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आरोचना एक सर्वेऺण
बमू भका :
प्रस्तत
ु शोध प्रफॊध को क्रभ दे ने के मरए सर्ववप्रथभ आरोचना मा सभारोचना ऩय
ऩय सर्वाांग रूऩ से ऩयॊ तु सॊक्षऺप्त रूऩ भें प्रकाश डारेंगे । आरोचना के अथव तथा स्र्वरूऩ, प्रकाय औय
ऩरयबार्ा ऩय वर्वचाय कय आरोचना के भभव तथा अर्वश्मकता को सभझने का प्रमास ककमा जाएगा
। इस अध्माम भें आरोचना के ऩाश्चात्म, हहॊदी तथा असमभमा ऩयॊ ऩया ऩय वर्वचाय ककमा गमा है ।
आरोचना का प्रायम्ब ऩाश्चात्म साहहत्म भें होने के फाद उसने ककस प्रकाय हहॊदी साहहत्म को
प्रबावर्वत ककमा उसऩय प्रकाश डारा गमा है । ककसी बी बार्ा भें यचचत साहहत्त्मक वर्वधा का प्रबार्व
अन्म बार्ा भें ऩड़े बफना नहीॊ यह सकता । उसी प्रकाय „आरोचना‟ जो एक साहहत्त्मक वर्वधा है
उसका प्रबार्व ऩाश्चात्म से प्राच्म औय कपय अन्म ऺेत्रीम बार्ाओॊ भें आकाय कैसे परते-पूरते
वर्वकामसत हुआ उस ऩय मथाशत्तत प्रकाश डारने का प्रमास ककमा गमा है । तमोंकक प्रस्तत
ु शोध
आरोचना का प्रबार्व ककस प्रकाय हहॊदी साहहत्म ऩय ऩड़ा औय कपय हहॊदी साहहत्म से ऺेत्रीम बार्ा
असमभमा भें आकय असमभमा साहहत्म के बॊडाय को ऩुष्ट ककमा उस ऩय वर्वशेर् रूऩ से प्रकाश डारा
गमा है ।
„ल्मुट‟ प्रत्मम जोड़ने ऩय „रोचन‟ शब्द फनता है , इसभें „आङ‟ उऩसगव जोड़ने ऩय „आरोचना‟
शब्द फना है । इस प्रकाय „आरोचना‟ शब्द की व्मत्ु ऩत्त्त हुई है । साहहत्म के ऺेत्र भें ककसी कृतत
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सर्वाांग मा साॊगोऩाॊग तनयीऺण मा वर्वश्रेर्ण के मरए आरोचना का प्रमोग ककमा जाता है । अॊग्रेजी
„कक्रहटमसज़्भ‟ (Criticism) शब्द के मरए हहॊदी भें „आरोचना‟ के अरार्वा औय दो शब्दों का प्रमोग
ऩयखना । अथावत साहहत्त्मक कृतत को प्रबार्व यहहत होकय व्माख्मा कयना, उसका भूल्माॊकन कयना
„सभीऺा‟ शब्द का अथव है सभ दृत्ष्ट से दे खना । सभ+ईऺा अथावत सम्मक दशवन कयना
औय उसके फाद सर्वाांग वर्वर्वेचन कयना ही सभीऺा है । ककसी र्वस्तु मा साहहत्त्मक कृतत को सम्मक
तो इनका अथव एक ही तनकरता है । साहहत्म के ऺेत्र भें साहहत्त्मक कृतत को तनष्ऩऺ दृत्ष्ट से
दे खकय उस ऩय वर्वचाय कय, उसके गुण-दोर्ों को उजागय कय स्र्वतॊत्र रूऩ से अऩना अमबभत व्मतत
गुण-दोर्ों का तनणवम कय उसका भूल्माॊकन कयती है । मह केर्वर दोर् दशवन नहीॊ है , मह अऩने
व्माऩक सॊदबव भें भान का अर्वफोधन बी कयती है औय प्रसादन बी कयती है । मह कामव यचना के
सूक्ष्भ अध्ममन, सम्मक वर्वर्वेचन, गुण-दोर् के तनयऩेऺ आॊकरन औय श्रेष्ठता सॊफॊधी भूल्माॊकन
द्र्वाया ही सॊबर्व होता है । आरोचना कवर्व कभव की प्रत्मेक दृत्ष्टकोण से भूल्माॊकन कयके उसे
ऩाठकों के सम्भख
ु प्रस्तत
ु कयती है , ऩाठकों का रुचच ऩरयष्काय कयती है औय साहहत्म की गततवर्वचध
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सभारोचना ऩय वर्वचाय कयते हुए प्रेभघन जी का कहना था “ सभारोचना का अथव है
आरोचना हभायी रुचच को ऩरयष्काय कयती है औय ककसी बी कृतत का आस्र्वाद रेने भें हभायी
सहामता कयती है । ककसी कृतत को ऩढ़कय हभाये भन भें तमा प्रबार्व ऩड़ता है , उसके प्रतत हभाया
वर्वचाय तमा होता है उसका वर्वश्रेर्ण कृतत को ऩढ़ने के उऩयाॊत उस कृतत का व्माख्मा वर्वश्रेर्ण
कय, उस ऩय अऩना भत व्मतत कय उसका भूल्माॊकन ककमा जाता है । मही आरोचना का कामव है ।
„अनुसॊधान औय आरोचना‟ ऩुस्तक भें इस ऩय वर्वचाय कयते हुए उल्रेख ककमा गमा है कक
आरोचना के अॊतगवत तीन कतवव्म कभव आते हैं – प्रबार्व ग्रहण, व्माख्मा वर्वश्रेर्ण औय भूल्माॊकन
अथर्वा तनणवम । आरोचना भूरत् कराकृतत द्र्वाया प्रभाता के रृदम भें उत्ऩन्न प्रबार्व को व्मतत
कयती है , अथावत वप्रम-अवप्रम प्रततकक्रमा को व्मतत कयती है । इसके उऩयाॊत र्वह प्रततकक्रमा की
वप्रमता अथर्वा अवप्रमता के कायणों का वर्वश्रेर्ण कयती है । सौन्दमवशास्त्र के अनुसाय रूऩ का,
भनोवर्वऻान के अनस
ु ाय स्रष्टा औय बार्वक की भानमसक ऩरयत्स्थततमों का औय सभाजशास्त्र के
कराकृतत बार्वक को वप्रम अथर्वा अवप्रम तमों रगती है । औय अॊत भें इन दोनों प्रकक्रमाओॊ के
आधाय ऩय उसका भूल्माॊकन ककमा जाता है । ककसी न ककसी रूऩ भें आरोचना इन तीनों कतवव्मों
आरोचना को ऩाश्चात्म तथा प्राच्म के वर्वद्र्वानों ने कई बागों भें वर्वबात्जत ककमा हैं ।
इन्हीॊ वर्वबागों को प्रकाय के रूऩ भें हभ महाॉ सॊक्षऺप्त रूऩ भें वर्वर्वेचन कय उन ऩय प्रकाश डार यहे हैं ।
व्मार्वहारयक आरोचना ।
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सैद्धाॊततक आरोचना, आत्भप्रधान आरोचना, तनणवमात्भक आरोचना, व्माख्मात्भक
आरोचना के अॊतगवत आते हैं । प्रस्तुत अध्माम भें ऩाश्चात्म तथा प्राच्म के सबी वर्वद्र्वानों के
