You are on page 1of 22

PAPER-IV

Health Psychology
MA previous
AKANKSHA DUBEY
(Assistant Professor at Pahalwan Gurudeen Group of College
Panari, lalitpur)

2018

SANJAY SERIES
Ques-1 स्वास्थ्य मनोविज्ञान परिभावित कीविये ?

Ans- Health Psychology (स्वास्थ्य मनोविज्ञान)-

Ques-2 संतुवित आहाि क्या है इसको प्रभावित किने िािे किक क्या-क्या है ?

Ans- Balanced diet (संतुवित आहाि)-


प्रभावित किने िािे किक-
Ques-3 स्वास्थ्य पि धूम्रपान का प्रभाि ?

Ans-
Ques-4 अनासक्ति का प्रत्यय अथिा इसकी अिधािणा स्पष्ट कीविये ?

Ans-िाग औि द्वे ि से असंपृि हो िाना ही अनासक्ति है । महात्मा गााँ धी ने गीता के श्लोकों का सिि
अनुिाद किके अनासक्ति योग का नाम वदया। कततव्य कमत किते समय वनष्पृह भाि में चिे िाना ही
अनासि भाि है । बुद्ध ने इसे 'उपेक्षा' कहा है ।
Ques-5 प्रवतबि क्या है इसके विवभन्न प्रकािों की व्याख्या ?

Ans-
Ques-6 मधुमेह का िगीकिण किते हुए इसके िक्षणों का सविस्ताि िणतन कीविये ?

अथिा

मेिाइटस क्या है ?

Ans-
Ques-7 औिध व्यसन क्या है इसका वनिािण किते हुए भाित में युिाओं में औिवध व्यसन सम्बन्धी
व्यिहािपिक िोक्तिम की व्याख्या कीविये ?

Ans-
मादक पदार्थों का व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रभाि-

मादक पदाथों के सेिन से व्यक्ति के सेहत पि बडा ही व्यापक प्रभाि पडता है तथा व्यक्ति अनेक प्रकाि की
बीमारियों से ग्रवसत हो सकता है । उदाहिण के विए तम्बाकू से मुाँह का कैंसि, शिाब से यकृत (िीिि) ि पेट
संबंवधत बीमािी (वसिोवसस), हृदय संबंवधत बीमािी (उच्च ििचाप), स्नायु तंत्र की कमिोरियााँ , याददास्त, सेक्स ि
वनद्रा संबंवधत बीमािी तथा अनेक मानवसक बीमािी भी इनके सेिन से हो सकते हैं , िैसे उन्माद के दौिे भी
पड सकते हैं । इनके अवतरिि कई मनोिैज्ञावनक समस्याएाँ उत्पन्न हो सकती हैं िैसे- वचडवचडापन, गुस्सा,
बेचैनी, अिसाद आवद का वनिं ति अनुभि किना। कई बाि तो ये िानिेिा भी सावबत हो सकते हैं ।

आवर्थिक क्तथर्थवि पर प्रभाि-

मादक पदाथों के सेिन का बहुत ही व्यापक असि आवथतक क्तथथवत पि पडता है । चूंवक मादक द्रव्य मुफ्त में
तो नहीं उपिब्ध होता है इसविए आवथतक क्तथथवत पि प्रभाि तो पडे गा ही। िैसे मादक द्रव्यों पि अवधक िचत
किना, आवथतक दावयत्ों का पूिा न कि पाना, उधाि िेना, घि के सामानों को बेचना, घि के व्यक्तियों से मादक
पदाथों के विए अनािश्यक रूप से अवधक पैसों की मां ग किना।

इसके अन्य िीिन किापों पि भी इसका दु ष्प्रभाि पडता है , िैसे-कायतक्षमता में वगिािट, दक्षता में वगिािट,
समय पि काम नहीं कि पाना, कायतक्षेत्र से अक्सि अनुपक्तथथत होना, कायत क्षेत्र में झगडा किना, दु घतटना, सस्पेंड
होना, नौकिी बदिना, बेिोिगाि होना, दू सिों के साथ गित व्यिहाि ि बुिा बिताि किना, झगडा मािपीट
किना, सामाविक ख्यावत या कीवतत का हनन होना, सामाविक अिथथा में वगिािट, सामाविक बवहष्काि।

Ques-8 भाित में मवहिाओं के स्वास्थ्य की क्तथथवत का िणतन कीविये एिं इसके सन्दभत में सुधािात्मक सुझाि
दीविये ?

