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Vimal Classes Civil Services


An Educational Foundation
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केंद्रीय एवं राज्य ससववल सेवा परीक्षाओ ं के सलए उपयोगी पुस्तिका
संववधान एवं राजव्यवस्था (प्रारंसिक और मुख्य परीक्षा हेत)ु
Useful for(IAS•PCS•UGC-NET/JRF & Other Competitive Exams)

• शत प्रततशत संिाववत अध्ययन सामग्री |


• ववशेषता :-वविार नोट्स |
• पूर्ण रूप से जााँच के पश्चात ववतररत सामग्री |
• वकसी त्रुरि या सुझाव के सलए आप हमें 7895860463 पर सम्पकण कर
सकते |
• िारतीय कॉपीराइि एक्ट 1957 के अंतगणत दिए गए प्रावधानों से इसको
सुरसक्षत रखा गया है अतः उसका िरू
ु पयोग न करे |
मेरे परमपूज्य िािाजी
श्री रामवीर ससिंह को समवपित
सजन्होंने मुझे बड़े सपने िेखना ससखाया

मुझे धन्यवाि न करे बस ईश्वर को शुविया अिा करे और असहाय लोगो की मिि करे
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आप सबके बीच ववमल ससिंह का संिेश ✒️


िेखखये हम गॉव से हैं, हमारे सामने अध्ययन का क्षेत्र ही एक मात्र ववकल्प होता है अगर हम इस क्षेत्र में
िी पूरी लग्न और सनष्ठा से नहीं लगेंगे तो सन :संिेह हमारी पररस्थस्थततयां किी नहीं बिलें गी और हमारा
िववष्य पहले की तरह ही अंधकार वाला ही बना रहेगा | एक बात जो मैं आप लोगों से कहना चाहता हं वह
यह है वक आपके अंिर वह जुनून, लगन, सशद्दत, जज्बात, और वह मजबूररयां जो आपके माता-वपता ने
आपके सलए सही हैं उन सब को झेला है आपके अंिर बहुत क्षमता है बस आप को ठानना पड़ेगा और आपने
अगर ठान सलया तो आप वह सब कुछ कर सकते हैं जो वकसी िूसरे के बस की नहीं | मुझे यकीन है आपके
माता वपता के संघषों पर आपकी मेहनत पर और आपके जज्बातों पर वक जीत आपकी सनसश्चत है ले वकन
आप रर्िूसम में आकर के उस संघषण का वबगुल तो बजाइए |

मैं आपके उज्जवल िववष्य की कामना करता हं

श्रद्धावान् लिते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय: |


ज्ञानं लब्ध्वा परां शास्तिमतचरेर्ातधगच्छतत ||
अर्ण :-जो व्यक्ति इन्द्रियों को वश में रखकर श्रद्धा के सार् ज्ञान की प्राप्ति में तत्पर होता
है उसी को ज्ञान समलता है |ज्ञान प्राप्ति के बाि शीघ्र ही उसे परम् शांतत िी प्राि होती है |

संपािक -ववमल ससिंह


संस्थान -ववमल क्लासेज ससववल सवविसेज

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अध्याय :- 01 िारत के संववधान की ऐततहाससक प्रष्ठिूसम


राजनीतत ससद्धांत के अंतगणत राजनीतत के सित्र – सित्र पक्षों का अध्ययन वकया जाता है । राजनीतत का संबंध.मनुष्यों के
सावंजसनक सजवन से है।राजनीततक प्रंबध के अंतगणत समाज के सारे सिस्यों के ऊपर सता का प्रयोग वकया जाता है ।

मनुष्य एकमात्र ऐसा प्रार्ी है जो अपने जीवन और पररवेश को उन्नत करने के तरीके लगातार सनकालता रहता है

राजनीततक ससद्धांत का ववचारक्षेत्र ( Area of political theory )

• वैज्ञासनक पद्धतत
• मानकीय पद्बतत
• िाशणसनक पद्बतत

परम्परागत दृखिकोर् ( Conventional approach )

राजनीतत के ववववध पक्षों के अस्तित्व एवं वैज्ञासनक अध्ययन को राजनीततक ससद्धांत कहा जाता है।

जनीतत के सलए प्रयुि अंग्रेजी शब्द पॉसलरिक्स(politics) की उत्पक्ति ग्रीक िाषा के तीन शब्दों ‘Polis'(नगर-राज्य),
‘Polity'(शासन) तर्ा ‘Politia'(संववधान) से हुई है। इस अर्ण में राजनीतत नगर-राज्य तर्ा उसके प्रशासन का
व्यवहाररक एवं िाशणसनक धरातल पर अध्ययन प्रिुत करती है।राजनीतत को Polis नाम प्रससद्ध ग्रीक ववचारक
अरिू द्वारा दिया गया है। अतः उन्हें ‘राजनीतत ववज्ञान का वपता’ कहा जाता है। आधुसनक अर्ों में राजनीतत शब्द को इन
व्यापक अर्ों में प्रयुि नहीं वकया जाता। आधुसनक समय में इसका संबंध राज्य ,सरकार, प्रशासन, व्यवस्था के तहत
समाज के ववववध संििों व संबधों के व्यवस्थस्थत एवं िमबद्ध ज्ञान एवं अध्ययन से है। प्ले िो, अरिू, सससरो, ऑगस्टाइन
व एक्वीनास राजनीतत ववज्ञान की परम्परागत ववचारधारा के ववचारक है। आधुसनक राजनीततक ववचारकों में चार्ल्ण
मेररयम, रॉबिण डहल, लासवेल, कैिसलन, मैक्सवेबर, लास्की, मैकाइवर का नाम उल्ले खनीय है। राजनीततक ससद्धांत
में ‘ससद्धांत’ के सलए अंग्रेजी शब्द Theory की उत्पक्ति यूनानी शब्द ‘Theoria'(थ्योररया) से हुई है, सजसका अर्ण है -
“समझने का ववसशि दृखिकोर्”। यह वही समझ है सजससे वकसी घिनािम को तावकिक वववेचन द्वारा स्पि वकया जाए
अर्ाणत वकसी अवधारर्ा की व्याख्या कर उसे ‘सामान्यीकरर्’ की ओर अग्रसर करना। इस प्रकार, राजनीततक ससद्धांत
का असिप्राय राजनीतत और उससे संबंतधत समस्याओ ं का ववसिन्न तथ्यों के आधार पर व्याख्या प्रिुत करने से है। जॉजण
एच. सेबाइन की चतचि त कृतत राजनीततक ससद्धांत का इततहास व डब्ल्यू.ए.डसनिं ग के राजनीततक ससद्धांत का इततहास के
अंतगणत प्राचीन काल से आधुसनक काल तक के राजनीततक ववचारों के इततहास पर प्रकाश डाला गया है।

परम्परागत दृखिकोर् में राजनीतत शास्त्र को चार अर्ों में पररिावषत वकया जाता हैं -

1. राज्य के अध्ययन के रुप में


2. सरकार के अध्ययन के रूप में
3. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में
4. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रुप में

राज्य के अध्ययन के रुप में ( State studies forms ) –

ब्लं िससल,गेरीस, गानणर, तर्ा गेिल आदि ले खको ने राजनीतत ववज्ञान को राज्य के अध्ययन के रूप में पररिावषत वकया
हैं।

1. ब्लं िससल के सब्दो में – “राजनीतत शास्त्र वह शास्त्र है सजसका सम्बन्द्द्ध राज्य से है, जोरजी की आधारिूत ससर्ततयो
,उसकी प्रकृतत, तर्ा ववववध स्वरूपों एवं ववकास को समझने का प्रयत्न करता हैं।
2. गैररस के शब्दों में- राजनीतत शास्त्र राज्य को एक शक्ति शास्त्र के रूप में मानता है जो राज्य के समि संबंधो,
उसकी उत्पक्ति, उसके स्थान, उसके उद्दे श्य उसके नैततक महत्व,उसकी आक्तर्िक समस्याओ ं, उसके ववततय पहलू आदि
का वववेचन करता हैं।
3. गानणर के अनुसार”- राजनीतत शास्त्र का आरंि और अंत राज्य के सार् होता है।
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4. गैिल के शब्दों में- राजनीतत शास्त्र राज्य के िूत ,िववष्य व वतणमान का,राजनीतत संग़ठन तर्ा राजनीतत कायों
का,राजनीती संस्थाओ ं का तर्ा राजनीतत ससद्धािों का अध्ययन करता हैं।

राजनीततक ससद्धांत का अर्ण एवं प्रकृतत ( Meaning and nature of political theory )

राजनीततक ससद्धांत ज्ञान की वह शाखा है जो राजनीतत के अध्ययन का सामान्य ढांचा प्रिुत करते हैं राजनीततक
मनुष्यों के सावणजसनक जीवन से है राजनीततक ससद्धांत के तीन करते है_ १.समालोचना २.पुनसनि माणर् ३.व्याख्या

पहले िो कृत्य राजनीततक िशणन से संबंतधत है जो मूल्यों पर बल िेते हैं जबवक तीसरा करते राजनीततक ववज्ञान से
संबंतधत है जो तथ्यों पर बल िेता है | एं ड्र्यू हैकर ने अपनी पुिक पोसलरिकल थ्योरी में राजनीततक ससद्धांत के िो अर्ण
बताएं

1. परंपरागत राजनीततक ससद्धांत में अपने ववचारों का इततहास सम्मिसलत है


2. आधुसनक राजनीततक ससद्धांत से राजनीततक व्यवहार का व्यवस्थस्थत अध्ययन वकया जाता है बल्हम ने अपनी
पुिक Theories of political system में बताता है वक राजनीततक ससद्धांत राजनीततक व्यवस्था के सलए अमृत
प्रततमान प्रिुत करता है राजनीततक तथ्यों के आकलन एवं ववश्ले षर् के सलए एक सनिेशक का काम करता है

राजनीततक ससद्धांत के प्रकार ( Types of Political Theory ) –

• परंपरागत ( The traditional )


• आधुसनक ( Modern )
• समकालीन ( Contemporaneous )

1.परंपरागत राजनीततक ससद्धांत ( Conventional political theory ) – पर िशणन का प्रिाव िेखा जाता है पाश्चात्य
जगत में दद्वतीय ववश्व युद्ध से पूवण तक सजन मान्यताओ ं एवं अवधारर्ा का समूह प्रचसलत रहा है उसे परंपरागत राजनीतत
ससद्धांत दिया शास्त्रीय यर्ार्णवाि राजनीततक की संज्ञा िी जाती है परंपरागत राजनीतत ससद्धांत के सनमाणर् के ववकास
में अनेक राजनीततक तचिं तकों का योगिान रहा है जैसे प्ले िो अरिू सेंि र्ामस एक्वक्वनास हॉब्स लॉक रूसो मॉन्टे स्क्यू
कांि आदि

परंपरागत राजनीतत ससद्धांत की ववशेषताएं ( Characteristics of traditional politics theory )

• परंपरागत राजनीतत ससद्धांत िशणनशास्त्र से प्रिाववत है विुतः राज शास्त्रीय नहीं राजनीतत ववज्ञान और
िशणनशास्त्र के सहयोग से ज्ञान की राजनीतत िशणन शाखा का सनमाणर् वकया और इसके आधार पर राजनीततक
ससद्धांत का सनमाणर् वकया
• परंपरागत राजनीततक ससद्धांत राजनीतत संपूर्णता को ववश्ले षर् की संपूर्ण इकाई मानता है
• परंपरागत राजनीतत में राजनीतत के तुलनात्मक अध्ययन पर बल दिया जाता है
• कोलकाता के राजनीतत के प्रमुख अध्ययन पद्धततयां है ऐततहाससक ववश्ले षर्ात्मक आिशाणत्मक वर्ाणत्मक
पररिाषा आत्मक

2. आधुसनक राजनीततक ससद्धांत ( Modern political theory ) – में तथ्यों एवं ववज्ञान का बोलबाला है इसका
ववकास िूसरे ववश्व युद्ध के बाि हुआ आधुसनक राजनीततक ससद्धांत के ववकास में रो बडहल, चार्ल्ण मेररयम, कैर्लीन,
लॉसवेल, वपनाक, डेववड ईस्टन आदि ववद्वानों ने िूसमका अिा की है

• अनुिव के उपागम
• व्यवहारवािी उपागम
• उिर व्यवहारवािी

3. समकालीन ससद्धांत – में परंपरागत व आधुसनक राजनीततक ससद्धांत को अपनाने का प्रयास वकया जाता है
राजनीततक ससद्धांत तुलनात्मक पद्धतत मे ( Political theory comparative method )

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1. समानता व अंतरो िोनों पर ध्यान दिया जाए


2. धुंधली सामान्यताओ ं को िूर रखा जाए
3. सादृश्यो व अनन्यो में िेि बनाए रखा जाए
4. तुलनाओ के आधार पर ही सनष्कषण बनाए जाए

1. ऐततहाससक उपागम

• प्राय यह उपागम एक प्रकार का प्रयोगात्मक उपागम है जो अपने लक्ष्य में सुधार मुखी है
• यह आगमनात्मक हैं , योंवक यह उपागम तथ्य व प्रक्षेर्ो पर आधाररत होता है
• यह एक अध्यापक है योंवक यह अतीत की व्याख्या करता है एक पर् प्रिशणक है योंवक यह िववष्य के सनमाणर् में
सहायता करता है
• यह तथ्यात्मक ,कारर्ात्मक एवं मूल्यात्मक है

2. िाशणसनक उपागम

• अपने स्वरुप मे असनवायण यह उपागम नैततक हैं


• सनिेशात्मक व मानवकय हैं
• “या है ” की उपेक्षा “या होना चारहए ” वक वह अतधक झुकता हुआ है
• इसमें में “संपूर्णता” पर अतधक बल दिया जाता है “अंश” पर इतना नहीं

3. मानकीय उपागम

• राजनीततक तचिं तन तर्ा राजनीततक तथ्यों की मूल्यात्मक ससद्धांत की है


• तनावीय प्रवृततयों से िूर तर्ा व्यवस्था व स्थस्थरता की प्रशंसा करता है
• व्यावहाररक कला है
• तथ्यों को नैततक दृखि से िेखना

4. आनुिववक उपागम

• यह उपागम तथ्यात्मकता से घसनष्ठ रूप से संबंतधत है


• तथ्यों के सत्यापन हेतु अनुिव प्रेक्षर् व परीक्षर्ों पर बल िेता है
• िववष्यवाची कानून संिव

5. व्यवहारवािी उपागम

• खोजी गई सनयसमतताओ ं से िववष्यवाची ससद्धांत बनाए जा सकते हैं


• ससद्धांतों का परीक्षर् वकया जा सकता है संख्यात्मक आंकड़ों पर आधाररत सनर्णय सलए जा सकते हैं
• शोध को िमबद्ध व ससद्धांत प्रेररत वकया जा सकता
• तत्थयुि व मूल्यववहीन

राजनीततक ससद्धांत की उपयोक्तगता ( Usefulness of political theory )

राजनीततक ससद्धांत अत्यंत व्यवहाररक एवं महत्वपूर्ण ववषय है। यह मूिण ववषय का अमूिण वर्णन है। माओ के शब्दों में-
“अभ्यास, ज्ञान, विर अभ्यास तर्ा विर ज्ञान: यही प्रविया अनि चिों में पुनरावृि होती है और प्रत्येक चि में अभ्यास
एवं ज्ञान की ववषय-विु उच्चतर िर प्राि करती है।” स्पि संकेत है वक ससद्धांत सनमाणर् की प्रविया में अभ्यास और
ज्ञान का ववसशि योगिान है।

इसके महत्व(उपयोक्तगता) को अग्रसलखखत वबिं िुओ ं द्वारा स्पि वकया जा रहा है -

1. सद्भावना, सिान तर्ा सरहष्णुता का पररचय।


2. शब्दावली का अर्ण-सनधाणरर् तर्ा संकल्पनाओ ं का स्पिीकरर्।
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3. इततहास की व्याख्या तर्ा सामासजक पुनसनि माणर्।


4. बौद्धद्धक तचिं तन का आधार
5. राजनीततक तकण का सनमाणर् तर्ा परीक्षर्।

मैवकयावेली ( Machiavelli )

मैवकयावेली का जन्म 3 मई 1469 को हुआ र्ा मैवकयावेली को राजनीती ववज्ञान का वपतामह कहा जाता हैं मैयावली
पाश्चात्य राजनीततक तचिं तन की वह कड़ी है जो मध्यकालीन युग को आधुसनक युग से जोड़ती है मैयावली को पाश्चात्य
जगत में आधुसनक युग के द्वार पर खड़ा िेखते हैं

मैयावली पहला ववद्वान है सजसने राजनीततक ववज्ञान को राज्य शब्द दिया उसके समि राजनीततक ववचार राज्य की
संकल्पना पर केंदद्रत है उससे पहले राज्य शब्द एक साधन के रूप में समझा जाता र्ा मैयावली ने बताया वक राज्य
अपने साध्य का स्वयं साधन है उसने राज्य के सलए सलखा है और बताया है राज्य की सुरक्षा से बड़ा कोई धमण नहीं होता
और उससे बड़ी कोई नैततकता नहीं होती उसके समि राजनीततक ववचारों का सार राज्य कला का ससद्धांत हैं मैयावली
अपने युग का सशशु का र्ा

मैयावली की अध्ययन पद्धतत ऐततहाससक ,पयणवेक्षर्ात्मक, आगमनात्मक ,वैज्ञासनक, तुलनात्मक, यर्ार्णवािी तर्ा
आगमनात्मक है

मैयावली की रचनाएं

1. ” ि आिण ऑि वार (1521) – युद्ध कला पर सलखी गई एक उत्कृि रचना है


2. “ि रहस्क्री ऑि फ्लोरेंस” (1532) – सजसमें मैयावली ने इिली के अतीत वतणमान इततहास का वर्णन
है
3. “ि वप्रिं स” (1532)- मैयावली द्वारा सलखी एक अमर रचना है इसमें राज्य कला ससद्धांत का पूर्ण वववरर् समलता
हैं,
4. “ि रडसकोससि स ऑन िस्टण िै न बुक्स ऑि िाइिस ववसनयस (1531 )- इसमें गर्तंत्रात्मक सरकार का पक्ष ले ते
हुए बताया गया है रडसकोसनि स, ि वप्रिं स की अपेक्षा एक संपूर्ण रचना है सजसका संबंध व्यवहाररक राजनीतत से है परंतु
ि वप्रिं स की अपनी ववशेषता है

मैवकयावेली फ्लोररडा गर्राज्य के नौकरशाह र्े 1498 में क्तगरोलामो सावोनारोला के सनवाणसन और िांसी के
बाि मैवकयावेली को फ्लोररडा चांसले री सतचव चुना गया र्ा

राजनीततक ससद्धाि महत्वपूर्ण कर्न ( Political Theories Important Statements )

आर.जी.गैिेल- ने “राजनीततक तचिं तन का इततहास” (History of Political Thought-1949) में सलखा है वक


*”राजनीतत-ससद्धांत पर यह आरोप लगाया जाता है वक व्यवहाररक पररर्ामों की दृखि से यह न केवल बंजर िूसम की
तरह सनष्फल ससद्ध होता है वक बस्थि यह यर्ार्ण राजनीतत के सलए िी ववनाशकारी है।”

डी.डी.रिील- ने अपनी कृतत “संकल्पनाओ ं के स्पिीकरर् का कायण घर की सिाई जैसा है।” िुववधाओ ं और भ्ांततयों के
सनराकरर् हेतु सतत् ववश्ले षर् तर्ा तावकिक तचिं तन असनवायण है।

हेगेल और माक्सण के अनुसार- सरकार मनुष्यों की अपनी पसंि से नहीं बनती बस्थि यह ऐततहाससक ववकास की
स्विाववक शक्तियों का पररर्ाम होती है।

माक्सण ने कहा र्ा- “वक िाशणसनक अब तक ववश्व की व्याख्या िेते आए हैं, प्रश्न यह है वक इसके पररवतणन कैसे लाया जाए
?

