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हिषय हहन्दी

प्रश्नपत्र सं. एिं शीषषक P 1: हहन्दी साहहत्य का आहतहास

आकाइ सं. एिं शीषषक M33: हहन्दी साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल-हिभाजन का अधार

आकाइ टैग HND_P1_M33

प्रधान हनरीक्षक प्रो.रामबक्ष जाट

प्रश्नपत्र-संयोजक डॉ.हममता चतुिद


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आकाइ-लेखक डॉ. प्रभात कु मार हमश्र

आकाइ-समीक्षक प्रो. हररमोहन शमाष

भाषा-सम्पादक प्रो. देिशंकर निीन

पाठ का प्रारूप
1. पाठ का ईद्देश्य
2. प्रमतािना
3. साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल-हिभाजन का अधार
4. रामचन्र शुक्ल से पहले हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन मं काल-हिभाजन
5. रामचन्र शुक्ल के समय हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन मं काल-हिभाजन
6. रामचन्र शुक्ल के बाद हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन मं काल-हिभाजन
7. हनष्कषष

HND : हहन्दी P 1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास


M 33:हहन्दी साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल-हिभाजन का अधार
1. पाठ का ईद्देश्य
आस पाठ के ऄध्ययन के ईपरान्त अप –
 हहन्दी साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल हिभाजन की अिश्यकता समझ पाएँगे।
 रामचन्र शुक्ल से पूिष के आहतहास लेखन मं काल हिभाजन के अधार से पररहचत हो सकं गे।
 रामचन्र शुक्ल तथा ईनके समकालीन साहहत्येहतहासकारं के काल हिभाजन के अधार से पररहचत हो
सकं गे।
 अचायष शुक्ल के बाद के साहहत्येहतहासकारं के काल हिभाजन के अधार से पररहचत हो सकं गे।

2. प्रमतािना
साहहत्य का आहतहास के िल हतहथयं का क्रम नहं है, न ही के िल हिषय-हिश्लेषण। कालक्रम के बीच होनेिाले
पररितषनं की पहचान साहहत्येहतहास का के न्रीय तत्त्ि है। एकाकी हिषय-हिश्लेषण से ऐसी पहचान सम्भि नहं
है। एक लम्बे समय का हतहथक्रम हिहीन हिश्लेषणात्मक ऄध्ययन ऄतीत के िमतुगत यथाथष को हिकृ त कर सकता
है। आसहलए सामान्यतः साहहत्येहतहास का लेखक िणषन और हिश्लेषण का समन्िय करने की कोहशश करता है।
ऐसा करने की एक ईपयोगी और सरल पद्धहत बारी-बारी से िणषन और हिश्लेषण को प्रमतुत करते जाना है।
आससे ऄलग एक ऄपेक्षाकृ त प्रभािी और सटीक पद्धहत पूरे काल को ईपकालं मं हिभाहजत कर देना है। यह
पद्धहत थोड़ी जरटल है, क्यंकक कालं का हिभाजन मनमाने ढंग से नहं, बहकक आहतहासकार द्वारा ऄनुभूत
ऐहतहाहसक हिकास-क्रम के तकष के अधार पर होना चाहहए। आस पद्धहत की जरटलता आस बात मं भी हनहहत है
कक हर ईपकाल मं सामग्री को हिषयिार हिश्लेहषत ककया जाता है। ऐसा करने से ककसी हिषय-िमतु के हिहभन्न
ऄियिं एिं घटकं को ठीक से समझने मं सुहिधा होती है। जाहहर है कक काल-हिभाजन का लक्ष्य ऄन्ततः
आहतहास की हिहभन्न पररहमथहतयं के सन्दभष मं ईसकी घटनाओं एिं प्रिृहियं के हिकास-क्रम को मपष्ट करना
होता है।

साहहत्य के आहतहास मं काल-हिभाजन के कइ अधार प्रयुक्त होते रहे हं। आनमं से ऐहतहाहसक कालक्रम का अधार
(अकदकाल, मध्यकाल, अधुहनककाल अकद), साहहहत्यक प्रिृहि का अधार (िीरगाथाकाल, भहक्तकाल,
रीहतकाल, छायािाद अकद) और सामाहजक-सांमकृ हतक पररघटना का अधार (लोकजागरण, निजागरण अकद)
लेकर ककया गया हिभाजन ऄहधक ईपयोगी और मान्य साहबत हुअ है। आसके ऄहतररक्त हिहभन्न साहहत्येहतहासं
मं शासक और शासन-काल का अधार (हिक्टोररया-युग, मुगल काल अकद), लोकनायक और ईसके प्रभाि-काल
का अधार (गांधी युग, नेहरू युग अकद) तथा साहहहत्यक ऄग्रदूतं के प्रभाि-काल का अधार (भारतेन्दु युग,
हद्विेदी युग अकद) भी प्रयुक्त हुअ है।

3. साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल-हिभाजन का अधार


हिभाजन एिं िगीकरण मं ध्यान मुख्यतः िैहशष्य की जगह सामान्य गुणं की खोज पर रहता है। साहहत्य का
आहतहासकार रचनाओं मं हनहहत सामान्य गुणं की खोज करता है। आन सामान्य गुणं, हजन्हं प्रिृहि भी कहा
जाता है, की जानकारी और समझ के सहारे ककसी युग की के िल एक कृ हत के एक सामान्य-से ऄंश की भी परीक्षा

करके , ईसके अधार पर समूचे युग की मूल चेतना का अभास पाया जा सकता है। यही कारण है कक हिभाजन

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एिं िगीकरण प्रायः समान प्रकृ हत और प्रिृहि के अधार पर ही ककया
जाता है। साहहत्य की ऄनेकानेक प्रिृहियं का अकद-ऄन्त, ईत्कषष एिं ऄपकषष ही आहतहास का काल-हिभाजन या
कहं कक हिहभन्न युगं की सीमाओं का हनधाषरण करता है। काल-हिभाजन की धारणा मं हनणषय क्षमता के साथ
कु छ हद तक ककपनाशीलता की भी जरूरत पड़ती है। ऄसल मं काल-हिभाजन और नामकरण प्रायः ही
अनुमाहनक संककपनाओं पर अधाररत होता है। आस कारण से ककसी भी काल-हिभाजन को एकदम हनदोष
ऄथिा पररपूणष नहं कहा जा सकता।

