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विषर ह द

िं ी
प्रश्नपत्र सं. एवं शीर्षक P6: ह द
िं ी प्रदे शों का लोक साह त्र
इकाई सं. एवं शीर्षक M7: लोक साह त्र और ललखित परिं परा का साह त्र
इकाई टै ग HND_P6_M7

निर्ााता सर्ू
प्रमख
ु अन्वहर्क प्रो. गिरीश्िर लर््र
कुलपति, महातमा गां ी अंिााारीतय ह ंहं त शवश्वशव्य हालय ह, व ाष (महााारी) 442001
ईमहल : misragirishwar@gmail.com
प्रश्नपत्र समन्वय हक प्रो. दे िराज
अध राािा, अनुवा एवं तनवषचन शव्य हापीा
महातमा गां ी अंिााारीतय ह ंहं त शवश्वशव्य हालय ह, व ाष (महााारी) 442001
ईमहल : dr4devraj@gmail.com
इकाई लहखक डॉ. जी. िीरजा
सहाय हक प्रोफहसा, उच्च शशक्षा औा शो संस्थान
क्षक्षण भााि ंहं त प्रचाा सभा, है ााबा
ईमहल : neerajagkonda@gmail.com
इकाई समीक्षक प्रो. दे िराज
अध राािा, अनुवा एवं तनवषचन शव्य हापीा
महातमा गां ी अंिााारीतय ह ंहं त शवश्वशव्य हालय ह, व ाष (महााारी) 442001
ईमहल : dr4devraj@gmail.com
भार्ा संपा क प्रो. गिरीश्िर लर््र
कुलपति, महातमा गां ी अंिााारीतय ह ंहं त शवश्वशव्य हालय ह, व ाष (महााारी) 442001
ईमहल : misragirishwar@gmail.com

पाठ का प्रारूप
1. पाा का उद्दहश्य ह
2. प्रस्िावना
3. लोक सांहतय हः पराभार्ा औा स्वरूप
4. लोक सांहतय ह का शवकास
5. शलखखि सांहतय ह का स्वरूप
6. लोक सांहतय ह औा शलखखि सांहतय हः अंिसंबं
7. तनरकर्ष

HND : ह द
िं ी P6: ह द
िं ी प्रदे शों का लोक साह त्र
M7: लोक साह त्र और ललखित परिं परा का साह त्र
1. पाठ का उद्देश्र
इस पाा कह अध्य हय हन कह उपाांि आप-
 लोक सांहतय ह औा शलखखि सांहतय ह कह स्वरूप को समझ सकेंगह।
 लोक सांहतय ह औा शलखखि सांहतय ह कह सांस्कृतिक शवकास को जान सकेंगह।
 लोक सांहतय ह औा शलखखि सांहतय ह कह अंिसंबं कह आ ााों सह पराधचि हो सकेंगह।
 लोक सांहतय ह औा शलखखि सांहतय ह कह अंिसंबं का शवश्लहर्ण का सकेंगह।
 लोक सांहतय ह औा शलखखि सांहतय ह कह दृष्रटबो सह पराधचि हो सकेंगह।

2. प्रस्ताििा
‘लोक सांहतय ह’ प का अंग्रहजी कह ‘फोक शलीह चा’ कह पय हाषय ह कह रूप में प्रय होग होनह लगा है । शाष्द क दृष्रट सह लोक
सांहतय ह का अथष है - लोक का सांहतय ह। लोक एक समग्र सामाष्जक-सांस्कृतिक अथष को वहन कानह वाला शद है ।
इसकह मूल में सभ्य हिा कह आ ुतनक घहाह सह ाू ाहनह वालह जन-समाज की जीवनशैलत मौजू है । इिना हत नहतं, उस
जन-समाज की आवश्य हकिाएँ, आकांक्षाएँ औा कल्पनाएँ भी इसमें शाशमल हैं। लोक सांहतय ह इन सब ितवों की
पहचान को अशभव्य हक्ि कािा है औा उसह लोक-कंा में स्थाशपि कािा है । वहाँ सह वह पां पाा में ढलका एक पीढत
सह स
ू ात पीढत कह पास थािी कह रूप में पहुँचिा ाहिा है । य हं य हह कहा जाए िो सहत हत होगा कक लोक सांहतय ह
लोक जीवन की आिंराक औा बाह्य ह प्रकिय हाओं को पां पाा कह रूप में उन्मक्
ु ि ढं ग सह प्रस्िुि कािा है । य हहत उसकह
तनमाषण की प्रकिय हा भी है । एक प्रकाा सह लोक सांहतय ह में स्वय हं लोक अपनह को ाचिा चला जािा है । य हहत कााण है
कक उसकह अनहक रूप ह खनह को शमलिह हैं।