Ans- पररचय-

अच्छा स्वास्थ्य एक ऐसी व्यक्तिगत ि सामाविक अनुभूवत है विसमे मवहिा अपने आप को सविय, सृिनशीि,
समझदाि तथा योग्य महसूस किती है । विसमें उसके शिीि के िख्ों को भिने की क्षमता बिकिाि िहती
है । विसमें उनकी विवभन्न क्षमताओं ि योग्यताओं को यथा-योग्य सम्मान वमिता है । विसमें िह चयन
किने का अवधकाि ििती है तथा वनभीक रूप से अपने आप को अवभव्यि कि सकती है औि िहााँ चाहे
िहााँ आ िा सकती है ।

मविला स्वास्थ्य क्या िै ?


िब एक मवहिा स्वास्थ्य होती है तब िह प्रसन्न िहती है । िह अपने आप को सविय, सृिनशीि, समझदाि
तथा योग्य महसूस किती है । उसमे इतनी शक्ति ि बि होता है की ि अपने दै वनक कायत कि सके ।
परििाि ि समाि में वनधात रित अपनी अनेक भूवमकाओं को वनभा सके तथा दू सिों के साथ सन्तोिदायक
सम्बन्ध बना सके। दू सिे शब्ों में कहें तो यह अवभप्राय है वक मवहिा का स्वास्थ्य उनके िीिन के हि पहिु
पि प्रभाि डािता है विि भी, अनेक ििों तक “ मवहिाओं के विए स्वास्थ्य सेिा “ का अथत गभात िथथा तथा
प्रसि में दी िाने िािी मातृ स्वास्थ्य सेिाओं से अवधक कुछ नहीं िहा है ये सेिायें आिश्यक हैं पिन्तु ये
केिि मवहिाओं की, मां की भूवमका का ही ध्यान किती हैं । केिि बच्चे पैदा किने की क्षमता को छोड कि
मवहिाओं का स्वास्थ्य तथा उनसे सम्बंवधत अन्य आिश्यकताओं को, पुरुिों की तुिना में कम महत् वदया
िाता है ।

यहााँ मवहिाओं के स्वाथ्य्य का एक वभन्न पहिू िि िहे हैं । पहिी बात । हमािा विश्वास है वक हि मवहिा
को सम्पूणत िीिन में पूणत स्वस्थ्य सेिायें प्राप्त किने का अवधकाि है । मवहिा से सम्बंवधत स्वास्थ्य सेिाएं िीिन
के हि क्षेत्र में उसके विए सहायक होनी चावहये - न केिि उसकी पत्नी ि मां की भूवमका के विए। दू सिी
बात यह है वक मवहिा के स्वास्थ्य पि न केिि उसके शिीि की संिचना का, बक्ति उसके इदत -वगदत का
सामाविक, सां स्कृवतक, आवथतक, पयात ििणों का तथा िािनीवतक परिक्तथथवतयों का उन पि ही प्रभाि पडता है ।

पुरुषोों से कैसे अलग िैं मविलाएों

हािां वक पुरुिों के स्वास्थ्य पि भी इन कािकों का प्रभाि पडता है , विि भी मवहिों के साथ एक समूह के
रूप में, वभन्न व्यिहाि वकया िाता है । उनके पास साधािणतया कम शक्ति होती है , संसाधनों की कमी होती
है तथा परििाि ि समुदाय में उनका स्ति वनम्न होता है इस असमानता के कािण-