द्र्वाया ककए गए बेदों को एकत्र रूऩ भें रेकय उनऩय प्रकाश डारा गमा हैं ।
सभारोचना के एक स्र्वतॊत्र ऩद्धतत के रूऩ भें नहीॊ ककमा है । तथावऩ उसने इसके भहत्त्र्व
इस ऩद्धतत के आरोचक की रुचच ऩरयष्कृत यहती है , र्वे तनमभों के अनुसाय कामव कयती है ।
शास्त्रीम ऩऺ स्ऩष्ट यहता है । इस आरोचना ऩद्धतत भें उचचत तथा अनचु चत के वर्वर्वेक को
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ख) तनणवमात्भक आरोचना – भान्म मसद्धाॊतों के आधाय ऩय जफ काव्म कृतत का
सभारोचक न्मामाधीश के रूऩ भें प्रततत्ष्ठत होते है तमों कक र्वे तनणवम दे ते हैं ।
को रागू ककमा गमा है कक नहीॊ उस ऩय वर्वचाय ककमा जाता है । डॉ॰ नगें द्र ने कहा है
“र्वास्तर्व भें व्माख्मा कयने के मरए, आश्र्वस्त कयने के मरए आरोचना की शास्त्रीम
आता है ।”४ हडसन ने तनणवमात्भक आरोचना को वर्वशेर् भहत्त्र्वऩूणव भानते हुए कहा
इतना डूफ जाता है कक वर्वर्म र्वस्तु की अऩेऺा अऩने बार्वों भें अचधक डूफा यह जाता है ।
स्र्वच्छॊ दता का प्राधान्म यहता है । आरोचक अऩने रुचच के अनुकूर आरोच्म वर्वर्म
प्रशॊसा का सहाया रेता है । आरोचक अऩने वर्वचायों के अनुरूऩ कृतत के प्रतत अऩना
बार्व व्मतत कयता हैं । बार्व तथा कल्ऩना का सहाया रेकय आरोच्म कृतत को प्रस्तत
ु
प्रबार्वों की अनब
ु तू त होती है उन्हें उसी तयह से प्रकट कय दे ना प्रबार्वर्वादी सभीऺक का
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घ) व्माख्मात्भक आरोचना – व्माख्मात्भक आरोचना भें आरोचक तनमभों के फॊधनों से
भुतत होकय साहहत्त्मक कृतत की आरोचना कयता हैं । ककसी बी कृतत को उसके
उसके आदशों, उद्देश्मों तथा वर्वशेर्ताओॊ की व्माख्मा औय वर्वर्वेचन कयता हैं । डॉ॰
कठोयता भें दफ गई थी, अर्वकाश ऩाते ही रोकबार्ा की सयसता भें ऩरयणत होकय
ब्रज के कयीर-कॊु जों के फीच पैर भुयझाए भनों को सीॊचने रगी । (भ्रभयगीतसाय)2”७
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च) तुरनात्भक आरोचना – र्वतवभान मुग भें तुरनात्भक आरोचना का भहत्त्र्व काफ़ी है
जाती हैं । रेखक का वर्वमबन्न कार तथा दे शों के भानमसक एर्वॊ आध्मात्त्भक प्रगतत
बार्व, बार्ा, शैरी आहद दृत्ष्टमों से तुरना हो सकती हैं । आरोचक महद ऩूणव र्वैऻातनक
दृत्ष्ट से अनासतत बार्व से दोनों ऩऺों की सभान रूऩ से वर्वर्वेचना कये तबी मह
आरोचना सपर मसद्ध होती है हहॊदी साहहत्म भें दे र्व औय बफहायी को रेकय जो
भाध्मभ से साहहत्त्मक कृतत के तनभावण भें तमा सभस्मा आमी थी उसके अध्ममन भें
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वर्वशेर् सहामता मभरती है । कृतत के भाध्मभ से रेखक मा कवर्व अऩने ऩात्रों के भन के
बार्वों को अमबव्मतत कयता हैं । ऩयॊ तु आरोचक इस प्रकाय की आरोचना भें इतना
अचधकाॊश शोध प्रफॊध इसी प्रणारी ऩय मरखे जा यहे हैं । मह आरोचना आजकर काफ़ी
इसभें र्वगव सॊघर्व के आदशव औय वर्वचाय धायाओॊ को भहत्त्र्व हदमा जाता है । सभाजर्वादी
आरोचक याजनीतत के दऩवण भें कृतत को दे खते है त्जस कायण साहहत्म की उऩेऺा हो
ही भहत्त्र्व हदमा जाता है , इससे मुर्वा र्वगव भें क्राॊतत की बार्वना जाग्रत होती है । महाॉ
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वर्वचायधायाओॊ का खॊडन ककमा जाता है । इसभें साम्मर्वादी दृत्ष्टकोण से सभाज भें
ऩऺ के सॊफॊध का उदघाटन कयती है ।”८ हहॊदी साहहत्म ऺेत्र भें प्रगततर्वादी आरोचकों भें
व्मतत ककमा है । ऩाश्चात्म एर्वॊ बायतीम वर्वद्मानों ने करा औय साहहत्म के ऺेत्र भें आरोचना के
का ऺेत्र है । आरोचना के भाध्मभ से इन्हीॊ बार्वों औय वर्वचायों का आॊकरन ककमा जाता हैं ।
आरोचक भें बार्वों को सभझने की प्रततबा होनी चाहहए । आरोचना मा सभीऺा के तीन कतवव्म
अथर्वा तनणवम के आधाय ऩय आरोचकों ने आरोचना मा सभीऺा सॊफॊधी ऩरयबार्ा व्मतत ककए हैं ।
नीचे हभ इन ऩरयबार्ाओॊ ऩय वर्वचाय कयने जा यहे हैं साथ ही आरोचना की ऩाश्चात्म, बायतीम
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आरोचना मा सभारोचना का प्रायम्ब ऩाश्चात्म साहहत्म भें ही हुआ था । महाॉ ऩय हभ
आरोचना के सॊफॊध भें ऩाश्चात्म वर्वद्र्वानों के अमबभतों ऩय दृत्ष्टऩात कयने के साथ ही ऩाश्चात्म
साहहत्म भें आरोचना का प्रायम्ब कफ-कैसे हुआ उस ऩय प्रकाश डारेंगे । साथ ही उसके वर्वकास ऩय
बी आरोकऩात कयें गे ।
ऩाश्चात्म आरोचकों ने आरोचना को ककस प्रकाय ऩरयबावर्त ककमा है उसी ऩय हभ महाॉ नजय
ऩयख कयना है , चाहे र्वह ऩयख साहहत्म के ऺेत्र भें की गई हो मा रमरत करा के ऺेत्र भें । स्र्वरूऩ
तनणवम औय तनणवम की अमबव्मत्तत इसभें दोनों आ जाते हैं ।(Criticism is the art of judging the
qualities and values of an aesthetic object whether in literature or the fine arts. It involves
