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तंत्र

ि क ा तं ि पर योग का प्रभाव एक अध्ययन

Assignment Work

( Paper- 3,मानव शरीर रचना एवं Hिया Hवज्ञा


न )

वर्ष – 2016 (2nd sem.)


का
नर्द
त्रित्र – प्रस्ततु कताष-
डॉ.सररता Hवश्वजीत वमाा
प्रजापHत
एम.ए. (मानव चेतना एवं
सहायक प्रोफ़े योग Hवज्ञा
न) -( Hद्व
तीय समस्े
टर)
सर

योग एवं स्वास््य Hवभागदेव संस्कृ Hत Hव.Hव. हररद्वा



(उतराखंड)
देव संस्कृ Hत Hवश्वHवद्या
लय
गायत्रीकु -ञ्जशांHतकुं ज , हररद्वा( उरात्त
खंड ) -२४९४११
तंHत्रका तंत्रपर योग का प्रभाव
विषय सचू


 अध्याय -१
 अध्ययन की आवश्यकता

 अध्याय -२
 तंत्रिका तं ि परिचय
 केद्रीयन् तंत्र
िका तं ि
 परिसिी य तंत्र िका तं ि

 अध्याय -३
 योग परिचय
 प्रकाि एवं अंग

 अध्याय -४
 योग के वत्रि
त्रन्नअंगो के अभ्यासों का तंत्रिका तं ि पि प्रिाव
 अंतरिक् ष तंत्रिका तं ि एवं कु ण्डत्रिनी

 अध्याय - ५
 नष्त्रकर्ष
 सद्दिष न् सूची
1
 अध्याय -१
अध्ययन की आवश्यकता

मानिीय शरीर कीगविविवियोंकासञ्चा


लन एिं वनयंणत्र विविन्निंत्रोंके राद्वाहोिा है जैसे- कं कावलय िन्त्र,
पेशीय,रक्तपररसंचरण,पाचन,उसत्जजन .. एिं िंवत्रकािंत्र! वजनमे से िंवत्रकािंत्र शरीर के सिी िंत्रों
का वनयंकत्र संचालक है ! वजस पर समस्ि शारीररक मानवसक वियाये वनि
जर करिी है !उसीकेशेवनर्दानसु ार ि रणा
प्रे
विया के अनसु ारनानाका प्रर की शारीररक – मानवसक का
यज सचु ारू रूप से संपन्नहोिे है !
जब वकहीन् कारणोंसेउसमेंकोई समस्या अथिा अस्िस्थिा पन्नउहोिी
त्त् है िो उसकाप्रिािकई शरीररक मानवसक रोगोंके रूप मेंखा
वर्दई र्दिीहै !
जैसे आिवु नक िौविकिार्दीजीिन शैलीसे बढ़िे शारीररक – मानवसक रोगों जैसे – वचंिा ,अिसार्द, वहसं ा,
अपराि , वनराशा, OCD, मनोविर्दा वलिा,
िय, िोि आवर्द| इन सबके सफल स्थाई वनर्दाहिे ु िंवत्रका िंत्रऔर उस पर योग अभ्यास के पड़ने
िाले प्रिािका गहनिापिू ज क िै वनज्ञा
क अिययन की अत्यंि आिश्यकिाहै |

समग्रस्वास््य बप्रंधन हेतु - समग्रस्िास््य शरीर के समस्ि िंत्रोंके स्िास््य होने पर वनि
जर करिी है ! और
सिी िंत्रोंकास्िास््य और कु शल का
यज सम्पा
नर्द िंवत्रकािंत्रपर वनि
जर करिा है ! अि: समग्रस्िास््य
प्रबंिन के दृविकोण से इस विषय पर अध्ययन की महिी आिश्यकिाहै ! िावक विविन्नका
प्रर के शारीररक – मानवसक रोगों सेुमक्त
रहा जा सके और रोगों का सफल उपचार िी वकयाजा सके |

शारीररक , मानवसक, सामावजक एिं आमवक


त् (अध्यावमक)
त् कउषजत् हिेु – शारीररक , मानवसक एिं अन्य कउषजत् हिेु स्ियं
कानज्ञाऔर शारीररक वियायों पर पणू ज वनयं
त्र ण एिं कु शल सञ्चा
लन काहोना आिश्यक है ! वजसे हम िवं का
त्र
ित्रं के माध्यम से अविक स्पििाऔर व्यापकिासे समझ सकिे है |

इस का
प्रर से “िवत्रं का ित्रं पर योग का प्रिाि” िै
वनज्ञा
क अध्ययन का एक महत्िपणू ज एिं अयवि
त्क आिश्यक
विषय होजािा है ,वजसेस्
प्रििु का
यज राद्वाजनकया
ल्णाथज एक छोटीसेयोगनर्दासमवपजिकरनेकायास
प्र है |
2
अध्याय -२

