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एन0आई0ओ0एस0 ब्यूटी कल्चर

छः माह सर्टि र्िकेट कोसि


की परीक्षा के आं र्िक पू र्ति हेतु प्रस्तुत
पररयोजना प्रर्तवे दन

Established in 1991
लघु शोध-प्रबंध

निर्दे नशका प्राचार्ाा

डॉ0 श्रीमती अन्नपूर्ाा शुक्ला नमिाक्षी भाटला

पर्ावेनक्षका शोधकर्त्री

श्रीमती कल्पिा निवेर्दी लक्ष्मी पाठक

प्रवक्ता ब्यूटी कल्चर एि0आई0ओ0एस0 ब्यूटी कल्चर

बैच िं0-50

इन्स्टीट्यूट ऑफ फैशि एण्ड


वनिता पॉनलटे क्निक)
लहुराबीर, वारार्सी
प्रमार्ित र्कया जाता है र्क प्रस्तुत लघु िोध कायि लक्ष्मी पाठक

सर्टि र्िकेट कोसि “राष्ट्रीय मुक्त र्वद्यालय र्िक्षा संस्थान – नई र्दल्ली” बैच नं0-50 की

छात्रा द्वारा सौन्दयि उपचार र्वषय पर मेरे प्रत्यक्ष र्नदे िन में र्कया गया एक प्रिंसनीय एवं

सराहनीय कायि है।

पयिवेर्क्षका

श्रीमती कल्पना र्द्ववे दी

प्रवक्ता ब्यूटी कल्चर


िोध प्रर्िया के सूत्रधार वर्नता पॉर्लटे क्नीक की र्नदे र्िका डॉ० श्रीमती अन्नपूिाि

िुक्ला जी की र्विेष आभारी हूँ र्जन्ोंने अपनी सहानुभूर्त से इस कायि को पूरा करने के

र्लए प्रोत्सार्हत र्कया।

मैं आभारी हूँ ब्यूटी कल्चर की प्रवक्ता श्रीमती कल्पना र्द्ववेदी जी की र्जन्ोंने अपने

र्नदे िन में अमूल्य ज्ञान तथा कौिल तथा मागि र्नदे िन द्वारा अपना अमूल्य समय दे ते हुए

िोध कायि को यथा सम्भव सही र्दिा प्रदान करने की कृपा की ।

साथ ही मैं अपने पररवार की तरि से आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु आभारी हूँ,

| साथ ही मैं अपने र्मत्रगि सहयोगी तथा यहाूँ के समस्त स्टाि की भी आभारी हूँ, र्जन्ोंने

| इस कायि में तथ्ों के संकलन में सहयोगी एवं सहानुभूर्तपूिि व्यवहार द्वारा मुझे अर्वस्मरिीय

सहयोग प्रदान र्कया।

भवदीया

लक्ष्मी पाठक
ब्यूटी कल्चर बैच नं0-50

"राष्ट्रीय मुक्त र्वद्यालय र्िक्षा संस्थान”

विषयसच
ू ी

1. र्ोग

2. परिचय : परिभाषा एवं प्रकाि

3. योग का इतिहास

4.

5. र्ोगासि

6. प्रमुख र्ोगासि

7. कुछ योगासनों व्याख्यान

8. र्ोग नर्दवस

9. योग का महत्व

10. योग का लक्ष्य

11. योग के प्रतसद्ध ग्रन्थ


र्ोग

र्ोग (संस्कृत: योगः ) एक आध्याक्िक प्रर्िया है र्जसमें िरीर और आिा ( ध्याि ) को एकरूप करना ही योग कहलाता

है। मन को िब्ों से मुक्त करके अपने आपको िांर्त और ररक्तता से जोडने का एक तरीका है योग। योग समझने से

ज्यादा करने की र्वर्ध है। योग साधने से पहले योग के बारे में जानना बहुत जरुरी है। योग के कई सारे अंग और प्रकार

होते हैं, र्जनके जररए हमें ध्यान, समार्ध और मोक्ष तक पहुंचना होता हैैै। 'योग' िब् तथा इसकी प्रर्िया और

धारिा र्हन्दू धमि, जैन धमि और बौद्ध धमि में ध्यान प्रर्िया से सम्बक्ित है। योग िब् भारत से बौद्ध पन्थ के

साथ चीन, जापान, र्तब्बत, दर्क्षि पूवि एर्िया और श्रीलंका में भी िैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत में लोग

इससे पररर्चत हैं। र्सक्द्ध के बाद पहली बार ११ र्दसम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वषि २१ जून को र्वश्व

योग र्दवस के रूप में मान्यता दी है।

र्हन्दू धमि, जैन धमि और बौद्ध धमि में योग के अनेक सम्प्रदाय हैं, योग के र्वर्भन्न लक्ष्य हैं तथा योग के अलग-अलग

व्यवहार हैं।[1][2][3] परम्परागत योग तथा इसका आधुर्नक रूप र्वश्व भर में प्रर्सद्ध हैं।

सबसे पहले 'योग' िब् का उल्लेख ऋग्वेद में र्मलता है। इसके बाद अनेक उपर्नषदों में इसका उल्लेख आया

है। कठोपर्नषद में सबसे पहले योग िब् उसी अथि में प्रयुक्त हुआ है र्जस अथि में इसे आधुर्नक समय में समझा जाता

है। माना जाता है र्क कठोपर्नषद की रचना ईसापूवि पांचवीं और तीसरी िताब्ी ईसापूवि के बीच के कालखण्ड में हुई

थी। पतञ्जर्ल का योगसूत्र योग का सबसे पूिि ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल ईसा की प्रथम िताब्ी या उसके आसपास माना

जाता है। हठ योग के ग्रन्थ ९वीं से लेकर ११वीं िताब्ी में रचे जाने लगे थे। इनका र्वकास तन्त्र से हुआ।
पर्िमी जगत में "योग" को हठयोग के आधुर्नक रूप में र्लया जाता है र्जसमें िारीररक र्िटनेस, तनाव-िैर्थल्य तथा

र्वश्राक्ि (relaxation) की तकनीकों की प्रधानता है। ये तकनीकें मुख्यतः आसनों पर आधाररत हैं जबर्क परम्परागत योग

का केन्द्र र्बन्दु ध्यान है और वह सांसाररक लगावों से छु टकारा र्दलाने का प्रयास करता है। पर्िमी जगत में आधुर्नक योग

का प्रचार-प्रसार भारत से उन दे िों में गये गुरुओं ने र्कया जो प्रायः स्वामी र्ववेकानन्द की पर्िमी जगत में प्रर्सक्द्ध के बाद

वहाूँ गये थे।

पररचर् पररभाषा एवं प्रकार

‘योग’ िब् ‘युज समाधौ’ आिनेपदी र्दवार्दगिीय धातु में ‘घं’ प्रत्यय लगाने से र्नष्पन्न होता है। इस प्रकार ‘योग’ िब् का

अथि हुआ- समार्ध अथाित र्चत्त वृर्त्तयों का र्नरोध। वैसे ‘योग’ िब् ‘युर्जर योग’ तथा ‘युज संयमने’ धातु से भी र्नष्पन्न होता

है र्किु तब इस क्स्थर्त में योग िब् का अथि िमिः योगिल, जोड़ तथा र्नयमन होगा। आगे योग में हम दे खेंगे र्क

आिा और परमािा के र्वषय में भी योग कहा गया है।

पररभाषा ऐसी होनी चार्हए जो अव्याक्ि और अर्तव्याक्ि दोषों से मुक्त हो, योग िब् के वाच्याथि का ऐसा लक्षि बतला

सके जो प्रत्येक प्रसंग के र्लये उपयुक्त हो और योग के र्सवाय र्कसी अन्य वस्तु के र्लये उपयुक्त न

हो। भगवद्गीता प्रर्तर्ित ग्रन्थ माना जाता है। उसमें योग िब् का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी

सर्विेषि, जैसे बुक्द्धयोग, सन्यासयोग, कमियोग। वेदोत्तर काल में भक्क्तयोग और हठयोग नाम भी प्रचर्लत हो गए हैं।

पतंजर्ल योगदििन में र्ियायोग िब् दे खने में आता है। पािुपत योग और माहेश्वर योग जैसे िब्ों के भी प्रसंग र्मलते है।

इन सब स्थलों में योग िब् के जो अथि हैं वह एक दू सरे से र्भन्न हैं ।

गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है 'र्ोगः कमासु कौशलम' ( कमों में कुिलता ही योग है।) यह वाक्य योग की

पररभाषा नहीं है। कुछ र्वद्वानों का यह मत है र्क जीवािा और परमािा के र्मल जाने को योग कहते हैं। इस बात को

स्वीकार करने में यह बड़ी आपर्त्त खड़ी होती है र्क बौद्धमतावलम्बी भी, जो परमािा की सत्ता को स्वीकार नहीं करते,

योग िब् का व्यवहार करते और योग का समथिन करते हैं। यही बात सांख्यवार्दयों के र्लए भी कही जा सकती है जो

ईश्वर की सत्ता को अर्सद्ध मानते हैं। पतञ्जर्ल ने योगसूत्र में, जो पररभाषा दी है 'योगर्ित्तवृर्त्तर्नरोधः', र्चत्त की वृर्त्तयों के
र्नरोध का नाम योग है। इस वाक्य के दो अथि हो सकते हैं: र्चत्तवृर्त्तयों के र्नरोध की अवस्था का नाम योग है या इस

अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं।

परिु इस पररभाषा पर कई र्वद्वानों को आपर्त्त है। उनका कहना है र्क र्चत्तवृर्त्तयों के प्रवाह का ही नाम र्चत्त है। पूिि

र्नरोध का अथि होगा र्चत्त के अक्स्तत्व का पूिि लोप, र्चत्ताश्रय समस्त स्मृर्तयों और संस्कारों का र्नःिेष हो जाना। यर्द

ऐसा हो जाए तो र्िर समार्ध से उठना संभव नहीं होगा। क्योंर्क उस अवस्था के सहारे के र्लये कोई भी संस्कार बचा नहीं

होगा, प्रारब्ध दग्ध हो गया होगा। र्नरोध यर्द संभव हो तो श्रीकृष्ण के इस वाक्य का क्या अथि होगा? योगस्थः कुरु कमािर्ि,

योग में क्स्थत होकर कमि करो। र्वरुद्धावस्था में कमि हो नहीं सकता और उस अवस्था में कोई संस्कार नहीं पड़ सकते,

स्मृर्तयाूँ नहीं बन सकतीं, जो समार्ध से उठने के बाद कमि करने में सहायक हों।

संक्षेप में आिय यह है र्क योग के िास्त्रीय स्वरूप, उसके दाििर्नक आधार, को सम्यक रूप से समझना बहुत सरल

नहीं है। संसार को र्मथ्ा माननेवाला अद्वै तवादी भी र्नर्दध्याह्न के नाम से उसका समथिन करता है। अनीश्वरवादी सांख्य

र्वद्वान भी उसका अनुमोदन करता है। बौद्ध ही नहीं, मुक्िम सूफी और ईसाई र्मक्स्टक भी र्कसी न र्कसी प्रकार अपने

संप्रदाय की मान्यताओं और दाििर्नक र्सद्धांतों के साथ उसका सामंजस्य स्थार्पत कर लेते हैं।

इन र्वर्भन्न दाििर्नक र्वचारधाराओं में र्कस प्रकार ऐसा समन्वय हो सकता है र्क ऐसा धरातल र्मल सके र्जस पर योग

की र्भर्त्त खड़ी की जा सके, यह बड़ा रोचक प्रश्न है परं तु इसके र्ववेचन के र्लये बहुत समय चार्हए। यहाूँ उस प्रर्िया पर