 पुरुिों की तुिना में अवधक मवहिायें गिीबी से प्रभावित होती हैं । पुरुिों की तुिना में, अवधक
मवहिाओं को वशक्षा तथा अपने पैिों पि िडा हो सकने की दक्षता से िंवचत ििा िाता है ।
 पुरुिों की तुिना में, अवधक मवहिाएं चुप-चाप मानवसक ि भािनात्मक समस्याओं से पीवडत हो िाती
हैं ।
 पुरुिों के मुकाबिे, अवधक मवहिाओं को सम्बन्धों में प्रबिता का समाना किना पडता है ।
 पुरुिों की तुिना में, कािी काम मवहिाओं को महत्पूणत स्वास्थ्य िानकािी ि सेिाओं के पहुाँ च होती है

 पुरुिों के मुकाबिे, ऐसी मवहिाओं की सं ख्या कािी अवधक है विनका अपने स्वयं के स्वास्थ्य सम्बंवधत
मूिभूत ि िीिन के अन्य वनणतय िेने पि कोई वनयंत्रण नहीं है ।
 पुरुिों की तुिना में, अवधक मवहिाओं के घिे िु अथतव्यिथथा में महत्पूणत योगदान को कोई मान्यता या
अहवमयत नहीं दी िाती है । इस योगदान से घिे िु कायत , बच्चों की दे िभाि तथा िेतों में िाने िािी
मेहनत िैसे,ऐसे कायत सक्तम्मवित हैं विसमें बहुत मेहनत ि समय िगता है ।

इस प्रकाि का िृहद विचाि िेने से हमें मवहिाओं के वनम्न स्वस्थ्य के विए विम्मेदाि मूि कािणों को समझने
में सहयता वमिती है । मवहिाओं का स्वास्थ्य सु धािने के विए उनकी स्वास्थ्य समस्याओं का उपचाि तो
आिश्यक है ही। इसके साथ-साथ उनकी िीिन परिक्तथथवतयों में भी परििततन िाना िरुिी है तावक उन्हें अपने
स्वस्थ्य ि िीिन पि अवधक वनयंत्रण ि शक्ति वमि सके।

िब कभी ऐसा होता है तो – मवहिा, उसके परििाि तथा समुदाय–सभी को िाभ होता है । एक स्वास्थ्य ि
प्रसन्न मवहिा द्वािा अपने अन्दि वनवहत सामर्थ्त को सम्पूणत रूप से पूिा किने की अवधक सम्भािना होती है ।
इसके अवतरिि उसके बच्चे अवधक स्वास्थ्य होंगे, ि अपने परििाि की बेहति दे िभाि कि सकेगी औि इस
प्रकाि अपने समाि के प्रवत अवधक योगदान कि सकेगी अत। वकसी मवहिा के स्वास्थ्य की समस्या केिि
उसकी समस्या नहीं होती है । मवहिाओं का स्वास्थ्य एक सामाविक ि सामुदावयक मुद्दा है ।
स्रोत

 विमन एं ड हे ल्थ प्रोग्राम इं वडया १९९७

 ज़ेवियि समाि सेिा संथथान, िोिंटिी हे ल्थ एसोवसएशन ऑफ़ इं वडया

Ques-9 विंग तथा स्वास्थ्य को परिभावित कीविये ?

Ans- वलोंग- यद्यवप एक व्यक्ति का विंग पुरुि या मवहिा िैसा िैविक तर्थ् है , िो वक वकसी भी संस्कृवत में
समान है , एक मवहिा के रूप में एक विंग या मवहिा के रूप में विंग की भूवमका के संदभत में क्या मतिब
है , संस्कृवतयों को अिग-अिग रूप से अिग-अिग होती है , िो वक मदात ना या स्त्रैण माना िाता है ।

स्वास्थ्य- विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने सन् १९४८ में स्वास्थ्य या आरोग्य की वनम्नविक्तित परिभािा दी:-

दै वहक, मानवसक औि सामाविक रूप से पूणततः स्वथथ होना (समस्या-विहीन होना)

स्वास्थ्य वसित बीमारियों की अनुपक्तथथवत का नाम नहीं है । हमें सिाां गीण स्वास्थ्य के बािे में िानकािी होना
बोहोत आिश्यक है । स्वास्थ्य का अथत विवभन्न िोगों के विए अिग-अिग होता है । िेवकन अगि हम एक
साितभौवमक दृवष्टकोण की बात किें तो अपने आपको स्वथथ कहने का यह अथत होता है वक हम अपने िीिन
में आनेिािी सभी सामाविक, शािीरिक औि भािनात्मक चुनौवतयों का प्रबंधन किने में सिितापूितक सक्षम हों।
िैसे तो आि के समय मे अपने आपको स्वथथ ििने के ढे ि सािी आधुवनक तकनीक मौिूद हो चुकी हैं ,
िेवकन ये सािी उतनी अवधक कािगि नहीं हैं ।