कालण मैनहाइम के अनुसार- सामासजक ववज्ञान हमें सामासजक पुनसनि माणर् का पर् प्रशि करती है। सामासजक
शक्तियों का ज्ञान प्राि करके मानव प्रगतत को बढावा दिया जा सकता है।

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डेववड हेल्ड ने अपनी महत्वपूर्ण कृतत- “आज का राजनीततक ससद्धांत” की िूसमका में स्पि सलखा है वक ‘राजनीततक-
ससद्धांत से ववमुखता से राजनीतत अक्ल के अंध, स्वार्ी या सिालोलुप लोगों के हार् में प्राि होगा।’

ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी की स्थापना –

1498 ई. में वास्को-डी-गामा नामक पुतणगाली नाववक ने युरोप से िारत को जाने वाले सामुदद्रक मागण की खोज की।
यह खोज एक युगािकारी घिना ससद्ध हुई। डॉ. ईश्वरी प्रसाि के अनुसार गामा की इस खोज ने िारत और यूरोप के
पारस्पररक इततहास के सम्बन्ध में एक नये अध्याय का सूत्रपात वकया, इसके िलस्वरूप यूरोप के लोग िारतीय
इततहास के रंगमंच पर पहले व्यापाररयों के रूप में और विर बस्तियों के बनाने वालों के रूप में उतर आए। इस सम्बन्ध में
डॉडवेल ने इस प्रकार सलखा है, सम्भवतः मध्ययुग की अन्य वकसी िी घिना का सभ्य संसार पर इतना गहरा प्रिाव नहीं
पड़ा, सजतना वक िारत जाने के समुद्र मागण खुलने का। वास्को-डी-गाम ने कालीकि के रहन्दू शासक जमोररन से
पुतणगासलयों के सलए व्यापाररक सुववधाएाँ प्राि की। इसके बाि पुतणगासलयों का िारत में व्यापार आरम्भ हुआ। सोलहवीं
शताब्दी में उन्होंने िसक्षर्ी िारत के पसश्चमी ति पर कालीकि, कोचीन और कलानौर के स्थानों पर अपने व्यापाररक
केि स्थावपत वकए और गोआ, िमन एवं िीव आदि स्थानों पर अपनी बस्तियााँ स्थावपत कर लीं। इतना ही नहीं, उनकी
सुरक्षा के सलए वहााँ सुदृढ नौसेना िी रखी। पुतणगासलयों की बढती हुई शक्ति तर्ा व्यापार से प्रिाववत होकर अन्य
यूरोवपयन िेशों ने िी िारत के सार् व्यापार करने के सलए अपनी व्यापाररक कंपसनयााँ स्थावपत की। 1602 ई. में हालै ि
के डच व्यापाररयों ने िारत में व्यापार के सलए एक कम्पनी स्थावपत की। अब िारतीय व्यापार के सलए पुतणगासलयों एवं
डचों में संघषण आरम्भ हो गया, सजसमें डचों को सिलता प्राि हुई। इस समय इं ग्लै ि में व्यापाररयों ने िी पूवी िेशों के
सार् व्यापाररक सम्बन्ध स्थावपत करने का सनश्चय वकया। इस उद्दे श्य की पूतति हेतु 24 ससतम्बर, 1599 ई. को लन्दन के
कुछ प्रमुख व्यापाररयों ने िाउिसण हॉल में एक सिा की, सजसकी अध्यक्षता नगरपासलका के अध्यक्ष लाडण मेयर ने की।
गम्भीर सोच-ववचार के बाि इन व्यापाररयों ने व्यापार सम्बन्धी अतधकार प्राि करने के सलए महारानी एसलजाबैर् की
सेवा में एक प्रार्णना पत्र िेजा। महारानी ने इस प्रार्णना पत्र पर 31 दिसम्बर, 1600 ई. को अपनी स्वीकृतत प्रिान कर िी।
इस प्रकार, िारत के सार् व्यापार करने के सलए ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी की स्थापना हुई, सजसका नाम गवणनर एि
कम्पनी ऑि मचेण्टट्स इन्टू ि ईस्ट इिीज (पूवी इिीज में व्यापार करने वाले व्यापाररयों की कम्पनी और प्रशासक)
रखा गया |

कम्पनी का संववधान -

महारानी के अतधकार-पत्र में कम्पनी के संववधान तर्ा उसके ववशेषातधकारों का उल्ले ख वकया गया र्ा। इसके अनुसार
कम्पनी के कायों का संचालन करने के सलए इं ग्लै ि में िो ससमततयााँ र्ीं-स्वामी मिल (Court of Proprietors) एवं
संचालक (Court of Directors) कम्पनी के समि रहस्सेिार स्वामी मिल के सिस्य होते र्े। मिल को यह
अतधकार र्ा वक वह कम्पनी और उसके कमणचाररयों के सलए उपसनयम बना सके और आिेश एवं अध्यािेश जारी कर
सके। इसके अततररि वह सनयमों की अवहेलना करने वालों पर जुमाणना करता र्ा एवं उन्हें िि िी िेता र्ा। यह धन
उधार िेता र्ा और सिस्यों के बीच लाि का ववतरर् करता र्ा। कम्पनी के व्यापाररक केिों का प्रशासन तर्ा
कमणचाररयों के सनयन्त्रर् का अस्तिम उिरिातयत्व स्वामी मिल के हार् में र्ा। यह मिल संचालक मिल के सनर्णयों
में संशोधन, पररवतणन रद्द िी कर सकता र्ा। संचालक मिल में चौबीस सिस्य होते र्े। इसका चुनाव स्वामी मिल के
सिस्यों द्वारा उन्हीं के बीच से होता र्ा। सजस सिस्य का कम्पनी में िो हजार पौि या इससे अतधक मूल्य का रहस्सा रहता
र्ा, वह संचालक मिल का सिस्य बनने के सलए चुनाव लड़ सकता र्ा। सजस सिस्य का कम्पनी में पााँच सौ पौि रहस्सा
होता र्ा, वह केवल सनवाणचन में वोि िे सकता र्ा। विुतः इस कम्पनी के कायों का संचालन स्वामी मिल द्वारा सनसमि त
कानूनं, ववतधयों, सनयमों और उप-सनयमों द्वारा करता र्ा। कम्पनी के शासन प्रबन्ध पर सनयंत्रर् रखने के सलए एक
पररषद् होती र्ी, सजसमें पााँच सिस्य होते र्े। गवणनर उसका प्रधान होता र्ा। इस प्रकार, वह प्रेसीडेन्सी का सवोच्च
अतधकारी र्ा। गवणनर और उसकी पररषद् द्वारा मुख्य कायण शासन प्रबन्ध पर सनयंत्रर् रखना, िारतीय शासन से सम्बन्ध
स्थावपत करना एवं न्याय प्रबन्ध आदि की िेखिाल करना र्ा। कम्पनी के कायों का संचालन करने के सलए इसके सनजी
कमणचारी होते र्े, सजसको वेतन दिया जाता र्ा। उन्हें व्यापार करने का सनजी अतधकार िी दिया गया र्ा। यह व्यवस्था

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कम्पनी के सलए कम खचीली तर्ा आकवषि त करने वाली र्ी। कमणचाररयों ने अपने अतधकारों का िुरूपयोग करते हुए
अपार धनरासश संग्ररहत की र्ी। उन्होंने िारतीयों का बहुत अतधक आक्तर्िक शोषर् वकया। कम्पनी के सिस्यों के बारे में
ब्रूस ने सलखा है, स्थापना के समय ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी को साहसी लोगों की मिली कहा गया र्ा, सजसके सिस्य लूि
के सलए सनकलते र्े और जो धन कमाने के सलए झूाँठ, बेईमानी तर्ा िरेब करने में जरा िी संकोच नहीं करते र्े। कम्पनी
के मासलकों ने शुरू में ही सनश्चय कर सलया र्ा वक कम्पनी की नौकरी में वे शरीि व्यक्ति को नही रखेंगे। इस तरह एक
ऐसा गुि कायम हुआ, सजसके सिस्य सच झूठ, ईमानिारी-बेईमानी और न्याय-अन्याय का ख्याल नहीं रखते र्े।

कम्पनी की शक्ति में वृद्धद्ध –

1600 से 1765 ई. तक ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी मुख्यतः व्यापाररक संस्था र्ी। इसका अपना कोई राजनीततक प्रिाव नहीं
र्ा। परिु वब्ररिश पासलि यामेन्ट और िारतीय सिाओ ं ने उिारतापूर्ण संरक्षर् के कारर् कम्पनी खूब िली-िूली और
वह धीरे-धीरे एक व्यापाररक संस्था से राजनीततक शक्ति बन गई। इस काल में ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी की शक्ति में
असाधारर् वृद्धद्ध हुई। उसका संसक्षि वववरर् इस प्रकार है- जेम्स प्रर्म तर्ा चार्ल्ण प्रर्म के शासन काल में कम्पनी की
उन्नतत कम्पनी स्थापना के केवल तीन वषण बाि अर्ाणत् 16903 ई. में महारानी एसलजाबैर् की मृत्यु हो गई और जेम्स
प्रर्म इं ग्लै ि का राजा बना। उसने 1609 ई. में महारानी द्वारा कम्पनी को दिए गये अतधकार-पत्र की अवतध में वृद्धद्ध की
और कम्पनी के जहाजों की लम्बी यात्राओ ं में उन पर अनुशासन बनाए रखने के उद्दे श्य से अतधकाररयों को कुछ अतधकार
िी प्रिान वकए। जेम्स प्रर्म का उिरातधकारी चार्ल्ण प्रर्म कम्पनी के रहतों के प्रतत उिासीन र्ा। उसके शासनकाल में
1623 ई. डचों ने कुछ अंग्रेजों का सम्बोना में वध कर दिया। सजसके कारर् वब्रिे न में तीव्रगतत से रोष िैल गया। परिु
चार्ल्ण प्रर्म ने इस दिशा में कोई किम तक नहीं उठाया। इसके ववपरीत उसने अपने एक कृपापात्र सर ववसलयम कोिण न
को पूवी िेशों के सार् व्यापार करने के सलए एक नई कम्पनी की स्थापना का अतधकार िेकर जले पर नमक तछड़का।
कोिण न ने असाडा कम्पनी की स्थापना की, सजसके कारर् ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी को बहुत बहुत नुकसान उठाना पड़ा।

िामवैल और कम्पनी –

चार्ल्ण प्रर्म की मृत्यु के पश्चात् आसलवर िामवैल इं ग्लै ि की राजगद्दी पर बैठा। उसने कम्पनी के रहतों की रक्षा के सलए
हर सम्भव प्रयास वकया। उसने डचों से लड़ाई लडी, और बैिसमन्स्टर की 1654 की सस्तन्ध के अनुसार कम्पनी को डचों से
85,000 पौंड की धनरासश क्षततपूतति के रूप में दिलवाई। इस रासश में से िामवेल ने 50,000 पौि अपने युद्धों का खचण
पूरा करने के सलए कम्पनी से उधार सलए। ए.सी.बनजी ने इस सम्बन्ध में सलखा है, कम्पनी को उसके ववशेषातधकारों के
सलए मूल्य चुकाने के सलए वववश करने की नीतत का श्रीगर्ेश वकया। िामवैल ने 1657 ई. में एक चािण र द्वारा ईस्ट
इन्द्रिया कम्पनी तर्ा असाडा कम्पनी को समलाकर एक बना दिया। हण्टर के शब्दों में, इस प्रकार लं िन की यह कम्पनी
मध्ययुगीन श्रेर्ी (Guid) के एक सनरर्णक अवशेष से बिल आधुसनक संयुि पुाँजी कम्पनी का एक सशि अग्रिूत बन
गई। इस प्रकार, िामवैल ने कम्पनी की सराहनीय सहायता की।

चार्ल्ण दद्वतीय का उिारतापूवणक संरक्षर् -

1657 ई. में िामवैल की मृत्यु के पश्चात् उनका पुत्र ररचडण िामवैल इं ग्लै ि का स्वामी बना, परिु वह अयोग्य एवं िुबल

शासक ससद्ध हुआ। इस पर इं ग्लै ि की प्रजा ने चार्ल्ण के पुत्र चार्ल्ण दद्वतीय को सनवाणसन से वावपस बुलाकर 1660 ई. में
िेश का राजा बना दिया। चार्ल्ण दद्वतीय के उिारतापूर्ण संरक्षर् के कारर् कम्पनी ने असाधारर् समृद्धद्ध के काल में प्रवेश
वकया। उसने अपने शासनकाल में कम्पनी को पााँच अतधकार-पत्र (चािसण) प्रिान वकए। पररर्ामस्वरूप कम्पनी के
रहस्सों का मूल्य बहुत बढ गया और उसे ससक्के बनाने, वकले बनाने और उसमें सेना रखने, गैर -ईसाई शक्तियों के सार्
युद्ध छे ड़ने और सस्तन्ध करने के सिी अतधकार समल गए। 1688 में चार्ल्ण दद्वतीय ने बम्बई का नगर, जो उसे पुतणगाल की
राजकुमारी कैर्राइन ऑि ब्रैगैंजा के सार् वववाह में िहेज में समला र्ा, 10 पौि वावषि क वकराये पर कम्पनी को िे दिया।
कम्पनी को इस बन्दरगाह और नगर के तर्ा इसके सनवाससयों के सलए कानून, आिेश तर्ा अध्यािेश और संववधान

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बनाने का अतधकार दिया गया। इस प्रकार कम्पनी एक व्यापाररक संस्था से िू-स्वासमनी शक्ति बन गई। इसके अततररि
कम्पनी पिातधकाररयों को अपने कमाणचाररयों को िि िेने के अतधकार िी दिए गये।

जेम्स दद्वतीय और कम्पनी –

1685 ई. में जेम्स दद्वतीय इं ग्लै ि की राजगद्दी पर बैठा। उसके शासनकाल में ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी ने बहुत उन्नतत की।
सन् 1686 के चािण र द्वारा उसने कम्पनी का नौसेना बनाने का और युद्ध काल में उन पर सैसनक कानून लागू करने का,
अपने वकलों में मुद्राएाँ ढालने का और अतधकरर् न्यायालय स्थावपत करने का अतधकार दिया गया। 1687 में वब्ररिश
सरकार ने कम्पनी को मद्रास में नगरपासलका तर्ा मेयसण कािण (Mayors Court) स्थावपत करने की आज्ञा िे िी। इस
प्रकार, इस काल में कम्पनी को सैसनक और न्यातयक शक्तियााँ प्राि हो गईं। इससे कम्पनी के ववकास पर गहरा प्रिाव
पड़ा। इसके अततररि कम्पनी के प्रससद्ध संचालक सर जोससया चाईल्ड ने िी इसके रहतों की हर प्रकार से रक्षा करने के
सलए बड़ा महत्त्वपूर्ण कायण वकया। एस.सी. इल्बिण सलखते हैं, सर जोससया चाईल्ड ने कम्पनी को एक स्थिग (Whig)
समुिाय से िोरी (Tory) समुिाय में पररवतति त कर दिया और इं ग्लै ि के शासक जेम्स दद्वतीय को इसका रहस्सेिार बना
दिया। इसके अततररि, उसने खुले दिल से ररश्वते िेकर कम्पनी के रहतों को ववरोधी तत्त्वों के प्रिाव से सुरसक्षत रखा।

1688 की शानिार िांतत और कम्पनी को हासन –

1688 की शानिार िांतत ने ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी पर एक िीषर् आघात वकया। जेम्स दद्वतीय के इं ग्लै ि से िाग जाने
के पश्चात् स्थिग िल (Whig Pary) के नेता बहुत शक्तिशाली हो गए जो कम्पनी के व्यापाररक एकातधकार के कट्टर
ववरोधी र्े। सर जोससया चाइल्ड का प्रिाव िी पहले की अपेक्षा कम हो गया र्ा। इन पररस्थस्थततयों से उत्सारहत होकर बहुत
से व्यापाररयों ने, सजन्हें कम्पनी की समृद्धद्ध से ईष्याण र्ी, इसके एकातधकारों को िंग करना शुरू कर दिया। उन्होंने एक
नई व्यापाररक कम्पनी बनाई, जो न्यू कम्पनी के नाम से प्रससद्ध है। इस नई कम्पनी ने ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी के ववरूद्ध
संघषण आरम्भ कर दिया। सन् 1691 में ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी को एक ववतचत्र संकि का सामना करना पड़ा। इस वषण
पासलि यामेन्ट ने यह सनश्चय वकया वक पुरानी और नई िोनों ही कम्पसनयों को समलाकर एक कर दिया जाए। परिु सर
जोससया चाईल्ड की हठधमी के कारर् यह प्रयत्न वविल रहा। इस पर पातयि यामेन्ट ने ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी को तीन वषण
के िीतर अपना व्यापार समेि ले ने का नोरिस दिया और नई कम्पनी के पक्ष में एक चािण र जारी करने का सनश्चय वकया।
इस ववतचत्र स्थस्थतत में सर जोससया चाईल्ड ने बड़ी चतुराई से काम सलया और राजा के मन्त्रन्त्रयों को उपरहार या ररश्वत आदि
िेकर अपने पक्ष में कर सलया। पररर्ामस्वरूप सम्राि ने 1693 ई. में ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी के पक्ष में एक अतधकार-पत्र
जारी कर दिया। सजसमें कुछ ववशेष शतों पर कम्पनी के ववशेषातधकारों की पुखि की गई र्ी। इसके बाि कम्पनी को
1698 में एक अतधकार-पत्र (चािण र) और समला, सजससे उसकी स्थस्थतत और दृढ हो गई। पुरानी तर्ा नई कम्पनी का ववलय
यद्यवप न्यू कम्पनी अिी तक अपने प्रयासों में सिल नहीं हुई र्ी, तर्ावप उसके संचालक ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी के
व्यापाररक एकातधकार का ववरोध करते रहे और उसे प्रत्येक क्षेत्र में हासन पहुाँ चाने की कोसशश िी की। उनकी आपसी
शत्रुता का वब्ररिश सरकार ने लाि उठाया और िोनों कम्पसनयों से कािी धन ऋर् के रूप में ले सलया। धीरे -धीरे इन
िोनों कम्पसनयों के बीच ववनाशकारी प्रततयोक्तगता शुरू हुई। इस पर इस संघषण को समाि करने के सलए लाडण गोल्डवपन
की हिक्षेप करना पड़ा। अितः 1708 में िोनों कम्पसनयों को समलाकर एक बना दिया गया। इस प्रकार, एक नई
कम्पनी बन गई, सजसका नाम 6 पूवी इिीज के सार् व्यापार करने वाले इं ग्लै ि के व्यापाररयों की संयुि कम्पनी
(The United Company of Merchants of England to East Indies) रखा गया।

1711 और 1758 के बीच अतधसनयम और चािण सण –

इसके बाि के वषों में वब्ररिश सरकार ने 1709, 1711, 1730 एवं 1744 में ववसिन्न एक्ट्रस पास वकए, सजनके िलस्वरूप
कम्पनी के ववशेषातधकारों की अवतध 1780 तक हुई। 1709, 1728, 1754, 1756 एवं 1758 में पास होने वाले चािण रों से िी
उनकी शक्तियों में वृद्धद्ध हुई। इस प्रकार, कम्पनी को उसके व्यापार काल (1600-1758) में इं ग्लै ि की सरकार की ओर
से बहुत अतधक सहायता प्राि हुई, सजसके कारर् वह एक समुद्धशाली संस्था बन गई।

