You are on page 1of 32

थम अ याय

आरोचना एक सर्वेऺण

बमू भका :

प्रस्तत
ु शोध प्रफॊध को क्रभ दे ने के मरए सर्ववप्रथभ आरोचना मा सभारोचना ऩय

वर्वचाय कयना आर्वश्मक है । „आरोचना एक सर्वेऺण‟ शीर्वक से स्ऩष्ट है कक हभ महाॉ आरोचना

ऩय सर्वाांग रूऩ से ऩयॊ तु सॊक्षऺप्त रूऩ भें प्रकाश डारेंगे । आरोचना के अथव तथा स्र्वरूऩ, प्रकाय औय

ऩरयबार्ा ऩय वर्वचाय कय आरोचना के भभव तथा अर्वश्मकता को सभझने का प्रमास ककमा जाएगा

। इस अध्माम भें आरोचना के ऩाश्चात्म, हहॊदी तथा असमभमा ऩयॊ ऩया ऩय वर्वचाय ककमा गमा है ।

आरोचना का प्रायम्ब ऩाश्चात्म साहहत्म भें होने के फाद उसने ककस प्रकाय हहॊदी साहहत्म को

प्रबावर्वत ककमा उसऩय प्रकाश डारा गमा है । ककसी बी बार्ा भें यचचत साहहत्त्मक वर्वधा का प्रबार्व

अन्म बार्ा भें ऩड़े बफना नहीॊ यह सकता । उसी प्रकाय „आरोचना‟ जो एक साहहत्त्मक वर्वधा है

उसका प्रबार्व ऩाश्चात्म से प्राच्म औय कपय अन्म ऺेत्रीम बार्ाओॊ भें आकाय कैसे परते-पूरते

वर्वकामसत हुआ उस ऩय मथाशत्तत प्रकाश डारने का प्रमास ककमा गमा है । तमोंकक प्रस्तत
ु शोध

वर्वर्म असमभमा आरोचना साहहत्म ऩय आधारयत है इसमरए ऩाश्चात्म साहहत्त्मक वर्वधा

आरोचना का प्रबार्व ककस प्रकाय हहॊदी साहहत्म ऩय ऩड़ा औय कपय हहॊदी साहहत्म से ऺेत्रीम बार्ा

असमभमा भें आकय असमभमा साहहत्म के बॊडाय को ऩुष्ट ककमा उस ऩय वर्वशेर् रूऩ से प्रकाश डारा

गमा है ।

1.1 आरोचना का अथव औय स्र्वरूऩ :

आरोचना शब्द को अॊग्रेजी „Criticism‟ ( कक्रहटमसज़्भ) शब्द का ऩमावमर्वाची शब्द भाना

जाता है । इस शब्द की व्मत्ु ऩत्त्त „रच


ु ‟ धातु से हुई है , त्जसका अथव है दे खना । „रच
ु ‟ धातु भें

„ल्मुट‟ प्रत्मम जोड़ने ऩय „रोचन‟ शब्द फनता है , इसभें „आङ‟ उऩसगव जोड़ने ऩय „आरोचना‟

शब्द फना है । इस प्रकाय „आरोचना‟ शब्द की व्मत्ु ऩत्त्त हुई है । साहहत्म के ऺेत्र भें ककसी कृतत

मा यचना को सम्मक रूऩ से दे खना औय भूल्माॊकन कयना ही आरोचना है । साहहत्त्मक कृतत के

7
सर्वाांग मा साॊगोऩाॊग तनयीऺण मा वर्वश्रेर्ण के मरए आरोचना का प्रमोग ककमा जाता है । अॊग्रेजी

„कक्रहटमसज़्भ‟ (Criticism) शब्द के मरए हहॊदी भें „आरोचना‟ के अरार्वा औय दो शब्दों का प्रमोग

ककमा जाता हैं । र्वे हैं – सभारोचना औय सभीऺा ।

„सभारोचना‟ शब्द का अथव है सभ अथावत सम्मक रूऩ से दे खना, जानना, ऩहचानना मा

ऩयखना । अथावत साहहत्त्मक कृतत को प्रबार्व यहहत होकय व्माख्मा कयना, उसका भूल्माॊकन कयना

तथा उसके गुण-दोर्ों को हदखाना ही सभारोचना है ।

„सभीऺा‟ शब्द का अथव है सभ दृत्ष्ट से दे खना । सभ+ईऺा अथावत सम्मक दशवन कयना

औय उसके फाद सर्वाांग वर्वर्वेचन कयना ही सभीऺा है । ककसी र्वस्तु मा साहहत्त्मक कृतत को सम्मक

दृत्ष्ट से ऩमवर्वेऺण कयना ही सभीऺा कहराता है ।

इस प्रकाय आरोचना, सभारोचना, औय सभीऺा इन तीन शब्दों की अथव की व्माख्मा कयें

तो इनका अथव एक ही तनकरता है । साहहत्म के ऺेत्र भें साहहत्त्मक कृतत को तनष्ऩऺ दृत्ष्ट से

दे खकय उस ऩय वर्वचाय कय, उसके गुण-दोर्ों को उजागय कय स्र्वतॊत्र रूऩ से अऩना अमबभत व्मतत

कय ऩाठकों के सभऺ कृतत को यखना ही आरोचना, सभारोचना मा सभीऺा है ।

“ साहहत्त्मक आरोचना रेखक औय ऩाठक के फीच की शॊख


ृ रा है । मह साहहत्त्मक कृतत के

गुण-दोर्ों का तनणवम कय उसका भूल्माॊकन कयती है । मह केर्वर दोर् दशवन नहीॊ है , मह अऩने

व्माऩक सॊदबव भें भान का अर्वफोधन बी कयती है औय प्रसादन बी कयती है । मह कामव यचना के

सूक्ष्भ अध्ममन, सम्मक वर्वर्वेचन, गुण-दोर् के तनयऩेऺ आॊकरन औय श्रेष्ठता सॊफॊधी भूल्माॊकन

द्र्वाया ही सॊबर्व होता है । आरोचना कवर्व कभव की प्रत्मेक दृत्ष्टकोण से भूल्माॊकन कयके उसे

ऩाठकों के सम्भख
ु प्रस्तत
ु कयती है , ऩाठकों का रुचच ऩरयष्काय कयती है औय साहहत्म की गततवर्वचध

का तनधावयण कयती है ।”१

8
सभारोचना ऩय वर्वचाय कयते हुए प्रेभघन जी का कहना था “ सभारोचना का अथव है

व ककसी ऩुस्तक के मथाथव गुण दोर् का वर्वर्वेचन कयना ।”२


ऩऺऩात यहहत होकय न्मामऩूर्वक

आरोचना हभायी रुचच को ऩरयष्काय कयती है औय ककसी बी कृतत का आस्र्वाद रेने भें हभायी

सहामता कयती है । ककसी कृतत को ऩढ़कय हभाये भन भें तमा प्रबार्व ऩड़ता है , उसके प्रतत हभाया

वर्वचाय तमा होता है उसका वर्वश्रेर्ण कृतत को ऩढ़ने के उऩयाॊत उस कृतत का व्माख्मा वर्वश्रेर्ण

कय, उस ऩय अऩना भत व्मतत कय उसका भूल्माॊकन ककमा जाता है । मही आरोचना का कामव है ।

„अनुसॊधान औय आरोचना‟ ऩुस्तक भें इस ऩय वर्वचाय कयते हुए उल्रेख ककमा गमा है कक

आरोचना के अॊतगवत तीन कतवव्म कभव आते हैं – प्रबार्व ग्रहण, व्माख्मा वर्वश्रेर्ण औय भूल्माॊकन

अथर्वा तनणवम । आरोचना भूरत् कराकृतत द्र्वाया प्रभाता के रृदम भें उत्ऩन्न प्रबार्व को व्मतत

कयती है , अथावत वप्रम-अवप्रम प्रततकक्रमा को व्मतत कयती है । इसके उऩयाॊत र्वह प्रततकक्रमा की

वप्रमता अथर्वा अवप्रमता के कायणों का वर्वश्रेर्ण कयती है । सौन्दमवशास्त्र के अनुसाय रूऩ का,

भनोवर्वऻान के अनस
ु ाय स्रष्टा औय बार्वक की भानमसक ऩरयत्स्थततमों का औय सभाजशास्त्र के

अनुसाय दोनों की साभात्जक ऩरयत्स्थततमों का वर्वश्रेर्ण कय मह स्ऩष्ट कयती है कक कोई

कराकृतत बार्वक को वप्रम अथर्वा अवप्रम तमों रगती है । औय अॊत भें इन दोनों प्रकक्रमाओॊ के

आधाय ऩय उसका भूल्माॊकन ककमा जाता है । ककसी न ककसी रूऩ भें आरोचना इन तीनों कतवव्मों

का तनर्वावह कयती हैं ।

1.2 आरोचना के प्रकाय :

आरोचना को ऩाश्चात्म तथा प्राच्म के वर्वद्र्वानों ने कई बागों भें वर्वबात्जत ककमा हैं ।

इन्हीॊ वर्वबागों को प्रकाय के रूऩ भें हभ महाॉ सॊक्षऺप्त रूऩ भें वर्वर्वेचन कय उन ऩय प्रकाश डार यहे हैं ।

ऩाश्चात्म सभारोचना भें आरोचना की दो ऩद्धततमाॉ प्रचमरत है – सैद्धाॊततक आरोचना औय

व्मार्वहारयक आरोचना ।

हहॊदी आरोचकों ने आरोचना को तनम्न बागों भें वर्वबात्जत ककमा हैं –

9
सैद्धाॊततक आरोचना, आत्भप्रधान आरोचना, तनणवमात्भक आरोचना, व्माख्मात्भक

आरोचना, ऐततहामसक आरोचना, तुरनात्भक आरोचना, भनोर्वैऻातनक आरोचना, र्वैऻातनक

आरोचना, नई सभीऺा मा प्रगततर्वादी आरोचना ।

महाॉ ऩय सैद्धाॊततक आरोचना को छोड़कय अन्म सबी आरोचना के प्रकाय व्मार्वहारयक

आरोचना के अॊतगवत आते हैं । प्रस्तुत अध्माम भें ऩाश्चात्म तथा प्राच्म के सबी वर्वद्र्वानों के

द्र्वाया ककए गए बेदों को एकत्र रूऩ भें रेकय उनऩय प्रकाश डारा गमा हैं ।

क) सैद्धाॊततक आरोचना – आरोचना की एक वर्वमशष्ट ऩद्धतत है सैद्धाॊततक आरोचना । फहुत

सी एक सी कृततमों का अध्ममन कय जफ आरोचक आरोचना के भाऩदॊ ड के रूऩ भें ककन्हीॊ

साभान्म तनमभों का तनधावयण कयता है तफ उस आरोचना को सैद्धाॊततक आरोचना कहा

जाता है । डॉ॰ श्माभसुॊदय दास के अनुसाय, “ मही आरोचना का साभान्म औय चचयॊ तन

स्र्वरूऩ है । मह सभारोचना साभान्म मसद्धाॊतों की स्थाऩना कयता है । मह आरोचना एक

प्रकाय से आरोचना का शास्त्रीम ऩऺ है । हडसन ने मद्मवऩ सैद्धाॊततक आरोचना का र्वणवन

सभारोचना के एक स्र्वतॊत्र ऩद्धतत के रूऩ भें नहीॊ ककमा है । तथावऩ उसने इसके भहत्त्र्व