थोड़ा सा र्वचार कर लेना आवश्यक है र्जसकी रूपरे खा हमको पतंजर्ल के सूत्रों में र्मलती है। थोड़े बहुत िब्भेद से यह

प्रर्िया उन सभी समुदायों को मान्य है जो योग के अभ्यास का समथिन करते हैं।

पररभाषा

• (१) पातञ्जल योग दििन के अनुसार - र्ोगनित्तवृनतनिरोधः (1/2) अथाित र्चत्त की वृर्त्तयों का र्नरोध ही योग

है।

• (२) सांख्य दििन के अनुसार - पुरुषप्रकृत्योनवार्ोगेनप र्ोगइत्यनमधीर्ते। अथाित पुरुष एवं प्रकृर्त के

पाथिक्य को स्थार्पत कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवक्स्थत होना ही योग है।
• (३) र्वष्णुपुराि के अनुसार - र्ोगः संर्ोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मिे अथाित जीवािा तथा परमािा का

पूिितया र्मलन ही योग है।

• (४) भगवद्गीता के अनुसार - नसद्धानसद्धर्ो समोभूत्वा समत्वं र्ोग उच्चते (2/48) अथाित दु ःख-सुख, लाभ-

अलाभ, ित्रु-र्मत्र, िीत और उष्ण आर्द द्वन्दों में सवित्र समभाव रखना योग है।

• (५) भगवद्गीता के अनुसार - तस्माद्दर्ोगार्र्ुज्यस्व र्ोगः कमासु कौशलम अथाित कत्तिव्य कमि बिक न

हो, इसर्लए र्नष्काम भावना से अनुप्रेररत होकर कत्तिव्य करने का कौिल योग है।

• (६) आचायि हररभद्र के अनुसार - मोक्खेर् जोर्र्ाओ सव्वो नव धम्म ववहारो जोगो अथाित मोक्ष से

जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग हैं।

• (७) बौद्ध धमि के अनुसार - कुशल नचतैकग्गता र्ोगः अथाित कुिल र्चत्त की एकाग्रता योग है।

का इनतहास

मोहनजोदड़ो-हड़प्पा से प्राि मुहर में योगमुद्रा

मुख्य लेख: योग का इर्तहास

वैर्दक संर्हताओं के अंतगित तपक्स्वयों तपस (संस्कृत) के बारे में ((कल | ब्राह्मि)) प्राचीन काल से वेदों में (९०० से ५००

बी सी ई) उल्लेख र्मलता है, जब र्क तापर्सक साधनाओं का समावेि प्राचीन वैर्दक र्टप्पर्ियों में प्राि है।[4] कई मूर्तियाूँ

जो सामान्य योग या समार्ध मुद्रा को प्रदर्िित करती है, र्संधु घाटी सभ्यता (सी.3300-1700 बी.सी. इ.) के स्थान पर प्राि
हुईं है। पुरातत्त्वज्ञ ग्रेगरी पोस्सेह्ल के अनुसार," ये मूर्तियाूँ योग के धार्मिक संस्कार" के योग से सम्बि को संकेत करती

है।[5] यद्यर्प इस बात का र्निियािक सबूत नहीं है र्िर भी अनेक पंर्डतों की राय में र्संधु घाटी सभ्यता और योग-ध्यान में

सम्बि है।[6]

ध्यान में उच्च चैतन्य को प्राि करने र्क रीर्तयों का र्वकास श्रमार्नक परम्पराओं द्वारा एवं उपर्नषद की परं परा द्वारा

र्वकर्सत हुआ था।[7]

बुद्ध के पूवि एवं प्राचीन ब्रर्ह्मर्नक ग्रंथों मे ध्यान के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं र्मलते हैं, बुद्ध के दो र्िक्षकों के ध्यान के

लक्ष्यों के प्रर्त कहे वाक्यों के आधार पर वय्न्न्न यह तकि करते है की र्नगुिि ध्यान की पद्धर्त ब्रर्ह्मन परं परा से र्नकली

इसर्लए उपर्नषद की सृर्ष्ट् के प्रर्त कहे कथनों में एवं ध्यान के लक्ष्यों के र्लए कहे कथनों में समानता है।[8] यह संभार्वत

हो भी सकता है, नहीं भी.[9]

उपर्नषदों में ब्रह्माण्ड सम्बिी बयानों के वैर्श्वक कथनों में र्कसी ध्यान की रीर्त की सम्भावना के प्रर्त तकि दे ते हुए कहते

है की नासदीय सूक्त र्कसी ध्यान की पद्धर्त की ओर ऋग्वेद से पूवि भी इिारा करते है।

र्हंदू ग्रंथ और बौद्ध ग्रंथ प्राचीन ग्रन्थो में से एक है र्जन में ध्यान तकनीकों का वििन प्राि होता है। वे ध्यान की प्रथाओं और

अवस्थाओं का वििन करते है जो बुद्ध से पहले अक्स्तत्व में थीं और साथ ही उन प्रथाओं का वििन करते है जो पहले बौद्ध

धमि के भीतर र्वकर्सत हुईं. र्हंदु वाङ्मय में,"योग" िब् पहले कथा उपर्नषद में प्रस्तुत हुआ जहाूँ ज्ञानेक्न्द्रयों का र्नयंत्रि

और मानर्सक गर्तर्वर्ध के र्नवारि के अथि में प्रयुक्त हुआ है जो उच्चतम क्स्थर्त प्रदान करने वाला माना गया

है।[13] महत्वपूिि ग्रन्थ जो योग की अवधारिा से सम्बंर्धत है वे मध्य कालीन उपर्नषद, महाभारत,भगवद गीता 200

BCE) एवं पतंजर्ल योग सूत्र है। (ca. 400 BCE)

पतंजर्ल के योग सूत्र

मुख्य लेख: योग सूत्र

भारतीय दििन में, षड दििनों में से एक का नाम योग है। योग दाििर्नक प्रिाली,सांख्य स्कूल के साथ र्नकटता से

संबक्ित है।[16] ऋर्ष पतंजर्ल द्वारा व्याख्यार्यत योग संप्रदाय सांख्य मनोर्वज्ञान और तत्वमीमांसा को स्वीकार करता है,

लेर्कन सांख्य घराने की तुलना में अर्धक आक्स्तक है, यह प्रमाि है क्योंर्क सांख्य वास्तर्वकता के पच्चीस तत्वों में ईश्वरीय
सत्ता भी जोड़ी गई है। योग और सांख्य एक दू सरे से इतने र्मलते-जुलते है र्क मेक्स म्युल्लर कहते है,"यह दो दििन इतने

प्रर्सद्ध थे र्क एक दू सरे का अंतर समझने के र्लए एक को प्रभु के साथ और दू सरे को प्रभु के र्बना माना जाता

है।...."[19] सांख्य और योग के बीच घर्नि संबंध हेंरीच ऱ्िम्मेर समझाते है:

इन दोनों को भारत में जुड़वा के रूप में माना जाता है, जो एक ही र्वषय के दो पहलू है। यहाूँ मानव प्रकृर्त की बुर्नयादी

सैद्धांर्तक का प्रदििन, र्वस्तृत र्ववरि और उसके तत्वों का पररभार्षत, बंधन (बंधा) के क्स्थर्त में उनके सहयोग करने के

तरीके, सुलझावट के समय अपने क्स्थर्त का र्वश्लेषि या मुक्क्त में र्वयोजन मोक्ष की व्याख्या की गई है। योग र्विेष रूप

से प्रर्िया की गर्तिीलता के सुलझाव के र्लए उपचार करता है और मुक्क्त प्राि करने की व्यावहाररक तकनीकों को

र्सद्धांत करता है अथवा 'अलगाव-एकीकरि'(कैवल्य) का उपचार करता है।

पतंजर्ल, व्यापक रूप से औपचाररक योग दििन के संस्थापक माने जाते है।[21] पतंजर्ल योग, बुक्द्ध के र्नयंत्रि के र्लए

एक प्रिाली है र्जसे राज योग के रूप में जाना जाता है।[22] पतंजर्ल उनके दू सरे सूत्र मे "योग" िब् को पररभार्षत करते

है,[23] जो उनके पूरे काम के र्लए व्याख्या सूत्र माना जाता है:

र्ोग: नचत्त-वृनत्त निरोध:

- योग सूत्र 1.2

तीन संस्कृत िब्ों के अथि पर यह संस्कृत पररभाषा र्टकी है। अई.के.तैम्नी इसकी अनुवाद करते है की,"योग बुक्द्ध के

संिोधनों का र्नषेध है" योग की प्रारं र्भक पररभाषा मे इस िब् का उपयोग एक उदाहरि है र्क बौक्द्धक तकनीकी

िब्ावली और अवधारिाओं, योग सूत्र मे एक महत्वपूिि भूर्मका र्नभाते है; इससे यह संकेत होता है र्क बौद्ध र्वचारों के

बारे में पतंजर्ल को जानकारी थी और अपने प्रिाली मे उन्ें बुनाई. स्वामी र्ववेकानंद इस सूत्र को अनुवाद करते हुए

कहते है,"योग बुक्द्ध (र्चत्त) को र्वर्भन्न रूप (वृर्त्त) लेने से अवरुद्ध करता है।
इस, र्दल्ली के र्बरला मंर्दर में एक र्हं दू योगी की मूर्ति

पतंजर्ल का लेखन 'अष्ट्ांग योग"("आठ-अंर्गत योग") एक प्रिाली के र्लए आधार बन गया।

29th सूत्र के दू सरी र्कताब से यह आठ-अंर्गत अवधारिा को प्राि र्कया गया था और व्यावहाररक रूप मे

र्भन्नरूप से र्सखाये गए प्रत्येक राज योग की एक मु ख्य र्विेषता है।

आठ अंग हैं:

1. यम : सत्य, अर्हंसा, अस्तेय (चोरी न करना), अपररग्रह (अनावश्यक धन और सम्पर्त्त एकत्र न

करना), ब्रह्मचयि ।

2. र्नयम (पांच "धार्मिक र्िया") : िौच (पर्वत्रता), सिोष, तपस, स्वाध्याय और ईश्वरप्रार्िधान।

3. आसन

4. प्रािायाम : प्राि, सांस, "अयाम ", को र्नयंर्त्रत करना या बंद करना। साथ ही जीवन िक्क्त को

र्नयंत्रि करने की व्याख्या की गयी है।

5. प्रत्याहार : बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार

6. धारिा ("एकाग्रता"): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना

7. ध्यान : ध्यान की वस्तु की प्रकृर्त का गहन र्चंतन


8. समार्ध : ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ र्वलय करना। इसके दो प्रकार है - सर्वकल्प और

र्नर्विकल्प। र्नर्विकल्प समार्ध में संसार में वापस आने का कोई मागि या व्यवस्था नहीं होती। यह योग

पद्धर्त की चरम अवस्था है।

इस संप्रदाय के र्वचार मे, उच्चतम प्राक्ि र्वश्व के अनुभवी र्वर्वधता को भ्रम के रूप मे प्रकट नहीं करता. यह दु र्नया

वास्तव है। इसके अलावा, उच्चतम प्राक्ि ऐसी घटना है जहाूँ अनेक में से एक व्यक्क्तत्व स्वयं, आि को आर्वष्कार करता

है, कोई एक साविभौर्मक आि नहीं है जो सभी व्यक्क्तयों द्वारा साझा जाता है।

भगवद गीता

मुख्य लेख: भगवद्गीता

भगवद गीता (प्रभु के गीत), बड़े पैमाने पर र्वर्भन्न तरीकों से योग िब् का उपयोग करता है। एक पूरा अध्याय (छठा