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िारतीय राजाओ ं का संरक्षर् -िारत में मुगल सम्रािों तर्ा िेशी शासकों ने िी कम्पनी को व्यापार काल में उिारतापूर्ण
संरक्षर् दिया और इसे समय-समय पर बहुमुल्य ररयायतें िी। 1608 ई. में इस कम्पनी का पहला जहाज हावकन्स के
नेतृत्व में सूरत बन्दरगाह पर पहुाँचा। वह अपने वब्रिे न के राजा का पत्र िी लाया र्ा। वह मुगल सम्राि जहााँगीर के समक्ष
अत्यि नम्रतापूवणक उपस्थस्थत हुआ। इस स्थस्थतत का वर्णन करते हुए सुन्दरलाल ने ठीक ही सलखा है, जहााँगीर के िरबार
में उस समय वकसी को इस बात का गुमान नहीं हो सकता र्ा वक िूर पसश्चम की एक छोिी-सी सनबणल अद्धण-सभ्य जातत
का जो िूत उस समय िरबार में िो जानू होकर जमीन को चूम रहा र्ा, उसी के वंशज, एक रोज मुगल साम्राज्य को अंग-
िंग हो जाने पर रहन्दुिान के ऊपर शासन करने लगेंगे। हावकन्स ने वब्ररिश राजा का एक पत्र मुगल सम्राि जहााँगीर
को दिया। 6 िरवरी, 1613 ई. को एक शाही िरमान द्वारा अंग्रेजों को सूरत में एक व्यापाररक कोठी स्थावपत करने की
आज्ञा िी एवं मुगल िरबार में एक प्रततसनतध रखने की अनुमतत िे िी गई। कम्पनी की ओर से सर िॉमस को इस पि पर
सनयुि वकया गया। िॉमस रो के प्रयासों से सूरत की कोठी की अत्यातधक उन्नतत हुई। इस समय अंग्रेजों ने िडौच,
अहमिाबाि और आगरा में िी अपनी व्यापाररक कोरठयााँ स्थावपत कर िीं।पी.ई. रॉबिण स् ने िामस रो के कायों का
मूल्यांकन करते हुए सलखा है, वह अपनी आशा के अनुसार, ववतधवत् और सनसश्चत सस्तन्ध प्राि करने में असिल रहा।
परिु उसे मुगल साम्राज्य के नगरों में कारखाने स्थावपत करने की आज्ञा समल गई। इतना ही नहीं, उसने तो अपनी
राजनीततक प्रततिा और बुद्धद्ध कौशल से मुगलों के हृिय में, एक राष्ट्र के रूप में, अंग्रेजों के प्रतत श्रद्धा उत्पन्न कर िी।
उसका सबसे बड़ा काम तो यह र्ा वक उसने कम्पनी के सलए एक ऐसी नीतत सनधाणररत की, जो आिमर् िावना से ररहत
और वबिुल व्यावसातयक र्ी। कम्पनी ने सिर वषण तक इस नीतत का पालन वकया। इसका पररर्ाम यह हुआ वक िारत
में ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी की स्थस्थतत उिरोिर दृढ होती गई।

मद्रास पर अतधकार –

1639 में चिक्तगरी के रहन्दू राजा ने मसौलीपट्टम के िसक्षर् में लगिग 230 मील की िूसम कम्पनी को प्रिान की, जहााँ
वक आजकल मद्रास नगर स्थस्थत है। उसने कम्पनी को इस स्थान की वकले बन्दी करने, मुद्रा ढालने, न्याय करने और
कुछ ववशेष शतों के अनुसार शासन करने का अतधकार िी दिया। तीन वषण पश्चात् कम्पनी को मद्रास में शासन सम्बन्धी
कई अन्य अतधकार िी प्रिान वकए गये, सजससे उसका सनयंत्रर् और अतधक दृढ हो गया। परिु इस कम्पनी पर मुगल
सरकार का आतधपत्य र्ा और इसके तचि स्वरूप कनाणिक के मुगल सूबेिार को वावषि क कर िेती र्ी। कम्पनी के मद्रास
में ढाले जाने वाले ससक्कों पर िी मुगल सम्राि का पूर्ण सनयंत्रर् र्ा। सन् 1752 ई. में जब कनाणिक के सूबेिार ने कम्पनी
से वावषि क कर ले ना बन्द कर दिया, तो कम्पनी पूर्णरूप से मद्रास की शासक बन गई।

कलकिा की नींव रखना –

1690 ई. में ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी ने हुगली निी पर 26 मील नीचे की ओर सुिनवी नामक गााँव में एक बिी की नींव
रखी, सजसने बाि में कलकिा नगर का रूप धारर् कर सलया। छः वषण बाि इस बिी की वकले बन्दी की गई और उसका
नाम िोिण सेंि ववसलयम (इस जगह आज कलकिा बसा हुआ है) रखा। सन् 1968 ई. कम्पनी ने बं गाल के सूबेिार को
वावषि क कर िेने का वचन िेकर तीन गााँव (सुंतनती, कलकिा और गोववन्दपुर) की जमींिारी खरीि ली। कम्पनी ने इस
गााँवों से लगान इकट्ठा करने तर्ा िीवानी मुकिमों का सनर्णय करने का अतधकार िी प्राि हो गया। सर समणन ने इन
गााँवों के सम्बन्ध में शाही िरमान प्राि करने का प्रयत्न वकया, परिु स्थानीय सूबेिार के ववरोध के कारर् उसे सिलता
प्राि नहीं हो सकी। 1756 ई. बंगाल के नवाब ससराजुद्दौला ने एक औपचाररक सस्तन्ध द्वारा कम्पनी के ववशेषातधकारों की
पुखि की और उसे मुद्रायें ढालने तर्ा कलकिा की वकले बन्दी करने की अनुमतत िे िी। इसके बाि ऐसी राजनीततक
घिनाएाँ घिीं, सजनसे कम्पनी एक राजनीततक शक्ति बन गई।

िारत का संवैधासनक ववकास :-

िारत का संववधान एक दिन की उपज न होकर वषों के अनुिव का प्रकाश पुंज है। इसकी जड़े स्वतंत्रता के वि वृक्ष की
जड़ों से जकड़ी हुई है। इसका इततहास ईस्ट इं रडया कंपनी की स्थापना के सार् प्रारंि और अंत सन् 1950 में होता है। 24
ससतंबर 1599 ई. को लं िन के कुछ प्रमुख व्यापाररयों ने िाउं डसण हाल में एक सिा की सजसकी अध्यक्षता नगरपासलका
एक अध्यक्ष लॉडण मेयर ने की। गंिीर सोच ववचार के बाि इन व्यापाररयों ने व्यापार संबंधी अतधकार प्राि करने के सलए
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महारानी एसलजाब्रेर् की सेवा में एक प्रार्णनापत्र िेजा। महारानी ने इस प्रार्ण नापत्र पर 31 दिसंबर 1600 ई को अपनी
स्वीकृतत प्रिान कर िी। इस प्रकार िारत एवम िसक्षर् पूवण िेशों के सार् व्यापार करने के सलए ईस्ट इं रडया कंपनी की
स्थापना हुई सजसका नाम गवनणर एं ड कंपनी ऑि मचेंट्स इन िू ि ईस्ट ( पूवी इं डीज में व्यापार करने वाले व्यापाररयों
की कंपनी और प्रशासन) रखा गया। इस कंपनी का सारा प्रशासन एक पररषि को सौंपा गया सजसके सशखर पर गवनणर
और 24 अन्य सिस्य र्े। उल्ले खनीय है वक इसे गवनणर और उसकी पररषि की संज्ञा िी गई। 1726 के चािण र द्वारा कलकिा,
बंबई तर्ा मद्रास प्रेसीडेंससयों के राज्यपालों तर्ा उनकी पररषि को ववतध बनाने की शक्ति प्रिान की गई। इसके पहले यह
शक्ति इं ग्लैं ड स्थस्थत सनिेशक बोडण में सनरहत र्ी।

िारत के संवैधासनक ववकास को हम 2 िागों में बांि सकते है:

1. ईस्ट इं रडया कंपनी के शासन के अंतगणत संवैधासनक ववकास और


2. वब्रिे न की सरकार के शासन के अंतगणत संवैधासनक ववकास

सजस समय तक (1858 ई) ईस्ट इं रडया कंपनी का शासन रहा, वब्रिे न की संसि ववसिन्न अवसरों पर ववसिन्न कानून व
आिेश पत्रों को जारी करके कंपनी के शासन पर सनयंत्रर् रखती रही और इसने स्वयं िारत के शासन को अपने हार्ों में
ले सलया तब िी उसने िारत के शासन के सलए ववसिन्न कानून बनाए। उन सिी आिेश पत्रों और कानूनों को हम िारत
के संवध
ै ासनक ववकास में सम्मिसलत करते है। िारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना का कायण प्लासी युद्ध से आरंि हुआ।
बक्सर की ववजय अर्ाणत 1764 के उपरांत की गई इलाहाबाि की संतध ने उन्हें बंगाल के शासन में िागीिार बना दिया,
तत्पश्चात 1772 में द्वैध शासन को समाि कर वब्ररिश कंपनी बंगाल की शासक बन गई और उसके बाि 1773 में वब्ररिश
संसि ने यह आवश्यक समझा वक एक कानून बनाकर िारत में अंग्रेजी शासन को व्यवस्थस्थत वकया जाए। इस तरह
व्यावहाररक तौर पर िारत के संवध
ै ासनक ववकास का इततहास रेगुलेरििं ग एक्ट के तहत आरंि होता है। 1773 से 1858 ई
तक का यह ववकास संसि द्वारा पाररत कानून तर्ा सम्राि अर्वा साम्राज्ञी द्वारा प्रित चािण र एक्ट के माध्यम से होता रहा।
उसके पश्चात दद्वतीय चरर् 1858 से ले कर 1947 तक का वब्ररिश शासन के द्वारा संवैधासनक रूप से ववकास होता रहा,
सजसका सनम्नसलखखत वबिं िुओ ं के आधार पर वववेचन वकया गया है। िारत में संवैधासनक ववकास के अंतगणत हम प्रमुख
चािण र एक्ट एवं उसके प्रमुख प्रावधानों की चचाण करेंगे।

िारत का संवैधासनक ववकास : एक दृखि में



↓ ↓
वब्ररिश ईस्ट इं रडया कम्पनी के अिगणत िारत (1773-1853) वब्ररिश िाउन के अिगणत िारत (1858-1947)

↓ ↓
रैग्यूलेरििं ग एक्ट-1773 गवनणमेंि ऑि इं रडया एक्ट-1858

↓ इं रडयन काउं ससल एक्ट-1861

वपट्स इं रडया एक्ट-1784 इं रडयन काउं ससल एक्ट-1892

↓ िारत पररषि अतधसनयम-1909

चािण र एक्ट-1793 िारत सरकार अतधसनयम-1919

↓ िारत सरकार अतधसनयम-1935

चािण र एक्ट-1813 अगि प्रिाव- 1940

↓ विप्स प्रिाव- 1942

चािण र एक्ट-1833 कैवबनेि समशन-1946

↓ माऊंिबेिन योजना-1947

चािण र एक्ट-1853
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1600 ई• का राजले ख

िारत का संवैधासनक ववकास ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी की स्थापना के सार् प्रारम्भ होता है। यह कायण एक राजले ख के
माध्यम से वकया गया, सजसे सन् 1600 ई. का राजले ख कहा गया। इस राजले ख के माध्यम से महारानी एसलजाबेर्
प्रर्म ने 31 दिसम्बर, 1600 ई. को ‘ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी’ की स्थापना कर उसे पूवी िेशों में 15 वषों तक व्यापार करने
का अतधकार प्रिान वकया। स्थापना के समय कम्पनी की कुल पूाँजी 30133 पौि र्ी तर्ा इसमें कुल 217 िागीिार र्े।
इस कम्पनी का सारा प्रशासन एक पररषि को सौंपा गया सजसके सशखर पर गवनणर एवं उप गवनणर और 24 अन्य सिस्य
र्े। इसे ‘गवनणर और उसकी पररषि’ की संज्ञा दिया गया। ध्यातव्य है वक बाि में इस पररषि को ‘कोिण ऑि डाइरेक्टसण’ व
‘सनिेशक मिल’ नाम से असिरहत वकया गया।

रैग्यूलेरििं ग एक्ट-1773

इं ग्लै ि में कंपनी का प्रबंध संचालक ससमतत द्वारा वकया जाता र्ा। इन संचालकों का चुनाव कंपनी के उन रहस्सेिारों
द्वारा वकया जाता र्ा, सजनके पास कम से कम 500 पौि के रहस्से होते र्े। इं ग्लै ि की संसि कंपनी के मामलों में प्रायः
हिक्षेप नहीं करती र्ी। 1765 ई. में िीवानी का अतधकार प्राि करने के बाि कंपनी के कमणचारी िारत में धनी बनकर
इं ग्लै ि लौिने लगे तर्ा वहााँ की राजनीतत में हिक्षेप करना आरंि कर दिया र्ा। अतः इं ग्लै ि में यह आम िावना र्ी
वक कंपनी आक्तर्िक दृखि से मजबूत है । कंपनी की आक्तर्िक स्थस्थतत अत्यंत ही तचिाजनक र्ी। उसकी आक्तर्िक नींवें
खोखली हो चुकी र्ी। स्थस्थतत यहााँ तक पहुाँच गई र्ी वक यदि कंपनी के सलए जल्दी से जल्दी धन न जुिाया गया तो कंपनी
के अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो सकता र्ा। कंपनी की आक्तर्िक स्थस्थतत वबगड़ने के सनम्न कारर् र्े

• कंपनी ने िारत में लगातार युद्ध वकये र्े तर्ा इन युद्धों में अत्यतधक मात्रा में धन खचण हुआ र्ा, वकिु इन युद्धों के
िलस्वरूप उसे कोई ववशेष आक्तर्िक लाि नहीं हुआ र्ा।
• यद्यवप कंपनी ने बंगाल, वबहार व उडीसा की िीवानी का अतधकार तो प्राि कर सलया र्ा, वकिु इस िीवानी से
कंपनी को जो राजस्व प्राि होना चारहए र्ा, वह प्राि नहीं हो रहा र्ा।
• कंपनी के कमणचारी अपने सनजी व्यापार में लगे हुए र्े। इस सनजी व्यापार के कारर् वे कंपनी के व्यापार की उपेक्षा
कर रहे र्े। अतः कंपनी को व्यापार से कोई लाि प्राि नहीं हो रहा र्ा।
• कंपनी के रहस्सेिार ने कंपनी के लािांश को बढाना आरंि कर दिया। 1766 में यह लािांश 6 प्रततशत से बढाकर
10 प्रततशत ही रहा। 1772 में इसे 12 प्रततशत करना चाहा, वकिु संसि के हिक्षेप के कारर् 10 प्रततशत ही रहा। 1772
में इसे 12 प्रततशत कर दिया गया।
• संसि के कुछ सिस्यों का ववचार र्ा वक कंपनी आक्तर्िक दृखि से मजबूत है, इससलए कंपनी को िाउन के अधीन
कर दिया जाय। इस ववचारधारा के प्रबंल होने के कारर् कंपनी ने अपनी राजनीततक उपलन्द्रियों को सुरसक्षत करने
के सलए राज्य को 1 िरवरी, 1767 से 4 लाख पौि वावषि क िेना स्वीकार वकया। पहले यह समझौता िो वषण के सलए
हुआ र्ा, वकिु 1769 में यह समझौता अगले पााँच वषों के सलए बढा दिया गया।

कंपनी की वबगङती हुई स्थस्थतत के कारर् कंपनी के सलए धन की व्यवस्था करना आवश्यक हो गया। कंपनी को इतनी
ववशाल रासश केवल इं ग्लै ि की सरकार ही िे सकती र्ी। वकिु कंपनी के संचालकों को इस बात की आशंका र्ी वक
सरकार से ऋर् मााँगने पर कहीं कंपनी को िाउन के अधीन न कर दिया जाय तर्ा इं ग्लै ि के शेयर बाजार में शेयरी िे ने
का आवेिन पत्र िेजा गया। इस आवेिन पत्र के संबंध में इं ग्लै ि के ववचारकों में तीव्र प्रततविया हुई। कंपनी के आवेिन
पत्र पर ववचार करने हेतु सरकार ने यह मामला िो ससमततयों- सीिेि ससमतत तर्ा सले क्ट ससमतत को सौंपा। इन
ससमततयों के सुझावों के आधार पर सरकार ने िो ववधेयक तैयार वकये। प्रर्म ववधेयक में कंपनी को 14 लाख पौि ऋर्
िेने की व्यवस्था की गई तर्ा िूसरे ववधेयक में कंपनी पर कुछ सरकारी सनयंत्रर् रखने के सलए कंपनी की संचालक
ससमतत तर्ा िारत में प्रशासन व्यवस्था में पररवतणन करने की व्यवस्था की गई। िूसरे ववधेयक को रेग्युलेरििं ग एक्ट कहा
जाता है , सजसे इं ग्लै ि की संसि मे 1773 ई. में पास वकया तर्ा 1774 ई. में लागू वकया गया।

रेग्युलेरििं ग एक्ट के उद्दे श्य

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•कंपनी पर िाउन का सनयंत्रर् व अतधकार स्थावपत करना ।

• कंपनी की संचालक ससमतत के संगठन में कुछ पररवतणन करना

•कंपनी के राजनीततक अस्तित्व को स्वीकार करके उसके व्यापाररक ढााँचे को राजनीततक कायों के संचालन के योग्य

बनाना।

रेग्युलेरििं ग एक्ट की धाराएाँ

• कंपनी के संचालकों के चुनाव में वही व्यक्ति मत िेने का अतधकारी होगा, सजसके पास कंपनी के 1,000 पौि के
शेयर होंगे। इससे पहले मतातधकार उन व्यक्तियों को र्ा, सजनके पास कंपनी के 500 पौि के शेयर र्े।
• संचालकों का कायणकाल एक वषण के स्थान पर 4 वषण होगा और कुल सिस्यों का ¼ िाग (6 सिस्य) प्रततवषण चुने
जायेंगे। एक ही सिस्य के िुबारा चुने जाने के पूवण एक वषण का अवकाश होगा।
• सजन व्यक्तियों के पास37 व 10 हजार पौि मूल्य के शेयर र्े, उन्हें िमश: 2,3,4 मत िेने का अतधकार दिया गया।
• िारत में कंपनी के सलए एक गवनणर-जनरल ऑि बंगाल की सनयुक्ति की गई तर्ा उसकी सहायता के सलए चार
सिस्यों की एक कौंससल का सनमाणर् वकया गया। गवनणर जनरल के सलए वारेन हेप्तस्टिंग्ज के नाम का उल्ले ख वकया
गया तर्ा कौंससल के चार सिस्यों के सलए बारवेल, फ्ांससस, क्ले वररिं ग व मॉन्सन के नामों का उल्ले ख वकया गया।
ससमतत के सिस्यों का कायणकाल 5 वषण रखा गया तर्ा यह िी कहा गया वक कौंससल के सनर्णय बहुमत के आधार
पर होंगे।
• बंबई व मद्रास प्रांत के गवनणर और कंपनी की शाखाओ ं को गवनणर जनरल के अधीन कर दिया गया। इन िोनों
गवनणरों को अपनी वविेश नीतत (िेशी राजाओ ं से युद्ध करने अर्वा संतध करने में) बंगाल कौंससल के सनिेश न में
कायण करने को कहा गया। वकिु असाधारर् स्थस्थतत में ये िोनों स्वतंत्रतापूवणक कायण कर सकते र्े तर्ा संचालक
ससमतत से सीधे आिेश प्राि कर सकते र्े।
• बंगाल में एक सवोच्च न्यायालय की स्थापना की गई, सजसमें एक मुख्य न्यायाधीश तर्ा तीन अन्य न्यायाधीश
सनयुि वकये गये। बंगाल, वबहार व उडीसा की समि अंग्रेज प्रजा पूरी तरह से इस न्यायालय के अधीन होगी। मुख्य
न्यायाधीश के पि के सलए सर एसलिं ग इम्पे के नाम का उल्ले ख वकया गया।
• गवनणर-जनरल एवं उसकी कौंससल को सनयम बनाने तर्ा अध्यािेश प्रसाररत करने का सनिेश दिया गया, वकिु
इन्हें लागू करने के पूवण इनका सवोच्च न्यायालय की द्वारा पंजीकरर् एवं प्रकासशत वकया जाना आवश्यक र्ा।
• कंपनी के संचालकों व िारत में स्थस्थत कंपनी के बीच जो िी पत्र-व्यवहार होगा, उसकी एक प्रतत इं ग्लै ि की
सरकार के पास िेजी जायेगी।
• कंपनी के कमणचाररयों द्वारा चलाया जाने वाला सनजी व्यापार पूरी तरह से वसजि त कर दिया गया तर्ा ऐसा करना
िंडनीय अपराध घोवषत वकया गया।