तंत्रि का
मानि शरीर कई अगं ो के वमलने सेबनाहै , जो विशषे का प्रर के कायोंका संपानर्द करिेहै ! इन अगं ो स वमलकर पनु : कई
िंत्रोंका वनमा जण होिे है जसै े – अवथस् िंत्र, पेवशये िंत्र, पाचन िंत्र, वसश्न िंत्र, रक्तपररसंचरण
िंत्र,तअिं ंि :स्रािीिपरिचय
ंत्र,िंवत्रकािंत्रआवर्द!इनमेसेसिी िंत्रोंकाअपना विशेष महत्ि है, वजसके सवमम्वलि का
यज संपानर्द
से सपणम् ू ज शरीर स्िस्थ,सबल और का यज मसक्षबना रहिा है !
िंवत्रका िंत्रशरीर का एक महत्िपणू ज िंत्र या संस्थान है , जो सपणम् ू ज शरीर की िथा उसके
विविन्नवियायों
का वनयंण,
त्र वनयमन िथा समन्ियन करिाहै और संवस्थवि बनायेरखिाहै ! शरीर के सिी एवछछक एि अवनेछछक कायोंपर वनयंणत्र
िथा समस्ि संिर्देनाओं कोहणग्र कर मवस्िक मेंपहुचना इसी िंत्रका का
यज है ! यह शरीर के समस्ि अगं ो की
आिं रक एिं बही िािािरण के पररििजनो के अनसु ार समजं न स ं िि बनिा है िथा
िंवत्रका आिगों का संिहन करिा है !
िंवत्रका िंत्रशरीर की असंख्य कोवशकाओं की वियाओं में एक का प्रर का सामजं स्य उपत्न्नकरिा ह
िावक सपणम् ू ज शरीर एक इकाई के रूप में का यज कर सके !संिर्देी िंवत्रकाओ ं राद्वाशरीर केदरअर् न्एिं बाहर
िािािरणगि पररिि जन यापउनद्दीिंवत्रका िंत्रके सुषम्ु ना या स्पाइनल कार्जिथा मवस्िष्क में पहुचिे है !जहााँपर उनका
विलेश्षण होिा है और अनवु िया मेंरकप्रे िंवत्रकाओ ं राद्वाशरीर की विविन्नवियायेंसंपावर्दिहोिी ह
!
िंवत्रकािंत्र िंवत्रका उकों त्तसे बना होिा है , वजनमेंिंवत्रका कोवशकाओंयायन्रू ांस और इनसे
सम्बंविि
िवंका त्र ििओं ु ं िथा विशेष ं
ि ंवत्रका ि ंत्रके वनम्न ि ीन ि ाग
त का
त्रि त ि केवभा
त्रग
प्रर के संयों
का जीकउत्तवजसेयन्रु ोवललयाकहिे ह,ै का समिेश होिा है !

होि े है –
1. कें यद्रीि ंवत्रका ि ंत्र
2. पर सरीय ि ंका
त्र ि ंत्रएि
3. स्िायत्ति ंवत्रका ि ंत्र

१.केंयद्रीतंत्र िका तंि – इस िाग में मवस्िष्क एिं सुषम्ु


ना का
सशेमाि णोसेणपू ि
होिाहैिथा यह मवस्िरष्काि ज याढकारहिाहै! इसका संवक्षप्त
विि रण वनम्नवलवखि है -

3
के द्री
यन् िका
तत्रं तिं
भाग Hस्तHि संरचना काया क् षेत्र अन्य
१.सं२.प्रे
रकत्रिेर्दीक्षे
कपाल गहु ा गोखंर्है–१.फ्र
में जअिकेला
र्द्ज ं टल लोब, रक पिू ज
३.प्रे 4.त्र क्षे

तस्ष्मअत्रग्र वस्थि गहरी लम्बिि ३. आवससवपटल एि
२.पैराइटल, ब्रोकाज क् षेत्र
ं ५.िाणी क् षेत्र
र्दरार या विर्दर के
4. टेम्पोरल लोब ६.दृवि त्र७.श्रि क्षे णीय
द्वारा र्दावहने एिं त्र८.स्
क्षे िार्द९.घ्रा १. बेसल
त्रक्षेणत्र क्षे
बाएं अिज गोलािज में वििक्त वगगेंवलया –
सपु ीररयर कोवलकु २.थेलेमस-
इड़ल्ब्रमेरीन्सेपेएिं का
मक
स रपोसिाजेड्री
वमन का समािेश होिा है जो मवि
स्की
यष् ली से ३.
अग्र मवस्िष्क और चपश्
मक
तयस्ध्ष्मत्र मवस्िष्क के बीच ु क या
ल् को घे
रे रहिे है जो३ वकसी िास्ि ु हाइपोथैलेमस
और मवस्िष्क ि 4 िेंविकलो के बीच एक को र्देखने की विया -
मत्रतष्स्क

स्िम्ि के ऊपर नवलका इवन्फरीर कोवलकु


वस्थि होिी है ! ली द्वारा सनु ने
की विया
संपन्न होिी
है !
मवस्िष्क के सबसे
कतस्चष्पश्मत्र पीछे का िाग
स, र््
होिा है ! वजसमे पों मे यलू ा
आब्लान्गेटा , िथा
अनमु वस्िष्क का
समािेश
सबसे उपरी आिरण , कठोर
मवस्िष्काि
रण या वमेनवजन्ज सरु
डयूिाटि
मै संयोजी उत्तको से बनी
होिी है र्दो परि होिी है
क्षात्मक वझवलयां
र््यूरामटै र के क
पड़ीएिं मि
है खो वस्कष् केबीच वस्थि
हर एिाक् नोइड ठी नीचे वस्थिपिला और कोमल
आिरण होिा है जो िंिु
कर सषु ु
म् ना को पणू ज मैटि
एिं लचीले उत्तको का बना
मHस्तष्कावरण

रूप से ढके रखकर होिा है !


