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VAC-05

आधुनिक राजिीनिक निचारक


(Modern Political Thinker)

राजिीनि निज्ञाि निभाग


समाज निज्ञाि निद्याशाखा
उत्तराखण्ड मुक्त निश्िनिद्यालय, हल्द्वािी
पाठयक्रम समममि
प्रो. मगररजा प्रसाद पाण्डे प्रो0 एम0एम0 सेमिाल
मनदेशक – समाज मिज्ञान मिद्या शाखा,ईत्तराखण्ड मक्त ु राजनीवत विज्ञान विभाग
विश्वविद्यालय हल्द्वानी नैनीताल के न्द्रीय विश्वविद्यालय,गढिाल
प्रो0 दुगााकान्ि चौधरी प्रो0 सिीश कुमार
राजनीवत विज्ञान विभाग राजनीवत विज्ञान विभाग
श्रीदेि समु न विश्वविद्यालय आवन्द्दरा गााँधी मक्त
ु विश्वविद्यालय, नइ वदल्द्ली
ऋविके श पररसर, ऋविके श
डॉ0 सयू ा भान मसहिं डॉ घनश्याम जोशी
(मिशेष आममिं िि सदस्य ) ऄवसस्टेंट प्रोफे सर लोक प्रशासन
एसोवसएट प्रोफे सर राजनीवत विज्ञान ईत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय ,हल्द्वानी, नैनीताल
आलाहबाद विश्वविद्यालय
डॉ लिा जोशी आरूशी
ऄवसस्टेंट प्रोफे सर (एसी) राजनीवत विज्ञान ऄवसस्टेंट प्रोफे सर (एसी) राजनीवत विज्ञान
ईत्तराखण्ड मक्तु विश्वविद्यालय ,हल्द्वानी, नैनीताल ईत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय ,हल्द्वानी, नैनीताल
पाठ्यक्रम सिंयोजन एि सम्पादन
डॉ0 सयू ा भान मसहिं आरूशी
एसोवसएट प्रोफे सर राजनीवत विज्ञान ऄवसस्टेंट प्रोफे सर (एसी) राजनीवत विज्ञान
आलाहबाद विश्वविद्यालय ईत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय ,हल्द्वानी, नैनीताल
इकाई ले ख क इकाई सिं ख्या
डॉ. विजय प्रताप मल्द्ल,राजनीवत विज्ञान प्रिक्ता ,जे.एल.नेहरू पी.जी.कालेज बाराबक ं ी 1-2
डॉ. डी.के .पी.चौधरी प्रोफे सर राजनीवत विज्ञान श्रीदेि समु न विश्वविद्यालय ऋविके श कै म्पस ऋविके श 3,5,6
प्रो.राजीि कुमार वसंह , राजनीवत विज्ञान,के न्द्रीय वि.वि. हररयाणा 7-8
डॉ. ऄजीत कुमार ,ऄवसस्टेंट प्रोफ़े सर राजनीवत विज्ञान के .एन.अइ.पी.एस.एस.सल्द्ु तानपरु 9
वनयवत राित,ऄवसस्टेंट प्रोफे सर (एसी) राजनीवत विज्ञान,ईत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय ,हल्द्वानी 10
डॉ0 गौरि विपाठी ऄवस0 प्रोफे सर, राजनीवत विज्ञान,राजकीय पी0 जी0 कॉलेज, लालगजं वमरजापरु 11
आई.एस.बी.एन. -----------
कापीराइट @ ईत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय
प्रकाशन ििष -2023
Published by : ईत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय,हल्द्वानी, नैनीताल 263139
Printed at :------------------------------------
सिंस्करण :2023, सीवमत वितरण हेतु पिू ष प्रकाशन की प्रवत।
सिाामधकार सरु मिि | इस प्रकाशन का कोई भी अिंश ईत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय की वलवखत ऄनमु वत वलए विना वमवमयो्रफफ
ऄथिा वकसी ऄन्द्य साधन से पनु ः प्रस्तुत करने की ऄनमु वत नहीं है
मुमिि प्रमियािं
अनुक्रम

आधमु नक राजनीमिक मिचारक िी.ए.सी-05 , पष्ठृ सख्


िं या

आकाइ 1. मनु 1-15


आकाइ 2. कौवटल्द्य 16-50
आकाइ 3. राजा राम मोहन राय 51-71
आकाइ 4. गोपाल कृ ष्ण गोखले 72-92
आकाइ 5. दयानंद सरस्िती 93-108
आकाइ 6. स्िामी वििेकानदं 109-118
आकाइ 7. ऄरविन्द्द घोि 119-126
आकाइ 8. महात्मा गााँधी 127-152
आकाइ 9. दीनदयाल ईपाध्याय 153-162
आकाइ 10. डॉ भीमराि ऄम्बेडकर 163-173
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05

इकाई 1 : मनु

1.1 प्रस्तािना
1.2 ईद्ङेश्य
1.3 सामान्य पररचय
1.3.1 राज्य की ईत्पनत्त संबंधी निचार
1.3.2 राजा सबं धं ी निचार
1.3.3 शासन संबंधी निचार
1.3.4 प्रादेनशक शासन संबंधी निचार
1.3.5 निधानयका सबं धं ी निचार
1.3.6 काननू , न्याय एिं दण्ड संबंधी निचार
1.3.7 कर व्यिस्था संबंधी निचार
1.3.8 निदेश नीनत: मण्डल नसद्चान्त, षाड़गण्ु य नीनत
1.4 मनु एिं कौनिल्य: एक तल ु ना
1.5 मल्ू याकं न
1.6 सारांश
1.7 शब्दािली
1.8 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर
1.9 संदभभ ग्रन्थ सचू ी
1.10 सहायक/ईपयोगी पाठ्य सामग्री
1.11 ननबन्धात्मक प्रश्न

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 1
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
1.1 प्रस्तावना
आससे पहले की आकाइ में हमने प्राचीन भारतीय राजनीनतक नचंतन के बारे में ऄध्ययन नकया है
|नजसमें यह यह स्पष्ट होता है नक भारतीय नचन्तन का आनतहास ऄत्यानधक प्राचीन है। यह िैनदक
काल से प्रारम्भ होकर भारत में आस्लानमक शासन तक माना जाता है। यद्यनप भारतीय नचन्तन के
निषय में पाश्चात्य समीक्षको की दृनष्ट सकारात्मक नहीं रही है। आसके बािजदू भारतीय नचन्तन न
के िल यथाभथिादी हैं िरन यह बहुत हद तक अधनु नक भी है।
आस आकाइ में हम मनु के राज्य की ईत्पनत्त संबंधी निचार तथा राजा और ईसके शासन के सम्बन्ध में
नजसमें प्रादेनशक शासन का ऄध्ययन करें गे |यही नहीं आसके अगे हम मनु के निधानयका संबंधी
निचार,काननू , न्याय एिं दण्ड और कर व्यिस्था के सम्बन्ध में ऄध्ययन करते हुए निदेश नीनतका
भी ऄध्ययन करें गे |ऄतं तः हम मनु एिं कौनिल्य का तलु नात्मक ऄध्ययन प्रस्ततु करें गे |

1.2 उद्देश्य
आस आकाइ के ऄध्ययन के ईपरान्त हम मनु के -
1.राज्य की ईत्पनत्त संबंधी निचार का ऄध्ययन कर सकें गे |
2. राजा और ईसके शासन के सम्बन्ध में नजसमें प्रादेनशक शासन का ऄध्ययन करें गे |
3.निधानयका संबंधी निचार,काननू , न्याय एिं दण्ड और कर व्यिस्था के सम्बन्ध में ऄध्ययन
4.निदेश नीनत का भी ऄध्ययन करें गे |
5.मनु एिं कौनिल्य का तल
ु नात्मक ऄध्ययन करें गे |

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 2
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
1.3 सामान्य पररचय
प्राचीन भारतीय नचन्तन में सिाभनधक महत्िपणू भ नचन्तन मनु का माना जाता है। ईन्होंने ऄपनी रचना
――मनस्ु मृनत‖‖ में राजनीनतक नचन्तन प्रस्ततु नकया है। निनभन्न निद्वान आस बात को स्िीकार करते हैं
नक धमभ निषयक समस्त ज्ञान मनु के द्वारा प्रारम्भ नकया गया। ‘मनु स्मृनत‘ को नहदं ू समाज की
व्यिस्था की अधारनशला माना जाता है। प्राचीन धमभशास्त्रों में मनु स्मृनत का सिाभनधक महत्ि है।
‘मनु स्मृनत‘ के रचना काल के सन्दभभ में निद्वानों में मतैव्य नहीं है। महाभारत में भी कइ स्थानों पर
मनु का ईल्लेख अता है। डा0 िी0सी0 सरकार ‘मनस्ु मृनत‘ को इसा से 150 िषभ पिू भ की रचना
मानते हैं। मैक्स मल ू र आसे चौथी शताब्दी के बाद की रचना मानते हैं। डा0 हण्िर आसे इसा से 600 िषभ
पिू भ से ऄनधक प्राचीन नहीं मानते हैं। कुछ निद्वान आसे रामायण एिं महाभारत काल की रचना मानते
हैं। फ्ासं ीसी निद्वान रे नेनगनो मनु शब्द को ऐनतहानसकता से जोड़ने के पक्षधर नहीं हैं। ईनका मानना है
नक मनु की ईत्पनत्त मल ू धातु मन से हुइ है नजसका ऄथभ है नचन्तन, मनन और सािभभौम बनु द्च तथा
निचार। मन धातु से ही मनु तथा मानि की ईत्पनत्त हुइ है। रे नेनगनो का मत है नक नजस प्रकार िेद की
रचना का काल ननधाभररत नहीं है ईसी प्रकार स्मृनत की ईत्पनत्त के संबंध में प्रयास भी ननरथभक है।
स्मृनतया एक लम्बे काल तथा परम्परा का प्रनतनननधत्ि होता है। कुछ निद्वानों का मत है नक मनु
स्मृनत का ज्ञान मनु से नारद, नारद से माकभ ण्डेय, माकभ ण्डेय से समनु त भागभि, समनु त भागभि से भृगु
ऊनष को प्राप्त हुअ। भृगु ऊनष के द्वारा ही मनस्ु मृनत का संकलन हुअ।
आसके रचना काल के संदभभ में मतभेद ऄिश्य है परन्तु एक निनध ग्रन्थ, ननयामक ग्रन्थ के रूप में
आसकी मान्यता पर सिभसम्मनत है। भारत में गौतम एिं िृहस्पनत ने आसको सिभश्रेष्ठ बताया। जमभन
निद्वान ने तो एक स्थान पर पर नलखा है नक ――मनु स्मृनत बाआनबल की ऄपेक्षा कहीं ऄनधक ऄनपु म
ईत्कृ ष्ट और बौनद्चक ग्रन्थ है।‖‖ मैकेन्जी व्राईन के शब्दों में ―― यह नहन्दू काननू का सिाभनधक प्राचीन
ग्रन्थ है।‖‖
‘मनु स्मृनत‘ की निषय िस्तःु - मनु स्मृनत में कुल 12 ऄध्याय है। ‘मनु स्मृनत‘ का ऄध्यायिार
नििरण आस प्रकार है-
1.प्रथम ऄध्यायः- जगत की ईत्पनत, भू लोक, ऄतं ररक्ष ज्ञान, नदी, समद्रु ईत्पनत, चार िगभ ईत्पनत,
स्त्री परू
ु ष ईत्पनत अनद। कुल 111 से 119 श्लोक तथा संनक्षप्त स्मृनत सचू ी पायी जाती है।
2.नद्वतीय ऄध्यायः- धमोपदेश, श्रृनत, स्मृनत में कहे धमभ की प्रशसं ा, सदाचार, यज्ञ, संस्कार , माता-
नपता, चारों अश्रम का िणभन है।
3.तृतीय ऄध्यायः- ब्रहाचयभ की मनहमा, गृहस्थ कतभव्य, यज्ञ की मनहमा अनद का िणभन है।
4.चतभथु ऄध्यायः- मनष्ु य के ननत्यकमों का िणभन है, करने तथा न करने योग्य कायों का िणभन।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 3
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
5.पंचम ऄध्यायः- स्त्री संबंधी व्याख्या, ऄन्य नशक्षाओ ं का ईल्लेख है।
6.षष्टम ऄध्यायः- िानप्रस्थ की ऄिस्था, िानप्रस्थ की मनहमा, सन्यास अश्रम अनद का िणभन।
7.सप्तम ऄध्यायः- राज व्यिस्था, प्रशासन के ननयम, राज्य की ईत्पनत, दण्ड की ईत्पनत, कर तथा
सेना सबं धं ी ननयमों का ईल्लेख है।
8.ऄष्टम ऄध्यायः- दण्ड के ननयम, दण्ड से पिू भ छानबीन, ऄपराधों के नलये नदये जाने िाले दण्डों का
नििरण है।
9.निम,् दशम तथा ग्यारहिें ऄध्यायः- िैश्य, शद्रू ों में धमभ का ऄनष्ठु ान, प्रकार िणभ सस्ं कारों की
ईत्पनत अनद का िणभन है।
10.बारहिें ऄध्यायः- मोक्ष प्रानप्त के साधन, निनभन्न कायों के गणु -दोष पाखण्ड, गणु -दोष अनद का
िणभन है।
1.3.1 राज्य की उत्पति तिचार
‘मनु स्मृनत‘ के सातिें ऄध्याय में राज्य संबंधी निचार प्रस्ततु नकये गये हैं। आसी में राज्य की ईत्पनत
एिं साव्यिी नसद्चान्त प्रस्ततु नकये गये हैं। मनु ने राज्य की ईत्पनत इश्वर के द्वारा मानी है। आसमें कइ
जगह सामानजक ऄनंबु ध नसद्चान्त का भी अभास नदखता है।
मनु स्पष्ट करता है नक राज्य के पिू भ मानि की नस्थनत, कष्टपणू भ, ऄसहनीय थी। आस कष्ट के ननिारण के
नलये इश्वर आन्द्र, िाय,ु सयू भ, ऄनग्न, िरूण, चन्द्रमा, कुबेर, यम अनद ने सारभतू ऄश ं से राजा का
ननमाभण नकया । आन अठ ईत्कृ ष्ट तत्िों से नमलकर राजा ने न के िल मानि दख ु ों को दरू नकया िरन्
ईनके कल्याण को सनु ननश्चत नकया। आन अठ तत्िों से बना राजा निश्व रक्षक, पोषक, समृनद्चकारक
होता है। नननश्चत रूप से मनु राज्य की ईत्पनत के दैिीय नसद्चान्त का पोषक है परन्तु ईसके आस
नसद्चान्त में सामानजक समझौते के नसद्चान्त की झलक भी नदखती है। राजा सिोच्च है, िह ही सभी
के कल्याण का माध्यम है। ‗मनस्ु मृनत‘ में राजा का यह दानयत्ि है नक िह आस भनू म पर सभी
नदशाओ ं में शनं त और व्यिस्था कायम रखे।
मनु का दैिीय ईत्पनत का नसद्चान्त तथा पाश्चात्य दैिीय ईत्पनत के नसद्चान्त में ऄतं रः- प्रायः मनु के
दैिीय ईत्पनत के नसद्चान्त की तल ु ना पाश्चात्य दैिीय ईत्पनत के नसद्चान्त से की जाती है। आन दोनों में
काफी ऄतं र नदखता है। पाश्चात्य निद्वानों ने दैिीय ईत्पनत के नसद्चान्त के द्वारा राजा को ननरंकुश सत्ता
प्रदान की है।
मनु राजा को ननरंकुश सत्ता का पक्षधर नहीं है। मनु ने राजा को धमभ, नैनतकता के ऄधीन रखा है।
ईसने आस बात पर बल नदया है नक राजा सदा प्रजा का पालन करे तथा ईसकी रक्षा करे । राजा को देि
का ऄश ं बताया गया परन्तु आसमें ईसके गणु ों पर योग्यता पर बल नदया गया है न नक ईसके

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 4
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ऄनधकार, शनक्तयों एिं मनमानी पर है। यहां पर मोरबानी का कथन प्रासंनगक लगता है नक - ――राजा
को समझना चानहए नक िह धमभ के ननयमों के ऄधीन है। कोइ भी राजा धमभ के निरूद्च व्यिहार नहीं
कर सकता है। धमभ राजाओ ं एिं मनष्ु यों पर एक समान ही शासन करता है। आसके ऄनतररक्त राजा
राजनीनतक प्रभु जनता के भी ऄधीन है। िह ऄपनी शनक्तयों के प्रयोग में जनता की अज्ञा पालन की
क्षमता से सीनमत है।
सालेिोर के शब्दों में-―― मनु ने ननःसंदहे यह कहा है नक जनता राजा को गद्ङी से ईतार सकती है और
ईसे मार भी सकती है। यनद एिं ऄपनी मख ू तभ ा से जनता को सताता है।‖‖
मनु ने स्पष्ट नकया है नक राजा सभी ननयमों एिं काननू ों से बंधा है। िह निनशष्ट है परन्तु साधारण
मनष्ु यों की तरह दण्ड भोगता है। ईसका कहना है नक यनद नकसी ऄपराध में दण्ड एक पण है तो राजा
के भगं करने पर ईसे सौ पण दण्ड नदया जाना चानहए क्योंनक राजा ऄनधक निद्वान एिं योग्य है। आसके
ऄनतररक्त राजा का प्रनशक्षण, नदनचयाभ ईसे ननरंकुशता की ओर नहीं जाने देते हैं।
आस प्रकार से स्पष्ट हो जाता है नक दैिीय ईत्पनत नसद्चान्त ऄपनाये जाने के बािजदू भी मनु का राजा
ननरंकुश, स्िेच्छाचारी तथा ऄत्याचारी नहीं है। ईसके उपर काननू , नैनतकता एिं मयाभदा का ननयन्रण
है।
1.3.2 राजा संबंधी तिचार
मनु ने राजा को ऄनेक राजाओ ं के सारभतू ऄश ं से नननमभत बताया है। राजा इश्वर से ईत्पन्न है ऄतः
ईसका ऄपमान नहीं हो सकता है। राजा से द्वेष करने का ऄथभ है नक स्ियं को निनाश की ओर ले
जाना। ‗मनु स्मृनत‗ में तो यहां तक नलखा है नक राजा में ऄनेक देिता प्रिेश करते हैं। ऄतः िह स्ियं
एक देिता बन जाता है। ‗मनु स्मृनत‗ के ऄनसु ार-――ऐसा राजा आन्द्र ऄथिा निद्यतु के समान
एश्वयभकत्ताभ, पिन के समान सबके प्राणाित, नप्रय तथा रृदय की बात जानने िाला, यम के समान
पक्षपात रनहत न्यायधीश, सयू भ के समान न्याय, धमभ तथा निद्या का प्रकाश, ऄनग्न के समान दष्टु ों को
भस्म करने िाला, िरूण के समान दष्टु ों को ऄनेक प्रकार से बांधने िाला, चन्द्र के समान श्रेष्ठ परू
ु षों
को अनन्द देने िाला तथा कुबेर के समान कोष भरने िाला होना चानहए।‖‖
मनु ने राजा के गणु ों एिं कतभव्यों का निस्तृत नििरण प्रस्ततु नकया है। िह कहता है नक राजा को प्रजा
तथा ब्रारृमणों के प्रनत निशेष रूप से सिं दे नशील रहना चानहए। राजा को ऄपने आनन्द्रयों पर ननयन्रण
रखना चानहए। ईसे काम, क्रोध अनद से मक्त ु रहना चानहए। ‘मनु स्मृनत‘ में स्पष्ट नकया गया है नक
ईसे नशकार, जअ ु , नदिाशयन, परननन्दा, परस्त्री प्रेम, मद्यपान, नाच-गाना, चगु लखोरी, इष्याभ,
परनछद्रान्िेषण, किुिचन,धन का ऄपहरण अनद से बचना चानहए। मनु स्मृनत में राजा के नलये मख्ु य
ननदेश ननम्न हैं-

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 5
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
1.िह शस्त्र धन, धान्य, सेना, जल अनद से पररपणू भ पिभतीय दगु भ में हर प्रकार से सरु नक्षत ननिास करे
तानक िह शरओ ु ं से बच सके ।
2.राजा स्िजातीय और सिभगणु सम्पन्न स्त्री से नििाह करे ।
3.राजा समय-समय पर यज्ञ का अयोजन करे और ब्रारृमणों को दान करे ।
4.प्रजा से कर िसलू ी इमानदार एिं योग्य कमभचाररयों के द्वारा नकया जाना चानहए। प्रजा के साथ
राजा का संबंध नपता-परु की तरह होना चानहए।
5.राजा को यद्च
ु के नलये तैयार रहना चानहए। यद्च
ु में मृत्यु से ईसे स्िगभ की प्रानप्त होगी।
6.निनभन्न राजकीय कायों के नलये निनभन्न ऄनधकाररयों की ननयनु क्त की जाय।
7.राजा को निस्तारिादी नीनत को ऄपनाना चानहए।
8.ऄपने सैन्य बल एिं बहादरु ी का सदैि प्रदशभन करना चानहए।
9.गोपनीय बातों का गोपनीय बनाकर रखना चानहए। शरुओ ं की योजनाओ ं को समझने के नलये
मजबतू गप्तु चर व्यिस्था रखनी चानहए।
10.ऄपने मनं रयों को सदैि निश्वास में रखना चानहए।
11.राजा सदैि सतभक रहे। ऄनिश्वसनीय पर नबल्कुल निश्वास न करे और निश्वसनीय पर पैनी ननगाह
रखे।
12.राजा को राज्य की रक्षा तथा शरु के निनाश के नलये तत्पर रहना चानहए।
13.राजा को ऄपने कमभचाररयों, ऄनधकाररयों के अचरण की जाच
ं करते रहना चानहए। गलत पाने
पर ईनको पदच्यतु कर देना चानहए।
14.राजा को मृदभु ाषी होना चानहए।
मनु ने राजा की नदनचयाभ का भी िणभन नकया है। ईसने सम्पूणभ नदन को तीन भागों में बांिकर प्रत्येक
के नलये ऄलग-ऄलग कायभ ननधाभररत नकये हैं। राजा को स्नान एिं ध्यान के बाद ही न्याय का कायभ
करना चानहए। राजकायों के संबधं मे ऄपने मनं रयों के साथ तथा निदेश मामलों में ऄपने गप्तु चरों एिं
राजदतू ों के साथ परामशभ ननयनमत रूप से करना चानहए। ‘मनु स्मृनत‘ में राजा के गनतशील जीिन
की चचाभ की गइ है। आसमें राजा को सदैि सजग और सािधान रहने की अशा की जाती है।
यद्च
ु एिं संकि के समय राजा के कायभः- मनु स्मृनत में यद्च
ु के समय राजा के कतभव्यों पर प्रकाश
डाला गया है। आसमें स्पष्ट नकया गया है नक यद्च
ु के समय राजा को भयभीत नहीं होना चानहए और
परू ी तैयारी और मनोबल के साथ शरु का संहार करना चानहए। यह राजा का धमभ है नक िह शरु का

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 6
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
संहार कर मातृभनू म की रक्षा करें । ‘मनु स्मृनत‘ में स्पष्ट नकया गया है नक शांनत के समय प्रजा के
धान्य का छठा-अठिां भाग प्राप्त करे परन्तु यद्च ु के समय िह चौथा भाग भी प्राप्त कर सकता है।
अपातकाल में राजा द्वारा ऄनतररक्त कर लेना कोइ पाप नहीं है।
1.3.3 शासन संबंधी तिचार
मनु के ऄनसु ार शासन का मख्ु य ईद्ङेश्य धमभ, ऄथभ, काम की प्रानप्त में सहायक होना है। ऄतः राजा
को ऄपने सहयोनगयों के माध्यम से (मनं रयों) आस ईद्ङेश्य की प्रानप्त के नलये सदैि प्रयत्नशील रहना
चानहए। मनु स्मृनत में स्पष्ट नकया गया है नक राजा को सदैि लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना
चानहए, जो प्राप्त हो गया है ईसे सरु नक्षत रखने का प्रयास करना चानहए। राजकोष को भरने का सदैि
प्रयास करना चानहए। समाज के कमजोर एिं सपु ार लोगों को दान करना चानहए। राजा को प्रजा के
साथ परु ित िताभि करना चानहए तथा राष्रनहत में कठोर भी हो जाना चानहए। राजा को न्यायी,
नसद्चान्तनप्रय तथा मातृभनू म से प्रेम करने िाला होना चानहए।
राजा को राजकायभ में सहायता देने के नलए मनं रयों की व्यिस्था है। ‘मनु स्मृनत‘ में ――मरं ी‖‖ शब्द का
प्रयोग नहीं है परन्तु सनचि शब्द का प्रयोग कइ बार नमलता है। मनु स्मृनत में कहा गया है नक ऄके ले
अदमी से सरल काम भी मनु श्कल हो जाता है। ऄतः शासन के जनिल कायों के नलये मरं ी ननयक्त ु
नकये जाने चानहए। िे निद्वान, कतभव्यपरायण, शास्त्रज्ञाता, कुलीन तथा ऄनभु िी होने चानहए।
िह शासन कायभ में एकांत में तथा ऄलग-ऄलग तथा अिश्यकतानसु ार संयक्त ु मरंणा करनी चानहए।
मनं रयों को ईनकी योग्यतानसु ार कायभ सौंपना चानहए। यहां पर मनु स्पष्ट करता है -――सरू , दक्ष और
कुलीन सदस्य को नित्त निभाग, शनु च अचरण से यक्त ु व्यनक्त को रत्न एिं खननज निभाग, सम्पणू भ
शास्त्रों के ज्ञाता मनोिैज्ञाननक, ऄन्तःकरण से शद्च ु तथा चतरु कुलीन व्यनक्त को संनध निग्रह निभाग
का ऄनधष्ठाता बनाया जाना चानहए। मनं रपररषद के ऄमात्य नामक व्यनक्त का दण्ड निभाग, सेना
निभाग तथा राजा को राष्र एिं कोष ऄपने ऄधीन रखना चानहए। आनमें से िह ब्रारृमणों को निशेष
महत्ि देने पर बल देता है। ईसका मत है नक -―― आस पृथ्िी पर जो कुछ भी है िह ब्रारृमण ही है।
ब्रारृमण ब्ररृमा का ज्येष्ठ एिं श्रेष्ठ परु है।‖‖ मनु की मान्यता है नक मरंणा ऄत्यन्त गोपनीय होनी
चानहए। िह आसके नलए मध्यारृन ऄथिा अधी रात को आसके नलये ईपयक्त ु मानता है। ‗मनु स्मृनत‘
से यह भी पता चलता है नक ईस समय मरं ीयों का राजा के प्रनत ईत्तरदानयत्ि, मरणं ा की गोपनीयता
नमलकर ननणभय लेने की भािना तथा मरं ीयों में निभागों के बंििारे की व्यिस्था निकनसत हो गइ थी।
प्रशासननक कायों के सचं ालन के नलये िह योग्य, ऄनभु िी तथा इमानदार कमभचारी की ननयनु क्त का
पक्षधर है। भ्रष्ट ऄनधकाररयों पर पैनी ननगाह रखते हुए ईनके निरूद्च कठोर कायभिाही करने चानहए।
कमभचाररयों एिं महत्िपणू भ पदानधकाररयों पर नजर रखने के नलये गप्तु चर व्यिस्था को प्रभािी बनाया
जाना चानहए। राजदतू के सबं धं में मनु ने स्पष्ट नकया है नक ननभीक प्रकृ नत के , सिु क्ता,देश काल

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पहचानने िाले, रृदय एिं मनोभाि को पहचानने िाले, निनिध नलनपयों के ज्ञाता तथा निश्वासपार
को राजदतू बनाया जाना चानहए।

1.3.4 प्रादेतशक प्रशासन संबंधी तिचार


मनु ने प्रशसननक व्यिस्था संबंधी ननदेश ऄपनी पस्ु तक ‘मनु स्मृनत‘ में नदये है। मनु का स्पष्ट मत है
नक राजा दो, तीन, पांच और सौ गांिों के बीच ऄपना राज स्थान स्थानपत करें तथा यहां शनन्त और
व्यिस्था बनाये रखने के नलये योग्य कमभचारी ननयक्त ु करे । ‘मनु स्मृनत‘ में राज्य को क्षेरीय अधार
पर परु तथा राष्र को निभानजत नकया गया है। परु या दगु भ से अशय राजधानी से है जो चारों ओर से
सरु नक्षत सनु िधाओ ं से पूणभ तथा स्िस्थ भ-ू भाग में बसाइ जानी चानहए। शासन को व्यिनस्थत रूप से
संचानलत करने के नलये राष्र को छोिी-बड़ी बनस्तयों में निभानजत करना चानहए। ‘मनु स्मृनत‘ मे
स्पष्ट रूप से एक ग्राम, दस ग्राम, सौ ग्राम तथा एक हजार ग्रामों की ऄलग-ऄलग संगठनों की
व्यिथा है। ग्राम शासन की सबसे छोिी आकाइ है आसके ऄनधकारी को ग्रानमक कहा जाता है। मनु के
ऄनसु ार ग्रानमक का मख्ु य कायभ शनन्त और व्यिस्था बनाये रखना है। आसको ही राजस्ि एकर कर
10 ग्रामों के ऄनधकारी के पास भेजना है। 10 ग्रामों के ऄनधकारी को दशग्रामपनत कहा जाता है।
बीस ग्राम के ऄनधकारी को निशतं ी, सौ ग्रामों के ऄनधकारी को शती, तथा एक हजार ग्रामों के पनत
को सहस्त्रपनत कहा गया है। आन सभी ऄनधकाररयों के कायों के ननरीक्षण ईच्च ऄनधकारी करता है।
प्रत्येक ऄनधकारी के िेतन का भी ईल्लेख मनु स्मृनत में नमलता है। ग्रामों के ऄनतररक्त नगरों के
प्रशासन की भी व्यिस्था की गइ है। नगर ऄनधकारी को स्िाथभ नचन्तक नाम नदया गया है।
1.3.5 तिधातयका (पररषद)
मनु ने कायभपानलका के साथ ही निधानयका ऄथिा पररषद का ईल्लेख नकया है। पररषद का ऄथभ
निधानयका से नलया जाता है। मनु स्मृनत में स्पष्ट नकया गया है नक पररषद में तीन से दस तक सदस्य
होने चानहए। आन सदस्यों में से तीन िेदों के जानकार होने चानहए। िेदों की जानकारी के साथ राष्रीय
नीनतयों को नक्रयानन्ित करने की क्षमता भी होनी चानहए। यहां पर मोरिानी का कथन महत्िपणू भ है-
――पररषद ऐसे निद्वान व्यनक्तयों से नमलकर बननी चानहए नजन्होने िेदों, िीकाओ ं का ऄध्ययन नकया
हो जो ऄपने तकों के सबं धं में प्रमाण देने में सक्षम हो।‖‖
मनु स्मृनत में कुल, जानत, श्रेणी और जनपद नामक जनता की सघं ीय सस्ं था का भी ईल्लेख नकया।
आसमें यह भी बताया गया है नक आन संस्थाओ ं द्वारा बनाये गये ननयमों को िह स्िीकृ नत प्रदान करे ।

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1.3.6 कानून-न्याय एिं दण्ड व्यिस्था
मनु स्मृनत में सदैि राजा के न्यायपणू भ अचरण पर बल नदया गया है। न्याय ही दण्ड का अधार है।
मनु का यह मानना था नक दण्ड के भय के कारण ही लोग नस्थर रहते है। मनु का कहना है नक राजा
का यह कतभव्य है नक िह देश, काल, ऄपराध की गणु ता अनद पर निचार करके ही ऄपरानधयों को
दण्ड देना चानहए। मनु का मानना है नक राजा दण्ड के भय से ही शासन करता है। यनद राजा
ऄपरानधयों को दण्ड न दे तो बलिान लोग दबु भलों को िैसे ही पकाने लगेगें जैसे मछनलयों को लोहे
की छड़ में छे दकर पकाया जाता है। राजा का यह परम कतभव्य है नक िह राज्य में न्यायोनचत दण्ड की
व्यिस्था करें । राजा को सदैि तत्पर रहते हुए कुल, जानत, गण और जनपद में जो भी ऄपने धमभ से
निचनलत हो तो राजा ईन्हें यथोनचत दण्ड की व्यिस्था करता है। मनु ने दण्ड के चार प्रकार बताये है-
1. नघग्दण्ड
2. िाग्दण्ड
3. धनदण्ड
4. िधदण्ड
मनु ने दण्ड की महत्ता पर बहुत ऄनधक बल नदया है। ईसकी मान्यता है नक दण्ड के ऄभाि में राज्य
एक क्षण भी नहीं चल सकता है। मनु दण्ड को सामानजक जीिन का अधार मानता है। िह दण्ड के
महत्ि को ननम्न तकों के द्वारा नसद्च करता है-
1.दण्ड सभी मनष्ु यों का रक्षक होता है। यही कारण है नक सभी ईसका पालन करते है।
2.यह सिोच्च एिं सिभशनक्तमान होता है।
3.दण्ड की सम्पणू भ सामानजक व्यिस्था की रक्षा एिं देखभाल करता है।
4.दण्ड राज्य की संपनत की रक्षा तथा िृनद्च के नलये ऄननिायभ है।
दण्ड के सबं धं में मनु स्पष्ट करता है नक यह सिोच्च एिं सिभशनक्तमान तत्ि है। ऄतः दण्ड देने िाला
व्यनक्त राज्य में सिोच्च होता है। प्राचीन भारतीय सानहत्य में व्यक्त दण्ड संबंधी निचार को ही
सम्प्रभतु ा का अधार कहा जाता है।
काननू ऄथिा तितध सबं ध ं ी तिचार
मनु ने काननू ननमाभणके नलये पररषद ऄथिा निधानयका का ईल्लेख नकया है। पररषद के सन्दभभ में
ईसका स्पष्ट मत है नक आसका ननधाभरण बौनद्चक क्षमता से होना चानहए न नक सख्ं या के अधार पर।
ईसने स्पष्ट नकया है नक आसके दस सदस्यों में तीन िेद के ज्ञाता, एक ननिभक्ता, एक भीमांसाकर, एक

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ननसक्त, एक धमभ शास्त्र का कहने िाला तथा तीन व्यनक्त मख्ु य व्यिसायों के होने चानहए। मनु यह भी
स्पष्ट करता है नक यनद ऐसे दस व्यनक्त न नमले तो योग्य िेदों के जानकार तीन व्यनक्त ही काफी है।
न्याय संबंधी तिचार
मनु स्मृनत में न्याय व्यिस्था का निस्तृत नििेचन नकया जाता है। मनु के ऄनसु ार सामान्यतः दो
प्रकार के नििाद होते हैं - नहसं ा के कारण ईत्पन्न नििाद तथा धन संबंधी नििाद। मनु का मानना है
नक राजा को स्ियं नििादों का समाधान करना चानहए। यनद िह स्ियं न कर पाये तो योग्य ब्रारृमण
को ननयक्त ु नकया जाना चानहए। राजा द्वारा ननयक्त ु ब्रारृमण भी ऐसे तीन ऄन्य व्यनक्तयों के साथ
न्यायालय में न्याय करना चानहए। मनु ऄपेक्षा करता है नक सभी नििादों का ननणभय पणू भ ननष्पक्षता से
करना चानहए। यनद सत्य ऄसत्य से परानजत होती है तो ईसके सदस्य भी पाप से नष्ट हो जाते है। मनु
की स्पष्ट मान्यता थी नक न्यायधीश िेदों का जानकार ब्रारृमण व्यनक्त को ही होना चानहए। शद्रू ों को
यह महत्िपूणभ दानयत्ि नहीं देना चानहए। न्यायधीशों को शारीररक भाषा, मख ु संकेत तथा मनोनिज्ञान
समझने की क्षमता रखनी चानहए। जहां पर ननणभय हो ईस स्थान का सभा कहा जाता है। सभा के
न्यायधीश को सत्य की रक्षा के नलये दृढ़ प्रनतज्ञ होना चानहए। सत्यता की जांच करने के नलये
नलनखत यनु क्त तथा साक्षी अनद का परीक्षण करना चानहए। मनु ने प्रमाणों को भी दो भागों में बांिा
है-
1. मानषु प्रमाण
2. नदव्य प्रमाण
मानषु प्रमाणः- मनु ने मानषु प्रमाण को तीन भागों में बांिा है। ये मख्ु य रूप से नलनखत, यनु क्त तथा
साक्षी होते है। मनु अगे स्पष्ट करते है नक नलनखत प्रमाणों को सिाभनधक महत्ि होता है। आसमें भी यह
देखना चानहए नक बलपिू क भ तो कोइ नलनखत प्रमाण तैयार नहीं कराया गया है। मनु की स्पष्ट मान्यता
थी नक झठू बोलने िाले, सेिक, शर,ु सन्यासी, कोढ़ी के उपर निश्वास नहीं करना चानहए। साक्ष्य से
पिू भ शपथ का निधान रखना चानहए। नमथ्या साक्ष्य देने िालों को कठोर दण्ड देना चानहए। स्त्री के
नलये स्त्री साक्षी को स्िीकार करना चानहए। गिाह के रूप में ब्रारृमण गिाह को निशेष महत्ि देना
चानहए। यनु क्त प्रमाण के संबंध में मनु कहता है नक यनद नकसी व्यनक्त की नकसी चीज को कोइ 10
िषभ से ऄनधक समय से भोग कर रहा है तो िह िस्तु ईसी की हो जायेगी। आस संबंध में यह जरूर
कहता है नक सबं नं धत मामला बालक तथा पागल का नहीं होना चानहए।
नदव्य प्रमाणः- नदव्य प्रमाण में शपथ लेने, जल में डूबना, जलती ऄनग्न को ग्रहण करना अनद
सनम्मनलत नकये गये है। यह प्रमाण तभी प्रासंनगक होते है जब मानुष प्रमाण निफल हो जाते है। मनु में
न्यानयक पनु रािलोकन के तत्ि भी नमलते है। िह यह स्पष्ट करते है नक यनद राजा को लगे नक न्याय
गलत हो गया है तो िह नििाद का पनु ः ऄिलोकन कर सकता है।

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1.3.7 कर व्यिस्था सबं ंधी तिचार
करारोपण के संबंध में भी मनस्ु मृनत में व्यापक व्यिस्था की गइ है। मनु भी प्रजा के साथ परु ित संबंध
रखने का नहमायती था। ईसकी मान्यता थी नक प्रजा से थोड़ा-2 कर ही लेना चानहए। िह स्पष्ट
करता है नक कर न लेने से राजकोष खाली होता है और राज्य कमजोर होता है िही ऄत्यानधक,
दमनकारी कर नीनत से प्रजा की जड़ तथा निश्वास घिता है। कर का ननधाभरण सदैि न्यायपणू भ होना
चानहए। िह कहता है नक कर लगाने का ईद्ङेश्य निलानसता नहीं िरन् जनकल्याण होना चानहए।
मनु स्मृनत में कर की मारा का भी स्पष्ट ईल्लेख नकया गया है। मनु के ऄनसु ार पशु एिं स्िणभ का 50
िां भाग, धान्य का छठां भाग, अठिा और बारहिां भाग लेना चानहए। ईसकी मान्यता थी नक
ऄत्यानधक िृद्च, लगं ड़े तथा ऄधं ों से कर नहीं लेना चानहए। िह स्पष्ट करता है नक कारीगरों,
श्रनमकों, बोझा ढोने िालों से एक महीने में एक नदन का काम लेना चानहए। प्रजा से कर के रूप में ली
जाने िाली सामग्री को ईसने बनल कहा। व्यापाररयों से नलया जाने िाला कर शल्ु क कहलाया। नकसी
व्यनक्त से नलया गया अनथभक दण्ड ऄथिा जमु ाभना दण्ड कहलाया। ईसने आसके ऄनतररक्त सतं रण
कर, पशक ु र, अयकर का भी ईल्लेख नकया है।

1.3.8 तिदेश नीति सबं ध


ं ी तिचार
मनु ने निदेश नीनत संबंधी दो प्रमख
ु नसद्चान्तों का प्रनतपादन नकया। ये प्रमख
ु नसद्चान्त ननम्न है-
1.मण्डल नसद्चान्तः- मनु के ऄनसु ार राजा को महत्िाकांक्षी होना चानहए। ईसे सदैि ऄपनी सीमाओ ं
के निस्तार के सबं धं में सोचना चानहए। आस ईद्ङेश्य की प्रानप्त के नलये राजा को सदैि मण्डल नसद्चान्त
के ऄनसु ार अचरण करना चानहए। मनु के मण्डल नसद्चान्त का के न्द्र नबन्दु ――निजीगीषु राजा‖‖ होता
है।
मनु ने राज्य मण्डल की चार मल ू प्रकृ नतयां बतायी है। जो राजा निनजगीषु राजा की सीमा के पास
रहता हो, निनजगीषु तथा ईसके निरोनधयों में सनं ध होने पर ऄनग्रु ह करने में तथा निरोध होने पर
दनण्डत करने में समथभ हो िह राजा मध्यम है। जो निनजगीषु तथा मध्यम राजाओ ं के मध्य एकमत
होने पर ऄनग्रु ह करने तथा निरोध करने पर ननग्रह करने में समथभ हो तो िह राजा ईदासीन है। शरु
राजा तीन प्रकार के होते है- सहज शरु, कृ नरम शरु , राज्य की भनू म के पाश्वभिती शर।ु
मनु स्पष्ट करता है नक निनजगीषु राजा का चानहए नक िह शरु राजाओ ं से ऄलग-ऄलग या नमलकर
साम, दाम, दण्ड, भेद से ईनको ऄपने िश में करे । राजा को सदैि यह प्रयास करना चानहए नक िह
शरओ ु ं की कनमयों को पता कर ऄपनी तैयारी करे । साथ ही िह सम्पणू भ तैयारी को गोपनीय बनाकर
रखने पर बल देता है।

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2.षाड़गण्ु य नीनतः- मनु की यह मान्यता है नक राजा को छः नीनतयों का पालन करते हुए न के िल
ऄपने राज्य की रक्षा करनी चानहए िरन् सीमाओ ं का निस्तार भी करना चानहएं िह साम, दाम, दण्ड,
भेद के द्वारा राष्रनहत में िृनद्च पर बल देता है। आसके नलये ईसे ननम्न छः नीनतयों को ऄपनाना
चानहए-
1. सनं ध
2. निग्रह
3. यान
4. असन
5. द्वैधीभाि
6. सश्रंय
आन छः नीनतयों का पालन मौके , पररनस्थनतयों के ऄनसु ार करना चानहए। राजा को ऐसे सभी ईपक्रमों
का प्रयोग करना चानहए नजससे शरु मध्यम तथा ईदासीन राजाओ ं की संख्या न बढ़ सके । आनकी
संख्या बढ़ने से नमर के शरु होने तथा पराधीन होने की संभािना बढ़ जाती है।
मनु की मान्यता है नक शनं तकाल में राजा को राजदतू के माध्यम से संबंध संचालन एिं नमरता को
प्राप्त करने का प्रयास करना चानहए। राजदतू के उपर ही दो राज्यों के बीच ऄच्छे संबंध बनाने की
नजम्मेदारी होती है। ऄतः राजदतू की ननयनु क्त में योग्यता, शास्त्रों का ज्ञान, िाकपिुता तथा देश प्रेम
जैसे गणु ों पर ध्यान देना चानहए। मनु के शब्दों में - ――राजा को साम, दाम, दण्ड, भेद का नीनत का
प्रयोग करके ऄपने राज्य का निस्तार करना चानहए। आस कायभ के नलये यद्च ु को ऄनं तम निकल्प के
रूप में प्रयोग में लाना चानहए।
मनु का षाड़गण्ु य नीनत का प्रािधान अपातकाल के नलये नकया गया है। सामान्य काल में राजा से
ऄपेक्षा है नक िह कूिनीनत के द्वारा नहत संिधभन करे । मनु ने यह भी स्पष्ट नकया है नक निजेता राजा
द्वारा परानजत राजा के साथ मानिीय व्यिहार करना चानहए। निजेता राजा के द्वारा परानजत लोगों के
रीनत-ररिाज, मयाभदाओ,ं परम्पराओ ं का सम्मान नकया जाना चानहए। नकसी योग्य व्यनक्त को िहां का
राजा ननयक्तु कर देना चानहए। ईससे संनध कर ईसको नमर बना लेना चानहए।

1.4 मनु और कौरिल्य के बीच तुलना


मनु और कौनिल्य प्राचीन भारत के प्रमख ु राजनीनतक निचारक थे। ईनके निचारों में ऄनेक नबन्दओ ु ं
पर समानता तथा ऄनेक नबन्दओ ु ं पर ऄसमानता नदखायी पड़ती है। दोनों ही निद्वान प्राचीन भारतीय
परम्पराओ ं रीनतयों एिं िणाभश्रम व्यिस्था को स्िीकार करते हैं। दोनों ही ब्रारृमणों को उंचा स्थान
एिं कम सजा का प्रािधान की व्यिस्था करते है। कौनिल्य सृनष्ट के सृजन के सम्बन्ध में स्पष्ट मत

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नहीं रखता परन्तु मनु का मत है नक ब्रारृमणों का जन्म ब्ररृमा के मख ु से, क्षनरयों की ईत्पनत ईनकी
भजु ाओ ं से, िैश्यों की ईत्पनत ईनके पेि से हुइ है। दोनों मानि जीिन का मख्ु य ईद्ङेश्य धमभ, ऄथभ,
काम तथा मोक्ष मानते है। दोनों ही दण्ड नीनत को स्िीकार करते है। मनु के ऄनसु ार दण्ड ही राजा है।
राज्य की ईत्पनत के सबं धं में दोनों के निचार समान है। मनु दैिीय ईत्पनत के नसद्चान्त को तो मानता
है परन्तु ईसमें समझौते की झलक नमलती है। कौनिल्य भी ईत्पनत के संबंध में समझौतािादी
नसद्चान्त स्िीकार करता है। दोनों ही साियिी नसद्चान्त (Organic Theory), को स्िीकार करते हुए
राज्य रूपी शरीर के सात ऄश ं बताये है। आनमें स्िामी, ऄमात्य, जनपद, दगु ,भ कोष, दण्ड और नमर
प्रमखु हैं। दोनों ही राजतन्र को श्रेष्ठ शासन माना है। िे राज्य को सिभ सत्ताधारी बताते है। दोनों की
राज्य का समान लक्ष्य मानते हैं। दोनों ने प्रशासन में मनं रयों की भनू मका को स्िीकार नकया है। मनं रयों
की योग्यता के संबंध में दोनों के निचार समान है। कौनिल्य ने राजनीनतक व्यिस्था पर ऄपनी पस्ु तक
ऄथभशास्त्र में व्यापक व्याख्या की परन्तु मनु ने आतनी व्यापक व्याख्या नहीं की। दोनों ने दण्ड व्यिस्था
में ब्रारृमणों को कम दण्ड देने की िकालत की है। कर व्यिस्था पर दोनों के निचार समान है। िे कर
जन कल्याण के नलये लगाने पर बल देते थे। ऄन्तराभष्रीय मामलों ऄथिा निदेश नीनत के संचालन में
दोनों ही षाड़गण्ु य नीनत तथा मण्डल नसद्चान्त का प्रनतपादन नकया।

1.5 मूल्याांकन
मनु को प्रथम मानि माना जाता है। ईनका ग्रन्थ ‘मनस्ु मृनत‘ नहन्दू धमभशास्त्र की सिाभनधक प्राचीन
रचना मानी जाती है। ईन्होंने राज्य, शासन, दण्ड, न्याय, परराष्र नीनत पर महत्िपणू भ निचार नदये।
ईनका अदशभ राजा प्लेिो के दाशभननक राजा से ऄनधक महत्िपणू भ है। मनु ने राजतंर का समथभन
नकया परन्तु ईसका राजा ननरंकुश नहीं है। मनु ने सम्प्रभतु ा, राजधमभ, प्रशासननक व्यिस्था, कर
व्यिस्था पर महत्िपणू भ निचार नदये है। राजा पर ननयन्रण तथा जनकल्याणकारी निचार एक
लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना करता है। िह मानितािादी है। ईनके निचारों के न्द्र में मानि है।
सामानजक व्यिस्था को लेकर भी बहुत ईत्कृ ष्ट निचार नदये। िे धमभ, िणभ व्यिस्था, अश्रम पर
महत्िपूणभ निचार रखते है। िे सभी के निकास एिं कल्याण पर बल देते थे।
मनु के शासन सबं धं ी निचार बहुत महत्िपणू भ है। िे ऄराजकता को समाप्त करने तथा व्यिस्था
स्थानपत करने पर बल नदया। ईन्होनें दण्ड एिं न्यायव्यिस्था पर ऄत्यानधक बल नदया। ईनका राज
के कायों के संबंध में दृनष्टकोण जनकल्याणकारी है। ईनका राजा एक अदशभ राजा है। आसके बािजदू
िह व्यिहाररक भी है। िह धूतभ एिं ननरंकुश नहीं है। मनु द्वारा प्रनतपानदत मण्डल नसद्चान्त तथा
षाड़गण्ु य नीनत अज के समय में भी प्रांसनगक है। अज दनु नया के देश निदेश नीनत का अधार आन्हीं
नसद्चान्तों को बनाते हैं। सनं ध, निग्रह, यान, यद्च
ु सबं धं ी निचार मनु की ऄमल्ू य देन है जो नक ईन्हें
राजनीनत शास्त्रों में ऄमर कर देता है ।
ऄभ्यास प्रश्न -

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1. मनु की रचना का क्या नाम था?
2. मनु द्वारा प्रनतपानदत राज्य की ईत्पनत का नसद्चान्त क्या है?
3. मनु नकस प्रकार की शासन प्रणाली का समथभक था?
4. मनु िणभ व्यिस्था का समथभक था। सत्य/ऄसत्य
5. मनु द्वारा प्रनतपानदत षाड़गण्ु य नीनत तथा मण्डल नसद्चान्त नकस से सम्बनन्धत है?

1.6 साराांश
मनु प्राचीन भारतीय नचन्तन के मख्ु य निचारक है। ईन्होंने ऄपनी कृ नत ‘मनु स्मृनत‘ में राजनीनतक
निचार प्रस्ततु नकये। मनु ने राज्य की ईत्पनत के सम्बन्ध में दैिीय ईत्पनत के नसद्चान्त को ऄपनाया।
ईनका दैिीय ईत्पनत का नसद्चान्त में समझौतािादी तत्ि नमलते हैं। मनु ने राजतन्र का समथभन नकया
परन्तु ईनका शासक ननयन्रणनिहीन न होकर सयं नमत है। ईसे अशा की जाती है नक िह काननू ों का
पालन करे तथा रीनतयों एिं परम्पराओ ं से संयनमत है। राज्य के संबंध में मनु राज्य रूपी शरीर की
बात करता है। िह राज्य के सात ऄगं ों का साप्तागं नसद्चान्त देता है। मनु ने आन ऄगं ों में राजा को
सिाभनधक महत्िपूणभ माना है। प्रशासन को मनु ने कइ भागों में बांिा है। मनु दण्ड एिं न्याय की
व्यिस्था का भी िणभन करता है। ईसका दण्ड संबंधी नसद्चान्त बहुत व्यिहाररक एिं यथाभतिादी है।
न्याय सबं धं ी निचार बहुत व्यापक है नजसमें न्याय के निनभन्न पहलओ ू ं का व्यापक िणभन नकया गया
है। मनु ने निदेश नीनत के संचालन में मण्डल नसद्चान्त एिं षाड़गण्ु य नीनत को नदया है। आसमें निनभन्न
पररनस्थनतयों में राजा द्वारा ऄलग-ऄलग नीनतयां ऄपनाने पर बल नदया गया है। यह निदेश नीनत के
ननधाभरण का एक व्यिहाररक नसद्चान्त है। यह बदलते निश्व पररदृश्य में बदलती नीनत द्वारा राष्रनहत
के संिधभन का एक यथाभतिादी समाधान है जो अज के भमू ण्डलीकरण के दौर में भी प्रासंनगक है।
मनु द्वारा प्रस्ततु ईपरोक्त नसद्चान्त बहुत प्रासं नगक है जो मनु को ऄमर बना देती है।

1.7 शब्दावली
साियिी नसद्चान्तः- आस नसद्चान्त में राज्य एक जीिधारी मानते हुए ईसके निनभन्न ऄगं ों की कल्पना
की जाती है ।
दैिीय ईत्पनतः- आसके ऄन्तभगत राज्य की ईत्पनत इश्वर के द्वारा मानी जाती है। आसमें यह स्िीकार
नकया जाता है नक राज्य को इश्वर ने बनाया है।

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1.8 ाऄभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. मनु स्मृनत , 2. दैिीय ईत्पनत का नसद्चान्त, 3.प्रजातन्र, 4. सत्य,
5.निदेश नीनत के संचालन से

1.9 सांदर्भ ग्रन्थ सूची


1. राि एम0िी0 कृ ष्णा, स्िडीज आन कौनिल्या
2. समस्त्रे अर0, कौनिल्यस का ऄथभशास्त्र
3. परमात्मा शरण, प्राचीन भारत में राजनीनतक निचार एिं समस्यायें
4. िमाभ, िी0पी0, प्राचीन भारतीय नचन्तन

1.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामग्री


1. िेनी प्रसाद, नद स्िेि आन एननसएिं आनण्डया
2. श्यामलाल पाण्डेय, कौनिल्य की राज व्यिस्था

1.11रनबधात्मक प्रश्नाः-
1. मनु के राजनैनतक निचारों पर एक ननबन्ध नलनखये।
2. मनु के निदेश नीनत संबंधी निचारों का अलोचनात्मक परीक्षण कीनजये।
3. मनु के राजनैनतक निचारों का ितभमान में प्रासनगकता स्पष्ट करते हुए एक ननबधं नलनखये।
4. मनु के निचारों का अलोचनात्मक परीक्षण कीनजये।

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इकाई -2 : कौटिल्य

2.1 प्रस्तािना
2.2 ईद्ङेश्य
2.3 राज्य की ईत्पनत्त
2.3.1 राज्य के कायभ एिं स्िरूप
2.3.3 राजा सबं धं ी निचार
2.3.4 साप्तांग नसद्चान्त
2.3.4.1 निनभन्न ऄगं ों का तल
ु नात्मक महत्ि
2.3.5 मरं ी पररषद ऄथिा ऄमात्य संबधं ी निचार
2.4 प्रशासननक व्यिस्था
2.5 काननू एिं न्याय संबंधी निचार
2.6 दण्ड एिं गप्तु चर संबंधी निचार
2.7 निदेश नीनत संबंधी निचार
2.8 मण्डल नसद्चान्त
2.9 षाड.गण्ु य नीनत
2.10 मल्ू यााँकन
3.11 कौनिल्य एिं मैकयािेली
2.12 कौनिलय एिं यनू ानी निचारक
2.13 साराश ं
2.14 शब्दािली
2.15 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर
2.16 सदं भभ ग्रन्थ सचू ी
2.17 सहायक/ईपयोगी पाठ्यसामग्री
2.18 ननबधं ात्मक प्रश्न

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2.1 प्रस्तावना
प्राचीन भारतीय राजनीनतक निचारकों में कौनिल्य का स्थान बहुत महत्िपणू भ है। साधारण ब्राहमण
पररिार में जन्म के बािजदू ऄपनी योग्यता,मेधा,क्षमता तथा साहस से न के िल ऄपना मक ु ाम
स्थानपत नकया िरन् ऄपनी सगं ठन क्षमता, कूिनीनत, शौयभ से नंदिश
ं का नाश नकया। ईन्होंने ऄपनी
दरू दृनष्ट से नंदिश
ं के ऄत्याचार से भारतीय जनमानस को मक्त
ु कराया साथ ही चन्द्रगप्तु मौयभ को
स्थानपत करते हुए भारतीय राजनीनतक एकीकरण के द्वारा एक सशक्त राजनीनतक सत्ता की स्थापना
की।
निद्वानों का मत था नक कौनिल्य का जन्म 400 इ0 पिू भ तक्षनशला के एक गरीब पररिार में हुअ था।
ईनको कइ नामों से पक ु ारा जाता था नजसमें निष्णगु प्तु , चाणक्य, कौनिल्य प्रमख
ु थें। कौनिल्य ने
नालदं ा निश्वनिद्यालय में नशक्षा ग्रहण की। नशक्षा समाप्त होने के साथ िह िहीं प्राध्यापक हो गये।
समार् ि महानंद द्वारा सभा में नकये गये ऄपमान ने ईसे न के िल झकझोर नदया िरन् ईसे सनक्रय
राजनीनत में धके ल नदया। नन्द बंश के नाश होने के बाद मौयभ िश ं की स्थापना हुइ। नसकन्दर के जाने
के बाद कौनिल्य ने पंजाब के राजाओ ं से मैरी कर यनू ाननयों को देश से ननकाल नदया।
भारतीय राजनीनतक दशभन में कौनिल्य का महत्िपणू भ स्थान है। कौनिल्य ने ऄपनी कृ नत ――ऄथभशास्त्र‖‖
के द्वारा शासन संचालन , राजा के ऄनधकार , कतभव्य का व्यापक नचरण नकया है। ईसने प्रजा नहत
के नलये राजा को कठोर पररश्रम एिं कड़े ननयम बनाने की िकालत की। िह प्राचीन भारत का
संभितः पहला निद्वान था नजसने राजनीनतक नसद्चान्तों का िणभन नकया। कौनिल्य के द्वारा प्रस्ततु
साप्तांग नसद्चान्त ,मण्डल नसद्चान्त तथा षाडगण्ु य नसद्चान्त राजनीनत शास्त्र को ईसकी ऄमल्ू य देन है।
ईन्होंने ऄपने ग्रन्थ ――ऄथभ शास्त्र‖‖ में आन नसद्चान्तों का िणभन नकया है। ईनके ग्रन्थ में प्रन्द्रह
ऄनधकरण एक सौ ऄस्सी प्रकरण , एक सौ पचास ऄध्याय तथा छः हजार श्लोक है। आसमें राजनीनत
के ऄनतररक्त , दशभन,नशक्षाशास्त्रों, नीनत शास्त्र, सैन्य शास्त्र, रसायन शास्त्र , आजं ीननयररंग अनद का
िणभन नकया गया है।

2.2 उद्देश्य
आकाइ के ईद्ङेश्यः- आकाइ के ननम्न ईद्ङेश्य है-
1.प्राचीन भारतीय नचन्तन के गौरि से निद्यानथभयों को परीनचत कराना ।
2.आसके द्वारा हम कौनिल्य के निनभन्न नसद्चान्तों को जानने का प्रयास करें गें ।
3.कौनिल्य के निचारों के माध्यम से भारत के राजनीनतक एकीकरण में ईनके योगदान को जानने का
प्रयास करे ग।ें

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4.कौनिल्य के निचारों के ऄध्ययन से अदशभ राजा के कायभ, ईसके ऄनधकार तथा ईस पर स्थानपत
ननयन्रण को समझने का प्रयास करें गे ।
5.कौनिल्य के ऄध्ययन के द्वारा राजनीनत के व्यिहारिादी पक्ष (यथाभतिाद) को जानने का प्रयास
करे गें ।

2.3 राज्य की उत्परत्त


कौनिल्य ने राज्य की ईत्पनत्त के सबं धं में सामानजक समझौते के नसद्चान्त से नमलते - जल
ु ते निचार
नदये है। ईनका मानना है नक राज्य से पिू भ समाज में ऄराजकता, मत्स्य न्याय ऄथिा नजसकी लाठी
ईसकी भैंस की तरह की नस्थनत थी। आस नस्थनत में सभी परे शान थे। ऄपने जीिन, संपनत की रक्षा के
नलए लोगों ने मनु को ऄपना राजा बनाया। शांनत और व्यिस्था बनाये रखने के नलए लोगों ने ईपज
का 1/6 भाग कर के रूप में देने लगे। व्यापार में 1/10 भाग तथा सोने से होने िाले अय का भी कुछ
भाग प्राप्त करने लगे।
कौनिल्य ऄपनी पस्ु तक ―― ऄथभशास्त्र ‖‖ में स्पष्ट करता है नक राजा जनकल्याण में कायभ करे गा तथा
लोग कोष में ऄपना ऄश ं तभी करें गे जब ईनकी सरु क्षा, कल्याण अनद राजा द्वारा सनु ननश्चत नकया
जायेगा। आस प्रकार कौनिल्य ने राज्य की ईत्पनत्त में जन स्िीकृ नत का निचार नदया है।
कौनिल्य का राज्य की ईत्पनत्त का निचार समझौतािादी निचाराकों हाव्स, लाक तथा रूसों से मेल
खाता है। ईनका मानि भी स्िाथी, झगड़ालू है जो ऄपने स्िाथभ की पनू तभ के नलये दसू रे को नक
ु सान
पहुचाँ ाने में नहीं नहकचता है। मानि जीिन पर अये संकि, ने सभी को नमलकर व्यिस्था सनु ननश्चत
करने पर नििश नकया।
कौनिल्य ने राजा पर जन कल्याण का ऄकं ु श लगाया है। ईसने अशा की है नक जन स्िीकृ नत से
ऄनस्तत्ि में अया राजा ऄपने को बनाये रखने के नलये सदैि प्रयासरत रहता है। कौनिल्य ने
――राजकोष‖‖ पर जनता का ननयन्रण माना है। ईसकी स्पष्ट मान्यता थी नक नबना जन स्िीकृ नत के
नया कर नहीं लगाया जा सकता है। िह राजा को पणू भ अजादी नहीं देता िरन् ईस पर जनस्िीकृ नत
का बंधन लगाता है।

2.3.1 राज्य के कायय एिं स्िरूप


कौनिल्य राज्य के स्िरूप के संबंध में साव्ययी रूप में निचार रखते है। ईनकी स्पष्ट मान्यता है नक
राज्य सात ऄगं ों जैसे स्िामी, ऄमात्य, जनपद, दगु ,भ कोष, दण्ड और नमर से नमलकर बना है। ईसकी
मान्यता है नक यह अिश्यक ऄगं है। कौनिल्य के साव्ययी निचारों से पिू भ की भारतीय नचन्तन में

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आसकी झलक नमलती है। ऊग्िदे में जहां आसकी झलक नमलती है िहीं यजिभु दे में कहा गया है नक
निराि परू
ु ष की पीठ राष्र है और ईसकी ईदर पीठ, जांघ तथा घिु ने अनद ईसकी प्रजा है।
कौनिल्य द्वारा प्रस्ततु साियिी नसद्चान्त पणू तभ ः स्पष्ट और मौनलक है। आसका ईद्भि ऊग्िदे के परू
ु ष
ईनक्त में नमलता है। कौनिल्य ने ऄपने सात ऄगं ों में राजा को सिाभनधक महत्ि नदया है। राजा के बाद
मरं ी या ऄमात्य है जो ईसे परामशभ देते है। ईनकी सहायता से ही राज्य का संचालन संभि हो पाता
है। दगु भ राज्य की सरु क्षा का किच है। जनपद ऄथिा भ-ू भाग राज्य के ऄनस्तत्ि का भैनतक अधार
है। जन कल्याण के नलए भरा हुअ कोष अिश्यक है। आसके ऄनतररक्त दण्ड भी राज्य का अिश्यक
ऄगं है क्योंनक नबना भय के काननू का पालन सनु ननश्चत कराना ऄसभं ि है। कौनिल्य आसमें नमर को
भी स्थान देता है। अधनु नक समय में जनसंख्या, नननश्चत भ-ू भाग , सरकार तथा सम्प्रभतु ा को राज्य
का ऄगं माना जाता है परन्तु कौनिल्य ने आसे साथ मानते हुए आसमें कोष, दगु भ नमर को जोड़ा है।
कौनिल्य ने राज्य को पनु लस राज्य नहीं माना है। िह राज्य के व्यापक कायों की िकालत करता है।
ईसका मानना है नक राज्य को व्यनक्त के पणू भ निकास में सहायता करना चानहए। ईसकी मान्यता थी
नक आस परम् ईद्ङेश्य को पाने के नलये राज्य को सभी यत्न करने चानहए। राज्य के द्वारा नागररकों में
देशभनक्त और कतभव्य परायणता भरने के प्रयास करने चानहए। ईसका मानना था नक राज्य द्वारा जन
कल्याण के सभी कायभ करने चानहए। कौनिल्य नागररक सरु क्षा, जनकल्याण को अिश्यक मानता
था। िह निदेशी राष्रों पर पैनी नजर रखने की भी िकालत करता था। कौनिल्य के ऄनसु ार राज्य के
प्रमख
ु कायभ ननम्न है-
1. राज्य की सरु क्षा करना।
2. शांनत और व्यिस्था बनाये रखना।
3. प्रजा की िाह्य और अतं ररक संकिों से रक्षा करना।
4. देश की सीमाओ ं का निस्तार करना।
5. कृ नष को ईन्नत करने का सदैि प्रयत्न करना।
6. पशओ
ु ं का संरक्षण और संिद्च
भ न करने का प्रयत्न करना।
7. व्यापार को बढ़ािा देना।
8. िनों का निस्तार तथा कल-कारखानों का प्रसार करना।
9. सामानजक, शैक्षनणक कायों को करना।

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राजा एिं सेना संबंधी कायभः- कौनिल्य राज्य के सात ऄगं ों में राजा को सिोच्च स्थान प्रदान करता
है। िह शासन की धरु ी के समान है। िह शासन को प्रभािी बनाने तथा जनकल्याण को सनु नश्चत
करने का माध्यम है।
राजा के गणु ः- कौनिल्य ने राजा के अिश्यक गणु ों का निस्तृत नििरण नदया है। ईसके ऄनुसार राजा
को कुलीन, स्िस्थ, शास्त्र का ऄनसु रण करने िाला होना चानहए। ईसे ऄनभगामी गणु ों, प्रज्ञा गणु ों,
ईत्साह गणु ों तथा अत्म सयंम गणु ों से यक्तु होना चानहए। ऄनभगामी गणु ों ऄन्तभगत राजा की
कुलीनता, धैयभ, दरू दशीता, सत्यिानदता, अनद अती है। आसके ऄन्तभगत राजा से यह अशा की
जाती है नक िह ईनचत , सत्य तथा शास्त्रों के ऄनरू
ु प चीजों को ग्रहण करे गा। ईत्साह गणु में राजा में
ननभीकता, तेजी एिं दक्षता से कायभ करने की अशा रखी जाती है। अत्म संयत गणु ों में राजा से
संयमी, बलिान, मृदभु ाषी तथा ईदार होने की अशा की जाती है।
कौनिल्य का मत है नक नशक्षा एिं कठोर ऄभ्यास से आन गणु ों का निकास नकया जा सकता है।
कौनिल्य का कहना था-―― नजस प्रकार घनु लगी लकड़ी शीघ्र नष्ट हो जाती है ईसी प्रकार ऄनशनक्षत
राजकुल भी नबना नकसी यद्च
ु के ऄनतशीघ्र नष्ट हो जाता है।‖‖
कौनिल्य ने नशक्षा पर बहुत महत्ि नदया है। ईन्होंने नशक्षा की व्यापक योजना प्रस्ततु की है। ईनके
ऄनसु ार मण्ु डन संस्कार के बाद िणभमाला और ऄक ं माला का ऄभ्यास कराया जाय। ईपनयन के बाद
ईसे क्रयी, िातभ, दण्ड नीनत का ज्ञान कराया जाए। िताभ के ऄध्ययन से राजा की अनथभक समस्याओ ं
को समझने की क्षमता निकनसत होती है। दण्ड नीनत में योग्य राजा ऄपने राज्य मे शांनत और
व्यिस्था लागू कर जनकल्याण सनु नश्चत करता है। अन्िीक्षकी निद्या राजा की बनु द्च को तीव्र करती
है। यह लोक ईपकार करती है। आसे राजा सख ु -दख ु में नस्थर रहता है और निचनलत नहीं होता है।
राजा की नदनचयाभः-कौनिल्य के नचन्तन में राजा का प्रमख ु स्थान है। राजा को सदैि सजग, सतभक
रहना चानहए। राजकमभ को ठीक प्रकार से करने के नलए िह नदन-रात को अठ भागों में बांि देता है।
िह प्रत्येक भाग को डेढ़ घिं े का होगा। िह नदन के प्रथम भाग में राजा के द्वारा रक्षा तथा नपछले नदनों
के अय-व्यय को देखने पर बल देता है। दसू रे भाग में िह जनता, नागररकों से नमले तथा ईनका
कल्याण सनु ननश्चत करने पर बल देता है। तीसरे भाग को स्नान, भोजन तथा स्िध्याय के नलए सरु नक्षत
करता है। चौथे भाग में कर निभाग का ननरीक्षण पर बल देता है। पाच ं िा भाग मरं ीपररषद से परामशभ
करने के नलए सरु नक्षत है। सातिें भाग में स्िेच्छा से िह कोइ कायभ कर सकता है। अठिां भाग हाथी,
घोड़े, सेना के ननरीक्षण के नलये अरनक्षत है।
आसी प्रकार रानर को अठ भागों में निभानजत नकया गया है। रानर के पहले भाग में गप्तु चरों को देख।े
दसू रे भाग में स्नान, भोजन स्िध्याय तथा तीसरे भाग में संगीत सनु ने के नलए नननश्चत करता है। चौथा
, पांचिा भाग शयन के नलए नननश्चत है। छठे भाग में जागकर नदन में संपानदत नकये जाने िाले कायभ
पर निचार करें । सातिें भाग में गप्तु मरं णा करें तथा गप्तु चरों को यथा स्थान भेज।ें अठिें भाग में

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अचायभ , परु ोनहत अनद से अाशीिाभद ग्रहण करें । आसी समय िैद्य, रसोआया, ज्योनतष से परामशभ करें ।
आन सबसे ननिृत होने के बाद दान दनक्षणा देने के बाद िह दरबार में प्रिेश करें । कौनिल्य िश
ं ानगु त
राजतंर का समथभक था। िह राजा के बाद ज्येष्ठ परु को राजगद्ङी सौंपने का पक्षधर था। यहां पर
कौनिल्य योग्य ईत्तरानधकारी का पक्षधर था। ईसकी मान्यता थी नक यनद योग्य ईत्तरानधकारी न हो तो
प्रधानमरं ी के द्वारा योग्य राजकन्या को ईत्तरानधकारी बनाना चानहए।
राजा के प्रमख
ु कायभः- कौनिल्य ने राजा के ननम्ननलनखत प्रमख
ु कायभ बताये हैः-
1. प्रजा का कल्याण के नलए प्रयास करना।
2. धमभ का पालन तथा रक्षा करना।
3. शानं त और व्यिस्था बनाये रखना।
4. प्रशासननक कायों हेतु योग्य व्यनक्तयों की ननयनु क्त करना।
5. निनध ननमाभण करना।
6. न्यानयक कायभ करना।
7. दण्ड की व्यिस्था करना।
8. अनथभक एिं िानणनज्यक कायों की ननगरानी करना।
9. राजकोष की ऄनभिृनद्च के ईपाय करना।
10. यद्च
ु के नलए सदैि तैयार रहना।
आस प्रकार स्पष्ट होता है नक कौनिल्य राजा को व्यापक शनक्तयां प्रदान करता है परन्तु िह सामानजक,
धानमभक ननयमों से बंधा हुअ है। प्रो0 ऄल्तेकर का स्पष्ट मत है नक ――कौनिल्य का राजा बहुत
लौनकक, सामानजक, धानमभक तथा अध्यानत्मक बंधनों से मयाभनदत है।‖‖
प्राचीन समय से भारतीय नचन्तन में राज्य के साव्यय रूप का ईल्लेख नमलता है। आस नसद्चान्त में
राज्य की कल्पना एक जीनित शरीर की तरह की जाती है। आस नसद्चान्त में यह माना जाता है नक
नजस प्रकार मानि शरीर निनभन्न ऄगं ों से नमलकर बना है ईसी प्रकार राज्य रूपी शरीर भी निनभन्न
ऄगं ों से नमलकर बना है। भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ ऊग्िदे में राज्य की कल्पना निराि परू
ु ष की तरह
की गइ है। कौनिल्य प्राचीन भारत का पहला निद्वान था नजसने राज्य के संबंध में आतने स्पष्ट निचार
रखे है। कौनिल्य ने राज्य संबंधी ऄपने निचार में राज्य को सात ऄगं ों का नमश्रण बताया। ईनकी
मान्यता थी नक राज्य रूपी शरीर सात ऄगं ों से नमलकर बना है। कनतपय यही कारण है नक कौनिल्य
का राज्य के सात ऄगं ों का नसद्चान्त साप्तांग नसद्चान्त कहलाया। कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक

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――ऄथभशास्त्र‖‖ के छठे ऄनधकरण के पहले ऄध्याय में राज्य के सात ऄगं ों का ईल्लेख नकया है।
ईनके ऄनसु ार सात ऄंग ननम्न हैः-
1. स्िामी ऄथिा राजा 2. ऄमात्य 3. जनपद 4. दगु भ 5.
कोष 6. दडं
7. नमर
1.स्िामी ऄथिा राजाः- कौनिल्य के सात ऄगं ों के नसद्चान्त में स्िामी ऄथिा राजा का सिाभनधक
महत्िपूणभ स्थान है। कौनिल्य की स्पष्ट मान्यता थी नक राज्य की सफलता राजा पर ननभभर करती है।
कौनिल्य को भारत में प्राचीन समय में पाये जाने िाले गणतन्रों का पयाभप्त ज्ञान था परन्तु िह योग्य
कल्याणकारी राजा का प्रबल समथभक था। कनतपय यही कारण था नक ईसने राजा की योग्यता, गणु ों
तथा नीनतयों का व्यापक ईल्लेख ऄथभशास्त्र में नकया है। बी0पी0 नसंह का स्पष्ट मत है नक ――कौनिल्य
की शासन प्रणाली में राजा शासन की धरु ी है और शासन सचं ालन में सनक्रय रूप से भाग लेने और
शासन को गनत प्रदान करने में राजा का एकमार स्थान है।‖‖
कौनिल्य राजा में अदशभ रूप देखता है। ईसका राजा सिभगणु सम्पन्न एक अदशभ व्यनक्त है। कौनिल्य
के राजा संबंधी निचार प्लेिो के अदशभ राजा या दाशभननक शासक (Philosopher King) के
समान है। िह स्पष्ट करता है नक राजा ढृड़ ननश्चयी, निचारशील, सत्यिादी , िृद्चों के प्रनत सम्मान का
भाि रखने िाला, नििेकपूणभ,दरू दशी ईत्साही तथा यद्च ु में चतरु होना चानहए। ईसमें कनठन समय में
साहस न छोड़ने तथा समस्या को पकड़ने की क्षमता होनी चानहए। िह राजा में राजकोष की िृनद्च की
क्षमता रखने की क्षमता होना अिश्यक मानता है।
कौनिल्य राजा में अध्यानत्मक एिं नैनतक गणु को भी अिश्यक मानता है। ईसका मानना है नक
कुछ गणु स्िभाि से होते है परन्तु कुछ गणु ऄभ्यास, ऄध्ययन से निकनसत नकये जा सकते है।
कनतपय यहीं कारण है नक िह राजा की नशक्षा पर बहुत बल देता है। ईसकी स्पष्ट मान्यता थी नक ――
नजस प्रकार घनु लगी लकड़ी जल्द नष्ट हो जाती है ईसी प्रकार ऄनशनक्षत राजकुल नबना नकसी यद्च ु
के नष्ट हो जाते है।‖‖ कौनिल्य के ऄनसु ार राजा को दण्ड नीनत, राज्य शासन, सैननक नशक्षा, मानि
शास्त्र, आनतहास, धमभशास्त्र तथा ऄथभशास्त्र का जानकार होना चानहए। राजा को ऄपनी आनन्द्रयों पर
सदैि ऄक ं ु श रखना चानहए। कौनिल्य के सात ऄगं ों के नसद्चान्त में राजा का स्थान सिोच्च है। राजा
राज्य रूपी शरीर में मनस्तष्क के समान है। नजस प्रकार मनस्तष्क के ऄक्षमता का प्रभाि सम्पणू भ शरीर
के ऄगं ों पर पड़ता है ईसी प्रकार ऄयोग्य राजा से सम्पणू भ राज्य ही ऄस्िस्थ्य हो जाता है।
2.ऄमात्य या मरं ी:- सामान्यतः ऄमात्य का ऄथभ मरं ी से नलया जाता है। कौनिल्य ऄमात्य के
ऄन्तभगत मरं ी एिं प्रशासननक ऄनधकाररयों दोनों से रखता है। कौनिल्य का मत था नक नजस प्रकार