आई .ए रयचडवस .ने भूल्म तनधावयण को ही आरोचना की प्रभुख वर्वशेर्ता भानते हुए कहा है
"आरोचना साहहत्त्मक अनुबूतत के वर्वचायोऩयान्त उनका सम्मक वर्वर्वेचन कयती है ।(To set up a
र्वसवफ़ील्ड के अनस
ु ाय "आरोचना करा औय साहहत्म के ऺेत्र भें तनणवम की स्थाऩना कयता
ऩरयबावर्त कयते हुए कहा है “आरोचक तटस्थ होकय र्वस्तु के स्र्वरूऩ को जानने की रारसा से
आरोचना कयता है । अतएर्व आरोचना सॊसाय के सर्वोत्तभ वर्वचायों को व्मतत कयती है ।(The
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criticism, real criticism is essentially exercise of this very quality (curiosity and
disinterested love of free play of mind).It obeys on instinct prompting to try to know the
प्रततकक्रमा का ऩरयणाभ है ।(Literary criticism is nothing and should be nothing but the
एडडसन ने आरोचना के सॊदबव भें सभारोचक के धभव के फाये भें कहा है “सभारोचक का
धभव कराकायों का दोर् तनकारना नहीॊ हैं, फत्ल्क उनका कत्तवव्म है उनकी कृतत का सौंदमोदघाटन
कयना ।”१४
भूल्माॊकन ककमा जाता है । र्वह उन वर्वशेर्ताओॊ का रेखा प्रस्तुत कयती है जो साधायण तथा ककसी
कृतत का भूल्माॊकन कय सकते है तथा उस ऩय तनणवम प्रदान कय सकते है । ककसी साहहत्त्मक कृतत
को ऩढ़कय हभाये भन भें उस कृतत के प्रतत तमा वर्वचाय उत्ऩन्न होते है उसका प्रस्पुटन आरोचना
के भाध्मभ से होता है । आरोचक न केर्वर उस कृतत के गुण दोर् का आकॊरन कयता है फत्ल्क
उसकी वर्वशेर्ताओॊ की ओय हभायी दृत्ष्ट आकवर्वत कयती हैं । आरोचना एक ऐसा भाध्मभ है जो
कयने से ऩूर्वव अऩने भत्स्तष्क भें एक तनत्श्चत आदशव की कल्ऩना कय रेता है औय मरखते सभम
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इसके अनुकूर फने यहने का प्रमत्न कयता है । इस तयह से दे खा जाए तो आरोचना का प्रायम्ब
साहहत्म को तीन कार खॊडो भें वर्वबात्जत कय उन ऩय दृत्ष्टऩात कयना हभाये मरए सुवर्वधाजनक
होगा ।
सफसे ऩहरे वर्वचाय कयें गे ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म के प्राचीन कारखॊड ऩय । इस कार
की सभम सीभा भानी जाती है ई॰ ऩू॰ ऩाॉचर्वीॊ शती से चौथी शती तक । ऩाश्चात्म साहहत्म का भूर
प्राभाणणक उद्गभ ग्रीस मा मूनान भें हुआ था । ऩाश्चात्म आरोचना का प्राचीनतभ रूऩ होभय के
यची गमी होंगी ऩयॊ तु र्वह अनुऩरब्ध है । साथ ही होभय के साहहत्म वर्वर्मक भान्मताओॊ मा
मसद्धाॊतों का बी कोई वर्वर्वयण स्र्वतॊत्र रूऩ भें उऩरब्ध नहीॊ होता तथा „इमरमड‟ औय „ओडेसी‟
भाना जाता है । होभय का भानना था की काव्मकृतत का ध्मेम आनॊद प्रदान कयना होना चाहहए ।
होभय के उऩयाॊत हे मसमड, वऩॊडाय, गोत्जवमास औय एरयस्टोपेनीज़ आहद वर्वचायकों ने प्राचीन मूनानी
आरोचना साहहत्म को वर्वकमसत ककमा है ऩयॊ तु मूनान के प्राचीन चचन्तकों भें सुकयात का वर्वमशष्ट
स्थान है । सक
ु यात का सभम 469 ई॰ ऩ॰ू से 399 ई॰ ऩ॰ू तक भाना गमा है औय साहहत्म के ऺेत्र भें
सुकयात के भॊतव्मों को भूर आधाय के रूऩ भें ग्रहण ककमा गमा है । मद्मवऩ सुकयात ने ककसी कृतत
की यचना नहीॊ की है औय उनका उल्रेख बी नहीॊ मभरता है रेककन उनकी र्वैचारयक दृत्ष्टकोण का
सॊकेत उनके मशष्म तथा उनके ऩयर्वती वर्वचायकों भें अर्वश्म मभरता है । सुकयात ने नीतत, ऻान,
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धभव, दशवन, याजनीतत आहद के सॊफॊध भें अऩने वर्वचाय व्मतत ककए हैं तथा मूनान भें नीततऩयक
ऩाश्चात्म आरोचना का आहद आचामव प्रमसद्ध ग्रीक चचॊतक प्रेटो ( 427 ई॰ऩ॰ू –347 ई॰ऩ॰ू )
को भाना जाता है । उन्होंने प्रमसद्ध ग्रॊथ „रयऩत्ब्रक‟ भें „करा‟ के सॊफॊध भें अऩने वर्वचाय व्मतत
ककमा है । उनके द्र्वाया यचचत „रयऩत्ब्रक‟, „पेडयस‟ औय „इओन‟ भें उन्होंने आरोचना सॊफॊधी
अऩने वर्वचाय व्मतत ककए है । इनके भाध्मभ से उन्होंने काव्म की ऺभता को वर्वस्तारयत रूऩ भें
व्माख्मा की हैं ।
“The Ion is an early and simple preliminary to Plato‟s more elaborate attacks on
the illusionistic and emotive power of poetry (and of rhetoric) in the Republic, Phaedrus
प्राचीन मूनान भें त्जस अनुकयणात्भक मसद्धान्त का प्रर्वतवन होभय ने ककमा था उसी का
सफर तुष्टीकयण प्रेटो ने ककमा था औय इसी मसद्धान्त को आधाय फनाकय उन्होंने वर्ववर्वध
वर्वर्मक वर्वचाय व्मतत ककमा है । प्रेटो ने काव्म का उद्देश्म केर्वर आनॊद प्रदान कयना ही नहीॊ
प्रेटो ने अऩने सभीऺा के भाध्मभ से भानर्व कल्माण की फात कही है - “ प्रेटो ने र्वस्तु
वर्वद्र्वानों ने मूनानी आरोचना साहहत्म को सम्ऩन्न ककमा ऩयॊ तु प्रेटो के ऩश्चात अयस्तू को ही
ग्रीक का अनन्म सभीऺक भाना जाने रगा । उनका सभम था 384 ई॰ ऩू॰ से 322 ई॰ ऩू॰ तक ।
