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DISCIPLINE SPECIFIC ELECTIVE (DSE)


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(Administration and Public Policy : Concepts and Theories)

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नातक पा यक्रम
DISCIPLINE SPECIFIC ELECTIVE (DSE)
प्रशासन और लोकनीित : त य और िस धांत
(Administration and Public Policy: Concepts and Theories)
अनुक्रम
इकाई-1 : एक िवषय के प म लोक प्रशासन
  अथर्, आयाम और मह  व  डॉ.  धांिवता िसंह/ डॉ. िरंकी 
  लोक प्रशासन और िनजी प्रशासन  डॉ.  धांिवता िसंह 
      अनुवादक : िवशाल कुमार गु ता 
  लोक प्रशासन का िवकास  डॉ. िरंकी 
      अनुवादक : आशीष कुमार शक्
ु ल 
इकाई-2 : प्रशासिनक िस धांत
  शा त्रीय िस धांत
  वैज्ञािनक प्रबंध  ि टकोण  डॉ.  धांिवता िसंह/डॉ. िरंकी 
      अनव
ु ादक : िवशाल कुमार गु ता 
  प्रशासिनक प्रबंधन  महादे नो जुंगी 
      अनुवादक : बेबी तब सुम 
  नव-शा त्रीय िस धांत
  मानव संबध
ं ी िस धांत (ए टन मेयो)  डॉ. नीलम जैन 
      अनुवादक : िवक् की झा 
  तािकर्क िनणर्य-िनमार्ण (हबर्टर् साइमन)  डॉ. दे वार ी रॉय चौधरी 
      अनुवादक : िवक् की झा 
इकाई-3 : िवकास प्रशासन
िवकास प्रशासन — एक िव लेषण   िबजद्र झा  
      अनुवादक : िवशाल कुमार गु ता 
इकाई -4 : लोकनीित की समझ
  लोक नीित संक पना : प्रासंिगकता और उपागम   डॉ. दे वार ी रॉय चौधरी 
      अनुवादक : नारायण रॉय 
  
  सावर्जिनक नीित : िनमार्ण, कायार् वयन और मू यांकन  डॉ. दे वार ी रॉय चौधरी 
      अनुवादक : स ृ टी 
संपादक:
डॉ. मंगल दे व 
डॉ. शिक्त प्रदायनी राउत 

मुक्त िशक्षा िवद्यालय


िद ली िव विवद्यालय
5, के वेलरी लेन, िद ली-110007
इकाई-1 : लोक शासन एक अनश
ु ासन के प म

अथ, आयाम और मह व
डॉ. धां वता संह/ डॉ. रंक
अनुवादक : वशाल कुमार गु ता

संरचना

 प रचय
 लोक शासन या है?
 शासन, संगठन और बंधन
 लोक शासन क प रभाषा
 लोक शासन के आयाम
 लोक शासन का मह व
 एक कायकलाप के प म लोक शासन का मह व
 न कष
 संदभ

प रचय

शासन एक आंदोलन के प म स यता िजतना पुराना है । कहा जा सकता है क शु आत


म इसके अ ययन पर नयं ण रहा, व सन वारा शासन म वतरण क जाँच 1887 म
हुई। एक च क (Cycle) क भाँ त, यह संगठन म दोन ह सरकार व नजी सं थाओं म
मौजदू होता है । यह कुछ म त संघ म भी उपि थत होता है जैसे यापा रक संगठन का
मक संघ, स त या लाभकार संघ, श ा द संगठन आ द। यह संगठन मु य प से
नजी व सावज नक संगठन म वभािजत होता है । सरकार आंदोलन का भाग होने के कारण
यह राजनी तक यव था के उदय के साथ ह अि त व म आया। नी त या वयन क
पहचान सरकार नर ण के चलते पण
ू नह ं होती, इसका वधा यका से कोई लेना-दे ना नह ं
है । यह संगठन के मापन व आलोचना मक वचार को समझने के लए आव यक है । इस
खंड के मा यम से शासन क संक पना को समझाने का यास कया गया है । लोक
शासन के अ ययन के मा यम से इसे समझाने का य न कया गया है , जो क लोक
शासन के मह व, मापन व आलोचना पर बल दे ता है ।

1
लोक शासन का अथ

‘ शासन’ श द मु य प से लै टन भाषा के श द एड म न टर (Administer) से नकला है ।


िजसका अ भ ाय है क कसी यि त के बारे म वचार करना, उसक दे खभाल करना व
उसक सम याओं को समझना। एक संगठन क वशेषता है, “सामू हक या, िजसम संयु त
यास, तालमेल बनाना आ द शा मल ह ता क उ दे य व ल य क ाि त हो।” यापक प
से ‘संगठन’ श द ऐसा तीत होता है क इसे व भ न पहलुओं व व भ न वभाग म कसी
भी क मत म यव था के आधार पर सहन कया जाता है , जहाँ पर इसका योग हो—

1) अनुशासन के संदभ म : व यालय के अ ययन के प म।


2) आजी वका के संदभ म : यह काय के वचार पर आधा रत होता है । वशेषकर यह
अ ययन म सूचना व तैयार को शा मल करता है ।
3) या के संदभ म : सं था म होने वाले सभी उप म का जोड़ होना।
4) वा त वक जीवन म सरकार ‘श द’ के समानाथक के संदभ म : इस कार के कई
लोग के समूह म (उदाहरण : उप म के भार म) अतुलनीय प से होना। जैसे क
नर मोद का भारत के धानमं ी के प म होना।
कुछ स ध व वान वारा द गई प रभाषाएँ न न ल खत ह—

ई.एन. लैडन के अनुसार, “ शासन एक ल बा तथा अलंकारयु त श द है , क तु इसका अथ


सीधा-सादा है , य क इसका अथ ‘लोग क दे खभाल करना’ तथा ‘पार प रक संबंध क
यव था करना’ है ।” फै ल स ए. नी ो के अनस
ु ार, “ शासन कसी उ दे य क पू त के लए
मनु य और पदाथ का संगठन है ।” जे.एम. फफनर एवं आर. े थस ने “वां छत उ दे य
क ाि त के लए मानवीय तथा भौ तक संसाधन के संगठन और संचालन” को शासन क
सं ा द है । एल.डी. वाइट के अनस
ु ार, “लोक– शासन उन सभी काय को कहते ह िजनका
उ दे य उपयु त स ा के वारा घो षत क गई नी त को लागू करना या परू ा करना होता
है ।” लथ
ू र गु लक के अनस
ु ार, “ शासन का संबंध काय परू ा कए जाने और नधा रत
उ दे य क प रपू त से है ।” एफ.एम. मा स के अनस
ु ार, “ शासन एक नि चत काय है , जो
कसी नधा रत योजन क ाि त के लए कया जाता है । यह लोक काय क मब ध
यव था तथा साधन का समु चत योग है , िजसका ल य हमारे वां छत काय को स प न
करना और साथ ह ऐसे काय को रोकना है , जो हमारे अ भ ाय से मेल नह ं खाते। उपल ध
म तथा साधन का यह एक ऐसा मेल है , ता क कम से कम शि त, समय तथा धन के
यय से वां छत ल य क ाि त हो सके।” हबट साइमन के अनुसार, “ यापक अथ म जो
समूह सामा य उ दे य क पू त हे तु सहयोग करते ह उनके काय को शासन क सं ा द
जा सकती है ।”

2
मु य तौर पर उपरो त प रभाषाएँ संगठन क जाँच म दो मौ लकता को सि म लत
करती ह, जो ह : (1) उपयोगी म (Helpful Exertion), और (2) ाथ मक गंत य क खोज
(Quest for Primary Destinations)। कसी भी संगठन को केवल एक यि त वारा संभाला
नह ं जा सकता, बि क इसम सम यास क आव यकता होती है । संगठन को 'सामािजक
संबंध का नवाचार' (Innovation of Social Connections) भी कहा जाता है । इसके अ त र त
संगठन एक मह वपूण च है जो सभी सामू हक यास, सावज नक या नजी, सामा य और
सै य, वशाल े , म यम अथवा छोटे े म होता है । इसका एक खद
ु रा ख
ंृ ला म, एक
बक म, महा व यालय म, व यालय, रे लवे माग, मे डकल, पड़ोसी बंधक (Neighborhood
Executive), रे लवे माग क सड़क का आंकलन कया जाता है , जो क साथ म मलकर
यि तगत प से वशेष गंत य म अ धकांश तौर पर दे खने को मलता है । आगे हम, लोक
शासन क प रभाषाओं का व लेषण करगे जो व भ न व वान वारा द ग ।

शासन, संगठन और बंधन

इससे पहले हम इस वषय के संदभ म आगे बढ़, हम यह जानने का यास करना होगा क
शासन, संगठन और बंधन के म य पर पर या या है? ये सभी संकेत अ सर
त छे द बंद ु व सम पता के लए योग होते ह। यह सामा यताओं को समझने म संब ध
है और तीन कार क श दाव लय के म य मत के अंतर को समझता है। व लयम कूलज
(William Schulze) के अनस
ु ार, यह शासन को त परता दान करता है जो क उ दे य
को कट करता है तथा दस
ू र ओर जो बंधन के मु द क प रि थ तय म काय करने का
यास करते ह, वे उसके भीतर बंधन को भी शा मल करते ह।

शासन मु यत: मानवीय आपू त उपकरण तथा थान, सामान का आव यक म ण है


जो क उ दे य को पण
ू करने का एक साधारण मा यम है । हम बंधन मु य प से एक
संगठन के या वयन के लए, वां छत उ दे य क पू त के लए मागदशन व नदश दान
करता है । एक सहज तर के के साथ शासन मु यत: बंधन के उ दे य का नधारण, उसे
ा त करने के य न वारा करता है और संगठन सरकार का एक मा यम है िजसके वारा
शासन के ढ़ उ दे य क पू त हो सकती है । कई व वान वारा शासन के वषय म
कई भ न वचार दए गए ह। यह वचार है क शासन काय म क ग त व धय को पूरा
करने के लए वशेष नयम व कानून को नधा रत करता है । बंधन उन काय के त
एक साथ चं तत होता है जो क काय मब ध नह ं होता है। बंधन वह काय है जो क
शासन क यापक नी तय से संबं धत होता है । संगठन एक यं है जो क शासन व
बंधन म सामंज य था पत करता है ।

3
लोक शासन क प रभाषा
लोक शासन इस त य से संबं धत हो सकता है क यह एक कार का संघ है , जो यव था
क सी मत सीमाओं म रहकर काय करता है । यह सेवा वतरण को अ धक कुशल व
भावशाल बनता है । जनता वारा इसे ‘सरकार’ के समान दे खा जा सकता है । इस कार से
लोक शासन सरकार क ग त व धय तथा सरकार क याओं को सभी े म वशेषकर
खल
ु े शासन म भी यानपूवक संचा लत करता है । टे नका के अनुसार लोक शासन
‘अपने शासन के मा यम से एक रा य क यव था का संचालन करता है ’। नी त
या वयन संगठन के उस भाग को इं गत करता है जो शासन के व नयामक अ यास से
संबं धत है । आगे हम, लोक शासन के संबंध म व भ न व वान वारा द गई प रभाषाओं
के अथ को समझगे—

वुडरो व सन
“लोक शासन व ध क व तत
ृ तथा यवि थत युि त है । व ध क येक वशेष युि त
शासन का काय है ।”

एल. डी. हाइट


“ कसी योजन या उ दे य क ाि त के लए बहुत से मनु य का नदशन, सम वय तथा
नय ण ह शासन है ।”

जे. एम. फफनर


“ यि तय के य न म ताल-मेल उ प न करके सरकार का काय करवाना ह लोक- शासन
है , ता क पव
ू नधा रत काय को परू ा करने के लए वे मलकर काम कर सक। शासन म वे
याएँ आती ह जो अ य धक तकनीक अथवा व श ट सकती हो है , जैसे लोक- वा य
और पल
ु - नमाण। इसम हजार ह नह ं, अ पतु लाख मक क याओं क नगरानी,
नदशन तथा बंध भी सि म लत होता है , ता क उनके य न से कुछ यव था और
कुशलता उ प न हो।”

एम.ई. डमॉक
“ शासन का संबंध सरकार के ' या' और 'कैसे' से है । ' या' वषय व तु है , कसी े का
तकनीक ान है िजसके वारा एक शासक अपने काय को पूरा कर पाता है । 'कैसे' बंध
क तकनीक या प ध त है , यह वह स धा त है िजनके अनुकूल संचा लत काय म को
सफलता तक पहुँचाया जाता है । दोन ह अ नवाय ह, दोन का सम वय ह शासन कहलाता
है ।”
उपरो त प रभाषाओं के आधार पर हम व भ न व वान वारा दए गए ववरण को
त बं बत कर सकते ह, जो इस कार से ह—

4
 एक अ तबं धत संगठन म सामू हक यास हो।
 सरकार क तीन शाखाओं एवं इसके अंतसबंध को संग ठत करना।
 एक मह वपूण काय को योजना क खल
ु यव था और एक कारक के च के
अनुसार पूण करना।
 यह नजी संगठन से काफ अलग होता है ।
 यह व भ न नजी सं थान के साथ मजबूती से जड़
ु ा होता है ।
सं ेप म, लोक शासन—
 यह लोग के हत के लए काय करता है ।
 यह सरकार क याओं का भाग है , जो नी त या वयन से संबं धत काय करता
है ।
 यह सरकार के तीन अंग को सि म लत करता है । इस त य के बावजद
ू क यह
सामा य तौर पर अ य ीय शाखा म यह थान प रव तत करे गा।
 यह शासक य और शासन के यि तय को मता दान करता है ता क उ म
जीवन का नमाण कया जा सके।
 यह नजी संगठन से भ न होता है , वशेषकर इसम सामा य प से जनता पर बल
दया जाता है ।

लोक शासन के आयाम

कसी भी सामािजक- व ान के वषय के े व आयाम के संदभ को प रयोिजत करना


अ यंत ह चन
ु ौतीपण
ू है , वशेषकर लोक शासन म। सह मायन म कहा जाए तो लोक
शासन कई शताि दय पव
ू एक अप र चत वषय था। ले कन, आज यह एक सु यवि थत
अ ययन का वषय बन गया और भारत व वदे श के कई व व व यालय म अ ययन का
वषय है । ाकृ तक प से, हम इस बात को सरलता से मान सकते ह क लोग के बदलते
हुए ि टकोण से शासन म भी बदलाव आए तथा कई संबं धत काय जैसे क आ थक व
राजनी तक मामले भी लोक शासन के भीतर आ गए। शु आती दशक म यह माना जाता
था क लोक शासन का अथ है क रा य के त दन के मामले, ले कन इस ढ़वाद सोच
म धीरे -धीरे बदलाव आया है ।

इससे पूव दशक के यि तय ने यह वीकार कया क लोक शासन का ता पय है


रा य के मानवीय और भौ तक संप का शासन, िजसम रणनी तय का उपयोग एवं
सरकार के वक प पर भी यान दया जाता था। कुछ लोग मानते थे क लोक शासन का
ता पय शास नक मु द के वा त वक नदश व ाथ मकता से है । एल.डी. वाइट ने कहा था
क क य व तार व नी त या वयन के त व ह सरकार के ि टकोण को ा धकृत एवं
सरकार क शास नक सम याओं को यायसंगत बनाते ह। ' यायसंगत' श द लोक शासन
म सरकार के मु द क ओर संकेत करता है । वतमान म सरकार सहायक रा य ह जहाँ
5
रा य का व तार यापक प से होता है। इस कार के रा य इस ओर संकेत करते ह क
रा य कई काय के चलते बा धत होने लगता है, िजस कार से 'हॉ स' व 'लॉक' के रा य
बा धत हुए ह। अ धकांश प से काय को पूण करना व मह वपूण वक प को लाने के लए
आव यक है क वक प को वा त वक प दया जाए।

इसम एक और कारण भी है क रा य को अ धक लोग का उपयोग करना चा हए। यह


संपण
ू मु दा केवल एक बड़ा मु दा नह ं है अ पतु यह अ धक अ या शत है । इसके अलावा,
बहुमत के शासन के व तार के साथ आदश रा य क ाि त, मताएँ तथा उ रदा य व को
बढ़ाया जाना आव यक है । इस संदभ म क वधा यका ब कुल सह है इसे नाग रक के पूण
अ व वास अनुरोध के लए व श ट दा य व नभाने का पालन करना चा हए।

यह दे खा जा सकता है क वै वीकरण सरकार के बंधक य तर से दरू होता है । वा तव


म यह त य है क िजस कार वै वीकरण ने शी अ त शी अपना भाव व व के कई
रा पर डाला, वैसे ह सभी का नजद क संपक भी बढ़ता गया। इस प रणाम ने जीवन
प ध त, आचरण, ि टकोण म समायोजन को उ प न कया। यि तय ने सोच-समझकर
यास कए, वधा यका पर दबाव डाला ता क वे नए एवं व तत
ृ अनुरोध को जान सके जो
क शासन से ा त नई यव था और असाधारण उपाय को दान करते ह। ये सभी हत
नई यव था के लए होते ह िजसे शासन अपनाने के लए मजबूर है । मु यत: रणनी त का
व नयोग सब कुछ नह ं होता है, इसका योग वशाल है जो क लोक शासन क सीमा के
भीतर दोबारा से नजर आता है । 60वीं व 70वीं शता द के दौरान केवल एक चीनी यि त
को ह इस बंध का ान था, िज ह जेनोफो बया (Xenophobia) के नाम से जाना जाता
है । उ ह ने चीन के नाग रक को व भ न रा के यि तय के साथ घल
ु ने- मलने क
अनम
ु त नह ं द ।
य क उनका मानना था क यह चीन के नाग रक के यवहार व च र को द ू षत कर
दे गा। ले कन आज ऐसी कोई संभावना नह ं है । वा त वक प म, इस कार का व भ न
लोग के साथ, व भ न रा -रा य का मलना-जुलना ह प रवतन वारा लाभ दे ता है ।
वतीय व वयु ध से पूव (1939-1945) कई रा -रा य अ प वक सत तर पर थे। तीसर
द ु नया के दे श क सरकार बढ़ते हुए दबाव के भीतर नह ं थीं। आज के व व क प रि थ त
बदल चक ु है । आजकल आम नाग रक अ धक सचेत रहते ह एवं राजनी तक दल भी अ धक
स य हो गए ह। अब सरकार का गठन व पतन कसी भी मामले को भा वत नह ं करता
है । लोकतं का वकास ह रा रा य क सरकार पर बल दे ता है क वे लोक शासन के
े म बढ़ रह माँग को पूण करने का यास कर।

हाल ह के वष म राजनी तक व ान के वषय म प रवतन दे खने को मले ह। ये


केवल समाज का व ान नह ं है । यह “नी त व ान” भी है िजसका अथ है क राजनी तक
व ान केवल राजनी तक व ान क ह बात नह ं करता है अ पतु मानवीय समाज क
6
राजनी त क भी बात करता है , यह नी तय के लए उ चत व अथपूण सामािजक काय को
भी ता वत करता है । राजनी तक व ान के वचार म संशोधन का लोक शासन म एक
सकारा मक भाव पड़ता है । पीटर से फ (Peter Self) ने अपनी रचना ‘एड म न ेट व
योर ज एंड पॉ लसीस’ (Administrative Theories and Policies) के मा यम से
राजनी तक कारक व सरकार के काय पर काश डाला। पछले दशक म पीटर से फ ने
कहा था क सरकार मु य प से राजनी तक कारक व ि टकोण के कारण चं तत रहती
है । इसका अथ हुआ क ा धकरण म अ धकांश प से राजनी त के वषय म वचार कया
जाता है । जो क कानन
ू यव था को बनाये रखने, मतदान करवाना अथवा बंधन को भी
यवि थत करता है ।

परं तु कुछ वष के प चात ् शासन के वषय म यह वचार भी बदल गया। डमी नश


से फ (Diminish Self) के अनुसार, “ मताओं को शास नक आधार पर संपूण आ धका रक
परे खा म यु त होना चा हए।” शास नक ि टकोण यह बताता है क त दन चलने वाल
बंधक य मताएँ कसी रा य के अंदर केवल ेरणा नह ं बन सकती ह।

रा य को कुछ मह वपूण मताओं को नभाना ज र है और रा य के हत क ाि त


के लए या वयन उ रदा य व को नभाता है । ड व डल से फ (Dwindle Self) कहते ह
क यावहा रक प ध त का अथ है क शासन अपने ि टकोण वारा त दन यि तय
क आव यकताओं को व त रत करने एवं संतु ट करने का यास करती है । उनका कहना है
क उपयो गतावाद संघ तेजी के साथ ज टल होता जा रहा है ।

जॉन रॉ स ने अपनी पु तक ‘अ योर ऑफ़ जि टस’ (A Theory of Justice) म


याय क प रक पना को पन
ु भा षत और पन
ु ग ठत कया। इस तरह से उ ह ने इन
उ रदा य व को संभाला, इसने असं द ध प से नी त या वयन के मह व को बदल दया।
रॉ स का कहना था क समता (Equity) आव यक है । रॉ स ने कहा क अ धकार व
वतं ता सामंज य पर आधा रत होते ह। उ ह ने यह सलाह द क इस कार से व ीय व
व भ न असंतुलन को समायोिजत कया जाए क कसी को भी कसी कार क असु वधा
उ प न न हो।

रॉ स क यह योजना सरकार पर अ धक भार डालती है, वशेषकर नी त या वयन के


प म। रॉ स क यह योजना एक उदार मत णाल पर आधा रत है । इन लोक य सरकार
का शासन यि तय के त उनके दा य व को अ वीकार नह ं कर सकता। इसका प रणाम
यह नकलता है क नी त या वयन के कारण वभाजन का त प बनाने म बा य है ।
नी त या वयन का यह भाग ‘ नय मत मापन’ के नाम से जाना जाता है । इसे ‘नै तक
मापन’ भी कहा जाता है। इसे कई लोग ने ता वत कया क यह रा य का दा य व है ,
इसम दे ख क कोई याय के कसी भाग से तो वं चत नह ं रह गया है ।

7
जैसे क उदार मत णाल ने इस उ च आदश को पूरा कया क वधा यका को
असामा य वचार को लेना चा हए। य द यह मु दा हो क इस उ रदा य व को कौन
नभाएगा? इसका उ चत उ र यह है क उदारवाद सरकार के मह वपूण दा य व को आदश
यायनी त वा तव म ा त हो और सभी को नी त या वयन क ग त व धय का भाग भी
मले। आरं भक समय के नी त बंधन म इस पर वचार नह ं कया गया।

मै स वेबर, जो क नया मक (Regulatory) संगठन के जनक ह, उ ह ने शासन के


व लेषण के वचार को तबं धत कया और इसके औ योगीकृत उ यमी समाज को भी।
समकाल न 80 वष म औ यो गक रा य व यि तय म सरकार के त ववाद भावशाल
प से बदल गया है और इस प रवतन ने लोक शासन को अ धक मुख मानने व
मह वपूण काय के त ववश कर दया।

अ ययन का मह व
हम अगले खंड म शासन के मह व को एक ग त व ध व अ ययन के प म जानगे।
अ ययन का मह व
शासन ने अ धक मह व व े को हण कर लया है । वुडरो व सन के अनुसार, ये सभी
समाज म उ प न सम याओं का प रणाम, रा य क स य भू मका और इसक
क याणकार ग त व धयाँ ह, जो क हाल ह के वष म बढ़ है । सरकार क स य भू मका
ह सभी ग त व धय म भागीदार का प रणाम है जो क शासन के काय को फर से
सी मत नह ं कर सकता है । आज के प र य म मु य प से शासन वारा न न ल खत
भू मका नभाई जाती है —
1) सरकार का आधार।
2) यह सामा य जनता क उ न त का साधन है ।
3) यह यि तय के जीवन म अ नवाय काय का प मान लया गया है ।
4) यह रा य के कानून , रणनी तय एवं प रयोजनाओं के या वयन का यं है ।
5) यह आम जनता म शि त का संतुलन बनाए रखता है जैसे क यह अनक
ु ू लता दान
करता है ।
6) यह कृ ष पर आधा रत रा म जनता को जोड़ने का मा यम है जो वग-संघष का
वरोधी हो।

लोक शासन का मह व

लोक शासन के उदय ने सावज नक कुशलता को मा यता द । नी त या वयन के लए


सबसे मह वपण
ू ल य लोक शासन को अ धक कुशल बनाना है । कुछ प र य म लोक
शासन क उ पादकता म व ृ ध और वा त वक े म ाथ मकता को असमान प से
उ घोषणा वारा य त कया गया। गत शता द के ाथ मक भाग के दौरान ह कई दे श

8
ने त न ध प रष म संगठन के भीतर क सम याओं का व लेषण एवं वभ न
सावज नक आव यकताओं का मुकाबला करने के लए उपयु त मशीनर का नधारण कया।

कुछ सरकार रपोट वारा जो क शास नक प रवतन क बात करते ह और ये


शास नक सुधार के प रणाम पर बल दे ते ह। हाल ह के चाल स वष के दौरान कई रपोट,
कमीशन, कई रा व बहुप ीय कायालय के लए कई व वान के वारा कई प म
चय नत हुए। कई सरकार काशन हुए, िजनम से मह वपूण ह : फू टन कमेट रपोट
(Fulton committee report), सरकार क पन ु रचना (Reinventing government) व अ य
संबं धत रपोट जो क सुधार के मह व के संदभ म बात करते ह।

एक याकलाप के प म लोक शासन का मह व

हम दे खते ह क समकाल न समय म क याणकार रा य का उदय हुआ है और कस कार


से सावज नक शास नक आदे श म प रवतन आया है व ये एक मह वपूण घटक के प म
समाज म था पत हुए, इस कार से आगे के सध
ु ार को आकार मला। अत: इन बढ़ते हुए
काय के संदभ म लोक शासन ने अ धक स य भू मका नभाई व नई प रि थ तय के
संदभ म बेहतर दशन भी कया।

व वान के वचार :—
“ शासन सरकार क याओं का भाग है और यह यि तय के जीवन को भा वत करता
है ।”

“ शासन मु यत: मानवीय कायबल म भावशाल होता है जब तक क सामािजक


प रवतन म इसक मता न बढ़े व इसक सामािजक उथल-पथ
ु ल का भार उठा सके।”
“य द हमारा वकास सह से न हो तो फर यह शास नक असफलता का प रणाम है ।”

लोक शासन का मह व इस कार से बताया जा सकता है —

 ू भी अि त व म रह सकती है कंतु यह बना अ छे


एक सरकार अ य अंग के बावजद
शासन के काय नह ं कर सकती है ।
 सेवाएँ दान करने के लए एक उपकरण के तौर पर : “ शासन का वा त वक मल

सेवाएँ दान करना है जो क आम जनता के लए ह ।” यह एक परम उ रदा य व है
क जो काय कया जा रहा है उससे आम जनता को लाभ ा त हो।
 नी तय को लागू करने के लए एक साधन के प म : सरकार वारा सू ब ध सभी
नी तयाँ शासन वारा लागू क जाती ह और इस लए ये सभी शासन क सहायता से
सभी नी तय को आकार दान करते ह।

9
 कसी भी समाज के संतुलन का संर ण बहुत ह आव यक है एवं इससे लोक शासन
क यथा ि थ त को कायम रखा जा सकता है ।
 सरकार क सभी नी तयाँ चाहे वह सामिजक ह अथवा आ थक इनको शास नक
सं थाओं वारा लागू कया जाता है । इन नी तय का मु य उ दे य प रवतन लाना और
जनता के लए मानक को बढ़ाना होता है ।

 तकनीक वभाव : वतमान समय म सरकार व उसक सेवाओं क कृ त म अ धक


तकनीक कृत हो गई ह। इससे पव
ू सरकार क ग त व धयाँ कम ज टल होती थीं पर तु
समय के साथ हम दे ख सकते ह क सरकार क शैल म भी प रवतन आया है ।

न कष
समय के साथ शासन हमारे समाज का मह वपण
ू घटक बन गया है , जो सरकार वारा
नधा रत नी तय को लागू करने म सहायक है । गज ु रते हुए समय के साथ सरकार के काय
म नरं तर व ृ ध हुई है और इस लए यह बड़े पैमाने पर जनता को लाभाि वत कर रहा है ।
शासन क पो टकोब (POSDCORB) या ने सरकार के नी तय के पथ को अ सर
करने का काम कया है और इसके संतुलन को बनाये रखने म सरकार क सहयता क है ।

संदभ सूची

 Chakrabarty, Bidyut and Mohit Bhattacharaya. 2003. Public


Administration: A Reader. New Delhi: Oxford University Press.
 Sapru, R.K. 2009. Administrative Theories and Management Thought.
New Delhi: Prentice-Hall India.
 Stevenoff, Jand E.W. Russell (ed.). 2000. Defining Public Administration.
New York: Longman.
 Simon, Herbert A., Donald W. Smithburg, and Victor A Thompson.1950.
Public Administration. New York: Alfred AKnopf.
 Fry, Brian R.1989. Mastering Public Administration: From Max Weber to
Dwight Waldo. Chatham NJ: Chatham House.
 Cox, Raymondand Susan Buck.2009. Public Administration in Theory and
Practice. Pearson Education.

10
लोक शासन और नजी शासन
डॉ. धां वता संह
अनुवादक : वशाल कुमार गु ता

संरचना

 प रचय
 सावज नक संगठन एवं नजी संगठन के म य अंतर
 न कष
 संदभ

प रचय

बंधन का मह वपूण मु दा यह है क समाज के भावकार काय को उ चत ढं ग से चलाने


के लए संसाधन को उ चत ढं ग से यवि थत करना। यह सामा य प से एक सह-
योजनीय आंदोलन के प म संगठन सि म लत होता है और यह यापक प से
सावज नक एवं नजी संघ के लए काय करता है । लोक शासन एक वधायी संगठन है जो
रा य वारा नयं त होता है व अपने उ दे य क पू त हे तु चं तत रहता है । नजी संगठन
भी संगठन के नजी यापा रक संघ के वषय म चं तत होते ह तथा ये वशेष प से नी त
बंधन से संबं धत होते ह।

एक वषय या मु दे म आम सहम त का होना, जो सावज नक व नजी े के म य


मजदरू के म य वरोध उ प न करते ह ये मु दे और अ धक गहरे होते जाते ह।
शोधकताओं वारा जनता के बीच म, वरोध म व प म, सामा य व नजी े म कई
वचार को तुत कया गया। ले कन अभी तक यह एक म त प रणाम के प म दखता
है । पैर (Perry : 2002) ने इस बात पर जोर दया क संगठन क यव था म अ धक
सट क व लेषण क आव यकता, जो इसे अ धक ेरणा मक बनाती है और इसका खल
ु े
नजी े ीय संघ म आ धका रक प से संचालन कया जाता है । लेखन काय को जाँचना
(Auditing), त न धय का चन
ु ाव, िजस कारण से यह शासन नजी े म ब कुल
अलग होता है । काय क ेरणा के पीछे मह वपूण त व होता है क कौन सा तर का
त न ध व को ो सा हत करने के लए संघ के भीतर नयम व क य को सि म लत कर
सकता है । ये लेखन के मह व मु यत: पाँच मह वपण
ू कारक के बारे म बताते ह जो क
काय सं कृ त के व भ न मानक करण म अ नवाय ह। पहला, मौ क एवं आ थक ो साहन
मु यत: नजी व लोक शासन म सबसे मह वपण
ू कारक है । दस
ू रा, काय वषय सीधे तौर

11
पर काय क ि थ तय पर आधा रत होता है । इसम पूववत
ृ , यवहार का पसंद दा काम
शा मल होता है । तीसरा, यावसा यक सुधार ह काय के े एवं संघ के भीतर उ न त और
सुधार के वातावरण को लाने का यास करता है। चौथा, ढ़ तथा सामािजक ि टकोण ह
काय थल को अ धक मै ीपूण वातावरण बनाने से सहायक होता है । पाँचवाँ, सावज नक तथा
नजी े म यापार के ि टकोण म, इन सभी प रि थ तय म त न धय को अपनी
समझ से करना चा हए।

कुछ शोधकताओं ने सावज नक एवं नजी शासन के े म त न धय के म य अंतर


को दे खा एवं उ ह ने पाया क इसम ो साहन के कारक मजबत
ू ी से ह, िजसके लए दोन
इकाइय के बीच समानताएँ बताई गई थी। यह कहा गया था क इस बात के माण ह क
सावज नक कमचा रय को ो साहन के लए व ीय परु कार कम दए जाते ह जब क नजी
े के कमचा रय क ि थ त अलग थी। कई शोधकताओं ने यह तक दया क मु ा केवल
ो साहन का कारक नह ं है , बि क सरकार तं वारा कई कमचा रय को सरकार यव था
म नजी े से अ धक लाभ एवं सु वधाएँ ा त हो सकती ह। परु कार, लाभ व लोभन
(Incentives) आ द जो कसी कमचार को संघ वारा ा त होते ह चाहे वह नजी हो या
सावज नक। ये सबसे अ धक इन दोन इकाइय म अंतर को बढ़ावा दे ते ह। पूव शोध
अ ययन वारा यह
कट हुआ क नजी े के कमचा रय को सावज नक े के
कमचा रय से अ धक मुआवजा मलता है । सावज नक संघ वारा नरं तर कम वेतन दर द
जाती है और यह वेतन म बढ़ोतर भी नजी े से कम ह होती है । जुक वज
(Jurkiewiez) कहते ह क ये सरकार अ धकार एक अ छे और ऊँचे पद पर होते ह जब क
नजी े म यह ऊँचा पद आसानी से मल पाना असंभव सा तीत होता है ।

सावज नक संगठन एवं नजी संगठन के म य अंतर

कई मुख व वान ने सावज नक एवं नजी संगठन के म य के अंतर को उजागर कया है ।


साइमन ने लोक तथा नजी शासन म अंतर मु यतः तीन बात से संबं धत माना है —

 लोक शासन सरकार होता है , जब क नजी शासन यावसा यक होता है ।

 लोक शासन राजनी तक होता है , जब क नजी शासन अराजनी तक होता है ।

 लोक शासन लालफ ताशाह से त रहता है, जब क नजी शासन उससे मु त


होता है ।

सर जो सब टोम (Sir Josib Stomb) के अनस


ु ार, न न ल खत चार मानक का अनस
ु रण
करने के कारण लोक शासन, नजी शासन से भ न है —

 सभी के लए समान पहुँच (Equal Access for all) : लोक शासन म सभी को
समान पहुँच मलती है , परं तु नजी म नह ं मल पाती।
12
 व ीय नयं ण (Budgetary Control) : सरकार तं को व ीय नयंत ्रण से होकर
गुजरना पड़ता है , जब क यह यव था नजी े म नह ं होती है ।

 उ रदा य व एवं जवाबदे ह (Responsibility and Accountability) : सावज नक


संगठन अपने राजनी तक वशेष के त उ रदायी होते ह व उनके मा यम से
यि तय के त भी उ रदायी होते ह।

 लाभ का स धांत (Principle of Return) : कसी भी उपकरण के स धांत का


ल य लाभ होता है , चाहे वह कम ह हो। नी त बंधन के अ धकांश प म ल य का
न ह नकद अथ म अनम
ु ान लगाया जा सकता है और न ह बह खाता रणनी तय
वारा।

पॉल एच. एपलबी के अनुसार, लोक शासन का नजी संगठन से एक अनोखा संबंध है ।
उ ह ने कहा है क “ यापक अथ म सरकार काय व ि थ त के कम-से-कम तीन ऐसे पूरक
पहलू ह जो सरकार तथा अ य सभी सं थाओं एवं याओं (गैर सरकार ) के बीच व भ नता
कट करते ह, वे पहलू ह; े , भाव व वचार, जनता के त उ रदा य व और राजनी तक
कृ त।” कसी भी गैर- वधायी सं थान म सरकार का भाव नह ं होता है ।

“संगठन एक सरकार मु दा है , यह सावज नक कुच के लए हणशील होना चा हए।


इस बात क ओर यान दे ना आव यक है क मुख राजनी तक च म, जो बहुमत शासन
णाल के संदभ म बताते ह, ये वधायी संघ वारा काय करते ह, और इन सभी शास नक
संघ म सामा य नयामक त व नह ं होते ह, ये सभी राजनी तक ाणी होते ह।”

नजी संगठन मु यत: यापकता क नी त के भाव व वचार, या वयन आ द क


गारं ट नह ं दे ता है । उ ह ने दे खा क सरकार को अ त मण व अ नवाय प से भा वत
कया जाता है । इसम अ धक ज टलता क यव था एवं ग त व धयाँ शा मल ह।

ये मह वपण
ू व श ट बंद ु इस कार से ह—

 लोक शासन राजनी तक है , जब क नजी शासन राजनी तक नह ं है , जहाँ पर नी त


या वयन मु यत: राजनी तक यव था म होता है ।

 लाभ के वचार या म संवेदनशीलता क अनुपि थ त का होना : नजी संगठन


वारा लाभ के मु दे के त संवेदनशीलता क उपि थ त होना ह एक दस
ू रा कारक
है , जो क नजी संगठन के वारा पहचाना जा सकता है । वधायी संघ का मुख
काय होता है क वे एक कार के सहायक यि त का ताव रखते ह ता क समाज
व यि तय का वकास हो।

 स मान : सावज नक संगठन अ धक स मा नत होते ह, जब क नजी संगठन कम


होते ह।
13
 सावज नक अवलोकन : नी त या वयन क ग त व धय को व तत
ृ प से तुत
कया जाता है , ता क जनता को भी इसका पता चल सके।

 संर ण : सरकार संगठन म संर ण का काय अ धक होता है , जब क नजी संगठन


म कम होता है ।

 वैध संरचना : सावज नक संगठन कुछ नयम के अंतगत काय करता है , जब क


नजी संगठन अपनी मज व पसंद से काय करता है ।

 लोक उ रदा य व : सावज नक संगठन क पहचान ह लोक उ रदा य व एवं


जवाबदे ह है । नी त या वयन सामा य तौर पर जनता पर आधा रत है , हालाँ क यह
सीधा भी नह ं है कंतु इसम पहले के वारा राजनी तक मु खया, सभा, कानूनी
बंधक भी शा मल है ।

 संगठन का यापक े : सावज नक संगठन का े अ धक यापक होता है । यह


कहा गया है क सय
ू के नीचे लगभग कुछ भी वैध है अथवा यह त य नी त
या वयन के संदभ म कहा गया है । इस कार कहा सकता है क सभी णा लय
म बड़ी नजी सम याओं एवं मु द क तुलना म इसका आकार, बहुमख
ु ी कृ त व
अ यास क व वधता अ धक बड़े होते ह।

 सेवाएँ : सावज नक एवं नजी संगठन दोन म ह सेवा उ मुखी होती ह, ले कन


सरकार के लए यह एक क याणकार याकलाप का भाग है ।

 ा धकार : नी त बंधन म ऊँचे तर पर अप र चत यि त होते ह और उनके इस


चर को उजागर नह ं कया जाता है । वा तव म जो भी वे करते ह, वे वधान मंडल
के लए करते ह न क वयं के नाम के लए करते ह।

 मौ क सावधानी : सावज नक संगठन को व ीय मु द के त अ यंत सावधान


होना चा हए। यह जनता क मु ा/धन के लए कायवाहक के प म काय करता है ।

 काया मक द ता : द ता मु य प से कसी भी संघ क आधार शला होती है ।


कसी भी ि थ त म, दा य व म अि थरता, स मोहक नयं ण क अनुपि थ त, कम
उ रदा य व का होना, अन गनत तर का सि म लत होना और मजदरू म
यावसा यक ि थरता, कुशलता आ द खल
ु े संघ म नह ं होते ह। नजी संगठन को
अ धक कुशल व भावी माना जाता है ।
लोक और नजी शासन अ सर समान व वभे दत होते ह। लोक एवं नजी शासन के
म य म कई समानताएँ होती ह और कुछ असमानताएँ भी होती ह। सव थम, हम लोक एवं
नजी शासन के म य क समानताओं को जानगे। लोक एवं नजी शासन दोन ह म कई
बंदओ
ु ं पर सामा य वशेषताएँ दखती ह। कुछ ग त व धयाँ जैसे खात का रखरखाव, योजना,

14
टाफ को संग ठत करना, नदशन, बजट क रपो टग तैयार करना आ द दोन शासन क
मुख वशेषताएँ होती ह। नगम का वकास इसके वा ण य के बीच एक समझौता होता है
तथा वभाग के कार, समकाल न प से शासन म
च लत हुए ह। इस लए लोक एवं
नजी शासन म काफ समानताएँ पाई जाती ह। इन समानताओं के अ त र त, ये दोन
व भ न पयावरण म काय व दशन भी भ न करते ह तथा यह बाहर लोग के समूह
वारा भा वत होते ह। िजस पयावरण म लोक शासन काय करता है , वह संर णा मक
ि टकोण को बढ़ावा दे ता है और यह जनता को बड़े पैमाने पर लाभ दे ता है ता क
उ रदा य व व जवाबदे ह को तय कया जा सके। पॉल एच. एपलबी के श द म “सरकार
शासन सभी दस
ू रे शासक य काय से एक सीमा तक भ न होता है और बाहर से उसका
आभास तक नह ं होता है , य क सावजा नक लोक शासन का ल ण है , जनता नर ण व
समी ा तथा उसक माँग कर सकती है । शासक के सेवा म आने पर या तुरंत उसके बाद
भी शासक के जीवन क येक ग त व ध, यि त व तथा आचरण पर समाचार-प और
सावजा नक हत का भाव पड़ता रहता है। यह सावज नक हत ाय: शासक य काय का
आधार होता है । जब क नजी यापार म केवल संगठन के आंत रक हत को सवा धक मह व
दया जाता है ।”
आकृ त 1 : सावज नक और नजी शासन के बीच अंतर

उनके अनस
ु ार तीन कारक वारा लोक और नजी शासन को अलग कया जा
सकता है , वे इस कार है —

1. े , भाव व वचार

2. जनता के त उ रदा य व

3. राजनी तक कृ त

15
आकृ त 2 : पॉल एच. एपलबी के अनुसार सावज नक और नजी शासन के बीच अंतर

लोक एवं नजी शासन के बीच मु य अंतर न न ल खत ह—

1. थम और आव यक अंतर यह है क ये दोन ह लाभ क नी त पर आधा रत ह।


इससे पूव यह गैर लाभ पर आधा रत थे, ले कन बाद म यह लाभ पर आधा रत बन
गए।

2. लोक शासन कानूनी ता कक यव था पर आधा रत है , िजसका अथ है क कानून के


आधार पर ह चलता है। वह ं दस
ू र ओर, नजी शासन इतना अ धक नयम पर
आधा रत नह ं होते ह, नजी यापार, कसी नयम से बंधे नह ं होते ह, ले कन ये एक
लचीले पयावरण म काय करते ह। जो इ ह प र य को प रव तत करने म सहायक
होते ह।

3. लोक शासन क या आलोचना व यापक चार के लए खल


ु होती है । शायद ह
एक उपलि ध को कभी वीकृत कया जाता है , ले कन एक सम या समाज म बड़ी
सम या को ज म दे ती है ।

4. लोक शासन न प प से जनता से समझौता करता है और कोई भी प पात आम


जनता के साथ नह ं कया जाता है । यह महसूस कया गया है क ि थरता का
स धांत होता है ले कन नजी शासन म खल
ु े तर के से भेदभाव होता है ।

5. लोक शासन अ धक ज टल है और सरकार के काय म के नणय के लए जाना


जाता है । इसक यव था म कई राजनी तक दबाव होते ह। कई वचार मलते ह और
उनके बीच वचार- वमश वारा ह नणय लया जाता है । ले कन नजी शासन
16
अ धक सस
ु ंग ठत होता है और संचालन म केवल एक यि त का दमाग (एका धकार)
होता है ।

6. लोक शासन के ऊपर रा नमाण एवं समाज के भ व य के त उ रदा य व होता


है । जो क अ धक मू य उ मुखी है ।

7. यह अ नवाय प से अ धक लालफ ताशाह पर आधा रत है , जब क नजी शासन म


यह नह ं है ।

8. लोक शासन क ग त व धयाँ अ नवाय प से संवैधा नक, वैधा नक ा धकार पर


आधा रत ह। नजी शासन म अ धक वतं ता होती है ।

9. लोक शासन पयावरण म प रवतन को धीरे -धीरे सि म लत करता है , य क इसके


साथ कई आ थक मु दे व साथ ह साथ ज टल पयावरणीय कारक भी जुड़े हुए होते ह।
ले कन नजी शासन म तेजी से बदलाव आते ह।

10. लोक शासन बजट पर आधा रत है ।

न कष

लोक शासन एवं नजी शासन एक कार से म त संक पना है , जहाँ इसम कुछ
समानताएँ ह, वह ं असमानताएँ भी नजर आती ह। शासन क अवधारणा सावभौ मक है
और यह समय के साथ अ धक मह वपण
ू हो रह है । नजी े अ धक अनक
ु ू ल है और
नवीनता व प रवतन का समथन करता है । नजी शासन अ धक लचीला है य द इसक
तल
ु ना लोक शासन से क जाए। नजी े प रि थ तय व ि थ तय के साथ प रवतन
लाने का यास करता रहता है जैसे क आ थक मु द को सल
ु झाने म, राजनी तक व
सामािजक व प रवतन म और इस लए यह पन
ु वचार क या को उजागर करता है , इस
कार यह प रवतन को समावेश करता है ।

संदभ सूची

 Perry, J. L. (2000). Bringing society in: Towards a theory of public-service


motivation. Journal of Public Administration Research and Theory, 10(2), 471-488.
 Hansen, S.B., Huggins, L., & Ban, C. (2003). Explaining employee recruitment and
retention by non-profit organizations: A survey of Pittsburgh Area University
graduates. Report to the Forbes Fund, December. Retrieved 10/9/08 at
http://www.forbesfunds.org/docs/PittsburghAreaGraduates.pdf.