3. लोक साह त्र : पररभाषा और स्िरूप


जहाँ िक लोक सांहतय ह की पराभार्ा का प्रश्न है , आपनह अनहक शव्वानों की पराभार्ाएँ पढ़त होंगी औा कोशों में लोक
सांहतय ह की जानकाात का साक्षातकाा ककय हा होगा। आप य हह भी जानिह होंगह कक शवशभन्न शव्वानों नह मूल बाि को
साु क्षक्षि ाखिह हुए अलग-अलग ढं ग सह अपनह मि व्य हक्ि ककए हैं।

‘ंहं त सांहतय ह कोश’ कह पहलह भाग में कहा गय हा है कक “लोक सांहतय ह वह मौखखक अशभव्य हष्क्ि है , जो भलह हत
ककसी व्य हष्क्ि नह गढ़त हो, पा आज ष्जसह सामान्य ह लोक-समूह अपना हत मानिा है औा ष्जसमें लोक की य हुग-य हुगीन
वाणी-सा ना समांहि ाहिी है , ष्जसमें लोक मानस प्रतिबबंबबि ाहिा है ।” ( ीाें द्र वमाष, ंहं त सांहतय ह कोश, भाग-1,
प.ृ सं. 597)।

लोक सांहतय ह की य हह पराभार्ा ‘लोक’ औा ‘लोक सांहतय ह’ कह आपसी संबं पा भी प्रकाश डालिी है िथा व्य हापक
सं भष में उसकह वैशशर्य ह का भी संकहि कािी है । इससह हमें य हह भी पिा चलिा है कक लोक सांहतय ह का कोई
शवशशरट ाचतय हिा नहतं होिा औा संपूणष लोक समाज उसकह साथ अपना जुड़ाव महसूस कािा है ।

लोक सांहतय ह कह स्वरूप कह संबं में डॉ. सतय हेंद्र नह िीन बािों पा बल ं य हा है । पहलत आं म मानस कह अवशहर्ों की
उपलद िा। स
ू ात पां पाागि मौखखक िम औा िीसात लोक मानस कह ितवों की उपष्स्थति। इन शवशहर्िाओं सह य हुक्ि
ऐसी ाचना ष्जसह लोक अपनह व्य हष्क्ितव की कृति स्वीकाा कािा हो, लोक सांहतय ह है । (लोक सांहतय ह शवज्ञान, 2006,
प.ृ सं. 15-16)

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लोक सांहतय ह को समझनह कह शलए ीाें द्र वमाष ्वााा संपां ि ‘ंहं त सांहतय ह कोश’ हमाात काफी सहाय हिा कािा है ।
इसमें कहा गय हा है कक “वह सांहतय ह ष्जसमें ककसी समु ाय ह की लोकवािाष अशभव्य हक्ि हुई है अथवा जो स्वय हं
लोकवािाष का एक आनुराातनक अंग हो। इस क्षहत्र कह बाहा का समस्ि लोकसांहतय ह, इिा लोक सांहतय ह है ।” ( ीाें द्र
वमाष, ंहं त सांहतय ह कोश, भाग. 1, प.ृ सं. 598)