उन्होंने काव्म के रूऩ औय तत्र्वों के तनधावयण भें भहत्त्र्वऩूणव मोगदान हदमा । अयस्तू ने करा को
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भात्र अनुकृतत न भानते हुए उसके बावर्वत रूऩ का अनुकयण भाना है । उनकी दो कृतत क्रभश:
„ऩोएहटतस‟ एर्वॊ „ये टोरयतस‟ काव्मशास्त्र सॊफॊधी यचना हैं । अयस्तू ने अनुकयण तथा वर्वये चन
अयस्तू के मशष्म चथमोक्रेस्टस ने अऩनी प्रमसद्ध कृतत „दी इॊटयवप्रटे शन‟ भें साहहत्म मसद्धाॊतों
को प्रस्तत
ु ककमा है ऩयॊ तु ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म भें अयस्तू के ऩश्चात रोंजाइनस को ही
अनुर्वाद अॉग्रेजी भें „आॊन हद सब्राइभ‟ नाभ से हुआ है । उन्होंने साहहत्म भें उदत्त तत्र्व के
गमा औय धीये -धीये रेहटन आरोचना साहहत्म का वर्वकास होने रगा । मूनानी आरोचना का प्रबार्व
आरोचना के वर्वकास भें मससयो, रुक्रेहटमस, फत्जवर, होये स, त्प्रनी, त्तरन्टीमरमन वर्वशेर् भाने
जाते हैं । इनभें होये स औय त्तरन्टीमरमन का ही आरोचना के ऺेत्र भें भहत्त्र्व हैं । होये स ने
साहहत्म यचना के मरए औचचत्म ऩय सर्वावचधक फर हदमा है औय उनके अनुसाय कृतत के यचना के
मरए कृततकाय को व्मार्वहारयक फुवद्ध से काभ रेना चाहहए । त्तरन्टीमरमन ने साहहत्मारोचन भें
आयॊ ब होता है । इस कार भें रेहटन आरोचना का भहत्त्र्व कभ होता गमा औय इॊग्रैंड भें नर्व-
जागयण मग
ु का आयॊ ब हुआ । इस मग
ु को साहहत्म आरोचना के ऺेत्र भें अॊधकाय का मग
ु भाना
जाता है । मद्मवऩ इस मुग भें फीडी, आरकुयण, याजय फेकन, दाॊते, रयचडव फयी, जाॊज वर्वत्तरप जैसे
कई आरोचक हुए रेककन इनभें दाॊते ही वर्वशेर् रूऩ से उल्रेखनीम है । इटरी का भहाकवर्व दाॊते ने
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मूयोऩ भें साॊस्कृततक जागयण का शुबायॊ ब ककमा उन्होंने रेहटन बार्ा के स्थान ऩय इटरी के बार्ा
को साहहत्म सज
ृ न का भाध्मभ फनामा । उन्होंने „डडर्वाइन काभेडी‟ नाभक भहाकाव्म की यचना की
औय काव्म भें वर्वर्म र्वस्तु को भहत्त्र्व प्रदान कयते हुए प्रेभ तथा नैततक सौंदमव ऩय फर प्रदान
ककमा है । कान ग्राॊते डेरान स्कारा दाॊते के प्रमसद्ध आरोचनात्भक ऩत्र के सॊयऺक है , त्जसे दाॊते ने
उन्हें बेजा था औय उसी ऩत्र को बमू भका के रूऩ भें अऩने ऩस्
ु तक „ऩैयाडाइज़‟ भें प्रस्तत
ु ककमा है ।
यहा है । इस मुग भें सय कपमरऩ मसडनी, फेन जानसन, ड्राइडन, जोसेप एडडसन, एरेतजेंडय ऩोऩ,
सेभुएर जानसन, गेटे, जेम्स हवर्वस्रय, एडगय एरन ऩो, र्वाल्टय ऩेटय, आतसय र्वाइल्ड, र्वर्डवसर्वथव,
कोररयज, टे न, भैथ्मू आनवल्ड, क्रोचे, आई॰ ए॰ रयचर्डवस, इवर्वांग फैफीट, भोये , एजया ऩाउॊ ड, फोदरेमय,
स्टे पन, टी॰ एस॰ इमरमट, टे ट, र्वाये न, भारयस गल्सव, ब्रेकभूय, ज्मा ऩर सात्र, अल्फटव काभू, फ़्ाॊज
काफ्का जैसे भहान आरोचक हभें मभरे । इन आरोचकों ने उत्तोयोत्तय ऩाश्चात्म आरोचना का
वर्वकाश ककमा औय कई प्रभुख मसद्धाॊतों की स्थाऩना की । र्वास्तर्व भें आधतु नक कारीन साहहत्म
आरोचना का स्र्वरूऩ मसडनी के „हद डडपेंस ऑप ऩोएट्री‟ भें दे खने को मभरती है । र्वे साहहत्म
सज
ृ न भें स्र्वतॊत्र प्रणारी के कट्टय सभथवक थे । मसडनी के फाद फेन जानसन का नाभ आता है ।
उन्होंने साहहत्म के वर्ववर्वध रूऩों ऩय अऩना वर्वचाय व्मतत कयते हुए साहहत्म के वर्ववर्वध ऩऺों का
सम्मक वर्वर्वेचन ककमा हैं । „हद ऩोएटास्टय‟, „कॊर्वसेशॊस‟ नाभक भें ग्रॊथो भें उन्होंने अऩने साहहत्म
सॊफॊधी बार्व व्मतत ककए हैं । याजकवर्व जॉन ड्राइडन अऩने सभम के भहान आरोचक थे । उन्होंने
„ऐसे ऑप ड्राभेहटक ऩोएट्री‟ भें अऩना आरोचनात्भक वर्वचाय व्मतत ककमा है । एडीसन तथा
एरेतजेंडय ऩोऩ ने अऩनी आरोचनात्भक प्रततबा का प्रकाशन अऩने गयन्थोन के भाध्मभ से ककमा
अऩने मुग भें साहहत्म आरोचना को नर्वीनता प्रदान की । प्रमसद्ध जभवन आरोचक गेटे का बी
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करा के भीभाॊसक थे फत्ल्क गॊबीय तत्र्वर्वेत्ता दाशवतनक बी थे । आऩ ने अनेक वर्वर्मों भें नर्वीन
दृत्ष्टकोण से वर्वचाय प्रकट ककमा । „एस्थेहटक‟ उनका वर्वश्र्ववर्वख्मात ग्रॊथ है । आधतु नक ऩाश्चात्म
मरटये यी कक्रहटमसज़्भ‟ साहहत्म आरोचना के ऺेत्र भें भहत्त्र्वऩूणव कृतत है । उन्होंने सैद्धाॊततक आधाय
ऩय साहहत्म की आरोचना की है । कपय आता है फीसर्वीॊ शती के भहान आरोचक टी॰ एस॰ इमरमट
का नाभ । उनकी „ट्रे डडसन एॊड इॊडडवर्वजुमर‟ नाभक आरोचनात्भक कृतत फहुचचचवत है । इस
प्रकाय ऩाश्चात्म आरोचना का वर्वकास होता यहा औय ऩाश्चात्म आरोचना वर्वधा अन्म बार्ा के
साथ ही हहॊदी साहहत्म भें आरोचना का प्रायम्ब कफ-कैसे हुआ उस ऩय प्रकाश डारेंगे । साथ ही