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एक पनहये की गाड़ी नहीं चल सकती ईसी प्रकार एक व्यनक्त सम्पणू भ प्रशासन नहीं चला सकता है।
राजा को प्रशासन में सहयोनगयों से परामशभ लेना चानहए।
कौनिल्य के ऄनसु ार सभी कायों की सफलता ऄमात्यों पर ननभभर करती है। कृ नष अनद कायों की
सफलता राजिश ं ऄन्तपाल अपनत्तयों का प्रनतिाद , ईपननिेशों की स्थापना, ऄपरानधयों को दण्ड
तथा राज करो का ननग्रह सम्पणू भ कायभ ऄमात्यों द्वारा
सम्पन्न होते है। कौनिल्य का स्पष्ट मत था नक योग्य, ऄनभु िी व्यनक्त को नबना नकसी पक्षपात के
ऄमात्य बनाना चानहए। कौनिल्य का मत है नक ईनकी चररर परीक्षा के बाद ननयनु क्त होना चानहए।
ऄमात्यों को ईनकी क्षमता के ऄनसु ार कायभ सौंपे जाने चानहए।
3.जनपदः- जनपद कौनिल्य के राज्य रूपी शरीर का तीसरा ऄगं है। कौनिल्य का जनपद से ऄथभ ईस
भ-ू भाग में ननिास करने िाले नागररकों ऄथिा ननिानसयों से है। ईसका मानना था नक जनपद के
ऄभाि में राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
कौनिल्य का स्पष्ट मत था नक दसू रे प्रदेशों से लोगों को अमनं रत कर नये जनपद स्थानपत नकये जाय।
प्रत्येक जनपद में कम से कम 100 घर तथा ऄनधक से ऄनधक 500 घर िाले गांि बसाये जाय
नजसमें नकसान एिं शद्रू ऄनधक हो। एक गांि दसू रे से दो कोस से ऄनधक दरू न हो।
जनपद के संगठन के संबंध में कौनिल्य स्पष्ट करता है नक ――अठ सौ गांिों के बीच स्थानीय , चार
सौ गािं ों के बीच द्रोणमखु , दो सौ गािं ों के बीच खाभिनिक तथा दस गािं ों के समहू के रूप में
संग्रहण की स्थापना की जाय। आस प्रकार प्रशासननक दृनष्ट से जनपद , स्थानीय, द्रोणमख
ु , खाभिनिक ,
संग्रहण और गांि में बंिा होगा। कौनिल्य राज्य के छोिे अकार में निश्वास करता था।
कौनिल्य जनपद ननमाभण की परू ी योजना देता है नजसमें प्रारम्भ में तथा सीमान्त में नकले बने हो
नजसमें ऄन्न ि पानी प्रचरु ता से हो। अपात काल में बन एिं पिभत में जा रक्षा की जा सके । जनपद के
पास शरु राजा के निरोनधयों की संख्या ऄनधक होनी चानहए। शरु राज्य कमजोर होना चानहए। ईसके
पास घने जगं ल हो जो कीमती लकड़ी, नहसं क पशओ ु ं से भरे हो। आसके ऄन्दर नदी , तालाब हो तथा
आसकी जलिायु ऄच्छी हो। ननिानसयों में नीच िगभ की अबादी ऄनधक हो तथा मेहनती लोगों की
ऄनधकता हो। ऐसा जनपद सम्पन्न जनपद होगा।
कौनिल्य ने जनपद के ननिानसयों के संदभभ में स्पष्ट नकया है नक िह ननष्ठािान , स्िानभमानी और
सम्पन्न होनी चानहए। िह सरल हदय िाली, राजा के करो को स्िेच्छा से चक ु ाने िाली होनी चानहए।
प्रजा के ऄन्दर स्ि-ऄनश
ु ासन तथा कतभव्य परायणता होनी चानहए।
4.दगु ःभ - कौनिल्य ने ऄपने ऄथभशास्त्र में दो तरह के दगु भ का िणभन नकया हैः-
1. दगु भ निधान

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2. दगु भ ननिेश
दगु भ निधान का कौनिल्य का अशय मख्ु य दगु भ से है। आसमें िह मख्ु य दगु भ के ननमाभण पर बल देता है।
दगु भ ननिेश से ईसका अशय दगु भ के ऄन्दर के भिनों तथा राज्यों के ऄन्दर महत्िपणू भ स्थानों पर
नननमभत भिनों से है।
दगु भ राज्य की रक्षात्मक अक्रामक शनक्त दोनों का प्रतीक है। प्रत्येक राज्य की सरु क्षा के नलए मजबूत
नकला अिश्यक होता है। नकले में सेना की मोचाभबंदी , अक्रमण के नलए गप्तु ननकास द्वार , गोला
बारूद , भोजन का बंदोबस्त होना चानहए।
कौनिल्य ने दगु भ को चार श्रेनणयों में बांिा हैः-
1.औदक दगु ःभ - िह दगु भ जो चारों ओर से पानी तथा तालाब से नघरा होता है िह औदक दगु भ
कहलाता है।
2.पिभत दगु ःभ - बड़ी चट्टानों से नननमभत , पिभतों पर नस्थत दगु भ पिभत दगु भ कहलाता है।
3.धान्िन दगु ःभ - ये ऐसे दगु भ होते हैं जो ऐसे मरूस्थलीय जगहों पर बने होते है जहां न तो
पानी होता और न ही पहुचनं ा असान होता है।
4.िन दगु ःभ - घने जगं लों में बना दगु भ जहां का रास्ता बेहद दगु मभ हो ईसे िन दगु भ की संज्ञा दी।
कौनिल्य की मान्यता थी नक औदक और पिभत दगु भ संकि के समय राज्य की तथा ईसके नागररकों
की रक्षा में सहायक होते हैं, जबनक धान्बन दगु भ एिं िन दगु भ सक
ं ि के समय राजा की सरु क्षा के नलए
अिश्यक एिं ऄनत ईपयोगी होते हैं।
5.कोष-
राज्य में राजा को ऄनेक काम करने होते हैं। प्रत्येक कायभ के नलए धन की अिश्यकता होती है।
ऄतः प्रत्येक राज्य में कोष ऄत्यानधक महत्िपणू भ होता है। ऄतः राजा का यह कतभव्य है नक िह कोष
की िृनद्च के नलए सदैि प्रयत्नशील रहे। कौनिल्य का स्पष्ट मत है नक धमभ, ऄथभ, काम में ऄथभ प्रधान
है। सेना, भनू म , समृनद्च अनद सभी में कोष की अिश्यकता होती है।
कौनिल्य की स्पष्ट मान्यता थी नक प्रत्येक राज्य को यद्च
ु के नलए सदैि तत्पर रहना अिश्यक है। यद्च ु
हो या न हो परन्तु राज्य को तैयार रहना चानहए। आन सभी कायों के नलए यह अिश्यक है नक राज्य
के पास पयाभप्त कोष हो। कोष से सेना एिं दगु भ दोनों की रक्षा होती है।
कौनिल्य का स्पष्ट मत था नक राजा को कोष को प्रचरु करने के नलए प्रयास करना चानहए। ईसे प्रजा
से प्राप्त ऄनाज का छठा भाग, व्यापार से दसिां, पशओ ु ं के व्यापार से प्राप्त पचासंिा भाग सदैि राजा
के द्वारा राजकोष में जमा नकया जाए। कौनिल्य स्पष्ट करता है नक -―― राजा प्रजा से आस तरह संग्रह

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करे जैसे माली बनगया से पके -पके फल लेता है। प्रजा यनद कर देने में ऄसमथभ है तो ईसे कच्चे फल
की तरह ग्रहण न नकया जाय क्योंनक ऄशक्त प्रजा से कर सग्रं ह ईसमें ऄसंतोष ऄथिा निद्रोह करने
का कारण होता है।
6.दण्ड ऄथिा सेनाः - प्राचीन भारत के सभी नचन्तकों ने दण्ड को बहुत महत्ि नदया है। कौनिल्य ने
दण्ड का प्रयोग सेना के संदभभ में नकया है। सेना राज्य की सरु क्षा की प्रतीक है। कौनिल्य का मत है
नक नजस राजा के पास ऄच्छा सैन्य बल होता है ईसके नमर तो बनते है साथ ही ईसके शरु भी नमर
बन जाते है। कौनिल्य सेना में क्षनरयों को ऄनधकानधक शानमल करने की बात करता है। ईसकी
मान्यता है नक अिश्यकता पड़ने पर ऄन्य जानतयों को भी शानमल नकया जा सकता है।
कौनिल्य की मान्यता थी नक सैननकों को स्िानभमानी होना चानहए। राजा को ईनकी बेहतर सेिा के
नलये , बेहतर िेतन तथा सनु िधा के नलए तैयार रहना चानहए। कौनिल्य ने सेना में हनस्त सेना, ऄश्व
सेना , रथ सेना तथा पैदल सेना का ईल्लेख नकया है। कौनिल्य आसमें हनस्त सेना को सिाभनधक महत्ि
देता है। दण्ड समान रूप से सभी पर लागू होता है ऄतः सभी पर समान रूप से लागू करने के लए भी
सेना ऄथिा शनक्त की अिश्यकता होती है। दण्ड ऄथिा भय के ऄभाि में सिभर ऄराजकता ईत्पन्न
हो जायेगी। कौनिल्य का मत है नक राजा को अपात काल के नलये सदैि तैयार रहना चानहए।
अपातकाल के समय नमरों की सहायता से मक ु ाबला नकया जाना चानहए। ‗कौनिल्य ने नमरों पर
निशेष बल नदया है। ईसका मानना है नक नमर िश ं परम्परागत , निश्वासी, स्थायी एिं नहतैषी होने
चानहए।

2.3.4.1तितिन्न ऄंगों का िुलनात्मक महत्ि


कौनिल्य ने राज्य के सात ऄंग बताये है। कौनिल्य का स्पष्ट मत है नक राज्य का ननमाभण आन सात
ऄगं ों से नमलकर हुअ है। ऄतः प्रत्येक ऄगं की मजबतू ी से राज्य शनक्तशाली होगा। िह प्रत्येक ऄगं
को महत्िपणू भ मानता है। आनमें परस्पर सहयोग से राज्य का सच ं ालन सचु ारू हो सकता है। राज्य के
सात ऄगं ों के संदभभ में मनु, भीष्म,शक्र
ु का मत है नक स्िामी, जनपद,दगु भ, कोष, दडं और नमर अनद
महत्ि की दृनष्ट से क्रमानसु ार है। कौनिल्य भी सापेनक्षक महत्ि की दृनष्ट से स्िामी को सिाभच्च,
सिभशनक्तशाली और महत्िपणू भ मानता है। िह सम्पणू भ शासन की अधारनशला मानता है। आसके
निपरीत अचायभ भारद्वाज ने आस मत की ईपेक्षा करते हुए स्िामी की तल ु ना में ऄमात्य को ज्यादा
महत्िपणू भ माना है। कौनिल्य ने ऄपनी रचना में स्िामी को ऄनधक महत्िपणू भ माना है। ईसने सम्पणू भ
प्रशासन के के न्द्र में स्िामी को रखा है। ईसका मानना है नक एक ऄयोग्य ऄमात्य को हिाया जा
सकता है। ईसके स्थान पर राजा नया ऄमात्य ननयक्त ु कर सकता है। िह सम्पणू भ प्रशासन की
अधारनशला राजा को मानता है। कौनिल्य ऄपने साप्तागं नसद्चान्त के द्वारा राजनीनत शास्त्र को
ऄनधक लौनकक स्िरूप प्रदान करता है।

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2.3.5 मंत्री पररषद ऄथिा ऄमात्य संबंधी तिचार
कौनिल्य ने ऄपनी रचना ‗ऄथभशास्त्र‗ में राजा के नलये मरं ीपररषद की अिश्यकता पर बल नदया।
ईनकी मान्यता थी नक राजा एक रथ है जैसे रथ एक पनहये से नहीं चल सकता, ईसी प्रकार मनन्रयों
की सहायता के नबना ऄके ला राजा राज्य का संचालन नहीं कर सकता। ऄतः राजा के नलये यह
अिश्यक है नक िह योग्य ऄमात्यों का चनु ाि करें । कौनिल्य प्रत्येक कायभ के संचालन पर सद्भािना
पर निशेष ध्यान देता है।
महाभारत में स्पष्ट नकया गया है नक नजस प्रकार पशु बादलों पर, बाहम्ण िेदों पर , पत्नी पनत पर
ननभभर करती है , ईसी प्रकार राजा भी मरं ीपररषद पर ननभभर करता है। मनु ने भी मरं ीपररषद की
ऄननिायभता पर बल नदया है। कौनिल्य ने भी मरं ीपररषद की ऄननिायभता पर बल नदया।
मरं ीपररषद का ननमाभणः- मरं ीपररषद के गठन में कौनिल्य का सिाभनधक जोर ऄमात्यों का योग्यता पर
है। आसके नलये ईसने ऄत्यंत कठोन ननयम एिं मापदण्ड तय नकये हैं। ईसका मानना है नक क्षमतािान,
योग्य और नबना दाग का व्यनक्त को मरं ीपररषद में स्थान नदया जान चानहए। बेनी प्रसाद के शब्दों में
――कौनिल्य के ऄनसु ार ननष्कलक ं , व्यनक्तगत जीिन, बौनद्वक चातयु भ, ईनचत ननणभय , कतभव्य की
ईच्च भािना, लोकनप्रयता मरं ीपररषद के नलये अिश्यक योग्यतायें होने चानहए।
मरं ीपररषद में मनन्रयों की संख्या नकतनी होगी ईसका अकार क्या होगा आस पर कौनिल्य स्पष्ट राय
नहीं रखते। मनु ने ऄमात्यों की संख्या 12, िृहस्पनत ने सोलह, शक्र ु ाचायभ ने बीस मनन्रयों की संख्या
सझु ायी है। कौनिल्य आस सख्ं या के सदं भभ में मौन है। िे कायभ के ऄनपु ात तथा योग्यता के अधार पर
संख्या नननश्चत करने पर बल देता है।
ऄमात्यों की ननयनु क्तः- आस संबंध में ईसने सबसे पहले निनभन्न अचायों के पर प्रकि नकये ।
कौनिल्य ने अचायभ भारद्वाजक, निशालरक्ष, पराशर, िािव्यानध और बाहुदतं ीपरु के निचारों का
निश्लेषण नकया । कौनिल्य की मान्यता थी नक निद्या, साहस, गणु , दोष, काल और पार का निचार
करके ही ऄमात्यों की ननयक्त
ु करें ।
कौनिल्य की मान्यता थी नक ऄथभशास्त्र के निद्वान, बनु द्चमान, स्मरणशनक्त सम्पन्न, चतरु , ईत्साही,
प्रभािशील, सनहष्ण,ु पनिर, स्िामीभक्त, सश
ु ील, समथभ, स्िस्थ, धैयभिान और द्वेषिृनत्त रनहत परू ु ष
ही प्रधानमरं ी के योग्य है।
ऄमात्यों के अचरण की परीक्षाः- कौनिल्य ने ऄमात्यों के अचरण की समीक्षा पर निशेष बल
नदया। कौनिल्य का मत है नक धमभ, ऄथभ, काम तथा भय के अधार पर ऄमात्यों के अचरण का
परीक्षण करना चानहए। ईक्त चारों कसौनियों पर सफल होने के बाद ही ऄमात्य को मरं ीपररषद में
ननयक्त
ु करना चानहए।

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मरंणा एिं गोपनीयताः- कौनिल्य ने गोपनीय मरंणा पर निशेष बल नदया। ईसकी मान्यता थी नक
मरंणा का गोपनीय न होना राजा एिं मरं ीपररषद के नलये घातक होता है। नजस प्रकार कछुअ ऄपने
किच को समेिे होता है और के िल अिश्यकता होने पर ईन्हें बाहर करता है। ईसी प्रकार भी मरं णा
गोपनीय होनी चानहए। मरं ी की सरु क्षा के नलये यह अिश्यक है नक मरं णा का स्थान ऄत्यतं सरु नक्षत
हो। राजा एिं ऄन्य मरं ी आतने संयनमत और निचारमान हो नक नकसी भी चेष्ठा से भी गोपनीयता भगं
न हो। मरं णा का स्थान ऐसा होना चानहए जहां पक्षी भी झाक ं न सके तथा अिाज बाहर न जाये।
कौनिल्य का मत था नक मरं णा सदैि तीन-चार लोंगो के साथ की जानी चानहए। एक ही व्यनक्त से
बार-बार मरं णा करने से कइ बाद संदहे एिं कनठन प्रश्न का सही हल नहीं ननकल पाता है। आसमें कइ
बार सबं नं धत मरं ी प्रनतद्वन्द्वी के रूप में कायभ करने लगता है। कौनिल्य तीन से चार मरं ी का पक्षधर है।
आससे ऄनधक मरं ी होने पर प्रायः सरु क्षा एिं ऄननणभय की समस्या ईत्पन्न होती है।
मरं ीपररषद के कायभः- कौनिल्य के ऄनसु ार मरं ीपररषद के ननम्न कायभ हैः-
1.राजा को परामशभ देना।
2.सकं ि के समय राजा की रक्षा करना।
3.राजा को भ्रष्ट, ऄनैनतक कायों से बचाना।
4.राजा के गप्तु भेदों को नकसी के समक्ष ईजागर न करें ।
5.राजा की मृत्यु का समाचार भी बहार नहीं जाना चानहए।
राजा एिं मरं ीपररषद का संबंधः- राजा एिं मरं ीपररषद के संबंधों के निषय में कौनिल्य का निचार है
नक राजा सामान्यतः मरं ीपररषद के बहुमत के अधार पर कायभ करें । आसके साथ ही यनद परामशभ
ईनचत न हो तो िह स्िनििेक से ननणभय ले सकता है। कौनिल्य ने अगे यह भी स्पष्ट नकया है नक
ऄयोग्य, ऄकभ मण्य, निलासी राजा होने पर ईस पर मरं ीपररषद का ननयन्रण अिश्यक है। भारत के
प्राचीन ग्रन्थों में आसका ईल्लेख नमलता है। ―नदव्यािदान‖ में आस बात का ईल्लेख नमलता है जब
बौद्च धमभ के प्रनत ऄनत श्रद्चालु राजा ऄशोक ने बौद्च संघों को ऄधं ाधधु दान देना शरू ु कर नदया
और राजकोष खाली होने लगा तो मनं रयों ने यिु राज के साथ नमलकर महान ऄशोक को ऐसा करने
से रोका था। कौनिल्य ने स्ियं मौयभ साम्राज्य के महामरं ी के रूप में नजस प्रकार कायभ नकया ईसमें भी
महामरं ी एिं मरं ीपररषद की भनू मका का महत्ि स्पष्ट होता है।

2.4 प्रशासरनक व्यवस्था


राजा एिं मनं रपररषद के ऄनतररक्त प्रशासननक व्यिस्था के व्यिहाररक संचालन के संबंध में कौनिल्य
ने स्पष्ट निचार रखे है। कौनिल्य ―प्रजा प्रेमी‖ राज्य की कल्पना करता है। नजसमें शासन का मख्ु य
ईद्ङेश्य जन कल्याण करना है। यही कारण है नक बड़े कायों के सच ं ालन के नलये ऄनेक प्रशासननक

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सहयोनगयों की अिश्यकता पर बल देता है। िह राजा को सम्पणू भ प्रशासन का प्रधान मानता है परन्तु
प्रशासन हेतु ऄठारह (18) ऄन्य प्रशासननक ऄनधकाररयों का िणभन करता है। कौनिल्य ने ईन्हें
ऄठारह तीथों की संज्ञा दी है। ये ऄठारह तीथभ आस प्रकार हैः-
1.मरं ीः- राज्य प्रशासन में राजा के बाद मरं ी का प्रमख
ु स्थान होता है। मरं ी राजा का निश्वस्त व्यनक्त
होता है। िह राजा को परामशभ देता है।
2.परु ोनहतः- राज्य प्रशासन में मरं ी के बाद परु ोनहत का स्थान होता है। परु ोनहत राजा को धमभ एिं
नीनत के सबं धं में सक
ं े त देता है।
3.सेनापनतः- सेनापनत की राज्य के प्रशासन में महत्िपणू भ भनू मका होती है। िह सेना का प्रधान होता
है। िह सेना का गठन करता है तथा संकि के समय में सेना का संचालन करता है।
4.दौिाररकः- दौिाररक राजमहल में रक्षकों का प्रधान होता है। ईसी के द्वारा राजा के पास कोइ
प्राथभना पर पहुचं ता है।
5.ऄतं िेनशकः- ऄतं िेनशक राजा का ऄतं परु में प्रधान ऄगं रक्षक होता है। राजा की बीमारी की
ऄिस्था में िह राजा की नदनचयाभ से सबं नं धत कायों का सपं ादन करता है।
6.प्रशास्ताः- प्रशास्ता एक पदानधकारी होता है जो सेना को ननयन्रण में रखता है। िह शनं त और
व्यिस्था के नलये नजम्मेदार होता है।
7.यिु राजः- यिु राज राजा का ज्येष्ठ परु और राज्य का ईत्तरानधकारी होता है।
8.समाहतीः- कौनिल्य की प्रशासननक व्यिस्था में समाहती को एक महत्िपणू भ स्थान प्राप्त है। ईसका
स्थान नित्तमरं ी के समान है। ईसका मख्ु य कायभ िानषभक बजि प्रस्ततु करना होता है। िह सम्पणू भ
अय-व्यय का लेखा-जोखा रखता है। िह राज्य के अय को बढ़ाने के नलये कर लगाने तथा ईसकी
िसल ू ी की व्यिस्था करता है।
9.सनन्नधाताः- सनन्नधाता राज्य का एक ईच्च पदानधकारी होता है। िह राजकोष का ऄध्यक्ष होता
है। ईसका मख्ु य कायभ राजकोष का भनलभांनत संग्रह और पयभिक्ष
े ण करना है।
10.प्रदेष्टा अयक्त
ु ः- प्रदेष्टा अयक्त
ु एक ईच्च पदानधकारी होता है। िह कायभपानलका तथा न्यानयक
दोनों कायों का संपादन करता है। ईसका मख्ु य कायभ ऄपराधों का दमन करना तथा जो राज कर नहीं
देते ईनसे कर िसल ू करना या दडं देना होता है।
11.नायकः- यह सेना का सच ं ालक होता है। िह एक सैननक पदानधकारी होता है।
12.पौर व्यािहाररकः- पौर व्यािहाररक नगर का न्यानयक पदानधकारी होता है।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
13.कमाभनतकः- कमाभनतक खान ईद्योगों का ऄनधकारी होता है। िह राज्य के कल कारखाने एिं
ईद्योगों की देख-रे ख करता है।
14.मनं रपररषद का ऄध्यक्षः- मरं ीपररषद का ऄध्यक्ष प्रधानमरं ी होता हैं आसके ऄलािा कौनिल्य ने
ऄन्य निभागाध्यक्षों का ईल्लेख नकया है जो प्रशासन के दृनष्ट से अिश्यक होते हैं। आसमें
पोतिाध्यक्ष, गनणकाध्यक्ष अनद प्रमखु हैं।
15.दडं पालः- यह सेना एिं पनु लस का मख्ु य ऄनधकारी होता है।
16.दगु पभ ालः- यह दगु भ का प्रभारी होता है। यह राज्य के समस्त दगु ों की देखभाल करता है।
17.ऄतं पाल या सीमारक्षकः- यह मख्ु य ऄनधकारी होता है जो सीमािती प्रदेशों की रक्षा करता है।
18.अिनिकः- अिनिक िन संपनत की रक्षा करता है।
प्रशासननक निभागाध्यक्ष
कौनिल्य ने प्रशासन का निस्तारपिू क
भ िणभन नकया है। ईसने निनभन्न निभागों के ऄध्यक्षों का िणभन
आस प्रकार नकया हैः-
1.कोषाध्यक्षः- कोषाध्यक्ष राजकोष का स्िामी होता है। िह कोष को सम्पन्न रखता है। िह निनभन्न
निशेषज्ञों की ऄनुमनत से कोष में निनभन्न रत्नों, अभषू णों को भी रखता है।
2.सीताध्यक्षः- राज्य में कृ नष से प्राप्त ऄनाज के रूप कर के संग्रहण का नजम्मेदार होता है। यह आन
ऄनाजों का भडं ारण करता है। यह कृ नष का जानकार भी होता है।
3.पठ्याध्यक्षः- पठ्याध्यक्ष एक महत्िपणू भ ऄनधकारी होता है। यह राज्य में क्रय निक्रय िाली
िस्तओ
ु ं की व्यिस्था करता है।
4.अयधु ागाराध्यक्षः- अयधु गार का ऄध्यक्ष यद्च
ु एिं ऄस्त्र शस्त्र संबंधी चीजों की व्यिस्था करता
है।
5.पोतिाध्यक्षः- पोतिाध्यक्ष के पास महत्िपणू भ नजम्मेदारी होती है। िह समस्त नापतौल की
व्यिस्था का नजम्मेदार होता है।
6.शल्ु काध्यक्षः- यह िह पदानधकारी होता है जो राज्य की समस्त शल्ु क या चंगु ी की व्यिस्था पर
ननयन्रण रखता है।
7.सरू ाध्यक्षः-यह िह पदानधकारी होता है जो सतू संबधी समस्त व्यिसाय का ननधाभरण करता है।
यह सतू ,रस्सी अनद की ननगरानी करता है।
8.सरु ाध्यक्षः- यह अबकारी निभाग का प्रमख
ु होता है। यह समस्त मादक पदाथों जैसे भांग, गांजा,
शराब अनद पर ननयन्रण रखता है।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
9.सनू ाध्यक्षः- सनू ाध्यक्ष के पास िधशाला की नजम्मेदारी होती है। यह पशओ
ु ,ं मछनलयों, पनक्षओ ं
तथा जगं ली जानिरों की ननगरानी करता है।
10.मद्रु ाध्यक्षः- यह मद्रु ा के ननमाभण , सच
ं ालन के प्रनत नजम्मेदार होता है। आसका दानयत्ि ऄत्यानधक
महत्िपूणभ होता है।
11.रथाध्यक्षः- यह रथ सेना का प्रभारी होता है। यह राज्य की सरु क्षा के नलये प्रभािी रथ सेना के
ननमाभण के नलये नजम्मेदार होता है।
12.ऄश्वाध्यक्षः- यह घोड़ों की रक्षा के नलये कायभ करता है। िह राज्य में ऄनेक स्थानों पर घड़ु सालों
का ननमाभण करिाता है।
13.गजशाला ऄध्यक्षः- यह हानथयों के सम्पणू भ प्रबधं न के नलये ईत्तरदायी होता है। िह ईनकी सरु क्षा
, ईनके अहार का भी प्रबंध करता है।
14.गनणकाध्यक्षः- आसका कायभ राज्य में गनणकाओ ं (िेश्याओ)ं की ननगरानी करना होता है।
15.नौकाध्यक्षः- नौकाध्यक्ष नौकाओ ं के ननमाभण, नौका मागों पर ईनके ननबाभध सच
ं ालन के नलये
नजम्मेदार होता है।
16.गोध्यक्षः- यह गोिश
ं की रक्षा तथा ईनके निकास के नलये नजम्मेदार होता है।
17.सिु णाभध्यक्षः- यह राज्य के ऄन्दर सोने चांदी के कायभ करने के नलये स्थान बनिाने तथा ईनकी
ननगरानी का कायभ करता है।
18.कोष्ठगाराध्यक्षः- कोष्ठगाराध्यक्ष राज्य में ऄनाजों के भडं ार की व्यिस्था करता है।
19.कुप्याध्यक्षः- यह िह पदानधकारी होता है जो जगं ल में ईपलब्ध िननस्पनतयों एिं ऄन्य सामनग्रयों
की रक्षा करता है।
स्थानीय शासन
कौनिल्य ने प्रशासन के सबसे ननचले नहस्से पर ऄथाभत स्थानीय शासन का भी ईल्लेख नकया है। िह
राजा के द्वारा गो, स्थाननक और नगराध्यक्ष अनद ऄनधकाररयों की ननयनु क्त का समथभन करता है।
ईसके द्वारा िनणभत प्रमख
ु स्थानीय प्रशासन के ऄनधकारी ननम्न हैः-
1.गोपः- यह स्थानीय शासन का प्रमख ु पदानधकारी था। िह पांच से दस ग्रामों का नजम्मेदार था। आन
ग्रामों की सम्पणू भ नजम्मेदारी गोप की होती है।
2.स्थाननकः- यह गोप के उपर स्थानपत एक महत्िपणू भ पदानधकारी था। नजले के समस्त गोप ईसके
ऄधीन थे।
3.नगराध्यक्षः- प्रत्येक नगर का ऄध्यक्ष नगराध्यक्ष कहलाता है।

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आस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है नक कौनिल्य ने प्रशासन की व्यापक एिं सचु ारू व्यिस्था की थी।
ईसने प्रशासन के प्रत्येक पहलू पर न के िल ध्यान नदया िरन ईसके नलये ऄलग निभाग एिं
पदानधकारी ननयक्त ु नकया। कौनिल्य ने प्रशासन को ऄनेक भागों में बांिा। कौनिल्य की सम्पणू भ
प्रशासननक व्यिस्था में स्थानीय प्रशासन को भी स्थान नदया गया है। िह सत्ता के के नन्द्रयकरण के
स्थान पर निके नन्द्रयकरण का समथभक था।

2.5 कानून एवां न्याय सांबध


ां ी रवचार
कौनिल्य ने काननू ों के सख्ती से पालन पर बल नदया। कौनिल्य का काननू ऄनभु ििाद और
अध्यात्मिाद पर अधाररत है। ईसके काननू का अधार धमभ है। ईसकी मान्यता थी नक जो राज्य
काननू का पालन तथा न्याय सनु ननश्चत नहीं कर पाते िह शीघ्र नष्ट हो जाते है। ईसकी मान्यता थी नक
राज्य का ईद्ङेश्य प्रजा के जीिन एिं सपं नत्त की रक्षा करना है। ऄसमानजक तत्िों तथा ऄव्यिस्था
ईत्पन्न करने िाले व्यनक्तयों को दनण्डत करना है। िह काननू एिं दण्ड को सगी बहनों की तरह
मानता है जो राज्य को स्थानयत्ि और नागररक जीिन में सधु ार का सच ं ार करता है।
काननू का ईद्ङेश्यः- काननू का ईद्ङेश्य व्यनक्त और समाज का कल्याण करना है। यह व्यनक्त और
समाज दोनों के सभी पहलओ ु ं का समाधान कल्याणकारी रूप में करता है।
काननू की पररभाषाः- कौनिल्य के ऄनसु ार काननू शाही अदेश है जो स्िीकृ नत के द्वारा लागू नकया
जाता है। काननू सभी शाही अदेशों का प्रनतरूप है। ईईन्होंने राजा को िरूण के समान माना है। िह
सिोच्च एिं सिभश्रेष्ठ न्यायधीश की भनू मका भी ऄदा करता है।
काननू के स्त्रोतः- कौनिल्य ने काननू के चार स्त्रोत बताये हैः-
1. धानमभक ईपदेश
2. व्यिहाररक ऄथिा सानथयों का व्यिहार
3. समाज के रीनत ररिाज और परम्परा
4. राजकीय अदेश
कौनिल्य ने ईपरोक्त के सदभं भ में एक स्थान पर नलखा है नक ――धमभ व्यिहार, चररर राजाज्ञा ये नििाद
के ननणाभयक साधन होने के कारण राष्र के चार पैर माने जाते हैं।
काननू का िगीकरणः- कौनिल्य ने काननू का व्यापक िगीकरण नकया है। ईन्होनें आसको ननम्न भागों
में बांिा हैः-

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1.नििाह संबंधी काननू ः- कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक ‗ऄथभशास्त्र‗ में नििाह पर व्यापक निमशभ नकया
है। आसमें ईन्होनें धमभ नििाह, स्त्री का पनु भ नििाह , पनत-पत्नी द्वेष , पर परू
ु ष ऄनसु रण और पनु भ
नििाह पर व्यापक चचाभ कर आनके ननयम और काननू का िणभन नकया है।
2.दाय ऄथिा ईत्तरानधकार निषयक काननू ः- कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक ‗ऄथभशास्त्र‗ में ईत्तरानधकार
का सामान्य ननयम पैतक ृ क्रम से निशेषानधकार, परु क्रम से निशेषानधकार का िणभन नकया है। ईसकी
मान्यता है नक माता-नपता या नपता के जीनित रहते लड़के संपनत्त के ईत्तरानधकारी नहीं होते। नपता के
न रहने पर िह संपनत का बििारा कर सकते है। संयक्त ु पररिारों में रहने िाले परु ों तथा पौर चौथी
पीढ़ी तक ऄनिभानजत पैतक ृ सपं नत के बराबर के हकदार है नजसका कोइ ईत्तरानधकारी न हो ईसे
राज्य ले लेि।े ईसकी मान्यता है नक पनलत, पनलत की संतान , मख ू भ, ऄधं ा कोढ़ी ईत्तरानधकार के
ऄनधकारी नहीं होगें।
3.ऄचल संपनत संबंधी काननू ः- आसके ऄन्तभगत कौनिल्य ने संपनत के बेचने, सीमा नििाद , कर की
छूि, गािं ों का बदं ोबस्त, सामनू हक कायों में शानमल न होने का मअु िजा अनद का िणभन आसके
ऄन्तभगत नकया गया है। आसमें कर की छूि , रास्ते को रोकना, गांिों का बंदोबस्त भी शानमल है।
4.ऊण संबंधी काननू ः- कौनिल्य ने ऄथभशास्त्र में ऊण , ब्याज के ननयम , एक व्यनक्त पर ऄनेक
व्यनक्त के कजाभ संबंधी काननू ों का िणभन नकया है। िह ब्याज के संदभभ में कहता है नक 100 पण पर
सिा पण ब्याज लेना चानहए। ऊण देने िालों तथा लेने िालों के चररर की ननगरानी होनी चानहए।
ऄन्न संबंधी ब्याज फसल के अधे से ऄनधक नहीं होनी चानहए।
5.धरोहर संबंधी काननू ः- आसके ऄन्तभगत धरोहर , नगरिी, ईधार की िस्तु को लौिाने नगनकर रखी
गइ धरोहर अनद के संबंध में व्यापक चचाभ की गइ है।
6.दास और श्रनमक संबंधी काननू ः-कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक ‗ऄथभशास्त्र‗ में दास , श्रनमक और
नौकरों के िेतन पर भी प्रकाश डाला है। ईन्होंने यनू ानी निचारकों की तरह दास प्रथा को स्िीकार
नकया है। िह ननम्न जानतयों तथा ऄनायों को दास बनाने पर बल देता है। निशेष नस्थनत में यनद ईच्च
कुल का व्यनक्त दास बन गया हो तो ईसे मक्त
ु कर देना चानहए। कौनिल्य का मत है नक यनद दासी से
संतान ईत्पन्न हो जाए तो ईसे दासता से मक्त
ु कर नदया जाना चानहए।
7.साझेदारी निषयक काननू ः- कौनिल्य ने स्पष्ट नकया है नक ठे के पर मजदरू ी करने िाले मजदरू प्राप्त
मजदरू ी को अपस में बांि लें। व्यापारी को माल खरीदने से बेचने तक हुए खचे को जोड़ने के बाद
बेचने से प्राप्त धन से हुए लाभ को साझीदार से बांि लेना चानहए।
8.क्रय-निक्रय संबंधी काननू ः- कौनिल्य ने क्रय-निक्रय संबंधी ननयमों का निस्तृत ईल्लेख ऄपनी
पस्ु तक में नकया है। ईन्होने स्पष्ट नकया है नक क्रय-निक्रय करने िाले व्यापाररयों का बयान ; एक नदन

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में , नकसानों का क्रय-निक्रय तीन नदन तथा दधू िालों का बयाना 5 नदन में िापस नकया जा सकता
है।
9.स्ि-स्िामी सबं धं ी काननू ः- कौनिल्य ने स्ि-स्िामी सबं धं ी काननू ों का भी ईल्लेख नकया है। ईसका
मत है नक यनद कोइ व्यनक्त नकसी संपनत को ईपभोग कर रहा है तो ईस पर ईसी का स्िानमत्ि माना
जाना चानहए। िह अगे और ऄनधक स्पष्ट करता है और कहता है नक यनद कोइ व्यनक्त दस िषभ तक
नकसी संपनत पर ऄपना ऄनधकार खो देता है तो ईस पर ईसका दािा नहीं रह जाता है।
10.ननदं ा सबं धं ी काननू ः- कौनिल्य ने ननदं ा सबं धं ी ऄथिा नििाद के सबं धं में स्पष्ट नकया है नक
नकसी को धमकाना, ननदां करना , िाक्यारूष्य नामक ऄपराध के ऄन्तगभत है।
11.जअ ु संबंधी काननू ः- जअ
ु पर पैनी नजर रखने का समथभक था। ईसका यह मानना था नक
धतू ाध्यक्ष को ऄपनी ननगरानी में ननयत स्थान पर जअ
ु खलने की व्यिस्था करनी चानहए। आसका
ईल्लंघन करने िालों को दण्ड की व्यिस्था की है।
न्याय संबंधी निचार
प्राचीन भारतीय नचन्तकों के ऄनरू ु प कौनिल्य भी स्िधमभ के पालन पर बहुत जोर देता है। ईसकी
मान्यता थी नक स्िधमभ पालन से न के िल स्ितः व्यिस्था बनती है िरन् लोक परलोक दोनों सधु रता
है। आसके बािजदू जो नागररक काननू का ईल्लघनं करते है। ईनको दनं डत करने की भी व्यिस्था िह
करता है। ईसकी मान्यता थी नक न्याय नक नबना प्रजा धमभ, ऄथभ, कात और मोक्ष्ज्ञ से िनं चत हो जाता
है। ऄतः न्याय के द्वारा ही प्रजा के ईक्त परम् लक्ष्य की प्रानप्त हो सकती है। यही कारण है नक कौनिल्य
ने न्याय पर बहुत ऄनधक जोर नदया है। कनतपय यही कारण है नक कौनिल्य न्याय को राज्य का प्राण
मानता है।
न्यायधीश की ननयनु क्त:- कौनिल्य ने ऄपने राजनीनतक दशभन का अधार राजा को माना है। ईनकी
मान्यता एक योग्य, कतभव्यपरायण तथा जनकल्याणकारी राजा की है। आसके बािजदू न्याय व्यिस्था
को सदृु ढ़ करने के नलये िह न्यायधीशों की ननयनु क्त का पक्षधर था। ईसकी मान्यता थी नक ईच्चतर
न्यायालय में तीन धमभस्थ न्यायधीश तथा तीन ऄमात्यभ होने चानहए जो एक साथ बैठकर नििादों का
ननपिारा कर सके । आन न्यायाधीशों की ननयनु क्त राजा के द्वारा की जायेगी।
न्यायपानलका का सगं ठनः-कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक ‗ऄथभशास्त्र‗ में चार स्थानों पर न्यायपानलका
के गठन का सझु ाि नदया।ईसके द्वारा की गइ न्यायपानलका की व्यिस्था आस प्रकार हैः-
1.जनपद संनध न्यायालयः- यह िह न्यायालय था जो दो राज्यों या गांिों की सीमा पर स्थानपत
नकया जाता था। यही कारण है नक आसे संनध न्यायालय भी कहा जाता है।
2.सग्रं हण न्यायालयः- कौनिल्य की न्यायपानलका की मख्ु य आकाइ थी। आसमें 10 गांिों के के न्द्र में
स्थानपत न्यायलय को सग्रं हण न्यायालय कहा गया।

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3.द्रोणमखु न्यायालयः- यह कौनिल्य की न्याय व्यिस्था की एक ऄन्य महत्िपणू भ आकाइ थी। आसका
क्षेर और ऄनधक व्यापक था। आसे चार सौ गांिों के के न्द्र में स्थानपत नकया गया। आसका कमभक्षेर
संग्रहण न्यायालय से व्यापक था।
4.स्थानीय न्यायालयः- स्थानीय न्यायालय द्रोणमख ु न्यायालय की ऄगली कड़ी था। आसका
कायभक्षेर द्रोणमख
ु न्यायालय से भी व्यापक था। आसमें अठ सौ गांिों का समानहत कराया गया। यह
अठ सौ गांिों के के न्द्र में स्थानपत एक न्यायालय था।
न्यायपानलका का िगीकरण (प्रकारः-कौनिल्य ने नििाद के स्िरूप के अधार पर न्यायालयों को दो
भागों में बांिा --
1. दीिानी ऄथिा धमभस्थलीय या व्यिहार न्यायालय
2. फौजदारी ऄथिा कष्टक शोधन न्यायालय
दीिानी ऄथिा धमभस्थलीय या व्यिहार न्यायालयः- धमभस्थलीय न्यायालय िह न्यायालय है जो
नागररकों के परस्पर व्यिहार से ईत्पन्न होने िाले नििादों का ननपिारा करते है। आस तरह के नििादों
को कौनिल्य ने व्यिहार की सज्ञं ा दी है। आसमें मख्ु य रूप से सम्पनत , सनं िदा, ईत्तरानधकार, नििाह ,
ऊण , धरोहर, साझेदारी अनद संबंनधत नििाद अते है।
फौजदारी ऄथिा कष्टकशोधन न्यायालयः- कौनिल्य के ऄनसु ार कष्टकशोधन न्यायालय िह
न्यायालय है नजनका ईद्ङेश्य राज्य के कष्टक ऄथिा शरओ ु ं को राज्य से दरू रखना है। आसका मख्ु य
लक्ष्य राजा ऄथिा राज्य के निरूद्च नकये जाने िाले ऄपराधों पर निचार करना है। आसके ऄन्तभ गत
मख्ु य रूप से प्रजा के प्रनतनदन के सम्पकभ के धोबी,जल्
ु ीर् , रंगरे ज, सनु ार, िैद्य, नि अनद के द्वारा प्रजा
के शोषण अनद के मामले अते है। आसमें कमभचाररयों के द्वारा प्रजा के ईत्पीड़न के मामले भी अते
है। कौनिल्य ने आन सभी ऄपराधों को कष्टक की श्रेणी में रखा है। आन ऄपराधों का पता लगाने के
नलये गप्तु चरों की व्यिस्था पर बल नदया।
कौनिल्य की सम्पणू भ न्यायव्यिस्था अधनु नक है। िह न्याय की ननष्पक्षता पर बहुत बल देता था। िह
न्याय व्यिस्था के निके नन्द्रकरण का नहमायती था। ईसने ईच्चतर न्यायालय में तीन धमभस्थ
न्यायधीश तथा तीन ऄमात्यों पर बल नदया तथा ननणभय सिभसम्मनत या बहुमत से करने पर बल नदया
जो नक अज के समय (ज्यरू ी) बहु सदस्यीय न्यानयक पीठ के रूप में निद्यमान है। ईन्होंने न्याय
व्यिस्था को ननष्पक्ष बनाने के नलये सम्पणू भ प्रनक्रया, गिाही के नलखे जाने पर बल नदया। ईसकी
मान्यता थी नक न्याय प्रदान करने की व्यिस्था में नलंग तथा िगभ के अधार पर भेदभाि नहीं करना
चानहए। ईसने न्यायधीशों पर भी ननगरानी पर बल नदया है। यह कायभ गप्तु चर निभाग को नदया गया।
यनद न्यायधीश ननयमों की ऄनदेखी करता है तो ईसे दनण्डत नकया जाना चानहए।

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दण्ड एिं गप्तु चर व्यिस्थाः-कौनिल्य ने न्याय व्यिस्था के साथ दण्ड व्यिस्था का भी िणभन नकया है।
कौनिल्य ने दण्ड के औनचत्य एिं दण्ड के प्रकार का निस्तृत नििेचन प्रस्ततु नकया है। कौनिल्य का
दण्ड संबंधी निचार बहुत तानकभ क एिं यथाभतिादी है। ईसकी मान्यता है नक काम, क्रोध, लोभ, मान,
मद, हषभ अनद छः शरु न जाने कब मनष्ु य को ईत्तेनजत कर दे तथा मनष्ु य को ऄधमभ, दरु ाचरण की
ओर ले जाते है। ऐसी नस्थनत में ऄराजकता ईत्पन्न हो जायेगी। चारों ओर ―मत्स्य न्याय‖ की नस्थनत
ईत्पन्न हो जायेगी, नजसमें बड़ी मछली छोिी मछली को ननगल जाती है। आस नस्थनत से बचने के
नलये कौनिल्य ने एक प्रभािी दण्ड व्यिस्था की कल्पना की नजसमें काननू तोड़ने तथा ऄव्यिस्था
ईत्पन्न करने िाले को त्िररत रूप से दनण्डत करने की बात की गइ।
दण्ड का स्िरूपः- कौनिल्य की मान्यता थी नक समाज में धमभ बना रहे तथा समाज में लोककल्याण
स्थानपत हो आसी ईद्ङेश्य के नलये दण्ड का प्रयोग नकया जाना चानहए। कौनिल्य के ऄनसु ार राजा ही
दण्ड देने का ऄनधकारी होता है ऄतः ईसका दण्ड सुधारात्मक होना चानहए। ईसके द्वारा
प्रनतशोधात्मक दण्ड नहीं देना चानहए। दण्ड सधु ार के नलये कल्याण के नलये होना चानहए।

2.6 दण्ड एवां गु्तचर सांबांधी रवचार


१.कौनिल्य दण्ड के ननधाभरण में समानता के नसद्चान्त को नहीं मानता है। ईसका मानना है नक
मनहलाओ ं और बच्चों को कम दण्ड नमलना चानहए। ईसने िणभ व्यिस्था के अधार पर भी भेद
नकया है। ईसका मानना है नक ब्राहमणों को भी कम दण्ड नमलना चानहए। कौनिल्य का मानना था
नक दण्ड का ननधाभरण ऄपराध, ऄपराध की पररनस्थनतयों, िणभ, नलंग के अधार पर करना चानहए।
दण्ड के प्रकारः- कौनिल्य ने तीन प्रकार के दण्ड बताये हैः-
1.शारीररक दण्डः- शारीररक दण्ड में िह कोड़े मारना, ऄगं छे दन, हाथ-पैर बाधं कर ईल्िा लिकाना,
ब्राहमण ऄथिा ईच्च जानतयों के माथे पर नचन्ह ऄनं कत करने को शानमल करता है। ईसने पाप काने
िाले परूु ष को ऄन्य दण्ड भी बताये है। आसमें मख्ु य रूप से बेंत मारना, थप्पड़ मारना, बांए हाथ को
बांये पैर से तथा दांये हाथ को दांये पैर से पीछे बांधना। दोनों हाथ अपस में बांधकर लिका देना,
नाखनु में सुइ चभु ाना, घी नपलाकर धपू या अग के पास बैठाना। जाड़े की रात में गीले निस्तर पर
सल ु ाना। िह कहता है नक माता-नपता को गाली देने िाले की नजह्वा काि लेनी चानहए। राजा ऄथिा
राज्य के भेद खोलने िाले को भी यनद दण्ड नदया जाना चानहए।
प्राणदण्डः- कौनिल्य ने निनभन्न ऄपराधों के नलये प्राणदण्ड का भी प्रािधान नकया है। यनद झगड़े में
नकसी की मृत्यु हो गइ हो तो दसू रे को प्राणदण्ड दे नदया जाए। बलात्कार करने तथा जीभ कािने
िाले , सेंध लगाकर चोरी करने, हाथी, घोड़े तथा रथ को नक ु सान पहुचं ाने िाले को भी मृत्यु दण्ड
नदया जाना चानहए। माता-नपता ,परु भाइ, अचायभ के हत्यारे को भी यही दण्ड नदया जाना चानहए।
ऄपने पनत, परु , गरू
ु को निष देने िाली स्त्री को गाय से कुचलिा कर मारा जाये। ब्राहमणी के साथ

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व्यानभचार करने िाले शद्रू को नजदं ा जला नदया जाए। रानी के साथ व्यानभचार करने िाले को
जीनित भनू नदया जाय।
2. अतथयक दण्डः- कौनिल्य ने अनथभक दण्ड को तीन भागों में बांिा हैः-
1. प्रथम साहस दण्ड
2. मध्यम साहस दण्ड
3. ईत्तम साहस दण्ड
प्रथम साहस दण्डः- प्रथम साहस दण्ड में 48 से 96 पण तक का जमु ाभना लगाने की व्यिस्था की गइ
है।
मध्यम साहस दण्ड:- मध्यम साहस दण्ड को दो सौ से पाच
ं सौ पण तक की जमु ाभने की व्यिस्था की
गइ है।
ईत्तम साहस दण्डः- आसमें पांच सौ से 1 हजार पण तक के जमु ाभने की व्यिस्था की गइ है।
कारागार ऄथिा जेलः- कौनिल्य ने ऄपरानधयों के नलये जेल की व्यिस्था की है। ईसकी मान्यता है
नक यनद कोइ ब्राहमण राज्य के निरूद्च षणयंर करे तो ईसे अजीिन कै द में डाल देना चानहए।
कौनिल्य ने स्पष्ट नकया है नक न्यायधीशों तथा समाहाताभ से सजा जाये लोगों को कारागृह में रखना
चानहए। कारागृह में स्त्री परू
ु ष के नलये ऄलग-ऄलग स्थान होना चानहए। कारागार की पयाभप्त सरु क्षा
होनी चानहए।
कौनिल्य ने शभु ऄिसरों पर कै नदयों को मक्तु करने की व्यिस्था की। िह कौनिल्य का मानिीय
दृनष्टकोण था। ईसने अगे स्पष्ट नकया है नक निजय पर राजकुमार के राज्यानभषेक के समय, राजपरु
के जन्मोत्सि पर कै नदयों को मक्त
ु कर देना चानहए।
राज्य ऄनधकाररयों के नलए दण्डः- कौनिल्य का मत था नक प्रत्येक राज्य ऄनधकाररयों को ऄपना
कतभव्य पालन करना चानहए। यनद कोइ ऄनधकारी ननयनमत अय का कम नदखाता है तो िह राजधमभ
का ऄपहरण करता है। ईसकी ऄक्षमता, ऄयोग्यता से यनद यह कमी होती है तो ईसे ईसी क्रम में
दनण्डत करना चानहए। यनद कोइ ऄनधकरी राजकोष में ऄनधक धन जमा कराता है तो ईसकी भी
जांच करा कर ईसको दनण्डत करना चानहए क्योंनक ईसकी िसल ू ी प्रजा को प्रतानड़त कर हुइ होगी।
यनद ऄनधकारी ने धन का गबन करते हुए जमा नहीं नकया है तो ईसे कठोर दण्ड नमलना चानहए।
िेश्वािृनत्त के नलये दण्डः- कौनिल्य ने स्पष्ट नकया है नक यनद कोइ परू
ु ष कामना रनहत मनहला से
शारीररक संबंध बनाता है तो ईसे ईत्तम साहस दण्ड देना चानहए। राजा की सेिा में ननयक्त
ु गनणका
को प्रतानड़त करने िाले व्यनक्त को बहत्तर हजार पण दण्ड देना चानहए। राजा की अज्ञा पर कोइ

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िैश्या यनद नकसी निनशष्ट व्यनक्त के पास जाने से आक ं ार कर दे तो ईसे 1 हजार कोड़े लगिाये जाने
चानहए। परू ी रात का शल्ु क ले बहाना बनाने पर शल्ु क का अठ गनु ा दण्ड नलया जाना चानहए।
२.गप्तु चर व्यिस्था
कौनिल्य ने गप्तु चर को प्रशासन को महत्िपणू भ नहस्सा माना था। ईसकी मान्यता थी नक बगैर प्रभािी
गप्तु चर व्यिस्था के एक सरु नक्षत, प्रगनतशील राज्य का ननमाभण नहीं नकया जा सकता है। भारत में
प्राचीन काल से ही गप्तु चर व्यिस्था पर ऄत्यानधक बल रहा है। रामायण तथा महाभारत में गप्तु चर
व्यिस्था का िणभन नमलता है। कौनिल्य ने सिभप्रथम गप्तु चर व्यिस्था को स्थानपत नकया। ईसने
गप्तु चरों के प्रकार, कायभ तथा भनू मका का निस्तृत िणभन नकया। ईसने दो प्रकार के गप्तु चर बतायेः-
1. स्थायी गप्तु चर
2. भ्रमणशील गप्तु चर
स्थायी गप्तु चर:-कौनिल्य ने स्थाइ गप्तु चरों को पांच भागों में बांिा हैः-
कापररक गप्तु चरः- दसू रों के रहस्य को जानने िाला एिं दबगं नकस्म का गप्तु चर होता है। यह
सामान्यतः निद्याथी की िेशभषू ा में रहता है।
ईदानस्थत गप्तु चरः- यह सन्यासी रूप में रहने िाला बनु द्चमान तथा सदाचारी व्यनक्त होता है।
गृहपनलक गप्तु चरः- गरीब नकसान के िेश में रहने िाला एक बुनद्चमान व्यनक्त होता है।
िैदहे क:- गरीब व्यापारी के िेश में बनु द्चमान गप्तु चर को िैदहे क कहा जाता है।
तापस गप्तु चरः- जीनिका के नलये नसर के बाल साफ कराये ऄथिा जहां रखे राजा का कायभ करने
िाला व्यनक्त तापस गप्तु चर कहलाता है। ये सामान्यतः निद्यानथभयों के साथ नगर के पास अश्रम बना
कर रहते है।
भ्रमणशील गप्तु चरः- ये एक स्थान से दसू रे स्थान जाकर कायभ करते है ऄतः आन्हें भ्रमणशील ऄथिा
सचं ार गप्तु चर कहते है।
आसके प्रमख ु प्रकार ननम्न हैः-
सरी गप्तु चरः- ये राजा के संबंधी नहीं होते परन्तु आनका पालन राजा के नलये अिश्यक होता है। ये
िशीकरण, धमभशास्त्र, नाचने गाने, ज्योनतष में ऄनत पारंगत होते है।
तीक्ष्ण गप्तु चरः- ये िे गप्तु चर होते है जो धन के नलये बड़े जोनखम ईठा लेते है। िे हाथी, बाघ, सापं
अनद से नभड़ जाते है। आन्हें तीक्ष्ण गप्तु चर कहते है।

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ु निश्वनिद्यालय 37
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रसद गप्तु चरः- ऄपने ननकि संबंनधयों से संबंध न रखने िाला, कठोर एिं क्रूर स्िभाि के व्यनक्त को
रसद (निष देने िाला) गप्तु चर कहा जाता है।
पररव्रानजका गप्तु चरः-धन की आच्छुक ऐसी स्त्री जो ऄमात्यों के घर जाती हो, दबगं हो, बाहमणी हो
तथा रननिास में सम्मान हो, को पररव्रानजका गप्तु चर कहा जाता है।
ईभयिेतन भोगी गप्तु चरः- यह दोहरा िेतन पाने िाले , दसू रे राज्यों की गनतनिनधयों का पता लगाने
िाले गप्तु चर होते है। ये दसू रे राज्य में जा नौकरी करते है और दोहरा िेतन लेते है।
निषकन्याः- यह िह स्त्री थी जो निष का सेिन कर पाली जाती थी। आसे राज्य नहत में शरु के पास
भेजा जाता था जहां िह ऄपने सौन्दयभ, यौिन, हािभाि से शरु को भोग के नलये तैयार कर लेती थी।
यही शरु के निनाश का कारण बनता था।
गप्तु चरों के कायभः- कौनिल्य ने गप्तु चरों के प्रमख
ु कायभ ननम्न बताये हैः-
1.गप्तु चर को ईच्चानधकाररयों तथा ऄन्य ऄनधकाररयों के अचरण का पता लगाकर राजा
को सनू चत करना चानहए।
2.यनद कोइ कमभचारी निद्रोही प्रिृनत का है तो ईसकी सचू ना तत्काल राजा को देनी चानहए।
3.ऐसे षड़यरों की सचू ना राजा को देना जो राजा के निरूद्च प्रजा द्वारा रचे गये हो।
4.जनता के मनोभािों को पढ़ना तथा ऄसं तोष के कारणों को राजा के समक्ष प्रस्ततु करना।
कौनिल्य के शब्दों में-――राज्य में कमभचाररयों एिं प्रजा की शरतु ा जानने के नलए गप्तु चरों की ननयनु क्त
की जाए। राजा धन एिं मान द्वारा गप्तु चरों को संतष्टु रखे।‖‖ईपरोक्त नििेचन से स्पष्ट है नक कौनिल्य ने
गप्तु चर व्यिस्था का निश्ले षण बड़ी सक्ष्ू म दृनष्ट से नकया है।

2.8 मण्डल रसद्धान्त


कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक में मण्डल नसद्चान्त का निस्तृत िणभन नकया है। कौनिल्य ने पड़ोसी राज्यों
से संबंध संचालन को मडं ल नसद्चान्त के नाम से तथा ऄन्य निदेशी राज्यों के साथ संबंध संचालन
को षाडगण्ु य नीनत के नाम से ऄनभव्यक्त नकया। कौनिल्य का मण्डल नसद्चान्त प्राचीन भारतीय ग्रन्थों
पर अधाररत है। यह राम राज्य में प्रचनलत ――नदनग्िजय नसद्चान्त‖‖ पर अधाररत है।
ऄथभः- मण्डल का ऄथभ ――राज्यों का िृत्त‖‖ होता है। यह एक प्रकार की रणनीनत है नजसमें निषय की
अकाक्ष
ं ा रखने िाला राज्य ऄपने चारों ओर के ऄन्य राज्यों को मण्डल मानता है।
मण्डल नसद्चान्त एक बारह राज्यों के िृत्तों पर अधाररत है। आसके ऄन्तगभत मण्डल का के न्द्र ऐसा
राज्य होता है जो पड़ोसी राज्य को जीतकर ऄपने में नमलाने का प्रत्यत्नशील रहता है। आसे िह

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निनजगीषु राजा कहता है। मंडल में बारह राज्य होते है- निनजगीष,ु ऄरर, नमर, नमरनमर, ऄरर
नमरनमर, पानष्ठीग्राहा, अक्रंद, पानण्णभग्रालसार, अक्र
ं ादासार, मध्यम और ईदासीन।
कौनिल्य के ऄनसु ार निनजगीषु मडं ल के मध्य रहता है। ऄरर, नमर, ऄररनमर, नमर नमर और
ऄररनमर ये पंााच राज्य निजीगीषु के सामने तथा पानष्णग्राह, अक्र ं द, पानण्णभग्राहासार और
अक्र
ं ादासार ये चार राज्य के पीछे रहते है। शेष दो राज्य मध्यम एिं ईदासीन बगल में रहते हैं।
कौनिल्य के मण्डल नसद्चान्त के बारह राज्यों का िणभन आस प्रकार नकया जा सकता हैः-
1.निनजगीषु राज्यः- ऄपने राज्य के निस्तार की अकांक्षा रखने िाला निनजगीषु कहलाता है। आसका
स्थान मडं ल के के न्द्र में होता है।
2.ऄररः- निनजगीषु के सामने िाला राज्य जो ईसका शरु होता है ऄरर कहलाता हे।
3.नमरः- ऄरर के सामने का राजा नमर कहलाता है। यह निनजगीषु का नमर और ऄरर का शरु होता
है।
4.ऄररनमरः- नमर के सामने िाला राज्य ऄररनमर कहलाता है। यह ऄरर का नमर और निनजगीषु का
शरु होता है।
5.नमरनमरः- ऄररनमर के सामने िाला राज्य नमरनमर कहलाता है। नमर राज्य का नमर होता है। यही
कारण है नक िह निनजगीषु राज्य के साथ भी ईसकी नमरता होती है।
6.ऄरर नमरनमरः- नमररनमर के सामने िाला राज्य ऄरर नमर-नमर कहलाता है क्योंनक िह ऄररनमर
राज्य का नमर होता है। ऄतः ऄरर राज्य के साथ ईसका संबंध नमरता का रहता है।
7.पानष्णभग्राह (पीठ का शर)ु - निनजगीषु के पीछे जो राज्य रहता है िह पानष्णभग्राह कहलाता है। ऄरर
की तरह िह भी निनजगीषु का शरु होता है।
8.अक्र
ं दः- पानष्णभग्राह के पीछे जो राज्य होता है ईसे अक्र
ं द कहते है िह निनजगीषु का नमर होता
है।
9.पानष्णभग्राहासारः- अक्र
ं ाद के पीछे िाला राज्य का पानण्णभग्राहासार कहलाता है। यह पानण्णभग्राह
का नमर होता है।
10.अक्र
ं ादासारः- पानण्णभग्राहासार के पीछे िाला राज्य अक्र
ं दासार कहताता है। यह अंक्राद का
नमर होता है।
11.मध्यमः- मध्यम ऐसा राज्य है नजसका प्रदेश निनजगीषु और पररराज्य दोनों की सीमा से लगा
होता है। दोनों से शनक्तशाली होने के कारण यह दोनों की सहायता भी करता है। जरूरत पड़ने पर यह
दोनों से ऄलग-ऄलग मक ु ाबला भी करता है।

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12.ईदासीनः- राजा का प्रदेश निनजगीष,ु ऄरर, मध्यम आन तीनों से परे पर होता है। यह शनक्तशाली
होने के कारण तीनों से मक
ु ाबला भी कर सकता है।
ईक्त बारह राज्यों का समहू राज्य मण्डल कहलाता है। कौनिल्य ने आस नसद्चान्त के माध्यम से यह
बताने का प्रयास नकया है नक भौगोनलक अधार पर कौन नमर तथा शरु हो सकते है।
मण्डल तसद्धान्ि का तिश्ले षणः- कौनिल्य का मण्डल नसद्चान्त एक व्यिहाररक एिं दरू दनशभतापणू भ
नसद्चान्त है। आस नसद्चान्त में कौनिल्य ने राज्य के चारों ओर बनने िाले मण्डल (दसू रे राज्यों के घेरा)
का निश्ले षण नकया है। ईसके मण्डल नसद्चान्त की प्रमख ु तत्ि ननम्न हैः-
1.कौनिल्य का मण्डल नसद्चान्त 12 राज्यों के एक के न्द्र की कल्पना करता है।
2.मण्डल नसद्चान्त में राज्यों को निशेष नाम एिं निशेष प्रकृ नत का ईल्लेख नकया गया है।
3.कौनिल्य के ऄनसु ार यह संख्या घि बढ़ सकती है।
4.कौनिल्य के ऄनसु ार मध्यम एिं ईदासीन राज्य को छोड़कर ऄन्य सभी राज्यों की शनक्त लगभग
समान है।
5.कौनिल्य की स्पष्ट मान्यता है नक राज्य ऄपने पड़ोसी का शरु तथा ईसके पड़ोसी का नमर होता है।
6.ईसकी मान्यता है नक राज्य को पड़ोसी राज्य से सतकभ रहते हुए ऄपना गठबंधन बनाना चानहए।
7.यह शनक्त संतल
ु न के नसद्चान्त पर अधाररत है। यह राज्यों के अपसी सहयोग पर अधाररत है।
कौनिल्य का मण्डल नसद्चान्त तत्कालीन पररनस्थनतयों के ऄनसु ार स्थानपत नकया गया था परन्तु
अज की बदली पररनस्थनतयों में नजसमें भमू ण्डलीकरण का दौर है तथा सैननक शनक्त की ऄपेक्षा
अनथभक शनक्त का महत्ि बढ़ गया है , प्रांसनगक नहीं रह गया है। आसके बािजदू तत्कालीन
पररनस्थनतयों को देखते हुए ईसकी यह महत्िपणू भ देन है।

2.9 षाड.गुण्य नीरत


कौनिल्य ने पड़ोसी देशों के साथ व्यिहार के नलये 6 लक्षणों िाली नीनत ऄपनाने पर बल नदया।
प्राचीन भारतीय नचन्तन में भी आसके लक्षण नमलते है। मनु के निचारों में तथा महाभारत में भी आसका
ईल्लेख नमलता है। कौनिल्य की मान्यता थी नक निदेश नीनत का ननधाभरण आन छः गणु ों के अधार पर
करना चानहए। कौनिल्य ने षड़गण्ु य नीनत को स्पष्ट करते हुए नलखा है नक -――ईनमें दो राजाओ ं का
मेल हो जाना सनं ध, शरु का ऄपकार करना निग्रह ,ईपेक्षा करना, असन हमला करना यान अत्म
समभपण करना संश्रय, दोनों से काम लेना द्वैधीभाि कहलाता है।‖‖

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षाड़गण्ु य नीनत का व्यिहाररक पक्षः- कौनिल्य ने षाड़गण्ु य नीनत का निकास व्यिहाररक अधार पर
नकया। कौनिल्य यह जानता था नक राजा ऄथिा राज्य को कइ बार ऐसे ऄिसर देखने पड़ते है जब
ईनके सामने की चनु ौती बहुत शनक्तशाली तथा कइ बार चनु ौती बेहद कमजोर होती है। ऐसे में राजा
को पररनस्थनतयों के ऄनसु ार नीनत बनानी चानहए तथा कमजोर होने पर निग्रह कर लेना चानहए। यनद
दोनों समान नस्थनत में हैं तो असन को स्िीकार कर लेना चानहए। यनद राजा स्ियं को सक्षम एिं
तैयार समझता है तो ईसे यान (चढ़ाइ) का सहारा लेना चानहए। समय, पररनस्थनतयों के ऄनसु ार नीनत
में पररितभन करके राष्रनहत को साधना चानहए। कौनिल्य की मान्यता थी नक समय के साथ षाड़गण्ु य
में पररितभन नकया जाना चानहए। कौनिल्य की षाड़गण्ु य नीनत आस प्रकार हैः-
1. संनधः- कौनिल्य के षड़गण्ु य नीनत का पहला एिं महत्िपणू भ तत्ि है। कौनिल्य का मत है नक
यह दो राजाओ ं के मध्य हुअ समझौता है। यह राजा के द्वारा नकया गया ईपक्रम है नजसका ईद्ङेश्य
ऄपने को बलशाली बनाना तथा शरु को कमजोर करना है। कौनिल्य ने संनध के नलये ननम्न
अिश्यक पररनस्थनतयां बतायी हैः-
1. यनद राजा समझता है नक आससे ईसके नहत नसद्च होंगे तथा शरु को हानन होगी।
2. शरु पक्ष के लोगों को कृ पा नदखाकर ऄपने में शानमल करना।
3. शरु के साथ संनध कर ईसका निश्वास हो जाये तो गप्तु चरों और निष प्रयोग से शरु का नाश
करना।
4. ईत्तम कायों के साथ शरु के ईत्तम कायों से लाभ प्राप्त करना।
सनं ध के प्रकारः-कौनिल्य ने ऄनेक प्रकार की संनधयों का ईल्लेख नकया है। आसमें से कुछ प्रमख
ु संनध
आस प्रकार हैः-
हीन संनधः- हीन संनध एक निशेष प्रकार की संनध है जो बलिान राजा के साथ एक कमजोर राजा
ऄपनी सरु क्षा और नहत सिधं भन के नलये करता है।
दडं ोपनत सनं धः- कौनिल्य ने आसके तीन प्रकार बताये है-
ऄनमष संनधः- जब परानजत राजा निजयी राजा के समक्ष ऄपनी सेना, धन के साथ समभपण कर दे तो
ईस संनध का ऄनमष संनध कहते है।
परू
ु षातं र सनं धः- ऄपने सेनापनत तथा राजकुमार को निजयी राजा को सौंपकर जो सनं ध की जाती है
ईसे परू
ु षक ं र संनध कहते है।
ऄदृश्य परू
ु ष संनधः- यह एक निशेष संनध होती है नजसमें यह नननश्चत होता है नक निजयी राजा के
नहत के नलये परानजत सेना या राजा ईपक्रम करे गा। यह संनध ऄदृश्य परू
ु ष संनध कहलाती है।

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देशोपनत संनधः- देशोपनत संनध के ननम्न प्रकार होते है-
पररक्रय संनधः-यह िह संनध होती है नजसमें बलिान राजा द्वारा यद्च
ु में नगरफ्तार नकये गये महत्िपूणभ
व्यनक्तयों को धन देकर छोड़ा जाता है।
ईपग्रह सनं धः- यह िह सनं ध है नजसमें धनरानश नननश्चत हो जाती है। यह नकस्तिार धन ऄदा करने
बल देती है।
सिु णभ संनधः- सनु िधानसु ार नननश्चत समय पर ननयनमत धनरानश देने की संनध सिु णभ संनध कहलाती है।
कपाल सनं धः- यह िह सनं ध हैं नजसमें सपं णू भ धनरानश तत्काल ऄदा करने की शतभ होती है। आसे
कपाल संनध कहते है।
पररपनणत देश संनधः- यह एक प्रकार की रणनीनतक संनध दो राज्यों के बीच होती है। आसमें दो राज्य
रणनीनत के तहत ऄलग-ऄलग दो राज्यों पर हमला करते है।
पररपनणत काल संनधः- यह समय (काल) को अधार पर की गइ संनध होती है। आसमें दो राज्य एक
नननश्चत समय पर कायभ करने पर सहमत होते है।
पररपनणत कायभ सनं धः- यह दो राज्यों के बीच एक नननश्चत कायभ को करने का समझौता होता है। आसमें
ऄपने-ऄपने नहस्से का कायभ तय हो जाता है।
नमर संनधः- यह एक ऄलग प्रकार की संनध है जो दो नमर राजाओ ं के बीच परस्पर नहत पनू तभ के नलये
की जाती है।
निषम संनधः- यह दो राज्यों के बीच दो ऄलग-ऄलग कायों को करने का समझौता है। आसमें एक
राज्य नहरण्य का तथा दसू रा भनू म का कायभ करता है।
ऄनत संनधः- यह निशेष संनध है जो ईम्मीद से ऄनधक लाभ प्राप्त होने का प्रतीक है।
भनू म संनधः- यह दो राज्यों के बीच भनू म प्राप्त करने हेतु नकया गया समझौता है। आसे भनू म संनध कहते
है।
नहरण्य सनं धः- यह नहरण्य लाभ के नलये की गइ सनं ध है। यही कारण है नक आसे नहरण्य सनं ध कहते है।
निग्रह या यद्च
ु ः- यह राजा की महत्िपूणभ नीनत है। राजा को युद्च का सहारा तभी लेना चानहए जब ईसे
लगे नक शरु कमजोर हो गया है। कौनिल्य ने अगे स्पष्ट नकया है नक यनद निजीगीषु राजा को यह
लगे नक संनध और निग्रह दोनों से ही समान लाभ प्राप्त हो रहा है तो ईसे निग्रह के स्थान पर संनध का
सहारा लेना चानहए।
कौनिल्य ने स्पष्ट नकया है नक यद्च
ु के नलये एक शनक्तशाली सेना अिश्यक है। ईसने सेना के चार
ऄगं बताये है- पैदल सैननक, हाथी, घोड़े , रथ अनद। कौनिल्य ईक्त चारों में हाथी पर ऄनधक बल

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देता था। सैननकों की भती के संबंध में िह िश
ं ानुगत सैननकों को ऄनधक महत्ि देता था। िह क्षनरयों
को ऄनधकानधक सेना में रखने का पक्षधर था। यनद संख्या कम हो तो िह िैश्य एिं शद्रू ों को भी
शानमल करने पर बल देता है।
कौनिल्य ने निजय प्राप्त करने के नलये तीन प्रकार के बल को अिश्यक बताया। ये नैनतक बल, ऄथभ
बल तथा कूिनीनतक बल है। आसमें से िह नैनतक बल ऄथिा ईत्साह शनक्त पर ऄनधक बल देता था।
यद्च
ु के प्रकार - कौनिल्य ने युद्च के ननम्न प्रकार बताये है-
1. प्रकाश यद्च
ु ः- यह यद्च
ु नकसी देश या समय को नननश्चत कर नकया जाता है।
2. लिू यद्चु ः- यह छोिी सेना को बड़ा नदखाकर नकया गया यद्च
ु है। आसमें नकलों को जलाना,
लिू पाि करना, धािा बोलना अनद शानमल है।
3. तष्ू णी यद्च
ु ः- निष या औषनध के माध्यम से शरु को नाश करने का तरीका तष्ू णी यद्च

कहलाता है।
यद्च
ु का ईपयक्त ु समयः- कौनिल्य ने यद्च
ु की व्यापक योजना प्रस्ततु की है। ईसने िषभ के बारह महीनों
का निश्ले षण कर ईनचत समय का िणभन नकया है। ईनका मानना था नक यद्च ु में ऄनधक समय लगने
की नस्थनत में पौष में, मध्यम समय लगने की नस्थनत में चैर में, ऄल्प समय लगने पर जेठ यद्च ु का
श्रेष्ठ समय है। िह िषाभकाल को यद्च
ु के नलये घातक मानता है। यनद भ-ू प्रदेश ऄनक ु ू ल है तथा यद्च

िाला नहीं जा सकता तो आस समय भी यद्च ु नकया जा सकता है।
यद्च
ु का प्रबंध तथा ननयमः- कौनिल्य यद्च
ु के व्यापक प्रबधं का पक्षधर था। िह मानता था नक यद्च ु
भनू म में सभी अिश्यकता की पनू तभ का प्रबंध यद्च
ु से पिू भ कर लेना चानहए। यह सभी प्रबंध यद्च
ु भनू म
में तैयार रहना चानहए। आसमें अिश्यक औषनध सामग्री, िैद्य, खाने-पीने की सामग्री , रसोआयों तथा
सैननकों को खश ु करने िाली मनहलायें भी शानमल है। कौनिल्य यद्च ु मैदान के कुछ ननयम तय करता
है। ईसकी मान्यता है नक यद्च ु में घायल सैननकों, भागते सैननकों तथा अत्मसमपभण करने िाले
सैननकों पर प्रहार नहीं करना चानहए। भयभीत एिं नगरे हुए मनोबल िाले सैननकों को भी नहीं मारना
चानहए।
निजयी राजा के प्रकारः- कौनिल्य ने निजीगीषु राजा के तीन प्रकार बताये है-
1. धमभनिजयीः- धमभनिजयी गौरि एिं प्रनतष्ठा के नलये निजय प्राप्त करना चाहता है।िह शरु
द्वारा अत्मसमपभण करने से सतं ष्टु हो जाता है।
2. लोभ निजयीः- लोभ निजयी िह राजा होता है जो भनू म एिं धन दोनों देने से संतष्टु हो जाता
है।