को ऩयोऺ रूऩ भें स्र्वीकाय ककमा है ।”३ सैद्धाॊततक आरोचना के दो ऩऺ होते है –

काव्मकृततमों के आधाय ऩय साभान्म मसद्धाॊतों की स्थाऩना औय साभान्म मसद्धाॊतों के

आधाय ऩय काव्मकृततमों की सभीऺा । सॊस्कृत काव्मशास्त्र औय रऺण ग्रॊथ इसी प्रकाय

की आरोचना को रेकय चरे थे ।

इस ऩद्धतत के आरोचक की रुचच ऩरयष्कृत यहती है , र्वे तनमभों के अनुसाय कामव कयती है ।

इसकी आरोचना की कसौटी तथा उसके तनधावरयत भानदॊ ड होते है । सभारोचना का

शास्त्रीम ऩऺ स्ऩष्ट यहता है । इस आरोचना ऩद्धतत भें उचचत तथा अनचु चत के वर्वर्वेक को

काफ़ी भहत्त्र्व हदमा जाता है ।

10
ख) तनणवमात्भक आरोचना – भान्म मसद्धाॊतों के आधाय ऩय जफ काव्म कृतत का

भूल्माॊकन हो तफ उसे तनणवमात्भक आरोचना कहा जाता है । तनणवमात्भक आरोचना

भें आरोचक ककसी बी आरोच्म कृतत ऩय वर्वचाय कय अऩना तनणवम दे ता है ।

सभारोचक न्मामाधीश के रूऩ भें प्रततत्ष्ठत होते है तमों कक र्वे तनणवम दे ते हैं ।

साहहत्मकाय मा कराकाय की भौमरकता मा प्रततबा ऩय वर्वचाय न कय शास्त्रीम तनमभों

को रागू ककमा गमा है कक नहीॊ उस ऩय वर्वचाय ककमा जाता है । डॉ॰ नगें द्र ने कहा है

“र्वास्तर्व भें व्माख्मा कयने के मरए, आश्र्वस्त कयने के मरए आरोचना की शास्त्रीम

ऩद्धतत का अर्वरॊफन अतनर्वामव है - आरोचना भें गाॊबीमव औय उत्तयदातमत्र्व इसी से

आता है ।”४ हडसन ने तनणवमात्भक आरोचना को वर्वशेर् भहत्त्र्वऩूणव भानते हुए कहा

है कक तनणवमात्भक आरोचक कुछ नैततक औय साहहत्त्मक मसद्धाॊतों को दृत्ष्ट भें

यखकय अऩना तनणवम हदमा कयते है ।

ग) आत्भप्रधान आरोचना - आत्भप्रधान आरोचना भें आरोचक वर्वर्म की वर्वर्वेचना भें

इतना डूफ जाता है कक वर्वर्म र्वस्तु की अऩेऺा अऩने बार्वों भें अचधक डूफा यह जाता है ।

औय उसकी आरोचना आरोचना की अऩेऺा साहहत्त्मक कृतत फन जाती है । इसभें

फुवद्ध से अचधक भहत्त्र्व बार्व को हदमा जाता है । इस प्रकाय की आरोचना भें

स्र्वच्छॊ दता का प्राधान्म यहता है । आरोचक अऩने रुचच के अनुकूर आरोच्म वर्वर्म

को तनर्वावचचत कयता है । अऩने ऩऺ को स्थावऩत कयने के मरए आरोचक तनॊदा मा

प्रशॊसा का सहाया रेता है । आरोचक अऩने वर्वचायों के अनुरूऩ कृतत के प्रतत अऩना

बार्व व्मतत कयता हैं । बार्व तथा कल्ऩना का सहाया रेकय आरोच्म कृतत को प्रस्तत

ककमा जाता है । त्स्ऩनगाय के अनुसाय, “ककसी कृतत को दे खकय त्जन बार्वों औय

प्रबार्वों की अनब
ु तू त होती है उन्हें उसी तयह से प्रकट कय दे ना प्रबार्वर्वादी सभीऺक का

कामव होता है ।” ( To have sensation in the presence of the work of art is to

express them. That is the function of a criticism for an impressionist critic.”)५

11
घ) व्माख्मात्भक आरोचना – व्माख्मात्भक आरोचना भें आरोचक तनमभों के फॊधनों से

भुतत होकय साहहत्त्मक कृतत की आरोचना कयता हैं । ककसी बी कृतत को उसके

र्वास्तवर्वक रूऩ भें तनयऩेऺ बार्व से दे खकय रेखक के अनब


ु र्व का उदघाटन कयना ही

आरोचक का कामव है । व्माख्मात्भक आरोचना भें आरोचक ऩूर्वावग्रह, बार्वुकता,

वर्वयोध, आसत्तत आहद से भत


ु त होकय आरोचना कयता है । कऩटता यहहत होकय

तनजी व्मत्ततत्र्व से ऩूणव व्मत्तत ही इस प्रकाय की आरोचना कय सकता है । व्माख्मा

कराकाय के बार्वरोक का कपय से सजवन कयती है औय आरोचना उस ऩय अऩना

तनणवम दे ती है । व्माख्मात्भक आरोचना भें आरोचक मसद्धाॊतों औय आदशों को

त्मागकय एक अन्र्वेर्क के रूऩ भें यचतमता के अॊतयात्भा भें सभा कय सरृदमताऩूर्वक


उसके आदशों, उद्देश्मों तथा वर्वशेर्ताओॊ की व्माख्मा औय वर्वर्वेचन कयता हैं । डॉ॰

श्माभसुॊदय दास ने साहहत्मारोचन भें व्माख्मात्भक आरोचना के सॊदबव भें मरखा है

“इसी व्माख्मा के फर ऩय हभ ककसी कृतत के भहत्त्र्व का तनणवम कय सकते है ।

बार्वभमी सभारोचना के मरए बी प्रस्तुत यचना का स्र्वरूऩ ऻान र्वाॊछनीम है जो कक

व्माख्मा से ही प्राप्त होता है ।”६

ङ) ऐततहामसक आरोचना – ऐततहामसक आरोचना भें आरोचक रेखक मा कवर्व ऩय ऩड़े

हुए फाह्म प्रबार्वों का वर्वश्रेर्ण कयता है । मह प्रबार्व प्राम: तत्कारीन याजनैततक,

साभात्जक, धामभवक, साॊस्कृततक आहद ऩरयत्स्थततमों का होता हैं । आरोचक वर्वर्वेचन

कय रेखक मा कवर्व का भूर स्रोत ऐततहामसक मा साभात्जक ऩरयत्स्थततमों भें खोजता

हैं । आचामव याभचन्द्र शत


ु र ने इस प्रकाय की आरोचना के भाध्मभ से सयू दास का

ऩरयचम दे ते हुए मरखा है – “जमदे र्व की दे र्वर्वाणी की त्स्नग्ध ऩीमूर्-धाया, जो कार की

कठोयता भें दफ गई थी, अर्वकाश ऩाते ही रोकबार्ा की सयसता भें ऩरयणत होकय

मभचथरा की अभयाइमों भें वर्वद्माऩतत के कोककर-कॊठ से प्रकट हुई औय आगे चरकय

ब्रज के कयीर-कॊु जों के फीच पैर भुयझाए भनों को सीॊचने रगी । (भ्रभयगीतसाय)2”७

12
च) तुरनात्भक आरोचना – र्वतवभान मुग भें तुरनात्भक आरोचना का भहत्त्र्व काफ़ी है

। इसके भाध्मभ से दो कवर्वमों मा रेखकों की वर्वशेर्तामों र्व वर्वचायों की तुरना कय

उनभें प्रकाश डारा जाता हैं । तर


ु ना सदे र्व दो सभान र्वस्तओ
ु ॊ के फीच ही होती है ,

इसमरए आरोचक को इस फात ऩय ध्मान यखना आर्वश्मक है कक र्वे त्जसकी

आरोचना कय यहे है र्वे हय दृत्ष्ट से सभान हो । इस प्रकाय की आरोचना भें केर्वर

ऐततहामसक दृत्ष्ट से ही नहीॊ अवऩतु वर्वचायों औय प्रकायों की दृत्ष्ट से बी तुरना की

जाती हैं । रेखक का वर्वमबन्न कार तथा दे शों के भानमसक एर्वॊ आध्मात्त्भक प्रगतत

का अर्वरोकन कय वर्वमबन्न साहहत्त्मक धायाओॊ का अध्ममन कयना अबीष्ट है ।

इसमरए आरोचक को फहुऻ होने के साथ ही इस फात ऩय ध्मान यखना है कक उनका

कतवव्म केर्वर र्वणवन, वर्वर्वेचन, औय वर्वश्रेर्ण हैं तनणवम दे ना नहीॊ । एक ही कवर्व के

कई ग्रन्थों के आधाय ऩय वर्वर्म की ऩयस्ऩरयक रूऩ भें तुरना हो सकती है अथर्वा एक

ही बार्ा के मा अन्म बार्ाओॊ के तद्वर्वर्मक कवर्वमों, रेखकों औय ग्रन्थों से वर्वर्म,

बार्व, बार्ा, शैरी आहद दृत्ष्टमों से तुरना हो सकती हैं । आरोचक महद ऩूणव र्वैऻातनक

दृत्ष्ट से अनासतत बार्व से दोनों ऩऺों की सभान रूऩ से वर्वर्वेचना कये तबी मह

आरोचना सपर मसद्ध होती है हहॊदी साहहत्म भें दे र्व औय बफहायी को रेकय जो

आरोचना हुए र्वह दरू


ु ह औय अनथवकायी मसद्ध हुए तमों कक आरोचकों ने व्मत्ततगत

रुचच को ज्मादा प्रधान्म हदमा ।

छ) भनोर्वैऻातनक आरोचना - भनोर्वैऻातनक आरोचना भें कवर्व मा रेखक के व्मत्ततगत

जीर्वन, स्र्वबार्व, चचॊतन, ऩरयत्स्थतत औय प्रबार्व आहद के आधाय ऩय कृतत का

अध्ममन-भूल्माॊकन ककमा जाता है । मह ऩद्धतत फीसर्वीॊ शती की दे न है । कुछ एक

काव्म मा साहहत्त्मक कृततमों की यचना का आधाय भनोर्वैऻातनक होता है , त्जसभें

कवर्व मा साहहत्मकाय अऩने ऩात्रों के भन को व्मतत कयने की चेष्टा कयता है । इसके

भाध्मभ से साहहत्त्मक कृतत के तनभावण भें तमा सभस्मा आमी थी उसके अध्ममन भें

13
वर्वशेर् सहामता मभरती है । कृतत के भाध्मभ से रेखक मा कवर्व अऩने ऩात्रों के भन के

बार्वों को अमबव्मतत कयता हैं । ऩयॊ तु आरोचक इस प्रकाय की आरोचना भें इतना

तल्रीन हो जाता है कक कबी-कबी कृतत की उऩेऺा हो जाती है ।

ज) गर्वेर्णात्भक मा र्वैऻातनक आरोचना – डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद चतुर्वेदी के अनुसाय जफ

