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राजनीतिक सिद्धांत के उपागम
राजनीतिक सिद्धांत के उपागम
(राजनी
राजनी तक स धांत के उपागम)
Normative (मानक य)
Historical (ए तहा सक)
Empirical (अनुभवमूलक)
दस
ू र ओर, 'उपागम' के अंतगत कसी घटना क व तत
ृ जानकार के लए न के वल उपयु त प ध त का
चयन कया जाता है बि क अ ययन क क य सम या (Focus of Study) का नणय भी कया जाता है ,
वनन वान डाइक ने 'पो
पो ल टकल साइंस-ए फ़लॉसॉ फ़कल एना ल सस' (राजनी
राजनी त व ान का दाश नक
व लेषण) (1960) के अंतगत लखा है : उपागम का अथ है-ऐसे मानदं ड िजनके आधार पर वचार करने
यो य सम याओं या न का नणय कया जाता है , और उनके लए उपयु त आधार-साम
आधार ी (Data) का
चयन कया जाता है। उपागम और प ध त म अंतर क ओर संके त करते हुए डाइक ने लखा है -'उपागम'
का अथ यह है क मह वपण
ू सम याओं तथा उपय
उप ु त आधार-साम
साम ी का चयन कस आधार पर कया
जाए, जब क 'प ध त' का अथ यह है क आधार-साम
आधार साम ी ा त करने और उपयोग म लाने के तर के या
ह ? अतः राजनी त व ान के यवि थत अ ययन के लए इसके भ न
न- भ न उपागम का प रचय ा त
कर लेना ज़ र हो जाता है ।
दाश नक प ध त (Philosophical
Philosophical Method)
दाश नक प ध त के अंतगत तत
ु वषय से जड़
ु ी हुई संक पनाओं को प ट कया जाता है, और समाज
के लए उपयु त मानक और मू य (Norms and Values) का नणय कया जाता है। आज के जो
राजनी त-वै ा नक केवल अनभ
ु व (Experience)
Experience) और नर ण (Observation) को ान का आधार मानते
ह, वे दाश नक प ध त को यथ समझते ह। परं तु कुछ समय से फर यह तक दया जाने लगा है क
राजनी त के साथक व लेषण के लए समाज के ल य के त सजगता ज़ र है, और इसके लए
परं परागत मानक और मू य क जानकार और समी ा लाभदायक होगी। इस लए आधु नक उपागम के
अंतगत भी दाश नक प ध त म कह ं-कह ं फर से च पैदा हो गई है । इस समी ा म समाज व ान
(Sociology) क अनुभवमल
ू क जानकार (Empirical Knowledge) से भी लाभ उठाया जा रहा है ।
उदाहरण के लए, त न ध शासन (Representative Government) क सम या का दाश नक प यह
होगा क इस यव था का नै तक औ च य या है ? परं तु समाजवै ा नक जानकार के आधार पर हम यह
पता लगते ह क सामािजक जीवन क सामा य व ृ य को दे खते हुए त न ध शासन कहां तक संभव है ,
कस प म संभव है , और उस प म वह कहां तक ा य (Acceptable) है, या उसे ा य बनाने के लए
त न ध व (Representation) क णाल म या या प रवतन होने चा हए?
सं था मक प ध त (Institutional Method)
दस
ू र ओर, मानक य उपागम के अंतगत उन मू य से सरोकार रखते ह जो 'शुभ और अशभ
ु ' (Good and
Evil) तथा 'उ चत और अनु चत' (Right and Wrong) म अंतर करते ह। अतः इसम नदशन
(Prescription) को धानता द जाती है । इस उपागम के अंतगत 'उ चत या अनु चत' क जांच के लए
ववेक या तकबु ध का योग (Reasoning) कया जाता है । परं परागत राजनी त- स धांत के अंतगत
अनभ
ु वमल
ू क और मानक य दोन उपागम को समान प से मह व दया गया है। लेटो ने (आदश रा य
का व न दे खा था; अर तू ने रा य को 'स जीवन' (Good Life) का साधन माना था। मा स ने सव म
समाज- यव था क क पना सा यवाद समाज के प म क थी। इन सब वचारक के यान म 'उ चत'
और 'अनु चत' के नि चत मानदं ड थे िजनके आधार पर उ ह ने यह न द ट कया था क 'उ चत' क
स ध का सव म माग या होगा?
आधु नक यग
ु म जब राजनी त के अ ययन म वै ा नक प ध त (Scientific
Scientific Method) को मख
ु ता द
गई, तब यह अनुभव कया गया क एक व ान के नाते राजनी त व ान को केवल त य से सरोकार
रखना चा हए िज ह य अनभ
ु व के आधार पर जान सकते ह; स य या अस य ठहरा सकते ह। 'उ चत',
'अनु चत' के न का संबध
ं मू य से है िज ह य अनुभव के आधार पर 'स य' या 'अस य' नह ं ठहरा
सकते; अतः अ य व ान क तरह राजनी त व ान को भी इनका अ ययन अपने सीमा े से बाहर
रखना चा हए।