समग्र स्वास्थ्य की पररभाषा


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसाि, स्वास्थ्य वसित िोग या दु बतिता की अनु पक्तथथवत ही नहीं बक्ति एक पूणत
शािीरिक, मानवसक औि सामाविक िुशहािी की क्तथथवत है । स्वथथ िोग िोिमिात की गवतविवधयों से वनपटने के
विए औि वकसी भी परििेश के मुतावबक अपना अनुकूिन किने में सक्षम होते हैं । िोग की अनुपक्तथथवत एक
िां छनीय क्तथथवत है िेवकन यह स्वास्थ्य को पू णततया परिभावित नहीं किता है । यह स्वास्थ्य के विए एक
कसौटी नहीं है औि इसे अकेिे स्वास्थ्य वनमात ण के विए पयात प्त भी नहीं माना िा सकता है । िेवकन स्वथथ
होने का िास्तविक अथत अपने आप पि ध्यान केंवद्रत किते हुए िीिन िीने के स्वथथ तिीकों को अपनाया
िाना है ।

यवद हम एक अवभन्न व्यक्तित् की इच्छा ििते हैं तो हमें हि हमेशा िुश िहना चावहए औि मन में इस बात
का भी ध्यान ििना चावहए वक स्वास्थ्य के आयाम अिग अिग टु कडों की तिह है । अतः अगि हम अपने
िीिन को कोई अथत प्रदान किना चाहते है तो हमें स्वास्थ्य के इन विवभन्न आयामों को एक साथ विट किना
पडे गा। िास्ति में, अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना समग्र स्वास्थ्य का नाम है विसमें शािीरिक स्वास्थ्य, मानवसक
स्वास्थ्य , बौक्तद्धक स्वास्थ्य, आध्याक्तत्मक स्वास्थ्य औि सामाविक स्वास्थ्य भी शावमि है ।

Ques-10 ध्यान औि योग का अथत स्पष्ट कीविये ?

Ans- ध्यान का अर्थि एिों पररभाषा-

ध्यान शब् की व्युत्पवि ध्यैवयिायाम् धातु से हुइत है । इसका तात्पयत है वचंतन किना। िेवकन यहााँ ध्यान का
अथत वचि को एकाग्र किना उसे एक िक्ष्य पि क्तथथि किना है । अत:, वकसी वििय िस्तु पि एकाग्रता या
‘वचंतन की विया’ ध्यान कहिाती है । यह एक मानवसक प्रविया है विसके अनुसाि वकसी िस्तु की थथापना
अपने मन:क्षेत्र में की िाती है । ििस्वरूप मानवसक शक्तियों का एक थथान पि केन्द्रीकिण होने िगता है ।
यही ध्यान है । महवित पतं िवि कहते हैं -

ित्र प्रत्यैकिानिाध्यानम्।। पािोंजल योग सूत्र 3/2

अथात त पूिोि धािणा िािी िस्तु पि तैि धािाित् मन का एकाग्र हो िाना, ठहि िाना ही ध्यान है । अथात त
धािणा िािे थथान या ध्ये य की एक ही तिह की िृवि का प्रिाह गवतशीि होना, उसके मध्य में वकसी भी
िृवि का न उठना ही ध्यान है । ध्यान से संबंवधत विवभन्न व्याख्याकािों ने िो व्याख्या की है िह इस प्रकाि
है -