इसी प्रकाा ‘अव ी ग्रंथावलत’ कह पहलह खंड में भी लोक सांहतय ह कह संबं में काफी शवस्िाापूवक
ष शवचाा ककय हा गय हा है ।
उसमें य हह माना गय हा है कक लोक सांहतय ह का स्रोि लोकवािाष है औा लोकवािाष का स्रोि लोकमानस में पाए जानह
वालह वह संस्काा हैं, ष्जनमें परामाजषन संभव नहतं होिा। ‘अव ी ग्रंथावलत’ में लोकवािाष कह स्वरूप की चचाष भी की गई
है औा उसह व्य हापक अथष ाखनह वाला पाराभाशर्क शद माना गय हा है । वहाँ कहा गय हा है कक- “लोकवािाष शद शवश
अथष ाखिा है । समस्ि आचाा-शवचाा, ष्जसमें मानव का पां पराि रूप प्रतय हक्ष होिा है औा ष्जसकह स्रोि लोकमानस में
पाए जािह हैं िथा ष्जनमें परामाजषन औा संस्काा की चहिना काम नहतं कािी। लौककक एवं ाशमषक शवश्वास, मष-
गाथाएँ-कथाएँ, कहाविें , पहह शलय हाँ सभी लोकवािाष कह अंग हैं।” (जग तश पीय हर्
ू , अव ी ग्रंथावलत, खंड. 1, लोक सांहतय ह
खंड, प.ृ सं. 18)।

लोक सांहतय ह कह संबं में गहााई सह शवचाा कानह वालह शव्वान डॉ. कृरण ह व उपाध्य हाय ह नह लोक सांहतय ह कह व्य हाष्ति-
क्षहत्र का भी शववहचन ककय हा है । वह कहिह हैं कक ‘’लोक सांहतय ह का शवस्िाा अतय हंि व्य हापक है । सा ााण जनिा ष्जन
शद ों में गािी है , ाोिी है , हँ सिी है , खहलिी है , उन सबको लोक सांहतय ह कह अंिगषि ाखा जा सकिा है ।’’ ( लोक
सांहतय ह की भूशमका, प.ृ सं. 20)।

लोक कह इसी वैशवध्य ह को प्रस्िुि कानह कह शलए लोक सांहतय ह कह पाँच रूप शवकशसि हुए - लोकगीि, लोकगाथा,
लोककथा, लोकना्य ह औा लोक सुभाशर्ि।

4. लोक साह त्र का विकास


लोक सांहतय ह मूलिः मौखखक पां पाा का सांहतय ह होिा है औा उसी रूप में उसका तनां िा शवकास होिा ाहिा है । य हह
माना जािा है कक मौखखक पां पाा कह माध्य हम सह ज्ञान, शवशहर् रूप सह ाशमषक ज्ञान का पीढ़त- ा-पीढ़त अंिाण होिा
ाहिा है । इस बाि को भी नकााा नहतं जा सकिा कक सांस्कृतिक ाोहा कह अंिाण में श्रुति-पां पाा की महिी भूशमका
होिी है । लोक जीवन में जो लोक शवश्वास औा जीवन शैशलय हाँ महतवपूणष होिी हैं, उनकह मल
ू में मौखखक पां पाा हत
मौजू ाहिी है । इसका एक प्रभाव य हह ं खाई ह िा है कक मौखखक पां पाा औा श्रुति माध्य हम कह कााण सांस्कृतिक
परादृश्य ह में तनां िा जुड़ाव औा घटाव चलिा ाहिा है । अशभव्य हष्क्ि का मूल ढाँचा वहत का वहत ाहिह हुए भी उसह
संपुरट कानह वालत ष्स्थतिय हों में कभी कुछ नय हा जुड़ जािा है , कभी पुाानह में ब लाव आ जािा है औा कभी ष्स्थतिय हाँ
नवीकृि हो जािी हैं। हम आसानी सह अनुभव का सकिह हैं कक प्रवासन औा प्रव्रजन की प्रकिय हा में लोक सांहतय ह
काफी कुछ ब ल जािा है । कुछ लोगों का समह
ू कहतं ाू जाका औा नई संस्कृति कह संपकष में आका लोक सांहतय ह
कह पाां पातण ढाँचह को बनाए ाखिह हुए भी उसमें भाह जानह वालह ां गों में पराविषन का लहिा है । इससह लोक सांहतय ह कह
स्वरूप को औा उसकह शवकास को समझा जा सकिा है ।

