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Baps (N) 120
Baps (N) 120
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 1
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
1.0 प्रस्तावना
इकसिी सदी, िैश्वीकरण, उदारीकरण, तनजीकरण, िकनीकीकरण, संचार क्रातन्ि जैसे िमिों से
सशु ोतभि की जा रही है। राजनीति तिज्ञान जो ईसा पिू भ चौथी सदी में पैदा हुआ तनरन्िर ितिशील रहकर
आज की इकसिीं शदी में भी बना है। इस लम्बे सफर में राजनीति तिज्ञान का स्िरूप, अध्ययन क्षेत्र,
अध्ययन के उपकरण, उपािम, तसद्धान्ि समयानसु ार अनक ु ू लन करिे हुए पररितिभि ि पररितधभि होिे
रहे, जो अनकु ू लन नहीं कर पाये मृि हो िये। राजनीति तिज्ञान चतू क मानिीय-सामातजक तिज्ञान है,
अिः ितिशीलिा ि पररििभन उसकी प्रकृ ति के अंि है।ं
इस पस्ु िक की पहली इकाई में में हम राजनीिी क्या है? राजनीति तिज्ञान के उद्भि, अथभ, प्रकृ ति और
क्षेत्र का अध्ययन करें िे .
1.1 उद्देश्यः
इस इकाई का उद्देश्य राजनीति क्या है? राजनीति तिज्ञान की परम्परािि और आधतु नक पररदृश्य में
व्याख्या करना है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आपः
1 राजनीति मल
ू िः क्या है ? समझ सकें िे।
2 राजनीति तिज्ञान की परम्परािि और आधतु नक पररप्रेक्ष्य में अथभ, प्रकृ ति एिं क्षेत्र को समझ सकें िे।
3 परम्परािि और आधतु नक राजनीति तिज्ञान की तिशेषिाओ ं का तििरण दे सकें िे।
4 परम्परािि और आधतु नक राजनीति तिज्ञान के खास पहलओ
ु ं को पहचार कर, दोनों के मध्य
अन्िर कर सकें िे और
5 राजनीति तिज्ञान के महत्ि का जायजा ले सकें िे
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सलु झाना राजनीति का मल ू भूि लक्षण है। कुल तमलाकर, राजनीति दष्टु ‘मानिीय प्रिृतत्तयों’ पर रोक
लिाने की एक सभ्य प्रतक्रया है जो अतनिायभ एिं िांछनीय है। राजनीति सािभजतनक तिषयों से संबंतधि
ितितितध है। तनजी मामलों को िभी राजनीतिक माना जािा है जब िे तनयम या काननू के पररक्षेत्र में
लाये जाएं। राजनीति सभी समाजों एिं सभी कालों में सम्पन्न होने िाली ितितितध है। सभं ि है तक
तभन्न-तभन्न समाजों एिं कालखण्डों में राजनीति के प्रति आम लोिों की रूतच में पयाभप्त अिं र हो
सकिा है िथातप कुछ मात्रा में यह सभी समाज एिं काल में सम्पन्न होिी रहिी है। इस प्रकार राजनीति
एक अतनिायभ ितितितध है तजसके तबना कोई समाज अतस्ित्ि में नहीं बना रह सकिा। राजनीति तकसी
समाज द्वारा तकए जाने िाले सामतू हक तनणभय की ओर भी संकेि करिी है। कोई भी समाज हर समय
कुछ तिषयों पर तनणभय करने की प्रतक्रया से िुजर रहा होिा है। राजनीति िृहद एिं व्यापक रूप में,
सामतू हक कल्याण एिं प्रिति का सामतू हक प्रयास है। यद्यतप यह संभि है तक सिाभतधकारिादी
राजनीतिक व्यिस्थाओ ं में कुछ व्यतक्त या व्यतक्त समहू परू े समाज की ओर से सही तनणभय करने का
दािा करें । ििभमान में राजनीति को एक ितितितध, कायभकलाप अथिा प्रतक्रया के रूप में पररभातषि
तकया जा रहा है, जो राज्य, शासन, इसे चलाने िाले िथा राज्य, शासन के तनणभय तनमाभण से प्रभातिि
होने िाली जनिा से जड़ु ी हुई है। राज्य एक मानिीय संस्था है, जो मानि के अतिररक्त अन्य प्राणी
जिि में नहीं पायी जािी। अिः राजनीति जो प्रायः राज्य की ितितितधयों से सबं तं धि है, एक शद्ध ु रूप
से मानिीय ितितितध है।
राजनीति में हम ऐसी ितितितधयों, प्रतक्रयाओ ं को सतम्मतलि करिे हैं जो तनणभय-तनमाभण िथा तनयम
तक्रयान्ियन से संबंतधि है। हम कह सकिे हैं तक हर मानिीय ितितितध राजनीतिक नहीं होिी। िह
िभी राजनीति के पररक्षेत्र में आिी है जब तकसी तिषय पर काननू बनाने िथा काननू लािू करने का
प्रश्न उठ खड़ा हो। काननू तनमाभण सािभजतनक मानिीय ितितितध है जो समाज के तितभन्न समहू ों के
तहिों में सामन्जस्य का प्रयास करिी है। यह प्रतक्रया तनरंिर चलिी रहिी है। इस कारण राजनीति,
समाज में तितभन्न समहू ों के तहिों में सामंजस्य की प्रतक्रया भी है। अमेररकी तसद्धांि शास्त्री डेतिड
ईस्टन ने राजनीति को मल्ू यों का अतधकाररक आिटं न कहा है। अथाभि् राजनीति समाज में यह िय
करिी है तक व्यतक्त अथिा व्यतक्त समहू को उनका अतधकार काननू ी रूप में तमलना चातहए। राजनीति
ितितितध के रूप में देखने पर यह राजनीतिक व्यतक्तत्ि की ितितितध से भी संबद्ध हो जािी है। हमारे
जनप्रतितनतध नीति तनमाभिा जो कुछ करिे हैं या कहिे हैं, राजनीतिक माना जािा है। राजनीतिज्ञ का
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व्यिसाय राजनीति होिा है तजस कारण राजनेिाओ ं की अतधकाश
ं ितितितध राजनीति के क्षेत्र में आ
जािी है।
राजनीति को सत्ता से जोड़ने की प्रिृतत्त प्रबल रही है। सत्ता शतक्त का िैध एिं सिभस्िीकायभ रूप होिी
है। प्रायः शासन एिं सत्ता को पयाभय के रूप में प्रयोि कर तलया जािा है। मानि में शतक्त की लालसा
सदैि बनी रहिी है। तितटश राजनीति दाशभतनक थॉमस हॉब्स (1588-1079) ने शतक्त प्रातप्त को मानि
स्िभाि का मख्ु य िणु माना है। मानि शतक्त प्राप्त कर सरु तक्षि रह सकिा है और अपने सुख में िृतद्ध
करिा है। हॉब्स के अनसु ार मानि की शतक्त की लालसा का समापन उसके जीिन के साथ ही होिा
है। शतक्त को प्रायः कुछ तिद्वानों ने राजनीति का के न्रीय ित्ि माना है। के टतलन ने राजनीति को शतक्त
का तिज्ञान कह कर संबोतधि तकया है। शतक्त राज्य की एक आधारभिू आिश्यकिा है। राज्य अन्य
समदु ायों से इस बाि पर तभन्निा रखिा है तक उसके पास िैध दातण्डक शतक्त है। यह शतक्त काननू के
तक्रयान्ियन के तलए आिश्यक होिी है। शतक्त के अभाि में काननू , नैतिक तनयम या उपदेश मात्र बने
रह सकिे हैं। राज्य की दण्ड शतक्त अथिा सत्ता का प्रयोि सदैि जनिा के तहि में ही होिा हो, यह
आिश्यक नहीं। सत्ता सच ं ातलि करने िाले प्रायः इसे अपनी तनजी आिश्यकिाओ ं एिं तहिों के तलए
प्रयोि करने लििे हैं। इस प्रकार के शासनिंत्र को जनिा क्रांति के माध्यम से उखाड़ फें किी है। ििभमान
लोकिांतत्रक शासनों में सत्ता पर तकसी व्यतक्त या समहू का पुश्िैनी अतधकार नहीं हो सकिा है। सभी
लोि सामतू हक रूप से सत्ता में भािीदारी करिे हैं। इस प्रकार की भािीदारी मिदान के माध्यम से तनतिि
समय के तलए जनप्रतितनतध चनु कर होिी है। इस प्रकार राजनीति, सत्ता या राज्य संचालन को प्राप्त
करने की प्रतक्रया से भी जुड़ी हुई है। कुल तमलाकर, ििभमान राजनीति ‘सत्ता में भािीदारी’ करने से
संबंतधि है।
राजनीति को प्रायः शासन की कला से संबंतधि भी मान तलया जािा है। भारिीय तिचारक कौतटल्य
की पस्ु िक ‘अथभशास्त्र’ िथा इटली के तनकोलो मैतकयािेली (1469-1527) की पस्ु िक ‘द तप्रसं ’ का
प्रतिपाद्य तिषय शासक एिं शासन की कला है। शासन की आिश्यकिा समाज में तितभन्न व्यतक्त एिं
समहू ों के तहिों को शांतिपणू भ ढंि से सरु तक्षि रखने के तलए होिी है। तकन्िु समाज में कुछ लोिों की
व्यतक्तिि महत्िाकांक्षा एिं कुछ समहू ों के प्रभत्ु ि के साथ शासन संचालन करना सरल कायभ नहीं
होिा। अिः शासन करना एक ‘कला’ बन जािा है और जो इस कला में पारंिि हो जािे हैं, श्रेष्ठ
शासक कहलािे हैं। बरु े शासक षडयंत्रों अथिा क्रांति द्वारा हटा तदये जािे हैं। अच्छे शासन एिं शासकों
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की आिश्यकिा इसतलए पड़िी है तक समाज में काननू एिं व्यिस्था के साथ सामतू हक कल्याण
तनतिि हो सके । इस कारण शासक एिं शासन सािभजतनक तिकाय होने के कारण स्ििः राजनीति के
के न्रीय तबन्दु हैं।
राजनीति एक मल्ू यबद्ध धारणा है। राजनीति को हम चाहे सिोच्च कायभकलाप माने जैसा तक प्राचीन
एथेंसिासी मानिे थे या हम जनसाधारण में प्रचतलि इस मान्यिा पर तिश्वास करें तक राजनीति ‘दष्टु ों
का अतं िम आश्रय स्थल’ है। तजस प्रकार का तिरोधाभास हमारे मन में पैदा होिा है उसी प्रकार राजनीति
को ‘कै सा होना चातहए’ और ‘यह कै सी है’ को लेकर भी मिािंर पाये जािे हैं। राजनीति ऐसी
सािभजतनक कल्याण की चचाभ-पररचचाभ से भी संबद्ध है जो एक ऐसे समाज के तनमाभण की कल्पना
करिी है जो शांतिपणू भ हो और जनिा हर प्रकार से सख ु ी हो, उनमें तकसी प्रकार का तििाद ना हो। क्या
ऐसा समाज बना पाना सभं ि है? ऐसा समाज कै से प्राप्त तकया जा सके िा? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर
देने का प्रयास भी राजनीति करिी है। प्लेटो की पस्ु िक ‘ररपतब्लक’ ऐसे राजनीतिक समाज का कल्पना
तचत्र खींचिी है जो स्ियं में एक सिभिणु सम्पन्न समाज होिा। महात्मा िाँधी की कल्पना ‘रामराज्य’
की है जहां परस्पर तिरोधी तहिों में भी प्रेमपणू भ सामजं स्य होिा। प्लेटो या िाधं ी द्वारा कतल्पि समाज
एक मल्ू य है, तजसमें ऐसे समाज की इच्छा की जािी है जो ििभमान में नहीं है। तकन्िु यथाथभिादी मानिे
हैं तक ऐसा समाज एक कल्पना मात्र है क्योंतक मानिीय स्िभाि अतस्थर, स्िाथी एिं दष्टु िा से भरा है।
अिः ऐसा मानने िाले तिचारक एक मजबिू शासन एिं योग्य तनरंकुश शासक की आिश्यकिा पर
बल देिे हैं। हम अपने व्यिहाररक अनभु िों से पािे हैं तक इन दोनों नजररयों के बीच ‘राजनीति क्या है’
की बहस तस्थि है। इतिहास और ििभमान में इस प्रकार की छोटी-बड़ी चचाभएं राजनीति का एक मख्ु य
भाि हैं। अिः राजनीति सैद्धांतिक एिं व्यिहाररक िौर पर िब िक जारी रहेिी, जब िक एक सिभिणु
सम्पन्न समाज की स्थापना नहीं हो जािी है। इस प्रकार राजनीति एक शाश्वि् ितितितध है तजसका
लक्ष्य तनरंिर आिे की ओर बढ़िे हुए उच्चिर समाज की रचना करना है।
राजनीति एक तिषय या अनश ु ासन के रूप में ज्ञान की एक शाखा है। राजनीति अध्ययन का एक तिषय
है जो राज्य, संतिधान, शासन और सरकार से के न्रीय रूप से संबंतधि है। राज्य की उिपतत्त, राज्य के
कायभ िथा राज्य के व्यतक्त के साथ संबंध आतद तिषय के रूप में राजनीति से प्राचीन समय से ही जड़ु े
हुए हैं। परम्परािि राजनीति अध्ययन की सीमाएं राज्य, संतिधान, सरकार िक है। ििभमान में यह
राजनीतिक व्यतक्तत्ि की ितितितध एिं कायभकलाप के अध्ययन ‘मिदान व्यिहार’ िक तिस्िृि हो
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चक ु ी है। राजनीति, तिषय के रूप में व्यिहाररक राजनीति िथा सैद्धातं िक राजनीति का अध्ययन है।
प्राचीन यनू ानी राजनीति तिज्ञानी अरस्िू ने अध्ययन के रूप में राजनीति को ‘सिोच्च तिज्ञान’ कह कर
संबोतधि तकया था। अरस्िू की रचना ‘पॉतलतटक्स’ ित्कालीन निर राज्यों में सािभजतनक मानिीय
तक्रयाकलापों का अध्ययन करिी है।
राजनीति का एक पक्ष और भी है तजसे सबसे आसानी से समझा जा सकिा है। राजनीति एक व्यिसाय
भी है। ििभमान समय में तजस प्रकार तशक्षक, अतभयंिा, डॉक्टर या िकील तकसी पेशे की ओर सक ं ेि
करिे हैं उसी िरह स्ियं को राजनीतिज्ञ, या जनप्रतितनतध कहने िाले व्यतक्त पयाभप्त संख्या में मौजदू हैं।
ये राजनीतिक प्रतिस्पधाभ में भाि लेिे हैं और राजनीतिक पद एिं सत्ता प्राप्त करिे हैं। इसे प्राप्त करने के
क्रम में राजनीतिक प्रतियोिी ऐसे िायदे करिे हैं, जो कभी परू े नहीं तकए जा सकिे और ऐसी
तिकड़मबाजी करिे हैं तक राजनीति िास्िि में ‘दष्टु ों का अंतिम आश्रय स्थल’ प्रिीि होिी है। सामान्य
जनिा, ईमानदार लोि इसी कारण ‘राजनीति’ शब्द को नकारात्मक अथों में प्रकट करिे हैं और घोषणा
करिे हैं तक िे राजनीति से घृणा करिे हैं। सामान्यिः अच्छे तजम्मेदार व्यतक्तयों से आशा की जािी है
तक िे स्ियं को राजनीति से ऊपर रखेंिे और राजनीति नहीं करें िे। तफर भी, राजनीति के प्रति तकसी भी
प्रकार की नकारात्मक राय कुछ िथ्यों एिं व्यतक्तयों के आधार पर बना लेना भयंकर भल ू होिी। साथ
ही, जो लोि घोषणा करिे हैं तक िे राजनीति में रूतच नहीं लेिे, उन्हें ध्यान में रखना होिा तक इसका
अथभ यह नहीं तक राजनीति भी ऐसे व्यतक्तयों में रूतच नहीं लेिी।
राजनीति एक व्यिसाय के रूप में तनतिि ही जतटल एिं कतठन कायभ है। राजनीति सािभजतनक ितितितध
होने के कारण राजनीतिक पदातधकाररयों पर जनिा की पैनी नजर होिी है। जनिा इन पदातधकाररयों
के प्रति आलोचनात्मक रूख रखिी है और साथ में इनसे जनिा के कल्याण की आशा भी रखिी है।
ऐसी तस्थति में एक अच्छे डॉक्टर, िकील या तशक्षक की िरह अच्छा राजनीतिज्ञ होना आिश्यक हो
जािा है। इसी कारण जमभन नेिा तबस्माकभ ने कहा- “राजनीति संभाव्य की कला (Art of
Possibilities) है।” मैतकयािेली ने अपने आदशभ राजनीतिज्ञ में तिरोधी िणु ों का समािेश माना है।
अथाभि राजनीतिज्ञ में शेर और लोमड़ी के िणु होने चातहए। उसे साधु सा तदखना चातहए लेतकन होना
चातहए प्रथम श्रेणी का धिू भ। प्लेटो ने राजनीति को तिशेषज्ञिा का कायभ माना है जो हर तकसी के िश
की बाि नहीं है। िह एक ऐसे दाशभतनक राजा की कल्पना करिा है जो राजनीति का तकसी कलाकार
या तिशेषज्ञ की िरह तनपणु िा से तनिहभन करे । अिः राजनीति एक व्यिसाय भी है जो ििभमान में
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प्रतितनतध शासन व्यिस्था के कारण आिश्यक एिं अतनिायभ है। सामान्य जनिा अपने आतथभक ि
अन्य कायभकलापों में व्यस्ििा िथा ििभमान शासन की जतटलिा के कारण सत्ता में सीधी भािीदारी न
करिे हुए अपने तलए जनप्रतितनतधयों का चनु ाि करिी है और यही प्रतितनतध जनिा की ओर से नीति
तनमाभण एिं नीति कायाभन्ियन में भाि लेिे हैं। नीति तनमाभण प्रतक्रया में भाि लेने िाले यही जनप्रतितनतध
राजनीति को एक व्यिसाय के रूप में अपनािे हैं।
राजनीति करने के समान ही राजनीति को ‘पढ़ाना’ भी एक व्यिसाय है जो तशक्षण ितितितध के
अंििभि आिा है। राजनीति करने िथा राजनीति पढ़ाने में सहज अंिर तकया जा सकिा है। व्यिहाररक
राजनीति करना एिं राजनीति के सैद्धांतिक पक्ष को पढ़ाना दो तभन्न बािे हैं। राजनीतिज्ञ का लतक्षि
ििभ िे मिदािा होिे हैं तजनके मि से िह राजनीतिक पद प्राप्त कर सकिा है जबतक ‘राजनीति’ के
तशक्षक का उद्देश्य राजनीति के छात्रों को अतधकिम सम्भि सैद्धातं िक ज्ञान देना है।
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रोमिातसयों ने राजनीति की न्यायिादी या काननू ी व्याख्या दी। उनके तलए राजनीति एक ऐसी ितितितध
थी, तजसका सम्बन्ध ‘साम्राज्य’ से था। ज्ञािव्य है तक रोमन काल में शनेः-शनेः निर राज्य लप्तु होने
लिे थे और उनके स्थान पर ‘साम्राज्यों’ की स्थापना प्रारम्भ हो रही थी, तजसका तनयमन, कतिपय
सामान्य और िय तनयमों द्वारा होिा था। रोम में राजनीतिक तसद्धान्ि में बराबर यह प्रयास रहिा था तक
नािररक काननू को प्राकृ तिक काननू के आदशभ के पास लाया जाए। इस प्रकार पािात्य जिि के
राजनीतिक तचिं न/तसद्धान्िों में दाशभतनक और काननू ी दोनों ही प्रकार की अिधारणा के दशभन होिे हैं।
इसी प्रकार मध्य काल (500 ई0 से 1400 ई0 िक) का राजनीति तिज्ञान अथिा राजनीति, धमभ के
चारों ओर बनु ी िई। फलिः राजनीति की मध्ययुिीन संकल्पना (अिधारणा) सामन्ििादी यिु में मूलिः
धमभशास्त्रीय आदेशात्मक और संकीणभ थी क्योंतक राजनीतिक सत्ता स्ििंत्र नहीं थी, िह चचभ के अधीन
थी और चचभ सिोच्च धातमभक सिं ठन था।
तकन्िु पनु जाभिरण ि धमभसधु ार आन्दोलनों से आधतु नक यिु की शरू ु आि ने राजनीति तिज्ञान को एक
नयी आबो-हिा दी। राजनीति में धमभ तनरपेक्षिा का िािािरण, मानि तचन्िन, लौतकक तचन्िन,
िैज्ञातनक सोच, िातकभ क तचन्िन का जन्म हुआ। औद्योतिक क्रातन्ि ने राजनीतिक तचन्िन में नयी धाराएँ
जोड़ दी- व्यतक्तिाद, उदारिाद; तकन्िु माक्सभिादी तचन्िन ने पँजू ीिाद का तिरोध तकया, नया तचन्िन
सामने आया- समाजिाद, साम्यिाद। माक्सभिादी तचन्िन ने दतु नयॉ दो धड़ों में बॉट दी। कई तचन्िकों
को लिा तक राजनीति तिज्ञान ने ऐसा तचन्िन, दशभन ि तसद्धान्ि माक्सभिाद के रूप में ढूँढ तलया है जो
ित्कालीन समस्याओ ं का एकमात्र समाधान है। तकन्िु ऐसा नहीं हुआ, लिभि 1903 ई0 में तशकािों
तिश्वतिद्यालय (अमेररका) के यिु ा राजनीतिक अध्येिाओ ं ने एक प्रतितक्रयािादी आन्दोलन शरू ु कर
तदया। प्लेटो से लेकर ििभमान 19िीं शदी के आतखरी िषों िक के राजनीतिक तचन्िन को नकार तदया।
घोषणा की तक अभी िक राजनीति तिज्ञान में तजिना अध्ययन हुआ, उन्होंने जो िकनीकें अपनायी;
सब व्यथभ और अनपु योिी हैं। दरअसल ये समय समाज तिज्ञानों के जीिन का िह दौर था, जहॉ सारे
सामातजक तिषय ‘तिज्ञान बनने की दौड़’ में शातमल थे। ऐसे में तशकािों के राजनीतिक अध्यिाओ ं
को लिा तक उनका तिषय भी ‘तिज्ञान’ बनाया जाये। पररणाम स्िरूप राजनीति तिज्ञान में
व्यिहाररकिािादी आन्दोलन का प्रिेश हुआ। यही िह पररििभन सीमा है तजससे पिू भ का राजनीति
तिज्ञान ‘परम्परािि राजनीति तिज्ञान’ और तजसके बाद का राजनीति तिज्ञान आधतु नक राजनीति
तिज्ञान कहलािा है। उल्लेखनीय है लम्बे समय िक राजनीति तिज्ञान, राजनीतिक तसद्धान्ि,
राजनीतिक दशभन समानाथों शब्दों के रूप में प्रयक्त
ु तकये जािे रहे। यद्यतप बाद में कई तिद्वानों ने इनमें
भेदक रे खा खींचने का साथभक प्रयास तकया।
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एक तिषय बरबस ध्यान खींचिा है तक आज जब दतु नयॉ ‘ग्लोबल तिलेज’ का रूप ले चक ु ी है, इटं रनेट
जैसी संचार िकनीक फै ल चक ु ी है, ऐसे में राजनीति तिज्ञान और तिशेष रूप से आधतु नक राजनीतिक
तसद्धान्िों की क्या प्रासतं िकिा है?
‘आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि’ तिषय के अन्ििभि प्रायः उन तसद्धान्िों का समािेश तकया जािा है
तजनकी रचना सन् 1903 ई0 के बाद हुई है। यह अत्यन्ि व्यापक क्षेत्र है तजसे तनतिि सीमाओ ं में बॉध
पाना कतठन है। व्यिहाररकिािादी आन्दोलन से लेकर ििभमान में नारीिादी आन्दोलन िक सभी
इसकी सीमा में समाये हुए हैं। जहॉ िक तिषय की प्रासतं िकिा का प्रश्न है इसमें कोई सदं हे नहीं होना
चातहए तक आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि पणू भिया प्रासंतिक हैं। यद्यतप यह सत्य है तक समाज तिज्ञान
होने के नािे इन तसद्धान्िों में उिनी तनतिििा ि स्पष्टिा नहीं है तजिनी प्राकृ तिक तिज्ञानों के तिषय में
होिी है।
यद्यतप व्यिहाररकिािाद की अपनी कुछ कतमयॉ रही हैं तकन्िु इसने राजनीति तिज्ञान को तनतिि रूप
से एक नयी दृतष्ट प्रदान की। अब राजनीति में अध्ययन इकाई मनष्ु य का राजनीतिक व्यिहार बनाया
िया। िस्ििु ः मनष्ु य के राजनीतिक व्यिहार को जाने बिैर राजनीति के सम्बन्ध में तलए िये तनणभय
सदैि असफल होिें। अिः इस दृतष्ट से यह कहा जा सकिा है व्यिहाररकिािादी तसद्धान्ि न के िल
आज प्रासंतिक है बतल्क सदैि प्रासंतिक रहेिा।
इसी प्रकार यतद डेतिड ईस्टन के व्यिस्था तसद्धान्ि को लें िो यह 1950 के दशक, जब इसे ईस्टन ने
प्रतिपातदि तकया, से अतधक आज प्रासंतिक नजर आिा है। मूल्यों का सम्पणू भ समाज के तलए
आतधकाररक आबंटन होना आिश्यक है चँतू क आज अतधकांश राज्य लोकिांतत्रक रास्िे पर चल रहे
हैं। आज यतद मल्ू यों का आबंटन सम्पणू भ समाज के तलए न होकर तकसी ििभ तिशेष के तलए होिा है,
िो िहीं पर दिं ें, हड़िाल, िालाबदं ी, जलसू आतद देखने को तमलिे हैं। समाज में व्यिस्था बनाये रखने
के तलए ऐसे राजनीतिक तसद्धान्िों की तनिान्ि आिश्यकिा नजर आिी है।
सचं ार क्रातन्ि ने आज दतु नयॉ को िैतश्वक िॉि में बदल तदया है। ऐसे में संचार की भतू मका राजनीति
तिज्ञान में और अतधक महत्िपूणभ हो जािी है। तकसी भी राजनीतिक व्यिस्था को कब, क्या और कै से
तनणभय लेने हैं, इसका तनधाभरण परू ी व्यिस्था से प्राप्त सचू नाओ ं के अनरू
ु प होिा है। सचू ना ित्रं व्यिस्था
में प्राण ित्ि रक्त की भॉति है। सही सचू ना, सही समय पर सही तनणभय लेने में सहायक होिी है। आज
आिंकिाद के बढ़िे नेटिकभ को िोड़ने के तलए सरकार को उससे अतधक बेहिर सचू ना िंत्र बनाना
होिा। चाहे मद्दु ा आफे तन्सि हो या तडफे तन्सि, दोनों मामलों में सचू ना िंत्र की महत्िपणू भ भतू मका है।
कालभ डायच ने संचार तसद्धान्ि की रचना करके न के िल राजनीति तिज्ञान को बतल्क सम्पणू भ मानि
समाज को एक महत्िपणू भ देन प्रदान की है।
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राजनीतिक तिकास, राजनीतिक आधतु नकीकरण, राजनीतिक समाजीकरण, राजनीतिक संस्कृ ति,
राजनीतिक भिी, राजनीतिक सहभातििा आतद अनेक ऐसे आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि हैं, तजनकी
ििभमान समाज को पि-पि पर आिश्यकिा पड़िी है। चनु ािी मामला हो या तिदेश नीति का मामला
या कोई अन्य ये तसद्धान्ि मािभ दशभक की भतू मका तनभािे हैं। आधतु नकीकरण ि तिकास के मापदण्डों
पर कोई देश कै से पहुचिा है, यह जानकारी हमें यही तसद्धान्ि देिे हैं।
तिचारधारा, आज एक महत्िपणू भ तिषय है जो आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्िों में शातमल तकया जािा
है। यह एक ऐसा तिषय है जो प्राचीन काल से आज िक हर समय प्रासतं िक बना रहा है। तिचारधारा,
मानिीय समाज को जोड़ने, एक आदशभ तस्थति िक पहुचने का मािभ, मानि की पणू भिा की दृतट की
और इशारा करिी है। व्यिहाररक दृतष्ट से अपने उद्देश्यों को तछपाने का यह एक लबादा है। तिश्व के
सभी देश तकसी न तकसी तिचारधारा से प्रेररि ि अनप्रु ातणि हैं। चाहे िह माक्सभिादी हो, फे तबयनिादी,
पँजू ीिादी, साम्यिादी, व्यतक्तिादी, आदशभिादी, उदारिादी, माओिादी, या िाँधीिादी या कोई अन्य
जैसे फासीिादी, नाजीिादी। इससे तनिािं स्पष्ट है ‘तिचारधारा’ का अध्ययन तकये बिैर राजनीतिक
तिज्ञान ि स्ियं राजनीतिक व्यिस्थाऐ ं अपणू भ ही रहेंिी। इधर 1960 के दशक से कुछ तिद्वानों ने
तिचारधारा के अंि का तबिल ु बजाया। डेतनयल बेल यह स्पष्ट तकया तक उत्तर आधतु नकीकरण काल
में सभी राज्य आतथभक तिकास ि भौतिकिाद की ओर भाि रहे हैं, चाहे िे तकसी भी तिचारधारा के
क्यों न हों, ऐसे में तिचारधारा का कोई महत्ि नहीं रह जािा और ऐसा लििा है तिचारधारा का अंि
हो िया है। तकन्िु डेतनयल का यह तिचार तिद्वानों को स्िीकायभ नहीं हैं क्योंतक तिश्व आज भी
तिचारधाराओ ं में बांटा है।
उपरोक्त कुछ उदाहरणों को प्रस्ििु करने का मन्िव्य के िल इिना है तक ‘आधतु नक राजनीतिक
तसद्धान्ि’ तिषय आज की पररतस्थतियों मे अतधक प्रासंतिक हो िया है। राजनीति तिज्ञान ‘शासन के
सचं ालन’ का तदशायत्रं होिा है। समय-समय पर तजन तसद्धान्िों की आिश्यकिा महससू हुई, उन्हें िढ़ा
िया। ‘आिश्यकिा अतिष्कार की जननी होिी है’, इस शाश्वि तनयम से राजनीति तिज्ञान भी बधा है
और इसके पररणाम भी समय-समय पर सामने आये हैं चाहे िह राष्रीय राजनीति का क्षेत्र हो या
अन्िराभष्रीय राजनीति का क्षेत्र हो।
आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि, ऐसे तिषयों से जड़ु ा है, जो न के िल राजनीतिक अध्येिाओ,ं
शोधकिाभओ ं ि तिद्यातथभयों के तलए लाभदायक हैं बतल्क आम जनिा की रूतच के भी हैं, जैसे
राजनीतिक भािीदारी, भिी, मिदान आतद आम जनिा से जुड़े प्रश्न हैं।
तफर आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि इस दृतष्टकोण से भी प्रासंतिक हैं तक इनके उद्भि के बाद
राजनीतिक तिज्ञान को ‘स्िायत्त तिषय’ के रूप में आिश्यक सामग्री प्रचरु मात्रा में प्राप्त हो ियी। प्रत्येक
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तिषय की स्िायत्ता की यह माँि होिी है तक उसके अपने उपकरण, िकनीके , पद्यतियॉ ि तसद्धान्ि हों,
आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्िों ने इन माँिों को परू ा तकया है।
आज कोई भी तिषय एकांिी रूप से मनष्ु य का सांिोपांि अध्ययन नहीं कर सकिा है। अिः राजनीति
तिज्ञान के नये पररप्रेक्ष्य में अंिः अनुशासनीय पद्वति पर जोर तदया िया। अंि अनश
ु ासनात्मकिा
आधतु नकिा का लक्षण है, अिः यह स्ििः तसद्ध है तक आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि प्रासंतिकिा
की कसौटी पर खरे उिरिे हैं।
इधर दतु नयॉ भर में तिश्वतिद्यालयों में तजस प्रकार राजनीतिक तसद्धान्िों की रचना हेिु बैंच/तिभाि
स्थातपि तकये िये हैं, उनसे भी आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्िों की उपयोतििा स्पष्ट होिी है।
आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि, ‘समस्या-समाधान’ के फामभल ू े पर आधाररि है। यहॉ के िल ‘आदशभ’
की कल्पना नहीं की जािी बतल्क समाज में व्याप्त समस्याओ ं का समाधान ढूँढा जािा है। कोई भी
अनश ु ासन जब ‘समस्या-समाधान’ के साथ जड़ु जािा है िो उसकी प्रासंतिकिा स्ििः तसद्ध हो जािी
है। आज आधतु नक राजनीति तिज्ञान में न्याय, समानिा, स्ििंत्रिा, क्रातन्ि जैसे तिषयों पर चचाभ होिी
है। समस्या के कारण ढूढे जािे हैं, उनके पररणामों पर चचाभ होिी है, तफर समाधान की िलाश शरू ु
होिी है, िब कहीं राजनीतिक तसद्धान्ि अतस्ित्ि में आिा है, मद्दु ा चाहे आरक्षण का हो, तलंिभेद का,
नारी-परातश्रििा का या कोई अन्य, हमारे पास आज राजनीतिक तसद्धान्ि है जो इन समस्याओ ं से
तनपटने के तलए तदशा तनदेशन करिे हैं।
आधतु नक राजनीतिक तसद्धान्ि व्यापक तिषय है, जो अपने कलेिर में स्थानीय से अन्िराभष्रीय पररिेश
िक को समेटे हुए है। इस तस्थति में इसकी प्रासंतिकिा पर प्रश्न उठाना, उतचि प्रिीि नहीं होिा है।
जैसा तक ऊपर के अध्ययन से आपको पिा चला होिा तक प्राचीन यनू ान में निर-राज्यों का अध्ययन
करने िाला तिषय ‘राजनीति’ कहलािा था। कालान्िर में निर-राज्य लप्तु हो िये और इनके स्थान पर
रोमन काल में साम्राज्यों की स्थापना हुई। पनु ः आधतु नक काल में राष्रीय राज्यों की उत्पतत्त हुई।
स्िाभातिक रूप से राज्य के इस तिकतसि और तिस्िृि स्िरूप से सम्बतन्धि तिषय को राजनीति
तिज्ञान कहा जाने लिा। राज्य, काननू , प्रभसु त्ता और सम्बतन्धि संस्थाएं राजनीति तिज्ञान के प्रमख ु
तिषय हो िए। बीसिीं शिी के िीसरे दशक में अमेररका में व्यिहारािाद के जन्म ने राजनीति तिज्ञान
के अनभु ििादी और िैज्ञातनक शास्त्र की िकालि की और राजनीति में मल्ू यों के बजाय िथ्यों की
मॉि की। हांलातक, दो दशकों बाद राजनीतिक तिश्ले षण में मूल्यों की िापसी ‘उत्तर-व्यिहारिाद’ के
रूप में हुई। इस प्रकार राजनीति तिज्ञान उन सब बािों का सार है, जो तििि शिातब्दयों में घतटि हुई
हैं। इसी कारण राजनीति तिज्ञान की पररभाषा, क्षेत्र और प्रकृ ति के सम्बन्ध में तिद्वानों की राय एक नहीं
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है। हमें राजनीति तिज्ञान की तितभन्न पररभाषाएं तमलिी हैं तजन्हें दो खास भािों में बॉट सकिे हैं।
हालॉतक कोई भी तहस्सा एक-दसू रे से अलि नहीं है।
1.3.1 राजनीति तिज्ञान की परम्परागि पररभाषााः
परम्परािि दृतष्टकोण से दी ियी पररभाषाओ ं में तितभन्न पािात्य तिचारकों ने राजनीति तिज्ञान के
अध्ययन का मख्ु य क्षेत्र राज्य ि सरकार को माना िया है। इन तिद्वानों की पररभाषाओ ं का अध्ययन
तनम्नातं कि िीन रूपों में तकया जा सकिा हैः-
1. राज्य के अध्ययन के रूप में
िानभर के अनसु ार- ‘राजनीति तिज्ञान का प्रारम्भ ि अन्ि राज्य से ही होिा है।‘
ब्लटं श्ली ने तलखा है, ‘‘राजनीति तिज्ञान िह तिज्ञान है तजसका संबंध राज्य से है और जो यह समझाने
का प्रयत्न करिा है तक राज्य के आधारभिू ित्ि क्या हैं, उसका आिश्यक स्िरूप क्या है, उसकी
तकन तितिध रूपों में अतभव्यतक्त होिी है िथा उसका तिकास कै सा हुआ है।‘‘
िैरीज ने राजनीति तिज्ञान को पररभातषि करिे हुए तलखा है तक ‘‘राजनीति तिज्ञान राज्य के उदभि,
तिकास उद्देश्य िथा राज्य की समस्ि समस्याओ ं का उल्लेख करिा है।“
जैम्स के अनसु ार- “राजनीति तिज्ञान राज्य का तिज्ञान है।“
डॉ0 जकाररया के शब्दों में- “राजनीति तिज्ञान व्यितस्थि रूप से उन आधारभूि तसद्धान्िों का तनरूपण
करिा है, तजनके अनसु ार समतष्ट रूप में राज्य को संितठि तकया जािा है और प्रभसु त्ता का प्रयोि
तकया जािा है।“
2.सरकार के अध्ययन के रूप में
राजनीति तिज्ञान के कुछ तिचारकों ने राजनीति तिज्ञान को सरकार का अध्ययन माना है। उनके
मिानसु ार राज्य िो अमभिू संस्था है, यतद उसे समझना है िो उसके मिू भरूप सरकार को ही समझना
होिा। सीलें, जेम्स, लीकॉक इसी श्रेणी के तिद्वान हैं। उल्लेखनीय है तक सरकार के अध्ययन के रूप
में राजनीति-तिज्ञान का आरम्भ अमेररका में हुआ।
सीले के अनसु ार-राजनीति तिज्ञान उसी प्रकार सरकार के ित्िों का अनसु ंधान करिा है जैसे सम्पतत्त
शास्त्र सम्पतत्त का, जीि तिज्ञान जीिन का, बीजितणि अंको का िथा ज्यातमतिशास्त्र स्थान एिं लम्बाई
- चौडाई का करिा है।‘‘
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लीकॉक ने तलखा है तक ‘‘राजनीति - तिज्ञान सरकार से सबं तं धि तिधा है।
3.राज्य और सरकार दोनों के अध्ययन के रूप में:
राजनीति तिज्ञान के कुछ तिद्वानों का मि है तक राजनीति तिज्ञान, राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन
है। इनके मिानसु ार एक के बिैर दसू रे की कल्पना नही की जा सकिी ,क्योंतक राज्य को अतभव्यतक्त
के तलए सरकार की और सरकार के अतस्ित्ि की संकल्पना के तलए राज्य की उपतस्थति अतनिायभ है।
पॉल जैनेट, तिलक्राइस्ट, िैतटल, तडमॉंक, प्रो0आशीिादम, लॉस्की आतद तिद्वानों ने इसी मि का
समथभन तकया है।
तिलक्राइस्ट के अनसु ार- ‘‘राजनीति तिज्ञान िस्ििु ः राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओ ं का
अध्ययन करिा है।‘‘
तडमॉंक ने भी राजनीति तिज्ञान को इसी प्रकार पररभातषि करिे हुए तलखा है तक राजनीति तिज्ञान का
सबं धं राज्य िथा उसके साधन सरकार से है।
आशीिाभदम् के अनसु ार, “राजनीति तिज्ञान राज्य और शासन दोनों का ही तिज्ञान है।“
पॉल जैनेट के अनसु ार, “राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र का िह भाि है, तजसमें राज्य के आधार और
सरकार के तसद्धान्ि का तिचार तकया जािा है।“
राजनीति तिज्ञान की उपयभक्त
ु सभी परम्परािि पररभाषाओ ं का तिश्ले षण करने पर यह तनष्कषभ तनकाला
जा सकिा है तक राजनीति तिज्ञान की उपयभक्त
ु सभी पररभाषाएँ अपणू भ हैं क्योंतक इनमें मानिीय ित्ि
की उपेक्षा की ियी है। राज्य और सरकार के अध्ययन में मानिीय ित्ि सबसे अतधक महत्िपणू भ है।
व्यतक्त के जीिन को अत्यतधक प्रभातिि करने के कारण ही राजनीति तिज्ञान में राज्य और सरकार का
अध्ययन तकया जािा है। मानिीय ित्ि के अध्ययन के तबना राजनीति तिज्ञान का अध्ययन तनिान्ि
औपचाररक, तनजीि िथा सस्ं थािि ही माना जायेिा।
हरमन हैलन के अनसु ार, “राजनीति तिज्ञान के सम्पणू भ स्िरूप का तनधाभरण उसकी मानि तिषयक
मौतलक मान्यिाओ ं द्वारा ही होिा है।“
1.3.2 राजनीति तिज्ञान की आधुतनक पररभाषा
परम्परािि राजनीति तिज्ञान या िो स्िित्रं िा, समिा, न्याय जैसे राजनीतिक तिचारों पर बल देिा है,
या राज्य, सरकार, काननू इत्यातद जैसी राजनीतिक संस्थाओ ं पर। लेतकन 20िीं शिाब्दी में राजनीति
तिज्ञान की सबसे प्रमख
ु प्रिृतत्त रही, व्यिहारिाद, तजसने परम्परािि राजनीति तिज्ञान को आधतु नक
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राजनीति तिज्ञान के मािभ में आिे बढ़ाया। ग्राहम िालास, ए0एफ0 डहल, बैंटले, मैक्सिेयर, चाल्सभ
मेररयम, जाजभ कै टतलन, हैरोल्ड लास्िेल, डेतिड ईस्टन आतद व्यिहारिातदयों ने ‘राज्य’ एिं अन्य
सस्ं थाओ ं मात्र के अध्ययन के बजाय राजनीतिक व्यिस्था, मानि व्यिहार एिं राजनीतिक प्रतक्रयाओ ं
के अध्ययन पर बल तदया। राजनीतिक संस्थाओ ं के पीछे कायभ कर रही प्रभािशाली शतक्तयों पर प्रकाश
डालने का इन्होंने प्रयास तकया। फलिः राजनीतिक अध्ययन का रूख संस्थात्मक और संिठनात्मक
दृतष्टकोण से हटकर लोिों की राजनीतिक ितितितधयों, तदशा, प्रेरणा और आचरण पर के तन्रि हो िया।
तिचारों के अध्ययन का स्थान िथ्यों और प्रमाणों के अध्ययन ने ले तलया िथा राजनीति तिज्ञान को
आधतु नक लेखकों ने शतक्त, सत्ता, प्रभाि का अध्ययन बिाया। कुछ पररभाषाएँ तनम्न प्रकार हैं।
के टतलन के अनसु ार, “राजनीति तिज्ञान शतक्त का तिज्ञान है।“
डेतिड ईस्टन के अनसु ार, “राजनीति तिज्ञान समाज में मल्ू यों का सत्तात्मक तििरण है।“
लासिैल और के पलान के अनसु ार, “एक आनभु ातिक खोज के रूप में राजनीति तिज्ञान शतक्त के
तनधाभरण और सहभातििा का अध्ययन है।“
डॉ0 हसजार और स्टीिेन्सन के अनसु ार, “राजनीतिशास्त्र अध्ययन का िह क्षेत्र है जो प्रमख ु िया शतक्त
सम्बन्धों का अध्ययन करिा है। इन शतक्त सम्बन्धों के कुछ प्रमखु रूप हैं, व्यतक्तयों में परस्पर, व्यतक्त
और राज्य के मध्य शतक्त सम्बन्ध और राज्यों में परस्पर शतक्त सम्बन्ध।“
रॉबटभ ए0 डहल के अनसु ार, “राजनीति तिज्ञान का शतक्त, तनयम ि सत्ता से सम्बन्ध है।“
आलमण्ड िथा पािेल के अनसु ार, “आधतु नक राजनीति तिज्ञान में हम राजनीतिक व्यिस्था का
अध्ययन और तिश्लेषण करिे हैं।“
उपरोक्त राजनीति तिज्ञान सम्बन्धी परम्परािादी और आधतु नक पररभाषाओ ं के तिश्ले षण से यह स्पष्ट
होिा है तक ििभमान में यह के िल राज्य अथिा सरकार से सम्बतन्धि तिज्ञान नहीं, बतल्क मनष्ु य के
राजनीतिक व्यिहार, राजनीतिक तक्रयाओ ं ि प्रतक्रयाओ,ं शतक्त, सत्ता िथा मानि समहू ों की
अन्िःतक्रयाओ ं का तिज्ञान है।
1.3.3 परम्परागि राजनीति तिज्ञान का क्षेत्राः
तकसी अनशु ासन के अध्ययन क्षेत्र से िात्पयभ होिा हैं तक उसमें तकन-तकन बािों/तिषयों का अध्ययन
तकया जायेिा। राजनीति तिज्ञान एक ऐसा अनश ु ासन है तजसके क्षेत्र का तनियात्मक अध्ययन करना
जतटल कायभ है। समय के साथ-साथ इसके क्षेत्र में संकुचन ि तिस्िार होिा चला आया है। अध्ययन
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की सतु िधा की दृतष्ट से हम इसका तििेचन परम्परािि पररप्रेक्ष्य ि आधतु नक पररप्रेक्ष्य में कर सकिे
हैं।
अ-राजनीति तिज्ञान का परम्परािि पररप्रेक्ष्य में क्षेत्रः- प्राचीन काल में यनू ान में राजनीति तिज्ञान का
क्षेत्र तिस्िृि था, क्योंतक ित्कालीन समय में राज्य न के िल एक राजनीतिक संस्था थी अतपिु नैतिक
संस्था भी थी। राज्य ि समाज में तकसी प्रकार का भेद नही था। मानि जीिन के प्रत्येक पहलु का
अध्ययन इस अनुशासन के अन्ििभि तकया जािा था। यही कारण था तक अरस्िू ने राजनीति तिज्ञान
को ‘‘प्रधान तिज्ञान‘‘ मास्टर साईसं की सज्ञं ा प्रदान की। कै टतलन ने अपनी पस्ु िक ‘‘पॉतलतटकल
तथयरीः व्हट इज इट?‘‘ में इसी िथ्य को स्पष्ट करिे हुए तलखा है। अरस्िू ने राजनीति की पररतध में
राष्रीय राज्य व्यिस्थाएँ नािररक, दास प्रथा, अन्िराभष्रीय राज्य-व्यिस्थाएँ, पैिक ृ व्यिस्थाएँ, धातमभक
सिं ठन, व्यापाररक सस्ं थान और कमभचाररयों के सिं ठन को भी शातमल कर तलया। रोमन साम्राज्य में
राजनीति तिज्ञान की पररतध में िैधातनकिा का समािेश हो िया। मध्ययिु में राजनीति तिज्ञान का क्षेत्र
‘चचभ ि राज्य की सिोच्चिा का सघं षभ‘ बन िया। बोंदा ने राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र में सम्प्रभिु ा के
ित्ि का समािेश कर तदया और राजनीति तिज्ञान का अध्ययन सम्प्रभिु ा के संदभभ में तकया जाने लिा।
ये राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र के संकुचन का पररचायक था। 19िीं शिाब्दी में अन्य तिषयों के स्ििंत्र
अनश ु ासन के रूप में अतस्ित्ि में आने के कारण राजनीति तिज्ञान भी पृथक तिषय बन िया है।
फ्रैडररक पोलक ने परम्परािि राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र को दो खण्डों में तिभातजि तकया हैं-
1.सैद्वातन्िक राजनीति तिज्ञान
2.व्यिहाररक राजनीति तिज्ञान
सैद्धातन्िक राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि राज्य की आधारभिू समस्याओ ं का अध्ययन तकया जािा है
जबतक व्यिहाररक राजनीति तिज्ञान में राज्य के तक्रयात्मक स्िरूप िथा तनरन्िर पररििभनशील सरकारों
के िास्ितिक रूप की तििेचना की जािी है। पोलक की भॉंति िडु नॉंि ि तसजतिक ने भी परम्परािि
राजनीति तिज्ञान का तिभाजन तकया है।परम्परागि राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र के अन्िगगि
तनम्नाांतकि प ांच तिषयों का अध्ययन तकया जािा है-
(1) राज्य का अध्ययन -राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र का िणभन करिे हुए िैतटल ने तलखा है, ‘‘राजनीति
तिज्ञान राज्य के भिू कालीन स्िरूप की ऐतिहातसक ििेषणा, उसके ििभमान स्िरूप की तिश्ले षणात्मक
व्याख्या िथा उसके आदशभ स्िरूप की राजनीतिक तििेचना है।‘‘ इस प्रकार राजनीति तिज्ञान में राज्य
की उत्पतत्त, उसका तिकास, संिठन, आिश्यक ित्िों, प्रतक्रयाओ,ं उददेश्यों, कायो के साथ-साथ
नािररकों के साथ उसके सबं धं ों िथा अन्य राज्यों, अन्िराभष्रीय सिं ठनों के साथ उसके सबं धं ों का
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अध्ययन तकया जािा है। तिलक्राइस्ट ने राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र को पररभातषि करिे हुए तलखा है,
‘‘राजनीति तिज्ञान में यह बिलाया जािा है तक राज्य क्या है, क्या रहा है और इसे क्या होना चातहए?
िानभर ने भी राजनीति तिज्ञान का तिषय राज्य घोतषि तकया है। उसने राजनीति तिज्ञान को पररभातषि
करिे हुए तलखा हैं ‘‘राजनीति तिज्ञान का प्रारम्भ ि अन्ि राज्य पर ही होिा हैं।‘‘ िैरीज, िडु नॉंि,
एक्टन, ब्लंटश्ली िथा जकाररया ने भी राजनीति तिज्ञान का क्षेत्र राज्य घोतषि तकया है।
(2) सरकार का अध्ययन-परम्परािि राजनीति तिज्ञान में सरकार का अध्ययन तकया जािा हैः
सरकार राज्य का अतभन्न अिं है राज्य एक अमिू भ सस्ं था है जबतक सरकार उसका मिू भ रूप है। क्रॉंसे
के अनसु ार, ‘‘सरकार ही राज्य है और सरकार में ही राज्य पणू भिा प्राप्त कर सकिा है, िस्ििु ः सरकार
के तबना राज्य का अध्ययन अपणू भ है।‘‘ सरकार राज्य की प्रभसु त्ता का प्रयोि करिी है। सरकार ही
राज्य की इच्छाओ ं और आकाक्ष ं ाओ ं को व्यािहाररक रूप प्रदान रकिी है। सरकार के तितभन्न रूपों
का अध्ययन राजनीतिशास्त्र में तकया जािा है। सरकार के तितभन्न अंिों (व्यिस्थातपका, कायभपातलका
और न्यायपातलका) का अध्ययन भी इसमें तकया जािा है। लीकॉक ने िो स्पष्टिया, “राजनीतिशास्त्र
को सरकार का अध्ययन कहा जािा है।“
(3) स्थानीय, राष्ट्रीय ि अन्िरागष्ट्रीय समस्याओ ां का अध्ययन- प्राचीन भारिीय राजनीति तिज्ञान
में कौतटल्य ने अथभशास्त्र में राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र में स्थानीय, राष्रीय ि अन्िराभष्रीय समस्याओ,ं
इन िीनों का समािेश तकया। उसने ग्राम पच ं ायि, राष्रीय संस्थाओ ं ि परराष्र सबं धं का अध्ययन
तकया। इसी प्रकार यनू ानी राजनीतिक तचन्िक अरस्िू ने भी इन िीनों श्रेतणयों से संबंतधि समस्याओ ं
का अध्ययन ‘पातलतटक्स‘ में तकया। स्थानीय संस्थाओ ं की कायभप्रणाली का अध्ययन िथा इसमें
नािररकों का सहयोि आतद तिषय राजनीति तिज्ञान के महत्िपणू भ अिं हैं। स्थानीय स्िायत्तिा एिं
शासन की समस्याओ ं का अध्ययन राष्रीय समस्याओ ं की पृष्ठभतू म में तकया जा सकिा है।
(4) अन्िरागष्ट्रीय तितध, सबां ांधों ि सांगठनों का अध्ययन - राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि
अन्िराभष्रीय काननू ों का अध्ययन तकया जािा है, जैसे सतन्ध, प्रत्यपभण, मानिातधकार, संयक्त
ु राष्र संघ
के चाटभर का अनपु ालन आतद। इसके अतिररक्त तितभन्न देशों के आपसी संबंधो ि अन्िराभष्रीय संिठनों
का, राज्यों की तिदेश नीति, युद्ध ि शांतिकाल में अन्िराभष्रीय संिठनों की भतू मका आतद भी राजनीति
तिज्ञान की तिषय िस्िु है।
(5) राजनीतिक तसद्धान्िों ि तिचारधाराओ ां का अध्ययन- राजनीति तिज्ञान का सबसे महत्िपूणभ
तिषय है ‘‘राजनीतिक तसद्धान्ि‘‘। इसके अन्ििभि राज्य की उत्पतत्त, संिठन, तिकास, प्रतक्रया से लेकर
उसके उद्देश्यों ि कायो संबंधी सभी तसद्धान्िों और जीिन के सामान्य िथ्यों का अध्ययन तकया जािा
है। राजनीतिक तसद्धान्िों का जन्म ‘सक
ं टकाल‘ में होिा है तजिने भी महान दाशभतनक या तचन्िक हुए
उत्तराखंड मक्त
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हैं सब अपने यिु के संकट काल की उपज हैं। उन पर इस सक ं ट का इिना जबरदस्ि प्रभाि रहा तक
उन्होंने उसके समाधान के तलए ऐसें तसद्धान्िों का प्रतिपादन तकया जो आज भी प्रासंतिक नजर आिे
है। उदाहरणाथभ- अरस्िू ने क्रॉंति के कारणों ि समाधान का इिना िहन अध्ययन तकया तक आज भी
उसे कोई काट नही सकिा। तिचारधारा के रूप में राजनीतिक तसद्धान्ि की भतू मका और भी महत्िपूणभ
हो जािी है। माक्सभ की तिचारधारा ने परू े तिश्व को दो धड़ों में तिभातजि कर तदया। अिः राजनीति
तिज्ञान में तिचारधाराओ ं का अध्ययन महत्िपणू भ ि अपृथक्करणीय अिं है।
(6)शासन प्रबन्ध का अध्ययन- लोक प्रशासन राजनीति तिज्ञान का एक भाि होिे हुए भी आज
पृथक तिषय बन िया है परन्िु उसकी मलू बािों का अध्ययन राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि आज भी
तकया जािा है। असैतनक कमभचाररयों की भिी, प्रतशक्षण, उन्नति, उनका जनिा के प्रतितनतधयों से
सम्बन्ध िथा प्रशासन को अति कुशल और लोकतहिकारी िथा उत्तरदायी बनाने के बारे में अध्ययन
राजनीति तिज्ञान में तकया जािा है।
(7)अन्य सामातजक तिज्ञानों का अध्ययन- मनष्ु य की जो राजनीतिक तक्रयाएँ होिी हैं िे उसकी
पररतस्थतियों की उपज होिी हैं। आज मनष्ु य आतथभक, सामातजक, नैतिक, मनोिैज्ञातनक आतद
अिधारणाओ ं से बधा हुआ है। मनष्ु य की राजनीतिक तक्रयाओ ं के पणू भ अध्ययन करिे समय उक्त
तिषयों का अध्ययन भी होना चातहए। कालभ माक्सभ ने राजनीतिक तक्रयाओ ं को समझने के तलए
मनोतिज्ञान के अध्ययन पर बल तदया। तशकािों सस्ं थान के तिचारक मनष्ु य के राजनीतिक तक्रया-
कलापों को समझने के तलए उसके समस्ि सामातजक िािािरण के अध्ययन पर बल देिे हैं।
(8) राजनीतिक दलों िथा दबाि गुटों का अध्ययन- राजनीतिक दल और दबाि िटु िे संस्थाएँ
हैं तजनके द्वारा राजनीतिक जीिन को िति दी जािी है। आजकल िो राजनीतिक दलों और दबाि िटु ों
के अध्ययन का महत्ि संतिधान और शासन के औपचाररक सिं ठन के अध्ययन से अतधक है। इस
प्रकार का अध्ययन राजनीतिक जीिन को िास्ितिकिा से सम्बतन्धि करिा है।
राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुतनक दृतिकोणाः
तद्विीय तिश्वयद्ध
ु (1939-45) से पिू भ यह मान्यिा थी तक राजनीति तिज्ञान का अध्ययन तिषय के िल
व्यतक्तयों का राजनीतिक जीिन, राज्य और अन्य राजनीतिक संस्थाएँ ही हैं। यद्यतप ग्राहम िालास,
ए0एफ0 बेंटले, के टतलन, लासिैल आतद तिचारकों ने इस बाि का प्रतिपादन तकया था तक राजनीति
तिज्ञान का अध्ययन के न्र राजनीतिक संस्थाओ ं को न मानकर इस संस्थाओ ं की चालक शतक्त-
मानिीय व्यिहार को बनाया जाना चातहए। यद्ध ु के पिाि् िो यह प्रिृतत्त उग्र रूप से सामने आई और
इसने एक क्रातन्िकारी रूप धारण कर तलया। इसके प्रििभक डेतिड ईस्टन ने इसे व्यिहारिादी आन्दोलन
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का नाम तदया। व्यिहारिादी आन्दोलन में इस बाि पर बल तदया जािा है तक मनष्ु य अपना राजनीतिक
जीिन एकान्ि में व्यिीि नहीं करिा िरन् समाज में रहकर व्यिीि करिा है और समस्ि सामातजक
जीिन के सदं भभ में ही मनष्ु य के राजनीतिक जीिन को समझा जा सकिा है।
1.आधतु नक राजनीति तिज्ञान में राजनीतिक व्यिस्था का अध्ययनः आधतु नक राजनीति तिज्ञान
‘राजनीतिक व्यिस्था’ के अध्ययन पर बल देिा है। आधतु नक राजनीति िैज्ञातनकों डेतिड ईस्टन एिं
आमण्ड पािेल के अनसु ार राजनीतिक व्यिस्था पारस्पररक सम्बन्धों का ऐसा जाल है, तजसके द्वारा
समाज सम्बन्धी आतधकाररक तनणभय तलये जािे हैं और उन्हें लािू तकया जािा है। समाज में तिद्यमान
अन्य उपव्यिस्था जैसे आतथभक व्यिस्था, धातमभक व्यिस्था, सांस्कृ ति व्यिस्था और राजनीतिक
व्यिस्था में एक महत्िपणू भ अंिर है जो इसे अन्य उपव्यिस्थाओ ं में श्रेष्ठ स्थान प्रदान करिी है। िह है
इसके तनणभयों का आतधकाररक होना िथा सम्पणू भ समाज पर लािू होना िथा समाज द्वारा इनका पालन
न तकये जाने की तस्थति में शतक्त के आधार पर इन्हें समाज पर बाध्यकारी रूप से आरोतपि करना।
राजनीतिक व्यिस्था की इसी तिशेषिा की ओर सक ं े ि करिे हुए डेतिड ईस्टन ने तलखा है तक, “यह
राजनीतिक मूल्यों का सम्पणू भ समाज के तलए आतधकाररक आबंटन है।“ राजनीतिक व्यिस्था के
अन्ििभि आन्िररक ि िाह्य पररिेश, इनसे राजनीतिक व्यिस्था पर पड़ने िाले िनािों ि दबािों,
पररिेश से आने िाली मॉिों ि समथभनों, शासन व्यिस्था के िीनों अिं , प्रतिसम्भरण प्रतक्रया आतद
का अध्ययन तकया जािा है।
2. अन्य सामातजक तिज्ञानों का अध्ययन हैः राजनीति तिज्ञान अन्य सामातजक तिज्ञानों से अलि
हटकर अपनी समस्याओ ं का अध्ययन नहीं कर सकिा। अन्य सामातजक तिज्ञान भी मानि से
सम्बतन्धि होने के कारण मानि के तकसी तिशेष पहलू का अध्ययन करिे हैं। मानि जीिन के
राजनीतिक तिचारों को प्रभातिि करने में सामातजक, आतथभक, भौिोतलक, मनोिैज्ञातनक आतद ित्ि
भी महत्िपणू भ समझे जािे हैं। राजनीति तिज्ञान का अध्ययन अन्य सामातजक तिज्ञानों के अध्ययन के
तबना अधरू ा माना जािा है। ग्राहम िालास आतद ने राजनीतिक व्यिहार को समझने के तलए मनोतिज्ञान
की ओर संकेि तकया है। राजनीति तिज्ञान जो एक समय अपने अध्ययन के तलए के िल राजनीतिक
ित्िों का ही ध्यान रखिा था, आज अपने अध्ययन में आतथभक, सामातजक, भौिोतलक आधारों की
भी खोज करिा है।
3. राजनीति तिज्ञान शतक्त एिं प्रभाि का अध्ययनः आधतु नक राजनीति तिज्ञान से सम्बद्ध तिद्वान,
राजनीति तिज्ञान को शतक्त एिं प्रभाि का अध्ययन मानिे हैं। कै टतलन इसे ‘शतक्त का तिज्ञान’ मानिा
है। लासिैल भी राजनीति तिज्ञान को ‘शतक्त के तनधाभरण और सहभातििा’ का अध्ययन मानिा है।
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4. राजनीतिक व्यिहार का अध्ययनः यह माना जािा है तक राजनीतिक संस्थाएँ तजसके द्वारा संचातलि
की जािी हैं, उसके अध्ययन को प्रमख
ु िा दी जानी चातहए। आज की लोकिातन्त्रक पद्धति में चनु ाि,
राजनीतिक घटनाओ ं को मानि व्यिहार प्रभातिि करिा है। इसतलए राजनीतिक व्यिहार का अध्ययन
आिश्यक है।
5. राजनीतिक तक्रयाओ ं का अध्ययनः आधतु नक राजनीति तिज्ञान के अध्ययन में राजनीतिक तक्रयाओ ं
को भी सतम्मतलि तकया जािा है क्योंतक इन सभी तक्रयाओ ं के योि से ही राजनीतिक प्रतक्रया का जन्म
होिा है।
6. राजनीतिक तिज्ञान सािभजतनक सहमति और सामान्य मि का अध्ययनः आधतु नक राजनीति तिज्ञान
के अध्ययन में सहमति और सामान्य मि का भी अध्ययन सतम्मतलि तकया जािा है। बेनफील्ड के
शब्दों में, “तकसी तिषय अथिा समस्या को संघषभमय बनाने अथिा सुलझाने िाली ितितितधयॉं
(समझौिा, िािाभ, िकभ -तििकभ , तिचार-तितनमय, शतक्त प्रयोि आतद) राजनीति तिज्ञान के अंि हैं।“
7. राजनीति तिज्ञान समस्याओ ं ि सघं षभ का अध्ययनः डायक ि ओडिाडभ के मि में आज राजनीति
तिज्ञान के क्षेत्र के अन्ििभि तितभन्न समस्याओ ं और संघषों का भी अध्ययन तकया जािा है क्योंतक ये
समस्याएँ एिं संघषभ राजनीति तिज्ञान को िम्भीर रूप से प्रभातिि करिी हैं।
8. तितिध तिषय क्षेत्रः राजनीति तिज्ञान के अनेक आधतु नक तिद्वानों ने राजनीति तिज्ञान में अनेक
तितिध तिषयों को उसके तिषय-क्षेत्र में सतम्मतलि तकया है। िह राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यिस्था
को राजनीति तिज्ञान का तिषय मानिे हैं; कुछ अन्य तिद्वान राजनीतिक संस्कृ ति, समाजीकरण,
राजनीतिक-आतथभक तिकास आतद को आधतु नक राजनीति तिज्ञान का अंि मानिे हैं। राजनीतिक
संचार को कुछ अन्य तिद्वानों ने राजनीति तिज्ञान का अंि कहा है, जबतक दसू रों ने राजनीतिक
संस्थात्मक संचार ि राजनीति को आधतु नक राजनीति तिज्ञान की तिषय-िस्िु में सतम्मतलि तकया है।
आधतु नक राजनीति तिज्ञान का कायभ, िास्िि में, कतठन कायभ है। िह परम्परािि राजनीति तिज्ञान की
उपलतब्धयों ि उनकी समस्याओ ं को अपने तिषय-क्षेत्र में समेट लेना चाहिा है, साथ ही, िह भतिष्य
की राजनीतिक व्यिस्था िथा ििभमान राजनीति की अनेक तक्रयाओ,ं प्रतक्रयाओ ं िथा उनकी िैज्ञातनक
पद्धतियों को भी अपने तिषय-क्षेत्र में सतम्मतलि करना चाहिा है। इस सदं भभ में रोलां, तपनाक िथा
तस्मथ ने राजनीति तिज्ञान की तिषय-सामग्री को ध्यान में रखिे हुए उसकी पररभाषा बहुि ही सन्ु दर
ढंि से प्रस्ििु की है। िे कहिे हैं तक, “क्या है और क्या होना चातहए िथा दोनों (यथाथभ एिं आदशभ)
के बीच सामंजस्य कै से बैठाया जाये, इस दृतष्ट से सरकार और राजनीतिक प्रतक्रया के व्यितस्थि
अध्ययन को राजनीतिक तिज्ञान कहा जा सकिा है।“
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1.4 राजनीतत तवज्ञान की प्रकृतत- तवज्ञान अथवा कला
राजनीति तिज्ञान को तिज्ञान की श्रेणी में रखा जाए या कला की श्रेणी में, यह बाि आज भी पणू भ स्पष्ट
नहीं है। इसका कारण यह है तक आज भी कुछ तिद्वान इसे तिज्ञान स्िीकार करने में तहचकिे हैं, जबतक
कुछ तिद्वान इसे तिज्ञान मान चक
ु े हैं। इस पर तिचार करने से पिू भ यह उतचि है तक पहले ‘तिज्ञान’ शब्द
की पररभाषा पर तिचार कर तलया जाए।
तिज्ञान की पररभाषा- प्राकृ तिक तिज्ञानों के तिचारक अपने तिषयों को ही तिज्ञान स्िीकार करिे हैं;
जैस-े रसायनशास्त्र, भौतिक तिज्ञान, ितणि, जीि तिज्ञान, िनस्पति तिज्ञान आतद तिषय ही तिज्ञान हैं,
परन्िु तिज्ञान की पररभाषा को सामान्यिया अब दसू रे रूप में स्िीकार तकया जाने लिा है। तिज्ञान की
सामान्य पररभाषा है तक, “तिज्ञान तकसी तिषय के क्रमबद्ध ज्ञान को कहिे हैं।“
इस पररभाषा की अग्रं ेजी के शब्दकोष चैम्बसभ तडक्शनरी से भी पतु ष्ट की जा सकिी है, उसके अनसु ार,
“तिज्ञान िह ज्ञान है जो पयभिेक्षण और प्रयोि पर आधाररि हो, भली-भॉति परीतक्षि िथा क्रमबद्ध हो
और सामान्य तसद्धािों में समातहि हो।“ तिज्ञान की पररभाषा िानभर ने इन शब्दों में दी है, “तिज्ञान उस
एकीकृ ि ज्ञान भण्डार को कहिे हैं तजसकी प्रातप्त तितधिि पयभिेक्षण, अनभु ि और अध्ययन द्वारा हुई
हो और तजसके िथ्यों का उनमें परस्पर उतचि सम्बन्ध स्थातपि करके क्रमबद्ध ििीकरण तकया िया
हो।“
उक्त पररभाषाओ ं से तिज्ञान की तनम्नतलतखि तिशेषिाएँ प्रकट होिी हैं-
1. तिज्ञान में प्रयोिात्मक तितधयों को काम में लाया जािा है।
2. तनतिि तितध िथा िकभ के आधार पर सामान्य तसद्धान्िों की स्थापना की जािी है।
3. तिज्ञान के तसद्धान्ि या तनयम तनतिि िथा अटल होिे हैं, िे सभी स्थानों और समयों में लािू
होिे हैं।
4. तिज्ञान में भतिष्यिाणी करने की अपिू भ क्षमिा है।
5. प्रत्येक तनष्कषभ तििेचनात्मक है, अिः तिश्ले षण के तलए उत्तरदायी है।
6. प्रत्येक तनष्कषभ कायभ-कारण के सम्बन्ध को स्पष्ट करिा है।
तिज्ञान की पररभाषा कर लेने के पिाि् अब देखना होिा तक क्या राजनीति तिज्ञान को तिज्ञान की
श्रेणी में रखा जाए या नहीं। इसको कुछ तिद्वान तिज्ञान स्िीकार करिे हैं; जैस-े अरस्िू ने इसे सिोच्य
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
और पणू भ तिज्ञान माना है। बनाभडशा इसे मानिीय सभ्यिा को सरु तक्षि रख सकने िाला तिज्ञान कहिे
हैं। इनके अतिररक्त बोदां, हॉब्स, मॉन्टेस्क्य,ू िाइस, ब्लटु ् ंश्ली, जैलीनेक, डॉ0 फाइनर, लास्की जैसे
तिद्वान भी इसे तिज्ञान की श्रेणी में रखिे हैं, जबतक इसके तिपरीि बकल, कॉम्टे, मेटलैण्ड, तलयडभ,
के टतलन, मोस्का, िोमन, बकभ जैसे तिद्वान राजनीति तिज्ञान को तिज्ञान स्िीकार नहीं करिे हैं। अब इन
दोनों पर तिस्िार से तिचार कर लेना उतचि होिा।
राजनीति तिज्ञान, तिज्ञान नहीं है
बकल, कॉम्टे, मेटलैण्ड आतद तिचारक इस तिषय को तिज्ञान स्िीकार नहीं करिे। इसका कारण यह
है तक उनके अनसु ार तिज्ञान ज्ञान की िह शाखा है तजसके अन्ििभि कायभ और कारण में सदैि तनतिि
सम्बन्ध पाया जािा हो और तजसके तनष्कषभ तनतिि एिं शाश्वि हों। इस आधार पर िे राजनीतितिज्ञान
को तिज्ञान स्िीकार नहीं करिे हैं। कॉम्टे का तिचार है तक, “राजनीति तिज्ञान के तिशेषज्ञ उसकी
अध्ययन तितधयों, तसद्धान्िों एिं तनष्कषों के सम्बन्ध में एकमि नहीं हैं। इसमें तिकास की तनरन्िरिा
का अभाि है तजनके आधार पर भतिष्य के तलए ठीक तनष्कषभ तनकाले जा सकें ।“ बकल के अनसु ार,
“ज्ञान की ििभमान दशा में राजनीतितिज्ञान का तिज्ञान होना िो दरू रहा, यह कलाओ ं में भी सबसे
तपछड़ी हुई कला है।“
तिज्ञान शब्द इस तिषय के साथ जड़ु ने पर मेटलैण्ड को बहुि दःु ख है। उनके शब्दों में, “जब मैं
राजनीतिशास्त्र शीषभक के अन्ििभि प्रश्न देखिा हू िो मझु े प्रश्नों पर नहीं बतल्क शीषभक पर आियभ होिा
है।“ मेटलैण्ड के अनसु ार राजनीति तिज्ञान, तिज्ञान हो ही नहीं सकिा।
इन तिद्वानों ने अपने कथन के पक्ष एिं समथभन में तनम्न िकभ प्रस्ििु तकये हैं-
1.सतु नतिि पररभातषि शब्दािली का अभाि- राजनीति तिज्ञान में हम एक तनतिि पररभातषक
शब्दािली का अभाि पािे हैं। इसे राजनीति, राजनीतिक दशभन िथा राजनीति तिज्ञान आतद अनेक
नामों से पक
ु ारा जािा है। इसके अनेक ऐेसे शब्द हैं तजनके िास्ितिक अथभ के सम्बन्ध में तिद्वानों में
मिभेद पाये जािे हैं। तिज्ञान में H2Oका अथभ प्रत्येक स्थान पर एक ही होिा, चाहे िह तिटेन हो या
भारि तकन्िु राजनीति तिज्ञान में स्ििंत्रिा, समानिा, न्याय, सम्प्रभिु ा, लोकिंत्र, लोकमि, संघिाद
एिं अतधकार आतद के तभन्न-तभन्न देशों में तिद्वानों द्वारा तभन्न-तभन्न अथभ लिाए जािे हैं। इस िरह
तजस तिषय का अपना कोई स्पष्ट एिं तनतिि स्िरूप ही न हो, उसे तिज्ञान की संज्ञा कै से दी जा सकिी
है।
2.सिभमान्य तनयमों िथा िथ्यों का अभाि- भौतिक िथा प्राकृ तिक तिज्ञानों की भॉति इसमें सिभमान्य
तनयमों, िथ्यों िथा तसद्धान्िों का तनधाभरण नहीं हो पािा है। तिज्ञान में कुछ तनतिि तनयम िथा तसद्धान्ि
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होिे हैं जो सिभमान्य एिं सािभभौम होिे हैं। उदाहरणाथभ, ज्यातमति का यह तनयम अटल एिं सिभमान्य
है तक, “एक तत्रभजु के िीनों कोणों का योि दो समकोण के बराबर होिा है।“ तकन्िु राजनीतितिज्ञान
में ऐसा नहीं है। इसी िरह िति तिज्ञान के तनयमानसु ार, “प्रत्येक तक्रया की उिनी ही तिपरीि प्रतितक्रया
होिी है “ का तनयम भी अटल एिं शाश्वि है। इसी िरह इसमें ितणिके 2 और 2 चार अथिा भौतिक
तिज्ञान के ‘िरू
ु त्िाकषभण तनयम’ की भॉति तकन्हीं सिभमान्य एिं शाश्वि तनयमों का सिभथा अभाि पाया
जािा है। यतद एक ओर आदशभिादी राज्य की सिोच्च सत्ता को मान्यिा देिे हैं िो दसू री ओर,
साम्यिादी िथा अराजकिािादी इसको अमान्य करिे हैं।
यतद बेंजातमन फ्रैंकतलन, लास्की और एबेसीज जैसे तिद्वान एक सदनीय व्यिस्थातपका के पक्षधर हैं
िो लैकी, तसजतिक िथा ब्लटंश्ली आतद इसके घोर तिरोधी हैं। यतद एक पक्ष के तलए प्रजािंत्र सिभश्रेष्ठ
शासन पद्धति है िो दसू रे पक्ष के तलए िह बहुि बरु ी िथा तनकृ ष्ट शासन पद्धति है। अन्य िथ्यों िथा
तसद्धान्िों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार के मिभेद एिं तिरोधाभास तदखाई पड़िे हैं।
3.प्रयोि ि पयभिेक्षण सम्भि नहीं- इसमें भौतिक िथा प्राकृ तिक तिज्ञानों की भॉति प्रयोि एिं पयभिेक्षण
की सतु िधाएं प्राप्त नहीं हैं। इसमें हम भौतिक, रसायन, जीि एिं मौसम तिज्ञानों आतद की भॉति
प्रयोिशालाओ ं में जाकर िथ्यों िथा पदाथों के सम्बन्ध में कोई तनतिि एिं सन्िोषजनक समाधान नहीं
तनकाल सकिे हैं क्योंतक इसका सम्बन्ध मानि एिं उससे सम्बतन्धि तिचारधाराओ ं से होिा है तजनका
प्रयोि प्रयोिशालाओ ं या िेधशालाओ ं में सम्भि नहीं है। अथाभि तिज्ञान में हम िाप या िैस का दबाि
सही-सही माप सकिे हैं क्योंतक िे तनजीि और भािनाहीन होिी हैं, जबतक मानि के आिेि, उत्तेजना,
भािना अतभलाषा, क्रोध, प्रेम और तिचार के ा ठीक-ठीक और बार-बार नहीं माप सकिे हैं, क्योंतक
मानि का स्िभाि पररििभनशील, प्रतितक्रयािादी और भािना प्रधान होिा है। िाइस के शब्दों में,
“भौतिक तिज्ञान में एक तनष्कषभ पर पहुचने के तलए बार-बार प्रयोि तकया जा सकिा है तकन्िु राजनीति
में एक प्रयोि बार-बार नहीं दोहराया जा सकिा है।“
4.भतिष्यिाणी सम्भि नहीं- तिज्ञान में तनतिि तनयम होने से शि-प्रतिशि सही भतिष्यिाणी की जा
सकिी है; जैस-े ज्योतिष तिद्या के आधार पर बहुि समय पिू भ चन्रग्रहण और सयू भग्रहण की
भतिष्यिाणी की जािी है और जो पणू भिया सत्य तसद्ध होिी है। परन्िु ऐसी भतिष्यिाणी हमारे तिषय
के सम्बन्ध में नहीं की जा सकिी है। राजनीतितिज्ञानी यह नहीं बिा सकिा तक तकस तनतिि तिचार
का जनिा पर क्या असर होिा या तकस देश में कब जन-असन्िोष फै लकर क्रातन्ि लाएिा और कब
जन-समथभन सरकार को तमलेिा। इसी आधार पर बकभ ने कहा था तक, “राजनीति तिज्ञान में भतिष्यिाणी
करना मख ू भिा है।“ लॉस्की के भी कहा है तक, “हम अनभु ि के आधार पर भतिष्यिाणी कर सकिे हैं।
हमारी भतिष्यिाणी िथ्यों के अभाि एिं अतनतिििा के कारण सीतमि है।“
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5.कायभ-कारण में तनतिि सम्बन्ध का अभाि- तिज्ञान की एक तिशेषिा यह है तक उसमें प्रत्येक कायभ
का एक तनतिि और स्पष्ट कारण होिा है। उदाहरण के तलए, यतद जल को एक तनतिि मात्रा िक िमभ
तकया जाए िो िह िाष्प बन जािा है और यतद तनतिि मात्रा िक ठंडा तकया जाए िो बफभ बन जािा
है। इसका कोई अपिाद नहीं है। परन्िु राजनीतितिज्ञान में कायभ-कारण का सम्बन्ध इिना स्पष्ट और
तनतिि नहीं हो सकिा है। यह कहना कतठन होिा तक कौन-सी राजनीतिक घटना तकस कारण से हुई?
