यावहा रक प अ धक मह वपूण है। शु के अनुसार , ''सभी आशंकाओं
को यागकर राजा को ऐसी नी त का पालन करना चा हए िजससे श ु को मारा जा सके अथात ्
वजय ा त हो''।

4.2 शु नी त : प रचय
शु ने रा य और शासन पर अपने ं 'शु नी तसार' क रचना िजसम 2200
थ लोक
ह। शु ाचाय के अनुसार , उ ह ने अपने श य के सामने मा के का सार तु त कया है।
शु नी त मे चार मू ल अ याय है। इसके व भ न सं करण म पंचम ् ' खल नी त' (शेष या
अव श ट नी त) के प म है, जो मू ल थ
ं का भाग नह ं है।
रचनाकाल :– शु ाचाय के काल का नधारण अ यंत क ठन काय है। अपनी' वषय व तु व शैल
के आधार पर यह कौ ट य के अथशा के बाद क रचना तीत होती है। ऐसा लगता है क
शु नाम व तु त: च तन क एक वशेष पर परा को य त करता है, एक यि त को नह ।ं
भारतीय राजनी तक च तन के ोत के प म इसे एक मा णक कथ माना जाता है। य य प
शु नी त सार के रचना काल के वषय म व वान म मतभेद है, क तु ाय: सभी व वान
इस पर सहमत ह क यह वै दक काल न रचना नह ं है, अ पतु ईसा के बाद क कृ त है
जायसवाल के अनुसार , यह 8 वीं शता द क रचना है। इसके थ
ं कार को इसी काल का
राजशा ी कहा जा सकता है।
बोध – न –1
न : शु नी त म कतने मू ल अ याय एवं लोक है उसका रचना काल जायसवाल के
अनु सार कौनसी शता द है ?
उ तर ………………………………………………………………………………………………………………………………
..................................................................................... ..........

4.3 शु नी त म द डनी त क े ठता


शु नी त, कौ ट य के अथशा के समान मू लत: राजनी तक कृ त का थ है इसम
शु ने कौ ट य एवं काम दक के समान ान क चार शाखा आ वी क, यी, वाता एवं
द डनी त को वीकार कया है। शु नी त के ट काकार, बी०के० सरकार के अनुसार , द डनी त
शासन करने तथा नदश दे ने से संबं धत व या है। '' यह कहना उ चत है क शु ने संगो म
द ड व नी त का जो मह व बताया है वह द ड नी त अथात ् राजनी तशा का मह व ह। द ड
नी त या नी तशा के अलावा िजतने शा ह, वे स पूण मानव यवहार के सी मत भाग से
ह संबं धत होते ह, कं तु नी तशा स पूण मानव यवहार से संबं धत शा है। इस शा क
सहायता से ह –राजा अपने आधार भूत दा य व क पू त म सफल होता है, कं तु जो राजा नी त
का याग ' करके अ छे यवहार करता है, वह दुःख भोगता है और उसके सेवक भी क ट पाते

59
है। यामलाल पा डे ने शु नी त सार का मह व बताते हु ए कहा है क यह ाचीन भारत क
द ड धान वचारधारा पर आधा रत एकमा उपल ध थ
ं है।
शु ाचाय के अनुसार धम, अथ, काम का धान कारण एवं मो को सु नि चत करने
वाला त व नी त शा को ह माना जा सकता है। शु नी त म राजनी तक चंतन के सम त
मह वपूण प –दाश नक, अवधारणा मक, संरचना मक, कया मक को पया त मह व के साथ
च त कया गया है। रा य के योजन, राज स ता पर नयं ण आ द सै ाि तक प के
साथ–साथ द ड व या यक या, रा य का शासन, रा य क सु र ा व यु , अ तरा य
स ब ध आ द ऐसे वषय का जो रा य के यावहा रक प से संबं धत ह, वश ववेचन
कया गया है।

4.4 रा य स ब धी वचार
शु नी त म रा य क उ पि त के स ा त का व तृत ववेचन नह ं कया गया है।
स पूण थ
ं म मा एक लोक ऐसा है िजसे रा य क उ पि त से संबं धत माना जा सकता है।
शु नी त के थम अ याय म कहा गया है, '' जा से अपना वा षक कर वेतन के प म
वीकार करने से वामी के प म ि थत राजा को मा ने जा के पालनाथ सेवक बनाया
है''। इस कार जहाँ रा य क उ पि त ा् वारा बताकर, रा य क उ पि त के दै वी स ा त
का समथन कया है, राजा को जा–सेवक बताकर उसके जा–पालन के दा य व पर बल दया
और उसके कसी भी कार के दै वी अ धकार को वीकार नह ं कया है।
शु ने रा य को एक अ नवाय एवं वाभा वक सं था वीकार कया है य क इस
संसार के अ युदेय का आधार रा य है। िजस कार च मा समु क वृ का कारण है, उसी
कार रा य जनता के अ युदेय का मू ल आधार है। रा य ह याय वारा धम, अथ, काम
( वग) क स कराता है। जैसे–म लाह के अभाव म नौका न ट हो जाती है, उसी कार राजा
के नेत ृ व के अभाव म जा जन के न ट होने क स भावना रहती है। शु ने रा य को जा
क भौ तक सु र ा के लए ह नह ,ं वरन ् नै तक उ थान के लऐ भी उ तरदायी माना है।
I रा य क प रभाषा एवं स तांग स ा त:–
ाचीन भारतीय चंतन म रा य को स तांग रा य के प म प रभा षत कया गया है,
शु भी इसका अपवाद नह ं ह। रा य सात अंगो से बना सावयवी है, यह (1) वामी, (2)
अमा य, (3) म , (4)कोश, (5)रा , (6)ढु ग, (7) सेना से बना है। शु नी त म कहा गया है,
' रा य के इन सात नमाणक त व म वामी सर, अमा य ने , म कण, कोश मु ख, सेना
मन, दुग भु जाऐं एवं रा पैर ह।” एक अ य संग म रा य क तु लना वृ से करते हु ऐ राजा
को इस वृ का मू ल, मं य को क ध, सेनाप त को शाखा, सेना को प लव, जा को धू ल,
भू म से ा त होने वाले कारक को फल एवं रा य क भू म को बीज कहा गया ह। यह
उ लेखनीय है क जहाँ आधु नक राजनी तक वचारक रा य के 4 नमाणक त व – जनसं या,
भू–भाग, सरकार एवं सं भु ता मानते है वह ं शु 7 नमाणक त व मानते ह।

60
शु नी त म रा य व रा के म य अंतर को प ट करते हु ऐ कहा गया है क कसी
व श ट रा पर सं भु का नयं ण उसे रा य का प दान कर दे ता है। इस कार शु नी त
रा य व रा के म य अंतर को आधु नक राजनी तक वचारक क तरह प ट करती है।
बोध न: – 2
न: स सं ग स ा त म रा य के सात अं ग या ह ?
उ तर .................................................................................................
.................................................................................................
II रा य का काय े :–
शु नी त म रा य के काय े को अ यंत यापक बताया गया है। शु ने रा य के क त य
के 8 मु ख े का उ लेख कया है– दु ट का न ह, जा क सु र दान, जा का प रपालन
यायपूवक कोष का अजन, राजाओं से कर वसू ल करना, श ओ
ु ं का मान मदन तथा नर तर
भू म का अजन करना। रा य के दा य व क इस सू ी से यह प ट है क शु ने रा य के
व तृत काय े का तपादन कया है। साथ ह यह भी प ट कर दया है रा य को अपने
दा य व को पूरा करने के लए आव यक साधन भी अिजत करने चा हए। शु ने रा य के
काय े म न न ल खत मु ख काय सि म लत कए ह :–
(1) जा एवं राजनी तक समाज क र ा करना :– रा य का सवा धक मह वपूण काय है –
बाहर एवं आंत रक श ओ
ु ं से जा क र ा करना। आंत रक शां त यव था को बनाये
रखने क ि ट से शु ने राजा को नद शत कया है क वह एवं आ मण करने वाल
से स जन क र ा करे । शु नी त सार ने राजधानी शासन था ाम– शासन के
वणन म भी आंत रक शां त एवं यव था को बनाए रखने पर जोर दया है और रा य
वारा व भ न माग को डाकु ओं व उप वय से सु र त रखने क आव यकता को
वीकारा है। शु के अनुसार , इस दा य व के पालन म उदासीनता के कारण जा म
शासन के त वरोध का भाव पनपने लगता है।
(2) लोक क याण :– शु ने रा य क अह त ेपवाद धारणा वपर त, रा य के लोक
क याणकार व प का तपादन कया है।
(अ) राजा वंय के सु ख के लए जा को क ट नह ं पहु ंचाए यो क जा के दुःखी रहने से
राजा न ट हो सकता है।
(ब) सभी व याओं, व ानो व कलाओं का वकास, व वान का स मान।
(स) जा म धम क वृ के उपाय करना, दे वालय बनवाना।
(द) कु एँ, तालाब, बावडी का नमाण कराना, न दय पर पुल बनवाना, सराय बनवाना, वृ
लगवाना, पयावरण क र ा करना।
(य) कृ ष, यापार क उ न त करना।
(3) अथ यव था का नयं ण :– अथ यव था का नयं ण शु के अनुसार रा य का
आव यक दा य व है। शु ने अनु ा (लाइसस) के बना धू त, शकार करने व श
धारण करने का नषेध कया है। शु नी त म यवसाय व वा ण य के संदभ म

61
उपभो ताओं के हत क र ा के लए रा य के पूण नयं ण को वीकार कया है।
शु ने व भ न पदाथ के उ पादन, व य, च क सा आ द यवसाय का व नयमन
करने क अपे ा क है। यापार पदाथ म कसी कार क मलावट न कर, इसका भी
नदश दया है। य द राजक य आदे श का उ लंघन कया जाए तो प पात र हत होकर
द ड दे ने के लए राजा को त पर रहना चा हए। राजमाग क मर मत करवाना व
या य के माल क र ा करना भी रा य का दा य व है।
(4) शु के अनुसार , सेना एवं रा क र ा एवं समृ के लए कोष का आधारभू त मह व
है। कं तु राजा को कोष का अ यायपूवक सं ह नह ं करना चा हए। य द राजा संकटकाल
का मु काबला करने के लए जा से अ धक धन वसू ल करे तो संकटकाल क समाि त
पर जा को याज स हत धन वा पस करना चा हए।
(5) रा य के सामािजक दा य व :– सामािजक यव था का नयमन और सामािजक जीवन
म धम और नै तक मू य क त ठा करना शु के अनुसार राजा को शि त पूवक
जा से वण–धम का पालन कराना चा हए। कं तु इसके साथ ह शु ने बताया क इस
संसार म ज म से ह कोई भी ा मण, य, वै य, शू ले छ नह ं होता है, वरन ्
अपने गुण के अग़धार पर ह मनु य म यह भेद कया जाता है। मनु य वारा
व भ न कलाओं व व याओं को अपनाने से ह अनेक जा तय का वकास हु आ है।
े ठता कु ल या जा त से नह ं ा त होती वरन ् गुण से ह ा त होती है। जब राजा व
जा अपने–अपने धम व नी त का पालन करते है तब रा य चर थायी होता है। शु
का रा य सामािजक नै तकता का संर क है, राजा के गुण का ह जा अनुकरण
करती है।
(6) रा य का शै णक दा य व – रा य ह श ा के सार के लए उ तरदायी है, यो य
व या थय को छा वृ त दे ना रा य का ह दा य व है। व या और कला क उ न त
रा य क ह िज मेदार है। यो य, बु मान यि तय के स मान व भरण–पोषण क
यव था भी रा य का दा य व है।
(7) व ध एवं याय यव था :– शु ने कौ ट य के समान ह अ य वध ोत के
अ त र त राजा ा को भी व ध का ोत माना है। शु ने 'पं डत' नामक मं ी का
उ लेख कया है, जो व ध वशेष है। यह राजा का मु ख क त य है क वह मु कदम
का उ चत कार से नणय कर और अपने आदे श का पालन कराए। राजा को याय
काय वारा दु ट का दमन करना चा हए। ले कन य द राजा अपने याय काय क
उपे ा करता है तो शु नी त के अनुसार उसे घोर क ट सहन करने पडते है।
(8) शास नक यव था का कु शल संचालन :– शु नी त म न केवल शासन के स दभ म
वभागीय एवं कायालय प त का उ लेख कया गया है वरन ् शासन को ल खत
आदे श पर भी आधा रत कया है। रा य के दा य व को पूरा करने हे त,ु एक सु ढ़
शास नक यव था क आव यकता होती है। शासन को नरं तर सजग रहते हु ए यह
दे खना चा हए क शास नक अ धकार व कमचार अपने दा य व का भल कार

62
पालन करते रह एवं जा को पी ड़त न कर। इसके साथ ह कमचा रय के हत का
यान रखना भी रा य का ह दा य व है। शु ऐसे थम भारतीय वचारक ह, िज ह ने
शासन के आंत रक प का भी व तृत ववरण दया है।
(9) पर–रा स ब ध :– शु ने रा य से अपे ा क है क वह पर रा स ब ध के
संचालन म जन हत एवं सु र ा के साथ–साथ रा हत का भी यान रखे। रा य को
अनाव यक यु व टकराव से बचाए। वदे श नी त के संचालन के लए शु व कौ ट य
के समान ह शासक के लए कु छ स ा त व नयम नधा रत कए है। नी त के चार
उपाय एवं ष गुण मं इसम ं म 'शि त' के मह व का
मु ख है। रा य के म य संबध
तपादन करके शु ने यथाथवाद ि ट अपनाई है। राजा को वदे शनी त का संचालन।
इस कार करना चा हए क अ य रा य उससे अ धक शि तशाल न हो जाएँ। शु ने
शां तवाद नी त अपनाते हु ऐ कहा है क अ य उपाय असफल होने पर ह यु या द ड
को अपनाना चा हए शु ने परािजत राजा के त िजस कार के यवहार का उ लेख
कया है, उससे उसक मानवतावाद ि ट का ान होता है।

बोध न– 3
न : अथ यव था पर नयं ण शु के अनु सार कसका दा य व है ।
उ तर : .................................................................................................
.................................................................................................

4.5 राजा एवं राजपद


शु ने राजपद को के य मह व दान कया है, राजा का मु ख कत य जा–रं जन
है। राजा के बना जा ऐसे ह न ट हो जाती है, जैसे म लाह र हत नौका हो जाती है।
I. राजपद स ब धी व भ न अवधारणा:–
(1) दे वांश स ब धी धारणा :– शु के अनुसार राजा का नमाण आठ दे वताओं के अंश से
हु आ है इ , वायु, यम, सू य, अि न, व ण, च मा तथा कुबेर। राजा इन दे वताओं के
गुण के अनुसार सदाचरण करता है, वह वा तव म दे वांश राजा होता है।
(2) राजपद क तप स बंधी धारणा:– शासन करना तप के समान जाता है और तप तीन
कार का होता है –साि वक, राज सक, और तामा सक।. राजा सभी क त य का नी त
के अनुसार पालन करता है, राजा सक राजा वासना एवं वषय म आस त होता है एवं
तामसी राजा कल यह न एवं नी त का उ लंघन करने वाला होता है साि वक राजा
े ठ, राज सक राजा म यम एवं ताम सक राजा नकृ ट ेणी का होता है।
(3) राजा क जा सेवक स ब धी धारणा :– शु के अनुसार , मा ने राजा को ऐसा जा
सेवक बनाया है, िजसे वेतन के प म जा से कर ा त होता है, राजा को जा से
कर हण करके सेवक क भां त जा क र ा एवं सेवा चा हऐ।
(4) सं वदा स ब धी धारणा :– मनु के वपर त, शु राजा को तब ह राजा मानते ह जब
तक वह धमशील होता है। य द वह अधमशील हो तो जा चा हए क ऐसे राजा को

63
यागकर, े ठ राजा क शरण म जाने का वचार बनाए, भयभीत होकर राजा धमशील
बन जाए।
II. राजा के दे व व पर वचार :–
जैसा क उ लेख कया गया है शु ने राजा को आठ दे वताओं के अंश से न मत
बताया है। शु ऐसे भारतीय वचारक ह, िज ह ने राजा के य दे व होने क का वरोध कया
शु ने न तो राजा को 'दे व' वीकार कया है और न ह उसके दै वी अ धकार माने है, पर तु
उसके दा य व क द यता का प ट करण अव य ह कया ह। दा य व क द यता के कारण
वयं शासक भी अपनी इ छा से इन दा य व से मु त नह ं हो सकता। राजधम का पालन
करने से ु राजा भी े ठ बन जाता है, जब क इसके वपर त आचरण करने से उ तम राजा
भी ु बन जाता
III. राजा का वग करण :–
1. गुण व कम के आधार पर (1) साि वक (2) राजस और (3) तामस तीन कार के
राजा, शु नी त म माने गऐ है।
2. स तासीन एवं द युराजा :– जब कसी राजा को उसके श ु स ता से बाहर कर दे ते ह
तो ऐसा राजा 'द यु राजा' का जीवन यतीत करता है।
3. वा षक आय के आधार पर वग करण :– शु ने राजाओं क वा षक आय के आधार पर
आठ कार के राजाओं का उ लेख कया है:– 1. साम त 2. मा ड लक 3. राजा 4
महाराजा 5. वराट 6. स ाट 7. वराट 8 सावभौम।
शु ने नै तक आधार को भी वग करण म मु खता दे ते हु ऐ कहा है क राजा क आय
जा को पीड़ा दए बना होनी चा हए तथा यह केवल राजत से स बि धत वग करण
ह है।
4. अ भषेक के संग म दो कार के राजा :– ाचीन भारत म रा या भषेक सं कार का
वशेष मह व था और इसके वारा ह राजा स ता का वैध अ धकार माना जाता था।
शु ने इस पर परा के तकू ल अन भ ष त राजा का भी उ लेख कया है।
5. राजा के गुण एवं दुगु ण – शु ने राजा के लऐ ऐसे यावहा रक व मानवीय गुण से
स प न होना आव यक माना है, िजनके वारा यापक दा य व का उ चत कार से
नवाह कर सके तथा सावज नक शंसा का पा बना रहे । शु का मत है क राजा को
सव थम अपने ऊपर ह वजय पानी चा हए। राजा के गुण के अनुसार ह उसके
सहायक के गुण भी हो जाते है। अत: सदै व राजा को गुणवान होने का आदश ह
तु त करना चा हऐं। राजा केवल राजकु ल म उ प न होने के कारण ह जा का आदर
ा त नह ं करता अ पतु उसके गुण ह उसे आदर दान करते है।
6. राजा क दनचया :– शु नी त म भी मनु मृ त और अथशा के समान ह राजा को
यह परामश दया गया है क वह अपनी दनचया का उ चत वभाजन करके दन के
व श ट कालख ड म नधा रत काय करे । शु नी त म राजा क 24 घ टे क
दनचया को 30 मु हू त म वभािजत कया गया है। शु का एक मु हू त 48 मनट के

64
बराबर है। शु ने राजा को परामश दया क काय को नयत समय पर करने से बहु त
सु ख मलता है अ यथा हा न होती है।
7. उ तरा धकार का स ा त – शु ने ाचीन पर परा का अनुकरण करते हु ए
उ तरा धकार के बारे मे 4 स ा त को वीकार कया है – 1. पैत ृक स ा त 2.
ये ठता स ा त 3. शा र रक प रपूणता स ा त 4. यो यता स ा त। शु ने यह
तपा दत कया है क शासन का उ तरा धकार राजकु ल म से ह लया जाना चा हए,
क तु राजा के ये ठ पु को वत: ह शासन का उ तरा धकार नह ं मान लेना
चा हए। राजा के जी वत रहते हु ए ह उ तरा धकार के न को नि चत करना अ छा
है। अनेक यि तय के थान पर एक यि त को ह उ तरा धकार नि चत करना
चा हए। शु ने उ तरा धकार के न को हल करने के लऐ रा य का वभाजन करने
के वचार का ढ़ता से नषेध कया है यो क रा य वभािजत होने से श ु वारा न ट
करने क आशंका रहती है। उ तरा धकार के दावेदार म ऐसे मत भेद भी हो सकते ह,
जो रा य एवं राजकु ल के वनाश का कारण बन सकते ह। अत: इन सभी के राजसी
मान–स मान के जीवन का कया जाए, ता क ये संतु ट रह सक।
बोध न– 5
न : राजा कतने दे वताओं के अं श से न मत है ?
उ तर: ..................................................................................... .........
..................................................................................... .........
VII. नरं कु श राजा पर नयं ण : – शु नी त म शासक को यापक शि तयाँ दान क गई
है, पर तु शासक से इनका योग व ध एवं धम के अनुसार करने क अपे ा क गई है। शु
ने राजाओं को नरं कु श एवं वे छाचार बनाने से रोकने के लऐ तीन उपाय सु झाए है :–
1. नै तक उपाय : – शु नी त म राजा से नी त का पालन करने क अपे ा क गई है
तथा उसके वे छाचार यवहार का नषेध कया गया है। शासक को द ड क शि त के योग
का अ धकार उसी ि थ त म ा त है, जब क वह वयं अपने धम के पालन के त न ठावान
हो तथा उसका वयं का आचरण दोषर हत हो। शु ने शासक से नजी व सावज नक दोन
कार के आचरण म शु ता और मयादा क अपे ा करते हु ए उसे परामश दया है क इन ् बात
को समझकर क यौवन, जीवन, धन व भु व चर थायी नह ं होते उसे धम म ह नरत रहना
चा हए। शु का मत है क य द शासक म एक भी दुगुण हो तो जनता के म य उसक छ व
बगड़ भी सकती है। शु ने शासक को यह भी परामश दया है क वह अपनी जा को वश म
करने के लए भेदभाव का नह ं अ पतु साम व दान का योग कर।
शु ने शासक से पर पराओं, ति ठत सामािजक मू य आ द का। नय ण मानने क
अपे ा क है। शु नी त सार वारा सु झाए गए नै तक उपाय म राजा क श ा, नी त व दशन
के उपदे श, राजा के सहायक एवं परामशदाताओं वारा तु त टा त पारलौ कक सु ख एवं
दुख क यव था, राजा के व भ न क त य, राजा क दनचया आ द को शा मल कया जा
सकता है।

65
2. वैधा नक उपाय : – शु के अनुसार राजा का पद े ठ अव य है, ि त यह व ध,
नयम एवं कानून से अ धक े ठ नह ं है। शु के अनुसार राजा को केवल पर परागत व ध
(सदाचार एवं ढयाँ) म ह प रवतन करने का अ धकार है, कं तु यह प रवतन दे श, काल,।
ि थ त को यान म रखकर ह कया जाना चा हए और इस काय को 'पं डत' नामक म ी क
सलाह के आधार पर ह कया जाना चा हए,जो व ध नमाण का वशेष होता है। शु वारा
व ध के े म राजा क शि तय क जो सीमा बताई गई है, उनसे तीत होता है क राजा
ाय: व ध के े म नरं कु श नह ं हो पाता था।
शास नक े म शासन क कृ तय का उ चत परामश राजा को नी त ट होने से
बचाने के लए आव यक माना गया है। शु ने रा य के सु चा संचालन के लए म य आ द
के परामश के त शासक क न ठा क आव यकता को तपा दत कया है, साथ ह परामश
दे ने के लए नयु त पदा धका रय से यह अपे ा क है क वे राजा को सदै व उ चत परामश
द।
यहाँ तक क आपातकाल म भी राजा को वतं नह ं माना है। वह स बि धत प क
सहम त से ह कठोर नणय लेने म समथ होता है।
याया यक े – म उदासीनता के यवहार को शासक के घोर नै तक अपराध क सं ा द है,
तथा चेतावनी द है क ऐसा करने पर वह नरक म जाएगा। या यक मु कदम के नणय के
लए एक नि चत एवं न प या का उ लेख कया है, िजसका राजा वारा पालन कया
जाना है। शु ने याय सभा के सद य क यो यता व याय साधन का व तृत ववरण दया
है।
3. वधानेतर उपाय :– शु ने जनता व जनमत के नयं ण को भी मह वपूण थान
दान कया है। शु ने शासक को यह परामश दया है क जा वारा क गई अपनी न दा
को ग भीरता से हण करे व अपने दुगु ण का नवारण कर शु नी त म शासक को पद युत
करने के जा के अ धकार को प टत मा यता दान क गई है तथा जा का यह कत य
माना गया है क वह नी त एवं धम के व आचरण करने वाले राजा को नर तर भयभीत
रखने का य न करे तथा ऐसा न हो सकने पर उसे पद युत कर द।
(अ) पुरो हत क मदद से स ता म प रवतन :– य द राजा गुण, नी त, सेना का श ु हो और
अधा मक हो तो उसे रा का वनाश करने वाला मान कर याग दया जाना चा हए अथात ् उसे
पद से हटा दे ना चा हए। पुरो हत को अ य कृ तय (मि प रष के सद य) क सहम त से
उसे पद युत राजा के थान पर उसी राजकुल के कसी गुणवान पु ष को राजपद पर नयु त
कया जाना चा हए।
(ब) धमशील श ु राजा क मदद से स ता म सु धार :– शु का मत है क नी त ट राजा को
पुन : नी त–माग पर लाने का काय कसी अ य धमशील व शि तशाल राजा वारा ह कया जा
सकता है, जैसे–दलदल म फंसे हाथी को कसी अ य हाथी वारा ह नकाला जा सकता है। शु
ने राजा क वे छाचा रता से बचने के लए जा के इस वधानो तर य न का समथन कया

66
है क वह अपने राजा के नय ण के लए उसके धमशील व शि तशाल श ु राजा से सांठ–
गांठ कर सकती है।
उपरो त ववरण से यह प ट है क शु ने अधमशील वे छाचार तथा रा का
वनाश करने वाले राजा के वरोध को उ चत माना है और उसके नय ण के लए व भ न
नै तक उपाय व वधा नक उपाय के साथ ह वधानेतर उपाय पर भी वचार कया है।
महाभारत के अनुशासन पव म भी दु ट राजा को सा ात ् क लयुग मानते हु ए, उसके वध को
उ चत माना है। यह उ लेखनीय है क शु ने दु ट व वे छाचार राजा के नय ण अथवा
उसक पद–मुि त क यव था वीकार है और उसके वध का समथन नह ं कया है।
बोध न -5
न: राजा पर नयं ण के कौन से उपाय शु ने बताये है ?
उ तर ...................................................................................................
...................................................................................................

4.6 मि प रषद
शु नी त सार के अनुसार सभी व याओं म अ त कु शल के लए भी राजकाय जैसे
अ तक ठन काय को अकेले ह करना अस भव होता है। अत: राजा अपने सहायक से परामश
करना चा हए। शु के अनुसार जो राजा म ी के मु ंह से कह गयी –अ हत क बात पर गौर
नह ं करता है वह राजा होकर भी वा तव म डाकू के समान केवल के धन को लू टने वाला ह
होता है।
I. मंि प रषद का संगठन :– शु ने मि प रषद के सद य के लया ' कृ त' श द का
योग कया है।
(अ) सद य सं या:– जहां अ य आचाय ने यह सं या 8 वीकार है। शु ने इनक
सहायता के लए दस 'सहायक ' क भी यव था क है। िज ह ने 'उपमं ी' कहा है।
(ब) व भ न वभाग, मि य के पद तथा उनका वर यता म :– शु नी तसार के सद य
के पद, वभाग एवं वर यता म को न न ल खत से कट कया गया है –1. पुरोधा
(पुरो हत) 2. त न ध 3. धान 4. स चव 5. म ी. ा ववाक 7. पि डत 8 सु मं
9 अमा य 10. दूत ।
(स) वेतन :– शु ने इस वेतन स ा त को वीकार कया है क पुरोधा से आर भ करके
पूव पद का वेतन आगामी पद से 1/10 यादा होना चा हए। प ट होता है क शु ने
वेतन के बारे म पद एवं वभाग के वर यता म को मह व दान कया है।
(द) कायकाल तथा वभाग प रवतन :– कसी भी पद पर कसी भी म ी को थायी प से
नयु त नह ं करना चा हए, इनक यो यता क नर तर जांच करते हु ऐ, कायकु शलता
के अनुसार पद म प रवतन करते रहना चा हए। य द कसी का धान अ धकार
अयो य स हो तो उसके रथान गर उसके कसी यो य को नयु त कया जाना
चा हए।

67
II. मि प रषद के सद य क यो यता एवं कायानुसार ववरण :–
(अ) सद य क समान यो यता :– शु ने नयुि त स बंधी ववरण म अ ल खत छ:
कार क यो यता पर बल दया है –1. आनुवां शकता 2. नै तकता 3. शार रक मता
4. बौ क मता 5. राजभि त 6. नी त नपुणता
अ टे कर के अनुसार, ''शु का मत है क केवल भोजन व के अवसर पर ह जा त क
पूछताछ क जानी चा हए, मि प रषद म नयुि त के नह ।ं शु को शू के अधीन
सै य वभाग रखने म कोई आपि त नह ं है, य द वह यो य एवं राजभ त हो।'' वा तव
म शु का मत ाचीन भारत क उदार पर परा के अनु प है। शाि त पव ने
मि प रषद म थम तीन वण के अलावा तीन यो य शू क नयुि त का प ट
उ लेख कया है।
(ब) सद य क व श ट यो यता एवं काय:– शु क मि प रषद म सव थम थान
पुरोधा का है। उसे म , कमका ड, यी, छह वेदांग, धनुवद नी त, व या आ द का
ाता होना चा हए। उसे काम, ोध, लोभ मोह से र हत, इि यजयी धा मक जीवन म
रत होना चा हए।
त न ध को इतना यो य होना चा हऐ क वह दे श, काल व थान के स दभ म करने
यो य एवं न करने यो य काय क पहचान रखता हो।
मि प रषद का तीसरा सद य धान है, जो शासन के सभी काय का सामा य
नर ण करने क यो यता रखता है।
चौथा सद य स चव है, जो अपने काय क ि ट से यु म ी है वह सेना एवं इसके
काय का सम त ान रखता है।
पांचवा सद य म ी का है, िजसे आधु नक ि ट से वदे श म ी या पररा म ी
कह सकते है। छठा सद य ा ववाक है, जो धान यायाधीश है एवं याय वभाग का मु ख
राजनी तक अ धकार भी है। उसे शा ो त एवं लोक च लत आचार का ाता होना चा हए।
सातवां सद य पि डत, धम के त व का ाता होना चा हए।
आठव सद य सु मं को शु का व त म ी या कोषा य कहा जा सकता है, िजसे
आय– यय क स पूण जानकार होनी चा हऐ।
नवां सद य अमा य दे श तथा आलेख का ाता होना चा हए। वह रा य म ि थत
नगर , ाम , जंगल क भू म क माप का हसाब रखता है और इनसे होने वाल आय का भी
ववरण रखता है। वर यता म म अि तम थान दूत का है। वह षा गु यम का ाता,
अ छा व ता, नभ क, दे श व काल क ि थ त को समझने वाला होना चा हए।
III. मि प रषद क ल खत काय– णाल :– के. पी. जायसवाल के अनुसार ाचीन भारतीय
राजनी तक थ
ं मे केवल शु नी तसार म ह मि प रषद क काय णाल पर व तृत काश
डाला गया है। द . के. सरकार के अनुसार इस थ म मि प रषद क काय णाल के बारे
म अ ल खत त य को प ट कया है –

68
(1) मि प रषद का सद य एवं सहायक मलकर अपने वभाग से स बि धत कसी वषय
पर एक लेख तैयार करते है।
(2) इस लेख पर सव थम राजा क ट पणी वारा इसके दोष को समा त कया जाता
है।
(3) इसके बाद सभी मि य क सलाह ल जाती है, िजससे सभी वभाग म ताल– मेल
एवं सहयोग बना रहता है।
(4) इस लेख पर सभी मि य वारा अपनी मु ा स हत ह ता र कए जाते है।
(5) अ त म पुन : राजा अवलोकन करता है और अपना अि तम नणय दे ता है।
इस कार यह या रा य के लए लाभदायक है य क राजा ल खत प म सबक
राय भी जान लेता है एवं अि तम नणय का अ धकार अपने पास सु र त रखता है।
बोध न - 6
न: शु के अनु सार मि प रषद मे कतने सद य होने चा हए।
उ तर: ............................................................................ .......................
......................................................................................... ..........

4.6 रा क शासन एवं का मक यव था


शु ने दो कार के शासन का उ लेख कया है– के य शासन एवं थानीय
शासन। के य शासन म राजमृ यो के मह व को बताते हु ए, शु ने राजा परामश दया है
क वह रा य क उ न त के लए अनेक ानवान एवं गुणी सहायक क करे । शु ने सात
कार के सेवक का उ लेख कया है और सभी वग के अ धका रय , सहायक एवं सेवक क
नयुि त स ब धी यो यता पर व तार से काश डाला है। शु ने थानीय शासन के संगठन
का भी उ लेख कया है, िजसम अ ल खत 6 अ धका रय का उ लेख है – साहभा धप त, ाम
नेता, भागहार लेखक, शु क ाहक तथा तहार ।
I. शासक य अ धका रय पर नय ण :– कु शल शासन हे तु अ नवाय है क राजा
अ धका रय के काय पर कडी नजर रखे। शु नी त म कहा गया है य द सौ जाजन
कसी अ धकार के व आवेदन प दे द, तो उस अ धकार को पद युत कर दे ना
चा हए। शु ने परामश दया है क राजा अ याय करने वाले अ धका रय से उनक
शि तयाँ छ न ले। नय ण के लए यह भी अ नवाय है क एक पर एक यि त
अ धक समय तक न रहे । कसी यि त क पद पर नयुि तकेवल के आधार पर करनी
चा हए।
II. शास नक संगठन :– शु नी त म शासन के 20 वभाग सामा य का उ लेख कया
गया है– गज, अ व, वण, रजत वभाग आ द। इन वभाग के अ य पद को प से
कम स चव कहा है, क तु इसके साथ ह अ य पद के लऐ अ य , प त या
अ धप त क सं ा का योग कया है। शु नी त म तपा दत शास नक संगठन
बहु रतर थ है। शासन के के य तर पर संग ठत वभाग के अ त र त, शु ने
थानीय, ामीण और नगर य शासन क संगठना मक संरचना पर काश डाला है।
69
शु का मत है क येक ाम और येक नगर म साहसा य (पु लस अधी क के
समक पद) ाम अ य भागहार ( जा से कर वसू लने हे तु उ तरदायी) क
नयुि त क जानी चा हए।
शासन के सम त तर पर नयु त का मक क यावसा यक व तकनीक यो यताओं
का शु नी त म व तार से उ लेख कया गया है।
III. शासन क कायालय प त :– शु ने शासन क कायालय प त म ल खत आदे श
को अ य धक मह व दया है। उनके अनुसार , अ धकार या सहायक शो बना ल खत
राजा ा के कोई काय नह ं करना चा हए, य क राजा क राजमु ा 8, ह ता र यु त
ल खत आदे श ह वा त वक राजा होता है, यि त राजा नह ं होता है। शु ने राजा के
ल खत आदे श को मृ त प (फाइल) के प म सुर त रखने क णाल को वीकार
कया गया है। इसके साथ ह उ ह ने शासन म दै नक, मा सक, वा षक़ तथा बहु वष य
रपोट तैयार करने पर भी बल दया गया है। शासन के कु शल संचालन ् के लये शु
ने सूचनाओं क त दन ाि त पर जोर दया है। उनका मत है क राजा ो त दन
100 कोस दूर तक के दे श क सू चनाऐं ा त होनी चा हए। शु ने राजक य
कायालय क सु र ा के लए पहरे दार व र क क यव था को वीकार कया है।
शासन म का मक यव था :– का मक यव था के ववेचन क ि ट से को वल ण नथ
माना जा सकता है, यो क का मक यव था के व भ न प का जैसा, यवि थत व पूण
च ण इसम उपल ध है, वह कह ं नह ं मलता है।
1. रा य कमचा रय के लऐ आचार सं हता :– सम त राजकमचा रय से आचरण के
सामा य नयम के पालन क अपे ा क गई है इन नयम या आचार सं हता का पालन करने
वाले कमचा रय को थ म े ठ का मक बताया गया है। शु के अनुसार ,भृ य वामी के
त तथा अपने सेवा काय के त पूर तरह से सम पत होकर काय करना चा हए। उसे
श टतापूवक राजा को स काय क ेरणा दे नी चा हए तथा कभी भी मा चादुका रता नह ं करनी
चा हए। कमचा रय को कभी भी जा से झू ठे वादे नह ं करने चा हए। अनु चत काय जैसे–
र वत, जु आ, ोध, दु च र ता आ द को याग दे ना चा हए। उपयु त गुण के वपर त काय
करने वाल को शु ने नकृ ट माना है।
2. वेतन, वेतनमान व वेतनवृ :– वेतन भु गतान के स ा त म काय व काल दोन को ह
आधार बनाया गया है अथात ् एक नि चत काल म कए गये काय क मा ा दे खकर ह भू त द
जाती है। शु ने राजा को यह परामश दया है क वह वेतन म कटौती नह ं करे और सदै व
नयत समय पर ह वेतन दे । शु नी त म प ट तपा दत कया गया है क का मक का
यूनतम वेतन इतना होना चा हए क उस पर आ त यि तय का सरलता से भरण –पोषण
हो सक। वेतनमान को े ठ, म यम, सम व ह न म वभािजत कया गया है। शु ने राजा
को चेतावनी द है क अ य त कम वेतन ा त करने वाले कमचार शासन से असंतु ट हो जाते
है और राजक य काय क अपे ा अ य काय म च –लेने लगते है अत: जैसे–जैसे मृ य क

70
यो यता म वृ हो, वैस–े वैसे उसके वेतन म भी वृ होनी चा हए, य क इससे अ त म वयं
राजा का हत होता है।
3. सेवा अव ध, पदो न त एवं पद अवन त:– सामा य ि थ त म एक कमचार क सेवा
अव ध– 40 वष वीकार क है, क तु इसके साथ ह भृ यो क सदै व पर ा होती रहनी चा हए
और अवगुण उ प न हो जाने पर भृ य को पद मु त कर दे ना चा हए।
शु नी त म कमचा रय क समयब पदो न त के बारे म प ट ावधान कया गया
है, जब कोई का मक अपने अनुभव के आधार पर अपने पद से े ठ होता जाए तो उसे
उ तरोतर े ठ पद पर नयु त कया जाना चा हए। इसके वपर त य द कोई धान सेवक
आल या द के कारण अपने दा य व क उपे ा करता है तो उसे अ धान सेवक बना दे ना
चा हए।
4. शु ने मृ य के श ण क यव था भी क है।
5. पशन, तपू त, भ व य न ध व बोनस क यव था – राजसेवा म 40 वष पूरे करने
के उपरांत, सेवा नवृि त के बाद पशन प म पैसा आजीवन दया जाना चा हए। केवल पशन ह
नह ं पा रवा रक पशन क यव था भी है। राज कमचा रय के लए भ व य न ध क योजना
को भी वीकार कया ह। राजा को का मक के वेतन क कु ल रा श का 1 ओं 6 या 14 भाग
काटकर अपने यहां जमा कर लेना चा हए और दो या तीन वष बाद, उस जमा रा श के आधे या
पूरे भाग का भु गतान का मक को कर दे ना चा हए।
6. व ाम एवं अवकाश के नयम :– नय मत का मक के त दन 12 घ टे राजकाय क
यव था है। कमचा रय को उपयु त अ तराल पर तथा व श ट प रि थ तय म काय से
अवकाश दान कये जाने क आव यकता य त क गई है एवं व तृत नयम का तपादन
कया गया है। उ सव आ द के दन कोई काय कमचा रय से नह ं कराया जायेगा। य द कोई
अ धक आव यक काय हो तो उ सव वाले दन भी कराने क यव था क गई है, पर तु ा
के दन कसी भी कार के काय का प ट नषेध कया गया है। का मक को त दन नि चत
अ तराल पर अवकाश दे ने क यव था भी क गई है। कमचा रय के अ व थ हो जाने पर
उ ह 'सवेतन' व अ वेतन अवकाश क यव था क गई है। तवष 15 दन के ‘सवेतन’
अवकाश के साथ वा य अवकाश क भी यव था क है। क तु जब कोई यो य भृ य बीमार
हो जाए, उसक बीमार क अव ध क उपे ा करके उसे सदै व आधा वेतन अव य ह दया जाना
चा हए।
इस कार शु नी त ाचीन भारतीय राजनी तक च तन का ऐसा म थ है। िजसम
का मक यव था का इतना व तृत व यापक ववरण दया गया है, तथा जो। कमचा रय के
हत पर आधा रत है।
बोध न–7
न: शु ने कमचा रय के वे त न का आधार वीकार कया है ?
उ तर: …………………………………………………………………………………………………………………………………
....................................................................................... ..........

71
4.7 समाज यव था
शु ने सामािजक जीवन म शा वत नै तक मू य के थान दे श, काल, ि थ त के
अनुसार ह नै तक मू य को वीकारा है। शु ने ाचीन भारतीय पर परा अनुसार समाज
संगठन का मु ख आधार वण एवं आ म यव था को ह वीकार कया है। वे मनु के समान
कठोर एवं अ त अनुदारवाद नह ं ह। शु ने सामा यत : ज म पर आधा रत वण यव था को
वीकारा है। क तु इसके साथ ह कम के आधार पर वण यव था का भी समथन कया है।
शु ने ा मण, य, वै य, शू – चार वण के पर परागत काय का उ लेख कया है। और
इसके साथ ह बताया है क ा मण वण के यि त को मचय, गृह थ वान थ एवं स यास
नामक चार आ म का पालन करना चा हए। कं तु अ य शेष तीन वण वारा थम तीन
आ मौ का पालन पया त होता है। शु के अनुसार , यवसाय के आधार पर ह जा तय का
नमाण होताहै, इसी लए अनेक जा तय का नमाण स भव हु आ।
यह उ लेखनीय है क शु ने मनु आ द धमशाि य क तरह सावज नक जीवन म
वण एवं जा त के मह व को बढ़ा– चढाकर तु त नह ं कया है, उनका मत है क वण एवं
जा त का वशेष मह व ववाह एवं भोजन जैसे यवहार म ह है। रा के शासन मे शु ने
वण एवं जा त क तु लना म यि त के कम, शील एव गुण को ह मह वपूण माना है और,
राजा को नदश दया है क वह राजक य अ धका रय एवं भृ योक नयुि त म यि त के कम
शील एवं गुण को ह आधार बनाए। शु ने ा मण क अ य धक े ठता या शू क ह नता
था तपादन नह ं कया है। इस ि ट से द डशा ी शु क समाज यव था मनु से अ धक
उदार, यथाथवाद एवं यावहा रक है।

4.8 कर नी त
ाचीन भारतीय पर परा का अनुकरण करते हु ए शु ने राजा के कर लगाने के
अ धकार पर दो नय ण लगाए है–
(1) राजा मा वारा नयुि त ऐसा जा सेवक है, जो जा से कर के प म अपना वेतन
ा त करता है, अत: जा पालन के क त य क पू त के लए ह राजा को कर लगाने का
अ धकार होता है।
(2) राजा को कर नधारण के लय मृ त के नयम का पालन करना चा हए, मनमाने कर
नधारण या वसू लने का अ धकार राजा को नह ं है।
I. कर णाल :–
शु नी त सार म दो कार क कर णाल दखाई दे ती है –
(1) थानीय कर णाल
(2) रा य कर णाल ।
1. थानीय कर णाल

72
शु ाचाय ने थानीय आव कताओं क पू त के लए थानीय कराधान के स ा त को
वीकारा है जैसे–नगर के ं ोक र क पु लस का भरण–पोषण गृह थ से
ह ा त वेतन से कया
जाना चा हए।
2. रा य कर णाल
थानीय के अ त र त अ य सभी कर इसम शा मल है। इसम दो काल के संग म
कर नी त को वीकार कया गया है। (1) सामा यकाल न कर नी त (2) संकट काल न नी त
सामा यकाल न नी त :– सामा य काल म शु ने जा क आ थक मता को यान म रखकर
कर लगाने का नदश दया है। उनका मत है क शु क को इतनी मा ा म लया जाना चा हए
क कर दाता क मू ल पू ज
ं ी का अ त नह ं हो। राजा को भाग के सं ह म माल क वृ त का
अनुकरण करना चा हए। कर इस कार लया जाए क राजा एवं जा दोन के हत म हो,
अ यायपूवक एवं अधम यु त कर नह ं लया जाना चा हए, ऐसा करने पर राजा न ट हो जाता
है। जो राजा अपने कोष म वृ चाहता है, उसे जा पालन का दा य व अव य ह पूरा करना
चा हए।
संकट काल न करनी त:– ऐसे काल म राजा को कर क मा ा म वृ करने तथा सामा यत: कर
मु त मदो पर भी कर लगाने का अ धकार होता है। इसी लए शु ने सामा यकाल म तीथ थान
व दे व थान को कर मु त माना है, क तु संकटकाल म नह ।ं
II. कर मु ि त :– शु ने करारोपण के समान कर–मु ि त क यव था को भी जा के
आ थक वकास क ि ट से वीकार कया है। घरे लू उपभोग हे तु खर दे जाने वाले धा य एवं
व , कुटु ब–पालन हे तु दुधा पशु को पशु कर से मु ि त।, यापार म हा न उठाने वाला
सौदागर, तीथ नान व दे व थान (सामा यकाल म) नए उ योग लगाने या नए कृ ष काय म
ु ा लाभ– ा त न हो जाए इस नी त से शु
जब तक दुगन क लोक क याणकार नी त का ान
ा त होता है।
III. वभ न कार के कर :–
1. यह खेती क उपज पर लगाया जाने वाला कर है। भाग क वसू ल के लए 3 मु ख
आधार का उ लेख कया गया है – 1 कृ ष भू म का े फल 2. भू म क कृ त 3.
कृ ष उपज पर कसान के लए लाभ क मा ा।
शु के अनुसार , कसी धनी क मदद से, ाम पाल नामक भृ य क मदद से या
मा हार नामक अ धकार क मदद से भाग वसू ल कर सकता है। शु ने भारतीय
पर परा के अनुसार अनाज या नकद के प म कर लेने का उ लेख कया है। जब
कसान भाग जमा कराए तो उसे राजक य मु ायु त भागप (रसीद) दया जाना
चा हए।
2. शु क– शु के अनुसार राजा को उस े ता या व े ता से शु क ा त करना चा हए,
जो आ थक लेन दे न म लाभ क ि थ त म हो शु क क वसू ल म छल कपट नह ं
कया जाना चा हए।

73
3. आकर–कर :– ाचीन भारत म ख नज उ पादन पर लगाए वाले कर को आकर कर कहा
जाता था और इसे व तु के प म वसू ला जाता था। शु के अनुसार राजा उ पादन पर
होने वाले यय को काटकर, खान से उ प न होने वाल एवं – वण, रजत, तांबा आ द
पर अलग–अलग दर से यह कर ा त करता था। िजतनी महंगी धातु, उतना ह अ धक
आकर–कर था।
4. तृण का ठा द पर कर:–ईधन के लए जंगल से लकडी एक त करने वाल पर, यह कर
व तु के प म लया जाता था।
5. पशु कर :– ाचीन भारत म पशु पालन मु ख यवसाय था, अत: इस पर कर लगाने
क पर परा भी थी। बकर , भेड़, गाय, भस, आ द सभी पर लगाया जाता था। दर
अलग–अलग थी।
6. याज दर :– राजा को साहू कार क याज का 32वां ह सा कर के प मे ा त
करने का अ धकार था।
7. आवासीय एवं यावसा यक भू म पर कर :– इस भू म पर कर क वह दर होनी चा हए
जो कृ ष भू म हे तु तय हो।
8. या ी कर :– मनु ने जलमाग पर, जब क शु ने थलमाग पर कर का उ लेख कया
है। सड़को क र ा, मर मत तथा सफाई के लए या य से लेने क यव था क
गई है।
9. द तकार व कलाकार पर कर :– शु के अनुसार कार गर व शि पय से एक प म
एक दन (15 दन म एक बार) नःशु क काय कराया जाना चा हए।
कर यव था के स ब ध म शु नी त म तपा दत कये गए नषेधा मक एवं
सकारा मक नयम के उपयु त ववेचन से प ट है क शु नी त म रा य क कर
यव था को 'लोक क याणकार ' रा य क अपे ाओं के अनु प व प दान कया
गया।
बोध न –8
न: खे ती क उपज तथा ख नज उ पाद पर लगने वाले कर को या कहते है ?
उ तर: ...………………………………………………………………………………………………………………………………
...………………………………………………………………………………………………………………………………

4.10 याय एवं यायपा लका


शु ने याय काय के मह व को वीकार करते हु ए राजा के 8 क त य म दु ट – न ह
को शा मल कया है। यह या यक या जा को धम पालन म मदद है। राजा का क त य है
क वह मु कदम का उ चत कार से नणय करे और इस बारे म जाजन से अपने नणय का
पालन करवाए। शु ने याय के अवधारणा क प क व तृत या या नह ं क है, जैसी क
कौ ट य के अथशा और मनु मृ त म उपल ध है। के सं थागत और या मक प का

74
शु ने व तृत ववरण दया है। याय पा लका के संगठन, या यक या तथा मु कदम से
स बि धत प के अ धकार एवं दा य व का व तार से ववेचन कया है।
I. यायालय का संगठन एवं े ा धकार :–शु वारा या यक या के अ तगत राजा
एवं सभा का उ लेख कया गया है तथा वशेष संग म सहायता करने के लए 'जू र ' का भी
उ लेख कया गया है। शु नी त म राजा को स पूण याय यव था का ( थानीय एवं साधारण
मु कदम के अ त र त) मु ख नणायक अथवा सव च अ धकार माना गया है क तु यह प ट
कर दया गया है क राजा यायपा लका का केवल औपचा रक अ य है। शु ने राजा से
शा के अनु प या यक काय को भल भां त दे खने क अपे ा क गई है। राजा वारा
अकेले ह सभा–सद क सहम त लए बना, नणय लेने के ग मीर दु प रणाम का भी उ लेख
कया है।
1. वभ न या यक नकाय व ा धकार :– (1) सभा – शु ने रा य के के य
यायालय को सभा या याय सभा कहा है। सभा ऐसा थान है जहाँ यि त के
लौ कक आचरण एवं हत क जांच मृ त के कानून के अनुसार क जाती है। शु ने
ऐसे दस साधन का उ लेख कया है, िजनक मदद से सभा याय–काय को भल भां त
म समथ होती है। ये दस साधन ह–राजा, स य, मृ त , लेखपाल, लेखक, वण, अि न,
जल, अ धकार तथा राजपु ष।
शु के अनुसार , सभा म थम थान राजा का होता है, जो सभा का सभाप त व
करता है। राजा सभा म अपना तनध नयु त कर सकता है, िजसे शु ने
ा ववाक कहा है, जो सभा के अलावा मि प रषद का भी सद य होता है। शु ने
ा मण वण को ाथ मकता दे ने के साथ ह सभी जा तय से सभा के सद य बनाना
वीकार कया है। अि बका साद वाजपेयी ने कहा है, '' शु ने सभासद के स ब ध
म एक वशेष स ा त दान कया है। िजन लोग का ववाद हो उ ह के यवसाय से
सभासद बनाए जाए, जैसे– कसान के ववाद म कसान य क वह अपने यवसाय
के नयम के वषय म अ धक अ छ तरह जानते ह।'' शु नी त का यह ववरण
उसक याय यव था को अ धक उदार तक संगत एवं यथाथवाद बनाता है।
2. मु य यायाधीश :– राजा के बाद यह सव च या यक पदा धकार माना गया है। इस
पद पर शु के अनुसार ऐसा यि त नयुि त कया जाना चा हए। िजसका व ध–शा
का ान अ य त यापक व वशेष हो तथा िजसक न प ता व न ठा संदेह से परे
हो।
3. यायालय का का मक वग व साधन :– यायालय को समु चत सं या म कमचार व
साधन उपल ध होने चा हए। अ यथा यायालय अपना काय सु चा प से नह ं कर
सकते। अत: शु का मत है क वह यायसभा प व होती है, िजसम मु कदम के
नणय के लए आव यक सम त साधन उपल ध हो।
II. राजा एवं यायाधीश के लए आचार–सं हता :–

75
शु नी त म यायाधीश के मनमाने यवहार का नषेध कया गया है। उनके लए कु छ
नयम क यव था क गई है। राजा को याय करने के अपने क त य का समु चत पालन
करना चा हए तथा याय करते हु ए। व भ न जा तय , े णय और कु ल क पर पराओं को
मानते हु ए नणय करना चा हए एवं धम का पालन करना चा हए। सभा सद को सभा म स य
अव य कहना चा हए। या यक या के समय राजा या यायाधीश को वाद के त
स मानपूवक आचरण करना चा हए।
III. या यक या :–
(1) यवहार :– सरल श द म यवहार का अथ है यायालय म चलने वाले मु कदमे क
या यक या इस या यक या वारा ह यह मालू म होता है क कौन यि त अपराधी है
और कौन नरपराधी।
(2) यवहार के चरण :– शु ने मु कदमे क या यक या के चार चरण वीकार कए
है। (अ) पूव प (ब) तप (स) या (द) नणय।
कसी भी मु कदमे क शु आत पूवप के ल खत या मौ खक बयान से होती है क
मु कदमा बनता है या नह ं इसके बाद दूसरा चरण तप ारं भ होता है। अब यायलय वाद
एवं तवाद दोन से ह न एवं त न करता है। य द यायालय यह अनुभव करता है क
वा तव म कानून क ि ट से कोई मु कदमा बनता है, तो मु कदमा अपने तृतीय चरण अथात ्
यापद म वेश करता है। अ यथा उसे वतीय पाद म समा त हो जाता है। या पाद के
अ तगत मु कदमे म तु त व भ न माण क कड़ी जांच क जाती है और मु कदमे म न हत
स य व अस य कौ जानकार ा त क जाती है। शु ने सभी माण के दो मू ल कार बताए
है – (1) मनु य माण (2) दै वी माण।
शु ने दै वी माण को मानुष माण से कम मह वपूण माना है और कसी भी कार
के मानुष माण के अभाव म दै वी माण को उ चत बताया है। या यक या चौथा और
अं तम चरण नणय पाद है। शु ने 6 कार के नणय बताए है –
(1) माण (2) तक स (3) अनुमान (4) सदाचार (5) शपथ
(6) राजा ा (7) वाद क सहम त।
शु के अनुसार नणय क घोषणा के साथ ह वजेता प को जय प दया जाना
चा हए। इसे एक कानूनी द तावेज के प म भी मा यता दान क है। यायालय म वाद एवं
तवाद दोन को ह उपि थत होना चा हए। शु ने अपने पूवव तय के वपर त नई
यव थाओं जैसे–पुन वचार ( रगे स मान, जमानत और नयोगी (वक ल) का भी उ लेख कया
है। शु के अनुसार नयोगी को कानून का ान होना चा हए एवं उसे नयमानुसार ह शु क लेना
च हए।
बोध न–9
न: ‘ यवहार ’ का अथ बताइए ?
उ तर: .............................................................................................. .....
...................................................................................................

76
4.11 अपराध एंव द ड
शु ने अपराध के दस कार का उ लेख कया है– इनम राजा ा उ लंघन, ी क
ह या, चोर करना आ द सि म लत है। व तु त. ये 10 अपराध रा य, समाज, एवं धम के
व अपराध है। शु ने द डनीय अपराध म 50 कार के छल का कया है। शु ने इ ह
राजा के त कए गये अपराध माना है।
I. अपराध का वग करण :–
शु ने सभी कार के अपराध को चार मू ल वग म बांटा है –
(1) का यक (2) वा चक (3) मान सक (4) सांसा रक।
का यक अपराध शर र से, वा चक अपराध वाणी से, मान सक अपराध मन से एवं सांसा रक
अपराध कसी के साथ मलकर या सहयोग से कया जाता है।
शु का मत है क येक अपराध क गु ता एवं लघुता को जानकर ह अपराधी को
दि डत कया जाना चा हए।
शु नी त म अपराध क े णय का व तृत वग करण कया गया है, जो अपराध के
वषय म शु नी त के यवि थत, यावहा रक व वै ा नक ि टकोण को य त करता है।
शु नी त म सामािजक, आ थक, नै तक, राजनै तक, व शास नक सम त कार के अपराध को
मह व दान करते हु ए उनके तकार क अपे ा क गई है। शु नी त म सामा यत: ाणद ड
न दे ने का ावधान कया गया है तथा केवल राज ोह जैसे ग भीर अपराध के लए वध द ड
दान कए जाने के औ च य का तपादन कया गया है।
II. द ड का अथ एवं मह व :–
ाचीन भारतीय पर परा म 'द ड' श द के अनेक अथ है। यहां शु ने द ड के दो अथ कए है–
(1) राजा क मु ख शि त
(2) राजा
य यप अ य शु ने द ड का अथ सेना, यु एवं याय यव था को भी वीकार
कया है, वा तव म द ड जनता को बुरे आचरण से मु ि त दलाता ह। राजा क द डयुकत
नी त सभी काय क स कराती है और द ड धम का परम र क है।
III. द ड के कार :–
शु ने मनु व या व पय के समान ह या यक शासन या अपराध उ मूलन के
स दभ म द ड के अ ल खत चार कार वीकार कए है –
(1) वा द ड
(2) धक् द ड
(3) अथ द ड
(4) काय द ड

77
शु के अनुसार केवल उ तम पु ष एवं म यम पु ष को वा द ड या ध द ड दया
जाना उ चत है, अधम पु ष पर इनका सु धारा मक भाव नह ं पड़ता है, अत: ये द ड इनके
लए नह ं है।
IV. अपराध और द ड :–
शु ने अपराध व द ड के पार प रक स ब ध को वीकार कया है। जो राजा अपराध
व द ड के इस स ब ध का यान रखते हु ए काय करता है, उससे जा स तु ट रहती है। केवल
अपराधी ह द डनीय है। नरपराधी सदै व अद डनीय है। द ड क मा ा, अपराध के अनुसार ह
होनी चा हए। उसे मनमाने ढ़ग से दि डत नह ं कया जा सकता। राजा को द ड दे ने म
अ य धक कठोर नह ं होना चा हए। शु ने एक ह कार के अपराध के लऐ उ तम, म यम, व
अधम पु ष के लए अलग–अलग द ड क यव था क है। िजससे शु क द ड नी त का
वषमता वाद प प ट होता है। पर तु शु ने ऐसे अपराध का भी उ लेख कया है, िजनम
द ड सबको समान दया जाता है, जैसे–राज ोह। यह उ लेखनीय है क शु ने मनु क म द ड
के े म अ धक समतावाद यव था को अपनाया है। आधु नक द ड स ा त क ि ट से यह
कहा जा सकता है क शु ने तकारा मक द ड स ा त को वीकार नह ं कया है पर तु
शु नी त म अवरोधक, नरोधक और सु धारा मक द ड स ा त को अव य ह वीकार कया
गया है।

4.12 पर रा नी त
शु ने ाचीन भारतीय आचाय क पर परा के अ तगत ह 'पररा स ब ध अथात ्
अपने रा य एवं अ य रा य के आपसी स ब ध का व तृत ववेचन तु त कया, है।
अ ययन क ि ट से हम इन वचार को दो मु ख भाग म वभािजत कर सकते है –
(1) सै ाि तक प (2) यावहा रक प ।
I. पर रा स ब ध का सै ाि तक प :–
शु ने कौ ट य के समान म डल स ा त का उ लेख नह .ं पर तु चार कार के
रा य के अि त व को वीकार कया है।
(1) वयं विजगीषु राजा ( वजय क इ छा रखने वाला का रा य (2) रा य
(3) श ु रा य (4) उदासीन रा य।
शु ने रा य के वग करण का आधार उनक भौगो लक को नह ं माना है अ पतु
विजगीषु राजा एवं अ य रा य के बीच उनके राज हत क ि थ त को माना है।
1. नी त के उपाय :–
शु ने पररा नी त के संचालन म राज हत एवं शि त त व को पया त मह व दया
है। उनके अनुसार येक राजा अपने राज हत को ह सा य मानता है और विजगीषु राजा अ य
रा य के स दभ म अपनी शि त के अनुसार नी त के उपाय एवं मं के साधन का कु शलतम
योग करता ह तो उसे सफलता मलती है। शु के अनुसार िजस कार राजा वारा सप, हाथी
तथा संह को अपने वश म कया जाता है, उसी कार से को यथा यो य उपाय से म तथा

78
श ु को अपना वशवत बनाना चा हए। शु ने नी त के चार पर परागत उपाय का ह उ लेख
कया है –
(1) साम (2) दान (3) भेद (4) द ड।
साम नी त का योग, म व श ु दोन के व ह कया जा सकता है। शां त व
मै ी क नी त से जहां म ता अ धक मजबूत होती है। वह ं श ु राजा के त भी सहायता व
सहयोग नि चत होता है। श ु के त सामनी त का योग दोन रा य क आपसी सु र ा म
अ भवृ करना है।
दान नी त का योग भी श ु व म दोन के त कया जाता है। म राजा से यह
कहना क मेर सभी व तु ए–ँ यहाँ तक क जीवन भी तु हारा है, म के त दान। कहलाती
ह। श ु राजा को य धन दे ना उसके त दान नी त कहलाती है।
भेद नी त के योग को शु ने म के व अनु चत माना है, क तु कु छ ि थ तय
म उ चत भी माना है। श ु राजा के त तीन कार से भेद नी त का योग कया जा सकता
है –
(1) श ु राजा को सहायक व साधनो क ि ट से कमजोर करना (2) श ु के व अ य
शि तशाल राजा का आ य लेना (3) श ु से ह न बल वाले राजा का साथ दे कर उसे
शि तशाल बना दे ना। इसम अ त र त भेद के वारा श ु राजा व उसक राजभ त जा के
म य मतभेद उ प न कराए जा सकते है।
द डनी त का योग भी म व श ु दोन के व कया जा सकता ह। म राजा को
यह चेतावनी दे ना क वह य द मनमाना यवहार करे गा तो म तु हारा म नह ं रहू ँ गा– द ड
नी त है। जब क श ु राजा के दोष कट करना, धन न ट करना, यु म क ट दे ना उसके त
द ड नी त है। य या प शु वारा म राजाओं के त भेद व द ड नी त को अनै तक कहा
जा सकता है, ले कन यह उनक यथाथवाद नी त है। शु के अनुसार राजा को पया त सोच–
वचार कर ह इन चार नी त उपाय का योग करना चा हए। शु ने अ य त बल श ु के
लए साम और दान का, अपने से अ धक बलवान के लए साम और भेद का, अपने बराबर
शि त वाले के लए भेद और द ड का योग उ चत माना है।
II. ष गुण नी त :–
इसका अथ है – 6 गुण वाल व श ट धारणा। य य प कौ ट य के समान शु ने इन
गुण का व तार से ववेचन नह ं कया है। इसके 6 गुण न न ल खत ह–
(1) सि ध :– शु ने सि ध को ऐसा साधन माना है, िजसके वारा शि तशाल श ु से
ह नबल राजा क म ता होती है अथात ् ह नबल राजा को सु र ा ा त होती है। सि ध के मह व
को रे खां कत करते हु ए कहा है, ''िजस कार से घने कांटो से घरे हु ए दास के समू ह को कोई
काट या उखाड़ नह ं सकता है, उसी कार से ते छ से भी सि ध कए हु ए राजा को भी, कोई
परािजत नह ं कर सकता।'' शु एकमा ऐसे ाचीन आचाय है, जो अपने हत क पू त के लए
अनाय राजा से भी सि ध को भी उ चत मानते है।

79
(2) व ह :– व ह का अथ है – राजाओं के म य शाि त व सहयोग क नी त का अ त
एवं तनाव व संघष का आर भ। िजस काय वारा श ु को पी डत कया जाए और अधीन कया
जाए, उसे व ह कहते है। व तु त: व ह ऐसी नी त है, िजसके वारा शि तशाल राजा, नबल
राजा को पी ड़त करके, उसे बना य यु के ह , अपने अनुसार चलने को ववश करता है।
यह कारण है क बु मान राजा को सि ध से बंधे हु ए श ु का भी व वास नह ं करना
चा हए। इ वारा वृ ासुर –वध का उदाहरण दे ते हु ए शु ने कहा है क इ ने ोह न करने
क त ा के साथ सि ध करके भी ऐसा कया था। क तु शु ने बलवान श ु से व ह का
नषेध कया है। केवल र ा के लए कोई वक प शेष न होने पर ह अ त म व ह को शु
ने उ चत माना है।
(3) यान – जब अपने इि छत हत क ाि त के लए श ु राजा का नाश आव यक होता है
और इस उदे य से उस पर आ मण कया जाता है, तब इसे यान कहते है। यान का
नकारा मक उ े य है, श ु का नाश करना। क तु सकारा मक उदे य है, आ थक सै नक, व
राजनी तक लाभ क ाि त। केवल शि तशाल राजा को नबल राजा के व ह यान का
योग करना चा हए।
(4) आसन – जहां अ य आचाय ने आसन का अथ –श ु राजा के त उपे ा तट थता एवं
नि यता क नी त माना है। शु ने इसे श ु राजा के कले या नगर क ऐसी सै नक घेराबंद
माना है, जो वयं क र ा करते हु ए श ु को अपनी शत पर स पक के लए ववश करे ।
आसन वारा श ु राजा क रसद पंि त न ट कर द जाती है। यु साम ी एवं भोजन साम ी
ईधन आ द क कमी होने पर श ु प म आ त रक असंतोष उ प न होता है। और तब वह
श ु राजा ववश होकर अधीनता वीकार कर लेता है।
(5) आ य :– जब कसी शि तशाल श ु राजा वारा नबल का रा य न ट कर दया जाये
अथवा ऐसी पराजय का संकट आ जाये तो नबल राजा को अपनी र ा के लए कसी अ य
शि तशाल राजा का आ य लेना चा हए, िजससे उसक शि त मे वृ हो सके।
(6) वैधी भाव :– इसका शाि दक अथ है एक ह समय म दो भाव का पाया जाना जो
कट प म दखाया जाता है। गु त प म उससे ठ क वपर त आचरण कया जाता है। कट
प म म ता एवं गु त प म श त
ु ा इसक वशेषता है। सेना के संचालन म भी वैधी भाव
का शु ने उ लेख कया है। सेना को अनेक टु क डय म बांटकर श ु को कट कप म अपने
सै नक बल के बारे म रखना वैधी भाव है।
II. पर–रा स ब ध का यावहा रक प :–
शु ने यावहा रक संचालन क ि ट से चार मु ख सं थागत ' का उ लेख कया है।
(1) दूत (2) गुपाचर (3) सेना (4) यु ।
1. दूत :– दूत को शु ने मं प रषद के 10 सद य म भी थान दया है। वह कू टनी त
एवं वदे शनी त से स बि धत काय को करता है। वह राजा का ऐसा त न ध है जो अ य
राजाओं से संवाद था पत करता है। अत: उसे दे श व काल क ि थ त वाला भाषण कला म
कु शल, अ य क दयागत भावना समझने वाला एवं नभ क वभाव, होना चा हए।

80
2. गु तचर :– शु नी त म अथशा के समान गु तचर क यव था, यापक उ लेख नह ं
कया गया है। गु तचर के कार के वषय म भी शु नी त मौन है, शासन बाहय एवं
आ त रक श ओ
ु ं से राजा एवं रा य क र ा का मु ख साधन है। गु तचर का काय है– राजा के
श ु सेवक वं जा के यवहार को जानना व उसक जानकार राजा को। राजा को भी उसक
स यता क पर ा करते रहना चा हए तथा अस यवाद गुपाचर को दि डत करना चा हए।
3. सेना :– शु के अनुसार सेना यि तय , पशु ओं आ द का समू ह है, जो अ , श से
सु सि जत होती है। सेना के कारण ह श ु का नाश स भव होता है तथा कोष, रा य व परा म
क वृ होती है। शु ने सै नक अनुशासन व आचारसं हता पर भी वचार कया है। राजा को
सदै व ऐसे य न करने चा हए क उसक सेना म भेद उ प न न हो जब क श ु सेना म अव य
ह भेद उ प न हो। यु म वजय ा त होने पर सै नक को भी लाभ मलना चा हए और उ ह
लू ट के माल म भागीदार बनाकर संतु ट रखना चा हए।
4. यु :– शु ने बाहय चु नौ तय से र ा के लए और अपने रा य के व तार के लए
यु क आव यकता को वीकार कया है। सभी राजा रा य व तार क कामला रखते है।
इस लए पर पर श त
ु ा भी रखते है। शु के अनुसार जब नी त के व भ न उपाय एवं ष गुण
मं से भी सफलता नह ं मले, तब अि तम साधन के प म यु को अपनाना चा हए।
शु नी त ाचीन भारतीय थ म संभवत: एक मा थ है, िजसम यु को प रभा षत कया
गया है। शु के अनुसार , पर पर श ु भाव रखते हु ए दो राजाओं का अ –श का योग
करना यु है। शु ने यु म नै तक नयम के पालन एवं उ लंघन के आधार पर, दो कार
के यु का उ लेख कया गया है। धम यु , एवं कू टयु । शु ने धम–यु के नै तक नयम का
ववरण दया है। क तु उ ह ने मनु क तरह कू टयु पर धम यु क े ठता यु का समथन
नह ं कया है। शु का प ट मत है क धम यु या कू ट यु िजसम श ु का वनाश हो वह
उ चत है। वा तव म शु ने यथाथवाद ि टकोण अपनाते हु ए धम यु पर कू ट यु को
वर यता द है। शु ने यु को पापपूण एवं जध य कृ य नह ं माना, अ पतु उ लेख कया है
क यु म मरने पर य को उ तम फल क ाि त होती है। य के लए यु को प व
क त य मानने का आ ह शु क इस अपे ा को य त करता है क वह अवसर आने पर यु
से पलायन न कर।
5. परािजत प के त यवहार:– शु ने यु म वजय के बाद वजयी राजा को विजत
रा य व उसक जा के त दुभावनापूण कायवाह न करने का परामश दया है। उ ह ने वजयी
राजा को विजत रा य क जा को स न रखने का नदश दया है। शु ने वजयी राजा से
अपे ा क है क वह श ु को जीतकर यो यतानुसार उससे कर हण करे , प रि थ त के अनुसार
श ु के रा य के आधे अंश या स पूण रा य पर अपना आ धप य कर ले।
उसके प चात ् श ु क जा को हर कार से स न रखे तथा अपनी जा क भां त ह
उसका पालन करे । शु ने राजा को यह परामश भी दया है क वह विजत रा य म कायरत
मि प रषद को हटाकर अपने त न ठा रखने वाले नवीन मि प रषद क नयुि त कर
दे । य द वह परािजत राजा का रा य छ न ले तो उसे, जागीर आ द जी वका के लए दान करे ।

81
वजेता राजा को जीते गए रा य म वे छाचार ढं ग से शासन नह ं करना चा हए। उसक
पु वत ् र ा करते हु ए उसे स न रखा जाना चा हए और उसे अपना बना लेना चा हए। व तुत:
शु के इस ववरण म यह भाव न हत है क परािजत रा य क जा एवं समाज के धा मक
नै तक व सामािजक मू य क र ा क जानी चा हए और जा का पालन भी कया जाना
चा हए।
बोध न -10
न : नी त के चार उपाय कौन से है ?
उ तर: ....................... ...................................................................... ......
................................................................................................ ...

4.13 शु का मह व व मू यांकन
मनु मू लत : धमशा ीय वचारक है, कौ ट य अ थशा ीय वचारक है। जब क शु
राजनी तक वचारक है इसी लए ाचीन भारतीय राजनी तक च तन म उनका व श ट थान व
मह व है। अ टे कर का मत है, ''शु नी त म शास नक मह व क ऐसी अनेक सू चनाऐं मलती
है, जो अ थशा स हत अ य कसी थ म उपल ध नह ं है। यह स य है क शु ने रा य
के सै ाि तक प क व तार से ववेचना नह ं क है, पर तु ाचीन भारत म यावहा रक प
पर ह काश डालने क पर परा थी। अ ययन क सु वधा के लए शु के योगदान को
न न ल खत ब दुओं के प म समझा जा सकता है –
(1) द डनी त को सव मु ख व या के प म मा यता
शु ने द डनी त शा ीय औशनस स दाय का अनुकरण करते हु ए सै ाि तक एवं
धम शा ीय ान पर यावहा रक व लौ कक ान क े ठता को तपा दत कया है।
द डनी त के योग से राजा को सभी फल क स होती है, यहां तक क वह सतयुग क
थापना भी कर सकता है
(2) उदार एवं यावहा रक सामािजक –राजनी तक यव था का तपादन
शु ने समाज –संगठन के आधार के प म वण यव था को मा यता द है। क तु
उ ह ने कमानुसार वण यव था क धारणा का समथन कया है। इस कार शु ज म पर
आधा रत वण यव था म न हत वाथ एवं अयो यता क उपे ा करने क को शश क और
कम, यो यता व तभा के आधार पर वण यव था के पुन : नमाण का वचार दया है। एवं
जा त का मह व ववाह एवं भोजन सामु दा यक जीवन म होता है। रा शासन जैसे
सावजि तक व राजनी तक काय म वण एवं जा त क तु लना म कमशील व गुण पर आधा रत
यो यता व का ह मह व होता है। मनु क तु लना म शु के वचार पया त उदार ह और उस
प रवतन क ओर संकेत करते है जो उनके युग म ज म ले रहा था।
(3) रा य का सावयव स ा त
भारतीय पर परा का अनुकरण करते हु ए 'स तांग रा य' क धारणा वीकारा है। उ ह ने
रा य के सात अंग क तु लना मानव शर र के अंगो से क है। शु ने प को वृ क भी
उपमा द है, रा य जैसी अमू त रचना को प ट करने क ि ट से शु का यह मह वपूण है।
82
(4) रा य का वग करण
शु नी तसार ऐसा एकमा ाचीन भारतीय थ है, िजसने एक सु नि चत आधार पर
राजत ीय रा य के व भ न कार का उ लेख कया है। यह ाचीन भारत क राजत ा मक
सा ा यवाद शासन णाल क ओर भी संकेत दे ता है।
(5) राजपद पर यथाथवाद ढं ग से वचार
शु ने मनु के समान राजा को नर दे व नह ं माना है। शु का मत है क राजपद क
सम त ग रमा के उपरा त भी राजा मू लत: जा का सेवक ह होता है इसी प म उसे कर
ा त करने का अ धकार दया है। शु ने जा पालन को राजा का कत य माना है।
(6) ाचीन मि प रषद का वकस
शु नी त ह एकमा ऐसा थ है, िजसम प ट प से मि य के म, उनके वेतन
म अ तर, कायालय आ द को कट कया गया है। शु ने ह सव थम मि प रषद क
वभागीय प त मि य के वभाग प रवतन, म ालय के संगठन आ द का कया है। शु ने
ह सव थम मि प रषद क सु नि चत एवं ल खत काय णाल का भी उ लेख कया है।
(7) कोष, अथ– यव था एवं जा हतकार रा य
यह उ लेखनीय है क काल–सापे , आदश कोश क धारणा का उ लेख केवल शु ने
ह कया है। यह कोश इतना संप न होना चा हए क कर जमा न होने पर भी 20 वष तक
जा व सेना क र ा करने म समथ हो। शु एकमा ऐसे राजशा ी है, िज ह ने रा य क
आय– यय क वा षक योजना का उ लेख कया है। मनु, कौ ट य आ द आचाय क म शु का
यय ववरण अ धक प ट, नि चत एवं नयमब है। शु ने अपने यय के ववरण मे, जन
क याण एवं समाज क याण पर भी बल दया है।
(8) वक सत शास नक यव था का ववरण
शु क शास नक यव था मनु मृ त क तु लना म पया त ज टल एवं वक सत है।
इसम ल खत कायालय प त, राजसेवक क आचार सं हता यूनतम एवं अ धकतम वेतन के
स ा त आ द का भी उ लेख कया गया है। शु ने का मक क सेवा अव ध, पदो न त
पदअवन त श ण, गणवेश आ द के नयम का भी उ लेख कया है। शु ने क इस का मक
यव था के अ तगत कु छ ऐसी यव थाओं का भी उ लेख कया है, जो आधु नक शास नक
यव थाओं के पया त नकट तीत होती ह। उ होन सामा य व ाम, अवकाश, वा य
अवकाश, पशन स हत सेवा नवृ त , पा रवा रक पशन, भ व य न ध, बोनस आ द का भी उ लेख
कया है।
(9) याय शासन का े ठ ववरण
य य प शु ने याय शासन म धमशा ीय पर परा का अनुकरण कया है, क तु
इसके साथ ह उ होन याय शासन म कु छ नए त व का उ लेख कया है। याय सभा के
लए सद यता म केवल ा मण वण क अ नवायता नह ,ं जू र णाल , स मन, जमानत,
अपील एवं पुन : वचार, नयोगी (वक ल) आ द इसम सि म लत है।

83
(10) पर–रा स ब ध क सै ाि तक एवं यथाथवाद ववेचना
जहां इस े म मनु आदशवाद अ धक ह, वह शु ने यथाथवाद स ब ध का मु ख
आधार ह रा य क आपसी अ व वसनीयता को वीकार कया है। उ ह ने राज हत एवं शि त
के त व को ह वदे श नी त के संचालन म मु ख थान दया है, जो आधु नक काल के समान
है। य य प शु ने परािजत राजा एवं परािजत दे श के आदशवाद प का समथन कया है।
क तु ऐसे यवहार का अि तम उ े य यथाथवाद ह है। ऐसी नी त परािजत प पर वजेता
राजा क वजय को था य व दान करती है।
(11) शु ने रा य एवं रा के म य भेद को प ट कया है तथा यह प ट कया है क
रा स दाय का नयं ण ह उसे रा य का व प दान करता है। इस कार शु ने अपने
युग क राजतं ा मक शासन णाल के अ तगत पाए जाने वाल राजनी तक यव था का
व तृत ववरण तु त कया है। बेनी साद का मत है क शु नी तसार ाचीन ह दू समािजक
व राजनी तक पर परा म लखा गया ऐसा अ य त मह वपूण थ है, िजसने सभी वषय को
पश कया है और उ ह संवारा व समृ भी कया है। अ टे कर के अनुसार '' ाचीन भारतीय
राजनी त के अ ययनकताओं के लए यह अ य त मह वपूण थ है। इसके साथ ह भारतीय
च तन पर परा म उनका व श ट थान है।“

4.13 सारांश
शु ने रा य व शासन पर अपने थ शु नी तसार क रचना क , िजसम 2200
लोक है एवं 4 मू ल अ याय ह। के0पी० जायसवाल के अनुसार यह 8वीं शता द क रचना है।
शु नी त म द डनी त (राजनी त) को े ठ व या बताया गया है। शु ने राजा को दे वांश से
न मत माना है, ले कन उसके दै वी अ धकार को वीकार नह ं कया है। शु रा य को
वाभा वक एवं अ नवाय मानता है तथा शु ने भारतीय च तन पर परा के समान ह रा य के
स तांग स ा त का तपादन कया है। शु नी त म रा य के यापक काय े का तपादन
कया गया है तथा रा य को जनता के क याण का साधन वीकार कया गया है। राजा
नरं कु श नह ं है, उस पर नयं ण के कई साधन शु नी त म दये गये ह। य य प शु ने
वे छाचार राजा क पदमु ि त का समथन कया है, पर तु नरकं ु श राजा के वध का नह ।ं शु
के अनुसार , मि प रषद म 10 सद य होने चा हए। शु ने शासन एवं का मक यव था के
व भ न नयम का व तृत ववरण तु त कया है, िजसम जनता, रा य एवं कमचा रय के
हत को आधार बनाया गया है। शु ने मनु के वपर त समाज यव था के े म उदार ि ट
का प रचय दे ते हु ए जा तय के नमाण का आधार, यवसाय माना है और राजक य सेवा म
नयुि त का आधार वण एवं जा त नह ं वरन ् कमशील, एवं गुण को वीकार कया है। शु क
कर नी त का आधार भी जनता का क याण है, जनता से अनै तक कर वसूल को अनु चत
माना गया है। शु ने यायपा लका के संगठन एवं या यक या का यापक वणन कया है,
जो आधु नक एवं ासं गक तीत होता है। का यक, वा चक, मान सक, सांस गक अपराध के
चार कार एवं द ड के चार कार–वाक् द ड, धक् द ड,अथ द ड व का यक द ड का भी

84
शु नी त म उ लेख कया गया है, िजससे प ट होता है क शु ने दै वी के थान पर अपराध
एवं द ड के लौ कक व प को ह वीकार कया है। पररा नी त के सै ाि तक एवं
यावहा रक दोन प का यापक ववेचन शु ने कया है। भारतीय च तन पर परा के
अनु प नी त के चार उपाय व ष गुणनी त का उ लेख कया है तथा वदे शनी त के यावहा रक
प – दूत , गु तचर, सेना व यु का भी ववरण तु त कया है। य य प पररा नी त के े
म शु ने यथाथवाद नी त अपनाई है पर तु यु को अि तम वक प वीकारना तथा परािजत
प के त नयम का ववरण, शु क नै तक नी त को प ट करते ह। शु का का मक
शासन, पररा नी त, राजा को दए गए नदश यथाथवाद , आधु नक एवं ासं गक तीत होते
है।। यह कारण है क शु का भारतीय च तन म व श ट थान है।

4.15 अ यास न
1. रा य क उ पि त, उ े य एवं काय े के बारे म शु के वचार क ववेचना
क िजए।
2. शु नी तसार म व णत मि प रषद स ब धी वचार पर काश डा लए।
3. यायपा लका एवं या यक या के बारे म शु के वचार को क िजए।
4. शु वारा व णत शासन क का मक यव था अथवा राजक य के मु ख नयम पर
काश डा लए।
5. पररा स ब ध के संचालन के वषय म शु के वचार का उ लेख करते हु ए,
आधु नक संदभ म उनक संदभ ासां गकता को प ट क िजए।

4.16 थ सू ची
1. एन.सी. ब धोपा याय : ह दू पो लट ए ड पो लट कल यो रज टं पि लशरस
जयपुर , 1989
2. पी.वी. काने : ह ऑफ अथशा ा, वो.1,भ डारकर ओ रए टल
रसच इन ट यूट , पूना , 1968
3. यूएन . घोषाल : ए ह ऑफ इि डयन पो लट कल आइ डयाज, ऑ सफोड,
1966

85
इकाई–5
सामािजक–सां कृ तक पुन थान एवं रा वाद
इकाई क परे खा
5.0 उ े य
5.1 तावना
5.2 भारत म सामािजक–सां कृ तक पु थान
5.2.1 म समाज तथा आय समाज
5.2.2 18वीं–19वीं सद के भारतीय समाज का व प
5.2.3 भारतवष क सामािजक दुदशा
5.2.3 अं ेजी शासक का त काल न भारतीय सामािजक–राजनी तक जीवन को
योगदान
5.3 भारत म रा वाद का आ वभाव
5.4 आधु नक एवं वतं भारत म उदार
5.4.1 महा मा गाँधी
5.4.2 जवाहरलाल नेह
5.5 सामािजक–सां कृ तक पुन थान एवं उदार रा वाद क पार प रकताऐ
5.6 सारांश
5.7 उ े य
5.8 संदभ थ सूची

5.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरा त आप जान पायगे–
 सामािजक–सां कृ तक पुन थान का अथ एवं प– कार
 पुन थान क पृ ठभू म म भारतीय रा वाद का आ वभाव
 आधु नक एवं वतं भारत म उदार रा वाद का उदय एवं सार, और
 भारत म व यमान पुन थान क धाराओं तथा उदार रा वाद क पर प रकताएँ।

5.1 तावना
भारत म सामािजक–सां कृ तक पुन थान रा वाद का एक बल आधार रहा है।
सामािजक–सां कृ तक पुन थ थान से या आशय है? उसका रा वाद संक पनाओं के वकास–
म म या अवदान रहा है 'उ त दोन संदभ म व श ट वैचा रक तपादन कसके ह और
या ह?उनका भारतीय वैचा रक वकास पर या भाव अं कत हु आ ये और इससे स बि धत
अ य संग इस इकाई क वषय–व तु क रचना करते ह।

86
इस इकाई म वशेषत: राजा राममोहन रॉय, दयान द, महा मा गाँधी तथा जवाहरलाल
नेह के वचार का समावेश कया गया है। यह इकाई पुन थान तथा रा वाद क
पार प रकताओ के संधान को भी सम पत है।

5.2 भारत म सामािजक–सां कृ तक पु थान (Social Cultural


Revival In India)
इस पा य म का मू ल उ े य भारतीय समाज म 18वीं–19वीं स दय म अवत रत हु ए
सामािजक सा कृ तक एवं धा मक वचार के तपादक के उन यास एव वचार का अ ययन
कया जायेगा जो उदार सुधारवाद वचार के थान पर ाचीन / काल के मू य के आधार पर
नये भारतीय समाज क रचना करना चाहते थे। ये वचारक। भी भारतीय समाज म सामािजक–
सां कृ तक सु धार के प पाती थे क तु उनके वचार और कायकम क ेरणा वे भारतीय
समाज के वै दक आदश से लेते थे। वे उन ाचीन, सनातन –सां कृ तक आदश क पुनरावृि त
करते हु ए, उन आदश / मू य के अनु प भारतीय समाज पुन थान करने के प पाती थे।
उनका ल य भारत वष के ाचीन इ तहास क जड़ तथा ाचीन, ह दूवाद के स ांत और
यवहार का पुन : उ थान करना था; वे भावी भारत को भू तकाल के आदश के अनु प ढालने के
प पाती थे। यह भारत के पुनज म (rebirth) और पुन थान (revival) को आदश का
सै ाि तक अ तर है।
भारतीय पुन थान (revival) क धारणा को हम ऐ तहा सक उदाहरण के प म इन
श द म भी प ट कर सकते ह:
भारतीय पुन थानवाद (revivalist) वचारक भी रोमन धम दे वता (janus) ''जेनस''
जैसे दे वता के समान थे िजसके दो मु ँह ह ( वमु खी) ह िजसका एक मु ँह ह दुओं के भू तकाल
के वणयुग क ओर है तथा जो अपने दूसरे मु ँह को आगे क ओर इस आशा के साथ ह क
भू तकाल के भारत क सामािजक सं थाओं, उस काल के धा मक व वास तथा उस क
राजनी तक याओं को भावी भारत म पुन : था पत कया जायेगा। सं ेप म, 18वीं– 19वीं
सद के इन समाज सु धारक (social reformers) को हम पुन थानवाद (ravivalist) कहते
ह। द ीन द सर वती तथा ववेकान द को सामािजक–सां कृ तक पुन थान का जनक माना
जाता है।
इसक तु लना म 18वी–19वीं सद के भारतीय सामािजक सु धारक (social
reformers) यह वीकार करने म हच कचाहट नह ं करते क कोई वचार पि चमी जगत का
है अथवा ाचीन भारत का; उनका ि टकोण ववेकसंगत और भ व य क ओर दे खने वाला तथा
समाज के वकास का समथक था। राजा राममोहन राय समाज सुधारक क ेणी के अ ज
वचारक़ थे।
उपयु त ववरण से प ट हो जाता है क 18वीं–19वीं स दय म भारतीय समाज का
जैसा आधु नक व प वक सत हो रहा था, उस काल के सु धारक / वचारक के पुन नमाण के
दो भ न– भ न ि टकोण थे : पहले वग के वचारक का उ े य भारत को क सड़ी–गल

87
सामािजक धा मक एवं सां कृ तक कु थाओं से नकाल कर ह दू समाज को माग से
आधु नकता के माग क ओर, नवीनता क ओर, अ सर करना था। इ ह उदार “समाज सुधारक''
कहते ह। ये वो वचारक ह िज ह ने 18–19वीं सद के भारत के लोगो क वतं ता, उनक
ववेकशीलता को धानता दे कर उसे वै ा नक जीवन– ि टकोण कया था; इ ह ने 18वीं शता द
के धा मक–नै तक अनाचार तथा अ ान जैसी बुराइय को दूर का बीड़ा उठाया था। राजा
राममोहनराय भारतवष के थम महापु ष थे िज ह ने त काल न, ह दू समाज क कु थाओं के
व ववेकपूण सामािजक सु धार का ीगणेश कया था और उ नीसवीं सद के भारतवष को
आधु नकता के माग पर अ सर कया था। वे अ भनव एवं नव जागरणशील भारत के थम पथ
दशक ''समाज सु धारक (social refornar)” थे।
इसक तु लना म 19वीं सद के ारि भक काल म वामी दयान द सर वती (1824 –
1883) तथा इसी सद के म यकाल के बाद वामी ववेकान द (1863 – 1902) के वचार ने
भारतवष को आगे क ओर दे खने के बजाय ाचीन वै दक काल क ओर दे खने का संदेश दया
था; वामी दयानंद सर वती का आ हान था ' 'वेद क ओर लौट चलो'' और वामी ववेकान द
ने भारतीय धा मक– आ याि मक े ठता के वचार को व व पटल पर रखा था। वे लखते ह
''एक बार पुन : भारत वारा व व वजय करनी होगी यह मेरे जीवन का सपना है। हे भारत!
उठो और संसार को अपनी आ याि मकता से जीत लो।''
अत: इस भाग म हम राजा राममोहन राय और उनके वचार का अनुसरण करने वाल
को ''समाज सु धारक '' क ेणी म रखते ह ओर वामी दयान द सर वती एवं उनके वचार का
अनुसरण करने वाल को '' पुन थान '' के माग के अनुयायी कहते ह।

बोध न– 1
न :1 '’ समाज सु धारको” तथा पु न थानवा दय क े णी के त न ध– वचारक कौन
ह?
उ तर : ........................................................................................ ...
..................................................... ..............................................

5.2.1 म समाज तथा आय समाज

उदारवाद वचारक तथा पुन थानवाद वचारक के वचार के प रणाम व प दे श म


ऐसी सं थाओं का भी ज म हु आ था िजनके वारा राजा राममोहन राय, दयान द सर वती तथा
ववेकान द के वचार का सार कया गया था। म समाज, ाथना समाज, आय समाज तथा
भारतीय म समाज जैसी सं थाओं के वारा इन वचारक के उदार वचार एवं स ांत का
सारण कया गया और उनके वचार एवं स ांत को यावहा रक प दे ने के लये सं थागत
यास कये गये थे।
दूसर ओर आय समाज ने वै दक आदश के चार– सार और आय लोग को संग ठत
करने क भू मका नभाई और रामकृ ण मशन वारा ववेकान द के वचार का सार कया
गया।

88
सं ेप म 19वीं शता द म जहां एक ओर सामािजक सु धारक के वचार का दे श म
व तार हु आ, वह ं इन वचार को यावहा रक प दे ने के काय म म समाज, आय समाज
तथा रामकृ ण मशन जैसी सं थाओं ने अपने–अपने दायर म अपना योगदान दया। इन
संगठन के यास से दोन कार क वचारधाराओं उदारवाद तथा पुन थानवाद का वाह
आगे बढा और उन वचारधाराओं के अनेक अनुयायी उन वैचा रक धाराओं के साथ जु ड़े और
अपने संगठन के आदश को याि वत करने म जु ट गये। यह इन वचारक तथा उनके वारा
था पत संगठन के याकलाप का प रणाम था क भारत म रा वाद क दो भ न– भ न
कार क धाराएं वक सत हु ई–उदारवाद रा वाद क और धा मक तथा आ या मवाद रा वाद
क । इन दोन वचारधाराओं के 20वी सद म मु ख अनुयायी वचारक कौन थे और उनके
स ांत क या व प था, इन न का उ तर यहां सं ेप म दया जाता है।

5.2.2 18वीं–19वीं सद के भारतीय समाज का व प

इस थल पर भारत के सामािजक–सां कृ तक पुन थान (social cultural revival)


के अथ को तथा उसके व प को प ट कया जाता है। भारत म पुन थान (revival) का
आ दोलन 18 वीं सद के अि तम वष म हु आ था। यह आ दोलन मू लत: सामािजक, धा मक,
सां कृ तक एवं राजनी तक आ दोलन था िजसका उ े य 18 वीं सद के भारतीय समाज क
अनेक वकृ त थाओं और कु र तय को दूर करना था तथा अं ेजी श ा के सार के कारण
उ प न भारतीय आदश से मोह भंग एवं ह दू धम तथा उसके ाचीन शा और पर पराओं
को पतन के संसार से मु त कर भारत को पुन : उसके '' वण युग (golden age)” क ओर
लौटाना था।सर रोपर लेथ ज ने अपने ं ''रामतनु ला हर ” – बंगाल के पुनजागरण का

इ तहास' म यह दशाया है क त काल बंगाल का व याथ वग ाचीन ह दू स यता–सं कृ त के
आदश से भटक कर, पि चमी जगत क श ा णाल से भा वत होकर ह दू धम क हँ सी
उड़ाता था। 18वीं सद के बंगाल के त ण ह दुओं पर वदे शी लोग का वशेषत: डफ हे अर और
डीरोिजय जैसे वदे शय का भाव इतना छा गया था क वे खु लेआम घोषणा करते थे क
''य द कोई ऐसी चीज ह िजसे हम तहे दल से घृणा करते ह, वह ह दू धम है''। 'इसी तरह
ह दू कॉलेज के बु व याथ पुरातन ह दू आदश क हंसी उडाते हु ए यं य करते थे : ''हम
भारतीय कैसे स य बन पायेग और कस कार हम अंध व वास क तानाशाह से मु ि त पायेग,
य द हम शराब का सेवन नह ं करे ग'। क र ह दुओं के स मु ख नाचते हु ए वे उनके कान म
जोर दे कर कहते ''हम गो माँस खाते ह, सु नो हम गो माँस खाते है' ' सं ेप म, 18वीं सद के
अि तम वषा तथा उ नीसवीं सद के आरं भक काल म म यकाल न ह दू समाज के सामािजक,
नै तक एवं राजनी तक पतन के व तथा अं ेज़ी श ा के कारण भारतीय के नै तक–धा मक
जीवन म जो कु र तयां पैदा हु ई थीं, इनके 19वीं सद के ारं भ म त काल न समाज सु धारक
और धा मक नेताओं – राजा राममोहन, दयान द सर वती तथा ववेकान द आ द ने भारतीय
समाज क सामािजक कु र तय को दूर करने के यास कये थे।

89
उपयु त सामािजक–धा मक नै तक पतन से उ ार करने क ि ट से उदाहरणाथ,
राजाराम मोहनराय ने सामािजक सु धार को वैधा नक एवं शां तपूण माग से ा त करने के
कदम उठाये थे इसक बजाय दयान द सर वती ने भारतीय का आ हान कया था।” 'पुन : वेद
क ओर लौट चलो (back to vedas)”। इसी भां त वामी ववेकान द का भी लोग को संदेश
था ''हमे संसार को अपनी आ याि मकता तथा अपने दशन के मा यम से जीतना होगा''। अत:
यह लखना युि तसंगत है क भारत के 18वीं–19वीं सद के समाज सुधारक वचारक ने
भारतीय समाज को अपने ाचीन आदश समाज के मू य को िज ह 18वीं सद के लोग को
भु ला दया था, उनके सामने अपने दे शज सां कृ तक वचार और मू य को पुन : अपनाने पर
बल दया िजससे क भारतवष एक बार पुन : अपने व णम अतीत को ा त कर लेगा, उसक
रा य एकता पुन : था पत होगी और रा य मुि त के वारा खु ल जायगे। अत: सामािजक
सां कृ तक, पुन थान के वतक ने भारतीय को वै दक काल क सं कृ त, महाभारत काल क
महानता, स ाट अशोक तथा च गु त मौय के युग क याद दलाते हु ए पुन : उस काल के
आदश क ओर बढने का संदेश दया था।
इस थल पर राजा राममोहन राय तथा वामी दयान द सर वती और ववेकान द के
वचार पर ि टपात करने से प ट होता है क त काल न भारत क सामािजक कु भाओं को
दूर करने क ि ट से दो भ न– भ न माग पर चलने वाले वचारक हमारे स मुख उपि थत
होते ह। सु धार के माग के राह राजा राममोहन राय ह तथा पुन थान के माग पर चलने वाले
वामी दयान द सर वती तथा वामी ववेकान द ह।

5.2.3 भारतवष क सामािजक दुदशा

17वीं सद आते–आते भारतवष के समाज का सामािजक, धा मक एवं राजनी तक पतन


गहरा हो चु का था। स इ तहासकार ोफेसर ताराचंद का मत है क 18वीं सद के उ च वग
के ह दुओं का धम अपने मू ल प से ब कु ल बहक गया था। इस काल म बहु त कम
भारतवासी उप नषद और अपने दशन का अ ययन करते थे, और जो लोग करते थे वे भी
पौरा णक कथाओं ओर कमका ड म व वास करते थे। ाचीन भारत म िजस एके वरवाद(एक
ई वर) क धारणा म ह दुओं क आ था थी, ऐसे एके वरवाद क उ च क पना को एकदम
भु ला दया गया था; अब एके वरवाद के थान पर बहु दे ववाद और मू तपूजा का बोलबाला हो
गया और व भ न दे वताओं क पूजा पर आधा रत बहु तसं यक स दाय बन गये। इस काल म
वाममाग ताि क के आचार– वचार ब कु ल ह अनै तक बन चु के थे। लोग का भू त– ेत म
व वास बहु त फैल चु का था और वे झाड़फूंक म व वास करते थे। समाज के न नतर वग
भयंकर कु सं कार के सागर म डू ब गये थे और वे दे वी–दे वताओं के अलावा जड़ और चेतन
पदाथ , साँप , बंदर , पेड–पौध तथा प थर क पूजा करने लगे थे।
इसके अ त र त अठारहवीं सद के भारतवष म जात–पात का जोर था और ऊँच–नीच के
सामािजक वचार को ई वर य आदे श माना जाता था। ''बंगाल ा मण म कु ल न था अथात ्
बहु त सी ि य से ववाह था का चलन हो गया था िजससे ि य क दशा समाज म ऊँची

90
नह ं रह । सती था, ब च को न दय म चढाना, जग नाथ के रथ के प हय के नीचे पसकर
मर जाना पु य काय माने जाते थे।”
18वीं सद के भारतवष क यह सामािजक–धा मक पतन क अव था थी। 19वीं सद म
ऐसी अव था के व आवाज उठाने वाले राजा राममोहन रॉय (1772–1833), बंगाल म
वामी दयान द सर वती (1824–1883) पंजाब म तथा बंगाल म वामी ववेकान द(1863–
19०2) जैसे सामािजक– धा मक आ दोलन के नेताओं का ज म हु आ िज ह ने म ययुग क
कु र तय के व समाज सु धार करने का बीड़ा उठाया। इन सामािजक सु धारक के यास के
फल व प भारत वष म आधु नक काल का ज म होता है।

5.2.4 अं ेजी शासक का त काल न भारतीय सामािजक राजनी तक जीवन को योगदान

जहाँ एक ओर भारतीय पुनजागरण (rebith) के पुरोधा राजा राममोहन रॉय, दयान द


सर वती और ववेकान द जैसे समाज सु धारक थे, वह ं दूसर ओर इन वचारक के पहले भारत
वष को आधु नक व प दान करने म अं ेज शासक के योगदान को भी ेय दया जाता ह।
भारत म टश शासक ने अपने उप नवेशी हत के लये अनेक कदम उठाये थे, जैसे दे श म
रे ल माग , स क , कू ल , व यालय क थापना। यापार के लये बाजार को सु धारा गया,
दे श को एक सू म बांधने के लये कानून तथा शासन णाल क यव था क गई, संचार
यव था म सु धार कया और नये उ योग को था पत कया गया।
अं ेज के उठाये कदम के प रणाम व प भी म ययुग के अंधेरे म डू बे दे श म ान
का काश आया था और दे श एकता के सू म बंधने लगा था। इन याओं के प रणाम व प
उ नीसवीं शता द के आरं भक काल म भारत म म यम वग, मक वग एवं बु जीवी वग
का उदय हु आ। इन सारे सामािजक, धा मक, आ थक एवं शास नक सु धार के प रणा व प
भारतवष का आधु नक चेहरा कट हु आ–दे श म ययुग क बे ड़य से मु तहोकर आधु नकता के
माग पर अ सर हु आ। सं ेप म अं ेज शासक वारा ार भ कये गये अनेक कार के सुधार
ने भी भारतवष को आधु नकता क ओर वृ त करने म योगदान दया था और काला तर म
भारत को आगे ग तमान करने म भारतीय सु धारक का योगदान रहा था।
19वीं सद के आरं भक काल के नेता राजा राममोहन रॉय, वामी दयान द सर वती
तथा ववेकान द आ द का मह वपूण योगदान था। इन नेताओं का जीवन, उनके वारा था पत
व भ न समाज सु धारक संगठन और उनके वारा रा य उ थान '' वचार का यहाँ वणन
तु त
भारतीय पुनजागरण : उ नीसवीं सद के अ णी नेता
इस भाग म 19वीं सद क उन महान ् हि तय का ववरण कया जाता है िजनके
कमठ यास के प रणाम व प भारतवष म ययुग क पतनाव था से मु त होकर आधु नक
समाज का प धारण कर सका। यहां पहले संकेत दया जा चु का है क इस “सामािजक,
धा मक एवं सां कृ तक प रवतन के श पी मु यत: बंगाल म राजा राममोहन रॉय, उ तर
भारत म वामी दयान द सर वती तथा बंगाल म ह वामी ववेकान द थे।

91
बोध न–2
न:1 “बै क टू वे दाज” कसका सं दे श था और य ?
उ तर: ................................................................................... ................
..................................................................................... ..............