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लोक सांहतय ह कह शवकास पा आ ुतनक सं भों में भी शवचाा कानह की आवश्य हकिा है । इस दृष्रट सह औ्य होधगकीकाण,
शहातकाण औा सूचना प्रौ्य होधगकी की ओा ध्य हान जािा है । प्राय हः जहाँ औ्य होगीकाण एवं शहातकाण अध क हुआ
है , वहाँ लोक सांहतय ह की पां पाा अपहक्षाकृि क्षीण हुई है । इसका एक रु पराणाम य हह सामनह आय हा है कक औ्य होधगक
औा शहात समाज स्मतृ िलोप औा इतिहास लोप कह शशकाा बनह हैं। मनुरय ह की प्रकृति अपनह संस्काा औा इतिहास को
सुाक्षक्षि ाखनह में स्मतृ ि औा अभ्य हास का सहााा लहिी ाहत है । य हह मानना होगा कक औ्य होगीकाण इन ोनों को हत
नुकसान पहुँचािा है । लहककन य हहाँ भी लोक सांहतय ह की भूशमका पूात िाह समाति नहतं होिी। इिना हत नहतं, अवसा
पडनह पा लोक सांहतय ह हत उस समाज शवशहर् की सांस्कृतिक पहचान कह गान औा समशृ ि का आ ाा बनिा है ।

5. ललखित साह त्र का स्िरूप


शलखखि पां पाा कह सांहतय ह का सामान्य ह अथष है , वह सांहतय ह, ष्जसह एक तनष्श्चि शलशप कह माध्य हम सह प्रस्िुि ककय हा
गय हा हो। लहककन य हह प्रचशलि अथष बहुि ाू िक शलखखि सांहतय ह को समझनह में हमाात सहाय हिा नहतं कािा, बष्ल्क
एक प्रकाा कह भ्रम का तनमाषण कािा है । इसका कााण य हह है कक शलखखि पां पाा कह सांहतय ह सह जो अथष ग्रहण ककय हा
जाना चांहए, वह शलशप सह कहतं अध क सतु नष्श्चि ाचना शैलत, ाचना शमषिा की शास्त्रीय हिा औा सौं य हषशास्त्र कह
प्रतिमानों की कसौटत औा अपराविषनशीलिा सह संबं ाखिा है । इस बाि को लोक सांहतय ह का सं भष ह का औा
आसानी सह समझाय हा जा सकिा है । लोक सांहतय ह का जो रूप हमााह सामनह है , उसका मूल चरात्र शलशप में प्रस्िुि
ककए जानह पा भी वहत नहतं ाहिा जो पहलह था। य हहाँ िक कक य हं लोक सांहतय ह की एक हत ाचना को अलग-अलग
अवसाों पा, अलग-अलग क्षहत्रो में शलशपबि ककय हा जाए िो उस ाचना की पराविषनशीलिा आसानी सह पकड़ में आ
जािी है । स
ू ात ओा शलखखि पां पाा कह सांहतय ह की ककसी ाचना को आप ककसी भी काल में शलशपबि काें , उसका
रूप वहत का वहत ाहह गा। इिना हत नहतं, य हं शलखखि सांहतय ह की ककसी ाचना कह ो पााों में पराविषन ह खनह को
शमलिा है िो पााालोचन, पाा संशो न, क्षहपक तनवााण आं की माँग उानह लगिी है । हम सी -ह सी ह कह सकिह हैं
कक शलखखि पां पाा का सांहतय ह एक सुतन ाषराि तनां िािा, शास्त्रीय हिा, नागा जन कौशल औा ाचना-रूंढ़य हों सह
पराचाशलि शलशपबि सांहतय ह है । उसकह शवकास कह मूल में य हुगों-य हुगों औा प्रतय हहक य हुग की परातनष्राि नागा जीवन
शाएँ होिी हैं।