अघाि से बचािी है ! एरासनोइर् मैटर के नीचे िाला आिरण
पायामैटि , संयोजी उत्तको की पिली
वझल्ली वजसमे बहुि सी
रक्तिावहवनयााँ होिी है !
सेररब्रो
-स्पाइनल द्रि का
मवस्िष्क में ु
ख्म य जयका जकनाु िंकावत्र
वस्िथ आंिररक
लेटिल-२ िहृका
र,मा
वि
र्दा
स्प्रकी
य गोलािोमेंवस्थि
मHस्तष्क वेंHिकल

उत्तकों एिं
गुहायें होिी है , अवस्थल गुहा
वजनमे सेररब्रो
-स्पाइनल द्रििरा र्दायें एिं बाएं थैलेमस के विवत्तयों के बीच
होिा है ! तृकती
लयत्रिवें बीच में लेटरल पानी की
िेवत्रकल के नीचे वस्थि गद्दीनमु ा रचना
ििृ ीय ि.े केनीचे, सपों एिं मेर््यूला िथा से
लबेम बनाकर मवस्िष्क और स्पाइनल
चतुर्थ वेंत्रिकल के बीच में वस्थि चौरस वपरावमर्ी गहु
ा कार्ज की सरु क्षा
करिा है और
अघाि अिशोषक 4
की
िावि कायज करिा
है
कोवशका काय मवस्
प्रिष्क केलत्रसेंप्री
d
परिसिीय
िवन्
का
त्र िंत्रके इस िाग मेंमवस्िस्क से वनकालने िाली 12 जोड़ी कपलीय िंवत्र काओ और स्पाइनल कार्जसे वनकलने िाली
काओ का समािेश होिा है , वजतनसें
३१ जोड़ी स्पाइनल िंवत्र शाि
त्रये वनका
खा कलकर शरीर त ंविन्नि
के वि अगं ो एिं उको त्त में पहुचिी ह
!

िंवत्रका
१. सिें र्दीिवन् का
त्रए (sensory or Afferent nerves)
२.रकप्रे या अपिाही िवन्का त्रए(Motor or Efferent nerves ):- १.सोमैवटक िवन्
का
त्रए (somatic nerves ),
२.स्िायत्तिवन् का
त्रए (Autonomic nerves )
३. वमवश्रि िवन् काए
त्र

कपालीय तत्रद्न्िकाए (Cranial nerves)


i. Olfactory nerve(आल्फे सटरी िंवत्रका) vii. Facial nerve (फे वशयल िंवत्रका)
ii. Optic nerve (ऑवटटक viii. Auditory nerve (ऑर्ीटरी िंवत्रका)
िंवत्रका) ix. Glassopharyngeal nerve (ललासोफे
iii. Oculomotar nerve (ऑकु ररवन्जयल िंवत्रका)
लोमोटर िंवत्रका) x. vagus nerve (िेगस िंवत्रका)
iv. Trochlear nerve (िावसलयर xi. Accessory nerve (एससेसरी िंवत्रका)
िंवत्रका) xii. Hypoglossal nerve (हाइपोललासल िंवत्रका )
v. Trigeminal nerve
(िाईजेवमनल िंवत्रका) स्पाइनल तत्रन्िकाए (spinal nerves) :-
स्पाइvi. Abducent
नल कार्जसे ३१ nerve
त्रए वनकलिी(एब्र्यस
जोड़ी स्पाइनल िवन्
का है जो , सटी हुूई िवटजब्रसे बनी इटं रिवटल
जब्र रंध्रोंसे होकर िवटलजब्र
ेन्ट
केना ल के ि वत्रका)
बाहर ंवनकलिीहै वजनकानामकरण एिं िगीकरण उन्ही िवटल जब्र के अनसु
 8 जोड़ी सवि कज ल ि वं काए
त्र
 12 जोड़ी थ्रोवसक ि वं काए
त्र
 ५ जोड़ी लम्बर ि वं काए
त्र
 ५ जोड़ी सेिल ि वं काए
त्र
 १ जोड़ी का
वससवजयल ि वं काए
त्र