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3. ऄसरु निजयीः- ऄसरु निजयी राजा िह होता है जो असरु ी प्रिृनतयों से यक्त
ु होता है। आसमें
िह धन , भनू म, प्राण तथा स्त्री अनद को पाकर ही संतष्टु होता है।
यान -
यान का ऄथभ होता है अक्रमण। आस नीनत को तभी ऄपनाया जाता है जब यह लगे नक ईसकी
सैननक शनक्त मजबूत है तथा नबना अक्रमण नकये शरु को ननयनन्रत नहीं नकया जा सकता है।
कौनिल्य ने ऄपनी पस्ु तक में यान का व्यापक िणभन नकया है।
असन या तिस्थताः- यह िह ऄिस्था है नजसमें ईनचत समय की प्रतीक्षा में राजा चपु चाप तिस्थ
होकर बैठा रहता है। यह ऄपने को मजबतू करते हुए शरु पर अक्रमण करने के साही समय की
प्रतीक्षा है। कौनिल्य ने असन के दो प्रकार बताये हैः-
1. निग्रह असन
2. संघाय असन
निग्रह असनः- जब निजीगीष(ु निजयी) और शरु दोनों ही सनन्ध करने की आच्छा रखते है तथा
परस्पर एक दसू र को नष्ट करने की शनक्त न रखते हो तो कुछ काल यद्च
ु कर चपु बैठ जाते है।
संधाय असन
जब दोनों राजा एक संनध कर चपु चाप बैठ जाते है तो ईसे संधाय असन कहते है।
सश्रं यः
यह एक प्रकार का अश्रय या शरण है जो कमजोर राज्य बलिान राजा के यहां लेता है। यह तभी
होता है जब राजा बेहद कमजोर हो तथा ऄपनी रक्षा करने में में ऄसमथभ हो।
द्वैधीभािः
द्वैधीभाि की नीनत से कौनिल्य का अशय एक राज्य के प्रनत संनध तथा दसू रे के प्रनत निग्रह नीनत
को ऄपनाने की नीनत है। यह राष्रीय ईद्ङेश्य की पनू तभ के नलए एक से सहायता लेने तथा दसू रे से लड़ने
की नीनत है। िह निशेष पररनस्थनतयों में निशेष नीनत ऄपनाने का पक्षधर था। निदेश नीनत के
संचालन में िह साम, दाम, दण्ड, भेद अनद की नीनत के ऄपनाने का पक्षधर था। आन चारों में िह
साम (समझाना) दाम (पैसे देना) से श्रेष्ठ है तथा भेद (फूि डालना) दण्ड (यद्च
ु से) श्रेष्ठ है।
षाड़गण्ु य नीनत का मल्ू यांकनः- कौनिल्य की षाड़गण्ु य नीनत का ननम्न अधार पर अलोचना की
जाती हैः-
1.अधनु नक समय में यह निदेश नीनत ऄनपु यक्त
ु है। आसे व्यिहाररक नहीं माना जा सकता है।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
2.आसमें ऄनैनतक माध्यम, छल, धोखा, अनद पर बहुत बल नदया जाता है।
3.कौनिल्य भभू ाग निस्तार का पक्षधर था। िह आसके निस्तार के नलये सदैि प्रयत्नशील रहने का
नहमायती था। आसमें नहसं ा एिं रक्तपात की सभं ािना बढ़ जाती है।

2.10 मूल्या ाँकन


कौनिल्य भारतीय राजदशभन का जनक है। कुछ पाश्चात्य निचारक भी यह मानते है नक प्राचीन
भारतीय निद्वानों में सिाभनधक महत्िपणू भ निचारक कौनिल्य है। राजनीनतक दशभन में कौनिल्य के
महत्ि को हम ननम्न नबन्दओ ु ं के द्वारा दशाभ सकते हैः-
1.कौनिल्य ने ऄपने ग्रन्थ ऄथभशास्त्र में पिू भ भारतीय निद्वानों भारद्वाज, मन,ु िृहस्पनत के निचारों का
नमश्रण सव्ु यिनस्थत रूप से प्रस्ततु नकया।
2.कौनिल्य पहला भारतीय निचारक था नजसने राजनीनत को धमभ, नैनतकता से ऄलग एक स्ितन्र
निषय के रूप में न के िल देखा िरन् ईसकी व्याख्या भी की।
3.कौनिल्य ने राजनीनत का व्यिहाररक एिं यथाभथिादी स्िरूप प्रस्ततु नकया। ईसने के न्द्रीकृ त एिं
सदृु ढ़ शासन की िकालत की। ऄपने नसद्चान्तों के अधार पर कोइ मौयभ िश ं की स्थापना की।
4.कौनिल्य ने राज्य के कायों का जो िणभन नकया है ईसमें लोककल्याणकारी राज्य के बीच नननहत
नदखायी पड़ते है।
5.कौनिल्य राजतंर का समथभक है परन्तु ईसका राजा एक योग्य इमानदार और ननयनन्रत राजा है। िह
कुछ हद तक प्लेिो के दाशभननक राजा की तरह है।
6.कौनिल्य ने व्यापक प्रशासननक व्यिस्था का ईल्लेख नकया है। ईसने प्रशासन को 18 भाग में
निभानजत नकया है। ईसका प्रशासननक निके न्द्रीकरण ईसकी महत्िपणू भ देन है।
7.कौनिल्य ने काननू के शासन पर बल नदया। काननू ऄनभु ि तथा अध्यात्म पर अधाररत है।
8.कौनिल्य ने न्याय के नलये स्ितन्र एिं ननष्पक्ष नयाय निभाग की स्थापना पर बल नदया। ईसने
न्यायधीशों की ननयनु क्त एिं कायों की स्पष्ट व्याख्या की।
9.कौनिल्य ने दण्ड की व्यापक व्यिस्था की। ईसने दण्ड का स्िरूप, दण्ड के ननधाभरण नसद्चान्त,
प्रकार का निस्तृत नििरण प्रस्ततु नकया। ईसका दण्ड नसद्चान्त पणू तभ ः व्यिहाररक है।
10.कौनिल्य ने राजपतू तथा राज्य की सीमा के ऄदं र गप्तु चरों के उपर व्यापक िणभन नकया है।
ऄन्तराभष्रीय क्षेर में िह मण्डल नसद्चान्त के द्वारा निदेश नीनत संचालन तथा राष्र की सीमा को
सरु नक्षत रखने तथा निस्तार की नीनत को स्पष्ट करता है।

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11.ईसने धमभ एिं राजनीनत पर निचार नकया। अतं ररक एिं निदेशनीनत धमभ पर अधाररत होनी
चानहए। ईसने राजनीनत को धमभ अधाररत बताया परन्तु कुछ स्थानों पर िह ईसे स्ितन्र भी रखता
है। िह धानमभक संस्थाओ ं पर राज्य के ननयन्रण का पक्षधर है।

2.11 कौरिल्य एवां मैकयावेली


कौनिल्य ने पस्ु तक ‗ऄथभशास्त्र‗ तथा मैनकयािेली ने ऄपनी पस्ु तक ――नद नप्रंस‖‖ में ऄपने राजनीनतक
निचारों का ईल्लेख नकया है। कुछ पाश्चात्य निचारक कौनिल्य को मैनकयािेली का ऄग्रदतू मानते है
तथा ईसकी तल ु ना मैनकयािेली से करते है। कौनिल्य एिं मैनकयािेली में ऄनेक स्थानों पर समानता
नदखती है तथा ऄनेक स्थान पर ऄसमानता नदखती है। मैनकयािेली से समानता िाले प्रमख ु तत्ि
ननम्न है-
1. दोनों राजा को ऄसीनमत शनक्तयााँ देने के पक्षधर है। िे राजा को सिोच्च ननणाभयक मानते है।
2. दोनों ही राज्य की एकता एिं निस्तारिादी नीनत के समथभक हैं।
3. दोनों ने यद्च
ु को राज्य की निस्तार एिं निदेश नीनत का प्रमख
ु अधार माना है।
4. दोनों ही कठोर राष्रिादी थे। िे राज्य की एकता स्थानपत करने के पक्षधर थे।
5. दोनों ही यथाभथिादी थे। दोनों के राजनीनतक नसद्चान्त यथाभत पर अधाररत थे।
6. दोनों ही निदेश नीनत पर बड़ा बल नदया। दोनों ही पड़ोसी राज्य को शक
ं ा से देखते हैं।
7. दोनों ने गप्तु चर पर निशेष बल नदया। दोनों गप्तु चरों को राज्य की अख
ं एिं कान माना। दोनों
ने गप्तु चरों का निस्तृत नििेचन नकया है।
8. दोनों ने राज्य के ईद्ङेश्य की पनू तभ के नलये नैनतकता के ईल्लघनं को सही ठहराया है। आसके
नलये साम, दाम, दण्ड, भेद की नीनत को सही ठहराया है।
कौतिल्य और मैतकयािेली में ऄंिरः- कौनिल्य एिं मैनकयािेली में कुछ नबन्दओ ु ं पर ऄतं र
नदखता हैः-
1.कौनिल्य एक अचायभ था। िह सादा एिं संयनमत जीिन का समथभक था। िही मैनकयािेली न तो
अचायभ था और न ही सन्यासी था।
2.कौनिल्य ने ‗ऄथभशास्त्र‗ ऄपने लक्ष्य की प्रानप्त ऄथाभत मौयभ िश
ं की स्थापना के बाद की िहीं
मैनकयािेली ने आसकी रचना ऄपने जीिन के ननराशाजनक पल में की थी। ईसने नप्रंस की रचना तब
की जब िह राजनीनतक रूप से ननष्कानसत हो चक ु ा था।

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3.नप्रंस के िल राजनीनत से सम्बनन्धत है जबनक ‗ऄथभशास्त्र‗ राजनीनत तथा मानि जीिन के प्रत्येक
क्षेर से जड़ु ी है।
4.मैनकयािेली मानि के प्रनत नकरात्मक दृनष्टकोण रखता है जबनक कौनिल्य का दृनष्टकोण
ननराशाजनक नहीं है।
5.मैनकयािेली का मख्ु य ईद्ङेश्य राज्य की सरु क्षा को बनाये रखना है जबनक कौनिल्य का ईद्ङेश्य
व्यापक राज्य एिं शासन व्यिस्था का प्रनतपादन करना है।
6.कौनिल्य परम्परािादी है जबनक मैनकयािेली अधनु नक है। कौनिल्य राजतन्र का समथभन करता है
जबनक मैनकयािेली ने राष्रिाद का बीजारोपण नकया है।
7.कौनिल्य ने निदेश नीनत पर प्रकाश डाला है। आसके नलये राजदतू अनद का व्यापक िणभन नकया है।
जबनक मैनकयािेली में आसका ऄभाि है।

2.12 कौरिलय एवां यूनानी रवचारक


कौनिल्य की पृष्ठभनू म भारतीय थी जबनक यनू ानी निचारकों जैसे प्लेिो की पृष्टभनू म ऄलग थी। आसके
बािजदू दोनों के बीच कुछ समानतायें नदखायी पड़ती है।
1. दोनों ही निचारकों ने राज्य को एक शरीर के रूप में है ।
2. दोनों ने राज्य को अिश्यक बताया। ईनका मानना था नक राज्य द्वारा ही व्यनक्त ऄपने
ऄनं तम ईद्ङेश्यों की प्रानप्त कर सकता है।
3. दोनों ही राजतन्रों के समथभक है। दोनों का राजा दाशननभक या योग्य राजा है। ईनकी मान्यता
ईसकी योग्यता में है।
4. दोनों की राज्य को व्यनक्त के निकास का माध्यम मानते है।
ऄसमानतायें -प्लेिो एिं कौनिल्य में ननम्न नबन्दओ
ु ं पर ऄसमानतायें नदखायी पड़ती हैः-
1.प्लेिो अदशभिादी निचारक है तथा ईसका दृनष्टकोण काल्पननक है। िहीं कौनिल्य यथाभथिादी
तथा ईसका दृनष्टकोण व्यिहाररक है।
2.प्लेिो अदशभ राज्य की कल्पना कर निनभन्न नसद्चान्त प्रस्ततु करता है िहीं कौनिल्य ने
‗ऄथभशास्त्र‗ में राजनैनतक नसद्चान्त प्रस्ततु नकया नजसका ईद्ङेश्य एक मजबतू एिं शनक्तशाली राज्य
की स्थापना करना है।
3.प्लेिो ने अदशभ राज्य के नलये दाशभननक शासक तथा साम्यिादी नसद्चान्त प्रस्ततु नकया जबनक
कौनिल्य ने साम्यिाद एिं अदशभ राज्य की स्थापना पर बल नहीं नदया।

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4.प्लेिो ने स्त्री-परू
ु ष समानता पर बल नदया परन्तु कौनिल्य ने राजकायों में स्त्री सहभानगता पर बल
नहीं नदया है।
5.कौनिल्य के ‗ऄथभशास्त्र‗ में राज्य के गठन, निदेश नीनत, गप्तु चर व्यिस्था, िैदने शक नीनत का
व्यापक िणभन है जबनक प्लेिो के दशभन में आसका ऄभाि है।
ऄभ्यास प्रश्नः-
1. कौनिल्य की पस्ु तक का नाम क्या था ?
2. कौनिल्य ने नकस राजिश
ं की स्थापना की ?
3. कौनिल्य नकसका महामरं ी था ?
4. कौनिल्य के निचार ननम्न में से नकससे मेल खाते है?
I. अगस्ताआन II. नमल III. माक्सभ IV. मैनकयािेली
5. ननम्न में से नकसने मण्डल नसद्चान्त नदया?
I. कौनिल्य II. प्लेिो III. ऄरस्तू IV. माक्सभ
6. षाड़गण्ु य नीनत नकसकी देन है?
I.कौनिल्य II. प्लेिो III. नससरो IV. अगस्िाआन

2.13 साराांश
कौनिल्य एक यथाभथिादी प्राचीन भारतीय निचारक था। ईसने ऄपने ग्रन्थ ऄथभशास्त्र के माध्यम से
निनभन्न राजनीनतक नसद्चान्तों का प्रनतपादन नकया। िह राज्य के सात ऄगं ों का नसद्चान्त देता है जो
यनू ानी निचारकों के अनं गक नसद्चान्त की तरह नदखता है। कौनिल्य राज्य का प्रशासन कै से चलाया
जाए, राजा को नकन ननयमों का पालन करना चानहए? अनद प्रश्नों का ईत्तर प्रस्ततु करता है।
कौनिल्य ऄपनी पस्ु तक में निदेश नीनत के संचालन की व्यापक योजना प्रस्ततु करता है। िह ऄपने
मण्डल नसद्चान्त एिं षाड़गण्ु य नीनत के द्वारा निदेश नीनत तथा पड़ोसी राज्य के साथ सबं धं सचं ालन
की व्यापक योजना प्रस्ततु करता है। िह राजदतू की ननयनु क्त, गप्तु चरों की ननयनु क्त , राजा की
नदनचयाभ एिं ईस पर ननयन्रण, दण्ड, न्याय अनद निषयों का निस्तृत नििेचन देता है।
कौनिल्य का निनभन्न निषयों पर नदया गया सम्पणू भ नििेचन यथाभतिादी है। िह एक मजबतू राज्य
का ननमाभण करना चाहता हैं आस ईद्ङेश्य की पनू तभ के नलए सेना की मजबतू ी तथा निस्तारिादी नीनत की
िकालत करता है। िह सदैि पड़ोसी देश पर पैनी नजर रखने का समथभक था। आसके नलए िह देश के
ऄन्दर मजबतू प्रशासननक व्यिस्था तथा गप्तु चरों के माध्यम से सचू ना सक ं लन पर जोर देता है। िह

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निस्तारिादी नीनत का समथभक था। िह राष्रनहत की पनू तभ के नलये साम, दाम, दण्ड और भेद की
नीनत ऄपनाने का पक्षधर था।
आस प्रकार स्पष्ट होता है नक कौनिल्य प्राचीन काल का पहला ऐसा निचारक था नजसने राजनीनत पर
आतना व्यापक और ईद्ङेश्यपणू भ ग्रन्थ नलखा। ईसने शासन, प्रशासन एिं निदेश नीनत संचालन पर नदये
निचार सैकणों िषभ गजु र जाने के बाद भी ऄत्यंन्त प्रांसनगक है। ईसकी कृ नत ऄथभशास्त्र ईसकी
मानिता को दी गइ ऄमल्ू य देन है।

2.14 शब्दावली
ऄथभशास्त्र: कौनिल्य द्वारा नलनखत एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ, जो शासन कला,शासन,ऄथभशास्त्र और
सैन्य रणनीनत एमइअइएन ऄंतदृभनष्ट प्रदान करता है।
मण्डल नसद्चान्त: कौनिल्य का भ-ू राजनीनतक नसद्चान्तजो पड़ोसी राज्यों के बीच सम्बन्धों और
गठबंधनों पर के नन्द्रत है।

2.15 ाऄभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1. ऄथभशास्त्र 2.मौयभिश
ं 3. चन्द्रगप्तु मौयभ 4.मैनकयािेली
5.कौनिल्य 6. कौनिल्य

2.16 सांदर्भ ग्रन्थ सूची


1. राि एम0िी0 कृ ष्णा, स्िडीज आन कौनिल्या
2. समस्त्रे अर0 , कौनिल्यस का ऄथभशास्त्र
3. परमात्मा शरण, प्राचीन भारत में राजनीनतक निचार एिं समस्यायें
4. िमाभ , िी0पी0, प्राचीन भारतीय नचन्तन

2.17 सहायक/उपयोगी पाठ्यसामग्री


1. िेनी प्रसाद, नद स्िेि आन एननसएिं आनण्डया
2. श्यामलाल पाण्डेय, कौनिल्य की राज व्यिस्था
3.17 सहायक/ईपयोगी पाठ्यसामग्री

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2.18 रनबांधात्मक प्रश्न
1. कौनिल्य के प्रमख
ु राजनीनतक निचारों पर ननबन्ध नलनखये ।
2. कौनिल्य के सांप्ताग नसद्चान्त पर प्रकाश डानलए।
3. कौनिल्य का मण्डल नसद्चान्त क्या है? ईसका निस्तृत नििेचन कीनजये।
4. एक राजनीनतक निचारक के रूप में कौनिल्य की प्रांसनगकता को स्पष्ट करते हुए ननबंध
नलनखये।
5. ऄथभशास्त्र में िनणभत प्रशासननक एिं न्याय व्यिस्था पर ननबंध नलनखये ।

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इकाई 3 : राजा राम मोहन राय

3.1 प्रस्तािना
3.2 ईद्ङेश्य
3.3 राजा राम मोहन राय का जीिन पररचय
3.4 राजा राम मोहन राय की रचनाएाँ
3.5 राय के निचारों पर प्रभाि
3.6 राजा राम मोहन राय के राजनीनतक नचंतन के मल ू तत्ि
3.6.1 व्यनक्तगत तथा राजनीनतक स्ितंरता संबंधी धारणा
3.6.2 प्रेस की स्ितरं ता का समथभन
3.6.3 न्याय व्यिस्था पर निचार
3.6.4 प्रशासन तथा राजस्ि संबंधी निचार
3.6.5 मानििाद तथा निश्व बंधत्ु ि पर निचार
3.6.6 नशक्षा पर निचार
3.7 राजा राम मोहन राय के सामानजक निचार
3.8 राजा राम मोहन राय के धानमभक निचार
3.9 राजा राम मोहन राय के अनथभक निचार
3.10 राजा राम मोहन राय का योगदान
3.11 सारांश
3.12 शब्दािली
3.13 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर
3.14 सन्दभभ ग्रन्थ सचू ी
3.15 सहायक/ ईपयोगी पाठ्य सामग्री
3.16 ननबंधात्मक प्रश्न

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3.1 प्रस्तावना
राजा राम मोहन राय (22 मइ, 1772 - 27 नसतंबर,1833) का नाम ईन चनु नंदा लोगों में नलया जाता
हैं नजन्होंने नजनके निचारों और कायों ने भारत के निकास में ऄहम भनू मका ननभाइ। राजा राम मोहन
रायको भारतीय पनु जाभगरण का ऄग्रदतू और अधनु नक भारत का जनक कहा जाता
है । भारतीय सामानजक और धानमभक पनु जाभगरण के क्षेर में ईनका निनशष्ट स्थान है
। िे ब्रह्म समाज के सस्ं थापक , भारतीय भाषायी प्रेस के प्रितभक, जनजागरण
और सामानजक सधु ार अदं ोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नि-
जागरण यगु के नपतामह थे। ईन्होंने परकाररता के साथ भारतीय
स्ितन्रता संग्राम दोनों क्षेरों को गनत प्रदान की। ईनके अन्दोलनों ने जहााँ परकाररता
को चमक दी , िहीं ईनकी परकाररता ने अन्दोलनों को सही नदशा नदखाने का
कायभ नकया। राजा राममोहन राय
रूनढ़िाद और कुरीनतयों के निरोधी थे लेनकन संस्कार , परंपरा और राष्र गौरि ईनके
नदल के करीब थे । राजा राममोहन राय नसफभ सती प्रथा का ऄतं कराने िाले महान समाज
सधु ारक ही नहीं, बनल्क एक महान दाशभननक और निद्वान भी थे । रिीन्द्र नाथ िैगोर ने राम मोहन राय
को ‘भारत में अधनु नक यगु के ईद्घािनकत्ताभ के रूप में भारतीय आनतहास का एक चमकदार नसतारा’
कहा है ।

3.2 उद्देश्य
आस ऄध्याय का ईद्ङेश्य पाठकों को राजा राम मोहन राय के निचारों से पररचय कराना है। आसमें राजा
राम मोहन राय के राजनीनतक नचतं न के मल ू तत्ि के साथ –साथ भारतीय राजनीनतक व्यिस्था की
पनु रभ चना, व्यनक्तगत तथा राजनीनतक स्ितंरता संबंधी धारणा, प्रेस की स्ितंरता का समथभन , काननू ,
ऄनभसमय तथा नैनतकता संबंधी निचार, न्याय व्यिस्था पर निचार , प्रशासन तथा राजस्ि संबंधी
निचार , मानििाद तथा निश्व बधं त्ु ि पर निचार अनद से सम्बनं धत है , आन पर चचाभ से भी पाठकों
का ज्ञानिधभन होगा ।
आस आकाइ का ऄध्ययन करने के पश्चात् अपको -
i . राजा राम मोहन राय के राजनीनतक नचंतन के मल
ू तत्ि के बारे में ज्ञान प्राप्त होगा ।
ii. साथ ही अप राजा राम मोहन राय के धानमभक निचारों के बारे में जान सकें गे।
iii. अप राजा राम मोहन राय के सामानजक निचारों के बारे में जान सकें गे तथा

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iv. राजा राम मोहन राय के योगदान से भी अप ऄिगत होंगे ।

3.3 राजा राम मोहन राय का जीवन पररचय


भारतीय पनु जाभरण के ऄग्रदतू राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मइ, 1772 को बंगाल के हूगली
नजले के राधानगर में हुअ था। ईनके नपता का नाम रामकंतो राय और माता का नाम तैररनी था। राम
मोहन राय का पररिार िैष्णि था, जो नक धमभ संबंधी मामलों में बहुत कट्टर था। राजा राम मोहन राय
की प्रारंनभक नशक्षा फारसी और ऄरबी भाषाओ ं में पिना में हुइ, जहााँ ईन्होंने कुरान, सफ
ू ी रहस्यिादी
कनियों के काम तथा प्लेिो और ऄरस्तू के कायों के ऄरबी ऄनिु ाद का ऄध्ययन नकया था। बनारस
में ईन्होंने संस्कृ त का ऄध्ययन नकया और िेद तथा ईपननषद पढ़े। सोलह िषभ की अयु में ऄपने गााँि
लौिकर ईन्होंने नहदं ओ ु ं की मनू तभ पजू ा पर एक तकभ संगत अलोचना नलखी। िषभ 1803 से 1814 तक
ईन्होंने इस्ि आनं डया कंपनी के नलये िडु फोडभ और नडग्बी के ऄतं गभत ननजी दीिान के रूप में काम
नकया। िषभ 1814 में ईन्होंने नौकरी से आस्तीफा दे नदया और ऄपने जीिन को धानमभक, सामानजक
एिं राजनीनतक सधु ारों के प्रनत समनपभत करने के नलये कलकत्ता चले गए।
राजा राम मोहन राय की दरू दनशभता सचमचु ही सराहनीय थी। 1817 इ0 में डेनिड हेयर
नामक ऄग्रं ेज के साथ नमलकर भारत में नशक्षा की ईन्ननत हेतु कायभ नकया। सर एडिडभ हाआडइस्ि को
नहन्दू कॉलेज की स्थापना मे मदद की। यह कॉलेज 1817 इ0 में कलकत्ता में खोला गया जो ऄब
‖प्रेनसडेन्सी कॉलेज‖ के नाम से प्रनसद्च है। राजा राम मोहन राय ने ऄपने अदशों को चररताथभ करने
के नलए 1822 में एक निद्यालय खोला नजसका नाम ‖एग्ं लो-नहन्दू स्कूल‖ था। ईनका निचार था नक
निद्यायल में ऄग्रं ेजी भाषा की पढ़ाइ होगी, नशक्षा की पाश्चात्य प्रणाली ऄपनायी जायेगी और धमभ
एिं नीनत सबं धं ी नशक्षा दी जाएगी। आस निद्यालय में छारों की मातृ-भाषा ऄथाभत् बगं ला भाषा में
निज्ञान एिं ऄन्य निषयों की नशक्षा दी जाती थी। छारों की िाद-नििाद गोनष्ठयााँ होती थी। ईसमें मातृ
भाषा में ही बोलने को प्रोत्सानहत नकया जाता था।
ऄगं जे ी नशक्षा के निस्तार के कारण लोग िेद एिं ईपननषद अनद की चचाभ छोड़ न दें, आस
ईद्ङेश्य से ईन्होंने ‖िेदातं कॉलेज‖ की स्थापना की। देश में कुछ लोग राजा राम मोहन राय के द्वारा
ऄग्रं ेजी नशक्षा प्रणाली के प्रितभन का निरोध करते थे। राजा राम मोहन राय ने देश की िास्तनिक
ईन्ननत के नलए निश्व से सबं ंध स्थानपत करके कदम से कदम नमलाकर चलना पडेऺगा आसके नलए
नशक्षा के क्षेर में पाश्चात्य प्रणाली को ऄपनाना जरूरी है, परंतु ईन्होंने कभी भी संस्कृ त नशक्षा की
ऄिहेलना नहीं की।
ईनका मानना था नक जब तक ऄधं निश्वास और जानत प्रथा पर प्रहार नहीं होगा
, तब तक नहन्दू समाज प्रबलता के साथ खड़ा नहीं हो सकता . नहन्दत्ु ि के प्रचार
- प्रसार एिं सामानजक संरचना में निकार -

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
हीन गनतशीलता लेन के नलए ईन्होंने सन 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की।
राजा राम मोहन राय के निचारोाँ से प्रभानित होकर देिद्रें नाथ िैगोर ने 1843 मे ाँ
ब्रह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की। राजा राम मोहन राय को मगु ल सम्राि ऄकबर नद्वतीय
ने ‖राजा‖ की ईपानध दी थी। राजा राम मोहन राय को ऄनेक भाषाओ ं का ज्ञान था जैसे नक ऄरबी,
फारसी, ऄग्रं ेजी और नहब्रू का, राजा राम मोहन राय का प्रभाि लोक प्रशासन, राजनीनत, नशक्षा और
धमभ के क्षेर में स्पष्ट था। राजा राम मोहन राय को कइ आनतहासकारों द्वारा ‖बंगाल पनु जाभगरण का
नपता‖ माना जाता है। महज 15 साल की ईम्र में राजा राम मोहन राय ने बंगाल में पस्ु तक नलखकर
मनू तभपजू ा का निरोध शरू ु कर नदया था। राजा राम मोहन राय ने ऄग्रं ेजी की नशक्षा प्राप्त कर गनणत,
भौनतक निज्ञान, िनस्पनत निज्ञान और दशभन शास्त्र जैसे निषयों को पढ़ने के साथ-साथ िेदों और
ईपननषदों को भी जीिन के नलए ऄननिायभ बताया था।
राजा राम मोहन राय अधनु नक भारत के राजनीनतक-निचारक, समाज-सधु ारक और ‖ब्रह्म
समाज‖ के संस्थापक के रूप में निख्यात हैं। ईन्हें भारतीय पनु जाभगरण का ऄग्रदतू माना जाता है।
ईन्होंने मध्ययगु ीन ऄधं निश्वासों और ईनसे जड़ु ी कुररनतयों पर कड़ा प्रहार करके भारत को अधनु नक
बनने की राह नदखाइ। िैगोर के ऄनसु ार ‖‖राजा राम मोहन राय के रृदय और ईतने ही ईदार मन ने
ईन्हें ‖पनश्चम‖ के संदश
े को आस ढंग से ऄपनाने की प्रेरणा दी नजससे ‖पिू भ‖ की गररमा पर तननक भी
अाँच न अए‖‖।

3.4 राजा राम मोहन राय की रचनाएाँ


राजा राम मोहन राय को बांग्ला , फारसी , ऄरबी , नहन्दी , संस्कृ त और ऄग्रं ेजी – आन छह भाषाओ ं
का ऄच्छा ज्ञान था। राय की कृ नतयों में मख्ु यतः भारतीय दशभन की तकभ सगं त व्याख्या प्रस्ततु की गइ
है और भारतीय समाज की समस्याओ ं पर निचार नकया गया है। आनके ऄलािा, ईन्होंने जो
यानचकाए,ं पर और चौपन्ने नलखे, िे ईनके सामानजक और राजनीनतक निचारों की ऄनठू ी स्रोर
सामग्री हैं। राजा राम मोहन राय की रचनाओ ं में प्रमख
ु है :
मडंु क ईपननषद (1819)
नहदं ू धमभ की रक्षा (1820)
द नप्रसेप्िस ऑफ जीसस- द गाआड िू पीस एडं हैप्पीनेस (1820)
बंगाली व्याकरण (1826)
द यनू निसभल ररलीजन (1829)

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
भारतीय दशभन का आनतहास (1829)
गौड़ीय व्याकरण (1833)
धमभ, नशक्षा, भाषा की ईन्ननत ि प्रसार के नलए आन कृ नतयों का ऄत्यनधक महत्ि समझा जाता है।

3.5 राय के रवचारों पर प्रर्ाव


राजा राम मोहन राय नहब्रू और फारसी की सेमने िक संस्कृ नत , िेदान्त और ईपननषदों की नहन्दू
संस्कृ नत , तथा यहूदी और यनू ानी – रोमन संस्कृ नत से नभन्न िैज्ञाननक , अनथभक और जननहतिादी
निचारधारा पर अनश्रत पनश्चम की नइ निद्या से भी भली – भानं त पररनचत थे । राम मोहन राय पनश्चमी
अधनु नक निचारों से बहुत प्रभानित थे और बनु द्चिाद तथा अधनु नक िैज्ञाननक दृनष्टकोण पर बल
देते थे। राम मोहन राय की तात्कानलक समस्या ईनके मल ू ननिास बंगाल के धानमभक और सामानजक
पतन की थी। ईनका मानना था नक धानमभक रूनढ़िानदता सामानजक जीिन को क्षनत पहुचाँ ाती है और
समाज की नस्थनत में सधु ार करने के बजाय लोगों को और परे शान करती है । राजा राम मोहन राय ने
ननष्कषभ ननकाला नक धानमभक सधु ार, सामानजक सधु ार और राजनीनतक अधनु नकीकरण दोनों हैं। राम
मोहन का मानना था नक प्रत्येक पापी को ऄपने पापों के नलये प्रायनश्चत करना चानहये और यह
अत्म-शनु द्च और पश्चाताप के माध्यम से नकया जाना चानहये न नक अडंबर और ऄनष्ठु ानों के
माध्यम से। िह सभी मनष्ु यों की सामानजक समानता में निश्वास करते थे और आस तरह से जानत
व्यिस्था के प्रबल निरोधी थे। राम मोहन राय आस्लानमक एके श्वरिाद के प्रनत अकनषभत थे। ईन्होंने
कहा नक एके श्वरिाद भी िेदातं का मल ू संदश
े है राजा राम मोहन राय का मानना था नक जब तक
मनहलाओ ं को ऄनशक्षा, बाल नििाह, सती प्रथा जैसे ऄमानिीय रूपों से मक्त ु नहीं नकया जाता, तब
तक नहदं ू समाज प्रगनत नहीं कर सकता।

3.6 राजा राम मोहन राय के राजनीरतक चचतन के मूल तत्व


लॉक, ग्रोनशयस तथा िॉमस पेन की भााँनत राजा राम मोहन राय ने भी प्राकृ नतक ऄनधकारों की
पनिरता को स्िीकार नकया। ईन्हें जीिन स्ितंरता और सम्पनत्त धारण करने के प्राकृ नतक ऄनधकारों
में निश्वास था। ईन्होंने व्यनक्त के नैनतक ऄनधकारों का समथभन नकया। ईन्होंने प्राकृ नतक ऄनधकारों के
नसद्चांतों को प्रचनलत भारतीय लोक-संग्रह के अदशभ के ढााँचे के ऄतं गभत रखा। ऄनधकारों और
स्ितंरता के व्यनक्तिादी नसद्चांत के समथभक होते हुए भी ईन्होंने अग्रह नकया नक राज्य को समाज-
सधु ार तथा शैनक्षक पनु ननभमाभण के नलए कानून बनाने चानहए। ईन्होंने प्राकृ नतक ऄनधकारों के साथ
सामानजक ईपयोनगता तथा मानि कल्याण की धारणाओ ं का संयोग कर नदया।

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ईनके ऄनसु ार राजा को ननबभल तथा ऄसहाय व्यनक्तयों की रक्षा करनी चानहए। राज्य का कतभव्य
है नक िह जनता ककी सामानजक, सांस्कृ नतक, नैनतक और राजनीनतक दशाओ ं के सधु ार के नलए
प्रयत्न करे । िे व्यनक्त की गररमा के संरक्षण के पोषक थे। िे स्ितंरता, ऄनधकार, ऄिसर, न्याय अनद
राजनीनतक िरदानों का सिोच्च मानते थे। िे राज्य के कायभ क्षेर को आन्ही नदशाओ ं में प्रेररत करने की
अकांक्षा करते थे। ईनके नचंतन में व्यनक्त और राज्य एक दसू रे के परू क थे। राजा राम मोहन राय ने
मनष्ु य को नििेकशील प्राणी मानते हुए ईसकी स्ितंरता बल नदया। ईन्होंने कहा नक स्ितंरता मनष्ु य
की सबसे मल्ू यिान नननध है और देखा जाय तो यह मनष्ु य के मनष्ु यत्ि की पहचान है। राय का
कहना था नक भारत जैसे नपछड़े देश में नशक्षा का प्रसार और काननू का सधु ार राज्य का दानयत्ि है।
आस तरह राय ने ईदारिाद की मान्यताओ ं के ऄनरू ु प कल्याणकारी राज्य की पैरिी की। राय ने
नब्रनिश सरकार को जो यानचकाएं भेजीं, ईनमें ईन्होंने नागररक स्ितंरताओ ं और व्यनक्त के ऄनधकारों
जैसे, नस्त्रयों और परू ु षों दोनों के नलए जीिन, स्ितंरता और संपनत्त का ऄनधकार, निचार, िाणी
और ऄनभव्यनक्त की स्ितरं ता, ऄतं रात्मा की स्ितरं ता, कोइ भी साहचयभ बनाने की स्ितरं ता और
शांनतपणू भ और सांनिधाननक तरीके से सरकार को चेतािनी देने, ईसकी ऄिज्ञा और प्रनतरोध करने
का ऄनधकार जैसे स्ितंरताओ ं और ऄनधकारों पर निशेष रूप से ऄपना ध्यान कें नद्रत नकया।
3.6.1 व्यतिगि िथा राजनीतिक स्ििंत्रिा सबं ध
ं ी धारणा
राजा राम मोहन राय नब्रनिश प्रणाली की संिधै ाननक सरकार द्वारा लोगों को दी गइ नागररक स्ितंरता
से ऄत्यतं प्रभानित थे और ईसकी प्रशसं ा करते थे। िह सरकार की ईस प्रणाली का लाभ भारतीय
लोगों तक पहुचाँ ाना चाहते थे। लॉक, ग्रोनशयस तथा िॉमस पेन की भााँनत राजा राम मोहन राय ने भी
प्राकृ नतक ऄनधकारों की पनिरता को स्िीकार नकया। ईन्हें जीिन स्ितंरता और सम्पनत्त धारण करने
के प्राकृ नतक ऄनधकारों में निश्वास था। ईन्होंने व्यनक्त के नैनतक ऄनधकारों का समथभन नकया। ईन्होंने
प्राकृ नतक ऄनधकारों के नसद्चांतों को प्रचनलत भारतीय लोक-संग्रह के अदशभ के ढााँचे के ऄतं गभत
रखा। ऄनधकारों और स्ितरं ता के व्यनक्तिादी नसद्चातं के समथभक होते हुए भी ईन्होंने अग्रह नकया
नक राज्य को समाज-सधु ार तथा शैनक्षक पनु ननभमाभण के नलए काननू बनाने चानहए। ईन्होंने प्राकृ नतक
ऄनधकारों के साथ सामानजक ईपयोनगता तथा मानि कल्याण की धारणाओ ं का संयोग कर नदया।
ईनके ऄनसु ार राजा को ननबभल तथा ऄसहाय व्यनक्तयों की रक्षा करनी चानहए। राज्य का
कतभव्य है नक िह जनता ककी सामानजक, सास्ं कृ नतक, नैनतक और राजनीनतक दशाओ ं के सधु ार के
नलए प्रयत्न करे । िे व्यनक्त की गररमा के संरक्षण के पोषक थे। िे स्ितंरता, ऄनधकार, ऄिसर, न्याय
अनद राजनीनतक िरदानों का सिोच्च मानते थे। िे राज्य के कायभ क्षेर को आन्ही नदशाओ ं में प्रेररत
करने की अकांक्षा करते थे। ईनके नचंतन में व्यनक्त और राज्य एक दसू रे के परू क थे। राजा राम मोहन
राय ने मनष्ु य को नििेकशील प्राणी मानते हुए ईसकी स्ितंरता बल नदया। ईन्होंने कहा नक स्ितंरता
मनष्ु य की सबसे मल्ू यिान नननध है और देखा जाय तो यह मनष्ु य के मनष्ु यत्ि की पहचान है। राय का

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कहना था नक भारत जैसे नपछड़े देश में नशक्षा का प्रसार और काननू का सधु ार राज्य का दानयत्ि है।
आस तरह राय ने ईदारिाद की मान्यताओ ं के ऄनरूु प कल्याणकारी राज्य की पैरिी की।
राय ने नब्रनिश सरकार को जो यानचकाएं भेजीं, ईनमें ईन्होंने नागररक स्ितरं ताओ ं और
व्यनक्त के ऄनधकारों जैसे, नस्त्रयों और परू
ु षों दोनों के नलए जीिन, स्ितंरता और संपनत्त का
ऄनधकार, निचार, िाणी और ऄनभव्यनक्त की स्ितंरता, ऄतं रात्मा की स्ितंरता, कोइ भी साहचयभ
बनाने की स्ितंरता और शांनतपणू भ और सांनिधाननक तरीके से सरकार को चेतािनी देने, ईसकी
ऄिज्ञा और प्रनतरोध करने का ऄनधकार जैसे स्ितंरताओ ं और ऄनधकारों पर निशेष रूप से ऄपना
ध्यान कें नद्रत नकया।
3.6.2 प्रेस की स्ििंत्रिा का समथयन
राजा राम मोहन राय प्रेस एिं ऄनभव्यनक्त की स्ितंरता के महान समथभक थे। ईन्होंने ननश्चय नकया नक
समाचार-पर द्वारा िे लोगों में नशक्षा और ज्ञान का प्रसार करें गे तानक लोगों में समानता, भातृत्ि और
स्िाधीनता की भािना जगाइ जा सके । ईनका समाचार पर ‖संिाद कौमदु ी‖ बंगला और ऄग्रं ेजी
भाषा में और दसू रा समाचार पर ‖नमरात-ईल-ऄखबार‖ फारसी भाषा में प्रकानशत होता था।
राजा राम मोहन राय ननभीक और ननष्पक्ष समीक्षा के पक्षधर थे। ईनका तकभ था नक प्रेस की
स्ितंरता शासन और शानसत दोनों के नलए नहतकर है। शासन के नलए यह आसनलये लाभप्रद है नक
ईसे ऄपने शासन-नीनत के बारे में जनता के निनभन्न निचारों का पता चल जाता है। आस प्रकार जनता
शासकों की भल ू ों की ओर ईनका ध्यान अकनषभत कर सकती है। जनता के नलए प्रेस की स्ितरं ता
आसनलये नहतकर है नक आससे ज्ञान का प्रसार होता है और माननसक निचार में सहायता नमलती है।
ईन्होंने आस बात से आक ं ार कर नदया नक स्ितंरता प्रेस सरकार के निरूद्च संगनठत होने की स्ितंरता
की मांग है। ईनका कहना था नक समाचार-पर का ईद्ङेश्य तो जनता और शासन के मध्य एक कड़ी
का काम करना और नपछड़े हुए समाज को नइ रोशनी देना है।
लेखन और ऄन्य गनतनिनधयों के माध्यम से ईन्होंने भारत में स्ितंर प्रेस के नलये अदं ोलन का
समथभन नकया। जब िषभ 1819 में लॉडभ हेनस्िंग्स द्वारा प्रेस सेंसरनशप में ढील दी गइ, तो राम मोहन
राय ने तीन पनरकाओ-ं ब्राह्मणिादी पनरका (िषभ 1821); बंगाली साप्तानहक- संिाद कौमदु ी
(िषभ1821) और फारसी साप्तानहक- नमरात-ईल-ऄकबर का प्रकाशन नकया।
3.6.3 न्याय व्यिस्था पर तिचार
राजा राम मोहन राय यह मानते थे नक न्याय की ईपलनब्ध में ही न्याय का औनचत्य है। न्याय की
ईपलनब्ध के नलए न्यानयक संस्थाओ,ं न्यानयक संगठन और न्यानयक प्रनक्रया का जन-कल्याणकारी
होना अिश्यक है। राजा राम मोहनराय प्रथम भारतीय थे नजन्होंने शासन और न्याय निभागों को

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पृथक करने की अिाज ईठाइ और नब्रनिश संसद की निनशष्ट सनमनत के सम्मख ु महत्िपणू भ मसनिदे
प्रस्ततु नकये। ईन्होंने भारत में न्यानयक व्यिस्था, नागररक ऄनधकारों, काननू ों अनद के संबंध में
निनभन्न सधु ारों का सझु ाि नदया। शनक्त पृथक्करण ईनके नलए ऄच्छे शासन का एक मल ू नसद्चांत
था। कलेक्िर के पद के साथ प्रबन्धकाररणी और न्यानयक शनक्त के सनम्मश्रण का ईन्होंने जोरदार
निरोध नकया। न्यानयक प्रशासन की कुशलता में सधु ार के नलए राजा राममोहन राय ने आस बात पर
बल नदया नक काननू की नजरों में सभी लोग समान होने चानहए। परु ातन भारतीय व्यिस्था में
प्रचनलत न्याय पचं ातय का समथभन करते हुए ईन्होंने कहा नक ईसी प्रकार जन-सबं द्चं सस्ं था द्वारा ही
न्यानयक प्रणाली चलनी चानहए। ऄिकाश प्राप्त और ऄनभु िी भारतीय निनध-निशेषज्ञों को जरू ी का
सदस्य बनाना चानहए।
ऄपनी पस्ु तक में ईन्होंने ननभीकता से न्यानयक प्रशासन का मल्ू यांकन नकया और भारत में
न्यानयक व्यिस्था के स्िरूप के बारे में ऄपने निचार रखे। ईन्होंने आस बात पर बल नदया नक िे ही
व्यनक्त न्यानयक ऄनधकारी बने जो ननष्पक्ष, स्पष्ट और नििेक सम्पन्न तथा ननरपेक्ष होकर शासन की
हा आकाइ के प्रनत इमानदार रह सके । ईन्होंने मागं नक की ईच्च सेिाओ ं का भारतीयकरण नकया जाय।
कायभपानलका और न्यायपानलका को ऄलग नकया जाय, भारतीय और यरू ोपीय लोगों की न्यानयक
समानता स्िीकार की जाए और मक ु दमों की सनु िाइ के नलए जरू ी का गठन नकया जाय।
राजा राम मोहन राय के निचार बैंथम के निचारों से मेल खाते थे। ईनका मानना था नक
नब्रनिश शासन भारत के नलए िरदान की तरह है भारतीय ऄनधक सभ्य ि ससु स्ं कृ त हो जाए नफर
बाद में अजादी हानसल कर लेंग।े नब्रनिश शासन की निसंगनतयों के निरुद्व ऄपनी अिाज बल ु ंद
करते रहे। स्ितंर न्यायपानलका के नलए िे शनक्त के पृक्करण के पक्ष में थे। िे नब्रनिश न्याय व्यिस्था
के नखलाफ थे आसमें सधु ार के नलए ईन्होंने कुछ शतें रखी थी। 1833 में ईन्होंने आगं लैंड की यारा की
क्योंनक 1833 में कंपनी के चािभर के निीनीकरण की खबर सनु ी थी। भारतीयों की ददु श भ ा से ऄिगत
कराने और कंपनी के दोषों को ईजागर करने के नलए प्रथम भारतीय प्रनतनननध के रुप में िे िहां गए।
ईनका भव्य स्िागत हुअ। अपने पेंशनर मगु ल सम्राि के अिेदन पर को िहां प्रस्ततु नकया। अप
पहले भारतीय थे नजससे नब्रनिश संसद सलाह लेती थी।
3.6.4 प्रशासन िथा राजस्ि सबं ध
ं ी तिचार
राजा राम मोहनराय बंगाली ज़मींदारों की दमनकारी प्रथाओ ं की ननंदा की और भनू म के नलये न्यनू तम
नकराए के ननधाभरण की मांग की। ईन्होंने कर-मक्त
ु भनू म ि करों के ईन्मल
ू न की भी मांग की। ईन्होंने
निदेशों में भारतीय िस्तओ
ु ं पर ननयाभत शल्ु क को कम करने और इस्ि आनं डया कंपनी के व्यापाररक
ऄनधकारों को समाप्त करने का अह्वान नकया।

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राजा राम मोहन राय ने ईच्च सेिाओ ं के भारतीयकरण तथा कायभपानलका और न्यायपानलका
को ऄलग करने की मांग की। ईन्होंने भारतीय और यरू ोपीय लोगों के बीच समानता की भी मांग की।
3.6.5 मानििाद िथा तिश्व बंधुत्ि पर तिचार
राजा राम मोहन राय मानिता एिं ऄतं रराभष्रीयता के प्रबल समभथक थे। सपं णू भ मानि जानत को िे एक
पररिार की तरह मानने के कारण ऄतं रराभष्रीय मामलों में नििादों के हल के नलए समझौतों को ही
एकमार हल मानते थे। ईनका मानना था नक प्रत्येक देश की संसद से एक एक सदस्य लेकर एक
ऄतं रराभष्रीय काग्रं ेस की स्थापना के पक्षधर थे। आस प्रकार सयं क्त
ु राष्र सघं ि ऄन्य ऄतं रराभष्रीय
संगठनों का स्िप्न ईन्होंने बहुत पहले ही देख नलया था।
3.6.6 तशक्षा पर तिचार
नकसी भी राष्र के ईन्ननत के नलए सिभप्रथम नशक्षा का प्रचार-प्रसार होना अिश्यक है। राजा राम
मोहन राय ने कहा नक भारत में प्राथनमक नशक्षा ननःशल्ु क एिं ऄननिायभ होनी चानहए। ईनका मत था
नक नशक्षा का निस्तार समाज के ननम्न स्तर से होना चानहए। जैसे जब अग पर कोइ चीज पकाइ
जती है तब बतभन की नीचे से ही अग जलाने की अिश्यकता होती है। ईनका कहना था नक देश में
संस्कृ त पाठशालाओ ं में जैसी नशक्षा दी जाती है िह िैसे ही चले। बनल्क आन निद्यालयों की नशक्षा-
निनध को और ईन्नत नकया जाय। साथ ही ऄग्रं ेजी नशक्षा पद्चनत को भी ऄपनाया जाय। ईन्होंने
1823 इ. में गिनभर जनरल लाडभ एमहस्िभ को पर नलखकर कहा ‖आग्ं लैण्ड में बेकन के प्रभाि से
लोगों को परु ाने जीिन दशभन के साथ नशक्षानिनध बदलने की अिश्यकता हुइ थी‖। यनद नशक्षा निनध
को बदल कर बेकन की नीनत को नहीं ऄपनाया जाता तो परु ानी पद्चनत से लोगों में नशक्षा-निस्तार
करना संभि नहीं होता। िे सदा के नलए ऄज्ञानी रह जाते। यनद नब्रनिश व्यिस्था का ईद्ङेश्य भारतीयों
का सदा ऄज्ञान के ऄधं कार में रखना हो तो नफर संस्कृ त प्रणाली ही ऄच्छी है। परंतु जब सरकार
भारतीय जनता की प्रगनत चाहती है, तब अधनु नक एिं ईदार नशक्षा-प्रणाली द्वारा गनणत, प्राकृ नतक
दशभन, रसायनशास्त्र, शरीर निज्ञान एिं ऄन्य ईपयोगी िैज्ञाननक निषयों की नशक्षा भी दी जानी
चानहए। ननधाभररत धनरानश से यरू ोप में सनु शनक्षत, प्रनतभािान भारतीय निद्वानों को नशक्षक ननयक्त

नकया जाय। एक महानिद्यालय की स्थापना हो नजसके नलए अिश्यक पस्ु तकें खरीदी जायें।
राजा राम मोहन राय की दरू दनशभता सचमचु ही सराहनीय थी। 1817 में डेनिड हेयर नामक
ऄग्रं ेज के साथ नमलकर भारत में नशक्षा की ईन्ननत हेतु कायभ नकया। सर एडिडभ हाआडइस्ि को नहन्दू
कॉलेज की स्थापना मे मदद की। यह कॉलेज 1817 में कलकत्ता में खोला गया जो ऄब ‖प्रेनसडेन्सी
कॉलेज‖ के नाम से प्रनसद्च है। स्कॉिलैण्डिासी नशक्षानिद् रे िरे ण्ड डफ नशक्षा के क्षेर में काम करने
अये जो लोगों को अपनत्त हुइ नक इसाइ के निद्यालय में बाआनबल पढ़ाइ जाती है, नजससे जानत, धमभ
भ्रष्ट होने का डर है। ऐस समय में राजा राम मोहन राय ने लोगों को समझाया नक नकसी भी धमभ को

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ग्रंथ पढ़ने से जानत ि धमभ भ्रष्ट होने का प्रश्न नहीं ईठता है। सभी धमभ के निषय को जानना ऄच्छा है।
मैंने खदु बहुत बार बाआनबल पढ़ी है, कुरान-शरीफ भी पढ़ी है परंतु मैं न तो इसाइ बना हूाँ न ही
मसु लमान। बहुतेरे यरु ोपीय गीता एिं रामारण अनद ग्रन्थों का ऄध्ययन करते हैं, लेनकन िे लोग नहन्दू
नहीं हो गये हैं। ईनकी बातों से प्रेररत होकर लोग ‖डफ स्कूल‖ में ननयनमत रूप से जाने लगे। आस
प्रकार नशक्षा निस्तार का काम सफलता से चलने लगा।
राजा राम मोहन राय ने ऄपने अदशों को चररताथभ करने के नलए 1822 में एक निद्यालय
खोला नजसका नाम ‖एग्ं लो-नहन्दू स्कूल‖ था। ईनका निचार था नक निद्यायल में ऄग्रं ेजी भाषा की
पढ़ाइ होगी, नशक्षा की पाश्चात्य प्रणाली ऄपनायी जायेगी और धमभ एिं नीनत सबं धं ी नशक्षा दी
जाएगी। आस निद्यालय में छारों की मातृ-भाषा ऄथाभता ् ् बंगला भाषा में निज्ञान एिं ऄन्य निषयों की
नशक्षा दी जाती थी। छारों की िाद-नििाद गोनष्ठयााँ होती थी। ईसमें मातृ भाषा में ही बोलने को
प्रोत्सानहत नकया जाता था। ऄगं जे ी नशक्षा के निस्तार के कारण लोग िेद एिं ईपननषद अनद की
चचाभ छोड़ न दें, आस ईदा ् ्दश्े य से ईन्होंने ‖िेदांत कॉलेज‖ की स्थापना की। देश में कुछ लोग राजा
राम मोहन राय के द्वारा ऄग्रं ेजी नशक्षा प्रणाली के प्रितभन का निरोध करते थे। राजा राम मोहन राय ने
देश की िास्तनिक ईन्ननत के नलए निश्व से संबंध स्थानपत करके कदम से कदम नमलाकर चलना
पडेऺगा आसके नलए नशक्षा के क्षेर में पाश्चात्य प्रणाली को ऄपनाना जरूरी है, परंतु ईन्होंने कभी भी
सस्ं कृ त नशक्षा की ऄिहेलना नहीं की। आस प्रनक्रया में सरकार समनथभत नशक्षा महत्िपणू भ भनू मका
ननभा सकती थी, क्योंनक ऄज्ञान के कारण सामानजक बरु ाआयों के प्रनत समाज में जो स्िीकायभता पैदा
हो गइ थी, ईसे नशक्षा ही दरू कर सकती थी। चारों और कुतकभ का िातािरण था। ऐसे में, नब्रनिश
प्रशासन ही देश में व्याप्त गभं ीर सामानजक बरु ाआयों को दरू करने का सबसे ईपयक्त ु माध्यम हो सकता
था, जो ऄपने शासन को ऐसा दरू दशी और कृ पालु कदम मानता था, नजसके जररये भारत सामानजक
ईन्ननत और ऄतं तः अजादी हानसल कर सकता था। नब्रनिशों का पहला कदम शादी, ईत्तरानधकार,
राजस्ि, अपरानधक काननू और न्याय प्रणाली के क्षेर में ईदारिादी काननू ी सधु ार था। देसी नशक्षा
पद्चनत को पनश्चमी नशक्षा से बदल नदया जाना था, क्योंनक भारतीय नशक्षा का समाज में व्यािहाररक
आस्तेमाल नहीं हो सकता था।

3.7 राजा राम मोहन राय के सामारजक रवचार


प्रत्येक समाज में देखा गया है नक धानमभक निकृ नतयााँ सामानजक स्तर पर कुरीनतयों को जन्म देती है।
नहन्दू धमभ के क्षेर में भी ऐसा ही हुअ। राजा राम मोहन राय के समय नहन्दू समाज जात-पात, छुअ-
छूत, िहुनििाह, बाल-नििाह अनद ने जाने नकतने कुररनतयों के दल-दल में फाँ सा था। आनमें सबसे
घृनणत रीनत जो धमभ के साथ ही जड़ु ी थी िह थी ‖सती प्रथा‖ समाज सधु ार के नलए राजा राम मोहन
राय ने जो अन्दोलन छे ड़े ईनमें सबसे महत्िपूणभ और सफल अन्दोलन था सती प्रथा ईन्मल ू न।

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ु निश्वनिद्यालय 60
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
आसके ऄलािा बहुनििाह, बाल-नििाह, जात-पात, ऄस्पृश्यता और नस्त्रयों के सम्पनत्त पर ऄनधकार
जैसे सामानजक ऄन्यायों के निरूद्च अन्दोलन नकया। सती प्रथा ऄथाभत् मृत पनत के साथ निधिा
पत्नी को भी नचता पर जला डालने की प्रथा आस देश में काफी प्राचीन काल से चली अ रही थी
और मध्ययगु में कुप्रथा ने भयक ं र रूप धारण कर नलया। यह प्रथा सपं णू भ समाज ि देश के नलए
कलंक का निषय बन गया था। हत्या के आस नृशसं रूप को धानमभक और सामानजक मान्यता देकर
चालू रखा गया था। जब राजा राम मोहन राय ने ऄपने बड़े भाइ की पत्नी को सती होते देखा था तो
ईन्होंने प्रनतज्ञा की थी नक आस घृनणत प्रथा को बदं कराकर ही दम लेंग।े
राजा राम मोहन राय के ऄनसु ार व्यनक्त की स्ितरं ता का ऄथभ के िल यह नहीं नक देश
को निदेशी शासन से मनु क्त प्राप्त हो जाए। यनद समाज के भीतर ऄन्याय की जड़ें गहरी जीम हों तो
स्िाधीन देंश में भी व्यनक्त की स्ितंरता ननरथभक हो जाती है। नजस देश में व्यनक्त को अत्म-ननणभय
का ऄनधकार न हो, िह देश राजनीनतक स्िशासन का ऄनधकारी नहीं हो सकता। ऐसे देश को
राष्रीय स्िाधीनता प्राप्त पहले समाज सधु ार का कायभ हाथ में लेना चानहए।
राजा राम मोहन राय ने सधु ारिादी धानमभक संघों की कल्पना राजनीनतक और सामानजक
पररितभन के ईपरकणों के रूप में की थी। ईन्होंने समाज सुधार में प्रयास के रूप में 1815 इ0 में
अत्मीय सभा, 1821 इ0 में कोलकाता यनू निेररयन एसोनसएशन और 1828 इ0 में ब्रह्म समाज की
स्थापना की साथ समाज सधु ार के नलए जानत व्यिस्था का ईन्मल ू न, छुअ-छूत का ऄतं ,
ऄधं निश्वास का खडं न, नशीली दिाओ ं पर रोक लगाने जैसे कइ महत्िपणू भ ऄनभयान चलाये। ईन्होंने
मनहलाओ ं की स्ितंरता और निशेष रूप से सती और निधिा पनु निभिाह, बाल नििाह, मनहलाओें
की ऄनशक्षा, निधिाओ ं की ऄपमानजनक नस्थनत, मनहलाओ ं के नलए निरासत और संपनत्त में
ऄनधकार जैसे जनिल मदु ा ् ्दों पर अिाज ईठाइ।
राजा राम मोहन राय ने मनू तभ पजू ा का निरोध करते हुए यह मान्यता रखी नक हमें ऄसंख्य
देिी-देिताओ ं के बजाय एक ही ननराकार इश्वर की अराधना करनी चानहए। ईन्होंने जानत प्रथा पर
तीव्र प्रहार करते हुए तकभ नदया नक आस प्रथा ने न के िल समाज में घोर निषमता पैदा कर दी है, बनल्क
यहााँ के लोगों को देशभनक्त की भािना से भी निमख ु कर नदया है। स्ियं ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर
राय ने ब्राह्मण जानत की श्रेष्ठता को चनु ौती दी और समानता के निचार को बढ़ािा देने के नलए
ऄतं जाभतीय अदान-प्रदान, ऄतं जाभतीय प्रीनतभोज तथा ऄतं जाभतीय नििाह का समथभन नकया।
राय ने तत्कालीन समाज में नस्त्रयों की ददु श भ ा पर गहरी नचतं ा प्रकि की, और ईनकी दशा
सधु ारने का निस्तृत ऄनभयान चलाया। ईन्होंने आस धारणा का खडं न नकया नक नस्त्रयां बौनद्चक या
नैनतक दृनष्ट से पुरूषों की तल
ु ना में हीन हैं। ईन्होंने नस्त्रयों के नलए अधनु नक नशक्षा का समथभन नकया
और सामानजक पनु ननभमाभण में ईनकी भनू मका पर प्रकश डाला।

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ु निश्वनिद्यालय 61
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
ईन्होंने पाररिाररक संपनत्त में नस्त्रयों के ऄनधकार का समथभन नकया। ईन्होंने नशशु हत्या निशेषतः
कन्या हत्या, बाल-नििाह, बेमल े -नििाह, बहुपत्नी-प्रथा औ सती प्रथा जैसे ऄमानिीय कृ त्यों का
कड़ा निरोध नकया। ईन्होंने तकभ नदया नक जीिन इश्वर की देन है और ईसे नष्ट करने का ऄनधकार
समाज को नहीं है। निधरु की तरह निधिा को भी पनु निभिाह की स्ितरं ता होनी चानहए। यनद िह
संभि न हो तो निधिा को ननष्कलंक जीिन जीने से कोइ नहीं रोक सकता। ईन्होंने सामानजक और
अनथभक ऄन्याय से जड़ु ी ऄनेक प्रथाओ ं का निरोध नकया। ईन्होंने नकसानों पर जमींदारों के
ऄत्याचारों के निरूद्च अिाज ईठाइ और लगान की ऄनधकतम रानश ननयत कर देने का मागं की
तानक जमींदारों की लगातार बढ़ती हुआ। मांगों को रोका जा सके । राजा राम मोहन राय निश्वबंधत्ु ि के
प्रबल समथभक थे। आसे बढ़ािा देने के नलए ईन्होंने ऄतं राभष्रीयता की भािना को प्रोत्साहन नदया।
सामानजक जीिन के निनभन्न क्षेरों में ईन्होंने निनभन्न राष्रों के मक्त
ु सहयोग की मांग की। आस प्रकार
राजा राम मोहन राय का यह मानना है नक व्यनक्तगत ईन्ननत सामानजक ईन्ननत की कसौिी भी है और
माप भी, पर व्यनक्त की ईन्ननत तभी हो सकती है, जब सामानजक ईन्ननत के नलए पररनस्थनतयााँ पैदा
की जायें।
सती प्रथा, बालनििाह, जानत प्रथा, ऄस्पृश्यता जैसी कुरीनतयों के नलए ईन्होंने भारतीय
समाज में निचेतना का संचार नकया। ईनके ऄथक प्रयासों के कारण 1829 में लाडभ निनलयम बैंनिक
ने सती प्रथा को गैर काननू ी घोनषत नकया। बालनििाह जैसे सामानजक ऄनभशाप का निरोध करते
हुए निधिा पनु भनििाह को प्रोत्सानहत नकया। ईंचनीच की भािना ि ऄस्पृश्यता को ईन्होंने मानिता
का महान शरु माना। ईनके शब्दों में— जानत भेद नजससे नहन्दू समाज ऄनेक जानत ईपजानत में बिं
गया है हमारी गल ु ामी का प्रमख ु कारण रहा है। एकता के ऄभाि में ही हम दासता की जजं ीर में
जकडे रहे। प्रत्येक समाज में देखा गया है नक धानमभक निकृ नतयााँ सामानजक स्तर पर कुरीनतयों को
जन्म देती है। नहन्दू धमभ के क्षेर में भी ऐसा ही हुअ। राजा राम मोहन राय के समय नहन्दू समाज जात-
पात, छुअ-छूत, िहुनििाह, बाल-नििाह अनद ने जाने नकतने कुररनतयों के दल-दल में फाँ सा था।
आनमें सबसे घृनणत रीनत जो धमभ के साथ ही जड़ु ी थी िह थी ‖सती प्रथा‖ समाज सधु ार के नलए राजा
राम मोहन राय ने जो अन्दोलन छे ड़े ईनमें सबसे महत्िपूणभ और सफल अन्दोलन था सती प्रथा
ईन्मल
ू न।
आसके ऄलािा बहुनििाह, बाल-नििाह, जात-पात, ऄस्पृश्यता और नस्त्रयों के सम्पनत्त पर
ऄनधकार जैसे सामानजक ऄन्यायों के निरूद्च अन्दोलन नकया। सती प्रथा ऄथाभता ् ् मृत पनत के
साथ निधिा पत्नी को भी नचता पर जला डालने की प्रथा आस देश में काफी प्राचीन काल से चली
अ रही थी और मध्ययगु में कुप्रथा ने भयंकर रूप धारण कर नलया। यह प्रथा संपणू भ समाज ि देश के
नलए कलकं का निषय बन गया था। हत्या के आस नृशसं रूप को धानमभक और सामानजक मान्यता

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देकर चालू रखा गया था। जब राजा राम मोहन राय ने ऄपने बड़े भाइ की पत्नी को सती होते देखा
था तो ईन्होंने प्रनतज्ञा की थी नक आस घृनणत प्रथा को बंद कराकर ही दम लेंग।े
राजा राम मोहन राय के ऄनसु ार व्यनक्त की स्ितंरता का ऄथभ के िल यह नहीं नक देश
को निदेशी शासन से मनु क्त प्राप्त हो जाए। यनद समाज के भीतर ऄन्याय की जड़ें गहरी जीम हों तो
स्िाधीन देंश में भी व्यनक्त की स्ितंरता ननरथभक हो जाती है। नजस देश में व्यनक्त को अत्म-ननणभय
का ऄनधकार न हो, िह देश राजनीनतक स्िशासन का ऄनधकारी नहीं हो सकता। ऐसे देश को
राष्रीय स्िाधीनता प्राप्त पहले समाज सधु ार का कायभ हाथ में लेना चानहए। राजा राम मोहन राय ने
सधु ारिादी धानमभक सघं ों की कल्पना राजनीनतक और सामानजक पररितभन के ईपरकणों के रूप में
की थी। ईन्होंने समाज सधु ार में प्रयास के रूप में 1815 इ0 में अत्मीय सभा, 1821 इ0 में
कोलकाता यनू निेररयन एसोनसएशन और सना ् ् 1828 इ0 में ब्रह्म समाज की स्थापना की साथ
समाज सधु ार के नलए जानत व्यिस्था का ईन्मल ू न, छुअ-छूत का ऄतं , ऄधं निश्वास का खडं न,
नशीली दिाओ ं पर रोक लगाने जैसे कइ महत्िपूणभ ऄनभयान चलाये। ईन्होंने मनहलाओ ं की
स्ितरं ता और निशेष रूप से सती और निधिा पनु निभिाह, बाल नििाह, मनहलाओें की ऄनशक्षा,
निधिाओ ं की ऄपमानजनक नस्थनत, मनहलाओ ं के नलए निरासत और संपनत्त में ऄनधकार जैसे
जनिल मद्ङु ों पर अिाज ईठाइ।
राजा राम मोहन राय ने मनू तभ पजू ा का निरोध करते हुए यह मान्यता रखी नक हमें ऄसंख्य
देिी-देिताओ ं के बजाय एक ही ननराकार इश्वर की अराधना करनी चानहए। ईन्होंने जानत प्रथा पर
तीव्र प्रहार करते हुए तकभ नदया नक आस प्रथा ने न के िल समाज में घोर निषमता पैदा कर दी है, बनल्क
यहााँ के लोगों को देशभनक्त की भािना से भी निमख ु कर नदया है। स्ियं ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर
राय ने ब्राह्मण जानत की श्रेष्ठता को चनु ौती दी और समानता के निचार को बढ़ािा देने के नलए
ऄतं जाभतीय अदान-प्रदान, ऄतं जाभतीय प्रीनतभोज तथा ऄतं जाभतीय नििाह का समथभन नकया।
राय ने तत्कालीन समाज में नस्त्रयों की ददु श भ ा पर गहरी नचतं ा प्रकि की, और ईनकी दशा
सधु ारने का निस्तृत ऄनभयान चलाया। ईन्होंने आस धारणा का खडं न नकया नक नस्त्रयां बौनद्चक या
नैनतक दृनष्ट से पुरूषों की तल
ु ना में हीन हैं। ईन्होंने नस्त्रयों के नलए अधनु नक नशक्षा का समथभन नकया
और सामानजक पनु ननभमाभण में ईनकी भनू मका पर प्रकाश डाला। ईन्होंने पाररिाररक संपनत्त में नस्त्रयों
के ऄनधकार का समथभन नकया। ईन्होंने नशशु हत्या निशेषतः कन्या हत्या, बाल-नििाह, बेमल े -
नििाह, बहुपत्नी-प्रथा औ सती प्रथा जैसे ऄमानिीय कृ त्यों का कड़ा निरोध नकया। ईन्होंने तकभ
नदया नक जीिन इश्वर की देन है और ईसे नष्ट करने का ऄनधकार समाज को नहीं है। निधरु की तरह
निधिा को भी पनु निभिाह की स्ितंरता होनी चानहए। यनद िह संभि न हो तो निधिा को ननष्कलंक
जीिन जीने से कोइ नहीं रोक सकता।

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ईन्होंने सामानजक और अनथभक ऄन्याय से जड़ु ी ऄनेक प्रथाओ ं का निरोध नकया। ईन्होंने
नकसानों पर जमींदारों के ऄत्याचारों के निरूद्च अिाज ईठाइ और लगान की ऄनधकतम रानश
ननयत कर देने का मांग की तानक जमींदारों की लगातार बढ़ती हुआ। मांगों को रोका जा सके । राजा
राम मोहन राय निश्वबधं त्ु ि के प्रबल समथभक थे। आसे बढ़ािा देने के नलए ईन्होंने ऄतं राभष्रीयता की
भािना को प्रोत्साहन नदया। सामानजक जीिन के निनभन्न क्षेरों में ईन्होंने निनभन्न राष्रों के मक्त

सहयोग की मांग की। आस प्रकार राजा राम मोहन राय का यह मानना है नक व्यनक्तगत ईन्ननत
सामानजक ईन्ननत की कसौिी भी है और माप भी, पर व्यनक्त की ईन्ननत तभी हो सकती है, जब
सामानजक ईन्ननत के नलए पररनस्थनतयााँ पैदा की जायें। िे भारत की अजादी के नलए नहदं ू मनु स्लम
एकता को अिश्यक मानते थे। नब्रनिश सरकार के ईस हर कदम का निरोध करते थे जो दोनों धमों
के लोगों में ऄतं र की खाइ को बढाता था। आसीनलए ईन्होंने 1823 के नहदं ू मनु स्लम के बीच दरू ी
बढाने िाले जरू ी एक्ि का निरोध नकया। आसके निरोध में ईन्होंने नब्रनिश संसद में अिेदन भी नदया
था। राजा राम मोहन राय ने सधु ारिादी धानमभक सघं ों की कल्पना सामानजक और राजनीनतक
पररितभन के ईपकरणों के रूप में की। ईन्होंने बाल नििाह, मनहलाओ ं की ऄनशक्षा और निधिाओ ं
की ऄपमानजनक नस्थनत का निरोध नकया तथा मनहलाओ ं के नलये निरासत तथा संपनत्त के
ऄनधकार की मांग की।
राजा राम मोहन राय ने िषभ 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की नजसे बाद में ब्रह्म समाज का
नाम नदया गया। यह परु ोनहती, ऄनष्ठु ानों और बनल अनद के नखलाफ था।
यह प्राथभना, ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने पर कें नद्रत था। यह सभी धमों की एकता में निश्वास करता
था। यह अधनु नक भारत में पहला बौनद्चक सधु ार अदं ोलन था। आससे भारत में तकभ िाद और
प्रबोधन का ईदय हुअ नजसने ऄप्रत्यक्ष रूप से राष्रिादी अदं ोलन में योगदान नदया। यह अधनु नक
भारत के सभी सामानजक, धानमभक और राजनीनतक अदं ोलनों का ऄग्रदतू था। यह िषभ 1866 में दो
भागों में निभानजत हो गया, ऄथाभत् भारत के ब्रह्म समाज का नेतत्ृ ि के शि चन्द्र सेन ने और अनद
ब्रह्म समाज का नेतत्ृ ि देबेंद्रनाथ िैगोर ने नकया।

3.8 राजा राम मोहन राय के धार्ममक रवचार


राजा राममोहन राय 19िीं शताब्दी के प्रमखु धानमभक और सामानजक सधु ारक थे । िह भारतीय
राजनीनतक सोच की ईदारिादी परंपरा के संस्थापक थे । पाश्चात्य और पिू भ के दशभन की
धमभननरपेक्षता तथा अध्यानत्मकता का रचनात्मक संयोजन कर एक सािभभौनमक धमभ की
ऄिधारणा ईन्होंने प्रस्ततु की। ईनका मत था नक धमभ के क्षेर में बौनद्चकता से और अधनु नकता को
लाया जाना चानहए तथा बौनद्चकता से निहीन धमभ कइ सामानजक बरु ाआयों की जड़ है । राय की

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नदलचस्पी न के िल नहदं ू धमभ में सधु ार करने की थी बनल्क ईन्होंने दनु नया के निनभन्न धमों में पाए
जाने िाले ऄतं निभरोध को खत्म करने की कोनशश की ।
राजा राममोहन राय ने पनश्चमी निचार और सस्ं कृ नत की सकारात्मक चीजें ऄपनाकर हमारे
समाज और धमभ में सधु ार लाने की कोनशश की थी। आस ऄथभ में ईनकी भनू मका िैसी ही थी, जैसी नक
पनश्चमी संदभभ में मानिभन लथू र की थी। मनु स्लमों से मेलजोल के कारण ईन्हें एके श्वरिाद ने अकनषभत
नकया, तो इसाआयत की नैनतक नशक्षा से भी िह प्रभानित थे और मानते थे नक अध्यानत्मक नचंतन
के नलए संन्यास या िैराग्य जरूरी नहीं है। राजा राम मोहन राय के धानमभक निचारों का मल ू ईद्ङेश्य
सभी धमों के शाशित मल्ू यों और नननहत तत्िों को समझकर एक सािभभनै मक, सािभजननक धानमभक
सनहष्णतु ा का पररिेश बनाना था। निश्व की तीन प्रधान धमों के ऄध्ययन और नििेचन के बाद िो
ऄपने नसद्चांत पर पहुचाँ े थे। िह ऐसे िैचाररक क्रांनत के श्रेष्टा थे नजससे अधनु नक भारत का जन्म
हुअ। जरू ी एक्ि के निरूद्च ईन्होंने ऄपनी प्रनसद्च ऄपील में नलखा था नक धानमभक नसद्चांत लोगो के
साधारण और रोजमराभ के अचार-व्यिहार को काफी हद तक प्रभानित करते हैं। ये के िल नसद्चांत
और निचार मार नहीं, बनल्क ये देश के काननू , व्यिहार, दैननक अिश्यकता, कायभकलाप और
मानि जीिन के प्रत्येक पहलू के साथ गथाँु े थे।
राजा राम मोहन राय जब बालक थे, तभी हम ईन्हें मनू तभपजू ा के औनचत्य पर संदहे व्यक्त
करते हुए पाते हैं। सभी निद्वान सहमत हैं नक राजा राम मोहन राय निनशष्ट ऄनश ु ासन के रूप में
तल
ु नात्मक धमभ प्रनतष्ठापक माने जा सकते हैं। ईन्होंने कुरान का ऄरबी में, िेदों और ईपननषदों का
संस्कृ त में, ‖अल्ड िेस्िामेंि‖ और ‖तालमदु ‖ का नहब्रू में तथा न्यू िेस्िामेंि‖ का यनू ानी भाषा में
ऄध्ययन नकया। नहन्दओ ु ,ं मसु लमानों, इसाआयों, यहूनदयों और ऄन्य जानतयों के धमभ ग्रन्थों के गभं ीर
ऄध्ययन से तथा ऄपने ननजी ज्ञान से ईन्हें यह ननश्चय हो गया नक सभी धमों के ईपदेशों का मल ू यह
निश्वास है नक इश्वर एक और ऄनद्वतीय है और के िल ईसी की पजू ा करनी चानहए। सभी ऐनतहानसक
धमों के िैध धमभशास्त्र नबना नकसी निकल्प के आस एके श्वरिादी नसद्चातं की पनु ष्ट करते हैं। अराधना
निनधयों, धानमभक नक्रयाओ ं और धानमभक प्रतीकों में ऄन्तर भौगोनलक, जलिायु-जन्य एिं जातीय
कारणों से पैदा हुअ। िे कहते थे नक ऄपने शद्चु रूप में प्रत्येक धमभ स्ियं में पणू भ सत्य है।
ईन्होंने ‖एक सच्चे इश्वर की गैर-मजहबी ईपासना‖ के नलए एक भारतीय चचभ की भी
कल्पना की थी। ईस समय, जबनक धानमभक या सामानजक रीनतयों के निषय में ऄनिश्वास का क्षीण से
क्षीण स्िर भी बड़े से बड़ा ऄपराध माना जाता था, राजा राम मोहन राय ने घोषणा की थी नक
‖मनू तभपजू ा‖ की नहन्दप्रू था ने ऄन्य सभी प्रथाओ ं की तल ु ना में समाज के ढााँचे को ऄनधक क्षनत
पहुचाँ ायी है। मनू तभपजू ा के निनभन्न निधानों से जो ऄसनु िधाजनक ऄथिा हाननकारक रीनतयााँ शरू ु हो
गइ हैं, ईन पर ननरन्तर निचार करने के िाद, मैं ऄपने देशिानसयों को भ्रांनतयों के दःु स्िप्न से जगाने
के नलए हर संभि ईपाय करने पर बाध्य हुअ हू।ाँ ऄपने देशिानसयों के प्रनत मझु े जो प्रेम है ईसने भी