अध्याय) सर्हत पारं पररक योग का अभ्यास को समर्पित, ध्यान के सर्हत, करने के अलावा इस मे योग के तीन प्रमुख

प्रकार का पररचय र्कया जाता है।

• कमि योग: कारि वाई का योग। इसमें व्यक्क्त अपने क्स्थर्त के उर्चत और कतिव्यों के अनुसार कमों का

श्रद्धापूविक र्नवािह करता है।

• भक्क्त योग: भक्क्त का योग। भगवत कीतिन। इसे भावनािक आचरि वाले लोगों को सुझाया जाता है।

• ज्ञाना योग: ज्ञान का योग - ज्ञानाजिन करना।

मधुसूदन सरस्वती (जन्म 1490) ने गीता को तीन वगों में र्वभार्जत र्कया है, जहाूँ प्रथम छह अध्यायों मे कमि योग के बारे

मे, बीच के छह मे भक्क्त योग और र्पछले छह अध्यायों मे ज्ञाना (ज्ञान) योग के बारे मे बताया गया है। अन्य र्टप्पिीकार

प्रत्येक अध्याय को एक अलग 'योग' से संबंध बताते है, जहाूँ अठारह अलग योग का वििन र्कया है।

हठयोग

मुख्य लेख: हठ योग


हठयोग योग, योग की एक र्विेष प्रिाली है र्जसे 15वीं सदी के भारत में हठ योग प्रदीर्पका के संकलक, योगी स्विरमा

द्वारा वर्िित र्कया गया था।

हठयोग पतंजर्ल के राज योग से कािी अलग है जो सत्कमि पर केक्न्द्रत है, भौर्तक िरीर की िुक्द्ध ही मन की, प्राि की

और र्वर्िष्ट् ऊजाि की िुक्द्ध लाती है। केवल पतंजर्ल राज योग के ध्यान आसन के बदले, यह पूरे िरीर के लोकर्प्रय

आसनों की चचाि करता है। हठयोग अपनी कई आधुर्नक र्भन्नरूपों में एक िैली है र्जसे बहुत से लोग "योग" िब् के

साथ जोड़ते है।

बौद्ध-धर्म

र्ेडिटे शन डिसे िहते हैं

र्ुख्य लेख: बौद्ध योग

बुद्ध पद्मासन र्ुद्रा र्ें योग ध्यान र्ें.

प्राचीन बौद्धद्धि धर्म ने ध्यानापरणीय अवशोषण अवस्था िो डनगडर्त डिया।[34] बुद्ध िे प्रारं डिि उपदे शों र्ें योग डवचारों

िा सबसे प्राचीन डनरं तर अडिव्यद्धि पाया जाता है।[35] बुद्ध िे एि प्रर्ुख नवीन डशक्षण यह था िी ध्यानापरणीय

अवशोषण िो पररपूणम अभ्यास से संयुि िरे .[36] बुद्ध िे उपदे श और प्राचीन ब्रह्मडनि ग्रंथों र्ें प्रस्तुत अंतर डवडचत्र है।

बुद्ध िे अनुसार, ध्यानापरणीय अवस्था एिर्ात्र अंत नहीं है , उच्चतर् ध्यानापरणीय द्धस्थती र्ें िी र्ोक्ष प्राप्त नहीं होता।
अपने डवचार िे पूणम डवरार् प्राप्त िरने िे बजाय, डिसी प्रिार िा र्ानडसि सडियता होना चाडहए:एि र्ुद्धि अनुिूडत,

ध्यान जागरूिता िे अभ्यास पर आधाररत होना चाडहए। [37] बुद्ध ने र्ौत से र्ुद्धि पाने िी प्राचीन ब्रह्मडनि अडिप्राय िो

ठु िराया.[38] ब्रडह्मडनि योडगन िो एि गैरडिसंक्य द्रष्टृ गत द्धस्थडत जहााँ र्ृत्यु र्े अनुिूडत प्राप्त होता है , उस द्धस्थडत िो वे

र्ुद्धि र्ानते है।

बुद्ध ने योग िे डनपुण िी र्ौत पर र्ुद्धि पाने िी पुराने ब्रडह्मडनि अन्योि ("उत्तेजनाहीन होना, क्षणस्थायी होना") िो एि

नया अथम डदया; उन्हें, ऋडष जो जीवन र्ें र्ुि है िे नार् से उल्लेख डिया गया था।[39]

ये िी दे खें: प्राणायार्

योगिारा बौद्धद्धि धर्म [

योगिारा(संस्कृत:"योग िा अभ्यास"[40], शब्द डवन्यास योगाचारा, दशमन और र्नोडवज्ञान िा एि संप्रदाय है , जो िारत र्ें

4 वीं से 5 वीं शताब्दी र्े डविडसत डिया गया था।

योगिारा िो यह नार् प्राप्त हुआ क्योंडि उसने एि योग प्रदान डिया, एि रूपरे खा डजससे बोडधसत्त्व ति पहुाँचने िा

एि र्ागम डदखाया है।[41] ज्ञान ति पहुाँचने िे डलए यह योगिारा संप्रदाय योग डसखाता है।[42]

छ'अन (डसओन/ जेन) बौद्ध धर्म [संपाडदत िरें ]

जेन (डजसिा नार् संस्कृत शब्द "ध्याना से" उत्पन्न डिया गया चीनी "छ'अन" िे र्ाध्यर् से [43])र्हायान बौद्ध धर्म िा एि

रूप है। बौद्ध धर्म िी र्हायान संप्रदाय योग िे साथ अपनी डनिटता िे िारण डवख्यात डिया जाता है। [34] पडिर् र्ें, जेन

िो अक्सर योग िे साथ व्यवद्धस्थत डिया जाता है ;ध्यान प्रदशमन िे दो संप्रदायों स्पष्ट पररवाररि उपर्ान प्रदशमन िरते

है।[44] यह घटना िो डवशेष ध्यान योग्य है क्योंडि िुछ योग प्रथाओं पर ध्यान िी जेन बौद्धद्धि स्कूल आधाररत है।[81]योग

िी िुछ आवश्यि तत्ों सार्ान्य रूप से बौद्ध धर्म और डवशेष रूप से जेन धर्म िो र्हत्पूणम हैं। [45]

िारत और डतब्बत िे बौद्धद्धि धर्म [संपाडदत िरें ]

योग डतब्बती बौद्ध धर्म िा िेंद्र है। द्धन्यन्गर्ा परं परा र्ें , ध्यान िा अभ्यास िा रास्ता नौ यानों, या वाहन र्े डविाडजत है ,

िहा जाता है यह परर् व्यूत्पन्न िी है।[46] अंडतर् िे छह िो "योग यानास" िे रूप र्े वडणमत डिया जाता है , यह है:डिया
योग, उप योग (चयाम), योगा याना, र्हा योग, अनु योग और अंडतर् अभ्यास अडत योग.[47] सरर्ा परं पराओं नेर्हायोग और

अडतयोग िी अनुत्तारा वगम से स्थानापन्न िरते हुए डिया योग, उपा (चयाम) और योग िो शाडर्ल डिया हैं। अन्य तंत्र योग

प्रथाओं र्ें 108 शारीररि र्ुद्राओं िे साथ सांस और डदल ताल िा अभ्यास शाडर्ल हैं।[48] अन्य तंत्र योग प्रथाओं 108

शारीररि र्ुद्राओं िे साथ सांस और डदल ताल िा अभ्यास िो शाडर्ल हैं।

यह द्धन्यन्गर्ा परं परा यंत्र योग िा अभ्यास िी िरते है। (डतब. तरुल खोर), यह एि अनुशासन है डजसर्े सांस िायम (या

प्राणायार्), ध्यानापरणीय र्नन और सटीि गडतशील चाल से अनुसरण िरनेवाले िा ध्यान िो एिाडग्रत िरते

है।[49]लुखंग र्े दलाई लार्ा िे सम्मर र्ंडदर िे दीवारों पर डतब्बती प्राचीन योडगयों िे शरीर र्ुद्राओं डचडत्रत डिया जाता है।

चांग (1993) िारा एि अद्धम डतब्बती योगा िे लोिडप्रय खाते ने िन्दली (डतब.तुम्मो) अपने शरीर र्ें गर्ी िा उत्पादन िा

उल्लेख िरते हुए िहते है डि "यह संपूणम डतब्बती योगा िी बुडनयाद है". [50] चांग यह िी दावा िरते है डि डतब्बती

योगा प्राना और र्न िो सुलह िरता है , और उसे तंडत्रस्म िे सैद्धांडति डनडहताथम से संबंडधत िरते है।

जैन धर्म
तीथंिर पार्स्म यौडगि ध्यान र्ें ियोत्सगाम र्ुद्रा र्ें. ]र्हावीर िो िेवल ज्ञान

प्राद्धप्त र्ुलाबंधासना र्ुद्रा र्ें

दू सरी शताब्दी िे जैन ग्रन्थ तत्त्वाथमसूत्र, िे अनुसार र्न, वाणी और शरीर सिी गडतडवडधयों िा िुल 'योग'

है। [51] उर्ार्स्ार्ी िहते है डि आस्रव या िाडर्मि प्रवाह िा िारण योग है [52] साथ ही- सम्यि चररत्र अथामत योग डनयंत्रण

और अन्त र्ें डनरोध र्ुद्धि िे र्ागम र्े बेहद आवश्यि है।

[53] अपनी डनयर्सार र्ें, आचायम िुन्दिुन्द ने योग िद्धि िा वणमन- िद्धि से र्ुद्धि िा र्ागम - िद्धि िे सवोच्च रूप िे

रूप र्े डिया है।[54] आचायम हररिद्र और आचायम हेर्चन्द्र िे अनुसार पााँच प्रर्ुख उल्लेख संन्याडसयों और 12 सर्ाडजि

लघु प्रडतज्ञाओं योग िे अंतगमत शाडर्ल है। इस डवचार िे वजह से िही इन्डोलोडजस्ट् स जैसे प्रो रॉबटम जे ज़्यीिेन्बोस ने जैन

धर्म िे बारे र्े यह िहा डि यह अडनवायम रूप से योग सोच िी एि योजना है जो एि पूणम धर्म िे रूप र्े बढी हो गयी।
[55] िॉ॰ हेंरीच डजम्मर संतुष्ट डिया डि योग प्रणाली िो पूवम आयमन िा र्ूल था, डजसने वेदों िी सत्ता िो र्स्ीिार नहीं डिया

और इसडलए जैन धर्म िे सर्ान उसे एि डवधडर्मि डसद्धांतों िे रूप र्ें र्ाना गया था

[56] जैन शास्त्र, जैन तीथंिरों िो ध्यान र्े पद्मासना या िायोत्सगम योग र्ुद्रा र्ें दशामया है। ऐसा िहा गया है डि र्हावीर

िो र्ुलाबंधासना द्धस्थडत र्ें बैठे िेवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरं गा सूत्र र्े और बाद र्ें िल्पसूत्र र्े पहली

साडहद्धत्यि उल्लेख िे रूप र्े पाया गया है।[57]

पतंजडल योगसूत्र िे पांच यार्ा या बाधाओं और जैन धर्म िे पााँच प्रर्ुख प्रडतज्ञाओं र्ें अलौडिि सादृश्य है , डजससे जैन धर्म

िा एि र्जबूत प्रिाव िा संिेत िरता है।

[58][59] लेखि डवडवयन वोडथंगटन ने यह र्स्ीिार डिया डि योग दशमन और जैन धर्म िे बीच पारस्पररि प्रिाव है और वे

डलखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म िो अपना ऋण र्ानता है और डवडनर्य र्े जैन धर्म ने योग िे साधनाओं िो अपने

जीवन िा एि डहस्सा बना डलया".