अध्याय -३

5
योग पररचय

योग विद्यािारििषज की एक अमल्ू य सपवम्त्तह।ै योग िस्ििु ः समस्ि मोक्षसािनाओं मेंसेसिोत्तम िथा
म ष्ठि
सािनश्रेै
ह।पर्द्विइसी
योग सािनाकाअिलबम्नककेरवकिनेहीयोगी, यवििथा महान् सािक गण मउत्तयोग वथ
स्वि को प्राप्तकरके जीि न काल में ही
जीि ु न मक्त अि स्था को प्राप्तहो गये। इसकी कोई वगनि ी नहीं।
योग कीदृविके राद्वाहीसवृ ि और अविसवृ ि के गढ़ू िम रहस्योंशका नजयत्क्षर्दप्र वकयाजािा हश।यनजव्वर्दर्द, अिी
वन्
शयनद्रजर्द,
िि त्शनर्दज ,शनआ
जमर्दत् िथासा का
ह्मत्ब्रक्षा
र आवर्दिी इसी योग सािना के राद्वा
हीहोिे ह।ैं इसवलये याल्सय ज्ञि स्मविमेंिी कहा गयाह-ै ‘‘अयं ि ु परमोिमो यत्योगेना शनजमत् र्दम’’ अथाजि वजस
योग सािना के राद्वाशनआजमर्दत् िथासा का
ह्मत्ब्रक्षा
र हो िही मानि मात्रका परम िमज ह।
योग में मनष्ु य मात्रके समग्रउत्थान, वि कास एि ं उत्कषज
के अनके ानके
उपाय, प्रयोग सवु नयोवजि
ह।ैं यह आमत् शवयों क्तको जागिृ कर यवक्त व् त्ि के परम वशखर पर पहचुाँने कासािन ह।ै ंसक्ष ेप मेंकहा जा
सकिा है वक योग एक जीिशनज र्द ह,ैष्ठजीि श्रे न पर्द्विह,ै योग िस्ििु ः जीिन जीने की सि ष्ठजकला
श्रे ह।
योग का अर्थ -
योगदशर् ब्कीपउवत्त्तसस्ं कृ ि िाषा के यजु ् िाि ु मेंघ´््यय त्प्र लगाके हईु है । वजसकासामायन्
अथज होिा ह- जोड़ना। पावणवन या व्करण के अनसु ार गण पाठ में िीन यजु ् िाि ु ह-
यजु -
1. यजु ् समािौ (समावि) वर्दिा वर्द
गणीय- अपने िास्िविक रूप को जानकर उसमेंवनमलन रहना।
2. यवु जर् योगे (सयं ोग या जड़ु ाि ) रुिा वर्दगणीय- एकत्व,
जड़ु ाव, सयं ोग, मले या जोड़ना।
3. यजु ् सयं मने (सयं म) चरु ावर्द गणीय- सयं म यावशीकरण। यइन्द्रि सयं म, अर्थ सयं
म, समय सयं म एवंचा रद्वस
न्यं म।
परिभाषा -
1.षथमहत्रपतंजलत्र के अनुसाि-‘‘यो
चश्वगत्तत्रृ
निो
धः
त्रत्त’त्र (पतंजत्र
ल.यो.स.ू 1/2)
अथाजि ् वचत्त
की ि वृ त्तयों का वनरोि ही योग ह।

2. गीता के अनुसाि -

 ‘‘योगः कमसथ ु कौशलम’’ (गीता 2/50)


6
अथाजि ् कमज करने की कु शलि ा ही योग ह।
 ‘‘समत्वं योग उच्यते’’ (गीता 2/48)
 ‘‘दुःख सयं ोगत्र वयोगं योग ं
सत्र ितम’’ (गीता
अथाजि् जो र्दः
6/23) ु ख रूप ससं ार के सयं ोग से रवहि है उसकानाम योग ह।

शमप्र3.
न के महो
नपषत्रद्उपाय
के अनको
ुसाियो-‘‘मनः
ग कहतेशमनो
प्र पायोहैं।
योग इत्यत्र
भधीयते’’ (महो0 5/42) अर्ा
थत् मन क

4. महत्रषथ याि वल्कक्य के अनुसाि- ‘‘सयं ोग योगयुक्तो इत्र त


अथाजि ् जीि ात्मा और परमात्मा के वमलन को ही
यक्त कहि े ह।
ु योग ो जीवात्मा
5. कै वकल्नयो
षपदत्र् के अनुसाि- ‘द्धा
पिमात्मनो।’’ क्त
श्रया
ध्भनत्र योगादह’’
वेत्र
जि्
अथा ा,र्द्श्रिवक्त
, यानध्राकेआ
माद्वा
नत्काहीज्ञा
योग।ह

अथा
6. वष्णजि
त्रु्पिजीिा
त्मा िथा परमामा
त् का पणू जिःवमलन ही योइगत्क्तःहजी
ु ाण के अनुसाि- ‘‘योगः सयं ोग य
। वामा
त् पिमामनो
त् ।’’
7. यो
शगखो
त्रनपषत्रद् के अनु0- ‘‘योग प्रा णपानयोिै
क्यं स्विजोिेत अस्तर्ा।’’
सयू थ मचसो द्रन् योग जीवामा
त् पिमामनः
त् ।’’
ज को सयू अथाि

10. मक
श्रीिाृ णष् पिमहंस के अनु0- परमामा त् की शाश्विअखण्र्ज्योवि के साथ अपनी ज्योवि को वमलानार्द
ही योग ह।
11. युग ऋत्रष के अन0ु -
जीिन सािना हीयोग है । वचत्तकी चिेाओं को बवहमखजु ी बननेसेरोककर उन्हेंअंिमखजु ी करना िथा
आध्यावत्मक वचिं न में लगाना ही योग ह।
अिाि को िाि स,े अपणू िज ा को पणू जिासे वमलाने की विद्यायोग कही गई ह।
12. स्वामीववेकान त्र ंद के अन0ु -
योगयवव्क्तके विकास को उसकीशारीररक सत्ताके एक जीिन या कु छ घण्टोंमें सवंप्तकक्षरनेर्दे का सािन ह।
13. स्वामी दयानदं के अनुसाि- सजगिा का विज्ञा
न योग ह।
14.वनोबा त्र भावे के अनसु ाि -
जीिन के वसर्द्ान्िोंको व्यिहार में लाने की जो कला या यवु क्तहै उसी को योग कहिे ह।
15.षथशमहष्ठत्रकेवत्र अन0ु - ससं ाि सागि से पाि होने की युक्तयो त्रग है।
16.षथमहत्रअि वत्रंद के अन0ु - अपने आप से जुड़ना ही योग है।
18. िाघें य िाघव के अन0ु -शवत्रएवंक्तका शत्रमलत्रन ही योग है।
19. महादेसाई के अनु0- शरीर, मन एिं आत्मा की सारी शवयों
क्तको परमामा
त् में वनयोवजि करना ही योग ह।

7
योग के मुख्य प्रकार व
योग सािना के कई पर्द्वि
यां िारिीय िांगमय मेंचवलि
प्र है | जो विविन्नका
प्रर के सािको क मनोिवू म एिं शारीररक वस्थवि
के अनरूु प अलग – अलग उु पयक्त अभ्यासोंकोअंग वनरूवपि करिी ह,ै इनमे से सिी योग क

श्उद्दय , शारीररक मानवसक , सामावजक एिं अया
ध्वमक
त्
स्िास््य सेलके र मानिीयकउषज
त् और परमयलक्ष्कीवप्तप्रा
म सहायक है , जो वनम्वलवखिहै –

हठ योग – षट्कम,आसन ,प्रा


णायाम ,मुद्र ा-

बंि,प्रत्याहार,ध्यान,समावि! ज्ञान योग - कमयोग - ि योग


वक्त !