काल-हिभाजन का एक सुसंगत अधार समाज मं ईत्पादन-सम्बन्धं का बदलना भी है। साहहत्य के आहतहास का


काल-हिभाजन, हजस समाज के साहहत्य का िह आहतहास है, ईस समाज के ईत्पादन-सम्बन्धं के पररितषन के

ऄनुसार ही होना चाहहए। हालाँकक, सच यह भी है कक ईत्पादन-सम्बन्ध बदलते ही साहहहत्यक प्रिृहि नहं बदल
जाती है। साहहत्य मं पररितषन ऄपेक्षाकृ त धीरे -धीरे होता है। काल-हिभाजन के पीछे सामाहजक ईत्पादन-
सम्बन्धं के अधार को जरूरी मानते हुए यह कहा जा सकता है कक साहहत्य के आहतहास मं मध्ययुग और
अधुहनक युग के बीच हिभाजक रे खा खंचना ही काफी नहं है, बहकक ईत्पादन-शहक्तयं के अधार पर आनमं से
प्रत्येक युग के ईत्थान-पतन का भी हनदशषन होना चाहहए।

काल-हिभाजन के अधार के सम्बन्ध मं सामान्यतः दो प्रकार की मान्यताएँ प्रचहलत हं। एक मत के ऄनुसार


साहहत्य के आहतहास मं काल-हिभाजन हिशुद्ध साहहहत्यक प्रिृहियं को ध्यान मं रखते हुए होना चाहहए, क्यंकक

साहहत्य सिषथा मितन्त्र है। दूसरी धारणा यह है कक चूँकक साहहत्य मं ऄन्ततः समाज की ही ऄहभव्यहक्त होती है,
आसहलए समाज की हिहभन्न पररहमथहतयं के अधार पर साहहत्येहतहास का काल-हिभाजन ककया जाना चाहहए।
ऐसा मानने का एक कारण यह भी है कक प्रत्येक हमथहत मं ककसी युग की साहहत्य-चेतना की ऄहभव्यहक्त के िल
साहहहत्यक प्रत्यय के अधार पर नहं हो सकता है।

साहहत्य के मितन्त्र ऄहमतत्ि को मिीकार करते हुए नहलन हिलोचन शमाष ने साहहत्य का आहतहास दशषन मं
हलखा है, ‘‘यकद हम मानते हं कक मनुष्य के राजनीहतक, सामाहजक, बौहद्धक या भाषा िैज्ञाहनक हिकास से संयुक्त
रहते हुए साहहत्य का मितन्त्र हिकास होता है, और दूसरा पहले का हनहष्क्रय प्रहतहबम्ब नहं है तो हम
ऄहनिायषतः आस हनष्कषष पर पहुँचते हं कक साहहहत्यक युग हिशुद्ध साहहहत्यक मानदण्ड के सहारे हनधाषररत होने
चाहहए।’’ (नहलन हिलोचन शमाष-आहतहास दशषन) यह एक भ्रामक दृहष्टकोण है। यह साहहत्येहतहास की धारणा
को संकुहचत ऄथष मं लेना है। आस दृहष्टकोण के ऄनुसार काल-हिभाजन का सरोकार साहहत्य के आहतहास लेखन से
हजतना है, ईतना साहहत्य के आहतहास से नहं। आसका ऄथष यह हुअ कक ऄध्ययन की सुव्यिमथा की दृहष्ट से ही
ककसी हिषय-िमतु को हिहभन्न पक्षं, खण्डं, िगं अकद मं हिभक्त कर हलया जाता है।

दूसरी तरफ अचायष रामचन्र शुक्ल ने हहन्दी साहहत्य का आहतहास के प्रारम्भ मं ही कालहिभाग पर हिचार
करते हुए साहहत्य परम्पराओं के साथ-साथ सामाहजक पररहमथहतयं को भी हिभाजन का अधार माना है।
साहहत्य के आहतहास की ईनकी धारणा मं िमतुतः काल-हिभाजन का ईनका अधार भी हनहहत है। अचायष शुक्ल
की दृहष्ट मं काल-हिभाजन के मूल मं समाज की पररितषनशीलता है। समाज और साहहत्य का घहनष्ठ सम्बन्ध होने

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के कारण समाज मं पररितषन होने के साथ-साथ साहहत्य के आहतहास मं
भी पररितषन होता चलता है। अचायष शुक्ल जनता की ‘हचििृहतयं की परम्परा को’ साहहत्य परम्परा के अमने-

सामने रखकर ही नहं परखते, बहकक ईन हमथहतयं पर भी ध्यान देते हं हजनसे ये हचििृहतयाँ ईत्पन्न होती हं।
ईनका कहना है कक जनता की हचििृहि बहुत कु छ राजनीहतक, सामाहजक, साम्प्रदाहयक तथा धार्ममक
पररहमथहत के ऄनुसार होती है। फलमिरूप आन पररहमथहतयं का किकहचत कदग्दशषन भी अिश्यक होता है। अचायष
शुक्ल ने हहन्दी साहहत्य के हिहभन्न कालं का हिभाजन युग की मुख्य सामाहजक और साहहहत्यक प्रिृहियं के
अधार पर ककया है।

नागरी प्रचाररणी सभा, काशी ने जब सोलह खण्डं के हहन्दी साहहत्य का िृहत् आहतहास की योजना बनाइ तब
ईसके प्रधान सम्पादक ने काल-हिभाजन सम्बन्धी दृहष्टकोण को मपष्ट करते हुए कहा कक काल-हिभाजन मं
आहतहास का प्रत्येक खण्ड ऄपने अप मं पूणष होकर भी परमपर सम्बद्ध हो और साहहत्य की प्राणधारा का प्रिाह
ऄखहण्डत तथा ऄहिहछछन्न रूप से प्रिाहहत होता रहे। िृहत् आहतहास की योजना मं यह हनश्चय ककया गया था,
‘‘साहहत्य के ईदय और हिकास, ईत्कषष तथा ऄपकषष का िणषन और हििेचन करते समय ऐहतहाहसक दृहष्टकोण का
पूरा ध्यान रखा जाएगा ऄथाषत् हतहथक्रम, पूिाषपर तथा कायष-कारण सम्बन्ध, पारमपररक संघषष, समन्िय, प्रभाि