5.3 भारत म रा वाद का आ वभाव


तुत अ भलेख म यहाँ यह प ट करना भी आव यक है क 19वीं सद म भारत म
वक सत हु ए सामािजक–धा मक आ दोलन का म समाज तथा दयान द सर वती के आय
समाज का या प रणाम नकला। सं ेप म इतना लखना ह पया त होगा क काल के
वचारक के च तन का तथा त काल न सामािजक–सां कृ तक प रवतन के ने दे श म रा वाद
क भावनाओं को ज म दया, रा के त ेम ओर रा य वतं ता के भाव सार कया
तथा इस रा य चेतना ने भारतीय म ेरणा दान क िजसके प रणाम व प को 1947 म
वदे शी शासक से वतं ता मल । अत: यहाँ “रा वाद'' क धारणा का कया जाता है।
रा वाद का आधारभूत श द “रा '' है। रा का साधारण ता पय एक ऐसा सामािजक
समु दाय होता ह िजसके सद य कसी भौगो लक े के नवासी होते ह; यह समु दाय
सां कृ तक ि ट से संग ठत होता ह। उसके सद य म एकता के भाव न हत होते ह। उसके
नाग रक म दे श क वतं ता, दे श ेम तथा दे शभि त के भाव भरे होते ह। लोग क अनेक,
कार क व भ नताओं के होते हु ए भी वे एकता से जु ड़े रहते ह। भारतवष म 19वीं शता द
को सामािजक–सां कृ तक आदोलन के कारण भारतवा सय म रा के त ेम और आराधना
क भावनाएँ उ प न हु ई थीं।
अत: न कष प से यह कहा जा सकता ह क 19वीं सद के भारत वष म िजस
कार क सामािजक और सां कृ तक चेतना का ज म हु आ था उसके प रणा व प पूरे दे श म
रा य एकता, रा के त ेम, ा तथा उसके लये याग और समपण के भाव पैदा हु ए
थे, इन भाव को हम भारतीय रा वाद के नाम से संबो धत करते ह। भारतीय पुनजागरण का
प रणाम हमारे दे श म रा वाद क भावनाओं का ज म था, िजन भावनाओं से े रत होकर –
भ त लोग ने दे श क वतं ता का बगुल बजाया था और िजसके प रणाम व प भारत वष,
शासन से मु त हु आ था।
रा वाद के व प के संबध
ं म कु छ व वान लेखक का मत है क यह भ व य क
ओर दे खने वाला समावेशी (integrative) उदार, शां त य. वैधा नक साधन का योग–कता,
सु धारवाद और धम नरपे ता के आदश का पालन करने वाला होता है। क तु रा वाद का एक
दूसरा प भी ह: यह उ तथा आ ामक भी होता है, और अन य(exclusive) भी जो समाज
के अ य वग –जा तय को अलग रखते हु ए केवल अपने लोग के हत क र ा करता है।
अन य को ट का रा वाद दे श के भू तकाल क ओर दे खने वाला तथा भू तकाल के सनातन एवं
आ याि मकता के वचार को आधु नक काल के समाज म पुन : था पत करने के उ े य का

92
समथक होता है। साधारण भाषा म हम यह कह सकते ह क रा वाद के दो मु ख व प होते
ह। उदारवाद एवं पुन थानवाद । इतना ह नह ,ं रा वाद का व प ां तकार भी होता ह।
आधु नक भारतवष के इ तहास म 19वीं–20वीं स दय म तथा उसके बाद उदारवाद ,
पुन व थानवाद तथा हंसक– ां तकार रा वाद क वचारधाराओं का आ वभाव हु आ था। राजा
राममोहन रॉय के वचार का अ ययन करने से प ट होगा क राजा राममोहन रॉय के वचार
का व प सु धारवाद , उदार, संवध
ै ा नक साधन म आ था रखने वाला तथा समाज क वभ न
जा तय क एकता का समथन करने वाला था। ह दुओं वारा क जाने वाल मू त–पूजा और
बहु दे ववाद क पूजा से उ प न होने वाले धा मक झगड़ के बारे म उनके वचार उपयु त कथन
के स य को प ट करते ह क '' ह दू मू त–पूजा ' वारा क गई व च , असु वधाजनक एवं
हा न द औपचा रक धा मक सं कार ने दे श क एकता के ताने–बाने को न ट कया ह।' सं ेप
म राजा राम मोहन रॉय के रा वाद वचार क उदारवाद धारणा को आगे बढ़ाने म दादाभाई
नौरोजी(1 825–1917) महादे व गो व द रानाडे(1842–1901) फरोजशाह मेहता(1845–1915)
सु रे नाथ बनज (1848–1925) गोपाल कृ ण गोखले(1866–1915) ी नवास शा ी(1869–
1946) तथा बीसवीं सद म भारतीय रा वाद कां स
े के नेताओं ने, वशेषत: गांधी, नेह ,
सरदार पटे ल जैसे उदार रा वाद वचारक ने अपना योगदान दया था।
दूसर ओर, वामी दयान द सर वती तथा ववेकान द के वचार पर ि टपात करने से
ात होता है क उनके तथा उनके जैसे वचारक के वचार म भारत के अतीत काल क
वचार के त ा ह और वे अपने दे शवा सय के स मु ख वै दक सं कृ त के आदश को
अपनाने का आ हान करते ह। सं ेप म, वामी दयान द सर वती तथा वामी ववेकान द जेसे
वचारक के वचार का व प अ तवाद (अतीत से रे णा लेने वाला) था जो आधु नक काल म
ाचीन आदश क पुन : थापना करना चाहते थे। ऐसे वचारक के रा वाद संबध
ं ी वचार को
हम पुन थानवाद कहते ह। वामी दयान द भारत म पुन थानवाद आ दोलन के ेरक थे,
िजनका नारा था ''पुन : वेद क ओर लौट चलो''। दयान द क भां त काला तर म आधु नक
काल म भारत म पुन थानवाद वचार का तपादन बं कमच चटज , व पनच
पाल(1858– 1932) अर व द घोष, लोकमा य तलक, वी. डीसावरकर(1883–1966) लाला
लाजपतराय तथा रा य वयंसेवक संघ (RSS) मु ख एम.एस. गोलवलकर जैसे नेताओं ने
कया था।
उपयु त ववरण से प ट होगा क आधु नक भारत क उ नीसवीं तथा बीसवीं सद के
ारं भक काल के चंतन म दो कार के रा वाद वचार क धाराएं वा हत हो रह थीं –
उदारवाद धारा तथा अतीतो तु खी पुन थानवाद धारा।

5.4 आधु नक एवं वतं भारत म उदार रा वाद


रा वाद क व तृत चचा के उपरा त अब हमारे सामने यह ज टल न उपि थत
होता है क 1924 के बाद से वष 2000 के बीच क अव ध म उदार रा वाद संबध
ं ी च तन
का या भ व य रहा।

93
1915 से आज तक के भारत क राजनी तक ग त वधय पर यान केि त करने से
प ट होगा क इस अव ध म भारतीय राजनी तक रं गमंच पर अनेक वचाराधाराओं के तनध
वचारक अपनी वचारधाराओं के आधार पर भारतीय वतं ता सं ाम म अपनी नी तय पर
काश डालते दखाई पड़ते ह क उनक वचारधारा के ताप से दे श को वदे शी शासन से
वतं कराया जायेगा: भारतीय रा य कां ेस, समाजवाद पाट , ह दू महासभा, फॉवड लाँक,
रे डकल डेमो े टक पाट , वतं पाट तथा सामािजक याय का समथन करने वाले अनेक दल
के नेताओं क स य भू मका इस अव ध म हमारे सामने आती है, िज ह ने अपने–अपने दल
क नी तय ' एवं वचारधाराओं पर काश इस उ े य से साथ डाला क उनके दल क
वचारधारा से भारत को ' वतं ता ा त होगी। वचारधाराओं के इस व व म दे श के मू ध य
नेताओं ने स य भाग लया था। थानाभाव के कारण यह उन सभी दे शभ त नेताओं के नाम
तथा उनक वचारधाराओं और नी तय का यौरा तु त करना असंभव ह, अत: इस भाग म
कु छ अ धक भावशाल एवं स य महामना यि तय को थान दया गया ह। इन नेताओं के
वशाल समू ह म महा मा गांधी, आचाय नरे दे व, मोतीलाल नेह , जवाहरलाल नेह ,
जय काश नारायण, डी. आ बेडकर, मोरारजी दे साई, प ा भ सीतारमैया, डी. राममनोहर लो हया,
एम.एन.रॉय, वनोबा भावे, सरदार पटे ल, यू,एन. ढे बर,। गो व द ब लभ पंत, सु भाषच बोस,
मीनू मसानी, अ युत पटवधन, बारदोलोई आ द मु ख थे। स य यह है क 1925 से 1947
तक के काल म भारतवष के हर ा त म दे श भ त नेताओं क एक वशाल जमात थी िजनका
यहां उ लेख करना संभव नह ं है, क तु इस काल म समूचे भारत पूव से पि चम तक और
उ तर से द ण तक येक ांत म व र ठ नेताओं का अ बार था जो भारतवष क वतं ता
के लये अपनी वचारधारा के त तब थे; उन सभी महान दे शभ त और उनक
वचारधाराओं का वणन यहाँ संभव नह ं है। अत: इस काल के दो तनध वचारक के
उदारवाद रा वाद संबध
ं ी वचार को इस भाग म थान दया गया ह। ये दो त न ध वचारक
ह–महा मा गांधी तथा जवाहरलाल नेह । इन दो वचारक क उदार रा वाद संबध
ं ी मा यताओं
को सं त प म यहाँ तु त कया गया

5.4.1 महा मा गांधी

(i) राजनी त का आ याि मक आधार :


महा मा गांधी का स पूण दशन स य तथा अ हंसा के स ांत पर आधा रत है।
गांधीवाद नै तक आदश का ऐसा दशन है जो सभी ा णय को समान एवं. ई वर का मानकर
स य और अ हंसा के साधन वारा सव दयी समाज क थापना करने क कामना है। गांधीवाद
का येक स ांत नै तक आदश पर आधा रत है।
गांधीजी ने भी राजनी त का आ या मीकरण कया है, क तु उनक आ या मीकरण क
धारणा पुन थानवाद क धारणा से सवथा भ न है। उनक यह ढ मा यता है क ''य द
राजनी त को मनु य मा के लये अ भशाप (curse) न बनाकर आशीवाद बनाये रखना है, तो
यह आव यक है क राजनी त को धम, नै तकता तथा सदाचार के ु व तारे को सदै व। अपना

94
ल य बनाकर उस ओर अ सर होना चा हए।'' स य यह है क गांधीजी क आ या नक
मा यताएं उनके सामािजक तथा राजनी तक जीवन म कट होती ह।
राजनी तक जीवन म साधन क प व ता पर उनक असीम आ था है। उनक मा यता
है क यि त के काय–साधन भी प व ह और उतना ह प व हमारा सा य(उ े य) होना
चा हए। इसका कारण वे यह मानते ह क सा य तथा उसे ा त करने के साधन का पर पर
अटू ट संबध
ं होता है। जैसे बीज तथा वृ के बीच होता है जैसा बीज है वैसा ह वृ होगा। अत:
वे कहते ह क “सा य साधन से ज म लेते ह।'' (Ends grow out of means)
गाँधीजी राजनी त म सफलता ा त करने के इ छुक राजनी त को सलाह दे ते है क
राजनी तक सफलता ा त करने के लये नै तकता के माग का याग नह करना चा हए। उनक
ढ़ मा यता है क जो व तु नै तक ि टकोण से सह है वह राजनी तक ि ट से भी सह नह ं
होगी : उनका कथन ह, ''what is morally can never be politically right'' (जो नै तक
ि ट से गलत ह वह राजनी तक ि ट से भी कभी सह नह ं होगी)।
गांधी जी के उपयु त वचार म नै तक मू य तथा साधन क प व ता के आदश का
समावेश है।
(ii) सभी धम के त आ था
गांधी जी क धा मक स ह णु ता म गहर आ था है। अपनी इस आ था को वे इन
श द म य त करते ह:
''मेरे लये बाइ बल वैसा ह धम– थ है जैसे क मेरे लये गीता और प व कु रान ह।''
इससे भी आगे बढ़ते हु ए वे लखते ह संसार के िजतने बड़े–बड़े धम ह म उनको अपने धम के
बराबर ह समान प से स य मानता हू ँ।
(iii) स या ह के आव यक गुण
गाँधी जी का सम त जीवन भारत म च लत रा य आ दोलन से जु ड़ा था, अत: इन
आ दोलन म भाग लेने वाले “स या ह '' के आव यक गुण या होने चा हए, इस न क
या या वे व तार म करते ह। उनके इस संबध
ं म वचार का सार यह तु त है:
स या ह म भ ता (civility) का होना नता त आव यक ह। य द उसके वरोध के
तर क म थोड़ी सी भी अभ ता आ जाय, उसका तर का वैसे ह दू षत हो जायेगा, जैसे दूध म
एक बूँद वष क पड़ जाने से पूरा दूध वषा त हो जाता है।वे यह भी सीख दे ते ह क
स या ह को ''बुराई को भलाई से, ोध को े से, अस य को स य से तथा हंसा को अ हंसा

से' जीतना चा हए। य द स या ह अपना कोई गलत नणय लेता है अथवा भू ल करता है, गांधी
जी क मा यता है क स या ह को ऐसे अवसर पर ''भूल को वीकार करना चा हए। '' इस
स ब ध म उनका मत है क स या ह वारा ''भूल वीकृ त ऐसे झाडू क तरह है जो ग दगी
को साफ कर दे ता है और थान को पहले क अपे ा और व छ कर दे ता है''। इसके
अ त र त उनक अ य सीख भी ह, जैसे स या ह याय पथ से कभी वच लत नह ं होता,
नभय होता है, वरोधी को समा त करने के बजाय वह समझौता करने के लये त पर रहता है
तथा धृणा तथा दुभावना जैसी बुराइय से दूर रहता है। भारत के रा य आ दोलन म एक

95
स या ह के प म भाग लेने वाले गांधी जी ने भावी स या हय के लये अपने अनुभव का
यहाँ सार तु त कया है।
रा वाद एवं अ तरा वाद
गांधीजी रा वाद को कसी तरह क बुराई नह ं मानते थे। उनक मा यता है क
रा वाद अ तरा वाद क पहल सीढ़ है। उनके रा वाद का व प स ह णु एवं शां त य ह”
वे उ रा वाद का समथन नह ं करते। उनका मत है क रा क एकता(रा य एकता)
इस लये आव यक ह िजससे क अ तरा यता के भाव को बल मलता है। इस संबध
ं म
उनका कथन ह क '' कसी यि त के रा वाद हु ए बना अ तरा वाद होना असंभव है।'' अत:
वयं के बारे म वे घोषणा करते है क मेरा रा वाद ती अ तरा वाद है। आज के संसार के
रा य के पार प रक संबध
ं के बारे म उनक धारणा है क संसार आज इस बात क मांग नह
करता क रा य पूण प से वतं ह अथवा एक दूसरे से लड़े। आज क मांग यह है क संसार
म म तापूण वतं रा य का संघ बने। इससे व व तर पर रा य के पार प रक संबध
ं म
शां त रहे गी। सं ेप म, गांधीजी क रा वाद क धारणा शां तवाद है, हंसा मक अथवा उ
नह ।ं को वदे श के लये इस लये जीना सीखने क आव यकता ह िजससे क वह स पूण के
लये जीना सीख सके। सं ेप म हम रा वाद संबध
ं ी गांधी जी के वचार के सार को इन श दो
म यहां तु त करते ह। गाँधीजी के रा वाद संबध
ं ी वचार का सार है सा दा यक, रा य
एकता, अ हंसा, जनसमू ह का उ थान (mass upliftment), धा मक स ह णु ता, स वल '' तथा
सभी जा तय धम तथा समुदाय के लये बना कसी कार के भेदभाव के अ धकार क थायी
यव था। महा मा गांधी क रा वाद क धारणा का आधार ऐसे स प न एवं बहु साखी रा वाद
''rich and diversified nationalism'' का था िजसम समाज के येक संघटक के लये पूण
तथा वतं प से वक सत होने क गु ज
ं ाइश हो। उनक आ था थी क – क सभी
अ पसं यक सामािजक इकाइय के धा मक, भाषाई तथा सां कृ तक अ धकार क सु र ा बनी
रहे । उनका रा वाद मू लत : कु बेरतं का वरोधी था िजससे क दे श के करोड़ ''द र नारायाणो''
के जीवन क सु र ा संभव हो सके।
गांधीजी के वचार पर मनन करने से हम इस न कष पर पहु ंचते ह क उनके वचार
व प आ या मवाद नै तकतावाद एवं शां तवाद है और इ ह ं गुण के आधार पर उनका
सामािजक, राजनी तक एवं आ थक च तन खड़ा है। गांधीजी के वचारो म मानवीय यि त व
क ग रमा और उसक प व ता पर व वास है, स ता के के यकरण के थान पर वे
वके करण को ाथ मकता दान करते ह और हंसा के थान पर वे अ हंसा मक व व –
आदश का समथन करते ह। उनके उदारवाद एवं शां त य रा वाद वचार ने भारतीय
रचतं ता के माग को श त कया था।
बोध न -3
1. गां धीजी का “राजनी त के आधार” से या अ भ ाय था ?
उ तर: ..................................................................................................
................................................ ..................................................

96
5.4.2 जवाहरलाल नेह

जवाहरलाल नेह ने वतं ता सं ाम के दौरान तथा वतं ता ा त हो जाने के बाद


अपने भाषण तथा अपने थ
ं म िजन वचार का तपादन कया था, उन वचार मे हम
नेह के भारतीय रा वाद के व प क प ट या या मलती है; उनके वारा अनेक थ
ं एन
ऑटोबायो ाफ (1936) ि ल पसेजु ऑफ व ड ह (1939) ( व व क झलक), भारत क
खोज (1946), इं डया ए ड दा व ड, द यू नट ऑफ इं डया, ए बंच ऑफ ओ ड लैटस तथा
थम धानमं ी के प म दये गये उनके भाषण म उनके रा वाद वचार का व प हमारे
स मु ख प ट होता ह। भारत के स यायाधीश पी. द . गजे गडकर ने अपने एक
सं करण का वणन कया है, जब वे धानमं ी नेह से मलने गये थे। उनसे चचा करते समय
गजे गडकर ने नेह ं म ''नेह वाद '' क
के वचार के संबध या या करते हु ए ' प ट कया
क ''नेह वाद से उनका आशय केवल उन स ांत से था िजनसे दे श म व ध शासन (rule of
law) के वारा सामािजक, आ थक एवं राजनी तक याय क ाि त क जा सके। '' प ट है क
नेह के वचार के व प को, उनके रा वाद के व प को, हम उनके वारा लखे ं ,

उनके भाषण तथा स नेताओं, लेखक के साथ चचाओं म खोज सकते है। इन आधार पर
यह कहा जा सकता है क नेह वाद ''स य क खोज का साम ज य था पत करके यि त के
लये सामािजक, आ थक एवं राजनी तक समानता, वतं ता तथा याय क लोकतं ीय साधन
वारा थापना करना है”। उनके वचार का व प व ानवाद एवं अनुभववाद है िजसम कसी
भां त का सै ा तक दुरा ह का कोई थान नह ं है।
व ान म आ था
नेह क व ान म गहर आ था है। वे कोल बो व व व यालय म दये गये अपने
भाषण म कहते है:
''मेरा व ान म बहु त बड़ा व वास ह और वै ा नक ि टकोण ने संसार को पूणत:
बदल दया है। मेरा वचार है क य द संसार को अपनी सम याओं को हल करना है तो
अप रहाय प से उ ह व ान के मा यम से हल करना होगा, व ान का प र याग करके
नह ”ं । इन श द से हम उनक व ान के त गहर आ था दखती है िजसके आधार पर वे
समाज के पुराने माग को छोड़ कर नये समाज क रचना करना चाहते थे।
रा वाद क आलोचना : अ तरा वाद का समथन
नेह क धम नरपे ता के मू य म आ था है िजस आधार पर वे समाज के व भ न
धम के बीच समरसता था पत करना चाहते है। वे राजतं , सै नकतं सा ा यवाद तथा
कु ल नतं के स ांत के वरोधी ह; उनके वचार म सामािजक अ याय, न लवाद, हंसा,
अनै तकता, तानाशाह शासन, सा ा यवाद–उप नदे शवाद जैसी यव थाओं के व घोर वरोध
के भाव ह। उनके रा वाद का व प शां त य ह, धा मक स ह णु ता के वे अन य पुजार ह
तथा भारतवष जैसे दे श के लये वे बहु जातीय रा क व भ न सं कृ तय पर आधा रत
रा य एकता के आदश को भारतीय रा क रचना का आधार मानते ह। भारत म च लत

97
व भ न धम , व भ न भाषाओं एवं े ीय व वधताओं को वे म त सं कृ त (composite
culture) के आदश के अनु प ढालने म व वास करते ह।
नेह का स पूण जीवन इस स य को मा णत करता है क उनक अपने रा के
त अगाध ा थी। यह उनके रा वाद का योतक क तु नेह क रा वाद क संक पना
संक ण नह ं है। नेह लखते ह क भारतवष म 1930 के बाद तीन कार क रा वाद क
धाराय वाहमान थीं ह दू रा वाद , मु ि लम रा वाद , तथा स ख रा वाद िज ह नेह
''group nationalism” कहते ह। वे वीकार करते ह क संक ण रा वाद सा दा यक
शि तय को उभारता है अत: वे उदा त रा वाद को ''अ तररा वाद क पूव शत मानते ह”।
उ रा वाद के आलोचक नेह ऐ तहा सक उदाहरण के आधार पर स करते ह क उ –
रा वाद ने व व म यु को ो सा हत कया है, तानाशाह शासक क नरं कुश शि तय का
समथन कया है तथा सा ा यवाद शासन क थापना म योगदान दया है।
नेह क रा वाद क धारणा भी गांधीजी क भां त रा वाद को अ तरा वाद क
पहल सीढ़ मानती है। इसी संदभ म उनका कथन है क “रा वाद वा तव म अ तरा वाद क
पूव –शत (Pre–conduction) है”। जमन दाश नक इमानुअल का त क भां त नेह भी '' खर
अ तरा वाद ” ह। इस ि टकोण के समथन म वे पछल अनेक शताि दय के उदाहरण तु त
करते हु ए कहते ह क व ान के अ व कार ने अप रहाय प से स पूण मानवता को एक व व
इकाई के प म बांध दया है।
अत: मानवता क यह मांग है क संक ण रा य हत क सीमाओं से बाहर नकलकर
यापक अ तरा य समाज क रचना क ओर मानव समाज को आगे बढ़ना होगा। इस उ े य
क सफलता के लये स भु ता क धारणा को तलांज ल दे नी होगी, अ तरा य वध क
मा यताओं के आधार पर रा य के पार प रक संबध
ं क पुनरचना करनी होगी तथा यु को
याग कर रा य को पार प रक सहयोग और शां त के माग को अपनाना होगा। इस संबध
ं म
उनका कथन है क ''हम मानवीय मामल म ऐसी ि थ त पर–पहु ंच गये ह जब एक व व
अथवा कसी कार के व व संघ क आव यकता तीत होती है, य प इसक ाि त म अभी
भी अनेक बाधाएं एवं खतरे ह”। राजनी त शा तथा अ तरा य संबध
ं के अ येता जानते ह.
क स भु ता क धारणा क बुराइय को यान म रखते हु ए जवाहरलाल नेह ने ''पंचशील''
तथा ''शां तपूण सह–अि त व (peaceful–co–existence)'' के स ांत का तपादन कया था।
“पंचशील''
पं डत नेह क ''पंचशील” क धारणा के पाँच आधारभूत ह, िजनके आधार पर रा य
ं का संचालन कया जाये। ये पाँच स ांत ह:
के पार प रक संबध
1. रा य वारा एक दूसरे क ादे शक अख डता एवं सव च के लये पार प रक स मान
क भावना रखना;
2. अना मण,
3. एक–दूसरे के आ त रक मामल म अह त ेप;

98
4. समानता तथा पार प रक लाभ; तथा
5. ''शां तपूण सह अि त व (peaceful–co–existance)''
पंचशील स ांत के यावहा रक योग से ा त होने वाले लाभ क ववेचना करने से
प ट होता है क इस यव था से यु , हंसा, शोषण, बल योग, क भावनाओं का अ त होगा
तथा शि तशाल रा वारा नबल रा म सै नक ह त कम ह गे। सकारा मक प से ये
स ांत आदश अ तरा य वरोधी राजनी तक आ थक यव था को शां तपूण सह–अि त व क
रे णा दे ते ह तथा यु के थान पर पार प रक सहयोग एवं वाताओं का माग बताते ह। गहराई
से यान दे ने से प ट होता है क पं डत नेह का का स ांत उनके अ तरा य आदश का
एक त प (model) है िजसका अनुसरण से व व शां त का माग श त हो सकता है।
नेह वारा पंचशील स ांत के तपादन करने के पीछे , म त य था क य द व व के
रा य इन नयम का ईमानदार से पालन कर तो इससे, सा ा यवाद तथा उप नवेशवाद जैसी
अ तरा ं एवं शि तपरक राजनी त (real politik)''
य बुराईय का अ त संभव ह। क तु संबध
के व वान जानते ह क “राजनी तक '' का अ तरा य जगत म अ धक मह व नह ं है।
त बत के मामल म भारत तथा सा ा यवाद के संबध
ं से शायद नेह ने यह सबक लया हो।
धम– नरपे ता (Secularism) के त आ था
भारतवष क धा मक सामािजक संरचना को यान म रखते हु ए नेह धम– नरपे ता के
मू य के अनुयायी ह। वे मानते ह क रा य का कोई धम नह ;ं रा य के अ तगत यि त के
सामािजक, धा मक एवं सां कृ तक जीवन म रा य का ह त ेप अनु चत है रा य को इस दायरे
म तट थ ह रहना चा हए य क एक धम– नरपे वह होता है जो एक धम क क मत पर
दूसरे धम क र ा नह ं करता।
नेह इतना अव य मानते ह क धम नरपे ता का अथ धमह नता नह ं है।
धम नरपे ता का अथ है – ''सभी धम के त रा य का समान आदर भाव, सभी यि तय के
लये समान अवसर'' धम– नरपे ता के आदश के आधार पर येक धम सह–अि त व क
भावना के साथ रहता ह। पं डत नेह के वचार का अ ययन करते समय हमे यान म रखना
होगा क उनके वचार क पृ ठभू म म भारतीय इ तहास का समृ बोध न हत है िजस ान
के आधार पर वे भारतवष के लये उपयोगी एवं आव यक स ांत का तपादन करते ह।
बोध न–4
1. “पं च शील या है ?”
उ तर: .............................................................................................. .....
................................................................................................. ..

5.5 सामािजक–सां क तक पु न थान एवं उदार रा वाद क


पार प रकताएँ –
इस लेखन के अि तम दो भाग म महा मा गांधी तथा पं डत जवाहरलाल नेह के
रा वाद संबध
ं ी वचार पर काश डाला गया है। जब हम इन वचार को राजा राममोहन रॉय

99
के वचार के साथ रख कर उनके व प पर न प प से यान केि त करते ह तो हम
पायगे क 19वीं सद के अि तम वष (1885) तथा 20वीं सद के थम 5–10 वषा म
दादाभाई नौरोजी, सर फरोजशाह मेहता, सु रे नाथ बनज , महादे व गो व द रानाडे तथा
गोपालकृ ण गोखले जैसे नेताओं ने अपने िजन वचार का तपादन कया था, यूना धक प
से उनके वचार का व प ठ क वैसा ह था िजन वचार का सव थम तपादन राजा
राममोहन रॉय ने अपने काल (1772 – 1883) म कया था भारतीय इ तहास इस स य का
सा ी है क िजन उदार रा वाद च तन का तवादन राजा राममोहन रॉय ने अपने काल म
कया था, उन वचार क पुनरावृि त हम दादाभाई नौरोजी, फरोजशाह मेहता, सु रे नाथ बनज ,
रानाडे तथा गोखले के वचार म होती है। महा मा गांधी तथा जवाहरलाल नेह के वचार के
भी कु छ अंश ह िजनक समानता राजा राममोहन रॉय के वचार से है।
यह सव व दत है क राजा राममोहन रॉय ने भारत म मू त –पूजा तथा ह दू धम के
अ ध व वास , सती था, बाल ववाह, अ पृ यता, बहु– ववाह था क बुराईय को दूर करने म
अपना सारा जीवन सम पत कर दया था; इन कु र तय को दूर करने के लये उ ह ने म
समाज क थापना क थी। ह दू धम क ढगत मा यताओं को सु धारने क ि ट से
वै ा नक वषय का श ण आरंभ कराया, सभी धम क एवं मानवता के एक ई वर के
स ांत का तपादन कया; उ ह ने पौरो ह यवाद क नरं कु शता जैसी बुराइय को दूर करने क
ि ट से आ य ह दू धम थ
ं का अं ेजी तथा बंगला भाषा म अनुवाद कराया, ''वै दक
ऐके वरवाद'' के ाचीन धम क मा यताओं के आधार पर बहु दे ववाद क कु थाओं क आलोचना
क।
राजा राममोहन रॉय का व प तक बु वाद (rational) है और उनका राजनी तक
आदश' व वनाग रकतावाद (cosmopolitian) है। मसमाज क रचना के लये उ ह ने िजस
यास प (trust–deed)'' क रचना क थी उसम उ ह ने सभी धमावलं बय वे लये
'' मल जु ल सं कृ त (composite culture)'' का आदश तु त कया था। उनका ल य था क
सभी धम एवं स दाय के मनु य के बीच एकता का सू था पत हो। उनके सामािजक एवं
धा मक सुधार पर ि टपात करने से प ट होता है क उनका ि टकोण उदारवाद तथा
जातां क (liberal and democratic) था।
उनके राजनी तक वचार के व प का अ ययन करने से यह न कष हमारे सामने
उभर कर आता है क उनके वचार उदारवाद ह, (Liberal) लोकतां क मू यो (Democratic
values) के समथक तथा उदार रा वाद एवं मानवतावाद (Humanist) ह। राजनी तक
सु धार के लये उ ह ने वदे शी शासक के स मु ख ाथना–प तथा तवेदन दे ने का माग
अपनाया; यह उनका राजनी तक सु धार के लये संवध
ै ा नक साधन का योग था। इस लये उ ह
आधु नक भारत म ''संवध
ै ा नक आ दोलन का जनक (Father of Constitution Agitation
in India)'' वीकार कया गया है। संवध
ै ा नक साधन के इस माग म उ ह ने भारत म
राजनी तक सु धार क मांग करने क पर परा को आरं भ कया। दूसरे श द म यह कह सकते

100
ै ा नक–
ह क राजा राममोहन राँय ने राजनी तक सम याओं को हल करने क शां तपूण एवं संवध
राजनी तक आ दोलन क पर परा क नींव डाल थी।
सं ेप म, उपयु त ववरण से हम इस न कष पर पहु ंचते ह क 18वीं– 19वीं सद के
भारत के सामािजक, धा मक, आ थक, राजनी तक एवं शास नक जीवन का शायद ह ऐसा
कोई प हो िजसके सु धार के लये राजा राममोहन रॉय ने अपना तक–स मत, तथा सु धारा मक
वचार तु त न कया हो। यह उनके वचार का ह प रणाम था त काल न सामािजक– धा मक–
राजनी तक अंधेरे म डू बे हु ये भारतवष का उ ार हु आ: सु धार के प रणाम व प आधु नक भारत
का शला यास हु आ था। इसी लये भारतीय इ तहास राजा राममोहन रॉय को ''आधु नक भारत
का ज मदाता'' वीकार कया जाता है।
राजा राममोहन रॉय के वचार के सार को इस लेखन के अंत म एक बार फर याद
करने के पीछे हमारा यह उ े य है क िजन उदार वचार का तपादन उ ह ने 1772– 1833
वषा क अव ध म कया था उनका भाव बीसवीं सद के वचारक पर तथा बीसवीं सद के
भारतीय समाज पर इतना गहरा पड़ा था क उस काल के लेखक के ऊपर तथा वतं ता ाि त
के बाद के भारतीय रा य नेताओं ने राजा राममोहन रॉय के वचार के आधार पर आधु नक
भारत क रचना करना अपना आदश माना। यूना धक प से राजा के वचार क पुनरावृि त
कां ेस के उदारवाद नेताओं–दादाभाई नौरोजी, फरोजशाह मेहता, सु रे नाथ बनज , महादे व
गो व द रानाडे तथा गोपालकृ ण गोखले के वचार म होती है। इससे भी अ धक मह वपूण
त य यह है क भारत क वतं ता के बाद िजन सामािजक–राजनी तक मू य के आधार पर
सं वधान क रचना क गई उसम भी राजा राममोहन रॉय वारा तपा दत अनेक सामािजक–
राजनी तक आदश को थान दया गया है। इतना अ तर अव य ह क वतं भारत म अं ेजी
शासक का अब भोई थान नह ं है िजनको क भारतीय अब '' तवेदन'' तु त कर; तवेदन
क सं कृ त का थान अब ''शां तपूण, संवध
ै ा नक माग से सरकार के स मु ख जनता क
आव यकताओं को तु त करने :_वाल सं कृ त ने ले लया है। भारत क मल जु ल सं कृ त,
उ तरदायी शासन णाल , त न या मक शासन, धम नरपे समाज, उदार रा वाद इ या द
ऐसे राजनी तक मू य है िजनका तपा न राज राममोहन रॉय ने आज से कर ब 200 वष पूव
कया और िजन मू य को 1947 के बाद के भारतीय समाज ने अपनी सामािजक–राजनी तक
जीवन क यव था म वीकार कया है”। (इस। लेखन का यह अथ नह ं लया जाये क वतं
भारत ने राजा के येक राजनी तक आदश को मू ंद कर अपना लया है; वतं भारत ने राज
राममोहन रॉय के अपने उदार वचार एवं काय को अपने राजनी तक जीवन म थान दया है।
इससे अ धक कु छ न समझा जाये

5.6 सारांश
अ त म न कष प से यह लखना उ चत तीत होता है क राज राममोहन रॉय ने
िजस उदार रा वाद क धारणा का तपादन कया था उसके मूल त व आधु नक भारतवष के
सामािजक, धा मक एवं राजनी तक जीवन के ेरक आदश ह : धम– नरपे ता, जातीय एकता,

101
यि त क वतं ता, मल जु ल सं कृ त, सभी धम , जा तय एवं वग को समान अ धकार एवं
त ठा,लोकतं ा मक शासन णाल , लोकता क वके करण, सामािजक आ थक, याय,
वगह न समाज तथा लोकक याणकार रा य के आदश आधु नक भारत के मागदशक स ांत ह।
आधु नक भारत एक बहु सां कृ तक, बहु भाषी, बहु जातीय एवं बहु धम समाज है। अत:
ऐसे समाज के जीवन के संचालन का आदश उदार रा वाद ह है िजसके अ तगत समाज का
येक वग और येक सद य अपने जीवन के आदश के अनुकू ल सहानुभू त और शां तपूण
सहअि त व क भावना के साथ अपने दै नक जीवन का संचालन करता है। आधु नक भारतीय
समाज का इ तहास क कसौट पर परखा हु आ ेरक आदश उदार रा वाद है।

5.7 अ यास न
1. सामािजक–सां कृ तक पुन थान से आप या समझते ह? भारत म सामािजक–
सां कृ तक पुन थान क मु ख वैचा रक थापनाओं क ववेचना क िजये।
2. भारत म रा वाद के आ वभाव क चचा करते हु ए उदार रा वाद क वैचा रक
वृि तय क समी ा क िजये।
3. महा मा गांधी तथा जवाहरलाल नेह के वशेष संदभ म भारतीय उदार रा वाद का
अथ, कृ त व व प प ट क िजये।
4. उदार रा वाद के अ तगत रा वाद तथा अ तरा वाद को महा मा गांधी तथा
जवाहरलाल नेह ने कस कार समि वत–समायोिजत कया? प ट क िजये।
5. सामािजक–सां कृ तक पुन थान तथा उदार रा वाद क पार प रकताओ से या आशय
है? प ट क िजये।

5.8 संदभ थ सू ची
1. व वनाथ साद वमा: आधु नक भारतीय राजनी तक च तन, ल मी नारायण
अ वाल, जु लाई 1971।
2. पु षोताम नागर: आधु नक भारतीय सामािजक एवं राजनी तक च तन,
राज थान ह द थ अकादमी, जयपुर , 1999, छठा
सं करण।
3. बी.आर पुरो हत: आधु नक भारतीय राजनी तक च तन, राज थान ह द थ
अकादमी, जयपुर।

102
इकाई–6
राममोहन रॉय
इकाई क परे खा
6.0 उ े य
6.1 तावना
6.2 जीवन प रचय
6.3 मु ख रचनाएँ
6.4 चंतन के ेरणा ोत
6.5 राममोहन रॉय के धा मक वचार
6.6 राममोहन रॉय के सामािजक वचार
6.7 राममोहन रॉय के राजनी तक वचार,
6.7.1 वतं ता
6.7.2 म यमाग का अनुसरण
6.7.3 रा य का काय े
6.7.4 शि त पृथ करण का समथन
6.7.5 व ध एवं या यक यव था
6.7.6 शास नक सु धार
6.7.7 यूरोपवा सय का भारत म पुनवास
6.7.8 मानवतावाद एवं ातृ व
6.8 आ थक वचार
6.9 श ा स ब धी वचार सारांश
6.10 सारांश
6.11 अ यास न
6.12 संदभ थ सूची

6.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन उपरा त आप जान पायेगे–
 राजा राममोहन राय के समय क सामािजक–राजनी तक पृ ठभू म
 राय क रचनाएँ तथा उनके चंतन के ेरणा ोत
 राय का धा मक व सामािजक चंतन
 राय के राजनी तक वचार, और
 राय के आ थक एवं शै णक वचार

103
6.1 तावना
''समि ट व यि त, ई वर व मनु य, मानवता व रा यता तथा समु दायवाद व यि तवाद के
म य अ नवाय तादा य राजा राममोहन रॉय के च तन का के य त व है।''
– व पनच पाल
भारतीय पुनजागरण के अ दूत राजा राममोहन राय ने म ययुगीन अंध व वास व
कु र तय को बु व तक क कसौट पर पर ा करने क दशा म भारतीय को अ सर कया।
अकम यता, भा यवा दता, जा तवाद, कमकांड व ढ़य से बंधन त भारतीय समाज को वे
एक ई वर, समानता व वतं ता से पूण (जा त, धम, लंग क खृं लार हत) आधु नक समाज
म प रव तत करने वाले सुधारक थे। टै गोर ने उ ह 'आधु नक भारत का सू धार' इसी कारण
कहा। राय कोरे आदश के तपादक न होकर यावहा रक सु धार म व वास करते थे। सती
था का ती वरोध एवं ी के स मान व अ धकार ा त कराने क दशा म वे य नशील
थे। भारतीय पुनजागरण के ारि भक समाज सु धारक म राय का वशेष योगदान है। इसी
सु धार ने आगे उदारवाद यि तवाद राजनी तक च तक के लए माग श त कया।
सामािजक–धा मक आ दोलन ने वृह भारतीय कलेवर धारण कर समय के अ तराल के साथ
रा य वाधीनता संघष का प धारण कया।
राजनी तक, आ थक सामािजक एवं बौ क प रवेश वचारक के चंतन को भा वत
करते है। परतं रा म राजनी तक चंतन के उदाहरण इसी कारण कम ह। 19वीं और 20वीं
सद के पूवा म परतं भारत म अं ेजी सरकार के साथ–साथ अ धकांश भारतीय कु ल नतं भी
ाय ग तशील वचार का क र वरोधी था। क रपंथी होना त काल न समाज म आदर क
ि ट से दे खा जाता था जब क आज बुरा माना जाता है।
उ नीसवीं सद के ार भ म एक अ त लघु व अ धकांश असा र जनसं या वाला दे श
इं लै ड एक सा ा यवाद औ यो गक शि त म प रणत हो गया था। इस सा ा य म सू य
अ त नह होता–ऐसा कहा जाता था। इसी समय म सां कृ तक प से स प न व सा र दे श से
भारत ् सामािजक व आ थक प से पछड़ेपन व वघटन क दशा म पहु ँ च चु का था।
उ नीसवीं शता द के उ तरा तक भारत के व भ न भाग म कई राजनी तक व
सामािजक् संगठन (एसो सएशन) क थापना हो गयी थी, जैसे– टश इं डया एसो सएशन
(1851) इि डयन एसो सएशन ऑफ कैलकटा (1879), बा बे एसो सएशन (1852) सावज नक
सभा (1870) महाजन सभा ऑफ म ास (1884)। अ खल भारतीय राजनी तक संगठन क
आव यकता महसू स कराने म पहल बार भारतीय शहर को जोड़ने वाल रे ल, स
ै एवं टे ल ाफ
का भी हाथ था। पूरे भारत से संबं कु छ न भी उपि थत थे: जैसे–आई.सी.एस. क पर ा
हे तु आयु को घटाना, भारत व इं लै ड म एक साथ इसके लए पर ा का आयोजन आ द।
त काल न समाज म अनेक धा मक तथा आ याि मक नेता थे। समाचार प उ योग भी
ार भ हो चु का था। श त भारतीय के एक लघु समू ह का भी राजनी तक सामािजक चेतना
क जागृ त म योगदान था। यूरोपीय उ योग, यापार, ईसाई मशनर , उनक भाषाओं,

104
शास नक सु वधा हे तु था पत रे लवे, ं टंग ै (मु णालय), पो ट तथा टे ल ाफ
स यव था
आ द ने भारत के व तृत तथा बखरे हु ए भू भाग व जनसं या म रा य चेतना के सार तथा
उसक अि त व र ा के लए अंतत: एक बु नयाद ढांचे क भू मका भी नभायी। भारत के
वभ न े के समाचार प ने एकता क भावना के साथ–साथ ांतीय भाषाओं को समृ व
लोक य बनाने के अ त र त अ याय व कानून के सम भेदभाव का वरोध व भारतीय प
भी तु त कया।
उ नीसवीं सद का भारत कु छ महान ी–पु ष क कम थल बना। आ याि मक े
मे ी रामकृ ण परमहंस, वामी ववेकान द, ी अर व द घोष, वामी दयान द सर वती आ द
थे राजनी तक े म बाल गंगाधर तलक, गोपाल कृ ण गोखले, महादे व रानाडे, सु रे नाथ
बनज , व पन च पाल, सी.आर.दास दादाभाई नौरोजी, लाल लाजपत, फ रोजशाह मेहता, के
ट . तैलंग, मैडम भीकाजी तम, एनी बेसे ट, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेह , सर
सैयद अहमद खान, बद ीन तैयबजी, लु कु ला, मजा असदु ला खान गा लब, इ तसमु ीन
तफ युल हु सैन खान, मजा अबू ता लब ल दनी, अ दुर रह म दाहर आ द थे। महान सा हि यक
हि तयां थीं–रवी नाथ टै गोर, अर व द, तलक, आरजी भंडारकर, ई वर च व यासागर,
बं कम च चटज । महान समाज सु धारक यो तबा गो व द फुले व करसनदास मु लजी भी
समकाल न थे।
भारतीय नेत ृ व म गुणा मक प रवतन वशेषत: सामािजक व नव नमाताओ व अ दूत
के प म ि टगत होता है–केशव च सेन, राजा राममोहन राय, दयान द सर वती और
वामी ववेकान द आधु नक काल के अ दूत म से कु छ ऐसे ह नाम ह। इनक पहल के बना
ह दु समाज ाचीन पर पराओं व ह दू सं कार क ढ़य को चु नौती नह ं सकता था।
सां कृ तक व धा मक पुनजागरण हे तु व भ न धा मक समु दाय ने अपने यश वी से रे णा ल
तथा उनम से कु छ मू य क पुनजाग त हे तु सभी ने श ा पर बल दया।
ह दू–मु ि लम स ब ध के बारे म वचार म काफ भ नता है। गर के एक थ
ं म
ह रे न मु कज व आर.सी. मजूमदार के वचार ब कु ल वपर त ह। मु कज ह दु–मु ि लम
स ब ध को मै ीपूण बताते ह तो मजूमदार के अनुसार ह दू मुि लम शासन के बजाय टश
शासन के त कम व वेषपूण ह। उदा त ि ट राजा राममोहन रॉय भी के वचार क पुि ट
करते ह।
उ नीसवीं सद के भारतीय समाज के वभ न प पर ि ट डालने से उनक
नर तरता बीसवीं सद के समाज म भी ि टगोचर होती है। ह दू समाज जा त पर आधा रत
था। जा त पहचान का सू चक थी। इ लाम भी जा त जैसी संरचना से भा वत था। 1901 क
जनगणना म 133 मु ि लम जा तय का वणन है। ईसाई व सख भी इससे अछूते नह ं रह
पाये। व भ न सामािजक बुराइयाँ व कु र तयाँ समाज म या त थीं–बाल ववाह, नवजात क या
ह या, यापक अ श ा, वदे श या ा का नषेध, क र सामािजक व धा मक आचार, शू व
अ यज '' (untouchables) क एक बड़ी सं या, जा त व धा मक समू ह क बड़ी सं या,
सामािजक व वभाजन आ द।

105
भारतीय ि य , वशेषकर वधवाओं क ि थ त शोचनीय थी। सद के भारत के कु छ
महानतम नेता भी ि य क सम याओं के त सहानुभू तपूण थे। बाल ववाह अ त सामा य
बात थी। तलक और उनके कई स माननीय प कार साथी भी इसका खु ले प से समथन करते
थे। उस समय के अ धकांश बड़े नेताओं के ववाह वय क होने से पूव ह 10– 12 वष क बाल
वधु ओं से हो चु के थे। ह दुओं के साथ–साथ पारसी समाज म भी ऐसा चलन था। इस
असहानुभू तपूण ि टकोण व ववाह के मानक ने भी ि य के लए वभ न सामािजक–शै क
सम याओं को ज म दया। श ा इन व भ न सम याओं म से एक थी– श ा का अभाव अपनी
चय , मताओं और शि तय के अनुसार काय करने से वं चत करता था। श ा एक बड़ा
मु ा थी। कू ल क सं या भी पया त नह ं थी। वयं इं लै ड म ी श ा क यव था न
होने पर भी सरकार भारत म क या पाठशालाएँ खोलने को त पर थी तथा अ य यि तगत
यास को भी इस दशा म ो सा हत कर रह थी। यो तबा फुले क सोसायट के पूना के
कू ल म 237 छा ाएँ थीं पर इनके पर ा प रणाम बहु त अ छे थे। ी श ा क दर 1881
के जनगणना के अनुसार 2 तशत से कम थी। यह दर नय मत प से नोट क जाती थी
तथा सरकार व सामािजक प से ी श ा को ो सा हत कया जाता था।
कु छ लोग वारा ी श ा हे तु व यालय खोलने पर उ च जा त के ह दू अपनी
बे टय व बहु ओं को भेजने के अ न छुक थे। महा मा यो तबा फुले के यास ( ी श ा) म
बाधा डाल गयी। तलक का महारा य समाज पर भाव (सरकार टश समथन के बावजू द
भी) ी श ा म बाधक बना। कई पहलु ओं म अ गामी होते हु ए भी बंगाल म या त
अंध व वास व पूवा ह ी श ा म बाधक थे। अत: राजा राधाका त दे व और ई वर च
व यासागर के यास उदासीनता एवं नकारा मक चंतन के कारण सफल नह ं हो सके। एम.जी.
रानाडे व दादाभाई नौरोजी आ द भी ी श ा व सामािजक उ थान के समथक थे। पूना म
सात महान महाराि य ने डेकन एजूकेशन सोसायट 1884 म था पत क । भारत के अ य
कई भाग म भी नेत ृ व धीरे –धीरे समय क चु नौ तयां वीकार कर रहा था। ह दू मु ि लम
पारसी और अ य धम के भी महान नेता उभर रहे थे–सर सै पद अहमद खान, बद ीन
तैयबजी, सर फ रोजशाह मेहता, दादाभाई नौरोजी आ द।
वधवा ववाह पर एक सामा य चेतना के बावजू द भी सफलता दर ी श ा से भी
कम थी। 1881 के जनगणना के अनुसार 10 वष से कम क बंगाल म 14%, महारा म
10% और म ास म 4.5% लड़ कयां ववा हत या वधवा थीं। उ नीसवीं सद के व भ न
सामािजक व धा मक सु धारक भारतीय लड़ कय व ि य क दशा सुधारने हे तु यासरत थे।
ई वर च व यासागर बंगाल म, करसनदास मु लजी गुजरात म, बाल गंगाधर शा ी महारा
म इस आ दोलन म अ णी थे। केवल कु छ ह दू ववाह हे तु आगे आये पर वे सभी धनलाभ से
े रत थे जैसा क आज भी द खता है। माच 1872 म व ववाह नषेध कानून ने तलाक हे तु
माग श त कया व ववाह हे तु ी–पु ष क आयु मश: 14 व 18 तय क । यह कानून
केवल म समाज सद य तक सी मत था। ह दू सख, जैन, मु ि लम, पारसी इससे परे थे।

106
भारतीय समाज म वशेषकर ह दुओं म दहे ज के कारण मृ यु , सती था, नवजात
क या क ह या आ द या त थे। लड़ कय क बुर सामािजक ि थ त भी इसका कारण थी।
नवजात क याओं क ह या के व भी आवाज उठायी गयी। वधवा जीवन क दुदशा से बचने
के लए भी ह दू लड़ कयाँ सती हो जाती थीं। सामािजक दबाव तथा पर पराएँ भी इस ओर
े रत करती थीं। इसके अ त र त वधवा के दा य व से बचने हे तु भी प रवार के सद य जबरन
भी सती कर दे ते थे। राजा राधाकांत दे ब भी सती था व कु छ अ य क र ह दू पर पराओं के
समथक थे (सु रेश शमा)। उ नीसवीं सद का उ तरा सामािजक व धा मक तनाव व बहस से
प रपूण है। दुभा यवश उनम से कई के उ तर आज भी हमारे पास नह ं ह। ई ट इि डया
क पनी वारा व तत शोषण क मु ि लम वजेताओं व शासक वारा यापक प से लू ट व
व वंस से भी तु लना नह ं क जा सकती। आ मणकार वजेताओं के अ त र त अ य मु ि लम
शासक यहां का धन बाहर नह ं ले गये, और न भारतीय उ योग को यवि थत प से उ ह ने
न ट कया, न अपने माल के बाजार के प म भारत का योग कया। इस आ थक दोहन से
भारतीय उ योग न ट हो जाने से गर बी अ य धक यापक प से बढ़ गयी।

6.2 जीवन प रचय


बंगाल के हु गल िजले के राधानगर ाम म 22 जनवर सन ् 1772 म ज मे रॉय के
पता रमाका त बनज तथा माता ता रणी दे वी दोन ह धा मक वृि त के ा मण थे। दादा
कृ णकांत बनज को बंगाल के नवाब के उ च पदा धकार के प म रॉय क उपा ध को प रवार
ने अपनी व श ट पहचान के प म बनज के थान पर यु त कया। 1830 म मु गल स ाट
अकबर वतीय के राजदूत के प म इं लै ड जाने पर स ाट ने उ ह राजा क उपा ध से
स मा नत कया। इस कार राममोहन के नाम के साथ राजा और रॉय श द जु ड़ गये।
तभाशाल राजा राममोहन राय अनेक भाषाओं के ाता थे। बंगला, फारसी, अरबी,
ह द , सं कृ त तथा अं ेजी म वे पारं गत थे। ीक, हबू ै व तथा लै टन भाषाएँ भी रॉय
जानते थे। इ लाम, बौ , ह दू तथा ईसाई धम का उ ह ने तु लना मक अ ययन कया। ह दु
धम म उप नषद उनके अ ययन का आधार बना।
फारसी भाषा म मू त पूजा के वरोध म एक पु तक का शत पर 16 वष क अव था
म पता से स ब ध तनावपूण होने पर राममोहन को घर छोड़ना पडा। त बत म बौ लामाओं
के संपक म रॉय ने बौ धम को जाना। सन ् 1603 से 1814 तक ई ट इं डया क पनी म
नौकर क । सन 1814 म सरकार नौकर याग कर वतं सावज नक जीवन ार भ कया।
1815 म कलक ता म आ मीय सभा का गठन धम व दशन म च रखने वाले व वान लए
कया। इसी साल ' मसू ' का बंगला अनुवाद का शत कया। सन ् 1818 म सती था
उ मूलन हे तु आ दोलन ार भ कया िजसक प रण त सन ् 1829 म गवनर जनरल लाड
व लयम ब टक के सती था अवैध करने पर हु ई।
रॉय ने सन ् 1827 म टश इि डया अनइटे रयन एसो सएशन के बाद 20 अग त
सन ् 1828 म म समाज क थापना क । म समाज क थापना उनके जीवन क अ त

107
मह वपूण घटना थी। इसके वचार बंगाल से बाहर तक फैल गये। इनसे णीत उदारतावाद, और
आधु नकता के वातावरण ने भारतीय चंतन व समाज म पुनजागरण क ां त सी द ।
15 नव बर, 1830 को मु गल स ाट अकबर वतीय के राजदूत के प म राममोहन टश
स ाट से मलने इं लै ड गये। वह स अं ेज दाश नक जेरेथी बे थम से घ न ठ म ता हु ई।
इं लै ड से वे ांस भी गये जहाँ वे बीमार हो गये। पुन : इं लै ड वापस पर वा य म गरावट
से 20 सत बर, 1633 को टल म 61 वष क आयु म उनका दे हा त गया।

6.3. मु ख रचनाएँ
 पु तक–तु हफत–उल मु वा हद न
 ऑन द राइ स ऑफ ह दुज ओवर ए से ल ॉपट
 ऑन मॉडन एंकरोचमे स ऑन द एनशेय ट राइ स ऑफ
 द से टस ऑफ जीसस
 ेस नयमन के व सव च यायालय एवं स ाट को या चका 1823)
 1823 : अं ेजी श ा पर लाड ए ह ट के नाम एक प (1823)
 ईसाई जनता के नाम अि तम अपील (1823)
 धा मक सहनशीलता पर एक नबंध (1823)
 यूरोपवा सय को भारत म बसाने के स ब ध म वचार (1831)
 1832 : भारत क या यक एवं राज व यव था आ द पर नो तर 1832)
 भारत क ाचीन एवं आधु नक सीमाएँ एवं भारत का इ तहास (1832)
 अनुवाद – मसू (बंगला) (1815)
 केनोप नषद / बंगला व अं ेजी
 ईशोप नषद।
 समाचार प –संवाद कौमु द (बंगला) (1821 से)
 मरात–उल–अखबार (फारसी)
 वेदा तसार (1816), ह दू धम का समथन (1817), ई वर उपासना (1827),
व व यापी धम (1828)
 प एवं भाषण आ द।

6.4 चंतन के ेरणा ोत


प रवार, व भ न धा मक थ
ं का मू ल प म अ ययन, ई ट इि डया क पनी के
सेवाकाल म टश पदा धका रय व दाश नक से स पक एवं ांसीसी ां त व पा चा य
दाश नक के भाव ने राय के वचार को व भ न ब दुओं पर भा वत कया।
1. प रवार–प रवार म नय मत पूजा–पाठ, कमकांड, 1811 म बड़े भाई जगमोहन क मृ यु
के प चात भाभी के सती होने से आघात व 16 वष क आयु म पता से मतभेद के
प चात गृह याग ने राय को भा वत कया।

108
2. व भ न धम का अ ययन–इ लाम, ह दू बौ व ईसाई धम के गहन अ ययन ने राम
को इनक तु लना का अवसर मला। इ लाम के तौह द (एक ई वर) व उप नषद के
अ वैतवाद के साथ ह ईसाई धम के नै तक व उदारवाद वचार ने उन पर छाप
छोड़ी। उप नषद के नै तक मू य, ववेक, मानवता व ी–पु ष समानता वे अछूते न
रह सके।
3. पा चा य सं कृ त का भाव– ांसीसी ां त के वतं ता, समानता व ातृ व के आदश
ने यि त क ग रमा का पाठ सखाया।
ई ट इि डया क पनी के नौकर के काल (1603– 1814) म रॉय एच. एच. व सन,
मैकाले, सर व लयम जो स, सर हाइड ई ट, एडम, जेरेमी बथम, रं गपुर के कले टर जॉन
ड बी आ द पदा धका रय व दाश नक ने अं ेजी भाषा, सं कृ त व लोकतां क उदारवाद से राय
का प रचय कराकर उ ह उदारवाद व अं ेजी शासन का शंसक बना दया।
पा चा य दाश नक का भाव–मॉ टे यू (शि त पृथ करण व व ध का शासन), बथम
(शासन, नै तकता एवं यव थापन स ब धी वचार, द वानी तथा फौजदार द ड सं हता), याय
शा ी लैक टोन ( या यक सु धार), लॉक, टॉमस पेन ( ाकृ तक अ धकार), वॉ टे यर व सो
( वतं ता का स ांत आ द ने रॉय के वचार को भा वत कया।

6.5 राममोहन रॉय के धा मक वचार


फारसी व अरबी के गहन व व तृत ान से राय साद व हा फज जैसे सू फ क वय के
सा ह य व कु रान को समझ सके। इस छाप ने उ ह एके वरवाद समथक व मू त पूजा व
अनेके वरवाद का आलोचक बनाया।
सं कृ त म वेदा त व उप नषद के अ ययन से राय पर पड़े सू फ भाव और अ धक
गहन हो गये। मू त पूजा म उनका व वास समा त हो गया। मानव वकास क असीम
स भावनाओं से वे प र चत हो गये।
दे शाटन करते हुए उ ह ने त बत म बौ धम का अ ययन कर उसक यावहा रक
वकृ तयां भी अनुभू त क ।ं बाइ बल का अ ययन कर ईसाई धम को समझा। उसके दे व
(परमा मा, पु व होल घो ट) स ांत क आलोचना क । ईसाई धम थ
ं क या या '' से टस
ऑफ जीजस'' से मू त पूजा क न दा व बौ धम क वकृ तय क आलोचना के समान ह
ववाद उ प न हु आ। ईसा के चम कार का इसम कोई उ लेख नह ं था। नै तक व आ याि मक
उपदे श का यह संकलन ईसाई धम को नै तकता, शां त व आन द का मागदशक मानता था।
इ लाम को तौह द (एकस ता) तथा मानव मा क समानता के वे कायल थे। ान क ि ट से
म म सम सु जीव व स पूण जगत क एकता के आधार पर वेदा त को राय सव कृ ट
मानते थे। मू त पूजा, एके वर, सती व ह दू धम क अ य कु र तय के न पर राय ने
उप नषद के आधार पर ढ़वाद ा मण से शा ाथ कर उ ह हराया। ह दू धम का मौ लक
प उ ह य था जो ववेक, मू य व समानता पर आधा रत था।
कशोराव था क उनक थम रचना 'तु हफत–अल–मु वा हद न' (एके वरवाद को उपहार)
एके वरवाद का समथन व सम त धम म मू त पूजा के त व का वरोध करती है। व भ न
109
धम के अ यन से उनम स ह णु ता व एक व व धम का वचार उपजा व वे क ारपन से ऊपर
जा सके। हे मच सरकार के अनुसार राय के वचार व काय क धु र धम था।
धम व दशन स ब धी चचा हे तु राय ने 1815 म आ मीय सभा क थापना क तो
1827 म टश इि डया यूनीटे रयन एसो सएशन व 1828 म म समाज क थापना क ।
म समाज राय के जीवन क सबसे मह वपूण घटना बन गया। इसके वचार बंगाल से बाहर
भी दूर–दूर तक सा रत हो गये। म समाज व भ न धम के लए एक ई वर क उपासना
का माग था। इसका व वास था क ई वर नराकार, शा वत, अ ेय तथा न य है। इसको कोई
नाम नह ं दया गया। यह ह दु व के मूल प क थापना भी थी। इसके थम मि दर के
लए 1830 म राय ने एक भवन भी दया। मं दर म मू त पूजा क थापना, ब ल दे ना, कसी
भी धम क नंदा करना न ष था। जा त, धम व रं ग क कोई सीमा नह ं थी। इसका उ े य
सम त धम म स ह णुता व एकता था। इससे समाज सुधार के यि तगत यास को सामू हक
व सं थागत शि त दान करने म सहायता मल व तब कायकताओं के दल तैयार हो
गये।
राय क धम के त यह स ह णु ता एक व व धम के व न का आधार भी बनी जो
क वामी रामकृ ण परमहंस व वामी ववेकान द का भी वचार था। इस वैि वक आ याि मक
व न म सभी धम के ेरक त व समा हत थे (हे मच सरकार)। राय का ि टकोण
सम वयवाद था। 'सभी धम म कु छ व वधताओं के साथ एक ह ई वरवाद पाया जाता है' (सर
जे नाथ सयाल)। आज क सम त ग त के उपरा त भी व भ न धम के म य व व म
हो र,हे टकराव, ववाद व क रपं थता क पृ ठभू म म आज भी राय का यह व न उतना ह
ासं गक है िजतना क शां त व लोग के म य स ह णु ता।
राय के वचार का मू ल था– ववेकपूण चंतन।
(1) एके वरवाद का समथन एवं बहु दे ववाद का वरोध–राय का सम त चंतन संसार म एक
ह स ता का समथक है। एके वर का यह वचार कु रान के तौह द तथा उप नषद के
अ वैतवाद दोन से भा वत था। इसी से ईसाई धम के दे व स ांतव त काल न ह दू
धम म च लत अनेके वरवाद क राय ने आलोचना क ।
(2) मू तपूजा का वरोध–मू तपूजा के राय कटु आलोचक थे। एक नराकार स ता को मू त
के प म पूजन के वरोधी थे। मू त पूजा से ह दुओं म उ प न भेदभाव, वभाजन
तथा क रता को राय ववेकर हत व राजनी तक ि ट से हा नकर मानते थे। व भ न
समू ह म बंटकर भारतीय शि तशाल नह ं हो सकते थे। मू त पूजा क मूल धम से
असंब ता दखाने हे तु व मू ल प दशाने हे तु राय ने कई उप नषद का अं ेजी व
बंगाल म अनुवाद कया।
(3) अनै तक धा मक थाओं, पर पराओं व अंध व वास का वरोध–धा मक मा यताओं को
ता कक पर ण एवं यावहा रक औ च य क कसौट पर परखना चा हये। केवल
पर परा का मानदं ड ह वीकृ त का आधार नह ं होना चा हये। ववेकह न ढ़यां,
कमका ड व सं कार जैसे ब ल था आ द अनै तक, मानवता वरोधी एवं घृ णत ह।

110
(4) मानवतावाद एवं धा मक स ह णु ता का समथन–राय स पूण मानव जा त को एक महान
प रवार के प म दे खते थे जैसा क सहज बु व धम के साथ– साथ वै ा नक शोध
भी दशाते ह। व भ न रा तथा जा तयाँ इस प रवार क शाखाएँ ह। अत : वह
सम त बाधाओं को यथासंभव दूर कर मनु य को एक– दूसरे से मलने के लए
ो सा हत करना चाहते थे। धम को वह ऐसा बनाना चाहते थे जो मानव के म य भेद
व घृणा को न ट कर मानव जा त क एकता व शां त का ेरक हो। उप नषद का
अ वैतवाद भी सभी म एक म को बताकर जीव क मू ल एकता को दशाता है।
अपने धा मक वचार से राय ने एक ओर तो त काल न ह दू धम क वकृ तय व
कु र तय को दूर करने का यास कया तो दूसर ओर ईसाई मशन रय के धम चार के
यास को। ह दू धम का शु मू ल प दखाकर कटु तार हत माग से रोकने का भी काय कया।
धा मक कु र तय व वभाजन को हटाकर वे भारतीय को एक राजनी तक शि त बनाने का
माग भी श त कर सके। वेदा त व उप नषद को अं ज
े ी तथा बंगाल भाषाओं म अनुवाद
करके भारतीय व पि चम दोन तक यापक प से पहु ँ चा सके।
बोध न–1
न: रॉय के मु ख धा मक वचार या है ?
उ तर: ...................................................................................................
.......................................... .........................................................

6.6 सामािजक वचार


सामािजक सु धार राय के चंतन व काय का मु ख आधार था। समाज सु धार के माग
से ह उ ह ने राजनी तक वकास का माग श त कया। समाज सु धार के बना राजनी तक
वकास अधू रा रहता। साथ ह ह दुओं के राजनी तक ास का उ तरदायी वे उनके धा मक व
सामािजक पतन व वभाजन को समझते थे। इस कारण भी धा मक–समािज़क सु धार अ नवाय
थे। मू त, पूजा , बहु दे ववाद व जा तवाद के बल वरोध का यह कारण था। धम सुधार का मू ल
उ े य भी समाज सु धार ह था य क धम भारतीय जीवन का एक अ भ न अंग है। समाज का
आधा भाग ि य क दशा सु धारने व उसे स मान व समता दलाने हे तु राय ने सती था,
बहु प नी था का वरोध कया तो मृत प त क संपि त से उ तरा धकार सु नि चत करने व
वधवा ि य के साथ मानवीय यवहार व नार श ा क वकालत क । अपने ढ़वाद
वरो धय को धम थो के उ रण व माण (शा ाथ) तु त करने के साथ ह सरकार क
सहायता भी ल ।
सु धार हे तु राय ने व भ न कार के साधन अपनाये– मानवता व नै तक भावना को
अपील, धम थ
ं से उ रण दे ना। इनके वफल रहने पर सरकार क सहायता लेने म भी इस
उदारवाद वचारक ने संकोच नह ं कया।
(1) सती था का वरोध – राय क अनुपि थ त म उनके बड़े भाई का दे हा त हो गया और
उनक भाभी सती हो गयी। इस आघात के तकार प म उ ह ने सन ् 1818 म इस था पत
पर परा के व अ भयान छे ड़ दया। सती था या सहमरे ण ह या व आ मह या ह थी।

111
वे छा व व ववेक के थान पर प रवार व समाजज नत वातावरण के दबाव व प एक ववश
व बेबस त या थी। ाय: वधवा को प त क चता के साथ बांधकर या धकेल कर जला
दया जाता था। वाथ स ब धी वधवाओं के भरण–पोषण से बचने हे तु भी इस था का
योग करते थे।
रॉय जीवन को ई वर का अनमोल उपहार मानकर उसे छ नने का अ धकार कसी
यि त या संगठन को दे ने के वरोधी थे। ी के च र पर संदेह करने वाल था को वे
शा स मत के थान पर शा वकृ त अवांछनीय व अनै तक कु था मानते थे। इसके वरोध
हे तु राय ने आ दोलन, वाद– ववाद, गोि ठय व लेखक का उपयोग कर जनमत नमाण का
यास कया। सरकार भी इस सम या से अवगत थी पर ह दू भावनाओं को ठे स लगने के डर
से नि य थी। सती था वरोधी अ भयान का सहारा लेकर लाड व लयम ब टक ने एक आ ा
जार कर सन 1829 म सती था को गैरकानूनी घो षत कर दया।
(2) जा त था का वरोध – जा त व उपजा तय को राय ह दु के म य वभाजन तथा
असमानता का कारण मानकर दे शभि त म बाधा मानते थे। यह वभाजन उनक राजनी तक
कमजोर था। अ तजातीय आदान– दान होने से ह यह एक ब द व समाज था। इसी कारण उसे
शताि दय क पराधीनता से गुजरना पड़ा।
जा त था के रॉय घोर वरोधी थे। यह इ लाम, सू फ व उप न द के साथ–साथ
पा चा य भाव भी था। एक यि त क े ठता अथवा ह नता क कसौट उसके व कम ह, न
क ज म। जातीय एक करण हे तु राय अ तजातीय भोज तथा अ तजातीय को ो सा हत करते
थे। शा के आधार प म उ ह ने उस, वंश व जा त के बंधन से र हत शैव ववाह प त का
समथन कया।
राजनी तक दल व राजनी त वारा वोट बक राजनी त हे तु ज़ा त व आर ण का
योग (या दु पयोग) आज भी हम जा त वह न समाज क या अ वभािजत मु त समाज क
संक पना क साथकता व ासं गकता याद दलाता है। अ य धक वै ा नक वकास तथा
जा तगत लचीलेपन व आदान दान के उपरा त भी अ तजातीय, अ तधम के ववाह से उ ू त
ह याएँ, ववाद व झगड़े आज भी राय क क पना को व न ह दशाते ह।
(3) नार अ धकार एवं नार हत का समथन – नार वतं ता, अ दूत के प म राय ने
ह दू नार के साथ हो रहे अ याय व अ याचार का वरोध कया उसे स मान व समानता
दलाने का भी समथन कया।
(A) सती था का वरोध व सरकार वारा इसे नषेध करवाना राय के दसवष य आ दोलन
का प रणाम था।
(B) वधवा ववाह–राय वधवा ववाह को कु छ ि थ तय म वांछनीय समझते थे, वशेषकर
बाल वधवाओं के लए।
(C) ी श ा पर बल–पु ष के समान ह राय ी श ा के समथक थे।
ौढ़ वधवाओं के लए राय आ म स मान हे तु श ा पर बल दे ते थे। वे ि य को
मंदबु मानने को तैयार नह ं थे वरन ् उ ह ल लावती, गाग , मै ेयी के वदुषी बनने

112
को े रत करते थे। इन नाम से वे नार श ा को शा स मत भी बताते थे। ी
श ा के े म राय अ धक कु छ कर नह ं पाये।
(D) बहु प नी ववाह का वरोध – कानून वारा ऐसी यव था राय का व न थी िजससे
कोई भी ह दू एक मिज े ट से लाइसस लये बना पहल प नी के जीवनकाल म
दूसरा ववाह न कर सके। केवल शा स मत कु छ प रि थ तय म ह दूसरे ववाह क
अनुम त थी।
(E) ी को मृत प त क संपि त म अ धकार का समथन–इस स दभ म उ चत अ धकार न
दे ने के राय वरोधी थे। ाचीन ह दू धमशा व यायशा क ी को प त क
संपि त म पु के समान भाग दे ने क यव था वकृ त के कारण शू य कर द गयी
थी। राय इस अ धकार को पहले क भां त था पत करना चाहते थ। उनके अनुसार
इससे वधवा अस मान व संकट से भी बच सकेगी। राय का यास ह दू वधवा के
जीवनकाल म मृत प त क संपि त म समु चत आधा भाग दे ने तक सी मत था,
चौथाई भाग पु व चौथाई भाग पु य म बंटे, िजससे ी आ म नभर रहे । संपि त
के वषय म उनके दो नब ध थे िजनम ाचीन मनी षय मनु, या व य, का यायन
आ द के उ रण थे। ये थे पूवज क स पि त के ऊपर ह दुओं के अ धकार (On the
Rights of the Hindus over Ancestral Property) तथा (On morden
Enroachments on the Asian Right of Female) ि य के ाचीन अ धकार
पर आधु नक आघात।
(F) दहे ज था समान क याओं क ब का वरोध–इससे बेमेल ववाह होते थे। बाल
वधवाओं क सं या तथा उन पर अमानवीय यवहार म वृ होती थी।
(G) दे वदासी था का वरोध–दे वदासी था ई वर के नाम पर पूजा थल म य भचार था।
(4) बल था का वरोध – ई वर को स न करने हे तु ब ल दे ने को राय अंध व वास के
नाम पर ह या मानते थे और इसका वरोध करते थे।
(5) पर पराओं के अ धानुकरण को वरोध – ववेक व बु क कसौट पर पर पराओं क
पर ा आव यक है। केवल ढ़ के तौर पर अपनाना अ ववेकपूण हो सकता है।
(6) संसद य एवं वन भाषा का समथन – अ श ट व अपश द यु त अपमानजनक भाषा
का राय वरोध करते थे। अपनी बात प ट प से पर बना अ श टता के य त करना उनक
वशेषता था।
(7) समु या ा – उस समय समु पार कर वदे श जाना विजत था। राममोहन राय ने इस
ढ़ को वयं इं लै ड जाकर तोड़ा।
राय वारा था पत आ मीय सभा म भी ह दू धम के साथ–साथ सामािजक सम याओं
पर भी नय मत चचा होती थी। जैसे – जा त–भेद क सम या, पंि त भोजन और न ष खा य
क सम या, बाल वधवा और कठोर मचय पालन, बहु ववाह था, सती था, मू त पूजा
आ द। इस सभा को वतमान बंगाल क थम समाज सु धार सं था कह सकते ह। म समाज
ने तट थ, धम नरपे माग का अनुसरण कर व वध धमानुया यय म एकता का यास कया।

113
वैयि तक तथा वैि छक संग ठत यास के साथ–साथ राय सरकार से कानून वारा भी
सामािजक कु र तय पर अंकुश लगाना चाहते थे।
अपने सामािजक–धा मक वचार से राममोहन राय कलक ता के कु छ तभाशाल एवं
भावपूण यि तय के य बन गये; जैसे– वारकानाथ ठाकु र, स न कु मार ठाकु र, नंद कु मार
बोस, आन द साद बनज , राजा काल शंकर घोषाल, ज मोहन मजूमदार , डा. राजे लाल
म आद

6.7 राजनी तक वचार


गोपाल कृ ण गोखले, तलक और सु रे नाथ बनज जैसे न होते हु ए भी राजनी त म
राय क च थी। यूरोप वशेषत: इं लै ड क राजनी त का ान था। राजनी त राजनै तक
संगठन तथा सं थाओं के यवहार का राय ने गहन कया था। जनता क शकायत को स ता
के के तक ले जाने के थम यास के कारण सु रे नाथ बनज ने उ ह भारत म संवध
ै ा नक
आ दोलन का जनक कहा।
उस समय जनता म नाग रक अ धकार के वषय म चेतना नह ं थी और न कोई
सरकार के सम अपनी बात / शकायत रखने क सोचता था। राय ने भारत म व इं लै ड म
भारतीय प शासन स ता के सम व टश जनता व स
ै के सम तु त कर भारत क
प रचय दया व जनमत को दोन दे श म तैयार कया। भारत म भी उ ह ने इं लै ड क
या या क । इं लै ड वास के तीन वष म भारत के दावे को सु शासन हे तु उ तरदायी लोग के
सम रखने के येक अवसर का उ ह ने उपयोग कया। सामािजक–धा मक सु धार वारा राय ने
राजनी तक जागरण का आधार तैयार कया।
राय आधु नक भारत मे संवध
ै ा नक उदारवाद के थम नेताओं म से थे। राजनी त
आ दोलनकताओं व समाज सु धारक . वारा यह उदारवाद वरासत सौ वष तक जार रह ।
राजनी तक आ दोलन के टश तर क का सू म नर ण कर राय ने शकायत के नराकरण
हे तु संवध
ै ा नक राजनी तक आ दोलन शां तपूण साधन वारा चलाकर दूसर के लये माग
श त कया। दादा भाई नैरोजी, रानाडे तथा गोखले आ द उदारवा दय (नरम दल) को इसी
कारण वे अ णी थे। सदशासन उनक वर यता था। ' वशासन' क ती ा हो सकती थी। ेय के
लए कोई भी शासक वीकाय है– टश या साम तवाद राजा–महाराजा। रा य का ल य
'लोक ेय' होना चा हये।
रा य का उ े य लोक ेय। जो अ य शासन क अपे ा संसद य लोकतं इस ल य क
ाि त म बेहतर है। इसम जनता के, जनता के वारा और जनता के लए शासन है। अ धकतम
लोग को शासन यव था म भागीदार का अवसर मलता है, वे अपने त न धड़ो वारा शासन
यव था को संचा लत एवं नयं त कर सकते ह। शायद इस कारण भी रॉय ने सामलवाद दे सी
राजघरान के शासन क अपे ा टश शासन को बेहतर समझा। भारतीय को रमे अ धक
नाग रक तथा धा मक वतं ता होने के कारण ह राय ने टश शासन का समथन। वे नरं कुश
शासन या अनुदार नौकरशाह के समथक नह ं थे। रॉय शासक व शा सत के म य! घ न ठ

114
स ब ध के समथक थे। शायद इसी कारण वे सरकार वारा जनता के ववेकशील तथा
स मा नत वग का स ाव व सहयोग ा त करने क इ छा करते थे।।
रॉय के वारा ता वत कु छ सु झाव शि त पृथ करण तथा कसान के हत के त
उनके झु काव को दशाते ह। फारसी के थान पर अं ेजी क सरकार भाषा के प म त ठा,
द वानी मामल म भारतीय मू यांकनकताओं क नयुि त , जू र वारा अ भयोग क सु नवाई,
यायाधीश व राज व अ धकार एवं यायाधीश व मिज े ट के पद का पृथ करण , कंपनी क
नाग रक सेवा म भारतीय को अ धक सं या म थान दे ना व कानून बनाने से पूव जनमत
जानने का यास, लगान नधारण का अ धकार जमींदार के थान पर कंपनी के हाथ म।
राय के राजनी तक वचार म लोक ेय, वशासन एवं को झलक दखती है। यि त,
उसक ग रमा तथा वतं ता का ेम उनके चंतन तथा काय का आधार है।
6.6.1 वतं ता – वतं ता के इस ेम क जड ह दु व के व पा चा य सा ह य दोन से
उपजती द खती ह।
वैि वक राय को वतं ता यि त तथा दे श दोन के लए अ नवाय जान पड़ती है।
वत ता क सफलता म राय का व वास आशावाद है। वतं ता का उनका ेम दे श क
सीमाओं संकु चत न होकर वैि वक है। व व के कसी भी कोने म होने वाल वतं ता क मांग
उनके लए सहानुभू तपूण थी–चाहे नेप स हो या कह ं और। यूरोपीय वतं ता व भात व क
अवधारणा संक ण थी। उसम ए शयाई व नबल दे श व समाज के लए कोई थान नह ं था।
बहु आयामी वतं ता – राय का वतं ता ेम उनके धा मक–सामािजक–राजनी तक वचार काय –
सु धार म यि त क ग रमा क थापना, सं वधा नक शासन, ढय के अंधानुकरण के थान
पर तक व ववेक से पर ण (जा त वभाजन, मू त पूजा, ब ल था, बहु दे ववाद, सती था
वरोध आ द) म ि टगोचर होता है।
राजनी तक े म रॉय का व ता ेम, संवध
ै ा नक शासन, नाग रक अ धकार , नार अ धकार,
ेस क वतं ता, शि त पृथ करण के समथन म मु ख रत होता है
(A) यि त क नजी वतं ता का समथन पर सामािजक हत हे तु रा य के ह त ेप को
वीकृ त।
(B) रा क वांत य का समथन जैसे–यूरोपीय रा य व ए शयाई उप नवेश। ांसीसी ां त
के वतं ता, समानता व बंधु व तथा अमे रका वतं ता क घोषणा से राय भा वत
थे।
(C) वतं एवं लोकतां क शासन का समथन– वतं ता संघष म रत सभी यि तय को
(जा त, धम, रा यता के भेदभाव के र हत) राय का समथन था। जैसे–तु क के
सा ा यवाद के व यूनानी संघष, द ण अमे रका वतं ता सं ाम, पेन के गृहयु
म उदारवाद लोकतां क का, 1822 म अं ेज के दमन के शकार आयरले ड के
कैथो लक आ द के त सहानुभू त। वतं ता ेम के कारण ह वे संवध
ै ा नक शासन के
प धर थे व नरं कु श शासन के वरोधी थे।

115
(D) ेस क वतं ता का समथन– ेस क वतं ता को जनता व सरकार के म य संवाद
हे तु व जनमत के लए आव यक सु र ा नल मानते थे। सरकार अ नय मतताओं व
अ याचार को बताने हे तु भी लोकतं के र क क भू मका वतं स
ै नभाती है।
जॉन एड स वारा अपने पूववत गवनर जनरल लाड हे ि टं स क स
ै के त उदार
नी त के थान पर एक कठोर स
ै अ यादे श जार कर समाचार प / प का के
काशन हे तु लाइसस क यव था क गयी। सरकार के त न ठा रखने वाल को ह
अनुम त ा त होती। रॉय व सा थय ने इस अ यादे श के व (आपि त के दशन,
ाथना प पहले उ चतम यायालय तथा फर टश राजा ( कं ग–इन–काउं सल) के
सम तु त कया। कलक ता के भावशाल तथा स मा नत यि तय के ह ता र
वाले ये मरण प ेस क वतं ता के लए जोरदार भावशाल अपील थे जो नकल
रहे । सो फया क लेट ने तो इ ह राय क उदा ततम अं ेजी रचना कहा। ान के सार
तथा मान सक वकास के लए सहायक होने के साथ–साथ शासन क गुणव ता म भी
ेस क वतं ता सहायक होती है। वरोध दशन हे तु राय ने अपने समाचार प
मलत–उल (फारसी) का काशन रोक दया। वे अप र मत वतं ता के प धर नह ं थे।
आव यकता पड़ने पर अ धक बंधन भी वीकाय थे (मानहा न स ब धी कानून वारा
था पत बंधन को ह राय पया त मानते थे)। ेस क वतं ता क मांग सरकार को
मजबूत बनाने के लए ह थी।
(E) टश शासन का समथन– टश शासन, कानून णाल , उनके ान, बु व , संतु लत
आचरण के वषय म ान ा त कर राय टश शासन के प धर हो गये। यह झु काव
भारत क अं ेजी शासन से होने वाले लाभ, नाग रक तथा धा मक वतं ता के कारण
भी थी जो क पूववत शासक के नरं कु श शासन से भ न था। ये अ धकार संभवत:
नाग रक वतं ता,सामािजक आन द, वतं श ा, जीवन व संपि त के, वचार क
वतं ता व धा मक उपासना से संब थे। इसी कारण राय ने टश को भारतीय का
सौभा य बताया। इसके शताि दय तक जार रखने क कामना करते थे।
(Bramhanical Magazine Article, no नोव. 15, 1823 Pt। Shiv Pd
Sharma)
व वनाथ साद वमा ने भारत के आधु नक काल का नमाता माने जाने वाले, यूनान
व नेप स आ द क राजनी तक वाधीनता म च रखने वाले राय के शताि दय तक भारत म
टश शासन क ाथना करने पर आ चय कया है। राय वतं ता के शंसक थे पर शह द
नह ं थे। वे दे श ेमी थे। बौ क समाज सुधारक व व वान थे। 1818 म मराठे पं स स
वाधीनता के लए संघष म रत थे। वरा य राय का ल य नह ं था। शि त के आधार भारत
टे न से मु काबला नह ं कर सकता था। उस समय टे न व व म सवा धक शि त स प न था।
दूसरे रॉय मू लत: एक सामािजक सु धारक थे। उ ह ने पि चमी स यता के बु वाद व उदरवाद
को वीकार कर बहु त सी सामािजक कु थाओं–कु र तय व ढ़य को ह दू समाज से छूकर उसे

116
जा त व ववेकयु त करने का यास कया। राजनी तक वतं ता का बगुल बजाने वाले
नेताओं म फड़के चाकेकर लोकमा य तलक आ द महारा के नेता ह।
6.7.2 म य माग का अनुसरण – पुनजागरण के ारि मक उदारवाद नेताओं क भां त राय
दूरदश लाभ हे तु धीमी ग त से कये गये सुधार का समथन करते ह। इं लै ड से ' रफामर'
(Reformer) नामक प का को भेजे गये प म अं ेज के शासन म भारत को ा त ान व
लाभ हे तु व भ व यगामी लाभ के लए ि थ त म सु धाराथ ज दबाजी न करने क सलाह दे ते
ह।
6.7.3 रा य का काय े – उदारवाद राय यि तवाद ह। संपि त के अ धकार व यि तगत
वतं ता के प धर ह। शि तशाल व स प न म यवग अि त व क मह ता को वीकारते ह।
क तु वह न तो य ा यम ् (Laissezfare) को वीकारते है और न समाजवाद को।
क याणकार रा य जैसी अवधारणा के अनुसार वह रा य से सती था जैसी कु र त का नषेध
चाहते ह तो रा य वारा कसान को जमींदार के अ याय से भी बचाने के प धर ह। सरकार
को एक सावज नक श ा णाल क यव था करनी चा हये।
6.7.4 शि त पृथ करण का समथन – यव था पका, कायपा लका एवं यायपा लका के म य
शि तय के वभाजन के राय अ दे शासन हे तु प धर ह, अत: भारत के लए व ध नमाण
काय– यव था पका टश संसद (सप रष स ाट) वारा होना चा हये जो क यव था पका है।
भारत ि थत गवनर जनरल (कायपा लका) वारा यह व ध केवल लागू क जानी चा हये।
कायपा लका एवं यायपा लका का स ब धी काय एक पदा धकार के हाथ म नह ं होने चा हये।
कले टर के पद के साथ ब धका रणी व या यक शि त के म ण का भी राय ने वरोध
कया।
6.7.5 व ध एवं या यक यव था – व ध स भु का आदे श है एवं वह व ध को प रव तत
कर सकता है, क तु मा य जनक याणकार व ध कानून म प रवतन वे छाचा रता से नह ं
होना चा हये। व ध का ोत अ भसमय र त– रवाज, ढ़या सामािजक मा यताएँ व धा मक
ोत भी ह। पर स भु क आ ा से ह वे व ध बन सकते ह। व ध नै तक ि ट से अ छ
या बुर हो सकती है पर सभी व ध बा यकार ह। कु छ नै तक नयम व ध से भी अ धक
बा यकार होते ह। राय ने 1831 म बोड ऑफ कं ोल के सामने सु झाव तु त कये थे। उनक
पुि तका 'एन ए सपोजीशन ऑफ द रे वै यू ए ड यूडी शयल स टम ऑफ इि डया' भी इ ह
बताती है।
क पनी का याय वभाग दे श क पर पराओं से दूर व अकु शल था। राय ने इस दशा
म यापक सु झाव तु त कये–कायपा लका / शासन एवं याय वभाग को थक करना, दे श
क भाषा के ाता व ईमानदार यायाधीश क नयुि त , उ च वेतन पर भारतीय क नयुि त,
जालसाजी एवं झू ठ गवाह को समा त करना, दे श के यायालय का यूरोपीय लोग पर
े ा धकार, जू र व उसम अवकाश ा त व अनुभवी भारतीय व धवे ताओं का चयन, वध
नमाण (द वानी–फौजदार ) म जनता (सं ा त) से परामश, कानून का सं त, प ट, सरल,
सं हताकरण, यायालय के नणय का सावज नक समाचार प म काशन, जातीय भेदभाव क

117
समाि त, याय पंचायत जैसी जनसंब सं था वारा याय, रै यत क दशा के सुधार हे तु व र ा
हे तु व ध।
6.7.6 शास नक सु धार – शास नक यव था हे तु राय के सु झाव थे– कसान पर लगान क
दर घटाना, स वल सेवक क आयु कम से कम 22 वष, भारतीय सेवाओं म अ धक सं या म
यो यतानुसार दा य वपूण पद पर भारतीय क नयुि त, उ च वेतन वाले अं ेज कले टर के
थान पर न न वेतनमान म भारतीय क नयुि त , थायी सेनाओं के थान पर नाग रक
सेनाएँ, वला सता क व तु ओं पर कर लगाना।
6.7.7 यूरोपवा सय को भारत म बसाना – राय उ च च र वाले संप न यूरोपवा सय के भातर
म बसाने के प धर थे। 1813 के चाटर ए ट से उनके भारत म भू म खर दने या प े पर
दे कर बसने का नषेध था। राय के वचार से उनके भारत म अपनी पू ज
ं ी लगाकर रहने से
वै ा नक णाल क कृ ष, ख नज, यापार, श पकला आ द का वकास संभव था। राय उ ह
शासक वग का होने के नाते वशेष सु वधाएँ न दे ने व अपराध पर कानून क समान ि ट के
प धर थे। 1833 के अ धकार अ ध नमय वारा यूरोपीय लोग पर भारत म बसने स ब धी
तबंध हटा दये गये।
6.7.8 मानवतावाद एवं व व ातृ व –राय व व ातृ व म व वास रखते थे और एक
व व यापी धम का व न दे खते थे जो पर परागत बंधन से पूरे हो। आज भी दे श के अ दर
व म य धम पर आधा रत भेद वैमन य पैदा कर रहे ह। स पूण मानवता को राय एक प रवार
व व भ न जा तय – बराद रय को उसक अनेक शाखाएँ मानते थे। वे मानव स पक को
वक सत करने व इसम कावट को मानव क याण हे तु दूर कर दे ना चाहते थे। इसी लये वे
सबके लए वतं ता चाहते थे।
राय ने एक ऐसे व व संगठन क क पना क थी िजसम रा के आपसी मतभेद का
पंच फैसले वारा समाधान हो सके। इस कार क कां स
े क क पना संयु त रा संघ का
पूवाधार मानी जा सकती है। आज के आण वक युग म आतंकवाद व अ तरा य तनाव व
संघष क पृ ठभू म म सम वय, सहयोग अथवा संघष व वनाश के दो ह माग के सम राय
क क पना आज भी ासं गक है।

6.8 आ थक वचार
लाड कानवा लस के बंगाल के भू म ब ध से उ प न सम याओं को राय ने समझा।
जमींदार व जागीरदार से सरकार को अपनी मांग कम करने का सु झाव दया िजससे कसान
पर लगान कर रहे । वतं यापार का राय ने समथन कया। वे अं ेज वारा इं लै ड ले जा
रहे माल पर से कर हटवाना चाहते थे िजससे वदे शी यापार म भारतीय माल क खपत अ छ
हो, प रवा रक संपि त पर ह दू ि य (पु ी व प नी)के अ धकार क उ ह ने ाचीन धम थ

के उ रण दे कर वकालत क थी। भारत म उ च च र वाले स प न यूरोपीय लोग को भारत
म बसाने के पीछे भी आ थक वकास का कारण था। उदारवाद के प म राय स प न म य
वग के समथक थे।
बोध न–2

118
न –: सती था तथा वतं ता के स ब ध म रॉय क मू ल ि थ त या थी।
उ तर : ...........................................................................................
...........................................................................................

6.9. श ा स ब धी वचार
श ा वद के प म राय पा चा य ान– व ान व अं ेजी भाषा के प धर थे। ई ट
इि डया क पनी वारा श ा व तार के लए वीकृ त धनरा श सं कृ त व यालय पर यय
करने के वरोध म ह राय ने 11 दस बर, 1823 म लाड ए ह ट को प लखा। उनका
वचार था क सं कृ त श ा यव था दे श को अंधेरे म ले जायेगी। अं ेज वारा 1835 म
पा चा य श ा दे ने से पूव ह इस श ा क दे श म मांग थी और सभी ारि भक शै क
सं थाएँ यि तगत यास तथा गैर सरकार सं थाओं से स बि धत थीं। इस कार अं ेजी
भाषा के समथक म राय अ म म नह ं ह।
राय भारतीय जनता क ग त हे तु ग णत, ाकृ तक दशन, शा , शर र व ान एवं
अ य उपयोगी वै ा नक वषय क श ा दे ने के प म थे। वे कु ल न वग को श त
(पा चा य श ा) करना चाहते थे।
व भ न भाषाओं के ाता राय ने पूव एवं पि चमी ान व सं कृ त म य क बाधाएँ
गराने एवं सवण ह दुओं के म य यूरोपीय श ा के वारा पा चा य वचार व मनद डो को
लाने का यास कया। मशनर कू ल म प ने से ईसाई बनने या जा त ट होने क आशंका
को भी उ ह ने दूर करने का यास कया।
सन ् 1816– 17 म कलक ता म रॉय ने एक अं ेजी कू ल क थापना क व 1822–
23 म ह दू कॉलेज क थापना को भी े रत कया। वेदा त कॉलेज क राय ने भारतीय
सं कृ त के ाचीन थ
ं के अ ययन हे तु कया। गीता व अनेक उप नषद का यापक सार हे तु
बंगाल व अं ेजी म अनुवाद कया। बंगाल ग य को संवाद कौमु द प , अनुवाद व लेख के
वारा नर तर समृ कया। शा ाथ म भी उ ह ने इसी भाषा का कया। नार श ा का भी
समथन कया। य य प इसम कोई ठोस काय वे नह ं कर पाये।
पुरो हत वग के एका धकार वाल च लत श ा प त व संक ण थी। मान सक व
वैचा रक वतं ता को ो साहन नह ं दे ती थी और न बा लकाओं व के पछड़ी जा तय क ं श ा
को। इसके वपर त पा चा य श ा भारत के लए व व के व समृ दे श म सि म लत होने
का माग थी।

6.10 सारांश
राजा राममोहन राय एक नवीन तथा आधु नक भारत के कहलाते ह। भारत म
सामािजक सु धार व पुनजागरण के अ म पंि त के नेताओं म उनका नाम। सामािजक याय
क मांग त काल न समय के संदभ म मह वपूण है। सामािजक े के साथ–साथ धा मक,
आ थक, शास नक, या यक आ द े म भी राय क पैनी ि ट थी। पा चा य – व ान व
बु वाद के समथन के साथ भारतीय वेदा त म राय क गहर आ था थी। पि चम उपयोगी

119
यां क कला व वै ा नक भावना से राय समृ भारत का व न दे खते थे। उनके वारा था पत
म समाज तथा अ य ग त व धय व ग तशील चंतन ने बंगाल को सवा धक ग तशील व
राजनी तक पुनजागरण का के बना दया। अ ध व वास व ढ़ से ब समाज म सुधार क
मशाल जलाने का ेय राय को है। य य प आज भी भारतीय समाज कमका ड, बहु दे ववाद आ द
से पूणत: मु त नह ं हु आ है और न ह बंग समाज म ऐसा आमूल प रवतन ि टगत होता है
(आर. सी मजू मदार– 'ऑन राजा राममोहन राय' ए शया टक सोसायट )। पर तु आज ये ढयॉ
व कमका ड बा यता नह ं ह, आदत ज र हो सकती ह और यह राय का आधु नक भारतीय
समाज को वशेष योगेदान है।
बंगाल म ार भ कये गये सामािजक–धा मक सु धार आ दोलन, म समाज व उसके
उ तरकाल न अ य सं थाओं– ाथना समाज, थयोसो फकल सोसायट , आय समाज आ द ने ह
कारा तर म रा य वाधीनता या पराधीनता से मुि त के संघष क नींव डाल । आज भारतीय
नार को भी अपनी वतमान श ा व वतं ता का कु छ ेय राय उनके समकाल न नेताओं व
उनके चंतन व ग त व धय को दे ना होगा। धा मक उदारता, सम वय, स ह णु ता, यि त व
ेस क वतं ता आ द राय के अ य योगदान ह िजनके लए राय जैसे नेताओं का संघष रं ग
लाया। इसी लए उनक जीवनी क ले खका सो फया कॉलेट ने उ ह अतीत से भ व य क ओर ले
जाने वाले भारत का महासेतु बताया।
राय–एक तु लना मक ि ट
उनके समकाल न अनेक महान नेता थे जो सामािजक, राजनी तक. सा हि यक व भ न
े म भारत के व भ न कोन म कायरत थे। जैसे–राजा राधाका त दे ब, वामी रामकृ ण
परमहंस, वामी ववेकान द, ी अर व द घोष, वामी दयान द सर वती, तलक, गोखले,
रानाडे, सु रे नाथ बनज , व पन च पाल, दादाभाई नौरोजी, सी.आर दास, लाजपत राय, के.
ट . तैलंग, ऐनी बेसे ट, मदन मोहन मालवीय, पं. मोतीलाल नेह , टै गोर, बद ीन तैयबजी, सर
सैयद अहमद खान, यो तबा फुले, ई वरच वधासागर, अ य कु मार द त आ द।
इस स दभ म राजा राधाकांत दे ब का वन प त व ान का गंभीर अ ययन, वै ा नक
अ ययन के त समपण, आधु नक सं थाओं के संगठन म योगदान, ी श ा के त
न ठा, अं ेजी भाषा का समथन उ लेखनीय है। दे व के 1821 –23 के म य अं ेजी म 1500
व बंगाल म 451 काशन ह। सं कृ त म 'श दक पदुम' जैसी उ तम रचना है। सं कृ त म
'श दक पदुम' जैसी उ तम रचना के लए उ ह ने 20 वष का अथक प र म कया। ार ध के
सहारा लेकर अकम यता का सहारा लेने वाले ह दू ि टकोण का उ ह ने वरोध कया व अपनी
सम त ऊजा दे श क भलाई के लए अ पत करने हे तु दे शवा सय का आ हान कया। उनके
वारा अनेक श ा सं थाएँ खोल गयीं। 'कलक ता कू ल बुक सोसायट ' के साथ वे 1817 से
1850 तक जु ड़े रहे । रचनाएँ अमे रक सै दुअल जॉनसन ने दे व के ी श ा म स य
सहायता का उ लेख कया है जब क ी श ा का बाल गंगाधर तलक जैसे नेता भी वरोध
कर रहे थे। दे ब ने सं कृ त तथा अं ेजी दोन को समान मह व दया सं कृ त को ह दू वरासत
व सं कृ त क समृ हे तु तो अं ेजी को वतमान समृ ान हे त।ु उ ह ने शासक क भाषा को

120
ाथ मकता दे ने क पुरातन पर परा को दशाया– ' ह दू राजाओं के समय म सं कृ त, मु ि लम
राजाओं के समय म अरबी व फारसी, आज वदे शी भाषाओं के चयन के स दभ म अं ेजी का
पलड़ा सबसे भार है। दे ब का यह ि टकोण तकपूण व राय से कह ं अ धक संतु लत है तो ी
श ा के स दभ म ढ़वाद द खते ह। दे ब का उ लेख ाय: सती व कु गं अ य ह दू
पर पराओं के स दभ म संक ण व ढ़वाद व ग त वरोधी के प म ह कया जाता है।
वा तव म श ा, ी श ा, व वन प त व ान के गंभीर अ ययन व अं ेजी, बंगला व
सं कृ त के काशन के स दभ म वे रॉय व तलक से बहु त आगे व ग तशील ह। रॉय के
काशन व उनके वारा था पत व स बि धत श ा सं थाओं क सं या दे ब के आगे नग य
सी है। इ तहास वारा था पत मथक म राय क अ त महानता भी एक है (आर.सी.
मजूमदार )

6.11 अ यास न
1. राजा राममोहन रॉय भारतीय पुनजागरण के अ दूत य कहलाते ह? प ट क िजये।
2. राजा राममोहन रॉय मू लत: एक सामािजक सु धारक थे', ववेचना क िजये।
3. राजा राममोहन रॉय के मु य राजनी तक वचार क यखाया' क िजये।
4. राजा राममोहन रॉय के आ थक व याय स ब धी वचार का व लेषण क िजये।
5. ी वांत य हे तु राजा राममोहन रॉय का योगदान बताइये।
6. न न पर सं त ट पणी ल खये
(1) रॉय के वचार के ोत।
(2) रॉय के धम स ब धी वचार।
(3) वतं ता स ब धी वचार।
(4) रा य का काय े ।
(5) शि त पृथ करण।

6.12 संदभ थ सू ची
1. सू द, यो त साद, आधु नक भारतीय सामािजक तथा राजनी तक वचार क मु य
धाराएँ, जय काश नाथ ए ड क पनी, मेरठ, 1970
2. रतन राम, च यागी एवं के. डागर, भारतीय राजनी तक चंतन, मयूर पेपर बै स,
नोएडा, 1996
3. गर श मेहता, मॉडन इं डयन पा ल टकल थंकस, मु रार लाल ए ड स स, नई द ल
2006
4. संह, आर. पी., एजू केशन एंड द इि डयन नेशनल कां ेस (1885–1947), सीने रयो
पि लकेश स, द ल , 1965

121
इकाई – 7
मह ष दयान द सर वती
इकाई क परे खा
7.0 उ े य
7.1 तावना
7.2 जीवन प रचय
7.3 वामी दयान द सर वती क रचनाएँ
7.4 दयान द सर वती के सामािजक वचार
7.5 दयान द सर वती के शै णक वचार
7.6 दयान द सर वती के धा मक वचार
7.7 दयान द सर वती के राजनी तक वचार
7.8 दयान द सर वती का रा वाद
7.9 दयान द का योगदान
7.10 सारांश
7.11 अ यास न
7.12 संदभ थ सूची

7.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरा त आप जान पायगे –
 वामी दयान द सर वती का जीवन प रचय,
 वामी दयान द सर वती के सामािजक, शै णक, धा मक एवं राजनी तक वचार क
 ासं गकता,
 वामी दयान द सर वती के रा वाद चंतन का न पण एवं
 भारतीय सामािजक एवं राजनी तक यव था म वामी दयान द सर वती का योगदान।

7.1 तावना
भारत म धम सुधार के णेताओं म मह ष दयान द सर वती का वल ण थान है।
बंगाल म िजस कार राजा राममोहन रॉय ने धम सुधार का वतन कया उसी कार उ तर
भारत म मह ष दयान द सर वती ने आय समाज और वेद दशन के तपादन म म
मह वपूण समाज सु धार का वतन कया। दोन ह ि थ तय म धम सु धार सी मत अथ नह ं
रखता। धम के मा यम से दोन ह वचारक ने समाज, राजनी त और श ा के े म
ासं गक सुधार क ं। परे खाएँ तु त क ह। इस इकाई म आप मह ष दयान द सर वती और
आय समाज वषय व वध संग का स व तार अ ययन करगे।

122
7.2 जीवन प रचय
आधु नक भारत म रा वाद चेतना को जा त करने वाले वामी दयान द सर वती का
ज म गुजरात दे श के टं कारा शहर म सन ् 1824 म हु आ था। इनके बचपन का नाम मू ल
शंकर था। बालक मू लशंकर का ज म एक धा मक प रवार म हु आ था। इनके पता मोरवी रा य
म एक उ च पद पर काय करते थे और माता धमपरायण उदार वृि त क म हला थीं। अपने
पता क दे खरे ख म मू लशंकर ने पाँच वष क आयु म श ा हण करना आर भ कर दया
था। पता के नदशन म मू लशंकर ने नी तशा , यजु वद, का य, सा ह य एवं याकरण इ या द
का अ ययन कर, 14 वष क अ प आयु म पूर यजु वद सं हता को कंठ थ कर लया था।
दयान द वचारवान कृ त के यि त थे। कसी भी वचार मा यता अथवा व वास को
यथा प म अपनाने क अपे ा वे उस वचार, मा यता अथवा व वास का तकसंगत पर ण
करते थे। चू ं क, दयान द का ज म एक धा मक प रवार म हु आ था, इस लये इनका त, पूजा ,
अनु ठान इ या द म सि म लत होना वाभा वक था। एक बार, महा शवरा ी पव के अवसर पर
अ य प रजन के साथ ह बालक मू लशंकर ने भी त रखा, तथा शव मं दर म होने वाले रा
जागरण म भी भाग लया। रा म धीरे –धीरे सभी भ तजन को नींद आ गयी, ले कन मू लशंकर
जागता रहा। तभी एक ऐसी घटना घट िजसने मू लशंकर के मन पर ऐसा भाव डाला क
पर परागत धा मक अनु ठान, त एवं मू त–पूजा से बालक मू लशंकर का व वास ह उठ गया।
मूलशंकर ने दे खा क भगवान शव के मं दर म शव क तमा पर चढ़कर एक चू हा उछल–कू द
कर रहा है और फल–फूल आ द खा रहा है िज ह उपासक ने शव क तमा को ई वर मानकर
अ य त ा से उस पर चढ़ाये ह। मूलशंकर के वचारवान मन म एक न उपि थत हु आ क
यह तमा ई वर कैसे हो सकती. है, जो एक चू हे के आतंक से अपनी र ा नह ं कर सकती है।
उ ह ने उ सु कतावश अपने पता को त काल जगाकर इस घटना से स ब धत अपनी शंका उनको
बतायी, ले कन पताजी कोई संतोषजनक उ तर नह ं दे पाये। इससे बालक मू लशंकर के कोमल
मन–मि त क, पर बहुत ह गहरा भाव पड़ा िजसके कारण मू त–पूजा से उ ह वरि त उ प न
हो गयी। पा रवर म घट अ य दो घटनाओं िजनम थम उनक ब हन क मृ यु तथा वतीय
उनके चाचा क मृ यु से मूलशंकर का युवा मन गहरे संताप म डू ब गया तथा जीवन–मृ यु के
ज टल न क गुि थय को सु लझाने म वे संल न रहने लगे। मू लशंकर को सांसा रक काय से
वरि त उ प न होने लग गयी, और उनका मन ई वर कह ं है ' इसे कैसे ा त कया जा
सकता है। संसार म इतने क ट य ह' इ ह कैसे दूर कया जा सकता है, इनसे मु ि त के
उपाय या ह ? इ या द न पर वचार करने म डू बता चला गया। दयान द क इस नवीन
उ प न मनःि थ त से उनके पता चि तत हु ये, उ ह ने सोचा क मू लशंकर का ववाह कर
दया जाये, िजससे मू लशंकर सांसा रक काय म पुन : च लेने लग जाय तथा सांसा रक या
कलाप क ओर आकृ ट होने लग। ले कन मू लशंकर सांसा रक ब धन म बंधने कोक एकदम
तैयार नह ं थे, उनके पता वारा नि चत क गई। ववाह के त थ से कु छ दन पूव ह
मू लशंकर घर छोडकर चले गये और साधु बन गये तथा अपना नाम दयान द सर वती रख

123
लया। स चा ान दान करने म स म गु क खोज म य –त मण करने लगे। वामी
वरजान द के सा न य म पहु ंचकर दयान द को अनुभव हु आ क िजस गु क खोज म वे
भटक रहे ह, वह उ ह अ तत: मल गया है। वमी वरजान द के श य व म उनके अिजत
ान का प रमाजन हु आ और वेद क या या के त उनका ि टकोण सु नि चत हु आ।
दयान द ने वेद के चार के लये दे श यापी अ भयान चलाया और इसी संदभ म वे ब बई
पहु ंचे। 19 अ ेल 1875 को ब बई म दयान द सर वती वारा आय समाज क थापना क
गई। इसके उपरा त दे श के व भ न थान पर भी 'आय समाज' क थापना म 1877 से
लेकर 1883 तक दयान द सर वती संल न रहे। अब वामी दयान द सर वती ने अपनी
स पूण शि त दो मु ख काय थम, आय समाज के संगठन को मजबूत बनाने म एवं
वतीय, वै दक धम एवं सं कृ त के चार म लगा द । अपने अ भयान के संचालन हे तु
दयान द सर वती ने पंजाब, उ तर दे श, म य दे श एवं राज थान का मण कया जहाँ उ ह
अपार जन समथन मला। इसी संदभ म 17 मई 1883 ई. को वामी दयान द सर वती
जोधपुर पहु ंच,े जहाँ जोधपुर महाराजा क एक कृ पा–पा वे या न ह बाई ने उनके अ त
आदशवाद वचार से ख न होकर धोखे से उनके भोजन म वष दलवा दया। जोधपुर म
वामीजी क समु चत च क सा यव था नह ं हो पायी, इस लये भ त के आ ह पर वे अजमेर
चले गये, यह ं पर 30 अ टू बर 1883 को उनका दे हा त हो गया।

7.3 वामी दयान द सर वती क रचनाएँ


अपने वचार को सा रत करने हे तु दयान द सर वती ने तीन थ लखे :–
1. ऋ वेदा दभा य भू मका
2. वेदभा य
3. स याथ काश
वामी जी क उपयु त क तीन रचनाओं म सवा धक मह वपूण रचना स याथ काश
है। इस थ म उ ह ने सभी मु य धम का आलोचना मक व लेषण करते हु ए यह स कया
क वै दक धम अ य धम से े ठ है।

7.4 दयान द सर वती के सामािजक वचार


वामी दयान द सर वती ने गु और स य क खोज म भारत के बहु त बडे भाग का
मण कया। भारत म या त द र ता, धा मक वकृ तय , सामािजक कु र तय , धम गु ओं के
वाथ का उ ह ने य प से अनुभव कया। उनका यह वचार था क जब तक भारत म
फैल सामािजक कु र तय का अ त नह ं होगा, भारत का वकास असंभव है, साथ ह उनक यह
मा यता थी क सुधार क इस या के लए आव यक सब साधन व साम ी भारत क
ाचीन गौरवमयी सं कृ त म ह मौजू द है।
वामी दयान द ने भारत म समाज सु धार के यथे ट यास कए। उ ह ने ह दू समाज
म या त कु र तय को दूर करने क चे टा क तथा समाज सुधार के वषय म समय–समय पर

124
अपने वचार य त कए। समाज से स बि धत उनके ि टकोण को न न ब दुओं के मा यम
से य त कया जा सकता है :–
(1) वण यव था के प धर: वामी दयान द वण यव था के प धर थे क तु उ ह ने
ज म को वण यव था का आधार नह ं माना। उ ह ने गुण और कम को मह ता द । दयान द
ने ज म से सब मनु य को समान माना। दयान द के अनुसार कम व गुण आधा रत यव था
रखने से सब मनु य अपनी उ न त का यास करगे य क उ तम वण वाल को यह भय
रहे गा क य द हमार संतान गुणह न रह तो वह शू कहलाएगी। इसी कार शू वण का यह
यास होगा क वे उ नत ि थ त ा त कर।
(2) आ म यव था का समथन: दयान द ने वेद वारा ता वत आ म यव था का
समथन कया है। वेद म 4 आ म का उ लेख है – 1 मचय आ म, 2. गृह थ आ म 3.
वान थ आ म एवं 4. स यास आ म। दयान द आ म यव था को े ठतम गुण के वकास
क ि ट से मह वपूण मानते ह।
(3) ववाह स ब धी वचार: वामी दयान द ने ववाह को एक प व बंधन माना। उनक
मा यता थी क जो क या पता के गो तथा माता के कु ल से नकट स ब ध न रखती हो
उसी से पु का ववाह करना करना चा हए। दयान द बाल ववाह के प धर नह ं थे। दयान द
ववाह के स ब ध म ी–पु ष क सहम त भी आव यक मानते थे।
(4) पुन ववाह से संबं धत वचार: दयान द ने पुन ववाह का वरोध कया य क पुन ववाह
लेश उ प न करते ह, उससे ववाह क मयादा व ेम न ट हो जाते ह तथा प त त तथा
ी त धम का भी नाश हो जाता है। पुन ववाह के थान पर वामी दयान द ने वधवा। ी
को पुन था पत करने के लये नयोग था का समथन कया। नयोग ी व पु ष के म य
एक कार का समझौता था, िजसम ी–पु ष क गृह थी पर पर पृथक रहती है। नयोग से
उ प न स तान समझौते के अनुसार कसी एक प ( ी या पु ष ) के ह से म आएगी तथा
उसे स पि त संबध
ं ी सम त अ धकार ा त ह गे।
(5) छुआछूत का वरोध: कम पर आधा रत होने के कारण दयान द के वृणा म म छुआछूत
के लए कोई थान नह ं है। दयान द के अनुसार मनु य होने के कारण येक यि त को
उ न त के समान अवसर ा त होने चा हए, सम त मनु य जा त क समानता म व वास
रखने के कारण ह उ ह ने शू को भी वेद प ने और य ोपवीत धारण करने का अ धकार
दान कया। दयान द थान– थान पर गए और लोग को बताया क अगर आपका परमा मा
म व वास है तो येक मनु य उसी परम पता क एक चनगार है। अत: आप येक मानव
ाणी को अवसर द िजए क वह वयं को पूण बना सके।
(6) नार उ थान के प धर: दयानंद के समय ह दू समाज म ि य क दशा अ य त
दयनीय थी। बहु– ववाह, बाल ववाह, पदा था, दहे ज था जैसी कु र तय ने ि य के जीवन
को असहनीय बना रखा था। ि य को श ा ाि त का अ धकार नह ं था, वे सामािजक जीवन
म भाग नह ं ले सकती थीं। क तु वै दक काल के सामािजक ढाँचे के आधार पर दयान द

125
सर वती ने ि य को समाज म उ च थान दलाने का य न कया। उ ह ने बहु ववाह, बाल
ववाह एवं पदा था का घोर वरोध कया तथा ी श ा पर अ य धक बल दया।
आय समाज के य न से थान– थान पर क या व यालय तथा महा व यालय खोले
गए। दयानंद ने त काल न समाज म या त इस धारणा का घोर वरोध कया क ी–पु ष क
अपे ा ह न है। उ ह ने येक े म ी–पु ष समानता का समथन कया। उनका मत था क
पु ष के समान ह ि य को वेद के अ ययन का अ धकार ा त है। ि याँ य ोपवीत धारण
करने क भी अ धका रणी ह। समाज म ि य क मह ता बताने के लए दयान द ने कहा हा,
क ''िजस कु ल म पि न अपने प त से स न रहती है, उसी कु ल म सौभा य और ए वय का
नवास होता है जहाँ कलह होता है वहाँ दुभा य और द र ि थर होता है।
बोध न–1
न: वामी दयान द सर वती के समाज सु धार स ब धी वचारो का वणन क िजये ।
उ तर: ............................................................................................... ....
....................... ................................................... .........................