आरोचक वर्वऻान के ऺेत्र भें प्रचमरत र्वगीकयण ऩय सभीऺा-मसद्धाॊतों को साहहत्म

सभीऺा की कसौटी फनाकय आरोचना कयता है , तफ उस आरोचना को र्वैऻातनक

आरोचना कहते है । मह आरोचना ऩद्धतत अचधकाॊशत: फौवद्धक होती है । हहॊदी के

अचधकाॊश शोध प्रफॊध इसी प्रणारी ऩय मरखे जा यहे हैं । मह आरोचना आजकर काफ़ी

सपर है औय रोकवप्रम बी है । इस प्रणारी की प्रकक्रमा कामव-कायण सॊफॊध ऩय केत्न्द्रत

है औय इसमरए इसकी शैरी मॊत्रर्वत हो जाती है । वर्वद्र्वानों का भानना है कक बार्वक


आरोचक मा ऩाठक के मरए मह शैरी मॊत्रर्वत औय तनष्प्राण प्रतीत होने रगती है ।

झ) प्रगततर्वादी आरोचना – आजकर के फदरते हुए ऩरयप्रेक्ष्म भें प्रगततर्वादी आरोचना

का भहत्त्र्व अनुभेम है । रूसी याज्मक्राॊतत के फाद कारवभातसव द्र्वाया प्रततऩाहदत

द्र्वॊद्र्वात्भक बौततकतार्वाद औय र्वगव सॊघर्व साहहत्म के भल्


ू माॊकन का आधाय फना औय

इसी से प्रगततर्वादी मा भातसवर्वादी आरोचना का प्रायम्ब हुआ । साहहत्म को र्वगव की

उऩज भानकय साभात्जक अर्वश्मकताओॊ के सहाये उसका भूल्माॊकन ककमा जाता है ।

इसभें र्वगव सॊघर्व के आदशव औय वर्वचाय धायाओॊ को भहत्त्र्व हदमा जाता है । सभाजर्वादी

आरोचक याजनीतत के दऩवण भें कृतत को दे खते है त्जस कायण साहहत्म की उऩेऺा हो

जाती है । प्रगततर्वादी आरोचना भें आरोचक काव्म मा अन्म साहहत्त्मक वर्वधा के

उऩमोचगता ऩऺ का उदघाटन कयता है औय प्रदशवन बार्वना को छोड़ धयातर ऩय यहकय

ही कृतत की आरोचना कयता है । महाॉ जनर्वादी तथा सभाज के उऩमोगी यचनाओॊ को

ही भहत्त्र्व हदमा जाता है , इससे मुर्वा र्वगव भें क्राॊतत की बार्वना जाग्रत होती है । महाॉ

सभाज औय साहहत्म का सॊफॊध स्ऩष्ट कय काल्ऩतनकता, ऩरामनर्वाहदता आहद

14
वर्वचायधायाओॊ का खॊडन ककमा जाता है । इसभें साम्मर्वादी दृत्ष्टकोण से सभाज भें

साहहत्म को प्रस्तुत कयने ऩय फर हदमा जाता है । श्री अभत


ृ याम ने सॊऺेऩ भें इस

आरोचना ऩद्धतत का स्र्वरूऩ स्ऩष्ट कयते हुए कहा है कक “ भातसवर्वादी आरोचना

साहहत्म र्वह सभाज शास्त्रीम आरोचना है , जो साहहत्म के ऐततहामसक तथा गततशीर

ऩऺ के सॊफॊध का उदघाटन कयती है ।”८ हहॊदी साहहत्म ऺेत्र भें प्रगततर्वादी आरोचकों भें

याभवर्वरास शभाव, प्रकाशचन्द्र गुप्त, अभत


ृ याम, मशर्वदानमसॊह चौहान उल्रेखनीम हैं ।

इस प्रकाय ऩाश्चात्म औय प्राच्म आरोचना साहहत्म अऩने वर्वमबन्न प्रकायों से ऩल्रवर्वत

होकय तनयॊ तय एक वर्वशार आरोचना साहहत्म का तनभावण कय यहा है ।

1.3 आरोचना की ऩरयबार्ा औय ऩयॊ ऩया :

आरोचना के स्र्वरूऩ को स्ऩष्ट रूऩ से जानने के मरए कई वर्वद्र्वानों ने अऩना अमबभत

व्मतत ककमा है । ऩाश्चात्म एर्वॊ बायतीम वर्वद्मानों ने करा औय साहहत्म के ऺेत्र भें आरोचना के

भहत्त्र्व का आकरन ककमा है तथा आरोचना को ऩरयबावर्त ककमा है । आरोचना मा सभीऺा के

फाये भें व्मतत वर्वचाय उनका तनजी अनब


ु र्व यहा है । करा तथा साहहत्म भनष्ु म के बार्व औय वर्वचाय

का ऺेत्र है । आरोचना के भाध्मभ से इन्हीॊ बार्वों औय वर्वचायों का आॊकरन ककमा जाता हैं ।

आरोचक भें बार्वों को सभझने की प्रततबा होनी चाहहए । आरोचना मा सभीऺा के तीन कतवव्म

(त्जनके फाये भें ऊऩय वर्वचाय ककमा जा चक


ु ा है ) प्रबार्व ग्रहण, व्माख्मा- वर्वश्रेर्ण औय भूल्माॊकन

अथर्वा तनणवम के आधाय ऩय आरोचकों ने आरोचना मा सभीऺा सॊफॊधी ऩरयबार्ा व्मतत ककए हैं ।

नीचे हभ इन ऩरयबार्ाओॊ ऩय वर्वचाय कयने जा यहे हैं साथ ही आरोचना की ऩाश्चात्म, बायतीम

औय असमभमा ऩयॊ ऩया ऩय बी प्रकाश डारने जा यहे हैं ।

1.3.1 आरोचना सॊफॊधी ऩाश्चात्म ऩरयबार्ा तथा ऩयॊ ऩया –

15
आरोचना मा सभारोचना का प्रायम्ब ऩाश्चात्म साहहत्म भें ही हुआ था । महाॉ ऩय हभ

आरोचना के सॊफॊध भें ऩाश्चात्म वर्वद्र्वानों के अमबभतों ऩय दृत्ष्टऩात कयने के साथ ही ऩाश्चात्म

साहहत्म भें आरोचना का प्रायम्ब कफ-कैसे हुआ उस ऩय प्रकाश डारेंगे । साथ ही उसके वर्वकास ऩय

बी आरोकऩात कयें गे ।

ऩाश्चात्म आरोचना की ऩरयबार्ा:

ऩाश्चात्म आरोचकों ने आरोचना को ककस प्रकाय ऩरयबावर्त ककमा है उसी ऩय हभ महाॉ नजय

डारने जा यहे हैं-

इन्साइतरोऩीडडमा बब्रटे तनका के अनुसाय “ आरोचना का अथव र्वस्तुओॊ के गुण दोर्ों की

ऩयख कयना है , चाहे र्वह ऩयख साहहत्म के ऺेत्र भें की गई हो मा रमरत करा के ऺेत्र भें । स्र्वरूऩ

तनणवम औय तनणवम की अमबव्मत्तत इसभें दोनों आ जाते हैं ।(Criticism is the art of judging the

qualities and values of an aesthetic object whether in literature or the fine arts. It involves

the formation and expression of judgment.)”९

आई .ए रयचडवस .ने भूल्म तनधावयण को ही आरोचना की प्रभुख वर्वशेर्ता भानते हुए कहा है

"आरोचना साहहत्त्मक अनुबूतत के वर्वचायोऩयान्त उनका सम्मक वर्वर्वेचन कयती है ।(To set up a

critic is to set up as a judgment of value.)” उनके अनुसाय आरोचक की तनमुत्तत कयना

तनणवमक की तनमत्ु तत कयना है ।”१०

र्वसवफ़ील्ड के अनस
ु ाय "आरोचना करा औय साहहत्म के ऺेत्र भें तनणवम की स्थाऩना कयता

है ।(Criticism is the exercise of judgment in the province of art and literature.)”११

भैथ्मू आनवल्ड ने आरोचना के भुख्म गुण तटस्थता के आधाय ऩय आरोचना को

ऩरयबावर्त कयते हुए कहा है “आरोचक तटस्थ होकय र्वस्तु के स्र्वरूऩ को जानने की रारसा से

आरोचना कयता है । अतएर्व आरोचना सॊसाय के सर्वोत्तभ वर्वचायों को व्मतत कयती है ।(The

16
criticism, real criticism is essentially exercise of this very quality (curiosity and
disinterested love of free play of mind).It obeys on instinct prompting to try to know the

best that is known and thought in the world.)”१२

कारावइर के अनुसाय “ आरोचना ऩुस्तक के प्रतत उदबूत आरोचक की भानमसक

प्रततकक्रमा का ऩरयणाभ है ।(Literary criticism is nothing and should be nothing but the

recital of one‟s personal adventures with a book.)”१३

एडडसन ने आरोचना के सॊदबव भें सभारोचक के धभव के फाये भें कहा है “सभारोचक का

धभव कराकायों का दोर् तनकारना नहीॊ हैं, फत्ल्क उनका कत्तवव्म है उनकी कृतत का सौंदमोदघाटन

कयना ।”१४

ड्राइडन के अनुसाय “ आरोचना र्वह कसौटी है त्जसकी सहामता से ककसी यचना का

भूल्माॊकन ककमा जाता है । र्वह उन वर्वशेर्ताओॊ का रेखा प्रस्तुत कयती है जो साधायण तथा ककसी

सॊभ्राॊत ऩाठक को आनॊद प्रदान कय सकें ।”१५

ऊऩय की ऩरयबार्ाओॊ को ऩढ़ने के ऩश्चात कह सकते है कक आरोचना के भाध्मभ से ककसी

कृतत का भूल्माॊकन कय सकते है तथा उस ऩय तनणवम प्रदान कय सकते है । ककसी साहहत्त्मक कृतत

को ऩढ़कय हभाये भन भें उस कृतत के प्रतत तमा वर्वचाय उत्ऩन्न होते है उसका प्रस्पुटन आरोचना

के भाध्मभ से होता है । आरोचक न केर्वर उस कृतत के गुण दोर् का आकॊरन कयता है फत्ल्क

उसकी वर्वशेर्ताओॊ की ओय हभायी दृत्ष्ट आकवर्वत कयती हैं । आरोचना एक ऐसा भाध्मभ है जो

साहहत्म औय ऩाठक के सॊफॊध को साभान्म बार्वबूमभ ऩय प्रततत्ष्ठत कयती है तथा साहहत्म को

सभझने भें भागव प्रदमशवत कयती है ।

ऩाश्चात्म आरोचना ऩयॊ ऩया –

आरोचना का प्रायम्ब साहहत्म सज


ृ न के उऩयाॊत हुआ है ऩयॊ तु कई फाय कराकाय यचना

कयने से ऩूर्वव अऩने भत्स्तष्क भें एक तनत्श्चत आदशव की कल्ऩना कय रेता है औय मरखते सभम

17
इसके अनुकूर फने यहने का प्रमत्न कयता है । इस तयह से दे खा जाए तो आरोचना का प्रायम्ब

तथा वर्वकाश साहहत्म सज


ृ न के साथ ही हुआ है । प्रकृतत के प्राॊगण भें जफ से भनुष्म ने मह अनुबर्व

ककमा है कक आज का भौसभ कर की अऩेऺा सॊद


ु य है अथर्वा अन्म ककसी अनब
ु र्व को प्राप्त ककमा है

तफ से आरोचना का उदम हुआ है । इस प्रकाय दे खा जाए तो आरोचना का इततहास अतीर्व प्राचीन