[60] डसंधु घाटी र्ुहरों और इिोनोग्रफी िी एि यथोडचत साक्ष्य प्रदान िरते है डि योग परं परा और जैन धर्म िे बीच

सांप्रदाडयि सदृश अद्धस्तत् है।

[61] डवशेष रूप से , डविानों और पुरातत्डवदों ने डवडिन्न डतथमन्करों िी र्ुहरों र्ें दशामई गई योग और ध्यान र्ुद्राओं िे बीच

सर्ानताओं पर डटप्पणी िी है: ऋषिदे व िी "ियोत्सगाम" र्ुद्रा और र्हावीर िे र्ुलबन्धासन र्ुहरों िे साथ ध्यान र्ुद्रा र्ें

पक्षों र्ें सपों िी खुदाई पार्श्मनाथ िी खुदाई से डर्लती जुलती है।

यह सिी न िेवल डसंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म िे बीच िड़ियों िा संिेत िर रहे हैं , बद्धि डवडिन्न योग प्रथाओं िो

जैन धर्म िा योगदान प्रदशमन िरते है।[62]

जैन डसद्धांत और साडहत्य िे सन्दिम

र्ुख्य लेख: जैन धर्म र्ें योग

प्राचीनतर् िे जैन धर्मवैधाडनि साडहत्य जैसे आचाराङ्गसूत्र और डनयर्सार, तत्त्वाथमसूत्र आडद जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यद्धि

और तपर्स्ीयों िे डलए जीवन िा एि र्ागम िे रूप र्ें योग पर िई सन्दिम डदए है।
बाद िे ग्रंथ, डजसर्े योग िी जैन अवधारणा डवस्तारपूवमि दी गयी है , वह डनम्नानुसार हैं:

• पूज्यपाद (5 वीं शताब्दी ई०)

o इष्टोपदे श

• आचायम हररिद्र सूरी (8 वीं शताब्दी ई०)

o योगडबन्दु

o योगडद्रद्धस्तसर्ुच्िाया

o योगशति

o योगडवंडशिा

• आचायम जोंदु (८वीं शताब्दी ई०)

o योगसार

• आचायम हेर्चन्द्र (११वीं सदी ई०)

o योगशास्त्र

• आचायम अडर्तगडत (११वीं शताब्दी ई०)

o योगसारप्रािृत

इस्लार्

सूफी संगीत िे डविास र्ें िारतीय योग अभ्यास िा िाफी प्रिाव है , जहााँ वे दोनों शारीररि र्ुद्राओं (आसन) और र्श्ास

डनयंत्रण (प्राणायार्) िो अनुिूडलत डिया है।[63] 11 वीं शताब्दी िे प्राचीन सर्य र्ें प्राचीन िारतीय योग पाठ, अर्ृतिुंि,

("अर्ृत िा िुंि") िा अरबी और फारसी िाषाओं र्ें अनुवाद डिया गया था।[64]

सन 2008 र्ें र्लेडशया िे शीषम इस्लाडर्ि सडर्डत ने िहा जो र्ुस्लर्ान योग अभ्यास िरते है उनिे द्धखलाफ

एि फतवा लागू डिया, जो िानूनी तौर पर गैर बाध्यिारी है , िहते है डि योग र्ें "डहंदू आध्याद्धत्मि उपदे शों" िे तत्ों है

और इस से ईश-डनंदा हो सिती है और इसडलए यह हरार् है।


र्लेडशया र्ें र्ुद्धस्लर् योग डशक्षिों ने "अपर्ान" िहिर इस डनणमय िी आलोचना डि. [65] र्लेडशया र्ें र्डहलाओं

िे[65] सर्ू ह, ने िी अपना डनराशा व्यि िी और उन्होंने िहा डि वे अपनी योग िक्षाओं िो जारी रखेंगे. [66] इस फतवा र्ें

िहा गया है डि शारीररि व्यायार् िे रूप र्ें योग अभ्यास अनुर्ेय है , पर धाडर्मि र्ंत्र िा गाने पर प्रडतबंध लगा डदया

है,[67] और यह िी िहते है डि िगवान िे साथ र्ानव िा डर्लाप जैसे डशक्षण इस्लार्ी दशमन िे अनुरूप नहीं है। [68]

इसी तरह, उलेर्स िी पररषद, इं िोनेडशया र्ें एि इस्लार्ी सडर्डत ने योग पर प्रडतबंध , एि फतवे िारा लागू डिया क्योंडि

इसर्ें "डहंदू तत्" शाडर्ल थे।[69] डिन्तु इन फतवों िो दारुल उलूर् दे ओबंद ने आलोचना िी है , जो दे ओबंदी इस्लार् िा

िारत र्ें डशक्षालय है।[70]

सन 2009 र्ई र्ें, तुिी िे डनदे शालय िे धाडर्मि र्ार्लों िे र्ंत्रालय िे प्रधान शासि अली बदामिोग्लू ने योग िो एि

व्यावसाडयि उद्यर् िे रूप र्ें घोडषत डिया- योग िे संबंध र्ें िुछ आलोचनाये जो इसलार् िे तत्ों से र्ेल नहीं खातीं. [71]

ईसाई धर्म[संपाडदत िरें ]

सन 1989 र्ें, वैडटिन ने घोडषत डिया डि जेन और योग जैसे पूवी ध्यान प्रथाओं "शरीर िे एि गुट र्ें बदजात" हो सिते

है।

वैडटिन िे बयान िे बावजूद, िई रोर्न िैथोडलि उनिे आध्याद्धत्मि प्रथाओं र्ें योग , बौद्ध धर्म और डहंदू धर्म िे तत्ों

िा प्रयोग डिया है।[72]

तंत्र[संपाडदत िरें ]

र्ुख्य लेख: तंत्र

तंत्र एि प्रथा है डजसर्ें उनिे अनुसरण िरनेवालों िा संबंध साधारण, धाडर्मि, सार्ाडजि और ताडिमि वास्तडविता र्ें

पररवतमन ले आते है।

तांडत्रि अभ्यास र्ें एि व्यद्धि वास्तडविता िो र्ाया, भ्रर् िे रूप र्ें अनुिव िरता है और यह व्यद्धि िो र्ुद्धि प्राप्त

होता है।[73]डहन्दू धर्म िारा प्रस्तुत डिया गया डनवामण िे िई र्ागों र्ें से यह डवशेष र्ागम तंत्र िो िारतीय धर्ों िे प्रथाओं
जैसे योग, ध्यान, और सार्ाडजि संन्यास से जो़िता है , जो सार्ाडजि संबंधों और डवडधयों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर

आधाररत हैं।[73]

तांडत्रि प्रथाओं और अध्ययन िे दौरान, छात्र िो ध्यान तिनीि र्ें, डवशेष रूप से चि ध्यान, िा डनदे श डदया जाता है।

डजस तरह यह ध्यान जाना जाता है और तांडत्रि अनुयाडययों एवं योडगयों िे तरीिो िे साथ तुलना र्ें यह तांडत्रि प्रथाओं

एि सीडर्त रूप र्ें है , लेडिन सूत्रपात िे डपछले ध्यान से ज्यादा डवस्तृत है।

इसे एि प्रिार िा िुंिडलनी योग र्ाना जाता है डजसिे र्ाध्यर् से ध्यान और पूजा िे डलए "हृदय" र्ें द्धस्थत चि र्ें दे वी

िो स्थाडपत िरते है।[74]

र्ोग के प्रकार

योग की उच्चावस्था समार्ध, मोक्ष, कैवल्य आर्द तक पहुूँचने के र्लए अनेकों साधकों ने जो साधन अपनाये उन्ीं साधनों

का वििन योग ग्रन्थों में समय समय पर र्मलता रहा। उसी को योग के प्रकार से जाना जाने लगा। योग की प्रामार्िक

पुस्तकों में र्िवसंर्हता तथा गोरक्षितक में योग के चार प्रकारों का वििन र्मलता है -

मंत्रयोगों हष्षष्षचैव लययोगस्तृतीयकः।

चतुथो राजयोगः (र्िवसंर्हता , 5/11)

मंत्रो लयो हठो राजयोगिभूिर्मका िमात

एक एव चतुधािऽयं महायोगोर्भयते॥ (गोरक्षितकम )

उपयुिक्त दोनों श्लोकों से योग के प्रकार हुए : मंत्रयोग, हठयोग लययोग व राजयोग।
मंत्रयोग[संपानर्दत करें ]

मुख्य लेख: मन्त्र र्ोग

'मंत्र' का समान्य अथि है- 'मननात त्रायते इर्त मन्त्रः'। मन को त्राय (पार कराने वाला) मंत्र ही है। मन्त्र

योग का सम्बि मन से है, मन को इस प्रकार पररभार्षत र्कया है- मनन इर्त मनः। जो मनन, र्चिन

करता है वही मन है। मन की चंचलता का र्नरोध मंत्र के द्वारा करना मंत्र योग है। मंत्र योग के बारे में

योगतत्वोपर्नषद में वििन इस प्रकार है-

योग सेविे साधकाधमाः।

( अल्पबुक्द्ध साधक मंत्रयोग से सेवा करता है अथाित मंत्रयोग उन साधकों के र्लए है जो

अल्पबुक्द्ध है।)

मंत्र से ध्वर्न तरं गें पैदा होती है मंत्र िरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालता है। मंत्र में साधक जप

का प्रयोग करता है मंत्र जप में तीन घटकों का कािी महत्व है वे घटक-उच्चारि, लय व ताल हैं।

तीनों का सही अनुपात मंत्र िक्क्त को बढा दे ता है। मंत्रजप मुख्यरूप से चार प्रकार से र्कया

जाता है।

(1) वार्चक (2) मानर्सक (3) उपांिु (4) अजप्पा ।

हठयोग[संपानर्दत करें ]

मुख्य लेख: हठर्ोग

हठ का िाक्ब्क अथि हठपूविक र्कसी कायि को करने से र्लया जाता है। हठ प्रदीर्पका

पुस्तक में हठ का अथि इस प्रकार र्दया है-

हकारे िोच्यते सूयििकार चन्द्र उच्यते।

सूयाि चन्द्रमसो योगाद्धठयोगोऽर्भधीयते॥


ह का अथि सूयि तथा ठ का अथि चन्द्र बताया गया है। सूयि और चन्द्र की समान

अवस्था हठयोग है। िरीर में कई हजार नार्ड़याूँ है उनमें तीन प्रमुख नार्ड़यों का

वििन है, वे इस प्रकार हैं। सूयिनाड़ी अथाित र्पंगला जो दार्हने स्वर का प्रतीक है।

चन्द्रनाड़ी अथाित इड़ा जो बायें स्वर का प्रतीक है। इन दोनों के बीच तीसरी नाड़ी

सुषुम्ना है। इस प्रकार हठयोग वह र्िया है र्जसमें र्पंगला और इड़ा नाड़ी के

सहारे प्राि को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेि कराकर ब्रहमरन्ध्र में समार्धस्थ र्कया जाता

है। हठ प्रदीर्पका में हठयोग के चार अंगों का वििन है- आसन, प्रािायाम, मुद्रा

और बि तथा नादानुसधान। घेरण्डसंर्हता में सात अंग- षटकमि, आसन,

मुद्राबि, प्रािायाम, ध्यान, समार्ध जबर्क योगतत्वोपर्नषद में आठ अंगों का

वििन है- यम, र्नयम, आसन, प्रािायाम, प्रत्याहार, धारिा, ध्यान, समार्ध

लययोग

मुख्य लेख: कुंडनलिी र्ोग

र्चत्त का अपने स्वरूप र्वलीन होना या र्चत्त की र्नरूद्ध अवस्था लययोग के

अिगित आता है। साधक के र्चत्त में जब चलते, बैठते, सोते और भोजन करते

समय हर समय ब्रह्म का ध्यान रहे इसी को लययोग कहते हैं। योगत्वोपर्नषद में

इस प्रकार वििन है-

गच्छक्स्तिन स्वपन भुंजन ध्यायेक्न्त्रष्कलमीश्वरम स एव लययोगः स्यात (22-23)