शलखखि पां पाा कह सांहतय ह की अशभजाि ष्स्थतिय हाँ उसकह औा लोक सांहतय ह कह मध्य ह अंिा भी स्थाशपि कािी हैं।
य हह अंिा कथ्य ह को ग्रहण कानह वालह स्रोिों की दृष्रट सह भी होिा है, शास्त्र धचंिन की दृष्रट सह भी, आलोचना कह
मूल्य हों की दृष्रट सह भी, भार्ा िथा ाचनाकाा की दृष्रट सह भी औा पीढ़त- ा-पीढ़त पराविषनशीलिा की दृष्रट सह भी।

6. लोक साह त्र और ललखित साह त्रः अिंतसंबिंध


लोक सांहतय ह औा शलखखि पां पाा कह सांहतय ह कह अंिसंबं ों का शववहचन कुछ बबं ओ
ु ं कह आ ाा पा ककय हा जा सकिा
है , जैसह-
1. कथ्य ह स्रोि
2. ाचना शैलत
3. सौं य हषशास्त्र
4. भार्ा

अब हम इन चााों बबं ओ
ु ं कह बााह में बािचीि का सकिह हैं।

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िं ी प्रदे शों का लोक साह त्र
M7: लोक साह त्र और ललखित परिं परा का साह त्र
जहाँ िक कथ्य ह स्रोि का प्रश्न है , चाहह लोक सांहतय ह हो, चाहह शलखखि पां पाा का सांहतय ह, ोनों हत अपना कथ्य ह
जीवन, सांस्कृतिक पां पााओं, इतिहास औा समाज सह ग्रहण कािह हैं। एक प्रकाा सह कहें िो ोनों अपनी-अपनी दृष्रट
कह वशीभूि कथ्य ह-चय हन में संलग्न होिह हैं। लोक सांहतय ह का अज्ञाि ाचनाकाा एक शवशहर् दृष्रट सह कथ्य ह चुनिा है
औा शलखखि पां पाा का ाचनाकाा एक स
ू ात दृष्रट सह। लहककन य हह स
ू ात दृष्रट गहाह स्िा पा लोक सांहतय ह सह प्राण
ग्रहण कािी है । व्य हावहाराक रूप में शलखखि सांहतय ह की पां पाा का लहखक लोक की समग्रिा कह भीिा सह ाचना
दृष्रट कह कााक एकत्र कािा है औा उन्हें सभ्य हिा िथा शास्त्रीय हिा कह साँचह में ढाल का अपनी दृष्रट का तनमाषण
कानह में जट
ु िा है । इस प्रकिय हा में उसकी ाचना-दृष्रट में वह स्वच्छं िा औा उन्मक्
ु ििा नहतं ाहिी, जो लोक सांहतय ह
की ाचना दृष्रट में प्रमुखिा सह पाई जािी है । इसका एक पराणाम य हह ह खनह में आिा है कक शलखखि पां पाा कह
लहखक को अपनी ाचना दृष्रट को प्राणवंि बनाए ाखनह कह शलए लौट-लौट का लोक जीवन औा लोक सांहतय ह कह
पास जाना पड़िा है ।