रेग्युलेरििं ग एक्ट का महत्त्व -

यद्यवप रेग्युलेरििं ग एक्ट गुर् व िोषों से युि र्ा, विर िी उन पररस्थस्थततयों को ध्यान में रखते हुए, सजसमें उसका सनमाणर्
हुआ, सवणर्ा सराहनीय र्ा। सप्रे ने ठीक ही सलखा है वक यह अतधसनयम संसि द्वारा कंपनी के कायों में प्रर्म हिक्षेप र्ा,
अतः उसकी नम्रतापूवणक आलोचना की जानी चारहए। यह एक्ट कंपनी की व्यवस्था को सुधारने की प्रर्म प्रयास र्ा और
इस दृखि से कुछ िोष रह जाने स्वािाववक र्े। इस एक्ट द्वारा कंपनी के राजनीततक लक्ष्य व अस्तित्व को स्पि रूप से
स्वीकार वकया गया। अतः यह अतधसनयम कंपनी के संवैधासनक इततहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

1726 का राजले ख

• 1726 के राजले ख द्वारा कलकिा, बंबई तर्ा मद्रास प्रेसीडेन्सी के गवनणरों को ववतध बनाने की शक्ति सौंपी गई।
• 1726 के चािण र के द्वारा िारत स्थस्थत कंपनी को सनयम, उपसनयम तर्ा अध्यािेश जारी करने की शक्ति प्रिान की
गयी।

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एक्ट ऑफ़ सेिलमेंि,1781

रेग्यूलेरििं ग एक्ट, 1773 में अिसनि रहत गम्भीर व्यावहाररक िोषों को िूर करने के सलए वब्ररिश संसि के प्रवर ससमतत के
अध्यक्ष एडमंड बकण के सुझाव के आधार पर इस एक्ट का प्रावधान वकया गया। इसे ‘संशोधनात्मक अतधसनयम’
(Amending Act) या बंगाल जूडीकेचर एक्ट, 1781 की िी कहा जाता है। वब्ररिश संसि ने 1781 ईस्वी में िो ससमततयां
(प्रवर ससमतत और गुि ससमतत) सनयुि की र्ी। एडमंड बकण की अध्यक्षता में प्रवर ससमतत को िारत में न्याय व्यवस्था,
उच्चतम न्यायालय तर्ा सवोच्च पररषद् के संबंधों की जांच करने का कायण सौंपा गया। ससमतत ने उसी वषण अपना
प्रततवेिन प्रिुत कर दिया सजसके िलस्वरूप 1781 ईस्वी का संशोधन अतधसनयम पाररत वकया गया इस अतधसनयम को
एक्ट ऑि सेिलमेंि, 1781 और बंगाल जूरडकेचर एक्ट, 1781 के नाम से िी जाना जाता है।

• इस एक्ट के द्वारा कलकिा की सरकार को बंगाल, वबहार और उड़ीसा के सलए िी ववतध बनाने का प्रातधकार प्रिान
वकया गया। इस प्रकार अब कलकिा की सरकार को ववतध बनाने के िो स्त्रोत प्राि हो गये। पहला, रेग्यूलेरििं ग
ऐक्ट के अधीन वह कलकिा प्रेसीडेन्सी के सलए और िूसरा ऐक्ट ऑि सेिलमेंि के अधीन बंगाल, वबहार एवं उड़ीसा
के दिवानी प्रिेशों के सलए ववतध सनसमि त कर सकती र्ी।
• सवोच्च न्यायालय के सलए आिेशों और ववतधयों के सम्पािन में िारतीयों के धासमि क व सामासजक रीतत-ररवाजों
तर्ा परम्पराओ ं का ध्यान रखने का िी आिेश दिया गया।
• गवनणर जनरल-इन-कौंससल को सवोच्च न्यायालय की अतधकाररता से मुि कर दिया गया। अर्ाणत् गवनणर
जनरल की पररषद् अब जो सनयम बनाएगी, उसे उच्चतम न्यायालय के पास पंजीकृत कराना आवश्यक नहीं होगा।
• प्रािीय न्यायालयों के ववरुद्ध अपील गवनणर जनरल की पररषि के पास की जा सकती र्ी। पु नश्च 5000 पौंड या
अतधक मूल्य के मामले सपररषि वब्ररिश सम्राि के पास िेजे जा सकते र्े।
• सवोच्च न्यायालय की शक्ति को सीसमत करते हुए उसकी राजस्व अतधकाररता को समाि कर दिया गया तर्ा
स्थानीय सनयमों को ध्यान में रखकर नए कानूनों को प्रवतति त करने का सनिेश दिया गया। इस प्रकार इस
अतधसनयम ने रेग्यूलेरििं ग एक्ट के अनेक वववािों और करठनाइयों को िूर कर दिया। इसका उद्दे श्य सरकार को सुदृढ
बनाना र्ा। इसने राजस्व की समस्या का िी समाधान वकया एवं राजस्व मिलों की स्थापना की। सार् िारत में
कानून बनाने और उनके वियान्वयन में िारतीयों के सामासजक व धासमि क रीतत-ररवाजों का उल्लं घन न करने
की बात पर िी बल दिया गया।

नोि :- रेग्यूलेरििं ग ऐक्ट में व्याि िोषों को िूर करने के उद्दे श्य से सवणप्रर्म 1783 में ‘डिाज अतधसनयम’ और पुनश्च
नवम्बर, 1783 में िॉक्स का िारतीय ववधेयक लाया गया। वकिु उपरोि िोनों ही ववधेयक पाररत नहीं हो सकें। अतः
िॉक्स द्वारा प्रिुत ववधेयक के हाउस ऑि लाडणस में पाररत न होने के कारर् लाडण नार्ण एवं िॉक्स की गठबन्धन सरकार
को त्याग पत्र िेना पड़ा। ध्यातव्य है वक वकसी िारतीय ववषय पर एक अंग्रेजी सरकार के पतन का यह प्रर्म और अस्तिम
दृिाि है। तिोपराि वपट्स इन्द्रिया ऐक्ट 1784 लाया गया।

वपट्स इं रडया एक्ट 1784

1774 से 1783 के बीच ववसिन्न घठनाओ ं ने रेगुलेरििं ग एक्ट को स्पि कर दिया र्ा। मद्रास व बंबई की प्रसीडेक्वन्सयों पर
बंगाल सरकार का पयाणय सनयंत्रर् ने होनो के कारर् कंपनी को अनावश्यक युद्धों में उलझना पङा र्। सवोच्च न्यायालय
से संबंतधत िोषों को 1781 के एक अतधसनयम द्वारा िूर कर दिया गया। वकिु प्रशासन संबंधी िोषों को 1781 के एक
अतधसनयम द्वारा िूर कर दिया गया। वकिु प्रशासन संबंधी िोष अिी िी ववद्यमान र्े। 1781-82 में इं ग्लै ि की संसि ने
वॉरेन हेप्तस्टिंग्ज को वापस बुलाना चाहा, वकिु कंपनी के रहस्सेिारों की सिा ने इसका सिलतापूवणक ववरोध वकया।
इससे कंपनी पर संसि का अपयाणि सनयंत्रर् िी स्पि हो गया। अतः रेग्युलेरििं ग एक्ट में संशोधन करने की आवश्यकता
महसूस की गई। इस संबंध में डूंडास का िारत वबल तर्ा िाक्स का ईस्ट इं रडया वबल अस्वीकृत हो चुके र्े। अतः प्रधानमंत्री
यंग वपट्ट ने एक ववधेयक प्रिुत वकया, जो 1784 में पाररत कर दिया गया। यह अतधसनयम वपट्स इं रडया एक्ट के नाम से
प्रससद्ध हुआ।

इस एक्ट के द्वारा कंपनी के शासन में सनम्न व्यवस्थाएाँ की गई


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• कंपनी शासन पर प्रिावी सनयंत्रर् रखने के सलए इं ग्लै ि में छः कसमश्नरों का एक बोडण गरठत वकया गया, सजसे
बोडण ऑि कंरोल कहा गया। इस बोडण में सेिेिरी ऑि स्टे ि तर्ा ववि मंत्री के अततररि चार अन्य सिस्य रखे गये,
सजनकी सनयुक्ति वब्ररिश ताज द्वारा होती र्ी। सिस्यों के वेतन आदि का खचाण िारत के राजस्व से वसूल करने का
सनर्णय सलया गया।
• संचालकों द्वारा िेजे जाने वाले प्रिाववत आिेश तर्ा अन्य पत्र िारत िेजने से पूवण बोडण ऑि कंरोल द्वारा
अनुमोदित होने चारहए।बोडण वकसी िी आिेश या पत्र के प्रारूप में संशोधन कर सकता र्ा अर्वा उस प्रारूप के स्थान
पर नया प्रारूप तैयार कर सकता र्ा। संचालकों द्वारा प्रिाववत आिेश या पत्र बोडण द्वारा अस्वीकार िी वकये जा
सकते र्े। बोडण को संचालकों की अनुमतत के वबना िी आिेश या पत्र िेजने का अतधकार र्ा।
• संचालकों में से तीन सिस्यों की गुि ससमतत गरठत की गई। सजसे बोडण ऑि द्वारा गुि मामले प्रेवषत वकये जाते र्े,
जो अन्य संचालकों को नहीं बताये जाते र्े।
• िारत के गवनणर-जनरल की कौंससल के समान ही बंबई व मद्रास प्रेसीडेक्वन्सयों के सलए िी तीन सिस्यों की
कौंससल बनाई गई। मद्रास तर्ा बंबई की सरकारों को पूर्ण रूप से बंगाल सरकार के अधीन कर दिया गया। यदि
उन्हें कोई आिेश सीधे संचालकों से प्राि हो, जो बंगाल सरकार के आिेशों के ववपरीत हों, तब िी वे आिेश पहले
बंगाल सरकार को िेजने होंगे तर्ा विर बंगाल सरकार के आिेशानुसार ही कायण करना होगा।
• गवनणर जनरल तर्ा गवनणरों की सनयुक्ति संचालक करते र्े, वकिु उन्हें वापस बुलाने का अतधकार वब्ररिश ताज
को सौंपा गया। गवनणर जनरल की सनयुक्ति के सलए संचालकों को ताज की पूवण स्वीकृतत ले नी आवश्यक र्ी।
• प्रर्म बार कंपनी के िारतीय प्रिेशों को अंग्रेजी राज्य के प्रिेश कहा गया। गवनणर जनरल तर्ा उसकी कौंससल बोडण
ऑि कंरोल की वबना अनुमतत के अर्वा कम से कम गुि ससमतत की पूवाणनुमतत के िारत में वकसी शक्ति के
ववरुद्ध युद्ध की घोषर्ा नहीं कर सकेगी। इस एक्ट में यह घोषर्ा की गई र्ी वक, िारत में राज्य वविार और ववजय
की योजनाओ ं को चलाना, वब्ररिश राष्ट्र की नीतत, मान और इच्छा के ववरुद्ध है।
• बंबई व मद्रास प्रेसीडेक्वन्सयााँ पूर्णतया गवनणर जनरल तर्ा की कौंससल के अधीन होगी। बंगाल तर्ा इं ग्लै ि के
अतधकाररयों की आज्ञाओ ं का अल्लं घन करने पर प्रेसीडेक्वन्सयों के गवनणर को सनलं वबत वकया जा सकता र्ा।

वपट्स इं रडया एक्ट का महत्त्व –

यद्यवप एस एक्ट ने कंपनी के मूलिूत संववधान में कोई पररवतणन नहीं वकया, विर िी इस एक्ट का अत्यतधक महत्त्व है,
योंवक इसके द्वारा पहली बार कंपनी के िारतीय राज्यों को अंग्रेजी राज्य का अंग माना गया और उन पर सनयंत्रर् रखने
के सलए बोडण ऑि कंरोल की स्थापना की गई। गुि ससमतत का गठन करके कंपनी के कायों में कायणकुशलता उत्पन्न
की गई। इस एक्ट के द्वारा गवनणर जनरल का बंबई व मद्रास सरकारों पर सनयंत्रर् सनसश्चत एवं वािववक बन गया तर्ा
कंपनी के समि सैसनक व असैसनक मामलों पर वब्ररिश संसि का सनयंत्रर् स्थावपत वकया गया। इस प्रकार रे ग्युलेरििं ग
एक्ट द्वारा वब्ररिश संसि का जो असनसश्चत सनयंत्रर् स्थावपत हो गया र्ा, उसे अब वािववक बना दिया गया। इस एक्ट द्वारा
कंपनी की वविेश नीतत को िी एक नई दिशा िी गयी। अब कंपनी के कायों को िो िागों में बााँि दिया गया। राजनीततक
व शासन संबंधी कायों पर सनयंत्रर् के सलए बोडण ऑि कंरोल की स्थापना की गई। तर्ा व्यापाररक कायों पर सनयंत्रर्
संचालकों पर छोड़ दिया गया। बोडण ऑि कंरोल के छः सिस्यों में से एक सेिेिरी ऑि स्टे ि तर्ा िूसरा ववि मंत्री होता
र्ा। अतः वोडण ऑि कंरोल का वािववक कायण सरकार के इन िो सिस्यों द्वारा ही वकया जाता र्ा, अन्य चार सिस्य बोडण
के कायों में बहुत ही कम रूतच ले ते र्े। बोडण ऑि कंरोल संचालकों द्वारा सनयुि वकसी िी कमणचारी को वापस बुला
सकता र्ा। इसका पररर्ाम यह सनकला वक संचालक अब ऐसे वकसी व्यक्ति को सनयुि नहीं करते र्े, सजसे बोडण ऑि
कंरोल नही चाहता र्ा । अतः स्वािाववक ही र्ा वक िारत के गवनणर जनरल संचालकों के आिेशों की अपेक्षा बोडण ऑि
कंरोल के आिेशों की अपेक्षा बोडण ऑि कंरोल के आिेशों को अतधक महत्त्व िेते र्े। इस प्रकार कंपनी की नीततयों का
संचालन पूरी तरह से वब्ररिश सरकार के अधीन हो गया। अल्बिण ने ठीक ही सलखा है वक वपट्ट ने कंपनी के संववधान में
िारी पररवतणन वकये वबना ही िारत की ईस्ट इं रडया कंपनी पर सरकार का सनयंत्रर् स्थावपत कर दिया।

1786 का अतधसनयम (Act Of 1786)

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इस अतधसनयम के द्वारा गवनणर जनरल को ववशेष पररस्थस्थतत में अपने पररषि के सनर्णयों को सनरि कर अपने सनर्णयों
को लागू करने का अतधकार प्रिान वकया गया और सार् ही गवनणर जनरल को प्रधान सेनापतत की शक्तियां िी प्रिान
की गई। लॉडण कॉनणवासलस गवनणर जनरल और मुख्य सेनापतत की शक्ति को एक ही व्यक्ति के पास चाहता र्ा। लॉडण
कॉनणवासलस वािव में वह पहला व्यक्ति र्ा सजसे िोनो पि सौंपे गए और पररषि के सनर्णयों को सनषेध(Veto) करने का
अतधकार प्राि हुआ।

नोि :- यह िोनों अतधकार सवणप्रर्म लॉडण कानणवासलस को प्राि हुए |

1793 का चािण र एक्ट (Charter Act of 1793)

• इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी का अगले 20 वषों के सलए पूवी िेशों से व्यापार करने एकातधपत्य का नवीनीकरर्
करना र्ा। इस प्रकार कंपनी के अतधकारों को 20 वषों के सलए बढा दिया गया।
• पररषि के सनर्णयों को रद्द करने का को अतधकार गवनणर जनरल को िे दिया गया।
• बोडण ऑि कंरोल के सिस्यों और कमणचाररयों को वेतन िारतीय राजस्व से िेने का प्रावधान वकया गया।
• गवनणर जनरल को अपनी कायणकाररर्ी के सिस्यों में से वकसी एक को उप प्रधान सनयुि करने का अतधकार दिया
गया जो गवनणर जनरल की अनुपस्थस्थतत में उसके स्थान पर कायण करता र्ा।
• वब्ररिश िारतीय क्षेत्रों में सलखखत ववतधयों द्वारा प्रशासन की नीव रखी गई तर्ा सिी कानूनों व ववसनयामो की
व्याख्या का अतधकार न्यायालय को प्रिान वकया गया।

आलोचना :

1793 ई. का शासन पत्र अतधसनयम कािी लं बा र्ा, वकिंतु यह कंपनी और शासन में कोई ववशेष पररवतणन न ला सका
इसने केंद्रीयकरर् की प्रवृतत को बढा दिया। यह िुिाणग्य की बात है वक इसने बोडण ऑि कंरोल और इसके कमणचाररयों के
वेतन व अन्य खचों का संपूर्ण िारत के राजस्व पर डाल दिया, सजसका बाि में िारतीयों ने तीव्र ववरोध वकया और जो 1919
ई. के अतधसनयम से समाि वकया गया।

चािण र एक्ट 1813 (Charter Act 1813)

अंग्रेजों के यूरोप में चल रहे फ्ांसीससयों के सार् संघषण के कारर् वब्ररिश व्यापार कािी नकारात्मक रूप से प्रिाववत हुआ
र्ा। असल में नेपोसलयन द्वारा लागू वकया गय “महाद्वीपीय व्यवस्था” के कारर् अंग्रेजों के सलए यूरोपीय व्यापार मागण
बंि हो गया गया र्ा, इससलये सिी चाहते र्े वक िारत में कंपनी का व्यापाररक एकातधकार समाि कर दिया जाए। सजस
कारर् इं ग्लैं ड में कंपनी के व्यापाररक एकातधकार को समाि करने की मांग होने लगी र्ी। व्यापार को बढाने के सलए
1813 का चािण र एक्ट पाररत वकया गया।