1. मिवषि व्यास के अनुसार- उन दे शों में ध्येय िो आत्मा उस आिम्बन की औि वचि की एकतानता
अथात त आत्मा वचि से वभन्न न िहे औि वचि आत्मा से पृथक न िहे उसका नाम है सदृश प्रिाह। िब
वचि चेतन से ही युि िहे , कोइत पदाथात न्ति न िहे तब समझना वक ध्यान ठीक हुआ।
2. साोंख्य सूत्र के अनुसार- ध्यानं वनवितियं मन:।। 6/25 अथात त मन का वििय िवहत हो िाना ही ध्यान
है ।
3. आवदशोंकराचायि के अनुसार - अवचन्तैि पिं ध्यानम्।। अथात त वकसी भी िस्तु पि विचाि न किना
ध्यान है ।
4. मिवषि घेरण्ड के अनुसार- ध्यानात्प्रयत्क्षमात्मन:।।अथात त ध्यान िह है विससे आत्मसाक्षात्काि हो िाए।
5. ित्वार्थि सूत्र के अनुसार- उिमसघनस्येकाग्रावचन्ता वनिोधो ध्यानगन्तमुहुिात वत। -त.सू. 9/27अथात त
एकाग्रवचि औि शिीि, िाणी औि मन के वनिोध को ध्यान कहा गया है ।
6. गरूड़ पुराण के अनुसार- ब्रह्मात्म वचन्ता ध्यानम् स्यात्।।अथात त केिि ब्रह्म औि आत्मा के वचन्तन को
ध्यान कहते हैं ।
7. वत्रवशक्तिब्राह्मणोपवनषद् के अनुसार- सोSहम् वचन्मात्रमेिेवत वचन्तनं ध्यानमुच्यते।।अथात त स्वयं को वचन्मात्र
ब्रह्म तत् समझने िगना ही ध्यान कहिाता है ।
8. मण्डलब्राह्मणोपवनषद् के अनुसार- सितशिीिे िु चैतन्येकतानता ध्यानम्।। अथात त सभी िीि िगत को
चैतन्य में एकाकाि होने को ध्यान की संज्ञा दी गयी है ।
9. आचायि श्रीराम शमाि के अनुसार- कोइत आदशत िक्ष्य या इष्ट वनधात रित किके उसमें तन्मय होने को
ध्यान कहते हैं । ध्यान की कुछ अन्य व्यािहारिक परिभािाएाँ इस प्रकाि हैं -

1. क्लेशों को पिाभूत किने की विवध का नाम ध्यान है ।


2. ध्यान का तात्पयत चेतना के अंति िस्तुओं के अिण्ड प्रिाह होते हैं ।
3. अपनी अंत:चेतना (मन) को पिमात्म चेतना तक पहुाँ चाने का सहि मागत है ।
4. वबििी हुइत शक्ति को एकाग्रता के द्वािा िक्ष्य विशेि की ओि वनयोवित किना ध्यान है ।
5. मन को श्रेष्ठ विचािों में स्नान किाना ही ध्यान है ।

योग का अर्थि एिों पररभाषाएों

1. योग शब्द का अर्थि-

पावणनी ने ‘योग’ शब् की व्युत्पवि ‘युविि् योगे’ ,’युि समाधो’ तथा ‘युि् संयमने ’ इन तीन धातुओ से मानी है ।
प्रथम व्युत्पवि के अनुसाि ‘योग’ शब् का अनेक अथो में प्रयोग वकया गया है ।, िैसे - िोडना, वमिाना, मेि
आवद। इसी आधाि पि िीिात्मा औि पिमात्मा का वमिन योग कहिाता है । इसी संयोग की अिथथा को
“समावध” की संज्ञा दी िाती है िो वक िीिात्मा औि पिमात्मा की समता होती है । महवित पतंिवि ने योग शब्
को समावध के अथत में प्रयुि वकया है । व्यास िी ने ‘योग: समावध:’ कहकि योग शब् का अथत समावध ही
वकया है । िाचस्पवत का भी यही मत है । संस्कृत व्याकिण के आधाि पि ‘योग’ शब् की व्युत्पवि वनम्न प्रकाि
से की िा सकती है ।