हहॊदी आरोचक डॉ॰ श्माभसुॊदय दास ने आरोचना के स्र्वरूऩ को स्ऩष्ट कयते हुए मरखा है
“साहहत्म ऺेत्र भें ग्रॊथ को ऩढ़कय उसके गुणों औय दोर्ों का वर्वर्वेचन कयना औय उसके सॊफॊध भें
अऩना भत प्रकट कयना आरोचना कहराता है । .......... महद हभ साहहत्म को जीर्वन की व्माख्मा
आचामव गुराफ याम ने आरोचना के कामव औय प्रबार्व का वर्वर्वेचन कयते हुए कहा है
“आरोचना का भख्
ु म उद्देश्म कवर्व की कृतत का सबी दृत्ष्टकोणों से आस्र्वाद कयना औय ऩाठकों को
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उस प्रकाय के आस्र्वाद भें सहामता दे ना तथा उसकी रुचच का ऩरयभाजवन कयना एर्वॊ साहहत्म की
आरोचना तथा आरोचक ऩय वर्वचाय कयते हुए डॉ॰ ततर्वायी ने कहा है , “करा औय साहहत्म
के भल्
ू माॊकन का प्रमत्न ही सभीऺा मा आरोचना है औय आरोचक र्वह व्मत्तत है त्जसभें
सभीऺा की एक अत्मॊत सटीक ऩरयबार्ा डॉ॰ दे र्वयाज ने दी है । उन्होंने आरोचना के फाये भें
कहा है, “आरोचना ककसी कराकृतत भें तनफद्ध अनुबूतत के वर्वश्रेर्ण, व्माख्मा औय भूल्माॊकन का
प्रमत्न है ।”२१
हहॊदी आरोचना का र्वास्तवर्वक रूऩ भें प्रायम्ब आधतु नक कार भें ही हुआ ऩयॊ तु इसका
का ककॊचचत अनक
ु यण कयने ऩय बी अऩना स्र्वतॊत्र सत्ता फनाए यखा है । बायतीम आरोचना की
ऩयॊ ऩया का प्रायम्ब सॊस्कृत साहहत्म से हुआ । बयतभुतन द्र्वाया यचचत „नाट्मशास्त्र‟ से इस ऩयॊ ऩया
का प्रायम्ब हुआ । सॊस्कृत साहहत्म भें बयतभुतन द्र्वाया यचचत „नाट्मशास्त्र‟ ही प्रायत्म्बक
काव्मशास्त्र है त्जसभें नाट्म के वर्वमबन्न तत्र्व, त्जसकी भूर वर्वर्म र्वस्तु अमबनम थी औय
नाट्मशास्त्र भें ककमा गमा है । यस के बार्व वर्वर्मक आरोचना से ही सॊस्कृत (बायतीम) साहहत्म भें
ने साहहत्म दऩवण की यचना की । इन सबी काव्मग्रन्थों (सॊस्कृत साहहत्म भें काव्म से तात्ऩमव गद्म
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औय ऩद्म रूऩ भें यचचत सत्ृ ष्ट भूरक यचना है ) भें अरॊकाय औय यस ऩय वर्वर्वेचना की गमी हैं ।
काव्म के रऺण, काव्म ककसे कहते है, काव्म के प्रकाय, काव्म भें अरॊकाय की प्रधानता, यस की
प्रधानता, ध्र्वतन, औचचत्म की प्रधानता आहद ऩय वर्वचाय ककमा गमा हैं । तत्ऩश्चात बत्ततकार का
सभम आता है । इस कार भें कवर्वमों की ऩरयचमात्भक यचनाएॉ साभने आमी । इनभें उल्रेखनीम
है दो सौ फार्वन र्वैष्णर्वन की र्वाताव, फार्वन र्वैष्णर्वन की र्वाताव आहद । सयू दास की साहहत्म रहयी,
यहीभ की फयर्वै नातमका बेद आहद ग्रन्थों भें प्रततऩाद्म का चचत्रण ककमा गमा हैं न कक मसद्धाॊत
वर्वर्वेचन । अऩने इष्ट दे र्वताओॊ के रीराओॊ का गान कयना ही इनका भुख्म उद्देश्म यहा है रेककन
यीततकार भें सॊस्कृत काव्मशास्त्रीम ऩयॊ ऩया का तनर्वावह ककमा गमा । केशर्वदास द्र्वाया
यचचत कवर्ववप्रमा औय यमसकवप्रमा से इसका प्रायम्ब होता हैं । ऩयॊ तु काव्मशास्त्रीम दृत्ष्ट से इनका
इतना भहत्त्र्व नहीॊ है । चचॊताभणण द्र्वाया यचचत कवर्वकुरकल्ऩतरु , कुरऩतत का यस यहस्म, दे र्व
अरॊकाय, छॊ द आहद का र्वणवन ककमा गमा हैं । ऩयॊ तु इन सबी भें सॊस्कृत काव्मशास्त्रीम ऩयॊ ऩया की
हहॊदी साहहत्म भें आरोचना की र्वास्तवर्वक ऩयॊ ऩया का प्रायम्ब आधतु नक कार भें हुआ है ।
बायतेन्द ु मुग भें ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ के भाध्मभ से सभारोचना का प्रायम्ब हुआ । बायतेन्द ु जी स्र्वमॊ
„कवर्व र्वचन सध
ु ा‟ औय „हरयश्चॊद्र भैगज़ीन‟ भें कुछ सभारोचनात्भक रेख छाऩते यहते थे । इस
मुग की आरोचनाएॉ ऩुस्तकों के ऩरयचम के रूऩ भें ही थीॊ । ऩुस्तक-ऩरयचम, उऩदे शात्भकता तथा
„भुद्रायाऺस‟ की बूमभका भें एक सभारोचनात्भक नोट मरखा था । इस मुग भें ऩॊडडत फारकृष्ण
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बट्ट जी ने „हहॊदी प्रदीऩ‟ भें „साहहत्म जनसभूह के रृदम का वर्वकास है ‟ (जुराई, 1881) शीर्वक रेख
मरख कय इस ऩयॊ ऩया को आगे फढ़ामा । उन्होंने साहहत्म को इस रूऩ भें ऩरयबावर्त ककमा था
का रगाताय वर्वकास होता यहा त्जसका नर्वीन रूऩ भहार्वीय प्रसाद द्वर्वर्वेदी जी के सभम दे खने को
मभरता है । द्वर्वर्वेदी मुग का प्रायम्ब सन 1900 ई॰ भें सयस्र्वती ऩबत्रका के प्रकाशन के भाध्मभ से
हुआ । इस मुग की अचधकाॊश यचनाएॉ गुण-दोर्-कथन प्रणारी ऩय आधारयत हैं । उन्होंने सॊस्कृत के
स्थाऩना की । “द्वर्वर्वेदी जी ने गण
ु दोर् वर्वर्वेचन की ऩरयचमात्भक शैरी को अऩनामा था, त्जसभें
र्वे तकव के साथ कबी कबी कटाऺ औय व्मॊग बी कयते थे ।”२३ द्वर्वर्वेदी जी ने काव्म के प्रत्मेक ऺेत्र
भें सध
ु ायर्वादी दृत्ष्टकोण की स्थाऩना की है । आऩने सैद्धाॊततक औय व्माख्मात्भक दोनों प्रकाय की
आरोचनाओॊ का वर्वकास ककमा । आचामव भहार्वीय प्रसाद द्वर्वर्वेदी ने „सयस्र्वती‟ ऩबत्रका भें