17
लोक शासन का वकास
डॉ. रंक
अनुवादक : आशीष कुमार शु ल

 प रचय

 लोक शासन के वकास के व भ न चरण


­ थम चरण—राजनी त शासन वभाजन (1887-1926)

­ वतीय चरण— शासन के स धांत (1927-1937)

­ तत
ृ ीय चरण—चन
ु ौ तय का यग
ु (1938-1947)
­ चतथ
ु चरण—अि मता का संकट (1948-1970)
­ पंचम चरण—सावज नक नी त प र े य (1970 से आगे)

 लोक शासन के े म नवीन व ृ याँ

 न कष

 संदभ

प रचय

शासन हमारे जीवन क दै नक ग त व धय से संब ध है तथा इसे एक मह वपूण प माना


जाता है , िजसम यह दे खा जा सकता है क सरकार द ता तथा कम लागत के साथ कैसे
उ कृ ट काय कर सकती है । लोक शासन आधु नक समाज म एक मह वपूण भू मका का
नवहन कर रहा है । यह कहा जा सकता है क लोक शासन लोग को सेवाएँ दान करने
का एक साधन है । यह कानून तथा यव था बनाए रखते हुए लोग के जीवन तथा संप क
र ा करता है । एक ग त व ध के प म लोक शासन उतना ह ाचीन है िजतनी क मानव
स यता। यह भी कहा जा सकता है क लोक शासन उतना ह ाचीन रहा है , िजतनी क
सरकार। शासन तथा सरकार पर पर जुड़े हुए ह। राजनी त के व वान ने सरकार के काय
तथा उसके सं वधान, रा य क कृ त, सं भतु ा तथा शि त के वषय पर यवि थत प से
लखा है । एक यवि थत अ ययन या अकाद मक अनश
ु ासन के प म लोक शासन के
वकास का ु रो व सन का लेख ‘द
ार भ उ नीसवीं शता द के उ रा ध से हुआ है , जब वड
टडी ऑफ एड म न े शन’ 1887 म पॉ ल टकल साइंस वाटरल म का शत हुआ था।
परं तु इस समय तक लोक शासन को व ान क एक शाखा के प म नह ं माना जाता था।

18
लोक शासन के वकास के व भ न चरण

लोक शासन को उस संदभ म समझने क आव यकता है िजसम इसक उ प


हुई है ।
समय के साथ-साथ रा य क ग त व धय म प रवतन आया है तथा साथ ह रा य को
चलाने वाले लोक शासन का व प भी बदला है । आधु नक समय म लोक शासन के
व प को रा य के प रव तत सामािजक-आ थक संदभ म समझा जा सकता है । यह कहा जा
सकता है क लोक शासन सामािजक-आ थक संदभ म कसी वशेष उ दे य को ा त करने
का काय है । लोक शासन म स धांत तथा यवहार दोन सि म लत ह। लोक शासन के
वकास के व भ न चरण म इसके स धांत तथा यवहार दोन का अ ययन कया जा
सकता है । इस कार, लोक शासन के वकास का व लेषण पाँच चरण म कया जा सकता
है ।

­ थम चरण— राजनी त शासन वभाजन (1887-1926)

­ वतीय चरण— शासन के स धांत (1927-1937)

­ तत
ृ ीय चरण— चन
ु ौ तय का यग
ु (1938-1947)

­ चतुथ चरण— अि मता का संकट (1948-1970)

­ पंचम चरण— सावज नक नी त प र े य (1970 से आगे)

थम चरण— राजनी त शासन वभाजन (1887-1926)

उ नीसवीं शता द के अं तम दशक के म य, रा य क भू मका यन


ू तम थी; मु त
त पधा तथा मु त बाजार को मह व दया गया तथा रा य को एक आव यक बरु ाई के
प म दे खा गया। इन प रि थ तय म नजी े वारा सावज नक सेवाएँ दान क ग ।
लोक शासन के मौ लक स धांत इन ारं भक दन म उभरे तथा यह कहा जा सकता है
क यह लोक शासन के वकास का पहला चरण था। वह ं 1887 म वुडरो व सन का लेख
‘द टडी ऑफ एड म न े शन' पॉ ल टकल साइंस वाटरल ’ म
का शत हुआ था, िजसे लोक
शासन का थम लेख माना जाता है । यह लेख ऐसे समय म लखा गया था जब जन हत
म सेवाएँ दान करने के लए टाचार को मटाने तथा द ता बढ़ाने क आव यकता थी।
उनका मानना था क शासन का वै ा नक अ ययन होना चा हए। शासन के वै ा नक
अ ययन से उनका ता पय यवि थत ान क एक शाखा से था जो शासन के े म
सुधार कर सके तथा इस े म क मय को कम कर सके।

व सन के लेख के काशन के साथ वा तव म एक नवीन यग


ु का ारं भ हुआ, िजसम
लोक शासन का अ ययन धीरे -धीरे वक सत हुआ। व सन ने राजनी त तथा शासन के
म य अंतर करते हुए तक दया क शासन केवल नी तय के काया वयन से संबं धत है ।

19
अतः इस चरण को राजनी त तथा शासन के वभाजन के प म भी जाना जाता है ; जहाँ
राजनी त का काय नी तयाँ बनाना तथा शासन का काय नी तय को कायाि वत करना था।

य य प, व सन का काय लोक शासन के वकास म थम पग माना जाता है ; परं तु


1900 म ु नो के लेख ‘पॉ ल ट स एंड एड म न
क जे गड े शन’ के काशन वारा इसे
वीकृ त भी दान क गई। इस लेख म उ ह ने राजनी त तथा शासन को पथ
ृ क् करने क
बात क ; तथा इसे सरकार के दो पथ
ृ क् -पथ
ृ क् काय के प म माना। जहाँ राजनी त का
संबंध रा य क नी तय क अ भ यि त से है , वह ं शासन का संबंध इन नी तय के
या वयन से है । इसके अंतगत, लोक शासन का काय कानून यव था बनाए रखना तथा
कर एक त करना था। बीसवीं शता द के ारं भ म लोक शासन पर यान दया गया।
संयु त रा य अमे रका म व व व यालय म सावज नक सेवा आंदोलन हुए, िज ह ने लोक
शासन के वकास म योगदान दया।

1914 म अमे रकन पॉ ल टकल साइंस एसो सएशन क स म त ने सरकार पद के लए


वशेष को तैयार करने के लए श ण पर अपना तवेदन दया। 1912 म लोक सेवा
के लए यावहा रक श ण पर स म त क थापना क गई थी। 1914 म इसने अपनी
रपोट तुत क , िजसम लोक शासक को श त करने के लए वशेष यावसा यक
कूल क अनुशंसा क गई थी।

1920 के दशक म, लोक शासन ने एल.डी. हाइट के काशन ‘इं ोड शन टू द टडी


ऑफ पि लक एड म न े शन’ के साथ शै क वैधता ा त करना ारं भ कया। इस पु तक
को इस े क थम पु तक के प म मा यता द गई थी। इस समय लोक शासन का
मु य सरोकार मू य मु त व ान पर बल दे ने के साथ-साथ बढ़
हुई द ता के साथ
उ पादन क लागत को कम करना था। इस चरण म राजनी तक तथा शास नक काय को
वभािजत कया गया था। राजनी तक शास नक वभाजन के इस चरण म शासन को एक
वैचा रक आधार दया गया था। इस चरण के दौरान, सरकार के दो काया मक े दे खे गए,
एक शास नक तथा दस
ू रा राजनी तक।

वतीय चरण— शासन के स धांत (1927-1937)

बीसवीं शता द के ारं भ म लोक शासन तथा रा य के


प म एक वैचा रक प रवतन हुआ।
सामािजक सुधारवाद पर बल दया गया था, न क पारं प रक ढ़वाद पर। इस दौरान जनता
तथा नजी शासन के म य साझेदार
ि टगत हुई। शासन के उन सावभौ मक स धांत
का पता लगाना आव यक समझा गया जो सभी रा पर लागू हो सकते ह। इस चरण के
तहत भी राजनी त तथा शासन के वभाजन पर बल दया गया तथा एक ‘मू य मु त
बंधन व ान’ वक सत करने का यास कया गया। न संदेह, पहले चरण म राजनी त

20
तथा शासन का वभाजन कया गया था जो दस
ू रे चरण म भी लया गया था, परं तु पहले
चरण म अ ययन क व ध व धक के थान पर वै ा नक थी।

लोक शासन के स धांत पर ड यू.एच. वलोबी क पु तक लोक शासन के े म


दस
ू र पु तक के प म उभर िजसम शासन के वै ा नक स धांत पर अ धक बल दया
गया। कहा जाता था क य द शासक इन स धांत को लागू करना सीख ल तो वे अपने
काय को उ कृ ट प से कर सकते ह। े ड रक टे लर के काय तथा उनके वै ा नक बंधन
के स धांत ने लोक शासन के े म मह वपूण भाव डाला। टे लर का मानना था क
बंधन का उनका वै ा नक स धांत सावभौ मक है ।

इस चरण को लोक शासन के कुछ अ य स धांत के साथ चि नत कया गया था।


हे नर फेयोल क पु तक ‘इंडि यल एंड जनरल मैनेजमट’ (1930) ने संगठन के वषय म
चौदह स धांत क ववेचना क । मैर पाकर फ़ॉलेट का ‘ ए टव ए स प रय स’ (1924),
ू ी तथा रे ल , ‘ ं सप स ऑफ ऑगनाइज़ेशन’, चे टर बनाड का ‘ए म न
मन े टव मैनेजमट’,
गु लक तथा उ वक, ‘पेपस ऑन द साइ स ऑफ एड म न े शन’ (1937) ने संगठन के सात
स धांत के वषय म व तार से बताया तथा पो डकॉब (POSDCORB) श द गढ़ा।

इस चरण म लोक शासन के सभी वचारक ने वै ा नक स धांत पर बल दया।


राजनी त- शासन के वभाजन के वचार को यथावत रखा गया तथा बंधन के मू य-मु त
व ान पर बल दया गया। इस चरण म कहा गया क शासन के नयम उपि थत ह,
िज ह खोजा तथा बढ़ाया जाना चा हए। अथ यव था तथा द ता को शास नक णाल के
मु य उ दे य तथा स धांत के प म सि म लत कया गया था िजससे क कम मू य पर
शासन म उ कृ ट सेवाएँ दान क जा सक।

य द व सन को लोक शासन का नेता माना जाता है तो मै स वेबर को लोक शासन


के वषय पर एक आदशवाद माना जाता है । वेबर क आदशवाद नौकरशाह कसी भी
संगठन क अवधारणा के लए मौ लक रह है जो मू य मु त भी है । उ ह ने सामािजक
संगठन क अवधारणा को तुत कया है तथा संरचना मक वशेषताओं क ववेचना क है ,
िजसम म वभाजन तथा काय के पदानु म को एक मह वपूण वशेषता के प म दे खा जा
सकता है । ऐसा कहा जाता है क वेबर क नौकरशाह अवैयि तक तथा तट थ है िजसे
तकह न तथा भावना मक मू य से दरू रखा गया था। इस चरण म शासन के इन
स धांत ने यह समझने म सहायता क क संगठन कस कार काय करते ह।

तत
ृ ीय चरण— चन
ु ौ तय का युग (1938-1947)

1930 के दशक म रा य क कृ त म प रवतन दे खा गया, िजसने लोक शासन क कृ त


को भी भा वत कया। नजी े तथा बाजार नाग रक क आव यकताओं को पूण करने म
वफल रहे । बाजार को रा य के नयं ण म लेना पड़ा। यह आव यक समझा गया क

21
सावज नक बंधन के लए सावज नक सेवाओं के त यावसा यक ि टकोण रखने वाले
कुछ पेशव
े र यि तय क आव यकता होती है । लोकतं के अंतगत आदश मू य पर बल
दया गया। यह वीकार कया गया क आ थक, सामािजक तथा राजनी तक नी तय का एक
दस
ू रे पर भाव पड़ता है । लोक सेवक के काय म न केवल कानून तथा यव था बनाना
सि म लत है , अ पतु सावज नक नी तय के नमाण म उनक मह वपूण भू मका को भी
वीकार कया गया था। यहाँ वभाग न तो एक-दस
ू रे से अलग थे तथा न ह काय वभािजत
था। इस चरण म यह अनभ
ु व कया गया क राजनी त तथा शासन आपस म संब ध ह।

यह वह समय था जब 1940 के दशक म वै ा नक बंधन क आलोचना क गई थी।


यह अनुभव कया गया क कसी संगठन म उ पादकता बढ़ाने के लए न केवल वै ा नक
स धांत पर बल दया जाना चा हए, अ पतु मानवीय प भी एक मह वपूण भू मका का
नवहन करता है; वै ा नक बंधन क सीमाओं को काश म लाया गया। ए टन मेयो,
चे टर बनाड तथा स आ ग रस आ द वचारक ने लोक शासन म मानवीय प पर बल
दया। 1938 म, चे टर बनाड क पु तक ‘द फं श स ऑफ द ए जी यू टव’ का शत हुई,
िजसम अनौपचा रक संगठन क मह वपूण भू मका क ववेचना क गई थी, परं तु लोक
शासन पर इसका भाव प ट नह ं था। परं तु उनके काम ने हबट साइमन को भा वत
कया; साइमन ने (1947) म ‘एड म न े टव बहे वयर’ लखा; बंधन से संबं धत याओं
को समझने के लए पेशव
े र तथा बंधक के लए लखी गई एक बहुत ह भावशाल
पु तक। इस पु तक म साइमन ने शासन के स धांत को नी त-वचन कहा है ।

इस दौरान यह मान लया गया क शासन तथा राजनी त को एक-दस


ू रे से पथ
ृ क् नह ं
कया जा सकता है । फ़ ज़ मो ट न मा स ने 1946 म ‘ए लम स ऑफ़ पि लक
एड म न े शन’ का पहला खंड तैयार कया, िजसम उ ह ने शासन तथा राजनी त के
वभाजन पर न उठाया। इस खंड म, चौदह लेख सि म लत कए गए थे, जो इस वषय म
जाग कता उ प न करते थे क िजसे ायः मू य मु त राजनी त के प म दे खा जाता है,
वह मूल प से मू य से भरा शासन है । मू य मु त शासन को चन
ु ौती दे ने वाल ने इस
बात पर बल दया क लोक शासक तथा नवा चत पदा धकार राजनी तक नणय लेने तथा
सावज नक नी तयाँ बनाने म सि म लत थे। राजनी त तथा शासन के वभाजन को चन
ु ौती
दे ने वाल ने लोक शासन के े म बौ धक प रवतन कए। कहा गया क शासन कभी
भी राजनी त से पथ
ृ क् नह ं रहा। इसके साथ ह यह भी कहा गया क ऐसी कोई चीज नह ं है
िजसे हम शासन के स धांत कह सक। शासन के येक स धांत के साथ, एक वरोधी
स धांत उपि थत होता है , इस कारण शासन के स धांत क धारणा ायः ववा दत रहती
है ।

22
चतुथ चरण— अि मता का संकट (1948-1970)

इस चरण म लोक शासन क अवधारणा म प रवतन हुआ तथा वै ा नक स धांत क


आलोचना के साथ-साथ अंतर-अनुशासना मक अ ययन तथा व लेषण पर बल दया गया।
यह चरण 1947 म साइमन क पु तक ‘एड म न े टव बहे वयर’ तथा रॉबट डाहल के
नबंध ‘साइंस ऑफ पि लक एड म न े शन : ी ॉ ल स’ के काशन से ार भ होता है ।
साइमन ने न केवल शासन के स धांत क सीमाओं के वषय म बात क , अ पतु लोक
शासन के वै ा नक व लेषण को भी मह व दया। उ ह ने नी त- नमाण के तकसंगत
स धांत पर बल दया, िजसम साधन तथा सा य के म य संबंध पर काश डाला गया।
साथ ह उ ह ने लोक शासन के े म मनोवै ा नक एवं सामािजक-मनोवै ा नक व धय
का योग कर वै ा नक व लेषण लाने क बात कह । इस चरण के म य लोक शासन को
मनो व ान, अथशा , राजनी त तथा समाजशा से जोड़ने का यास कया गया।

साइमन ने कहा क शास नक स धांत मानवीय इ छाओं के तक तथा मनो व ान से


लए गए ह। यहाँ, साइमन ने दो ि टकोण क ववेचना क ; थम खंड म उ ह ने कहा क
शासन व ान के वकास का सामािजक मनो व ान से गहन संबंध है । दस
ू रे ि टकोण म
मूलभूत प पर बल दया गया िजसम इस वचार पर बल दया गया क सावज नक नी त
कस कार क होनी चा हए। इसके अंतगत सावज नक नी त के लए नदश दए जाते ह
तथा समाजशा व अथशा के व लेषण को राजनी त व ान के साथ जोड़ दया जाता
है । य य प, साइमन इस बात से अवगत थे क इस कार से लोक शासन अपना वतं
अि त व खो सकता है । परं तु उ ह ने इस बात पर भी बल दया क दोन वचार एक साथ
उपि थत होने चा हए, य क एक वषय के प म लोक शासन का वकास उन पर नभर
है ।

1920 के दशक के अंत म ए टन मेयो क दे ख-रे ख म वे टन इलेि क कंपनी के


हॉथोन योग कए गए। इन योग म समूह म मानव यवहार का व लेषण कया गया।
इसके साथ ह वतीय व वयु ध के प चात ्, व भ न व व व यालय म मानव के यवहार
को समझने के लए अ ययन कए गए तथा मा लो व हज़बग के अ ययन स हत शासन
के मानवीय प पर बल दया गया। इन दोन ने सामािजक वातावरण तथा काय
प रि थ तय के त सामू हक ि टकोण को मह व दया। इसम कहा गया है क कमचार
उ मुख पयवे ण आ धका रक पयवे ण क तुलना म अ धक भावी है । इन अ ययन ने
काय प रि थ तय के सामािजक तथा मनोवै ा नक कारक को यान म रखते हुए संगठन
क यां क अवधारणाओं क सीमाओं पर काश डाला।

इस चरण म शासन के वकास म तीन मह वपूण सम याओं का उ लेख कया गया


है । पहल सम या म यह बताया गया था क व ान मू य मु त है , जब क मू य शासन

23
को भा वत करते ह। दस
ू र सम या म कहा गया है क लोक शासन के व ान के वकास
के लए मानवीय प का अ ययन आव यक है। मानव यवहार सभी संभा वत व वधताओं
तथा अ नि चतताओं से भरा है, िजसके कारण इसे वै ा नक प से जाँचना असंभव है ।
तीसर सम या के अंतगत, यह कहा गया है क सी मत रा य एवं ऐ तहा सक संदभ से
लए गए उदाहरण के आधार पर सावभौ मक स धांत का पता लगाने क वृ है । यहाँ
शासन के मूल स धांत क नंदा क गई तथा कहा गया है क लोक शासन वै ा नक
नह ं अ पतु मौ लक, सावभौ मक नह ं अ पतु रा क सं कृ त से जड़
ु ा हुआ है । इस कार
डाहल वारा व णत ये सम याएँ शासन व ान के वकास म बाधा उ प न करती ह।

पंचम चरण— सावज नक नी त प र े य (1970 से आगे)

वतीय व वयु ध के प चात ्, ए शया, अ का तथा लै टन अमे रका म नए रा का


नमाण हुआ है , तथा लोक शासन के अ ययन म नवीन व ृ याँ तत
ु क गई ह। इस
दौरान नए वतं रा के शास नक व प को नए प रवेश म समझना आव यक था।
पि चमी व वान , वशेष प से संयु त रा य अमे रका के व वान ने नए वतं रा क
शास नक कृ त का अ ययन करने म अ धक च य त क । यह कहा जा सकता है क
इस समय पा रि थ तक त व क ासं गकता को वीकार कया जा रहा था। इसी प र े य
म रा क वभ न शास नक यव थाओं के भाव का अ ययन करने पर बल दया
गया। इस समय के दौरान शासन के अ ययन ने तुलना मक, पा रि थ तक तथा वकास
शासन पर बल दया, िजसम वाइट वा डो, ड यू. र स तथा एडवड वडनर ने मुख प
से योगदान दया तथा उन सभी ने लोक शासन के े के व तार पर बल दया।

इसके साथ ह इस चरण के दौरान लोक शासन म नव-लोक शासन प र े य का


उदय भी दे खा जा सकता है ; जहाँ 1960 के दशक के अंत म लोक शासन क समकाल न
कृ त को नां कत गया था। नव-लोक शासन का ारं भ 1968 के मनो क
ु स मेलन से
हुई। मनो क
ु स मेलन ने लोक शासन के े म एक नवीन यग ु का सू पात कया,
िजससे क लोक शासन के अ ययन तथा यवहार को सामािजक, ासं गक तथा उ रदायी
बनाया जा सके। इसके अंतगत कहा गया क शासन म राजनी त को ाथ मकता द जाए।
यह कहा जा सकता है क अमे रक व वान क एक नई पीढ़ वारा अमे रक लोक
शासन के े म एक नया आंदोलन
ारं भ हुआ। इन व वान ने सावज नक उ दे य तथा
मू य के संर ण क माँग क । नव-लोक शासन के अंतगत चार मु य त व पर बल दया
गया, िजसम ासं गकता, मू य, समानता तथा प रवतन सि म लत ह।

इस चरण के दौरान लोक शासन के वकास म नी त चयन का कूल एक अ य


मह वपूण अनुशासन के प म उभरा िजसम नौकरशाह के एका धकार से उ प न होने वाल
बुराइय को समा त करने का यास कया गया है । कहा गया क नौकरशाह पर नयं ण

24
होना चा हए। इसने त पधा तथा नजीकरण पर बल दया। नी त चयन का कूल मानता
है क नाग रक को सेवाएँ दान करने के लए वक प उपल ध होने चा हए। इसके अंतगत
रा य के भु व को बाजार क भू मका ने चन
ु ौती द । साथ ह , यह गैर-नौकरशाह नाग रक
भागीदार संगठन के वक प तथा नौकरशाह क शि त को कम करने क संभावनाओं के
साथ था पत हुआ।

बीस वष के प चात ्, 1988 म मनो ुक स मेलन-II लोक शासन के वकास म एक


मील का प थर था तथा इसम नए सावज नक बंधन ि टकोण पर बल दया गया था। इस
स मेलन का उ दे य प रव तत समय म शासन के व प को प रव तत करना था। यह
पि चमी दे श म हो रहे प रवतन को दशाता है । रा य, िजसे अब तक सामािजक याय के
मु य अ भकता के प म दे खा जाता था, 1970 के दशक म रा य क भू मका पर न
उठाया गया था। येक े म रा य क भू मका को कम करने का यास कया गया।
उ नत पि चमी दे श के शासन म प रवतन ने नव-लोक बंधन के वकास म योगदान
दया था।

तत
ृ ीय मनो ुक स मेलन 2008 म आयोिजत कया गया था। इस स मेलन म,
लोकतं , नै तकता, उ रदा य व, दशन तथा अथशा क जाँच क गई तथा सेवा
आव यकताओं क उ च गुणव ा पर बल दया गया। ल य को पूरा करने पर सावज नक
बंधक , संगठन तथा यि तय क वाय ता बढ़ाने के साथ-साथ स मा नत कया जाना
चा हए। नाग रक को सेवाएँ दान करने म अ छा दशन करने के लए आव यक मानव
तथा तकनीक संसाधन उपल ध कराए जाने चा हए। ओसबोन एंड गे लर के काशन
‘र इ व टंग गवनमट’ (1992) ने सरकार के काय को पुनः प रभा षत कया, उ य मता
सरकार पर बल दया गया; जहाँ माप तथा मू यांकन के मा यम से लोक बंधन म सुधार
होगा तथा सरकार क भू मका यून हो जाएगी; तथा अंत म इसम चय नत सावज नक े
क इकाइय (पीएसयू) का नजीकरण सि म लत है ।

इसका मु य उ दे य नाग रक के हत को यान म रखना; पारं प रक नौकरशाह को


कम करना तथा लोकतां करण तथा वक करण पर यान क त करना था। यहाँ के नव-
लोक बंधन का मु य उ दे य नाग रक को सश त बनाना था। इसम सहभागी बंधन तथा
सामुदा यक शासन भी सि म लत था तथा नाग रक को स य उपभो ताओं के प म दे खा।
शासन म गैर सरकार संगठन तथा समुदाय आधा रत संगठन क भू मका को वीकार
कया गया। इ ह पूरक सावज नक अ भकरण के प म दे खा गया। नव-लोक बंधन म यह
भी कहा गया था क नाग रक को काय म तथा नी तय के नि य ा त-कता के प म
नह ं दे खा जा सकता है ।

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लोक शासन के े म नवीन व ृ याँ

एक वषय के प म लोक शासन के वकास म वै वीकरण एक अ य घटना रह है िजसने


लोक शासन के े तथा इसक कृ त को प रव तत कर दया है । इसने शासन क
पारं प रक संरचना को प रव तत कया; तथा सहयोग व नेटवक के मा यम से इसने शासन
के े को अ धक लचीला, कम पदानु मत तथा उदार बनाया था। वै वीकरण ने नई
चन
ु ौ तयाँ तुत क ं तथा इन नई चन
ु ौ तय से लड़ने के लए लोक शासन के व प को
प रव तत करना आव यक था। वै वीकरण ने एक ऐसे सावज नक शासन क आव यकता
पर बल दया जो स य हो। इस समय यह अनुभव कया गया क लोक शासन के
पारं प रक स धांत या अवधारणाओं का वतमान समय म कोई मह व नह ं है ।

1990 के दशक से ह वै वीकरण के दौर म सुशासन को अ धक मह व दया जा रहा है ।


वै वीकरण के साथ-साथ, रा य क कृ त प रव तत हो गई है ; शासन के प म भी
प रवतन आया है तथा रा य के म य बातचीत बढ़ है । सुशासन के लए कुछ मापदं ड
नधा रत ह। 1989 म उप सहारा अ का पर व व बक के एक तवेदन म कहा गया था
क उस े म वकास के लए कया गया नवेश असफल रहा, य क वहाँ कोई सश
ु ासन
नह ं था। व व बक वारा 1992 म सश
ु ासन को प रभा षत कया गया था, िजसम चार
प के मा यम से इसका पर ण कया जा सकता है — सावज नक े के बंधन,
उ रदा य व, वकास के लए कानन
ू ी संरचना, सच
ू ना तथा पारद शता। सश
ु ासन म रा य को
एक ऐसे मा यम के प म दे खा गया है जो बाजार णाल का समथन करता है । व व बक
वारा रा य क भू मका क या या क गई है क रा य के दो दा य व ह। सबसे पहले,
रा य या सरकार बाजार के सुचा संचालन के लए आव यक नयम बनाएगी तथा उ ह
लागू करे गी। दस
ू रा, य द बाजार वफल हो जाता है तो सध
ु ार के लए ह त ेप करना।

1990 के दशक के अंत म जेनेट डेनहा ट ने नया सावज नक सेवा तमान तुत
कया, िजसम लोकतां क स धांत पर बल दया गया। डेनहा ट तथा डेनहा ट ने अपने
काशन ‘द यू पि लक स वस : स वग रादर दे न ट य रंग’ म सरकार वारा नाग रक क
सेवा करने पर बल दया। इस काशन म कहा गया है क सरकार यवसाय के प म नह ं
चल सकती, परं तु सरकार को लोकतं क तरह चलना चा हए। नाग रक के त अ धका रय
के उ रदा य व पर बल दया गया है जहाँ अ धकार नाग रक को सेवाएँ दान करते ह।
अ धका रय का नाग रक के त जुड़ाव होना चा हए। उनम समाज के त सेवा क भावना
होनी चा हए। इसके अंतगत शासन क या म नाग रक क भागीदार से सह-शासन क
एक नई सं कृ त क थापना पर बल दया गया।

वै वीकरण के अंतगत, सामािजक, आ थक व राजनी तक प रवतन सामने आए, िजससे


शासन के पारं प रक प म लचीलापन आया। इसम पदानु म था तथा नेटवक व भागीदार

26
पर बल दया गया था, जो नौकरशाह से दरू था। सावज नक सेवाओं तथा व तुओं के
वतरण म भी प रवतन हुआ। सावज नक सेवाएँ तथा व तुओं का वतरण लोक शासन के
मह वपूण काय थे। वै वीकरण के समय म लोक शासन का एक सहकार व प
क याणकार रा य क भू मका को कम करने म उभरा। क याण वतरण के नजीकरण को
बढ़ाने के लए व भ न तर क का योग कया गया; इसम नजी ावधान तथा वैि छक
े को बढ़ावा दे ना भी सि म लत है । इसका अथ यह नह ं है क इसने लोक शासन को
अनाव यक बना दया था। लोक शासन अभी भी मह वपण
ू है । लोक शासन क क यता
को न तो रा य वारा नकारा जा सकता है तथा ना ह बाजार वारा।

न कष

लोक शासन एक वषय के प म उ नीसवीं सद के अंत म वक सत हुआ। वतमान समय


म भी लोक शासन के वकास क सतत या दे खी जा सकती है । इस समय के अ तराल
म रा य के प रव तत व प के साथ-साथ लोक शासन के वकास के व भ न चरण म
लोक शासन के प रव तत व प को दे खा जा सकता है । यह कहा जा सकता है क समय
के साथ सामािजक, आ थक तथा राजनी तक प रवतन के साथ-साथ लोक शासन का प,
उसके स धांत तथा यवहार भी प रव तत होते रहे ह। लोक शासन के वकास पर जो बल
दया गया था; तथा लोक शासन के पारं प रक नौकरशाह तथा संरचना मक प स हत
ार भ म इसके पारं प रक स धांत को वतमान म लोक शासन के सहभागी प से बदल
दया गया है ।

संदभ

Bhattacharya, M. (2011). New Horizons of Public Administration. New Delhi: Jawahar Publishers.
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27
इकाई-2 : शास नक स धांत

शा ीय स धांत
वै ा नक बंध ि टकोण
डॉ. धां वता संह/डॉ. रंक
अनव
ु ादक : वशाल कुमार गु ता

 प रचय
 एफ. ड ल.ू टे लर : रचनाएँ एवं प ध तयाँ
 वै ा नक बंध ि टकोण
 वै ा नक बंध स दांत : एफ. ड ल.ू टे लर
1. काय का व ान व उसका वकास
2. वै ा नक चयन व मक का वकास
3. काय व ान का संयोजन एवं मक का वै ा नक चयन
4. मक एवं बंधन : उ रदा य व का बँटवारा
 वै ा नक बंध आंदोलन
 आलोचना
 न कष
 संदभ

प रचय

वै ा नक बंध ि टकोण का शास नक बंधन म अ यंत मह वपूण थान है । यह


ि टकोण 19वीं शता द के प चात ् के काल म वक सत हुआ। वै ा नक बंध ि टकोण
यां क ग त के कारण उभरती हुई ज टल ि थ त का यान रखता है । े ड रक व सल
टे लर को वै ा नक बंध के पूवज म से एक माना जाता है , िज होन शोध के माग को
खोला है । एफ.ड यू. टे लर का ज म जमनी के एक शहर म 20 माच, 1856 को हुआ था।
उ ह यूरोप के दो रा य से अपना अनुभव ा त हुआ। एक वा तुकार होते हुए उ ह ने कई
प ध तय के सुधार म अनेक काय कए तथा कई उपकरण का नमाण कया। कुछ मुख
उपकरण का नमाण उ ह ने अ य उपकरण को काटने के लए, एक गम यं , लोहे का
हथौड़ा, जल के दबाव से चलने वाले व थकान कम करने वाले जैसे उपकरण का नमाण
कया। उ ह ने लगातार बोड के तर क को बढ़ाने पर बल दया। उ ह ने उपकरण के वकास
के लए ता कक या को उसी कार से रे खां कत कया िजस कार से काय म ता कक
या पर बल दया था। उनके भीतर सं था के लए नपुणता व काय म ता कक या
को करने के लए वशेष ऊजा पाई जाती है । अमे रका से लेकर पूव सो वयत संघ व अ य

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दे श म यह फैल गया, जहाँ पर इसने टे कनोवाईट आंदोलन (Stakhanovite Movement)
का प 1920-1940 के समय म ले लया।

टे लर के अनुसार “इन स धांत को सभी सामािजक ग त व धय म, हमारे घर के


बंधन म, कृ ष बंधन म, यापा रय वारा यापार के बंधन म, छोटे व बड़े चच म,
सं थान म, व व व यालय और सरकार सं थान म समान बल के साथ लागू कया जा
सकता है ।”

एफ.ड ल.ू टे लर : रचनाएँ एवं प ध तयाँ

टे लर का वै ा नक बंध का स धांत वयं म एक अ भुत स धांत है , जहाँ पर टे लर ने


मत य यता, काय मता और भावशीलता पर अ धक जोर दया। उ ह ने मु य प से
संगठन के उ पादन म सुधार पर बल दया। टे लर के कुछ मह वपूण काय उनके पूव लेख म
दखाई दे ते ह िजनक ओर उ ह ने अ धक बल दया।

टे लर के वै ा नक शास नक काय णाल के मह वपूण अवलोकन म उनके मुख काय


भी सि म लत ह, िजनम से उनक व श ट धारणाएँ न न ल खत ह—

1. कसी भी वशेष काय को समा त करने के लए एक नि चत समय सीमा का होना


आव यक है ।
2. काय के अनुसार वभेदा मक मजदरू दर।
3. उ चत थान पर उ चत यि त का होना।

टे लर ने अपने वै ा नक बंध म कुछ धारणाएँ भी बनाई, जो इस कार से ह—

1. टे लर ने इस बात पर बल दया है क कसी भी संगठन के काय म सुधार शोध और


योग क वै ा नक व धय ह वारा संभव है ।
2. एक अ छा मक ह बंधन के नदश का पालन व उसे वीकार करता है ।
3. यि त आ थक कारक वारा े रत हो सकता है ।

टे लर एक संगठन म रहे , जहाँ उ ह ने अनुभव और अ वेषण के मा यम से व भ न


काय म बंधन के त अपूणता क ओर यान दया। ये अपूणताएँ थीं— मक व बंधन
वारा दा य व क कमी क अनुपि थ त, यवसाय क कमी, काय के मानक का अभाव,
वक प के ता कक आधार क कमी, काय के वभाजन का अभाव और मक का व भ न
थान पर बना कसी मता, यो यता व इ छा के अनुसार चन
ु ाव होना।

टे लर लगभग 26 वष तक इसके यापक पर ण के अ वेषक/शोध पर नभर रहे ।


उ ह ने लोहे को काटने वाले उपकरण क जाँच क , आंदोलन का अवलोकन कया और काय
के दौरान मक का व तओ
ु ं पर नयं ण, मशीन व अ य उपकरण पर नयं ण को जाँचा।
टे लर ने व भ न काय के लए एक आदश अवधारणा को पाया। वे इस न कष पर पहुँचे क

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केवल उ चत यि त को ह व भ न काय के लए चय नत कया जाना चा हए। औ यो गक
संगठन म अपने योग के दौरान उ ह ने एक घटना दे खी जो क मक क ओर से
उ पादन को कम (Soldiering- काम से बचना) करने क वृ थी। उ ह ने इसे दो भाग म
वभािजत कया : ाकृ तक सो ड रंग तथा यवि थत सो ड रंग।

थम, यि तगत कारक जैसे आसानी से आदत बनाना, अ धक खंचाव न होना आ द


पर आधा रत है , वह ं वतीय, संगठना मक एवं सामािजक कारक का प रणाम है । उ ह ने
अनुभव कया क न न तर पर मक सुपरवाइजर क उ मीद पर खरा उतरने का यास
करते ह। उ ह ने पाया क संगठन क काय मता को बढ़ाने का तर का वै ा नक प ध तय
वारा सो ड रंग क या को कम करना है ।

वै ा नक बंध ि टकोण

वै ा नक बंध ि टकोण के संदभ म यह यां क प रवतन के शु आती चरण म आया।


इसने आधु नक सं कृ त क सम याओं के भाग को संबो धत करने का यास कया। यां क
समुदाय क मूलभूत चंताएँ उ पाकता म सुधार, लाभ लेने हे तु सज
ृ न के कम खच थे। यह
दो लंबी याओं
वारा पूण हुए। इस लए ये मानवीय नवीनता के प म पहचाने गए, अत:
इ ह ने मक के भावी बंधन के लए अ णी काय कए। दस ू रा काय है , नए बाजार का
वकास करना। टे लर ने इसे समकाल न सं कृ त से जोड़ने का यास कया। अब से यह
वै ा नक प ध तय पर अ धक बल दे ता है ।

वै ा नक बंध स धांत : एफ. ड ल.ू टे लर


टे लर ने अपने वै ा नक बंध के स धांत म चार मुख स धांत को रखा, िजसम उ ह ने
कसी भी संगठन के उ पादन म बढ़ोतर को मह वपूण माना, जो क इस कार से है —
1. व भ न बंधन काय म वै ा नक ि टकोण का वकास।
2. काय का कठोर वग करण एवं सतत श ण यव था।
3. वै ा नक ि टकोण एवं तकसंगत प से चय नत कायबल का म ण।
4. मा लक व मक के दा य व का नधारण।

1. काय का व ान व उसका वकास


टे लर ने यह यान दया क वै ा नक ि टकोण के लए कायबल आव यक है । उ ह ने माना
क एक काय को करने का उ चत प से तर का यवि थत अवलोकन वारा संभव है ।
उ ह ने परु ाने अंगठ
ू े के नयम को प रव तत करने क बात कह । इसम इक ठा करना,
रकॉड करना व ता लका बनाना आ द जैसे व भ न काय का अनभ
ु व और अंत म उन काय
पर आधा रत नयम को तैयार करना होता है । ये नयम वा त वक काय क ि थ त पर

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लागू कए जाते ह। यह सुपरवाइजर क बेवजह आलोचना को समा त करने का काम करता
है ।

2. वै ा नक चयन व मक का वकास
कायबल के चयन और नरं तर प से काय सं कृ त के वकास म वै ा नक ि टकोण का
होना आव यक है । टे लर का मानना था क येक मजदरू चाहे वह म हला हो अथवा पु ष
उनक वयं क मताएँ होती ह। इसम यवि थत श ण का होना आव यक है । वै ा नक
ि टकोण इस बात पर बल दे ता है क उ चत काय के लए उ चत यि त का चयन होना
अ यंत ह आव यक है । एक उ चत पयावरण को बनाया जाए ता क मक नए तर क ,
उपकरण व ि थ तय को भरपरू जोश के साथ वीकृत कर सके। मक के लए अवसर
को पैदा कया जा सके ता क उनके भीतर क मताएँ उभर सक।

3. काय व ान का संयोजन एवं मक का वै ा नक चयन


टे लर वारा वै ा नक बंध का तीसरा स धांत पहले व दस
ू रे स धांत का म ण है ।
इस लए उ ह ने इसको साथ लाने एवं काय व ान म वै ा नक चयन करने तथा कायबल के
वकास पर जोर दया। इसने वै ा नक बंध क योजना को आधार दान कया।

4. मक एवं बंधन : उ रदा य व का बंटवारा

टे लर ने इस बात पर बल दया क मा लक एवं मक के म य म वभाजन एक संवाहक


पयावरण म साझा िज मेदा रय के साथ हो। च लत अ यास म, संगठन म उ प न हुई
कसी भी सम या क उ प म मक को ह दोष दया जाता था। अतः टे लर ने इन दोन
के म य समान उ रदा य व के वभाजन को मह वता द जो क एक भाग के अ धक भार
को कम करने म मदद कर सकता है । इस कार क साझा िज मेदा रयाँ एक चंता मु त
वातावरण का नमाण करने म सहायक होती ह।

वै ा नक बंध आंदोलन

वै ा नक बंध के वषय म सव थम बात करने वाले यि त लुईस डीस (Louis Brandies)


(1910) थे। टे लर ने अपने वै ा नक बंध के स धांत क सावभौ मक यावहा रकता पर
अ धक बल दया। उ ह ने महसूस कया क उनके काय ने वा णि यक बंधन के पूरे े
को ढका हुआ है । टे लर के वारा वक सत तकनीक को ‘टा क स टम’ या ‘टा क बंधन’
का नाम दया गया। उनके वचार को बड़े पैमाने पर सहकम समह ू वारा वक सत कया
गया, िजसम हे नर ांट, क गल ेथ और ल लयन गलबथ आ द शा मल थे।

इस कार से वै ा नक बंध वयं म एक ‘आंदोलन’ बन गया और इसने संगठन म


पहले यवि थत स धांत के प म छाप छोड़ी। इसने वै ा नक एवं वैकि पक स धांत के
योग वारा व भ न औ यो गक संगठन को एक उपाय दान कया था। सन ् 1917 के

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उपरांत बो शे वक ां त क समाि त के प चात ् ह ले नन ने टे लर क प ध तयाँ स म
ारं भ क । इस यव था को “यह एक पँज
ू ीप तय के शोषण के सू म ू रता का म ण है
और सबसे बड़ी वै ा नक उपलि धय क व वधता है ।” के संदभ म दे खा गया था। टे लर के
वचार व तकनीक ने ग त ा त क तथा स से बाहर समथन ा त कया। शी ह
ता कक आंदोलन को क यु न ट दल ने पूण समथन दान कया। इसके अलावा, टे लर के
वचार को श ा के पा य म म तथा अ य काय के सार हे तु इंजी नयर के श ण म
भी सि म लत कया गया।

रइनहाट बेन ड क (Reinhard Bendix) ने अपनी पु तक ‘काय और ा धकरण और


उ योग’ (Work and Authority and Industry) म कहा है क “ येक मक के उ पादन क
काय मता को अ धकतम करके वै ा नक बंध म मा लक व मक क आय को भी
बढ़ाया जा सकता है । अतः पँज
ू ी व मक के म य के सभी संघष को व ान के मा यम
से सुलझाया जा सकता है ।”

आलोचना और मतभेद

वै ा नक बंध क आलोचना न न ल खत आधार पर क गई है —

1. इसक आलोचना इस आधार पर क गई क यह केवल संगठन के न न तर पर बल


दे ता है तथा उ च तर पर संगठन के सभी मु द क अवहे लना करता है । इस लए यह
ि टकोण संगठन के एक समह
ू के कारक क अवहे लना करता है , जो क संगठन के
काय के लए अ यंत आव यक है ।

2. वै ा नक बंध स धांत संगठन के मानवीय प क अवहे लना करता है । यह संगठन


के औपचा रक ढाँचे क ओर अ धक बल दे ता है और अनौपचा रक प को पूण प से
नजरअंदाज करता है , जो क संगठन क यव था के लए आव यक पहलू है । यह
मक को मशीन क भाँ त समझता है । सामािजक व मनोवै ा नक कारक एक काय
के बंधन म अपनी भू मका नभाते ह। वै ा नक बंध स धांत इसके मह वपूण
पहलुओं पर बल नह ं दे ता है ।

3. कई व वान ने वै ा नकबंध क आलोचना करते हुए कहा है क यह मानवीय ेरणा


क संक पना को सरल बना दे ता है। टे लर ने सामािजक एवं मनोवै ा नक कारक के
बजाय मौ क कारक पर अ धक बल दया है। होथोन (Hawthorne) के योग ने इस
बात को कट कया क जो कारक एक संगठन के व थ कामकाज म उ रदायी होते
ह वे साधारणतया मौ क कारक से भ न हो सकते ह।

4. टे लरवाद को मक संघ से कड़े वरोध का सामना करना पड़ा। उदाहरण व प


मान सक ां त क अवधारणा मा लक व मक के म य सहयोगपण
ू संबंध के

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नमाण का यास करता है । जो क मक संघ क भू मका को अ ासं गक बना दे ता
है , कंतु यह पूण स य नह ं ह।

5. यह मैनेजर के समूह वारा थोपा गया। जो क मैनेजर के धैय को कम करता जा


रहा था तथा इसने िज मेदा रय के बंटवारे पर बल दया है । ोफेसर रॉबट हो सी ने
कहा क वै ा नक बंध केवल मशीनी त य पर बल दे ता है एवं यह सामािजक व
मनोवै ा नक कारक तथा अनु थापन क अवहे लना करता है ।

न कष

टे लर का वै ा नक बंध पहला प ट स धांत होने के अलावा इसने औ यो गक संगठन क


सम याओं के समाधान क पेशकश भी क । टे लर के इस स धांत से अ धक लाभ
ा त हुए
और यह कई संगठन क उ पादकता क सम याओं को हल करने म भी सहायक स ध
हुआ। टे लर ह ऐसे पहले शासक य चंतक रहे िज ह ने व ान के स धांत पर ढ़ता के
साथ भरोसा कया और एक सबसे अ छा तर का खोज नकाला। टे लर का मानना था क इन
स धांत का योग सावभौ मक है तथा इसे सभी संगठन क कृ त म नरपे प से लागू
कया जा सकता है । उनका वै ा नक बंध स दांत मु य प से मक क सम याओं पर
बल दे ता है । टे लर क वभेदा मक मजदरू दर क अवधारणा, मान सक ां त, काम के
व ान का सार, मत य यता, भावशीलता व द ता इस वै ा नक बंध स धांत को
अ य पारं प रक स धांत से अलग करती है ।

संदभ सूची

 Ali, Shun Sun Nisa, 1977, Eminent Administrative Thinkers, Associated Publishing
House, New Delhi.
 Bertram, M. Gross, 1964, The Managing of Organisations, The Administrative
Struggle, The Free Press of Glencoe, Collier-Macmillan., London.
 Bhattacharya, Mohit, 1981, Public Administration: Structure, Process and Behaviour,
The World Press Pvt. Ltd., Kolkata.
 Braverman, Harry, 1979, Labour and Monopoly Capital, The Degradation of Work in
the Twentieth Century, Social Scientist Press, Trivendrum.
 Clegg, Steward & David Dunkerley, 1980, Organisation, Class and Control,
Routledge & Kegan Paul, London.
 Prasad, D. Ravindra, V.S. Prasad and P. Satyanarayan, 2004, Administrative Thinkers
(Ed), Sterling Publishers, New Delhi. Pugh, D.S., 1985, Organisation Theory:
Selected Readings (Ed), Penguin Books,Middlesex, England.