क्योंतक प्रत्येक राजनीतिक घटना के अनेक जतटल कारण हो सकिे हैं। उदाहरण के तलए, भारिीय
स्ििंत्रिा के पीछे तकसी अके ले कारण को बिाना सही नहीं होिा अथिा तकसी देश में होने िाली
क्रातन्ि के पीछे तकसी अके ले कारण को उत्तरदायी नहीं माना जा सकिा है। अिः राजनीतितिज्ञान में
कायभ का कारण उिना तनतिि और स्पष्ट नहीं होिा है तजिना तक प्राकृ तिक तिज्ञानों में होिा है।
6.तनतिि अध्ययन पद्धति का अभाि- भौतिक तिज्ञानों की अध्ययन पद्धति तनतिि होिी है, इस कारण
इनका अध्ययन तनष्कषभ सही तनकालिा है। राजनीति तिज्ञान की अनेक अध्ययन पद्धति हैं तजससे
इसके पररणाम अतनतिि होिे हैं। इसकी कायभतितध, प्रतक्रया, आदशभ और तनष्कषभ एक समान नहीं हो
पािे हैं। चाल्सभ ए0 बीयडभ के शब्दों में, “राजनीति और इतिहास के प्रत्येक िणभन में अस्पष्टिा रहिी है
और रहनी भी चातहए क्योंतक इनके तिद्याथी मानि कायों का अध्ययन करिे समय उस मानतसक दशा
में नहीं रहिे तजस प्रकार तक भौतिकी की समस्याओ ं का अध्ययन करिे समय मग्न रहिे है।“
7.अध्ययन तिषय आत्मपरक है, िस्िपु रक नहीं- प्राकृ तिक तिज्ञान िस्िपु रक होिा है। इसकी अध्ययन
िस्िु तनजीि होने के कारण अनसु ंधानकिाभ मानिीय भािनाओ ं से परे रहिे हुए िटस्थिा के साथ
अध्ययनरि बना रहिा है, लेतकन राजनीति तिज्ञान का अध्ययन तिषय मानि है, अिः यह आत्मपरक
होिा है। इसतलए अध्ययनकिाभ का िटस्थ रहना बहुि कतठन होिा है।
उपयभक्त
ु िथ्यो के कारण हम राजनीति तिज्ञान को अन्य प्राकृ तिक िथा भौतिक तिज्ञानों की भॉति
तिशद्ध
ु तिज्ञान नहीं मान सकिे हैं। इसी आधार पर तिलोबी का कथन है तक, “राजनीति का तिज्ञान
बनना न िो सम्भि है और न ही िाछंनीय।“ इस प्रकार उपयभक्त ु तििेचन से यह स्पष्ट होिा है तक
राजनीति तिज्ञान में िैज्ञातनकिा का सिभथा अभाि है।
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ज्ञाि होिा है तक तिज्ञान की बहुि-सी मान्यिाएँ और ित्ि राजनीति तिज्ञान पर भी लािू तकए जा सकिे
हैं। राजनीतितिज्ञान के तिज्ञान होने के पक्ष में कुछ िथ्य तनम्न प्रकार हैं-
1. सस्ु पष्ट, सतु नतिि एिं क्रमबद्ध अध्ययन- तिज्ञान का महत्िपणू भ लक्षण है तक िह क्रमबद्ध ज्ञान
होिा है। यह लक्षण राजनीतितिज्ञान में भी पणू भ रूप से पाया जािा है। राजनीतितिज्ञान में राज्य का
उद्भि, तिकास के चरण, सरकार के प्रकार, अन्य राजनीतिक संस्थाओ,ं तिचारधाराओ ं का क्रमबद्ध
ज्ञान उपलब्ध है। राजनीतितिज्ञान का आज जो भी अध्ययन तकया जािा है उसका आधार भिू कालीन
ज्ञान ही है। तिषय के अतधकांश तनयम स्थातपि हो िए हैं। इसकी सभी बािों का एक क्रमबद्ध ज्ञान के
रूप में अध्ययन तकया जा सकिा है।
2. पयभिेक्षण िथा प्रयोि सम्भि- तिज्ञान की भॉति राजनीति तिज्ञान में भी बहुि कुछ पयभिेक्षण
एिं प्रयोि सम्भि हैं। राजनीति तिज्ञान अपने आप में एक अनठू ी िथा तिशाल प्रयोिशाला है जहॉ
तितभन्न तसद्धान्िों िथा शासन पद्धतियों का सफल परीक्षण एिं प्रयोि तकया जा सकिा है। राजनीति
तिज्ञान में िो पयभिेक्षक एिं प्रयोिों की व्यिस्था रहिी है। जैसे लोकिंत्रात्मक िथा अन्य शासन
पद्धतियों के तिश्ले षण से स्पष्ट होिा है तक लोकिंत्रात्मक शासन पद्धति अन्य पद्धतियों की अपेक्षा
कहीं अतधक लोकतप्रय एिं लोकतहि के प्रति सजि रहिी है। संघिाद, बहुलिाद, समाजिाद,
साम्यिाद, लोकतप्रय सम्प्रभिु ा िथा लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा आतद का राजनीति में
समािेश एक प्रयोि के िौर पर ही हुआ है िथा उन्हें अत्यतधक सफलिा भी प्राप्त हुई है।
यद्यतप इसमें पदाथभ तिज्ञानों की भॉति प्रयोिशालाओ में बैठकर पणू भ तनतिििा एिं सरलिा से प्रयोि
िो नहीं तकये जा सकिे, तफर भी राजनीति तिज्ञान में प्रयोि होिे रहे हैं और होिे जा रहे हैं। िानभर के
शब्दों में, “प्रत्येक निीन काननू का बनना, प्रत्येक नई संस्था का िठन िथा प्रत्येक नई बाि का प्रारम्भ
एक प्रयोि ही होिा है।“ भारिीय राष्रीय आन्दोलन के अन्ििभि अपनाया िया अतहसं ात्मकसत्याग्रह,
भारिीय शासन िथा राजनीति में पंचायिी राज, सामदु ातयक तिकास योजना िथा प्रजािांतत्रक
तिके न्रीकरण की योजना आतद इसी प्रकार के राजनीतिक प्रयोिों के ही उदाहरण हैं।
3.सिभमान्य तनयमों िथा तसद्धान्िों की क्षमिा- राजनीति तिज्ञान में भी प्राकृ तिक िथा भौतिक तिज्ञानों
की भॉति कुछ सामान्य तनयम एिं शाश्वि तसद्धान्ि हैं। राज्य, तितध, न्याय, तशक्षा िथा क्रातन्ियों आतद
के सम्बन्ध में कुछ ऐसे सािभजतनक एिं शाश्वि तनयम एिं तनतिि तसद्धान्ि हैं जो प्रत्येक पररतस्थति
िथा देश में लािू होिे है। इनके आधार पर कुछ सामान्य तनष्कषभ भी तनकाले जा सकिे हैं। प्लेटो का
न्याय एिं तशक्षा तसद्धान्ि, अरस्िू का राज्य ििीकरण िथा क्रातन्ि का तसद्धान्ि, रोमन-तितध तसद्धान्ि,
बोदॉ का सम्प्रभिु ा तसद्धान्ि, रूसो िथा लॉक की स्ििंत्रिा सम्बन्धी धारणा िथा िाँधी जी के सत्याग्रह
सम्बन्धी तिचार प्रायः सिभमान्य िथा शाश्वि तसद्धान्िों के रूप में हैं।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
4.कायभ-करण सम्बन्ध स्थातपि तकया जा सकिा है- पदाथभ तिज्ञानों की भॉति राजनीति तिज्ञान में भी
कायभ-करण सम्बन्ध स्थातपि तकये जा सकिे हैं। अनुभि यह दशाभिा है तक जब भी कोई शासक
अत्याचारी, अनत्तु रदायी एिं क्रूर होिा है एिं शासन व्यिस्था जनतहिकारी नहीं होिी िो िहॉ फ्रासं ,
रूस, भारि िथा अन्य एतशयाई िथा अफ्रीकी देशों की भॉति क्रातन्ियॉ िथा तिरोह अिश्य होिे हैं।
बंग्लादेश िथा अफिातनस्िान की क्रातन्ियॉ इसका एक प्रमख ु िथा िाजा उदाहरण हैं। क्रातन्ि के
सम्बन्ध में कायभ-कारण का सम्बन्ध स्थातपि तकया जा सकिा है। इस िरह इसमें यद्यतप पदाथभ तिज्ञानों
की भॉति प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थातपि नहीं तकया जा सकिा, तफर भी तिशेष घटनाओ ं के अध्ययन से कुछ
सामान्य पररणाम एिं तनष्कषभ िो तनकाले ही जा सकिे हैं। िाइस द्वारा इस िथ्य को स्िीकार तकया िया
है।
5.भतिष्यिाणी की क्षमिा- जहॉ िक भतिष्यिातणयों का सम्बन्ध है, इसमें प्राकृ तिक तिज्ञानों की भॉति
िो भतिष्यिाणी नहीं की जा सकिी तकन्िु इसमें भी भतिष्यिातणयॉ हो सकिी हैं और बहुधा सत्य भी
तसद्ध होिी हैं। उदाहरणाथभ, ििभमान में देश में होने िाले चनु ािों के सम्बन्ध में तितभन्न सिेक्षणों द्वारा
भतिष्यिातणयॉं की जािी रही हैं और बहुि-सी भतिष्यिातणयॉं सत्यिा की कसौटी पर खरी भी उिरी
हैं। डॉ0 फाइनर के मिानुसार, “इसमें हम तनतिििापिू भक भतिष्यिातणयॉं नहीं कर सकिे तकन्िु
सम्भािनाएँ िो व्यक्त कर ही सकिे हैं। लाडभ िाइस के शब्दों में, “भौतिक तिज्ञान में भतिष्यिाणी
तनतिि होिी है, राजनीति में सम्भािना से अतधक नहीं।“ परन्िु इससे इस तिषय के तिज्ञान होने पर
कोई प्रभाि नहीं पड़िा, क्योंतक मौसम तिज्ञान की भतिष्यिातणयॉं पणू भ सत्य नहीं होिी हैं, लेतकन तफर
भी उसे सापेक्ष सत्य के आधार पर ही तिज्ञान माना जािा है, यही तस्थति राजनीति तिज्ञान की है। लॉडभ
िाइस के अनसु ार, “राजनीति तिज्ञान की िल ु ना ऋिु तिज्ञान जैसे अपणू भ तिज्ञान से की जा सकिी है।“
मिैक्यिा का अभाि एिं पररभातषक शब्दािली का अभाि होना भी कुछ अतधक सही नहीं माना जा
सकिा है।
िस्ििु ः राजनीति तिज्ञान की िैज्ञातनकिा के सम्बन्ध में प्रथम पक्ष द्वारा उठायी ियी आपतत्तयॉ िथा
शंकाएँ बहुि कुछ तनराधार एिं बेबतु नयाद प्रिीि होिी हैं। भौतिक िथा प्राकृ तिक तिज्ञानों से तभन्न होने
के बाद भी राजनीति तिज्ञान एक तिज्ञान है। अतधकांश राजनीतिक तिचारक इसे तिज्ञान मानने के पक्ष
में हैं।
तनष्कषभ के रूप में हम यही कह सकिे हैं तक तिज्ञान के दो रूप हैं-सकीणभ और िृहद।् संकीणभ तिज्ञान
प्राकृ तिक तिज्ञान ही होिा है क्योंतक तिज्ञान की सत्यिा, तनतिििा, क्रमबद्धिा एिं प्रयोि की सतु िधा
प्राकृ तिक तिज्ञानों में ही तमल सकिी है। दसू री िरफ िृहद् तिज्ञान से अतभप्राय है- ज्ञान की िह शाखा
जो क्रमबद्ध ज्ञान प्रस्ििु करिी है; जैस-े अथभशास्त्र, नीतिशास्त्र, राजनीतितिज्ञान, समाजशास्त्र, भाषा
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
तिज्ञान आतद। राजनीति तिज्ञान में प्राकृ तिक तिज्ञान की तनतिििा, शद्ध
ु िा, क्रमबद्धिा िथा प्रयोि की
सतु िधा न होिे हुए भी इसमें िैज्ञातनक पद्धतियों का प्रयोि, सामान्य तसद्धान्िों का पाया जाना,
भतिष्यिाणी की सम्भािना पाई जािी है। इसतलए यह तिषय िृहद अथभ में तिज्ञान है, लेतकन प्राकृ तिक
तिज्ञान की िरह शद्ध
ु तिज्ञान नहीं है। इसे एक सामातजक तिज्ञान कहा जा सकिा है, क्योंतक-
1. राजनीति तिज्ञान का सम्बन्ध सामातजक और राजनीतिक जीिन की जतटल समस्याओ ं से
होिा है।
2. मनष्ु य का स्िभाि पररििभनशील एिं जतटल होिा है, इसतलए तसद्धान्ि के आधार पर इसका
अध्ययन नहीं तकया जा सकिा।
3. राजनीतितिज्ञान पर अचेिन रूप में व्यतक्त के व्यतक्तिि तिचारों एिं द्वेषों का प्रभाि होिा है।
4. राजनीतितिज्ञानी को अपने तिषय के मौतलक पहलू को भी ध्यान में रखना होिा है।
उपरोक्त अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकिा है तक राजनीतितिज्ञान, प्राकृ तिक तिज्ञान की श्रेणी
में न आिे हुए भी सामातजक तिज्ञान है। तिलक्राइस्ट के शब्दों में, “यद्यतप सामातजक तिज्ञानों में
प्राकृ तिक तिज्ञानों जैसी यथाथभिा प्राप्त करना कतठन है िथातप सामातजक समस्याओ ं पर उसी िैज्ञातनक
ढंि से तिचार तकया जा सकिा है जैसा तक रसायनशास्त्र या भौतिकशास्त्र में।“ लाडभ िाइस ने इसे ऋिु
तिज्ञान की भॉति अपणू भ और अतिकतसि तिज्ञान कहा है। सर फ्रेडररक पोलक के अनसु ार, “तजस
प्रकार नैतिकिा का तिज्ञान है, उसी भाि में और उसी िरह अथिा लिभि उसी सीमा िक राजनीति
भी तिज्ञान है।“
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
कला का आशय एिं उद्देश्य जीिन की सन्ु दरिम अनुभतू ि से है। िह मानि की श्रेष्ठ कल्पनाओ ं की
सन्ु दर अतभव्यतक्त है। कला का उद्देश्य जीिन को मधरु एिं समन्ु नि बनाना है। कला का उद्देश्य ठोस
िथ्यों का प्रतिपादन करना है। तनम्न आधारों पर हम इसकी तििेचना कर सकिे हैं-
1.एक कलाकार की भॉति राजनीति तिज्ञानी भी अपने तिचारों की अतभव्यतक्त बहुि अच्छे ढंि से
करने का प्रयास करिे हैं। िे तिचारों िथा िथ्यों का आकषभक रंिों के माध्यम से उसे लोकतप्रय, भव्य
िथा लोकोपयोिी बनाने का भी प्रयत्न करिे हैं। संिीि एिं कला की भॉति ही राजनीति तिज्ञान का
उद्देश्य भी राज्य एिं नािररकों के तलए आदशभ तसद्धान्िों का प्रतिपादन कर मानि जीि को समन्ु नि,
सखु ी, आदशभ एिं मधरु बनाना होिा है।
2.राज्य अपने उद्देश्यों की पतू िभ एिं कायभ संचालन के तलए तजस प्रकार के तनयम, साधन या उपाय
अपनािा है, िह कला के अन्ििभि ही आिे हैं। व्यािहाररक राजनीति का सम्बन्ध कला से ही है।
3.स्ियं शासन करना भी एक श्रेष्ठ कला ही है। इसीतलए प्लेटो शासन का उत्तरदातयत्ि योग्य िथा
प्रतशतक्षि दाशभतनकों को ही सौंपने के पक्ष में था। प्रायः प्रत्येक शासन में एक अच्छे िथा आदशभ शासक
की आिश्यकिा एिं महत्ि पर बल तदया जािा है। शासक के पास सझू -बझू एिं चिरु ाई होनी चातहए,
िातक उसे अपने उद्देश्यों में सफलिा प्राप्त हो सके ।
इस प्रकार शासन करना स्ियं अपने आप में एक श्रेष्ठ कला है। अिः बकल का यह कथन तनराधार
प्रिीि होिा है तक, “राजनीति कलाओ ं में भी सबसे तपछड़ी हुई कला है।“ िस्ििु ः राजनीति एक श्रेष्ठ
कला है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
सहयोि के तसद्धान्िों को प्रतितष्ठि करने का प्रयत्न करिा है। इस प्रकार राजनीति तिज्ञान का अध्ययन
व्यतक्त ओर समाज दोनों के तलए ही उपयोिी है।
2.राष्रीय और संिैधातनक इतिहास का ज्ञान- राजनीति तिज्ञान के अध्ययन के आधार पर अपने देश
की प्राचीन िौरि और प्राचीन असफलिाओ ं का ज्ञान होिा है। भारिीय राजनीति का तिद्याथी अपने
देश के राष्रीय इतिहास का अध्ययन करने के उपरान्ि यह तनतिि कर सकिा है तक हमारी आजादी
तकिने बतलदानों के पररणाम स्िरूप तमली है, इसतलए इसकी हमें सदैि रक्षा करनी चातहए। इस प्रकार
तितभन्न देशों के राजनीति तिज्ञान के तिद्याथी अपने-अपने देश की प्राचीन परम्पराओ,ं इतिहास और
संस्कृ ति का ज्ञान प्राप्त कर सकिे हैं।
3.राज्य एिं सरकार का ज्ञान- राजनीति तिज्ञान में राज्य और सरकारों के संिठन, िणु -दोषों का
अध्ययन तकया जािा है। सरकार के तितभन्न रूपों में हमारे देश के तलए कौन-सा रूप सिोत्तम होिा,
सरकार के कायों का मल्ू याक ं न तकस आधार पर तकया जाए, सरकार की कतमयों को दरू करने के उपाय
आतद की जानकारी राजनीति तिज्ञान से तमलिी है। शासन व्यिस्था और सरकार के अतधकार और
कत्तभव्यों का तिश्लेषण भी इसमें तकया जािा है।
4.उत्तम प्रशासन कला का ज्ञान- राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि प्रशासन को कुशल और जनतहिकारी
बनाने के तलए सरकारी कमभचाररयों के चयन और प्रतशक्षण आतद तिषयों का अध्ययन तकया जािा है।
ििभमान में राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि उत्तम प्रशासन िथा प्रशासन को जनिा के प्रति अतधक से
अतधक उत्तरदायी बनाने के उपायों पर तिचार तकया जा रहा है।
5.उदार मानिीय दृतष्टकोण का तनमाभिा- आधतु नक यिु में िैज्ञातनक प्रिति के कारण सम्पणू भ तिश्व ने
एक इकाई का रूप धारण कर तलया है और समस्ि तिश्व के मनष्ु य एक-दसू रे के बहुि तनकट आ िये
हैं। राजनीति तिज्ञान हमें अपने और तिश्व के दसू रे देशों का ज्ञान प्रदान कर हमारे दृतष्टकोण को व्यापक
और उदार बनािा है। राजनीति तिज्ञान हमें पररिार, जाति, िॉि और निर के अतिररक्त राष्रीय एिं
अन्िराभष्रीय समस्याओ ं पर तिचार करने की क्षमिा प्रदान करिा है। यह तशक्षा देिा है तक व्यतक्त से
पररिार बड़ा है, पररिार से िॉि, िॉि से तजला, तजला से प्रान्ि और प्रान्ि से देश और देश से बड़ा
तिश्व है। व्यतक्त को पररिार के तहि में, पररिार को िॉि के तहि में, िॉि को तजला के तहि में, तजला
को प्रान्ि के तहि में, प्रान्ि को राष्र के तहि में अपने स्िाथभ त्यािने चातहए। क्षेत्रीय संकीणभिा, भाषािाद,
जातििाद, रंिभेद, तलंिभेद, धमभभेद सबसे ऊपर उठकर मानि मात्र की समानिा को एक मात्र आधार
मानें और तिश्व कल्याण की भािना से कायभ करें । आज राजनीति तिज्ञान मानि को तिश्व राज्य तनमाभण
करने की ओर प्रेरणा दे रहा है। यतद ऐसा हो सका िो समस्ि मानि-मानि के भेद सदैि के तलए समाप्त
हो जाएँिें।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
6.राजनीतिक चेिना का तिकास- राजनीति तिज्ञान नािररकों में राजनीतिक चेिना जाग्रि करिा है।
राजनीतिक चेिना के अभाि में नािररक अपने कत्तभव्यों का पालन उतचि रूप में नहीं कर पािे हैं और
नेिा िथा प्रशासक पथ-भ्रष्ट हो सकिे हैं। राजनीति तिज्ञान के ज्ञान से सम्पन्न राजनीतिक चेिना यक्त
ु
जनिा शासकों को भ्रष्ट होने से रोकिी है िथा सरकार की िलि नीतियों की आलोचना कर शासन
को जनतहिकारी बनाने का यथासम्भि प्रयास करिी है। राजनीतिक दृतष्ट से जािरूक जनिा ही बाह्य
आक्रमण िथा आन्िररक सक ं टों का सामना कर सकिी है।
7.अन्िराभष्रीय समस्याओ ं का ज्ञान- सचं ार के रुििति के साधनों ने सारे तिश्व को समेट कर आज बहुि
छोटा कर तदया है। आज तिश्व के तकसी भी कोने में कोई घटना घटिी है, उसकी िरु न्ि सचू ना दतु नयाभर
को हो जािी है और उसका प्रभाि भी तकसी न तकसी रूप में दसू रों पर पड़िा ही है। आज कोई भी
घटना स्थानीय या राष्रीय नहीं रह पािी है। ऐसी तस्थति में राज्यों के पारस्पररक सम्बन्धों का अध्ययन
आिश्यक भी हो जािा है और महत्िपणू भ भी। अन्िराभष्रीय राजनीति और अन्िराभष्रीय सम्बन्ध िथा
अन्िराभष्रीय तितध राजनीति तिज्ञान के भाि ही हैं। इसके माध्यम से ही तनःशस्त्रीकरण, अन्िराभष्रीय
संस्थाओ,ं अन्िराभष्रीय तिचारधाराओ ं आतद का अध्ययन तकया जािा है, जो प्रत्येक देश के तलए
अतनिाय है। तिदेश सम्बन्ध और राष्रीय राजनीति पर अन्िराभष्रीय दबाि, शीियद्ध ु , आतथभक
साम्राज्यिाद जैसे महत्िपणू भ प्रश्नों की जानकारी इस तिषय से तमलिी है।
उपरोक्त तििेचन से यह स्पष्ट है तक राजनीति तिज्ञान का अध्ययन हमारे तलए महत्िपणू भ है। आज यह
सम्भि नहीं है तक व्यतक्त राजनीति तिज्ञान के प्रति उपेक्षा बरिें। व्यतक्त भले ही राजनीति में रूतच न रखे
या राजनीति से दरू रहना चाहे परन्िु राजनीति उससे दरू नहीं रह पािी है, उन िक पहुच ही जािी है।
रॉबटभ ए0 डहल के अनसु ार, “राजनीति आज मानिीय अतस्ित्ि का अपररहायभ ित्ि बन िई है। प्रत्येक
व्यतक्त तकसी न तकसी रूप में, तकसी न तकसी समय, तकसी न तकसी प्रकार की राजनीतिक व्यिस्था
से सम्बद्ध है।“ आज राजनीति तिज्ञान का अध्ययन दरििति ु् से अतधकातधक उपयोिी होिा जा रहा
है। आइिर िाउन के अनसु ार, “सामातजक जीिन के िास्ितिक मल्ू य के प्रति यतद सहज बतु द्ध से देखा
जाय िो राजनीति तिज्ञान का अध्ययन उपयोिी और साथभक तसद्ध होिा।“
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आदशभिातदयों के तििके से साक्षात्कार ले सकिे हैं। इन तिद्वानों के तिचारों को परानभु ििादी कहा
िया है। उनके व्यतक्तपरक तिचार और उनकी तचन्िन प्रणाली तनिमनात्मक है। आधतु नक यिु में
परम्परािि राजनीति तिज्ञान के प्रबल समथभकों की काफी सख्ं या है। यहॉ हम रूसो, काण्ट, हीिल,
टी0एच0 ग्रीन, बोसांके, लास्की, ओकशॉट, तलयो स्रॉस इत्यातद की रचनाओ ं में प्लेटो के तिचारों
की झलक देख सकिे हैं।
परम्परािि राजनीति तिज्ञान की प्रमख
ु तिशेषिायें तनम्निि् स्पष्ट की जा सकिी हैं-
1.‘राज्य’ की प्रधानिा एिं राज्य को एक नैतिक सामातजक अतनिायभ संस्था माना है। फलिः उद्देश्य
आदशभ राज्य की खोज ही नहीं रहा, अतपिु इसके तलए अत्यतधक हटधतमभिा रही।
2.कल्पनात्मक, आदशों का अध्ययन एिं दशभनशास्त्र से घतनष्ठिा।
3.अध्ययन प्रतिपादक राजनीतिक दाशभतनकों एिं तचन्िकों के व्यतक्तत्ि से प्रभातिि, फलिः व्यतक्ततनष्ठ
अध्ययन।
4.अपररष्कृ ि परम्परािि अध्ययन पद्धतियों (ऐतिहातसक) दाशभतनक का प्रयोि, फलिः िैज्ञातनक
पद्धतियों का प्रयोि नहीं तकया िया।
5.अध्ययन में नैतिकिा और राजनीतिक मूल्यों पर तिशेष बल तदया िया है।
6.यह प्रधानिः सकं ु तचि अध्ययन है क्योंतक इसमें तसफभ पािात्य राज्यों की शासन व्यिस्था पर ध्यान
के तन्रि तकया िया है। एतशया, अफ्रीका एिं लैतटन अमेररका आतद की राजनीतिक व्यिस्थाओ ं के
अध्ययन को महत्ि नहीं तदया िया है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
का अध्ययन तकया जाये िथा उन्हीं के आधार पर राजनीतिक घटनाक्रम की व्याख्या ि तिश्लेषण
तकया जाये।
२.आधतु नक राजनीति तिज्ञान व्यिहाररकिािादी अनभु ािनात्मक ि यथाभथिादी दृतष्टकोण अपनाने पर
जोर देिा है। अतधकांश अध्ययन-ग्रंथ तिश्ले षणात्मक ि अनभु िात्मक हैं, जो पयभिेक्षण माप,
िातकभ किा, यतु क्तयक्त
ु िा आतद िकनीकों पर आधाररि हैं।
३.आधतु नक राजनीति तिज्ञान तितभन्न सामातजक तिज्ञानों िथा प्राकृ तिक तिज्ञानों से काफी प्रभातिि
रहा है। अिः निीन पद्यतियों में िैज्ञातनक पद्यति को प्रमुख स्थान तदया िया है। इसी के साथ िैज्ञातनक
मल्ू य-सापेक्षिािाद को भी प्रमुख स्थान प्रदान तकया िया, तजसका िात्पयभ है तक एक शोधकिाभ शोध
करिे समय स्ियं के मल्ू यों, धारणाओ,ं पिू ाभग्रहों को शोध से पृथक रखिा है। उसके आचरण में बौतद्धक
तनष्पक्षिा िथा सत्यतनष्ठा पायी जािी है। यह िातत्िकिा का तििेचन करिा है िथा अतििथ्यिातदिा
से बचिा है। िैज्ञातनक पद्यति के प्रयोि द्वारा अब राजनीति िैज्ञातनक सामान्यीकरणों व्याख्याओ ं और
तसद्धान्ि-तनमाभण में लिे हैं। अब तसद्धान्ि-तनमाभण कठोर शोध प्रतक्रयाओ ं पर आधाररि है। शोध ि
तसद्धान्ि में तनतिि संबंध में पाये जाने लिे हैं। तसद्धान्ि तनमाभण की प्रतक्रया अब शोध-उन्मुखी हो ियी
है।
४.आधतु नक राजनीति तिज्ञान के तिद्वान इस िथ्य से सपु ररतचि हैं तक तजन सस्ं थाओ ं और तिषयों का
अध्ययन िे करिे हैं, उनका अध्ययन अन्य अनश ु ासनों में भी तकया जा रहा है। अिः राजनीति तिज्ञान
को पृथक अतस्ित्ि प्रदान तकया जाना चातहए। डेतिड ईस्टन, राबभट डहल, आमण्ड, पॉंिेल, कोलमैन,
ल्यतू सयन पाई, तसडनी िबाभ, कालभ डायच, मैक्रीडीस आतद तिद्वानों ने राजनीति तिज्ञान को स्ििंत्र
अनश ु ासन बनाये जाने के प्रयत्न तकये। उदाहरणाथभ डेतिड ईस्टन ने ‘‘राजनीति को मल्ू यों का सम्पणू भ
समाज के तलए आतधकाररक तििरण/आबं टन बिाकर इसे अन्य अनश ु ासनों (व्यिस्थाओ)ं से पृथक
ि श्रेष्ठ घोतषि तकया।
५.आधतु नक राजनीति तिज्ञान के तिद्वान राजनीतिक िथ्यों और तनष्कषो में एक सम्बद्धिा एिं
क्रमबद्धिा लाना चाहिे हैं। अपने क्षेत्र में तितशष्ट सतु िज्ञिा तिकतसि करना चाहिे हैं िातक िह स्िायत्ता
प्राप्त कर सके । इसके तलए उन्होंने व्यिस्था तसद्धान्ि या सामान्य व्यिस्था तसद्धान्ि को राजनीतिक
तिज्ञान में ग्रहण तकया। तनयंत्रण और तनयमन से संबंतधि होने के कारण राजनीति तिज्ञान की मौतलकिा
स्ििः प्रमातणि है।
६.आधतु नक राजनीति तिज्ञान अध्ययन की इकाई के रूप में मानि व्यिहार को चनु िा है। अिः उससे
सबं तं धि सभी ित्िों ि िथ्यों का तिशलेषण तकया जाना आिश्यक हो जािा है। इस तिषय की अन्िः
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अनश ु ासनात्मकिा इसका प्रमुख आधार है। तकसी भी राजनीतिक घटना का अध्ययन करने के तलए
यह आिश्यक हो जािा है तक उस घटना से संबंतधि मनष्ु य िास्िि में तकन-तकन ित्िों से प्रभातिि है
लेतकन यह कायभ अत्यन्ि जतटल होिा है। अिः तनष्कषभ तनकलिा है तक तजिने अनश ु ासन हैं उिनी ही
दृतष्टयॉं है। अिः यह कायभ सामान्य तसद्धान्ि ‘‘एकीकरण‘‘ के माध्यम से तकया जािा है। कुछ तिद्धानों
ने अन्िः अनुशासनीय दृतष्टकोण के स्थान पर ‘परर-अनुशासनात्मक‘ (पैन-तडतसतप्लनरी) या अतध
अनश ु ासनीय दृतष्टकोण (रासं -तडतसतप्लनरी) कहना अतधक पसदं तकया है।
७.आधतु नक राजनीति तिज्ञान िात्कालीक समस्याओ ं का समाधान करने पर ध्यान देिा है।
व्यिहाररकिािादी क्रांति के माध्यम से ऐसा प्रिीि हो रहा था तक राजनीति तिज्ञान तिशुद्ध तिज्ञान
बनकर मात्र प्रयोिशालाओ ं और पस्ु िकालयों िक सीतमि हो जायेिा, तकन्िु उत्तर-व्यिहाररकिािादी
यिु ने अपने आपकों मल्ू यों, नीतियों ओर समस्याओ ं से सम्बद्ध रखा िथा अपने अध्ययन से नािररकों
शासन को नीति-तनमाभिाओ ं ि राजनीतिज्ञों को लाभातन्िि करने का प्रयास तकया है।
८.आधतु नक राजनीति तिज्ञान की अभी अपनी प्रारतम्भक अिस्था है। उसके पास अभी तनतिि
तसद्धान्िों का अभाि है, तकन्िु िह इस तदशा में प्रयत्नरि है। माइके ल हस इस ओर संकेि करिे हुए
िीन तबन्दओ ु ं के आधार पर यह बिािे है तक आधतु नक राजनीति तिज्ञान में तसद्धान्ि तनमाभण की प्रिृतत्त
तदखायी देिी है। ये िीन तबन्दु हैं- 1. तनणभय-तनमाभण 2. राजनीतिक तिकास 3. द्वन्द िथा एकीकरण।
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सामातजक जीिन के सन्दभभ में ही उतचि रूप से समझा जा सकिा है। अिः राजनीतिक अध्ययन में
अन्िर-अनशु ासनात्मक दृतष्टकोण को अपनाया जाना चातहए।
3.परम्परािि दृतष्टकोण मल्ू यों से यक्त
ु िथा मल्ू यों पर आधाररि है अिः उसमें व्यतक्ततनष्ठिा का आ
जाना स्िाभातिक है लेतकन आधतु नक दृतष्टकोण का उद्देश्य राजनीति तिज्ञान में लिभि पदाथभ तिज्ञानों
की सीमा िक िस्ितु नष्ठिा लाना है, अिः इसमें मूल्य-मक्त
ु दृतष्टकोण अपनाने का प्रयास तकया िया है।
तकन्िु इसके रूतचकर पररणाम न तनकलने के कारण आज यह तिचार मान्य हो िया है तक राजनीतिक
अध्ययन मल्ू य-सापेक्ष होना चातहए लेतकन उसे िैज्ञातनकिा प्रदान करने का प्रयास नहीं तकया जाना
चातहए।
4.परम्परािि दृतष्टकोण में राजनीति तिज्ञान के आदशाभत्मक पक्ष पर बल तदया िया है, जबतक
आधतु नक दृतष्टकोण आदशभिादी पक्ष के स्थान पर यथाथभिादी पक्ष पर अतधक बल देिा है।
5.परम्परािि दृतष्टकोण राजनीतिक संस्थाओ ं के अध्ययन पर बल देिा है तजससे यह औपचाररक
अध्ययन बनकर रह िया है, जबतक आधतु नक दृतष्टकोण राजनीतिक सस्ं थाओ ं की अपेक्षा उन साधनों
िथा प्रतक्रयाओ ं को अतधक महत्ि देिा है तजनके आधार पर राजनीतिक संस्थाएँ कायभ करिी हैं। इसी
कारण आधतु नक राजनीतिक अध्ययनों में एक िास्ितिकिा आ ियी है।
6.परम्परािि दृतष्टकोण राजनीति तिज्ञान के अध्ययन के तलए परम्परािि, ऐतिहातसक, िुलनात्मक
और दाशभतनक पद्धतियों का प्रयोि करिे हैं लेतकन आधतु नक दृतष्टकोण मे मनोिैज्ञातनक प्रयोि एिं
पयभिेक्षक की पद्धतियों िथा सांतख्यकी और नमनू ा सिेक्षण आतद पद्धतियों का प्रयोि तकया जािा है।
7.परम्परािि दृतष्टकोण अनमु ान, सम्भािनाओ ं और कल्पनाओ ं पर आधाररि है तजससे उसके तनष्कषों
में प्रामातणकिा ि तनियात्मकिा का अभाि होिा है लेतकन आधतु नक दृतष्टकोण ठोस िथ्यों पर
आधाररि होने के कारण तनष्कषों की तनियात्मकिा िथा प्रामातणकिा की खोज में हैं। यह
सामान्यीकरणों को जन्म देने या सामान्य तसद्धान्िों का प्रतिपादन करने के प्रयास में संलग्न है।
सक्ष
ं ेप में, आधतु नक राजनीति तिज्ञान और परम्परािि राजनीति तिज्ञान में उपयभक्तु तितभन्निाओ ं के
बाद भी ये दोनों एक-दसू रे के तिरोधी नहीं हैं। आधतु नक राजनीति तिज्ञान ने इसे तिसिार प्रदान कर
अतधक से अतधक िैज्ञातनक बनाने का प्रयत्न तकया है।
अभ्यास प्रश्न
१.राजनीति तिज्ञान अंग्रेजी भाषा के शब्द Political Science का तहन्दी रूपान्िरण है।
सत्य असत्य/
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ु तिश्वतिद्यालय 33
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
२.यनू ानी भाषा में पोतलस का अतभप्राय है निरराज्य- । सत्यअसत्य/
३.डेतिड ईस्टन ने 1950 के दशक में व्यिस्था तसद्धान्ि तदया । सत्यअसत्य/
४.राजनीति तिज्ञान का सरोकार मल्ू यों के आतधकाररक आबंटन से है तकसने कहा है, ।
५.कै टतलन ने अपनी पस्ु िक ‘‘पॉतलतटकल तथयरीः व्हट इज इट?‘
६.‘राजनीति तिज्ञान का प्रारम्भ ि अन्ि राज्य से ही होिा है तकसने कहा है ?
७.“राजनीति तिज्ञान राज्य का तिज्ञान है।“ तकसने कहा है ?
८.राजनीति तिज्ञान उसी प्रकार सरकार के ित्िों का अनसु ंधान करिा है जैसे सम्पतत्त शास्त्र सम्पतत्त
का, जीि तिज्ञान जीिन का, बीजितणि अंको का िथा ज्यातमतिशास्त्र स्थान एिं लम्बाई चौडाई -
का करिा है।‘‘ तकसने कहा है ?
९.लीकॉक ने तलखा है तक ‘‘राजनीति तिज्ञान सरकार से संबंतधि तिधा है -। सत्यअसत्य/
१० दो.प्रकार की प्रभसु त्ता -1. आन्िररक और 2. बाह्य । सत्यअसत्य/
1.9 साराांश
समय के साथ राजनीति तिज्ञान की पररभाषा और उसका क्षेत्र बदला है। यरू ोतपय संस्थाओ,ं अमरीकी
व्यिहारिाद और पािात्य राजनीतिक दशभन, ने अपने ढंि से राजनीति तिज्ञान के तिकास में योिदान
तदया है। परम्परािि िथा आधतु नक ‘राजनीति तिज्ञान’ की पररभाषाओ ं के तिश्ले षण से यह स्पष्ट होिा
है तक यह अब के िल राज्य अथिा सरकार से सम्बतन्धि तिज्ञान नहीं, बतल्क मनष्ु य के राजनीतिक
व्यिहार, राजनीतिक तक्रयाओ ं ि प्रतक्रयाओ,ं शतक्त, सत्ता िथा मानि समहू ों की अन्िःतक्रयाओ ं का
तिज्ञान है। आज आधतु नक दृतष्टकोण ने राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र को और अतधक तिस्िृि कर तदया है।
राजनीति तिज्ञान सैद्धातन्िक दृतष्ट से तिज्ञान बन चक
ु ा है और जब राजनीति तिज्ञान के सैद्धातन्िक पक्ष
को व्यिहाररक जीिन में उिारा जािा है िो यह कला बन जािा है। यह तिषय इस िरह कला और
तिज्ञान दोनों ही बन जािा है। फलिः आज राजनीति तिज्ञान का अध्ययन हमारे तलए अतधकतधक
उपयोिी होिा जा रहा है।
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ु तिश्वतिद्यालय 34
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
1.10 शब्दावली
1.दृतिकोणाः समस्याओ ं और प्रश्नों को देखने के नजररया , उदाहरण; व्यिहारात्मक अथिा
परम्परामल
ू क दृतष्टकोण।
2.प्रामातणकाः कोई आदेश, जो शतक्त और महत्ि का आभास दे और तजसके पालन की सम्भािना
हो।
3.आनभु ातिक, इतां ियानुभातिकाः तनरीक्षण, प्रयोि और अनभु ि पर आधाररि ज्ञान अथिा
अध्ययन।
4.नैतिकाः तसद्धान्ि अथिा व्यिहार; जो उतचि या अनतु चि सम्बन्धी नैतिक तिश्वासों पर आधाररि
तकसी नैतिक पद्धति तिशेष से प्रभातिि हो अथिा पहले के तिश्वासों से पैदा हो।
5.भौतिकिादीाः धन और सासं ाररक िस्िओ ु ं की अत्यतधक इच्छा रखने िाला भौतिकिादी मानिा
है तक धन और िस्िओ
ु ं का स्िातमत्ि ही संसार में सबसे ज्यादा महत्िपणू भ है।
6.नामािलीाः िस्िओ
ु ं का ििीकरण।
7.व्यािहाररकिापरक िास्िििादाः ऐसी तिचारधारा या तचिं न, जो िथ्यों या जीिन के यथाथभ
अनभु िों पर आधाररि होिी है। इसमें हठधतमभिा या आदशभिाद नहीं होिा।
8.नगर राज्याः प्राचीन यनू ान की व्यिस्था, तजसमें राज्य और समाज तमलकर निर-राज्य बनािे हैं।
निर राज्य के िल िैध अथिा काननू ी राज्य ही नहीं होिा था, बतल्क अपने नािररकों के जीिन के
नैतिक, आतथभक, सांस्कृ तिक और सौन्दयभनभु तू ि के पक्षों पर समान रूप से ध्यान देिा था।
9.उग्र पररििगनिादीाः ऐसा व्यतक्त, जो समाज में आमल
ू पररििभन लाना चाहिा हो।
10.पनु ाः प्रििगनिादी, पनु रूज्जीिनिादीाः ऐसा व्यतक्त, जो ठहरे हुए धमभ या सस्ं कृ ति में तफर से नये
जीिन का संचार करके उसे लोकतप्रय बनाना चाहिा हो।
11.प्रभुसत्ता, सम्प्रभुिााः तितधतनमाभण और तनयंत्रण के मामले में सिोच्च शतक्त; आमिौर से राज्य-
शतक्त पर प्रयक्त
ु । दो प्रकार की प्रभसु त्ता- 1. आन्िररक और 2. बाह्य।
12.धमगशास्त्र सम्बन्धीाः धमभ या ईश्वर के अध्ययन से सम्बतन्धि।
13.सािगभौतमकाः ऐसी तिचारधारा या तचिंन, तजसका सम्बन्ध संसार के सारे लोिों से हो।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
14.अनुभि तसद्ध तसद्धान्िाः िथ्यों के अनभु ि, प्रयोि और अिलोकन से तनतमभि तसद्धान्ि।
15.आदशगमल ू काः आदशभ द्वारा प्राप्त एक प्रकार की मनोिृतत्त या एक नीति-सतं हिा, यातन समाज
तिशेष में व्यिहार के तनयम।
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ु तिश्वतिद्यालय 36
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
1.14 तनबांधात्मक प्रश्न
1. परम्परािि राजनीति तिज्ञान का तिषय क्षेत्र क्या है? स्पष्ट कीतजए।
2. परम्परािि दृतष्टकोण को ध्यान में रखिे हुए राजनीति तिज्ञान की प्रकृ ति का तििेचन कीतजए?
3. क्या राजनीति तिज्ञान एक तिज्ञान है अथिा कला? अपने तिचार दीतजए।
4. राजनीति तिज्ञान के अध्ययन की उपयोतििा स्पष्ट कीतजए।
5. परम्परािि राजनीति तिज्ञान की तिशेषिाओ ं का िणभन कीतजए।
6. आधतु नक राजनीति तिज्ञान की पररभाषा एिं क्षेत्र की समीक्षा करें ।
7. परम्परािि एिं आधतु नक राजनीति तिज्ञान में अन्िर बिाइए।
8. आधतु नक राजनीति तिज्ञान की तिशेषिाओ ं को स्पष्ट कीतजए।
9. आधतु नक राजनीति तिज्ञान शतक्त का अध्ययन है, सक्ष
ं ेप में बिाइए।
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2.0 प्रस्तावनाः
राजनीति ने सदा ही सामातजक जीिन में तनणाभयक भतू मका तनभाई है। ििभमान समय में यह भतू मका
लिािार बढ़िी ही जा रही है। िैचाररक स्िर पर भी राजनीति का हमेशा पूिभ और पतिम में खास स्थान
रहा है। प्राचीन यनू ानी ‘निर-राज्यों’ का अध्ययन करने िाला तिषय ‘राजनीति’, आधतु नक यिु में
राष्रीय राज्यों के जन्म लेने से अध्ययन क्षेत्र की दृतष्ट से बदला है, फलिः इसे अब िक अनेक नामों
जैस-े राजनीति, राजनीति दशभन, राजनीतिक तसद्धान्ि, राजनीति तिज्ञान आतद की संज्ञा दी जा चक ु ी
है। ििभमान में हमारे तलए इन नामों के अथभ िथा इनका अन्िर समझना आिश्यक हैं।
2.1उद्देश्य
राजनीति तिज्ञान के लम्बे इतिहास में अनेक नाम और स्िीकार तकए िये है। अिः इस इकाई को पढ़ने
के बाद आपः-
राजनीति तिज्ञान के मानक नाम को लेकर मौजदू तििादों का तनराकरण करने में सक्षम होंिे ।
राजनीतिक दशभन के अथभ को समझ सकें िे .
राजनीतिक तसद्धांि को अच्छी िरह से समझ सकें िे.
राजनीति तिज्ञान, राजनीतिक दशभन और राजनीतिक तसद्धांि के अंिर को जान सकें िे.
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
तसद्धान्ि नाम से पस्ु िक तलखी है। ििभमान राजनीतिशातस्त्रयों लासिैल, डहल, ईस्टन, ि हींजयल
ु ाऊ
ने भी इस तिषय के तलए राजनीति शब्द का ही प्रयोि तकया है।
सर फ्रेडररक पोलक ने भी राजनीति शब्द का प्रयोि इसके तलए तकया है। पोलक ने इस शब्द को
व्यापक अथभ में उपयोि करिे हुए उसे दो भािों में बॉटा है- सैद्धातन्िक राजनीति और व्यािहाररक या
प्रयोिात्मक राजनीति । सैद्धातन्िक राजनीति के अन्ििभि राज्य की उत्पतत्त, प्रकृ ति, लक्षण एिं उद्देश्य
आतद तिषयों का अध्ययन तकया जािा है, जबतक व्यािहाररक राजनीति के अन्ििभि हम राज्यों की
िास्ितिक कायभ प्रणातलयों एिं राजनीतिक संस्थाओ ं के िास्ितिक जीिन का अध्ययन करिे हैं। इस
तिभाजन में हमारे अध्ययन की सम्पणू भ सामग्री आ जािी है। इसीतलए यह तिभाजन बहुि उपयोिी है।
तजस अथभ में प्राचीन तिचारकों ने ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोि तकया था, उसी अथभ में इस संज्ञा का
प्रयोि यतद तकया जाए िो इस शास्त्र के तलए ‘राजनीति’ नाम में कोई आपतत्त नहीं रहेिी। लेतकन आज
राजनीति शब्द का प्रयोि इिने व्यापक अथों में नहीं तकया जािा है।
आज िो ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोि और भी सक ं ु तचि अथों में तकया जाने लिा है। दैतनक जीिन में
घरे लू राजनीति, समहू राजनीति, कॉलेज िथा िॉि की राजनीति की चचाभ होिी है। ‘राजनीति’ का
प्रयोि धोखेबाजी, बेईमानी, झूठ, फरे ब आतद अथों में भी तकया जािा है।
अरस्िू के समय से राजनीति तिज्ञान एक लम्बा रास्िा िय कर चक ु ा है और इसके तलए ‘राजनीति’
शब्द का इस्िेमाल सही नहीं लििा है। यह शब्द अपने नये अथभ में व्यािहाररक पक्ष िक सीतमि है।
आधतु नक अथभ में िह व्यािहाररक ितितितधयों िक सीतमि रह िया है, फलस्िरूप इसमें इस तिषय
के सैद्धातन्िक और नैतिक पक्ष छूट जािे हैं। इसतलए ‘राजनीति’ शब्द इस तिषय का मानक नाम होने
के तलए ठीक नहीं है।
‘राजनीति’ शब्द से आपतत्तयााँ
इस तिषय के नाम को ‘राजनीति’ रखने पर तनम्नतलतखि आपतत्तयॉ आिी हैं, तजनके कारण इसका
नामकरण ‘राजनीति’ नहीं तकया जा सकिा है-
1.अध्ययन क्षेत्र की दृतष्ट से- सर फ्रेडररक पोलक के ििीकरण में राजनीति के सैद्धातन्िक और
व्यािहाररक दोनों पक्ष समा जािे हैं। यतद इस तिस्िृि दृतष्टकोण से सोचा जाए िो यह तिषय राजनीति
नाम से जाना जा सकिा है तकन्िु ििभमान में ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोि व्यापक अथों में न तकया
जाकर संकुतचि अथों में तकया जािा है। आधतु नक लेखकों (जैनेट, सी0 लेतिस िथा अलेक्जेण्डरिेन)
ने ‘राजनीति’ का िात्पयभ प्रयोिात्मक अथिा व्यािहाररक राजनीति से तलया है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
2. राजनीति में शास्त्रीय एकरूपिा की कमी- आजकल ‘राजनीति’ शब्द तकसी राजनीतिक
सस्था, स्थान तिशेष के संदभभ में प्रयक्त
ु तकया जािा है; जैस-े भारि की राजनीति, तदल्ली की राजनीति,
ग्रामीण राजनीति। प्रत्येक देश की राष्रीय और स्थानीय राजनीति तकसी अन्य देश की राष्रीय और
स्थानीय राजनीति से तभन्न होिी है। क्योंतक उनकी पररतस्थतियों में तितभन्निा होिी है। इसतलए
राजनीति के अध्ययन में समानिा नहीं तमलिी। ऐसी तस्थति में शास्त्रीय एकरूपिा के अभाि में इस
तिषय को ‘राजनीति’ नाम नहीं तदया जा सकिा है।
3. िररमारतहि शब्द- आज ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोि इिने भ्रष्ट अथों में होने लिा है तक समस्ि
िलि काम करने और उनमें सफलिा पाने का प्रयास करना भर इसका प्रिीक माना जाने लिा है।
दैतनक जीिन में घरे लू राजनीति, जाति-राजनीति, क्षेत्र-राजनीति, देश-राजनीति, समहू -राजनीति,
अमक ु व्यतक्त की राजनीति, दलिि राजनीति के तलए इसका प्रयोि होिा है। अग्रं ेजी में कहािि है तक,
(राजनीति दष्टु परू
ु ष का अतन्िम आश्रय स्थल है।)
सर अनेस्ट बेन के शब्दों में- “राजनीति तकसी परे शानी को ढूढ़ने, उसे खोज तनकालने, चाहे उसका
अतस्ित्ि हो या न हो, उसका िलि कारण बिाने और उसका िलि हल ढूढ़ तनकालने की कला है.
अिः कहा जा सकिा है तक इस तिषय को ‘राजनीति’ नाम देना तनिान्ि अव्यिहाररक एिं असंिि
होिा।
.तिलक्राइस्ट के शब्दों में कहा जा सकिा है तक, “तििेक िथा प्रचलन के दृतष्टकोण से राजनीति तिज्ञान
ही सिाभतधक उतचि नाम है । सत्य/असत्य
२.अरस्िू ने ‘पातलतटक्स’ को मास्टर साइसं कहा । । सत्य/असत्य
३.अरस्िू ने ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोि सबसे पहले अपनी ‘निरराज्य-’ से सम्बतन्धि पुस्िक के
शीषभक के रूप में तकया । सत्य/असत्य
४.सीले, तिलोबी, िैटल, िानभर आतद भी ‘राजनीति तिज्ञान’ शब्द को ही अतधक उपयक्त
ु मानिे हैं।
सत्य/असत्य
५.सर फ्रेडररक पोलक ने राजनीति शब्द को व्यापक अथभ में उपयोि करिे हुए उसे दो भािों में बॉटा
हैसैद्धातन्िक राजनीति - और व्यािहाररक या प्रयोिात्मक । सत्य/असत्य
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
2.3 राजनीततक तसद्धान्त: अथभ, पतरभाषा ( Political Theory:
Meaning, Definitions)
राजनीतिक तसद्धान्ि के अथभ को समझने के तलए ‘राजनीतिक’ और ‘तसद्धान्ि’ इस दोनों ही शब्दों को
अलि अलि समझने की आिश्यकिा है। पहले ‘तसद्धान्ि’ शब्द को समझने का प्रयास करें िे। तसद्धान्ि
को अंग्रेजी में (Theory) थ्योरी कहिे है जो तक एक ग्रीक शब्द है तजसका संबंध अन्य दो शब्दों (i)
थ्यरू रया (Theoria) (ii) थ्योरमा (Theorema) से है। (i) थ्यरू रया, का अथभ है जो हमारे आस पास
घतटि हो रहा है उसे समझने की तक्रया अथिा प्रतक्रया; इसे ‘सैद्धांतिकरण’ (Theorizing) कहा जािा
है िथा (ii) थ्योरमा, तजसका अथभ है िह तनष्कषभ जो इस ‘सैद्धातं िकरण’ की प्रतक्रया के पररणामस्िरूप
तनकलिे हैं। इन दोनों शब्दों की तितशष्टिा यह है तक ये सैद्धांतिकरण प्रतक्रया (Activity of
Theorizing) िथा इस प्रतक्रया से तनकलने िाले तनष्कषों (Outcome of the activity) में अंिर
करिी है। शब्द सैद्धांतिकरण का संबंध तकसी घटना को समझने का प्रयत्न है। इसका अतभप्राय तकसी
पररणाम अथिा तनष्कषभ को तसद्ध करना अथिा उसे िैध ठहरना नहीं है।
दसू रा शब्द ‘राजनीतिक’ भी ग्रीक भाषा से संबतन्धि शब्द ‘पोतलस’ से तनकला है तजसका अथभ है
निर-राज्य अथाभि तकसी भी समदु ाय के अच्छे जीिन से संबतन्धि सभी पक्षों के तलए तनणभय लेने की
सामतू हक शतक्त। अपने आधतु नक रूप में ‘राजनीतिक’ शब्द राज्य िथा इससे संबतन्धि संस्थाओ ं जैसे
सरकार, तिधानमंडल अथिा सािभजतनक नीति का प्रतितनतधत्ि करिा है।
राजनीतिक तसद्धांि उन मौतलक तिचारों, अिधारणाओ ं और तसद्धांिों का बौतद्धक अन्िेषण है जो
समाज के सिं ठन, कामकाज और शासन को आकार देिे हैं। यह एक अकादतमक अनश ु ासन है जो
राजनीति, सत्ता और अतधकार की जतटल ितिशीलिा को समझने और उसका तिश्लेषण करने का
प्रयास करिा है, तजसका उद्देश्य सरकार की प्रकृ ति, नािररकों के अतधकारों, तजम्मेदाररयों, संसाधनों
और अिसरों के उतचि और न्यायसिं ि तििरण में अंिदृभतष्ट प्रदान करना है।
अपने मल ू में, राजनीतिक तसद्धािं िहन महत्ि के प्रश्नों पर प्रकाश डालिा है, जैसे तक राजनीतिक
प्रातधकरण की उत्पतत्त, व्यतक्तिि स्ििंत्रिा की रक्षा में राज्य की भतू मका, और एक समदु ाय के भीिर
न्याय और समानिा की खोज। आलोचनात्मक अध्ययन के माध्यम से, राजनीतिक तसद्धांिकार उन
अिं तनभतहि दाशभतनक नींि को उजािर करने का प्रयास करिे हैं जो राजनीतिक प्रणातलयों और सस्ं थानों
को रे खांतकि करिे हैं, जो मानिीय मामलों के पाठ्यक्रम को प्रभातिि करिे हैं।
राजनीतिक तसद्धांि की उत्पतत्त प्राचीन सभ्यिाओ ं में देखी जा सकिी है, जहां प्लेटो, अरस्िू और
कन््यतू शयस जैसे तिचारकों ने शासन, नैतिकिा और आदशभ राज्य की प्रकृ ति पर तिचार तकया था।
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परू े इतिहास में, मैतकयािेली के "द तप्रंस", थॉमस हॉब्स के "लेतिथान" और जॉन लॉक के "टू रीटीज़
ऑफ़ ििनभमेंट" जैसे मौतलक कायों ने सामातजक अनबु ंध, मानि स्िभाि और शासकों और शातसिों
के बीच सबं धं ों के बारे में हमारी समझ को आकार तदया है।
समकालीन समय में, िैश्वीकरण, िकनीकी प्रिति और अंिराभष्रीय संबंधों के लिािार बदलिे पररदृश्य
के कारण आने िाली नई चनु ौतियों को अपनािे हुए, राजनीतिक तसद्धांि तिकतसि हो रहा है।
राजनीतिक तसद्धांिकार मानिातधकार और सामातजक न्याय से लेकर पयाभिरणीय नैतिकिा और
समाज पर राजनीतिक तिचारधाराओ ं के प्रभाि िक के तिषयों पर चचाभ करिे हैं।
तितभन्न तिद्वानों ने राजनीतिक तसद्धान्ि की तितभन्न पररभाषाएँ दी। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
एड्रां यू हेकर (Andrew Hacker) के अनसु ार, “ राजनीतिक तसद्धान्ि में ‘िथ्य’ (Fact) और मल्ू य
(Values) दोनों समातहि हैं। िे एक दसू रे के परू क हैं। दसू रे शब्द में हर तसद्धान्ि शास्त्री एक िैज्ञातनक
और ‘दाशभतनक’ है, दोनों की भतू मका तनभािा है। (Every political theoriest worthy of the
name plays double role.. He is part scientist and part philosopher and he will
divide his time between the two pursuits according to his own temperament and
interests.)
जेतमगनो (Germino) के अनसु ार, “ राजनीतिक तसद्धान्ि मानिीय सामातजक अतस्ित्ि की उतचि
व्यिस्था के तसद्धािं ों का आलोचनात्मक अध्ययन है”। (Political Theory is the critical study
of the principles of right order in human social existence.)
ज जग सेबाइन (George Sabine) के अनसु ार “व्यापक िौर पर राजनीतिक तसद्धांि से अतभप्राय
उन सभी बािों से है जो तक राजनीति से संबतन्धि या प्रासंतिक है और संकीणभ दृतष्ट में इसका अथभ
राजनीतिक समस्याओ ं की तितधिि छानबीन से है। (Broadly political theory means ‘as
anything about poitics or relevant to politics’ and narrowly as the disciplined
investigation of political problems.)
2.4 राजनीतिक तसद्धाांिों की तिशेषिाएाँ (Characteristics of Political Theory)
राजनीतिक तसद्धांि राजनीति तिज्ञान के भीिर एक अनुशासन है जो राजनीतिक प्रणातलयों और
व्यिहार को रे खातं कि करने िाले तसद्धािं ों, अिधारणाओ ं और तिचारों को समझने और उनका
तिश्लेषण करने का प्रयास करिा है। इसमें तितभन्न राजनीतिक तिचारों, तिचारधाराओ ं और दशभन का
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व्यितस्थि अध्ययन और परीक्षण शातमल है। यहाँ राजनीतिक तसद्धांि की कुछ प्रमख
ु तिशेषिाएँ दी
िई हैं:
मानक प्रकृति (Normative Nature) : राजनीतिक तसद्धांि अपने दृतष्टकोण में मानक है,
तजसका अथभ है तक यह मल्ू य, नैतिकिा और राजनीतिक प्रणातलयों को आदशभ रूप से कै से कायभ
करना चातहए, के प्रश्नों से संबंतधि है। इसका उद्देश्य न्याय, समानिा, स्ििंत्रिा और अन्य नैतिक
तसद्धांिों को बढ़ािा देने िाली सरकार और नीतियों के सिोत्तम रूपों का मल्ू यांकन और तनधाभरण
करना है।
िैचाररक तिश्ले षण( Conceptual Analysis): राजनीतिक तसद्धांि में शतक्त, अतधकार, िैधिा,
न्याय, स्ििंत्रिा, लोकिंत्र और अतधकारों जैसी मख्ु य राजनीतिक अिधारणाओ ं का िहन अन्िेषण
शातमल है। लक्ष्य राजनीतिक घटनाओ ं के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने के तलए इन अिधारणाओ ं
को स्पष्ट और पररष्कृ ि करना है।
सार और सैद्धाांतिक: राजनीतिक तसद्धांि अनभु िजन्य डेटा के बजाय अमिू भ और सैद्धांतिक
तिचारों से सबं तं धि है। यह राजनीतिक घटनाओ ं को समझने के तलए सामान्य तसद्धािं और रूपरे खा
स्थातपि करना चाहिा है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
अांिाःतिषय दृतिकोण: राजनीतिक तसद्धांि अक्सर अपने तिश्ले षण को समृद्ध करने के तलए दशभन,
इतिहास, समाजशास्त्र, अथभशास्त्र और अन्य क्षेत्रों से अंिदृभतष्ट प्राप्त करिे हुए एक अंिःतिषय
दृतष्टकोण अपनािा है।
राजनीति का क्षेत्र उिना ही व्यापक है तजिनी की मनष्ु य की ितितितधयां। जीिन का कोई भी क्षेत्र या
पहलू ऐसा नहीं जो राजनीति से अछूिा हो । उदारिातदयों ने राजनीति का ररश्िा के िल सरकार और
नािररकों िक ही सीतमि रखा जबतक माक्सभिातदयों ने उत्पादन के साधनों पर भी सरकार का ही
स्िातमत्ि माना है। नारीिादी पाररिाररक और घरे लू मामलों में भी राजी के हस्िक्षेप की िकालि
करिे हैं। इस आधार पर देखा जा सकिा है तक राजनीति तिज्ञान का कायभक्षेत्र काफी व्यापक है।
तनम्नतलतखि तिषयों को राजनीतिक तसद्धान्ि के कायभक्षेत्र में सतम्मतलि तकया जा सकिा है:
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4. मानिीय व्यिहार का अध्ययन: राजनीतिक तसद्धांि मानिा है तक राजनीति मल ू िः
मानिीय व्यिहार और अंिःतक्रयाओ ं से संचातलि होिी है। इस प्रकार, यह पिा
लिािा है तक व्यतक्त और समहू राजनीतिक सदं भों में कै से व्यिहार करिे हैं, िे कै से
राय बनािे हैं, तनणभय लेिे हैं और राजनीतिक प्रतक्रया में भाि लेिे हैं। मानि व्यिहार
को समझने से राजनीतिक तसद्धांिकारों को मिदान पैटनभ, जनिा की राय और
राजनीतिक आदं ोलनों और सामातजक पररििभन की ितिशीलिा का तिश्ले षण करने में
मदद तमलिी है।
5. नीति तनमागण प्रतिया का अध्ययन: राजनीतिक तसद्धािं नीति-तनमाभण की प्रतक्रया
की जांच करिा है, तजसमें सरकारी नीतियों का तनमाभण, कायाभन्ियन और मल्ू यांकन
शातमल है। यह समझने का प्रयास करिा है तक नीतियां कै से तिकतसि की जािी हैं,
नीतििि तनणभयों को प्रभातिि करने िाले कारक और समाज पर नीतियों का प्रभाि
क्या है। राजनीतिक तसद्धांिकार तितभन्न नीति दृतष्टकोणों की प्रभािशीलिा का
आकलन कर सकिे हैं और सािभजतनक नीतियों के मूल्यांकन और सधु ार के तलए
मानक ढांचे की पेशकश कर सकिे हैं।
6. अांिराष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन : राजनीतिक तसद्धांि अपना दायरा अंिरराष्रीय
सबं धं ों के अध्ययन िक बढ़ािा है, जो राष्र-राज्यों, िैर-राज्य अतभनेिाओ ं और
अंिरराष्रीय संिठनों के बीच बािचीि की जांच करिा है। राजनीतिक तसद्धांिकार
कूटनीति, यद्ध ु और शांति, िैतश्वक शासन, अंिराभष्रीय काननू और देशों के बीच शतक्त
और प्रभाि की ितिशीलिा जैसे तिषयों का तिश्ले षण करिे हैं। िे अिं राभष्रीय प्रणाली
की प्रकृ ति और िैतश्वक क्षेत्र में राज्यों की भतू मका पर तितभन्न तसद्धांिों और दृतष्टकोणों
का पिा लिािे हैं।
7. क्षेत्रीय सहयोग सांगठनों का अध्ययन : राजनीतिक तसद्धांि में क्षेत्रीय सहयोि
संिठनों का अध्ययन शातमल है, जो सहयोि को बढ़ािा देने और आम चनु ौतियों का
समाधान करने के तलए एक तिशेष भौिोतलक क्षेत्र के देशों द्वारा ितठि सस्ं थान हैं। इन
संिठनों के राजनीतिक, आतथभक, सरु क्षा या सामातजक उद्देश्य हो सकिे हैं। राजनीतिक
तसद्धांिकार क्षेत्रीय और िैतश्वक मामलों पर उनके िठन, कामकाज और प्रभाि के
साथ-साथ क्षेत्रीय ितिशीलिा को आकार देने में उनकी भतू मका की जांच करिे हैं।
8. नारीिाद का अध्ययन: राजनीतिक तसद्धांि के दायरे में, नारीिाद अध्ययन का एक
महत्िपणू भ क्षेत्र है। नारीिादी राजनीतिक तसद्धािं राजनीति और समाज में तलंि की
भतू मका की आलोचनात्मक जांच करिा है। यह तिश्ले षण करिा है तक तलंि कै से सत्ता
संरचनाओ,ं राजनीतिक भािीदारी और नीति पररणामों को आकार देिा है। नारीिादी
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
राजनीतिक तसद्धांिकार लैंतिक समानिा और सामातजक न्याय को बढ़ािा देने के
लक्ष्य के साथ तलंि आधाररि असमानिाओ,ं भेदभाि और तपिृसत्ता को समझने और
चनु ौिी देने का प्रयास करिे हैं।
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1.तिद्वानों का िकभ है तक राजनीति तिज्ञान की प्रकृ ति सैद्धातन्िक, दाशभतनक एिं व्यािहाररक है। इसके
अन्ििभि हम राज्य की उत्पतत्त, तिकास, प्रकृ ति, उद्देश्य, व्यतक्तयों के अतधकार िथा कत्तभव्य एिं
राजनीतिक धारणाओ ं का अध्ययन करिे हैं। राज्य सम्बन्धी अध्ययन का मख्ु य भाि ये तसद्धान्ि ही हैं,
इसीतलए इसे ‘राजनीतिक दशभन’ कहना उतचि होिा।
2.राजनीतिक दशभन राजनीति तिज्ञान का पिू भिामी है। इसके अतधकांश तसद्धान्ि राजनीतिक दशभन से
ही तलये िये हैं। तिलक्राइस्ट के शब्दों में, “राजनीतिक दशभन एक दृतष्ट से राजनीति तिज्ञान का पिू भिामी
है क्योंतक प्रथम (राजनीतिक दशभन) की मौतलक मान्यिाओ ं पर ही तद्विीय (राजनीतिक तिज्ञान)
आधाररि है। साथ ही राजनीतिक दशभन को भी स्ियं बहुि-सी ऐसी सामग्री का प्रयोि करना पड़िा है
जो उसे राजनीति तिज्ञान से प्राप्त होिी है।“
3.‘दशभन’ एक प्रतितष्ठि शब्द है। िह तिषय, जो स्थानीय िथा शाश्वि महत्ि के तिषयों से सम्बतन्धि
है, उसे ‘राजनीतिक दशभन’ जैसा सम्मानजनक नाम ही तदया जाना चातहए।
नामकरण पर आपतत्तयॉ
तिद्वानों द्वारा इस नामकरण के संदभभ में तनम्नांतकि आपतत्तयॉ प्रस्ििु की ियी हैं-
1.अध्ययन क्षेत्र की दृतष्ट से- ‘राजनीतिक दशभन’ के अन्ििभि तिषय का सम्पणू भ सैद्धातन्िक अध्ययन
ही आिा है, व्यािहाररक राजनीति का अध्ययन नहीं आिा, जबतक सैद्धातन्िक राजनीति के साथ
व्यािहाररक राजनीति का अध्ययन भी समान रूप से महत्िपणू भ है। जे0एल0 हैलोिेल के अनसु ार,
“राजनीतिक दशभन का सम्बन्ध राजनीतिक संस्थाओ ं में तनतहि तिचारों और आकांक्षाओ ं से है। इस
कारण राजनीतिक दशभन तिषय का अपणू भ अध्ययन ही है।“
2.प्रकृ ति की दृतष्ट से- ‘राजनीतिक दशभन’ शब्द के प्रयोि से ऐसा लििा है जैसे यह तिषय एक कला
ही है तिज्ञान नहीं। अिः ‘राजनीतिक दशभन’ शब्द तिषय की प्रकृ ति के अनक ु ू ल नहीं हैं।
3.‘दशभन’ शब्द अतनतिििाओ ं और अिास्ितिकिाओ ं का प्रिीक- आधतु नक यिु में ‘दशभन’ शब्द
अतनतिििाओ ं और अिास्ितिकिाओ ं का प्रिीक बन िया है। ‘राजनीतिक दशभन’ शब्द के प्रयोि से
यह आशय यह होिा तक इस तिषय में राज्य की समस्याओ ं पर कल्पना के आधार पर तिचार तकया
जािा है जो िास्ितिकिा से दरू रहिी हैं।
राजनीतिक दशभन मुख्य रूप से आदशभ मूलक ष्छििउंजपअमष् होिा है, जो क्या अच्छा है यह सझु ािा
है और क्या होना चातहए सम्बन्धी प्रश्नों पर ध्यान देिा है। इसके तिपरीि राजनीति तिज्ञान राजनीतिक
घटनाओ ं को समझने की कोतशश करिा है, िातक इसके आधार पर सामान्य तनयम बन सकें । यह
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औपचाररक ररश्िों की खोज करने की कोतशश करिा है। इस नजररये में, दशभन के तिपरीि, राजनीति
तिज्ञान ‘क्या होना चातहए’ की अपेक्षा, क्या है, से अतधक सम्बन्ध रखिा है। कुल तमलाकर,
राजनीतिक दशभन आधारभिू सैद्धातन्िम और दाशभतनक तसद्धान्िों पर बल देिा है और राजनीतिक
तिश्ले षण के व्यािहाररक और कायभप्रणाली सम्बन्धी पक्षों को अछूिा छोड़ देिा है। यही कारण है तक
‘राजनीतिक दशभन’ शब्द को भी इस तिषय के मानक नाम के रूप में स्िीकार नहीं तकया जा सकिा।
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सर फ्रेडररक पोलक ने भी राजनीति शब्द का प्रयोि इसके तलए तकया है। पोलक ने इस शब्द को
व्यापक अथभ में उपयोि करिे हुए उसे दो भािों में बॉटा है- सैद्धातन्िक राजनीति और व्यािहाररक या
प्रयोिात्मक ।
सीले, तिलोबी, िैटल, िानभर आतद भी ‘राजनीति तिज्ञान’ शब्द को ही अतधक उपयक्त
ु मानिे हैं।
सन् 1948 में यनू ेस्को के ित्िाधान में हुए एक सम्मेलन में राजनीति तिज्ञातनयों ने ‘राजनीति तिज्ञान’
शब्द को ही अतधक उपयक्त ु ठहराया था।
अभ्यास प्रश्न
१.तिलक्राइस्ट के शब्दों में कहा जा सकिा है तक, “तििेक िथा प्रचलन के दृतष्टकोण से राजनीति
तिज्ञान ही सिाभतधक उतचि नाम है । सत्य/असत्य
२.अरस्िू ने ‘पातलतटक्स’ को मास्टर साइसं कहा । । सत्य/असत्य
३.अरस्िू ने ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोि सबसे पहले अपनी ‘निरराज्य-’ से सम्बतन्धि पस्ु िक के
शीषभक के रूप में तकया । सत्य/असत्य
४.सीले, तिलोबी, िैटल, िानभर आतद भी ‘राजनीति तिज्ञान’ शब्द को ही अतधक उपयक्त
ु मानिे हैं।
सत्य/असत्य
५.सर फ्रेडररक पोलक ने राजनीति शब्द को व्यापक अथभ में उपयोि करिे हुए उसे दो भािों में बॉटा
हैसैद्धातन्िक राजनीति - और व्यािहाररक या प्रयोिात्मक । सत्य/असत्य
2.9 साराांशः
अभी हाल के िषों िक राजनीति के अध्ययन के तलए एक मानक नामािली पर आमराय नहीं बन
पायी। इस शास्त्र के लम्बे इतिहास में अनेक नाम सझु ाए िए और स्िीकार तकये िये हैं, तकन्िु उनके
तििेचन में यहीं निीजा तनकलिा है तक इसके तलए ‘राजनीति तिज्ञान’ शब्द ही सबसे सही है और
यही नाम सामान्य रूप से स्िीकृ ि/मान्य हो चक
ु ा है।
2.10 शब्दावली
प्रातधकार - तकसी तिशेष सदं भभ में शासन करने या तनणभय लेने की िैध शतक्त,
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न्याय- ससं ाधनों और दण्ड के तििरण में तनष्पक्षिा,
स्िित्रं िा - दमनकारी प्रतिबधं ों या तनयत्रं ण से मतु क्त।
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3.0 प्रस्तावना
मानि एक ऐसा सतं श्लष्ट ; जीि है जो एक साथ अनेक भतू मकाओ ं का तनिभहन करिा है। सामातजक
प्राणी होने के नािे िह पररिार, जाति, धमभ, िॉि, शहर और राजनीतिक संिठनों के सदस्य के रूप में
भतू मका तनभािा है। उसके जीिन के तितिध पक्षों सामातजक, आतथभक, राजनीतिक, मनोिैज्ञातनक,
नैतिक ऐतिहातसक आतद का तितभन्न समाज तिज्ञानों द्वारा अध्ययन तकया जािा है। मानिीय जीिन
के तितिध पक्षों, ितितितधयों को स्पष्ट करने के तलए सभी सामातजक तिज्ञानों की परू क भतू मका होिी
है। इसतलए, मानि और समाज के मल ू ित्ि को समझने के तलए तकसी तितशष्ट सामातजक तिज्ञान की
सीमाओ ं का अतिक्रमण करना ही पड़िा है।
बीसिं ी शिाब्दी के उत्तराधभ में सामातजक तिज्ञानों के बीच के अिं ःसम्बन्धों पर अतधक ध्यान तदया
जाने लिा है और तिज्ञानों के अध्ययन हेिु एक नई पद्धति अन्िर अनश ु ासनात्मक अध्ययन पद्धति
अतस्ित्ि में आई है। इसके द्वारा एक तिशेष समाज सम्बन्धी तिषय का अध्ययन करने िाले तिद्वान
अन्य तिषयों का अध्ययन करने िाले तिद्वानों से समन्िय बनाये रखिे हैं। अब तिद्वानों ने इस िथ्य को
भली-भांति समझ तलया है तक तितभन्न समाज तिज्ञानों का पृथक-पृथक अध्ययन लाभदायी नहीं हो
सकिा क्योंतक सम्पणू भ समाज एक सत्रू में बधं ा हुआ है और समाज से सम्बतन्धि तितिध पहलू भी
परस्पर एक-दसू रे से घतनष्ठ रूप से सम्बतन्धि हैं। अिः उनका पृथक-पृथक अध्ययन तकया जा सकना
सम्भि नहीं है। तितभन्न समाज तिज्ञानों के क्षेत्र में व्यिहारिार के उदय के पिाि् यह िथ्य और भी
अतधक उभरकर सामने आ िया है तक सभी समाज तिज्ञानों का अध्ययन अन्िर-अनश ु ासनात्मक
पद्धति से तकया जाना चातहए। इसी स्िाभातिक क्रम में, राजनीति तिज्ञान ने भी इस प्रतक्रया में भाि
तलया है। फलिः राजनीति तिज्ञान के तिद्वानों का मानना है तक मनष्ु य के राजनीतिक व्यिहार का
अध्ययन करने के तलए राजनीति तिज्ञान का अध्ययन अन्िर-अनश ु ासनात्मक पद्धति से करना पड़ेिा
क्योंतक मनष्ु य समाज में रहकर जो व्यिहार करिा है, उसकी पृष्ठभतू म में मात्र राजनीतिक कारण नहीं
होिे िरन् उसके पीछे सामातजक, आतथभक, धातमभक, मनोिैज्ञातनक कारण भी होिे है। डॉ0 िानभर के
शब्दों में, “हम दसू रे समाज तिज्ञानों का यथाथभ ज्ञान प्राप्त तकये तबना राजनीति तिज्ञान एिं राज्य का
पणू भ ज्ञान ठीक उसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकिे, तजस प्रकार ितणि के तबना यत्रं तिज्ञान और
रसायनशास्त्र के तबना जीि तिज्ञान का यथािि् ज्ञान प्राप्त नहीं तकया जा सकिा है।
3.1 उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपः-
राजनीति तिज्ञान और दशभनशास्त्र के बीच सम्बन्ध को समझ सकें िे.