चािण र एक्ट 1813 के महत्वपूर्ण वबन्दुओ ं को नीचे उल्ले खखत वकया गया है

• सिी वब्ररिश व्यापाररयों को िारत से व्यापार करने की छूि िे िी गयी।


• कंपनी का िारतीय व्यापार पर एकातधकार समाि कर दिया गया। जबवक चीन से चाय के व्यापार पर एकातधकार
कायम रखा गया।
• कंपनी के िागीिारों को िारतीय मुनािे से मात्र 10.5% िाग ही समले गा।
• कंपनी को 20 वषों के सलए िारतीय प्रिेशों में राजस्व पर सनयंत्रर् का अतधकार िे दिया गया।
• इस एक्ट के अनुसार िारत में अंग्रेजों द्वारा बनाए के. गए स्थानीय सनकाय अपने अिगणत आने वाले िारतीयों पर
कर (सिाई कर, चौकीिारी कर आदि) लगा सकते र्े। सार् ही कर न िेने वालों को िन्द्रित करने का िी प्रावधान
इस एक्ट में वकया गया।
• इस एक्ट के अनुसार कंपनी को अपना क्षेत्रीय राजस्व और वाद्धर्स्थज्यक मुनािे को अलग-अलग व्यवस्थस्थत करना
र्ा।
• सनयंत्रर् बोडण की शक्ति को पररिावषत व उसकी शक्ति का वविार करते हुए बोडण की सनगरानी और आिेश जारी
करने की शक्तियों को बढाया गया।
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• कंपनी के सम्बन्ध में अंततम सनर्णय ले ने का अतधकार वब्ररिश सम्राि के पास ही रहा परिु वविीय मामलों को
कंपनी के िे दिया गया।
• इस एक्ट के द्वारा िारतीय कोिों को वब्ररिश ववषयों पर अतधक अतधकार दिए गए।
• ईसाई धमण प्रचारक को आज्ञा प्राि करके िारत में धमण प्रचार करने की सुववधा िी गयी।
• कलकिा में ईसाई धमण के प्रचार एवं िारत में रह रहे ईसाइयों के सलए एक क्तगरजाघर, एक वबशप तर्ा तीन पािररयों
को सनयुि वकया गया।
• वब्ररिश व्यापाररयों तर्ा इं जीसनयरों को िारत आने की तर्ा यहां बसने की अनुमतत प्रिान कर िी गयी, परिु
इसके सलए संचालक मिल या सनयंत्रर् बोडण से लाइसेंस ले ना असनवायण र्ा।
• कंपनी की आय से िारतीयों की सशक्षा पर प्रतत वषण 1 लाख रूपये व्यय करने की व्यवस्था की गयी।
• िारतीय सारहत्य एवं ववज्ञान आधाररत सशक्षा को बढाने के सलए प्रावधान बनाए गए।
• इस एक्ट के द्वारा कंपनी के कमणचाररयों (नागररक एवं सैसनक िोनों) हेतु प्रसशक्षर् की व्यवस्था की गई। इसके सलए
कलकिा एवं मद्रास के कॉले जों को सनयंत्रर् बोडण के सनयमों के अनुरूप चलाने की व्यवस्था की गई।
• इस एक्ट के द्वारा िारत में वब्ररिश सेना की संख्या के 29,000 सनधाणररत कर िी गयी एवं कंपनी को िारतीय सैसनकों
के सलए सनयम एवं कानून बनाने का िी अतधकार िे दिया गया।

चािण र एक्ट 1833

1813 के चािण र अतधसनयम के पश्चात, िारत में कम्पनी के साम्राज्य में कािी वृद्धद्ध हुई, सजस पर समुतचत सनयन्त्रर्
स्थावपत करने के सलए वब्ररिश संसि ने 1814, 1823 तर्ा 1829 में अतधसनयम द्वारा कम्पनी को कुछ अतधकार प्रिान
वकया, वकिु ये अतधसनयम वांतछत सिलता न िे सके। अतः 1833 में तीसरा चािण र अतधसनयम पाररत वकया गया। 1833
के चािण र एक्ट पर इं ग्लैं ड की औद्योक्तगक िांतत, उिारवािी नीततयों का वियान्वयन तर्ा ले सेज िेयर के ससद्धाि की
छाप र्ी। 1833 के चािण र एक्ट पर वब्ररिश प्रधानमंत्री ग्रे, बोडण ऑि कंरोल के सतचव लाडण मैकाले तर्ा ववचारक जेम्स
समल, मैकाले बेन्थम का प्रिाव र्ा। इं ग्लै ि की औद्योक्तगक िांतत के पररर्ामस्वरूप उत्पादित सामग्री की मात्रा कािी
बढ गई र्ी। इस उत्पादित सामग्री को खपाने के सलए एक बाजार की आवश्यकता र्ी। सार् ही कच्चे माल की िी मांग
बढ गयी या आवश्यकता हुई। इससलए इं ग्लै ि में मुि व्यापार नीतत के आधार पर बङी मात्रा में उत्पादित माल हेतु बाजार
के रूप में िारत जैसे बङे िेश की आवश्यकता र्ी। इन्हीं कारर्ों से ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी ने अपने व्यापाररक अतधकारों
को बढाने के सलए वब्ररिश संसि से मांग की र्ी। इनकी मांग के पररर्ामस्वरूप ही चािण र एक्ट 1833 (Charter Act
1833) बना र्ा। वब्ररिश िारत के केिीयकरर् की दिशा में यह कानून सनर्ाणयक किम र्ा। वब्ररिश संसि के इस
अतधसनयम द्वारा ईस्ट इं रडया कंपनी को अगले बीस वषों तक िारत पर शासन करने का अतधकार प्रिान कर दिया गया।

चािण र एक्ट 1833 को िारत सरकार अतधसनयम 1833 या सेंि हे लेना अतधसनयम 1833 कहा गया। सेंि हेलेना एक द्वीप है
(िसक्षर् अिलांरिक महाद्वीप में ज्वालामुखी सनसमि त द्वीप है।)। इस सेंि हेलेना द्वीप का अंग्रेजों के सलए सामररक महत्त्व
र्ा। यूरोप से व्यापार करने के सलए एसशया और िसक्षर्ी अफ्ीका से जो जहाज जाते र्े उनकी दृखि से िे खा जाये तो इसका
बङा महत्त्व र्ा। इस अतधसनयम के तहत सेंि हेलेना द्वीप को वब्ररिश ईस्ट इं रडया कम्पनी से वब्ररिश िाउन को हिािररत
कर दिया। इससलए इसे ’सेंि हेलेना एक्ट’ के नाम से जाना जाता है। 1833 का चािण र एक्ट वब्ररिश संसि द्वारा 23 अगि,
1833 ई. में पाररत वकया गया।

चािण र एक्ट 1833 या है –

सन् 1833 ई. में वब्ररिश सरकार द्वारा कम्पनी के नाम एक और अतधकार पत्र जारी वकया गया, सजसको सन् 1833 का
चािण र एक्ट कहा जाता है। ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी ने अपने व्यापाररक अतधकारों को बढाने के सलए वब्ररिश संसि से मांग
की र्ी। इनकी मांग के पररर्ामस्वरूप ही वब्ररिश संसि ने चािण र एक्ट 1833 (Charter Act 1833) बनाया।

1833 चािण र एक्ट के मुख्य प्रावधान –

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• िारतीय प्रिेशों तर्ा राजस्व पर कम्पनी का अतधकार 20 वषों के सलए पुनः बढा दिया गया। कम्पनी को एक रस्टी
के रूप में प्रततद्धष्ठत वकया गया।
• चािण र एक्ट 1833 (Charter Act 1833) द्वारा कंपनी के अधीन क्षेत्रों व िारत के उपसनवेशीकरर् को वैधता प्रिान
कर िी गयी।
• अब तक गवनणर जनरल को ’बंगाल का गवनणर जनरल’ कहते र्े, ले वकन इस एक्ट के द्वारा उसी गवनणर जनरल
को ’सम्पूर्ण वब्ररिश िारत का गवनणर जनरल’ बना दिया गया। बहुल कायणपासलका यर्ावत (4 सिस्य नया ववतध
सिस्य) बंगाल पररषि के सिस्यों में से एक रडप्टी गवनणर, सपररषि गवनणर जनरल का आगरा, बम्बई व मद्रास
प्रेसीडेंससयों पर पूर्ण सनयंत्रर्, संपूर्ण शक्तियां सपररषि गवनणर जनरल में समारहत की गई।
• बंगाल, मद्रास, प्रेसीडेंससयों पर पूर्ण सनयंत्रर्, संपूर्ण शक्तियां सपररषि गवनणर जनरल में समारहत की गई। बंगाल,
मद्रास, बम्बई प्रेसीडेंससयों को ववधायी शक्तियां समाि कर िी गई। केिीय ववधान पररषि का सनमाणर् (सिस्य
सपररषि गवनणर जनरल) वकया गया।
• गवनणर जनरल में सिी नागररक और सैन्य शक्तियााँ सनरहत र्ीं। इस प्रकार कानून ने पहली बार ऐसी सरकार का
सनमाणर् वकया सजसे वब्ररिश कब्जे वाले संपूर्ण िारतीय क्षेत्र पर पूर्ण सनयंत्रर् र्ा। इस प्रकार इस राजले ख द्वारा िेश
की शासन प्रर्ाली का केिीकरर् कर दिया गया।
• का चािण र एक्ट िारतीय गवनणर जनरल ववसलयम बैंरिक के समय िारत में लागू वकया गया। बंगाल के गवनणर
जनरल को अब से संपूर्ण िारत का गवनणर जनरल कहा जाने लगा। ’’लाडण ववसलयम बैंरिक संपूर्ण िारत का पहला
गवनणर जनरल बना।’’
• इस कानून ने मद्रास और बंबई के गवनणरों को ववधातयका की शक्ति से वंतचत कर दिया। िारत के गवनणर जनरल
की शक्ति से वंतचत कर दिया। सपररषि गवनणर जनरल को पूरे िारत के सलए कानून बनाने का अतधकार प्रिान
वकया गया, वकिु बोडण ऑि कण्टरोल इस कानून को अस्वीकृत कर स्वयं कानून बना सकता र्ा। िारत के गवनणर
जनरल को पूरे वब्ररिश िारत में ववधातयका की शक्ति िे िी गई।
• इसके अंतगणत पहले बनाए गए कानूनों को सनयसमतकरर् कानून कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों
को ’एक्ट या अतधसनयम’ कहा गया। ज्ञातव्य है वक इसके पूवण सनसमि त ववतधयों को ’सनयामक कानून’ कहा जाता
र्ा।
• िारतीय कानूनों को सलवपबद्ध करने, संचसलत करने, संरहताबद्ध करने तर्ा उसमें सुधार करने के सलए एक ववतध
आयोग का गठन वकया गया।
• वकिु यह सनसश्चत वकया गया वक िारतीय प्रिेशों का प्रशासन अब वब्ररिश सम्राि के नाम से वकया जायेगा।
• गवनणर जनरल की पररषद् के सिस्यों की संख्या 1784 में वपट्स इं रडया एक्ट द्वारा घिाकर 3 कर िी गयी ले वकन
1833 एक्ट में वापस उन सिस्यों की संख्या 4 कर िी गयी। ’लाडण मैकाले ’ की अध्यक्षता में ’ववतध आयोग’ का
सनमाणर् (1834) कर पूवण प्रचसलत कानूनों का संरहताकरर् वकया गया।
• पहली बार ववधायी कायों को अलग करने से गवनणर जनरल की कायणकारी पररषद् में चार सिस्यीय ’ववतध सिस्य’
मनोनीत वकया गया। इसका चौर्ा सिस्य ’लाडण मैकाले ’ को चुना गया। ववतध सिस्य केवल पररषि की बैठकों में
िाग ले ने का अतधकार र्ा, मतिान का नहीं।
• ववतध आयोग की ररपोिण के आधार पर 1837 में ‘इन्द्रियन पेनल कोड’ का प्रले ख तैयार वकया गया। सजसने बाि में
संशोतधत होकर 1860 में कानून का रूप धारर् कर सलया।
• ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी का नाम बिलकर ’कम्पनी ऑि मचेट्स ऑि इन्द्रिया’ कर दिया गया।

• गवनणर जनरल की पररषि को राजस्व के सम्बन्ध में पूर्ण अतधकार प्रिान वकये गये। इस अतधसनयम से केिीय
राजकोष का सनमाणर् वकया गया। राजस्व संग्रहर् प्रेसीडें ससयों की बजाय केि द्वारा (सपररषि गवनणर जनरल)
सलया जाएगा। प्रेसीडेंससयों के व्यय आदि का िार केिीय राजकोष से वकया जाएगा।

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• राजस्व वसूली केि द्वारा की जाएगी। यह वविीय ववकेिीकरर् को प्रिसशि त करता है। गवनणर जनरल को सम्पूर्ण
िेश के सलए एक ही बजि तैयार करने का अतधकार दिया गया।
• सिी कर गवनणर जनरल की आज्ञा से ही लगाये जाने र्े और उसे ही इसके व्यय का अतधकार दिया गया।
• िारत में वब्ररिश साम्राज्य की सीमा बढा दिये जाने के कारर् गवनणर जनरल को सिी प्रकार के अतधकार दिये गये।
• प्रािों के गवनणरों को, गवनणर जनरल की आज्ञा का पालन करना असनवायण कर दिया गया।
• गवनणर जनरल तर्ा गवनणरों को अपनी कौंससल के सनर्णय को बिलने का िी अतधकार दिया गया।
• िारत के गवनणर जनरल को यह अतधकार प्रिान कर दिया गया वक वह समाज में प्रचसलत समि बुराइयों को िूर
करने के सलये सामासजक अतधसनयम का सनमाणर् करें।
• इस एक्ट के द्वारा पहली बार ससववल सेवकों के चयन के सलए खुली प्रततयोक्तगता का आयोजन करने का प्रयास
वकया गया। िारतीयों को वकसी पि कायाणलय और रोजगार को हाससल करने से नहीं रोक जाएगा। वकिु बोडण
ऑि डायरेक्टसण की असहमतत के कारर् लागू नहीं हो सका।
• ईस्ट इं रडया कम्पनी के व्यापाररक अतधकार तर्ा चाय के सार् व्यापाररक एकातधकार समाि कर दिए गए।
कम्पनी की समि सम्पक्ति को एक न्यास के रूप में स्थावपत कर उसे िाउन का न्यासी बनाया। िववष्य में
राजनीततक मामलों को िेखने के सलए कम्पनी को िाउन का एक राजनीततक चािण र बनाया। कम्पनी को
प्रशाससनक एवं राजनैततक िातयत्व सौंपा गया। कम्पनी को ववशुद्ध राजनीततक संस्था के रूप में पररवतति त कर
दिया गया।
• कानूनी तौर पर ईस्ट इं रडया कंपनी की एक व्यापाररक सनकाय के रूप में की जाने वाली गततववतधयों को समाि
कर दिया गया। अब यह ववशुद्ध रूप से प्रशाससनक सनकाय बन गया। इसके तहत कंपनी के कब्जे वाले क्षेत्र वब्ररिश
राजशाही और उसके उिरातधकाररयों के ववश्वास के तहत ही कब्जे में रह गए। इस अतधसनयम ने कम्पनी के
डायरेक्टरों के संरक्षर् को कम वकया।
• चािण र एक्ट 1833 (Charter Act 1833) ने नौकरशाहों के चुनाव के सलए खुली प्रततयोक्तगता का आयोजन शुरू
करने का प्रयास वकया। इसमें कहा गया वक कंपनी में िारतीयों को वकसी पि, कायाणलय और रोजगार हाससल
करने से न रोका जाए। हालांवक सनिेशकों के समूह के ववरोध के कारर् इस प्रावधान को समाि कर दिया गया।
• 1833 के चािण र एक्ट के द्वारा िारत में ’िास प्रर्ा’ को ववतध ववरुद्ध घोवषत कर दिया गया तर्ा अितः 1843 में िास
प्रर्ा को लाडण एलनबरो के समय में ’िास प्रर्ा उन्मूलन एक्ट’ लाया गया र्ा। िासता को अवैध घोवषत कर िासों
की िशा में सुधार की बात की गई। 1833 एक्ट के तहत वब्रिे न में मानव अतधकार, मुि व्यापार और प्रेस की स्वतंत्रता
जैसे सुधारों का प्रारंि िी हुआ।
• इस अतधसनयम में िारतीयों के प्रतत जातत-धमण आदि के िेििाव को समाि कर दिये जाने की बात कही गई।
अतधसनयम की धारा-87 के तहत कम्पनी के अधीन सरकारी पिों के चयन में वकसी व्यक्ति को धमण, जन्मस्थान,
मूलवंश या रंग के आधार पर अयोग्य न ठहराये जाने का उपबन्ध वकया गया। ले वकन कोिण ऑि डायरेक्टसण के
ववरोध के कारर् इस प्रावधान को समाि कर दिया गया।
• इस एक्ट के द्वारा यूरोवपयनों को िारत भ्मर् की अनुमतत िे िी गई। अंग्रेजों को वबना अनुमतत-पत्र के ही िारत
आने तर्ा रहने की आज्ञा िे िी गई। वे िारत में िूसम की खरीि सकते र्े।
• इस चािण र कानून ने कम्पनी के िारतीय क्षेत्रों में ईसाई पािररयों को िी प्रवेश करने की अनुमतत िे िी तर्ा िारतीय
प्रशासन में एक धासमि क वविाग जोङ दिया।

चािण र एक्ट 1833 का महत्त्व –

• िारत से कम्पनी के व्यापाररक दृखिकोर् के द्वारा समाि कर दिया गया।


• िारत में संववधान सनमाणर् का आंसशक संकेत दृखिगोचर होता है।
• इस एक्ट द्वारा िारत में ववतध सनमाणर् की नींव पङी।
• िारत में कम्पनी के प्रशाससनक कायों का श्रीगर्ेश इसी एक्ट द्वारा हुआ।
• यह एक्ट एक प्रकार से कम्पनी के व्यापार से शासन में पररवतणन का सूचक है।
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• गवनणर जनरल द्वारा िारत में न्याय व व्यवस्था के पुनसनि माणर् करने के सलए ववतध आयोग का गठन वकया गया।
• िारत में सरकार का वविीय, ववधायी व प्रशाससनक रूप से केिीयकरर् करने का प्रयास वकया गया। धीरे-धीरे
िारत में केंद्रीकृत शासन व्यवस्था का आरम्भ हुआ। इसे िारत का वब्ररिश शासन में केिीकरर् की दिशा में
सनर्ाणयक किम माना जाता है।
• इस एक्ट से पूवण िारतीयों को घृर्ा की दृखि से िे खा जाता र्ा, ले वकन इस एक्ट द्वारा िारतीयों में जातत, रंग, धमण
आदि के िेििाव को समाि कर दिया गया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई वक िारतवाससयों को उनकी
योग्यतानुसार नौकरी प्रिान की जाए। वब्ररिश िारत के अधीन सिी नागररकों को बराबरी पर लाने का यह प्रर्म
प्रयास कहा जा सकता है।

चािण र एक्ट 1833 का सनष्कषण –

कम्पनी की गततववतधयों को सनयन्त्रन्त्रत करने हेतु वकए गए प्रयासों में सवाणतधक वविृत व प्रिावी प्रावधान चािण र एक्ट
1833 (Charter Act 1833) में वकये गये। इस एक्ट द्वारा कम्पनी ने 20 वषो के सलए और अपने व्यापाररक अतधकार
बढा सलये। िारत में संववधान सनमाणर् का आंसशक संकेत इस चािण र में दिखाई िेता है।

नोि

• 1833के राजले ख के पूवण सनसमि त ववतधयों को ववसनयम कहा जाता र्ा जबवक इस अतधसनयम द्वारा सनसमि त ववतधयााँ
अतधसनयम कहलाती र्ी। िूसरे शब्दों में िारत के गवनणर जनरल की पररषि द्वारा सनसमि त ववतध को अतधसनयम कहा
जाता र्ा |
• 1853 का राजले ख िारतीय शासन (वब्ररिश कालीन) के इततहास में अस्तिम चािण र (राजले ख) र्ा।
• स्वतंत्रता के बाि िारत में पहले ववतध आयोग का गठन 1955 में हुआ और इसका अध्यक्ष एम.सी. सीतलवाड को
बनाया गया, जो िारत के प्रर्म महान्यायवािी िी र्े।

1853 का चािण र अतधसनयम

1853 के चािण र एक्ट द्वारा कम्पनी के प्रशाससनक ढााँचे में पररवतणन वकए गए, परिु इससे शासकीय नीतत तर्ा प्रशासन
की कायणकुशलता में वबिुल वृद्धद्ध नहीं हुई।