राजयोग

मुख्य लेख: राजर्ोग

राजयोग सभी योगों का राजा कहलाया जाता है क्योंर्क इसमें प्रत्येक प्रकार

के योग की कुछ न कुछ सामग्री अवश्य र्मल जाती है। राजयोग महर्षि
पतंजर्ल द्वारा रर्चत अष्ट्ांग योग का वििन आता है। राजयोग का र्वषय

र्चत्तवृर्त्तयों का र्नरोध करना है।

महर्षि पतंजर्ल के अनुसार समार्हत र्चत्त वालों के र्लए अभ्यास और वैराग्य

तथा र्वर्क्षि र्चत्त वालों के र्लए र्ियायोग का सहारा लेकर आगे बढने का

रास्ता सुझाया है। इन साधनों का उपयोग करके साधक के क्लेिों का नाि

होता है, र्चत्त प्रसन्न होकर ज्ञान का प्रकाि िैलता है और र्ववेक ख्यार्त

प्राि होती है।

योगाडांनुिानाद िुक्द्धक्षये ज्ञानदीक्िरा र्ववेक ख्यातेः (2/28)

राजयोग के अिगित महर्षि पतंजर्ल ने अष्ट्ांग को इस प्रकार बताया है-

यमर्नयमासनप्रािायामप्रत्याहारधारिाध्यानसमाधयोऽष्ट्ांगार्न।

योग के आठ अंगों में प्रथम पाूँच बर्हरं ग तथा अन्य तीन अिरं ग में

आते हैं।

उपयुिक्त चार प्रकार के अर्तररक्त गीता में दो प्रकार के योगों का

वििन र्मलता है-

• (१) ज्ञानयोग

• (२) कमि योग

ज्ञानयोग, सांख्ययोग से सम्बि रखता है। पुरुष प्रकृर्त के बिनों

से मुक्त होना ही ज्ञान योग है। सांख्य दििन में 25 तत्वों का वििन

र्मलता है।
सुर्वधापूविक एक र्चत और क्स्थर होकर बैठने को आसि कहा जाता है। आसन का िाक्ब्क अथि है - बैठना, बैठने का

आधार, बैठने की र्विेष प्रर्िया आर्द।

पातंजल योगदििन में र्ववृत्त अष्ट्ांगयोग में आसन का स्थान तृतीय एवं गोरक्षनाथार्द द्वारा प्रवर्तित षडं गयोग में प्रथम है।

र्चत्त की क्स्थरता, िरीर एवं उसके अंगों की दृढता और कार्यक सुख के र्लए इस र्िया का र्वधान र्मलता है।

र्वर्भन्न ग्रंथों में आसन के लक्षि हैं - उच्च स्वास्थ्य की प्राक्ि, िरीर के अंगों की दृढता, प्रािायामार्द उत्तरवती साधनिमों

में सहायता, क्स्थरता, सुख दार्यत्व आर्द। पंतजर्ल ने क्स्थरता और सुख को लक्षिों के रूप में माना है। प्रयत्निैर्थल्य और

परमािा में मन लगाने से इसकी र्सक्द्ध बतलाई गई है। इसके र्सद्ध होने पर द्वं द्वों का प्रभाव िरीर पर नहीं पड़ता। र्कंतु

पतंजर्ल ने आसन के भेदों का उल्लेख नहीं र्कया। उनके व्याख्याताओं ने अनेक भेदों का उल्लेख (जैसे - पद्मासन,

भद्रासन आर्द) र्कया है। इन आसनों का वििन लगभग सभी भारतीय साधनािक सार्हत्य (अर्हबुिध्न्य, वैष्णव जैसी

संर्हताओं तथा पांचरात्र जैसे वैष्णव ग्रंथों में एवं हठयोगप्रदीर्पका, घेरंडसंर्हता, आर्द) में र्मलता है।

प्रमुख योगासन

हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

अधो मुख (नीचे मुख)


अधोमुखश्िानासन अधोमुखश्िानासन
श्िान आसन
हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

Handstand
अधोमुखिक्ष
ृ ासन अधोमुखिक्ष
ृ ासन (Downward-Facing
Tree)

[धनुरासन]] धनुरासन Bow posture

विष्णुद्यःया अनन्त
अनन्तासन अनन्तासन
रुपया आसन

Salutation hand
अंजलिमुद्रा अंजलिमुद्रा posture

अधधचन्द्रासन अधधचन्द्रासन बालमिा

अधधमत्स्येन्द्रासन अधधमत्स्येन्द्रासन Half Spinal Twist


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

अधधनािासन अधधनािासन बच्छि िःखः िा नाउचा

Baddha Gomukhāsana बद्धगोमख


ु ासन Upaviṣṭha

बद्धकोणसन बद्धकोणसन ्िागु कंु

बकासन बकासन बहःचचया आसन

बािासन बािासन मचाया आसन

गर्ाधसन गर्ाधसन

र्ेकासन र्ेकासन बयांचचया आसन

र्रद्िाजासन र्रद्िाजासन Bharadvaja's Twist


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

र्ुजंगासन र्ुजंगासन नागया आसान

Arm-pressing
र्ुजपीडासन र्ुजपीडासन
posture

चक्रासन चक्रासन घःचा थें न्यागु आसन

चतुरंगदण्डासन चतुरंगदण्डासन Four-Limbed Staff

दण्डासन दण्डासन Staff pose

धनुरासन धनुरासन Bow

Both feet behind


द्विपादलिषाधसन
head

Two-Legged
द्विपदविपररतदन्दसन द्विपदविपररतदन्दसन Inverted Staff Pose
हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

One-Legged King
एकपादरजकपोतसन एकपादरजकपोतसन
Pigeon

Head stand one foot

एकपादिीषाधसन एकपादिीषाधसन
Head stand by only
holding) one foot

Balance posture for


एकपादप्रसारणसिाांगतुिासन एकपादप्रसारणसिाांगतुिासन the whole body, by
extending one leg

एकपादलिषाधसन Foot behind Head

गर्ाधसन गर्ाधसन Fetus

गरुडासन गरुडासन इमा थें न्यागु आसन


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

सा ख्िा थें न्यागु


गोमख
ु ासन गोमख
ु ासन
आसन

हिासन हिासन िासा

हनुमांद्यः छिननगु थें


हनुमनासन हनुमनासन
न्यागु आसन

Belly-revolving
जठरपररितधनासन जठरपररितधनासन posture

Head-to-Knee
जानुिीषाधसन जानुिीषाधसन Forward Bend

काकासन काकासन क्िः


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

कपोतासन कपोतासन बखुं

कपोतासन कपोतासन Ear-pressing

क्रौंचासन क्रौंचासन बिह

कुक्कुटासन कुक्कुटासन Cockerel

कूमाधसन कूमाधसन काउिे

िोिासन िोिासन Pendant

महामुद्रा महामुद्रा Great hand posture

मकरासन मकरासन Crocodile

मुक्तह्तिीषाधसन मुक्तह्तिीषाधसन Head stand

मण्डिासन मण्डिासन चाक

मत्स्यासन मत्स्यासन न्या


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

मत्स्येन्द्रासन मत्स्येन्द्रासन Lord of the Fishes

मयूरासन मयूरासन म्हयखा


Lord of the Dance or


नटराजासन नटराजासन Dancer

Posture for the


ननरािम्बसिाांगासन ननरािम्बसिाांगासन whole body

Standing Forward
पादह्तासन पादह्तासन
Bend

पद्मासन पद्मासन पिे्िां

पररपण
ू धनािासन पररपण
ू धनािासन िःखः

पररित्त
ृ पाश्िधकोणासन पररित्त
ृ पाश्िधकोणासन Revolved Side Angle

पररित्त
ृ त्रिकोणासन पररित्त
ृ त्रिकोणासन Revolved Triangle
हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

पयांकासन पयांकासन Bed

पािासन पािासन Noose

पच्श्चमोत्तानासन

Seated Forward
Paccimasana पच्श्चमोत्तानासन
Bend

Paschima tana

Intense Spread Leg


प्रसाररतपादोत्तानासन प्रसाररतपादोत्तानासन Stretch

राजकपोतासन राजकपोतासन िाही बखुं

Locust

ििर्ासन ििर्ासन
Grass-hopper

समकोणासन समकोणासन Straight angle

सिाांगासन सिाांगासन Shoulder Stand


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

ििासन

Shavasana
ििासन Corpse Pose

Sarvasana

Mrtasana

सेतब
ु न्धसिाांगासन सेतब
ु न्धसिाांगासन तां

सेतुबन्धसन सेतुबन्धसन Half Wheel

लसद्धासन लसद्धासन

मुक्तसन मुक्तसन Perfect Pose

गुप्तसन गुप्तसन

लसंहासन लसंहासन लसंह


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

िीषाधसन िीषाधसन Head Stand

सख
ु ासन सख
ु ासन Auspicious Pose

Reclining Bound
सप्ु तर्दकोणासन सप्ु तर्दकोणासन Angle

सुप्तकोणासन सुप्तकोणासन Angle

सुप्तपादांगुष्ठासन सुप्तपादांगुष्ठासन Reclining Big Toe

सुप्तिीरासन सुप्तिीरासन Reclining Hero

सप्ु तिज्रासन सप्ु तिज्रासन Thunderbolt

्िच््तकासन ्िच््तकासन Prosperous Pose


हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

ताडासन

ताडासन Mountain Pose

Samasthiti

टटट्टटर्ासन टटट्टटर्ासन Firefly Pose

त्रिकोणासन त्रिकोणासन ्िकंु

तुिासन तुिासन Balance posture

उड्डीयानबन्ध उड्डीयानबन्ध The abdominal lock

उपविष्टकोणासन उपविष्टकोणासन चकं कुं

Upward Bow

ऊर्धिधधनुरासन ऊर्धिधधनुरासन
Backbend

ऊर्धिधमख
ु श्िानासन ऊर्धिधमख
ु श्िानासन Upward-Facing Dog

ऊर्धिधदण्डासन ऊर्धिधदण्डासन कचथ

उष्ठासन उष्ठासन उं थ
हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

Upside-Down
उत्तानकूमाधसन उत्तानकूमाधसन
Tortoise

उत्सकटासन उत्सकटासन छिंसा (मेच)

Standing Forward
उत्तानासन उत्तानासन Bend

Raised Hand to Big


उच्त्सथतह्तपादांगुष्ठासन उच्त्सथतह्तपादांगुष्ठासन Toe

Extended Side
उच्त्सथतपाश्िधकोणासन उच्त्सथतपाश्िधकोणासन
Angle

उच्त्सथतत्रिकोणासन उच्त्सथतत्रिकोणासन Extended Triangle

िलसष्ठासन िलसष्ठासन Side Plank

िातायनासन िातायनासन सि
हिन्दी संस्कृत अर्थ ककपा सूचं

विपरीतकरणण विपरीतकरणण Legs-up-the-Wall

िज्रासन िज्रासन बज्रया आसन

िीरासन िीरासन Hero

िीरर्द्रासन िीरर्द्रासन Distinguished hero

िीरर्द्रासन II िीरर्द्रासन II Warrior II

िक्ष
ृ ासन िक्ष
ृ ासन Corn Tree

िच्ृ श्चकासन िच्ृ श्चकासन scorpion


सुखासि

ध्याि के नलए सुखासि महत्वपूर्ा आसि है। पर्दमासि के नलए र्ह आसि नवकल्प हैं।

आसन के लाभ

सुखासि करिे से साधक र्ा रोगी का नचत्त शांत होता है। पर्दमासि के नलए र्ह आसि नवकल्प हैं। इससे नचत्त