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
राजनीति तिज्ञान और समाजशास्त्र के बीच सम्बन्ध को समझ सकें िे.
राजनीति तिज्ञान और इतिहास के बीच सम्बन्ध को समझ सकें िे.
राजनीति तिज्ञान और अथभशास्त्र के बीच सम्बन्ध को समझ सकें िे.
राजनीति तिज्ञान और मनोतिज्ञान के बीच सम्बन्ध को समझ सकें िे.
राजनीति तिज्ञान और भिू ोल के बीच सम्बन्ध को समझ सकें िे.
और अिं िःयह समझ सकें िे तकसमाज के तितभन्न पक्षों से सम्बन्ध रखने िाले तिषयों में तकस प्रकार
से सम्बन्ध है.
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तििेचन मनोतिज्ञान का आश्रय लेकर तकया िया था। इन पुस्िकों ने इस तिचारधारा की भी पतु ष्ट की
तक मनष्ु य का राजनीतिक व्यिहार उसके सामातजक, आतथभक ि मनोिैज्ञातनक व्यिहार से अतनिायभिः
प्रभातिि होिा है और उन्हें प्रभातिि करिा है। इसी प्रकार तकसी समाज की राजनीतिक व्यिस्था
उसकी सामातजक, आतथभक, नैतिक आतद व्यिस्थाओ ं से अतनिायभिः प्रभातिि होिी है और उन्हें
प्रभातिि करिी है। इसीतलए राजनीति तिज्ञान में व्यिहारिादी क्रातन्ि के प्रणेिाओ ं ने मानि व्यिहार
के अध्ययन के तलए ‘अन्िर अनश ु ासनात्मक’ दृतष्टकोण अपनाने पर बल तदया। इस प्रतक्रया के
फलस्िरूप राजनीति तिज्ञान का अन्य समाज तिज्ञानों से सम्बन्ध और अतधक घतनष्ठ हो िया है।
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करिा है। इसके अन्ििभि राजनीतिक, सामातजक, आतथभक, धातमभक इत्यातद सभी पहलू आ जािे हैं।
अिएि कहा जा सकिा है तक समाजशास्त्र सभी समाज तिज्ञानों का जनक है। राजनीति तिज्ञान और
समाजशास्त्र एक-दसू रे के परू क हैं। यह तनम्न प्रकार स्पष्ट होिा हैः-
1.राजनीति तिज्ञान, समाजशास्त्रीय ित्िों से बधा हुआ हैः- समाजशास्त्र मानि जीिन के िंशीय,
जातििि, धातमभक और राजनीतिक पहलओ ु ं की तििेचना करिा है इसीतलए राजनीति तिज्ञान,
समाजशास्त्र की उपेक्षा नहीं कर सकिा। राज्य अथिा सरकार का समाजशास्त्र से पृथक कोई अतस्ित्ि
नहीं है। समाजशास्त्र यह बिािा है तक राज्य सस्ं था का तिकास मानि की कुछ नैसतिभक प्रिृतत्तयों का
पररणाम है। इन प्रिृतत्तयों को बल मख्ु यिः इन ित्िों से तमला है- रक्त सम्बन्ध, धातमभक तिश्वासों की
एकिा, आतथभक आिश्यकिएं िथा यद्ध ु और तिजय। समाजशास्त्र के अध्ययन से यह भी पिा चलिा
है तक प्रारम्भ में राज्यों का स्िरूप अत्यन्ि सरल था तकन्िु धीरे -धीरे उनके स्िरूप और कायभ क्षेत्र में
िृतद्ध होिी चली ियी। एडम तस्मथ और कालभ माक्सभ ने सामातजक संरचना को अपने अध्ययन का
आधार बनाया था। आधतु नक यिु में ररचडभ टॉनी, मैक्स िेबर(1364-1920), राबटो तमशेल्स(1376-
1936), तिल्फ्रैडो पैरेटो(1348-1923) और इमील दख ु ीम(1358-1919),मोस्का, कालभमैनहाइम
लासिैल और डेतिड ईस्टन ने राजनीतिक संस्थाओ ं के अध्ययन के तलए समाजशास्त्र की तिषय-िस्िु
का सफलिा पिू भक उपयोि तकया है। उन्होंने तिस्िारपिू भक यह समझाया है तक ‘धमभ’ का पँजू ीिाद से
क्या सम्बन्ध है, मजदरू ििभ राजनीति को तकस प्रकार प्रभातिि करिा है, शतक्त का राजनीति से क्या
सम्बन्ध है िथा समाज की संरचना मिदान को तकस प्रकार प्रभातिि करिी है। उदाहरणाथभ, शहरी
मिदािाओ ं के आचरण को समझने के तलए हमें मुख्य रूप से इन बािों को जानना होिा- शहरीकरण
से उत्पन्न समस्याएँ, तशतक्षि बेरोजिारी, श्रतमक संख्या में हो रही िृतद्ध िथा पानी, तबजली, स्िास्थ्य
ि तशक्षा सम्बन्धी सतु िधाएँ। इसी प्रकार ग्रामीण राजनीति को जािीय और धातमभक तितभन्निाओ ं िथा
कृ तष-भतू म के स्िातमत्ि के सन्दभभ में अतधक अच्छी िरह समझा जा सकिा है।
2.सामातजक सन्िल ु न एिं सामंजस्य लाने में समाजशास्त्र की भतू मकाः- समाजशास्त्र के आधार पर
सामातजक संघषों को समझने में सहायिा तमलिी है। फलस्िरूप राज्य इस िरह की नीतियॉ तनधाभररि
कर सकिा है तजससे सामातजक न्याय लाने में सहायिा तमले और समाज में सन्िल ु न ि सामजं स्य
स्थातपि हो सके । सभी देशों और तिशेषकर भारि में जहॉ तभन्न-तभन्न धमों और जातियों के लोि
तनिास करिे हैं, राजनीतिज्ञों के सामने एक बड़ा प्रश्न राष्रीय एकिा को पष्टु करने का उठिा है। इस
दृतष्ट से समाजशातस्त्रयों द्वारा प्रस्ििु आँकड़े हमारा पयाभप्त मािभदशभन कर सकिे हैं।
3.सािभजतनक तनणभयों को प्रभािी बनाने में समाजशास्त्र की भतू मकाः-राजनीति तिज्ञान का एक कृ त्य
सािभजतनक तनणभयों िक पहुचना है। ये तनणभय िभी प्रभािशाली हो सकिे हैं जब सम्बतन्धि समहू ों की
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सामातजक प्रेरणाओ ं को ध्यान में रखा जाए। तकसी भी सामातजक कायभिाही का सम्भातिि प्रत्यत्तु र
क्या होिा और उसकी सफलिा की तकिनी सम्भािनाएँ हैं- यह तनतिि करने के तलए लोिों की मल्ू य-
परम्पराओ,ं अतभिृतत्तयों, स्िभाि, मान्यिाओ ं और पिू ाभग्रहों की जानकारी जरूरी होिी है। इस प्रयत्न
में समाज तिज्ञान तिशेष रूप से सहायक तसद्ध होिा हैं। देखा जाए िो आज का राजनीति तिज्ञान
औपचाररक प्रतक्रयाओ ं और संस्थाओ ं के अध्ययन से आिे बढ़कर अनौपचाररक संिठनों और
प्रतक्रयाओ ं को समझने के तलए ित्पर है और इसके तलए समाज तिज्ञान का सहारा लेना जरूरी हो
जािा है।
4.राजनीतिक तिश्ले षण और राजनीतिक संस्थाओ ं का समाजशास्त्र पर प्रभािः- राजनीतिक तिश्लेषण
और तितभन्न राजनीतिक संस्थाओ ं के अध्ययन से समाजशास्त्र को काफी मदद तमली है। जैसे समाज
के सन्दभभ में राज्य ने तनरन्िर समाज िैज्ञातनक तिश्ले षण की तितधयों को तनयतं त्रि तकया है। समाज
तिज्ञानी शासन को उच्चिम सामातजक संस्था के रूप में मान्यिा देिे हैं, क्योंतक शासन में समाज को
तदशा देने और सामातजक व्यिहार को तनयतमि करने की क्षमिा होिी है। आजकल िो राज्य का
कायभ-क्षेत्र बहुि अतधक व्यापक हो िया है। तििाह, सम्पतत्त िथा पाररिाररक व्यिस्था, तजनका
समाजशास्त्र से बहुि तनकट का सम्बन्ध है, राज्य द्वारा तनयतमि होने लिे हैं। उदाहरणाथभ- पररिार
तनयोजन और दहेज सम्बन्धी सरकारी नीतियों ने भारिीय पररिार और तििाह प्रथा को काफी सीमा
िक प्रभातिि तकया है।
तनःसन्देह राजनीति तिज्ञान और समाजशास्त्र में राजनीतिक समाज तिज्ञान का उद्भि हुआ है तजसने
राजनीतिक व्यिस्था, राजनीतिक तिकास, राजनीतिक आधतु नकीकरण और राजनीतिक संस्कृ ति के
रूप में सक
ं ल्पनात्मक ढाँचों के िौर पर राजनीति तिज्ञान के क्षेत्र में अभिू पिू भ योिदान तकया है।
परन्िु राजनीति तिज्ञान और समाज तिज्ञान के बीच के कुछ महत्िपणू भ अन्िर भी है, तजन्हे ध्यान में
रखना आिश्यक है।
1.समाजशास्त्र का क्षेत्र राजनीति तिज्ञान की अपेक्षा बहुि अतधक तिस्िृि है। समाजशास्त्र सामातजक
जीिन के तितभन्न पहलओ ु ं का अध्ययन करिा है तकन्िु राजनीति तिज्ञान का सम्बन्ध के िल राज्य,
सरकार और राजनीतिक सस्ं थाओ ं से ही है। सामातजक परम्पराओ,ं धातमभक तिश्वासों िथा सास्ं कृ तिक
ितितितधयों का समाजशास्त्र से बहुि घतनष्ठ सम्बन्ध है तकन्िु राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि हम इन
तिषयों का तिस्िृि अध्ययन नहीं करिे।
2.राज्य-सस्ं था के उदय से पिू भ भी समाज तिद्यमान था और राज्य की स्थापना से पिू भ ही मनष्ु यों ने
अनेक प्रकार के सामातजक सम्बन्ध एिं सामातजक बन्धन उत्पन्न कर तलये थे। समाजशास्त्र इन
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सम्बन्धों िथा आतदम मनष्ु यों के रीति-ररिाजों ि परम्पराओ ं की तिस्िार से तििेचना करिा है तकन्िु
राजनीति तिज्ञान के अध्ययन का क्षेत्र इनसे सिभथा तभन्न है।
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प्राचीनकाल में सरकारों का स्िरूप क्या था और आज के दौर में क्या है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर
इतिहास के माध्यम से ही प्राप्त तकया जािा है। िानभर ने कहा है है तक, “इतिहास हमें ऐसी सामग्री प्रदान
करिा है तजसके द्वारा हम राजनीतिक सस्ं थाओ ं के तििि िथा ििभमान स्िरूपों की ‘िल ु ना’ कर सकिे
हैं और इस िलु ना के आधार पर कुछ तनष्कषभ तनकाल सकिे है।“
2.इतिहास राजनीति तिज्ञान के भािी आदशों िथा तसद्धान्िों को तनधाभररि करिा हैः- इतिहास मानि
की सफलिाओ ं का संग्रह िो है ही, साथ ही उसकी तिफलिाओ ं की भी जानकारी देिा है। यहॉ यह
कहा जा सकिा है तक इतिहास राजनीति तिज्ञान का तशक्षक है। अिीि में शासकों द्वारा जो नीतियॉ
अपनाई िई उसका क्या पररणाम रहा। कहीं अकबर की नीति की सफलिा िो कहीं दसू री ओर
औरंिजेब की धातमभक नीति की असफलिा रानजीतिज्ञों को तशक्षा देिी हैं तक लौतकक राज्य की
सफलिा तनतिि है। जबतक धातमभक कट्टरिा का दौर अतधक चलने िाला नही। यही कारण है तक
इतिहास में जो अिीि की घटनाओ ं का तजक्र है उस पर राजनीतिज्ञ सिकभ रहिे है। यही कारण है तक
धातमभक अत्याचारों से समाज में उत्पन्न सकं टों को ध्यान में रखकर ही राजनीतिक तिज्ञातनयों द्वारा धमभ
तनरपेक्ष राज्य के तसद्धान्ि को जोर सोर से ििभमान में प्रसाररि तकया िया है। इसी प्रकार इतिहास ने
बिाया है तक तजन देशों में नािररक सरकारें कुशल ि सक्षम नहीं होिीं, तजन देशों में िरीबी तमटाने के
प्रयास नहीं तकये िये हैं, िहॉ बढ़िी हुई िरीबी और सामातजक अत्याचार ने लोकित्रं ीय सस्ं थाओ ं का
जीिन खिरे में डाल तदया है। इतिहास की इस तशक्षा की ओर यतद राजनीतिक नेिाओ ं ने ध्यान नहीं
तदया िो लोकिंत्र का ढाँचा लड़खड़ा कर टूट जायेिा। यहॉ इतिहास की कुछ ऐसी तशक्षाओ ं का
उल्लेख आिश्यक हो जािा है, जो राजनीति तिज्ञान के तसद्धान्िों को तनरूतपि करने में सजििा का
संदशे देिी हैः-
१. तनरंकुश राजिंत्र एक अतभशाप है।
२. सप्रु तसद्ध तिद्वान हरदयाल के शब्दों में, “साम्राज्यिाद के कारण तजन देशों की स्ििंत्रिा तछन
जािी है, उनका िो अधःपिन होिा ही है, स्ियं साम्राज्यिादी देशों के तलए भी साम्राज्य-नीति तहिकर
नहीं है।“ आधतु नक साम्राज्यिादी शतक्तयों को एतशया ि अफ्रीका के मतु क्त-आन्दोलनों से तशक्षा ग्रहण
करनी चातहए, िातक संसार को व्यथभ के रक्तपाि से बचाया जा सके ।
३. तजन देशों में नािररक सरकारें कुशल ि सक्षम नहीं होिीं, उन देशों की राजनीति में सैतनक
हस्िक्षेप की सम्भािना बढ़ जािी हैं।
४. यतद समाज के तकन्ही ििों को यत्नपिू भक ‘राजनीतिक सत्ता’ से िंतचि रखा जािा है िो ये
ििभ तहसं क साधनों से सत्ता हतथयाने का प्रयत्न करिे हैं।
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3.इतिहास भिू , ििभमान िथा भतिष्य िीनों के बीच एक सत्रू स्थातपि करिा हैः- इतिहास भूि, ििभमान
िथा भतिष्य िीनों के बीच एक सत्रू स्थातपि करिा है िथा राजनीतिक िैज्ञातनकों के तिचार तक्षतिज
को तिस्िृि बनाने का काम करिा है। राजनीतिक तिचारों और राजनीतिक दशभन को इतिहास की
संरचना में तछपी प्राचीन परम्पराओ ं के साथ बहुि अच्छी िरह समझा जा सकिा है। राजनीतिक तिचारों
का इतिहास ही हमें रोजमरे की राजनीतिक ितितितधयों के ‘मापदडं ’ या ‘उपाय’ प्रदान करिा है। जब
कभी राजनीतिक सत्ता का प्रश्न आएिा, मैतक्यिेली को नहीं भल ु ाया जा सके िा, यतद मानि और
समाज के बीच अन्योन्यातश्रि ‘सम्बन्ध’ की बाि उठे िी िो हॉब्स, लॉक और रूसो की उपेक्षा नहीं
की जा सके िी; जब कभी समाज की तिषमिाओ ं और भौतिक आिश्यकिाओ ं का सिाल आएिा,
कालभ माक्सभ के योिदान को भुलाया नहीं जा सके िा। आज की ििभमान व्यिस्था को तनतिि रूप से
प्रभातिि करने िाले ऐसे ऐतिहातसक व्यतक्तयों के और भी बहुि से उदाहरण तदये जा सकिे हैं। अमल
रे और मोतहि भट्टाचायभ के शब्दों में कहा जा सकिा है तक, “... हमें इतिहास बोध करािा है-
ऐतिहातसक पररदृश्य प्रदान करिा है। यह हमें तसखािा है तक घटनाएँ अपने आप में मात्र घटनाएँ नहीं
होिीं, बतल्क िे अनंि क्रम की कतड़यॉ होिी है।“ इतिहास कई तिकल्प प्रस्ििु करिा है और राजनीति
उनमें से सबसे सही तिकल्प का चनु ाि कर लेिी है। इसी अथभ में, आनभु तिक तिश्ले षण के तलए भी,
इतिहास एक भव्य तिश्ले षणात्मक पृष्ठभतू म प्रदान करिा है। इसतलए ििभमान प्रिृतत्तयों और सम्बद्ध
तिषयों के तििेचन के तलए तितभन्न समाजों का ऐतिहातसक लेखा-जोखा तलया जािा है। यही भतिष्य
कालीन प्रिृतत्तयों हेिु भी प्रयक्त
ु होिा है।
इतिहास भी अपनी िरह से राजनीति और राजनीतिक तिश्लेषण का ऋणी है। इतिहास लेखन में
राजनीतिक तिषय और संकल्पनात्मक ढाँचे इतिहासकार को काफी प्रभातिि करिे हैं। िभी सीले
तलखिा है तक, “इतिहास की तशक्षा के आधार पर राजनीतिक सस्ं थाओ ं के स्िरूप को सधु ारने या
पररष्कृ ि करने का प्रयास तकया जाना चातहए, िहीं िह यह भी कहिा है तक इतिहास से यतद राजनीतिक
घटनाओ ं को तनकाल तदया जाये िो िह के िल सातहत्य जिि की िस्िु बनकर रह जािा है? जैसे
सामन्ििाद, राज्य के दैिी तसद्धान्ि िथा राजा और धमभसंघों के संघषभ का अध्ययन तकये तबना मध्ययिु
के इतिहास का हमारा ज्ञान अपणू भ रह जायेिा। इसी प्रकार यतद हम साम्राज्यिाद, राष्रीयिा,
लोकित्रं िाद और तितभन्न देशों के मतु क्त आन्दोलनों का अध्ययन न करें िो आधतु नक यिु का इतिहास
हमें तनष्प्राण प्रिीि होिा। बीसिीं सदी के भारि के इतिहास का अध्ययन करने के तलए यह आिश्यक
है तक हम तिश्व शासन िंत्र इतण्डयन नेशनल कांग्रेस, मतु स्लम लीि, साम्प्रदातयक राजनीति िथा
भारिीय साम्यिादी दल के कायों, सन् 1919 िथा सन् 1935 के भारि शासन अतधतनयमों, राष्रिादी
नेिाओ ं के चमत्कारी नेित्ृ ि, राजनीतिक आन्दोलनों, दल-बदल की राजनीति, क्षेत्रीय राजनीतिक
ितितितधयों और अन्य अनेक राजनीतिक घटनाओ ं का समतु चि अध्ययन करें । इन राजनीतिक
घटनाओ ं और राजनीतिक तिचारधाओ ं ने इतिहास की िति को समय-समय पर नया मोड़ तदया है।
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तनष्कषभ स्िरूप कहा जा सकिा है तक राजनीति तिज्ञान एिं इतिहास कभी-कभी दोनों एक-दसू रे के
परू क हो जािे हैं, लेतकन ज्यादािर ये दोनों दो स्िायत्त हैं। राजनीति तिज्ञान और इतिहास के परस्पर
घतनष्ठिा को प्रकट करिे समय यह ध्यान रखना जरूरी है तक ििभमान और भतिष्य की समस्याओ ं पर
के िल भिू काल के पररणामों के आधार पर ही तिचार न तकया जाये। प्रत्येक समस्या पर तिचार करिे
समय नयी पररतस्थतियों और जनिा के बदले मनोभािों को भी दृतष्टिि रखा जाय। िभी इतिहास,
राजनीति तिज्ञान के तिकास में महत्िपणू भ योिदान दे सके िा। कालभ फ्रेजररक, डी0 िोिन, आनोल्ड
बैरण्ट और सारटोरी आतद तिद्वानों ने राजनीति तिज्ञान के तलए इतिहास का समतु चि ढंि से उपयोि
तकया है।
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अथभशास्त्र और राजनीति तिज्ञान के बीच अत्यतधक तनभभरिा के कारण उन्नीसिीं सदी में राजनीतिक
अथभशास्त्र नाम से एक नये शास्त्र का जन्म हुआ। राजनीतिक अथभशास्त्र को एक शास्त्र के रूप में
तिकतसि करने में आदम तस्मथ, ररकाडों, कालभ माक्सभ और अन्य तिद्वानों की भतू मका सबसे ज्यादा
महत्िपूणभ रही। परन्ि,ु दोनों शास्त्रों की परस्पर तनभभरिा के बािजदू अथभशास्त्र और राजनीति के परस्पर
संघषों को तछपाना सम्भि नहीं रहा। इसी चरण में अथभशास्त्र को राजनीतिक तिचारों और दशभन के
जबदस्ि प्रभाि से मक्तु करने का तनिय तकया िया। फलिः 19िीं शिाब्दी के उत्तराद्धभ में इसने धीरे -
धीरे राजनीति तिज्ञान से अपना सम्बन्ध िोड़ तदया और अहस्िक्षेप के तसद्धान्ि की प्रेरणा से िस्िओ ु ं
की कीमिों और बाजार की प्रिृतत्तयों पर ज्यादा ध्यान देना शरू ु कर तदया। इसमें सदं हे नहीं तक आज
के यिु में तिकासशील राष्रों को तिशेष रूप से िरीबी की तिकट और तिस्िृि समस्या का सामना
करना पड़ रहा है। इसमें सन्देह नहीं तक अथभशास्त्र ने इस क्षेत्र में बहुि उन्नति की और मांि, पतू िभ,
प्रतिस्पधाभ, तनिेश, उपयोतििा, लािि, लाभ, आयोजन, तिकास इत्यातद के बारे में बहुि महत्िपणू भ
तनयम और तसद्धान्ि स्थातपि तकए। परन्िु बाद के दशकों में यह भी अनभु ि तकया िया तक आतथभक
प्रणाली को के िल बाजार की शतक्तयों और खल ु ी स्पधाभ के सहारे छोड़ देने पर सामातजक दृतष्ट से
तिनाशकारी पररणाम तनकलिे है; आतथभक तिषमिाएं बेिहाशा बढ़ जािी हैं, तनधभन और दीन-हीन
ििों का बेतहसाब शोषण होने लििा हैं, सामतजक अन्याय का बोलबाला हो जािा है और समाज में
िनाि और संघषभ का िािािरण बन जािा है। इससे आतथभक ितितितधयों के तनयमन की आिश्यकिा
अनभु िन की िई और अथभव्यिस्था को सािभजतनक तनयंत्रण में रखने के तिचार को महत्ि तदया जाने
लिा। इसका पररणाम यह हुआ तक अथभशास्त्र और राजनीतिशास्त्र की परस्पर अतभरूतच को नया
जीिन तमल िया। इस प्रिृतत्त ने ििभमान यिु में राजनीतिक अथभशास्त्र को एक नए रूप में तिकतसि
तकया है।
इधर राजनीति तसद्धान्ि के दृतष्टकोण में भी महत्िपूणभ पररििभन आया है। आज के राजनीति-तसद्धान्ि
का मख्ु य सरोकार परस्पर तिरोधी मांिों के समाधान से है। ये मांिें एक ही समदु ाय के भीिर तितभन्न
समहू ों िथा ििों की ओर से रखी जा सकिी हैं, या अन्िराभष्रीय क्षेत्र में तितभन्न राष्रों की ओर से रखी
जा सकिी है। ये मांिे िरह-िरह की होिी है परन्िु दल ु भभ संसाधनों के बँटिारे की मांिें इनमें सबसे
प्रमख
ु होिी हैं। दसू रे शब्दों में, ये मािं ें मख्ु यिः आतथभक मािं ें होिी हैं। कोई भी राजनीतिक प्रणाली िब
िक अपने आपको नहीं सम्भाल सकिी जब िक िह परस्पर तिरोधी मांिों में सामंजस्य स्थातपि करने
की क्षमिा स्थातपि करने की क्षमिा का पररचय न दे सके । इसके तलए आतथभक शतक्तयों और ित्िों
की िहरी समझ जरूरी होिी है। चाहे तिदेश-व्यापार का क्षेत्र हो, या देश के भीिर आतथभक जीिन के
तनयमन का मामला हो- राज्य की कोई भी नीति या तनणभय िब िक साथभक नहीं हो सकिा जब िक
उसके साथ जड़ु े हुए आतथभक प्रश्नों को भली-भातं ि समझकर सल ु झा न तलया जाए। राज्य जब योजना
तनमाभण के क्षेत्र में कदम रखिा है, या ‘कल्याणकारी राज्य’ ‘सेिाधमी राज्य’ या ‘समाजिादी राज्य’
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के रूप में नािररकों की आतथभक सरु क्षा का दातयत्ि सम्भालिा है और पणू भ रोजिार रहन-सहन के
उपयक्तु स्िर, उतचि पोषण, स्िास्थ्य रक्षा, सािभजतनक तशक्षा इत्यातद के कायभक्रम बनािा है, िब
अथभशास्त्र की सहायिा लेना अतनिायभ हो जािा है। आज के यिु में तिकासशील राष्रों को तिशेष रूप
से िरीबी की तिकट और तिस्िृि समस्या का सामना करना पड़ रहा है। यहॉ यह तसद्ध हो जािा है तक
राजनीति िक िक कृ िकायभ नहीं हो सकिी जब िक िह आतथभक समस्या को प्रभािशाली ढंि से
सलु झा नहीं सकिी। माक्सभिादी तसद्धान्ि के अनसु ार भी सम्पणू भ राजनीति आतथभक शतक्तयों से तनयतमि
होिी है। अिः चाहे हम उदारिादी दृतष्ट से सोचें, या माक्सभिादी दृतष्ट से-अथभशास्त्र का ज्ञान राजनीति
के ज्ञान िथा व्यिहार के तलए आिश्यक तसद्ध होिा है।
1.आतथभक पररतस्थतियॉ सरकार के स्िरूप को तनधाभररि करिी हैः- आतथभक पररतस्थतियों का प्रभाि
सरकार के स्िरूप पर अिश्य पड़िा है। प्राचीन और मध्ययुिीन सरकारों का स्िरूप ‘कुलीनित्रं ीय’
था। उन तदनों राजनीतिक अतधकार सामन्िी ििभ के हाथों में के तन्रि थे। शासन का यह रूप तजसे हम
‘कुलीनित्रं ीय’ अथिा ‘अतभजािित्रं ’ कहिे हैं, इसतलए तिकतसि हुआ था क्योंतक उस समय मशीनों
का प्रचलन नहीं था। आज जो कायभ मशीनें करिी हैं, उस यिु में िही कायभ मनष्ु य तकया करिे थे। अिः
उस यिु की अथभव्यिस्था को देखिे हुए यह स्िाभातिक ही था तक थोड़े से धनी-मानी जमींदार
बहुसख्ं यक लोिों को अपना दास बनाकर रखें और उन पर राज्य करें तकन्िु औद्योतिक क्रातन्ि के
पररणामस्िरूप सामन्िी प्रथा समाप्त हो ियी। आधतु नक यिु में लोकिंत्र के तिकास का मख्ु य कारण
िह औद्योतिक क्रातन्ि भी है तजसने दास-प्रथा का उन्मल
ू न तकया है। इस प्रकार यह सत्य है तक आतथभक
पररतस्थतियॉ सरकार के स्िरूप पर अिश्य ही महत्िपणू भ प्रभाि डालिी हैं।
2.राजनीतिक क्रातन्ियॉ, आतथभक शतक्तयों से प्रभातििः- प्रत्येक प्रमखु ‘क्रातन्ि’ के पीछे आतथभक
शतक्तयों का हाथ रहा है। अमेररका के स्िाधीनिा संग्राम, फ्रांस की राज्य क्रातन्ि, रूस ि चीन की
साम्यिादी क्रातन्ि िथा राष्रीय मतु क्त-आन्दोलनों का एक मख्ु य कारण आतथभक असन्िोष ही था।
3.भौतिक साधनों का श्रेष्ठिम बँटिाराः- आजकल राजनीति तिज्ञान में सामातजक ि आतथभक न्याय,
औद्योतिक लोकिंत्र, लाइसेंस-प्रणाली, उद्योि-धन्धों का राष्रीयकरण, राष्रीय बचि िथा प्रत्यक्ष एिं
अप्रत्यक्ष करों की तिशेष चचाभ होने लिी है। इसी कारण राजनीतिक तिचारकों का मि है तक राज्य को
अपनी नीति इस प्रकार तनधाभररि करनी चातहए तजसमें सभी को जीतिका के समान साधन उपलब्ध हो
सकें , देश की भौतिक सम्पतत्त कुछ तिने-चनु े लोिों के हाथों में के तन्रि न होने पाये िथा आतथभक
तििशिा के कारण नािररकों को ऐसे रोजिारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु और शतक्त के अनक ु ूल
न हों।
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4.आतथभक तनयोजन िथा बजट पद्धतिः- राजनीति तिज्ञान में अथभशास्त्र की और बहुि सी िकनीकों
का समािेश होिा चला जा रहा है। तकन िस्िओ ु ं का तकिना उत्पादन तकया जायेिा िथा तििरण का
क्या ढिं होिा, इसका तनणभय राज्य द्वारा तकया जािा है। ‘तनयोजन’ एक ऐसी िकनीक है जो कम या
अतधक मात्रा में अब सभी देशों में प्रयक्त
ु होने लिी है। सरकार बजट पद्धति का भी उपयोि करिी है
अथाभि् शासन के सभी तिभाि आय ि व्यय का ब्यौरा िैयार करके उसी के अनरू ु प कायभ करिे हैं। यह
भी एक तिशद्धु अथभशास्त्रीय तितध है। आय-कर, सम्पतत्त-कर, उत्तरातधकार शल्ु क िथा अन्य करों द्वारा
आय की असमानिा को दरू करने का प्रयास तकया जािा है।
‘राजनीति’ के तलए ‘अथभशास्त्र’ बहुि उपयोिी है परन्िु हमें यह भी नहीं भलू ना चातहए तक आतथभक
ितितितधयों पर भी राजनीति तिज्ञान का व्यापक प्रभाि पड़िा है। ‘अथभव्यिस्था’ पर ‘राजनीति
तिज्ञान’ के प्रभाि की चचाभ तनम्नातं कि तबन्दओ
ु ं के अन्ििभि की जा सकिी है-
1.अथभव्यिस्था को प्रभातिि करने िाले काननू ः- उन्नीसिीं शिाब्दी में इस तसद्धान्ि का बोलबाला
रहा तक “िस्िओ ु ं को उनके हाल पर छोड़ दो“ अथाभि् आतथभक मामलों में राज्य तकसी भी प्रकार का
हस्िक्षेप न करे तकन्िु ििभमान पररतस्थतियों में इस तसद्धान्ि का कोई मल्ू य नहीं रह िया है। खाद्य पदाथो
में तमलािट रोकने हेिु कठोर काननू बनाये िये हैं िथा सदू खोरों पर भी सरकार तिशेष तनयंत्रण रखिी
है। यहॉ हम आतथभक जीिन को तनयंतत्रि करने िाले और भी बहुि से काननू ों की चचाभ करना चाहेंिे,
जैस-े न्यनू िम मजदरू ी तिधेयक, कामिार मआ ु िजा एक्ट, अतनिायभ दघु भटना बीमा योजना, िथा श्रतमकों
के तलए अतधकिम कायभ-काल का तनधाभरण। िि कुछ िषों से राजनेिाओ ं का सम्पणू भ ध्यान इस बाि
पर के तन्रि रहा है तक जनिा के जीिन-स्िर को उठाने और मंहिाई को तनयंत्रण में रखने के तलए तकन
नीतियों का अनसु रण तकया जाये या कै से काननू बनाये जायें।
2.तिदेश-व्यापार और तिदेशी तनिेश पर राज्य का कठोर तनयत्रं ण देखने को तमलिा हैः- जहॉ िक
तिदेश व्यापार और तिदेशी तनिेश का प्रश्न है, उन पर िो राज्य का कठोर तनयंत्रण स्थातपि हो िया है।
यािायाि और संचार के साधनों का तिकास हो जाने के कारण तिदेश व्यापार में भी बहुि िृतद्ध हुई है
परन्िु ऐसा कोई राज्य नहीं है जो तिदेश व्यापार पर तनयंत्रण न रखिा हो। तितभन्न देशों के बीच पँजू ी
का संचलन यानी तकसी एक देश द्वारा दसू रे देशों में पँजू ी तनिेश करना भी सरकार की नीति पर ही
तनभभर हो िया है।
3.राजनीतिक अतस्थरिा, तहसं ा और यद्ध
ु ों का अथभव्यिस्था पर प्रभािः- राजनीतिक तहंसा, आन्िररक
कलह और यद्धु ों का देश की अथभव्यिस्था पर िहरा प्रभाि पड़िा है। आतथभक प्रिति बहुि सीमा िक
इस बाि पर तनभभर करिी है तक देश में राजनीतिक तस्थरिा है अथिा नहीं। संयक्त ु राज्य अमेररका,
तिटेन, कनाडा, नािे, स्िीडन और तस्िट्जरलैण्ड जैसे देश राजनीतिक तहसं ा से मक्त
ु रहे हैं। इन देशों में
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ु तिश्वतिद्यालय 64
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सरकारें चनु ािों के माध्यम से बदलिी रही हैं। इससे िहॉ की अथभव्यिस्था को एक सदृु ढ़ आधार प्राप्त
हो िया है। दसू री ओर, एतशया अफ्रीका और लेतटन अमेररका के अतधकांश देश राजनीतिक अतस्थरिा
का उदाहरण प्रस्ििु करिे हैं। तजन देशों में राजनीतिक तस्थरिा है, िहॉ अपेक्षाकृ ि आतथभक तिकास
अतधक हुआ है।
उपयभक्त
ु तििेचन से यह स्पष्ट है तक राजनीति तिज्ञान और अथभशास्त्र दोनों का परस्पर घतनष्ठ सम्बन्ध
है। आधतु नक यिु के तजन अथभशातस्त्रयों ने राजनीति तिज्ञान पर िहरा प्रभाि डाला है, उनमें के नेथ ऐरो,
ऐथं ोनी डाउन्स, डन्कन ब्लैक और जी0 टूलोक के नाम तिशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। राजनीति तिज्ञान
के तिद्वान अथभशास्त्र की तितधयों का खलु कर उपयोि करने लिे हैं।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
और मनोिृतत्तयों को समझना आिश्यक हो जाएिा। इन्हें तबना समझे िह राजनीतिक जीिन का न िो
यथाथभिादी तिश्लेषण कर सकिा है और न उसके आदशों के सम्बन्ध में कोई तनष्कषभ तनकाल सकिा
है। इसी प्रकार टोटर ने अपनी पस्ु िक (शातन्ि और यद्ध ु के दौरान मानििृतत्त) में यह बिाया है तक
शातन्ि एिं यद्ध
ु दोनों ही तस्थतियों में तकस प्रकार राष्रीय नेिा जनिा के मनोभािों का अध्ययन कर
उससे लाभ उठा सकिे हैं। तलप्पमैन ने अपने ग्रन्थ ‘लोकमि’ में सिभसाधारण जनिा के मि, लोिों की
हठधमी और उनके तिचारों का तिश्ले षण तकया है। िन्ु नार तमडभल की प्रतसद्ध पस्ु िक ‘अमेररकी दतु िधा’
अमेररका के लोिों की मनोिृतत्त को भली प्रकार स्पष्ट करिी है।
राजनीति तिज्ञान के तलए मनोतिज्ञान की उपादेयिा तनम्न प्रकार स्पष्ट की जा सकिी हैः-
1.यह उल्लेखनीय है तक तभन्न-तभन्न देशों में तभन्न-तभन्न शासन प्रणातलयों का आधार जन-समाज
की मनोिृतत्त ही है। प्रमख
ु फ्रांसीसी पत्रकार बौिमी ने अपने दो महान ग्रन्थों में इग्ं लैण्ड और अमेररका
के लोिों की मनोिृतत्त का तििेचन करके यह बिाने का प्रयत्न तकया है तक इन दोनों देशों की
राजनीतिक संस्थाओ ं में जो मुख्य भेद हैं, उनका प्रमुख कारण लोिों की मनोिृतत्त ही है। इग्ं लैण्ड एक
लोकिंत्रीय देश होिे हुए भी आज िक सम्राट के अतस्ित्ि को बनाये हुए है। इसके मल ू में अंग्रेजों की
भािना ि मनोिृतत्त है। सम्राट का पद िहॉ यद्यतप कुछ सीमा िक तनरथभक और सारहीन हो िया है,
िथातप इग्ं लैण्ड के लोिों की ऐसी धारणा बन ियी है तक “जब िक बतकंघम महल में राजा अथिा
रानी तिद्यमान हैं, िभी िक िे शातन्ि की नींद ले सकिे हैं।“ इस प्रकार िहॉ राजपद की व्यािहाररक
उपयोतििा उिनी नहीं है तजिनी तक उसके पीछे जन-साधारण की भािना है।
2.राज्य को तकसी निीन नीति का तनधाभरण अथिा तकसी नये काननू को बनािे समय समाज की
मनोिृतत्त का भली प्रकार अध्ययन कर लेना चातहए अन्यथा जनिा उस नीति या काननू का स्िािि
नहीं करे िी। आधतु नक यिु में िो जनमि का महत्ि अत्यतधक बढ़ िया है। लोकिंत्र का आधार
‘जनमि’ है और जनमि बनाने के तलए अब तितभन्न राजनीतिक दलों द्वारा तभन्न-तभन्न प्रकार के
प्रचार-साधनों का उपयोि तकया जाने लिा है। प्रो0 िेटेल के शब्दों में, “राजनीतिक दलों की प्रकृ ति
आजकल पयाभप्त सीमा िक मनोिैज्ञातनक बन ियी है।“
3.जन-सामान्य के आचरण िथा उत्तेतजि भीड़ के मनोभािों को समझे तबना कोई व्यतक्त सफल
राजनीतिज्ञ अथिा जननेिा नहीं बन सकिा। उदाहरणाथभ- प्रथम तिश्वयद्ध ु के उपरान्ि जमभनी की जनिा
में पराजय के कारण घोर तनराशा िथा असन्िोष उत्पन्न हो िया था। तहटलर ने उसे पहचाना और उससे
लाभ उठाया। जनिा में उत्साह, साहस और सैतनक भािना का संचार करने के तलए तहटलर और उसके
साथी कहा करिे थे तक, “मनष्ु य को शेर की िरह तनभभय और खनू ी होना चातहए। सच्चा जमभन िह है
जो अपनी बतु द्ध से नहीं अतपिु अपने रक्त से सोचे।“ इस प्रकार महात्मा िाँधी की सफलिा का मख्ु य
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
कारण भी जनिा की मनोिृतत्त का अध्ययन कर उसी के अनुरूप कायभ करना था। महात्मा िाँधी जानिे
थे तक भारि एक धमभ प्रधान देश है। इसीतलए उन्होंने धातमभक प्रिीकों- प्राथभना, उपिास, िौरक्षा,
िह्मचयभ, सत्याग्रह आतद का आश्रय तलया। िाँधीजी ने एक साधारण तकसान की िेश-भषू ा ग्रहण की
और अपने संदश े को िाँि-िाँि िक पहुचाया। इटली के महान देशभक्त मैतजनी की ही भॉति िाँधीजी
ने भी अध्यात्मिाद का सहारा तलया और देशभतक्त को ‘धमभ’ ि ‘उपासना’ का स्िरूप प्रदान तकया।
उपयभक्त
ु तििेचन से यह स्पष्ट है तक कोई भी राजनीतिज्ञ मनोतिज्ञान के अध्ययन की उपेक्षा नहीं कर
सकिा। लॉडभ िाइस ने िो यहॉ िक कह डाला है तक, “मनोतिज्ञान ही राजनीति तिज्ञान का आधार
है।“
लेतकन इन दोनों के बीच में कुछ अन्िर भी हैः-
1.प्रकृ तिः- राजनीति तिज्ञान एक आदशभिादी तिज्ञान है जो ‘क्या था और क्या है?’ के साथ ही ‘क्या
होना चातहए?’ का भी अध्ययन करिा है, जबतक मनोतिज्ञान का आदशभ से कोई सम्बन्ध नहीं होिा
है।
2.तिषयः- राजनीति तिज्ञान मनष्ु य के राजनीतिक संिठनों िथा कायों का अध्ययन करिा है, जबतक
मनोतिज्ञान मनष्ु य की मानतसक अिस्थाओ ं का भी अध्ययन करिा है।
3.व्यिहाररक जीिन में महत्िः- मनोतिज्ञान के िल मनष्ु य की मनोिृतत्तयों का अध्ययन करिा है,
जबतक राजनीति तिज्ञान व्यिहाररक कायों का भी अध्ययन करिा है ।
अभ्यास प्रश्न
1.िन्ु नार तमडभल की प्रतसद्ध पस्ु िक ‘अमेररकी दतु िधा’ है । सत्य असत्य/
2.टोटर की पस्ु िक शातन्ि और यद्ध
ु के दौरान मानििृतत्त है । सत्यअसत्य/
3.लॉडभ िाइस के कथनानसु ार, “राजनीतिशास्त्र ‘इतिहास’ और ‘राजनीति’ के मध्य तस्थि है ।
सत्यअसत्य/
4.स्टले की पस्ु िक ‘द स्टडी ऑफ तहस्री’ है । सत्यअसत्य/
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
3.3 साराांश
समाज में मानि की तितिध भतू मकाओ ं और आिश्यकिाओ ं को समझने के तलए राजनीति तिज्ञान
अन्य सामातजक तिज्ञानों के साथ अपना सम्बन्ध स्थातपि करिा है। क्योंतक मानिीय ितितितधयॉ
तकसी एक शास्त्र की तिषय सामग्री िक सीतमि नहीं रह सकिी। मानिीय ितितितधयों को स्पष्ट करने
के तलए सभी सामातजक तिज्ञानों की परू क भतू मका होिी है। फलिः मानि और समाज के मल ू ित्ि
को समझने के तलए तकसी तितशष्ट सामातजक तिज्ञान की सीमाओ ं का अतिक्रमण करना ही होिा है।
20िीं शिाब्दी के उत्तराद्धभ से सामातजक तिज्ञानों के बीच के अंिः सम्बन्धों पर अतधक ध्यान तदया
जाने लिा है। इसी स्िाभातिक क्रम में, राजनीति तिज्ञान ने इस प्रतक्रया में सहज ढंि से भाि तलया है
और आज के पररप्रेक्ष्य में राजनीति तिज्ञान की उपयोतििा तितभन्न सामातजक पररतस्थतियों से पैदा
माँिों को परू ा करने के तलए, अपनी तनतिि आिश्यकिाओ ं के अनरू ु प अन्य शास्त्रों से सहायिा लेकर
पणू भ करने में है। इसतलए सम्बतन्धि शाखाओ ं से सम्बतन्धि सामातजक ज्ञान को सबसे अच्छे ढंि से
पेश करने के तलए सभी ‘सामातजक तिज्ञान’, अतनिायभिः सहायक भतू मका अदा करिे हैं। यह राजनीति
तिज्ञान ही है, जो राजनीतिक यथाथभ को साफ करने के तलए इस ज्ञान का उपयोि करिा है।
3.4 शब्दावली
1.राजनीतिक अथभशास्त्र: अध्ययन की िह शाखा तजसमें राजनीतिक तिश्लेषण के तलए आतथभक ित्िों
की भतू मका पर तिशेष रूप से ध्यान तदया जािा है; आतथभक प्रतिरूपों का प्रयोि तकया जािा है; और
आतथभक जीिन पर राजनीतिक तनणभयों के प्रभाि की जॉच की जािी है। इसमें उन संकल्पनाओ ं का
तिस्िृि तििेचन तकया जािा है जो मनष्ु यों की राजनीतिक िथा आतथभक दोनों प्रकार की ितितितधयों
पर समान रूप से लािू होिी हैं, जैसे तक संसाधनों का आबंटन, मांिें, लाििें, उपयोतििा और
इष्टिमकरण इत्यातद।
2.राजनीतिक समाज तिज्ञान: अध्ययन की िह शाखा तजसमें राजनीतिक संस्थाओ,ं प्रतक्रयाओ ं और
तिचारधाराओ,ं इत्यातद को सामातजक सरं चनाओ ं और प्रतक्रयाओ ं के सदं भभ में रखकर देखा और परखा
जािा है। इसमें राजनीतिक प्रणाली को सामातजक प्रणाली की एक उपप्रणाली के रूप में देखा जािा है
और उनके परस्पर सम्बन्ध का अन्िेषण तकया जािा है।
3.राजनीतिक मनोतिज्ञान: अध्ययन की िह शाखा तजसमें व्यतक्तत्ि और उसके राजनीतिक व्यिहार
के परस्पर सम्बन्ध का पिा लिाया जािा है; राजनीतिक अतभिृतत्तयों की समानिाओ ं और तभन्निाओ ं
का अन्िेषण तकया जािा है; राजनीतिक समाजीकरण की प्रतक्रया और नेित्ृ ि की शैतलयों का तिश्ले षण
तकया जािा है, राजनीतिक प्रभाि और प्रचार के बारे में अनसु ंधान तकया जािा है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
4.राजनीतिक दशभन: अध्ययन की िह शाखा तजसमें मुख्यिः राजनीति के नैतिक और िातविक पक्षों
पर तिचार तकया जािा है। इसमें राज्य और राजनीतिक जीिन के स्िरूप, राजनीतिक दातयत्ि के
आधार और तितभन्न राजनीतिक प्रणातलयों की िणु ित्ता की जॉच की जािी है और सािभजतनक जीिन
के लक्ष्य तनधाभररि करने के तलए दशभन और इतिहास की तितधयों का प्रयोि तकया जािा है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
2.राजनीति तिज्ञान का इतिहास से सम्बन्ध बिाइए । राजनीति तिज्ञान के अध्ययन के तलए इतिहास
की क्या उपयोतििा है?
3.राजनीति तिज्ञान के तिकास में समाजशास्त्र की भतू मका स्पष्ट कीतजए।
4.राजनीति तिज्ञान के अध्ययन में अथभशास्त्र तकस प्रकार उपयोिी है?
5.राजनीति तिज्ञान और मनोतिज्ञान के बीच सम्बन्ध पर एक संतक्षप्त लेख तलतखए।
6.राजनीति तिज्ञान और भिू ोल के सम्बन्ध पर एक सतं क्षप्त तटप्पणी तलतखए।
7.तिश्व के मामलों में भौिोतलक राजनीति की भतू मका और प्रभाि का िणभन करें ।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
4.0 प्रस्तावना
राज्य राजनीति तिज्ञान में एक िैज्ञातनक अथभ रखने िाला शब्द है। प्राचीन काल से लेकर ििभमान
समय िक राजनीतिक तचंिन का के न्रीय प्रतिपाद्य तिषय राज्य रहा है। अरस्िू की दृतष्ट से व्यतक्त की
कल्पना राज्य के अन्दर की जा सकिी है। उसने कहा था तक राज्य के बाहर रहने िाला व्यतक्त पशु या
देििा होिा, मानि नहीं हो सकिा। इसी कारण उसने राज्य को स्िाभातिक सस्ं था माना था िथा अपने
तिचारों में के न्रीय स्थान राज्य को तदया था। िेटेल ने राजनीति तिज्ञान को ‘राज्य का तिज्ञान’ कहकर
पकु ारा था िथा जाने माने राजनीति शास्त्र के तिद्वान िानभर ने िो यहाँ िक कह तदया था तक राजनीति
तिज्ञान का अध्ययन राज्य के साथ प्रारम्भ होिा है िथा राज्य के साथ ही समाप्त हो जािा है। सामान्य
भाषा में प्रत्येक व्यतक्त अपनी सतु िधानसु ार राज्य का प्रयोि सरकार समाज, समदु ाय एिं राष्र आतद
के तलए करिा है। ये सभी शब्द अपना-अपना तनतिि एिं स्पष्ट अथभ रखिे हैं परन्िु राज्य शब्द इनसे
कुछ तभन्न अथभ रखिा है।
4.1 उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के उपरान्ि आप तनम्न बािों का ज्ञान प्राप्त कर सकें िे।
1. राज्य का अथभ क्या है?
2. एक राजनीतिक इकाई के रूप में राज्ष्य की प्रकृ ति क्या होिी है।
3. राज्य के क्षेत्र क्या होिे हैं?
4. राज्य के तितभन्न ित्ि एिं उनकी तिशेषिायें।
5. इकाई का पररचय एिं पाठ्य सामग्री।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
तिज्ञान का अध्ययन राज्य के साथ प्रारम्भ होिा है िथा राज्य के साथ ही समाप्त हो जािा है। सामान्य
भाषा में प्रत्येक व्यतक्त अपनी सतु िधानसु ार राज्य का प्रयोि सरकार समाज, समदु ाय एिं राष्र आतद
के तलए करिा है। ये सभी शब्द अपना-अपना तनतिि एिं स्पष्ट अथभ रखिे हैं परन्िु राज्य शब्द इनसे
कुछ तभन्न अथभ रखिा है।
यतद हम बोलचाल की भाषा में बाि करें िो राज्य शब्द के अन्ििभि अमेररका, रूस, इग्ं लैण्ड, कनाडा,
भारि जैसे राज्य आ जािे हैं। दसू री ओर संघात्मक शासन की इकाईयों के तलए भी राज्य शब्द का
प्रयोि तकया जािा है। अमेररकी सघं शासन की इकाईयों न्ययू ाकभ , कै लीफोतनभया ि भारि सघं की
इकाईयों पंजाब, हररयाणा, मध्य प्रदेश, के रल इत्यातद राज्य कहे जािे हैं परन्िु ये राज्य शब्द का सही
प्रयोि नहीं है। िास्िि में राज्य के शातब्द अथभ िथा उसके राजनीतिक अथभ में बहुि अन्िर है।
प्राचीन यनू ान में राज्य शब्द के तलए पोतलस शब्द का प्रयोि तकया जािा था तजसका अथभ निर राज्य
होिा है। उस काल के यनू ान के इन छोटे-छोटे निर राज्यों का स्िरूप आधतु नक काल के तिशाल
राज्यों जैसा नहीं था। िाद भौिोतलक खण्ड के तलए तकया था। यहाँ पर यह ध्यान देना आिश्यक है
तक ग्रीक एिं रोमन तिचारों में आधतु नक काल के राज्य का िणभन नहीं तमलिा। सोलहिीं सदी के
प्रारम्भ में आधतु नक राज्य के दृतष्टकोण का उदय हुआ। मै क्यािेली जैसे जाने माने राजनीतिक तिचारक
ने राज्य शब्द का समतु चि प्रयोि तकया। उसने अपने ग्रंथ ‘तद तप्रंस’ में तलखा है ‘‘जहाँ व्यतक्तयों पर
शतक्त का प्रयोि तकया जािा है िह राज्य है।’’ िास्िि में राज्य हमारे सामातजक जीिन को व्यितस्थि
बनािा है िथा शातन्ि स्थातपि करिा है। यह सामातजक सहयोि का ऐसा िािािरण बनािा है तजसके
माध्यम से तितभन्न सभ्यािाओ ं एिं संस्कृ तियों का तिकास सम्भि हो सका है।
राज्य शब्द का व्यापक अथभ समझने के तलए हमें कुछ पररभाषाओ ं की ओर ध्यान देना होिा।
प्राचीन विचारक:- राजनीति तिज्ञान के जनक अरस्िू ने राज्य की उत्पतत्त के पिू भ अनेक
समदु ायों के संिठनों की कल्पना की थी। उसके अनसु ार मनुष्य एक सामातजक प्राणी है और उसमें
सामातजक जीिन से ही सद्गणु ों का तिकास होिा है। मनष्ु य पररिारों में रहिा था, पररिारों से कुलों िथा
कुलों से ग्रामों का तिकास हुआ। अन्ििः ग्रामों का सिं ठन राज्य के रूप में प्रकट हुआ। इस प्रकार
राज्य एक सिोच्च समदु ाय माना िया तजसमें पररिार कुल एिं ग्राम समातहि है। अिएि अरस्िू ने
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
राज्य की पररभाषा इस प्रकार दी है ‘‘राज्य पररिारों िथा ग्रामों का एक ऐसा समदु ाय है तजसका लक्ष्य
पणू भ सम्पन्न जीिन की प्रातप्त है।’’ प्रतसद्ध रोमन तिचारक तससरों के अनसु ार ‘‘राज्य एक ऐसा
बहुसख्ं यक समदु ाय है तजसका सिं ठन सामान्य अतधकारों िथा पारस्पररक लाभों की प्रातप्त के तलए
तकया जािा है।’’ ग्रोतशयस -राज्य को एक ऐसा स्ििंत्र मनु ष्यों का पणू भ समदु ाय मानिा है जो
अतधकारों की सामान्य भािना िथा लाभों में पारस्पररक सहयोि द्वारा जड़ु ा होिा है।
प्राचीन तिचारकों की पररभाषाओ ं से तनष्कषभ स्िरूप राज्य की दो तिशेषिायें सामने आिी हैं- (1)
राज्य सभी समदु ायों से उच्चिर समदु ाय है। (2) सभी मनष्ु य सतम्मतलि रूप में उन लाभों को प्राप्त करिे
हैं जो के िल राज्य द्वारा प्राप्त होिे हैं।
आधुननक विचारक:- आधतु नक तिचारकों ने राज्य की पररभाषा नये प्रकार से की है। उसमें
राज्य को एक समदु ाय की अपेक्षा संिठनात्मक इकाई के रुप में स्िीकार तकया िया है जो तनम्न
पररभाषाओ ं में स्ििः स्पष्ट हो जायेिा-
बगेस के अनसु ार ’’राज्य एक संितठि इकाई के रुप में मानि जाति का तितशष्ट भाि है‘‘।
बलश ां ली के मिानसु ार- ‘‘तकसी तनतिि भू-भाि पर बसा हुआ राजनीतिक रूप में संितठि समाज
राज्य कहलािा है।’’
हालैंड के अनसु ार- ‘‘राज्य एक ऐसा तिशाल जनसमदु ाय है जो एक तनतिि भ-ू खण्ड में तनिास करिा
है िथा तजसमें बहुमि की अथिा एक बड़े ििभ की इच्छा, उसकी शतक्त के कारण, उसके तिरोतधयों
को भी मान्य हो।’’
हाल के शब्दों में- ‘‘एक स्ििंत्र राज्य के ये लक्षण हैं तक उस राज्य की जनिा अपने राजनीतिक
आदशों के तलए स्थायी रूप से सिं तठि हो, उसके अतधकारों में तनतिि भू-खण्ड हो िथा िह बाह्य
तनयंत्रण से मक्त
ु हो।’’
तिलीमोर के शब्दों में- ‘‘मनुष्यों का ऐसा समदु ाय राज्य कहलािा है जो तकसी तनतिि भू-खण्ड पर
स्थायी रुप से तनिास करिा हो िथा जो सामन्य काननू ों, अदालिो ि रीति ररिाजों द्वारा एक व्यितस्थि
समदु ाय में सिं तठि हो िथा जो ससु िं तठि सरकार द्वारा उस भ-ू भाि की सीमा में तनिास करने िाले
मनष्ु य ि अन्य सभी पदाथों पर पिू भ तनयन्त्रण, अतधकार ि प्रभत्ु ि रखिा हो िथा जो तिश्व के तकसी
भी अन्य समाज से यद्ध ु करने, शातन्ि करने िथा सब प्रकार के अन्य अन्िराभष्रीय सम्बनधों को बनाने
का अतधकार रखिा है।’’
उत्तराखंड मक्त
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
उपयभक्त
ु पररभाषाओ ं से यही तनष्कषभ तनकलिा है तक राज्य एक संितठि राजनीतिक इकाई है तजसके
चार प्रमख
ु ित्ि होिे हैं- (1) जनसंख्या (2) तनतिि भू-भाि (3) शासन (4) प्रभसु त्ता।
परन्िु राज्य की सिगश्रेि पररभाषा सम्भििाः गानगर द्वारा प्रस्ििु की िई है। इसका कारण यह है तक
प्रस्ििु पररभाषा आधतु नक काल के लिभि सभी राज्यों को अपनी सीमा में बाँध सकने की क्षमिा
रखिी है। इसके अतिररक्त प्रचीन काल एिं मध्यकाल के तितभन्न प्रकार के राज्यों के तलये भी उपयभक्त ु
प्रिीि होिी है। आज संसार में जहॉं एक ओर भारि, चीन अमेररका, रूस, िाजील जैसे बडी जनसंख्या
िथा भ-ू क्षेत्र िाले राज्य हैं, िही दसू री ओर सैन मैररनो, मालदीि, भटू ान, बेतन्जतनयम, लम्जेमििभ जैसे
छोटे भू क्षेत्र एिं जनसंख्या िाले राज्य भी हैं। इस दृतष्ट से िानभर की पररभाषा सिभथा महत्िपणू भ है।’’
राजनीति तिज्ञान एिं सािभजतनक काननू के तिचार के रूप में राज्य मनष्ु यों के उस समदु ाय का नाम है
जो जनसख्ं या में चाहे कम या अतधक हो परन्िु जो स्थायी रूप से तकसी तनतिि भ-ू भाि पर रहिा हो
िथा जो तकसी भी बाह्य शातन्ि के तनयंत्रण से पिू भ रूप से या लिभि स्ििंत्र हो िथा तजसमें एक ऐसी
व्यितस्थि शासन व्यिस्था या सरकार हो तजसके आदेश का पालन करने के तलए उस भाि के सब
तनिासी प्रायः अभ्यस्ि हों।’’
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
अरस्िू का नाम इग्ं लैण्ड के ग्रीन, िेडले, िोसाँके जैसे तिचारकों का नाम जमभनी के कालभ जे फ्रेडररक
हीिल िथा फ्रांसीसी तिचारक रूसो का नाम प्रमख ु रूप से तलया जा सकिा है।
२.िैधातनक तसद्धान्ि
िैधातनक तसद्धान्ि राज्य को काननू बनाने उसकी व्याख्या िथा प्रििभन करने िाली संस्था मानिा है।
जब िक राज्य स्ियं अतधकार प्रदान न करे , िब िक कोई अन्य अतभकरण काननू बनाने अथिा उसे
लािू करने की शतक्त नहीं रखिा। अिः राज्य का तनजी व्यतक्तत्ि है, उसकी अपनी चेिना ि अपनी
इच्छा है। परन्िु इस तसद्धान्ि के समथभकों को दो भािों में तिभक्त तकया जा सकिा है।
३.ऐतिहातसक
सर हेनर मैन िथा क्रैबे जैसे ऐतिहातसक तितधशास्त्रों का मानना है तक राज्य द्वारा तनतमभि काननू उिना
ही महत्िपणू भ है तजिना तक इतिहास द्वारा समतथभि रीति ररिाज पर आधाररि काननू । रीति ररिाजों के
माध्यम से तनतमभि काननू राज्य के िैधातनक आधार को सशक्त करिे हैं।
तिश्लेषणात्मक:- जेरेम बेंघम एिं सर हेनरी आतस्टन जैसे तिश्ले षणिातदयों की मान्यिा है तक काननू
शब्द प्रभसु त्ताधारी के आदेश की ओर संकेि करिा है। अिएि राज्य द्वारा तनतमभि काननू ही बाध्यकारी
माना जािा है राज्य द्वारा तनतमभि अथिा िस्िु बाध्यकारी अथिा आदेशात्मक चररत्र नहीं रखिी।
४.आांतशक तसद्धान्ि:
यह तसद्धान्ि प्राकृ तिक एिं सामातजक संरचनाओ ं में सादृश्य स्थातपि करने िाले बहुि परु ाने तिचार
पर आधाररि है। प्लेटो ने राज्य को िृह्द रूप में व्यतक्त माना था। रोमन काल में तससरो ने राज्य िथा
व्यतक्त के मध्य सादृश्य स्थातपि करिे हुए राज्याध्यक्ष की िुलना उस आत्मा से की जो मानि शरीर
अत्यन्ि लोकतप्रय हुआ। ब्लंशली जैसे तिख्याि लेखक ने यह घोषणा की तक राज्य मानि शरीर का
हूबहू रूप है। उसने इस बाि पर बल तदया तक सामातजक सरं चना के रूप में राज्य कृ तत्रम यत्रं के समान
नहीं बतल्क राजीि आध्यातत्मक प्राणी की िरह है। िस्िुिः राज्य नािररकों के समूह मात्र से कुछ
अतधक है। परन्िु इस तसद्धान्ि का प्रबल समथभक इग्ं लैण्ड का हबटे स्पेंसर है, तजसने मानि शरीर एिं
राज्य में सादृश्यिा सोदाहरण प्रस्ििु की है। तजस प्रकार शरीर में भरण पोषण की संरचनायें (मख ु , उदर
इत्यातद) होिी हैं उसी प्रकार राज्य में उत्पादन के न्र होिे हैं। तजस प्रकार शरीर में संचार उपकरण (नसें,
नाड़ी, धमतनयाँ) होिे हैं, उसी प्रकार राज्य में पररिहन प्रणाली (सड़के , रोलमािभ इत्यातद) होिी हैं।
५.मार्कसगिादी तसद्धान्ि: राज्य का माक्सभिादी तसद्धान्ि राज्य की प्रकृ ति के सन्दभभ में अन्य तसद्धान्िों
से तभन्न तिचारधारा रखिा है। यह तसद्धान्ि राज्य को न िो मानिीय चेिना की उपज मानिा है िथा न
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ही रक्त सम्बन्ध, सहमति अथिा धमभ पर आधाररि संस्था राज्य िस्ििु ः ििीय चेिना का पररणाम है।
इसके अन्ििभि राज्य दो ििों में तिभक्त है- (1) बजु भआ ु (अमीर पँजू ीपति ििभ), (2) सिभहारा
(पँजू ीतिहीन तिपन्न ििभ)। राज्य की स्थापना अमीर ििभ ने अपने अतधकारों की रक्षा िथा िरीब ििभ
के शोषण के तलए की है िथा इस दृतष्ट से मानि इतिहास के अन्ििभि राज्य का तिकास ििभ संघषभ का
ही पररणाम रहा है। राज्य में शोषण िथा अन्याय का अन्ि करने का एक ही मािभ है- राज्य का अन्ि
िथा ििभतिहीन, राज्य तिहीन समाज की स्थापना करना। इसके तलए आिश्यकिा यह है तक सिभहारा
ििभ की एकिा स्थातपि करना िथा उसके नेित्ृ ि में क्रातन्ि का मािभ िैयार करना और उसके माध्यम
से बजु भआ
ु ििभ का अन्ि करके एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना जहाँ तकसी प्रकार का ििभ तिभाजन न
हो। यह तसद्धान्ि राज्य की अपररहायभिा को अस्िीकार करिा है।
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ु तिश्वतिद्यालय 77
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
राज्य के द्वारा अपने नािररकों की राजनीतिक एिं सामातजक अतधकारों की सरु क्षा का काय भी सम्पन्न
तकया जािा है। आज के लोकिांतत्रक यिु में राज्य के अपने नािररकों को तिचार अतभव्यतक्त सम्मेलन
सिं ठन इत्यातद की स्िित्रं िा प्रदान की जािी है। राज्य का यह भी प्रयास रहिा है तक उसके नािररकों
को पयाभप्त सामातजक सरु क्षा एिं समानिा प्रदान की जाये िथा धमभ जाति, िंश, रंि िथा सम्पतत्त के
आधार पर तकसी प्रकार का भेद न तकया जाये।
आज अन्िराभष्रीयिा के यिु में राज्य का कायभ क्षेत्र अन्िराभष्रीय मामलों में भी काफी बढ़ िया है। राज्यों
के द्वारा अन्िराभष्रीय स्िर पर सहयोि एिं सद्भािना का कायभ भी सम्पन्न तकया जािा है। यह सयं क्त ु
राष्र संघ द्वारा तनधाभररि तकया जािा है। संयक्त
ु राष्र संघ के तलए यह एक आदशभ लक्ष्य माना िया है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 78
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
संिल
ु न का बने रहना परम आिश्यक है अन्यथा इससे राज्य की एकिा अखण्डिा एिं सामान्य
व्यिस्था पर प्रतिकूल प्रभाि पड़ेिा ।
4.5.3 शासन
शासन राज्य की आत्मा है। यह समाज की इच्छा को लािू करिा है यतद राज्य को सभ्य जीिन की
प्रथम शिभ माना िया है िो यह शासन के अतस्ित्ि के कारण ही है जो काननू एिं व्यिस्था की रक्षा
करिा है िथा उत्तम जीिन को सम्भि बनािा है। राज्य के शासन का िठन ऐसा होना चातहए तक िह
शांति िथा सरु क्षा की तस्थतियों को बनाये रखने के तलए काननू लािू करे । यतद शासन नहीं होिा िो
अराजकिा उत्पन्न होिी िथा राज्य का अंि हो जायेिा
4.5.4 प्रभुसत्ता या सांप्रभुिा
सप्रं भिु ा राज्य की सिोच्च शतक्त होिी है जो उसे अन्य समूहों की अपेक्षा अतधक उच्च स्थान प्रदान
करिी है। सप्रं भिु ा के दो पक्ष हैं- आिं ररक एिं बाह्य। आिं ररक सप्रं भिु ा का अथभ यह है तक राज्य के
भीिर कोई ऐसी संस्था या समहू नहीं हो सकिा जो इसकी बराबरी का दािा करे । िाह्य सप्रं भिु ा का
अथभ है तक राज्य तकसी तिदेशी तनयंत्रण से सिभथा मक्त ु है। यह बाि अलि है तक कोई तकसी राष्र
मण्डल या संयक्त ु राष्र संघ की सदस्यिा स्िीकार करके स्िेच्छापिू भक कोई अन्िराभष्रीय दातयत्ि
स्िीकार कर ले। संप्रभिु ा का अतस्ित्ि काननू के रूप में प्रकट होिा है। यही कारण है तक राज्य का
काननू सभी सम्बतन्धि पक्षों के तलए अतनिायभ माना जािा है िथा उसका उल्लघं न होने पर दण्ड तदया
जािा है ।
अभ्यास प्रश्न
१.‘तद लाज’ पस्ु िक के लेखक कौन है.
२.प्लेटो ने अपनी में आदशभ राज्य के तलए तकिनी तनधाभररि की.
३.रूसो ने राज्य के तलए संख्या ------- तनधाभररि की थी ,
४.प्लेटो एिं अरस्िू जैसे आदशभिादी तिचारक राज्य को एक कृ तत्रम संस्था मानिे हैं. सत्य/असत्य
५.तकसने राजनीति तिज्ञान को ‘राज्य का तिज्ञान’ कहकर पक
ु ारा था.
६.राजनीति शास्त्र के तकस तिद्वान ने कहा तक राजनीति तिज्ञान का अध्ययन राज्य के साथ प्रारम्भ
होिा है िथा राज्य के साथ ही समाप्त हो जािा है.