एक्ट के पास होने के कारर्

1853 के चािण र की पृष्ठिूसम अनोखी र्ी। सजस समय वब्ररिश पासलि यामेन्ट में 1833 के एक्ट पर ववचार-ववमशण चल रहा
र्ा, उस समय केवल अंग्रेज व्यापाररयों तर्ा ईसाई समशनररयों ने उसका ववरोध वकया र्ा। जब 1853 में इस अतधकार-
पत्र को विर से नया करने का समय आया, तब इस अतधसनयम के ववरोध में िारतीयों ने िी उनका सार् दिया। बंगाल,
मद्रास तर्ा बम्बई प्रािों के सनवाससयों ने बहुत बड़ी संख्या में हिाक्षरों से एक प्रार्णना-पत्र वब्ररिश पासलि यामेन्ट को
िेजा, सजसमें कम्पनी के अतधकार-पत्र की अवतध बढाने का ववरोध वकया गया र्ा। सन् 1833 के एक्ट की धारा 87 की
घोषर्ा से िारतीयों को बहुत प्रोत्साहन समला र्ा। अनेक िारतीय युवक उच्च सशक्षा प्राि करने के सलए इं ग्लै ि गए,
ले वकन िारत लौिने पर उन्हें सनराश ही हार् लगी, योंवक उन्हें काले -गोरे की िेि नीतत के कारर् उच्च पिों पर नौकरी
नहीं समल सकी। गवनणर जनरल की कौंससल के एक सिस्य सम. कैमरोन ने इस सम्बन्ध में इस प्रकार कहा, वपछले 20
वषों एक िी िारतीय को वकसी ऐसे पि की प्राप्ति नहीं हुई, सजस पर वह सन् 1833 से पूवण सनयुि होने का अतधकारी नहीं
र्ा। इस व्यवस्था से िारतीयों को बहुत िुःख तर्ा सनराशा हुई तर्ा उनमें तीव्रगतत से असिोष िैला। बंगाल, बम्बई तर्ा
मद्रास के सनवाससयों ने िारतीय प्रशासन में पररवतणन के सलए वब्ररिश पासलि यामेंि को प्रार्णना-पत्र िी िेजे। इन प्रार्णना-
पत्रों में कलकिा के सनवाससयों द्वारा िेजा गया पत्र ववशेष रूप से महत्वपूर्ण र्ा योंवक इसमें -

• िारत में कानून बनाने के सलए एक अलग ववधान-मिल की व्यवस्था करने


• प्रािेसशक सरकारों को आिररक स्वतंत्रता िेने की
• िारत पर शासन करने का अतधकार एक िारत सतचव तर्ा उसकी कौंससल को सौंप िेने की
• वब्ररिश ससववल परीक्षा के सलए प्रततयोक्तगता परीक्षा की व्यवस्था करने की मााँग की गई र्ी।
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इसके अततररि कम्पनी के प्रशासन की त्रुरियों को िूर करने के सलए कुछ और िी सुझाव दिए गए। इस प्रकार, ववसिन्न
प्रेसीडेक्वन्सयों की सरकारों की ओर से संसि में िारतीय प्रशासन में पररवतणन लाने के सलए अनेक प्रिावशाली सुझाव
पेश वकए गए र्े। अतः वब्ररिश पासलि यामेंि ने 1852 में इन सब बातों की जााँच करने के सलए एक कमेिी सनयुि की और
उसकी ररपोिण के आधार पर 1853 का चािण र एक्ट पास वकया गया र्ा।

1853 ई. के एक्ट की धाराएाँ अर्वा उपबन्ध सनम्नसलखखत र्े -

(1) कम्पनी की इं ग्लै ि स्थस्थत शासकीय व्यवस्था को सम्बस्तन्धत धाराएाँ

• इस एक्ट द्वारा िारतीय प्रिेशों तर्ा उनके राजस्व का प्रबन्ध कम्पनी को सौंप दिया गया, परिु पहले की तरह उसमें
कोई सनसश्चत अवतध सनयत नहीं की गई, केवल इतना कहा गया वक कम्पनी का शासन िारत में तब तक चलता
रहेगा, जब तक वक वब्ररिश संसि कोई अन्य व्यवस्था न करे अर्ाणत् वब्ररिश संसि को यह अतधकार प्राि हो गया वक
वह वकसी िी समय िारतीय प्रिेशों का शासन अपने हार् में ले सकती र्ी। इस प्रकार, कम्पनी को िारतीय प्रिेशों
पर अपना आतधपत्य वब्ररिश साम्राज्ञी तर्ा उसके उिरातधकाररयों की ओर से रस्ट के रूप में रखने की आज्ञा िी गई।
• इस एक्ट में संचालक मिल की शक्ति को कम करने के सलए उनके सिस्यों की संख्या 24 में घिाकर 18 कर िी
गई। इनमें से 6 सिस्यों की सनयुक्ति का अतधकार इं ग्लै ि के सम्राि को दिया गया। इसी प्रकार संचालक मिल
की बैठकों में कोरम की पूतति के सलए सिस्यों की संख्या 13 से घिाकर 10 कर िी गई, सजससे सम्राि द्वारा सनयुि
सिस्यों का बहुमत सम्भव हो सके। इसका पररर्ाम यह हुआ वक कम्पनी के मामलों में वब्ररिश सरकार का सनयंत्रर्
और अतधक प्रिावी हो गया।
• सनयंत्रर् बोडण के सिस्यों का वेतन कम्पनी िेगी। उनके वेतन का सनधाणरर् साम्राज्ञी द्वारा वकया जाएगा। अतधसनयम
में यह कहा गया र्ा वक बोडण के अध्यक्ष का वेतन वकसी िी िशा में सेिेिरी ऑि स्टे ि के वेतन से कम नहीं होगा।
• संचालकों से कम्पनी के उच्च सैसनक पिातधकाररयों की सनयुक्ति करने का अतधकार छीन सलया गया और बोडण
ऑि कण्टरोल से सनयुक्तियों के बारे में सनयम बनाने का अतधकार दिया गया। िववष्य में अनुबस्तन्धत सेवाओ ं में
ररि स्थानों पर सनयुक्ति प्रततयोक्तगता परीक्षाओ ं के आधार पर करने की व्यवस्था की गई। इस प्रकार ससववल सववि स
में िती के सलए लन्दन में प्रततयोक्तगता परीक्षा की व्यवस्था की गई। इस परीक्षा में िारतीय युवकों को िी िाग ले ने
की सुववधा िी गई।
• न्यायातयक, वविीय और राजनीततक ववषयों की िेखिाल के सलए संचालकों ने तीन उप-ससमततयााँ बनाई। तीन
संचालकों की गुि ससमतत पूवणवत बनी रही।

(2) िारत में केिीय सरकार से सम्बस्तन्धत उपबन्ध

• गवनणर जनरल को बंगाल के शासन िारत से मुि कर दिया गया। बंगाल के सलए एक अलग गवनणर सनयुि करने
की व्यवस्था की गई। इस एक्ट द्वारा यह िी सनसश्चत वकया गया वक बंगाल के गवनणर सनयुि होने तक, गवनणर
जनरल संचालक मिल की अनुमतत से बंगाल के सलए एक ले स्थिनेंि गवनणर सनयुि कर सकता है। बंगाल में
अलग गवनणर तो 1912 ई. तक सनयुि नहीं वकया गया, परिु 1854 में एक ले स्थिनेंि गवनणर बंगाल के सलए और
िूसरा पंजाब के सलए सनयुि कर दिया गया।
• कम्पनी के िारतीय िू-क्षेत्र के बढ जाने से संचालक मिल को मद्रास तर्ा बम्बई की िााँतत एक अन्य प्रेसीडेन्सी
के सनमाणर् का अतधकार दिया गया। पररर्ामस्वरूप 1859 में पंजाब के प्राि की रचना हुई।
• के एक्ट के अनुसार ववतध सिस्य को गवनणर जनरल की कौंससल में बढाया गया र्ा, जो कानून बनाने के कायण में
उसकी सहायता करता र्ा। ववतध सिस्य कौंससल की केवल उन्हीं बैठकों में िाग ले सकता र्ा, जो कानून के उद्दे श्य
से बुलाई गई हों। इससलए उसको शासन सम्बन्धी मामलों का ठीक तरह से ज्ञान नहीं हो सकता र्ा। 1853 के एक्ट
के अनुसार ववतध सिस्य को गवनणर जनरल की कायणकाररर्ी का सनयसमत सिस्य बना दिया गया। अब उसे शासन
सम्बन्धी कायों पर ववचार करने के सलए बुलाई गई बैठकों में बाग ले ने तर्ा वोि िेने का अतधकार दिया गया।
• इस एक्ट द्वारा पहली बार सपररषद् गवनणर जनरल की ववधायी तर्ा कायणपासलका सम्बन्धी कायों को पृर्क् कर
दिया गया। ववतध सनमाणर् के उद्दे श्य से 6 और सिस्य बढाकर गवनणर जनरल की कौंससल का वविार कर दिया गया।
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ये अततररि सिस्य र्े-बंगाल का मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोिण का एक जज तर्ा बम्बई, बंगाल, मद्रास एवं उिर
पसश्चमी सीमा प्राि की सरकारों के 4 प्रततसनतध। प्राि के 4 प्रततसनतधयों की सनयुक्ति प्रािीय सरकारों उच्च
पिातधकाररयों में से करती र्ीं। इस तरह से कानून बनाने के सलए पररषद् में 12 सिस्य हो गए-गवनणर जनरल,
प्रधान सेनापतत, गवनणर जनरल की कायणकाररर्ी के सिस्य तर्ा 6 नये सिस्य। वैध रूप से हो रही पररषद् की बैठक
के सलए सात सिस्यों को कोरम सनयत गया र्ा। ववधान-मिल द्वारा पास वकए गए सब ववधेयक गवनणर जनरल
की स्वीकृतत प्राि होने पर अतधसनयम बन सकते र्े। गवनणर जनरल तर्ा उसकी कौंससल के द्वारा पास वकए गए
वकसी िी वबल को रद्द कर सकती र्ी। पुक्वन्नया के शब्दों में, 1853 के अतधसनयम के ववतध-सनमाणर् सम्बन्धी
उपबन्धों में कायणकाररर्ी पररषद् से सिन्न एक ववधान पररषद् का आिार स्पि रूप में दिखाई पडता है।
• गवनणर जनरल की कौंससल में वब्ररिश संसि से समलता-जुलता कानून बनाने का तरीका अपनाया गया। इसे
कायणपासलका से प्रश्न पूछने तर्ा उसकी नीततयों पर वाि-वववाि करने का अतधकार दिया गया।
• एक्ट ने िारतीय ववतध आयोग, जो समाि हो चुका र्ा, ससिाररशों की जााँच और उन पर ववचार करने के सलए एक
इं स्थग्लश लॉ कसमश्नर की सनयुक्ति की व्यवस्था की। इस कमीशन के प्रयत्नों के िलस्वरूप इन्द्रि यन पैनल कोड
तर्ा िीवानी और िौजिारी कायणववतधयों को कानून का रूप दिया गया।

एक्ट का महत्व

1853 के एक्ट के द्वारा यद्यवप सरकार की नीतत तर्ा प्रशासन में वकसी नवीनता का संचार नहीं हुआ, तर्ावप यह एक्ट
संवैधासनक दृखि से एक महत्वपूर्ण पग र्ा। ववसिन्न ववशेषताओ ं के कारर् इस एक्ट का िारतीय इततहास में महत्वपूर्ण
स्थान है।

• 1853 के एक्ट के अनुसार यह घोषर्ा की गई र्ी वक िारतीय प्रशासन उसी समय तक कम्पनी के अतधकार में
रहेगा, जब तक वक पासलि यामेन्ट अन्य कोई व्यवस्था न कर िे। कम्पनी के अतधकार-पत्र को सनसश्चत अवतध के सलए
न बढाकर यह स्पि कर दिया गया वक उसका अि बहुत सनकि है। इस एक्ट के बनने के केवल पााँच वषण बाि ही
पासलि यामेन्ट ने िारतीय प्रिेशों का शासन प्रबन्ध अपने हार्ों में ले सलया। इस प्रकार, िारत से कम्पनी का राज्य
सिा के सलए समाि हो गया।
• इस एक्ट द्वारा संचालक मिल की शक्तियााँ घिा िी गईं, सजसके कारर् उसकी सिा तर्ा सिान को गहरा आघात
पहुाँचा। इसके सिस्यों की संख्या 24 से घिाकर 18 कर िी गई, सजसमें से 6 सिस्य वब्ररिश सम्राि द्वारा सनयुि वकए
जाते र्े। संचालकों को िारत के अतधकाररयों को सनयुि करने के अतधकार से वंतचत कर दिया गया। इसके स्थान
पर हाऊस ऑि कॉमन्स को संचालकों की सनयुक्ति का अतधकार िे दिया। अब सरकार के सलए िारतीय मामलों
से पररतचत कम्पनी के ररिायडण कमणचाररयों को संचालक मिल का सिस्य सनयुि करना िी सम्भव हो गया। इस
नई व्यवस्था के पररर्ामस्वरूप संचालकों की सिा तर्ा सिान को िारी आघात पहुाँचा और उन पर वब्ररिश सम्राि
का प्रिाव अत्यतधक बढ गया। पुक्वन्नया के शब्दों में, इससलए इन पररस्थस्थततयों में जब 1873 ई. में पासलि यामेन्ट
स्वािाववक रूप से इस ववषय पर ववचार करती, तब िारतीय राज्य-क्षेत्र को कम्पनी से सम्राि को हिािररत करने
में कोई बाधा न होती। ववद्रोह ने तो केवल इतना वकया रह इस प्रविया की चाल को तेज कर दिया।
• इस अतधसनयम ने िारत के प्रशाससनक ढााँचे में महत्वपूर्ण पररवतणन कर दिए। पहले गवनणर जनरल अन्य प्रिेशों
की सनगरानी के अततररि बंगाल के गवनणर के रूप में िी कायण करता र्ा, परिु इस एक्ट के अनुसार बंगाल के
सलए एक अलग गवनणर की व्यवस्था की गई, सजससे गवनणर जनरल का कािी बोझ हिा हो गया। अब उसके सलए
सारे िारत के शासन की िेखिाल के सलए ध्यान िेना आसान हो गया। इस तरह से प्रशाससनक कायणकुशलता में
वृद्धद्ध हुई। िारत के प्रशाससनक ढााँचे में विुतः: यह एक बहुत बड़ा सुधार र्ा।
• इस एक्ट ने सनयंत्रर् मिल के अध्यक्ष का वेतन इं ग्लै ि के एक सेिेिरी ऑि स्टे ि के बराबर सनयत वकया। इससे
अध्यक्ष की प्रततष्ठा में कािी वृद्धद्ध हुई।
• 1853 के एक्ट द्वारा 1833 की महान् घोषर्ा को व्यावहाररक रूप दिया गया। अब िारतीयों के सलए सब पि खोल
दिए गए और इस हेतु उन्हें प्रततयोगी परीक्षाओ ं में बैठने की अनुमतत िे िी गई। इस एक्ट द्वारा ससववल सववि स में िती
के सलए प्रततयोक्तगता परीक्षा की व्यवस्था की गई। लन्दन में प्रततयोक्तगता परीक्षा का स्थान सनसश्चत वकया गया और
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बोडण ऑि कण्टरोल के अध्यक्ष को इस सम्बन्ध में सनयम और ववसनयम बनाने का आिेश दिया। इस तरह से
नौकररयों में नामजिगी के ससद्धाि का महत्व समाि हो गया। इतना सब कुछ होते हुए िी िारतीयों को
व्यावहाररक रूप में इस नई व्यवस्था से कोई लाि नहीं हुआ। प्रर्म तो इससलए वक परीक्षाएाँ लन्दन में होती र्ी। अतः
प्रत्येक िारतीय उिीिवार के सलए धन खचण करके परीक्षा के सलए लन्दन जाना सम्भव नहीं र्ा। िूसरे, इस परीक्षा
में बैठने की आयु बहुत कम रखी गई। तीसरे, परीक्षा प्रश्नों के उिर अंग्रेजी िाषा में िेने पड़ते र्े। अंग्रेजों की
मातृिाषा अंग्रेजी होने के कारर् वे िारतीय उिीिवारों की अपेक्षा अतधक सनपुर् ससद्ध होते र्े।
• इं स्थग्लश लॉ कमीशन की सनयुक्ति करके िी इस एक्ट ने बहुत महत्वपूर्ण कायण वकया। इस कमीशन के 8 सिस्यों ने
लॉ कमीशन के अधूरे कायों को पूरा करने के सलए तीन वषण तक अर्क पररश्रम वकया। उनके प्रयासों से िारतीय
िि संरहता और िीवानी तर्ा िौजिारी कायणववतधयों की संरहताओ ं को कानून का रूप दिया गया। उन्हें इस एक्ट
का महत्वपूर्ण योगिान समझा जा सकता है।
• एक्ट का महत्व इस बात में सनरहत है वक इसके द्वारा ववधायी तर्ा कायणपासलका सम्बन्धी कायों को पृर्क् कर दिया
गया। कानून बनाने के सलए गवनणर जनरल की कौंससल का वविार कर दिया गया। मोंििोडण ररपोिण के रचतयताओ ं
ने इस सम्बन्ध में सलखा है, 1853 में ही ववतध सनमाणर् को पहली बार शासन का एक ऐसा ववशेष कृत्य माना गया,
सजसके सलए यंत्रजात और ववशेष प्रविया की आवश्यकता होती है।

विुतः: इस अतधसनयम ने छोिे से ववधायी सनकाय को एक छोिी पासलि यामेंि का रूप िे दिया। इसने वबल को पास करने
के सलए वही तरीका अपनाया, जो आजकल िी प्रचसलत है। गवनणर जनरल की इस कानून बनाने वाली कौंससल में
सरकार की नीतत की आलोचना की जाती र्ी। इस तरह 1853 ई. में एक ऐसी संस्था का आरम्भ हुआ, सजसका ववकससत
रूप आज िारतीय संसि के रूप में ववद्यमान है।

एक्ट के िोष

• इन महत्वपूर्ण िेनों के बावजूि िी यह एक्ट िोषमुि नहीं र्ा। इसके प्रमुख िोष सनम्नसलखखत र्े -
• इस एक्ट द्वारा कानून बनाने वाली कौंससल में केवल अंग्रेज सिस्यों को ही रखा गया, सजन्हें िारतीय िशाओ ं का
ज्ञान नहीं र्ा। िारतीयों को इस कौंससल में न रखने से असंतोष बढा और यह बात ववद्रोह का एक सबसे बडा कारर्
ससद्ध हुई।
• अनेक प्रकार के िेििावों, अत्यतधक खचण तर्ा इं ग्लै ि की लम्बी िूरी के कारर् िारतीयों को कम्पनी सरकार में
उच्च पि प्राि करना सपना ही रहा।
• बंगाल के लोगों ने जो प्रािीय स्वराज्य के सलए प्रार्णना-पत्र दिया र्ा, उसकी तरि कोई ध्यान नहीं दिया गया।
• इस एक्ट का सबसे बड़ा िोष यह र्ा वक इससे इं ग्लै ि में िोषपूर्ण द्वैध शासन व्यवस्था को समाि नहीं वकया गया।