„ऩस्
ु तक-ऩयीऺा‟ नाभ से एक स्तम्ब यखा औय उस स्तम्ब भें स्र्वमॊ ऩस्
ु तकों की सभीऺा मरखी ।
इस मुग के प्रभुख आरोचक यहे - ऩॊडडत फारकृष्ण बट्ट, मभश्रफॊधु तथा ऩद्ममसॊह शभाव । मभश्रफॊधु भें
„मभश्रफॊधु वर्वनोद‟ इनकी प्रभुख आरोचनात्भक कृततमाॉ हैं । ऩॊडडत ऩदभमसॊह शभाव ने तुरनात्भक
यचना है । प्रबार्वर्वादी तथा काव्मात्भक आरोचना का श्रेष्ट तनदशवन शभाव जी के आरोचना भें
दे खने को मभरता है । उदाहयणस्र्वरूऩ „ऩय र्वाह बफहायीरार, धन्म तुम्हायी प्रततबा ! त्जहह प्रततबा
शब्द-बेदी तीय भाया है , रुटा ही हदमा ।‟ द्वर्वर्वेदी मुग के सभाप्त होते-होते सैद्धाॊततक आरोचना
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वर्वकासोन्भुख होता गमा । तत्ऩश्चात शुतर मुग का आयॊ ब हुआ औय आचामव याभचन्द्र शुतर ने
हहॊदी आरोचना ऩयॊ ऩया को वर्वकास के मशखय तक ऩहुॉचामा । उनके मुग भें फाफू श्माभसुॊदय दास,
आचामव गर
ु ाफ याम, वर्वश्र्वनाथ प्रसाद मभश्र, डॉ॰ सत्मेंद्र जैसे आरोचक हुए त्जन्होंने हहॊदी
आरोचना के ऺेत्र भें भहत्त्र्वऩूणव मोगदान हदमा । कपय स्र्वच्छॊ दतार्वादी आरोचना की शुरुर्वात हुई
आरोचक यहें । प्रगततर्वादी आरोचकों भें डॉ॰ याभवर्वरास शभाव, मशर्वदानमसॊह चौहान का मोगदान
काफ़ी उल्रेखनीम हैं । नमी सभीऺा ऩद्धतत का वर्वकास हुआ नमी यचनाओॊ की सॊर्वेदना औय उसके
सौंदमव के ऩयख के मरए । अऻेम, भुत्ततफोध, वर्वजम दे र्व नायामण शाही, नमरन वर्वरोचन शभाव, डॉ॰
नाभर्वय मसॊह ने नमी सभीऺा ऩद्धतत के जरयए नूतन साहहत्त्मक कृततमों की आरोचना की औय
काव्म तथा साहहत्म के ऺेत्र भें नमी हदशा का तनदे श ककमा । इस तयह हहॊदी साहहत्म आरोचना का
प्रायम्ब कफ-कैसे हुआ उस ऩय प्रकाश डारेंगे । साथ ही उसके वर्वकास ऩय बी आरोकऩात ककमा
जाएगा ।
ककए हैं । इन्हीॊ वर्वद्र्वानों भें कुछ एक वर्वद्र्वानों के अमबभत ऩय महाॉ प्रकाश डारा जामेगा ।
एक दस
ू ये का ऩरयऩूयक फताते हुए कहा है “ सभारोचना एक ओय से साहहत्म का अनुगाभी है तो
दस
ू यी दृत्ष्ट से उसका ऩूर्वग
व ाभी बी है । एक ऩुष्ट तथा र्वैचचत्र ऩूणव साहहत्म की सत्ृ ष्ट के बफना
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सभारोचना बी आगे नहीॊ फड़ सकती है; औय सभारोचना ही साहहत्म को हदशा तनदे श कय
डॉ॰ भहे श्र्वय नेओग ने सभारोचना ऩय हटप्ऩण कयते हुए कहा है “ साहहत्म सभारोचना
असमभमा साहहत्म भें ऩाश्चात्म के दान स्र्वरूऩ आमा है । अॊग्रेजी योभाॊहटक साहहत्म भें सभारोचना
धभव की चचाव एर्वॊ काव्म यसास्र्वादन हे तु ककमा जाता था । ऩयॊ तु सभम के साथ साथ आरोचना का
भहत्त्र्व रोगों को सभझ भें आने रगा औय आरोचना साहहत्म का वर्वकाश होने रगा ।
ऩरयचमसच
ू क रेख प्रकामशत हुए थे । ऩयॊ तु इस मग
ु भें प्रकृत आरोचना का प्रायम्ब नहीॊ हुआ था ।
इस मुग भें प्रभुखत बार्ा सॊफॊधी सभारोचना को ही प्रधानता मभरी थी । आनॊदयाभ ढे कीमार
भहत्त्र्वऩूणव बूमभका तनबामी थी । इस भामसक ऩबत्रका को प्रकामशत कयने भें ईसाई मभसनरयमों का
काफ़ी भहत्त्र्वऩूणव मोगदान था । इस ऩबत्रका को प्रभुखत: ईसाई धभव के प्रचाय कयने हे तु प्रकामशत
ककमा गमा था ऩयॊ तु इसभें अनुर्वाद, धभव, असभ का इततहास, कवर्वता, जीर्वनी, कहानी, दो एक
ऩरयचम सूचक आरोचनात्भक रेख आहद प्रकामशत हुए । सन 1855 भें आनॊदयाभ ढे ककमार पुकन
ने अॊग्रेजी भें एक ऩत्ु स्तका तनकारी त्जसभें असमभमा बार्ा की स्र्वतॊत्रता, फाॊग्रा बार्ा को
Assamese Language‟ नाभक इस ऩत्ु स्तका का आरोचना के ऺेत्र भें काफ़ी भहत्त्र्व यहा है । इस
मुग भें अरुणोदोई के साथ आसाभ वर्वरामसनी (1871-83) , आसाभ मभहहय (1872-73) , आसाभ
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दऩवण (1874-75 ), आसाभ फॊधु (1885-86) नाभक ऩबत्रकाएॉ तनकरी रेककन असमभमा आरोचना
साहहत्म के ऺेत्र भें इनका कोई खास मोगदान नहीॊ था । हे भचन्द्र फरुआ, गुनामबयाभ फरुआ,
रॊफोदय फोया, बोरानाथ दास, सत्मानाथ फोया आहद जैसे रेखकों का असमभमा गद्म-ऩद्म
साहहत्म औय वर्वशेर् कय बार्ा साहहत्म भें काफ़ी भहत्त्र्वऩूणव मोगदान यहा ऩयॊ तु असमभमा
“Literary criticism was not known in Assamese till the impact of the west. This critical
literature as a type was first begun in the pages of the Arunoday and is continued later on
by other journals. But the early criticism were mere catalogues of the merits and defects
सॊऩाहदत „आसाभ फॊध‟ु ऩबत्रका भें यभन्मासर्वाद का ऩहरा आबास मभरा । इसी मुग भें असमभमा
आरोचना साहहत्म का वर्वकास हुआ । इस मुग भें चॊद्रकुभाय अगयर्वारा द्र्वाया सॊऩाहदत
„जोनाकी‟(1889) नाभक भामसक ऩबत्रका प्रकामशत हुई जो „असमभमा बार्ा उन्नतत साचधनी
सबा‟ का भख