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शास नक बंधन

महादे नो जुंगी
अनुवादक : बेबी तब सुम

अ धगम के उ दे य
 शास नक बंधन के ि टकोण और इसके मह व से प र चत ह ।
 इस ि टकोण के योगदानकताओं वारा दए गए स धांत के मह व को जाने।
 यह समझ सकगे क बेहतर बंधन के मा यम से बेहतर प रणाम लाने के लए इन
स धांत का उपयोग कैसे कया जा सकता है ।

भू मका

शास नक बंधन उपागम व ान और स धांत से संबं धत मह वपूण उपागम म से एक


है , जो इस बात पर बल दे ता है क “ कसी संगठन म बंधन को कैसे कया जाना चा हए।”
आधु नक करण के आगमन के साथ यह संगठन ज टल हो गए ह। इस लए इस उपागम के
समथक ने क पना क क य द ‘सावभौ मक स धांत ’ का एक समूह वक सत कया जाता
है जो कृ त म वै ा नक ह, तो यह संगठन के काय का अ धक कुशलता से संचालन म
मदद कर सकता है ।
आधु नक समय म शास नक बंधन के काय एक संगठन के कामकाज के अ भ न
अंग बन गए ह। वह ं ‘सूचना बंधन’, बंधन वारा क जाने वाल मह वपूण या म से
एक है । शास नक काय “संगठन के भीतर सूचना के सु यवि थत सं हण, सं करण,
भंडारण और वतरण के लए िज मेदार ह।” यह नणय नमाताओं और बंधक को सभी
तर पर अपने काय को न पा दत करने और साथक नणय लेने म स म बनाता है ।
(फरे रा इ. जे., ोनेवॉ ड डी. : 2010) सावजा नक और नजी दोन संगठन के भीतर म बड़े
पैमाने पर ‘ शास नक बंधन’ अपनी भू मका का नवाह करता है और एक ‘ शास नक
बंधक’ योजना, सम वय और यवसाय को नद शत करता है ।

प ृ ठभू म

19वीं शता द तक, पि चमी द ु नया वशेष प से संयु त रा य अमे रका म


औ यो गक करण तेजी से हो रहा था। इसने व तु न ठ स धांत क खोज का वकास कया,
जो व नमाण इकाइय क द ता म सुधार करगे। अथ यव था और द ता औ यो गक करण
के दो पहरे दार थे, य क उ योग अपने आप को बेहतर बनाने के लए व तु न ठ स धांत
पर आधा रत थे, जो इसक उ पादकता और त पधा मकता को बढ़ाते थे।

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इसी बीच, आधु नक रा य ने जीवन के हर पहलू म लोक शासन क कृ त और दायरे
को बढ़ा दया था और सावज नक सेवाओं क माँग म व ृ ध हुई। एक ह समय म सी मत
संसाधन के लए सरकार म अ धक कुशल और मत ययी संचालन के लए नि चत न पण
क आव यकता महसूस हुई। इसने वकास या वै ा नक बंधन के लए व तु न ठ स धांत
को खोजा, जो नौकरशाह और शास नक बंधन म भी लागू हो सकते ह। इस कार, दोन
स धांत द ता और मत यता के बीच एक सं लेषण हुआ, िजसे संयु त रा य अमे रका म
सरकार तं म सध
ु ार करने हे तु आयात कया गया था और सरकार सधु ार पर इसका गहरा
भाव दे खने को मला।

इसम न हत संरचना मक पूवा ह के साथ ‘शा


ीय संगठन स धांत’ का वकास हुआ।
बंधन काय क वतमान समझ का एक बड़ा ह सा शा ीय बंधन स धांतकार हे नर
फेयोल के योगदान पर आधा रत है । इस स धांत के समथक ने अथ यव था और द ता
का सार पकड़ लया और स धांत का एक समूह वक सत कया जो संगठन के आधार बने।
इस कार, शास नक बंधन स धांत संपूण संगठन का ा प तैयार करने के लए एक
तकसंगत तर का खोजने के यास के प म वक सत हुआ।

इस स धांत के मुख स धांतकार हे नर फेयोल, गुि लक और उ वक, मूने, ए.सी. र ले,


एम.पी. फॉलेट और आर शे टन ह।

उपागम के आधारभूत बंद ु

इन स धांतकार के कुछ बु नयाद आधार ह िजन पर वे सभी सहमत ह—

थम, यह उपागम शासन/संगठन क संरचना पर जोर दे ता है । उन स धांतकार के


अनुसार िज ह ने इस उपागम म योगदान दया, संरचना के बना कोई संगठन काय नह ं कर
सकता है और यह वह संरचना है जो संगठन क आव यकताओं के लए मानव कृ त को
ढालती है । इस कार, इस उपागम के समथक को ‘संरचनावाद ’ कहा जाता है और वे
संगठन के संरचना मक स धांत क क पना करते ह।

वतीय, यह उपागम औपचा रक संगठन क संरचना के लए कुछ सावभौ मक स धांत


के नमाण से संबं धत है । इनम से कई स धांत औ यो गक संगठन के मुख स धांतकार
के अनुभव पर आधा रत ह।

तत
ृ ीय, इन स धांत को वै ा नक प से मा य माना जाता है य क उ ह उ योग
और सेना के कठोर अनभ
ु वज य अवलोकन के मा यम से ा त कया जाता है ।

अं तम, यह उपागम ‘संगठन’ को एक बंद णाल के प म मानता है जो बाहर


वातावरण के वाय प से काय करता है । इस उपागम का मानना था क एक व तु न ठ
वै ा नक स धांत का पालन करने से संगठन क सफलता सु नि चत होगी। इस कार, यह

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संगठन के कामकाज म मानवीय यवहार से प र चत नह ं था। इसके बजाय संगठन को
मशीन के प म और मनु य को मशीन म महज पुज के प म दे खा गया था।

इस अवलोकन के आधार पर, इस उपागम के समथक को व वास था क वा तव म


इस तरह के वै ा नक स धांत से संगठन म अ धक द ता और मत यता को बढ़ावा
मलेगा।

इस उपागम का योगदान

हे नर फेयोल फेयोल एक ांसीसी खनन इंजी नयर थे, जो उ योगप त और सफल बंधक
माने जाने वाल म मुख थे। िजनका बंधन या म मह वपूण योगदान है । वे ‘ बंधन
या वचारधारा’ के शु आती अ दत
ू म से एक ह। उ ह ने कहा क एक स धांत क
अनुपि थ त के कारण बंधन एक उपे त ग त व ध थी। इस लए, उनका काम “जनरल एंड
इंड यल मैनेजमट” (1916) ‘शा ीय बंधन स धांत’ क आधार शला बन गया है । लोक
शासन म उनका सबसे मुख योगदान उनका पेपर “द योर ऑफ एड म न े शन इन द
टे ट” (1923) है । इसके अलावा, उनका काम “जनरल ं सप स ऑफ एड म न े शन”
(1908) अपने आप म उ लेखनीय है ।

एक बंधक के प म अपने लंबे अनभ


ु व के आधार पर, फेयोल ने बंधन के कत य
के पाँच त व क पहचान क जो इस कार ह— नयोजन, संगठन, आदे श, सम वय और
नयं ण। यह वग करण बंधन स धांत के े म उनके सबसे मह वपण
ू योगदान म से
एक है , जो बदलते समय के साथ, बाद के स धांतकार वारा बाद म संशो धत कया गया
है ।

उ ह ने बंधन के चौदह स धांत को दया है जो इस कार ह—

i. काय का वभाजन (Division of Work) : काय का वभाजन वशेष ता का नमाण


करता है और काय के अ धक कुशल उ पादन का प रणाम दे ता है ।
ii. ा धकार और िज मेदार (Authority and responsibility) : ा धकार और
िज मेदार का सह-अि त व। कसी यि त को अपनी िज मेदार का भावी ढं ग से
नवहन करने के लए, उसे नि चत ा धकरण के साथ मनोनीत कया जाना चा हए।
iii. अनुशासन (Discipline) : अनुशासन अ छे काम म व वास रखने और व र ठ से
आदे श को पूरा करने म प र म दखाने पर बल दे ता है ।
iv. आदे श क एकता (Unity of Command) : आदे श क एकता एक एकल भार
मुख के त जवाबदे ह होने के लए मजबूर करती है ।
v. दशा- नदश क एकता (Unity of Direction) : दशा- नदश क एकता से अ भ ाय
है क एक नेता को एक योजना के बाद समूह का नेत ृ व करना चा हए। इसका
उ दे य एक समान ल य क ाि त के लए एकता और एक पता लाना है ।
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vi. यि तगत हत क सामा य हत के त अधीनता (Subordination of individual
interest to general interest) : संगठन के सामा य हत के लए यि त के नजी
हत को अधीन करना। ता क सभी क भलाई के लए नजी हत या कुछ लोग क
सेवा से समझौता न कया जाए।
vii. क मय का पा र मक (Remuneration of personnel) : क मय को उ चत
पा र मक जो नयो ताओं और कमचा रय दोन के लए संतोषजनक है और
अनक
ु ू ल काय वातावरण म प रणाम दे ता है ।
viii. क यकरण (Centralisation) : क यकरण इस बात पर बल दे ता है क बंधक को
पहल करने क वतं ता दान क जानी चा हए। जो पहल क जाती है , वह येक
मामले के स दभ पर नभर करती है ।
ix. केलर चेन (Scalar chain) : केलर ख
ंृ ला (पदानु म) उ चतम से न नतम तर
तक कसी संगठन म पयवे क क यव था को सु नि चत करती है ।
x. आदे श (Order) : आदे श से अ भ ाय है क येक कारक को उनके सह थान पर
रखना अपने काय और उ दे य के अनुसार इसक भावशीलता म व ृ ध होगी। इस
कार, क मय का एक वै ा नक चयन और नयुि त यह सु नि चत करे गी क वे
अपनी सेवाएँ भावी ढं ग से दे ने म स म ह।
xi. न प ता (Equity) : संगठन के त अपने क य को पूर तरह से सम पत और
न ठावान कमचा रय को ो सा हत कया जाना चा हए। यह संगठन के त
कमचार क न ठा और ईमानदार म योगदान दे गा।
xii. क मय क पदाव ध क ि थरता (Stability of tenure of personnel) : उ पादकता
को ो सा हत करने के लए कमचा रय के लए कायकाल क ि थरता का नमाण
करना।
xiii. पहल (Initiative) : नए वचार और नवाचार का सुझाव दे ने म कमचा रय क
भागीदार के लए पहल दान करना।
xiv. सामंज य (Harmony/Esprit de Corps) : संगठन को मजबूत करने के लए
क मय के बीच सहयोग/ सामंज य को बढ़ावा दे ना।

उनका मत था क अ छे शासन के लए कुशल बंधक क आव यकता होती है और कुछ


ऐसे ल ण नधा रत कए जो एक अ छे बंधक के पास होने चा हए—शार रक गुण,
मान सक गुण, नै तक गुण, सामा य श ा, व श ट ान और अनुभव।

फेयोल ने घर से लेकर काय थल तक जीवन के सभी पहलुओं को यवि थत करने के


लए शासन के मह व पर जोर दया और इस कार सुझाव दया क शासन म एक
संर चत, प ध तगत श ण कूल तर से ह शु हो जाता है । उ ह ने औपचा रक संगठन
को बढ़ावा दया, तो वे उस खतरे से भी अवगत थे, जो पदानु म और औपचा रकता के

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अनु प था। इस लए, उ ह ने सुझाव दया क उ चत सावधानी के साथ ‘गग लक’ (एक
पदानु मत संगठन म तर कूदना) पदानु म मु द पर काबू पाने म मदद कर सकता है ।

इन स धांत म बंधक य ग त व ध का ववरण शा मल कया है और यह भी नधा रत


कया क एक बंधक को या करना चा हए। अपनी सीमाओं के बावजूद, इस उपागम ने
शासन के स धांत के वकास क नींव रखी। एफ.ड यू टे लर और हे नर फेयोल दोन ने
वै ा नक बंधन के वकास म अमू य योगदान दया। जहाँ टे लर के वै ा नक बंधन
स धांत को वशेष प से केवल उ पादन या या ‘कायशाला बंधन’ क ओर ल त
कया गया था, वह ं फेयोल ने स धांत का एक सावभौ मक समूह दया जो सभी कार के
संगठन म लागू हो सकता था।

इसके अलावा, फेयोल ने शासन क बंधन के एक कार के प म पहचान करके


शासन और बंधन के अलगाव क मौजद
ू ा धारणा पर भी न च ह लगाए। उनका मानना
है क चाहे वह सावज नक हो या नजी उप म सभी को नयोजन, संगठन, आदे श, सम वय
और नयं ण जैसे समान सामा य स धांत के पालन क आव यकता है । इस कार श द
शासन केवल सावज नक सेवा तक ह सी मत नह ं है बि क येक उ यम को समा हत
करता है ।

लूथर गुि लक और ऊ वक

टे लर और हे नर फेयोल के काय ने शा ीय संगठन और बंधन स धांत म योगदान दया।


तत ्उपरांत संगठन के स धांत क सफलता के कारण इनको लोक शासन म सं ले षत और
एक कृत कया गया। गिु लक और ऊ वक के काय ने शासन के व ान के वकास म बड़ा
योगदान दया है और उनके काय “द पेपस ऑन द साइंस ऑफ एड म न े शन” (1937) इस
संबंध म उ लेखनीय थे।

गुि लक और ऊ वक क वचार या स वल सेवा, सै य और औ यो गक संगठन म


काम करने के अपने अनुभव से ओत- ोत है और इसने लोक शासन के कामकाज पर
अपने ि टकोण का नमाण कया। अनुशासन और द ता के स दभ म साथ ह साथ लाइन
और टाफ सेना के साथ अपने सहयोग को दशाते ह। एफ.ड यू टे लर और फेयोल के काय
से े रत होकर उ ह ने संगठन के सावभौ मक स धांत को सं ले षत कया। िजसे संगठन
के ‘शा ीय स धांत’ या ‘ शास नक बंधन के स धांत’ के प म जाना जाता है । उनके
अनस
ु ार “अनभ
ु वज य अवलोकन, व लेषण और यवि थत न कष ” जैसे व ान का उपयोग
करने वाले तर क का इ तेमाल कर शासन का व ान वक सत करना संभव था। इस
कार, य द कोई शासन के अनभ
ु व को समान प से संसा धत कर सकता है, तो शासन
के वै ा नक स धांत को वक सत करना संभव था। यह तब एक बड़ा मोड़ था, जब
शासन को केवल एक कला के प म दे खा जाता था।

38
एक संगठन को डजाइन करते समय गुि लक और ऊ वक के लए, संगठन म यि तय
क भू मका क तुलना म शासन क ‘संरचना’ अ धक मह वपूण है । ऊ वक के अनुसार,
“दोषपूण संरचनाएँ समाज म वैमन य और म के लए िज मेदार ह।” इस कार, संगठन
के डजाइन म, काय क पहचान के साथ-साथ नौकर क कृ त और उसक ोफ़ाइल को
ाथ मकता द जाती है , जब क बाद म एक समारोह म यि तय क भू मका को फर से
नधा रत कया जाता है । ऊ वक के अनुसार डजाइन क अभाव, “अता कक, ू र, बेकार और
अ म है ।”

थम, डज़ाइन के अभाव म, नौकर क कृ त और इसके लए आव यक यो यता


अ प ट हो जाती है । और नयु त यि त को वेतन दे ना, िजसे अपने पद के काय का कोई
पता नह ं है , अता कक है । वतीय, नौकर के लए आव यक यो यता के साथ-साथ अपने
क य से अप र चत यि त को नयु त करना भी ू र और यथ है । तत
ृ ीय, य द नौक रय
के काय को अ छ तरह से डज़ाइन नह ं कया गया है , तो मक के बीच काया मक
वशेष ता का वकास बा धत होता है । इस लए कसी भी रि त के उ प न होने क ि थ त
म, एक स म त थापन खोजना मुि कल हो जाता है । और अंत म, एक अ नपुण डज़ाइन
संरचना अ मता को बढ़ावा दे ती है जब पयवे क स धांत वारा नह ं बि क केवल अपने
क मय के यि त व वारा नद शत होता है ।

इस कार, इस उपागम को ‘संरचना मक उपागम’ के प म भी जाना जाता है य क


गुि लक और ऊ वक ने ‘ शासन क संरचना’ के वकास पर अ धक यान दया है ।
तदनुसार, उ ह ने ‘ शास नक संरचनाओं’ के डज़ाइन के लए स धांत का नमाण कया।
गुि लक ने शासन के दस स धांत बताएँ ह जो इस कार ह—

i. काय का वभाजन और वशेष ता (Division of Work or specialisation)


ii. वभागीय संगठन के आधार (Bases of departmental organisation)
iii. पदसोपान वारा सम वय (Coordination through hierarchy)
iv. वम शत सम वय (Deliberate coordination)
v. स म तय के अंतगत सम वय (Coordination through committees)
vi. वके करण (Decentralisation)
vii. आदे श क एकता (Unity of Command)
viii. लाइन तथा टाफ (Staff and Line)
ix. यायोजन (Delegation)
x. नयं ण का े । (Span of control)

इन दस स धांत म से, गुि लक ने काय के वभाजन के स धांत को वशेष प से


मह वपूण माना है और उ ह ने कहा क “उनके लए काय का वभाजन संगठन का आधार
और कारण है ।”
39
गुि लक भी फेयोल वारा शु कए गए शासन के पाँच त व से भा वत थे। इसे और
आगे बढ़ाते हुए, उ ह ने ‘POSDCORB’ का सं त प तपा दत कया। येक श द
एक शासक के सात काय म से कसी न कसी एक को अ भ य त करता है ।

P – Planning नयोजन : ‘ नयोजन’ सभी मानवीय और भौ तक संशाधन क पहचान के


साथ-साथ आ थक और कुशल तर के से संगठन के ल य तक पहुँचने के लए आव यक
ग त व धय से संबं धत है ।

O – Organisation संगठन : ‘संगठन’ ा धकार क एक औपचा रक संरचना था पत करने


से संबं धत है िजसके मा यम से काय के वभाजन को उ दे य ा त करने के लए
यवि थत, प रभा षत और समि वत कया जाता है ।

S – Staffing का मक वग : ‘का मक वग’ शासन के हर पहलू जैसे पदो न त, भत ,


श ण, नयुि त, अनुशासन, सेवा नव ृ आ द के अनुकूल काय करने क ि थ त को बनाए
रखने के लए आव यक है ।

D – Directing नदशन : ‘ नदशन’ का संबंध बंधक के सामा य आदे श और नदश


वारा शासन क स यता को अधीन थ के नदशन से स बि धत है ।

Co – Coordinating सम वय : इसका संबंध कसी संगठन के काय म ट म के सद य के


बीच सम वय और सहयोग करने से है । यह का मक के बीच उ चत सम वय सु नि चत
करके संघष और अ त यापी मु द को भी संबो धत करता है ।

R – Reporting रपोट : इसका संबंध रपोट करने से है और यह संगठन के कामकाज पर


का मक को सू चत करने के लए सूचना के वाह का नमाण करने से संबं धत है । हालाँ क,
रकॉड, अनुसंधान और नर ण क या, सूचना का मक के मु द को संबो धत करने
और संगठन म सुधार लाने म स म करे गी।

B – Budgeting बजट : यह व ीय योजना, लेखा और नयं ण के प म व ीय शासन


के परू े े को शा मल करता है ।

ऊ वक वारा तपा दत कुछ स धांत इस कार ह—

1) उ दे य (Objective) : उनका मानना था क येक संगठन का एक प ट


उ दे य/ल य होना चा हए।
2) समतु यता (Correspondence) : िज मेदार और ा धकार के बीच समानता क
समतु यता होनी चा हए।
3) िज मेदार (Responsibility) : व र ठ का मक अपने अधीन थ के काम के लए
जवाबदे ह होता है ।

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4) पैन ऑफ कं ोल (Span of Control) : एक पयवे क भावी प से केवल सी मत
सं या म (5-6) लोग क दे खरे ख कर सकता है , य द उनका काय आपस म जुड़ा
हुआ है । अ धक मक के साथ, पयवे क के लए िज मेदार नाटक य प से बढ़
जाती है ।
5) कैलर स धांत (Scalar principle) : एक परा मड संरचना म पदानु म का
आयोजन।
6) व श ट करण (Specialisation) : कसी के काम को एकमा िज मेदार तक सी मत
करना। इससे काय के व श ट करण को बढ़ावा मलता है ।
7) सम वय (Coordination) : संगठन के व भ न अंग का सामंज यपण
ू ढं ग से काम
करना।
8) नधारण का स धांत (Definition) : येक का मक के कत य को नधा रत करने
का स धांत।

शास नक संगठन अभी भी एक अपे ाकृत नया े था और ऐसे कई कारक थे िज ह


समझने क आव यकता थी। इस लए ऊ वक ने सुझाव दया क उनके स धांत को एक
ढाँचे के प म अ धक उपयोग कया जाए, िजसके मा यम से यि त अपने वयं के
अनुभव से वचार को एक और यवि थत कर सकता है ।

शासन के सामा य स धांत

कुछ मह वपूण स धांत जो स धांतकार वारा तपा दत कए गए ह, उ ह सं ेप म


समझाया जा सकता है —

वभागीयकरण का स धांत (Theory of Departmentalisation) - यह स धांत काय के


वभाजन और वभाग के नमाण के लए चार आधार क पहचान करता है । यह आमतौर पर
दे खा जाता है क वभाग अ सर कत य के नधारण के मु दे पर संघष करते ह। इस
सम या के नवारण हे तु उ ह ने ‘Four Ps’ स धांत दया— उ दे य (Purpose), या
(Process), यि त (Persons) और थान (Place)। यह स धांत काय वभाजन को
मा यता दे ता है, जो संगठन क एक मुख संरचना मक वशेषता है ।

i. उ दे य (Purpose) : उ दे य का अथ कसी संगठन के मख


ु काय और ल य क
पहचान करना और तदनस
ु ार व तओ
ु ं और सेवाओं के आधार पर वभाग का नमाण
कया जा सकता है ।
ii. या (Process) : एक या के साथ काम करना िजसके परू ा करने के लए
कौशल क आव यकता या ौ यो गक जैसे सॉ टवेयर कौशल या आशु ल प के
स दभ म समान या क आव यकता होती है ।

41
iii. यि त (Person) : तीसरे काम को ाहक , यु ध के द गज , पशनभो गय ,
उ योग आ द जैसे ाहक क सेवा के अनुसार वगाकृत कया जा सकता है । गुि लक
का मानना है क “ वभाग के सद य वशेष कौशल वक सत करते ह, जब उनके
काय क परे खा कसी वशेष समूह को पूरा करता है ।”
iv. थान (Place) : अंत म काय े /आधार के अनुसार भी वग कृत कए जा सकते ह।
का मक को उस े के अनुसार वग कृत कया जा सकता है , जो वे नोएडा, गुड़गाँव
जैसे े म सेवा करते ह और तदनस
ु ार वभाग बनाए जा सकते ह। यह सद य को
े वशेष बनने के लए बढ़ावा दे गा और उनक वशेष ता और ान के साथ यह
उस े के वकास को भी बढ़ावा दे गा।

औपचा रक शास नक संरचना (Formalized administrative structure) - इस स धांत के


अनुसार संगठन को एक औपचा रक संरचना का उपयोग करके न मत कया जाना चा हए,
िजसम एक ‘टॉप-डाउन’ उपागम होता है । यह एक पदानु मत संरचना है ।

एकल बंधका रणी (Single Executive) - गिु लक और ऊ वक ने स म तय के नेत ृ व वाले


एक संगठन के बजाय एकल शीष अ धका रय पर जोर दया। जब क आदे श पदानु म या
पदसोपा नक यव था म बह सकता है । वे जानते थे क यह स धांत सावभौ मक प से
लागू नह ं कया जा सकता था। ले कन यह काया मक पयवे ण द ता बढ़ाता है । गुि लक ने
तक दया क “इस स धांत के फायदे म, अ मता और गैर-िज मेदारता जैसी
नकारा मकताओं से आगे नकल जाते ह, जो इस स धांत का उ लंघन होने पर अनुसरण
करगे।”

टाफ स धांत (Staff principle) : इस स धांत का उ दे य कमचा रय के लए कुछ


ग त व धय को नधा रत करना है , जो संगठन के कामकाज म कायकार को सहायता दान
करे गा।

यायोजन (Delegation) : इस स धांत ने यायु त के लए सीखने के मह व पर


अ धक जोर दया, जब क शासक ने अभी भी उनके साथ अपे त ा धकार बनाए रखा है ।
ऊ वक ने अ धक कुशल कामकाज के लए शासक को यायु त के लए पहल करने क
आव यकता पर बल दया, साथ ह यह भी बताया क कब यायोजन को स पना है ।
अधीन थ अपनी िज मेदार पूर नह ं कर सकते ह और न ह प ट त न धमंडल के बना
अपने स पे गए काय को कुशलतापूवक पूरा कर सकते ह। इ ह अपने अधीन थ क कारवाई
के लए िज मेदार ठहराया इस कार, “ ा धकरण और िज मेदार को एक समान, सह-समान
और प रभा षत होना चा हए।” उ ह ने ‘िज मेदार और ा धकार के समतु यता’ के स धांत
पर भी बल दया।

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नयं ण क अव ध (Span of control) : हमने पहले ऊ वक वारा तपा दत ‘ नयं ण क
अव ध’ के अथ को व तार से समझने का यास कया है । गुि लक उनम अ य पहलुओं को
जोड़ते हुए तीन कारक क पहचान करता है , जो ‘ नयं ण क अव ध’ नधा रत करते ह।

 कसी यि त के पास मौजूद कुछ गुण उसके नयं ण क अव ध को नधा रत कर


सकते ह। ता कक बु ध और यि त व के साथ कोई यि त समय और ऊजा का
नवेश करने क तब धता के साथ और अ धक बेहतर तर के से अधीन थ को
नयं त कर सकता है ।
 नयं ण क सीमा अधीन थ वारा कए जा रहे काय क कृ त पर भी नभर करती
है । य द काय नय मत, नीरस, पथ
ृ क है , तो अ धक मक क नगरानी करना
संभव होगा। ‘काय के व वधीकरण’ के लए अ धक पयवे ण क आव यकता होगी।
 यह अव ध इस बात पर भी नभर करे गी क यह एक नया संगठन है या पुराना है ।
एक था पत और ि थर संगठन म कम ह त ेप क कम आव यकता होती है ।
ले कन एक नए संगठन म, नरं तर पयवे क क आव यकता होती है , ता क एक
अ छा मॉडल था पत कया जा सके और उ चत या अपनाई जा सके।

बाद के लेखन म गुि लक ने संगठन म यि तय क भू मका पर अपनी राय को संशो धत


कया और कहा क “मानवीय कारक लोक शासन क समझ म एक मुख और आव यक
चर है ।” उ ह ने जोर दया क सावज नक शासन का ल य ‘मानव क याण’ है और इस
यास के लए शासन को अ धक वके कृत उ मुख बनाने के लए पुनसजन
ृ कया जाना
चा हए। इसके अलावा, उ ह ने लोकतं म मह वपूण और ‘ टे ट ा ट के हॉलमाक’ के प म
‘समय/ अव ध’ पर जोर दया जहाँ सभी नवीन नी त नवाचार ‘समय’ म ह न हत ह।

मन
ू े और र ले ने अपने काम म ‘ऑनवड इंड ’ (1931) को बंधन के स धांत के
लए एक क य ढाँचा दान कया। िजसम उ ह ने संगठन के चार स धांत बताए— सम वय
स धांत, कैलर स धांत, काया मक स धांत एवं टाफ और लाइन।

उ ह ने अपने व भ न व त य म बंधन म नेत ृ व, ा धकार और सम वय के मह व


पर काश डाला। “पेपस ऑन साइंस ऑफ एड म न े शन” लेख म मूने ने कहा क कसी भी
मानवीय संगठन का मूल स धांत सम वय है । येक संगठन एक ठोस यास का प रणाम
है ।

 नधा रत काय (Determinative function) : ल य और उ दे य को नधा रत करने


वाले काय।
 अनु योग काय (The Application function) : ल य को ा त करने के लए काय
करने से संबं धत।
 या या मक काय (Interpretative function) : यह नणय लेने से संबं धत है ।

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उपरो त के संबंध म उनका तक है क “ बंधन को इन काय के बारे म पता होना चा हए,
जब आव यक हो तो उ ह नवहन करने के लए तैयार रहना चा हए।”

मैर पाकर फोलेट भी इस उपागम के मह वपूण समथक म से एक है । उनके अनुसार


“संघष कसी भी संगठन म सामािजक संपक का एक सामा य और अप रहाय ह सा है ।”
इस लए उ ह ने ‘रचना मक संघष’ के नवाचार के वचार को वक सत कया।

इसम संघष को असंगतताओं के यथ प म नह ं लया जाना चा हए, बि क एक


सामा य या है िजसके मा यम से सामािजक प से मू यवान मतभेद सभी संबं धत के
संवधन के लए खद
ु को पंजीकृत करते ह। संघष के समाधान के लए वह तक दे ती है क
“ कसी भी संगठन म ‘वच व’, ‘समझौता’ और ‘एक करण’ के मा यम से संघष से नपटा जा
सकता है ।” ले कन इसके साथ ह उ ह ने संघष के समाधान के लए ‘एक करण’ को मख

प से ाथ मकता द है । फोलेट का अ य मह वपण
ू योगदान ‘डी पसनलाइिज़ंग ऑडर’ क
अवधारणा है । वह कहती है क उनके जार करने के आदे श अ सर नकारा मक नतीज को
आमं त कर सकते ह, इस लए शासक अ सर ऐसा करने से बचते ह। ‘डी पसनलाइिज़ंग
ऑडर’ क अवधारणा से यह अ भ ाय है क “आदे श वा त वक ि थ त से नकल रहा है ,
इस लए आदे श के नजीकृत करने क सम या उ प न नह ं होती है ।” (च वत बी., चंद
पी.— 2012)

आलोचना

अपने तपा दत स धांत के संबंध म शास नक बंधन को ती आलोचना का सामना


करना पड़ा है । शासन के स धांत को इस आधार पर अ धक तैयार कया जाता है क
‘उनके पास या होना चा हए’ वे वै ा नक स यापन के अधीन नह ं हो सकते ह। इस कार
के सफा रश के अ धक और वै ा नक स धांत कम ह। एल.डी. हाइट ने समालोचना क
“इस उपागम म अ धकांश ने शास नक काय और संगठन का वणन या वग करण करने के
लए उपयोग कया है , उ ह सावभौ मक स धांत के प म नह ं लया जा सकता है ।” इ ह
केवल व तत
ृ अनुभव वारा मा य आचरण के काय नयम के प म ले सकते ह।

हबट साइमन इस उपागम के सबसे कठोर आलोचक म से एक ह। वह इन स धांत को


‘घरे लू कहावत’, ‘ मथक’, ‘नारे बाजी’, ‘ नरथकता’ के स धांत कहकर पक
ु ारते ह। यह शासन
के मौजद
ू ा स धांत का एक घातक दोष है क वे कहावत का प धारण कए हुए है ।
लगभग हर स धांत के लए “एक समान प से शंसनीय और वीकाय वरोधाभासी
स धांत” मल सकता है । अथात ्, यह स धांत अ प ट और पर पर वरोधाभासी ह िजसम
कोई भी यह संकेत नह ं दे ता है क कौन-सा स धांत वरोधाभासी के मामले म लागू ह गे।
उदाहरण के लए, वरोधाभास ‘ वशेष ता’ और ‘एकता’ के स धांत के बीच मौजद
ू ह। इस
कार, साइमन के लए “ शासन के स धांत शास नक ि थ तय का वणन और नदान

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करने के लए सव म मानदं ड ह।” जैसा क आलोचनाक ाओं वारा बताया गया है क “इस
उपागम क माण के साथ स धांत का सामना करने क अ मता सबसे मह वपूण
आलोचनाओं म से एक है ।”

गुि लक वारा दए गए संगठन के आधार क भी असंग त के आधार पर आलोचना क


गई है । स धांत अ प ट और एक-दस
ू रे को आ छा दत करने वाले ह। स धांत आदे शा मक
के बजाय वणना मक अ धक ह, और वे बताते ह क काम को ‘कैसे वभािजत है ’ बजाय
‘कैसे वभािजत कया जाना चा हए’, पर बल दया जाना चा हए। ( साद : 2010)

इस उपागम क मानवीय त व और मानवीय ेरणाओं क उपे ा क भी आलोचना क


गई है । इस उपागम म मानव क भू मका को मशीन के केवल पज
ु तक सी मत कर दया
गया था। हालाँ क मानवीय त व को उपे त नह ं कया जा सकता है । जी वत सं थाओं के
प म, मानव यवहार मनोवै ा नक और शार रक दोन याओं से े रत है । काय और
कत य का मा आवंटन मक वारा इ टतम योगदान नह ं दे ता है , और सभी का मक इस
णाल म ि थर कारक नह ं ह। ले कन एक ऐसे संगठन के कामकाज म एक मह वपण
ू चर
है िजसे एक यां क ि टकोण म अनदे खा कया गया है ।

वी. सु म णयन के अनुसार “इस उपागम के दो मह वपूण सीमाएँ ह। थम, स धांत


म प र कार का अभाव है । उ ह सामा य थान के सामा य ान ताव वारा सू चत
कया जाता है , जो शासन के स धांतकार को पया त प से संतु ट नह ं करते ह।
वतीय, शा ीय बंधन उपागम म एक बंधनो मुख पूवा ह है । मौजूदा प रचालन
सम याओं के बावजूद, िज ह बंधन म एक तर मल सकता है । इस स धांत के समथक
संगठन म बंधन क सम याओं के त अ धक चं तत थे।

ासं गकता

कई आलोचनाओं के बावजूद, शासन के स धांत ासं गक बने हुए ह, और कई वतमान


संगठन म लागू कए जाते ह। बंधन के ल य क ाि त और उ पादकता म व ृ ध के लए
‘आदे श’, ‘सम वय’ और ‘ नयं ण’ का मह व अभी भी है । हालाँ क, 21 वीं सद म संगठन के
बंधन के तर के म तेजी से बदलाव के साथ कुछ स धांत अपनी ासं गकता खो चक
ु े ह।
नणय लेने क या म भागीदार को शा मल करके मक म वा म व क भावना पैदा
करने के लए का मक को सश त बनाने पर यान क त चा हए। इसके अलावा इस
त पध यग
ु म ऐसे मक क अ धक माँग है जो अपने कौशल को एक ह काय करने के
बजाय एक से अ धक काय (म ट टा क) को कर सकने म नपण
ु हो। हालाँ क, इन मु द
को े रत करते हुए, कोई भी इन स धांत को सरे से नकार नह ं सकता है , िज ह ने
आधु नक संगठन स धांत के लए आधार दान कया है , और वा तव म लोक शासन के
वकास म अमू य योगदान दया है ।

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उपसंहार

इस उपागम ने स धांत और यवहार शासन म मह वपण


ू योगदान दया है । इस उपागम
के स धांत अ मता और कम उ पादन क सम याओं को हल करने के यास प म
उ प न हुए, िजसका उ योग सामना कर रहे थे। इसने बड़े पैमाने पर संगठन के भावी
कामकाज को स म कया है , जो क समकाल न संगठन वारा अपनाई गई ह। कई
आलोचनाओं के बावजद
ू , शासन के व ान के अ ययन म इन स धांत क ासं गकता
खा रज नह ं कया जा सकता है । इस उपागम के समथक ने वयं अपने स धांत क कुछ
सीमाओं को पहचान कर उनम संशोधन के सुझाव भी दए ह। गुि लक वारा शासन म
मानवीय मू य को पहचानने का मह व इसका एक उदाहरण है । इस कार, यह भ व य के
छा के लए लोक शासन को समझना अवसर से यु त चन
ु ौती होगी। जो बदलते स दभ
के आधार पर इन स धांत के अनु योग क ग तशील कृ त को समझने और यवि थत
करने का कायभार संभालगे।

1. शास नक बंधन या है ? वतमान संगठन म इसक ासं गकता क जाँच कर।


2. इस उपागम के स धांतकार वारा नधा रत शास नक बंधन उपागम के स धांत
क व तार से चचा कर।

संदभ सूची

 Chakrabarty B, Chand P. Public Administration in a Globalizing World. Los Angeles:


Sage:2012)
 E.J. Ferreira, A.W. Erasmus and D. Groenewald, Administrative Management, Juta
Academics, 2010
 Ravindra Prasad, Y.Pardhasaradhi, V.S. Prasad and P. Satyamarayana (eds),
Administrative Thinkers, Sterling Publishers, 2010

46
मै स वेबर का नौकरशाह का स धांत
आंचल
अनुवादक : व क झा

पाठ क परे खा

 प रचय
 मै स वेबर : उनका जीवन और लेख
 ा धकार पर मै स वेबर के वचार
 ा धकार के कार
 मै स वेबर : नौकरशाह क संक पना
 मै स वेबर : नौकरशाह क वशेषताएँ
 मै स वेबर : नौकरशाह क सीमाएँ
 न कष
 संदभ सूची

प रचय

जमन समाजशा ी मै स वेबर के वारा नौकरशाह और औपचा रक संगठन पर दए वचार


ने व वान क कई पी ढ़य को भा वत कया है । वे नौकरशाह मॉडल म क य थान
रखते ह और सै धां तक ढाँचे म ह इसका अ ययन करने का यास करते ह। वह नौकरशाह
श द का योग और वणन करने वाले पहले यि त थे। इसे बंधन का नौकरशाह स धांत
या मै स वेबर का स धांत भी कहा जाता है । उनके नयमन का सावधानीपूवक व लेषण
कया जाना चा हए य क उनके लेख म अथशा , समाजशा और शासन स हत अनेक
वषय पर चचा क गई है । उ ह ने पँज
ू ीवाद के वकास पर धम के भाव को भी रे खां कत
कया और उनके वचार सामािजक, आ थक तथा ऐ तहा सक शि तय से यापक तौर से
संबं धत थे िजससे क ज टल संगठन का वकास हो सका। उनके वचार सभी पहलुओं के
वह
ृ त (macro) ि टकोण को तुत करते ह। वेबर का मानना था क नौकरशाह संगठन
को था पत और संचा लत करने म कुशलता से सहयोग करता है ।

उनका जीवन और लेखक

मै स वेबर (1864-1920) का ज म पि चमी जमनी म एक यवसायी प रवार म हुआ था


जो क व नमाण के काय म शा मल थी। 1882 म अपनी ारं भक पढ़ाई परू करने के
बाद उ ह ने हे डल
े बग व व व यालय से कानन
ू का अ ययन कया। अपना डॉ टरे ट परू ा

47
करके उ ह ने ब लन के व व व यालय म अनुदेशक (Instructor) के प म काय कया।
उ ह ने कानून वषय अनेक लेख लखे, िजसम क सामािजक, राजनी तक और आ थक
कारक का उ लेख कया गया है । वेबर का मु य यान व लेषा मक और यवि थत
अ ययन पर था। वह सदै व ह अनुभव से ा त ान को ह तरजीह दे ते थे य क वे
ग तशील ि टकोण के थे। उनके मु य लेख म शा मल ह— सामािजक और आ थक
संगठन के स धांत ‘‘सामा य आ थक इ तहास’’, और ‘‘ ोटे टट वचार और पँज
ू ीवाद क
भावना।’’

नौकरशाह का अथ

नौकरशाह का सरल अथ है ‘‘डे क सरकार’’। 1745 म ांस के व सट डी. गुन ने पहल


बार ‘‘नौकरशाह ’’ श द गढ़ा था। उनके बाद कई ांसीसी लेखक, नौकरशाह श द को
लोक य बनाने म लगे रहे परं तु एक श द के प म इसका
योग 19वीं शता द म हुआ
था। ( स ध अथशा ी जे.एस. मल और मो का एवं मशेल जैसे समाज शाि य ने नौकर
शाह पर व तार से लखा था।) वेबर के लए नौकरशाह ‘‘अ धका रय क शास नक
इकाई’’ है जो क संगठन म काय-कुशलता लाने के लए आव यक थे। उनक राय म,
आधु नक समय म काफ यादा आ थक त पधा है , िजसके कारण पँूजीवाद णाल को
एक द संगठन णाल क आव यकता है । नौकरशाह के स धांत ने, संगठन को आ थक
योजनाओं के साथ आगे बढ़ने और बाजार म ि थरता बनाए रखने का अवसर दान कया।
वेबर का मानना है न संदेह नौकरशाह के वकास म पँज
ू ीवाद यव था क मह वपूण
भू मका रह है । वा तव म इसके वकास के बना पँज
ू ीवाद उ पादन बरकरार नह ं रह सकता
था। मोटे तौर पर पँज
ू ीवाद ढाँचे के वकास ने ि थर, कठोर, गहन और, गणना यो य
शासन क आव यकताओं को ज म दया (वेबर, 1953, प.ृ 48)। वह आगे कहते ह
‘‘नौकरशाह शासन के लए पँज
ू ीवाद सबसे अ छा ता कक आ थक आधार है । जो क इसे
ता कक प से वकास करने म स म बनाता है य क व ि टकोण से यह आव यक
मौ क संसाधन क आपू त करता है ।’’ (वेबर 1953, प.ृ 48)

ा धकार पर मै स वेबर के वचार

वेबर समाजशा ीय घटना के प म नौकरशाह को प रभा षत करने का यास करते ह जहाँ


भु व के स धांत को सामा य संदभ म समझा जा सकता है । भु व सामा यतः शि त
संबंध को दशाता है जो क शासक और शा सत के बीच आदे श क स ावाद शि त है । परं तु
शि त को तभी वीकार कया जाता है जब वह यायो चत और वैध हो। ा धकार शि त के
योग को वैध बनाता है जहाँ एक यि त वे छा से आदे श और आ ाओं का पालन करते
ह। इस व वास के आधार पर वेबर ने तीन कार के वैधता क पहचान क िजसम से
येक कसी वशेष कार के ा धकार से संबं धत है ।

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ा धकार के कार

i) क र माई ा धकार

ii) परं परागत ा धकार

iii) व धक ता कक ा धकार
 क र माई ा धकार : क र मा श द क या या ‘‘लाव य या मनोहरता के उपहार’’
(Gift of Grace) के प म क जा सकती है । क र माई नेताओं के पास कुछ
यि तगत गुण होते ह जो क उ ह सामा य आद मय से अलग बनाता है । वह ह रो,
मसीहा या कोई पैग बर हो सकता है और उनके जादईु शि तय के कारण उनक
यापक तर पर वीकृ त होती है जो क वैधता णाल का आधार होता है । लोग
बना न कए उनके आदे श और आ ाओं को मानते ह य क लोग उनके
असाधारण मताओं पर व वास करते ह। क र माई नेताओं के अनुयायी उनम पूर
न ठा रखते ह। हालाँ क उनके पास कोई वशेष है सयत और यो यता नह ं होता है ।
ा धकार के इस कार का शास नक तं
अि थर और बहुत ह ढ ला होता है
य क इसम अनय
ु ायी नेता के पसंद और नापसंद के अनस
ु ार काम करते ह।
 परं परागत ा धकार : परं परागत ा धकार अतीत क अ छाई से अपनी वैधता करता
है जहाँ काय परं पराओं और र त- रवाज पर आधा रत होते ह। जो यि त इस
ा धकार का योग करते ह उ ह वामी कहा जाता है और जो वामी क आ ा का
पालन करते ह उ ह अनय
ु ायी कहा जाता है । वामी को उसके ि थ त के आधार पर
अ धकार है , जो क पूव के शासक से उसे वरासत म मला होता है — उ ह ं
अनय
ु ा यय वारा उनके आदे श और आ ाओं का पालन कया जाता है जो क उनके
त यि तगत न ठा रखते ह और परं परागत ि थ त म व वास करते ह िजसम
उनके प रवार के सद य, र तेदार और वामी वारा चन
ु े गए खास लोग शा मल है ।
 व धक ता कक ा धकार : व ध ता कक ा धकार के अंतगत संगठन के सभी
सद य पर नयम या यक प से लागू होते ह। आधु नक समाज म ा धकार
भु वशाल भू मका नभाते ह। यह व धक है य क यह यवि थत नयम और
याओं पर आधा रत है । यह ता कक है य क यह प ट तौर से प रभा षत है
और सा य को ा त करने के लए उ चत याओं से मेल खाता है । इस ा धकार
का योग करने वाले सद य को व र ठ अ धकार के प म न द ट कया जाता है
जो क एक नवैयि तक आदे श का पालन करते ह— और अ य शास नक कमचार
शा मल है जो क कानून का पालन करते ह। नयम और याओं का कठोरता से
पालन, व र ठ अ धकार के स ा को सी मत करता है ।