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 79
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७.राज्य की पररभाषा इस प्रकार तकसने दी है ‘‘राज्य पररिारों िथा ग्रामों का एक ऐसा समदु ाय है
तजसका लक्ष्य पणू भ सम्पन्न जीिन की प्रातप्त है ।’’
4.6 साराांश
इस इकाई के अध्ययन के उपरान्ि हमें राज्य के अथभ उसके प्रकृ ति और उसके क्षेत्र के बारे में तिस्िृि
जानकारी प्राप्त हुई। राज्य के अथभ को जानने के क्रम में हमें यह जानकारी प्राप्त हुई तक इसके चार
महत्िपणू भ ित्ि है िो इसके अतस्ित्ि के आधार है। तजसमे सिभप्रथम भ-ू भाि आिा है क्योंतकइसके
तबना राज्य के मलू स्िरुप की कल्पना नहीं की जा सकिी । दसू रे क्रम में जनसंख्या आिी है जो अत्यन्ि
महत्िपूणभ है क्योतक जनसंख्या तितहन भ-ू भाि जंिल या रे तिस्िान हो सकिा है। राज्य नही । िीसरे ;
राज्यके ित्िों में सरकार ऐसा ित्ि हैं तजसमें राज्य का मख्ु य स्िरुप तदखाई देिा है। राज्य की
ितिशीलिा स्पस्ट होिी हैं । अन्ििः सिसे महत्िपूणभ सम्प्रभिु ा ित्ि हैं । जो इसे अन्य समदु ायों से
अलि करिी है । जैसा तक उपर इस इकाई में हम अध्ययन कर चक ु ें तक सम्प्रभिु ा राज्य की सिोच्च
सत्ता है तजसका िात्पयभ है तक राज्य अपने आचरण में आन्िररक और िाह्य सभी मामलो मे परू ी
स्ििन्त्रिा का उपभेाि करिी है।
4.7 शब्दावली
1. प्रतिपाद्य तिषय - तचंिन का के न्रीय आधार।
2. निर राज्य - निर में ही राज्य का अतस्ित्ि
3. आतं िक तसद्धान्ि - ऐसा तसद्धान्ि जो शब्द को मानि शरीर के समान स्िीकार करिा है।
4 बजु भआ
ु ििभ - सम्पन्न कुलीन एिं सम्पतत्तिान ििभ।
5. सिभहारा ििभ - िरीब, शोषण का तशकार, सम्पतत्त तिहीन ििभ।
6. बजं ारा समहू - ऐसा समहू जो भोजन एिं भरण पोषण के तलए स्थान-स्थान पर घमू िा तफरिा
है।
7. कबीला - जाति समहू अथिा सास्ं कृ तिक समहू जो कुछ तनतिि मान्यिाओ ं के आधार पर
अपनी पहचान रखिा है।
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ु तिश्वतिद्यालय 80
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4.9 सन्दभभ ग्रन्थ सूची
5- अनपू चन्र कपरू - राजनीति शास्त्र के तसद्धान्ि।
6-डॉ0 पंि, डॉ0 जैन एिं डॉ0 िप्तु ा - राजनीति शास्त्र के तसद्धान्ि।
डॉ0 आर0 सी0 अग्रिाल - राजनीति तिज्ञान के तसद्धान्ि।
डॉ0 ओ0 पी0 िािा - राजनीति शास्त्र के तसद्धान्ि।
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ु तिश्वतिद्यालय 81
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5.0 प्रस्तावना
इसके पिू भ की इकाई के अध्ययन के द्वारा हमें राज्य के अथभ उसके प्रकृ ति और उसके क्षेत्र के बारे में
तिस्िृि जानकारी प्राप्त हुई। राज्य के अथभ को जानने के क्रम में हमें यह जानकारी प्राप्त हुई तक इसके
चार महत्िपणू भ ित्ि है िो इसके अतस्ित्ि के आधार है। तजसमे सिभप्रथम भ-ू भाि आिा है क्योंतकइसके
तबना राज्य के मलू स्िरुप की कल्पना नहीं की जा सकिी । दसू रे क्रम में जनसंख्या आिी है जो अत्यन्ि
महत्िपूणभ है क्योतक जनसंख्या तितहन भ-ू भाि जंिल या रे तिस्िान हो सकिा है। राज्य नही । िीसरे ;
राज्यके ित्िों में सरकार ऐसा ित्ि हैं तजसमें राज्य का मख्ु य स्िरुप तदखाई देिा है। राज्य की
ितिशीलिा स्पस्ट होिी हैं । अन्ििः सिसे महत्िपूणभ सम्प्रभिु ा ित्ि हैं । जो इसे अन्य समदु ायों से
अलि करिी है ।
इस इकाई के अध्ययन के आधार पर हमें यह जानकारी प्राप्त हो सके िी तक राज्य के उत्पतत्त के दैिीय
और सामातजक समझौिा के तसद्धांि के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके िी .तजसमे हम यह देखेंिे तक
दैिीय तसद्धांि को मानने िाले यह मानिे है तक राज्य ,पृथ्बी पर इश्वर का प्रकट रूप है .और राजा इश्वर
का प्रतितनतध है .जब तक सामातजक समझौिा के तसद्धांि को मानने िाले यह मानिे है तक राज्य एक
कृ तत्रम सस्ं था है ,तजसे मनष्ु य ने अपनी आिश्यकिाओ ं की पतू िभ के तलए बनाया ।
5.1 उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने का उद्देश्य तनम्निि है। आप इसके द्वारा-
1. राज्य की उत्पतत्त के सम्बन्ध में सामान्य बािे जान सके िे।
2. राज्य की उत्पतत्त के दैिी तसद्धान्ि का ज्ञान प्राप्त कर सके िे।
3. राज्य की उत्पतत्त के सामातजक समझौिा तसद्धान्ि का ज्ञान प्राप्त कर सके िे।
4. उपरोक्त दोनो ही तसद्धान्िो के तनतहिाथो एंि मान्यिाओ ं का ज्ञान प्राप्त कर सके िे।
5. दोनो ही तसद्धान्िों के अन्िभिि शासन के आधार एिं अतधकार का अध्ययन कर सकें िे।
6. दोनो ही तसद्धान्िों के अन्िभिि शासन एिं सामान्य जनिा के अतधकारो का अध्ययन कर
सकें िे।
7. दोनो ही तसद्धान्िों का आलोचनात्मक परीक्षण कर सकें िे।
8. दोनो ही तसद्धान्िों की उपयोतििा का ज्ञान प्राप्त कर सकें िे।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 83
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9. राज्य की उत्पतत्त का तिकासिादी तसद्धान्ि।
10. राज्य की उत्पतत्त में तिकासिादी तसद्धान्ि का योिदान।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 84
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है क्योंतक िे ईश्वरीय सत्ता के समान धरिी पर शासन करिा है। राजा लोक पृथ्िी पर ईश्वर की जीतिि
प्रतिमायें है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 85
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4.यह तसद्धान्ि राज्य को पतित्र संस्था मानिा है, अिएि इसके स्िरूप में पररििभन करना सम्भि नहीं
माना जािा। इस दृतष्ट से यह तसद्धान्ि रूतढ़िादी कहा जा सकिा है क्योंतक पररििभनों के अभाि में राज्य
मानि में राज्य मानि जीिन के तलए अनपु योिी हो जायेिा।
5.आधतु नक लोकिांतत्रक यिु में यह तसद्धान्ि सिभथा अप्रासंतिक है क्योंतक लोकिांतत्रक व्यिस्था में
जनिा स्ियं शासक का चनु ाि करिी है िथा िलि कायभ करने पर उसे हटा सकिी है। परन्िु दैिीय
तसद्धान्ि इन मान्यिाओ ं को अस्िीकार करिा है क्योंतक िह िलि कायभ तकये जाने पर भी राजा का
तिरोध करने का अतधकार जनिा को नहीं प्रदान करिा। अिः यह तसद्धान्ि व्यािहाररक नहीं प्रिीि
होिा।
6.यह तसद्धान्ि आधतु नक संप्रभु राज्यों के तलए अमान्य है क्योंतक उसमें शासक तकसी न तकसी रूप
में जनिा से जड़ु े होिे हैं िथा धमभ को राजनीति से अलि करके देखा जािा है।
5.2.3 दैिीय तसद्धान्ि की उपयोतगिा:-
समस्ि कतमयों के बािजदू यह तसद्धान्ि अनेक दृतष्ट से उपयोिी भी है -
1.इस तसद्धान्ि ने शासक जनिा सम्बन्धों में उत्तरदातयत्ि की भािना को बढ़ाया। राजा एिं प्रजा दोनों
को ही इसके अन्ििभि कुछ तनतिि मानदण्डों के अनरू ु प व्यिहार करने की सीख तमली।
2.इस तसद्धान्ि ने राजा को ईश्वरीय प्रतितनतध बिलाकर जनिा को राजभतक्त एिं आज्ञापालन का पाठ
पढ़ाया जो आधतु नक राज्य का एक आिश्यक िणु माना जािा है।
3.जैसा तक प्रो0 तिलक्राइस्ट का मानना है यह तसद्धान्ि िलि एिं तििके शन्ू य भले ही हो, अराजकिा
का अन्ि करने का श्रेय इसे ही जािा है।
4.यह तसद्धान्ि इस िथ्य का भी प्रतिपादन करिा है तक चँतू क राजा का ईश्वर के प्रति नैतिक उत्तरदातयत्ि
होिा है, अिएि राजा को भी नैतिक मानदाण्डों का प्रयोि करिे हुए शासन शतक्त का उतचि रूप में
प्रयोि करना चातहये।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 86
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के अनसु ार राज्य का तनमाभण व्यतक्तयों के पारस्पररक समझौिे द्वारा हुई। उसके पिू भ भी एक अिस्था थी
जो प्राकृ तिक अिस्था के नाम से जानी जािी है। अपनी आिश्यकिा के तलए व्यतक्त ने प्राकृ तिक
अिस्था का त्यािकर समझौिे द्वारा राजनीतिक समाज की स्थापना की। इस समझौिे से व्यतक्तयों को
सामातजक अतधकार प्राप्त हुए।
यह तिचार काफी परु ाना है तक शासक की शतक्त उसके िथा उसकी प्रजा के मध्य सम्पन्न तकसी
समझौिे पर आधाररि है। इसका िणभन भारिीय ग्रंथों महाभारि के ‘शातन्िपिभ’ िथा कौतटल्य की
पस्ु िक अथभशास्त्र में तमलिा है तजसमें कहा िया है तक अराजकिा की तस्थति से दख ु ी होकर मनष्ु यों ने
परस्पर समझौिे द्वारा राज्य की स्थापना की। यनू ान में सोतफस्ट तिचारको के द्वारा भी इस तसद्धान्ि का
समथभन तकया िया। इसी प्रकार इपीक्यरू रयन िथा रोम के तिचारको एंि तितध शातत्रयो ने भी इस
तसद्धान्ि का समथभन तकया था। रोम के तिचारक िथा तितधशास्त्री (जैसे पातलतबयस एिं तससरो) जनिा
को राज्य की शतक्त का स्रोि मानिे है। इस तसद्धान्ि के अन्य समथभकमें हम बक ु ानन, एल्यतू सयस
ग्रोतशयस, प्यपू ेनडाफभ िथा स्पेनोजा के नाम का उल्लेख कर सकिे है
सामातजक समझौिा तसद्धान्ि की रूपरेखा
सामातजक समझौिा तसद्धान्ि की स्पष्ट अतभव्यतक्त सत्रहिी शिाब्दी में इग्ं लैडं के हाब्स एंि लॉक िथा
अठारहिी शिाब्दी में फ़्ासं के रूसो की तत्रमतू िभ ने प्रस्ििु की है। इन तिचारको ने एक ऐसे यिु की
कल्पना की है तजसमें तकसी प्रकार की कोई सत्ता नही थी िथा उस काल को उन्होने प्राकृ तिक अिस्था
का नाम तदया था तजसका अन्ि एक सामातजक समझौिे द्वारा हुआ ।इस समझौिे के अन्िभिि लोिों
ने अपने प्राकृ तिक अतधकार समतपभि कर तदये िातक स्थातपि राजनीतिक सत्ता द्वारा उन्हें सामातजक
अतधकारों का रुप तदया जा सके । यद्यतप तितभन्न मद्दु ों पर िीनों तिचारकों के दृतष्टकोण तभन्न है परन्िु
ये सभी मानि जाति की राज्य से पिू भ की अिस्था की कल्पना करिे हैं। यहाँ पर हम हम िीनों ही
तिचारकों के तिचारों का बारी-बारी से अध्ययन करें िे ।
5.3.1 थामस हाब्स
थामस हाब्स इग्ं लैडं के तनिासी थे। उनके समय में राजिंत्र िथा प्रजािंत्र के समथभको के मध्य िृह यद्ध
ु
चल रहा था। राजिशं से तनकट सम्पकभ होने के नािे उनकी तिचारधारा राजिंत्रिादी थी। अिएि उनका
यह तिश्वास था तक शतक्तशाली राजित्रं के तबना देश में शातन्ि िथा सव्ु यिस्था नही स्थातपि हो सकिी।
हाब्स ने 1051 में प्रकातशि अपनी पस्ु िक लेतियाथन ¼Leviathan½ ने समझौिा तसद्धान्ि का
प्रतिपादन करके तनरंकुश राजित्रं का समथभन तकया। हाब्स ने अपने तसद्धान्ि की व्याख्या इस प्रकार
की है-
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 87
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1.मानि स्िभाि
हाब्स ने मनष्ु य के बारे में अपने तिचार प्रकट करिे हुए कहा था तक मनष्ु य की मनष्ु य का शत्रु है। िह
बबभर, स्िाथी, अहक ं ारी, आक्रामक एंि आत्मातभमानी, होिा है। िह सदैि शतन्ि से ही प्रेम करिा है
िथा शतन्ि प्राप्त करने का तनरन्िर प्रयास करिा रहिा है। यही कारण है तक मानि जीिन एकाकीपणू भ,
िंदा, तनधभनिापणू भ िथा अल्पकालीन होिा है।
2.प्राकृतिक अिस्था
प्राकृ तिक अिस्था में मनष्ु य का जीिन तकसी भी प्रकार के तनयत्रं ण से मक्त
ु था तजमसें प्रत्येक मनष्ु य
दसू रे मनष्ु य को न्याय, अन्याय, उतचि-अनुतचि, अच्छे -बरु े अथिा सत्य-असत्य का कोई ज्ञान न था
प्राकृ तिक अिस्था ‘शतक्त ही सत्य है’ की धारणा पर आधाररि थी। इसतलए प्राकृ तिक अिस्था में
शातं ि, व्यिस्था, सम्पतत्त, न्याय, उद्योि व्यापार आतद जैसी कोई व्यिस्था न थी। स्ियं हाब्स के शब्दों
में जहाँ कोई व्यिसाय न था, कोई संस्कृ ति न थी, कोई तिद्या न थी, कोई भिन तनमाभण कला न थी
िथा न कोई समाज था।
समझौिे के कारण प्राकृ तिक अिस्था में मनष्ु यों का जीिन िथा उनकी सम्पत्त् सरु तक्षि न थी। जीिन
िथा सम्पतत्त की इस असरु क्षा िथा मृत्यु एिं संहार के भय ने व्यतक्तयों को इस बाि के तलए प्रेररि
तकया तक िे असहनीय प्राकृ तिक अिस्था का अन्ि करने के उद्देश्य से एक राजनीतिक समाज का
तनमाभण करें ।
3.समझौिे का स्िरूप -निीन समाज का तनमाभण करने के तलए सभी व्यतक्तयों ने तमलकर एक
समझौिा तकया। हाब्स के मिानसु ार यह समझौिा प्रत्येक व्यतक्त ने शेष व्यतक्त समहू से तकया तजसमें
प्रत्येक तकसी व्यतक्त को अथिा सभा को अपने अतधकार एिं शातन्ि का समपभण करिा हूँ तजससे तक
िह हम पर शासन करे , परन्िु इसी शिभ पर तक िमु भी अपने अतधकार एिं शतक्त का समपभण इसी रूप
में करो और इसकी आज्ञाओ ं को मानो इस समझौिे में शासक कोई पक्ष नही है। िथा यह समझौिा
सामातजक है, राजनीतिक नहीं। िह सत्ता इस समझौिे का पररणाम है।
ऐसे समझौिे के माध्यम से समाज, राज्य िथा शासन अतस्ित्ि में आ िया जो सभी के जीिन एिं
सम्पतत्त की सरु क्षा से सम्बतन्धि है।
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4.राज्य का स्िरूप
हाब्स के समझौिे के द्वारा एक ऐसे तनरंकुश राजित्रं की स्थापना की िई तजसका शासक सम्पणू भ शतक्त
सम्पन्न है िथा तजसका प्रजा के प्रति कोई किभव्य नहीं है। शातसि ििभ अथिा सामान्य जनिा को
शासक के तिरूद्ध तिरोह करने का कोई अतधकार नहीं है।
5.3.2 ल क के सामातजक समझौि
मानि स्िभाि
लोक के अनसु ार मनु ष्य एक सामातजक प्राणी है तजसमें प्रेम सहानभु तू ि, सहयोि एिं करुणा की
भािनायें तिद्यमान थी। अिएि प्रत्येक मनष्ु य अपने सद्गणु ों का प्रदशभन करके दसू रे व्यतक्त से अपना
सम्पकभ बनाने के तलए कृ ि संकल्प था।
प्राकृतिक अिस्था
चँतू क मनष्ु य एक सामातजक एिं तिचारशील प्राणी था, इसतलए लोक की प्राकृ तिक अिस्था, हाब्स
की भाँति संघषभ-पणू भ न होकर सतदच्छा, सहयोि एिं सरु क्षा की व्यिस्था थी। लोक के अनसु ार
प्राकृ तिक अिस्था तनयि तिहीन न थी। प्राकृ तिक अिस्था में मनष्ु यों को प्राकृ तिक अतधकार प्राप्त थे
िथा प्रत्येक व्यतक्त अन्य व्यतक्तयों के अतधकारों का आदर करिा था। ये प्राकृ तिक अतधकार थे- (1)
जीिन का अतधकार (2) स्ििंत्रिा का अतधकार (3) सम्पतत्त का अतधकार।
समझौिे का कारण
लॉक का मानना है तक समय बीिने के साथ इस आदशभ प्राकृ तिक अिस्था में कुछ ऐसी कतमयाँ उभर
कर सामने आई तक व्यतक्तयों के समक्ष असतु िधायें आने लिी। इन असतु िधाओ ं को दरू करने के तलए
व्यतक्तयेां ने प्राकृ तिक अिस्था का त्याि करना उतचि समझा । ये असतु िधायें तनम्नतलतखि थीं-
१. तनयमों का तनमाभण करने की कोई स्पष्ट व्यिस्था न थी।
२. तनयमों का पालन करिाने की कोई शतक्त नहीं थी।
३. इन तनयमों की व्याख्या करने के तलए कोई व्यिस्था नहीं थी।
समझौिे का स्िरूप
हाब्स के तसद्धान्ि के अनुसार राज्य का तनमाभण करने के तलए के िल एक ही समझौिा तकया िया था,
परन्िु लोक के समझौिे की तस्थति तििादास्पद है। कुछ तिद्वानों के अनसु ार लोक ने दो समझौिों का
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ु तिश्वतिद्यालय 89
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िणभन तकया था जबतक अन्य तिद्वान समझौिा एक ही स्िीकार करिे हैं तजसका स्िरूप तद्वपक्षीय था।
पहले समझौिे द्वारा प्राकृ तिक अिस्था का अन्ि करके समाज की स्थापना की ियी। इस समझौिे का
लक्ष्य व्यतक्तयों के जीिन स्ििंत्रिा िथा सम्पतत्त की रक्षा करना था। पहले समझौिे के उपरांि शासक
एिं शातसि के मध्य दसू रा समझौिा सम्पन्न हुआ, तजसमें शातसि ििभ के द्वारा शासक को काननू
बनाने, उनको लािू करने िथा उसकी व्याख्या करने का अतधकार तदया िया। परन्िु शासक के तलए
यह अतनिायभ शिभ थी तक उसके द्वारा तनतमभि काननू अतनिायभ रूप से प्राकृ तिक तनयमों के अनक ु ू ल एिं
अनरू ु प होंिे िथा िे जनिा के तहि में तनतमभि होंिे।
राज्य का स्िरूप
लॉक के सामातजक समझौिा तसद्धान्ि के अन्ििभि शासक एिं शातसि के मध्य जो समझौिा सम्पन्न
हुाअ है, उससे यह स्पष्ट है तक सरकार स्ियं एक लक्ष्य नहीं िरन् एक लक्ष्य की प्रातप्त का साधन मात्र
है िथा यह लक्ष्य है शातं ि िथा व्यिस्था स्थातपि करना िथा जन कल्याण। लोक ने इस तिचार का
प्रतिपादन तकया है तक यतद सरकार अपना उद्देश्य प्राप्त करनेमें अफल हो जािी है िो समाज को ऐसी
सरकार के स्थान पर दसू री सरकार स्थातपि करने का पणू भ अतधकार है। इस प्रकार लॉक ऐसी शासन
व्यिस्था का समथभन करिा है तजसमें िास्ितिक एिं अतन्िम शतक्त जनिा में तनतहि होिी है िथा
सरकार का अतस्ित्ि जनिा की इच्छा पर तनभभर करिा है।
5.3.3 जीन जैम्स रूसो का सामातजक समझौिा तसद्धान्ि
रूसो ने अपनी पस्ु िक ¼The Social Contract 1762½ में सामातजक समझौिा तसद्धान्ि का
प्रतिपादन तकया है। रूसो का तसद्धान्ि हाब्स िथा लॉक के तसद्धान्ि से एक िरफ अलि है दसू री ओर
उसमें दोनों के ित्ि कहीं न कहीं तिद्यमान तदखाई देिे हैं। इसके अतिररक्त रूसो ने तजस प्रकार से अपने
तसद्धान्ि की व्याख्या की है िह लोकिंत्र का अग्रदिू बन जािा है। रूसों के द्वारा अपने तसद्धान्ि की
व्याख्या इस प्रकार की िई है-
1.मानि स्िभाि
हाब्स ने मनष्ु य को बश
ु एिं असभ्य िथा लोक ने उसे भला िथा सहयोि की भािना से प्रेररि बिाया
था, िहीं रूसो मनष्ु य को पररतस्थतियों के अधीन अच्छा अथिा िरु रा दोनों ही बिािा है। रूसो का
मि है तक ‘मनष्ु य मानिीय अच्छाई में बाधक बनिी है।’ यह बाि उसकी इस धारणा से स्ििः और
स्पष्ट हो जािी है जब िह इस बाि का प्रतिपादन करिा है तक मनष्ु य स्ििंत्र पैदा होिा है परन्िु िह
सिभत्र जजं ीरों से जकड़ा हुआ है।
उत्तराखंड मक्त
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2.प्राकृतिक अिस्था
रूसो के अनसु ार प्राकृ तिक अिस्था आदशभ अिस्था थी तजसमें मनष्ु य शातन्ि एिं सिं ोषपणू भ जीिन
व्यिीि करिा था। उसे न िो तकसी साथी की आिश्यकिा थी िथा न तकसी का अतहि करने की
उसकी इच्छा थी। इस प्रकार प्राकृ तिक अिस्था में व्यतक्त एक भोले बालक की भाँति सादिी िथा
परमसख ु का जीिन व्यिीि करिा था। इस प्रकार प्राकृ तिक अिस्था में मनष्ु य छल कपट रतहि जीिन
व्यिीि करिा था, परन्िु इस प्राकृ तिक अिस्था में तििके का अभाि था। यही कारण है तक रूसो
प्राकृ तिक अिस्था के व्यतक्त को आदशभ बबभर ¼Noble Savage½ की संज्ञा देिा है।
3.समझौिे का कारण
रूसो प्राकृ तिक अिस्था का तचत्रण आदशभ अिस्था के रूप में करिा है परन्िु समय बीिने के उपरांि
यही अिस्था कष्टमय होिी चली ियी। कृ तष के अतिष्कार के कारण भतू म पर स्थायी अतधकार िथा
इसके पररणामस्िरूप सम्पतत्त का उदय हुआ। यही से समाज में मेरे िेरे की भािना का तिकास हुआ।
जब व्यतक्त अतधक से अतधक भतू म पर अतधकार की इच्छा रखने लिा िो इस अिस्था में संघषभ की
भािना पैदा होने लिी िथा मानि जीिन कष्टमय िथा अशातं िपणू भ होिा िया। सम्पतत्त के बारे में उसकी
मान्यिा यह है तक ‘‘िह पहला व्यतक्त समाज का िास्ितिक जन्मदािा था तजसने एक भ-ू भाि को
घेरकर कहा था तक यह मेरी भतू म है’’ िथा तजसे अपने इस कथन के प्रति तिश्वास करने िाले सरल
व्यतक्त तमल िये। इस प्रकार प्राकृ तिक अिस्था में यद्ध
ु संघषभ एिं तिनाश का िािािरण उपतस्थि हो
िया। अिएि इस अिस्था का अन्ि करने के तलए व्यतक्तयों ने पारस्पररक समझौिे द्वारा समाज की
स्थापना का तनिय तकया।
4.समझौिे का स्िरूप
प्राकृ तिक अिस्था की असहनीय तस्थति का अन्ि करनेके तलए सभी व्यतक्त एक स्थान पर एकतत्रि
हुए िथा उनके द्वारा अपने सम्पणू भ अतधकारों का समपभण तकया िया परन्िु यह समपभण तकसी तिशेष
व्यतक्त के तलए िरन् सम्पणू भ समाज के तलए तकया िया। समझौिे के पररणाम स्िरूप समाज की एक
सामान्य इच्छा उत्पन्न हुई िथा सभी व्यतक्त इस सामान्य इच्छा के अधीन माने िये। रूसो के शब्दों में
‘‘समझौिे के अन्ििभि प्रत्येक व्यतक्त अपनी पणू भ शतक्त को सामान्य प्रयोि के तलए सामान्य इच्छा के
सिोच्च तनदेशक के अधीन समतपभि कर देिा है िथा एक समहू के रूप में अपने व्यतक्तत्ि िथा अपनी
पणू भ शतक्त को प्राप्त कर लेिा है।’’ यह अिस्था सभी पक्षों के तलए लाभपणू भ तसद्ध हुई।
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ु तिश्वतिद्यालय 91
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
5.राज्य का स्िरूप :
रूसो के समझौिे के द्वारा एक लोकिातं त्रक समाज की स्थापना होिी है तजसके अन्ििभि सम्प्रभिु ा
सम्पणू भ समाज में तनतहि होिी है तजसका आधार सामान्य इच्छा है। यतद सरकार सामान्य इच्छा के
तिरूद्ध आचरण करिी है िो जनिा को ऐसी सरकार को पदच्यिु करने का अतधकार प्राप्त होिा है
शासन का आधार लोकतप्रय सम्प्रभिु ा से जड़ु ा होिा है।
5.3.4 सामातजक समझौिा तसद्धान्ि की आलोचना
यद्यतप सामातजक समझौिा तसद्धान्ि 17 िीं एिं 13 िीं सदी में काफी लोकतप्रय हुआ िथा हूकर
,तमल्टन , ग्रोशस, ब्लैकस्टोन, तस्पनोजा जैसे अनेक तिचारकों ने इसका समथभन तकया परन्िु 13 िीं
सदी के अन्ि िथा 19 िीं सदी के राजनीतिक तिचारकों ने इसकी कड़ी आलोचना प्रस्ििु की। ह्यमू
,सर हेनरी मेन ,ब्लंशली, बेंथम सर फ्रेडररक पोलक िथा एडमण्ड िकभ जैसे तिचारकों ने इस समझौिे
को ‘सत्य से परे ’ ‘कपोल कतल्पि’ एिं ‘िकभ हीन’ घोतषि तकया। इस तसद्धान्ि की तितभन्न आधारों
पर आलोचना की जािी है जो इस प्रकार है-
1.ऐतिहातसक आधार
ऐतिहातसक आधार पर इस समझौिे की आलोचना इस प्रकार की िई है-
१.ऐतिहातसक दृतष्ट से सामातजक समझौिा तसद्धान्ि कल्पतनक प्रिीि होिा है क्योंतक इतिहास में इस
बाि का कहीं भी उदाहरण नहीं तमलिा तक आतदम मनष्ु यों ने पारस्पररक समझौिे के आधार पर राज्य
की स्थापना की हो।
२.समातजक समझौिा तसद्धान्ि मानि इतिहास को प्राकृ तिक अिस्था िथा सामातजक अिस्था इस
प्रकार के दो कालों में बाँट देिा है। परन्िु ऐतिहातसक दृतष्ट से यह काल तिभाजन तनिान्ि असत्य है।
इतिहास में हमें कहीं भी ऐसी अिस्था का प्रमाण नहीं तमलिा जब मानि सिं ठन तिहीन अिस्था में
रहिा है।
३.इतिहास के अनसु ार राज्य िथा इसी प्रकार की मानिीय संस्थाओ ं का तिकास हुआ है, तनमाभण नहीं।
ला-फर ने कहा है तक पररिार की भाँति ही राज्य समाज के तलए आिश्यक है और िह समझौिे का
नहीं िरन् मानिीय प्रकृ ति का पररणाम है।
2.दाशगतनक आधार
इस समझौिे की आलोचना के दाशभतनक आधार इस प्रकार हैं:-
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१.इस तसद्धान्ि के अन्ििभि राज्य को एक ऐसे संिठन के रूप में तचतन्हि तकया िया है तजसकी सदस्यिा
ऐतच्छक हो, परन्िु राज्य की सदस्यिा ऐतच्छक नहीं होिी िरन् अतनिायभ होिी है। व्यतक्त उसी प्रकार
राज्य के सदस्य होिे हैं जैसे पररिार के क्योंतक राज्य एक प्राकृ तिक सस्ं था है।
२.मनष्ु य िथा राज्य के सम्बन्धों की व्याख्या समझौिे के आधार पर तकया जाना अनतु चि है क्योंतक
मनष्ु य एिं राज्य का सम्बन्ध मानि की प्रकृ ति पर आधाररि है।
३.यह तसद्धान्ि राज्य को कृ त्रीम िथा मानिीय कृ ति मानिा है जबतक राज्य मानि स्िभाि पर
आधाररि प्राकृ तिक संस्था है। यह मनष्ु य की स्िाभातिक सामातजक प्रिृतत्त का पररणाम है।
४.समझौिा तसद्धान्ि राज्य को व्यतक्तिि सनक का पररणाम बिाकर क्रांति एिं अराजकिा को
प्रोत्सातहि करिा है और नािररकों के व्यितस्थि जीिन के तलए चनु ौिी प्रस्ििु करिा है।
५.जान लॉक के मिानसु ार मनुष्य प्राकृ तिक अिस्था में प्राकृ तिक अतधकारों का उपभेाि करिा था।
परन्िु यह धारणा तनिान्ि भ्रमपणू भ है क्योंतक अतधकारों का उदय समाज में ही होिा है िथा एक राज्य
के अन्ििभि रहकर ही अतधकरों का उपभोि तकया जा सकिा है।
3.िातकग क आधार
यह तसद्धान्ि िकभ की कसौटी पर भी खरा नहीं उिरिा क्योंतक प्राकृ तिक अिस्था में रहने िाले व्यतक्तयों
में एकाएक ही राजनीतिक चेिना का उदय कै से हो िया। िास्ितिकिा यह है तक राजनीतिक चेिना
सामातजक जीिन में उत्पन्न होिी है। सामातजक जीिन के अभाि में राजनीतक चेिना का उदय सम्भि
नहीं है।
4.िैधातनक आधार
िैधातनक आधार पर इस तसद्धान्ि की आलोचना के आधार पर तनम्नतलतखि है -
१.प्राकृ तिक अिस्था में तकये िये तकसी भी समझौिे का िैधातनक दृतष्ट से कोई महत्ि नहीं है क्योंतक
तकसी भी समझौिे की स्िीकृ ति का आधार राज्य की शतक्त होिी है। परन्िु प्राकृ तिक अिस्था में राज्य
का अतस्ित्ि न होने के कारण सामातजक समझौिे के पीछे इस प्रकार की शतक्त न थी।
२.कोई भी समझौिा तजन तनतिि लोिों के मध्य होिा है, उन्हीं पर लािू होिा है अिः तकसी अज्ञाि
समय में अज्ञाि व्यतक्तयों द्वारा तकया िाय समझौिा उसके बाद के समय एिं ििभमान लोिों पर लािू
हो, यह काननू ी दृतष्ट से अमान्य है।
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ु तिश्वतिद्यालय 93
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5.3.5 तसद्धान्ि की उपयोतगिा
समस्ि आलोचनाओ ं के बािजदू सामातजक समझौिा उपयोिी माना िया है और इसके प्रमख
ु कारण
हैं-
१.इस तसद्धान्ि के द्वारा राज्य की उत्पतत्त के दैिी तसद्धान्ि का खण्डन तकया िाय तजसके अन्ििभि
राजा को ईश्वर का प्रतितनतध माना िया था और तजसने राजा को तनरंकुश बनाया था।
२.इस तसद्धान्ि ने यह प्रमातणि कर तदया तक राजा की शतक्त या व्यतक्तिि इच्छा नहीं बतल्क
जनसहमति ही राज्य का आधार है।
३.इस तसद्धान्ि से सम्प्रभिु ा के तसद्धान्ि का तिकास हुआ। हाब्स ने ‘िैधातनक सम्प्रभिु ा’ लोक ने
‘राजनीतिक प्रभुिा’ िथा रूसो ने ‘लोकतप्रय सम्प्रभिु ा’ के तसद्धान्ि का प्रतिपादन तकया।
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के कारण तितभन्न समयों, अिस्थाओ ं एंि स्थानों में राज्यों के तिकास का क्रम भी तितभन्न रहा है और
उसके अन्िभिि तनम्न ित्िों का योिदान प्रमख ु रूप से रहा है- (1) रक्त सम्बन्ध (2) मानि की
स्िाभातिक सामातजक प्रिृतत्तयॉ (3) धमभ (4) शतक्त (5) आतथभक ितितितधयॉ (6) राजनीतिक चेिना।
1.रि सम्बन्ध - यह एक सिभमान्य िथ्य है तक सामातजक संिठन का प्राचीनिम् रूप रक्त सम्ब्न्ध पर
आधाररि था िथा रक्त सम्बन्ध एकिा का प्रथम िथा दृढ़िम बन्धन रहा है। आंग्ल भाषा की कहािि
है तक- खनू पानी से िाढ़ा होिा है । इसके अन्ििभि परू ु ष नारी िथा बच्चों से यक्त
ु पररिार संितठि
जीिन की प्रथम इकाई बना। हर पररिार का मतु ख्या होिा था और उसे पररिार के सदस्यों पर तकसी न
तकसी प्रकार से तनयंत्रण प्राप्त था। मल
ू पररिारों में से कई पररिार तिकतसि हुए तजसके पररणाम स्िरूप
एक नई इकाई जाति, कबीला या कुटुम्ब का जन्म हुआ। पररिार के मतु ख्या की ही भाँति बड़ी इकाई
कबीले का भी एक मतु खया बन िया। पररिारों से कबीला िथा कबीले से अन्ििः राज्य बन िये। हेनरी
मेन ने उतचि ही कहा है, ‘‘प्राथतमक संििभ पररिार है। पररिारे ां का योि कुलों या घरानों का िठन
करिा है। घरानों के योि से कबीला बनिा है। कबीलों के योि से राज्य बनिा है।’’ मैकाइबर के अनसु ार
- ‘‘जैस-े जैसे पीतढ़यों के तिकास के साथ संििभ तिशाल होिा िया, रक्त सम्बन्धें का भाि और
अतधकार पष्टु होिा िया। रक्त सम्बन्ध ने समाज का तनमाभण तकया है िथा समाज ने आिे चलकर राज्य
का तनमाभण तकया है।’’
2.मनष्ट्ु य की स्िाभातिक सामातजक प्रितृ त्तयााँ
मनष्ु य स्िभाि से ही एक सामातजक िथा राजनीतिक प्राणी है िथा समहू में रहने की मानि की प्रिृतत्त
ने ही राज्य को जन्म तदया है। समाज में साथ-साथ रहिे हुए जब तितभन्न व्यतक्तयों के स्िभाि िथा
स्िाथभिि भेदों के कारण तितभन्न प्रकार के तििाद उत्पन्न हुए िो इन तििादों को दरू करने के तलए एक
सम्प्रभिु ा सम्पन्न राजनीतिक सस्ं था की आिश्यकिा समझी ियी िथा राज्य का उदय हुआ। इस प्रकार
राज्य को बहुि अतधक सीमा िक मानि की स्िाभातिक सामातजक प्रिृतत्त का पररणाम कहा जा
सकिा है। इस सम्बनध में जॉन माले ने उतचि ही कहा है ‘‘राज्य के तिकास का िास्ितिक आधार
मनष्ु य के जीिन में तिद्यमान अन्िजाभि प्रिृतत्त रही है।’’
3.धमग
रक्त सम्बन्ध की भाँति ही धमभ का राज्य की स्थापना में महत्िपणू भ योिदान रहा है। िस्ििु ः प्रारतम्भक
समाज में रक्त सम्बन्ध एिं धमभ एक ही िस्िु के दो पहलू थे िथा दोनों की पररिार िथा कबीलों को
परस्पर जोड़ने का कायभ साथ ही करिे थे। तिल्सन के अनसु ार ‘‘प्रारतम्भक समाज में धमभ समान रक्त
का प्रिीक, उसकी एकिा, पतित्रिा िथा दातयत्ि की अतभव्यतक्त था।’’ िेटेल ने िो यहाँ िक तलखा
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ु तिश्वतिद्यालय 95
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है तक रक्त सम्बन्ध िथा धमभ एक ही िस्िु के दो रूप थे िथा समहू की एकिा एिं उनके किभव्यों को
धातमभक मान्यिा प्राप्त थी।
िस्ििु ः धमभ का उदय पररिारों एिं कबीलों में रहने िाले लोिों की जीिन शैली में से हुआ। प्रारतम्भक
समाज में धमभ के दो रूप प्रचतलि थे तपिृ पजू ा िथा प्राकृ तिक शतक्तयों की पजू ा। व्यतक्त अपने पररिार
के िृद्ध व्यतक्तयों के मृि हो जाने पर भी उनके प्रति ऋद्धा रखिे थे िथा उनका तिचार था तक शरीर के
नष्ट हो जाने पर भी आत्मा शेष रहिी है, अिः इस आत्मा को प्रसन्न करने के तलए उन्होंने तपिृ पजू ा
आरम्भ कर दी। धमभ के इस बहुप्रचतलि रूप ने पररिारों को एकिा के सत्रू में बाँधा। जो एक ही िश ं
या रक्त से सम्बतन्धि होिे थे, उनके कुल देििा या पिू भज भी एक ही हुआ करिे थे।
उस समय धमभ का एक दसू रा प्रचतलि रूप प्राकृ तिक शतक्तयों की पजू ा थी। प्रारतम्भक समाज में बतु द्ध
के तिकास के अभाि में व्यतक्त प्राकृ तिक पररििभनों को समझने में असमथभ थे। उन्होंने बादल की
िड़िड़ाहट, तबजली की चमक, िायु की िति िथा िस्िओ ु ं के पररििभन में ईश्वर की शतक्त का अनभु ि
तकया िथा प्रकृ ति की प्रत्येक िस्िु उनके तलए देििा बन िई। व्यतकि पृथ्िी सूयभ, अतग्न, इन्र िथा
िरुण की उपासना करने लिे िथा एक ही शतक्त के उपासकों में परस्पर घतनष्ठ मैत्री भाि उत्पन्न हुआ
जो राज्य का आधार बना।
प्रारतम्भक समाज में तितभन्न प्राकृ तिक शतक्तयों को देचिा या भिू -प्रेि समझा जािा था िथा जब कोई
व्यतक्त यह तसद्ध कर देिा था तक िह प्राकृ तिक शतक्तयों को तनयंतत्रि रख सकिा है, िब उसे समाज में
असाधारण शतक्त िथा सम्मान प्राप्त हो जािा था िथा अनेक बार िे िांतत्रक कहे जाने िाले व्यतक्त
राजा बन जािे थे। यनू ानी नरार राज्य में ऐसा ही हुआ था। धमभ ने एक से अतधक रूप में राज्य के तिकास
में अपना योिदान तदया है।
4.शति
राज्य संस्था के तिकास में शतक्त या यद्ध ु का स्थान भी तिशेष महत्िपणू भ रहा है। जैक्स के अनसु ार
‘‘यद्ध
ु ने सम्राट को जन्म तदया’’ अन्य मनष्ु यों पर आतधपत्य स्थातपि करने िथा संघषभ एिं आक्रमण
की प्रिृतत्त भी मानि की मल ू प्रिृतत्तयों में से एक है। मानिीय तिकास के प्रारतम्भक काल में ये प्रिृतत्तयाँ
बहुि अतधक सतक्रय थीं। कृ तष िथा व्यिसाय की उन्नति ने तनजी सम्पतत्त की धारणा को बढ़ािा तदया।
ऐसी तस्थति में तनिास स्थान िथा सम्पतत्त की रक्षा के तलए यद्ध ु होने लिे। लोि सरु क्षा प्रदान करने की
क्षमिा रखने िाले शतक्तशाली व्यतक्त के नेित्ृ ि को स्िीकार करने लिे। इस नेिा की अधीनिा में एक
कबीला दसू रे कबीले पर आतधपत्य जमाने की चेष्टा में संलग्न रहा िथा संघषभ की इस प्रतक्रया में तिजयी
कबीले का सैतनक सरदार राजा बन बैठा। बलपिू भक शतक्त ने प्रभसु त्ता का रूप धारण तकया िथा शासक
के प्रति भतक्त एिं तनष्ठा की भािना का जन्म हुआ।
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आत्म रक्षा िथा तिस्िारिादी प्रिृतत्त ने भी राज्य के तिकास में अपना योिदान तदया है। उदाहरण
स्िरूप, अमेररका के कई उपतनिेश तितटश सम्राट जाजभ िृिीय के तिरूद्ध संितठि हो िये िथा उन्होंने
अपनी स्िित्रं िा की घोषणा कर दी क्योंतक उन्हें अग्रं ेजों के आक्रमण िथा शोषण का खिरा था।
प्राचीनकाल में तिजयों के द्वारा छोटे राज्यों से बड़े राज्यों िथा बड़े से तिशाल साम्राज्यों का उत्थान
िथा पिन इसी प्रकार हुआ। भारि में चन्रिप्तु मौयभ ने मिध के शासक नन्द को परास्ि करके अपने
तिशाल साम्राज्य की नींि रखी िथा धीरे -धीरे उसका तिस्िार तकया। इसी प्रकार यरू ोप में भी रोम के
सम्राटों ने दरू -दरू के प्रदेशों को जीिकर रोम साम्राज्य का तनमाभण तकया तजसका कालान्िर में पिन भी
हो िया। मैकाइबर का कहना सिभथा सत्य है तक राज्य का उदय शतक्त के द्वारा नहीं हुआ है यद्यतप
शतक्त ने राज्य तिस्िार में महत्िपणू भ भाि तलया है।
5.आतथगक गतितितधयााँ
आतथभक ितितितधयों ने भी राज्य की उत्पतत्त एिं तिकास में अपना योिदान तदया है। सबसे पहले
मनष्ु य तशकार के द्वारा अपना जीिनयापन करिा था, िदोपरान्ि पशपु ालन की अिस्था आ िई। तशकार
अिस्था में धनिान एिं तनधभन का भेद न था, परन्िु पशपु ालन अिस्था में यह भेद उभरकर सामने आ
िया। तजसमें पास अतधक पशु होिे थे, िह धनिान समझा जािा था िथा तजसके पास कम होिे थे या
तबलकुल नहीं होिे थे िह तनधभन समझा जािा था। पशपु ालन के यिु में मनष्ु य की आिश्यकिायें बढ़
िई िथा धीरे -धीरे कृ तष का ररिाज आरम्भ हुआ। कृ तष के आरम्भ होने से मनष्ु य का एक स्थान से
दसू रे पर भोजन की िलाश में घमू ना तफरना बन्द हो िया िथा िह एक स्थान पर बस िया। इस प्रकार
से ग्रामों िथा निरों की उत्पतत्त हुई। कृ तष के आरम्भ होने से उद्योिों एिं व्यापार की भी उन्नति हुई िथा
सम्पतत्त की परम्परा ने जन्म तलया। सम्पतत्त के कारण अनेक ििभ उत्पन्न हुए िथा उनमें संघषभ बढ़ा।
अिः इन संघषों को तनयंतत्रि करने के तलए काननू की आिश्यकिा महससू हुई। िेटेल के अनसु ार,
‘‘आतथभक सेिायें, तजनके द्वारा मनष्ु य ने मौतलक अपेक्षाओ ं की सिं तु ष्ट की िथा बाद में सम्पतत्त एिं
धन का संचय तकया, राज्य तनमाभण में आिश्यक ित्ि रही है।’’
प्लेटो, मैतकयािेली हाब्स, लोक, आडम तस्मथ िथा मांटेस्क्यू जैसे तिचारकों ने भी राज्य की उत्पतत्त
िथा तिकास में आतथभक ित्िों के योि को स्िीकार तकया है। आिे चलकर कालभ माक्सभ ने िो इस
तिचार को प्रकट करिे हुए तलखा है तक, ‘‘राज्य आतथभक पररतस्थति की ही अतभव्यतक्त है।’’
6.राजनीतिक चेिना
राज्य की स्थापना में सिाभतधक महत्िपणू भ योिदान राजनीतिक चेिना का माना जािा है। जब लोिों ने
यह अनभु ि करना आरम्भ तकया तक िे तकसी जिं ली सिं तठि होकर ही कर सकिे हैं िो उनमें
राजनीतिक संिठन की भािना उत्पन्न हुई िथा उसी के पररणाम स्िरूप राज्य का जन्म हुआ। जनसंख्या
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 97
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िृतद्ध मानि जाति सम्बन्धों को तनयतमि करने िथा सम्पतत्त का िृतद्ध के साथ भी राज्य की आिश्यकिा
अनभु ि की िई। इसके अतिररक्त शातन्ि-व्यिस्था की स्थापना िथा आतथभक उन्नति के तलए भी राज्य
की अतनिायभिा बढ़िी िई। यह आिश्यकिा इसतलए और भी बढ़ जािी थी क्योंतक एक समदु ाय के
दसू रे समदु ाय पर आक्रमण से रक्षा की आिश्यकिा अनभु ि की िई। इस आिश्यकिा की पतू िभ के िल
एक अच्छा योद्धा िथा कुशल नेिा ही कर सकिा था। यही नेिा आिे चलकर राजा बन िया।
तिलक्राइस्ट के अनसु ार, ‘‘राज्य तनमाभण के सभी ित्िों की िह में, तजनमें रक्त सम्बन्ध एिं धमभ भी
सतम्मतलि है, राजनीतिक चेिना है, जो सबसे प्रमख ु िि है।’’ अिएि यह एक सिभमान्य िथ्य है तक
राजनीतिक चेिना ही मनष्ु य को राज्य के रूप में संितठि करिी है।
इस प्रकार हम देखिे हैं तक राज्य की उत्पतत्त िथा तिकास में अनेक ित्िों ने अपना योिदान तदया है,
तजनमें रक्त सम्बन्ध धमभ, शतक्त सामातजक प्रिृतत्त, आतथभक ितितितधयों िथा राजनीतिक चेिना
महत्िपूणभ है। इन सभी ित्िों ने राज्य के तिकास में अपना अभीष्ट योिदान तदया है इस सन्दभभ में इिना
ही कहना पयाभप्त होिा तक राज्य की उत्पतत्त के सम्बन्ध में तजिने तसद्धान्ि उभरकर सामने आये हैं उनमें
यही तसद्धान्ि सबसे िास्ितिक िथा सिभमान्य प्रिीि होिा है।
अभ्यास प्रश्न
१.सामातजक समझौिा तसद्धान्ि १९ िीं एिं २० िीं सदी में लोकतप्रय हुआ असत्य/ सत्य.
२ .प्राकृ तिक अिस्था के मनष्ु य को आदशभ बबभर तकसने कहा है.
३.सामातजक समझौिा तसद्धान्ि के मख्ु य प्रतिपादक कौन हैं?
४.सोशल कारं ेक्ट पस्ु िक का लेखक कौन है.
५ .लोकतप्रय सप्रं भिु ा के तलए.तकसे जाना जािा है ?
5.5 साराांश
इस इकाई के अध्ययन के उपरांि हम यह जान सके है तक राज्य की उत्पतत्त के तसद्धांिों में दैिीय और
सामातजक समझौिा का तसद्धांि तकिना महत्िपणू भ है . जहां राज्य की उत्पतत्त के दैिीय तसद्धान्ि ने
राजा को ईश्वरीय प्रतितनतध बिलाकर जनिा को राजभतक्त एिं आज्ञापालन का पाठ पढ़ाया जो
आधतु नक राज्य का एक आिश्यक िणु माना जािा है।
उत्तराखंड मक्त
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िो सामातजक समझौिा का तसद्धांि के द्वारा राज्य की उत्पतत्त के दैिी तसद्धान्ि का खण्डन तकया िया
तजसके अन्ििभि राजा को ईश्वर का प्रतितनतध माना िया था और तजसने राजा को तनरंकुश बनाया था
। इस तसद्धान्ि ने यह प्रमातणि कर तदया तक राजा की शतक्त या व्यतक्तिि इच्छा नहीं बतल्क जनसहमति
ही राज्य का आधार है।
राज्य की उत्पतत्त का तिकासिादी तसद्धान्ि सिाभतधक मान्य तसद्धान्ि है जो स्िीकार करिा है तक राज्य
तिकास का पररणाम है, तनमाभण का नहीं। इसमें अनेक ित्िों का योिदान रहा है तजनमें रक्त सम्बन्ध,
मानि की स्िाभातिक सामातजक प्रिृतत्तयाँ, धमभ, शतक्त ,आतथभक ितितितधयाँ और राजनीतिक चेिना।
5.6 शब्दावली
१. प्राकृ तिक अिस्था - राज्य एिं समाज के पिू भ की काल्पतनक अिस्था।
२. Commonwealth - राज्य समाज शासन का सम्बतन्धि रूप
३. प्राकृ तिक अतधकार - ऐसे अतधकार जो मानि को स्िाभातिक रूप से प्राप्त होिे हैं या होने
चातहए।
४. आदशभ बबभर - भला इसं ान परन्िु सभ्यिा एिं संस्कृ ति से दरू
५. सामान्य इच्छा - समाज एिं राज्य के तहि में सच ं ातलि सामान्य धारणा जो तकसी प्रकार की
दभु ाभिना से प्रेररि नहीं होिी।
६. राजनीतिक चेिना - राज्य से जड़ु ने िाली भािना तजसमें कुछ अतधकार शातमल हैं।
७. लोकतप्रय संप्रभिु ा - ऐसी संप्रभिु ा जो जनसहमति पर आधाररि हो।
1. स्िाभातिक सामातजक प्रिृतत्त - मानि का िह िुण जो उसे एकाकी जीिन नहीं व्यिीि करने
देिा िथा अन्य व्यतक्तयों से सहयोि करने िथा सम्पकभ करने के तलए प्रेररि करिा है।
2.राजनीतिक चेिना - मानि की िह प्रिृतत्त जो उसे राज्य के साथ जोड़िी है।
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राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
5.9 सहायक / उपयोिी सामग्री
(i) J. W. Garner : Political Science and Government.
(ii) E. Ashirvtham : Political Theory
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6.0 प्रस्तावना
आमिौर पर यह माना जािा है तक राज्य लोिो को शातन्ि ि सदज् ीिन प्रदान करिा है। तजससे लोि
सख ु ि समृतद्व प्राप्त कर सकें । इसके तलए प्रत्येक राज्य का अपना एक संतिधान होिा है। तजसमें
नािररकों के अतधकारों के साथ-साथ राज्य के किभव्यों का उल्लेख होिा है। तजसका सम्मान तकया
जाना सरकार के तलए आिष्यक होिा है। यतद राज्य के प्रातधकारी नािररकों के अतधकारो का
अतिक्रमण करिे है िो नािररक उनकी सरु क्षा के तलए न्यायालय की शरण लेिा है और न्यायालय
अतधकारों की रक्षा करिा है। ऐसा इसतलए क्योंतक हमें ज्ञाि है तक यह हमारा मौतलक अतधकार है।
तजसके कारण सरकार हमारे तहि में कायभ करने के तलए बाध्य है। प्रष्न यह उठिा है तक राज्य तकस
प्रातधकार से ऐसा करिा है ? िह शतक्त क्या है ? उसकी प्रकृ ति क्या है ? उसके आधार क्या है ? िह
ििभमान तििादग्रस्ि समातजक समस्याओ ं का समाधान कै से करिा है ? क्या ये सारी शतक्तयां राज्य के
पास होनी चातहए ? इन सभी समस्याओ ं ;प्रष्नोद्ध का समाधान िब िक नही हो सकिा जब िक तक
राज्य की सिोच्चिा ;सिोच्च शतक्तद्ध को स्िीकार न कर तलया जाय। राज्य की यह सिोच्च शतक्त
ही आधतु नक यिु में सम्प्रभिु ा के नाम से सम्बोतधि की जािी है। सम्प्रभिु ा के कारण ही राज्य काननू ों
का तनमाभण ि उनका पालन करिािा है इसी के बल िह सक ु राि को जहर पीने के तलए बाध्य कर
सकिा है िथा काननू ो का पालन न करने िालों को िह जेल के मजबिू सीखचों में बन्द करके अपनी
सम्प्रभिु ा का एहसास करा सकिा है।
आधतु नक यिु में राज्य के चार आिष्यक ित्ि माने जािें है तनतष्चि - भभू ाि, जनसंख्या ,सरकार और
सम्प्रभिु ा। इनमें सम्प्रभिु ा सबसे महत्िपणू भ है। तजसे राज्य शतक्त का प्राण या आत्मा कहा जा सकिा
है। तजस प्रकार आत्मा के तबना शरीर का अतस्ित्ि सम्भि नही होिा है उसी प्रकार सम्प्रभिु ा के तबना
राज्य के अतस्ित्ि की कल्पना नही की जा सकिी है। सी0एल0 ओएसे ; ने तलखा है तक ‘‘प्रभसु त्ता
कों राज्य से कदातप अलि नही तकया सकिा यतद राज्य को इससे बतचंि कर तदया जाय िो राज्य
कदातप नही रहेिा और तजसके पास यह सत्ता होिी , िही राज्य का स्िामी होिा क्योंतक उसके पास
सािभभौम सत्ता (सिोच्च सत्ता) होिी। प्रभसु त्ता ही िह शतक्त है जो राज्य के अतस्ित्ि को बनाये रखिी
है। अिः तनःसन्देह अपने मिू भ रूप में राज्य ि प्रभसु त्ता पयाभयिाची है। प्रभसु त्ता प्रातधकार का सिोच्च
तशखर है। तजसके माध्यम से राज्य की रचना होिी है और िह बना रहिा है।
सम्प्रभिु ा ही राज्य को समाज के अन्य समदु ायों यथा सामातजक, आतथभक,धातमभक, सांस्कृ तिक
,व्यािसातयक आतद से पृथक करिी है। लास्की के शब्दों में ‘‘सम्प्रभिु ा के कारण ही राज्य अन्य सभी
प्रकार के समदु ायों से तभन्न है।’’इससे स्पष्ट है तक सम्प्रभिु ा राज्य का सिाभतधक महत्िपणू भ भौतिक
ित्ि है। इसतलए तितभन्न राजनीतिक तसद्धान्िों का अध्ययन करिे समय हमारे तलए सम्प्रभिु ा का
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तिस्िृि और सस्ु पष्ट अध्ययन आिष्यक हो जािा है। यह राज्य का मल ू आधार है अिः हम सम्प्रभिु ा
के माध्यम से राज्य और राज्य के माध्यम से राजनीतिक तसद्धान्ि से भली भॉंति पररतचि हो सकिे हैं
जो हमारे अध्ययन तिषय का मल ू उद्देष्य है।
6.1 उद्देश्य
इस इकाई का उद्देश्य सम्प्रभिु ा के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। इसका अध्ययन करने के उपरान्ि
आप समझ सके िें तक:
1.राज्य के चार आिश्यक ित्िों - जनसंख्या, तनतिि भू-भाि, सरकार और सम्प्रभिु ा में सबसे
महत्िपूणभ आिश्यक ित्ि कौन है .
2.सम्प्रभिु ा का अतस्ित्ि राज्य में क्यों आिश्यक है .
3.इस अिधारणा का तिकास कै से हुआ.
4.सम्प्रभिु ा के लक्षण क्या है .
5.इसके तितिध रूप कौन-कौन से है .
6.राज्य में इसका तनिास कहा है .
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6.2.1 सम्प्रभुिा की पररभाषाएां
जीन बोदाां ‘‘ सम्प्रभिु ा नािररक ि प्रजाननों के ऊपर िह सिोच्च शतक्त है तजस पर काननू का कोई
बन्धन नही होिा है। ’’
‘‘ग्रोतषयस -सम्प्रभिु ा उस व्यतक्त की सिोच्च राजनीतिक शतक्त है तजसके कायभ तकसी अन्य के
अधीन नही होिे और तजसकी इच्छा का उल्लंघन न तकया जा सके । ’’
‘‘बगेष----सम्प्रभिु ा सभी व्यतक्तयों िथा संस्थाओ ं पर मौतलक , तनरंकुश िथा असीतमि शतक्त है।
’’
‘‘ब्लैकस्टोन --सम्प्रभुिा िह सिोच्च अतनिायभ ि अतनयतन्त्रि सत्ता है तजसमें सिाभच्च तितधि
शतक्त होिी है।
जेलीनेक -‘‘ सम्प्रभिु ा राज्य का िणु है तजसके कारण िह अपनी इच्छा के अतिररक्त तकसी दसू रे की
इच्छा या तकसी बाहरी शतक्त के आदेषों से बाध्य नही है।’’
‘‘तिलोबी--सम्प्रभिु ा राज्य की सिोच्च इच्छा है।’’
‘‘ड्यूग्िी --सम्प्रभिु ा राज्य की शासन शतक्त या आज्ञा देने की शतक्त है, िह राष्र की इच्छा है तजसका
संिठन राज्य के रूप में हुआ है उसे राज्य की सीमा के भीिर सब व्यतक्तयों को आदेष देने का अतधकार
है। ’’
पोल क ‘‘ सम्प्रभिु ा िह शतक्त है जो न िो अस्थायी है न तकसी दसू रे के द्वारा दी ियी है न ही ऐसे
तनयम के अधीन है तजन्हे िह स्िंय बदल सके और न ही पृथ्िी पर तकसी अन्य शतक्त के प्रति उत्तरदायी
है। ’’
िुडरो तिल्सन ‘‘ िह शतक्त जो सदा तक्रयाशील रहकर काननू बनािी है और उनका पालन करािी है
प्रभसु िा कहलािी है।’’
िे नेनिगग‘‘ सम्प्रभिु ा राज्य का एक प्राकृ तिक िणु है तजससे िह अपनी इच्छा दसू रों पर तिना तकसी
शिभ के लािू कर सकिा है। शासन की यही पररभाषा है, और यह राज्य का मौतलक ित्ि है तक िह
शासन करे । ’’
लास्की ‘‘ सम्प्रभुिा काननू ी िौर पर व्यतक्तयों िथा समहू ों पर सिोच्च होिी है और उसके पास
सिोच्च बाध्यकारी शतक्त होिी है। ’’
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इस प्रकार कहा जा सकिा है तक राज्य की सिभषतक्तमान,सिभव्यापक,असीतमि िथा अतिभाज्य शतक्त
है। इसतलए इस पर आन्िररक िथा िाह्य दोनो क्षेत्रों में कोई तनयत्रण या काननू ी बन्धन नही होिा है।
6.2.2 सांम्प्रभुिा का तिकास
सम्प्रभिु ा अपने ििभमान स्िरूप में आधतु नक यिु की एक प्रमख ु राजनीतिक अिधारणा है परन्िु इसके
तिकास का एक लम्बा इतिहास रहा है। प्राचीन काल से लेकर अबिक प्रायः सभी तिचारकों ने
सम्प्रभिु ा के सम्बन्ध में अपने मि प्रकट तकयें है। यद्यतप प्राचीन काल के तिद्वान सम्प्रभिु ा के तिचार
से पणू भपररतचि नही थे िथातप राजनीति तिज्ञान के जनक अरस्िू के द्वारा अपनी पस्ु िक ‘पातलतटक्स’
में राज्य के तलए एक सिोच्च शतक्त की आिष्यकिा महससू की ियी थी। प्राचीन रोमन तिचारकों
ने भी अपने तिचारों में एक सिोच्च सत्ता का उल्लेख तकया है। तजसे ‘समा पोटेस्टास’ अथाभि सिोच्च
सत्ता और ‘प्लेनीच्यडू ो पोटेस्टैतटस’ अथाभि ‘सम्पणू भ सत्ता’ कहा जािा था। इससे प्रिीि होिा है तक
प्राचीन रोमन तिचारक सम्प्रभिु ा के आधतु नक तिचार के काफी तनकट पहुचँ चक ु े थे। िैतटल के शब्दों
में ‘‘रोमन िकीलो ने राज्य की शतक्त की पणू भिा को व्यक्त तकया था।’’
मध्य यिु तजसे कई बार ‘अंधेरा यिु ’ भी कहा जािा है, में सम्प्रभिु ा का तिचार तषतथल पड़ िया।
अथाभि कहा जा सकिा है तक इस यिु में सम्प्रभिु ा सम्बन्धी रोमन सामार् ज्य की उपलतब्धयां धल ू
धतू सि हो ियी । तफतिस ने तलखा है तक ‘‘ आधतु नक अथभ में राज्य प्रभनु ाम की कोई िस्िु मध्य
यिु में नही थी।’’ मध्य यिु में सम्प्रभिु ा के तिकास में कई कतठनाइयॉं थी । इस यिु को धमभ यिु की
भी संज्ञा दी जािे है। तजसमें सम्पणू भ राजनीतिक व्यिस्थापर धमभ का प्रभाि स्िीकार कर तलया िया
था । राजषाही , पोपषाही ,िथा सामन्ििाद ने सम्प्रभिु ा के रथ को आिे बढ़ने से रोक तदया था ।
तजसके प्रतितक्रया स्िरूप 10िीं शिाब्दी में सम्प्रभिु ा के आधतु नक धारणा का उदय हुआ। तजसका
अस्पष्ट रूप से ही सही सिभप्रथम दषभन इटली के प्रतसद्ध तिज्ञान मैतकयािेली के तिचारों में होिा है।
सम्प्रभिु ा की आधतु नक सक ं ल्पना सिभप्रथम जीन बोंदा की पस्ु िक Six Books on The
Republic में देखने को तमलिी है। इसे व्यक्त करिे हुए उसने तलखा तक ‘‘ सम्प्रभिु ा नािररक ि
प्रजाननों के ऊपर िह सिोच्च शतक्त है तजस पर काननू का कोई बन्धन नही होिा है।’’ इस प्रकार बोंदा
ही आधतु नक सम्प्रभिु ा के तसद्धान्ि का जनक कहा जािा है। बोंदा ने सम्प्रभिु ा को काननू ी दृतष्ट से
सिोच्च मानिे हुए भी उस पर प्राकृ तिक काननू , ईष्िरीय काननू , सां तिधातनक काननू और व्यतक्तिि
सम्पति की सीमाएं आरोतपि कर दी तजससे सम्प्रभिु ा की सिोच्चिा बातधि हो ियी। ग्रोतषयस
सम्प्रभिु ा के िाह्य पक्ष का तनरूपण करिे हुए सभी राष्रों को स्ििन्त्र िथा समस्िरी बिलाया परन्िु
उन्होने भी उस पर अन्िराभष्रीय तितध की सीमा आरोतपि कर दी ।
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सम्प्रभिु ा का स्पष्ट, िकभ संिि और िैज्ञातनक तिष्लेषण करने का श्रेय इग्लैण्ड के प्रतसद्ध दाषभतनक
थामस हॉब्स को तदया जािा है। उनके अनसु ार सम्प्रभिु ा सामातजक संतिदा का सृजन है। तजसके
माध्यम से लोिों ने अपने समस्ि अतधकार उस व्यतक्त या सभा को सौंप तदया । तजसे लोंिो के द्वारा
अपने जीिन रक्षा का दातयत्ि सौपा िया। यह सम्प्रभुिा तनरकंु ष, असीतमि िथा अमयाांतदि है। तकन्िु
िह भी जीिन को संकट उत्पन्न होने की तस्थति में सम्प्रभिु ा पर ‘आत्म रक्षा’ का प्रतिबन्ध आरोतपि
करिा है। िह इस सम्बन्ध में कहिा है तक यतद राजा तकसी को अन्न, जल, िायु िथा औषतध ग्रहण
करने से रोकिा है िो उस तस्थति में व्यतक्त राज्याज्ञा का उल्लंधन कर सकिा है क्योंतक इससे व्यतक्त
के जीिन को सकंट उत्पन्न हो जािा है।
हाब्स के बाद लॉक ने इग्लैण्ड के 1088 की िौरि पणू भ क्रातन्ि के ा उतचि ठहराने के तलए संिैधातनक
सम्प्रभिु ा के तसद्धान्ि का प्रतिपादन तकया िथा राज्य और राजा के सम्प्रभिु ा को अमान्य करार तदया।
ित्पष्चाि जीन जैक्स रूसों ने लोकतप्रय सम्प्रभिु ा के तसद्धान्ि का प्रतिपादन कर इसे आधतु नक
प्रजािातत्रक
ं स्िरूप प्रदान तकया। उसने हॉब्स िथा लॉक के तिचारों में सन्ु दर समन्िय स्थातपि करिे
हुए एक िरफ सम्प्रभिु ा को तनरं कुष , अतिभाज्य , अपररत्याज्य बिाया िो दसू री ओर लोकतहिकारी
स्िरूप प्रदान करिे हुए जनिा में तनतहि कर तदया । उसके अनुसार सम्प्रभिु ा का तनिास सामान्य इच्छा
में होिा है। रूसों के बाद बेंथम ने सम्प्रभिु ा का उल्लेख काननू बनाने िाली सिोच्च सत्ता के रूप में
तकया और बिाया तक काननू का स्रोि प्राकृ तिक तनयम आतद नही है बतल्क सम्प्रभिु ा है।
आधतु नक सम्प्रभिु ा के अिधारणा के तिकास में फ्रांतससी राज्य क्रातन्ि मील का पत्थर सातबि हुई।
इस क्रातन्ि ने सम्प्रभिु ा के तनरपेक्षिा और तनरंकुष्िा का समथभन इस आधार पर तकया तक सम्प्रभु शतक्त
जनिा में तनतहि है। अिः इसे प्रतिबतं धि करने की आिष्यकिा नही है। दतु नया के निोतदि राष्रीय
राज्यों ने भी आन्िररक िथा िाह्य दोनो प्रकार के समग्र सम्प्रभिु ा का दािा तकया । औद्योतिक क्रातन्ि
िथा लोक कल्याणकारी राज्य के तिचार ने राज्य के कायभ क्षेत्र में आषािीि िृतद्ध की। तजससे तनरपेक्ष
सम्प्रभिु ा की धारणा प्रबल हुई। तजसके पररणामस्िरूप तिटीश संसद को सम्प्रभुिा प्राप्त हुई जो
असीतमि है।
13िीं एंि 19िीं शिाब्दी में सम्प्रभिु ा को बलशाली समथभक तमले। इनमें आदशभिादी हीिल, ग्रीन
ि बोसाक ं े का नाम प्रमख
ु िा से तलया जािा है। हीिल ने राज्य को तिश्वात्मा का सिोत्तम रूप माना ।
हीिल का कथन है तक ‘‘राज्य पृथ्िी पर ईश्वर का अििरण है।’’ उन्होने व्यतक्त को पणू भिः राज्य के
अधीन कर तदया। आिे िह कहिे तक व्यतक्त को स्ििन्त्रिा िभी प्राप्त हो सकिी है जबतक िह राज्य
के काननू ों का अक्षरसः पालन करे । राज्य आन्िररक और िाह्य दोनो रूपों में सिोच्च होिा हैं। इसतलए
हीिल ने राज्यको यद्ध ु करने का पणू भ अतधकार तदया और बिाया तक तजस प्रकार समरु में शातन्ि के
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समय इकट्ठा िन्दिी िुफान आने पर समाप्त हो जािी है ठीक उसी प्रकार समाज की िन्दिी यद्ध ु ों के
समय समाप्त हो जािी है। इस प्रकार हीिल की सम्प्रभिु ा तनरपेक्ष एिं असीम थी उसपर नैतिकिा एंि
अन्िभराष्रीय काननू का भी कोई तनयत्रं ण नही था। ग्रीन और बोसाके ने भी दाषभतनक आधारों पर राज्य
के सिोच्च सत्ता का समथभन तकया।
ऑतस्टन ने अपनी पस्ु िक ’लेक्चसभ आन जरु रसप्रडु ेंस ’ 1332 में सम्प्रभिु ा को आधतु नक िणु ो से
सम्पन्न तकया। तजसे सम्प्रभिु ा का अद्वैििादी, एकल या कानूनी तसद्धान्ि कहा जािा है। ऑतस्टन के
तिचारों ने सम्प्रभिु ा को सिोच्च तषखर पर पहुचँ तदया। क्योंतक उन्होने सम्प्रभिु ा को तनरपेक्ष,
असीतमि, असंक्राम्य और अखण्ड माना।
20िीं सदी के प्रारम्भ से ही राज्य के सिोच्च शतक्त अथाभि सम्प्रभिु ा के तिरूद्ध आिाजे उठने लिी।
एक िरफ अराजकिािातदयों ने इसे व्यथभ घोतषि तकया िो दसू री ओर बहुलिातदयों ने इसे मानि
समदु ाय के तलए अतहिकर माना। उनका िकभ था तक सम्प्रभिु ा तनरकुषंिा का प्रिीक है , यद्ध ु को
प्रोत्साहन देिी है िथा तिष्िषातन्ि का शत्रु है। इसतलए सम्प्रभु शतक्त को समाज के तितभन्न समदु ायों
ि संस्थाओ ं में तिभातजि करने का इन लोिों ने प्रबल पक्षपोषण तकया।
6.2.3सांम्प्रभुिा के पहलू
उपरोक्त तिष्लेषण के आधार पर सम्प्रभिु ा के दो प्रमख
ु पहलू दृतष्टिोचर होिे है:
6.2.3.1 आन्िररक सम्प्रभुिा
आन्िररक सम्प्रभिु ा का आषय है तक राज्य अपनी सीमाओ ं के भीिर व्यतक्तयों, समदु ायों, संस्थाओ,ं
ििो, दलो आतद से श्रेष्ठ है अथाभि इन्हे राज्य के काननू और आदेषों के अधीन कायभ करना पड़िा है।
राजाज्ञा का उल्ंलघन करने पर राज्य सत्ता द्वारा कोई भी दण्ड तदया जा सकिा हैं। कोई भी राज्य से
अतधक श्रेष्ठिा अथाभि इसके प्रति तनरापदिा का दािा नही कर सकिा है। इनके ऊपर राज्य की शतक्त
मौतलक, सािभभौम, असीतमि और पणू भिः व्यापक होिी है। लास्की ने आन्िररक सम्प्रभिु ा की व्याख्या
करिे हुए कहा है तक ‘‘राज्य अपने क्षेत्र के अन्िभिि सभी मनष्ु यो िथा समदु ायों को आज्ञा प्रदान करिा
है और स्ियं उनमें से तकसी की भी आज्ञा नही मानिा है। उसकी इच्छा पर तकसी प्रकार का काननू ी
बन्धन नही है। तकसी तिषय में के िल अपनी इच्छा के अतभव्यतक्त मात्र से ही उसे िह सब अतधकार
तमल जािा है तजसे िह करना चाहिा है।’’
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6.2.3.2 िाह्य सम्प्रभुिा
िाह्य सम्प्रभिु ा का आषय है तक राष्र मण्डलो के बीच प्रत्येक राज्य सिोच्च होिा है और िह अपनी
इच्छानसु ार दसू रे राज्यों के साथ सम्बन्ध रखने के तलए स्ििन्त्र होिा है। कोई अन्य राज्य या
अन्िराभष्रीय संिठन तकसी राज्य से श्रेष्ठ होने का दािा नही कर सकिा है। राज्य कतिपय सतन्धयो
अथिा िचनिद्धिाओ ं के अधीन हो सकिा है। परन्िु ये स्ििः प्रसिू होिी हैं। इसतलए उनसे उनकी
सम्प्रभिु ा पर कोई असर नही पड़िा है। कोई भी राज्य के ऊपर ऐसी बाध्यिा लािू नही कर सकिा है
या तििष नही कर सकिा जो उसे स्िीकायभ न हो ।
6.2.4 सम्प्रभुिा के लक्षण
तितभन्न पररभाषाओ ं का तिष्लेषण करने से सम्प्रभिु ा की तनम्नतलतखि तिषेषिाएं पररलतक्षि होिी है:
6.2.4.1 तनरंकुशिा
इसका अथभ है तक सम्प्रभिु ा सिोच्च,सम्पणू भ,तनरंकुश िथा असीतमि होिी है। इसकी असीतमििा के
दो पहलू है - आन्िररक और िाह्य । आन्िररक क्षेत्र में राज्य की सत्ता सिोपरर और पणू भ रूप से
अमयाभतदि है। इसतलए राज्य आन्िररक क्षेत्र के तलए कोई भी काननू बना सकिा है तकसी भी काननू
को बदल सकिा है िथा उनका पालन न करने िालों को कोई भी दण्ड से सकिा है। िाह्य दृतष्ट से भी
प्रभसु त्ता स्ििन्त्र होिी है। इसतलए िह तिदेश नीति का तनधाभरण स्ििन्त्रिा पिू भक कर सकिा है। यद्ध
ु
ि सतन्ध के सम्बन्ध में भी उसका तनणभय अतन्िम होिा है। न िो कोई दसू रा राज्य और न ही कोई
अन्िभराष्रीय संिठन इस सन्दभभ में कोई दबाि डाल सकिा है।
सैद्धातन्िक दृतष्ट से सम्प्रभिु ा असीम ि तनरंकुशिा होिी है लेतकन व्यिहार में परम्पराएं, रीति-रीिाज,
जनमि, नैतिक ि प्राकृ तिक तनयम िथा अन्िभराष्रीय काननू सम्प्रभिु ा पर प्रतिबन्ध आरोतपि. करिे है
। ब्ल्न्त्शल
् ी का कथन है तक ‘‘ संसार में पूणभ स्ििन्त्रिा जैसी कोई िस्िु नही है यहॉं िक तक राज्य भी
सिभषतक्तमान नही है क्योंतक िाह्य रूप से यह दसू रे राज्यों के अतधकारों से सीतमि है और अन्दर से
स्िंय अपने स्िभाि और सदस्यों के अतधकारों द्वारा मयाभतदि है।
6.2.4.2 सिगव्यापकिा
सिभव्यापकिा का आषय है तक राज्य अपने तनतष्चि भौिोतलक सीमा के अन्िभििसभी व्यतक्तयों
,संस्थाओ ं ,संघो ,िथा अन्य व्यिस्थाओ ं पर अपना पणू भ अतधकार रखिा है। उस सीमा में रहने िाले
सभी लोि राज्य तनतमभि काननू को मानने के बाध्य होिे है। सम्प्रभिु ा से मक्त
ु होने का दािा कोई भी
नही कर सकिा है। लेतकन इसके अपिाद स्िरूप तिलक्राइस्ट ने ‘ राज्येत्तर सम्प्रभुिा के तसद्धान्ि की
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िरफ संकेि तकया है। इस तसद्धान्ि के अनसु ार तकसी राज्य में जो दसू रे राज्यों के राजदिू ि दिू ािास
होिे हैं। उन पर उसी राज्य के काननू ि सम्प्रभिु ा लािू होिी है तजस राज्य के िे होिे है।
6.2.4.3 अदेयिा
सम्प्रभिु ा सदैि राज्य से संतलप्त रहिी है। अिः राज्य इसे तकसी दसू रे को नही दे सकिा है। इसे दसू रे
को देने का अथभ है तक राज्य का अतस्ित्ि समाप्त हो जायेिा। अथाभि राज्य आत्महत्या की कीमि पर
ही इसे तकसी दसू रे को दे सकिा है। लाइबर के शब्दो में ‘‘ जैसे एक बृक्ष अपने उिने, पनपने, और
फल ने फूल ने के अतधकार को नही छोड़ सकिा है अथिा एक व्यतक्त तिना अपना तिनाष तकए
अपने जीिन ि व्यतक्तत्ि को अपने से अलि नही कर सकिा है ठीक उसी प्रकार राज्य से सम्प्रभिु ा
को अलि नही तकया जा सकिा है।
6.2.4.4 स्थातयत्ि
तजस प्रकार राज्य स्थायी होिा है उसी प्रकार सम्प्रभिु ा भी स्थायी होिी है। जबिक राज्य कायम रहेिा
िबिक सम्प्रभिु ा भी कायम रहेिी। सम्प्रभिु ा का अन्ि राज्य का अन्ि होिा । कई बार यह मान तलया
जािा है तक राज्य में एक शासन या सरकार का अन्ि होने या शासक की मृत्यु होने पर सम्प्रभिु ा का
अन्ि हो जािा है लेतकन यह एक भ्रम मात्र है। तिटेन के बारे में यह कहािि प्रतसद्ध है तक ‘‘ राजा
मृि है राजा तचंरजीिी हो।’’ इसका भाि यह है तक राजा की मृत्यु से भी राजपद (सम्प्रभुिा) का अन्ि
नही होिा है।
6.2.4.5 अतिभाज्यिा
सम्प्रभिु ा पणू भ होिी है इसतलए इसे तिभातजि भी नही तकया जा सकिा है। सके तिभाजन का अथभ
होिा एक से अतधक राज्यों का तनमाभण करना। उदाहरण स्िरूप 1971 ई0 के भारि-पाक यद्ध ु द्वारा
पातकस्िानी सत्ता दो टुकडों में तिभातजि हो ियी तजससे एक नये राज्य बांग्लादेष का सृजन हुआ।
कालहन ने तलखा है तक ‘‘ सम्प्रभिु ा एक या सम्रि िस्िु है उसके तिभाजन का अथभ उसे नष्ट करना
होिा िह राज्य में सिोत्तम सत्ता है और आधी सम्प्रभिु ा कहना उिना ही असंिि है तजिना आधा
ििभ या आधा तत्रभजु कहना।
6.2.4.6 मौतलकिा
मौतलकिा का अथभ है सम्प्रभिु ा अपनी तस्थति का आधार स्ियं होिी है। उसे न िो तकसी ने पैदा तकया
है न िो बनाया है। बतल्क यह राज्य में जन्मजाि होिी है। अिर यह मान तलया जाय तक सम्प्रभिु ा
राज्य को तकसी द्वारा दी ियी है िो ऐसी तस्थति में यह स्िीकार करना होिा तक उसे देने िाला उसे
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िापस ले सकिा है। तजस प्रकार तकसी अमानि को रखने िाला उसका स्िामी नहीं होिा उसी प्रकार
तकसी द्वारा प्रदत्त शतक्त सम्प्रभु नही हो सकिी है।
अभ्यास प्रश्न 1
तनदेश -
नीचे तदये िये ररक्त स्थान में अपना उत्तर तलखें।
अ . इकाई के अन्ि में तदये िये उत्तर से तमलान कर अपने उत्तर की त्रतु टयों को दरू करें ।
1.‘‘सम्प्रभिु ा राज्य की सिोच्च इच्छा है।‘‘ यह कथन है-
(क) ििेष (ख) ऑतस्टन (ि) तबलोिी (घ) बोदां
2. सम्प्रभिु ा के आन्िररक िथा िाहय दो पक्ष माने जािे है- सत्य है / असत्य है।
3.राज्य के सम्प्रभिु ा का तसद्धान्ि तकसने प्रतिपातदि तकया है ?