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मझु े आसके नलये बाध्य नकया है। ईन्होंने नलखा है - ‖हे इश्वर! तू धमभ को ऐसा बना दे नक िह मनष्ु य
और मनष्ु य के बीच पारस्पररक भेदभाि और िैर निरोध को नमिाने तथा मानिजानत में शांनत और
एकता पैदा करने में समथभ हो‖। भारतीय परम्परा में जो कुछ महत्िपूणभ था, ईसका िे अदर तो करते
थे, पर ईसके दास कभी नहीं बने। िेदातं और ईपननषदों का बगं ला और ऄग्रं ेजी जैसी जीनित
भाषाओ ं में ऄनुिाद करके , ईन्होंने नहन्दू धमभग्रन्थों का सारतत्ि ऄनधक से ऄनधक लोगों के सामने
रख नदया। मैक्समल ू र ने नलखा है नक ‖राजा राम मोहन राय पहले व्यनक्त थे नजन्होंने पिू भ और पनश्चम
में प्रिानहत जीिनधारा को पणू भतः सयं क्त
ु नकया।
राजा राम मोहन राय के निचार में धमभ कोइ ऐसा रहस्यात्मक गणु नहीं है, नजसका सबं धं
के िल व्यनक्त के ऄपने मोक्ष से हो। िस्ततु ः िह ऐसी शनक्त है नजसे समाज के ईत्थान का प्रशसं नीय
कायभ करना और मनष्ु य के अत्मोद्वार में योग देना है। एक िैज्ञाननक की तिस्थ दृनष्ट से ईन्होंने ऄपने
काल के सामज मे नासरू के समान फै ली हुइ बरु ाइयों का पता लगाया और ईन्हें ईखाड़ फें कने के
नलए संघषभ अरम्भ नकया। िे नलखते हैं नक ‖के िल धमभ ही नहीं ननष्पक्ष सामान्य बनु द्च और िैज्ञाननक
गिेषणा के सही ननष्कषभ भी हमें आसी पररणाम पर पहुचाँ ाते हैं नक सम्पणू भ मानि जानत एक बड़ा
पररिार है‖। आस प्रकार संपणू भ संसार में िे पहले व्यनक्त थे, नजन्होंने एक निश्व सरकार की कल्पना की
और ऐसी निश्व संस्था की स्थापना पर बल नदया, नजसमें ऄन्तराभष्रीय नििाद अपसी बातचीत द्वारा
तय नकये जा सकें । 1803 इ0 में ईनका पहला ग्रथं ‖तहु फातल ु मबु ानहदीन‖ (एके श्वरिानदयो के नलए
ईपहार) प्रकानशत हुअ। यह धानमभक लेख फारसी में नलखा गया था। आस पस्ु तक में धमों के स्िरूप
को कलनं कत करने िाले ऄसत्य पर खेद प्रकि नकया गया है तथा एक इश्वर की सत्ता में निश्वास के
संबंध में समस्त मनष्ु य जानत में निचार की सामान्य एकता का प्रनतपादन नकया गया है। ईनका
मानना है नक तानकभ क दृनष्ट के ऄभाि में लोग ऄंनधनिश्वास के गतभ में नगर जाते हैं। ऄपनी नकताब में
ईन्होंने मनू तभ-पजू ा तथा समस्त धमाां के ऄधं निश्वासों के निरूद्च मत प्रकि नकया है।
1815 में राजा राम मोहन राय ने धानमभक निषयों पर निचार निननमय करने, यानन मनू तभ पजू ा,
जानतगत कठोरता, ननरथभक ऄनष्ठु ानों ि ऄन्य सामानजक बरु ाइयों का निरोध करने के ईद्ङेश्य से
कोलकत्ता में ‖अत्मीय सभा‖ की स्थापना की थी। आस संस्था के स्थानपत होने के पीछे ईद्ङेश्य था
नमरों के साथ बैठकर धमभ सबं धं ी नििेचना करना तथा सदस्यों की अध्यानत्मक ईन्ननत के नलए
प्रयास करना। शास्त्रों का ऄध्ययन करके राजा राम मोहन राय ने समझा था नक सभी धमों का मल ू
तत्ि है नक इश्वर सिभशनक्तमान एिं आस निश्व का ननमाभता है। राजा राम मोहन राय का मानि प्रेम नकसी
देश या काल में सीनमत नहीं था। निश्व-मैरी ही ईनका अदशभ था। 1824 में ईन्होंने कलकत्ता
‖यनू निेररयन कमेिी‖ की स्थापना की और 1825 में ‖िेदांत कॉलेज‖ की स्थापना की। बाआनबल के
ऄध्ययन के प्रभाि से आन्होंने एक लेख ‖दी नप्रसेप्ि्स ऑफ जीसस‖ भी नलखा नजसमें बाआनबल के
अधार पर शांनत और प्रसन्नता का मागभ नदखाया गया था। 1828 में ईन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना

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की नजसके जररये िो सभी लोगों तक पहुचाँ ना चाहते थे। आस सभा में िे सब एकनरत हो सकते थे जो
नक एक इश्वर में निश्वास रखते थे और मनू तभ पजू ा के निरोधी थे। कइ भाषाओ ं के जानकार होने के
कारण सभी धमभग्रंथों का ऄध्ययन करने में समथभ होने के कारण िे आस ननष्कषभ पर पहुचं े नक सभी धमभ
एके श्वरिाद की ओर जाते हैं। धमभ रुपी प्रकाश स्त्रोत से दो प्रकार की नकरणें फूिती हैं त्याज्य और
स्िीकायभ।
राजा राम मोहन राय के धानमभक निचारों का मल
ू ईद्ङेश्य सभी धमों के शाशित मल्ू यों और
नननहत तत्िों को समझकर एक सािभभनै मक, सािभजननक धानमभक सनहष्णतु ा का पररिेश बनाना था।
निश्व की तीन प्रधान धमों के ऄध्ययन और नििेचन के बाद िो ऄपने नसद्चातं पर पहुचाँ े थे। िह ऐसे
िैचाररक क्रांनत के श्रेष्टा थे नजससे अधनु नक भारत का जन्म हुअ। जरू ी एक्ि के निरूद्च ईन्होंने
ऄपनी प्रनसद्च ऄपील में नलखा था नक धानमभक नसद्चांत लोगो के साधारण और रोजमराभ के अचार-
व्यिहार को काफी हद तक प्रभानित करते हैं। ये के िल नसद्चांत और निचार मार नहीं, बनल्क ये देश
के काननू , व्यिहार, दैननक अिश्यकता, कायभकलाप और मानि जीिन के प्रत्येक पहलू के साथ
गथाँु े थे।

3.9 राजा राम मोहन राय के ाअर्मथक रवचार


राजा राम मोहन राय ने सामानजक और अनथभक ऄन्याय से जड़ु ी ऄनेक प्रथाओ ं को निरोध नकया।
ईन्होंने नकसानों पर जमीदारों के ऄत्याचारों के निरूद्च अिाज ईठाइ और लगान की ऄनधकतम
रानश ननयत कर देने की मांग की तानक जमींदारों की लगातार बढ़ती हुइ मांगों को रोका जा सके ।
ईन्होंने इस्ि आनं डया कंपनी के व्यापाररक ऄनधकारों को खत्म करने की मांग की और मक्त ु व्यापार का
समथभन नकया। ईन्होंने भारतीय िस्तओ ु ं पर से भारी ननयाभत शल्ु क को हिाने का अग्रह नकया। राजा
राममोहन राय ने तत्कालीन अनथभक समस्याओ ं से संबंनधत निनभन्न सझु ािों को प्रस्ततु नकया परंतु
ईन्हें तात्कानलक अनथभक दोषों के प्रभािकारी आलाज मार समझना ईनके ईद्ङेश्य के महान
ऐनतहानसक महत्ि को भल ू ाना होगा । अनथभक निषयों पर सझु ाि रखने से पिू भ राजा राममोहन राय
िस्तनु नष्ठ निश्ले षण करते थे तथा ऐनतहानसक पररप्रेक्ष्य में एक ऄलग लेनकन निलक्षण तकभ प्रस्ततु
करते थे। अनथभक अधारभतू प्रश्नों पर राजा राममोहन राय के निचार ईस प्रश्नािली में निस्तार के
साथ प्रनतपानदत है जो 1831-32 में नब्रनिश संसद द्वारा ननयक्त ु एक प्रिर सनमनत ने ईनके पास भेजी
थी। आनमें से दो प्रश्न और ईनके राय द्वारा नदए गए ईत्तर ईनकी तकभ क्षमता को प्रनतपानदत करते हैं ।
नमक के व्यापार पर नब्रनिश इस्ि आनं डया कंपनी के एकानधकार को समाप्त कराने में ईनकी महत्िपूणभ
भनू मका रही । रॉबिभ क्लाआि एिं िारे न हेनस्िंग्स के कायभकाल में ऄनधकाररयों को नमक व्यापार में
भाग लेने की ऄनमु नत दी गइ थी और आससे िे मालामाल हो गए थे। सरकार ने नमक पर भारी कर
लगा नदया था और संरक्षण प्राप्त कर कंपनी और ईसके नौकरों ने मनमाने ढंग से हजार प्रनतशत

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ऄनधक कर नदया। नमक बनाने के नलए सरकार ने एजेंि ननयक्त ु नकए और एजेंि ने आस कायभ के नलए
लगभग 125000 नौकर भती नकए नजन्हें मल ु ंगु ी कहा जाता था लेनकन आनकी नस्थनत दासों जैसी थी
। तैयार होने के बाद नमक कोलकाता में नीलामी द्वारा बेचा जाता था। कुछ व्यापारी मल्ू य बढ़ाने के
नलए नमक ऄपने पास रख लेते थे और कइ बार आसमें भी नमलािि कर दी जाती थी । राजा
राममोहन राय ने आस बात पर बल नदया नक मनष्ु यकृ त नमक ऄकाल के पररणामस्िरुप समस्त जनता
को कष्ट ईठाना पड़ता है । आससे स्पष्ट है नक नमक ईनचत मल्ू य पर बेचा जाए तो ईसके खपत बढ़
सकती है । ईन्होंने ऄनरु ोध नकया नक ऄग्रं ेजी नमक की अयात की ऄनमु नत दी जाए जो सस्ता है ।
नमक के अयात से मल ु ंगु ी बेरोजगार हो जाएगं े तब ईन्हें कृ नष क्षेर में िैकनल्पक रोजगार नदया जाए
। राजा राममोहन राय ईपननिेशिाद का समथभन आसनलए नहीं करते थे नक ईन्हें यरू ोपीय व्यापारी या
नील ईत्पादक की नैनतक इमानदारी पर निश्वास था बनल्क आसनलए करते थे नक सामनू हक रूप से
व्यापाररयों में ही िह शनक्त थी जो इस्ि आनं डया कंपनी के एकानधकार के गढ़ को तोड़ सकती थी
नजसने भारत की अनथभक रूप से पगं ु बना नदया था ।

3.10 राजा राम मोहन राय का योगदान


राजा राम मोहन राय एक दरू दशी िास्तनिकतािादी थे। िे सांस्कृ नतक परु रूत्थान और अनथभक नीनत
के पारम्पररक सबं धं को स्पष्टतया समझते थे। राजा राम मोहन राम भारत में औपननिेनशक ईदारिाद
के मलू प्रित्तभक थे। ईन्होंने नब्रनिश ईपननिेशिाद को ऐसा ऐनतहानसक संयोग माना जो भारतीय
समाज के नलए िरदान नसद्च हो सकता था। ईन्होंने समाज सधु ार के नलए कइ महत्िपणू भ काननू
पाररत कराए। ईन्हीं के सतत प्रयास के फलस्िरूप 1829 इ0 में यहााँ काननू ी तौर पर सती-प्रथा जैसी
ऄमानिीय प्रथा का ऄतं कर नदया गया।
पंरतु जैसा नक बाद में आनतहास ने नसद्च कर नदया, ऄग्रं ेजों से आतनी बड़ी अशाएं राजा
राम मोहन राय का कोरा अशािाद था। ऄग्रं ेजों ने भारत में जो समाज सधु ार लागू नकए, ईनका
ईदा ् ्दश्े य नब्रनिश शासन को सचु ारू रूप से चलाना ही था। ऄग्रं ेजों ने नशक्षा के प्रसार में जो
योगदान नदया िह भी ईनकी प्रशासननक अिश्यकताएं परू ी करने के नलए था। ईन्हांने जो ईद्योग
लगाए या ईद्योगों के निस्तार नलए पररिहन और सच ं ार का जो तरं स्थानपत नकया, िह सब यहााँ के
प्राकृ नतक और मानिीय संसाधनों के दोहन के ईदा ् ्दश्े य से नकया गया था। कुछ भी हो, राजा राम
मोहन राय ने अाँख मदंू कर नब्रनिश ईपननिेशिाद को नहीं सराहा। ईसके प्रनत जनसाधारण की ननष्ठा
के साथ यह शतभ जड़ु ी थी नक िह ईनकी अशाएं परू ी करे गा। परंतु ईसने ये अशाएं कभी परू ी नहीं
कीं। भारत की स्िाधीनता अदं ोलन में गनत तब अइ जब देश के गणमान्य नेताओ ं ने यह ऄनभु ि
नकया नक ऄग्रं ेज ऄपने िचन परू े नहीं कर रहे थे और बड़ी बेशमी से आस देश के संसाधनों का दोहन
नकए जा रहे थे। संभितः राजा राम मोहन राय के समय में यह नस्थनत ईतनी स्पष्ट नहीं थी।

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राम मोहन राय भारतीय पनु जाभगरण काल के शरुु अती दौर के सबसे प्रभािशाली ईदाहरण
थे। आनतहासकार रमेश चंद्र मजमू दार के मतु ानबक, 19 िीं शताब्दी के समाज, धमभ और राजनीनत से
जड़ु े तमाम महत्िपणू भ निचारों और गनतनिनधयों से संबंनधत ईपलनब्धयां राममोहन के कारण ही थीं।
पनश्चमी समाज के नलए हेगल े नजतने महत्िपणू भ थे, भारतीय समाज के नलए राम मोहन राय ईतने ही
महत्िपूणभ हैं। सुभाष चंद्र बोस ने यह माना है नक राम मोहन राय पहले व्यनक्त थे, नजन्होंने भारतीय
संस्कृ नत को पनश्चम की िैज्ञाननक संस्कृ नत से जोड़ा। सश ु ोभन सरकार के मतु ानबक, 'भारतीय
पनु जाभगरण यह धारणा निकनसत करने के कारण ही सभं ि हो पाया नक भारत ऄपने ऄतीत को भल ू े
नबना बाहरी दनु नया के अधनु नक सभ्यता के साथ घल ु -नमल सकता है।'
ऄभ्यास प्रश्न
राजा राम मोहन राय को ‘राजा’ की ईपानध नकसके माध्यम से नमली ?
ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुइ ?
‘गौड़ीय व्याकरण’ नकसकी रचना है ?
अत्मीय सभा की स्थापना कब हुइ ?
सामानजक एिं राजनीनतक जनजागरण का ऄग्रदतू नकसे कहा जाता है?

3.11 साराांश
राजा राम मोहन राय ऄपने समय के ईन कुछ लोगों में से एक थे नजन्होंने अधनु नक यगु के महत्त्ि को
महससू नकया। िह जानते थे नक मानि सभ्यता का अदशभ स्ितंरता से ऄलगाि में नहीं है, बनल्क
राष्रों के अपसी सहयोग के साथ-साथ व्यनक्तयों की ऄतं र-ननभभरता और भाइचारे में
है। समाज की समस्याओ ं को सत्ता के के न्द्र तक पहुचाँ ाने िाले राजा राम मोहन
राय ने एक ऐसे मागभ का ननमाभण नकया नजससे भािी धमभ को नइ नदशा नमली
। िास्ति
में राजा राम मोहन राय भारतीय राष्रीयता के पैगम्बर और अधनु नक भारत के ज
नक थे। िैगोर ने ठीक ही कहा है - ‘ राजा राम
मोहन राय आस शताब्दी के महान् पथ ननमाभता हैं। ईन्होंने भारी बाधाओ ं को हिा
या है , जो हमारी प्रगनत को रोकती हैं। ईन्होंने हमको मानिता के निश्वव्यापी सह
योग के ितभमान यगु में प्रिेश कराया है। राजा राममोहन राय ने पनश्चमी निचार और
संस्कृ नत की सकारात्मक चीजें ऄपनाकर हमारे समाज और धमभ में सधु ार लाने की कोनशश की थी।
आस ऄथभ में ईनकी भनू मका िैसी ही थी, जैसी नक पनश्चमी सदं भभ में मानिभन लथू र की थी। लथू र ने नजस

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तरह मध्यकालीन नगरािि और भ्रष्टाचार के नखलाफ बाआबल को मानक बनाया, ईसी तरह राम
मोहन राय ने िेद को मानक माना, क्योंनक ईन्होंने पाया नक यह प्राचीनतम नहदं ू धमभग्रंथ पनिर और
नमलािि रनहत है। राम मोहन राय िस्ततु ः मानिीय स्ितंरता, समानता और अनंद के निराि लक्ष्य
को समनपभत एक अधनु नक धमभननरपेक्षिादी थे। आसी कारण सभु ाष चद्रं बोस ने ईन्हें 'नए दौर का
पैगबं र' कहा, तो रिींद्रनाथ ने ईनके पदनचह्नों का ऄनसु रण नकया। राम मोहन राय के योगदान पर
रानाडे का कहना है, 'िह एक ही साथ समाज सधु ारक, एक महान धानमभक अदं ोलन के सस्ं थापक
और राजनेता थे। आन तीनों क्षेरों में ईनका प्रदशभन आतना चमकदार था नक अज के दौर में आस क्षेर की
बेहतरीन प्रनतभाएं भी ईनके सामने बौनी हैं।'

3.12 शब्दावली
सती प्रथा - यह एक ऐसी प्रथा थी नजसमें पनत की मौत होने पर पनत की नचता के साथ
ही ईसकी निधिा को भी जला नदया जाता था।
शाश्वत – सदा रहनेिाला।
ढ़ांचा - संरचना

3.13 ाऄभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1. ऄकबर नद्वतीय 2. 1828 3. राजा राम मोहन राय 4. 1815 5. राजा राम मोहन
राय

3.14 सन्दर्भ ग्रन्थ सूची


1. िी.पी.िमाभ ,2004 , अधनु नक भारतीय राजनीनतक नचन्तन , लक्ष्मी नारायण ऄग्रिाल ,
अगरा .
2. पी के चड्ढा एिं आन्द्रजीत नसहं सोढ़ी ,2007, प्रमख
ु भारतीय राजनीनतक निचारक ,
यनू निनसभिी बक
ु हाईस, जयपरु .
3. ऄजय कुमार एिं आस्लाम ऄली ,2012 , भारतीय राजनीनतक नचतं न : सक
ं ल्पनाएं एिं
निचारक , नपयसभन, नदल्ली .

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4. के सी व्यास , 1957, द सोशल रे नेसा आन आनं डया , िोरा एण्ड को. पनब्लशसभ, मबंु इ .
7.14 सहायक/ ईपयोगी पाठ्य सामग्री
1. पख
ु राज जैन , 2012 ,प्रनतनननध राजनीनतक निचारक , एस.बी.पी.डी. पनब्लके शन्स,
अगरा .
2. निनोद नतिारी , 2005, राजा राममोहन राय, मनोज पनब्लके शन्स , नयी नदल्ली.
3. ए. ऄिस्थी एिं अर. के . ऄिस्थी ,1996, भारतीय राजनीनतक नचन्तन, ररसचभ
पनब्लके शन्स , जयपरु

3.15 रनबांधात्मक प्रश्न


1. राजा राममोहन राय के राजनीनतक नचंतन के मल
ू तत्िों का िणभन कीनजए I
2. प्रेस की स्ितंरता संबंधी राजा राममोहन राय के निचारों की समीक्षा कीनजए I
3. राजा राममोहन राय के अनथभक निचारों का िणभन कीनजए।
4. राजा राममोहन राय के धानमभक निचारों एिं सधु ारों का मल्ू यांकन कीनजए ।
5. राजा राममोहन राय के योगदान का मल्ू यांकन कीनजए ।

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इकाई 5 : गोपाल कृष्ण गोखले

5.0 प्रस्तािना
5.1 ईद्ङेश्य
5.2 गोपाल कृ ष्ण गोखले का जीिन पररचय
5.3 गोपाल कृ ष्ण गोखले के निचारों के स्रोत
5.4 गोपाल कृ ष्ण गोखले और ईदारिादी निचारधारा
5.5 गोपाल कृ ष्ण गोखले के राजनीनतक निचार
5.5.1 नब्रनिश शासन एक इश्वरीय िरदान
5.5.2 नब्रनिश साम्राज्य के ऄधीन स्िराज
5.5.3 संिधै ाननक साधनों में ऄनडग निश्वास
5.5.4 स्िदेशी का समथभन और बनहष्कार का निरोध
5.5.5 राजनीनत की अध्यात्मीकरण
5.5.6 नहन्दू – मनु स्लम एकता के प्रबल पक्षधर
5.5.7 निके न्द्रीकरण का समथभन
5.6 गोपाल कृ ष्ण गोखले के सामानजक निचार
5.7 गोपाल कृ ष्ण गोखले के अनथभक निचार
5.8 गोपाल कृ ष्ण गोखले के नशक्षा संबंधी निचार
5.9 गोपाल कृ ष्ण गोखले का योगदान
5.10 साराश ं
5.11 शब्दािली
5.12 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर
5.13 सन्दभभ ग्रन्थ सचू ी
5.14 सहायक/ ईपयोगी पाठ्य सामग्री
5.15 ननबधं ात्मक प्रश्न

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5.0 प्रस्तावना
महादेि गोनिदं रानाडे के अदशभ नशष्य एिं महात्मा गााँधी के पज्ू य राजनीनतक गरुु , गोपाल कृ ष्ण
गोखले ऄपने यगु के चमकते हुए नसतारे थे नजन्होंने भारत के राजनीनतक, अनथभक और सामानजक
सभी क्षेरों में ऄपनी नचंतन और कायभकलापों का प्रचार- प्रसार नकया, िैधाननक अदं ोलन को गनत
दी, अदान-प्रदान और समझौते की मांग का समथभन नकया तथा अदशभिादी मागों में समन्िय नकया
। गोखले ने सदैि क्रनमक सधु ारों का समथभन नकया और भारत के नलए एकाएक स्िशासन की मागं
को ऄव्यािहाररक बताया । नब्रनिश चररर और परंपरा में ईनका सदैि निश्वास बना रहा और यह
मानते रहे नक न्यायनप्रय ऄग्रं ेजों को नजस नदन निश्वास हो जाएगा नक भारत स्िशासन के नलए सक्षम
है , िे यह ऄनधकार भारतीयों को दे देंगे । पर ऄन्य ईदारिादी नेताओ ं की तरह गोखले को भी
जीिन के ऄनं तम िषों में नब्रनिश सरकार पर से निश्वास डगमगाने लगा और मानने लगे नक
नौकरशाही स्िाथभ पणू भ है और राष्रीय अकाक्ष ं ाओ ं के पणू भता निरुद्च भी । महादेि गोनिदं रानाडे के
नशष्य गोपाल कृ ष्ण गोखले को नित्तीय मामलों की ऄनद्वतीय समझ और ईस पर ऄनधकारपिू क भ
बहस करने की क्षमता से ईन्हें भारत का 'ग्लैडस्िोन' कहा जाता है। िे भारतीय राष्रीय कांग्रेस में
सबसे प्रनसद्च नरमपंथी थे। चररर ननमाभण की अिश्यकता से पणू तभ : सहमत होकर ईन्होंने 1905 में
सिेन्ि्स ऑफ आनं डया सोसायिी की स्थापना की तानक नौजिानों को सािभजननक जीिन के नलए
प्रनशनक्षत नकया जा सके । ईनका मानना था नक िैज्ञाननक और तकनीकी नशक्षा भारत की महत्िपणू भ
अिश्यकता है। स्ि-सरकार व्यनक्त की औसत चाररनरक दृढ़ता और व्यनक्तयों की क्षमता पर ननभभर
करती है।

5.1 उद्देश्य
आस ऄध्याय का ईद्ङेश्य पाठकों को भारतीय राजनीनतक निचारक गोपाल कृ ष्ण गोखले के
राजनीनतक निचारों से पररचय कराना है। गोपाल कृ ष्ण गोखले ऄपने समय के ऄनद्वतीय संसदनिद
और राष्रसेिी, एक स्ितरं ता सेनानी, समाजसेिी, निचारक एिं सधु ारक भी थे । सिैधाननक रीनत से
देश को स्िशासन की ओर ले जाने में निश्वास रखने िाले गोखले नरम निचारों के माने जाते थे।
गोखले क्रांनत में नहीं बनल्क सधु ारों में निश्वास रखते थे। आस ऄध्याय में गोपाल कृ ष्ण गोखले के
नब्रनिश शासन एक इश्वरीय िरदान, नब्रनिश साम्राज्य के ऄधीन स्िराज, संिधै ाननक साधनों में
ऄनडग निश्वास , स्िदेशी का समथभन और बनहष्कार का निरोध , राजनीनत की अध्यात्मीकरण,
नहन्दू – मनु स्लम एकता के प्रबल पक्षधर , निके न्द्रीकरण का समथभन अनद राजनीनतक निचारों के
साथ सामानजक निचार , अनथभक निचार एिं नशक्षा संबंधी निचारों पर व्यापक चचाभ की जाएगी ।
आस आकाइ का ऄध्ययन करने के पश्चात् अपको

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i . गोपाल कृ ष्ण गोखले के राजनीनतक नचंतन के बारे में ज्ञान प्राप्त होगा ।
ii. साथ ही अप गोपाल कृ ष्ण गोखले के सामानजक निचारों के बारे में जान सकें गे।
iii. अपको गोखले के अनथभक निचारों के सम्बन्ध में जानकारी नमल पाएगी तथा
iv. गोपाल कृ ष्ण गोखले के नशक्षा संबंधी निचारों से भी अप ऄिगत होंगे ।

5.2 गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन पररचय


भारत के अधनु नक राजनीनतक नचन्तन के आनतहास में गोपाल कृ ष्ण गोखले का ऄग्रणी स्थान है ।
गोखले का जन्म मबंु इ प्रांत के कोल्हापरु नजले में 9 मइ 1866 को हुअ था । गोपाल कृ ष्ण गोखले
के नपता का नाम कृ ष्ण राि था और बे कोल्हापरु राज्य की एक छोिी सामतं ी ररयासत कागल में
एक क्लकभ के पद पर कायभ करते थे । बाद में कुछ समय के नलए िे पनु लस में दरोगा के पद पर भी
कायभरत रहे । ईनकी माता का नाम सत्यभामा था, जो ऄनपढ़ होने के बािजदू बनु द्चमान मनहला थी
। ईनकी स्मरण शनक्त ऄसाधारण थी तथा ईन्हें परंपराओ ं और काव्यों का ऄच्छा ज्ञान था । घर के
आस पनिर िातािरण का प्रभाि गोखले के मनस्तष्क पर भी पड़ना स्िाभानिक था । आसीनलए ईन्होंने
संभित जीिनपयांत शद्च ु ता , पनिरता और नैनतक अचरण पर बल नदया। मार 13 िषभ की ऄिस्था
में ऄपने नपता के देहातं के बाद ईन्हें नशक्षा प्रानप्त के नलए कनठन सघं षभ करना पड़ा। ईनका जीिन
शरूु से ही सरल और संयम से भरा था । ईनकी कुशाग्र बनु द्च ईनके शरुु अती जीिन से ही झलकती
थी । िे 1884 में एलनफंस्िन कॉलेज, मबंु इ से स्नातक ईत्तीणभ करने के बाद पणु े के स्कूल में
ऄध्यापक ननयक्तु हुए, जो अगे चलकर फरग्यसु न कॉलेज के नाम से निख्यात हुअ। िहीं से गोपाल
कृ ष्ण गोखले कॉलेज के नप्रंनसपल के रूप में 1902 में सेिाननिृत्त हुए । महादेि गोनिदं रानाडे पर
गोखले की बनु द्चमत्ता और कतभव्य परायणता का परू ा प्रभाि नदखाइ देता है । गोखले के राजनीनतक
जीिन के पथ प्रदशभक जनस्िस रानाडे ही थे । ईन्होंने गोखले को मबंु इ प्रदेश की मख्ु य राजनीनतक
संस्था ‘सािभजननक सभा’ का मरं ी बनाया और ऄनंतर िे प्रांत के प्रमख ु व्यनक्तयों में नगने जाने लगे ।
गोखले ने संस्था द्वारा प्रकानशत ‘क्िािभरली ररव्य’ू का संपादन भी नकया । 22 िषभ की अयु में ही
गोखले मबंु इ निधान पररषद के सदस्य बने तथा सदन में भनू म राजस्ि नीनत पर ऄपने नदए गए भाषणों
से लोकनप्रय भी । गोखले ने 1905 में 'भारत सेिक समाज' की स्थापना की, तानक देश के नौजिानों
को सािभजननक जीिन के नलए प्रनशनक्षत नकया जा सके । ईनका मानना था नक िैज्ञाननक और
तकनीकी नशक्षा भारत की महत्त्िपणू भ अिश्यकता है। आसीनलए आन्होंने सबसे पहले प्राथनमक नशक्षा
लागू करने के नलये सदन में निधेयक भी प्रस्ततु नकया था।
सन् 1905 में गोखले बनारस काग्रं ेस के सभापनत ननिाभनचत हुए। के िल 39 िषभ की अयु में
आस महत्िपणू भ पद पर पहुचं ने िाले िे प्रथम व्यनक्त थे । बनारस कांग्रेस की सभापनत के रूप में ईन्होंने

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
राजनीनत शस्त्र के रूप में बनहष्कार का समथभन नकया । ईनका मानना था नक आसका प्रयोग तभी
करना चानहए जब कोइ चारा न रह गया हो और जब प्रबल लोक भािनाएं आसके ऄनुकूल हो ।
ईन्होंने निदेशी िस्तओ ु ं के बनहष्कार को न्यायोनचत माना तथा जनता और नौकरशाही के बीच
सहयोग की समानप्त के सम्बन्ध में अशक ं ा व्यक्त की । सन् 1907 में सरू त की फूि के बाद गोखले ने
कांग्रेस के कायभकलापों में भाग नलया और नरम दल के नेता के रूप में िे ऄनेक िषों तक कांग्रेस के
कणभधार का काम करते रहे । िषभ 1909 के मॉले-तमण्िो सुधार को तैयार करने में गोखले की
भनू मका महत्त्िपणू भ मानी जाती है । गोखले ने 1909 के सधु ारों का पहले समथभन नकया लेनकन बाद
में सधु ारों के व्यिहाररक रूप पर घोर ननराशा प्रकि करते हुए नौकरशाही के कायों की अलोचना भी
की । 1910 इ. में िे पनु ः आम्पीररयल काईनन्सल के सदस्य ननिाभनचत हुए तथा 1912 से 1915 इ.
तक ईन्होंने भारतीय लोकसेिा अयोग के सदस्य के रूप में काम नकया। 1912 में िे दनक्षण ऄफ्ीका
के दौरे पर गए और रंगभेद निरोधी अदं ोलन में ईन्होंने महात्मा गांधी की सहायता की । िषभ 1914
में जब काग्रं ेस के दोनों दल अपस में नमलने को लगभग राजी हो गए थे, तब पहले गोखले ने आसे
पसंद नकया लेनकन बाद में ऄपना निचार ईन्होंने बदल नदया । िास्ति में गोखले नसद्चांतिादी थे
और ऄपने नसद्चांतों के प्रनतकूल समझौता ईन्हें नबल्कुल भी पसंद नहीं था। 1915 में गांधीजी दनक्षण
ऄनफ्का से लौिने के बाद गोखले के अग्रह पर कांग्रेस में सनम्मनलत हुए थे। गोखले ने भारत में
सधु ार लाने के नलए एक योजना तैयार की थी नजसे “िारि का राजनीतिक िसीयि” कहा जाता
है । गोखले ने आस दौरान शनक्त से ऄनधक पररश्रम नकया । ऄपनी कठोर नदनचयाभ के पररणामस्िरूप
19 फरिरी 1915 में के िल 49 िषभ की ऄल्पायु में ईनका ननधन हो गया। नतलक के ऄनुसार गोखले
‘भारत का हीरा, महाराष्र के रत्न और देशसेिकों के राजा’ थे । िे कांग्रेस के एक सिभश्रेष्ठ कायभकत्ताभ
थे और ईनकी राष्रभनक्त ऄनद्वतीय थी।

5.3 गोपाल कृष्ण गोखले के रवचारों के स्रोत


गोखले ने एन. जी. बापि के साथ नमलकर एक ऄक ं गनणत की पस्ु तक नलखी नजसे प्रकानशत
होने से पिू भ ही न्यू आनं ग्लश स्कूल के पाठ्यक्रम में जोड़ नदया गया था। गोखले ऄग्रं ेजी
के ऄध्यापक ननयक्त ु हुए थे लेनकन िे ऄथभशास्त्र और आनतहास भी पढ़ाया करते थे। कॉलेज के
कायभकाल के दौरान ही बे महादेि गोनिदं रानाडे के संपकभ में अए । रानाडे के साननध्य में
अकर नैनतक मल्ू यों के प्रनत ईनका निश्वास बढ़ता गया । िे सत्य के प्रनत दृढ़ निश्वास, ननजी
भलू ों को स्िीकार करने की आच्छा , ईद्ङेश्यों की ननष्कपिता तथा नैनतक मानकों के प्रनत सम्मान
के नलए निख्यात थे । गोखले के ऄदम्य ईत्साह, ग्लानन रनहत चेष्टा, ऄपररनमत ज्ञान और गढ़ु
निचारों को देखकर लोग ईनको ‘दनक्षण का ईगता हुअ तारा’ भी कहते थे।
गोपाल कृ ष्ण गोखले सच्चे ईदारिादी थे। ऄपने गरुु महादेि गोनिन्द रानाडे से
ईन्होंने नैनतकता और तानकभ कता की नशक्षा ग्रहण की थी। गोखले के निचार दादाभाइ नौरोजी

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और नफरोजशाह मेहता से भी नमलते-जल ु ते थे। िे सांनिधाननक अन्दोलन के पक्षधर थे और
क्रनमक ढंग से संनिधान में पररितभन लाना चाहते थे। नब्रनिश न्यायनप्रयता में गोखले की भी
अस्था थी। राष्र का कल्याण राजनीनतक ईत्तेजना के बिण्डरों से नहीं हो सकता है। ऄतः
साधन और साध्य की पनिरता में गोखले निश्वास करते थे। सम्मभितः साधन और साध्य की
पनिरता का अदशभ ने ही महात्मा गांधी को गोखले की ओर अकृ ष्ट नकया था और ईन्होंने
गोपाल कृ ष्ण गोखले को ऄपना गरुु माना था।

5.4 गोपाल कृष्ण गोखले और उदारवादी रवचारधारा


भारतीय राष्रीय अदं ोलन में ईदारिादी निचारधारा ,पाश्चात्य नशक्षा, पाश्चात्य सभ्यता और
संस्कृ नत को भारतीय नशक्षा सभ्यता और संस्कृ नत से ईच्चतर समझती थी , जो नब्रनिश शासन
के साथ सहयोग में निश्वास करती थी तथा ईनके प्रनत और सनं दग्ध भनक्त का प्रदशभन करती थी।
कांग्रेस के प्रारंनभक नेताओ ं की भांनत ही गोखले एक ईदारिादी थे। भारतीय राजनीनत
में गोपालकृ ष्ण गोखले ईदारिानदयों के नसरमौर थे। ईनकी महानता आस बात में थी नक ईन्होंने
राजनीनत में नैनतक मल्ू यों को स्थान नदया। िे राजनीनत और नैनतकता में कोइ भेद नहीं समझते
थे। ईन्होंने भारतीय राजनीनत को ऄपने ईच्च चररर और अदशों से प्रभानित नकया। शासन
तन्र के निरुद्च यद्च
ु करते समय गोखले ने िैधाननक मागभ ऄपनाया। ईनका प्रयास यह था नक
तथ्यों तथा तकों को ऄपनी बात का अधार बनाया जाए ।
गोखले का मत था नक सािभजननक कतभव्यों तथा राजनीनतक कायों को पनिर राष्रीय
सेिा का मागभ समझा जाएं । कष्ट सहने, सरृदयता और जीिन की ईदारता के नबना राष्रिाद
एक जीिन शनक्त नहीं बन सकता। जहााँ एक ओर ईनका नब्रनिश शासन की न्यायनप्रयता में
निश्वास था, िहीं दसू री ओर नब्रनिश शासन की लोकतानन्रक संस्थाओ ं तथा नशक्षण पद्चनत के
प्रनत ईनका अकषभण था। दादाभाइ नौरोजी की भााँनत िे सदैि अशा नकया करते थे नक
आग्ं लैण्ड में एक नए ढंग की राजनीनतज्ञता का ईदय होगा और भारत के साथ न्याय नकया
जाएगा। गोखले महान उदारिादी तिचारक थे। ईदारिादी मल्ू यों – जनता की स्ितंरता,
व्यनक्त की गररमा का अदर, निनध का शासन, ननयंनरत सरकार, समानता और न्याय में गोखले
की गहरी अस्था थी। िे भारतीय जनता में आन मल्ू यों के प्रनत अस्था ईत्पन्न करना चाहते थे,
तानक िह कालान्तर में ’अत्मतनणयय’ के ऄनधकार का िास्तनिक ईपयोग कर सके । िे
नब्रनिश शासन से यह ऄपेक्षा करते थे नक भारतीय शासन में िे आन मल्ू यों को लागू करें ।
बनहष्कार की ईग्र कायभ-प्रणाली ईन्हें पसन्द नहीं थी। एडमण्ड बकभ की भााँनत गोखले सािधानी
की नीनत, धीमे निकास और बनु द्चसंगत प्रगनत के पक्षधर थे। िे लोगों की ऄननु चत मांगों और
नहसं क तरीकों पर ध्यान नहीं देते थे। गोखले स्िराज्य के आच्छुक थे परंतु िे अकांक्षा से पिू भ

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योग्यता के अधार पर तथा नब्रनिश साम्राज्य के ऄतं गभत क्रनमक रूप में और संिधै ाननक
साधनों से स्िराज प्रानप्त चाहते थे।

5.5 गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीरतक रवचार


गोखले के राजनीनतक निचार नकसी एक पस्ु तक में संकनलत नहीं नकए गए हैं बनल्क
सािभजननक सभाओ ं और आपं ीररयल निधान पररषद में बजि या ऄन्य निषयों पर नदए गए
भाषणों, िेल्बी अयोग एिं हौब हाईस अयोग के समक्ष दी गइ गिाही, आनलंगिन अयोग के
सदस्य के रूप में प्रकि नकए गए निचार, भारतीय राष्रीय कांग्रेस के ऄध्यक्ष के रूप में निनिध
निषयों पर प्रकि नकए गए निचार, भारत सेिक समाज के ईद्ङेश्य तथा भारतीय संिधै ाननक और
प्रशासननक सधु ारों के संबंध में तैयार नकए गए राजनीनतक िसीयतनामा में नमलते हैं।
गोपाल कृ ष्ण गोखले की ननष्ठा ऄग्रं ेजों की न्यायनप्रयता और समनु चत
अचरणशीलता के प्रनत आतनी ऄनधक थी नक िे यह भी मानने को तैयार नहीं थे नक भारत में
ऄग्रं ेज ऄनधकाररयों को सधु ार सकना संभि नहीं है । नब्रिेन के साथ भारत के संबंधों को
नहतकारक मानते थे तथा ऄपने ऄनधकारों की प्रानप्त के नलए सिं धै ाननक सघं षभ के ऄनतररक्त
ऄन्य कोइ ईपाय ईन्हें पसंद नहीं था । क्रांनत के निचारों से िे दरू ी बनाए रखते थे तथा िे
सािभजननक जीिन का अध्यानत्मक करण करना चाहते थे । ईनकी धानमभक प्रिृनत्त और सौम्य
स्िभाि के कारण ही महात्मा गांधी ने ईन्हें ऄपना राजनीनतक गरुु माना। गांधी ईन्हें ‘पण्ु यात्मा
गोखले’ ही कहा करते थे ।
निनभन्न राजनीनतक निषयों पर ईनके निचार ननम्न थे :
5.5.1 तितिश शासन: एक ईश्वरीय िरदान
गोपाल कृ ष्ण गोखले ने ऄपने समकालीन ईदारिादी भारतीय नचंतकों की तरह भारत में
नब्रनिश राज्य की प्रशसं ा की तथा ईसका स्िागत भी नकया। ईनका यह रिैया दो तथ्यों पर
अधाररत था । सिभप्रथम तमाम ईदार िानदयों की तरह गोखले मानते थे नक नब्रनिश राज के
कारण ही अधनु नकीकरण की प्रनक्रया प्रारंभ हुइ । ऄग्रं ेज काननू के समक्ष समानता के नसद्चांत
को मानने िाले थे । ईन्होंने प्रनतनननध सरकार के नसद्चातं का प्रनतपादन नकया, चाहे सीनमत स्तर
पर ही सही। गोखले का मानना था नक प्रेस और ऄनभव्यनक्त की स्ितंरता भी ऄग्रं ेजों के कारण
ही सनु ननश्चत हुइ । आसके ऄनतररक्त ऄग्रं ेजों ने भारत में राजनीनतक एकीकरण की प्रनक्रया प्रारंभ
की ऄथाभत भारतीयों को ईनमें से सीखने के नलए बहुत कुछ था। आसनलए गोखले का तकभ था
नक हमें कुछ समय और ईन्हें झेलना चानहए तथा ईद्योग , िानणज्य, नशक्षा और राजनीनत के
क्षेर में प्रगनत करनी चानहए । गोखले यह मानते थे नक नब्रनिश राज ईस समय और रहता है तो

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भारत परू ी तरह अधनु नक हो जाएगा और फलस्िरूप यरू ोप के ऄन्य देशों की तरह यह राष्रों में
शानमल हो जाएगा ।
गोखले नब्रनिश शासन को भारत के नलए िरदान मानते थे। गोखले की नब्रनिश
प्रशासन में गहरी अस्था थी और नब्रनिश प्रशासन को भारत के नलए इश्वरीय मानते थे। ईनकी
मान्यता थी नक भारत की राजनीनतक एकता, शासन व्यिस्था, संचार व्यिस्था, न्याय
व्यिस्था, स्थानीय संस्थाएाँ अनद सब नब्रनिश शासन की ऄमल्ू य देन हैं। ईनकी धारणा थी नक
नबिेन के साथ सम्पकभ बनाए रखने से भारतीयों की बौनद्चक प्रनतभा चमके गी और भािी भारत
के ननमाभण का मागभ प्रशस्त होगा। िे आस बात के नलए अभार प्रदनशभत करते थे नक ऄशान्त
और ऄराजक भारत में अकर ऄग्रं ेजों ने शानन्त स्थानपत की। गोखले की सष्ट मान्यता थी नक
भारत का भनिष्य ऄग्रं ेजी ताज की ऄगाध सिोच्चता से ही प्राप्त नकया जा सकता है। गोखले
भारत में नब्रनिश शासन के प्रनत ननष्ठािान थे। ईनकी शासन के प्रनत स्िानमभनक्त देशप्रेम की ही
पयाभयिाची थी। ईनकी ननष्ठा का मल ू कारण िह नहीं था नक यह निदेशी शासन था, ऄनपतु यह
था नक यह व्यिनस्थत शासन था। गोखले ऄराजकता और ऄव्यिस्था के निरोधी थे।
गोखले के ऄनसु ार नब्रनिश नशक्षा, सानहत्य और निचारधारा ऄथाभत् ईदार प्रजातानन्रक
मल्ू यों ने भारत में राष्रीयता और प्रजातानन्रक निचारों को जन्म नदया। गोखले को यह निश्वास
था नक देश का पनु ननभमाभण राजनीनतक ईत्तेजना की अधं ी से नहीं बनल्क धीरे -धीरे हो सकता है
। आस धीमी प्रनक्रया में समस्या का िास्तनिक हल था - ऄग्रं ेजों की प्रिृनत्तयों के हरे क पहलू पर
निजय पाना और आस प्रकार ईनकी सहायता और समथभन प्राप्त करना। ऄपने समकालीन
ईदारिानदयों की भांनत गोखले भी भारत के नलए नब्रनिश शासन के कल्याणकारी स्िरूप में
निश्वास रखते थे । ईनकी धारणा थी नक नब्रिेन के साथ सपं कभ बनाए रखने से भारतीयों की
बौनद्चक प्रनतभा और ननखरे गी और ईनका दृनष्टकोण व्यापक होगा । गोखले ने भारत के नलए
नब्रनिश सपं कभ को एक दैिीय व्यिस्था माना, नजसके ऄतं गभत ही भारतीय ऄपनी प्रगनत के नलए
अिश्यक पररनस्थनतयां प्राप्त कर सकते थे। भारत को निश्व राष्रों के समदु ाय के बीच एक
सम्माननत स्थान प्राप्त करने के नलए नब्रनिश सहायता और ईनके सहयोग ऄपेनक्षत था । गोखले
की कामना थी नक आग्ं लैण्ड तथा भारत के मध्य सामजं स्यपणू भ सहयोग की िृनद्च हो, आसनलए िे
पारस्पररक सझू -बझू की भािना की िृनद्च की बड़ी कद्र करते थे।
5.5.2 तितिश साम्राज्य के ऄधीन स्िराज
गोखले नब्रनिश शासन को भारत के नलए कल्याणकारी मानते थे। 1903 में के न्द्रीय निधान
पररषद् में ईन्होंने आसे स्िीकार नकया था नक ‗भारत का शानदार भनिष्य ऄगं रे जी ताज की
ऄबाध सिोच्चता में ही प्राप्त नकया जा सकता है।‛ गोखले स्िराज्य के बदले राजनीनतक
ऄनधकार और सधु ार की मांग को प्राथनमकता देना चाहते थे। ईनके ऄनसु ार स्िशासन की
मांग करने के पहले भारत को ईसके नलए पहले ऄपने को योग्य बनाना पड़ेगा। गोखले क्रनमक

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निकास के पक्षधर थे। संिधै ाननक साधनों में ईनका ऄनडग निश्वास था। नब्रनिश शासन के
ऄन्तगभत स्िशासन के लक्ष्य को िे संिधै ाननक तरीकों से ही प्राप्त करना चाहते थे। िे प्राथभना-
पर, स्मरण पर प्रनतनननधमण्डल बातचीत एिं शासन की रचनात्मक अलोचना का मागभ
ऄपनाते थे। ईनके अन्दोलन में निद्रोह, नहसं ा तथा क्रानन्त का ननतान्त ऄभाि था।
गोखले नब्रनिश साम्राज्य के ऄन्तगभत भारत के नलए स्िशासन चाहते थे। स्िशासन का
ऄथभ स्पष्ट करते हुए ईन्होंने कहा था, "नब्रनिश ऄनभकरण के स्थान पर भारतीय ऄनभकरण को
प्रनतनष्ठत करना, निधान पररषदों का निस्तार और सधु ार करते-करते ईन्हें िास्तनिक ननकाय
बना देना और जनता को सामान्यतः ऄपने मामलों का प्रबन्ध स्ियं करने देना।" गोखले भारत
के नलए स्िराज चाहते थे परंतु िे नब्रनिश साम्राज्य के ऄगं के रूप में आसे प्राप्त करना चाहते थे ।
पृथक या ऄलग होकर स्िशासन प्राप्त करना ईनका ईद्ङेश्य नहीं था । ईन्होंने ऄपने जीिन में
नब्रनिश साम्राज्य से संबंध निच्छे द की बात कभी न सोची और ना कभी कही । गोखले नब्रनिश
शासन की ईन नीनतयों या कायों से कोइ सरोकार नहीं रखते थे, जो भारतीय अकाक्ष ं ाओ ं या
नहतों से ऄसंगत थे। भािी निकास के नलए अशािादी होकर ईन्होंने नब्रनिश साम्राज्य की
छरछाया में ही आसे प्राप्त करना ईनचत समझा । पणु े के कांग्रेस ऄनधिेशन में ईन्होंने कहा था
‚ऄच्छे ऄथिा बरु े के नलए हमारा भनिष्य और हमारी अकांक्षाएं आग्ं लैंड के साथ जड़ु गइ हैं
और कॉन्ग्रेस स्पष्ट रूप से यह स्िीकार करती है नक हम नजस प्रगनत की अकांक्षा करते हैं, िह
नब्रनिश शासन की पररनध में ही हो।‛
गोखले के मागभ को ईनके अलोचकों ने नभक्षािृनत्त का नाम नदया, लेनकन आस प्रकार का
अरोप ऄननु चत था। गोखले का मागभ ऄत्यनधक श्रम साध्य था और आसकी सफलता बनलदान
पर ननभभर थी। गोखले का यह भी मानना था नक ऄपनी ईदार परंपरा को बनाए रखते हुए ऄग्रं ेज
ऄपनी प्रनतज्ञा परू ी करें गे तथा भारत को ईस नदन सश ु ासन सौंप देंगे नजस नदन स्ियं
भारतीय आसी योग्य हो जाएगं ।े ‘आग्ं लैंड की भारत के प्रनत प्रनतज्ञा’ की ऄिधारणा थॉमस
मनु रो, हेनरी लॉरें स और महारानी निक्िोररया की घोषणाओ ं के अधार पर बनी थी । 1884 में
ररपन के िायसराय काल के खत्म होने से लेकर 1917 के ऄगस्त घोषणा के बाद के तमाम
िायसराय और सनचिों ने जोर देकर भारत में नब्रनिश राजनीनतक सस्ं थाओ ं को लागू करने की
संभािनाओ ं को नकार नदया था, नफर भी गोखले का यह निश्वास था नक ऄग्रं ेजों के ईदारिादी
भािना को ऄपील करने से भारत में राजनीनतक सस्ं थाओ ं को लागू नकया जा सकता है।
5.5.3 सिं ैधातनक साधनों में ऄतडग तिश्वास
गोखले सनं िधाननक सत्ता की िैधता को चनु ौती देने की पक्षधर नहीं थे। िे नहसं ा, क्रानं त ऄथिा
राजनीनतक हत्याओ ं के माध्यम से ईसे ईखाड़ फें कना नहीं चाहते थे तथा लोगों की मांगों की
औनचत्यपणू तभ ा के अधार पर सनं िधाननक प्रानधकाररयों के नििेक को जागृत करने का प्रयास
करते थे तथा मांगों को स्िीकार करिा कर ईन्हें कायाभनन्ित करने का प्रयास करते थे । गोखले

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ने शासन तंर के निरुद्च यद्च ु करते हुए िैधाननक मागभ ऄपनाया । ईनका प्रयास था नक तथ्यों
और तकों को ऄपनी बात को अधार बनाया जाए तथा समझा-बझु ाकर ईन लोगों के निचारों
को बदला जाए नजनका कुछ महत्ि है। गोखले के संनिधाननक साधन नैनतक, ऄननु य- निनय
पर अधाररत थे । आन साधनों में अग्रह , समाचार पर, मचं एिं भाषण, ऄनधिेशन, प्रस्ताि,
प्राथभना, स्मरण पर, प्रनतनननधमडं ल, निचार-निमशभ , सहानुभनू त रखने िाले प्रनतनष्ठत व्यनक्तयों
का प्रयोग तथा रचनात्मक अलोचनाएं अनद शानमल थे । गोखले के संनिधाननक साधनों में
नननष्क्रय प्रनतरोध की तकनीक शानमल है। िे आसे सनं िधाननक अदं ोलन का सिोच्च तकनीक
मानते थे । नननष्क्रय प्रनतरोध के तकनीकी में करो को देने से आनकार करना भी शानमल था।
गोखले स्िराज प्रानप्त का आसे सिोत्तम साधन मानते हैं । िे सिं धै ाननक साधनों का िणभन करते
हुए भी सतकभ ता, क्रनमक निकास और तानकभ क प्रगनत पर बल देते थे। अग्रहों , तथ्यों तकों
तथा रचनात्मक अलोचनाओ ं द्वारा नब्रनिश शासकों के नििेक को और ईनकी न्यायनप्रयता
और स्ितरं तानप्रयता की भािनाओ ं को जागृत करने का प्रयास करते थे। िे ईन्हें हराना नहीं
चाहते थे, िे तो के िल ईनका रृदय पररितभन करना चाहते थे।
गोपाल कृ ष्ण गोखले को संिधै ाननक साधनों में ऄनधक निश्वास था । सािधानी , मथं र
निकास और नििेक में ईन्हें गहरी अस्था थी। ईग्र निचारों और साधनों तथा ऄसंिधै ाननक
मागभ के िे निरोधी थे । िे सिं धै ाननक तरीकों से ही नब्रनिश शासन के ऄतं गभत स्िशासन के
लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे । ईनके ऄनसु ार सिं धै ाननक साधन तत्कालीन पररनस्थनतयों में
भारतीयों के नलए नहतकर होगा । आलाहाबाद में 4 फरिरी 1907 को गोखले ने संिधै ाननक
अदं ोलन का ऐसे अदं ोलन से तल ु ना की नजसमें संिधै ाननक सत्ता की कारभ िाइ द्वारा िांनछत
पररितभन लाने का प्रयास नकया जाता है । आस प्रकार संिधै ाननक अदं ोलन में नहसं ा, निद्रोह,
सशस्त्र कांनत ऄथिा निदेशी अक्रमण को सहायता , अमंरण अनद की पद्चनतयों को कोइ
स्थान नहीं नमलता । गोखले की मान्यता थी नक ईग्रिानदयों द्वारा व्यापक बनहष्कार जैसा कदम
ऄसंिधै ाननक था लेनकन ईसे ऄपनाने के कारण तत्कालीन पररनस्थनतयों के ऄनक ु ू ल और
बनु द्चमत्तापणू भ नहीं था । ईनके ऄनसु ार आसके द्वारा सरकारी सहयोग और सहानभु नू त प्राप्त नहीं
हो सकते । राजनीनतक प्रगनत के मागभ पर सरकार के सहयोग करके अगे बढ़ना सभं ि था।
गोखले नब्रनिश शासन की कनमयों और दबु भलताओ ं को बताने से नहीं चक ू ते थे पर साथ
ही साथ नब्रनिश राज्य की ईपलनब्धयों को नकारात्मक दृनष्टकोण से भी नहीं देखते थे। नब्रनिश
अनथभक नीनत , सैननक नीनत और नशक्षा नीनत की ईन्होंने तानकभ क अलोचना की और साथ ही
नब्रनिश सभ्यता के प्रनत अभार व्यक्त नकया नक ईसने भारत में ऄनेक निीन ईद्योग और कायों
को जन्म नदया है। गोखले की सनं िधाननक साधनों में अस्था ईनकी नकसी समपभण की भािना
का पररणाम नहीं थी । बनल्क कुछ व्यािहाररक कनठनाआयों से भी भरी थी । ईनके ऄनसु ार
नहसं क साधन, योजना, प्रनतनहसं ा और प्रनतशोध को जन्म देते हैं । भारत की तत्कालीन

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पररनस्थनतयों में यहां के ननिानसयों के पास आतनी शनक्त नहीं थी नक िह सरकार की संगनठत
शनक्त का सामना कर सके ।
5.5.4 स्िदेशी का समथयन और बतहष्कार का तिरोध
गोखले ने स्िदेशी अन्दोलन का समथभन नकया। ईनके नलए स्िदेशी का ऄथभ था-देश के नलए
ईच्च कोनि का गम्भीर तथा व्यापक प्रेम । ईन्होंने सन् 1905 में बनारस कांग्रेस ऄनधिेशन में
कहा-‗स्िदेशी अन्दोलन अनथभक होने के साथ-साथ देशभनक्त का भी अन्दोलन है।‛ गोखले
ने स्िदेशी और बनहष्कार अदं ोलन पर भी ऄपने निचार प्रकि नकए है ाँ । ईनके ऄनसु ार
बनहष्कार एक ऐसा साधन है नजसका प्रयोग और कुछ ज्यादा बाकी न रहने पर ही नकया जाना
चानहए । नशकायतों की ओर शासकों का ध्यान अकनषभत करने का यह ईपयोगी साधन था ।
गोखले मानते थे नक राष्रप्रेम का दृनष्टकोण मानिता के एक प्रमख ु निचार है । मातृभनू म के नलए
त्याग सिोत्तम स्िदेशी भािना है। शरू ु से ही अदं ोलन ईनके नलए एक देश भनक्त पर
राजनीनतक और अनथभक दोनों प्रकार का ही अदं ोलन था । गोखले की धारणा थी नक भारत
की मख्ु य समस्या ईत्पादन के नलए पजंू ी और साहस की कमी थी और यनद दसू रे देश का कोइ
भी व्यनक्त या संगठन भारत में ईत्पादन िृनद्च के ईद्ङेश्य से व्यिसाय लगाता है तो ईसे
भी स्िीकार कर समथभन नदया जाना चानहए।
गोखले स्िदेशी के समथभक होने के कारण आसे एक ऐसा औद्योनगक अदं ोलन कहते थे
जो राष्र के संपणू भ जीिन को प्रभानित करता है ।ईन्होंने आसके दो स्िरूपों- नैनतक और भौनतक
का िणभन नकया है । ऄपने नैनतक स्िरूप में स्िदेशी मातृभनू म के प्रनत एक ईच्च कोनि का
गभं ीर ि प्रधान ईत्सुक और व्यापक प्रेम है। यह मातृभनू म के प्रनत ऄसीम शनक्त है, नजसमें त्याग
और परस्पर सहयोग की भािना नननहत है। स्िदेशी ऄपने भौनतक रूप में अनथभक है , जो देश
को अत्मननभभर बनाता है और देश का औद्योनगक निकास करता है।
गोखले बनहष्कार की तकनीक को आस कारण स्िीकार नहीं करते थे नक ईनकी यह यानचका
प्रस्ततु करने और समझाने बझु ाने ऄथाभत ऄननु य निनय की नीनत के निपरीत था । दसू री ओर
बनहष्कार का एक ईग्र निचार या ऄस्त्र ऄपने अप में प्रनतरोध की भािना का संकेत देता था।
आसनलए गोखले बनहष्कार को एक मख ू तभ ापूणभ तकनीक कहते थे । ईनके ऄनसु ार जब तक देश
में राष्रीय ऄथिा ननजी स्कूलों का जाल नहीं नबछा नदया जाता, तब तक कॉलेजों और स्कूलों
का बनहष्कार करना पागलपन है । गोखले आस नस्थनत में ही बनहष्कार की तकनीक को स्िीकार
करने को तैयार थे , जब आसके पीछे जनमत का ऄसाधारण समथभन हो। ईनके ऄनसु ार
बनहष्कार ननश्चय ही निरोधी पक्ष की क्रोध को जन्म देगा तथा देश का कोइ भी सच्चा
शभु नचंतक तब तक ऐसे क्रोध को जाने का निकल्प नहीं चनु ेगा , जब तक नक यह ननतांत
ऄननिायभ ना हो जाए। आसनलए गोखले बनहष्कार की तकनीकों नकसी ऄनतिादी ऄिसर के
नलए सरु नक्षत रखना चाहते थे।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
8.5.5 राजनीति की अध्यात्मीकरण
गोखले राजनीनत में धानमभक दृनष्टकोण लेकर अए थे और िे राजनीनतक और सािभजननक
जीिन को अध्यानत्मकता से सराबोर करना चाहते थे । ईनके ऄनसु ार धमभ को राजनीनत का
अधार होना चानहए। राष्र के ननमाभण के नलए नैनतक चररर का ईत्थान और सामानजक
ईत्तरदानयत्ि का धान अिश्यक है। गोखले सदैि शब्द के उपर साधनों की प्रधानता पर बल
देते थे। ईनका निश्वास था नक राजनीनत जनसेिा का एक ऄलग साधन तभी बन सकते हैं जब
ईसका अध्यानत्मकरण हो जाए । ईनका यह निचार आतना प्रबल था नक लॉडभ कजभन जैसे
प्रनतगामी िायसराय की रृदय में भी ईन्होंने सम्मानजनक स्थान बना नलया था। गोखले के
ऄनसु ार चाररनरक ईन्ननत और नैनतक राजनीनत के ऄभाि में स्िशासन प्राप्त हमारे लोगों के
नलए ऄमृत नहीं बन सके गा । हमारा कतभव्य है नक हम राजनीनत को ऄपनिर और गदं ा ना होने
दें । राजनीनतक संन्यासी गोखले के ऄनसु ार राजनीनत में नैनतकता तथा ईच्च ईद्ङेश्यों को लेकर
ईनका निश्वास था नक धमभ को राजनीनत का अधार होना चानहए । ईनका राजनीनतक ईद्ङेश्य
सत्ता तथा शनक्त प्राप्त करना न होकर सेिा धमभ ननभाने का था। ईनके द्वारा स्थानपत भारत सेिक
समाज' का मख्ु य ईद्ङेश्य भी राजनीनत और धमभ का समन्िय करना था। गोखले राजनीनतक
गनतनिनधयों और सािभजननक जीिन में साधनों की पनिरता में निश्वास रखते थे। ईनका दृढ़ मत
था नक पनिर साधनों से ही पनिर साध्य की प्रानप्त की जा सकती है। ईनका मत था नक
राजनीनत जनसेिा का साधन तभी बन सकती है जब ईसका अध्यात्मीकरण हो जाए। गोखले
ने राजनीनत में नैनतकता पर ऄत्यनधक बल नदया। राजनीनत में नैनतक तत्त्िों को महत्त्ि देने के
कारण ही गोखले को महात्मा गााँधी ने ऄपना राजनीतिक गरुु कहा था।
गोखले ने नैनतकता और ईच्च अदशों को लेकर राजनीनत में प्रिेश नकया था तथा आन
ईद्ङेश्यों को प्राप्त करने के नलए ईन्होंने राजनीनत में धमभ, नैनतकता, चररर, सािभजननक सेिा
,पररत्याग और ससं ाधन की पनिरता पर बल नदया। ईनका कहना था नक के िल साध्य ही
पनिर और ईच्च नहीं होनी चानहए बनल्क ईन्हें प्राप्त करने के साधन भी पनिर और ईच्च होने
चानहए। िे ईस साध्य को त्यागने के नलए तैयार थे नजनकी प्रानप्त पनिर और नैनतक साधनों से
नहीं हुइ थी। गोखले राजनीनत को स्िाथभ नसनद्च का साधन भी नहीं मानते थे बनल्क आसे जन
सेिा का ऄिसर मानते थे । ईनके ऄनसु ार चररर और नैनतकता के ऄभाि में राजनीनत ऄसंभि
ही नहीं, ननरथभक भी है। ईनके द्वारा स्थानपत भारत सेिक समाज आसीनलए एक ऐसे चरररिान,
देशभक्त, समाजसेिी लोगों को तैयार करने के ईद्ङेश्य से गनठत नकया गया था, जो अत्म
बनलदान में ही अत्म अनंद का ऄनभु ि करें । आस प्रकार भारत सेिक समाज राजनीनत के
अध्यानत्मकरण का सस्ं थागत एिं सगं नठत प्रयास था । राजनीनत के अध्यानत्मकरण में गोखले
गांधी के पिू भ में थे । गोखले के साधनों की पनिरता और ईच्च नैनतक चररर के तत्िों ने गांधी
को प्रभानित नकया और ईन्हें ऄपना गरुु मानने के नलए प्रेररत नकया।

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5.5.6 तहन्दू – मुतस्लम एकिा के प्रबल पक्षधर
गोखले राष्रीय एकता को निशेष महत्त्ि देते थे। ईन्होंने नहन्द-ू मनु स्लम एकता को राष्र के नलए
नहतकारी माना। दोनों ही धमों के व्यनक्तयों से ईनकी मानमभक ऄपील थी नक िे परस्पर
सनहष्णतु ा और अत्म-सयं म से काम लें और परस्पर मैरीपणू भ सहयोग की भािना का निकास
करें । रानाडे की तरह ही गोखले ने नैनतक, बौनद्चक और शारीररक योग्यताओ ं का निकास पर
निशेष बल नदया । ईनका कहना था नक कठोर पररश्रम, त्याग, सामानजक नस्थनत और नैनतक
निकास के बल पर ही राष्रीयता को सदृु ढ़ बनाया जा सकता है। राष्रीय एकता और ननष्ठा पणू भ
प्रयासों द्वारा ही भारतिासी ऄपनी समस्याओ ं के समाधान करने में सक्षम हो सकें गे, ऐसी
गोखले की मान्यता थी ।
गोखले ने नहदं ू - मनु स्लम एकता को भारतीय राष्र के नलए कल्याणकारी माना और
स्ियं को यथासंभि ऐसे निचारों में पड़ने से ऄलग रखा नजससे आन दो िगों के बीच किुता
ईत्पन्न होने की संभािना होती हो। दोनों ही िगों से ईनकी मानमभक ऄपील की नक िे परस्पर
सनहष्णतु ा और ऄपनी संयम से काम ले तथा अपसी मतभेदों पर बल देने की तुलना में परस्पर
मैरीपणू भ सहयोग की भािना बनाए रखें । गोखले ने ऐसी नकसी भी अलोचना का स्िागत नहीं
नकया, नजसके फलस्िरूप दोनों िगों में िगीय चेतना के प्रसार का भय हो। ईनका कहना था
नक बहुसंख्यक होने और नशक्षा की दृनष्ट से ईन्नत होने के कारण नहदं ओ ु ं का कतभव्य है नक
सामान्य राष्रीयता की भािना निकनसत करने में ऄपने मनु स्लम भाआयों के सहायक बनें। नजन्ना
को िे नहदं -ू मनु स्लम भाइचारे का सबसे बड़ा पैरोकार मानते थे । गांधी के साथ-साथ िे नजन्ना
के भी राजनैनतक गरुु थे। गोखले एक ऐसे राजनैनतक निचारक थे जो राजनीनत में अध्यानत्मक
ऄिधारणा लेकर अये थे। ईनके द्वारा स्थानपत ―सिेन्िस ऑफ आनं डंया सोसायिी‖ का एक
मख्ु य ईद्ङेश्य राजनीनत और धमभ में समन्िय करना था। लोकमान्य नतलक के गणपनत और
नशिाजी ईत्सि के प्रनत ईन्होंने कोइ रुनच नहीं नदखाइ । यद्यनप आस कायभ से िे ऄलोकनप्रय भी
हो गए पर ऄपने अदशों और निश्वासों से नडगना ईन्होंने कभी नहीं सीखा। गोखले जीिन पयांत
एक राष्र के नसद्चांत के समथभक रहे तथा आस ईद्ङेश्य की प्रानप्त हेतु नहदं -ू मनु स्लम सामंजस्य और
नमरता के समथभक थे। िे राष्र ननमाभण के नलए भारत की आन दो िगों में सौहादभपणू भ सहयोग और
पारस्पररक निश्वास को अिश्यक समझते थे क्योंनक ईनका मानना था नक साथ रहना, एक
साथ कष्ट सहना और एक साथ कुछ बनाना और एक प्रकार की अकाक्ष ं ाएं रखना ही राष्र का
ननमाभण करना है। आस पर भी गोखले राष्रीय राज्य के समथभक नहीं थे । ईनकी राष्रीयता
सांस्कृ नतक थी । गोखले चाहते थे नक जो लोग सािभजननक क्षेर में कायभरत हैं , ईन्हें नकसी
ऐसी गनतनिनधयों से न के िल डरना चानहए बनल्क ईसकी ननदं ा नहीं करनी चानहए , जो
समदु ायों में द्वेष , ऄनिश्वास और संदहे पैदा करती है।

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5.5.7 तिके न्रीकरण का समथयन
गोखले सत्ता के के न्द्रीकरण के निरोधी थे। ईनके ऄनसु ार भारतीयों को ईनके ऄनधकार तभी
प्राप्त हो सकते थे जब नब्रनिश सरकार सत्ता के निके न्द्रीकरण की नीनत ऄपनाती। गोखले ने
आसकी अिश्यकता को नौकरशाही पर तत्काल ननयरं ण हेतु स्िीकार नकया। ईनका मानना था
नक प्रान्तीय निके न्द्रीकरण तभी सफल हो सकता है जब प्रान्तीय पररषदों के अकार में िृनद्च हो
और ईन्हें प्रान्तीय बजि पर नििाद करने का ऄनधकार दे नदया जाए। िे नजलाधीशों को
प्रशासन के मामलों में सलाह देने के नलए नजला पररषदों के ननमाभण के पक्षधर थे।
गोखले ने निके न्द्रीकरण की अिश्यकता को स्िीकार नकया। िे ऐसी व्यिस्था के पक्ष
में थे नजससे नौकरशाही पर तत्काल ननयन्रण लगाया जा सके । िे प्रशासन पर जनता का
ईनचत ननयन्रण चाहते थे। नजला प्रशासन में कलेक्िर की स्िेच्छाचाररता रोकने के नलए प्रत्येक
नजले में नजला स्तरीय पररषद् का ननमाभण नकया जाना चानहए, जो कलेक्िर को प्रशासकीय
मामलों में सलाह दे। गोखले शनक्तयों के निकें द्रीकरण के पक्ष में थे । िे न के िल प्रातं ीय और
कें द्रीय स्तर पर निकें द्रीकरण नहीं चाहते थे बनल्क नजला स्तर पर भी निकें द्रीकरण चाहते थे ।
ईनका मानना था नक नजला स्तरीय निकें द्रीकरण से नजला प्रशासन को कें द्रीय सरकार के
सनचिालय और ईसके ऄनेक निशेष निभागों के ननयम से मनु क्त नमल जाएगा। ईनके ऄनुसार
दसू रे नजले के लोगों को नजले की प्रशासन को प्रभानित करने में ऄनधक से ऄनधक ऄिसर
नदए जाएं , जब तक के पदानधकारी जनसेिक ना बन जाए।
गोखले कें द्र और प्रांतीय सरकारों के अनथभक और प्रशासननक निषयों को ऄलग ऄलग
करना चाहते थे तथा प्रांतीय स्तर पर प्रांतीय निधानसभा पररषदों की अकार, ननिाभनचत
सदस्यों की संख्या और शनक्तयों निशेषकर बजि पर िाद नििाद की शनक्तयों में निस्तार चाहते
थे। गोखले ने हौबहाईस निकें द्रीकरण अयोग के समक्ष कहा था नक ननम्न स्तर पर ग्राम
पचं ायतों, माध्यनमक स्तर पर नजला पररषदों और नशखर के स्तर पर निधान पररषदों का
पररषदों का पनु गभठन नकया जाए।

5.6 गोपाल कृष्ण गोखले के सामारजक रवचार


गोखले के सामानजक निचार ईनकी राजनीनतक सोच का नहस्सा था। िे सही मायने में एक
ऄथभशास्त्री नहीं थे और न ही एक सामानजक नचंतक नजनके पास समाजशास्त्रीय दृनष्टकोण हो।
कांग्रेस के नेता होने के नाते और निधान पररषद का सदस्य होने के कारण गोखले ने ईस समय
के कइ सामानजक अनथभक समस्याओ ं से प्रभानित होकर ऄपने निचारों का सरू पात नकया ।
सामानजक सधु ारों के मामले में गोखले ने रानाडे का पक्ष नलया । रानाडे की तरह ही गोखले का
मानना था नक सामानजक सुधारों के साथ राजनीनतक सुधार भी होने चानहए। 1890 की

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शरुु अत में रानाडे द्वारा नकए गए सधु ारों के प्रयास का गोखले ने भी ऄनसु रण नकया। गोखले
का मानना था नक राज्य को समाज के प्रगनतशील तत्िों की मदद करनी चानहए । ईन्होंने
नसनिल मैररज नबल के प्रस्ताि का समथभन नकया तथा गोखले चाहते थे नक प्रभािशाली प्रमख ु
ऄल्पसख्ं यक की मदद से राज्य समानजक पररितभन को अगे बढ़ाए।ं गोखले ने जहां एक ओर
मक्त
ु और अिश्यक प्रारंनभक नशक्षा का सझु ाि नदया, िहीं ईन्होंने शराब पर प्रनतबंध लगाने
की बात की, नजससे व्यनक्तत्ि के निकास के मागभ में बाधाओ ं और कनठनाआयों को दरू नकया
जा सके । गोखले का सामानजक सधु ारिाद ईनके ईदारिादी दृनष्टकोण के ईपाय, ईनके
राजनीनत के अध्यानत्मककरण के निचार, व्यनक्त के नैनतक शद्च ु ीकरण तथा ज्ञान ईपदेश की
पिू भ मान्यता थी , जो नक ईनके सामानजक पररितभन के कायभक्रम में स्पष्ट झलकता है।
नौकरशाही ने नजस गैर-नजम्मेदारी और हद दजे की क्रूरता के साथ जनता की आच्छा की
ऄिहेलना करके बंगाल का निभाजन कर नदया था, गोखले ने ईसकी किु भत्सभना की।
नौकरशाही से ईनका अमह था नक ईसे आस बगं से शासन करना चानहए नजससे भारतिासी
पनश्चम के ईच्चतम अदशों के ऄनसु ार ऄपने देश का शासन करने के योग्य बन सकें । ईन्होंने
शनक्त को नौकरशाही के हाथों में के नन्द्रत करने की नीनत की अलोचना की।
गोखले ने 1905 इ० में िारि सेिक सतमति की स्थापना की। देशभक्तों की िोली
तैयार करने में आस संस्था का योगदान ऄत्यन्त महत्त्िपणू भ था। अगे चलकर भारत सेिक
सनमनत ने कइ नेताओ ं को पैदा नकया जो सच्चे राष्रभक्त थे। ईनमें श्रीननिास शास्त्री, जी. के .
देिधर, रृदयनाथ काँु जरू अनद के नाम निशेष रूप से ईल्लेखनीय हैं।

5.7 गोपाल कृष्ण गोखले के ाअर्मथक रवचार


गोखले तत्कालीन भारत की अतथयक दुदयशा से बहुत नचनन्तत थे। ईन्होंने न के िल तत्कालीन
भारत की अनथभक ददु श भ ा के मल
ू कारणों का निश्ले षण प्रस्ततु नकया ऄनपतु भारत के ईत्थान
और समृनद्च के ईपायों पर भी प्रकाश डाला। गोखले ने एक ऄथभशास्त्री के रूप में समय-समय
पर भारत की अनथभक नस्थनत पर निचार व्यक्त नकए। गोखले के अनथभक निचारों पर मख्ु यता
दादाभाइ नौरोजी, महादेि गोनिदं रानाडे और गणेश िेंकिेश जोशी के निचारों का प्रभाि था ।
ईन्हें दादा भाइ नौरोजी की तरह ही राजनीनत के अनथभक अधारों के ऄध्ययन में भी ऄनभरुनच
थी । लेनकन नौरोजी के प्रभाि के बािजदू गोखले ने ईनके नसद्चांत को ऄपने अनथभक निचारों
का अधार नहीं बनाया। िे अनथभक समस्याओ ं का ऄत्यनधक सरलीकरण करना नहीं चाहते थे
। ईनके अनथभक निचार देश की िास्तनिक अनथभक नस्थनतयों से ज्यादा प्रभानित थे । गोखले
ने अनथभक नीनत के एक ऐसे ढाचं े के ननमाभण का प्रयास नकया नजसका ईद्ङेश्य लोक कल्याण ,
औद्योनगक निकास, न्यायोनचत संरक्षणिाद पर अधाररत राज्य का रचनात्मक परंतु सतकभ