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वेबर के नौकरशाह पर वचार

वेबर नौकरशाह का उ लेख शास नक काय म नयु त अ धका रय के संदभ म करते ह।


नौकरशाह म नयु त अ धकार को शा मल कया जाता है और चन ु े हुए त न धय क
इसम कोई भू मका नह ं होती है । वेबर मानते ह क व धक ता कक ा धकार (जो क
नयम, मानक और याओं पर आधा रत है ) का नौकरशाह से मु य थान होता है । वेबर
के लए ‘‘नौकरशाह शासन से ता पय ान क शि त के वारा भु व से है — वशेष तौर
से ता ककता इसका मूल गुण है ।’’ ( ू ज, 1995, 689)
‘‘संगठन के आधु नक व प का वकास जो क नौकरशाह शासन के नरं तर व तार
और वकास से मेल खाता है (-----) य क नौकरशाह शासन हमेशा ह समान प रि थ त
म रहता है और औपचा रक और तकनीक तौर से काफ ता कक कार का होता है (------)
नौकरशाह शासन क े ठता का मु य ोत तकनीक ान होता है । जो क व तुओं के
उ पादन म आ थक तर क और आधु नक तकनीक के वकास वारा अ नवाय बन गए ह (-
----) नौकरशाह शासन का मूल अथ है ान पर आधा रत भु व का योग। यह वशेषता
इसे खास तौर से ता कक बनाता है । एक तरफ इसम शा मल-तकनीक ान जो क वा तव
म नौकरशाह क असाधारण शि त क ि थ त को पण
ू तः सु नि चत करता है । तो दस
ू र
तरफ यह माना जाता है क नौकरशाह संगठन या वे जो स ा म रहते हुए इसका योग
करते ह वे उस ान से यादा शि तशाल बनते ह। जो क उ ह पद पर रहते हुए अ यास
से ा त होता है ।’’ (वेबर, 1966, प.ृ 24-26)
वेबर वारा तत
ु क गई नौकर क अवधारणा एक वक सत नौकरशाह का मान सक
च ण और आदश प है । िजसका मतलब है क यह सापे त है और यह कह ं नह ं पाया
जाता है । वेबर का यह आदश ा प म , रोम, चीन और वेजनटाइन के ाचीन नौकरशाह
के अ ययन पर आधा रत है । यह 19वीं और ारं भक 20वीं शता द के दौरान यूरोप म
नौकरशाह के उभरते आधु नक व ृ य से भी भा वत है । वह मानते थे क आधु नक रा य
यव था म नौकरशाह के आदश व प को अपनाया जाना चा हए जो क सामू हक काय
क ता ककता पर आधा रत होता है और यह कमचा रय के पूवानुमान को सु नि चत करता
है ।

वेबर के अनुसार बड़े तर पर शासन के लए नौकरशाह एक कुशल यं है जो क


काफ वक सत हो चक
ु है और आधु नक सामािजक यव था इस पर बहुत अ धक नभर
है । इस कार के संगठन सै धां तक तौर से अलग-अलग े म समान सु वधाओं के साथ
लागू होते ह। इसको, लाभ वाले यवसाय, चे रटे बल संगठन और भौ तक या आदश ल य
को पूरा करने वाले कई नजी उ योग पर भी लागू कया जा सकता है । यह वशु ध कार
के राजनी तक और धा मक संगठन पर भी समान प से लागू हो सकता है । इन सभी े
म उसक ऐ तहा सक उपि थ त को दशाया जाता है । (वेबर, 1946, प ृ ठ 329-340)
50
नौकरशाह क वशेषताएँ

वेबर के अनुसार संगठन के नौकरशाह ता ककता म न न ल खत वशेषताएँ शा मल ह।


जैसा क च 1 म भी दशाया गया है —

1. वशेष ता के साथ काय का वभाजन— संगठन के काय को वशेष काय क सं या


के आधार पर वभािजत कया जाना चा हए। येक कमचार कसी एक तरह के
काय म द और वशेष होना चा हए। यह पण
ू तः संगठन क कुशलता और उ पादन
के व ृ ध को सु नि चत करता है ।

2. नयम वारा काय को प रभा षत करना (औपचा रक तौर से ल खत नयम और


व नयम)— नौकरशाह तं औपचा रक नयम का कड़ाई से पालन करते ह। वेबर
वारा भी इन ल खत नयम और व नयम पर जो दया गया है ता क यि त
यि तगत समथन, मनमानी करके संगठन के काय का उ लंघन न करे और
संगठन का काय प ट तकनीक नयम और मानक के आधार पर हो।

3. ा धकार का पदसोपान (वैध आ ा का पालन)— ता कक कार के नौकरशाह म


पदसोपान मह वपण
ू थान रखता है । शास नक यव था म बंधक का पद और
अ धन थ सेवाएँ एक ज टल संरचना है । येक न न पद कसी उ च पद के
पयवे क और नयं ण के अंतगत आता है । इस यव था म उ च ा धकार से भ न
ा धकार के नणय के व ध व नय मत तर के से अपील कया जा सकता है ।

4. तकनीक मता के लए कमचा रय का चयन और मू यांकन— कमचार क नयुि त


वतं और मु त चयन के आधार पर होता है । यह चयन न वदा, पर ा और
ड लोमा पर आधा रत है , िजसम क उ मीदवार क वशेष श ण क आव यकता
है । यह मू यांकन शु ध प से उ मीदवार के मता और दशन पर आधा रत होता
है ।

5. पद के अनुसार औपचा रक संबंध— संगठन के नौकरशाह व प म नवैयि तक के


स धांत को माना जाता है । यह संबंध अता कक भावनाओं पर नह ं बि क औपचा रक
सामािजक पहलूओं पर आधा रत होते ह। यहाँ यि तगत पसंद और नापसंद के लए
कोई थान नह ं है । उ च अ धका रय का अ धन थ अ धका रय को दया गया
आदे श नवैयि तक म पर आधा रत होता है ।

6. कमचा रय का नय मत वेतन— कमचार को उनके पद और उ रदा य व के अनुसार


वेतन दया जाना चा हए उनका वेतन नधा रत होना चा हए। संगठन के आंत रक
पदसोपान के अनुसार वेतन दया जाना चा हए। इसके अलावा व र ठता और यो यता
के आधार पर पदो न त वारा पेशे म तर क के भी अवसर होने चा हए।

51
7. कमचार के काय और वा म व का वभाजन— कमचार के काय और वा म व के
बीच पूर तरह से वभाजन होना चा हए। नजी इ छाओं और माँग को अलग रखते
हुए संगठन के काय म ह त प े नह ं करना चा हए य क कोई भी कमचार अपने
पद का वामी नह ं हो सकता है ।

8. कमचार के ओवरटाइम क नय मत जी वका— कमचा रय के पदो न त ा धकार


नणय पर नह ं बि क व तु न ठ मानदं ड पर आधा रत होनी चा हए जो क समय के
साथ कमचा रय के नय मत जीवन को उ नत करने म मदद करता है ।

ोत - फेयरा एट एल, 2004 — प ृ ठ 24-25

ऊपर म उ ले खत वशेषताएँ प टतः काश डालते ह क समकाल न समाज म वेबर का


नौकरशाह का स धांत एक आदश, वशु ध, न प , पदसोपा नक, ता कक और अ नवाय
है । वह नौकरशाह के ‘‘आदश कार’’ को एक कायकुशल मशीन के प म न द ट करते ह।
वेबर कहते ह क ‘‘अनुभव सावभौ मक तौर से यह दशाता है क नौकरशाह का शास नक
संगठन… शु ध तकनीक से सव च द ता ा त करने म स म है और इसी संदभ म यह
ा णय पर अ या धक नयं ण करने का सबसे तकपण
ू साधन है । शु धता म, ि थरता म,
अपने अनश
ु ासन क कठोरता म और अपनी व वसनीयता म यह कसी भी अ य प से
बेह र है । इस तरह यह संगठन के मख
ु और इससे संबं धत लोग के लए प रणाम क
गणना को संभव बनाता है । अंततः यह गहन द ता और अपने काय े दोन म बेहतर है
और सभी कार के शास नक काय के लए यह औपचा रक प से स म है ।’’ (महे वर ,
1992)
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जब वेबर नौकरशाह को मू य तट थ के प म प रभा षत करते ह तो वह नौकरशाह
का एक सामािजक संगठन के प म सै धां तकरण करना चाहते ह िजसक तीन ि टकोण
से समी ा क जा सकती है । पहला संरचना मक ि टकोण, िजसे सवा धक मह व दया
जाता है । संरचना मक पहलू के अंतगत, काय का वभाजन और पदसोपान जैसे ल ण
शा मल है । दस
ू रा— नौकरशाह को यवहारवाद वशेषताओं के संदभ म दे खा जा सकता है ।
व तु न ठता, शु धता और ि थरता इसक वशेषताओं म शा मल ह। वेबर कहते ह ‘‘जब पूण
वक सत नौकरशाह भी साइन इरा एक टू डयो (Sine ira a sdudio) के अंतगत वशेष
समझ पर था पत होती है । इसके वशेष वभाव का पँज
ू ीवाद वारा वागत कया गया और
इसका िजतना वकास होता गया उतना ह नौकरशाह (dehumanized) मानवेतर होती गई।
िजस कारण यह गणना से बचने के लए, अ धका रक यापार से ेम, नफरत और सभी
तरह के यि तगत अता ककता और भावना मक त व को ख म करने म सफल होता गया।
यह नौकरशाह क वश ट कृ त और वशेष गुण है । (गथ और मल, 1946, प ृ ठ 215)।
अंत म यं वाद ि टकोण से नौकरशाह क या या क जाती है िजसम उ दे य क
उपलि ध को शा मल कया जाता है। पीटर बलाऊ क राय म संगठन को ऐसे सं थान के
प म दे खना चा हए जो शासन क कायकुशलता और शास नक द ता के हत म
सं गठत सामािजक आचरण के सं थागत प ध त को बढ़ाता है ।

नौकरशाह क सीमाएँ

नौकरशाह क आव यकता और मह व पर जोर दे ते हुए, वेबर इस त य के त सचेत थे


क नौकरशाह के पास शि त संचय क अंत न हत व ृ होती है । अ बो ने भी कहा क
इसी मामले के कारण वेबर ने वशेष तौर से नौकरशाह और सामा यतः स ा क णाल के
े को सी मत करने के लए अनेक यव थाओं पर वचार कया। ये तर के पाँच वग के
अंतगत आते ह।

i) सामू हक करण

ii) शि तय का वभाजन

iii) अ यवसायी शासन

iv) य लोकतं

v) तनध व

i) सामू हक करण—सामू हक करण स धांत एका धकारतं के वपर त है । वेबर कहते ह


क एका धकारतं नौकरशाह म येक पदसोपान तर पर केवल एक यि त ह होता
है । परं तु जैसे ह नणय नमाण म एक से यादा लोग शा मल होते ह, वैसे ह
सामू हक करण के स धांत का ारं भ हो जाता है । सामू हक करण नौकरशाह के

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भू मका को सी मत करने म भी मदद करता है परं तु इसके प रणाम व प उ रदा य व
नधा रत करने और नणय लेने के ग त के संदभ म भी नुकसान होता है ।

ii) शि त का वभाजन— शि त के वभाजन का अथ है क एक ह उ रदा य व या काय


को दो या दो से अ धक नकाय म बाँटना। इसम सभी संबं धत नकाय को समझौता
करना पड़ता है ता क वे कसी एक नणय पर पहुँच सके। इससे नौकरशाह को, एक
ह सं था वारा नणय लेने के एका धकार से मु त कराने म मदद मलती है ।
हालाँ क ऐसी यव था अि थर ह होता है ।

iii) अ यवसायी शासन— अ यवसायी शासन के अंतगत शासन उन लोग वारा


चलाया जाता है िजनके आदे श का सावज नक स मान और सामा यतः व वास हो
और उनके काय अलाभकार हो। परं तु इस यव था म पेशव
े र और वशेष क
वशेष ता का भी अभाव था, जो क आधु नक समाज क आव यकता है ।

iv) य लोकतं — य लोकतं भी नौकरशाह क शि त को सी मत करता है । इस


यव था के अंतगत अ धका रय का नदशन कया जाता है और वे सभा के त ह
जवाबदे ह होती है । इसके कई प हो सकते ह जैसे कुछ समय के लए कायालय म
बाहर , लाटर से चन
ु ाव और वापस बुलाने क संभावना। परं तु यह यव था थानीय
शासन या छोटे संगठन के मामल म ह सफल हो सकते ह।

v) त न ध व— लोग के नवा चत त न ध नौकरशाह के ा धकार को साझा करते ह


जो क नौकरशाह क शि त को नयं त या सी मत करने म मदद करता है । परं तु
यहाँ यह संभावना भी है क इन त न धय का नौकरशाह करण ह हो जाए। हालाँ क,
वेबर मानते ह क तनध व वारा नौकरशाह पर नयं ण क काफ संभावना है ।

अंतः वेबर नौकरशाह के अ य धक स ावाद भू मका के त सचेत थे। इस लए वह


नौकरशाह क भू म को सी मत करना चाहते थे। यहाँ शासन तं को नयं त करने क
आव यकता थी।

वेबर के नौकरशाह के स धांत क आलोचना

वेबर के नौकरशाह के स धांत क आलोचनाओं के साथ चि हत कया जाता है जो क


मु य प से नौकरशाह ा प, स ावाद मानक, शास नक कायकुशलता, ता ककता क
संक पना, यि त और व वसनीयता के आस-पास घम
ू ती है ।

वेबर का स धांत संगठन के अंतगत यि त और उनके यवहार के पहलुओं पर वचार


करने म असफल रहा। इसका नमाण एक आदश के प म कया गया था जो क वा तव
म कह ं नह ं पाया जाता है । काल-जे- े ड रग मानते ह क ‘‘आदश’’ श द इस संदभ म
दभ
ु ा यपूण है क िजन स ाओं पर इसे लागू कया गया वे नि चत तौर से आदश नह ं ह।

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यहाँ तक क लेटो नक समझ म भी ‘‘आदश’’ नह ं है । इस लए नौकरशाह म वशेषतौर से
कुछ ‘‘आदश’’ नह ं है । इसके अलावा य द वे ‘‘आदश’’ थे तो ‘‘ कार’’ नह ं ह गे य क
‘‘ कार’’ अपनी वशेषता अनुभ वक वा त वकताओं से नकालते ह, िजसके क वे तीक ह...
परं तु वेबर, इस कार के अनुभवज य अवलोकन और व लेषण के थान पर उनके ‘‘आदश
कारो’’ को मान सक संरचना के प म तुत करते ह। जो न तो उ च अवधारणाओं के
नगमन अनुपात के याओं वारा उ प न होते ह और न ह अनभ
ु वज य आँकड़ से
बनते ह।’’ ( े ड रक, 1963, प ृ ठ 469-70)

आलोचक क राय है क वेबर का स धांत उन काय के लए उपयु त नह ं है जो क


नवो मेष और रचना मकता से संबं धत है । य क यह दै न दनी काय और बार-बार दहु राये
जाने वाले काम को करने वाले, संगठन के लए उपयु त ह जो क कठोर नयम और
व नयमो को अपनाते ह। रॉबट के माटन कहते ह क इसम कोई शक नह ं है , क कठोर
नयम और व नयम, नवयि तकता के वारा कमचार के यवहार का पुवानुमान लगाने
और व वसनीयता को बनाए रखने म मदद मलती है । परं तु इसका प रणाम कठोरता,
संगठन के औपचा रक संरचना और संगठन क द ता म नुकसान के प म होता है । वेबर
वशेष ता और वभेदन पर जोर दे ते ह। और उ रदा य व के त समपण और वक करण
पर यान क त करते ह। जैसा क फ लप से ज नक कहते ह क इसके प रणाम ल य से
हट जाते ह। इससे अलग-अलग इकाइय के अलग-अलग ल य होते ह और संगठन के पूण
ल य को दस
ू रा थान दया जाता है य क कमचा रय का ल य उनके उप इकाइय के
ल य पर होता है ।

माटन के अनुसार ‘‘एक कुशल नौकरशाह अनु या क व वसनीयता तथा व नयम के


त न ठा क माँग करते ह। नयम के त ऐसी न ठा नरपे (absolutes) क ओर ले
जाता है । वे कसी नधा रत उ दे य के त अपे कता खो दे ते ह। यह वशेष प रि थ त
म सहज अनुकूलन को बा धत करता है िजसक ओर सामा य नयम का नमाण करने वाले
यि तय का यान नह ं जाता है । इस कार जो त व सामा य उ पादन म कायकुशलता को
बढ़ाते ह वह वशेष मामलो म अस मता को बढ़ाते ह। िजन यं से अनु पता होने क
संभावना बढ़ती है उ ह ं व नयम का कड़ाई से पालन करने के कारण अ या धक चंता भी
बढ़ता है य क यह भी ता उपभो तावाद और तकनीक को े रत करता है ।’’ (माटन,
1957, प ृ ठ 156)

अि वन गॉ डर ने भी आलोचना क है । वे मानते ह क संगठन के नयम और


व नयम के ज रए वीकृ त यवहार और दशन के यूनतम तर को समझा जा सकता है ।
यद बंधक और अधीन थ का नयम और व नयम पर यान हो और संगठन के ल य
पर कम यान हो तो इससे बंधक और अधीन थ के बीच नरं तर दरार और उदासीनता
बढ़ती है िजससे संगठन अपने ल य से वमुख हो जाते ह। वकटर थामसन इस तक को
55
आगे बढ़ाते हुए कहते ह क बंधक, संगठन के ल य को पूरा करने के लए न न तर के
वशेष पर नभर रहते ह। संगठन के संबंध म अपनी जवाबदे ह और असरु ा से बचने के
लए वे यादा से यादा नयम और व नयम को बनाने क को शश करते ह। वेबर ने
अपने स धांत म पूर तरह से औपचा रकता संरचना को अपनाया है । परं तु वे अनौपचा रक
संबंध को पहचानने म असफल रहे , जो क संगठन के वकास म मह वपूण भू मका नभाते
ह। (लाड डो फ और सूसन डो फ का मानना है क औपचा रक तकसंगतता (और
तकनीक ) संगठ नक कायकुशलता म योगदान दे सकते ह। परं तु अलगाव और तरोध के
ोत का नमाण करके यह संगठ नक अ मता भी उ प न कर सकता है और ा धकार के
व ध स ा के लए संघष को भी बढ़ा सकता है । नौकरशाह शासन म वंशगत त व क
ढ़ता और था य व, य द संघष को ख म नह ं करते तो उसे कम अव य ह कर दे ते ह।
ठ क वैसे ह वंशगत शासन म नौकरशाह क वशेषताओं क उपि थ त उनक कुशलता
और भावशीलता को बढ़ा सकती है । ( डो फ और डो फ, 1979)

वेबर ने तकनीक े ठता के साथ शास नक कमचार के ा धकार को समान माना है ।


परं तु टे कोट और पास स ने इस प क
आलोचना करते हुए कहा क यह आंत रक
असंग त क ओर ले जाता है । उनके अनुसार यह संभव नह ं है क जो अ धकार आदे श दे ते
ह वे तकनीक कौशलता म समान प से अ छे हो। नौकरशाह क दस
ू र मह वूपण कमी
यह है क इसम कमचा रय को अ भ य त करने का अवसर नह ं दया जाता है । उनके
वचार या नणय- नमाण मता को कोई मह व नह ं दया जाता है । प रणाम व प कमचार
नराश और ेरणाह न महसूस करते ह। समय बीतने के साथ ह वे नयम और व नयम
क परवाह नह ं करते और उनका ब ह कार या आलोचना करना शु कर दे ते ह।

न कष

अनेक आलोचनाओं के बावजूद वेबर के नौकरशाह के स धांत के मह व को कई अनुभव


ज य शोध ने वीकार कया है । यह बड़े संगठन के बंधन के लए लाभदायक है िजसम
बहु तर य पदसोपान, था पत नयम और याओं पर आधा रत काय शा मल ह और यह
पण
ू तः कुशलता को बढ़ाने म भी मदद करता है । वतमान समय म भी शासन म वेबर के
नौकरशाह स धांत का योग कया जाता है । यह दोन समाज के लए लाभदायक है । भले
ह वह पँज
ू ीवाद हो या समाजवाद । मु त अथ यव था म जहाँ रा य यन
ू तम भू मका
नभाता है वह ं नौकरशाह रा य के कुछ आव यक काय और दन- त दन क
आव यकताओं को परू ा करता है । वह पहले स धांतकार है िज ह ने नौकरशाह को एक
सै धां तक आधार दया और संगठन को कुशल तर के से बनाए रखने म इसके मह व को
उजागर कया।

56
संदभ सच
ू ी

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ए डटो रस।

57
नव-शा ीय स धांत

मानव संबंधी स धांत (ए टन मेयो)


डॉ. नीलम जैन
अनुवादक : व क झा

परे खा

 प रचय
 ोफेसर जॉज ए टन मेयो
 ारं भक योग
 हॉथोन योग
o महान काश यव था योग (1924-1927)
o रले एसै बल अ ययन (1927-1932)
o मानवीय अ भव ृ व भावनाएँ (1928-1931)
o बक वाय रंग अवलोकन योग (1931-1932)
 हॉथोन शोध क मख
ु खोज
 चे टर आई-बनाड का मानव संबंधी स धांत म योगदान
 मानव संबंधी स धांत के न कष
 मानव संबंधी स धांत बनाम शा ीय स धांत
 मानव संबंधी स धांत का मू यांकन
 न कष
 संदभ सूची एवं अ य लेख

प रचय

संगठन के संबंध म मानव संबंधी स धांत एक नया स धांत है , जो क संगठन और


बंधन के मानवीय प पर जोर दे ता है । मानव संबंधी आंदोलन, शा ीय स धांत ,
वशेषतौर से े ड रक व सलो टे लर वारा तपा दत वै ा नक बंधन के आलोचना के प
म आया था। 1920 से 1940 के दौरान क महामंद व आ थक नुकसान ने बंधन के पुराने
स धांत क क मय को उजागर कर दया था। इस अव ध के दौरान, जहाँ एक ओर मक
संगठन क सं या म व ृ ध हो रह थी, तो वह दस
ू र ओर काय ि थ त म सुधार, मक
अ धकार एवं सामािजक सुर ा क माँग म भी बढ़ोतर हो रह थी। इ ह ं मामल के कारण
बंधक और मक के बीच दरू बढ़ती जा रह थी। इस लए संगठन के व भ न सम याओं

58
का समाधान अ धक मानवीय ढं ग से करने के लए संचार-साधन म व ृ ध क आव यकता
थी।

मानव संबंधी स धांत संगठन को पूणतः सामािजक प र े य म दे खता है , और संगठन


क कायकुशलता एवं मक उतपादकता के यं वाद स धांत क सीमाओं पर काश डालता
है । ोफ़ेसर जाज ए टन मेयो ने इस स धांत का वकास कया था। इसी कारण इ ह
संगठन के मानव संबंधी स धांत का पता कहा जाता है। हावड बजनेस कूल के अपने
सहक मय के सहयोग वारा मेयो ने संगठन के े म अनेक योग क ख
ंृ लाएँ आयोिजत
क।

ोफ़ेसर जाज ए टन मेयो

ोफेसर जॉज ए टन मेयो का ज म 1880 म ऑ े लया म हुआ था। उ ह ने एडीलेड


व व व यालय म मनो व ान एवं दशन का अ ययन कया था। 1911 म मेयर वींसलै ड
व व व यालय म तक, नी त, और मनो व ान के ा यापक के
प म शा मल हुए थे। मेयो
ने मनो वकृ त (Shell-Shock) के मनो व लेषणा मक उपचार के संबंध सव थम शोध काय
कया। पि चमी इलेि क कंपनी के हॉथोन संयं
म हुए अ ययन से ा त उनके अनुसंधान
ने उ योग एवं संगठन के मनोवै ा नक और समाजशा के कुछ पहलूओं पर काश डाला
है ।

ारं भक योग

1923 म मेयो ने फलोडेि फया के नकट कपड़ा मल म अपना थम योग काय कया
िजसे बाद म थम खोज (First inquiry) नाम दया गया। इस शोध का थान काफ
संग ठत था। यहाँ क प रि थ तयाँ मक के लए काफ अनुकूल थीं। बावजूद इसके, सभी
वभाग म 5 तशत तक मक क अनुपि थ त रहती थी। वह ं दोमँुह बुनाई वभाग
(mule-spinning department) म यह अनुपि थ त का आँकड़ा 250 तशत तक था। इस
प रि थ त को सुधारने के लए मक को कई तरह के लोभन दए गए जो क यादा
सफल नह ं हुआ। प रणामतः ए टन मेयो व उनक ट म ने दोमँह
ु बुनाई वभाग (mule-
spinning department) क सम याओं का कई तर के से अ ययन कया। अपने योग के
आधार पर, मेयो ने पाया क मक शार रक थकान क सम या का सामना कर रहे ह और
उ ह पया त व ाम क सु वधा नह ं द जा रह है । इस लए उ ह व ाम के समय क
आव यकता है। इस योजना का भाव सकारा मक रहा। मेयो के अ ययन क कृ त यापक
थी। इसम उ पादन के तर, व ाम क अव ध, काम करने क ि थ त, कभी-कभी होने वाले
दघ
ु टनाओं को भी शा मल कया गया था। वह ं मक के लए व ाम के समय का नणय
दे कर बंधक ने कपड़ा मल म बंधन और मक के बीच सामािजक संपक था पत कया
जो क एक नई शु आत थी।

59
हॉथोन योग

संयु त रा य अमेर का के शकागो म वे टन इलै कल कंपनी का हॉथोन संयं ग तशील


कंप नय म से एक था। यह कंपनी अपने उपल ध करवाए जा रहे काम के बेहतर माहौल,
काम के अनक
ु ू ल समय और व भ न सु वधाओं के लए स ध था। परं तु 1920 के दशक
के शु आत से इस कंपनी के उ पादन के औसत तर म गरावट आ रह थी। इस कंपनी के
बंधक, उ पादन म सध
ु ार के लए वे सभी सकारा मक बदलाव कर रहे थे, जो क संगठन
के शा ीय स धांत एवं वै ा नक बंध स धांत वारा सझ
ु ाए गए थे, परं तु इसके प रणाम
संतोषदायक नह ं थे। ऐसी प रि थ त म कंपनी के बंधक ने उ पादन के न न तर क
सम या के समाधान के लए हावड बजनेस कूल से संपक कया। अतः ए टन मेयो और
उनके सहक मय ने यह िज मेदार लेते हुए शोध क कई ंख ृ लाएँ आयोिजत क ं और
संगठन के सम अपने मानव संबंधी स धांत को रखा। इस हॉथोन योग के उ लेखनीय
अ ययन इस कार ह—

महान काश यव था योग (1924-1927)

इस योग काय म म हला मक के दो दल बनाए गए जो क टे ल फोन रले बनाने म लगे


हुए थे। इनको दो अलग-अलग कमर म रखा गया। इनम से एक दल योगा मक समूह थे
तो दसू रा नयं त समूह। इसका उ दे य उ पादन के तर का अ ययन करना था। इसको
लेकर प रक पना यह थी क उ पादन का तर काश क बढ़ हुई मा ा के साथ
सकारा मक प से मेल खाता है । नयं त समह
ू के कमरे म काश का ि थर तर रखा
गया जबसे दो समूह शु हुआ था। दोन समूह के कमर म समय-समय पर योगा मक
बदलाव कए जाते रहे । इसके बाद धीरे -धीरे काय करने क प रि थ तय म प रवतन कया
गया। इसका उ दे य उ पादन पर इस प रवतन के भाव को जानना था। यह शोध काय दो
वष तक चलता रहा। इस शोध म यह दे खा गया क काश को कम या अ धक करने के
बावजूद नयं त और योगा मक समूह के वारा उ पादन म व ृ ध क गई। इस शोध के
न कष थोड़े आ चयजनक थे। इसके बाद व ाम के समय म जानबूझकर प रवतन कया
गया। उ पादन पर उनके भाव का आंकलन करने के लए वेतन भुगतान, काय क अव ध,
कमरे क आ ता, तापमान म भी प रवतन कया गया। हालाँ क शोधकताओं क अपे ाओं के
वपर त इन समह
ू ने उ पादन तर एक समान रखी। शोधकताओं ने न कष नकाला क
योग के दौरान बंधक और मक के बीच बेहतर संवाद या था पत करने और
शोधकताओं वारा मक क ि थ त क ओर यादा यान दे ने से ह ये सकारा मक
प रणाम ा त हुए।

60
रले एसै बल अ ययन (1927-1932)
काश स धांत क प रक पना के आलोचना मक समी ा करने के लए और उ पादन पर
व भ न कारक (factors) के भाव का आंकलन करने के लए, दो नए समूह का गठन
कया गया। यह दो प रक पनाओं पर आधा रत था जो क काश योग के अ ययन के
उपरांत शोधकताओं ने था पत कए थे—

(i) पहल प रक पना यह थी क यि तगत वेतन व ृ ध ने उ पादन म व ृ ध को े रत


कया।

(ii) दस
ू र प रक पना, यह माना गया क पयवे ण या नर ण (Supervision) प ध त
म सकारा मक प रवतन से यवहार और उ पादन म सध
ु ार आया है ।
इस अ ययन के लए, दो समह
ू के लए उनके काय के आधार पर यि तगत ो साहन
योजना लागू क गई। यह माना गया क ारं भ म तो कुल उ पादन म सध
ु ार हुआ, जब क
कुछ समय प चात ् उ पादन म ठहराव आ गया। दस ू रे समह
ू पर भी यि तगत ो साहन
योजना लागू थी। आराम क अव ध और काय क अव ध म प रवतन करके उ पादन पर
उनके भाव का भी अ ययन कया गया। शोध के 14 मह न क अव ध म औसतन
उ पादन म व ृ ध हुई।
शोधकता पहल प रक पना को स ध नह ं कर पा रहे थे। शोधकताओं ने यह पाया क
दोन समूह वारा उ पादन व ृ ध का कारण वेतन नह ं बि क अ य प रि थ तयाँ थीं। दस
ू रे
प रक पना क वैधता का पता लगाने के लए काय करने क प रि थ त को श थल
(Relaxed), सुचालक और सौहादपूण बनाया गया। पयवे क और मक के बीच वतं
और बेरोकटोक संचार को बढ़ावा दया गया। पयवे क ने अपने बंधक य काय म संशोधन
कया। अब पयवे क लोकतां क तर के से मक के साथ त या करने लगे िजससे
मक यह महसूस करने लगे क वे भी उ पादन या के अ भ न भाग ह। इससे उनक
त या और अ धक सकारा मक हो गई।
मेयो ने यह दे खा क काय संतुि ट मु यतया काय समूह के अनौपचा रक सामािजक
व प पर नभर करता है । उ ह ने यह भी पाया क पयवे क क सौहा पूण तकनीक का
सकारा मक भाव उ पादन पर पड़ता है ।

मानवीय अ भव ृ और भावनाएँ (1928-1931)

मेयो व उनक ट म ने 1928-31 म एक और अ ययन काय आयोिजत कया जो क


मानवीय अ भव ृ एवं भावनाओं से संबं धत था। इसके लए, उ ह ने 21000 मक से
सा ा कार कया और उ ह अपने काय प रि थ तय एवं बंधन के नी तय के बारे म वतं
राय अ भ य त करने को कहा। इन सा ा कार का यास मजदरू के मनोबल को बढ़ाना
था। बजाय इसके क वे मजदरू वारा सामना कए जा रहे व भ न सम याओं के बारे म

61
आँकड़ा इक ठा करे । इसम यह भी दे खा गया क मजदरू क भावनाओं क शंसा कए बना
उनक वा त वक सम याओं को गहराई से समझना मुि कल था। इस या म, शोधकताओं
ने मक क सम या को समझने के लए नए तर क का योग कया।

इस अ ययन से मु यतः तीन चीज क पहचान क ।

पहला— मक क सम याओं के बारे म जानकार इक ठ करने से उनके बीच


समानता क भावना पैदा होती है वह भी तब से जब मक को बंधक य नणय नमाण म
भाग लेने दया गया। इससे काय ि थ त म सध
ु ार क आशा पैदा होती है ।

दस
ू रा— शोधकताओं के दल ने अपने अवलोकन म बंधक और पयवे क को मक क
सम याओं के त अ धक जवाबदे ह होने के लए ो सा हत कया।

तीसरा— शोधकताओं ने यह महसस


ू कया क मक क वा त वक सम याओं को
समझने के लए यह आव यक है क उनके भावनाओं क शंसा कर। यह कमचार के
यि तगत इ तहास और सामािजक सं थान दोन से ा त होता है ।

बक वाय रंग अवलोकन योग (1931-32)

इस योग म 14 आद मय (9 वायरमैन, 3 सो डर, 2 इं पे टर) के समूह को वाय रंग का


काम करने के लए नयु त कया गया िजसम सो ड रंग और ट मनल के फि संग का काय
शा मल था। इसम समूह लोभन (Incentive) योजना के आधार पर वेतन दया जाना था
और येक यि त को उसका ह सा समूह वारा कुल उ पादन के आधार पर मलना था।
शोधकताओं ने अपने अपे ाओं के व ध पाया क मक लोभन को लेकर सकारा मक
त या नह ं दे रहे ह। मक ने अपने उ पादन क सीमा वयं ह नधा रत क जो क
बंधक वारा नधा रत क गई सीमा से कम थी। एक ि थर उ पादन दर को बनाए रखने
के लए मक म अनौपचा रक सहम त थी और िजस सीमा पर वह वयं ह सहमत हुए थे
मक उस सीमा से न तो उ पादन को बढ़ाने क और न ह घटाने क को शश कर रहे थे।
इस कार शोधकताओं के एक समूह मनो व ान और अनौपचा रक यवहार सं हता को
उजागर कया, जो क सम त औ यो गक उ पादन को भा वत करता है । मक के इस
कार के यवहार का ेय सीधे-सीधे बंधन के व ध गहरे अ व वास को दया गया। इस
वशेष योग म, समूह ने बंधक को सुधारने के लए अनौपचा रक दबाव का योग कया।
इस दौरान के नयम न न तरह से तैयार कए गए।

 अ या धक काय करने से बचना है । य द कोई भी अ या धक काय करे गा तो उसे ‘‘रे ट


बू टर’’ कहा जाएगा।

 कम काम करने से भी हतो सा हत होना चा हए। य द कोई ऐसा करे गा तो उसे


चे लर कहा जाएगा।

62
 अपने सहकम क नकारा मक रपोट पयवे क को नह ं दे नी चा हए।

 कसी से सामािजक दरू का यास नह ं करना चा हए और न ह कायालयी यवहार


करना चा हए।

अतः यह अ ययन एक संगठन के संचालन म अंतर-समूह के त य को काश म लाने


म काफ उपयोगी रहा।

हॉथोन योग क मुख खोज

हॉथोन योग और बाद के अ ययन ने मक क संतुि ट और संगठना मक उ पादन के


मुख नधारक के प म, अनौपचा रक संगठन और सामािजक-मनोवै ा नक कारक के
काम को उजागर करने म काफ मह वपूण रहे ह। इस अ ययन से संगठन म मानवीय
कारक के मह व और बंध एवं मक के बीच एक अ छे संचार णाल क आव यकता को
समझने म सफल रहे । मेयो और उसके सहयो गय के योग को नीचे सं ेप म समझा जा
सकता है ।

1) उ पादन म सामािजक कारक— संगठन के तर का नधारण अ धका रक मानक


वारा नह ं बि क सामािजक मानक वारा होता है । मक मा मशीन नह ं होते ह।
ये सामािजक वशेषताओं वाले मानव ह जो क संगठन म उ पादन और कायकुशलता
का नधारण करते ह।

2) समह
ू भाव— संगठना मक यव था म मक केवल यि त क तरह यवहार न
करके समह
ू के सद य के प म यवहार करते ह। समह
ू के मानक यि त के
यवहार पर मख
ु भाव डालते ह। मक का उ पादन इस मानक के अनु प होता
है । समह
ू कायकार तशोध से सरु ा भी उपल ध करवाता है । इस तरह अनौपचा रक
समूह के काय करने से कायकार शि तय को कुछ हद तक सी मत भी कया जाता
है ।

3) इनाम और अनुमोदन— उ पादन बढ़ाने के लए आ थक इनाम के बजाए सामािजक


इनाम और आ थक लोभन के बजाए सामू हक अनुमोदन का यादा भाव होता है ।

4) पयवे ण— संगठन के ल य, मक वारा तभी वीकार कया जाता है य द उ ह ये


वचार- वमश म शा मल कया जाए और उनके अनौपचा रक नेता से सलाह ल जाए।
इसके लए बंधन क ओर से नणय नमाण म मक क भागीदार सु नि चत
करने के लए भावी संचार और इ छा क आव यकता होती है।

5) संचार— संगठन के वकास और बेहतर काय क प रि थ तय के वकास के लए


संचार मह वपूण है । मक को कसी वशेष नणय और कायवाह क तकसंगत के
बारे म अ छे से जानकार दे नी चा हए। बंधक को अ भव ृ सामािजक और

63
मनोवै ा नक कारक और मक के काय के प ध तय को बेहतर संचार वारा
पहचान करने का यास करना चा हए।

मानव संबंधी स धांत म चे टर आई बनाड का योगदान

संगठन के मानवीय संबंधी स धांत के दस


ू रे मह वपूण स धांतकार चे टर आई बनाड ह,
िज ह ने अपने कृ त फं शन ऑफ एि ज यू टव (1938) म इसका उ लेख कया। बनाड
वारा संगठन के स धांत के मु य वशेषताओं को सं ेप म नीचे दया गया है ।

 सहयोगा मक णाल के प म संगठन— संगठन को बेहतर तरह से काय करने के


लए सहयोग आव यक है । बना दस
ू र के सहयोग के, यि त के पास संगठन का
संचालन करने क सी मत मता होती है ।

 औपचा रक और अनौपचा रक संगठन— बनाड का मानना है क संगठन को बेहतर


तरह से काय करने म, औपचा रक और अनौपचा रक संरचना एक दस
ू रे क पूरक
होता है ।

 ा धकार का सहम त स धांत— बनाड के अनस


ु ार सहम त और वीकृ त ा धकार
का आधार होता है । उसके अ धन थ के भागीदार क इ छा के वारा ा धकार क
भावशीलता का नधारण होता है । उ ह ने ा धकार क 4 आव यकपण
ू शत क
पहचान क , बोधग यता, संगठन के उ दे य के त सम पता, यि तगत हत के
साथ सुसंगता और ा धकार को वीकार करने के पीछे भौ तक और मान सक
मता।

 लोभन—योगदान संतुलन— बनाड ने संगठन म म के संदभ म योगदान और


संतिु ट तर िजसक सामा यतः गणना लोभन के संदभ म क जाती है , के बीच
संतुलन लाने का यास कया।

 नै तक िज मेदार — कायकार क नै तक िज मेदार संगठन क बु नयाद होती है ।

 संचार— कसी सहयोगी णाल क सफलता एक अ छे संचार तं पर नभर करता


है ।

मानव संबंधी स धांत के न कष

पहला— दस
ू रे शा ीय स धांत के वपर त, मानव संबंधी स धांत संगठन को पण
ू तः
सामािजक प र े य म दे खता है , जो क संगठन के काय म मानवीय त व पर जोर दे ता है ।

दस
ू रा— मानव संबंधी स धांत का मानना है क येक मक अपने साथ, अपनी
सं कृ त, अ भव ृ , व वास और जीवन जीने क प ध त लेकर चलता है । संगठन को इन

64
सभी सामािजक-सां कृ तक कारक को यान म रखना चा हए। मक के उ पादन और काय
संतुि ट म सामािजक और मनोवै ा नक कारक िज मेदार ह।

तीसरा— यह स धांत उ पादन और ेरणा पर अनौपचा रक समूह के भाव क पहचान


करता है ।

चौथा— यह स धांत मक म अपनेपन क भावना और संगठन म सामािजक


एकजुटता क आव यकता पर बल दे ता है ।

पाँचवाँ— मानव संबंधी स धांत बंधक के नए प क खोज करता है , जैसे सहभागी


बंधन, जो क मक और बंधक के बीच क दरू को कम करता है ।

मानव संबंधी स धांत बनाम शा ीय स धांत

अ य शा ीय स धांत क तरह, मानव संबंधी स धांत भी बेहतर उ पादन म बंधन क


आव यकता को वीकार करता है । हालाँ क, यह स धांत, संगठन के मल
ू वचार को लेकर
भ न वचार रखता है । संगठन वा तव म सामािजक णाल है । इसके अलावा इसके
औपचा रक संरचना म यह यि त और अनौपचा रक समूह को शा मल करता है । उ पादन
पर भाव के संबंध म मानव संबंधी स धांत को मह वपूण स धांत माना जाता है । इसे नव
शा ीय स धांत भी कहा जाता है जो क काय कुशलता पर जोर दे ता है और उ पादन को
संगठन का सार मानता है । परं तु यह स धांत अपे त उ दे य क ाि त के लए अलग
तकनीक पर व वास करता है । हालाँ क एक जैसे उ दे य क ाि त के संदभ म शा ीय
और मानव संबंधी स धांत अपने-अपने ि टकोण म अलग है । मानव संबंधी स धांत,
शा ीय स धांत के अमानवीय कारक के उ मूलन का यास करते ह।

मानव संबंधी स धांत का मू यांकन

मक के मह व और उनके सामािजक-सां कृ तक प रवेश को वीकार करके मानव संबंधी


स धांत, संगठना मक स धांत म एक नया प र े य लाती है । हालाँ क न न ल खत आधार
पर इस स धांत क भी आलोचना क जाती है —

i) आलोचक, हॉथोन योग क शोध प ध तय क क मय को बताते ह। वे तक दे ते


ह क हॉथोन संयं के से पल का आकार अपया त था। यह परू े संगठन के साथ
यवहार नह ं करता है । कैर इस त य के आधार पर आलोचना करती है क
‘‘सहयो गक लड़ कय ’’ का छोटा समूह, सामा य ा प को नह ं दशाते। अपया त
से पल हम वीकृत न कष पर पहुँचने म मदद नह ं करते ह। यह स धांत पुराने
ि टकोण का ह समथन करती है क आ थक लोभन, बेह र काय ि थ त, और
अनुशासन ह उ पादन के मह वपूण भावी कारक ह। कैर के अनुसार, इस
स धांत म वै ा नक आधार क कमी है ।

65
ii) पीटर एफ. कर भी इस स धांत क ओलाचना करते ह। उनके अनुसार यह
आ थक आयाम से नह ं जुड़ा हुआ है । हाबड समूह ने काय क कृ त को नजर
अंदाज कया है । इसका ाथ मक यान अंतर यि त संबंध पर है ।

iii) संगठन म संघ क भू मका क कम समझ के कारण भी इस स धांत क


आलोचना क जाती है । मेयो और उसक ट म संघ त न धय के लए मानव
संबंध उ मुख पयवे क को वक प के प म लाती है । लॉरे न बे र ज जैसे
व वान और अ य इस स धांत को ‘‘संगठन वरोधी’’ और ‘‘ बंधन समथक’’ कहते
हुए आलोचना करते ह। कुछ मा सवाद आलोचक हॉथोन शोधक ाओं को ‘‘कायर
समाजशा ी’’ कहना पंसद करते ह। उनके अनस
ु ार संघष मु त संगठना मक
ि थ त एक व नलोक (utopia) है ।

iv) शा ीय स धांत से मु यतः ेरणा लेने के कारण भी इस स धांत क आलोचना


क जाती है । यह यादा समय तक कामगार के भलाई और संतुि ट को सु नि चत
नह ं करता है ।

न कष

कोई भी स धांत प रपण


ू और सव-समावेशी नह ं माना जा सकता। ए टन मेयो के मानव
संबंधी स धांत क भी कुछ क मयाँ ह। परं तु इसके बावजद
ू , संगठन यवहार के वकास म
यह मील का प थर ह माना जाएगा। संगठन स धांत म उनके पया त संचार णाल ,
सहभागी बंधन, अनौपचा रक संगठन का मह व और दस
ू र के बीच संगठन का मानवीय
प संबंधी वचार काफ मह वपण
ू है । उनके वचार से ह नव-मानव संबंधी स धांत म
आगे वकास हुआ है , वशेषतौर से अ ाहम मॉ लो, डगलस मै गर, े ड रक हजबग, स
आरगाइ रस के काययोजना और बंधन के व लेषण म यह और वक सत हुआ है । अंत म
हम कह सकते ह क ए टन मेयो और उनका मानव संबंधी स धांत, न केवल अपने
प रवतनकार वचार के लए बि क यावहा रक योग के लए आज भी ासं गक है ।