1. “युज्यिे एिद् इवि योग: -इस व्युत्पवि के अनुसाि कमतकािक में योग शब् का अथत वचि की िह
अिथथा है िब वचि की समस्त िृवियों में एकाग्रता आ िाती है । यहााँ पि ‘योग’ शब् का उद्दे श्य के
अथत में प्रयोग हुआ है ।
2. “युज्यिे अनेन अवि योग: -इस व्युत्पवि के अनुसाि किण कािक में योग शब् का अथत िह साधन
है विससे समस्त वचििृवियों में एकाग्रता िाइत िाती है । यही ‘योग’ शब् साधनाथत प्रयुि हुआ है । इसी
आधाि पि योग के विवभन्न साधनो को िैसे हठ, मंत्र, भक्ति, ज्ञान, कमत आवद को हठयोग, मंत्रयोग, भवि
योग, ज्ञानयोग, कमतयोग आवद के नाम से पुकािा िाता है ।
3. “युज्यिेsक्तिन् इवि योग:” -इस व्युत्पवि के अनुसाि योग शब् का अथत िह थथान है िहााँ वचि की
िृवियााँ की एकाग्रता उत्पन्न की िाती है । अत: यहााँ पि अवधकिण कािक की प्रधानता है ।

2. योग की पररभाषाएों

भाितीय दशतन में योग विद्या का थथान सिोपरि एिं विशेि है । भाितीय ग्रन्थो में अनेक थथानो पि योग विद्या
से सम्बक्तन्धत ज्ञान भिा पडा है । िेदो, उपवनिदो,गीता एं ि पुिाणों आवद प्राचीन ग्रन्थों में योग शब् िवणतत है ।
दशतन में योग शब् एक अवत महत्त्वपू णत शब् है विसे अिग-अिग रूप में परिभावित वकया गया है ।

1. योग सूत्र के प्रणेता महवित पतंिवि ने योग को परिभावित किते हुए कहा है -

‘योगक्तचचििृविवनिोध:’ यो.सू .1/2

अथात त् वचि की िृवियों का वनिोध किना ही योग है । वचि का तात्पयत , अन्त:किण से है । बाह्मकिण
ज्ञानेक्तन्द्रयां िब विियों का ग्रहण किती है , मन उस ज्ञान को आत्मा तक पहुाँ चाता है । आत्मा साक्षी भाि से
दे िता है । बुक्तद्ध ि अहं काि वििय का वनश्चय किके उसमें कततव्य भाि िाते है । इस सम्पूणत विया से वचि में
िो प्रवतवबम्ब बनता है , िही िृवि कहिाता है । यह वचि का परिणाम है । वचि दपतण के समान है । अत:
वििय उसमें आकि प्रवतवबम्बत होता है अथात त् वचि विियाकाि हो िाता है । इस वचि को विियाकाि होने से
िोकना ही योग है ।

योग के अथत को औि अवधक स्पष्ट किते हुए महवित पतंिवि ने आगे कहा है -

‘तदा द्रश्टु : स्वरूपे Sिथथानम्।। 1/3

अथात त योग की क्तथथवत में साधक (पुरूि) की वचििृवि वनरूू़द्धकाि में कैिल्य अिथथा की भााँ वत चेतनमात्र
(पिमात्म ) स्वरूप रूप में क्तथथत होती है । इसीविए यहााँ महवित पतंिवि ने योग को दो प्रकाि से बताया
है -

1. सम्प्रज्ञात योग
2. असम्प्रज्ञात योग

सम्प्रज्ञात योग में तमोगुण गौणतम रूप से नाम िहता है । तथा पुरूि के वचि में वििेक-ख्यावत का अभ्यास
िहता है । असम्प्रज्ञात योग में सत्त्व वचि में बाहि से तीनों गुणों का परिणाम होना बन्द हो िाता है तथा
पुरूि कैिल्य पिमात्मस्वरूप में अिक्तथथत हो िाता है ।
2. महवित याज्ञिल्क्य ने योग को परिभावित किते हुए कहा है -

‘संयोग योग इत्युिो िीिात्मपिमात्मनो।’

अथात त िीिात्मा ि पिमात्मा के संयोग की अिथथा का नाम ही योग है ।

कठोशवनिद् में योग के वििय में कहा गया है -

‘यदा पंचािवतश्ठनते ज्ञानावन मनसा सह।


बुक्तद्धचच न विचेश्टवत तामाहु: पिमां गवतम्।।
तां योगवमवत मन्यन्ते क्तथथिावमक्तन्द्रयधािणाम्।
अप्रमिस्तदा भिवत योगो वह प्रभािाप्ययौ।। कठो.2/3/10-11