4.सम्प्रभिु ा एक आिश्यक लक्षण है-
(क) सरकार का (ख) राज्य का (ि) समाज का (घ) समदु ाय का
6.2.5 सम्प्रभुिा के तितिध रूप
सम्प्रभिु ा के रूपों को लेकर राजनीति तिज्ञान के तिद्वानो में पयाभप्त मिभेद देखने को तमलिा है । इस
मििैतभन्यिा का आधार सम्प्रभिु ा की प्रकृ ति ि उसका के न्र तिन्दु रहा है। सम्प्रभिु ा का िास्िि में
के िल एक ही रूप हो सकिा हे। तजसे राज्य शतक्त कहा जािा है।
मैकाइबर ने कहा है तक ‘‘ तजन लोिो ने राज्य की सम्प्रभिु ा को लेकर शब्दो का भ्रमजाल रखा उनके
उद्देष्य पतित्र नही है बतल्क िे के िल आदशभिादी प्रचारक है।’’ इस सन्दभभ में भ्रम को दरू करने के तलए
सम्प्रभिु ा के कुछ प्रचतलि रूपों की व्याख्या तनम्न प्रकार से की जा सकिी है।
6.2.5.1 नाममात्र की सम्प्रभुिा और िास्ितिक सम्प्रभुिा
नाममात्र और िास्ितिक सम्प्रभिु ा का अन्िर प्रायः संसदीय शासन व्यिस्थाओ ं में देखने में तमलिा
है। जहॉं संतिधान सारी शतक्तयां नाममात्र के सम्प्रभु (औपचाररक सम्प्रभ)ु को देिा है। जबतक व्यिहार
में उन शतक्तयों का प्रयोि िह नही बतल्क िास्ितिक सम्प्रभु करिा है। इस व्यिस्था का तिकास
सिभप्रथम तिटीश शासन व्यिस्था में हुआ जहॉ सम्राट सम्पणू भ सत्ता का िाहक होिा है तकन्िु लोकिन्त्र
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के तिकास के साथ-साथ उसकी सम्पणू भ शतक्तयों का प्रयोि जनिा के प्रतितनतधयों द्वारा तकया जाने
लिा है। इस प्रकार िहां यह देखने को तमलिा है तक आज भी तिटीष शासन में सारी शतक्तयों को
स्रोि तसद्धान्िः सम्राट ही है तकन्िु व्यिहार में इन सारी शतक्तयों का प्रयोि तिटीष प्रधानमन्त्री,
मंतत्रमण्डल ि संसद द्वारा तकया जािा है और िह के िल नाममात्र का सम्प्रभु रह िया जबतक िास्ितिक
सम्प्रभु मतत्रमण्डल ि संसद है। यह अन्िर भारिीय शासन में भी देखने को तमलिा है जहॉं सतिधान
सारी शतक्तयां राष्रपति को देिा है जैसा तक सतं िधान के अन0ु 53 में कहा िया है तक सघं की समस्ि
कायभपातलका शतक्तयां राष्रपति में तनतहि है । तजसका प्रयोि िह स्िंय या अपने अधीनस्थों के माध्यम
से करे िा। लेतकन व्यिहार में इन सभी शतक्तयों का प्रयोि भारिीय प्रधानमन्त्री ि उसका मंन्त्रीमण्डल
ही करिा है। इस प्रकार राष्रपति नाममात्र का सम्प्रभु है जबतक और प्रधानमन्त्री सतहि मतन्त्रमण्डल
िास्ितिक सम्प्रभु है।
6.2.5.2 तितधक ि राजनीतिक सम्प्रभुिा
तितधक सम्प्रभिु ा एक सिैधातनक संकल्पना है तजसका आषय है तक बैधातनक सम्प्रभु को काननू
बनाने की सिोच्च शतक्त प्राप्त है। दसू रे शब्दों में कहा जा सकिा है तक उसके आदेश ही काननू है
अथाभि राज्य के सभी काननू उसी के द्वारा तनतमभि तकये जािे है। इस प्रकार काननू ों का तनमाभण करने
िाली सत्ता ही काननू ी सम्प्रभु कहलािी है। तितधक सम्प्रभु का सिभश्रेष्ठ उदाहरण तिटीष संसद है जो
तकसी भी तिषय पर कोई काननू बना सकिी है। इसतलए कहा जािा है तक तिटीष ससं द तिटेन में के िल
स्त्री को परू
ु ष और परूु ष को स्त्री बनाने के अतिररक्त अन्य कोई भी कायभ कर सकिी है यद्यतप काननू ी
िौर पर िह इसे भी कर सकिी है। इस प्रकार तितधक सम्प्रभु की शतक्त तनरपेक्ष ,असीतमि, िथा
अप्रतिबतन्धि होिी है। इसके तिपरीि राजनीतिक सम्प्रभुिा की संकल्पना अस्पष्ट और भ्रतमि करने
िाली है। इस सन्दभभ में कहा जािा है तक प्रत्येक तितधक सम्प्रभु के पीछे एक राजनीतिक सम्प्रभु होिा
है। तजसके समक्ष समय-समय पर तितधक सम्प्रभु को झक ु ना पड़िा है। डायसी ने तलखा है तक ’’तजस
सम्प्रभिु ा को िकील लोि स्िीकार करिे है उसके पीछे एक दसू रा सम्प्रभु रहिा है। तजसके समक्ष
बैधातनक सम्प्रभु को तसर झक ु ाना पड़िा है।
राजनीतिक सम्प्रभिु ा तनिाभचक मण्डल या मिदािाओ में अितस्थि होिी है। प्रत्यक्ष प्रजािन्त्र में जहॉं
जनिा स्ियं शासन सचं ालन करिी है िहॉं तितधक और राजनीतिक सम्प्रभु का अन्िर धध्ु ंला होिा है
लेतकन अप्रत्यक्ष प्रजािन्त्र (प्रतितनध्यात्मक शासन) में जहॉ शासन कायभ जनिा के द्वारा चनु े हुए
प्रतितनतध करिे है िहॉ राजनीतिक सम्प्रभिु ा मिदािाओ ं में तनतहि होिी है। तजसका दषभन तनयतमि
अन्िराल के बाद होने िाले चनु ािों में होिा है । तजससे सरकारों का तनमाभण होिा है । इस प्रकार कहा
जा सकिा है तक चनु ाि ही िह श्रेष्ठ िरीका है तजसमें राजनीतिक सम्प्रभु की इच्छा व्यक्त होिी है।
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6.2.5.3 तितधिाः और िस्िुिाः सम्प्रभुिा
सामान्य रूप से तितधिः और िस्ििु ः सम्प्रभिु ा एक ही होिी है क्योंतक प्रायः सत्ता प्राप्त व्यतक्त या
व्यतक्तयों का समहू काननू द्वारा मान्यिा प्राप्त या स्थातपि होिा है। इन दोनो के मध्य अन्िर
आपािकालीन तस्थतियों में उत्पन्न होिा है। तितधिः सम्प्रभु िह होिा है जो राज्य के संतिधान,
सस्ु थातपि काननू ि परम्पराओ ं के अनरू ु प पद पर आसीन होिा है। इसतलए उसके पास आदेष देने
िथा उसका पालन कराने का िैध अतधकार होिा है। जबतक िस्ििु ः सम्प्रभु िह होिा है जो राज्य के
सिोच्च पद पर िैर काननू ी अथिा असिं ैधातनक ढिं से आसीन हो जािा है ित्पष्चाि अपनी इच्छा
को बल पिू भक राज्य के सभी लोिों पर लािू करने लििा है। इस प्रकार कहा जा सकिा है तक बैधातनक
सम्प्रभिु ा का आधार काननू होिा है। जबतक िास्ितिक सम्प्रभिु ा का आधार शतक्त होिी है। िह अपने
शतक्त के बल पर जनिा से अपनी आज्ञाओ ं का पालन करिािी है। भले ही उसे शासन करने या आज्ञा
पालन कराने का काननू ी अतधकार नही है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखने को तमलिे है जहॉ
काननू ी सम्प्रभु को अपदस्थ कर कोई व्यतक्त या समदु ाय सत्ता हतथया लेिा है। जैसे रूस में बोल्षेतिकों
द्वारा जार को अपदस्थ कर लेतनन के नेित्ृ ि में सत्ता पर तनयत्रंण कर तलया िया। इस िरह तितधिः
सम्प्रभु जार थे जबतक िस्ििु ः सम्प्रभिु ा लेतनन के हाथों में आ ियी। लेतकन यही सम्प्रभिु ा जब
दीघभकाल िक बनी रह जािी है िो धीरे -धीरे िह जन सहमति प्राप्त कर िैधातनक बन जािी है। क्योंतक
कोई भी सम्प्रभु के िल शतक्त के आधार पर अतधक तदनों िक अपना अतस्ित्ि बनाये रखने में सफल
नही हो सकिा है।
6.2.5.4 लौतकक सम्प्रभुिा
लौतकक सम्प्रभिु ा का आषय है तक शासन की अतन्िम और सिोच्च शतक्त का स्रोि एंि स्िातमनी
जनिा ही है। आधतु नक लोकिन्त्र की धारणा लोकतप्रय सम्प्रभिु ा पर ही आधाररि है। इसकी आिाज
सिभप्रथम कौंतसतलयर आन्दोलन के समथभको ने पन्रहिीं शिाब्दी में चचभ की शतक्त के तखलाफ उठायी
लेतकन आधतु नक यिु में इसे इसे सिभप्रथम स्थातपि करने श्रेय संतिदािादी तिचारक जीन जैक्स रूसों
को तदया जािा है। तजन्होने सामान्य इच्छा के तसद्धान्ि का प्रतिपादन कर इसका प्रबल पक्षपोषण
तकया। रूसो के अनसु ार कोई भी प्रषासक अपनी इच्छा को आज्ञतप्त के रूप मे व्यक्त िो कर सकिा है
परन्िु काननू सामान्य इच्छा की अतभव्यतक्त होिा है। लोकतप्रय सम्प्रभिु ां लोकमि की शतक्त में साथभक
होिी है। चंतू क शासक ििभ को तनतष्चि अन्िराल के बाद तफर से सिभसाधारण का तिष्िास प्राप्त करने
के तलए चनु ाि का सामना करना पड़िा है अिः िह लोकमि की उपेक्षा नही कर सकिा है। लोकतप्रय
सम्प्रभिु ा की मल
ू मान्यिा यह है तक शासक ििभ के द्वारा शासन कायभ सदैि
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जनतहि को ध्यान में रखकर तकया जाना चातहए क्योंतक उसका अतस्ित्ि िभी िक बना रहेिा जबिक
उसे जनसामान्य के बहुमि का समथभन ( तिश्वास ) हातसल है। तिलक्राइस्ट के अनसु ार ‘‘ लोकतप्रय
सम्प्रभिु ा सामान्यिया तकसी व्यतक्तिि शासक या ििभ की अपेक्षा लोिों की शतक्त है। ’’
यह लोकतप्रय सम्प्रभिु ा की धारणा ही आिे चलकर अमेररकी और फ्रासीसी क्रातन्ि का आधार बनी।
अमेररका के स्ििन्त्रिा आन्दोलन में स्पष्ट रूप से घोतषि तकया िया था तक प्रत्येक मानि जन्म से ही
समान रूप से जीिन, स्ििन्त्रिा और प्रसन्निा प्राप्त करने का अतधकारी होिा है।फ्रातससी क्रातन्ि में
घोतषि तकया िया तक प्रत्येक मनष्ु य जन्म से स्ििन्त्रिा और अतधकार में समान हैं यतद तकसी
राजनीतिक व्यिस्था के द्वारा स्िाधीनिा, सरु क्षा और सम्पति का दमन तकया जािा है िो राजनीतिक
संिठन का यह दातयत्ि होिा है तक िह संितठि रूप से उसका तिरोध करे ।
लोकतप्रय सम्प्रभिु ा का तिचार भले ही लोकलभु ािना िथा जनसम्मान से ओि-प्रोि प्रिीि हो तकन्िु
इसका अथभ अतनतष्चििा से आच्छातदि है अथाभि इसकी व्याख्या करना दष्ु कर हो िया है। यद्यतप यह
कहनाअच्छा लििा है तक तकसी भी राजनीतिक व्यिस्था का मल ू आधार जनिा है।इसतलए शासन
उसकी इच्छा के अनुरूप ही होना चातहए परन्िु यहॉ प्रष्न उठिा है तक जनिा का अथभ क्या है। िानभर
तलखिे है तक जनिा के दो अथभ है- प्रथम राज्य में रहनेिाला सम्पणू भ असंितठि िथा अतनतष्चि जन
समदु ाय तजसमें बच्चे ,बढ़ू े ,अपराधी, तदिातलया, िथा तिदेषी आतद सतम्मतलि है तजनका राजनीतिक
व्यिस्था के सचालन में कोई योिदान नही है। यतद िे जनिा के द्योिक है िो कुल तमलाकर इस धारणा
का कोई अथभ नही है। तद्विीय तनिाभचक मण्डल अथाभि जनिा का के िल िह भाि तजसे ियस्क
मिातधकार प्राप्त है तकन्िु इन्हें भी जनिा नही कहा जा सकिा क्योतक तकसी भी राज्य में मिदािाओ ं
की संख्या कुल जनसख्यां से काफी कम होिी है। इसके अतिररक्त चिु ान िहुमि के आधार पर होिा
है जो सम्पणू भ जनिा का अल्पमि हो सकिा है। तजसे िैधातनक दृतष्ट से सम्प्रभु नही कहा जा सकिा है।
सत्य िो यह है तक ििभमान असमानिा पणू भ समाज में सम्प्रभुिा कुछ साधन सम्पन्न लोिो के हाथ की
कठपिु ली मात्र बनकर रह ियी है।
डा0 आशीिाभदम के अनसु ार लोकतप्रय सम्प्रभिु ा का अपना कुछ तिषेष िुण होिा है तजसका उल्लेख
तनम्नरूपों में तकया सकिा है:
(१ ) शासन शासक ििभ का तहि करने िाला नही बतल्क अतनिायभ रूप से जनिा के तहिों की साधना
करने िाला होना चातहए।
(२ ) यतद शासक जान बझू कर जनिा की इच्छाओ ं का दमन करिा है िो जन क्रातन्ि की सम्भािना
प्रबल हो जािी है।
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(३ ) जनमि की अतभव्यतक्त सरल िैधातनक साधनो के माध्यम से होनी चातहए।
(४ ) सरकार को जनिा के प्रति उत्तरदायी बनाये रखने हेिु समयानसु ार चनु ाि ,स्थानीय स्िायि शासन
, लोकतनणभय, आरम्भक ,प्रत्याह्वान आतद की व्यिस्था सतु नतष्चि की जाय।
(५ ) शासन के द्वारा अपनी शतक्तयों का प्रयोि सतिधांन के अनरू
ु प तकया जाय स्िेच्छाचारी ढंि से
नही ।
इस प्रकार यह देखने को तमलिा है तक लौतकक सम्प्रभिु ा की धारणा सम्प्रभिु ा का आधार जनिा की
शतक्त को मानिी है। इस तिचारधारा ने प्राचीन तनरं कुष राजिन्त्रों की चल
ू े िो तहला दी तकन्िु राजिन्त्र
के खात्में के बाद यह तसद्धान्ि मािभ भटक िया और आज यह अस्पष्टिा के ििभ में धसा पड़ा है। ििभमान
में लौतकक सम्प्रभिु ा की धारणा भले ही भ्रम उत्पन्न करने िाली प्रिीि हो तकन्िु इसकी लोकतप्रयिा
को नजरअदाजं नही तकया सकिा। इसकी सिसे महत्िपणू भ बाि यह है तक यह शासन का आधार
जनिा या जनसहमति को मानिी है। यह राज्य के अतस्ित्ि को जनतहि में स्िीकार करिी है। यतद कोई
राज्य अपने जनिा के तहिो की लिािार अिहेलना करिा है िो शासन के तिरूद्ध क्रातन्ि का सम्भािना
बढ़ जािी है। इसके अतिररक्त यह तसद्धान्ि इस िथ्य को भी उजािर करिा है तक सरकार को अपनी
शतक्त का प्रयोि िैध काननू ों के आधार पर ही करना चातहए मनमाने िरीके से नही।
अभ्यास प्रश्न 2
नीचे तदये िये ररक्त स्थान में अपना उत्तर तलखें।
अ. इकाई के अन्ि में तदये िये उत्तर से तमलान कर अपने उत्तर की त्रतु टयों को दरू करें ।
1. लौतकक सम्प्रभिु ा की अिधारणा का प्रतिपादन तकसने तकया है ? .
................................................................................................................................
..................................
2. सम्प्रभिु ा का तनिास अतन्िम रूप से कहा होिा है ?
................................................................................................................................
...................................
3. काननू ी सम्प्रभु को प्रायः तकसके आिे झक
ु ना पड़िा है-
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(क) राजनैतिक सम्प्रभिु ा (ख) लौतकक सम्प्रभिु ा (ि) समहू (घ) संघ
6.2.6 सम्प्रभिु ा का अतधिास
सम्प्रभिु ा के अतधिास की खोज राजनीति तिज्ञान का एक अत्यन्ि महत्िपणू भ और जतटल प्रश्न है।
सम्प्रभिु ा के अतधिास का अथभ है तक यह राज्य में कहा तनिास करिी है अथाभि राज्य में कौन व्यतक्त
या समहू राज्य की इच्छा को अतभव्यक्त करिा है। इस सन्दभभ में तिद्वानों ने अलि-अलि तिचार व्यक्त
तकये है अथाभि अलि-अलि के न्र तिन्दु बिलाये है तजनका उल्लेख प्रमख ु रूप से तनम्न रूपों में तकया
जा सकिा है:
6.2.6 1 सम्प्रभुिा का अतधिास राज्य में है।
सम्प्रभिु ा के तसद्धान्ि का उदय सोलहिी शिाव्दी में हुआ िब यह कहा िया तक सम्प्रभिु ा राजा का
िणु है। इसतलए उस समय िक उसके तनिास स्थान के सम्बन्ध में कोई भी सन्देह नही था। उस समय
फ्रासं के न्यायतिदों ने फ्रासं के राजा को ही फ्रासं का सम्प्रभु कहा। सम्प्रभिु ा को राजा का िणु समझना
उतचि भी था क्योंतक उस समय राजा ही समस्ि शतक्तयों का स्रोि था। फ्रांस का शासक लईु चौदहिां
कहिा था तक मै ही राज्य हू मै ही शासक हू। इसी कारण उस समय कहा िया तक राजा नािररक िथा
प्रजाजनों के ऊपर परम शतक्त है जो तितध द्वारा मयाभतदि नही है।
6.2.6 2 सम्प्रभिु ा का अतधिास जनिा मे है:
लोकिन्त्रिादी तिचारको का मानना है तक सम्प्रभिु ा का तनिास जनिा में होिा है। सिभप्रथम इस
तिचार का पक्षपोषण रोमन तिचारक तससरों के द्वारा तकया िया तकन्िु ित्कालीन प्रिृतियों के अनकु ूल
न होने के कारण उसके तिचार को अस्िीकार कर तदया िया । िदपु रान्ि इस तिचार का प्रतिपादन
लॉक एिं रूसों ने तकया तक शासन जनसहमति पर आधाररि होिा है िथा सम्प्रभिु ा जनिा में तनतहि
होिी है। ििभमान में यह धारणा अत्यन्ि लोकतप्रय है तकन्िु यह कहने में तक जनिा सम्प्रभु है सबसे
बड़ी कतठनाई यह है तक स्ियं जनिा शब्द का अथभ ही अस्पष्ट है। कुछ लोि जनिा का अथभ समस्ि
जनसमहू अथाभि बच्चे ,बढू े और नौजिान से लिािे है िो कुछ लोि के िल तनिाभचको या मिदािाओ ं
को इसमें शातमल करने की िकालि करिे है।
6.2.6 3 सतिधान बनाने िथा उसमें सांशोधन करने िाली सांस्था में है
इस धारणा के प्रतिपादको का मानना है तक सम्प्रभिु ा संतिधान तनमाभत्री संस्था में तनतहि होिी है अथाभि
संतिधान का तनमाभण और उसका संसोधन करने िाली सभा को ही सम्प्रभु कहा जा सकिा है।कुछ
राज्यों में िो व्यिस्थातपका सामान्य तितध िनाने की प्रतक्रया से ही संतिधान में सशोधन कर सकिी
है जैसे- इग्लैण्ड,। लेतकन कुछ राज्यो में सतिधान संशोधन हेिु तिशेष प्रतक्रया अपनायी जािी है जैसे-
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अमेररका । परन्िु इस तसद्धान्ि की दो प्रमख
ु कतठनाइयां है। प्रथम संशो धनकारी सत्ता प्रायः सषु प्तु ािस्था
में रहिी है अथाभि यह के िल कभी-कभी तक्रयासही ल होिी है। जबतक सम्प्रभिु ा के सषु प्त मानना राज्य
तहि में नही है। तद्विीयिः यह तिचार सम्प्रभिु ा की एक प्रमख
ु तिशेषिा तनरकंु शिा को भी ठे स पहुचािा
है। क्योंतक संसोधनकारी शतक्त व्यिहारिः सरकार के तनयन्त्रण में रहिी है।
6.2.6 4 सम्प्रभुिा का तनिास तितध तनमागण करने िाली समस्ि सांस्थाओ ां के योग में है
इस दृतष्टकोण के समथभको का मि है तक सम्प्रभिु ा का तनिास तितध तनतमभि करने िाली सस्ं थाओ ं में
होिा है। िडु रो तिल्सन ने कहा है तक सम्प्रभिु ा तितध तनमाभिृ संस्थाओ ं में तनिास करिी है। इसी बाि
का समथभन करिे हुए गेतटल ने तलखा है तक िे सभी संस्थाये जो राज्य के इच्छा की अतभव्यतक्त करिी
है सम्प्रभिु ा का प्रयोि कर रही है। इन संस्थाओ में तिधानमण्डल, न्यायालय, कायभपातलका अतधकारी,
अतधिेशन ि तनिाभचक शातमल तकये जा सकिे है। जहॉ अतलतखि ि लचीला संतिधान होिा है िहॉं
तिधानमण्डल तनतिि रूप से सम्प्रभु कहा जा सकिा है जैसे तिटेन में सम्राट सतहि ससं द काननू ी
सम्प्रभु है लेतकन उन देशों में जहॉ संतिधान तलतखि एंि कठोर है उनके सम्बन्ध में यह बाि नही कही
जा सकिी है। इसके अलािा जहॉ संघात्मक व्यिस्था का प्रािधान है। िहॉ भी तितध तनमाभण की शतक्त
के न्रीय िथा राज्य तिधानमण्डल के बीच तिभातजि होिी है िथा दोनो की शतक्तयां एक-दसू रे को
तनयतन्त्रि करिीं है। इसतलए ऐसे राज्यों में तिधानमण्डल को सम्प्रभु नही कहा जा सकिा है। न्यायालयी
आदेश भी तितध के रूप में प्रभाि रखिे हैं। कायभपातलका के अतधकारी अध्यादेष की घोषणा द्वारा
तितध का तनमाभण करिे है। उदाहरण स्िरूप भारि में राष्रपति को संज्ञ की सचू ी के तिषयों िथा राज्यों
के राज्यपालों को राज्य की सचू ी के तिषय पर उस समय अध्यादेष के रूप में तितध की घोषणा करने
का अतधकार तदया िया है। जबतक संसद या राज्य तिधानमण्डल का अतधिेषन न चल रहा हो और
राष्र या राज्य तहि में तकसी काननू का बनाया जाना आिष्यक हो ये अध्यादेश छः महीने िक तितध
के रूप में प्रभाि रखिे है और यतद उसी अितध में इन्हे ससं द या तिधानमण्डल के बहुमि की स्िीकृ ति
प्राप्त हो जाय िो ये स्थायी तितध के रूप में स्थातपि हो जािे है। तनिाभचक भी जब तनिाभचन या जनमि
संग्रह द्वारा तकसी तिषय पर तनणभय करिे है िो िे तितध तनमाभण में सहायक होिे है। इस प्रकार इस मि
के समथभको का कहना है तक सम्प्रभु शतक्त राज्य में तनतहि होिी है िथा इसका प्रयोि सरकार द्वारा
तकया जािा है तकन्िु यह धारणा सिोंषजनक नही है क्योतक सम्प्रभिु ा की धारणा की मल ू मान्यिा यह
है तक इसकी इच्छा की अतभव्यतक्त ही तितध है । इसतलए िह तितध द्वारा अमयाभतदि है।
इस प्रकार अन्ििः कहा जा सकिा है तक सम्पणू भ राज्य की आज्ञा में सम्प्रभिु ा समातहि होिी है अथाभि
सम्पणू भ राज्य ही इसका तनिास स्थान है। यतद इस प्रश्न का जबाब इससे आिे ढूढ़ने का प्रयास तकया
जाय िो हम पायेिे तक हम एक ऐसे भल ू भल ु ैया में प्रिेश कर लेिे तजसमें से बाहर तनकलना असम्भि
नही िो कतठन अिश्य होिा।
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6.3 साराांश
सम्प्रभिु ा राज्य की सिोच्च शतक्त होने के साथ-साथ उसके अतस्ित्ि का आधार भी है। अपने इसी
शतक्त के आधार पर िह राज्य के लोिो के तलए काननू का तनमाभण िथा उनका पालन सतु नतष्चि करिी
है और उल्लंघन करने िालो को कठोर से कठोर दण्ड देिी है। सम्प्रभिु ा के सम्बन्ध में एक ध्यान देने
योग्य िथ्य यह भी है तक सैद्धातन्िक दृतष्ट से यह भले ही तनरंकुष, अमयाभतदि ि अदेय है लेतकन व्यिहार
में उस पर अनेक तनयन्त्रण ि सीमाए होिी है। इसके अतिररक्त यह कुछ संघो के अलि-अलि व्यतक्तत्ि
को भी स्िीकार करिी है । ििभमान यिु प्रजािन्त्र ि अन्िभराष्रीयिा का यिु है तजसमें सम्प्रभुिा के उस
रूप को स्िीकार नही तकया जा सकिा है तजस रूप में इसके प्राचीन समथभको बोदां , हॉब्स , हीिल ि
ऑतस्टन ने स्िीकार तकया है।
6.4 शब्दावली
सतं िधान - राज्य की मल ू तितध जो राज्य और सरकार का आधार होिी है।
सम्प्रभिु ा - राज्य को प्राप्त सिोच्च शतक्त तजसके कारण िह अपने आन्िररक िथा िाह्य दोनो मामलों
में पणू भिः स्ििन्त्र होिा है।
पोपशाही - जीिन के सभी पहलओ ु ं पर धमभ अथाभि इसाईयि का प्रभाि स्थातपि होना।
सामन्ििाद - ऐसा ििभ तजसका अतधकांश पंजू ी पर स्िातमत्ि हो।
लौतकक सम्प्रभिु ा - सम्प्रभिु ा जनिा में तनतहि होिी हैं।
अराजकिािाद - ऐसी तिचार परम्परा जो राज्य के अतस्ित्ि का तिरोध करिी है।
तितधिः - सम्प्रभिु ा प्रभसु त्ताधारी धारी के शतक्त का िैध आधार है।
िस्ििु ः - तकसी व्यतक्त या व्यतक्त समहू द्वारा शतक्त का िास्ितिक प्रयोि।
अभ्यास प्रश्न 2
1. रूसो 2. राज्य में 3. (क) राजनैतिक संप्रभिु ा के
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6.6 सन्दभभ ग्रन्थ सूची
1- ओ0पी0िाबा राजनीति तसद्धान्ि का रूपरे खा मयरू पेपर िैक्स , नोयडा
2- एडी0 आतशिाभदम िथा कृ ष्णकान्ि तमश्रा ,राजनीति तिज्ञान,एस0 चन्र एण्ड कम्पनी तल0 नयी
तदल्ली
3-एम0 पी0 जैन , आधतु नक राजनीति के तसद्धान्ि , आथसभ तिल्ड पतब्लके षन तदल्ली
4-ए0 अप्पादोराई आक्सफोडभ यतू निरतसटी प्रेस तदल्ली
5-डा0 एन0 डी0 अरोरा एंि ए0 के 0 आनन्द, राजनीति तिज्ञान के तसद्धान्ि , सातहत्य भिन आिरा
6-हैराल्ड जोसेफ लास्की , ए0 ग्रामर आफ पातलतटक्स
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इकाई 7 स्त्ििन्रिा
इकाई संरचना
7.0 प्रस्िािना
7.1 उद्देश्य
7.2 स्ििंत्रिा: अथभ, पररभाषा
7.3 स्ििंत्रिा का नकारात्मक दृतष्टकोण
7.4 स्ििंत्रिा का सकारात्मक दृतष्टकोण
7.5 स्िित्रं िा पर समकालीन बहस
7.6 स्िित्रं िा के तितिध रूप
7.7 साराश
ं
7.8 शब्दािली
7.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
7.10 सन्दभभ ग्रन्थ सचू ी
7.11 तनबंधात्मक प्रश्न
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7.0 प्रस्तावना:
स्िित्रं िा, तजसे अक्सर आज़ादी कहा जािा है, राजनीतिक दशभन और सामातजक तिमशभ में एक
मौतलक अिधारणा है। इसमें व्यतक्तिि स्िायत्तिा और बाहरी िाकिों द्वारा जबरदस्िी या उत्पीड़न की
अनपु तस्थति का तिचार शातमल है। स्ििंत्रिा व्यतक्तयों को सरकार, समाज या अन्य संस्थाओ ं के
अनतु चि हस्िक्षेप के तबना तिकल्प चनु ने, अपने लक्ष्यों का पीछा करने और अपनी मान्यिाओ ं को
व्यक्त करने का अतधकार देिी है।
स्िित्रं िा की अिधारणा परू े इतिहास में लोकिांतत्रक समाजों और मानिातधकार आंदोलनों की
आधारतशला रही है। इसे मानिीय िररमा और एक न्यायपणू भ एिं न्यायसंिि समाज की नींि का एक
अतनिायभ पहलू माना जािा है। स्िित्रं िा के तितभन्न रूप, जैसे राजनीतिक स्िित्रं िा (सरकार में भाि
लेने और तनणभय लेने में अपनी बाि रखने का अतधकार), आतथभक स्ििंत्रिा (अत्यतधक तनयमों के
तबना व्यापार और िातणज्य में संलग्न होने की स्ििंत्रिा), और नािररक स्ििंत्रिा (व्यतक्तिि स्ििंत्रिा
पर अनतु चि सरकारी हस्िक्षेप के तखलाफ सरु क्षा), मानि अतधकारों और व्यतक्तिि कल्याण की
सरु क्षा के तलए कें रीय हैं।
7.1 उद्देश्य
1. स्ििंत्रिा के अथभ और पररभाषा को जान पायेंिें।
2. स्िित्रं िा के तितिध रूपों को समझ पायेंिें।
3. स्िित्रं िा के दृतष्टकोण सकारात्मक और नकारात्मक स्ििंत्रिा को जान पायेंिें।
7.2 स्ििांत्रिा: अथग, पररभाषा
स्ििन्त्रिा का अंग्रेजी रूपान्िर ‘तलबटी’ लैतटन भाषा के ‘तलबर’ शब्द से तनकला है तजसका अथभ
होिा है ‘बन्धनों का अभाि’। मनष्ु य एक सामातजक प्राणी है और समाज में रहिे हुए मनष्ु य असीतमि
स्ििन्त्रिा का उपभोि कर ही नहीं सकिा। उसे सामातजक तनयमो की मयाभदा के अन्ििभि रहना होिा
है। अिः राजनीति तिज्ञान के अन्ििभि स्ििन्त्रिा की तजस रूप में कल्पना की जािी है, उस रूप में
स्ििन्त्रिा मानिीय प्रकृ ति और सामातजक जीिन के इन दो तिरोधी ित्िों (बन्धनों ि अभाि और
तनयमों के पालन) में सामंजस्य का नाम है। और इनकी पररभाषा करिे हुए कहा जा सकिा है तक
”स्ििन्त्रिा व्यतक्त की अपनी इच्छानसु ार कायभ करने की शतक्त का नाम है बशिे तक इनसे दसू रे व्यतक्त
की इसी प्रकार की स्ििन्त्रिा में कोई बाधा न पहुचँ े।
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शीले के अनसु ार - ”स्ििन्त्रिा अति शासन की तिरोधी है“
प्रो0 लास्की के शब्दों में, ”स्ििन्त्रिा मेरा अतभप्राय यह है तक उन सामातजक पररतस्थतियों के अतस्ित्ि
पर प्रतिबन्ध न हो, जो आधतु नक सभ्यिा में मनश्ु य के सख ु के तलए तनिान्ि आिश्यक है।
िैटल ने कहा है, ”स्ििन्त्रिा का समाज में के िल नकारात्मक स्िरूप ही नहीं है, िरन् सकारात्मक
स्िरूप भी है। स्ििन्त्रिा के सकारात्मक या िास्ितिक स्िरूप की नकारात्मक स्िरूप ही नहीं, िरन्
सकारात्मक स्िरूप भी है।“ स्ििन्त्रिा के सकारात्मक या िास्ितिक स्िरूप की नकारात्मक स्िरूप
से तभन्निा बिािे हुए टी0एस0 ग्रीन ने तलखा है तक ”तजस प्रकार सौन्ययभ कुरूपिा के अभाि का नाम
ही नहीं होिा, उसी प्रकार स्ििन्त्रिा प्रतिबन्धों के अभाि का नाम नहीं है। आिे चलकर ग्रीन ही
स्िन्त्रिा के सकारात्मक रूप को स्पष्ट करिे हुए तलखिे हैं तक ”स्ििन्त्रिा ऐसे कायभ करने और उपयोि
करने की शतक्त कानाम जो करने योग्य या उपभोि के के योग्य हो।“
अिः स्ििन्त्रिा की पररभाषा करिे हुए कहा जा सकिा है तक ”स्ििन्त्रिा जीिन की ऐसी अिस्था का
नाम है तजसमें व्यतक्त के जीिन पर न्यनू िम प्रतिबन्ध हों और व्यतक्त को अपने व्यतक्तत्ि के तिकास
हेिु अतधकिम सतु िधाऐ ं प्राप्त हो।“
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इस तिचार के समथभक जॉन लॉक, डेतिड ह्यमू , आदम तस्मथ, थॉमस पेन, हबभटभ स्पेंसर, बेन्थम,
ज़े.एस.तमल थे. 20 िीं शिाब्दी में इसयाह बतलभन, तमल्टन फ्रीडमैन, हेयक, नौतजक आतद रहे हैं।
स्िित्रं िा की धारणा को नकारात्मक स्ििंत्रिा और सकारात्मक स्ििंत्रिा में ििीकरण का श्रेय इसयाह
बतलभन को जािा है। बतलभन ने 1958 में अपनी प्रतसद्ध एिं तिख्याि पस्ु िक “Two Concepts on
Liberty” प्रकातशि की। उन्होंने 1969 में इस पस्ु िक का संशोधन तकया और इस पस्ु िक को “Four
Essays on Liberty” के नाम से प्रकातशि तकया।
स्ििन्त्रिा के नकारात्मक दृतष्टकोण का सबसे अतधक प्रमुख रूप में प्रतिपादन जे0एस0 तमल के द्वारा
1859 ई0 में प्रकातशि अपने तनबन्ध ‘स्ििन्त्रिा’ में तकया िया है। तमल का कथन है तक व्यतक्त का
उद्देश्य अपने व्यतक्तत्ि का उच्च्िम एिं अतधकिम तिकास है और यह तिकास के िल स्ििन्त्रिा के
िािािरण में ही सम्भि है। यतद व्यतक्त को यह स्िाधीनिा न दी जाए िो मानि जीिन का मूल लक्ष्य
ही तिफल हो जाएिा। समाज की उन्नति और तिकास के तलए भी व्यतक्त को अतधकिम स्िाधीनिा
देना आिश्यक है। इस प्रकार तमल के अनसु ार, “व्यतक्त के जीिन में राज्य का न्यनू िम हस्िक्षेप और
अतधकिम सम्भि सीमा िक व्यतक्त को अपनी इच्छानसु ार जीिन व्यिीि करने की छूट ही स्ििन्त्रिा
है और िह इस अपनाने पर बल देिा है”। तमल व्यतक्त-स्ित़िा की प्रबलिम समथभक है।
तमल व्यतक्तिि स्ििन्त्रिा के दो पहलओ
ु ं पर बल देिा है- तिचार स्िन्त्रिा और कायभ स्ििन्त्रिा।
तमल के अनसु ार प्रत्येक व्यतक्त को तिचार और अतभव्यतक्त की पणू भ स्ििन्त्रिा प्राप्त होनी चातहए िथा
राज्य के द्वारा तकसी भी प्रकार की तिचारधारा या भाितभव्यातप्त पर बन्धन नहीं लिाया जाना चातहए।
कायभ स्ििन्त्रिा के तिषय में, तमल मानि कायो को दो भािों में तिभातजि करिा है - (1) स्ि-तिषयक
(2) पर-तिषयक। स्ि-तिषयक अथाभि व्यतक्त के व्यतक्तिि जीिन से सम्बतन्धि (2) पर-तिषयक
अथाभि ऐसे कायभ, तजनका प्रभाि समाज के अन्य व्यतक्तयों के जीिन पर पड़िा है।
तमल का कथन है तक स्ि-तिषयक कायो में व्यतक्त को पणू भ स्िाधीनिा प्राप्त होनी चातहए, लेतकन पर-
तिषयक कायो में व्यतक्त की स्ििन्त्रिा सीतमि होिी है, तिशेषकर जबतक उसके कायो से समाज के
अन्य व्यतक्त की स्ििन्त्रिा में बाधा पहुचं िी हो।
तमल व्यतक्त के जीिन पर ‘न्यनू िम प्रतिबन्धों की तस्थति’ को स्ििन्त्रिा का नाम देिे हुए स्ििन्त्रिा के
नकारात्मक दृतष्टकोण का प्रतिपादन करिा है। आज की पररतस्थतियों में तमल की इस स्ििन्त्रिा को
िास्ितिक स्ििन्त्रिा नहीं कहा जा सकिा है।
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फ्रेडररक हेयक नकारात्मक स्ििंत्रिा के समथभक रहे हैं। हेयक के अनसु ार कोई भी व्यतक्त िभी स्ििंत्र
है जब िह तकसी और व्यतक्त की मनमानी इच्छा के दमन के अधीन नहीं है।
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पररभातषि तकया, जो व्यतक्तयों को कुछ साथभक करने या आनंद लेने और खदु को सिभश्रेष्ठ बनाने में
सक्षम बनािा है।
दोनों जे.एस. तमल और टी.एच. ग्रीन ने व्यतक्तयों को उनकी क्षमिा िक पहुचं ने में सक्षम बनाने में
स्ििंत्रिा के मल्ू य को पहचाना, तफर भी िे इसकी पररभाषा पर असहमि थे। इससे एक महत्िपणू भ प्रश्न
उठिा है: व्यतक्तिि स्ििंत्रिा क्यों आिश्यक है, और इसके मल्ू य पर आम सहमति अलि-अलि
व्याख्याओ ं को क्यों जन्म देिी है? स्ििंत्रिा को पररभातषि करने में यह तिचलन अिधारणा की सक्ष्ू म
और बहुआयामी प्रकृ ति को रे खातं कि करिा है, जो व्यतक्तिि एजेंसी, सामातजक भािीदारी और एक
साथभक और पणू भ जीिन की खोज के बीच जतटल परस्पर तक्रया को दशाभिा है।
सकारात्मक स्ििंत्रिा की अिधारणा में बतु नयादी तिचार यह है तक हर व्यतक्त के आत्मभाि के दो
भाि होिे है-उच्चिर आत्म और तनम्निर आत्म। व्यतक्त का उच्चिर आत्म उसका िातकभ क आत्म
होिा है और व्यतक्त के तनम्निर आत्म पर उसका प्रभत्ु ि होना चातहए। सकारात्मक स्िित्रं िा का अथभ
तसफभ यह नहीं है तक तकसी िरह की दखलंदाजी न हो बतल्क इसमें यह तिचार भी शातमल है तक व्यतक्त
अपना मातलक हो और उसके उच्चिर आत्म का तनम्निर आत्म पर प्रभत्ु ि हो।
इस अिधारणा के समथभक टी.एच.ग्रीन, बोसांके, हौबहाउस,तलंडसे, बाकभ र, लास्की, मैकाइिर आतद
थे।
मैक्फसभन ने अपनी पस्ु िक Democratic Theory में सकारात्मक स्िित्रं िा का समथभन तकया है।
मैक्फसभन के अनसु ार सकारात्मक स्ििंत्रिा मानि के पणू भ रूप में कायभ करने की स्ििंत्रिा है। तकसी
व्यतक्त की सकारात्मक स्ििंत्रिा िास्िि में तिकासशील अथभ में व्यतक्त की शतक्त है। मैक्फसभन के
अनसु ार मनष्ु य की तिकासात्मक शतक्त का अतधकिम तिस्िार ही उसकी “सृजनात्मक स्ििंत्रिा की
कंु जी है”।
स्िित्रं िा की दो प्रचतलि धारणाओ ं की सीमाओ ं को चनु ौिी देिे हुए, समकालीन स्ििंत्रिा तसद्धांिकार
स्ििंत्रिा के तलए आिश्यक सामातजक पिू ाभपेक्षाओ ं के तनमाभण से जझू रहे हैं। ये पिू ाभपेक्षाएँ भौतिक
और काननू ी प्रतिबंधों से कुछ डोमेन की पारंपररक सरु क्षा के साथ-साथ व्यतक्तयों को तशक्षा, आय
और स्िास्थ्य देखभाल जैसे संसाधनों के न्यायसंिि प्रािधान से भी आिे जािी हैं। इन पहलओ ु ं के
साथ-साथ, दो अतिररक्त प्रािधानों को स्िित्रं िा के तलए महत्िपणू भ माना जािा है, हालातं क िे कम
सिभसम्मि सहमति प्राप्त करिे हैं।
स्िित्रं िा की िीसरी सामातजक तस्थति तकसी व्यतक्त के समाज के भीिर उसके सांस्कृ तिक संदभभ की
मान्यिा और मल्ू यांकन के इदभ-तिदभ घूमिी है। यह सांस्कृ तिक पृष्ठभतू म स्िायत्त प्राथतमकिाओ ं के
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तनमाभण में महत्िपणू भ भतू मका तनभािी है। सांस्कृ तिक संदभभ पर यह जोर सांस्कृ तिक अतधकारों की
िकालि के महत्ि को रे खांतकि करिा है, तजसका अथभ है तक यतद तकसी समाज के भीिर तितिध
सस्ं कृ तियों को समान रूप से सम्मान नहीं तदया जािा है िो सच्ची स्िित्रं िा से समझौिा तकया जािा
है। संक्षेप में, यह तस्थति यह िकभ देिी है तक तितभन्न संस्कृ तियों का असमान मल्ू यांकन उस समाज के
भीिर व्यतक्तयों की समग्र स्ििंत्रिा को कम कर देिा है।
स्िित्रं िा की चौथी सामातजक तस्थति सामतू हक स्ििंत्रिा की अिधारणा पर कें तरि है, जो सािभभौतमक
मिातधकार और अतभव्यतक्त की स्िित्रं िा जैसी मात्र राजनीतिक स्िित्रं िा से परे फै ली हुई है। यह
तस्थति उस तचंिा को संबोतधि करिी है जो िब उत्पन्न होिी है जब स्ििंत्रिा को कुछ व्यतक्तयों द्वारा
दसू रों पर हािी होने की क्षमिा के रूप में देखा जािा है। इस आपतत्त का प्रतिकार करने के तलए, उन
िकों का पिा लिाना आिश्यक हो जािा है जो एक व्यतक्त की स्िित्रं िा और दसू रों की स्िित्रं िा के
बीच पारस्पररक संबंध स्थातपि करिे हैं। दसू रे शब्दों में, सच्ची स्ििंत्रिा में यह मान्यिा शातमल है तक
प्रत्येक व्यतक्त की स्िित्रं िा दसू रों की स्िित्रं िा से जड़ु ी हुई है और उस पर तनभभर है।
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7.6 स्वतन्त्रता के तवतवध रूप
फ्रासं ीसी तिद्वान मॉण्टेस्क्यू ने एक स्थान पर कहा है तक स्ििन्त्रिा के अतिररक्त शायद ही कोई ऐसा
शब्द हो तजसके इिने अतधक अथभ होिे है और तजसके नािररकों के मतस्िष्क पर इिना अतधक प्रभाि
डाला हो। मॉण्टेस्क्यू के इस कथन का कारण यह है तक राजनीति तिज्ञान में स्ििन्त्रिा के तितिध रूप
प्रचतलि हैं, तजसमें अग्रतलतखि प्रमख ु हैं:-
1. प्राकृतिक स्ििन्त्रिा:- इस धारणा के अनसु ार प्रकृ ति की देन है और मनष्ु य जन्म से ही स्ििन्त्रिा
होिा है। इसी तिचार को व्यक्त करिे हुए के सो ने तलखा है तक “मनष्ु य स्ििन्त्रि उत्पन्न होिा है, तकन्िु
सिभत्र यह बन्धनों में बंधा हुआ है”।
प्राकृ तिक स्ििन्त्रिा का आशय मनष्ु यों की अपनी इच्छानसु ार कायभ करने की स्ििन्त्रिा से है।
सतं िदािादी तिचारकों का मि है तक राज्य की उत्पतत्त के पिू भ व्यतक्तयों को इसी प्रकार की स्ििन्त्रिा
प्राप्त थी। संयक्त
ु राज्य अमरका की ‘स्िाधीनिा घोषणा’ और फ्रांस की ‘राज्यक्रातन्ि’ में इसी प्रकार
की स्ित़िा का प्रतिपादन तकया िया है। प्राकृ तिक स्ििन्त्रिा की इस धारणा के अनसु ार स्ििन्त्रिा
प्रकृ ति प्रदत्त और तनरपेक्ष होिी है अथाभि् समाज या राज्य व्यतक्त की स्ििन्त्रिा को तकसी भी प्रकार
से सीतमि या प्रतिबतन्धि नहीं कर सकिा है।
परन्िु प्राकृ तिक स्ििन्त्रिा की यह धारणा पणू भिया भ्रमात्मक है। प्राकृ तिक स्ििन्त्रिा की तस्थति में िो
‘मत्स्य न्याय’ का व्यिहार प्रचतलि होिा और पररणामिः समाज में के िल कुछ ही व्यतक्त अस्थायी
रूप से स्ििन्त्रिा का उपभोि कर सकें िे। व्यिहार में प्राकृ तिक स्ििन्त्रिा का अथभ है। के िल
शतक्तशाली व्यतक्तयों की स्ििन्त्रिा।
2. व्यतिगि स्ििन्त्रिा:- इसका िात्पयभ यह है तक व्यतक्त के उन कायो पर के ाई प्रतिबन्ध नहीं होना
चातहए, तजनका सम्बन्ध के िल उसके ही अतस्ित्ि से हो। इस प्रकार के व्यतक्तिि कायो में भोजन,
िस्त्र धमभ और पाररिाररक जीिन को सतम्मतलि तकया जा सकिा है। व्यतक्तिि स्िन्त्रिा के समथभकों
के अनसु ार इनसे सम्बतन्धि कायो में व्यतक्तयों को पणू भ स्िन्त्रिा प्राप्त होनी चातहए। व्यतक्तिादी और
कुछ सीमा िक बहुलिादी तिचारकों ने इस स्ििन्त्रिा का प्रबल समथभन तकया है। तमल व्यतक्तिि
स्ििन्त्रिा का समथभन करिे हुए ही कहिे है तक ”मानि समाज को के िल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही
तकसी व्यतक्त की स्ििन्त्रिा में व्यतक्तिि या सामतू हक रूप से हस्िक्षेप करने का अतधकार हो सकिा
है। अपने ऊपर, अपने शरीर, मतस्िष्क और आत्मा परा व्यतक्त सम्प्रभु हैं।
3. नागररक स्ििन्त्रिा:- नािररक स्ििन्त्रिा का अतभप्राय व्यतक्त की उन स्ििन्त्रिाओ ं से है जो
व्यतक्त या राज्य का सदस्य होने के नािे प्राप्त करिा है। नािररक स्ििन्त्रिा का उद्देश्य प्रत्येक व्यतक्त को
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समान अिसर और अतधकार प्रदान करना होिा है। अिः स्िभाि से ही यह स्ििन्त्रिा असीतमि या
तनरंकुश नहीं हो सकिी है।
नािररक स्ििन्त्रिा के दो प्रकार होिे है - (1) शासन के तिरोध की स्ििन्त्रिा (2) व्यतक्त को व्यतक्त
और व्यतक्तयों के समदु ाय से स्ििन्त्रिा। शासन के तिरूद्ध व्यतक्त की स्ििन्त्रिा तलतखि या अतलतखि
संतिधान द्वारा मौतल अतधकारों के माध्यम से या अन्य तकसी प्रकार से स्िीकृ ि की जािी है। नािररक
स्ििऩिा का दसू रा रूप मनष्ु य के िे अतधकार है तजन्हें िह राज्य के अन्य समदु ायों और मनष्ु यों के
तिरूद्ध प्राप्त करिा है।
4. राजनीतिक स्ििन्त्रिा:- अपने राज्य के कायो में स्िििंिापिू भक सतक्रय भाि लेने की स्ििन्त्रिा
को राजनीतिक स्ििन्त्रिा कहा जािा है। लास्की के अनसु ार, “राज्य के कायो में सतक्रय भाि लेने की
शतक्त ही राजनीतिक स्ििन्त्रिा हैं”।
राजनीतिक स्ििन्त्रिा के अन्ििभि व्यतक्त को ये अतधकार प्राप्त होिे है -
(1) मिदान देने का अतधकार
(2) तनिाभतचि होने का अतधकार
(3) उतचि योग्यिा होने पर सािभजतनक पद प्राप्त करने का अतध्कार और
(4) सरकार के कायो की आलोचना का अतधकार। इन अतधकारों से यह स्पष्ट है तक राजनीतिक
स्ििन्त्रिा के िल एक प्रजािन्त्रात्मक देश में ही प्राप्त की जा सकिी है।
5. आतथगक स्ििन्त्रिा:- ििभमान समय में आतथभक स्ििन्त्रिा का िात्पयभ व्यतक्त की ऐसी तस्थति से
तजसमें व्यतक्त अपने आतथभक प्रयत्नों का लाभ स्ियं प्राप्त करने की तस्थति में हो िथा तकसी प्रकार
उसके श्रम का दसू रे के द्वारा शोषण न तकया जा सके । लास्की के अनसु ार, ”आतथभक स्ििन्त्रिा की
अतभप्राय यह है तक प्रत्येक व्यतक्त को अपनी जीतिका कमाने की समतु चि सरु क्षा िथा सतु िधा प्राप्त
हो। व्यतक्त को बेरोजिारी और अपयाभप्ता के तनरन्िर भय से मक्त
ु रखा जाना चातहए जो तक अन्य तकसी
भी अपयाभप्ता की अपेक्षा व्यतक्तत्ि की समस्ि शतक्त को बहुि अतधक आघाि पहुचं ािी है। व्यतष्ट को
कल को आिश्यकिाओ ं से मुक्त रखा जाना चातहए।“
6. नैतिक स्ििन्त्रिा:- व्यतक्त को अन्य प्रकार की सभी स्ििन्त्रिाएं प्राप्त होने पर भी यतद िह नैतनक
दृतष्ट से परित्रं हो, िो उसे स्ििन्त्र नहीं कहा जा सकिा। नैतिक स्ििन्त्रिा ही िास्ितिक स्ििन्त्रिा एिं
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महान स्ििन्त्रिा है। नैतिक स्ििन्त्रिा का अथभ व्यतक्त की उस मानतसक तस्थति से है तजसमें िह अनतु चि
लोभ-लालच के तबना अपना सामातजक जीिन व्यिीि करने की योग्यिा रखिा हो।
काम्टे के तिचार में व्यतक्त की तििेकपणू भ इच्छा शतक्त ही उसकी िास्ितिक स्ििन्त्रिा है।
अभ्यास प्रश्न
1. स्िित्रं िा की कौन सी अिधारणा तकसी व्यतक्त के कायों में बाहरी हस्िक्षेप या बाधाओ ं की
अनपु तस्थति पर जोर देिी है?
(अ) नकारात्मक स्िित्रं िा ( ब) सकारात्मक स्िित्रं िा ( स) सामातजक स्िित्रं िा
(द) आतथभक स्ििंत्रिा
2. बाहरी बाधाओ ं की अनपु तस्थति से परे , सकारात्मक स्ििंत्रिा तकस पर ध्यान कें तरि करिी
है?
( अ) उत्पीड़न से मतु क्त (ब) आत्मतनणभय और अपनी क्षमिा को प्राप्त करना
(स) आतथभक समृतद्ध (द) व्यतक्तिि अतधकारों की रक्षा करना
3. नकारात्मक और सकारात्मक स्ििंत्रिा के बीच संिल
ु न हातसल करने में मख्ु य चनु ौिी क्या है?
(अ) सामातजक मानदडं ों को संबोतधि करना
(ब) व्यतक्तिि स्िित्रं िा के साथ आतथभक समृतद्ध को सिं तु लि करना
(स) आत्म-तनयत्रं ण के तलए आिं ररक बाधाओ ं पर काबू पाना
(द) जीिन के सभी क्षेत्रों में सरकारी हस्िक्षेप को प्रोत्सातहि करना
7.7 साराांश
स्िित्रं िा की अिधारणा मानि अतधकारों और राजनीतिक दशभन की आधारतशला है, जो व्यतक्तिि
स्िायत्तिा और दमनकारी बाधाओ ं से मतु क्त की मौतलक आकांक्षा को दशाभिी है। इसमें नकारात्मक
स्ििंत्रिा शातमल है, तजसमें बाहरी हस्िक्षेप की अनपु तस्थति और सकारात्मक स्ििंत्रिा शातमल है,
तजसमें आत्मतनणभय करने और तकसी की िास्ितिक क्षमिा का पीछा करने की क्षमिा शातमल है।
स्िित्रं िा की बहुमख
ु ी प्रकृ ति के कारण व्यतक्तिि अतधकारों की सरु क्षा और आम भलाई को बढ़ािा
देने के बीच एक नाजक ु संिुलन की आिश्यकिा होिी है। इस संिल ु न को बनाए रखना समाजों के
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 128
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
तलए एक जतटल और तनरंिर चनु ौिी बनी हुई है, क्योंतक िे नकारात्मक स्ििंत्रिा की रक्षा करने और
सकारात्मक स्ििंत्रिा के तलए संसाधनों और अिसरों के साथ व्यतक्तयों को सशक्त बनाने के बीच
नेतििेट करिे हैं।
स्िित्रं िा की अिधारणा राजनीतिक तिचारधाराओ ं को आकार देिी है, शासन तसद्धांिों का मािभदशभन
करिी है और दतु नया भर में न्याय और समानिा के तलए आंदोलनों को प्रेररि करिी है। जैसे-जैसे हम
अपने बदलिे सामातजक पररदृश्य में स्ििंत्रिा की खोज और व्याख्या करिे हैं, तिचारशील संिाद,
सहानभु तू ि और एक ऐसे समाज को बढ़ािा देने की प्रतिबद्धिा में शातमल होना आिश्यक है जहां
सभी व्यतक्त आत्म-शातसि और स्ििंत्र प्राणी के रूप में अपनी परू ी क्षमिा का एहसास कर सकें ।
7.8 शब्दावली
स्िायत्तिा- स्िशासन और तनणभय लेने में स्िित्रं िा,
स्ििांत्र इच्छा-बाहरी दबाि के तबना चनु ाि करने की क्षमिा,
स्ििांत्रिा- दबाि या प्रतिबंध से मक्त
ु होने की अिस्था।
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ु तिश्वतिद्यालय 129
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7.11 सहायक/उपयोिी पाठ्य सामग्री
9. जैन, एम0पी0- पातलतटकल थ्योरी, आथभस तिल्ड पतब्लके शन, तदल्ली
10. संध,ु ज्ञान तसंह- राजनीतिक तसद्धान्ि, तदल्ली तिश्वतिधालय
11. िमाभ, एस0एल0-एडिांसड माडभन पातलतटकल थ्योरी, नेशनल पतब्लके शन हाउस, नई
तदल्ली
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 130
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इकाई 8 िमानिा
इकाई संरचना
8.0 प्रस्िािना
8.1 उद्देश्य
8.2 समानिा के बतु नयादी तसद्धांि
8.3 समानिा के अथभ के सम्बन्ध में इसके दो पहलू
8.8.1 समानिा का नकारात्मक पहलू
8.8.2 समानिा का सकारात्मक पहलू
8.4 समानिा के तितभन्न प्रकार
8.4.1 औपचाररक समानिा
8.4.2 अिसर की समानिा
8.4.3 पररणामों की समानिा
8.5 समानिा और नारीिाद
8.6 स्ििंत्रिा और समानिा में सम्बन्ध
8.7 सारांश
8.8 शब्दािली
8.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
8.10 सन्दभभ ग्रन्थ सचू ी
8.11 सहायक उपयोिी सामग्री
8.12 तनबंधात्मक प्रश्न
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ु तिश्वतिद्यालय 131
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8.0 प्रस्तावना
समानिा एक मौतलक और सािभभौतमक अिधारणा है जो मानि अतधकारों, सामातजक न्याय और
नैतिक तसद्धांिों के कें र में तस्थि है। यह सभी व्यतक्तयों के साथ उनकी जाति, तलंि, धमभ, सामातजक
आतथभक तस्थति या तकसी अन्य तिशेषिा की परिाह तकए तबना तनष्पक्षिा के साथ व्यिहार करने के
तिचार का प्रिीक है। समानिा की अिधारणा एक ऐसे समाज का तनमाभण करना चाहिी है जहां सभी
को समान अिसर, अतधकार और संसाधनों िक पहुचं प्राप्त हो, तजससे प्रत्येक व्यतक्त को अपनी परू ी
क्षमिा िक पहुचं ने और सम्मानजनक जीिन जीने की अनमु ति तमले।
समानिा की अिधारणा आधतु नक राजनीतिक तिमशभ और तिचार में एक कें रीय कें र तबंदु के रूप में
उभरी है, जो जन्म के आधार पर सामातजक पदानक्र ु म की ऐतिहातसक स्िीकृ ति से एक महत्िपणू भ
प्रस्थान का प्रिीक है। अिीि में, प्राकृ तिक पदानक्र
ु म की धारणाएँ प्रचतलि थीं, लेतकन समकालीन
राजनीतिक सोच मल ू रूप से सभी मनष्ु यों की अंितनभतहि समानिा में मल
ू भिू तिश्वास पर तटकी हुई है।
इस बदलाि को 1789 में फ्रांसीसी क्रांति और अमेररकी िृहयुद्ध जैसी महत्िपणू भ घटनाओ ं के माध्यम
से प्रमख
ु िा से प्रदतशभि तकया िया, तजसने लोकिंत्र, समानिा और स्ििंत्रिा के तसद्धांिों को रे खांतकि
तकया। फ्रासं ीसी क्रातं ि ने मध्ययिु ीन पदानक्र
ु म को चनु ौिी दी, जबतक अमेररकी िृहयद्ध ु ने नस्लीय
असमानिाओ ं पर प्रकाश डाला। तफर भी, समानिा के तिचार को अपनाना बाधाओ ं से रतहि नहीं था।
20िीं सदी की शरुु आि में, आर.एच. टािनी ने तितटश समाज में प्रचतलि "असमानिा के धमभ" के
बारे में तचंिा व्यक्त की। उन्होंने न के िल असमानिाओ ं के अतस्ित्ि पर बतल्क ऐसी असमानिाओ ं के
खिरनाक सामान्यीकरण पर भी अफसोस जिाया। हालाँतक, समय के साथ, समानिा की धारणा को
व्यापक स्िीकृ ति तमली, जो तद्विीय तिश्व यद्धु के बाद हुए पररििभनों से उत्प्रेररि हुई और उपतनिेशिाद
और मतहला आंदोलन से प्रेररि हुई। आज, समानिा मानि समाज की संरचना के तलए आधारतशला
के रूप में खड़ी है, तफर भी तििादास्पद बहस इसके दायरे और अनप्रु योि के इदभ-तिदभ घमू िी है। तिशेष
रूप से तििादास्पद धन और आय तििरण में समानिा का अनप्रु योि है, तजसमें समिा-तिरोधी तिचार
पनु रुत्थान का अनभु ि कर रहे हैं। इसे राजनीतिक अथभव्यिस्था की एक धारा द्वारा बढ़ािा तदया िया
है, तजसमें कहा िया है तक समिािादी उपाय बाजार की दक्षिा में बाधा डालिे हैं और अंििः सभी
के तलए नकारात्मक पररणाम पैदा करिे हैं।
8.1 उद्देश्य
इस इकाई के माध्यम से आप जान पाएंिे:
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ु तिश्वतिद्यालय 132
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
1. समानिा के तितभन्न प्रकारों को जान पायेंिें।
2. समानिा के बतु नयादी तसद्धांिों को जान पायेंिें।
3. समानिा और स्िित्रं िा के मध्य सम्बन्ध को जान पायेंिें।
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ु तिश्वतिद्यालय 133
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सामातजक समानिा: समिािाद का तिस्िार तलंि, जाति, जािीयिा और धमभ जैसे कारकों के आधार
पर सामातजक असमानिाओ ं को संबोतधि करने िक है। समिािादी भेदभाि को खत्म करने और इन
आयामों में तनष्पक्षिा और समािेतशिा को बढ़ािा देने का प्रयास करिे हैं।
यह ध्यान रखना महत्िपणू भ है तक हालांतक ये तसद्धांि समानिा के प्रमख ु पहलओ ु ं को शातमल करिे
हैं, लेतकन ये संपणू भ नहीं हैं। समिािाद की िाकि असमानिा और अन्याय के उभरिे रूपों को संबोतधि
करने के तलए चल रहे सधु ार और अनक ु ू लन की क्षमिा में तनतहि है। मल
ू तसद्धांि मािभदशभक रोशनी
के रूप में कायभ करिे हैं, एक ऐसे समाज की दृतष्ट को आकार देने में मदद करिे हैं जहां व्यतक्तयों को
महत्ि तदया जािा है, सम्मान तदया जािा है, और समान स्िर पर पणू भ जीिन जीने में सक्षम तकया जािा
है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 134
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समान अिसर: समान व्यिहार पर ध्यान कें तरि करने का उद्देश्य व्यतक्तयों को अपने लक्ष्यों और
आकांक्षाओ ं को आिे बढ़ाने के तलए समान अिसर प्रदान करना है। यह योग्यिा और इस तिचार को
बढ़ािा देिा है तक सफलिा व्यतक्तिि प्रयास और क्षमिाओ ं पर आधाररि होनी चातहए।
8.2 समानिा का सकारात्मक पहलू:
सकारात्मक समानिा, तजसे िास्ितिक या भौतिक समानिा के रूप में भी जाना जािा है, औपचाररक
समानिा से परे जािी है और अिं तनभतहि सरं चनात्मक और प्रणालीिि कारकों को सबं ोतधि करने पर
ध्यान कें तरि करिी है जो असमानिाओ ं में योिदान करिे हैं। इसका उद्देश्य ऐसी तस्थतियाँ बनाना है
जहाँ सभी को आिश्यक संसाधनों, अिसरों और कल्याण िक समान पहुचं प्राप्त हो। यहाँ सकारात्मक
समानिा के प्रमखु पहलू हैं:
सस
ां ाधनों का पुनतिगिरण: सकारात्मक समानिा असमानिाओ ं को कम करने के तलए ससं ाधनों
और अिसरों के पनु तिभिरण की िकालि करिी है। इसमें प्रितिशील कराधान, सामातजक कल्याण
कायभक्रम और हातशए पर रहने िाले समहू ों के उत्थान के तलए सकारात्मक कारभ िाई पहल शातमल हो
सकिी है।
न्यायसांगि पररणाम: सकारात्मक समानिा का लक्ष्य न्यायसिं ि पररणाम प्राप्त करना है, न तक के िल
समान व्यिहार। इसका उद्देश्य यह सतु नतिि करके तिशेषातधकार प्राप्त और ितं चिों के बीच अिं र को
कम करना है तक हर तकसी को सम्मानजनक और पणू भ जीिन जीने का उतचि मौका तमले।
सांरचनात्मक अन्याय को सबां ोतधि करना: सकारात्मक समानिा उन ऐतिहातसक अन्यायों और
प्रणालीिि बाधाओ ं को दरू करने का प्रयास करिी है तजन्होंने असमानिा में योिदान तदया है। यह
स्िीकार करिा है तक कुछ समहू ितं चि तस्थति से शरू
ु कर सकिे हैं और सच्ची समानिा प्राप्त करने
के तलए अतिररक्त समथभन की आिश्यकिा है।
सामातजक समािेशन: काननू ी अतधकारों से परे , सकारात्मक समानिा सामातजक समािेशन और
भािीदारी पर कें तरि है। इसका उद्देश्य एक ऐसे समाज का तनमाभण करना है जहां हर कोई मूल्यिान
महससू करे और उनके जीिन को प्रभातिि करने िाले तनणभयों को आकार देने में उनकी आिाज हो।
समग्र दृतिकोण: सकारात्मक समानिा तशक्षा, स्िास्थ्य देखभाल, आिास और आतथभक अिसरों
जैसे कारकों पर तिचार करिे हुए कल्याण के तलए एक समग्र दृतष्टकोण अपनािी है। यह मानिा है तक
सच्ची समानिा के तलए जीिन के कई आयामों को संबोतधि करने की आिश्यकिा है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 135
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संक्षेप में, नकारात्मक समानिा काननू के िहि समान व्यिहार और भेदभाि की अनपु तस्थति पर जोर
देिी है, जबतक सकारात्मक समानिा संसाधन पनु तिभिरण के माध्यम से संरचनात्मक असमानिाओ ं
को सबं ोतधि करने और न्यायसिं ि पररणाम बनाने पर कें तरि है। न्यायसिं ि और तनष्पक्ष समाज की
खोज में दोनों पहलू महत्िपणू भ हैं, और िे व्यापक समानिा प्राप्त करने के प्रयासों में एक-दसू रे के परू क
हो सकिे हैं।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 136
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समकालीन समय में, समिािादी तिचार इस धारणा से परे तिकतसि हुआ है तक सभी मनष्ु य
स्िाभातिक रूप से समान हैं और इसतलए उनके पास समान अतधकार होने चातहए। समझ "समानिा"
शब्द के अतधक तनदेशात्मक उपयोि की ओर स्थानािं ररि हो िई है। समिािादी आज उन नीतियों
का समथभन करिे हैं जो के िल व्यतक्तयों की िणभनात्मक तिशेषिाओ ं पर भरोसा तकए तबना समानिा
के आदशभ को बढ़ािा देिे हैं, यह मानिे हुए तक कई महत्िपणू भ पहलओ
ु ं में मनष्ु यों के बीच पयाभप्त अंिर
मौजदू हैं।
8.4.2 अिसर की समानिा
अिसर की समानिा एक अिधारणा है जो व्यतक्तिि आत्म-तिकास में बाधा डालने िाली बाधाओ ं
को हटाने में तनतहि है। इसमें यह सतु नतिि करना शातमल है तक व्यतक्तयों को तस्थति, पाररिाररक या
सामातजक पृष्ठभतू म जैसे कारकों के बजाय अपनी प्रतिभा और क्षमिाओ ं के आधार पर कररयर बनाने
का मौका तमले। मख्ु य तिचार एक समान अिसर स्थातपि करना है, तिशेषकर जीिन के शरुु आिी
तबंदु पर। हालाँतक, अिसर की समानिा के तनतहिाथभ जतटल हो सकिे हैं। इसका उद्देश्य प्रतिस्पधाभ
करने के तलए समान अिसर प्रदान करना है, लेतकन यह जरूरी नहीं तक समग्र समानिा की ओर ले
जाए। असमान पररणामों को स्िीकायभ माना जािा है क्योंतक उनका श्रेय अलि-अलि प्राकृ तिक
प्रतिभाओ,ं कड़ी मेहनि या भाग्य को तदया जािा है। ऐसा प्रिीि होिा है तक यह तनमाभण योग्यिा
आधाररि आदशभ द्वारा तछपी एक पदानक्र ु तमि प्रणाली का समथभन करिा है।
प्रकृ ति और परंपरा के बीच का अंिर, तजस पर यह अिधारणा आधाररि है, हमेशा स्पष्ट नहीं होिी है।
अिसर की समानिा के संस्थाििकरण में कररयर को प्रतिभा के तलए खल ु ा रखना और सकारात्मक
भेदभाि लािू करना जैसे उपाय शातमल हैं। ये उपाय उतचि प्रतिस्पधाभ के पररणामस्िरूप होने िाले
असमान पररणामों को िैध बनािे हैं।
हालाँतक, अिसर पर यह जोर व्यतक्तयों को समदु ाय की भािना से अलि कर सकिा है, प्रतिस्पधी
मानतसकिा को बढ़ािा दे सकिा है। इसके अलािा, यह पीतढ़यों के बीच असमानिाओ ं को कायम
रख सकिा है, तजससे सफलिा और तिफलिा के बीच कृ तत्रम अलिाि हो सकिा है।
समिािादी अिसर की समानिा को अस्िीकार नहीं करिे हैं, लेतकन िे व्यापक समझ की िकालि
करिे हैं। िे हर तकसी को साथभक और सिं ोषजनक िरीके से अपनी क्षमिाओ ं को तिकतसि करने के
साधन प्रदान करना चाहिे हैं। के िल प्रतक्रयाओ ं पर ध्यान कें तरि करने के बजाय, उनके तलए अिसर
की िास्ितिक समानिा का अथभ ऐसी सामातजक पररतस्थतियाँ बनाना है जो सभी व्यतक्तयों को पणू भ
जीिन जीने में सक्षम बनािी हैं। लक्ष्य यह सतु नतिि करना नहीं है तक प्रत्येक व्यतक्त एक साथभक जीिन
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 137
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प्राप्त करे , बतल्क एक ऐसा ढाँचा स्थातपि करना है जहाँ ऐसे जीिन का अिसर सभी के तलए सल
ु भ
हो।
8.4.3 पररणामों की समानिा
समानिा की अिधारणा पर एक और दृतष्टकोण पररणामों की समानिा पर कें तरि है, जो जीिन के
शरुु आिी तबंदु से अंतिम पररणाम पर ध्यान कें तरि करिा है। उल्लेखनीय रूप से, माक्सभ जैसे लोिों ने
िकभ तदया तक पजंू ीिादी अथभव्यिस्था द्वारा बातधि समानिा की कोई भी धारणा स्िाभातिक रूप से
सीतमि है। माक्सभ ने पणू भ सामातजक समानिा की िकालि की, एक ऐसी दृतष्ट तजसे के िल तनजी संपतत्त
के उन्मल
ू न के माध्यम से प्राप्त तकया जा सकिा है। पररणामों की समानिा के समथभकों का िकभ है तक
जब िक समान पररणामों का आश्वासन नहीं होिा, समानिा के अन्य रूपों की िारंटी अपयाभप्त रहिी
है।
पररणामों की समानिा के तिरोतधयों का दािा है तक इसके अनसु रण से ितिरोध, अन्याय और यहाँ
िक तक अत्याचार भी हो सकिा है। उदाहरण के तलए, हेयक का मानना है तक चतंू क व्यतक्तयों की
अलि-अलि आकांक्षाएं और लक्ष्य होिे हैं, इसतलए उनके साथ समान व्यिहार करने से असमानिा
हो सकिी है। आलोचकों का िकभ है तक समानिा की मतु हम व्यतक्तिि स्ििंत्रिा की कीमि पर आ
सकिी है। उनका िकभ है तक समाजिादी समिािादी उपायों का कायाभन्ियन व्यतक्तिि िररमा और
आत्म-सम्मान को कमजोर करिा है, और इसके साथ जड़ु ा तपिृसत्तात्मक दृतष्टकोण व्यतक्तयों को
िकभ संिि तिकल्प बनाने की क्षमिा से िंतचि करिा है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 138
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नारीिादी तिश्ले षण इस बाि पर ज़ोर देिा है तक मतहलाओ ं द्वारा सामना की जाने िाली िास्ितिक
असमानिा, जैसे तक पाररिाररक तनणभय लेने में उनका सीतमि प्रभाि, बच्चों की देखभाल के तलए
उनकी तज़म्मेदारी, और बाद में कायभबल में कम भािीदारी, प्राकृ तिक या सहज तिकल्पों से नहीं, बतल्क
सामातजक रूप से तनतमभि भतू मकाओ ं से उत्पन्न होिी है।
तफर भी, यह एक जतटल मामला है, और नारीिादी तलंि भेद को खत्म करने के तलए, तिशेष रूप से
पाररिाररक मामलों में, राज्य को शातमल करने में संकोच कर सकिे हैं। हालांतक सामातजक प्रथाओ ं
और तनतमभि भतू मकाओ ं में लैंतिक असमानिा को पहचानना और तजम्मेदार ठहराना अपेक्षाकृ ि सरल
है, लेतकन प्रभािी उपायों को लािू करना चनु ौिीपणू भ है। लैंतिक समानिा की तदशा में साथभक प्रिति
इस बाि पर तनभभर करिी है तक मतहलाएं स्ियं अपनी असमान तस्थति और अपनी अधीनस्थ
पाररिाररक भतू मकाओ ं के प्रति जािरूक हों। जब मतहलाएं इन सामातजक सरं चनाओ ं को नया आकार
देने में सतक्रय रूप से भाि लेिी हैं िभी लैंतिक समानिा हातसल करने में महत्िपणू भ प्रिति हातसल की
जा सकिी है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 139
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स्ििंत्रिा और समानिा की इन पररभाषा के अनसु ार स्ििन्त्रिा और समानिा दोनों का ही उद्देश्य
मानिीय व्यतक्तत्ि का उच्चिम तिकास है और इस प्रकार स्ििन्त्रिा और समानिा एकदसू रे के
सहायक और परू क हैं, परस्पर तिरोधी नहीं। इस सबं धं में एक्टन ने तलखा है तक ”तिरोधाभास यह है
तक समानिा और स्ििन्त्रिा जो तक परस्पर तिरोधी तिचार के रूप में प्रारम्भ होिे है, तिश्लेषण करने पर
एक दसू रे के तलए आिश्यक हो जािी सकिी है।“ यतद समान अिसरों के द्वारा सबके तलए खल ु े रहिे
है िो व्यतक्त अपनी रूतच के अनसु ार अपनी शतक्तयों का तिकसा करने की यथाथभ स्ििन्त्रिा का
उपभोि कर सकिा है। तजस समाज में तकसी एक ििभ को तिशेषातधकार प्राप्त रहिे हैं और सामातजक
िथा आतथभक अन्िर पाये जािे है, िहां िह िणभ अन्य ििो पर दबाि डालने की अनतु चि शतक्त प्राप्त
कर लेिा है और तनम्न ििो को के िल नाम मात्र की ही स्ििन्त्रिा प्राप्त होिी है।
िास्िि में, समानिा के द्वारा स्ििन्त्रिा के आधार के रूप में कायभ तकया जािा है। एक ऐसा
राज्य में तजसमें समानिा नहीं हैं, स्ििन्त्रिा हो ही नहीं सकिी। इस बाि को तनम्नतलतखि रूपों में स्पष्ट
तकया जा सकिा है:-
1. यतद राजनीतिक समानिा नहीं होिी, िो स्ििन्त्रिा व्यथभ हो जाएिी और जनिा के एक बहुि
बडे भाि को शासन में कोई भाि प्राप्त नहीं होिा।
2. यतद नािररक समानिा नहीं होिी, िो जो व्यतक्त नािररक अयोग्यिाओःसे पीतड़ि है, उन्हें
स्ििन्त्रिा उपलब्ध नहीं होिी।
3. यतद सामातजक समानिा नहीं होिी,िो स्ििन्त्रिा पर कुछ ही व्यतक्तयों का तिशेषातधकार हो
जाएिा।
4. यतद आतथभक समानिा नहीं होिी, िो धन कुछ ही व्यतक्तयों के हाथों में के तन्रि हो जाएिा
और के िल िही ििभ स्ििन्त्रिा का लाभ उठा सके िा।
ऐसी तस्थति में डा0 आशीिादम् ने ठीक ही कहा है तक ”फ्रासं के क्रातन्िकारी न िो पािल थे और न
मख
ू ,भ जब उन्होने स्ििन्त्रिा, समानिा और भ्रािृत्ि का नारा लिाया था।
अभ्यास प्रश्न
1. समानिा की अिधारणा क्या हातसल करना चाहिी है?