ग्रहण, अरोप, त्याग, प्रादुभाषि, ऄन्तभाषि, हतरोभाि अकद प्रकक्रयाओं पर पूरा ध्यान कदया जाएगा।’’

4. रामचन्र शुक्ल से पहले हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन मं काल-हिभाजन


हहन्दी साहहत्य का प्रथम आहतहास आमतिार द ला हलतरे त्यूर ऐन्दुइ ऐं ऐन्दुमतानी मं 'गासां द तास्सी' ने यद्यहप
ऄनेक हहन्दी-ईदूष के कहियं को मथान कदया है तथा हिमतृत सामग्री देने का प्रयास ककया है, ककन्तु कालक्रहमक न
होने के कारण ईनका आहतहास कहियं का संग्रह बनकर रह गया है। आहतहास की सामग्री को ईन्हंने ऄकाराकद
क्रम से प्रमतुत ककया है, काल-हिभाजन तो ईसमं है ही नहं। ऄपने आहतहास मं कालक्रम के ऄभाि के कारणं की

चचाष करते हुए तामसी ने हलखा है ‘‘मौहलक जीिहनयाँ जो मेरे ग्रन्थ का मूलाधार हं सब ऄकाराकदक्रम से रखी
गयी हं। मंने यही पद्धहत ग्रहण की है, यद्यहप शुरू मं मेरा हिचार कालक्रम ग्रहण करने का था; और, मं यह बात

हछपाना नहं चाहता कक, यह क्रम ऄहधक ऄछछा रहता या कम-से-कम जो शीषषक मंने ऄपने ग्रन्थ को कदया है
ईसके ऄहधक ईपयुक्त होता; ककन्तु मेरे पास ऄपूणष सूचनाएँ होने के कारण ईसे ग्रहण करना करठन ही था।’’

हशिसिसह संगर के हशिसिसह सरोज (सन् 1883) का हिश्लेषण की दृहष्ट से ईतना महत्त्ि नहं है, हजतना सामग्री-

संचयन की दृहष्ट से। ईनका काल-हिभाजन शताहददयं के ऄनुसार है, साहहत्य प्रिृहियं के ऄनुसार नहं।

हग्रयसषन ने ऄपने आहतहास माडनष िनाषक्यूलर हलट्रेचर ऑफ़ नादषनष हहन्दोमतान (सन् 1889) मं कालक्रम,
साहहहत्यक प्रिृहियं और व्यहक्तयं के नामं अकद का सहारा हलया है। आन सबको हमलाकर हग्रयसषन ने हहन्दी
साहहत्य का कालक्रहमक और प्रिृत्यात्मक आहतहास प्रमतुत करने का प्रयास ककया है। नहलन हिलोचन शमाष के
ऄनुसार युग-हिभाजन, पृष्ठभूहम-हनदेश, सामान्य प्रिृहि-हनरूपण तथा तुलनात्मक अलोचना एिं मूकयांकन-

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हिषयक प्रयासं तथा हििेचन की साहहहत्यकता के कारण यकद हग्रयसषन
के आहतहास को हहन्दी साहहत्य का प्रथम आहतहास माना जाए, तो ईहचत ही है। ग्यारह खण्डं मं हिभक्त ईनका

काल-हिभाजन आस प्रकार है: चारण काल (सन् 700-1300 ), पन्रहिं शताददी का धार्ममक पुनजाषगरण,
जायसी की प्रेम कहिता, ब्रज का कृ ष्ण सम्प्रदाय, मुगल दरबार, तुलसीदास, रीहत काव्य, तुलसीदास के ऄन्य
परिती, ऄठारहिं शताददी, कम्पनी के शासन मं हहन्दुमतान और, महारानी हिक्टोररया के शासन मं
हहन्दुमतान। कहने की अिश्यकता नहं है कक आस हिभाजन मं कालं का नामकरण सिषत्र एक ही अधार पर नहं
हुअ है। हग्रयसषन ने कालक्रम, साहहहत्यक प्रिृहियं और व्यहक्तयं के नामं– आन सबका सहारा हलया है। हिहभन्न
युगं की काव्य-प्रिृहियं की व्याख्या करते हुए ईनसे सम्बद्ध सांमकृ हतक पररहमथहतयं और प्रेरणा-स्रोतं के
ईद्घाटन का भी प्रयास हग्रयसषन ने ककया है। हहन्दी साहहत्य के आहतहास लेखन की परम्परा मं हग्रयसषन का
आहतहास एक बढ़ा हुअ कदम तो है ही, काल-हिभाजन सम्बन्धी ईनकी धारणाएँ भी परिती साहहत्येहतहासं के
हलए मागषदशषक हसद्ध हुइ हं।

काल-हिभाजन की दृहष्ट से हमश्रबन्धुओं का हमश्रबन्धु हिनोद एक महत्त्िपूणष साहहत्येहतहास है। आसमं प्रमतुत
काल-हिभाजन हग्रयसषन के आहतहास के काल-हिभाजन से ज्यादा हिकहसत है। काल-हिभाजन की दृहष्ट से
हमश्रबन्धुओं ने सिाषहधक पररश्रम कहियं का समय हनधाषररत करने मं ककया है। हमश्रबन्धुओं का काल-हिभाजन
आस प्रकार है: पूिष प्रारहम्भक हहन्दी (संित् 700-1343), ईिर प्रारहम्भक हहन्दी (संित् 1343-1444), पूिष