7.5 दयान द सर वती सर वती के शै णक वचार


मह ष दयान द ने श ा के े म िजतनी यावहा रक च ल , उतनी बहु त कम
समाज–सु धारक ने ल । उनका ढ़ व वास था क समु चत श ा के अभाव म दे शवासी कभी
ग त नह ं कर सकगे।
(1) दयान द ने श ा को यापक अथ म लया। उनके लए श ा का अथ था शर र का
नमाण, इि य क साधना और बौ क शि तय का वकास। मचय पालन को
उ ह ने स ची श ा प त क एक अ नवाय शत माना और श ण काय को च र वान
तथा व वान ् यि तय के हाथ म रखना चाहा।
(2) मह ष दयान द ने सेवा नवृ त यि तय को जन–जा तय के बीच श ा– सार करने क
सलाह द और श ा को अ य सभी सु धार का मू ल माना।
(3) ारि भक श ा के वषय म उ ह ने माता– पता को बालक का थम गु बताया और
लखा क माता– पता के उपदे श से स तान को िजतना लाभ हो सकता है, उतना और
कसी से नह ं हो सकता।
(4) दयान द सह श ा के प म नह ं थे य क उनका वचार था क लड़के–लड़ कय के
चर पर अनुकूल भाव नह ं पड़ता। उनका आ ह था क येक समाज म छा –
छा ाओं के लए अलग–अलग श णालय होने चा हए। लड़क और लड कय के लए
श ा–प त और श ा के वषय म भी आव यकतानुसार भ नता ज र है।
(5) दयान द ने नार श ा पर उतना ह बल दया िजतना क पु ष क श ा पर।
दयान द गु कल क थापना क सफा रश क जहाँ त ण मचार गण आचाय क
नगरानी म व योपाजन कर सक। उनका कहना था क गु कु ल म सभी वग और

126
जा तय के ब च को समानता के आधार पर वेश मलना चा हए और धनी– नधन के
बीच कोई भेदभाव नह ं कया जाना चा हए।
दयान द ने एक ऐसी श ा–प त पर बल दया जो पूण प से रा य हो और जो
ऐसे नाग रक उ प न करे िजसम समाज के त क त यपरायणता और उ तरदा य व क भावना
व यमान हो। दयान द ने दे श को एकता के सू म परोने के लए ह द का पूरे दे श म
चलन आव यक माना, य य प अपनी श ा योजना म अं ेजी के अ ययन के लए थान
रखा।
आय–समाज वारा सं था पत श ण सं थाएँ, गु कु ल और डी.ए.वी. कॉलेज व तु त:
वामी दयान द के स चे मारक ह। वामी दयान द ने आय समाज के उप– नयम म भी
ह द को आय समाज के यवहार क भाषा बताया, इसी लए भारत म और भारत से बाहर भी
िजन दे श म आय समाज क शाखाएँ ह वहाँ ह द म काम होता है।

7.6 दयान द सर वती के धा मक वचार


वामी दयान द का मु ख काय– े धा मक था। उ ह ने ह दू धम म धा मक
मा यताओं के नाम पर च लत ढ़य और अंध व वास पर बल आ मण कये, तथा वेद
को ह दू धम का मू ल ोत घो षत करके, वै दक मा यताओं के अनुसार ह दू धम क उदार
और ता कक या याएँ तु त क ।
दयान द ने वेद म तु त ऐके वरवाद को ह दू धम का मू ल आधार माना तथा ऐसी
वृि तय और व वास का वरोध कया जो वेद क मू ल भावनाओं के व थीं।
(1) धम क यि त–उ मुख या या : य य प दयान द धा मक वृि त के यि त थे,
क तु उनके धा मक ि टकोण म संक णता के लये थान नह ं था। दयान द ने धम
क या या के ाचीन भारतीय ि टकोण को अपनाया। उनके लये 'धम' पूजा और
अचना मा नह ं है। दयान द के अनुसार धम का अथ है, ई वर के त न ठा रखते
हु ये, उदार, मानवीय और शा वत मानवीय मू य को धारण करना। दयान द ने धम
को आचरण क ऐसी यव था के प म अ भ य त कया जो यि त को स य याय
के त अ थावान ् बनाती है तथा उसम अ याय और अस य का बल वरोध का
साहस पैदा करती है। दयान द के अनुसार वेद ने मनु य को आचरण के उन मू य
का स दे श दया है, िजनके त सम पत रहकर यि त धम न ठ यवहार कर है।
उनके अनुसार ''ई वर ने वेद म मनु य को जो कु छ करने क आ ा द है, वह 'धम'
और िजसे करने क ेरणा नह ं द है, वह 'अधम' कहलाता है िजसके आचरण करने
संसार म उ तम सु ख और परम ेय क ाि त होती है, उसी का नाम धम है। ''
सारतः दयान द ने जीवन के त मनु य के मया दत और ि टकोण को 'धम' क
सं ा द । उनके अनुसार यि त क अ तरा मा अथवा नमल के आदे श, यि त के
धम–स मत ि टकोण के सट क माग–दशक होते ह।

127
(2) एके वरवाद, तथा ई वर के अमूत व प म व वास तथा अवतारवाद का वरोध :
दयान द क ई वर म अ ु ण न ठा थी। व येक सांसा रक पदाथ और वषय के
मू ल म परमे वर क स ता को वीकार करते थे।
दयान द एके वरवाद के अनुयायी थे। उनके अनुसार ई वर के नाम भले ह अनेक ह ,
क तु ई वर अनेक नह ं हो सकते। उ ह ने घो षत कया क वेद ने को अ वतीय
अथात ् एक ह बताया है तथा दूसरा ई वर होने का नषेध कया है। अनुसार वह म
सव या त है और उसका कोई आकार नह ं है, वह अमूत है। श द म 'ई वर सदै व
अ वतीय है। उस परम ् म से भ न कोई नह ं है, उसका न ववाद है। वह शू य भी
नह ं है, क तु जो सि चदान द आ द ल ण से यु त एकभू त परमा मा है, वह सदै व
से प रपूण और सव प र या त होकर, पृ वी आ द सब लोक क रचना करके उ ह
अपनी साम य से धारण कर रहा है। वह अपने काय म कसी क सहायता नह ं लेता,
य क वह सवशि तस प न है।
ऐके वरवाद तथा ई वर के अमूत व प म सहज आ था के दयान द ने ह दू धम म
च लत बहु दे ववाद और अवतारवाद आ द का बल वरोध तथा इ ह वेद– व ,
अ मा णक व वकृ त वृि तयाँ माना। राम और कृ ण जैसे च र को, िज ह क ह दू
पौरा णक आ यान म व णु के अवतार के प म च त कया गया है, दयान द
इ ह ई वर का अवतार नह ,ं अ पतु युग – वतक महापु ष और सां कृ तक जन–नायक
के प म मा यता दे ते थे।
(3) मू त पूजा का वरोध : दयान द क आ था ई वर के अमू त व प म थी। वे मू त
पूजा के कृ तत: वरोधी थे। दयान द के अनुसार मू त पूजा वेद– है, तथा इसका कोई
ामा णक और ता कक आधार नह ं है। मू त पूजा क नरथकता का तपादन करते
हु ए उ ह ने कहा क सव यापी और सम त जड़–चेतन का सृजन करने वाले ई वर के
व प को एक पाषाण क मू त तक सी मत मान लेना ई वर के क सव यापकता को
नकारने के समान है। उ ह ने कहा ''परमे वर नराकार व है, अत: इसक मू त हो ह
नह ं सकती; य द मू त के दशन मा से परमे वर का हो, तो परमे वर के बनाये पृ वी ,
जल, अि न, वायु पहाड़ आ द पदाथ , िजनसे क मनु य भू मयाँ बनाता है, उ ह
दे खकर ह परमे वर का मरण कया जा सकता है। दयान द ने कहा क कसी
पाषाण, का ठ या म ी से बनी मू त म ई वर क क पना करना व तु त: ई वर क
स ता का अवमू यन करना है। उनके श द म ''जब परमे वर सव या त है तो कसी
एक व तु म परमे वर क भावना करना, तथा अ य न करना ऐसे है जैसे कसी
च वत राजा को सम रा य क स ता से पृथक करके एक छोट सी झोपडी का
वामी मान लया जाए”।
दयान द क मा यता थी क ई वर क आराधना मू त पूजा के आधार पर नह ं क जा
सकती। उनका मत था क भू म पूजा क अपे ा एका तापूवक, प व मन से,

128
सवशि तस प न परमा मा का एका त म यान करना, उस ई वर का यान रखते हु ए
अपने आचरण म प व ता का नवाह करना ह ई वर क सव े ठ अराधना है।
(4) अ य धम के संदभ म वचार : दयान द ने ईसाई, इ लाम, जैन व बौ धम क
मा यताओं क समी ा क , और इन धम क दुबलताओं पर आधात कया। अ य धम
क समी ा के त दयान द का ि टकोण पूवा ह या दुभावना से े रत नह ं था।
अपने थ 'स याथ काश' क भू मका म उ ह ने यह प ट श द म कहा क
व भ न धम क समी ा के पीछे उनका म त य, कसी मतावल बी को दुख पहु ँ चाना
या उस मत को त पहु ँ चाना नह ं है। उ ह ने दावा कया उनका 'स याथ काश'
वरोधी मत के त कसी भी दुभावना से े रत नह ं है। उनका मत था क य द
उनका ि टकोण प पातपूण होता तो वे ह दू धम क च लत मा यताओं का वरोध
करने क अपे ा उ ह ं का चार– सार करने लगते। उ ह ने जैन, बौ और चावाक
मत क अनेक वसंग तय को कट कया तथा यह मत तपा दत कया क इन
मत म वै दक मा यताओं का नराधार ह वरोध कया गया है। उस समय इ लाम
और ईसाई मत के चारक वारा ह दू धम के व क जा रह आलोचना और
हार का उ ह ने प ट यु तर दया। 'स याथ काश' म उ ह ने मु सलमान के धम
कथ 'कु रान’ तथा इसाईय के धम–– थ
ं 'बाइ बल' के आधार पर इन धम क मू ल
मा यताओं क अनेक असंग तय व दुबलताओं को आलो कत कया। ' म समाज' और
' ाथना समाज' के अनेक स ा त क भी दयान द ने बल आलोचना क । उ ह ने
' म समाज' व ' ाथना–समाज' के अनुया यय क मु यत: इस बात के लये
आलोचना क क वे भारतीय सं कृ त के गौरव से वमु ख ह तथा पि चमी स यता और
सं कृ त के त आकषण और शंसा का भाव रखते ह। दयान द ने आ ेप लगाया क
म समािजय और ाथना समािजय म दे श–भि त का भाव बहु त यून है। दयान द
ने इस बात पर आपि त क क ' म समाज' के वतक ने ाचीन सा ह य तथा
सं कृ त का अ ययन कये बना ह , उनके त उपे ा और न दा का ि टकोण
धारण कर लया तथा उनक तु लना म पि चमी स यता व सं कृ त क े ठता का
तपादन कर लया।
(5) धम सु धार के संदभ म संगठन, शु और चार: दयान द ने महसू स कया क वै दक
मा यताओं के अनुसार ह दू धम क पुन त ठा के लए ह दू धम म अपे त
सु धार , तथा इसाई और मु ि लम धम– चारक वारा ह दू धम के व कये जा रहे
आ मण के स म तरोध के लए संग ठत और सं थागत यास कये जाने क
आव यकता थी। धा मक सु धार के संकि पत यास के लए उ ह ने 'आय–समाज' क
थापना क । पूव म इ लाम या ईसाई धम हण कर चु के भारतीय से उ ह ने पुन :
ह दू धम म सि म लत हो जाने का आ वान कया। मु ि लम और ईसाई
धमावलि बय को ह दू धम म सि म लत करने के लए उ ह ने 'शु आ दोलन'
चलाया। उनके शु आ दोलन क पुराणपंथी ह दू पि डत , और ईसाई तथा मु ि लम

129
धमाचाय वारा गंभीर आलोचनाएं क गई। न संदेह 'शु आ दोलन' ईसाई और
मु ि लम धमाचाय के लए एक चु नौती थी।
दयान द के धा मक वचार क उपरो त ववेचना से प ट है उ ह ने पूवा ह से मु त
होकर सभी धम व धा मक मत क दुबलता पर हार कए, तथा भारतीयो से वै दक
मा यताओं पर आधा रत 'दोष–मु त' धा मक ि टकोण को अपनाने क अपे ा क ।
दयान द ने अ य धमावलि बय के त व वेष सा रत नह ं कया, अ पतु यह
भल भा त प ट कया क अ य धम क आलोचना का उनका उ े य केवल का संधान करना
है। दयान द ने वशेषत: ईसाई और मु ि लम मत के आ मण से ह दू क र ा के लए जो
ि टकोण अपनाया वह अहंकार और आ मह नता दोन दोष से मु त था। उ ह ने व वास के
साथ वै दक मा यताओं क े ठता स क और अ य धा मक मत म असंग तय को कट
कया।
बोध न–2
न: वामी दयान द सर वती के मू त पू जा पर वचार को बताइये ।
उ तर: ............................................................................................... ....
................................................................ ...................................

7.7 दयान द सर वती के राजनी तक वचार


य यप वामी दयान द ने न तो अपने युग क राजनी त म य प से भाग लया
था और न उ ह ने एक राजनी तक च तक के प म कसी व श ट स ा त का तपादन ह
कया, क तु वे अपने युग क राजनी तक सम याओं और वशेषकर क भारत राजनी तक
दासता के कु प रणाम के त जाग क थे। अत: उ ह ने धा मक व सामािजक वषयो पर वचार
करते हु ये व भ न राजनी तक वषय पर भी अपना ि टकोण कट कया। यह कारण है क
उ ह ने 'स याथ काश' तथा ‘ऋ वेदा दभा य भू मका' जैसे धा मक थ म एक–एक राजनी त
(राजधम) पर भी लखा है। यह उ लेखनीय है क दयान द के राजनी तक वचार म उपल ध
राजनी तक सू , वै दक राजत ीय एवं गणत ीय यव थाये तथा मनु मृ त आ द के अलावा
कौ ट य के वचार से भी भा वत थे :–
सं ेप म, वामी दयान द के मु ख राजनी तक वचार न न ल खत ह :–
(1) समानता का समथन : वामी दयान द ने यि त क वत ता के साथ ह उसक
समानता का भी समथन कया है। इस स ब ध म एक मु ख त य यह है क दयान द ने
ज म– आधा रत जा त– यव था का ती ख डन कया है, जो यि तय के बीच एवं अमानवीय
असमानताएँ उ प न करने वाल है। उ ह ने गुण –कम आधा रत वण– यव था का समथन कया
है, जो अ य यि तय पर कु छ यि तय के वशेषा धकार क यव था नह है। यह शु प
से सामािजक म– वभाजन का स ा त है, जो येक यि त को अपनी यो यतानुसार
यवसाय चु नने का समान अ धकार दे ता है। पर परा से असमानता पर आधा रत समाज के
संग म दयान द के समानता स ब धी वचार का अ य त मह व है। उ ह ने तथाक थत े ठ

130
वण के पु ष के समान ह ि य व शू को वेदा ययन के अ धकार का खु ला समथन कया।
उनका मत है क े ठ जीवन के लए आव यक सभी अ धकार म हलाओं व पु ष को समान
प से ा त होने चा हए, अथात ् इस वषय म लंग, ज म, जा त, धम या स पि त के आधार
पर ी व पु ष म भेदभाव नह ं कया जाना चा हए। उ ह ने अ तजातीय भोज एवं
अ तजातीय ववाह का समथन कया। इसके अलावा दयान द ने अपने वारा था पत
आयसमाज नामक सं था म भी सभी सद य को सभी भाँ त समान तर का माना है।
यि त क वत ता एवं समानता तथा उनके उ े य के बारे म दयान द के आदश
को उनके इस कथन के संदभ म समझा जा सकता है, '' येक को अपनी ह उ न त से
स तु ट न रहना चा हए, क तु सबक उ न त म अपनी उ न त समझनी चा हए।’’
(2) लोकत का समथन: दयान द के लोकत स ब धी वचार पर पि चमी राजनी तक
दशन का कोई भाव नह ं है। उनके वचार का मू ल ोत एवं आधार वै दक राजनी तक दशन
एवं ाचीन भारत क राजनी तक पर पराएँ है। अत: दयान द के राजनी तक च तन म
लोकत क मू ल वृि त तो मौजू द है, क तु उ ह ने वय क मता धकार, सामा य नवाचन,
दल य यव था अथवा मा बहु मत के आधार पर नणय आ द क णाल का उ लेख कह ं नह ं
कया है। धमवीर शा ी का मत है, ''वतमान म च लत जनत से मह ष ( वारा) तपा दत
त दूसरा ह है जो गुणव ता म इससे े ठ है। 'उ ह ने दयान द के जनत को ' व श ट
जनत ' कहना उ चत समझा है। व तु त: दयान द क लोकत स ब धी धारणा क मु ख
बात अ ल खत ह – (1) दयान द ने राजपद का समथन कया है, क तु 'वंशानुगत राजपद'
तथा 'सवशि तमान राजा' क धारणा को अ वीकार कया है। व तु त: उ ह ने 'राजत ' का
संयोग 'गणत ' से कया है, जो उनक ि ट से वेद एवं वै दक पर परा के अनु प है।
दयान द ने राजा को मू लत: सभा य कहा है, उनका मत है क सभा को अपने म से एक
सवा धक यो य यि त को अपना राजा अथात ् सभा य चु नना चा हए। (2) दयान द ने एक
यि त अथवा एक सं था अथवा केवल जाजन को स ता के योग का पूण एवं अि तम
अ धकार नह ं दया है। उ ह ने स ता के योग का ऐसा स ा त वीकार है जो अपनी कृ त
से मू लत: संवध
ै ा नक है। दयान द ने स ता के योग म राजा, सभा (राजसभा) तथा जा इन
तीन क ह पार प रक आधीनता एवं सहयोग को वीकार कया है। (3) दयान द ने जाजन
के इस अ धकार को वीकारा है क वे अधमयु त (अ ववेकपूण ) कानून के पालन के बारे म
असहयोग कर सकते ह। इस कार उ ह ने रा य क अनु चत व धय के त जाजन को
शाि तपूण अव ा का अ धकार दया है। व तु त: दयान द के इस वचार ने गाँधीजी से पूव ह
'स वनय अव ान आ दोलन' जैसी लोकताि क अवधारणा क मान सक पृ ठभू म तैयार क ।
(4) उ ह ने यि त क वत ता एवं समानता के अ धकार को वीकारा है और वभ न
समु दाय के यि तय के बीच पार प रक ेम, सहयोग एवं भाईचारे क भावना पर बल दया
है। पा चा य लोकत से अप र चत होने के बावजू द दयान द के वचार म ' वत ता,
समानता एवं ब दु व' क धारणा दखाई पड़ती है, जो आधु नक लोकत का मू ल आधार है।
(5) दयान द ने ामीण– शासन के प म स ता के वके करण क यव था को वीकारा है।
131
(6) दयान द ने जा हत को सा य और रा य को साधन माना है। व तु त: दयान द क
राजनी तक वचाराधारा म यि त क वत ता, समानता तथा जा हत के त व मौजू द ह,
िजनके आधार पर यह कहा जा सकता है क उ ह ने बड़ी मा ा म लोक–क याणकार रा य क
धारणा को वीकारा है। (8) यह उ लेखनीय है क जहाँ आधु नक लोकत का एक मु ख
आधार बहु सं या का स ा त है, वहाँ दयान द ने 'सबके हत’ को ह मह व दया है। उ ह ने
सव हतकार नयम तथा सव हतकार काय को ह अपनी राजनी तक यव था का ल य माना
है। दयान द के बाद महा मा गाँधी ने भी 'सबके हत' क धारणा को अपने च तन म
मह वपूण थान दया है और इस आधार पर रामरा य' तथा 'सव दय' के वचार का तपादन
कया है।
दयान द क लोकत म आ था इस त य से भी कट है क उनके वारा था पत
आयसमाज नामक सं था अपने संगठन तथा या क ि ट से पूणत: लोकताि क है।
(3) रा य के शासन–त का संगठन: दयान द ने रा य के शासन–त के संगठन के
संग म राजा, तीन कार क सभाओं तथा मि प रष का कया है। राजा का पद नवा चत
है तथा उसक स ता सभाओं तथा जामत के आधीन है, अथात ् वह कसी कार नरं कु श नह ं
है। दयान द ने राजा क वत ता एवं सव चता को वनाशकार बताया है। उ ह ने राजा को
सभाप त (सभा य ) कहा है।
दयान द ने शासन क अ ल खत तीन मु ख सं थाओं का कया है – राजसभा, धम
सभा तथा व या सभा। उ ह ने इन तीन सभाओं को जनता वारा सं थाएँ बताया है, क तु
इसके साथ ह उ ह ने इन सभाओं क सद यता के लए अ य त े ठ कार क यो यताएँ
बतायी ह; अथात ् उ ह ने सभी यि तय को इन सं थाओं का सद य का अ धकार नह ं दया
है। इसके साथ ह उ ह ने कसी स यासी को भी इनका सद य बनाये जाने का नषेध कया है।
दयान द वारा व णत राजसभा को यव था पका जैसा माना जा सकता है। राजसभा
के सद य को आ म–संयमी, स यवाद तथा वेद का ाता होना चा हए। दयान द के अनुसार
मा ऐसी राजसभा वारा बनाये गये कानून ह े ठ हो सकते ह और जानन वारा पालन के
यो य होते ह। दयान द का मत है क एक हजार अ ानी एवं वलासी पु ष क तु लना म एक
वेद तथा आ म–संयमी पु ष का नणय उ चत एवं अनुकरणीय होता है। सारांश यह है क
राजसभा क सद यता मा े ठ गुण वाले यि तय को ह ा त होनी चा हए। दयान द के
अनुसार राजसभा को धम सभा के अधीन उ तम च र एवं प व दय का भी होना चा हए,
अ पतु उ ह यागी, उ तम च र एवं प व दय का भी होना चा हए। धम सभा का मु य
उ े य जानन का आ याि मक मागदशन करना तथा उनके नै तक च र का उ थान करना है
और इस ि ट से यह पहले से मौजू द व भ न धा मक मत तथा संगठन म तालमेल था पत
करे गी। रा य क तृतीय मु ख सं था व या सभा है, िजसके सद य ऐसे व श ट व वान को
बनाया जा सकता है जो व भ न व याओं म पारं गत ह और उ तम च र वाले ह । व या
सभा का मु ख काय रा य म श ा चार एवं सार करना है और इस ि ट से वह व भ न
श ा सं थाओं का नयमन व नय ण करे गी। व या सभा, रा य म अ नवाय श ा के

132
स ा त को लागू करे गी, ता क सभी वग व समु दाय बालक एवं बा लकाओं को एक जैसे
वातावरण म एक समान श ा ा त हो सके।
दयान द ने रा य क एक मु ख सं था के प म मि प रष , भी पया त मह व
दया है। यह रा य क कायपा लका है। राजा को सात या आठ ऐसे मि य को नयु त करना
चा हए जो उसी रा य के मू ल नवासी ह , धमा मा एवं चतु र ह , अनुभवी ह तथा व उ चत
नणय लेने म समथ, कु ल न, वीर तथा साहसी ह । दयान द के अनुसार राजा को र ा, यु ,
सि ध तथा शाि त– यव था आ द जैसे सभी मह वपूण मामल म मि प रष से वच सवमश
करना चा हए। उसे मि य के बहु मत वाले नणय का आदर करना चा हए मि य को भी
राजा क इ छा के व कोई काय नह ं करना चा हए।
(4) यि त क वत ता का समथन: वामी दयान द ने समाज के सावयव स ा त तथा
वण– यव था का समथन कया है और उ ह ने यि त के अ धकार के प ट राजनी तक
स ा त का भी उ लेख नह ं कया है, तो भी यह स य है क उ ह ने यि त क वत ता को
अ य धक मह व दया है। उ ह ने यि त के यि त व तथा गौरव को स मान दया है। वे
शार रक, मान सक व आ याि मक े म यि त के यि त व के पूण वकास के हमायती ह।
आ याि मक े म वे यि त को पुरो हत वग क स ता से पूण वत ह और सामािजक एवं
राजनी तक े म वे यि त को उस सीमा तक पूण वत ता दे ने के प धर ह िजस सीमा
तक यह अ य के लए हा नकारक न बन जाए, अथात ् वे यि त क वत ता के तो समथक
ह, उसक व छ दता के नह ।ं उ ह ने यि त क वत ता का पूण समथन करते हु ए इस पर
सावज नक हत क मयादा को वीकारा है। दयान द का मत है, ''सब मनु य को सामािजक
सव हतकार नयम के पालन म परत रहना चा हए और येक हतकार नयम म सब
वत रह।“ इस कार उ ह ने सावज नक हत क र ा एवं वृ क ि ट से यि त क
वत ता पर समाज व रा य वारा लगाये गये ववेकपूण तब ध को उ चत माना है।
(5) नरं कु शत का वरोध और मया दत स ता के स ा त का समथन: वामी दयान द
ने कसी भी कार क नरं कु श एवं अमया दत स ता को वनाश का कारण माना है और उसका
वरोध कया है, फर चाहे ऐसी नरं कु श स ता राजा क हो, अथवा जन समूह क । दयान द के
श द म, ''एक को वत रा य का अ धकार नह ं दे ना चा हए, क तु राजा जो सभाप त है
उसके आधीन सभा, सभा के आधीन राजा, राजा और सभा, जा के आधीन और जा राजसभा
के आधीन रहे।'' इसी संग म पुन : दयान द का कथन है, ''जो जा से वत वाधीन
राजवग (राजा व उसके सहायक आ द) रह तो रा य म नवास करने वाल जा का नाश कया
कर। इस लए कसी एक को रा य म वाधीन नह ं करना चा हए जैसे संह ह ट–पु ट पशु को
मार कर खा लेते ह वैसे वत राजा जा का नाश करता है।''
उपरो त ववरण से यह प ट है क दयान द ने राजा, सभा अथवा जा इनम से
कसी भी एक क पूण स ता को अ वीकार करके नरं कु शत क सम त वृि त का ह वरोध
कया है। व तु त: आधु नक श द म यह कहा जा सकता है क उ ह ने मया दत स ता के
स ा त का समथन कया है और इसके साथ ह इस वचार पर बल दया है क स ता म

133
राजा, सभा तथा जा क उ चत भागीदार होनी चा हए और स ता का योग राजा, सभा तथा
जा क आपसी सहम त से कया जाना चा हए। स ता के योग से स ब धी इस सम त
ववरण म दयान द के लोकत स ब धी वचार भी न हत ह।
(6) कर– यव था स ब धी वचार : वामी दयान द ने कर– यव था के बारे म मू लत:
मनु मृ त का अनुकरण कया है। राजा व राजसभा को कर नी त ऐसी बनानी चा हए जो राजा,
राजपु ष तथा जाजन के सु ख म वृ करने वाल हो। राजा को जा से इस कार अ प
मा ा म थोड़ा–थोड़ा वा षक कर लेना चा हए िजस कार ज क, बछड़ा तथा भँवरा थोडी–थोड़ी
मा ा म अपने भो य पदाथ को हण करते ह। राजा को अ त लोभ के वशीभू त होकर अ धक
कर नह ं वसू लना चा हए, य क ऐसी कर–नी त जा के साथ–साथ राजा के सु ख के आधार को
न ट करता है और उनके पार प रक ेम का भी नाश करती है। राजा को यापार अथवा वण
व चाँद के श पी के लाभ का पचासवाँ भाग कर प म लेना चा हए। कसान से चावल आ द
अ न का छठवाँ, आठवाँ अथवा बारहवाँ भाग कर प म लेना चा हए। व तु त: राजा को कसान
आ द से कर प म इतनी मा ा म अ न अथवा धन लेना चा हए क उनके पास खाने के लए
अ न क कमी नह ं रहे और वे नधन भी नह ं रह। जब जा धना य, व थ तथा भोजन
आ द से स प न होती है तो राजा एवं रा य क अ य त उ न त होती है। अत: राजा को
चा हए क वह जा को अपनी स तान मानकर उसक र ा करे और उसे सु ख दे । इसी कार
जा को भी राजा एवं राजपु ष को अपने पता जैसा मानना चा हए। सारांश यह है क राजा
को ऐसी कर– यव था था पत करनी चा हए जो राजा एवं जा दोन के लए क याणकार हो,
ता क इन दोन के पर पर ेम म वृ हो और वे एक–दूसरे क उ न त म सहायक ह ।
(7) रा य के लोक–क याणकार काय का समथन : वामी दयान द ने रा य को एक
साधन और लोक–क याण अथात ् को सा य माना है। यजु वद के आधार पर रा य को एक
सावयव माना है, क तु इस सावयव के येक अंग का वकास होना चा हए, िजसम उ ह ने
राजवग के साथ ह जावग को भी सि म लत कया है दयान द के अनुसार राजा का यह
दा य व है क वह यह दे खे क सावयव रा य के एक अंग के प म जा का भौ तक एवं
नै तक वकास हो। राजा का मु ख कत य है क वह पता के समान जा का पालन करे ।
दयान द ने धम, अथ, काम एवं मो नामक चार पु षाथ क को वीकारा है, जो
राजा को जा के भौ तक, आ थक, नै तक एवं आ याि मक वकास के लए करती है। उनका
मत है क कोई राजा चाहे िजतना शि तशाल , धनवान एवं वैभवपूण हो, इन गुण का लाभ एवं
मह व तब ह होता है जब उसक जा का चहु ँ मु खी वकास हो। व तु त: इस ि थ त म ह
राजा एवं रा य क भी अ य धक उ न त होती है।
य य प दयान द के युग म यूरोप म रा य के अह त प
े क नी त थी और इसक
शंसा भी क जाती थी, क तु दयान द ने ाचीन भारतीय राजनी तक का अनुकरण करते हु ये
रा य क लोक–क याणकार नी त का ह समथन कया है।
(8) याय एवं द ड स ब धी वचार: दयान द ने रा य के मु ख काय एवं दा य व म
याय क गनती क है। याय के वारा ह शि तशाल अपराधी से नबल एवं नद ष यि त

134
क र ा संभव है। उ ह ने अपने याय स ब धी ववरण म मु यत: मनु मृ त को आधार
बनाया। राजा को या यक शि त का योग धमसभा क मदद से करना है। उनके अनुसार
या यक के वारा अधम से धम को अलग कया जाता है। सरल श द म, धमसभा या यक
या का इस कार करती है जो न प हो और धम ( व ध) के अनु प हो। या यक या
का संचालन याय के स ा त एवं नयम के अनुसार ह कया जाना चा हए। इसी कार
या यक नणय को सु नि चत एवं पर त माण पर आधा रत होना चा हए। दयान द ने
धमसभा को सव च यायालय माना है और इसके नणय को अि तम एवं अनु लंघनीय बताया
है।
याय के समान ह दयान द ने द ड के स ब ध म मु यत: मनु मृ त का अनुकरण
कया है। उ ह ने द ड को वा त वक राजा माना है। मनु का अनुकरण करते हुये ने द ड को
याय का चारक तथा सबका शासक बताया है। इस प म द ड चार वण एवं आ म तथा
वयं राजा के धम का र क होता है, अथात ् इ ह अपने–अपने धम का पालन को बा य करता
है। अत: व वान ् पु ष द ड को धम ( व ध का शासन) कहते ह, य क द ड के अभाव म
धम न ट हो सकता है। जहाँ द ड नह ं होता, वहाँ राजा, जा तथा इनसे स बि धत–
राजनी तक सं थाओं क मयादा भी न ट हो जाती है जो राजा द ड का भल भां त योग है
उसके रा य म धम, अथ एवं काम क अ भवृ होती है, अथात ् सामा य क याण म वशेष
वृ होती है।
यह उ लेखनीय है क दयान द ने वैयि तक जीवन म मा एवं अ हंसा का पया त
मह व वीकारा है, क तु सावज नक जीवन म दु ट के दमन के लए हंसा (दं ड) को, सवथा
उ चत बताया है। द ड सव प र है और इस लए बना कसी भेदभाव के सभी अ यायी द डनीय
होते ह। पुन : मनु का अनुकरण करते हु ये दयान द मानते ह क जो राजा द ड का दु पयोग
करता है, वह द ड वारा ह पूण वनाश को ा त होता है। वधम का उ लंघन करने वाले
सभी ी–पु ष द डनीय होते ह, चाहे वे पता, प नी, ब धु, आचाय, पु , म अथवा वयं
राजा ह य हो। यि त (अपराधी) के ान, दा य व एवं त ठा के अनुपात म उसके वारा
कये गये अपराध के लए द ड क मा ा भी उतनी ह अ धक होनी चा हए। चोर जैसे सामा य
अपराध म शू को चोर क गयी व तु से आठ गुणा अ धक द ड दया जाना चा हए क तु
उसी अपराध म वै य को सोलह गुणा, य को ब तीस गुणा, ा मण को चौसठ गुणा अथवा
सौ गुणा अथवा एक सौ अ ाईस गुणा दि डत कया जाना चा हए। इसी कार िजस अपराध के
लए एक आम आदमी को िजतना द ड दया जाए, उसी अपराध के लए राजभृ य को
आठगुणा, म ी को आठ सौ गुणा तथा राजा को एक हजार गुणा आ थक द ड दया जाना
चा हए।
(9) कु शल एवं न ठावान शासन यव था क थापना का समथन: दयान द के अनुसार
राजा का मु ख दा य व है क वह रा य क र ा एवं जा–पालन क ि ट से स पूण शासन–
यव था का संचालन करे । इस उ े य क पू त के लए आव यक है क शासन के येक
तर पर यो य एवं स म अ धका रय एवं भृ य क नयुि त क जाए और उनके अ धकार

135
े , काय एवं दा य व को भल –भाँ त नधा रत कया जाए। दयान द के अनुसार शाि त–
यव था, जा–पालन, याय, श ा, रा य क र ा आद शास नक काय के सफल एवं
भावशाल संचालन के लए पया त सं या म राजक य अ धका रय एवं भृ य क नयुि त क
जानी चा हए। राजक य अ धका रय को ानवान, प व , पु षाथ ( नराल य), साहसी तथा
राज हत के साथ ह जा हत के त न ठावान होना चा हए। उसे िजतेि य भी होना चा हए
और मु यत: काम एवं ोध के आवेग से उ प न होने वाले दोष से मु त होना चा हए।
दयान द ने शास नक यव था के कु शल संचालन के लए गु तचर क नयुि त का
उ लेख कया है, जो सभी जा तय से लये जाने चा हए। इन गु तचर क मदद से अ धका रय
एवं जापु ष के सम त दोष व गुण क जानकार ा त क जानी चा हए तथा जो दोषी ह
उनको द ड तथा जो गुणी ह उनको स मा नत कया जाना चा हए। दयान द ने जा–पालन क
ि ट से शास नक सु यव था क थापना पर वशेष बल दया है और इस बारे म मनु का
अनुकरण करते हु ये कहा है क िजस राजा के रा य म डाकू लोग रोती– वलाप करती जा के
धन तथा ाण का हरण करते ह, वह महादुख को ा त होता है तथा उसे अपने भृ य एवं
अमा या दयो स हत मृत ाय समझा जाना चा हए।
(10) अ तरा य स ब ध पर वचार: वामी दयान द ने अ तरा य स ब ध का आधार
भी वेद, ाचीन वै दक इ तहास तथा मनु मृ त आ द को माना है। उ ह ने वरा य (रा वाद)
के साथ 'च वत रा य' क क पना का संयोग कया है। यह उ लेखनीय है क यह च वत
रा य क धारणा आधु नक युग क संक ण, शोषणकार , ू र तथा यु –लोलु प सा ा यवाद क
धारणा से एकदम भ न है। च वत रा य ऐसे सम त वत रा य का संगठन है िजसका
नेत ृ व ऐसे सवा धक शि तशाल रा य वारा कया जाता है िजसका राजा (सभाप त) सवा धक
गुणवान भी हो। व तु त: च वत रा य कसी एक राजा का रा य नह ं है, अ पतु यह सम त
रा य का एक महासंघ जैसा है।
च वत रा य क धारणा का सै ाि तक आधार सावभौम मानववाद है िजसे दयान द
ने 'कृ व तो व वमायम’् के वचार के प म कट कया है िजसका सरल अथ है ' व व का
े ठ यि तय वाला समाज बनाया जाना चा हए।' व तु त: यह वचार स पूण मानव जा त के
लए ऐसी जीवन– ि ट (धम) को अपनाने का समथन करता है जो सावभौ मक नै तक स ा त
पर आधा रत है और िजसे स पूण मानव जा त स य भी मानती है। इस कार दयान द ने ऐसी
अ तरा य वचारधारा पर बल दया है जो अपनी मू ल कृ त से मानवतावाद एवं उदारवाद है
और िजसका अ त व व–ब धु व एवं 'वसु धैव कु टु बकम'् क वै दक पर परा म होता है।
उपरो त ववरण से प ट है क दयान द ने स पूण व व–राजनी त एवं यव था के
संग म नै तक एवं आदशवाद ि टकोण अपनाया है, क तु इसके साथ ह उ ह ने अ तरा य
राजनी त के यथाथवाद एवं शि तवाद ि टकोण का भी समथन कया है। उनके अनुसार
येक रा य को अपनी वत ता, अि मता एवं अख डता, अथात ् ' वरा य' क र ा के लए
सम त यथाथ एवं सै य उपाय अपनाने का अ धकार है। उ ह ने मु यत: मनु मृ त का
अनुकरण करते हु ये अ तरा य स ब ध के संचालन के लए दूत – यव था (राजदूत से

136
स बि धत सं था) को वीकारा है और अ य रा य के गु त उ े य , ग त व धय एवं उनक
शि त संरचना (रा शि त) क जानकार के लए गु तचर– यव था का समथन कया है।
अ तरा य स ब ध के संचालन का मू ल उ े य अपनी जा एवं अपने रा के हत क र ा
एवं वृ है। अत: राजा को अपनी नी त का नमाण इस कार से करना चा हए जो उ त
उ े य क ाि त क ि ट से तक संगत एवं यावहा रक हो। उसे वदे श नी त को लागू करने
के लए ष गुण (सं ध, व ह, यान, आसन, सं य एवं वैधी भाव) तथा नी त के चार उपाय
(साम, दाम, द ड एवं भेद) का कुशलता के साथ योग करना चा हए।
दयान द ने यथाथवाद एवं यावहा रक ि टकोण अपनाते हु ये अतरा य राजनी त के
े म यु के औ च य का समथन कया है। क तु उ ह ने मु यत: ऐसे यु का ह समथन
कया है जो आ मर ा के लए लड़ा जाए और अनु चत व तारवाद उ े य से यु क नी त को
अपनाने का नषेध कया है। इसके साथ ह उ ह ने यु के दौरान यु आचार–सं हता को
अपनाने का आ ह कया है, जो मूलत: सावभौम एवं मानवीय मू य पर आधा रत है।
(11) शासन का वके करण तथा ाम– शासन: वामी दयान द ने रा य के शासन क
आधारभू त इकाई ाम को वीकारा है। उ ह ने के य शासन एवं ाम के बीच सावयवी एवं
अभ न शास नक स ब ध का समथन कया है। व तु त: दयान द ने का अनुकरण करते हु ये
ाम– शासन के प म शासन के वके करण क योजना को कया है। स पूण ामीण
शासन के बारे म उनके मु ख वचार अ ल खत ह :–
(अ) येक ाम का एक धान (मु खया) नामक अ धकार होगा, ऐसे दस ाम
के ऊपर दूसरा अ धकार , ऐसे बीस ाम के ऊपर तीसरा अ धकार , ऐसे एक सौ ाम के ऊपर
चौथा अ धकार , ऐसे एक हजार ाम के ऊपर पाँचवाँ अ धकार , ऐसे दस हजार ाम के ऊपर
छठवाँ अ धकार और ऐसे एक लाख ाम के ऊपर सातवाँ अ धकार होगा।।
(ब) दयान द के अनुसार ामीण शासन क सम त इकाइयाँ एक खृं ला म बँधी
हु ई ह। इस शासन क न न इकाई का अ धकार अपने से उ च इकाई के अ धकार को
सम त शास नक सू चनाएँ तवेदन के प म भेजेगा और आव यक गु त सू चनाएँ े षत
करे गा। उ च अ धकार का यह दा य व है क वह अपने से न न शास नक इकाई के काय
क समी ा करे तथा उसका नय ण करे ।
(स) ामीण शासन का सव च अ धकार राजसभा का सद य होगा। वह राजसभा
तथा राजा को स पूण ामीण शासन क व तु–ि थ त क जानकार दे गा।
(12) भु स ता एवं व ध स ब धी वचार : वामी दयान द ने वंशानुगत राजत के थान
पर नवा चत राजत का समथन कया है और राजा को नवा चत सभाप त माना है। दयान द
क राजत स ब धी धारणा गणत के तु य है और इस लए उ ह ने राजा को न तो
भु स ता का ोत माना है और न उसम भु स ता का अि तम नवास माना है। दयान द के
अनुसार राजा वे छाचार अथवा अमया दत प म शासन करने का अ धकार नह ं है, अ पतु
उसक स ता पर अ ल खत तीन कार के नय ण दखाई पड़ते ह – (1) वेद क आ ा; (2)
व यासभा राजसभा तथा धमसभा नामक तीन सं थाएँ; तथा (3) जामत। राजा क स ता पर

137
नय ण क ि ट से सव च थान वेद क आ ा का है। वेद म ई वर य व ध न हत है जो
सव च एवं अि तम है। कार ई वर वयं सावभौम भु है और न केवल राजा, अ पतु जानन
भी ई वर के सावभौम के आधीन ह। यवहार म दयान द ने ई वर य व ध एवं ई वर के
सावभौम भु व को 'धम कहा है। सं ेप म, दयान द क राजनी तक यव था म धम ह भु है
और राजा एवं जानन दोन ह उसके आधीन है। राजक य स ता उसी सीमा तक व धक,
औ च यपूण एवं अनुकरणीय ह िजस सीमा तक यह धम के अनु प है। य द राजक य व ध एवं
आदे श धम के अनु प नह ं ह तो जानन उनके पालन के लए बा य नह ं ह। वा तव म राजा
एवं जानन दोन का ह यह मु ख क त य है क वे एक–दूसरे को धम क भु स ता के
आधीन रखने का य न कर। दयान द ने इस अथ म ह व ध के शासन एवं वध क
सव चता का समथन कया है।
उपरो त ववरण से यह प ट है क दयान द मा एक धा मक व सामािजक सु धारक
नह ं ह, अ पतु उ ह ने अपने स पूण च तन म राजनी तक प को भी पया त थान दया है।
इस लए वेले टाइन शरोल ने इस स यासी के च तन का मू यांकन करते हु ये यह मत कट
कया है क अपने प रणाम भाव क ि ट से दयान द क श ाओं का वाह ह दू धम को
सु धारने क तु लना म राजनी तक अ धक था। चमुप त का कथन है, '' न:स दे ह वामी दयान द
मानवतावाद स त थे, क तु इसके साथ ह वे दे शभ त एवं राजनी त भी थे।''
वामी दयान द के राजनी तक च तन का काय े पया त यापक है। उ ह ने यि त
क वत ता व समानता, नवा चत एवं मया दत राजत , लोकत , भुस ता, व ध, याय,
द ड, शासन तं , शास नक व े करण अ तरा य स ब ध आ द पर अपने वचार कट
कये ह। यह स य है क दयान द के राजनी तक वचार ाचीन भारतीय राजनी तक पर परा
एवं च तन से अ य धक भा वत ह और राजनी तक दशन के े म उ ह ने कसी नये
राजनी तक स ा त को भी तु त नह ं कया है। क तु दयान द के राजनी तक च तन का
मह व इस त य म न हत है क उ ह ने पर परागत भारतीय राजनी तक च तन क मौ लक
एवं उपयोगी या या क है। उदाहरण के लए उ ह ने राजत एवं शासन क सं थाओं के
लोकत ीकरण का समथन कया है, मया दत राजस ता के स ा त का तपादन कया है तथा
जानन को अनु चत राज ाओं एवं व धय के उ लंघन का अ धकार दया है। दयान द क
वशेषता यह है क पा चा य राजनी तक च तन से अन भ होने के बावजू द उ ह ने ाचीन
राजनी तक च तन का आधु नक संग म नवीकरण कया है। उ ह ने समकाल न भारत के
संग म इस राजनी तक प रक पना को कट कया है क एक आदश राजनी तक यव था
कैसी होनी चा हए। उनके च तन क एक मु ख वशेषता यह भी है क भले ह उनके
राजनी तक च तन का मू ल ोत धम है, क तु अपने ता कक न कष क ि ट से यह मू लत:
धम– नरपे है। व तु त: ाचीन भारतीय राजनी तक च तन के नवीकरण क इस या म
उ ह ने अनेक ऐसे त व को वीकारा है जो अपनी कृ त से आधु नक एवं ग तशील ह।
बोध न– 3
न: वामी दयान द सर वती के लोकत वषयक वचार को समझईये ।
उ तर: .......................................................................... .........................

138
........................................................................... ........................

7.8 दयान द सर वती का रा वाद


एक रा नमाता के प म वामी दयान द ह गणना उन थोड़े से रा य नेताओं म
क जाती है, जो अ णी, पथ दशक और थम रहे ह। वे स चे अथ म एक धमयु क ता थे;
वे ह दू धम के मुि तदाता, समाज के पुन नमाता और वदे शी बल समथक थे। भारतीय
रा य जीवन का कोई ऐसा े नह ,ं िजसम उ ह ने पहल न क हो और अपने वचार और
काय क छाप न छोड़ी हो। भारत म शु कया गया येक आ दोलन उनक ेरणा का ऋणी
है। भारतीय को एहसास कराया क वे एक शानदार एवं े ठ अतीत एवं पर परा के वा रस ह,
वे अपने म एक महान ् रा रखते ह, उ ह अपने धम का प र याग नह ं करना चा हए। वे पहले
थे, िज ह ने इसाई चारक और इ लाम के आ मण का तवाद करके भारतीय रा वाद
वदे शी मोड़ दया। उ ह ने ा मण के पाख ड, उनक स ता और एका धकार को चु नौती द ।
उ ह ने पहल बार ‘ वरा य,' ' वदे शी,' और 'ब ह कार' जैसे श द का योग कया, जो 1996
कलक ता कां ेस के बाद भारतीय रा य आ दोलन के आधार बन गये। वे एक अथशा ी थे,
फर भी उ ह ने एहसास कर लया था क अं ेज क भारत वरोधी नी तयाँ भारत क द र ता
के लए उ तरदायी थीं और कु ट र उ योग का पुन ार ह इसका एकमा नदान था।
एक रा नमाता के प म दयान द सर वती का योगदान मु यत: न न ल खत है:–
(1) सु रा य और वरा य के भेद को प ट करना: वामी पहले रा वाद थे, िज ह ने
सु रा य और वरा य के भेद को प ट कया। उनका कहना था, सु रा य एक अ छे शासन को
कट करता है, यह एक ऐसे शासन को कट करता है, िजसम जा सु खी हो और उसे शाि त
ा त हो, पर तु यह वयं के वत शासन को कट नह ं करता, जब क ' वरा य' वयं के
वत शासन को कट करता है। दयान द का कहना था क 'सु रा य' कभी भी ' वरा य' का
थान नह ं ले सकता, वह उसक बराबर भी नह ं कर सकता। उ ह ने सं कृ त, श ा और भाषा
म पले उ च वग के भारतीय के इस दावे का ख डन कया क टश संभवत: सव े ठ शासन
था। दयान द का कहना था क भारतीय वयं अपने आपको शा सत करने म स म और
सु यो य ह, वे यूरो पय क तु लना म एक शासन का संचालन अ छे ढं ग से सकते ह। दयान द
कहते थे क वरा य ( वत ता) ाि त के बना सामािजक और आ थक पुन नमाण के काय
को सह ढं ग से लागू नह ं कया जा सकता। दयान द का यह कथन तलक के आ दोलन का
आधार बन गया।
(2) आ म स मान एवं आ म व वास क भावनाएँ जागृत करना : दयान द पहले भारतीय
थे, िज ह ने भारतीय क सु त आ माओं और नराश मि त क म समय आ मस मान और
आ म व वास क भावनाएँ पैदा क ,ं जब चार ओर अ धकार ह अ धकार छाया हु आ था दे श
क राजनी तक स ता पर वदे शी (अं ेज) व यमान थे; धा मक और स ता पर पाख डी पि डत
और मौल वय का सा ा य था; इसाई मशन रयाँ धम प रवतन के म जु ट हु ई थीं; कु ट र
उ योग के न ट होने से बेरोजगार मु ँह फाड़े खड़ी थी आ द। ऐसे समय म दयान द ने पुकार

139
क क ''अपने को पहचानो, अपने दे श को जानो और समझो, वेद क ओर और उ ह अपना
पथ– दशक मानो, अपनी आ माओं का समपण न करो, आपपी मु ि त अ धानुकरण म नह ं
वयं के अि त व को पहचानने म है।“ इस कार का एक ह ल य था 'दे श क स ता को
दे शवा सय के हाथ म थमाना।'
(3) रा य एकता का समथन: दयान द एक प के और स चे थे। वे रा य एकता के
समथक थे। वे 'फूट' के वरोधी थे। वे फूट को एक 'भयानक' रोग कहते थे। वे इसे 'दुय धन का
दु ट माग' कहते थे, जो दे शवा सय क सभी खु शय को छ न लेता है और उ ह दुग त एवं
दुःख के ग ढे म धकेल दे ता है।
(4) लोकताि क रा य का समथन: वामी दयान द एक लोकताि क रा य के समथक थे,
नरं कु श या नरपे रा य नह ।ं उ ह ने एक नरं कु श शासक क तु लना जंगल के उस शेर से क
है, जो जंगल के अ य छोटे और व थ जानवर को नगल जाता है। दयान द का कहना है क
एक नरं कुश या नरपे शासक कसी अ य शि त या स ता को होने का अवसर ह नह ं दे ता।
वह अपनी जा को न ट कर दे ता है। इसी लए दयान द कहते क शासक या शि त या स ता
कभी भी नरं कु श या नरपे नह ं होनी चा हए, उस पर अंकु श या नय ण होना चा हए।
दयान द भारत म टश शासन को एक नरं कु श व नरपे शासन कहते थे। उनका
कहना था क यह ''स ाट कानून का नमाता है, कानून स ाट का नह ।ं “ कानून अं ेज को
सु र ा दान करते ह, भारतीय को नह ।ं वे सा ा य व तार म सहायक ह, याय म नह ।ं
टश शासन क इस या या के मा यम से दयान द दे शवा सय को स दे श पहु ंचा रहे थे क
टश कानून कभी भी परत दे श को वत ता दान नह ं कर सकते।
दयान द कानून के शासन को, अर तू क भाँ त, े ठ मानते थे। इसके मह व को
दयान द ने इन श द म अ भ य त कया है – ''कानून वा त वक धान है, वह वा त वक
शासक है, वह याय का शासक है, वह स ाट को शा सत करता है, वह जा क सु र ा करता
है, जब यि त नींद म होते ह, कानून जागता है। इस लए बु मान लोग कानून को ह धम
कहते ह। जहाँ कानून को सोच– वचार कर लागू कया जाता है, वहाँ लोग को चहु ँ मख
ु ी सु ख
ा त होता है; जहाँ उसे बना सोच– वचार कर लागू कया जाता है, वहाँ वह सबको न ट कर
दे ता है।“ दयान द ने शासक को चेतावनी द है क य द उ ह ने कानून का योग सह ढं ग से
नह ं कया, तो वे अपना अि त व खो सकते ह।
(5) वरा य का म दान करना: वामी दयान द पहले रा वाद थे, िज ह ने भारतीय
को वरा य का म दान कया। उ ह ने संह गजना क क “भारत भारतीय के लए है;
यहाँ यूरो पय को कोई थान नह ;ं उ ह दे श से नकालना भारतीय का धा मक क त य है।'' वे
उन सब दुगु ण से भी छुटकारा पाना चाहते थे, जो यूरो पय के आने से यहाँ पैदा हो गए थे।
वशेषकर वे भारतीय म आयी मान सक और शार रक दासता से छुटकारा पाना चाहते थे।
दयान द ने केवल इ ह ं दोष से छुटकारा पाने का आहान नह ं कया, बि क उ ह ने द र ता
और नर रता के कारण उ प न अन भ ता और ा मणवाद के कारण उ प न जा त था मू त

140
पूजा, ढ़वा दता और अ ध व वास से भी छुटकारा पाने का आ हान कया। दयान द कहते थे
क ''हमारे कारण ह आय के लए भारत म ह वत ता नह ,ं यहाँ उनक अपनी कोई
वत और नभय सरकार नह ।ं “
(6) वदे शी और ब ह कार आ दोलन के णेता : वामी दयान द ''भारतीय भारत” के
तीक थे। उ ह ने ‘ वरा य,' और 'ब ह कार' श द का उस समय योग कया, िजस समय
भारत म राजनी तक चेतना का नामो नशान नह ं था। यह स य है क वदे शी और ब ह कार
आ दोलन ने 1905 के बंग–भंग के उपरा त उ रा यता का प धारण कर लया था। पर तु
दयान द ह पहले रा य नेता थे, िज ह ने कहा था क ''दे श क सामा य आव यकताएँ दे श के
अ दर ह पूर होनी चा हए।“ उ ह म समाज के त शकायत ह यह थी क ''दे शी होने के
थान पर वदे शी अ धक थे।“ दयान द ने इस बात को जोर दे कर कहा था क टश शासक
भारत के उ योग– ध ध को कोई संर ण दान नह ं करगे और इसका एकमा उपाय वदे शी
आ दोलन को शु करना है। दयान द के अनुयायी एवं आय समाजी लाला लाजपत राय ने
वदे शी व तु ओं एवं वदे शी यायालय के ब ह कार क नी त का आहान कया था।
(7) रा य भाषा एवं रा य श ा पर बल : वामी दयान द पहले रा य नेता थे,
िजनक रा य पुन नमाण और पुनज वन क योजना म ह द को रा भाषा का थान दया
गया था और सबके लए उ चत श ा को ''रा य क सु र ा और नर तरता' के लए
आव यकता माना गया था।
दयान द क ा तीय भाषा गुजराती थी और वे सं कृ त को सारे दे श क साँझी भाषा
मानते थे, य क, उसी से बहु त–सी नवीन भाषाओं क उ पि त हु ई है। इस पर भी दयान द ने
ह द को ह रा भाषा के प म ति ठत कया, य क यह एक भाषा है, जो भारत के
अ धकांश े म सवसाधारण क भाषा है। इसी के मा यम से दयान द लोग के नकट और
उ ह ने ह द म चार करना शु कर दया। उ ह ने वेद पर ट काएँ ह द म लखीं। दयान द
क मु ख रचना स याथ काश को ह द म रचा गया। दयान द अं ेजी भाषा क उपे ा नह ं
चाहते थे, पर तु वे व या थय पर वदे शी भाषा के बोझ को लादना नह ं चाहते थे। वे कहते थे
क कह ं ऐसा न हो क भारतीय को बेकन और मल का तो ान हो और क पल व पातजल
का ान ह न हो। रा भाषा ह द के त इस लड़ाकू ि टकोण ने भारतीय रा वाद को
रै डकल वषय दान कया।
वामी दयान द ने अपनी रचना स याथ काश के छठे अ याय म रा य के क त य
का वणन करते हु ए सबके लए श ा क यव था पर बल दया है। उ ह ने श ा यव था को
रा य का क त य माना है। िजस कार लेटो ने अपनी रचना रपि लक म उ चत श ा को
रा य का ''सव े ठ अ भर क और सव े ठ प रपोषक' क सं ा द है, उसी तरह दयान द क
“सबके लए श ा” योजना क वशेषता यह है क जहाँ लेटो ने केवल शासक वग के श ा
क यव था क है, वहाँ दयान द ने ा मण, य, वै य और शू सभी क श ा पर बल
दया है। सभी सु श त और अनुशा सत होने चा हए।

141
उपयु त वणन से प ट है क वामी दयान द एक महान ् रा नमाता थे। जैसा क
धनप त पा डे ने कहा है, ''दयान द सर वती ने भारतीय रा वाद क वषय व तु पूण , उसके
े को व तृत , उसके उपागम को भारतीय, उसके वर को लड़ाकू और उसके आदश को
उ तम बनाया।“

7.9 दयान द सर वती का योगदान


वामी दयान द सर वती आधु नक भारत म ाचीन वै दक ऋ ष पर परा के जीव त
उदाहरण थे। दयान द के च तन क े ठता का राज उनक स य न ठा म और उनके कम क
महानता का रह य अ याय के व संघष करने क उनक नभ कता म है। अपने इन गुण
के कारण दयान द का च तन केवल भारत भू म तक सी मत नह ं रह सका, िजसे वे अगाध
यार करते थे, अ पतु उनके च तन म ऐसे त व वत: ह सि म लत हो गये जो स पूण
मानव समाज के क याण से स बि धत थे।
दयान द के योगदान का सं त उ लेख न न ल खत प म कया जा सकता है –
(1) धम क बु संगत या या एवं धम सु धार: 19वीं सद म ह दू धम म मु यत: अ ध–
ा, चम कार एवं पारलौ कक क पनाओं क धानता थी। अ ान एवं अ व या क नींव पर
खड़ी धम क यह धारणा इ लाम एवं इसाई मत का मु काबला करने म तो असमथ थी ह ,
इसने धा मक े म ह दुओं के पतन को भी ज म दया। दयान द ने धम को स य का
पयायवाची माना और धम एवं व ान को एक–दूसरे का अनुपरू क बताया। उ ह ने धम क
सावभौम, उदार एवं बु संगत या या क । दयान द ने ेतवाद वारा ई वर के साथ ह जीव
(आ मा) एवं कृ त क स यता का समथन कया और 'जगत म या' क नराशाजनक,
अकम यतावाद एवं लौ ककवाद वरोधी मा यता का वरोध कया। उ ह ने ह दू धम क
अबौ क एवं हा नकारक पर पराओं का वरोध कया और बौ क वत ता का समथन कया।
के.पी. जायसवाल के अनुसार, ''उ ह ने ह दू आ मा को ढ़वाद तथा अ ध व वास के ब धन
से उसी कार मुि त दलायी िजस कार यूरोप क आ मा को लू थर ने दलायी थी।''
(2) वरा य के थम स दे श–वाहक: वामी दयान द भारत क दासता से अ य त दुःखी थे
और वे भारत को वत दे खना चाहते थे। उ ह ने अनुभव क भारत क राजनी तक दासता क
पृ ठभू म भारत के धा मक व सामािजक पतन ने तैयार क थी। अत: दयान द ने धा मक व
सामािजक सु धार के मा यम से रा वाद के उ थान के लए काय कया। उ ह ने भारत म
धा मक व आ याि मक रा वाद क नींव रखी, सामािजक उ थान के मा यम से रा य उ थान
के य न कये और भारतीय को उनके ऐ तहा सक गौरव से प र चत कराके उनम रा य
वा भमान उ प न कया। दयान द ने टश शासन वारा था पत तथाक थत 'सु राज'
(सु शासन) के दोष को बताते हु ये भारतीय के लए ' वराज' का ल य नधा रत कया। दयान द
ने भारतीय के लए वराज का समथन उस समय कया जब नराशा व कु ठा म डू बा सामा य
भारतीय इसक क पना भी करने म असमथ था; और इसी कार टश शासन क सफलता,
भौ तक उपलि ध, भाव एवं शि त से चकाच ध एवं भयभीत श त व कु ल न भारतीय वराज

142
क चचा से भी कतराते थे। इसी कारण से तलक ने आधु नक भारत के संग म दयान द को
वराज का थम स दे श–वाहक कहा है। दयान द ने रा य उ थान एवं वराज क ाि त के
एक साधन के प म जीवन के येक े म वदे शी क धारणा पर बल दया, िजसम वदे शी
के ब ह कार का भाव वत: ह न हत था। रो यां रोलां के अनुसार , ''दयान द ने ऐसी कोई
य कामना क थी, अथवा नह ,ं क तु उनके वारा था पत आय समाज ने सन ् 1905 के
बंगाल के व ोह के माग को श त कया था। वह रा य पुन : नमाण तथा संगठन के
अ य त बल पैग बर म से एक थे।“
दयान द के रा वाद वचार ने भारतीय को 'मान सक दासता' के कु सं कार से मु ि त
दलायी और राजनी तक े म अ याय एवं दासता के वरोध के लए भारतीय म नभ कता
एवं चा र क ढ़ता के गुण का वकास कया। भारतीय रा वाद के उ थान म दयान द के
योगदान का मू यांकन इस त य के आधार पर कया जा सकता है क अनेक ाि तकार उनके
स दे श से भा वत थे और रानाडे, गोखले, तलक, लाजपतराय, महा मा गाँधी आ द अनेक
रा य नेताओं ने व भ न प म उनके वचार का अनुकरण कया था। वा तव म भारत म
रा य चेतना के ज म, सार एवं उ थान म दयान द का योगदान अ ग य है।
(3) ाचीन भारतीय राजशा का पुनरो थान : भारत म टश राज क थापना के साथ
िजस श त भारतीय म यवग का उदय हु आ, वह पा चा य राजनी तक वचाराधारा से
अ य धक भा वत था। यह वग लॉक, बक, सो, मा टे यू आ द के वचार को भारतीय के
लए अनुकरणीय मानता था, क तु मनु, कौ ट य, शु भी म, यास आ द ाचीन भारतीय
राजशाि य से ाय: अप र चत था, अथवा इनम उनक कोई च नह ं थी। इसके वपर त
वामी दयान द पा चा य राजनी तक वचार एवं स ा त से पूणत : अप र चत थे और ाचीन
भारत क महान ् राजनी तक उपलि धय के शंसक थे। वराज व वदे शी के समथक के प म
उनक एकमा च ाचीन भारतीय राजशा म थी। इस े म वामी दयान द क वशेषता
यह है क उ ह ने ाचीन भारतीय राजशा का मा अनुकरण ह नह ं कया, अ पतु उ ह ने
सामािजक प रि थ तय एवं आव यकताओं के अनुसार उसक उपयोगी या या भी क । उ ह ने
ाचीन भारतीय राजशा ै ा नक त व का वकास कया, दूसरे श द म इसका
म न हत संवध
आधु नक करण कया। दयान द ने ाचीन भारतीय राजशा क मौ लक या या करते हु ये
यि त क वत ता व समानता, मया दत स ता तथा नवा चत राजत का समथन कया।
इसके अ त र त उ ह ने शासन के संगठन, शास नक वके करण, भु स ता, व ध, याय,
द ड तथा अ तरा य स ब ध पर भी युगानु प वचार कट कये। उ ह ने ाचीन भारतीय
राजशा के आधार पर आधु नक भारत के लए आदश राजनी तक यव था क क पना को
तु त कया। यह उ लेखनीय है क दयान द के उपरो त य न के फल व प श त
भारतीय ाचीन भारतीय राजशा क े ठता एवं उपयो गता से प र चत हु ये और इसके
अ ययन म शोध क परमपरा वक सत हु ई। पुन : इससे भारतीय म वराज व वदे शी क
भावना भी वक सत हु ई।

143
(4) वेद क पुन : त ठा: स दय से ह दू धम के व भ न मत एवं स दाय क अगाध
ा का के वेद रहे ह, क तु यवहार म इन मत एवं स दाय ने वेद के पठन–पाठन क
पर परा क उपे ा क , अथवा उनक संक ण व अनुदारवाद या याओं को अपनाया। दयान द
को इस बात का ेय जाता है क उ ह ने हजार साल बाद ह दू समाज के आकषण का के
न केवल वेद को बनाया, अ पतु उ ह ने इनक सावभौम धम के अनुसार या या क और इनके
आधार पर भारत म धा मक एवं सामािजक सुधार का दौर शु कया और वराज क चेतना
भी उ प न क । व तु त: इस ि ट से दयान द वारा वेद क पुन : त ठा भारतीय इ तहास क
एक ाि तकार घटना मानी जा सकती है, िजसने मृत ाय: ह दू समाज म पुन : जीवन का
संचार कया।
(5) सामािजक े म योगदान: अनेकता के जंगल म भटकते, बा य दबाव से पी ड़त तथा
नर तर वघटन क ओर बढ़ते ह दू–समाज के पुन नमाण एवं पुनरो थान के लए दयान द ने
अथक य न कये। उ ह ने नै तक मू य वाल आदश समाज– यव था क थापना क वै दक
समाज–दशन को तु त कया और ाचीन भारतीय इ तहास से उदाहरण तु त कये। उ ह ने
यि त को सामािजक कु र तय एवं कु थाओं का दास नह ं माना, अ पतु यि त व समाज क
पार प रक अनुपरू कता को स कया। दयान द ने यि त को वैयि तक हतकार काय म
वत , क तु उसे सामािजक सव हतकार नयम के पालन म परत बताकर वैयि तक
नै तकता क े ठता था पत क । इस कार उ ह ने समाज–संगठन का एक आदश सू तु त
कया। उ ह ने वैयि तक एवं सामािजक जीवन म चार पु षाथ क स के लए आ म–
यव था का आदश तु त कया। इसी कार जा त– यव था को धा मक व सामािजक अ याय
बताते हु ये इसके थान पर, सामािजक म– वभाजन के स ा त के प म, गुण –कम (यो यता)
पर आधा रत वण– यव था का समथन कया। दयान द ने अ य अनेक सामािजक कु र तय का
डटकर वरोध कया, जैसे – बाल ववाह क था, अ पृ यता क था, शू व ी क श ा के
वरोध क पर परा, वदे श गमन का नषेध आ द–आ द। उ ह ने शू व ी के स मान तथा
उ थान को समाज–उ थान क अ नवाय शत बताया। दयान द ने समाज सुधार के माग म आने
वाल येक चु नौती का मु काबला कया और सु धार के प म जन–जागरण के लए अपार क ट
सहे । नेताजी सुभाष च बोस के अनुसार , ''मह ष दयान द सर वती को म एक धा मक और
सामािजक सु धारक तथा कमयोगी मानता हू ँ।“ यह उ लेखनीय है क सामािजक सु धार के े
म दयान द के वचार पि चम से भा वत नह ं है, उ ह ने वै दक पृ ठभू म म सामािजक सु धार
का समथन कया है। इसका वाभा वक प रणाम यह नकला क उनके सामािजक सु धार क
योजना ने श त भारतीय म वा भमान एवं सां कृ तक े ठता का भाव उ प न कया।

7.10 सारांश
य य प आधु नक भारत के संग म दयान द के उपरो त योगदान क भू र –भू र शंसा
क जाती है, क तु कु छ व वान ने दयान द क वचारधारा को मू लत: त यावाद बताया
है। इस कार के व वान मु यत: दो कार ह – थम, समाजवाद एवं मा सवाद व वान ् जो

144
धम एवं रा वाद को साम तवाद एवं पूँजीवाद का औजार एवं समथक मानते ह, तथा वतीय
ऐसे व वान ् जो ह दू पुन थानवाद, भारत क ाचीन गौरव–गाथा तथा शु आ दोलन आ द
स ब धी वचार को उस धा मक राजनी त क शु आत मानते ह िजसके कारण ह दू–मु ि लम
सा दा यक राजनी त का वकास हु आ और अ त म भारत का वभाजन हु आ। क तु इस
कार क आलोचना से न तो पूणत: सहमत हु आ जा सकता है और न इसके आधार पर
दयान द के योगदान का अवमू यन क कया जा सकता है। व तु त: दयान द के योगदान का
मू यांकन उन व श ट प रि थ तय एवं भाव के संग म ह कया जाना चा हए िजनम क
उनके वचार का नमाण हु आ। इस ि ट से अनेक व वान ने उनक अगाध शंसा क है।
रो यां रोलां का मत है, ''दयान द अकेले भारत म संह क तरह गरजे और उ ह ने अकेले
वदे शय वारा फैलाये गये नवीन भाव को रोक दया।“ पं. वशन नारायण दर ने दयान द
एवं उनके वारा था पत सं था आय समाज म एक नये ाण फूँ कने का िजतना ेय उनको है
उतना इस शता द के कसी अ य भारतीय को नह ं है। एक ि ट से आय समाज क उपलि ध
म समाज से भी अ धक रह है य क यह अ धक रा य है।“ ी अर व द ने दयान द को
'आ याि मक याशीलता क एक शि त–स प न मू त' कहा है। रवी नाथ टै गोर का कथन है,
'मेरा सादर णाम हो उस महान ् गु दयान द को, िजसक ि ट ने भारत के आ याि मक
इ तहास म स य और एकता को दे खा और िजसके मन ने भारतीय जीवन के सब अंग को
द त कर दया।“ महा मा गाँधी ने दयान द के योगदान का उ लेख करते हु ये कहा है, ''मह ष
दयान द ने धम जागृ त बढाई। आय सं कृ त का, वेदा यास का, सं कृ त भाषा का, ह द का
ेम बढ़ाया। अ पृ यता पी कलंक को धोने का य न कया। ऐसे सब काय के लए मह ष
का मरण चर थायी रहे गा, इसम कोई स दे ह नह ।ं “

7.11 अ यास न
1. दयान द सर वती एक सामािजक पुनु थानकता थे? समझाईए।
2. दयान द सर वती के राजनी तक वचार पर काश डा लए।
3. भारतीय रा वाद पर दयान द सर वती के या वचार थे समझाईये?
4. राजनी तक वचाररक के प म दयान द सर वती के योगदान का मू यांकन क िजए।

7.12 संदभ थ सू ची
1. व वनाथ साद वमा : आधु नक भारतीय राजनी तक च तन, ल मी नारायण
अ वाल, आगरा, 1971
2. पी.के. यागी : भारतीय राजनी तक वचारक, व वकमा, पि लकेश स, नई
द ल , 2006
3. गर श म हो ा : मॉडन इं डयन पो ल टकल थंकस, मु रार लाल ए ड स स,
नई द ल , 2006

145
इकाई–8
गोपाल कृ ण गोखले
इकाई क परे खा
8.0 उ े य
8.1 तावना
8.2 जीवन प रचय
8.3 चंतन के ेरणा ोत
8.4 गोखले के सामािजक वचार
8.5 गोखले के आ थक वचार
8.6 गोखले के श ा स ब धी वचार
8.7 गोखले के राजनी तक वचार
8.8 संवध
ै ा नक सु धार का ा प
8.9 सारांश
8.10 अ यास न
8.11 संदभ थ
ं सूची

8.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरांत आप जान पायगे –
 गोखले क त काल न सामािजक–राजनी तक पृ ठभू म
 गोखले के जीवन एवं चंतन के ोत
 गोखले के सामािजक वचार
 गोखले के आ थक वचार
 गोखले के श ा स ब धी वचार
 गोखले के राजनी तक वचार
 गोखले वारा ै ा नक सुधार , एवं
व तत संवध
 गोखले का वैचा रक योगदान।

8.1 तावना
'गोखले का मि त क एक राजनी त का मि त क था और उनम शासन के
उ तरदा य व क भावना या त थी।‘ –लॉड मॉले
भारतीय रा य आ दोलन के उदारवाद नेताओं क पंि त म गोपाल कृ ण गोखले
दे शसेवा एवं क त य भावना से ओत– ोत थे। महा मा गांधी उ ह अपना राजनी तक गु मानते
थे। उनक वाणी का ओज एवं संयम तकपूण नींव पर आधा रत था। संवध
ै ा नक साधन के वे
प धर थे। च र क प व ता व सरल जीवन उनक दे शभि त के माग के वार थे।

146
राजनी तक–आ थक–सामािजक सभी प उनके चंतन के आधार थे। मक सु धार म वे व वास
करते थे। टश च र व याय यता पर उ ह व वास था।
उ नीसवीं शता द म ार भ पुनजागरणकाल न भारत क तीन मु य अव थाएँ समय
क ि ट से सवथा पृथक नह ं क जा सकतीं। थम अव था म पा चा य स यता क दो मु य
वशेषताएँ बु वाद व उदारवाद को वीकारा गया, दूसर अव था म उसके व त या हु ई
और तीसर अव था म पूव व पि चमी सं कृ त के े ठ त व के सम वय के यास हु ए।
बंगाल से ार भ यह आ दोलन सामािजक–धा मक आ दोलन से उ त
ू होकर एक सश त
रा य आ दोलन का आधार बन गया िजसक सु खद प रण त भारत क वतं ता म हु ई।
राममोहन राय तथा महादे व गो व द रानाडे आ द नेताओं ने बु वाद का आ य लेकर
भारतीय समाज क जड को आघात पहु ँ चाने वाल वभ न ढ़य को दूर करने के यास
कये। पि चमी उदारवाद से भा वत नेताओं ने बंगाल (सुरे नाथ बनज ), महारा (गोपाल
कृ ण गोखले, दादाभाई नौरोजी, फ रोजशाह मेहता) आ द म त।ने ध संरथाओं के वारा
लोकतां क आदश को नकट लाने व भारतीय म अ धकार क चेतना वक सत करने का
यास कया। पुनजागरण के ये नेता वयं को उदारवाद नह ं कहते थे। नरम दल के नाम से
जाने वाले ये नेता उ वाद दल से भ न वचारधारा के थे।
भारतीय उदारवाद पर परा का दशन सामािजक व धा मक सु धारक राजा राममोहन राय
एवं महादे व गो व द रानाडे के वचार व काय म ि टगत होता है तो राजनी तक े म
दादाभाई नौरोजी, फ रोजशाह मेहता, गोखले, सु रे नाथ बनज म। इस राजनी तक वरासत को
बाद म सी. वाई, च ताम ण, चमनलाल सीतलवाड, ी नवास शा ी, तेज बहादुर स ,ू एम.
आर. जयकर ने आगे बढाया।
वा टर बेजहॉट का 'चेतनापूण नरमी' वा यांश भारतीय उदारवाद पर परा क सह
या या करता है। चेतनापूण नरमी वाला यि त अपने भीतर बहु त शि त होते हु ए भी अ त
नह ं करता और इसी लए सफल रहता है। उसम बहु त ग त होती है फर भी वह ठ क समय पर
कना भी जानता है। इस पर परा के ारि भक नेता नौरोजी, मेहता, गोखले व बनज आ द
वीर रा य यो ा थे जो टश शासन के नभ क आलोचक थे पर वे संयम नह ं खोते थे।
वशासन इनका उ े य था। शु आती दौर म मांगे छोट –छोट थीं। जैसे क स वल स वस क
पर ा के लए आयु घटाना व भारत म भी इस पर ा का आयोजन, वधान प रषद के आकार
म वृ व उसम नवा चत भारतीय को वेश दे ना, या यक व कायपा लका के काय का
पृथ करण आ द। अपनी मांग क सीमा जानने के कारण वे उनका अ त मण नह ं करते थे।
यवहारकु शलता के कारण वे अपनी मांग क आ शक पू त से भी नराश नह ं होते थे।
संवध
ै ा नक साधन म व वास व टश शासन के त न ठा उनके राजनी तक
व वास क धु र थे। उनका वशासन टश सा ा य के एक अंग के प म था (डॉ म नयन
टे टस)। नि य तरोध म उनका व वास नह ं था। पूण वाधीनता उ ह अ यावहा रक तीत
होती थी। वे रा य एकता के प धर थे। उनका ि टकोण असा दा यक था। लोकतां क
मू य से पूण ये नेता भारत म त न ध व संसद य सं थाओं क थापना कर वशासन क

147
ओर अ सर थे। इससे वे शासन म भागीदार के साथ संसद य लोकतं का श ण भी वतं
भारतीय के लए दे ने क यव था करने के कारक बन सके।

8.2 जीवन प रचय


महारा के र न ग र िजले के गांव कोटलक म पता कृ णराव तथा माता स यभामा के
प रवार म गोपाल कृ ण गोखले का ज म 9 मई, 1866 को हु आ। चतपावन प रवार के पता
को हापुर क दे शी रयासत म ल पक थे। तेरह वष क अ पायु म पता क मृ यु के बाद
प रवार चाचा अनंत के साथ गया। बड़े भाई गो व द ने नौकर कर प रवार तथा गोपालकृ ण क
श ा का यय उठाया। को हापुर के राजा राम कॉलेज के बाद वे डेकन कॉलेज, पूना व
ऐल फं टन कॉलेज, ब बई (1881) के छा रहे । ग णत के छा गोखले को अं ेजी सा ह य म
वशेष च थी, बक क रचना ‘Reflection on the French Revolution’, बीटन क
'Public Speaker', बेकन के 'Essay' व ाइट के 'Speeches' के कु छ अंश उ ह याद थे।
बक क भाषण कला व ढ़वाद दोन ने उन पर भाव डाला। उ ह ने नातक पास कर यू
इंि लश कू ल (बाद म फ यूसन कॉलेज) से नौकर ार भ क । फर वे पूना के द ण श ा
समाज (Deccan Education Society) को आजीवन सद य बने। उ ह ने 75/– पये
मा सक वेतन पर सोसायट श क बन कर सेवा क । 1892 से 1898 तक वे इसके स चव व
काला तर म इसके मु ख व ता बने। सोसायट के सेवा कु ल म वे बाल गंगाधर तलक,
आगरकर, महादे व गो व द रानाडे के संपक म आये। तलक व आगाकर उनके कॉलेज के
सहकम थे। तलक क अपे ा आगरकर सामािजक सु धार, पा चा य स यता, ह दू व वास के
गुण –दोष पर समान वचार के कारण गोखले के यादा नकट थे। तलक व उनके मतभेद
धीरे – धीरे और बढे व अ तत: कां ेस म भी कट हु ए।
पूना के मु कु ट वह न राजा कहलाने वाले महादे व गो व द रानाडे का गोखले पर
सवा धक भाव पड़ा। रानाडे ने उनक तभा को समझ कर उ ह श ण दया। यह कठोर
प र म राजवे ता के प म उनके बडे काम आया। रानाडे उ ह मू ल अ भलेख दे कर अनेक
पु तक का अ ययन कर लेख या चकाएँ व मरण प तैयार करवाते थे। रानाडे को गोखले
अपना गु मानते थे। इस आधार शला से गोखले ने कठोर प र म, नै तकता के त उ साह,
आ याि मक उ कष, उदारवाद स ांत व यापक संवेदनाएँ भी हण क ।ं चा र क ऊ थान को
रानाडे रा य ग त का आधार मानते थे। इस महान समाज सु धारक से गोखले ने अथशा
का भी अ ययन कया। पूना क सावज नक सभा भारत क मु य राजनी तक सं था के प म
जनता क आव यकताओं व वचार क ओर सरकार का यान सावज नक मह व के न पर
मरण प भेज कर आक षत करती थी। स चव के प म कई वष तक मरण प गोखले ह
तैयार करते थे।
द ण श ा समाज के स चव के प म फ यु सन कॉलेज के भवन हे तु जन सं ह हे तु
भी गोखले को अनेक या ाएँ व जन स पक करना पड़ा। इससे वे एक सु प र चत नाम बन गये।
आगरकर क 'सु धारक' प का म भी वे नर तर लखते थे। इन सबसे वचार व लेषण व
अ भ यि त क कला म नपुण बने। रानाडे से नरम व संयत भाषा क ेरणा भी गोखले ने

148
सीखी। 1902 म द ण श ा समाज से सेवा नवृ त होकर वे सावज नक जीवन म हु ए। गोखले
पर फरोजशाह मेहता का भी भाव था।
सन 1889 म गोखले ने कां ेस म वेश कया। 1895 म कां ेस के मं ी बने।
1897 म वह द ण श ा समाज के त न ध के प म सेलबी कमीशन के सम गवाह हे तु
इं लै ड गये। 1902 म वे के य वधान प रषद के सद य बने। उनके तकपूण , त य पर
आधा रत व रचना मक सु झाव से पूण भाषण का आकषण सद य व शासक दोन पर था।
उनके वचार व सु झाव पर शासक य काय भी होता था। नमक कर को हटाने, अ नवाय
ारि भक श ा, सरकार नौक रय म भारतीय के साथ भेदभाव न करने, सरकार यय म
कमी आ द म उ ह ने अपनी व त य कला द शत कर अपना भाव डाला। लाड कजन के
नकारा मक सु धार का उ ह ने वरोध कया। भारतीय व व व यालय अ ध नयम, ेस
अ ध नयम, शासक य गोपनीयता अ ध नयम आ द वरोध से वह न क सके। लाड कजन भी
उनक तभा के कायल थे व उ ह सी.आई.ई का खताब दया। सन ् 1905 म गोखले बनारस
कां ेस के सभाप त बने। ब ह कार का समथन वे अं तम अ के प म ह करना चाहते थे।
नरम दल के नेता के प म वह कां ेस का अनेक वष तक काय करते रहे । ारि भक उ साह
के बाद 1909 के सु धार पर नराश होकर उ ह ने उसक आलोचना क । 1912 म द ण
अ का के रं गभेद वरोधी आ दोलन म गाँधी क सहायता क । अ य धक प र म के कारण
1915 म 49 वष म ह गोखले क मृ यु हो गयी। वे दे श का पुन नमाण मक सु धार से
करना चाहते थे। इसी पर उनका गरम दल से मतभेद था जो उ ह दुबल दय वाला कहते थे।
भारत म सु धार क उनक व तृत योजना गोखले का ‘राजनी तक वसीयतनामा' कहलाती है।
ांतीय वाय तता आ द उनके सु झाव बाद म मॉटफोड सु झाव का आधार बने। ये सु झाव ब बई
के गवनर लाड व लं टन के आ ह पर भारत म संवध
ै ा नक सु धार के लए थे।
सन ् 1897 से 1914 क अव ध म उ ह ने टे न म सकारा मक व सहानुभू त
वातावरण व जनमत नमाण हे तु सात बार इं लै ड क या ा क । अ व थ रहने पर भी
सावज नक मामल म उनक च व कठोर प र म म कमी नह ं आयी। गोखले के लेख
'मराठा', 'केसर ' व सु धारक' म का शत हु ए। गोखले ने 'सु धारक' (आगरकर वारा का शत)
एवं सावज नक सभा के ' वाटरल र यू' का भी संपादन कया।

8.3. गोखले के चंतन के ेरणा ोत


गोखले पर व भ न भाव न नां कत ह :
(1) प रवार का भाव – चा र क ढ़ता, आ मस मान, ढ़ इ छा शि त, उदारता व
स य न ठा, याग, तप या, क ट के त स ह णुता आ द अपने प रवार से उ ह ा त हु ए।
बा यकाल के आ थक अभाव व संघष ने उनम भारतीय जनता क समझ वक सत क । ामीण
जीवन व सम याओं से वे बचपन म ब हु ए। इसी लये नधन व पी ड़त जन के त च ता,
आ थक सुधार व नःशु क श ा क आव यकता पर बल उनके वचार म त बि बत हु ए।

149
(2) अं ेजी श ा – अं ेजी सा ह य, यूरोपीय इ तहास व राजनी तक वकास के अ ययन तथा
अं ेजी श ा प त ने गोखले को भा वत कया। अं ेजी ववेकवाद, लोकतां क पर पराओं व
उदारवाद ने उ ह गहन तौर पर भा वत कया और वह उनके चंतन का आधार बना।
(3) महान यि तय से स पक – महादे व गो व द रानाडे, दादाभाई नौरोजी, फरोजशाह मेहता,
आगरकर, बाल गंगाधर तलक, जी.वी. जोशी आ द के यि त व ने भी उ ह भा वत कया
वशेषत: रानाडे व मेहता ने। तलक क दे शभि त व साहस, आगरकर के समपण, उ े य क
प व ता, प टवा दता, साहस, पूवा ह का वरोध, नौरोजी का आ थक–राजनी तक पैनापन,
स ह णु ता, उदारता, बौ क यो यता, मेहता क तभा, ग रमामय यवहार, यथाथवाद, नभ क
आलोचना, नै तक आ ह, रानाडे के चंतन, संवध
ै ा नक साधन म आ था, त य क शु(ता,
क टपरकता, जी.वी. जोशी क व तीय सं वधा नक समझ ने गोखले के चंतन व अ भ यि त
को भा वत कया।
बोध न– 1
1. गोखले का “राजनी तक वसीयतनामा” य मह वपू ण है ।
.......................................................................................

8.4 सामािजक वचार


गोखले राजा राममोहन रॉय व बाल गंगाधर तलक के समान सामािजक आ दोलन के
लए स य नह ं माने जाते ह पर वे स चे स ह णु समाज सु धारक थे। उ ह ने अपने जीवन के
ार भ म ह अनंत संभावनाओं को यागकर श ा का े सेवा हे तु चु ना। श ा संभावनाओं
के वार खोलने के लए जनता हे तु आव यक थी। डेकन सोसायट के साथ जु ड़कर उ ह ने यह
काय कया। द लत व ि य क श ा के भी गोखले प धर थे। गोखले का जीवन याग,
तप या, कठोर प र म व जन सेवा क जीव त मसाल था। दे शसेवा उनका धम था।
गोखले ढ़वा दता का वरोध करते थे। ह दू धम के पूवा ह के वरोध पर आगरकर
व उनके वचार समान थे। संक णता उ ह रास नह ं थी। तलक से मतभेद का एक कारण
संक णता का वरोध था। तलक बाल ववाह का खु ला समथन करते थे। श ा हे तु गोखले क
तु लना म तलक का काय नग य व क रपंथी तीत होता है। धम नरपे गोखले जा त यव था
को ग त वरोधी समझते थे। वे ह दू–मु ि लम के म य मधुर सामािजक स ब ध का समथन
करते थे। सामािजक–धा मक स ह णु ता व स ावना उनका ल य था।
गोखले मानवतावाद थे। नशाबंद और अकाल पी ड़त के हे तु आ ह एवं लेग के समय
सहायता आ द सामािजक क याण क भावना को दशाता है। वे पूण नशाबंद का समथन करते
थे िजससे नधन इस घातक बुराई से दूर रह सके। म यपान से ा त राज व। कमी क पू त
हे तु उ ह ने दो सु झाव दये। राज व अ धकार को लाइसस दे ने वाला अ धकार नह ं बनाना
चा हए तथा लाइसस क नीलामी बंद करानी चा हये। मादक पदाथ के दाम बढ़ाने से लाभ नह ं
होता। द ण अ क रं गभेद नी त क आलोचना के साथ ह उसे दूर करने का भी गोखले ने
यास कया।

150
8.5 आ थक वचार
गोखले के आ थक वचार भारतीय प रि थ तय पर आधा रत थे। ग णत ने उनके
वचार को ता कक व त यपूण बनाया। इ तहास व अथशा ी व ामीण जीवन वे संघष ने
उनक सोच को यावहा रकता के नकट रखा। वे स पूण आय का समान सा वतरण चाहते थे।
भारतीय ि थ त पर आधा रत सु झाव भी उ ह ने तु त कये। इनक ि ट म संवध
ै ा नक
उ न त के लए रा य व त पर नयं ण आव यक था।
(1) भारत के सै नक यय म कमी का आ ह – टश सरकार वारा भारत म सै नक
वषय म यय भारत के कु ल राज व यय के अनुपात म व व के अ य दे श से कह ं अ धक
था। बैलबी आयोग के सम सा य के प म ये त य गोखले ने इं लै ड म तु त कये। स
म यह राज व. का 21%, ांस म 19%, जापान म 16% व इटल म 13% व भारत म
यय 35%' था। दनशा वाचा भी इस या ा म उनके साथ थे। शां तकाल म भी अ य धक सै य
यय भारत जैसे गर ब दे श के लये संभव नह ं था। अत: सै य यय पर कमी अ याव यक थी।
इस यय म कमी हे तु भारत म रजव सेना का भी गोखले ने दया। भारतीय सेना के
भारतीयकरण के सु झाव से सै य यय म कमी (अं ेज अ धका रय को द त भार वेतन व
भ त से मुि त) व श त भारतीय युवक के अ धकार के प म भत के यापक अवसर क
ओर भी उ ह ने संकेत कया।
भारतीय जनता के हत के मू य पर, भारतीय सेना के टश उ े य क पू त के लए
उपयोग पर भी गोखले ने गंभीर आपि त द शत क । भारतीय सेनाओं के भारत क सीमाओं से
बाहर के अ भयान का यय टश सरकार वारा वहन कया जाना चा हये। सरकार के
अनाव यक यय से जनता क गर बी बढ़ रह थी। वे आय– यय म संतु लन के प धर थे।
(2) जनता पर कर के बोझ को कम करने का आ ह – भारतीय जनता पर कर के
भार बोझ के गोखले वरोधी थे। इ पी रयल लेिज ले टव क सल म सरकार कर नी त क
उ ह ने आलोचना क । 1902 के अपने बजट भाषण म व त स चव वारा तु त अ धशेष को
उ ह ने आपि तजनक व दोहरे अ याय वाला बताया। आ थक वप नता वाल जनता पर कर का
आव यकता से अ धक भार थोपा जा रहा था। दूसर ओर सरकार अिजत आय का अ धकांश
भाग जन क याण हे तु खच करने के थान पर सै य यय व सरकार तं पर उपयोग कर रह
थी। इससे भारत क गर बी और अ धक बढ रह थी। जनक याण का काय ांत पर है। अत:
राज व का अ धकांश भाग के य सरकार वारा लेना उ चत नह ं है, ऐसा गोखले का वचार
था।
कर यव था सुधार हे तु गोखले ने सरकार को ठोस सु झाव दये जैसे – अकाल के
समय भू राज व माफ करना, आय कर से मुि त क सीमा म वृ , सू ती कपड़े के उ पादन पर
आबकार यूट हटाना, नमक पर कर क दर म कमी, आ द। वे सरकार क राज व नी त क
नभ क–त यपूण आलोचना तु त करते थे। शास नक द ता के नाम पर शास नक यय म
राज व का उपयोग शासन क जनक याणकार ग त व धय के वपर त भाव डाल रहा था।

151
अथशा ी क उनक पैनी ि ट सम या क जड़ तक पहु ँ च कर समाधान तु त करने से
हचकती नह ं थी। इस गहर पैठ व ि ट हे तु वे अथक प र म करते थे।
(3) मु त यापार क नी त के त संशय – मु त यापार नी त के भारतीय ि थ तय
म संभा वत गंभीर दु प रणाम उनक समझ के अंदर थे। औ योगीकरण के लए आधारभूत ढांचा
व आ थक वकास क यूनतम दर के अभाव म भारत या कसी भी अ य दे श को मु त
यापार म धकेलना याय के तकू ल है। इसे यापक प से लागू करना उ चत नह ं है य क
मु त यापार अ य उदारवाद मू य ातृ व , वतं ता जैसा प व नह ं है। उदारवाद होते हु ए
भी भारतीय ि थ तयां व हत उनके सामने सव प र था।
मु त यापार क (ई ट इि डया क पनी क ) नी त से भारत म लघु व कु ट र उ योग
के माल को वदे श म बड़े कारखान म लघु व कु ट र उ योग के माल को वदे श म बडे
कारखान म मशीन से तैयार माल से तयो गता करनी पडी। इससे कु ट र व लघु उ योग न ट
हो गये। उनम कायरत लोग बेरोजगार या पूणत: कृ ष आधा रत हो गये। इस नी त के
हा नकारक प व प भारत म औ यो गक वकास व पू ज
ं ी नवेश के यास नह ं कये गये।
तकनीक एवं औ यो गक श ा के सार हे तु भी काय नह ं कया गया। इससे उ योग (लघु),
द तकार , श प के न ट होने के साथ ह औ योगीकरण के लाभ जैसे–उ योग के व तार,
औ यो गक रोजगार म वृ आ द से भी भारत वं चत रहा।
भारतीय उ योग के लए संर ण क सतक व ववेकसंगत नी त अपनाना गोखले के
अनुसार आव यक था। संर ण नी त को पया त सतकता व सकारा मक ि टकोण से अपनाना
आव यक था िजससे वकासशील उ योग को आव यक ो साहन व समथन दया जाता है। पर
यह आम जनता के लए अ हतकर नह ं होना चा हये। अनु चत संर ण शि तशाल औ यो गक
हत को रा य संर ण दे कर आम जनता के लए अ हतकर हो सकता है।
गोखले मु त यापार व संर ण के अ छे प से यु त नी त को भारत के लए उ चत
समझते थे। वतं भारत क म त आ थक नी त का ोत गोखले भी थे। वे उ योगप तय
से उ योग म श त भारतीय क नयुि त के समथक थे व भारतीय माल हे तु वदे श म
मं डयां चाहते थे।
(4) ामीण ऋण तता – कसान क द न–ह न ऋण त दशा से गोखले चं तत थे।
एक ओर कसान साहू कार वारा शो षत थे तो दूसर ओर वे सरकार के कर के बोझ से भी
दुखी थे। कृ षक को ऋण हे तु अपनी कृ ष भू म या अ य संसाधन को गरवी रखनी पड़ती थी।
अत: सरकार के इस सम या के समाधान हे तु लड ए ल नएशन बल का उ ह ने वरोध कया।
वे सहकार साख स म तय क थापना के वारा ामीण व कृ षक को व तीय सु वधाओं क
सं थागत यव था चाहते थे। काला तर म वतं भारत म सहकार सं थाओं व बक को
गोखले के सु झाव से उ ू त उ तरा धकार माना जा सकता है। इसी स दभ म बंगलादे श के
नोबेल पुर कार वजेता (सहकार आ दोलन–बक– ी युनस
ु ) का नाम उ लेखनीय है। ये सभी
यास आज के व व व भारत दोन म गोखले के सु झाव क ासं गकता दशाते ह।
गोखले कृ ष के े म उ पादन क तकनीक म सु धार, उ पादन के समु चत साधन
क उपल धता तथा वपणन के तर पर कृ षक के हत संर त करने हे तु सरकार ह त ेप को

152
उ चत मानते थे। उ ह ने सु झाव दये–भू म क सरकार मांग म कमी, भू म सु धार व कृ ष
स ब धी ऋण तता को दूर करना, संचाई व वै ा नक ढं ग से खेती आ द। गोखले कसान को
कर म उ चत राहत दे ने तथा कर वसू ल के तर क म समु चत प रवतन के प धर थे।
(5) भारत म रे ल व तार को ाथ मकता का वरोध– रे ल के व तार हे तु भार यय
के गोखले वरोधी थे। वैलबी आयोग म एक सद य वारा रे ल के सार से एक सु ढ़
औ यो गक आधार का तक दया गया। गोखले का नभ क उ तर था क ऐसा भारत के शासन
पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने व टश औ यो गक हत क र ा हे तु कया गया। वे सरकार
वारा जनक याणकार ग त व धय म धन के उपयोग तथा भारतीय उ योग को संर ण दे ने
क अ धक आव यकता पर बल दे ना चाहते थे। जब क सरकार इनक उपे ा कर रे लवे व तार
पर अ य धक यय कर रह थी। वदे शी यापा रय को द त अ धक रयायत व सु वधाओं से
रे ल मे घाटा हो रहा था।
गोखले के तवष बजट अ धवेशन के भाषण दे श क आ थक ि थ त, सरकार क
आ थक नी त व सु झाव पर यान आक षत करते थे। भारत क कृ ष यव था को सु ढ करने
व औ योगीकरण क जन हतकार नी त (रोजगारपरक, आ म नभरता व आ मस मान वधक)
हे तु राजक य संर ण, सं थागत समथन व जनक याण के वह प धर थे। उनके यास से
नमक कर ढाई पये से घटकर आठ आने त मन हो गया। जनता का हत उनक ाथ मकता
था। वे कृ ष के साथ–साथ औ यो गक वकास के भी समथक थे अ यथा दे श क भावी गत म
बाधा होती। इसी हे तु वे औ यो गक व तकनीक श ा का वकास चाहते थे।
सहकार साख स म तय क थापना का उनका सु झाव वीकार कया गया। ब बई
ेजीडसी म यह योजना बहु त सफल रह ।
बोध न– 2
नोट : नीचे द गई खाल जगह म उ तर लख।
1. गोखले के अनु सार कु ट र उ योग कै से न ट हु ए? या आ थक दु भाव पड़ा ?
.................................................................................. .................
.......................................................................................... ...
................................................................... ..........................