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हस्तक्षेप हो। िे भारत सरकार के अय और व्यय के बीच ऄनधक संतल ु न स्थानपत करने के
पक्षधर थे। आस सम्बन्ध में ईनका सझु ाि था नक अय का ऄनधक न्यायोनचत ढंग से नितरण
नकया जाए।
गोखले ने भारत के सैननकों को कम करने के नलए सझु ाि भी प्रस्ततु नकए। ईनके
ऄनसु ार यनद सैननक व्यय को आग्ं लैंड और भारत के बीच बांि नदया जाए तो भारतीय खजाने
की डेढ़ करोड़ रुपए की बचत हो सकती है तथा भारत के कुल राजस्ि व्यय तथा सैननक के
का ऄनपु ात नकसी ऄन्य देश की तल ु ना में भी ईनके ऄनसु ार ऄनधक था। गोखले के ऄनसु ार
भारत के कुल राजस्ि व्यय और सैननक व्यय का ऄनपु ात ऄन्य देशों की तल ु ना में ऄनधक था।
गोखले का मत था नक भारत सनचि साम्राज्यीय के नबनेि का सदस्य होता है, ऄतः ईसके और
ईसकी पररषद के कमभचाररयों पर होने िाले व्यय को के िल भारतीय राजस्ि पर भाररत नहीं
होना चानहए बनल्क ईसे आग्ं लैंड और भारत के बीच बराबर-बराबर बााँिना चानहए।
गोखले के मतानसु ार एक अरनक्षत सेना का ननमाभण नकया जाए नजस पर शानं तकाल में
ऄनधक खचभ नहीं होगा, िहााँ यद्च ु और अक्रमण की नस्थनत में आसका आस्तेमाल नकया जा
सके गा। सेना का भारतीयकरण नकया जाए। आससे भती सम्बन्धी खचे कम होंगे, िेतन कम देना
पङे गा और भारतीयों को रोजगार के ऄिसर बढ़ेंग।े भारत की भौगोनलक सीमाओ ं से बाहर
आग्ं लैंड की आच्छानसु ार भारत की सेना का आस्तेमाल नकया जाए, तो ईस पर अने िाले व्यय का
एक नननश्चत भाग आग्ं लैंड के राजस्ि से भी नलया जाना चानहए। सेना में भारतीयों की भती का
प्रस्ताि गोखले ने नदया क्योंनक ईनके ऄनुसार आससे खचभ में कमी होगी तथा भारतीयकरण से
नशनक्षत भारतीयों को रोजगार के ऄिसर भी प्राप्त होंगे। ईनका कहना था नक भारतीय सेनाओ ं
का आस्तेमाल भारतीय सीमाओ ं की सरु क्षा के नलए नकया जाना चानहए। यनद ईसका आस्तेमाल
भारतीय सीमाओ ं से बाहर नकया जाता है तो ईसका समस्त व्यय नब्रनिश बजि के ऄनसु ार ही
नकया जाना चानहए। गोखले का मानना था नक भारत पर अरोनपत कर न के िल ऄननयनं रत थे
बनल्क िे नब्रनिश व्यिसाय के नहतों के ऄधीन थे तथा ईनका भारतीय करदाताओ ं के नहतों या
ईसके कल्याण से कोइ सरोकार नहीं था।
गोखले को सरकार की प्राथनमकताओ ं पर भी अपनत्त थी । आसी कारण गोखले ने
सरकार के रे लों के निस्तार का निरोध भी नकया। गोखले राजनीनतक क्षेर में ईदारिाद तथा
लोकतानं रक नसद्चातं ों के समथभक थे परंतु अनथभक क्षेर में ईदारिाद और ईससे जड़ु े मक्त ु
व्यापार और हस्तक्षेप के नसद्चांत के समथभक नहीं थे । ईनका मानना था नक जब तक नकसी देश
का न्यनू तम अनथभक निकास ऄथिा औद्योनगकरण नहीं हो जाता, तब तक ईसे स्ितंर
प्रनतयोनगता में धके लना न्याय सगं त नहीं होगा। भारतीय नकसानों की ऊणग्रस्तता और
ईत्पादन की परु ानी तकनीकों से भी नचंनतत थे। गोखले भारत का औद्योगीकरण करना चाहते
थे। िे भारतीय ऄथभव्यिस्था को पनु जीनित करना चाहते थे। आसनलए ईन्होंने भारत के

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ईद्योगपनतयों को जहााँ ईद्योगों के निकास का सझु ाि नदया िहााँ ईन्होंने निदेशों में मनण्डयााँ
खोलने के नलए भी कहा। ईन्होंने नियिु कों को तकनीकी नशक्षा में प्रनशक्षण देने और ऄपने
क्षेर में ननपणु ता प्राप्त करने पर जोर नदया। गोखले ईदारिादी होते हुए भी भारत के ननबाभध
व्यापार तथा कम से कम हस्तक्षेप की नीनत के पक्षपाती नहीं थे। ईनका अग्रह था नक भारत
की निनशष्ट अनथभक पररनस्थनतयों में नब्रनिश राज को ‖संरक्षण की सतकभ नीनत‖ के साथ मक्त ु
व्यापार की मयाभनदत नीनत का पालन करना चानहए। ईनके ऄनसु ार भारत में नए और अधनु नक
ईद्योगों की स्थापना और निकास में नब्रनिश सरकार को सहयोग देना चानहए। भारतीय ईद्योगों
को नब्रिेन सनहत निश्व के समृद्च और ईन्नत ईद्योगों के साथ खलु ी प्रनतयोनगता से बचाया जाना
चानहए। भारत के ऄन्दर भारतीय ईद्योगों के बीच प्रनतयोनगता होनी चानहए तानक िे ऄपनी
तकनीक और प्रबन्ध कला अनद में ईन्ननत की प्रेरणा प्राप्त करें । भारतीय ईद्योगों का निकास
तो होना चानहए, नकन्तु ईनमें एकानधकारिादी प्रिृनत्त का निकास नहीं होना चानहए। गोखले
भारतीय ईद्योगों के नलए ऐसी सरकारी नीनत चाहते थे जो अनथभक सरं क्षण और मक्त ु व्यापार के
दोषों से मक्त
ु हो।

5.8 गोपाल कृष्ण गोखले के रशक्षा सांबांधी रवचार


गोखले एक अदशभ नशक्षक थे नजन्होंने जीिन के बीस िषभ नशक्षा जगत में ही व्यतीत नकया था
तथा नशक्षा के निस्तार और निकास के संबंध में िे ननरंतर प्रयासरत थे । गोखले की धारणा थी
नक राष्र की प्रगनत के नलए नशक्षा एक ऄननिायभ तत्ि और माध्यम है। आसीनलए न के िल
सिभसाधारण नागररक को नशनक्षत करने पर ईन्होंने जोड़ नदया बनल्क राष्र के औद्योनगक और
अनथभक निकास के नलए तकनीकी नशक्षा को भी बढ़ािा देने के नलए ईन्होंने प्रयास नकए।
ईनका यह स्पष्ट मानना था नक देश के नागररकों निशेषकर युिाओ ं में पनिर निचारों के संचार
में ना देश की नस्थनत में सधु ार नहीं हो सकता । सधु ार का एकमार माध्यम नशक्षा है । गोखले ने
कहा था नक नशक्षा के नबना व्यनक्त की कुशलता में िृनद्च बनु द्चमत्ता सामान्य स्तर में िृनद्च और
समदु ाय के एक बड़े भाग में चाररनरक शद्च ु ता सनु ननश्चत नहीं नकया जा सकता। भारत में
ऄज्ञानता और ऄननभज्ञता का प्रचंड साम्राज्य था और ईनके ऄनसु ार ऐसे लोगों की कमी नहीं
थी जो बालकों को नशक्षा देना ऄपना कतभव्य नहीं समझते थे । गोखले नशक्षा के क्षेर में सरकार
के हस्तक्षेप के पक्ष में थे। आसीनलए ईन्होंने सझु ाि नदया नक नशक्षा को निशेषकर प्राथनमक
नशक्षा को ननशल्ु क और ऄननिायभ बना नदया जाए । गोखले ने भारत सरकार के समक्ष नशक्षा
सबं धं ी ऄपने प्रस्तािों को प्रेनषत नकया । ननशल्ु क और ऄननिायभ प्राथनमक नशक्षा संबधं ी
प्रस्ताि में ऄननिायभता का तत्ि डाल कर देख लेना ऄपनी प्रनतबद्चता जताइ। गोखले का

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मानना था नक राज्य को भय मख ू भ लोगों से ही है न नक जानिरों से। ऄननिायभ नशक्षा का ऄसल
ईद्ङेश्य संपणू भ ऄज्ञान का नाश करना है।
गोपाल कृ ष्ण गोखले नब्रनिश संपकभ को भारत के नलए िरदान स्िरूप मानते थे क्योंनक
ईसके कारण ही भारत में पाश्चात्य नशक्षा का प्रिेश हुअ था । गोखले की दृनष्ट में पाश्चात्य
नशक्षा भारत के नलए एक मनु क्तदानयनी नस्थनत थी और भारत में ईसका ऄनधकानधक निस्तार
होना चानहए था । देश की तत्कालीन दशा में पाश्चात्य नशक्षा का सबसे बड़ा कायभ भारतीय
जनमानस को पनु ः निचारों की दासता से मक्त ु करना और ईसमें पाश्चात्य जीिन चररर और
नचंतन के सिोत्तम तत्िों को समानहत करना था । गोखले के ऄनसु ार भारतीयों ने पाश्चात्य
नशक्षा का बनहष्कार नकया तो यह एक गभं ीर भल ू होगी। िे पनश्चमी देशों की नशक्षा प्रणाली को
ही भारत के नलए ऄनधक ईपयक्त ु समझते थे क्योंनक भारत की परंपरागत नशक्षा पद्चनत की
तल ु ना में भारत को प्रगनत के मागभ ले जाने में ऄनधक सफल िही नशक्षा पद्चनत हो सकती है ।
गोपाल कृ ष्ण गोखले ने 1903 में ऄपने एक बजि भाषण में कहा था नक भािी भारत दररद्रता
और ऄसंतोष का भारत नहीं होगा बनल्क ईद्योगों, जाग्रत शनक्तयों और संपन्नता का भारत
होगा । िे पाश्चात्य नशक्षा को भारत के नलए िरदान मानते थे और आसका ऄनधकानधक निस्तार
चाहते थे । ईनका मानना था नक देश की तत्कालीन दशा में पाश्चात्य नशक्षा का सबसे बड़ा
कायभ भारतीयों को परु ाने, जीणभ-शीणभ निचारों की दासता से मक्त ु कराना होगा । ईन्होंने सरकार
को ये निचार नदया नक प्राथनमक नशक्षा को छह से दस िषो तक के बच्चों के नलए ऄननिायभ
कर नदया जाए और आसके खचे को सरकार और संस्थाएं ईठाएं । लेनकन सरकार आस बात के
नलए राज़ी नहीं थी। ईसका मानना था नक नशक्षा के प्रसार से ऄग्रं ेज़ी साम्राज्य को नदक्कत
होगी । गोखले ने ऄपनी तकभ बनु द्च से ईन्हें समझाया नक सरकार को ऄनपढ़ लोगों से ही डरना
चानहए, पढ़े-नलखों से नहीं। यद्यनप ऄपने जीिन के ऄनं तम काल में गोखले को नब्रनिश व्यिहार
से ननराशा हुइ नफर भी नब्रनिश सद्भािना में ईन्होंने ऄपना निश्वास नहीं खोया। गोखले नारी
नशक्षा के प्रबल और ईत्कृ ष्ट समथभक थे । ईनके ऄनसु ार प्रत्येक राष्र के यथाथभ कल्याण में नारी
नशक्षा एक ईच्चतम मल्ू य का तत्ि है। भारत में आसका महत्ि आसनलए भी हो जाता है , जहां
जानत और ररनत ररिाज के बंधन के कारण नहदं ू नारी एक साथ यथानस्थनत की नशकार और
जबरदस्त समथभक है । नशक्षा के माध्यम से गोखले नहदं ू नारी को ईसकी ऄपमानजनक नस्थनत
से छुिकारा नदलाने का प्रयास प्रयासरत रहे।
आसके साथ गोखले ने भारत के औद्योनगक और अनथभक निकास के नलए तकनीकी
नशक्षा के निस्तार और निकास की अिश्यकता भी जताइ । ईन्होंने तकनीकी नशक्षा के
निस्तार के नलए एक अयोग के गठन की मागं की थी। गोखले निश्वनिद्यालयों की स्िायत्तता
के पक्षधर भी थे। निश्वनिद्यालयों की स्िायत्तता और स्ितंरता को नष्ट करने सरकारी ननयंरण में
लाने संबंधी निधेयक का निरोध नकया था। ईनका कहना था नक आसका ईद्ङेश्य निश्वनिद्यालय

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ु निश्वनिद्यालय 88
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प्रशासन से भारतीय तत्ि हिाना और ईन पर यरू ोपीय प्रोफे सर के प्रभाि को बढ़ाना है।
पाश्चात्य नशक्षा से ऄत्यनधक प्रभानित और ईनकी धारणा थी नक आसका महान कायभ भारतीय
मनस्तष्क को परु ाने निचारों की दासता से मनु क्त नदलाना था । ईनके ऄनसु ार पाश्चात्य नशक्षा
ईदार और लोकतानं रक मल्ू यों से भरपरू है । ऄतः भारत में आसके निस्तार और निकास से ईदार
और लोकतांनरक निचारों का निकास होगा । स्पष्ट रूप से िे नशक्षा के माध्यम से भारतीयों की
ऄज्ञानता और ऄधं निश्वासों को दरू करना चाहते थे।

5.9 गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान


गोखले मध्यममागी थे। जनता में जागृनत लाने तथा ईनके ऄन्दर त्याग और बनलदान की
भािना को पैदा कर स्िशासन का लक्ष्य िे परू ा करना चाहते थे। बनारस ऄनधिेशन में ऄपने
ऄध्यक्षीय भाषण में गोपाल कृ ष्ण गोखले ने कइ महत्त्िपणू भ बातों की ओर सरकार का ध्यान
अकृ ष्ट नकया था। ईन्होंने निधान पररषदों में ननिाभनचत सदस्यों की सख्ं या अधा से ऄनधक
बढ़ाने, बजि पास करने का ऄनधकार, कायभपानलका और न्यायपानलका को पृथक
करना, नजला स्तर पर परामशभदाता मण्डल की स्थापना, सैननक व्यय में कमी, औद्योनगक एिं
प्रानिनधक नशक्षा का प्रचार, ग्राम कजभदारी को दरू करना अिश्यक बतलाया था। िे भारत की
कृ नष का निकास भी चाहते थे। सतू ी िस्त्र पर से ईत्पादन-कर ईठाने का सझु ाि ईन्होंने सरकार
को नदया था। गोखले राजनीनतज्ञ, समाजसेिी और कुशल ऄथभशास्त्री थे। गोखले एक
व्यािहाररक अदशभिादी थे। िे योग्यता प्राप्त कर लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहते थे। िस्ततु ः
गोपाल कृ ष्ण गोखले एक ईच्च कोनि के देशभक्त, कुशल राजनीनतज्ञ और व्यािहाररक
ऄथभशास्त्री थे ।
गोखले एक ननभीक निचारक थे । िे क्रानन्तकारी नेता नहीं थे। िे प्राथभना-परों एिं
सांनिधाननक अन्दोलन का रास्ता ऄपनाकर भारत में सधु ार लाना चाहते थे । पंनडत
मोतीलाल नेहरू ने ईन्हें भारतीय स्िशासन का एक महान देिदतू कहा था । नौकरशाही
व्यिस्था पर कठोर प्रहार करने में िे कभी चक ू ते नहीं थे। िे नौकरशाही के ऄत्याचार का
निरोध करते थे। नौकरशाही को भारत में भारतीयों को आस योग्य बनाने पर बल देते थे नक
भनिष्य में िे ऄपना शासन स्ियं चला सकें । बंग-भगं का निरोध, स्िदेशी िस्तओ ु ं का प्रचार,
राष्रीय एकता में निश्वास रखनेिाले कमजोर रृदयिाला राष्रनेता नहीं कहा जा सकता है।
गोपाल कृ ष्ण गोखले ईदारिादी निचारक एिं राजनेता थे । नतलक ने ईन्हें ―दबु भल रृदय
ईदारिादी‖ की संज्ञा दी थी । सरकार की नजर में िे एक नछपे हुए निद्रोही थे । पट्टानभ
सीतारमैया ने नलखा है नक ‗िास्ति में िे न तो दबु भल रृदय के ईदारिादी थी और न नछपे हुए
राजद्रोही; िे तो जनता और सरकार के बीच एक सच्चे मध्यस्थ थे।‘ सरकार को जनता की

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समस्याओ ं से पररनचत करिाने और सरकार की सनु िधाओ ं की जानकारी जनता को देने के
नलए गोपाल कृ ष्ण गोखले मध्यस्थता का काम करनेिाले सेतु थे । िे सरकार के द्वारा नकये गये
ऄच्छे कायों की प्रशसं ा करते थे और बरु े कामों की ननंदा भी करते थे ।
एक ओर लोकमान्य नतलक 'के सरी' और 'मराठा' ऄख़बारों के माध्यम से ऄग्रं ेज़ हुकूमत
के निरुद्च लड़ रहे थे, तो िहीं 'सधु ारक' को गोखले ने ऄपनी लड़ाइ का माध्यम बनाया हुअ
था। 'के सरी' की ऄपेक्षा 'सधु ारक' का रूप अक्रामक था। सैननकों द्वारा बलात्कार का नशकार
हुइ दो मनहलाओ ं ने जब अत्महत्या कर ली, तो 'सधु ारक' ने भारतीयों को कड़ी भाषा में
नधक्कारा था- तम्ु हें नधक्कार है, जो ऄपनी माता-बहनों पर होता हुअ ऄत्याचार चप्ु पी
साधकर देख रहे हो। आतने नननष्क्रय भाि से तो पशु भी ऄत्याचार सहन नहीं करते। गोखले जी
के आन शब्दों ने भारत में ही नहीं, आग्ं लैंड के सभ्य समाज में भी खलबली मचा दी थी। 'सिेन्ि
ऑफ़ सोसायिी' की स्थापना गोखले द्वारा नकया गया महत्त्िपणू भ कायभ था।
गाधं ी के ऄनसु ार ‗सर नफरोजशाह मेहता मझु े नहमालय की भााँनत ऄगम्य प्रतीत
हुए,लोकमान्य नतलक समद्र की भााँनत प्रतीत हुए, नजसमें व्यनक्त असानी से गोता नहीं लगा
सकता. पर गोखले गगं ा के समान थे,जो व्यनक्तयों को ऄपने पास बल ु ाते थे। राजनीनत के क्षेर में
मेरे रृदय में गोखले के जीिन का जो स्थान था,िह ऄब भी है और िह ऄनपु म रहेगा।" लॉडभ
कजभन ने भी नलखा है, इश्वर ने अपको ऄसाधारण योग्यताएाँ प्रदान की हैं और ईन्होंने
ननःसक ं ोच ईन्हें देश सेिा में लगा नदया है।" डॉ. पट्टानभ सीतारमय्या ने गोखले के सदं भभ में
नलखा है ‗ईनमें कड़ी-से-कड़ी बात को भी मधरु भाषा में कहने का बड़ा गणु था।‘ गोखले के
राजनीनतक निरोधी नतलक के शब्दों में ,‗गोखले भारत का हीरा, महाराष्र का रत्न और
मजदरू ों का राजा था।" गोपाल कृ ष्ण गोखले स्ियं में एक महामानि थे लेनकन ईनकी प्रनसनद्च
आस कारण हुइ थी नक महात्मा गांधी ने ईन्हें कइ बार ऄपना ‘नशक्षक और राजनीनतक गरुु ’
स्िीकार नकया था।
ऄभ्यास प्रश्न
1. गोपाल कृ ष्ण गोखले के राजनीनतक गरुु कौन थे ?
2. सन् 1905 में बनारस में भारतीय राष्रीय कांग्रेस के सभापनत कौन ननिाभनचत हुए थे?
3. गोपाल कृ ष्ण गोखले को नकसने ऄपना राजनीनतक गरुु माना ?
4. नकस निचारक ने नलखा है ‗िास्ति में िे न तो दबु भल रृदय के ईदारिादी थी और न नछपे
हुए राजद्रोही; िे तो जनता और सरकार के बीच एक सच्चे मध्यस्थ थे।‘?
5. गोखले ने सिेन्ि्स ऑफ आनं डया सोसायिी की स्थापना कब की?

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5.10 साराांश
आस प्रकार यह कहा जा सकता है नक गोखले ऄपने यगु के चमकते हुए नसतारे थे नजन्होंने भारत
के राजनीनतक, अनथभक और सामानजक- सभी क्षेरों में ऄपनी नचंतन और कायभकलापों का
प्रचार- प्रसार नकया, िैधाननक अदं ोलन को गनत दी, अदान-प्रदान और समझौते की मांग का
समथभन नकया तथा अदशभिादी मागों में समन्िय नकया । गोखले ने सदैि क्रनमक सधु ारों का
समथभन नकया और भारत के नलए एकाएक स्िशासन की मांग को ऄव्यािहाररक बताया ।
नब्रनिश चररर और परंपरा में ईनका सदैि निश्वास बना रहा और यह मानते रहे नक न्यायनप्रय
ऄग्रं ेजों को नजस नदन निश्वास हो जाएगा नक भारत स्िशासन के नलए सक्षम है , िे यह
ऄनधकार भारतीयों को दे देंगे । पर ऄन्य ईदारिादी नेताओ ं की तरह गोखले को भी जीिन के
ऄनं तम िषों में नब्रनिश सरकार पर से निश्वास डगमगाने लगा और मानने लगे नक नौकरशाही
स्िाथभ पणू भ है और राष्रीय अकांक्षाओ ं के पणू तभ ा निरुद्च भी । महादेि गोनिदं रानाडे के नशष्य
गोपाल कृ ष्ण गोखले को नित्तीय मामलों की ऄनद्वतीय समझ और ईस पर ऄनधकारपिू क भ
बहस करने की क्षमता से ईन्हें भारत का 'ग्लैडस्िोन' कहा जाता है। िे भारतीय राष्रीय कांग्रेस
में सबसे प्रनसद्च नरमपंथी थे। चररर ननमाभण की अिश्यकता से पणू तभ : सहमत होकर ईन्होंने
1905 में सिेन्ि्स ऑफ आनं डया सोसायिी की स्थापना की तानक नौजिानों को सािभजननक
जीिन के नलए प्रनशनक्षत नकया जा सके । महात्मा गााँधी गोखले को ऄपना राजनीनतक गरुु
मानते थे। अपके परामशभ पर ही ईन्होंने सनक्रय राजनीनत में भाग लेने से पिू भ एक िषभ तक देश
में घमू कर नस्थनत का ऄध्ययन करने का ननश्चय नकया था। साबरमती अश्रम की स्थापना के
नलए गोखले ने गांधी जी को अनथभक सहायता दी। गोखले नसफभ गांधी जी के ही नहीं बनल्क
मोहम्मद ऄली नजन्ना के भी राजनीनतक गरुु थे। गाधं ी जी को ऄनहसं ा के जररए स्ितरं ता
संग्राम की लड़ाइ की प्रेरणा गोखले से ही नमली थी।गोखले की मृत्यु के बाद महात्मा गांधी ने
ऄपने आस राजनैनतक गरुु के बारे में कहा "सर नफरोजशाह मझु े नहमालय की तरह नदखाइ नदये,
नजसे मापा नहीं जा सकता और लोकमान्य नतलक महासागर की तरह, नजसमें कोइ असानी से
ईतर नहीं सकता, पर गोखले तो गगं ा के समान थे, जो सबको ऄपने पास बल ु ाती है।"

5.11 शब्दावली
तिके न्रीकरण - सत्ता या शनक्त का कें द्र से स्थानीय निभागों की ओर फै लाि,
संतिधान - मल
ू नसद्चान्तों का एक समच्ु चय है, नजससे कोइ राज्य या ऄन्य संगठन
ऄनभशानसत होते हैं
तनकाय – संगठन ,व्यिस्था
शासन - राज्य के कायों का प्रबंध और संचालन

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5.12 ाऄभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. महादेि गोनिदं रानाडे 2. गोपाल कृ ष्ण गोखले 3. महात्मा गााँधी 4. पट्टानभ
सीतारमैया 5. 1905 में

5.13 सन्दर्भ ग्रन्थ सूची


1. डी. जी.कािे एिं डी. बी.ऄम्बेडकर , 1986, स्पीचेस एण्ड राआनिंग ऑफ गोपाल कृ ष्ण
गोखले , खण्ड -2 , पोनलनिकल , एनशया पनब्लनशगं हाईस , मबंु इ.
2. डी. जी.कािे एिं डी. बी.ऄम्बेडकर , 1967 , स्पीचेस एण्ड राआनिंग ऑफ गोपाल कृ ष्ण
गोखले , खण्ड -3 ,एजक ु े शनल , एनशया पनब्लनशंग हाईस , मबंु इ.
3. ए. ऄप्पादोराय , 2002, पोनलनिकल थॉि आन आनं डया , खामा पनब्लशसभ , नदल्ली.
4. ओ. पी. गाबा, 2005, राजनीनतक निचारक निश्व कोश , मयरू पेपर बैक , नदल्ली.
5. निष्णु भगिान, 2002 ,भारतीय राजनीनतक निचारक , अत्माराम एण्ड ससं , नदल्ली.

5.14 सहायक/ उपयोगी पाठ्य सामग्री


1. िी.पी.िमाभ ,2004 , अधनु नक भारतीय राजनीनतक नचन्तन , लक्ष्मी नारायण ऄग्रिाल ,
अगरा .
2. पी के चड्ढा एिं आन्द्रजीत नसहं सोढ़ी ,2007, प्रमख
ु भारतीय राजनीनतक निचारक ,
यनू निनसभिी बक
ु हाईस, जयपरु
.

5.15 रनबांधात्मक प्रश्न


1. गोपाल कृ ष्ण गोखले के राजनीनतक निचारों की समीक्षा कीनजए I
2. गोपाल कृ ष्ण गोखले के सामानजक निचारों का मल्ू यांकन कीनजए I
3. गोपाल कृ ष्ण गोखले के अनथभक निचारों का निस्तार से िणभन कीनजए।
4. गोपाल कृ ष्ण गोखले के नशक्षा सबं धं ी निचारों का मल्ू याक
ं न कीनजए।
5. ‘नब्रनिश शासन एक इश्वरीय िरदान है’ गोपाल कृ ष्ण गोखले के निचारों के संदभभ में ईक्त
कथन का परीक्षण कीनजए ।

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इकाई 6 : स्वामी दयानन्द सरस्वती

6.1 प्रस्तािना
6.2 ईद्ङेश्य
6.3 स्िामी दयानन्द सरस्िती का जीिन पररचय
6.4 स्िामी दयानन्द सरस्िती की रचनाएाँ
6.5 स्िामी दयानन्द सरस्िती के राजनीनतक निचार
6.5.1 राष्रिाद
6.5.2 प्रबद्च ु राजतन्र
6.5.3 लोकतंर
6.5.4 ग्राम प्रशासन
6.5.5 इश्वरीय निनध की श्रेष्ठता
6.5.6 सापेक्ष ऄनहसं ा का नसद्चातं
6.5.7 िैनदक सािभभौमिाद
6.6 स्िामी दयानन्द सरस्िती के सामानजक निचार
6.7 स्िामी दयानन्द सरस्िती के नशक्षा सबं धं ी निचार
6.8 स्िामी दयानन्द सरस्िती का योगदान
6.9 साराश ं
6.10 शब्दािली
6.11 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर
6.12 सन्दभभ ग्रन्थ सचू ी
6.13 सहायक/ ईपयोगी पाठ्य सामग्री
6.14 ननबंधात्मक प्रश्न

6.1 प्रस्तावना
स्िामी दयानंद सरस्िती एक महान नशक्षानिद, समाज सधु ारक और सांस्कृ नतक राष्रिादी थे।
भारतीय राजनीनतक नचंतन में ईन्हें निनशष्ट स्थान प्राप्त है । िैनदक संस्कृ नत के महान ईद्चारक

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तथा एक महान देशभक्त और राष्र ननमाभता के रूप में ईनकी छनि निश्व प्रनसद्च है । डॉक्िर
राधाकृ ष्णन के ऄनसु ार ‚स्िामी दयानंद एक महान सधु ारक और प्रखर क्रांनतकारी महापरुु ष तो
थे ही, साथ ही ईनके रृदय में सामानजक ऄन्याय को ईखाड़ फें कने की प्रचंड ऄनग्न भी
निद्यमान थी । ईनकी नशक्षाओ ं का हम सबके नलए भारी महत्ि है । ईन्होंने हमें यह महान
संदशे नदया था नक हम सत्य की कसौिी पर कसकर ही नकसी बात को स्िीकार करें ।‛ निमान
नबहारी मजमू दार के शब्दों में ‚स्िामी दयानंद ने राज्य के ईद्ङेश्यों को नजतना व्यापक स्िरूप
प्रदान नकया है िैसा प्राचीन, मध्यकालीन एिं अधनु नक समय के नकसी राजनीनतक निचारक
ने नहीं नदया ।‛ ईन्होंने भारत के गौरिपणू भ ऄतीत का न के िल गणु गान नकया है बनल्क
भारतीयों को अत्मनिश्ले षण करके ऄपने दोषों तथा कनमयों को देखने का भी अह्वान नकया।
ईन्होंने समाज को तोड़ने िाली प्रिृनत्तयों का जोरदार खंडन नकया तथा देशिानसयों को
अत्मग्लानन, ननराशा तथा हीन भािना से मक्त ु कराने में योगदान नदया। दयानंद सरस्िती ने न
के िल भािी राजनीनत की रूपरे खा प्रस्ततु की बनल्क धमभ, दशभन, नशक्षा एिं राजनीनत के
निनिध अयामों का प्रनतरूप हमारे समक्ष रखा। अयभ समाज के संस्थापक के रूप में ईन्होंने
नशक्षा और धमभ के क्षेर में निीन निचारों का सरू पात नकया।

6.2 उद्देश्य
आस ऄध्याय का ईद्ङेश्य पाठकों को भारतीय राजनीनतक निचारक स्िामी दयानन्द सरस्िती के
राजनीनतक निचारों से पररचय कराना है। स्िामी दयानंद सरस्िती अयभ समाज के संस्थापक,
महान नचतं क, समाज-सधु ारक और देशभक्त थे। आस ऄध्याय में स्िामी दयानन्द सरस्िती के
राजनीनतक निचार यथा राष्रिाद ,प्रबद्च ु राजतन्र, लोकतंर , ग्राम प्रशासन , इश्वरीय निनध की
श्रेष्ठता, सापेक्ष ऄनहसं ा का नसद्चांत एिं िैनदक सािभभौमिाद सम्बंनधत निचार पर चचाभ से भी
पाठकों का ज्ञानिधभन होगा ।
आस आकाइ का ऄध्ययन करने के पश्चात् अपको
i. स्िामी दयानन्द सरस्िती के राजनीनतक नचतं न के मल ू तत्ि के बारे में ज्ञान प्राप्त होगा।
ii. साथ ही अप स्िामी दयानन्द सरस्िती के सामानजक निचारों के बारे में जान सकें गे।
iii. अप स्िामी दयानन्द सरस्िती के नशक्षा संबंधी निचारों के बारे में जान सकें गे तथा
iv. स्िामी दयानन्द सरस्िती के योगदान से भी अप ऄिगत होंगे ।

6.3 स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन पररचय


अयभ समाज के संस्थापक और अधनु नक पनु जाभगरण को नदशा देने िाले महनषभ स्िामी दयानंद
सरस्िती जी का जन्म 12 फरिरी 1824 को गजु रात में मोराबी के िंकारा गांि में कृ ष्णलाल

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जी नतिारी और ऄमृतबाइ के घर हुअ था। मल ू नक्षर में जन्म होने के कारण ईनका नाम
मल ू शंकर रखा गया था। स्िामी दयानंद का पररिार ऄत्यंत रूनढ़िादी था तथा ईनके नपता परम
नशि भक्त थे। दयानंद के नपता एक कर-कलेक्िर होने के साथ ब्राह्मण पररिार के एक समृद्च
और प्रभािशाली व्यनक्त थे। नजसके चलते दयानदं ने सस्ं कृ त, िेद, शास्त्रों एिं ऄन्य धानमभक
पस्ु तकों का ऄध्ययन नबना नकसी परे शानी के नकया। बचपन से ही ईनके नपता की नशिभनक्त से
िे भी प्रेररत हुए। स्िामी दयानंद के जीिन में ऐसी बहुत सी घिनाएाँ हुइ,ं नजनकी िजह से ईन्होंने
समाज के कइ मल्ू यों पर प्रश्न ईठायें और ज्ञान की खोज में ननकल पड़े । एक ऄप्रत्यानशत
घिनाक्रम ने ईन्हें मनू तभ पजू ा का घोर निरोधी बना नदया तथा ईनकी बहन और चाचा की मृत्यु
ने यह बोध कराया नक जीिन में कुछ भी शाश्वत नहीं है । तत्पश्चात ईन्होंने 1846 में गृह त्याग
नदया और ज्ञान सत्य तथा मोक्ष की तलाश में ऄनग्रम यारा पर चल पड़े।
1856 में स्िामी दयानंद नाना साहब से नमले और दोनों ने नमलकर सन्यानसयों द्वारा गप्तु
रूप से रोनियों में गप्तु सदं श
े ों को भेजने की योजना बनाइ । सैननक प्रनतष्ठानों में साधु के िेश में
क्रांनत की ज्िाला भड़काने में स्िामी दयानंद की भनू मका महत्िपणू भ थी। परंतु 1857 की क्रांनत
में ऄसफलता नमलने पर दयानंद ननराश हो गए । ईन्होंने ऄनभु ि नकया नक देश में एक
निचारधारा, एक जानत, एक संगठन, एक भाषा और एक राष्र का सिभथा ऄभाि है ।
कुरीनतयों ने सामान्य जनजीिन को ननजीि बना नदया है। आन समस्याओ ं के समाधान की
कोनशश में दयानदं सरस्िती सपं णू ाभनदं अश्रम पहुचं े , जहां ईन्हें निरजानन्द जी के पास मथरु ा
जाने के नलए कहा गया । यहीं से ईनके जीिन का एक नया ऄध्याय प्रारंभ हो जाता है ।
ऄनंतर स्िामी दयानंद सरस्िती ने सारे भारत में घमू - घमू कर प्राचीन सभ्यता एिं अरे ग्रंथों
का प्रचार प्रसार प्रारंभ कर नदया । ईनके जीिन के पश्चात ईनके निचार समाप्त न हो जाए,ं आस
ईद्ङेश्य से ईन्होंने ऄपने ऄनयु ानययों को एक मचं पर एकनरत करने के नलए मबंु इ में 1875 में
अयभ समाज की स्थापना की। अयभ समाज ननरंतर स्िामी दयानदं सरस्िती के नेतत्ृ ि में प्रगनत
करता रहा । अयभ समाज की सफलता निशेषकर ईत्तर भारत के पंजाब, संयक्त ु प्रांत तथा
राजपतू ाना जैसे राज्यों में देखकर तत्कालीन सामानजक और धानमभक व्यिस्था के समथभक
स्िामी दयानदं सरस्िती से घोर इष्याभ करने लगे तथा ईन्हें मारने के निनिध प्रयास करते रहे ।
ऄतं तः 30 ऄक्िूबर 1883 को ऄजमेर में ईनका स्िगभिास हो गया। यह मृत्यु स्िभानिक नहीं
थी क्योंनक ईनके भोजन में जहर दे नदया गया था नकंतु भारत के आस महान ऊनष ने ऄपने
प्राणहतं ा को क्षमा देकर ऄपनी महानता को और भी अलोनकत कर नदया। भारतीय ज्ञान रानश
का यह नदव्य नसतारा दीपािली के नदन ही बझु गया।

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6.4 स्वामी दयानन्द सरस्वती की रचनाएाँ
स्िामी दयानदं सरस्िती के दशभन को ईनके तीन प्रनसद्च योगदान - सत्याथभ प्रकाश, ऊग्िदे
अनद भाष्य भनू मका और िेद भाष्य से जाना जाता है । आसके ऄनतररक्त ईनके द्वारा संपानदत
पनरका ‘अयभ पनरका’ भी ईनके निचारों एिं दशभन को प्रकि करती है।स्िामी दयानंद ने
सत्याथभ प्रकाश के दो ऄध्याय - ऄध्याय 2 और 3 को नशशओ ु ं और नकशोरों के नलए नशक्षा
के निषय हेतु समनपभत नकया है। आसके ऄनतररक्त एक प्रनतनष्ठत लेखक के रूप में ईपरोक्त कायभ
एक शैनक्षक और धानमभक लेखक के रूप में ईनकी भनू मका का सक ं े त देते हैं।

6.5 स्वामी दयानन्द सरस्वती के राजनीरतक रवचार


फ्ांसीसी निचारक रोम्यॉ रोलॉ का कथन है नक, ‗दयानन्द सरस्िती इनलयड या गीता के प्रमख ु
नायक समान थे, नजन्होंने हरक्यनु लस जैसी शनक्त के साथ नहन्दओ ु ं ने ऄन्धनिश्वासों पर प्रबल
प्रहार नकए। िास्ति में शक ं राचायभ के ईपरान्त आतनी महान बनु द्च का सन्त दसू रा नहीं जन्मा।‘
िह अधनु नक भारत के सबसे महान ऐसे पथ-ननमाभता माने जाने जाते हैं, नजसने जानतयों,
ईपजानतयों, छुअछूत, अनद के बीहड़ िनों को चीर कर भारत के पतन-काल में इश्वराधना,
देश-भनक्त तथा मानि सेिा का सहज मागभ बताया। आन्होंने तीक्ष्ण दृनष्ट और दृढ़ संकल्प के साथ
कोनिशः भारतीयों को अत्म सम्मान तथा माननसक चेतना को ईद्बुद्च भी नकया। दयानन्द जी ने
देशिानसयों में राष्रिाद का संदश े ऐसे समय में नदया जबनक भारत में ऄग्रं ेजी साम्राज्य की
प्रधानता स्थानपत हो गयी थी। इसाइ सभ्यता और संस्कृ नत भारतीयों का इसाइकरण प्रारम्भ कर
चक ु ी थी और देश के प्रमख ु राज्य ऄग्रं ेजी कम्पनी के चाकर बन गए थे। ऐसे कनठन समय में
ईन्होंने नहन्दओ
ु ं में निजीिन के प्राण फूके , भारत भनू म की कीनतभ और मनहमा समझाइ तथा
देशिानसयों को भारत का स्िनणभम आनतहास बताया। ईन्होंने हमें यह भी बताया नक िास्ति में
अयभ जानत ही इश्वर नप्रय सिोत्तम सृनष्ट और नप्रय जानत है। िेद ही ईनकी िाणी है तथा भारत
देश ही इश्वर को है। ऄन्य धमभ अधे-ऄधरू े मार हैं, ऄतः अयों का कतभव्य है नक िे ईन्हें अयभ
धमभ में दीक्षा प्रदान करें ।
दयानन्द के समय में नहन्दू समाज को मनु स्लम एिं इसाइ दोनों का अक्रमण सहना पड़ रहा
था, ऄतः दयानन्द जी ने सरु क्षा की नीनत को छोड़कर अक्रमण की नीनत का ऄनगु मन नकया।
ईन्होंने ननभीकतापिू क भ घोनषत नकया नक के िल िैनदक धमभ ही सिभदने शक है और सत्य भी। आस
प्रकार ईन्होंने िैनदक धमभ की पनु ः स्थापनाथभ लड़ाकू भारत की धारणा को बल नदया। ईन्होंने
कहा ―िेदो के यगु में लौिो‖। आस प्रकार ईन्होंने भारत में निजागरण की ज्िाला ईत्पन्न की।
शीघ्र ही ईनके निजागरण के सन्देश ने भारत में राष्रिादी भािनाओ ं को पल्लनित करना

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अरम्भ कर नदया। स्िामी दयानंद सरस्िती ने निनिध राजनीनतक निषयों पर ऄपने निचार रखें
नजसे ननम्न शीषभकों में समेत जा सकता है :

6.5.1 राष्रिाद
दयानंद तकनीकी ऄथभ में एक राजनीनतक दाशभननक नहीं थे । ईन्होंने राजनीनतक नसद्चांत के
संग्रह में नकसी क्रमबद्च ग्रंथ की रचना नहीं की नकंतु ऄपनी रचनाओ ं और कभी-
कभी ननजी िाताभलाप के दौरान ईन्हें राजनीनतक निचार ऄिश्य व्यक्त नकए हैं । ईनकी रचना
सत्याथभ प्रकाश और ऊग्िदे अनदभाष्य भनू मका दोनों में 11 ऄध्याय ऐसे है नजसमें राजनीनतक
निचारों की व्याख्या की गइ है।
स्िामी दयानंद सरस्िती ने सदैि आस बात पर बल नदया है की अतं ररक महत्ता
बाह्य प्रमख ु ता की ऄपररहायभ शतभ है। दयानंद का अनत्मक जीिन एक ओर राष्रिाद को
मजबतू करता है िहीं दसू री और राष्रिाद से भी ऄनधक एकात्मकता का संदश े देता है। ईनके
ऄनसु ार कमाांत और िेदातं का सम्मान के िल मनष्ु य के व्यनक्तगत जीिन को ईन्नत बनाता
है बनल्क राष्र के नलए सिाभनधक ईन्ननत का मागभ प्रशस्त करती है । दयानंद ने राष्रिाद को
स्िदेशी एिं भारतीय ऄनभमख ु ीकरण प्रदान नकया । ईनका राष्रिाद पनश्चमी राष्रिाद का
ऄनक ु रण मार नहीं है । दयानदं ने ऄपने दृनष्टकोण द्वारा भारतीयों को प्रथम बार यह ऄनभु ि
करने के नलए नििश नकया है नक िे गौरिपणू भ परंपरा के ईत्तरानधकारी हैं । दयानंद ने स्ियं के
धमभ, गौरिपणू भ सस्ं कृ नत एिं स्ियं की भाषा द्वारा ही राष्र के निकास का मागभ नदखाया । स्िामी
दयानंद सरस्िती प्रथम व्यनक्त थे नजन्होंने स्िराज की नइ ऄिधारणा प्रदान की और यह ईद्घोष
नकया नक सरु ाज कभी स्िराज का स्थान नहीं ले सकता। ईन्होंने संपणू भ राष्र के नलए सपं कभ
भाषा के रूप में सिभप्रथम एक भाषा नहदं ी को स्िीकार नकया तथा राष्रीय चेतना को जगाया ।
ईनका मानना था नक हमारे दभु ाभग्य, अलस्य, अतं ररक फूि , दसू रे देशों से संबंध में बात न
करने के कारण भारत में अयों की स्ियं की स्ितंर एिम भयमक्त ु सरकार नहीं रही। ईनका
मानना था नक चाहे दसू रे लोग नकतना भी ऄच्छा साधन क्यों न करें , स्िशासन ही सिभश्रेष्ठ
शासन है।
―स्िशासन‖ तथा ―स्िराज्य‖ की पक ु ार सिभप्रथम महनषभ दयानन्द के द्वारा ईठाइ गइ थी।
ईन्होंने यह ईद्घोष ईस समय नकया था जब कोइ भी व्यनक्त यह साहस नहीं कर सकता था नक
नब्रनिश साम्राज्यिाद के निरुद्च कुछ कहे। ईनका यह शनक्तशाली तथा ननभीक कथन था
‚निदेशी सरकार चाहे सब में प्रकार से धानमभक, पक्षपातों से मक्त ु तथा देशी ि निदेशी लोगों के
प्रनत ननष्पक्ष ही क्यों न हो, लोगों को पणू भ रूप से प्रसन्नता प्रदान नहीं कर सकती। स्िामी जी के
ये सभी निचार राष्रिादी थे। भारत पर गिभ करो, प्राचीन िैनदक सस्ं कृ नत का ऄनसु रण करो तथा
भारत को नफर से ईन्नत करने का प्रयास करो।‛ आन्हीं निचारों का स्िामी दयानन्द ने सम्पणू भ

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जनता में प्रचार नकया नजससे लोगों के मन में निदेशी शासन के प्रनत अक्रोश ईत्पन्न हुअ
और अगे चलकर स्ितन्रता अन्दोलन के नलए पृष्ठभनू म तैयार हुइ। राष्रीय चेतना की भािना
को जागृत करने में भारत के प्राचीन िैभि एिं शौयभ के प्रनत जनता को नशनक्षत करके स्िामी
दयानन्द ने महत्िपणू भ कायभ नकया था। िेलेिाआन नशरोल ने आस तथ्य को स्िीकार नकया है। नक
स्िामी दयानन्द की नशक्षाएं महान् राष्रिाद से ओत प्रोत थी। ईनका यह कथन स्मरणीय है:
‗दयानन्द की नशक्षाओ ं का महत्िपूणभ प्रिाह नहन्दिू ाद को सधु ारने की ऄपेक्षा आसे सनक्रय
निरोध के क्रम में रखना था नजससे नक यह निदेशी प्रिाहों को रोक सके जो नक ईनके निचार में
आसे ऄराष्रीय बनाने की धमकी दे रहे थे। मनु स्लमकाल में नहन्दू धमभ पर ऄत्याचार तथा ईसका
निनाश, 1857 के स्ितन्रता सग्रं ाम की ऄसफलता के पश्चात् की दशा तथा इसाइ धमभ
प्रचारकों के कायभ कलाप और शासन की ओर से ईनकी सहायता के फलस्िरूप समाज और
धमभ की जो हानन हो रही थी ईसे देखकर स्िामी जी ने ऄनुभि नकया नक धमभ ही सब प्रकार की
निपनत्तयों से रक्षा कर सकता है, ऄत ईनके धानमभक पनु जाभगरण के प्रयास में राष्रीय पनु जाभगरण
का दरू गामी प्रभाि भी था। ईनके निचार से पारस्पररक फूि, नशक्षा की कमी, जीिन में शद्च ु ता
का ऄभाि, धमभ से निमख ु ता तथा ऄन्य धानमभक कुरीनतयों के कारण भारत का पतन हुअ था।
भारतीय राष्रिाद को स्िामी दयानंद सरस्िती ने सिभप्रथम नइ नदशा प्रदान की। ईन्होंने
भारतीयों की रृदय में स्िधमभ और स्िदेश के प्रनत स्िानभमान ईत्पन्न करने और देश में
निजागरण फूिने का महान कायभ नकया। भारत के ननराशाजनक और ऄिसाद ग्रस्त समय में
नहदं ू पनु रुत्थान बाद के महान प्रिक्ता थे नजन्होंने देश िानसयों को ऄपने देश के धमभ संस्कृ नत
और गौरिपणू भ ऄतीत की ओर ध्यान अकनषभत नकया। स्िामी दयानंद सरस्िती का निचार था
नक अत्मनिश्वास के ऄभाि में स्िराज कभी प्राप्त नहीं नकया जा सकता। ऐसी नस्थनत में
दयानंद ने भारत के गौरि पणू भ ऄतीत के खोए हुए अत्मनिश्वास को जगाया । ईनका मानना
था नक भारतीय राजनीनतक रूप से जागरूक और शनक्तशाली हो तो स्िराज प्रानप्त में समय
नहीं लगेगा । स्िदेशी, स्िभाषा एिं स्िराज की ऄिधारणाओ ं का भारतीय राजनीनत में प्रयोग
करने िाले प्रथम निचारक स्िामी दयानंद सरस्िती थे। िे ईस राष्रिादी परंपरा के जनक
थे, नजसका चरमोत्कषभ लोकमान्य नतलक, नबनपन चद्रं पाल, महनषभ ऄरनिदं और लाला
लाजपत राय में देखते हैं।
6.5.2 प्रबुद्ध राजिन्त्र
स्िामी दयानंद सरस्िती के राजनीनतक दशभन में मनस्ु मृनत और िेदों के निचारों का समन्िय
देखने को नमलता है । मनस्ु मृनत से ईन्होंने राजतरं का नसद्चातं ग्रहण नकया। ईन्होंने एक ऐसे
नदनग्िजय राजा की अदशभ का समथभन नकया , जो धमभ के ऄनसु ार और मनं रयों के सहयोग से
शासन करता है । दयानदं ने राजतरं का समथभन नकया लेनकन ईनका राजतरं कोइ ननरंकुश
राजतंर नहीं है । आसमें राजा पर धमभ और मनं रयों का परू ा ऄक
ं ु श है और िह मनमानी नहीं कर

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सकता। आस प्रकार िेदों में िनणभत राजा के ननिाभचन को ईन्होंने स्िीकार नकया है और यह माना
है नक सभा में से योग्यतम व्यनक्त को ही राजा चनु ा जाए।
िैनदक संस्कृ नत की मान्यता के ऄनसु ार दयानंद सरस्िती ने यह स्िीकार नकया नक
राजनीनतक सत्ता की अध्यानत्मक एिं नैनतक सत्ता की सहायता से कायभ नकया जाना चानहए,
तभी राज्य कायभ ईनचत प्रकार से संभि है। ईन्होंने राजनीनत और नैनतकता को कभी ऄलग नहीं
माना। दयानंद के ऄनसु ार शासक और शासन के नलए सिोपरर लक्ष्य मानि कल्याण है और
आसके ऄभाि में शासन का कोइ ऄथभ नहीं है । दयानदं ने धमभ को आतना महत्िपणू भ माना है नक
धमभननरपेक्षता पर अधाररत राष्र को भी स्िीकार नहीं कर सके ।
मनस्ु मृनत के दशभन से प्रेररत स्िामी दयानदं ने राजा के नननश्चत गणु ों की ऄननिायभता के
प्रनत संकेत करके राजतंर को मयाभनदत नकया और ईसे जन नशक्षा को सम्मान देते हुए राज्य का
चलाने की प्रेरणा देकर राजतंर को प्रबद्च ु ऄथिा जागरूक बनाया । दयानंद धमभ को संकेत नहीं
बनल्क ईदात्त रूप में ग्रहण नकया और मानि धमभ में अस्था रखते हुए समानता और न्याय का
पोषण नकया। लोकतांनरक शासन व्यिस्था के बीज़ दयानदं ने िेदों से ग्रहण नकए नजसमें
राजाओ ं के चनु ाि का स्पष्ट ईल्लेख नमलता है।
6.6.3 लोकिंत्र
दयानदं सरस्िती ने सिभप्रथम प्रजातानं रक शासन पद्चनत के अधार पर अध्यानत्मकता से
पररपणू भ धमभ और संस्कृ नत की अधारनशला रखते हुए राष्रीयता के संदु र , सदृु ढ़ एिं ऄजेय दगु भ
के ननमाभण की ऄभतू पिू भ योजना बनाइ थी । दयानदं ने लोकतरं को िगभ निशेष या जानत निशेष
का समथभक नहीं बनाया बनल्क तथाकनथत दनलतों के नलए भी ईसके द्वार खोल नदए । स्िामी
दयानंद का लोकतंर व्यनक्त की ईपेक्षा नहीं करता बनल्क व्यनक्त को स्ितंर निकास का ऄिसर
प्रदान करता है । ईनके ऄनसु ार राज्य का ऄनस्तत्ि व्यनक्त के नलए है न नक व्यनक्त का ऄनस्तत्ि
राज्य के नलए । ईन्होंने शासन के तीन प्रमख ु ऄगं - धमाभथभ सभा, निदयाथभ सभा और राज़्याथभ
सभा स्िीकार नकए हैं और तीनों के संगठन का अधार ननिाभचन को माना है। ऄपने प्रनसद्च
ग्रन्थ ―सत्याथभ प्रकाश‖ में स्िामी दयानन्द सरस्िती ने ईस लोकतंर के ननमाभण, स्िरूप, शासन
तथा न्याय सम्बन्धी धारणाओ ं की नििेचना की है नजसकी िे भारत में स्थापना करना चाहते
थे। िह ईनका अदशभ लोकतन्र था। स्िामी दयानन्द सरस्िती के नचन्तन, मनन और व्यिहार
में िे तीन अदशभ समान रूप से देखे जाते हैं नजन पर ितभमान लोकतंर अधाररत है। िे हैं -
स्ितन्रता, समानता और भ्रातृत्ि। स्िामी दयानन्द सरस्िती ने नजस लोकतन्र की कल्पना की
थी ईसमें यह व्यिस्था है नक जनसाधारण स्ितन्रता को समान अधार पर भोग सके । प्रत्येक
व्यनक्त को ऄपनी सभी ईनचत कायों के नलए पणू भ स्ितन्रता है। कोइ शनक्त आसमें बाधक नहीं हो
सकती। स्िामी जी ने एकानधकारिाद एिं निशेषानधकारिाद की प्रिृनत्तयों को स्िीकार नहीं
नकया नजससे नक समानता अ सके । ईनका लोकतंर प्रत्येक िगभ, िणभ, धमभ, जानत तथा नलंग

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के नलए मान है और ईसमें यह ननतान्त अिश्यक है नक समानता के अदशभ पर सभी अचरण
करें । स्िामी दयानन्द सरस्िती भ्रातृत्ि की भािना को अिश्यक मानते थे नजससे सामानजक
जीिन गनतशील बना है। ईनके लोकतन्र के प्रारूप का मल ू स्रोत ―मनस्ु मृनत‖ है नजसकी नशक्षा
के ऄनसु ार ही ईन्होंने यह व्यिस्था रखी है नक राज्य व्यिस्था में सभासदों तथा मनन्रयों का
अचरण मयाभनदत हो। नैनतकता के अधार पर धानमभक मान्यताओ ं का समथभन भी ―मनस्ु मृनत‖
के ऄनक ु ू ल ही है।
6.6.4 ग्राम प्रशासन
स्िामी दयानदं सरस्िती ने प्रजातानं रक अदशभिाद से प्रेररत होकर ग्राम प्रशासन की
पररकल्पना की थी। सत्याथभ प्रकाश में दयानंद ने ग्राम प्रशासन का निस्तृत िणभन नकया है
नजसमें लोकतांनरक निकें द्रीकरण, जनता द्वारा पहल, प्रशासन पर जनता का ननयंरण और
जनसभा जैसे प्रशासननक नसद्चांतों का समन्िय नदखाइ देता है । स्िामी दयानंद द्वारा प्रनतपानदत
ग्राम प्रशासन पयाभप्त सनु नयोनजत और िैज्ञाननक प्रतीत होता है नजसमें शनक्त का ईनचत प्रकार
से प्रत्यायोजन नकया गया है, नजससे शासन सचु ारू रूप से चलाइ जा सके ।
स्िामी दयानन्द सरस्िती देश में ग्राम पंचायतों के समथभक थे। ईन्होंने महनषभ मनु द्वारा
प्रनतपानदत ग्राम प्रशासन व्यिस्था को ईनचत माना और तत्सम्बन्धी श्लोकों को ईद्चतृ करते हुए
कहा ―एक‖-एक ग्राम में एक प्रधान परू ु ष को रखें। ईन्ही देश ग्रामों के उपर दसू रा, ईन बीस
ग्रामों के उपर तीसरा, ईन सौ ग्रामों के उपर चौथा, और ईन्हीं सहस्र ग्रामों के उपर पााँचिा
परूु ष रक्खे ऄथाभत् जैसे एक ग्राम में एक पििारी, ईन्हीं दश ग्रामों में एक थाना, दो थानों पर
एक बड़ा थाना, पााँच थानों पर एक तहसील, दश तहसीलों पर एक नजला ननयत नकया गया है।
स्िामी दयानन्द सरस्िती का नचन्तन स्थानीय शासन के निषय में ऐसा था। आसे न्यनू ानधक रूप
में हमारे सनं िधान में ऄपनाया गया है। स्िामी दयानन्द सरस्िती आस व्यिस्था पर प्रकाश
डालते हुए अगे व्यिस्था देते हैं नक एक-एक ग्रामों का पनत ग्रामों में ननत्यप्रनत जो जो दोष
ईत्पन्न हों, ईन ईनको गप्तु ता से देश ग्राम के पनत को निनदत कर दें, और िह दश ग्रामानधपनत
ईसी प्रकार बीस ग्राम के स्िामी को दश ग्रामों का ित्तभमान ननत्यप्रनत जना देिे, और बीस ग्रामों
का ऄनधपनत बीस ग्रामों के ित्तभमान को शत ग्रामानधपनत को ननत्यप्रनत ननिेदन करे , िैसे सौ-
सो ग्रामों के पनत अप सहस्रानधपनत ऄथाभत् हजार ग्रामों के स्िामी को सौ-सौ ग्रामों के ित्तभमान
को प्रनतनदन जनाया करे और बीस बीस ग्राम के पााँच ऄनधपनत सौ सौ ग्राम के ऄनधपनत को
और िे सहस्र-सहस्र के दश ऄनधपनत दशसहस्र के ऄनधपनत को और िे दश दश हजार के दश
ऄनधपनत लक्ष ग्रामों की राजसभा को प्रनतनदन का ित्तभमान जनाया करें , और िे सब राजसभा
महाराज सभा ऄथाभत् सािभभौम चव्रफिती महाराज सभा में सब भगू ोल का ितभमान जनाया
करें , और एक एक दश हजार ग्रामों पर दो सभापनत िैसे करें , नजनमें एक राजसभा में और
दसू रा ऄध्यक्ष अलस्य छोड़कर सब न्यायाधीशानद राजपरू ु षों के कामों को सदा घमू कर देखते

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
रहें। बड़े-बड़े नगरों में एक-एक निचार करने िाल सभा का सुन्दर ईच्च और निशाल जैसा नक
चन्द्रमा है, िैसा-एक एक घर बनािें, ईसमें बड़े-बड़े निद्यािृद्च नक नजन्होंने निद्या से सब प्रकार
की परीक्षा की हो, िे बैठकर निचार नकया करें । नजन ननयमों से राजा ि प्रजा की ईन्ननत हो,
िैसे िैसे ननयम और निद्या प्रकानशत नकया करें ।‖‖
6.6.5 ईश्वरीय तितध की श्रेष्ठिा
स्िामी दयानंद सरस्िती ने इश्वर की ऄनतररक्त नकसी ऄन्य शनक्त की सत्ता को स्िीकार नहीं
नकया । ननजी जीिन में दयानंद को ऄराजकतािादी माना जा सकता है परंतु ऄराजकतािानदयों
के समान ईन्होंने कभी राज्य निहीन समाज की चचाभ नहीं की और ना ही राज्य के निनाश के
कल्पना की । िे एक सन्यासी थे , ऄतः ईनका ननजी जीिन या व्यनक्त के जीिन में इश्वर की
सत्ता की सिोच्चता का प्रनतपादन करना स्िाभानिक ही था। यनद इश्वरीय निनध और
राजनीनतक सत्ताधारी की निनध में नकसी एक को पालन करने का ननणभय करना पड़े तो दयानंद
नबना नकसी शतभ के आस पर यह निनध का ऄनगु मन करें गे क्योंनक इश्वर के सािभभौम प्रभत्ु ि को
स्िीकार करते थे और ईसके प्रनत भनक्त को सिोच्च मानते थे। िे मानते थे नक इश्वर हमारा
राजा है और हम इश्वर की प्रजा है । स्िामी दयानंद सरस्िती दैनिक ननयमों की श्रेष्ठता में
निश्वास रखते थे । ईन्होंने दैिी सत्ता के ऄनतररक्त नकसी ऄन्य सत्ता को ऄपने व्यनक्तगत जीिन
में महत्ि नहीं नदया लेनकन सामानजक जीिन में राज्य के महत्ि में निश्वास प्रकि करते हुए
ईन्होंने कहा नक नबना राज्य के नकसी प्रकार के समाज में व्यिस्था नहीं रह सकती ।
6.5.6 सापेक्ष ऄतहस ं ा का तसद्धांि
स्िामी दयानंद सरस्िती ऄनहसं ा के ननरपेक्षता के नसद्चांत में संशोधन करते हैं। ईनका मानना है
नक नजस प्रकार इश्वर पानपयों को दनं डत करते हैं, ईसी प्रकार से ऄपराधी को भी दडं देने का
राज्य को पणू भ ऄनधकार है। आसमें कुछ भी ऄननु चत नहीं है । दयानंद ने सािभजननक जीिन में
ईनचत नहसं ा के नसद्चातं का समथभन नकया तथा व्यनक्तगत जीिन में ऄनहसं ा के ईच्चतम स्िरूप
को बनाया। आसनलए ईन्होंने ईस व्यनक्त को नजसने ईन्हें जहर भी दे नदया था , स्ियं िहां से
भाग जाने के नलए कहा, नजससे नक ईसे कोइ हानन न पहुचं े। यह इश्वर के समान क्षमाशीलता
और ईच्च ऄनहसं ा का ऄद्भुत ईदाहरण है । स्िामी दयानदं सरस्िती ने ऄनहसं ा की एक
व्यािहाररक धारणा प्रस्ततु की । ईन्होंने सापेक्ष ऄनहसं ा को व्यािहाररक मानते हुए राजनीनतक
मामलों में दडं व्यिस्था की ऄननिायभता को स्िीकार नकया । ईनके ऄनसु ार ऄपरानधयों को
शारीररक दडं नमलना ही चानहए।
6.6.7 िैतदक साियिौमिाद
स्िामी दयानंद सरस्िती भारतीय राष्रिाद की प्रबल समथभक थे परंतु एक राष्र तक ही सीनमत
नहीं थे । ईन्होंने सिभधमभ सभा का अयोजन नकया और नहदं -ू मनु स्लम एकता पर बल नदया था

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
। आससे यह प्रमानणत होता है नक धानमभक एकता के अधार पर निश्व की एकता के ईद्ङेश्य को
प्राप्त करना चाहते थे । ईनका यह ऄिूि निश्वास था नक सभी धमों का शांनतपणू भ सह ऄनस्तत्ि
संभि है । दयानंद ने यह ऄनभु ि नकया नक भारतीय समाज के दनलत और नगरे हुए िगों का
ईद्चार करना सिोच्च और तात्कानलक अिश्यकता का निषय है । आस ससं ार में निशद्च ु िैनदक
धमभ का प्रचार नकया जाए। िे निश्व बंधत्ु ि के अदशभ के महान समथभक थे नकंतु ईनके
ऄतं रराष्रीयिाद में निश्व के रास्तों की राजनीनतक संघ की कोइ कल्पना नहीं थी।
दयानदं धानमभक एकता के अधार पर निश्व एकता के आच्छुक हैं और ऄपने ईद्ङेश्य की
प्रानप्त के नलए ईन्होंने देश के निनभन्न धानमभक नेताओ ं से निचार निमशभ नकए । दयानंद ने
मानिता और निश्व बधं त्ु ि के प्रनत ऄद्भुत लग्न थी और आसकी पनू तभ की नदशा में काम करने में
ईन्हें सदैि प्रसन्नता होती थी । ईन्हें नैनतक और अध्यानत्मक जगत पर पिू भ और पनश्चम की
एकता के नननमत्त धमभ ईपदेश देने से कभी कोताही नहीं की।

6.7 स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामारजक रवचार


स्िामी दयानन्द की गणना भारत के ईन महान् परुु षों में की जाती है जो नहन्दू जानत और नहन्दू
राष्र के पनु रुत्थान के नलए ऄितररत हुए । ईनका भारतीय आनतहास में िही स्थान है जो स्थान
महािीर, महात्मा बद्च ु एिं शकं राचायभ को प्राप्त है। िे एक महान् धमभ सधु ारक, समाज सधु ारक
तथा ननभीक सत्यिादी थे। सामानजक पनु ननभमाभण के महान लक्ष्य को साधने के नलए स्िामी
दयानंद सरस्िती ने अयभ समाज की स्थापना की। ईन्होंने सामानजक बरु ाआयों और कुरीनतयों को
समाप्त करने के नलए ईन पर अक्रमण की नीनत ऄपनाइ । भारत में शायद ही कोइ राजनीनतक
धानमभक या सामानजक अदं ोलन हुअ हो जो अयभ समाज का ऊणी ना हो । गगं ा प्रसाद
ईपाध्याय के शब्दों में ‘अयभ समाज पृथ्िी के गरुु त्िाकषभण शनक्त के समान था, जो यद्यनप
ऄदृश्य होती है तथानप ईसने प्रत्येक अदं ोलन को प्रभानित नकया।
स्िामी दयानन्द के समय में भारत की राजनीनत तथा सामानजक नस्थनत ऄत्यन्त
शोचनीय थी। एक ओर निदेशी शासन के ऄन्तगभत देशिानसयों पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाि
स्थानपत हो रहा था। दसू री ओर नहन्दू समाज कुरीनतयों एिं ऄन्ध निश्वासों का ऄखाड़ा बना
हुअ था। आस निषय पररनस्थनत में स्िामी दयानन्द ने भारतीय संस्कृ नत की रक्षा और प्राचीन
गररमा को पनु ः स्थानपत करने के नलए सब कुछ लगा नदया। ईन्होंने ऄन्धनिश्वास तथा
पाखण्डिाद के निरुद्च जबरदस्त अन्दोलन प्रारम्भ नकया। स्िामी दयानन्द िैनदक धमभ के
कट्टरता की सीमा तक ―ऄनयु ायी थे। नफर भी कभी ईन्होंने कुप्रथाओ ं का समथभन नहीं नकया। िे
हमेशा समाज में फै ली कुप्रथाओ ं का निरोध नकया करते थे। िे बाल-नििाह, दहेज प्रथा,
बलात िैधव्य जैसी प्रथाओ ं का कट्टर निरोध करते थे। धमभ सधु ार के ऄनतररक्त समाज सधु ार के

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क्षेर में नशक्षा निशेषकर स्त्री नशक्षा को प्रोत्सानहत करने, स्त्री परुु ष समानता और उंच-नीच की
समानप्त एिं जानत प्रथा की समानप्त के नलए ईन्होंने िैचाररक क्रांनत एिं सामानजक पररितभन
तथा पनु : रचना के मागभ को हमेशा बढ़ािा नदया । िह समाज सधु ार को राजनीनतक चेतना और
राष्रीयता के निकास के नलए ऄननिायभ मानते थे।
भारतीय समाज की एक घातक समस्या- जानत प्रथा- की कठोरता को समाप्त करने के
नलए स्िामी दयानंद ने ऄथक प्रयास नकए। ईनका मानना था नक यनद कोइ व्यनक्त ब्राह्मण होने
योग्य नहीं है तो ईसे या तो ईसकी जानत से िनं चत कर देना चानहए या ईसे ईस ऄपेनक्षत स्तर
को प्राप्त करना चानहए। स्िामी दयानंद की नशक्षा में बद्च ु एिं शक ं र दोनों का समन्िय है। जहां
गौतम बद्च ु ने समानता पर अधाररत सपं णू भ सामानजक व्यिस्था की समानप्त का प्रयत्न नकया,
िही दयानंद ने प्राचीन िणभ व्यिस्था को सरु नक्षत रखते हुए निकृ त जानत व्यिस्था की समानप्त
का प्रयास नकया है। िे दहेज प्रथा को ननमल भू नष्ट करना चाहते थे तथा आस प्रथा को समाज के
नलये ऄनभशाप बताया करते थे। िे निधिा पनु निभिाह का समथभन नकया करते थे।
दयानन्द के काल में दनलत िगभ को जीिन के प्रत्येक क्षेर में ऄपमान और घिु न के
िातािरण में रहना पड़ता था। ईन्हें समाज में स्ितन्र ऄनस्तत्ि ऄथिा व्यनक्तत्ि के रूप में
मान्यता प्राप्त नहीं थी। बनल्क ईन्हें हीन समझा जाता था। ईन्हें मनन्दरों में जाने नहीं नदया जाता
था और ना ही ईन्हें िेद ऄध्ययन के योग्य माना जाता था। दयानन्द ने आसे पंनडतों और ब्राह्मणों
का पाखण्ड जाल बताया। िे कहा करते थे नक जैसे परमात्मा ने सभी प्राकृ नतक िस्तयु ें समान
रूप से प्रत्येक मनष्ु य को प्रदान की है, ईसी प्रकार िेद सबके नलए प्रकानशत हैं। िे जानत के
अधार पर शद्रु नहीं मानते थे नकन्तु िे कहते थे, नजसे पढ़ना-पढ़ाना न अये, िह ननबनु द्च और
मख ू भ होने से शद्रू है। आस व्याप्त जानत प्रथा के कारण ही नहन्दू समाज ऄसंगनठत एिं शनक्तनिहीन
है। समाज को सशक्त और ईन्नत बनाने हेतु जानत प्रथा एिं ऄस्पृश्यता को नष्ट करना ही होगा।
यद्यनप स्िामी दयानन्द जानतिाद तथा ऄस्पृश्यता ―अनद कुप्रथाओ ं के कट्टर निरोधी
थे तथानप िे िणाभश्रम के समथभक थे। िणाभश्रम व्यिस्था के समथभक होने पर भी प्रचनलत
िणाभश्रम व्यिस्था का निरोध आस बात पर करते थे नक िणभ कमभ के अधार पर नननश्चत नकया
जाना चानहये न नक जन्म के अधार पर। िे कमभ के साथ-साथ गणु ों एिं प्रकृ नत का भी ध्यान
रखने को कहते थे। यह सिभनिनदत है नक अयभ समाज िणाभश्रम व्यिस्था का आनच्छत रूप प्राप्त
नहीं कर सका परन्तु ईसके बन्धनों को ढीला करने में ऄिश्य सफल हुअ।
स्िामी दयानन्द मनू तभपजू ा का निरोध नकया करते थे तथा िे ऄधं निश्वास तथा पाखण्ड
को मनू तभपजू ा के द्वारा ही जन्मा मानते थे। आसनलए िे मनू तभपजू ा के कट्टर निरोधी थे ईनका कहना
था— ‗यद्यनप मेरा जन्म अयाभितभ में हुअ है और मैं यहााँ का ननिासी भी हू’ ाँ ’.‘परन्तु मैं
पाखण्ड का निरोधी हूाँ और यह मेरा व्यिहार ऄपने देशिानसयों तथा निरोनधयों के साथ समान
है। मेरा मख्ु य ईद्ङेश्य मानि जानत का ईद्चार करना है।‘ िे आस पर प्रकाश डालते हुए अगे कहते

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हैं नक िेदों में मनू तभपजू ा की अज्ञा नहीं है। ऄतःईनके पजू न में अज्ञा-भगं का दोष है। आसनलये
आसे मैं धमभ निरोधी कृ त्य मानता हू।ाँ
स्िामी दयानंद सरस्िती ने प्राचीन भारतीय मल्ू यों की स्थापना हेतु ऄनधकानधक प्रयास
नकए। ईनके पनु रुत्थान बाद में सभी मध्यकालीन ऄधं निश्वासों, कुरीनतयों, रूनढ़यों एिं ऄज्ञान
से लोहा नलया । ईन्होंने भारत िानसयों की माननसक परतंरता को समाप्त कर नदया तानक िे
स्ितंरता की नदशा में ऄग्रसर हो सके । दयानदं शानदार सपनों के स्िप्न दृष्टा थे नजनके पास
ऄधं निश्वासों से मक्त ु भारत की दृनष्ट थी जो इश्वर भनक्त और निज्ञान से यक्त ु हो तथा जो
स्िशासन के नलए ईपयक्त ु हो।
स्िामी दयानन्द को भारतीय समाज में नारी की नगरती हुइ नस्थनत में व्यनथत कर नदया।
िे नारी के ईत्थान के नलये िेदों में नननहत आस श्लोक को दोहराया करते थे— “यत्र नाययस्िु,
पज ू यन्िे रमन्िे ित्र देििा।” ऄथाभत् ‗जहााँ नारी की पजू ा है, िहााँ देिता ननिास करते हैं।‘
ईन्होने पदाभ प्रथा, ऄनशक्षा, तथा नारी की ईपेनक्षत और निपन्न होती नस्थनत का घोर निरोध
नकया। ईनके द्वारा स्थानपत अयभ समाज ने ऄनेक नगरों में अयभ कन्या स्कूलों की स्थापना की।
आस प्रकार ईन्होंने स्त्री नशक्षा का प्रचार एिं प्रसार नकया। ईन्होंने नारी को समान ऄनधकार
नदलिाये। नारी से सम्बनन्धत ऄनेक कुप्रथाओ ं के निरुद्च अन्दोलन चलाकर अयभ समाज ने
नस्त्रयों को समाज में ईच्च स्थान नदलिाया। आस प्रकार स्िामी दयानन्द ने नारी ईद्चार के नलए
ऄनेक प्रयत्न नकये।
स्िामी दयानन्द जी समाज के सिाांगीण निकास के समथभक थे। िे नशक्षा का ऐसा रूप
चाहते थे नजससे बौनद्चक के साथ-साथ शारीररक, माननसक ि अनत्मक निकास भी हो।
आसनलए िे पाश्चात्य नशक्षा पद्चनत के निरुद्च थे। िे व्यिस्था पर जोर देते िे ऄननिायभ और ननः
शल्ु क नशक्षा के समथभक थे। गरुु कुल नशक्षा िे स्ियं गजु राती होते हुए भी अयभ भाषा के
समथभक थे। आसनलए ईन्होंने ऄपनी समस्त रचनायें अयभ भाषा में कीं। एक बार ईन्हें पस्ु तकों के
ऄनिु ाद ऄन्य भाषा में कराने को कहा गया नजससे अयभ भाषा न जानने िालों को भी लाभ
पहुचाँ े। ईन्होंने अयभ भाषा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा है— ‗ऄनिु ाद तो निदेनशयों
के नलये हुअ करता है। नागरी के थोड़े से ऄक्षर थोड़े नदनों में सीखे जा सकते हैं। जो अयभ
भाषा सीखने में थोड़ा भी श्रम नहीं कर सकता, ईससे और क्या अशा की जा सकती है? ईसमें
धमभ की लगन है, आसका क्या प्रणाम है? अप तो ऄनिु ाद की सम्मनत देते हैं, परन्तु दयानन्द के
नेर तो िह नदन देखना चाहते हैं जब काश्मीर से कन्याकुमारी तक, ऄिक से किक तक नागरी
ऄक्षरों का प्रचार होगा। मैंने अयाभितभ भर में भाषा के सभ्य सम्पादन के नलये ही ऄपने सफल
ग्रन्थ अयभ भाषा में नलखे और प्रमानणत नकये हैं।‘ आस प्रकार दयानन्द जी ने भनिष्य पर दृनष्ट
रखते हुए नहन्दी को मातृभाषा के रूप में ऄपनाया।

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आस प्रकार दयानन्द एक महान् समाज सधु ारक, देशभक्त तथा इश्वरीय दतू के रूप में प्रकि
हुए। स्पष्टतः दयानन्द ईच्च श्रेणी के ननभीक दतू एिं समाज सधु ारक थे।

6.8 स्वामी दयानन्द सरस्वती के रशक्षा सांबांधी रवचार


स्िामी दयानंद सरस्िती अध्यानत्मक नचंतक, धमभ सधु ारक एिं समाज सधु ारक थे । िे प्लेिो
और ऄरस्तू की भानं त राजनीनतक निचारक या नचतं क नहीं थे। िे नेहरू के समान एक
राजनीनतज्ञ भी नहीं थे । ईनका जीिन राजनीनतमय नहीं था। राजनीनत ईनके नलए
कभी प्रमख ु नहीं रही परंतु समग्र जीिन नचंतन में राजनीनत को पृथक नहीं नकया जा सकता।
ऄतः राजनीनतक निचारों का ननमाभण दाशभननक अधार पर ही हुअ। दयानंद सरस्िती
एके श्वरिादी ,मनू तभ पजू ा निरोधी और ननराकार पजू क थे । ईनका सिाभनधक महत्िपणू भ रूप
नहदं ू पनु रुत्थानिादी के रूप में स्पष्ट होता है । नजस समय सपं णू भ भारत ऄग्रं ेजों का माननसक
गलु ाम बन चक ु ा था, ईन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृ नत के गौरि में ऄतीत का स्मरण नदला
कर ‘िेदों की ओर लौि चलो’ का मल ू मरं प्रदान नकया। ईन्होंने अध्यानत्मकता और
िैज्ञाननकता का समन्िय कर अत्मा के ज्ञान को बताया बनल्क सम्यक कमभ को भी अिश्यक
समझा। दयानंद ने स्ियं के धमभ, गौरिपणू भ संस्कृ नत एिं स्ियं की भाषा द्वारा ही राष्र के निकास
का मागभ नदखाया । ईन्होंने सपं णू भ राष्र के नलए सपं कभ भाषा के रूप में सिभप्रथम एक भाषा नहदं ी
को स्िीकार नकया तथा राष्रीय चेतना को जगाया । ईनका मानना था नक हमारे दभु ाभग्य,
अलस्य, अतं ररक फूि , दसू रे देशों से संबंध में बात न करने के कारण भारत में अयों की
स्ियं की स्ितरं एिम भयमक्त ु सरकार नहीं रही। स्िदेशी, स्िभाषा एिं स्िराज की
ऄिधारणाओ ं का भारतीय राजनीनत में प्रयोग करने िाले प्रथम निचारक स्िामी दयानंद
सरस्िती थे।

6.9 स्वामी दयानन्द सरस्वती का योगदान


स्िामी दयानदं सरस्िती अयभ समाज के सस्ं थापक, महान नचतं क, समाज-सधु ारक और देशभक्त
थे। आन्होंने बाल नििाह, सती प्रथा जैसी कुरीनतयों को दरू करने में एक ऄहम भनू मका ननभाइ थी।
एक सन्यासी और महान नचन्तक के रूप में जाने जाने िाले स्िामी जी ने कमभ नसद्चान्त, पनु जभन्म,
ब्रह्मचयभ तथा सन्यास को ऄपने दशभन के चार स्तम्भ बनायें। ईन्होंने ही सबसे पहले 1876 में
―स्िराज्य‖ का नारा नदया नजसे बाद में लोकमान्य नतलक ने अगे बढ़ाया। आन्होंने ही सन् 1876 में
स्िराज के नलए भारत के नलए भारतीयों यानी India For Indians को शरू ु नकया था नजसे बाद
में लोकमान्य नतलक द्वारा चलाया गया। स्िामी दयानंद सरस्िती ने िेदों को सिोच्च माना। साथ
ही िेदों का प्रमाण देते हुए समाज में कइ कुरीनतयों का कड़ा निरोध भी नकया। ऐसा कोइ क्षेर नहीं

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बचा नजसे स्िामी दयानन्द से कुछ प्राप्त न हुअ हो और प्रत्येक को जो प्राप्त हुअ िह आस महान् ही
था। धमभ की और ही ईनका ध्यान सिभप्रथम गया था। आस क्षेर में ईनकी तीन महान् देन थीं। रूनढ़यों
एिं कुप्रथाओ ं का निरोध, िैनदक धमभ की सिभश्रेष्ठता की स्थापना तथा धमभ के माध्यम से
ऄन्तराभष्रीयता का समथभन । सामानजक क्षेर में स्िामी जी ने जातीय भेदभाि उंच नीच की भािना
तथा बाल नििाह जैसी कुरीनतयों का घोर निरोध नकया। ईन्होंने प्रयत्न नकया नक नारी जानत
नशनक्षत हो तथा गररमामय बने। राजनीनत के क्षेर में ईन्होंने बहुत कुछ नकया। श्री ऄरनिन्द घोष का
कथन -‗ईनमें स्िामी दयानन्द में राष्रीयता की भािना थी। ईस ऄनभु नू त को ईन्होंने राष्रीय भािना
के सन्दभभ में ज्योनतमयभ बना नदया। ईनकी कृ नतयााँ भले ही िह नकतनी भी मान्यताओ ं से नभन्न हों,
िास्ति में राष्रीय भािना को समनपभत है।‘ स्िराज्य की भािना के सिभप्रथम प्रचारक िे ही थे।
ईन्होंने स्िदेशी िस्तुओ ं का अन्दोलन चलाया ईससे राष्रीय भािना का सम्पणू भ भारत में प्रसार
हुअ। राजनीनतक के क्षेर में ईनकी यह सब देन महानतम् हैं।
बम्बइ में अयभ समाज की स्थापना 10 ऄप्रैल, 1875 को करके स्िामी दयानन्द ने बहुत
ही महत्िपूणभ एिं दरू दनशभता का कायभ नकया। ईनके पश्चात् भी यह संस्था ईनके निचारों का
सिभर प्रचार कर रही है तथा ईन्हें कायभरूप में पररणत कर रही है। यह संस्था अज भी भारतीय
समाज को जागृत रखने का महत्िपणू भ कायभ ईत्तरदानयत्ि के साथ कर रही है। स्िामी की आन
दोनों को ध्यान में रखे तो हमें यही ऄनुभि होता है नक स्िामी जी िास्ति में एक महान्
सधु ारक, धमभ रक्षक, देश भक्त इश्वरीय दतू थे। जिाहरलाल नेहरू ने ऄपनी पस्ु तक ―नडस्किरी
ऑफ आनण्डया‖ में नलखा है ‗अन्तररक रूप से यह एक सुधारिादी अन्दोलन था तथा बाह्य
रूप से अक्रमणों से बचने के नलए एक रक्षात्मक संगठन था।‘ रोम्मां रोलां ने भी अयभ समाज
के कायभ का सच्चा निश्ले षण करते हुए ईसे ईनचत रूप से बहुत सराहा है। ईनके ऄनसु ार,
‗अयभ समाज ईस समय राष्रीय पनु जाभगरण एिं राष्रीय चेतना के महत्िपणू भ कायभ में महत्िपणू भ
शनक्त थी। स्िामी जी ने राष्रीय सगं ठन एिं पनु ननभमाभण के नलए यह एक महान कायभ नकया।
ईनके अयभ समाज ने 1905 के बंगाली राष्रिादी अन्दोलन का मागभ प्रशस्त नकया।‘
ऄभ्यास प्रश्न
1. ‘सत्याथभ प्रकाश’ नकसकी रचना है ?
2. अयभ समाज की स्थापना कब हुइ ?
3. नकसने कहा था ―िेदो के यगु में लौिो‖?
4. स्िदेशी, स्िभाषा एिं स्िराज की ऄिधारणाओ ं का भारतीय राजनीनत में प्रयोग करने
िाले प्रथम निचारक कौन थे?
6. स्िामी दयानंद सरस्िती के बचपन का नाम क्या था ?