माध्यहमक हहन्दी (संित् 1445-1560), प्रौढ़ माध्यहमक हहन्दी (संित् 1561-1680), पूिाषलंकृत प्रकरण (संित्
1681-1790), ईिरालंकृत प्रकरण (संित् 1791-1889), ऄज्ञातकाल (ऄकाराकदक्रम से िर्मणत), पररितषन
काल (संित् 1890-1925) और, ितषमान काल (संित् 1926 से ऄबतक)। आस ढाँचे को देखने से पता चलता है
कक यहाँ काल-हिभाजन का प्रमुख अधार भाषा का हिकास है। हालाँकक, हमश्रबन्धुओं ने ऄपने काल-हिभाजन मं
प्रिृहियं का भी संकेत ककया है। आस हिभाजन मं हजस तरह पूिष, ईिर, प्रौढ़ अकद कालक्रम के द्योतक हं, ईसी
तरह से ऄलंकृहत और पररितषन अकद पररितषन के पररचायक। कहा जा सकता है कक हमश्रबन्धुओं का यह काल-
हिभाजन ऄहधक मपष्टता से साहहत्य का िगीकरण करता है, ऄहधक व्यिहमथत है।

5. रामचन्र शुक्ल के समय हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन मं काल-हिभाजन


अचायष रामचन्र शुक्ल ने ऄपने से पहले के हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन की चचाष करते हुए ईन्हं िामतहिक ऄथं
मं ‘आहतहास’ न मानकर के िल ‘िृिसंग्रह’ माना है। हशिसिसह सरोज को ईन्हंने िृि-संग्रह, मॉडनष िनाषक्यूलर

हलटरे चर ऑफ नादषनष हहन्दुमतान को ‘बड़ा कहि-िृि-संग्रह’ और हमश्रबन्धु हिनोद को ‘बड़ा भारी कहि-िृि-
संग्रह’ कहा है। ईनके ऄनुसार आन आहतहास ग्रन्थं मं ‘हिचार-शृंखला’ का ऄभाि है, जबकक हिचार-शृंखला से ही
काल-हिभाजन मं सुसंगहत अती है।

‘हिचार-शृंखला’ का सुसंगत मिरूप और तकष संगत काल-हिभाजन के ढाँचे तक पहुँचने मं अचायष शुक्ल को भी
समय लगा था। सन् 1929 मं हहन्दी साहहत्य का आहतहास के प्रकाशन से पहले के ऄपने प्रयासं की चचाष करते

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हुए ईन्हंने बताया कक "पाँच या छह िषष हुए छात्रं के ईपयोग के हलए
मंने कु छ संहक्षप्त नोट तैयार ककए थे, हजनमं पररहमथहत के ऄनुसार हशहक्षत जनसमूह की बदलती हुइ प्रिृहियं
को लक्ष्य करके हहन्दी साहहत्य के आहतहास के कालहिभाग और रचना की हभन्न-हभन्न शाखाओं के हनरूपण का
एक कच्चा ढाँचा खड़ा ककया था।" (हहन्दी साहहत्य का आहतहास-रामचन्र शुक्ल) ईनका ध्यान 'आस अरहम्भक
कछचे ढाँचे को व्यिहमथत करने पर था, न कक कहि कीतषन करना।'

अचायष शुक्ल से पहले जो आहतहास-ग्रन्थ थे, ईनमं ‘हिचार-शृंखलाबद्ध’ दृहष्ट का ऄभाि तो था ही, ईपलदध
सामग्री का प्रिृहियं के हहसाब से सुसंगत िगीकरण भी नहं था। साहहत्य के हिकास और समाज से ईसके
सम्बन्ध के बारे मं ऄपनी सुहनहश्चत दृहष्ट के अधार पर अचायष शुक्ल ने पहली बार सुसंगत काल-हिभाजन
ककया। ईन्हंने मपष्ट ककया कक "हशहक्षत जनता की हजन-हजन प्रिृहियं के ऄनुसार हमारे साहहत्य मिरूप मं जो-
जो पररितषन होते अए हं, हजन-हजन प्रभािं की प्रेरणा से काव्य-धारा की हभन्न-हभन्न शाखाएँ फू टती रही हं,
ईन सबके सम्यक हनरूपण तथा ईनकी दृहष्ट से ककए हुए सुसग
ं त कालहिभाग के हबना साहहत्य के आहतहास का
सच्चा ऄध्ययन करठन कदखाइ पड़ता था। सात-अठ सौ िषं की संहचत ग्रन्थराहश सामने लगी हुइ थी; पर ऐसी
हनर्ददष्ट सरहणयं की ईद्भािना नहं हुइ थी, हजसके ऄनुसार सुगमता से आस प्रभूत सामग्री का िगीकरण होता।...
सारे रचनाकाल को के िल अकद, मध्य, पूिष, ईिर आत्याकद खण्डं मं अँख मूँद कर बाँट देना– यह भी न देखना
कक खण्ड के भीतर क्या अता है, क्या नहं, ककसी िृि संग्रह को आहतहास नहं बना सकता।" (हहन्दी साहहत्य का

आहतहास - रामचन्र शुक्ल) ईन्हंने हहन्दी साहहत्य का काल-हिभाजन दो अधारं पर ककया है। पहला, कालक्रम
के अधार पर और दूसरा, साहहहत्यक प्रिृहियं की प्रधानता के अधार पर। कालक्रम के अधार पर ईन्हंने हहन्दी
साहहत्य के आहतहास को अकदकाल (संित् 1050-1375), पूिष मध्यकाल (संित् 1375-1700), ईिर मध्यकाल
(संित् 1700-1900) और अधुहनक काल (संित् 1900 से अगे) मं बाँटा है और साहहहत्यक प्रिृहियं की
प्रधानता के ऄनुसार िीरगाथाकाल, भहक्तकाल, रीहतकाल और गद्यकाल मं।

ईन्हंने हहन्दी साहहत्य के पहले युग को अकदकाल कहा है और आसके ऄन्तगषत ऄपभ्रंश साहहत्य पर हिचार करते
हुए िीरगाथा काव्यं की प्रामाहणकता अकद की चचाष की है। पूिष मध्यकाल मं ईन्हंने हनगुषण, सगुणिादी भक्त
कहियं और जायसी अकद प्रेममागी कहियं का हििेचन ककया है। तीसरे ईिर मध्यकाल मं ईन्हंने रीहत
ग्रन्थकारं को हलया है और चौथे अधुहनक काल मं अधुहनक गद्य के हिकास, भारतेन्दु और हद्विेदीकालीन

