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िं क हिहकत्सा पद्धहियााँ
स्वकथन
वचवकत्सा पद्धवतय को मख्ष य ूपप से दो भाग में ववभावजत वकया जा सकता है। प्रथम तो
वबना दवा वाली स्वावलंबी वचवकत्सा पद्धवतया तथा दरसरी दवाओं के माध्यम से उपचार वाली
परावलंबी वचवकत्सा पद्धवतया। स्वावलंबी वचवकत्सा पद्धवतय में स्वयं का उपचार स्वयं द्वारा वकया
जाता है। उसमें उपचार हेतष दवा थथवा वचवकत्सक पर पर्भतया वनभभ र रहने की आवश्यकता नहीं
होती। मात्र थपने आसपास के वातावर् में सहजता से उपल्ि सािन का वबना वकसी को क्ट
पहचचाए सहयोग वलया जा सकता है। ऐसा उपचार करते समय आवश्यक होता है वक रोगी स्वयं की
्ष मताओं के प्रवत सजग हो, रोग के मरल कार् को समझ उनसे बचने हेतष आवश्यक जीवन शैली
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का सम्यक् आचर् करे। रोग में स्वयं की भरवमका का सही वचन्तन हो तथा ऐसे उपचार की उपे्ष ा
करे जो शरीर की प्रवतरोिक ्ष मता कम करते ह , द्ष प्रभाव पैदा कर भवव्य में थविक परेशानी पैदा
करते ह , उपचार रोग के कार् को दरर वकए वबना मात्र राहत वदलाते ह , उपचार हेतष वहंसा, क्रररता,
वनदभ यता को प्रत्य्ष -परो्ष प्रोत्साहन देते ह , वजससे मन और आत्मा के ववकार बढ़ते ह ।
दवष नया में जब दो व्यवि एक जैसे नहीं हो सकते हैं, तब दो रोगी शत-प्रवतशत एक जैसे कै से
हो सकते हैं? प्रत्येक रोगी का खान-पान, रहन-सहन, आचार-ववचार, वचन्तन-मनन, आसपास का
वातावर् एवं पररवस्थवतया थलग-थलग होने से उसके रोग का पररवार थलग-थलग होता हैं। थच्छे
से थच्छे डाॅक्टर और दवा का प्रभाव बाह्य ूपप से एक जैसा लगने वाले दो रोवगय का एक जैसा
कै से हो सकता है, जो सभी वचन्तनशील प्राव्य के वलए वचन्तन का ववषय है? स्वावलंबी वचवकत्सा
में व्यवि का स्ववववेक जागतृ रहने से उपचार से पड़ने वाले सरक्ष्मतम प्रभाव की थनभष रवत होती है।
इसी कार् स्वावलंबी वचवकत्सा थविक मौवलक, थविक वैज्ञावनक और थविक प्रभावशाली होती है
क्य वक उसमें पर्भ शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा को एक ईकाई के ूपप में मानकर उपचार
वकया जाता है।
उपचार करते समय परावलंबन चाहे दवा का हो या डाॅक्टर का, उपकर् का हो थथवा
ववववि यांवत्रक परी्ष ् का, परावलम्बन तो परािीन ही बनाता है। थत जबतक दस र रा कोई
प्रभावशाली ववकल्प ह , परािीनता से यथा संभव बचना ही श्रेयस्कर होता है।
स्वावलिंबी हिहकत्सा पद्धहियााँ क्यों प्रभावशाली?
वबना दवा उपचार की स्वावलंबी वचवकत्सा पद्धवतया, सहज, सरल, सस्ती, स्थायी, द्ष प्रभाव
से रवहत, शरीर की प्रवतकारात्मक ्ष मता को बढ़ाने वाली होती हैं। जो व्यवि का स्ववववेक जागतृ
कर, स्वयं की ्ष मताओं के सदपष योग की प्रेर्ा देती है। रोग के ल्ष ् की थपे्ष ा रोग के मल र
कार् को न्ट करती हैं जो शरीर के साथ-साथ मन एवं आत्मा के ववकार को दरर करने में स्ष म
होती हैं। जो वजतना महत्त्वपर्भ होता है। उसको उसकी ्ष मता के थनूप
ष प महत्त्व एवं प्राथवमकता देती
हैं। यह प्रकृवत के सनातन वसद्धान्त पर आिाररत होने के कार् थविक प्रभावशाली, वैज्ञावनक,
मौवलक एवं वनदोष होती हैं।
क्या शरीर हवज्ञान की हवस्िृि जानकारी आवश्यक ै?
हम साल के 365 वदन में थपने घर में वबजली के तकनीवशयन को प्राय 8 से 10 बार से
थविक नहीं बल
ष ाते। 355 वदन जैसे स्वीच चालर करने की कला जानने वाला वबजली के उपकर्
का उपयोग आसानी से कर सकता है। उसे यह जानने की आवश्यकता नहीं होती वक वबजली का
जल वचवकत्सा ................................................................................. 28