ु ऩत्र था । इसी ऩबत्रका के भाध्मभ से कई असमभमा मर्व
ु ा रेखक ने आत्भप्रकाश ककमा
। इस ऩबत्रका भें „कृऩार्वय फरुआ‟ चरयत्र की सभारोचना प्रकामशत हुई थी । इसमरए इस मुग को
जोनाकी मग
ु बी कहा जाता है । बफजर
ु ी(1890) नाभक ऩबत्रका ने बी काफ़ी मोगदान हदमा । इस
मुग भें रक्ष्भीनाथ फेज़फरुआ, यघुनाथ चौधायी, चन्द्र कुभाय अगयर्वारा, हे भचन्द्र गोस्र्वाभी,
यजनीकान्त फोयदोरोई, सत्मनाथ फोया, कारीयाभ भेधी, ऩद्मनाथ गोहाईं फरुआ, कभरकान्त
बट्टाचामव जैसे रेखक हुए त्जन्होंने असमभमा साहहत्म को नमा आमाभ हदमा । सत्मनाथ फोया
(1860-1925) ने सायथी, चचॊताकरी, साहहत्म वर्वचाय जैसी बार्व चचॊतन मुतत यचना यची । इनके
द्र्वाया यचचत „साहहत्म वर्वचाय‟ को ही असमभमा आरोचना साहहत्म का ऩहरा शुद्ध आरोचनात्भक
कृतत भाना जाता है । “ The first noteworthy treatise on pure literary criticism was,
however, „Sahitya vichar‟ by Satyanath Borah in which both Indian and English methods
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इस कार भें ही असमभमा सभारोचना साहहत्म का वर्वकाश हुआ औय सभारोचना
साहहत्म के वर्वकाश भें भहत्त्र्वऩूणव बूमभका तनबाई रक्ष्भीनाथ फेज़फरुआ ने । ऩाश्चात्म साहहत्म
का अध्ममन कय इनके आरोचनात्भक व्मत्ततत्र्व को नमी दृत्ष्ट मभरी । “ इसी कार भें प्रफॊध
................. सभारोचना के वर्वकाश भें अग्रगनी बमू भका तनबाई रक्ष्भीनाथ फेजफारूआ ने ।”२८
हटप्ऩणी प्रकामशत की तथा साहहत्म एर्वॊ सभाज सॊफॊधी अनेक सभारोचनात्भक प्रफॊध प्रकामशत
की त्जन्होंने उनके साहहत्म के बॊडाय को ऩुष्ट ककमा । „जोनाकी‟ औय „फाही‟ ऩबत्रका के भाध्मभ से
र्वैष्णर्व धभव के प्रचायक शॊकयदे र्व ऩय आरोचनात्भक ऩुस्तक मरखी जो असमभमा साहहत्म के मरए
जोनाकी मुग भें रम्फोदय फोया, हे भचन्द्र गोस्र्वाभी, ऩद्मनाथ गोहाईंफरुर्वा ने सभारोचना
साहहत्म के वर्वकास भें काफ़ी मोगदान हदमा । असमभमा आरोचना के वर्वकास भें सत्मनाथ फोया,
दे र्वेन्द्रनाथ फेजफरुआ द्र्वाया यचचत „असमभमा साहहत्मोय फुयोंजी‟(1912) भें मद्मवऩ सूक्ष्भ
आरोचना का अबार्व है कपय बी मह असमभमा की ऩहरी ऐसी यचना है त्जसभें असमभमा साहहत्म
चानेकी‟(1923-29) के प्राक कथन भें बी असमभमा साहहत्म के वर्वर्म भें काफ़ी जानकायी मभरती
29
Manuscripts‟(1930) भें प्राचीन असमभमा साहहत्म के सबी रेखकों औय यचनाओॊ का ऩरयचम
मभरता हैं । डडॊफेश्र्वय नेऔग(1899-1967) ने इस ऺेत्र भें काफ़ी उल्रेखनीम अर्वदान हदमा है ।
उनके द्र्वाया यचचत „आधतु नक असमभमा साहहत्मय फयु ॊ जी‟(1936), „असमभमा साहहत्मय फयु ॊ त्जत
एर्वॊ अन्म ऺेत्रों ऩय वर्वस्ताय से आरोचना की गमी हैं । „असमभमा साहहत्मय त्जमरकोणी‟(1939),
„असमभमा साहहत्मय जेमोतत‟(1952) औय उनके द्र्वाया यचचत कई तनफॊधों भें असमभमा साहहत्म
ऩय आरोचना की गमी हैं । उनके वर्वचायों का प्रस्पुटन उनके यचनाओॊ भें हुआ है । उन्होंने प्रभुखत
साहहत्म के सौंदमव उदघाटन भें भनोतनर्वेश ककमा था । र्वैष्णर्व साहहत्म से रेकय आधतु नक मुग के
आधतु नक असमभमा साहहत्म के श्रेष्ठ आरोचक यहे हैं डॉ॰ र्वाणणकाॊत काकती । आधतु नक
मग
ु के वर्वमबन्न कवर्वमों के काव्म की बमू भका जो उन्होंने मरखी है , उनभें उनकी सभारोचनात्भक
दृत्ष्ट साभने आमी है । धभव एर्वॊ साहहत्म के सॊदबव भें यचचत तनफॊधों भें बी उनकी सभारोचक
प्रततबा का ऩरयचम मभरता है । „चेतना‟ नाभक ऩबत्रका भें उनकी प्राचीन असमभमा साहहत्म ऩय
उनके द्र्वाया यचचत ऐसे दो ग्रॊथ हैं त्जनभें उनकी सभारोचनात्भक अध्ममनशीरता औय ऩाॊडडत्म
उनके भत्ृ मु के ऩश्चात प्रकामशत तनफॊध सॊग्रह है, त्जसभें कई आधतु नक कवर्व एर्वॊ उनके काव्म का
भूल्माॊकन कय उनके वर्वशेर्ताओॊ ऩय प्रकाश डारा गमा हैं । „बफजुरी‟ नाभक ऩबत्रका भें असभ के
सकते है कक र्वाणणकाॊत जी ने असमभमा आरोचना साहहत्म को ऩष्ु ट कयते हुए नमा आमाभ हदमा ।
डॉ॰ बफरयत्चच कुभाय फरुआ द्र्वाया अॊग्रेजी भें यचचत „History of Assamese Literature‟
(1941) बी इस ऺेत्र भें काफ़ी भहत्त्र्व यखता है । इस ऩुस्तक भें असभ औय असमभमा बार्ा, र्वैष्णर्व
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कार के उद्भर्व एर्वॊ साहहत्म, आहोभ एर्वॊ उस कार के असमभमा साहहत्म, आधतु नक कार का
प्रायम्ब, काव्म, नाटक, उऩन्मास, कहानी, आरोचना साहहत्म, अन्म गद्म साहहत्म आहद ऩय
वर्वचाय-वर्वश्रेर्ण ककमा गमा हैं । उनके द्र्वाया यचचत „काव्म आरू अमबव्मॊजना‟ उच्च कोहट का
आरोचनात्भक ग्रॊथ भें उन्होंने असमभमा गद्म साहहत्म के उद्भर्व एर्वॊ भुल्माॊकन ऩय वर्वचाय ककमा
है । असमभमा रोगों के जीर्वन तथा उनके सॊस्कृतत ऩय वर्वचाय कयते हुए उन्होंने जो तनफॊध मरखे हैं
आधतु नक कार के असमभमा सभारोचकों भें हभ नाभ रे सकते हैं उभाकाॊत शभाव,