क) व्यतक्तयों के बीच तिभाजन और भेदभाि
ख) सभी के तलए उतचि व्यिहार और तनष्पक्षिा
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ि) सामातजक आतथभक असमानिाएँ और असमानिाएँ
घ) सीतमि अिसर और ससं ाधनों िक पहुचं
2. समानिा के सदं भभ में, "समान अिसर" से क्या िात्पयभ है?
क) कुछ समहू ों को प्राथतमकिा देना
ख) व्यतक्तयों के साथ उनकी पृष्ठभतू म के आधार पर अलि-अलि व्यिहार करना
ि) यह सतु नतिि करना तक सभी को सफलिा और उन्नति की समान संभािना तमले
घ) संसाधनों और अिसरों िक पहुचं को प्रतिबंतधि करना
3. कौन सा शब्द व्यतक्तयों की जाति, तलंि या अन्य तिशेषिाओ ं के आधार पर उनके साथ
अन्यायपणू भ व्यिहार को संदतभभि करिा है?
8.7 साराांश
समानिा की अिधारणा आधतु नक समाज के एक शतक्तशाली और आिश्यक स्िंभ के रूप में खड़ी
है, जो सभी व्यतक्तयों के तलए तनष्पक्षिा, न्याय और मानिीय िररमा की िकालि करिी है। यह एक
ऐसी दतु नया के दृतष्टकोण का प्रिीक है जहां प्रत्येक व्यतक्त को, उनकी पृष्ठभतू म या तिशेषिाओ ं के
बािजदू , समान अिसर, अतधकार और ससं ाधनों िक पहुचं प्रदान की जािी है। समानिा की खोज ने
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ऐतिहातसक आंदोलनों को बढ़ािा तदया है, तिधायी सधु ारों को आकार तदया है, और भेदभाि का
मकु ाबला करने और समािेशी समाज बनाने के तलए अथक सतक्रयिा को प्रेररि तकया है।
हालाँतक प्रिति हुई है, सच्ची समानिा प्राप्त करना एक सिि और जतटल प्रयास बना हुआ है, तजसके
तलए िहरी जड़ें जमा चक ु ी सामातजक, आतथभक और सांस्कृ तिक असमानिाओ ं को दरू करने के तलए
तनरंिर प्रयासों की आिश्यकिा है। जैसे ही हम अपने समय की चनु ौतियों से तनपटिे हैं, समानिा की
अिधारणा एक मािभदशभक प्रकाशस्िंभ के रूप में कायभ करिी है, जो हमें अतधक दयाल,ु न्यायपणू भ और
सामजं स्यपणू भ दतु नया के तलए प्रयास करने के तलए प्रोत्सातहि करिी है, जहां हर तकसी की क्षमिा का
पोषण और जश्न मनाया जािा है। समानिा के प्रति प्रतिबद्धिा न के िल समाज के िाने-बाने को समृद्ध
करिी है बतल्क यह भी सतु नतिि करिी है तक प्रत्येक व्यतक्त सम्मान के साथ जी सके और मानििा
की भलाई में अपने अतद्विीय योिदान दे सके ।
8.8 शब्दावली
समानिा- सभी के तलए तनष्पक्षिा और भेदभािरतहि व्यिहार, समान अिसर-सभी को सफलिा
और उन्नति के समान अिसर प्रदान करना, असमानिा- अिसरों और ससं ाधनों में असमानिाएं और
अंिर।
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7.एस.सी. तसंघल--- राजनीतिक तसद्धान्ि
8.ओ.पी.िाबा - राजनीतिक तसद्धान्ि
9.जे.सी.जौहरी -- राजनीतिक तसद्धान्ि
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इकाई 9 अतधकार
इकाई संरचना
9.0 प्रस्िािना
9.1 उद्देश्य
9.2 अतधकार: अथभ, पररभाषा
9.3 अतधकारों का ििीकरण
9.4 अतधकारों के तितभन्न तसद्धांि
9.5 साराश
ं
9.6 शब्दािली
9.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
9.8 सन्दभभ ग्रन्थ सचू ी
9.9 सहायक उपयोिी सामग्री
9.10 तनबधात्मक प्रश्न
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9.0 प्रस्तावना
िणु ित्ता एक मल
ू भिू तसद्धािं है जो आधतु नक समाजों और राजनीतिक तिचारों के कें र में है। यह इस
तिचार का प्रिीक है तक सभी व्यतक्तयों के साथ, उनकी पृष्ठभतू म, पहचान या तिशेषिाओ ं की परिाह
तकए तबना, भेदभाि रतहि और तनष्पक्षिा से व्यिहार तकया जाना चातहए। यह अिधारणा लोिों के
बीच भेदभाि, तिशेषातधकार और अन्यायपणू भ असमानिाओ ं को खत्म करने, एक ऐसे समाज को
बढ़ािा देने का प्रयास करिी है जहां सभी को अिसरों, अतधकारों और संसाधनों िक समान पहुचं
प्राप्त हो।
समानिा की धारणा परू े इतिहास में सामातजक और राजनीतिक आंदोलनों के पीछे एक प्रेरक शतक्त
रही है। नािररक अतधकारों और लैंतिक समानिा की िकालि से लेकर आतथभक असमानिाओ ं और
सामातजक पदानक्रु मों को चनु ौिी देने िक, समानिा की खोज प्रितिशील पररििभन को आकार देने
और सामातजक न्याय को बढ़ािा देने में सहायक रही है।
समानिा के इस पररचयात्मक अन्िेषण में, हम इसके तितभन्न आयामों, जैसे सामातजक, आतथभक,
राजनीतिक और काननू ी समानिा, पर िहराई से तिचार करें िे। हम समानिा और व्यतक्तिि स्िित्रं िा
और योग्यिा जैसे अन्य मूल्यों के बीच िनाि की भी जांच करें िे। समानिा की जतटलिाओ ं और
तनतहिाथों को समझकर, हम सभी के तलए अतधक समािेशी और न्यायपणू भ समाज बनाने की तदशा में
प्रयास कर सकिे हैं।
9.1 उद्देश्य
1. अतधकार के अथभ और पररभाषा को जान पायेंिें।
2. अतधकारों के ििीकरण का अध्ययन कर पायेंिें।
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राजनीतिक न्याय के तलए इनका उपयोि अपने तहि में कर सके और दसू रे व्यतक्त की स्िन्िन्त्रिा िथा
अतधकारों में बाधा न पहुचाये।
"अतधकार" की अिधारणा एक नैतिक या काननू ी अतधकार या दािे को संदतभभि करिी है जो तकसी
व्यतक्त के पास है, जो उन्हें तितशष्ट िरीके से कायभ करने या व्यिहार करने की स्ििंत्रिा देिा है। अतधकार
मनष्ु यों में अंितनभतहि हैं और अक्सर उनकी िररमा, स्िायत्तिा और कल्याण सतु नतिि करने के तलए
मौतलक माने जािे हैं।
प्रकृ ति के द्वारा मनष्ु य को तितभन्न प्रकार की शतक्तयाँ प्रदान की ियी है, लेतकन इन शतक्तयों का स्ियं
अपने ओर समाज के तहि के रूप में उतचि प्रयोि करने के तलए कुछ बाहरी सतु िधाओ ं की
आिश्यकिा होिी है। राज्य का सिोत्तम लक्ष्य व्यतक्त के व्यतक्तत्ि का पणू भ तिकास है अिः राज्य के
द्वारा व्यतक्त को प्रदान की जाने िाली इन बाहरी सतु िधाओ ं का नाम ही अतधकार है।
अतधकार राज्य के अंििभि व्यतक्त को प्राप्त होने िाली ऐसी अनक
ु ू ल पररतस्थतियां और अिसर हैं
तजनसे आत्म-तिकास में सहायिा तमलिी है।
अतधकारों की अिधारणा को अक्सर "नकारात्मक" और "सकारात्मक" अतधकारों के संदभभ में िैयार
तकया जािा है। नकारात्मक अतधकार हस्िक्षेप या हातन से मतु क्त को संदतभभि करिे हैं, तजसका अथभ है
तक दसू रों को इन अतधकारों में बाधा या उल्लंघन नहीं करना चातहए। दसू री ओर, सकारात्मक
अतधकारों का िात्पयभ यह है तक उन अतधकारों को परू ा करने के तलए दसू रों को कुछ सामान या सेिाएँ
प्रदान करने का दातयत्ि है।
लोकिांतत्रक समाजों में, अतधकारों की सरु क्षा और संिधभन आमिौर पर काननू ी ढांचे, संतिधान और
अंिराभष्रीय संतधयों के माध्यम से सरु तक्षि तकया जािा है। मानिीय िररमा को बनाए रखने, सामातजक
सद्भाि को बढ़ािा देने और एक न्यायसिं ि और न्यायसिं ि समाज को प्राप्त करने के तलए अतधकारों
का सम्मान आिश्यक माना जािा है।
प्रमख
ु तिद्वानों द्वारा अतधकार की तनम्नतलतखि शब्दों में पररभाषाएं की ियी हैं:-
बोसाांके के अनुसार, ”अतधकार िह मांि है तजसे समाज स्िीकार करिा और राज्य लािू करिा है।“
लास्की के अनस ु ार, ”अतधकार सामातजक जीिन की िे पररतस्थतियां है तजनके अभाि में सामान्यिा
कोई भी व्यतक्त अपने व्यतक्तत्ि का तिकास नहीं कर पािा है।“
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बाकभ र क अनसु ार “ अतधकार न्याय की उस सामान्य व्यिस्था का पररणाम हैं तजस पर राज्य के काननू
आधाररि है।”
अतधकार सामान्यिया व्यतक्त की उन मांिों में से है तजन्हें समाज स्िीकार करिा है ि राज्य संरतक्षि
करिा है। िे अतधकार जो व्यतक्त के जीिन के तलए मौतलक िथा अतनिायभ होने के कारण संतिधान
द्वारा नािररकों को प्रदान तकये जािे हैं और तजन अतधकारों में राज्य द्वारा भी हस्िक्षेप नहीं तकया जा
सकिा है, मल ू अतधकार कहलािे हैं। मल ू अतधकार न्याय योग्य होिे हैं अथाभि न्यायपातलका इन
अतधकारों की रक्षा के तलए सभी आिश्यक कदम उठा सकिी है।
अतधकार ि किभव्य आपस में नजदीकी से जड़ु े हुए हैं मिलब हर अतधकार के साथ किभव्य भी होिा
है।अतधकार को काननू ी मंजरू ी के साथ समाज की मंजरू ी भी जरुरी है। पहले समाज में आम नािररक
के अतधकारों को कोई मान्यिा नही दी जािी थी। अतधकार आधतु नक यिु की देन हैं । अतधकारों की
प्रातप्त के तलए लम्बा सघं षभ करना पड़ा है । फ्रासं की क्रातं ि, अमेररकी क्रातं ि, के बाद अतधकारों को
व्यापक रूप में स्िीकृ ि तकया िया। सबसे पहले अमेररकी संतिधान में मूल अतधकारों को स्थान तमला।
रुसी क्रांति ने सामातजक- आतथभक अतधकारों को बढ़ािा तदया।
अतधकारों की प्रकृ ति
1 अतधकार तकसी व्यतक्त के भले के तलए आिश्यक हैं। अतधकार एक तनष्पक्ष इच्छा है जो स्िाथभरतहि
होिा है। अतधकार िह हैं जो हम तकसी से उम्मीद करिे हैं और लोि जो हमसे चाहिे हैं अतधकार में
समाज कल्याण की भािना छुपी होिी है।व्यतक्त की तनष्पक्ष इच्छा प्रत्येक के तहि के तलए होिी है।
2 अतधकारों को के िल समाज में ही प्रयोि तकया जा सकिा है।
3 अतधकार राज्य द्वारा मान्यिा प्राप्त दािे हैं।
4 हर अतधकार के पीछे किभव्य तछपा होिा है। अतधकार और किभव्य एक तसक्के के दो पहलओ
ु ं की
िरह हैं।
5 कोई भी अतधकार असीतमि नहीं होिा उसकी अपनी सीमायें होिी हैं।
6 समय के साथ अतधकारों में भी पररििभन आिा है।
7 लोकित्रं अतधकारों को कायम रखिा है। लोकित्रं में ही अतधकारों का आनदं उठाया जा सकिा है
।
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9.3 अतधकारों का विीकरण
साधारणिया अतधकार दो प्रकार के होिे हैं - (1) नैतिक अतधकार और (2) कानूनी अतधकार
(1) नैतिक अतधकार:- नैतिक अतधकार िे अतधकार होिे हैं तजनका सम्बन्ध मानि के नैतिक
आचरण से होिा है। अनेक तिचारकों के द्वारा इन्हें अतधकार के रूप में ही स्िीकार नहीं तकया जािा
है, क्योंतक िे अतधकार राज्य द्वारा रतक्षि नहीं होिे है। इन्हें धमभशास्त्र, जनमि या आतत्मक चेिना द्वारा
स्िीकृ ि तकया जािा है और राज्य के काननू ों से इनका कोई सम्बन्ध नहीं होिा।
(2) कानूनी अतधकार:- ये िे अतधकार है तजनकी व्यिस्था राज्य द्वारा की जािी है और तजनका
उल्लंघन काननू से दण्डनीय होिा है। काननू का संरक्षण प्राप्त होने के कारण इन अतधकारों को लािू
करने के तलए राज्य द्वारा आिश्यक कायभिाही की जािी है।
कानूनी अतधकार के दो भेद तकये जा सकिे है:
1.सामातजक या नागररक अतधकार,
2. राजैनतिक अतधकार
1.सामातजक या नागररक अतधकार:- प्रमख
ु सामातजक या नािररक अतधकार तनम्नतलतखि हैं –
नािररक अतधकार िे आधारभिू तिधायी अतधकार हैं जो तकसी उदार लोकिातन्त्रक राज्य में समान
नािररकिा की तस्थति को सरु तक्षि रखने के तलए प्रत्येक व्यतक्त के पास होने चातहए। 1950 और
1960 के दशक में “नािररक अतधकार” नामक शब्दािली अफ़्ीकी-अमेररतकयों की समानिा के तलए
तकये जाने िाले संघषभ से जुडी है तजनका उद्देश्य समान नािररकिा की यह तस्थति प्राप्त करना था.
1.समानिा का अतधकार:- समानिा का अतधकार एक अत्यन्ि महत्िपणू भ अतधकार है और तजसका
िात्पयभ यह है तक प्रत्येक क्षेत्र में व्यतक्त को व्यतक्त होने के नािे सम्मान और महत्ि प्राप्त होना चातहए
और जाति धमभ ि आतथभक तस्थति के भेद के तबना सभी व्यतक्तयों को अपने जीिन का तिकास करने
के तलए सतु िधाऐ ं प्राप्त होनी चातहए। समानिा का अतधकार प्रजािंत्र की आत्मा है और इसके अग्र
भेद हैं:-
a. राजनीतिक समानिा का अतधकार:- इसका िात्पयभ यह है तक प्रत्येक व्यतक्त को अपनी
योग्यिानसु ार तबना तकसी पक्षपाि के देश के शासन में भाि लेने का अिसर प्राप्त होना चातहए।
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b. सामातजक समानिा का अतधकार:- इसका िात्पयभ यह है तक समाज में धमभ, जाति, भाषा,
सम्पतत्त या तलंि के आधर पर तकसी प्रकार का भेदभाि नहीं तकया जाना चातहए।
c. आतथगक समानिा का अतधकार:- ििभमान समय में आतथभक समानिा का िात्पयभ यह तलखा
जािा है तक मानि के आतथभक स्िर में िम्भीर तिषमिाएँ नही होनी चातहए और सम्पतत्त एिं उत्पादन
के साधनों का न्यायसंिि तििरण तकया जाना चातहए। टोनी के शब्दों में, “आतथभक समानिा का अथभ
ऐसी तिषमिा के अभाि से है तजसका उपयोि आतद के दबाि के रूप में तकया जा सके ”।
d. स्ििन्त्रिा का अतधकार:- स्ििन्त्रिा का अतधकार जीिन के तलए परम आिश्यक है क्योंतक इस
अतधकार के तबना व्यतक्त के व्यतक्तत्ि िथा समजा का तिकास सम्भि नहीं है। स्ििन्त्रिा का िात्पय्र
उच्छंखलिा या तनयन्त्रणहीनिा न होकर व्यतक्त को अपने व्यतक्तत्ि के तिकास के तलए पणू भ अिसरों
की प्रातप्त है। लास्की के शब्दों में, “इसका िात्पयभ उस शतक्त से होिा है तजसके द्वारा व्यतक्त अपनी
इच्छानसु ार अपने िरीके से तबना तकसी बाहरी बन्धन के अपने जीिन का तिकास कर सके ।
“स्ििन्त्रिा के अतधकार” के भेद तनम्नतलतखि हैं:-
(1). व्यतक्तिि स्ििन्त्रिा का अतधकार:- व्यतक्तिि स्ििन्त्रिा का िात्पयभ यह है तक व्यतक्त अपना
सामान्य जीिन तििेक के अनुसार व्यिीि कर सकें । काननू के उल्लंघन तकये तबना तकसी व्यतक्त को
तिर्िार नहीं तकया जा सकिा और न्यायालय द्वारा अतभयोि की पतु ष्ट तबना उसे बन्दी नहीं बनाया
जा सकिा।
(2). तिचार और अतभव्यतक्त की स्ििन्त्रिा का अतधकार:- प्रत्येक व्यतक्त को अपनी इच्छानसु ार
तिचार रखने और भाषण लेख, आतद के माध्यम से इन तिचारों को व्यक्त करने की स्ििन्त्रिा होनी
चातहए। ,सक
ु राि ने तिचार स्िािन्त्रिा को त्यािने की अपेक्षा मृत्यु को श्रेयस्कर समझा था।
(3). समदु ाय तनमाभण की स्ििन्त्रिा का अतधकार:- संिठन ही मानि जीिन की उन्नति का मल ू मन्त्र
है। इसतलए व्यतक्त को अपने समान तिचािर िाले व्यतक्तयों के साथ तमलकर सिं ठन का तनमाभण करने
की स्ििन्त्रिा होनी चातहए।
(4). सम्पतत्त का अतधकार:- मानि जीिन के तलए सम्पतत्त आिश्यक है। सम्पतत्त के अतधकार का
िात्पयभ यह है तक व्यतक्त अपने द्वारा कमाए िये धन को चाहे िो आज की आिश्यकिाओ ं पर खचभ
कर सकिा है या अतजभि करके रख सकिा है, सरकार तबना मआ ु िजा तदये तबना तकसी भी व्यतक्त की
सम्पतत्त का अतधग्रहण नहीं कर सकिी।
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(5). रोजिार का अतधकार:- व्यतक्त को स्ियं अपने पररिार के भरण पोषण, आिास एिं तशक्षा के
तलए धन की आिश्यकिा होिी है और व्यतक्त यह आतथभक शतक्त तकसी न तकसी प्रकार का काम
तकये तबना प्राप्त नहीं कर सकिा।
(6) तशक्षा का अतधकार:- ििभमान समय में यह बाि सिभमान्यहै तक नािररकों को तशक्षा प्राप्त करने
का अतधकार होना चातहए। के िल इिना ही नहीं, शासन को धनिान एिं तनधभन दोनों ही ििो को
तशक्षा-सम्बन्धी सतु िधाएँ प्रदान करनी चातहए।
(7) जीिन का अतधकार:- जीिन के अतधकार का िात्पयभ यह है तक प्रत्येक व्यतक्त को जीतिि रहने
का अतधकार है और राज्य इस बाि की व्यिस्था करे िा तक कोई दसू रा व्यतक्त या राज्य व्यतक्त के
जीिनका अन्ि न कर सके । यह मानि के सभी अतधकारों में सबसे अतधक मौतलक ि आधारभिू
अतधकार है।
(8) राजनीतिक अतधकार:- राजनीतिक अतधकारों का िात्पयभ उन अतधकारों से है जो व्यतक्त के
राजनैतिक जीिन के तिकास के तलए आिश्यक होिे हैं और तजनके माध्यम से व्यतक्त प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष रूप शासन प्रबन्ध में भाि लेिे हैं। साधारणिया एक प्रजािंत्रात्मक राज्य के द्वारा अपने
नािररकों को तनम्नतलतखि अतधकार प्रदान तकये जािे हैं-
1. मि देने का अतधकार:- ििभमान समय के तिशाल राज्यों में प्रत्यक्ष प्रजािंत्रीय व्यिस्था सम्भि नहीं
रही है और इसतलए प्रतितनतधत्मक प्रजािन्त्र के रूप में एक ऐसी व्यिस्था की ियी है तजसमें जनिा
अपने प्रतितनतधयों का तनिाभचन करिी है और इन प्रतितनतधयों के द्वारा शासन में कायभ तकया जािा है।
इस प्रकार जनिा मिातधकार के माध्यम से हीदेश के शासन में भाि लेिी है।
2. तनिाभतचि होने का अतधकार:- प्रजािंत्र में शासक और शातसि का कोई भेद नही होिा और योग्यिा
सम्बन्धी कुछ प्रतिबधं ों के साथ सभी नािररकाकें को जनिा के प्रतितनतध के रूप में तनिाभतचि होने का
अतधकार होिा है।
3. सािभजतनक पद ग्रहण करने का अतधकार:- व्यतक्त को सभी सािभजतनक पद ग्रहण करने का अतधकार
होना चातहए और इस सम्बन्ध में योग्यिा के अतिररक्त अन्य तकसी प्रकार पर भेद नहीं तकया जाना
चातहए।
4. आिेदन-पत्र और सम्मति देने का अतधकार:- लोकित्रं का आदशभ यह है तक शासन का सच
ं ालन
जनतहि के तलए तकया जाए। अिः नािररकोकं को अपनी तशकायिें दरू करने या शासन को आिश्यक
सम्मति प्रदान करने के तलए व्यतक्तिि या सामतू हक रूप से कायभपातलका या व्यिस्थातपिा
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अतधकाररयों का प्राथभना-पत्र देने का अतधकार प्राप्त होना चातहए इसके अन्ििभि ही शासन की
आलोचना का अतधकार भी सतम्मतलि तकया जािा है।
5.राज्य के तिरूद्ध तिरोह का अतधकार: राज्य के प्रति भतक्त और राज्य की आज्ञाओ ं का पालन व्यतक्त
का काननू ी किभव्य होिा है और इसतलए व्यतक्त को राज्य के तिरूद्ध तिरोह का काननू ी अतधकार िो
प्राप्त हो ही नही सकिा लेतकन व्यतक्त को राज्य के तिरूद्ध तिरोह का नैतिक अतधकार अिश्य ही प्राप्त
होिा है। इसका कारण यह है तक शासन के अतस्ित्ि का उद्देश्य जन-इच्छा को कायभरूप में पररणि
करिे हुए सामान्य कल्याण होिा है और यतद शासन सामान्य कल्याण की साधना में असफल हो जािा
है या शासन जन-इच्छा का प्रतितनतधत्ि नहीं करिा है िो उसे शासन को आतस्ित्ि में बने रहने का
कोई नैतिक अतधकार शेष नहीं रह जािा है। नािररकों को इस प्रकार की सरकार को पदच्यिु करने का
अतधकार होिा है और यतद िो सिं ैधातनक मािभ से इतच्छि पररििभन न तकया जा सके िो व्यतक्त को
अतधकार है तक िह शतक्त के आधार पर िांतछि पररििभन करने का प्रयत्न करें ।
लास्की ने कहा है तक ”नािररकिा व्यतक्त के तििेकपूणभ तनणभय का जनकल्यण में प्रयोि है“ ऐसी
पररतस्थतियों में यतद व्यतक्त को इस बाि का तिश्वास हो जाए तक तिद्यमान शासन व्यिस्था सिभ-
सामान्य के तहि में कायभ नहीं कर सकिी िो राज्य के प्रति तिरोह व्यतक्त का नैतिक अतधकार ही नहीं
िरन एक नैतिक किभव्य भी हो जािा है जैसा िांधी जी कहिे है ”व्यतक्त का सिोच्च किभव्य अपनी
अन्िरात्म के प्रति होिा है।“ अिः तिरोध तकया जा सकिा है।
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इस तसद्धांि के अनसु ार अतधकार राज्य की देन हैं। जब िक राज्य तकसी अतधकार को मान्यिा नहीं
देिा है िब िक उसे तकसी भी अथभ में अतधकार नहीं माना जा सकिा। बेन्थम ने प्राकृ तिक अतधकारों
को नकारिे हुए तितध के शासन का समथभन तकया। काननू ी अतधकार तसद्धािं के अनसु ार अतधकार
राज्य द्वारा प्रदत्त अतधकार , अतधकार कहलािे हैं । हर देश में अतधकार अलि अलि िरह के होिे है।
ऐतिहातसक तसद्धांि –
इस तसद्धािं के अनसु ार मानि को अतधकार इतिहास परंपरा या मान्यिा से प्राप्त हैं, न तक राज्य या
समाज से। एडमंद बकभ ने इस तसद्धांि का समथभन तकया तक इतिहास अतधकारों का तनमाभण करिा है।
लम्बे समय िक तिद्यमान परम्पराएँ ही अतधकारों का रूप धारण कर लेिे है।
समाजकल्याण का तसद्धांि -
इस तसद्धांि के अनसु ार अतधअक्र समाज कल्याण के तलए ही होिे हैं। जो समाज के तलए उपयोिी है
उसे अतधकार मानना चातहए। उपयोतििािाद ने इस अतधकार के तसद्धािं को समथभन तदया उनके मि
में अतधकिम लोिों का अतधकिम सुख अतधकार का अधर होना चातहए। जो अतधकार व्यतक्त को
तमलिे है उनकी सामातजक उपयोतििा है जैसे व्यतक्त को अतभव्यतक्त की स्ििंत्रिा का अतधकार तदया
िया है लेतकन समज के तहि में इस पर कई बार प्रतिबन्ध भी लिा तदया जािा है।
लोकित्रं ीय तसद्धािं –
इस व्यिस्था में नकारात्मक और सकारात्मक अतधकार एक- साथ प्रदान तकये जा सकें । लास्की के
अनसु ार, तकसी भी राज्य की पहचान उन अतधकारों से होिी है तजनकी िह रक्षा करिा है। लास्की
लोकिंत्रीय तसद्धांि के समथभक हैं इन्होने उदारिाद से जड़ु े राजनीतिक अतधकारों के साथ-साथ
समाजिाद से जड़ु े हुए आतथभक अतधकारों की भी रक्षा पर बल तदया है। उसने माना तक राज्य को व्यतक्त
की स्ििंत्रिा के साथ आतथभक सरु क्षा की व्यिस्था करनी चातहए। ग्रीन की िरह लास्की ने िकभ तदया
तक अतधकार राज्य की देन नहीं हैं बतल्क उनका स्थान राज्य की सत्ता से ऊँ चा है। लास्की ने
कल्याणकारी राज्य के तिचार को बढ़ािा तदया। कुछ पतु चिादी प्रणाली को खत्म करने की जिह उसमें
संशोधन करने के सझु ाि तदए तजससे इस प्रणाली में जनसाधारण के दमन और उत्पीडन की जिह
स्िित्रं िा और सरु क्षा एक-साथ प्रदान कर सके । लास्की का मानना है तक उदार लोकित्रं जनसाधारण
के व्यापक कल्याण का साधन बन सकिा है।
माक्सभिादी तसद्धांि –
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माक्सभिाद के अनुसार, तकसी भी राज्य में, तकसी भी युि में प्रचतलि अतधकार प्रभत्ु िशाली ििभ के
अतधकार होिे हैं। इस तलए कामिार ििभ के अतधकारों की सरु क्षा के तलए यह आिश्यक है तक यह
ििभ पजंू ीपति ििभ को परे हटाकर स्ियं सत्ता सभं ाल ले। अतधकार राज्य के ििभ चररत्र के साथ जड़ु े रहिे
है, इसतलए पंजू ीिादी और समाजिादी व्यिस्थाओ ं के अंििभि अतधकारों का स्िरुप तभन्न-तभन्न होिा
है। पंजू ीिादी व्यिस्था के अंििभि काननू की दृतष्ट से सब नािररकों के सामान अतधकार स्िीकार तकये
जािे है परन्िु िास्ितिकिा स्िर पर सारे अतधकार पजंू ीपति ििभ के अतधकार होिे हैं।
माक्सभिाद के अनसु ार, समाजिादी तस्थति है जब कामिार ििभ पजंू ीपतियों को हटाकर उत्पादन के
प्रमख
ु साधनों पर सामातजक स्िातमत्ि स्थातपि कर देिा है। पहले सिभहारा का अतधनायकिंत्र स्थातपि
तकया जािा है, आिे चलके राज्य लप्तु हो जािा है और ििभतिहीन िथा राज्यतिहीन समाज अतस्ित्ि
में आ जािा है। तजसे साम्यिाद कहा जािा है। समाजिाद में ििभ-तिभाजन बना रहिा है परन्िु कामिार
ििभ प्रभत्ु िशाली बना रहिा है इसी तलए उसे िास्ितिक अतधकार प्राप्त होिे है। माक्सिादी तचंिन के
प्रभाि से जब रूस में 1917 की क्रातं ि के बाद जो समाजिादी व्यिस्था स्थातपि की िई, उसमें
नािररकों की आतथभक सरु क्षा और बतु नयादी आिश्यकिाओ ं की पतू िभ पर तिशेष तदया िया।
अभ्यास प्रश्न --
१.अतधकार िह मांि है तजसे समाज स्िीकार करिा और राज्य लािू करिा है।“तकसका कथन है?
२.अतधकार सामातजक जीिन की िे पररतस्थतियां है तजनके अभाि में सामान्यिा कोई भी व्यतक्त
अपने व्यतक्तत्ि का तिकास नहीं कर पािा है । तकसका कथन है ?
9.5 साराांश
उपरोक्त अध्ययन के आधार पर हम इस तनष्कषभ पर पहुचँ े तक समानिा की अिधारणा प्रितिशील और
न्यायपणू भ समाज की आधारतशला के रूप में खड़ी है। यह इस मौतलक तिश्वास का प्रिीक है तक प्रत्येक
व्यतक्त के साथ, उनकी पृष्ठभतू म, जाति, तलिं , धमभ या सामातजक-आतथभक तस्थति की परिाह तकए
तबना, तनष्पक्षिा और सम्मान के साथ व्यिहार तकया जाना चातहए। समानिा के िल एक ऊँ चा आदशभ
नहीं है; यह सामातजक एकिा, आतथभक समृतद्ध और राजनीतिक तस्थरिा के पीछे एक प्रेरक शतक्त है।
समानिा के नजररए से, समाजों ने भेदभािपणू भ प्रथाओ ं को खत्म करने और यह सतु नतिि करने में
उल्लेखनीय प्रिति देखी है तक सभी व्यतक्तयों को अिसरों और संसाधनों िक समान पहुचं तमले। यह
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पररििभनकारी आंदोलनों के तलए उत्प्रेरक रहा है तजसने बाधाओ ं को िोड़ा है और नािररक अतधकारों,
लैंतिक समानिा और सामातजक न्याय को आिे बढ़ाया है।
हालाँतक, पणू भ समानिा प्राप्त करने की तदशा में यात्रा जारी है और जतटल है। चनु ौतियाँ बनी हुई हैं, और
समानिा और व्यतक्तिि स्ििंत्रिा और योग्यिा जैसे अन्य सामातजक मल्ू यों के बीच सही संिल ु न
बनाने की खोज बहस का तिषय बनी हुई है। िास्िि में समानिा को बढ़ािा देने के तलए सरकारों,
संस्थानों और व्यतक्तयों के सामतू हक प्रयास की आिश्यकिा है। नीतििि उपाय जो प्रणालीिि
असमानिाओ ं को सबं ोतधि करिे हैं, तशक्षा जो सहानभु तू ि और समझ को बढ़ािा देिी है, और
तनष्पक्षिा के प्रति अटूट प्रतिबद्धिा एक अतधक न्यायसंिि दतु नया के तनमाभण में महत्िपूणभ घटक हैं।
जैस-े जैसे हम समानिा की अिधारणा का पिा लिाना और उसका समथभन करना जारी रखिे हैं, हमें
याद रखना चातहए तक यह सभी व्यतक्तयों के साथ एक समान व्यिहार के बारे में नहीं है, बतल्क यह
सतु नतिि करिे हुए तितिधिा को पहचानने और अपनाने के बारे में है तक कोई भी पीछे न रह जाए।
समानिा को एक मािभदशभक तसद्धांि के रूप में अपनाकर, हम ऐसे समाज बनाने की आकांक्षा कर
सकिे हैं जो मानिीय मिभेदों की समृतद्ध का जश्न मनाएं और यह िारंटी दें तक प्रत्येक व्यतक्त के
अंितनभतहि मूल्य को पहचाना और सम्मातनि तकया जाए। ऐसा करके , हम एक ऐसे भतिष्य की ओर
एक महत्िपणू भ कदम उठािे हैं जो मानििा के सच्चे सार का प्रिीक है और आने िाली पीतढ़यों के
तलए एक बेहिर दतु नया को आकार देने में समानिा की स्थायी शतक्त के प्रमाण के रूप में खड़ा है।
9.6 शब्दावली
राजनीतिक समानिा --राजनीतिक समानिा का अतभप्राय सभी व्यतक्तयों को समान राजनीतिक
अतधकार एिं अिसर प्राप्त होिे है
प्राकृ तिक समानिा:- प्राकृ तिक समािना के प्रतिपादक इस बाि पर बल देिे हैं तक प्रकृ ति ने मनष्ु यों
को समान बनाया है और सभी मनष्ु य आधारभिू रूप में बराबर है।
काननू ी अतधकार:- ये िे अतधकार है तजनकी व्यिस्था राज्य द्वारा की जािी है और तजनका उल्लघं न
काननू से दण्डनीय होिा है।
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9.8 सांदभभ ग्रन्थ सूची
1. डॉ0 िानभर - पॉतलतटकल साइसं एण्ड ििनभमेंट
2.ऑतस्टन- लेक्चसभऑन जरु रसप्रडेंस
3.िेतटल-पोतलतटकल साइसं
4.डॉ. पख
ु राज जैन -- राजनीतिक तसद्धान्ि
5.एस.सी. तसंघल--- राजनीतिक तसद्धान्ि
6.ओ.पी.िाबा - राजनीतिक तसद्धान्ि
7.जे.सी.जौहरी -- राजनीतिक तसद्धान्ि
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10.0 प्रस्तावना
इसके पिू भ की इकाई में हमने स्ििन्त्रिा. समानिा का अध्ययन तकया तजसमें पाया तक दोनों का ही
उद्देश्य मानिीय व्यतक्तत्ि का उच्चिम तिकास है और इस प्रकार स्ििन्त्रिा और समानिा एकदसू रे के
सहायक और परू क हैं, परस्पर तिरोधी नहीं। इस संबंध में एक्टन ने तलखा है तक ”तिरोधाभास यह है
तक समानिा और स्ििन्त्रिा जो तक परस्पर तिरोधी तिचार के रूप में प्रारम्भ होिे है, तिश्लेषण करने पर
एक दसू रे के तलए आिश्यक हो जािी है।“ इस प्रकार हमने देखा की तकस प्रकार से व्यतक्त के स्ििंत्र
तिकास के तलए स्ििंनत्रिा, समानिा और अतधकार िीनों महत्िपणू भ हैं .क्योतक यतद तकसी समाज में
समकक्षों में समानिा न हो और समान लोिों को स्ििन्त्र प्रतिस्पधाभ के अिसर न हों िो समाज ितिहीन
हो जायेिा ।
इस इकाई में शतक्त सत्ता और प्रभाि के अथभ और इनके तितभन्न पक्षों का अध्ययन करे िें। और ये
देखेिें तक शातक्त तकस प्रकार इच्छा के तिपररि भी कायभ कराने में सक्षम होिी हैं और इसी शातक्त को
िैद्यिा प्राप्त हो जािी है िो िह सत्ता का स्िरुप ग्रहण कर लेिी है। और उसे शातक्त प्रयोि का िैधातनक
हक प्राप्त हो जािा है ।
10.1 उददेश्य
इस इकाई के अध्ययन के उपरान्ि हम...................
1-शातक्त के अथभ को समझने में सक्षम होिें।
2-शातक्त और सत्ता के अन्िर को समझ सके िें।
3-यह स्पष्ट कर सकें िे तक िैध शातक्त ही सत्ता हैं।
4-प्रभाि के अथभ और उसके तितभन्न पक्षों को समझ सके िें।
5-सत्ता के तितभन्न प्रकारों को जान सके िें।
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है, िब पहला व्यतक्त दसू रे व्यतक्त के ऊपर शतक्त का प्रयोि करिा है। कौतटल्य ने “दण्ड शतक्त” जो
शतक्त का ही पयाभय है, को सम्पणू भ सांसाररक जीिन का मल ू आधार माना जािा है ।
मैर्कस बेबर के अनुसार “ शतक्त का अथभ है- तकसी सामातजक सम्बन्ध के अन्ििभि एक किाभ के द्वारा
दसू रों की इच्छा के तिरूद्व अपनी इच्छा को कायाभतन्िि करने की संभािना।”
आर0एम0मैकाइिर के अनसु ार “यह तकसी भी सम्बन्ध के अन्ििभि ऐसी क्षमिा है तजसमें दसू रों से
कोई काम तलया जािा है या आज्ञा पालन कराया जािा है।”
बरेंड रसेल के शब्दों में शतक्त से िात्पयभ “मन चाहा प्रभाि पैदा करना।”
इस प्रकार यह कहा जा सकिा है तक तजसके पास शतक्त है, िह दसू रों का अपनी इच्छा के अनसु ार
चलाने की क्षमिा रखिा है। इस िरह शतक्त की तचर- प्रचतलि अिधारणा मख्ु यिः दसू रों के ऊपर
प्रयक्त
ु शतक्त का संकेि देिी है।
10.2.1 शति का स्िरूप
राजनीति हमारे जीिन का ऐसा क्षेत्र है जहॉ सबके तलए तनयम बिाए जािे हैं. तनणभय भी िहीं पर होिे
है, समाज के सभी व्यतक्तयों के तलए अतधकिर किभव्य, और दातयत्ि तनधाभररि तकये जािे है।
कोई भी तनयमों को धरािल पर उिारने के तलए या साकार रूप देने के तलए शतक्त की जरूरि होिी है,
अन्यथा िो के िल कही हुई बािें रह जायेंिी। शासन में शतक्त का िहीं स्थान है जो िाड़ी में ईन्जन का
है। शतक्त के तबना राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकिी। समाज में शतक्त,सरु क्षा और न्याय को
लाने का के िल यही एक साधन है। हेरल्ड लासिेल कहिे है तक राजनीति का सरोकार शतक्त को
सिारने और तमल बॉटकर उसका प्रयोि करने से है। इससे भी आिे बढ़कर काइके ल कातटभस शतक्त के
स्िरूप के बारे अलि ढंि से पररभाषा देिे है, उनके अनसु ार “राजनीति का अथभ शतक्त और उसके
प्रयोि के बारे में व्यितस्थि तििाद हैं, इसके अन्ििभि प्रतिस्पधाभ मल्ू यों , तिचारों ,व्यतक्तयों,तहिों और
मॉिों में से तकसी-न- तकसी का चयन करना होिा है।”
10.2.2 शति के स्रोि
शतक्त क्या है और उसका स्िरूप कै सा है इसकी चचाभ हम ईकाई के प्रारम्भ में कर चक
ु े है। शतक्त की
उपज कहा से है, इसे जानने के तलए शतक्त के स्रोिों का अध्ययन करना होिा। शतक्त के प्रमख ु स्रोि
तनम्नतलतखि हैः-
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1.आतथभक ि भौतिक साधनः- आतथभक ि भौतिक साधन शतक्त प्राप्त करने के बाहरी ित्ि है। आतथभक
ि भौतिक साधन शतक्त के िे ित्ि है जो समाज व्यतक्त की पहचान का स्िर िय करि है। सम्पतत्त है।
आज समाज के तलए सबसे महत्िपणू भ िस्िु है यह आन्िररक रूप से कोई तिशेष प्रभाि नहीं डाल
सकिी लेतकन आज के उदारीकरण के यिु में शतक्त का यह स्रोि बहुि प्रभािशाली तसद्व हो रहा है।
इस प्रकार भौतिकिादी युम में सम्पतत्त शतक्त का सबसे बडा साधन है। यह समाज में व्यतक्त के व्यतक्तत्ि
का स्िर िय करिी है।
2.ज्ञान और तिचार शतक्तः- ज्ञान,शतक्त प्राप्त करने का महत्िपणू भ साधन है । तजसके व्यतक्त के पास ज्ञान
का भण्डार होिा ि मनष्ु य अपने िथ्यों को आसानी से प्राप्त कर लेिा है। तजससे समाज में उसका
अलि स्थान बनिा है। उससे व्यतक्त प्रभातिि होिा है और समाज में प्रभाि जमाकर िह शतक्त आतजभि
कर लेिा है। ”चमत्कार को नमस्कार“ िाली कहािि ज्ञान द्वारा शतक्त प्राप्त करने के साधनों पर सटीक
बैठिी है।
3.बल अथिा दमनः- बल अथिा दमन भी शतक्त प्राप्त करने का एक स्रोि है। प्राचीन काल समाज
“मत्सय न्याय” था। जहॉ बतलष्ठ लोि कमजोर और कुचले लोिों का शोषण करिे थे। यह भय पर
आधाररि है। इस भय के कारण दमनकारी व्यतक्त अपनी शतक्त को बढािा जािा है। तजससे समाज में
उसका भय का िािािरण बना रहें।
4.सिं ठनः- ”संिठन में शतक्त है“ यह उतक्त शतक्त के तिषय में सही चररत्रिाभ होिी है। यह सामान्य सी
बाि है तक यतद आपको अपनी बाि मनिानी है िो एक समहू िैयार करना पड़िा है। यतद आप अके ले
है िो तजससे आप अपनी बाि मनिाना चाहिे है जरूरी नही है तक िो व्यतक्त या सरकार आपकी बािें
माने। इसतलए तितभन्न ईकाईयों या समहू अपने तहिों की पिू ी के संिठन का तनमाभण करिे है। तजससे
उनकी शतक्त में िृतद्व हो जािी है। और इसी शतक्त के कारण िे अपने तहिों की पतू िभ के तलए समाज पर
शासन पर दबाब डालिे है। आज के समय में, दबाब समहू जैसे तक मजदरू संघ, व्यापारी संघ, धाि
संघ इसके महत्िपूणभ उदाहरण है।
5.व्यतक्तत्िः- व्यतक्तत्ि भी शतक्त प्राप्त करने का स्रोि है। तजस व्यतक्त का व्यतक्तत्ि प्रभािशाली होिा,
िह मनष्ु य समाज अपना अलि अलि स्थान रखिा है। व्यतक्तत्ि मनष्ु य में आत्म तिश्वास बढ़ािा है।
प्रभािशाली व्यतक्तत्ि िाला मनष्ु य जब आत्मतिश्वास से भरा होिा है िो िह समाज में उसको प्रतिष्ठा
प्रदान करािा है। प्रतिष्ठा ही मनष्ु य को शतक्त प्रदान करिी है। यतद व्यतक्त का व्यतक्तत्ि बरु े आचरण
िाला हो, िो िह शतक्त को भय का रूप देिा है िथा भय से जो शतक्त प्राप्त होिी है िह अिनति का
मािभ प्राप्त करिी है।
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6.तिश्वासः- यतद शतक्त में तिश्वास हो िो यही शतक्त का महत्िपणू भ स्रोि होिी है। चाहे व्यतक्त के पास
तकिनी शतक्त क्यों न हो और उस शतक्त को प्राप्त करना का साधन चाहे जो रहा हो। तकन्िु यतद शतक्त
में तिश्वास नही होिा है िो तफर शतक्त शन्ू य है। इसतलए मनष्ु य के तलए यह अति आिश्यक िह शतक्त
में तिश्वास रखे।
शति के प्रकार या आयामाः- राजनीति में शतक्त का प्रयोि बहुि तिस्िृि क्षेत्र में होिा है। अनेक
तिद्वानों ने शतक्त के अलि-अलि प्रकारे ां का िणभन तकया है। मैक्स बेबर के अनसु ार शतक्त का सही
रूप औतचत्यपणू भ शतक्त इसके अलािा में शतक्त नहीं “दमन” होिा है। औतचत्यपणू भ शतक्त के िीन
प्रमख
ु प्रकार बिाये है। 1.काननू ी या िैधातनक 2. परम्परािि 3. कररश्माई शतक्त। लेतकन शतक्त तजस
रूप में राजनीति को प्रभातिि करिी है उनसे मौटे िौर पर िीन प्रकार की शतक्त होिी है।
1. राजनीतिक शतक्त 2. आतथभक शतक्त और 3. िैचाररक शतक्त
1. राजनीतिक शतक्त:- सामान्य रूप राजनीतिक शतक्त से अतभप्राय है, समाज के मल्ू यिान
ससं ाधनों को अपनी इच्छा के अनसु ार तितभन्न, समहू ों के तहि में या तितभन्न कायभक्रमों में लिाने की
शतक्त। इनमें नीतियों का तनमाभण और इन्हें लािू करना, काननू ों का तनमाभण करना, काननू का उल्घन्न
करने िाले को दडं देना आतद। इस प्रकार पतु लस न्यायालय, काराग्रह आतद शतक्त भी राजनीतिक शतक्त
के उपकरण हैं। राजनीतिक शतक्त का प्रयोि सरकार के तितभन्न अिं ों के द्वारा तकया जािा है जैसे काननू
का तनमाभण तिधानमण्डल के द्वारा तकया जािा है, कायभपातलका काननू को लािू करिा है िथा
न्यायापातलका काननू की व्याख्या का काम करिी है,रक्षा करिी नौकरशाही िथा पतु लस के माध्यम
से । लोिों से काननू ि तनयमों का पालन करिाने में राजनीतिक शतक्त एक महत्िपूणभ भतू मका तनभािी
है।
माक्सभिादी लोि भी शतक्त की अिधारणा में तिश्वास करिे है। माक्सभिादी राजनीतिक शतक्त को
पजंू ीपति ििभ के हाथों का एक ऐसा औजार मानिे है तजसके द्वारा आतथभक दृतष्ट से सम्पन्न व्यतक्त
(पंजू ीपति) िरीब लोिो का शोषण कर सके । माक्सभ राजनीतिक और आतथभक शतक्त में अन्िर नही
मानिा है। बतल्क उसकी मान्यिा है तक राजनीतिक शतक्त के उत्पादन के स्िर पर उन आतथभक सम्बन्धों
का पररणाम होिी है, तजसके माध्यम से शासक ििभ आतथभक स्िर पर सम्पन्न ििभ के तहिों की पिू ी के
तलए बनायें रखना चाहिा है। कुछ लोि राजनीतिक शतक्त और राजनीतिक क्षमिा में अन्िर करिे है
जबतक ये दोनो एक दसू रे की परू क है।
2. आतथभक शतक्तः- आतथभक शतक्त से आशय है तक जब कोई सम्पन्न व्यतक्त या राष्र अपने धन,
सम्पदा,उत्पादन के साधनों के बल पर तनधभन लोिों या तनधभन राष्रों के जीिन की पररतस्थतियों पर
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तनयन्त्रण स्थातपि करिा है िो उसमें आतथभक शतक्त तनतहि होिी है। आतथभक शतक्त राजनीतिक शतक्त
पर हमेशा प्रभाि डालिी है। उदाहरण के तलए, उदारीकरण के दौर में बडे बड़े जमीदार, उघोिपति और
व्यापाररक घराने सरकार की नीतियों औी तनणभयों को प्रभातिि करिे है और तिकास की प्राथतमकिाओ ं
को तनधाभररि के तलए अपने तहिों के ा बढािा देिे है।
आज के इस यिु में ,आतथभक शतक्त के स्िामी तभन्न-तभन्न िरीको से राजनीति को प्रभातिि करिे है।
उनके दबाब समूह ज्यादािर िाकििर और प्रभािशाली होिे है। उदाहरण के िौर पर भारि में
व्यापाररक सिं ठन,तकसान सिं ठन तनबभल और कमजोर होिे है। िे सरकार को प्रभातिि नही कर पािे
है। कहा िो यह भी जािा है तक हमारी सरकार पंजू ीपतियों के हाथ का तखलौना है। िे सरकार को अपने
तहिों के अनसु ार नीतियॉ बनाने के तलए बाध्य करिे है। क्योंतक तजिने भी मुख्य समाचार पत्र पतत्रकाओ ं
है उन पर व्यापाररक घरानों का कब्जा है। इसके अलािा बडे-बड़े पजंू ीपति और धन्ना सेठ अक्सर
चोरी-तछपे राजनीतिक दलों और चनु ाि लड़ने िाले उम्मीदिारों को भारी तित्तीय सहायिा देिे है। चाहे
राजनीतिक जनसाधारण के तहिों की दहु ाई देिे हो, परन्िु भीिर से िे अपने तित्तदािाओ ं के तहिो की
रक्षा के तलए संकल्पबद्व होिे है।
3. तिचाराधारात्क शतक्त:- िैचाररक शतक्त िह शतक्त है तजसके माध्यम से शासक ििभ जनिा के
धातमभक,नैतिक ि सामातजक मल्ू यों को ,भािनाओ,ं परम्पराओें आतद को समक्षकर इस िरह प्रयोि
करिे हैं, तजससे साधारण जनिा उनकी स्िामी भक्त बनी रहे और तबना तकसी झझं ट के आज्ञा पालन
करिी रहें।
ििभमान समय यें, तभन्न-तभन्न देशों में तभन्न प्रकार की सामातजक, आतथभक, राजनीतिक व्यिस्थाएं
प्रचतलि हैं, और उन्हें िैधिा प्रदान करने के तलए पंजू ीिाद,उदारिाद,साम्यिाद या समाजिाद इत्यातद
को सिोत्तम शासन प्रणाली तसद्व करने की कोतशश की जािी है। ये सारे िादे इन तिचारधाराओ ं से
सम्बतन्धि है।
राजनीतिक तिचारधारा की सबसे बड़ी तिशेषिा यह तक जब लोि मन से शासक ििभ की नीतियों ि
तनणभयों का समथभन करने लििे है और उन्हें चनु ौिी नहीं देना चाहिे िब शतक्त शासक ििभ की सत्ता
को और सदृु ढ़ बनािी है। माक्सभिादी तिचाराकों के अनसु ार िैचाररक शतक्त समाज में उपतस्थि अन्य
शतक्तयों के बीच सम्बन्ध स्थातपि करिी है। यतद आतथभक शतक्त , राजनीतिक शतक्त में बदलाि लाना
चाहिी है िो िह िैचाररक शतक्त का सहारा लेिी। माक्सभिादी तिचारक का तचन्िन का तिषय ही यह
है तक छोटा सा पंजू ीपति ििभ बहुसंख्यक सम्पन्न ििभ पर, खल
ु ी प्रतियोतििा के बािजदू अपना प्रभत्ु ि
कै से जमाने में सफल रहिा है। यह स्िाभातिक सी बाि है समाज में जो ििभ उत्पादन का स्िामी होिा
है िह मानतसक साधनों का भी स्िामी बन जािा है। इसी िरह पोलने का कथन है तक ”िैचाररक शतक्त
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 161
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समाज में सामंजस्य स्थातपि करने िथा ििभ तिशेष के अतधपत्य को मजबिू करने का कायभ करिी है।
“
10.3 सत्ता
“सत्ता तकसी व्यतक्त, संस्था, तनयम का आदेश का ऐसा िणु या क्षमिा है तजसके कारण उसे सही या
प्रमातणि मानकर स्िेच्छा से उसके तनदेशों का पालन तकया जािा है।” जब िक तकसी समाज या राज्य
में सत्ता का प्रयोि नही होिा िब िक नीतियॉ, तनयम और तनणभय लािू या स्िीकार नही तकये जा सकिे
है। अिः सत्ता को राज्य रूपी ”शरीर की आत्मा“ कहा जा सकिा है। कोई भी राजनीतिक ितितितध
या कायभक्रम सत्ता के आधार पर ही सम्भि होिे है। सत्ता, शतक्त, प्रभाि िथा नेित्ृ ि का मुख्य साधन
है। अपने सभी स्िरूपों में सत्ता शतक्त,प्रभाि,िैघिा ि नेित्ृ ि से जड़ु ी हुई है।
सत्ता की तनम्नतलतखि प्रकार से पररभातषि तकया जा सकिा है।
तथयो हैमेन के शब्दों में, “सत्ता िह िैधातनक शतक्त हैं तजसके जोर पर अतधनस्थों से कायभ करिा है।
उन्हें इस के तलए बाध्य तकया जा सकिा हैं। आदेश का पालन न करने पर शासक उनके तिरूद्व
कायभिाही कर सकिा है। यहॉ िक तक उन्हें कायभ से भी अलि कर सकिा है।”
बायसभटेड के शब्दों में, ”सत्ता शतक्त के प्रयोि का िैधातनक अतधकार है स्ियं शतक्त नहीं।“
ऐलन के शब्दों में, “तदये िये कायो को सम्पन्न कराने के तलए दी ियी शतक्तयॉ ि अतधकार सत्ता है।”
10.3.1 सत्ता के आधार अथिा स्रोि
राजनीतिक अथिा प्रशासतनक सत्ता का शतक्त,प्रभाि आतद से तनकट सम्बन्ध है परन्िु सत्ता का अपना
स्ििन्त्र आतस्ित्ि है। सत्ता के अनेक स्रोि होिे है।सत्ता का मल
ू आधार औतचत्यपणू भिा होिी है। इसके
अतिररक्त अन्य आधारों में तिश्वास तिचारों की एकरूपिा,तितभन्न शतक्तयॉ पयाभिरणात्मक
दबाब,आन्िररक संरचनाए,प्रशासतनक संिठन आतद होिे हैं। सत्ता के तनम्नतलतखि स्रोि है।
1. धमभः- धमभसत्ता का महत्िपणू भ आधार रहा है। प्राचीन काल से मध्ययिु िक धमभ का समाज
पर प्रभाि रहा है। राजा के धमभ के अधीन होिा था िथा राज्य में सभी तनयम,काननू ि तसद्वान्ि धमभ पर
आधाररि थे। इस प्रकार धातमभक तनयमों का पालन काननू की भॉति तकया जािा था।
2. शतक्तः- अध्ययन करिे से ज्ञाि होिा है तक शतक्त प्राचीन काल से ही सत्ता का मल
ू आधार
रही है। प्राचीनकाल में समाज अशतन्िि िनाि व्यापि रहिा था। ”तजसकी लाठी उसकी भैंस“ िाला
तनयम प्रचतलि था। जो व्यतक्त अतधक शतक्त सम्पन्न होिा था। िह समाज के दसू रे लोिों से अपनी
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आज्ञा का पालन करिा था। राज्य के तनमाभण,तिस्िार और तिकास में शतक्त ने महत्िपूणभ भतू मका तनभाई
है। हॉब्स मैतकयािे लो, माक्सभ आतद महान तिचारकों ने शतक्त को राज्य सत्ता का एकमात्र आधार
माना है। आधतु नक यिु में भी सत्ता का आधार काननू ी शतक्त ही है।
3. पैिक
ृ िंशः- पैिक
ृ िंश परम्परा भी सत्ता का आधार रही है। प्राचीनकाल में तजन राज्यों के
अन्दर राजिन्त्र तिघमान था। जहॉ राजाओ ं की सत्ता का आधार पैिक ृ िंश की परम्परा थी। राजिन्त्र
राजतसंहासन उत्तरातधकार में प्राप्त होिा है। राज्य के लोि राजा के आदेशों का पालन इसतलए कहिे है
क्योंतक उनके पहले के पररिार के लोि भी अपने समकालीन राजाओ ं की आज्ञाओ ं का पालन करिे
रहे है।
4. दैिी अतधकारः- मध्ययुिीन राजाओ ं ने अपनी सत्ता का आधार दैिी अतधकार बिाया था।
िेा कहिे है तक राजा ईश्वर का प्रतितनतध है िथा उन्हें शासन करने की सत्ता ईश्वर से प्राप्त हुई है। और
उनके आदेशों की अिहेलना करने का अथभ है तक आप ईश्वर के आदेशों की अिहेलना कर रहे हो।
फ्रांस में लईु 14 िॉ अपने आपको ईश्वर का इि कहिा था। लेतकन ििभमान समय में दैिी अतधकारों को
सत्तमा का आधार स्िीकार नहीं तकया जािा है।
5. संतिधानः- आधतु नक समय में राज्य में शासक की सत्ता का आधार उन राज्यों का संतिधान
होिा है। सतं िधान में िे तसद्वान्ि,तनयम काननू तनतहि होिे है तजनके आधार पर सत्ता की संरचना की
जािी हे। उदाहरण के िौर पर, भारि के राष्रपति, प्रधानमंत्री,राज्यपाल,मख्ु यमंत्री आतद की सत्ता का
आधार िह संतिधान है जो 26 जनिरी 1950 ई0 को लािू तकया िया।
6. औतचत्यपणू भिाः- आधतु नक समय मे सत्ता का सबसे प्रमख ु आधार औतचत्यपणू भ है। सत्ता के
पीछे बाध्यकारी काननू ी शतक्त का होना ही जरूरी नहीं है। उसमें औतचत्यपणू भि ऐसी तिचार है जो
तिश्वास पर आधररि होिा है। जब लोि सत्ता की संरचना,कायो,नीतियों और तनणभयों के प्रति व्यापक
तिश्वास रखें और पणू भसमथभन दे िो उसे औतचत्यपणू भिा कहिे है।
10.3.2 सत्ता के प्रकाराः
सत्ता को समझने के तलए तिद्वान अपनी संकल्पनाओ ं को तनरन्िर पररष्कृ ि करने का प्रयास करिे रहिे
हैं। मैक्सिेबर ने सत्ता के िीन प्रकार बिाये है। परम्परािि,बौतद्वक काननू ी और चमत्कारपणू भ।
1. परम्पराििः- समाज में, जब प्रजा या अधीनस्थ,िररष्ठ अतधकाररयों के आदेशों का पालन
इस आधार पर मानिे है तक हमेशा से ऐसा होिा आया है िो सत्ता का यह प्रकार परम्परािि कहा जािा
है। अथाभि कुछ लेाि सत्ता को अपने ऊपर इसतलए स्िीकार कर लेिे है, क्योंतक उनका यह तिश्वास
होिा है तक इन तनयमों का अनुसरण अति प्राचीन काल से तकया जा रहा है। अिः जो परम्परािि या
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प्रथा दीघभकाल से अपनायी जा रही है िह तनराधार नही हो सकिी है । कबीलों,िॉिों के बड़े-बढ़ू ों
द्वारा सत्ता का प्रयोि ऐसे तिश्वासों पर ही होिा है।
2.बौतद्वक काननू ीः- जब अधीनस्थ तकसी तनयम को इस आधार पर स्िीकार करिे है तक िह तनयम
उन उच्चस्िरीय अमूिभ तनयमों के साथ सम्मि है तजसे िे औतचत्यपणू भ समझिे है, िब इस तस्थति में
सत्ता को बौतद्वक काननू ी माना जािा है। अतध्कारी िन्त्र बतु द्वसम्पन्न काननू ी अतधकार को सिोत्तम
उदाहरण है। उदाहरण के तलए, जब भारि में लोक सभा चनु ाि के बाद लोकसभा सदस्य अपने नेिा
का चनु ाि करके उसे प्रधानमत्रं ी की कुसी पर बैठा दे िो यह सत्ता का बौतद्वक काननू ी आधार होिा है।
3.चमत्कारपणू भः- इतिहास का अध्ययन करने से ज्ञाि होिा है। लोि कुछ ऐसे नेिाओ ं की सत्ता को
स्िीकार करने या उन्हें सत्ता प्रदान करने के तलए िैयार होिे हैं, तजनकी शतक्त ने िो परम्परा के आधार
पर तमल िो है और न ही बौतद्वक काननू ी प्रणातलयों में , िे ऐसे नेिा भी नही होिे है तजनकी जनिा के
बीच कोई पारम्पररक प्रतिष्ठ है। इस प्रकार के नेिा कभी कभी असामान्य काम कर जािे हैं तजससे िो
इतिहास के पन्नों में दजभ हो जािे है। ऐसे नेिा ही चमत्कारी नेिा कहलािी है। िॉधी,लेतनन और तहटलर
आतद ऐसे ही चमत्कारपणू भ नेिा थे।
शति और सत्ता-
राजनीति के अन्ििभि तकसी भी तनणभय को लािू करने के तलए शतक्त का प्रयोि आिश्यक है। जहॉ
कहीं पर भी आधतु नक समय में सत्ता का प्रयोि होिा है िह सत्ता शतक्त का पयाभय बन जािी है और
शतक्त की भतू मका सबसे प्रभािशाली िहॉ तसद्व होिी है जहॉ शतक्त के िल बल प्रयोि का साधन नही
रह जािी बतल्क िैधिा के साथ तमलकर सत्ता का रूप धारण कर लेिी है। अिः सत्ता िह शतक्त है।
तजसे न्यायतचि माना जािा है। तजसे सभी िैध स्िीकार करिे हैं या िो उसके तनणभयों पर सहमति देिे
है या तफर असहमति प्रदान करिे है। शतक्त से संघषभ होने पर व्यतक्त या िो समथभन करिा है या तिरोध
प्रकट करिा हैं जबतक सत्ता से सघं षभ की तस्थति में प्रायः एक ही मािभ तदखाई देिा है उसका पालन।
सत्ता औतचत्य यक्त
ु होिी है इसतलए इसका तिरोध शासन के तलए ठीक नहीं माना जािा है। इस प्रकार
शतक्त में बल तनतहि होिा है और सत्ता में शतक्त बल के पीछे जब सहमति होिी है िब िह शतक्त का
रूप ले लेिा है। और शतक्त के साथ जब औतचत्यपणू भिा जड़ु जािी है। िब िह सत्ता का रूप धारणा
कर लेिी है। जब िक राज्य में व्यिस्था कायम रहिी है िब िक जनसामान्य और समाज उसका
समथभन करिा रहिा है तकन्िु तबना बल शतक्त प्रभािी नहीं तदखाई देिी है। इस प्रकार सत्ता में शतक्त
और शतक्त में बल का समािेश रहिा है।
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10.4 वैधता
शतक्त सत्ता और िैधिा में अिं रसबं धं है और यह राजनीति तिज्ञान महत्िपणू भ अिधारणा है। शतक्त के
साथ जब िैधिा जड़ु जािी है िब िह सत्ता कहलािी है । राजनीति तिज्ञान में िैधिा (Legitimacy)
समान्यि: शासकीय काननू अथिा व्यिस्था के मध्य अतधकार और प्रातधकरण की स्िीकृ ति है।
िैधिा िास्िि में शतक्त और सत्ता के बीच की कड़ी है । िैधिा ऐसा ित्ि है जो पाशतिक शतक्त को
मानी सत्ता के रूप में ढाल देिा है और लोि अपनी इच्छा से उस सत्ता को मानिे है । जॉन लॉक से
पहले राज-पद को दैिीय उत्पतत्त के तसध्दांि को िैधिा का आधार माना िया था । जॉन लॉक ने इसका
खंडन करिे हुए लोिों की सहमिी को राज्य की िैधिा का आधार बनाया । िहीं रूसो ने लोकतप्रय
प्रभसु त्ता के तिचार को राज्य की िैधिा का आधार बनाकर लोकित्रं की भािना को बढ़ािा तदया ।
आज की लोकिंत्रीय प्रणातलयों में जनिा की भािीदारी को राज्य की िैधिा का प्रमाण माना जािा है
। कभी-कभी लोकिंत्र और अतधनायक-िंत्र में अंिर करने के तलए यह िकभ तदया जािा है तक लोकिंत्र
का प्रधान लक्षण िैधिा है जबतक अतधनायकिंत्र मख्ु यिः शतक्त या बल- प्रयोि के सहारे तटका होिा
है।
राज्य के पास शतक्त या दमनात्मक बल होिा है तजस प्रयोि प्रयोि राज्य कर सकिा है इसी तलए लोि
राज्य की आिया का पालन करिे हैं । यहाँ िक तक जब िास्ितिक रूप में जबरदस्िी (दमन) का
उपयोि नही तकया जा रहा हो िब भी इसका खिरा मौजदू रहिा है ।
राज्य को राज्य की अिज्ञा करने िाले लोिों पर तनयंत्रण रखने के तलए एक दमनकारी िंत्र बनाये रखना
चातहए लोिों को लिािार दबाि की धमकी में रखने से लिािार टकराि की तस्थति पैदा रहेिी । इससे
राज्य खदु को सत्ता में बनाये रखने के के सिाल में उलझा रहेिा।
नािररकों को के िल बल के द्वारा तनयंतत्रि करना सम्भि नहीं हैं और उतचि भी नहीं है । सत्ता को
लोिों को आज्ञाकाररिा इस आधार पर तमलिी है तक जो राज्य शासन कर रहा है िह उनके तलए
अच्छा और लाभदायक है । िह सरकार आमिौर पर स्िीकायभ होिी है जो काननू द्वारा स्थातपि
प्रतक्रयाओ ं के माध्यम से सत्ता में आई है। राज्य और सरकार का िठन तनयमों और प्रतक्रयाओ ं का
पालन करिे हुए उतचि रूप से तकया िया है इसतलए लोिों को इसका पालन करना चातहए । यह
लोकतप्रय तिश्वास ही राज्य को िैधिा प्रदान करिा है। मैक्स िेबर ने सबसे पहले एक व्यितस्थि
तसध्दांि तदया तजसके द्वारा िैधिा प्राप्त की जा सकिी है । यतद सत्ता को लम्बे समय िक कायम रखना
है िो उसे सािभजतनक स्िीकृ ति तमलनी ही चातहए । राजनीतिक सत्ता शासन करने के अतधकार की
स्िीकृ ति पर आधाररि है राजनीतिक शतक्त की नींि िैधिा है ।
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िैधिा को उस राजनीतिक तस्थति के रूप में पररभातषि तकया जा सकिा है तजसमें सत्ता धारक सत्ता
पर अपनी पकड़ को उतचि ठहराने में सक्षम होिे हैं ।
डोल्फ स्टनभबजभर ने इसे शासकीय शतक्त की नींि माना है तजसके अनसु ार सरकार को यह चेिना रहिी
है तक उसे शासन करने का अतधकार है िथा दसू री ओर शातसिों द्वारा उस अतधकार को स्िीकार तकया
जािा है ।
एच. जी. िेल्स के अनसु ार, लोकिातन्त्रक राजनीति की तस्थरिा व्यिस्था न के िल आतथभक तिकास
पर तनभभर करिी हैं, बतल्क इस पर भी तनभभर करिी है िैधिा लोिों के तिश्वास पर तटकी है । मौजदू ा
राजनीतिक संस्था को लोिों की सहमिी ही िैध बनिी है ।
जहाँ लोि पररििभन के तलए सहमि होिे हैं िहाँ सरकारें अपनी िैधिा खो देिी हैं और राजनीतिक
सस्ं थाएं पररितिभि हो जािी हैं पररििभन के सक
ं ट के पररणामस्िरूप िैधिा का सक
ं ट उत्पन्न होिा है ।
सभी राजनीतिक व्यिस्थाओ ं की प्रभािशीलिा िैधिा पर तनभभर करिी है, लेतकन लोकिंत्रीय व्यिस्था
में िैधिा का महवि सिाभतधक है। लोकिंत्र जन सहमिी पर आधाररि शासन होिा है, अिः लोकिंत्र
में भय और आिंक के आधार पर जनिा से आज्ञा पालन करा पाना कतठन हो जािा है । एस. एम .