एकाग्र होता है। नचत्त की एकाग्रता से धारर्ा नसद्ध होती है। सुखासि से पैरों का रक्त-संचार कम हो जाता है और

अनतररक्त रक्त अन्य अंगों की ओर संचाररत होिे लगता है नजससे उिमें निर्ाशीलता बढ़ती है। र्ह तिाव हटाकर

नचत्त को एकाग्र कर सकारात्मक ऊजाा को बढ़ाता है। छाती और पैर मजबूत बिते हैं। वीर्ा रक्षा में भी मर्दर्द नमलती

सावधानी

पैरों में नकसी भी प्रकार का अत्यनधक कष्ट हो तो र्ह आसि ि करें । साइनटका अथवा रीढ़ के निचले भाग के

आसपास नकसी प्रकार का र्दर्दा हो र्ा घुटिे की गंभीर बीमारी में इसका अभ्यास ि करें ।
वज्रासि

र्ह ध्यािात्मक आसि हैं। मि की चंचलता को र्दूर करता है। भोजि के बार्द नकर्ा जािेवाला र्ह एक मार्त्र आसि

है।

लाभ

इसके करिे से अपचि, अम्लनपत्त, गैस, कब्ज की निवृनत्त होती है। भोजि के बार्द 5 से लेकर 15 नमिट तक करिे

से भोजि का पाचक ठीक से हो जाता है। वैसे र्दै निक र्ोगाभ्यास मे 1-3 नमिट तक करिा चानहए। घुटिों की पीडा

को र्दूर करता है।इसके करिे से आप पाते है वीर्ा वृक्नद्ध ओर ब्रह्मचार्ा की सुरक्षा।

र्वर्ध

र्दोिों घुटिे सामिे से नमले हों । पैर की एनडर्ााँ बाहर की और पंजे अन्दर की और हों । बार्ें पैर के अंगूठे के आस

पास मैं र्दार्ें पैर का अंगूठा । र्दोिों हाथ घुटिों के ऊपर।


पद्मासि

र्वर्ध: जमीन पर बैठकर बाएूँ पैर की एड़ी को दाईं जंघा पर इस प्रकार रखते हैं र्क एड़ी नार्भ के पास आ जाएूँ । इसके

बाद दाएूँ पाूँव को उठाकर बाईं जंघा पर इस प्रकार रखें र्क दोनों एर्ड़याूँ नार्भ के पास आपस में र्मल जाएूँ ।

मेरुदण्ड सर्हत कमर से ऊपरी भाग को पूिितया सीधा रखें। ध्यान रहे र्क दोनों घुटने जमीन से उठने न पाएूँ । तत्पिात

दोनों हाथों की हथेर्लयों को गोद में रखते हुए क्स्थर रहें। इसको पुनः पाूँव बदलकर भी करना चार्हए। र्िर दृर्ष्ट् को

नासाग्रभाग पर क्स्थर करके िांत बैठ जाएूँ ।

नवशेष

स्मरि रहे र्क ध्यान, समार्ध आर्द में बैठने वाले आसनों में मेरुदण्ड, कर्टभाग और र्सर को सीधा रखा जाता है और

क्स्थरतापूविक बैठना होता है। ध्यान समार्ध के काल में नेत्र बंद कर लेना चार्हए। आूँ खे दीघि काल तक खुली रहने से

आूँ खों की तरलता नष्ट् होकर उनमें र्वकार पैदा हो जाने की संभावना रहती है।

लाभ

यह आसन पाूँवों की वातार्द अनेक व्यार्धयों को दू र करता है। र्विेष कर कर्टभाग तथा टाूँगों की संर्ध एवं

तत्संबंर्धत नस-नार्ड़यों को लचक, दृढ और स्फूर्तियुक्त बनाता है। श्वसन र्िया को सम रखता है। इक्न्द्रय और

मन को िांत एवं एकाग्र करता है।

• इससे बुक्नद्ध बढ़ती एवं साक्नत्वक होती है। नचत्त में क्नथथरता आती है। स्मरर् शक्नक्त एवं नवचार

शक्नक्त बढ़ती है।

• कमर र्दर्दा र्दूर होता है।

• नजिकी पाचि शक्नक्त सही िही ं है उिके नल, र्ह आसि करिे से पाचि शक्नक्त में वृ)न

होती है।

• ब्रह्माचर्ा पालि में सहार्क है।


• नजिको अनधक पेशाब आता है उिके नलए आसाि काफी प्रभावी है उन्हें र्ह आसाि हर

रोज करिा चानहए।

शवासि

िव का अथि होता है मृत अथाित अपने िरीर को िव के समान बना लेने के कारि ही इस आसन को शवासि कहा जाता

है। इस आसन का उपयोग प्रायः योगसत्र को समाि करने के र्लए र्कया जाता है। यह एक र्िर्थल करने वाला आसन है

और िरीर, मन और आिा को नवस्फूर्ति प्रदान करता है। ध्यान लगाने के र्लए इसका सुझाव नहीं र्दया जाता क्योंर्क

इससे नींद आ सकती है।

र्वर्ध

• पीठ के बल लेट जाएूँ और दोनों पैरों में डे ढ िुट का अंतर रखें। दोनों हाथों को िरीर से ६ इं च (१५ सेमी)

की दू री पर रखें। हथेली की र्दिा ऊपर की ओर होगी।

• र्सर को सहारा दे ने के र्लए तौर्लया या र्कसी कपड़े को दोहरा कर र्सर के नीचे रख सकते हैं। इस दौरान

यह ध्यान रखें र्क र्सर सीधा रहे। (जैसे र्चत्र में दिािया गया है)।

• िरीर को तनावरर्हत करने के र्लए अपनी कमर और कंधों को व्यवक्स्थत कर लें। िरीर के सभी अंगों को

ढीला छोड़ दें । आूँ खों को कोमलता से बंद कर लें। िवासन करने के दौरान र्कसी भी अंग को र्हलाना-

डु लाना नहीं है।


• आप अपनी सजगता (ध्यान) को साूँस की ओर लगाएूँ और उसे अर्धक से अर्धक लयबद्ध करने का प्रयास

करें । गहरी साूँसें भरें और साूँस छोड़ते हुए ऐसा अनुभव करें र्क पूरा िरीर र्िर्थल होता जा रहा है। िरीर

के सभी अंग िांत हो गए हैं।

• कुछ दे र साूँस की सजगता को बनाए रखें, आूँ खें बंद ही रखें और भू-मध्य (भौहों के मध्य स्थान पर) में एक

ज्योर्त का प्रकाि दे खने का प्रयास करें ।

• यर्द कोई र्वचार मन में आए तो उसे साक्षी भाव से दे खें, उससे जुर्ड़ए नहीं, उसे दे खते जाएूँ और उसे जाने

दें । कुछ ही पल में आप मानर्सक रूप से भी िांत और तनावरर्हत हो जाएूँ गे।

• आूँ खे बंद रखते हुए इसी अवस्था में आप १० से १ (या २५ से १) तक उल्टी र्गनती र्गनें। उदाहरि के तौर

पर "मैं साूँस ले रहा हूँ १०, मैं साूँस छोड़ रहा हूँ १०, मैं साूँस ले रहा हूँ ९, मैं साूँस छोड़ रहा हूँ ९"। इस प्रकार

िून्य तक र्गनती को मन ही मन र्गनें।

• यर्द आपका मन भटक जाए और आप र्गनती भूल जाएूँ तो दोबारा उल्टी र्गनती आरं भ करें । साूँस की

सजगता के साथ र्गनती करने से आपका मन थोड़ी दे र में िांत हो जाएगा।

र्कतनी दे र करें िवासन

योग की पाठिाला में आप १ या २ र्मनट तक िवासन का अभ्यास कर सकते हैं। अलग से समय र्नकाल पाएूँ तो २० से

३० र्मनट तक िवासन का अभ्यास र्नयर्मत रूप से करना चार्हए। र्विेषकर थक जाने के बाद या सोने से पहले।

सावधार्नयाूँ (र्विेष बातें )

• आूँ खें बंद रखनी चार्हए। हाथ को िरीर से छह इं च की दू री पर व पैरों में एक से डे ढ िीट की दू री रखें।

िरीर को ढीला छोड़ दे ना चार्हए। श्वास की क्स्थर्त में िरीर को र्हलाना नहीं चार्हए।

• िवासन के दौरान र्कसी भी अंग को र्हलाएं गे नहीं। सजगता को साूँस की ओर लगाकर रखें। अंत में अपनी

चेतना को िरीर के प्रर्त लेकर आएूँ ।


• दोनों पैरों को र्मलाइए, दोनों हथेर्लयों को आपस में रगर्ड़ए और इसकी गमी को अपनी आूँ खों पर धारि

करें । इसके बाद हाथ सीधे कर लें और आूँ खे खोल लें।

लाभ

यर्द िवासन को पूरी सजगता के साथ र्कया जाए तो यह तनाव दू र करता

है, उच्च रक्तचाप सामान्य करता है और नींद न आने की समस्या को दू र भगाता है।

िवासन के र्नम्नर्लक्खत लाभ हैं :-

• िवासन एक मात्र ऐसा आसन है, र्जसे हर आयु के लोग कर सकते हैं। यह सरल भी है। पूरी सजगता के

साथ र्कया जाए तो तनाव दू र होता है, उच्च रक्तचाप सामान्य होता है, अर्नद्रा को दू र र्कया जा सकता है।

• श्वास की क्स्थर्त में हमारा मन िरीर से जुड़ा हुआ रहता है, र्जससे र्क िरीर में र्कसी प्रकार के बाहरी

र्वचार उत्पन्न नहीं होते। इस कारि से हमारा मन पूिित: आरामदायक क्स्थर्त में होता हैं, तब िरीर स्वत:

ही िांर्त का अनुभव करता है। आं तररक अंग सभी तनाव से मुक्त हो जाते हैं, र्जससे र्क रक्त संचार सुचारु

रूप से प्रवार्हत होने लगता है। और जब रक्त सुचारु रूप से चलता है तो िारीररक और मानर्सक तनाव

घटता है। र्विेषकर र्जन लोगों को उच्च रक्तचाप और अर्नद्रा की र्िकायत है, ऐसे रोर्गयों के र्लए

िवासन अर्धक लाभदायक है।

• िरीर जब र्िर्थल होता है, मन िांत हो जाता है तो आप अपनी चेतना के प्रर्त सजग हो जाते हैं। इस प्रकार

आप अपनी प्राि ऊजाि को र्िर से स्थार्पत कर पाते हैं। इससे आपके िरीर की ऊजाि पुनः प्राि हो

जाएगी।
पर्िमोत्तानासन िब् संस्कृत के मूल िब्ों से बना है “पनिम” र्जसका अथि है “पीछे ” या “पनिम नर्दशा”, और “तीव्र

क्नखंचाव” है और आसन र्जसका अथि है “बैठिे का तरीका”। इसका सम्पूिि मतलब इस आसन में बैठ कर िरीर के

बीच के र्हस्से में तीव्र क्खंचाव पैदा करना है तार्क िरीर की ऊजाि को र्नयंर्त्रत र्कया जा सके।

यह आसन र्िव संर्हता में भी वर्िित है और साथ ही अष्ट्ांग श्रृंखला का एक महत्वपूिि र्हस्सा भी है।