शलखखि पां पाा कह सांहतय ह की ाचना शैशलय हों का सी ा राश्िा लोक औा लोक सांहतय ह सह हत है । लोक गीि, लोक
संगीि, लोक में मौजू कथक्कडी, लोक सांहतय ह में शव्य हमान ाहस्य हपूणष चामतकाराक सूष्क्िय हों में तछपी सामाशसकिा
औा लोक सांहतय ह की सहज व्य हंजना परातनष्राि होका शलखखि पां पाा कह सांहतय ह की ाचना शैशलय हों में परावतिषि
होिी है । ाअसल लोक कह पास एक स्वाभाशवक कहन शैलत होिी है , ष्जसह उसनह अपनह जीवन की चुनौतिय हों, पश-ु
पक्षक्षय हों, पहड़-पौ ों, खहिों-फसलों, हवा औा बाराश कह साथ तघषकालतन राश्िों औा आतमीय हिाओं कह शवशव पक्षों की
अशभव्य हष्क्ि कह माध्य हम कह रूप में अष्जषि ककय हा है । शलखखि पां पाा का सांहतय ह अपनी शवशव शैशलय हों को इसी लोक
औा लोक सांहतय ह सह ग्रहण कािा है । हमें आज ष्जन भी ाचना शैशलय हों की जानकाात है औा ष्जनमें हम शलखखि
पां पाा का सांहतय ह ाच ाहह हैं, उन्हें हमनह ककसी न ककसी रूप में लोक सह ग्रहण काकह पराशोध ि ककय हा है । य हहाँ िक
कक ष्जन ाचना शैशलय हों को हम शव ह शी सांहतय ह सह ग्रहण ककय हा हुआ मानिह हैं, उनका संबं भी अपनह-अपनह भार्ा
समाजों में लोक जीवन औा लोक सांहतय ह कह साथ ाह खांककि ककय हा जा सकिा है । हम आपका ध्य हान इस ओा भी
खींचना चाहिह हैं कक औ्य होगीकाण औा आ तु नकिा कह प्रभावों कह पराणामस्वरूप शलखखि सांहतय ह की ाचना शैशलय हों
में जो ब लाव आय हा है वह अंििः जड़िा की ओा लह जानह वाला शसि हुआ है । इसका प्रमाण य हह है कक कशविा,
कथा औा सबसह अध क नाटक कह क्षहत्र में लोक शैशलय हों कह प्रय होग िहजी सह बढ़ ाहह हैं। य हह लोक सांहतय ह औा शलखखि
पां पाा कह सांहतय ह कह अंिसंबं कह शैलत पक्ष का सटतक उ ाहाण कहा जा सकिा है ।

अब हम सौं य हषशास्त्र की चचाष काें गह। शलखखि पां पाा कह सांहतय ह की सबसह बड़ी उपलष्द कह रूप में उसकह पास
काव्य हशास्त्र य हा अलंकााशास्त्र य हा सौं य हषशास्त्र की मौजू गी को माना जािा है । सौं य हष शास्त्र का एक सुतनष्श्चि
अनुशासन, तनय हमों का संग्रह औा सु तघष पां पाा भी उसकह पास है । य हह सुगंाि औा य होजनाबि रूप में लोक सांहतय ह
कह पास नहतं होिी। य हं इसकह मूल कााण की खोज काें िो वह नागा जीवन औा लोक जीवन कह अंिा में तछपा
हुआ है । मगा य हहाँ भी सवाल य हह है कक क्य हा शलखखि पां पाा कह सांहतय ह में मौजू सौं य हष शास्त्र का कोई राश्िा
लोक औा लोक सांहतय ह सह है य हा नहतं। इस बाि को आसानी सह समझनह कह शलए रूप य हा सौं य हष की शास्त्रीय ह
पराभार्ा हमाात सहाय हिा कािी है । ‘क्षणह क्षणह य हन्नविामुपैति ि ह व रूपं ामणीय हिाय हा’ (माघ) कहका सौं य हष कह ष्जस
स्वभाव को समझानह की कोशशश की गई है , वह कहवल प्रकृति में हो सकिा है । क्षणह-क्षणह नव्य हिा वर्ाष में , बा ल में,
आकाश में , वन में हत होिी है औा उसह सबसह पहलह शास्त्रीय ह बँ ाव सह ाू ाहनह वाला लोक हत पहचानिा है औा
लोक सांहतय ह हत ग्रहण कािा है । वहत सौं य हष कह प्रकृि उपमान भी तन ाषराि कािा है , ष्जन्हें शलखखि पां पाा का

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सांहतय ह लहिा है औा प्रय होग कािा है । शलखखि पां पाा कह कशवय हों को जब उपमानों का पुाानापन पाह शान कानह लगिा
है िो वह लोक की शाण में हत जािह हैं औा वहतं कह जीवन में ाचह-बसह उपमान ाचना में लािह हैं।