8.6. श ा स ब धी वचार
श ा को गोखले वकास के लए एक मूलभू त शत मानते थे। एक श क के प म
व श ाथ के प म भी वे श ा क मह ता से सु प र चत थे। श ा के सार के अभाव म
राजनी तक–सामािजक जागृ त व आ थक आ म नभरता क ाि त संभव नह ं थी। भारत म
टश संपक से पि चमी श ा व उदारवाद से प रचय को वे मह वपूण मानते थे, वशेषत:
सामािजक ढब ता से मुि त हे त।ु
अपने जीवन के ार भ म ह गोखले ने 75 पये के वेतन पर द ण श ा समाज
क सेवा का संक प लेकर श ा के त अपनी तब ता का प रचय दया। उनक श ा क
धारणा यापक थी। शासन क तकनीक, जन वा य व व छता, उ नत तकनीक म द ता,

153
सामािजक स ह णु ता व समानता, संवध
ै ा नक आ दोलन के तर के भी उनके अनुसार श ा का
अंग थे। पठन–पाठन–लेखन उनके लए ाथ मक मता थी। औ यो गक व तकनीक श ा, ी
श ा व ाथ मक श ा पर उ ह ने वशेष बल दया। ाथ मक श ा हे तु तो उ ह ने 1910 व
1912 म वधेयक भी तु त कया।
(1) ाथ मक श ा – गोखले के 1910 व 1912 के ाथ मक श ा वधेयक जन
इ छा के साथ–साथ टश उदाहरण (1870 व 1876 के श ा ए ट व 1892 का आय रश
श ा ए ट) से भी भा वत थे। ' बल का उ े य दे श क ाथ मक श ा यव था म
अ नवायता का त व सि म लत करने क इ छा है। अ य दे श म भी जन ाथ मक श ा के
सार हे तु कसी न कसी प म उसे अ नवाय बनाना पड़ा। भारत म भी ऐसी अ नवायता का
ार भ करना आव यक है।'
1906 म बड़ौदा रा य ने अपने यहाँ नःशु क, सावभौम, अ नवाय ाथ मक श ा का
ार भ कया था। नःशु क अ नवाय ाथ मक श ा क मांग 1855 म अ य कु मार द त ने
गवनर जनरल को मरणप दे कर क थी।
गोखले के बल म '( थानीय सं थाओं वारा) कसी अ यायपूण दबाव या काय को
रोकने हे तु यह यव था केवल लड़क पर, ांतीय सरकार वारा पूव अनुम त के उपरा त ह
लागू होनी थी। बल 1912 म पुन : तु त कया गया। गोखले इसके सरकार वारा वीकारे
जाने के वषय म शं कत थे, पर वे अं ेजी श ा कानून (1870) से पूव के अनेक असफल व
वरोध वाले यास से भी प र चत थे। आज एक शता द से अ धक समय के बाद भी भारत म
ाथ मक श ा सभी तक पहु ँ चाने वाले 'सव श ा अ भयान' आ द जार ह। टश सरकार का
वचार था क भारतीय पर अ नवायता क अपे ा समझाना अ धक कारगर होगा। वे तक आज
भी ासं गक ह।
गोखले का वधेयक पा रत न होने पर भी सरकार व भारतीय नेत ृ व को जगा गया।
वदे शी, वराज, ब ह कार, रा य श ा आ द आदोलन क सफलता पर उ च आदशयु त
ारि भक श ा बल (1910, 1912) क असफलता भारतीय नेत ृ व पर भी एक नच ह
लगाती है। भारतीय राजनी तक दल वारा श ा स ब धी ताव का अनुपात उनक श ा के
त गंभीरता का सू चक है जो तब और आज दोन ि थ त म दे खा जा सकता है।
वधान प रषद म भी गोखले ाथ मक नःशु क श ा हेतु व ी श ा हे तु आवाज
उठाते रहे । उ ह ने वैि छक य न को भी बल दया।
(2) तकनीक श ा – औ यो गक वकास हे तु गोखले तकनीक श ा पर बल दे ते थे।
वे सरकार वारा तकनीक श ा के सार पर यय नि चत करवाना चाहते थे। कृ ष,
अ भयां क व अ य तकनीक े क उपे ा को वे ग त म बाधक मानते थे। इसका कारण
आ थक पछड़ेपन को दूर करना भी था।
(3) पा चा य श ा का समथन – त काल न उदारवाद नेताओं के समान गोखले भी
पा चा य श ा को भारतीय ढ़वाद मानस के बंधन मु त कर उसे मु त व यापक बनाने

154
हे तु समथन व शंसा करते थे। वे उसे उदा त पर पराओं के तर पर हे तु यासरत थे।
स ह णु ता (धम, जा त, लंग) हे तु भी वे इसके समथक थे।
(4) उ च श ा व व व व यालय वाय तता का समथन –उ च श ा का वे
उदारवा दता एवं अ धकार व दा य व हे तु समथन करते थे। व व व यालय वाय तता को
सी मत करने के सरकार यास के वे वरोधी (इं डयन यू नव सट ज ए ट, 1904) थे। उनके
वरोध के बाद भी यह ए ट सरकार वारा पा रत कया गया। अपने यि तगत यास एवं व
अथक प र म से गोखले ने फ यु सन कॉलेज क पूना म थापना क ।

8.7. राजनी तक वचार


बहु मु खी तभा के धनी गोखले उदारवाद , यावहा रक तथा आ याि मक राजनी त के
प धर कहलाते ह। वे मक सु धार के प पाती थे व टे न के साथ भारत के घ न ठ
स ब ध का समथन भारतीय के क याण हे तु करते थे। उदारवाद वचारधारा के संयत गोखले
को, उ वाद सद य अ छा नह ं समझते थे। तलक के साथ उनके मतभेद का यह आधार था।
वे सरकार व जनता के वचार एक–दूसरे तक स े षत करते थे और दोन का वरोध भी इसी
कारणवश सहते थे। इस स चे दे शभ त के जीवन का उ े य दे श सेवा था और यह उनका धम
था। स दयता, उदारता व क ट सहनशीलता को वे अ छे च र के ह दे श के वकास हे तु
आव यक मानते थे। संवध
ै ा नक साधन म वे व वास करते थे। इन सभी क झलक उनके
जीवन म भी त बि बत होती है। उनके वचार न नां कत ब दुओं वारा समझे जा सकते ह:
(1) टश उदारवाद म व वास – समकाल न उदारवाद नेताओं क भां त गोखले को टश
याय यता म व वास था तो टश शासन क लोकतां क सं थाओं पा चा य श ा प त
तथा सा ह य के त आकषण भी था। नौरोजी क भां त उनक आशा थी क अं ेज म एक
उ च याय य राजनी तक सोच का उदय भारत के साथ याय करे गा। अं ेज क याय व
उदार भावना को उकसा कर उ ह टश सा ा य के अ तगत वरा य के लए तैयार करना
चाहते थे। उ वाद को वे भारत के लए अ हतकर मानते थे। त काल न टे न शि त साम य के
अनुसार यह यावहा रकता का प रचय था, पर अपने आ मस मान के साथ।
(2) टश शासन को भारत के लए वरदान मानना – टे न के साथ संपक को वे भारत क
बौ क ग त व भावी नमाण हे तु ेय कर मानते थे। भारत म शां त व यव था क थापना,
पा चा य श ा, लोकतां क यव था व संवध
ै ा नक सं थाओं के ान उ ह टश स पक
वरदान लगता था। भारत म यव था व शाि त क थापना उनके इ तहास मन को एक
वरदान दखाई दे ती थी। आज भी भारत म व भ न गुट म संघष, मनमु टाव व दं गे इस त व
क याद दलाते ह क दे श क भौ तक–नै तक–सामािजक स प नता, था य व व शाि त पर ह
नभर है।
(3) वशासन – गोखले टश सा ा य के अ तगत वशासन चाहते थे। वशासन का अथ था
' टश अ भकरण के थान पर भारतीय अ भकरण क त ठा, वधान प रषद का व तार व
सु धार करते–करते उ ह वा त वक नकाय बना दे ना तथा जनता को सामा यत: अपने मामल

155
का ब ध वयं करने दे ना', 1905 म बनारस कां ेस के अ य ीय भाषण म वे एक नि चत
समय तक अ य उप नवेश के समान वशासन के आकां ी थे।
वशासन हे तु न न ब दु आव यक थे–
(A) इं लै ड म होने वाल सभी तयोगी पर ाओं का भारत म आयोजन।
(B) भारत मं ी क प रषद व वायसराय क कायका रणी प रषद म भारतीय को पया त
त न ध व।
(C) के य व ांतीय वधान प रषद का व तार, िजससे जनता का भावी त न ध व हो
सके।
(D) थानीय वाय त सं थाओं व नगरपा लकाओं क शि त बढ़ाना।
(4) संवध
ै ा नक साधन म व वास – उदारवाद गोखले मक सु धार व सं वधानवाद के पोषक
थे। ाथना, मरण प , त न ध मंडल, वाता एवं शासन क रचना मक आलोचना उनके अ
थे। व ोह, हंसा, ां त या उ आ दोलन का इसम नषेध था। ब ह कार क राजनी त का,
दबाव या भय का वे वरोध करते थे। वे भारतीय को राजनी तक जाग कता व दा य वबोध
दखाकर अ धक शास नक अवसर पाना चाहते थे। शासन से असहयोग कर ग त उ ह असंभव
तीत होती थी। यावहा रक ि थ त व यथाथ आज भी यह दशाता है।
त य व तक को आधार बनाकर समझा–बुझाकर वे मह वपूण लोग के वचार को
अपने प म प रव तत करना चाहते थे। उ तेजना क आंधी के वे प धर नह ं थे, इसी लए
उनका मानना था क सं वधानवाद से था पत वचार व यव था म उथल–पुथल क संभावना
होती है। वतं भाषण, लेखन, संगठन, सभाओं, जु लस
ू , श टमंडल आ द से जनमत को तैयार
कर, रचना मक आलोचना के वे प धर थे।
गोखले जैसे उदारवा दय के इस माग को ' भ ावृि त ', 'दुबल दयता' आ द कहा गया
पर लोकतं म सं वधानवाद व उसके साधन को ह उ चत कहा जा सकता है अ यथा जंगल
रा य हो सकता है।
(5) नौकरशाह क आलोचना – कठोर व उ पीड़न क नी त के वे वरोधी थे। उनके अनुसार
सरकार म जन हत के तीक कसी यि त का अभाव, शासन का पूण के कृ त होना, का मक
का 5 वष का सी मत कायकाल आ द नौकरशाह क क मयाँ थीं।
(6) स ता के वके यकरण का समथन – स ता का वके करण ह वा त वक लोकतं व
जनता के अ धकार का माग है। के यकरण नरं कु शता व मनमानी को ो सा हत करता है।
शासन के वके करण से संब हॉबहाउस आयोग (1908) के सम भी गोखले ने
वके करण हे तु ांतीय व थानीय वके करण को बढ़ावा दे ने का प रखा।
गोखले का सु झाव था– ांतीय वधान प रषद क शि त म वृ जैसे बजट पर वयं
वचार क शि त, िजला शासन म कलै टर को शासक य सलाह िजला तर य प रषद वारा
द जाये। उ ह ने सबसे नीचे ाम पंचायत, फर िजला प रषद (म य तर) व ांतीय वधान
प रषद का तीन तर य संगठन सु झाया। ांतीय सरकार को राज व के अ धकार क भी मांग

156
क । के य सरकार के पास तर ा, वदे श, मु ा, आबकार , डाक–तार–रे ल तथा कर वभाग ह ,
अ य वभाग ांतीय सरकार के पास ह ।
(7) रा य एकता पर बल – रा य एकता व ढ़ता हे तु गोखले ह दू–मु ि लम एकता को
आव यक मानते थे, दोन से ह वे स ह णु ता व संयम क अपे ा करते थे। वयं भी तलक के
गणप त व शवाजी महो सव म उ ह ने कोई च इसी कारण नह ं द शत क ।
रा वाद हे तु वे नै तक च र पर अ य धक बल दे ते थे। आज भारत म वकास का
अपे त व सव यापी प न होने का एक कारण च र क ढ़ता के अभाव से उ प न टाचार
है। कठोर प र म., सामािजक चेतना व नै तक ढ़ता ह रा क ढ़ नींव डालती है। अपने
इस रा य एकता व राजनी त के आ या मीकरण हे तु गोखले ने 12 जू न, 1905 को भारत
सेवक स म त (Servants of India Society) के प म राजनी तक कायकताओं के श ण
क यव था क । इसके सं वधान म वे टश शासन म न ठा, च र व मता के वकास,
उ कट दे श ेम, नभ कता, व ध म आ था आ द व भ न गुण व सावज नक जीवन हे तु एक
नेता के गुण क सू ची तु त करते ह।
(8) राजनी त का आ या मीकरण – राजनी तक तथा सामािजक जीवन को गोखले वा त वक
आ याि मक भाव से प रपूण करना चाहते थे। सावज नक आचरण क प व ता, साधन क
प व ता, संयम व याग आ द गुण को दे खकर ह गाँधी–गोखले को अपना राजनी तक गु व
महा मा कहते थे। वे ‘राजनी तक सं यासी' भी कहलाते थे, संयम, सेवाधम, प व ता, चा र क
मनोबल उनम कू ट–कू टकर भरा था।
(9) शासक य सुधार क मांग – गोखले व तीय, शासक य व आ थ सु धार के प धर थे
अपने बजट भाषण म वे सरकार पर सु धार हे तु दबाव डालते थे। वे अनाव यक यय के थान
पर जनक याण हे तु काय चाहते थे। बनारस काँ ेस म अ य के प म उनक मांग थीं– (A)
वधान प रषद म नवा चत सद य क सं या घटाकर आधी करना, (B) इं डया क सल म
कम से कम 3 भारतीय सद य क नयुि त , (C) िजले म सलाहकार प रषद कलै टर को
परामश दे , (D) भारतीय लोकसेवाओं क या यक शाखा क नयुि तयां वक ल वग से, (E)
या यक व कायपा लका वभाग का पृथ करण।
(10) वदे शी आ दोलन का समथन – वदे शी का अथ था– दे श के लए उ कट ेम व भि त।
इसी लये वे इसे आ थक के साथ–साथ दे शभि त का आ दोलन भी मानते थे। यह याग, दे श के
आ थक वकास के त च व पर पर सहयोग सखाता है। भारत क सम या गोखले के
अनुसार उ पादन हे तु पू ज
ं ी व साहस का अभाव था। कसी वदे शी यि त या संगठन वारा
भारत म पूँजी व साहस लगाने को भी वे वदे शीवाद ह मानते थे।
वदे शी के राजनी तक–आ थक आ दोलन क सफलता हे तु वे व भ न दे श क आ थक
दशाओं का ान, भारतीय उ योगप तय वारा दे शी उ योग हे तु व तीय संसाधन उपल ध
कराना, दे श म तकनीक , वै ा नक व औ यो गक श ा का व तार, दे श म उ पा दत व तु ओं
का उपयोग करने पर बल दे ते थे।

157
(11) वतं ता म व वास – मानव ग त हे तु वे वतं ता के प धर थे। टश राजनी त से
भी ऐसा शासन चाहते थे क भारतीय पि चम के लोकतां क आदश के अनु प वयं शासन
करने यो य बन सक। वतं ता के लये वे यायपा लका व कायपा लका क पृथकता चाहते थे।
जन अ भ यि त हे तु वे वतं ता व ेस क वतं ता के ढ़ समथक थे। उनक अ भ यि तयां
भी नभ कता, वतं अ भ यि त, आलोचना व रचना मक सु झाव का दशन ह। सावभौम
वय क मता धकार के वे पहले भारतीय तपादक थे।
(12) भारत सेवक समाज – ी गोखले ने अपने वचार और राजनी तक व वास को मू त प
दे ने के लए और अपने उ े य को काय– प म प रणत करने के लए भारत सेवक–समाज संघ
क थापना 12 जू न, 1905 को क थी। कायालय पूना म था। इसका उ े य था, दे श के
नवुय वक को दे शभि तपूण राजनी तक श ा दे ना। इस सं था के वारा वे राजनी तक सं यासी
पैदा करना चाहते थे।
उनके अनुसार भारत म रा – नमाण के काय म और अ धक ग त के लए वशेष प
से श त ऐसी सं था ज र थी जो स ची मशनर भावना के साथ काय म लग जाये। इस
त य क अनुभू त है हम सबसे पहले भारतीय ह एक संग ठत पुन न मत भारत का वचार एक
नरथक सपना मा ह नह ं रह गया है, वह एक वीकृ त धम है। सावज नक जीवन के माग
को दन– त दन अ धक यापक मा यता मल रह है। इस आधार पर भवन नमाण करने का
महान काय अभी बाक है। भारत सेवा संघ के सद य टश स पक को एक रह यमय
ई वर य इ छा का प रणाम मानते थे। उसम भारत क भलाई का संघ के सद य का ल य
वष तक ग भीर और धैयपूवक यास तथा यथे ट ब लदान के बना नह ं हो सकता। दे श म
कह ं अ धक उ कृ ट च र और अ धक मता के नमाण क दशा म बहु त कु छ काय करना
है। माग बड़ा कंटकाक ण है।
सावज नक जीवन के काय म सफलता क एक आव यक शत है सावज नक जीवन का
आ याि मकरण उ साहपूण दे शभि त और नभ क दय।
भारत सेवक संघ उ यत यि तय को श त करने और सम त संवध
ै ा नक साधन
वारा भारतीय जनता के रा य हत के पोषण करने का यास करता था। इसके मु य काय
थे–राजनी तक श ा और आ दोलन, व भ न जा तय के बीच सदभावनामय स ब ध को ढ़
करना, शै णक आ दोलन, औ यो गक वकास को मदद दे ना।

8.8 संवैधा नक सु धार का ा प


यूरोप थम व व यु म वजय पाने के लए टे न को भारतीय जनता एवं नेताओं से
तु र त सहयोग क आव यकता थी। अत: सरकार ने सु धार स ब धी भारतीय क मांग के त
यान दे ना शु कया। ब बई ा त के गवनर लाड व लंगटन ने गोखले से फरोजशाह मेहता
और आगा खां (मु ि लम ल ग) के सहयोग से भारत के लए संवध
ै ा नक एवं शास नक सु धार
का ऐसा ा प तैयार करने को कहा।
गोखले ने के य और ा तीय दोन तर पर सां वधा नक और शास नक सुधार क
परे खा ता वत क , ा तीय शासन को, भारत क के य सरकार और भारत स चव के

158
यापक नयं ण क प र ध से बाहर नकालकर, जनता के चु ने हु ए त न धय का भावी
नयं ण था पत करना चाहते थे।
येक ा त म 6 सद य वाल कायकार प रषद म कम से कम तीन भारतीय
सद य ह । वभाग का भार सद य को प टत: दान कया जाना चा हये। ा त म
भावशाल वधायी प रषद था पत क जानी चा हये। कम से कम 80 तशत सद य व भ न
नवाचन े और हत समू ह से नवा चत होने चा हये। अ पसं यक के लये वशेष
तनध व क यव था हो तथा वशेष को छो कर कोई भी गैर सरकार सद य मनोनीत
नह ं होने चा हये। ा तीय तर पर कायकार प रष वधायी प रष के त वह सभी मामल
म जवाबदे ह अव य हो।
ा त को वाय तता हो और आ त रक शासन और व तीय मामल म के य
सरकार के नयं ण से ा त म मु त रखा जाना चा हये। ा तीय सरकार नधा रत अनुपात म
कर से ा त राज व का एक ह सा भारत सरकार को अंशदान के प म दान करे ।
ा तीय शासन को यापक प से वके कृ त कया जाना चा हये। थानीय वाय त
सं थाओं का भावी व तार कया जाना चा हये। ाम पंचायत , नगर प रषद व तालु का
प रषद को पया त व तीय संसाधन उपल ध कराये जाने चा हये।
के य सरकार म वायसराय क कायकार प रषद के 6 सद य िजनम से कम से कम
दो भारतीय ह । इ पी रयल लेिज ले टव क सल का नाम भारत क वधानसभा कया जाना
चा हये। अ धकार और शि तय म वृ करके इसे एक भावशाल यव था पका का प दान
कया जाना चा हये–र ा, व त व अ य सभी मामल म। सेना म भारतीय को, ा त करने के
यापक अवसर दान कये जाने चा हये। गोखले भारतीय क भागीदार को बढ़ाकर, वशासन
के ल य क ओर एक और कदम बढ़ाना चाहते थे। नगर य व ामीण दौन क थानीय
सं थाओं को था पत करने, के लये गोखले ने जनता को राजनी तक श ण म स य
भागीदार क यव था क । गोखले के अं तम ल य क अ भ यि त न होकर उ ह मॉल– म टो
सु धार क अपया तता के कारण उ प न हु ये असंतोष का ता का लक समाधान कहा जा सकता
है।
बोध न– 3
न : भारत से व क समाज क थापना का या उ े य था ?
उ तर: .........................................................................................
..........................................................................................
.................................................................................... ......

8.9 सारांश
भारतीय रा य आ दोलन म गोखले का योगदान उदारवाद, शासन के त संतु लत
ि टकोण, जन हत के संर ण (आ थक तथा अ य), रा वाद, श ा का समथन, वके करण
पर बल व राजनी तक सं यासी के प म समझा जा सकता है।

159
गवनर–जनरल क प रषद के वे सद य थे। बहु त बरले यि त ह इस पद पर पहु ँ च
पाते थे। गोखले न केवल अपने समकाल न भारतीय नेताओं जैसे तलक, फ़रोजशाह मेहता,
आगरकर, रानाडे, गांधी आ द के शंसा पा थे वरन ् सरकार प भी उनके भाषणो क
तकपूणता, त यपूणता व व त य का कायल था। लाड कजन भी उनक संसद य मताओं के
शंसक थे, वे मानते थे क कसी भी संसद म गोखले वश ट थान ा त कर सकते थे।
उनक यो यता व उ च च र क वे शंसा करते थे। हा डग म के प म उनका आदर करते
थे। तलक भी उ ह महारा का ह रा मानते थे। उनक वन ता, यि त व क ग रमा, सेवा,
कत यपरायणता, यो यता वल ण थी। सावज नक जीवन म प व ता, याग, कठोर प र म व
गहन अ ययन व संयम के वे उदाहरण थे। फ युसन कॉलेज पूना के नमाण म उनका भार
योगदान था। द ण सेवा समाज व सावज नक सभा म स चव, वधायक, कां स
े अ य आद
वभ न प म उनका योगदान संसद य पर पराओं व शासन क ि ट से उ तम है। उनक
एक कृ त भारत सेवक समाज थी, तो दूसरा उनके संवध
ै ा नक सु धार जो आगे जाकर टश
सु धार का आधार बने। उनक तु लना लेड टोन तथा आि वथ से क जाती थी। वे यावहा रक
आदशवाद थे।

8.10 अ यास न
1. गोखले के वचार पर मु ख भाव का व लेषण क िजये।
2. गोखले के श ा स ब धी वचार क या या क िजये।
3. वतं ता संघष म गोखले के योगदान का वणन क िजये।
4. गोखले के आ थक वचार क ववेचना क िजये।
5. गोखले के मु ख राजनी तक वचार का मू यांकन क िजये।
6. लघु ट प णयाँ ल खये
(1) गोखले का राजनी तक वसीयतनामा।
(2) भारत सेवक संघ।
(3) वके करण पर गोखले के वचार।
(4) टश शासन के त ि टकोण।

8.11 संदभ ंथ सू ची
1. यो त साद सू द, आधु नक भारतीय सामािजक तथा राजनी तक वचार क मु य
धाराएँ, जय काश नाथ ए ड क पनी, मेरठ, 1970।
2. राम रतन, च यागी एवं के. डागर, भारतीय राजनी तक चंतन, मयूर पेपर बै स
नोएडा, 1996।
3. गर श म हो ा, मॉडन इि डयन पा ल टकल थंकर, मु रार लाल ए ड संस, नई द ल ,
2006

160
4. आर. पी. संह, एजू केशन एंड द इि डयन नेशनल कां स
े (1885–1947), सीने रयो
पि लकेश स, द ल , 1996।
5. ल मण संह, आधु नक भारतीय सामािजक एवं राजनी तक वचार, कॉलेज बुक डपो,
जयपुर , 1971।

161
इकाई–9
लोकमा य बालगंगाधर तलक
इकाई क परे खा
9.0 उ े य
9.1 तावना
9.2 तलक का राजनी तक जीवन
9.3 तलक के यि त व व वचार पर भाव
9.4 तलक के राजनी तक वचार
9.4.1 वराज
9.4.2 वतं ता
9.4.3 सा य–साधन
9.4.4 जनमत
9.4.5 वदे शी एवं ब ह कार
9.4.6 सावज नक पव
9.5 तलक के समाज सु धार स ब धी वचार
9.6 तलक के श ा स ब धी वचार
9.7 तलक के च तन म धम
9.7.1 ह दू धम
9.7.2 गीता पर वचार
9.8 रा वाद
9.9 सारांश
9.10 अ यास न
9.11 संदभ थ सूची

9.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरांत आप जान पायगे–
 तलक का ेरणा पद राजनी तक जीवन
 तलक के राजनी तक वचार
 तलक के वचार म न हत व वध सामािजक–राजनी तक संग म या त
पार प रकता, एवं
 तलक क रा वाद स ब धी अवधारणा

162
9.1 तावना
तलक का भारतीय रा य आ दोलन तथा आधु नक भारतीय राजनी तक वचारक म
मह वपूण थान था। उनके च तन एवं काय ने दे श म चेतना जा त क और रा य
आ दोलन को और यादा ग त दान कर उसे जन आ दोलन बना दया।
लोकमा य बालगंगाधर तलक का ज म 23 जु लाई 1656 र ना गर (महारा ) के
चतपावन ा मण प रवार म हु आ था। उनका प रवार अपनी धमपरायणता, व वता और
धा मक पर पराओं को मानने वाले के प म व यात था। उनके पता गंगाधर प त श क थे
तथा वे सं कृ त के का ड व वान थे। उनक माताजी पावती बाई धा मक वृि त क म हला
थी। जब तलक 10 वष के हु ए तब उनके पता का था तारण पूना हो गया, उससे उ ह उ च
श ा ा त करने के अवसर सहज मल गए। तलक का पूरा नाम बलव त केशवराव गंगाधर
तलक था। उ ह ेम से 'बाल' कहकर पुकारते, जो उनके नाम के आगे जु ड़ गया तथा
सावज नक जीवन म तलक जनता म इतने लोक य हु ए क लोग उ ह स मान से लोकमा य
कहने लगे। उ ह ने 1876 म बी.ए. पर ा उतीण कर ल । उनक ग णत म च होने के
कारण सभी को अनुमान था क वे ग णत म नातको तर करगे। ले कन उ ह ने ग णत क
अपे ा कानून को चु ना और इसके बारे म तलक ने कहा क म अपना पूरा जीवन केवल जनता
के उ थान के लए सम पत कर दे ना चाहता हू ं अत: म समझता हू ं क इस काय म सा ह य या
व ान म उपा ध क जगह कानून का ान अ धक उपयोगी स होगा। म ऐसे जीवन क
क पना भी नह ं कर सकता िजसम क मेरा टश सा ा य के साथ टकराव न हो।

9.2 तलक का राजनी तक जीवन


लोकमा य तलक क कॉलेज से ह च सावज नक काय क ओर बढती गई और
ग णत म च होते हु ए उ ह ने एम.ए. ग णत म न करके एल.एल.बी. म वेश लया। उनके
सा थय ने जब उनसे पूछा क उनक च ग णत म होते हु ए कानून य पढ़ रहे ह, तो
उनका जवाब था, “म अपना जीवन दे श के जन–जागरण म लगाना चाहता हू ं और मेरा वचार है
क इस काम के लए सा ह य अथवा व ान म कसी उपा ध क अपे ा कानून का ान
अ धक उपयोगी होगा। म एक ऐसे जीवन क क पना नह ं कर सकता िजसम मु झे टश
शासक से संघष न करना पड़े।''
तलक ने पूना म रहकर अपना सावज नक जीवन सन ् 1880 म ार भ कया। लटन
क त यावाद नी त से भारत को लाड रपन ने मु ि त दलाई। ऐसे समय म तलक का
राजनी त म वेश हु आ। न चय ह तलक इन घटनाओं से भा वत हु ए। तलक ने सव थम
श ा के े म वेश कया और पूना म यू इंग लश कू ल, द ण श ा सोसाइट तथा
फ यू सन कॉलेज क थापना क एवं यव थापन म स पाई।
सन ् 1881 ई. म तलक ने प का रता का े चु नते हु ए अपने साथी आगरकर एवं
चपलूणकर के साथ मलकर मराठा व केसर प को ार भ कया। इन प ने जन–साधारण
के साथ–साथ दे शी रसायत का प भी तु त कया। को हापुर रयासत के न को लेकर

163
टश शासन क जो आलोचना इन प म का शत हु ई उसके कारण मराठा एवं केसर के
स पादक तलक को चार माह के साधारण कारावास क सजा हु ई। इससे तलक क लोक यता
म और बढ़ोतर हु ई।
1891 ई. म तलक ने सहम त आयु वधेयक का इस आधार पर वरोध कया क
वदे शी सरकार को जनता पर सामािजक सुधार लादने का अ धकार नह ं है। रा य जागृ त और
वीरता उ प न करने के लए उ ह ने महारा म ' शवाजी उ सव” तथा “गणेश उ सव” मनाने
क था ार भ क ।
सन ् 1896 के अकाल म लोग को अपने अ धकार के त बनाने क दशा म उ ह ने
मह वपूण काय कया और वदे शी का जबरद त समथन कया 1897 म तलक ब बई वधान–
प रष के सद य चु ने गए। वहां पर उ ह ने बड़ी नभ कतापूवक सरकार क आलोचना क । उसी
वष महारा म भयंकर अकाल पड़ा तथा पूना म लेग फैल गया। सरकार ने बहु त धीमी ग त
से राहत काय व रोकथाम क कायवाह क और िजससे एक लाख से अ धक लोग क मृ यु
हु ई। उ ह ने अपने प के मा यम से लोग को जमीन न बेचने व कर न चु काने क बात कह ।
उ ह ने सरकार क कटु आलोचना क और कृ षक से सरकार का नभ कतापूवक। मु काबला करने
क बात कह । सरकार के रवैये से जनता बहु त दुखी थी इस लए दो नवयुवक ने पूना म लेग
क म नर रै ड क गोल मारकर ह या कर द । तलक पर हंसा और राज ोह भड़काने का
आरोप लगाया गया और उ ह डेढ़ वष क कैद क सजा द गई।
सन ् 1890 क राजनी तक का स म तलक ने शासन क आबकार नी त क
आलोचना क । सन ् 1891 के नागपुर कां ेस अ धवेशन म तलक ने श ा कानून पर
भारतीय को अ –श रखने का ताव रखा। सन ् 1893 के कां स
े अ धवेशन म उ ह ने
जनता क गर बी क ओर शासन का यान आक षत कया।
सन ् 1905 म बंगाल वभाजन के समय तलक का राजनी तक े से बढकर स पूण
भारत हो गया। लाल–बाल–पाल ने दे श म व तु त: एक संग ठत उ पंथी और रा वाद दल को
रा य रं गमंच पर ला खड़ा कर दया। केसर एवं मराठा के मा यम से तलक ने वदे शी,
ब ह कार और वरा य का स दे श जन–जन तक पहु ंचाया। कां स
े के 1906 के कलक ता
अ धवेशन म तलक को अ य बनाने का उ वा दय का वचार उदारवा दय वारा दादाभाई
नौरोजी को अ य बनाने क वजह से पूरा न हो सका। कां ेस के उदारवाद नेता तलक के
उ और यथाथवाद वचार से सहमत नह ं हो सके, फल व प कां ेस के नरम और गरम दल
म मतभेद क खाई चौड़ी होती गई अ तत: 1907 म सू रत क फूट सामने आई।
तलक क स तथा लोक यता इस समय पराका ठा पर पहु ंच गयी थी और
सरकार उनके उ वाद ि टकोण से भयभीत हो उठ । सू रत कां ेस क फूट से सरकार ने इसका
लाभ उठाया और उ वा दय तथा ाि तका रय को कु चलने के लए बडे स त कानून बनाए।
1908 म तलक को राज ोह के म या आरोप म पुन : गर तार करके 6 वष के कठोर
कारावास का द ड दे कर मा डले जेल (बमा) भेज दया गया। तलक का दे श– नवासन
भारत यापी दशन एवं वरोध का कारण बना। तलक ने मा डले जेल के अ य धक क ट द

164
वातावरण म कारावास का समय बना कसी शकायत के साहस तथा धैय से पूरा कया। वहां
पर तलक ने “'गीता–रह य” एवं “आक टक होम इन द वेदाज” दो व यात थ क रचना
क । ये दोन थ उनके वशाल ान, ऐ तहा सक शोध – गा भीय और वचार क उ कृ टता
के प रचायक ह।
1914 ई. म जेल से छूटने पर उ ह ने पुन : रा य संगठन का काय आर भ कया।
1916 म उ ह ने वराज क ाि त के लए होम ल ल ग बनाई और आ दोलन चलाया।
मसेज एनीबेसे ट के य न से तलक पुन : कां ेस म आ मले और अंत तक इसी म रहे।
कां ेस के 1918 के अ धवेशन म वे सवस म त से अ य चु ने गए, ले कन शकोल केस के
कारण उ ह टे न जाना पड़ा और वे इस पद को वीकार न कर सके। उ ह ने 1919 के
शासक य सुधार क घोषणा को नराशाजनक बताया। तलक ने पूण उ तरदायी शासन क
थापना के उ े य से ह इस कानून को याि वत करने के लए कां ेस डेमो े टक पाट क
थापना क और चु नाव लड़ने के लए चार एवं साधन जु टाने ार भ कए।
गाँधी ने ज लयांवाला बाग ह याका ड और खलाफत के न को लेकर असहयोग
आ दोलन क घोषणा कर द और भारत यापी असहयोग आ दोलन चलाने के लए 1 अग त
1920 का दन नधा रत कया। तलक भी असहयोग आ दोलन म वधान सभाओं का ब ह कार
करने को तैयार थे य द अ य दल भी वैसा करने को तैयार ह । ले कन दुभा य वश उसी दन
थोड़ी बीमार के बाद ब बई म उस महान ् रा नमाता का नधन हो गया और साथ ह एक
युग ( तलक) क समाि त एवं नए युग (गाँधी) क शु आत हु ई।
जब तलक जु लाई 1920 म स त बीमार होने के कारण ब बई म शै या पर पड़े थे
तब गाँधी उनके दशन के लए ब बई गए और वहाँ उ ह ने पूछा क या वे दस बर 1920 म
चलाए जाने वाले असहयोग तथा खलाफत आ दोलन म उनको अपना सहयोग दगे। इस पर
तलक ने कहा क, “म सदै व असहयोगी रहा हू ं मु झे यह काय म बहु त पस द है, क तु इसम
दे श हमारा साथ दे गा, इस बात म मु झे संदेह है। कारण यह है क असहयोग जनता के सामने
आ म– याग का ताव तु त करता है। म कोई ऐसा काय नह ं क ं गा िजससे आ दोलन क
ग त म बाधा पड़े। म तु हार सफलता क कामना करता हू ं और य द जनता तु हार बात
सु नने के लए तैयार हो जाए, तो म उ साह के साथ तु हारा समथन क ं गा।''
जब तलक ने राजनी त म वेश कया, तो उस समय कां ेस केवल कु छ पढ़े लखे
लोग क एक सं था थी जो येक वष भारत के कसी बड़े नगर म इक ा होकर अ धकार क
मांग करने के लए ताव पास करके या फर एक या चका के प म टश सरकार के पास
भेजती थी। तलक ने इसम वेश करके इसके व प को ह बदल दया। उ ह ने कां ेस को
जनता क सं था बना दया और वरा य का संदेश भारत के कोने–कोने म पहु ंचाया।
तलक के राजनी तक जीवन दशन के मू यांकन पर उनक मृ यु पर गांधीजी वारा द
गई ा ज ल से नया काश पड़ता है। गांधीजी के श द म, ''भारत क भावी स तान के
दय म यह भाव बना रहे गा क लोकमा य तलक नवीन भारत के नमाता थे जो हमारे लए
ह जीए और मरे । हम भारत के एकमा लोकमा य का अ वनाशी मारक अपने जीवन को

165
उनके साहस, उनक सरलता, उनके क ठन प र म और उनक वदे श भि त को सीख कर
बनाएं। ई वर उनक आ मा को शाि त दान कर।“

9.3 तलक के यि त व व वचार पर भाव


तलक का बचपन िजस पा रवा रक वातावरण म यतीत हु आ उसम प व ता, व वता
व धा मका न ठा पूर तरह या त थी। दे शभि त, चा र क ढ़ता और आदश के लए क ट
सहने क शि त उस सु स च तपावन समु दाय से मल , िजसम उनका ज म हु आ था।
िजसने पेशवाओं के प म महान ् शास नक द ता, दे शभि त क मसाल रखी थी। तलक के
वचार , दशन पर उनका प ट भाव ि टगोचर होता है। इस समु दाय से संबध
ं होने के कारण
उनम राजनी तक दे शभि त एवं उ वाद राजनी तक प तय का भाव दखता है। इस भाव
के बारे म गोखले ने एक बार तलक के वषय म कहा था क य द वे डेढ़ सौ वष पहले
उ प न हु ए होते तो वे अपने लए एक वतं रा य का नमाण कर लेत।े
तलक के वचार म गीता के कमयोग क भू त शंसा और स यास को अपे ाकृ त
कम व श ट बताया जो शायद अ ात प म अपने दादा रामच द के काय के व अपनी
सु त भावना मक त या य त कर रहे थे, जो उस समय सं यासी हो गये थे। तलक म
आ मस मान और वैयि तक मयादा क भावना एवं ती णबु स प न अ यवसाय और
यि तगत वतं ता क भावनाएं उनम पता ी ी गंगाधर के भाव के कारण ह उजागर ह,
जो वयं इससे प रपूण थे। इसके अलावा सं कृ त व ग णत म च और अ ययन अ यापन के
त च का कारण भी उनके पताजी का ह भाव था।
लोकमा य तलक क सा हि यक च भी उनके पताजी के भाव के कारण स भव
हु ई। िज ह ने कई व यालय तर य पा य पु तक लखी, वे वयं सं कृ त सा ह य के व वान
थे, और उ ह ने वयं ह तलक को ग णत और सं कृ त क ारि भक श ा द थी। सं कृ त के
व वान होने के कारण तलक को उ ह ने सं कृ त क अ छ श ा द । इस वषय म उनक
तु लना जे स मल से क जा सकती है, िज ह ने अपने पु जॉन तु अट मल को अपे ाकृ त
बहु त कम अव था म यूनानी और ले टन भाषा क श ा द थी। उनक सा ह य म च जागत
करने के लए पताजी उ ह लोक याद करने के लए त लोक एक पैसा दे ते थे। और ग णत
के क ठन न हल करने पर “काद बर ” जैसी सा हि यक पु तक भी दान करने ेरणा भी।
माता पावती बाई ह दू प व ता, क त यशीलता और शु ता क मू त व पा थीं,
िजसका भाव भी बालक बलव तराव पर पड़ा। ारि मक गु भीखाजी कृ ण पटव न का भी
भाव तलक पर पड़ा। तलक क स यवा दता व प टवा दता के कारण उनके पताजी वारा
दये गये सं कार एवं उनके त पूण व वास के कारण ह स भव हु आ िजसके उदाहरण
उ ह ने कू ल जीवन म ह मू ंगफल के छलके फकने, संत, स त या स त श द लखने क
घटनाओं म तु त कए थे।
तलक के दशन पर उनके चाचा गो व द राव क ेरणा व ो साहन का भी भाव
पड़ा। वे रामदास और शवाजी के वीरतापूण और आ ामण उपदे श एवं काय से भा वत हु ए।

166
और गीता के कमयोग से वे बहु त भा वत हु ए उसको अपने जीवन एवं दशन म अपनाया।
इसके अलावा मनु मृ त , वेद उप नषद से भी वे भा वत थे।
गीता क आ याि मकता और कमयोग को उ ह ने अपने काय े का आधार बनाया
और यह स ा त तपा दत कया क अ याय का वरोध करने और अधम के संघष करने के
काय को लोग भगवान क भि त के समान सम पत भावना से स प न कर। गीता के न काम
कम से भा वत होते हु ए कहा क दे श क सेवा नः वाथ भावना से क जानी चा हए। स य के
त न ठावान रहते हु ए यह कहा क वराज हमारा ज म स अ धकार है, अ त म स य क
वजय होगी, वदे शय को भारत को वतं ता दे नी पड़ेगी हालां क उसके लए भारतीय को
ब लदान या क ट उठाने पड़गे। दे श को वदे शय से वतं कराने के लए क ट सहने क
शि त या त परता, वदे शी सा ा य के व जनता को संग ठत करने क आव यकता क
अनुभू त तथा याग वृि त तलक के यि त व पर शवाजी के च र का ह भाव है।
भारतीय च तन के अलावा उन पर पि चमी दशन का भी भाव पड़ा। उनके ऊपर
रा वाद वचारक मैिजनी का भी भाव पड़ा। रा संबध
ं ी पा चा य मा यता को वीकार करते
हु ए वे रा के आ म नणय के स ा त को मानते ह। वरा य श द को वै दक आधार पर
मानते हु ए उसका योग राजनी तक े म कया। उ ह ने वराज के राजनी त अथ के साथ–
साथ उसका नै तक ि ट अथ भी तु त कया।
पि चमी वचारक का, िजनका उ ह ने गहन अ ययन कया था उनम ह गल, बे थम,
मैिजनी, बक, मल तथा व सन आ द का भी उन पर भाव पड़ा। उ ह ने पा चा य दशन के
साथ भारतीय च तन पर परा का तु लना मक अ ययन भी तु त कया। वे ाचीन सं कृ त
दशन म न णात थे और उनके राजनी त वचार म भारतीय वचार क कु छ मु ख धारणाओं
और आधु नक पि चम के रा वाद और जातां क वचार का समि वत भाव झलकता है।
तलक के, अनुसार अ वैतवाद क त वमीमांसा म ाकृ तक अ धकार और मानवीय समानता क
राजनी तक अवधारणा न हत थी। तलक ने कहा क चूँ क आ मा ह सव च स ता है और
लोग उस नरपे स ता म भाग लेते ह, इस लए सब क वह आ याि मक शि त है। इस
कार उनक वतं ता क सव चता क अवधारणा अ वैतवाद से भा वत थी।
तलक का रा वाद भी रा य वतं ता और आ म नधारण के पा चा य स ा त से
भा वत था। 1908 के स मु कदमे म अपने व त य म तलक ने जॉन तु अट मल क
रा वाद क स प रभाषा को उ ृत कया। 1919 और 1920 म उ ह ने आ म– नणय या
आ म नधारण क वुडरो व सन क अवधारणा को वीकार करते हु ए उसे भारत म लागू करने
क बात कह थी। इस कार तलक का रा वाद आ म नभर वतं ता के प म आ मा के
वेदा ती आदश और मैिजनी, बक, मल और बाद म वुडरो व सन क पि चमी अवधारणाओं का
सम वय था। वरा य एक वै दक श द है। तलक इसे अपने आ याि मक ि टकोण के कारण
यह मानते थे क वरा य केवल अ धकार ह नह ं बि क धम भी था। गांधी के समान उ ह ने
वरा य को नै तक और आ याि मक अथ दया।
मानवीय ातृ व म व वास तलक म वेदा तवाद का ह भाव है। उसी तरह वतं ता
और आ त रक अनुभू त के प म अवधारणाएं उनके वेदा ती वचार को सू चत करते ह।

167
तलक के ऊपर टे न के इ तहास के वशेषत: टयूड र और टु अट काल का भाव भी
पड़ा िजसम नरं कु शता के व टे न क जनता के संघष व वजय क बात थी। इसी तरह
चपलूणकर , आगरकर जैसे समकाल न वचारक , सा थय से कु छ मामल म भा वत हु ए। इस
कार तलक के वचार भारतीय एवं पा चा य दशन के गहन अ ययन तथा युग वतक
महापु ष के ेरणा पद आदश से भा वत हु ए थे।
नभयता–अं ेजी सा ा य के दमनच के म य अपनी वचारधारा को तलक ने जो
ढ़ता दान क वह उनके नभयता संबध
ं ी गुण को प ट करती है। रा य वतं ता आ दोलन
म तथा अपनी लेखनी के मा यम से इस गुण का उ ह ने बचपन म ह कई लोक याद करके
अपने पताजी से उसके पुर कार व प कई पु तक ा त क थी। वे ग णत एवं सं कृ त के
व वान थे और वे येक थ का सारांश लखकर उसक आलोचना मक ट का भी लख दे ते
थे। गीता–रह य उनक गीता पर लखी मु ख ट का है।
उनम रा भि त एवं रा ेम कू ट–कू ट कर भरा था। उनके मन म बा यकाल से ह
वदे शी, वधम, वदे शी भाषा, वराज के बारे म आदर एवं वा भमान था। उ ह ने रा भि त
का वैचा रक तर पर आक टक होम इन द वेदाज, ओ रयन और अपने प केसर व मराठा म
चार कया तो यथाथ तर पर वरा य क ाि त के लए अं ेजी सा ा य के सामने संघष
कया और कई बार जेल भी गए। इसके अलावा रा य श ा के लए यू इंग लश कूल म
अपने अ यवसाय के अ तगत रा यता क जागृ त पैदा क । वे सदै व स य के प धर थे।
स य क पर ा कू ल जीवन म मू ंगफल के छलके फैकने के लए ता ड़त कये जाने पर
उ ह ने यह द ड वीकार नह ं कया य क वे इस काय म शा मल नह ं थे। इसी कार कू ल
म संत, स त और सनत ् लखने म भी अपनी स यवा दता दशाई थी। बा यकाल के ये सं कार
उनके जीवन पय त उनके मागदशक बन गए।
लोकमा य तलक आधु नक भारत के राजनी तक एवं सामािजक च तन के वचारक
थे। उनका भारत के राजनी तक इ तहास म ह नह ं अ पतु इस दे श के पुनजाकरण के महान ्
इ तहास म भी चर थायी थान रहे गा। तलक ने न केवल भारतीय को शासन के रवैये के
त ह असंतु ट बनाया अ पतु उ ह अपने आपके वकास के त भी संतु ट होकर नह ं बैठने
दया। दासता म संतोष कर बैठने वाले भारतीय वतं ता सं ाम क संचालन नह ं कर सकते
थे। तलक ने उ ह नया जीवन, नई ेरणाएं द ।
तलक म पाि ड य तथा राजनी तक नेत ृ व दोन का सम वय था, और उनम
राजनी तक यथाथवाद क ग भीर और पैनी सू झबूझ तथा वशाल आदशवाद का सि म ण था।
तलक का पाि ड य यापकता तथा ग भीरता दोन का अ ुत म ण था और ि टकोण
बु वाद तथा आलोचना मक था। क तु उनके मन म ह दू धम थ
ं के त गहर आ था थी।
फर भी उ ह यह कहने म संकोच नह ं हु आ क आय ऋ षय का आ द नवास थान उ तर
ुव दे श था। य द उनका ि टकोण संक ण रा वाद होता तो वे भारत के बाहर के दे श को
भारतीय सं कृ त के ज मदाताओं का आ द दे श न मानते।
तलक ने न केवल लोग को राजनी त सखाई, न केवल धम का उपदे श दया बि क
दे श के लए वयं ने दुःख झेलकर आदश तु त कया। रा वाद क सुरसु र को भागीरथ के

168
समान जनमानस क मृ तपटल पर अवत रत कर तलक ने भारत को पुन : एकता का संदेश
दया। वे अनेकता म एकता के दशन करने वाले स ह णु तथा धम नरपे मानव के प म
उपि थत हु ए। उनक लेखनी म शि त और ओज था और प का रता म उ ह ने नभयता का
अ वतीय उदाहरण तु त कया।
उ ह ने राजनी तक आ दोलन म स पूण जनता को जोड़ दया और राजनी त के लए
आदशवाद च तन का व प नह ं अपनाया। उस समय दे श म, दै य तथा नराशा का रा य
था, वे वरा य के स दे शवाहक के प म कट हु ए। उ ह ने को दासता से घृणा करना
सखाया।
तलक ने राजनी तक दाश नक के प म हम रा वाद का दया। उनका रा वाद का
स ा त पि चमी एवं पूव वचारक के स ा त का सम वय था। तलक ने ऐसे समय म
जब क संवध
ै ा नक साधन के मा यम से टश सरकार को भारतीय जन आकां ाओं क पू त
के लए े रत करने और भारत म राजनी तक और आ थक सुधार को याि वत करवाने के
उदारवा दय के मंत य के पूरा नह ं होने के कारण हताशा क ि थ त व यमान थी, तलक ने
भारतीय रा वाद का ऐसा व प तु त कया िजसम जन आकां ाओं क पू त के लए वदे शी
शासक पर नभरता और याचना क अपे ा, जनता क जागृ त पैदा करने क भावना न हत
थी। उसके रा वाद संबध
ं ी वचार लोकतां क यथाथवाद थे। उ ह ने भारतीय सं कृ त को
रा वाद आधार बनाया ले कन वे संक ण रा वाद नह ं थे। उ ह ने भारतीय रा यता के लए
धम के सहअि त व व सौहादपूण संबध
ं पर जोर दया।
उ ह ने रा भाषा ह द एवं दे वनागर ल प अपनाने पर बल दया, और रा य
एकता बनाए रखने के लए रे ल के रा यकरण एवं धम नरपे ता क बात कह ।
तलक ऐसे थम नेता थे िज ह ने वरा य क बात कह और लोग को दासता से
घृणा करना सखाया। उ ह ने दे श क आजाद के लए लोग को संग ठत होश, सखाया और
जनता को उनक शि त का अहसास करवाया। उ ह ने वरा य पर बल दे ते हु ए कहा क,
“ वरा य मेरा ज म स अ धकार है, म उसे लेकर रहू ंगा।“ यह मा वचार ह नह ं था इसके
लए उ ह ने संघष भी कया और जनता म वरा य क अलख जगाई।
वरा य क ाि त के लए उ ह ने वदे शी, ब ह कार, रा य श ा आद अ को
पहल बार अपनाया और जन–जन को इसम जोड़ दया और वदे शी सा ा य क जड हलाकर
रख द ।ं ये हंसा पर आधा रत न होते हु ए भी उनसे भी अ धक भावशाल स हु ए। बाद म
गांधीजी ने भी इ ह ं के भावशाल तर के के योग कया।
तलक ने कां ेस को अ भजनवग क पाट से जनता क पाट दया और इसका यापक
आधार बनाते हु ए समाज के सभी वग को इससे जोड़ दया। उ ह ने कां ेस के उ े य को
यापक बनाते हु ए उसको वरा य का ल य घो षत करवा दया और उसके नई तकनीक के
मा यम से वावल बी व आ म नभर बना दया।
धम के बारे म क र ह दू होते हु ए भी वे कसी धम से घृणा नह ं करते थे, सभी तथा
धम क अ छ बात व या थय को दये जाने के समथक थे। वे धा मक स ाव क बात कहते
थे, उ ह ने रा य एकता बनाए रखने के लए ह दू–मु ि लम एकता पर बल दया और उ ह ने

169
धम नरपे ता पर जोर दया। उ ह ने लखनऊ समझौते म मु सलमान के पृथक त न ध व का
ताव एक अ थायी यव था के प म अपनाते हु ए एक दूरदश राजनी त का उदाहरण दया
था। वे दे श क एकता के लए रा वाद का आधार सभी स दाय को बनाना चाहते थे।
बोध न–1
न: तलक र चत दो व यात थ का उ ले ख क िजये ।
उ तर: ........................................................................................
............................................................. ...........................

9.4 तलक के राजनी तक वचार


तलक के राजनी तक वचार को हम न न शीषक के मा यम से दे ख सकते ह:

9.4.1 वराज

वरा य तलक क च तन धारा क एक मह वपूण कडी ह, और उनका नारा


“ वरा य हमारा ज म स अ धकार है,'' वतं ता आंदोलन के दौरान लोग क जबान पर रहता
था और उ ह े रत करता था। उ ह ने वरा य ाि त के लए अपनी मह वपूण भागीदार
नभाई। उनके लए वरा य का आशय ऐसी शासन यव था से है िजसम भारत के आंत रक
मामल का संचालन व बंध भारतीय के हाथ म हो। यह अपना शासन वयं वारा करने का
स ांत है। यह टश शासन क जगह भारतीय शासन क मांग करता है। तलक के सम त
राजनी तक च तन को एक श द म य त कया जा सकता है और वह है “ वरा य''। तलक
का वरा य ाचीन भारतीय दशन के धमरा य से भा वत था िजसका अ भ ाय एक ऐसी
राजनी तक यव था से है जो धम पर आधा रत हो और िजसका ल य धम का र ण तथा
पोषण हो। धमरा य क वरा य एक आव यक ि थ त है। वरा य तलक के लए एक नै तक
आव यकता थी, येक ह दु तानी का क त य था। उ ह ने संदेश दया क “ वरा य हमारा
ज मस अ धकार है और हम इसे लेकर रहगे।'' तलक का रा वाद दशन आ मा क परम
वतं ता के वेदा ती आदश और मैजीनी बक, मल और व सन क पा चा य धारणा का
सम वय था। इस सम वय को उ ह ने “ वरा य'' श द के वारा य त कया। वरा य एक
वै दक श द है िजसका योग महारा म शवाजी के राजतं के लए कया जाता था। तलक
का ि टकोण आ याि मक था इस लए वे वरा य को मनु य का अ धकार ह नह ,ं बि क धम
भी मानते थे। उ ह ने वरा य का नै तक तथा आ याि मक अथ भी बतलाया। राजनी तक ि ट
से इसका अथ है आ म न ह क पूणता ा त करना। जो वधम पालन के लए अ याव यक
है। इसका आ याि मक प भी है। इस ि ट से उसका अथ है आ त रक आ याि मक वतं ता
और यानज य आनंद क ाि त। वरा य का आ याि मक अथ तलक ने इन श द म य त
कया अपने म केि त और अपने पर नभर जीवन ह वरा य है। वरा य परलोक म है और
इस लोक म भी है। िजन ऋ षय ने वधम के नयम का तपादन कया, उ ह ने अंत म वन
क राह पकड़ी, य क जनता वरा य का उपयोग कर रह थी और उस वरा य क र ा का
भार य राजाओं पर था। मेरा व वास है और मेर थापना है क िजन लोग ने इस

170
संसारम वरा य का उपभोग नह ं कया है वे परलोक म भी वरा य के अ धकार नह ं हो
सकते।“ यह कारण था क तलक राजनी तक तथा आ याि मक दोन ह कार क वतं ता
चाहते थे।
उ ह ने वरा य को एक राजनी तक आव यकता मा नह ं बि क नै तक परमाव यकता
भी बताया और कहा क यह मनु य के नै तक व प क अ नवाय मांग है। येक यि त म
एक दै वी त व व यमान रहता है िजसक अनुभू त के लए आव यक है क उसे वधम के
अनुसार आचरण करने क वतं ता हो िजसक ाि त तभी स भव है जब हमारे सामािजक
जीवन क मांग क एक ऐसी राजनी तक यव था क थापना हो िजसम लोग धमानुकूल
आचरण कर सक और जो जनता क नै तक मनोभावना अथवा आ मा के अनुकू ल हो। तलक
ने कहा क इस कार क उ तरदायी राजनै तक यव था का दूसरा नाम वरा य है। तलक के
अनुसार वरा य ह रा क ग त का मू ल है। बना वरा य के औ यो गक ग त, रा य
श ा, सामािजक सु धार आ द कु छ भी संभव नह ं है। उनके अनुसार वरा य यि त का
ाकृ तक अ धकार है और अं ेज वारा भारत पर अ धकार जमाए रखना एक असहनीय
यादती है। इस लए भारतीय वरा य क ाि त के लए संघष कर।
तलक का वरा य एक ऐसा रा य है िजसम शासन क शि तयां मया दत ह, िजसम
शासन स ता का योग जन हत और जनता के सवागीण वकास के लए कया जाता है।
तलक का वरा य स ा त कसी एक जा त, स दाय या वग से संबं धत अवधारणा नह ं थी।
इसम कसी के त, वशेषकर ह दुओं का मु सलमान के त व वेष या पार प रक अ व वास
को कोई थान नह ं था। यह संपण
ू जनता के सव तम हत क पू त का साधन है। उनका
वरा य वग वशेष या स दाय वशेष के लए नह ं था। भारतीय जनता क सम याओं का
हल करने के लए एक औष ध वा त वक स ता। जब यह औष ध हम ा त हो जाएगी, तब
य द हमम आपस म कोई भेद ह गे तो हम उ ह वयं सु लझाने म समथ ह गे। हम अपने
ववाद को हल करने क शि त चाहते ह।
तलक केवल राजनेता ह नह ं थे वरन ् एक महान ् व वान तथा दाश नक भी थे। उनके
सं कृ त पां ड य ने उ ह आ मा क वा त वक ग त को कट करने के लए ववश कया और
उनका वरा य अ धकार के स ा त से भा वत न होकर भारतीय ाकृ तक दशन क
पर परागत शैल से भा वत था। वे वरा य को धम या कत य के प म दे खते थे। वे
राजनी तक समुदाय से भी पहले वरा य क ि थ त को वीकार करते थे, य क वरा य एक
नै तक आव यकता थी िजस पर यि त का सामु दा यक जीवन आधा रत था। शवाजी ने िजस
वरा य क पर परा का पुन ार कया था उसे दे खते हु ए भी यह कहा जा सकता है क
तलक क वरा य क धारणा उनके भारतीय सं कार का प रणाम थी। तलक ने वरा य क
ाि त के लए सावज नक प से ाि त को उपयु त नह ं माना। क तु वे पूणतया अ हंसा के
पुजार भी नह ं थे। वे अ हंसक तरोध क नी त को एक सु वधा के प म योग म लाते रहे ।
यह उनके जीवन क नी त नह ं रह । वे रा म ऐसी शि त का संचार करना चाहते थे क
शासन का तरोध उ से उ तम होता चला जाये। इसके लए तलक ने त या मक
सहयोग क नी त का योग कया ता क यथासंभव शासक य प रवतन लाया जाये। य द

171
प रवतन संभव न हो तो असहयोग का माग अपनाया जाये। तलक ने इसी कारण से
उदारवा दय क संवध
ै ा नक काय णाल के थान पर नि य तरोध क नी त को अपनाया।
तलक का वरा य लोग वारा नयं त है। इसम शासन क अं तम स ता जनता के
हाथ म है। इसम लोग क स य भागीदार ह। इसम शासन लोग के त उ तरदायी ह नह ं
शासन लोग क शकायत और आव यकताओं के त संवेदनशील भी है। वे लोकतां क
वरा य के समथक थे।
ट .वी. पवते ने तलक को लोकतां क शासन णाल का वतक माना है य क तलक
त काल न स पूण शासन– णाल को बदल दे ना चाहते थे और कहते थे क वरा य का अथ
केवल कु छ थोड़े से उ च पद ा त करना नह ं वरन ् एक ऐसी शासन– यव था से है िजसम
शासन के सभी अ धकार और कमचार जनता के त सचेत रह तथा कायपा लका के अ धकार
और कमचार वयं को जनता के त उ तदायी समझ। तलक के लए वरा य का अथ था
क अि तम स ता जनता के हाथ म ह । उनके लए वरा य का आधार यह व वास था क
रा य का अि त व जन–गण के क याण और सु ख के लए है। तलक को भारतीय ाि त के
ज मदाता, अस तोष के पता आधु नक भारत के नमाता आ द अनेक नाम से वभू षत कया
जाता है और इन नाम के साथ लोकतां क वरा य के तपादक अव य ह जु ड़ जाना चा हए
य क लगभग अपने जीवनपय त उ ह ने जो चार काय कया उसम वे इस बात को बराबर
दुहराते रहे थे। उनके लए लोकतं और वतं ता समान उ े यीय थे।“
कां ेस ने अपने कलक ता अ धवेशन म वरा य को औपचा रक प से अपना ल य
घो षत कर दया था, ले कन इसे लोक य और भावी बनाने क ि ट से वह उदासीन ह रह
थी। तलक ने मा डले जेल से लौटने पर वरा य का संदेश घर–घर पहु ंचाने के लए एक
भावी काय म बनाया। इसके लए होम ल क थापना क , वरा य क प ट श द म
या या क और इस औ च य को स कया क भारत को अ वल ब वरा य दया जाना
आव यक है।
सन ् 1916 से पहले तक अर व द और व पनच द पाल क भां त वरा य से तलक
का आशय दे श के लए पूण वाधीनता क ऐसी ि थ त से था, िजसम टश स ाट के लए
कोई थान नह ं हो सकता था। क तु 1916 के लखनऊ अ धवेशन म उ ह ने वरा य क
अपनी धारणा को ता काल न प रि थ तय म अ धक समायानुकू ल और यावहा रक बना लया।
1916 म चलाए गए होम ल आदोलन के दौरान 31 मई, 1916 को अहमदनगर म
वरा य पर अपने पहले भाषण म कहा था क ' वरा य का अथ केवल यह है क भारत के
आंत रक मामल का संचालन और बंध भारतीय के हाथ म हो। हम टे न के स ाट को
बनाए रखने म व वास करते ह।'' तलक ने अपनी पूण वाधीनता क आकां ा का प र याग
नह ं कया था वरन ् ता का लक प रि थ तय को दे खते हु ए टश वरा य के अ तगत
वरा य का यावहा रक सु झाव दया था। वह पूण वाधीनता क दशा म पहला मह वपूण
कदम था, उनका आदश तो भारत के लए स पूण अथ म पूण वतं ता ह था। तलक
जीवनपय त वरा य ाि त के लए जू झते रहे और उनके अं तम श द भी वरा य के लए

172
कहे थे क “य द वरा य न मला तो भारत समृ नह ं हो सकता। वरा य हमारे अि त व के
लए अ नवाय है।“
इस कार तलक का राजनी तक च तन वरा य पर केि त है और उ ह ने वरा य
क यापकता को अपनाया। दे श क वतं ता एवं यि त क वतं ता से जु डा था उनका यह
स ा त।
अंत म गांधी के श द म “हमारे समय के कसी भी यि त का जनता पर इतना
भाव नह ं पड़ा, िजतना तलक का था, वरा य के संदेश का कसी ने इतना आ ह से चार
नह ं कया िजतना लोकमा य ने।“

9.4.2 वतं ता

लोकमा य तलक यि त के यि त व पर बा यकार नयं ण को अनै तक मानते थे।


वतं ता संबध
ं ी उनके वचार उनक इस धारणा व आ याि मकता आ था से ह नधा रत हु ए
थे।
तलक के लए वतं ता, यि त क बाहर नयं ण से मुि त का नकारा मक
प रणाम नह ,ं अ पतु यि त क ऐसी साम य के प म समझी जा सकती थी, िजसके वारा
वह अपने ई वर य अंश को, यि तगत व सामािजक जीवन म त बि बत कर सके। भारतीय
अ वैतवाद म गहर आ था होने के कारण तलक सभी मनु य को नरपवाद परमा मा का अंश
वीकाए करते थे। इस कार उनके लए यि त क वतं ता का नषेध, ई वर क स ता के
नषेध के समान ह आपि तजनक और अप व था।
राजनी तक वतं ता तलक के लए वयं म सा य नह ं थी, अ पतु वह यि त क
आ याि मक वतं ता क पूव –शत थी तथा अ नवाय प से पूरक थी। तलक पि चमी
यि तवा दय क भां त वतं ता को यि त पर से, समाज और रा य के तबंध के नवारण
का यावहा रक सू म नह ं मानते थे, अ पतु उनके अनुसार वतं ता मनु य के यि तगत
वकास और उसके वारा अपने परम ेय ई वर से एकाकार हो जाने क के लए अ नवाय
नै तक आव यकता है। तलक क धारणा वतं ता के योजन व मह व के वषय म जान
टु अट मल के ि टकोण से समानता रखती थी। मल क ह भां त वे वतं ता को यि त क
ऐसी साम य के प म वीकार करते थे िजसके वारा वह अपने यि त व का सव तम
नै तक वकास कर सके।
रा क वतं ता और आ म नणय के अ धकार का स ांत, उनके ऊपर भारतीय दशन
और पा चा य उदारवाद का भाव था। न कष प म कहा जा सकता है क यि त एवं रा
दोन क वतं ता के क र समथक थे।

9.4.3 सा य–साधन

लोकमा य तलक, गोखले एवं गांधी क तरह साधन क एवं नै तकता सा य क


तु लना म अ धक मह वपूण है यह नह ं मानते थे। क तु इसका अथ यह नह ं है क वे साधन
को मह व नह ं दे ते थे। त य यह है क तलक साधन क नै तकता क अपे ा उनक

173
भावशीलता को अ धक मह व दे ते थे। वे उदारवा दय वारा अपनाये जा रहे नि कय और
साधन क तु लना म स य एवं भावशाल साधन को अपनाने पर बल दे ते थे। इ ह ं साधन
के अ तगत उ ह ने उदारवा दय के ाथना–प , तवेदन क जगह वदे शी, रा य श ा और
नि य तरोध को अपनाया और भावशाल तर के से अपने साधन का योग कया और
सा य ाि त के लए जनजागृ त पैदा क ।
तलक उदारवा दय के साधन से असहमत होते हु ए भी दे श– हत के त उनके
ि टकोण क ईमानदार से अन भ नह ं थे। वे यह भल भां त जानते थे क साधन के त
ि टकोण, दे श क राजनी तक आकां ाओं क नर तरता का तीक था। उनके अनुसार , “आज
के उ वाद भ व य के उदारवाद ह गे, ब कु ल वैसे ह जैसे क आज के उदारवाद अतीत के है।
जब रा य कां ेस क थापना हु ई थी और दादाभाई नौरोजी ने भारत म अपने वचार थम
बार अ भ य त कया था तो उ ह ं वचार को, िज ह आज उदारवा दय ने अपना लया है
उ वाद वचार माना गया था। अत: काल– म म यह प ट हो जाएगा क श द उ वाद गत
का तीक है।
इस कार तलक साधन क भावशीलता अपनाने क बात कहते तथा उ ह ने उसका
योग भी कया। वे जनता के अ धकार के लए शासक क दया, पर नभर रहने को अ वीकार
करते थे और साधन को भावशील बनाकर सा य क ाि त के य न करते थे।
आ दोलन के साधन के प म हंसा व अ हंसा के त तलक का नै तकता से नह
बि क यावहा रकता से े रत था। वे हंसक साधन का समथन नह ं थे, क तु गांधी क तरह
अ हंसा के नै तक आदश से े रत नह ं थे। उनका प ट ि टकोण था हंसक साधन के
मा यम से टश स ता का भारत म उ मूलन यावहा रक प से स भव नह ।ं हंसा और
अ हंसा के त उनके ि टकोण का सार यह था क वे हंसा के वरोधी थे, क तु अ हंसा के
पुजार नह ।ं वदे शी शासन के व , वदे शी, ब ह कार और नि कय तरोध आ द अ
योग को तलक यावहा रक और भावी मानते थे तथा उनक यह मा यता थी क ये साधन
व ध–स मत थे। हंसक साधन और ाि तकार य के त तलक के ि टकोण के संबध
ं म
यह प ट करण आव यक है क वे मू लत: सा य को मह व दे ते थे, साधन का उनके मत म
कोई वतं नै तक मह व नह ं था। इस कारण उनक प ट मा यता थी क वरा य क
ाि त िजस कसी साधन से स भव हो, क जानी चा हए। हंसा एंव ां तकार ग त व धय को
वे वरा य क ाि त के लए यावहा रक साधन नह ं मानते थे। इनका कोई नै तक या
आ याि मक आधार नह ं था।

9.4.4 जनमत

तलक ने अपने च तन म कायकलाप म जनशि त को सदै व वशेष थान दया।


उनक मा यता थी क जनता म बड़ी भार शि त होती है और नरं कु श शासक तक जनमत से
भय खाते ह। 1891 म केसर म उ ह ने लखा था क, “जनमत एक ऐसी चीज होती है।
िजसम तानाशाह भय खाते ह, ले कन ऐसे जनमत यहां उ प न करने के लए हमने कु छ नह ं
कया है। तलक के अनुसार शासक अ याचार होते ह जब जनता अपनी शि त जताती नह ं है।

174
अगर वह एक होकर ऐसा कर तो शासक शि तह न हो जाए। तलक ने जनशि त के मह व को
जानते हु ए दे श को आजाद करवाने या वरा य ाि त के लए जनता क शि त को जगाने के
लए सावज नक उ सव शु कए। इसके साथ–साथ ह वे प का रता को भी जन जागृ त पैदा
करने म मह वपूण मानते थे, इस लए उ ह ने केसर एवम ् मराठा प शु कए। इस कार
तलक ने जनशि त को जागृत करने के लए मह वपूण भागीदार नभाई। उ ह ने भारतीय को
दासता से अवगत करवाया। और वरा य ाि त के लए संघष करने के लए तैयार कया।

9.4.5 वदे शी एवं ब ह कार

रा य वतं ता आ दोलन के दौरान वदे शी एवं ब ह कार को लोक य बनाने म


तलक ने मह वपूण भू मका अदा क । वदे शी और ब ह कार दोन ह आ थक अवधारणाएँ थी।
दोन का ल य एक ह था, वह था भारतीय उ योग का पुन ार और दे श का आ थक वकास।
1905 म बंग–भंग वरोधी अ भयान के दन म शु कया गया ब ह कार और वदे शी
आ दोलन भारत म टश स ता के स य वरोध क नई भावना का तीक था। व पनच
पाल और सु रे नाथ बनज जैसे नेताओं ने बड़ी–बड़ी सभाओं म भाषण दया और लोग से
वदे शी क न न त ा करवाई –
“सवशि तशाल ई वर को अपना सा ी मानकर और भावी पी ढ़य क उपि थ त म खडे
होकर हम यह त ा करते ह क जहां तक यावहा रक होगा, हम घर क बनी व तु ओं का
योग करगे। ई वर हमार सहायता कर।“
जनता ने वदे शी का आहवान का उ साहपूण उ तर दे ते हु ए वदे शी व क होल याँ
जलाई और वदे शी व क दुकान पर धरना दया। वैसे तो ब ह कार आ दोलन का मु य
उ े य वदे शी चीज का ब ह कार करना था, ले कन साथ ह साथ इसम सरकार के असहयोग
करना और सरकार नौक रय , पद तथा उपा धय का ब ह कार करना भी शा मल था। वदे शी
का ार भ तो य य प एक आ थक आ दोलन के प म उदारवा दय ने कया था, ले कन
तलक के हाथ म पहु ंचकर यह एक राजनै तक अ बन गया। उ ह ने पि चम भारत म इसे
पहु ंचाया तलक ने केसर म लखा, “हमारा रा एक वृ क भां त है िजसका मूल तना
वरा य है और वदे शी तथा ब ह कार उसक शाखाएं है। वदे शी ने ह वा तव म वरा य का
माग दखाया। उ ह ने वदे शी आ दोलन को जो केवलं आ थक े तक सी मत था, वह तलक
के यास से अब आ म नभरता और वावल बन का तीक बन गया। तलक ने वदे शी को
भारतीय के मन व मि त क म बसाने के यास कए। उ ह ने वदे शी व तु चा रणी सभा के
मु य अंग के प म सहकार भ डार खोले। तलक ने अपने प –प काओं के मा यम से लोग
म वदे शी क भावना भर द और वदे शी रा ेम का सू चक बन गया। वदे शी का आ थक
मह व इसम न हत था क इसके वारा भारतीय अथ यव था का पुन नमाण कया जाना
स भव था। उनके अनुसार वदे शी का वचार आ थक और नै तक दोन ह ि टय से भारतीय
के हत को सु नि चत करना था। इ ह ने इसे अं ेजी सा ा य के व भारतीय के अस तोष
एवं वरोध का सश त मा यम बना दया।

175
वे वदे शी चीज को अपनाने का आ ह करके, भारत म अं ेजी शासन के आ थक
आधार पर हार करना चाहते थे। इससे भारतीय उ योग के वकास को एक. आधार ा त होगा
और उ ह त पधा से भी बचाया जा सकता था। तलक वयं वदे शी का पालन करते थे,
इसके बारे म ट .वी. पावते ने लखा है क, “' तलक वयं अपने हाथ से काते हु ए सू त से अपने
ह घर म वदे शी करघे से बने हु ए व का उपयोग करते थे। वे उ ह ं मोटे व को पहने
अदालत तक म जाने लगे और कहा जाता है क सा ा ी व टो रया के दरबार म भी वे उ ह ं
कपड़ म गए।“
वदे शी का समथन करते हु ए 8 जनवर , 1907 म केसर म लखा, “ वदे शी व तु इस
दे श म नह ं आनी चा हए। केवल वह व तु एं जो यहां उ प न क जाती और होती ह, खर द
और इ तेमाल क जानी चा हए। हम केवल वह कपड़ा योग करना चा हए, जो यहां बनाया
जाता है, चाहे वह कतना ह मोटा य न हो।“ तलक के अनुसार अं ेजी सरकार ने वतं
यापार क नी त अपनाकर दे श के उ योग को पतन क ओर धकेला है, इस लए उनके संर ण
के लए वदे शी एवं ब ह कार से उनको संर ण ा त होगा।
वदे शी का ब ह कार पूरक था। इसके वारा भावना मक और आ थक, दोन तर पर
टश सरकार के स य तरोध का भाव य त होता था। तलक ने (1920 म पूना म) इसे
प ट करते हु ए कहा था क, “य द तु म म स य तरोध क शि त नह ं तो या तु म म
आ म याग और आ म संयम क भी इतनी शि त नह ं है क तु म अपने ऊपर शासन करने म
वदे शी सरकार क सहायता न करो। यह ब ह कार और यह हमारे कहने का आशय है क
ब ह कार एक राजनी तक श है। हम कर वसू ल करने और शि त था पत करने म वदे शी
सरकार क सहायता नह ं करगे। हम याय शासन के संचालन म उनको मदद नह ं दगे। हम
सीमाओं के बाहर या वदे श म लड़ने म भारतीय खू न या धन से उनक सहायता नह ं करगे।
हमार अपनी यायपा लका होगी और समय आने पर हम कर नह ं दगे। या आप अपने
संयु त यास से ऐसा कर सकते हो? य द आप कर सकते ह तो आप कल से मु त ह।''
तलक ब ह कार को केवल आ थक े तक सी मत नह ं रखना चाहते थे। वे इसका व तार
करके टश शासन को ठ प कर दे ना चाहते थे। उनके अनुसार तलक ने एक भाषण म
इसको प ट करते हु ए कहा क, “तु ह जानना चा हए क तुम उस शि त का एक महान ् त व
हो, िजससे भारत म शासन चलाया जा सकता है। टश शासन पी यह शि तशाल य
तु हार सहायता के बना नह ं चलाया जा सकता।'' तलक का वदे शी एवं ब ह कार के पीछे
यह उ े य था क इसके मा यम से टश आ थक हत पर भार दबाव डालकर उ ह अपनी
मांग मानने के लए ववश कर दया जाए। उनके अनुसार य द ब ह कार को एक यापक
आ दोलन के प म अपना लया जाए तो टश स ता से भारत क मुि त के लए अ –
श क आव यकता नह ं रहे गी। ब ह कार का टश यापार पर कैसा असर पड़ा इसको
वीकार करते हु ए कलक ता के ऐं लोइि डयन समाचार–प “ द इंि लशमैन” ने लखा था क,
“यूरोपीय, व तु ओं का आयात करने वाल कई बड़ी–बड़ी क प नयां को या तो अपनी शाखाएं बंद
कर दे नी पडी ह या थोड़े से यवसाय से ह संतु ट होना पड़ रहा है। गोदाम म माल जमा होता

176
जा रहा। ब ह कार के प म टश सा ा य के श ओ
ु ं ने दे श म टश हत पर कु ठाराघात
करने का अ य त भावशाल श पा लया है।“
नि य तरोध तलक के ब ह कार के वचार का संग ठत प था। उनके अनुसार
ब ह कार को एक भावशाल अ बनाने के लए यापक तैयार एवं जागृ त करने क
आव यकता थी। इसके लए वे जनता को मान सक प से तैयार करना चाहते थे।
वा तव म तलक ने लोग को ब ह कार का माग और इसका राजनी तक व प
दखाकर वरा य का माग श त कया। यह ब ह कार आ दोलन गांधीजी के असहयोग
आ दोलन क पूव सू चना थी। तलक ने अनुसार नि य तरोध ऐसा उपाय है, िजसके वारा
जनता अ हंसक साधन वारा वरा य ाि त के लए भावी ढं ग से आ दोलन कर सकती थी।

9.4.6 सावज नक पव

तलक ने जनता म जागृ त पैदा करने एवम ् रा यता को आ याि मक रं ग दे ने के


लए गणप त एवम ् शवाजी उ सव ार भ कया। गणप त उ सव वारा उ ह ने एक धा मक
उ सव को रा य भावनाओं को उभारने एवं संग ठत करने का यास कया।
तलक सावज नक उ सव का दोहरा मह व वीकार करते थे। एक ओर तो इनके
मा यम से एकता क भावना अ भ य त होती है और दूसर ओर उ सव म भाग लेने वाले
यि त यह अनुभव करने लगते है क उनके संगठन और उनक एकता को कसी े ठतर काय
म लगाया जा सकता है। उनक नेत ृ व तभा का सु दर एवम ् अधभूत उदाहरण है क कसी
कार उ ह ने ाचीन उ सव को आधु नक आव यकताओं के अनुकू ल बन दया।
शवाजी उ सव 1896 म शु हु आ वह ं सावज नक गणेशो सव का वचार भारतीय
रा य म भी फैलने लगा और 1896–97 तक यह पूरे महारा म मनाया जाने लगा। जहां
गणप त पौरा णक दे वता थे वहां मराठा सा ा य के सं थापक शवाजी ऐ तहा सक यि त थे।
सावज नक उ सव के बारे म उ ह ने कहा क वीर पूजा मानव का वभाव है और वह
अपनी राजनी तक आकां ाओं को मू त करने के लए एक भारतीय महावीर के आदश क हम
आव यकता थी। इसके लए शवाजी से उ तम च र मलना अस भव था। उनका नाम सारे
दे श के लए एक व श ट मह व लए हु ए है।
हर महापु ष चाहे वह भारत का हो या यूरोप का अपने युग के अनूकु ल ह कोई काय
करता है यह स ा त य द हम मान ल तो हम शवाजी के जीवन म कोई भी ऐसा काय नह ं
मलेगा िजसक हम न दा कर। शवाजी के दय म आजाद क जो भावना आर भ से अ त
तक थी उसी भावना के कारण वह रा के आदश माने जाते ह।
इस कार एक राजनी तक आ दोलन के कृ म वचार ने एक नाग रक धम का प
धारण कर लया। इन उ सव को ार भ करके तलक ने रा य भावनाओं को जनता तक
पहु ंचाने का य न कया। िजसम वे सफल रहे ।
गणप त उ सव से व या थय के कू ल व कॉलेज म रा वाद आ दोलन जागा। साथ
ह ऐथले टक लब से जु ड गये सब वकास के साथ महारा म अ भनव भारत जैसे संगठन
का उदय हु आ िजसने कई ां तकार नेताओं को ज म दया।

177
तलक का कहना था क मानव यवहार इस तरह का है, बना उ सव हम उसे नह ं
कर सकते। यह मानव क वृ त है क वह उ सव से यार करता है य द तु ह अपनी भावना
को बनाए रखना है, तो साल म एक बार अपने आ त रक व आि मक शि त को थायी वचार
के लए यान केि त करना होगा। यौहार चल गई मृ तय को बनाए रखने के लए मनाए
जाते है।
तलक ने ाचीन यूनान दे श के ओलि पक यौहार और अ य दे श के रा य पव का
उदाहरण दे ते हु ए जोरदार श द म जनता से अनुरोध कया क वह गणप त उ सव म पूरा
सहयोग द ता क यह उ सव शु से ह बना जात–पात के भेदभाव के मनाया जाए। उनके
अनुसार शवाजी उ सव एक फू तदायक औष ध क भां त है िजससे सामािजक तथा राजनी तक
जीवन क नींव सु ढ़ होती है। सावज नक उ सव रा वाद क भावना को जागृत करने म
मह वपूण भू मका नभाते है।
इस कार तलक शवाजी एवम ् गणेश उ सव के मा यम से जनता को तीक के
वारा अपने सावज नक क त य को करने एवम ् अपने दे श क आजाद के लए चेतना पैदा
करना चाहते थे। उसम से काफ मा ा म सफल भी रहे । वे ह दू जनता म इन उ सव के
मा यम, से उ साह और जोश पैदा करना चाहते थे। क तु अ य धमावलि बय के त उ ह ने
भेदभाव या कोई दु यवहार भी नह ं कया।
लोकमा य तलक ने सावज नक पव क ासं गकता प ट करते हु ए कहा था क
शवाजी मुसलमान क धा मक भावनाओं का भी आदर करते थे। उनके सा थय म अनेक ऐसे
मु सलमान थे िज ह ने मु गल के व उनका साथ दया। उ ह ने टा त व प बताया क
टे न म ने सन क पूजा होती है और ांस म नेपो लयन क , फर भी दोन दे श म कोई
वेष नह ं है अत: उ ह ने मु सलमान को आ व त कया।
शवाजी–उ सव का उ े य यह कतई नह ं है क अ य धमावलि बय का प र याग या
कसी तरह से उनको तंग कया जाए। अब समय बदल गया है और ह दू–मु सलमान दोन क
दशा एक ह है। अत: ऐसी दशा म या हम दोन शवाजी के महान ् च र से ेरणा नह ं ले
सकते। इस कार उ ह ने मु सलमान म भी एकता एवम ् सामंज य क भावना भर । वे ह दू–
मु ि लम सम वय ता क टश नौकरशाह के खलाफ वे एक जु ट होकर लड़ सके। न कष प
म कह सकते है क तलक के च तन म सावज नक पव भी मह वपूण थान रखते ह।

9.5 तलक के समाज सु धार स ब धी वचार


तलक सामािजक वचार म सुधारवाद न होकर पुन : अ युदयवाद थे। वे रानाडे के
वचार के वपर त भारतीय स यता व सं कृ त के ाचीन सफल सामािजक योग को, वतमान
भारत म पुन : था पत करने म व वास रखते थे। उनके वारा सामािजक वचार के संदभ म
भारत क ाचीन मा यताओं का समथन ढ़वाद नह ं था। ाचीन मा यताओं के काला तर म
श त ा त वचार एवं मा यताओं को वह समा त करने के प म थे, क तु भारत क
ाचीन धरोहर को एक ओर हटाकर पा चा य श ा एवं सं कृ त के अनुकू ल भारत क नवीन
सामािजक सं थाएं था पत करना उ ह मा य नह ं था। वे भारत के उदारवा दय के समान

178
सु धार क पा चा य पर परा का अनुकरण नह ं करना चाहते थे। उ ह इसका ोभ था क,
भारत क स ा त एवं श त पीढ़ पा चा य स यता के अधानुकरण वारा भारत क स यता
व सं कृ त क धरोहर को व मृत करने पर उता थी। वे पा चा य सं कृ त क भौ तकवाद
पर परा का व तार भारत म नह ं चाहते थे।। इतना होने पर भी तलक अं ेजी सा ह य, भाषा
के अ ययन क अ नवायता का समथन करते रहे । तलक ने एक ओर वेद, उप नष व गीता
आ द का गहन अ ययन कया था। वह ं दूसर ओर का ट, पे सर, मल, बे थम, वालटे यर व
सो आ द के वचार का भी अ ययन कया था। वे पा चा य सा ह य एवं सं कृ त के
उ चादश से अन भ नह ं थे। क तु एक रा वाद भारतीय के प म वे भारत का वैचा रक
पुन नमाण पा चा य वचारधारा पर आधा रत करना नह ं चाहते थे।
तलक सामािजक तथा राजनी तक सम याओं को एक साथ मलाने के व थे।
उनका कहना था क राजनी तक ग त ता का लक आव यकता क चीज है, सामािजक न पर
धीरे –धीरे वचार कया जा सकता है और सामािजक सु धार शनै:–शैन:े लाया जा सकता है। तलक
ने केसर म अनेक लेख लखकर अपने समाज सु धार संबध
ं ी स ा त का तपादन कया। वे
स ा त: समाज सुधार के व नह ं थे, क तु वे ता का लक सामािजक ाि त के क र
वरोधी थे। उनके अनुसार सामािजक सु धार ग तशील श ा तथा बढ़ती हु ई जागृ त वारा होना
चा हए। तलक का मु य उ े य रा य जीवन म एक नया उभार उ प न करना था, इस लए वे
जनता के सम पर पर वरोधी सामािजक दशन को तु त करके उनके मन म म पैदा
करने के व थे। वे सामािजक जीवन म फूट डालने और वघटनकार भाव को ो साहन
दे ने के प म नह ं थे। उनका वचार था क ग तशील सामािजक प रवतन धीरे –धीरे कये जाने
चा हए। और उन लोग क ेरणा से तथा उनके नेत ृ व म कये जाये िजनके मन म ह दू–
आदश के त ा हो। िज ह आ याि मक त व क ाथ मकता म व वास नह ं है और जो
एक कार से ब ह कृ त बु जीवी ह उ ह जनता पर अपनी समाज–सु धार संबध
ं ी अधकचर
धारणाओं को लादने का नै तक आधार नह ं है। उनक इन धारणाओं का, भारतीय जीवन और
सं कृ त से कोई संबध
ं नह ं है।
समाज सु धार के मामले म तलक यथाि थ तवाद थे ल कन उ ह ने ग तशील सु धार
का समथन कया। उ ह ने बहु प नी था का वरोध कया तथा 60 वष क आयु म ववाह
करने पर तब ध लगाने का समथन कया। रानाडे क सु धार–योजना म लड़के व लड़क के
ववाह पर एक वष से अ धक क आय न खच करने का ताव भी वीकार कया। शराब का
तब ध तथा ी श ा के व तार का भी उ ह ने समथन कया। तलक ने “ वीकृ त
आयु वधेयक” का वरोध राजनै तक कारण से कया था न क सामािजक कारण से, वे
सामािजक यव थापन का काय वदे शी सरकार को नह ं स पना चाहते थे। इसके मा यम से वे
वदे शी सरकार का वरोध कर रहे थे। तलक क ि ट से भारत का पा चा य व प म
पुन नमाण भारत क महानता के लए घातक था और कसी भी कार के सु धार को वदे शी
शासन वारा जबरन थोपा जाना उस सु धार को अनै तक बनाना था। क से ट बल के स ब ध
म हु ए ववाद के अवसर पर उ ह ने यहां तक ताव कया था क वे ववाह के लए यूनतम

179
आयु वष नि चत कए जाने के प म थे। तलक ने वयं अपने प रवार म लड़ कय का
ववाह 15 वष क आयु के प चात ् कया था। गणप त एवं शवाजी उ सव म उ ह ने बना
कसी भेदभाव के सवण और ह रजन को सि म लत होने का अवसर दया। अ पृ यता के
वरोध के त उनका वर तो इतना खर था क उ ह ने यहां तक कहा क य द छूआछूत
कसी ई वर य आदे श का प रणाम है तो वे ई वर को ह नकार दगे।
वधवा ववाह के वे समथक थे, डी. के. कव ने जब वधवा ववाह कया तो तलक ने
उ ह बधाई द । तलक के अनुसार समाज सु धार येक यि त को पहले वयं के तर पर
ार भ करने चा हए और तब लोग को सै ाि तक आधार पर सुधार के लए सहमत करने क
अपे ा, उ ह अपने आचरण का उदाहरण दे कर सुधार के त जागृत करना चा हए। सु धारक
को अपने उपदे श के अनुकू ल आचरण करना चा हए। उ ह ने केसर म समाज सुधार के बारे म
लखा क, “िजस कार पुराण पं थय के मत ढवाद और एक प ीय ह, उसी कार अं ेजी
श ा से े रत सु धारको के मत भी एक प ीय ह और मता ह है। पुराणपंथी, पं डत, नवीन
प रि थ तय से प र चत नह ं ह, नव श त वग को ाचीन पर पराओं तथा ह दु व क
पर पराओं और दशन का ान कराया जाना चा हए। वह ं पि डत और शाि य को नवीन,
प रव तत और प रवतनशील प रि थ तय क जानकार द जानी चा हए। तलक का यह
ि टकोण पर परा तथा आधु नकता म सम वय का तीक था। वे भारतीय सामािजक यव था
को भारतीय सं कृ त के मू य के आधार पर इस कार पुनग ठत करना चाहते थे क यह
भ व य क आव यकता के अनु प उपयु त स हो सके।

9.6 तलक के श ा स ब धी वचार


कसी रा के उ थान के लए बौ क जागृ त सबसे मह वपूण णाल है। यूरोप म
ांसीसी ाि त से पहले एवं पुनजागरण काल म श ा को बढ़ावा मला। श ा लोकतं क
सफलता के लए आव यक है। आधु नक भारत म रा वाद के उदय और उ कष म रा वाद
आधार पर संग ठत और संचा लत श ा–सं थाओं का मह वपूण योगदान रहा है। चपलू णकर,
आगरकर और तलक महारा के नये शै क आ दोलन के अ दूत थे। लाला लाजपतराय तथा
हंसराज ने डी.ए.वी. कॉलेज, लाहौर क थापना क तथा वामी ानंद ने वै दक मचय के
आदश के आधार पर गु कु ल कांगड़ी क थापना क । वदे शी आ दोलन के दौरान तथा
असहयोग आ दोलन के ार भ के समय गांधी जी के नेत ृ व म अनेक शै णक सं थान खोले
गए। टै गोर ने शाि त नकेतन क थापना क । तलक और चपलुणकर एवं आगरकर के नेत ृ व
म यू इंग लश कू ल क थापना क तथा द ण श ा स म त के मा यम से वदे शी श ा
पर जोर दया। उ ह ने श ा स ती बनाने एवं श क को उस आदशवाद से अनु े रत होने पर
जोर दया जो ाचीन सं कृ त एवं इ तहास म पाया जाता है।
तलक ने श ा म भारतीय आदश तथा पा चा य काय णाल और सं थाओं के
सम वय को मह व दया। तलक इस हद तक पुन थानवाद नह ं थे क आधु नक युग म
ाचीन आदश और स ा त को सम त: अंगीकार करने क स भावना को वीकार कर लेत।े
वे जीवन भर यह मानते रहे क राजनी तक उ वाद और ग तवाद क भावनाओं को उ प न

180
करने म अं ज
े ी श ा ने दे श के राजनी तक जागरण म मह वपूण योगदान दया है। तलक के
नेत ृ व म 24 अ टू बर 1884 को डे कन एजू केशन सोसायट क थापना क गई थी। उसके
बाद फ यू सन कॉलेज क नींव डाल गई। इन सब सं थाओं के मा यम से तलक श ा का
जनता म सार करना चाहते थे। श ा का सार करने के साथ ह इसका मह व जनता म
पुनजागरण तथा रा वाद भावनाएं जगाने म भी था। श ा– सार के लए सरकार सहायता पर
तलक को कोई आपि त नह ं थी, पर वे इसके बदले कसी भी कार के सरकार नय ण के
खलाफ थे।
तलक ने रा य श ा पर जोर दे ते हु ए व या थय को मातृभाषा तथा रा य लप
म रा क यथाथ प रवेश का ान करवाने तथा उनम रा य जागृ त पैदा कराने क कह ।
उ ह ने रा भाषा को रा यता क एक मू ल अ नवायता बनाया। वे ह द को रा भाषा दजा
दलाना चाहते थे। और दे वनागर को रा ल प के प म मा यता दे ते थे। तलक ने ल प के
प म दे वनागर ल प को मा यता दे ने क बात क ।
तलक क रा य श ा का अंग था धा मक श ा। तलक का वचार था धा मक
श ा झगड़ तथा पार प रक कलह को दूर करने का सबसे अ छा माग है। इससे येक
यि त को अपने धम के बारे म जानकार मलेगी। इस पर जोर दे ते हु ए उ ह ने कहा क,
“ कसी को अपने धम पर अ भमान कैसे हो सकता है, य द वह उससे अन भ है। धा मक
श ा का ह इस बात का एकमा कारण है क दे शभर म ईसाई पाद रय का भाव बढ़ा है।''
इससे भारतीय म अनुशासन और अतीत के त स मान क भावना जागृत होगी। तलक ने
मातृभाषा के मा यम से श ा दे ने क आव यकता बतलाई। उनके अनुसार , “आज जो यि त
अ छ अं ेजी बोल लेता है, वह श त माना जाता है, क तु भाषा का ान हो जाना ह
स ची श ा नह ं है। कसी वदे शी को सीखने क ऐसी बा यता भारत के अ त र त कसी अ य
दे श म नह ं है। मातृभाषा के मा यम से जो श ा 7–8 वष म ा त क जा सकती है, उसम
अब 20–25 वष लग जाते ह। अं ेजी हम सीखनी ह है, पर उसक श ा अ नवाय करने का
कोई कारण नजर नह ं आता।'' इस कार उ ह ने मातृभाषा पर जोर दे ते हु ए अं ेजी को गौण
थान दान कया। इसी कार ल प के बारे म भी वे दे वनागर ल प के प धर थे और रोमन
ल प अपनाने के सु झाव को हा या द बतलाकर उसका वरोध कया। वे राजनी तक श ा के
मा यम से व या थय को दे श क प रि थ तय क जानकर करवा कर उनम दे श क वतं ता
ाि त का संक प जागृत करना चाहते थे।
इस कार तलक क श ा का उ े य रा यता को मू त प दे ने का मा यम था। यह
वकास, जनजागृ त , वावल बन एवं आ म व वास क ेरणा थी। इसके मा यम वे दे श को
रा य श ा, रा भाषा एवं रा ल प के मा यम से एकता म बांधना चाहते थे। ी वी. आ टे
ने व लयम ह टर एजु केशन कमीशन के सम सा ी के प म कहा था क, “मानव क सब
याओं म श ा ह एक ऐसी है जो प तत दे श के भौ तक, नै तक और धा मक पुन थान को
ज म दे ती है तथा धीमी एवं शाि तपूण ाि तय के वारा उ ह बढ़े हु ए दे श के तर तक उठा

181
दे ती है और इस लए क ऐसा ह हो यह अि तम प म वयं जनता के हाथ म ह रहनी
चा हए।''
न कष प म कहा जा सकता है क तलक श ा के मा यम से जनता म जागृ त
पैदा कर दे श को आजाद करवाना चाहते थे, और श ा का मा यम मा भाषा रखकर एवं
स ती श ा अपनाकर पूरे दे श को श त बनाने क भावना रखते थे। उसी कार रा य
श ा एवं रा भाषा क एकता को सु ढ़ बनाना चाहते थे, उनक औ यौ गक श ा एवं
तकनीक श ा का उ े य बेरोजगार से युवाओं को छुटकारा दलवाना था। उसी कार वे
धा मक श ा के वारा दे श क एकता सु ढ़ करना चाहते थे।
बोध न– 2
न: तलक क वरा य अवधारणा क क ह ं दो वशे ष ताओं का उ ले ख क िजये ।
उ तर: .................................................................................. .................
................................................................................... ................