संदभ सूची एवं अ य लेखक

 बे र ज़, एल (196) द सव स ऑफ पावर, वे टपोट, सीट : ीनवड


ू ।

 कैर , ए. (1967) ‘‘द हाथ न ट डइश : एक रे डकल ोट सीजम’’, अमेर कन


सो शयोलाजीकल र यू, 32(3), पेज 403-416

 च वती, बी. एंड चं पी. (2006) पि लक एड म न े शन इन लोबलाइिजंग व ड,


यू दे हल : सेज।

 चे टर, बी. 1954, द फं शन ऑफ ए जी यू टव, केि ज : हवड यू नव सट ेस।

66
 कर, पीटर. एफ. (1961) द ेि टस ऑफ मैनेजमट, लंदन मर यूर बू स

 ू े, एस.एन (2015) एड म न
झा, पी.के. एंड दब े शन एंड पि लक पा लसी, यू
दे हल : कॉलर टे क ेस

 मेयो, ई. (1933) - द यूमन ा लमस ऑफ एन इंडि यल स वलाइजेशन,


कैि ज, एम एम : हावड

 ------------- 1945 द सोशल ा लमस ऑफ इंडि यल स वलाइजेशन, एडोवर,


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ु ेटस, एडोवर ेस।

 रोएथ लस बेगर टज जे., एंड डकसन, ड ल.ू जे. (1939) मैनेजमट एड द वकर,
कैि ज हवड यू नव सट ेस।

67
ता कक नणय- नमाण (हबट साइमन)
डॉ. दे वार ी रॉय चौधर
अनुवादक : व क झा

 प रचय
 नणय- नमाण क प रभाषाएँ
 नणय- नमाण के कार
 नणय- नमाण के स धांत
 नणय स धांत का अथ
 सहज ान संबंधी नणय- नमाण ा प
 रचना मक नणय- नमाण ा प
 ता कक नणय- नमाण ा प और आलोचना
 ता कक नणय- नमाण और हबट साइमन : सी मत ता ककता क संक पना
 हबट साइमन के ा प का आलोचना मक मू यांकन
 न कष
 संदभ सूची

प रचय

नणय- नमाण का वषय काफ यापक है । नणय- नमाण एक बहु तर य या है िजसको


संगठन क एक मह वपूण या माना जाता है । यह बंधन के सभी तर का सबसे
बु नयाद और क य काय है । नणय- नमाण म यवि थत या पर आधा रत प ट
प रभा षत त व को शा मल कया जाता है । ता क ग त व ध के दौरान, वां छत उ दे य क
ाि त के लए कई संभा वत वक प म से एक का चन
ु ाव कया जा सके। येक प रभा षत
त व अपने आप म एक नणय शा मल करते ह। परं तु यह नणय या म से एक अवरोध
के प म भी काय करता है ।

स पूण या का मु य उ दे य यह होता है क ता वक ल य क ाि त के लए
मानवीय ग त व ध (Human action) को नद शत करे । इसम संगठना मक संरचना और
आव यक संसाधन को ग त व ध के दौरान उ चत तौर से यवि थत करना होता है िजससे
क वां छत प रणाम को बेहतर तर के से ा त कया जा सके। ग त व ध क या म
‘‘उ दे य या है ’’, ‘‘उ दे य क ाि त के लए या कया जाना है ’’, ‘‘यह कैसे कया जाए’’
‘‘इसम कौन सब शा मल ह गे’’, ‘‘ या संसाधन है,’’ जैसे न को शा मल कया जा सकता
है । सभी न , वक प और संभावनाओं पर वचार करके योजना बनाई जाती है, और इसके

68
बाद सबसे बेहतर वक प का चन
ु ाव कया जाता है िजसको क ‘‘ नणय’’ कहा जाता है । इन
सभी याओं के मा यम से जो अं तम नणय लया जाता है , उसे नणय- नमाण के नाम
से जाना जाता है । ‘‘ नणय’’ या ड शजन श द क उ प लै टन श द ‘‘डे सदो’’ से हुई है ।
िजसका अथ ‘‘समझौता’’ या ‘‘समाधान’’ है और एक नि चत इरादे के वारा नणायक
प रणाम को ा त करने से है । नणय- नमाण का अथ है क सम या के समाधान के तौर
पर एक नि चत न कष पर पहुँचा जाए।

सभी शास नक काय जैसे ‘‘योना’’, ‘‘संगठन’’, ‘‘ नदशन’’, ‘‘बजट’’ और ‘‘ नयं ण’’ आ द
नणय वारा द शत होते ह इस लए, पूरा नणय- नमाण या शासन का सबसे
मह वपूण व प है ।

नणय- नमाण क प रभाषाएँ

 कंु टज और डोलन के अनुसार ‘‘ग त व धय के अनेक वक प म से वा त वक चन


ु ाव
ह नणय- नमाण है ।’’

 मैि वन ट . कोपलै ड के अनस


ु ार ‘‘ शासन वा तव म एक नणय- नमाण या है ।
ा धकार नणय- नमाण और न मत नणय के या वयन के लए िज मेदार है ।’’

 पीटर कर के अनुसार, ‘‘ बंधक जो भी करता है , वह नणय- नमाण के वारा करते


ह।

ऊपर व णत प रभाषाएँ यह दशाती ह क नणय- नमाण बंधन का मु य काय है । नणय से


ता पय यह है क कई संभावनाओं म से अपनी पसंद के अनस
ु ार कसी एक वशेष वक प
का चन
ु ाव कया जाए। वक प के चन
ु ाव म येक तर पर ‘‘ चंतन करना’’, ा प बनाना
(designing) और ‘‘ नणय लेने’’ क या को शा मल कया जाता है । यह इसे सं ाना मक
(cognitive) या बनाता है । जहाँ पर सम या से संबं धत जानकार यह नणय लेने म
मदद करते ह क ‘‘सम या के बारे म या कया जाए’’ और ‘‘सम या को कैसे हल कया
जाए। नणय- नमाण म सम या से संबं धत उपल ध जानकार इक ठा करना, संसाधन क
पहचान करना, वक प का पता लगाना, जो खम का आंकलन करना, समय पर सभी
वक प म से सह वक प के आधार पर अ छा नणय लेना और नणय के भाव का
मू यांकन करना शा मल है । यह नणय- नमाण या यि तगत नणय से लेकर बड़े
संगठन का आधार है हालाँ क अं तम समाधान पर पहुँचने क या काफ ज टल है जो
क यि त से लेकर संगठन तक और येक तर पर यह बदल सकता है (भ टाचाय और
च वत 2005)

नणय- नमाण के कार

इसम कई कार के नणय होते ह िज ह अनेक वग म बांटा जा सकता है ।

69
1) काय मत नणय और गैर-काय मत नणय

 काय मत नणय— काय मत नणय का नय मत अंतराल के बाद संर चत और


पुनराव ृ त होती है । इस कार के नणय म एक नय मत और बारं बार घटने वाल
सम याएँ शा मल होती ह। काय मत नणय क प रि थ त अ य धक नि चत होती
है । िजसका अथ यह है क इस नणय से संबं धत सम याओं के बारे म जानकार
पहले से उपल ध रहती है । इसके अलावा काय मत नणय से संबं धत सम या का
समाधान भी इसके आदत, नयम और या के अनु प कया जाता है ।

 गैर काय मत नणय— गैर काय मत नणय, काय मत नणय क तल


ु ना म
असंर चत और कम घटने वाल होती है । इस नणय से संबं धत सम या काफ
अनोखा और नया होता है । गैर काय मत नणय क कृ त काफ अ नि चत और
कभी-कभी घटने वाल होती है । गैर काय मत नणय म जब नणय लया जाता है ,
तो वह नणय पव
ू म लए गए नणय के आधार पर नह ं लया जाता है । येक
प रि थ त, पछल प रि थ त से अलग होती है य क इस नणय से संबं धत
सम या और प रि थ त पहले कभी दे खने को नह ं मलती है । इस लए इस नणय म
नए-नए समाधान क आव यकता होती है ।

2) संगठना मक नणय और यि तगत नणय

 संगठना मक नणय—संगठना मक नणय म संगठना मक ल य शा मल होते ह जो


क संगठन के उ न त के लए लये जाते ह। संगठन क तरफ से यह नणय
कायकार या बंधक वारा लए जाते ह। ये दस
ू र को थानांत रत या स पे जा
सकते ह। इस नणय नमाण म संगठन क सम या और थाओं से संबं धत नणय
शा मल होते ह।

 नजी नणय— नजी नणय संगठन के कमचार से ससंबं धत है । आमतौर से यह


नणय संगठन के सद य के तौर पर नह ं बि क बंधक या कायकार वारा एक
यि त के तौर पर लए जाते ह। ये नणय यि तगत उ दे य क ाि त से
संबं धत होते ह और यह नणय दस
ू रो को स पे नह ं जा सकते ह।

3) यि तगत नणय और सामू हक नणय

 यि तगत नणय— यि तगत नणय एक यि त वारा लया जाता है । इस नणय


म यि त अ सर काफ ज द नणय ले लेता है । यह समूह क तुलना म कम
खच ला होता है । इस नणय म यि त के त ह प ट जवाबदे ह होती है जो क
नणय लेता है ।

70
 सामू हक नणय— सामू हक नणय वे नणय होते ह जो क कसी समूह या संगठन
वारा एक नि चत उ दे य क ाि त के लए लये जाते ह। इस नणय म समूह
से संबं धत जानकार , वमश क या और समूह के त पूण जवाबदे ह शा मल
है ।

4) नय मत नणय और व श ट नणय

 नय मत नणय— नय मत नणय जो क नय मत और बार-बार सामने आने वाल


सम याओं से संबं धत होते ह। इस तरह के नणय म न तो नए आँकड़ को इक ठा
करने क और न ह लोग से वचार- वमश करने क आव यकता होती है । इस तरह
के नणय बना कसी वमश के लये जा सकते ह। ऐसे नणय का ाथ मक उ दे य
यह होता है क कसी काय म उ च तर क कौशलता को ा त कया जाए।
संगठन के अंदर भी, संगठना मक नयम के अनु प न न तर पर नय मत नणय
लए जा सकते ह।

 वश ट नणय— वश ट नणय कसी गंभीर सम याओं पर लए जाते ह। ऐसे


नणय म संभा वत वक प के त या वेषी (थब्ं ज पदकपदह) व लेषण क
आव यकता होती है । इन नणय म काफ यादा वमश क ज रत होती है और ऐसे
नणय का भाव भी काफ लंबे समय तक रहता है । व श ट नणय एक संगठन म
उ च तर के बंधक वारा लये जाते ह।

5) नी त नणय और वती नणय

 नी त नणय— नी त नणय वे नणय ह जो क संगठन के बु नयाद स धांत को


प रभा षत करते ह। इसके अलावा यह भी नधा रत करते ह क यह भ व य म कैसे
वकास और काय करे गा। ये नणय उ च तर के बंधक वारा संगठन के नयम
और याओं को बदलने के लए लये जाते ह।

 वती नणय— वत नणय म नय मत काय से संबं धत अ पाव ध उ दे य और


ल य के नयोजन और नधारण को शा मल कया जाता है । ये नणय न न तर
के बंधक वारा नी त नणय को याि वत करने के लए लये जाते ह।

इन ेि य से परे , कई और कार के नणय- नमाण होते ह जैसे वभागीय, अंतर


वभागीय और उ यमी नणय, मुख और गौण नणय, द घका लक और अ पका लक
नणय, सामा य और ज टल नणय आ द। येक नणय- नमाण ा प के अपने फायदे और
नुकसान ह।

71
नणय- नमाण के स धांत

 नणय- नमाण का सीमांत स धांत— यह ासमान तफल के स धांत पर आधा रत


है । यह स धांत, उपयोग के सव च तर पर पहुँचने के बाद भी बरकरार रहता है ।
परं तु उ पादन के कारक को और बढ़ाने से त इकाई तफल म कमी आएगी। यह
स धांत, े ठ तर को पहचानने का काय करता है और यह स धांत श ण,
पदो न त, ब (Sales) और व ापन पर लागू होता है ।

 नणय- नमाण का ग ण य स धांत— यह स धांत संगठन म बंधक को वै ा नक


ि टकोण दे ता है । यह उन सभी आँकड़ और सूचनाओं को स ध करता है िजसका
योग सम याओं के व लेषण, सभी संभा वत वक प म संतुलन और इसके बाद
नणय लेने म कया जाता है । यह यवि थत तर के से आँकड़ के प म जानकार के
वाह को संतु लत करने म मदद करता है । यह क यूटर ो ाम क बु नयाद रखता है
और काय का व लेषण, अनुमा नत स धांत, खेल स धांत इस स धांत पर आधा रत
होते ह।

 नणय- नमाण का मनोवै ा नक स धांत— यह स धांत इस वचार पर काय करता है


क नणय- नमाण एक सं ाना मक या है िजसम क सम या क जाँच, वक प
क तलाश और बेहतर संभावनाओं का चन
ु ाव शा मल है । ये सभी अपे ाओं, आकां ाओं,
तकनीक कौशल, यि त व ल ण , संगठना मक और सामािजक है सयत आ द पर
आधा रत होते ह।

 सी मत कारक स धांत— इस स धांत के अनस


ु ार सम या के मौ लक बु नयाद का
व लेषण कया जाता है और उस आधार पर संभा वत अवरोध और न कष का
नमाण कया जाता है ।

 नणय- नमाण म भागीदार का स धांत— यह स धांत, ‘‘समूह के भागीदार ’’ के


वचार पर काय करता है । यह मानता है क नयम मानव यवहार से भा वत होते
ह। इस लए यह मानव संबंध के वारा उ प न होते ह, जैसे यह स धांत संगठन म
नणय लेने के लए अधीन थ से परामश लेने का समथन करता है ।

 नणय- नमाण म वैकि पक स धांत का वचार— इस स धांत के अनुसार सभी


संभावनाओं का एक-एक करके मू यांकन कया जा सकता है और सभी संभा वत
वक प पर वचार करने के बाद, बेहतर नणय को यान म रखकर अं तम नणय
लया जा सकता है ।

सभी नणय पण
ू तः या आं शक तौर से इ ह ं स धांत पर आधा रत होते ह।

72
नणय स धांत का अथ

नणय स धांत को अंतर अनश


ु ास नक या के प म माना जाता है , िजसे क अनजान
प रि थ तय म सबसे अ छा नणय माना जाता है । एक अंतर वषयक या के प म
नणय- नमाण या का व लेषण व भ न ि ट जैसे मनो व ान, दशन शा , ग णत,
सांि यक , व ान और सामािजक व ान, के वारा कया जाता है ।
इस आधार पर नणय स धांत के तीन अलग-अलग े का नमाण कया जाता है जो
क तीन अलग-अलग ि टकोण से नणय- नमाण क समी ा करता है ।
 वणना मक नणय स धांत— इस बात क समी ा करता है क कैसे एक अता कक
यि त सम या को समझ कर नणय लेता है ।

 नदशा मक नणय स धांत— यह स धांत नणय लेने वाले को यथा संभव न कष


नकालने और अनजान प रि थ त म बेहतर संभा वत नणय लेने के लए बु नयाद
दशा नदश दान करता है ।
 मानक य नणय स धांत— यह स धांत मू य और मानदं ड के मह व को उजागर
करता है और साथ ह मू य और मानद ड के आधार पर नणय लेने के लये
मागदशन दान करता है ।

नणय- नमाण ा प के कार

नणय- नमाण ा प उन प ध तय को प रभा षत करते ह जो क नणय- नमाण म लए


जाते ह। नणय- नमाण के ा प मु यतः चार कार के होते ह। इनम से येक ा प
कसी वशेष कार के नणय से संबं धत होता है । यहाँ यह उ लेख करना भी मह वपण
ू है
क नणय- नमाण के येक ा प के अपने फायदे और नुकसान ह। ये ा प ह—

1. सहज ान संबंधी नणय- नमाण ा प

2. रचना मक नणय- नमाण ा प

3. ता कक नणय- नमाण ा प
4. सी मत ता कक नणय- नमाण ा प

सहज ान संबंधी नणय- नमाण ा प

सहज ान संबंधी नणय- नमाण ा प कसी वषय पर बना पया त वचार कए ह नणय
लेने पर जोर दे ता है । ऐसा दे खने को मलता है , क अ नि चत प रि थ त, समय एवं पैसे के
अभाव म और बेह र सूचना न होने के कारण लोग वारा ता कक नणय- नमाण पर वचार
कए बना ह नणय ले लेते ह। यहाँ यह यान दे ना भी मह वपूण है क कुछ लोग वारा
कभी-कभी इसक आलोचना भी क जाती है । यह ा प आंत रक अनुभू त और अनुमान पर

73
यादा आधा रत होता है । यह नणय- नमाण का यवि थत ा प भी है (लूमेनलेरा नंग
कोस)।

ता कक नणय- नमाण ा प से अलग, इस ा प म नणय बेहतर संभा वत वक प


के आधार पर नह ं लए जाते ह। इस ा प म नणय उस प रि थ त क समी ा करके या
पहले के अनुभव के आधार पर लए जाते ह ता क यह नणय उपयु त हो। जो नणय लया
गया है, य द वह लाभदायक नह ं होता है तो उसी समय म कोई दस
ू रा नणय लया जाता
है । य द एक बार नणय क पहचान हो जाती है, तो नणय नमाता उस नणय का योग
सम या के समाधान के लए करते ह। ऐसे नणय लेने का मु य कारण यह होता है क
नणय क जाँच कर और क मय को जान, एक बार म एक समाधान का पर ण करे , उससे
संबं धत उदाहरण को समझ, संकेत का अवलोकन करे । ता क िजससे नए-नए नणय को
इस तर के से जाना जा सके।

सहज ान संबंधी ा प, ता कक नणय नमाता ा प के वपर त है । ता कक नणय-


नमाण ा प म जब कोई नणय लया जाता है तो वह नणय त य क समी ा करने के
बाद लया जाता है । इस ा प म नणय कई त रया या के आधार पर लए जाते ह।
सहज ान संबंधी ा प असंर चत और खि डत सम याओं क समी ा करने के लए बेहतर
है ।

रचना मक नणय- नमाण ा प

नणय- नमाण का रचना मक ा प क पनाशील नए वचार क शि त पर काश डालता है ।


यि त और संगठन अपने नणय म बहुत वषयक ि टकोण अपनाने, त पधा म व ृ ध
और कुछ नया दान करने, व ृ क ग त था पत करने के कारण ह , वे नंरतर अपने
नणय को यादा से यादा रचना मक और अनोखा बनाने का यास करते ह। इस ा प म
मानदं ड लागत म कटौती से लेकर नए तर के से कुछ करने का यास कया जाता है । एक
बात यहाँ प ट करने क ज रत है क रचना मक और नवीन एक दस
ू रे के समानाथ श द
ह। नवीन या म रचना मकता या सजनशीलता पहला काय होता है । नवीनता रचना मक
और यथाथवाद के यावहा रक नयोजन का म ण होता है ।

रचना मक नणय- नमाण या के तर के

 सम या को जानना— इस या म सम या को समझते ह और उसका पहचान करते


ह।

 अ लावन— इस या म सम या के बारे म सचेत होकर सोचते ह और उससे संबं धत


सच
ू ना इक ठ करते ह।

74
 उ भवन— इस या म सम या से अलग हो जाते ह। हालाँ क अवचेतन अव था म
मि त क सम या पर वचार करता रहता है ।

 प ट करण— इस या म कम से कम उ मीद के प र य म समाधान दखने


लगता है ।

 स यापन और योग के तर पर— इस या म समाधान का स यापन करके, उसे


आ खर नणय के प म याि वत कर दया जाता है ।

इसम तीन कारक के संयोजन से नणय लेने क या म यह रचना मकता के तर


का मू यांकन करता है । इससे वाह ( यादा से यादा वचार को उ प न करने क यो यता)
लचीलापन ( व भ न वचार के तर) और मौ लकता ( वचार म व श टता और नयापन)
शा मल है ।

ता कक नणय- नमाण ा प

ता कक नणय- नमाण या नणय- नमाण के या को दशाता है । िजसम यि त अपने


बु ध और ववेक के वारा संभा वत वक प म से कसी एक वक प का चन
ु ाव करता है ।
इस या को ता कक या के प म जाना जाता है य क इस ा प के आधार पर
जब नणय लए जाते ह, तो इस दौरान नणय से संबं धत हा न को कम करने और लाभ
को बढ़ाने का यास कया जाता है (साइमन 1947)। इस नणय या को इस लए भी
ता कक माना जाता है य क नणय से संबं धत जब न कष नकाले जाते ह तो वह
तकसंगत सा य , त य , सूचनाओं पर आधा रत होते ह न क क पनाओं और अनुमान पर
आधा रत होते ह। इस ा प के अनुसार, ऐसे कोई भी नणय जो क पया त सूचनाओं और
ववेक को यान म रख कर नह ं लया जाता है वह अता कक नणय ह माना जाएगा।

इस ता कक नणय- नमाण म अंत ान (Intuitive) और यि तपरकता को कम मह व


दया जाता है । जब क व तुपरकता, अनुभव का उपयोग और मत यता को अ या धक
मह व दया जाता है ।

ता कक नणय- नमाण या के चरण

 सम या क पहचान करना— पहले चरण म सम या क पहचान और उसको


प रभा षत कया जाता है ।

 नणय के मानदं ड था पत करना— इस चरण म यि त, नणय से संबं धत सभी


ासं गक त व (जैसे सच
ू ना, जो खम, आव यकता, हत, अपनी पसंद आ द) क
पहचान करता है ।

 नणय के मानदं ड का भाव— इस चरण म, नणय से संबं धत ाथ मकताओं एवं


जानका रय को सह म म रखा जाता है ।
75
 संभा वत वक प का पता लगाना— सम या को पहचान कर और उससे संबं धत
ासं गक सूचनाओं को इक ठा करने के बाद, इस चरण म सभी संभा वत वक प
का मू यांकन और उसक प-रे खा तैयार क जाती है ।

 येक वक प का मू यांकन— यह पाँचवाँ चरण है और इस चरण म सभी संभा वत


वक प का वभ न मापदं ड (जैसे—संभा यता, वा त वकता वक प क
व वसनीयता, येक वक प के हा न और लाभ) के आधार पर मू यांकन कया
जाता है ।

 नणय के प म बेह र वक प का चन
ु ाव करना— जब एक बार वक प का
मू यांकन करना समा त हो जाता है तो उसके बाद नणय नमाता को बेह र वक प
का चन
ु ाव करना होता है । चन
ु ा हुआ वक प ह नणय के प म आता है ।

 नणय का या वयन— नणय नमाता सम या का समाधान करने के लए अं तम


नणय को या वयन करते ह।

 नणय का मू यांकन करना— नणय के प रणाम का मू यांकन करना ह आ खर एवं


अं तम चरण होता है ।

नणय- नमाण के ता कक ा प से संबं धत मा यताएँ

इस ा प म माना जाता है क यि त जब कोई नणय लेता है तो वह नणय हा न कम


और लाभ अ या धक दे ने पर आधा रत हो। इस बात को यान म रखकर ह यि त
संभा वत वक प म से बेह र वक प का चन
ु ाव करे गा। इस ता कक ा प क बु नयाद
मा यताएँ यह है क—

1. लोग को सम या के बारे म पण
ू ान और उससे संबं धत सच
ू नाओं क परू
जानकार होती है । िजसके आधार पर वह वक प का नमाण करते ह।

2. लोग के पास सट क आँकड़ा होता है ता क वह नणय से संबं धत लाभ-हा न का


सट क आंकलन कर सके।

3. लोग , आँकड़ को संसा धत करने के लए आव यक सं ाना मक यो यता रखते ह। वे


सभी संभा वत संयोजन का एक दस
ू रे के व ध योग करके उसका मू यांकन करते
ह और वे ता कक एवं न प यो यता रखते ह ता क बेहतर संभा वत वक प का
चन
ु ाव कया जा सके।

ता कक नणय- नमाण ा प से संबं धत सम या

इसक अवा त वक मा यताएँ ह इस ा प क सबसे बु नयाद सम या है । िजसम यह माना


जाता है क नणय नमाता को सम या से लेकर सभी उपल ध वक प क सभी जानकार

76
है ता क बेह र वक प का चन
ु ाव कया जा सके। ता कक नणय नमाता से ‘ े ठ वक प’
के चन
ु ाव क अपे ा क जाती है , िजसम क हा न कम और लाभ अ या धक हो। इस
नणय- नमाण या म नै तक एवं मानक य मानदं ड पर कोई यान नह ं दया जाता है ।
इस ा प म त य, आँकड़ा और वै ा नक व लेषण को ाथ मकता दे ने वाले वचार का
भु व होता है । (हे नर 2003)

ता कक नणय- नमाण या क आलोचनाएँ

अ त सरल करण और अवा त वक मा यताओं के त पूवा ह रखने के कारण इस ा प क


आलोचना होती है । जैसे—

इस ा प का मानना है क सम या से संबं धत सार जानकार उपल ध होती है जो क


सच नह ं है य क नणय नमाता सम या शायद सम या से संबं धत सार जानकार रखने
और इक ठा कर पाने म समथ न हो। उनम कई कार क क मयाँ ह । नणय- नमाण
या के येक चरण के अनुसार सार जानका रयाँ इक ठ करनी ह गी और सभी संभा वत
वक प का नमाण करने के लए उन जानका रय क यवि थत म म समी ा करनी ह
होगी। इस मा यता के साथ कुछ अंत न हत सम याएँ ह—

पहला— कसी सम या के बारे म सार जानकार ा त करना काफ क ठन है । इसक


कुछ सीमाएँ ह क हम कतना यादा जानकार ा त कर सकते ह।

दस
ू रा— यादा सूचना इक ठा होने से यह ‘‘सूचना के व लेषण को कमजोर’’ कर सकता
है य क सूचना के व लेषण म काफ यादा समय बबाद होगा और कोई नणायक नणय
पर पहुँच नह ं पाएँगे। इन अवा त वक मा यताओं पर अ या धक नभरता ह इसक सम या
है ।

तीसरा— यि तगत तकसंगत क अपनी सीमाएँ होती ह, िजसके वारा वह आँकड़ को


दे ख सकते ह और उनम से अ य वक प का पता लगा सकते ह। यि त पर सं ाना मक,
ढाँचागत पा रि थ त का भाव होता है । वह ं दस
ू र तरफ िजतनी ज टल सम या होती है ,
उतना ह क ठन उससे संबं धत जानकार ा त करना होता है । ता कक नणय के नमाण
करने म यह सीमाएँ ह।

ता कक नणय- नमाण और हबट साइमन

नोबेल पुर कार वजेता अथशा ी हबट साइमन (1916-2001) क ‘‘ शास नक यवहार :
एक नणय- नमाण या’’ एक स ध कृ त है जो क 1947 म का शत हुई थी। इनक
स ध कृ त है —

 एड म न े टव बहे वयर (1947)

77
 फांडामटल रसच इन एड म न े शन (1953)

 आगनाइजेशन (1958)

 यूमन ा लम सॉि वंग (1972)

हबट साइमन ने अपने पु तक ‘एड म न े टव’ बहे वयर म माना है क संगठन और उसके
काय को समझने के लए नणय- नमाण एक क य इकाई है । संगठन को बेहतर तरह से
समझने के लए आव यक है क पूरे नणय- नमाण या म यि त के यवहार और
उसके वारा ाथ मकता द जाने वाल मू य एवं नै तकताओं का व लेषण करना होगा।

हबट साइमन ने वै ा नक और संरचना मक ि टकोण के अ त सरल कृत और


अंत वरोधी होने, आदशवाद मा यताएँ रखने के कारण काफ आलोचना क । इस कार
उ ह ने लोक शासन के वषय को बना सावभौ मक ासं गकता के पर पर वरोधी बना
दया। साइमन वशेष तौर से, ता कक नणय- नमाण के सै धां तक आधार को न करता है
और उसके सावभौ मक वैधता को चन
ु ौती दे ता है । (साइमन 1947)

साइमन वारा नणय- नमाण म ता ककता क भू मका के बारे म जब समी ा क गई


तो इसके प रणाम व प शास नक यवहार के े म यवहारवाद ि टकोण वक सत हुआ
िजसम नणय- नमाण पर अ या धक यान दया गया।

साइमन के लए नणय- नमाण एक सावभौ मक या है िजसक संदभगत ासं गकता


है । साइमन वयं कहते ह क ‘‘ शासन के स धांत को नणय क या और ग त व ध
क या से संबं धत होना चा हए।’’ केवल स धांत को था पत करने और उनका
वा त वकताओं के साथ कोई संबंध न होने से, उस स धांत क कोई क मत नह ं होता है ।
(साइमन 1947)

साइमन के लए, ‘‘ शासन काम करने क एक कला है ’’ इसके लए वह वक प पर


जोर दे ते ह जो क ग त व धय को सु नि चत करता है । साइमन इस बात का उ लेख करते
ह क शास नक अ ययन म वक प के बजाय ग त व धय को अ या धक मह व दे ना
चा हए। ग त व ध वक प से पहले आता है और वक प को परू तरह से समझे बना,
ग त व ध क समी ा नह ं क जा सकती है । यवहारवाद ि टकोण म नणय- नमाण का
अ ययन, वक प का अ ययन है । (साइमन (1955)

साइमन ने दावा कया क शासन क येक ग त व ध म दो अलग-अलग और एक-


दस
ू रे से संबं धत ग त व ध शा मल ह िजसको समझना आव यक है —

 ‘‘ डसाइ डंग’’ ( नणय)

 ‘‘डूइंग’’ (ग त व ध)

78
गतवध अभ न प से नणय लेने से संबं धत है । इस लए नणायक कारक का व लेषण
होना चा हए। ये नणय स धांत पर आधा रत होना चा हए। ता क यह भावशाल ग त व ध
को सु नि चत कर सके। साइमन का तक था क परं परागत शास नक चंतक ने प रि थ त
का पहचान नह ं कया। इस दौरान एक नदश तं क कमी थी। इसी कारण अंततः उ ह
सावभौ मक वैधता क सम या का सामना करना पड़ा। इस लए साइमन ने अपने ता कक
नणय- नमाण के ा प को तपा दत कया। जो क तकसंगत सकारा मकवाद पर आधा रत
है और इसम से मू य नणय, ाथ मकता और कोई मानदं ड को ब ह कृत करता है ।

साइमन का सुझाव था क शास नक यवहार म उ ह ं ान पर वचार कया जाना


चा हए, जो क त या मक व लेषण से ा त हो रहे ह । यहाँ यह उ लेख करना मह वपूण है
क ‘‘तकसंगत सकारा मकवाद’’ (जो क 1920 म वयना सकल के दाश नक आंदोलन के
प म उभरा) आमतौर से इस वचार से जड़
ु ा है क केवल ान ह वै ा नक ान और
साथक ान है जो क त य पर आधा रत है । तकसंगत सकारा मकवाद पहले के
अनुभवज यवाद और सकारा मकवाद के वचार से भ न है । इनका मानना है क स यापन
वारा ा त ान, और यो गक या को ह ान का आधार माना जाना चा हए।
(भ टाचाय और च वत 2005)

तकसंगत सकारा मकवाद के आधार पर साइमन अनुभवज य ि टकोण का समथन


करते ह और शासन के नणय- नमाण के अ ययन म मानक य ि टकोण के योग को
नकारते ह। साइमन के अनुसार, “त य पर आधा रत सूचनाओं का पर ण कया जा सकता
है उसे सा बत कया जा सकता है ।” वे कृ त म अ या धक व तुपरक होते ह परं तु मू य
आधा रत नणय अपनी कृ त म यि तपरक होते ह और उनका पर ण नह ं कया जा
सकता। (साइमन 1947)

साइमन का व वास था क नणय नमाता के प म नणय- नमाण एक क ठन काय


है । एक संगठन के अंदर भी नणय नमाता को लगातार नई, ज टल चन
ु ौ तय का सामना
करना पड़ता है । िजसके कारण नणय नमाता को अनेक संभा वत वक प म से सबसे
उपयु त वक प चन
ु ना पड़ता है ता क सम या का ायो गक और यावहा रक समाधान
ा त कर सके।

साइमन का मानना है क नणय- नमाण का स धांत इस बु नयाद वचार पर आधा रत


है क ता कक शासक और ता कक नणय नमाता के पास सम या को समझने के लए
संपूण ान है । उसके पास नणय से संबं धत सार आव यक जानकार है । उसके पास
जानकार को प रभा षत करने क सं ाना मक यो यता है और वे संभा वत वक प तथा
े ठ वक प को भी दे खने क दरू ि टता रखते ह।

79
इस नणय- नमाण के या म कई चरण शा मल ह—

 बौ धक ग त व ध— इस चरण म पयावरण का व लेषण उन वषय और घटनाओं


क पहचान करने के लए कया जाता है िजनम क नणय अपे त होता है ।
सम या को प रभा षत करने के लए आँकड़ को सूचना के प म एक त, संसा धत
और उनका व लेषण कया जाता है ।

 ा प ग त व ध— इस चरण म संसा धत आँकड़ के आधार पर संभा वत वक प का


वकास शा मल है । िजसम येक संभा वत ग त व ध का मू यांकन कया जाता है ।
इस चरण म सम या का व लेषण कया जाता है । इसके बाद संभा वत वक प का
पता लगाया जाता है और संभा यता और यावहा रकता के संदभ म इन वक प क
जाँच क जाती है ।

 चन
ु ाव और या वयन— इस चरण म सबसे े ठ वक प का चन
ु ाव और उसका
या वयन कया जाता है ।

 समी ा का चरण— इस चरण म कायाि वत ग त व ध के न पादन क जाँच और


प रणाम का मू यांकन करना शा मल है ।

ता कक नणय- नमाण ा प के अनुसार एक ‘‘आ थक मानव’’ ह एक पूण ता कक नणय


नमाता हो सकता है (जैसा क नव शा ीय स धांत वारा प रभा षत कया गया है । नव-
शा ीय स धांत आधार पर एक पूण ता कक ि थ त म, येक संभा वत वक प के

80
उपयो गता के आधार पर उसको सं यावाद मू य दया जाएगा। िजसम से उ च मू य वाले
वक प को एक ता ककपूण नणय के प म चन
ु ा जाएगा। (हे नर 2003)

जैसे क ऊपर कहा गया, इस आधार पर ता कक नणय नमाता के बारे म यह माना


जाता है क—

 वह सम या, उससे संबं धत जानकार और वक प के बारे म सब कुछ जानता है ।

 वह येक वक प के प रणाम के बारे म जानता है ।

 वह सभी ाथ मकताओं के सारे प रणाम को जानता है ।

 उसके पास तुलना करने और सबसे बेहतर संभा वत ग त व ध को चन


ु ने का एक
गणना मक सं ाना मक मता होती है ।

साइमन उ लेख करता है क यह पण


ू ता ककता क प रि थ त है परं तु ऐसा का प नक
द ु नया म ह होता है । असल िजंदगी म संपण
ू नणय- नमाण या को कई तरह के
सीमाओं (जैसे अपया त सच
ू ना, सं ाना मक सीमाएँ, सभी संभा वत समाधान को ा त करने
क कोई संभावना नह ं है , नणय नमाता का अपना पव
ू ा ह, व वास, ान और कौशलता
क मता, बाहर प रि थ त, संगठना मक कारक आ द) का सामना करना पड़ता है । (हे नर
2003)

साइमन नणय- नमाण म ता ककता के मह वपूण भू मका को नह ं नकारते ह। वे


ता ककता के मह व को उ ले खत करते हुए कहते ह क ‘‘सभी नणय पसंद दा यवहार
वक प के प म ता कक चन ु ाव पर आधा रत होना चाहए, िजससे क यवहार के प रणाम
का मू यांकन कया जा सके। वह साधन-सा य रचना के प म ता ककता क या या करते
ह। कई संभा वत वक प म से य द कसी एक वक प का चन
ु ाव कया जाता है , तो एक
वक प यह नह ं दशाता क बाक बचे हुए वक प उपयु त नह ं ह या गलत ह। साइमन के
अनस
ु ार य द हम ता ककता को यान म रख कर नणय ल तो हम यह भी समझ सकते ह
क नणय नमाता वारा उस वशेष प रि थ त म उस वशेष ग त व ध का चन
ु ाव य
कया गया। हालाँ क अलग प रि थ त म नणय नमाता शायद कसी दस
ू रे वक प को
चन
ु गे। अतः ता ककता सम या को बेहतर तरह से समझने म मदद करता है ।

साइमन के अनुसार मु यत: 6 कार क ता ककता होती है —

 यि तपरक ता कक— एक नणय को यि तपरक ता कक तभी माना जाएगा य द


यह वषय के ान क तुलना म उपलि धय को अ या धक बढ़ाए।

 व तुपरक ता कक— एक नणय को व तुपरक ता कक तभी माना जाएगा य द वह


दए हुए प रि थ त म दए हुए मान को अ या धक बढ़ाता है ।

81
 वमश ता ककता— वमश ता ककता का अथ है क साधन से सा य तक का सोच
समझ कर समायोजन करना।

 बु ध ता ककता— इसम सा य से साधन के समायोजन के बु ध या का


उ लेख कया जा सकता है ।

 यि तगत ता ककता— यि तगत ता ककता म नणय य तौर से यि त से


संबं धत होते ह।

 संगठना मक ता ककता— संगठना मक ता ककता का उस सीमा तक उ लेख कया


जाता है , जहाँ तक क इसके नणय का संगठन से संबंध होता है ।

हबट साइमन का ता कक नणय- नमाण का स धांत पव


ू के परं परागत ता कक नणय ा प
से अलग है य क साइमन ने अपने स धांत म मू य ाथ मकता और ता ककता को
अ या धक मह व दया है । साइमन का स धांत यवहारवाद ि टकोण क पया त तौर से
व लेषण करता है िजससे क यह स धांत सावभौ मक तर पर लागू कया जा सकता है ।

साइमन के अनुसार, ‘‘ता कक आ थक ा प (शा ीय नणय स धांत) मानता है क


बंधक एक प ट प रभा षत सम या का सामना करता है । िजसके कारण वह सभी
संभा वत ग त व ध, वक प और उनके प रणाम को जानता है । इसके बाद ह वह सव े ठ
समाधान को चन
ु ता है । जब क शास नक ा प ( यवहारवाद) म यवहारवाद नणय
स धांत सी मत ता ककता के वचार को वीकार करता है । यह स धांत मानता है क
बंधक द हुई प रि थ त के बारे म कतना जानता है वह इसी आधार पर कोई भी काय
करता है । उस प रि थ त के आधार पर ह वह संतोषजनक प रि थ त का चन
ु ाव करता है ।

सी मत ता ककता के वचार क समझ

साइमन के नणय- नमाण ा प म ता ककता का क य थान है ।

सी मत ता ककता के वचार के आधार पर साइमन मानव ता ककता के सीमाओं को


दशाने क को शश करता है । इसके अलावा साइमन यह भी बताता है क मानव ता ककता से
वशु ध (Pure) आ थक ता ककता कैसे अलग है ।

हबट साइमन का ‘‘सी मत ता ककता’’ नणय- नमाण ा प एक सम समझ को


उपल ध करवाता है क नणय लया कैसे जाता है । “ नणय- नमाण एक ता कक या है ’’
के नयम को यान म रख कर ह यह स धांत काय करता है। हालाँ क साइमन यह भी
मानते ह क य द नणय नमाता म बु नयाद स ाना मक यो यता न हो और उनम कोई
अ य क मयाँ ह (जैसे समय क कमी, सूचनाओं का अभाव, संगठना मक या आ द), तो
नणय नमाता ऐसा कोई े ठ नणय नह ं ले पाते जो क उनके लाभ को बढ़ाने के साथ ह
नुकसान को कम करे । (भ टाचाय और च वत 2005)

82
इसके बावजूद कसी वशेष प रि थ त म नणय- नमाता अपने ता ककता के आधार पर
एक अ यु त नणय का चन
ु ाव करते ह। ता क उनका नणय काफ अ छा बन सके। यहाँ
ता ककता से अ भ ाय है क नणय नमाता अपने वारा लए गए नणय संबंधी सीमाओं
को अ छे से जानते ह। इसके बाद ह वह कसी एक संभा वत वक प को चन
ु ते ह।

सी मत ता ककता का स धांत इस बात का भी उ लेख करता है क नणय- नमाण को


कोई नणय लेते समय सदै व ह ता कक ि टकोण को अपनाना चा हए। इस ि टकोण को
अपनाने के साथ ह उसे नणय संबंधी सूचनाओं को यादा से यादा एक त करना चा हए।
ता क वह एक त सूचनाओं के आधार पर सम या क पहचान कर सके और वैकि पक
समाधान का नमाण कर सके। इसके बाद वह प रि थ तय क समी ा करते हुए अंत म
सबसे बेहतर वक प को चन
ु सके।

साइमन प ट तौर से कहते ह क नणय नमाता परू तरह से कसी प रि थ त के


नयं ण म नह ं होते ह। इस लए एक ता कक यि त के लए वयं क सीमाओं को जानते
हुए ता कक नणय लेना असंभव है । अतः सी मत जानकार और बंधनीय वक प के
कारण नणय नमाता कोई व तत ृ खेाज कए बना ह उपयु त वक प को यान म
रखकर नणय लेगा।

संतुि ट का स धांत ह सी मत ता ककता के स धांत का मह वपूण नयम है िजसम


ऐसा माना जाता है क नणय नमाता उसी वक प को चन
ु ेगा। जो क उसके यूनतम
मानदं ड को पूरा करे । ‘‘संतुि ट क अवधारणा’’, ता कक नणय- नमाण के ह समान है ।
जब क बाद म सबसे बेहतर संभा वत वक प ह अं तम नणय बन जाता है । िजससे क
लाभ को बढ़ाया और हा न को घटाया जा सके वह पहले जब कोई नणय लए जाते थे तो
ऐसे उपयु त वक प का चन
ु ाव कया जाता था जो क उनके यन
ू तम मानदं ड को परू ा
करने के साथ ह उनके समय और यास को बचाए, िजससे क यथाथवाद ि टकोण के
नणय लेने क या को परू ा कया जा सके।

83
हबट साइमन कहते ह क ‘‘असल म संतुि ट श द दो श द ‘‘संतु ट होना और पया त’’ के
मेल से बना है । एक यि त सार सूचनाएँ हा सल कर सकता है और य द कसी को सार
सूचनाएँ मल भी जाएँ तो भी वह इन सभी सच
ू नाओं को आधार मान कर नणय लेने म
असमथ है । इसके वपर त सी मत ता ककता म उसी वक प क तलाश क जाती है जो क
‘‘काफ अ छा’’ हो, जो क संतु टदायक हो, यूनतम मानदं ड को पूण करता हो और िजसे
सबसे बेह र माना जाए। इस वा त वक द ु नया म संतु टदायी नणय- नमाण ह वा त वक
ि टकोण है ।’’ साइमन ने यि त से लेकर संगठना मक नणय के लए सी मत ता ककता
और संतुि ट क अवधारणा का योग कया। (साइमन 1947—1955)

इस लए सं ेप म, कुछ ऐसे बु नयाद कारक ह िजससे क सी मत ता ककता के आधार


पर संतु टदाक नणय लये जा सक। जैसे—

 वा त वक और शास नक उ दे य क ग तशील और ज टल कृ त।

 नणय से संबं धत वक प और प रणाम का पूवानुमान लगाने के संदभ म नणय


नमाता क सी मत यो यता।

 सूचनाओं को संसा धत करने को लेकर सूचना का अभाव होना और सं ाना मक तथा


गणना मक यो यता म कमी होना।

 संगठना मक दबाव और प रि थ त म अ य बाहर दबाव।

 नजी हत, ाथ मकता और पूवा ह धारणाएँ ह नणय को भा वत करता है


(भ टाचाय और च वत 2005)

इस आधार पर शास नक मानव के न न ल खत ल ण ह—

 सी मत ता ककता के आधार पर, शास नक मानव अपने यूनतम मानदं ड को पूण


करने वाला संतु टदाय नणय ह लेता है ।

 वे सम या का एक सरल प लेते ह और उस सम या के बारे म केवल उतनी ह


जानकार एक त करते ह िजतना वे पया त समझते ह ता क जानकार व लेषण
प पातपण
ू न हो जाए।

साइमन ने नणय- नमाण ा प का एक अ धक वा त वक यावहा रक मॉडल वक सत


कया। जहाँ शा ीय स धांत ‘‘आ थक मानव’’ के उ पादन को बढ़ाता है वह ं साइमन अपने
शास नक मानव म संतुि ट को अ या धक बढ़ाता है । शास नक मानव िजन नणय को
मह वपूण समझता है उ ह ं नणय पर वचार करते हुए प रि थ त को सरल बनाने का
यास करता है ।

84
एक यावहा रक नणय नमाता सम या को हल करने के लए एक आदशपूण वक प
क खोज म नह ं जाता बि क वह एक संतु टदाय नणय को चन
ु ता है । एक अ छा नणय
नमाता केवल उन सूचनाओं पर ह वचार करे गा िजनको वह जानता है , िजसका वह मह व
दे खता है , िजससे क वह नमाता के लए उ चत नणय संसा धत और प रभा षत कर सके।