ंहं त कह ‘नई कशविा आं ोलन’ कह पुाो ा कशवय हों में सह एक, अज्ञहय ह नह अपनी एक कशविा में लोक-जीवन, लोक
सांहतय ह औा शलखखि पां पाा कह सांहतय ह कह इस संबं का ाहस्य ह खोला है । वह अपनी प्रहय हसी को संबोध ि कानह कह
शलए ककसी उपमान की िलाश कािह हैं, लहककन उनकह सामनह समस्य हा है कक शलखखि पां पाा कह सांहतय ह में प्रय हुक्ि
उपमान पुाानह औा मैलह हो गए हैं। इिनह मैलह हो गए हैं औा बाा-बाा कह प्रय होग सह इिनह तघस गए हैं कक उन
उपमानों कह ह विा कहतं औा कह शलए कूच का गए हैं। य हह उसी प्रकाा है , जैसह अध क बाा मांजनह पा बािन की
कलई छूट जािी है । कशव काह , िो क्य हा काह ! ललािी साँझ कह नभ की िाराका, नीहाा नहाई कुँई, चंपा की टटकी
कलत आं उपमान िो तघस का अपना प्रभाव खो चुकह हैं, अिः इनसह कशव का काम नहतं बनहगा? ाचना-संकट की
इस घड़ी में कशव कह सामनह एक हत मागष था कक वह लोक की शाण में जाए। अज्ञहय ह नह ऐसा हत ककय हा औा जब वह
लोकाशभमुखी हुए, िो ह खा कक वहाँ ‘हात बबछलत घास’ है औा ‘बाजाह की डोलिी हुई कलगी’ है । उन्होंनह ोनों उपमानों
को उााय हा औा कशविा में ला बैााय हा। न कहवल लोक सह ग्रहति उपमानों सह कशविा ाची, बष्ल्क एक सौं य हषशास्त्रीय ह
य हथाथष का उ्घाटन भी ककय हा। अज्ञहय ह की इस कशविा की प्राां शभक पंष्क्िय हाँ इस प्रकाा हैं-
‘हात बबछलत घास
ोलिी कलगी छाहात बाजाह की
अगा मैं िुमको
ललािी साँझ कह नभ की
अकहलत िाराका अब नहतं कहिा
य हा शा कह भोा की
नीहाा न्हाई कुँई
टटकी कलत चंपह की वगैहाा िो
नहतं कााण कक महाा हृ य ह उथला य हा कक सन
ू ा है
य हा कक महाा तय हाा मैला है
बष्ल्क कहवल य हहत-
य हह उपमान मैलह हो गए हैं
ह विा इन प्रिीकों कह का गए हैं कूच
कभी बासन अध क तघसनह सह
मुलम्मा छूट जािा है ।’

इससह भी आगह बढ़का जनकशव नागाजन ुष नह िो अपनी ‘बहुि ं नों कह बा ’ कशविा में जीवन-ास प्र ान कानह वालह
सभी ितव लोक-जीवन में हत प्राति कानह का ावा ककय हा है-
‘बहुि ं नों कह बा
अबकी मैंनह जीभा भोगह
रूप, ास, गं , शद , स्पशष
सब साथ-साथ इस भू पा
बहुि ं नों कह बा ।’