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6.10 साराांश
स्िामी दयानदं सरस्िती ने भारत की गौरिपणू भ ऄतीत को अलोनकत नकया और देशिानसयों
को ऄपनी पनतत ऄिस्था से उपर ईठकर भनिष्य की ओर ऄग्रसर होने की प्रेरणा दी। िह
अधनु नक भारत के सबसे महान ऐसे पथ-ननमाभता माने जाने जाते हैं, नजसने जानतयों,
ईपजानतयों, छुअछूत, अनद के बीहड़ िनों को चीर कर भारत के पतन-काल में इश्वराधना,
देश-भनक्त तथा मानि सेिा का सहज मागभ बताया। आन्होंने तीक्ष्ण दृनष्ट और दृढ़ संकल्प के साथ
कोनिशः भारतीयों को अत्म सम्मान तथा माननसक चेतना को ईद्बुद्च भी नकया। दयानन्द जी ने
देशिानसयों में राष्रिाद का संदश े ऐसे समय में नदया जबनक भारत में ऄग्रं ेजी साम्राज्य की
प्रधानता स्थानपत हो गयी थी। दयानंद ने ऄपने दृनष्टकोण द्वारा भारतीयों को प्रथम बार यह
ऄनभु ि करने के नलए नििश नकया है नक िे गौरिपणू भ परंपरा के ईत्तरानधकारी हैं । दयानदं ने
स्ियं के धमभ, गौरिपणू भ संस्कृ नत एिं स्ियं की भाषा द्वारा ही राष्र के निकास का मागभ नदखाया ।
स्िामी दयानंद सरस्िती प्रथम व्यनक्त थे नजन्होंने स्िराज की नइ ऄिधारणा प्रदान की और यह
ईद्घोष नकया नक सरु ाज कभी स्िराज का स्थान नहीं ले सकता। ईन्होंने संपणू भ राष्र के नलए
संपकभ भाषा के रूप में सिभप्रथम एक भाषा नहदं ी को स्िीकार नकया तथा राष्रीय चेतना को
जगाया । ईनका मानना था नक हमारे दभु ाभग्य, अलस्य, अतं ररक फूि , दसू रे देशों से संबधं
में बात न करने के कारण भारत में अयों की स्ियं की स्ितरं एिम भयमक्त ु सरकार नहीं रही।
स्िदेशी, स्िभाषा एिं स्िराज की ऄिधारणाओ ं का भारतीय राजनीनत में प्रयोग करने िाले
प्रथम निचारक स्िामी दयानंद सरस्िती थे। िे ईस राष्रिादी परंपरा के जनक थे, नजसका
चरमोत्कषभ लोकमान्य नतलक, नबनपन चंद्र पाल, महनषभ ऄरनिदं और लाला लाजपत राय में
देखते हैं।

6.11 शब्दावली
राजतन्र : शासन की िह प्रणाली है नजसमें एक व्यनक्त िंशानुगत अधार पर शासन का
सिेसिाभ होता है
ऄनहसं ा : नकसी भी प्राणी को तन, मन, कमभ, िचन और िाणी से कोइ नक ु सान न
पहुचाँ ाना।
ननकाय – प्रजा के प्रनतनननधयों द्वारा पररचानलत शासन व्यिस्था।

6.12 ाऄभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1. स्िामी दयानदं सरस्िती 2. 10 ऄप्रैल, 1875
3. स्िामी दयानंद सरस्िती 4. स्िामी दयानंद सरस्िती 5. मल
ू शक
ं र

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6.13 सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. िी.पी.िमाभ ,2004 , अधनु नक भारतीय राजनीनतक नचन्तन , लक्ष्मी नारायण ऄग्रिाल ,
अगरा .
2. पी. के . चड्ढा एिं आन्द्रजीत नसंह सोढ़ी ,2007, प्रमख
ु भारतीय राजनीनतक निचारक ,
यनू निनसभिी बकु हाईस, जयपरु .
3. पख ु राज जैन , 2012 ,प्रनतनननध राजनीनतक निचारक , एस.बी.पी.डी. पनब्लके शन्स,
अगरा .
4. ऄिस्थी एिं अर. के . ऄिस्थी ,1996, भारतीय राजनीनतक नचन्तन, ररसचभ
पनब्लके शन्स , जयपरु

6.14 सहायक/ उपयोगी पाठ्य सामग्री


1. ए. ऄप्पादोराय , 2002, पोनलनिकल थॉि आन आनं डया , खामा पनब्लशसभ , नदल्ली.
2. ओ. पी. गाबा, 2005, राजनीनतक निचारक निश्व कोश , मयरू पेपर बैक , नदल्ली.
3. निष्णु भगिान, 2002,भारतीय राजनीनतक निचारक , अत्माराम एण्ड संस , नदल्ली.

6.15 रनबांधात्मक प्रश्न


1. स्िामी दयानन्द सरस्िती के राजनीनतक निचारों की समीक्षा कीनजए।
2. स्िामी दयानन्द सरस्िती के के सामानजक निचारों का मल्ू यांकन कीनजए।
3. स्िामी दयानन्द सरस्िती के नशक्षा संबंधी निचारों का निस्तार से िणभन कीनजए।
4. स्िामी दयानन्द सरस्िती के योगदान की समीक्षा कीनजए।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05

इकाई 7: स्वामी टववेकानन्द

7.1 प्रस्तािना
7.2 ईद्ङेश्य
7.3 जीिन पररचय
7.4 प्रमख
ु कृ नतयां
7.5 रूनढ़िाद का निरोध
7.6 नि-िेदान्त का दशभन
7.7 धमभ-सत्य एिं ऄनहसं ा
7.8 धानमभक राष्रिाद
7.9 स्ितरं ता एिं ननभभयता
7.10 नशक्षा दशभन
7.11 नारी संदभभ
7.12 सारांश
7.13 शब्दािली
7.14 संदभभ ग्रंथ सचू ी
7.15 सहायक/ईपयोगी सामग्री
7.16 ननबधं ात्मक प्रश्न

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7.1 प्रस्तावनााः
मानि जीिन के निनभन्न अयामों के ऄन्तननभभरता तथा आनकी समग्रता के साथ एक अदशभ शनक्त,
समाज एिं राज्य की कल्पना स्िामी नििेकानन्द के दशभन की प्रमख ु निशेषता रही है। िो ऄद्वैत
िेदान्त के महान प्रनतपादक थे। ब्रजेन्द्रनाथ ने यह प्रमानणत नकया है नक नििेकानन्द प्रारम्भ से ही
―परम सत्य― का साक्षात्कार के नलए बेचैन रहते थे। यद्यनप स्िामी जी ऄद्वैत िेदान्त के प्रनतनष्ठत
निद्वान थे, नफर भी ईनके व्यनक्तत्ि में भनक्त की भािना का प्राधान्य था जैसा नक माधि, बल्लभ
अनद िेदान्त के अचायो में देखने को नमलता है. निश्व ईन्हें एक ऐसे निद्वान के रूप में जानता है,
नजसका ज्ञान प्रकाण्ड था और नजसने ऄपनी आच्छाशनक्त को भारत के पनु भईत्थान में लगा नदया था। िे
इश्वरीय नगरी के तीथभ यारी और दनलतों के नलए संघषभ करने िाले महान योद्चा थे।

7.2 उद्देश्याः
1. नििेकानन्द को एक सामानजक-राजनैनतक निचारक के रूप में नचनन्हत कर सकें गे।
2. नि िेदान्त के दशभन को समझ सकें गे।
3. नििेकानन्द का धमभ, व्यनक्त एिं मानि स्ितंरता संबंधी निचार को समझ सकें गे।
4. नििेकानंद के नारी सन्दभभ एिं नशक्षा सम्बन्धी निचार को नचनन्हत कर सकें गे.

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7.3 जीवन पररचयाः
नििेकानन्द का जन्म 12 जनिरी, 1863 का कलकत्ता के एक कुलीन क्षरीय पररिार में हुअ था।
ईनका िास्तनिक नाम नरें द्रनाथ दत्त था। िकालत का पेशा नपछली तीन पीनढ़यों से ईनके पररिार के
जीनिकोपाजभन का साधन रहा था। िषभ 1884 में स्नातक की ईपानध के बाद ईन्होंने निनध की पढ़ाइ
के नलए दानखला नलया नकन्तु यिु ा नरें द्र की बौनद्चक ऄनभलाषा आसमें पणू भ नहीं होती और 1886 में
ईन्होंने भौनतक जीिन को त्याग एक संत की भांनत जीिन व्यतीत करने का ननश्चय नकया। ऄपने
स्नातक के दौरान िे श्री रामकृ ष्ण परमहसं के साथ सबं धं में अए और आसके बाद ईनका ऄनधकतर
समय ईन्ही के साथ ही बीता और परमहसं जी के प्रभाि से ही स्िामी जी ने भौनतक िस्तओ ु ं का
पररत्याग कर नदया और आसके बाद ईनका जीिन एक सन्यासी के रूप में ही बीता है। 1893 के धमभ
ससं द में ईनके भाषण ने ईनकी निद्वता एिं दशभन को ऄतं राभष्रीय पहचान एिं स्थापना प्रदान नकया ।
आसके बाद ऄपने जीिन का सात िषभ िे निनभन्न सामानजक कायों में व्यतीत करते हैं। िषभ 1902,
ईनतालीस िषभ की ऄल्पायु में ईनका देहांत हो गया।

7.4 प्रमुख कृरतयाां:


1.कमभयोग, 2.भनक्तयोग, 3.राजयोग, 4.प्रेमयोग, 5.ज्ञानयोग, 6.गीता और कृ ष्ण 7. ऄ जनी िू
ऄब्सोलिू (A Journey to Absolute)

7.5 रूरिवाद का रवरोध:


नििेकानन्द का धानमभक ऄध्यात्मिाद रूनढ़िाद की बेनड़यों से ग्रनसत नहीं था। मानि जीिन में धमभ
की ऄपररहायभता को स्िीकारते हुए तथा ईसे मानि में नननहत ऄध्यात्म के गणु ों पर अधाररत करते
हुए, नििेकानन्द ने कमभकाण्ड एिं भौनतकता से परे ऄध्यात्मिाद के दशभन की नींि डाली। भारतीय
धमभ स्िरूप के संकुचन से ईपजी ―छुअछूत― एिं ―एकानधकार― जैसी प्रिृनत्तयों का ईन्होंने खल ु े रूप
से निरोध नकया। भारतीय सस्ं कृ नत की महानता का प्रसार न के िल सम्पणू भ भारत बनल्क मध्य एनशया
एिं नमस्त्र तक फै ला हुअ था और संस्कृ नत के आस निस्तार में सामानजक निशेषीकरण, कठोर जातीय
संरचना, छुअछूत जैसी कुप्रथा निद्यमान नहीं थी। नहदं ू समाज को िृहद शास्त्रीय परम्परा के रूप में
पररभानषत करते हुए, नििेकानन्द आन कुरीनतयों को सामानजक एिं अध्यानत्मक पतन का एक
महत्त्िपणू भ कारण मानते हैं, और समाज से आन कुरीनतयों के नखलाफ ईठ एक अपसी लेन-देन के
अधार पर एक समतामल ू क समाज की स्थापना का अहिान नकया और यही सोच एिं समानता
की भािना, समाज की िैचाररक अधार का मल ू तकभ होगी।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 111
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
7.6 नव-वेदान्तवाद का दशभन:
एक सक ं ल्पना के रूप में ―िेदान्त― निनभन्न भारतीय मनीनषयों जैसा नक शक ं र, रामानजु , माधिचायभ
एिं ऄन्य द्वारा प्रनतपानदत निचारों की श्रृंखला को समानहत करता है। आसमें ऄद्वैत, निनशष्ठिाद एिं
द्वदं की शास्त्रीय परम्परा नननहत है। ―िेदान्त’ संबंधी नििेकानन्द के दशभन के तीन प्रमख
ु स्रोत हैं। प्रथम
िेदो तथा िेदान्त की महान परम्परा नद्वतीय ईनका रामकृ ष्ण (1836-1886) के साथ ईनका सम्पकभ
तथा तृतीय ईनके जीिन का ऄनभु ि।
नििेकानन्द की मेधा निशाल थी। ईनको के िल भारत के सानहत्य का ही गभं ीर ज्ञान नहीं था बनल्क
पनश्चम के निचारकों प्लेिो से स्पेंसर तक के तत्िशास्त्रीय सानहत्य में भी ईनकी ऄद्भुत गनत थी। िे
ऄद्वैत िेदान्त के संदश
े िाहक थे और ऄद्वैत सम्प्रदाय के भाष्यकारों की परम्परा में ईनका स्थान है।
यद्यनप िे ऄद्वैतिादी तथा मायािादी थे नकन्तु ईनकी बनु द्च समन्ियकारी थी आसनलए ईनकी व्याख्या
की ऄपनी निशेषताएं है। स्िामी रामकृ ष्ण परमहसं से ईनका सम्पकभ ईनको बद्च ु की तरह रहस्यिादी
की ओर ईन्मख ु नकया। दोनों ने ही ऄपनी आनन्द्रयों को िश में करने के नलए घोर ननग्रह और तपस्या
का मागभ ऄपनाया था और दोनों ने सत्य का दशभन करने के नलए तपस्या की थी।
नििेकानन्द के दशभन का सार ―ब्रह्म― ऄथिा ―परम सत्य― की धारणा है। ब्रह्म परम सत्य और सिोच्च
सत्ता है। िह ऄध्यानत्मक ऄनभु नू तयों के रूप में ही ऄपने को व्यक्त करता है। नििेकानन्द ने नजस
िेदान्त के ब्रह्म को स्िीकार नकया, िह न तो हेगल े का स्थल
ू परमतत्ि है, न ही माध्यनमकों का शन्ू य
और न योगाचाररयों का ऄल्पनिज्ञान। स्िामी जी माया के नसद्चांत को स्िीकार करते हैं। ऄतः ईनके
ऄनसु ार काल, प्रसर तथा कायभ-करण ननयम की साथभकता दृश्य जगत तक ही सीनमत है। ऄपने
―ज्ञानयोग’ में ईन्होंने मायािाद का ऄनप्रु ेररत तथा ऄलंकृत भाषा में समथभन नकया है। ईनका कहना है
नक माया कोइ नसद्चातं नहीं है बनल्क तथ्य है नकन्तु ऄनेक अलोचक माया के नसद्चातं को ऄद्वैत
दशभन का सबसे दबु भल पक्ष मानते है। शद्च
ु तकभ और निज्ञान के अधार पर माया के नसद्चांत का मण्डन
करना ऄसंभि प्रतीत होता है। नििेकानन्द ने माया के नसद्चातं का जो खण्डन नकया िह भी बहुत
कुछ िाक्चातयु भ पर अधाररत है।
परमज्ञान की ऄिस्था में सत् का नजस रूप में दशभन होता है िही ब्रह्म है। धानमभक धारणा के स्तर पर
िही सत् इश्वर है। िे कहते हैं नक - ऄद्वैत दशभन में सम्पणू भ निश्व एक सत्ता है, ईसी को ब्रह्म कहते हैं।
िही सत्ता जब निश्व के मल ू में प्रकि होती है तो ईसे इश्वर कहा जाता है। िहीं सत्ता जब आस लघु निश्व
ऄथाभत शरीर के मल ू में प्रकि होती है तो अत्मा कहलाती है।..... सािभभौम अत्मा जो प्रकृ नत के
सािभभौम निचार से परे है। िहीं इश्वर-परमेश्वर है।
नििेकानन्द पर सांख्य दशभन का भी प्रभाि था। जीिों की ऄनेकता का नसद्चांत ईन्होंने सांख्य से
नलया, नकन्तु सच्चे ऄद्वैतिादी की भांनत ईनका निश्वास है नक ऄन्ततोगत्िा सब जीि ब्रह्म ही है।

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ु निश्वनिद्यालय 112
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
भौनतक एिं माननसक बंधनों में बंधे हुए अत्मा को जीि के संसगभ से ईनमे निकार ईत्पन्न हो जाते हैं
नकन्तु िह इसाइ धमभ की आस मान्यता को नहीं स्िीकारते नक अत्मा स्िभाितः पापी है। आसके
निपरीत ईनका यह मानना था नक मनष्ु य के कमों से जो प्रभाि और प्रिृनत्तयां (संस्कार) ईत्पन्न होते
हैं ईनका समग्र ही ईनका चररर है। आस प्रकार मनष्ु य का कमभ ही ईसका चररर है। मनष्ु य स्ियं ऄपने
भाग्य का ननमाभता है, आसनलए यनद अतं ररक और बाह्य प्रकृ नत को ननयंनरत करने का सतत् प्रयत्न
नकया जाए तो मनष्ु य ऄिश्य ही इश्वरत्ि की प्रानप्त कर सकता है। ईनका कहना था नक सृनष्ट में मनष्ु य
ईच्चतम प्राणी है, क्योंनक के िल िही स्ितरं ता प्राप्त करने के योग्य है।
नििेकानन्द क्षराक्षर मल
ू क
ं द्वैतिादी कनपल को भारत के बनु द्चिादी दशभन का जनक मानते थे। ईनका
यह भी निश्वास था नक यनू ानी दशभन के निकास पर सांख्य का प्रभाि है। ईन्होंने गणु ों का ऄथभ
शनक्तयां लगाया है और आस प्रकार सांख्य के कुछ ऄंशो की िैज्ञाननक व्याख्या प्रस्तुत की है।
नििेकानन्द का निश्वास था नक आस नसद्चांत में िेदांत की ईस प्रस्थापना की पनु ष्ट होती हैं नक निश्व में
एकात्मक सिभव्यापी उजाभ ही प्रधान है।

7.7 धमभ, सत्य एवां ाऄचहसा:


नििेकानन्द के ऄनसु ार सभी धमभ में जो कुछ भी सन्ु दर और महत्त्िपणू भ तत्त्ि हैं और भनिष्य के
धानमभक अदशों को ईन सभी को एक साथ लेकर चलना पड़ेगा। इश्वर सबं धं ी सभी नसद्चांत - सगणु ,
ननगणभु , ऄनन्त, नैनतक ननयम ऄथिा अदशभ मानि धमभ की पररभाषा के ऄन्तगभत अना चानहए।
स्िामी नििेकानन्द ने सभी धमों में नननहत मानिीय मल्ू यों पर बल नदया है और आस अधार पर धमों
की एकता पर निश्वास करते हैं। ईन्होंने धानमभक ईदारता, समानता और सहयोग पर बल नदया है।
ईनका कहना है नक धमभ के मल ू लक्ष्य के सन्दभभ में सभी धमभ एकमत हैं। अत्मा की भाषा एक है
जबनक राष्रों की भाषाएाँ निनभन्न है, ईनकी परम्पराएाँ और जीने की शैली नभन्न है। धमभ अत्मा से
संबंनधत है लेनकन िह निनभन्न राष्रों, भाषाओ ं और परम्पराओ ं के माध्यम से प्रकि होता है। आस
प्रकार यह स्पष्ट है नक संसार के सभी धमों में मल
ू अधार एकता है, यद्यनप ईनके स्िरूप नभन्न-नभन्न
हैं।
स्िामी नििेकानन्द धमभ को भारत राष्र का जीिन-कें द्र या प्रधान स्िर मानते हैं। िे मानते थे नक
भारतिषभ धमभ ही जीिन का कें द्र है और िही राष्रीय जीिन रूपी संगीत का प्रधान स्िर है। यनद कोइ
राष्र ऄपनी स्िाभानिक जीिन शनक्त को दरू फें क देने की चेष्टा करे तो िह राष्र काल-किनलत हो
जाता है।
ऄतः नििेकानन्द में धमभ प्रचार को अिश्यक मानते थे। ईनका कहना था नक भारतिषभ में नकसी
प्रकार का सधु ार या ईन्ननत की चेष्टा करने के पहले धमभ प्रचार अिश्यक है। िे कहते हैं ‚भारत को

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ु निश्वनिद्यालय 113
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
सामानजक ऄथिा राजनीनतक निचारों से प्लनित करने से पहले अिश्यक है नक ईसके
अध्यानत्मक निचारों की बाढ़ ला दी जाए।‛
नििेकानन्द के ऄनसु ार, निश्व में सत्य एक है और मानि ईसे निनभन्न दृनष्टकोण से देखते हैं। ऄपने
भाषण ―मेरी कायभनिनध’ में स्िामी जी कहते हैं ――हमें मानि गठन करने िाला धमभ चानहए, हमें मनष्ु य
गठन करने िाले नसद्चांत चानहए, चारों ओर हमें मानि गठन करने िाली नशक्षा चानहए।‘ सत्य की
निशेषताओ ं का ईल्लेख करते हुए नििेकानन्द कहते हैं ―सत्य तो बलप्रद है, िह पनिरता का स्िरूप
है, ज्ञान स्िरूप है। सत्य तो िह है जो शनक्त दे, जो रृदय के ऄंधकार को दरू कर दे, जो रृदय में स्फूनतभ
भर दे।‖
नििेकानन्द ऄनहसं ा को श्रेष्ठ मानते है पर नहसं ा को सिभथा त्याज्य नहीं। ईनके ऄनसु ार ‚गृहस्थ को
ऄपने शरु के सामने दृढ़ होना चानहए और गरू ु तथा बन्धओ
ु ं के समक्ष नम्र।‘ नििेकानन्द के ऄनसु ार
ऄनहसं ा की कसौिी है, इष्याभ का ऄभाि। स्िामी जी का दशभन यह सीख देता है नक मानि सेिा ही
इश्वर सेिा है। ईससे महु ाँ मोड़ना धमभ नहीं है। िे कहते थे ऄगर तम्ु हे भगिान की सेिा करनी है तो
मानि की सेिा करो। िह भगिान ही रोगी मनष्ु य, दररद्र मनुष्य और सब प्रकार के मनष्ु यों के रूप में
तम्ु हारे सामने खड़ा है। आसनलए ईन्होंने कहा - ―तम्ु हे नसखाया गया है नक ऄनतनथ देिो भि, नपतर
देिो भि, पर ऄब मैं तमु से कहता हूाँ दररद्र देिो भि।’

7.8 धार्ममक राष्रवाद:


हेगल े की निचारशैली की भााँनत नििेकानन्द का निश्वास था नक राष्र एक स्िायत इकाइ है तथा
प्रत्येक राष्र का जीिन नकसी एक प्रमख ु तत्ि की ऄनभव्यनक्त है। धमभ, भारत के आनतहास में
महत्त्िपणू भ ननयामक नसद्चातं रहा है। िे नलखते हैं नक ――प्रत्येक राष्र के जीिन में एक प्रधान तत्ि
हुअ करता है, ऄन्य सब िस्तएु ं गौण हैं।‛ आसनलए ईन्होंने राष्रिाद के एक धानमभक नसद्चांत की नींि
का ननमाभण करने के नलए कायभ नकया। नििेकानन्द ने राष्रिाद के धानमभक नसद्चातं का प्रनतपादन
आसनलए नकया नक िे समझते थे नक अगे चलकर धमभ ही भारत के राष्रीय जीिन का मेरू -दण्ड
बनेगा। ईनका कहना था नक राष्र की भािी महानता का ननमाभण ईसके ऄतीत की महत्ता की नींि पर
ही नकया जा सकता है। यनद हम आनतहास की ईपेक्षा करते हैं तो हम राष्र के िजदू की ही ईपेक्षा
करते हैं। आसनलए भारतीय राष्रिाद कर ननमाभण ऄतीत की ऐनतहानसक निरासत की सदृु ढ़ नींि पर
करना होगा। नििेकानन्द कहा करते थे नक ऄतीत में भारत की सृजनात्मक प्रनतभा की ऄनभव्यनक्त
मख्ु यतः धमभ के क्षेर में ही हुइ थी। धमभ ने भारत में एकता तथा नस्थतरता को बनाए रखने के नलए एक
सृजनात्मक शनक्त का काम नकया था; यहााँ तक नक जब कभी राजनीनतक सत्ता नशनथल और दबु भल
हो गइ तो धमभ ने ईसकी भी पनु ः स्थापना में योग नदया। आसनलए नििेकानन्द ने घोषणा की राष्रीय
जीिन का धानमभक अदेशों के अधार पर संगठन नकया जाना चानहए। ईसके निचार में

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ु निश्वनिद्यालय 114
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
ऄध्यानत्मकता ऄथिा धमभ का ऄथभ शाश्वत तत्ि का साक्षात्कार करना था, सामानजक मतिादी,
धमभसंघों द्वारा प्रनतपानदत अचार संनहताओ ं और परु ानी रूनढ़यों को धमभ नहीं समझना चानहए। िे
कहा करते थे नक धमभ ही ननरन्तर भारतीय जीिन का अधार रहा है। आसनलए सभी सधु ार धमभ के
माध्यम से ही नकए जाने चानहए। तभी देश की बहुसख्ं यक जनता ईन्हें ऄगं ीकार कर सके गी। ऄतः
राष्रिाद का अध्यानत्मक ऄथिा धानमभक नसद्चांत राजनीनतक नचन्तन को नििेकानन्द की प्रथम
महत्त्िपणू भ देन माना जा सकता है। बंनकम की नििेकानन्द भी भारत को एक अराध्य देिी मानते थे
और ईसकी देदीप्यमान प्रनतभा की कल्पना और स्मरण से ईनकी अत्मा जगमगा ईठती थी। यह
कल्पना नक भारत माता की दृश्यमान निभनू त है।
नििेकानन्द एक प्रखर राष्र भक्त थे और िे सभी भारतीयों को राष्र भनक्त की भािना से ओत-प्रोत
देखना चाहते थे। िे भारतीय नियिु कों को सम्बोनधत करते हुए कहते हैं ―मेरे भािी देशभक्तों,
रृदयिान बनो। क्या तुम रृदय से यह ऄनभु ि करते हो नक देि और ऊनषयों की करोड़ों संतान अज
पशु तल्ु य हो गइ हैं।...... यनद हााँ तो जानो नक तुमने देशभक्त होने होने की पहली सीढ़ी पर पैर रखा
है। आस समस्या के ननिारण हेतु कनतप्य पथ नननश्चत करना स्िामी नििेकानन्द के ऄनसु ार दसू री सीढ़ी
है और ईस पद पर दृढ़ता से चलना देशभक्त की ननशानी है।

7.9 स्वतांत्रता एवां रनर्भयता:


राजनैनतक पररपेक्ष्य में ―स्ितंरता की धारणा’ नििेकानन्द की एक महत्त्िपणू भ देन है। ईनकी स्ितंरता
की संकल्पना ऄत्यन्त व्यापक है। ईनका कहना था नक सम्पणू भ निश्व ऄपनी ऄनिरत गनत के द्वारा
मख्ु यतः स्ितंरता को ही खोज रहा है। िे स्ितंरता के प्रकाश को िृनद्च की एकमार शतभ मानते थे।
नििेकानन्द अध्यानत्मक स्ितंरता ऄथिा माया के बन्धनों और प्रलोभनों से मनु क्त के ही समथभक
नहीं थे, बनल्क िे मनष्ु य के नलए भौनतक ऄथिा बाह्य स्ितरं ता भी चाहते थे। जॉन लॉक की भााँनत
िे प्राकृ नतक ऄनधकार के नसद्चांत को मानते थे। ईनके ऄनुसार ――प्राकृ नतक स्ितंरता का ऄथभ यह है
नक हमें ऄपने शरीर, बृनद्च और धन का प्रयोग ऄपनी आच्छानुसार करने नदया जाए और हम दसू रों को
कोइ हााँनन न पहुचाँ ाए तथा समाज के सभी सदस्यों को धन, नशक्षा और ज्ञान प्राप्त करने का समान
ऄनधकार हो।‘ नििेकानन्द के मतानसु ार स्ितंरता ईपननषदों का मख्ु य नसद्चांत था। ईपननषकारों ने
शारीररक, माननसक एिं अध्यानत्मक अनद स्ितंरता के सभी पक्षों का डिकर समथभन नकया था।
ईनको यह अशा थी नक नजस प्रकार ऄमेररका की स्ितंरता के साथ ―व्यनक्त स्ितंरता― का प्रादभभु ाि
हुअ ईसी प्रकार एक नदन समस्त निश्व में मानि स्ितंरता प्रनतनष्ठत हो जाएगी। ईन्होंने राजनीनतक
स्ितरं ता का सामानजक न्याय की बात करने की ऄपेक्षा ईन्होंने ईससे भी ऄनधक बनु नयादी अदशभ-
शनक्त का संदश े नदया। नबना शनक्त के न हम ऄपने व्यनक्तगत ऄनस्तत्ि को कायम रख सकते हैं और
न ऄपने ऄनधकारों की रक्षा करने में ही समथभ हो सकते हैं। मनष्ु य का चररर बाधाओ ं का प्रनतरोध
करने से ही निकनसत होता है। ईनके निचार में शनक्त के संदेश का ओजपूणभ समथभन करना राष्रीय

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
पनु ननभमाभण का सबसे ऄच्छा मागभ था। अत्मबल के अधार पर ननभभय होकर खड़ा होना ऄत्याचार
तथा ईत्पीड़न का सिोत्तत प्रनतकार था।

7.10 रशक्षा-दशभन:
स्िामी नििेकानन्द के ऄनसु ार नशक्षा मनष्ु य की ऄन्तननभनहत पणू तभ ा की ऄनभव्यनक्त है। मानि में
शनक्तयां जन्म से ही निद्यमान रहती हैं। नशक्षा ईन्हीं शनक्तयों या गणु ों का निकास करती हैं। पणू तभ ः
बाहर से नहीं अती िरनमनष्ु य के भीतर नछपी रहती हैं। सभी प्रकार का ज्ञान मनष्ु य की अत्मा में
नननहत रहता है। गरू
ु त्िाकषभण का नसद्चांत ऄपने प्रनतपादन के नलए न्यिू न की खोज की प्रनतक्षा नहीं
कर रहा था। िह न्यिू न के मनस्तष्क में पहले से ही निद्यमान था। जब समय अया तो न्यिू न ने के िल
ईसकी खोज की। ऄतएि सभी ज्ञान, चाहे िह संसाररक हो ऄथिा परमानथभक, मनष्ु य के मन में
नननहत है। िह जब अिरण धीरे -धीरे हिता है तो मनष्ु य कहता है नक ―मझु े ज्ञान हो रहा है।
स्िामी नििेकानन्द सिभनहताकारी, सिभव्यापी एिं मानि ननमाभण करने िाली नशक्षा पर जोर देते थे। िे
मानि की स्ितंरता को मल ू नबंदु मानकर राजनीनत से परे मानि ननमाभण की योजना के समथभक थे।
नशक्षा को धमभ से जड़ु ा मानकर नििेकानन्द ने दोनों की मानि के ऄदं र पाइ जाने िाली प्रिृनत्त को
ईजागर करना ध्येय माना। मानि कल्याण का मल ू बीज नशक्षा को मानकर नििेकानन्द ने नशक्षा को
सिभसल ु भ बनाने की येाजना बनाइ। ईन्होंने नशक्षा की एक ईदार एिं सतं नु लत प्रारूप देश के सामने
रखा।
नशक्षा के महत्ि पर प्रकाश डालते हुए स्िामी नििेकानन्द ने ज्ञान दान को श्रेष्ठ ज्ञान दान बताया।
ईनके ऄनसु ार चार प्रकार की दान परम्पराएाँ: धैयभ दान, ज्ञान दान, प्राण दान और ऄन्न दान ये प्रथम
दोनो श्रेष्ठ हैं। िे ज्ञान निस्तार को भारत की सीमाओ ं से बाहर ले जाना चाहते थे। ईन्नीसिीं शताब्दी
में प्रचनलत रहस्य या तांनरक निद्या की अलोचना करते हुए ईन्होंने कहा नक ―आन्होंने मानि नििेक
को समाप्त कर नदया है। िे अदशभ व्यिस्था की कल्पना करते हुए कहते हैं ―हमें ऐसी सिाांगसम्पन्न
नशक्षा चानहए, जो हमें मनष्ु य बना सके ।‖ िे के िल सचू नाओ ं के संग्रह को नशक्षा नहीं मानते थे।
ईनका कहना था ―यनद नशक्षा और जानकारी एक ही िस्तु होती तो पस्ु तकालय सबसे बड़े संत और
निश्व-कोश ही ऊनष बन सकते।― नििेकानन्द ने नशक्षा के ननम्ननलनखत ईद्ङेश्य बताए हैं-
1.यह मानि में नननहत पणू तभ ा का निकास करती है।
2.नशक्षा व्यनक्तयों में मानिोनचत गणु ों को ननमाभण करती है।
3.मानि पणू भता प्राप्त कर सकता है यनद ईसका शरीर स्िस्थ है।
4.स्िामी नििेकानन्द ईसी नशक्षा को नशक्षा मानते थे जो चरररिान स्त्री-परू
ु ष को तैयार कर सके ।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
5.नशक्षा निद्याथी को भािी जीिन के नलए तैयार करती है। नििेकानन्द की दृनष्ट में जीिन-संघषभ की
तैयारी के नलए तकनीकी एिं निज्ञान की नशक्षा अिश्यक है।
6.स्िामी जी एक ऐसी नशक्षा व्यिस्था का निकास करना चाहते थे जो भारतीय निद्यानथभयों में
राष्रीयता की भािना का निकास कर सके ।

7.11 नारी सांदर्भ:


ऄपने समय में स्िामी नििेकानन्द ―मनहला सशनक्तकरण― के अयाम को मख्ु यधारा में लाने िाले
पहले निचारक हैं। ईनका कहना था नक नकसी भी समाज, सभ्यता या राष्र के निकास का स्तर, िहां
की मनहलाओ ं की पररनस्थनत से लगाया जा सकता है। एक मााँ, नशक्षक, सैननक एिं न्यानयक रूप में
मनहलाएं परू ु षों के साथ कंधे से कंधा नमलाकर चलती हैं। मध्यकाल में नशक्षा एिं ऄन्य सामानजक
जीिन में मनहलाओ ं को दरू रखा गया, नजसके कारण ितभमान भारतीय समाज में सीता, गागी एिं
ऄरी जैसी निदनु षयों का लोप नदखता है। नििेकानन्द स्त्री-परूु ष समानता के समथभक थे आसनलए
मनहलाओ ं की नशक्षा भी ईनकी नशक्षा संबंधी योजना में महत्त्िपणू भ निषय है। ईनका मानना था नक
देश की ईन्ननत के नलए मनहलाओ ं की नशक्षा ऄत्यन्त अिश्यक है। मनहलाओ ं की नशक्षा के नलए
ईन्होंने तपस्िी, ब्रह्मचाररणी तथा त्यागी मनहलओ ं को प्रनशक्षण देना अिश्यक माना तानक ऐसी
मनहलाएं दसू री मनहलाओ ं को सम्यक नशक्षा प्रदान कर सकें ।
मनहलाओ ं की समनु चत नशक्षा के नलए नििेकानन्द ने परू ु षों की भााँनत मनहलाओ ं के नलए ऄलग
संघ स्थानपत करने पर जोर नदया। ईनका निचार था नक मठों की स्थापना के माध्यम से िहााँ
प्रनशनक्षत ब्रह्मचारी नस्त्रयां, सन्यासी और सनु शनक्षत बनकर नारी जानत को नशक्षा देने का प्रयास
करें गी। नशनक्षत भले-बरु े का ज्ञान प्राप्त कर सके गी और स्ितरं तथा स्िाभानिक रूप से प्रगनतपथ पर
ऄग्रसर हो सके गी। परू ु षों की तरह नस्त्रयों को भी भाषा, गनणत, निज्ञान, सामानजक निषयों तथा
लौनकक निषयों की नशक्षा दी जानी चानहए, नजससे िे दसू रों तक सम्यक रूप से प्रसाररत कर सकें ।
िे कहते हैं नक ――नजस तरह माता-नपता ऄपने परु ों को नशक्षा देते है ईसी तरह ईसे पनु रयों को भी
नशनक्षत करना चानहए। जबनक हम ईन्हे प्रारम्भ से ही दसू रों पर ननभभर रहकर परतंर रहने की नशक्षा
देते हैं। नििेकानन्द के दृनष्ट में नशक्षा ऄननिायभ रूप से मनहलाओ ं को नमलनी चानहए, नजसमें िो दसू रों
पर ननभभर रहने की बजाय स्ियं ऄपनी समस्याओ ं का ननराकरण कर सकें । िे लड़नकयों की नशक्षा के
कें द्र में धमभ को रखने का सझु ाि देते हैं। आसके ऄनतररक्त आनतहास एिं परु ाण, गृह व्यिस्था, कला एिं
नशल्प, बच्चों की ईनचत देखभाल, पाक कला अनद अनद की नशक्षा देने का सझु ाि देते हैं। िे
कथाओ ं से ―सीता’ के ईज्ज्िल चररर से नशक्षा को लेने को कहते है।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 117
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
7.12 साराांश:
हालानं क भारतीय नचतं न परस्पर मनननषयों एिं निचारकों के अह्वान से कभी भी ननिाभत में नहीं रही है
नकन्तु स्िामी नििेकानन्द के दशभन ने यरू ोपीय एिं ऄमेररकी महाद्वीप के बढ़ते बौनद्चक प्रभत्ु ि एिं
ईसके साथ भारतीय परम्पराओ ं पर लगी नपछड़ेपन की छाप को खत्म नकया, बनल्क ऄपने िेदान्त
दशभन के माध्यम से एक ईत्कृ ष्ट मानि समाज की कल्पना प्रस्ततु की, नजसका अधार नबंदु धमभ था,
जो रूनढ़िानदयों की गल ु ामी की जजं ीर में नहीं जकड़ा होगा, नजसमें मानि स्ितंरता समाज का
अधार होगी और आस स्ितरं चेतना के अधार नजस नए निचार प्रत्यस्ु फुनिक होंगे जो एक साकार
राष्रीय चेतना में ऄगं ीकृ त होंगे। स्िामी जी का दशभन धमभ, ऄध्यात्म, मानि चेतना एिं कत्तभव्यों का
एक ऐसा ताना-बाना है जो समाज, राष्र एिं ऄतं राभष्रीय पिल पर भारतीय ऄध्यात्म की एक नइ
परम्परा को स्थानपत करता है।

7.13 शब्दावली:
िेदांि: यह ज्ञान योग की शाखा है जो व्यनक्त को ज्ञान प्रानप्त की नदशा में ईत्प्रेररत करती है। आसकी
तीन प्रचनलत शाखाएं हैं - ऄद्वैत, निनशष्ट और द्वैत।
पूिय-मीमांसा: शब्द का ऄथभ है नजज्ञासा। नजसका मतलब है जानने की लालसा। ऄतः पिू -भ मीमांसा
शब्द का ऄथभ है जानने की प्रथम नजज्ञासा।

7.14 सांदर्भ ग्रांथ सूची:


1.अधनु नक भारतीय राजनीनतक नचंतन - डॉ. िी.पी. िमाभ
2.भारतीय राजनीनतक नचन्तक – के . यस. पाण्डेय

7.15 सहायक/उपयोगी सामग्री:


1. स्िामी नििेकानंद- नरे न्द्र कोहली
2. कमभ योग – स्िामी नििेकानंद

7.16 रनबांधात्मक प्रश्न:


1. नििेकानन्द ने भारतीय राष्रिाद की एक भारतीय संकल्पना प्रस्ततु की. चचाभ कीनजये.
2. नशक्षा एिं नारी सशनक्तकरण पर स्िामी नििेकानंद के निचारो का पररक्षण कीनजये.

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 118
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05

इकाई 8 :अरववद घोष

8.1 प्रस्तािना
8.2 ईद्ङेश्य
8.3 जीिन पररचय
8.4 प्रमख ु कृ नतयां
8.5 राजनीनतक लक्ष्य एिं पद्चनत
8.6 तत्िशास्त्र
8.7 आनतहास एिं संस्कृ नत का दशभन
8.8 राष्रिाद तथा मानि एकता का नसद्चातं
8.9 राजनैनतक दृनष्टकोण
8.10 अध्यानत्मक स्ितंरता
8.11 सारांश
8.12 शब्दािली
8.13 ऄभ्यास प्रश्न
8.14 संदभभ ग्रंथ सचू ी
8.15 सहायक /ईपयोगी सामग्री
8.16 ननबंधात्मक प्रश्न

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 119
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
8.1 प्रस्तावनााः
श्री ऄरनिदं अधनु नक यगु के साधक एिं भारतीय ऊनष परम्परा की ईज्ज्िल कड़ी हैं। िे ईपननषदों
के नििेचक नहीं हैं बनल्क स्ियं ईपननषानदक सत्य के दृष्टा हैं। ईनकी नैनतक, बौनद्चक एिं
अध्यनत्मक ईपलनब्धयों ने भारत के नशनक्षत समाज पर गहरा प्रभाि डाला है। ईनका महाग्रंथ ―द
लाआफ नडिाआन’ (The life Divine) के प्रकाशन के समय से संसार के प्रमख ु निद्वानों का ध्यान
अकृ ष्ट हुअ है। अचायभ रनिन्द्र नाथ िैगोर कहते हैं नक ―ईनके (ऄरनिन्द) द्वारा भारत निश्व को
ऄपना सदं श े व्यक्त करे गा। रोम्या रोलााँ ऄरनिन्द को एनशया की प्रनतभा तथा यरू ोप की प्रनतभा का
सिोकृ ष्ट समन्ियक मानते थे। ईनकी रचनाओ ं से हमें भारत की निीन तथा ईदयीमान अत्मा का
धनीभतू सार देखने को नमलता है, नजसमें मानि जानत के नलए ईनमें अध्यानत्मक संदश े नननहत है।
भारतीय स्ितरं ता अन्दोलन में एक ईग्र ईपागम और ईससे प्राप्त एक ईच्च नैनतक एिं व्यनक्तगत
स्ितंरता का ईन्होंने परु जोर समथभन नकया।

8.2 उद्देश्याः
1.ऄरनिदं घोष के मल ू ग्रंथों के अधार पर ईनके दाशभननक निचारों को जान सकें गे।
2.ऄरनिदं घोष के निचारों की पृष्ठभनू म एिं ईनके भारतीय सदं भभ का ज्ञान हो सके गा।
3.ऄरनबंदो के राष्रिाद के स्िरुप एिं आसमें समानहत मानिीय मल्ू यों को रे खानकंत कर सकें गे।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 120
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
8.3 जीवन पररचयाः
ऄरनिदं घोष का जन्म बगं ाल के कलकत्ता (ितभमान में कोलकाता) में एक सम्पन्न पररिार में 15
ऄगस्त, 1872 को हुअ। ईनके नपता का नाम डॉ. कृ ष्णधन घोष और माता का नाम स्िणभलता देिी
था। आनके नपता एक डाक्िर थे तथा पनश्चमी सभ्यता से ऄत्यानधक प्रभानित थे। ईन्होंने ऄरनिदं को
दोनों भाआयों के साथ दानजभनलंग के ऄग्रं ेजी स्कूल में पढ़ने के नलए भेज नदया। दो िषभ बाद सात िषभ
की ऄिस्था में ईनके नपता ने ईन्हे अगे की नशक्षा के नलए आग्ं लैंड भेज नदया। ऄपने चौदह िषभ के
आग्ं लैंड प्रिास के दौरान ग्रीक और लैनिन के प्राचीन सानहत्य का गभं ीर एिं सक्ष्ू म ऄध्ययन नकया है।
ईन्होंने होमर से लेकर गेिे तक यरू ोप के कुछ महान अचायभ की रचनाएं मल ू भाषा में पढ़ी। आग्ं लैंड में
ऄरनिदं ो बरोड़ा नरे श के संपकभ में अए। बड़ौदा नरे श ईनकी प्रनतभा देखकर ऄत्यंत प्रभानित हुए
और ईन्होंने ऄरनिदं ो को ऄपना ननजी सनचि ननयक्त ु कर नलया। 1892 में भारत लौिने पर ईन्होंने
बड़ौदा और कोलकाता के निनभन्न प्रशासकीय एिं प्राध्यानपका पदों पर कायभ नकया। 1905 से
1910 तक ऄरनिदं ो ने बंगाल के राष्रीय अदं ोलन के नेता के रूप में राजनीनतक कायों में ऄपना
जीिन नबताया। ऄलीपरु जेल के एकांत ननिास में ईन्हे रहस्यिाद दृश्यों के दशभन हुए थे नजसे ईन्होंने
स्िीकार नकया। राजनीनतक नेता एिं लेखक के रूप में िे प्राचीन िेदान्त एिं अधनु नक यरू ोपीय
राजनीनतक दशभन का समन्िय करना चाहते थे। ईनका राजनीनतक िेदान्त एक पराधीन राष्र के
राजनीनतक एिं सामानजक जीिन के पनु ननभमाण का ठोस राजनीनतक दशभन है।

8.4 प्रमुख कृरतयाां:


1.द लाआफ नडिाआन 2.एसेज ऑन द गीता 3.द नसन्थैनसस ऑफ योग 4.सानिरी

8.5 राजनीरतक लक्ष्य एवां पद्धरताः


ऄरनिदं ने कांग्रेस की राजनीनतक पद्चनतयों से हिकर जीन सरू ीय कायभक्रम की बात कहीः
क) नब्रनिश शासन का खल ु ा निरोध
ख) निदेशी िस्तओ ु ं का पणू भ बनहष्कार एिं
ग) नछपे रूप में सैन्य क्रांनत की तैयारी
जब कांग्रेस पािी संिधै ाननक सधु ार की मांग का लक्ष्य बनाकर अगे बढ़ रही थी, ईसी समय ऄरनिदं
ने स्ितंर भारत के सपने को अगे रखा था और ईनका मानना था नक यह सपना नसफभ सैन्य क्रांनत के
द्वारा ही सभं ि है। ऄरनिदं का कहना था नक यहां नहसं ा को जायज ठहराया जाना चानहए क्योंनक यह
नहसं ा एक राष्र की स्थापना के नलए है न नक अतंक के नलए। यह नहसं ा दो अयामों पर कें नद्रत होगी
- नब्रनिश सम्पनत्त को जैसे नक पल ु , आमारत अनद को नक ु सान पहुचाँ ाना, दसू री चनु नन्दा नब्रनिश
ऄनधकाररयों की हत्या। आस नहसं ा के द्वारा भारतीयों में एक नइ प्रकार की स्फूनतभ राष्रीयता की भािना

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 121
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
जागृत होगी, नजससे िो भारत में नब्रनिश शासन को ईखाड़ फै कने के नलए अगे अयेंग।े शायद यही
कारण था नक ऐनी बेसेन्ि ने ईन्हे भारतीय मनीषी की संज्ञा दी है।
ऄरनिदं ने कांग्रेस पािी को सही मायने में एक राष्रिादी संगठन के रूप में पररिनतभत कर नदया था।
ईनका कहना था नक राजनीनतक स्ितरं ता आस देश के मल ू में है और आस सबं धं में नकसी भी ऄन्य
प्रकार की यनु क्त स्िीकार नहीं की जा सकती है। बंगाल निभाजन निरोध अदं ोलन के दौरान ईन्होंने
नननष्क्रय प्रनतरोध की एक खल ु ी अिाज दी थी, नजसमें स्िदेशी बनहष्कार एिं सरकारी सेिाओ ं का
बनहष्कार शानमल था। ऄरनिदं एिं ऄन्य समान सोच के क्रानं तकारी की मश ं ा प्रशासन को पगं ु करने
की थी। ऄपने संनक्षप्त राजनैनतक जीिन में ऄरनिदं भारतीयों में एक नइ चेतना के संचार का प्रयास
करते हैं, जो राष्रीयता की भािना से ओत-प्रोत थी।

8.6 तत्वशास्त्राः
दाशभननक स्तर पर ऄरनिदं भारतीय सन्यासिादी ऄद्वैतिादी एिं पनश्चम की भौनतकिाद के मध्य एक
समन्िय स्थानपत करते हैं। यद्यनप ईसका मानना था नक भारतीय दशभन परम्परा ऄनधक व्यिनस्थत
एिं सदृु ढ़ है नकन्तु यह त्याग एिं मोक्ष के तत्ि पर ऄनधक बल देती है, नजसके पररणाम स्िरूप यह
हुअ नक जीिन के शद्च ु लौनकक क्षेरों में भारत ससं ार के ऄन्य देशों के साथ प्रनतस्पधाभ में सफल
नहीं हो सका। िहीं पनश्चमी दशभन पदाथों का अनद एिं भौनतकता पर ऄत्यानधक बल देता है। ईनका
मानना था नक भारतीय एिं यरू ोपीय दशभन परम्परा दोनों ही ऄपनी दृनष्ट में चरम हैं और दोनों के मध्य
एक समन्िय स्थानपत करके एक मध्यम मागभ स्थानपत नकया जा सकता है। आस प्रकार के समन्िय
दशभन में अनत्मक एिं भौनतक तथ्िों का समान महत्त्ि होगा। ऄरनिदं के ऄनसु ार व्यनक्त संसाररक
जीिन के निनभन्न दानयत्िों के ननिभहन के साथ-साथ मोक्ष प्रानप्त के नलए प्रयासरत हो सकता है।
ईनके ऄनसु ार परम सत्य एक अध्यानत्मक तत्ि है। िह के िल ऄनिचल, ऄलक्ष्य, ऄननदेश्य,
ऄनभु ािातीत और ऄपररितभनशीन सत्ता नहीं है ऄनपतु ईसमें गनतशील ईत्पररितभन तथा बहुल
(ऄनेकता) के बीज निद्यमान रहते हैं। ऄतः निनिधता भी ईतनी ही िास्तनिक है। नजतना की एकता।
बाह्य जगत सत्ता की िास्तनिक सृनष्ट है, िह कल्पना की मनोगत सृनष्ट नहीं है और न शन्ू य ऄथिा
निराि ऄननस्तत्ि है आसनलए पदाथभ ऄथिा जीिन के स्ितः दािों का ननषेध ईनचत नहीं है। पदाथभ भी
अिरणयक्त ु अत्मा ही है। ब्रह्मण्ड के निकास हेतु अत्मा ऄपनी चेतना का निशेषतः पररसीमन
करके ऄचेतन का रूप धारण कर लेता है। ईस ऄिचेतना से ही निकास का क्रम अरम्भ होता है
और ईतरोत्तर दृव्य जीिन और नचर (मन) प्रादभु तभू होते है। आस प्रकार ऄरनिदं के द्वारा तथा अत्मा
का तत्िशास्त्रीय समन्िय कर नदया है।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 122
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
8.7 ाआरतहास एवां सांस्कृरत का दशभनाः
एक राजनीनतक निचारक के रूप में ऄरनिदं आनतहास में अध्यानत्मक ननयनतिाद के नसद्चातं की
स्िीकायभ नकया है। ईनका मानना था नक अत्मा आनतहास के निनभन्न चरणों को ननधाभररत करती है।
आनतहास के माध्यम से ऄपनी दैिीय आच्छाओ ं को प्रकि करते हैं। आनतहास ब्रह्म की क्रनमक
पनु रानभव्यनक्त है। ऄरनिदं काली को परमात्मा की ननयामक शनक्त का प्रतीक मानते थे। िे कहते थे
नक भारतीय राष्रीय अदं ोलन के निनभन्न चरणों का ननधाभरण इश्वर द्वारा स्ियं नकया गया है। यह इश्वर
की ही आच्छा है नक राष्र बनने से पहले भारत में नब्रनिश शासन की स्थापना हो, नजससे भारतीय
नहन्दू स्िः ननयंरण में प्रनशनक्षत हो सके । निनपन चंद्र पाल की भांनत ईन्हे भी भारतीय पनु रूत्थान के
मल ू में इश्वर की आच्छा नदखाइ दी। ऄरनिदं के ऄनसु ार फ्ांस की क्रांनत भी इश्वर की आच्छा का ही
पररणाम थी। जब क्रानं त के नेताओ ं - नमराबो दातं े, रोनबसनपयेर, नेपोनलयन अनद ने ऄपने
कायभकलाप में भास्िरा निश्वरूपी सरस्िती, लक्ष्मी, दगु ाभ स्िरूप काली कह आच्छा (यगु की अत्मा)
को व्यक्त नकया है। तब तक ईसने ईसे कायभ करने नदया। आस प्रकार का दैिीय न्यायिाद (दैिी न्याय
का नसद्चांत) श्रीमदभगिद्गीता के निचारों एिं जमभन प्रत्ययिाद का समन्िय का प्रतीक है।
ऄरनिदं का मानि संस्कृ नत एिं सभ्यता का निकासिादी नसद्चांत कालभ लैम्पनरे च से प्रभानित था
हालानं क आस प्रकार की सक ं ल्पना का ईल्लेख िेदों और परु ाणों में भी देखने को नमलता है। लैम्पनरे च
(Lamprecht) ने जमभनी के राजनैनतक निकास को पााँच चरणों में ईके रा है- 1) प्रारनम्भक
चरण का जमभनी 2) प्रारनम्भक मध्य यगु 3) पररक्ि मध्य यगु 4) पनु भईत्थान से पनु जाभगरण तक का
व्यनक्तिादी यगु 5) व्यनक्तपरक चरण नजसकी शरू ु अत प्राकृ तिाद से शरू ु होती है। ऄरनिदं ने
लैम्पनरे च के प्रकार नसद्चांत को भारत में लागू नकया। ऄपनी पस्ु तक ―द ह्यमू न साइनकल‖ में ऄरनिदं
ने िैनदक यगु को भारतीय आनतहास का प्रतीकात्मक यगु बतलाया है। िणभ को िह प्रकारात्मक
सामानजक संस्था मानते हैं और जानत को परम्पराबद्च सामानजक रूप। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाि के
कारण पिू भ में भी व्यनक्तिाद का यगु अया और ऄपने साथ बनु द्च तथा स्ितंरता का संदश े लाया
नकन्तु ऄरनिदं का निचार था नक पिू ी जगत में बौनद्चक यगु लम्बा नहीं चल सकता क्योंनक
ऄन्तोगत्िा पिू भ के परम्परागत अत्मननष्ठािाद की निजय होगी। ऄरनिदं ने सभ्यता एिं संस्कृ नत के
बीच प्रत्यात्मक भेद पनश्चमी नचतं न से ग्रहण नकया नकंतु ईन्होंने ईसकी व्याख्या औपननषद दशभन के
अधार पर की। ईनका कहना था नक सभ्यता ऄथाभत संगनठत ऄथभतंर तथा राजनीनत पर अधाररत
समाज की नस्थनत प्राण की ऄनभव्यनक्त है।

8.8 राष्रवाद एवां मानव एकता का रसद्धाांताः


ऄरनिदं का ऐसा मत था नक कोइ भी देश महानता के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है यनद ईसके
नागररक, राष्रभनक्त, पराथभिाद एिं ननस्िाथभ भािना से राष्र के प्रनत समनपभत हो। ऄरनिदं का मत था
नक भारत का पनु भजागरण एिं राष्रीय महता साधारण व्यनक्तयों की शनक्तयों को ईभार कर ही प्राप्त की

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 123
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
जा सकती है। िदं े मातरम के ऄपने एक लेख में िे नलखते हैं नक राष्रिाद साधारण ऄथों में राष्र के
ऄदं र नननहत ईसे दैिीय एकता की प्रानप्त है, नजसमें आकाइ के रूप में ईस राष्र के सभी व्यनक्त समान
हों। यह समानता कायों या दैनहक समानता की ओर आनं गत नहीं करती बनल्क राष्र में निद्यमान
निनभन्न स्िरूपों में नागररक सल ं ग्नता के साथ, नागररक के रूप में एक समानता का प्रयास है।
ऄरनिदं का निचार था नक भारत का पनु जाभगरण तथा राष्रीय महता साधारण जनता की शनक्तयों को
ईभार कर ही प्राप्त की जा सकती है।
ऄरनिदं का राष्रिाद मानि/नागररक समानता पर बल देता है और एथेंस और रोम के दशभन की
भांनत नागररको के एक निराि रृदय स्िरूप (निराि-परू ु ष) की संकल्पना को अगे बढ़ाते हैं जो
जानत, िगभ, नलगं अनद निभेदों से उपर ईठकर राष्र की चेतना की ओर ईन्मख ु होंगे। यही कारण था
नक ईन्होंने नरमपंनथयों की कायभप्रणाली की भत्सभना की, जो नब्रनिश शासन को भारत के ही कल्याण
के नलए इश्वरीय निद्यमान मानते थे। ईनका कहना था नक देश नए ईत्साह और ईमगं से स्पंनदत हो
रहा है, आसनलए जनता की ईस नििशता और नननष्क्रयता का ऄतं करने का समय अ गया है, जो
निदेशी साम्राज्यिादी कुशासन के कारण ईत्पन्न हो गइ है।
हालांनक एक निचारधारा के रूप में राष्रिाद पनश्चम में ईत्पन्न होता है नकंतु भारत में आस संकल्पना
को सांस्कृ नतक स्िचेतना एिं राजनैनतक रूप से निदेशी शासन के निरोध के रूप में देखा जा सकता
है। एक धमभ के रूप में राष्रिाद अध्यानत्मक है न नक ईग्र एिं संकुनचत। ऄरनिदं का राष्रिाद संकीणभ
और कट्टरतापणू भ नहीं था बनल्क ईसका निस्तृत व्यापक और महासनं धक था। िे कहा करते थे नक
राष्रिाद मानि के सामानजक एिं राजनीनतक निकास के नलए अिश्यक है। ऄतं तोगत्िा एक निश्व
संघ के द्वारा मानि की एकता स्थानपत होनी चानहए और आस अदशभ की प्रानप्त के नलए अध्यानत्मक
नींि का ननमाभण मानि धमभ एिं अतं ररक एकता की भािना के द्वारा नकया जा सकता है। िैनश्वक स्तर
पर स्ितं र राष्र का एक पररसंघ स्थानपत नकया जा सकता है, नजसमें राष्रों के मध्य संबंध का अधार
समानता होनी चानहए न नक एक दसू रे पर ननयरं ण। आस प्रकार का मानिता अधाररत राष्रिाद निश्व
में एक लम्बे समय तक शांनत स्थानपत करने में महत्त्िपणू भ सानबत होगा।

8.9 राजनैरतक दृष्ष्िकोण


बेन्थम के ईपयोनगतािाद के निरूद्च प्रनतनक्रया अधनु नक भारतीय राजनीनतक दशभन की एक बड़ी
निशेषता रही है। स्िामी नििेकानन्द एिं नतलक की भांनत ऄरनिदं ने ―ऄनधकतम व्यनक्तयों का
ऄनधकतम सख ु ’ के स्थान पर, भारतीय धमभ परम्परा से प्रभानित ―सबके कल्याण’ या सिभभतू नहत के
अदशभ का प्रनतपादन नकया है। ऄरनिदं के ऄनसु ार सत्य की सत्ता अध्यानत्मक है। आसकी भौनतकता
के ऄनसु ार िस्तपु रक नहीं बनाया जा सकता है। चनंू क सत्य की सत्ता अध्यनत्मक है, आसनलए मनष्ु य
को चानहए नक ऄपने व्यनक्तगत तथा राजनीनतक जीिन में सभी प्रानणयों के कल्याण को साछाकृ त
करने का प्रयास करें ।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 124
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
ऄरनिदं अधनु नक पंजू ीिाद के अलोचक थे। दादा भाइ नौरोजी की भांनत ईन्होंने भारत के नित्तीय
संसाधनों का निदेशों में ननमभम एिं साम्राज्यिादी शोषण की ननंदा की है। ऄरनिदं के ऄनसु ार
अधनु नक पंजू ीिाद धन के कें द्रीयकरण को बढ़ाती है। साथ ही आसके कारण सिभशनक्तमान ननरंकुश
राज्य का निकास होता हे। यह दोनों ही प्रिृनत्तयां मनष्ु य का मनष्ु य द्वारा शोषण को बढ़ािा देती है।
साथ ही यह सभी व्यनक्तयों के कल्याण में बाधा ईत्पन्न करती है। राज्य के कायों के प्रकार से
नौकरशाही की िृनद्च होगी और ईससे ऄत्यानधक ननयमन और प्रोत्साहन नमलता है।

8.10 ाअध्याष्त्मक स्वतांत्रता


स्ितरं ता की मानि जीिन में महता को ऄरनिदं ने स्िीकार नकया है। भारतीय परम्परा का पालन
करते हुए ऄरनिदं ने अध्यानत्मक स्ितंरता को ऄनधक महत्त्िपणू भ माना है। ईनके ऄनसु ार
अध्यानत्मक रूप से स्ितंर व्यनक्त ही िास्तनिक रूप से स्ितंर है। मनष्ु य प्रकृ नत की यांनरक
अिश्यकता से तभी मनु क्त पा सकता है। जब तक िह ऄपने को मानसातीत अध्यानत्मक शनक्त का
ऄनभकताभ मार मानकर कायभ करने लगे। हालांनक ऄरनिदं ने राजनैनतक तथा सामानजक स्ितंरता की
महता को भी स्िीकार नकया है नकंतु ईनका मानना था नक अध्यानत्मक स्ितंरता के नबना यह दोनों
प्रकार की स्ितरं ता मल्ू यहीन है। रनिद्रं नाथ िैगोर तथा ऄरनिदं दोनों का ही मानना था नक यनद मनष्ु य
अध्यानत्मक स्ितं रता को प्राप्त कर लेता है तो ईसे सामानजक एिं सामानजक स्ितंरता स्ितः
ईपलब्ध होती है। ऄरनिदं के ऄनसु ार ऄपने जीिन के ननयमों का पालन करना ही स्ितरं ता है और
चंनू क मनष्ु य का िास्तनिक अत्म ईसका बाह्य व्यनक्त नहीं बनल्क स्ियं परमात्मा है आसनलए इश्वरीय
ननयमों का पालन तथा ऄपने जीिन के ननयमों का पालन एक ही बात है। स्ितंरता की आस धारणा में
रूसों और भगिाद्गीता के निचारों का समन्िय देखने को नमलता है।
ऄरनिदं का मानना था नक ितभमान समाज में ऄत्यानधक नगरािि अइ है, नजसके कारण राजनीनतक
तथा सामानजक ऄराजकता ईत्पन्न कर रखी है और ईसका ननिारण तभी हो सकता है, जब
व्यनक्तयों में श्रेष्ठ मानिीय गणु ों को अरोनपत नकया जाए। एक ईत्कृ ष्ट समाज की स्थापना ईच्च
अध्यानत्मक गणु ों िाले व्यनक्तयों पर होगा। ऄतः ऄरनिदं का बल व्यनक्तयों में ईच्च नैनतक गणु ों का
अरोपण पर ऄनधक था। ईनका कहना था नक ऄध्यात्मीकृ त समाज का शासन अध्यानत्मकता पर
अधाररत होगा और ऐसे समाज में सबको समृद्च तथा संदु र जीिन नबताने का ऄिसर नमल सके गा।
ईनका कहना था नक सामानजक एिं राजनीनतक कलह, िकराि, ऄन्तनिभरोध तथा संघषभ तभी समाप्त
हो सकते हैं जब अत्मा में एकात्म की चेतना जाग्रत होः ऐसी चेतना पारस्पररक सहयोग सामजं स्य
तथा एकता का संिधभन करें गी।
राज्य
ऄरनिदं नब्रनिश एिं जमभन अदशभिादी निचारको जैसे नक िी.एच. ग्रीन, बोसाक्रे, हेगल एिं ब्रैडली
के निपरीत राज्य की संकल्पना प्रस्ततु करते है। ये अदशभिादी राज्य को सम्पणू भ शनक्त प्रदान करते है

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 125
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
और ऄन्य सामानजक संस्थाओ ं जैसे नक पररिार, समाज चचभ अनद को राज्य के ननयंरण के ऄधीन
ले अते हैं नकन्तु ऄरनिदं का मानना था नक पररिार, समाज जैसी सामानजक संस्थाओ ं की ऄपनी
निशेष महता होती है और चंनू क समाज व्यनक्तगत चेतनाओ ं का सम्मचु य है आसनलए समाज को
राज्य के पणू भ ननयरं ण में नहीं छोड़ा चानहए। आसके निपरीत ऄरनिदं राष्र को समाज की चतं ना से
जननत एक संस्था माना है और ऐसे राष्र के नलए ―स्िराज― ही पयाभप्त नहीं है बनल्क आसमें सभी
व्यनक्तयों में समानता एिं ऄिसर की समानता होगी।

8.11 साराांश
ऄरनिदं भारतीय पनु जाभगरण और भारतीय राष्रिाद परम्परा के एक महत्त्िपणू भ निचारक हैं। ईनकी
नैनतक, बौनद्चक और अध्यानत्मक ईपलनब्धयों ने भारत के समाज निशेषतौर से नशनक्षत समाज पर
गहरा प्रभाि डाला है। दशभन, आनतहास एिं राजनीनतक संस्थाओ ं के परस्पर संबंध तथा व्यनक्तयों के
नैनतक चेतना अधाररत राजनीनत की अधारनशला भारतीय दशभन परम्परा में ऄरनिदं का निशेष
योगदान रहा है। भारत में राष्रिाद को एक धमभ ननरपेक्ष भारतीय परम्परा अधाररत करने की भनू मका
ऄरनिदं ने ही की है और आन ऄथों में आन्होंने समाज एिं राज्य को एक साियिी स्िरूप प्रदान नकया
है।

8.12 शब्दावली
दाशयतनक ऄराजकिाद: एक अदशभ समाज की स्थापना द्वारा राज्य की सत्ता को खत्म करना,
नजसने व्यनक्त नैनतक चेतना सिोपरर होती है।

8.13 सांदर्भ ग्रांथ सूची


1.अधनु नक भारतीय राजनीनतक नचंतन - डॉ. िी.पी. िमाभ
2.भारतीय राजनीनतक नचन्तक – के . यस. पाण्डेय

8.14 सहायक/उपयोगी सामग्री


1. एसेज ऑन द गीता
2. Political thought of Aurbindo Gosh- M.K.Haldar

8.15 रनबांधात्मक प्रश्न


1. ऄरनिन्द के राजनननतक लक्ष्य एिं पद्चनत पर एक ननबंध नलनखए.
2. ऄरनिन्द के राजनननतक निचारों एिं राष्रिाद की सकं ल्पना की चचाभ कीनजये.