अि ांगयोग – यम वनयम,आसन,
ाणा
प्र याम,प्रत्याहार,िारणा,ध्यान,समावि !

राजयोग ,

RESEARCHES REVIEWS
Effects of yoga on the autonomic nervous system, gamma-aminobutyric-acid, and
allostasis in epilepsy, depression, and post-traumatic stress disorder
CC Streeter, PL Gerbarg, RB Saper, DA Ciraulo… - Medical hypotheses, 2012 - Elsevier

Effect of yoga-based and forced uninostril breathing on the autonomic nervous


system
P Raghuraj, S Telles - Perceptual and motor skills, 2003 - amsciepub.com

Effect of integrated yoga on stress and heart rate variability in pregnant women
M Satyapriya, HR Nagendra, R Nagarathna… - International Journal of …, 2009 - Elsevier

Effects of yoga versus walking on mood, anxiety, and brain GABA levels: a
randomized controlled MRS study
CC Streeter, TH Whitfield, L Owen… - The Journal of …, 2010 - online.liebertpub.com

8
The effects of yoga on hypertensive persons in Thailand
R McCaffrey, P Ruknui, U Hatthakit… - Holistic nursing …, 2005 - journals.lww.com

PDF] Stress due to exams in medical students-a role of Yoga


A Malathi, A Damodaran - Indian journal of physiology and pharmacology, 1999 - ijpp.com

Yoga as a complementary treatment of depression: effects of traits and moods on


treatment outcome
D Shapiro, IA Cook, DM Davydov, C Ottaviani… - Evidence-based …, 2007 - hindawi.com

Effect of Sahaja yoga practice on stress management in patients of epilepsy


U Panjwani, HL Gupta, SH Singh… - Indian journal of …, 1995 - ijpp.com

Yoga as a complementary treatment of depression: effects of traits and moods on


treatment outcome
D Shapiro, IA Cook, DM Davydov, C Ottaviani… - Evidence-based …, 2007 - hindawi.com

... The Iyengar approach in the present study focused mainly on more active asanas and included only
brief periods of relaxation and breathing exercises. ... Both rate and depth of respiration affect HRV (56)
and may have a general effect on the autonomic nervous system or an ...

Impact of Yogic Shatkarma in psycho-somatic health of female teachers


M Rastogi - indianyoga.org

... Impact of Yogic Shatkarma in psycho-somatic health of ... To assess the impact of yogic intervention
parameters on psycho-somatic health. ... 2. Kumar, Kamakhya, Sharma, charu, Kumar Abhishek
(2010)-effect of jal nati on optic nerve conduction velocity, Yoga mimansa april 2010 ...

EFFECT OF UJJAIYEI PRANAYAMA ON PSYCHOMOTOR ABELITIES OF


VOLLEYBALL PLAYERS
GS Singh - Maharani Laxmibai - mpcolleges.nic.in

... This is done through the practice of Asana, Pranayama, Mudra, Bandha, Shatkarma and
Meditation ... Pranayama is more important because it produces deeper effects as far as the outcomes are ...
STUDY ON THE EFFECT OF YOGA (YOGASANS, PRANAYAM AND MEDITATION). ...

Study on the effect of Pranakarshan pranayama and Yoga nidra on alpha EEG & GSR
K Joshi - 2009 - visionlibrary.vethathiri.edu.in

... Keywords: Asana, Pranayama, Shatkarma, Yoga Nidra, ESR IPC Int. ... of Literature Various studies have
been done in different part of world for observing the effect of Yoga ... Yoga classes; so all
had been practicing the set of Asanas, Pranayamas and Shatkarmas regularly (except ...

Effect of pranayama & yoga-asana on cognitive brain functions in type 2


diabetes-P3 event related evoked potential (ERP).
T Kyizom, S Singh, KP Singh… - Indian Journal of …, 2010 - search.ebscohost.com

... An improvement in the latency and amplitude of N2 and P3 waveform is seen in theyoga group which
regularly and strictly performed pranayama and asanas for 45 days (Tables IV ... The effect of yoga
therapy in diabetes mellitus. ... Human auditory potentials: II Effects of attention. ...

The neural basis of the complex mental task of meditation: neurotransmitter and
neurochemical considerations

9
AB Newberg, J Iversen - Medical hypotheses, 2003 - Elsevier

... 1 h when they were again injected with the tracer while they continued to meditate. ... urine are
significantly increased, suggesting an overall elevation in (5-HT) during meditation (38 ... resulting in
internally generated imagery that has been described during certain meditative states. ...

Changes in EEG and autonomic nervous activity during meditation and their
association with personality traits
T Takahashi, T Murata, T Hamada, M Omori… - International Journal of …, 2005 - Elsevier

... Successful meditative experience appears to be mediated by a switching-off mechanism of ... of


sympathetic tone) (Table 2). Therefore, internalized attention enhanced by meditation
(characterized by ... the slow alpha power in the frontal area) has an inhibitory effect on sympathetic ...