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िं ी प्रदे शों का लोक साह त्र
M7: लोक साह त्र और ललखित परिं परा का साह त्र
कथ्य ह स्रोि, ाचना शैलत औा सौं य हषशास्त्र कह अतिराक्ि सांहतय ह की भार्ा संाचना भी शवचााणीय ह है । य हह िो स्परट हत
है कक सांहतय ह की भार्ा का मल
ू स्रोि लोकभार्ा हत है । भार्ाशवज्ञान में पढाए जानह वालह भार्ा कह ध्वतन, शद , प ,
वाक्य ह, अथष आं अंग मूलिः लोकभार्ा में हत जन्म लहिह हैं। उसकह बा हत उन्हें व्य हाकाण कह तनय हमों अथवा
भार्ाशास्त्र में बाँ ा औा पराभाशर्ि ककय हा जािा है । सांहष्तय हक भार्ा की शद संप ा में शद ों की जो वशृ ि होिी है ,
उसकी प्रय होगशाला लोक औा पहला प्रय होक्िा लोकसांहतय ह होिा है । इसी प्रकाा सांहष्तय हक भार्ा सह जो शद गाय हब हो
जािह हैं, वह भी इसीशलए कक जन समाज कह बीच उनका व्य हवहाा बं हो जािा है । लहककन हमें एक शवलक्षण बाि की
ओा भी ध्य हान ह ना चांहए कक नए शद ों कह तनमाषण कह समान हत लोक सांहतय ह व्य हवहाा में बं हो जानह वालह शद ों
को भी लंबह समय ह िक सुाक्षक्षि ाखिा है औा सांहष्तय हक भार्ा कह प्रय होक्िा कई बाा उन्हें लहनह लोक सांहतय ह कह पास
जािह हैं। कशविा में ऐसा अक्सा ह खनह को शमलिा है । इस प्रकाा भार्ा की दृष्रट सह लोक सांहतय ह औा शलखखि
पां पाा का सांहतय ह प्रतय हक्ष रूप सह तनां िा संवा की ष्स्थति में ाहिह हैं। जहाँ य हह संवा कमजोा पड़िा है , वहतं
शलखखि सांहतय ह की भार्ा असंप्रहरय ह होनह कह संकट सह गुजानह लगिी है । सोचनह का एक बबं ु य हह भी है कक शलखखि
सांहतय ह की भार्ा मानकीकाण की प्रकिय हा सह गज
ु ा का अपना रूप प्राति कािी है , जबकक लोक सांहतय ह की भार्ा
इस आग्रह सह मुक्ि होिी है । उसका होना औा बनह ाहना उसकी जीवंििा पा ंटका होिा है , जो उसह लोकजीवन कह
कण-कण सह प्राति होिी है । उसकह शद उन्मुक्ि भाव सह िीडा कािह हैं क्य होंकक वह लोकमानस की उन्मुक्ििा कह
वाहक होिह हैं। हमें ध्य हान ाखना होगा कक लोक सांहतय ह कह शद ों को हत नहतं, भार्ा कह अनगढ़ रूप को भी शलखखि
पां पाा का सांहतय ह बाा-बाा अपनािा है । मुहावाों औा कहाविों का उपय होग सांहष्तय हक भार्ा में प्रवाहमय हिा, सहजिा
िथा जीवंििा को बनाए ाखनह कह शलए हत ककय हा जािा है ।

7. निष्कषा
इस चचाष सह आप समझ गए होंगह कक -
 लोक सांहतय ह औा शलखखि पां पाा का सांहतय ह ोनों हत अपनह स्वरूप कह वैशशर्य ह कह आ ाा पा अलग-
अलग पहचानह जा सकिह हैं।
 लोक सांहतय ह शास्त्रीय हिा औा रूढ़ अनुशासन सह ाू ाहनह वालह उन्मुक्ि लोक मानस सह सी ह-सी ह जुड़ा
ाहिा है , जबकक शलखखि पां पाा का सांहतय ह शास्त्रीय हिा सह पराचाशलि नागा मानस सह प्रभाशवि होिा है ।
 शलखखि पां पाा का सांहतय ह लोक सांहतय ह की पां पााओं सह जीवन ग्रहण कािा है ।
 कथ्य ह स्रोि, ाचना शैलत, सौं य हष शास्त्र औा भार्ा कह स्िा पा शलखखि सांहतय ह औा लोक सांहतय ह कह
अंिसंबं को समझह जानह की आवश्य हकिा है ।
 लोक जीवन, संस्कृति, पां पाा आं कह संबं में जो ग्रहणशीलिा औा सहज बो लोक सांहतय ह में पाय हा
जािा है , वह शलखखि पां पाा कह सांहतय ह कह कथ्य ह चय हन में सबसह अध क सहाय हक होिा है ।
 शवशव ाचना शैशलय हाँ लोक व्य हवहाा सह लोक सांहतय ह में आिी हैं औा वहाँ सह शलखखि पां पाा कह सांहतय ह में
पहुँचिी हैं।
 शलखखि सांहतय ह का सौं य हषशास्त्र अपनी अंतिम कसौटत लोक को हत मानिा है िथा उसकह सौं य हष मल्
ू य ह अपनह
वास्िशवक रूप में लोक औा लोकसांहतय ह में हत ाहिह हैं।
 शलखखि सांहतय ह की भार्ा का मूल स्रोि लोक भार्ाएँ होिी हैं।

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