है औय ऩाश्चात्म जगत भें काव्मशास्त्र की ऩयॊ ऩया अतत सम्फद्ध


ृ है । महाॉ ऩाश्चात्म आरोचना

साहहत्म को तीन कार खॊडो भें वर्वबात्जत कय उन ऩय दृत्ष्टऩात कयना हभाये मरए सुवर्वधाजनक

होगा ।

सफसे ऩहरे वर्वचाय कयें गे ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म के प्राचीन कारखॊड ऩय । इस कार

की सभम सीभा भानी जाती है ई॰ ऩू॰ ऩाॉचर्वीॊ शती से चौथी शती तक । ऩाश्चात्म साहहत्म का भूर

प्राभाणणक उद्गभ ग्रीस मा मूनान भें हुआ था । ऩाश्चात्म आरोचना का प्राचीनतभ रूऩ होभय के

भहाकाव्म „इमरमड‟ औय „ओडेसी‟ भें ही दे खने को मभरता है । होभय के तनऩण


ु काव्मकृतत को

दे खकय मह अनुभान ककमा जाता है कक होभय के ऩूर्वव बी मूनान भें साहहत्म सज


ृ न होता यहा है

ऩयॊ तु होभय के ऩर्व


ू व की कृततमाॉ उऩरब्ध नहीॊ है । होभय के सभम भें बी अन्म साहहत्त्मक कृततमाॉ

यची गमी होंगी ऩयॊ तु र्वह अनुऩरब्ध है । साथ ही होभय के साहहत्म वर्वर्मक भान्मताओॊ मा

मसद्धाॊतों का बी कोई वर्वर्वयण स्र्वतॊत्र रूऩ भें उऩरब्ध नहीॊ होता तथा „इमरमड‟ औय „ओडेसी‟

भहाकाव्मों का तदमुगीन सभ्मता एर्वॊ सॊस्कृतत के ऩरयचम की दृत्ष्ट से ही असाधायण भहत्त्र्व

भाना जाता है । होभय का भानना था की काव्मकृतत का ध्मेम आनॊद प्रदान कयना होना चाहहए ।

होभय के उऩयाॊत हे मसमड, वऩॊडाय, गोत्जवमास औय एरयस्टोपेनीज़ आहद वर्वचायकों ने प्राचीन मूनानी

आरोचना साहहत्म को वर्वकमसत ककमा है ऩयॊ तु मूनान के प्राचीन चचन्तकों भें सुकयात का वर्वमशष्ट

स्थान है । सक
ु यात का सभम 469 ई॰ ऩ॰ू से 399 ई॰ ऩ॰ू तक भाना गमा है औय साहहत्म के ऺेत्र भें

सुकयात के भॊतव्मों को भूर आधाय के रूऩ भें ग्रहण ककमा गमा है । मद्मवऩ सुकयात ने ककसी कृतत

की यचना नहीॊ की है औय उनका उल्रेख बी नहीॊ मभरता है रेककन उनकी र्वैचारयक दृत्ष्टकोण का

सॊकेत उनके मशष्म तथा उनके ऩयर्वती वर्वचायकों भें अर्वश्म मभरता है । सुकयात ने नीतत, ऻान,

18
धभव, दशवन, याजनीतत आहद के सॊफॊध भें अऩने वर्वचाय व्मतत ककए हैं तथा मूनान भें नीततऩयक

आरोचना का श्रेम सुकयात को ही जाता है । महाॉ ध्मान दे ने मोग्म है कक सुकयात के ही मशष्म

प्रेटो को ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म का आहद प्रर्वतवक भाना जाता है ।

ऩाश्चात्म आरोचना का आहद आचामव प्रमसद्ध ग्रीक चचॊतक प्रेटो ( 427 ई॰ऩ॰ू –347 ई॰ऩ॰ू )

को भाना जाता है । उन्होंने प्रमसद्ध ग्रॊथ „रयऩत्ब्रक‟ भें „करा‟ के सॊफॊध भें अऩने वर्वचाय व्मतत

ककमा है । उनके द्र्वाया यचचत „रयऩत्ब्रक‟, „पेडयस‟ औय „इओन‟ भें उन्होंने आरोचना सॊफॊधी

अऩने वर्वचाय व्मतत ककए है । इनके भाध्मभ से उन्होंने काव्म की ऺभता को वर्वस्तारयत रूऩ भें

व्माख्मा की हैं ।

“The Ion is an early and simple preliminary to Plato‟s more elaborate attacks on
the illusionistic and emotive power of poetry (and of rhetoric) in the Republic, Phaedrus

and other mature dialogues.”१६

प्राचीन मूनान भें त्जस अनुकयणात्भक मसद्धान्त का प्रर्वतवन होभय ने ककमा था उसी का

सफर तुष्टीकयण प्रेटो ने ककमा था औय इसी मसद्धान्त को आधाय फनाकय उन्होंने वर्ववर्वध

वर्वर्मक वर्वचाय व्मतत ककमा है । प्रेटो ने काव्म का उद्देश्म केर्वर आनॊद प्रदान कयना ही नहीॊ

भाना है उनके अनुसाय साहहत्म का भूल्माॊकन सत्म ऩय आधारयत होना चाहहए ।

प्रेटो ने अऩने सभीऺा के भाध्मभ से भानर्व कल्माण की फात कही है - “ प्रेटो ने र्वस्तु

सत्म को अचधक भहत्त्र्व हदमा औय नैततक भल्


ू मों की प्रततष्ठा को भानर्व कल्माण के मरए

अतनर्वामव भाना ।”१७

मद्मवऩ प्रेटो के ऩश्चात आइसाॊक्रेटीज, ईत्स्कमरस, सोफ़ोतरोज औय मूयोऩाइडीज़ आहद

वर्वद्र्वानों ने मूनानी आरोचना साहहत्म को सम्ऩन्न ककमा ऩयॊ तु प्रेटो के ऩश्चात अयस्तू को ही

ग्रीक का अनन्म सभीऺक भाना जाने रगा । उनका सभम था 384 ई॰ ऩू॰ से 322 ई॰ ऩू॰ तक ।

उन्होंने काव्म के रूऩ औय तत्र्वों के तनधावयण भें भहत्त्र्वऩूणव मोगदान हदमा । अयस्तू ने करा को

19
भात्र अनुकृतत न भानते हुए उसके बावर्वत रूऩ का अनुकयण भाना है । उनकी दो कृतत क्रभश:

„ऩोएहटतस‟ एर्वॊ „ये टोरयतस‟ काव्मशास्त्र सॊफॊधी यचना हैं । अयस्तू ने अनुकयण तथा वर्वये चन

मसद्धान्त की स्थाऩना की हैं । उनके अनस


ु ाय ट्रे जेडी भें भानर्व बार्वनाओॊ का वर्वये चन होता है

इसमरए उनका भानना है कक साहहत्म भें द:ु खात नाटक का भहत्त्र्व है ।

अयस्तू के मशष्म चथमोक्रेस्टस ने अऩनी प्रमसद्ध कृतत „दी इॊटयवप्रटे शन‟ भें साहहत्म मसद्धाॊतों

को प्रस्तत
ु ककमा है ऩयॊ तु ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म भें अयस्तू के ऩश्चात रोंजाइनस को ही

मूनान का प्रभुख वर्वचायक भाना जाता है । रोंजाइनस ने „ऩेरयइप्सुस‟ की यचना की त्जसका

अनुर्वाद अॉग्रेजी भें „आॊन हद सब्राइभ‟ नाभ से हुआ है । उन्होंने साहहत्म भें उदत्त तत्र्व के

भहत्त्र्व का आॊकरन ककमा है ।

रोंजाइनस के ऩश्चात साहहत्म औय करा के चचॊतन का केंद्र मूनान से हटकय योभ की ओय

गमा औय धीये -धीये रेहटन आरोचना साहहत्म का वर्वकास होने रगा । मूनानी आरोचना का प्रबार्व

यहते हुए बी रेहटन आरोचना की आधाय-बमू भ उसके ऩहरे ही तैमाय हो चक


ु ी थी । रेहटन

आरोचना के वर्वकास भें मससयो, रुक्रेहटमस, फत्जवर, होये स, त्प्रनी, त्तरन्टीमरमन वर्वशेर् भाने

जाते हैं । इनभें होये स औय त्तरन्टीमरमन का ही आरोचना के ऺेत्र भें भहत्त्र्व हैं । होये स ने

साहहत्म यचना के मरए औचचत्म ऩय सर्वावचधक फर हदमा है औय उनके अनुसाय कृतत के यचना के

मरए कृततकाय को व्मार्वहारयक फुवद्ध से काभ रेना चाहहए । त्तरन्टीमरमन ने साहहत्मारोचन भें

शैरी को भहत्त्र्व हदमा है ऩयॊ तु ककसी भहत्त्र्वऩूणव मसद्धान्त की स्थाऩना नहीॊ की है ।

तत्ऩश्चात ई॰ चौथी शती से ऩॊद्रहर्वीॊ शती तक ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म का भध्मकार

आयॊ ब होता है । इस कार भें रेहटन आरोचना का भहत्त्र्व कभ होता गमा औय इॊग्रैंड भें नर्व-

जागयण मग
ु का आयॊ ब हुआ । इस मग
ु को साहहत्म आरोचना के ऺेत्र भें अॊधकाय का मग
ु भाना

जाता है । मद्मवऩ इस मुग भें फीडी, आरकुयण, याजय फेकन, दाॊते, रयचडव फयी, जाॊज वर्वत्तरप जैसे

कई आरोचक हुए रेककन इनभें दाॊते ही वर्वशेर् रूऩ से उल्रेखनीम है । इटरी का भहाकवर्व दाॊते ने

20
मूयोऩ भें साॊस्कृततक जागयण का शुबायॊ ब ककमा उन्होंने रेहटन बार्ा के स्थान ऩय इटरी के बार्ा

को साहहत्म सज
ृ न का भाध्मभ फनामा । उन्होंने „डडर्वाइन काभेडी‟ नाभक भहाकाव्म की यचना की

औय काव्म भें वर्वर्म र्वस्तु को भहत्त्र्व प्रदान कयते हुए प्रेभ तथा नैततक सौंदमव ऩय फर प्रदान

ककमा है । कान ग्राॊते डेरान स्कारा दाॊते के प्रमसद्ध आरोचनात्भक ऩत्र के सॊयऺक है , त्जसे दाॊते ने

उन्हें बेजा था औय उसी ऩत्र को बमू भका के रूऩ भें अऩने ऩस्
ु तक „ऩैयाडाइज़‟ भें प्रस्तत
ु ककमा है ।

सोरहर्वीॊ शती से आधतु नक ऩाश्चात्म आरोचना साहहत्म का आयॊ ब हुआ जो अफ तक चर

यहा है । इस मुग भें सय कपमरऩ मसडनी, फेन जानसन, ड्राइडन, जोसेप एडडसन, एरेतजेंडय ऩोऩ,

सेभुएर जानसन, गेटे, जेम्स हवर्वस्रय, एडगय एरन ऩो, र्वाल्टय ऩेटय, आतसय र्वाइल्ड, र्वर्डवसर्वथव,

कोररयज, टे न, भैथ्मू आनवल्ड, क्रोचे, आई॰ ए॰ रयचर्डवस, इवर्वांग फैफीट, भोये , एजया ऩाउॊ ड, फोदरेमय,

स्टे पन, टी॰ एस॰ इमरमट, टे ट, र्वाये न, भारयस गल्सव, ब्रेकभूय, ज्मा ऩर सात्र, अल्फटव काभू, फ़्ाॊज