1854 का गवनणमेंि ऑि इन्द्रिया एक्ट

• वब्ररिश संसि ने 1854 ई. में िारत अतधसनयम पास वकया। इसके द्वारा कुछ महत्वपूर्ण प्रशाससनक पररवतणन वकए
गए। इस एक्ट द्वारा सपररषद् गवनणर जनरल को यह शक्ति प्रिान की गई र्ी वक वह संचालक मिल तर्ा ववधान-
मिल की स्वीकृतत से कम्पनी के वकसी िी क्षेत्र की व्यवस्था और सनयंत्रर् को अपने हार् में ले सकता है। उसे उस
क्षेत्र के प्रशासन के सम्बन्ध में सब आवश्यक आिेश तर्ा सनिेश जारी करने का अतधकार िी दिया गया।
• उपयुणि उपबन्धों के आधार पर असम, मध्य प्रिेश, उिर पसश्चमी सीमाि प्राि, बमाण, बलुतचिान और दिल्ली में
चीि कसमश्नरों की सनयुक्ति की गई।
• सी. एल. आनन्द के शब्दों में, इस अतधसनयम का प्रिाव यह हुआ वक सपररषद् गवनणर जनरल को वकसी िी प्राि
के ऊपर सीधा सनयंत्रर् रखने के कायण से छुिकारा समल गया। इसके बाि से िारत सरकार ने िेश के समूचे प्रशासन
पर केवल पयणवेक्षक और सनिेशक प्रातधकारी का ही रूप धारर् कर सलया।
• इस एक्ट द्वारा सपररषद् गवनणर जनरल को यह शक्ति िी प्रिान की गई वक वह प्रािों की सीमाओ ं को ससमतत और
सनधाणररत कर सके। इस एक्ट में यह िी कहा गया वक गवनणर जनरल अब से बंगाल का गवनणर की उपातध धारर्
नहीं करेगा।
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िारत सरकार अतधसनयम 1858

िारत के संवैधासनक इततहास में िारत सरकार अतधसनयम 1858 (Government of India act 1858 in Hindi) एक
ववशेष महत्व रखता है। इस अतधसनयम ने िारत के संवैधासनक इततहास में एक नए अध्याय की शुरुआत की। इसने िारत
के शासन को ईस्ट इं रडया कंपनी के हार्ों से छीन कर वब्ररिश िाउन को हिांतररत कर दिया। वब्रिे न के तत्कालीन
प्रधानमंत्री लॉडण पामस्टण न (Lord Palmerston) ने 12 िरवरी, 1858 को िारत में द्वैध शासन/िोहरे शासन की कसमयों
को िूर करने के सलए एक ववधेयक वब्ररिश संसि में प्रिुत वकया। वकिु इसी िौरान पामस्टण न को त्यागपत्र िेना पड़ा।
इसके बाि लॉडण डरबी (Lord Derby) वब्रिे न के प्रधानमन्त्री बने। लॉडण डरबी (Lord Derby) के काल में प्रिुत ववधेयक
2 अगि, 1858 ई० को वब्रिे न की महारानी ववक्टोररया के हिाक्षर के बाि पाररत हो गया। सजसे िारत शासन
अतधसनयम, 1858 के नाम से जाना गया।

िारत शासन अतधसनयम 1858 (Government of India act 1858) के प्रमुख प्रावधान :

• इस अतधसनयम के द्वारा िारत का शासन ईस्ट इं रडया कम्पनी के हार्ों से ले कर वब्ररिश ताज को हिांतररत कर
दिया गया।
• एक नए पि िारत-सतचव (Secretary of state for India) का सृजन वकया गया। सनिेशक मंडल/डायरेक्टरों
की सिा (Court of Directors) और सनयंत्रक मंडल (Board of Control) को समाि कर दिया गया तर्ा
सनिेशक मंडल और सनयंत्रक मंडल के सिी अतधकार िारत-सतचव (Secretary of state for India) को प्रिान
कर दिए गए। िारत-सतचव को वब्ररिश संसि और वब्ररिश मंतत्रमंडल का सिस्य होना असनवायण र्ा।
• िारत-सतचव की सहायता के सलए 15 सिस्यों की एक सिा की स्थापना की गयी, सजसको िारत-पररषद् (India
Council) कहा गया। िारत-पररषद् के कुल 15 सिस्यों में से 8 सिस्यों की सनयुक्ति का अतधकार वब्ररिश ताज को
तर्ा शेष बचे 7 सिस्यों की सनयुक्ति अतधकार कम्पनी के डायरेक्टरों (Directors of Company) को दिया गया।
• यह जरुरी र्ा की 15 सिस्यों में से कम से काम 9 सिस्य न्यूनतम 10 वषण तक िारत में कायण कर चुके हो तर्ा
सनयुक्ति के समय उन्हें िारत छोड़े हुए 10 वषण से अतधक समय न हुआ हो।
• िारत-सतचव और िारत-पररषद् (India Council) के शासन को सम्मिसलत रूप से गृह सरकार (Home
Government) का नाम दिया गया।
• िारत-सतचव और िारत-पररषद् (India Council) के सिस्यों के वेतन और अन्य खचे िारतीय राजस्व से दिए
जाने का प्रावधान वकया गया।
• िारत-पररषद् का अध्यक्ष िारत-सतचव को बनाया गया। िारत-पररषि के सनर्णय बहुत से सलए जाते र्े। िारत-
सतचव को सामान्य मत िेने का अतधकार र्ा। समान मत होने की िशा में िारत-सतचव को एक अततररि मत
(सनर्ाणयक मत) िेने का िी अतधकार र्ा।
• िारत-सतचव अर्णव्यवस्था और अखखल िारतीय सेवाओ ं के ववषय में िारत-पररषद् की सलाह मानने के सलए
बाध्य र्ा। अन्य सिी ववषयों पर िारत-सतचव िारत-पररषद् की राय को अस्वीकार कर सकता र्ा। िारत-सतचव
को अपने कायो की वावषि क ररपोिण वब्ररिश संसि को प्रिुत करना असनवायण र्ा।
• िारत के गवनणर जनरल का पिनाम बिल दिया गया और उसे िारत का वायसराय कहा जाने लगा। िारत में
गवनणर-जनरल (वायसराय) वब्ररिश सम्राि के प्रततसनतध के रूप में कायण करने लगा। वायसराय िारत सतचव की
आज्ञा के अनुसार कायण करने के सलए बाध्य र्ा। िारत के वायसराय की सनयुक्ति वब्रिे न की महारानी द्वारा की जाती
र्ी। अध्यािेश जारी करने का अतधकार वायसराय को दिया गया।

िारत के प्रर्म वाइसराय लॉडण कैसनिं ग (Lord Canning) र्े।

• िारतीय प्रशासन के अिगणत पिों पर सनयुक्तियााँ करने का अतधकार वब्ररिश सम्राट् ने िारत-सतचव सरहत िारत-
पररषद् तर्ा िारत में स्थस्थत उच्च पिातधकाररयों के बीच वविासजत कर दिया।
• िारत के गवनणर जनरल की पररषि के ववतधक सिस्य तर्ा अतधविा जनरल (Advocate General) की
सनयुक्ति का अतधकार वब्रिे न के सम्राि को दिया गया।
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• िारत के राज्य सतचव को पररषि के परामशण के वबना िारत में गुि प्रेषर् िेजने का अतधकार र्ा।
• मुग़ल शासक का पि समाि कर दिया गया।

िारत पररषि अतधसनयम,1861

1861 िारतीय पररषद् अतधसनयम िारत के संवैधासनक ववकास के इततहास में िो कारर्ों से ववशेष महत्त्व रखता है

(i)इस अतधसनयम के द्वारा गवनणर जनरल की पररषि में िारतीय प्रततसनतधयों को शासमल कर उन्हें ववधायी कायों में
सहयोग करने का अतधकार प्रिान वकया गया तर्ा गवनणर जनरल की ववधायी शक्तियों का ववकेिीकरर्
(Decentralisation) कर दिया गया।

(ii)प्रािीय ववधान पररषिों को ववतध सनमाणर् का अतधकार प्रिान वकया गया, सजससे प्रािीय स्वायिता का प्रारम्भ
हुआ।“

• गवनणर जनरल की कायणपासलका पररषि का वविार करते हुए इसमें ववतध-ववशेषज्ञ के रूप में एक पााँचवााँ सिस्य
शासमल वकया गया। गवनणर जनरल की पररषि को ववतध सनमाणर् की शक्ति प्राि र्ी। इस उद्दे श्य के सलए केिीय
ववधान मंडल में न्यूनतम 6 सिस्य तर्ा अतधकतम 12 सिस्य नामांवकत वकए जा सकते र्े। इन नामांवकत सिस्यों
में से आधे सिस्य गैर-सरकारी होते र्े।
• तत्कालीन वायसराय लॉडण कैसनिं ग ने 1862 ई. में नवगरठत केिीय ववधान पररषद् में सनम्नसलखखत तीन िारतीयों
को सनयुि वकया परियाला के महाराजा नरेि ससिं ह, बनारस के राजा िेवनारायर् ससिं ह तर्ा सर दिनकर राव।
• लॉडण कैसनिं ग वविागीय प्रर्ाली (Portfolio System) की शुरुआत की। इस अतधसनयम के अनुसार, बम्बई और
मद्रास की ववधान पररषिों को कानून बनाने व उसमें संशोधन करने की शक्ति प्रिान की गयी।
• इस अतधसनयम द्वारा उिर-पसश्चमी सीमांत क्षेत्र, पंजाब तर्ा बंगाल में नई ववधान पररषिों की स्थापना की गयी।
• गवनणर जनरल को अध्यािेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति प्रिान की गयी, जो आपातकाल में छ: माह तक
प्रिावी रह सकता र्ा। उपयुणि ववशेषताओ ं के होते हुए िी इस अतधसनयम में सनम्नसलखखत कसमयााँ र्ी

→ववधान पररषि में गैर-सरकारी सिस्यों की कोई प्रिावी िूसमका नहीं र्ी। वे न तो कोई प्रश्न पूछ सकते र्े और न ही
बजि पर चचाण कर सकते र्े।

→गवनणर जनरल केिीय तर्ा प्रािीय ववधान पररषिों द्वारा पाररत वकसी ववधेयक पर सनषेधातधकार अर्ाणत् वीिो
(Veto) का प्रयोग कर सकता र्ा। सार् ही, वब्ररिश संसि वकसी िी ववतध को अस्वीकार कर सकती र्ी।

िारतीय पररषि अतधसनयम 1861

1861 के अतधसनयम द्वारा िारत में संवध


ै ासनक ववकास का सूत्रपात वकया गया । इस कानून द्वारा अंग्रेजों ने ऐसी नीतत
प्रारम्भ की सजसे ‘सहयोग की नीतत’ (Policy of Association) या ‘उिार सनरंकुशता’ (Benevolent Despotism)
की संज्ञा से असिरहत वकया जाता है। योंवक इसके माध्यम से सवणप्रर्म ‘िारतीयों को शासन में िागीिार बनाने का
प्रयत्न वकया गया। इस अतधसनयम के माध्यम से अधोसलखखत व्यवस्थाएाँ की गई र्ीं।

• गवनणर जनरल को ववधायी कायों हेतु नये प्राि के सनमाणर् का तर्ा नव सनसमि त प्राि में गवनणर या ले स्थिनेन्ट
गवनणर को सनयुि करने का अतधकार दिया गया। उसे वकसी प्राि, प्रेसीडेन्सी या अन्य वकसी क्षेत्र को वविासजत
करने, अर्वा उसकी सीमा में पररवतणन का अतधकार प्रिान वकया गया।
• अतधसनयम द्वारा केिीय कायणकाररर्ी के सिस्यों की संख्या 4 से बढाकर 5 कर िी गई। पांचवें सिस्य को ववतधवेिा
होना असनवायण कर दिया गया।
• केिीय सरकार को सावणजसनक ऋर्, ववि, मुद्रा, डाक एवं तार, धमण और स्वत्वातधकार के सम्बन्ध में प्रािीय
सरकार से अतधक अतधकार प्रिान वकया गया।

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• ‘िारत पररषि’ को ववधायी संस्था बनाया गया तर्ा उसे िारत में रहने वाले सिी वब्ररिश तर्ा िारतीय प्रजा, िारत
सरकार के कमणचाररयों, िारतीय ररयासतों तर्ा सम्राि के राज्य क्षेत्रों के अधीन रहने वाले व्यक्ति यों, सिी स्थानों
एवं विुओ ं के सम्बन्ध में कानून बनाने का अतधकार प्रिान वकया गया।
• गवनणर-जनरल को अपनी पररषद् (Council) में 6 से 12 सिस्यों की वृद्धद्ध करने का अतधकार दिया गया जो सिी
मनोनीत र्े। ये सिस्य उसे कानून सनमाणर् में सहायता करने के सलए र्े। इनमें से कम से कम आधे सिस्यों का
गैर-सरकारी होना आवश्यक र्ा और इनका कायणकाल िो वषण र्ा। इन सिस्यों को कायणपासलका पर सनयन्त्रर्
रखने का कोई अतधकार न र्ा। गवनणर जनरल को इनकी राय को ठुकराने (veto) का पूर्ण अतधकार र्ा।
• इस अतधसनयम में वायसराय की पररषि में अतधक सुववधा से कायण करने के सलए सनयम बनाने की अनुमतत िी
गई, सजसके आधार पर वायसराय लॉडण कैसनिं ग ने िारत में वविागीय प्रर्ाली’ (Protfolio System) “शुरूआत
की (IAS-02)। कैसनिं ग ने ववसिन्न की वविाग सिन्न-सिन्न सिस्यों को िे दिए, जो उस वविाग के प्रशासन के
सलए उिरिायी होता र्ा। इस प्रकार िारत में मंतत्रमंडलीय व्यवस्था’ की नींव पड़ी।
• गवनणर जनरल िारत की शांतत, सुरक्षा व वब्ररिश रहतों के सलए पररषि के बहुमत की उपेक्षा कर सकता र्ा।
• गवनणर जनरल को संकिकालीन िशा में ववधान पररषि की अनुमतत के बगैर अध्यािेश (Ordinance) जारी
करने का अतधकार प्रिान वकया गया |
• मद्रास एवं बम्बई की सरकारों को पुनः कानून बनाने तर्ा उसमें संशोधन करने का अतधकार दिया गया।* ध्यातव्य
है वक प्रांतीय पररषिों द्वारा बनाया गया कानून गवनणर जनरल की अनुमतत के बाि ही वैधता को प्राि होता र्ा।
बाि में इसी एक्ट के अधीन बंगाल, उिरी-पसश्चमी प्रांत एवं पंजाब में िमशः 1862, 1886 एवं 1897 ई० में ववधान
पररषिों की स्थापना हुई।
• गवनणर जनरल की पररषि सिाह में एक बार बैठक करती र्ी सजसकी अध्यक्षता वायसराय करता र्ा।
• संवैधासनक ववकास के दृखिकोर् से 1861 ई0 का अतधसनयम अत्यि महत्वपूर्ण र्ा। इससे पहली बार ववतध-
सनमाणर् में िारतीयों का सहयोग प्राि वकया गया योंवक प्रर्म बार गैर-सरकारी सिस्यों की सनयुि हुई र्ी। सार्
ही इसके द्वारा बम्बई और मद्रास प्रािों को ववतध-सनमाणर् करने की शक्ति पुनः प्राि हो गई। अन्य प्रािों में िी ऐसी
ववधान पररषिें स्थावपत करने की व्यवस्था की गयी र्ी। अतः इस अतधसनयम ने केिीयकरर् के स्थान पर
ववकेिीकरर् की नीतत की शुरूआत की।

नोि :-

‘नेरिव मैररज एक्ट’ 1872, केशव चि सेन के प्रयास से गवनणर जनरल लाडण नार्णब्रुक के समय में लाया गया। इस एक्ट
के अिगणत अिजाणतीय वववाहों को मान्यता िी गयी। इसमें लड़वकयों के वववाह की न्यूनतम आयु 14 वषण तर्ा लड़कों
की 18 वषण सनधाणररत की गयी तर्ा इस ऐक्ट के माध्यम से िारत में प्रचसलत बहुपत्नी प्रर्ा को प्रततबंतधत वकया गया।

1873 का अतधसनयम (The Act of 1873)

इस अतधसनयम द्वारा यह उपबन्ध वकया गया वक ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी को वकसी िी समय िंग वकया जा सकता है।
सजसके अनुसरर् में 1 जनवरी 1884 को ईस्ट इन्द्रिया कम्पनी को औपचाररक रूप से िंग कर दिया गया।

शाही उपातध अतधसनयम, 1876 इस अतधसनयम द्वारा गवनणर जनरल की केिीय कायणकाररर्ी में छठें सिस्य की सनयुक्ति
कर उसे लोक सनमाणर् वविाग का कायण सौंपा गया। 28 अप्रैल 1876 को एक घोषर्ा द्वारा महारानी ववक्टोररया को िारत
की साम्राज्ञी घोवषत वकया गया।

िारत पररषि अतधसनयम 1892

इससे पहले आये अतधसनयमों से िारतीयों को कुछ हि तक सावणजसनक सेवा, अर्णव्यवस्था आदि क्षेत्रों में प्रवेश समलने
लगा र्ा। सजसके िलस्वरूप अन्य िारतीयों में िी राष्ट्रीयता और • राजनीततक चेतना का ववकास प्रारम्भ होने लगा।
1885 में कांग्रेस के गठन के बाि, केिीय और प्रांतीय सरकार में िारतीयों की उपस्थस्थतत की मांग और तेजी से बढने
लगी। इन्हीं पररस्थस्थततयों को ध्यान में रखकर वब्ररिश सरकार ने िारत पररषि अतधसनयम 1892 को पाररत वकया गया।

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इसके प्रमुख वबन्दु सनम्नवत है

• इसने ववधान पररषि के कायों में वृद्धद्ध कर उन्हें बजि पर बहस करने और कायणपासलका के प्रश्नों का उिर िेने के
सलए अतधकृत वकया। परिु कायणपासलका से पूरक प्रश्न पूछने और मत वविाजन का अतधकार नहीं दिया गया।
• केिीय और प्रांतीय पररषिों में अततररि सिस्यों की संख्या को बढा दिया गया।
• केिीय पररषि में अततररि सिस्यों की संख्या न्यूनतम 10 और अतधकतम 16 कर िी गयी
• प्रांतीय पररषि में अततररि सिस्यों की संख्या में वृद्धद्ध की गयी। बम्बई और मद्रास में संख्या 20 एवं उिर प्रिेश में
15 कर िी गयी।
• इसके माध्यम से केंद्रीय और प्रांतीय ववधान पररषिों में गैर-सरकारी सिस्यों की संख्या िी बढाई गई, हालांवक
बहुमत सरकारी सिस्यों का ही रहता र्ा। 2/5 सिस्य गैर-सरकारी होना असनवायण र्ा।
• इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार वायसराय को केिीय में और गवनणरों को प्रांतीय ववधान पररषिों में नामांवकत
गैर-सरकारी सिस्यों के सम्बन्ध में ववशेष अतधकार दिए गए।
• इसमें केिीय ववधान पररषि और बंगाल चैंबर ऑि कॉमसण में गैर-सरकारी सिस्यों के नामांकन के सलए
वायसराय की शक्तियों का प्रावधान र्ा।
• प्रांतीय ववधान पररषिों में गवनणर, सजला पररषि, नगरपासलका, ववश्वववद्यालय, व्यापार संघ, जमींिार आदि की
ससिाररशों के आधार पर गैर-सरकारी सिस्यों को नामांवकत कर सकता र्ा।
• इसके अलावा प्रांतीय ववधान पररषिों में गवनणर को सजला पररषि, नगरपासलका, ववश्वववद्यालय, व्यापार संघ
जमींिारों और चैंबर ऑि कॉमसण की ससिाररशों पर गैर-सरकारी सिस्यों की सनयुक्ति करने की शक्ति र्ी।
• 1892 के िारत पररषि अतधसनयम के प्रावधानों के अनुसार ववधान पररषि में सनयुि वकये गये गैर सरकारी सिस्य
जो मुख्यतः राजा-रजवाड़े, बड़े जमींिार एवं अवकाश प्राि अतधकारी होते र्े, िारत की सामान्य जनता से
सामासजक जुड़ाव स्थावपत कर पाने में असमर्ण र्े। अतः इस अतधसनयम ने केिीय और प्रांतीय ववधान पररषिों
िोनों में गैर-सरकारी सिस्यों की सनयुक्ति के सलए एक ससमतत और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान वकया हालांवक
चुनाव शब्द अतधसनयम में प्रयोग नहीं हुआ र्ा, “सनसश्चत सनकायों की ससिाररश पर की जाने वाली नामांकन की
प्रविया” कहा गया।

िारत पररषद् अतधसनयम, 1909 ई.