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05

इकाई-9 : महात्मा गााँधी

9.1 प्रस्तािना
9.2 ईद्ङेश्य
9.3 महात्मा गाधं ी
9.3.1 महात्मा गांधी का जीिन पररचय
9.4 महात्मा गाधं ी के सामानजक एिं राजनीनतक निचार
9.5 महात्मा गांधी एिं राष्रीय अन्दोलन
9.3.4 महात्मा गांधी एिं नारी चेतना
9.3.5 महात्मा गाधं ी एिं सत्याग्रह अन्दोलन
9.3.6 गांधीिाद और साम्मिाद या माक्सभिाद के नैनतक अधार
9.3.7 महात्मा गांधी की 21िीं शताब्दी में प्रासंनगकता
9.3.8 गांधी जी का सिोदय एिं रस्िीनशप की ऄिधारणा
9.3.9 गांधी जी का सत्याग्रह सम्बन्धी ऄिधारणा-
9.3.10. गाधं ी जी की सत्य एिं ऄनहसं ा की ऄिधारणा
9.4 सारांश
9.5 शब्दािली
9.6 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर
9.7 सदभं भ ग्रन्थ
9.8 सहायक/ईपयोगी पाठ्य सामग्री
9.9 ननबंधात्मक प्रश्न

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
9.1 प्रस्तावना
मोहनदास करमचन्द्र गांधी नजन्हें सम्पणू भ निश्व भारत के राष्रनपता महात्मा गांधी के रूप में जानता है। महात्मा गांधी
निशद्च
ु दाशभननक नही थे नफर भी व्यिहाररक जीिन में अन्दोलन के जो साधन और निचार ऄपनाये ईनमें भारतीय
दशभन को लेकर पाश्चात् नचन्तन के कइ निचारक का जैस-े िॉलस्िाय, थोरो अनद का प्रभाि था। गांधी जी
परम्परागत ऄथों में न राजनीनतक दाशभननक थे, न ही ऐसा होने का ईन्होंने दािा नकया।
गांधी जी दाशभननक से ऄलग एक नक्रयाशील व्यनक्त थे परन्तु ईन्होंने समाज और राज्य में मल
ू भतू पररितभन लाने के
नलए ऄनेक महत्िपणू भ प्रयास नकये और शनक्तशाली साधनों का निकास नकया नजससे राजनीनतक दशभन में निीन
मान्यताओ ं का सरू पात हुअ और आन्हीं मान्यताओ ं के अधार पर गांधीिादी निचार धारा का निकास हुअ। गांधी
िाद एक ऐसी निचारधारा है नजसके अधारभतू नसद्चान्त है-सत्य और ऄनहसं ा ये नसद्चान्त ईसकी अत्मा के प्रतीक
हैं नजनके चारों तरफ गांधीिाद रूपी शरीर का ताना-बाना बनु ा गया है।
महात्मा गांधी ने सदैि ऄपने को निश्व का नागररक समझा और ईस रूप में ऄपने कायों को ऄनधक महत्ि नदया।
दनक्षण ऄफ्ीका तथा भारत की राजनीनत ईनकी प्रयोगशाला थी नजसमें ईन्होनें ऄपने सत्य ऄनहसं ा सम्बन्धी
नसद्चान्त का परीक्षण नकया। गांधी के संदश े की साथभकता पर बल देना अिश्यक है। आस यगु में जब सामनू हक
संहार ने शनक्तशाली िाह्य ऄस्त्रों ने मानिीय व्यिस्था को बरु ी तरह झकझोर नदया है, गांधी जी मानिीय मल्ू यों का
संदशे देते हैं। अधनु नक जगत के राजनीनतक अदशभ माल्थस, डानबभन और नीत्से के आस नसद्चान्त से ननधाभररत हो
रहे हैं नक जीिन-शास्त्रीय ननयमों के ऄनसु ार बलशाली की दबु ल भ ों पर निजय प्राकृ नतक और अिश्यक है। यही
कारण है नक अधनु नक बनु द्चिादी के नलए प्रारम्भ में गांधी जी के ईस संदश े को ऄगं ीकार करना कनठन हो जाता है।
क्योंनक ईनका संदश े िेदानन्तयों, बौद्चों, स्िाआकों और इसाआयों की आस धारणा का सार है नक ऄन्त में निजय सत्य
की ही होती है न नक सबसे ऄनधक बलशाली की। आस यगु में जब िीभत्सतापणू भ अतंक, गोपनीयता की प्रिृनत्त
तथा जाससू ी पराकाण्ठा पर पहुचं गयी हैं, गांधी जी द्वारा प्रनतपानदत सत्य और सजभनात्मकता ऄनहसं ा का संदश े
ऄनत परु ातन जान पड़ता है। लेनकन िास्तनिकता यही है नक अज नबना संिाद और ऄध्यात्म के हम ईदारीकरण
के आस यगु में ऄपने को स्थानपत नही कर सकते।
दनु नया की राजनीनत में संभाितः महात्मा गांधी ही एक ऐसे ऄपिाद थे जो अजादी के कत्ताभ-धताभ होकर भी
अजादी के बाद भी सत्ता से दरू रहे। गांधी जी का व्यनक्तत्ि दनु नया के सभी राजनीनतयों से ऄलग है। कारण ईन्होंने
जहां सत्ता की राजनीनत से ऄपने को पृथक रखा, िहीं दनु नया का हर राजनेता सत्ता के पीछे पागल बना रहा। गांधी
जी व्यिस्था चाहते थे आसनलए ईन्होंने राजनीनत में नीनत को प्रमख ु ता दी। सत्य, ऄनहसं ा ऄसहयोग अनद ईन्होंने
ऄस्त्र बनाए, नजनके सम्बन्ध में ऄनेक भ्रानन्तयों प्रारम्भ हुइ, लेनकन बाद में हर व्यनक्त गांधी- दशभन का कायल हो
गया।
बीसिीं शदी में दनु नया की राजनीनत को कालभ माक्सभ और महात्मा गांधी ने समान रूप से प्रभानित और ईद्चेनलत
नकया। आसका मख्ु य कारण यह था नक दोनों ने ऄपने जीिन से एक सौ साल अगे के काल को ऄपने सामने रखा।
यही कारण है नक झझं ाितों के बािजदू अज या कल न तो माक्सभ मरें गे और न गांधी की मौत होगी।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
9.2 उद्देश्य
आस आकाइ के ऄन्तगभत महात्मा गाधं ी के जीिन से सम्बनन्धत सभी पहलओ ु ं पर निस्तार पिू क

नििेचन नकया जायेगा। महात्मा गांधी का जीिन पररचय महात्मा गांधी का राष्रीय अन्दोलन में
भनू मका, गाधं ी जी के सामानजक एिं राजनीनतक निचार क्या थे। ईनके निचारों की ितभमान िैनश्वक
संदभभ में क्या प्रासंनगकता है। क्या गांधी जी के सत्य एिं ऄनहसं ा का नसद्चान्त अज के आस मारक यगु
में प्रासंनगक है नक नही? अनद बातों का निस्तार पिू क भ नििेचन नकया जायेगा, गांधी जी के निचारों
की गहरी समझ ितभमान अननु धक यगु में प्रत्येक नागररक के नलए ऄनत अिश्यक हो जाती है।
ऄतः अप आस आकाइ के सम्यक एिं गहन ऄध्ययन के पश्चात अपः-
1.गांधी जी के महत्ि को समझ सकें गे।
2.गांधी जी के सानत्िक जीिन के निषय में जान सकें गे।
3.गाधं ीिाद क्या है आसकी समझ हो सके गी।
4.गाधं ी जी का राष्रीय अन्दोलन एिं देश की अजादी में क्या योगदान था यह जान सकें गे।
5.गांधी जी के जीिन की क्या ईपलनब्धयां रही हैं और ईन्होंने समाज एिं देश को क्या नदया है यह
भी अप समझ सकें गे।
6.गाधं ी जी 21िीं शताब्दी में क्या प्रासनं गक है। आससे भली-भानं त पररनचत हो सकें गे।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 129
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
9.3 महात्मा गांधी
आस आकाइ के ऄन्तभगत हम महात्मा गांधी का जीिन पररचय, महात्मा गांधी के सामानजक एिं
राजनीनतक निचार, गांधी एिं राष्रीय अन्दोलन, गांधी जी एिं नारी चेतना, तथा राष्र ननमाभण में
गाधं ी जी का योगदान अनद निषय पर चचाभ करें ग।े महात्मा गाधं ी का माक्सभ से तुलनात्मक ऄध्ययन
एिं गांधी जी का 21िीं सदी में ईनकी िैनश्वक प्रांसनगकता तथा ईनकी ईपलनब्धयां तथा देन अनद
निषय पर निस्तार पिू क
भ ऄध्ययन करें ग।े
9.3.1 महात्मा गांधी का जीिन पररचय
महात्मा गांधी एक महान् यगु प्रितभक महापरुु ष थे। ईनके जीिन का एक-एक पल लोकनहत और
राष्र के ननमाभण के नलए सपं णू रू भ प से समनपभत था। यद्यनप ईनका जन्म 02 ऄक्िूबर 1869 को गजु रात
के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुअ था नकन्तु ऄपने समनपभत सादा जीिन और ऄनक ु रणीय कायों के
पररणामस्िरूप गांधी जी मार गजु रात और पोरबन्दर के ही नहीं ऄनपतु सम्पणू भ भारत के नप्रय और
सम्पणू भ निश्व के ऄनक ु रणीय अदशभ के प्रतीक नसद्च हो गये। ईनके गणु ऄपने पिू पभ रुु षों द्वारा निरासत
में प्राप्त हुए थे। गांधी िश
ं में ईत्तमचन्द्र नामक एक महापरुु ष ईस समय के सौराष्र नामक राज्य के
मरं ी थे। ईनके छः परु ों में िीरोनचत निचारों से यक्त
ु , सत्यिादी और सभी को ऄपने गणु ों और कायों
से प्रभानित करने िाले करमचन्द्र सबसे ऄनधक प्रनसद्च हो गये। ईन करमचन्द्र के यद्यनप चार पनत्नयां
थीं नकन्तु पतु ली नामक ईनकी पत्नी सभी गणु ों से यक्त ु और ईत्तम स्िभाि से यक्त ु एक अदशभ
गृनहणी थीं। ईन्हीं ने गांधी जी को जन्म नदया नजनका नाम परम्परानसु ार मोहनदास करमचन्द्र गांधी
हुअ। यही अगे चलकर महात्मा गांधी के रूप में प्रनसद्च हो गये।
गांधी ऄपने शरीर और सख
ु की कभी नचन्ता नहीं नकया। सभी के कल्याण के नलए ईन्होंने ऄपना
जीिन सदा के नलए समनपभत कर नदया। ऄधोनलनखत पद्य के भाि ईन गांधी जी के संदभभ में पूणतभ ः
संगत हैं-
परोपकारै कनधयः स्िसख
ु ाय गतस्पृहाः।
परोपकाराि जायन्ते महात्मानों महाव्रताः।।-(सस्ं कृ त मक्त
ु ािली पृष्ठ-12)
ऐसे महाव्रती महात्मा के रोम-रोम के ऄन्तगभत ईनके माता और नपता के गणु ों का ऄनमत एिं ऄनमि
प्रभाि ऄसंख्य गणु ईनके दबु भल शरीर में निद्यमान रहते थे। ननभीकता और सहनशीलता ईनमें भरी
पड़ी थी। मतलब भर के काम चलाउ मार िस्त्र धारण कर पद-यारा करना तथा सिभधमभ में समभाि
स्थानपत करना ईनके जीिन का निशेष लक्ष्य था। स्िदेश िस्तओ ु ं और स्िोपानजभत िस्तओ
ु ं के प्रनत
ईनका निशेष लगाि हुअ करता था। ऄपने जीिन को यथाथभ बनाने, नस्थरप्रनतज्ञ होने और दररद्रता

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 130
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
तथा दासता से पीनड़त जनता को मनु क्त नदलाने के ईद्ङेश्य से ही ईन्होंने ऄपना जन्म स्िीकार नकया
था।
9.4 महात्मा गांधी के सामातजक एिं राजनीतिक तिचार
ईन्नीसिीं तथा बीसिीं शताब्दी के लगभग सभी भारतीय नचन्तकों एिं महापरुु षों का नचन्तन जीिन
के सभी क्षेरों से सम्बद्च रहा है। भारत की राजनीनतक पराधीनता के फलस्िरूप देश के धानमभक,
सांस्कृ नतक तथा अनथभक जीिन पर प्रनतकूल प्रभाि पड़ने के कारण, स्ितंरता अन्दोलन छे ड़ने के
साथ ही देश के सामानजक तथा अनथभक जीिन में भी सधु ार की अिश्यकता ऄनुभि की गयी,
के िल राजनीनतक स्ितरं ता का कोइ महत्ि नहीं था। गाधं ी जी से पिू भ राजा राममोहन राय, स्िामी
दयानन्द सरस्िती, नििेकानन्द, ऄरनिन्द, स्िामी रामकृ ष्ण परमहसं , लोकमान्य नतलक, अनद ऄनेक
सामानजक सधु ारक हो चक ु े थे। राजा राममोहन राय द्वारा रोपी गयी भारतीय पनु जाभगरण की बेल नजसे
पनपाने में स्िामी दयानन्द, नििेकानन्द अनद ने योगदान नदया था जो गाधं ी जी के प्रयत्नों से
पररपक्ि हुइ। राजा राममोहन राय ने नारी ईद्चार एिं नशक्षा का ईत्थान अरम्भ नकया। स्िामी दयानन्द
ने ऄस्पृश्यता, शद्रू ि नारी नशक्षा, स्ि की भािना तथा धानमभक ऄधं निश्वासों एिं रूनढ़यों के त्याग का
मरं तथा िैनदक सभ्यता की रक्षा का अह्वान नकया। स्िामी नििेकानन्द ने भारतीय अध्यानत्मकता
की रक्षा, पाश्चात्य भौनतक सभ्यता के ऄनक ु रण न करने का परामशभ और सिभधमभ समन्िय, निश्व-
बन्धत्ु ि एिं सेिा का ईपदेश तथा भारत मे सिभप्रथम प्रबल स्िानभमान की भािना ईत्पन्न की।
सधु ारकों ने बाल-नििाह, बहु-नििाह, कन्या-िध, बलात िैधव्य ि सती प्रथा समाप्त करने का प्रयास
नकया। नस्त्रयों ि शद्रु ों के ईत्थान के मागभ की बाधाओ,ं ऄन्धनिश्वासों एिं प्रचनलत रूनढ़यों के निरूद्च
ईन्होंने जोरदार अन्दोलन छे ड़ा। महात्मा गांधी के जीिन, नचन्तन, नशक्षाओ ं और कायों में भारतीय
पनु जाभगरण ऄपने चरमोत्कषभ को प्राप्त हुअ। गांधी जी के ऄभ्यदु य से राजनीनतक और सामानजक
पररदृश्य बदल गया। ऄग्रं ेजी नशक्षा प्राप्त ऄनभजन की दृनष्ट में ऄनहसं ा, औद्योगीकरण, नशक्षा, यौन
और नििाह सम्बन्धी ईनके निचार ऄसंगत (निलक्षण) और परु ाने ढरें के प्रतीक होते थे। परन्तु ईनके
ननधन के लम्बे समय के बाद िे ऄद्भुत रूप से अधनु नक प्रतीत होने लगे हैं। ऄल्पनिकनसत निश्व की
सामानजक-अनथभक समस्याओ ं के सिेक्षण के दौरान गन्ु नार नमडाभल ने गाधं ी जी को समस्त
व्यिहाररक क्षेरों में एक प्रबद्च ु ईदारिादी घोनषत नकया।
अज की राजनीनतक पररनस्थनत में नैनतकता का सिभथा ऄभाि है। ऄनहसं ा तथा सत्य के नसद्चान्तों
की चचाभ करना मख ू तभ ा समझी जाती है। सामान्यतः शासनतंर में भ्रष्टाचार व्याप्त है। समाज का
राजनीनतक ढांचा नैनतकता निहीन हो जाय यह गंभीर नचन्ता का निषय है। ऄतः राजनीनतक संदभों
पर दृनष्टपात करना अिश्यक है।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 131
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
गांधी जी ने निके न्द्रीकरण की बात कहीं थी और ईसका कुछ समािेश संनिधान में हुअ था। राज्यों
को संनिधान में बहुत से ऄनधकार नदये गये थे। ईदाहरण के नलए नशक्षा राज्य का निषय थी नकन्तु
1976 में ईसे समिती सचू ी में ला नदया गया। आसका ऄथभ यह हुअ नक नशक्षा के उपर के न्द्रीय
ननयरं ण बढ़ गया। िैसे नशक्षा में निश्वनिद्यालयों पर ननयरं ण ईसी के न्द्रीयकरण की प्रनक्रया के ऄगं थे।
सारे देश के नलए एक रूप पाआ्यक्रम बनाना और चलाना ईसी के न्द्रीकरण की प्रनक्रया का एक
स्िरूप है।
गांधी जी मख्ु यतः व्यनक्तिादी थे और व्यनक्त के प्रनत ईनकी ऄपार अस्था थी, यद्यनप परू े समाज
और निश्व को ईन्होंने ऄपने सक एक रूप कर रखा था। िे िास्ति में व्यनक्त और समाज में कोइ द्वन्द्च
या भेद नहीं मानते थे। नकन्तु अज का यगु समाजीकरण का यगु है। समाज के सामने व्यनक्त का कोइ
ऄनस्तत्ि नहीं है। समाजिाद के प्रभाि में ईत्पादन और नितरण के ऄनेक क्षेरों का समाजीकरण हो
चकु ा है। बैंकों का राष्रीयकरण समाजीकरण की प्रनक्रया का ही एक ऄगं हैं। व्यनक्त की पंजू ी, सम्पनत्त
और सामान्य जीिन पर राज्य का ननयंरण बढ़ता जा रहा है। जहां पंजू ीपनतयों के शोषण की समस्या
थी िहां ऄब राज्य व्यनक्त का शोषण कर रहा है।
ितभमान समय में परू ा शासनतंर भ्रष्ट चनु ाि की प्रनक्रया पर अधाररत है। करोड़ों रूपये चनु ाि में खचभ
करके जो पानिभयां गलत तरीकों से सत्ता में अती हैं िे ईन लोगों के ननयंरण में रहती हैं जो चनु ाि में
ईन्हें धन देते हैं। अज राजनीनत जननहत के बजाय स्िाथभ और लोक-सेिा के बजाय लोकशोषण पर
के नन्द्रत है। पदलोलपु ता का बोलबाला है और कोइ काम नबना घसू के नहीं हो सकता है। आस
राजनीनत का यनद कोइ निकल्प नहीं सोचा जाता है तो नागररक जीिन सरु नक्षत और सुखी रहना
ऄसंभि है।
गांधी जी के जीिन का ऄनं तम चरण नद्वतीय महायद्च
ु के निषाक्त िातािरण और ईसके दरू गामी
प्रभािों से अच्छानदत था। अज आतने िषभ के बाद यद्च
ु के बादल नफर गरज रहे हैं। गाधं ी जी ने जो
ऄनहसं ा का पाठ पढ़ाया था िह संकुनचत राष्रिाद पर नहीं बनल्क समस्त मानिता के कल्याण की
भािना पर अधाररत था। अज राष्रों के बीच में परस्पर ऄनिश्वास, घृणा और निद्वेष की भािना
ऄनधक बलिती है। आसके ऄनतररक्त पंजू ीिाद और साम्राज्यिाद के शोषण के जो तरीके पहले थे िे
अज ऄनधक पररमानजभत और प्रच्छत रूप से प्रभािी हैं।
गांधी जी के राजनीनतक दशभन में यद्च
ु का कोइ स्थान नहीं था। हर बात में समझौते, सद्भािना और
रृदय पररितभन से सलु झाना ईनके दशभन का मलू मरं था। प्रश्न यह है नक ऄन्तराभष्रीय क्षेर में नकस
राजनीनत को ऄपनाना है-यद्च
ु की राजनीनत ऄथिा शानन्त की? और अज यह प्रश्न नजतना ज्िलंत
है और संदभभ नजतना साथभक है ईतना कदानचत् मानि-जीिन के आनतहास में कभी नहीं था।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 132
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
9.5 महात्मा गाांधी एवां राष्रीय ाअन्दोलन
दनक्षण ऄफ्ीका से 1918 में भारत अने के बाद गांधी जी ने गजु रात प्रान्त के ऄहमदाबाद नजले में
साबरमती नदी के नकनारे साबरमती अश्रम की स्थापना की। गाधं ी जी ने गोपाल कृ ष्ण गोखले को
ऄपना राजनीनतक गरू ु मानकर ईन्हीं के ननदेश पर भारतीय राजनीनत का ऄध्ययन प्रारम्भ नकया।
1917 इ0 के चम्पारन सत्याग्रह के ऄन्तगभत गांधी ने नबहार के चम्पारन नजले में नील की खेती करने
िाले नकसानों पर यरू ोपीय मानलकों द्वारा नकये जा रहे ऄत्याचारों के नखलाफ अन्दोलन चलाया
नजसमें ईन्हें सफलता नमली। आस अन्दोलन में गांधी जी का सहयोग मजरूल हक, अचायभ कृ पलानी
एिं महादेि देसाइ ने नकया।अन्दोलन के आन्हीं नदनों में रिीन्द्र नाथ िैगोर ने सिभप्रथम गांधी जी को
महात्मा की ईपानध दी तथा बापू की ईपानध सभु ाष चन्द्र बोस ने दी।
खेड़ा में नकसानों पर ऄनधक कर का बोझ सरकार द्वारा डाले जाने पर गाधं ी जी ने यहां के नकसानों
का नेतत्ृ ि नकया। ईन्होंने 1918 इ0 में खेड़ा में कर नहीं दो अन्दोलन चलाया। साथ ही सत्याग्रह का
प्रयोग नकया नजसके पररणाम स्िरूप ईन्हें कर की दर कम करिाने में सफलता नमली। 1918 इ0 में
गांधी जी ने ऄहमदाबाद के नमल मजदरू ों की िेतनिृनद्च के नलए अमरण ऄनशन नकया। ऄनशन के
चौथे नदन ही सरकार मजदरू ों की मांग मानने के नलए नििश हो गयी।
गांधी जी चंनू क गोखले से प्रभानित थे, आसनलए ईन्होंने भारतीय राजनीनत में नब्रनिश सरकार के
सहयोगी के रूप में प्रिेश नकया। ईन्होंने प्रथम निश्व यद्च ु के समय नब्रनिश सरकार की ऄभतू पिू भ
सहायता की नजससे खश ु होकर सरकार ने ईन्हें के सर-ए-नहन्द सम्मान से सम्माननत नकया। परन्तु
शीघ्र ही गांधी जी निदेशी सरकार से ननराश होने लगे, फलस्िरूप िे सरकार के सबसे बड़े
ऄसहयोगी बन गये। गाधं ी जी को ऄसहयोगी बनाने के नलए ईत्तरदायी कारकों में महत्िपणू भ थे-रौलि
ऐक्ि, जनलयािाला बाग हत्याकाण्ड, नखलाफत समस्या अनद। गांधी जी ने 1919 इ0 में नखलाफत
अन्दोलन का नेतत्ृ ि नकया। ईन्होंने ऄगं जे ी को शैतानी लोग कहा और 1920-22 इ0 तक
ऄसहयोग अन्दोलन चलाया। 1920 इ0 में यंग आनण्डया एिं निजीिन समाचार परों की स्थापना
की। ईन्होंने 1924 इ0 के बेलगांि में हुए कांग्रेस ऄनधिेशन की ऄध्यक्षता की। 1930 इ0 में गांधी
जी ने सनिनय ऄिज्ञा अन्दोलन के ऄतं ग्रत 6 ऄप्रैल 1930 को 78 ऄनयु ानययों के साथ नमक
काननू तोड़ने के नलए डाण्डी समद्रु ति के नलए यारा अरम्भ की। 4 मइ को गांधी जी को नगरफ्तार
कर नलया गया। 26 जनिरी 1931 को एक संनध हुइ नजसे गांधी-आरनिन समझौता के नाम से जाना
जाता है। निम्बर, 1931 में गांधी जी ने लन्दन में हुए नद्वतीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस का नेतत्ृ ि
नकया। गांधी जी दनलतों के पृथक ननिाभचन प्रणाली के निरोध में 1932 इ0 जेल में अमरण ऄनशन
नकया, फलस्िरूप सरकार को झक ु ना पड़ा। 7 ऄप्रैल, 1934 को गाधं ी जी ने सरकार के प्रनत
ऄसहयोग की नीनत ऄपनायी। 1940 इ0 में व्यनक्तगत सनिनय ऄिज्ञा अन्दोलन चलाया नजसके

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
प्रथम सत्याग्रही निनोबा भािे तथा नद्वतीय सत्याग्रही जिाहर लाल नेहरू थे। माचभ 1942 में भारत
अये नक्रप्स नमशन द्वारा मइ, 1942 में प्रस्ततु नक्रप्स प्रस्ताि के बारे में गांधी जी ने कहा नक
ईत्तरनतथीय चेक ; है। 8 ऄगस्त 1942 को गांधी जी ने ऐनतहानसक ऄग्रं ेजों भारत छोड़ों प्रस्ताि को
काग्रं ेस से पास करिाया, नजसमें ईन्होंने करो या मरो का नारा नदया। गाधं ी जी के सतत् प्रयत्नों के
पररणाम स्िरूप 18 ऄगस्त 1947 को भारत अजाद हो गया।

9.6 महात्मा गाांधी एवां नारी चेतना


गाधं ी के नलए औरतें बेजबु ान और गमु नाम मनहला शनक्त मार नहीं थीं नजसमें शनक्त का सच
ं ार नकया
जाना जरूरी थी, बनल्क ईनके नलए मनहलाएं ईच्चतर मानिीय मल्ू यों जैसे करूणा बनलदान का
प्रतीक थी। िे ईन्हें महज घर की शोभा बढ़ाने िाली िस्तु या गृहस्थी की चक्की में नपसती रहने
िाली सदस्य नहीं मानते थे। गाधं ी जी का कहना था मैं मनहलाओ ं को घरे लू दासता को बहशीपन की
ननशानी मानता हूाँ । मेरे राय में रसोइ घर की दासता के िल बबभरता का ही ऄिनशष्ट रूप है। ऄब
समय अ गया है नक मनहलाओ ं को आस दासता से मक्त ु कराया जाये मनहलाओ ं का सारा समय नसफभ
घेरलू काम में नही नबताना चानहए।
गांधी जी ने पदाभ, कुप्रथा और नारी की पनिरता को लेकर मनहलाओ ं की ऄत्यनधक नफक्र पर भी
प्रहार नकये। ऄपनी स्पष्ट िादी शैली में ईन्होंने कहा ऄगर मनहलाओ ं को परू
ु षों की पनिरता के बारे
में कुछ कहने का ऄनधकार हो तो क्या िे भी शनु चता के बारे में आसी प्रकार व्यग्र रहेंग?े ऄगर ईसका
ईत्तर नहीं में है तो परू
ु षों को आस बात का क्या ऄनधकार है नक िे शद्च
ु ता को लेकर ऄपनी मजी दसू रे
पर थोपें। ईन्होंने भारत की मनहलाओ ं से अग्रह नकया नक िे एक जोरदार झिके के साथ पदे को
फाड़ डालें, आसी तरह िे कहते थे शनु चता नकसी बन्द कमरे में रखकर ईगाया जाने िाला पौधा नहीं
है, आसे नकसी पर थोपा नहीं जा सकता पदे की दीिारें बना कर आसे तो ऄन्दर से ईत्पन्न होना चानहए
और ऄगर शनु चत का कोइ मल्ू य है तो यह यही है नक आसे नकसी भी प्रलोभन से बचाने में सक्षम
होना चानहए।
महात्मा गांधी के दशभन, सघं षभ एिं निचारों ने परू े भारत में स्ितरं ता की चेतना को ईत्पन्न नकया,
नजसके फलस्िरूप शतानब्दयों से पराम्पराओ ं की िजभनाओ ं में जकड़ी नारी भी अन्दोलन और संघषभ
के मागभ पर बेधड़क ननकल पड़ी। गाधं ी ने ―यगं आनण्डया‖, ―हररजन‖ अनद रचनाओ ं और भाषणाओ ं
में नारी को माता, पृथ्िी, गरू
ु अधी सृनष्ट, सहगानमनी अनद कहकर ईन्हें सम्मान प्रदान नकया। गांधी
जी मानते थे नक जब तक अधी अबादी राष्रीय अन्दोलन से नही जड़ु ेगी, तब तक यह अन्दोलन
जन अन्दोलन नही बनेगा। आसनलए ईन्होंने नाररयों को सतू कातना, स्िदेशी िस्त्र धारण करना,
छुअछूत न मानना, प्रभातफे री एिं प्राथभनाओ ं में ऄनधकानधक नहस्सा लेने के नलये प्रेररत नकया, ईन्हें

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घर की चहरदीिारी से बाहर ननकाल कर सािभजननक जीिन में प्रनिष्ट कराया। नजससे नाररयों में
अत्मनिश्वास और नेतत्ृ ि का निकास हुअ।

9.7 महात्मा गाांधी एवां सत्याग्रह ाअन्दोलन


सत्याग्रह का ऄथभ सत्य के प्रनत ऄग्राह या सत्य पर नननश्चत रहना है। परन्तु गांधीिादी पररभाषा में ही
सत्याग्रह ईसके एक राजनीनतक शस्त्र या साधन होने का आशारा है। गांधीिाद के ऄनसु ार सत्याग्रह
सत्याप्रनत पररभाषा आस प्रकार है- सत्यानद धमों का पालन करने का अग्रह और ऄधमभ का सत्यानद
द्वारा ही निरोध। गाधं ीिादी नजर से सत्याग्रह का ईद्ङेश्य ऄपने ईद्ङेश्य या निकास के नलये नहसं ा नकये
नबना प्रयत्न करना है। महात्मा गांधी ऄनहसं ा और नानिायलेन्स शब्दों का प्रयोग ऄपने राजनीनतक
अन्दोलनों के कायभक्रम का रूप बताने के नलये करते थे। ईनकी व्यिस्था के ऄनसु ार ऄनहसं ा और
नानिायलेन्स का ऄथभ ऄपने ईद्ङेश्य के नलये नकसी प्रकार की शारीररक शनक्त का प्रयोग न करना है।
निपक्षी द्वारा ऄपने निरुद्च शारीररक बल का प्रयोग करने पर शारीररक शनक्त द्वारा अत्म रक्षा या
प्रनतकार का ईपाय न करके , निरोधी का चोि सह लेना और स्ियं कष्ट सहने के हठ द्वारा निपक्षी को
परास्त कर देने का नननश्चय था। शारीररक शनक्त का ईपयोग न करने ऄथिा स्ियं सह लेने को ही
ऄनहसं ा की कसौिी नही मान नलया जा सकता। शारीररक शनक्त का प्रयोग नकये नबना के िल नजद से
दसू रे व्यनक्त को निषम पररनस्थनत में डाल देने के व्यिहार को के िल आसनलए सही नही कहा जा
सकता, नक शारीररक शनक्त का ईपयोग नही नकया जा रहा है, आस प्रकार के व्यिहार को नननष्क्रय
नहसं ा ही कहा जायेगा। सत्याग्रह का व्यिहाररक ऄथभ ऄपने लक्ष्य या ईद्ङेश्य के नलये शारीररक शनक्त
का प्रयोग नकये नबना स्ियं कष्ट सहकर दृष्हता पिू कभ प्रयत्न करना ही है। गांधी जी ने सत्याग्रह के दो
रूप माने हैं- पहला व्यनक्तगत सत्याग्रह दसू रा सामनू हक सत्याग्रह। गांधी जी ने सत्याग्रह के नलये
पररनस्थनत के ऄनसु ार ननम्ननलनखत साधनों को ऄपनाये जाने का सझु ाि नदया है-
ऄसहयोग,
सनिनय ऄिज्ञा,
स्िेनच्छक पलायन,
ऄनशन या ईपिास,
धरना, हड़ताल,
सामानजक बनहष्कार,

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गांधी जी ने साधनों की तल ु ना बीज से की है-साधनों की तल ु ना बीज से की जा सकती है और साध्य
की िृक्ष से। जो ऄिूि सम्बन्ध बृक्ष और बीज में है िही साध्य और साधन में है। कहा जाता है नक
नननष्क्रय प्रनतरोध ऄथाभत् सत्याग्रह दबु भलों का हनथयार है लेनकन सत्याग्रह का के िल ताकतिर ही
आसका आस्तेमाल कर सकता है। यह नननष्क्रय प्रनतरोध की शनक्त नहीं है। आसके नलये तो सघन
सनक्रयता चानहए, दनक्षण ऄफ्ीका का अन्दोलन नननष्क्रय नही बनल्क सनक्रय अन्दोलन था।
सत्याग्रह शारीररक बल नही है। सत्याग्रह कभी भी ऄपने शरु को कष्ट नहीं पहुचं ाता िह ऄपने शरु
का निनाश नही चाहता है। सत्याग्रह के प्रयोग में दभु ाभिना के नलये कोइ स्थान नही होता है।
सत्याग्रह तो शद्च
ु अत्मबल है, सत्य ही अत्मा का अधार होता है, आसनलये आस बल को सत्याग्रह
का नाम नदया गया है। गांधी जी ने सत्य, ऄनहसं ा के बल पर ही भारत को अजादी नदलायी। देश एिं
निदेश में ऄपने नाम का लोहा मनिाया।
महात्मा गांधी ने यद्चु और क्रानन्त के नबकल्प के रूप में राजनीनतक क्षेर में सत्याग्रह के साधन का
सफलता पिू क भ प्रयोग नकया और यह नसद्च नकया नक राजनीनतक और सामानजक क्षेर में आसका
प्रयोग यद्च
ु एिं क्रानन्त के समय में समान महत्िपणू भ है। माक्सभ ऄिलेननन नजस पररितभन को नहसं ापणू भ
क्रानन्त से करना चाहते थे, गांधी जी ईसे ऄनहसं क सत्याग्रह से सम्पन्न नकया।

9.8 गाांधीवाद और साम्यवाद या मार्कसभवाद के नैरतक ाअधार


गांधी जी द्वारा प्रनतपानदत सिोदय ऄथाभत् सभी का सिाांगीण निकास का नसद्चान्त तथा समाजिादी
दृनष्टगत कुछ ऐसे ही हैं नजससे यह भय हो सकता है नक गांधीिाद एिं माक्सभिाद या साम्यिाद प्रायः
एक से हैं। नहसं ा रनहत साम्यिाद गांधीिाद तथा साम्यिाद नहसं ायक्त
ु गांधीिाद है।
ऄमेररका के सप्रु नसद्च परकार लइु नफशर ने सन् 1946 में जल
ु ाइ के ऄनन्तम सप्ताह में गाधं ी जी के
पंचगनी में निनिध निषयों पर चचाभ की है ईस नदन नफशर से गांधी जी ने स्पष्ट कहा था-――मैं ऄपने
अपको साम्यिादी ही कहता हूाँ ।‖‖
सप्रु नसद्च गांधीिादी ऄथभशास्त्री कुमारप्पा का भी कथन है ――जहां तक हम भौनतक नहत के लक्ष्य तक
पहुचं ने का प्रयास करते हैं, साम्यिाद, समाजिाद और गांधीिाद में कोइ ऄन्तर नहीं हो सकता है।‖‖
आससे स्पष्ट होता है नक गांधीिाद और माक्सभिाद में कुछ नैनतक अधार सामान्य है जो ननम्ननलनखत
हैं-
1.श्रनमकों के नलए अनथभक सामानजक न्याय।
2.अधनु नक समाज व्यिस्था में ननम्न िगों का शोषण।

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3.गांधीिाद और माक्सभिाद दोनों ही यह निश्वास करते हैं नक प्रत्येक मनष्ु य जन्म से समान होता है
और आसनलए सबको समान ऄिसर पाने का ऄनधकार है।
4.गाधं ी जी और माक्सभ द्वारा प्रस्ततु समाज में सभी सदस्य बराबर दजे के होंगे।
5.माक्सभिाद और गाधं ीिाद दोनों ही निश्वास करते थे नक राजनीनतक स्ितरं ता अनथभक स्ितरं ता के
नबना अधारहीन और ऄथभहीन है जहां गांधी जी ने नलखा है ――मेरे स्िराज्य का सपना गरीबों के
स्िराज्य का है‖‖ िहां माक्सभ ने ――सिभहारा िगभ के ऄनधनायकत्ि की स्थापना‖ के पक्ष में दी है।
6.गांधी िाद और माक्सभिाद दोनों ही राज्यहीन समाज की स्थापना के पक्ष में थे गांधी जी ने नलखा
है नक ――राज्य नहसं ा का के न्द्रीकृ त और सगं नठत रूप है‖‖ आसनलए आससे दरू ही रहना ईनचत है।
7.गांधीिाद और साम्यिाद दोनों ही चाहते हैं नक राष्रीय धन का समान नितरण होना चानहए
क्योंनक आसके नबना समाज में पाइ जाने िाली अनथभक ऄसमानताओ ं को दरू नहीं नकया जा सकता
और अनथभक ऄसमानताओ ं को दरू नकये नबना स्ितंरता का कोइ भी ऄथभ नहीं है।
माक्सभ ऄपने ईद्ङेश्यों की प्रानप्त के नलए नहसं ा या क्रानन्त का प्रयोग करते हैं जबनक गांधी जी का
साधन पणू तभ या ऄनहसं ात्मक है। आस प्रकार यह कहा जा सकता है नक गाधं ीिाद और माक्सभिाद के
ईद्ङेश्य में प्रचरु समानता है लेनकन ईद्ङेश्यों की पनू तभ के साधनों में पणू तभ या नभन्नता है।

9.9 महात्मा गाांधी की 21वीं शताब्दी में प्राांसरगकता


गाधं ी जी ने भारत की सामानजक समस्याओ ं ध्यानपिू क भ ऄध्ययन नकया था िे समस्याएं जो हमारे
सामानजक ढांचे को खोखला कर रही थी आन समस्याओ ं के प्रनत ईनका दृनष्टकोण बड़ा व्यापक था,
ईनकी दृनष्ट गहन थी। गांधी जी ने सामानजक बरु ाइयां अनथभक प्रगनत और राजनीनतक नस्थरता तथा
व्यिस्था को स्थायी रूप से दरू करने का प्रयास नकये थे।
गाधं ी जी नजन्हें लोग प्यार से बापू कहते हैं भारतीय रंगमचं पर 1919 से 1948 तक आस प्रकार छाये
रहे नक आस यगु को भारतीय आनतहास का गांधीिादी ही कहा जाता है। शानन्त और ऄनहसं ा के दतू ,
गांधी का संदश े समस्त निश्व के नलये है और ईससे मानि जानत प्रभानित है। गांधी जी पहले भी
प्रासनं गक थे और अज भी प्रासनं गक हैं और जैसे-जैसे निश्व में निध्िश
ं क ऄस्त्र एिं शस्त्रों का निकास
होता जायेगा िैसे-िैसे गांधी जी और ईनके निचार तथा साधन और प्रासंनगक होते जायेंग।े ऄफ्ीकी
नेता नेन्सन मण्िेला के प्रेणा गाधं ी जी ही थे ऄमेररकी राष्रपनत िराकओबामा से लेकर मानिभन लथु र
नकंग अनद गांधी जी के प्रसंशक एिं समथभक हैं। नपछलों नदनों ऄमेररकी राष्रपनत बराक ओबामा ने
व्हाआि हाईस में ऄफ्ीकी महादीप के 50 ऄफ्ीकी देशों के यिु ा नेताओ ं को सम्बोनधत करते हुये
कहा नक अज के बदलते पररिेश में यिु ाओ ं को गाधं ी जी से प्रेरणा लेने की जरूरत है। गाधं ी एक

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यगु परुु ष हैं भारत की दासता को नछन्न-नभन्न करने िाले ननशस्त्र योद्चा हैं, स्िराज के संदहे िाहक एिं
दीन-हीन दनु खयों के दाता, नारी जानत, ऄस्पृश्यता, ग्रामीण जनता, श्रनमक िगभ के नलये ईनके रृदय में
ऄपार सम्मान था, ईन्होंने मनष्ु य की पीड़ा का ननकि से ऄनभु ि नकया और ईसको दरू करने का
प्रयास भी नकया। गाधं ी जी राष्र धमभननष्ठ थे गाधं ी जी का परू ा जीिन समाज के नहत के नलये लगा
रहा, डॉ0 के 0एम0 मन्ु शी ने गांधी जी के निषय में बताया है नक गांधी जी ने ऄराजकता पायी एिं
व्यिस्था में पररिनतभत कर नदया, कायरता पायी ईसे साहस में बदल नदया ऄनेक िगों के निभाजन
जन समहू को राष्र में बदल नदया, ननराशा को सौभाग्य में बदल नदया और नबना नकसी प्रकार की
नहसं ा या नैनतक शनक्त का प्रयोग नकये एक साम्राज्यिादी शनक्त के बन्धनों का ऄन्त कर नदया और
निश्व शानन्त को जन्म नदया। निदेशों में तो गाधं ी के कद्रदानों में काफी बढ़ोत्तरी हुइ है, आस शताब्दी में
आनकी प्रामानणकता और बढ़ी है ननःसंदहे गांधी प्रासंनगक हैं, अधनु नक एिं नैनतक क्रानन्त के ईद्गाता
हैं, ऄध्यानत्मक राजनीनत के परु ोधा हैं, शानन्त के संदहे िाहक और ऄनहसं ा के पजु ारी हैं, िे
मानितािादी, राष्रिादी एिं नैनतक यथाथभिादी हैं। गाधं ी एक दशभन है, एक निचार है, धमभ है, कमभ है,
और मानिता तथा निश्व शानन्त का ममभ है।

9.10 गाांधी जी का सवोदय एवां रस्िीरशप की ाऄवधारणा


गाधं ी के सिोदय की जड़े प्राचीन भारतीय दशभन में थीं। ईन्हें िेदान्त की आस धारणा से नक सभी
प्रानणयों में ऄध्यानत्मक एकता है और गीता तथा बद्च ु के सिभभतू नहत के अदशभ से प्रेरणा नमली थी।
सिोदय का व्यापक अदशभिाद, लॉक के बहुसंख्यािाद, माक्सभ गप्ु लोनित्भ के िगभ और जातीय
संघषभ के नसद्चान्त तथा िेन्थम के ―ऄनधकतम संख्या का ऄनधकतम सख ु ‖ के अदशभ के निरूद्च है।
एक दृनष्ट से प्लेिों और गांधी में बहुत साम्य है प्लेिों ने ऄपनी ररपनब्लक में काल्पननक अदशभिाद
का प्रनतिादन नकया है। नकन्तु लॉज तथा स्िेि्समैन में ईसने मानि स्िभाि तथा सामानजक व्यिस्था
की यथाथभिादी अिश्यकता का ध्यान रखा है।
गांधीिादी सिोदय नसद्चान्त के ऄनसु ार एक अदशभ समाज में न के िल मजदरू ों के ही, बनल्क समाज
के निनभन्न व्यिसायों में लगे हुये नागररकों के भी पाररश्रनमक समानता होनी चानहए। समाज के सभी
लोगों को ऄपनी प्राकृ नतक अिश्यकताओ ं के ऄनसु ार साधन नमलने चानहए। आस प्रकार सामानजक
एिं अनथभक बरु ाआयों के स्थायी ईपचार के नलए गांधी जी ने िकील, डाक्िर, ऄध्यापक और मरं ी
अनद सभी पेंशों के लोगों को समान पाररश्रनमक देने का एक क्रानन्तकारी नसद्चान्त संसार को नदया।
श्रम-निभाजन के आस क्रानन्तकारी नसद्चान्त के ऄनसु ार प्रथम चरण में प्रत्येक मनष्ु य की ऄपनी
प्राकृ नतक अिश्यकताओ ं के नलए साधन होना चानहए। कहीं भी ऄनािश्यक सग्रं ह न हो। अनथभक
समता के प्रारनम्भक अधार के रूप में प्रत्येक पररिार के नलए संतनु लत भोजन, स्िच्छ अिास,
नचनकत्सा-व्यिस्था तथा बच्चों की नशक्षा की सनु िधा अिश्यक है। अनथभक समता से गांधी जी का

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यह ऄनभप्राय नहीं है नक सभी व्यनक्तयों की सम्पनत्त नबल्कुल समान रूप से बंि जाय। ऐसी समता न
तो सम्भि ही है, न ईनचत ही। ऐसी समता का के िल सांनख्यक महत्ि होगा। ऄरस्तु की तरह
अनपु ानतक समानता के नसद्चान्त को गांधी जी नहीं मानते थे। ऄरस्तू के ऄनसु ार गणु और ईपलब्ध
को ध्यान में रखकर समता की स्थापना होनी चानहए। गाधं ी जी के आस कथन से िकील और भगं ी
को समान पाररश्रनमक नमलना चानहए। आससे साफ जानहर है नक िे ऄरस्तू के नसद्चान्त का खण्डन
करते हैं। अनथभक समता लाने के चखाभ और ईससे संबंनधत ईद्योगों का सहारा लेना ऄत्यन्त
अिश्यक है। आनके सहारे बहुत हद तक सामानजक तथा अनथभक समता प्राप्त हो सकती है। गाधं ी जी
व्यनक्तगत शारीररक श्रम पर जोर देते थे। ईन्होंने नलखा है, ――मेरी योजना के ऄनुसार राज्य नसफभ
नागररकों की आच्छा को पणू भ करने के नलए ही रहेगा। राज्य न तो जनता पर ऄपना हुकुम लादेगा और
न िह ऄपनी मरजी के मतु ानबक काम करने के नलए ईन्हें बाध्य ही करे गा। घृणा को हिाकर प्रेम की
शनक्त से लोगों को ऄपने निचार के ऄनक ु ू ल बनाते हुए मैं ऄनहसं ा के जररये अनथभक समता की
स्थापना करूाँगा । जब तक परू ा समाज मेरे निचार के ऄनक ु ू ल नहीं हो जाता तब तक मैं आन्तजार नही
करूाँगा बनल्क स्ियं आसे शरू
ु कर दगाँू ा। यनद मैं खदु 50 मोिरकार या 10 बीघे भनू म का मानलक रहूाँ
तो यह साफ जानहर है नक मैं ऄपने नसद्चान्त के ऄनरू ु प अनथभक समता नही ला सकता। ईसके नलए
मझु े ऄपने को सबसे गरीब अदमी के स्तर पर लाना होगा।
सरं क्षकता (रस्िीनशप) का नसद्चान्त-महात्मा गाधं ी अनथभक निषमताओ ं का ऄन्त करने के पक्ष में थे,
लेनकन िे अनथभक समानता स्थानपत करने के साम्यिादी ढगं से सहमत नहीं थे, नजसके ऄन्तगभत
धननकों से ईनका धन बलपिू क भ छीनकर ईसका सािभजननक नहत में प्रयोग करने की बात कही जाती
है। गांधी जी का निचार था नक नहसं ात्मक होने के कारण साम्यिादी पद्चनत ईपयोगी नहीं हो सकती
और पंजू ीपनत िगभ को पणू तभ या नष्ट कर देने से समाज ईनकी सेिाओ ं से िनं चत रह जायेगा। आस
सम्बन्ध में गाधं ी जी का निचार था नक यनद सत्य और ऄनहसं ा के अधार पर सािभजननक नहत के
नलए व्यनक्तगत सम्पनत्त ली जा सके तो ऐसा ऄिश्य ही नकया जाना चानहए।
आस सम्बन्ध में गांधी जी ने रस्िीनशप के नसद्चान्त का प्रनतपादन नकया। आसका यह मतलब है नक
धनी व्यनक्त ऄपनी अिश्यकताओ ं से ऄनधक जमीन, जायदाद, कारखाने तथा निनिध प्रकार की
सम्पनत्त का ऄपने को स्िामी न समझे ऄनपतु आसे समाज की ऄमानता या धरोहर माने, ईसका
ईपयोग ऄपने लाभ के नलए नहीं ऄनपतु समाज के कल्याण के नलए करें । गांधी जी का यह नसद्चान्त
ऄपररग्रह के निचार पर अधाररत है। ऄपररग्रह का ऄथभ है नक मनष्ु य को ऄपने जीिन की
अिश्यकताओ ं से ऄनधक नकसी िस्तु का संग्रह नहीं करना चानहए। यनद नकसी के पास ऄनधक
सम्पनत्त हो गयी है तो ईसे ईसको ऄपनी न समझ कर इश्वर की तथा समाज की समझनी चानहए।
ससं ार की सभी िस्तओ ु ं पर इश्वर का स्िानमत्ि है, मनष्ु य को ऄपने पररश्रम और अिश्यकतानसु ार

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
आसमें से ऄपना नहस्सा लेने का ऄनधकार है। ऄतः िह नकसी भी प्रकार की सम्पनत्त का स्िामी नहीं
ऄनपतु ईसका संरक्षक मार है।
गाधं ी के रस्िीनशप नसद्चान्त के ऄनसु ार धनी लोगों को स्िेच्छापिू क
भ यह समझना चानहए नक ईनके
पास जो धन है, िह समाज की धरोहर है, िे ईसमें से के िल ऄपने ननिाभह के नलए अिश्यक
धनरानश ही ले सकते हैं। शेष सारी धनरानश ईन्हें समाज की दृनष्ट से नहतकर कायों में लगा देनी
चानहए। आसका यह मतलब नहीं है नक धनी ऄपनी जीिन ननिाभह से बची हुइ सम्पनत्त को ननधभन
व्यनक्तयों में बांि दे। ऐसा करने पर तो यह सम्पनत्त ईपभोग में अकर शीघ्र नष्ट हो जायेगी। ऄतः
धननक िगभ ऄपनी फालतू सम्पनत्त को ऐसे ईद्योग-धधं ो में लगाये, नजनमें साधारण जनता को रोजगार
नमल सके ।ईन्हें दसू रो को काम देकर तथा ईत्पादन बढ़ाकर ऄपनी पंजू ी का सदपु योग सािभजननक
नहत के कल्याण एिं िृनद्च के नलए करना चानहए। िे आसे तालाब, निद्यालय, नचनकत्सालय, अनद
बनाने के जनकल्याणकारी कायों में भी लगा सकते हैं। जमींदारी ऄपनी फालतू जमीन भनू महीन
ननधभन व्यनक्तयों को जोतने, बोने के नलए दे सकते हैं।
िे सहजता, ग्रामीणता, कुिीर ईद्योग, रस्िीनशप स्िािलम्बी जीिन श्रमशील अचरण और सिोदयी
निचार के थे। सिभहारा के नलए ईन्होंने बहुत कुछ नकया भी। ईनके हररजन अन्दोलन, ऄस्पृश्यता
ननिारण, नारी जागरण, नकसान अन्दोलन अनद आसी क्रम में अते हैं। हररजन माचभ 31, 1946 भनू म
के ऄनधकार के सम्बन्ध में गाधं ी जी का यह नसद्चान्त ईनके दसू रे नसद्चान्त के निपरीत पड़ता है नक
जमींदार नकसानों के न्यासधारी (रस्िी) हैं। 1939 इ. में नद्वतीय गोलमेज पररषद की सघं ीय व्यिस्था
सनमनत में भाषण करते हुए गांधी जी ने कहा था ――गांधी ने आन दोनों दृनष्टकोणों का समन्िय करने का
प्रयत्न नकया। आसके नलए दशभनीय है। एक सीमा तक िे माक्सभिाद को मानते थे। गांधी जी का अदशभ
ऐसे समाज की स्थापना करना था, जो पारस्पररक सनक्रय प्रेम एिं सामजस्य पर अधाररत हों िह पणू भ
अनस्तक (इश्वरिादी) हो, क्योंनक सभी इश्वर की संतान हैं। रनस्कन के आस नसद्चान्त को ईन्होंने भी
माना है नक जो प्रथम को नमलता है-िही ऄनन्तम को भी नमलना चानहए। सिोदयी निचार को ईन्होंने
सदैि सम्मान नकया है।

9.11 गाांधी जी का सत्याग्रह सम्बन्धी ाऄवधारणा-


सत्याग्रह शारीररक शनक्त नहीं हैं, यह अत्मबल है। ऄतः यह शनक्त सत्याग्रह कहलाती है। नजसमें
ज्ञान और प्रेम की लौ ईजागर रहती है। यनद कोइ ऄज्ञानिश हमें कष्ट देता है तो हम ईसे प्रेम से जीतेंगे
यही सत्याग्रह है। महात्मा गांधी भारतीय राजनैनतक मचं पर 1919 से 1948 तक आस प्रकार छाए रहे
हैं नक आस यगु को भारतीय आनतहास का गाधं ी यगु कहा जाता है। शानन्त और ऄनहसं ा के दतू गाधं ी
का संदश े समस्त निश्व के नलए हैं। ईससे सम्पणू भ मानि जानत प्रभानित हुइ।

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गांधीिादी निचारधारा राजनीनतक नचन्तन के आनतहास में एक ननणाभयक मोड़ है। आनतहास साक्षी है नक
मनष्ु य ने सदैि ऄन्याय के निरूद्च अिाज ईठायी है। गांधी जी के प्रयासों से भारतीयों ने ऄपना
निरोध प्रकि करने के नलए पारस्पररक तरीकों को नहीं चनु ा बनल्क गांधी जी ने भारतीयों को निरोध
प्रदनशभत करने का एक निीन मागभ सझु ाया। यह मागभ था सत्याग्रह।
गांधी जी का सत्याग्रह-दशभन सत्य के सिोच्च अदशभ से ईत्पन्न हुअ है। यनद सत्य ही परम तत्ि है
तो ईसके पजु ारी का पनु ीत कतभव्य है नक सत्य की कसौिी तथा ईसके अधारों की रक्षा करें । इश्वर ही
परम सत्य है ऄतः इश्वर भक्त के नलए अिश्यक नक है िह पणू तभ ः निनम्र और स्िाथभरनहत हो। ईसमें
नैनतक तथा अध्यानत्मक मल्ू यों के नलए सघं षभ करने को ऄजेय कल्प तथा साहस होना चानहए तभी
िह ऄपनी सच्ची नैनतक भािना का प्रमाण दे सकता है।
सब प्रकार के ऄन्याय, ईत्पीड़न और शोषण के निरूद्च शद्च
ु तम अत्मबल का प्रयोग ही सत्याग्रह है।
कष्ट-सहन तथा निश्वास अत्मबल के गणु हैं। ―तेजस्िी दीन‖ के सनक्रय ऄनहसं ात्मक प्रनतरोध का
रृदय पर तत्काल प्रभाि होता है। िह निरोधी को जोनखम में नहीं डालना चाहता, बनल्क िह ईसे
ऄपनी ननदोनषता की प्रचण्ड शनक्त से ऄनभभतू कर देना चाहता है। सत्याग्रह ऄथिा रृदय-पररितभन
के निस्मयकारी तरीके सरकार तथा सामानजक ऄत्याचाररयों एिं परम्परािाद के नेताओ,ं सभी के
निरूद्च प्रयोग नकया जा सकता है।
सत्य पर ऄिल रहना ही सत्याग्रह है। सत्याग्रह ऄसत्य को सत्य से ि नहसं ा को ऄनहसा से जीतने का
नैनतक शस्त्र है। आसका ईद्ङेश्य, धैयभपिू क
भ , कष्ट सहकर ऄनहसं ात्मक एिं ईनचत तरीकों से सत्य को
प्रकि करना, भल ू ों को सधु रना एिं भल ू करने िालों का रृदय पररितभन करना है। सत्याग्रह एक
सरल, नकन्तु ऄचक ू ईपाय है।
सत्याग्रह का ही एक रूप ऄसहयोग अन्दोलन है। नजसका प्रयोग गांधी जी ने नीनतयों का निरोध
करने के नलए नकया था। महात्मा गांधी ऄपने युग के महान नेता थे। ईन्होंने सत्य, ऄनहसं ा एिं
सत्याग्रह के साधनों से भारतीयों को स्ितरं ता अन्दोलन का नेतत्ृ ि नकया। सत्य ऄनहसं ा जैसे
नसद्चान्त गांधी द्वारा प्रयक्त
ु ऐसे नसद्चान्त थे जो ईन्हें महात्मािादी स्िरूप प्रदान करने में सहायक रहे
हैं। ऄपनी ऄद्भुत अध्यानत्मक शनक्त से मानि के शाश्वत मल्ू यों को ईद्भानषत करने िाले निश्व
आनतहास के महान तथा ऄमर नायक महात्मा गाधं ी अजीिन सत्य, ऄनहसं ा और प्रेम का पथ
प्रदनशभत करते रहे।
राजनैनतक क्षेर में, ऄनहसं ा की निचारधारा को कायभक्रम में पररणत करने के नलए नजस कायभ पद्चनत
का प्रयोग एिं प्रनतपादन नकया, ईसे सत्याग्रह कहा जाता है। सत्याग्रह सत्य और अग्रह दो शब्दों से
नमलकर बना है। सत्य का अग्रह ऄथाभत् सत्य के हेतु अग्रह। गांधी जी के जीिन के तीन प्रमख ु
नसद्चान्त थे-सत्य, ऄनहसं ा और साधनों की शद्चु ता। आन्हीं के बल पर ईन्होंने ऄग्रं ेजों से संघषभ नकया

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और ऄन्त में सफलता प्राप्त की। महात्मा गांधी का सम्पणू भ जीिन सत्य पर अधाररत था, ईसके
सामने िे नकसी बात से समझौता नहीं करते थे। सत्य के निषय में ईनका कहना था-सत्य से उाँचा
कोइ इश्वर नहीं और हर आसं ान को सत्य की खोज करनी चानहए सत्य और ऄनहसं ा को ऄलग-ऄलग
नहीं नकया जा सकता है। जहां नहसं ा है िहां सत्य नहीं रह सकता जो सत्य में निश्वास करता है िह
दश्ु मन को भी नहीं हानन पहुचं ायेगा।
िे ऄनहसं ा के पजु ारी थे। िे ऄनहसं ा को मनष्ु य की ऄन्तनननहभत धानमभक भािना के निकास के नलए
बहुत ही अिश्यक समझते थे। गांधी जी स्ियं कहा करते थे नक-सत्याग्रही ऄनहसं ा के पजु ारी थे िे
सदा हसं ते हुए, नबना प्रनत रोध के मरने के नलए रहना चानहए।
सत्याग्रह के द्वारा गाधं ी जी ने दनक्षणी ऄफ्ीका में ऄभतू पिू भ सफलता प्राप्त की तत्पश्चात् िह भारत
अकर नब्रनिश शासन के निरूद्च भारतीय जनता को भी सत्याग्रह की भािना से ओत-प्रोत कराया।
िह मोह, ममता, निषय, िासना, ऐश्वयभ, छल कपि अनद से दरू रहने की सलाह दी।
सत्याग्रह की प्रतिया-
महात्मा गांधी जी ने सत्याग्रह को एक रणकला कहा है। ईसके ऄनसु ार एक सत्याग्रही को पणू तभ ः
समनपभत रहना चानहए, ईसे ऄपने लक्ष्य के प्रनत पणू भ जागरूक होनी चानहए। सत्याग्रही के मन में
नकसी के प्रनत कुनिल भािना नहीं चानहए ईसके नलए छल के प्रनत त्याग करके ईसके ऄन्दर और
बाहर समान रहते हुए कथनी और करनी में कुछ ऄन्तर न करके परू ी तरह ऄनहसं क रहना बहुत
अिश्यक है। िह ऄच्छाइ से बरु ाइ को, प्रेम से क्रोध को, सत्य के द्वारा ऄसत्य को, ऄनहसं ा द्वारा
नहसं ा को जीतने का प्रयास करें ।
डॉ. िी.पी. िमाभ नलखते हैं नक-गांधी जी का सत्याग्रह के सिोच्च अदशभ से ईत्पन्न हुअ है। सत्य के
पजु ारी का यह कतभव्य है नक सत्य की कसौिी तथा ईसके ऄनधकारों की रक्षा करें ।
सत्याग्रही को पणू भतया ऄनुशानसत और ननष्ठािान रहते हुए सत्याग्रह के मागभ पर नमलने िाली
कनठनाआयाा ं े भरी यातनाओ ं को सहषभ स्िीकार करना पड़ता है।
गांधी जी के ऄनसु ार-सत्याग्रही को ऄनहसं ा, सत्य, ऄस्तेय, ब्रह्मचयभ, ऄनपरग्रह, शारीररक ऄस्िाद,
ननभभयता, अनद गणु ों से यक्त
ु धमों को समान देखने िाला तथा स्िदेशी तथा ऄस्पृश्यता ननिारण
करने िाला होना चानहए।
सत्याग्रह के तितिन्न रूप-
गांधी जी के निचार में सत्याग्रही प्रेम और ऄनहसं ा के द्वारा शरु के रृदय पर निजय प्राप्त करता है। िह
िीरों का ऄस्त्र है। िह प्रेम मल
ू क है और शरु के प्रनत प्रेम और ईदारता का भाि रखता है। सत्याग्रह

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व्यनक्तगत और सामनू हक दोनों प्रकार का हो सकता है। सत्याग्रही त्याग और सेिा की भािना से
प्रेररत होकर ऄपने अप को खादी, ग्रामोद्योग ऄस्पृश्यता ननिारण, प्रौढ़ नशक्षा, राष्र भाषा प्रचार,
जातीय एकता, मद्यपान ननषेध, जनकल्याणकारी कायों में लगा रहता है।
सामनू हक सत्याग्रह का प्रयोग गांधी जी ने पहले दनक्षण ऄफ्ीका में भारत में निकनसत िगभ सामनू हक
सत्याग्रह के रूप में ननम्न कायभिानहयां स्िीकृ त की गयी हैं-
1.हड़ताल-आसका ईद्ङेश्य कायभ को बन्द करके जनता, सरकार और सम्बनन्धत संस्था के मनस्तष्क को
प्रभानित करना, लेनकन अिश्यक है नक हड़तालें जल्दी न की जायें। िह सदैि ऄनहसं ात्मक होना
चानहए।
2.बनहष्कार-आसका ऄथभ समाज के ईन कलंकी लोगों का बनहष्कार करना है जो जनमत की
ऄिहेलना करते हैं और सहयोग नहीं करते हैं। ईनका सामानजक बनहष्कार करना बहुत ही परु ाना
तरीका है। आसका प्रयोग सीनमत ऄथभ में ही नकया जाना चानहए।
3.ऄसहयोग-सत्याग्रह का ही रूप ऄसहयोग है। नजसका गांधी जी ने ऄग्रं ेजों की नीनतयों का निरोध
करने के नलए नकया, गांधी जी का निचार था नक-ऄन्याय करने िाला भी ऄन्याय सहने िाले के
नबना ऄत्याचार नहीं कर सकता, ऄतः गांधी जी ने जन साधारण से ऄग्रं ेजी सरकार के साथ सहयोग
करने की ऄपील की। क्योंनक सरकार का सभी काम प्रजाजनों के सहयोग से ही चलता है। यनद प्रजा
ऄसहयोग करें , सरकारी व्यिस्था को स्िीकार करे तो ऄके ले शासन चला पाना कनठन है।
4.धरना-धरना देने का ऄथभ नक जब तक सत्याग्रही की न्यायपणू भ बात नहीं मानी जाएगी तब तक िह
एक असन पर नस्थर होकर भख ू ा बैठा रहेगा। धरना शानन्तपणू भ होना चानहए। आसमें नकसी प्रकार का
बल प्रयोग, ऄभद्र, अचरण करना पणू तभ ः नननषद्च है। सन् 1920-22 में तथा 1930-34 में ईन्होंने
शराब, ऄफीम अनद मादक द्रव्यों और निदेशी कपड़ों की दक ु ानों पर आस प्रकार की घिना का
अिाहन् नकया था।
5.नहजरत-आसका ऄथभ है स्िैनच्छक देश ननकाला। सत्याग्रह के ऄन्तगभत आसका ऄथभ है दमन के स्थान
को छोड़कर दसू रे स्थान पर चले जाना। महु म्मद साहब के जीिन के घिना से गांधी जी नहजरत का
प्रयोग नकया। जब मोहम्मद साहब का मक्का में रहना ईनके निरोनधयों ने दभु रभ कर नदया तो िे मदीना
नहजरत कर गये। ऄथाभत् मक्का छोड़ मदीना चले गये। आसी प्रकार नहन्दओ
ु ं के ऄमानिीय ऄत्याचारों
से पीनड़त हररजनों को गांधी जी ने यह राय दी थी नक यनद िे ऄपने ऄत्याचारों को बंद न करें तो िे
दसू रे गांि चले जाए।ं

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6.ईपिास-ईपिास को गांधी जी ऄपने शस्त्रगार में सबसे ऄनधक फलदायक ऄस्त्र मानते थे। ईपिास
का ईद्ङेश्य अत्मशनु द्च है, यह सामनू हक भी हो सकता है, व्यनक्तगत भी। ईन्होंने सन् 1922 में 5 नदन,
1924 में 21 नदन, 1953 में 5 नदन, 1947 ि 1948 में ऄनेकों नदनों तक लगातार ईपिास नकया।
7.सनिनय ऄिज्ञा-बैल्स फोडभ ने आस अन्दोलन के निषय में नलखा-भारतीय ऄपना ईद्ङेश्य नननश्चत
कर चकु े थे। ऄपने नदलों में िे स्ितंरता प्राप्त कर चक
ु े थे। गांधी जी ने एक सौम्य तथा नननष्क्रय राष्र
को शतानब्दयों की ननद्रा से जगा नदया था।
गाधं ी जी के ऄनसु ार काननू जनता के कल्याण के नलए होता है। यनद काननू जननहत का निरोध
करता है तो िह ऄन्यायपणू भ और ऄनैनतक हो जाएगा। ऄतः ऐसी नस्थनत में ईस काननू की ऄिज्ञा
करना ईसे न मानना नैनतक अचरण हो जाता है। ऄतः कुशासन करने िालों को सहयोग न देना
जनता का सहज ऄनधकार है। गांधी जी ने आसी कायभ को सनिनय ऄिज्ञा की संज्ञा दी है।
सत्याग्रही का अचरण-

गांधी जी ने सत्याग्रही के नलए कुछ अचार ि ननयम बनाएं जो ननम्न थे-


1.ब्रह्मचयभ-गांधी जी का मानना था नक मन, िचन कमभ से ऄपनी आनन्द्रयों पर पणू तभ ः ननयंरण करते हुए
पाररिाररक जीिन के पणू भ कतभव्यों को ननभाना था। ऄथाभत् िैिानहक जीिन के िे निरोधी नहीं थे।
ईनके ऄनसु ार सम्पणू भ जीिन शनक्त निषयोन्मख
ु न होकर ईच्च अदशों के नलए होनी चानहए नजसे
सत्याग्रही की शारीररक नैनतक और अध्यानत्मक शनक्त प्रबल हो।
2. ननभभयता- सत्याग्रही को पणू तभ ः ननभीक होकर काम करना चानहए। िह के िल इश्वर से ही डरे
ईसके ऄनतररक्त नकसी से भी भयभीत नहीं होना चानहए। गाधं ी जी की प्रशसं ा करते हुए डॉ. के .एम.
मशंु ी ने नलखा है- गांधी जी ने ऄराजकता पायी और ईसे व्यिस्था में पररिनतभत कर नदया, कायरता
पायी और ईसे साहस में बदल नदया, ऄनेक िगों में निभानजत लोगों को जनसमहू में बदल नदया।
ननराशा को सौभाग्य में बदल नदया और नबना नकसी प्रकार की नहसं ा या सैननक शनक्त का प्रयोग
नकये एक साम्राज्यिादी शनक्त के बंधनों को ऄन्त कर निश्वशानन्त को जन्म नदया।
3.ऄस्तेय-आसका शानब्दक ऄथभ तो चोरी न करना है। ऄतः सत्याग्रही को त्यागी प्रिृनत्त का बनकर
संचय करने ि संग्रह करने सिभदा दरू रहना चानहए।
4.ऄपररग्रह-सांसाररक पदाथों को त्याग करना ही ऄपररग्रह है। ऄतः सत्याग्रही को त्यागी संचय
करने ि सग्रं ह करने से सिभदा दरू रहना चानहए।
5.श्रम ि ईपाजभन-ऄपने पररश्रम द्वारा ऄपने जीनिकोपाजभन को करते हुए नकसी ऄन्य के श्रम का
लाभ नहीं लेना चानहए, क्योंनक गांधी जी के ऄनसु ार ऐसा करना शोषण माना जायेगा।

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6.जीनित रहने के नलए भोजन-भोजन जीने के नलए करना चानहए न नक भोजन करने के नलए जीना
चानहए। भोजन स्िाद के नलए नहीं जीनित जीने के नलए है। ऄतः भोजन सानत्िक होना चानहए।
गांधी जी के जीिन का सबसे बड़ा नसद्चान्त सादा जीिन ईच्च निचार था।
7.सब धमों को समान भाि से देखना-सत्याग्रही भले ही नकसी भी धमभ का ऄनयु ायी हो पर ईसे सभी
सम्प्रदायों और मतों को समान भाि से देखना चानहए।
8.स्िदेश प्रेम की भािना-स्िदेशी का ऄथभ-स्िदेशी का ऄथभ ऄपने देश में नननमभत सभी चीजों का
ईपयोग करना है। ऄतः सत्याग्रही को चानहए नक स्िदेश में बनी चीजें ही ईपयोग में लाए,ं ऐसा करने
में भले ही ईसे परे शानी या कष्ट का सामना करना पड़ें।
9.मानितािादी दृनष्टकोण-एक सच्चे सत्याग्रही का दृनष्टकोण मानितािादी होना चानहए। मनष्ु य का
मानितािादी दृनष्टकोण तभी संभि है जब नक ईसमें ऄहक ं ार न हो।
आस प्रकार हम देखते हैं नक गांधी जी के ऄनसु ार सत्याग्रही का जीिन समाज के ऄन्य व्यनक्तयों के
नलए प्रेरणा का स्रोत होना चानहए साथ ही ईसे ईपयक्त ु गणु ों से पररपणू भ समाज का नेता होना
अिश्यक है।

9.12 गाांधी जी की सत्य एवां ाऄचहसा की ाऄवधारणा-


गाधं ी जी के ऄनसु ार, ―सत्य ही इश्वर है।‖ परन्तु प्रश्न ईठता है नक िह सत्य जो इश्वर है और नजसकी
प्रानप्त जीिन का ईद्ङेश्य है, क्या है?
गांधी के मतानसु ार ―सत्य‖ सत शब्द से ननकला है, आसका ऄथभ है ऄनस्तत्ि या होना। सत्य को इश्वर
ब्रह्म कहने का यह कारण है नक सत्य िही है नजसकी सत्ता होती है, जो सदा निका रहता है। ब्रह्म या
परमात्मा की सत्ता तीनों कालों में बनी रहती है, ऄतः यह सत्य है। गाधं ी जी ऄपने जीिन का ध्येय
सत्य की शोध करना समझते थे। ईन्होंने ऄपनी अत्मकथा का नाम ―मेरे सत्य के प्रयोग‖ रखा है।
सामान्यतः सत्य शब्द का ऄथभ के िल सच बोलना ही समझा जाता है, लेनकन गांधी जी ने सत्य का
व्यापकतम ऄथभ लेते हुए बार-बार यह अग्रह नकया है नक निचार में, िाणी में और अचार में सत्य
का होना ही सत्य है। गाधं ी जी की दृनष्ट में सत्य की अराधना ही सच्ची भनक्त है।
गााँधी जी के ऄनसु ार दैननक जीिन में सत्य सापेक्ष है, नकन्तु सापेक्ष सत्य के माध्यम से एक ननरपेक्ष
सत्य पर पहुचं ा जा सकता है और यह ननरपेक्ष सत्य ही जीिन का चरम लक्ष्य है, आसकी प्रानप्त ही
मनष्ु य का परम धमभ है।

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गांधी जी के सत्य के पररिेश में के िल व्यनक्त नहीं अता है, ऄनपतु आसमें समहू और समाज भी
समािेश है। िे चाहते हैं नक सम्पणू भ सत्य का पालन धमभ, राजनीनत, ऄथभ-नीनत पररिार-नीनत सब में
होना चानहए। राजनीनत में सत्य के पणू भ पालन का ईनका निीन प्रयोग तो निश्व आनतहास के नलए एक
ऄनिस्मरणीय घिना है।
ऄनहसं ा का ऄथभ-ऄनहसं ा का शानब्दक ऄथभ है नहसं ा या हत्या न करना। नहसं ा का ऄथभ नकसी भी
जीिन को स्िाथभिश, क्रोधिश या दख ु देने की आच्छा से कष्ट पहुचं ाना या मारना है। नहसं ा के मल
ू में
स्िाथभ, क्रोध या निद्वेष की भािना होती है। आसे निपरीत ऄनहसं ा के ऄनयु ायी को आन सभी भािनाओ ं
पर निजय पाते हुए प्राणी मार के प्रनत प्रेम और मैरी की भािना रखनी होती है नजसे गाधं ी जी
ऄनहसं ा कहते हैं।
गांधी जी के नलए ऄनहसं ा का ऄथभ ऄत्यन्त व्यापक है नजसमें कायभ ही नहीं, ऄनपतु निचार में भी
सािधान रहना अिश्यक है। नकसी को न मारना ऄनहसं ा का एक ऄगं ऄिश्य है, नकन्तु ऄनहसं ा में
आसके ऄनतररक्त और भी कुछ है। कुनिचार मार नहसं ा है, नमथ्या भाषण नहसं ा है, द्वेष नहसं ा है, नकसी
का बरु ा चाहना नहसं ा है। जगत को नजस चीज की अिश्यकता है ईस पर कब्जा रखना भी नहसं ा है।
ऄनहसं ा के दो पक्ष-ऄनहसं ा के दो पक्ष हैं-नकारात्मक तथा सकारात्मक। नकसी प्राणी को काम, क्रोध
तथा निद्वेष से िशीभतू होकर नहसं ा न पहुचं ाना आसका नकारात्मक रूप है, नकन्तु आससे ऄनहसं ा का
परू ा स्िरूप समझ में नहीं अता है। ऄनहसं ा का यथाथभ स्िरूप तो हमें आसके भािात्मक पक्ष से पता
लगता है। भािात्मक ऄथिा सकारात्मक स्िरूप िाली ऄनहसं ा को सािभभौम प्रेम और करूणा की
भािना कहा जाता है। आसके चार मल ू तत्ि, प्रेम, धैयभ, ऄन्याय का निरोध और िीरता है।
नजस प्रकार नहसं ा का अधार निद्वेष होता है ईसी प्रकार ऄनहसं ा का अधार प्रेम है। ऄनहसं ा का व्रत
लेने िाला साधक ऄपने ईग्रतम शरु से भी िैसा ही प्रेम रखता है जैसा नपता बरु ा कायभ करने िाले
ऄपने परु से स्नेह करता है। िह शरु की बरु ाइ से घृणा करता है न नक शरु से। ऄनहसं ा तथा प्रेम की
शनक्त से यह शरु की बरु ाइ दरू करने का यत्न करता है। िह स्ियं प्रसन्नता पिू क भ कष्ट सहन कर लेता
है, नकन्तु शरु को कष्ट नहीं पहुचं ाता। ऄनहसं ा का दसू रा तत्ि ऄनन्त धैयभ है। यनद ऄनहसं क को ऄपने
प्रयत्न में जल्दी सफलता नहीं नमलती तो िह ननराश नहीं होता। ईसे दृढ़ निश्वास रहता है नक ऄनहसं ा
ऄचक ू ब्रह्मास्त्र है, िह ऄन्त में ऄिश्य सफल होगी। भारी ऄसफलताएं नमलने के बािजदू ऄनहसं क
नहम्मत नहीं हारता और धैयभ पिू क भ ऄपने पथ पर अगे बढ़ता रहता है। ऄनहसं ा की तीसरा तत्ि
ऄन्याय का प्रनतरोध करना है। ऄनहसं ा नननष्क्रयता या ईदासीनता नहीं है ऄनपतु बरु ाइ का तथा
ऄन्याय का सतत् प्रनतकार करते रहना है। ऄनहसं क ऄन्यायी के ऄत्याचारों से घबराता नहीं है
ऄनपतु िीरता पिू क भ ईनका सामना करता है, ऄतः ऄनहसं ा का चौथा मल ू तत्ि िीरता है। गांधी जी ने
आस पर बहुत बल नदया है। ईनके मतानसु ार ऄनहसं ा साहसी और िीर परुु षों का गणु है, ननबभलों और

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कायरों का हनथयार नहीं। ऄन्धकार और प्रकाश की तरह कायरता और ऄनहसं ा में निरोध है। ऄनहसं ा
के प्रयोग तभी महत्ि रखते हैं जब हम बलिान होते हुए तथा पशबु ल का परू ा सामथ्यभ रखते हुए भी
आसका प्रयोग न करें । ऄनहसं क योद्चा का सबसे बड़ा गणु िीरता और ननभभयता है। आसमें शस्त्र यद्च
ु की
ऄपेक्षा ऄनधक साहस ऄपेक्षत है, क्योंनक आसमें सबसे बड़ा हनथयार ईसकी अत्मा का बल है। ऐसा
िीरता पिू क
भ अत्मबल न होने की दशा में गांधी जी नहसं ा और बल प्रयोग को ऄनधक श्रेष्ठ समझते
थे। एक बार ईन्होंने स्ियं कहा था, ――निदेशी राज्य के सामने दीन भाि से ऄपनी प्रनतष्ठा खोने की
ऄपेक्षा यह कहीं ऄनधक ऄच्छा है नक भारत शस्त्र धारण करके अत्मसम्मान की रक्षा करें । ‖‖
ऄनहसं ा का अधार-गाधं ी जी की ऄनहसं ा का अधार ऄद्चैत की भािना है। ईनका निश्वास था नक
सृनष्ट की सभी िस्तओु ं में एक ही चेतन सत्ता या ब्रह्म ओत-प्रोत है। सभी में भगिान का नदव्य ऄशं
है। जब सब कुछ भगिान का रूप है और मैं भी िास्ति में ईसी का रूप हूाँ तो मैं नकसी से कै से द्वेष
कर सकता हूाँ । िह ऄद्चैत की भािना सृनष्ट के सभी प्रानणयों के प्रनत मझु े अत्मरूप होने के कारण
प्रेम और ऄनहसं ा के धमभ का पालन करने के नलए बानधत करती है।
ऄनहसं ा की तीन ऄिस्थाएं-गांधी जी ने ऄनहसं ा की ननम्ननलनखत तीन ऄिस्थाएं बतायी हैः
1.जागृत ऄनहसं ा-आसे िीरे परुु षों की ऄनहसं ा भी कहते हैं। यह िह ऄनहसं ा है जो नकसी दःु खपणू भ
अिश्यकता से पैदा न होकर ऄन्तर अत्मा की स्िाभानिक पक ु ार से जन्म लेती है। आसको ऄपनाने
िाले ऄनहसं ा को बोझ समझ कर स्िीकार नहीं करते िरन् अन्तररक निचारों की ईत्कृ ष्टता या
नैनतकता के कारण स्िीकार करते है। सबल व्यनक्त आसे ऄपनाते हैं और िे शनक्त सम्पन्न होकर भी
शनक्त का तननक सा भी प्रयोग नहीं करते। ऄनहसं ा के आस रूप को के िल राजनीनतक क्षेर में ही नहीं
ऄनपतु जीिन के सभी क्षेरों में दृढ़ता के साथ ऄपनाया जाना चानहए। ऄनहसं ा के आस रूप से
ऄसम्भि को सम्भि में बदलने और पहाड़ों को नहला देने की ऄपार शनक्त नननहत है।
2.औनचत्यपणू भ ऄनहसं ा-आस प्रकार की ऄनहसं ा िह है जो जीिन के नकसी क्षेर में निशेष अिश्यकता
के पड़ने पर औनचत्यानसु ार एक नननष्क्रय प्रनतरोध। आसमें नैनतक निश्वास के कारण नहीं िरन्
ननबभलता के कारण ही ऄनहसं ा का प्रयोग नकया जाता है। यद्यनप यह ऄनहसं ा जाग्रत ऄनहसं ा की
भांनत प्रभािशाली नहीं है नफर भी यनद आसका पालन इमानदारी, सच्चाइ और दृढ़ता और ऄनहसं ा
परस्पर निरोधी है।‖‖
3.कायरों की ऄनहसं ा-कइ बार डरपोक तथा कायर लोग भी ऄनहसं ा का दम्भ भरते हैं। गाधं ी जी ऐसे
लोगों की ऄनहसं ा को ऄनहसं ा न मानकर ―नननष्क्रय नहसं ा‖ मानते हैं। ईनका निश्वास था नक
――कायरता और ऄनहसं ा पानी और अग की भांनत एक साथ नहीं रह सकते।‖‖ ऄनहसं ा िीरों का धमभ
है और ऄपनी कायरता को ऄनहसं ा की ओि में नछपाना ननन्दनीय तथा घृनणत है। यनद कायरता और
नहसं ा में से नकसी एक का चनु ाि करना हो तो गांधी जी नहसं ा को स्िीकार करते हैं। आस सम्बन्ध में