साहहत्य और छायािाद की चचाष की है। आस व्यिमथा मं ईन्हंने दो चीजं हमलाने की कोहशश की है, एक तो
कालक्रम और दूसरी ककसी साहहहत्यक धारा की हिशेषताएँ। ऄपनी काल-हिभाजन की पद्धहत को मपष्ट करते हुए
ईन्हंने हलखा है कक हजस कालहिभाग के भीतर ककसी हिशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता कदखाइ पड़ी है, िह
एक ऄलग काल माना गया है और ईसका नामकरण ईन्हं रचनाओं के मिरूप के ऄनुसार ककया गया है। ईनके
ऄनुसार, दूसरी बात है ग्रन्थं की प्रहसहद्ध। ककसी काल के भीतर हजस एक ही ढंग के बहुत ऄहधक ग्रन्थ प्रहसद्ध

चले अते हं, ईस ढंग की रचना ईस काल के लक्षण के ऄन्तगषत मानी जाएगी। ईनके ऄनुसार प्रहसहद्ध भी ककसी
काल की लोकप्रिृहि की प्रहतध्िहन है।

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M 33:हहन्दी साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल-हिभाजन का अधार
अचायष शुक्ल के काल-हिभाजन की आस ऄिधारणा और पद्धहत के पीछे
ईनके ऄपने समय की सांस्कृहतक चेतना काम कर रही थी। नामिर सिसह ने आसे लक्ष्य करते हुए हलखा है,

‘‘सांमकृ हतक पुनरुत्थान की लहर ने हमारे देश मं नइ चेतना ला दी। ऄंग्रेजी साम्राज्यिाद के हिरुद्ध राष्ट्रीयता की
भािना ईमड़ी। अगे चलकर हिचारं मं सामाहजक चेतना अयी। आहतहास मं व्यहक्तयं के सहारे समूची जाहत का
कायष-कलाप कदखाने की चेष्टा होने लगी। व्यहक्त ऄपनी सममत पररहमथहतयं के साथ िर्मणत हुअ। साहहत्य का
आहतहास ऄलग-ऄलग कहियं की समीक्षाओं का संग्रह था, ऄब हिहभन्न युगं की राजनीहतक-सामाहजक
पररहमथहतयं के िणषन से भी संबहलत हो ईठा। एक युग तथा एक प्रकार की रचना करने िाले कहियं की
सामान्य हिशेषताओं के ऄनुसार प्रिृहियं तथा युग का हिभाजन ककया गया और आन साहहहत्यक प्रिृहियं को
तत्कालीन राजनीहतक-सामाहजक घटनाओं से सम्बद्ध करने का प्रयत्न हुअ।’’

अचायष शुक्ल के सामने हहन्दी साहहत्य के आहतहास की हिहभन्न परम्पराओं के ईदय और ऄमत, पररितषन और
प्रगहत, हनरन्तरता और ऄन्तराल तथा संघषष और सामंजमय का मूकयांकन करने और ऄपने समय की
रचनाशीलता के हिकास के सन्दभष मं प्रासंहगक परम्पराओं को रे खांककत करने का महत्त्िपूणष दाहयत्ि था। ईन्हंने
आहतहास के ऄपने ढाँचे मं व्यिमथापन एिं सुसंगत हिभाजन के साथ जनता की हचििृहतयं की पररितषनशीलता
और हिकासशीलता की परम्परा तथा साहहत्य परम्परा के साथ ईनके सामंजमय का भी ध्यान रखा है। िे यह
मानते थे कक साहहत्य के आहतहास के ककसी भी काल मं संमकृ हत और हिचारधाराओं की हिहिधता और
ऄन्तर्मिरोधं के ऄहमतत्ि के कारण ऄनेक रचना-प्रिृहियाँ एक साथ सकक्रय हो सकती हं। ईनके ऄनुसार ‘‘यद्यहप
आन कालं की रचनाओं की हिशेष प्रिृहि के ऄनुसार ही ईनका नामकरण ककया गया है, पर यह न समझना
चाहहए कक ककसी हिशेष काल मं और प्रकार की रचनाएँ होती ही नहं थं। जैसे, भहक्तकाल या रीहतकाल को लं
तो ईसमं िीररस के ऄनेक काव्य हमलंगे हजनमं िीर राजाओं की प्रशंसा ईसी ढंग की होगी हजस ढंग की
िीरगाथाकाल मं हुअ करती थी।’’ अचायष शुक्ल ने बताया है कक हहन्दी साहहत्य के आहतहास की एक हिशेषता
यह भी रही है कक एक हिहशष्ट काल मं ककसी रूप की जो काव्यसररता िेग से प्रिाहहत हुइ, िह यद्यहप अगे
चलकर मन्द गहत से बहने लगी, पर 900 िषं के हहन्दी साहहत्य के आहतहास मं हम ईसे कभी सिषथा सूखी हुइ
नहं पाते।

हहन्दी के साहहत्येहतहासं मं काल-हिभाजन की जगह हिहभन्न रचना-प्रिृहियं की धारािाहहकता को महत्त्ि देने


िाली एक और पद्धहत भी हमलती है। साहहत्य के आहतहास लेखन की आस पद्धहत मं अचायष शुक्ल की ही भांहत
यह माना गया है कक रचना की कोइ प्रिृहि या परम्परा एक बार ऄहमतत्ि मं अने के बाद दूसरी प्रिृहियं और
परम्पराओं से सहऄहमतत्ि या संघषष की हमथहत कायम रखते हुए लम्बे काल तक जीहित रहती है। अचायष शुक्ल
की पद्धहत से आसका ऄन्तर यह है कक आहतहास लेखन की आस पद्धहत मं रचना प्रिृहियं की हनरन्तरता को ध्यान
मं रखकर साहहत्य का धारािाहहक आहतहास हलखने का प्रयास होता है। बाबू श्यामसुन्दर दास ने ऄपने हहन्दी
भाषा और साहहत्य (सन् 1930) मं िीरगाथाओं की परम्परा कदखाते समय ऐसी ही पद्धहत ऄपनाइ है। ईन्हंने
प्रत्येक प्रिृहि का अकदकाल से अधुहनक काल तक सीधा हिकास कदखाया है। आस पद्धहत की ऄसंगहतयं को
अचायष शुक्ल समझते थे। िह जानते थे कक हहन्दी साहहत्य की हिहभन्न प्रिृहियं और व्यहक्तयं के सम्बन्धं मं