अथात त् िब पााँ चों ज्ञानेक्तन्द्रयां मन के साथ क्तथथि हो िाती है औि मन वनचचि बुक्तद्ध के साथ आ वमिता है , उस
अिथथा को ‘पिमगवत’ कहते है । इक्तन्द्रयों की क्तथथि धािणा ही योग है । विसकी इक्तन्द्रयााँ क्तथथि हो िाती है ,
अथात त् प्रमाद हीन हो िाता है । उसमें “ाााु भ संस्कािो की उत्पवि औि अिुभ संस्कािो का नाश होने िगता
है । यही अिथथा योग है ।
ध्यान में इं वद्रयां मन के साथ, मन बुक्तद्ध के साथ औि बुक्तद्ध अपने स्वरूप आत्मा में िीन होने िगती है । विन्हें साक्षी या
दृष्टा भाि समझ में नहीं आता उन्हें शु रू में ध्यान का अभ्यास आं ि बंद किने किना चावहए। विि अभ्यास बढ़ िाने
पि आं िें बंद हों या िु िी, साधक अपने स्वरूप के साथ ही िुडा िहता है औि अंतत: िह साक्षी भाि में क्तथथवत होकि
वकसी काम को किते हुए भी ध्यान की अिथथा में िह सकता है ।
मृत्यु आए उससे पिले पूवणिमा का चाोंद वनकले उस मुकाम िक ले जाओ अपने िोश को।

Ques-11 एच आई िी / एड् स क्या है ?

Ans- ि्युमन इम्युनोडे विवशएों सी िायरस (Human immunodeficiency virus) (एचआईिी) (HIV) एक
िेंवटिायिस (िे टर ोिायिस परििाि का एक सदस्य) है , िो अक्वायडत इम्युनोडे विवशएं सी वसंडरोम (acquired
immunodeficiency syndrome) (एड् स) (AIDS) का कािण बनता है , िो वक मनुष्ों में एक अिथथा है , विसमें
प्रवतिक्षा तंत्र वििि होने िगता है औि इसके परिणामस्वरूप ऐसे अिसििादी संिमण हो िाते हैं , विनसे मृत्यु
का ितिा होता है । एचआईिी (HIV) का संिमण िि के अंतिण, िीयत , योवनक-द्रि, स्खिन-पूित द्रि या मां
के दू ध से होता है । इन शािीरिक द्रिों में, एचआईिी (HIV) मुि िीिाणु कणों औि प्रवतिक्षा कोवशकाओं के
भीति उपक्तथथत िीिाणु , दोनों के रूप में उपक्तथथत होता है । इसके संचिण के चाि मुख्य मागत असुिवक्षत यौन-
संबंध, संिवमत सुई, मां का दू ध औि वकसी सं िवमत मां से उसके बच्चे को िन्म के समय होने िािा संचिण
(ऊर्ध्त संचिण) हैं । एचआईिी (HIV) की उपक्तथथवत का पता िगाने के विये िि-उत्पादों की िां च किने के
कािण ििाधान अथिा संिवमत िि-उत्पादों के माध्यम से होने िािा सं चिण विकवसत विश्व में बडे पैमाने
पि कम हो गया है ।