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ईनका यह स्पष्ट निचार है नक, ――यनद हमारे रृदय में नहसं ा भरी है तो हम ऄपनी कमजोरी को नछपाने
के नलए ऄनहसं ा का अिरण पहनें, आससे नहसं क होना ऄनधक ऄच्छा है।‖‖ िस्ततु ः गांधी जी
कायरता के पक्ष में कभी नहीं थे।
गांधी की ऄनहसं ा की निशेषताए-ं गांधी जी की ऄनहसं ा की दो बड़ी निशेषताएं हैं - पहली निशेषता
आसका सक्ष्ू म और निस्तृत नििेचन है तथा दसू री आसके क्षेर का निस्तार करके आसे नयी गनत तथा
नया निस्तार प्रदान करना है।
पहली निशेषता-गाधं ी जी से पहले ऄनहसं ा का सामान्य ऄथभ नकसी जीि का प्राण न लेना तथा आसे
खान-पान के निषय तक सीनमत रखना था। गांधी जी ने आसका निस्तृत नििेचन करते हुए कहा नक
यह खाद्य के निषय से परे है। मासं ाहारी ऄनहसं क हो सकता है, फलाहारी या ऄन्नाहारी घोर नहसं ा
करते देखे जाते हैं। एक व्यापारी झठू बोलता है, ग्राहकों को ठगता है, कम तोलता है, नकन्तु यह
व्यापारी चींिी को अिा डालता है, फलहार करता है। नफर भी यह व्यापारी ईस मांसाहारी व्यापारी
की ऄपेक्षा ऄनधक नहसं क हैं, जो मासं ाहार करते हुए भी इमानदार है और नकसी को धोखा नहीं देता।
आस प्रकार गांधी जी ने जीि नहसं ा की नििेचना करते हुए ऄनहसं ा की परम्परागत पररभाषा और सीमा
में निीन क्रानन्तकारी पररितभन और निस्तार नकया।
दसू री निशेषता-ऄनहसं ा के कायभ क्षेर का निस्तार है। गाधं ी जी ने ऄनहसं ा को व्यनक्तगत और
पाररिाररक क्षेर की सक ं ीणभ पररनध से ननकालकर आसे सामानजक और राजनीनतक क्षेरों में सभी
प्रकार के ऄन्यायों का प्रनतकार करने का शस्त्र बनाया। आसे ऊनष-मनु नयों तक मयाभनदत न रखकर
सािभजननक और सािभभौम बनाया। गांधी जी के शब्दों में, ――ऄनहसं ा यनद व्यनक्तगत गणु है तो मेरे
नलए त्याज्य िस्तु हैं। मेरी ऄनहसं ा की कल्पना व्यापक है। िह करोड़ों की हैं। मैं तो ईसका सेिक
हू.ं ..हम तो यह नसद्च करने के नलए पैदा हुए हैं नक सत्य और ऄनहसं ा व्यनक्तगत अचार के ननयम नहीं
हैं िे समदु ाय, जानत और राष्र की नीनत का रूप ले सकते हैं ऄनहसं ा सबके नलए है, सब जगहों के
नलए हैं, सब समय के नलए है।‖‖ हररजन सेिक में ईन्होंने नलखा था, ――हमें सत्य और ऄनहसं ा को
के िल व्यनक्तयों की िस्तु नहीं बनाना है, बनल्क ऐसी िस्तु बनाना है नजस पर समहू , जानतयां और
राष्र ऄमल कर सकें ।‖‖ ऄनहसं ा के निषय में गांधी जी की यह सबसे बड़ी मौनलक देन थी। भारत की
स्िरंता प्रानप्त के नलए राजनीनतक क्षेर में ऄनहसं ा के सफल प्रयोग से ईन्होंने ऄपने ईपयभक्त
ु दािे को
सत्य नसद्च नकया ।

ऄभ्यास प्रश्न
1. महात्मा गाधं ी का जन्म कब हुअ था?
A. 02 निम्बर 1869 इ0 B. 02 ऄक्िूबर 1869 इ0

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C. 02 ऄक्िूबर 1879 इ0 D. 02 ऄक्िूबर 1859 इ0
2. महात्मा गाधं ी का जन्म कहााँ क्या था?
A. पोरबन्दर B. राजकोि
C. गजु रात D. ऄहमदाबाद
3. महात्मा गांधी का दनक्षण ऄफ्ीका से भारत अगमन कब हुअ था।
A. 02 निम्बर 1869 इ0 B. 02 ऄक्िूबर 1869 इ0
C. 02 ऄक्िूबर 1879 इ0 D. 02 ऄक्िूबर 1859 इ0
4. महात्मा गांधी ने ननम्ननलनखत अन्दोलनों में से नकसमें भाग नही नलया था।
A. खेड़ा सत्याग्रह B. चम्पारण सत्याग्रह
C. नखलाफत अन्दोलन D. बारदौली अन्दोलन
5. महात्मा गाधं ी के राजनीनतक गरू ु कौन थे।
A. रिीन्द्र नाथ िैगोर B. मोती लाल नेहरू
C. गोपाल कृ ष्ण गोखले D. दयानन्द सरस्िती

9.13 साराांश
गांधी जी का जीिन निशेष रूप से ितभमान शताब्दी के पिु ाद्चभ से संबंनधत है। ईनकी मृत्यु 30 जनिरी
1948 को हुइ थी। और अज आतने िषों बाद जब हम ईनके जीिन दशभन के बारे में सोचते हैं तो हमें
तत्कालीन ि ितभमान सामानजक, राजनीनतक, सास्ं कृ नतक सदं भों को ध्यान में रखना अिश्यक हो
जाता है। चंनू क गांधी जी ने ऄपना परू ा जीिन सामानजक, राजनीनतक एिं सांस्कृ नतक कुरीनतयों को
दरू करने में ही लगा नदया। महात्मा गांधी नब्रिेन से िकालत की पढ़ाइ करने के बाद जब भारत में
1892 में अये, ईसके बाद से ही िह सामानजक बरु ाइयों को दरू करने के नलये कूद पड़े। महात्मा
गांधी के ऄध्यानत्मक अदशभिाद में इश्वर, सत्य, नैनतकता, साधन की श्रेष्ठता, ऄनहसं ा अनद का
निनशष्ठ स्थान है। गाधं ी जी सत्य और ऄनहसं ा के मागभ पर चलना श्रेस्कर समझा था। सत्य और
ऄनहसं ा का ऄिूि सम्बन्ध को मानते हुये ईसी नसद्चान्त पर सारा जीिन चलते गये। महात्मा गांधी
भारत के व्यापक क्षेर में राजनीनत को लेकर अये, देश के राष्रीय अन्दोलन में एक ऄभतू पिू भ
सेनानी के रूप में ईनकी भनू मका रही। ऄतः भारतीय जनता ने ईन्हें राजनीनतक नेता और देशभक्त

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राष्रिादी के रूप में ऄनधक जाना-माना ननःसंदहे , गांधी जी राष्रिादी थे। गांधी के रृदय में
राजनीनतक स्ितंता की ईत्कृ ष्ट कामना थी िे स्िराज को सत्य का एक ऄगं मानते थे। ऄतः
स्िभानिक था नक स्ितंरता ईनके नलये ऄनधक पनिर िस्तु थी। ईनका निश्वास था नक राजनीनतक
स्ितरं ता ऄथाभत् स्िराज तीव्र सघं षभ और कष्ट सहन के द्वारा ही प्राप्त नकया जा सकता है। गाधं ी जी
राजनीनत स्ितंरता के साथ ही अनथभक स्ितंरता भी चाहते थे। गांधी जी ने आस बात पर बार-बार
जोर नदया नक यनद हम भारत को एक राष्र बनाना चाहते हैं तो के िल नहन्दी ही राष्र भाषा हो सकती
है। हररजन में ईन्होंने नलखा है- यनद हमें भारतीय राष्रीयता का लक्ष्य प्राप्त करना है तो हमें क्षेनरयता
की जजं ीर को तोड़ना ही होगा। समकालीन समाज में निकास से जड़ु ी समस्याओ ं के संदभभ में गांधी
जी के नचन्तन में निशेष ऄनभरूची ली जा रही है। िैसे गाधं ी जी निकास को कोइ निशेष नसद्चान्त
प्रस्ततु नही नकया परन्तु ईन्होंने नभन्न-नभन्न ऄिसरों पर मनष्ु य के मागभ दशभन के नलये जो ओजस्िी
निचार प्रस्ततु नकये ईन्हें नमलाकर निकास का एक प्रनतरूप ईभारा जा रहा है।
महात्मा गांधी जी ने समाज के प्रत्येक क्षेर तथा समस्याओ ं पर ऄपने निचार रखे थे चाहे िह
मनहलाओ ं की स्ितंरता एिं चेतना का निचार हो चाहे समाज के ऄत्यनधक शोनषत, पीनड़त, दनलत
या कमजोर िगभ की बात हो। ईनके नहत के नलये ईन्होंने ईनके साथ नमलकर समय-समय पर संघषभ
नकया है और ईनको एक नइ नदशा दी तथा समाज की मख्ु य धारा में जोड़ने का प्रयास नकया।
िास्ति में यह ईन्हीं के प्रयत्नों का फल था नक अतक
ं िाद सीमत रहा और भारत में नबना बहुत
रक्तपात के स्ितंरता प्राप्त कर ली।
गांधी जी नहन्द-ू मनु स्लम एकता के महान समथभक थे गांधी जी नस्त्रयों के स्ितंरता के पक्षपाती थे। िे
नस्त्रयो के समथभक थे और ईनको परू ु षों के बराबर दजाभ देना चाहते थे। ईन्होंने भारतीय नारी को
राष्रीय अन्दोलन में भाग लेने का सऄ ु िसर प्रदान नकया। गांधी जी साधारण धमभ और राजनीनतक
को एक दसू रे से पृथक समझ और धमभ को राजनीनत से ऄलग नकया। गांधी जी बसदु िे कुिुम्बकम के
नसद्चान्त पर चलने िाले नचन्तक थे। गाधं ी जी की हत्या एक व्यनक्त की हत्या नही बनल्क भारत की
नैनतक, शनक्त और अनथभक सोच की हत्या थी अज हमें बार-बार ऐसा लगता है नक काश कोइ
गांधी होता जो हमारे पतनोन्मख ु एिं नदशा हीन समाज को एक गनत प्रदान करता। ऄसल में अज
जरूरत है ईन तत्िों को पहचानने की जो क्षब्ु ध स्िाथों के कारण भारतीय जनता के नहत को नगरिी
रख देना चाहते है। यनद हम अज गांधी को ठीक से समझ ढंग से समझ सके और ईनके द्वारा बताये
गये मागभ पर चलने का प्रयास कर सके तो नद्विगं त अत्मा के नलये यही सच्ची श्रद्चांजनल होगी। और
हमारे ईद्चार का एक मार यही ईपाय है।

9.14 शब्दावली
1. सत्याग्रह - सत्य पर ऄिल रहना।

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2. ऄनहसं ा - नहसं ा न करना।
3. ऄपररग्रह - सांसाररक पदाथों का त्याग करना।
4. कुिुम्ब - पररिार
5. निके न्द्रीकरण - सत्ता को एक जगत के नन्द्रत न होकर निनभन्न स्तरों पर पाया जाना।

9.15 ाऄभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1.B 2.A 3.A 4.D 5.C

9.16 सांदर्भ ग्रांथ सूची


1. िमाभ, निश्वनाथ (1998), अधनु नक भारतीय राजनीनतक नचन्तन, लक्ष्मी नारायण ऄग्रिाल
प्रकाशन, अगरा।
2. ग्रोिर, बी.एल. तथा यशपाल (2003), अधनु नक भारत का आनतहास, एस.चन्द्र एण्ड कम्पनी
नल0, रामनगर, नइ नदल्ली।
3. निनपन चन्द्र (2001), भारत का स्ितंरता संघषभ, नहन्दी माध्यम कायाभन्ियन ननदेशालय, नदल्ली
निश्वनिद्यालय।
4. िमाभ, दीना नाथ (2004) अधनु नक भारत, ज्ञानदा प्रकाशन (पी.एण्ड डी.), दररयागजं , नइ
नदल्ली।
5. पाण्डेय, एच.एल. (1997) गांधी, नेरू, िैगोर एिं ऄम्बेडकर, प्रयाग पस्ु तक भिन, यनू िभनसिी
रोड, आलाहाबाद।

9.17 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामग्री


1. गांधी, महात्मा (2005), सत्य के प्रयोग/अत्मकथा, निजीिन प्रकाशन मनं दर, ऄहमदाबाद।
2. एम.के . गांधी, समाज सधु ार, समस्या और समाधान।
3. नहन्द स्िराज चौथा संस्करण ।
4. हररजन, 18 माइ 1940 ।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
5. शमाभ, ऄरूण दत्त (2009), भारतीय राजनीनतक निचारक, यनू ीक पनब्लशसभ, लालपत नगर, नइ
नदल्ली।

9.18 रनबांधात्मक प्रश्न-


1. महात्मा गांधी के राजनीनतक एिं सामानजक निचारों का निस्तार से ईल्लेख कीनजए।
2. महात्मा गांधी का भारतीय राष्रीय अन्दोलन में ईनकी भनू मका का मल्ू यांकन कीनजए।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05

इकाई 10: दीनदयाल उपाध्याय

10.1 प्रस्तािना
10.2 ईद्ङेश्य
10.3 मख्ु य कृ नतयााँ
10.4 जीिन पररचय
10.5 संघ से सम्बन्ध
10.6 एकात्म मानििाद
10.7 राष्र पर निचार
10.8 धमभराज्य
10.9 ऄभ्यास प्रश्न
10.10 सारांश
10.11 शब्दािली
10.12 ऄभ्यास प्रश्न के ईत्तर
10.13 संदभभ ग्रन्थ सचू ी
10.14 ननबंधात्मक प्रश्न

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10.1 प्रस्तावना

पनं डत दीनदयाल ईपाध्याय अधनु नक भारत के सबसे प्रनतनष्ठत राष्रीय राजनीनतक निचारकों में से
एक हैं। िह एक प्रख्यात दाशभननक होने के साथ ही एक आनतहासकार, परकार, ऄथभशास्त्री और
समाजशास्त्री भी थे। ईनके अदशों से प्रभानित होकर नपछले कुछ सालों में ईनके सम्मान में कइ
महत्त्िपणू भ कल्याणकारी योजनायें भी लागू की गयीं जैसे दीनदयाल ईपाध्याय ग्राम ज्योनत योजना,
दीनदयाल ईपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना, दीनदयाल ऄन्तोदय योजना आत्यानद जो ईनके
मल्ू यों को दशाभती हैं । जीिन भर ईनहोंने सािभजननक जागरूकता की अिश्यकता पर बल नदया
और एकात्म मानििाद के नसद्चांत से ईन्होंने भारतीय जन संघ को अकार नदया, ईसे निकनसत
नकया और एक ऄलग पहचान नदलाइ, भारतीय जन संघ अगे चल कर भारतीय जनता पािी
बनकर ईभरा।
िह स्ितंर भारत के एक सनक्रय नेता थे लेनकन िह आस शब्द के पारंपररक ऄथभ में एक राजनीनतक
नेता नहीं थे, ईनके शब्दों में िह राजनीनत में राष्रिाद के सास्ं कृ नतक दतू हैं। ईनका मानना था की
हमें ऄपने सांस्कृ नतक अधारों और निचारों को ननरंतर मजबतू करते रहना चानहए। ईनका निशिास
था की हमें लोगों के बीच जागरूकता पैदा करनी चानहए और ईनके समग्र निकास के नलए काम
करना चानहए।
एक निचारक और राजनीनतक नेता के रूप में, पंनडत दीनदयाल ईपाध्याय ने भारतीय राजनीनत पर
एक ऄनमि छाप छोड़ी। ईन्होंने एक िैचाररक समहू का अधार स्थानपत नकया जो बाद में कांग्रेस के
निकल्प के रूप में ईभरा और "एकात्म मानििाद" के दशभन को बढ़ािा नदया। ऄनेक कायभकताभ
ईनकी बौनद्चक क्षमता, िैचाररक प्रनतबद्चता और राजनीनतक कौशल से प्रेररत होते रहे। ईन्होंने एक
'प्रचारक' के पद को ऄपनाया और स्िम्सेिक सघं के ननयनमत निशेषज्ञ बन गये। अजादी के बाद
जब कांग्रेस सािभजननक राजनीनतक मद्ङु ों में एक प्रमख
ु शनक्त बन गइ, तो कइ लोगों ने एक ऄन्य
िैकनल्पक िैचाररक समहू की अिश्यकता महससू की। पररणामस्िरूप 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद
मख ु जी के ननधन के बाद निोनदत िैचाररक समहू के ननमाभण का दानयत्ि पनं डत दीनदयाल
ईपाध्याय के कंधों पर अया, जो पहले आसके महासनचि और बाद में आसके ऄध्यक्ष बने। ईनके
निचारों और गनतनिनधयों में जनसघं और बाद में भारतीय जनता पािी (भाजपा) के कामकाज,
पररयोजनाओ,ं व्यिस्थाओ ं और अनधकाररक ननमाभण की गहरी छाप है।

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10.2 उद्देश्य

1. पनं डत दीनदयाल ईपाध्याय के जीिन से पररनचत होंगे।


2. दीनदयाल ईपाध्याय के एकात्म मानििाद को समझ सकें गे।
3. दीनदयाल ईपाध्याय के राष्र समनन्धत निचारों से ऄिगत होंगे ।

10.3 मुख्य कृरतया ाँ

1946 में दीनदयाल ईपाध्याय ने बच्चों के नलए ―सम्राि चंद्रगप्तु ‖ नाम से एक ईपन्यास नलखा
बच्चों में साहस और िीरता की भािना जगाने के नलए. 1947 में नलखी, ईनकी दसू री कृ नत
―जगद्गरुु शक
ं राचायभ‖ थी यिु ाओ ं को देश के गौरिशाली आनतहास की ओर देखने और ईस पर गिभ
करने के नलए प्रेररत करने के नलए. आस ईपन्यास की ऐनतहानसक पृष्ठभनू म िह है जब नहदं ू धमभ को
मानने िाले कट्टरपंथी और कमभकांडी हो गये थे। शक ं राचायभ ने आस कट्टरिाद और कमभकांड का
निरोध नकया। ईनका मानना था नक नहदं ू ऄपने देश के नलए काम करने के नलए संन्यास के प्राचीन
अदशभ को भल ू गए हैं। सन्ं यास का ऄथभ आस ससं ार का पणू भ त्याग नहीं है। यह देश सेिा का एक
सामानजक माध्यम है। दीनदयाल जी ने आसे ईस बात से जोड़ा जैसे एक संघ कायभकताभ ऄपने घर की
सखु -सनु िधाएं छोड़ने के बाद ऄपना जीिन सामानजक कायों के नलए समनपभत कर देता है।
ईपाध्याय ने संघ की कइ पनरकाओ ं का सनचालन भी नकया जैसे मानसक 'राष्रधमभ', साप्तानहक
―पंचजन्य‖ और दैननक 'स्िदेश'। ईन्होंने नद्व-राष्र नसद्चांत के अधार पर भारत के निभाजन की मांग
और नब्रनिश ईनप्निेनशिाद ि फूि डालो और राज करो की नीनत से अहात होकर ―ऄखडं भारत
क्यों?‖ नामक पनु स्तका नलखी जहााँ िह एक ऄखंड भारत राष्र की पररकल्पना करते हैं जो िास्ति
में निनिधता में एकता का प्रतीक है। परकाररता के दौरान ईन्हें भारतीय समाज का अलोचनात्मक
मल्ू यांकन करने का एक ऄिसर नमला जो एक ओर निभाजन से पीनड़त था और दसू री ओर
सामानजक और अनथभक समस्याओ ं से जझू रहा था।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
10.4 जीवन पररचय

दीनदयाल ईपाध्याय का जन्म 25 नसतबं र, 1916 को ईत्तर प्रदेश के मथरु ा नजले में चन्द्रभान गााँि में
हुअ था। ईनका बचपन कनठनाआयों भरा रहा। ईनके प्रारंनभक िषभ एक साधारण मध्यम-िगीय, ईत्तर
भारतीय पररिार में बीते। ऄपने नननहाल में ईनका पालन-पोषण और नशक्षा ऄत्यनधक पीड़ा और
ऄभाि की पररनस्थनतयों में हुइ। हालााँनक, नजन कनठनाआयों का सामना करना पड़ा, ईससे
दीनदयालजी और मजबूत हुए और एक निनशष्ट व्यनक्तत्ि निकनसत कर सके । एक छोिे बच्चे के
रूप में ईनका सघं षभ ईनके जीिन में भी नज़र अता है। बचपन में ही ईन्हें ऄपने करीनबयों की मृत्यु
का सामना करना पड़ा, क्योंनक जब िे बहुत छोिे थे तभी ईनके नपता और बाद में मााँ का ननधन हो
गया। बहुत ही कम ईम्र में ईन्हें ऄपने माता-नपता दोनों के प्यार और स्नेह से िनं चत कर नदया गया।
ईन्हें ऄपने छोिे भाइ के पालन-पोषण की नज़म्मेदारी ली, नजससे ऄन्य लोगों के प्रनत ईनकी
सहानभु नू त, संिदे नशीलता और प्रेम का स्तर और भी बढ़ गया। कुछ ही समय बाद ईनका छोिा
भाइ नशिदयाल भी ईन्हें ऄके ला छोड़कर चल बसा।
ऄपनी कनठनाआयों के बािजदू बहुत ही छोिी अयु से ही ईनके पररिार और ऄध्यापकों को ईनकी
प्रनतभा और बनु द्चमत्ता का एहसास हो गया था. िह एक मेधािी छार थे और गनणत में निशेष रूप
से ऄच्छे थे. ईन्होंने बोडभ परीक्षा में प्रथम स्थान ईत्तीणभ नकया और सीकर के तत्कालीन शासक
महाराजा कल्याण नसंह ने ईन्हें स्िणभ पदक और मानसक छारिृनत्त से सम्माननत नकया। दीनदयाल
ईपाध्याय ने प्रशासननक सेिा की परीक्षा भी ईत्तीणभ की, लेनकन प्रशासननक कायों में रुनच न होने के
कारण ईन्होंने िह प्रशासननक पद को त्याग नदया।

10.5 सांघ से सम्बन्ध

1937 में, बी.ऐ. की पढ़ाइ के दौरान िह राष्रीय स्ियंसेिक संघ के संपकभ में अए जहां ईनकी
मल ु ाकात संघ के संस्थापक के शिराि बनलराम हेडगेिार और िीर सािरकर से हुइ। ईनसे नमलकर
ईनके सािभजननक जीिन को एक नयी नदशा नमली। दीनदयालजी ने खदु को सत्ता की राजनीनत से
ऄलग कर ननःस्िाथभ सेिा का ईदाहरण प्रस्ततु नकया और कायभकताभओ ं के संगठनात्मक कौशल को
मजबतू नकया। स्ितंरता संग्राम के समय ईत्तर प्रदेश के निश्वनिद्यालयों में संघ का बहुत प्रचार-प्रसार
और निकास हुअ, नजसके नलए दीनदयाल ईपाध्याय काफी हद तक नजम्मेदार थे। ऄपनी नशक्षा
परू ी करने के बाद िे अजीिन सघं के प्रचारक बने रहे। ईन्होंने स्ियसं ेिक सघं के माध्यम से
राजनीनत में प्रिेश नकया और अगे चल कर िह भारतीय जन संघ के दाशभननक और मागभदशभक के
रूप में ईभरे । भारतीय जन संघ के सस्ं थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मख ु जी ने दीनदयालजी की बनु द्च
और ऄसाधारण संगठन क्षमता से बहुत प्रभानित होकर ईन्हें पािी के पहले महासनचि के रूप में

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चनु ा था। आसके पश्चात िह पािी के ऄध्यक्ष भी बने। ईन्होंने राष्रीय स्ियंसेिक संघ के मल
ू अदशभ
नलखने में भी महत्िपणू भ भनू मका ननभाइ। ईन्होंने संघ के सांस्कृ नतक और बौनद्चक पहलू पर जोर
नदया। ईनका मानना था की सांस्कृ नतक एकीकरण के नबना राजनीनतक एकीकरण संभि नहीं है।
पनं डत दीनदयाल ईपाध्याय के एकात्म मानििाद को भाजपा ने ऄपनी कें द्रीय निचारधारा के रूप में
भी ऄपनाया है।

10.6 एकात्म मानववाद

स्ितरं ता प्राप्त करने के बाद भारत के सामने मख्ु य चनु ौती अगे बढ़ने का रास्ता तलाशने की थी,
ईसे ईस नदशा को ढूंढना था नजसमें िह एक स्ितंर राष्र के रूप में अगे बढ़ सके । आस दौरान नजस
पस्ु तक ने ईपाध्याय को सबसे ऄनधक प्रभानित नकया िह 'दैननक शास्त्र' थी जो भारतीय िैनदक
सानहत्य और िेदांत दशभन का संग्रह था। स्ितंरता के बाद साम्यिाद, समाजिाद और पंजू ीिाद के
समथभन में कइ अिाजें ईठने लगीं। कइ लोगों का निश्वास था यह राजनननतक और सामानजक
व्यिस्था भारत को नयी उंचाआयों पे ले जा सकती हैं। परन्तु ईपाध्याय ने समाजिाद, पंजू ीिाद और
साम्यिाद जैसी प्रचनलत निचारधाराओ ं की कुरीनतयााँ ईजागर करते हुए आन्हें नकार नदया।
ईन्हें स्ितरं ता के बाद पनश्चमी निचारों पर प्रचनलत ननभभरता ऄस्िीकार थी। ईन्होंने तकभ नदया नक
देश पर सनु नयोनजत तरीके से शासन करने के बजाय शासक भ्रामक निचारों और ईदासीनता के
नशकार हो गए हैं। अस्था और अत्मनिश्वास की कमी को सनक्रय राष्रिाद से बदला जाना चानहए।
ईपाध्याय का मानना था नक भारतीयता का सहारा नलए नबना आन बनु नयादी समस्याओ ं का
समाधान नहीं नकया जा सकता ईन्होंने संघषभ को समाज की प्रगनत के नलए हाननकारक और पतन
तथा निकृ नत का प्रतीक माना।
ईनका मानना था की सफल भनिष्य ननमाभण के नलए यह महत्िपूणभ बात है नक हमारे नि स्ितंर
राष्र के नलए एक नयी निचारधारा का चयन हो जो हमारे िैनदक मल्ू यों पर खरी ईतरे । ईपाध्याय के
ऄनसु ार, भारत में मख्ु य ध्यान एक ऄनद्वतीय अनथभक और राजनननतक मॉडल बनाने पर होना
चानहए जो मनष्ु य को कें द्र में रखे। आस पररप्रेक्ष्य में दीनदयाल ईपाध्याय का ―एकात्म मानििाद‖
देखने योग्य है जो अगे चल कर भारतीय जनता पािी के मागभदशभक नसद्चातं में निकनसत हुअ।
एकात्म मानििाद का दशभन तीन नसद्चांतों पर अधाररत है- संपणू तभ ा की प्राथनमकता, धमभ की
सिोच्चता और समाज की स्िायत्तता। आसको गहराइ से समझने के नलए एकात्म मानितािाद के
दो पहलओु ं को समझना होगा, पहला 'मानििाद' जो पनश्चमी दशभन का भाग है और दसू रा 'एकात्म'

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जो एक भारतीय ऄिधारणा है। यह कहा जा सकता है नक पनश्चमी मानितािाद का भारतीयकरण
एकात्म मानितािाद की प्रनक्रया की ओर ले जाता है।
एकत्म्न्िादी निचार सम्पणू भ सृनष्ट का और सम्पणू भ मानि जीिन का संनचनलत निचार करती है क्यंनू क
ईपाध्यायजी के ऄनसु ार व्यािहाररक दृनष्ट से जीिन को िुकड़ों िुकड़ों में समझना ईपयक्त ु नहीं है।
सबके मल ू में नननहत एकता को खोजना ही सबसे महत्िपणू भ है। जैसे डानिभन ने ‘मत्स्य न्याय’ की
बात की, भारत में ईसके निपरीत प्रकृ नत और परुु ष को निरोधी न मानकर ईनको एक दसु रे का परू क
माना गया है। जैसे बीज की एकता ही पेड़ के मल ू , तना, शाखाए,ं पत्ते , फल के निनिध रूप में
प्रकि होती है। ईसी तरह व्यनक्त का भी एकात्म निचार नकया गया है नजसमें शारीर का सुख, मन का
सख ु , बनु द्च का सख
ु और अत्मा का सख ु नननहत है। मनष्ु य ऄपने मन, बनु द्च, अत्मा तथा शारीर का
समचु य है। हमें आनका ऄलग-ऄलग निभाजन करके निचार नहीं करना चानहए । पनश्चम में मनष्ु य
के एक एक नहस्से पर ऄलग से निचार करते हैं। िहां जब प्रजातंर का अन्दोलन चला तो ईनकी
राजनननतक अकांक्षा परू ी करने के नलए ईन्हें िोि देने का ऄनधकार नदया गया, परन्तु बाकी
ऄनधकार थे कम हो गए। ईपाध्याय कहते हैं की कालभ माक्सभने ने लोगों को ऄपने ऄनधकारों के
नलए संघषभ करने के नलए प्रोत्सानहत नकया परन्तु जो माक्सभ के रास्ते चले न ईनको राज नमला न
ऄनधकार। दसू री ओर ऄमरीका है जहााँ राज है, ऄनधकार है परन्तु सख ु और शांनत नहीं है।
शारीर, मन, बनु द्च, और अत्मा की प्रगनत: अधनु नक काल में निचारकों की मौनलक गलती यही है
िह समृनद्च के बाद भी मनष्ु य को सख ु की ओर नहीं ले जा सके । पनं डतजी की ऄनसु ार, आसका
ईपाय एकात्म मानििाद में है क्यंनू क आसमें मनष्ु य का पणू भ रूप से निचार नकया जाता है। एकात्म
मानििाद में मानि की प्रगनत का ऄथभ शारीर,मन, बनु द्च ि अत्मा की प्रगनत है। कइ बार भारतीय
दशभन पर यह गलत अरोप लगाया जाता है की यहााँ अत्मा पर ही निचार नकया जाता है, परन्तु यह
सत्य नहीं है । एकात्म मानििाद में अत्मा के साथ शरीर, मन और बनु द्च पर भी समान बल नदया
जाता है क्यनंू क यह एक दसु रे के परू ख है। ईपननषद् में भी आस बात का िणभन है की दबु भल व्यनक्त
अत्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता। ग्रंथों में यह भी कहा गया है की शरीर धमभ का पहला
साधन है। आसी कारण ईपाध्याय आस बात से आनकार नहीं करते की भौनतक अिश्यकताओ ं की
पतू ी मनष्ु य निकास के नलए अिश्यक है परन्तु िह पाश्चात्य दशभन की तरह ईन्हें सिभस्ि नहीं मानते।
मनष्ु य के शारीर, मन, बनु द्च और अत्मा की अिश्यकताओ ं की पतू ी ईसकी ऄनेक आच्छाओ ं की
पतू ी और संतनु ष्ट ही ऄकत्मा मानििाद का ऄद्ङेश्य है।
दीनदयालजी का निचार था नक भारतीय परंपराएाँ एकीकरण, सामजं स्य और सद्भाि पर कें नद्रत हैं।
ईन्होंने स्िीकार नकया नक प्रत्येक समाज में िगभ मौजदू हैं, लेनकन समाज को एक जैनिक समग्र के
रूप में देखा जाना चानहए; यनद समाज के निनभन्न ऄगं संघषभ में नदखाइ देंगे तो िह ठीक से कायभ

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नहीं कर पाएगा। ईनके ऄनुसार, समाज की निनभन्न संस्थाओ ं में निनभन्न कारणों से नगरािि अ
सकती है और कभी-कभी, यनद समाज की अत्मा कमजोर हो जाती है, तो आसका प्रभाि ईसके
निनभन्न ऄगं ों पर पड़ता है। ईनका मानना था नक पररिार, समदु ाय, व्यापार संघ, ग्राम पंचायत,
जनपद, राज्य और ऐसी ऄन्य सस्ं थाएाँ राष्र और यहााँ तक नक मानि जानत के निनभन्न ऄगं हैं। िे
एक दसू रे पर ननभभर हैं, और एक दसु रे के परू क हैं। आन सभी में एकता की भािना होनी चानहए। आसी
कारण से ईनमें संघषभ या निरोध के स्थान पर परस्पर सामजं स्य की प्रिृनत्त ऄत्पन्न होनी चानहए।
हालााँनक ईन्होंने सामजं स्य में मौजदू निनभन्न सस्ं थानों की परू कताओ ं और परस्पर ननभभरता पर जोर
नदया, ईन्होंने महससू नकया नक समस्या ईस समझ ईत्पन्न होती है जब राज्य को सिोच्च माना
जाता है। ईन्होंने कहा, 'राज्य कइ संस्थाओ ं में से एक है, महत्िपणू भ है, लेनकन यह ऄन्य सभी से
उपर नहीं है। एकात्म मानििाद ऄननिायभ रूप से व्यनक्त और समाज तथा ब्रह्मांड के तालमेल में
निश्वास करता है।

10.7 राष्र पर रवचार

दीनदयाल ईपाध्याय ने पनश्चमी 'पंजू ीिादी व्यनक्तिाद' और 'माक्सभिादी समाजिाद' दोनों का निरोध
नकया। ईनके ऄनसु ार पजंू ीिादी और समाजिादी निचारधाराएं के िल मानि शरीर और नदमाग की
जरूरतों पर निचार करती हैं, आसनलए िे भौनतकिादी ईद्ङेश्य पर अधाररत हैं, जबनक अध्यानत्मक
निकास मानि के पणू भ निकास के नलए समान रूप से महत्िपणू भ माना जाता है, जो पंजू ीिाद और
समाजिाद दोनों में गायब है। ऄपने दशभन को अतं ररक नििेक, शद्च ु मानि अत्मा नजसे नचनत्त कहा
जाता है, पर अधाररत करते हुए, दीनदयाल ईपाध्याय ने एक िगभहीन, जानतनिहीन और संघषभ-मक्त ु
सामानजक व्यिस्था की पररकल्पना की।
दीनदयालजी के ऄनसु ार, के िल भनू म के िुकड़े पर समहू के रूप में एक साथ रहने भर से राष्र नहीं
बनता। ईन्होंने कुछ प्राचीन राष्रों का ईदाहरण देते हुए कहा की राष्र तब भी नष्ट हो गए जब लोग
एक साथ रह रहे थे, 'प्राचीन यनू ानी राष्र समाप्त हो गया। आसी प्रकार, नमस्र की सभ्यता भी लप्तु हो
गइ। बेबीलोननयाइ और सीररयाइ सभ्यताएाँ आनतहास का निषय हैं। क्या कभी ऐसा समय अया था
जब ईन देशों के नागररकों ने एक साथ रहना बदं कर नदया था? िहीं दसू री ओर ईनका कहना है,
'आजरायली यहूदी सनदयों तक दसू रे लोगों के साथ रहते रहे, दरू -दरू तक नबखरे रहे, नफर भी नजन
समाजों में िे रहते थे िहां सहिास के कारण ईनका निनाश नहीं हुअ। ऄतः यह स्पष्ट है नक राष्रीय
भािना का स्रोत भनू म के नकसी निशेष िुकड़े पर निके रहने में नहीं, बनल्क कुछ और में है। ईपाध्याय
जी के ऄनसु ार, मनष्ु यों के समान ही राष्र भी एक जीिमान आकाइ है। नजस प्रकार ईन्होंने व्यनक्त के

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नलए मन, बनु द्च, अत्मा और शरीर को महत्त्िपणू भ माना है ईसी प्रकार देश, संकल्प, धमभ और
अदशभ का समच्ु चय एक राष्र के नलए अिश्यक माना है। राष्र का पहला तत्त्ि- देश, भनू म और
ईस में बसे जनसाधारण, दोनों से नमलकर बनता है। दसू रा तत्त्ि जनसाधारण का संकल्प ऄथाभत
सभी की आच्छाशनक्त है। राष्र का तीसरा तत्त्ि धमभ है नजसे हम नीयम या सनं िधान के रूप में भी
समझ सकते हैं। चौथा तत्ि जीिन अदशभ और जीिन मल्ू य है। आन में से एक भी तत्त्ि का अभाि
हो तो राष्र नहीं कहलाया जा सकता। ईन्होंने यह भी स्पष्ट नकया की राज्य कइ संस्थाओ ं में से एक
है, महत्िपणू भ है, लेनकन यह ऄन्य सभी से उपर नहीं है। ईपाध्याय जी के ऄनसु ार नजस प्रकार
मानि शरीर नबना अत्मा के कुछ नहीं है , ईसी प्रकार राष्र की भी अत्मा होती है नजसे ‘नचनत’
कहा गया है। ईन्होंने नचनत की ऄिधारणा को अगे निकनसत नकया और आसे एक राष्र की अत्मा
के रूप में िनणभत नकया। ईन्होंने कहा नक मनष्ु य का जन्म अत्मा के साथ होता है। लोगों के
व्यनक्तत्ि, अत्मा और चररर सभी एक दसू रे से नभन्न होते हैं। नकसी व्यनक्त का व्यनक्तत्ि ईसके
सभी कायों, निचारों और धारणाओ ं के सच ं यी प्रभाि से बनता है। परन्तु अत्मा पर आन बातों का
कोइ प्रभाि नहीं पड़ता। आसी प्रकार, राष्रीय संस्कृ नत देश के आनतहास, ईसकी अनथभक नस्थनत अनद
निनभन्न कारणों से लगातार संशोनधत और निस्ताररत होती है। संस्कृ नत में िे सभी चीजें शानमल हैं
लेनकन ये नचनत को प्रभानित नहीं करती हैं। नचनत मौनलक है और प्रारंभ से ही राष्र के नलए
अिश्यक है। नचनत यह ननधाभररत करती है नक राष्र को सास्ं कृ नतक रूप से नकस नदशा में अगे
बढ़ना चानहए।
ईन्होंने यह निस्तार से बताया की नकसी निशेष कायभ के गणु और दोष ननधाभररत करने के नलए यनद
कोइ मानक है, तो िह यह नचनत है, प्रकृ नत से जो कुछ भी नचनत के ऄनरू
ु प है ईसे संस्कृ नत में जोड़ा
जाता है। आन चीजों का निकास होना चानहए जो कुछ भी नचनत के निरुद्च है, ईसे निकृ नत,
ऄिांछनीय मानकर त्याग नदया जाना चानहए। नचनत िह कसौिी है नजस पर प्रत्येक कायभ, प्रत्येक
दृनष्टकोण का परीक्षण नकया जाता है और स्िीकायभ या ऄस्िीकायभ ननधाभररत नकया जाता है। आस
नचनत के बल पर, एक राष्र का ननमाभण होता है, यह नचनत ही है जो नकसी राष्र के प्रत्येक महान
व्यनक्त के कायों में प्रदनशभत होती है।

10.8 धमभराज्य

पंनडत दीनदयाल ईपाध्याय ने राष्र की ऄिधारणा को धमभ से समृद्च नकया। ईनहोंने तकभ नदया नक
धमभ व्यनक्तगत अचरण और राज्य द्वारा शासन दोनों के नलए अिश्यक मागभदशभक है, नजसके नबना
कोइ भी प्रभािी ढगं से या नैनतक ईद्ङेश्य के साथ कायभ करने में सक्षम नहीं है। राज्य के िल धमभराज्य
ही हो सकता है और कुछ नहीं। कोइ भी ऄन्य पररभाषा आसके ऄनस्तत्ि के कारण से िकराएगी।
ईपाध्याय का तकभ है नक राजनीनतक ननकाय के भीतर राज्य और शासन के ऄलग-ऄलग ऄगं एक

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ही स्तर पर हैं और धमभ के अदेशों के ऄधीन हैं। आस प्रकार, ईपाध्याय आस बात पर जोर देते हैं नक
धमभ को बहुमत की आच्छा के निरुद्च प्रबल होना चानहए। िह आस तकभ को गलत बताते हैं नक लोगों
को सिोपरर माना जाना चानहए, क्योंनक कइ चरम नस्थनतयों में, यह संभि है नक िे गलत या ऄधमी
ननणभयों पर पहुचं जाए,ं नजसका निरोध नकया जाना चानहए। िह एक 'कल्याणकारी राज्य' का
परु जोर समथभन करते हैं जो धमभ के नसद्चांतों के ऄनरू
ु प न्यनू तम अिश्यकताएं प्रदान करता है, एक
ऄनधकार के रूप में मफ्ु त नशक्षा और नचनकत्सा देखभाल सनु ननश्चत करता है। ईनके नलए धमभ िे
काननू हैं जो नकसी राष्र की नचनत को प्रकि करने और बनाए रखने में मदद करते हैं। आसनलए यह
धमभ ही सिोच्च है। यनद धमभ नष्ट हो जाता है तो राष्र नष्ट हो जाता है। जो कोइ भी धमभ को त्याग
देता है िह राष्र के साथ निश्वासघात करता है। धमभ एक संकीणभ ऄिधारणा नहीं है, यह जीिन के
सभी पहलओ ु ं को शानमल करता है जो समाज, राष्र और यहां तक नक दनु नया को बनाए रखता है।
ऄभ्यास प्रश्न

1) दीनदयाल ईपाध्याय का जन्म कब हुअ?


2) पंनडत दीनदयाल ईपाध्याय की 3 रचनाओ ं का नाम बताआए?
3) ईपाध्याय के ऄनसु ार राष्र के 4 तत्त्ि के नाम बताआए।

10.9 साराांश

पंनडत दीनदयाल ईपाध्याय के निचार सद्भािना, सांस्कृ नतक ि राष्रिादी मल्ू यों की प्रधानता और
ऄनश ु ासन के मल
ू निषयों के आदभ-नगदभ घमू ते हैं। दीनदयाल ईपाध्याय के एकात्म मानििाद के दशभन
की समसामनयक प्रासंनगकता भारतीय परंपरा में सभी के कल्याण के निचार और समाज के सामने
अने िाले निनभन्न मद्ङु ों और प्रश्नों को संबोनधत करने का प्रयास करने में नननहत है। दीनदयाल
ईपाध्याय पनश्चमी अनथभक और राजनीनतक नसद्चांतों की अलोचना करते हुए भारत के नलए ईनकी
ईपयक्त ु ता पर सिाल ईठाते हैं। ईपाध्याय ने न के िल दनु नया भर में मौजदू ा सोच की जांच की,
बनल्क भारतीय निकल्प प्रदान करने का भी प्रयास नकया, यह सही ढंग से देखा गया है नक दीन
दयाल ईपाध्याय का एकात्म मानििाद प्रचनलत जीिन प्रणाली को पनु जीनित करके प्राचीन
भारतीय परंपरा और संस्कृ नत की रचनात्मक व्याख्या का प्रयास करता है। स्ितंर भारत में िह
पजंू ीिादी और समाजिादी िैचाररक दृनष्टकोण की ऄसतं नु लतता को आनं गत करते हैं और जीिन की
एक स्िदेशी प्रणाली की पेशकश करते हैं। ईनके निचार ितभमान समय में संघषभ-समाधान के निमशभ
को बदलने और राष्र ननमाभण की चनु ौनतयों का सामना करने में सक्षम हैं। दीन दयाल ईपाध्याय के
निचारों का निश्ले षण अधनु नक समय की मागं है।

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10.10 शब्दावली

ईपननिेशिाद- नकसी समृद्च एिं शनक्तशाली राष्र द्वारा ऄपने निनभन्न नहतों को साधने के नलए
नकसी ननबभल नकंतु प्राकृ नतक संसाधनों से पररपणू भ राष्र के निनभन्न संसाधनों का शनक्त के बल पर
ईपभोग करना।
प्रासंनगकता- कोइ सचू ना या नक्रया नकसी मामले या मद्ङु े से नकतना सम्बद्च है।

10.11 ाऄभ्यास प्रश्न के उत्तर

1) 25 नसतम्बर ,1916 2) राष्रभक्त, जगद्गरुु शक


ं राचायभ, सम्राि चंद्रगप्तु 3) देश, संकल्प, धमभ
और अदशभ

10.12 सांदर्भ ग्रन्थ सूची


1.दीनदयाल ईपाध्याय का एकात्म मानििाद, डॉ. गौतम सेन, डॉ. श्यामा प्रसाद मख़
ु जी ररसचभ
फाईंडेशन
2.Pandit Deendayal Upadhyaya by D.M.C. Sharma, Publications Division
Ministry of Information & Broadcasting.
3. Deendayal Upadhyaya: Life of an Ideologue Politician by Shiv Shakti Nath
Bakshi, Rupa Publication India Pvt. Ltd.
4. Politics of Renunciation: Centred around Deendayal Upadhayay by DP
Tripathi, Vij Books Private Limited.

10.14 रनबांधात्मक प्रश्न

1) दीनदयाल ईपाध्याय के एकात्म मानििाद के निचार का निश्लेषण करें ।


2) दीनदयाल ईपाध्याय के राष्र सम्बन्धी निचार पर ननबधं नलनखए।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 162
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05

इकाई: 11 डॉ0 भीमराव राम जी अम्बेडकर

11.1 प्रस्तािना
11.2 ईद्ङेश्य
11.3 जीिन पररचय
11.4 प्रमख
ु कृ नतयां
11.5 िणभ व्यिस्था का निरोध
11.6 जानत व्यिस्था का निरोध
11.7 ऄस्पृश्यता का निरोध
11.8 दनलतों के ईद्चार हेतु सझु ाि:
11.9 लोकतंर संबंधी निचार
11.10 राज्य संबंधी निचार
11.11 सारांश
11.12 शब्दािली
11.13 सदं भभ ग्रथं सचू ी
11.14 सहायक/ईपयोगी सामग्री
11.15 ननबंधात्मक प्रश्न

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 163
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
11.1 प्रस्तावना
डॉ0 ऄम्बेडकर का भारतीय समाज एिं राजनीनत में ऄभ्यदु य एक ऐसे समय हुअ जब ऄस्पृश्यता
के कारण मानिता कराह रही थी। नििेकानन्द के शब्दों में कहे तो ―मत छू, मत छू, की ऄिस्था
संपणू भ समाज में व्याप्त थी। आस ऄस्पृश्यता के निरुद्च डॉ0 ऄम्बेडकर ने एक संग्राम अरंभ नकया
तथा ऄपनी संपणू भ क्षमता दनलतों एिं दीन-हीनों के ईत्थान एिं सम्मान नदलाने हेतु समनपभत कर
नदया। डॉ0 ऄम्बेडकर 20िीं शताब्दी के ऐसे दरू दशी नचतं क थे नजन्हे स्ितरं भारत में ऄछूत एिं
िनं चत िगभ की भनू मका का स्पष्ट ज्ञान था। डॉ0 ऄम्बेडकर ने ऄस्पृश्यता के प्रनत नजम्मेदार लोगों के
सद्बुनद्च हेतु सत्याग्रह नकया पररणाम स्िरूप भारत में सामानजक न्याय के ऄग्रदतू के रुप में प्रनसद्च
हुये।

11.2 उद्देश्य
आस आकाइ के ऄध्ययन के ईपरान्त
1.िणभ व्यिस्था के सम्बन्ध में जान सकें गे।
2.जानत व्यिस्था और ऄस्पृश्यता के सम्बन्ध में जान सकें गे।
3.दनलतों के ईद्चार हेतु ईनके सझु ाि के सम्बन्ध में जान सकें गे।
4.राज्य और लोकतंर संबंधी निचार के सम्बन्ध में जान सकें गे।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 164
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
11.3 जीवन पररचय
डॉ0 ऄम्बेडकर का जन्म 14 ऄप्रैल 1891 में महाराष्र के ऄबांिडे नामक ग्राम के मध्यिगीय
महार पररिार से संबनधत ―रामजी सकपाल‖ के घर में हुअ था। आनके नपता कबीर पंथी निचार मागभ
से जड़ु े हुए सैन्य सेिान्तगभत नप्रनं सपल थे। भीमराि को 5 िषभ के बाल्यािस्था में मातृ शोक हो गया।
ऐसी पररनस्थनत में नपता राम जी सकपाल ने जीजाबाइ नामक निधिा मनहला से पनु निभिाह कर
नलया। भीमराि को ऄपनी निमाता से कोइ प्यार/लगाि नही था। आनका लालन-पालन मीराबाइ ने
नकया। ऄम्बेडकर का प्रारनम्भक नाम भीमराि राम जी ऄबं ािडेकर था नकंतु नाम ईच्चारण की
दरुु हता को देखते हुए एक ब्राह्मण ऄध्यापक ने ऄपना ऄबं ेडकर ईपनाम आनको दे नदया तब से यह
भीमराि रामजी ऄबं ेडकर के नाम पहचाने जाने लगे।
भीमराि के महार जानत से होने के कारण बाल्यकाल में कुछ किु एिं पीड़ादायक ऄनभु ि प्राप्त हुये।
भीमराि को गोरे गााँि में बैलगाड़ी की घिना एिं सतारा में पानी पीने की घिना ने बहुत ही अहत
करते हुए अत्मसम्मान को चोि पहुचाँ ाया।
पररिार की अनथभक नस्थनत को देखते हुए भीमराि में स्िािलंबी बनने की आच्छा बलिती होने
लगी। िे मबंु इ जाकर नमल मजदरू बनना चाहते थे। आस हेतु सदं भभ में नकराये हेतु ऄपने बअु की
थैली को चरु ाया नजसमें ―अधा अना‖ पैसा प्राप्त हुअ। आस चोरी की घिना ने भीमराि को हीनता
से भर नदया पररणामस्िरूप भीमराि मबंु इ जाने का आरादा त्याग कर पणू भ मनोयोग से ऄध्ययन करने
का प्रण नलया। कालान्तर में आनके नपता ने पररिार को दपोली से मबंु इ ले अये तथा आनका दानखला
ऐलनफन्सिन स्कूल में कराया।
हाइ स्कूल में संस्कृ त के स्थान पर आनको फारसी भाषा ऄध्ययन हेतु अबंनित हुयी नजससे भीमराि
ऄत्यतं दःु खी हुये। िे सस्ं कृ त को महाकाव्यों का स्िणभकोष मानते थे। जब 1907 में भीमराि ने
हाइस्कूल की परीक्षा ईत्तीणभ नकया तब के 0 ए0 के लस्ू कर नामक समाज सधु ारक ने एक सभा में
भीमराि का ऄनभनन्दन भी नकया के लस्ू कर ने आनको ऄध्ययन हेतु कुछ पस्ु तक भी ईपलब्ध
करिाया। भीमराि ईसी स्कूल से आण्िर की परीक्षा भी ईत्तीणभ नकया। घर की अनथभक नस्थनत खराब
होने के कारण भीमराि के नलए बी0 ए0 में ऄध्ययन करना ऄत्यंत कनठन हो गया था। भीमराि की
पररनस्थनत को देखकर के लस्ू कर ने बड़ौदा के महाराज से रु0 25 की मानसक छारिृनत्त नदलिायी।
1912 में भीमराि स्नातक परीक्षा ईत्तीणभ कर बड़ौदा के ―स्िेि फोसेज‖ में लेफ्िीनेण्ि की नौकर कर
नलया।
कालान्तर में बड़ौदा के महाराज ने भीमराि को ईच्च नशक्षा के नलए ऄमेररका भेज नदया कोलंनबया
निश्वनिद्यालय में भीमराि ने प्रिेश लेकर एम0 ए0 एिं पी0 एच0 डी0 की नडग्री प्राप्त नकया तथा
लंदन के ―ग्रेज आन‖ से निनध स्नातक की ईपानध भी प्राप्त नकया।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 165
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
भीमराि का नििाह 1905 में रमाबाइ के साथ हो गया था ईनकी मृत्यु के पश्चात आन्होंने 15 ऄप्रैल
1948 को एक ब्रह्मण मनहला डॉ0 सनिता कबीर से पनु निभिाह कर नलया। 14 ऄक्िूबर 1956 को
नागपरु में भीमराि ऄबं ेडकर ने बौद्च धमभ ग्रहण कर नलया।
ऄम्बेडकर के जीिन एिं व्यनक्तत्ि पर कबीर, ज्योनतबा राि फूले, एिं िानशगं िन का ऄत्यानधक
प्रभाि रहा है। ईक्त के ऄनतररक्त ऄम्बेडकर को राजनीनतक मल्ू यों जैसे स्ितंरता, समानता, न्याय
एिं बंधत्ु ि की भािना ने भी ऄनप्रु ानणत एिं प्रभानित नकया।

11.4 प्रमुख कृरतयाां


ऄम्बेडकर की कनतपय मख्ु य पस्ु तके ननम्न है-
1.द ऄनिचेबलस, हू अर दे एण्ड दे निकम ऄनिचेबल।, 2.हू बेयर द शीड्रलस?,3.एनीनहलेशन
ऑफ कास्ि।
4.कस्िम्स आन आनण्डया,5.स्िेि्स एण्ड माआना रिीज,
डॉ0 ऄम्बेडकर के सामानजक ि राजनीनतक निचार ननम्नित है:-

11.5 वणभ व्यवस्था का रवरोध


ऄम्बेडकर जी तत्कालीन सामानजक भेदभाि एिं ऄमानिीय व्यिहार से ऄत्यंत दख ु ी थे। ईनका
मत था नक नहन्दू समाज रुनढ़िाद एिं दनकयानसू ी के कारण कनतपय निकृ नतयों को अत्मसात कर
नलया है। िे शद्रू ों एिं दनलतों की दीन-हीन नस्थनत के नलए िणभ व्यिस्था एिं मनस्ु मृनत को ईत्तरदायी
मानते थे। िे िणभव्यिस्था का ऄिैज्ञाननक मानते हुए कहते थे नक यह कुछ निशेष लोगों को ही
लाभानन्ित करती है। मनस्ु मृनत की किु अलोचना करते हुए कहते हैं नक आसने शद्रू ों को ब्रह्मण
क्षनरय एिं िैश्य का सेिक बनाकर ऄन्याय का प्रनतकार करने िाले साधनों को भी शद्रू ों से छीन
नलया। िे ऊग्िदे के परुु ष सक्त
ू का भी निरोध करते रहे। ईनका मानना था नक अयो की सामानजक
संरचना में शद्रू िणभ का कहीं भी ईल्लेख नही है। आसनलए ये परुु ष सक्त ू ऊग्िदे का मौनलक ऄश ं
नही है। अयभ समाज में के िल तीन ही िणभ थे, ब्रह्मणों ने क्षनरयों को परानजत कर शद्रू िणभ में
पररिनतभत कर नदया। आस प्रकार स्पष्ट है नक शद्रू िणभ के लोग िास्ति में क्षनरय िणभ में ही थे। यह
चतभिु णभ व्यिस्था सामानजक न्याय के निपरीत है ऄतएिं आसको समाप्त नकया जाना स्िाभानिक एिं
न्याय संगत है।

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
11.6 जारत व्यवस्था का रवरोध
ऄम्बेडकर का मानना था नक िणभ अधाररत व्यिस्था ही जानत व्यिस्था का मल ू कारक है। कमभ पर
अनश्रत िणभ व्यिस्था रुढ़ एिं निकृ त होकर जन्म अधाररत हो गयी नजससे जानत व्यिस्था का ईद्य
हुअ। भारत में िाहय अक्रमणकाररयों के अकर बस जाने से भी जातीय व्यिस्था बहुत मजबतू
हुयी है। ऄम्बेडकर कहते थे नक कमभ के निशेषीकरण ने एक िणभ में कइ जानतयों का सृजन नकया।
आस जातीय व्यिस्था का ऄपना सनु िधा के नलए शादी-नििाह अनद माध्यमों से ननयम भगं नकया
ईसे जानत से बाहर कर नदया गया। यह जानत व्यिस्था समाज की प्रगनत को ऄिरुद्च कर रही है। यह
जानत नहन्दू धमभ पर कलंक बन गयी है। ईन्होंने ऄपने ग्रंथों में जानतिाद के दोषों पर चचाभ करते हुए
समाप्त करने का अग्रह नकया है। ईन्होंने नलखा है नक-
1.जानतिाद नहन्दओ
ु ं के ऄिननत एिं निनाश का कारण है।
2.चतभिु णभ व्यिस्था शोषणकारी है ऄतएिं आस पर नहन्दू जानत का सगं ठन ऄन्यायोनचत है।
3.यह जानत संरचना कुछ लोगों को ही नशक्षा एिं शस्त्र प्रनशक्षण का ऄनधकार देती है ऄतएिं
हाननकारक है
4.जातीय सरं चना नकसी भी समाज में राजनीनतक मल्ू यों यथा-स्ितरं ता, समानता एिं भातृत्ि को
समाप्त कर देती है ऄतएिं जातीय भािना को प्रोत्सानहत करने िाले सामानजक चेतना को समाप्त
करते हुए शास्त्रों के इश्वरीय अधार को ध्िस्त कर देना चानहए।
िे मानते थे नक ―जानत प्रथा ने नहन्दू िश
ं का नाश नकया है। नहन्दू समाज को आसने गहन ऄधं कार में
डाल नदया है और यह एक ऄशक्त एिं दबु भल समाज बनकर रह गया है। ऄम्बेडकर मानते थे नक
जानतिाद का स्रोत धमभग्रंथ है ऄतएिं लोगों को पनिर ग्रंथों एिं ईसकी नदव्यता के प्रनत अस्था का
पररत्याग कर देना चानहए। ऄम्बेडकर ने जानतिाद की समानप्त हेतु ऄन्तभजातीय नििाह पर बल देते
हुए कहा नक दो जानतयों के रक्त नमश्रण से पारस्पररक सबंधों में ननकिता स्थानपत होती है।
जानतमक्त
ु समाज ही प्रगनतगामी हो सकता है आसनलए ऄम्बेडकर चाहते थे नक नहन्दू समाज पणू तभ :
जातीय बधं नों से मक्त
ु हो जाय।

11.7 ाऄस्पृश्यता का रवरोध


ऄम्बेडकर मानते थे नक ऄस्पृश्यता नहन्दू धमभ की जानत प्रथा की ईपज है। ऄस्पृश्यता के कारण ही
ननधभनता, ननरक्षरता और हीनता की भािना लोगों में बनी हुयी है। ऄश्पृश्य लोगों ईच्च जानतयों के
दास के रुप में जीिन गजु ार रहे है। ऄतएिं अिश्यक है नक िणभ व्यिस्था एिं जानत व्यिस्था का
ईन्मल
ू न नकया जाय। ऄम्बेडकर जानत बनहष्कृ त एिं ऄछूतों के ईद्चार हेतु सघं षभ करने का प्रण
नलया। आसके पररणामस्िरुप नजन लोगों को जो काँु यें से जल नही ले सकते थे, पजू ागृहों एिं मनं दरों

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 167
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में प्रिेश नही कर सकते थे, सबके साथ नशक्षा ग्रहण नहीं कर सकते थे, ईन को एक नइ नदशा प्राप्त
हुयी। ऄम्बेडकर ने ऄछूतों के ईत्थान एिं सशनक्तकरण हेतु ―बनहष्कृ त नहतकाररणी सभा‖ की
स्थापना 20 जल ु ाइ 1924 को मबंु इ में नकया। आसका ईद्ङेश्य दनलतों की नशक्षा एिं अिासों के नलए
व्यिस्था करते हुए ऄस्पृश्यता ईन्मल ू न हेतु अदं ोलन प्रारम्भ करना था।
ऄम्बेडकर ने ऄस्पृश्यता ईन्मल ू न हेतु महाड़ एिं नानसक में सत्याग्रह/अदं ोलन नकया। कोलाबा
नजले के महाड़ क्षेर में नस्थत महानगर पानलका के तालाब के जल प्रयोग में ऄश्पृश्यों की पहुचाँ को
लेकर 20 माचभ 1927 को 5000 ऄश्पृश्यों के साथ सत्याग्रह नकया। आस सत्याग्रह के भाषण में
ऄम्बेडकर ने कहा नक ऄछूतों की जो सेना में भती बदं की गयी है ईसे पनु ः प्रारम्भ नकया जाय।
ऄम्बेडकर सत्याग्रह करते हुए तालाब पर पहुचाँ कर जल अचमन करते हुए पानी की पी नलया
ऄम्बेडकर ने कहा नक हम तालाब पर आसनलए जाना चाहते हैं नक हम तालाब पर आसनलए जाना
चाहते हैं नक हम भी औरों की तरह हैं और मनष्ु य की तरह जीिन जीना चाहते हैं। हम आस निषय पर
भी ननणभय चाहते हैं नक ऄछूत समाज नहन्दू धमभ के ऄन्तगभत है या नही। यह बड़ी नबडंबना है नक
नजस तालाब पर खतरनाक पशु पानी पी सकते हैं, ईस तालाब पर शद्रू क्यों नही?
ऄश्पृश्यों को मनं दर में प्रिेश नदलाने के नलए ऄम्बेडकर ने 2 माचभ 1930 को नानसक में कालाराम
मनं दर सत्याग्रह प्रारम्भ नकया। ऄछूत लोग आनके नेतत्ृ ि में ऄक्िूबर 1935 में मनं दरों में प्रिेश पा गये।
ऄम्बेडकर कहते थे नक प्रश्न यह है नक ऄछूत जानतयााँ मंनदर में प्रिेश करना चाहती हैं या नही। िे
कहते थे नक आस प्रश्न में ऄछूतों में दो प्रकार के निचार थे। प्रथम-िगभ मानता था नक भौनतक ईन्ननत
पर बल नदया जाय और नद्वतीय िगभ सामानजक समानता पर बल देता था। ऄम्बेडकर कहते थे नक
मनं दर के दरिाजे ऄछूतों के नलए खोलना या न खोलना यह नहन्दओ ु ं के नलए निचारणीय प्रश्न है,
मेरे नलए यह अदं ोलन करने का नही। ऄगर नहन्दू समझते हैं नक मानि के व्यनक्तत्ि की पनिरता को
ऄपमाननत करना एक बरु ी बात है- तो मनं दर के दरिाजे खोल दें और एक शरीफ अदमी बन जाय।
ऄम्बेडकर ऄस्पृश्यता एिं निषमता के मल ू में मनस्ु मृनत को देखते थे। िे कहते थे नक ―मनस्ु मृनत
निषमता का समथभ न करती है, शद्रू जानत की ननंदा करती है। स्ियं ननणभय के नसद्चान्त स्िीकार करने
िाले व्यनक्तयों को यह ग्रंथ कभी स्िीकायभ नहीं होता। ऄश्पृश्य िगभ आस ग्रंथ की मान्यताओ ं को
स्िीकार नही करता, आसको नदखलाने के नलए जलाने का मैंने ननणभय नलया हैं। ईन्होंने 25 नदसम्बर
1927 को महाड़ में मनस्ु मृनत को अग के हिाले कर नदया
ऄछूतों एिं दनलतों के ईद्चार हेतु डॉ0 ऄम्बेडकर ने 19 माचभ 1928 को एक ―महार ितन सधु ार‖
निधयेक प्रस्ततु नकया नजसमें दनलतों एिं ऄछूतों के सधु ार हेतु सरकारी खजाने से सहायता देने की
व्यिस्था की मााँग की गयी थी। ऄम्बेडकर ऄछूत निद्यानथभयों की नशक्षा के नलए सदैि नचंनतत रहते
थे। आसनलए ईन्होंने ―दनलत जानत नशक्षण सनमनत‖ की स्थापना नकया नजसमें सरकार ने भी ऄछूत
छारों के नलए ऄनदु ान रानश प्रदान नकया। समाज समता संघ के माध्यम से ऄम्बेडकर ने ऄछूतों को

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 168
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
नागररक ऄनधकारों के प्रनत जागरूक नकया। गणेश ईत्सि के पण्डालों में ऄछूतों को सम्मानजनक
स्थान नदलाने में ऄम्बडेकर ने महती भनू मका ऄदा नकया।
ऄम्बेडकर ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में कहा था नक मैं यहााँ ऄश्पृश्य लोगों के प्रनतनननध के रुप में
ईपनस्थत हुअ हू।ाँ ये ऄश्पृश्य लोग भारत की कुल अबादी का 20%हैं नजनकी दशा गल ु ामों से
बदतर घृनणत एिं पशिु त है। नब्रनिश सरकार से पूिभ भी हमारी नस्थनत दयनीय थी और अज भी
दयनीय बनी हुयी है। नब्रनिश सरकार के अने के बाद भी ऄछूतों को कुओ ं से जल लेने का प्रनतषेध,
मनं दरों में प्रिेश हेतु ननषेध और सेना भती में भी मनाही बनी हुयी है। हम ऄपने दःु ख स्ियं दरू करे ग।ें
आसके नलए हमें सत्ता के बागडोर की चाभी ऄपने हाथों में लेनी होगी।

11.8 दरलतों के उद्धार हेतु सुझाव:


ऄम्बेडकर एक सामानजक न्याय से यक्त ु समाज की स्थापना करना चाहते थे, जहााँ पर स्ितंरता,
समानता एिं भातृत्ि जैसे राजनीनतक मल्ू यों का सहऄनस्तत्ि हो। ऄम्बेडकर नतलक का सम्मान
करते थे नकन्तु ईनके ―स्िराज्य हमारा जन्म नसद्च ऄनधकार है के नारे से सहमत न थे। िे सामानजक
सधु ार पर ज्यादा बल देना चाहते थे। िे कहते थे नक जब तक ऄछूतों दनलतों को ईच्च िणों के
समान अनथभक एिं सामानजक ऄनधकार नही प्राप्त हो जाते तब तक राजनीनतक स्ितरं ता बेमानी है।
ऄतएिं दनलतों के ईत्थान हेतु ईच्च िणों के निचार एिं दृनष्ट में प्रगनतशील पररितभन अिश्यक हैं।
यह पररितभन राज्य तंर के द्वारा नकया जा सकता है। दनलतों के ईद्चार हेतु ननम्न सझु ाि ईनके द्वारा
नदेये गये-
1.सभी नहन्दओ
ु ं द्वारा स्िीकृ त नहन्दू धमभ का एक प्रामानणक ग्रंथ हो।
2.नहन्दयु ों में परु ोनहतिाद खत्म हो। यनद आसे बनाये रखना ऄननिायभ हो तो ईसके नलए पैतक
ृ अधार
को स्िीकार न नकया जाय
3.लोगों की अिश्यकतानसु ार परु ोनहतों की संख्या ननधाभररत होनी चानहए।
4.परु ोनहत एक प्रकार से राजकीय कमभचारी होने चानहये।
5.नहन्दू धमभ का सिभसमता, स्ितंरता एिं बंधत्ु ि के अधार पर पनु भगठन नकया जाना चानहए।
6.प्रचनलत पाररिाररक पद्चनत में तत्काल पररितभन नकया जाना चानहए तथा ऄन्तजाभतीय नििाह का
प्रचलन नकया जाना चानहए।
7.सहभोज की व्यिस्था को प्रोत्सानहत नकया जाना चानहये
8.दनलतों एिं ऄछूतों को माननसक दासता को त्यागना चानहये तथा ऄपने खान - पान को शद्च

बनाने का प्रयास करना चानहये।

ईत्तराखंड मक्त
ु निश्वनिद्यालय 169
अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
9.दनलतों को सत्ता में भागीदारी सनु ननश्चत करने के नलए पृथक प्रनतनननधत्ि नदया जाना चानहए।
10.दनलतों को नशक्षण संस्थाओ ं में प्रिेश लेने हेतु स्थानों को सरु नक्षत करने के साथ-साथ कुछ
छारिृनत्तयााँ प्रोत्साहन हेतु प्रदान की जानी चानहए।
11.दनलतों को रोजगार में समनु चत ऄिसर प्रदान करने हेतु स्थानों को अरनक्षत नकया जाना
चानहए।

11.9 लोकतांत्र सांबांधी रवचार


ऄम्बेडकर सामानजक न्याय के पक्षधर होन के कारण प्रजातरं में ईनका ऄतीि निश्वास था। िे सपं णू भ
जीिन में स्ितंरता, समानता, बंधत्ु ि को स्थानपत करने हेतु सतत् प्रयत्नशील रहे जो प्रजातंर का
मल
ू अधार है। ईनका मता था नक प्रजातंर के िल सरकार एक रुप मार न होकर सामानजक संगठन
का स्िरुप भी है। ऄतएिं प्रजातरं को ईच्चता ि ननम्नता पर नबना निचार नकये हुए सभी के
कल्याण हेतु कायभ करने चानहए। िह राजनीनतक प्रजातंर के संदभभ में 4 अधार स्तम्भ की चचाभ
करते है-
1.व्यनक्त ऄपने अप में स्ितः एक साध्य है।
2.व्यनक्त के कुछ ऐसे ऄनधकार हैं नजसे देने का िायद संनिधान को करना चानहए।
3.व्यनक्त को नकसी प्रकार का निनशष्ट ऄनधकार देने की यह शतभ न हो नक ईसे संिधै ाननक ऄनधकार
छोड़ने पड़ेग।े
4.राज्य नकसी व्यनक्त को ऐसा ऄनधकार नही देगा नजससे िह दसू रों पर शासन करे ।
ऄम्बेडकर चाहते थे नक प्रजातंर में स्ितंरता एिं समानता के मध्य संतलु न स्थानपत रहे। प्रजातंर
ऄनहसं ात्मक ईपायों पर ऄिलंनबत रहे। िे कहते हैं नक ―प्रजातरं शासन की एक ऐसी पद्चनत है का
प्रनतनननधत्ि करता है नजसके माध्यम से लोगों के राजनीनतक ही नही, सामानजक एिं अनथभक
जीिन में भी नबना रक्त रंनजत तरीकों को ऄपनाये अमल ू -चलू पररितभनों को व्यिहाररक रुप प्रदान
नकया जा सके ।
ऄम्बेडकर प्रजातंर के संसदीय स्िरुप को ऄत्यानधक पसंद करते थे। िे संसदीय शासन व्यिस्था के
ननम्नांनकत लक्षणों के कारण भारत के नलए ईपयोग मानते थे-
1.आसमें शासन का ऄनधकार िंशानगु त नही होता है।
2.आसमें व्यनक्त निशेष शासन/सत्ता का प्रतीक नही होता है।
3.ननिाभनचत प्रनतनननधयों में जनता का निश्वास रहता है

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अधनु नक राजनीनतक निचारक VAC-05
लेनकन ऄम्बेडकर पनश्चम देशों जैसे जमभनी, रुस, स्पेन आत्यानद में संसदीय शासन प्रणाली की
निफलता से नचंनतत भी थे। िह भारत के नलए चाहते थे आसे स्िीकारने से पिू भ आस बात पर मथं न
होना चानहए नक ईक्त देशों में यह नकन कारणों से निफल हुअ है। िे कहते थे नक संसदीय लोकतंर
तभी सफल हो सकता है जब समाज में ऄसमानतायें न हो तथा एक सशक्त निपक्ष भी ऄनस्तत्ि में
हो। िे लोकतंर के नलए स्थायी रुप से प्रशासननक तंर एिं सिं धै ाननक नैनतकता की भी बात करते
हैं।
भारत के संदभभ में ऄम्बेडकर ने मसु लमानों के पृथक ननिाभचन संघ का निरोध नकया क्योंनक यह
प्रजातानं रक नसद्चान्तों के निपरीत था। िे लोकतरं हेतु व्यस्क मतानधकार की िकालत करते थे। िे
कहते थे हरे क व्यनक्त को समान ऄिसर नमलना चानहए तभी देश का निकास हो सकता है। िे कहते
थे नक यनद हम भारत देश में लोकतंर की स्थापना करना चाहते हैं तो मत देने का ऄनधकार, पढ़े-
नलखे, धनी एिं सम्माननत व्यनक्त को ही न देकर भारत के समस्त बानलग नागररकों को देना होगा
तभी हम देश में सही लोकतंर स्थानपत कर सकते है। ऄगर हम मत देने का ऄनधकार नसफभ नशनक्षत,
धनी एिं सम्माननत व्यनक्तयों को ही देना चाहेगें तो देश के ―मल ू ननिानसयों‖ (िनं चत िगभ) के साथ
घोर ऄन्याय होगा, क्योंनक नजस व्यनक्त की नशक्षा एिं धन नही है, ईसके नलए िह व्यनक्त दोषी नही
है ऄनपतु मनिु ादी व्यिस्था दोषी है।
ऄम्बेडकर लोकतंर को सामानजक व्यिस्था की नीिं मानते थे आसनलए आसे भारत में सफल बनाने
हेतु कनतपय पररनस्थनतयों का ईल्लेख नकया है। जो आस प्रकार है
1.26 जनिरी 1950 को राजनीनतक जीिन में समता का यगु प्रारम्भ हो गया हैं नकंतु यह तभी
सफल होगा जब सभी प्रकार के सामानजक भेद-भाि का ऄन्त हो जायेगा।
2.लोकतंर में व्यनक्त पजू ा की भािना का ऄन्त होना चानहए।
3.सिं धै ाननक साधनों के प्रनत अम नागररकों में अस्था होनी चानहए।
4.नद्वदलीय व्यिस्था होने के साथ निपक्ष सशक्त होना चानहए।
5.प्रशासननक तंर ननष्पक्ष एिं ननरपेक्ष होना चानहए।

11.10 राज्य सांबांधी रवचार


ऄम्बेडकर के निचारों में ईदारिाद एिं समाजिाद दोनों के दशभन होते हैं। यही कारण है नक
ऄम्बेडकर एक ऐसा राज्य चाहते हैं जो व्यनक्त के स्ितंरता एिं गररमा का सम्मान करते हुए
लोककल्याण के मागभ को प्रशस्त करे । समाजिादी निचारों से व्यनक्त को साध्य मानते हैं, आसनलए िे
व्यनक्त की स्ितंरता को सकं ि में डालकर लोककल्याण नही चाहते हैं। िे कुल नमलाकर
ईदारिानदयों की तरह राज्य के सकारात्मक भनू मका को स्िीकारते हैं नकंतु व्यनक्त स्िातन्नयं् का

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क्षरण न हो। लोक कल्याणकारी राज्य में ही सिाांगीण निकास एिं समस्त नागररकों की प्रगनत संभि
है
ऄम्बेडकर चाहते थे नक राज्य का सच ं ालन ―ननयरं ण एिं सतं ल
ु न‖ नसद्चान्त पर अधाररत ससं दीय
प्रणाली के माध्यम से हो। तानक शासन के तीन ऄगं संयनमत एिं मयाभनदत रहें। िे ऄल्पसंख्यकों के
ऄनधकारों पर बहुमत के ऄनतक्रमण होने की संभािना के प्रनत सचेत करते थे। ऄम्बेडकर नमल की
भााँनत स्ितंरता के परम ईपासक थे। आसनलए िे एक ईत्तरदायी शासन व्यिस्था की स्थापना हेतु
ियस्क मतानधकार की िकालत करते थे। िे मतानधकार हेतु अयु के ऄनतररक्त नकसी ऄन्य
प्रनतबधं के नहमायती न थे।

11.11 साराांश
डॉ0 ऄम्बेडकर ऄपने प्रांरनभक जीिन से लेकर ऄन्त तक सामानजक न्याय के नलए संघषभ करते रहे
हैं। िे मानिानधकार के ईल्लंघन से बहुत ही नचनं तत रहते थे। ईनका मत था नक नहन्दू धमभ में
कनतपय निकृ नतयााँ समािेनशत हो गयी हैं ईसकी शल्य नक्रया होनी अिश्यक है। िे मनिु ादी
व्यिस्था के किु अलोचक थे नकंतु नहन्दू धमभ छोड़कर आस्लाम को भी स्िीकारने हेतु तैयार नही
हुये। िे दनलत प्रेम को ही राष्रीय प्रेम मानते थे। ऄम्बेडकर में ईदारिाद एिं समाजिाद का पणू भ
समन्िय था आसीनलए संसदीय लोकतंर का सदा पक्ष पोषण करते थे। ईनका मानना था नक राज्य
का स्िरुप कभी भी ऄनधनायकिादी नही होना चानहए। राज्य को सदा सकारात्मक कायो से जड़ु ा
होना चानहए। कुल नमलाकर ऄम्बेडकर दनलतों एिं ऄछूतों के नलए जीिन भर संघषभ नकया तथा
भारत के संनिधान में समाज के सभी िगों को समनन्ित करने का जो प्रयास नकया िह ईन्हें
―अधनु नक मनु‖ के रुप में स्थानपत करती है।

11.12 सांदर्भ ग्रांथ सूची


1. भीमराि ऄम्बेडकर - सनु ीता जोगी
2.भारतीय राजनीनतक नचंतन - ऄरुण कुमार
3.भारत में सामानजक ि राजनीनतक नचंतन -ऄिस्थी एिं ऄिस्था ।
12.14 सहायक/ईपयोगी सामग्री

11.13 रनबांधात्मक प्रश्न


1.डॉ0 भीमराि ऄम्बेडकर द्वारा ऄछूतों एिं दनलतों के संदभभ में नकये गये प्रयासों का िणभन कररये

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2.डॉ0 भीमराि ऄम्बेडकर का लोकतंर पर क्या निचार है? निश्लेषण कररये।
3.डॉ0 भीमराि ऄम्बेडकर सामानजक न्याय के पैगम्बर थे-व्याख्या कररये।

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