काफ्का जैसे भहान आरोचक हभें मभरे । इन आरोचकों ने उत्तोयोत्तय ऩाश्चात्म आरोचना का

वर्वकाश ककमा औय कई प्रभुख मसद्धाॊतों की स्थाऩना की । र्वास्तर्व भें आधतु नक कारीन साहहत्म

आरोचना का स्र्वरूऩ मसडनी के „हद डडपेंस ऑप ऩोएट्री‟ भें दे खने को मभरती है । र्वे साहहत्म

सज
ृ न भें स्र्वतॊत्र प्रणारी के कट्टय सभथवक थे । मसडनी के फाद फेन जानसन का नाभ आता है ।

उन्होंने साहहत्म के वर्ववर्वध रूऩों ऩय अऩना वर्वचाय व्मतत कयते हुए साहहत्म के वर्ववर्वध ऩऺों का

सम्मक वर्वर्वेचन ककमा हैं । „हद ऩोएटास्टय‟, „कॊर्वसेशॊस‟ नाभक भें ग्रॊथो भें उन्होंने अऩने साहहत्म

सॊफॊधी बार्व व्मतत ककए हैं । याजकवर्व जॉन ड्राइडन अऩने सभम के भहान आरोचक थे । उन्होंने

„ऐसे ऑप ड्राभेहटक ऩोएट्री‟ भें अऩना आरोचनात्भक वर्वचाय व्मतत ककमा है । एडीसन तथा

एरेतजेंडय ऩोऩ ने अऩनी आरोचनात्भक प्रततबा का प्रकाशन अऩने गयन्थोन के भाध्मभ से ककमा

। ऩोऩ की „ऐसे ऑन कक्रहटमसजभ‟ वर्वश्र्व वर्वख्मात है । कपय अठायहर्वीॊ शती के सेभए


ु र जॉनसन ने

अऩने मुग भें साहहत्म आरोचना को नर्वीनता प्रदान की । प्रमसद्ध जभवन आरोचक गेटे का बी

साहहत्मारोचन के ऺेत्र भें भहत्त्र्वऩण


ू व मोगदान है । उन्नीसर्वीॊ शती भें क्रोचे जैसे भहान

सभारोचक, वर्वचायक साभने आए । उन्होंने अमबव्मॊजना फाद की स्थाऩना की । आऩ न केर्वर

21
करा के भीभाॊसक थे फत्ल्क गॊबीय तत्र्वर्वेत्ता दाशवतनक बी थे । आऩ ने अनेक वर्वर्मों भें नर्वीन

दृत्ष्टकोण से वर्वचाय प्रकट ककमा । „एस्थेहटक‟ उनका वर्वश्र्ववर्वख्मात ग्रॊथ है । आधतु नक ऩाश्चात्म

आरोचकों भें आई॰ ए॰ रयचर्डवस का स्थान अत्मॊत भहत्त्र्वऩण


ू व है । उनकी यचना „वप्रॊमसऩल्स ऑप

मरटये यी कक्रहटमसज़्भ‟ साहहत्म आरोचना के ऺेत्र भें भहत्त्र्वऩूणव कृतत है । उन्होंने सैद्धाॊततक आधाय

ऩय साहहत्म की आरोचना की है । कपय आता है फीसर्वीॊ शती के भहान आरोचक टी॰ एस॰ इमरमट

का नाभ । उनकी „ट्रे डडसन एॊड इॊडडवर्वजुमर‟ नाभक आरोचनात्भक कृतत फहुचचचवत है । इस

प्रकाय ऩाश्चात्म आरोचना का वर्वकास होता यहा औय ऩाश्चात्म आरोचना वर्वधा अन्म बार्ा के

साहहत्म को बी प्रबावर्वत कयती यही ।

1.3.2 आरोचना सम्फॊधी प्राच्म ऩरयबार्ा तथा ऩयॊ ऩया :

महाॉ ऩय हभ आरोचना के सॊफॊध भें प्राच्म के वर्वद्र्वानों के अमबभतों ऩय दृत्ष्टऩात कयने के

साथ ही हहॊदी साहहत्म भें आरोचना का प्रायम्ब कफ-कैसे हुआ उस ऩय प्रकाश डारेंगे । साथ ही

उसके वर्वकास ऩय बी आरोकऩात कयें गे ।

आरोचना सॊफॊधी प्राच्म वर्वद्र्वानों की ऩरयबार्ा:

आरोचना साहहत्म ऩय हहॊदी साहहत्म के कई वर्वद्र्वानों ने अमबभत व्मतत ककमा हैं । इन

वर्वद्र्वानों भें से कुछ एक के वर्वचायों का ही उल्रेख महाॉ ककमा गमा है ।

हहॊदी आरोचक डॉ॰ श्माभसुॊदय दास ने आरोचना के स्र्वरूऩ को स्ऩष्ट कयते हुए मरखा है

“साहहत्म ऺेत्र भें ग्रॊथ को ऩढ़कय उसके गुणों औय दोर्ों का वर्वर्वेचन कयना औय उसके सॊफॊध भें

अऩना भत प्रकट कयना आरोचना कहराता है । .......... महद हभ साहहत्म को जीर्वन की व्माख्मा

भाने तो आरोचना को व्माख्मा की व्माख्मा भानना ऩड़ेगा ।”१८

आचामव गुराफ याम ने आरोचना के कामव औय प्रबार्व का वर्वर्वेचन कयते हुए कहा है

“आरोचना का भख्
ु म उद्देश्म कवर्व की कृतत का सबी दृत्ष्टकोणों से आस्र्वाद कयना औय ऩाठकों को

22
उस प्रकाय के आस्र्वाद भें सहामता दे ना तथा उसकी रुचच का ऩरयभाजवन कयना एर्वॊ साहहत्म की

गततवर्वचध तनधावरयत कयने भें मोग दे ना है ।”१९

आरोचना तथा आरोचक ऩय वर्वचाय कयते हुए डॉ॰ ततर्वायी ने कहा है , “करा औय साहहत्म

के भल्
ू माॊकन का प्रमत्न ही सभीऺा मा आरोचना है औय आरोचक र्वह व्मत्तत है त्जसभें

कराकृततमों के उचचत भूल्माॊकन की मोग्मता हो ।”२०

सभीऺा की एक अत्मॊत सटीक ऩरयबार्ा डॉ॰ दे र्वयाज ने दी है । उन्होंने आरोचना के फाये भें

कहा है, “आरोचना ककसी कराकृतत भें तनफद्ध अनुबूतत के वर्वश्रेर्ण, व्माख्मा औय भूल्माॊकन का

प्रमत्न है ।”२१

इस तयह वर्वमबन्न वर्वद्र्वानों ने हहॊदी आरोचना को ऩरयबावर्त ककमा है ।

बायतीम(हहॊदी) आरोचना की ऩयॊ ऩया –

हहॊदी आरोचना का र्वास्तवर्वक रूऩ भें प्रायम्ब आधतु नक कार भें ही हुआ ऩयॊ तु इसका

प्रायम्ब सॊस्कृत काव्मशास्त्र से जोड़ा जा सकता है । प्राच्म सभारोचना ने ऩाश्चात्म सभारोचना

का ककॊचचत अनक
ु यण कयने ऩय बी अऩना स्र्वतॊत्र सत्ता फनाए यखा है । बायतीम आरोचना की

ऩयॊ ऩया का प्रायम्ब सॊस्कृत साहहत्म से हुआ । बयतभुतन द्र्वाया यचचत „नाट्मशास्त्र‟ से इस ऩयॊ ऩया

का प्रायम्ब हुआ । सॊस्कृत साहहत्म भें बयतभुतन द्र्वाया यचचत „नाट्मशास्त्र‟ ही प्रायत्म्बक

काव्मशास्त्र है त्जसभें नाट्म के वर्वमबन्न तत्र्व, त्जसकी भूर वर्वर्म र्वस्तु अमबनम थी औय

प्रधानत यस ऩय वर्वचाय ककमा गमा है । यस अमबनम का भुख्म अॊग है । इसी ऩय वर्वस्तत


ृ आरोचना

नाट्मशास्त्र भें ककमा गमा है । यस के बार्व वर्वर्मक आरोचना से ही सॊस्कृत (बायतीम) साहहत्म भें

आरोचना की धाया का प्रायम्ब हुआ । तत्ऩश्चात बाभह द्र्वाया काव्मारॊकाय की यचना की गई ।

आचामव दण्डी ने काव्मादशव की यचना की औय आचामव जगन्नाथ ने यस गॊगाधय यचा । वर्वश्र्वनाथ

ने साहहत्म दऩवण की यचना की । इन सबी काव्मग्रन्थों (सॊस्कृत साहहत्म भें काव्म से तात्ऩमव गद्म

23
औय ऩद्म रूऩ भें यचचत सत्ृ ष्ट भूरक यचना है ) भें अरॊकाय औय यस ऩय वर्वर्वेचना की गमी हैं ।

काव्म के रऺण, काव्म ककसे कहते है, काव्म के प्रकाय, काव्म भें अरॊकाय की प्रधानता, यस की

प्रधानता, ध्र्वतन, औचचत्म की प्रधानता आहद ऩय वर्वचाय ककमा गमा हैं । तत्ऩश्चात बत्ततकार का

सभम आता है । इस कार भें कवर्वमों की ऩरयचमात्भक यचनाएॉ साभने आमी । इनभें उल्रेखनीम

है दो सौ फार्वन र्वैष्णर्वन की र्वाताव, फार्वन र्वैष्णर्वन की र्वाताव आहद । सयू दास की साहहत्म रहयी,

नन्ददास की यस भॊजयी र्व वर्वयह भॊजयी, ध्रर्व


ु दास की यस हीयार्वरी, कृऩायाभ की हहततयॊ चगणी,

यहीभ की फयर्वै नातमका बेद आहद ग्रन्थों भें प्रततऩाद्म का चचत्रण ककमा गमा हैं न कक मसद्धाॊत

वर्वर्वेचन । अऩने इष्ट दे र्वताओॊ के रीराओॊ का गान कयना ही इनका भुख्म उद्देश्म यहा है रेककन

इनभें बी थोड़ी सी आरोचना की झरक मभरती है ।

यीततकार भें सॊस्कृत काव्मशास्त्रीम ऩयॊ ऩया का तनर्वावह ककमा गमा । केशर्वदास द्र्वाया

यचचत कवर्ववप्रमा औय यमसकवप्रमा से इसका प्रायम्ब होता हैं । ऩयॊ तु काव्मशास्त्रीम दृत्ष्ट से इनका

इतना भहत्त्र्व नहीॊ है । चचॊताभणण द्र्वाया यचचत कवर्वकुरकल्ऩतरु , कुरऩतत का यस यहस्म, दे र्व

का बार्व वर्वरास, काव्म यसादन, श्रीऩतत का काव्म सयोज, सोभनाथ का यस ऩीमस


ू तनचध, मबखायी

दास का यस-सायाॊश, शॊग


ृ ाय तनणवम, ऩद्माकय का जगदवर्वनोद ऐसे ग्रॊथ हैं त्जनभें काव्म भें यस,

अरॊकाय, छॊ द आहद का र्वणवन ककमा गमा हैं । ऩयॊ तु इन सबी भें सॊस्कृत काव्मशास्त्रीम ऩयॊ ऩया की