तलपसेट “ तकसी तितशष्ट लोकिंत्र की तस्थरिा न के िल आतथभक तिकास पर ही, अतपिु िहाँ की
राजनीतिक व्यिस्था की िैधिा और क्षमिा पर भी तनभभर करिी है।“ िैधिा के अंििभि राजनीतिक
व्यिस्था के सामान्य जन को यह तिश्वास होिा है तक सत्ता धारक की सत्ता और उसका प्रयोि सामान्य
स्िीकृ ि तनयमों पर आधाररि है।
डेतिड एप्टर ने कुछ कारन बिाये है तजनकी िजह से िैधिा को खोया जा सकिा है –
1 राजनीति के कुछ महत्िपूणभ सदस्य यतद सरकार से अपना समथभन िापस ले लें िो िैधिा समाप्त हो
सकिी है ।
2 एक नए जािरूक राजनीतिक समहू के उदय के कारण भी िैधिा समाप्त हो सकिी है ।
3 राजव्यिस्था के राजनीतिक रूप से महत्िपणू भ सदस्यों को राजनीतिक व्यिस्था द्वारा हटाये जाने के
कारण िैधिा समाप्त हो सकिी है ।
िैधिा की तिशेषिाएं
1 िैधिा राजनीतिक रूप से सत्ता की कायाभत्मकिा पर तनभभर करिी है ।
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2 िैधिा लोिों की दातयत्ि पालन करने की भािना पर तनभभर करिी है ।
3 प्रत्येक राजनीतिक व्यिस्था में राजनीतिक िैधिा की अिधारणा की प्रत्योज्यिा होिी है ।
4 िैधिा सरकार के आदशभ प्रकार पर तनभभर करिी है ।
5 िैधिा तिश्वास तिकतसि करने व्यिस्था है।
6 िैधिा में प्रभाि भी शातमल होिा है।
7 िैधिा सम्बंतधि मूल्यों पर तनभभर करिी है ।
8 िैधिा शतक्त को सत्ता में पररितिभि करने का िणु है।
9 िैधिा तिशाल सामातजक स्िीकृ ति पर आधाररि है।
िैधिा को प्राप्त करने ि तस्थर रखने के उपाय
1 नई पररतस्थतियों के अनसु ार राजनीतिक व्यिस्था में पररििभन तकया जाये ।
2 देश की स्थातपि परम्पराओ ं की रक्षा की जाये ।
3 तजस तिधान के आधार पर शतक्त ग्रहण की ियी हो उसकी रक्षा की जाये ।
4 िैधिा बनाये रखने के तलए नेित्ृ ि में चमत्कारक िणु होना चातहए ।
5 लोकिातन्त्रक ढाचे में सशस्त्र सेनाओ ं को राजनीतिक सत्ता के अधीन होना चातहए ।
िैधिा का स्िर हर तस्थति में अलि-अलि होिा है यह राज्य के प्रदशभन पर तनभभर करिा है । हालाँतक
काननू है तक राज्य की आज्ञा का पालन सभी को करना होिा हर जो आज्ञा का पालन नहीं करिे हैं
उनके तखलाफ दडं ात्मक करिाई की जा सकिी है । कई तिद्वानों का मि है तक कोई भी स्जसन- प्रणाली
सम्पणू भ जनिा की दृतष्ट से पणू भ रूप से िैध नहीं हो सकिी है । अत्यि लोकतप्रय शासन-प्रणाली के
अिं िभि भी थोड़े बहुि तिरोध के स्िर सनु ाई देिे है ।िैधिा को मापना आसन नहीं है परन्िु यतद
राजनीतिक प्रणाली के अंििभि काननू ों का उल्लंघन नहीं हो रहा हो, तहसं ा की घटनाएँ नही हो रही हैं
और असहमति-आन्दोलन नहीं हो रहे हों िो िैधिा को मापा जा सकिा है। तकसी प्रणाली में शासन
और प्रशासन में फै ला हुआ भ्रष्टाचार उसकी िैधिा को समाप्त कर सकिा है। यह भी संभािना रहिी
है तक लोि कुछ नेिाओ ं के पाटी अपनी आस्था न रखें पर राजनीतिक प्रणाली की िैधिा में उनका
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भरोसा रहे । यतद पत्रकार, बतु द्धजीिी ि न्यायाधीश सिकभ और ईमानदारी से काम करें िो राजनीतिज्ञों
ि अतधकारीयों के भ्रष्टाचार में तनयंत्रण रहिा है और िैधिा भी सरु तक्षि रहिी है ।
10.5 साराांश
उपरोक्त अध्ययन के आधार पर राजनीति में शतक्त की भतू मका को देखिे है तक प्रायः शतक्त को बल-
प्रयोि की धारणा से साथ तमला तदया जािा है। आधतु नक राजनीति-तचन्िन के इतिहास का अध्ययन
करें िो ज्ञाि होिा है तक तनकोलो मेतकयािली और हॉब्स के समय से लेकर बीसबी सदी के
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अनभु िमल ू क तसदान्िकारों िक शतक्त की अिधारणा ऐसी क्षमिा के रूप में की िई है तक एक
मनष्ु य,दसू रे मनष्ु य से उसकी इच्छा के तिरूद्व आज्ञापालन कै से करा सकिा है? यतद हम दसू रों लोिों
से आज्ञापालन कराने या कोई कायभ कराने में उनकी सहमति भी प्राप्त कर ले िो शतक्त की भतू मका ओर
प्रभािशाली हो जािी है।
सहमति प्राप्त करने का सिोत्तम उपाय िैधिा है। शासक ििभ जनिा की सहमति प्राप्त करने के तलए
’तिचारधारा‘ का सहारा लेिा है। िह आपने आदेश को इस िरह से पेश करिा है जैसे िो सिभ-तहि के
तलए तकया िया हो जबतक िह अपने स्िाथभ पर तटका होिा है। जैसे अरस्िू ने दास-प्रथा को उतचि
ठहराने के तलए यह िकभ तदया तक की दास में सदिणु की कमी पायी जािी है। अिः िह स्िामी से
सदिणु का लाभ ले सकिा है।
10.6 शब्दावली
लोकमि:- सािभजतनक महत्ि के तकसी तिषय पर जनिा की आम राय,तिचार या मि तजसका पिा
लिाया जा सके ।
दबासमहू ः- ऐसा संिठन जो अपने सदस्यों के तकन्हीं संकीणभ तहिों की रक्षा के तलए सरकार को
प्रभातिि करने का प्रयत्न करिा है।
तिचारधारात्मक शतक्तः- प्रचतलि या प्रस्िातिि व्यिस्था को सिोत्तम व्यिस्था के रूप में प्रस्ििु करके
या उसे लोिों की दृतष्ट में उतचि ठहराकर उसके तलए लोिों की सहमति और समथभन प्राप्त करने की
क्षमिा।
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4. डॉ.पखु राज जैन ि डॉ. बी. एल. फतडया , आधतु नक राजनीतिक तसध्दांि, सातहत्य भिन
पतब्लके शन, आिरा।
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11.0 प्रस्तावना
इसके पिू भ की इकाई में हमने शतक्त सत्ता और प्रभाि का अध्ययन तकया है .तजसमें,शतक्त के अथभ
उसके स्िरूप और स्त्रोि िथा सत्ता के अथभ ,सत्ता के आधार अथिा स्रोि, सत्ता के प्रकार, प्रभाि के
अथभ उसके प्रमुख स्रोि के बारे में जानकारी प्राप्त हुई . अध्ययन के आधार पर राजनीति में शतक्त की
भतू मका को देखिे है तक प्रायः शतक्त को बल-प्रयोि की धारणा से साथ तमला तदया जािा है।
हमें हर तदन अपने जीिन को आसान बनाने के तलए कुछ तनयम-काननू की जरुरि होिी है । काननू
हमारे जीिन के हर एक पहलु को प्रभातिि करिा है । काननू ही हमें तशक्षा, स्िस्थ, रोजिार आतद
महत्िपूणभ क्षेत्रों में सरु क्षा तदलाने का काम करिा है । जब हम सड़क पर होिे हैं िो िमाम सड़क काननू ों
से बधे होिे हैं और इन काननू ों के आभाि में अराजकिा की तस्थति पैदा हो सकिी है । काननू हर
व्यतक्त के तलए इिना महत्िपणू भ है तक उसकें बारे में जानकारी होना जरुरी है जैसे काननू का अथभ ,
पररभाषा, स्रोि , प्रकार आतद ।
इस इकाई में काननू की अिधारणा का तिशेष रूप से अध्ययन करें िे ।
11.1 उद्देश्य
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काननू ों का पालन सभी सदस्यों द्वारा तकया जािा है । तनदेशात्मक काननू यह बिािे हैं तक तकस
पररतस्थति में मनष्ु य को क्या करना चातहए या क्या नहीं करना चातहए । लॉ शब्द परु ाने ट्यटु तनक मल
ू
‘लैि’ से बना है, तजसका अथभ तस्थर या समान रूप से तस्थि होना है । लॉ शब्द लेतटन भाषा के शब्द
के जसू (jus) जो की jungere से जड़ु ा है तजसका मिलब बंधन / बंधना है । काननू का सामान्य अथभ
मानिीय कायों को तनदेतशि करने के तलए तनयमों का समहू है ।
काननू की कोई एक सामान्य पररभाषा नहीं है तजससे उसे पणू भ रूप से समझा जा सके अलि अलि
तिद्वानों ने इसे अलि िरह से पररभातषि तकया है ।
अरस्िू “ पररपणू भ काननू मानि प्रकृ ति में तनतहि है और मानि प्रकृ ति से प्राप्त तकया जा सकिा है ।
आतस्टन “ काननू संप्रभु का आदेश है”
पेटन “ काननू उन तनयमों का तनकाय है जो समदु ायों में बाध्यकारी तनयमों के रूप में प्रचतलि होिे हैं
और तजसके द्वारा तनयमों के बाध्यकारी प्रािधान का सक्षम बनाने के तलए तनयमों को पयाभप्त
अनपु ालन सतु नतिि तकया जािा है ।
ए. िी . डायसी “ काननू जनमि का प्रतितबम्ब है”
जमभन न्यायशास्त्री इहररंि के अनसु ार “ काननू राज्य की तनयंत्रण की शतक्त है, तजसका उद्देश्य
व्यतक्तिि और सामातजक तहिों का समन्िय करके उनकी रक्षा करना और संघषभ के अिसरों को कम
करना है । काननू द्वारा समाज में अच्छे जीिन की तस्थतियों की िारंटी तमलिी है ।”
फे डररक कालभ िोन सेतिग्नी ( Savigny) “ काननू समदु ाय के भीिर अचेिन तिकास का तिषय है
तजसे ऐतिहातसक परपेक्ष्य में समझा जा सकिा है सेतिने के तसद्धािं िोक्सतजस्ट के अनसु ार काननू
का िात्पयभ लोिों की इच्छा है ।
रस्कोई पाउंड “ काननू राजनैतिक रूप से सिं तठि समाज में बल के सव्ु यितस्थि प्रयोि के माध्यम से
सामातजक तनयंत्रण है ।
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िडु रो तिल्सन के अनुसार “काननू प्रचतलि तिचार और व्यिहार का िह अश ं है तजसे एक सामान
तनयमों के रूप में स्पष्ट और औपचाररक मान्यिा दी ियी हो, और इन तनयमों को शासन की सत्ता
और शतक्त का समथभन प्राप्त हो ।
जे. डब्ल.ू साल्मंड “ काननू उन तसद्धांिों का समच्ु चय है तजन्हें राज्य मान्यिा देिा है और न्याय के
प्रििभन के दौरान लािू करिा है ।
काननू का पालन राज्य के सभी सदस्यों के तलए बाध्यकारी है । इनकी खास बाि यह होिी है तक हर
सदस्य के तलए सामान रूप से लािू होिे हैं । इन काननू ों की अिहेलना करने िालों को दण्ड तदया
जािा है । इन्हें प्रयोि करने की तनिि प्रतक्रया होिी है ।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 174
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करने से है । नािररक भी काननू का पालन इसी तलए करिे हैं क्योंतक काननू सिभमान्य तनयमों का
द्योिक है । इन तनयमों का स्िभाििः पालन तकया जािा है ि समाज के तलए मल्ू यिान समझे जािे हैं
। जब काननू का पालन नहीं तकया जािा है िब बल- प्रयोि या दडं के भय का प्रयोि तकया जािा है
। बल – प्रयोि के तबना भी काननू का पालन संभि है । इस प्रकार काननू का सार ित्ि प्रमातणकिा
है । प्रमातणकिा का अथभ यह है तक नािररक उस काननू को उतचि, कल्याणकारी या सतु िधाजनक
मानकर अपने-आप उसका पालन करने को ित्पर हों । प्रमातणकिा ही काननू को स्थायी रूप देिी है
। अिर कोई िानाशाह बल -प्रयोि करके मनमाने काननू लािू कर दे िो प्रमातणकिा के आभाि में िे
नािररकों से पणू भ तनष्ठा नही प्राप्त कर पाएिं े , धीरे -धीरे तिरोह की भािना पनपिे रहेिी और मौका
तमलिे ही िानाशाह के काननू को ख़त्म कर देंिे । यतद काननू प्रमातणक होिा िो नािररक सहषभ
उसका पालन करें िे ।
काननू का मख्ु य लक्षण यह है तक उसे नािररक अपनी इच्छा से माने । काननू प्रचतलि मल्ू यों के
अनरू
ु प होना चातहए और नािररकों की सहमति पर आधाररि ि िकभ संिि होना चातहए ।
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3 काननू ी टीकाएँ- अनेक तितधिेत्ताओ ं ने अलि-अलि देश के काननू के ित्ि की व्याख्या देने के
तलए अपनी टीकाएँ तलखी हैं । ऐसे प्रश्न तजनके तिषय में कानून स्पष्ट नहीं है, उन पर उपयक्त
ु िकभ ि
प्रमाण देकर अपनी राय व्यक्त की है । तितधिेत्ता ने अपनी बाि प्रभािशाली िरीके से की हो तक उसे
काननू के बराबर माना जाने लिा हो । हालाँतक कुछ तिरली टीकाओ ं को ही इिना महत्ि तमलिा है
जैसे तिटेन में कोक और ब्लेक्स्टन की टीकाओ ं को बहुि मान्यिा दी जािी हैं । न्यायलय भी अपने
तनणभयों के आधार के रूप में इन टीकाओ ं को लेिे हैं ।
4. न्याय-तनणभय – कई मामलों में काननू अस्पष्ट या अतनतिि होिा है ऐसे में न्यायाधीश उपक्त ु िकभ
ि प्रमाण देकर अपना अतभमि देिे हैं जो काननू की िरह मान्य होिा है । समय समय पर न्यायलयों
द्वारा तदए िये तनणभयों काननू को नई व्याख्या देिे हैं जो भतिष्य के तलए आधार बन जािे हैं ।
5. साम्या (Equity)- जब काननू िो स्पष्ट हो पर न्यायाधीश को यह लिे तक संबद्ध पक्ष को
सहायिा (ररलीफ) देना न्याय होिा िो न्यायाधीस साम्या के तसध्दािं का प्रयोि करिे हुए ऐसी
सहायिा की व्यिस्था करिा है । यह भी एक िरह से न्यायाधीश तनतमभि काननू है ।
6.तितध-तनमाभण – ऐसे काननू जो देश के तिधानमडं ल के द्वारा तितधिि पाररि तकये जािे हैं, िे
काननू का मख्ु य स्रोि हैं तिधातयका काननू का प्रत्यक्ष स्रोि हैं । आज के यिु में सरकार के िीन
अंिों में से तिधातयका काननू बनािी है । तिधातयका नए काननू बनिी है, परु ाने काननू ों को संशोतधि
करिे हैं । काननू बनाने का उद्देश्य लोक कल्याण करना होिा है ।
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ु तिश्वतिद्यालय 176
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ये िे तलतखि काननू हैं जो राज्य के तिधानमडं ल द्वारा बनाये जािे हैं और व्यतक्तयों एिं राज्यों के
संबधों को तनधाभररि करिे हैं ।
4.अध्यादेश
ये िे आदेश होिे है जो असाधारण पररतस्थतियों में राज्य की कायभपातलका के प्रधान द्वारा जारी तकये
जािे हैं । ये एक तनतिि समय के तलए जारी तकये जािे हैं और इनका प्रभाि िही होिा है, जो
तिधानमंडल द्वरा पाररि काननू का ।
5.सामान्य काननू –
ये काननू प्राचीन रीति- ररिाज िथा परम्पराओ ं पर आधाररि होिे हैं । इग्ं लेंड के शासन में इनका
तिशेष महत्ि है ।
11.5.1 मेक्ल्िर ने काननू को दो भािों में बाटं ा है
राष्रीय काननू और अन्िराष्रीय काननू
1.राष्रीय काननू – राष्रीय काननू को संिैधातनक काननू और साधारण काननू में उपतिभातजि तकया
है । साधारण काननू व्यतक्तयों से सम्बतं धि काननू है जो दो िरह के हो सकिे है – लोक काननू और
व्यतक्तिि काननू । लोक काननू राज्य ि व्यतक्त के संबंधों को तनयंतत्रि करिा है । व्यतक्तिि काननू
व्यतक्तयों के आपसी सम्बन्ध से सम्बंतधि है । लोक काननू को प्रशासकीय काननू ि साधारण काननू
में बाटं ा जा सकिा है । प्रशासकीय काननू राज्य ि अतधकारीयों से सम्बतं धि है । साधारण काननू
नािररकों और राज्य के सम्बन्ध को सम्बंतधि है । संिैधातनक काननू राज्य के ढाँचे , सरकार की
प्रकृ ति और क्षेत्र से सम्बंतधि है ।
2.अन्िराभष्रीय काननू – शांति या यद्ध
ु के समय एक राज्य का दसू रे राज्य के बीच सम्बन्ध
अन्िराभष्रीय काननू ों पर आधाररि होिा है ।तिश्व के स्ििंत्र राष्रों के पारस्पररक सम्बन्ध को तनधाभररि
करने िाले काननू ों को अन्िराभष्रीय काननू कहिे हैं । ओपेन्हेम के अनसु ार “ अन्िराभष्रीय तितध
प्रयासों और परम्पराओ ं का िह समहू है जो सभ्य राज्यों द्वारा अपने आपसी संबद्ध में काननू ी िौर पर
बाध्य समझा जािा है ।
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काननू का लक्ष नािररकों के सामातजक जीिन को अतधक उन्नि और उत्कृ ष्ट बनाना है । काननू
समाज के प्रचतलि मूल्यों और मान्यिाओ ं का प्रतितनतधत्ि करिा है । काननू को सामातजक पररििभन
का सशक्त मध्यम बनाने के तलए जरुरी है तक काननू लोक मि पर आधाररि हों । इस िरह लोकिंत्र
को प्राथतमकिा दी जाये और इसके साथ- साथ राज्य को तशक्षा, स्िस्थ , रोजिार आतद की
व्यिस्था पर तिशेष ध्यान तदया जाना चातहए । क्योंतक इसके आभाि में लोि सशक्त लोकमि का
तनमाभण नहीं कर पाएंिे ।
समानिा और स्ििन्त्रिा की िरह न्याय भी एक आधतु नक आदशभ के रूप में स्िीकार तकया जािा है,
लेतकन तफर भी न्याय पर प्राचीन काल से तिचार होिा आया है। बदलिे समय के अनुसार न्याय के
दृतष्टकोण में भी पररििभन देखने को तमलिा है। जहाँ पहले न्याय से उत्पन्न सद्गणु ों को एक व्यतक्त में
खोजने का प्रयास तकया जािा था िो आधतु नक दृतष्टकोण में न्याय के आदशभ को एक व्यिस्था में
खोजने का प्रयास तकया जािा है। दसू रे शब्दों में जहाँ पहले एक न्यायपणू भ व्यतक्त की बाि की जािी
थी, िो िहीं अब सामातजक न्याय के आदशभ को स्िीकार तकया जािा है। सामातजक न्याय की
सक ं ल्पना के अन्ििभि यतद व्यिस्था न्यायपणू भ नहीं होिी िो सामातजक पररििभन की माँि की जािी है।
न्याय के सिभप्रथम दशभन, ग्रीक, तिचारकों प्लेटो और अरस्िू में तमलिे हैं। प्लेटो ने चार सद्गणु ों को
स्िीकार तकया, यथा-तििेक, साहस, संयम ि न्याय। इन चारों में न्याय का सिाभतधक महत्ि है क्योंतक
न्याय शेष िीनों सद्गणु ों का संिल
ु न ही है और अतन्िम सद्गुण है। जबतक शेष िीनों सद्गणु साधन है।
सरल शब्दों में प्लेटो के अनसु ार उस व्यतक्त को न्यायपणू भ कहा जायेिा तजसमें तििेक, साहस ि संयम
िीनों सन्ितु लि अिस्था में हो। यहाँ प्लेटो के न्याय के आदशभ की िल ु ना भारिीय परम्परा के परुु षाथों
से की जा सकिी है क्योंतक तजस प्रकार भारिीय परम्परा में धमभ, अथभ, काम ि मोक्ष के रूप में चार
परुु षाथों को स्िीकार करिे हुए मोक्ष को अतन्िम या सहायक परुु षाथभ माना िया है। मोक्ष को साध्य
एिं शेष िीनों परुु षाथों को साधन माना िया है, िहीं दसू री िरफ अरस्िू के अनसु ार- जो तजसके योग्य
है, उसको उिना तमलना चातहए, यही न्याय है। अरस्िू के न्याय में दो बािें मख्ु य हैं-
1. तििरणात्मक न्याय एिां
2. सध
ु ारात्मक न्याय।
अरस्िू के न्याय में योग्यिा सापेक्ष होने के कारण अरस्िू का न्याय सापेक्ष न्याय है। समय के सापेक्षिा
में तजस न्याय की धारणा बदलिी है िह न्याय, सापेक्ष न्याय है।
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अभ्यास प्रश्न
1. तकसके अनसु ार काननू सप्रं भु का शासन है ?
2. काननू शब्द टयटू तनक मल ू के तकस शब्द से बना है ?
3. तितध तनमाभण का कायभ सरकार के तकस अंि द्वारा तकया जािा है?
4. मेक्ल्िर ने काननू को तकिने भािों में बाटं ा है ?
5. न्याय का प्राथतमक तसद्धांि क्या है जो व्यतक्तयों के साथ न्यायसंिि और पक्षपाि रतहि
व्यिहार करने की मांि करिा है?
(अ) तनष्पक्षिा (ब) पक्षपाि (स) पिू ाभग्रह (द) बतहष्करण
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11.6 साराांश
तनष्पक्षिा, समानिा और नैतिक आचरण की खोज में तनतहि, न्याय मानिीय सबं धं ों, काननू ी
प्रणातलयों और सामातजक संरचनाओ ं का मािभदशभन करने िाले एक नैतिक कम्पास के रूप
में कायभ करिा है। इसकी बहुआयामी प्रकृ ति में तितिध ितिशीलिा शातमल है,
प्रतिशोधात्मक और पनु स्थाभपनात्मक न्याय से लेकर तििरणात्मक और सामातजक-आतथभक
न्याय िक, प्रत्येक मानि अनुभि के तितभन्न पहलओ ु ं को संबोतधि करिा है। परू े इतिहास
में, न्याय समाज की बदलिी जरूरिों और मूल्यों के अनरू ु प तिकतसि हुआ है। प्राचीन
सभ्यिाओ ं के दैिीय न्याय से लेकर पनु जाभिरण और प्रबद्धु िा के दौरान व्यतक्तिि अतधकारों
और काननू के शासन पर जोर देने िक, न्याय ने मानि सभ्यिा के पाठ्यक्रम को आकार
तदया है, आधतु नक काननू ी प्रणातलयों और नैतिक ढांचे के तलए आधार िैयार तकया है।
न्याय की खोज में, हमें याद रखना चातहए तक यह के िल एक अमिू भ अिधारणा नहीं है बतल्क
कारभ िाई का आह्वान है। इसके तलए हमें अन्याय के तखलाफ खड़े होने, हातशये पर पड़े और
उत्पीतड़िों के अतधकारों की िकालि करने और सहानभु तू ि और समझ को बढ़ािा देने की
आिश्यकिा है। न्याय के आदशों को अपनाकर और इसके तसद्धांिों के प्रति सामतू हक
प्रतिबद्धिा को बढ़ािा देकर, हम एक ऐसी दतु नया का तनमाभण कर सकिे हैं जो िास्िि में
सभी के तलए तनष्पक्षिा, समानिा और करुणा का प्रिीक है।
उपरोक्त अध्ययन के आधार पर हमें काननू , न्याय ि राल्स के न्याय तसद्धांि के सम्बन्ध में
तिस्िृि जानकारी प्राप्त हुई । तजसमें राल्स न्याय तसद्धान्ि की शरुु आि उपयोतििा की
आलोचना से शरू ु करिा है । उपयोतििािाद अपना एक सत्रू पहले ही सरु तक्षि रखिा है-िह
अतधकमि व्यतक्तयों का अतधकिम सख ु है । परन्िु रॉल्स के अनसु ार राज्य का कायभ के िल
सामातजक व्यिस्था की सरु क्षा ही नहीं है, बतल्क सबसे अतधक जरूरिमन्द लोिों की
आिश्यकिाओ ं को उच्चिम सामातजक आदशभ बनाकर मूल पदाथों के पनु तिभिरण द्वारा
न्याय उपलब्ध करिाना है।
रॉल्स के न्याय तसद्धान्ि की तितभन्न आधारों पर आलोचनाएँ की हैं तजसमें प्रमख ु नाम-सी0 िी0
मैकफसभन का है। मैकफसभन ने रॉल्स को उदार लोकिातन्त्रक पँजू ीिादी राज्य का प्रिक्ता कहा है। िह
कहिा है तक उत्पादन के साधनों पर तनजी स्िातमत्ि िाली तकसी भी व्यिस्था में स्ििन्त्रिा िथा
समानिा का समाधान सम्भि नहीं है।
उदारिाद का स्िेच्छाचारी तसद्धान्ि जहाँ व्यतक्त की स्ििन्त्रिा में दृढ़ तिश्वास रखिा है और व्यतक्तयों
को स्ििन्त्र छोड़ देने का पक्षधर है। िहीं साम्यिाद का अत्यतधक तनयतन्त्रि तसद्धान्ि सामातजक
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समानिा के नाम पर व्यतक्तिि स्ििन्त्रिा का बतलदान कर देिा है। रॉल्स ने इन दोनों तसद्धान्िों से
उठकर न्याय के एक ऐसे तसद्धान्ि का प्रतिपादन तकया है तजसमें योग्यिा और क्षमिा का उतचि
परु स्कार िथा सबको न्यनू िम की िारण्टी दी ियी है।
इस प्रकार यह संकल्पना समाज में न्याय के तलए समिापणू भ नीतियों के तनमाभण ि उनके तक्रयान्ियन
के तलए सदैि प्रासंतिक रहेिी।
11.7 शब्दािली
मूल सांरचना की अिधारणा --न्याय के तसद्धान्ि में मल ू संरचना की अिधारणा ऐसी
अिधारणा है तजसमें रॉल्स के अनसु ार एक न्यायसंिि संतिधान होना चातहए िातक नािररकों
को तितभन्न प्रकार की स्ििन्त्रिाएँ प्राप्त हो सकें ।
उपयोतगिािाद--इसमें अतधकिम की अच्छाई के तहि में कुछ व्यतक्तयों के तहिों के
बतलदान को औतचत्यपणू भ ठहराया जािा है अथाभि् उपयोतििािाद सम्पणू भ की खश
ु ी के बजाय
अतधकांश की खश ु ी पर जोर देिा है। उपयोतििा अतधकिम संख्या के अतधकिम सख ु के
सत्रू को अपनािा है।
साम्या - जब काननू हो पर न्यायाधीश को यह लिे तक संबद्ध पक्ष को सहायिा (ररलीफ)
देना न्याय होिा िो न्यायाधीश साम्या के तसध्दांि का प्रयोि करिे हुए ऐसी सहायिा की
व्यिस्था करिा है ।
अध्यादेश- ऐसे आदेश होिे है जो असाधारण पररतस्थतियों में राज्य की कायभपातलका के
प्रधान द्वारा जारी तकये जािे हैं ।
तििरणात्मक न्याय- समाज के भीिर ससं ाधनों, अिसरों और लाभों का उतचि और समान
तििरण सतु नतिि करें ।
प्रतियात्मक न्याय - काननू ी प्रतक्रयाओ ं और प्रतक्रयाओ ं की पारदतशभिा, यह सतु नतिि
करना तक व्यतक्तयों के साथ सम्मानपिू भक व्यिहार तकया जाए और उन्हें तनष्पक्ष सनु िाई िक
पहुचं प्राप्त हो।
राजनीतिक न्याय- सत्ता का उतचि तििरण, राजनीतिक भािीदारी िक पहुचं , और समाज
के भीिर प्रातधकार के पदों पर बैठे लोिों की जिाबदेही।
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11.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. आतस्टन 2. लैि 3. तिधातयका 4. दो 5. तनष्पक्षिा 6.
आतथभक न्याय 7. उतचि प्रतक्रया 5. रॉल्स 6. a. तििरणात्मक न्याय
एिां b. सुधारात्मक न्याय। 7.काण्ट, लाक एिं रूसों 8. रॉल्स
9.अनबु न्धमल
ू क सामातजक दशभन
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12.0 प्रस्तावना:
न्याय एक मौतलक अिधारणा है जो मानि समाज और नैतिक तसद्धािं ों के कें र में तस्थि है। यह एक
बहुआयामी और जतटल तिचार है तजसमें तनष्पक्षिा, समानिा और व्यतक्तयों के साथ न्यायसंिि
व्यिहार शातमल है। इसके मूल में, न्याय प्रत्येक व्यतक्त को उसका हक देने के तिचार के इदभ-तिदभ घमू िा
है, चाहे िह अतधकारों, अिसरों या उनके कायों के पररणामों के सदं भभ में हो। यह सास्ं कृ तिक, धातमभक
और दाशभतनक सीमाओ ं से परे तनष्पक्षिा और काननू के शासन के मल्ू यों को बनाए रखने का प्रयास
करिा है।
न्याय की अिधारणा मानि सभ्यिा के दौरान तिकतसि हुई है, जो प्राचीन सभ्यिाओ ं के काननू ी
प्रािधान, प्रतसद्ध दाशभतनकों के नैतिक तसद्धािं ों और असमानिाओ ं का मकु ाबला करने के तलए उभरे
सामातजक न्याय आंदोलनों में अतभव्यतक्त पािी है। चाहे िलतियों को सधु ारने के तलए प्रतिशोधात्मक
न्याय की मांि हो या उपचार और मेल-तमलाप को बढ़ािा देने के तलए पनु स्थाभपनात्मक न्याय की,
अपने अंितनभतहि उद्देश्य में इसका लक्ष्य एक संितु लि और न्यायपणू भ समाज की स्थापना करना है।
न्याय के तिचार के इस पररचयात्मक अन्िेषण में हम इसके ऐतिहातसक तिकास, इसके तितभन्न
आयामों और सामातजक िाने-बाने को आकार देने में इसके महत्ि पर िहराई से तिचार करें िे। हम यह
भी समझेंिे तक न्याय काननू के शासन, नैतिकिा और समानिा की खोज के साथ-साथ समकालीन
बहस और चनु ौतियों में इसकी स्थायी प्रासंतिकिा के साथ कै से जड़ु ा हुआ है।
12.1 उद्देश्य
1. न्याय के अथभ और पररभाषा को समझ सकें िें.
2. न्याय की धारणा के तिकास को जान पायेंिें.
3. न्याय के तितभन्न आयामों की समझ पाएंिे.
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मनष्ु यों के बीच मानिीय संबंधों का एक व्यितस्थि तिधान होिा है प्रोफ़े सर बाकभ र का मि है तक हम
मानिीय संबंधों के साथ-साथ मल्ू यों के संकलन िथा एक मूल्य को दसू रे मूल्य के साथ जोड़ने में भी
न्याय िथा न्याययक्त
ु भाि की कल्पना कर सकिे हैं। अिः बाकभ र के अनसु ार न्याय राजनीतिक मल्ू यों
का समाधानकिाभ िथा उनका समायोजन है। यह समाज में रह रहे लोिों के अतधकारों एिं किभव्यों में
सामंजस्य एिं मधरु संिल ु न स्थातपि करिा है।
सक ं ीणभ अथभ में न्याय को एक काननू ी प्रतक्रया के रूप में देखा जािा है, तजसमें न्यायसंिि काननू ,
अदालिें, स्िित्रं एितं नष्पक्ष न्यातयक व्यिस्था , काननू िथा अदालिों के समक्ष प्रत्येक नािररक की
समानिा इत्यातद शातमल है। दसू री ओर व्यापक अथों में न्याय के सम्बन्ध में दो तिचार हैं। पहले
दृतष्टकोण के अनसु ार न्याय की धारणा तनरपेक्ष,शाश्वि एिं स्थायी है। प्लेटो,एतक्िनास,अिस्टाइन जैसे
अन्य दाशभतनकों ने शाश्वि न्याय का तसद्धांि मानिे हुए न्याय की धारणा में काल और पररतस्थतियों के
साथ पररििभन होने को स्िीकार नहीं तकया है। दसू रे दृतष्टकोण के अनसु ार न्याय एक सापेक्ष धारणा है
िथा काल, तस्थतियों और मल्ू यों में पररििभन के अनसु ार न्याय की धारणा , न्याय के आधार इत्यातद
बदलिे रहिे हैं। अरस्ि,ू बेन्थम,तमल आतद दाशभतनकों ने इस दृतष्टकोण का समथभन तकया है।
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प्राचीन मेसोपोटातमया में, हम्बूराबी संतहिा, जो सबसे पहले ज्ञाि काननू ी संतहिाओ ं में से एक थी, ने
न्याय की उनकी अिधारणा को आकार देने में महत्िपणू भ भतू मका तनभाई। संतहिाओ ं को एक स्टीले
(Stele) पर अतं कि तकया िया था और इसमें जीिन के तितभन्न पहलओ ु ं को तनयतं त्रि करने िाले
काननू ों और तितनयमों का संग्रह शातमल था।
"लेक्स टैतलयोतनस" या "आंख के बदले आंख, दांि के बदले दांि" का तसद्धांि हम्मरु ाबी की संतहिा
की एक कें रीय तिशेषिा थी। इस तसद्धांि का उद्देश्य अपराधों के तलए आनपु ातिक प्रतिशोध सतु नतिि
करना है और यह प्रतिशोधात्मक न्याय का एक उदाहरण है।
न्याय की अिधारणा सिोच्च प्रातधकारी और न्याय प्रदान करने िाले के रूप में राजा की भूतमका से
िहराई से जड़ु ी हुई थी। राजा को देििाओ ं के प्रतितनतध के रूप में देखा जािा था और समाज में
व्यिस्था और तनष्पक्षिा बनाए रखने के तलए तजम्मेदार माना जािा था।
2. प्राचीन तमस्र:
प्राचीन तमस्र में, न्याय सत्य, न्याय और सद्भाि की देिी माट (Ma’at) से जड़ु ा था। माट ने िह्मांडीय
व्यिस्था और सत्य, सिं ल ु न और धातमभकिा के तसद्धािं ों का प्रतितनतधत्ि तकया जो मानि आचरण
को तनदेतशि करिे थे।
प्राचीन तमस्र में न्याय की अिधारणा नैतिक और नैतिक व्यिहार के तिचार से तनकटिा से जड़ु ी हुई
थी। तमस्रिातसयों का मानना था तक माट के अनसु ार रहने से एक न्यायपणू भ और समृद्ध समाज का
तनमाभण होिा।
3. प्राचीन ग्रीस:
ग्रीक दशभन में न्याय एक कें रीय तिषय था, प्लेटो और अरस्िू जैसे प्रभािशाली तिचारकों ने इसके
तितभन्न पहलओ ु ं की खोज की थी । प्लेटो के "ररपतब्लक" में उन्होंने न्यायपणू भ समाज के संदभभ में
न्याय के तिचार पर चचाभ की। प्लेटो के अनसु ार, न्याय िभी प्राप्त तकया जा सकिा है जब प्रत्येक व्यतक्त
समाज में अपनी तनतदभष्ट भतू मका तनभाए, और िीन ििभ (शासक, संरक्षक और तनमाभिा) सद्भाि से काम
करें ।
अरस्िू के नैतिक तसद्धांिों ने एक िणु के रूप में न्याय की अिधारणा पर जोर तदया। उन्होंने
तििरणात्मक न्याय (ससं ाधनों और सम्मानों का उतचि तििरण) और सधु ारात्मक न्याय (िलतियों को
सधु ारने और तििादों को सल ु झाने से संबंतधि) के बीच अंिर तकया।
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4. प्राचीन भारि:
प्राचीन भारिीय सभ्यिाओ ं में, न्याय की अिधारणा "धमभ" के तसद्धांि से तनकटिा से जड़ु ी हुई थी।
धमभ में व्यतक्तयों के नैतिक और नैतिक किभव्य शातमल हैं, तजनका पालन करने पर एक न्यायपणू भ और
सामजं स्यपणू भ समाज का तनमाभण होिा।
िेदों और उपतनषदों सतहि प्राचीन ग्रथं ों ने धातमभक आचरण और तकसी के धमभ का पालन करने के
महत्ि पर जोर तदया, तजसमें स्ियं, पररिार, समदु ाय और दतु नया के प्रति किभव्य शातमल थे।
5. प्राचीन तहब्रू:
प्राचीन तहिू सभ्यिा में, न्याय का तिचार तहिू बाइतबल (परु ाने तनयम) में उतल्लतखि धातमभक काननू ों
और नैतिक उपदेशों से तनकटिा से जड़ु ा हुआ था। दैिीय न्याय की अिधारणा ने एक महत्िपणू भ
भतू मका तनभाई, क्योंतक ईश्वर को अंतिम न्यायाधीश के रूप में देखा जािा था जो धतमभयों को परु स्कृ ि
करिा था और दष्टु ों को दतं डि करिा था। ईश्वर की दृतष्ट में न्याय सतु नतिि करने के तलए धातमभक काननू ों
का पालन आिश्यक था।
इन प्राचीन सभ्यिाओ ं ने मानि समाज में एक मौतलक तसद्धािं के रूप में न्याय के तिकास की नींि
रखी। इन प्रारंतभक सभ्यिाओ ं में न्याय की समझ अक्सर धातमभक और नैतिक मान्यिाओ ं के साथ जड़ु ी
हुई थी, जो नैतिक व्यिहार, काननू के शासन और सामातजक व्यिस्था के रखरखाि के महत्ि पर जोर
देिी थी। समय के साथ, न्याय की ये मल ू भिू अिधारणाएँ बाद की सभ्यिाओ ं की काननू ी प्रणातलयों
और नैतिक ढाँचों को तिकतसि और आकार देिी रहीं।
12.3.2 मध्ययुगीन काल में न्याय:
मध्ययिु ीन काल में, न्याय की अिधारणा तिकतसि होिी रही और धातमभक और दाशभतनक मान्यिाओ,ं
सामातजक संरचनाओ ं और काननू के शासन के साथ िहराई से जड़ु ी हुई थी। 5िीं से 15िीं शिाब्दी
िक फै ले इस यिु में सामिं िाद का प्रभत्ु ि, शतक्तशाली राजित्रं ों का उदय और जीिन के सभी पहलओ
ु ं
पर ईसाई चचभ का प्रभाि देखा िया। पररणामस्िरूप, इस समय के दौरान न्याय को अक्सर धमभतनरपेक्ष
और धातमभक अतधकाररयों के संयोजन द्वारा आकार तदया िया था।
1. सामांिी न्याय: मध्ययिु ीन यरू ोप में सामंििाद एक प्रमख
ु सामातजक और आतथभक व्यिस्था
थी। यह िफादारी और सैन्य सेिा के तलए भतू म के आदान-प्रदान पर आधाररि था, तजसमें
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शीषभ पर राजा या राजा के साथ एक पदानक्र ु तमि सरं चना बनाई िई थी, तजसके बाद रईसों,
शरू िीरों और तकसानों को रखा िया था।
सामंिी व्यिस्था में न्याय स्थानीयकृ ि था, तजसमें स्िामी अपनी संपतत्त पर न्याय करिे थे।
स्िामी ने एक न्यायाधीश और काननू देने िाले के रूप में कायभ तकया, अपने जािीरदारों के
बीच तििादों को सल ु झाया और यह सतु नतिि तकया तक उनके जािीरदार अपने दातयत्िों का
पालन करें ।
2. ईश्वरीय न्याय और चचग: मध्यकाल को ईसाई चचभ के महत्िपणू भ प्रभाि से तचतिि तकया
िया था। चचभ के पास आध्यातत्मक और लौतकक दोनों मामलों पर काफी अतधकार था, और
दैिीय न्याय पर इसकी तशक्षाओ ं का मध्ययिु ीन समाज पर िहरा प्रभाि पड़ा।
चचभ ने दैिीय न्याय के तिचार पर जोर तदया, जहां ईश्वर को अंतिम न्यायाधीश के रूप में देखा
जािा था जो धतमभयों को परु स्कृ ि करिा था और पातपयों को दतं डि करिा था। दैिीय प्रतिशोध
की सभं ािना ने व्यतक्तयों के व्यिहार और नैतिक आचरण को आकार देने में महत्िपणू भ
भतू मका तनभाई।
3. शाही सांतहिा और सामान्य कानून: शतक्तशाली राजशाही के उदय के साथ, न्याय प्रशासन
में शाही अदालिें अतधक प्रचतलि हो िई।ं राजा या सम्राट काननू ी मामलों में सिोच्च
प्रातधकारी के रूप में तनणभय और तनणभय जारी करिे थे।
सामान्य काननू , प्रथािि प्रथाओ ं और न्यातयक तमसालों पर आधाररि एक काननू ी प्रणाली,
इस अितध के दौरान तिकतसि होनी शरू ु हुई। शाही न्यायाधीशों ने राज्य के चारों ओर यात्रा
की, काननू के ससु ंिि तसद्धांिों को लािू तकया और धीरे -धीरे काननू का एक एकीकृ ि तनकाय
बनाया।
12.3.3 पुनजागगरण काल में न्याय:
14िीं से 13िीं शिाब्दी िक फै ले पनु जाभिरण काल के दौरान, नए दाशभतनक, िैज्ञातनक और राजनीतिक
तिचारों के उभरने के साथ न्याय के तिचार में महत्िपणू भ पररििभन हुए। इस यिु ने मध्य यिु के सख्ि
धातमभक हठधतमभिा से प्रस्थान को तचतिि तकया और न्याय, अतधकार और शासन की आधतु नक
अिधारणाओ ं की नींि रखी। पनु जाभिरण ने मानििािाद, कला और सातहत्य का जश्न मनाया, जबतक
ज्ञानोदय ने िकभ , व्यतक्तिि अतधकारों और ज्ञान और प्रिति की खोज पर जोर तदया। इन बौतद्धक और
सांस्कृ तिक आंदोलनों ने न्याय की समझ और अनप्रु योि को बहुि प्रभातिि तकया।
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1. मानििािाद और प्राकृतिक कानून: पनु जाभिरण मानििािाद ने मनष्ु य के मूल्य और
क्षमिा पर जोर तदया, शास्त्रीय ग्रंथों के अध्ययन को बढ़ािा तदया और मानिीय कारण, िररमा
और व्यतक्तिि मूल्य की िकालि की।
इस अितध के दौरान प्राकृ तिक काननू की अिधारणा को प्रमख ु िा तमली, तजसमें कहा िया
तक कुछ नैतिक तसद्धांि प्रकृ ति में अंितनभतहि हैं और मानि िकभ के तलए सल ु भ हैं। प्राकृ तिक
काननू को धातमभक तसद्धािं ों और सास्ं कृ तिक मानदडं ों से परे , सािभभौतमक और सभी व्यतक्तयों
पर लािू माना जािा था।
2. सामातजक अनुबांध और व्यतिगि अतधकार: थॉमस हॉब्स, जॉन लोके और जीन-जैक्स
रूसो जैसे प्रबद्ध
ु तिचारकों ने सामातजक अनबु ंध के तसद्धांि को तिकतसि तकया, तजसमें कहा
िया तक व्यतक्तयों ने अपने अतधकारों को सरु तक्षि करने और अपने तहिों की रक्षा के तलए
सरकारें बनाने के तलए स्िेच्छा से एक सामातजक समझौिे में प्रिेश तकया।
इन दाशभतनकों ने जीिन, स्ििंत्रिा और संपतत्त के अतधकार जैसे व्यतक्तिि अतधकारों के
महत्ि पर जोर तदया। उन्होंने िकभ तदया तक इन अतधकारों की रक्षा करना सरकारों की
तजम्मेदारी है, और यतद िे ऐसा करने में तिफल रहिी हैं, िो लोिों को तिरोह करने और नई
सरकार बनाने का अतधकार है।
3. समानिा और काननू का शासन: प्रबद्ध ु िा काल ने दैिीय अतधकार और िंशानिु ि
तिशेषातधकार की धारणा को चनु ौिी देिे हुए, काननू के समक्ष समानिा के तिचार का समथभन
तकया। समानिा के तसद्धांि का अथभ है तक सभी व्यतक्तयों के साथ काननू के िहि तनष्पक्ष
व्यिहार तकया जाना चातहए, चाहे उनकी सामातजक तस्थति या पृष्ठभतू म कुछ भी हो।
काननू का शासन न्याय का कें रीय तसद्धािं बन िया, तजसमें इस बाि पर जोर तदया िया तक
काननू ों को लिािार और पिू ाभनमु ातनि रूप से लािू तकया जाना चातहए, और शासकों सतहि
कोई भी काननू से ऊपर नहीं होना चातहए।
4. आपरातधक न्याय सध ु ार: प्रबद्ध
ु तिचारकों ने आपरातधक न्याय प्रणाली में सधु ार की
िकालि की। उन्होंने क्रूर और मनमाने दडं ों का तिरोध तकया और सजा में आनपु ातिकिा की
अिधारणा को बढ़ािा देने की मांि की, जहां दडं तकए िए अपराध की िंभीरिा के अनरू ु प
होना चातहए।
एक इिालिी दाशभतनक, सेसरे बेकररया ने "ऑन क्राइम्स एंड पतनशमेंट्स" (1764) तलखा,
तजसमें यािना, िप्तु परीक्षणों और मृत्यदु ंड के तखलाफ बहस की, और न्याय के तलए अतधक
मानिीय और िकभ संिि दृतष्टकोण की िकालि की।
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5. सतहष्ट्णुिा और धातमगक स्िित्रां िा: ज्ञानोदय में धातमभक सतहष्णिु ा और अंिरात्मा की
स्ििंत्रिा को बढ़ािा देने िाले तिचारों का तिकास भी देखा िया। िोल्टेयर और जॉन लॉक
जैसे दाशभतनकों ने चचभ और राज्य को अलि करने का िकभ तदया, तजससे व्यतक्तयों को उत्पीड़न
के डर के तबना अपने धमभ का पालन करने का अतधकार तमल सके ।
पनु जाभिरण और ज्ञानोदय काल ने न्याय के तिचार में िहरा बदलाि लाया, िकभ के महत्ि,
व्यतक्तिि अतधकारों और एक न्यायसंिि और न्यायसंिि समाज की खोज पर जोर तदया।
इन दाशभतनक प्रितियों ने आधतु नक काननू ी प्रणातलयों और न्याय के तसद्धांिों के तिकास के
तलए आधार िैयार तकया जो दतु नया भर के समाजों को आकार देना जारी रखिा है।
12.3.4 आधतु नक काननू ी प्रणातलयााँ:
आधतु नक काननू ी प्रणातलयाँ पररष्कृ ि और जतटल ढाँचे हैं जो समाजों को तनयंतत्रि करिी हैं, तििादों
को सल ु झाने, न्याय को बनाए रखने और सामातजक व्यिस्था बनाए रखने के तलए एक संरतचि और
व्यितस्थि दृतष्टकोण प्रदान करिी हैं। ये काननू ी प्रणातलयाँ तितभन्न ऐतिहातसक, दाशभतनक और
सास्ं कृ तिक प्रभािों से प्रेरणा लेिे हुए समय के साथ तिकतसि हुई हैं। जबतक तितशष्ट सरं चनाएं और
प्रतक्रयाएं देशों के बीच तभन्न-तभन्न होिी हैं, िे आम िौर पर सामान्य तिशेषिाएं साझा करिे हैं जो
उनके कामकाज को रे खांतकि करिी हैं। यहां आधतु नक कानूनी प्रणातलयों का तििरण तदया िया है:
काननू का स्त्रोि:
आधतु नक काननू ी प्रणातलयाँ आम िौर पर काननू के कई स्रोिों पर आधाररि होिी हैं, तजनमें शातमल
हैं:
सांिैधातनक कानून: मौतलक काननू और तसद्धांि जो सरकार की संरचना और कायों के साथ-साथ
नािररकों के अतधकारों और स्ििंत्रिा को पररभातषि करिे हैं।
िैधातनक कानून: तिधायी तनकायों (जैसे, ससं द या काग्रं ेस) द्वारा अतधतनयतमि काननू जो शासन के
तितभन्न पहलओ
ु ं को किर करिे हैं, जैसे तक आपरातधक काननू , अनबु ंध काननू और संपतत्त काननू ।
सामान्य कानून: अदालिी फै सलों के माध्यम से स्थातपि काननू ी तसद्धांि और तमसालें, जो भतिष्य
के मामलों के तलए मािभदशभक के रूप में काम करिे हैं।
प्रशासतनक कानून: िैधातनक काननू ों को लािू करने और लािू करने के तलए सरकारी एजेंतसयों द्वारा
बनाए िए तनयम और काननू ।
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अांिरागष्ट्रीय कानून: राष्रों के बीच समझौिे और संतधयाँ जो राज्यों के बीच संबंधों को तनयंतत्रि करिी
हैं और िैतश्वक मद्दु ों का समाधान करिी हैं।
शतियों का पृथर्ककरण: कई आधतु नक काननू ी प्रणातलयाँ शतक्तयों के पृथक्करण के तसद्धांि का
पालन करिी हैं, जो सरकारी प्रातधकरण को िीन शाखाओ ं में तिभातजि करिी है: तिधायी, कायभकारी
और न्यायपातलका। यह पृथक्करण तकसी एक शाखा को अत्यतधक शतक्त के प्रयोि करने से रोकने
और जाँच और संिल ु न की एक प्रणाली बनाने के तलए तडज़ाइन तकया िया है।
उतचि प्रतिया और अतधकार:
आधतु नक काननू ी प्रणातलयाँ उतचि प्रतक्रया पर जोर देिी हैं, यह सतु नतिि करिी हैं तक अपराध के
आरोपी या काननू ी कायभिाही में शातमल व्यतक्तयों को उतचि उपचार, काननू ी प्रतितनतधत्ि िक पहुचं
और सनु िाई का अतधकार तमले। व्यतक्तिि अतधकारों की सुरक्षा, जैसे तनष्पक्ष सनु िाई का अतधकार
और िैरकाननू ी तहरासि से मतु क्त, आधतु नक काननू ी प्रणातलयों का एक मल ू भिू पहलू है।
आधतु नक काननू ी प्रणातलयाँ लिािार तिकतसि हो रही हैं, सामातजक पररििभनों और प्रौद्योतिकी में
प्रिति के अनरू
ु प ढल रही हैं। िे आिश्यक ढांचे के रूप में कायभ करिे हैं जो न्याय को कायम रखिे हैं,
व्यतक्तिि अतधकारों की रक्षा करिे हैं, और तनष्पक्ष और न्यायसंिि िरीके से संघषों और तििादों को
हल करने के तलए एक िंत्र प्रदान करिे हैं।
12.4 न्याय के तितभन्न आयाम
• न्याय का कानूनी आयाम : काननू ी शब्दािली में काननू की प्रणाली को न्याय की प्रणाली
कहा जािा है।काननू ी प्रणाली का सम्बन्ध नािररकों के अतधकारों की सरु क्षा से है। चँतू क
नािररकों को न्याय काननू के माध्यम से प्राप्त होिा है, इसतलए राज्य की तिधायी संस्थाएं
कै से काननू बनािी हैं? तकस प्रकार उन्हें लािू करिी है? और कै से उनका पालन करिािी हैं-
इस प्रकार के सभी प्रश्न न्याय के काननू ी पक्ष को महत्ि प्रदान करिे हैं।
न्याय के काननू ी पक्ष में दो बािें महत्िपूणभ हैं: पहला न्यायपणू भ काननू का तनमाभण और दसू रा,
काननू के अनसु ार न्याय तमलना। न्यायपणू भ काननू के तनमाभण का िात्पयभ है तक तिधानमंडल
द्वारा बांये िए काननू न््यापणू भ एिं िकभ पणू भ होने चातहए। काननू सब लोिों के तलए समान हो
और अिाछ ं नीय भेदभाि न हो। न्यायपणू भ काननू बनाने का अथभ यह नहीं है तक हर
व्यतक्त(बच्चा और बढू ा) के तलए समान काननू हो बतल्क इसका अथभ है समान व्यतक्तयों के
तलए समान काननू हो। न्यायपणू भ आधार पर काननू असमान हो सकिा है। उदहारण के िौर
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पर यतद सरकार राशन बाँटने की कोई योजना लािी है िो िह सभी पररिारों को समान रूप
से राशन ना तििररि करिे हुए प्रत्येक पररिार में सदस्यों की संख्या के आधार पर कम या
ज्यादा राशन का तििरण सतु नतिि करे िी िो इस प्रकार प्रथम दृष्टया देखने पर यह लि सकिा
है तक पररिारों को राशन बांटने में असमानिा बरिी िए है परन्िु यतद प्रत्येक पररिारों की
आिश्यकिा को ध्यान में रखा जाए िो यह तनिांि न्यायपणू भ व्यिस्था होिी।
• न्याय का राजनीतिक आयाम: िस्ििु ः राज्य और जनिा का सम्बन्ध राजनैतिक न्याय का
प्रश्न है। सामान्य अथभ में, तबना तकसी भेदभाि के , हर व्यतक्त को राज्य सत्ता में तहस्सा तमलना
राजनीतिक न्याय है। अिः ियस्क मिातधकार, तनिाभतचि सरकार एिं नािररक अतधकारों की
उपतस्थति राजनीतिक न्याय की स्थापना के तलए पिू भ शिों में से एक है। इस प्रकार राजनीतिक
न्याय की स्थापना के तलए राजनीतिक सत्ता का उपयोि जन प्रतितनतधयों द्वारा जनिा के तहि
में तकया जाना चातहए। शासन शातसिों की इच्छा पर तटका होना चातहए. इस प्रकार जनिा
की राज्य सत्ता में सतक्रय भािीदारी ही राजनीतिक न्याय है।
• न्याय का सामातजक-आतथगक आयाम: सामतजक न्याय का प्रश्न सामातजक समानिा और
सामातजक अतधकारों से जुड़ा है। अिः शोषण का तनषेध, अल्पसंख्यकों के तहिों की रक्षा,
भेदभाि की समातप्त, कायभ की न्यायपणू भ दशाएं, तिचार अतभयतक्त, तिश्वास एिं पजू ा की
स्िित्रं िा सामातजक न्याय की स्थापना की पिू भ शिों में से हैं। अपने व्यापक अथभ में सामातजक
न्याय का िात्पयभ है तक सामातजक जीिन में सभी को समान लाभ िथा लाभ के अिसर चंद
लोिों के हाथों में न तसमट कर जन समान्य को- तिशेषकर िरीब एिं असहाय ििों को भी
उसका समतु चि तहस्सा तमले िातक िे सामान्य रूप से सख ु ी, सम्मातनि और तनतिन्ि जीिन
व्यिीि कर सकें ।
आतथभक न्याय का तिचार एिं सामातजक न्याय के आदशभ आपस में इिने घल ु तमल िए हैं
तक ऐसा लििा है तक आतथभक न्याय के तबना सामातजक न्याय अधरू ा है। सरल शब्दों में
आतथभक न्याय का अतभप्राय है- आतथभक शोषण की समातप्त, देश के भौतिक साधनों का
उतचि बँटिारा एिं अतधक से अतधक लोिों के तहि में उसका उपयोि। लास्की के अनुसार
समाज में सभी नािररकों की न्यनू िम आिश्यकिाओ ं की पतू िभ होना ही आतथभक न्याय है।
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12.9 न्याय-रॉल्य के पतरप्रेक्ष्य में
न्याय समाज का सबसे बड़ा सद्गणु है-रॉल्स। रॉल्य के अनसु ार न्याय ही िह प्रतक्रया है जो सबके मध्य
साम्य स्थातपि करिा है। रॉल्स की समस्या तििरण की है। रॉल्स अपने न्याय तसद्धान्ि की शरुु आि
उपयोतििा की आलोचना से शरू ु करिा है। उपयोतििािाद अपना एक सत्रू पहले ही सरु तक्षि रखिा
है-िह अतधकमि व्यतक्तयों का अतधकिम सख ु है। रॉल्स इस िरह की कोई धारणा पहले से नहीं रखिा
अतपिु िह शद्ध
ु तितध और प्रतक्रया पर जोर देिा है। रॉल्स पररणाम को दृतष्ट में रखकर पहले से कोई
धारणा नहीं बनािा अतपिु िह प्रतक्रया को लािू करने की बाि करिा है, पररणाम क्या होिा? सामने
आयेिा। जैसे माक्सभिादी अपना पररणाम घोतषि तकये है तक अन्ि में ििभहीन, राज्यहीन साम्यिादी
समाज होिा अथाभि् माक्सभिाद पररणाम को ध्यान में रखकर प्रतक्रया बनािा है। रॉल्स, माक्सभिाद की
िरह तबना पररणाम घोतषि तकये तसफभ शद्ध ु तितध एिं प्रतक्रया पर जोर देिा है।
12.10 राल्स का न्याय तसद्धान्ि
बीसिीं सदी िक आिे-आिे उदारिाद पर यह आरोप सामान्य हो िया तक उसके पास राजनीतिक
जीिन हेिु कोई नैतिक आधार नहीं है और िह मख्ु यिः उपयोतििािादी मान्यिाओ ं से जड़ु ा हुआ है।
कुछ लेखकों ने इस समस्या का हल प्रस्ििु करने की, तजनमें ‘जॉन राल्स’ का नाम सिोपरर है। रॉल्स
की पस्ु िक Theory of justice के समय अमेररका में अल्पसख्ं यक ििों तिशेषिः अश्वेि जातियों
के तलए समान अतधकारों का आन्दोलन अपने चरम पर था। पँजू ीिादी ि तमतश्रि अथभव्यिस्थाओ ं ने
िस्िओ
ु ं एिं सेिाओ ं को जटु ाने में भारी सफलिा प्राप्त की थी। परन्िु अभी भी
आय, शतक्त ि सम्पदा की दृतष्ट से घोर तिषमिा व्याप्त थी। ऐसी पररतस्थति में रॉल्स आतथभक और
सामातजक स्िर पर पनु तिभरणात्मक न्याय का समथभन करिा है। रॉल्स के अनसु ार राज्य का कायभ के िल
सामातजक व्यिस्था की सरु क्षा ही नहीं है, बतल्क सबसे अतधक जरूरिमन्द लोिों की आिश्यकिाओ ं
को उच्चिम सामातजक आदशभ बनाकर मल ू पदाथों के पनु तिभिरण द्वारा न्याय उपलब्ध करिाना है।
जॉन रॉल्स अपने तचन्िन का आरम्भ उपयोतििािादी तचन्िन की आलोचना करिा है, तजसमें
अतधकिम की अच्छाई के तहि में कुछ व्यतक्तयों के तहिों के बतलदान को औतचत्यपणू भ ठहराया जािा
है अथाभि् उपयोतििािाद सम्पणू भ की खशु ी के बजाय अतधकांश की खश ु ी पर जोर देिा है। उपयोतििा
अतधकिम संख्या के अतधकिम सख ु के सत्रू को अपनािा है। परन्िु उपयोतििािाद इस बाि की
परिाह नहीं करिा तक उसके तििरण में तकसको क्या तमला? रॉल्स की नजर में ‘न्याय’ मल ू िः तििरण
का तसद्धान्ि है।
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रॉल्स के तिश्लेषण का आधार काण्ट का नैतिक दशभन है। जॉन रॉल्स, काण्ट के तचन्िन के िीन ित्ि
स्िायत्तिा, तनरपेक्ष आदेश िथा लक्ष्यों के साम्राज्य की अिधारणा पर जोर देिा है। अपने न्याय
तसद्धान्ि में रॉल्स अज्ञान के परदे की कल्पना करके िािाभकारों की स्िायत्तिा को सतु नतिि करिा है।
तनरपेक्ष आदेश से िात्पयभ है, व्यिहार के तनयम जो ऐसे व्यतक्तयों पर लािू होिे हैं तजनकी प्रकृ ति
स्ििन्त्र िथा समाज तििेकिान प्राणी की है। रॉल्स के िािाभकारों का उद्देश्य के िल प्राथतमक िस्िओ
ु ं
के तििरण का सत्रू िलाशने िक सीतमि है।
रॉल्स ने अपने न्याय तसद्धान्ि में काण्ट, लाक एिं रूसों को तमलाने की कोतशश की है। यद्यतप उसने
उपयोतििािादी न्याय का तिकल्प प्रस्ििु तकया है। परन्िु उसमें उदारिादी धारणाओ ं की प्रधानिा है
तजसका िास्ितिक िाहक उपयोतििािादी न्याय तसद्धान्ि ही है। राल्स अपने पनु तिभिरणात्मक सत्रू से
उस तिकृ ति को ठीक कर उसे नैतिक स्िरूप देने की कोतशश करिा है। इसीतलए यह भी कहा जािा है
तक िह बेन्थम को काण्ट से जोड़ देिा है।
रॉल्स न्याय के तनयमों का पिा लिाने के तलए अनबु न्धमल ू क सामातजक दशभन का अनक ु रण करिा
है। तजस िरह से हाब्स, लॉक, रूसो ने अपने समझौिा तसद्धान्ि में प्राकृ तिक अिस्था की पररकल्पना
की है, उसी िरह रॉल्स ने मल ू तस्थति ;व्िपहपदसं च्िेपजपिदद्ध की कल्पना अपने न्याय तसद्धान्ि में
की है। मलू तस्थति का िात्पयभ उस अिस्था से है तजसमें मक्त ु ि स्ििन्त्र, स्त्री ि परुु ष एक सामातजक
समझौिा हेिु एक साथ तमलिे है। परम्परािि समझौिािातदयों के प्राकृ तिक अिस्था के व्यतक्तयों ि
रॉल्स के मूलतस्थति के व्यतक्तयों के प्रकृ ति में भारी अन्िर है। रॉल्स की मल
ू तस्थति के व्यतक्त जंिली ि
असभ्य न होकर तििेकिान हैं। समझौिे में पिू ाभग्रह से िथा तनष्पक्षिा लाने के तलए रॉल्स ने अज्ञान के
पदे की कल्पना की है।
अज्ञान के पदे के पीछे बैठे बतु द्धमान, नैतिक िािाभकारों को अपनी व्यतक्तिि क्षमिा के साथ-साथ
अपनी सामातजक, आतथभक, राजनीतिक तस्थति का ज्ञान नहीं है। िािाभकार अपने तहिों,
आिश्यकिाओ,ं तनपणु िाओ,ं योग्यिाओ ं आतद के संज्ञान से परे हैं, परन्िु उन्हें अथभशास्त्र, मनोतिज्ञान
ि न्याय का बोध है। ये िािाभकार जोतखम से डरिे हैं। अिर व्यतक्त को अपने ििभ, स्थान, तस्थति या
सामातजक प्रतिष्ठा की जानकारी है िो न्याय का कोई तनतिि तनष्पक्ष तसद्धान्ि िय कर पाना उसके
तलए सम्भि नहीं होिा। क्योंतक इन सचू नाओ ं की उपतस्थति में तनष्पक्ष एिं सािभभौतमक न्याय के स्थान
पर सापेक्ष एिं व्यतक्तिि तहि स्थातपि हो जायेिा।
रॉल्स के अनसु ार न्याय, तििरण का िणु है। इसका सम्बन्ध समाज में िस्िओु ं एिं सेिाओ ं के तििरण
से है। रॉल्स इन िस्िुओ ं को मौतलक पदाथों ;च्िपउंिल ळििके द्ध की संज्ञा देिा है। इसके अन्ििभि
दो िरह की प्राथतमक िस्िएु ँ हैं- प्रथम, सामातजक प्राथतमक िस्िएु ँ, यथा-अतधकार ि स्ििन्त्रिा,
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 194
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शतक्तयाँ ि अिसर, आय ि सम्पदा, आत्मसम्मान के साधन आतद। इन्हें सामातजक संस्थाओ ं द्वारा
प्रत्यक्ष रूप से तििररि तकया जािा है। तद्विीय-प्राकृ तिक प्राथतमक िस्िएु ँ, यथा- स्िास्थ्य, बतु द्ध,
साहस, काल्पतनक शतक्त क्षमिा जो तक सामातजक सस्ं थाओ ं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से तििररि नहीं तकया
जािा। परन्िु इनसे प्रभातिि अिश्य होिा है। जैसे-व्यतक्त स्िास्थ्य, बतु द्ध लेकर पैदा होिा है, परन्िु
सामातजक संस्थाएँ अस्पिाल खोलकर स्िास्थ्य और तिद्यालय खोलकर बतु द्ध का तिकास सतु नतिि
कर सकिी है। रॉल्स के िािाभकार तसफभ प्राथतमक सामातजक िस्िओ ु ं के तििरण का सत्रू अथिा
तसद्धान्ि समझौिे के माध्यम से िय करिे हैं।
र ल्स के अनुसार िािागकारों द्वारा न्याय के तनम्नतलतखि सूत्र स्िीकार तकये जायेंगे-
1.समान स्ििन्त्रिा का तसद्धान्ि।
2.सामातजक, आतथभक तिषमिाओ ं का ऐसा प्रबन्धन िातक-
a.हीनिम को अतधकिम लाभ हो अथाभि भेदमल
ू क तसद्धान्ि।
b.ये तिषमिाएँ उन पदों एिं तस्थतियों के साथ जड़ु ी हो, जो अिसर की उतचि समानिा की शिों पर
सल
ु भ हो अथाभि् अिसर की समानिा।
उपरोक्त तसद्धान्िों का िरीयिाक्रम िय तकया िया है जो अपररििभनीय है। इसमें समान स्ििन्त्रिा ऊपर
है, समानिा का तसद्धान्ि तद्विीय है और भेदमल ू क तसद्धान्ि अतन्िम है। यहाँ प्रथम सत्रू का ध्यान
सतं िधान तनमाभण में िथा तद्विीय ि अतन्िम सत्रू का ध्यान नीति ि एकरूपिा बनाने का है।
नािररकों की मल ू स्ििन्त्रिाओ ं से िात्पयभ राजनीतिक स्ििन्त्रिा से है, तजसके अन्ििभि मि का
अतधकार, सािभजतनक पद ग्रहण करने की स्ििन्त्रिा, तितध का शासन, मनमानी तिर्िारी के तिरूद्ध
संरक्षण िथा सम्पतत्त की स्ििन्त्रिा आतद। ये सभी स्ििन्त्रिाएँ समाज के सभी व्यतक्त को समान रूप
से तमलनी चातहए। सभी स्ििन्त्रिाएँ समान महत्ि की हैं अथाभि् एक स्ििन्त्रिा के तलए दसू री स्ििन्त्रिा
का बतलदान नहीं तकया जा सकिा। स्ििन्त्रिाओ ं के मध्य सन्िल ु न के तलए सीमा ि तनयन्त्रण भी
लिाये जा सकिे हैं। तनयम तिहीन तस्थति में स्ििन्त्रिाएँ आपस में टकरायेंिी और व्यापक स्ििन्त्रिा
के मािभ में बाधा पैदा होिी।
न्याय तसद्धान्िों के क्रम में स्ििन्त्रिा का स्थान सबसे पहले है। समान स्िन्त्रिाओ ं की पणू भ सन्ितु ष्ट के
बाद ही हम न्याय के दसू रे तसद्धान्ि की िरफ बढ़ सकिे हैं। दसू रे तसद्धान्ि का सम्बन्ध आय, सत्ता, श्रम
पद आतद के बँटिारे से है, जहाँ अिसर सभी के तलए खल ु े होने चातहए। यह बँटिारा असमान भी हो
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ु तिश्वतिद्यालय 195
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सकिा है परन्िु इससे हीनिम को अतधकिम लाभ पहुचँ ना चातहए। असमान बँटिारे की, तकसी को
अिसर की समानिा से िंतचि करके सतु नतिि नहीं तकया जायेिा।
प्राथतमक सामातजक िस्िओ ु ं के सन्दभभ में रॉल्स कहिा है तक प्राथतमक िस्िओ ु ं की एक-दसू रे से
अदला-बदली नहीं की जा सकिी अथाभि् स्ििन्त्रिा के तलए समानिा को और समानिा के तलए
स्ििन्त्रिा को छोड़ा नहीं जा सकिा। इिना ही नहीं अतपिु प्राथतमक िस्िओ ु ं के असमान तििरण को
उसी तस्थति में मान्य ठहराया जा सकिा, जबतक असमान तििरण से सबसे बदिर ििभ को लाभ तमलिा
हो िथा प्रत्येक की तस्थति में सधु ार होिा हो।
न्याय की प्राथतमकिाओ ं को सतु नतिि करने के बाद रॉल्स प्रतक्रयात्मक न्याय के िीन भेद बिािा है।
प्रथम-पणू भ प्रतक्रयात्मक न्याय अथाभि् तनष्पक्ष न्याय का स्ििन्त्र आधार हो और उसे सतु नतिि करने की
तितधक प्रतक्रया हो। तद्विीय-अपणू भ प्रतक्रयात्मक न्याय अथाभि् तनष्पक्ष न्याय का स्ििन्त्र आधार हो
परन्िु उसे सतु नतिि करने की तितध ि प्रतक्रया मौजदू न हो। िृिीय- शद्ध ु प्रतक्रयात्मक न्याय- इसका
सम्बन्ध उस तस्थति से है, जहाँ तनष्पक्ष तनष्कषभ का स्ििन्त्र आधार नहीं होिा। के िल तनष्पक्ष तितध ि
प्रतक्रया के आधार पर न्याय सतु नतिि तकया जािा है। राल्स अपने न्याय को शद्ध ु प्रतक्रयात्मक न्याय
कहिा है और शद्ध ु प्रतक्रयात्मक न्याय से िह तििरणात्मक न्याय के उद्देश्य को पाना चाहिा है।
रॉल्स न के िल न्याय के तसद्धान्िों की चचाभ करिा है बतल्क उसे सतु नतिि करने हेिु मल ू सरां चना की
अिधारणा प्रस्ििु करिा है। मल ू संरचना के अन्ििभि राजनैतिक संतिधान, न्यातयक व्यिस्था िथा
सामातजक-आतथभक व्यिस्था से जड़ु ी संस्था को तलया िया है। न्याय के तसद्धान्ि में मल ू संरचना की
अिधारणा ऐसी अिधारणा है तजसमें रॉल्स के अनुसार एक न्यायसंिि संतिधान होना चातहए िातक
नािररकों को तितभन्न प्रकार की स्ििन्त्रिाएँ प्राप्त हो सकें । तििरणात्मक न्याय हेिु आिश्यक है तक
तितभन्न अथों में अिसर की समानिा उपलब्ध हो िथा न्यनू िम सामातजक आिश्यकिाओ ं की िारण्टी
हो। रॉल्स ने उदारिादी बाजार अथभव्यिस्था को, तजसके कारण उपरोक्त समस्याएँ आ रही थी, अपने
न्याय तसद्धान्ि के माध्यम से ग्राह्य बनाने की कोतशश की। रॉल्स के अनसु ार न्याय समाज का प्रथम
सद्गणु है क्योंतक न्याय में समाज को बाँधने की क्षमिा अन्य के मक ु ाबले सिाभतधक होिी है। रॉल्स ने
अपने न्याय तसद्धान्ि में उदारिादी पँजू ीिादी व्यिस्था को तििरणात्मक न्याय के साथ जोड़कर
औतचत्य प्रदान करने की कोतशश की है।
12.10.1 र ल्स के न्याय तसद्धान्ि की आलोचनाएाँ
अनेक तिद्वानों ने रॉल्स के न्याय तसद्धान्ि की तितभन्न आधारों पर आलोचनाएँ की हैं तजसमें प्रमख
ु
नाम-सी0 िी0 मैकफसभन का है। मैकफसभन ने रॉल्स को उदार लोकिातन्त्रक पँजू ीिादी राज्य का प्रिक्ता
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ु तिश्वतिद्यालय 196
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कहा है। िह कहिा है तक उत्पादन के साधनों पर तनजी स्िातमत्ि िाली तकसी भी व्यिस्था में स्ििन्त्रिा
िथा समानिा का समाधान सम्भि नहीं है। मैकफसभन के अनसु ार-रॉल्स का तसद्धान्ि यह मानकर
चलिा है तक पँजू ीिादी समाज एक ििभ तिभातजि समाज है िथा उत्पादन में कायभकुशलिा लाने के
तलए उत्साहिधभक के रूप में यह असमानिा आिश्यक है। अिैि कल्याणकारी राज्य में अमीर से
िरीब को हस्िान्िरण उस सीमा िक ठीक है जहाँ िक िह धनी ििभ की समृतद्ध के तलए खिरा नहीं है।
मैकफसभन की मान्यिा में रॉल्स यहाँ यह भलू जािा है तक आय, ििभ की असमानिा, एक ििभ द्वारा
दसू रे पर आतधपत्य जमाने का अिसर प्रदान करिी है।
समतष्टिादी रॉल्स के तसद्धान्िों में पँजू ीिाद का औतचत्य देखिे हैं। मॉक्सभिादी रॉल्स के िािाभकारों को
यह कहकर खाररज कर देिे हैं तक तजन्हें सामातजक, आतथभक िथ्यों की जानकारी न हो, िे न्याय के
तसद्धान्िों का तनधाभरण क्या करेंिे? चँतू क रॉल्स ििभ तिभाजन को मान्यिा देिा है, अिएि ऐसे समाज
में न्याय की कल्पना सम्भि नहीं है। स्िच्छन्दिािादी, रॉल्स के इस िकभ को स्िीकार करने के तलए
िैयार नहीं है तक ‘व्यतक्तिि योग्यिाएँ समाज की सािभजतनक सम्पतत्त है और सामातजक न्याय के तलए
भेदमल ू क तसद्धान्ि ठीक है।
उक्त आलोचनाओ ं के बािजदू तजस समय स्िच्छन्दिािादी कल्याणकारी राज्य पर हमले कर रहे थे
िथा पँजू ीिाद के तहि में असीम स्ििन्त्रिा की माँि कर रहे थे, उसी समय रॉल्स ने पँजू ीिाद जतनि
सामातजक तिकृ तियों को ध्यान में रखकर, उसे तििरणात्मक न्याय से जोड़कर समाधान प्रस्ििु करने
की कोतशश की।
रॉल्स की प्राकृ तिक योग्यिाएँ समाज में तिशेषातधकारों और असमानिाओ ं को जन्म देिी है
क्योंतक इन असमानिाओ ं को खत्म नहीं तकया जा सकिा। इसी असमानिा को कम करने
हेिु रॉल्स ऐसी व्यिस्था कतल्पि करिा है तजसमें योग्य व्यतक्तयों के प्रयत्न ि क्षमिाएँ तनतहि
हैं, इस ढंि से प्रयोि करे तजससे समाज के तनम्निम ििभ की दशा में सधु ार हो सके और
तिशेषातधकारों से उत्पन्न होने िाली तिषमिाओ ं की क्षतिपतू िभ की जा सके । के िल योग्य
व्यतक्त को परु स्कृ ि करना मनमाना न्याय है। न्याय का सही अथभ के िल योग्य व्यतक्तयों को
परु स्कृ ि करना ही नहीं, बतल्क हीनिम लोिों की क्षतिपतू िभ करना भी है, क्योंतक ‘न्याय’
परु स्कार का तसद्धान्ि न होकर क्षतिपतू िभ का तसद्धान्ि है।
अभ्यास प्रश्न
1. न्याय का प्राथतमक तसद्धािं क्या है जो व्यतक्तयों के साथ न्यायसिं ि और पक्षपाि रतहि
व्यिहार करने की मांि करिा है?