साइमन के सी मत ता कक ा प क आलोचना

नणय- नमाण का सी मत ता कक ा प नणय- नमाण का एक स ध स धांत है । जब क


कई अ य शोधकता मानते ह क भले ह यह स धांत वयं के अलग होने का दावा करे ,
इसके बावजूद यह स धांत ता कक नणय- नमाण ा प के अंतगत ह आता है । हूबर, दास
और टग जैसे व वान कहते ह क पूण और सी मत ता कता के बीच कोई प ट वभाजन
नह ं दखता है । इन व वान के अनुसार, साइमन ने वयं यह वीकार कया क वा तव म
उनका सी मत ता ककता का स धांत, ता कक नणय- नमाण का स धांत ह है ।

साइमन ने नणय- नमाण क भू मका को काफ यादा मह व दया। उ ह ने संगठन के


काय म नणय- नमाण या को ह केवल मह वपूण माना। इसके कारण साइमन क
काफ यादा आलोचना भी क गई। साइमन ने इस या के दौरान राजनी तक, आ थक,
सामािजक और सां कृ तक कारको को भी नजरअंदाज कया। उ ह ने इस बात को भी नकारा
क शास नक यवहार को यह कारक कैसे भा वत करते ह। आलोचक यह भी कहते ह क
भले ह नणय- नमाण संगठन का एक मह वपूण काय है परं तु केवल नणय- नमाण का
व लेषण करने से आप पूर तरह से संगठन को नह ं समझ सकते।

नाटन ई. लांग और पी. से ज नक जैसे आलोचक कहते ह क साइमन के स धांत म


त य और मू य का जो वरोधाभास है वह वा तव मे राजनी त और शासन के वरोधाभास
को ह नए तरह से उभारता है । वे आगे कहते ह क साइमन ने शास नक अ ययन म
नौकरशाह क भू मका को कम करके आंका है । साइमन ने नौकरशाह को एक न प एजट
के तौर पर ह सी मत कर दया जो क वा तव म सह नह ं है । शास नक अ ययन म
नौकरशाह एक मह वपूण सं था है । नौकरशाह को समझे बना ह शास नक यवहार का
अ ययन करना हमेशा ह ु टपूण होगा। (हे नर 2003)

टगे ने साइमन के त य आधा रत व लेषण और मू य को ब ह कृत करने के कारण


उसके सी मत ता ककता के स धांत क आलोचना क । उनके लए, नणय- नमाण का
सी मत ता ककता का स धांत यवसायी शासन और नजी संगठन के लए यादा
ासं गक है , न क सावज नक शासन और सरकार काय के लए सी मत ता ककता का
स धांत मह वपण
ू है । सावज नक शासन म त या मक का आँकड़ के साथ ह , कई
सामािजक और नै तक मू य तथा क याणकार वचार नणय करते समय यान म रखा

85
जाता है । इन कारक को केवल लागत क इकाइय म मापना मुि कल होता है । (हे नर
2003)

कुछ आलोचक यह भी कहते ह क त य और मू य के बीच वभाजन करना तथा मू य


को ब ह कृत करना सम या के पास पहुँचने का कोई सह तर का नह ं है । इस लए य क
मू य नी त नमाण या का हमेशा ह मह वपण ू भाग होता है । मू य को ब ह कृत करने
और नी त नमाण को केवल त या मक अ ययन तक ह सी मत रखने से लोक शासन भी
लौ कक, नय मत, यं वत ् तथा जनता वरोधी बन जाएगा।

कई आलोचक मानते ह क नणय- नमाण म केवल काय कुशलता और लाभ-हा न


व लेषण को ह मह व नह ं दे ना चा हए। नणय- नमाण के उ दे य म हतधारक क
संतिु ट, सामािजक क याण, संसाधन का सव े ठ उपयोग आ द भी समान मह वपण
ू है
िजसे क साइमन ने या म नकार दया।

कुछ आलोचक साइमन क इस लए भी आलोचना करते रहे ह य क साइमन ने नणय-


नमाण म ता ककता को सबसे मह वपूण कारक माना है । जब क वा तव म, नणय- नमाण
म ता ककता के साथ ह कई गैर ता कक आयाम भी मह वपूण भू मका नभाते ह। साइमन
नणय- नमाण म परं परा, व वास, सं कृ त, यि त व, सहजबो ध और रचनाओं क
भू मकाओं को पहचानने म असफल रहे ।

इसी संदभ म स आरगाइ रश ने यह कहते हुए साइमन क आलोचना क क साइमन


पूरे नणय- नमाण या म परं परागत मू य, व वास प ध त और सहजबो ध के
भावशाल भू मका को पहचान नह ं सके। (भ टाचाय और च वत 2005)

आलोचक को इस बात का संदेह है क साइमन का ‘‘संतिु ट’’ का वचार शायद एक


औ च य साधन या उन लोग के लए बहाना बन जाए जो कम लाभकार संबंधी नणय लेने
के त गंभीर नह ं है ।

वे इस लए भी आलोचना करते ह य क ‘‘अ धकतम’’ और ‘‘संतुि ट’’ के बीच का अंतर


प ट नह ं है । बि क कई प रि थ तय म ये दोन एक दस
ू रे के साथ काफ गहराई से जुड़े
हुए ह। संतोषजनक ि थ तय को बढ़ाया भी जा सकता है और घटाया भी जा सकता है ।
दोबारा कई प रि थ तय म ये दो व
ु अलग-अलग हो सकते ह।

साइमन का ा प कई आलोचक के लए यो य ा प है य क यह आदशवाद ा प


है , जो क वा त वक लोक शासन और वा त वक द ु नया म फट नह ं बैठता है । आलोचक
यह भी कहते ह क ‘‘सी मत ता मककता और संतोषजनक’’ का वचार काफ सरल कृत और
सामा य वचार है जो क वा त वक योजनाकार को नदश दे ने या उनम योगदान दे ने के
लए कुछ भी नह ं करता है ।

86
अनेक आलोचनाओं के बावजूद भी, साइमन वारा दए गये योगदान और लोक शासन
म उनके स ध काय को नकारा नह ं जा सकता है । ता कक नणय- नमाण ा प के साथ
ह लोक शासन के वषय म एक नया तमान उभरा था। यवहारवाद ि टकोण के साथ
ह परं परागत ि टकोण म प रवतन आया। िजससे क वह और यादा वै ा नक और
ता कक उ मुख बन सका। हबट साइमन ने चयन के प म नणय- नमाण के मह व पर
काश डाला है िजससे क शासन और शास नक यवहार क ग तशीलता को समझने म
मदद मल है ।

साइमन के वचार और उनके स ध काय से कई लोक शासन संबंधी स धांतकार,


बंधक य चंतक, अथशा ी
भा वत हुए ह। जैसे— वकटर थॉ पसन, एंथनी डाऊ स, माइकल
ोिजयर, गोडन टकलॉक, इवाइट वा डो, लोमबीवे क , आ द।

नणय- नमाण ा प का झलक

नणय- नमाण ा प इन ा प का योग कहा

ता कक  वक प के बारे म सूचनाएँ इक ठा क जा सकती ह।

 नणय मह वपण
ू है ।

 आप अपने प रणाम को बढ़ाने का यास करते ह ।

सी मत ता ककता  यूनतम मानदं ड प ट है ।

 आप नणय- नमाण म यादा समय लगाना नह ं चाहते ह।

 आप अपने प रणाम को बढ़ाने का यास नह ं करते ह।

सहजबो ध  ल य अ प ट है ।

 यहाँ समय का दबाव है और व लेषण करना काफ महँगा


पड़ सकता है ।

 आपको सम या का अनुभव है ।

रचना  सम या का समाधान प ट नह ं है ।

 नई समाधान को उ प न करने क ज रत है ।

 मामले को गहराई से दे खने के लए आपके पास समय है ।

87
न कष

जैसे क चचा क गई है क नणय- नमाण संगठन का ह नह ं बि क येक यि त के


जीवन का मह वपण
ू काय है । एक अ छे नणय का संबंध कायकुशलता और भावशीलता से
है । ता कक ा प, नणय नमाता के वशेषताओं का ता कक आ थक मानव के प म पेश
करता है । बाद म साइमन ने नणय नमाता के ता कक ा प को दशाते हुए कहा क भले
ह नणय नमाता क सीमाएँ ह। इसके बावजूद भी शास नक मानव कैसे सव े ठ पा
सकता है ।

यव था ि टकोण के वपर त साइमन ने नणय- नमाण को काफ सरल व प ट


बनाया। वा त वक द ु नया म; सम याएँ काफ ज टल ह। व भ न तर के कई बा यताओं
का सामना, ती ग त से बढ़ती अथ यव था और सदै व बदलते शास नक काय के कारण
नणय- नमाण काफ क ठन काय हो गया है िजसम हर रोज नई चन
ु ौ तय का सामना करना
पड़ रहा है ।

इन ा प पर आधा रत सम याओं क या या करने के साथ ह एक नणय नमाता,


शासक या नी त नमाता सामािजक, आ थक, राजनी तक, सां कृ तक और सं ाना मक
कारक के संदभ म अपनी समझ को सुधार सकता है िजससे क वह नए तर क से सम या
से नपट सके। इसका मु य उ दे य यापक समाज के क याण के लए उ चत चन
ु ाव करने
के लए और अ धक उ यु त और ासं गक ि थ तयाँ पैदा करना है ।

संदभ सूची

 भ टाचाय, एम. एंड च वत , B. (2005) ‘इं ोड शन : पि लक एड म न े शन :


योर एंड ेि टस; इन भ टाचाया, एम. एंड च वत , बी. पि लक एड म न े शन :
ए रडर दे ह : आ सफोड यू नव सट ेस प ृ ठ सं या 1-50

 हे नर , एन. (2003) पि लक एड म न े शन एंड पि लक अफेयर यू दे ह : ं टंग


हाल, प ृ ठ सं या 53-74

 साइमन, एच.ए. (1955) अ बहे वयर माडल ऑफ रे शनल वाइस, वाटल जनल
ऑफ इकोनॉ म स, 59 प ृ ठ सं या 99-118

88
इकाई-3 : वकास शासन

वकास शासन — एक व लेषण

बज झा
अनुवादक : वशाल कुमार गु ता

संरचना

 वकास शासन : एक प रचय


 वकास शासन क उ प और वकास
 वकास शासन क अवधारणा
 वकास शासन के सात दशक
क) वकास शासन का उ भव : 1950 से 1980 के दौरान
ख) वै वीकरण और वकास शासन : 1990 से आगे
 वकास शासन के त व
 वकास शासन पर े ड र स का ि टकोण
 न कष
 संदभ-सूची

वकास शासन : एक प रचय

वकास शासन क अवधारणा क अपे ाकृत हाल ह म उ प हुई है , और यह अ नवाय


प से पि चमी जड़ से जुड़ा हुआ है । यह वशेष प से वतीय व वयु ध के प चात ् के
काल म ए शया और अ का के नव वतं (उप नवे शत) रा के संदभ म उपयोग कया
जाता है । इसके अ त र त, इस अवधारणा के वकास म सो वयत संघ क समाजवाद ां त
का बहुत भाव था िजसने सावभौ मक सामािजक-आ थक अ धकार को बढ़ावा दया। रा य-
नयोिजत आ थक वकास और पँज ू ीवाद मु त बाजार ने उदारवाद दशन के व ध समथन
दया। समाजवाद नी त के तउ र म, उदारवा दय ने बाजार तथा रा य संबंध के अपने
स धांत को संशो धत कया। आधु नक/सकारा मक उदारवा दय ने तक दया क रा य को
आ थक वकास क योजना/ बंधन का काय करना चा हए। एक स ध टश क याणकार
अथशा ी, जॉन मेनाड क स वकास और समृ ध के लए मु यतः बाजार पर रा य
व नयमन के प म थे।

सन ् 1940 के दशक म रा पत जवे ट के यास वारा संयु त रा य अमे रका के


यू डील ए ट व 1950 के दशक क शु आत म टे न क बेवरे ज रपोट के मा यम से

89
वकासा मक सरकार सामने आई। वतीय व वयु ध के प चात ्, यु ध त यूरोप के
पुन नमाण के संदभ म सामािजक-आ थक वकास काय म के प म माशल योजना को
लागू करने तथा ए शया, अ का व लै टन अमे रका के इन नव- वतं दे श (उप नवे शत
रा य) म वकास काय म के शुभार भ हे तु ‘ वकास’ श द ने ग त ा त क । तीसर द ु नया
के दे श ने अपने उ योग , कृ ष, व व व यालय , व ान एवं ौ यो गक , संचार, च क सा,
कला और सं कृ त के े म ग त के लए रा य के नेत ृ व वाल आदे शत आ थक वकास
(command economic development) क नी त को ाथ मकता द तथा मौजद
ू ा चरम
तर पर फैल हुई गर बी, असमानता, अ ानता, रोग, नर रता एवं सामािजक वकृ तय को
मटाने का यास कया। इस संदभ म, ‘ वकास शासन’ वशेषकर रा य योजना तैयार
करने के लए लोक शासन क एक शाखा के प म उभरा। वकास एवं आ थक वकास के
लए लोक शासन के व वान और वशेष ने तीसर द ु नया के दे श म वकास के रा य
क भू मकाओं ( वशेषकर नौकरशाह क भू मका) का अ ययन करने म च ल।
‘ वकास शासन’ क जड़ ‘बड़ी सरकार’, रा य योजना और रा य के नेत ृ व वाल
आदे शत आ थक वकास रणनी त क वशेषता वाले युग म थीं। इसने सावज नक नौकरशाह
के वकासा मक ल य को पूरा करने के अवसर दए थे। वकास शासन क संक पना
काय मुखी और वकास-योजना काया वयन क रणनी त का काय म है ।
आइए ‘ वकास शासन’ अवधारणा को प ट कर। पहला श द ‘ वकास’, इसके यापक
आयाम ह। म टन ए मान (1991: 5-6 quoted in Jreisat, 2011) ने रा य वकास के
लए पाँच ल य क पहचान क है— क) आ थक वकास (economic growth), ख) समता
(equity), ग) मता (capacity) (कौशल व ृ ध), घ) ामा णकता (authenticity), और
ङ) सशि तकरण (empowerment) (सभी नाग रक को भागीदार के समान अवसर)। रा य
ने आधु नक करण और रा - नमाण को न पत करने के लए वकास क क पना क तथा
वकास क या म वदे शी ोत और समथन से सहायता लेने के बजाय आ म नभरता
पर बल दया। इसके अ त र त, ‘ शासन’ श द का अथ है सावज नक उ दे य के लए
सामू हक काय करना। इसे ‘प रभा षत उ दे य क पू त के साथ काय को पूरा’ करना है।
इसम दो श द को एक साथ लया गया है , वकास शासन का ता पय आ थक वकास,
समता, कौशल और सं थान म सुधार लाना, सशि तकरण जैसे वकासा मक ल य वारा
सरकार के नेत ृ व म उपलि ध से है । आधु नक करण और रा य नमाण क एक रा य के
नेत ृ व वाल प रयोजना को प रभा षत करने क उपलि ध के साथ काम करना िजसम
नौकरशाह , सरकार का एक मज़बूत ढाँचा, वकास रणनी त तथा उसके काया वयन आ द
शा मल ह। इसका उ दे य ‘ वकास के लए अ धकतम नवाचार’ (Weidner, 399:1970
quoted in Rathod, 2010) उ योग और बु नयाद ढाँचे व सामािजक प रवतन के
आधु नक करण का ल य है ।

90
वै वीकरण के युग म, वैि वक नाग रक समाज और अंतरा य गैर-सरकार सं थान
(INGOs) थानीय समुदाय-आधा रत संगठन (CBOs) के साथ ह नाग रक समाज समूह,
वयं सहायक समह
ू वकास शासन के े म उ साह के साथ आगे आए ह। इस संदभ म,
संयु त रा वकास काय म (UNDP) क भू मका वकासशील दे श के साथ काम करने म
वशेष प से मजबूत नी तयाँ बनाने, कौशल वकास म सहायता करने तथा ग त और
वकास के लए सं थागत समथन दान करने म बहुत मह वपूण है । 21वीं सद के दौरान,
व व के नेता सह ाि द वकास ल य (MDGs) के मा यम से द ु नया के यापक भ व य
को दे खने के लए सहमत हुए। सह ाि द वकास ल य, मापने यो य समयब ध तर क से
ल य के भीतर आठ वकास ल य के साथ, मानवीय ग रमा के स धांत को बनाए रखने
क त ा एवं द ु नया को अ य धक गर बी से मु त करने क बात करता है । सतत ् वकास
ल य (SDGs) ने सह ाि द वकास ल य क जगह ले ल और गर बी उ मल
ू न, धरती क
र ा करने एवं यह सु नि चत करने के लए स ह वकास ल य नधा रत कए क सभी
शां त और समृ ध का आनंद ल। आ थक वकास के साथ-साथ इस सतत ् वकास के ल य
को रा -रा य ने वकास शासन म पूर तरह से बदल दया। भारत ने 2015 म योजना
आयोग को समा त कर दया और समकाल न वकास क आव यकतानुसार रा य वकास
ाथ मकताओं को फर से डजाइन करने के लए नेशनल इं ट यूशन फॉर ांसफॉ मग
इं डया (नी त आयोग) क थापना क ।

वकास शासन क उ प और वकास

वतीय व वयु ध से पहले ‘ वकास शासन’ अवधारणा का कोई अि त व नह ं था। भारतीय


व वान ोफेसर यू.एल. गो वामी ने अपने शोधप ‘द चर ऑफ डेवलपमट
एड म न े शन’ म ‘ वकास शासन’ श द को गढ़ा। बाद के दशक म, पि चमी व वान ने
वशेष प से अमे र कय ने इस अवधारणा का व तार कया। एडवड ड यू. वाइडनर वारा
कए गए ारं भक यास और बाद म एफ.ड यू. र स, जॉन डी. म टगोमर , फ लप ई.
मॉगन, जॉज एफ. गट, लु सयन ड यू. पाई और फेरे ल हे डी वारा वक सत और व तत

यास कए। उनके काय का सारांश इस कार है —
 एडवड ड यू. वाइडनर ने अपनी रचना ‘डेवलपमट एड म न े शन इन ए शया’ म
तेरह लेख वारा ए शयाई वकास शासन के पहलुओं को सम पत कया है ।
 एफ. ड यू . र स: उनके तीन स ध रचनाएँ, ‘ द इकोलॉजी ऑफ पि लक
एड म न े शन’ (1961), ‘एड म न े शन इन डेवल पंग क ज : द योर ऑफ़
ज ्मै टक सोसाइट ’ (1964), ‘थाईलड : द मॉडनाईजेशन ऑफ़ ए यूरो े टक
पो लट ’ (1966) ने वकास शासन के वकास म योगदान दया है ।
 म टन ए मान ने ‘एड म न े शन एंड डेवलपमट इन मले शया : इंि ट यूशन एंड
रफॉ स इन लूरल सोसाइट ’ (1972), म रा य सं था नमाण एवं शास नक
91
सुधार के मा यम से व र ठ बंधक क शास नक मता के वकास का वणन
कया।
 फ लप ई. मॉगन, (संपा.) ने ‘ द एड म न े टव चज इन अ का’ (1974) म
‘ वकास शासन’ के लेख का एक सं ह लखा।
 जॉन डी. म टगोमर : ‘टे नोलॉजी एंड स वल लाइफ : मे कंग एंड इ ल म टंग
डेवलपमट डसीजन’ (1974), ने पि चमी दे श म स ा के पुन वतरण और समाज म
ज रतमंद क सेवा करने के लए सू म वकास तथा शि त के पुन वतरण के लए
ौ यो गक को न जोड़ने पर आलोचना क ।
 जॉज एफ. गट : क पु तक ‘डेवलपमट एड म न े शन: कॉ से स, गो स एंड
मेथ स’ (1979), इस वषय पर यापक जानकार दान करती है ।
 लू सयन ड यू. पाई : ‘ द क यु नकेशन एंड पॉ ल टकल डेवलपमट’ (1963) क
पु तक म रा -रा य के आधु नक करण पर क त यारह लेख ह।
 फेरे ल हे डी ने अपनी पु तक ‘पि लक एड म न े शन : ए क पेरे टव पि लक
एड म न े शन’ (1984) म वकासशील दे श के लोक शासन क पाँच मख

वशेषताओं को द शत कया तथा नौकरशाह और राजनी त के बीच के संबंध क
सावधानीपव
ू क जाँच क ।
इन उपरो त काय ने वकास शासन क अ भ यि त एवं इसके न हताथ म पया त व ृ ध
क है , यह मु य प से ए शया व लै टन अमे रका के वकासशील दे श म लोक शासन के
तुलना मक अ ययन के प रणाम व प फैला हुआ है ।

वतीय व वयु ध के प चात ् ‘ वकास शासन’ क अवधारणा के वकास क प ृ ठभू म


न न ल खत थी—

पहला, ‘ वकास’ तमान का उदय : ‘ वकास’ श द पि चमी मल


ू से है और इसके लए
वैि वक सहम त भी ा त है । वतीय व वयु ध के प चात ् वकास का अ ययन इतना
लोक य था क इसने सभी को आक षत करने, खश
ु करने, मो हत करने एवं सपने दखाने
क को शश क ले कन साथ ह इसने द ु पयोग करने और धोखा दे ने क शि त को भी
हा सल कर लया (Rist, 2008:1)। अमे रका ने आ थक सहायता के मा यम से तबाह यरू ोप
के सामािजक-आ थक े के पुन नमाण के लए माशल योजना वारा वकास क अवधारणा
को तैयार करने, प ट करने और व तत
ृ करने के लए अकाद मक व वान को ो सा हत
कया। वकास के तपादक ने वकास को एक आव यक शत के प म पेश कया।
ड यू . ड यू. रो टो क रचना (1960) ‘ द टे ज ऑफ इकोनॉ मक ोथ : ए नॉन-क यु न ट
मे नफे टो’ म आ थक वकास के लए पाँच-चरण मॉडल को वक सत कया है , ये ह,
1) परं परागत समाज (traditional society)- कृ ष समाज को पया त शार रक म क

92
आव यकता है , इस लए इसे ौ यो गक वक सत करने क आव यकता है , 2) सं मणकाल न
ि थ त (transitional stage)- यह तकनीक वकास बढ़ोतर के आधार पर पूव शत शा मल
है ; 3) टे क-ऑफ (take-off)- यह आ म नभर आ थक वकास का एक चरण है ;
4) प रप वता क ओर सं मण (drive to maturity)-औ योगीकरण और उ च उपभोग तर
क शु आत होना; और 5) उ च तर का जनसंचार (high level of mass
communication)- जब समाज को टकाऊ व तुओं का उपभोग करने क आव यकता होती
है । एक अ य मह वपण
ू व वान ए.एफ.के. ऑग क ने अपनी रचना (1965) ‘ द टे जेस
ऑफ पॉ ल टकल डेवलपमट’ म द शत कया है क आ थक वकास मु यतः आ थक व ृ ध
का एक अ भ न अंग है और यह वकास के चार चरण का सझ
ु ाव दे ता है— क) आ दम
एक करण (primitive unification), ख) औ योगीकरण (industrialization), ग) जन
क याण (national welfare) और घ) चरु ता क राजनी त (the politics of
abundance)। वकास के इन स धांत ने इस बात पर बल दया क वकासशील रा को
अपने दे श म व ृ ध और वकास को सरु त करने के लए वकास के पँज
ू ीवाद मॉडल के
न शेकदम पर चलना चा हए। इसके अ त र त, वकास पर स ध सा ह य, उदाहरण के
लए, जी. आलमंड और जे.एस. कोलमैन क रचना ‘ द पॉ ल ट स ऑफ डेवल पंग ए रयाज़’
(1960), एल. ड यू पाई, क रचना ‘ द क यु नकेशन एंड पॉ ल टकल डेवलपमट’ (1963),
और एस. हं टंगटन क रचना ‘पॉ ल टकल ऑडर इन चिजंग सोसाइट ज़’ (1968)’ म
पारं प रक समाज से आधु नक समाज म यापक प रवतन के संदभ म आधु नक करण क
बात कह (Jresait, 2011)।

अंतरा य तर पर, संयु त रा ने माना है क आ थक वकास अ यंत ह आव यक


है ले कन यह वकास क अवधारणा के लए पया त नह ं है । इसने माना है क वकास का
अथ है वकास व सामािजक प रवतन का होना। जनवर 1961 म, संयु त रा ने संक प
लया क 1960 का दशक ‘ वकास का दशक’ होगा। इस कारवाई के लए संयु त रा
वकास दशक के ताव म कहा गया क अब हम वकास के वा त वक उ दे य और
वकास या क कृ त को समझने लगे ह। वकास केवल आ थक वकास नह ं है , यह
वकास के साथ प रवतन भी है ’ (The UN Development Decade Proposal for
Action, 1962: v)।

इस बीच, तेजी से उप नवेशवाद के वघटन के प चात ् ए शया, अ का और लै टन


अमे रका को अपने वकास के लए आ थक आधु नक करण व रा य नमाण के लए रा य
के नेत ृ व वाल योजना क आव यकता थी। रा य शासन सामािजक-आ थक प रवतन के
लए वकास के काय को लेने म शा मल हुआ। वकास रणनी त के लए संयु त रा का
पहला ि टकोण रा य योजना क अवधारणा के साथ ह सामािजक और आ थक वकास
भी है । वकास के आधु नक करण के स धांत ने इन पि चमी मॉडल के साथ-साथ वकास

93
क या म रा य क भू मका पर संयु त रा के बल दे ने के साथ ह सं थागत
ि टकोण ने ‘ वकास शासन’ को ज म दया।

दस
ू रा, तीसर द ु नया म नए रा -रा य क वतं ता : सा ा यवाद के युग का अंत
होने लगा और वतीय व वयु ध के बाद के युग म वघटन क या शु
हुई िजसने
ए शया, अ का व लै टन अमे रक महा वीप म नए वतं रा -रा य को ज म दया।
अंतरा य णाल शि त संतुलन से व- व
ु ीय व व म थानांत रत हो गई, दो वपर त
आ थक और वैचा रक वचारधाराओं ने वकास रणनी तय म अपनी अवधारणा तुत क ।
दोन ह मामल म, रा य एवं उसक नौकरशाह क भू मका वकास रणनी तय क संरचना,
ा प व काया वयन इ या द म मह वपूण रहे । ए शया, अ का और लै टन अमे रका के इन
सभी नव वतं रा -रा य को सामािजक-आ थक प रवतन के लए ‘ वकास शासन’ के
लए सभी बड़े कदम उठाने ह गे।

तीसरा, संयु त रा य अमे रका म तल


ु ना मक लोक शासन (CPA) का उदय : 1950
तथा 1960 के दशक म व वान ने तुलना मक लोक शासन के े म शास नक संरचना
और ए शया व लै टन अमे रका के वकासशील समाज पर अपनी शोध च शु क।
एफ.ड यू. र स (1917-2008) एक अ णी बु धजीवी थे। अमे रकन सोसाइट फॉर पि लक
एड म न े शन के तुलना मक शासन समूह (CAG) के अ य के प म, र स ने 1950
और 1960 के दशक म तुलना मक लोक शासन (CPA) आंदोलन को बौ धक और
संगठना मक नेत ृ व दान कया। उ ह ने वकास शासन पर यान क त कया और कुछ
मॉडल व स धांत का नमाण कया िज ह ने इस े म व वान के वारा व व यापी
त या को उ प न करने का यास कया’ (Jreisat, 2011:155)। उ ह ने अपने तीन
स ध काय म शासन म अनुभवज य एवं तुलना मक अ ययन वारा, ‘ द इकोलॉजी
ऑफ़ पि लक एड म न े शन’ (1961), ‘एड म न े शन इन डेवल पंग क ज : द योर
ऑफ़ मे टक सोसाइट ’ (1964) और ‘थाईलड : द मॉडनाइजेशन ऑफ़ ए यूरो े टक
पो लट ’ (1966) म शासन के तुलना मक अ ययन वारा च पैदा क तथा उ ह ने
अनुसंधान को अ धक व लेषणा मक, वै ा नक, आलोचना मक और पार-सां कृ तक बना
दया।

वकास शासन क अवधारणा

‘ वकास शासन’ क अवधारणा अ नवाय प से ववा दत है । इस अवधारणा के अ दत



एडवड ड ल.ू वीडनर ने कहा क ‘ वकास शासन’ मु यतः एक ‘ ग तशील योजना क
उपलि ध क दशा म संगठन का मागदशन करने वाल या’ के प म है , अथात ् क यह
एक ‘राजनी तक, आ थक, सामािजक उ दे य है जो क एक या दस
ू रे तर के म आ धका रक
प से नधा रत होता है ’। 1960 के दशक म, ‘ वकास शासन’ लोक शासन क एक शाखा

94
के प म उभरा िजसम क सामािजक-आ थक प रवतन के लए आ थक नयोजन म रा य
क मशीनर , वशेषकर नौकरशाह शा मल थी। यह वकास योजना, प रयोजनाओं, योजनाओं,
काय म और ‘ वकास के उ दे य, मौजूदा एवं नए संसाधन को जुटाने तथा वकास के
ल य को ा त करने के लए उपयु त कौशल के संवधन’ के काय हे तु अ धक चं तत रहती
है । वीडनर के अनुसार, ‘ वकास शासन मूल प से एक काय मुखी और ल यो मुखी
शास नक यव था है ’।

इन वकासा मक ल य का उ लेख अ सर रा - नमाण, आधु नक करण और


सामािजक-आ थक ग त के अ भ ेत के तौर पर कया जाता है । वडलो (1975: 324) ने
वकास शासन के दोहरे काय क पहचान क : वे ह—सं थान नमाण और वकास योजना।
उ ह ने कहा क वकास शासन, लोक शासन क भाँ त ह एक अंग है, जो क ‘अ ययन
क खोज के संबंध म एक वषय है ’। वा तव म, ‘ वकास शासन’ क अवधारणा को सट क
सै धां तक और व लेषणा मक तर के से अ छ तरह से व णत तथा वीकार नह ं कया गया
है ।

फर भी, इन सब वषय के मामले पर सम सा ह य, वकास शासन क अवधारणा


का ता पय दो पर पर संबं धत श द ‘ शास नक वकास’ और ‘ वकास शासन’ से है । थम
श द शास नक वकास का अथ है , ‘ वकास और व ृ ध के लए शास नक मताओं व
द ता का इन े म होना जैसे क व , यि तगत, लेखा, बंधन, टै स आ द तथा
संगठना मक शासन म वकास योजनाओं को पूरा करने का यास करना एवं ामीण े
के साथ ह शहर े म भी इन वकासा मक ल य क ाि त करना’ (Farazmand,
2001: 16)। दस
ू र अवधारणा ‘ वकास शासन’ का उ लेख करते हुए फ़राज़मंद ने यान
दया क ‘ वकास शासन रा य वकास योजनाओं और उसके ल य व उ दे य क
उपलि धय से संबं धत है । दोन ने एक-दस
ू रे को मजबूत कया और दोन को ह मह वपूण
माना जाता है ।’ शास नक वकास सरकार के पारं प रक काय से अ धक संबं धत होता है ,
उदाहरण के लए, कस कार से कानून एवं यव था को भावी ढं ग से और कुशलता से
बनाया जाए, जब क ‘ वकास शासन’ वशेष प से वकास योजना, इसके नवेश, उ पादन
और तपुि ट पर आधा रत है ।

वकास शासन के सात दशक

‘ वकास शासन’ के ारं भक चरण म पूरा यान आधु नक करण पर था (पि चमीकरण
अथात ् वकास के पि चमी मॉडल के माग क ओर जाना वशेषकर संयु त रा य अमे रका
और टे न के वकास का मॉडल)। इस लए, वकास के मुख ल य पि चमी ौ यो गक व
मू य का सार थे। इसके साथ-साथ, आ थक वकास को वकास के संदभ म प रभा षत
कया गया था (जो क समय क अव ध म त यि त सकल रा य उ पाद का व तार

95
है ); मा ा मक आ थक प रवतन जो क जनता के जीवन क गुणव ा म अनु प प रवतन ला
सकते ह। यह उ मीद क गई थी क आ थक वकास ह सामािजक प रवतन क ओर ले
जाएगा और इससे राजनी तक वकास का माग श त होगा। एक अ ययन के प म,
वकास शासन ने इस या ा क शु आत रा य योजना बनाने एवं अ प- वकास को दरू
करने के लए क तथा अब इसने सतत ् वकास के ल य पर यान क त कया है । ओ.पी.
ववेद ने अपनी रचना ‘डेवलपमट एड म न े शन : ॉम अंडरडेवलपमट टू स टे नेबल
डेवलपमट’ (1994) म वकास शासन क वषय-व तु को रे खां कत कया। इसने पछले
सात दशक म अ वक सत- वक सत क बहस से लेकर सतत ् वकास तक क अपनी या ा
क शु आत क । हालाँ क, हम वकास शासन के इन सात दशक को न न ल खत चरण
म वभािजत कर सकते ह—

पहले चार दशक म वकास शासन : 1950 से 1980 के दौरान

वकास शासन के पहले तीन दशक का वग करण बड़ी सरकार, रा य के नेत ृ व क -आ थक


योजना और रा य क नौकरशाह म भागीदार व वकास के माग म वकास क रणनी तय
को बनाया गया। ये दो ल य थे— आ थक ग त और सामािजक प रवतन। इन वां छत
ल य क ाि त के लए वकासशील दे श म रा य ने इस काय को पि चमी आधु नक करण
तथा अ छ तरह से श त नौकरशाह को स पा। संयु त रा य अमे रका का यू डील
ए ट एक उदारवाद क याणकार ि टकोण के प रणाम व प रा पत जवे ट के शासन
के दौरान आया एवं इसने 1960 के दशक म रा प त जॉन केनेडी क ‘ यू ं टयर’ तथा
लंडन जॉनसन के ‘ ेट सोसाइट ो ाम’ क नी तय को शीष पर रखा। टे न म, बेव रज
रपोट ने 1950 के दशक क शु आत म रा य के नेत ृ व वाले वकास क याण क शु आत
क थी। संयु त रा ने 1960 के दशक को ‘ वकास का दशक’ घो षत कया और इस बात
पर बल दया गया क वकास का ल य आ थक वकास के साथ-साथ ह प रवतन भी होना
चा हए। रा य के नेत ृ व वाल आदे शत अथ यव था का दशन 1970 के समय तक जार
रहा। मु त बाजार के वचारक जैसे े क हे येक, म टन डमैन, एयन रड और रॉबट
नोिज़क क भार आलोचना हुई। उ ह ने अथ यव था तथा योजना पर रा य के नयं ण क
आलोचना क । संयु त रा य अमे रका म, रोना ड र गन ने 1970 के दशक म और टे न
म मागरे ट थैचर ने 1980 के दशक म वकास योजना क रणनी तय को संशो धत कया।
उ ह ने उस नी त का पालन कया िजसे लोक य प से ‘रा य के पीछे हटना’ के प म
जाना जाता है ।

1980 के दशक को वकास शासन म संकट के काल के प म माना जाता है । 1950


और 1960 के दशक म वकास के पथ पर कई क मयाँ दखाई दे नी शु हो ग । रा य का
नयोिजत वकास वां छत प रणाम को बढ़ावा नह ं दे सका। टाचार का उदय होने लगा
िजसम नौकरशाह और राजनी तक अ भजात वग सीधे तौर पर शा मल थे। वकासशील दे श
96
म, काल अथ यव था, मु ा फ त, राजकोषीय घाटे को बढ़ाया िजसने रा य के वकासा मक
और क याणकार योजनाओं को अि थर बना दया। सन ् 1989 म, अंतरा य मु ा कोष,
व व बक और अमे रक े जर वभाग ने एक नई आ थक यव था पर सहम त य त क ,
िजसे लोक य ं टन सहम त के
प से वा शग प म जाना जाता है , िजसने क तीसरे व व
के वकासशील दे श के लए आ थक सुधार पैकेज के प म दस-सू ीय आ थक नी त को
पेश कया। यह अंतरा य मु ा कोष और व व बक वारा नधा रत वकास का एक
ऐ तहा सक संशोधन और टॉप-डाउन (ऊपर से नीचे क ओर) मॉडल था। नव-उदारवाद
अथ यव था वारा द ु नया भर म नयोिजत ढं ग व वैि वक तर पर एक-दस
ू रे से जड़
ु े बाजार
को ‘वै वीकरण’ श द वारा बेहतर तर के से समझा गया है ।

वै वीकरण और वकास शासन : 1990 के दशक से आगे

1990 के दशक म, व व म अंतरा य तर पर और साथ ह रा य तर पर कई बदलाव


हुए। ब लन क द वार का गरना (1991), सो वयत संघ का वघटन (1989), पव
ू यरू ोप म
अचानक स ा प रवतन होना, वा शगं टन सहम त (1989), ये सभी घटनाएँ एक साथ हु
और इन सभी ने एक मॉडल के प म वकास एवं इसके काया वयन और उ पादन के
वचार को भा वत कया। ां सस फुकुयामा क कृ त ‘द एंड ऑफ ह एंड द ला ट मैन’
(1993) ने उदार राजनी तक और आ थक यव था क जीत तथा उ र-आदशवाद व व के
आगमन को द शत कया। नव-उदारवाद राजनी तक दाश नक ने ‘ यूनतम रा य’ और
वकास के ‘मु त बाजार मॉडल’ का प लया। उ ह ने सलाह द क रा य व नौकरशाह को
वकास ं टन सहम त (1989) ने
या म अपनी भू मका सी मत करनी चा हए। वा शग
तीसर द ु नया के दे श को ‘संरचना मक समायोजन काय म’ (SAP) चुनने और मु ा फ त
और राजकोषीय घाटे के मु दे को हल करने के लए अपने आ थक सुधार के ताव को
वीकार करने क सलाह द । मु त बाजारवा दय के लए, यह बेहतर आ थक व ृ ध और
वकास को बढ़ावा दे गा। दस
ू रे श द म, मु त बाज़ार के नेत ृ व म वकास कुछ दे श को
छोड़कर सभी दे श के लए वैि वक वकास क रणनी तयाँ बन जाता है ।

व व बक के द तावेज ‘शासन और वकास’ के शीषक म वकास के एक नए मॉडल के


लए कुछ आव यक उपाय पर बल दया गया है । सन ् 1992 म, व व बक वकास के एजडे
के प म ‘सुशासन’ के ताव के साथ सामने आया। इसने ‘शासन’ को ‘ वकास के लए
दे श के आ थक और सामािजक संसाधन के बंधन म शि त का योग करने के तर के’ के
प म प रभा षत कया। व व बक के लए, ‘सुशासन’ श द का अथ है ‘सु ढ़ वकास
बंधन’। य य प इसने जन-भागीदार , ा धकरण के वके करण, जवाबदे ह , नयं ण
मुि त, वकास के लए कानूनी ढाँच,े सूचना, पारद शता और आ थक द ता पर बल दया,
ले कन इस त य को भी वीकारा क रा य को वकास के नए एजडे म एक मह वपूण
भू मका नभानी चा हए। इस द तावेज़ ने रा य के साथ-साथ वकास के कई अ भकताओं को
97
मा यता द है । उदाहरण के लए, इसने समुदाय-आधा रत संगठन, राजनी तक दल , नाग रक
समाज के समूह , सामुदा यक नेताओं, अंतरा य गैर-सरकार सं थान , कायकताओं क
भू मका को पहचाना है तथा यह माना है क वकास जीवन- तर म सुधार लाने के लए एक
सामू हक यास है ।

डे वड ओसबोन और टे ड गैबलर ने ‘र इ व टंग गवनमट : हाउ द एंटर े यो रयल ि प रट


इज ांसफॉ मग द पि लक से टर’ (1993) म इस बात पर बल दया क रा य को
नौकरशाह सरकार से उ यमशील सरकार म फर से वयं को था पत करना चा हए। उ ह ने
दस मुख सुधार का सुझाव दया क इसे रा य को सावज नक े म बेहतर दशन के
लए चन
ु ना चा हए। वकास का पि चम मु त बाजार मॉडल महबूब उल हक और अम य
सेन जैसे अथशाि य वारा वक सत क गई ‘मानव वकास’ क अवधारणा के साथ
मुकाबला करता है । डॉ. हक ने तक दया क वकास का वतमान मॉडल मानव जीवन के
सुधार म वकास के वा त वक उ दे य को पहुँचाने तक म वफल रहा है । अम य सेन ने
अपने लेख ‘ वकास के प म वतं ता’ (Development as Freedom : 2002) म कुछ
आव यक त व पर यान क त कया जो क सभी के पास होना चा हए जैस—
े पढ़ने और
लखने क मता, व थ जीवन, सावज नक जीवन म भागीदार एवं यह तक दया क
वकास का वा त वक उ दे य वतं ता को महसूस करना है । इस लए, वकास शासन क
कृ त क य योजना से लोकतां क वक करण, नौकरशाह आधा रत वकास से समुदाय
आधा रत वकास क ओर मुड़ गई, और इसने 2015 म संयु त रा वकास काय म के
‘सतत ् वकास ल य ’ वारा था पत स ह वकासा मक एजडे के साथ काम करने क ओर
अ धक बल दया।

वकास शासन के त व

पी.बी. राठोड, एक स ध भारतीय व वान ् ने ‘लोक शासन’ के े म अपनी कृ त


‘ वकास शासन के त व ’ (Elements of Development Administration: 2010) म
न न ल खत वकास शासन के त व को पहचाना;

 प रवतन उ मुखी (Change-Oriented): इस वकास शासन का क य संबंध


सामािजक एवं आ थक प रवतन से है ।
 प रणाम उ मुखी (Result Oriented): लोक शासन को प रणामो मुखी होना चा हए
इसे सामािजक आ थक प रवतन क एक समयब ध अव ध के भीतर संप न होना
चा हए।
 संचार, न ठा और समपण (Communication, Devotion and Dedication): एक
शास नक तब धता म प रवतन लाने क आव यकता है । वकास शासन को

98
केवल योजना एवं उसके वकासा मक काय के या वयन क ओर क त नह ं रहना
चा हए बि क इसका यान संपूण समाज के बदलाव क ओर होना चा हए।
 ाहक उ मुखी (Client-Oriented): वकास शासन को ाहक उ मुखी होना चा हए।
इससे ाहक /नाग रक क आकां ाओं और आ ह को संतु ट करने का यास करना
चा हए, उदाहरण के लए वशेष े म रहने वाले लोग। इसे वशेष े के लोग क
आव यकताओं और इ छाओं को रणनी तक तर क से संतु ट करने का यास करना
चा हए।
 अ थायी आयाम (Temporal Dimension): वकास शासन क एक मख
ु बाधा है
जैस—
े समय। इसे इस ओर अपना यान क त करना चा हए क कस कार से
नाग रक क आव यकताओं को एक नि चत समय के अंदर पण
ू कया जा सके।
 योजनाब ध एवं समि वत यास (Planned and Coordinated efforts): वकास
शासन का ता पय एक संग ठत एवं नयोिजत वकास क रणनी तय से है । इसम
नौकरशाह और नाग रक क भागीदार के म य सहयोग क आव यकता है ।
 ल यो मुखी शासन (Goals oriented administration): वकास शासन को
ल यो मुखी होना चा हए। वकास शासन का मु य ल य आ थक वकास के साथ
सामािजक प रवतन भी लाना है ।
 बंधक य मता (Management Capacity): वकास शासन को वकासा मक
या के काय म ारं भ से अंत तक बंधन के लए मता क आव यकता होती
है । इसे वकास के नधा रत ल य क ाि त के लए मता को बनाना व बढ़ाना
चा हए।
 ग तवाद (Progressivism): यह वकास शासन का एक मह वपूण काय है । यह
मानव ग त के लए दरू गामी भ व य को ा त करने क तैयार करता है ।
 भागीदार (Participation): लोग को वकास के काय म वारा केवल लाभ ा त
नह ं होता है, वे वकासा मक याओं म स य भागीदार होते ह। इसम वे मा
केवल वकास के साधन नह ं होते, बि क वे वकास के सा य होते ह। हालाँ क,
वकास शासन म लोग क अ धक भागीदार क आव यकता होती है।
 रचना मकता तथा नवीनता (Creativity and Innovation): ये वकास शासन के
दो मुख त व ह। इ ह वकास क या म पूर तरह से रचना मक एवं नवीन
होना चा हए।
 जवाबदे ह व उ रदा य व (Responsiveness and Accountability): वकास
शासन को उ रदायी व िज मेदार होना चा हए। इसे वकास के ल य क ाि त के
लए शासक के त अ धक े रत और ऊजावान होना आव यक है ।
 अ त यापी (Overlapping): वकास क याओं का पालन करते हुए, कई
औपचा रक एवं अनौपचा रक सं थान ह जो आपस म अ त यापी होते ह।
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उदाहरण व प ाय: नौकरशाह जा त, वग, समूह और े के साथ अ त यापी हो
जाती है । हालाँ क, अ त यापन वकास शासन का त व है ।