Spectral analysis of the central nervous system effects of the relaxation


response elicited by autogenic training
GD Jacobs, JF Lubar - Behavioral Medicine, 1989 - Taylor & Francis

... alterations. Research on the central nervous system (CNS) effects of relaxation
techniques is much more limited. Of the various relaxation techniques, only Dr ...
Knoxville. meditation has been the focus of significant research. ...

Changes in EEG and autonomic nervous activity during meditation and their
association with personality traits
T Takahashi, T Murata, T Hamada, M Omori… - International Journal of …, 2005 - Elsevier

... Successful meditative experience appears to be mediated by a switching-off mechanism of ... of


sympathetic tone) (Table 2). Therefore, internalized attention enhanced by meditation
(characterized by ... the slow alpha power in the frontal area) has an inhibitory effect on sympathetic ...

10
 अध्याय -४
योग के HवHभन्नअंगो व अभ्यासों का तंHका
त्र तंत्र पर प्रभाव
 षट्कमो का प्रिाि  आसनोंका प्रिाि  णा
प्रायाम का प्रिाि  मद्र ा- बंि

का  िारणा- ध्यान -
 प्रिाि
त्प्रयाहार का प्रिाि  ंमत्रयोग का प्रिाि  कु ण्र्वलनी
योग का प्रिाि समावि (सयं म ) का

1. षट् कमF का
कपालरं ध्र
१.धौHत -वातसार भाव
प्रर अHननसार–
वाररसा बHहकस्ृ त तंदलम ू मलHजह्वा ू कणारं ध्र

 आहारनाल,अमाशय,यकृ ि ,अलनाशय,छोटी ण(आल्


घ्रा फे सटरी) ि वं त्रका,
बड़ी आंि, मलाशय, ुगर्द ा िक सपणम् ू ज शरीर की ि आवटटक ंवत्रका, ऑर्ीटरी, िेगस आवर्दकापालीय
 शआ
सम्ब ंि -
वु र्द्! ंवि ि ि ंवत्रका के
िंवत्रकायोंकी शवु र्द्, पवु ििंवत्रका आिेगों
की त्िररि प्रिाह से, नेत्र ज्योवि
संि ेर्दनशीलि ा में ि वृ र्द्
बढािी यथा “यव्वर्ददृवि प्रजायिे”,यव्वर्दश्रि ण मिा
क्ष
होि ी
,फे फड़े , स्ि र यन्त्रआवर्द
,ि ंवत्रकाओ को ु शर्द्
रक्ति पोषक का कु शल काय संचालन !
ि त्ि की प्रावप्तत्ि ररि ,लार,
वसम्पेथेवटक मखिुंआ वर्दओ
वत्रकाअगं –ो नेत्रके वियायो पर
वियाशवक्तका विकास सिा
जयकल,ब्रै
वन्कयल टलेससस पर िा प्र ि पड़िा
है ! वनयंत्रण स्थावपि होिी है |
रबर
द0ड वमन मवस्त्रू
ल शोधन ३.नेHत - जल सुत्र
 औटोनोवमक टलेससेस जैसे
कावर्जयक,व
आहा रनाल,अमाशय,यकृसवलि यक, ,अलनाहायपोगे वस्टीिआ
शय,छो क ंपरि बड़ी कपावलये िंवत्रका सबल, स्िस्थ ! वियाशीलिा,
आसकिात् मक प्रिाि पड़िा
ंि, मलाशय ि ु गर्द ा हैइससे! सम्बंवििस्पाइनल िवन्कात्र मस्वृ ि की िवृ र्द्, िनाि ,
पर सकारात्मक प्रिाि ! वचंिा,अिसार्दसे मवु क्त
२.िवस्ि (जल,स्थल) ; !टक ,६.कपालिावि (िािकमज यत्,व्ु िम,शीििम )
५.त्रा
३.नौली(िाम,मध्यवण,र्द
क्ष )
11
2. आसनो का
िाि
प्र
1.शिीि सवं धथनात्मक आसन

• सिाांग,िजु ंग,हलासन, िनरु


ासन, शीषाजसन पवश्चमोत्तान आवर्द !

• िंवत्रका कोवशकामजबिू ी, आिेगों का


िीव्रसंचार
!

• एवछछक -अवछनैछक वियायों का कु शलिा पिू जक


सञ्चालन क्षमिा का विकास होिा
है !

• संिवु लि शाररररक वस्िवथ


बनिी है !
2.ध्यानात्मक आसन -
• सपद्मा
न,सखु ासन,िज्रा
सन,वसर्द्, स्िवस्िक,
िद्रासन आवर्द
• मांसपेवशयोंि अंगो को पया
जप्तआराम िंवत्रवकये
उद्दीपनो में कमी से CNS को नविन
उजाज की प्रावप्त !
• अनकु म्पी – परानकु म्पी
िंवत्रका पर सकारात्मक प्रिाि !
• िंवत्र
वकये क्षमिा, संिेर्दनशीलिा में िवृ र्द्!
• जागरूकिा - एकाग्रिा का 12
विकास !
3.गत्यात्मक आसन -
• सयू जनमस्कार, प्रज्ञा
योग , िामज -उप , पिन ुमक्त
ासन आवर्द
• िंवत्रका आिेगों का िीव्रप्रिा
ह , शारीररक
अंगो पर ूसक्ष म वनयंणत्र मिा
क्ष !
• शवक् त ,आरोलयिा , संिलु न
में िवृ र्द् !
• वचंिा , अिसार्द,वनराशा , िय,आत्महीनिा से
मवु क्त !
4.त्रवश्रात्रन्तकािक -

• मकरासन,विणष् ु आसन, शिासन आवर्द!