(The Indian Council Act : 1909 ई.) माले -समन्टो सुधार का लक्ष्य 1892 के अतधसनयम के िोषों को िूर करना तर्ा
िारत में बढते हुए उग्रवाि एवं िास्तिकारी राष्ट्रवाि का सामना करना र्ा। सरकार की मंशा र्ी वक साम्प्रिातयकता को
िड़का कर उग्रवाि तर्ा िास्तिकारी राष्ट्रवाि का िमन कर दिया जाय। इस अतधसनयम को तत्कालीन िारत सतचव
(माले ) तर्ा वायसराय (समन्टो) के नाम पर माले -समन्टो सुधार अतधसनयम िी कहा जाता है। सर अरुिेल ससमतत की
ररपोिण के आधार पर इसे िरवरी 1909 में पाररत वकया गया र्ा।

• इस अतधसनयम के द्वारा केिीय ववधान पररषि में अततररि सिस्यों की सिस्य संख्या 16 से बढाकर 60 कर िी
गयी। इनमें से आधे गैर सरकारी सिस्य होते र्े। प्रािीय ववधान पररषिों, बम्बई, मद्रास, बंगाल एवं उ0प्र0 के
सिस्यों की संख्या बढाकर 50 कर िी गई। छोिे प्रािों के सलए यह संख्या 30 कर िी गई। इस प्रकार व्यवस्थावपका-
सिाओ ं (केिीय तर्ा प्रांत) के सिस्य चार प्रकार के होने लगे: (1) पिेन सिस्य (Ex Officio Members) जैसे
केि में गवनणर जनरल और उसकी कायणकाररर्ी के सिस्य तर्ा प्रािों में गवनणर और उसकी कायणकाररर्ी के
सिस्य; (2) मनोनीत सरकारी अतधकारी (Nominated offi cials); (3) मनोनीत गैर-सरकारी सिस्य
(Nominated non officials); और (4) सनवाणतचत सिस्य (Elected members)।
• इस अतधसनयम के द्वारा िारत में प्रािेसशक चुनाव हेतु व्यावसातयक और साम्प्रिातयक प्रततसनतधत्व प्रर्ाली
(Professional and Communal Representative or Separate electoral system) को अपनाया
गया। सनवाणचन के सलए तीन प्रकार के सनवाणचक मिल का प्रावधान वकया गया; यर्ा- (i) साधारर् (ii) वगण
ववशेष एवं (iii) ववशेष।

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• मुसलमानों के सलए पृर्क मतातधकार तर्ा पृर्क सनवाणचक क्षेत्र की व्यवस्था कर ‘िूि डालो और राज करो’ की
नीतत अपनायी गयी। पृर्क सनवाणचक मिल के बारे में लाडण समन्टों ने लाडण मोरले को सलखा र्ा- हम नाग के िााँत
बो रहे हैं और इसका िल िीषर् होगा।
• केिीय तर्ा प्रािीय ववधान पररषिों की शक्ति में वृद्धद्ध करते हुए सिस्यों को बजि की वववेचना करने, लोकरहत
के ववषयों पर चचाण करने तर्ा अनुपूरक प्रश्न पूछने का अतधकार प्रिान वकया गया। वकिु उन्हें बजि पर मतिान
का अतधकार नहीं र्ा।
• इस अतधसनयम के तहत् िारतीयों को प्रशासन तर्ा ववतध सनमाणर् िोनों कायों में प्रततसनतधत्व प्रिान वकया गया।
ध्यातव्य है वक इस अतधसनयम द्वारा सवणप्रर्म िारत पररषि तर्ा वायसराय की कायणकाररर्ी पररषि में िारतीय
सिस्यों को सम्मिसलत वकया गया। िो िारतीय के. सी. गुिा तर्ा सैयि हुसैन ववलग्रामी को इं ग्लै ि स्थस्थत िारत
पररषि में सनयुि वकया गया। जबवक एस०पी० ससन्हा को वायसराय की कायणकाररर्ी में एक ववतधक सिस्य के
रूप में शासमल वकया गया, यह वायसराय की कायणकारर्ी में सम्मिसलत होने वाले पहले िारतीय र्े। सजन्हें बाि
में ‘लाडण’ की उपातध से वविूवषत वकया गया र्ा। इस प्रकार “1909 ई० का अतधसनयम नरमपंर्ी राष्ट्रवादियों को
संतुि करने के सलए बनाया गया र्ा; परंतु वािव में इसका उद्दे श्य राष्ट्रवादियों को उलझन में डालना, राष्ट्रवािी
जमात में िूि डालना तर्ा िारतीयों के बीच एकता न होने िे ना र्ा।“ मुसलमानों के सलए पृर्क सनवाणचन एवं
ववशेष सुववधाएाँ िेकर अाँग्रेज सरकार ने िारत की एकता को खंरडत कर दिया। विर िी उपयुणि सुधार सवणर्ा बेकार
न र्े। िारतीयों को संसिीय शासन व्यवस्था का पररचय इन्हीं सुधारों से प्राि हुआ। संसिीय शासन की संस्थाओ ं
को स्थावपत करने के पश्चात् उिरिायी शासन की स्थापना को रोकना असम्भव र्ा। अप्रत्यक्ष सनवाणचन पद्धतत और
व्यवस्थावपका-सिाओ ं के सिस्यों के अतधकारों में वृद्धद्ध िी महत्वपूर्ण किम र्े। ये सुधार ‘उिार सनरंकुशता’
(Benevolent Despotism) या ‘सहयोग की नीतत’ (Policy of Association) की चरम सीमा र्े।

िारत सरकार अतधसनयम 1919

िारत सरकार अतधसनयम 1919 के जन्मिाता िारत सतचव मांिेग्यू और िारतीय गवनणर जनरल चेम्सिोडण र्े। इससलए
इस अतधसनयम को िारत सरकार अतधसनयम 1919 को मांिेग्यू चेम्सिोडण सुधार के नाम से िी जाना जाता है। िारतमंत्री
मांिेग्यू ने 20 अगि, 1917 को घोषर्ा की र्ी वक वब्ररिश सरकार की नीतत, सजससे िारत सरकार पूर्णरूप से सहमत है,
वह यह है वक िारतीयों को शासन के प्रत्येक वविाग मे अतधक से अतधक िाग दिया जाये और ऐसी संस्थाओ ं को उत्सारहत
वकया जाये जो स्वाशासन के कायों मे लगी हुई है सजससे िारत मे धीरे -धीरे उिरिायी शासन की नींव रखी जा सके व
वब्ररिश शासन के अंिर रहकर स्वतंत्र रूप से मााँग कर सके। माण्टिोडण ररपोिण मे इस घोषर्ा को युगािरकारी कहा गया।
इस घोषर्ा द्वारा एक युग का अंत होता है और नये युग का प्रारंि होता है। इससे िारत मे एक ऐसी प्रशाससनक नीतत का
सूत्रपात हुआ, जो िारत की स्वतंत्रता का आधार बन गयी।

1919 अतधसनयम के पारतत होने के कारर् इस प्रकार है —

माले -समण्टो सुधार से असंतोष

1909 के माले समण्टो सुधार त्रुरिपूर्ण और अपयाणि र्ा। इन सुधारों ने िारत मे उिरिायी शासन स्थावपत करने की दिशा
मे और कोई किम नही उठाया र्ा। यद्यवप सनवाणचन प्रर्ा को अपनाया गया र्ा वकिु उसका कोई व्यावहाररक महत्व नही
र्ा। कौंससल को न तो कानून सनमाणर् का अतधकार दिया गया और न ही ववि पर उनका अंकुश र्ा। प्रािीय तर्ा स्थानीय
संस्थाओ ं पर केि का सनयंत्रर् कािी दृढ र्ा। इससे केिीयकरर् की प्रवृक्ति को बल समला।

सरकार की िमन नीतत

लॉडण िो प्रततवियावािी दृखिकोर् रखकर उग्रवादियों को कुचलने की नीतत का अवलं बन वकया सजसके िलस्वरूप
राष्ट्रवािी और िी उिेसजत हो गये। वे स्वशासन की मांग करने लगे। अतः सरकार ने वववश होकर जनता को गुमराह
करने के सलए कुछ सुधारो की घोषर्ा कर िी।

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िारतीयों की अन्य सशकायतें

1907 मे ववकेिीकरर् आयोग तर्ा 1912 की लोकसेवा आयोग से बाँधी आशाएाँ सनराशा मे बिलने लगी योंवक
ववकेिीकरर् आयोग की स्वीकृततयां अपयाणि र्ी तर्ा लोकसेवा आयोग मे िी सशक्तर्लता र्ी। जाततिेि की नीतत िी
सरकार ने अपनायी र्ी, सजससे क्षोि और असंतोष िैल चुका र्ा।

मुसलमानों मे वब्ररिश सरकार के प्रतत असंतोष

मुक्विम अलीगढ ववश्वववद्यालय को ले कर वब्ररिश सरकार से कुछ झगड़ा चल ही रहा र्ा। इसके अततररि िकी का
सुल्तान, जो वक संसार के मुसलमानों का खलीिा, उसके प्रतत इं ग्लैं ड की वविेश नीतत ववरोधी र्ी। जब इिली ने िकी से
इर्ोवपया ले सलया तब वब्ररिश सरकार ने उनका सार् नही दिया। इसीसलए िारतीय मुसलमानों ने अंग्रेजों के ववरोध मे
कांग्रेस का सार् दिया और मुक्विम लीग तर्ा कांग्रेस के बीच लखनऊ समझौता हुआ।

गांधी जी का िारतीय राजनीतत मे प्रवेश

सन् 1915 मे गांधीजी अफ्ीका छोड़कर िारत आ गए र्े। सन् 1917 से गांधीजी िारतीय राजनीतत मे सविय हो गए।
अंग्रेजों को गांधी जी की कायणप्रर्ाली तर्ा िसक्षर् अफ्ीका मे उनकी सिलता ज्ञात र्ी। गांधी जी की िारतीय राजनीतत
मे सवियता से घबराकर, अंग्रेजी सरकार ने िारततयों मे व्याि प्रबल राष्ट्रीय िावना को दृखिगत रखकर सन् 1919 का
अतधसनयम पाररत वकया।

केिीय व्यवस्थावपका सिा के सिस्यों द्वारा ज्ञापन-पत्र

केिीय व्यवस्थावपका सिा के सिस्यों ने सरकार को एक ज्ञापन िेकर कुछ सुझाव प्रिुत वकये र्े। इस ज्ञापन ने िी
वब्ररिश सरकार के दृखिकोर् मे पररवतणन वकया र्ा।

1919 के िारत सरकार अतधसनयम की ववशेषताएं

गृह सरकार का सशक्तर्लीकरर्

इं ग्लैं ड मे िारतीय प्रशासन की िेखिाल के सलये एक िारत मंत्री होता र्ा जो संसि का सिस्य होता र्ा तर्ा इसकी मिि
के सलये एक िारत पररषद् होती र्ी। 1919 के अतधसनयम मे अतधकारों मे तो कोई पररवतणन नही वकया गया परिु यह
अपेक्षा व्यि की गई वक उतचत अवसरो पर उसके अतधकारों (हिक्षेप) मे सशक्तर्लीकरर् होगा।

केिीय अनुिरिायी कायणपासलका

िारत मे कलकिा स्थस्थत वायसराय और उसकी कायणकाररर्ी पररषि होती र्ी। वािव मे अिी तक शासन मे गवनणर
जनरल या वायसराय सनरंकुशतापूवणक सनर्णय और शासन चलाते आये र्े तर्ा वब्ररिश सरकार का इन पर ववशेष प्रिावी
सनयंत्रर् नही रहता र्ा। 1919 के अतधसनयम मे िी वायसराय मे उिरिातयत्व की िावना या तत्वों की स्थापना नही की
गई तर्ा वह केिीय व्यवस्थावपका के प्रतत वकसी िी प्रकार से उिरिायी नही र्ा।

अतधकारो और शक्तियों का ववकेिीकरर्

िारत सरकार अतधसनयम 1919 के द्वारा म प्रशासन और राजस्व के ववषयो मे अतधकारों का ववकेिीकरर् वकया गया।
केिीय सरकार के सनयंत्रर् को हिाकर प्रािीय सरकारो को इस पर सनयंत्रर् प्रिान वकया गया। प्रािों मे िी गवनणर
और व्यवस्थावपका मे मंतत्रयों मे िी शक्तियों का वविाजन वकया गया तर्ा इसे उििातयत्व बढाने वाला अतधसनयम कहा
गया।

प्रािों मे आंसशक उिरिातयत्व-द्वैध शासन

वब्ररिश सरकार आरंि मे िारतीयो को पूर्ण उिरिातयत्व िेने मे उन पर ववश्वास नही करती र्ी, योंवक उसे राष्ट्रवािी
सुधारों से डर र्ा। अतः उसने प्रािीय प्रशासन को िो िागों मे बााँिा—

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1.संरसक्षत ववषय

इन ववषयो को अिल-अचल गवनणर की कायणकाररर्ी के अधीन रखा गया जो केवल गवनणर के प्रतत ही उिरिायी र्े और
इन्हें व्यवस्थावपका द्वारा किी सनयंतत्रत नही वकया जा सकता र्ा। वह प्रािीय व्यवस्थावपका द्वारा वकसी िी कानून को
अपनी सनषेधाज्ञा से समाि कर सकता र्ा।

2. हिािररत ववषय

इन ववषयों को मंतत्रयों की अधीनता मे रखा गया। यह मंत्री व्यवस्थावपका के सिस्यों मे से चुने जाते र्े और अपने कायों
तर्ा नीतत के ववषय मे यह पूर्णतः व्यवस्थावपका के प्रतत उिरिायी र्े। इस प्रकार इसके द्वारा व्यवस्थावपका का आंसशक
लोकतंत्रीकरर् वकया गया। प्रत्यक्ष मे सनवाणतचत सिस्यों का बहुमत रखा गया और उन्हे कुछ अतधकार िी दिये गये।

इस प्रकार प्रांतों मे सनवाणतचतों को आंसशक उिरिातयत्व िेकर और कायणपासलका को सनरंकुश रखकर शासन चलाने का
प्रयास वकया गया। िो प्रकार की ववपरीत प्रवृक्तियों से युि यह शासन-प्रर्ाली “द्वैद्ध-शासन” प्रर्ाली कहलाती है।

सनवाणचन और मतातधकार

िारत सरकार अतधसनयम 1919 के अनुसार प्रत्यक्ष सनवाणचनों का आरंि वकया गया और मतातधकार िी बढाया गया।
िारत की वयस्क जनसंख्या के 10 प्रततशत को मतिान का अतधकार दिया गया। सांप्रिातयकता की इस अतधसनयम मे
और अतधक (1909 की तुलना मे वृद्धद्ध कर िी गई। पंजाब मे ससक्खो के तीन प्रािों को छोड़ सिी मे यूरोवपयनों के सलये,
िो प्रािों मे आंग्ल िारतीयों के सलये और एक प्रांत मे िारतीयो के सलये, एक प्रांत मे ईसाइयों के सलये तर्ा 1909 के
समान मुसलमानों के सलये पृर्क सनवाणचन क्षेत्रों की व्यवस्था कर िारत को वविासजत करने का प्रयास वकया।

प्रयोगात्मक और संकिकालीन उपाय

1919 के अतधसनयम के सलये सबसे संकिकालीन पररस्थस्थतत प्रर्म ववश्व युद्ध के कारर् उत्पन्न हुई र्ी तर्ा िारत मे
राष्ट्रीय आंिोलन और सशस्त्र िांततकारी आंिोलन बढ रहे र्े। अतः अंग्रेजो को इं ग्लैं ड और िारत तर्ा इन िोनों के बाहर
संघषण करना पड़ा र्ा। इससलये अंग्रेज सरकार िारतीयों को कुछ (उिरायी शासन) प्रलोिन िेकर शासन करना चाहती
र्ी अतः मांिेग्यू ने स्वशासन का आश्वासन अपनी घोषर्ा मे दिया।

िारत सरकार अतधसनयम 1919 के महत्व का मूल्यांकन

अतधसनयम 1919 का महत्व; सन् 1919 का अतधसनयम िारतीय संवैधासनक इततहास का ब्लू-वप्रिं ि माना जाता है। श्री
श्रीसनवासन के अनुसार,” यह नौकरशाही शासन प्रर्ाली का प्रर्म उल्लं घन तर्ा प्रततसनधात्मक शासन का वािववक
प्रारंि र्ा।“ इस अतधसनयम की गुर्ात्मक ववशेषताओ ं की तुलना मे िोष अतधक र्े। श्रीमती एनी बेसेंि ने िारत सरकार
अतधसनयम 1919 की आलोचना कर सलखा,” अंग्रेजों द्वारा इस अतधसनयम को पाररत करना तर्ा िारतीयों द्वारा स्वीकार
करना िोनों ही बातें अनुतचत है।“ इस अतधसनयम द्वारा केि मे उिरिायी शासन की स्थापना नही की गई तर्ा अन्य
प्रावधानों द्वारा सांप्रिातयकता मे वृद्धद्ध की गई।

असनसश्चत राजनीततक वातावरर् मे प्रयोग

द्वैध शासन प्रर्ाली एक प्रयोग र्ा। द्वैध शासन के प्रयोग के समय िारत का राजनीततक वातावरर् रौलि एक्ट तर्ा
जसलयांवाला बाग कांड (सन् 1919) तर्ा 1920 मे अनावृखि से िारतीय अर्णव्यवस्था की वबगड़ती स्थस्थतत के कारर्
प्रिूवषत हो गया र्ा। उि स्थस्थतत मे द्वैध शासन का प्रयोग करना ठीक नही र्ा।

सैद्धांततक दृखि से िोषपूर्ण

प्रशासकीय ससद्धांत के आधार पर यह व्यवस्था िोषपूर्ण र्ी। प्रांतीय सरकार को िो िागो मे बांिकर “एक ही व्यक्ति िो
नाव मे सवार नही हो सकता” उक्ति के अनुसार यह त्रुरिपूर्ण कायण र्ा। इससे शासन की एकता नि हो गई।

ववषयों का अतावकिक एवं अव्यावहाररक बंिवार

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प्रांतीय ववषयो को िो िागो ‘रसक्षत” तर्ा “हिांतररत” ववषयो मे वविासजत करना अव्यावहाररक र्ा। इससे समस्याएं
उत्पन्न हो गई।

ववि संबंधी अव्यवस्था

हिांतररत ववषयो के सलए पृर्क ववि व्यवस्था नही र्ी। प्रत्येक प्रांत मे ववि वविाग केिीय कायणपासलका पररषद् के
सिस्य के अधीन रखा गया जो िारत सतचव के प्रतत उिरिायी र्ा। उि स्थस्थतत मे प्रांतीय मंतत्रयों की स्थस्थतत िुववधाजनक
एवं िुबणल र्ी। उनके पास कोई िंड नही र्ा वक वे सुचारू रूप से कायण कर सके।

इस तरह द्वैध शासन प्रर्ाली अतावकिक, अव्यवहाररक एवं प्रशासकीय ससद्धांतो के ववपरीत होकर गलत र्ी।

अिी अध्याय पूर्ण नहीं है इसमें सजतना क्लास मे पढाया गया है उतना ही दिया जा रहा
है बावक क्लास मे पढाने के बाि दिया जायेगा |

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