झरक मभरती हैं ।

हहॊदी साहहत्म भें आरोचना की र्वास्तवर्वक ऩयॊ ऩया का प्रायम्ब आधतु नक कार भें हुआ है ।

बायतेन्द ु मुग भें ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ के भाध्मभ से सभारोचना का प्रायम्ब हुआ । बायतेन्द ु जी स्र्वमॊ

„कवर्व र्वचन सध
ु ा‟ औय „हरयश्चॊद्र भैगज़ीन‟ भें कुछ सभारोचनात्भक रेख छाऩते यहते थे । इस

मुग की आरोचनाएॉ ऩुस्तकों के ऩरयचम के रूऩ भें ही थीॊ । ऩुस्तक-ऩरयचम, उऩदे शात्भकता तथा

नोटों के रूऩ भें कुछ सभीऺात्भक तनफॊध इस मग


ु भें प्रकामशत होते यहें हैं । बायतेन्द ु जी ने बी

„भुद्रायाऺस‟ की बूमभका भें एक सभारोचनात्भक नोट मरखा था । इस मुग भें ऩॊडडत फारकृष्ण

24
बट्ट जी ने „हहॊदी प्रदीऩ‟ भें „साहहत्म जनसभूह के रृदम का वर्वकास है ‟ (जुराई, 1881) शीर्वक रेख

मरख कय इस ऩयॊ ऩया को आगे फढ़ामा । उन्होंने साहहत्म को इस रूऩ भें ऩरयबावर्त ककमा था

“साहहत्म महद जनसभह


ू के चचत्त का चचत्रऩट कहा जाए तो सॊगत है, ककसी दे श का इततहास ऩढ़ने

से केर्वर हभ उस दे श का फाहयी हार जान सकते है ऩय साहहत्म के अनुशीरन से कौभ के सभम-

सभम के आभ्माॊतरयक बार्व ऩरयस्पुट हो सकते हैं ।”२२ इस तयह बायतेन्द ु मग


ु भें हहॊदी आरोचना

का रगाताय वर्वकास होता यहा त्जसका नर्वीन रूऩ भहार्वीय प्रसाद द्वर्वर्वेदी जी के सभम दे खने को

मभरता है । द्वर्वर्वेदी मुग का प्रायम्ब सन 1900 ई॰ भें सयस्र्वती ऩबत्रका के प्रकाशन के भाध्मभ से

हुआ । इस मुग की अचधकाॊश यचनाएॉ गुण-दोर्-कथन प्रणारी ऩय आधारयत हैं । उन्होंने सॊस्कृत के

काव्मशास्त्र को ही कवर्व की कसौटी भाना औय सभारोचना के मरए नैततकतार्वादी आदशव की

स्थाऩना की । “द्वर्वर्वेदी जी ने गण
ु दोर् वर्वर्वेचन की ऩरयचमात्भक शैरी को अऩनामा था, त्जसभें

र्वे तकव के साथ कबी कबी कटाऺ औय व्मॊग बी कयते थे ।”२३ द्वर्वर्वेदी जी ने काव्म के प्रत्मेक ऺेत्र

भें सध
ु ायर्वादी दृत्ष्टकोण की स्थाऩना की है । आऩने सैद्धाॊततक औय व्माख्मात्भक दोनों प्रकाय की

आरोचनाओॊ का वर्वकास ककमा । आचामव भहार्वीय प्रसाद द्वर्वर्वेदी ने „सयस्र्वती‟ ऩबत्रका भें

„ऩस्
ु तक-ऩयीऺा‟ नाभ से एक स्तम्ब यखा औय उस स्तम्ब भें स्र्वमॊ ऩस्
ु तकों की सभीऺा मरखी ।

इस मुग के प्रभुख आरोचक यहे - ऩॊडडत फारकृष्ण बट्ट, मभश्रफॊधु तथा ऩद्ममसॊह शभाव । मभश्रफॊधु भें

सैद्धाॊततक औय तनणवमात्भक दोनों ही ऩद्धततमों का ऩरयदशवन होता हैं । „हहॊदी नर्वयत्न‟ औय

„मभश्रफॊधु वर्वनोद‟ इनकी प्रभुख आरोचनात्भक कृततमाॉ हैं । ऩॊडडत ऩदभमसॊह शभाव ने तुरनात्भक

आरोचना प्रणारी औय प्रबार्वर्वादी आरोचना को अऩनामा । „बफहायी की सतसई‟ इनकी प्रभुख

यचना है । प्रबार्वर्वादी तथा काव्मात्भक आरोचना का श्रेष्ट तनदशवन शभाव जी के आरोचना भें

दे खने को मभरता है । उदाहयणस्र्वरूऩ „ऩय र्वाह बफहायीरार, धन्म तुम्हायी प्रततबा ! त्जहह प्रततबा

औय कछू जेहह फस होत सज


ु ान फात कहीॊ है । ऩय दे णखए तो आरभ ही तनयारा है तमा तान-कय

शब्द-बेदी तीय भाया है , रुटा ही हदमा ।‟ द्वर्वर्वेदी मुग के सभाप्त होते-होते सैद्धाॊततक आरोचना

धीये -धीये वर्वश्रेर्ण औय तथ्म-तनरूऩण की औय अग्रसय होने रगी औय आरोचना साहहत्म

25
वर्वकासोन्भुख होता गमा । तत्ऩश्चात शुतर मुग का आयॊ ब हुआ औय आचामव याभचन्द्र शुतर ने

हहॊदी आरोचना ऩयॊ ऩया को वर्वकास के मशखय तक ऩहुॉचामा । उनके मुग भें फाफू श्माभसुॊदय दास,

आचामव गर
ु ाफ याम, वर्वश्र्वनाथ प्रसाद मभश्र, डॉ॰ सत्मेंद्र जैसे आरोचक हुए त्जन्होंने हहॊदी

आरोचना के ऺेत्र भें भहत्त्र्वऩूणव मोगदान हदमा । कपय स्र्वच्छॊ दतार्वादी आरोचना की शुरुर्वात हुई

। आचामव हजायी प्रसाद द्वर्वर्वेदी, डॉ॰नगें द्र, आचामव नन्ददर


ु ाये र्वाजऩेमी इस मग
ु के भहत्त्र्वऩण
ू व

आरोचक यहें । प्रगततर्वादी आरोचकों भें डॉ॰ याभवर्वरास शभाव, मशर्वदानमसॊह चौहान का मोगदान

काफ़ी उल्रेखनीम हैं । नमी सभीऺा ऩद्धतत का वर्वकास हुआ नमी यचनाओॊ की सॊर्वेदना औय उसके

सौंदमव के ऩयख के मरए । अऻेम, भुत्ततफोध, वर्वजम दे र्व नायामण शाही, नमरन वर्वरोचन शभाव, डॉ॰

नाभर्वय मसॊह ने नमी सभीऺा ऩद्धतत के जरयए नूतन साहहत्त्मक कृततमों की आरोचना की औय

काव्म तथा साहहत्म के ऺेत्र भें नमी हदशा का तनदे श ककमा । इस तयह हहॊदी साहहत्म आरोचना का

बॊडाय रगाताय ऩुष्ट हो यहा है औय उत्तोयोत्तोय वर्वकमसत हो यही हैं ।

1.3.3 असमभमा आरोचना की ऩरयबार्ा तथा ऩयॊ ऩया –

सभारोचना की असमभमा ऩरयबार्ा – महाॉ ऩय हभ आरोचना के सॊफॊध भें असमभमा बार्ा

के वर्वद्र्वानों के अमबभतों ऩय दृत्ष्टऩात कयने के साथ ही असमभमा साहहत्म भें आरोचना का

प्रायम्ब कफ-कैसे हुआ उस ऩय प्रकाश डारेंगे । साथ ही उसके वर्वकास ऩय बी आरोकऩात ककमा

जाएगा ।

सभारोचना को ऩरयबावर्त कयते हुए कई असमभमा वर्वद्र्वानों ने अऩने अमबभत व्मतत

ककए हैं । इन्हीॊ वर्वद्र्वानों भें कुछ एक वर्वद्र्वानों के अमबभत ऩय महाॉ प्रकाश डारा जामेगा ।

डॉ॰ बफरयत्चच कुभाय फरुआ ने आरोचना की वर्वमशष्टता औय साहहत्म तथा सभारोचना को

एक दस
ू ये का ऩरयऩूयक फताते हुए कहा है “ सभारोचना एक ओय से साहहत्म का अनुगाभी है तो

दस
ू यी दृत्ष्ट से उसका ऩूर्वग
व ाभी बी है । एक ऩुष्ट तथा र्वैचचत्र ऩूणव साहहत्म की सत्ृ ष्ट के बफना

26
सभारोचना बी आगे नहीॊ फड़ सकती है; औय सभारोचना ही साहहत्म को हदशा तनदे श कय

साहहत्म की सत्ृ ष्ट की ओय अग्रसारयत कयती हैं ।”२४

डॉ॰ भहे श्र्वय नेओग ने सभारोचना ऩय हटप्ऩण कयते हुए कहा है “ साहहत्म सभारोचना

असमभमा साहहत्म भें ऩाश्चात्म के दान स्र्वरूऩ आमा है । अॊग्रेजी योभाॊहटक साहहत्म भें सभारोचना

एक वर्वमशष्ट अॊग के रूऩ भें ऩरयगणणत हुई थी ।”२५

सभारोचना की असमभमा ऩयॊ ऩया :

प्राचीन असमभमा साहहत्म आरोचना के ऺेत्र भें उतना सम्फद्ध


ृ नहीॊ था । साहहत्म की सत्ृ ष्ट

धभव की चचाव एर्वॊ काव्म यसास्र्वादन हे तु ककमा जाता था । ऩयॊ तु सभम के साथ साथ आरोचना का

भहत्त्र्व रोगों को सभझ भें आने रगा औय आरोचना साहहत्म का वर्वकाश होने रगा ।

असमभमा आरोचना का प्रायम्ब अरुणोदोई मग


ु भें हुआ । अरुणोदोई ऩबत्रका (सन1846-

1880) ही असमभमा की ऩहरी आरोचनात्भक ऩबत्रका है त्जसभें आरोचनात्भक दो-एक

ऩरयचमसच
ू क रेख प्रकामशत हुए थे । ऩयॊ तु इस मग
ु भें प्रकृत आरोचना का प्रायम्ब नहीॊ हुआ था ।

इस मुग भें प्रभुखत बार्ा सॊफॊधी सभारोचना को ही प्रधानता मभरी थी । आनॊदयाभ ढे कीमार

पुकन, ब्रन्सन, ब्राउन, पायर्वेर, यबफन्सन, हे भचन्द्र फरुआ, गन


ु ामबयाभ फरुआ ने इस ऺेत्र भें

भहत्त्र्वऩूणव बूमभका तनबामी थी । इस भामसक ऩबत्रका को प्रकामशत कयने भें ईसाई मभसनरयमों का

काफ़ी भहत्त्र्वऩूणव मोगदान था । इस ऩबत्रका को प्रभुखत: ईसाई धभव के प्रचाय कयने हे तु प्रकामशत

ककमा गमा था ऩयॊ तु इसभें अनुर्वाद, धभव, असभ का इततहास, कवर्वता, जीर्वनी, कहानी, दो एक

ऩरयचम सूचक आरोचनात्भक रेख आहद प्रकामशत हुए । सन 1855 भें आनॊदयाभ ढे ककमार पुकन

ने अॊग्रेजी भें एक ऩत्ु स्तका तनकारी त्जसभें असमभमा बार्ा की स्र्वतॊत्रता, फाॊग्रा बार्ा को