HND : हहन्दी P 1 : हहन्दी साहहत्य का आहतहास


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के िल कालानुक्रम ही नहं है, बहकक आस क्रम मं अन्तररक हिकास की
गहत भी समाहहत है। एक साहहहत्यक प्रिृहि के ऄन्त से ही दूसरी साहहहत्यक प्रिृहि की ईत्पहि जुड़ी है।
धारािाहहक आहतहास लेखन की पद्धहत मं आस सचाइ का ईकलंघन होता है। अचायष शुक्ल की आहतहास-दृहष्ट
िमतुिादी है और आसी कारण से ईन्हंने हिकासिाद की िैज्ञाहनक धारणा को माना है। साहहत्य की प्रिृहियं की
धारािाहहकता और हनरन्तरता को मिीकार कर लेने का मतलब है साहहत्येहतहास मं मुख्य प्रिृहियं और गौण
प्रिृहियं के हनधाषरण की सममया का ईत्पन्न होना। कोइ एक प्रिृहि समूचे आहतहास मं न तो मुख्य बनी रहती है,
और न ही गौण। प्रमुख प्रिृहियं के अधार पर काल-हिभाजन करने की पररपाटी मं गौण रचना-प्रिृहियं की
सममया मिाभाहिक है। आस जरटल सममया का हल हनकालने के हलए ही अचायष शुक्ल ने प्रत्येक युग के ऄन्त मं
फु टकल रचनाओं एिं रचनाकारं पर हिचार ककया है।

हालाँकक, फु टकल रचनाओं और रचनाकारं पर हिचार करने िाली काल-हिभाजन की ईनकी पद्धहत की
अलोचना भी कम नहं हुइ है। नामिर सिसह के ऄनुसार ‘‘युग हिभाजन करने मं अचायष शुक्ल का औसतिाद
िाला हसद्धान्त दरऄसल सामाहजक पररहमथहतयं एिं साहहत्यकार के बीच ऄलगाि का पररणाम है। ईसमं
साहहहत्यक प्रिृहियं तथा सामाहजक पररहमथहतयं के बीच कायष-कारण सम्बन्धी ऄसंगहत कदखाइ पड़ती
है।...एक ही पररहमथहत मं हिहभन्न काव्य-प्रिृहियं के ऄहमतत्ि की संगहत बैठाने मं िे ऄसमथष थे, क्यंकक ईन्हं
ईन पररहमथहतयं मं पलनेिाली परमपर-हिरोधी हिहिध सामाहजक शहक्तयं के ऄन्तर्मिरोध का पता न था।
आसीहलए ईन्हं ऄपने आहतहास के हर युग मं एक फु टकल खाता खोलना पड़ा।’’ यह मानते हुए भी कक अचायष
शुक्ल ने प्रिृहि साम्य और युग के ऄनुसार कहियं को समुदायं मं रखकर सामूहहक प्रभाि डालने की ओर ध्यान
कदया है, आसीहलए कु छ हिहशष्ट कहियं को भी ईन्हं फु टकल खाते मं डाल देना पड़ा। नामिर सिसह ने हलखा है,
‘‘हिद्यापहत ऄसहन्दग्ध रूप से अधुहनक भाषाओं मं ‘हलररक’ के पहले महान कहि थे। ऄब यकद ऐसा कहि
साहहहत्यक आहतहास के ऄन्तगषत एक काल के फु टकल खाते मं मथान पाए तो क्या ईस काल-हिभाजन का समूचा
हसद्धान्त ही सहन्दग्ध नहं हो जाता?’’

हहन्दी साहहत्य के आहतहास लेखन मं अचायष शुक्ल से पहले काल-हिभाजन तो प्रमतुत ककया गया था, लेककन
ईसका कोइ व्यिहमथत अधार नहं था। अचायष शुक्ल ने पहली बार साहहत्य के काल-हिभाजन और नामकरण
की एक व्यिहमथत पद्धहत कायम की और ईसको एक ठोस अधार कदया। नामिर सिसह की दृहष्ट मं यह व्यिहमथत
अधार भले ही सहन्दग्ध हो, िामतहिकता यही है कक आहतहास लेखन की परिती परम्परा पर अचायष शुक्ल के
आस काल-हिभाजन का व्यापक प्रभाि मपष्ट है। रामहिलास शमाष के ऄनुसार ‘‘अचायष शुक्ल ऄपने समय मं तो
आहतहास लेखन मं कदहग्िजयी हुए ही थे, ईनके बाद भी ईनका काल-हिभाजन-या हहन्दी साहहत्य की मुख्य
धाराओं का हिभाजन– बहुत कु छ ऄपने मूल रूप मं कायम है। कु छ लोगं ने जोर बहुत लगाया लेककन अचायष
शुक्ल की कायम की हुइ व्यिमथा टस से मस न हुइ। िीरगाथा, हनगुषण और सगुण भहक्त, प्रेमकथानक,

रीहतकाव्य, भारतेन्दु युग, छायािाद अकद का हसलहसला ऄब भी चला अता है।’’

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अचायष शुक्ल के हहन्दी साहहत्य का आहतहास के बाद सन् 1931 मं
रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ का हहन्दी साहहत्य का आहतहास प्रकाहशत हुअ। ऄब तक माना जाता था कक साहहत्य
के आहतहास से पहले साहहत्य का ऄध्ययन जरूरी है, िहं रसाल जी ने साहहत्य के ऄध्ययन से पहले ईसके
ऐहतहाहसक हिकास से पररहचत होना जरूरी समझा। ईनके ऄनुसार हहन्दी साहहत्य का काल-हिभाजन आस
प्रकार है: अकदकाल-बाकयािमथा (संित् 1000-1400), मध्यकाल- ककशोरािमथा (संित् 1400-1800) और
अधुहनक काल-युिािमथा (संित् 1800 से अजतक)। रसाल जी ने काल-हिभाजन मं जैहिक हिकास की धारणा
का सहारा हलया। साहहत्येहतहास को व्यहक्त मान कर ईसकी बाकयािमथा, युिािमथा और िृद्धािमथा का िणषन
करना संगत नहं है। ऄपने काल-हिभाजन को मपष्ट करते हुए रसाल जी ने हलखा कक जो ऐहतहाहसक काल-
हिभाजन मंने कदया है, ईसका अधार, ईस काल की प्रधान हिचारधारा के ही रूप मं है, जो ईस समय हहन्दी-