• सम्पणू ज शरीर के साथ – साथ
– िंवत्रका िंत्र को
विश्रांवि- पोषण !

• अनािश्यक िनाि से मवु क्त!स्फू विज,उसात्ह का


पनु ः संचार होिा है !

• िनाि ,रक्त
चाप ,िोि ,वचंिा, िय
आवर्द से मवु क्त !

५.संिलु
नात्मक आसन
 कु कु टासन ,बकासन, हसं ासन, 13
मयरू ासन,
िवृ श्चकासन, नटराज आवर्द
 एकाग्रिा, िारण शवक्तका विकास होिा है !
 संिेर्दीएिं मोटर िंवत्रका पर वनयंणत्र स्थावपि
होिी है !

प्राणायाम का प्रभाव

जीिनीण(प्रा ि) कीिवृ होिी


क्तवशित्त् र्द् है !

ि ंवत्रकाओं में आि ेगों का उत्त


म प्रि ाह होिा है !

७२००० नावर्यो की शवु र्द्होिी है !

य,र्दह्र फे फड़े , मवस्िष्क , अन्िः स्रािीं


ग्र वथ ,सषु म्ु ना वस्थिनावड़यो की सपणम् ू ज शवु र्द्होिी है !

िंवत्रका संिेर्दनशीलिामें िवृ र्द्!


सप्त मवस्िकी
ु ष् य कोवशकाओं का जागरण, बवु र्द्ि मस्रण मिा
क्ष िवृ -र्द् जैसे - मरी
भ्रा णा
प्रायाम का अभ्यास से !

वचंिा, िनाि, अशांवि ,अवनद्रा,वनराशा, आमत् हीनिा से मवु क्त– सयू ज-िेर्दी
से ! अनकु पी-
म् परा
नकु ं पी िंवत्रका िंत्रपर सकारामक
त् प्रिाि पड़िा ह

मुद्रा
-बंध काभावप्र

णप्राको उु
पयक्त शा
वनर्दर्दाप्रकरने से वस्थरिा,प्रसन्निा
,शांवि , आनंवर्दप्तप्रा
होिी है |
सबम्विं ि ुमद्र ा अनसु ार िवत्रं का में आिगोंे वनरिं र सबम्वं िि अगों 14
िक प्रिा
ह से उसी अनरूु प लाि वप्त!प्रा
शाम्ििीुमद्र ा , निो ुमद्र ा, नासाग्र– एकाग्रिा|

खेचरीुमद्र ा – कपालीय िंवत्रका पर प्रिाि|

हस्ि ुमद्र ा , शारीररक ुमद्र ा से शारीररक – मानवसक िंवत्रकीय वनयंणत्र


नज्ञाुमद्र ा – बवु र्द्, मस्रण शवक्तविकास

बिं ि ारण प्राण को खाश अगों में


ि ारण – ि वत्रं का क्षमि ा में
ि वृ र्द्, अिरोि का सफाया

अध्यावमक
त् कउषजत् – षट चिों + कुवलनी
ण्र् का जागरण !

प्रत्याहार का प्रभाव
मन को बाह्यवि षयों से हटा कर अि मजं
खु ी करना |
आंि ररक मनो शारीररक ( ि वत्रं
कीय ) वि यायों के प्रवि सजगि ा
अनािश्यक चंचलिा से मुक्तहो उजा
ज के सहीपसर्दु योग का
अिसर
मानवसक शाविं , िैयज की
प्रावप्त– “प्र
याहारणे
त्
ि ीरिा”-१/१० घ.े सं. (अल्फ़ा ििे )
हाइपर एवसटविटी , िोि , लालच ,काम, या
जइष् ,मोह आवर्दसे
मवु क्त!

धाि णा -ध्यान-समात्रध का प्रिाव


15

बवहमखजु ी मन को अंिमखजु ी कर विविन्निस्ि,ु आवर्द


विषयोंपर एकाग्रकरना – िारणा
यव्वनर्दपज्ञा
रक , शवपक्त
रक, सािन परक वििवू ियों कीवप्तप्रा
! जैसे – कायायह
व् ु कानज्ञा,रर्दू
शनजर्द ,
िविष्यनज्ञा,अंिध्यानज होनेकी शवक्त, आकाश गमन आवर्द! साथ हीहाथीसदृयश् बल , ििु जय अवणमा
होिी
प्तव अि
आर्दवहैप्रा,वसवर्द्वजससेमानिीयजयों
यका
चशवक्तजनकआ
श्
स होकरकउत्ृ ििा
विस्िार वि
का कोप्तहोिे
प्रा है !
मंि योग का प्रिा व
“ि ज्जपस्िर्दथज िािनम” –१/२८(प.यो.स.ू )
केयद्री
न् िंवत्रका ,कापलीय िंवत्रका िंत्रआवर्दके पउनद्दीसेपनउत्त्िरंगोराद्वाउस िाि कीवप्तप्रा
होिी है !

इससे मानवसक शांवि , एकाग्रिाएिं उछच िाि कीवप्तप्रा


होिी है !