त्रैरोतमनाथ गोस्र्वाभी, अतुरचन्द्र फरुआ, हे भ फरुआ, जग्मश्र्वय शभाव, फाऩचन्द्र भहॊ त, होभेन
फयगोहाई, डॉ॰हीये न गोहाई, फीये न्द्रकुभाय बट्टाचामव, मशर्वनाथ फभवन, बफेन फरुआ, भहे श्र्वय नेओग,
रीरा गोगोई, तीथवनाथ शभाव, भहें द्र फोया, डॉ॰ सत्मेंद्र नाथ शभाव, उऩेन्द्रनाथ गोस्र्वाभी,
गोरोकचन्द्र गोस्र्वाभी, सत्मेन्द्र नायामण गोस्र्वाभी, प्रभोद बट्टाचामव, इभदाद उल्रा, कफीन
त्रैरोतमनाथ गोस्र्वाभी द्र्वाया यचचत „साहहत्म आरु सभारोचना‟ भें आरोचना साहहत्म के
वर्वमबन्न धाया, वर्वमशष्टता आहद ऩय वर्वचाय ककमा है । उनके ग्रन्थों भें तुरनात्भक, ऩाश्चात्म एर्वॊ
प्राच्म भें यस की अर्वधायणा, साहहत्म के नन्दनतात्त्र्वक वर्वचाय धाया आहद की व्माख्मा की गमी है
। उनकी सभारोचनात्भक ककताफ तात्त्र्वक एर्वॊ व्मार्वहारयक दृत्ष्ट यखती है । „असमभमा गल्ऩ
31
इततबब्रत‟ ऐसी सभारोचनात्भक ऩुस्तके हैं त्जनभें असमभमा साहहत्म के वर्वकास ऩय गहयाई से
चचाव की गमी हैं । भौणखक साहहत्म ऩय अऩने वर्वचाय प्रकट कयते हुए उन्होंने „असमभमा साहहत्मय
तो ऩाते हैं कक इनभें से ज्मादातय के ऩास मरणखत साहहत्म नहीॊ हैं ऩयॊ तु भौणखक गीत-साहहत्म औय
उभाकाॊत शभाव के „काव्म बमू भ‟ भें साहहत्म भें यस की उऩमोचगता ऩय वर्वचाय ककमा गमा है
ग्रन्थों भें आधतु नक चचॊतन-धाया, आदशव औय ऩाश्चात्म साहहत्म का प्रबार्व ऩरयरक्षऺत होता है ।
अतुरचन्द्र फरुआ की „साहहत्मय रूऩये खा‟(1947) भें साहहत्म के रऺण, सॊऻा आहद ऩय आरोचना
सॉत
ू ी‟(1970) भें अतर
ु जी ने व्माख्मात्भक शैरी भें असमभमा साहहत्म की आरोचना प्रस्तत
ु की है
„असमभमा साहहत्मय रूऩये खा‟(1962) भें प्राचीन असमभमा गद्म साहहत्म ऩय वर्वचाय ककमा गमा है
असमभमा गद्म ऩयम्ऩया तथा साहहत्म ऩय आरोचना की गमी है । तीथवनाथ शभाव की „ऩॊच
सभारोचनात्भक ग्रॊथ हैं । उऩें द्र नाथ गोस्र्वाभी की „बार्ा आरू साहहत्म‟ भें साहहत्म की वर्ववर्वध
दृत्ष्ट से आरोचना की गमी है । डॉ॰ होभेन फयगोहाई औय डॉ॰ हीये न गोहाई इस कार के सशतत
रूऩये खा‟(1958), „साहहत्म दृत्ष्ट‟, „सभारोचना साहहत्म‟(1958), हे भॊत कुभाय शभाव की „असमभमा
32
की „नाटक आरू अमबनम-प्रसॊग‟(1962), रीरा गोगोई की „असमभमा रोक-साहहत्मय
रूऩये खा‟(1965) का असमभमा आरोचना साहहत्म भें उल्रेखनीम अर्वदान हैं । असमभमा
आरोचना साहहत्म के वर्वद्र्वान सभारोचक यहे है फाऩचन्द्र भहॊ त । „जीर्वन आरू साहहत्म‟(1962),
ग्रन्थों भें उन्होंने वर्वश्रेर्णात्भक ढॊ ग से साहहत्म ऩय चचाव कयते हुए सभारोचना साहहत्म को ऩष्ु ट
ककमा है । बर्वेन फरुआ द्र्वाया यचचत „नतुन सभारोचना‟ तथा गोवर्वॊद प्रसाद शभाव, हहये न्द्र नाथ
दत्त का बी इस ऺेत्र भें उल्रेखनीम अर्वदान हैं । इसी क्रभ भें प्रो॰ कृष्ण नायामण प्रसाद का नाभ
असमभमा आरोचना के ऺेत्र भें उल्रेख कय सकते है , त्जन्होंने हहॊदी साहहत्म भें असमभमा
याभामणी साहहत्म, शॊकयदे र्व, भाधर्वदे र्व, र्वैष्णर्व साहहत्म आहद ऩय आरोचनात्भक ग्रॊथ मरखा औय
तनष्कर्वत: प्रस्तत
ु अध्माम भें आरोचना के उद्भर्व-वर्वकास ऩय चचाव कयते हुए आरोचना
ऺेत्र से जुड़े काफ़ी तथ्मों ऩय नजय डारने का भौका मभरा । आरोचना शब्द की व्मुत्ऩत्त्त से रेकय
आरोचना के अथव तथा स्र्वरूऩ ऩय बी वर्वचाय ककमा गमा । आरोचना के मबन्न प्रकाय ऩय
बामरबाॉतत जानने का अर्वसय मभरा । आरोचना की ऩरयबार्ा औय ऩयॊ ऩया ऩय वर्वचाय कयते हुए
औय सॊक्षऺप्त रूऩ भें प्रकाश डारा गमा । आरोचना की ऩयॊ ऩया को दे खा जाए तो प्रायत्म्बक अर्वस्था
भें ऩाश्चात्म एर्वॊ प्राच्म भें स्र्वतॊत्र रूऩ से आरोचना का आयॊ ब तथा वर्वकास होता यहा ऩयॊ तु कुछ
सभम फाद ऩाश्चात्म आरोचना का प्रबार्व हहॊदी आरोचना साहहत्म ऩय ऩड़ा औय धीये धीये अन्म
बायतीम बार्ाओॊ के आरोचना ऩय बी इसका प्रबार्व ऩड़ता गमा । असमभमा आरोचना साहहत्म बी
इससे अछूता न यह ऩामा । इस तयह ऩाश्चात्म के प्रबार्व से ऩयॊ तु सम्ऩूणव स्र्वतॊत्र रूऩ भें हहॊदी तथा
असमभमा आरोचना साहहत्म का वर्वकास होता गमा औय रगाताय हो यहा है । इसी क्रभ भें हभ प्रो॰
33
साहहत्म को हहॊदी साहहत्म के फह
ृ त्तय ऺेत्र भें प्रवर्वष्ट होने का भौका मभरा औय असभ के मशयोभणण
बी असभ के इन भहानब
ु र्वों की यचनाओॊ की आरोचना से सम्फद्ध
ृ हुआ ।
34
सॊदबव सूची:-
१. मभश्र, डॉ॰ याभप्रसाद, आरोचना की कुछ नई हदशाएॉ, प्रेभ प्रकाशन, 1977 , ऩष्ृ ठ
सॊख्मा 125
३. चतर्व
ु दे ी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फक
ू डडऩो-
४. चतुर्वेदी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फूक डडऩो-
७. चतुर्वेदी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फूक डडऩो-
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