हठ योर्गयों द्वारा यह आसन िरीर में ऊजाि के बहाव को र्नयंर्त्रत करने के र्लए र्कया जाता है।

पर्िमोत्तानासन व्यक्क्त की lower back (कमर का र्नचला र्हस्सा) के र्लए रामबाि योगासन है। इस आसन के र्नयर्मत

अभ्यास से कमर के र्नचले र्हस्से में ददि से छु टकारा पाया जा सकता है। लेर्कन इसका र्सिि यही एक िायदा नहीं है।[1]

पर्िमोत्तासन - लाभ

1. पृिभाग की सभी मांसपेर्ियां र्वस्तृत होती है। पेट की पेर्ियों में संकुचन होता है। इससे उनका स्वास्थ्य सुधरता है।

2. हठप्रदीर्पका के अनुसार यह आसन प्रािों को सुषुम्िा की ओर उन्मुख करता है र्जससे कुण्डर्लनी जागरि मे

सहायता र्मलती है।

3. जठरार्ग्र को प्रदीि करता है व वीयि सम्बिी र्वकारों को नष्ट् करता है। कदवृक्दद के र्लए महत्वपूिि अभ्यास है।

4. यह आसन तनाव, र्चंता, र्सरददि और थकान को कम करने में सहायक है।

5. इस आसन से उच्च रक्तचाप, अर्नद्रा, और बांझपन जैसे रोगों को आसानी से को ठीक र्कया जा सकता है।

6. इसे करने से कंधे, रीढ को क्खंचाव उत्पन्न होता है र्जससे इन र्हस्से में उत्पन्न हुए ददि से छु टकारा र्मलता है।
सवाांगासि

सवि अंग और आसन अथाित सवाांगासन। इस आसन को करने से सभी अंगों को व्यायाम र्मलता है इसीर्लए इसे

सवाांगासन कहते हैं।

सावधािी : कोहर्नयाूँ भूर्म पर र्टकी हुई हों और पैरों को र्मलाकर सीधा रखें। पंजे ऊपर की ओर तने हुए एवं आूँ खें बंद

हों अथवा पैर के अूँगूठों पर दॄर्ष्ट् रखें। र्जन लोगों को गदि न या रीढ में र्िकायत हो उन्ें यह आसन नहीं करना चार्हए।

लाभ

लाभ : थायराइड एवं र्पच्युटरी ग्लैंड के मुख्य रूप से र्ियािील होने से यह कद वृक्द्ध में लाभदायक है। दमा, मोटापा,

दु बिलता एवं थकानार्द र्वकार दू र होते है। इस आसन का पूरक आसन मत्स्यासन है, अतः िवासन में र्वश्राम से पूवि

मत्स्यासन करने से इस आसन से अर्धक लाभ प्राि होते हैं।

हलासि

इस आसन में िरीर की आकृर्त खेत मे बैल द्वारा चलायेैेैं जानेैे वाले हल जैसी होने के कारर् हलासि कहते हैं।

हलासन हमारे िरीर को लचीला बनाने के र्लए महत्वपूिि है। इससे हमारी रीढ सदा जवान बनी रहती हैवह लचीली ओर

ताकतवर होती है

सावधानी
रीढ संबंधी गंभीर रोग अथवा गले में कोई गंभीर रोग होने की क्स्थर्त में यह आसन न करें । आसन करते वक्त ध्यान रहे

र्क पैर तने हुए तथा घुटने सीधे रहें।

• पेहली बार करते समय र्कसी योगा टर ैनर की र्नगरानी मेंैं ही करें ।

• हाई बीपी मेंैं भी र्कसी डॉक्टर की सलाह लेकर ही इस आसन को करना चार्हए।

• हलासन करते वक्त िरीर पे र्कसी भी प्रकार की जोर जबरदस्ती ना करें ।

लाभ

रीढ में कठोरता होना वृद्धावस्था की र्निानी है। हलासन से रीढ लचीली बनती है। मेरुदं ड संबंधी नार्ड़यों के स्वास्थ्य की

रक्षा होकर वृद्धावस्था के लक्षि जल्दी नहीं आते। हलासन के र्नयर्मत अभ्यास से अजीिि, कब्ज, अिि, थायराइड का

अल्प र्वकास, अंगर्वकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कि, रक्तर्वकार आर्द दू र होते हैं। र्सरददि दू र होता है। नाड़ीतंत्र िुद्ध

बनता है। िरीर बलवान और तेजस्वी बनता है। लीवर और प्लीहा बढ गए हो तो हलासन से सामान्यावस्था में आ जाते हैं।

अपानवायु का उत्थानन होकर उदान रूपी अर्ि का योग होने से कुंडर्लनी उध्विगामी बनती है। र्विुद्धचि सर्िय होता

है।

2) वजन कम करें ( whight loss ) :- अगर आप वजन कम करने के र्लए योगा करते हैं, तो हलासन को अपनी र्दनचयाि

में जरूर िार्मल करें , यह आसन करते वक्त पेट पर जोर पडता हैं, र्जससे पेट की चबी तो कम होती ही हैं, वजन भी

कम होता हैं।

3) मधुमेह में िायदे मंद ( beneficial of diabetes ) :- जैैैैै सेकी की आप ने उपर पढा की यह वजन कम करने में

िायदे मंद होता हैं, इसका दु सरा िायदा मधुमेही के र्लए भी होता हैं, diabetes के रोगीयो को वजन ज्यादा होना कािी

हार्नकारक होता हैं, और यही नहीं इस आसन से रक्त पररसंैंचरि भी अच्छा रे हता हैं, र्जससे मधुमेही के र्लए िायदा

होता हैं।
4) पाचन में िायदे मंद ( beneficial of digestion ) :- अगर आप रोजाना हलासन करते हैं, तो यह पाचन में भी

िायदे मंद होता हैं, यह आसन करने से कब्ज, अपज और भी कई सारे पेट की समस्या में भी लाभदायक होता हैं, और भी

कई सारे पेट र्बमाररयों में राहत र्मलती हैं।

5) बवासीर में िायदे मंद ( beneficial of piles ) :- बवासीर र्जसेैे पाईल्स भी कहते है, एक बहोत ही गंभीर र्बमारी हैं,

पर यह आसन करने से इस र्बमारी को कािी हद तक कम कर सकते है।

6) र्चंता और थकान ( anxiety and fatigue ) :- हलासन से थकान को भी दू र कर सकते हैं, दरअसल ऐक िोध के

अनुसार यह आसन ररलूँक्स करता हैं और र्चंता को भी कम करने में यह आसन िायदे मंद होता हैंैं।

7) त्वचा और बालों के र्लए िायदे मंद ( beneficial of skin and hair ) :- इस आसन को र्नयर्मत करने से चेहरे में

चमक आती हैं, और इसे करते वक्त खुन का बहाव सर की तरि ज्यादा होता हैं, र्जससे बाल जड से मजबूत होते हैं।

8) र्सर ददि और र्दमाग ( headache and mind ) :- र्नयर्मत हलासन करने से र्सरददि में भी राहत र्मलती हैं, और यह

आसन र्दमाग की नसों को राहत र्दलाता हैंैं, और र्दमाग को िांैंत करता हैंैं। ( halasana -

9) रोगप्रर्तकारक क्षमता बढायें ( boost immunity ) :- यह आसन र्नयर्मत करने से रोगप्ररर्तकारक क्षमता बढती हैं,

और यह रक्त पररसंचरि भी बेहतर बनाता हैं।


भुजंगासि

इस आसन में िरीर की आकृर्त िन उठाए हुए भुजंग अथाित सपि जैसी बनती है इसीर्लए इसको भुजंगासि या सपािसन

(संस्कृत: भुजंगसन) कहा जाता है।

भुजंगासन सुयि नमस्कार के 12 आसनों में 7 वे नंबर आनेवाला एक आसन हैं, भुजंगासन में ' भुजंग ' का अथि होता हैं,

साप और' आसन ' का अथि होता हैं, योग मुद्रा। इस आसन को करते वक्त िन िैलाये हुऐ साप की तरह िरीर की

आकृर्त बनती हैं, इर्सर्लए इसे यह नाम र्दया गया हैं। भुजंगासन पदमासन का एक महत्वपूिि आसन हैं, इसे सपािसन भी

कहते है, और यह अष्ट्ांग योग का भी एक प्रमुख आसन हैं, अंग्रेजी में इसे कोबरा पोज ( cobra pose ) कहते हैं।

~~ सावधानी ~~ इस आसन को करते समय अकस्मात पीछे की तरि बहुत अर्धक न झुकें। इससे आपकी छाती या

पीठ की माूँस-पेर्ियों में क्खंचाव आ सकता है तथा बाूँहों और कंधों की पेर्ियों में भी बल पड़ सकता है र्जससे ददि पैदा

होने की संभावना बढती है। पेट में कोई रोग या पीठ में अत्यर्धक ददि हो तो यह आसन न करें

• यह आसन हर्निया के र्बमारी में नहीं करना चार्हए।

• पीठ में चोट या िेंकचर हो तो भी यह आसन नहीं करना चार्हए।

• कपिल टनल र्संैंडर ोम में यह आसन नहीं करना चार्हए।

• पेट के नीचले र्हस्से में सजिरी हुई हो तो यह आसन ना करें ।

• र्सर ददि मेंैं भी यह आसन ना करें ैं।


• यह आसन करते वक्त हमेिा कभी कमर को झटका नहींैं दे ना चार्हए।

लाभ

इस आसन से रीढ की हड्डी सिक्त होती है। और पीठ में लचीलापन आता है। यह आसन िेिड़ों की िुक्द्ध के र्लए भी

बहुत अच्छा है और र्जन लोगों का गला खराब रहने की, दमे की, पुरानी खाूँसी अथवा िेंिड़ों संबंधी अन्य कोई बीमारी

हो, उनको यह आसन करना चार्हए। इस आसन से र्पत्तािय की र्ियािीलता बढती है और पाचन-प्रिाली की कोमल

पेर्ियाूँ मजबूत बनती है। इससे पेट की चबी घटाने में भी मदद र्मलती है और आयु बढने के कारि से पेट के नीचे के

र्हस्से की पेर्ियों को ढीला होने से रोकने में सहायता र्मलती है। इससे बाजुओं में िक्क्त र्मलती है। पीठ में क्स्थत इड़ा

और र्पंगला नार्डयों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। र्विेषकर, मक्स्तष्क से र्नकलने वाले ज्ञानतंतु बलवान बनते है। पीठ की

हर्ड्डयों में रहने वाली तमाम खरार्बयाूँ दू र होती है। कब्ज दू र होता है। तथा बवािीर मे भी लाभ दे ता है।

1) सायर्टका में िायदे मंद ( beneficial of sciatica ) :- सायर्टका एक र्बमारी होती हैं, जो तंर्त्रका जो रीढ के र्पछे

होती है, जो हमारे पीठ से र्नकलकर र्नंतबो से होते हुऐ, पैैैरों तक जाती हैं, उसमें तेैेैे ज ददि होता हैंैं, रोजाना

भुजंगासन करने से सायर्टका में कािी मदत र्मलती हैं, क्योंर्क इसमें रीढ की हड्डी लचीली बनती हैं।

2) पाचन में िायदे मंद ( beneficial of digestion ) :- भुजंगासन करनेैे वाले व्यक्क्त का पाचन अच्छा रे हता हैं, और

उन्ें कब्ज ,एसीर्डटी की समस्या नहीं होती ,इसके आलावा उस व्यक्क्त को मल त्याग ने में भी परे िानी नहीं होती , और

पेट भी साि रे हता हैं।

3) र्कडनी के र्लए िायदे मंद ( beneficial for kidney ) :- र्नयर्मत भुजंगासन करने से हमारे िरीर की संकुर्चत रे हती