वकास शासन पर े ड र स का ि टकोण

एफ.ड यू . र स (1917-2008) ‘तुलना मक शास नक समूह’ (Comparative


Administration Group) क अमर क सोसाइट के थम बौ धक व अ वेषक थे। उ ह ने
तीन मॉडल का चयन कया यानी क संयु त रा य अमे रका, थाईलड और फल पींस के
वभ न शास नक मॉडल क या या क । उ ह ने तुलना मक लोक शासन म अ े रया
(थाईलड) तथा इंडि या (संयु त रा य अमे रका) के वग करण क या या क और एक
म त मॉडल का वकास कया िजसे र स ने ‘ मीय’ मॉडल ( फल पींस) का नाम दया।
इसम इस बात पर बल दया गया क ‘ मीय’ समाज ह उ र औप नवे शक समाज है
िजसने 1940 और 1950 के दशक म सा ा यवाद शि तय से वतं ता ा त क । पि चमी
शि तयाँ ने इस समाज म शासन कया तथा इन समाज म शासन चलाने के लए एक
आधु नक नौकरशाह यव था को उन पर थोपा गया। र स ने शास नक यव था म
पि चमी दे श वारा थोपे गए संबंध एवं उनके सामािजक, सां कृ तक वातावरण को मीय
समाज से जानने के इ छुक थे। यह लोक शासन कई वकासशील दे श के मीय समाज
के अंतगत आता है । उ ह ने अपनी कृ त ‘थाईलड : मॉडनाइजेशन और यरू ो े टक पॉ लट ’
(1966), म यह बताया क कस कार से कमज़ोर राजनी तक संरचना शास नक यव था
को नयं त करने म असमथ रहती है । उ ह ने ‘द इकोलॉजी ऑफ पि लक एड म न े शन’
(1961), म द ण पव
ू ए शया म और अमे रका म एक यापक सव ण के प चात ् यह
द शत कया क कस कार से वकासशील दे श म शास नक चन
ु ौ तय का सामना करना
पड़ रहा है ।

र स ने वजातीयता (पारं प रक के साथ ह आधु नकता का सहअि त व),


औपचा रकतावाद (प रकि पत ि ट एवं वा त वक अ यास के म य अंतर) और पर पर-
यापन (नव न मत उ च आधु नक संरचनाएँ केवल दखावट सेवाओं के भुगतान तथा
यापक प से पारं प रक सामािजक संरचना क अनदे खी) क पहचान क । पर पर- यापन के
कई मह वपण
ू आयाम ह जैसे भाई-भतीजावाद, प पात, बहुस दायवाद ( व भ न समहू के
म य पार प रक श त
ु ापण
ू अंत: याओं का होना), बहुमानकतावाद (कई मानदं ड का
अि त व, तक संगत के साथ-साथ तकह न/पारं प रक होना), कले स का अि त व होना
(सामद
ु ा यक पहचान पर आधा रत हत समहू ), बहुमानकतावाद ( व भ न समह
ू के लए
व भ न मानक का सामू हक सामािजक ि थ त एवं सौदे बाजी क मता पर आधा रत होना)
और आधु नक शास नक यव था का पारं प रक शास नक संरचना के साथ होना। उ ह ने
यह न कष दया क पि चमी नौकरशाह एवं राजनी तक संरचना मु यतः शास नक ल य
हे तु बनाई गई है परं तु अ सर इसे पारं प रक सामािजक संरचना के प म नजरं दाज कया
100
जाता है । इस लए यह आधु नक संरचना परं परागत के साथ मौजूद होती है ले कन परं परागत
संरचना वा त वक जीवन म सदै व भु व म ह रहती है ।

र स ने यह महसूस कया क एक मीय समाज म, भाई-भतीजावाद या पा रवा रक


संर ण या प पात आ द पा रवा रक संबंध तथा र तेदार के आधार पर च लत होते ह।
वा तव म, व भ न शास नक कायालय म चयन और शास नक काय के दशन म भाई-
भतीजावाद या प पात बहुत मह वपूण भू मका नभाता है । पा रवा रक वंश, र तेदार और
पारं प रक कानून का चलन एवं कानून के शासन के सावभौ मकरण के यवहार म कमी
होने या भाव म कमी होने के कारण ह अवहे लना क गई। शास नक अ धकार , िजसे
र स ‘साला’ अ धकार कहते ह, वे शास नक मामल से नपटने के दौरान सामािजक
संरचना को ाथ मकता दे ते ह। वे आम नाग रक को उनक राजनी तक समानता के बजाय
प रवार/ र तेदार एवं यि त क सामािजक िज मेदार पहचान को ाथ मकता दे ते ह। वे
सामािजक क याण के बजाय यि तगत हत, शि त, धन और समृ ध को बढ़ाते ह।
शास नक यवहार और दशन उनके समाजीकरण और संक ण च र से अ य धक भा वत
होते ह।

एफ.ड यू. र स ने मीय समाज क आ थक उप- णाल को बाजार-कट न मॉडल के


प म व णत कया। मीय समाज के शहर े म समानता दे खी जा सकती है जब क
ामीण े म सेवाएँ संर ण व प पात पर आधा रत होती ह। ले कन मीय समाज म
नौकरशाह (साला) अ धका रय और उनके ाहक के बीच संबंध े ता- व े ता क भाँ त
भां त होते ह। सेवा क क मत साला के अ धकार और उनके ाहक के बीच संबंध क
कृ त पर नभर करती है । व तु या सेवा क क मत एक जगह से दस
ू र जगह, समय-समय
पर और एक यि त से दस
ू रे यि त के लए भ न- भ न होती है । यह पा रवा रक संपक,
सामािजक ि थ त, सौदे बाजी क मता, यि तगत संबंध एवं शि त क राजनी त पर भी
नभर करता है । सामािजक प से भावशाल वग/जा त को और कम क मत पर सेवाओं क
गारं ट द जाती है ले कन इस सीमांत जा त/वग को भार शु क दे ना पड़ता है ।

मीय समाज म क मत का उतार-चढ़ाव अ धक सम याएँ पैदा करता है और यह


कालाबाज़ार , जमाखोर , मलावट को अ धक ो सा हत करता है तथा अंततः अथ यव था को
उ च मु ा फ त क ओर ले जाता है । िजससे इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता है ।
ऐसी ि थ त म, मीय समाज म ‘साला’ अ धकार यापा रक समूह , वदे शी यापार संघ
और सं थान के साथ संपक वक सत करने व नजी उ दे य के लए वदे शी मु ा का
द ु पयोग करने का यास करते ह। इससे अ सर बड़े टाचार, आम लोग का शोषण,
गर बी और मीय समाज म आम लोग के जीवन तर म गरावट आती है। मीय
समाज म मजदरू राजनी तक भाव पर नभर करती है । अथ यव था म उ च मजदरू और
कम मजदरू के बीच एक बड़ा वभाजन है तथा इसके प रणाम व प उ च आ थक
101
असमानता और सामािजक अ याय होता है । इस कार से शोषण, गर बी और सामािजक
अ याय बाज़ार कट न मॉडल क मुख वशेषताएँ बन जाते ह। अत: र स ने ए शया के
वकासशील समाज म वकास शासन के सामने आने वाल गहर सम याओं को द शत
कया।

न कष

वकास शासन ने तुलना मक लोक शासन के अंग के प म अपनी या ा क शु आत क


तथा यह सदै व ह अपनी पहचान क तलाश म रहा है । इसने वषय के समानांतर
‘ वकासा मक आ थक’ म खद
ु को था पत कया ले कन वकास शासन को सदै व ह अपनी
पहचान के लए संकट का सामना करना पड़ा। यह नव- वतं ए शया और लै टन अमे रका
म एक तीसर द ु नया म दाश नक व प ध त के वारा लगाया गया था ले कन र स वारा
दखाए गए सामािजक-आ थक अंतर ने वकास के ल य को ा त करने हे तु सभी के लए
एक बड़ी चन
ु ौती पेश क और अब यह एक दरू का सपना दखाई दे ने लगा है । इसके
अ त र त, इसने मानव व कृ त के म य संघष के साथ-साथ कई अंतर-समद
ु ाय और
अंतर-समद
ु ाय संघष को ज म दया है । हम वकास और वकास शासन क अवधारणा पर
नए सरे से वचार करने क अ यंत ह आव यकता है ।

संदभ सच
ू ी
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Nations.

102
इकाई-4 : लोकनी त क समझ

लोक नी त : संक पना, ासं गकता और उपागम

डॉ. दे वार ी रॉय चौधर


अनुवादक : नारायण रॉय
परे खा

• प रचय
• लोक नी त को समझना
• लोक नी त के ल ण
• लोक नी त के कार
• नी त व लेषण का मह व
• नी त व लेषण के तर
• नी त अ ययन के व भ न प
• नी त नमाण के मॉडल
• लोक नी त क ासं गकता
• संदभ

प रचय

रा य और उसके लोग के बीच संबंध को समझने के लए लोक नी त क बेहतर समझ


होना बहुत मह वपण
ू है । रा य क उपि थ त और ासं गकता जीवन के सभी पहलओु ं म
प ट है और तेजी से बदलती भ-ू राजनी तक और आ थक प रवतन के साथ, रा य और
उसके लोग के बीच के आपसी संबंध भी बहुत मह वपण
ू हो गए ह। इस संबंध म, लोक
नी त क भू मका काफ बढ़ गई है ।

सरल श द म कह तो, लोक नी त एक रणनी तक ढाँचे क तरह है िजसे रा य के सीमा


के भीतर सरकार अपने काय को परू ा करने के लए उपयोग करती है । और, इस संबंध म,
लोक नी तयाँ बहुत मह वपण
ू हो जाती ह य क यह, उनक द गई राजनी तक यव था म,
जनता के जीवन को बदलने और नयी आकृ त दान करने क शि त रखती है ।

लोक नी त क उपि थ त जनता के हर सामािजक-आ थक पहलू म दे खी जा सकती है ।


रा य आ थक वकास लाने, सामािजक याय और समाज के सभी वग के सश तीकरण को
बढ़ावा दे ने के लए नी तयाँ नमाण करते ह। इस लए, न केवल आ थक बि क सामािजक
र ते भी लोक नी त के कारण पांत रत हो रहे ह। इस तरह, लोक नी त को समझना
आव यक हो जाता है ता क रा य, समाज और उनके संबंध को बेहतर ढं ग से जाना जा
सके।
103
लोक नी त को समझना

एक मह वपण
ू बंद ु जो यहाँ उजागर करना आव यक है वह यह है क चँ ू क सभी दे श अपने
पहलओ
ु ं म भ न है , इस लए उनक लोक नी त भी भ न है । सामािजक, राजनी तक,
आ थक पहल,ू ाथ मकताओं, उपल ध संसाधन , हतधारक क भागीदार आ द के आधार
पर नी त क कृ त, या, नी त ाथ मकता और भाव एक दे श से दस
ू रे दे श म काफ
भ न होते ह। भारत म नी तयाँ, गर बी क सम याओं, अ श ा, बड़े पैमाने पर बेरोजगार ,
खा य असरु ा, सामािजक और ल गक याय जैसी ाथ मकताएँ, समाज के कमजोर वग का
सशि तकरण, कृ ष और उ योग का वकास, बेहतर मानव सुर ा संकेतक, पयावरणीय
ि थरता और रा य तर पर यापक प से आ थक वकास को
यान म रखते हुए बनाई
जाती ह। लोक नी त क यापकता और ज टलताओं का एहसास आसानी से कया जा सकता
है य क यह व भ न पहलुओं से अ य धक अंतसबं धत होती है ।

इस कारण से, लोक नी त को प रभा षत करना भी मुि कल हो गया है । इसका अथ यह


है क श दाथ के आधार पर, सरलता से कह तो, भाषाई प से लोक नी त को उसक
यापक कृ त और यापकता के कारण प रभा षत करना क ठन है । लोक नी त को व भ न
व वान वारा अलग-अलग तर क से प रभा षत कया गया है जो नी त और नी त या
के व भ न पहलुओं पर यान क त करते ह। व भ न प रभाषाएँ नी त नधारण को
समझने के लए अलग-अलग ि टकोण और आयाम दे ती ह।

थॉमस आर. डाई का कहना है क "लोक नी त वह है जो कुछ भी सरकार करने या न करने


के लए चन
ु ती है " (डाई 2008)।

डे वड ई टन ने लोक नी त को "पूरे समाज के लए मू य के आ धका रक आवंटन" के प


म प रभा षत कया।

व लयम जेन क स के अनुसार "लोक नी त एक राजनै तक अ भनेता या अ भनेताओं के


समूह वारा ल य के चयन और उ ह एक न द ट ि थ त म ा त करने के साधन के
वषय म लए गए पर पर संबं धत नणय का एक सेट है , जहाँ उन नणय को, सै धां तक
प से, उन अ भनेताओं क ा त करने क शि त के अंतगत होना चा हए”।

हे रो ड ला वेल और अ ाहम कापलान ने लोक नी त को "ल य , मू य और थाओं के एक


अनम
ु ा नत काय म" के प म प रभा षत कया है ।

कोचरन एट अल के अनस
ु ार, “सरकार के काय और इरादे जो उन काय को नधा रत करते
ह।”

104
रॉबट आई टोन ने लोक नी त का उ लेख “अपने वातावरण के लए सरकार इकाइय के
संबंध” के प म कया है ।

रचड रोज़ कहते ह क “लोक नी त कोई नणय नह ं है, यह एक कोस या ग त व ध का


पैटन है ।”

काल जे. े च के श द म, “लोक नी त कसी यि त, समूह या सरकार क एक नि चत


कायवाह है जो कसी दए गए वातावरण म अवसर और बाधाएँ दान करती ह िजसे नी त
का उपयोग करने और एक ल य, एक उ दे य तक पहुँचने के यास म बाधाओं को दरू
करने के लए ता वत कया गया था।”

उपरो त प रभाषाओं से, यह बहुत प ट हो जाता है क लोक नी तयाँ सरकार वारा


पव
ू नधा रत ल य को ा त करने के लए लये गए नणय ह, िजसम उ चत नयोजन,
और कायवाह क एक सु नयोिजत काय णाल शा मल है । प रभाषाएँ यह भी प ट करती ह
क लोक नी त वभ न हतधारक जैसे सरकार सं थाएँ, कायकार , वधा यका,
यायपा लका, नौकरशाह , व भ न संघ , दबाव समह
ू , नाग रक समाज और नजी और
अंतररा य संगठन के बीच अ छ तरह से समि वत संबंध और साथक बातचीत का एक
उ पाद है ( ा स और फलाग 2004)।

हालाँ क, जहाँ सामा य प रि थ तय म लोक नी त को समझने के लए ऐसी प रभाषाएँ


संभव ह, ले कन ये लोक नी त के यवि थत अ ययन के पया त संकेतक नह ं है । जैसा क
एडम ए. एनेबे (2008) ने उ लेख कया है क “ये प रभाषाएँ लोक नी त को, हत क
अ भ यि त के प म, केवल नणय क तरह दखाती है । यह सच है क ये प रभाषाएँ
लोक नी त के वचन से शु करने के लए एक संदभ बंद ु के प म काम करती ह, ले कन
हमार सोच क संरचना करने और एक दस
ू रे के साथ भावी संचार क सु वधा के लए
अ धक सट क प रभाषा क आव यकता है । लोक नी त का अथ उन प रयोजनाओं और
काय म वारा तुत संसाधन आवंटन के पैटन भी है , जो लोक माँग को समझने के लए
डज़ाइन कए गए है ”। इस संबंध म, राजनी तक वै ा नक जे स ई. एंडरसन (1997) ने
नी त को “ कसी सम या या चंता के वषय से नपटने के लए एक अ भकता या
अ भकताओं के समहू के वारा अपनायी गई एक अपे ाकृत ि थर, उ दे यपूण कायवाह के
प म प रभा षत कया।” यह ि टकोण कई चन ु ौ तय के साथ ज टल वातावरण म या
ता वत कया गया क बजाय वा तव म या कया गया है को समझने म मदद करता
है ।

लोक नी त क वशेषताएँ, कार, नी त व लेषण, ि टकोण और नी त च लोक नी त


क साथक समझ बनाने म मदद कर सकते ह। नी त व लेषण नी त को सम प से
समझने म मदद करता है , और राजनी तक-सामािजक णाल के साथ इसका जुड़ाव लोक
105
नी त और इसके प रणाम को भा वत करने वाले कारक क वै ा नक जाँच वक सत करता
है । थॉमस डाई के अनुसार “नी त व लेषण नधारण, वकालत और स यता के लए एक
अनुलाभ है ” (डाई 2008)।

नी त या या नी त च एक नी त को समझने का एक बहुत ह बु नयाद , सबसे


मल
ू भुत ढाँचा तुत करता है िजसम सू ीकरण, काया वयन और मू यांकन चरण शा मल
होते ह।

लोक नी त के ल ण

1. लोक नी त एक ल य उ मुख उ दे यपूण कायवाह है । एक लोक नी त का मूल


उ दे य उपल ध संसाधन और बु नयाद ढाँचे का उपयोग करके नयोिजत कायवाह
के आधार पर पूव नधा रत ल य को ा त करना है ।
2. लोक नी त, कुछ करने का प रणाम है , यह ’ए शन उ मुखी’ है और इसका अथ यह
कदा चत नह ं है क सरकार ने या कया या करने का इरादा कया। सरकार
व भ न मापदं ड के आधार पर लोक नी त नमाण करती है । संसाधन , व ीय
तब धताओं, ाथ मकता समूह , सम या क ज टलता, डेटा क उपल धता, एक
वश ट शास नक णाल के भीतर एक राजनी तक वातावरण म वभ न
हतधारक क सहभा गता।
3. लोक नी त सरकार नणय क सामू हक कायवाह का प रणाम है । यह सरकार
अ धका रय के ए शन पैटन को दशाता है और नाग रक के त उनक चंताओं और
तब धताओं को दशाता है ।
4. लोक नी त एक सु नयोिजत, अ छ तरह से शोध क गई कायवाह है । और, इसे
कानून और ा धकरण के अनुमोदन के साथ लागू कया जाता है ।

लोक नी त के कार

1. वतरण नी त म समाज के एक व श ट वग के लए लाभ और सेवाओं का आवंटन


शा मल है । इन नी त के मा यम से सरकार समाज के सभी वग तक पहुँचने का
यास करती है , िजससे वशेष प से समाज के कमजोर वग को लाभ होता है । ये
नी तयाँ कमजोर समुदाय , समूह और उ योग क सहायता के लए लोक धन,
संसाधन और उपयोग को आवं टत करती है । इन नी तय का उदाहरण श ा नी त,
गर बी उ मूलन नी त, वा य नी त आ द ह। ये समाज के व श ट वग के लए
होती ह।
2. पुन वतरण नी त म समाज के सभी वग के बीच अ धकार , आय, संप को
आवं टत/ पुन वत रत करने के लए सरकार क जानबूझकर क गयी कायवाह
शा मल है । ये मूल प से सामािजक आ थक प रवतन से संबं धत ह और सामा य
106
प से, समाज के क याण को ा त करने के लए नी तय को पुन यवि थत करते
ह। इन नी तय का नमाण करना मुि कल है य क इसम भार व का आवंटन,
शि त और अ धकार का उ चत उपयोग शा मल है । ये नी तयाँ दे श क अथ यव था
का बंधन करती है । दे श म राजकोषीय (कर) और मौ क (धन का वाह) नी त का
बंधन करने वाल तकनीक इसम शा मल है । पुन वतरण नी तयाँ एक समह
ू (कमजोर
वग, न न आय समह
ू ) को दस
ू रे समूह (उ च आय समूह) क वा त वक संप से
लाभाि वत करती ह। पन
ु वतरण नी तय के उदाहरण ह—कराधान नी त, राजकोषीय
नी त, सामािजक क याण नी त आ द।
3. लोक नी त क एक और वृ है नयामक नी तयाँ। ये नी तयाँ शास नक ि थ त
को आ धका रक प से नयं त करने क अनम
ु त दे ती है अथवा कुछ ग त व धय
के स बि धत नाग रक के यवहार पर तबंध या सीमा को लागू करती ह। उदाहरण
शराब और तंबाकू क खपत, पयावरण संर ण नी तय , पयावरण दष
ू ण नयं ण
नी तय , वा य और सरु ा नी त आ द व नयामक नयं ण है । ये नी तयाँ उन
े पर यान क त करती ह िज ह लोक हत को यान म रखते हुए व नय मत
करने क आव यकता है ।
4. या मक / मूल नी तय के अनुसार सड़क, राजमाग, बांध नमाण, लोक संप के
रखरखाव, संचाई के संर ण, पयावरण संर ण इ या द जैसी सम याओं से नपटना
सरकार याओं से संबं धत है । ऐसी या मक नी त बनाते समय मु य प से
यान दया जाता है क नी त का नमाण/ नधारण कैसे कया जाये और कौन-कौन
अ भकता ह गे, उनके काय या है । इस कार क नी तय म सभी शास नक या
को यान म रखा जाता है । ये नी तयाँ समाज के क याण और सम वकास से
संबं धत होती ह न क समाज के कसी वशेष खंड से संबं धत होती ह।
5. ये सरकार काय के आधार पर नी तय के कार ह। इन कार के अलावा, व भ न
शास नक यवसाय, ग त व धय के आधार पर, कई अ य नी तयाँ है जैसे क
संर क/ चार नी तयाँ िज ह आगे उप-नी तय म वभािजत कया गया है जैस—

अनुबंध, लाइसस और सि सडी। एक कार, पँज
ू ीकरण नी त है और दस
ू र घटक नी त
है ।
6. अ य कार तीका मक या भौ तक नी तयाँ, नजी पदाथ नी तयाँ, सामू हक नी तयाँ
ह।

नी त व लेषण का मह व

थॉमस डाई के अनस


ु ार, थॉमस डाई, नी त व लेषण यह पता लगाना है क सरकार या
करती है, वे ऐसा य करते ह और इससे या फक पड़ता है ।

107
इसी तरह, चोचरन और मेलोन ने बताया क “नी त व लेषण उन जाँच का वणन करता
है जो नणय नमाताओं के लए सट क और उपयोगी जानकार का उ पादन करते ह।”
अ धक ृ नोट पर, जेन कंस ि मथ ने उ लेख
व तत कया है क “नी त व लेषण
तकनीक और मानदं ड का एक समूह है िजसके साथ लोक-नी त वक प का मू यांकन
करना और उनके बीच चयन करना है ... और लोक नी त के वकास और काया वयन को
युि तसंगत बनाना है ... और लोक संसाधन के आवंटन म अ धक द ता और इि वट के
साधन के प म।”
चा स जो स के अनस
ु ार, “नी त व लेषण लोक नी त को समझने का एक अ छा तर का
है ।” उ ह ने अपनी पु तक ‘एन इं ोड शन टू द टडी ऑफ़ पि लक पा लसी’ म नी त
नधारण म नी त व लेषण क ासं गकता बताते हुए कुछ ट प णय का उ लेख कया। ये
न न ल खत ह—

1. हम िजस समाज म रहते ह और िजस रा य को हमने समाज के नयमन के लए


बनाया है, वह समय के साथ बदल गया है और व भ न लोग ने इनक अलग-अलग
तरह से या या क है। नी त व लेषण इस संदभ को अ धक कुशलता से समझने म
मदद करता है । और, इसी लए लोक नी त को सम प से समझने के लए नी त
व लेषण ासं गक है ।
2. कई सम याओं का एक ह ि टकोण होता है । वे एक ह घटना के प रणाम या एक
दस
ू रे से संबं धत होती ह। उदाहरण के लए, गर बी, अ श ा और बेरोजगार अलग-
अलग सम याएँ नह ं ह, वे पर पर संबं धत ह और ऐसी सम या को समझने और
उससे नपटने के लए, सम या का अ धक यापक और बहुआयामी ि टकोण रखने
क आव यकता है ।
3. यह ब कुल भी आव यक नह ं है क सरकार सभी सम याओं पर कायवाह करे गी।
यह सब सरकार मता और कुछ करने क इ छा पर नभर करता है , सबसे बड़ा
सवाल कैसे करना है , एजडा बहुत प ट होना चा हए और समाज के लए ासं गक
होना चा हए। सरकार को नी त नमाण के दौरान संसाधन ि थरता और व ीय
दा य व पर वचार करना होगा।
4. समाज क सम याएँ ज टल ह और उ ह अकेले सरकार वारा हल नह ं कया जा
सकता है । नी त नमाण बहु हतधारक क सहभा गता का एक प रणाम होता है ,

िजसम न केवल सरकार एज सयाँ, बि क अंतररा य संगठन, नजी सं थान, थक
टक, नी त अ ययन समह
ू , नाग रक समाज, मी डया पॉ लसी बनाने के हर चरण म
शा मल होते ह।
5. समाज म मु दे व सम याएँ और शासन के त माँग स य ह और नरं तर
बदलती रहती ह और सरकार के सम नई चन
ु ौ तय तत
ु कर रह ह। जो बदले

108
म, सरकार को नी त नधारण के साथ योग करते रहने के लए भी तैयार कर रहा
है , य क कुछ वष पहले जो नी त प रणामदायक रह थी ज र नह ं वह समकाल न
समय म ासं गक हो। इस संबंध म, यह अ यंत आव यक हो जाता है क नणायक
नणय तक पहुँचने के लए येक सम या और नी त या का पूण व लेषण
कया जाए।
6. नी त णाल क अपनी सीमाएँ होती ह। संसाधन और व ीय बाधाएँ ह, कई
हतधारक क अपनी ाथ मकताएँ, राजनी तक और आ थक ाथ मकताएँ,
संगठना मक दबाव और कई अ य सीमाएँ ह। ये सभी नी त म प रल त होते ह
और यह कारण है क सभी ि टकोण से नी त या को समझने और इसे
उपयोगी बनाने के लए एक बहुत ह उ दे यपण
ू नी त व लेषण होना बहुत आव यक
है । ( कंगडन 2003)

थॉमस डाई ने तीन मह वपूण बात का उ लेख कया है जो नी त व लेषण के मा यम से


सीख सकते ह—

1. ववरण : नी त व लेषण लोक नी त का वणन करने म मदद करता है । यह सरकार


के कामकाज को बेहतर ढं ग से समझने म मदद करता है क सरकार या कर रह है
और या नह ं कर रह है।
2. कारण : नी त व लेषण के मा यम से हम कारण क जाँच कर सकते ह, नधारक
का व लेषण कर सकते ह, व भ न सं थान के भाव, नी तय पर यवहार और
नी तगत याएँ कर सकते ह। नी त, ‘ नभर चर’ है और सामािजक राजनी तक,
सां कृ तक, आ थक कारक जैसे कई कारक जो नी तय का नधारण कर रहे ह, जो
क ‘ वतं चर’ बन जाते ह।
3. प रणाम : यह बहुत मह वपणू ह सा है य क यह लागू नी तय के प रणाम को
समझने म मदद करता है । इसे 'नी त मू यांकन’ के प म जाना जाता है , जहाँ यह
मू यांकन कया जाता है क िजस नी त को लागू कया गया है या वह लोग के
जीवन म कोई मह वपूण बदलाव ला पायी है ? इसम, लोक नी तय के भाव को
जाना जा सकता है और भ व य म, नी त नधारण के लए उपयोग कया जाता है ।
(डाई 2008)

नी त व लेषण लोक नी त, राजनी तक णाल और सामािजक णाल के बीच संबंध को


समझता है ।

109
छव ोत : डाई 2008

एच. लै वेल (1917) ने लोक नी त व लेषण क वशेषताओं को समझाया है । ये इस कार


ह—

1. लोक नी त व लेषण कृ त म बहु- वषयक है ।


2. लोक नी त व लेषण नी त वक प, नी त या और नी त प रणाम के बीच संबंध
को समझने का एक मा यम है ।
3. इसक व वध कृ त के कारण, यह बहु वध काय णाल पर उपयोग करता है ।
4. व लेषण का सरकार काय , लोक वक प और बाजार पर य भाव पड़ता है ।

नी त व लेषण के तर

1. मेटा व लेषण इस वचार क समझ से संबं धत है क लोक नी त व लेषण मे पक


का उपयोग कया जाता है । कसी चीज का वणन करने के लए यह व लेषण, कुछ
अ य चीज का उपयोग करे गा। इस ि टकोण पर आधा रत नी त व लेषण के मॉडल
अ भजा य, बहुलवाद , नव मा सवाद ह।
2. मेसो व लेषण एक म यम तर का ि टकोण है जो नी त डजाइन म प रभाषाओं,
एजड और नणय लेने क या के बीच संबंध पर क त है ।

110
3. नणय व लेषण : यह ि टकोण िजस मुख न क जाँच करता है, वह यह है क
ि टकोण म ‘ कसे, या और कैसे मलता है ’। इस स दभ म, नी त नधारण को
केवल उ दे य को समझने के लए नह ं समझा जाता है , बि क मु यतः यह समझने
के लए व लेषण कया जाता है क नणय कौन ले रहा है , कसके लए नणय लया
गया है और सभी लोग को नणय से या
ा त हुआ है ? मा सवाद, अ भजा यवाद,
तकनीक वाद, बहुलवाद, नगमवाद जैसे मॉडल इस ि टकोण के अंतगत आते ह।
4. वतरण व लेषण नी त के न पादन, मू यांकन, भाव और प रवतन तर के संदभ
म नी त के प रणाम को समझता है । ( कंगडन 2003)

नी त अ ययन के व भ न प

नी त अ ययन के तीन अलग-अलग प ह।

1. नी त अ ययन का वणना मक प मु द और व भ न कारक, जो नी त अ ययन के


लए नधारक है , का वणन करने, इससे स बं धत व भ न हतधारक क भू मका
और नी त नमाताओं वारा उपयोग क जाने वाल व धय और तकनीक के उ लेख,
से संबं धत है । यह ा प नी त के प रणाम के ववरण से भी संबं धत है ।
2. नी त अ ययन का नधा रत ा प नी त डजाइन को बेहतर बनाने के तर के और
सामा य प से समाज के लए नी त को कैसे ासं गक बनाया जा सकता है , बताता
है । संपण
ू नी त या को और अ धक समावेशी, सहभा गतापण
ू और प रवतनशील
बनाकर सध
ु ार के लए सुझाव भी नधा रत करता है ।
3. नी त अ ययन का तल
ु ना मक प मल
ू प से व भ न नी तय , उनक संरचनाओं,
परं पराओं, ाथ मकताओं, व भ न एज सय , अ भनेताओं, नी त प रणाम आ द का
अ ययन करता है ता क नी त को अ धक भावी और कुशल बनाने के लए पया त
जानकार एक क जा सके।

नी त नमाण के मॉडल
नी त वै ा नक ने परू नी त बनाने क या को समझने के लए व भ न मॉडल
वक सत कए ह।
थॉमस डाई के अनुसार, “लोक नी त के मॉडल न न ल खत बात के लए यास करते ह”—
 राजनी त और लोक नी त के बारे म हमार सोच को सरल और प ट करने के लए।
 नी तगत सम याओं के मह वपूण पहलुओं क पहचान कराने के लए।
 राजनी तक जीवन क आव यक वशेषताओं पर यान क त करते हुए एक दस
ू रे के
साथ संवाद करने म हमार मदद करते ह।
 लोक नी त को बेहतर तर के से समझने के लए हमारे यास को नद शत करते ह
क या मह वपूण है और या मह वह न है ।
111
 लोक नी त के लए प ट करण का सझ
ु ाव दे ते ह और इसके प रणाम क
भ व यवाणी करते ह”।
थॉमस डाई ने अपनी पु तक म ‘नी त मॉडल’ के बारे म बात क है , और इसी वैचा रक
योजना के अनुसार, लोक नी त के मु य मॉडल न नानुसार ह—
 या मॉडल सं थागत मॉडल तकसंगत मॉडल
 कुल न मॉडल अ भव ृ धशील मॉडल समह
ू मॉडल
 सावज नक वक प मॉडल यव था मॉडल खेल स धांत
एक मह वपूण बंद ु िजस पर यहाँ पर काश डालने क आव यकता है क येक मॉडल एक
वश ट ि टकोण से लोक नी त को समझने का यास है और लोक नी त नमाण क एक
अलग समझ दान करता है । हालाँ क, नी तयाँ लोक पसंद, कुल न वर यता, राजनी तक
या, णाल या, तकसंगत योजना, व ृ धशीलता, समूह ग त व ध और गेम फ़ं शन
का प रणाम होती ह।
1. या तमान
इस मॉडल म, नी त नमाण क राजनी तक ग त व धय के पैटन, जो क नी त नमाण क
या है , क जाँच क जाती है । या मॉडल के व भ न चरण ह—
 सम या क पहचान : नी तगत सम या क पहचान उन माँग का व लेषण करके क
जाती है जो स पूण समाज या समाज के व भ न समूह वारा सरकार के सम
कायवाह के लए तुत क जाती है ।
 एजडा से टंग : वभ न हतधारक जैसे शास नक अ धकार , मी डया आ द क
व श ट माँग पर यान क त करते ह और इस आधार पर क जाने वाल कायवाह
का नणय लया जाता है ।
 नी त नमाण : नी त ताव व भ न हतधारक वारा शा मल कए जाते ह।
 नी त नधारण : सम या से नपटने के लए कायवाह का एक व श ट प चन
ु ा
जाता है और वधा यका, कायकार और शास नक णाल के मा यम से उसको लागू
कया जाता है ।
 नी त काया वयन : इस नी त को अब लोक अ धका रय और सरकार सं थान के
मा यम से न पा दत कया जाता है ।
 नी त मू यांकन : इस चरण म प रणाम और न हताथ का व लेषण कया जाता है।
सरकार एज सयाँ खद
ु , और मी डया, ं टक,
थक नजी परामशदा ी और नाग रक
समाज जैसे व भ न अ य अ भकता, आम जनता नी तगत प रणाम का मू यांकन
करती है ।

यह मॉडल संर चत तर के से नी त बनाने क व भ न ग त व धय को समझने के लए


लाभदायक है ।
112
2. सं थागत मॉडल

लोक नी त और राजनी तक सं थान एक दस


ू रे से गहन प से संबं धत ह। सभी राजनी तक
ग त व धयाँ राजनी तक सं थान जैसे—रा प त, कायपा लका, वधा यका, यायपा लका,
नौकरशाह , शहर और ामीण सरकार सं थान वारा क जाती ह और लोक नी तय का
नमाण और न पादन भी सरकार सं थान वारा कया जाता है ।

थॉमस डाई ने उ लेख कया क “लोक नी त और सरकार सं थान के बीच बहुत कर बी


संबंध है । एक नी त तब तक लोक नी त नह ं बन जाती है , जब तक क उसे सरकार
सं थान वारा अंगीकार, कायाि वत और लागू नह ं कया जाता है ”। (डाई 2008)

सरकार सं थान लोक नी त को तीन व श ट वशेषताएँ दान करते ह।

1. वैधता : सरकार सं थान नी तय को वैधता दान करते ह। सरकार क नी तयाँ


कानूनी दा य व बन जाती ह और उनका नाग रक को अनुपालन करना पड़ता है ।
सरकार सं थागत ग त व धय के मा यम से कानूनी वैधता को मंजूर द जाती है ।
2. सावभौ मकता : सरकार सं थान एकमा और कानूनी सं थान है िजनके मा यम से
सरकार क नी तयाँ समाज के सभी लोग के लए व ता रत होती ह।
3. बल योग : सरकार उन लोग के खलाफ आ धका रक बल का उपयोग कर सकती है
जो नी तय और सरकार नयम का पालन नह ं करते ह। केवल सरकार के पास
उ लंघनकताओं के खलाफ बल योग करने का वैध अ धकार है ।
3. लोक नी त नमाण का तकसंगत मॉडल
थॉमस डाई ने उ लेख कया क "एक तकसंगत नी त वह है जो "अ धकतम सामािजक लाभ"
हा सल करती है ; अथात ्, सरकार को समाज के लए ऐसी नी तय का चयन करना चा हए
जो क लागत से कह ं अ धक लाभ दान करती ह , और सरकार को लाभ से अ धक लागत
वाल नी तय से बचना चा हए।”

छव ोत : डाई 2008

113
सामािजक लाभ को अ धकतम करने के लए दो मह वपूण पूव आव यकताएँ ह—
 य द पॉ लसी क इनपुट लागत इसके आउटपुट लाभ या रटन से अ धक हो तो नी त
को नह ं अपनाया जाना चा हए।
 नी त को अं तम कायवाह के प म चन
ु ते समय, नणय नमाता को उस नी त का
चयन करना चा हए जो इनपुट लागत क तुलना म अ धकतम लाभ दान कर।
इस तरह, एक तकसंगत नी त वह नी त है जो लागत क तुलना म अ धकतम लाभ/ रटन
दे ती है । थॉमस डाई के श द म, “एक नी त तकसंगत है जब िजन मू य का यागा गया
और जो मू य ा त हुए के बीच अंतर सकारा मक होता है और यह कसी भी अ य नी त
वक प से अ धक है ।”
यह मॉडल कुछ स धांत पर काम करता है िजनका नी त नमाता को पालन करना चा हए—
 नी त नमाता को सामािजक मू य , ाथ मकताओं का सह ान होना चा हए,
 नी त नमाता को व श ट सम या को हल करने के सभी संभा वत वक प को
जानना चा हए,
 नी त नमाता को येक कायवाह के संभा वत प रणाम क क पना करनी चा हए,
 नी त नमाता को येक नी त वक प के लागत-लाभ व लेषण का पता होना चा हए,
 नी त नमाता तकसंगत होना चा हए, जो मू य वर यता और समाज क माँग को
जानता हो और उसे सबसे भावी और कुशल वक प का चयन करना चा हए।

इसक वशेषताओं से यह प ट होता है क नी त नमाण एक तकसंगत या है िजसम


संभा वत नी त वक प, सं ाना मक और अ भकलना मक (क यूटेशनल) मता के बारे म
सभी सह जानकार शा मल होती है ता क सच
ू ना और लागत लाभ का व लेषण कया जा
सके और नी त नमाण म तकसंगतता क सु वधा मल सके।

4. कुल न मॉडल

इस मॉडल के अनुसार, लोक नी त अ भजात वग क ाथ मकताओं और मू य का प रणाम


है । यह अ भजात वग के हत को दशाता है और नी तय के मा यम से उनके ल य को
ा त करता है । थॉमस डाई बताते ह क "कुल न मॉडल से पता चलता है क लोग लोक
नी त के बारे म उदासीन और गलत प से सू चत होते ह, वा तव म अ भजात वग बड़े
पैमाने पर आमजन क तुलना म नी तगत न पर जनमत को आकार दे ते ह। इस कार,
लोक नी त वा तव म अ भजात वग क ाथ मकताएँ बन जाती है । लोक अ धकार और
शासक केवल अ भजात वग वारा तय क गई नी तय को पूरा करते ह। नी तयाँ अ भजात
वग से बड़े पैमाने पर नीचे क ओर बहती है और वे आमजन क माँग से उ प न नह ं होती
ह।” (डाई 2008)

114
छव ोत : डाई 2008

इस मॉडल म, लोक नी त नमाण का अ ययन अ भजा य स धांत के बंद ु से कया


गया है । अ भजात वग का स धांत बताता है क नणय लेने क शि त समाज म
शि तशाल समूह के हाथ म है । मो का, परे तो, मशेल ऐसे वचारक ह िज ह ने राजनी तक
स धांत के कुल न मॉडल को वक सत कया है । लोक नी त म, नणय लेने क यव था म
अ भजात वग के वच व को दखाने के लए अ भजा य वग का यह वचार वक सत कया
गया है । डाई के अनुसार, “लोक नी त कुल न मू य को दशाती है , कुल न वग क सेवा करती
है , और कुल न वग का एक उ पाद है ।” (डाई 2008)
थॉमस डाई ने अ भजात वग के स धांत को सं ेप म न न ल खत प म बताया—
1. “समाज उन लोग म वभािजत है िजनके पास शि त है और िजनके पास शि त नह ं
है । केवल यि तय क एक छोट सं या समाज के लए मू य का आवंटन करती है;
जनता नी त तय नह ं करती है ।
2. जो कुछ लोग जो शासक होते ह वे शा सत जनता म से नह ं होते ह। समाज के
ऊपर तर पर सामािजक आ थक प से वप नतापूण एक रे खा खींची जाती है ।
3. अ भजात वग के पद के लए गैर-कुल न लोग का आंदोलन, ि थरता बनाए रखने
और ां त से बचने के लए, धीमा और नरं तर होना चा हए। केवल गैर अ भजात
वग, िज ह ने मूल अ भजात वग क सवस म त को वीकार कया है , को शासन
मंडल म भत कया जा सकता है ।
4. कुल न सामािजक यव था के बु नयाद मू य और णाल के संर ण के आधार पर
एक आम सहम त साझा करते ह।
5. लोक नी त जनता क माँग को नह ं बि क कुल न वग के च लत मू य को दशाती
है । लोक नी त म प रवतन ां तकार के बजाय व ृ धशील होना चा हए।

115
6. स य कुल न उदासीन जनता से अपे ाकृत कम भा वत होते ह। कुल न आम
जनता को भा वत अ धक करते ह, और वे आप-जनता से कम भा वत होते ह”।
हालाँ क, कुल न स धांत का अथ यह नह ं है क अ भजात वग लोक नी त को आम लोग
के लए पूर तरह से तकूल बना दे ता है , बि क समाज के त अ भजा य वग क
िज मेदार को उजागर करता है ।
5. अ भव ृ धशील मॉडल
यह मॉडल राजनी तक वै ा नक डे वड े क
ु और चा स लंड लम
ू के काय से जड़
ु ा है ।
उ ह ने सबसे पहले इस मॉडल को नणय लेने के तकसंगत मॉडल क आलोचना के प म
वक सत कया। उ ह ने तक दया क नी त नमाताओं को एक शास नक णाल म
मौजूदा और ता वत नी तय के बारे म नणय लेते समय ज टल सामािजक माँग , समय
क कमी, ढाँचागत सीमाओं, व ीय बाधाओं जैसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है
(Anyebe 2017)
अ भव ृ धशील मॉडल एक सह तकसंगत नणय लेने क या क सीमाओं और
यथाथवाद बाधाओं क पहचान करता है और नी त नमाताओं को नणय लेने के लए
अ धक यापक और यावहा रक ि टकोण अपनाने म मदद करता है ।
इस मॉडल म, लघु अ भव ृ धशील प रवतन पर यान दया जाता है जो एक नी त का
नमाण करता है और नी त और यय पहलू म लागत लाभ व लेषण म भी प रवतन करता
है ।

6. समूह मॉडल
इस मॉडल के अनुसार, लोक नी त समूह संघष का प रणाम है । एंडरसन (1997) के अनस
ु ार,
“िजसे समूह क लोक नी त कहा जा सकता है , वह कसी भी समय म मौजूदा समूह के बीच
संघष से ा त कया गया संतुलन है , और यह एक ऐसे संतुलन का त न ध व करता है ,
िजसमे वरोधी गुट या समूह लगातार अपने प म नी त को लाने का यास करते ह। लोक
नी तयाँ समूह क ग त व धय को दशाती ह और यह मॉडल इस बात पर काश डालता है
क समाज के व भ न समूह म से येक लोक नी त को नी त नमाण तर पर अपने
लाभ के लए कैसे भा वत करता है”।

समूह सामा य हत पर बने होते ह और वे उसी के आधार पर व भ न हत समूह


बनाते ह। डे वड मैन के अनुसार, “एक च समूह एक साझा रवैया समूह है जो समाज म
अ य समूह पर कुछ दावे करता है; ऐसा समूह राजनी तक हो जाता है, य द यह सरकार के
कसी सं थान के मा यम से या पर जब यह दावा करता है ”। समूह के ह से के प म
यि त, राजनी त म मह वपूण अ भकता के प म काय करते ह। समूह यि तगत और
सरकार के बीच क कड़ी है । और, राजनी तक णाल इन समूह का बंधन करती है, समूह

116
का बंधन करके, सभी समूह संघष को संतु लत करने, तैयार करने और नी तय को लागू
करने के लए समायोजन नी तयाँ बनाती ह। ( कंगडन 2003)

छव ोत : डाई 2008

थॉमस डाई का उ लेख है क “समूह के स धांतकार के अनुसार, कसी भी समय लोक


नी त समूह संघष से ा त संतुलन है । यह संतुलन व भ न हत के समूह के सापे भाव
से नधा रत होता है । कसी भी हत समूह के सापे भाव म प रवतन के प रणाम व प
लोक नी त म प रवतन होने क आशा क जा सकती है ; नी त, भाव पाने वाले समूह
वारा वां छत दशा म आगे बढ़ती है और भाव खोने वाले समूह क इ छाओं से दरू होती
है । समूह का भाव उनक सं या, धन, संगठना मक शि त, नेत ृ व, नणय नमाताओं तक
पहुँच और आंत रक सामंज य से नधा रत होता है ।

7. सावज नक वक प मॉडल

यह लोक नी त नमाण का आ थक अ ययन है । यह बताता है क 'राजनी त' और 'बाजार


े ' म मतदाता, कर दाता, सरकार अ धकार , नजी मा लक, राजनी तक दल, हत समह
ू ,
के प म सभी अलग-अलग अ भकता ने एक ह तर के से यवहार करते ह और यि तगत
लाभ के अ धकतमकरण के स धांत आधार पर अपनी पसंद का चन
ु ाव करते ह।

यह स धांत बताता है क अलग-अलग यि त अलग-अलग यवहार नह ं करते ह;