संसार की जनता मं पूणष प्राधान्य, प्राबकय और प्रभाि-प्रिेग के साथ प्रिाहहत रही है। हालाँकक, सत्य यह है कक
िीरगाथा काल को ‘जय-काव्य’ तथा रीहतकाल को ‘कला-काल’ के नाम से ऄहभहहत कर देने मात्र से ही ईनकी
यह धारणा प्रमाहणत नहं होती।

अचायष शुक्ल के बाद के साहहत्येहतहास लेखकं सूयषकान्त शामत्री (हहन्दी साहहत्य का हििेचनात्मक आहतहास,
सन् 1932), ऄयोध्यासिसह ईपाध्याय ‘हररऔध’ (हहन्दी भाषा और ईसके साहहत्य का हिकास, सन् 1934),

रामकु मार िमाष (हहन्दी साहहत्य का अलोचनात्मक आहतहास, सन् 1938) अकद ने कु छ हेर-फे र के साथ अचायष
शुक्ल के काल-हिभाजन को ही मान हलया। यद्यहप रामकु मार िमाष ने अचायष शुक्ल के अकदकाल को
िीरगाथाकाल की जगह चारण-काल कहा है, और ईससे पहले संित् 750-1000 तक के समय को सहन्धकाल के
रूप मं प्रमताहित ककया है।

6. रामचन्र शुक्ल के बाद हहन्दी साहहत्येहतहास लेखन मं काल-हिभाजन


अचायष शुक्ल के बाद साहहत्येहतहास लेखन की परम्परा का हिकास सही ऄथं मं हजारीप्रसाद हद्विेदी (हहन्दी
साहहत्य की भूहमका, सन् 1940 और हहन्दी साहहत्य: ईद्भि और हिकास एिं, हहन्दी साहहत्य का अकदकाल,
दोनं सन् 1952) ने ही ककया है। ईन्हंने अचायष शुक्ल के आहतहास की दो मुख्य हिशेषताओं को महत्त्िपूणष माना
है– ऐहतहाहसक काल-हिभाजन और साहहहत्यक मूकयांकन। अचायष शुक्ल के आहतहास के बारे मं अचायष हद्विेदी
ने कहा, ‘‘अचायष शुक्ल ने पहली बार हहन्दी साहहत्य के आहतहास को कहििृिसंग्रह की हपटारी से बाहर
हनकाला। पहली बार ईसमं श्िासोछ्िास का मपन्दन सुनाइ पड़ा। पहली बार िह जीिन्त मानि-हिचार के
गहतशील प्रिाह के रूप मं कदखाइ पड़ा।’’ अचायष हद्विेदी जहाँ एक तरफ अकदकाल नाम और ईसकी कालसीमा

को मिीकार करते हं, िहं िे िीरगाथाकाल नाम से ऄसहमत हं। अचायष हद्विेदी ऄपनी पुमतक हहन्दी साहहत्य का
अकदकाल मं अचायष शुक्ल के काल-हिभाजन के हसद्धान्त से ऄपना मतभेद मपष्ट करते हुए कहते हं, ‘‘िमतुतः
ककसी कालप्रिृहि का हनणषय प्राप्त ग्रन्थं की संख्या द्वारा नहं हनणीत हो सकता, बहकक ईस काल की मुख्य
प्रेरणादायक िमतु के अधार पर ही हो सकता है। प्रभाि-ईत्पादक और प्रेरणा-संचारक तत्त्ि ही साहहहत्यक काल

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के नामकरण का ईपयुक्त हनणाषयक हो सकता है।’’ ऄपनी आस मान्यता के
अलोक मं अचायष हद्विेदी ने िीरगाथाकाल नाम से ऄपना मतभेद प्रकट करते हुए राहुल सांकृत्यायन के सुझाए
नाम हसद्धसामन्तकाल को ईस काल की साहहहत्यक प्रिृहि को बहुत दूर तक मपष्ट करने िाला माना है।
अचायष हद्विेदी मानते थे कक ककसी एक युग मं जनता के हिहभन्न समुदायं की हिहभन्न प्रिृहियाँ हो सकती हं,
और आन हिहभन्न प्रिृहियं का पारमपररक सम्बन्ध युग की हिशेषता प्रकट करता है। अचायष शुक्ल के हलए जहाँ
ककसी एक प्रिृहि की प्रबलता और प्रहसहद्ध साहहहत्यक तथ्ययं के ऐहतहाहसक महत्त्ि का हनधाषरण करती है, िहं
अचायष हद्विेदी के हलए हिहभन्न प्रिृहियं का पारमपररक सम्बन्ध।

अचायष हद्विेदी ने ऄपनी दृहष्ट मुख्यतः मध्यकाल के साहहत्य पर के हन्रत की है। हहन्दी साहहत्य की भूहमका मं
यद्यहप ईन्हंने ‘मध्ययुग’ नाम का ईपयोग ककया है कफर भी मध्ययुगीनता को पतनोन्मुख और जबदी हुइ
मनोिृहि का सूचक मानने के कारण बाद के ऄपने आहतहास मं ईन्हंने आसे हटा कदया है। भहक्त साहहत्य के
सामंतहिरोधी मिर एिं लोकभाषाओं की कहिता को देखते हुए अचायष हद्विेदी ने भहक्त साहहत्य से ही ‘िामतहिक
हहन्दी साहहत्य का अरम्भ’ माना है। अचायष हद्विेदी भारतीय समाज और साहहत्य के आहतहास के मध्यकाल को
यूरोपीय मध्यकाल के समान ही पतनोन्मुख, जबदी हुइ मनोिृहि िाला और ऄन्धकार काल नहं मानते। ईनका
मानना है कक भारतीय साहहत्य के आहतहास के आस काल मं ही ऄहखल भारतीय व्यापक जनसंमकृ हत के जागरण
की ऄहभव्यहक्त करने िाला भहक्त साहहत्य हलखा जाता है।