हैं, र्जससे वहा खुन का ठे ैे ैे हराव होता हैं, इससेैे र्कडनी का कायि अच्छा रे हता हैं, इसके आलावा यह िेैे ैे िडों को

भी र्ठक रे हता हैं, र्जससे सांस लेने में र्दक्कत नहीं आती हैं।
4) तनाव दू र करें ( release stress ) :- यह आसन तनाव को कम करनेवाले एडरनल ग्रंथी को प्रभार्वत करता हैं, और

इस के स्त्राव में भी मदत करता हैंैं, र्जससे तनाव, र्चंता, र्डप्रेिन को कम करने में यह आसन उपयोगी होता हैं।

5) मधुमेह में िायदे मंद ( beneficial of diabetes ) :- भुजंगासन मधुैुैु मेह को कम करने में भी िायदे मंद होता, इसे

र्नयर्मत करने से इं ैंन्सुर्लन मात्रा सही बनी रे हती है और यह रक्तपररसंचरि भी अच्छा बना रे हता हैं।

6) हर्ड्डयों को लचीला बनाता हैं ( makes bones flexible ) :- भुजंगासन करनेैेवाले व्यक्क्त की रीढ की हड्डी मजबूत

बनती हैं, और यह लचीली भी होती हैंैं, इसके आलावा यह छाती, कंधे, भुजाओं और पेट की मांैंसपेिीयो को मजबूत

करने में िायदे मंद होता हैं।

7) पीठ ददि दू र करें ( relieve back pain ) :- भुजंैंगासन करने से पीठ ददि में भी राहत र्मलती हैं, क्योर्क इससे रीढ

की हड्डी लचीली और मजबूत बनती है।

8) रक्तपररसंचरि सुधारें ( improve blood circulation ) :- भुजंगासन करने से रक्त का प्रवाह अच्छा होता हैं, और

इससे उनका मन भी िांैंत रे हता हैं, र्चडर्चडे ैेपि और गुस्सा भी कम आता हैं।

9) अस्थमा में िायदे मंद ( beneficial of asthma ) :- यह आसन अस्थमा रोगीयों के र्लए बहोतही लाभकारी होता हैं,

और इससे िैिड़ों में क्खचाव आता हैं, और उसमें ऑक्सीजन भी अंदर बहोत जाती हैं, र्जसवजह सें सांस की सारी

समस्या खि होती हैं।


10) िीप डीक्स में िायदे मंद ( beneficial of sleep dix ) :- यह आसन र्नयर्मत करने से िीप र्डक्स की समस्या भी

धीरे धीरे कम होती हैं।

11) थायराइड में िायदे मंद ( beneficial of thyroid ) :- यह आसन थायराइड और पैैैैै राथायराइड ग्रंथी को सर्िय

करता हैं, रोज 5 र्मनट का भुजंगासन थायरााइड को कम करने में मदत करता हैं।

12) मर्हलाओं की माहावारी चि में िायदे मंद ( beneficial of women's menstrual cycle ) :- भुजंगासन मर्हलाओं

के र्लए भी िायदे मंद होता हैं, खासतौर पर मर्हलाओं के मार्सकधमि में यह उन्ें बहोत ही राहत दे ता हैं।

धिुरासि

धिुरासि (=धनुः + आसन = धनुष जैसा आसन) में िरीर की आकृर्त सामान्य तौर पर क्खंचे हुए धनुष के समान हो जाती

है, इसीर्लए इसको धनुरासन कहते हैं।

यह आसन करने के र्लए सबसे पहले चटाई पर पेट के बल लेट जांय। अब अपने पैरों को घुटनों से मोड़कर हाथों से पैरों

को पकड़ लें और सांस लेते हुए र्सर, छाती और जांघ को उपर उठायें। िरीर के साथ कोई भी जोर जबरदस्ती ना करें ।

अब इसी अवस्था में कुछ दे र बने रहें, इस दौरान सांस धीरे धीरे लेते और छोड़ते रहें।

यह आसन प्रर्तर्दन 2 से 3 बार करें ।

सावधानी

र्जन लोगों को रीढ की हड्डी का अथवा र्डस्क का अत्यर्धक कष्ट् हो, उन्ें यह आसन नहीं करना चार्हए। पेट संबंधी कोई

गंभीर रोग हो तो भी यह आसन न करें ।


लाभ

आकर्ा धिुरासि (स्वामी र्वष्णुदेवानन्द आसन का प्रदिि न करते हुए)

धनुरासन से पेट की चरबी कम होती है। इससे सभी आं तररक अंगों, माूँसपेर्ियों और जोड़ों का व्यायाम हो जाता है। गले

के तमाम रोग नष्ट् होते हैं। पाचनिक्क्त बढती है। श्वास की र्िया व्यवक्स्थत चलती है। मेरुदं ड को लचीला एवं स्वस्थ

बनाता है। सवािइकल, स्ोंडोलाइर्टस, कमर ददि एवं उदर रोगों में लाभकारी आसन है। क्स्त्रयों की मार्सक धमि सम्बधी

र्वकृर्तयाूँ दू र करता है। मूत्र-र्वकारों को दू र कर गुदों को पुष्ट् बनाता है।

1) रोज र्नयर्मत धनुरासन करने से पेट मांसपेर्ियो में अच्छा क्खंचाव आता है र्जससे पेट की चबी कम होती है।

2) धनुरासन करते समय पीठ को अच्छा स्टर े च र्मलता है, र्जससे वह मजबूत बनती है और इससे रीठ की हड्डी भी मजबूत

व लचीली बनती है।

3) इसके र्नयर्मत अभ्यास से र्चिा और अवसाद को कािी हद तक कम र्कया जा सकता है।

4) रोज र्नयर्मत धनुरासन करने से िरीर का पाचनतंत्र मजबूत बनता है और एर्सर्डटी, अजीिि, खट्टी डकार में भी राहत

र्मलती है।

5) हाथ और पेट के स्नायु को पुष्ट् करता है।

6) वृक्क (र्कडनी) के संिमि से र्नजात र्मलती है।


नर्दवस

21 जून 2015 को प्रथम अंतरािष्ट्रीय योग र्दवस मनाया गया। इस अवसर पर 192 दे िों और 47 मुक्िम दे िों में योग

र्दवस का आयोजन र्कया गया। र्दल्ली में एक साथ ३५९८५ लोगों ने योगाभ्यास र्कया।इसमें 84 दे िों के प्रर्तर्नर्ध मौजूद

थे। इस अवसर पर भारत ने दो र्वश्व ररकॉडि बनाकर 'र्गनीज बुक ऑि वर्ल्ि ररकॉडि स' में अपना नाम दजि करा र्लया है।

पहला ररकॉडि एक जगह पर सबसे अर्धक लोगों के एक साथ योग करने का बना, तो दू सरा एक साथ सबसे अर्धक दे िों

के लोगों के योग करने का।

योग का उद्दे श्य योग के अभ्यास के कई लाभों के बारे में दु र्नया भर में जागरूकता बढाना है।लोगों के स्वास्थ्य पर योग के

महत्व और प्रभावों के बारे में जागरूकता िैलाने के र्लए हर साल 21 जून को योग का अभ्यास र्कया जाता है। िब्

‘योग‘ संस्कृत से र्लया गया है र्जसका अथि है जुड़ना या एकजुट होना।

का महत्व

वतिमान समय में अपनी व्यस्त जीवन िैली के कारि लोग संतोष पाने के र्लए योग करते हैं। योग से न केवल व्यक्क्त का

तनाव दू र होता है बक्ि मन और मक्स्तष्क को भी िांर्त र्मलती है योग बहुत ही लाभकारी है। योग न केवल हमारे

र्दमाग, मक्स्तष्षक को ही ताकत पहुंचाता है बक्ि हमारी आत्मा को भी िुद्ध करता है। आज बहुत से लोग मोटापे से

परे िान हैं, उनके र्लए योग बहुत ही िायदे मंद है। योग के िायदे से आज सब ज्ञात है, र्जस वजह से आज योग र्वदे िों

में भी प्रर्सद्ध है। अगर आप इसका र्नयर्मत अभ्यास करते हैं, तो इससे धीरे -धीरे आपका तनाव भी दू र हो सकता है।
का लक्ष्य

योग का लक्ष्य स्वास्थ्य में सुधार से लेकर मोक्ष (आिा को परमेश्वर का अनुभव) प्राि करने तक है। Pजैन धमि, अद्वै त

वेदांत के मोर्नस्ट संप्रदाय और िैव संप्रदाय के अिर में योग का लक्ष्य मोक्ष का रूप लेता है, जो सभी सांसाररक कष्ट् एवं

जन्म और मृत्यु के चि (संसार) से मुक्क्त प्राि करना है, उस क्षि में परम ब्रह्मि के साथ समरूपता का एक एहसास है।

महाभारत में, योग का लक्ष्य ब्रह्मा के दु र्नया में प्रवेि के रूप में वर्िित र्कया गया है, ब्रह्म के रूप में, अथवा आिन को

अनुभव करते हुए जो सभी वस्तुओं मे व्याि है।

मीचाि एलीयाडे योग के बारे में कहते हैं र्क यह र्सिि एक िारीररक व्यायाम ही नहीं है, एक आध्याक्िक तकनीक भी

है। सविपल्ली राधाकृष्णन र्लखते हैं र्क समार्ध में र्नम्नर्लक्खत तत्व िार्मल हैं: र्वतकि, र्वचार, आनंद और अक्स्मता।

के प्रनसद्ध ग्रन्थ

ग्रन्थ रचनर्ता रचिाकाल/नटप्पर्ी

र्ोगसूर्त्र पतंजर्ल ४०० ई. पूवि

र्ोगभाष्य वेदव्यास र्द्वतीय िताब्ी

तत्त्ववैशारर्दी वाचस्र्त र्मश्र ८४१ ई


र्ोगर्ाज्ञवल्क्य याज्ञवल्क्य सबसे पुरानी संस्कृत पाण्डु र्लर्प ९वीं-१०वीं िताब्ी की है।

भोजवृनत्त राजा भोज ११वीं िताब्ी

गोरक्षशतक गुरु गोरख नाथ ११वीं-१२वीं िताब्ी

र्ोगचूडामण्युपनिषर्द - १४वीं-१५वीं िताब्ी (ररचडि रोसेन के अनुसार)

र्ोगवानताक र्वज्ञानर्भक्षु १६वीं िताब्ी

र्ोगसारसंग्रह र्वज्ञानर्भक्षु १६वीं िताब्ी

हठर्ोगप्रर्दीनपका स्वामी स्वािाराम १५वीं-१६वीं िताब्ी

सूर्त्रवृनत्त गिेिभावा १७वीं िताब्ी

र्ोगसूर्त्रवृनत्त नागेि भट्ट[83] १७वीं िताब्ी

नशवसंनहता अज्ञात -

घेरण्डसंनहता घेरण्ड मुर्न -

हठरत्नावली श्रीर्नवास भट्ट १७वीं िताब्ी


मनर्प्रभा रामानन्द यर्त १८वीं िताब्ी

सूर्त्राथाप्रबोनधिी नारायि तीथि १८वीं िताब्ी

१७३७ ई. / यह र्हन्दी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली की र्मलीजुली भाषा में


जोगप्रर्दीनपका जयतराम रर्चत है

और िब्ावली संस्कृत के अत्यि र्नकट है।

सनचर्त्र र्ोगसाधि र्िवमुर्न २०वीं िताब्ी ; र्हन्दी में र्लक्खत[84]

स्वामी सत्यपर्त
र्ोगर्दशािम २१वीं िताब्ी
पररव्राजक

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