अथात ् जब राजनी तक वक प क बात आती है , तो यि त अलग तर के से सोचगे और
बाजार े म अलग तर के से सोचगे। बाजार े म, राजनी त म भी, यि त अपने
पार प रक लाभ के लए एक साथ आते ह और, एक साथ आने से, वे नी तगत नणय को
भा वत करते ह और इस कार अपने वयं के क याण को भी बढ़ाते ह। ( ा ट और
फलाग 2004)

117
थॉमस डाई ने उपयु त प से न कष नकाला है क “लोग राजनी त और बाजार दोन
म अपने वाथ को आगे बढ़ाते ह, ले कन वाथ उ दे य के साथ वे सामू हक नणय लेने
के मा यम से पार प रक प से लाभ भी उठा सकते ह।”

8. यव था मॉडल

डे वड ई टन ने इस ि टकोण को वक सत कया है और लोक नी त वचन म इसका


यापक प से उपयोग कया जाता है ।

छव ो : कं गडन (2008)

लोक नी त को एक राजनी तक णाल के प म माना जाता है जो पयावरण से आने वाल


माँग का जवाब दे ती है । पयावरण म सामािजक, आ थक घटना और से टं स शा मल होती है
जो राजनी तक णाल के लए बाहर होती है । राजनी तक णाल म शास नक मशीनर
और ग त व धय क पर पर संबं धत णा लयाँ होती ह जो समाज पर लागू हो रहे मू य के
आ धका रक आवंटन के प म होती है। राजनी तक माहौल म माँग और समथन शा मल
होते ह। माँग मूल प से उन फैसल के लए दावे ह िजनसे लोग अपने यि तगत या समूह
हत और सामािजक मू य को संतु ट करना चाहते ह। नाग रक को राजनी तक यव था को
कर भग
ु तान, वोट डालने, कानन
ू का पालन करने के प म समथन दया जाता है ।

फ डबैक-लप
ू बाद म घ टत होने वाला भाव है जो पयावरण को बदल दे ता है और जब
नी त के प रणाम दखाई दे ने लगते ह तब यह माँग म प रव तत हो जाता है । नी तगत
आउटपट
ु नई माँग क ओर जाता है और यह एक च य या है ।

9. खेल स धांत

लोक नी त नमाण का खेल स धांत उन प रि थ तय म तकसंगत नणय का व लेषण


करने के बारे म है जहाँ दो या दो से अ धक तभा गय को नणय लेने होते ह और उन
नणय म से आने वाले वक प पूव लए गए नणय पर नभर करते ह।
118
खेल स धांत इस बारे म नह ं है क लोग कैसे अपने नणय कर रहे ह, बि क यह
बताती है क लोग को अपने नणय कैसे लेने चा हए, यह जानते हुए क उनके चन
ु े हुए
वक प व श ट प रणाम दगे और एक तकसंगत यि त के प म, लोग जानते ह क
प रणाम उनके चय नत वक प पर नभर करता है ।

उपरो त च चत, येक मॉडल व भ न आयाम से लोक नी त को समझने के लए


ासं गक और मह वपूण है । येक मॉडल के अपने फायदे और नुकसान ह। कुछ मॉडल
दस
ू र क तल
ु ना म कुछ ि थ त या घटनाओं को समझने के लए अ धक उपयु त हो सकते
ह। एक अ छा नी त मॉडल वैधता के बना राजनी तक यवहार के उ दे य व लेषण पर
आधा रत है जो एक पसंद दा सै धां तक प पात है ( ा ट और फलाग 2004)। लोक नी त
वचन म जाँच का ल य लचीला और समावेशी होना चा हए और सम याओं क बेहतर
समझ और मु द को सुलझाने म योगदान करने वाला होना चा हए।

लोक नी त क ासं गकता

लोक नी त उ दे यपूण, साथक और कायवाह उ मुख होती है । यह ल य के एक सेट को


ा त करने के लए एक अ छ तरह से योजनाब ध समि वत नी त नमाण का प रणाम है ।
इसम नी त नमाण, नी त काया वयन और नी त मू यांकन के साथ शु होने वाला एक पूव
प रभा षत ढाँचा है । चँ ू क नी तयाँ जनता के लए, और बड़े पैमाने पर समाज के लए बनाई
जाती ह, और इसी लए रा य नी तय के मा यम से कई चन
ु ौ तय को पार कर सकते ह और
नाग रक क बु नयाद माँग को पूरा कर सकते ह। अ छ नी तयाँ रा के सकारा मक
प रवतन और व ृ ध को बढ़ावा दे ती ह। जैसे-जैसे समय बदल रहा है , येक दे श हर मोच
पर अ धक से अ धक चन
ु ौ तय का सामना कर रहा है । ये सम याएँ ज टल और अ धक
गंभीर ह। रा य सुर ा चन
ु ौ तय के साथ-साथ, आज हमारे पास जनसं या, खा य
असुर ा, जल असरु ा, वा य सुर ा, बेरोजगार , गर बी, अ श ा आ द जैसे मानवीय
सुर ा के खतरे भी अ धक ह, ऐसे म लोक नी त क ासं गकता और अ धक मह वपूण हो
जाती है ।

लोक नी त समाज को बेहतर ढं ग से समझने म मदद करती है और यह नी तगत


व ान के वचन के लए वै ा नक समझ और मू य मानदं ड का एक संयोजन दान करता
है । यह कृ त व प बहुआयामी होती है और सामािजक, आ थक, राजनी तक पहलओ
ु ं के
बीच संबंध वक सत करती है । यह नाग रक को नी त के प रणाम का व लेषण करने,
सरकार के दशन का मू यांकन करने और लोक नी त नमाण म यि त, समह
ू क
मह वपण
ू भू मका पर काश डालती है ।

भारत म रा प त, धानमं ी, कै बनेट, कायपा लका, वधा यका, रा य सरकार, नीती


आयोग (त काल न योजना आयोग), नौकरशाह , थानीय शहर और ामीण शासी सं थाओं
119
आ द से समि वत शास नक मशीनर है , िजसके साथ-साथ ं टक, नी त
थक नयोजक,
व भ न अनुशासन से स बं धत श ा व , मी डया, लोग, हत समूह, नाग रक समाज,
अंतरा य संगठन, वाद- ववाद आ द नी तय का नमाण करते ह िज हे सरकार लागू करती
है ।

भारत म लोक नी त का सबसे मह वपूण उ दे य सामािजक-आ थक वकास है । वतं ता


के बाद से कई कृ ष, औ यो गक नी तयाँ, वा य, श ा, रोजगार नी तयाँ लागू क गई ह।
इन सभी का मु य उ दे य सामािजक याय और रा य अखंडता के साथ सामािजक-
आ थक वकास को ा त करना है ।

लोक नी त क समझ से हम अपने दे श को बेहतर तर के से जानने म मदद मलती है ,


यह हमार सम याओं को अ धक बार क से समझने म मदद करता है और हम लोक नी त
का पता लगाने के लए अ धक ग तशील और यथाथवाद ि टकोण से लैस करता है ।

संदभ सूची

 ए बे एडम ए (2017) एन ओवर यू ऑफ़ अ ोचेस टू टडी ऑफ़ पि लक पा लसी.


इंटरनेशनल जनल ऑफ़ पो ल टकल साइंस, वॉ यम
ू 4, जार हुआ 1, जनवर 2017,
PP 08-17.
 एंडरसन, जे. ई. (1997). पि लक पा लसी मे कंग: एन इं ोड शन. त ृ य सं करण,
बो टन: हॉगटन मि फ लन कंपनी.
 डाई, ट , आर. (2008). अंडर ट डंग पि लक पा लसी, बारहवाँ सं करण, अपर सैडल
रवर यू जस : ेि टस हॉल.
 कंगडन, जे, ड ल.ू (2003). एजडा, अ टरने ट ज, एंड पि लक पॉ लसीस, वतीय
सं करण, यूयोक: ल गमेन.
 ा ट, इ.एम., एंड फ़लाग, एस.आर. (2004). पि लक पॉ लसी : पॉ ल ट स,
ं टन डी.सी. : सी यू
एना ल सस, एंड अ टरने ट ज, वा शग ेस

120
सावज नक नी त : नमाण, काया वयन और मू यांकन

डॉ. दे वार ी रॉय चौधर


अनुवादक : स ृ ट

संरचना

 प रचय
 सावज नक नी त का अथ
 सावज नक नी त के ल ण
 नी त-च या है
 नी त नमाण को समझना
 नी त काया वयन
 नी त मू यांकन
 अ छ नी त क वशेषताएँ
 नी त च वारा सामना क जाने वाल चन
ु ौ तयाँ
 सावज नक नी त का मह व
 न कष
 संदभ-सच
ू ी

प रचय

लोक नी त का मह व और ासं गकता इस त य म न हत है क इसक उपि थ त और


काय े समाज के सभी पहलओ
ु ं से संबं धत ह। सरल प रभाषा म, नी त को स धांत या
नयम के समह
ू के प म व णत कया जाता है जो नणय का मागदशन करते ह और
तकसंगत उ दे य को ा त करते ह। यह एक ऐसी या है जो ल यो मख
ु है , यहाँ ल य
को सामािजक और आ थक आव यकताओं, सामािजक मू य , ाथ मकताओं के आधार पर
माँग के संदभ म प रभा षत कया गया है । नी त पव
ू कि पत प रणाम पर आधा रत होती है
और उ दे य को ा त करने के लए कारवाई क योजना बनाई जाती है ।

सावज नक नी त का अथ

हे रो ड को टज़ के अनस
ु ार, “काय के एक म के प म, सावज नक नी त को राजनी तक
बंधन, व ीय और शास नक तं के प म समझा जा सकता है जो प ट ल य तक
पहुँचने के लए यवि थत होते ह। नी त इकाइय के भीतर ववेक और पहल को ो सा हत
करने का एक साधन है ।”
121
रचड रोज के अनुसार, “सावज नक नी त अपने आप म एक नणय नह ं है , यह ग त व ध
का एक पा य म या पैटन है ”।

रॉबट आई टोन सावज नक नी त को “सरकार इकाइय का अपने पयावरण से संबंध” कहते


ह।

सावज नक नी त के ल ण

 लोक नी त ल यो मुखी होती है ।

सावज नक नी त उ दे यपूण है । इसे सामािजक और आ थक माँग के आधार पर उ दे य


को ा त करने के लए डज़ाइन कया गया है ।

 लोक नी त केवल एक नणय नह ं कारवाई का एक तर का है ।

सावज नक नी त केवल एक नणय नह ं है बि क यह कारवाई का एक तर का है िजसे


नणय के संयोजन के आधार पर डजाइन, कायाि वत कया जाता है ।

 सावज नक नी त एक रणनी तक और नै तक या का प रणाम है ।

सावज नक नी त को सामािजक और आ थक आव यकताओं को परू ा करने के लए डज़ाइन


और कायाि वत कया जाता है । सावज नक नी त म वै ा नक समझ के आधार पर और
सामािजक मू य और मानदं डके साथ संतुलन रखते हुए नणय लए जाते ह। यह
सामािजक याय, सभी के क याण और सतत वकास के लए रा य क तब धताओं को
कायम रखता है ।

 सावज नक नी त अ य धक ग तशील होती है ।

यह एक सतत ग त व ध है जो राजनी तक यव था क संरचना के भीतर होती है और बाहर


वातावरण सामािजक और राजनी तक यव था के प म काय करता है । यह ग तशील है
य क सावज नक नी त ि थर नह ं है और प रव तत वषय के साथ प रव तत होती है ।
जैस-े जैसे पयावरण तेजी से प रव तत हो रहा है, यह सावज नक नी त के लए पहले से कह ं
अ धक चन
ु ौ तयाँ पेश कर रहा है और सावज नक नी त भी इस या म अ धक यापक
और ग तशील हो रह है।

 सावज नक नी त एक ज टल या है ।

माँग , सामािजक ाथ मकताओं के साथ भ न- भ न वषय सावज नक नी त क परे खा को


भा वत कर रहे ह और ये आकां ाएँ, ज रत माँग के प म आ रह ह। सरकार के लए
येक माँग को
यान म रखना बहुत चन
ु ौतीपण
ू हो जाता है । ऐसे कई पहलू ह िज ह
सरकार को नी तयाँ बनाते समय यान म रखना चा हए। सामािजक, आ थक ासं गकता,
122
रा य अखंडता और सरु ा, व ीय बाधाएँ, बजट, बु नयाद ढाँचे क उपल धता, सूचना और
डेटा क वैधता आ द ह जो सावज नक नी त को कृ त म अ य धक ज टल बनाती ह।

 सावज नक नी त म व भ न घटक सि म लत ह।

सावज नक नी त व भ न संरचनाओं पयावरण, णाल और त या तं से बनी होती है ।


इसम पयावरण सि म लत है जो स टम को माँग और समथन दान करता है । यह
वातावरण मल
ू प से सामािजक और आ थक वातावरण है । यव था राजनी तक यव था
है । माँग यि तय और समह
ू क आव यकताएँ ह, उनक आव यकताएँ जो वे राजनी तक
यव था म उपि थत सरकार को दान करते ह और समथन वोट के प म, वचारधारा
और राजनी तक दल आ द का समथन करते ह।

राजनी तक णाल वह णाल है िजसम माँग को संसा धत कया जाता है और नी तय


म प रव तत कया जाता है और फर पयावरण पर ह लागू कया जाता है ।

फ डबैक लप
ू मू यांकन क गई समी ाओं को पयावरण को भेजता है जो नी त के
प रणाम, लोग क धारणाओं को भा वत करता है और नई माँग उ प न करता है ।

 सावज नक नी त व भ न हतधारक के म य अ छ तरह से समि वत संबंध का एक


उ पाद है ।

कायपा लका, वधा यका, यायपा लका, नौकरशाह , ं


थक टक, नाग रक समाज, लोग ,
मी डया, सभी औपचा रक और अनौपचा रक संरचनाओं आ द से शु होकर कई हतधारक
भाग लेते ह। सावज नक नी त बनाने म येक एजसी, अ भनेता क मह वपूण भू मका होती
है ।

 सावज नक नी त दशा- नदश पर आधा रत होती है ।

यह उस नी त के लागू होने के आधार पर मुख नी त दशा- नदश नधा रत करता है । नी त


दशा- नदश नी त नमाण और नी त के कामकाज के स धांत के बारे म सू चत करते ह।

 सावज नक नी त भ व य क ओर नद शत होती है ।

सावज नक नी त उ दे य पर आधा रत होती है । यह जन हत पर आधा रत है । ये उ दे य


सामािजक याय, सतत वकास और आ थक वकास को ा त करने का यास करते ह जो
रा को आगे बढ़ाता है । नी तयाँ दे श का भ व य बनाती ह। नी तयाँ िजतनी सु ढ़ और
सम ह गी, दे श के लए उतना ह अ छा होगा।

नी त नमाण भी लचीला है
य क भ व य म बहुत सार अ नि चतताएँ ह, नी त
नमाण भ व य क आव यकताओं के अनुसार अपना वर और पा य म बदलता है ।

123
 सावज नक नी त सव म उपल ध व धय का उपयोग करती है ।

सावज नक नी त सावज नक नी त तैयार करने के लए मा ा मक डेटा और गुणा मक डेटा


दोन का उपयोग करती है । नी त को भावी और कुशल बनाने के लए वै ा नक डेटा और
मानक मू य पर वचार कया जाता है और उपल ध बु नयाद ढाँचे का सव म संभव तर के
से उपयोग कया जाता है ।

नी त-च या है ?

नी त च बताता है क नी त नमाण एक सतत या है और इसम कई चरण सि म लत


ह। थॉमस डाई ने उ लेख कया क “नी त नमाण एक एकल घटना के बजाय एक सतत
या है ; व भ न अ भनेता व भ न चरण म भावशाल होते ह और पछले नणय
भ व य के नणय के लए एजडा नधा रत करते ह। (डाई 2008)

सावज नक नी त दो तरह से आदश है —

ए) एक नदशा मक मॉडल के प म यह बताता है क नी त नमाता को आदश प से


योजनाब ध और यवि थत तर के से कैसे काम करना चा हए। यह इस वचार पर
आधा रत है क एक सावज नक नी त या होनी चा हए।

बी) वणना मक मॉडल बताता है क एक सावज नक नी त कैसे काम कर रह है, नी त


बनाने क या म नणय कैसे लए जाते ह। यह ‘यह या है ’ के वचार पर
आधा रत है ।

सामा य नी त च

1. मु दे क पहचान और एजडा से टंग


इसका ता पय उन सम याओं क पहचान करना है िजनके लए सरकार समथन और नी त
पर यान दे ने क आव यकता है , यह सम या क कृ त को भी प रभा षत करता है और
मु द को ाथ मकता दे ता है ।

124
2. नी त नमाण
यह नी त नमाण का औपचा रक चरण है । इसम उ दे य क थापना, इनपुट लागत क
पहचान, कारवाई के व भ न संभा वत तर क क खोज, नी तगत साधन का चयन,
प रणाम को तुत करना और नणय के प म उपयु त वक प का चयन करना शा मल
है ।
3. नी त वैधता
इसम यह सु नि चत करना शा मल है क जो नणय उपयु त वक प के प म लया गया
है उसका समथन और कानूनी अनुमोदन होना चा हए। समथन म वधायी समथन, पूण
शासन का समथन और हत समूह क सहम त भी शा मल थी।
4. नी त काया वयन
यह नी त च का बहुत मह वपूण चरण है िजसम व भ न शास नक इकाइय को कत य
का नवहन, नी तय के सचु ा प से अ ध नय मत करने के लए उ चत ढाँचागत यव था
करना और नणय लेना शा मल है ।
5. नी त मू यांकन
सम नी त च का अं तम और सबसे मह वपण
ू चरण नी त मू यांकन है िजसम नी त के
प रणाम का मू यांकन कया जाता है , नी त क सफलता, वां छत प रणाम क उपलि ध
और नी त के भाव के बारे म आकलन कया जाता है ।
6. नी त रखरखाव, उ रा धकार, या समाि त

राजनी तक यव था, सामािजक ज रत , बजट तब धताओं आ द के आधार पर च का


पालन कया जाता है और इन चीज के आधार पर, नई नी तयाँ शु क जाती ह, कई चल
रह नी तय को जार रखा जाता है , बंद कया जाता है या वतमान आव यकताओं के
अनुसार संशो धत कया जाता है ।

नी त नमाण को समझना

कंगडन के अनुसार, “नी त के नमाण म नी त नमाता सि म लत होते ह जो एजडा के


ह से के प म उठाई गई सम याओं को ठ क करने के तर क पर चचा और सुझाव दे ते ह।
भावी नी त नमाण म व लेषण सि म लत होता है जो सबसे भावी नी तय और
राजनी तक ा धकरण क पहचान करता है ।

नी त नमाण म सामािजक आव यकताओं को ा त करने के लए एक योजना, एक


व ध वक सत करना सि म लत है ।

125
इसम सि म लत ह—
 अनुसंधान म जानकार एक करना और संसा धत करना सि म लत है ,
 समी ा का अथ है संभा वत वक प क खोज करना,
 ेपण येक वैकि पक और संभा वत प रणाम क यवहायता नधा रत करता है,
 चयन म कारवाई के संभा वत पा य म के प म उपयु त वक प को प र कृत
करना और चन
ु ना सि म लत है ।

फॉमले
ू शन मॉडल दो कार के होते ह—

1. तकसंगत योजना पर आधा रत मॉडल जो यवि थत और अ छ तरह से संर चत है ।

2. मॉडल आधा रत त या जो अ धक सहज और अ नयोिजत है । (नोएफ़ेल एट अल


2007)

नी त नमाण म सि म लत अ भनेता

नी त नमाण के चरण म कई अ भनेता सि म लत होते ह। सरकार के अंदर, कायपा लका


होती है जो सम याओं, ल य क पहचान कर रह है , ाथ मकता दे रह है और नी त
वक प बना रह है ।

नौकरशाह इस तर पर योजना और ताव वक सत करती है ।

वधा यका नी त पर चचा करती है और नी त मामले से संबं धत उ र और प ट करण


माँगती है और वाद- वमश, वचार- वमश के प चात ्, नी तय को सदन म वोट के लए और
रा प त क अं तम मंजूर के लए रखा जाता है । सारा वचार ता वत नी त को समाज के
लए ासं गक बनाने का है ।

सरकार के बाहर, ं
थक टक, नी त नेटवक, हत समह
ू , नाग रक समाज, नाग रक
संगठन, नजी संगठन, अंतरा य संगठन ह जो नी त नमाण को भा वत करते ह।

व भ न अ भनेता और उनक व श ट भू मकाएँ

अ भनेता भू मका

राजनेता शि त
नौकरशाह सं था
हत समह
ू तनध व
टे नो े ट ान
दाताओं भाव
ोत : वॉ ट और गलसन 1994

126
फॉमले
ू शन दशा- नदश—

 फॉमले
ू शन के लए कई अ भनेताओं और एज सय क स य भागीदार क
आव यकता होती है।

 न पण सम या क प ट प रभाषा और संल न कायसूची पर आधा रत होना


चा हए।

 अं तम नी त ताव मसौदे का चयन करने से पहले न पण और सुधार होता है ।

 सू ीकरण क या का कभी भी कोई तट थ भाव नह ं पड़ता है ।

 कई ज टल सम याओं के उपचार के लए एक अ धक यापक और सम नी त


ताव तैयार करने का यास कया जाता है ।

 अ धक यावहा रक और यथाथवाद नी त ताव के लए लागत लाभ व लेषण का


अनुमान लगाया जाता है। हालाँ क, व ीय तब धताओं को पूरा करने के साथ सभी
का क याण पहल ाथ मकता है ।

नी त नमाण के व भ न तर के—
 नय मत न पण का अथ है समान नी त ताव तैयार करना।
 रचना मक सू ीकरण म एक नई अंत ि ट के साथ, एक अभूतपूव तर के से सम या
का सामना करना सि म लत है ।
 अनु प सू ीकरण, वतमान, नई सम या के उपचार के लए पछले अनुभव और
नी त प रणाम , पछल सम याओं का उपयोग करता है ।
 नी त नमाता को वैधता ा त करने के बारे म सोचना चा हए। (हाउलेट और रमेश
1995)

यहाँ यह बताना मह वपूण है क येक नी त नमाण म ये भ न– भ न तर के सि म लत


होते ह।
भारत जैसे लोकतां क दे श म कुछ ऐसे तर के ह िजनसे शासन को सामािजक ज रत
और सम याओं से अवगत कराया जा सकता है । संसद सद य (एमपी) और वधान सभा
सद य (एमएलए) के प म संसद और अपने संबं धत रा य वधानसभाओं म नवा चत
जन त न ध सम याएँ, मु दे उठाते ह और उनके लए कारवाई चाहते ह। ये मु दे सरकार
क वफलता या अपया त नी त या कसी नए मु दे आ द से भ न होते ह। फर, कई हत
समूह, दबाव समह
ू भी सरकार के नणय लेने को भा वत करते ह। नाग रक समाज संगठन,
मी डया, अनुसंधान समूह भी या म स य भागीदार ह और सम याओं और चंता के

127
े पर सरकार का यान आक षत करते ह या भा वत करते ह। सरकार खद
ु भी
सामािजक ज रत पर यान दे ती है और उसके अनुसार कारवाई करती है ।
इसके बाद एक बार सम या क पहचान हो जाने के बाद एजडा तय कया जाता है । यहाँ
तीन मह वपूण कारक पूर या को भा वत करते ह।

 ल य और उ दे य को इस तरह यवि थत कया जाना चा हए क ये नी त के


सम सेट को उ प न कर। उदाहरण के लए नर रता को समा त करने के लए
यह समझना आव यक है क नर रता को समा त करने के लए या करना चा हए,
इसके मख
ु कारण या ह? उसके आधार पर नर रता क सम या से नपटने के
लए एक यापक नी त तैयार क जानी चा हए और अ य नी तय जैसे गर बी
उ मल
ू न और म या न भोजन योजनाओं से भी जोड़ा जाना चा हए। ऐसा इस लए
कया जाता है य क नर रता एक सम या नह ं है बि क यह गर बी, बेरोजगार ,
कूल छोड़ने वाले अनप
ु ात, कूल म बा लकाओं के नामांकन, वा य मानक आ द
से जड़
ु ी हुई है । ताव भी द घका लक और अ पका लक अनम
ु ान पर आधा रत होने
चा हए।

 दस
ू रा कारक नी त को लागू करने के लए आव यक वैकि पक संभा वत रणनी तय
को वक सत करने से संबं धत है । जैसे, य लाभ ह तांतरण या सि सडी,
लाभा थय को सामान और सेवाएँ दान करने के व भ न तर क के बारे म नणय
लेना। लाभाथ क सह पहचान करने और लाभा थय क सह जानकार एक करने
के लए एक रणनी त भी वक सत क जाती है । सह डेटा नी त ताव को अ धक
यथाथवाद और ा त करने यो य बनाने म मदद करता है ।

 तीसरे कारक म उस तर के का चयन करना शा मल है िजसके मा यम से नी त लागू


क जाएगी। उदाहरण के लए, नई सं थागत से टंग था पत करना या मौजूदा
सेटअप के साथ काम करना। जैसे गर ब लोग को आय सज
ृ न म मदद करने के लए
एक कृत ामीण वकास काय म (आईआरडीपी) क थापना क गई थी, गभाव था
और मात ृ व सु वधाएँ, व थ भोजन, ाथ मक वा य दे खभाल, ट काकरण,
ाथ मक श ा आद दान करने के लए एक कृत बाल वकास योजना
(आईसीडीएस) के तहत आँगनवाड़ी क थापना क गई थी। गर ब और कुपो षत
लाभा थय को 6 साल से कम उ के ब चे। इस चरण म ह येक शास नक
इकाई क सभी भू मकाओं और काय का प ट प से नधारण कया जाता है ।

नी त नमाण प ट प से उ दे य , रणनी तय और उपकरण के तं को प ट करता है ।


यह मह वपूण चरण है य क यह बु नयाद आधारभूत संरचना और पूर नी त के समथन
क ओर जाता है , इस चरण के मा यम से एक सस
ु ंगत और यथाथवाद नी त को आव यक
आधार मलता है , यह वह चरण है जो सभी एज सय के बीच एक कृत तर के से बेहतर
128
सम वय क ओर जाता है । नी त बनाने के लए वशेष ान और कौशल क आव यकता
होती है िजसके लए सरकार गैर-सरकार एज सय के साथ भी काम करती है । रणनी त और
अ ध नयमन के बेहतर वक प के लए, मंच को अ धक भावशाल और ग तशील बनाने के
लए व भ न रा त के बीच बहु-साझेदार क जाती है ।

नी त काया वयन

थॉमस डाई के अनुसार, “नी त काया वयन ल य क से टंग और उ ह ा त करने के लए


तैयार कए गए काय के बीच बातचीत क एक या है । यह नी तय और योजनाओं को
व श ट काय म और प रयोजनाओं म बदलने क एक ग तशील या है ।”

नी त काया वयन के ि टकोण


 या मक/ बंधक य ि टकोण : यह ि टकोण नी तय के बंधन और काया वयन के
लए उपयु त याओं, तकनीक को था पत करता है ।
 रचना मक ि टकोण : इसम प रणाम ा त करने के लए सबसे उपयु त शास नक
प का चयन करना शा मल है ।
 राजनी तक ि टकोण : राजनी तक ि टकोण उन चन
ु ौ तय को समझता है िजनका
सामना एक नी त पयावरण या राजनी तक यव था के भीतर कर सकती है और इसके
समाधान क तलाश करती है ।
 यवहार ि टकोण : यह ि टकोण सवस म त बनाता है और हतधारक व लेषण,
संगठना मक वकास प ध त आ द के मा यम से कई हतधारक के बीच पर पर वरोधी
हत को समा त करके वीकायता बढ़ाता है । (हाउलेट और रमेश 1995)

संपूण नी त नमाण म यह एक बहुत ह मह वपूण चरण है । नी त काया वयन चरण क


ासं गकता इस कार है —

 सूचना : यह नाग रक को नी त के बारे म जाग क करती है ।

 लोभन : लोग और सरकार दोन को नया ि टकोण अपनाने म मदद कर।

 वतन : कानन
ू ी प व ता के तहत लोग के अनप
ु ालन क तलाश कर।

 लाभ : उन लोग को लाभ दान करता है जो अपने राजनी तक यवहार को बदलते


ह और नी त को लागू करने क अनुम त दे ते ह और नी त के अनुपालन क पेशकश
करते ह। (एंडरसन 1997)

यह सु नि चत करने क आव यकता है क नी तय को उ चत लचीलापन और पया त


वाय ता ा त हो ता क उ ह ठ क से लागू कया जा सके, काया वयन को भी इसके
स यापन के लए पया त शि त क आव यकता है । आरोपण क भावशीलता और द ता

129
काफ हद तक उ चत नी त डजाइन पर नभर करती है । हालाँ क, कई बार नी तय , जो लागू
क जाती ह, आव यक प रणाम ा त नह ं करती ह।

ऐसे कई कारण ह िजनक वजह से एक लागू नी त असफल हो सकती है ।

नी त वफलता

नी त वफलता मूल प से एक आरोपण अंतर है जो नी त और काया वयन के बीच बनता


है ।

नी त वफलता दो कार क होती है —

ए) गैर-काया वयन नी त वफलता वह है जहाँ नी त को अ ध नय मत नह ं कया गया है ,


जैसा क कुछ कारण से व णत कया गया था।
बी) असफल काया वयन तब होता है जब कोई नी त ठ क से लागू क जाती है , ले कन
बाहर कारक नी त का अनप
ु ालन नह ं कर रहे ह।
 तकनीक वशेषताओं क ज टलता
मानव यवहार, या, मू य , परं पराओं और ज टल तकनीक वशेषताओं के आधार पर
जमीनी वा त वकताएँ पूर तरह से अलग ह और नी त को इसके उ मुखीकरण म बहुत
अ धक तकनीक बनाती ह और इस कार समाज म ऐसी नी त को लागू करना बेहद
मुि कल हो जाता है ।

 एका धक ल य उ दे य
चँ ू क नी तयाँ ज टल सम याओं का समाधान कर रह ह, अ सर ये नी तयाँ बहु ल यो मुख
होती ह। ले कन यह ताकत बाधा बन सकती है य क ल य क बहुलता नी त को समझने
म क ठन और अ ाि त यो य बनाती है ।

 अ प टता और अ प ट नी त डजाइन
उपयु त बंद ु के समान, सम याओं और उनके संबं धत ल य का ज टल अंतसबंध नी त को
अ य धक अ प ट और दशा कम बना सकता है ।

● बेजोड़ ाथ मकताएँ

नी त के मा यम से द जाने वाल व तुएँ और सेवाएँ थानीय ाथ मकताओं से मेल नह ं


खातीं।

 नी त डजाइन और उ दे य से असहम त
जब नी त लागू क जाती है , तो कई बार यह दे खा गया है क काया वयन नी त के उ दे य
के अनु प नह ं हो रहा है ।

130
 उ चत बु नयाद ढाँचे का अभाव, गलत डेटा, व ीय बाधाएँ, वशेष ता क कमी, समय
सीमा आ द नी त के सफल काया वयन के लए शास नक बाधाओं के प म काय
करते ह।
नी त काया वयन क सफलता ल य क एक अ छ थापना, उ चत आवंटन और संसाधन
के इ टतम उपयोग और वधायी वैधता ा त करने और नी त के लए लोग क वीकृ त
पर नभर करती है ।

नी त मू यांकन

थॉमस डाई का उ लेख है “नी त के भाव क जाँच के लए नी त मू यांकन कया जाता है ।


नी त मू यांकन हम मू यांकन काय म , प रयोजनाओं और रणनी तय के लए दशा दान
करता है ।” (डाई 2008)

सीडीसी दशा- नदश के अनस


ु ार, “नी त मू यांकन कसी नी त क साम ी, काया वयन या
भाव क जाँच करने के लए मू यांकन स धांत और व धय को लागू करता है । यह
नी तगत ह त ेप , काया वयन और याओं क भावशीलता क यवि थत प से जाँच
करने के लए अनस
ु ंधान व धय क एक ख
ंृ ला का उपयोग करता है, ता क वभ न
हतधारक क सामािजक और आ थक ि थ तय म सध
ु ार करके एक अ छ नी त ा त क
जा सके।” (सीडीसी नी त ी फं ग)

यह एक ग त व ध है जो नी त के तीन पहलओ
ु ं को समझने म मदद करती है । ये—

 तभा,

 यो यता, और

 उपयो गता

 ाउनसन एट अल (2009) के अनुसार “मू यांकन नी त या के येक चरण का


एक अ भ न अंग है । आंत रक प से, मू यांकन तीन चरण म होता है िजसम
येक चरण नी त या के एक अलग चरण पर क त होता है । येक कार का
मू यांकन अ य कार के मू यांकन (साम ी, काया वयन और भाव) क योजना
और या या के लए बहुमू य जानकार दान कर सकता है । ये चरण ह—

 नी त साम ी का मू यांकन : ल य क अ भ यि त और इसके काया वयन के लए


तैयार क गई परे खा पर क त है । नी त डजाइन के संदभ को समझने के लए
मू यांकन कया जाता है , यह िजन बु नयाद मु द से नपट रहा है , ासं गकता,
साम ी क प टता और काया वयन ढाँचे को समझने के लए कया जाता है ।

131
छव ोत: ाउनसन एट अल 2009

 नी त काया वयन का मू यांकन : नी त काया वयन के मू यांकन पर यान क त


कया जाता है जैसा क इसे डजाइन कया गया था। नी त क ताकत और कमजोर
को समझने के लए यह मह वपूण है, नी त का सामना करना पड़ा बाधाओं और
नी तय और व भ न वक प और उनके घटक क तुलना करने म मदद करता है ।

 नी त भाव का मू यांकन : सबसे मह वपूण चरण जहाँ सम प से नी त और


उसके भाव का मू यांकन यह दे खने के लए कया जाता है क इसने वह हा सल
कया है जो उसका इरादा है या नह ।ं यह लोग और अ य एज सय क धारणा को
समझने म मदद करता है । यह येक अ भनेता के दशन के बारे म न कष
नकालने म भी मदद करता है । नी त भाव मू यांकन व भ न नी त प रणाम क
तल
ु ना करने म मदद करता है और भ व य के नणय के लए नी त नमाता क
मदद करता है ।

इसी कार, ज टलता से बचने के लए नी त मू यांकन को नी त च के अं तम चरण म


सम प से माना जाता है । ले कन यह नी त च का सबसे मह वपूण चरण बना रहा और
नी त मू यांकन के बना, पूरा नी त च अधरू ा और अ भावी रहता है ।

डे नयल लनर ने मू यांकन चरण को तीन गुना या के प म अ भ य त कया है ।

ए) या मू यांकन : नी त नी त दशा- नदश के आधार पर लागू क जाती है या नह ं।


यह दो मापदं ड को यान म रखता है —ल य े और व श ट ल य समूह। नी त के
प रणाम का भी व लेषण कया जाता है ।

बी) भाव मू यांकन : सकारा मक और नकारा मक दोन भाव का मू यांकन कया जाता
है । न पादन के बाद जो प रवतन हुए, उ ह भी जाँच के लए माना जाता है ।

ग) यापक मू यांकन : यह या मॉडल और भाव मू यांकन मॉडल का म ण है ।


दोन सकारा मक बंदओ
ु ं को समझने के लए संयु त ह, क मयाँ, और सध
ु ार लागू कए
जा सकते ह। ( ाउनसन एट अल 2009)

एक सम सावज नक नी त के ि टकोण से, जैसा क ऊपर उ लेख कया गया है, नी त


मू यांकन को सम ता म माना जाता है और यापक मू यांकन को अ यास के लए सबसे
अ धक माना जाता है और इस कार उपयोगी होता है ।
132
व भ न एज सयाँ और नी त मू यांकन म उनक भू मका

 शास नक : शास नक दशन और बजट णाल के मू यांकन से संबं धत।

 या यक : या यक समी ा और या यक ववेक सि म लत है ।

 राजनी तक : नी त उप णाल के साथ आम सहम त और परामश बनाना और जनता


के भीतर समथन आधार बनाना सि म लत है ।

न न ल खत कारण नी त मू यांकन क उपयो गता क या या करते ह—

 नी त वकास क पूर या का द तावेजीकरण

 लागू क गई नी त के प रणाम को प ट प से दशाता है ।

 नाग रक को नी त प रणाम के बारे म जाग क करता है और सरकार को सू चत भी


करता है ।

 नाग रक , सरकार और अ य तभा गय को यावहा रक प से नणय लेने म मदद


करता है और अनम
ु त दे ता है ।

 द तावेजीकरण या के मा यम से, यह नी त नमाण के संबंध म अ धक सू चत


वक प बनाने म मदद करता है ।

 चल रह नी तय का अनुपालन बनाता है और समथन के प म काय करता है ।

 भ व य क नी तय के लए मदद।

 सभी हतधारक को उनके कत य के त जवाबदे ह बनाता है ।

 वश ट दशन का मू यांकन करने म मदद करता है और इस कार सीखने और


सुधार करने का अवसर दान करता है ।

 भ व य क नी त नमाण या के लए एक दशा नधा रत करता है ।

 नी त को भावी बनाने के लए अपे त प रणाम और अ या शत डेटा, क मय का


व लेषण कया जाता है ।

 नी त क ताकत और कमजो रय को समझने म मदद करना और सुधार के लए


जगह बनाना।

नी त मू यांकन म कुछ चन
ु ौ तयाँ ह—

 व ीय और अ य बु नयाद ढाँचे क सीमा नी त मू यांकन म बाधा डाल सकती है ।

 नी त मू यांकन का समथन करने के लए पु ता सबूत क कमी।

133
 नी त मू यांकन व धय का अभाव।

 नी त मू यांकन या पर संगठना मक और बाहर कारक का दबाव।

 नी त काया वयन पर “ नयं ण” का अभाव।

 डेटा क कमी और मू यांकन के लए उ चत वशेष ता क कमी।

 उ चत उपाय का अभाव।

नी त मू यांकन अपने आप म एक या है । यह नमाण और काया वयन चरण म द ता


क सु वधा दान करता है । योजना से शु होकर नी त क भावीता के व लेषण तक,
मू यांकन एक बहुत ह मह वपूण भू मका नभाता है और ठोस नी त नी त च डजाइन के
भीतर बाक दो चरण के भावी उपयोग के साथ-साथ व न नी त मू यांकन पर नभर
करती है ।

अ छ नी त क वशेषताएँ

 लोक नी त क या एक पूरक और पर पर संबं धत या है । या के सभी


चरण अलग-अलग घटना नह ं ह, ये चरण एक-दस
ू रे क ओर ले जा रहे ह और एक
चरण के सफल समापन से अगले चरण क सफल शु आत होती है और यह कारवाई
का एक उ चत सफल सम पा य म भी सु नि चत करता है ।

 एक अ छ नी त ान आधा रत नी त होती है जो वै ा नक सा य पर आधा रत होती


है । इसका मतलब है क नी त का डजाइन सह और त य आधा रत जानकार पर
होना चा हए, नी तगत नणय सामािजक माँग , व ीय तब धताओं को यान म
रखते हुए तैयार कया जाना चा हए न क राजनी तक पव
ू ा ह, यि तगत व वास
और व वास आ द पर।

 एक नी त एक अ छ नी त है जो अ य धक सहभागी, समावेशी और लोग को


शा मल करती है । नी त म िजतना अ धक चचा, वचार-मंथन, व भ न हतधारक ,
लोग क अ धक भागीदार शा मल होगी, उतना ह अ धक नी त डजाइन सम या को
समझने और संभा वत वक प दे खने म स म होगा। साथ ह , समावे शता और
अ धक थानीय भागीदार सावज नक नी त को अ धक भावी और कुशल बनाती है ।

 एक अ छ नी त समाज के त एक मजबूत और तब ध नेत ृ व को दशाती है ।


एक अ छ नी त नी तय म प रव तत होने वाले नाग रक क आकां ाओं और
ज रत को दशाती है ।

 मक और व ृ धशील प रवतन एक अ छ व थ नी त के अ छे संकेतक ह।

134
 नी त क लोकतां क कृ त, नी त नमाण के दौरान उ चत परामश, पारद शता, नी त
से संबं धत जानकार के प म खल
ु ापन लोग और अ य हतधारक के साथ साझा
कया जाता है , ये एक अ छ नी त के मुख त व ह।

 एक अ छ नी त सं वधान और सामािजक सां कृ तक यव था के अनु प होनी


चा हए।

 नी तयाँ समावेशी होनी चा हए। यह सभी ि टकोण, सम या और समाधान को


संबो धत करने क वभ न ान णाल को लाना चा हए, थानीय लोग को परू
नी त नमाण या का ह सा होना चा हए।

 एक नी त अ छ है अगर इसे सभी के वारा समझा जा सकता है । यह प ट और


सामािजक और आ थक ज रत पर आधा रत होना चा हए। यह बड़े पैमाने पर समाज
के लए, सभी के क याण के लए फायदे मंद होना चा हए।

 नी त क कृ त म बार-बार प रवतन कए बना नी त ि थर होनी चा हए। इस लए


नी त बनाते और लागू करते समय सावधानीपव
ू क अ ययन कया जाना चा हए।

 नी त डजाइन के त ईमानदार ि टकोण होना चा हए। इसे रा क नै तकता,


दाश नक मू य का पालन करना चा हए और रा क अखंडता और सुर ा को
अ ु ण रखना चा हए।

 एक अ छ नी त वह है िजसे ा त कया जा सकता है । एक नी त के लए


यथाथवाद ल य मह वपूण ह। उ दे य केवल आदश कथन नह ं होना चा हए िजसे
कभी ा त नह ं कया जा सकता है । बि क अ धक यथाथवाद ल य आधा रत नी त
क क पना करना समाज के लए अ छा है ।

 नी तयाँ भ व य और उ दे य उ मख
ु होनी चा हए। और साझा ल य और मू य के
इद- गद पर पर जड़
ु े होने चा हए।

नी त च के सामने आने वाल चन


ु ौ तयाँ

 सामािजक और आ थक मोच पर सम याओं क ज टलता और अंत न हत तनाव के


कारण, नी त च को सम या के समाधान म क ठनाई का सामना करना पड़ सकता
है ।

 अंत न हत बहुआयामी नी त च म अ त यापी और अंत वरोध उ प न कर सकता है ।

 सामािजक ल य को ा त करने के लए कृ त और रणनी तय पर समथन और


आम सहम त का वरोध कया जा सकता है ।

135
 मू य वर यताएँ, राजनी तक और सामािजक हत वभ न हतधारक और नणय
नमाताओं को भा वत कर रहे ह जो अ सर अ धक संघष का कारण बन सकते ह।

 सम या क प रभाषा केवल वै ा नक व लेषण या सामािजक प से नमाण पर


आधा रत नह ं हो सकती है । यह दोन का संतल
ु न होना चा हए। हालाँ क, पर पर
वरोधी हत के साथ वा त वक व व शास नक यव था म संतुलन बनाना मुि कल
हो जाता है ।

 एक मह वपण
ू चन
ु ौती म उ दे य और यि तपरक वभाजन। वग करण के संदभ म
व तु- न ठता क भावना है , सम या से जड़
ु ी या या है जब क समान सम याओं क
या या मू य नणय और वर यताओं के आधार पर अलग-अलग तर के से क जा
सकती है ।

 नी त सम या कई सं थाओं को भा वत कर सकती है य क नी तयाँ अ यो या त


ह।

 कसी सम या को हल करने के कई तर के हो सकते ह। हालाँ क, यह सम या को


और अ धक बढ़ा दे ता है य क सम या और कई समाधान के बीच वाह के कारण
सम या का समाधान नह ं होता है ।

सावज नक नी त का मह व

 लोक नी त एक व श ट अ ययन है जो लोक शासन को अ धक भावी बनाता है ।

 सावज नक नी त सरकार का आधार है । सावज नक नी त को समझने से हम अपनी


सरकार और उनके कत य , िज मेदा रय और उनक चन
ु ौ तय को बेहतर ढं ग से
समझने म मदद मलती है ।

 सावज नक नी त सेवाएँ दान करने और सामािजक याय लाने, समाज के कमजोर


वग क र ा करने और समाज के लए क याण ा त करने का एक तं है ।

 लोकनी त एक व थ और सु व जनमत बनाने म सहायता करती है ।

 सावज नक नी त आ थक वकास, सतत वकास और सामािजक प रवतन का एक


साधन है ।

 सावज नक नी त समाज के भीतर एक ि थर शि त के प म काय करती है य क


यह आवास और सह- वक प का वातावरण बनाती है । यह समाज म ि थरता और
यव था लाता है ।

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न कष

सं ेप म, भारत जैसे लोकतां क दे श के लए तकसंगत, ल यो मुखी लोक नी त का वकास


अ यंत मह वपूण है । संपूण नी त च उ चत सम वय और संचार के साथ घो षत उ दे य
को ा त करने के लए काम करता है । य य प, इसके रा ते म कई बाधाएँ ह िजनका
सामना करना पड़ता है। चन
ु ौती उन बाधाओं को दरू करने और समाज क बेहतर के लए
भावी और सकारा मक नी त बनाने क है । सावज नक नी त सरकार को समाज के वकास
और सामािजक और आ थक उ थान के ल य म मदद करती है । यह अपने नाग रक के त
सरकार क समानता, भावशीलता और जवाबदे ह सु नि चत करता है ।

संदभ सूची

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