असमभमा बार्ा ऩय थोऩ दे ने का नतीजा आहद ऩय आरोचना की गई हैं । „A Few Remarks on

Assamese Language‟ नाभक इस ऩत्ु स्तका का आरोचना के ऺेत्र भें काफ़ी भहत्त्र्व यहा है । इस

मुग भें अरुणोदोई के साथ आसाभ वर्वरामसनी (1871-83) , आसाभ मभहहय (1872-73) , आसाभ

27
दऩवण (1874-75 ), आसाभ फॊधु (1885-86) नाभक ऩबत्रकाएॉ तनकरी रेककन असमभमा आरोचना

साहहत्म के ऺेत्र भें इनका कोई खास मोगदान नहीॊ था । हे भचन्द्र फरुआ, गुनामबयाभ फरुआ,

रॊफोदय फोया, बोरानाथ दास, सत्मानाथ फोया आहद जैसे रेखकों का असमभमा गद्म-ऩद्म

साहहत्म औय वर्वशेर् कय बार्ा साहहत्म भें काफ़ी भहत्त्र्वऩूणव मोगदान यहा ऩयॊ तु असमभमा

आरोचना साहहत्म भें कोई वर्वशेर् मोगदान नहीॊ यहा ।

“Literary criticism was not known in Assamese till the impact of the west. This critical
literature as a type was first begun in the pages of the Arunoday and is continued later on
by other journals. But the early criticism were mere catalogues of the merits and defects

of men and books.”२६

तत्ऩश्चात यभनन्मास मुग(1889-1940) का प्रायम्ब हुआ । गुनामबयाभ फरुआ द्र्वाया

सॊऩाहदत „आसाभ फॊध‟ु ऩबत्रका भें यभन्मासर्वाद का ऩहरा आबास मभरा । इसी मुग भें असमभमा

आरोचना साहहत्म का वर्वकास हुआ । इस मुग भें चॊद्रकुभाय अगयर्वारा द्र्वाया सॊऩाहदत

„जोनाकी‟(1889) नाभक भामसक ऩबत्रका प्रकामशत हुई जो „असमभमा बार्ा उन्नतत साचधनी

सबा‟ का भख
ु ऩत्र था । इसी ऩबत्रका के भाध्मभ से कई असमभमा मर्व
ु ा रेखक ने आत्भप्रकाश ककमा

। इस ऩबत्रका भें „कृऩार्वय फरुआ‟ चरयत्र की सभारोचना प्रकामशत हुई थी । इसमरए इस मुग को

जोनाकी मग
ु बी कहा जाता है । बफजर
ु ी(1890) नाभक ऩबत्रका ने बी काफ़ी मोगदान हदमा । इस

मुग भें रक्ष्भीनाथ फेज़फरुआ, यघुनाथ चौधायी, चन्द्र कुभाय अगयर्वारा, हे भचन्द्र गोस्र्वाभी,

यजनीकान्त फोयदोरोई, सत्मनाथ फोया, कारीयाभ भेधी, ऩद्मनाथ गोहाईं फरुआ, कभरकान्त

बट्टाचामव जैसे रेखक हुए त्जन्होंने असमभमा साहहत्म को नमा आमाभ हदमा । सत्मनाथ फोया

(1860-1925) ने सायथी, चचॊताकरी, साहहत्म वर्वचाय जैसी बार्व चचॊतन मुतत यचना यची । इनके

द्र्वाया यचचत „साहहत्म वर्वचाय‟ को ही असमभमा आरोचना साहहत्म का ऩहरा शुद्ध आरोचनात्भक

कृतत भाना जाता है । “ The first noteworthy treatise on pure literary criticism was,

however, „Sahitya vichar‟ by Satyanath Borah in which both Indian and English methods

of literary assessment were briefly described”२७

28
इस कार भें ही असमभमा सभारोचना साहहत्म का वर्वकाश हुआ औय सभारोचना

साहहत्म के वर्वकाश भें भहत्त्र्वऩूणव बूमभका तनबाई रक्ष्भीनाथ फेज़फरुआ ने । ऩाश्चात्म साहहत्म

का अध्ममन कय इनके आरोचनात्भक व्मत्ततत्र्व को नमी दृत्ष्ट मभरी । “ इसी कार भें प्रफॊध

साहहत्म, व्मॊग यचना औय सभारोचना साहहत्म का उद्भर्व औय वर्वकाश ध्मान दे ने मोग्म है ।

................. सभारोचना के वर्वकाश भें अग्रगनी बमू भका तनबाई रक्ष्भीनाथ फेजफारूआ ने ।”२८

इन्होंने सभ-साभतमक ऩबत्रका „फाही‟ भें „काहूदी औय खायरी‟ शीर्वक सभारोचनात्भक

हटप्ऩणी प्रकामशत की तथा साहहत्म एर्वॊ सभाज सॊफॊधी अनेक सभारोचनात्भक प्रफॊध प्रकामशत

की त्जन्होंने उनके साहहत्म के बॊडाय को ऩुष्ट ककमा । „जोनाकी‟ औय „फाही‟ ऩबत्रका के भाध्मभ से

उन्होंने सभारोचना की एक नमी यीतत प्रततत्ष्ठत की थी । फेज़फरुआ जी ने असभ के भहाभणण,

र्वैष्णर्व धभव के प्रचायक शॊकयदे र्व ऩय आरोचनात्भक ऩुस्तक मरखी जो असमभमा साहहत्म के मरए

स्तम्ब स्र्वरूऩ खड़ी हुई । मह ऩस्


ु तक आधतु नक असमभमा साहहत्म का ऩहरा सभारोचनात्भक

ग्रॊथ के रूऩ भें ऩरयचचत है ।

जोनाकी मुग भें रम्फोदय फोया, हे भचन्द्र गोस्र्वाभी, ऩद्मनाथ गोहाईंफरुर्वा ने सभारोचना

साहहत्म के वर्वकास भें काफ़ी मोगदान हदमा । असमभमा आरोचना के वर्वकास भें सत्मनाथ फोया,

कामरयाभ भेधी, दे र्वानन्द बोयारी, डॉ॰ सूमक


व ु भाय बुईमा, डॉ॰ र्वाणणकाॊत काकती, डडॊफेश्र्वय नेओग,

यत्नकान्त फोयकाकती आहद का नाभ उल्रेखनीम हैं । इन आरोचकों ने असमभमा आरोचना

साहहत्म के वर्वकास भें भहत्त्र्वऩूणव मोगदान हदमा ।

दे र्वेन्द्रनाथ फेजफरुआ द्र्वाया यचचत „असमभमा साहहत्मोय फुयोंजी‟(1912) भें मद्मवऩ सूक्ष्भ

आरोचना का अबार्व है कपय बी मह असमभमा की ऩहरी ऐसी यचना है त्जसभें असमभमा साहहत्म

एर्वॊ साहहत्मकायों का ऩरयचम मभरता है । हे भचन्द्र गोस्र्वाभी के „असमभमा साहहत्मय

चानेकी‟(1923-29) के प्राक कथन भें बी असमभमा साहहत्म के वर्वर्म भें काफ़ी जानकायी मभरती

है । इनके द्र्वाया ही अॊग्रेजी भें यचचत „A Descriptive Catalogue of Assamese

29
Manuscripts‟(1930) भें प्राचीन असमभमा साहहत्म के सबी रेखकों औय यचनाओॊ का ऩरयचम

मभरता हैं । डडॊफेश्र्वय नेऔग(1899-1967) ने इस ऺेत्र भें काफ़ी उल्रेखनीम अर्वदान हदमा है ।

उनके द्र्वाया यचचत „आधतु नक असमभमा साहहत्मय फयु ॊ जी‟(1936), „असमभमा साहहत्मय फयु ॊ त्जत

बूभुकी‟(1940), „असमभमा साहहत्मय फुयॊजी‟(1956) भें असमभमा बार्ा–साहहत्म के उद्भर्व, वर्वकास

एर्वॊ अन्म ऺेत्रों ऩय वर्वस्ताय से आरोचना की गमी हैं । „असमभमा साहहत्मय त्जमरकोणी‟(1939),

„असमभमा साहहत्मय जेमोतत‟(1952) औय उनके द्र्वाया यचचत कई तनफॊधों भें असमभमा साहहत्म

ऩय आरोचना की गमी हैं । उनके वर्वचायों का प्रस्पुटन उनके यचनाओॊ भें हुआ है । उन्होंने प्रभुखत

साहहत्म के सौंदमव उदघाटन भें भनोतनर्वेश ककमा था । र्वैष्णर्व साहहत्म से रेकय आधतु नक मुग के

कई रेखक एर्वॊ कवर्व तथा उनके साहहत्म का वर्वचाय-वर्वश्रेर्ण उन्होंने ककमा है ।

आधतु नक असमभमा साहहत्म के श्रेष्ठ आरोचक यहे हैं डॉ॰ र्वाणणकाॊत काकती । आधतु नक

मग
ु के वर्वमबन्न कवर्वमों के काव्म की बमू भका जो उन्होंने मरखी है , उनभें उनकी सभारोचनात्भक

दृत्ष्ट साभने आमी है । धभव एर्वॊ साहहत्म के सॊदबव भें यचचत तनफॊधों भें बी उनकी सभारोचक

प्रततबा का ऩरयचम मभरता है । „चेतना‟ नाभक ऩबत्रका भें उनकी प्राचीन असमभमा साहहत्म ऩय

कई रेख प्रकामशत हुए । „ऩुयोनी असोमभमा साहहत्म‟(1940), औय „साहहत्म आरू प्रेभ‟(1948)

उनके द्र्वाया यचचत ऐसे दो ग्रॊथ हैं त्जनभें उनकी सभारोचनात्भक अध्ममनशीरता औय ऩाॊडडत्म

का प्रततपरन हुआ है । उनकी ऩमावर्वेऺण ऺभता अॊतबेदी औय अतीर्व शुक्ष्भ थी । „र्वाणीप्रततबा‟

उनके भत्ृ मु के ऩश्चात प्रकामशत तनफॊध सॊग्रह है, त्जसभें कई आधतु नक कवर्व एर्वॊ उनके काव्म का

भूल्माॊकन कय उनके वर्वशेर्ताओॊ ऩय प्रकाश डारा गमा हैं । „बफजुरी‟ नाभक ऩबत्रका भें असभ के

र्वैष्णर्व भत के प्रचायक औय र्वैष्णर्व भत ऩय कई रेख प्रकामशत ककए । साभान्म रूऩ भें हभ कह

सकते है कक र्वाणणकाॊत जी ने असमभमा आरोचना साहहत्म को ऩष्ु ट कयते हुए नमा आमाभ हदमा ।

डॉ॰ बफरयत्चच कुभाय फरुआ द्र्वाया अॊग्रेजी भें यचचत „History of Assamese Literature‟

(1941) बी इस ऺेत्र भें काफ़ी भहत्त्र्व यखता है । इस ऩुस्तक भें असभ औय असमभमा बार्ा, र्वैष्णर्व

30
कार के उद्भर्व एर्वॊ साहहत्म, आहोभ एर्वॊ उस कार के असमभमा साहहत्म, आधतु नक कार का