9.7 तलक के च तन म धम
लोकमा य बालगंगाधर तलक का अ वैत दशन म व वास था। इसी लये वे ह दू धम
म पूण न ठा रखते थे। उनके अनुसार धम, धृ धातु से बना, धारणा का अथबोधक श द है –
धारण करना, हण करने के अथ म आने वाला श द। एक साथ रखने या धारण करने के लए
या है? आ मा को परमा मा से जोड़ना मनु य को मनु य से जोड़ना या सब को एक साथ
रखना। धम से हमारे ई वर व मनु य के त क त य का बोध होता है। वै दक युग म भारत
वावल बी दे श था। वह एक महान ् रा क भां त संग ठत था। वह संगठन और एकता छ न–
भ न हो गई है िजससे हमारा बहु त पतन हु आ है। हमारे नेताओं का क त य है क वे इस
एकता को पुनजी वत कर।
हमारे धम के आगे सनातन धम श द इस बात का योतक है क हमारा धम अ त
ाचीन है, उतना ह ाचीन िजनती क वयं मानव जा त। वै दक धम ार भ से ह आय
जा त का धम था। ह दू धम अनेक अंग के संयोग से बना है, वे अंग एक ह बड़े धम के
बेट और बे टय क भां त पर पर आब और संयु त ह य द हम इस वचार को यान म रख
और सब वग को एक कृ त करने का य न कर तो हम उनको एक महान ् शि त के प म
संग ठत कर सकते ह। धम रा यता का एक त व है। ह दू सभी समान ह, महारा का ह दू
उतना ह ह दू है िजतना क म ास का। गीता, रामायण और महाभारत के पठन–पाठन से
स पूण दे श म एक से वचार उ प न हो सकते ह।
तलक ने धम क यापकता का तपादन कया। वे धम को संघष या मतभेद का
कारण नह ं मानते थे। धम का उ े य हंसा, अपराध अथवा व वंस सखाना नह ं हो सकता।

9.7.1 ह दू धम

बालगंगाधर तलक ह दू धम क महानता, उदारता, व स ह णुता के बल समथक थे।


उनक सनातन ह दू धम म पूण न ठा थी। उ ह ने ह दू धम के सभी मु ख धा मक थ

182
का, सम त मा यताओं, र त– रवाज आ द का वशद अ ययन कया था। वे ह दू धम क
अ वैतवाद , अवतारवाद तथा ान–भि त–कम क वेणी से यु त योग साधना क मा यताओं
के समथक थे। उ ह ने ह दू धम म फैल बुराईय , कु र तय तथा आड बर का वरोध कया।
वे ह दू धम म समाज सु धार के व नह ं थे क तु वे समाज–सुधारक क नाि तकता या
धम के त उदासीनता के वरोधी थे। वे ाचीन मा यताओं को आधु नक प रि थ तय म
ढालना थे, न क उनका याग करना। वे सनानत ह दू–धम क ाचीनता को मानव जा त के
समकाल न मानते थे। उनके अनुसार वेद , उप नषद तथा वेदा त क वै ा नक धारणाओं म
स दे ह नह ं कया जा सकता। उनम भौ तकता का वरोध तथा आ याि मकता का ता कक
समथन आधु नक मानवता के क सनातन मता से यु त है। तलक वेदा त स मत अ वैत म
व वास करते थे। वे ऋ वेद के द घतमा, पु ष , अधमषण, नासद य आ द सू त म िजस
सव च सव यापी, सगुण , सवगत म क उ चतम अवधारणा का उ लेख हु आ है और उसका
वशद ववेचन उप नषद , सू और भगव गीता म कया गया है से भा वत थे। धा मक भि त
के उ े य से वे य त, सवगत ई वर क धारणा वीकार करते थे। उनके अनुसार धम म
वा तव म ई वर और आ मा क कृ त का ान तथा वे साधन न हत है, िजनके वारा
जीवा मा मुि त ा त कर सकती है।
लोकमा य तलक परमा मा के अवतार म व वास करते थे। उनके अनुसार कृ ण,
भगवान के अवतार ह और गीता पर लखी स भा य गीता–रह य उनको सम पत क । वे
बहु त बड़े दाश नक व वान थे, पर तु उ ह ने धा मक जीवन म भि त क भी आव यकता को
वीकार कया। अ प वक सत चेतना वाले मनु य के लए उ ह ने तीक के मह व को कया।
इन तीक और उनक धा मक उपयो गता को उप नषद और शंकर ने वीकार कया।
ह दू धम के त उनक मा यता केवल पर परागत वीकृ त या बौ क तक पर
आधा रत वीकृ त नह ं थी। वे ढ़ और ग भीर धा मक व वास वाले मनु य थे और उनके
यि तगत जीवन क न कलंक प व ता हम यह व वास दलाने के लए पया त है क वे
केवल ऐसे बौ क ता कक यि त नह ं थे जो त वमीमांसा के सू म ब दुओं पर ह वचार–
वमश हो, पर तु वे ऐसे म ढ़ संत थे िज ह उ चतम स य क अनुभू त थी। इस लए वे
ऋ षय और यो गय के वारा ा त रह यपूण अनुभू त क औ च य, व वसनीयता और
संतोषजनक व प को करते थे। पर तु वे यह भी वीकार करते थे क मो के लए उ चतम
ान गृह थ कमयो गय के वारा भी ा त कया जा सकता है। तलक ने सभी धम को अपने
धम क उ चत श ा दलवाने का आ ह कया ता क सभी धम पर पर धा मक स ह णु ता का
पाठ सीख सक। उ ह इस बात का खेद था क ह दुओं म अपने धम के त वा भमान घट
रहा है य क वे वधम से अन भ थे। उनवे अनुसार “ कसी को अपने धम पर अ भमान कैसे
हो सकता है, य द वह उससे अन भ है?'' धा मक श ा का अभाव ह इस बात का एक मा
कारण है क दे शभर म मशन रय का भाव बढ़ गया है।
तलक ने धम प रवतन का वरोध कया और उसे घोर पाख ड और कहा क धम
प रवतन दय से होना चा हए स पि त या वाथपू त के लए नह ।ं पि डत रमाबाई वारा

183
संचा लत “शारदा–सदन” क ग त व धय का भ डाफोड़ कर यह स कया क धम क आड म
ईसाई मशन रय वारा कस कार अबोध ह दू बा लकाओं को ईसाई धम म प रव तत कया
जा रहा था। तलक ने ह दुओं क सा दा यक एकता पर बल दया। उ ह ने ह दू धम के
लंग भेद र हत मानव वतं ता का पोषण कया। उसे म हला एवं पु ष के संबध
ं को सामा य
आ याि मक ग त क ओर अ सर करने वाला माना। धम के त यि त क श थलता दूर
करने के लए कम का स ा त दया। तलक ने वण यव था को यि तगत और सामािजक
क त य क पू त का उदाहरण बताया। उ ह ने वण यव था को सामािजक भेदभाव तथा अ याय
पर नह ं माना। वण यव था येक यि त क वतं ता को सबक वतं ता म प रव तत कर
दे ती है। वे वण यव था को जा त यव था से अलग मानते थे तथा जा त यव था को दोषपूण
बताया। वे छूआछूत क मुि त के लए सनातन धम को यागने के थान पर उन ढ़वा दय
से मुि त ा त आव यक मानते थे िज ह ने इस अछूत था को आमं त कया। उनके अनुसार
सनातन धम ने मो को ल य मानकर अथ तथा काम क पपासा संतु ट करने का अवसर
दया क तु उ ह भी धम के नयम क प र ध म रखा। वण यव था सामािजक संगठन के
नमाण पर यि त क कृ त तथा उसक तभाओं के अनु प उसे वतं ता का अ धकार दे ती
है। इस कार वे ह दू धम को मानव वतं ता का पोषक मानते थे।
तलक के अनुसार आधु नक व ान धीरे –धीरे हमार ाचीन बौ कता और
आ याि मकता का समथन कर रहा है। भारत धम महाम डल म 3 जनवर , 1906 को भाषण
दे ते हु ए उ ह ने कहा था क पि चमी दे श म मान सक शोध–समाज, सर जगद शच द बोस के
शोध और ओ लवर ल ज के वचार ह दू धम के मौ लक वचार क पुि ट करते ह। आधु नक
व ान आ द पुनज म का नह ं तो कम का स ा त अव य वीकार करता है। आधु नक व ान
ने वेदा त और योग को पूण पेण मा यता द है और आ याि मक संयोग इसका ल य रहा है।
तलक के अनुसार ह दू धम को छो कर इस पृ वी पर ऐसा कोई धम नह ं है िजसम हम ऐसी
आशापूण त ा पाते ह क जब–जब आव यकता होती है तब–तब ई वर हमारे पास आता है
और मानव को संकटकाल से उभारता है।
महा मा गांधी क तरह तलक क राजनी त बहु त हद तक धमवेि ठत थी। तलक एक
धम ाण राजनी त थे, और उसी राजनी तक यव था के समथक थे िजसका उ े य धम का
पोषण एवं र ण हो। वे थम राजनेता थे िज ह ने धा मक जोश के मा यम से राजनी तक
आदोलन को सश त बनाया। उ ह ने धा मक उ सव के मा यम से भारत म रा यता क
भावना लोग के दल म बठा द । त काल न माहौल म जब क चार ओर पि चमी सं कृ त का
बोलबाला था और भारत के अ धकांश रा य नेता उससे भा वत थे, तलक ने भारत के महान ्
अतीत को उजागर करते हु ए उसको पुन ति ठत कया। तलक संक ण ह दू रा वाद नह ं थे।
महारा म चलाये गये जन–आ दोलन म उ ह सभी धम का समथन ा त होता रहा।
मु सलमान नेताओं म उनके त गहर ा थी। अल ब दुओं ने अपने आपको तलक क पाट
का माना। मौलाना हजरत मौहानी ने अपना राजनी तक गु तलक को माना। 1916 म
लखनऊ समझौता तलक के यास से ह संभव हु आ। तलक क स ह णु ता के कारण ह
कां ेस ने मु सलमान को पृथक त न ध व दे ने का नणय वीकार कया। आसफ अल तथा

184
डॉ. अ सार ने खलाफत आ दोलन के सम मु सलमान के त तलक के सहानुभू तपूण
समथन एवं सहयोग का उ लेख कया था।
एक स चे धम ाण यि त और आ याि मक रा वाद नेता क तरह उ ह ने यह
चाहा क शासन सभी धमावलि बय के साथ समान यवहार करे । उनको यह वीकार नह ं था
क अं ेज सरकार ह दू वरोधी नी त का आ य लेकर मु सलमान के साथ प पातपूण नी त
अपनाए तथा ह दू–मु सलमान म सा दा यक झगड़ को ो साहन दे । उ ह यह सहन नह ं हु आ
क अं ेज सरकार मु सलमान का प लेकर बहु सं यक ह दुओं के हत क उपे ा करे तथा
ह दुओं को दबाने के लए अवां छत त व को बढ़ावा द। तलक ने ह दुओं को आ मर ाथ
संग ठत होने का संदेश दया और नभ कतापूवक ह दू संगठन के यास को जार रखा तो
इसम कोई संकु चत भावना नह ं थी। तलक का यह यवहार सवथा मानवतावाद था क वे
सरकार से सभी जा तय के लये यायपूण यवहार मांगते थे। सरकार िजस कार ऊपर से
मु सलमान से यवहार करती थी उसके पीछे उसक एक सु नि चत राजनी तक चाल थी और
जनसाधारण का यह व वास था क सरकार मु सलमान के साथ प पातपूण यवहार करती है।
मु सलमान को ह दुओं के व योग करने क एक सु नि चत चाल थी। तलक ने इसको
समझा और वरोध कया। अ याचार के सामने आ मसमपण करना उ ह वीकार नह ं था। यह
स ा त था। वे मु सलमान से झगड़ा मोल लेने म कभी पहले आगे नह ं बढ़े । वे सदै व आपसी
मतभेद दूर करने और समझौता करने को त पर रहते थे। अपने सभी लेख और भाषण म
सदै व ह बचाव करते रहते थे और ह दुओं के व लगाए गए आरोप का ख डन करते रहते
थे। तलक ने कभी संक णतावाद नह ं चलाया वे मु सलमान म भी अपना भाव रखते थे, कई
मु ि लम नेता उ ह अपना गु मानते थे। लखनऊ समझौता उ ह ं के भाव का प रणाम था।
िज ना ने उनम अपना पूण व वास कट कया था। यह इस बात का दशन था क तलक
ह दुओं के साथ ह मु सलमान के वैसे ह नेता थे। यह प ट था क वे एक ह रात म नह ं
बदले। वा तव म तलक तो धा मक स ह णुता के तीक थे िज ह ने मु सलमान से अथवा अ य
क ह ं भी धमवलि बय से कोई वेष भाव नह ं रखा। तलक ने एक स चे आ याि मक व
धम– ाण यि त एवं रा वाद के प म यह चाहा क सरकार अपने वाथ के लए व भ न
स दाय के बीच प पातपूण यवहार न कर बि क सभी के साथ समान यवहार करे ।
ह दू दशन और आचारशा के दाश नक के प म तलक िजन सम याओं म
अ भ च रखते थे वे स तामीमांसा, परलोक, व या, मो और संक प क शु ता क सम याएं
थीं तक–शा , न य याय के यु पि तवाद, ान मीमांसा और यि त के दुःखपूण अि त व क
नह ।ं उ ह ने ग णत क श ा ा त क थी। उनके जीवन म दे शभि त क धु न थी, शाि दक
वद बनापूण व ान क नह ।ं वे ई वर के भ त और रह यवाद आ माओं के ग भीर
भावा तरे क क खोज करने वाले क रधम नह ं थे, पर तु उ ह ने भि त न ठ ानस त
कमयोगमय जीवन का मा णत कया और मानव आ मा पर उनके मु ि तपरक भाव को
वीकार कया। उनके, आ याि मक वचार वेद , उप नषद , गीता से भा वत थे, और गीता पर
तो उ ह ने भा य ह लख डाला जो मराठ सा ह य का एक अनूठा थ
ं है।

185
गीता पर लखा भा य गीता–रह य उनम आ याि मक वचार तु त करता है। उनके
अनुसार भगवान के सा ा कार के अनेक माग म कम का माग धान है। ानयोग तथा
भि तयोग ई वर से तादा य था पत करने क े ठता रखते हु ए भी कम से नह ं है।
यि त को ान तथा भि त म पूणता ा त करके भी मो – ाि त के लए कम का
संवरण करना होता है। तलक के मतानुसार कृ त, पु ष एवं ई वर म पर पर अ यो या तता
है। मनु य का ई वर के साथ एकाकार होना उसे कम से मु त करने क ेरणा दे ता है। वयं
ई वर भी कम के बंधन से मु त नह ं है। कृ त तथा पु ष क एक पता कम से ह था पत
हो सकती है और इसके बाद पु ष व ई वर का एक करण भी कम से े रत है। कमयोग
मा ड क सृजना मक शि त का ववेकपूण एवं संतु लत उपयोग है। यह वृि तमाग है, जो
न काम कम क ेरणा को जीवनपयोगी बनाता है। तलक ने आचार नी त क सम याओं का
आ याि मक ववेचन े ठ मानते हु ए सु खवाद, पराभववाद और उपयो गतावाद क आलोचना क ।
वे नै तक गुण को नरपे त व के प म मानते हु ए उसे आ धदै वक एवं आ धभौ तक
ि टकोण से दूर रख उसक त वशा ीय या या पर जोर दे ते ह। तलक ने मनु य म वाथ
तथा परमाथ दोन ह वृि तय का दशन कया है। परमाथ क वाथ पर वजय ह नै तक
मू य वारा यि त के चरमो कष का माग है। जीवन म आ याि मक ि टकोण अपनाकर
मानव आ मा क शि तय का सा ा कार मनु य को सु ख दुःख के अ न य से मु त कर उसे
धम क न यता का संदेश दे ते ह। उनके मतानुसार ऐि क एवं भौ तक सु ख से बढ़कर
आ याि मक परमसु ख क ाि त ह े ठ है।
तलक ने पर म के सि चदानंद व प क क पना को आ याि मक च तन क
मह तम उपलि ध बतालाया है। वे ऋ वेद म व णत पर म के इस यया मक न पण के
संबध
ं म आ द शंकराचाय के वचार से सहमत है। वेदा त म य त पर म क यमान
अ भ यि त को ई वर के प म तलक ने वीकार कया है। आ याि मक साधना के थम
चरण म ई वर क समा ध है िजसम नराकार पर म के सि चदानंद व प क ाि त होती
है। इस कार तलक ने सां य दशन के अनी वरवाद पर म तथा ीकृ ण के ई वर य
अि त व के वेदा ती हू ि टकोण का गीता म अतीव सु दर सम वय अनुभू त कया है। तलक के
अनुसार ान से उ प न वैरा य अथवा सं यास म भी कम क ि थ त बनी रहती है। दै हक
आव यकताओं क पू त के लए सं यासी को भी वचरण करना होता है फर कम से मु ि त
कहां स भव है। इस लए कमह न जीवन क कोई उपादे यता नह ।ं गीता म तलक के अनुसार
मान सक अ हंसा का उपदे श दया गया। आप म आ मर ा के लए े रत करता है। गीता
ानभि त समि वत कमयोग का माग श त करती है। गीता को आधु नक जीवन क
मागद शका मानते हु ए भारतीय रा य वतं ता आदोलन म नभयता, वतं ता, ब लदान तथा
सेवा क ेरणा तलक ने गीता से ा त क है। उनका सां य तथा वेदा त ान उ ह संक ण
स दायवाद ह दू न बनाकर सावभौ मक मानव के प म प रव तत करने म सहायक रहा है।
इस कार तलक का धम एक संक ण मत नह ं था बि क अपने वधम क महानता
को मानते हु ए अ य स दाय के त समानता के आधार पर यवहार करने वाला धम है।
उ ह ने अपने धम के मा यम से रा यता क जनजागृ त फैलाई। गणप त उ सव एवं शवाजी

186
उ सव के मा यम से रा यता के आवेश म आ याि मकता को धानता दे ते हु ए धा मक
उ सव को राजनी तक अथ दया व धम के मा यम से जनता म जागृ त पैदा करते हु ए दे श के
त उनके क त य को जगाया और सभी लोग को एकता के सू म बांधने का काय कया
और सभी धम को अ छ तरह समझने के लए उ ह ने धा मक श ा क बात कह , ता क
ढ़वाद धम का आपस म झगडा नह ं करवाएं।
न कष प म तलक धा मक ि ट से ह दू होते हु ए भी ढ़वा दता से सत नह ं
थे उ ह ने ह दू धम क त वमीमांसा का पा चा य दशन एवं उसके वै ा नक प र े य म
तु लना मक अ ययन तु त कया। उ ह ने धम को रा यता का एक आव यक एवं
मनोवै ा नक पहलू माना।
तलक ने अवतारवाद म आ था कट क । उ ह ने कृ ण को ई वर का अवतार माना
तथा गीता क अपनी या या उ ह ं को सम पत क । धा मक जीवन के लए भि त को उ ह ने
आव यक बताया।

9.7.2 गीता का वचार

तलक के वचार एवं दशन पर िजतना भाव गीता का था उतना कसी अ य थ


ं का
नह था। इस लए गीता का गहरा अ ययन करके उ ह ने मांडले के कारागार म स “गीता
रह य” क रचना क थी। यह वृहत ् और चर थायी ं गीता का व वतापूण भा य ह नह ं है,

अ पतु उसने आधु नक भारतीय रा वाद क अ धका रक पा यपु तक का भी काम कया है।
उसने दे श के नवयुवक को न काम कम से अनु े रत संदेश दया। तलक बचपन से ह गीता
से भा वत थे और 1892 म ह ववेकान द के साथ वातालाप करते हु ए तलक ने अपना यह
मत य त कया था क गीता न काम कम क श ा दे ती है। उसके बाद उ ह ने गीता का
गहन अ ययन कया और जब इसके लए उ ह मांडले जेल का एका तवास एवं समय मला तो
उ ह ने 2 नव बर 1910 से 30 माच 1911 तक केवल पांच मह ने म गीता पर थम
पांडु ल प तैयार क और उसके बारे “मराठा” म जो प का शत हु आ उसम उ ह ने लखा है
क “गीता के संबध
ं म िजसे गीता–रह य कहता हू ं उसे मने समा त कर लया है। यह वतं
और मौ लक पु तक है जो गीता के उ े य क छानबीन करती है और िजसम यह दखाया गया
है क उसम हमारा धा मक दशन आचारशा ीय सम या के समाधान म कस कार यु त
कया है, य क गीता के वषय म मेरा वचार है क यह आचारशा क पु तक है –
उपयो गतावाद, या अ त ि ट वषयक नह ,ं अ पतु ीन क “आचारशा क तावना” के ढं ग
पर कु छ–कु छ अत: ेरणा मक है। मने सव गीता के दशन क पा चा य धा मक और
आचारशा ीय दशन से तु लना क है और मने पाया है क हमारा दशन कसी पा चा य दशन
से कसी भी कम से कम न न को ट का नह ं है”। तलक के मतानुसार गीता म–सा ा कार
हो जाने पर भी कम करने क आव यकता का तपादन करती है। ई वर क ाि त होने के
पूव और बाद म भी कम करना अ नवाय है। गीता–रह य पर 1917 म अमरावती म भाषण
दया उसम उ ह ने इसक परे खा के बारे म कहा क, “ ार भ म मु झे कहने द िजए क
भगव गीता का अ ययन करने के लए मु झे ेरणा कससे मल । जब म छोटा बालक था तो

187
मेरे गु जन ऐसा कहा करते थे क पूण प से धा मक और वा त वक प से दाश नक जीवन
क , हमारे त दन के काय संकु ल जीवन के साथ संग त नह ं बैठती। य द कोई मो ा त
करने का है, जो मनु य का उ चतम ल य है, तो उसे सभी सांसा रक इ छाओं को याग कर
इस संसार म सं यास ले लेना चा हए। संसार और ई वर इन दोन भु ओं क सेवा कोई साथ–
साथ नह ं कर सकता। मने इसका यह अथ समझा क य द कोई ऐसा जीवन बताना चाहता है
जो उस धम के अनुसार िजसम म उ प न हु आ हू ँ े ठ है तो उसे िजतना ज द हो सके संसार
का याग कर दे ना चा हए। इसने मु झे सोचने को बा य कया। मने अपने लए समाधान करने
हे तु जो न रखा वह था या मेरा धम चाहता है क म संसार को छोड़ दूं और पु षाथ क
पूणता ा त करने के लए यास करने के पहले ह इसका याग कर दूं । बचपन म मु झसे यह
भी कहा गया था क भगव गीता को ऐसी पु तक के प म मा यता ा त है िजसम ह दू
धम के सभी स ा त और दशन न हत ह और मने सोचा क य द ऐसी बात है तो मु झे अपने
न का उ तर इस पु तक म खोजना चा हए और इस कार भगव गीता का मेरा अ ययन
ार भ हु आ। कसी दशन के वषय म पूव वचार से त हुए बना खु ले मन से उस पु तक
को पढ़ता है, उदाहरण के लए जब कोई ईसाई इस पु तक को पढ़ता है तब वह यह जानना
नह ं चाहता क गीता या कहती है, पर तु वह यह पता लगाना चाहता है क गीता म कोई
ऐसा स ा त है, िजसे बाई बल म दे खा है और य द ऐसी बात है जो यह न कष नकालता है
क गीता बाई बल क नकल क गई है। मने इस वषय पर गीता रह य म कया है। पर तु म
इस बात पर जोर दे ना चाहता हू ं क “य द आप कसी कताब को पढना और समझना चाहते ह,
वशेषत: गीता जैसी मह वपूण पु तक को तो आपको पूवा हर हत मन से पढ़ना चा हए। म
जानता हू ँ क ऐसा करना बहु त क ठन है। जो लोग ऐसा करने को कहते ह उनके मन म एक
छपा हु आ वचार या पूवा ह रह सकता है िजससे कु छ दूर तक पु तक का अ यन दू षत हो
जाता है। फर भी आपसे मन क उस संरचना का वणन करता हू ं िजसे उस मनु य को धारण
करना चा हए। य द वह स य पर पहु ंचना चाहता है, और चाहे यह िजतना क ठन हो इसे करना
होगा। दूसरा काम जो पाठक को करना है वह यह क उस समय और उन प रि थ तय को
यान ह रखना होगा िजसम वह पु तक लखी गयी है और उस उ े य को भी िजसके लए यह
पु तक लखी गई। सं ेप म संग को छोडकर पु तक का अ ययन नह ं करना चा हए। यह
भगवत गीता जैसी पु तक के लए वशेष सच है। व भ न भा यकार ने इस पु तक क भ न–
भ न या याएँ क है और न चय ह लेखक या क व ने इतनी या याओं के लए इसक
रचना नह ं क होगी। इस क व का केवल एक अथ और केवल एक ह उ े य इस पु तक म
होगा और मने उसे पाने क चे टा क है। मु झे व वास है क म इसम सफल हु आ हू ं य क
इस यापक प से समा त पु तक के वारा अपने कसी स ा त का समथन ा त करने क
आव यकता नह ं होने से मु झे अपने स ा त के अनुसार अथ को प रव तत करने का कोई
कारण नह ं था। गीता को कोई ऐसा ट काकार ा त नह ं हु आ िजसने अपना कोई य स ा त
नह ं चलाया है और िजसने यह दखाकर क गीता उसका समथन करती है, उस स ा त क
पुि ट करने क चे टा न क है। म िजस न कष पर पहु ंचा हू ं वह यह है क गीता ान या
भि त के वारा ई वर से सा ा कार कर लेने पर भी कता को कम करने क श ा दे ती है।

188
नै तक और ताि वक वकास के उसी माग पर संसार को चलते रहने के लए कम अव य करना
चा हए। िजसका संसार के वारा अनुसरण ई वर को अभी ट है। कम कता के, बधंन के कारण
नह ं बने, इस लए इसे अपने उ े य क सहायता करने के ल य से और होने वाले फल क
आसि त से र हत होकर करना चा हए। मेरे वचार से यह गीता क श ा है। हां, उनम
ानयोग है, उसम भि त योग है। कौन कहता है, नह ।ं पर तु दोन गीता म उप द ट कमयोग
के सहायक ह। य द हतो साह अजु न को यु करने के लए तु त करने के लए कम करने के
लए गीता का उपदे श दया गया तो यह कैसे कहा जा सकता है क उस महान ् थ
ं क सव च
श ा केवल ान या भि त है वा तव म गीता म इन सभी योग का सम वय है ओर िजस
कार वायु केवल हाइ ोजन या ऑ सीजन या अ य कोई गैस नह ं है, बि क एक वशेष
अनुपात म सब म संयु त प है, उसी कार गीता म ये सभी योग एक म संयु त है।
म जब यह कहता हू ं क ान और भि त म पूणता ा त कर लेने पर भी गीता कम
करने क श ा दे ती है तो म ाय: सभी ट काकार से अपना मतभेद य त करता हू ं। ई वर,
मनु य और संसार म एक मौ लक एकता है। संसार का अि त व है य क ई वर ने इसे वैसा
होने क इ छा क है। उ ह ं के संक प से यह टका हु आ है। मनु य ई वर से ऐ य ा त
करना चाहता है और जब यह ऐ य ा त हो जाता है तो यि त का संक प शि तशाल व व
संक प म मल जाता है। जब यह ि थ त ा त हो जाती है तो या यि त यह कहे गा क “म
कोई काम नह ं क ं गा और संसार क सहायता नह ं क ं गा........'' वह संसार िजसका अि त व
इस लए है क उस संक प ने उसे वैसा होने क इ छा क है, िजसके साथ उसने ऐ य था पत
करना चाहा। यह तकस मत नह ं है। म ऐसा नह ं कहता, गीता ऐसा कहती है। वयं ीकृ ण
कहते ह क तीन लोक म ऐसी कोई व तु नह ं है िजसे ा त करने क आव यकता है, फर
भी वे काम करते ह। वे कम करते ह य क य द वे नह ं कर तो संसार न ट हो जाएगा। य द
मनु य ई वर के साथ एकता चाहे तो उसे नि चत प से संसार के हत के साथ भी एकता
था पत करनी होगी। उसके लए काम भी करना होगा। य द वह ऐसा नह ं करता तो एकतापूण
नह ं है य क तीन म से दो (मनु य और ई वर) के बीच एकता है और तीसरा (संसार) छूट
जाता है। इस कार मने अपने लए इस न का समाधान नकाला है और म यह मानता हू ं
क संसार क सेवा करना और इस कार ई वर के संक प क सेवा करना मो का माग
सव े ठ माग है और इस माग का अनुसरण संसार म रहने से हो सकता है, उससे भागने से
नह ं हो सकता।“ तलक के अनुसार गीता एक महान और ग भीर थ
ं है। यह अ वैतवाद के
त वदशन क श ा दे ती है। अन त, चेतन, अमृत , सवाधार, पु षो तम एवं सवशि तमान त व
म इसे पूण आ था है। यह सव च आ याि मक चेतना क ाि त का माग बताती है, पर तु
साथ ह साथ यह संसार म कम के मह व का ख डन नह ं करती। न काम कमयोग का इसका
दशन ान, भि त और कम म सम वय था पत करता है। गीता हम ेरणा मक और उदा त
वर म वै दक ान, भि त और कम म सम वय था पत करता है। गीता हम ेरणा मक और
उदा त वर म वै दक और उप नष धम का सारांश दान करती है।
बोध न–3

189
न: तलक के सं द भ म गीता रह य का या मह व है ।
उ तर : ............................................................... .....................
......................................................................................

9.8 रा वाद
आधु नक भारतीय च तन म राजनी तक सोच भारतीय पर पराओं का एक स म ण
तु त करती है। व भ न धाराओं म य त होने वाला भारतीय राजनी तक च तन मु यतया
दो भाग म वभ त कया जा सकता है, एक वह िजसम भारत के आधु नक करण का यास
पि चमी आधु नक करण के अनु प कये जाने पर बल दया गया है, िजसम राजा राममोहन
राय से गोखले एवं एम. एन. राय तक एक सश त पर परा है।
दूसरे भाग म भारतीयता के संदभ को दे खते हु ए आधु नक करण क या भारत क
ाचीन सां कृ तक एवं धा मक धरोहर को पुन याि यत एवं सश त करने पर बल दया गया है।
इसम मु यतया वामी दयान द, ववेकान द, तलक और गांधी आ द ' वचारक क पर परा है।
लोकमा य बालगंगाधर तलक का रा वाद पुन थानवाद और पून नमाणवाद था।
उ ह ने रा को धम से भी उ च थान दया है। उ ह ने भारत क ाचीन परं पराओं के आधार
पर भारतीय रा वाद क थापना क । भारतीय स यता और सं कृ त से े रत तलक ने
पुन थान क भावना से रा वाद को था पत करने पर जोर दया। गीता के कमयोग व वेद
श ा को जनता के सम तु त कया। तलक का मानना था क व थ रा वाद क ि थ त
तभी ा त क जा सकती है, जब भारतीय अपने अतीत क पर पराओं को स माननीय भाव से
माने। 3 दस बर, 1919 को मराठा म लखे गये एक प म लखा था “स चा रा वाद
पुरानी नींव पर ह नमाण करना चाहता है। जो सुधार पुरातन के त घोर अस मान क
भावना पर आधा रत है। उसे स चा रा वाद रचना मक काय नह ं समझता, हम अपनी
सं थाओं को अं ेिजयत के ढांचे म नह ं ढालना चाहते सामािजक और राजनी तक सु धार के नाम
पर हम उनका अरा यकरण नह ं करना। रा वाद तलक के जीवन क बल भावना बन नया
था िजसे उ ह ने अपना सव व यौछावर कर दया। उसके आगे उनक अ य सार इ छाएं,
आकां ाएं और दलचि पयां दब सी गई। वे दे श का वतं ता पाने के काम म तन, मन, धन
से जु ट गये। वे बहु त ह छोटे –छोटे सवाल पर भी जबद त रा य आ दोलन खड़ा कर दे ने म
मा हर थे। 1907 म पूना म चले म य नषेध के दौरान एक पु लस रपोट म बताया गया था
क “'पूना म टश राज ख म हो गया है, सारे िजले पर तलक का ह अ धकार है, उ ह ं का
शासन चल रहा है।''
तलक क मा यता थी क रा वाद एक आ याि मक और मनोवै ा नक धारणा है। यह
उस पुरानी गणभि त क भावनाओं का आधु नक सं करण है, जो हम और ाचीन युग से
दे खते आए ह। लोग म ेम और अनुराग क जो भावना अपने कबीले अथात ् गण पो लस
स वटास और दे श के त थी उसी ने वतमान युग म वक सत होकर रा भि त प ले लया
है। अथात ् ाचीनकाल म जो आि मक भाव और लगाव एक े वशेष तक थे, वे अब

190
रा वाद के अ तगत स पूण रा म या त हो गये ह। िजसके प रणाम व प आज क भावना
कसी े वशेष के त नह ं अ पतु समूचे रा के त अनुभव क जाती है तलक के
अनुसार जो रा वाद रा य एकता पर आधा रत होता है वह स चा और व थ है। रा वाद
क वदे शी सा ा यवाद के व आ थक संघष या वाय त आ म नधा रत जीवन क
राजनी तक आकां ा या वाय त आ म नधा रत जीवन क राजनी तक आकां ा का ह योतक
नह ं बि क उससे सं कृ त क आ मा के वकास का भी वशेष प से प रचय मलता है।
सवमा य वारा बोल जाने वाल एक भाषा, कसी एक ह वा त वक अथवा का प नक जा त से
सब क उ पि त का व वास, एक ह भू म पर नवास और एक सामा य धम म कु छ बहु त ह
मह वपूण व तु गत त व है िजनसे रा वाद क भावना उ प न होती है।''
लोकमा य तलक ने रा वाद के वकास म सावज नक उ सव को मह वपूण थान
दया। उनके अनुसार उ सव और समारोह रा वाद के तीका मक त व ह। एक ओर वे अपने
शा मल होने वाल म या त एकता के बंधन को दशाते ह वह ं उनसे उन एकता क भावनाओं
को बल और उ तेजना मलती है यह सब नमाता और रा नेता ह होते ह जो अपने का सहारा
लेकर इन भावनाओं को सृजना मक शि तय के प म वां छत काय म नयोिजत कर सकते
ह। वज, रा च ह वतं ता दवस समारोह तथा उ सव गंभीर भावनाओं को तीका मक प
दे ते ह। इस कार का तीक योग पाश वक जीवन क मांग और आव यकताओं क पू त म
डू बे रहने से कह ं अ धक ग तशील है। तीक योग सां कृ तक वकास का योतक है, य क
वह बताता है क मनु य भौ तक जीवन से उठ रहा है और रा जैसी कसी बडी वैयि तक
स ता के आन द और आहलाद का अनुभव कर सकता है।
तलक ने समझाया क ''मैने शवाजी और गणप त उ सव को ो साहन इस लए दया
है क उनके वारा वतमान घटनाओं और आ दोलन को ऐ तहा सक पर पराओं के साथ। संबध

जोड़ा जा सके”। गणप त और शवाजी उ सव आज महारा के जीवन के अंग बन गये है।
आज के युवकगण यह व वास नह कर पाते क धा मक पव क तरह मनाये जाने वाले ये
उ सव 70 वष पूव तलक ने आर भ कये थे।
तलक पहले राजनी तक नेता थे िज ह ने धम के मा यम से राजनी त म चार कया
और 20वीं शता द क पहल कु छ दशाि दय म ाि तकार नेता व संगठन का मा यम बना।
एक नेता के प म तलक महारा म अपने अनुया यय का शि तशाल संगठन खडा करना
चाहते थे और इसके लए उ ह ने जनता क धा मक व ऐ तहा सक पर पराओं को तीका मक
प दे ने का य न कया। गणप त और शवाजी उ सव महारा के उदायीमान भावना मि डत
रा वाद के तीक प म यु त होने लगे।
रा वाद वदे शी सा ा य के व आ थक संघष और वाय त आ म नधा रत जीवन
क राजनी तक आकां ा का ह योतक नह है अ पतु उससे सं कृ त क आ मा के वकास भी
वशेष प से प रचय मलता है।
रा यता के आवेश को आ याि मक रं ग दे ने के लए उ ह ने गणप त उ सव को फर
से जागृत कया और साथ ह शवाजी क उपासना का पंथ भी शु कया। गणप त उ सव
वारा उ ह ने एक धा मक उ सव को सामािजक एवं राजनै तक अथ दया तथा शवाजी उ सव

191
वारा रा य भावनाओं को उभारने और संग ठत करने का काम कया। तलक उ सव का
दोहरा मह व वीकार करते थे – एक ओर तो इनके मा यम से एकता क भावना अ भ य त
होती है और दूसर और उ सव म भाग लेने वाले यि त यह अनुभव करने लगते ह क उनके
संगठन ओर उनक एकता को कसी े ठतर काय म लगाया जा सकता है। तलक ने ाचीन
उ सव को कसी कार आधु नक रा य आव यकताओं के अनुकू ल बना दया यह नःस दे ह
उनक राजनी तक और नेत ृ व तभा का सु दर व अधभू त उदाहरण है।
शवाजी उ सव 1896 म शु हु आ। वह ं सावज नक गणेश उ सव का वचार भारतीय
रा य म फैलने लगा और 1896–97 तक वह स पूण महारा म मनाया जाने लगा। जहां
गणप त पौरा णक दे वता थे वहां मराठा सा ा य के सं थापक शवाजी ऐ तहा सक यि त थे।
मराठा म 24 जू न, 1906 म लखा था – “वीर पूजा मानव का वभाव है और अपनी
राजनै तक आकां ाओं को मू त कराने के लए एक भारतीय महावीर के आदश क हम
आव यकता थी। इसके लए शवाजी से उ तम च र मलना असंभव था। हम अकबर या
भारतीय इ तहास के अ य च र क याद म उ सव आर भ करने के व नह ।ं इनका अपना
एक मह व होगा क तु शवाजी का नाम सारे दे श के लए एक व श ट मह व लए हु ए है
और हर दे शवासी का यह क त य है, क वह इस च र को व मृत और वकृ त न करे । हर
महापु ष चाहे वह भारत का हो या यूरोप का अपने युग के अनुकू ल ह काय करता है यह
स ा त य द हम मान ल तो हम शवाजी के जीवन म कोई भी ऐसा काय नह ं मलेगा
िजसक हम न दा कर सक। शवाजी के दय म वतं ता क जो भावना आर भ से अंत तक
थी उसी भावना के कारण यह रा के आदश माने जाते ह।
इस कार एक राजनी तक आंदोलन के कृ म वचार ने एक नाग रक धम का प
धारण कर लया। इन उ सव को ार भ करके तलक ने रा य भावनाओं को जनता तक
पहु ंचाने का य न कया। िजसम वे सफल रहे । गणप त उ सव जनता म रा वाद भावनाओं
को जगाने क दशा म एक बड़ा सफल योग था और इस ि ट से उसने महारा क जनता
क मान सक दशा को भा वत कया।
'गणप त उ सव से व या थय के कू ल व कॉलेज म रा वाद आंदोलन जागृत हु आ।
साथ ह एथले टक लब से जु ड़ गये इ ह ं सब वकास के साथ महारा म “अ भनव भारत”
जैसे संगठन का उदय हु आ। िजसने कई ां तकार नेताओं को ज म दया। साथ ह महारा
और इसक सीमाओं से लगे भारतवष के कई े म संगठन के लए नेत ृ व कया।'
23 अ ेल 1895 को केसर म लेख का शत हु आ िजसम महारा ट क जनता से
शवाजी के ऐ तहा सक जीवन क र ा क अपील क गई। तलक शवाजी को गीता के अथ म
एक वभू त मानते थे। 1908 म तलक के कलक ता पहु ंचने से पहले वहां शवाजी उ सव
पा चा य ढं ग से मनाया जाता था, सभा बुलाई जाती थी और भाषण कये जाते थे। क तु जू न
1906 म तलक के वहां पहु ंचने के बाद ह दू प त से उ सव मनाया गया।
गणप त पूजा क सु धारक ने हंसी उड़ाई य क उसक व ध धा मक यौहार का
अनुकरण थी। तलक ने आलोचना का उ तर दे ते हु ए लखा क ''जो यह कहते ह, क गणप त
क झां कयाँ मु सलमान के तािजय क नकल है, उ ह ने आषाढ़ व का तक क एकादशी क
192
भजन म ड लय को नह ं दे खा। लेिजक का खेल, नगाड़ क गड़गड़ाहट और इसी कार के
अ य काय ाय: हर मेले म होते ह, पछले दो तीन वष से ह दू मोहरम के अवसर पर
मु सलमान पीर क मनौती मनाते रहते ह कारण हम हर धम का मान करते ह।
ह दुओं म सामंज य और एकता क भावना उ प न करने के उ े य से तलक ने
रा वाद के वकास म सावज नक उ साव को मह वपूण माना। तलक का कहना था ''मानव
यवहार ह इस तरह का है, क बना उ सव हम उसे नह ं रह सकते। यह मानव क कृ त है,
क वह उ सव से यार करता है य द तु ह अपनी भावना को बनाये रखना है, तो साल म एक
बार अपने आंत रक व आि मक शि त को थायी वचार के लए केि त करना होगा। यौहार
चल गई मृ त को बनाये रखने के लए मनाये जाते ह। दुभा यवश भारतीय रा य कां ेस के
अलावा हमारे पास हमारे वीर क याद म कोई राजनी तक उ सव नह ं है। यह कारण है क
महारा म शवाजी उ सव इसी आशा के साथ शु कया गया क यह पूरे दे श म बना
जा तगत या धा मक भेदभाव के फैले।
ाचीन यूनान दे श के ओलि पक यौहार और अ य दे श के रा य पव का उदाहरण
दे ते हु ए उ ह ने जोरदार श द म जनता से अनुरोध कया क वह गणप त उ सव म पूरा
सहयोग दे यह उ सव शु से ह बना जात–पात के भेदभाव से मनाया जाता था।
9 अ ेल, 1901 को तलक ने केसर म एक लेख का शत करके बताया कां ेस
आ दोलन का उ े य कु छ व श ट अ धकार को त काल ा त करना है जो क शवाजी उ सव
एक फू तदायक और औष ध क भां त है िजससे सामािजक तथा राजनी तक जीवन क नींव
सु ढ़ होती है। तलक के अनुसार रा वाद कोई यमान थू ल नह ं वह तो एक भावना मक
यय है और इस भावना को जागृत करने म दे श के महापु ष क ऐ तहा सक मृ तयाँ
मह वपूण योग दे ती है। शवाजी के मन म लोक क याण क भावनाएं थी उ ह ने कभी
थानीय वीथ अथवा समाज म कसी वग वशेष के हत म नह ं सोचा।
तलक साहसी व नभ क यि त थे, शवाजी और गणेश उ सव का चार करने क
योजना के मूल म तलक का यवि थत राजनी तक दशन था। वे भारतीय जनता क भावना
और संवेग को जागृत करना चाहते थे। शवाजी उ सव मु ि लम वरोधी है, इसका उ ह ने बार–
बार ख डन कया। स हवीं शता द म शवाजी ने उन मुसलमान से यु कया जो उ पीड़क थे
आज ऐसी कोई ि थ त नह ं है। बंगभंग वरोधी आद लन के दन म तलक ने एक जु ट होने
क बात कह ।
ाय: तलक पर यह आरोप लगाया जाता है क वे ह दू पुन थानवाद थे।
सा दा यकता से ओत ोत शवाजी और गणप त उ सव उनके वारा चलाये गये। जब क यह
नराधार आरोप है क यह पूण स य है, क वे ह दू जनता म इन उ सव के मा यम से
उ साह व जोश पैदा करना चाहते थे क तु मु ि लम या अ य जा तगत भेदभाव के आधार पर
उ ह ने लोग के साथ कोई दु यवहार नह ं कया।
तलक ने इस मत को वीकार कया क भारत म रा यता तभी मजबूत और ढ़ रह
सकती है, जब जनता जा त भेद भु ला कर सौहा व व वास को मह व दे । यह कारण था क

193
तलक ह दू–मु ि लम सहअि त व क भावना को य दे ते थे। साथ ह अं ेज क ह दू–
मु ि लम वरोधी नी त का अपन प मराठा व केसर के वारा बल श द म वरोध करते थे।
यह स य है क तलक भारत के रा य आ दोलन को ह दु व के सश त सां कृ तक
और धा मक पुन थान के वारा बल दान करना चाहते थे। क तु रा वाद के संबध
ं म वे
आ थक तक को भी वीकार करते थे। तलक और गोखले दोन ह ने वीकार कया क
वदे शी सा ा य के कारण भारत के आ थक साधन का भार नगम हु आ है। 1897 म रानी
व टो रया क ह रक जय नी पर तलक ने केसर म तीन लेख लखे। 22 जू न 1897 के लेख
म लखा '' टश शासन के अ तगत भारतीय उ योग व कलाओं का ास हु आ है। उनका
कहना था क वदे शी पू ज
ं ीप तय वारा भारत म जो धन लगाया गया है, औ यो गक दशा म
कदम उठाये गये ह वह मा दखावा ह। उ ह ने दादाभाई नोरोजी वारा दै बी आयोग के सम
दये गये सा य का उ लेख कया।
तलक भारतीय रा वाद के आ थक आधार के त जागृत थे उ ह ने वदे शी आदोलन
के आ थक प को भी मह व दया। भारत म वदे शी आंदोलन ने आ याि मक तथा राजनी तक
व प धारण कर लया। वह व तु त: दे श क राजनी तक मुि त के लए रा क शि तय को
उ मु त करने का आंदोलन बन गया। गोखले ने बनारस के अपने अ य ीय भाषण म इसे
रा म
े का आंदोलन माना िजसका उ े य पू ज
ं ी और मता का ववेक संगत उपयोग करके
उ पादन को बढ़ावा है। तलक तथा बंगाल अ तवा दय के नेत ृ व म िजस वदे शी आंदोलन का
वकास हु आ वह वा तव म आयरलै ड सन फन आंदोलन का त प था।
तलक से पूव दयान द सर वती ने भी इस वचार का सू पात कया था क तु तलक
वारा यह लोक य बना अ पतु टश शासन के व भारतीय को अपना राजनी तक वरोध
करने का सश त मा यम ा त हु आ। तलक ने बंग भंग को एक छपा वरदान बताया य क
इसने रा को एकताब करने क चेतना उ प न कर द । दरअसल ब ह कार आंदोलन पहले ह
शु हो चु का था और तलक ने केसर के स पादक य म लखा था क, ''लगता है क बहु त से
लोग ने ब ह कार आदोलन के मह व को समझा नह ।ं ऐसा आंदोलन आव यक है, वशेषकर
उस समय जब एक रा और उसके वदे शी शासक म संघष चल रहा हो। इं लै ड का इ तहास
इस बात का वलंत उदाहरण तु त करता है क वहां क जनता अपने स ाट को कैसे नाक
चले चबवाने के लए उठ खड़ी हु ई थी य क स ाट ने उनक मांग पूर करने से इंकार कर
दया था। सरकार के व ह थयार उठाने क न हमार शि त है और न ह कोई इरादा ले कन
दे श से जो करोड़ पये बाहर जा रहे है। या हम उसे बंद करने का यास न कर? या हम
नह ं दे ख रहे, क चीन ने अमे रक माल का जो ब ह कार कया था। उससे अमे रक सरकार क
आँख खु ल ।...... इस लए हम व वास है क, वतमान संकट म दे श के दूसरे भाग क जनता
बंगा लय क सहायता म कु छ भी कसर न उठा रखेगी।
तलक ने वदे शी और ब ह कार आंदोलन के राजनी तक मह व को उजागर कया।
उ ह ने लोग से कहा क चाहे कु छ भी याग करना पड़े वे वदे शी का उपभोग कर। वी. सी.
जोशी ने लखा है, '' वदे शी का उ े य है िजन व तु ओं का आयात कया जाता है, घर म

194
उ पादन करना तथा ब ह कार का अथ है उपभोग म उन व तु ओं को अ नय मत करना नमाण
भारत म नह ं होता।''
तलक ने वदे शी उ योग पर जोर दे ते हु ए कहा ''हमारे दे श म य द लघु उ योग धंधे
शु कये जाय तो अ धक अ छा होगा। उदाहरण के लए मा चस जैसे धंधो का नमाण अपने
अधीन कया जाय। य क इनके उ पादन म खचा यातायात के साधन व अ य चु ंगी के स हत
भी कम बैठेगा। ांस व जमनी यु के प चात ् भी जमनी 50 वष के अ दर ह उ योग ध ध
के शु करने से औ यो गक प से वक सत हो गया था। हम बहु त ह छोट –छ चीज जैसे
पेि सल, पेन, हो डर, सु ई आ द पर भी दूसर पर नभर ह, य नह ं सरकार तकनीक कू ल
और श ण क यव था करती, ता क हमारे नवयुवक इन व तु ओं का नमाण कर? पर
सरकार यह नह ं चाहती क तकनीक श ा हम मले। इं लै ड ऐसा करके कु छ भी खोना नह ं
चाहता वह इन व तु ओं को न मत नह ं करता। मा चस नमाण हमारे यहां बड़े पैमाने पर वन
स पि त और क चे माल के वारा संभव हो सकता है।''
तलक ने इस बात पर जोर दया क उनक कृ त ''गीता'' वदे शी कागज पर छपे जो
प जी पेपर मल बा बे, रमा पेपर मल पूना म ह छपे।
तलक ने केसर म लखा ''हमारा रा एक वृ क तरह है िजसका मू ल तना
वरा य है और वदे शी तथा ब ह कार उसक शाखाएं। तलक का वचार था क वदे शी' अपना
लेने से भारतीय उ योग के वकास को एक सु ढ़ आधार ा त होगा और उ ह वदे शी
तयो गता से बचाया– जा सकेगा।
वदे शी क भां त ब ह कार का भी मू ल उ े य यह था क टश सरकार के आ थक
हत पर दबाव डालकर उसे अपनी मांग मनवाने के लए ववश कर दया। जब ब ह कार
आंदोलन बहु त अ धक चल रहा था व पन च द पाल ने आ थक और राजनी तक दोन ह
ब ह कार क बात क । तलक ने उनके वचार से सहमत हो कर कहा ''हम सै यकृ त नह ं ह
और न ह हम इसक ज रत है, हमारे पास एक मजबूत ह थयार है और वह है राजनी तक
ब ह कार। इसे अपनाते हु ए हम कसी लगान को इक ा करने व शां त बनाये रखने म सहायता
नह ं दगे। हम उनको भारत म या इसके बाहर भारतीय खू न या धन से कोई सहायता नह ं दगे
हम उनको शासन म भी सहायता नह ं करगे। हमार अपनी अदालत ह गी और जब समय
आयेगा हम कोई कर भी नह ं दगे”।
ले कन वदे शी या ब ह कार आंदोलन वदे शी वचार या वदे शी कलाओं को सीखने म
अवरोध नह ं बने। वे रा य यव था म एक भूत हु ए है! रा य प र े य म हो गये तथा
रा य जीवन म संयु त हु ए ह।
इस कार तलक का रा वाद यथाथ के धरातल पर सां कृ तक प रवेश के अनुकू ल
था, वे अपने रा वाद म पि चमी रा वाद क तरह मा राजनै तक प को शा मल नह ं करते
थे, बि क उसके सभी पहलु ओं को उसम शा मल मानते थे। उसम सां कृ त एवं राजनी तक प
के समान ह आ थक रा वाद भी शा मल था।
बोध न – 4

195
न: रा वाद के वतन के तलक ने शवाजी एवं गणप त उ सव से य धानता
द?
उ तर : ...........................................................................................
...........................................................................................

9.9 सारांश
तलक उ वाद वचार के आधार पर शरोल ने उ ह अशां त का जनक कहा है, उसके
अनुसार तलक ने ह याओं को ज म दे ने वाले वातावरण का नमाण कया है मगर तलक ने
हंसा और ां त को कभी ो साहन नह ं दया। यह सह है, क अ हंसा तलक के जीवन क
नी त या मू य कभी नह ं रह ले कन फर भी सु वधा के प म इसका योग कया। तलक
वरा य क पा चा य धारणा पर व वास नह ं करते थे। वरा य क धारणा को याि वत
करने के लए सावज नक प म ां त को उपयु त नह ं माना। तलक का युवा ां तका रय से
स पक था मगर उ ह ने इ ह सदै व संयत कया। तलक बाकु नन, ोपेट कन या ले नन क
भां त ां तकार नह ं थे तलक ने तो रा य श ा, वदे शी व तु ओं के चार, वदे शी व तु ओं
के ब ह कार, नि य तरोध एवं सां वधा नक आ दोलन वारा वरा य ाि त का माग
दखाया। जनता को अ धकार के लए संघष करने का उ साह पैदा कया।
1919 म मो टफोड सु धार के स ब ध म तलक ने जो सू झ– बूझ का प रचय दया
और कहा ''नौकरशाह वारा भारत को जो कु छ दया जा रहा है उसे वीकार कर, अ धकार के
लए अपना आ दोलन जार रखना चा हए।'' 20 अ ल
ै 1920 को कां ेस डेमो े टव पाट को
घोषणाप पर तलक ने ह ता र कये। यह घोषणा प तलक क उ तरवत राजनी तक
वचारधारा का वसीयतनामा कहा जा सकता है। ईन सब ब दुओं के आधार पर तलक पर
लगाये गये आरोप नराधार ठहराये जा सकते ह। उनका सावज नक जीवन न कलंक था। वे
अशां त के जनक नह ं थे य क वे एक ऐसे दे शभ त थे िजनका दय भारतीय क दुदशा
दे खकर रोता था और यह कहते नह ं अघाते थे क वरा य मेरा ज म स अ धकार है और म
इसे लेकर रहू ंगा। उनका वचार था क भारत जैसे पूणत: नःश ीकृ त और वघ टत समाज म
सश ाि त रा य इ तहास को ग त दान नह ं कर सकती। तलक ने नर तर यह तक
दया क म रा वाद हू ँ और अपने दे श से ेम करता हू ँ। क तु म ऐसी योजना से प र चत
नह ं हू ँ िजसका उ े य वतमान राजनी तक यव था को हंसा मक तर के से उलट दे ना हो। इस
कार तलक अशां त के जनक नह ं थे। उ ह ने तो भारतीय जनता को वतं ता ाि त हे तु
जागत कया।

9.10 अ यास न
1. राजनी तक चंतन म तलक के योगदान का वणन क िजये।
2. रा य श ा एवं सामािजक वचार पर लेख ल खये।
3. तलक के रा वाद, वदे शी, वरा य एवं ब ह कार से स बि धत वचार क या या
क िजये।

196
9.11 संदभ थ सू ची
1. कसमैन, आर.आई – लोकमा य तलक ए ड मॅस पॉ ल ट स इन महारा ा, बकले
यू नव सट ेस, बकले 1975।
2. वमा, वी.पी. – लाइफ ए ड फलोसोफ ऑफ लोकमा य तलक, ल मीनारायण
अ वाल, नई द ल 1978
3. इनामदार, एन.आर. – पो ल टक : नई द ल , ल ड शप ऑफ लोकमा य तलक,
कॉ से ट : नई द ल , 1983।
4. पथम, थामस ए ड डायच, केनेथ एल. : पो ल टकल थॉट इन मॉडन इि डया, सेज : नई
द ल 1986

197
इकाई–10
ववेकान द
इकाई क परे खा
10.0 उ े य
10.1 तावना
10.2 वामी ववेकान द जीवन प रचय
10.3 धम स ब धी वचार
10.3.1 ववेकान द एवं ह दू धम
10.3.2 सा दा यकता का वरोध
10.3.3 सावभौ मक धम
10.3.4 धम का मानवतावाद व प
10.4 रा वाद व राजनी त क अवधारणा
10.4.1 शि त व नभयता का स ांत
10.4.2 अ तरा यतावाद
10.5 सामािजक च तन
10.6 श ा स ब धी वचार
10.7 सम ि ट
10.8 सारांश
10.9 अ यास न
10.10 संदभ थ
ं सू ची

10.0 उ े य
इस इकाई को पढने के उपरा त आप जान पायगे–
 धम व भारतीय रा वाद के अ तस ब ध क ववेचना
 वामी ववेकान द वारा भारतीय समाज के पुन थान के लए कए गये यास क
या या
 भारतीय रा वाद के वकास म वामी ववेकान द क भू मका, एवं
 ववेकान द के राजनी तक च तन का सम व लेषण।

10.1 तावना
आधु नक भारतीय राजनी तक चंतन का उ गम समाज व धम सु धार आ दोलन से
हु आ है। वदे शी शासन व पि चमी च तन धाराओं ने भारतीय च तन व सं कृ त क उपादे यता
के स ब ध म जो चु नौती तु त क उसक एक वशेष त या उ प न हु ई। आधु नक
भारतीय राजनी तक च तन का उ े य रा य, सरकार, स भुता आ द मौ लक धारणाएं दे ना
नह ं था वरन ् जातीय, सा दा यक, सामािजक, आ थक शोषण और अ ानता के चंगल
ु से भारत

198
को राजनी तक ि ट से बु बनाना था। आ याि मक रा वाद का वचार, आधु नक भारतीय
वचारक क अनुपम दे न था।
वतमान म धम और रा वाद के अ तस ब ध को संदेह क ि ट से दे खा जाता है
जब क भारतीय संदभ म धम जीवन का मू ल आधार है। ाचीन काल से भारत म धम को
मानवतावाद सावभौ मक प म कट कया गया। भारतीय रा वा दय पर वदात ह दू धम का
प ट भाव था। वामी ववेकान द ने अपने चंतन म कई पूवकाल न अवधारणाओं को
समकाल न संदभ म प रभा षत कया और एक नई सामािजक राजनी तक समझ को ज म
दया। मू लत: आ याि मक वचारक होने के कारण वामी ववेकान द के राजनी तक च तन
आधार धम रहा। इसी आधार पर वामी ववेकान द ने रा क वत ता एवं आ मस मान
मह व दे ते हु ए रा के आ याि मक पहलू को था पत कया जो उ ह पि चमी रा वाद चंतन
अलग कर दे ता है य क पि चम म रा वाद का वकास, मह वपूण सां कृ तक त व धम से
होकर हु आ ह। वामी ववेकान द से पूव व भ न काल म धम के व प व यव था म
ढयां गई थीं, िजससे न केवल यि त क ि थ त बदतर हु ई वरन ् समाज व रा भी ल बे
समय तक अ ान पी अंधकार म रह, ऐसी ि थ त म ववेकान द ने धम के यवहा रक प
को पहचानने क पर बल दया। धम म यि तगत एवं सामािजक दोन पहलु ओं को मह व
दया और कमका ड से अलग राजनी तक एवं सामािजक चंतन म उसक वशेष भू मका पर
बल दया। वदात के आधार पर वामी ववेकानंद ने समानता, क त य, अ धकार एवं याय
इ या द राजनी तक अवधारणाओं क या या क । वामी ववेका द ने धम के मा यम से रा
को पुन : जागृत करने का यास कया, इस हे तु रा वाद के नभ क, संग ठत एवं वावल बी
मू य को था पत कया। वामी ने धम को यि त के वकास का मा यम न मानकर उसके
सामािजक व प को मह व दया। सामािजक वषमता, ढ़वा दता, संक ण क रता, अस ह णु
सा दा यकता, जातीयता नबलता एवं को समा त कर सश त भारत का आदश दया िजसम
सबको समान अ धकार के साथ–साथ समान अवसर दे ने वाल यव था हो। सावभौ मक धम क
थापना को मह व दे ते हु ए उसे मानव के क ट व संघष से मुि त दलाने म सहायक के प
म तपा दत कया।
इस इकाई के अनुभाग 10.2 म आप वामी ववेकान द के जीवन वृत क जानकार
लेग। इसम ववेकान द के च तन के वकास म सहायक त व का ववेचन गया है। 10.3 म
वामी ववेकान द वारा द गई धम क अवधारणा का अ ययन करग। इस के मा यम से
आप जान पाऐंगे क उनक धम क अवधारणा सा दा यक व पंथ आधा रत न होकर,
मानवतावाद है। इकाई के 10.4 म रा वाद से स बि धत वचार का ववेचन कया गया है
जो धम से अनु ा णत है। वामी ववेकान द के सामािजक च तन का ववेचन 10.5 म दया
है। इसम आप वामी ववेकान द वारा बताये सामािजक पतन के मू ल कारण के साथ–साथ
सामािजक उ थान के स ब ध म उनके वचार को जान पाएग। वामी जी के श ा स ब धी
वचार का ववेचन 10.6 म दया गया है, िजसम ान को अ त न हत मानते हु ए श ा क
आव यकता के को तपा दत कया गया है।

199
10.2 वामी ववेकान द : जीवन प रचय
वामी ववेकान द का ज म 12 जनवर 1863 को कलक ता के एक कु ल न प रवार
म हु आ था। उनका वा त वक नाम नरे नाथ द त था, ववेकान द नाम उ होन स यास हण
करने के उपरा त शकागो (अमे रका) म धम संसद म भाग लेने हे तु ब बई जाते समय हण
कया था। उनका यि त व भावो पादक, मु खमंडल तेजोमय था। उनक बु खर थी और
मृ त वल ण। उनके स ब ध म यह स है क उ ह 'एनसाई लोपी डया टे नका' के
यारह खंड कंठ थ थे। वामी ववेकान द अपने महा व यालयी जीवन म एक अ छे व ता के
प म जाने जाते थे। उनके पता कलक ता उ च यायालय म वकालत करते थे। उनक माता
ह दू धम क मह ता म व वास रखने वाल वदुषी म हला थी। माता के स गुण का उन पर
वशेष भाव पडा। उ होने ''जे.एस. मल, ह गल, डे वड ू म, कांट व फ टे , ि पनोजा, शोपेन
हॉवर आ द–पि चमी दाश नक क रचनाओं का वश व गहन अ ययन कया।'' वामी
ववेकान द म समाज के वचार से भा वत थे। ले कन वैचा रक अ त व व के चलते वे
नाि तकतावाद व सशंयवाद क ओर भी वृत हु ए। अपने म बृजे नाथ सील क ेरणा से
उ होन शेले व व सवथ को पढा और साथ म परम म के त व ान क ओर वृत हु ए।
'' वामी ववेकान द के वचार म बु वाद , वेदा त के अ वैतवाद, ह गल के व वा मक
परमत व तथा ांस क रा य ां त के येय वा य' वतं ता, समानता एवं ातृ व ' का व प
दखाई दे ता है। उ होन यि तवाद के थान पर सावभौ मक ववेक को े ठ माना।“
वे स य ान क खोज म नव बर 1881 म रामकृ ण परमहंस के स पक म आए।
1886 म रामकृ ण परमहंस क मृ यु के समय ववेकान द उनके मु ख श य थे। उ होन
गृह था म का याग कर दया ओर हमालय के जंगल म साधना करने लगे। ''6 वष तक
अ य धक कठोर संयम म रहे। प र ाजक के प म उ होन भारत म मण कया। िजससे उ ह
साधारण जनता के भयंकर क ट और उसक तकल फ का पता चला।'' (दे ख अव थी, पृ. 74)
वामी जी ने 1893 म व व धम संसद के शकागो स मेलन म भाग लेने का नणय
लया। खेतड़ी (राज थान) के त काल न ठाकु र साहब ने शकागो स मेलन म सि म लत होने
का यय वहन कया। यह स मेलन वामी ववेशान द के जीवन म एक व णम अ याय बन
गया। भारतीय वेदा त क आधु नक अथ म या या कर वामी ववेकान द ने द य संदेश
दया। उनका भाषण भारत क सावदे शकता और वशाल दयता से ओत ोत था। वे पहले
यि त थे िज ह ने पि चम क भौ तकवाद जनता के स मु ख भारत के आ या मवाद का महान ्
आदश उपि थत कर अपने दे श के वा त वक व प का च पि चम के सामने रखकर उ ह
च कत कर दया। 1895 म भारत लौटने पर उ ह ने ह दू जा त क अ तरा मा को जगाने का
य न कया और अ ध व वास व कु थाओं को दूर करने के लये काय ार भ कया। 1897
म कलक ता के पास बैलू र म उ ह ने व यात रामकृ ण मशन क थापना क । एक वष
प चात उ होन सान ां सको, पे रस व म क या ाऐं क । सं कृ त व वेदा त के अ ययन के
लए उ होने बनारस म एक पाठशाला था पत क । अ य धक कायभार के कारण वामी

200
ववेकान द का वा य नर तर गरने लगा, ले कन इसक परवाह कये बना वे अपने काय
म लगे रहे । अ तत: मा 39 वष क अ पायु म 4 जु लाई 1902 को उनका दे हावसान हो
गया। भारतीय चंतन म कमयोग का उनका संदेश आज भी ेरक शि त है।

10.3 धम स ब धी वचार
धम एक शा वत अवधारणा के प म मानव इ तहास म अवि थत रहा है। यह केवल
दशन अथवा ई वर य साधना का वषय मा ह नह ं वरन ् जीवन के सम त पहलु ओं से
स बि धत रहा है। भारत म धम एक व श ट उपासना प व त तक ह सी मत नह ं रहा वरन ्
उपासना प व त उसका एक अंग मा है। धम श द क उ पि त 'धृ' धातु से हु ई है िजसका
अथ धारय त इ त धम:' अथात धारण कया जाए या िजसे आचरण म धारण कर सक। धम के
प म वधान, नै तक सदाचार, स कम, कत य, याय प व ता, नी त आ द को प रभा षत
कया गया।
वामी ववेकानंद के धा मक वचार के नमाण का मु ख वेद व वेदा त दशन
रामकृ ण परमहंस का भाव व वयं के नजी अनुभव था। उ ह ने के दशन को यावहा रक प
दे ने का यास कया। उनका मानना था क वेदांत उस ई वर मे नह ं करता जो मृ यु के प चात
तो वग म सम त सु ख दे सके, क तु जी वत यि त को रोट ह उपल ध नह ं करा सके।
उनका मानना था क मानव क वा त वक कृ त ई वर य है और वेदांत, संसार
यागने के उपदे श के थान पर सम त व व को ममय बनाने का पाठ सखाते ह। उ होने
अपने समय के अ य वचारको से अलग ई वर के नगु ण व सगुण दोनो प को वीकार
कया।
‘ईशाव य तदम सवम’ क धारणा से उनके वचार म अ वैत, एवं व श टा वैत तीन
का अदभूत म ण दखाई दे ता है। वामी ववेकानंद ने कहा क वेद ने शु ेम क श ा द
है। इसी आधार पर शकागो धम संसद को स बो धत करते हु ए उ ह ने कहा – हे अमृत के
पु गण ! बंधु ओ, इसी मधु र नाम से मु झे तु ह पुकारने दो। हे अमृत के अ धका रगण। सचमुच
ह दू तु ह 'पापी कहना अ वीकारता है, तु म तो ई वर क संतान हो, अमर आनंद के हो, प व
और पूण आ मा हो। तु म इस भू म पर दे वता हो। तु म भला पापी? मनु य को पापी कहना ह
पाप है, वह मानव वभाव पर घोर लांछन है।।
उठो! ए संहो! तु म तो जरामरण र हत न यानंदमय आ मा हो। तु म जड़ पदाथ नह ं
हो, तु म शर र नह ं हो। जड़ पदाथ तो तु हारा गुलाम है, तु म उसके नह ं हो। अत: वेद ऐसी
घोषणा नह ं करते क यह सृि ट यापार क तपय भयावह, नदय अथवा वधान का वाह है
और न ह यह क वह काय कारण का अ छे घ बंधन है। वेद घो षत ह क इन सब ाकृ तक
नयम के मू ल म येक अणु – परमाणु म शि त के येक प दन म ओत ोत वह एक
पुराण पु ष वराजमान है, िजसके आदे श से वायु चलती है, अि न दहकती है, ‘बादल बरसते ह
और मृ यु पृ वी पर इत तत', नाचती है।

201
पूव व पि चम के दशनशा का तु लना मक अ ययन करके वे यह मानते थे क
पि चम क तु लना म भारतीय का सा ह य, ान व ान इ तहास, सं कृ त और धम का प
कह ं अ धक स ह णु और समृद है। पर तु वे हर सं कृ त क अ छाइय को आदर क ि ट से
दे खते थे और उनसे सीखने म कोई संकोच नह ं करते थे।
ववेकानंद ने वेदांत को त दन के जीवन क पा रवा रक और सामािजक सफलता क
कं ु जी बताया, उ ह ने वेदांत क या या यि त के उ थान, समाज के नमाण तथ रा के
सम वय के श के प म क।
ववेकानंद के चंतन म सावदे शकता या त थी, वेदा त के आहार पर वे एक ऐसा
दशन वक सत करना चाहते थे, जो सम त संघष को दूर करके मानव जा त बहु मु खी स पूणता
के उस तर पर उठा सके जो उसका ा य है। ववेकान द क धम क प रभाषा अनुसार , धम
वह नै तक बल है जो यि त और रा को शि त दान करता है। उनका मानना था क
भ व य म धम ह भारत का मे द ड बनेगा।

10.3.1 ववेकान द और ह दू धम

ाचीन काल म ' ह दू’ श द का योग कसी धम के प म नह ,ं वशेष लोग के


संदभ म हु आ है। एक वशेष धम के प म ह दू श द का योग तो बहु त बाद म आर भ
हु आ। ह दू धम म मौजू द व भ न मत–मता तर इसे दु ह पंथो, कमकांड , अंध व वास ,
ं मानते थे, इसी लए यूरोपीय इसक आलोचना करते
पर परागत मत व आ दम कमकांड का पु ज
थे।
वामी ववेकान द ने ह दू धम क या या कसी संकु चत अथ, उपासना, प त या
वशेष कमकांड के आधार पर नह ं क । उनका कहना था– ''हम लोग ह दू ह। म ह दू श द
का योग कसी बुरे अथ म नह ं कर रहा और म उन लोग से कदा प सहमत नह ,ं जो उससे
कोई बुरा अथ समझते ह। ाचीन काल म इस श द का अथ था – स दु नद के दूसर ओर
बसने वाले।“
वामी ववेकान द ने ह दू धम को मह व दया। उ होन 'धम' व ' ह दू’, इन दो श द
को समानाथक माना उनका मानना था क य द कोई ह दू धा मक नह ं है तो वे उसे ह दू ह
नह ं मानते। उनका कहना था क येक धम म ई वर को माना जाता है ले कन धम से जु ड़ा
यि त वयं के धम को ह े ठ समझता है ठ क वैसे ह जैसे एक कं ु ए का मढक अपने कं ु ए
को ह स पूण संसार समझता है। जब क ह दू धम म माना जाता है क जैसे व भ न न दयाँ
भ न– भ न ोत से नकल कर समु म मल जाती ह, उसी कार व भ न टे ढ़े मेढ़े अथवा
सीधे रा ते से जाने वाले लोग अ त म ई वर म ह आकर मल जाते ह।
ववेकान द ने व व धम संसद म कहा था, क ऐ तहा सक युग के पूव के केवल तीन
धम ह आज संसार म वधमान है – ह दू धम, पारसी व यहू द धम। ये तीन धम अनेकानेक
चंड आघात के प चात भी लु त न होकर आज भी जी वत ह। यह उनक शि त का माण
है। उनका मानना था क जहाँ यहू द धम, ईसाई धम को आ मसात नह ं कर इसका अपने

202
ज म थान से नवा सत कर दया गया, वहाँ भारत म एक के बाद एक अनेक धम थ
ं का
उ व हु आ और वे पंच वेद तीत धम क जड़ को हलाएं तीत हु ए। पर तु अ तत: जब सारा
कोलाहल शांत हु आ तो सारे धम स दाय अपनी ज मदा ी मूल ह दू धम क वराट काया
वारा आ मसात कर लए गए। आधु नक व ान के नवीनतम आ व कार िजसक केवल
त व न मा है, ऐसे वेदा त के अ त उ च आ याि मक भाव से लेकर मू तपूजा एवं
अनेकानेक पौरा णक द त कथाओं और इतना ह नह ं बि क बौ के अ ेयवाद तथा जैन के
नर वरवाद तक, येक के लए ह दू धम म थान है।
उ ह ने ह दू धम को केवल व भ न मत मता तर पर व वास करने का य न भर
नह ं माना वरन ् इसे य अनुभू त अथवा सा ा कार पर आधा रत माना। उ ह ने ह दू धम
का मू ल म माना, ''म आ मा हू,ँ यह व वास होना और तदनु प बन जाना। ई वर सा न य
को ा त करके उनके दशन करना, उन सवलोक पता ई वर के समान पूण होना, असल म
ह दू धम है।

10.3.2 सा दा यकता का वरोध

उ होन धम के आधार पर सा दा यकता का वरोध कया। भारत म पया त पंथ व


स दाय ह य क भारतीय धम क यह वशेषता है क उसम उदारता है, ले कन इन स दाय
के म य ववाद वाभा वक नह ं है, यह दूर होना चा हए। उनका मानना था क – स दाय
अव य रहे ले कन सा दा यकता दूर हो जाए, य क सा दा यकता से संसार क कोई उ न त
नह ं होगी, पर स दाय के नह ं रहने से संसार का काम नह ं चल सकता। भ न– भ न
आ याि मक शि त समू ह के प रचालन हे तु स दाय होना आव यक है ले कन इनम भेद केवल
ऊपर है।

10.3.3 सावभौ मक धम

वामी ववेकान द ने धम का यापकतम व प, सावभौ मक धम के प म


तपा दत कया। उनका मानना था क व भ न दशन प तय म कोई वरोध नह ं है। येक
धम म तीन भाग होते ह – पहला दाश नक िजसम इस धम का मू ल त व, उ े य और उनक
ाि त के उपाय न हत ह। दूसरा पौरा णक– इसम उदाहरण से थम भाग को प ट कया है।
तीसरा भाग – अनु ठा नक– जो कम कांड और पूजा प तयां पर बल दे ता है। येक धम म
कसी एक भाग पर बल दया जाता है। सावभौ मक धम कसी एक दाश नक त व, कोई
सावभौ मक, पौरा णक त व या अनु ठान प त को वीकार नह ं करता है य क वषमताऐं
वाभा वक ह। जैसा क वामी ववेकान द का कहना था क सू य के व भ न कोण और थान
से च लेने पर वे भ न सू य के समान लगेग, ऐसा ह ई वर के स ब ध म है। मनु य चाहे
िजतने कार के स य ा त करले, येक स य ई वर दशन के अ त र त कु छ नह ं है, जैसे
व भ न पा म जल डाला जाता है तो वह वह आकर हण कर लेता है जो बरतन का है
पर तु जल वह होता है। धम के स ब ध म भी ऐसा ह है।

203
10.3.4 धम का मानवतावाद व प

भारत म धम का जब भी च तन कया गया मानव मा के उपयोगी आ मा के मु त


वभाव को जागृत करने वाले धम के प म कया गया। बु , शंकराचाय, ी रामकृ ण
परमहंस, दयान द सर वती, व ववेकान द ने पंथ, मत–मता तर , या जा तय के संक ण दायर
म न तो च तन कया न श ा द । इ होन मानव को मानव के प म दे खा और उसम
न हत अन त द य स भावनाओं को समझा। उसक ु ता व अपूणता के क णा का अनुभव
कया। वैदाि तक धम म माना गया क एक स चा धा मक यि त अपना, बेसहारा, अ वक सत
और नरा त लोग क सेवा म यतीत करे गा। भारतीय धम म वैरा य पर है ले कन वह
नषेधा मक नह ं है। यह यि त म वह ि ट वक सत करता है, िजससे मानव सांस रक काय
म रचना मक ढं ग से भाग ले सके।
ी रामकृ ण परमहंस ने ववेकान द को मानव मा क सेवा म उ यत होना ह ई वर
ा त करने के सव तम साधन के प म बताया था। उनका मानना था क ह सेवा स य है
और हर कार के धम का एक मा सार है। सम त ववाद व मतमता तर इस लये ह य क
यि त स पूण यि त म धा मक होने के थान पर बाहर अनु ठान व कमकांड पर जोर दे ता
है। वामी ववेकान द कसी ऐसे धम को वीकार नह ं करते थे जो मानवता म व वास नह
करता। उनका मानना था क ई वर म व वास करने वाला कोई भी यि त मानवता के त
कए गये अपराध से सहमत नह ं हो सकता।
भारत म य य प शताि दय से धम का आि त व है ले कन कठोर यव था, वण
यव था, छुआछूत, वधवाओं के त अ याचार और इसी तरह के अ य अपराध को धम का
नाम दया जा रहा था। इस लए वामी ववेकान द ने कहा क जो धम वधवाओं के आंसू
प छने और अनाथ के मु ँह म रोट का टु कड़ा डालने म व वास नह ं करता, धम नह ं है। उनका
कहना था– '' क मु झे उस ई वर म व वास नह ं है जो मुझे यहाँ रोट न दे सके ले कन वग
म आन द दे ता है। मु झे य द भारत को उठाना है, तो गर ब को भोजन दे ना है, श ा का
सार करना है और पोप ल ला का अ त करना है।'' उ होन धम के उस पुराणपंथी व प को
कया जो द लत और ह रजन के नाम पर मानव पर अ याचार करता है। इस प म वामी,
महा मा गांधी व अ बेडकर के अ ज थे। उ होन ह दू मु सलमान अथवा ईसाई के प मानव
को बांटने के थान पर द लत को द र नारायण' के प म दे खा और उनक सेवा को येक
भारतीय का थम कत य माना। उनक सेवा को मानवता क स ची सेवा कहा। वामी के
अनुसार , ''म न त व शा ी हू ं न दाश नक और न ह संत। म द र हू ं। मु झे द र से ेम है।
इ ह ं लोग को दे वता समझो। म उसी यि त को महा मा कहता हू ँ िजसका दय, द र के
वत होता है। जब तक करोड़ लोग भु खमर और अ ान के शकार ह, तब तक म उस येक
यि त को व वासघाती समझता हू ं जो धन से श ा ा त कर उनक और त नक यान नह ं
दे ता।'' इस तरह वामी ववेकान द ने धम क अवधारणा म वैदाि तक व प को तु त करते
हु ए, ह दू धम क उदार या या क , सवधम सम वय को वीकार कर धम के आ याि मक
व प को यावहा रक तर पर लाकर उसके सावभौम व प क संक पना तु त क । धम के

204
मानवतावाद व प को था पत करते हु ए उ ह ने अ याय, भय और बुराई को दूर कर,
आ याि मक जागृ त लाने का आहवान कया, जो आगे चलकर राजनी तक जागरण का कारण
बना। नेताजी सुभाष च द बोस ने उनके बारे म कहा था क – 'जहां तक बंगाल का न है
वामी ववेकान द, आधु नक रा य आ दोलन के आ याि मक पता कहे जा सकते ह।''
बोध न – 1
न 1: वामी ववे कान द के अनु सार धम क प रभाषा या है?
उ तर : ............................................... ............................................
...........................................................................................
...........................................................................................
न 2: वामी ववे कान द ने द लत व गर ब को कस नाम से पु कारा?
उ तर: ...........................................................................................
...........................................................................................
...........................................................................................

10.4 रा वाद व राजनी त क अवधारणा


इस इकाई म अब तक आप वामी ववेकान द के धम स ब धी वचार क जानकार
ले चु के ह। भारत म रा वाद क अ भ यि त दशन, धम और सं कृ त के े से होती हु ई
राजनी तक े म आयी है। वामी जी के पूववत वचारक ने वेद उप नषद , गीता व पुराण
आ द के अनु प वयं को ढालते हु ए भौ तकता और सा ा यवाद पर आधा रत वदे शी स ता के
व रा का आहवान कया। भारतीय सं या सय ने अ य धम के संत क तरह केवल
धम पदे श दे ने अथवा पूजा अचना करने का काय ह नह ं कया वरन ् समाज सु धार, राजनी तक
जागृ त लाने व वतं ता स ब धी वचार से जनता को उ नत बनाने का मह वपूण काय भी
कया।
भारतीय च तन धारा म पि चम के वपर त रा वाद क उ पि त और वकास, धम व
च तन के मा यम से हु ई है। वामी ववेकान द के राजनी तक वचार उनके धा मक व
सामािजक वचार के सहगामी ह। भारतीय सं कृ त का मू ल त व धम है जो यि त व रा
को शि त दान करता है। वामी ववेकान द के बारे म माना जाता रहा क वे मा वेदांती,
सं यासी और धम उपदे शक थे। राजनी त, राजनी तक च तन और रा य आ दोलन से उनका
कोई स ब ध नह ं था। पि चम के धम दे श के वपर त भारतीय उपदे शक, धम के मा यम से
समाज सु धार और रा क जागृ त को मह व दे ते थे, जैसे दयानंद सर वती। धम, समाज,
अथ और रा य सभी का मू ल आधार यि त को माना गया। इस लए उसे धा मक यि त और
राजनी तक यि त म नह ं बांटा जा सकता। यह माना गया क धम व समाज का भाव
राजनी तक या कलाप और रा य पर नि चत प से पड़ता है, इस लए भारत म धम को
समाज का मे द ड माना गया। वामी ववेकान द का मनाना था क भारत का ाण धम है,
रा य जागृ त भी धम वारा ह आएगी।

205
धम को मह व दे ने के कारण उ होन रा वाद का आ याि मकरण कर दया। उनके
अनुसार धम ह यि त व रा को शि त दान करता है। राजनी तक दासता से मुि त के
लए ढ़ चर और आ म व वास को अ य धक मह व दे ने वाले ववेकान द ने दासता से
मु ि त के लए आ वान कया क, इसका हम तभी सामना कर सकते ह, तभी शि तशाल बन
सकते ह जब अ वैत के आदश का सा ा कार करल, जब एकता के आदश क अनुभू त कर ले।
अपने म व वास, व वास और व वास। अपने म व वास रखो, और उस व वास पर ढता
पूव क खड़े रहो। या कारण है क हम ततीस करोड़ लोग पर पछले एक हजार वष से मु ी पर
वदे शी शासन करते आए ह? इस लये क, उ ह अपने पर व वास था और हम नह ।ं
वामी ववेकान द ने भारत के क याण को वयं का क याण माना। उनके च तन म
रा का उ थान यि त का उ थान था, य क रा यि तय से मलकर बना है। उनका
मानना था क, रा के प म भारत अपना य त व खो बैठा है और यह सब दु कम क जड
है। भारत दे श को उसका खोया हु आ यि त व वापस दे ने से ह जनता का उ थान करना संभव
है। उ थान क शि त यि त के भीतर से आनी चा हए। उ होन महसू स कया क जनता का
उ थान कए बना राजनी तक वत ता ा त नह ं क जा सकती। त काल न समय म
राजनी तक संगठन राजनी तक जागृ त लाने का काय तो कर रहे थे पर तु उनका उतना जोर
सामािजक उ थान पर नह ं था। वामी ववेकान द का मानना था क जब तक पद द लत, द न
व दर का ऊ थान नह ं होगा तब तक महान ् भारत माता का कभी उ ार नह ं हो सकता।
केवल कु छ ताव करने जैसी राजनी तक ग त व धय पर उनका व वास नह ं था। वे पहले
भारत क जनता को जगाना चाहते थे, उनक ाथ मक आव यकता, रोट अथात भोजन को पूरा
करना चाहते थे, िजसके बाद साधारण जन अपना उ ार वयं कर लग।
वामी ववेकान द मानते थे क भारत का उ े य कभी भी राजनी तक े ठता या
साम रक शि त ा त करना नह ं रहा। सहनशीलता, स ह णु ता और याग क या याओं ने दे श
को व भ न आ ांताओं के हाथ परा त कराया। गर ब लोग को कडे धा मक और सामािजक
बंधन म जकड़ दया, िजससे वे पद द लत हो गए। ववेकान द का मानना था क जैसे–जैसे
वदा तक धम का सार ार भ होने लगा है समाज म जागृ त आने लगी है, यह इतनी तेजी से
फैलेगी क इसे दबाना आसान नह ं होगा। वे दयान द सर वती क तरह ाचीन भारतीय गौरव
को था पत करते हु ए मानते ह क हमार मातृभू म अपनी ग भीर न ा से जाग रह है। अब
कोई इसक उ न त को नह ं रोक सकता, कोई बाहर शि त इसे दबा नह ं सकती।
वामी ववेकान द के च तन म राजनी तक दाश नकता नह ं थी और उ होन कसी
राजनी तक या कलाप म कभी भाग नह ं लया। व भ न अवसर पर उ ह ने यह प ट भी
कया क' “म न राजनी त हू ँ न राजनी तक आ दोलन चलाने वाल म से हू ँ। म केवल आ म
त व क च ता करता हू ँ। जब वह ठ क हो जाएगा तो सब काम अपने आप ठ क हो जाएगा।''
वामी ववेकान द ने य प से राजनी तक आ दोलन या रा य स ा त के म ल त होने
के थान पर व भ न य न से स पूण दे श म रा यता क नींव रखी। उ ह ने दे शवा सय से
कहा – ''बं कम च को पढो तथा उनके सनातन धम और उनक दे शभि त हण करो।''

206
उ ह ने ज म भू म क सेवा को अपना सबसे बड़ा कत य बताया। भारत पहले राजनी तक प
से वत होना चा हए। उ होन अपनी धरती पर अपने पांव से खड़े होने क द । अ धे बनकर
यूरोपीयकरण से बचने क सीख द । वामी ववेकान द ने रा को अ य धक मह व दया और
भारत माता को एक अरा य दे वी माना। ह गल क तरह उ ह ने रा वाद को आ याि मक पुट
दया। राजनी तक गुलामी से मुि त के लए उ होन शा वत स ा त और स य को समझ लेना
आव यक माना। उनका मानना था क य द धम व आ या म को भुला दया जाऐ तो भारत क
आ मा ह न ट हो जाएगी। उ होन दे श म एक नै तक शि त व चेतना का संचार कया िजसने–
व पनच पाल, तलक व अर व द जैसे महापु ष के च तन को दशा द । महा मा गांधी ने
भी राजनी त म आ याि मकता को हण कया।
वामी ववेकान द ने राजनी तक ब धन से मुि त ा त करने के लये कहा था– ''आज
हमारे दे श को िजन चीज क आव यकता है, वे ह – लौहे के मांस पे शयां, इ पात क तं काऐ
और खर संक प।'' उ होन नवीन शि त व अभय का संदेश दे ते हु ए युवाओं से साहस,
आ मबल एवं ढ इ छा शि त जागत करने को कहा। ी नेह ने उनके बारे म लखा था– ''वे
राजनी त से अलग रहे , उ ह अपने व त के राजनी त नापसंद थे।'' (दे ख नेह , ह दु तान क
कहानी पृ. 760) ले कन उ होन आजाद , बराबर और जनता को उठाने क ज रत पर
अ य धक बल दया। वामी ववेकान द का कहना था, ''जीवन, सु ख, समृ क एक मा शत
च तन और काय क वत ता है। िजस े म यह नह ं है, उस े म मनु य जा त और
रा का पतन होगा''। उ ह ने वतं ता को मनु य का ाकृ तक अ धकार माना और समाज के
सभी सद य के लये समान अवसर ाि त को मह व दया।

10.4.1 शि त व नभयता का स ा त

राजनी त व ान क भाषा म इसे ' तरोध का स ा त' कहा जा सकता है।


ववेकान द ने भारतीय को शि त और नभ कता का स दे श दया और उनके दय म यह
भावना लाने क को शश क क शि त और नडरता के अभाव म न तो यि तगत अि त व
क र ा हो सकती है और न ह अपने अ धकार के लये संघष ह कया जा सकता है। उ ह ने
यह संदेश दया क भारत के नवासी शि त न भकता और आ मबल के आधार पर ह वदे शी
स ता का मु काबला कर सकते ह, वाधीनता ा त कर सकते ह। ले कन य प से उ ह ने
राजनी तक आ दोलन म भाग नह ं लया। उ होन कमजोर, कायर भारतीय को ध कारा, वे
कायरता को घृणा क ि ट से दे खते थे। वे कहते थे – ''अपने दय को उ साह से भर लो और
सब जगह फैल जाओ, काम करो, भारत का भ व य तु म पर नभर है। उ ह ने दु नया म
दुबलता को पाप मानते हु ए उसे मृ यु के समान माना िजसे दूर करना अ यंत आव यक है।
कममय चंतन से वे शि त व नभ कता क ओर जाने के लए भारतीय का आहवान करते है।

10.4.2 अ तरा यतावाद

वामी ववेकानंद अ तरा यवाद थे। उ ह ने व व बंधु व का समथन कया। व व


धम संसद म उनके वारा स बो धत – 'हे अमृत के पु गण ' उनके व व बधु ं व क चंतन धारा

207
को पो षत करता है। उ ह मनु य व मनु य के म य अंतर वीकार नह ं था। उनका कहना था
क कोई मनु य, कसी जा त या दूसर से घृणा करते हुए जी वत नह ं रह सकता। उनका
मानना था क भारतीय के भा य का नपटारा उसी दन हो चु का जब उ होन ' ले छ'
( वदे शय के लए यु त ) श द ढू ं ढ लया और दूसर से अपना नाता तोड़ दया। उ ह ने
पि चम से बहु त कु छ सीखने का आ वान करते हु ए कहा क – जो यि त और समाज दूसरो से
कु छ नह ं सीखता, वह समा त हो जाता है। वामी जी ने सभी धम का आदर करते हु ए उन
सभी धम के आरा य दे व क चचा क । अपने रा से असीम नेह करते हु ए भी अ य रा
से घृणा का वरोध कया।
बोध न– 2
न: वामी ववे कान द ने रा वाद के उ थान के लए कन – कन बात पर बल
दया ?
उ तर: ...........................................................................................
...........................................................................................
................................................................................... ........

10.5 सामािजक चंतन


वामी ववेकानंद सामिजक संगठन और सामािजक मामल म जात – पांत,
स दायवाद और छुआछूत तथा सब तरह क वषमताओं के व थे – उ ह ने सामािजक सेवा
काय को आ या म के मह वपूण अंग के प म वीकार कया।।
उ ह ने पे सर क तरह समाज को सावयवी ह माना। उनका मानना था क ''अनेक
यि तय का समूह समि ट कहलाता है और अकेला यि त उसका एक है। आप और हम
अकेले यि त ह, समाज एक समि ट है।'' उ ह ने समाज के आं गक जीवन, मि त क और
आ मा को वीकारा। सभी के क याण क कामना तभी संभव है जब उसके घटक कु छ ब लदान
कर। ववेकानंद कमफल म व वास करते ह और यि त के ज म का आधार ज म के कम को
मानते ह। शु भ कम करके ह यि त अपना और समाज का क याण कर सकता। मानव का
अि तम ल य और प रणाम सामू हक सु ख होना चा हए, यि तगत सुख नह ।ं
भारतीय समाज के पतन के स ब ध म वचार :–
त काल न समाज म पतन तेजी से हो रहा था। वामी ववेकानंद लए यह असहनीय
था। उ ह ने अ पृ यता , छुआछूत, अं ेिजयत और पा चा य भौ तकवाद सं कृ त के त लगाव,
जा त यव था, पर परागत ढ़य , धम क गलत या या व पछडेपन को सामािजक पतन का
कारण माना।
(क) अ पृ यता व ढ़वा दता पर वामी ववेकानंद ने कठोर हार कये। ववेकानंद का
कहना था क भारत क गर ब पद लत जनता के दुख और पीड़ा के बहु त कम लोग
चि तत ह तथा उनक जी वका और उ न त के लए कु छ करने के थान उ ह छूने से

208
भी इंकार करते ह। कु छ लोग ने अ पृ यता को धम का नाम दे कर के एक बड़े भाग
को अ धकार और उ थान से वं चत कर दया।।
(ख) ववेकानंद ने लोग को कू प मंडूपता क ि थ त से नकालने का संदेश दया। ढ़वाद
पर हार करते हु ए उ ह ने समाज म या त अंध व वास को येक बात को तक और
बु के आधार पर हण करने पर बल दया।
(ग) राजा राममोहन राय व दयानंद सर वती क तरह वामी जी ने बाल ववाह क कटु
आलोचना क । उ ह ने ि य क अ पायु म ववाह के कारण, कम उ म
संतानो प त, दुबल व बीमार संतानो क सं या म वृ तथा अ य धक बाल वधवा
होने का मू ल कारण बाल ववाह माना। इस सम या के नराकरण हे तु उनका मानना
था क समाज का येक घटक, चाहे वह ी हो या पु ष , श त और सु सं कृ त
बने। श त हो जाने पर यि त वयं ह हा न–लाभ का वचार कर कु र तय को
समा त कर दे गा।
(घ) वामी ववेकानंद गांधी के अ दूत थे। उ ह ने गर ब व द लत को सीने से लगाने का
संदेश दया। उ होन ई वर क स ची सेवा गर ब व पी ड़त क सेवा को माना। गर ब
व सव साधारण क शि त को जगाते हु ए ववेकानंद ने कहा – ''ऊंचे पद वाल या
ध नको का भरोसा न करना। उनम जीवनी शि त नह ं ह, वे तो जीते हु ए भी मु द के
समान है।'' इस प म ववेकानंद एक समाजवाद नजर आते ह।
(ङ) वामी ववेकानंद ने जा त भेद को केवल एक सामािजक यव था माना, िजसक कोई
उपयो गता नह ं है। यह यव था तभी समा त हो सकती है जब लोग अपने खोए हु ए
सामािजक यि त व को पुन : ा त कर लेग।े उनके अनुसार ाचीन काल म जा त का
मू ल अथ था – येक यि त क अपनी कृ त क अपनी वशेषता को का शत करने
क वाधीनता। त काल न भारत म जा त स ब धी इस भाव का प र याग कर दया
गया िजससे जा त यव था म बुराइयां पनपने लगीं व इससे समाज का पतन होने
लगा।
जा त यव था को समूल न ट करना संभव नह ं है इस लए वामी ववेकानंद ने उ चत
यास कर चतु वण को पुनज वत कर न नतर वण को ऊपर उठाकर उ च वण के तर पर
लाने पर बल दया। उ ह ने पर परावाद ा मण के पुरातन अ धकारवाद के स ा त का खंडन
कया य क इस स ांत ने शु अथात दे श क बहु सं यक जनता को वै दक ान से वं चत
रखा। उ होन कसी भी कार के ां तकार सामािजक प रवतन क अपे ा धीमे सुधार को
मह व दया।
मू त पूजा का वामी ववेकानंद ने पूण खंडन नह ं कया य क उ ह ने उसे मानव
मन को ई वर क अनुभू त के लए तैयार करने वाला माना। उ ह ने केवल अ धकार के लए
संघष करने क अपे ा कत य को वशेष मह व दया। आ म व वास को समाज सु धार म भी
एक मह वपूण ह थयार के प म वीकार कया।

209
10.6 श ा स ब धी वचार
वामी ववेकानंद ने भारत क पछड़ी ि थ त के लए श ा क कमी को िज मेदार
माना। त काल न श ा प व त क बल आलोचना करते हु ए उ ह ने अं ेज क श ा प वत
को बाबुओं का नमाण करने वाला माना। उनका मानना था – ''यह श ा भारतीय को
नकारा मक ान दे ती ह और यि त को वावल बी बनाने म सहायक नह ं है। इसम रटने पर
अ धक जोर दया जाता था िजस के कारण बु का वकास नैस गक प म नह ं हो सकता
था। यह श ा न तो भारतीय को जी वकोपाजन के लए तकनीक ान दे ती थी और न ह
जीवन जीने का माग दखाती थी। वामी ववेकानंद का उ े य मनु य तथा उसके जीवन का
नमाण करना था, लेटो क तरह ववेकानंद मानते थे क – ान मनु य म ह अ त न हत है।
जब यि त कोई बात सीखता है तो वह अपने अ दर ह उस त य को जागृत करता है। श क
उसे सखाता नह ं है अ पतु ान जागृत करता है। उ होन गु कु ल प व त को उ चत माना जहाँ
व याथ श क के स पक म रहकर प व ता, धैय और व वास सीखता है। उ ह ने धा मक

ं के अ ययन को भी पा यकम का ह सा बनाना आव यक माना ता क व याथ धम
स ह णु बन सके। श ा के लए वामी ववेकानंद ने शर र, मि त क व आ मा के सम वय
पर बल दया। ामीण जनता हे तु श ा के साथ रोजगार सखाना तथा ि य को गृह उपयोगी
श ा दे ना आव यक माना।

10.7 सम ि ट
वामी ववेकानंद आधु नक भारतीय चंतन के णेता व रा य आंदोलन के अ दूत
थे। उ ह ने भारतीय धम व च तन धारा से भारतीय रा वाद क नींव रखी। वे पहले भारतीय
थे िज ह ने पूव व पि चम क सं कृ तय म सम वय का यास कया। उ ह ने य त:
राजनी त म भाग नह ं लया ले कन अपनी रचनाओं व भाषण से भारत, वशेषकर बंगाल म
रा वाद क नै तक नींव को मजबूत आधार दया, वामी ववेकानंद ने धम से समाज सु धार
और उससे रा वाद का आहवान कया।

10.8 सारांश
वामी ववेकानंद ने वेदांत दशन को इस तरह से वक सत लया िजससे सम त संघष
को दूर कया जा सके, और इससे मानव जा त का बहु मु खी वकास हो सके। उ ह ने भारत क
व श टता को धम के प म ति ठत कया। धम क इस वश या या म मानवतावाद ,
सावभौ मक व प, वै ा नकता और आचरण के नयम को तु त कया। उ होने व व के
स मु ख भारतीय सं कृ त और स यता क े ठता को तपा दत कया। उनके मन म मातृ
भू म के त अगाध ेम था। उ ह ने पि चम के वपर त रा वाद का आधार, धम को बनाते
हुए आ याि मक रा वाद क अवधारणा वक सत क ।
रा वाद के उ ननय म अभयम,् आ मबल और आ म व वास को अ य धक मह व
दया। उ ह ने अ पृ यता , शोषण, ि य क गरती दशा, श ा के अभाव आा द को सामािजक
वषमता व गरती ि थ त के लए उ तरदायी माना तथा अवसर क समानता को स ांत को

210
वीकार कया। वामी ववेकानंद ने युवाओं को कमयोग क मह ता समझाई। द र नारायण क
सेवा को रा वाद से जोड़ने का उनका वचार गांधी चंतन म प ट दखाई दे ता है। उ ह ने
संक ण रा वाद से दूर रहकर रा य एक करण पर बल दया। वे भारत के एक ऐसे रा वाद
है जो धम के मा यम से भारत म रा वाद को पुनजागत करना चाहते थे। वामी ववेकानंद
पर परागत अथ म दाश नक या समाज सु धारक नह ं थे। वा तव म वे धा मक यि त थे
िज ह ने धम क या या इस तरह से क , क आपसी संघष, सा दा यकता, सामािजक
दुराव था व रा य परत ता का समाधान वत: ह हो जाए।

10.9 अ यास न
1. वामी ववेकानंद के चंतन म धम वषयक वचार क ववेचना क िजये।
2. भारत म रा वाद के वकास के लए वामी जी वारा बताए उपाय क या या
क िजये।
3. पुन :जागरण म ववेकान द के योगदान क ववेचना क िजये।

10.10 संदभ थ सू ची
1. वमा, वी०पी० : आधु नक भारतीय राजनी तक चंतन, ल मीनारायण अ वाल,
आगरा, 1971
2. गौतम घोष : ए बायो ाफ ऑफ वामी ववेकान द, पा, द ल , 2003
3. व र दर ोवर (सं.): वामी ववेकान द – ए बायो ाफ ऑफ हज ए ड आई डयाज, द प
ए ड द प, नई द ल , 1998

211
इकाई– 11
सामािजक–राजनी तक प रवतन के व वध वैचा रक आधार
इकाई क परे खा
11.0 उ े य
11.1 तावना
11.2 अवाचीन भारतीय राजनी तक च तन का ऐ तहा सक स दभ ( टश सा ा यवाद एवं
वातं आ दोलन के प र े य म) एवं आ थक–सामािजक पुनरचना
11.3 अवाचीन भारतीय च तन एवं सामािजक–राजनी तक प रवतन के व वध वैचा रक
आधार एवं मु ख अवधारणाएँ
11.3.1 रा वाद
11.3.2 सम लोकतं व सामािजक याय
11.3.3 समाजवाद
11.3.4 राजनी तक व आ थक वके करण
11.3.5 धम नरपे ता
11.4 सारांश
11.5 अ यासाथ न
11.6 संदभ थ
ं सू ची

11.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरा त आप जान पायगे–
 आधु नक भारतीय राजनी तक च तन के व भ न ऐ तहा सक संदभ
 अवाचीन भारतीय च तन के व वध वैचा रक आधार, एवं
 अवाचीन भारतीय च तन क मु ख अवधारणाएँ।

11.1 तावना
आधु नक पा चा य राजनी तक च तन क उ पि त का न ववादा पद है। कु छ लोग
उसका ार भ मैकयावेल से, कु छ हा स से और कु छ सो से मानते ह। क तु य द हम
आधु नक और अवाचीन म भेद कर तो अवाचीन पा चा य राजनी तक च तन का ार भ हम
हे गेल और मा स से मानना पड़ेगा। मोटे तौर पर अवाचीन पा चा य राजनी तक च तन का
युग आधु नक भारतीय राजनी तक च तन के युग के समाना तर चलता है।
राजा राममोहनराय हे गेल के समकाल न थे और दयान द सर वती मा स के
समसाम यक थे। भारतीय राजनी तक च तन के इ तहास म आधु नक और अवाचीन का
सु नि चत, प ट व दो टू क भेद करना स भव नह ं है। क तु भारत म पुनजागरण के वतक
रा वाद के स ा त के नमाताओं के बीच एक वभाजन रे खा प टत: दख पड़ती है। मोटे

212
तौर पर हम कह सकते ह क राजा राममोहनराय, दयान द सर वती एवं वामी ववेकान द
आ द पुन जागरण के वतक आधु नक भारतीय च तन क मु ख वभू तयां ह और महा मा
गांधी अवाचीन भारतीय इ तहास के महानतम नायक ह। गांधी, अर व द, एम. एन. राय,
जवाहरलाल नेह , जय काश, नारायण, अ बेडकर आ द मानवतावाद , रा वाद –अ तरा वाद ,
सा यवाद –समाजवाद एवं सव दयवाद –लोकतं वाद महापु ष के समय को हम अवाचीन
भारतीय राजनी तक च तन का युग मान सकते ह।
भारतीय राजनी तक च तन का मु य वषय रा य क कृ त तथा स ा त क
या या और समी ा करना नह ं है। उसके अ वेषण का े इससे भी अ धक यापक है,
िजसके अ तगत पूव तथा पि चम के, पुरातन तथा नवीन के और धा मक तथा वै ा नक
स ा त के सम वय क सम या ह मु य है। इस कार भारतीय वचारक के लए स यता
का दशन उपयु त और आकषक सम या बन गया है, जैसा क उ नीसवीं शता द के स म
हु आ था टै गोर, ववेकान द, गांधी, अर व द आ द कु छ वचारक को भारतीय तथा पा चा य
दोन ह स यताओं के जीवन का नजी अनुभव था। उ ह ने पा चा य तथा पूव य स यताओं के
संबध
ं का अ ययन करते समय इस अनुभव का योग कया।
हम इस बात से इ कार नह ं कर सकते क राजनी तक वचार का उदय जीवन क
प रि थ तय और सामा य स दभ म हु आ करता है। आधु नक भारतीय राजनी तक च तन भी
बहु त कु छ अंश म त काल न सामािजक तथा राजनी तक वा त वकता क वभ न या याओं
का संघटन तथा प ट करण है। कहा गया है क महान च तन का उदय ऐसी वषम
प रि थ तय तथा महान संकट के युग म हु आ करता है, जब अ यव था और अराजकता के
म य कसी कार के था य व के लए ग भीर खोज क जाती है। वदे शी पा चा य
सा ा यवाद के वंसकार आघात ने हम अपने मू ल का अ वेषण करने के लए ववश कया।
आधु नक भारतीय राजनी तक च तन उस काल म फला–फूला जब भारतीय सं कृ त के बीच
पुरातन मू य तथा टश सा ा यवाद शासन क य चा लत मता और वै ा नक कौशल के
बीच भयंकर संघष चल रहा था। इस संघष के फल व प बौ क े म एक नये स तुलन क
खोज आर भ हु ई। सामिजक–राजनी तक प रवतन के एक नवीन नै तक तथा आ याि मक आधार
को ढू ं ढ नकालने के लए य न कये जाने लगे। टै गोर, गांधी व नेह आ द क रचनाएँ इसके
य माण ह।

11.2 अवाचीन भारतीय राजनी तक च तन का ऐ तहा सक स दभ


( टश सा ा यवाद एंव वातं य–सं ाम के प र े य म) एवं
आ थक सामािजक पु नरचना
आधु नक ए शया का बु ीकरण , उसम नवजीवन का संचार तथा उसका पुन थान
पछले डेढ़ सौ वष के व व इ तहास क अ य धक मह वपूण घटना है। कु तु तु नया और
का हरा से लेकर कलक ता, पी कं ग और टो यो तक सव हम ाचीन ा य क आ मा के
मु ि तकरण का य दे खने को मलता है। सुदरु अतीत म पूव ने ह चीन, भारत, काबुल तथा

213
म क शि तशाल स यताओं को ज म दया था। यह ं थम सा ा य तथा व व के धम
का उदय हुआ था। स यता के काश क करण सव थम ए शया म फु टत हु ई थी।
क तु जब सोलहवीं–स हवीं शता द म यूरोप के रा ने व ान तथा ौ यो गक
(टे नोलॉजी) का वकास आर भ कया, उस समय ए शया के लए यूरोप समक खडा रह
सकना अस भव हो गया। यूरोपीय रा वाद के उदय, बड़े पैमाने पर उ पादन, वा ण य के
अभू तपूव व तार एवं औ यो गक ां त के आगमन से ए शया यूरोपीय –सा ा यवाद तथा
उप नवेशवाद का ड़ांगन बन गया। अठारहवीं शता द म तथा उ नीसवीं शता द के ारि भक
काल म ए शयाई दे श म सव आ थक अध: पतन, राजनी तक जजरता, सामािजक ग तह नता
तथा सां कृ तक सडा ध के य दखाई दे ने लगे।
भारत भी इस उप नवेशवाद एवं सा ा यवाद का शकार हु आ। द ण भारत के अतल–
ां ससी यु (1740–1763), लासी क लडाई (1757) तथा ब सर के यु (1764) तथा
शाह आलम वारा ई ट इि डया क पनी को द वानी अ धकार को दए जाने (1765) के साथ–
साथ आर भ हु ए बलशाल टश–सा ा यवाद ने इस दे श म कू टनी त, शासन पटु ता तथा उ च
कार के सै नक श ा क स पूण शि तय के साथ वेश कया तथा धीरे – धीरे भारत का
अ धकांश भाग 'क पनी' के ादे शक वा म व के अ तगत चला गया मु यत: लाइव, वारे न
हे ि टं गज, वैलेजल तथा डलहौजी के नायक व म टश सा ा यवाद आ धप य क थापना
स पा दत हु ई।
क तु उ नीसवीं शता द के म य से ए शया का मन तथा आ मा एक बार पुन : नि चत प
से जागे। िजन मु ख नेताओं तथा महान वभू तय को ए शयाई कु भकरण के इस भयंकर
जागरण का ेय है, उसम सु नयात सेन, बालगंगाधर तलक, महा मा गांधी और कमाल पाशा
का थान वशेषत: उ च तथा अ ुत है। रा य चेतना व रा वाद क बढ़ती भावना,
सां कृ तक नवजागरण, आ थक–सामािजक पुनरचना क जोर पकड़ती मांग, आधु नक
औ यो गक (टे योलॉजी) और पा चा य बौ क तथा वै ा नक च तन धाराओं के उ च पहलुओं
से था पत होता भारतीय का सीधा जु ड़ाव तथा पा चा य श ा तथा ान के चार से दे श म
उ प न बौ क अनुस धान एवं बौ क पुनजागरण ने आधु नक भारतीय रा वाद के उदय म
मह वपूण भू मका नभाई। िजस कार इटल के पुनजागरण तथा जमनी के धमसु धार आ दोलन
ने यूरोपीय रा वाद के उदय के लए बौ क आधार का काम कया था, उसी कार भारत के
सु धारक तथा धा मक नेताओं के उपदे श ने दे शवा सय म वाय त तथा आ म नणय पर
आधा रत राजनी तक जीवन का नमाण करने क इ छा उ प न क । भारतीय आ मा के
जागरण क सृजना मक अ भ यि त सव थम दशन, धम तथा सं कृ त के े म हु ई, और
राजनी तक आ म–चेतना का उदय उसके अप रहाय प रणाम के प म हु आ। भारतीय पुनजागरण
के मूल म त वत : नै तक और आ याि मक आकां ाओं का ाधा य था।
इस कार पि चम क यां क स यता तथा भारत क धा मक व आ याि मक
सं कृ तय के संघष व वरोधाभास के बीच एक नए भारत का उदय हु आ। वदे शी राजनी तक
शि त के आघात के व बचाव क यव था के प म दे श क ाचीन सं कृ तयाँ पुन :

214
सचेत तथा सचे ट हो उठ ं तथा अपने अि त व को पुन : आ हपूवक जताने लगीं। ाचीन थ

का नये मानवतावाद तथा सवरा वाद ि टकोण से ववेचन कया जाने लगा तथा ाचीन
धमशा म आधु नक वै ा नक स ा त का बीज ढू ं ढ नकालने के यास भी कए जाने लगे।
इस कार वदे शी स यता क चु नौती ने भारतवा सय को आ मा वेषण के लए ववश कया।
पूव बनाम पि चम क स यताएँ भारतीय च तन का मु य वषय बन गयीं। उससे राजनी तक
च तन के लए भी मह वपूण साम ी उपल ध हु ई। अत : भारतीय राजनी तक च तन एक
अथ म स यता का आधारभू त दशन बन गया।
बोध न – 1
न : भारतीय रा वाद के उदय म मह वपू ण भू मका नभाने वाले क ह ं दो ेर क
त व का उ ले ख क िजये ।
उ तर : ...........................................................................................
...........................................................................................

11.3 अवाचीन भारतीय च तन एवं सामािजक–राजनी तक प रवतन


के व वध वैचा रक आधार एवं मु ख अवधारणाएँ
आधु नक भारतीय वचारक के सामािजक राजनी तक प रवतन संबध
ं ी के ववेचन के
स दभ म रा वाद– वरा य, स या ह मानवतावाद, सामािजक– याय, समाजवाद, लोकतं –
वके करण व धम नरपे वाद आ द अवधारणाएँ हमार अ ययन साम ी बनी ह। इन
अवधारणाओं के वकास को मब प म तु त कया जाना उपादे य है।।

11.3.1 रा वाद

भारतीय राजनी तक च तन का मु ख वषय रा वाद रहा है। है क आधु नक भारतीय


सामािजक एवं राजनी तक च तन म रा वाद तथा वरा य क दोन अवधारणाओं को एक–
दूसरे से पृथक करके नह ं दे खा जा सकता। रा वाद और वरा य इन दोन का सु दर सम वय
दासता–पी ड़त भारत क मुि त के लए राजनी तक–सामािजक तथा आ थक बु ता का * रहा
है। रा वाद के सार एवं भाव के अ तगत वरा य ाि त क लालसा बलवती होती गई और
अ त म रा वाद वचारधारा ने ह भारत को वतं ता दलवाई भी। रा वाद के कारण तथा
उसके अंग क सांगोपांग ववेचना तथा रा , रा य, जनता तथा रा वाद के बीच भेद क
प ट अ भ यि त के साथ–साथ अवधारणा मक ि टकोण से रा वाद के व वध प आधु नक
भारतीय च तन म कट हु ए ह।
भारत का बौ क पुनजागरण आधु नक भारतीय रा वाद के उदय का एक मु ख
मह वपूण कारण था। पा चा य रा वाद वचारधारा म राजनी तक एवं आ थक प अ धक
मह व दया गया है तथा भारत म भी रा वाद को राजनी तक एवं आ थक ि ट से दे ने वाले
अनेक वचारक ह क तु रा वाद को आ याि मक व प दान करने वाले वचारक रा वाद
को नवीन दशा द है जो क भारतीय च तन क मौ लक वृ त क प रचायक मानी सकती

215
है। वामी ववेकान द, व पनच पाल, अर व द घोष तथा महा मा गांधी का रा वाद एक
नवीन अनुभू त है।
दूसर ओर, पा चा य रा वाद च तन क संक णता को भारत हण नह ं कया।
व व–ब धु व तथा सव हतकार योजन के ाचीन भारतीय आदश ने को अ तरा यता का
बाधक न बना कर उसका सहयोगी बना दया है। रा वाद के दश नक म सीनी के भाव म
रहते हु ए भी भारतीय च तक ने मानववाद वचारधारा को तलांज ल नह ं द अ पतु यि तगत
अ धकार तथा नै तक मू य को वीकार करते हु ए यि त के क त य के साथ–साथ उसके
अ धकार का भी यान रखा है। इस कार रा वाद को आ थक, आ याि मक तथा धा मक
आधार पर कि पत कया गया है।
भारत म व भ नता के अनेक कारण रहे ह, फर भी धा मक एवं ऐ तहा सक कारण से
रा यता क भावना ार भ से ह बनी रह है। समय–समय पर इस भावना को जागृत करने
क साम ी मलती रह है। मु गलकाल म महाराणा ताप तथा छ प त शवाजी समय रा य
भावना क जागृ त के अवसर उपि थत हु ए। इससे रा य वचारधारा म तेजी आई। भारत म
रा वाद भावनाओं का पहला बल और साकार व फोट 1857 क ां त म हु आ। दे श का
दुभा य था क क तपय राजनी तक, सामािजक एवं आ थक कारण से 1857 का सं ाम
असफल रहा। पर इसम स दे ह नह ं क इस सं ाम ने सोते हु ए भारतीय रा वाद को जगा
दया।
राजा राममोहनराय, वामी दयान द सर वती एवं वामी ने भारतीय रा वाद के
धा मक, सां कृ तक एवं आ याि मक स ा त पर बल दया। उदारवाद दादाभाई नौरोजी ने इसे
आ थक आधार दान कया। गोपालकृ ण गोखले के इस संबध
ं म कोई भावी वचार सामने
नह ं आए। रा वाद का धा मक–आ याि मक और अ य त ओज वी च र आगे चलकर लाल–
पाल–बाल (लाला लाजपत राय, व पन च द पाल, बालगंगाधर तलक) के च तन म मु ख रत
हु आ। उदारवा दय के नरमपंथ क त या व प दे श म उ वाद वचारधारा का वकास हु आ
तथा इन तीन नेताओं ने ''अ भनव रा वाद'’ का शंख फूं का तथा वदे शी हु कू मत के त नरम
रवैया अपनाए जाने वाल उदारवाद नी त का तकार करते हु ए तदनुसार '’ वदे शी'' और
''ब ह कार'’ आ दोलन ार भ करके रा य आ दोलन और संवध
ै ा नक वकास के इ तहास म
एक नए अ याय क रचना क ।
अर व द घोष आर भ म उ रा वाद के णेता बने पर बाद म उनका रा वाद पूणत:
आ याि मक धरातल पर ति ठत हो गया। उ ह ने रा वाद को सामािजक तथा राजनी तक
वकास म एक आव यक कदम माना, पर अि तम अव था म उनका आदश मानवीय एकता का
था। भारतीय रा वाद के शां त य और सम वयवाद व प के दशन रवी नाथ टै गोर म हु ए
िज ह ने संक ण रा वाद के थान पर अ तरा यतावाद का उपदे श दया। उ ह ने उस रा वाद
का समथन नह ं कया जो ''ब दूक और बा द'’ क उपासना करता है। रवी नाथ टै गोर ने
'' यि त व शू य राजनी तक रा वाद'' के थान पर ''आ याि मक साहचय'’ म व वास कट
कया।

216
सन ् 1920 म महा मा गांधी का राजनी तक उदय हु आ। उ ह ने भारतीय रा वाद को
बहु त ह शु धरातल पर ति ठत कया। गांधीजी रा वाद थे पर जो रा वाद आज दु नया
के लए घातक हो रहा है, उस रा वाद का उ ह ने कभी समथन नह ं कया। गांधीजी ने
भारतीय रा वाद को, जीवन क स ह णु ता और आ याि मक स ा त पर आधा रत कया।
उ ह ने रा वाद को व व ेम का एक अंग माना और कहा– ''हम व ब दु व के लए जीना और
मरना चाहते ह। उ ह ने भारतीय रा वाद म यह भावना भर क '' वशु दे शभि त व रा यता
अ तरा यता क वरोधी नह ं होती।‘'
पं. जवाहरलाल नेह के मानवतावाद ने भारतीय रा वाद को माग ट होने से बचाया।
उ ह ने सदै व इस बात का य न कया क भारतीय रा वाद अपना उदार व प लए रहे ।
नेह भारत क व भ नता म एकता का दशन करने वाले रा वाद थे। उ ह ने रा वाद को
धम नरपे ता पर आधा रत मानते हु ए इसे मह वपूण भावना मक तीक के प म वीकार
कया। नेह जी ने भी सदै व संक ण रा वाद मनोवृि त का तर कार कया। रा वाद के साथ
ह साथ उ ह ने व व के सभी पराधीन रा के लए आ म नणय के अ धकार का समथन
कया। भारत के लए पूण वतं ता क मांग उ ह ं के वारा कां ेस म तु त क गई। नेह
ऐसी वतं ता के पोषक थे जो केवल राजनी तक न होकर सामािजक और अ तरा य भी हो।
वाधीनता आ दोलन के दौरान ह दू और मु सलमान दोन ह के क तपय वग म
वकृ त रा वाद भी पनपा। मु ि लम–सा दा यकता ने अपने पृथकवाद रा वाद का जो प
धारण कया था उसक प रण त पा क तान के नमाण म हु ई। मुि लम–सा दा यकता और
पृथकवाद –रा वाद क त या– व प कु छ ह दुओं म भी '' ह दू–रा वाद’' जैसे वचार पनपे।
इस कार दे श क दो महान जा तय म फूट को ो साहन मला, िजससे दे श को अपूरणीय
त हु ई।
इस कार हम दे खते ह क भारतीय रा वाद व भ न अव थाओं से गुजरा और कु ल
मलाकर इसके उदार तथा मानवतावाद च र क ह धानता रह । भारतीय रा वाद ने िजन
व थ पर पराओं और आदश क नींव डाल , वे ह आज भी भारतीय रा वाद को उस उ वाद
रा वाद से बचाए हु ए ह जो व वशां त के लए जबरद त खतरा है।
बोध न – 2
न: सामािजक – राजनी तक प रवतन के व वध आधार एवं अवाचीन भारतीय च तन
क मु ख अवधारणाओं का नामो ले ख क िजए।
उ तर : ............................................................................ ...............
...........................................................................................