मनुष्ों में होने िािे एचआईिी (HIV) संिमण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization)
(डब्ल्यूएचओ)(WHO) द्वािा महामािी माना गया है । इसके बाििूद, एचआईिी (HIV) के बािे में व्याप्त परितोि
एचआईिी (HIV) के िोक्तिम में एक मुख्य भूवमका वनभा सकता है । 1981 में इसकी िोि से िेकि 2006 तक,
एड् स (AIDS) 25 वमवियन से अवधक िोगों की िान िे चुका है ।विश्व की िगभग 0.6% िनसंख्या एचआईिी
(HIV) से संिवमत है । एक अनुमान के मुतावबक केिि 2005 में ही, एड् स (AIDS) ने िगभग 2.4–3.3 वमवियन
िोगों की िान िे िी, विनमें 570,000 से अवधक बच्चे थे। इनमें से एक-वतहाई मौतें उप-सहािाई अफ्रीका में
हुईं, विससे आवथतक विकास की गवत धीमी पड गई औि गिीबी में िृक्तद्ध हुई। िततमान अनुमानों के अनुसाि,
एचआईिी (HIV) अफ्रीका में 90 वमवियन िोगों को संिवमत किने को तै याि है , विसके चिते अनुमावनत रूप
से कम से कम 18 वमवियन िोग अनाथ हो िाएं गे। एं टीिे टर ोिायिि उपचाि एचआईिी (HIV) की मृत्यु-दि
औि रुग्णता-दि दोनों को कम किता है , िेवकन सभी दे शों में एं वटिे टर ोिायिि दिाओं तक वनयवमत पहुं च
उपिब्ध नहीं है ।

प्राथवमक रूप से एचआईिी (HIV) मानिीय प्रवतिोधक प्रणािी की आिश्यक कोवशकाओं, िैसे सहायक टी-
कोवशकाएं (helper T cells) (विवशष्ट रूप से, सीडी4+ टी कोवशकाएं ), मैिोिेि औि डें डराइवटक कोवशका को
संिवमत किता है । एचआईिी (HIV) संिमण के परिणामस्वरूप सीडी4+ टी (CD4+ T) के स्तिों में कमी आने
की तीन मुख्य कायतविवधयां हैं : सबसे पहिे, संिवमत कोवशकाओं की प्रत्यक्ष िीिाक्तिक समाक्तप्त; दू सिी,
संिवमत कोवशका में एपोप्टॉवसस की बढ़ी हुई दि; औि तीसिी संिवमत कोवशका की पहचान किने िािे
सीडी8 (CD8) साइटोटॉक्तक्सक विम्िोसाइट द्वािा सं िवमत सीडी4+ टी कोवशकाओं (CD4+ T cells) की समाक्तप्त.
िब सीडी4+ टी (CD4+ T) कोवशकाओं की संख्या एक आिश्यक स्ति से नीचे वगि िाती है , तो कोवशका की
मध्यथथता से होने िािी प्रवतिक्षा समाप्त हो िाता है औि शिीि के अिसििादी संिमणों से ग्रस्त होने की
संभािना बढ़ने िगती है ।

एचआईिी-1 (HIV-1) के द्वािा संिवमत अवधकां श अनुपचारित िोगों में अंततः एड् स (AIDS) विकवसत हो
िाता है । इनमें से अवधकां श िोगों की मौत अिसििादी संिमणों से या प्रवतिोध तंत्र की बढ़ती विििता से
िुडी असाध्यताओं के कािण होती है ।एचआईिी (HIV) का एड् स (AIDS) में विकास होने की दि वभन्न-वभन्न
होती है औि इस पि िीिाक्तिक, मेज़बान औि िाताििणीय कािकों का प्रभाि पडता है ; अवधकां श िोगों में
एचआईिी (HIV) सं िमण के 10 ििों के भीति एड् स (AIDS) विकवसत हो िाएगा: कुछ िोगों में यह बहुत
ही शीघ्र होगा औि कुछ िोग बहुत अवधक िंबा समय िेंगे। एं टी-िे टर ोिायिि के द्वािा उपचाि वकये िाने पि
एचआईिी (HIV) सं िवमत िोगों के िीवित िहने की संभािना बढ़ िाती है । 2005 तक की िानकािी के
अनुसाि, वनदान वकये िा सकने योग्य एड् स (AIDS) के रूप में एचआईिी (HIV) का विकास हो िाने के
बाद भी एं टीिे टर ोिायिि उपचाि के बाद व्यक्ति का औसत उिििीविता-काि 5 ििों से अवधक होता है ।
एं टीिे टर ोिायिि उपचाि के वबना, एड् स (AIDS) से ग्रस्त वकसी व्यक्ति की मृत्यु विवशष्ट रूप से एक िित की
भीति ही हो िाती है ।

You might also like