कंु डHलनी योग काभावप्र


आसन +प्रा
णायाम+मु
द्र ा+बिं +जप+ध्यान सेसषु म्ु ना वस्थि
षट्चिों कािमश: जागणररामपरद्वाचिेन अिस्था िक पहुचना!
foKkuh ekbdsy Vkycksy-dq.Mfyuh Hkh CySd gksy ds
leku
lksbZ iMh jgrh gSA ijUrq t c tkxzr gksrh gS] rks izp.M
oy;kdqr rjaxks ds l n mij mBrh gSA
CySd gksy o d qf.Mfyuh nksuks gh v i fjfer , oa
vuar शfDr d s Hk.Mkj gksrs gSA nksuks d s gh xfr
d ks oy;kdqr ekuk x;k
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f’ko fd tVk ds leku ] [kksyk lesVk tk ldrk gSA


&

dYi ds vkfn es vkdk’k dk izlkj var esa ladqpu होिा


है |

16
 अध्याय -५
नष्कर्ष
त्र –
िंवत्रका िंत्रमानि शरीर केमखप्रु िन्त्रहै वजसके राद्वासमस्ि शारीररक िंत्रोंएिं अंगो के वियायों का कु
शल वनयंणत्र एिं समायोजन सिं ि हो पािा है ! वजससेवनरिं र वबना कोई अिरोि ि गड़बड़ी केनवर्दविनवप्रर्दके वियायो का
सफलिापिू जक सचं ालन होिा रहिा है , इस िरह मानि जीिन व्यिीि होिी रहिी है | जब कं ही कारणोंसे
िंवत्रका िंत्रमें कोपी गड़बड़ीपन्नउहोत्त् जािी है िो उसकाप्रिािसम्बंविि अंगो के साथ – साथ समस्ि शरीर पर खा
वर्दई
पड़िाहै !वजसके कारण कई का
प्रर के मनो – शारीररक या शारीररक मानवसक रोगपन्नउहोिे
त्त् है , वजससेमनष्ु यखर्दु ी ,पीवड़ि होकि की
अनिु वू ि करिाहै और आियक
श् कायोके सपं ार्द
न मेंिी स्ियं को असमथज पािा है ! जैसे- वचिं ा,
िनाि , वनराशा , िोि , मनोविर्दा
वलिा, र्र, अवनद्रा
, आवर्दनानाका
प्रर के मानवसक रोग एिं अपच , कजब् य,र्दह्ररोग , मिमु हे आवर्द
शारीररक रोग | आिवु नक िौविक दृविकोण की इस काल मेंमनष्ु य विविन्नका
प्रर शारीररक मानवसक रोगोंसेस्ग्रि होर्दः
ु ख पारहेहै ,
उन्हेंइसस मवु क्तके उपाय का बेसब्रीसे इिं जार होि ी है ! िावक उनके इस
समस्या का समािान हो जीिन सखु शांवि पणू बन सके |
योग वि
नज्ञािारिीययव्वर्दद्रिाऋवषयोंके त्त
यराद्वा
व्वर्दर्दप्रअनमोल उपहार है वजन्हेंइस िरिी काकामिनेृऔक्षर कल्पि
हाजा
यिो को
ईवक्त
यो
नहीअ
श्हो
विगी|क
वसयोइससेरकशा क समस्िरोगोंकेउचार
री –नवसमा
के साथ – साथ , वचर वनरोगी ,प्र सन्न, आ दमनयर् न् जीिन जीनेकी सिी ित्ि इसमे अवछ िरह समावहि है | जैसाकीसिी जानिे है योग नविज्ञा
मानिीय शरीर- मन-अन्िःकरण एिं आत्मापर आिाररि है | वजससे यौवगक अभ्यासोंका प्रिािवनवश्चिरूप सेशारीररक िंत्रोंपर पड़गेा !
वजसमेथस्लू अभ्यासो ( जैसे आसन णा
प्रायाम आवर्द) का कं कावलये – पशीय आवर्दिंत्रोंपर अविक प्रिािखा वर्दई पड़िा है ! उसीका
प्ररूसक्ष्

िंत्रिंवत्रकािंत्रपर योग काऔर िी या व्पक प्रिािपड़िाखा
वर्दई र्दिे
ा है सयोवक योग के अविकिम अभ्यास ूसक्ष्म (आिं
ररक) रूप से प्रिाि
कारी है |
िंवत्रका िंत्र के अंिगिज के यद्री न् एिं पररिीय र्दोनों ही िंत्रों पर योग के विविन्न अंगो जैसे –
षट्कमज ,आसन ,
णा
प्रायाम , ुमद्र ा- बंि , या
त्प्रहार , िारणा, ध्यान ि समाविसाथ हीमत्रन्योग कंुलनी
र्व योग आवर्दसिी का सकारामक
त् एिं
उल्ले
खनीय प्रिािपड़िाहै वजससे विविन्नका
प्रर के मानवसक – शारीररक रोगोंसे मवु क्तवमलिीह,ै स्िास््य , शवक्त, सामजं स्य, कु
शलिा , वनयंणत्र एिं उकत् ृ ििा की िवृ र्द्होिी है | वजससे जीिन सखु , शांवि एिं आं
नर्द पणू ज
17
बननेसे िन्य होजािा है ! इन्हीयव्वर्दउकत् ृ ि अनुर्द ानोंएिं लािवप्तप्रा
के कारण गीिा में िगिान कश्रीृ णष् , अजजनु को योगी
बनने का हीशेउपर्दकरिे है -
द्दि
सन् ष सची -
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