11.3.2 सम लोकतं एवं सामािजक याय

आधु नक भारतीय सामािजक एवं राजनी तक वचारक य –अ य प म सामिजक–


आ थक–राजनी तक प रवतन अथवा सामािजक याय के त अपनी च ता और जाग कता
कट करते रहे ह। राजा राममोहनराय ने या यक यव था के संबध
ं म अपने जो वचार कट

217
कए उनम सामािजक याय क मांग अ त न हत थी। म हलाओं के आ थक अ धकार क र ा
के लए उ ह ने जो वचार रखे उनम भी सामािजक याय क भावना मु खर थी। ववेकान द ने
जब भारतीय समाज क बुराइय और पतन के कारण पर हार कया तो वे सामािजक प रवतन
एवं याय क ह मांग कर रहे थे। उनके वतं ता के स ा त तथा द नह नता के त असीम
संवेदन के अ तगत सामािजक याय एवं प रवतन क धारणा अ त न हत थी। ीमती
एनी बसे ट के दय म अभाव त लोग के त अ य धक नेह था। महादे व गो व द रानाडे के
सामािजक–आ थक दशन म सामािजक याय के त जाग कता प रल त होती है। दादाभाई
नौरोजी ने जब राजनी तक स ता के नै तक आधार पर पोषण कया, वशासन और वरा य क
मांग क , भारतीय गर बी जोर आ थक न कासन पर वचार करते हु ए भारतीय रा वाद के
आ थक आधार को तु त कया तो अ य प म उ ह ने सामािजक याय क थापना पर
बल दया। गोपालकृ ण गोखले के राजनी तक आ थक च तन म भी हम सामािजक याय के
त उनक जाग कता के दशन होते है। लोकमा य तलक तो हर कार के अ याय के वरोधी
थे और यह बात लाला लाजपतराय के साथ थी।
महा मा गांधी तो सामािजक–राजनी तक प रवतन व सामािजक–आ थक याय क
थापना के लए आजीवन संघष करते रहे। सामािजक–राजनी तक प रवतन एवं याय क
आकां ा ने ह उ ह एक आदश अ हंसक समाज क क पना दान क । उनके संर कता यास
( ट शप) स ा त म आ थक याय का पोषण होता है जो सामािजक याय से घ न ठ प से
संबं धत है। उनके सामािजक च तन एवं समाज–सु धार काय म भी हम सामािजक याय के
त उनक जाग कता प ट प रल त होती है।
पं. जवाहरलाल नेह का मानवतावाद सामािजक याय के वचार से ओत ोत था।
उनका समाजवाद दशन सामािजक–आ थक याय क अवधारणा का ह त ब ब थी। उ ह ने
सदै व इस बात पर बल दया क सामािजक याय क थापना के लए अ नवाय है क
आ थक शि त का के करण न हो और वकास काय का लाभ सभी तबक के लोग को
मले। नेह के समाजवाद म उनक सामािजक–आ थक याय एवं प रवतन क मांग म –
अभाव से पी ड़त जनता के लए दद था। उ ह ने कहा था क– ''हमारा उ े य भारत म
समाजवाद समाज क थापना करना है य क हमारा उ े य यह है क भारत म येक पु ष ,
म हला तथा ब चे को समान–अवसर ा त हो और बड़ी–बड़ी वषमताएँ दूर हो जाएँ।‘'
लोकक याणकार रा य के त नेह के च तन और यवहार म सामािजक–राजनी तक प रवतन
तथा आ थक याय क च ता अ त न हत। वनोबा भावे एवं जय काश नारायण के सव दय क
अवधारणा तो सामािजक याय का मू त प थी।

11.3.3 समाजवाद

भारत म समाजवाद च तन के बीज तो अ त ाचीन काल से ह पाए जाते ह और


ऋ वेद तथा अ य धम ध म, वशेषकर 'ध मपद' म मानव एकता, भातृ व और आ याि मक–
समानता के स ा त के दशन होते ह, तथा प आधु नक अथ म भारतीय समाजवाद च तन
बीसवीं शता द क उपज है। आ थक तथा सामािजक पुन नमाण व प रवतन के दशन के प म
218
समाजवाद भारत म पि चम के भाव से ह वक सत तथा लोक य हु आ है। पि चम के
आधु नक समाजवाद वचार को भारतीय समाजवाद नेताओं ने भारतीय प रि थ तय , वातावरण
और च तन के अनु प ढालने क को शश क ।
भारत म आधु नक समाजवाद के त व का थम दशन हम मह ष अर व द के उन
सात लेख म होता है िज ह 1893 म उ ह ने इ दु काश नामक प म ''पुरान के बदले नवीन
द प'' ( यू ले प फॉर द ओ ड) शीषक के अ तगत का शत कराया था। इन लेख म अर व द
ने कां ेस क म ययुगीन मनोवृ त क आलोचना करते हु ए ''सवहारा'’ वग क दशा को सु धारने
का आ ह कया था। 1908 म बालगंगाधर तलक ने भी 'केसर ' म कु छ लेख म सी
सवख डनवा दय (Russian Nihilist) क चचा क । लाला लाजपतराय भी स भवत: थम
भारतीय थे, िज ह ने समाजवाद और ''बो शे वकवाद’' के वषय म कु छ लखा था।
''बो शे वकवाद’' के त उनका कोई सहानुभू तपूण ि टकोण नह ं था, तथा प अपनी पु तक म
ं ीप त–आ धप य क
उ ह ने कां ेस पर पू ज कटु आलोचना क । एम. एन. राय ने, िजन पर
मा सवाद का भाव था, भारतीय रा य कां ेस के बुजु आ वग वारा संचालन क आलोचना
क थी।
भारत म समाजवाद च तन को ो साहन दे ने म पं. मोतीलाल का भी योगदान रहा।
जवाहरलाल नेह ने 1926 म सो वयत संघ क या ा क । उ ह ने ‘सो वयत ए शया' नामक
अपनी एक लघु पुि तका म स क त काल न उपलि धय का शंसा मक च खींचा और
' व व इ तहास क झलक' तथा ''आ मकथा'' म कालमा स क वै ा नक एवं आ थक प त क
भार शंसा क । 1934 म कां ेस समाजवाद दल क थापना भारत म समाजवाद के
संगठना मक वकास म एक मह वपूण घटना थी। समाजवा दय का थम अ खल भारतीय
स मेलन 17 मई 1934 को पटना म आचाय नरे दे ब क अ य ता म हु आ।
कां ेस समाजवाद दल के मु ख तपादक म जय काश नारायण, डॉ. राममनोहर
लो हया, अशोक मेहता, आचाय नरे दे ब, अ युत पटवधन व एम. आर. मसानी आ द थे।
सै ाि तक प से समाजवाद नेता तीन म त वृ तय म वभािजत थे– (1) मा सवाद (2)
अं ेजी मजदूर दल सर खे सामािजक लोकतं वाद एवं (3) लोकतां क समाजवाद िजन पर क
गांधीजी के वके करण स ा त तथा स वनय अव ा के रा वाद आ दोलन का एवं वग
संघष का भाव था। थम वृि त के वतक म जय काश नारायण एवं आचाय नरे दे ब
मु ख थे, जब क वतीय गुट म एम. आर. मसानी और अशोक मेहता तथा तृतीय के अ युत
पटवधन एवं लो हया।
समाजवा दय ने दे श के वाधीनता संघष म कां ेस के साथ सहयोग कया। भारतीय राजनी तक
च तन को उनक मु य दे न यह रह क उ ह ने मा सवाद के उ े य तथा तकनीक का
रा य वातं –संघष के साथ तालमेल बैठाने का य न कया। इस े म समाजवाद लोग
सा यवाद लोग से अ धक सफल हो सके। सा यवाद तीसरे अ तरा य स मेलन' म
'' टा लनवाद'' को भारतीय रा यता से गु तर मान रहे थे। समाजवा दय ने रा य आ दोलन
म जो योगदान दया उसने कई क र रा वा दय को भी यह मानने पर बा य कया क

219
रा वाद और समाजवाद के मू ल प म ऐसी कोई व भ नता नह ं है जो दूर नह ं क जा
सकती हो और यह वा तव म बहु त बड़ी उपलि ध थी। फर भी समाजवाद नेताओं के
राजनी तक यवहार और कां ेस क यवहार शैल म सामंज य–सू श थल होते चले गए तथा
1947 मे अपने कानपुर अ धवेशन म समाजवा दय ने दल के नाम से 'कां ेस' श द हटाने तथा
1948 म कां ेस को छोड़ दे ने का नणय ले लया। आगे चलकर 'कृ षक मजदूर दल'; 'भारतीय
समाजवाद दल' एवं ' जा समाजवाद ' दल' आ द नाम से ये समाजवाद नेता राजनी त म
याशील रहे ।
प ट है क भारत म समाजवाद च तन का वकास यूरोपीय समाजवाद के स दभ से
दो बात म भ न रहा – '' थम, भारत म समाजवाद का इ तहास सामािजक तथा आ थक
पुन नमाण क एक योजना के प म ह नह ं हु आ, बि क वह एक ू र वदे शी सा ा यवाद के
ब धन से राजनी तक मुि त क एक वचारधारा के प म भी वक सत हु आ। 1900 से
1947 तक के काल म भारत म मूल सम या दे श क राजनी तक वतं ता क थी और कोई
भी लोक य दल उसक उपे ा नह ं कर सकता था। दूसरे , भारतीय समाजवाद च तन के लए
यह भी आव यक था क वह खे तहर–मजदूर के उ ार का भी कोई स ा त और योजना तु त
करे । पि चमी यूरोप से साम तवाद का 18वीं शता द तक ाय: उ मू लन हो चु का था, क तु
भारत म साम तवाद 20वीं शता द के म य तक फलता–फूलता रहा, अत: साम ती–
अ भजातवग य वशेषा धकार पा हार करने का जो काम पि चम म पू ज
ं ीवाद लोकतं और
पू ज
ं ीवाद उदारवाद के वतक ने कया था, वह भारत म समाजवाद वचारक को करना पड़ा।
ं ीप तय के भार लाभ और समाज क बु नयाद को ह चु नौती नह ं दे नी थी, बि क
उ ह पू ज
भू मप तय के लगान तथा भू म से बना प र म के होने वाल कमाई का भी वरोध करना था।
दे श के समाजवाद नेताओं ने ार भ म अपनी भू मका भावशाल ढं ग से नभाई, ले कन आगे
चलकर वे आपसी फूट के शकार बन गए और भाव खो बैठे।
भारतीय समाजवा दय क अ य धक अि थरता के कारण हम भारतीय समाजवाद
सा ह य म वह गहराई और प रप वता दे खने को नह ं मलती जो, लेखनाव बुखा रन या रोजा
लु ज बुग क रचनाओं म पाई जाती है। उनका मौ लक सै ाि तक योगदान नह ं है, क तु
उनका मह व इस बात म है क उ ह ने भारत के खे तहर, जा तब तथा अ वक सत अथतं
और रा यतं के स दभ म मौ लक समाजवाद च तन क आव यकता पर बल दया है।
भारतीय समाजवा दय ने इन तीन मु ख सम याओं पर ग भीर च तन कया है– अ वक सत
अथतं म कसान क भू मका, वग–संघष तथा आ थक नयोजन। जमन समाजवाद
लोकतं वा दयो भां त भारतीय समाजवाद भी राजनी तक वतं ता तथा आ थक पुन नमाण का
सम वय करना चाहते रहे ह। उ ह गांधीवाद व भारतीय शासन क लोकतां क यव था के
भाव के फल व प संसद य एवं संवध
ै ा नक तर क म व वास रहा है। क तु पा चा य
समाजवा दय के वपर त वे वके करण क धारणा के अ धक उ समथक ह। कदा चत
वके करण पर यह जोर भारतीय समाजवाद को गांधीवाद क वरासत के प म मला है।

220
11.3.4 राजनी तक व आ थक वके करण

भारत के उदारवाद , उ वाद और सम वयवाद सभी वचारक ने राजनी तक और


शास नक स ता के वके करण क वकालत क । इ ह ने आ थक े म भी पर बल दया।
वामी दयान द ने अपने रा यत क क पना म भारत क शास नक इकाई के प म ाम
को मा यता दे ते हु ए यह यव था द क दो, तीन. पांच और सौ ाम के एक शास नक
कायालय क थापना होनी चा हए। उ ह ने अपने रा यत क जो क पना क उसम
शास नक और आ थक े म वके करण क यव था के दशन होते ह। ए नबीसट ने भारत
म ाम पंचायत क थापना पर बल दया और स ता के त काल न के कृ त प से
असहम त कट क । महादे व गो व द रानाडे ने अ य धक के कृ त शासन– यव था का वरोध
कया य क उसम थानीय उप म के लए कोई थान नह ं रहता। रानाडे क ि ट म टश
के कृ त शास नक यव था का सबसे बडा दोष यह था क इसके अ तगत स पूण दे श के
लए एक सं हता, एक व ध, एक नी त, एक कर– यव था और एक ह काय–प त थी। रानाडे
ने भारत को आ थक अवन त से उबारने के लए औ योगीकरण का समथन कया, ले कन
उ योग के के करण का प नह ं लया। दादाभाई नौरोजी ने टे न के नरं कु श के कृ त
शासन को एक ' ू र वाँग' क सं ा दे ते हु ए इसम आमू ल प रवतन क मांग क । सु रे नाथ
बनज ने स ता के वके करण पर हार करते हु ए थानीय वशासन को ो साहन दे ने क
मांग क । उ ह ने थानीय सं थाओं को सरकार नय ण म यथास भव अ धका धक मु त
रखने का समथन कया। थानीय वशासन म ी के प म उ ह ने थानीय वशासन क
सं थाओं को बड़ी सीमा तक लोकत ी प दया। उदारवाद नेताओं म गोपालकृ ण गोखले ने
स ता के के करण का जबरद त वरोध कया। उ ह ने कहा क भारतीय को उनके अ धकार
तभी ा त हु ए ह जब टश सरकार ने स ता के वके करण क नी त अपनाई। गोखले क
मा यता थी क स ता का के करण शासक य नरं कुशता को बढाता है।
उ वाद नेताओं ने टश शासन के नरं कु श और के कृ त व प को दे श के लए
घातक बताया। लाला लाजपतराय ने मांग क क भारत म लोकताि क त न ध सं थाएँ
वक सत क जाएँ, िजनके पास अपने े म समु चत शि त हो। उ ह ने कहा क टश
शासन अ वाभा वक प से के कृ त, अ नयि त और अलोकताि क है। ाम तर पर
वाय त शासन क उ ह ने हमायत क । व पन च पाल ने टश एका मक शासन का इस
आधार पर वरोध कया क यह शासन सामा यत: अ य धक के कृ त हो जाता है– इसम स ता
के वके करण क गु ज
ं ाइश नह ं रहती। पाल ने कहा क वत भारत म वा त वक
लोकताि क शासन था पत करने का सव तम तर का यह होगा क शासन क इकाई एक
ाम अथवा ाम–समु दाय हो, ाम शासन का संघ बना कर िजला शासन और िजला
शासन के संगठन से ा तीय शासन तथा ा तीय शासन को मलाकर एक अ खल
भारतीय संघ क यव था हो।
महा मा गांधी ने राजनी तक–आ थक े म वके करण का नै तक आधार पर
समथन कया। उनक मा यता थी क के कृ त यव था का आधार बल और हंसा है। गांधीजी

221
ने एक आदश वके कृ त अ हंसक समाज क क पना क । वके करण इस लए आव यक है
क के करण से थोडे–से लोग के हाथ म शि त एक हो जाती है और केि त शि त के
दु पयोग क स भावना रहती है। कोई भी समाज िजस प रमाण म स ता का वके करण
करे गा, उसी प रमाण म वह अलोकत ीय हो जाएगा। वकेि त समाज अ हंसावाद होता है
िजसम बल– योग का नह ं बि क नै तक नय ण का शासन होता है। गांधीजी ने अपने वारा
कि पत आदश वकेि त अ हंसक समाज का च भी तु त कया। गांधी के राजनी तक
वके करण का सार यह था क गांव को अपने काय क यव था करने म अ धका धक
वत ता और सु वधा ा त होनी चा हए। उनके ऊपर रा य अथवा संघीय सरकार का
नय ण यूनतम होना चा हए। यह नय ण िजतना अ धक नै तक होगा उतना ह अ छा है।
राजनी तक े म गांधी के वके करण स ब धी वचार क आव यकता को आजकल
पा चा य संसार भी अनुभव कर रहा है। राजस ता क नरं कु शता के व बहु लवाद आ ोश
गांधीवाद दशन क इस मा यता के अनु प है क राजस ता को सी मत और नयि त होना
चा हए।
महा मा गांधी ने आ थक े म भी वके करण पर जोर दया। उनका कहना था क
उ पादन को अनेक थान पर छोटे पैमाने पर शु कया जाए, घर म छोट –छोट इकाईयां
था पत क जाएं। गांधीजी कु ट र ामीण उ योग के वकास के प म थे। वकेि त यव था
को लोकत का जीवन–र त समझते थे। स क भां त रा य वारा नयि त अथ– यव था
उ ह चकर नह ं थी। वे उ योग म रा यकरण के प म भी नह ं थे य क उनका वचार
था क इसम लोकत क सम याओं का समाधान नह ं हो सकता। गांधीजी ने कहा क व व
म िजस हंसा के हम दशन करते ह उसका एक बहु त बड़ा अंश के कृ त ओधो गक यव था
का ह प रणाम है। गाँधी औधोगीकरण के वरोधी होते हुए भी उस सीमा तक मशीन के योग
क अनुम त दे ते थे जहां तक उनसे सामािजक हत को हा न न पहु ँ चे। सं ेप म, गांधी का
व वास था क मानव–सु ख का येय जो यि त के मान सक–नै तक–आ याि मक वकास क
पूण सु वधा पर नभर है, उ पादन और स ता क वके कृ त यव था म ह ा त हो सकता
है।
सव दय वचारक भी समाज क िजस आ थक संरचना क बात ह उसम वके करण
का मु ख थान है। सव दय च तन राजस ता का भी अ धका धक वके करण चाहता है।
जय काश नारायण ने रा य यव था का जो ढांचा ता वत कया है वह परा मड क श ल
का है िजसके आधार म ामसभा है और िजसका शखर रा य पंचायत है। बीच म े ीय
पंचायत िजला पंचायत और ादे शक पंचायत आती है। वत भारत म पंचायती राज क
थापना लोकताि क वके करण को साकार प दे ने का ह एक शंसनीय और बहुत कु छ
सफल यास है।

11.3.5 धम नरपे ता

धम नरपे ता का अ भ ाय यह है क हम धम के आधार पर कसी कार का भेदभाव


न रख। हम अपने–अपने धम को मान, ले कन उ ह एक–दूसरे पर थोपने क को शश न कर।

222
हम धम के त एक नरपे ि टकोण रख। धम के आधार पर एक–दूसरे से वेष न कर।
धम को मानवता क ग त के माग म बाधक न बनाएं। धा मक संक णता को पास न फटकने
द। धम नरपे रा य वह है जो धम से अ भा वत होता है। ऐसे रा य म सभी धम के लोग
को कसी भेदभाव के समान अ धकार ा त होते ह। रा य, धम के नाम पर कसी भी सं था,
समु दाय या श ा–सं था को सहायता नह ं दे ता। सं वधान अथवा कानून वारा कसी धम– वशेष
को संर ण नह ं मलता पर इसका यह अ भ ाय नह ं है क धम नरपे रा य धम– वरोधी या
अधा मक होता है। इसका अथ केवल यह है क धम और रा य का े अलग–अलग माना
जाता है। रा य का अपना कोई धम नह ं होता और वह कसी धम– वशेष का समथन नह ं
करता। धा मक मामल म रा य क तट थता रहती है। हाँ, रा य धा मक वत ता का
दु पयोग नह ं होने दे ता, वह धा मक अ याचार को सहन नह ं करता।
यवहार म अनेक क मय के बावजू द भारत क धम नरपे ता लए गौरव क बात है।
धम नरपे ता व तु त: भारत जैसे बहु लवाद समाज को, जहां व वध भाषाऍ, र त– रवाज,
मा यताएँ धम, स दाय आ द अि त व म ह, एकता का स बल दान करती ह। यह वचार
रा य वकास व उसके त जनमानस क आ था के तीक प म उभरा है।
यह कहा जा सकता है क मोटे तौर पर धम नरपे ता क अवधारणा ने तीन ोत से
अपनी वशेषताएँ हण क ह – रा य एवं धम को अलग रखना (यूरोप से), 'नो एसटे ि लशमे ट
लाज' (रा य तथा चच के बीच एक द वार खड़ी करने के उ े य से बनाया गया अमे रकन
लाज) एवं पर परागत धा मक स ह णु ता क भारतीय वचारधारा।
धम नरपे ता स ब धी भारतीय वचारधारा के अ तगत धम एवं धम नरपे ता के म य
कोई टकराव नह ं है। कसी भी यि त क आ मानुभू त के लए धम समझा गया है। पि डत
जवाहरलाल नेह ने एक बार वीकार कया था क य य प हम धा मक अंध व वाश , कु र तय
एवं क रता क आलोचना करते ह '’तथा प म जानता हू ँ क इसम ऐसा कु छ ज र है जो सभी
मानव म गहर आ त रक िज ासा को शा त करता है।'' स ह णु ता के भारतीय वचार का
सं वधान–सभा के वाद– ववाद के दौरान आमतौर से िज कया गया। पि डत नेह ने सं वधान–
सभा के स मुख जोर दे कर कहा क ''एक धम नरपे रा य क थापना सबसे अ धक
बहु सं यक वग क आ था का न है य क उ ह ह यह स करना है क वे अ पसं यक
के साथ उदारता, उ चत एवं यायपूण तर क से बताव कर सकते ह। हम इसी आ था पर
चलना चा हए।
अ त म धम नरपे ता का एक अ य मह वपूण पहलू और है िजसका उ लेख सं वधान
सभा म भी कया गया था। यह तक दया गया था क धम नरपे ता का अथ सफ सभी धम
के त स ह णु ता तथा धम को रा य से अलग करने से बढ़कर होना चा हए। यह महसूस
कया गया था क समय क आव यकता यह है क जा तगत संक ण वचारधारा को याग कर
यापक रा य वचारधारा को अपनाया जाए। यह धम नरपे यि त को अपनी शि तयां,
नै तक तब ता एवं सामािजक आदशवाद को रा य हत म लगाने के लए े रत करता है।
धम नरपे ता के इस रा य एवं आधु नक पहलू के मह व को अनदे खा नह ं कया जा सकता।

223
पि डत नेह ने अपनी कई घोषणाओं म इस वचार का अनुमोदन कया है। उदाहरण के लए
पि डतजी ने 'आजाद मारक' भाषण म जोर दया क समाज को एक ऐसे धम क आव यकता
है जो 'जीवन के उ कृ ट पहलु ओ'ं से स ब ध रखता हो, ले कन कु र तय , आड बर एवं र त–
रवाज के बार म ऐसा नह ं कहा जा सकता ।धम नरपे ता क इसी वचारधारा को यान म
रखते हु ए भारतीय सं वधान ने छुआछूत एवं जा त था को अवैध घो षत कया है (अनु छे द
15,16,17), उपे त वग के लए ह दू मि दर के वार को खोला है। (अनु छे द 25:2) तथा
रा य को वशेष नदश दए ह क यह सभी यि तगत कानून के थान पर एक आम स वल
कोड बनाए (अनु छे द 44)।
इस कार भारतीय धम नरपे ता तीन ल य लेकर चल है – धम को रा य से अलग
करने पर जोर दे ना, सभी धम के त स ह णुता एवं नै तकता, तथा रा य एकता से टकराने
वाल कु र तय , अ ध व वास तथा संक ण जातीय भावनाओं को समा त कर इनके थान पर
एक यापक तथा सभी को अपने म आ मसात कर लेने वाल रा य न ठा था पत करना।
एक धम नरपे सं वधान वह है जो हमारे सं वधान के नमाताओं ने हम दान कया।
यह एक पर परा है िजसे अ ुण बनाए रखकर समृ कया जाना चा हए। एक धम नरपे
सं वधान होना एक अलग बात है और धम नरपे यव था का नमाण करना दूसर बात है।
एक सह धम नरपे यव था के नमाण के लए यापक श ा एवं स ह णु ता क ऐसी भावना
क आव यकता है िजसका अथ केवल अ य यि त के धम को सहन करना मा ह न होकर
हर साथी नाग रक एवं उसके धम का ईमानदार से आदर करना हो। ऐसी रा य न ठा
उ प न करने के लए स य प से काय कया जाए जो आम यि त को संक ण न ठाओं से
ऊपर उठा सके।
बोध न–3
न: पं . जवाहरलाल ने ह का मानवतावाद एवं समाजवाद दशन कसका तब ब
था ?
उ तर: .................................................................................... ...............
...........................................................................................

11.4 सारांश
न कषत: कहा जा सकता है क:
1. आधु नक भारतीय राजनी तक च तन स यता के ग भीर संकट क उपज है।
2. आधु नक भारतीय राजनी तक च तन बहु त कु छ अंश म व यमान सामािजक तथा
राजनी तक वा त वकता क व भ न या याओं का संघटन तथा प ट करण है।
3. भारत का बौ क पुनजागरण आधु नक भारतीय रा वाद के उदय का एक मह वपूण
कारण था। इस पुनजागरण क या को एक नये म य वग के उदय से भी बल
तथा ो साहन मला। म य वग के लोग तथा बु जी वय का, िज ह ने भारत क
राजनी त म मु य भू मका अदा क है, का पोषण धानत: पा चा य सा ह य से होना
बताया जाता है। तथा प भारतीय रा वाद तथा वातं य आ दोलन का इस कार से
224
नवचन करना नता त अ तशयोि तपूण होगा क वह पूणत: पा चा य आदश तथा
प तय के सांचे म ढला था।
4. पि चम क यां क स यता तथा भारत क धा मक– सं कृ तय के बीच चले संघष से
नए भारत का उदय हु आ, ाचीन थ
ं का नये तथा सवरा वाद ि टकोण से ववेचन
कया गया तथा उनम आधु नक स ा त का बीज ढू ं ढ नकालने का भी य न कया
गया।
5. आधु नक राजनी तक च तन क मु ख अवधारणाएँ तथा सामािजक–राजनी तक
प रवतन का वैचा रक आधार व दशन इसी भारतीय रा वाद तथा वातं य आ दोलन
क दे न है।
6. इस राजनी तक च तन म तीन मह वपूण अवधारणाएँ व उपलि धयाँ उ लेखनीय ह:–
(i) व व रा यवाद तथा मानव एकता क धारणा
(ii) मनु य क ग रमा तथा अ तःकरण के उ ार के आ याि मक य न के प म
गांधीजी का स या ह का स ा त तथा राजनी तक े म उसका सफल
या वयन।
(iii) मानवतावाद दशन ( वशेषकर टै गोर, गांधी, अर व द, एम. एन. राय व नेह )

11.5 अ यास न
1. अवाचीन भारतीय राजनी तक च तन क पृ ठभू म, इसक वषयव तु तथा इसके मु ख
णेताओं के योगदान क सं ेप म ववेचना क िजए।
2. टश सा ा यवाद व उप नवेशवाद के व पनपे आ ोश स दभ म उ दत भारतीय
रा वाद, रा य चेतना एवं सां कृ तक नवजागरण क समी ा क िजए।
3. सामािजक–राजनी तक प रवतन के व वध वैचा रक आधार के प र े य म 'सामािजक
याय', ‘समाजवाद' एवं ' वके करण' क अवधारणाओं क या या करते हु ए मु ख
अवाचीन भारतीय राजनी तक वचारक वारा तपा दत स ां त को प ट क िजए।
4. अवाचीन भारतीय राजनी तक च तन क वशेष उपलि धय का उ लेख करते हु ए
इनक वतमान समय म ासं गकता क ववेचना क िजए।

11.6 स दभ थ सू ची
1. डॉ. वी. पी. वमा: आधु नक भारतीय राजनी तक च तन; ल मीनारायण अ वाल,
आगरा, 1971
2. ओ. पी. गोयल : क टे पोरे र इि डयन पॉ ल टकल थॉट, कताब महल इलाहाबाद,
1965
3. पु षो तम नागर: आधु नक भारतीय सामािजक एवं राजनी तक च तन, रा. ह. ा.अ.,
जयपुर , 1999 (छ:ठा सं करण)

225
इकाई–12
महा मा गाँधी
इकाई क परे खा
12.0 उ े य
12.1 तावना
12.2 जीवन प रचय
12.3 गाँधी च तन पर भाव
12.3.1 पूव भाव
12.3.2 पि चमी भाव
12.4 दाश नक वचार
12.5 स या ह
12.6 आ थक वचार
12.7 राजनी तक वचार
12.8 महा मा गाँधी का राजनी तक च तन म योगदान
12.9 सारांश
12.10 अ यास न
12.11 स दभ थ सू ची

12.0 उ े य
इस इकाई को पढने के उपरा त आप जान पायगे –
 महा मा गाँधी के जीवन के बारे म,
 महा मा गाँधी का महान च तन या था,
 महा मा गाँधी के च तन क वशेषताय,
 महा मा गाँधी के च तन क मु ख अवधारणाएँ एवं
 महा मा गाँधी का योगदान।

12.1 तावना
महा मा गाँधी को एक च तक के प म तु त करने म सबसे बड़ी बाधा यह आती
है क उनका यि त व इतना वशाल था क उनके च तन पर अ धक यान नह ं गया। उनका
कथन “मेरा जीवन ह मेरा स दे श है'' उनको च तक के प म जानने म बाधक है। जैसा क
अलबट आई ट न ने कहा है क आने वाल पी ढ़याँ यह व वास नह ं करगी क गाँधी जैसा एक
हाड़ माँस का मानव पृ वी पर रहता था। महा मा गाँधी क तु लना इ तहास बदलने वाले
यि तय म क जाती है, उ ह बु और ईसा जैसे यि त व के समान वग म रखा जाता है।
महान यि त व के धनी होने के कारण तथा समय के स दभ म हमसे नजद क होने के कारण
वचारक के प म उनक पहचान को बहु त वष तक अ धक मह व नह ं दया गया है। 21 वीं

226
शता द के आर भ म आज उनको वकास क एक वैकि पक यव था के जनक के प म
तु त कया जा रहा है। आज के सभी समािजक वै ा नक को जब भी 'पूँजीवाद ',
'भौ तकतावाद ', 'इि यज य वकास क अवधारणा' के वक प क आव यकता होती है, तब
महा मा गाँधी को याद कया जाता है। व व म धम क थापना करने वाल के अलावा कसी
भी अ य यि त पर इतना अ धक नह ं लखा गया है और न ह कसी भी यि त क वपर त
यि त व वाले महान लोग से ह इतनी अ धक तु लना क गई है। महा मा गाँधी क तु लना
(बु , स त ां सस, लंकन, सनयायसेन, सो, थोरो, मा स और टा सटॉय) जैसे यि तय से
क गई है।
उनका यि त व भी बहु आयामी था। द ण अ का म मानव अ धकार के लए
संघष करने वाला, भारत के जन आ दोलन का सफलतापूवक नेत ृ व करने वाला, सामािजक
बुराइय जैसे अ पृ यता के व यु करने वाला, ाकृ तक च क सा व व थ भोजन का
योग करने वाला, समाज सु धारक, म हलाओं को समान दजा दलाने वाला, व भ न धम का
तु लना मक अ ययन करने वाला, बु मान चारक, कु शल पे फ़लेटर, हजार यि तय को
नै तक नदशन दे ने वाला, आ म और सामु दा यक जीवन क थापना करने वाला और एक संत
के प म पहचाना जाने वाला यि त व महा मा गाँधी का था। उस भर राजनी तक ग त व धय
म ल त रहने के बावजू द भी जीवन म कभी भी राजनी त वारा उनके नणय को नयि त
नह ं कया गया। उनके वारा लखे गये लेखन क व तृतता इतनी अ धक है क उसे
यवि थत ढं ग से तु त करना असंभव है। उनके वारा अपने जीवन म डेढ करोड़ श द लखे
गये िजनका 100 थ म संकलन कया गया है। उ ह ने जीवन के हर पहलू पर अपने वचार
तु त कये ह। 1933 म. उ ह ने लखा क मने जो कु छ लखा है उसम स य और अ हंसा के
स ा त का समावेश करना आव यक है। उ ह ने अपने च तन म वकासा मक पहलु ओं पर
जोर दया। 1939 म उ ह ने लखा क, '' लखते समय यह कभी नह ं सोचता हू ँ क इस वषय
पर पहले या लखा ? मेरा उ े य अपने पहले लखे गये व त य के त संगतता बनाये
रखना नह ं है, अ पतु स य के त तब ता बनाये रखना है।'' उ ह ने अपने च तन म कई
अवधारणाओं को ज म दया है और पुरानी अवधारणाओं को नये ढं ग से तु त कर वराज,
वदे शी, स या ह, सव दय इ या द अवधारणाओं को संशो धत कया और लोक य बनाया।
इतना लखने के पीछे उनक व तृत पठन क वृि त थी। 1923 म यवदा जेल म 54 वष
क आयु म उ ह ने एक साल म 150 पु तक का अ ययन कया, िजनम महाभारत, भारतीय
दशन के सभी छ: स दाय , मनु मृ त , उप नष , गीता क सभी ट काऐं व लयम जे स,
एच.जी. वे स, डयाड कप लंग जैसे लेखक क रचनाय पढ ं थी। 1944 म उ ह ने कालमा स
के 'दास के पटल' का अ ययन कया और यह ट पणी क क ''म यह नह जानता क
मा सवाद सह है या नह ,ं ले कन जब तक गर ब का शोषण होता रहे गा उसके लए कु छ न
कु छ तो करना ह होगा।''
आज व व म भारत क पहचान का एक बहु त बड़ा कारण महा मा गाँधी ह। महा मा
गाँधी वारा कये गये काय और उनके वारा बनाये गये स ा त का अनुसरण सारे व व म

227
होता है और भारत के नाग रक होने के कारण हम उनके काय और वचार के सह प र े य
को समझना चा हए और उस पर गव करना चा हये।

12.2 जीवन प रचय


महा मा गाँधी का ज म 2 अ बर, 1869 को गुजरात ांत के पोरब दर म हु आ था।
इनके पता करमचंद गाँधी ने 4 शा दयाँ क थीं और 3 पि नय क मृ यु के प चात ् चौथी
प नी पुतल बाई से उ ह 3 पु और 1 पु ी हु ए। करमचंद गाँधी क पहल प नी के भी 2
पु याँ थी। उनके 3 पु म सबसे बड़े ल मीदास 'काला’, दूसरे कृ णदास 'कृ ि णया' और तीसरे
मोहनदास 'मोह नया’ थे। तीसरे और सबसे छोटे पु मोहनदास ह महा मा बने। गाँधीजी जा त
से वै य थे तथा जू नागढ़ रा य के कु टयाना जगह से स बि धत थे। गाँधीजी के पडदादा
हरजीवन गाँधी ने 1777 म पोरब दर म एक मकान खर दा और यापार के प म वे वहाँ
था पत हु ए। हरजीवन गाँधी के पु उ तमचंद (महा मा गाँधी के दादा) पोरब दर के शासक
राणा संह जी के द वान नयु त हु ए। 1847 म उ तमचंद इस रा य के 28 वष तक द वान
बने रहे । करमचंद गाँधी क श ा बहु त कम हु ई थी ले कन उ ह रा य के काय और काय
न पादन का पया त अनुभव था। उनक या त एक ईमानदार, तब , स म एवं आ ाकार
शासक के प म थी। महा मा गाँधी क माता पुतल बाई एक धा मक एवं मजबूत म हला
थी। वे अनेक त और उपवास से मजबूत मनी थी तथा वे आंत रक प से सश त म हला
थी। महा मा गाँधी ने माना क उनके जीवन के यि त व म जो कु छ शु ता है वह उनक
माता क दे न है। महा मा गाँधी ने 6 वष क उ म पढ़ाई आर भ क और राजकोट के
ता लका कू ल म श ा ा त क । श ा के आरि भक दन म वे एक भी ब चे थे और
ब च से दो ती करने क अपे ा वयं तक सी मत रहते थे। वे कृ त से झू ठ व फरे ब से परे
थे। 1887 म महा मा गाँधी ने मै क पर ा उ तीण क तब तक प रवार के म माउजी दवे
ने उ ह यह सु झाव दया क मोहनदास को कानून क श ा ा त करने के लए इं लै ड जाना
चा हए ता क वे बै र टर बन सक और वापसी म अपने पता का थान ले सक।
4 सत बर, 1888 को वे पानी के जहाज से इं लै ड के लए रवाना हो गये। 3 वष
तक उ ह ने इं लै ड म रहकर कानून क श ा ा त क और पुन : भारत लौट आये। उ ह ने
भारत म वकालात करने क को शश क ले कन वे अ धक सफल नह ं हु ए। उनम सावज नक
भाषण दे ने क कला का अभाव था और वे यायालय के जज के सम अपने तक को सह
कार से तु त नह ं कर पा रहे थे। ऐसे समय उ ह द ण अ का जाने का योता मला।
द ण अ का म एक मुि लम भारतीय यापार अ दुला ने उ ह अपना मु कदमा लड़ने के लए
आमं त कया। मई 1893 म महा मा गाँधी डरबन म पहु ँ चे। वहाँ एक रे ल या ा के दौरान
उ ह रं गभेद का सामना करना पड़ा और इस रं गभेद क नी त को उ ह ने बाद म कई थान
पर एक भयावह प म दे खा। धीरे –धीरे महा मा गाँधी ने द ण अ का सरकार क रं गभेद
नी तय के व बढ़ती जनचेतना को संग ठत प दान कया। द ण अ का म महा मा
गाँधी 1915 तक रहे और इस बीच उ ह ने न केवल अपनी राजनी त को वक सत कया अ पतु
राजनी तक संगठन बनाया, राजनी तक वरोध के व प का नधारण कया तथा वे राजनी तक

228
वरोध को जनता और व व के कौने–कौने तक फैलाने म सफल रहे। राजनी त म सफल होने
के बावजू द उ ह ने वयं के साथ योग करना नह ं छोड़ा। इसे उ ह ने ''स य के साथ मेरे
योग'' नाम दया। यह 1925 म उनके वारा लखी गई आ मकथा का शीषक भी था। द ण
अ का के वास के दौरान उ ह ने हड़ताल क , अ हंसा मक संघष कया, कई अखबार नकाले,
आ म क थापना क और एक पे फलेटर के प म या त ा त क । इसी दौरान उ ह ने
अपनी दाश नक सोच को पहल बार वयं क पु तक '' ह द वरा य'' म तु त कया।
महा मा गाँधी ने 1909 म इस पु तक क रचना क थी। यह पु तक 20 छोटे –छोटे अ याय
म वभ त है। 11 अ याय म उस समय के इ तहास के प र े य म ट प णयाँ ह, बाक म
दाश नक न पर ट प णयाँ ह। यह पु तक इं लै ड से द ण अ का जाते समय जहाज पर
(13 नव बर 1909 से 22 नव बर, 1909 तक) दस दन के भीतर गुजराती भाषा म लखी
गयी। आज इस पु तक को आधु नकता के संदभ म मु ख समी ा मक पु तक के प म
मह वपूण थान ा त है।
1915 म भारत लौटने के प चात ् महा मा गाँधी ने 1947 तक भारतीय राजनी त म
मह वपूण भू मका नभायी। 1920 से 1947 का समय गाँधी युग के प म जाना जाता है।
भारत आने के प चात ् गाँधीजी ने गोपाल कृ ण गोखले क सलाह पर एक वष तक भारत का
दौरा कया, िजससे क वह भारत के आम आद मय क सभी सम याओं को जान सके और
भारतीय समाज के बारे म समझ सक। भारत म आने से पूव उ ह ने द ण अ का म स ता
के वरोध का एक नया और सफल ह थयार ''स या ह'' खोज लया था। भारत क आजाद क
लडाई म इसका सफलतापूवक योग कया गया। भारत म महा मा गाँधी ने कई आ दोलन को
सफलतापूवक नेत ृ व दान कया। इसम सबसे पहला व वशाल आ दोलन 1917 म च पारण
म हु आ। उसके प चात ् 1919 का खलाफत आ दोलन, 1920, का असहयोग आ दोलन,
1930 का नमक स या ह आ दोलन एवं स वनय अव ा आ दोलन, 1942 का भारत छोड़ो
आ दोलन आ द मु ख ह। महा मा गाँधी वारा भारत म कये गये इन आ दोलन के व तार
म न जाते हु ए हम यह कह सकते ह क कु छ वृ तय इन आ दोलन को व श टता दान
करती ह।
(1) महा मा गाँधी ने रा य आ दोलन क राजनी तक चेतना को सकारा मक प
से जानने व संग ठत करने का अभू तपूव काय कया।
(2) इन आ दोलन के मा यम से राजनी त से आम आदमी को जोड़ने का यास
कया। उ ह ने अं ेजी के बजाय ह दु तानी भाषा का योग, खाद का
चलन, म हलाओं को आ दोलन से जोड़ना, भारतीय पूँजीप तय का सहयोग
और अ तरा य जगत को नर तर अखबार के मा यम से अपने काय से
भा वत कया।
(3) रा य आ दोलन के सबसे मह वपूण राजनी तक दल कां ेस को जनतां क
संगठन बनाया और कां ेस क सद यता के लए बनाये गये नयम का

229
न पण कया जो आज भी दल का सद य बनाने के लए आव यक नयम
माने जाते ह।
(4) इन आ दोलन म नेत ृ व दे ने क एक नई शैल वक सत क िजसम नेत ृ व
और सामा य जनता के भेद को समा त कया। वे मे स वेबर के क र माई
नेत ृ व का जीता जागता उदाहरण ह।
1947 म भारत के वतं होने के समय दे श के बँटवारे के कारण सा दा यक दं गे हो
रहे थे। 15 अग त 1947 को भारत आजाद के ज न म डू बा हु आ था। महा मा गाँधी आजाद
का ज न न मनाकर बंगाल म नौआखल म सा दा यक दं गे रोकने म लगे हु ए थे। 30
जनवर , 1948 को उनक ह या कर द गई। उनका जीवन एक संत का जीवन था और उनका
यह कहना सह था क उनका जीवन ह उनका संदेश है। महा मा गाँधी के कई व त य दु नया
भर म बार–बार उ ृत कये जाते ह। कसी भी नी तगत नणय करने के बारे म म पैदा हो
रहा हो तो उसका एकमा तर का (मापद ड) यह है क नणयकता नणय लेने से पूव अपनी
ऑख बंद कर के सोचे क या इस नणय से कसी गर ब क आँख का आँसू पुछ जाएगा ?
अगर ऐसा है तो वह नणय सह है। इ तई कार आज पयावरण क र ा के बारे म चि तत
लोग के बारे म गाँधीजी का मं था क पृ वी के पास सभी मनु य क आव यकताओं को पूरा
करने क मता है पर तु कसी एक यि त के लालच को पूण करने क उसम साम य नह ं
है। इस लए वकास क या ा का आधार मनु य क आव यकता होनी चा हए, लालच नह ।ं

12.3 गाँधी च तन पर भाव


महा मा गाँधी ने अपना बचपन भारत म बताया तथा वे कानून जी श ा ा त करने
के लए इं लै ड गये थे। उनका काय े 20 वषा तक द ण अ का रहा। 1915 म भारत
लौटने के प चात ् अपनी मृ यु तक वे भारत म रहे और भारत क आजाद के लए काम करते
रहे । अपने जीवन म उ ह ने कई नये अनुभव ा त कये, उनम अनुभव से सीखने क अदभु त
मता थी। उ ह ने कसी भी अनुभव को न सीखने यो य नह ं माना। उ ह ने न केवल अपने के
अनुभव से जो कु छ सीखा उसे अपने वचार म ढाल दया, अ पतु उसे जीवन म भी उतारने क
को शश क । कम और च तन के इस सट क सि म ण से उनका च तन अनुभ वज य और
आदशवाद स हु आ। अपने बचपन म उ ह ने भी कसी भी सामा य ह दू प रवार के ब च
क तरह राम, कृ ण, महाभारत एवं पुराण क कथाएँ सुनी। भारतीय सं कृ तय के मू य से
ओत ोत इन कथाओं ने उ ह ेरणा द । बचपन का भाव था क वे उ भर राम को अपना
आदश मानते रहे थे। उ ह ने राम नाम' को एक अ ु त आंत रक शि त दान करने वाला काश
पु ज
ं माना।
उनका प रवार एक वै णव प रवार था। इस लए भि त और संतो का उन पर काफ
भाव पड़ा। िजसम नर संह मेहता का सु य भजन ''वै णव जन तो तेन,े जे पीर पराई जानी
रे '' उनका सवा धक य था। महा मा गाँधी अपनी युवाव था म जैन धम से भी काफ भा वत
हु ए और इं लै ड जाने पर उ ह ने ईसाई धम को भी समझने का यास कया द ण अ का म
उनके यहू द और अं ेज म भी बने तथा वहाँ मु ि लम म ने भी उनका साथ नभाया। इस

230
कार वे अनेक धम व सं कृ तय के मा यम से व भ न यि तय के स पक म और उनसे
कु छ न कु छ बात हण क । उनके च तन पर पड़ने वाले भाव को दो भाग म वभ त कर
सकते ह :–

12.3.1 पूव भाव

1. पूव धा मक भाव :– महा मा गाँधी के जीवन पर ह दू धम, वशेष प से वै णव


धम का भाव पडा। उ ह ने सार उ वयं को एक ह दू मानने पर बल दया। उनका कहना
था क एक अ छा ह दू ह एक अ छा मु ि लम व अ छा ईसाई हो सकता है अ छा धा मक
यि त बन सकता है।
ह दू धम म भ त पर परा को गाँधीजी ने सबसे अ धक मह व दया और उसका
भाव उन पर यह पडा क उ ह ने अपना यवहार सयंत बनाए रखा और वयं के अहंकार पर
भी नय ण रखा। ह दू धम के अलावा जैन धम उनके जीवन म बहु त मह वपूण था। अ हंसा
का सबसे अ धक मह व जैन धम म ह है। महा मा गाँधी ने धम के अलावा जीवन के सभी
पहलु ओं म अ हंसा को मह व दया है। महा मा गाँधी के योगदान का वशेष मह व अ हंसा को
राजनी त के े म योग करना था। गाँधी का धम नै तकता से पूण था। उनका अ हंसा के
त लगाव जीवन के सभी े म प रल त होता था। गाँधी जी इ लाम के समानता के
स ा त से भी भा वत थे। वे एक मु ि लम यापार का मु कदमा लड़ने के लए द ण अ का
गये थे।
2. पूव गैर धा मक भाव :– महा मा गाँधी अपने समय के कई यि तय के काय एवं
च तन से भा वत थे। िजसम मु खत: गोपालकृ ण गोखले का नाम आता है, िज ह उ ह ने
अपना राजनी तक गु माना। महा मा गाँधी ने गोपालकृ ण गोखले क तरह अं ेजी कानून का
अ ययन कया और उसम व श टता ा त क । गोपालकृ ण गोखले क तरह उ होने माना क
सम याओं का समाधान जहाँ तक हो सके संवध
ै ा नक तर क से कया जाना चा हए और य द
शासन का वरोध करना हो तो संवध
ै ा नक तर क से ह वरोध करना चा हए जैसे ापन आ द
तु त करना, सावज नक सु झाव तथा अखबार के मा यम से वचार को य त करना इ या द
शा मल ह। इन सभी तर क के मा यम से सरकार से, अपनी बात मनवाने का यास कया
जाना चा हए तथा आ दोलन करने से पूव सभी कार के संवध
ै ा नक यास करने चा हये।
महा मा गाँधी अव ा और आ दोलन करने के बावजू द मानते थे क वरोधी प से बातचीत
करने के दरवाजे हमेशा खु ले रखने चा हए। महा मा गाँधी गोपालकृ ण गोखले के वचार से
भा वत थे क तु वे गोपालकृ ण गोखले से कु छ कदम आगे थे। उन पर उ वाद भाव भी
पड़ा। वे अपने उ े य को ा त करने के लए कानून भंग करने को भी तैयार थे। तलक वारा
लोक य बनाये गये वदे शी तथा वराज के नार को आ मसात कर उ ह ने अपने आ दोलन
को साथक बनाया। उ ह ने माना क तलक ने राजनी त को एक जन आ दोलन के प म सव
यापकता दान क , इसी कारण तलक क मृ यु के प चात ् गाँधीजी भारत म जन आ दोलन
के तीक बन गए।

231
12.3.2 पि चमी भाव

1. पि चमी धा मक भाव – 1888 म इं लड जाने पर महा मा गाँधी अं ेजी स यता के


नजद क आये और ारं भ म उ ह ने अं ेजी स यता के अनु प अपने आपको ढालने का यास
कया। ले कन शी ह उनका अं ेजी स यता से मोह भंग हो गया। ईसा के इस स दे श से क
अगर तु हारे द ये गाल पर कोई थ पड़ मारे तो बाँया गाल भी उसके आगे कर दो, से गाँधीजी
काफ भा वत थे। ईसाई धम के सामािजक सुधार के स दे श से वे काफ भा वत थे। कु छ
लेखक ने उ ह एक सुधारवाद ईसाई बताया है।
2. पि चमी गैर धा मक भाव:– महा मा गाँधी ने अपनी आ मकथा म िजन मु ख पु तक का
उ लेख कया है, वे तीन पि चमी वचारक वारा ल खत ह:–
पहल पु तक सी वचारक :टा सॅटाय क '' द कगंडम ऑफ गॉड हज वदड़न यू'ं ' है,
इस पु तक म उ ह ने ेम का स दे श दया है।
दूसर पु तक रि कन क ''अन टू दस ला ट'' है, िजसका उ ह ने गुजराती म सव दय
नाम से अनुवाद कया। इस पु तक से गाँधीजी ने 3 श ाऐ ा त क :–
थम, सभी के हत म खु द का हत।
वतीय, एक वक ल का काय और एक नाई का काय समान है य क येक को
अपना जीवन यापन करने का समान अ धकार है।
तृतीय , एक मक का जीवन ह सबसे अ छा जीवन है।
तीसर पु तक थी हे नर डे वड थोरो क – ''ऐसेज ऑन स वल डस ओ ब डये स'' इस
पु तक म उ ह ने रा य का वरोध करने के आ दोलन का व प पहचाना तथा कु छ वषा तक
वे स वनय अव ा के नाम से अपना आ दोलन चलाते रहे ।
इन मह वपूण पु तक के अलावा महा मा गाँधी ने 20वी शता द के ार भ म
च लत लगभग सभी पि चमी वचार धाराओं का अ ययन कया और उन पर अपनी वतं
ट का– ट पणी क । उ ह ने समाजवाद, सा यवाद, लोकतं , उदारवाद इ या द सभी पर अपनी
ट प णयाँ लखी ह। बे थम के उपयो गतावाद के वे कटु आलोचक थे। गाँधीजी के अ ययन का
दायरा भी बहु त व तृत था। इस लये उ ह ने अपने जीवन काल म बहु त लखा है। नर तर
अ ययनरत रहने के कारण ह उ ह ने लगभग सभी वषय पर अपने वचार क अ भ यि त
क।
बोध न–1
न: गाँ धी च तन पर पड़ने वाले भाव बतलाइये ।
उ तर ...........................................................................................
...........................................................................................

12.4 दाश नक वचार


सबसे पहले गोपीनाथ धवन ने महा मा गाँधी के जीवनकाल के अ तगत सन ् 1944 म
उनके राजनी तक दशन पर पहला शोध तु त कया, जो बाद म ''पो ल टकल फलोसोफ ऑफ

232
महा मा गाँधी'' के नाम से का शत हु आ। 50 के दशक म जोन वी. बोदूरां ने महा मा गाँधी के
स या ह क तकनीक को व वाि मकता के स ा त से समझने का यास कया और उसक
तु लना मा सवाद व वाि मकता से क है। 60 के दशक म जब महा मा गाँधी वारा र चत
लेखन का भारत सरकार वारा संकलन कया गया, तब 1969 म उनके वारा ल खत सा ह य
को स पूण गाँधी वां मय के प म का शत कया गया िजसम 100 थ थे। तब पहल बार
शोधकताओं को गाँधी के वचार का संकलन मला। 1960 के दशक म ह व व म आये
नवीन प रवतन , वशेष प से पूँजीवाद भु व और आधु नकता क तानाशाह वृ त के व
आ दोलन आर भ हु आ तथा नये आजाद हु ए दे श ने भी अपनी आवाज को बुल द करना आरं भ
कया। ऐसे समय म गाँधीजी, के वचार पर लोग का यान आक षत हु आ और उनके वचार
को यवि थत व प दान करने क को शश क गयी इनम राघवन अ यर, बु दे व भ ाचाय,
बी.एन गांगल
ु , रामा ेय राय इ या द मु ख ह, िज ह ने 70 के दशक म गाँधी को एक वचारक
के प म तु त कया और उ ह कसी भी अ य वचारक के समक बु , यवि थत–
वैकि पक वचार दे ने वाला दाश नक बताया। 80–90 के दशक म गाँधी के वचार क तु लना
समकाल न पि चमी वचारधाराओं से क गई। रचडऐटे नबेरो ने गाँधी फ म से 80 के दशक म
गाँधी का मह व बताया है। िजन लेखक ने गाँधी को इस आधु नक समाज म ासं गक तथा
इनके वचार को समसाम यक मह व का बताया, उनम मु ख है– भीखू पारे ख, रोना ड चक
थॉमस पे थम, वी.आर मेहता, नरे श दाधीच, मागरे ट चटज , डगलस एलन इ या द।
आज गाँधीजी को एक दाश नक के प म माना जाता है तथा उनके वचार के आधार
पर उ तर आधु नक / आधु नक वैकि पक ववाद नवारण, वैकि पक, सोच, पयावरण, नार वाद
इ या द के स दभ म पर ण कर रहे ह।
गाँधीजी को धीरे मोहन द त वै णव दाश नक मानते ह। हालां क गाँधीजी ई वर को
वैयि तक न मानकर उसको वचार और व ध का व प मानते ह। गाँधीजी मानते ह क ई वर
को प रभा षत करना असंभव है, ले कन हम उसके अि त व को महसू स कर सकते ह। गाँधी
ई वर को स य के प म भी प रभा षत करते ह। 1925 म उ ह ने कहा क ई वर और स य
दोन एक दूसरे क प रवतनीय इकाईयाँ ह। 1931 म ि टजरलै ड म गाँधीजी ने कहा क
'ई वर स य है क अपे ा स य ई वर है' कहना अ धक उपयु त होगा, य क अनी वरवाद के
लए इसे अपनाना अ धक सु वधाजनक होगा। गाँधीजी ई वर क स ता का ववेक से संचालन
नह ं करना चाहते थे। यह मांड नयम से चल रहा है और उन नयम को बनाने और लागू
करने काय ई वर य स ता के अलावा कोई नह ं कर सकता। रो याँ रोलाँ उ ह एक रह यवाद
मानते ह य क गाँधीजी कसी भी नणय को लेने से पूव अपने अ दर क आवाज का हवाला
दे ते थे और क आवाज उ ह सह रा ते पर ले जाती थी। महा मा गाँधी ने अपने जीवन म तप
के वारा यि त व को इतना शु बना लया था क उनक आवाज म ई वर क आवाज का
आभास होता था। दाश नक स ा त म महा मा गाँधी स य और अ हंसा को सवा धक मह व
दे ते थे।
स य

233
महा मा गाँधी का चंतन स य और अ हंसा पर आधा रत है। उनके अनुसार
वा त वकता म केवल स य का अि त व है। उनके स य क अवधारणा सै ाि तक तर पर
लेटो के नजद क मानी जा सकती है, ले कन यथाथ म अि त ववाद के नजद क है। यूनानी
वचारक ने स य को सबसे मह वपूण अवधारणा माना है िजसक परछाई इस दु नया म यथाथ
के प इ ह ं न मत स ांत के प र े य म है। यि त को उसके जीवन म स य तक पहु ँ चने
का यास करना चा हए। महा मा गाँधी इस नरपे स य को वीकार करते ह, य क
अि त व नरपे है। ले कन उस नरपे स य को यि त के स य म मलने का आधार
यि त क चेतना का सव च तर को ा त करना है। जब तक ऐसा न हो यि त के स य
को सापे वाद स य माना जायेगा और हर यि त का स य ह उसका अि तम स य होगा। यह
धारणा अि त ववाद धारणा से मलती जु लती है। नरपे स य को आ मसात ् करने के लए
महा मा गाँधी ने अपने व को नर तर योग के वारा तथा तप के मा यम से उ च चेतना
यु त बनाया। इसी लए गाँधी ने त, उपवास, अ हंसा, मचय, अ तेय, अप र ह आ द को
अपनाने पर बल दया है िजससे यि त क आवाज बन सके। इस कार वे नरपे स य के
पराभौ तक वचार और सापे स य के यथाथवाद वचार का सि म ण तु त करते ह वे स य
को केवल आ याि मक े म ह मह व नह ं दे ते है बि क राजनी तक े म भी इसे बनाये
रखना चाहते है। उनके अनुसार राजनी त और समाज म कये जाने वाले काय म स य
प रभा षत होना चा हये। स य के अभाव म मनु य उ े यह न हो जाता है और अपने काय से
समाज का हत नह ं कर पाता है।
अ हंसा
महा मा गाँधी क पहचान उनक अ हंसा के त तब ता के कारण है। उ ह ने मानव
इ तहास म पहल बार राजनी तक े म अं हसा का उपयोग सफलतापूवक कया है। उ ह ने
संघष नवारण के लए अ हंसा का योग कया, िजसे व व म संघष नवारण के लए वीकाय
और सफल तकनीक माना जाता है। साधारणतया अ हंसा का अथ चोट न पहु ँ चाना और ह या न
करना माना जाता है। व तृत व प दे ने पर इसका अथ, कसी जीव को मन, वचन और कम
से दुःख नह ं पहु ँ चाना है। अ हंसा ह दू धम, बौ धम और जैन धम म कसी न कसी प म
आव यक त व है। मो ा त करने के लए पातंज ल जैसे योग शाि य ने इसे आव यक
माना है। जैन धम म इसको अ य धक मह व दया गया है और हंसा को कई े णय म जैसे
आर भ भज और अनारं भ भज या न जान बूझकर या अनजाने म क जाने वाल हंसा के प
म दे खा जाता है। जैन धम म यवहार म भी इसे लागू करने पर बल दया जाता है। बौ धम
म येक साधू के लए अ हंसा का पालन करना आव यक है। महा मा गाँधी ने टॉ सटॉय क
पु तक से अ हंसा के सावज नक मह व को जाना और बाद म भारतीय पर परा म अ हंसा के
कई उदाहरण से इसका मह व समझा, जैसे पौरा णक कथा म भ त हलाद के उदाहरण म
उ ह ने गीता को या या करते हु ए इसे अ हंसक नथ के प म तु त कया। महा मा गाँधी ने
1916 म अ हंसा म नकारा मक और सकारा मक भेद तु त कया, उनके अनुसार अ हंसा का
अथ है कसी भी जीव को शार रक या मान सक प म पीड़ा न पहु ँ चाना। इसके सकारा मक
प म है ेम और दान। सकारा मक प म अ हंसा क पालना करने पर यि त को अपने श ु

234
से ेम करना आव यक है तथा ऐसी अ हंसा स य और अभय को सि म लत करती है। इस
कार महा मा गाँधी क अ हंसा का अथ नकारा मक प तक सी मत नह ं था। वे अ हंसा के
सकारा मक प को अ धक मह व दे ते ह िजसम अपने वरोधी को ेम करना सि म लत है
और इसी कारण वे यह मानते थे क पाप से घृणा करो पापी से नह ।ं उनका ढ़ व वास था
क अ हंसा न केवल सावभौ मक प से लागू क जा सकती है अ पतु यह अं तम प से सह
स होती है। इसका उपयोग करने वाला ह अं तम वजय ा त करता है। उनक यह मा यता
थी क मनु य मू लत: दे वीय व प होता है, पर उसम पशु ता के अंश मौजू द है और इस लए
हंसा करना बहु धा मनु य का वभाव बन जाता है। ले कन वे यह भी मानत थे क नर तर
यास से मनु य अपने जीवन म बहु त कु छ हद तक अ हंसक बना रह सकता है। स य और
अस य, हंसा और अ हंसा क लड़ाई मनु य तथा समाज म नर तर चलती रहती है। महा मा
गाँधी के अनुसार अ हंसा तीन तरह क हो सकती है :–
1. कायर क अ हंसा, जो दुबलता के कारण हंसा का सहारा नह ं ले सकता।
2. राजनी तक तर के के प म अ हंसा का योग।
3. अ हंसा के त आ म तब ता, जो आ मानुशासन व आ मानुभू त से आती है।
गाँधी कायर क अ हंसा को अ हंसा नह ं मानते ह। राजनी तक़ या सामािजक े म
सफलता के लए क जाने वाल अ हंसा सव े ठ नह ं है, जब तक मनु य आंत रक प से
अ हंसा के त तब न हो, तब तक सव े ठ अ हंसा ि टगत नह ं हो सकती है। गाँधीजी ने
यावहा रक अ हंसा को चार े म इं गत कया है :–
1. स ता के व अ हंसा का योग।
2. आंत रक उप व के म य अ हंसा का योग।
3. बा य आ मण म अ हंसा का योग
4. घरे लू े म अ हंसा का योग।

12.5 स या ह
राजनी तक दशन म महा मा गाँधी क मु ख दे न थी–स या ह। स या ह का शाि दक
अथ है स य के त आ ह। स य के त यह आ ह यि त को शि तशाल बनाता है। इस
आ ह को बनाये रखने के लए एक मा साधन है–अ हंसा। द ण अ का म सरकार का
तरोध करते समय महा मा गाँधी ने अपने आ दोलन को नि य तरोध का नाम दया था।
धीरे –धीरे महा मा गाँधी को यह अहसास हु आ क उनके वारा चलाया गया आ दोलन नि य
श द से पूणतया नह ं समझा जा सकता य क उनके आ दोलन म कु छ वशेषताएँ ऐसी थीं जो
उसे नि य तरोध से अलग करती थीं। महा मा गाँधी का स वनय अव ा आ दोलन उनके
स चे भाव और उनके ठोस स ा त पर आधा रत था िजसम तर कार नह ं था। नि कय
तरोध कमजोर का ह थयार माना जाता था। महा मा गाँधी के जीवन म हंसा क कोई
गु ज
ं ाइश नह ं थी। अपने आ दोलन को अवधारणा मक पहचान दे ने के लए गाँधीजी ने अपने
प ''इं डयन ओ प नयन” म पाठक से इस बारे म सु झाव मांगे। मगनलाल गाँधी ने ‘'स या ह''
श द सु झाया। गाँधीजी ने इसको यापक बनाते हु ए अपने आ दोलन का नाम ''स या ह'' दया।

235
यह दो श द से मलकर बना। है– स य+आ ह या न स य के त आ ह और यह आ ह
अ हंसा के बना संभव नह ं है। आज सार दु नया म अ हंसक तरोध को स या ह के नाम से
जाना जाता है। गाँधी जी ने द ण अ का, म कये गये आ दोलन के इ तहास को ''स या ह
का इ तहास'’ नामक पु तक म व णत कया है। गाँधीजी स या ह को एक मक वकास के
प म दे खते थे। उनके अनुसार यि त वयं को तप के वारा उ कृ ट बनाने के लए नर तर
को शश करता है तथा चेतना के उ च तर को ा त करता है। वह नि कय तरोध को
नबल का ह थयार मानते थे और स या ह को बलवान का अ मानते थे, इसम अ हंसा
आव यक त व थी। स या ह का उ े य स य को ा त करना है और उसे कसी भी क मत पर
यागा नह ं जा सकता। स या ह का योग करने वाला और कानून का वरोध करने वाला हर
यि त परे शानी झेलने को तैयार रहता है। वा तव म स या ह कानून क पालना करने वाला
होता है और वे उसी कानून के वरोध क बात करते ह जो नै तकता का वरोधी होता है। गाँधी
जी के लए नै तकता सव च थी। स या ह के यावहा रक प को प ट करते हु ए गाँधी जी
मानते थे क स या ह करने वाले को अपनी मू ल माँग से आगे नह ं बढ़ना चा हए। उनका
वचार था क स या ह से ा त सफलता को बनाये रखने के लए नर तर स या ह बने रहना
आव यक हे ।
हे नर डे वड थोरो के वचार से भा वत होते हु ए गाँधीजी मानते थे क यि त सबसे
पहले है और उसको नै तक मू य को बनाये रखने के लए हमेशा संघषरत रहना चा हए। अपने
अ धकार क र ा के लए स वनय अव ा आ दोलन का योग करना चा हए और इसके
प रणाम को भु गतने के लए तैयार रहना चा हए। गाँधीजी के अनुसार यि तगत हत के लए
स या ह नह ं करना चा हए, स या ह का योग हमेशा जन– हताय, जन–सु खाय होना चा हए।
स या ह का योग करते समय भी महा मा गाँधी वरोधी प से नर तर बात– चीत करने पर
बल दे ते थे और सभी यास म वफल होने पर ह स या ह यु त करने क सलाह दे ते थे।
स या ह आर भ करने से पूव स या ह को लोकमत अपने प म करना चा हए। यह भी
यान रखना चा हए क िजन बुराईय के व वह संघष करता है वे बुराईयाँ वयं म
व यमान न ह । वह आ मशु और स या ह से अपनी लड़ाई जीत सकता है। उसे हमेशा
अपने वरोधी से बात– चीत करने के लए रा ता खु ला रखना चा हए। गाँधीजी स या ह बनने
क बहु त सी शत बताते ह। स या ह के साथ–साथ रचना मक काय भी करते रहना चा हए। सेवा
तथा ेम क भावना के फल व प ह स या ह सफल हो सकता है। स या ह वन ता का
तीक है और हंसा का वक प है। आमरण अनशन स या ह का अं तम ह थयार है। िजसका
योग वशेष प रि थ त म ह कया जाना चा हए। गाँधी जी ने स या ह म व भ न अ का
योग कया था िजस म असहयोग आ दोलन सबसे मह वपूण था। इसम हड़ताल, सामािजक
ब ह कार, आ थक ब ह कार, धरना, स वनय अव ा, ह त, उपवास इ या द सि म लत ह। वे
स या ह के सकारा मक प को मह व दे ते थे िजसम केवल वरोध करना ह नह ं अ पतु
सकारा मक कायकम को बनाये रखना भी आव यक है। उ ह ने 15 सू ी सकारा मक काय म
बनाया था, िजसम खाद का चार– सार, ामो योग का वकास, ाम वरा य क थापना,
बु नयाद श ा, ौढ़ श ा, नार उ ार तथा आ थक समानता इ या द शा मल है।

236
भारत म आने के प चात ् गाँधीजी ने कई स या ह कये। िजसम अ खल भारतीय तर
पर कये गये स या ह म –रोलेटए ट के खलाफ 1919 म कया गया आ दोलन, खलाफत
आ दोलन, असहयोग आ दोलन 1920, 1930 म ‘स वनय अव ा आ दोलन,' 1940 म
यि तगत स या ह, 1942 म भारत छोड़ो आ दोलन मु ख ह। थानीय लोग के लए 1917
म च पारन, 1918 म अहमदाबाद म मक के समथन म कया गया आ दोलन तथा 1924
म वणकोर का स या ह आ द उ लेखनीय है।
बोध न–2
न: महा मा गाँ धी के स या ह स ब धी वचार को प ट क िजए ।
उ तर ...........................................................................................
...........................................................................................

12.6 आ थक े
गाँधीजी के आ थक वचार भी स य और अ हंसा से ओत– ोत थे। वे यह मानते थे क
आधु नकता बड़े–बड़े उ योग तथा मशीनीकरण पर आधा रत है और हंसा को बढ़ावा दे ती है।
एक आदश समाज क रचना के लए वावल बी गाँव क आव यकता है। यि त अपनी
आव यकताओं को सी मत रख और नै तक जीवन यतीत कर। उ ह ने, ाम वरा य क
क पना म कु ट र उ योग को अ धक मह व दया है तथा का यक म पर बल हया है।
गाँधीजी मानते थे क येक व य यि त को दन म कम से कम दो घंटे शार रक म
करना चा हए, तभी वह भोजन पाने का अ धकार है। वे मान सक और शार रक म क
समानता के ि टकोण को वीकार करते ह। वे उस पूँजीवाद आ थक यव था के व थे जो
भौ तकवाद इ छाओं क पू त के लए उ योग क थापना करती है। गाँधीजी सा यवाद
वचारधारा के भी वरोधी थे य क उनके अनुसार वह हंसा पर आधा रत वचारधारा है और
यवहार म त काल न सो वयत संघ क यव था के आधार पर यह मानते थे क यह यव था
के यकृ त यव था को बढ़ावा दे ती है, िजसम शि त का के यकरण होता है। गाँधीजी शि त
के के यकरण को शोषण का आधार मानते ह। उनके अनुसार शि त का वके करण होना
चा हए और वे इसी भाव को यान म रखकर आ थक वके करण क वकालत करते थे।
उ ह ने पूँजीवाद व सा यवाद से ' यास के स ा त' को अ धक मह व दया है िजसके अनुसार
आ थक साधन पर नय ण हाथ म होगा। ले कन वे उसे यास मानकार यासी के प म
काय करगे तथा पूँजी का उपयोग। 'सवजन हताय' करगे।
राजनी तक े म उ ह ने उपयो गतावाद के थान पर सव दय क वकालत क । जहाँ
उपयो गतावाद यि त के अ धकतम सु ख क क पना करता है वह ं सव दय सभी के उदय क
क पना करता है। उपयो गतावाद म सु ख क प रभाषा शार रक सु ख या इि यज य सु ख है।
जब क महा मा गाँधी के सव दय के अ तगत सबके उदय म इि यज य सुख के बजाय
आि मक सु ख को सि म लत कया है। गाँधीजी अपने आदश रा य को राम रा य क सं ा दे ते
थे िजसम येक यि त अ हंसा पर आधा रत जीवन का उपयोग करता है और अपने कत य
को पूरा करता है। गाँधीजी का मानना था क आदश समाज एक रा य वह न समाज है। िजसम

237
शि त पूण प से वकेि त है और वह वावल बी गाँव को शा मल कर बना है िजसम
यि त का मह व है। ले कन यि त का अि त व समाज के बना संभव नह ं है। उ ह ने
यि त और समाज के म य के स ब ध को सामु क वृत (ओ शये नक स कल) के आधार पर
समझाया है। िजस कार समु म प थर फकने पर हजार क सं या म लहर (वृ त ) का
नमाण होता है, िजनके आकार अलग–अलग कार के है क तु इनका के एक ह होता है।
उसी कार समाज म कई कार के समूह है, जो वतु ल के प म एक दूसरे से जु ड़े है ले कन
उनका के यि त होता है। समूह यि त के बना पा रभा षत नह ं होता है। वे जातं क
यव था म व वास रखते थे और उदारवाद स ा त को मह वपूण मानते थे ले कन उनक
सोच भारतीय पर परा के मूलभू त स ा त पर आधा रत थी। वह अपनी सं कृ त और पर परा
क उदारवाद या या के प धर थे। महा मा गाँधी आधु नक समय म भारतीयता के तीक थे।
उनक गणना आज व व के सवा धक महानतम वचारक म क जाती है। वे केवल भारत के
त न ध ह न होकर व व क मानवता के तीक थे और लोकमंगल के साधक – उपासक थे।

12.7 राजनी तक वचार


गाँधीजी वयं को एक राजनी तक वचारक नह ं मानते थे। हालां क दाश नक वचार
क पहल यवि थत तु त ' ह द वरा य' म है। वे नर तर स य के रा ते चलते रहे और
उस रा ते पर उ ह जो सफलताएँ मल ं उसी आधार पर अपने वचार को संग ठत करते रहे । वे
सभी राजनी तक ग त व धय को नै तक ि ट से दे खते थे। उनके अनुसार कोई भी ग त व ध
जो नै तक ि ट से नह ं हो, उ चत नह ं है। चूँ क वे कसी वशेष राजनी तक दशन से
स बि धत नह ं थे इस लए उनके वचार म कई बार पार प रक वरोध नजर आता है।
सामा यत: यह कहा जा सकता है क वे एक राजनी तक अराजकतावाद थे जो शि त के
के यकरण के वरोधी थे और रा य को स य के यकरण का सबसे बड़ा उदाहरण मानते
थे। वे रा य के बढ़ते व प और काय को भय से दे खते थे। उनके अनुसार एक आदश समाज
क क पना म रा य का कोई थान नह ं था। वे आदश समाज को रामरा य क सं ा दे ते थे।
वे यह मानते थे क रा य हंसा का त न ध व करता है और रा य क बढ़ती शि त से
सवा धक नुकसान यि त क अि मता को होता है। यि त के पास आ मा है रा य आ मा
वह न है। गाँधीजी ने कहा था क ऐसे कानून क पालना नह ं करनी चा हए जो हमार नै तक
मा यताओं के व ह । उनके अनुसार राजनी तक शि त अपने आप म एक सा य नह ं है।
राजनी तक शि त का काय समाज के सद य को जीवन क सु वधाएँ दान करना है उनक
मा यता थी क यि त स भु होता है और उसके स भु व का आधार उसक नै तक स ता
है। गाँधी रा य और समाज म अ तर करते थे। उनके अनुसार अगर यि त समा त होता है
तो कु छ बाक नह ं रहे गा, इस लए यि त के आ धप य को राजनी तक दशन म वीकार कया
जाना चा हए। 1916 म बनारस ह दू व व व यालय म भाषण दे ते हु ए उ ह ने कहा था क वे
अराजकतावाद है ।
गाँधी केवल आदशवाद वचारक ह नह ं थे उनका उ े य आदश ा त करना था।
उ ह ने वतीय तर के रा य क बात भी क है। िजससे रा य एक उदारवाद लोकतां क

238
रा य होगा तथा लोकशि त का वके करण होगा। ऐसे रा य म अ धकतम शि तयाँ गाँव के
तर पर पंचायत के पास रहे गी। वह गाँव आदश गाँव होगा जो आ थक, सामािजक और
राजनी तक ि ट से वाय त नकाय के प म काय करे गा। गाँधी के वरा य क क पना एक
ऐसे दे श क क पना थी िजसम स ता उस दे श के नाग रक के पास हो, दे श राजनी तक प से
वतं हो तथा िजसम अपने समाज को बदलने क शि त और अ धकार समाज के यि तय
के पास ह । ऐसे रा य म सरकार यि तय के त उ तरदायी हो। गाँधी के वराज क
अवधारणा आ थक और राजनी तक दोन तर पर वतं ता को बनाये रखने का समथन करती
है। गाँधी यि त के अ धकार क र ा का भी समथन करते ह। गाँधीवाद अ धकार मू लत: वे
अ धकार है, उनके उपयोग से यि त अपने मू य को बनाये रख सक और एक नै तक समाज
क थापना कर सके। गाँधी वतं ता के साथ–साथ समानता और याय के स ा त म व वास
करते थे। इसम वे न केवल ी–पु ष क समानता अ पतु जा तगत समानता, मान सक और
शार रक समानता के भी प धर थे। गाँधी हालां क जातं म व वास करते थे ले कन उ ह ने
'ह द वरा य' म अं ेजी संसद य णाल क आलोचना क और माना है क अगर भारत
इं लै ड क णाल को अपनाता है तो यह उसके लए अ छा नह ं होगा। गाँधीजी के अनुसार
टश संसद के वारा कोई भी अ छा काय नह ं कया गया है और वह मं य के भाव से
संचा लत होती है। अत: वह जनता का त न ध व नह ं कर पाती है। पि चमी जा त
ं का
आधार हंसा है। पि चमी जातं जो यवहार म बना हंसा के जी वत नह ं है वह वा तव म
जातं नह ं है। उसम और फासीवाद म कसी कार का अ तर नह ं है। बु दे व भ ाचाय के
अनुसार गाँधी क पि चमी जातं क आलोचना तीन मु ख कारक पर आधा रत है :–
1. पूँजीप तय वारा नधन यि तय का शोषण।
2. पूँजीवाद का व तार जो जन सामा य के शोषण क राह बताता है।
3. गोर चमड़ी वाल क रं गभेद नी त।
य य प गाँधीजी ने 'बोअर यु ' (1899) म अं ेज क तरफ से ह सा लया था,
ले कन वे यु के खलाफ थे। थम व व यु के प चात ् गाँधी पूणतया यु वरोधी बन गये।
गाँधीजी ने थम और वतीय व व यु क न दा क और कहा क हंसा से कसी सम या
का समाधान नह ं होता है। कोई भी राजनी तक वचारधारा हो और उसके अनुसार आदश का
नमाण मू लत: हंसा के वारा होगा तो वह सह . वचारधारा नह ं हो सकती है। गाँधीजी शाि त
के प धर थे, पर उनक शाि त क अवधारणा म कोई ि थर शाि त नह ं थी। वे शाि त को
सकारा मक और प रवतनशील या के प म दे खते थे। िजसम सम या का समाधान अ हंसा
के मा यम से कया जाता है। गाँधीजी का ढ़ व वास था क व व क सम याओं का
समाधान केवल अ हंसा के मा यम से संभव है। गाँधी को मू लत: स ता के वरोध का दाश नक
माना जाता है। स ता का वरोध करने पर गाँधी का नाम स मान से लया जाता है।
दुभा यवश: गाँधी! के राजनी तक वचार पर आधा रत आदश समाज के नमाण क पुरजोर
को शश नह ं क गई, इस लए गाँधीवाद आदश समाज के अि त व म न आने के कारण उनके
राजनी तक दशन म यावहा रक़ प का पर ण नह ं कया जा सका।

239
12.8 महा मा गाँधी का राजनी तक च तन म योगदान
महा मा गाँधी 20 वीं शता द के सबसे मह वपूण राजनी तक वचारक म से एक थे,
िज ह ने राजनी तक च तन म सवका लक योगदान दया है, िजसे न न कार दे ख सकते ह:
1. गाँधी ने राजनी त का वरोध करने के एक नये साधन ''स या ह’' क खोज क और
उसका सफलतापूवक योग करके भारत को आजाद दलायी। रा य स ता के वरोध म
तथा अ तरा य संगठन क नी तय के व होने वाले आ दोलन म स या ह का
यापक तर पर योग कया जाता है।
2. गाँधी के अ हंसा और संघष नवारण क तकनीक का समाज के व भ न समू ह और
ि थ तय म नर तर योग कया जा रहा है। उसे ''वैकि पक ववाद नपटारा’' म
सफलतापूवक मह वपूण थान दया जाता है। हाल ह म आई फ म ''लगे रहो मु ना
भाई'' म ''गांधी गर ' का इ तेमाल हु आ है, इसम गाँधी के स ा त को यि त के
जीवन म छोट –छोट सम याओं के समाधान हे तु गाँधी के स ांत को उपयोग म लाने
का ववरण तु त कया गया है। ''गाँधी गर '' आज लोक य श द बनता जा रहा है
जो वरोध कट करने के एक स य तर के को कट करता है।
3. गाँधी ने आधु नक समाज के नकारा मक प को जा त कया और उसे बचाने के
उपाय सु झाये िजनके कारण उ ह वैकि पक सफलता के वचार दे ने वाले वचारक म
शा मल कया जाता है।
4. उनके ‘ या सता स ा त' म, अ हंसा के मा यम से वग संघष को समा त कये जाने
का तर का सु झाया गया है। िजसम हंसा का उपयोग नह ं करते हु ए भी समाज म
सामािजक याय क थापना क जा सकती है।
5. उनके पयावरण स ब धी वचार ने वकास क पि चमी अवधारणा को सश त चु नौती
द है और वकास का आधार मनु य क आव यकताओं को पूरा करना बताया है, न
क उसके लालच को पूरा करना।
6. गाँधी ने नै तकता को मनु य क सभी ग त व धय का आधार माना है और वे बीसवीं
शता द उन नै तक वचारक म से एक है जो राजनी त को भी नै तक ि ट से
व ले षत करना चाहते ह।
7. उ ह ने अ हंसा को राजनी तक ि ट म था पत कया और स य को लेटो के प चात ्
राजनी तक दशन म पुन था पत कया।

12.9 सारांश
तु त इकाई म महा मा गाँधी के जीवन और वचार का अ ययन कया गया है।
इससे हम यह पता लगता है क महा मा गाँधी ने अपना जीवन एक साधारण यि त के प
म आर भ कया और धीरे –धीरे अपने प र म से एक महान यि त बन। उ ह ने बडी से बडी
मु सीबत म स य और ई वर का साथ नह ं छोड़ा। वे स य तथा अ हंसा के माग पर चलते रहे,
उनके स य और व वास ने उ ह महान यि त बनाया। गाँधी अपने च तन म कसी वशेष

240
वचारधारा के तपादक नह ं थे। उ ह ने अपने जीवन म अनुभव से बहु त कु छ सीखा। वे
नर तर राजनी त म स य रहने के उपरा त भी एक अ छे पाठक थे। खु ले मि त क के होने
के कारण उ ह ने अ ययन और जीवन मू य से बहु त कु छ सीखा कर उसे अपनी तरह से
वचार के प म तु त कया, िजसे हम आज गाँधी च तन के नाम से जानते ह। गाँधीजी
अपने जीवन के येक पहलू को नै तक ि ट से दे खते थे। वे जीवन के हर े म नै तकता
के प धर थे, इसी लए उ ह ने अपने आ थक जीवन और राजनै तक च तन म भी अ हंसा को
मु खता द है। इस इकाई को पढने से हम ात होता है क गाँधी न केवल महान यि त व
के धनी थे वरन ् वे एक महान वचारक भी थे।

12.10 अ यास न
1. महा मा गाँधी के च तन पर पड़ने वाले भाव को इं गत क िजए।
2. गाँधी च तन म स य और अ हंसा का मह व बतलाइये।
3. महा मा गाँधी के स या ह क अवधारणा को प ट क िजए।

12.11 संदभ ग थ सू ची
1. महा मा गाँधी क आ म कथा : स य के साथ मेरे योग, नवजीवन काशन,
अहमदाबाद, 1927
2. महा मा गाँधी : ह द वरा य, नवजीवन काशन, अहमदाबाद, 1927
3. नरे श दाधीच : गाँधी ए ड ए जे टे श ल म, रावत पि लकेशन,
जयपुर , 1993
4. गोपीनाथ धवन : द पो ल टकल फलोसोफ ऑफ महा मा गाँधी,
नवजीवन काशन, अहमदाबाद, 1927
5. बी. अ ण कुमार : गाँधीयन ोटे ट, रावत पि लकेशन, जयपुर , 2008
6. राघवन एन. अ यर : द मॉरल ए ड पो ल टकल थॉट ऑफ महा मा गाँधी,
ऑ सफोड यू नव सट ेस, यूयाक. 1973
7. रोना ड टचक : गाँधी: ग लंग फॉर ऑटोनामी, रॉमेन ए ड
ल टलफ ड पि लशस, यूयाक, 1998
8. भीखू पारे ख : गाँधी, ऑ सफोड यू नव सट ेस, लंदन, 1997
9. रामा य राय : से फ ए ड सोसाईट , सेज पि लकेश स, नई द ल ,
1974

241
इकाई–13
जवाहरलाल नेह
इकाई क परे खा
13.0 उ े य
13.1 तावना
13.2 नेह का जीवन प रचय
13.3 नेह के वचार के दाश नक आधार।
13.4 नेह च तन: मानवतावाद
13.5 नेह च तन: यि त एवं रा य
13.6 नेह च तन: लोकतं का सम व प
13.7 नेह च तन: धम नरपे ता, सा दा यकता एवं रा य एकता
13.8 नेह च तन: समाजवाद, मा सवाद–सा यवाद एवं लोकतां क–समाजवाद
13.9 नेह च तन: अ तरा यतावाद एवं व वशां त
13.10 सारांश
13.11 अ यास न
13.12 संदभ थ
ं सू ची

13.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरा त आप जान पायगे–
 नेह के राजनी तक च तन का स पूण प र े य
 नेह के राजनी तक च तन का दशा नक आधार
 नेह के च तन के व भ न आयाम एवं मह वपूण धारणाय, एवं!
 नेह के राजनी तक च तन क समसाम यक ासं गकता।

13.1 तावना
जवाहरलाल नेह हमार पीढ़ के एक महानतम यि त थे। वे एक ऐसे अ वतीय
राजनी त थे िजनक मानव–मुि त के त सेवाएँ चर मरणीय रहगी। वाधीनता के यो ा के
प म वे यश वी थे और आधु नक भारत के नमाण के लए उनका योगदान अभू तपूव था।
इसम संदेह नह ं क नेह क मृ यु के साथ ह हमारे दे श के इ तहास का एक युग समा त हो
गया। नेह क यह वशेषता थी क एक राजनी त होते हु ए भी वे ''मै कयाव लय” से दूर थे।
रव नाथ ठाकु र के श द म, 'जवाहरलाल ने राजनी तक संघष के े म, जहां बहु धा छल
और आ म व
ं चना च र को वकृ त कर दे ते ह, शु आचरण के आदश का नमाण कया।
जवाहरलाल नेह क तभा के अनेक प अब इ तहास का अंग बन चु के ह। क तु,
हम इस महान मुि तदाता के आदश और नी तय को तब तक नह ं समझ पायंगे जब तक हम

242
उस दशन को न समझ ल, जो इन आदश और नी तय म अ त न हत था और यह न जान ल
क कस कार इसने उनके वचार के नमाण म सहायता क ।

13.2 नेह का जीवन प रचय


जवाहरलाल नेह (1889– 1964) मोतीलाल नेह और व परानी के एकमा पु थे।
15 वष क आयु म वे अ ययन के लए इं लै ड गए। 1905 म उ ह इं लै ड के स हैरो
कू ल म व ट कराया गया तथा 1907 म उ ह ने नीट कॉलेज, कैि ज म वेश लया
जहां उ ह ने व ान म 'आनस' क पर ा पास क । कैि ज क पढ़ाई के बाद उ ह ने कानून
का अ ययन कया और 1912 म वे 'इनर टे पल' से वक ल बने। अपने छा जीवन म ह
नेह भारत के रा य आ दोलन क सरग मय म दलच पी लेते रहे । 1904 म जापान के
हाथ स जैसे शि तशाल रा क पराजय ने नेह के दय म भारत रा क वतं ता के
सपने भर दए। रा य वचार उनके मानस म हलोर लेने लगे और यूरोप के क जे से भारत
तथा ए शया क मुि त के लए वे य रहने लगे।
अपने श ा काल म वे सडनी वैब तथा बै स वैब क फे बयन समाजवाद वचारधारा
से भा वत हु ए। य य प वे वयं वैभव म पैदा हु ए थे और उनके सम जीवन यापन क
सम या कभी उ प न नह ं हु ई, पर उनका ि टकोण ऐश–आराम के जीवन क उपज नह ं था,
जो चार ओर या त आंदोलन और ऊथल–पुथल से अलग हो। इस ि टकोण का ज म टकराव
और संघष के बीच हु आ था। भारत म आकर उ ह ने वकालत करना ार भ कया िजसम
उनको कोई वशेष सफलता नह ं मल और वे सावज नक जीवन क दशा म मु ड़।े 1912 म वे
बांक पुर ( बहार) के कां ेस अ धवेशन म शा मल हु ए। वे गांधीजी वारा द ण अ का म
संचा लत ''रं गभेद वरोधी आ दोलन'' के ववरण से भा वत हु ए। 1916 के लखनऊ अ धवेशन
म वे गांधीजी से मले। 1918 म वे कां ेस महास म त के सद य चु ने गए। रोलेट ए ट तथा
ज लयांवाला ह याका ड पर या त भार असंतोष से नेह भा वत हु ए। 1919 म नेह ने
पहल बार गांव म घूम –घूम कर भारत वष के नंगे भू खे कसान को दे खा तथा उनके लए सेवा
काय करने का न चय कया।
इस कार दे श क राजनी तक प रि थ त म ती उ वेग आने के साथ हर चीज बदल
गयी। थम महायु और उसके दु प रणाम , तलक और एनी बसे ट के होम ल आ दोलन,
ज लयांवालाबाग ह याका ड तथा गांधीजी के नेत ृ व म यापक वरोध आ दोलन– इन सबका
जवाहरलाल के संवेदनशील मि त क पर गहरा भाव पडा। अब उ ह व वास हो गया क य द
भू ख, अ ान और गंदगी को मटाया नह ं जाता तो राजनी तक वतं ता का कोई अथ नह ं है।
नेह का राजनी तक तज मश: व तृत होने लगा। यूरोपीय दे श म उनके वास,
1927 म सो वयत संघ क उनक या ा, नये सा ा यवाद वरोधी उभार, पू ज
ं ीवाद के व व
संकट और सो वयत संघ क थम पंचवष य योजना क सफलता– इन सबके शि तशाल भाव
के कारण वह समाजवाद वचार के नकट आए। वह अब बल प से अनुभव करते थे क

243
पू ज
ं ीवाद क ग तशील मताएं समा त हो चु क ह और भ व य क चु नौ त का एकमा उ तर
समाजवाद है।
यूरोप म रहते समय, 1927 म उ ह ने औप नवे शक जनता क स
ू े स कां ेस म भाग
लया तथा रोमां रोला, ए बट आंइ ट न और सु ंग चंग लंग जैसी व व व यात बु जीवी
तभाओं के साथ मल कर ''सा ा यवाद के व और रा य वतं ता के लए अ तरा य
ल ग’' क थापना क । भारत लौटने पर वह नयी शि त और प ट ि टकोण के साथ
सा ा यवाद– वरोधी कायवा हय म जु ट गए। उ ह ने वतं ता सं ाम को नया प और नई
अ तव तु दान क । वे कां ेस के युवा नेता थे। उ ह ने कां ेस का ल य दे श के लए
''औप नवे शक वरा य'’ के बजाय ''पूण वाधीनता ाि त’' बना दया तथा 1928 म
'इि डपे डस ल ग' था पत क । वे 'नेह – रपोट' म ता वत 'औप नवे शक– वरा य' के ल य से
असहमत थे। 1928 म उ ह ने लखनऊ म साइमन–कमीशन के वरोध म दशन कया और
लाठ – हार सहे। 1929 म इ तहास– स द लाहौर के कां ेस अ धवेशन के वे अ य बने
िजसम दे श के लए ''पूण वाधीनता'' के ल य क उ घोषणा क गई।
वा तव म 1930 तक जवाहरलाल नेह ने भारतीय राजनी त बहु त ऊँचा थान ा त
कर लया था और बाद के वषा म तो रा य नेत ृ व के े म उ ह गांधीजी के ठ क बाद
थान ा त हो गया। उ ह ने गांधीजी के नेत ृ व म संचा लत ''स वनय–अव ा आ दोलन''
(1930–34) म स य भाग लया। नेह ने 1936 म बहार क भू क प–पी ड़त जनता क भार
सेवा क । वे चार बार (1929, 1936,1937 व 1946) कां ेस के अ य बने तथा 9 वष से
भी अ धक काल तक वे जेल म रहे। अपने समाजवाद वचार के आधार पर उनको 1938 म
कां ेस क ‘'रा य योजना स म त’' का अ य बनाया गया। 1939 म वे चीन गए। 1942
म उ ह ने ''भारत छोडो'' अथवा ''अग त ां त’' म स य भाग लया। 1945 म उ ह ने
वायसराय वारा आयोिजत शमला –स मेलन म भाग लया तथा आजाद ह द फौज के सै नक
को छुड़वाने के लए अदालती काय कया। 1946 म उनको म म डल य–आयोग (केबीनेट
मशन) के सु झाव के अनुसार बनायी, गयी अ त रम सरकार म गवनर–जनरल क कायका रणी
का उपा य बनाया गया। भारत क सभा म जवाहरलाल नेह ने ह नये भारत के लए
सं वधान बनाने से संबं धत 'उ े य ताव’ (Objective Resolution) 13 दस बर 1946
को रखा। वतमान भारतीय सं वधान बनाने के पीछे नेह का बहु त बडा हाथ था। 15 अग त
1947 को जब वभाजन क क मत पर दे श को वतं ता मल तो जवाहरलाल वतं भारत के
थम धानमं ी बने तथा अपने जीवन के अि तम ण तक (27 मई 1964) इसी पद पर
बने रहे। महा मा गांधी तथा सरदार पटे ल क मृ यु के बाद वे ह कां ेस के एकछ सव प र
नेता थे। उ ह ं के नेत ृ व म नये भारत का नमाण हु आ। लगभग 17 वष के धानमं व
कायकाल म उ ह ने वतं भारत को एक सबल आ थक और राजनी तक व प कया।
अ तरा य े म भारत क त ठा को जमाने का ेय उ ह ं को जाता है। नेह न केवल
एक महान दे शभ त, कमठ राजनेता और शां तदूत थे बि क बु मान और युग टा पु ष थे,

244
िज ह सा ह य, दशन व कृ त से भार ेम था। उ ह ने अनेक ध क रचना क , िजनम
न न रचनाएँ मह वपूण ह–
व व इ तहास क झलक (Glimpses of World History), 1934, आ मकथा (An
Auto Biography), 1936, भारत क एकता (The Unity of India), 1947, भारत क
खोज (The Discovery of India) उनक अ य कु छ रचनाएं है–
लैटस ाम ए फादर दु हज डॉटर, 1929; टु वडस डम, 1941; उनके भाषण को
स पूण प से बफोर ए ड आटर इि डपे डे स: जवाहरलाल नेह ज पीचेज’ (चार ख ड) तथा
सेले टे ड व स ऑफ जवाहरलाल नेह (आठ ख ड) म का शत कया गया है।

13.3 नेह के वचार के दाश नक आधार


जवाहरलाल नेह का च तन उनके पता मोतीलाल नेह , महा मा गांधी, एनी बसे ट
बट ड रसेल, काल मा स, का ट, पे सर, आइ सट न, मल, बनाड शॉ आ द महानुभाव से
भा वत था। नेह के च तन और यवहार को भा वत करने म महा मा गांधी क सबसे
अ धक नणायक भू मका रह । गांधीजी के स या ह, अ हंसा, शां त से प रपूण राजनी त,
अ या म एवं, नै तकता संबध
ं ी वचार का उन पर प ट भाव दे खने को मलता है, क तु
नेह ऐसे ई वर क खोज करना या गढ़ना चाहते थे जो नै तकता का ोत हो तथा बा ाचार के
पाख ड से दूर रहे । 'द ड कवर ऑफ इि डया' म इस मत का खु लासा करते हु ए नेह लखते
ह:
‘' ाय: म इस व व क ओर दे खता हू ँ तो मु झे अ ात गहराइय और रह य का
आभास होता है। पर वह रह यमय चीज या है, यह म नह ं जानता। म उसे ई वर नह ं कहता
य क ई वर का बहु त कु छ अथ ऐसा है िजसम मेरा व वास नह ं है। म कसी दे वता अथवा
अ ात सव च स ता िजसका व प मानक जैसा हो, क क पना करने क मता अपने म
नह ं पाता। एक यि तगत और सगुण ई वर का वचार मु झे बड़ा अजीब लगता है। बौ क
ि ट से म कु छ सीमा तक अ वैतवाद वचारधारा का समथन करता हू ँ और वेदा त के
अ वैतवाद क ओर मेरा आकषण है, क तु वेदा त तथा इस कार के अ य जगत के वषय
म वचार मेरे मन म भय उ प न करते ह।''
“नेह कसी धम वशेष म व वास नह ं करते थे, ले कन यवहार म बड़ी
आ याि मकवृि त के पु ष थे। वे धम के व ध– वधान तथा ढ़वाद एवं स दायवाद प का
वरोध करते थे। उनक ि ट वै ा नक थी तथा वे स य को अनुभव के मा यम से ा त करना
चाहते थे।''
इस कार कहा जा सकता है क य य प गांधीजी क श ाओं के त उनम जीवन
भर गहरा आकषण बना रहा, फर भी वे गांधीजी क श ाओं और आदश को अटल स ा त
के प म हण नह ं कर सके। गांधी जैसी आि तकता उनम पैदा नह ं हो सक । नेह वल ण
बने रहे । न वे पूण नाि तक रहे, न पूण आ याि मकतावाद और न ह पूण भौ तकवाद । काल
मा स के भौ तकवाद वचार का भाव उन पर अव य पड़ा, ले कन वे पूण भौ तकवाद कभी

245
नह ं बन सके। उ ह ने भौ तक पदाथ को ह अि तम स य नह ं माना। आइं ट न, लक तथा
हसेनवग के भौ तकवाद शोध का भाव उनके च तन पर पड़ा, ले कन एक ि ट से उ ह हम
का ट क अपे ा पे सर के अ धक नकट पाते ह। नेह ने यह नह ं माना क कोई ऐसा
जगत भी है जो हमार ि ट अथवा हमारे मि त क के च तन से परे है।

13.4 नेह च तन: मानवतावाद


नेह एक राजनी त थे, ले कन नै तक आदशवाद म उनक गहन आ था जीवनभर
बनी रह । पी ड़त और शो षत लोग के त उनके दय म अगाध ी त और सहानुभू त थी।
''एक मानव के प म उनके च तन म सु कुमारता, भावना क अ वतीय कोमलता और महान
एवं उदार वृि तय का अ ुत सि म ण था।‘' वे मू लत: मानवतावाद ह। उनक वचारधारा का
मू ल के ''मानवं’' है। वे यि त को सा य तथा शेष सभी को साधन मानते थे, चाहे वह रा य
हो, या रा अथवा अ तरा यता। उनक ि ट म मानवतावाद आधु नक युग का सव तम
आदश होना चा हए था। “मै कयाव लय राजनी त’', शोषण, अनाचार और अभाव को दे खकर
उनके दय म गहर वेदना पहु ँ चती थी।
नेह मनु य के गौरव म व वास करते थे, इस लए प रि थ तय के अनुकू ल होते हु ए
भी, वे एक तानाशाह बन जाने के लोभन से बचे रहे । वे लोकतां क–समाजवाद बने रहे,
मानवीय मू य म उनक आ था कभी नह ं डगमगाई और सा यवाद के हंसक तथा अनै तक
साधन के त उ ह कभी कोई आकषण नह ं रहा। जीवनभर उ ह ने अ याय और शोषण से
यथाशि त संघष कया।

13.5 नेह च तन: यि त एवं रा य


नेह पर गांधी का भाव था, ले कन उनम गांधी के समान अराजकतावाद से कोई
सहानुभू त न थी। रा य क अ नवायता पर उनका अटू ट व वास था। नेह क मा यता थी क
यि त और समाज के लए रा य का अि त व अप रहाय है। मानव वभाव अ छाइय का घर
है, क तु उसम बुराइयाँ भी कम नह ं है और इन बुराइय पर नयं ण रखने के लए रा य
अ नवाय है। रा य ह वह सं था है जो अपनी बा यकार स ता वारा मनु य म या त घृणा ,
वाथपरता, अराजक वृि त और हंसा पर नयं ण लगा सकती है। नेह का व वास था क
अ हंसा आधु नक रा य और सामािजक यव था का ाण है। आमू लचूल अ हंसा क बात करना
है हंसा के पूणत: प र याग का वचार एक नकारा मक वचार को ज म दे ता है जो वयं
जीवन से सवथा दूर है।
नेह इस यि तवाद धारणा को वीकार नह ं करते थे क वह सरकार सबसे अ छ
होती है जो सबसे कम शासन करती है। यह ि टकोण उ ह वीकार न क रा य का एकमा
काय बा य आ मण से और आ त रक अ यव था से यि त तथा समाज क सु र ा मा है।
उनका कहना था क रा य का काय केवल र ा मक ह नह ं है वरन ् यि त तथा। समाज के
पोषण का भार भी बहु त कु छ रा य पर है।

246
नेह क याणकार रा य के स ा त के त न ठावान थे। तदनुसार रा य को केवल
पु लस काय तक सी मत न रख कर वे जीवन के हर े म रा य के काय के व थ
व तार के पोषक थे। वे रा य क उपादे यता को वीकार करते हु ए उसके मा यम से सामािजक
हत को उपल ध करना चाहते थे। वे यि त को सामािजक या से इस तरह एकाकार करना
चाहते थे क वह यि त सी मत न रहकर समि टगत बन जाये। इसी कारण नेह से
आधारभू त और भार उ योग के रा यकरण का समथन कया य क उनका व वास था क
रा यकरण के बना रा य अपना यथाथ मंगलकार व प हण नह ं कर सकता। पर वे
रा यकरण के दोष से अप र चत नह ं थे वे जानते थे क अ य धक रा यकरण शासन म
अ य धक के यकरण को ज म दे ता है। नेह शासन के के यकरण को इस हद तक नह ं
बढ़ाना चाहते थे क वह यि त क वतं ता के लए खतरा बन जाए। इस सम या के
समाधान के लए ह उ ह ने सामु दा यक वकास योजना और पंचायतीराज का समथन कया
ता क लोकतां क– वके करण के े का सार हो और यि त क वतं ता को संर ण
मल।
नेह ने नाग रक के अ धकार को मह वपूण माना, पर रा य के त नाग रक
क त य पर भी समान प से बल दया। रा य और यि त के म य घ न ठ संबध
ं ह। दोन
ह एक दूसरे के सा य एवं साधन ह। उनम अ यो या य संबध
ं है। स तु लत एवं व प से
संग ठत रा य तथा नाग रक के हत के म य कोई संघष नह ं है। नेह ने कसी भी सरकार
क अ छाई एवं कु शलता का मापद ड यह माना क वह जनता के जीवन तर को कतना
ऊँचा उठाती है। इस जीवन तर म केवल भौ तक व तु एँ ह नह ं वरन ् जीवन के बौ क और
नै तक मू य भी समा व ट है। जीवन का सवागीण वकास करना एक अ छे रा य क कसौट
है। यि तय के च र का वकास करने पर ह रा य सफल माना जा सकता है। उनका रा य
मु य प से लोक– क याणकार वधेयका मक रा य है।
बोध न – 1
न :1 ने ह का च तन कन महानु भाव से भा वत था ?
उ तर : ...........................................................................................
न :2 ने ह शासन के के यकरण को कस हद तक रखना चाहते थे ?
उ तर : .............................................................. .............................