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 197
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
(अ) तनष्पक्षिा (ब) पक्षपाि (स) पिू ाभग्रह (द) बतहष्करण
2. न्याय का कौन सा पहलू यह सतु नतिि करने पर कें तरि है तक अपराध के आरोपी व्यतक्तयों
को तनष्पक्ष और तनष्पक्ष सनु िाई का अतधकार है?
(अ) उतचि प्रतक्रया (ब) पनु स्थाभपनात्मक न्याय (स) प्रतक्रयात्मक न्याय (द) काननू का
शासन
3. आतथभक और सामातजक असमानिाओ ं को दरू करने के तलए समाज के भीिर संसाधनों,
अिसरों और लाभों के उतचि तििरण को कौन सा शब्द सदं तभभि करिा है?
(अ) राजनीतिक न्याय (ब) आतथभक न्याय (स) नैतिक न्याय (द) तििरणात्मक न्याय
12.5 साराांश
तनष्पक्षिा, समानिा और नैतिक आचरण की खोज में तनतहि, न्याय मानिीय सबं धं ों, काननू ी
प्रणातलयों और सामातजक संरचनाओ ं का मािभदशभन करने िाले एक नैतिक कम्पास के रूप
में कायभ करिा है। इसकी बहुआयामी प्रकृ ति में तितिध ितिशीलिा शातमल है,
प्रतिशोधात्मक और पनु स्थाभपनात्मक न्याय से लेकर तििरणात्मक और सामातजक-आतथभक
न्याय िक, प्रत्येक मानि अनुभि के तितभन्न पहलओ ु ं को संबोतधि करिा है। परू े इतिहास
में, न्याय समाज की बदलिी जरूरिों और मल्ू यों के अनरू ु प तिकतसि हुआ है। प्राचीन
सभ्यिाओ ं के दैिीय न्याय से लेकर पनु जाभिरण और प्रबद्ध
ु िा के दौरान व्यतक्तिि अतधकारों
और काननू के शासन पर जोर देने िक, न्याय ने मानि सभ्यिा के पाठ्यक्रम को आकार
तदया है, आधतु नक काननू ी प्रणातलयों और नैतिक ढाचं े के तलए आधार िैयार तकया है।
न्याय की खोज में, हमें याद रखना चातहए तक यह के िल एक अमिू भ अिधारणा नहीं है बतल्क
कारभ िाई का आह्वान है। इसके तलए हमें अन्याय के तखलाफ खड़े होने, हातशये पर पड़े और
उत्पीतड़िों के अतधकारों की िकालि करने और सहानभु तू ि और समझ को बढ़ािा देने की
आिश्यकिा है। न्याय के आदशों को अपनाकर और इसके तसद्धांिों के प्रति सामतू हक
प्रतिबद्धिा को बढ़ािा देकर, हम एक ऐसी दतु नया का तनमाभण कर सकिे हैं जो िास्िि में
सभी के तलए तनष्पक्षिा, समानिा और करुणा का प्रिीक है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 198
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
12.6 शब्दावली
तििरणात्मक न्याय- समाज के भीिर ससं ाधनों, अिसरों और लाभों का उतचि और समान
तििरण सतु नतिि करें ।
प्रतियात्मक न्याय - काननू ी प्रतक्रयाओ ं और प्रतक्रयाओ ं की पारदतशभिा, यह सतु नतिि
करना तक व्यतक्तयों के साथ सम्मानपिू भक व्यिहार तकया जाए और उन्हें तनष्पक्ष सनु िाई िक
पहुचं प्राप्त हो।
राजनीतिक न्याय- सत्ता का उतचि तििरण, राजनीतिक भािीदारी िक पहुचं , और समाज
के भीिर प्रातधकार के पदों पर बैठे लोिों की जिाबदेही।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 199
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
इकाई-13 : लोकिंर का अथश, पतरभाषा एिं औतचत्य
इकाई की संरचना
13.0 प्रस्िािना
13.1 उददेश्य
13.2 लोकिन्त्र
13.3 लोकिन्त्र का अथभ एिं पररभाषा
13.3.1 लोकिंत्र का व्यापक अथभ
13.4 लोकिंत्र का दाशभतनक आधार
13.5 लोकित्रं के प्रकार
13.6 लोकिंत्र की तिशेषिाएं
13.7 लोकिंत्र के िणु
13.8 लोकित्रं के दोष
13.9 लोकिंत्र का औतचत्य
13.10 साराशं
13.11 शब्दािली
13.12 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
13.13 सदं भभ ग्रन्थ सचू ी
13.14 सहायक/उपयोिी पाठ्य सामग्री
13.15 तनबन्धात्मक प्रश्न
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 200
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
13.0 प्रस्तावना
इसके पिू भ की इकाई में हमने न्याय के अथभ इसकी तिशेषिा के साथ ही इसके अन्य तितभन्न पक्षों का
अध्ययन तकया। साथ ही साथ काननू के अथभ और तिशेषिा का अध्ययन तकया और देखा तक ििभमान
समय में न्याय की स्थापना हेिु काननू तकस प्रकार से महत्िपणू भ है। इसके साथ ही साथ जॉन राल्स के
न्याय तसद्वान्ि और उसके तितभन्न रुपों के अध्ययन तकया है ।
इस इकाई में हम लोकिन्त्र के अथभ को समझने का प्रयास करे िें । तजससे हम देखेिें तक इसकी
तिशेषिाएं क्या है। इसके दृतष्टकोण तकिने है और ििभमान समय में यह तकस प्रकार से सिाभतधक उपयक्त
ु
शासन प्रणाली हैं ।
13.1 उददेश्य
इस इकाई के अध्ययन के उपरान्ि आप समझ सके िें तक-
1 लोकिन्त्र के अथभ को समझ सकें िे।
2.लोकिन्त्र में तकस प्रकार शासन जनिा के प्रति उत्तरदायी है समझेंि।े
3. लोकिन्त्र की तिशेषिाओ ं को जानेंिे ।
5.लोकिन्त्र की ििभमान समय में उपयोतििा है जानेंिे।
13.2 लोकतन्त्र
लोकिन्त्र ििभमान यिु की सबसे लोकतप्रय अिधारणा है। सत्ता और जनिा के बीच घतनष्ठ एिं
आत्यतन्िक सम्बन्ध स्थातपि करने िाली एक प्रणाली के रूप में लोकिन्त्र सभी देशों में एक अतनिायभ,
अपररहायभ एिं तनिान्ि िातं छि आिश्यकिा के रूप में है। तिश्व के सभी राष्र चाहे उनकी शासन
पद्धतियां कुछ भी क्यों न हो अपने को लोकिन्त्र की ही संज्ञान देिे हैं। प्रायः प्रत्येक राजनीतिक पद्धति
लोकिातन्त्रक तसद्धान्िों को अपना रही है। सत्ता में जनसहभातििा सतु नतिि करने िाली यह व्यिस्था
सािभजतनक सप्रंभिु ा की द्योिक है। आज मानि शतक्त को अन्मुक्त करने के तलए कोई तिचारिाद इिना
प्रबल नहीं है तजिना तक लोकिन्त्र। िास्िि में अब यह तिचारिाद न रहकर मानि धमभ बना िया है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 201
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
इतिहास के क्रम में तद्विीय तिश्वयद्ध
ु में इटली िथा जमभनी (धरु ी के राष्रों) के पिन के पिाि् तमत्र राष्रों
( अमेररका,तिटेन एिं फ्रांस) की तिजय ने लोकिंत्र को पनु ः प्रतिष्ठा दी जो तक 1920 से 1940 िक
यरू ोप, एतशया िथा अमेररका के कई देशों में अतधनायकिा के फलस्िरूप न ही िई थी। तिश्व में आज
लोकिंत्र काफी सम्मान का पात्र है। तिश्व में चारों ओर लोकिन्त्रात्मक शासन व्यिस्था का ही
बोलबाला है। यह बाि उल्लेखनीय है तक 1949 में यनू ेस्को ने जो अपनी ररपोटभ प्रकातशि की उससे
ज्ञाि होिा है तक तिश्व के अतधकाश ं तिद्वान लोकित्रं को उतचि और आदशभ राजनीतिक और
सामातजक संिठन समझिे हैं ।
प्लेटो से लेकर ििभमान िक राजनीति तिज्ञान में लोकिंत्र ( जनिंत्र अथिा प्रजािंत्र) सिाभतधक चतचभि
तिषय रहा है। ििभमान समय को साधरण आदमी का यिु माना जािा है, जो लोकिंत्र का एक अत्यन्ि
उपयोिी अियि है। लोकित्रं का एक अत्यनि उपयोिी अियि है । लोकित्रं कतिपय शाश्वि
िरीयिाओ,ं पर आधाररि है, तजनको डॉल, डेतिड ईस्टन, हेरॉल्ड लासिेल आतद सभी व्यिहारिादी
राजनेिाओ ं ने परम मल्ू य के रूप में अपनाया । िे आनभु ातिक, सन्दभभ में इसके लिािार सत्यापन के
पक्ष में हैं, तकनिु समानिाओ ं के होिे हुए भी, पैराक्लीज के एथेन्स िथा टॉमस जकरसन और एण्रयू
जैम्सन के प्रजािंत्र से आज का प्रजािंत्र तनिानि तभन्न है। इनको एक दसू रे का पयाभयिाची समझना
अनतु चि है। ििभमान समय का प्रजाित्रं राज्य प्रधान है । और इसमें अनेक तमतश्रि तिचारधाराओ ं काह
समािेश है जैसे राष्रीय प्रजािन्त्र, समाजिादी प्रजािन्त्र, जनिादी प्रजािन्त्र, मल ू भिु या पचांयि
प्रजािन्त्र आतद। प्रजािन्त्र के ऐतिहातसक िथा शास्त्रीय स्िरूप में ििभमान यिु के सन्दभभ में पयाभप्त
पररििभन हो जाने से अनेक राजतनतिशातस्त्रयों ने नये नाम सझु ाये है। राबटभ ए0 डहल उसे लोकतप्रय
शासन या बहुिन्त्र कहा है िो लोिेस्टीन ने पोलोक्रेसी कहना उतचि समझा है। अन्य तिद्वानों ने उसे
दलीय िन्त्रं, जनिन्त्र, तनिाभतचि बहुमि, लोकिन्त्र आतद नामों से पक ु ारा है। तहन्दी भाषा मे जनिन्त्र
आतथभक प्रजािन्त्र के तलए िथा लोकिन्त्र राजतनतिक प्रजािन्त्र के तलए प्रयोि तकया जािा है। इन
तितभन्न नामों के प्रयोि से प्रजािन्त्र के स्िरूप में अतनियात्मकिा , अस्पष्टिा ,श्रातन्ि आतद िैचाररक
कतठनाइयाँ पैदा हो ियी है। इसके साथ ही पतिमी ओर अमेररकी प्रजािनत्र में यह एक जीिन-प्रणाली
बनकर राज्यव्यिस्थाओ ं में समा िया है। सारटोरी ने इस अिसान के कारण ििभमान अिस्था को
प्रजािन्त्रात्मक श्रातन्ि का यिु कहा है
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 202
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
प्रजािन्त्रसे अतभप्राय है जनिा का शासन कुछ लोि इसे लोकिन्त्र, कुछ प्रजािंत्र से और कुछ जनिंत्र
के ना मसे पक ु ारिे हैं। साधारणिया लोकिंत्र से अतभप्राय उस शासन व्यिस्था से है तजसमें जनिा
शासन करिी है, िही सरकार का तनमाभण करिी है, शासन का सच ं ालन करिी है िथा सरकार के प्रति
उत्तरदायी भी होिी है। शासन की सत्ता जनिा के हाथों में रहिी है, तजसका प्रयोि िह या िो स्ियं
करिी है या अपने प्रतितनतधयों द्वारा करािी है। महात्मा िाँधी के शब्दों में लोकिंत्र िह कला एिं
तिज्ञान है। तजसके अन्ििभि जनसाधारण के तितभन्न ििों के भौतिक, आतथभक एिं आध्यातत्मक
संसाधनों को सभी के समान तहि की तसतद्ध के तलए तनयोतजि तकया जािा है। इसी संदभभ में जिाहर
लाल नेहरू का दृतष्टकोण है तक लोकित्रं का आशय सतहश्णिु ा है, न के िल उन लोिों के प्रति तजनसे
सहमति हो िरन् उनके प्रति भी तजनसे असहमति हो।
लोकित्रं की तिद्धानों ने अनेक प्रकार से पररभाषाएं की हैं-
1. प्राचीन यिु में यनू ानी लोि लोकित्रं को बहुरक्षकों का शासन मानिे थे। प्रतसद्ध ग्रीक दाशभतनक
तहरोडोटस के अनसु ार- “लोकिंत्र उस शासन व्यिस्था का नाम है, तजसमें राज्य की सिोच्च सत्ता
सम्पणू भ जनिा के हाथों में तनिास करिी है।“
2. सीले के शब्दों में “प्रजािंत्र िह शासन है तजसमें प्रत्येक व्यतक्त का एक भाि होिा है।“
3. डायसी के अनसु ार-“ प्रजािंत्र िह शासन का स्िरूप है तजसमें शासन प्रबन्ध करने िाली संस्था
समचू े राष्र का एक अप्रेक्षाकृ ि बड़ा भाि होिी है।“
4.लेतिस का मि है तक-“िस्िुिः प्रजािंत्र िह सरकार में है, तजसमें सम्पणू भ राष्र की बहुसंख्यक जनिा
सप्रभश
ू तक्त के प्रयोि में तहस्सा लेिी है।“
5. हॉल के अनसु ार-“ प्रजाित्रं राजनीतिक सिं ठन का िह स्िरूप है तजसमें जनमि का तनयत्रण रहिा
है।“
6. आशीिाभदम के शब्दों में “ हमारा तिश्वास है तक प्रजािंत्र मानििा के प्रति हमारे उत्साह की
व्यािहाररक अतभव्यतक्त है।“
7. ऑतस्टन के अनसु ार-“ प्रजािंत्र िह शासन है तजसमें शासन की अंतिम शतक्त जनिा के अतधकांश
भाि को प्राप्त होिी है।“
8.अिाहम तलक ं न के अनसु ार-“ लोकित्रं जनिा का जनिा के द्वारा और जनिा के तलए (स्थातपि)
शासन प्रणाली है।“
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 203
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
उपयभक्त
ु पररभाषाओ ं में सिाभतधक लोकतप्रय ि मान्य पररभाषा अिाहम तलंकन की है, तजसे
उन्होने िोटसबिभ के भाषण में कहा था। लोकसंत्र की तितिध पररभाषाओ ं का मूल अतभप्राय यह है तक
लोकित्रं ीय प्रणाली में शासन या सत्ता का अतं िम सत्रू जनसाधारण के हाथों में रहिा है िातक
सािभजतनक नीति जनिा की इच्छा के अनुसार और जनिा के तहि साधन के उद्देश्य से बनाई जाए
और कायाभतन्िि की जाय ।
13.3.1 लोकिांत्र का व्यापक अथग
लोकित्रं बहुआयामी अथभ तलए हुए है। यह मात्र शासन-व्यिस्था अथिा सरकार का एक रूप मात्र
नहीं है, अतपिु यह समाज और आतथभक व्यिस्था का भी एक प्रमख ु रूप है। हनभशॉ के शब्दों में
“प्रजािंत्र के िल सरकार का स्िरूप नहीं है, बतल्क राज्य और समाज का भी स्िरूप है।“तितडंग्स ने
इस सन्दभभ में कहा-“प्रजािंत्र के िल शासन का ही नाम नही है, िरन् राज्य का भी एक रूप है िथा
समाज के रूप का भी एक नाम है या तफर िीनों का सतम्मश्रण है।“ प्रजाित्रं के नैतिक स्िरूप का िणभन
करिे हुए डा0 बेनीप्रसाद ने कहा है तक -“लोकिंत्र जीिन का एक ढंि है। यह इस मान्यिा पर आधाररि
है तक प्रत्येक व्यतक्त के सख
ु का महत्ि उिना ही है तजिना अन्य तकसी के सख ु का साधन मात्र नहीं
समझा जा सकिा। “मैक्सी ने लोकिंत्र का व्यपक अथभ करिे हुए तलखा है-“बीसिीं सदी में लोकिंत्र
से िात्पयभ एक राजनीतिक तनयम, शासन की तितध ि समाज के ढांचे से ही नहीं है, िरन् यह जीिन के
उस मािभ की खोज है तजसमें मनष्ु यों की स्िित्रं एिं ऐतच्छक बतु द्ध के आधार पर उनमें अनरू
ु पिा और
एकी करण लाया जा सके ।“
इस व्यापक पररप्रेक्ष्य में लोकिंत्र के तितभन्न रूप पररलतक्षि होिे हैं-
1. लोकित्रां का राजनीतिक स्िरूप-लोकित्रं का प्रत्यक्ष सम्बन्ध शासन-प्रणाली से होिा है। इस
अथभ में लोकिंत्र सरकार का िह संिठन है जो तक जनिा के द्वारा तनतमभि तनयंतन्त्रि एिं संचातलि होिा
है। िास्िि में लोकित्रं में शासन की सत्ता की बािडोर जनिा में ही तनतहि होिी है। जनिा अपनी सत्ता
का प्रयोि स्ियं या अपने प्रतितनतधयों द्वारा करिी है। शासन व्यिस्था पर अंतिम अतधकार एिं तनणभय
जनिा का ही होिा है शासन शातसिों का तहि समान ही होिा है। लोकिंत्र के राजनीतिक स्िरूप का
अथभ यही है तक राज्य के प्रत्येक ियस्क स्त्री एिं पुरूष को मिदान का अतधकार प्राप्त हो। प्रत्येक व्यतक्त
को शासन की तनंदा करने का अतधकार हो िथा समाचार पत्र एिं प्रेस की भतू मका स्ििंत्र एिं तनष्पक्ष
हो। जनिा ि सत्ता के मध्य सम्बन्ध समन्िय पणू भ होने चातहए ।
2.लोकिांत्र का सामातजक स्िरूप- लोकिांतत्रक समाज समिा में फलिा एिं फूलिा है। समानिा
की भािना ही लाकिातं त्रक समाज की एक तितशष्ट तिशेषिा होिी है। यह तसद्धान्ि
जन्म,जाति,िणभ,चररत्र िथा योग्यिा इत्यातद के भेदों से परे प्रत्येक मनष्ु य के समान नैतिक िणु और
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 204
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आतत्मक िौरि पर बल देिा हुआ समाज में सामातजक िथा सांस्कृ तिक समानिा की स्थापना करिा
है। यह समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने व्यतक्तत्ि के तिकास अिसर उपलब्ध करािा है। इस प्रकार,
तजस समाज में तिचारों,अतधकारों,भािानाओ ं और आदेशों की समानिा होिी है। उसे ही लोकिातं त्रक
समाज कहा जा सकिा है।
क्रोतजयर के कथनानसु ार “मनष्ु य की भौतिक एिं सामातजक दशाओ ं की समानिा लोकिंत्र का सार
है। “ आशीिादभम के शब्दों में- “प्रजािांतन्त्रक समाज िह है, तजसमें समानिा िथा भ्रािृत्ि की भािना
सम्भििा ििभमान रहिी है। “ अिः सामातजक दृतष्ट से लोकित्रं का अथभ सामातजक समानिा के रूप
में जाना जािा है।
3. लोकिांत्र का नैतिक स्िरूप- लोकिंत्र का स्िरूप नैतिक भी है। यह स्िरूप एक आदशभ एिं
आध्यातत्मक जीिन की कल्पना करिा है, तजसके अन्ििभि घृणा, स्िाथभ, द्वेष, ईष्याभ इत्यातद बरु ी
प्रिृतत्तयों का नाम नही रहना चातहए। मनष्ु यों में प्रेम, देश-प्रेम, सहयोि, भ्रािृत्ि इत्यातद िणु ों की िृतद्ध
करके नािररकों में नैतिकिा का तिकास होना चातहए। लोकिंत्र की सफलिा के तलए राष्रीय एकिा
िथा लोिों में उच्च नैिक मल्ू यों के प्रति तनष्ठा तनिान्ि जरूरी है। प्रजािंत्र के नैतिक स्िरूप का िणभन
करिे हुए जैकरसन ने तलखा है “प्रजािंत्र शासन इस तिश्वास पर आधाररि है तक अतधकांश जनिा
स्िशासन की योग्यिा रखिी है िथा साधारण व्यतक्त के अन्दर भी इिनी योग्यिा होिी है तक िह ऐसे
शासकों का तनिाभचन करे , जो सामातजक तहि को दृतष्ट में रखकर कायभ करे ।
4. लोकिांत्र का आतथगक स्िरूप-आतथभक स्िरूप से आशय है आतथभक समानिा से है। आतथभक
स्ििंत्रिा और समानिा ही िास्ितिक प्रजािंत्र का आधार मानी जािी है। भख ू े व्यतक्त के तलए लोकिंत्र
का कोई महत्ि नहीं हो सकिा। इस कारण आतथभक लोकिंत्र की स्थापना आिश्यक है। आतथभक
लोकित्रं से आशय है ऐसी व्यिस्था से होिा है तजसमें प्रत्येक व्यतक्त को अपनी भौतिक सास्ं कृ तिक
आिश्यकिाओ ं की पतू िभ के तलए उतचि साधन उपलब्ध हो और जहाँ पर तकसी का शोषण न तकया
जाये। यह कहा भी जािा है तक आतथभक समानिा के अभाि में राजनीतिक लोकंत्र सामान्य मनष्ु यों को
अपनी इच्छाओ ं की पूणभिा में सहायिा नहीं दे सकिा। राजनीतिक शतक्त आतथभक शतक्त की दासी है।
अिः आिश्यकिा इस बाि की है तक समाज में धन का तििरण इस िरह होना चातहए तक अतधक से
अतधक व्यतक्त उसका उपभोि कर सकें और सभी लोिों को भोजन, िस्त्र, तशक्षा आतद की पयाभप्त
सतु िधाएं प्राप्त हो। सच्चे अथों में लोकिंत्र की स्थापना िभी सम्भि है।
5. जीिन का एक रूप-लोकिंत्र जीिन का एक रूप भी है। यह जीिन के प्रति एक तिशेष दृतष्टकोण
अपनािा है। इसके अन्ििभि प्रत्येक व्यतक्त का सम्मान होिा है िथा उसकी आन्िररक नैतिक एिं
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 205
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आध्यातत्मक क्षमिा का तिकास तकया जािा है। तजससे व्यतक्त की िररमा में बढ़ोिरी होिी है और
उसका नैतिक स्िर ऊपर उठिा है।
उपभयक्त
ु तितभन्न व्यापक दृतष्टकोणों से यह पूणभिः स्पष्ट है तक लोकिंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली और
सामातजक व्यिस्था का तसद्वान्ि है तजसकी एक तिशेष प्रकार की मनोिृतत्त होिी है और तजसका एक
आतथभक आधार होिा है और तजसमें सामातजक, राजनीतिक और दैतनक व्यिहार के सारे सांस्कृ तिक
मापदडं तनतहि होिे हैं। संक्षेप में लोकिंत्र एक तिशेष प्रकार का शासन है सामातजक व्यिस्था का एक
तसद्वान्ि है, एक तिशेष प्रकार की मनोिृतत्त है। इसका सही अथभ अपने कत्तभव्यों का उतचि तनिभहन है।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 206
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13.6 लोकतांत्र की तवशेषताए
1. लोकित्रं में मिदािाओ ं द्वारा प्रतितनतधयों को चनु ने के तलए तनयतमि चनु ाि करिाए जािे हैं
।
2. लोकिंत्र समानिा के तसध्दांि पर आधाररि है ।
3. बतु द्धमान और प्रबद्ध ु नािररक लोकित्रं की आिश्यकिा है । क्यतंू क सरकार का चयन , उस
पर तनयंत्रण आलोचना और उसे हटाना सभी कायभ नािररकों द्वारा होने होिे हैं । यह सभी कम
िभी अच्छी से संपन्न हो सकिे है जब लोि पढ़े तलखे ि समझदार हों ।
4. अच्छा नेिा लोकिंत्र के तलए उसी िरह जरुरी है जैसे मनष्ु य के तलए तदमाि । सरकार की
िणु ित्ता नेिा के ईमानदार, मजबिू ि शतक्तशाली होने पर ही बढिी है ।
5. एक स्िित्रं , भयमक्त ु और स्पष्ट प्रेस लोकित्रं को मजबिू करिी है ।
6. शतक्तशाली सत्ताधारी पाटी के साथ-साथ एक सशक्त तिपक्ष भी लोकिंत्र के तलए आिश्यक
है । तिपक्ष सरकार को उिरदायी बनिा है और िानाशाही को तनयंतत्रि करिा है ।
7. स्थानीय स्िशासन लोकित्रं के तलए नीिं का कम करिा है ।
8. संिैधातनक सरकार लोकिंत्र के तलए जरुरी है ।
9. स्िित्रं एिं तनष्पक्ष न्यायपातलका भी लोकित्रं के तलए आिश्यक है ।
10. लोकिंत्र की प्रस्ितु ि में सबसे महत्िपरु ित्ि लोिों की भािना है ।
11. लोकिंत्र में काननू का शासन (rule of law) चलिा है ।
12. लोकित्रं में जनिा को अतभव्यतक्त की स्िित्रं िा प्राप्त होिी है ।
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ु तिश्वतिद्यालय 207
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2. लोकिंत्र एक प्रकार से भीड का शासन है ।
3. लोकिंत्र में दलीय व्यिस्था के दष्ु प्रभाि रहिे है ।
4. लोकित्रं में अयोग्य व्यतक्त भी शासक बन सकिा है ।
5. जनिा के शासन के स्थान पर कुछ लोिों का शासन होिा है ।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 208
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लोकिांतत्रक देश में इसी प्रकार जनतशक्षा का तिकास होिा है। ऐसे नािररक एक दसु रे के तिचारों के
प्रति उदार ि सहनशील बनिे हैं. जनसाधारण का राष्रीय चररत्र नैतिक रूप से और मजबूि होिा है।
अभ्यास प्रश्न-
1.यनू ानी शब्द डेमोस का अथभ क्या है?
2.लोकिन्त्र जनिा का जनिा के द्वारा और जनिा के तलए स्थातपि शाषन हैं।
3.लोकिन्त्र जीिन जीने का ढिं हैं। तकसने कहा हैं?
4. लोकिंत्र के प्रकार तकिने हैं?
5.यनू ान के तकस निर में प्रत्यक्ष लोकिंत्र तिद्यमान था?
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 209
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समहू के हाथों जो भेदभाि, भले ही काल्पतनक हो या िास्ितिक झेलना पड़िा है। और इससे लोकिंत्र
में इनकी आस्था कमजोर हो जािी है।
दसू रे अतधकांश देश आतथभक रूप से बहुि तपछड़े हैं तजसके कारण सरकार से तिकास की अपेक्षा
ज्यादा रहिी है। कई देशों में एक दलीय व्यिस्था है या कम से कम एक दल का प्रभत्ु ि है। प्रभािशाली
दल, स्िाधीनिा संघषभ में कुबाभतनयों या प्रभािशाली नेित्ृ ि के सहारे आधतु नकिा और तिकास के नाम
पर अपना औतचत्य तसद्ध करिा है। िीसरे , इन देशों में उदारिादी लोकिंत्रों की िल ु ना में, आतथभक
और सामातजक ितितितधयों में शासन का हस्िक्षेप बहुि अतधक होिा है। अथभव्यिस्था के तनयमन में
शासन की अपेक्षाकृ ि अतधक दखलंदाजी आतथभक तिसंितियों को दरू करने के तलए जरूरी है। ये
तिसंितियां औपतनिेतशक शासन की देन है।
13.11 साराांश
इस इकाई में हमने लोकिंत्र के अथभ ,तिशेषिाएं इसके ओतचत्य का अध्ययन तकया है . ििभमान यिु
को लोकिंत्र का यिु माना जािा है। तकन्िु आज लोकिंत्र चारों ओर से चनु ौतियों का सामना करना
पड़ रहा है। स्पष्ट होिा है तक जो पररतस्थतियां लोकित्रं ात्मक प्रणाली के मजबिू ी में सहायक है िो नहीं
तमल पाने के कारण लोकिंत्र के मल्ू यों सरु तक्षि रखने और उन्हें व्यिहार में प्रत्येक मनष्ु य के तलए
अथभपणू भ बनाने में अनेक कतठनाई का सामना करना पड़ रहा है। अिः लोकिांतत्रक समाज में इन
जतटलिाओ ं के कारण लोकिंत्र की सफलिा की आिश्यक शिों को सिभमान्य ढंि से लािू करना
सम्भि नहीं ।
13.12 शब्दावली
डेमोस -- जनिा
प्रतितनतधयात्मक लोकिंत्र- इस लोकित्रं में प्रतितनतधयों द्वारा शासन तकया जािा है जो व्यस्क
मिातधकार के द्वारा चनु े िये होिे हैं ।
काननू का शासन – इसके अंििभि राज्य का प्रत्येक व्यतक्त तितध के अधीन है और काननू का पालन
करिा ।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 210
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13.13 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. जनिा 2 . अिाहम तलंकन 3 . बेनी प्रसाद 6. दो 7. एथेंस
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 211
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14.0 प्रस्तावना
प्राचीन समय से अतभ िक तितभन्न प्रकार की शासन व्यिस्थाएं रहीं है तजससे मानि का राजनीतिक
तिकास हुआ है । इसमें राजिन्त्र, कुलीनिंत्र, अतधनायकिंत्र ,लोकिंत्र आतद रहे हैं आधतु नक यिु में
लोकिंत्र महत्िपूणभ शासन व्यिस्था है । लोकिंत्र की अिधारणाओ ं के अंििभि लोकिंत्र के लक्ष्य,
उदेदश्े य और प्रतक्रया का तिश्ले षण करिे हुए अलि-अलि दृष्टीकोण से लोकित्रं की साथभकिा पर
तिचार तकया िया है । तजनका अध्ययन हम इस इकाई में करें िे।
14.1 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के उपरान्ि आप समझ सके िें तक-
1 लोकिन्त्र की तितभन्न अिधारणाएं कौन-कौन सी हैं।
2 इन अिधारणाओ ं के लक्षण ि तिशेषिाओ ं को जान सकें िे ।
3 लोकिंत्र के तितशष्ट ििभिादी तसध्दांि पर तितभन्न तिचारकों के मिों का जन पाएंिे ।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 213
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सांस्कृ तिक िातक धातमभक आन्दोलनों ने व्यतक्त के मल्ू य को सिोच्च मानिे हुए व्यतक्त को ही अपने
तचंिन का के न्र-तबन्दु स्िीकार तकया। हॉब्स (1588-1079) ने इसी आधार पर 17िी0 शिाब्दी में
लोकित्रं के महत्िपणू भ तनयम को स्पषअ् तकया। हॉब्स ने कहा तक राज्य सरकार िथा अन्य मानिीय
संस्थाएं व्यतक्तयों के आपसी समझौिे के पररणाम स्िरूप उत्पन्न हुई है। इस समय अंग्रेज तिचारक
जान लाक (1032-1704) ने इग्लैण्ड की िौरि क्रांति (1088) के अिसर पर यह तिचार व्यक्त तकया
तक मनष्ु य के कुछ प्राकृ तिक अतधकार होिे हैं तजनहे उनसे कोई नहीं छीन सकिा; इनमें ’जीिन’
स्ििंत्रिा और सम्पतत्त के अतधकारों के तसद्वान्ि के आधार पर सरकार के तखलाफ बिािि को उतचि
ठहरा कर सीतमि सरकार के लोकिांतत्रक तसद्वान्ि को स्थातपि तकया ।
अठारहिीं शिाब्दी में व्यतक्त के अतधकारों और स्ििंत्रिाओ ं को संरक्षण रखने के तलए िथा सरकार
को तनरंकुश होने से बचाने के तलए माटं ेस्क्ययू ने शतक्तयों के पृथकरण का तसद्वान्ि तदया। रूसों ने
लोकिंत्र की आत्मा के स्िरूप में ’सामान्य इच्छा’ का तसद्वान्ि प्रतिपातदि तकया। रूसों ने जनिा द्वारा
राजनीति में प्रत्यक्ष तहस्सा लेने को लोकित्रं की मख्ु य तिशेषिा माना । मैबले, तददरों
,हैलतितशयस,होलबैक तिद्वानों ने व्यतक्तयों की ’जन्मतसद्ध समानिा’ के तिचार को प्रतिपातदि करके
लोकिंत्र को एक ओर निीन आधार-स्िम्भ प्रदान तकया। अमेररका (1776) िथा फ्रांस (1789) की
क्रातन्ियों ने राजनीतिक क्षेत्र में क्रातन्ि के माध्यम से लोकित्रं को व्यिाहाररक रूप देने की तदशा में
महत्िपूणभ कायभ तकया ।अमेररका के क्रातन्िकाररयों जेकरसन, मेडीसन के प्रयासों से अमेररकी संतिधान
उदारिादी लोकिंत्र के राजनीतिक घोषणापत्र के रूप में उभरकार सामने आया। आतथभक स्िर पर एडम
तस्मथ, ररकाडो, माल्थस जैसे अथभशातस्त्रयों ने राज्य के हस्िक्षेप को अस्िीकार करिे हुए सीतमि
सरकार के तिचार को आतथभक आधार प्रदान तकया। सबके साथ ही धातमभक क्षेत्रों में राज्य की
दखलदं ाजी को भी उदारिादी लेखकों ने तिरोध तकया और इस प्रकार धमभतनरपेक्ष राज्य की अिधारणा
तिकतसि हुई।
19िीं0 शिाब्दी में बेंथम,जेम्स तमल, जे0एस0 तमल ने उपयोतििािादी दाशभतनकों ने ’अतधकिम
व्यतक्तयों का अतधकिम सुख के आधार पर लोकिंत्र का समथभन तकया। इस पररपेक्ष्य में सिभप्रथम
बेथम ने प्रतितनधी सरकार िथा ियस्क मिातधकार के तचारों को पेश तकया। बेथम ने िपु ि मिदान,
संसद की अितध एक साल प्रेस िथा तिचारों की अतभव्यतक्त की स्ििंत्रिा,मिदान को कारिर बनाने
के तलए तशक्षा के महत्ि पर जोर तदया। बेथम ने लोकिंत्र को एक उपयक्तु शासन व्यिस्था,काननू
व्यिस्था, समाज में बनाये रखने के तलए एकमात्र शासन तितध बिाया। मेकरसन के शब्दों में इन्होने
रक्षात्मक लोकिंत्र की आधारतशला रखी।
उत्तराखंड मक्त
ु तिश्वतिद्यालय 214
राजनीति तिज्ञान की बतु नयादी अिधारणाएं BAPS(N)120
जे0एस0 तमल ने लोकिंत्र के नैतिक पहलू की ओर ध्यान के तन्रि तकया साथ ही लोकिंत्र को मानिीय
तिकास का एकमात्र साधन माना। तमल ने मिदान की शतक्त को के िल शातसिों को तनयतन्त्रि करने
की ही शतक्त नहीं माना। उनहोने इस शतक्त को जनिा के राजनीति में तहस्सा तलए जाने का उतचि
माध्यम माना। उनका दृढ़ तिश्वास था तक अतधकार एिं स्ििंत्रिा के माध्यम से जनिा दातयििों का
अच्छी िरह अनपु ालन करिी है। तमल के तिचारों के आधार पर ही टी.एच. ग्रीन िथा 20िीं शिाब्दी
में तलंजसे, हॉबहाउस, बाकभ र, लास्की, मैकाइिर, डेिी पैनोक आतद ने लोकित्रं के तिकासिादी पक्ष
को मजबिू तकया िथा उक्त तसद्वान्ि को निीन तदशा प्रदान की। इनके प्रयासों से बीसिी सदी में ियस्क
मिातधकार तमला िथा राजनीति में जनिा की भािेदारी उभरकर सामने आय। बीसिीं शिाब्दी में
पंजू ीिादी व्यिस्था की आिश्यकिा यह थी तक राज्य आतथभक क्षेत्र में हस्िक्षेप न करे । इसके पररणाम
स्िरूप पंजू िादी अथभव्यिस्था उदारिादी कल्याणिादी लोकिंत्रीय सरकार में बदल िई।
20िीं0 शिाब्दी में लोकिंत्र उदारिादी तसद्वान्ि के तिकास में लास्की का महत्िपणू भ योिदान है।
लास्की ने जनिा को अतधक से अतधक तशतक्षि िथा योग्य बनाये जाने पर जोर तदया और लोकिन्त्र
के आदशभ एिं सस्ंथाओ ं की तिस्िृि व्याख्या की। राज्य की तनरंकुश प्रभसु त्ता के काननू ी तसद्वान्ि पर
प्रहार करिे हुए उन्होंने सत्ता को तितभन्न समहू ों एिं सस्थाओ ं में तिभातजि करने का बहुलिादी
दृतष्टकोण तदया । लास्की ने सम्पणु भ समाज के आतथभक, समातजक ,नैतिक और सास्ं कृ तिक क्षेत्रों िक
इसके तिस्िार का सझु ाि तदया। उसने लोकिन्त्रीय सरकार को जनिा के आतथभक तहिो को संरक्षक
बनाकर लोकिन्त्र को एक तिस्िृि आकार प्रदान तकया।
इस तसद्वान्ि के अनसु ार लोकिंत्र से आशय मात्र शासन व्यिस्था से न होकर ऐसी शासन तितध से है
तजसके द्वारा नािररक राज्य कायों में अपनी भािेदारी को सतु नतिि करिे हैं अपनी योग्यिाओ ं एिं
सक्षमिाओ ं का अतधकिम तिकास करिे हुए स्िस्थ समाज के तनमाभण की आधारतशला बन सकने
का प्रयास अपने तहिों की पतू िभ के तलए करिे हैं। लोकित्रं का मख्ु य ध्येय व्यतक्त का चहुमख
ु ी तिकास
एिंम् सिभकल्याण करना है। तमल ने इस अथभ को स्पष्ट करिे हुए तलखा है-’’समाज की सभी जरूरिों
को के िल िही सरकार पणू भरूपेण संिष्टु कर सकिी है। तजसमें सभी लोि तहस्सा ले, छोटे-से-छोटे कायभ
में भी जनिा का भाि लेना महत्िपणू भ माना जािा है। प्रत्येक स्थान में जनिा का भाि इिना अतधक
होना चातहए तजिना समाज का सामान्य कल्याण अनमु ति दे ,और इससे अतधक अच्छी बाि कोई
नहीं हो सकिी तक सबको राज्य की सम्प्रभत्तु ा में तहस्सा तमलें । अिः प्रजािन्त्र में राजतनतिक तनणभय
मे जनिा का योिदान को आिश्यक माना िया चाहे िह प्रत्यक्ष हो अथिा अप्रत्यक्ष ।
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14.2.1 उदारिादी लोकिन्त्र का तसद्धाांि
लोकित्रं का उदारिादी तसध्दािं उन तसध्दािं ों पर आधाररि है जो हाब्स, लॉक , बेथमं , रूसो, तमल
जैसे तिचारकों ने तदए थे ।
उदारिादी लोकिन्त्र के तसद्वान्ि को तितभन्न तिद्वानों ने तितभन्न िरह से स्पष्ट करने का प्रयास करिे
हुए उदार लोकिन्त्र के कुछ तितशष्ट लक्षणों पर प्रकाश डाला राबटभ सी0 बोन ने उदार लोकिन्त्र के ,
तलए तनम्ंनातकि लक्षणों को आिश्यक माना -(1) नीति -तनमाभिाओ ं के तनिाभचन में सहभातििा, (2)
भािीनीति-तनमाभिाओ ं के दो या दो से अतघक प्रतियोिी समहू ो में से पसन्द के तिकल्प (3) मिातधकार
की पणू भ समानिाः(4)प्रतितनतधत्ि की अतधकिम एकरूपिा (5)मिदािाओ ं को पसन्द िथा िैद्य
राजनीतिक समहू ों को राजनीतिक ितितितधयों की पणू भ स्ििंत्रिा;(6) तनिाभतचि प्रतितनतधयों द्वारा लम्बे
तिचार-तिमशभ के बाद बहुमि से नीति तनणभयों का तनधाभरण;(7)समय-समय पर तनयतमि सझु ािों के
माध्यम से तनिार् तचि प्रतितनतधयों का मिदािाओ ं के प्रति उत्तरादातयत्ि।
एलेन बाल ने उदारिादी लोकित्रं के तनम्नतलतखि लक्षण बिाये हैं (1) एक से अतधक राजनीतिक
दल होिे हैं। दल राजनीतिक सत्ता के तलए एक-दसू रे से खल ु कर प्रतियोतििा कर सकिे हैं (2) सत्ता के
तलए प्रतियोतििा तछपाि-दरु ाि नही बतल्क खल ु कर होिी है। यह प्रतियोतििा स्थातपि िथा स्िीकृ ि
प्रतियोतििा के आधार पर होिी है। (3) राजनीतिक सत्ता से जड़ु े हुए पदों पर चनु ाि या तनयतु क्तयाँ
अपेक्षाकृ ि खल ु े रूप में होिी हैं। (4) व्यापक मिातधकार पर आधाररि चनु ाि समय-समय पर होिे
रहिे हैं। (5) सरकारी तनणभयों को प्रभातिि करने के तलए प्रभािक िटु ों को कायभ करने का अिसर
तमलिा है। रेड यतू नयनों िथा अन्य संघों पर सरकार का कड़ा तनयंत्रण नहीं होिा है। (6) अतभव्यतक्त
िथा धमभ की स्ििंत्रिा और स्िेच्छाचारी ढंि से बन्दी न बनाए जाने, आतद की नािररक स्ििंत्रिाएं
सरकार द्वारा मान्य होिी हैं और सरकार उनकी रक्षा करिी है।(7) स्िाधीन न्यायपातलका होिी है(8)
टेलीतिजन,रे तडयो, अखबार जेसे जनसमपकभ माध्यमों पर सरकार का एकातध्कार नहीं होिा है। इन्हे
कुछ सीमाओ ं में रहकर सरकार की आलोचना करने की भी स्ििंत्रिा होिी है।
पीटर एच0 मकभ ल ने अपनी पुस्िक ’पॉतलतटकल कण्टीन्यटू ी एण्ड चेन्ज’ में उदार लोकिंत्र के चार
लक्षणों को आधारभिू माना है (1) तिचार-तिमशभ द्वारा शासन (2) बहुमि का शासन (3)
अल्पसंख्याकों के अतधकारों को मान्यिा (4) संतिधातनक सरकार।
लोकिांत्र तिशेषिाए-ां
लोकिंत्र के परमपरािि उदारिादी दृतष्टकोण की तिशेषिाएं तनम्नांतकि हैं-
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(1) व्यतक्त एक राजनीतिक प्राणी है। उसमें तििेक होिा है तजससे िह अपना तहि-अतहि में सोचने
की क्षमिा को रखिा है। इस आधार से सब व्यतक्त समान है।
(2) शासन का संचालन जनिा द्वारा होना चातहए। शासन कायों में जनिा अिश्य भािेदारी ले। इससे
व्यतक्त के व्यतक्तत्ि का तिकास होिा है।
(3) जनिा तनिाभचन प्रणाली के द्वारा चनु ाि में अपने प्रतितनतधयों को चनु कर उनको तनयंितत्रि करिे
हुए शासन के कायों ने तहस्सा ले सकिी है। सरकार का तनमाभण बहुमि द्वारा ही होना चातए िथा जनिा
की इच्छा सरकार की शतक्त का आधार हो।
(4) प्रतितनतधयों को सदेि इस बाि का तिशेष ध्यान रखना चातहए तक राजनीतिक सत्ता जनिा की
अमानि है अिः उसे हमेशा जनतहि िथा सामान्य कल्याण सम्बन्धी तनणभय लेने चातहए।
(5) लोकिंत्र का उदेद् श्य सामान्यतहि का संरक्षण करना एिं व्यतक्त का सिाांिीण तिकास करना होना
चातहए।
(6) लोकित्रं ीय सरकार जनिा के प्रति उत्तरदायी रहे। जनिा का सरकार पर तनयत्रं ण अिश्य स्थातपि
हो।
(7) सरकार सीतमि होनी चातहए।
(8) सरकार का मख्ु य कत्तभव्य जनिा के अतधकारों की रक्षा करना है जनिा को अतधक से अतधक
तशतक्षि होना चातहए िभी िह जािृि रखकर अपने अतधकारों की रक्षा करने में समथभ हो सकिी है।
(9) जनिा को िाद-तििाद, तलखने-बोलने अपने तिचारों की अतभव्यतक्त िथा संितठि होकर काम
करने के अतधकार की स्ििंत्रिा अिश्य होनी चातहए िथा समय-समय पर राज्य के कायो के बारे में
जनिा को सरकार द्वारा अतधक-से अतधक अििि कराया जाना चातहए ।
10. सरकार को जनिा की महत्ता को समझकर जनिा को सरकार द्वारा परू ी इज्जि दी जानी चातहए।
मल्ू याांकन –
अन्य तसद्वान्िों की भांति लोकिन्त्र का यह परम्परािादी ि प्रतितष्ठि तसद्वान्ि भी आलोचनाओ ं से
तघरा हुआ है। सप्ु पीटर ने इस तसद्वान्ि की आलोचना की । सुम्पीटर ने इस सन्दभभ में कहा तक सामान्य
तहि या सामान्य इच्छा का पिा लिा पाना असंम्भि है।’’इस तसद्वान्ि के अन्य दोष तनम्निि है--
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1. राजनीतिक समानिा जैसी कोई िस्िु नही होिी। प्रत्येक समाज में तितशष्ट ििभ का अतस्ित्ि सदैि
मक्त
ु बना रहिा है।
2. राजनीति में जनिा की भािेदारी लोकिन्त्र को सफल नहीं बनािी । बतल्क उसे असफल बना देिी
है तजससे लोकिन्त्र भीड़िन्त्र में पररितिभि हो जािा है।
3. यह तसद्वान्ि लोकिन्त्र में व्यतक्त की भतू मका को महत्िपणू भ मानिा है िथा सम्पणू भ व्यिस्था के
सन्िल
ु न पर ध्यान नहीं देिा।
4. इसे अव्यािहाररक एिं काल्पतनक कहा िया क्योंतक इस तसद्वान्ि की मान्यिा है तक व्यतक्त सरकार
द्वारा नीति-तनधाभरण की जतटल प्रतकयाओ ं मे सतक्रय योिदान कर सकिा है जबतक साधारण व्यतक्त
नीति तनधाभरण जैसी जतटल प्रतक्रया को नहीं समझ सकिा।
5. यह तसद्धान्ि कोरा आदभशिादी तसद्धान्ि है क्योंतक यह जीिन की िास्ितिकिाओ ं पर ध्यान नहीं
देिा है।
इन दोषों के कारण ही लोकिन्त्र के इस तसद्धान्ि को अनेक लेखकों ने सश
ं ोतधि कर तितशष्टििीय
िथा बहुलिादी तसद्धान्िों का तनरूपण तकया है।
14.2.2 लोकिांत्र का बहुलिादी तसद्धान्ि
लोकित्रं का बहुलिादी तसद्धान्ि लोकित्रं के तितशष्ट ििभिादी तसद्धान्ि के साथ तनकटिा से सलं ग्न
है। जोसेफ शम्ु पीटर और रे मोंद आरों जैसे तिचारकों ने उदार समाज में तितशष्ट ििों की बहुलिा की
चचाभ की थी। इस दृतष्ट से उनके तचंिन में लोकिंत्र के बहुलिादी तसद्धान्ि की ओर रूझान का संकेि
तमलिा है।
बीसिीं शिाब्दी के आरम्भ में ही यह स्िीकार तकया जाने लिा था तक राजनीति में व्यतक्त
अके ला नहीं, बतल्क समान तहिों िाली संस्थाओ ं एिं समहू ों के माध्यम से भाि लेिा है। इसके साथ
ही सरकारी तनणभयों में सम्पणू भ समाज के तितभन्न दिाब समहू ों की भतू मका को भी महत्िपणू भ माना
िया। एफ.ए.बेंटली ने ’द प्रॉसेस ऑफ ििनभमेंट(शासन प्रतक्रया) 1908 में यह तिचार व्यक्त तकया तक
लोकिंत्र एक प्रकार का राजनीतिक खेल है तजसमें तभन्न-तभन्न िरह के समहू भाि लेिे हैं। इसके पिाि्
डेतिड टूमैन ने ’द ििनभमेंटल प्रासेस (शासकीय प्रतक्रया)1951 में यह व्याख्या प्रस्ििु की तक
लोकिंत्रीय सरकार सािभजतनक दिाब का के न्र-तबन्दु होिी है, इसका मख्ु य कायभ ऐसी नीतियों का
तनमाभण करना है तजनमे इन समहू ों की सबसे प्रमखु सामान्य माँि की झलक तमलिी है। टूमैन ने इस
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पस्ु िक में बहुलिादी समाजों की राजनीति में तितभन्न िैर-रानीतिक सामातजक-आतथभक समहू ों की
भतू मका को सराहा और इन्हें लोकिंत्र के स्िरूप को बनाए रखने में सहायक माना।
समकालीन राजनीति तसद्धान्ि के अन्ििभि राबभट डॉल ने अपनी पस्ु िक ’ए तप्रफ ं े स टू
डेमोक्रेतटक थ्योरी’ में लोकिंत्रीय प्रतक्रया के ऐसे प्रतिरूप को जन्म तदया है तजसे उसने बहुलिंत्र कहा
है। इस सकंल्पना के अनसु ार लोकिंत्रीय समाज में नीति तनमाभण की प्रतक्रया िाह्य रूप से देखने में चाहे
तकिनी ही के न्रीकृ ि क्यों न प्रिीि हो िास्िि में यह अत्यन्ि तिके न्रीकृ ि प्रतक्रया है। इसके अन्ििभि
अनेक स्िायि समहू आपस में परस्पर समझौिा या सौदेबाजी करिे हैं। अिः सािभजतनक नीति उन सब
समहू ों की परस्पर तक्रया का पररणाम होिी है जो उससे सम्बन्ध रखने िाले तिषय में अतभरूतच का
दािा करिे हैं। इस तसद्धान्ि के अनसु ार नीति-तनमाभण में सरकार की भतू मका बहुि कम रह जािी है।
क्योंतक िह तितभन्न स्िायत्त समहू को के िल सहमति की तस्थति िक पहुचँ ने में सहायिा प्रदान करिी
है।
लोकित्रं के बहुलिादी तसद्धान्ि की एक मख्ु य तिशेषिा यह है तक इस तसद्धान्ि के अनसु ार
राजनीति में तितशष्ट ििभ की भतू मका का महत्ि घट जािा है।
तसद्धान्ि के आधारः- इस तसद्धानि के प्रमख
ु आधार तनम्निि हैं-
(1) इस तसद्धान्ि का पहला आधार यही है तक व्यतक्त रानीति में तहस्सा संस्थाओ ं एिं सिठनों के
माध्यम से लेिा है।
(2) सरकार के तितभन्न अिों व्यिस्थातपका, कायभपातलका एिं न्यायपातलका में सत्ता का तिभाजन
होना चातहए िथा सरकार के प्रत्येक अंि ऐसी तस्थति में होने चातहए तक िह दसू रे पर अंकुश ला सकें ।
(3) लोकित्रं के बहुलिादी तसद्धान्ि का एक आधार यह है तक जन साधारण को राज्य की अिज्ञा का
अनपु ालन करना चातहए क्योंतक राजनीति तनधाभरण में इनकी महत्िपूणभ भतू मका होिी है।
(4) सरकार ि जनिा के मध्य दरू ी को कम करने के तलए तितभन्न जन सिठनों को महत्ि तदया जाना
चातहए।
तसद्धान्ि का मल्ू यांकनः- लोकिंत्र का बहुलिादी तसद्धान्ि लोकिंत्र के परम्परािादी तसद्धान्ि एिं
लोकिंत्र के तितशष्ट ििीय तसद्धान्ि का सतमश्रण है। इन तसद्धान्िों की िल
ु ना में यह तसद्धान्ि अतधक
प्रितिशील एिं आशाजनक हैं। इस तसद्धान्ि की आलोचना तितभन्न आधारों पर की िई है। इसमें
मख्ु य एिं पहला आधार यह है तक यह तसद्धान्ि दिाब की राजनीति को बढ़ािा देिा है तजसके
फलस्िरूप सरकार कमजोर हो रही है क्योंतक सरकार दृढ़ नीतियो को बनाने िथा महत्िपणू भ तनणभय
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लेने में सक्षम नहीं रहिी। अपनी खातमयों को तछापाने के तलए सरकार को तितभन्न दिाब समहू ों के
प्रति समझोंिािादी रिैया अपनाना पड़िा है। दसू रा यह तसद्धान्ि व्यतक्त के नैतिक मूल्यों और
तििेकशील प्रकृ ति को मान्यिा नही देिा िथा व्यतक्त को सिठनों एिं समहू ों के सदस्य के रूप में
मान्यिा देिा है।
14.2.3 मार्कसगिादी दृतिकोण
उदारिादी और माक्सभिादी दृतष्टकोण दोनों ही ’लोकित्रं का समथभश्न करिे हैं। दोनों ही लोकित्रं को
जनिा का शासन मानिे हैं और इस धारणा को स्िीकार करिे हैं तक जनिा को शासन चलाने का
अतधकार तमलना चातहए। तकनिु जब व्यिहार के धरािल पर शासन चलाने की बाि आिी है िो दोनों
में मिभेद पाया जािा है। माक्सभिाद के समथभक, लोकिंत्र के तसद्धान्ि या लक्ष्य को प्रमख
ु ध्यान देिे
हैं। इसकी मुख्य िजह यह है तक शासन जनसाधारण के तहि में कायभ करे उसमें जनिा का शोषण न हो
और यह िभी सम्भि हो सकिा है जब समाज धनिान और तनधभन ििों में बटाँ न रहे।
दसू रे शब्दों में, उदारिादी तिचारक लोकित्रं और पजंू ीिाद की सस्ं थाओ ं में कोई तिरोध नही
देखिे हैं। परन्िु माक्सभिादी तिचारक समाज की आतथभक संरचना को सरे सामातजक सम्बन्धों का
आधार मानिे हुए यह िकभ देिे हैं तक जब िक समाज की संरचना लोकिंत्रीय नहीं होिी, िब िक
राजनीतिक स्िर पर लोकित्रं के िल आडंबर बना रहेिा। अिः िे लोकित्रं की साथभकिा के तलए
समाजिाद को अतनिायभ समझिे हैं। िे उदार लोकिंत्र का बजु भिु ा लोकिंत्र की संज्ञा देिे है
लोकित्रं की माक्सभिादी आलोचनाः-(1) उदार लोकिंत्र के िल पजंू ीपति ििभ के तहिों की रक्षा करिा
है। क्योंतक उदार लोकिंत्र की राजनीतिक संस्थाएं पंजू ीिाद की नींि पर तटकी होिी है। पजंू ीिादी
व्यिस्था पजंू ीपति ििभ के तहिों को बढ़ािा देिी है और उसमें कामिारों की तनरन्िर
शोषण होिा है अिः उदार लोकित्रं की राजनीतिक सस्ं थाऐ ं भी पजंू ीपति ििभ के तहिो को बढ़ािा देिी
है। उदार लोकिंत्र ’सबके तहि का साधन का आडम्बर रचाकर के िल पंजू ीपति ििभ का तहि साधन
करने िाली संस्थाओ,ं तनयमों, काननू ों इत्यातद का िैधिा प्रदान करिा है। लोकिंत्र के अन्ििभि आतथभक
शतक्त के साथ-साथ तिचारधारात्मक शतक्त भी पंजू ीपति ििभ के हाथ में होिी है। अिः कामिर ििभ के
शोषण को रोकने का कोई उपाय नहीं रह जािा।
(2) उदार लोकिंत्र समाज के ििभ तिभाजन को स्थातयत्ि प्रदान करिा है क्योंतक जब समाज ’धनिान’
और ’तनधभन’ ििों में बटाँ रहिा है िो उदार लोकिंत्र इस आतथभक तिभाजन को स्थातयत्ि प्रदान करने
के तलए ित्पर रहिा है। िह बजु िु ाभ समाज के उन मल्ू यों को बढ़ािा देिा है जो समाज के आतथभक
तिभाजन को बैधिा और मान्यिा प्रदान करिे है, लेतनन ने तलखा है ’’पंजू ीिादी समाज का लोकिंत्र
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मठ्ठु ी-भर लोिों का लोकिंत्र है, यह धनिान लोिों का लोकिंत्र है, माक्सभ ने पँजीिादी लोकिंत्र के
सार-ित्ि को बहुि अच्छी िरह समझा है क्योंतक उसने तलखा है तक इसमें शोतषि ििों को कुद िषों
के अिरं ाल से यह तनणभय करने की अनमु ति दी जािी है तक शोषक ििों के कौन-कौन से प्रतितनतध
संसद में जाकर उनका प्रतितनतधत्ि और दमन करें िें।
अिः माक्सभिाद के अनसु ार उदार लोकिंत्र की संस्थाएं ििभ-शोषण की परंम्परा को िोड़ने में असमथभ
है इसके तिपरीि यह ऐसा साधन है जो शोषक ििभ को तनरन्िर सिारूढ़ रखने में सहायिा देिा है िातक
िह लिािार अपनी स्िाथभपतू िभ करिा है।
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1.मैंन्हाइम के तिचार
कालभ मैंन्हाइम ने अपनी तिख्याि कृ ति ’आइतडयोलोजी एडं यटू ेतपयाः इन इटं ोडक्शन टू द सोश्योलाजी
ऑफ नॉतलज” तिचारधारा और कल्पनालोक ,ज्ञान के समाज तिज्ञान का पररचय 1929 में यह तलखाः
लोकिन्त्रीय व्यिस्था में जब समाज नीति-तनमाभणका कायभ तितशष्ट ििभ को सौप देिा है िो इस प्रकार
का लोकिन्त्रशन्ू य हो जािा है। जनसाधारण एक तनतिि अन्िराल के पिाि िोट डालकर अपनी
आकाक्षाओ ं को प्रकट कर देिे है। अपने मिातधकार के बल पर िे नेिाओ ं को बहुमि के तहि में तनणभय
करने के तलए बाहय कर सकिे है। तितशष्टििभ के शासन और लोकिन्त्रीय शासन के मध्य सामजं स्य
स्थातपि के करने के तलए मैन्हाइम ने सझु ाि तदया है तक नेिाओ ं का चनु ाि योग्यिा के आधार पर ही
होना चातहए िथा तितशष्टििभ और जनसाधारण के मध्य दरू ी कम की जानी चातहए।
2. जोसेि ए0 शूग्पीटर के तिचार
जोसेफ ए0 शम्ु पीटर ने अपनी प्रतसद्ध कृ ति ’’कै तपटतलज्म सोशतलज्म एंण्ड डेमोक्रेसी” ( पंजू ीिाद,
समाजिाद और लोकिन्त्र) 1942 के अन्ििभि यह िकभ प्रस्ििु तकया तक तकसी भी शासन पद्धति की
पहचान उसकी संस्थाओ ं से होिी है तजसमें यह देखा जािा है िथा उन्हें अपने पद से कै से हटाया जािा
है। इस दृतष्ट से लोकिन्त्रीय प्रणाली अन्य शासन प्रणातलयों से अपनी अलि पहचान बनािी है। यह
बाि एक कटु सत्य है तक लोकिन्त्र में राजनीतिक तनणभय ‘नेिाओ ं के द्धारा तकये जािे है, जनसाधारण
के द्वारा नहीं तकए जािे है परन्िु जनसाधारण से िोट प्रात्त करने के तलए िहां नेिाओ ं में खल ु ी
प्रतियोतििा होिी है। अिः अन्य शासन प्रणातलयों की अप्रेक्षा लोकिन्त्र की तिशेषिा यह है तक इसमें
राजनीतिकनेिा असीम सत्ता का प्रयोि नहीं कर सकिे । इसके तिपरीि, यहां नेिा राजनीतिक बाजार
में अतधकातधक ग्राहकों को आकतषभि करने के तलए अतधक से अतधक आकषभक नीतियों एंि
कायभक्रमों को पेश करने की चेष्टा करिे है। इस िरह लोकिन्त्र में जनसाधारण को अपनी पसन्द की
नीतिया एिंम कायभक्रम को चनु ने का अिसर प्राप्त हो जािा है। अन्य शासन प्रणातलयों में यह सम्भि
नहीं है।
3.रेमण्ड आरों का तिचार
रे मण्ड आरो ने अपनी पस्ु िक ’’सोशल स्टक्चर एंड द रूतलि क्लास’’ समातजक संरचना और अन्य
शासक-ििभ 1950के अन्ििभि यह िकभ प्रस्ििु तकया तक लोकिन्त्र और शासन –पद्धतिओ के तितशष्ट
ििो के मूलभिु अन्िर देखने को तमलिा है। सोतियि प्रणाली और लोकिन्त्र मैं अन्िर करिे हुए आरों
ने तलखा है तक जहां सोतियि िरह के समाज मे एक ही तितशष्ट ििभ को शासन में एकातधकार प्राप्त
होिा है’ उदार लोकिन्त्रमे इस प्रकार का नहीं होिा यहा तितशष्ट ििभ की बहुलिा िथा शासन में
तनयन्त्रण एिं संन्िल
ु न की ऐसी व्यिस्था पाई जािी हे तजसमें यहाँ असीम सत्ता का प्रयोि सभि नहीं
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होिा । उदार लोकिन्त्र में सम्पूणभ शासन लोिों के सुलह-समझौिे के आधार पर चलिा है और शासक
सदैि यह महससू करिे रहिे है जब िक िे जनमि का आदर करिे रहेिे तक जब िक िे जनमि के
प्रति सिं ेदनशील रहेंिे, और जब िक िे जनिा के तदल से जिह बना सकें िे। िभी िक िे सत्ता में रह
सके िे। अन्यथा कोई दसू रा तितशष्ट ििभ उनका स्थान सभालने के तलए तनरन्िर ित्पर रहिा है।
4.सारटोरी के तिचार
ज्योिानी सारटोरी ने अपनी चतचभि पस्ु िक ‘डेमोक्रेतटक थ्योरी लोकिन्त्रीय तसद्धान्ि” 1958 के
अन्ििभि यह िकभ तदया तक लोकिन्त्रीय व्यिस्था के अन्ििभि तितशष्ट ििभ महत्िपणू भ भतू मका तनभािे
है। यह तितशष्ट ििभ चनु ाि के क्षे00ने उिरकर परस्पर संघभष करिे है। तितशष्ट ििभ के अतस्ित्ि को
लोकिन्त्र की अपणू भिा कदातप नहीं समझना चातहए। चंतू क जनसाधारण अपने आप शासन चलाने में
असमथभ होिे है इसतलए शासन सचमचु सयु ोग्य नेिाओ ं का कायभ है। अिर व्यतक्तयों को सही नेित्ृ ि
नहीं तमलेिा िो लोकित्रं तिरोधी तितशष्ट ििभ उन्हें पथभ्रष्ट कर देिा। सारटोरी ने लोकित्रं के अन्ििभि
नेिाओ ं की भतू मका को तिशेष महत्ि प्रदान तकया। उसके शबदों में नेिाओ ं को जनसाधारण की तशक्षा
की तजम्मेदारी भी संभालनी चातहए, क्योंतक जनसाधारण स्ियं उिना प्रबद्ध ु नहीं होिे।
लोकिंत्र के तितशष्ट ििीय दृतष्टकोण के लक्षण तनम्नतलतखि हैः-
(1) सरकार ’जनिा के द्वारा’ नहीं हो सकिी,’जनिा के तलए’ हो सकिी है।
(2)लोकिंत्र िह है जहां जनिा के िल चनु ाि के द्वारा अपने तितशष्ट ििभ को चनु िी है।
(3) तबना तितशष्ट ििभ के प्रजािंत्र नहीं हो सकिा, के िल भीड़िंत्र हो सकिा है।
(4) राजनीतिक तनणभय लेने का कायभ के िल तितशष्ट ििभ का है, आम जनिा का नहीं।
तितशष्ट ििीय तसद्धान्ि की तिशेषिाएं-लोकिंत्र की सफलिा के तलए तितशष्ट ििभ में तनम्नांतकि
तिशेषिाएं होनी चातहएः-
1. लोकिातत्रक मल्ू यों िथा लोकिंत्र के खेल में तितशष्ट ििों का तिश्वास एिं आस्था।
2. तितशष्ट ििभ की तनयतु क्त समाज के तितभन्न ििों, में से होनी चातहए।
3. जनिा तितशष्ट ििभ के मामलों में अतधक हस्िक्षेप न करें ।
4. तितशष्ट ििभ को योग्यिा एिं अनभु ि अच्छा होना चातहए।
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5. तितशष्ट ििों की जनिा से अतधक परू ी न हो, बतल्क उनमें आपसी िालमेल िथा तिचारों का आदन-
प्रदान बन रहे।
6. तितशष्ट ििों में सत्ता के तलए प्रतियोतििा हो जो चनु ाि के द्वारा ही व्यक्त हो।
7. तितशष्ट ििभ को तिस्िृि होना चातहए िातक योग्य एिं क्षमिािान,व्यतक्त इसमें प्रिेश पा सके ।
14.3.1तितशि िगीय तसद्धान्ि का मूल्याांकन
लोकित्रं का तितशष्ट ििीय तसद्धान्ि व्यािहाररक रूप में सत्य के नजदीक होने के कारण महत्िपणू भ है।
तकन्िु तफर भी इसके प्रमख ु आलोचक हुए तजनमें डकंन िथा ल्यक्ू स,डेतिस, बाटमोर, िोल्ड
तस्मथ,िाकट, बैकरे क, पैट्समेन, प्लामनाज आतद ने इस तसद्धान्ि की आलोचना तनम्नतलतखि आधार
पर की-
(1) यह तसद्धान्ि अपना तिश्वास जनिा में रखकर नेिाओ ं के तितशष्ट ििभ में रखिा है। तजस कारण यह
लोकिंत्र को जनसाधारण से दरू रखना चाहिा है।
(2) यह तसद्धान्ि रूतढ़िादी है। यह तसद्धान्ि पररििभन का तिरोधी है िथा मौजदू ा व्यिस्था का समथभक
है।
(3) यह तसद्धान्ि, लोकिंत्र का उद्देश्य मानि का तिकास िथा कल्याण न मानकर मानि का उदेद् श्य
लोकित्रं का स्थातयत्ि िथा कायभ-कुशलिा मान लेिा है।
(4) यह तसद्धान्ि लोकित्रं को राजनीतिक व्यिस्था मात्र स्िीकार करिा है िथा इसके महत्िपणू भ पहलू
सामातजक,आतथभक एिं नैतिक को नजर अंदाज कर देिा है।
(5) यह तसद्धान्ि तिचारधारा एिं मल्ू यों को महत्िपणू भ नहीं मानिा।
(6) यह तसद्धान्ि नेिाओ ं को तिशेष महत्ि देिा है िथा सफल लोकिंत्र के तलए अच्छी जनिा को
इिना महत्िपणू भ नहीं मानिा तजिना तक अच्छे नेिाओ ं का।
(7) यह तसद्धान्ि राजनीतिक समानिा का तिरोधी है िथा असमानिाओ ं का मूलभूि मानना है।
(8) तितशष्ट ििभ की उच्च योग्यिा का आधार क्या होना चातहए इस तिषय ने यह तसद्धान्ि पणू भिः
अस्पष्ट है।
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(9) यह तसद्धान्ि जनमि को निण्य मानिा है िथा इस बाि से इनकार करिा है तक जनमि सरकार
को बनािा है। इसके तिपरीि यह सातबि करने की कोतशश करिा है तक सरकार एिं शासक तितशष्ट
ििभ ही जनमि को िैयार करिे हैं।
(10) यह तसद्धान्ि जनिा के प्रति सरकार के उत्तरादातयत्ि को स्िीकार करिा है, क्योंतक
सतक्रय,योग्य,क्षमिािान तितशष्ट ििभ के लोि अयोग्य िथा तनतष्क्रय मिदािाओ ं के प्रति उत्तरदायी कै से
हो सकिे हैं?
अभ्यास प्रश्न-
1- इटली िथा जमभनी तमत्र राष्र थे। सत्य/ असत्य
2-अमेररका तिटेन और फ्रासं धरु ी राष्र थे। सत्य/ असत्य
3-यनू ानी शब्द डेमोस का अथभ क्या है?
4-लोकिन्त्र जनिा का जनिा के द्वारा और जनिा के तलए स्थातपि शाषन हैं।
5-लोकिन्त्र जीिन जीने का ढंि हैं। तकसने कहा हैं?
6-अतधकिम व्यतक्तयों के अतधकिम सख ु का तसद्वान्ि तकसने तदया।
7-अल्पिन्त्र का लौह तनयम तकसने प्रतिपातदि तकया है।
14.4 साराांश
इस इकाई में हमने लोकिंत्र के अथभ ,तिशेषिा उसके तितभन्न तसद्धांि इसके िणु ,और साथ में
तिकासशील देशों लोकित्रं के सञ्चालन में आने िाली समस्याओ ं का भी अध्ययन तकया है .तजसमें
पाया तक तिश्व के सभी राष्र चाहे उनकी शासन पद्धतियां कुछ भी क्यों न हो अपने को लोकिन्त्र की
ही संज्ञान देिे हैं। प्रायः प्रत्येक राजनीतिक पद्धति लोकिातन्त्रक तसद्धान्िों को अपना रही है। सत्ता में
जनसहभातििा सतु नतिि करने िाली यह व्यिस्था सािभजतनक सप्रभं िु ा की द्योिक है।
ििभमान यिु को लोकित्रं का यिु माना जािा है। तकन्िु आज लोकित्रं चारों ओर से चनु ौतियों का
सामना करना पड़ रहा है। स्पष्ट होिा है तक जो पररतस्थतियां लोकिंत्रात्मक प्रणाली के मजबिू ी में
सहायक है िो नहीं तमल पाने के कारण लोकिंत्र के मल्ू यों सरु तक्षि रखने और उन्हें व्यिहार में प्रत्येक
मनष्ु य के तलए अथभपणू भ बनाने में अनेक कतठनाई का सामना करना पड़ रहा है। अिः लोकिांतत्रक
समाज में इन जतटलिाओ ं के कारण लोकिंत्र की सफलिा की आिश्यक शिों को सिभमान्य ढंि से
लािू करना सम्भि नहीं ।
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14.5. शब्दावली
डेमोस -- जनिा
लोकिन्त्र का तितशि िगगिादी तसद्धान्ि --इसके द्धारा यह बोध होिा है तक तकसी भी समाज या
संिठन का अन्ििभि प्रमख
ु तनणभय तसफभ तिने-चनु े लोि ही करिे है, चाहे उस संिठन का बाहरी रूप
कै सा भी क्यों न हो।
लोकिांत्र का बहुलिादी तसद्धान्ि-- बीसिीं शिाब्दी के आरम्भ में ही यह स्िीकार तकया जाने लिा
था तक राजनीति में व्यतक्त अके ला नहीं, बतल्क समान तहिों िाली संस्थाओ ं एिं समहू ों के माध्यम से
भाि लेिा है। इस तसद्धांि के अनसु ार लोकिंत्र एक प्रकार का राजनीतिक खेल है तजसमें तभन्न-तभन्न
िरह के समहू भाि लेिे हैं।
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14.9. तनबन्धात्मक प्रश्न
1.लोकित्रं से आप क्या समझिे हैं ?तिकासशील देशों में लोकिंत्र की समस्याओ ं की तििेचना
कीतजये ?
2.लोकित्रं के तितभन्न तसद्धािं ों की तििेचना कीतजये ?
उत्तराखंड मक्त
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