गणपहत चन्र गुप्त ने आस कालखण्ड मं हहन्दी साहहत्य का एक आहतहास हलखने का प्रयास ककया है। सन् 1965 मं
प्रकाहशत ऄपने साहहत्येहतहास का नाम ईन्हंने हहन्दी साहहत्य का िैज्ञाहनक आहतहास रखा है। ईन्हंने हहन्दी
साहहत्य का अरम्भ सन् 1184 के शाहलभर सूरर कृ त भरतेश्िर बाहुबली रास से माना है। आस सम्बन्ध मं
ईनका कहना है कक भाषा के ईद्भि के पूिष ही ईसके साहहत्य का अहिभाषि मानना एक हिहचत्र ककपना है।
ईन्हंने हहन्दी साहहत्य के आहतहास को दो बड़े कालखण्डं मं हिभक्त ककया है– एक तो सन् 1857 से पहले का
समय, और दूसरा ईसके बाद का। आसके पीछे ईनका तकष है कक हजस प्रकार हमारे राजनीहतक आहतहास मं सन्

1857 एक ऐसी हिभाजक रे खा है, हजससे मुहमलम राज्य की समाहि तथा हब्ररटश शासन का अरम्भ होता है,
ईसी प्रकार हहन्दी साहहत्य के आहतहास मं भी यह पुराने युग की समाहि एिं नए युग के अरम्भ की सूचक है। सन्
1857 के पहले के समूचे कालखण्ड को ईन्हंने भी यद्यहप पहले की ही भाँहत अकदकाल (सन् 1184-1350), पूिष
मध्यकाल (सन् 1350-1600) तथा ईिर मध्यकाल (सन् 1600-1857) मं बाँटा है।

अचायष शुक्ल के बाद हहन्दी साहहत्य का आहतहास हलखने िालं मं राममिरूप चतुिेदी का नाम प्रमुख है।
राममिरूप चतुिेदी ने सन् 1986 मं हहन्दी साहहत्य और संिेदना का हिकास नाम से हहन्दी साहहत्य का एक
आहतहास हलखा। ऄपनी पद्धहत के बारे मं ईन्हंने बताया कक िृि यहाँ सिांगपूणष न होकर चयनधमी है और युग
का हिश्लेषण तथा हििेचन प्रहतहनहध रचनाकारं के अधार पर हुअ है। आहतहास की जगह हिकास पर ध्यान
के हन्रत करने का कारण मपष्ट करते हुए ईन्हंने बताया है कक आहतहास मं बल आहतिृि पर होता है, हिकास मं

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आहतिृि के ईस ऄंश पर जहाँ कदखाया जाता है कक एक युग ऄपने हपछले
युग से, और एक रचनाकार कालक्रम मं ऄपने से पहले के रचनाकार से कहाँ और क्यं हभन्न तथा हिहशष्ट है।
चतुिेदी जी के ऄनुसार चन्दबरदाइ-कबीर-जायसी-तुलसी-देि-भारतेन्दु के कृ हिि को न हसफष ईनके युगीन
संदभं मं रखकर समझा जा सकता है, और न के िल समकालीन सन्दभं मं। आहतहासकार का यह दाहयत्ि है कक

आन दोनं युगं का ररश्ता और कक्रया-प्रहतकक्रया मपष्ट करते हुए िह रचनाकार के सम्प्रेषण को प्रशमत करे , और
व्यापक परम्परा के ऄन्तगषत ईसका मूकयांकन करे । आहतहास की आस प्रकक्रया को मपष्ट करने के हलए यह भी जरूरी
है कक हम युग हिशेष की संिेदना को समझं, और ईस युग के साहहत्य मं ईसकी साझेदारी का हिश्लेषण कर सकं ।
ऄभी तक के आहतहासं मं सांमकृ हतक पृष्ठभूहम का आहतिृि-कथन ऄलग होता है, और साहहत्य-धारा का कदग्दशषन
ऄलग। यहाँ प्रयत्न यह है कक साहहत्य और संिेदना को एक साथ देखा-परखा जा सके । काल-हिभाजन की ईनकी
दृहष्ट भी संिेदना पर ही रटकी है। ईनका मानना है कक संिेदना मं बदलाि को समझने से साहहहत्यक युगं की
पररककपना, और ईनके बीच के महत्त्िपूणष ऄन्तरालं को समझा जा सकता है जो साधारण दृहष्ट के हलए ओझल
बने रहते हं। आसीहलए साहहत्य के हिकास के साथ-साथ संिेदना के हिकास को रे खांककत करना आहतहासकार के
कमष का अिश्यक ऄंग है। यद्यहप ईनके आहतहास मं भी काल-हिभाजन मं अकदकाल, भहक्तकाल, रीहतकाल और
अधुहनक काल िाला अचायष शुक्ल का ही ढाँचा कदखाइ पड़ता है।

7. हनष्कषष
साहहत्य के आहतहास लेखन मं काल-हिभाजन एक जरटल हिषय है। काल-हिभाजन करते हुए सामाहजक हिकास
की ऄिमथाओं के साथ साहहहत्यक प्रिृहियं की समानता का हिचार करना करठनाइ ईत्पन्न करता है। यही
कारण है प्रायः समाज के आहतहास के युगं के साथ साहहत्य के आहतहास के युगं की संगहत नहं कदखाइ पड़ती।
बहुत हद तक यह संगहत अचायष रामचन्र शुक्ल के हहन्दी साहहत्य का आहतहास मं कदखाइ पड़ती है। अचायष
शुक्ल ने हहन्दी साहहत्य के आहतहास को चार कालं मं हिभक्त ककया है – िीरगाथा काल, भहक्तकाल, रीहतकाल

और अधुहनक काल। अचायष शुक्ल के आहतहास की संरचना, ईनका काल-हिभाजन, नामकरण की व्यिमथा और
हिहभन्न कहियं तथा लेखकं के बारे मं ईनके मूकयांकन की परिती अलोचकं द्वारा की गइ अलोचनाओं के
बािजूद अचायष शुक्ल की मान्यताएँ, ईनके मूकय-हनणषय और ईनकी मथापनाएँ हहन्दी के पाठकं के साहहत्य-बोध
का ऄहनिायष ऄंग बनी हुइ हं।

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