13.6 नेह च तन: लोकतं का सम व प


भारतीय लोकतं और नेह को पयायवाची माना जाता है। जवाहरलाल नेह का
च तन और उनके कायकलाप इस बात के तीक ह क वे 'महान लोकतां क' थे। उ ह ने
लोकतं को केवल राजनी तक े तक ह सी मत नह ं रखा, अ पतु आ थक और सामािजक
े को भी लोकतं क प र ध म लया। उनका कहना था क नाग रक को केवल राजनी तक
वतं ता दे ना ह पया त नह ं है, उ ह अवसर क समानता भी द जानी चा हए, आ थक
वषमताओं का अ त कया जाना चा हए। सामािजक अ पृ यताओ और घोर आ थक
असमानताओं से पूण समाज कभी लोकतां क नह ं हो सकता। भू खे यि त के लए कोरा

247
मता धकार कोई मह व नह ं रखता। य द समाज म ऊँच–नीच, छूत–अछूत के भेदभाव ह , द र
क कतार हो, धन का यायपूण वतरण न हो, वगभेद का सार हो और मु ी भर श त लोग
नर र जनसाधारण को अपने पैर तले दबाए ह तो ऐसे दे श या समाज म लोकतं क बात
करना कोई मायने नह ं रखता।
लोकतं के वषय म नेह क धारणा बड़ी ग तशील तथा यापक थी। उनके अनुसार
राजनी तक लोकतं सामािजक एवं आ थक े म लोकतं लाने का मा यम होता है:
“राजनी तक लोकतं उन ल य तक पहु ंचने का एक माग है वयं कोई ल य नह ं है। नेह के
लए लोकतं एक जीवन–प त है, सोचने का ढं ग है, प रि थ तय से नबटने का एक तर का
है, तथा उन बात को सहन करने का रा ता है, िजसे कई बार हम पस द नह ं करते। लोकतं
म आ मानुशासन होता है तथा शां तमय उपाय से काम कया जाता है।
नेह लोकतं को नै तक मापद ड और मा यताओं क योजना मानते थे। उ ह ने कहा
था क, ''मेरे वचार म लोकतं का अथ अमु क कार क सरकार तथा कसी सम–कानून सं था
से कु छ अ धक है। यह आव यक प से जीवन के नै तक मानद ड तथा मा यताओं क एक
योजना है। आप लोकतां क ह अथवा नह ,ं इस बात पर नभर करता है क आप एक यि त
अथवा एक वग के प म कस कार से आचरण तथा च तन करते ह। लोकतं के लए
अनुशासन, स ह णुता तथा पार प रक स ावना अ य त आव यक है। अपनी वतं ता के लए
दूसर क वतं ता के त आदर भाव होना आव यक है। लोकतं म प रवतन पार प रक
वचार– वमश तथा समझाने–बुझाने से कए जाते ह, हंसक उपाय से नह ।ं लोकतं का अथ
य द कु छ है तो समानता है, समानता केवल मत दे ने के अ धकार क ह नह ,ं बि क आ थक
तथा सामािजक े क भी समानता है।
नेह लोकतं म भी संसद य सरकार को अ धक अ छा समझते थे य क यह
सम याओं को हल करने का एक शां तपूण उपाय है। उ ह ं के श द म ''इस कार क सरकार
(संसद य सरकार) म वाद– ववाद, वचार– वमश और नणय करने क और उस नणय को तब
भी वीकार करने क प त अपनायी जाती है, जब क कु छ लोग असहमत होते ह। फर भी,
संसद य सरकार म अ पसं यक का बहु त मह वपूण भाग रहता है। यह वाभा वक है क
बहु सं यक को केवल इस कारण क वे बहु सं यक ह, अपने माग पर चलने क वतं ता होनी
चा हए, क तु अ पसं यक क उपे ा करने वाला बहु सं यक दल अपना काम संसद य गणतं
क सह भावना के साथ नह ं कर रहा होता।''

13.7 नेह च तन: धम नरपे ता, सा दा यकता एवं रा य एकता


जवाहरलाल नेह ने भारत के इ तहास का ववेकपूण व लेषण कया था। वे इस
न कष पर पहु ंचे क अपनी फूट और सा दा यकता क वष–बेल के कारण ह भारत अपने
महान गौरव को खो बैठा है। नेह ने बताया क सं कृ त और रा क जा रह धा मक
या याएं न केवल अवै ा नक, वरन ् हा नकारक भी ह। नेह ने वीकार कया क भारत म
न ल और सां कृ तक भ नताएं ह, क तु इन भ नताओं का धा मक वभाजन से कोई संबध

248
नह ं है। उ ह ं के श द म: कसी यि त को अगर एक दूसरे के मजहब म मला दया जाता है
तो इससे न तो ऐ तहा सक गठन और न उसक न ल वशेषताएँ बदलती है; न ह कसी बड़ी
हद तक उसक सां कृ तक पृ ठभू म बदलती है। सां कृ तक े णयाँ रा य होती है, धा मक
नह ं और आधु नक प रि थ तयाँ तो एक अ तरा य ेणी के नमाण म सहायता कर रह ह।‘'
उ ह ने घोषणा क : ''म न केवल इस बात को मानता हू ँ क एक एका मक भारतीय
रा का होना स भव है, बि क बु नयाद तौर से और सां कृ तक प से, कतने ह ऊपर
भेदभाव के बावजू द, यह रा मौजू द भी है।''
उनके अनुसार एक सा दा यकता ने दूसर को ख म नह ं कया; दोन ने एक दूसरे को
ब ल ट ह बनाया। उनका व वास था क इन लोग को परािजत करने के लए ह दू–मु ि लम
एकता अ नवाय है।
नेह का मत था क ह दुओं , मु सलमान , ईसाइय , स ख तथा भारत के अ य ऐसे
ह समू ह के सै ाि तक एक पीकरण से ह स ची रा यता क वृ हो सकती है। इसका अथ
यह नह ं था क भारत के सां कृ तक ढांचे म जो व वधता है वह ख म कर द जायेगी। इसका
अथ तो यह था क एक समान एवं रा य ि टकोण का वकास होगा। उ होने कहा :
म नह ं सोचता क ह दू–मु ि लम एकता या दूसर कोई एकता मं क तरह 'एकता'
श द को जपने से आ जायेगी। एकता आयेगी, इसम मु झे कोई स दे ह नह ं है। ले कन यह नीचे
से आयेगी, ऊपर से नह ,ं य क ऊपर जो लोग ह उनम से बहु त क दलच पी टश
आ धप य को कायम रखने म है और उसके ज रए वे अपने वशेषा धकार को बनाए रखने क
आशा लगाए ह। सामािजक और आ थक शि तयाँ, अ नवायत: दूसर सम याओं को सामने
लायेगी। वे दूसर तरह क दरार पैदा करगी, ले कन सा दा यक दरार मट जायेगी।‘'
क तु अपने य न के बावजू द, नेह ने दे खा क ह दू–मु ि लम सम या अ धका धक
क ठन और ज टल होती जा रह थी। भारत म स दायवाद क वृ वा तव म एक व श ट
और ठोस सम या थी और उसके लए एक ठोस समाधान क ज रत थी। दूसरे व वयु के
काल म ह दू–मु ि लम संबध
ं और भी बदतर हो गए और इसका नतीजा 1947 म दे श का
वभाजन था। क तु वभाजन के साथ सा दा यकता का अ त नह ं हु आ। सा दा यकता जार
रह ।
पं. नेह ने भारतीय धम नरपे तावाद के त अपनी गहन न ठा रखी; वे न चय ह
इसके णेता थे। उनका अ भमत था क धम नरपे ता का माग एकता को सु ढ़ करने वाला है।
उ ह ने धम नरपे भारतीय सं वधान का नमाण कराया तथा धम नरपे रा य क संरचना
कराई। धम नरपे ता पर वचार करते हु ए अपने एक भाषण म उ ह ने कहा :
''भारत एक धम नरपे रा य है, इसका अथ सभी धम के त आदर भाव तथा सभी
यि तय के लए समान अवसर है। चाहे कोई भी यि त कसी भी धम का अनुयायी य न
हो। इस लए हम अपने दमाग, अपनी सं कृ त के इस आदशमय पहलू ह को अदा यान म
रखना चा हए िजसका आज के भारत म सबसे अ धक मह व है।‘'

249
पुन च : उ ह ने कहा, ''हम दे श म कसी भी कार सा दा यकता सहन नह ं करगे।
हम एक ऐसे वतं धम नरपे रा य का नमाण कर रहे ह िजसम येक धम तथा मत को
पूर वतं ता तथा समान आदर भाव ा त होगा और येक नाग रक को समान वतं ता तथा
समान अवसर क सु वधा ा त होगी।‘' नेह क धम नरपे ता क धारणा बहु त उदार, यापक
एवं वकासमान है। वे यव था को धम नरपे समाज क ओर आगे बढ़ाना चाहते थे। वे
सामािजक नयम , ववाह, उ तरा धकार, कानून आ द का धम नरपे ीकरण करना चाहते थे। इस
दशा म उ ह काफ सफलता भी मल । उसके बाद सभी राजनी तक दल , सरकार एवं
यायालय ने धम नरपे ता को भारतीय रा य यव था का एक आधारभूत त भ मान लया
है। धम नरपे ता रा य–एकता का ह दूसरा नाम समझा जाने लगा है।
नेह क धम नरपे ता से यह अथ नकलना ामक होगा क वे अधा मक थे अथवा
धम और ई वर इन दोन श द से उ ह घृणा थी। उनक वृि त स य व क णा के
आ याि मक मू य को हण करने क तथा संक णता और अ ध व वास से मु त रहने क थी।
धम और ई वर के सह अथ म उ ह व वास था। उनके जीवन दशन म अ ध व वास, क रता
कमका ड और सं कारवाद को थान नह ं था। उनका उपागम मू लत: वै ा नक ि टकोण से
भा वत था। वे भावना मक तथा ध मक अनुभव के संबध
ं म भी वै ा नक व धय क
संभावना म व वास करते थे। नेह का धम से आशय था : “स य के लए सब कु छ ब लदान
करने म उ यत रहना।‘’ उ ह व वास था क अपने व थ व प म धम असं य याकु ल
आ माओं को शां त दे ने वाल महाऔष ध है। ऐसा तीत होता है क नेह का धम,
धम नरपे ता एवं स दायवाद के त ि टकोण जीवन के उ च तथा उदा त ल य म अकू त
आ था से भा वत था। वे मानते थे क मनु य क आ थक, सामािजक और राजनी तक उ न त
को उसक आ याि मक उ न त से भी अनवायत: स ब कया जाना चा हए। एक बार उ ह ने
कहा था “म कसी धम अथवा मता ह से बंधा नह ं हू ँ पर तु कोई इसे धम कहे या नह ,ं – म
मनु य क अ त न हत आ याि मकता म व वास करता हू ँ। म यि त क अ त न हत ग रमा
म व वास करता हू ँ। म समझता हू ँ क येक यि त को समान अवसर दये जाने चा हए। म
ऐसे समानतापूण समाज के आदश म व वास करता हू ँ िजसम मनु य और मनु य के बीच
बहु त अ तर न हो– भले ह इस आदश को ा त करना क ठन हो। जीवन क सम याओं के
त उनका, न चय ह , एक क म का नै तक ि टकोण था, जो व तु त: वै ा नकता,
गांधीवाद, मा सवाद एवं आ याि मकता आ द सभी के सं लेषण से उ ू त था।

13.8 नेह च तन: समाजवाद, मा सवाद–सा यवाद एवं लोकतां क


समाजवाद
पं. नेह संभवत: पहले भारतीय लेखक थे, िज ह ने व व घटनाच के स दभ म
भारत के इ तहास का पयवे ण कया और भारत के वतं ता सं ाम को सा ा यवाद के व
व व यापी संघष का एक ह सा माना। जेल म उ ह ने “ व व इ तहास क झलक” लखते
समय भारत के अतीत म उ ह ने गहरे गोते लगाए– इ तहास के एक सै ाि तक छा के प म

250
ह नह ,ं वरन ् वतं ता तथा एक नयी समाज यव था के लए संघष म स यता से जू झने
वाले यो ा के प म। वे रा य आ दोलन के सम एक ऐ तहा सक संदश तु त करना चाहते
थे। जेल से नकलने के प चात तो एक महान नेता के प म समाजवाद के उनके वचार का
यापक पैमाने पर वागत हु आ। 1936 म कां ेस के लखनऊ म हु ए अ धवेशन म उ ह ने कहा
''म इस न कष पर पहु ंच गया हू ँ क दु नया क सम याओं और भारत क सम याओं का
समाधान समाजवाद म ह न हत है। और, जब म इस श द ‘समाजवाद’ का इ तेमाल करता हू ँ
तो कसी अ प ट मानवीयतावाद अथ म नह ,ं बि क एक वै ा नक, आ थक अथ म समाजवाद
एक आ थक स ा त से भी बढ़कर कु छ है। '' उनके अनुसार
“यह (समाजवाद) जीवन का एक दशन है और इस प म यह मु झे भी भाता है। भारत
क जनता क कंगाल , जबद त बेराजगार , दयनीयता और गुलामी को दूर करने का म
समाजवाद के अलावा कोई दूसरा रा ता नह ं दे ख पाता हू ँ। इसका मतलब है क हम अपने
राजनी तक और सामािजक ढांचे म बहु त बड़े और ां तकार प रवतन करने ह गे, जमीन और
उ योग–धंध पर शकंजा जमाये बैठे न हत वाथ को, और साथ ह , साम ती तथा
नरं कु शतावाद भारतीय रजवाड़ को भी, ख म करना होगा। इसका मतलब है क सवाय एक
सी मत अथ म – नजी स पि त को समा त करना होगा और मु नाफे खड़े करने क मौजू दा
यव था क जगह सरकार सेवा के उ चतर आदश को था पत करना होगा। इसका मतलब है,
एक नई स यता को कायम करना, जो पूँजीवाद यव था से मू लत: भ न होगी। ''
इस कार जवाहरलाल नेह के लए समाजवाद केवल एक आ थक णाल नह ं थी;
वह एक जीवनदशन था। समाजवाद न केवल भारत से कंगाल , बेरोजगार , नर रता, हार –
बमार और गंदगी मटाने के लए ज र था, वरन मानव यि त व को वक सत करने के
लए ज र था। सु भाषच बोस को 1939 म लखे एक प म नेह ने कहा था :
“म समझता हू ँ क वभाव और श ण से म एक यि तवाद और बौ क प से एक
समाजवाद हू ँ – फर इस सबका कु छ भी मतलब य न हो। म आशा करता हू ँ क समाजवाद
मानव यि त व को कु चलता या न ट नह ं करता; म तो दरअसल उसक ओर इस लए
आक षत हू ँ क वह अग णत मनु य को आ थक और सां कृ तक दासता के बंधन से मु त
करे गा।“
समाजवाद के इस आदश स ा त पर उनका आ ह था क आ थक वतं ता के अभाव
म राजनी तक वतं ता कोई मायने नह ं रखती। 1955 म अवाड़ी कां ेस अ धवेशन म उ ह ने
प ट कया क उनका समाजवाद सी सा यवाद या अ य दे श के समाजवाद का अनुकरण
नह ं है। उनके अनुसार :
“समाजवाद का अथ धन का वतरण नह ं है और न ह केवल जनक याणकार रा य
का नमाण है। समाजवाद अथ यव था मा से ह लोकक याण रा य स भव नह ं बन सकता।
आव यकता इस बात क है क दे श म उ पादन बढ़ाया जाये, धन क , वृ हो, और फर
अिजत धन का समु चत ढं ग से वतरण कया जाये। ''

251
नेह का समाजवाद ि टकोण मा सवाद वचारधारा पर आधा रत है। अपनी “'आ मकथा” म
उ ह ने काल मा स के च तन के भाव को वीकार कया है। वे मा स के वै ा नक ि टकोण
इ तहास क आ थक या या व शोषण का वरोध आ द से भा वत हु ए। आचाय नरे दे व ने
उ ह “मा स से भा वत समाजवाद ” बताया। मा सवाद भाव क प ट झलक हम नेह
वारा ल खत “ व व इ तहास क झलक” व ' 'भारत क खोज' ' आ द म दे खने को मलती है।
कहा जाता है क वयं मा सवा दय ने मा सवाद वचारधारा के चार के लए इतना काय
नह ं कया िजतना नेह ने कया। नेह का व व ि टकोण मा सवाद च तन के उनके
अ ययन, सामािजक घटना म के नयम क उनक समझदार और जीवन के त उनके
वै ा नक ि टकोण क उपज थी। पर उ ह अ धक रता से सदा घृणा रह । उ ह ने मा सवाद
स ा त को मं क तरह दोहराने पर क यु न ट (सा यवा दय ) तक क आलोचना क और
कहा क वे ''भारतीय यथाथ को समझने के बजाय मा मा सवाद सू को दोहराते ह।“ उ ह ने
लखा,
''जहाँ जनता का वशाल समु दाय भु खमर क कगार पर खडा है और आ थक ढांचा
चरमराकर टू ट रहा है, क यु न म (सा यवाद) का बहु त अ धक भाव होना चा हए। कसी अथ
म यह अ प ट भाव है भी, क तु क यु न ट पाट इसका लाभ नह ं उठा पा रह , य क
उसने अपने आपको रा य भावना के ोत से पृथक कर लया है और ऐसी भाषा म बात
करती है, िजसक जनता के ं नह ं सु नायी दे ती। यह पाट एक शि तशाल ,
दय म कोई गू ज
क तु छोटा–सा दल मा है, िजसक वा त वक जड़े नह ं है।“
क तु उ ह ने मा सवाद के अ तवाद व प, हंसा मक साधन तथा उसके अि तम
ल य को नह ं माना। वे मा स से भा वत तो हु ए क तु मा सवाद नह ं बने। उन पर
भारतीय च तन, प रि थ तय एवं सम याओं वशेषत: गांधीजी का गहरा भाव था। उ ह ने
मा सवाद च तन को पूण एवं अि तम नह ं माना और बदलती हु ई प रि थ तय तथा नयी
खोज के स दभ म संशोधन के यो य माना। वे मा स वारा तपा दत वग संघष एवं
हंसा मक ां त को भी आव यक नह ं मानते थे। नेह गांधीजी क अ हंसा, शां तमय प रवतन
तथा कानून के शासन को धानता दे ते थे। वे पू ज
ं ीप त वग को मटाने के थान पर उनके
अ धकार को कानून वारा सी मत रखना चाहते थे। मा स लोकतं का वरोध करता है। क तु
नेह क र लोकतं वाद थे। उ ह मा स के “रा य वह न समाज” का वचार भी अ यवहा रक
लगता था। मा स के वा य नेह के लए कभी ई वर य वा य नह ं बने। वे कभी यह नह ं मान
सके क शु भ सा य क ाि त के लए बुरे या हंसा मक साधन का सहारा लया जा सकता
है। उसके लए नै तक मू य बहु त मह वपूण थे। फर भी नेह वतीय महायु तक
मा सवाद –सा यवाद वचार से अ धक भा वत रहे ह। उसके बाद उन पर मा सवाद का भाव
कम हो गया और वे लोकतां क समाजवाद बन गये। वे राजनी तक े के साथ–साथ आ थक
और सामािजक े म भी लोकतं क थापना करना चाहते थे। इसी राजनी तक–सामािजक–
आ थक लोकतं को नेह का “लोकतां क समाजवाद” कहा जा सकता है। ''भारत के वतं
होते ह नेह के लोकतं ा मक समाजवाद को भारतीय सं वधान के ख ड तीन (मौ लक

252
अ धकार) तथा ख ड चार (रा य के नी त के नदशक स ा त) म दे खा जा सकता है। इ ह ं
ावधान क याि व त के अ तगत पंचवष य योजनाओं एवं नयोिजत आ थक वकास क
अवधारणा को वीकार कया गया। पं. नेह के नेत ृ व म ह अवाड़ी कां ेस ने 1955 म
वीकार कया क भारत “समाजवाद ढं ग का समाज'' (सो य लि टक पैटन ऑफ सोसायट )
था पत करने क दशा म काय करे गा। उ ह ने लोकतां क समाजवाद को और आगे बढ़ाने के
लए 1956 म नागपुर – कां ेस के अ धवेशन म शां तपूण एवं यायो चत साधन वारा
समाजवाद सहकार रा य के नमाण” का ताव पा रत कराया। 1962 तथा 1964 म उ ह ने
औपचा रक एवं प ट प से लोकतां क समाजवाद क थापना के लए सं वधान म संशोधन
कराए। ''
व तु त: वे समाजवाद के आधार से लोकतं को तथा लोकतं के राजनी तक आधार से
समाजवाद को समृ करने म लगे रहे । '' इस कार यह कहा जा सकता है ''नेह के मन को
मा सवाद और सा यवाद के त टश सा ा यवाद के व त या के प म अथवा
उसके वरोध म जो मान सक सां वना मलती थी उसके कारण जो संवेगा मक अनुराग उ प न
हो गया था वह आयु क वृ तथा समय के प रवतन के साथ–साथ बहु त कु छ ीण हो गया।
जीवन के सं याकाल म मा सवाद–सा यवाद से वे एक और ि ट से भी दूर हो गए। अपनी
धम नरपे ता के बावजू द, मानव जीवन के नै तक और आ याि मक मू य के मह व म उनका
व वास बढ़ता गया, जब क सा यवाद म इन मू य का कोई मह व नह ं है। अपने मानवतावाद
ि टकोण के फल व प और जीवन म नै तक तथा आ याि मक आकां ाओं को मा यता दे ने के
कारण नेह गांधीवाद के अ धका धक नकट आते गए और मा सवाद–सा यवाद के भाव से दूर
हटते गए।
बोध न 2
न: 1 “ने ह ने लोकतं को के वल राजनी तक े तक सी मत नह ं रखा” इस कथन
से या ता पय है ?
उ तर .......................................................................................
........................................................................................
न: 2 मा सवाद – सा यवाद से ने ह का वचारभे द कन बात को ले क र था ?
उ तर: .....................................................................................
......................................................................................

13.9 नेह च तन : अ तरा यतावाद एवं व वशां त


नेह ने अपने दे श को, कां ेस को और – स पूण मानव समाज को एक यापक
अ तरा य ि टकोण दान कया। गांधीजी क तरह उनके लए रा वाद का अथ केवल भारत
क वाधीनता ह नह ं था अ पतु उसके वारा व व–मानवता क सेवा भी था। गांधीजी क भाषा
म बोलते हु ए नेह ने कहा था :

253
“मेर रा यता अ तरा यता पर आधा रत है और आधु नक व व, व ान, यापार
और यातायात के साधन के कारण अ तरा यता क नींव पर खड़ा है। कोई भी रा व व से
वमु ख नह ं रह सकता।“
नेह का अ तरा यतावाद ि टकोण कोरा आदशवाद नह ं था। उ ह ने उसे यवहार
म लागू करना चाहा। उ ह ने वतं भारत सरकार का पररा वभाग तथा वदे श नी त का
नधारण अपने पास रखा और अपने अ तरा य वचार को मू त प दया। उ ह ने भारत क
वदे श नी त का नमाण, अपने मानवतावाद एवं अ तरा यवाद के आधार तथा दे श क घरे लू
और अ तरा य प रि थ तय के स दभ म कया। उ ह ने असंल नता के आधार पर भारत को
नाटो तथा वारसा सं धय पर बने सै नक गुट से दूर रखा तथा गुट नरपे वदे श नी त का
तपादन कया। इसी आधार पर उ ह ने श ीकरण, नव– उप नवेशवाद, आ थक शोषण तथा
सा ा यवाद का वरोध कया।
उ ह ने अ तरा य े म रा य के आचरण का एक नया मौ लक स ा त दया जो
'पंचशील' के नाम से व यात है। इसम ये पांच स ा त तपा दत कए गए “(i) एक–दूसरे क
ादे शक अख डता का स मान, (ii) अना मण, (iii) एक– दूसरे के आ त रक मामल म
अह त ेप (iv) समानता और पार प रक लाभ एवं (v) शां तपूण–सहअि त व तथा अ थक
सहयोग।“
व व के लगभग सभी रा य ने पंचशील के स ा त म आ था कट क ।
अ तरा यवाद एवं व व शां त के लये नेह ने संयु त रा संघ का बल समथन करके,
ववाद का नबटारा शां तमय उपाय एवं बातचीत के वारा कए जाने व ए शयाई अ क
जागरण म सहायता पहु ँ चाने क ज रत बता कर तथा शीतयु , सा ा यवाद एवं यु दूर एक
नयी स य अंसल नता (गुट नरपे ता) क वदे श नी त को अपनाकर व व राजनी त व तु त:
एक नवीन ग तशील एवं वकासशील नी त को तपा दत कया।
बोध न– 3
न :1 गु ट नरपे ता का आशय या है ?
उ तर : ..........................................................................................
...........................................................................................
न :2 पं च शील के पां च स ा त या ह ? उ तर
...........................................................................................
...........................................................................................

13.10 सारांश
नेह ने पहले आजाद क लडाई का सफल नेत ृ व कया तथा फर अपने धानमं व
काल म वतं भारत का हर े म कु शल मागदशन कया। 27 मई 1964 को उनके नधन
के साथ ह भारत म एक युग क समाि त हु ई, िजसे नेह –युग कहा जा सकता है। नेह ने
रा के भ य ासाद को ढ़ आधार शला दान क , सं वधान के तन म 'जीव’, और 'जीवा मा'

254
को ति ठत कया, ारि भक 14 वष म सं वधान के सफल या वयन के दौरान, सं वधान
क इमारत म जब–तब जो दरार दख पड़ी, नेह ने वयं अपने कर–कमल से उनक मर मत
क । उ ह ने सं वधान म ज र संशोधन तु त करके सं वधान नमाताओं क वा त वक
भावनाओं को प ट करने का यास कया। अपने जीवन के येक ण म वे भारत क
ग त, वै ा नक और तकनीक वकास, लोकतां क–समाजवाद, धम नरपे वाद और वतं
वदे श नी त तथा अ तरा य शां त क थापना के लए जू झते रहे। नेह एक स चे रा वाद
एवं अ तरा यवाद थे। मानवमा के क याण क इ छा रखने के नाते उ ह ने सदै व व व
बधु ं व, सहयोग, शां तपूण – सहअि त व, रा य वतं ता और सं भुता, असंल नता,
नःश ीकरण तथा अणुशि त के शां तपूण रचना मक योग का समथन कया।
“नेह वयं समालोचक, व लेषक थे, अतएव समालोचना एवं व लेषण क कसौट के
त वे सदै व स ह णु रहे । वतमान पीढ़ का दा य व है क अ ज–कम यवाद के प र े य म
नेह क वरासत को समझे तथा ‘सतह –औपचा रक’ एवं नणायक शा वत' के भेद के आधार
पर भारत क वश ट ाथ मकताओं को व मृत न कर। 'वाद' एवं ' यय' क नरकं ु श पर परा
से वलन होकर ह , पुनः नर ण एवं पुनःकथन अथपूण होते ह।“ य द गांधी के आधारभू त एवं
मू ल कथन '' ह द वरा य'' म उि ल खत है, तो नेह के ाथ मक व वास– तब ता के तीक
उनक कृ त ''आ मकथा” म था पत है। प रवतनशीलता एवम ् ग या मकता के मू य को
साकार बनाने म गांधी एवम ् नेह , दोन के योगदान ह मानक ह। अप रवतनीयता तथा हठ
ढता, साम यक मयादा को स नह ं करते। परतं ता एवं वतं भारत के न य प रवतनीय
प र े य म नेह के आधारभू त मू य एवं गांधी के मू य यय म वशेष अ तर नह ।ं नेह
क वरासत इसी स य का संवधन है।

13.11 अ यासाथ न
(1) जवाहरलाल नेह के मु ख राजनी तक वचार क सं ेप म ववेचना क िजए।
(2) “मानवतावाद नेह के सम त च तन का मू ल आधार था”, इस कहन को प ट करते
हु ए यि त एवं रा य के बारे म नेह च तन का ववेचन क िजए।
(3) धम नरपे ता, सा दा यकता एवं रा य एकता से संबं धत पं. जवाहरलाल नेह के
च तन क या या क िजए।
(4) लोकतां क–समाजवाद के संबध
ं म नेह क वचारधारा प ट क िजए। नेह का
लोकतां क–समाजवाद मा सवाद–सा यवाद से कस कार भ न है?
(5) पं. नेह क वतमान संदभ म ासं गता का उ लेख करते हु ए उनक उपलि धय का
मू यांकन क िजए।

13.12 स दभ थ सू ची
1. जवाहरलाल नेह : ऑटोबायो ाफ
2. जवाहरलाल नेह : डसकवर ऑफ इि डया, मे र डयन बु स, लंदन,1960
3. के. दामोदरन : भारतीय च तन पर परा, “ पीपु स पि ल शंग हाऊस,
255
नई द ल , वतीय सं करण, 197 अ याय 42
4. वी.पी.वमा : मॉडन इं डयन पो ल टकल थॉट,ल मी नारायण अ वाल,
आगरा, 1986, अ याय 23
5. बी.आर.पुरो हत आधु नक भारतीय राजनी तक च तन, राज थान ह द
: थ अकादमी, जयपुर।
6. आ.के. थ
ू ी : इं डयन पो ल टकल थॉट, मो हत पाि लकेश स नई
द ल , 2007

256
इकाई–14
भीमराव अ बेडकर
इकाई क परे खा
14.0 उ े य
14.1 तावना
14.2 जीवन प रचय
14.3 सामािजक वचार
14.3.1 जा त था
14.3.2. अ पृ यता
14.3.3. ि य क ि थत
14.3.4. श ा
14.4 धा मक वचार
14.4.1 धम के त व
14.4.2. ह दू धम क कमजो रयाँ
14.4.3. ह दू धम म सु धार के ताव
14.4.4. धम प रवतन
14.5 राजनी तक वचार
14.5.1. रा य एवं शासन का व प
14.5.2. लोकतं
14.5.3. रा वाद
14.6 आ थक वचार
14.6.1 जा तगत यवसाय का वरोध
14.6.2. रा य समाजवाद
14.6.3. सामु दा यक खेती
14.6.4. औ योगीकरण
14.7 अ बेडकर और गांधी
14.8 सारांश
14.9 अ यास न
14.10 संदभ थ सूची

14.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरांत आप जान पायगे –
 अ बेडकर का जीवन तथा कृ त व

257
 अ बेडकर के सामािजक, धा मक, राजनी तक, आ थक वचार '
 जा त था तथा अ पृ यता उ मूलन के त लये अ बेडकर योगदान
 अ बेडकर वारा तु त रा वाद क संक पना !
 अ बेडकर के सामािजक जातं क उपादे यता, एवं
 गांधी तथा अ बेडकर के सामािजक वचार का तु लना मक अ यन

14.1 तावना
भारत म ाचीन काल से ह समय–समय पर समाज तथा धम सुधार आंदोलन होते रहे
ह। िजसका नेत ृ व बु , महावीर या म यकाल न संत ने कया। भारत म शासन क थापना के
प रणाम व प एक बार फर धम तथा समाज सु धार आंदोलन का दौर शु हु आ। टश काल
म हु ये सु धारक म भीमराव अ बेडकर एक ऐसे च तक थे िज ह ने समाज क जा त यव था
तथा द लत सम या को नये आयाम दये।
यहाँ हम भीमराव अ बेडकर के च तन के वभ न प से प र चत होग ले कन
वशेष तौर पर हम यह जान पायेग क कस कार उ ह ने राजनै तक के समाना तर सामािजक
समानता तथा याय के न को ासं गक और वल त बनाया। अ बेडकर ने भारतीय समाज
एवं ह दू धम म या त वषमताओं को न वयं भोगा था अ पतु इसका, ता कक एवं ववेकपूण
अ ययन कर इसके उ व एवं कारण क खोजकर, नदान तु त था। जा त यव था म सु धार
ह नह ,ं इसक समाि त को ह वे जातां क समाज क आधार शला मानते थे।
हम अ बेडकर के धा मक, आ थक एवं राजनै तक वचार ासं गकता को समझगे।
अ बेडकर के समान ह गांधी भी अ पृ यता को समा त कर समरस समाज के नमाण म
व वास करते थे क तु दोन च तक म गहरे मतभेद थे। दोन के वचार के तु लना मक
प र े य म हम समानता तथा जातं पर आधा रत समाज क थापना के यास के बारे म
इस इकाई के अ तगत हम अ ययन कर सकगे।

14.2 जीवन प रचय


बीसवीं सद के मु ख समाज सु धारक, राजनेता तथा के दाश नक भीमराव अ बेडकर
का ज म 1891 म महारा क अ पृ य महार जा त म हुआ था। उ ह ने अछूत के सामािजक
तथा धा मक अ धकार के लए संघष के साथ सावज नक जीवन म वेश कया। 1927 म
पानी के सावज नक उपयोग के लए उ ह ने महाड स या ह कया। और 1928 म भारत आये,
साइमन कमीशन से द लत के लए शै णक सु वधाओं क मांग क । 1930 म अ बेडकर ने
द लत नेता के प म थम गोलमेज स मेलन म भाग लया और 1932 म द लत के लए
पृथक नवाचक म डल क मांग पर महा मा गांधी के साथ पूना समझौता कया। समानता पर
आधा रत समाज क थापना के लए संघषरत अ बेडकर ने 1938 म मु ंबई वधानसभा म
खोती (जमींदार था) क समाि त के लए वधेयक पेश कया। वे ी तथा मक के
अ धकार के लए भी य नशील रहे । सं वधान ा प लेखन स म त के अ य के प म
उ ह ने सं वधान नमाण म मह वपूण भू मका नभाई। वतं भारत के थम कानून मं ी के

258
प म आपने ह दू कोड बल'' तु त कया, ले कन क रवा दय के वरोध के कारण
असफलता मल िजसके प रणाम व प मं ी पद से यागप दे दया। द लत के त सवण के
ि टकोण म अपे त बदलाव न पाकर 1956 म ह दू धम छो कर अ बेडकर ने अपनी मृ यु
से पूव बौ धम हण कर लया।

14.3 सामािजक वचार


19 वीं सद से ह भारतीय समाज सु धार के लये यास कये जा रहे थे, ले कन
अ बेडकर के यास इन सबसे भ न थे। अ बेडकर ने सामािजक यव था म आमूलचूल
प रवतन का वक प दया। समाज सुधार को वे दो अथ म दे खते थे। पहला – पा रवा रक
सु धार तथा दूसरा समाज का पुनगठन। वधवा ववाह, बाल ववाह, ी श ा आ द पा रवा रक
सु धार क ेणी म आते ह तो ऊंच–नीच, छुआछूत, वणभेद एवं जा तभेद मटाना समाज सु धार
क ेणी म। उनका मानना था क समाज सु धार के बना स ची रा यता का उदय स भव
नह ं है। वे सामािजक अ याचार क तु लना म राजनी तक अ याचार को नग य मानते थे और
समाज का वरोध करने वाले समाज सु धारक को सरकार का वरोध करने वाले राजनी त से
यादा साहसी। इसी लए उ ह ने समाज सु धार बनाम राजनै तक चेतना के पुराने सवाल को
उठाया िजसको लेकर भारतीय रा य कां ेस म दो धडे रहे थे और कां ेस म समाज सुधार
वाले प क पराजय को वे दुभा यपूण मानते थे।
अ बेडकर ने भारतीय समाज म या त बुराइय यथा–जा तवाद, ा णवाद, छुआछूत
आ द पर तीखे हार कये और कहा क समाज यव था म मू लभू त प रवतन करने के लए
सामािजक सु धार मा नह ,ं सामािजक ाि त क आव यकता है। जा त था उ मू लन,
द लतो थान तथा अ पृ यता नवारण अ बेडकर के सामािजक वचार के के म ह।

14.3.1 जा त था

जीवन के कटु अनुभव से अ बेडकर ने सीखा था क भारत म सामािजक असमानता


क जड़ जा त यव था है। जा त यव था से वयं पी डत अ बेडकर ने उसके उ गम, व प
तथा न ट करने के उपाय पर शोधपूण आकंलन तु त कया।
अ बेडकर का मानना था क समाज यि तय से नह ं वग के मलने से बनता है और
जब समू ह के बाहर ववाह के थान पर समू ह के अ दर असगो ववाह क णाल चलने
लगती है तो वग जा त म बदल जाते ह। भारत म भी इ तहास के कसी युग म पुरो हत वग
ने अपने को समाज से अलग एक जा त म ब द कर लया िजसका अ य वग ने भी अनुसरण
कया और प रणाम व प कई जा तय का ज म हु आ। वे इस धारणा म व वास नह ं करते थे
क जा त था के उ गम का उ े य जा त तथा र त क शु ता क र ा करना था, य क
उनके अनुसार भारत क वभ न जा तय के र त और संत त के आपस म मलने के बहु त
बाद म जा त था का ज म हु आ।
अ बेडकर इस बात को नह ं मानते थे क वध यव था के णेता मनु ने, जा त
यव था का नमाण कया। उनका कहना था क कोई यि त चाहे कतना ह शि तशाल हो,

259
जा त यव था का नमाण नह ं कर सकता था। हाँ, मनु ने जा त के व यमान नयम को
सं हताब करके उ हे धा मक तथा दाश नक आधार अव य दान कया।
(i) जा त का व प
अ बेडकर का मानना था क वणा म यव था पर आधा रत ह दू समाज रचना ह दू
धम वारा वीकृ त है य क यह यव था इस स ा त पर आधा रत है क ई वर ने मानव
को अपने भ न– भ न अंग से पैदा कया है। ाहाण ई वर के मु ख से, य से, वै य जंघा
से तथा शू पैर से पैदा हु आ है। ई वर य शर र के अंग क त ठा के ह वण एवं जा त क
सामािजक त ठा होती है। उनका कहना था क ह दु समाज इसी आधार पर जा त यव था
क इ पाती चौखट म बंधा हु आ है िजसम एक जा त सामािजक त ठा म दूसर से नीचे है
और अपने थान के अनुपात म येक जा त के वशेषा धकार नषेध और असमथताय ह।
अ बेडकर के अनुसार जा त का आधार ज म होने के कारण यि त के काय एवं यो यता का
कोई थान नह ं है अत: ऐसी यव था म यि त समानता तथा याय क उ मीद नह ं कर
सकता।
जा त यव था के आधार पर च लत वंशानुगत यवसाय को अ बेडकर ाकृ तक
यो यता एवं वतं ता के व मानते थे। उनके अनुसार , जा त यव था म का वभाजन न
होकर मक का भी वभाजन है। जा त यव था पहले से ह यि त के काय नधारण कर
दे ती है जो उसक मौ लक साम य पर आधा रत ना होकर उसके माता– पता क पर आधा रत
होता है। यवसाय प रवतन क वतं ता न होने के कारण इसने बेरोजगार को है। इस कार
आ थक संगठन के प म अ बेडकर जा त को हा नकारक सं था मानते थे। इसक और व तृत
चचा हम आगे करे ग।
जा त यव था क पदसोपानीय संरचना के सव च पायदान पर ा मण थे जो
सवा धकार स प न थे। ा मण ह सम प से समाज के नयम के नयंता थे। अ बेडकर
जानते थे क जा त यव था म सवा धक लाभ ा मण को मला है अत: वे जा त यव था के
समथक रहगे। उनका कहना था क जा त यव था क अभे य द वार िजस साम ी से बनी है
उसमे तक तथा नै तकता जैसा कोई वलनशील पदाथ नह ं है और इसक र ा के लए ा मण
क फोज खड़ी है। ले कन अ बेडकर ने यह भी प ट कहा क वे ा मणो के खलाफ नह ं है,
ा मणवाद से त लोग से उनका वरोध है। ा मणवाद को वे ह दू समाज के लए ऐसा
जहर मानते, िजसके शमन वारा ह ह दूवाद को बचाया जा सकता है।
अ बेडकर के सामािजक च तन क एक अ य वशेषता यह है क उनक भारतीय
जा त यव था एवं धम पर आधा रत सामािजक संरचना क अपनी गहर समझ के आधार पर
उ ह ने समाजवा दय वारा क गई भारतीय इ तहास तथा समाज क आ थक या या को
अ वीकार कर दया। वे आ थक शि त को स ता का एकमा ोत नह ं मानते थे। उ होने कहा
क समाजवाद यह मानकर चलते ह क चूँ क यूरोपीय समाज क वतमान अव था म स पि त
शि त का मु ख ोत है तो भारत म भी यह बात सह होगी। धम, सामािजक त ठा तथा
स प त तीन ह शि त और स ता के ोत रहे ह िजनका इ तेमाल आदमी ने दूसर क
वतं ता को छ नने के लए कया है। य द वतं ता का अथ कसी एक यि त पर कसी

260
अ य यि त के अ धकार को समा त करना है तो यह नह ं कहा जा सकता क केवल आ थक
सु धार ह लाये जाने चा हये। य द कसी समय म या समाज म शि त और अ धकार के ोत
सामािजक या धा मक ह तो सामािजक तथा धा मक सु धार क अ नवायता वीकार क जानी
चा हये। भारत का इ तहास दखाता है क धम भी स ता का ोत है इसी लये करोड़प त
यि त नधन साधु ओं तथा फक र क , आ ा का पालन करते ह और करोड़ नधन अपने छोटे
मोटे गहने बेच कर बनारस और म का जाते ह।
इसी संदभ म अ बेडकर ने जा त क स ता को दे खा और समझा था। जा त यव था
वारा नधा रत नै तक, धा मक एवं सामािजक सं हता का वरोध करने पर स बि धत जा त को
ऐसे यि त को जा त से ब ह कृ त करने का एका धकार होता है। जा त से ब ह कृ त का अथ है
उसे समाज के कसी भी काम म भाग न लेने दे ना। अ बेडकर ने इस पर कटा करते हु ये
कहा था क यह तय करना क ठन है क जा त ब ह कार कठोरद ड है या मृ यु ।
(ii) जाती था का उ मू लन
अ बेडकर ने अपने गहन अ ययन, अवलोकन और अहसास के बाद पाया क भारतीय
समाज को य द समानता, याय तथा लोकतं पर आधा रत समाज के प म पुनग ठत करना
है तो जा त यव था को समूल प से न ट करना होगा। उ ह ने जा त यव था म व यमान
कमजो रय एवं उसके दु भाव क ता कक, प ट एवं ववके स मत या या क । उनका
मानना था क ज म जो क संयोग है, पर आधा रत होने के कारण जा त यव था, याय एवं
समानता के ाकृ तक एवं जातां क अ धकार के व है। जा त था के कारण कसी भी
वषय पर सावज नक सहम त का होना असंभव है। ह दुओं के लए उनक जा त ह जनता है
तथा उनक न ठा व दा य व अपनी जा त तक ह सी मत है। इसी आधार पर अ बेडकर का
मानना था क जा तगत आधार पर ग ठत ह दू समाज एकता तथा संगठन के थान पर
अलगाव को ो साहन दे ता है। अ बेडकर ने प ट कया क ह दू धम चारक धम नह ं हो
सकता है य क जा तगत वाय ता के कारण ऐसे यि त के लए कोई जगह नह ं जो धम
बदल कर ह दुमत म आया हो।
ह दू समाज क जीवन शि त पर गव करने वाल से भी अ बेडकर सहमत नह ं थे। उनका
मानना था क जी वत रहने से यादा मह वपूण है िज दा रहने का ढं ग। अ बेडकर का वचार
था क ह दुओं के अि त व क कहानी लगातार पराजय क कहानी है। कारण यह था क
हमारा सारा दे श हमले के खलाफ खड़ा न हो सका, जा त यव था म बंटे समाज के एक छोटे
से वग ने उनका मु काबला कया और हमारा दे श हार गया। हमारे यहां लड़ने का िज मा केवल
य को स पा गया था, ले कन िजसके दु प रणाम हम भोगने पड़े। जब तक जा त था रहे गी
समाज इसी तरह बँटा रहे गा।
अ बेडकर त काल न कु छ समाज सु धारक के इस मत से भी सहमत नह ं थे क जा त
के थान पर वण यव था को अपना लया जाय तो सभी सामािजक बीमा रय का इलाज हो
जायेगा य क उनके अनुसार वण यव था म जा त के प म वकृ त होने क वाभा वक
वृि त है। वे यह भी जानते थे क जा त स ता के शखर पर बैठा ा मण वग अपने न हत
वाथ के कारण जा त उ मू लन आंदोलन का समथक नह ं हो सकता। ा मण ह ह दू

261
सामािजक संरचना म बौ क वग का त न ध है अत: अ बेडकर ने जा त यव था को समा त
करने के लए पुरो हतशाह पर रा य वारा कानूनी नयं ण और नयमन का वचार रखा
िजसक व तृत चचा हम डॉ. अ बेडकर के धा मक वचार के अ तगत करग।
अ बेडकर ह दू समाज क सम त बुराईय क जड़ जा त यव था को मानते थे और
इसी लए इसको समूल प से न ट करना ह उनक ि ट म उ न त का एकमा वक प था।
ले कन वे यह भी जानते थे क इस हजार साल पुरानी यव था को समा त करना असंभव नह
तो क ठन अव य है य क वय तशासी होने के कारण जा त यव था के क र पं थय के हाथ
म समाज सुधारक को दि डत करने के लये जा त कानून का सश त ह थयार है।
वे समानता, वं ता तथा पर पर भाईचारे पर आधा रत समाज का पुनगठन करना
चाहते थे, और इसके लये वण एवं जा त के पीछे व यमान धा मक प व ता क भावना को
न ट करना आव यक मानते थे। उनका कहना था क जा त तथा वण को धमशा क
द यस ता से अलग कर दया जाना चा हये।
अ बेडकर कोरे स ा तवाद नह ं अ पतु जमीन से जु ड़े वचारक थे। वे जानते थे क
हजार साल से पो षत जा त यव था को रात रात समा त नह ं कया जा सकता। इसके लए
ह दुओं के मौ लक ि टकोण म प रवतन लाना आव यक था। उनका वचार था क जा त था
से लड़ने के लए चार तरफ से हार करना होगा। जा त ट क द वार जैसी कोई भौ तक व तु
नह ं है िजसे गरा दया जाए। अ पतु यह एक वचार और मन: ि थ त है। अ बेडकर, जा त
भेद मटाने के लए अ तरजातीय सहभोज के उपाय को सतह और अपया त मानते थे इसका
वा त वक उपाय वे अ तजातीय ववाह को मानते थे। उनके अनुसार , जब जा त का आधार
समा त हो जायेगा तो इसके लए रा ता खु ल जायेगा। केवल र त का म ण ह क भावना
पैदा कर सकता है और जब तक यह अपनेपन और ब धुता का भाव धान नह ं होता, आधा रत
दुभाव दूर नह ं कये जा सकते।

14.3.2 अ पृ यता

असमानता तथा ज माधा रत भारतीय जा त यव था क ि थ त का व प था–


अ पृ यता। इसके अ तगत ह दू समाज के अ तगत बहु त बडी सं या मे ऐसे लोग थे जो
अ यज, अवण अथवा पंचम के प म जाने जाते थे तथा िज ह छूने भर से ह दुओं का धम
ट हो जाता था। यह ह दू धम क एक ऐसी अनोखी था है िजसका दु नया मे कोई दूसरा
उदाहरण नह ं मलता। स दय से च लत इस था के कारण ह दू समाज के एक बहुत बडे
ह से को सम त कार क यो यताओं, अवसर तथा अ धकार से वं चत कर दया गया।
इ तफाक से अ बेडकर का ज म भी महारा क अ पृ य जा त महार म हु आ था। अछूत के
प म र गटे खड़े कर दे ने वाले अपमान के दौर से गुजरे अ बेडकर के मन म अ याय का
तकार करने तथा ज म, वण तथा जा त क मा यताओं को व त करने का ढ संक प एवं
संघषशीलता थी। कारण है क अ बेडकर ने अ पृ यता के उ गम, व प, शोषण तथा उसके
उ मूलन का ल य आधार तु त कया तथा छुआछूत क समाि त एवं जा त यव था के

262
उ मूलन के ल य के त अपना सम जीवन सम पत कर दया। छुआछूत के उपरो त आयाम
के स ब ध म अ बेडकर के क यहां हम चचा करे ग।
भारतीय इ तहास के गहन अ ययन के बाद अ बेडकर ने “ यू वर द शू ाज” नामक
थ म शू तथा छुआछूत क उ पि त तथा वकास को तपा दत करने का यास कया।
उनके अनुसार शू न केवल आय थे अ पतु य वग से स बि धत थे। चतु वण का तपादन
करने वाले ऋ वेद के पु ष सू त को बाद म जोड़ा गया बताकर अ बेडकर ने अ वीकार कर
दया। अ बेडकर ने शू राजा सु दास तथा ा मण ऋ ष व श ठ के बीच हु ये झगड़े का उदाहरण
दे ते हु ये कहा क शू तथा ा मण के बीच हु ये हंसक संघष के प रणाम व प ह शू का
पतन हुआ और वे वण म म चौथे थान पर चले गये। अ बेडकर का मानना था क ा मण
ने शू को उपमयन के अ धकार से वं चत कर दया िजसने उनके लए दासता का माग श त
कया। शू के पतन के लए अ बेडकर ने उपनयन क अ वीकृ त के भाव को 'परमाणु बम'
के समान माना है।
अ पृ यता के अथ को प रभा षत करते हु ये अ बेडकर ने लखा है क अछूत के छूने
पर सवण अप व हो जाते ह और फर प व करने वाल कसी र म वारा ह वे प व होते ह
ले कन अछूत के लए ऐसी कोई र म नह ं है िजसके स पादन वारा अछूत प व हो जाय।
छुआछूत क इस था म, अछूत अप व ह ज म लेते ह, आजीवन अप व रहते ह, अप व
ह मृ यु को ा त होते ह। यह ं नह ,ं वे ऐसे ब च को ज म दे ते ह िजनके साथ अ पृ यता का
कलंक जु ड़ा होता है। यह थायी तथा वंशानुगत कलंक का मु ा है। िजसे मटाया नह ं जा
सकता।
अछूत क इस अमानवीय, शोचनीय तथा दासता से भी बदतर ि थ त के लए
अ बेडकर दो त व को मु ख प से िज मेदार मानते थे एक ह दू धम तथा दूसरा
ा मणवाद।
अ बेडकर ने प ट कया क जा त–पाँ त का भेद तथा छुआछूत को ह दू इस लए नह ं
मानते क उनका यवहार अमानु षक तथा अ यायपूण है बि क वे अ य धक धा मक होने के
कारण ऐसा मानते ह। अत: जात–पांत क श ा दे ने वाले धमशा दोषी ह। अ बेडकर का ढ़
मत था क मनु मृ त ने छुआछूत का सं हताकरण तथा वैधानीकरण करने म नणायक भू मका
अदा क है। चातु व य पर आधा रत रामराज म राम ने श बूक को मृ युद ड इस लए दया क
वह ज म से शू था क तु ा मण बनना चाहता था। इस टा त से रामायण ने ज म पर
आधा रत अव थाओं को न केवल वैधता दान क अ पतु इस यव था का उ लंघन करने वाल
के अपराध क सजा मृ यु तय कर द । उ होन मनु मृ त का गहन अ ययन कर हजार ऐसे
उदाहरण दये जो मनु के भेदभाव पूण नयम का पदाफाश करते ह। उनके अनुसार वयं मनु
ने सात कार क दासता का उ लेख कया है। दासता, ववाह, द ड तथा सं यास के नयम भी
अलग–अलग वण के लए अलग–अलग थे। ई वर के अंग से उ प न इन वण क सामािजक
त ठा भी उसी के अनु प थी। अ बेडकर को खेद इस बात का था क 20 वीं सद म भी इस
स ा त को ह दू जीव व ान के त य और तक क कसौट पर जांचने को तैयार नह ं थे।

263
मनु मृ त के उस वधान को वे नराधम मानते थे िजसम कहा गया था क य द कोई
शू वेद पाठ करे तो उसक जबान काट लेनी चा हए और वेद पाठ सु ने तो उसके कान म
पघला हु आ सीसा डाल दया जाय। इसी कार क यव था से आहत अ बेडकर ने घोषणा क
क ह दू स यता को स यता नह ं कहा जा सकता, यह तो मानवता का दमन कर उसे गुलाम
बनाने का ष य मा है।
समु दाय वशेष के यि त को छूने मा को पाप समझने वाले ह दू धम पर कटा
करते हु ये उ ह न कहा था क ह दू अपनी मानवतावाद भावनाओं के लए स है और ाणी
मा के त उनक आ था अ भुत है। कु छ लोग तो वषैल सांप को भी नह ं मारते। ले कन
न यह उठता है क जो ह दू पशु प य स हत ा णमा के त उदार ह, वे मनु य
(द लत ) के त इतना अनु चत तथा नदयता पूण यवहार य करते ह।
अछूत के साथ पूरे दे श म सवण वारा कये गये अमानवीय यवहार के कई श द च
अ बेडकर ने उकेरे । जैसे पेशवा के शासन काल म अछूत को उस सडक पर नह ं चलने दया
जाता था िजस पर सवण आते जाते थे ता क उनके साये से सवण का धम ट न हो जाय।
पेशवाओं क राजधानी पूना म अछूत को अपनी कमर म झाडू बांध कर चलना पड़ता था ता क
िजस जमीन पर वे चल, वह झाडू से साफ होती रहे और सवण ह दू उस पर चल कर ट न
ह । इसी कार इंदौर रा य म अछूत बलाई जा त क ि य को सोने के आभू षण, रं गीन या
फसी बोडर वाल धोती पहनने क मनाह थी य क इससे सवण जा तय का अपमान होता था।
अछूत क उपरो त दशा के लये अ बेडकर क नगाह म ा मणवाद भी उतना ह
िज मेदार था िजतने क ह दू धमशा । उनका मत था क समाज क सार ग त व धय के
संचालन का सवा धकार अपने पास सु र त रखकर ा मण ने सारे वशेषा धकार को अपने
लये सु र त रख लया और समाज के अ य वग का ै तजी आधार पर वग करण करके शू
को सारे अ धकार से वं चत कर दया। शू को स प त अिजत करने क अनुम त नह ं द गई
य क कह ं ऐसा न हो क वे सवण पर नभर न रहे, उ ह व या ा त करने से रोका गया
क कह ं ऐसा ना हो क अपने हत के त सजग हो जाएं। उसके लये श धारण करना
नष था क कह ं ऐसा न हो क वह उनक सता के व व ोह करने म समथ हो जाय।
उनके मानस म कू ट–कू ट कर यह भरा गया था क अछूत के प म ज म लेना ह उनके भा य
म लखा था।
ा मण वारा संचा लत एवं नयं त जा त यव था म अछूत के लये कये गये
वधान तथा उसके प रणाम व प उनक जो उपरो त दयनीय ि थ त हु ई, उसी के कारण
अ बेडकर ने ा मणवाद को मानवता के दमन क तकनीक तथा ष यं कहा था।
`अ बेडकर ने तकपूण ढं ग से प ट कया क जा त था ने भारत क बहु त बडी
सं या को थायी प से अपा हज बना दया था। द लत सम या से य थत और आ दो लत
उनके मननशील मन को एक सवाल हमेशा मथता रहता था क दु नया के दूसरे दे श म दमन
तथा शोषण के व ाि तयाँ हु यी ले कन भारत म य नह ं हु यी? अपने इस सवाल का
उनके पास जवाब भी था, और वह यह क चतु वण यव था के कारण न न जा तयां शि तह न

264
हो गयी थीं। श ा, शा , श , सं कृ त एवं स पि त से वं छत यह वग व ोह नह ं कर
सकता था।
जाताि क मू य पर आधा रत नवीन भारतीय समाज के के लए वे जा त एवं
छुआछूत था को समूल न ट करने का आहवान करते थे। इसके लए उ ह ने बहु आयामी यास
कये। सव थम वे चाहते थे क द लत समु दाय वयं अपने उ थान के सु धार, यास, संघष और
संगठन का प रचय दे ।
उ होने अछूत को वे सब काम करने क मनाह क जो वे साल से करते आ रहे थे
ले कन िज ह अप व माना जाता था जैसे मरे हु ये पशु ओं को फकना, उनक खाल नकालना,
उनका मांस खाना, सवण ि य क सू त कराना तथा गंदे कपड़े धोना, मलमू साफ करना
आ द। उ ह ने द लत को धा मक कमका ड, पाख ड तथा भा यवाद सोच याग कर कमठ एवं
संघषशील बनने क ेरणा द ।
उनका मत था क अछूत से ह दुओं को कसी कार का कोई डर नह ं है और न ह
अ पृ यता को समा त करने से उ ह कोई लाभ हो सकता है अत: शू ो के उ थान के लए
बाहर से कये जाने वाले यास साथक नह ं हो सकते। यह कारण है क े म गांधी तथा
कां ेस वारा कये गये यास को उ होन सदै व शंका क ि ट से दे खा। उनका कहना था क
वयं के व होने वाले अ याय क समाि त तथा अ धकार क ाि त के लए द लत को
वयं भय र हत तथा एकजु ट होकर संघष करना होगा।
'ब ह कृ त हतका रणी सभा' नामक सं था क शु आत अ बेडकर ने रचना मक काय से
क ले कन आगे चलकर उ होन इसे द लतो थान के लए वरोध, आ दोलन तथा सीधी कायवाह
का मंच बना दया। द लत को सावज नक सु वधाओं (तालाब, कुँ आ आ द) के उपभोग तथा
मं दर वेश का अ धकार दलाने के लए महाड स या ह एवं अ बादे वी मि दर (अमरावती)
कालामं दर (ना सक) वेश हे तु आ दोलन कये।
वे जानते थे क स दय से वशेषा धकार का उपभोग करने वाले सवण ह दू वे छा
से द लत को समानता का अ धकार नह दे ग अत: वे वतं भारत के सं वधान म ऐसे
ावधान चाहते थे िजनसे जा तगत वभेद एवं अ पृ यता पर आधा रत दमन एवं पर रोक
लगायी जा सके तथा पी ड़त वग अ याचार से अपनी र ा कर सके। उ लेखनीय है क
अ बेडकर को अपने इन यास म मह वपूण सफलता मल ।

14.3.3 ि य क ि थत

द लत के समान ह भारतीय समाज म ि य क ि थ त भी दास जैसी थी। उनका


कहना था क ि य के पतन के लए सती था, बाल ववाहक या वध, ववाह, नषेध जैसी
कु थाओं को िज मेदार मानना सम या को सतह तौर पर दे खना है। वे इन सम याओं क जड़
जा त था एवं ा मणवाद को मानते थे। उनका मत था क िजस जा त म ववाह, कठोर
वैध य और सती था का िजतना अ धक चलन होगा, उसका तर उतना ह माना जायेगा।
इसी ि ट से पेशवा के शासन काल म महारा म पठारे , भु समु दाय ने वधवा ववाह पर

265
पाब द लगाकर अपनी जा त का तर ऊँचा उठाने का यास कया तो पेशवाओं ने ऐसा न
करने दे ने के लए ह त ेप कया था।
वे ी तथा द लत दोन को ा मणवाद दमन च का शकार मानते थे िजसे आगे
चलकर मनु ने रा य के कानून के प म बदल दया। जो लोग चातु व य के आधार पर
भारतीय समाज का पुनगठन करना चाहते थे उनसे अ बेडकर का यह सवाल था क या वण
वभाजन ि य पर भी लागू होगा? वे ऐसे जातां क समाज क थापना चाहते थे िजसम
मानव मा को ग रमा, स मान और समानता के आधार पर जीवन यापन का हक हो। यह
कारण है क उ ह ने द मत मानवता के उ थान का बीड़ा उठाया, फर वह अछूत हो या ी। वे
द लत म हला क इस पीड़ा के मम को भी समझते थे क वह दोहरे शोषण का शकार है – एक
ी होने के कारण और दूसरा–द लत होने के कारण।
अ बेडकर जानते थे क पुरातनपंथी समाज वे छा से ि य को समानता का दजा
नह ं दे गा अत: द लत के समान ह वे कानून वारा ि य के अ धकार क र ा करना चाहते
थे। आजाद भारत म इसी उ े य से उ ह ने कानून मं ी क है सयत से “ ह दू कोड बल”
तु त कया। इस वधेयक म ववाह क आयु सीमा बढ़ाने, ि य को तलाक का अ धकार दे न,े
मु आवजा तथा वरासत के अ धकार के साथ–साथ दहे ज को ीधन मानने के सु झाव दये गये
थे क तु राजे साद के नेत ृ व म क रवा दय के वरोध के कारण यह वधेयक पा रत नह ं
हो सका और अ बेडकर ने व ध मं ी के पद से यागप दे दया।
ि य क ि थ त म सुधार के लए मनुवाद यव था म बदलाव न कर पाने के
बावजू द याय पर आधा रत समाज क रचना के लए अ बेडकर का नारा था – एकता, श ा
और आ दोलन। साथ ह उनक मा यता थी क ि य के सहयोग के बना एकता अथह न है,
ि य क श ा के बना श ा फलह न है और ि य क शि त के बना आ दोलन अधू रा है।

4.3.4 श ा

अ बेडकर इस बात को जानते थे क रा य वारा समानता का अ धकार दान कर दे ने


के बावजू द य द द लत वग अपने अ धकार के त उदासीन बना रहा तो सामािजक याय का
सपना कागजी तथा कानून म ह बना रहे गा, यथाथ नह ं बन पायेगा। वे औपचा रक तथा
अनौपचा रक श ा वारा द लत वग म जाग त तथा आ मबल पैदा करना चाहते थे, ता क
द लत वग अपने अ धकार के त य हो उठे ।
उनके लए श ा केवल सा रता का नाम नह ं अ पतु सामािजक प रवतन का ह थयार
थी। वे ज माधा रत वण–जा त, सामािजक कु र तय , धा मक अंध व वास , गर बी क भा यवाद
अवधारणा आ द को समा त करने के लए ऐसे यि तय के समाज का पुन नमाण करना चाहते
थे जो ाचीन पर पराओं का अनुसरण तो करे ले कन तक क कसौट पर कसने के बाद।
उनका मत था क अ नवाय तथा नःशु क श ा दान करना रा य का दा य व है।
अ नवाय तथा नःशु क श ा क यव था होने पर ह साधन–सु वधा तथा स पि तह न द लत
को श ा ा त करने का अवसर मल सकता है। वे श ा को ऐसा औजार मानते थे िजसक
मदद से दासता क जड़ को काटकर सामािजक समानता, आ थक उ न त एवं राजनी तक
266
वतं ता हा सल क जा सकती है। द लत को श ा दान करने के लए उ ह ने ' पपु स
एजु केशन सोसायट ’ नामक सं था क थापना क थी। उनका कहना था क श ा ह अछूत म
सवण के समक खड़ा होने का साहस पैदा कर सकती है।

14.4 धा मक वचार
अ बेडकर मानव जीवन म धम तथा नै तकता के मह व को वीकार करते थे। ले कन
भारतीय सामािजक संरचना िजसे धमशा वारा मा यता दान क गयी थी उस भारतीय
समाज म धम के नाम पर समाज म या त असमानता, अ याचार, छुआछूत तथा पाख ड के
वे वरोधी थे। इसी संदभ म उ होन एक सामािजक ाि तकार के प म, जाताि क समाज
क थापना के लए ह दू धम को समता, वतं ता तथा ब धु ता के अनु प बदलने क अपील
क।

14.4.1 धम के त व

धम के स ब ध म अ बेडकर क अपनी कु छ मा यताय थी उनके अनुसार , एक नै तक


बोध होने के कारण धम येक समाज का नयामक स ा त होना अथात ् धम एवं नै तकता
अभ न प से जु ड़े हु ये ह। य द धम यि त के ह कया–कलाप का दूसरा नाम है तो इसे
ववेक पर आधा रत होना चा हए और ववेक व ान का ह दूसरा नाम है। आ ह था क धम
के नाम पर च लत अंध व वास तथा पर पराओं को तक क कसौट पर खरा उतरने के बाद
ह वीकार कया जाना चा हए।
उनका तक था क धम के मू य तथा स ा त सावभौ मक होते ह, वे अपने
अनुया यय म भेद नह ं करते। ले कन ह दू धम शा वारा मा यता ा त अ पृ यता का
तकार करते हु ये उ ह ने कहा क धम नै तक सं हता म वतं ता, समानता तथा ात व के,
स ा त को शा मल कया जाय अ यथा धम द ड का त प बन जायेगा। वे धम को ऐसे
जीवन के प म था पत करना चाहते थे जो यि त तथा यि त के बीच स मान तथा
ग रमामय था पत करने म स म हो और वह स ा त पर आधा रत हो सके तथा नयम पर
नह ,ं उनके अनुसार , स ा त नरपे , दा य व बोध से यु त एवं ववेक स मत होते ह जब क
नयम सापे , यावहा रक एवं पर परा पर आधा रत होते ह।

14.4.2 ह दू धम क कमजो रयाँ

अ बेडकर का मत था क आ याि मक स ा त के प म सावभौ मक एवं सावका लक


होता है ले कन ये त व ह दू धम म मौजू द नह ह और य द ये ह तो वे ह दु के जीवन को
संचा लत नह ं करते। वेद और मृ तय म व णत धम केवल ब ल, सामािजक, राजनै तक तथा
व छता के नयम तथा नषेध का मला जु ला पु ज
ं है।
उ ह ह दू धम से सवा धक आपि त इस बात को लेकर थी क धम शा ने एक
ओर जा त भेद तथा अ पृ यता के नाम पर बड़ी सं या म मनु य को वं चत, उपे त और
दास बना दया है वह ं दूसर ओर, एक अ य वग, ा मण को सवा धकार स प न बना दया

267
है। इसी आधार पर उनका मानना था क ह दू धम वयं समाज म एकता के थान पर को
ो साहन दे ता है। जो धम मानव मानव के बीच भेद करता है, अपने ह अनुया यय के एक,
वग को दूसरे वग के अधीन रहने के लए बा य करता है, वह धम नह ं अ पतु मानवता का
अपमान है।

14.4.3 ह दू धम म सु धार के ताव

ह दू धम म या त कमजो रय तथा बुराईय को दूर कर अ बेड़कर एक जीव त तथा


समता मूलक धम के प म संग ठत करना चाहते थे। वे बक के इस कथन से सहमत थे क
स चा धम समाज क बु नयाद होता है िजसके आधार पर स ची हू कू मत बनती ह तथा जनता
एवं सरकार दोन फूलती–फलती ह। इसके लए उ ह ने ह दू धम के व यमान व प पर
पुन वचार कर उसके ववेक स मत पुनगठन का ताव कया। उनके वारा सु धार के लए
न न सु झाव दये गये :–
(i) ह दू धम का युगानु प कोई सै ां तक आधार हो जो समता, वतं ता तथा ब धु व के
अनु प हो। इसके लए उप नषद के च तन को आधार बनाया जा सकता है।
(ii) ह दू यह पता लगाने का यास कर क संसार म कस क नै तकता, आ था तथा
ि टकोण वाले लोग ने उ न त और ढ़ता हा सल क है.
(iii) यह वचार कया जाय क हम अपनी स पूण सामािजक सु र त रखनी है या उसम
जो उपयोगी हो उसे चु नकर भावी पी ढ़य को स पा जाये।
(iv) अतीत के सम त आदश क आँख मू ंद कर पूजा करने के बजाय वतमान युग म
उ तम, उपयोगी एवं उ न त के शखर पर ले जाने वाले आदश को पूजा जाय।
(v) ह दुओं को मान लेना चा हए क संसार म कु छ भी ि थर, शा वत अथवा सनातन
नह ं है। यि त तथा समाज के लए प रवतन जीवन का नयम है अत: बदलते हु ये
समय म पुराने मू य म सतत तथा ां तकार बदलाव आना चा हए।
उनका मानना है क ह दू धम को सवा धक नुकसान ा मणवाद ने पहु ंचाया है जो
ज म तथा जा त भेद पर आधा रत है अत: ह दू धम म वां छत बदलाव तथा सुधार के लए वे
पुरो हतशाह पर नयं ण चाहते थे। उनके अनुसार पुरो हती एक यवसाय मा है और कसी
यवसाय का नयं ण होना उसक उ न त का योतक है। ह दू पुरो हत परम वतं है, उस
पर कोई पाबंद नह ं है। मू ख, कदाचार , नशेबाज और जु आर होने पर भी वह प व सं कार
कराने तथा दे व पूजा के यो य समझा जाता है। उसक एक मा यो यता है ा मण के घर
ज म लेना। वह राज अथवा समाज नयम के अधीन नह ं होता अ बेडकर ऐसी पुरो हत शाह
को समाज एवं धम के लए हा नकारक मानते थे। इस लये उनका वचार था क न केवल
कानून वारा पुरो हती के यवसाय पर नयं ण था पत कया जाय बि क इस पर ा मण के
एका धकार को समा त कर नि चत यो यता के आधार पर इसके वार सब लोग के लये खु ले
रखे जाय। ऐसा होने पर ह ह दू धम जा त एवं ा मणवाद से मु त, जातां क धम बन
सकता है।

268
14.4.4 धम प रवतन

अ बेडकर का ढ़ व वास था क ह दू समाज म व यमान असमानता, शोषण, दमन


तथा जा तभेदकार यव था क जड़ म धा मक मा यताएं है अत: उ ह ने जीवन के ल बे दौर
म इन बुराईय से संघष कया। उ ह ने ववेक, तक तथा मानवता के आधार पर ह दू धम एवं
समाज का पुनगठन करने के लए अथक यास कये क तु सवण के ि टकोण म उ ह कोई
भावकार असर दखाई नह ं दया। अब उ ह ह दू समाज म जातां क आधार पर बदलाव
क कोई उ मीद नह ं दखाई दे रह थी। इस लये उ ह ने धम प रवतन के न चय क घोषणा
कर द ।
उनका बौ धम के इन तीन स ा त म व वास था – ा ( ववेक), समता तथा
क णा या ेम। उनका मानना था क भारतीय ह दू धम म ये तीन स ांत ि टगत नह ं
होते, जो समानता पर आधा रत ह अत : बौ धम म ह द लत को स मान तथा समानता का
दजा मल सकता है। ल बे वचार के बाद अ टू बर 1956 म बौ धम अंगीकार करने क
घोषणा करते हु ये अ बेडकर ने कहा था क असमानता तथा दमन पर आधा रत अपने पुराने
धम को याग कर वे दुबारा ज मे ह।
बोध न– 1
न : 1 अ बे ड कर और गां धी के म य मतभे द का कोई एक कारण बताइये ।
उ तर : .............................................................................
न : 2 ध म से या अ भ ाय है ?
उ तर : ...............................................................................
न : 3 ि य के त अ बे ड कर के या वचार थे ?
उ तर : .............................................................. ...............

14.5 राजनी तक वचार


मू लत: अ बेडकर सामािजक याय के पुरोधा थे। उ ह ने रा य स ब धी सै ाि तक
प पर व तृत और यवि थत वचार नह ं रखे, तथा प वे एक उदारवाद थे। उ ह ने रा य,
शासन, यि त एवं अ धकार आ द के वषय म जो वचार दये वे उनके प ट सट क
ि टकोण को कट करते ह।

14.5.1 रा य एवं शासन का व प

अ बेडकर ने रा य के अि त व के योजन पर उदारवाद ि ट से वचार कया। वे यह


तो मानते थे क रा य एक अ नवाय एवं उपयोगी सं था है ले कन वे उसक शि तय को
सी मत तथा मया दत रखना चाहते थे। वे चाहते थे क रा य एवं सरकार द लत, शोषीत तथा
असहाय लोग के उ थान के लए कदम उठाकर, समानता एवं याय पर आधा रत समाज क
थापना म योगदान दे ।

269
शासन णाल प म उ ह ने संसद य णाल का समथन कया। व तु त: वे ऐसी
शासन णाल के प म थे िजसम कायपा लका स म होने के साथ ह संवेदनशील हो, जो
यव था पका के नयं ण एवं नदशन म काम करे तथा िजसम बहु मत अ पमत के हतो क
उपे ा न कर। उ ह ने अपने थ “ टे स ए ड माइनो रट ज” मे न न सं थागत एवं कया
स ब धी शासन यव था का उ लेख कया है :–
(i) बहु मत को अ पमत पर अपनी इ छा थोपने का अ धकार नह ं हो।
(ii) बहु मत क कायपा लका म अ पसं यक का भी त न ध व हो।
(iii) कायपा लका पर यव था पका का नयं ण सै ाि तक एवं दोन कार का हो ता क वह
उसके नदश व नणय क अवहे लना नह ं कर सके ।
(iv) अवरोध तथा संतु लन के स ा त क यव था हो ता क शासन व भ न अंग वतं
होते हु ए भी एक दूसरे पर नयं ण व संतु लन बनाये रख सक।
(v) कायपा लका क ि थरता को सु नि चत कया जाय ता क द तापूण पालन कया जा
सके।

14.5.2 लोकतं

अ बेडकर जातं के बल समथक थे ले कन पि चमी व वान के समान वे इसे


शासन क केवल एक प त मा नह ं मानते थे अ पतु वे इसे एक जीवन प त प म दे खते
थे। उनके अनुसार जातां क शासन णाल ह ऐसी णाल है िजसम समाज क सामािजक
संरचना म जा त, रं ग, लंग, स पि त तथा धम के भेदभाव के बना शाि तपूण ढं ग से
प रवतन कये जा सकते ह। लोकतां क प त म वे दो त य का समावेश आव यक मानते थे
–पहला, व ध का शासन तथा दूसरा–सामािजक एवं आ थक प रवतन वारा यायपूण क
थापना। य य प वे संसद य जातं के बल समथक थे क तु उसके नणय म होने वाल
दे र के त सचेत थे।
भारत म संसद य जातं को लागू करने से पहले वे संवध
ै ा नक ावधान वारा शासन
को सामािजक–आ थक प रवतन के त वचनब बनाना चाहते थे ता क सामािजक याय क
थापना कायपा लका क वे छा पर नभर न होकर उसका दा य व बन जाय। स वधान क
तावना तथा नी त नदशक त व म अ बेडकर के उपरो त आ ह साकार हु ये ह। भारत के
लए लोकतां क प त को े ठ मानते हु ए भी वे जानते थे क यहां क सामािजक संरचना
लोकत के अनुकू ल नह ं है अत: उ ह ने लोकतं क सफलता के लए कु छ पूव शत को
आव यक बताया –
(i) राजनै तक लोकतं क थापना के लए सामािजक धरातल पर समानता अथात ्
सामािजक लोकतं होना आव यक है। िजस समाज के एक वग के हाथ म केवल
वशेषा धकार ह और उसका दूसरा वग तब ध के बोझ से दबा पड़ा हो वहां लोकतं
नह ं पनप सकता। इस लए वे द लत वग को कानूनी संर ण वारा सामािजक समानता
का दजा दान करना चाहते थे।

270
(ii) लोकतं के लए वे बहु दल य शासन णाल तथा सश त वप को भी आव यक
मानते थे। उनका मानना था क जब तक जनता के सामने एक दल को हटाकर दूसरे
दल को स ता स पने का वक प नह ं होगा, लोकतां क शासन साथक नह ं हो सकता।
इसी कार लोकतं क सफलता म स म वप का होना भी आव यक है जो क
शासन क कमजो रय को उजागर कर जन हत का हर बन जाता है।
(iii) लोकतं क सफलता के लए वे तट थ तथा कु शल नौकरशाह का होना भी ज र
मानते थे। उनका मत था क सरकार के बदलाव के साथ शासन म बदलाव व थ
लोकतं के लए घातक है, अत: स वल सेवा को सरकार क थायी शास नक शाखा
बनाया जाय तथा यह सु नि चत कया जाए क उसके सद य स ता ढ़ राजनी तक दल
के त न ठा रखने के बजाय व ध के ावधान के त न ठावान रह।
(iv) अ बेडकर के अनुसार सं वधान म क गई घोषणाओं मा से कसी दे श का शासन
आदश व प ा त नह ं कर लेता अ पतु इसके लए राजनै तक या कलाप और
शासन म भाग लेने वाले लोग म संवध
ै ा नक मू य व नै तकता के त न ठा क
भावना होना आव यक है ।
(v) वे जाग क जनता को भी लोकतं क आव यक शत मानते थे, य क जाग क जनता
ह लोकतं क र क भी होती है।
(vi) अ बेडकर द लत तथा शो षत वग के लए संवध
ै ा नक तथा कानूनी संर ण को
सामािजक लोकतं क थापना के लए आव यक मानते थे। उनका मानना था क इन
संर ण के आधार पर ह द लत सं वधान वारा दये जाने वाले मौ लक अ धकार का
योग करने म स म ह गे। इसी आधार पर वे 1935 के अ ध नयम म द लत के
लए पृथक त न ध व का ावधान कराने म सफल रहे। 1932 म सा दा यक पंचाट
म द लत वग को ह दू समु दाय से पृथक समु दाय के प म मा यता द गयी थी,
िजसे बाद म गांधी के साथ समझौते के बाद पूना पै ट म संशो धत कया गया और
िजसके अनुसार ह दू समु दाय के ह एक अंग के प म द लत को पृथक तनध व
दया गया, तथा वतं भारत के सं वधान म भी द लत वग के आर ण क यव था
क गई।

14.5.3 रा वाद

वतं ता संघष क मु य धारा का नेत ृ व करने वाले गांधी तथा भारतीय रा य


कां ेस से मतभेद एवं कई मु पर वरोध के कारण कई लोग अ बेडकर को राजनै तक
त यावाद एवं सा ा यवाद का समथक मानते थे क तु उनक दे शभि त कां ेस के नेताओं
क दे शभि त से कसी कार कम न थी। केवल उनक ाथ मकताय भ न थीं। वे दो हजार
साल से चले आ रहे सवण ह दुओं के अ याचार से लड़ना चाहते थे। उ ह ने ब बई वधान
सभा म कहा था क – मेरे अपने हत और दे श के हत के बीच टकराव होगा तो म दे श के
हत को तरजीह दूं गा ले कन य द दे श के हत और द लत वग के हत म टकराव होगा तो म
द लत वग के हत को ाथ मकता दूं गा।

271
व तुत: अ बेडकर के वचार और यि त व को समझने के लए उनक पर पर वरोधी
ेरणाओं को यान म रखा जाना चा हए। वे स चे अथ म भारतीय थे ले कन भारतीय समाज
म व यमान सामािजक अ याय को भी समा त करना चाहते थे। इ ह ं दो इ छाओं के बीच
उनम एक सतत ् एवं सृजना मक तनाव दखाई दे ता है। उ ह जा त एवं अ पृ यता उ मूलन का
संघष न केवल वतं ता क लड़ाई का पूरक लगता था बि क कई बार यह संघष वराज ाि त
से भी क ठन लगता था। उनका मानना था क वरा य के लए संघष म सारा रा आपके
साथ संघष करता है ले कन जब आप जात–पाँत के व लड़ते ह तो आपके ह रा के साथ
लड़ना पड़ता है। उनका ढ़ व वास था क ह दू समाज से जा तभेद के महारोग के वनाश से
ह अपनी आजाद क र ा करने क शि त पैदा होने क उ मीद क जा सकती है। इस
आ त रक ताकत के बना ह दुओं के लए वरा य, केवल गुलामी क ओर एक कदम होगा।
टश सा ा यवाद के त भी उनका ि टकोण प ट था। वे शासन के सकारा मक
भाव को वीकार करते थे क तु उसके आ थक शोषण के भी प ट आलोचक थे। वे भारत
क सामािजक आजाद के यो ा थे और इसी लए उनका रा वाद का याय न ठ समाज क
थापना के संक प म अ भ य त हु आ।

14.6 आ थक वचार
सामािजक ाि त का परचम उठाने वाले अ बेडकर एक अथशा ी भी थे। अमे रका
तथा ल दन म उ च श ा हण करते समय उ ह ने िजतने भी शोध प नब ध लखे, उनका
स ब ध अथशा के कसी न कसी प से था। वे त काल न भारत आ थक सम याओं से
भल भां त अवगत थे। उनक सामिजक याय क अवधारणा नि चत स ांत पर आधा रत थी ।

14.6.1 जा तगत यवसाय का वरोध

अ बेडकर का मानना था क भारत म आ थक असमानताओं क जड जा त यव था


तथा अ पृ यता है िजसम नयोिजत ष य वारा अछूत के अ य यवसाय पर तब ध
लगाया गया। वंशानुगत यवसाय के नयम का अछूत के स ब ध म कठोरता से कया गया
पालन उनके लये अ भशाप तथा पतन का माग स हु आ। उनका मत था क अ पृ यता एक
अथ यव था भी है जो दासता से बदतर है। दास था म मा लक अपने दास क मू ल
आव यकताओ रोट , कपड़ा और मकान क िज मेदार नभाता था ले कन सवण ह दू अ पृ य
क दे खरे ख क कोई िज मेदार नह ं लेता। अ बेडकर अ पृ यता को अ नयं त शोषण क
यव था मानते थे िजसम अछूत को स पि त के अ धकार से पूण तथा वं चत कर दया गया
था। इसी लए वे यि त क तभा को कु ठत करने वाले यवसाय के वरोधी थे, वे चाहते थे
क जा तगत बा यता के बना यि त को अपनी मता, तभा एवं इ छानुसार यवसाय तथा
रोजगार चु नने क वतं ता होगी, तभी आ थक असमानता क खाई को कम कया जा सकता
है। यि त के तर पर आ थक जात क थापना के लए वंशानुगत यवसाय के जाल को
काट कर ह याय न ठ समाज का नमाण कया जा सकता है।

272
14.6.2 रा य समाजवाद

याय, समानता तथा वतं ता पर आधा रत आ थक यव था के लए अ बेडकर इस


े म रा य का ह त ेप आव यक मानते थे। उनका कहना था क जब तक उ पादन के
साधन का वा म व कु छ ह लोग के हाथ म रहे गा तब तक समता तथा याय पर आधा रत
अथ यव था था पत नह ं हो सकती। इस लए अ बेडकर उ पादन के साधन पर रा य के
वा म व के प म थे। उनक आ थक अवधारणा क मु य वशेषता यह है क उ ह ने
यि तवाद वचार तथा वै ा नक समाजवाद दोन क पराका ठा क आलोचना करते हु ए संयु त
अथ यव था का समथन कया। उ ह ने समाज के ग तशील पा तरण तथा सामािजक आ थक
असमानताओं को दूर करने का वचार रखा। उनका म त य था क पू ज
ं ीप त तथा जमींदार वग
अपनी वशाल स पि त का दु पयोग न न मक, भू मह न मजदूर तथा कसान वग पर
अ याचार करने म नह ं कर तथा सामािजक यव था यि त के आ थक वकास म बाधक नह ं
बन।
रा य समाजवाद क थापना के इस व प म संसद य जातं के अ तगत दल बदल
के साथ ह प रवतन नह ं कया जा सके और यह समाजवाद, अथ यव था का थायी आधार
बन सके इसके लए वे सं वधान म ावधान कराना चाहते थे, ले कन सरदार पटे ल,
जे.बी.कृ पलानी तथा अ य कां ेसी नेताओं के वरोध के कारण ये ावधान मू ल अ धकार क
सूची म शा मल नह ं कये जा सके। फर भी आ थक जातं का ल य नी त नदशक त व के
प म सं वधान म शा मल कया जाना मह वपूण है।

14.6.3 सामु दा यक खेती

अ बेडकर कृ ष के रा यकरण तथा सामु दा यक खेती के प धर थे। उनका कहना था


क चकब द या अ यभू म सुधार कसान तथा द लत क आ थक सम या को हल नह ं कर
सकते। उनके अनुसार आधी बु तथा आधे मन से लागू कये गये सु धार भू म वा मय को ह
लाभ पहु ंचाते ह।
व तु त: आ थक समानता क थापना के लए वे कृ ष को रा य का उ योग बनाना
चाहते थे। उनका वचार था क रा य को सम त कार क कृ ष यो य भू म अपने अ धकार म
लेकर व यमान भू म मा लक को उ चत मु आवजा दे दे ना चा हए। रा य वारा सम त भू म
को अ धगृह त करने के बाद कृ ष यव था संचालन क प रे खा इस कार हो सकती है:
(i) समू हक कृ ष सरकार वारा जार नदश के अनुसार हो।
(ii) जा त तथा धम का भेद–भाव कये बना ामीण म भू म का इस कार वतरण कया
जाए क उनम न कोई जमींदार हो, न आसामी और न ह भू म–ह न मजदूर।
(iii) सामू हक खेती के लए आव यक– संचाई, जानवर, खाद, बीज तथा उपकरण आ द के
लए व त क यव था सरकार करे ।
(iv) सरकार वारा लगाये धन का उ चत मू य चु काने के बाद शेष उ पादन आसामी आपस
म बांट ले।

273
रा य व सरकार के इस नणयकार ह त ेप क अवधारणा के पीछे अ बेडकर का
म त य यह था क भू म स ब ध पर आधा रत पर परागत वच व तथा शोषण का तं
समा त हो और उ पादन के साधन म समाज के न न तबके क भी भागीदार हो।

14.6.4 औ योगीकरण

वे भारत क आ थक सम याओं के समाधान तथा द लत के उ थान के लए


औ योगीकरण को एक भावशाल उपाय मानते थे। उनका कहना था क औ योगीकरण क
धीमी ग त के कारण ह कृ ष पर अनाव यक बोझ बढ़ा है। भारत का औ योगीकरण भारत क
कृ षगत सम याओं का सबसे ठोस नदान है। औ योगीकरण के प धर होते हु ए भी अ बेडकर
यह नह ं चाहते थे क इसके मा यम से भारत म अ नयं त पू ज
ं ीवाद का वकास हो। वे
उ योग के े म भी रा य समाजवाद के हामी थे िजसके अंतगत वे उ योग को आधारभू त
घो षत कर रा य के अधीन संचा लत कये जाने के प धर थे, जैसे :– रे लवे, बीमा आ द।
अ बेडकर का मानना था क, '' उ योग म भी सरकार का पया त भाव हो।
औ योगीकरण के समथक होने के साथ–साथ ड़ा. अ बेडकर मक क सम याओं के
त भी संवेदनशील थे। उ ह ने भारतीय मजदूर दल क थापना क । उ होने कनाटक के
मजदूर क बेदखल के खलाफ तथा अनु चत ईनामदार था क समाि त के लए संघष कया।
उ ह ने रे लवे तथा सू ती कपड़ा मजदूर के आंदोलन को संग ठत कया। उ ह ने मु बई म पेश
कये गये उस वधेयक का भी वरोध कया था िजसका उ े य मजदूर के हड़ताल पर जाने के
अ धकार को गैर कानूनी करार दे ना था।

14.7. अ बेडकर और गांधी


गांधी तथा अ बेडकर दौन द लत जा तय के उ थान के लए सम पत थे। दौन
मानवीय ग रमा तथा समानता पर आधा रत समाज क थापना करना चाहते थे। ज म पर
आधा रत अ पृ यता के कलंक को मटाने के लए दौन कृ त संक प थे। दौन के सामािजक
उ े य एक होते हु ए भी भारत क ये दो महान ् तभाय साथ नह ं चल सक । व तु त: यवहार
मे गांधी तथा अ बेडकर के बीच व यमान दू रया कई बार कटु ता क ि थ त तक पहु ंच जाती
थीं। अ बेडकर का मत था क भारत म राजनै तक वतं ता ा त करने क तु लना मे
सामािजक लोकतं क थापना अ धक मह वपूण है। उनका गांधी तथा कां ेस के त यह
आ ेप था क उ ह ने सामािजक लोकतं क थापना के यास को अपे त ाथ मकता नह ं
द । गाँधी तथा अ बेडकर के बीच कई मसल पर ि टकोण स ब धी भ नता भी व यमान
थी, िजसके चलते दोन के म य दू रया बनी रह ं।
गांधी वण यव था को सामािजक संगठन का वाभा वक नयम मानते थे, तथा इसम
व यमान ऊँच–नीच क भावना को काला तर म आयी एक वकृ त मानते थे। वे अ पृ यता के
पाप तथा जा त यव था क उपयो गता के बीच कोई वरोध नह ं दे खते थे। जब क अ बेडकर
का मानना था क जा त को न ट कये बना अ पृ यता को न ट नह ं कया जा सकता है,
चतु वण स ा त के उ मू लन के बना मानव समानता था पत नह ं हो सकती। उनका यह मत

274
था क जा त था ह अ पृ य क दुदशा तथा शोषण के लए िज मेदार है, अत: अ पृ य का
उ थान जा त उ मूलन के साथ जु ड़ा हु आ है ।
गांधी वंशानुगत यवसाय के भी समथक थे। उनके अनुसार , यव था हम सखाती है
क हम सब अपने बाप दादा के पेश को अपनाते हु ये आजी वका नवहन कर। यह हमारे
अ धकार – का नह ,ं क त य का नधारण करती है। सभी यवसाय व ध स मत तथा समान
ह। ा मण तथा ह रजन का यवसाय एक समान है। ले कन अ बेडकर ने इसे अ वीकार करते
हु ये गांधी क कथनी व करनी का भेद बताया। उ ह ने गांधी से सवाल कया क वयं उ ह ने
बाप दादो के पेशे को अपनाया है ? वे वयं ब नया होने के कारण यापार उनका पेशा होना
चा हए ले कन उ ह ने वकालत का पेशा अपनाया। इसी कार गांधी ने अ तरजातीय ववाह तथा
सहभोज पर तब ध को उ चत बताया जब क अ बेडकर इससे सहमत नह ं थे। वे जा त के
उ मूलन के लए अ तरजातीय ववाह को आव यक मानते थे।
गांधी तथा अ बेडकर दोन ह अ पृ यता को अनै तक तथा अमानवीय था मानते थे
तथा दोन ह इस था को समू ल न ट करना चाहते थे ले कन अ पृ यता के कारण तथा
नदान के स ब ध म दोन के ि टकोण भ न थे। गांधी अछूत को ह दू समाज का अ भ न
अंग मानते थे। उनका कहना था क अछूत क सम या, ह दू समाज क सम या है तथा य द
ह दू समाज को जी वत रहना है तो उसे अछूत क सम या का नराकरण करना होगा।
अ बेडकर क मा यता इसके वपर त थी। उनका कहना था क य द द लत ह दू होते तो ह दू
उनके साथ अमानवीय यवहार नह ं करते। उ ह ने तीसरे दशक तक द लत सम या का नदान
ह दू समाज के दायरे म कये जाने के यास कये और अ तत: इस न कष पर पहु ंचे क
सु धारा मक यास से, इस सम या को जड़ से मटाना स भव नह ं है। अ बेडकर का कहना था
क ह दू जा त और धम एक दूसरे के पयाय ह। जा त क जड़ धम म होने के कारण जा त
का उ मूलन संभव नह ं है इस लए अ बेडकर ने अपने सा थय के साथ अ तत: बौ धम हण
करने का नणय लया।
गांधी अ पृ यता नवारण एवं यव था प रवतन हे तु सवण तथा पू ज
ं ीप तय का दय
प रवतन करना आव यक मानते थे। वे सौहाद, सामंज य तथा शाि तपूण अ हंसा मक तर क से
समाज म बदलाव लाना चाहते थे, ले कन अ बेडकर इससे सहमत नह ं थे। उनका मानना था
क यव था म बदलाव तथा छुआछूत क समाि त के लए संघष ज र है। इसी लए उ ह ने
द लत तथा शो षत को संघष के लए एकजु ट होने का आहवान कया। वे कानून वारा
सम या के समाधान को मह वपूण मानते थे। इसी आधार पर उ ह ने संवध
ै ा नक दायरे म
द लत को राजनी तक शि त दान करने के लए सरकार सेवाओं तथा वधा यकाओं म पृथक
त न ध व दलाने क को शश क ।
अ बेडकर क पहल पर ह टश सरकार ने द लत को सन ् 1932 म सा दा यक
पंचाट के तहत पृथक नवाचन का अ धकार दया िजसके वरोध म गांधी ने आमरण अनशन
आर भ कर दया। गांधी क च ताजनक ि थ त को दे खते हु ए अ बेडकर वयं गांधी तथा
कां ेस के त न धय से मले िजसके प रणाम व प दौन प के बीच पूना पै ट हु आ। इस

275
समझौते के अनुसार अ बेडकर ने द लत के लए पृथक नवाचन क मांग छोड द और गांधी
ने द लत के लए आर ण का ावधान वीकार कर लया।
इस कार गांधी एवं अ बेडकर दौन समानता तथा याय पर आधा रत समाज क
थापना के प धर थे, ले कन ल य क ाि त के लए अपनाये गये साधन म भ नता थी।
अ बेडकर तथा गांधी भारतीय समाज क दो भ न भ न पृ ठभू म से आये थे, दोन के
ि टकोण म भ नता का एक मु ख आधार यह पृ ठभू म भी थी। ह दू समाज के पदसोपानीय
वभाजन क पीड़ा को गांधी ने भोगा नह ,ं मा दे खा था अत: अ पृ यता जैसी कु र त के त
एक टा के भाव से उसे उ ह ने समझने व मटाने क को शश क । अ बेडकर का संदभ
ब कु ल अलग था। उ ह ने जा त यव था म व यमान भेदभाव तथा अ पृ यता के दं श को
वयं झेला था, अत: भु त भोगी होने क पीडा तथा इस यव था के त आ ोश उनके
ि टकोण तथा वचार अ भ यि त म प ट दखाई दे ता है। उ ह ने नै तकता, सदाचार,
यवसाय सभी का आधार धम शा वारा वीकृ त और ज माधा रत जा त यव था को
माना। यह कारण है क वे जा त आधा रत कसी भी कार क यव था तथा यवहार के
वरोधी थे और इसी लए वे वण एवं जा त यव था को न ट करने के बाद ह समता पर
आधा रत समाज क थापना को स भव मानते थे।

14.8 सारांश
महारा क अछूत महार जा त म ज म भीमराव अ बेडकर ने जा तगत अपमान और
संघष के साथ अ ययन कया था अत: जा त था और छुआछूत के तकार के संक प के
साथ उ ह ने सावज नक जीवन म वेश कया। ज म जैसे संयोग पर आधा रत जा त यव था
तथा अमानवीय छुआछूत था क समाि त को उ ह ने अपने जीवन तथा च तन का सा य
बना लया। भारतीय इ तहास, ह दू धम शा के अ ययन तथा जीवन के अनुभव से वे इस
न कष पर पहु ंचे क जा त तथा अ पृ यता के लए ह दू धम तथा धम शा िज मेदार ह
इस लए उ ह ने ा मणवाद क समाि त तथा ह दू धम के स ा त को समता मू लक आधार
पर पुन : प रभा षत करने का आहवान कया।
वे दे श क राजनी तक आजाद से यादा मह चपूण सामािजक समता तथा वतं ता को
मानते थे। यह उनक अपनी रा यता थी। वे लोकतं को सामािजक धरातल पर उतारना
चाहते थे और इसके लए जा त वह न समाज के पुनगठन के प धर थे। उ होने जा त गत
यवसाय को आ थक वतं ता के व व माना और समाज के संतु लत आ थक वकास के
लए रा य के ह त ेप को आव यक माना। अपने च तन क मौ लकता, प टता तथा संक प
क ढ़ता के चलते उनका गांधी से मतभेद बना रहा। उ ह ने अपनी तभा, रा यता क
भावना सामािजक याय के लए कये मह वपूण यास के आधार पर वतं भारत के
सं वधान नमाण म स य व सजग सहभा गता नभाई। उ ह ने स दय से दं भत शो षत
मानवता के अ धकार के न को दे श क मु ख सम या के प म तु त कर उनके अ धकार
का माग श त कया।

276
14.9 अ यास न
1. अ बेडकर के राजनी तक तथा आ थक च तन के मु य त व क या या क िजए।
2. अ बेडकर तथा गांधी दोन का सा य एक था ले कन साधन अलग–अलग इस लये
ट पणी के आलोक तथा उनके म अ बेडकर के सामािजक च तन को प ट क िजये।

14.10 संदभ थ सू ची
1. आर.के. थ
ू ी : इं डयन पो ल टकल थॉट, मो हत पि लकेश स, नई द ल
2007।
2. पी.के यागी : भारतीय राजनी तक वचारक, व वभारती पि लकेश स, नई
द ल , 2006।
3. वी.पीव.वमा : मॉडन इं डयन पो ल टकल थॉट, ल मी नारायण अ वाल,
आगरा 1986।

277
इकाई – 15
मानवे नाथ राय (एमएन. रॉय)
इकाई क परे खा
15.0 उ े य
15.1 तावना
15.2 मानवे नाथ रॉय क रचनाएं
15.3 मानवे नाथ रॉय के वचार
15.3.1 मानवे नाथ रॉय एवं मा सवाद
15.3.2. मानवे नाथ रॉय एवं गाँधीवाद
15.3.3 मौ लक लोकतं क अवधारणा
15.3.4 नवीन मानववाद क संक पना
15.4 सारांश
15.5 अ यास न
15.6 स दभ थ सू ची

15.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरांत आप समझ पायगे–
 मानवे नाथ रॉय का च तन
 मानवे नाथ रॉय क मा सवाद वचार–या ा
 गाँधीवाद के स ब ध म मानवे नाथ रॉय के वचार
 'दल वह न लोकत ' जैसी आदश यव था के बारे म मानवे नाथ रॉय के वचार
 नवीन मानववाद' क संक पना

15.1 तावना
मानवे नाथ राय का ज म 6 फरवर ,1886 को कलक ता के नकट एक गांव म
हु आ था। राय का ारि भक नाम नरे नाथ भ ाचाय था। त काल न बंगाल म, रा य
वत ता आ दोलन क लहर चल रह थी, ऐसे समय म राजनी तक बोध होना वाभा वक है।
इस कार ारि भक अव था म ह वे रा वाद वचार के स पक म आए। राय के जीवनी
लेखक ' मु ंशी और द त' के अनुसार , ' राय का जीवन वामी ववेकान द, वामी रामतीथ
और वामी दयान द से भा वत रहा। ' इन स त और सु धारक के अ त र त उनके जीवन पर
व पन च पाल और सावरकर का अ मट भाव पड़ा।
मानवे नाथ रॉय के वचार क या ा का आर भ अमर का मे, मा सवाद वचारधारा
से हु आ य क उस समय वे ले नन के वचार से भा वत थे। उनका मानना था क भारत क
गर बी व दुदशा को मा सवाद वचार को साकार प दे कर सुधारा जा सकता है । भारत आकर

278
मा सवाद वचारधारा को लागू करने का यास कया पर तु कु छ असहज क मय के कारण
मा सवाद वचार से मोह भंग हो गया और आदशवाद वचार क ओर मु ड।े उ ह ने आदशवाद
के धरातल पर गाँधीवाद वचारधारा क ओर मु ड़ते हु ए 'दल वह न लोकत ' और नवीन
मानववाद' क संक पना दे ते हु ए ' व व रा य' क क पना क ।

15.2 मानवे नाथ रॉय क रचनाएं


(1) द वे टू डयूरे बल पीस
(2) वन ईयर ऑफ नॉन–कोऑपरे शन
(3) द रवो यूशन ए ड काउ टर रवो यूशन इन चाइना
(4) र जन, रोमाि ट स म ए ड रवो यूशन
(5) इि डयन इन ांजीशन
(6) इं डयन ॉबल स ए ड दे यर सो यूश स
(7) द यूचर ऑफ इि डयन पॉ ल ट स
(8) ह टो रकल रोल ऑफ इ लाम
(9) फा स म : इ स फलॉसफ , ोफेश स ए ड िै टस
(10) मै ट रय ल म
(11) यू ओ रय टे शन
(12) बयो ड क यु न म दू यूमे न म
(13) यू यूमे न म ए ड पॉ ल ट स
(14) पॉ ल ट स, पावर ए ड पाट ज
(15) द ं सप स ऑफ रे डकल डेमो े सी
(16) कॉ ट यूशन ऑफ इि डया
(17) रे डकल यूमे न म
(18) अवर डफरे सेज
(19) साइ स ए ड फलॉसफ
(20) वेि ट दू थी सस

15.3 मानवे नाथ रॉय के वचार


राय अपने च तन के थम काल (1901–1915) म एक रोमां टक ां तकार रहे ।
बं कम च के 'आन द मठ' क सामािजक आदशवाद ने भी उ ह भा वत कया। वे 'सां कृ तक
रा वाद' (Culture Nationalism) से भी भा वत थे। उनका मानना था क हंसक उपाय से
टे न को भारतीय के हाथ म स ता स प दे ने के लए बा य कया जा सकता है। रॉय ने कहा
क वत ता ाि त के अपने उ े य क पू त के लए ाि तकार हंसा मक एवं अ हंसा मक
साधन को अपनाया जा सकता है। एम.एन. रॉय के मा सवाद , गाँधीवाद, मौ लक लोकत व
नवीन मानववाद स ब धी वचार न न ल खत है

279
15.3.1 मानवे नाथ राय और मा सवाद

राय ने सन ् 1915–17 के वष म अमर का म रहते हु ए मा स तथा अ य समाजवाद


लेखक क रचनाओं पया त अ ययन कया था। वे मा स के दशन से भा वत हु ए। उ ह ने
मैि सको म सा यवाद दल क थापना क और 'सा यवाद अ तरा य' के सं थापक सद य
के प म अपने ढ़ मा सवाद होने का प रचय दया। उ ह ने भारत म सा यवाद आ दोलन
को आगे बढ़ाने के लए भार यास कए। उ ह ने कहा क भारतीय द र ता टश सा यवाद
और दे शी साम तवाद (जमींदार और पू ज
ं ीप त) के शोषण का प रणाम है और इस द र ता का
उ मूलन तभी स मव है जब क टश सा ा यवाद और उसके आधार प म काय करने वाल
इस दे शी साम तवाद यव था को जड से समा त कर दया जाए।
समथन:
मानवे नाथ राय ने न न ल खत मा सवाद आधार का समथन कट कया :–
(1) भौ तकवाद वचार के आधार पर सहम त – राय मू लत: एक भौ तकवाद च तक है
और उ ह ने अनुभव कया क मा स ने वक सत प म भौ तकवाद दशन को तु त
कया है। अत: उ ह ने मा सवाद से सहम त कट क । राय मा स के इस वचार से
पूणत: सहमत थे क सृि ट का मू ल कारण यय या ई वर नह ं है, अ पतु पदाथ है।
स पूण सृि ट मू लत: पदाथ क वक सत अव था तथा उसके प–भेद को कट करती
है। इस कार सृि ट क उ पि त तथा उसके व प के नधारण म जो मू ल कारण है
वह भौ तक है। सृि ट म जो कु छ घ टत हु आ है अथवा घ टत हो रहा है उसका मू ल
कारण वे भौ तक प रि थ तयाँ, जो वयं पदाथ (पदाथ क ग तशीलता) से उ प न
होती ह।
(2) मा स क वै ा नक च तन प त– रॉय मा स के अनु प यह मानते ह क आ मा'
या 'चेतना' या ' वचार' क अपनी कोई वत आ याि मक ( ययवाद ) स ता नह ं है,
अ पतु यह भौ तक पदाथ का ह अ त सू म पा तरण ( प–भेद) है। ान केवल
व तु न ठ होता है और ान का मू ल ोत इि याँ ह। रॉय ने अपने च तन के इस
दौर म मा स क अ ययन प त को वै ा नक मानकर उसक शंसा क । रॉय ने
मा स को पहला ऐसा भौ तकवाद दाश नक माना िजसने कसी मानव–समाज के
राजनी तक, सामािजक और सां कृ तक दशन एवं यव था का मू ल कारण उस समाज
क आ थक प रि थ तय म खोजने का यास कया। इसके साथ ह मा स ने इ तहास
क व भ न अव थाओं म पायी जाने वाल आ थक प रि थ तय का व तु न ठ एवं
वै ा नक अ ययन भी तु त कया।
(3) पूँजीवाद के स ब ध म वचार का समथन– रॉय पूँजीवाद के बारे म मा स के इस
वचार से सहमत है क पूँजीवाद यव था अपनी कृ त से अमानवीय है और यह
समाज म या त शोषण एवं अ याय का मू ल कारण है। पूँजीवाद अथ– यव था म
ग भीर क मयाँ ह िजनके कारण स पूण पूँजीवाद समाज यव था का पतन सु नि चत
है और उसके बाद समाजवाद समाज क थापना होगी जो एक े ठ एवं यायपूण

280
समाज होगा। रॉय मा स के इस मत से भी पूण सहमत ह क पूँजीवाद यव था के
नाश के लए ाि त क ज रत होगी और इसके लए सवहारा ( मक वग) को
संग ठत करना होगा।
(4) रा वाद क आलोचना का समथन – मा स के च तन म संक ण रा वाद के लये
कोई थान नह ं था। सवहारा वग क व व यापी चेतना मा स के दशन क ेरक
शि त थी। मा स ने पू ज
ं ीवाद के पतन के प चात ् एक व व यापी समाजवाद यव था
का व न दे खा था। रॉय मा स के इस ि टकोण से सहमत थे क रा वाद पू ज
ं ीवाद
के व संघष म व व भर के लोग क एकता के माग म बाधाएं उपि थत है।
(5) मानवतावाद च तन– रॉय के अनुसार मा स के च तन का ल य मानव का क याण
था। ार म भक दन म रॉय मा स के च तन को मानव क मु ि त के एक
व वसनीय वैचा रक आधार के प म दे खते थे। मा स का ल य शोषण क ि थ त
को समा त कर एक समतावाद यायपूण स तु लत समाज क थापना करना था। राय
मा स के च तन क इस मानवीय तथा उदारवाद वृि त और उसके च तन के मूल
ल य के त व वास रखते थे। रॉय का उ े य एक ऐसी वैचा रक ाि त था िजसके
वारा मानव हर कार के दमन, अ याय और उ पीडन से मु त हो जाय और
सवागीण वकास हो सके।
(6) धम क आलोचना पर सहम त– एक भौ तकवाद व वान के म मा स का ई वर के
अि त व म कोई व वास नह ं है। उसका मत है क इ तहास धम क भू मका सदै व ह
त यावाद रह है। शोषक वग ने शो षत वग के व धम सु नयोिजत ढं ग से
योग कया है और उसे मानवीय अ याय एवं शोषण को सहन क ेरणा द है। शोषक
वग ने धम क आड म अपने जु म को छुपाया है और शो षत वग के लए धम
अफ म क गोल स हु आ है।रॉय ने मा स के धम का समथन कया और कसी
समाज म मौजू द धा मक चेतना एवं भि त को उस के पछड़ेपन क पहचान बताया है।
आलोचना
मानवे नाथ रॉय ने न न ल खत आधार पर मा सवाद क आलोचना क है:
(1) इ तहास क आ थक यव था – रॉय ने मा स वारा द गई इ तहास क आ थक
या या को ामक और अपूण माना। रॉय का मत है क मा स हे मनु य क
ग त व धय म, उसक वंय क इ छा, वचार तथा नै तक व सां कृ तक मू य क
उपे ा क । रॉय मा स के इस वचार से सहमत नह ं ह क मनु य क नय त का
नधारण केवल आ थक कारक से ह होता है। उ ह ने कहा "नै तक, बौ क और
सामािजक जीवन म उ थान के लये मनु य क आव यकताएं केवल आ थक
आव यकताओ तक सी मत नह ं रहती है। ''राय ने यह माना है क मानव–इ तहास का
अ ययन यह प ट करता है क व व के वतमान व प के नधारण म आ थक
कारक के अ त र त सामािजक, बौ क और नै तक कारक ने मह वपूण भू मका
नभाई है। रॉय ने कहा मा स ने समाज को आ थक ग त व धय म संल न यि तय

281
के समु दाय के प म ह दे खा, तथा उसने उ पादन के साधन और उ पादन क
ग त व धय के, अ य सामािजक प रि थ तय व वृि तय क उपे ा क ।
(2) मानव क वत चेतना क उपे ा– रॉय ने आरोप लगाया मा स का 'आ थक
नय तवाद' मनु य क सृजना मक मताओं के मह व को पूणत: कर दे ता है। उ ह ने
कहा क मनु य अपनी आ थक आव यकताओं क पू त के साथ–साथ, सामािजक,
बौ क और नै तक ि ट से भी अ छे जीवन क इ छा करता है। राय के अनुसार
नै तक उ न त का, भौ तकवाद से कोई टकराव नह ं है; जब क आ थक कारक को
मनु य के जीवन म अ य धक मह व दान करके मा स ने भौ तकवाद का वरोध
कया है। रॉय मनु य क वत ता के प धर है। वे मनु य को रा य तथा समाज
वारा आरो पत बंधन से मु त करना आव यक मानते ह ह, आ थक नय तवाद जैसे
ढ़ स ा त से भी उसक मु ि त को भी आव यक मानते ह।
(3) मा स के व वाद क आलोचना – रॉय मा स के व वाद या उसक व वा मक
प त से कभी भी सहमत नह ं हो पाए। राय का वचार था क व वाद एक वैचा रक
या है, िजसे वैचा रक े म भी अपनाया जा सकता है, ले कन भौ तक जीवन के
व वध चरण और भौ तक ि थ तय क या या इस प त के आधार पर कर पाना
स भव नह ं है।
(4) वग–संघष के समाजशा म स दे ह– मा स वग–संघष को मानवीय जीवन का एक मू ल
त व मानते ह। रॉय वीकार करते ह क मानव समाज म समय–समय पर व भ न
वग अव य रहे ह क उनम संघष भी रहा है, ले कन उन वग म संघष क तु लना म
आपसी सहयोग, सामािजक एकता और ब धन के त व, अ धक मु ख प से रहे ह,
िजनके सहारे मानव समाज अब तक बचा हु आ है। य द वग–संघष ह मानव समाज म
मु ख होता, तो मनु य अब तक लड़– भड़ कर समा त हो गए होते।
(5) म यम वग क अवहे लना– रॉय के अनुसार मा स क यह धारणा गलत है क म यम
वग का लोप हो जाएगा। मा स क भ व यवाणी के सवथा वपर त म यम वग का
उलटे वकास हु आ है और आ थक याओं के व तार के साथ म यम वग क सं या
बढ रह है। थम महायु के बाद व व के व भ न दे श के सां कृ तक और
राजनी तक जीवन म म यम वग क भू मका पहले क तु लना म और अ धक
मह वपूण हो गई है। राय म यम वग को ह समाज का नेत ृ व स पने क वकालत
करते ह और म यम वग को ह ाि तकार काय का सू धार मानते ह।
(6) नै तक शि त क अवहेलना– मा सवाद के व राय क एक ग भीर आपि त यह रह
हे उनम नै तक नयम के चलने के लए कोई थान नह ं है। मा सवाद दशन यि त
को अपे त वत ता दान नह ं करता। यह दशन यि त को केवल इस बात क
वत ता दे ता है क वह ऐ तहा सक आव यकता को समझ ले और वयं को उसके
सम स नतापूवक सम पत कर दे । राय ने कहा, वत ता क यह धारणा तो
गुलामी धारणा है िजस पर चलने से समाज ' वे छापूण गुलाम ' का समू ह बन जाएगा।

282
समाज के वकास म नै तक शि त क अवहे लना करना मा सवाद का न चय ह एक
ग भीर दोष है।
(7) सवहारा वग के अ धनायकवाद (सवा धकारवाद) क आलोचना– मा स ने पू ज
ं ीवाद
यव था के अ त के बाद 'सवहारा वग के अ धनायकवाद' क थापना का वचार
दया। यवहार म ि थ त यह है क आधु नक युग क वशाल राजक य सेनाओं के
सामने सवहारा वग क शि त नग य है और मा स िजसे 'सवहारा वग का
अ धनायकवाद कहता है, यवहार म वह रा य का सवा धकारवाद होता है। रॉय यि त
क वत ता क ि ट से मा सवाद पर आधा रत इस सवा धकारवाद का वरोध और
उदारवाद का समथन करते ह।
(8) मा सवाद दशन म यि त क उपे ा– यि त जो क वत ता य क पनाशील और
रचना मक वृि त का ाणी है, मा सवाद दशन और उससे भी अ धक मा सवाद
यव था म एक साधन मा बना दया गया है। मानव का वकास नै तक, बौ क,
सामािजक और राजनी तक वत ता से ह स भव है। मा सवाद दशन म यि त को
इस वत ता से वं चत कर समि ट क वेद पर यि त का दूसरे थान पर कर दया
गया है। '' रॉय मा स क तरह समाज को ाथ मकता दे कर यि त को दूसरे थान
पर नह ं रखना चाहते। ''
(9) हंसक प त क आलोचना– मा सवाद हंसा और बल क वृि त म व वास करता है।
रॉय का वचार है क मा स वारा तपा दत हंसा मक तर का ह यव था म
प रवतन का एकमा उपाय नह ं है, वे शाि तपूण तर के से एवं सामािजक ि थ तय को
सु धारना उ चत समझते ह। साधन तथा सा य अटू ट स ब ध के वषय म उनका पूरा
व वास था।
(10) रा य के लोप होने क धारणा से असहम त– मा स के मत से पूण असहम त कट क
है क सवहारा के अ धनायकत के अ तगत समाज का वकास इस कार से होगा
क रा य मश: नबल होता जायेगा और अ त म मु रझा जायेगा। मानव स यता के
ज म के साथ ह रा य का उदय हु आ है और स यता के वकास के साथ–साथ रा य
के प म संगठन म प रवतन होते रहे ह। इस कार –स यता एवं रा य म पर पर
घ न ठ स ब ध है और रा य के अ त का अथ होगा क मानव पुन : स यता से पूव
क अव था म पहु ँ च जाये।
रॉय मा सवाद के स ा त क आलोचना करते हु ए भी कु छ स ांत पर सहम त कट
क है। व तु त: रॉय के वचार नर तर वक सत होते रहे । मा स के दशन के त सहम त के
स दभ उनके ारि भक दौर के च तन म अ भ य त हु ए। टॉ लनकाल न स के अपने
अनुभव तथा नर तर वक सत होते हु ये अपने मानवतावाद वचार के कारण वे धीरे –धीरे
मा स के दशन से दूर होते चले गये। वे मा सवाद से मानवतावाद बन गये। जहाँ मा स का
दशन यि तगत चेतना क तु लना म वग–चेतना को मह व दान करता था और रॉय के मत
म मनु य और उसक चेतना को कसी भी यव था का दास बनाना उ चत नह ं ह।

283
बोध न –1
न: मानवे नाथ रॉय और मा सवाद के समानता और असमानता के ब दु ओ को
इं गत क िजये ?
उ तर: ...................................................................................................
...........................................................................................

15.3.2 मानवे नाथ रॉय एवं गाँधीवाद

मा सवाद क तरह गाँधीवाद के सै ाि तक एवं यावहा रक प ो के बारे म भी रॉय के


च तन म एक सु नि चत था य व का अभाव दख पडता है, तो भी इन दोन पर पर वरोधी
दशन (मा सवाद एवं गाँधीवाद) के त रॉय क ि ट म एक आधारभू त अंतर भी दख पड़ता
है। जैसे–जैसे रॉय के राजनी तक अनुभव एवं च तन म प रप वता बढ़ती, वैसे–वैसे ह रॉय क
मा सवाद से दूर बढ़ती गयी और गाँधीवाद वचार के नजद क आते। उनके च तन के कु छ
पहलु ओं पर गाँधीवाद एवं गाँधी का भाव भी पड़ा। अत: यह माना है क अपने राजनी तक
च तन क प रप वता के काल म गाँधीवाद एवं गाँधी के बारे म रॉय का पया त स तु लत एवं
मया दत हो गया था।
सन ् 1920–21 म गाँधी ने जो असहयोग आ दोलन चलाया, एम.एन. राय उससे
भा वत हु ए थे। सन ् 1922 म उ ह ने अपनी पु तक "One Year of Non–Co–operation)
म गाँधी को महान ् यि त बतलाते हु ए उनक तु लना से ट थॉमस ए वीनास, रोमा रोलां तथा
से ट ां सस से क । गाँधी असहयोग आ दोलन को जन आ दोलन का प दे ने म सफल रहे
थे, अत: उ ह ने गाँधी क तभा को वीकार करते हु ए न न प म गाँधी के रचना मक
योगदान का उ लेख कया:
(1) गाँधी के नेत ृ व ने भारतीय रा य कां ेस म एकता उ प न क और इसे बड़े वग के
भाव से नकालकर रा यापी एवं जन–साधारण क सं था बनाया।
(2) गाँधी ने सामा य जनता के सहयोग से टश राज के व वरा य क सीधी लड़ाई
शु क और रा य आ दोलन को व तृत वग य आधार दान कया।
(3) गाँधी ने भारतीय राजनी त म असहयोग, स वनय अव ा तथा कर न दे ने के
अ हंसा मक उपाय के योग क शु आत क जो उनसे पूव के उदारवाद तथा उ वाद
कां ेसी नेत ृ व वारा अपनाये गये साधन क तु लना म अ धक भावशाल स हु ए।
(4) गाँधी क अ हंसा मक राजनी त के कारण टश राज अपनी ू र द डा मक व
दमना मक शि त का खु लकर योग करने म असमथ रहा और इससे सामा य जनता
म टश राज का भय समा त हु आ।
मानवे नाथ रॉय ने न न ल खत आधार पर गाँधीवाद दशन क आलोचना क –
(1) राजनी त के आ या मीकरण का वरोध :
रॉय ने गाँधी वारा राजनी त के आ या मीकरण क आलोचना क है। उनका प ट
मत है क आ या मवाद एक पारलौ कक वषय है और उसका कोई मह व वैयि तक जीवन म

284
नह ं है। राजनी त का स ब ध मानव के भौ तक जीवन से है। अत: इन दो वपर त कृ त वाले
वषय को मलाने से राजनी तक जीवन म अनेक ाि तयाँ उ प न ह गी। रॉय का मत है क
स य, ई वर, शा वत वध व नै तकता, आ मा क अमरता, कम– स ा त आद क
आ याि मक अवधारणाओं के आधार पर राजनी त का बु पूण संचालन अस भव है। सा य के
समान साधन क प व ता का गाँधीवाद आ याि मक स ा त राजनी त के यथाथवाद े म
कसी भी कार सफल नह ं हो सकता है।
(2) गाँधीवाद म ठोस आ थक काय म का अभाव
रॉय क मा यता थी क गाँधीवाद म आ थक काय म का अभाव था। उनका मत था
क थम व व यु के प चात ् कृ षक और मक वग म पनप रहे ती अस तोष के कारण
रा य आ दोलन म ठोस आ थक काय म को सि म लत कर के, उन वग को रा य
आ दोलन के त आक षत कया जा सकता था। क तु गाँधी ने जनता के सम ऐसा कोई
ठोस आ थक काय म तु त नह ं कया, जो उ ह उनके जीवन– तर म सु धार एवं उ न त कर
सके।
(3) गाँधी के वग–सहयोग के स ा त क आलोचना
रॉय ने आरोप लगाया क गाँधीवाद समाज के सवथा वपर त हत रखने वाले वग –
ं ीप तय जैसे शोषक , तथा कृ षक और
जमींदार और पू ज मक जैसे शो षत के म य सम वय
ं ीप त और जमींदार, शो षत कसान तथा
करना चाहता है। गाँधी अपने आ दोलन म शोषक पू ज
मजदूर सबको एक साथ लेकर चलना चाहते ह। रॉय क मा यता है क पू ज
ं ीप तय और मक
के हत के म य सामंज य अस भव और असंगत है। उ ह ने गाँधी क इस बात के लये
आलोचना क है क उ ह ने जन–आ दोलन को संग ठत करने के लये जमींदार , पूज
ं ीप तय और
भू–प तय से समथन क अपे ा क । उ ह ने गाँधी के या सता के स ा त को अ यावहा रक
और असंगत बताया। उ ह ने सचेत कया क पू ज
ं ीप तय व शोषक के दय –प रवतन के
मा यम से एक यायपूण, स तु लत, समतावाद , आ थक और सामािजक यव था क थापना
करना एक का प नक भु लावा मा है। राय ने कहा है क गांधीवाद बहु सं यक जनता के
असहनीय क ट पर मगरम छ आंसू बहाने के अ त र त उनके लए और कु छ नह ं कर रहा।
(4) राजनी त और धम के संयोग क आलोचना
गाँधी धम और राजनी त के बीच घ न ठ स ब ध के समथक थे और वे धम– वह न
राजनी त को मृ यु –जाल मानते थे। उ ह ने राजनी त म स य, अ हंसा, अ तेय, अप र ह, शौच,
तप, याग, आ म– नर ण, आ म–संयम, ायि चत आ द धा मक कृ त के नै तक नयम को
लागू करने क को शश क है। रॉय राजनी तक जीवन म इन धा मक नै तक नयम को पालन
के क र वरोधी ह। वे मा स के समान धम को अफ म क गोल मानते ह और धम को एक
त यावाद सामािजक शि त के प म ह दे खते ह। इसके साथ ह रॉय का आरोप है क
गाँधी का ह दू धम के त व श ट झु काव था िजसके कारण राजनी त के एक करण म बाधा
आयीं। गैर– ह दू समु दाय ने उनक धा मक राजनी त को मानवता क राजनी त के प म नह ,ं
ह दू नेता क राजनी त के प म वीकारा। रॉय का मत है क गाँधी ने भारतीय राजनी त म

285
धा मक पुन थानवाद को लोक य बनाया। उ ह ने ह दू धम क वण यव था तथा जा त
यव था क सं थाओं का तथा ऐसे पर परागत मू य का समथन कया जो युग से मानवीय
असमानता 'एवं शोषण के साधन रहे ह। रॉय का मत है क भारत मे गाँधी क धा मक
राजनी त क लोक यता का मू ल कारण भारतीय जनता का बौ क पछड़ापन रहा है।
(5) औ योगीकरण और आधु नक स यता के त गाँधी के ि टकोण पर आपि त:
गाँधी य पर आधा रत आधु नक औ यो गक यव था तथा उसके साथ वक सत होने
वाल आधु नक स यता के कटु आलोचक थे। उ ह ने य –आधा रत भार भरकम उ योग क
अपे ा लघु और कु ट र उ योग पर आधा रत वके कृ त अथ यव था का तमान तु त
कया। रॉय ने गाँधी के इस आ थक तमान क कठोर आलोचना क । उ ह ने गाँधी के 'चरखे
के अथशा , को ' तगामी अथशा ' कहकर उसका उपहास कया। उ ह ने कहा क चरखे क
ओर लौटने का अथ है क दो हजार वषा म हु ई मानवीय ग त और भ व य क व णम
आशाओं से मु ँह मोड़ लया जाए। गाँधी जनता के भौ तक और आ थक क याण क सु र त
करने क अपे ा, जनता को आ म याग और भौ तक आव यकताओं को सी मत रखने के नै तक
उपदे श को अ धक मह व दया।
रॉय ने मशीनी स यता के त गाँधी क आशंकाओं को अनु चत माना। उनका मत था
क मनु य ने, कृ त क दासता से मु ि त पाकर, एक क टपूण और ल बे संघष के बाद मशीन
का आ व कार कया है, अत: उनके प र याग का गाँधी का वचार अनु चत है। रॉय का कथन
था क पू ज
ं ीवाद म मशीन पर मक क अपे ा पू ज
ं ीप त का नय ण होता, अत: वह शोषण
का मा यम बन गई है। रॉय के अनुसार इसका समाधान यह नह ं है क का उ मूलन करके,
उ पादन क णाल को आ दम दौर म लौटा दया जाए। उनके अनुसार उपाय समाजवाद म
न हत है, जो क मशीन को मनु य क सेवा के लये यु त करे गा।
(6) अ हंसा मक आ दोलन क नी त क आलोचना
रॉय के अनुसार गाँधीवाद मूलत: एक रह या मक एवं अबौ क दशन है और इस लए
उसम आ थक एवं राजनी तक े म आधारभू त प रवतन क ि ट से बु ां तका रता का
अभाव है। इस ि ट से रॉय ने गाँधी क आ दोलन क अ हंसा मक प त क गंभीर आलोचना
क है। उनका मत है क वैयि तक जीवन म अ हंसा क नी त का मह व हो सकता है, क तु
आ थक एवं राजनी तक सम याओं के हल के लए यह बौ क एवं यथाथवाद नी त नह ं है और
इसके सफल होने क कोई स भावना भी नह ं है। रॉय का आरोप है क आ थक े म गाँधी
क अ हंसा मक आ दोलन क नी त ने जमींदार एवं औ यो गक घरान को कां ेस का समथक
बना दया है, य क उ ह ने इस अ हंसा क नी त के कारण शो षत के उ वरोध से वयं
को सु र त अनुभव कया है। रॉय का मत है क राजनी त े म भी अ हंसा क नी त पर
आधा रत असहयोग आ दोलन एवं स वनय अव ा आ दोलन भारत को वरा य दलाने म
असफल रहे ह। उनका सु झाव है क आ थक एवं राजनी तक दोन े म अ हंसा मक
आ दोलन के थान पर 'जु झा सामू हक कायवाह ' क नी त अपनायी जानी चा हए।
(7) गाँधीवाद फासीवाद का भारतीय सं करण है:

286
जब वतीय व व–यु के दौरान गाँधी के नेत ृ व म कां ेस ने भारत क वत ता के
लए टश शासन के खलाफ 'भारत छोड़ो आ दोलन' चलाया, तो रॉय ने इस आ दोलन क
कटु आलोचना क । उ ह ने इसे गाँधी व कां ेस क टश रा (न ल) के त घृणा क
भावना से े रत तथा फासीवाद रा य के समथन म चलाया गया आ दोलन बताया। उ ह ने
इस आ दोलन क ती आलोचना करते हु ए गाँधीवाद का फासीवाद दशन घो षत कया और इन
दोन के बीच व भ न कार क समानता बतायी।
रॉय के अनुसार फासीवाद क तरह गाँधीवाद भी व भ न अमू त, ापूण एवं
रह या मक अवधारणाओं को वीकारता है। सामािजक ि ट से ये दोन ह वचारधाराय
त यावाद एवं अनुदारवाद ह। वे आधु नक स यता के ग तशील मू य एवं उपलि धय क
उपे ा करती ह तथा अतीत के तथाक थत महान ् आदश एवं जीवन–मू य क पुन थापना क
समथक ह। इस ि ट से फासीवाद एवं गाँधीवाद दोन ह पुन थानवाद वचारधाराय ह।
फासीवाद य प म पूज
ं ीवाद दशन है और यवहार म गाँधीवाद ने अ हंसा क नी त वारा
भारतीय पू ज
ं ीप त वग के व शो षत वग के संघष को कमजोर कया है; और कां ेस क
नी तय व काय म पर स पि तशाल वग का नय ण है। फासीवाद क तरह गाँधीवाद भी
जनता के भावना मक आवेग को उभार कर अपने ल य क ाि त चाहता है। फासीवाद एक
रा वाद वचारधारा है और अपने भाव क ि ट से गाँधीवाद भी मा भारतीय रा वाद तक
सी मत है। रॉय ने यह भी आरोप लगाया क गाँधी का नेत ृ व फासीवाद कृ त का था। रॉय ने
गाँधीवाद को यूरोपीय फासीवाद का भारतीय सं करण स करने क चे टा क है।
गाँधी और गाँधीवाद के वरोध के त रॉय क त या थाई नह ं रह सक । जैसे–
जैसे उनके वचार का सा यवाद से बु नयाद लोकत वाद और नव–मानवतावाद क ओर
पा तरण होता गया, गाँधी के वचार के त उनके वरोध का वर मश: कोमल होता गया।
उ ह ने गाँधी क मृ यु के बाद अपने दो लेख – द मैसेज ऑफ द माटयर (The message
of the Martyar) तथा होमेज दू द माटयर (The message to the Martyar) म पहल
बार गाँधी एवं उनके स ा त क सराहना क और उनके साथ अपनी वैचा रक सहम त भी
कट क । उनका यह ि टकोण भ व य म भी थायी प से बना रहा। अपने जीवन के
अि तम दौर म तो वे गाँधी के नै तक यि त व क शंसा करने लगे।
बोध न– 2
न: मानवे नाथ रॉय गाँ धीवाद के कन – कन वचार से असहमत थे ?
उ तर : ....................................................................................

15.3.3 मानवे नाथ रॉय और मौ लक लोकत क अवधारणा

राय पू ज
ं ीवाद लोक और सा यवाद दोन ह के व थे, इन दोन के वारा यि त
क वत ता का हास होता है। राय का कहना था क वतमान ढाँचा ह ऐसा है िजसम यि त
अपने ज म स अ धकार अथात ् वत ता का समु चत उपभोग नह ं कर पाता। रा य का
नमाण वत और शाि तपूण जीवन के लए मनु य के सहकार यास वारा हु आ है यह

287
शि त पर नह ं बि क यि त क नै तक भावना पर आधा रत है, अत: आव यक है क यह
एक बा यकारक सं था के प म न रहे अ पतु ऐसे वातावरण क सृि ट म सहायक हो िजसम
मनु य मान सक प से वयं का वत अनुभव करते हु ए वत ता का नमाण करने म
य नशील रहे। एम. एन. राय ने अपनी कृ त 'द ं स प स ऑफ रे डकल डेमो े सी' म अपनी
मौ लक लोकत स ब धी आधारभूत मा यताओं एवं स ा त को तु त कया है। रॉय के
मो लक लोकत का मू ल आदश है बु आधार पर एक ऐसे वत समाज का संगठन
करना, िजसम यि त पूणत: वत हो और उसका सवागीण वकास एवं क याण भी स भव
हो।
एम.एन. राय ने एक ऐसी लोकताि क यव था क अवधारणा तु त क है जो
सा यवाद लोकत तथा उदारवाद संसद य लोकत दोन के अवगुण से मु त है। यि त का
मू ल अ धकार वत ता माना है और लोकताि क यव था का भी मूल ल ण को ह वीकारा
है। रॉय ने वत ता को अपनी लोकत क अवधारणा म के य थान है। अत: उ ह ने
अपनी लोकत क अवधारणा को बु नयाद (मौ लक) लोकत , अथवा बुद ु लोकत
(Radical democracy) कहा है। यह बु लोक मानवीय तक एवं ववेक के आधार पर
समाज क एक संग ठत अव था है, अत: रॉय ने इसे संग ठत लोकत (Organised
Democracy) भी कहा है। बु नयाद लोकत के अ तगत समाज का संगठन तथा संचालन
सहका रता के आधार पर होगा, अत रॉय ने इसे 'सहकार समाजवाद' भी नाम दया है।
मानवे नाथ रॉय क मौ लक या संग ठत लोकत क अवधारणा क मु ख वशेषताएं
न न ल खत ह :
1. वके कृ त स ता :
एम.एन.रॉय का 'बु नयाद लोकत ' स ता के वके करण पर आधा रत है। रॉय के
अनुसार यह वके कृ त लोकताि क णाल , शासन के अ धकतम काय : म यि त क
य भागीदार पर आधा रत होगी। रॉय के अनुसार इस यव था म वा त वक शि त रा य
तर पर संग ठत सरकार अथवा ा तीय सरकार म नह ,ं अ पतु यापक तौर पर थानीय,
तालु का और िजला तर पर संग ठत 'जन–स म तय ' म न हत होगी। इन जनस म तय म
जनता य त: अपनी शि त का योग करे गी और अपने वषय का वयं नधारण करे गी।
रॉय ने कहा क इस यव था म रा य और समु दाय के म य कोई टकराव नह ं होगा। समु दाय
म यि त क वत ता पुि पत और प ल वत होगी, तथा रा य यि तगत वत ता का
बनने क अपे ा, यि त वत ता को सु र त करने का उपकरण बनेगा तथा यि त के
जीवन म रा य का ह त ेप कम से कम रहे गा।
2. दल वह न लोकत क थापना:
रॉय आज के लोकत का सव मु ख दोष राजनी तक दल क वतमान यव था को
मानते ह। राजनी तक दल ने वतमान लोकत को अपने बाहु पाश म इस कार से जकड लया
है क लोकत मा एक 'दल य य ' बनकर रह गया है। दल ने यि त क ेरणा शि त
और नणय शि त दोन को ह कु ि ठत कर दया है और यि त के वत अि त व क

288
क पना अस भव हो गई। राजनी तक दल का उ े य शासन–स ता के लए छ ना–झपट करना
ह रह गया है, उ ह जनता के वा त वक हत क कोई परवाह नह ं होती। राजनी तक दल
अपनी वाथ साधना के लए नै तकता और याय क ब ल चढ़ा दे ते ह। रॉय ने कहा क य द
नै तक उ थान करना है, तो वतमान दल–प त को समा त करना ह होगा। व व के नै तक
पतन का एक मू ल कारण यह वतमान दल प त ह है। अत: रॉय के अनुसार , "य द हम
लोकत वाद क र ा करनी है तो उसे 'दलर हत बनाना होगा अथात ् एक 'दल वह न
लोकत क थापना करनी होगी" यह दल वह न लोकत आ म नभर स म तय के स य
योगदान पर आधा रत होगा।
3. जन स म तय पर आधा रत यव था :
रॉय ने अनुभव कया क वतमान समय क लोकताि क यव था म राजनी त स ता
केि त हो गई है और उदारवाद लोकत म िजस चु नाव प त का चलन है, उसम यो य
यि तय के चु ने जाने क कोई सं भावना नह ं है। वे जनता के बौ क और नै तक तर को
ऊँचा उठाने क आव यकता अनुभव करते ह और आज क लोकताि क यव था के दोष का
नवारण करने के लए 'संग ठत लोकत ' का आदश तु त करते ह, िजसका सबसे मु ख
त व है, जन स म तय के मा यम से सम त काय का स पादन।
4. मौ लक लोकत क संरचना
रॉय ने मौ लक लोकत क राजनी तक संरचना एवं संगठन म जन स म तय का
उ लेख कया है– थानीय तालु का, िजला, ा त तथा रा ।रॉय के अनुसार वय क मता धकार के
आधार पर सभी वय क ी–पु ष वारा थानीय जन–स म त के सद य (जन– त न धय ) का
चु नाव कया जायेगा। कसी थानीय जन–स म त के लए येक 50 मतदाताओं के वारा एक
जन– त न ध का चु नाव कया जायेगा। जन– त न ध का कायकाल मा एक वष होगा।
येक तालु का क एक अपनी जन–स म त होगी, िजसके सद य का नवाचन उस तालु का के
े म आने वाल थानीय जन–स म तय वारा कया जायेगा। येक िजले के तर पर एक
िजला जन–स म त होगी, िजसके सद य का नवाचन उस िजला– े म आने वाल तालुका जन–
स म तय वारा कया जायेगा। येक तालु का जन–स म त अपने से स बि धत िजला जन–
स म त के लए 5 त न धय का चु नाव करे गी।
येक ा त के सामा य शासन के लए उसक ा तीय जन–स म त का गठन कया
जायेगा। इसके सद य उस ा त का गवनर तथा जन– त न ध ह गे, िजनका चु नाव उस ा त
क सम त जनता वारा वय क मता धकार के आधार पर कया जायेगा। गवनर का चु नाव पाँच
वष के लए कया जायेगा तथा जन– त न धय का चु नाव चार वष के लए होगा। ा तीय
जन–स म त के पास ा तीय शासन से स बि धत वधायी व कायपा लका शि तयाँ ह गी।
स पूण रा के सामा य शासन का काय सव च जन–स म त वारा कया जायेगा।
सव च जन–स म त का नमाण गवनर जनरल तथा दो सभाओं वारा होगा। इन सभाओं के
नाम ह–संघीय सभा तथा रा य सभा। गवनर जनरल का चु नाव स पूण रा क जनता वारा

289
वय क मता धकार के आधार पर पाँच वष के लए कया जायेगा। संघीय सभा के सद यो (जन–
त न धयो) का चु नाव स पूण रा क जनता वारा वय क मता धकार के आधार पर वष के
लए कया जायेगा। रा य सभा का गठन व भ न ा त वारा नवा चत त न धय वारा
होगा। सभी ा त को समान सं या म त न ध नवा चत करने का अ धकार ा त होगा। रॉय
रा य सभा म व श ट यावसा यक समूह एवं बौ क वग को थान दे ने के समथक ह। ा त
क ा तीय जन–स म त च क सक , इ जी नयर , वै ा नक , वक ल आ द तकनीक समू ह म
से येक समू ह के दो–दो त न धय को चु नकर रा य सभा म भेजेगी। कार रा य सभा के
गठन म यावसा यक लोकत के स ा त को वीकारा गया है।
रॉय ने ा तीय एवं रा य तर पर स ता के दु पयोग को रोकने के लए व भ न
सु झाव दये ह। उ ह ने ा तीय जन–स म त के स दभ म थानीय जन–स म तय गे या वान
(Recall) तथा व ध पर लोक–मत सं ह (Referendum) का अ धकार दया है।
रॉय ने अपनी बु नयाद लोकत क अवधारणा के अ तगत िजस रा य संघ के
नमाण का सु झाव दया है, वह अपनी कृ त से एक प रसंघ (Confederation) है । इसक
इकाइय को संघ के प र याग का अ धकार ा त होगा। इस कार रा य शासन का संचालन
संघ क इकाइय क सहम त एवं सहयोग से कया जायेगा।
5. सं मणकाल न यव था
रॉय इस त य से अवगत थे क दल य राजनी त को, दल वह न जात म बदलना
त काल स भव नह ं है। वे यह जानते थे क राजनी त का यह मौ लक पा तरण धीरे –धीरे ह
कया जा सकता है। रॉय ने सु झाव दया क दल वह न जात क थापना हो पाने के पूव
सं मणकाल न अव था म तानाशाह क अपे ा संसद य जात ह अ धक उपयु त होगा।
उ ह ने सु झाव दया क सं मणकाल म संसद य जात के दोष का धीरे –धीरे नवारण करने
का यास कया जायेगा। उनका मत था क सं मणकाल म शासन के पद पर, ववेकशील
सृजना मक मत के धनी, न ठावान और नै तक मू य के त तब लोग को ति ठत
करके संसद य णाल के व प म सु धार को स भव बनाया जा सकता है। इस सं मण काल
म जन स म तय का संगठन कया जायेगा और इनके मा यम से थानीय जनता थानीय
वषय से स बि धत सम त राजनी तक, शास नक, सामािजक एवं आ थक शि तय का योग
करे गी । रॉय के अनुसार सं मण–काल म बु नयाद लोकत क थापना के लए अ ल खत
दो दशाओ म वशेष य न करने क ज रत होगी– (1) लोक– श ण, तथा (2) आ थक पुन :
नयोजन ।
(i) लोक श ण
लोक श ण का अथ स पूण जनता को मा सा र बनाने से या इसे पर परागत ढं ग
से श त करने से नह ं है, अ पतु जनता के ववेक एवं उसक रचना मक शि तय को जागृत
करने से है। रॉय के अनुसार लोक श ण एक ऐसी वैचा रक ाि त का नाम है, जो यि त को
उसक वत ता, ग रमा एवं अ धकार के साथ ह उसे सावज नक क त य एवं दा य व के
त भी जागृत एवं स य बनाती है। यह यि त क रचना मक मताओं एवं सहयोग मूलक

290
वृि तय को वक सत करती है। लोक श ा यि त को एक ओर नजी वत ता व स भु ता
क र ा क ेरणा दे ती है और दूसर ओर उसे सावज नक (सामु दा यक) हत के साथ इनका
ताल–मेल था पत करने क ेरणा भी दे ती है।
(ii) आ थक पुन : नयोजन
रॉय के अनुसार बु नयाद लोकत क थापना तभी स भव है समाज म इसके लये
उपयु त आ थक प रि थ तयाँ व यमान ह । उनका प ट मत था क जब तक आ थक
असमानता, आ थक शि तय का कु छ हाथ म के यकरण और शोषण व यमान है तब तक
स चे लोकत क थापना स भव नह ं है। धीरे – धीरे अथ यव था को इस कार पा त रत
कया जाना चा हये क उसम के यकरण और शोषण क स भावनाएं कम होती जाएं और
समु दाय के येक सद य क भौ तक आव यकताओं क पू त को सु नि चत कया जा सके।
इस पा त रत अथ यव था म उ पादन और वतरण मानवीय आव यकताओं के अनुसार होना
चा हये। इस ि ट से उ ह ने अथ यव था के सामािजक नयोजन पर बल दया; क तु उ ह ने
इस वषय म भी सतक रहने का सु झाव दया क नयोजन के नाम पर, यि त क वत ता
और वाय तता का हनन नह ं कया जाये। उ ह ने कहा ''नया समाज, ववेक और ान पर
आधा रत होगा। अत: वाभा वक प से नयोिजत होगा, क तु नयोजन म यि त क
वत ता को मु ख उ े य माना जायेगा।“
इस कार रॉय का 'संग ठत लोकत ' य तथा वकेि त लोकत था, िजसम
रॉय ने राजनी तक दल के लए कोई थान नह ं रखा था। राय ने बताया क छोटे –छोटे सहकार
संगठन के वारा आधु नक रा य म यह य लोकत था पत कया जा सकता है। इस
यव था म शि त जनता के हाथ म रहे गी और जनता ह शासन काय म भाग लेकर इसका
नय ण करे गी।
रॉय क संग ठत लोकत क योजना और वनोबा, जय काश नारायण, आ द सव दयी
वचारक क वचारधारा म बहु त कु छ समानता है। सव दयी वचारक भी राजनी त को समाज के
सभी रोग का मू ल कारण मानते हु ये राजनी त के थान पर लोकनी त को ति ठत करना
चाहते ह, राजनी तक–आ थक स ता का वके करण करना चाहते ह तथा गांव को वशासी
और आ म नभर इकाइयां बनाना चाहते ह। राय क लोकताि क यव था का च भी ऐसा ह
है। रॉय और सव दयी वचारक, दोन ह राजनी तक दल क यव था को समा त करने पर बल
दे ते ह। रॉय और सव दयी वचारक क योजना म मु य अ तर यह है क रॉय वाय तशा सत
ाम गणरा य के थान पर जन स म तय को ति ठत करना चाहते ह।
बोध न–3
न : मौ लक लोकतं क अवधारणा को समझाइए ?
उ तर: ...................................................................................................
...........................................................................................

291
15.3.4 मानवे नाथ रॉय क नवीन मानववाद क संक पना

एम.एन. रॉय के राजनी तक च तन का सव े ठ प उनक नवीन मानववाद क


अवधारणा म दखाया है, यह उनके सम त च तन का सार एवं न कष है। य य प मानवाद
का आधु नक काल तक व भ न प म वकास हु आ है, क तु रॉय ने पहले के मानववाद से
अपनी इस अवधारणा को मू लत: भ न बताया है। उ ह ने अपनी मानववाद क अवधारणा के
व श ट ल ण के आधार पर इसे व भ न नाम दये ह; जैसे– मौ लक या बु मानववाद
(RadicalHumanism) नव मानववाद (New Humanism) स पूण मानववाद (Integral
Humanism), वै ा नक मानववाद (Scientific Humanism) आ द। रॉय ने अपना नवीन
मानववाद दशन मु यत: रे डकल यूमे न य' नामक पु तक म दया है। इस दशन क ि ट से
उनक एक अ य मु ख रचना है– 'नयू यूमे न य ए ड पॉ ल ट स'।
रॉय से पहले सम त मानववाद च तन को मु यत: दो म बाँटा जा सकता है–
आ याि मक मानववाद तथा भौ तक (पदाथवाद ) मानववाद चंतन। रॉय का मत है क ाचीन
काल से आधु नक युग तक इन दोन कार के मानववाद वचारक ने मानव कृ त, उसक
सम याओं एवं उसके क याण के बारे म पया त च तन कया है, क तु उ ह ने के वत
अि त व को नह ं वीकारा है। इस लए मानव को के य थान नह ं मला, वे प से मानव
क सव च स ता को वीकार नह ं कर सके। व तु त: का ट जैसे आ याि मक च तक ने सृि ट
क आ याि मक स ता (परा–स ता) क यव था के एक अंग के प म पर वचार कया है और
मानव के अि त व पर ई वर य व ध एवं दै वी नै तकता के ब धन को मा यता द है और
मा स जैसे भौ तक मानववाद व वान ने व दा मक भौ तकवाद दशन के आधार पर मानव
क याण आ थक नयम के वारा माना है िजन पर मानव का कोई नय ण नह ं है।
मा सवाद वह मानव के भौ तक क याण को तो सु नि चत करता है, क तु आ थक कारक से
अलग जीवन के अ य कारक जैसे नै तक कारक क अवहे लना क है। इस लए उन सभी के
च तन म को के य थान भी नह ं मल पाया है और वे अि तम प से मानव को अपने
भा य ( नय त) का नमाता भी नह ं वीकार पाये ह।
रॉय के अनुसार पि चमी यि तवाद म यि त क वतं ता पर रा य तथा समाज
वारा कए जाने वाले अ त मण का तो वरोध कया गया, क तु इसम यि त आ थक
वतं ता के मह व क उपे ा क गई। रॉय का मत था क आ थक अभाव से मु त,
आ म नभर यि त ह व तु त: वतं ता का उपयोग करने म स म हो सकता है।
अर व द, रवी नाथ टै गौर तथा गाँधी जैसे वचारक के को भी रॉय पूण अथ म
मानवतावाद नह ं मानते। इस 'आ याि मक मानवतावा दय ' के बारे म रॉय का मत है क
यि त के यि त व को वतं मानने क अपे ा वे उस पर आ याि मकता तबंध का लगा
दे ते ह। रॉय का आरोप है क गाँधी जैसे वचारक के च तन म आ या मवाद क के कारण
यि त के वतं अि त व क उपे ा हो गई है। गाँधी के अनुसार यि त परमा मा का अंश'
मा है, तथा उसके जीवन का अि तम ल य परमा मा म वल न हो जाने म ह न हत है।

292
रॉय मानना है क ई वर और आ याि मक स ता के वच व के कारण गाँधी मनु य क वतं
स ता वीकार नह ं करते है।
रॉय का मत है क उ ह ने पहल बार मानववाद दशन म मानव को के य एवं
मौ लक थान दया है। रॉय ने मानव पर कसी परा–स ता या अ त कृ तक स ता जैसे कसी
बा य अ धब धन को मा यता नह ं द है। उनके अनुसार मानव वयं अपना के है, वह पूण
वत है और अपने भा य का वयं ह नमाता है।
मानवे नाथ रॉय के इस नवीन मानववाद क न न ल खत वशेषताएं ह :
(1) मानव स पूण जीवन का मू ल और येक व तु का मापद ड है:
नवीन मानववाद के अनुसार , 'मनु य क मानव जा त का मू ल – तथा ोटे गोरस के इस
वचार को वीकार करता है क 'मनु य ह येक व तु का मापद ड।' पहले कथन का आशय
है क मानव जीवन अपने आप म पूण है अत: मानव को कसी बाहर और' अ त ाकृ तक
स ता का आ य लेने क न तो कोई आव यकता है और न ह इसका कोई औ च य है। दूसरे
कथन के अनुसार जो क व यात यूनानी दाश नक ोटे गोरस का है, रॉय ने माना है क येक
व तु के मू यांकन का आधार यह हो सकता है क वह मानव जीवन को प से भा वत
करती है। रॉय के अनुसार , मनु य वयं अपने भा य का नमाता है और उसम इतनी मता है
क वह व व को आज क तु लना म े ठ और सु दर बना सके। रॉय का कहना क हम सू य,
च , न और ह , आ द के अ ययन म च भले ह ले कन हम यह नह ं मानना चा हए
क ये न हमारे भा य के नधारक ह अथवा हमारे च र या मता पर इनका कोई भाव
पड़ता है।
मानवे नाथ रॉय के अनुसार मानव क ि ट से वयं मानव ह सव े ठ है। अत:
संसार क अ य सभी व तु ओं के मह व को केवल मानव के स दभ म ह कट कया जा
सकता है। एक मानव के प म हमारा स ब ध केवल उन व तु ओं से हो सकता है, जो हमारे
जीवन को भा वत करती है। रॉय का मत है क ई वर, नरपे ा, दै वी वधान आ द कोई
अि त व नह ं है और इस लए वे हमारे जीवन को भा वत भी नह ं करते ह। अत: मनु य का
इनसे कोई स ब ध भी नह ं है और उनका अ ययन भी नह ं कया जाना चा हए। मानव कसी
बा य स ता के कारण नह ं अ पतु, अपनी वयं क कृ त से नै तक ाणी है। रॉय के अनुसार
यह एक ऐसा त य है िजसे व ान क मदद से स कया जा सकता है। मानव का वयं का
मह व है, समाज का या रा य का नह ।ं वा तव म मानव वयं अपना सा य है, अ य सभी
साधन मा है। सभी सामािजक, राजनी तक तथा आ थक सं थाओं क रचना वयं मानव ने क
है, अत: इनका मह व केवल मानव के ह स दभ म है; सं ेप म ये सभी मानव के लए ह,
मानव इनके लए नह ं है। मानव वयं अपने भा य का नमाता है। उ लेखनीय है क 'मानव
येक व तु का मापद ड है' – ोटे गोरस के इस कथन को वक सत करते हु ये ह रॉय ने यह
कहा क 'मानव–मानव जा त का मू ल है। इस कार रॉय का स पूण यान संसार क
वा त वकता पर है, वे ई वर के अि त व को भी वीकार नह ं करते ह और मनु य को
भा यवाद के थान पु षाथ के हाथ सम पत करते ह।

293
2. मानवीय ववेक म व वास:
रॉय के अनुसार ववेकशीलता मानव वभाव का सहज ल ण है। मानव का वभाव
एक वकासशील वृि त है। अंध व वास, जादू–टोना और ाकृ तक धम के त झु काव, मनु य
के वभाव क अ वक सत अव था क ओर संकेत करते ह। रॉय के अनुसार जैसे–जैसे मनु य ने
ाकृ तक त व व व व के त अपना ान बढ़ाया और नवीनतम वै ा नक अनुसंधान होते
गये, अंध– व वास और लौ कक याकलाप के पारलौ कक व दै वीय कारण खोजने क वृि त
कम होती गयी है और मनु य के व वास क अपे ा ' ववेकशीलता बल होती गयी है।
3. मानव वभाव से ववेकशील एवं नै तक ाणी है:
रॉय ने इस बात का ख डन कया क मनु य वभावत: वाथ है, अथवा वह
आ याि मक और सामािजक बा यताओं के अधीन ह नै तक आचरण करता है। रॉय ने िजस
नै तकता का तपादन कया उसका आधार आ या मवाद नह ं था और इस लए उनका कहना
था क नै तकता कोई अ त–मानवीय (Super Human) तथा बा य व तु न होकर एक
आ त रक शि त है िजसका पालन मनु य को ई वर य अथवा ाकृ तक भय से नह ं अ पतु
समाज क याण क भावना से करना चा हए। राय ने यह व वास कट कया क नै तकता के
अभाव म हम मनु य क क पना नह ं कर सकते। समाज का आधार िजतना अ धक नै तकवाद
और बु वाद होगा, मानव यि त व के वकास पर लगे हु ए त बध उतने ह अ धक श थल
अथवा समा त हो जायगे और उसे उतनी ह अ धक वत ता ा त हो सकेगी। समाज का
पुन नमाण ाथना, जादू–टोना या अंध व वास के आधार पर नह ं कया जा सकता बि क
बु वा दता और वै ा नक साधन के योग पर ह कया जा सकता है।
रॉय ने मनु य के वभाव क या या जीवशा ीय आधार पर क । उनके अनुसार
मानव वभाव नर तर वकासमान है। उसम न न से उ च तर क ओर ग त करते हु ए पूण
मानवीय तर तक वकास क वृि त सदै व व यमान रह है। येक जी वत त व, जाने–
अनजाने अ धकतम संभव वतं ता ा त करने का य न करता है। उनके श द म 'अि त व
के लये संघष नकारा मक अथ म वतं ता क खोज ह है। '' रॉय के अनुसार ववेक, नै तकता
और वतं ता मानव वभाव क तीन शा वत वशेषताएं ह।
4. मानववाद का आधार त व वत ता:
राय के मानववाद का आधार त व वत ता है और राय ने वत ता, के तीन आधार
त भ बताए ह मानववाद, यि तवाद और ववेकवाद। रॉय ने मनु य के और आ म–सु र ा के
लए वत ता को आव यक माना है। उनका मानववाद मानव मा को का संदेश दे ता है।
मनु य एक ववेकशील ाणी है, अत: वह वत ता क कामना करता है वत ता के माग म
अनेक बाधाएं और क ठनाइयां आती ह धम ने अपना बु वाद चर अपनी कठोरता और
क रता से मानव वत ता और मानव स यता को बड़ा आघात पहु ंचाया है।। इसी कार
प रवार रा य और कानून , आ द व भ न सामािजक और राजनी तक सं थाओं ने भी ढ़वाद
और पर परागत रवैये से हमारे ि टकोण को संक ण और वाथपूण बनाकर वतं ता के माग
म बाधाएं खड़ी क ह।

294
रॉय के अनुसार वत ता मानव जीवन का सव च स गुण है, य क व तु त:
वत ता क आकां ा ह मानव के अि त व का सार है। रॉय क मा यता है क वतं मानव
क समतामय और याय न ठ समाज क थापना का आधार बन सकते ह। मानव क वतं ता
व छ दता या वत ता के मयादाह न उपयोग क अनुम त नह ं दे ता। उनके अनुसार यि त
क वत ता म सामािजक यव था क सु ढ़ता और समु दाय के सद य के हत क पू त
वाभा वक प से अ त न हत ह। यि त क वत ता के दो प सामने आते ह– वत ता
का वैयि तक प तथा वत ता का सामािजक प । मानव ववेक के अनुसार सामािजक
वत ता वेयि तक वतं ता का ह बड़ा प है, अत: यि त का ववेक सामािजक वत ता
के प म यि त को अपनी वैयि तक वत ता को मया दत एवं सी मत करने क ेरणा दे ता
है। रॉय के अनुसार। नवीन मानववाद एक ऐसी वत समाज यव था क थापना का वचार
है, िजसम यि त पूण वत हो। उनका मत है क ऐसे वत समाज क ाि त केवल
मौ लक लोकतं क मदद से ह क जा सकती है।
5. व व–बंधु व पर आधा रत व ववाद का समथन:
रॉय अपने राजनी तक च तन के ारि मक दौर म रा वाद थे, क तु बाद म वे
अ तरा वाद से अ य धक भा वत हु ये। उ ह ने अपने च तन के अि तम चरण म नव–
मानववाद क अवधारणा को तुत कया और इसके साथ ह अ तरा वाद
(Internationalism) के थान पर व ववाद (Cosmopotitanism) का वचार तु त कया।
रॉय ने ' व व रा यवाद तथा अ तरा वाद के बीच भेद कया है। अ तरा वाद म
पृथक् रा य रा य के अि त व का वचार न हत है और अ तरा वाद इन पृथक् रा य के
बीच भाई–चारे तथा शाि तपूण सह–अि त व क ि थ त का नाम है, ले कन व व रा यवाद क
थापना इन रा य रा य का नराकरण करके ह क जा सकती है। व व रा यवाद तो
सम त व व के मानव के साथ सीधे जु ड़ा हु आ है। यह तो व व के व भ न रा य के बीच
नह ,ं वरन ् व व के सम त मानव के बीच ब धु व क ि थ त का नाम है। रॉय के अनुसार
रा वाद एक संक ण वचारधारा है जो मानव–मा क व व यापी एकता के माग म बाधा है।
उ हने रा य रा य क सीमाओं से परे , वत ि य और पु ष के सावभौम समु दाय क
क पना क ।। रॉय ने अपने नवीन मानववाद को कठोरता क प र ध म नह ं बाँधा है वरन ् उसे
बदलती हु ई प रि थ तय के अनु प वक सत होने वाला स ा त बताया है।
बोध न– 4
न: नवीन मानववाद से आप या समझते हो ?
उ तर : ...........................................................................................
...........................................................................................

15.4 सारांश
मानवे नाथ रॉय का आधु नक भारतीय राजनी तक चंतन म व श ट थान है। रॉय
का राजनी तक चंतन ल बी वैचा रक या ा का प रणाम है। वे कसी वचारधारा से बंधे हु ए नह ं
रहे । उ ह ने वचार क भौ तकवाद आधारभू म और मानव के अि त व के नै तक योजन के
295
म य सम वय करना आव यक समझा। जहाँ उ ह ने पूँजीवाद यव था क कदु आलोचना क ,
वह ं मा सवाद क आलोचना म भी पीछे नह ं रहे। रॉय ने स पूण मानवीय दशन क खोज के
य न के म म यह न कष नकाला क व व क च लत आ थक और राजनी तक णा लयाँ
मानव के सम क याण को सु नि चत नह ं करतीं। पूँजीवाद, मा सवाद, गाँधीवाद तथा अ य
वचारधाओं म उ ह ने ऐसे त व को ढू ं ढ नकाला जो कसी न कसी प म मानव क स ता,
वतं ता, तथा वाय तता पर तब ध लगाते ह।
रॉय ने अपने नवीन मानववाद दशन से मानव को वयं अपना के बताकर मानव
क वतं ता एवं उसके यि त व क ग रमा का बल समथन कया है। व तु त: बीसवीं सद म
फासीवाद तथा सा यवाद सम तावाद रा य– यव थाओं ने यि त क वत ता एवं यि त व
का दमन कया और उदारवाद लोकत म मानव–क याण के नाम पर नर तर बढ़ती
के करण क वृि त से सावधान कया। रॉय ने यि त क वत ता एवं यि त व क
ग रमा के प म जो उ बौ क वचार दये ह, उनका आधु नक युग के लए व श ट मह व
है।

15.5 अ यास काय


1. मा सवाद के त मानवे नाथ रॉय के ि टकोण क ववेचना क िजए।
2. गाँधीवाद के त मानवे नाथ रॉय क त या एवं ि टकोण प ट क िजए।
3. मानवे नाथ रॉय क मौ लक लोकत क अवधारणा पर काश डा लए।
4. मानवे नाथ रॉय के नवीन मानववाद के स ा त क ववचेना क िजए।

15.6 स दभ थ सू ची
1. डा. व वनाथ साद वमा : आधु नक भारतीय राजनी तक च तन, ल मीनारायण
अ वाल, आगरा, 1971 ।
2. डा पु षोतम नागर : आधु नक भारतीय सामािजक एवं राजनी तक च तन,
राज थान ह द थ अकादमी, जयपुर , 1999 (छठा
सं करण) ।
3. एम.एन. रॉय : पो ल ट स, पावर ए ड पाट ज, अज ता, नई द ल,
1981
4. मेहता वी.आर : फाउ डेश स ऑफ इं डयन पो ल टकल थॉट, मनोहर, नई
द ल , 1992 ।
5. एम.एन. रॉय : इं डया इन ांिजशन, न चकेता नई द ल , 1971

296
इकाई– 16
जय काश नारायण
इकाई क परे खा
16.0 उ े य
16.1 तावना
16.2 जय काश नारायण क रचनाएं
16.3 जय काश नारायण के वचार
16.3.1 समाजवाद वचार
16.3.2 राजनी तक वचार
16.3.3 लोकनी त
16.3.4 स पूण ाि त क अवधारणा
16.3.5 व व समाज(जय जगत) क अवधारणा
16.4 सारांश
16.5. अ यास न
16.6 स दभ थ सू ची

16.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के उपरा त आप जान पयगे–
जय काश नारायण का यि त व एवं कृ त व
1. गाँधीवाद वचारधारा के अि तम उ तरा धकार के वचार
2. समाजवाद क व भ न वचारधांएं
3. जय काश नारायण के राजनी तक चंतन, एवं
4. स पूण ाि त और व व समाज (जय जगत) जैसी अवधारणाएं

16.1 तावना
येक वचारक अपने समय और प रि थ तय का शशु होता है उसी कार जय काश
नारायण के वचार और काय पर व भ न प रि थ तय , वचार का प ट भाव दखाई दे ता
है। जय काश नारायण ने अपनी वचारधारा एक मा सवाद वचारक के म आर भ क पर तु
भारतीय प रि थ तय के लए लोकतां क समाजवाद को उ चत समझा। गाँधी क मृ यु के बाद
गाँधीवाद वचारधारा से भा वत हु ए। जीवन के अि तम चरण म स पूण ाि त और व व
समाज जैसी अवधारणाओं का वकास कया।
जय काश नारायण का ज म 11 अकटू बर, 1902 को बहार के एक गाँव सताव
दयारा (िजला– सारं ग) म हु आ था। उनके पता का नाम हरसूलदयाल और माता का नाम
फूलरानी दे वी था। हरसूल दयाल नहर वभाग म सरकार अ धकार थे, क तु शा त एवं सादगी

297
वभाव के सं कारवान और रा वाद वचार के यि त थे। फूलरानी दे वी सरल वभाव क
धा मक वृि त क घरे लू म हला थी। 1920 म उनका ववाह भावती दे वी से हु आ। उनका
नधन 08 अ टू बर 1979 को पटना म हु आ।

16.2 जय काश नारायण क रचनाएं


1. हाई सोश ल म? (Why Socialism?)
2. वडस गल (Towards struggle)
3. 3.सोश ल य सव दय ए ड डेमो े सी (Socialism, Sarvodya and
Democaracy)
4. ॉम सोश ल म दू सव दय (From socialism to Sarvodaya)
5. माई प चर ऑफ सव दय सोशल आडर (My Picture for Sarvodaya
social order)
6. वरा य फोर द पीपुल (Swaraj for the People)
7. पीपु स वो ल एि ट वट (The People voluntary acitivity)
8. ए लान फोर रक स न ऑफ इि डयन पॉ लट (A Plan for
Reconstruction of Indian polity)
9. द जन डायर (The Prison Diary)
10. ाि त का आधु नक योग

16.3 जय काश नारायण के वचार


जय काश नारायण के वचार त काल न समय एवं प रि थ तय से भा वत थे। कभी
सीधी रे खा क तरह वचार एक समान नह ं रहे । उ ह ने अपने जीवन का आर भ एक
सा यवाद के प म कया पर तु सा यवाद वचारधारा से गुजरते हु ए लोकतां क, समाजवाद ,
गाँधीवाद और सव दयवाद वचारधारा एवं स पूण ाि त वतक के प म उ ह ने अपना
जीवन पूरा कया। उनके वचार न न ल खत ह

16.3.1 समाजवाद वचार

समाजवाद के बहु त से प ह – यूटो पयन , फे बयन, ग ड समाजवाद, ेणी समाजवाद,


लोकतां क समाजवाद, रा य समाजवाद, वकासवाद समाजवाद एवं वै ा नक समाजवाद।
िजनके अलग–अलग प और अलग–अलग वचार ह। सी.ई.एम. जोड का कहना है क समाजवाद
उस टोप क तरह है िजसे इतने यि तय ने पहना है िजससे उसका व प ह न ट हो गया
है।
जय काश नारायण भारतीय समाजवाद के मु ख नेता, चारक और व ता माने जाते
ह। महा मा गाँधी उ ह समाजवाद का सबसे बड़ा भारतीय व वान मानते थे। वे समाजवाद को
सामािजक–आ थक पुन नमाण का एक स पूण स ा त मानते थे। समाजवाद यापक नयोजन
का स ा त तथा काय णाल है। उससे समाज के स पूण पुन नमाण क धारणा न हत है।

298
उसका उ े य स पूण समाज का ''सामंज यपूण तथा स तु लत वकास'' है। समाजवाद के
स ब ध म उनके वचार नर तर प रवतनशील रहे । उ ह ने समाजवाद वचार क मा सवाद
समाजवाद से ार भ क । उसका भारतीय प रि थ तय के अनुसार संशोधन और कया। इस
प रवतन क नर तर या म उ ह ने मा सवाद से लोकतां क समाजवाद व सव दय के प
म गाँधीवाद समाजवाद तक क च तन या ा पूर क । इस कार प ट है जय काश नारायण
के समाजवाद च तन क या ा को तीन ख ड म वभािजत करके दे खा जा सकता है।
I मा सवाद समाजवाद
II मा सवाद के त मोह भंग व असहम त
III लोकतां क समाजवाद।
IV गाँधीवाद समाजवाद या सव दय।
I मा सवाद समाजवाद
जय काश नारायण के वचार पर मा सवाद का गंभीर भाव था। उ ह समाजवाद क
ेरणा कालमा स से मल और मा सवाद म उनक अटू ट न ठा रह य क जय काश
नारायण ने मा सवाद को ह समाजवाद का वा त वक प माना था। कालमा स को आधु नक
समाजवाद का जनक माना जाता है। मा सवाद समाजवाद को उ ह ने याय पर सामािजक–
आ थक एवं राजनी तक पुन नमाण का पूण स ा त माना। उ ह ने के स ा त– व वा मक
भौ तकवाद, इ तहास क भौ तकवाद या या, वग संघष क धारणा, मू य का स ा त, नजी
स पि त का अ त या स पि त का समाजीकरण क धारणा का समथन कया।
1934 म उ ह ने भारतीय कां ेस समाजवाद दल क थापना क । मा सवाद स ा त
को साकार प दे ने के लए समाजवाद दल क नी तय और काय म म स ा त शा मल
कये। ये काय म न न ल खत ह।:
1. उ पादक जनता को सार स ता का ह ता तरण।
2. दे श के आ थक जीवन का रा य वारा नयोिजत एवं नयं त।
3. उ पादन, वतरण एवं व नमय के सभी साधन के समाजीकरण ि ट से, आधारभू त
एवं मु ख उ योग (जैसे– इ पात, कपास, पटसन, रे लवे, नौवहन, बागवान और खदान,
बक, बीमा एवं सावज नक सेवाओं का समाजीकरण)
4. वदे शी यापार पर राजक य एका धकार क थापना।
5. आ थक जीवन के समाजीकृ त े म उ पादन, वतरण एवं ऋण स ब धी सहकार
स म तय का संगठन।
6. राजाओं और जमींदार तथा अ य सभी शोषक वग का बना तपू त उ मूलन।
7. कसान के बीच भू म का पुन वतरण।
8. रा य वारा सहकार एवं सामू हक कृ ष को ो सा हत करना उ नत बनाना।
9. कसान और मजदूर वारा लए गये ऋण क समाि त।
10. म करने या पोषण पाने के अ धकार को रा य वारा मा यता दे ना ।

299
11. 'आव यकता' के अनुसार दाम और यो यता के अनुसार 'काम' के पर अ तत: आ थक
व तु ओं का वतरण और उ पादन।
12. यावसा यक आधार पर वय क मता धकार।
13. रा य वारा कसी धम को समथन नह ं दे ना, व भ न धम के बीच भेदभाव नह ं
करना और न जा त या स दाय के आधार पर कसी भेदभाव को मानना।
14. रा य वारा ी– पु ष के बीच भेदभाव नह ं करना।
15. भारत के तथाक थत सावज नक ऋण क अ वीकृ त।
बोध न– 1
न: मा सवाद समाजवाद से आप या समझते हो ?
उ तर: ...................................................................................................
...........................................................................................
I मा सवाद के त मोह–भंग व असहम त –
1940 म जय काश नारायण को मा सवाद क पुन : समी ा करने क आव यकता
महसूस हु ई। उ ह ने रा य और मानवीय आधार पर मा सवाद क आलोचना क य क
सो वयत संघ म टा लन ने िजस सा यवाद यव था क थापना क उसका आधार राजनी तक
आ थक स ता का के करण, नौकरशाह तथा हंसा मक कायवाह थी। इस ि थ त म वग–
वह न एवं रा य वह न समाज क थापना के ल य को ा त करना अस भव हो गया िजसक
क पना मा स ने क थी। भारतीय सा यवाद दल अपनी नी त नधारण के मामले म वतं
नह ं था, अ पतु वह त काल न सा यवाद व व के नेता टा लन के हाथ क कठपुतल मा
था। जय काश नारायण सा यवाद दल के आचरण एवं यावहा रक प के अस तु ट थे
इस लए उ ह ने सा यवाद समाजवाद को भारत के लए उपयोगी नह ं माना।
बोध न– 2
न: मा सवाद समाजवाद से मोह भं ग य हु आ? उ तर एक लाइन मे दे ना ।
उ तर: ...................................................................................................
...........................................................................................
II लोकतां क समाजवाद:
1940 के आते–आते जय काश नारायण का मा सवाद समाजवाद के त मोह भंग हो
गया, ले कन समाजवाद म उनका व वास बना रहा। उ ह ने समाजवाद को भारत क
सामािजक, आ थक और राजनी तक प रि थ तय के अनुसार संशो धत करने का यास कया।
समाजवाद एक ऐसा जीवन दशन है जो वत ता, समानता और याय जैसे ववेकपूण नै तक
मू य पर आधा रत है।
जय काश नारायण का मानना है क लोकतं और समाजवाद एक दूसरे के पूरक ह।
लोकतं के बना समाजवाद का कोई अि त व नह ं हो सकता। अत: इस समाजवाद क
अवधारणा म आ थक और राजनी तक लोकतं क धारणा है। इस कार के समाजवाद म मानव
न तो पूँजी का दास है और न कसी पाट का, न कसी रा य का दास है, मानव का वत

300
अि त व है। लोकतां क समाजवाद शाि तपूण और धीरे –धीरे वकास म व वास रखता है।
लोकतं और समाजवाद सहगामी ह।
जय काश नारायण के अनुसार समाजवाद क थापना लोकतं और शाि तपूण साधन
के मा यम से ह स भव है। लोकतां क वत ताओं के अभाव म समाजवाद जी वत नह ं रह
सकता। लोकताि क समाज म ह मानव क वतं ता, अवसर क समानता और येक
नाग रक को अपने यि त व के वकास के पूण अवसर मलगे।
जय काश नारायण के अनुसार समाजवाद म यि त क वतं ता सव थम है।
लोकतां क समाजवाद म लोकतां क साधन, शाि तपूण तकनीक और रचना मक काय म के
वारा ह अपने उ े य क ाि त क जा सकती है। उ ह ने यि त क वतं ता और आ थक
समानता के म य ववेक–स मत स तु लन था पत करना मह वपूण माना। जय काश नारायण
का मानना है क रा यकृ त उ योग के ब ध म का मक और सामू हक कृ ष के ब धन म
कसान क भागीदार होनी चा हए। िजससे राजनी तक एवं आ थक स ता का वक करण होना
चा हए। भारत भारत म समाजवाद क थापना लोकतां क व शाि तपूण तर के से ह स भव हो
सकती है। उ ह ने समाजवाद क थापना के लए रा य को एक साधन व उपकरण के प म
माना और रा य के य पर लोकतां क साधन (लोकस ता) के मा यम से नयं ण कया
जाना चा हए।
लोकतां क समाजवाद भारत क ि थ तय के अनुकू ल था। भारत को वतं कराने के
लए अ हंसक एवं लोकतां क (लोकशि त) तर के अपनाये जा रहे थे। इन प रि थ तय म
भारत म लोकतां क या के मा यम से ह समाजवाद क थापना के को सबसे अ छा
माना। लोकतां क समाजवाद अपने आप म एवं औ च यपूण यव था थी।
बोध न –3
न: लोकतां क समाजवाद से आप या समझते हो ?
उ तर: ............................................................................................. ......
...........................................................................................
III गाँधीवाद समाजवाद या सव दय
जय काश नारायण ने च तन क वकास या ा म अनुभव कया क वा त वक
समाजवाद क थापना हंसा क शि त या रा य क वैधा नक के मा यम से स भव नह ं है।
समाजवाद को तीसर शि त (लोकशि त) जा त करके ह लाया जा सकता है। 1948 म
महा मा गाँधी क मृ यु के बाद जय काश नारायण के च तन म पुन : करने का आ म–
अवलोकन क या शु हु ई। वनोबा भावे (िज ह महा मा गाँधी का उ तरा धकार माना जाता
है) के वारा संचा लत भू दान–य आ दोलन ने जय काश नारायण च तन का अ य धक
भा वत कया।
ू म जय काश नारायण ने कहा था क ''गाँधी
थम ऐ शयाई समाजवाद स मेलन रं गन
के ेम और शाि त के रा ते से ह समाजवाद लाया जा सकता है। समाजवाद हमेशा ह मेरे

301
लए जीवन जीने क कला है।'' 1957 म उनका दल य राजनी त के त अ व वास बढ़ा और
रा य के समाजवाद क जगह जनता के समाजवाद पर वचार करने लगे।
गाँधीवाद समाजवाद का उ े य यि त और समाज के ि टकोण म प रवतन करना,
पा तरण करना है। समाज के ि टकोण म नै तक मू य को शा मल करना चाहते थे।
लोकशि त का वकास करके समाज म सामािजक, आ थक व राजनी तक प रवतन करना चाहते
थे। इस कार के समाजवाद का उ े य वग– वह न, शोषण वह न एवं एक समतावाद समाज
क थापना करना था। िजससे समाज के सभी सद य म वतं ता, समानता, भाई–चारे क
भावना वक सत हो सके।
गाँधीवाद समाजवाद म वग क तयो गता व त व वता के लए कोई थान नह ं
है। समाज के वग म संघष के थान पर ववेकपूण सहयोग और सामंज य ह इस समाजवाद
म पव सा य के अनु प ह पव साधन के उपयोग को अ नवाय मानता है। मानव
समाजवाद के इस प व सा य क ाि त के लए नै तक शि त के साधन को अपनाता है जो
अ हंसा, क णा, ेम तथा सहयोग पर आधा रत है। िजसे जय काश नारायण ने “लोक शि त''
क सं ा द है। गाँधी का समाजवाद या सव दय, सा य–साधन क प व ता, मानवीय व नै तक
मू य क सव प रता, सामािजक, आ थक पा तर के लए लोकशि त का वकास तथा
वके करण पर आधा रत है।
जय काश नारायण के च तन म महा मा गाँधी एवं वनोबा भावे के वचार का अ ु त
सम वय दे खने को मलता है।
बोध न– 4
न : गाँ धीवाद समाजवाद से आप या समझते हो ?
उ तर: ...................................................................................................
...................................................................................... .....

16.3.2 राजनी तक वचार

जय काश नारायण यि त क वतं ता एवं समानता म व वास करते ह। इसके लए


लोकतं वाद शासन यव था को उ चत मानते ह। जय काश नारायण क लोकत क धारणा
एक नै तक लोकतं क धारणा है। वतमान समय म लोकतं क सम या नै तक मू य क
सम या है। लोकतं के लए सं वधान, शासन णाल , राजनी तक दल एवं नवाचन इ या द
सभी का अपना मह व है। पर तु जब तक नाग रक म नै तक एवं आ याि मक गुण का
वकास नह ं हो जाता, तब तक कोई सं वधान, शासन णाल लोकतं को सफल नह ं कर
सकती।
वतमान लोकतं म दलब द स ब धी झगड़े, वाथ क राजनी त, दल क आ त रक
अनुशासनह नता, अवसरवा दता, गठबंधन, टाचार और घूसखोर का सा ा य है।
वतं ता के बाद भारत म राजनी तक वतं ता तो मल गयी ले कन जनता क
पराधीनता क ि थ त म कोई सुधार नह ं हु आ। उसका व प बदल गया है, शासक बदल गये

302
ह, पुराने दन क भां त आज भी जनता क पराधीनता है। आम जनता के लए कोई कसी
कार का वरा य नह ं आया।
लोकतं क सफलता के लए आव यक है क जनता नै तक़ता का पालन करे य क
नै तकता और लोकतं एक दूसरे के पूरक ह। नै तकता के अभाव म लकतं का सफल
या वयन होना अस भव है।
I पि चमी उदारवाद लोकतं के स ब ध म जय काश नारायण के वचार:
जय काश नारायण के अनुसार वतं ता, समानता, बंधु वता, सहयोग, परोपकार, सेवा
इ या द नै तक मू य लोकतं क आधार शला है। पि चमी लोकतं मै इन सभी मू य का
अभाव है। जय काश नारायण ने पि चमी लोकतं क आलोचना न न ल खत आधार पर क
है:
1. पि चमी उदारवाद लोकतं म नै तक मू य का अभाव है।
2. पि चमी संसद य लोकतं का एक मूलभू त दोष यह है क इसमे यि त क यि तगत
भू मका पर बल दया गया है। जय काश नारायण के अनुसार रा य यि तय का
ग णतीय योग नह ं है।
3. संसद य लोकतं म शासन अ पमत का शासन होता है य क नवाचन म सम त
या शय म से सबसे अ धक मत पाने वाले याशी को वजयी घो षत कर दया
जाता है, भले ह वह बहु मत का त न ध व नह ं करता हो। कई बार बहु त कम
मतदाताओं का त न ध बन कर रहता है इस लए अ पमत का शासन होता है।
4. लोकतं क धारणा के अनुसार स ता का वके करण होना चा हये पर तु यवहार म
स ता का के करण दखायी दे ता है। इस के करण क वृि त के कारण स ता पर
जनता का कोई भावशाल नय ण नह ं रहता है। के करण लोकतं क धारणा के
वपर त है।
5. स ा त: यह माना जाता है क राजनी तक दल का गठन रा य एकता और रा य
हत क र ा के लए करते ह। क तु यवहार म येक दल स ता क राजनी त
करता है। चु नाव होने पर जनता का त न ध बनने के बजाय यह दल का तनध
बन जाता है और वह दल य नयं ण और अनुशासन के अधीन काय करता है। इस
दल य यव था के कारण वह न (जनता का त न ध) वामी बना जाता है और
वामी (जनता) पीछे चलने वाल सेवक बन जाती है। जनता क भागीदार नाममा क
रह जाती है। दल रा य के भीतर एक रा य का प ले लेते ह िजन पर जनता का
कोई नयं ण नह ं होता है। यह कैसा लोकतं है?
6. संसद य लोकतां क णाल के अ य धक खच ल होने के कारण' साधनह न, सु यो य
यि त जनता का त न ध नह ं बन सकता। इस लए लोकतं वग या बड़े–बड़े संगठन
व दबाव समू ह के हाथ से बंधक बन जाता है। चु नाव को राजनी तक प से जाग क
करने के बजाय सावज नक प से नै तक मू य का अवमू यन करते ह।
उपरो त आधार पर जय काश नारायण ने पि चमी संसद य लोकतं क आलोचना क
है।

303
II जय काश नारायण क लोकतं क अवधारणा:
जय काश नारायण क लोकतं स ब धी धारणा एवं नै तक धारणा है िजसे उ ह ने
'सव दयी लोकतं ' या 'लोक वरा य' कहा है। िजसे अनेक नाम दये' ह जैसे– सहगामी
लोकतं , दल वह न लोकतं , सावयवी लोकतं , समु दायवाद लोकतं इ या द'।
III सामु दा यक लोकत म स ता के वके करण क संरचना:
जय काश नारायण ने स ता के वके करण क ाम तर से लेकर रा तर तक
पाँच तर य योजना तु त क है।
1. ाम– तर: ाम सभा सामु दा यक लोकत क आधारभू त इकाई होगी। िजसे ाम से
स बि धत सभी वषय पर अि तम नणय लेने का अ धकार होगा तथा कायपा लका
के प म ाम पंचायत को चु नने का अ धकार होगा।
2. े ीय– तर:– इस तर पर पंचायत स म त मु ख सं था होगी। िजसका चु नाव उस े
क ाम पंचायत के सद य के वारा कया जायेगा।
3. िजला– तर:– िजला तर पर 'िजला–प रष ' होगी। िजला प रष का गठन उस े म
आने वाल पंचायत स म त के वारा चु ने हु ए त न धय के वारा होगा।
4. ा तीय– तर:– कसी ा त म ि थत िजला समु दाय से ा तीय सभा का गठन होगा।
ा तीय तर पर कायपा लका शि तय का योग ा तीय सभा वारा ग ठत स म तय
वारा सामू हक प से कया जाएगा।
5. रा य– तर:– सामु दा यक लोकत के रा य तर पर रा य सभा होगी। रा य
सभा के त न धय का नवाचन ा तीय सभाओं के सद य के वारा कया जायेगा।
रा य सभा अपनी कायपा लका क नयुि त करे गी जो उसके त उ तरदायी होगी।
जय काश नारायण सामु दा यक लोकतं का आधार पंचायत–राज यव था को बनाना
चाहते थे िजससे पंचायत–राज के मा यम से लोक– वरा य' क थापना क जा सके। जय काश
नारायण क स ता के वके करण क योजना महा मा गाँधी के सामु क तरं ग के स ा त के
समान दखाई दे ती है।
जय काश नारायण जन सहयोग, जन–सहभा गता,
जन– वीकृ त से लोकत क थापना करना चाहते ह। वे
शासन ह ता तरण का बहाव पि चम के परा मड क
तरह िजसम स ता का के सबसे ऊपर व सबसे कम
शि त सबसे नीचे होती है। जब क जय काश नारायण
ने 'लोक वरा य' म लखा है ''मेरा मन भी वैसा ह
सोचता है जैसा अ सर गाँधीजी जोर दे ते रहते थे।
िजसम सरकार को नीचे के तर से ऊपर क ओर ले
जाना चा हए। येक उ चतर तर पर कम से कम काम
और कम से कम शि त व स ता होनी चा हए। िजससे उ टे रा य
परा मड को सीधा कया जा सके ता क लोकतं का परा मड सह अथ म परा मड दखाई दे ।

304
'' इस अव था म सबसे नीचे वाले तर पर सबसे अ धक काम, सबसे अ धक शि त व स ता
होगी। येक तर के लोग अपने काय को न ठा एवं पूर िज मेदार के साथ पूरा करगे। इस
कार क यव था म येक को अपने काय को नयि त एवं नय मत करने का पूरा अवसर
मलेगा। लोकत क इस कार क अव था वरा य के नजद क क अव था है।
इस कार के सहभागी लोकत म स ता का बहाव नीचे से ऊपर क चलेगा, न क
ऊपर से नीचे क ओर जय काश नारायण का सहभागी लोकत वःशा सत, व: पया त,
कृ ष–औ यो गक ामीण यव था पर आधा रत है िजसम जनता क स म तयाँ बनाकर काम
करना' चा हए। लोक स म तय के काय पर मह व दे ते हु ए जय काश ने कहा था क एक
लोकत क सफलता के लए स म तय का होना आव यक है। ''लोक स म तय क,
उपयो गता, काय व ध और ल य न नवत ह–
1. लोक स म तयाँ जनता और अपने त न धय के बीच कडी का काम करे गी। जनता का
यह कत य है क वह दे खे क नवा चत त न ध अपने क त य पालन न ठा एवं
ईमानदार से कर रहे ह।
2. जनशि त को अ याय के त संग ठत एवं वक सत कर।
3. द लत और शो षत वग के हत क र ा करे और जा त, वग के से राजनी त को
मु त रखे।
4. ाम तर क जनस म तय का काय लोकत ीय सं थाओं को परामश और उनका
मागदशन करना है।
जय काश नारायण ने कहा ''राजनी तक लोग और लोकसभा तथा , वधान सभा के
हाथ से काम को छ नकर इ ह वापस लोग को स पने का काम हमारा उ े य है।
जय काश नारायण ने सन 1977 म जनता सरकार क थापना बाद उ ह ने दे श के
येक गाँव म जनता क स म तयाँ बनाने क अपील क इनका व वास क नाग रक अ धक
से अ धक काय करे और सरकार के काय पर नयं ण रखे। जो क लोकत क आधार शला
है।
इस कार लोक स म त अपने त न धय के काय क नगरानी, एक हर क तरह
काय करे गी। लोक स म तय वारा लोग का व वास ा त कया जायेगा रचना मक काय म
जनता क साझेदार बढ़ाये और उ ह अ हंसक कायवाह का श ण दे ना स म तय का काम है।
ये स म तयाँ आम जनता के वारा चु नी जानी चा हए। ''लोक स म तय वारा ये सब काम ह गे
तभी गाँव क जनता समझेगी क वरा य का स चा सु ख गर ब के घर भी पहु ंच रहा है।
जय काश नारायण यि त का स तु लत एवं समि वत वकास करना चाहते ह। वे वग–
वह न, जा त– वह न, दल– वह न समाज क थापना करना चाहते थे। उनका राजनी तक पा टय
म कोई व वास नह ं था य क उनका मानना है क ये स पूण राजनी तक यव था को न ट
ट कर दे ती है जय काश नारायण आशावाद है। उनका सहभागी लोकतं का व वास, जनता
को वःशा सत होने क मता पर आधा रत ह। उ ह ने कहा है क म शासन क कायवाह पर

305
जनता वारा नगरानी रखना, न केवल अ धकार बि क उनका क त य भी है। इस स म त म
लोक त न ध अपने को जनता का वामी नह ं वरन जनता सेवक समझगे।
जय काश नारायण ने यह माना है क राजनी तक वके करण आ थक वके करण
के बना भावह न ह है, बेकार है। उनके सामु दा यक लोकत म ''अथ य था' सहयोगी और
सहभागी होगी। '' वे एक आ म नभर अथ यव था बनाना चाहते ह, कृ ष और उ योग म
स तुलन रहे गा। ''अत: अथ यव था का उ े य समाज क आव यकताओं क पू त करना ह, न
क यि तगत लाभ कमाना।''
लोकत को ट होने से रोकने के लए जय काश ने न न ल खत सु झाव दये ह:
1. नवाचन का रा यकरण।
2. चलते फरते मतदान के क यव था क जाय।
3. नवाचन प त के थान पर जनगणना प त का ार भ हो।
4. काम ध धे एवं सं या के अनुसार यावसा यक तनध व क यव था हो।
5. सश त वरोधी दल का वकास हो।
6. नवाचन का स पूण यय सरकार को वहन करना चा हए।
7. यापा रक त ठान , स म तय से धन लेने क अपे ा दल क सद यता शु क पर
नभर रहना चा हए।
8. वके करण राजनी तक एवं आ थक दोन े म होना चा हए।
9. ाम पंचायत को मु ख इकाई माना जाय उनम सभी नणय सव स मत ढं ग से होने
चा हए।
10. ाम पंचायत लाक पंचायत के सद य को चु न।े उनके सद य िजला पंचायती एवं
िजला पंचायत रा य के वधान म डल को चु नने एवं के य वधान म डल को चु न।े
11. राजनी तक दल के दोष के कारण जय काश नारायण नदल य लोकत के समथक
थे। य द पूर तरह से दल का उ मू लन स भव नह ं है तो उनक भू मका कम से कम
होनी चा हए।
जय काश नारायण के सपन का लोकत एक सहभागी लोकत , सामु दा यक
लोकत ,सावयवी लोकत और नदल य लोकत है िजसम सबसे नीचे ाम पंचायत है।
उनके ऊपर ख ड, िजला दे श, रा य पंचायत एवं के य पंचायत संसद है।
ी सि चदान द जी के श द म “लोकत के स ब ध म जय काश नारायण क धारणा है क
उसम लोक क धानता हो और त गौण हो। वतमान लोकत म त धान और लोक
गायब हो गया है इस लए जय काश चाहते ह क जनता संग ठत होकर अपना काम काज वयं
चलाये। जनता संग ठत होकर वयं शासन करे । ऐसा लोकत वकेि त रा य यव था म ह
स भव है।“
बोध न –5
न: जय काश नारायण के लोकतं क अवधारणा को प ट कर।
उ तर: ...................................................................................................

306
...................................................................................................

16.3.3 लोकनी त

जय काश नारायण राजनी तक शि त का पूर तरह वके करण करना चाहते ह।


राजनी तक वके करण क मू ल इकाई गाँव है। सबसे अ धक काम, शि त, स ता के नीचे
तर पर होगी और सबसे कम काम, शि त, स ता ऊपर पर होगी। उनका सहभागी लोकत ,
सावयव लोकत या सामु दा यक लोकत एक सव दय काय म है।
इसम मानव के लए शि त और समृ ता है। य द हम आपनी आव यकताओं को कम
कर द, तो समानता, वतं ता और ातृ व से एक साथ रह सकते ह। जीवन मे एक अनुशासन
ज र है। जब मानव अपने यवहार को नय मत, नयि त, शा सत करने म स म हो जायेगा
तब कसी बाहर स ता का उस पर कोई नयं ण नह ं रहेगा। सभी जगह रा य के शासन क
जगह लोग का शासन, रा य के कानून क जगह जनता का कानून है, रा य क ं शि त क
जगह जनता क शि त है। अथात ् राजनी त क जगह लोकनी त और रा य शि त क जगह
लोक शि त का वकास होगा।
इस लए जय काश नारायण राजनी त का वक प, लोकनी त या तीसर शि त का
वकास करना चाहते ह। ''इस कार क वैकि पक शि त वाभा वक प से हंसा शि त क
वरोधी होगी एवं द ड शि त से भ न होगी। इसी लए इसको वावल बी नै तक शि त या
तीसर शि त मानते ह।
लोकनी त और लोकशि त के बना राजनी तक यव था व सामािजक प रवतन नरथक
हो जायगे। लोग का सामािजक, मान सक, नै तक, बौ क, राजनी तक व समाज म सामािजक
याय, समानता, वतं ता के लए लोक शि त आव यक है िजससे वग–ह न, रा य–ह न
यव था क थापना हो सकती है। यह हंसा शि त और द ड–शि त से स भव नह ं है।
जय काश नारायण ने बताया क सव दय क राजनी त भी राजनी त है पर तु यह
राजनी त अलग कार क है। यह जनता क राजनी त है, लोक नी त है। जनता शि त है।
इसका ल य स ता ाि त करना नह ,ं स ता के सभी के को तोड़ना है। यह गाँव क शि त
है। आज 'डेल गैटेड डैमो े सी' है, पाट सपे टंग डेमो े सी नह ं है।
रा य क हंसा शि त और द ड शि त दोन ह मानव समाज को सम याओं से मु त
कराने म असफल रह ह। द ड शि त जो क रा य शि त क या है। ऐसी ि थ त म
मानव को अपनी सम याओं से मु ि त दलाने के लए एक तीसर शि त क आव यकता है।
यह वह शि त है िजसको महावीर, बु , ईसा ने बनायी यानी े , अ हंसा, क णा क शि त।

हम राजस ता से अलग रहकर तीसर शि त का वकास करना है। इसी लए गाँधीजी ने कहा था
क जो अ हंसा म व वास करता है, उसे राजनी त म नह ं जाना चा हए। इसी लए वनोबाजी ने
लोक सेवक को राजनी त म जाने क सलाह नह ं द और राजनी त के बदले लोकनी त क
क पना क । जय काश नारायण ने वनोबाजी के साथ लोकशि त व लोकनी त बनाने के लए,
यापक योग कये, इन योग म काफ हद तक सफलता भी मल थी।

307
16.3.4 स पूण ाि त क अवधारणा:

दे श क स पूण यव था–संरचना को बदलने के लए अपने जीवन' के उ तरा म


उ ह ने स पूण ाि त का आहवान कया। उ ह ने इस ाि त का वाहक युवा , जा त, शै क
एवं बौ क वग को बनाया। इस ाि त म रचना मक काय म और वघटना मक या काय म
म एक अनुपम अ वतीय सम वय दे खने को मलता है। उस समय दे श शासन एवं शासन म
या त टाचार, मंहगाई, बेरोजगार , शासन म उभरती हु ई अ धनायकवाद वृि तयां एवं
सामािजक जीवन म असमानता, अ याय और सम त सामािजक, आ थक, शै णक बुराइय को
समा त कर वे एक यायपूण संतु लत, समतावाद और जाग क समाज गठन करना चाहते थे।
पहल वतं ता क लड़ाई रा पता महा मा गाँधी ने लड़ी और दूसर वतं ता व
नाग रक अ धकार क लडाई जय काश नारायण ने लड़ी। पहल वतं ता क लड़ाई म भारत
को टश सा ा य से मु ि त दलायी और दूसर लड़ाई भी उसी क तरह मह वपूण है। इसने
भारत म लोकतां क मू य को बनाए रखने के लये आवाज उठाई और गृह शासक क
तानाशाह से मुि त दलायी जो क कई तरह से टश सा ा य क तानाशाह से बुर थी।
गाँधीजी ने भारत को टश सा ा य क अ धनायकता से मु ि त दलायी जब क जय काश
नारायण जो क भारत के दूसरे मुि त दाता है, ने रा को घरे लू नरं कुशता से मुि त दलायी।
उ ह ने शाि तपूण तर के से भारत म एक वतं समाज और लोकतां क या को था पत
करने का यास कया।
बहार आ दोलन एक छा आ दोलन था पर तु उसम ामीण और शहर लोग ने भी
भाग लया और एक सम जनता का आ दोलन बन गया। जय काश नारायण ने यह माना
क बहार का आ दोलन एक ऐसा संघष है, िजसम एक तरफ छा शि त जन–शि त व दूसर
तरफ रा य शि त है। यह एक तरह से स पूण ाि त का सू म पर ण था यह रा य शि त
और लोकशि त के बीच संघष था। यह बहार आ दोलन केवल बहार तक ह सी मत नह ं
बि क दे श के अनेक भाग म भी फैल गया। कां ेस सरकार के बल वरोध के बावजू द भी यह
आ दोलन पंजाब, राज थान, द ल , ह रयाणा, म य दे श, उ तर दे श इ या द रा य म फैल
गया।
उ ह ने स पूण ाि त का अथ बहु त यापक बताया जो अजीत भ ाचाय मानते ह– 'यह
स पूण ाि त एक नर तर या है जो नै तक स ांत से े रत है, न क भौ तक स ा त
से। '' इसम मु यत: दो ( नर तर और नै तक) श द पर जोर दया गया है। स पूण ाि त क
अवधारणा लोक यु के समान दखायी दे ती है। य क माओ नर तर लोक यु क बात करते
ह। इस तरह स पूण ाि त को नै तक एवं शाि त पूण साधन पर आधा रत नर तर लोक यु
मान सकते ह।
यह स पूण ाि त सम त जनता क ाि त है। इस ाि त का मोचा केवल
राजधा नय म नह ,ं बि क गाँव– गाँव, शहर –शहर, हर एक कायालय, व यालय और कारखाने
म है। यहाँ तक क येक घर म है। यह मोचा हर एक यि त के अ दर भी है य क हम
अपने पुराने और गलत सं कार से लड़ते रहना है। हम एक नया समाज बनाना चाहते ह इसके

308
लए हम सरकार, समाज, श ा, चु नाव, बाजार और वकास योजनाओं इ या द एक–एक े म
प रवतन लाना होगा।
स पूण ाि त म मान सक मनोवृ त , ि टकोण, सामािजक, आ थक, सां कृ तक,
राजनी तक, नै तक एवं शै क यव था म ाि त कर और उ ह जनता क शि त (लोक
शि त) पर आधा रत करना है। जय काश नारायण का मानना है क सात कार क ाि तय
(सामािजक, आ थक, सां कृ तक, राजनी तक, शै णक, मान सक या नै तक एवं बौ क् या
वैचा रक) से मलकर एक स पूण ाि त बनती है।
स पूण ाि त के व वध आयाम इस कार ह :–
1. स पूण ाि त के मा यम से ऐसे समाज क थापना करने का यास करते ह जो
याय न ठ संतु लत और समतावाद हो। समाज म व यमान ऐसी सं थाऐं, पर पराएं
और मा यताएं एवं र त रवाज जो शोषणमू लक अनै तक और अमानवीय मा यताओं पर
आधा रत ह , उ ह समा त कया जाए। स पूण ाि त म समाज क ऐसी सभी
कु र तय एवं कु सं कार (जैसे– अ पृ यता , छूआछूत, ऊँच–नीच का भेदभाव, दहे ज,
मृ यु –भोज, पा रवा रक एवं सामािजक जीवन म ी व पु ष क पर परागत
असमानता) इ या द सामािजक बुराइय के व संघष क आव यकता है।
2. जय काश नारायण स पूण ाि त के मा यम से अथ– यव था के े म ाि त करके
शोषण मू लक, असमानता, वग भेद, दूषण बढ़ाने वाल पू ज
ं ीवाद के कृ त अथ–
यव था म सु धार कर एक ऐसी अथ– यव था बनाना चाहते है िजससे अ हंसक
वके कृ त और आ म नभर यव था क थापना हो सके।
3. स पूण ाि त के मा यम से एक ऐसा प रवेश एवं वातावरण बनाने का यास कया
गया िजसम भारत क भारतीयता, सं कृ त–मू य और पर पराएं पुन : ति ठत हो
सके। स दय से भारत का मानवतावाद और आ याि मक ि टकोण रहा है। उ होने
स पूण ाि त क या म उदारता तथा सभी के हत म अपना हत खोजने क
समृ भारतीय सां कृ तक पर परा क पुन : त ठा क आशा कट क स य, अ हंसा,
क णा, याग, सहयोग एवं सदाचार इ या द भारत क सां कृ तक पर परा रह है।
4. स पूण ाि त से राजनी तक े म भी ाि त करनी होगी िजसका उ े य एक नयी
राजनी तक यव था क थापना करना है िजसम लोग क पूण एक स य सहभा गता
हो। िजसका येक सद य यह महसूस करे गा क इस राज यव था म मेरा भी
मह वपूण थान है। इस नवीन राज यव था म यि त सा य है, साधन नह ।ं
जय काश नारायण राजनी तक स ता को, राजनी तक शि त को पूर तरह से
वकेि त, करना चाहते ह य क उनके लोकतं म शि त जनता के पास होगी।
जय काश लोग म 'राजनी त' क जगह 'लोकनी त' और राज शि त' क जगह 'लोक
शि त' करने पर जोर दे ते ह। उनके लोकतं का यह आधार है। लोकतं म शि त
और स ता नीचे के लोग के पास होनी चा हए।

309
5. श ा ऐसी होनी चा हए जो यि त को आ म नभर एवं वावल बी बना सके जो
जीवन के लए उपयोगी हो। आज क श ा म तो केवल ड ी मलती है। बाद म
ड ी लेकर नौकर क तलाश म भटकना पड़ता है और नौक रयां सबको कहां मलती।
ह। श ा म ाि त का उ े य तब तक पूरा नह ं हो पायेगा जब तक श ा रोजगार
नह ं बनेगी इस लए उ ह ने ड ी और रोजगार के स ब ध को समा त करने क
आव यकता बताई और कहा ड ी व रोजगार का स ब ध व छे द कये बना कोई
मौ लक प रवतन नह ं कया जा सकता।
6. जय काश नारायण क स पूण ाि त का के ब दु ' यि त है। यि त सा य है,
साधन नह ।ं उनके अनुसार यि त के यि त व का वकास करने के लए भौ तक एवं
आ याि मक तथा नै तक आव यकता होती है। जय काश नारायण भौ तक और
आ याि मक आव यकताओं क पू त एक साथ सु नि चत करना चाहते ह। सि चदान द
स हा ने कहा है यि त और समाज म प रवतन क या साथ–साथ चलेगी। ाि त
एक दोहर या है िजसम एक तरफ यि त का बौ क, नै तक,, सां कृ तक
प रवतन दूसर तरफ राजनी तक, आ थक, सामािजक संरचना व यव था व या म
प रवतन होना चा हए।
7. महा मा गाँधी क तरह जय काश नारायण यह मानते ह क वचार ' म ाि त का
सू पात कये बना समाज म ाि तकार प रवतन स भव नह ं है। अपने म, पड़ोस म,
समाज म, रा य म, दे श म व यमान या त बुराइय के व संघष कर नव–– नमाण
क ि थ त, वचार स पूण ाि त के मा यम से बनाये जा सकते ह। 'बौ क ाि त
यि त क सामािजकता पर बल दे ती है।
स पूण ाि त म तीन मु य त व ह– यापक, स पूण , सामु दा यक (3सी)। स पूण
ाि त यापक और स पूण प रवतन, स पूण समाज क सहभा गता से शाि तपूण नर तर
या के संघष और रचना मक काय से ह स भव हो सकती है। जय काश नारायण का
मानना है मने इसे स पूण ाि त कहा है, यह कोई ग ी क लडाई नह ं है, स ता ह थयाने क
लडाई नह ं बि क यह स पूण यव था प रवतन, या प रवतन और नव– नमाण क लड़ाई
है। यह ाि त कोई कसी अ भजन वग क ाि त नह ं है, यह सम जनता क ाि त है।
जय काश नारायण स पूण ाि त का नेत ृ व नव–युवक को स पना चाहते थे य क
नव–युवक म अ याय का वरोध करने क मता अ धक होती है। य द वे अ याय का वरोध
नह ं करगे तो उनका भ व य अ धकार म होगा। नव–युवक म दूसरे लोग क अपे ाकृ त च र
शु होता है। वे शार रक और मान सक प से अ धक शि तशाल व उ साह होते ह। इस लए
ाि त का नेत ृ व युवक को ह करना चा हए।
स राज ढ डा के अनुसार स पूण ाि त एक शाि तमय आ दोलन है, ाि त के
साधन शाि तमय है। इसका कवच स चाई है, अ हंसा और स य जनता के लडाई के ह थयार
और ढाल ह। नभयता उसक ाण वायु है। नदल य भावना इस आ दोलन का प य है। जनता
का हत सव प र होना चा हए, यह स पूण जनता क मु ि त का आ दोलन है कायक ताओं को

310
स ता के लालच म कोई काम नह ं करना चा हए। इस आ दोलन के दो पहलू ह– सहयोग और
संघष।
यह स पूण ाि त तभी सफल होगी जब सम त जनता का सहयोग मलेगा। हम
कसी यि त से भेदभाव नह ं करना चा हए। भले ह वे स ताधार के प म हो या वरोध म।
कोई यि त दल और संगठन अछूता नह ं है। हम तो सभी का सहयोग ा त करना है
हम संघष म अ हंसक साधन क जगह शाि तपूण साधन को अपनाना चा हए य क
अ हंसा म गु त संगठन और गु त साधन तथा भू मगत साधन के लए कोई जगह नह ं है।
अ हंसा म सब कु छ खुला हु आ है। कु छ भी छपा हु आ नह ं है। जय काश नारायण ने स पूण
ाि त के समय नारा दया– ''हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नह ं उठे गा'। अत: इस नारे से
तीत होता है उनका स पूण ाि त का आ दोलन एक शाि तपूण आ दोलन था।
जय काश नारायण क स पूण ाि त क तकनीक न तो पूर तरह से हंसा मक है
और न ह पूर तरह से अ हंसा मक है यह जनता के शाि तपूण काय क यवहा रक तकनीक
है। उनके लए ाि त एक लगातार चलने वाल या है िजसम धीरे –धीरे पूणता ा त कया
जा सकता है। उनक तकनीक के अनुनय , वनय, वचार– वमश, सलाह मु य साधन है। अत:
इसम यावहा रकता, मानवतावाद और रा वा दता और नै तकता के प ट दशन होते ह।

बोध न– 6
न : स पू ण ाि त से आप या समझते ह ?
उ तर : ...........................................................................................
...................................................................................................

16.3.5 व व–समाज (जय जगत)् क अवधारणा:

जय काश नारायण व व समाज के स ा त को आदश मानते थे। उनका मानना था


क संग ठत सै नकवाद और सम वाद यव थाओं ने जो वनाश का ता डव मचा रखा है उसके
मु काबले म व व समाज ह ए शया तथा अ का क द लत मानवता के साथ याय कर सकता
है त काल न समय म व व म शीतयु अपनी चरम सीमा पर था। स पूण व व दो शि त
गुट म बंटा हुआ था। येक गुट अपनी सव चता स करने म लगे हु ए थे। शि त क
राजनी त व कू टनी त क पूजा हो रह थी, उसे यवहार म भी लाया जा रहा था, उस राजनी त
म आदश और स ा त क कोई जगह नह ं थी। जय काश नारायण का मानना था क इस
संकट क घड़ी म स पूण मानवता को बचाने का दा य व बु जीवी वग का है उसे व व समाज
(जय जगत) क भावनाओं का सार करना चा हए। आज व व को शि त राजनी त का सामना
करने के लए एक मान सक ाि त (लोक शि त) का वकास करने क आव यकता है िजससे
स पूण व व को भय और आंतक से बचाया जा सके।

16.4 सारांश
आधु नक भारतीय राजनी तक वचारक म महा मा गाँधी और वनोबा भावे के बाद
जय काश नारायण का नाम आता है। जनता ने अपने इस लोक य नेता को 'लोक नायक' क

311
उपा ध से स मा नत कया। जय काश नारायण जीवन भर भारत क सामािजक, आ थक व
राजनी तक यव था म पा तर के लए नये–नये योग करने का यास करते रहे। इस लए
उनक वचार–या ा एक सीधी रे खा क तरह नह ं रह । उनक वचार या ा त काल न
प रि थ तय से भा वत रह । उ ह ने त काल न भारत क राजनी तक, आ थक व सामािजक
यव थाओं म गाँधीवाद मू य व नै तक मा यताओं को लाने का यास कया। वे अपने जीवन
के आरि भक दन म समाजवाद रहे । उ ह ने भारतीय राजनी त एवं समाज म समाजवाद कै
अनेक योग करे । वे भारतीय राजनी त को बुराइय से मु त करके पुन : संरचना (Re–
construction) करना चाहते थे। वे राजनी तक यव था क शि त क राजनी त, स ता
लोलु पता क राजनी त, हंसा क राजनी त को लोकस ता और लोकनी त पर आधा रत करना
चाहते थे। उनका मानना था, क स ता एवं शि त का परा मड अपने सर के बल खड़ा है
िजसम स ता व शि त नीचे के तर पर कम है और ऊपर के तर पर अ धक है। जय काश
नारायण उसे सीधा खड़ा करना चाहते थे िजसम नीचे के तर पर स ता और शि त अ धक हो
और ऊपर के तर पर स ता व शि त कम हो।

उ टा सीधा
परा मड परा मड
जय काश नारायण लोकता क मू य , वतं ता, समानता, ब धु व क भावना, याय
के प धर थे। सन 1975 म आपातकाल के समय स पूण ाि त का आहवान इन लोकतां क
मू य को पो षत करने का यास कया। वतं ता, समानता, ब धु व क भावना, याय इ या द
मू य का यावहा रक योग होना चा हए। वतं ता मेरे लए आकाशद प के समान है जो सबसे
ऊपर है। जय काश नारायण इस कार जीवन भर च तन करते रहे।

16.5 अ यास न
1. मा सवाद तथा लोकतां क समाजवाद के वषय मे जय काश नारायण के वचार क
समी ा क िजये।
2. जय काश नारायण के राजनी तक वचार' वषय पर एक ट पणी ल खये।
3. लोकनी त से या अ भ ाय है? लोकतां क वके करण के वषय म जय काश
नारायण क या वैचा रक संक पनाएं ह? समझाइये।
4. स पूण ां त या है? स पूण ां त के व वध आयाम क चचा क िजये।

16.6 संदभ थ सू ची
1. नारायण, जय काश : समाजवाद, सव दय और लोकतं , बहार ह द अकादमी,
पटना, 1973।

312
2. वमा, वी.पी. : द पो ल टकल फलोसोफ ऑफ महा मा गांधी ए ड
सव दय, ल मीनारायण, आगरा, 1959।
3. वमा, वी.पी. : मॉडन इं डयन, पो ल टकल थॉट, ल मीनारायण, आगरा,
1967।
4. गु ता, आर.सी. : सो शय ल म, डेमो े सी ए ड इं डया, राम साद ए ड संस
आगरा, 1965।

313
314

You might also like