प्रायम्ब, काव्म, नाटक, उऩन्मास, कहानी, आरोचना साहहत्म, अन्म गद्म साहहत्म आहद ऩय

वर्वचाय-वर्वश्रेर्ण ककमा गमा हैं । उनके द्र्वाया यचचत „काव्म आरू अमबव्मॊजना‟ उच्च कोहट का

सभारोचनात्भक ग्रॊथ है । इसभें क्रोचे द्र्वाया प्रततत्ष्ठत अमबव्मॊजनार्वाद औय सॊस्कृत साहहत्म

औय अरॊकायशास्त्र ऩय वर्वचाय-वर्वश्रेर्ण ककमा गमा हैं । „असमभमा कथा साहहत्म‟ नाभक

आरोचनात्भक ग्रॊथ भें उन्होंने असमभमा गद्म साहहत्म के उद्भर्व एर्वॊ भुल्माॊकन ऩय वर्वचाय ककमा

है । असमभमा रोगों के जीर्वन तथा उनके सॊस्कृतत ऩय वर्वचाय कयते हुए उन्होंने जो तनफॊध मरखे हैं

र्वे „असमभमा बार्ा आरू सॊस्कृतत‟ भें सॊकमरत हैं ।

आधतु नक कार के असमभमा सभारोचकों भें हभ नाभ रे सकते हैं उभाकाॊत शभाव,

त्रैरोतमनाथ गोस्र्वाभी, अतुरचन्द्र फरुआ, हे भ फरुआ, जग्मश्र्वय शभाव, फाऩचन्द्र भहॊ त, होभेन

फयगोहाई, डॉ॰हीये न गोहाई, फीये न्द्रकुभाय बट्टाचामव, मशर्वनाथ फभवन, बफेन फरुआ, भहे श्र्वय नेओग,

रीरा गोगोई, तीथवनाथ शभाव, भहें द्र फोया, डॉ॰ सत्मेंद्र नाथ शभाव, उऩेन्द्रनाथ गोस्र्वाभी,

गोरोकचन्द्र गोस्र्वाभी, सत्मेन्द्र नायामण गोस्र्वाभी, प्रभोद बट्टाचामव, इभदाद उल्रा, कफीन

पुकन, आनॊद फयभुदै, हहये न दत्त आहद ।

त्रैरोतमनाथ गोस्र्वाभी द्र्वाया यचचत „साहहत्म आरु सभारोचना‟ भें आरोचना साहहत्म के

वर्वमबन्न धाया, वर्वमशष्टता आहद ऩय वर्वचाय ककमा है । उनके ग्रन्थों भें तुरनात्भक, ऩाश्चात्म एर्वॊ

प्राच्म भें यस की अर्वधायणा, साहहत्म के नन्दनतात्त्र्वक वर्वचाय धाया आहद की व्माख्मा की गमी है

। उनकी सभारोचनात्भक ककताफ तात्त्र्वक एर्वॊ व्मार्वहारयक दृत्ष्ट यखती है । „असमभमा गल्ऩ

साहहत्म‟(1966), „इॊग्राजी साहहत्मय धाया आरू असमभमा साहहत्मत ताय प्रबार्व‟(1970),

„नन्दनतत्र्व-प्राच्म आरु ऩाश्चात्म‟(1980) ऐसी ही ऩुस्तके हैं ।

सत्मेंद्रनाथ शभाव आधतु नक कार के अनुबर्वी सभारोचक है । उनके द्र्वाया यचचत

„असमभमा उऩन्मासय बमू भका‟, „उऩन्मासय गततधाया‟, „असमभमा साहहत्मय समभखात्भक

31
इततबब्रत‟ ऐसी सभारोचनात्भक ऩुस्तके हैं त्जनभें असमभमा साहहत्म के वर्वकास ऩय गहयाई से

चचाव की गमी हैं । भौणखक साहहत्म ऩय अऩने वर्वचाय प्रकट कयते हुए उन्होंने „असमभमा साहहत्मय

समभखात्भक इततबब्रत‟ ऩस्


ु तक भें मरखा है “महद हभ आस-ऩास के ऩहाड़ी जन-जाततओॊ को दे खे

तो ऩाते हैं कक इनभें से ज्मादातय के ऩास मरणखत साहहत्म नहीॊ हैं ऩयॊ तु भौणखक गीत-साहहत्म औय

कहातनमाॉ प्रचमरत हैं ।”२९

उभाकाॊत शभाव के „काव्म बमू भ‟ भें साहहत्म भें यस की उऩमोचगता ऩय वर्वचाय ककमा गमा है

। हे भ फरुआ द्र्वाया यचचत „आधतु नक साहहत्म‟(1950), „साहहत्म आरु सभस्मा‟(1979) आहद

ग्रन्थों भें आधतु नक चचॊतन-धाया, आदशव औय ऩाश्चात्म साहहत्म का प्रबार्व ऩरयरक्षऺत होता है ।

अतुरचन्द्र फरुआ की „साहहत्मय रूऩये खा‟(1947) भें साहहत्म के रऺण, सॊऻा आहद ऩय आरोचना

की गमी है । „सभारोचना साहहत्म‟(1958), „साहहत्म-जीर्वन‟, „असमभमा काव्मय प्रेभय फोर्वोतत

सॉत
ू ी‟(1970) भें अतर
ु जी ने व्माख्मात्भक शैरी भें असमभमा साहहत्म की आरोचना प्रस्तत
ु की है

। भहे श्र्वय नेओग की „आधतु नक असमभमा साहहत्म‟(1965), „असमभमा गीतत-साहहत्म‟(1948),

„असमभमा साहहत्मय रूऩये खा‟(1962) भें प्राचीन असमभमा गद्म साहहत्म ऩय वर्वचाय ककमा गमा है

। प्रपुल्र दत्ता गोस्र्वाभी के „असमभमा जन साहहत्म‟(1948), „साहहत्म आरू जीर्वन‟(1956) भें

असमभमा गद्म ऩयम्ऩया तथा साहहत्म ऩय आरोचना की गमी है । तीथवनाथ शभाव की „ऩॊच

ऩुत्ष्ऩत‟(1969), „बत्ततर्वाद‟(1978), „साहहत्म वर्वद्मा ऩरयक्रभा‟(1962) बी उल्रेखनीम

सभारोचनात्भक ग्रॊथ हैं । उऩें द्र नाथ गोस्र्वाभी की „बार्ा आरू साहहत्म‟ भें साहहत्म की वर्ववर्वध

दृत्ष्ट से आरोचना की गमी है । डॉ॰ होभेन फयगोहाई औय डॉ॰ हीये न गोहाई इस कार के सशतत

आरोचक हैं । डॉ॰ होभेन फयगोहाई की „वर्वश्र्वास आरू सॊशम‟(1968), „धस


ू य हदगॊत‟(1970),

„त्जऻासा‟(1979) औय डॉ॰ हीये न गोहाई की „साहहत्म आरू सत्म‟(1971), „साहहत्म आरू

चेतना‟(1976), भहें द्र फया की „यभन्मासफाद‟(1976), अतुर चॊद्र फरुआ की „साहहत्मय

रूऩये खा‟(1958), „साहहत्म दृत्ष्ट‟, „सभारोचना साहहत्म‟(1958), हे भॊत कुभाय शभाव की „असमभमा

साहहत्मत दृत्ष्टऩात‟(1961), हे भ फरुआ की „साहहत्म आरू साहहत्म‟(1962), सत्मप्रसाद फरुआ

32
की „नाटक आरू अमबनम-प्रसॊग‟(1962), रीरा गोगोई की „असमभमा रोक-साहहत्मय

रूऩये खा‟(1965) का असमभमा आरोचना साहहत्म भें उल्रेखनीम अर्वदान हैं । असमभमा

आरोचना साहहत्म के वर्वद्र्वान सभारोचक यहे है फाऩचन्द्र भहॊ त । „जीर्वन आरू साहहत्म‟(1962),

„साहहत्म दशवन‟(1963), „बायतीम धभवसाधना‟(1967), „नाभघोर्ाय तत्र्वदशवन‟(1978) आहद

ग्रन्थों भें उन्होंने वर्वश्रेर्णात्भक ढॊ ग से साहहत्म ऩय चचाव कयते हुए सभारोचना साहहत्म को ऩष्ु ट

ककमा है । बर्वेन फरुआ द्र्वाया यचचत „नतुन सभारोचना‟ तथा गोवर्वॊद प्रसाद शभाव, हहये न्द्र नाथ

दत्त का बी इस ऺेत्र भें उल्रेखनीम अर्वदान हैं । इसी क्रभ भें प्रो॰ कृष्ण नायामण प्रसाद का नाभ

असमभमा आरोचना के ऺेत्र भें उल्रेख कय सकते है , त्जन्होंने हहॊदी साहहत्म भें असमभमा

याभामणी साहहत्म, शॊकयदे र्व, भाधर्वदे र्व, र्वैष्णर्व साहहत्म आहद ऩय आरोचनात्भक ग्रॊथ मरखा औय

आरोचना के बॊडाय को ऩष्ु ट ककमा ।

तनष्कर्वत: प्रस्तत
ु अध्माम भें आरोचना के उद्भर्व-वर्वकास ऩय चचाव कयते हुए आरोचना

ऺेत्र से जुड़े काफ़ी तथ्मों ऩय नजय डारने का भौका मभरा । आरोचना शब्द की व्मुत्ऩत्त्त से रेकय

आरोचना के अथव तथा स्र्वरूऩ ऩय बी वर्वचाय ककमा गमा । आरोचना के मबन्न प्रकाय ऩय

दृत्ष्टऩात ककमा गमा । इस दौयान हभें आरोचना के सैद्धाॊततक तथा व्मार्वहारयक ऩऺ को

बामरबाॉतत जानने का अर्वसय मभरा । आरोचना की ऩरयबार्ा औय ऩयॊ ऩया ऩय वर्वचाय कयते हुए

आरोचना सॊफॊधी ऩाश्चात्म, बायतीम(हहॊदी) औय असमभमा ऩरयबार्ा ऩय अरग-अरग रूऩ से

औय सॊक्षऺप्त रूऩ भें प्रकाश डारा गमा । आरोचना की ऩयॊ ऩया को दे खा जाए तो प्रायत्म्बक अर्वस्था

भें ऩाश्चात्म एर्वॊ प्राच्म भें स्र्वतॊत्र रूऩ से आरोचना का आयॊ ब तथा वर्वकास होता यहा ऩयॊ तु कुछ

सभम फाद ऩाश्चात्म आरोचना का प्रबार्व हहॊदी आरोचना साहहत्म ऩय ऩड़ा औय धीये धीये अन्म

बायतीम बार्ाओॊ के आरोचना ऩय बी इसका प्रबार्व ऩड़ता गमा । असमभमा आरोचना साहहत्म बी

इससे अछूता न यह ऩामा । इस तयह ऩाश्चात्म के प्रबार्व से ऩयॊ तु सम्ऩूणव स्र्वतॊत्र रूऩ भें हहॊदी तथा

असमभमा आरोचना साहहत्म का वर्वकास होता गमा औय रगाताय हो यहा है । इसी क्रभ भें हभ प्रो॰

„भागध‟ का नाभ रे सकते है । त्जनकी आरोचनात्भक कृततमों के कायण असमभमा आरोचना

33
साहहत्म को हहॊदी साहहत्म के फह
ृ त्तय ऺेत्र भें प्रवर्वष्ट होने का भौका मभरा औय असभ के मशयोभणण

श्रीभॊत शॊकयदे र्व तथा श्रीभॊत भाधर्वदे र्व को हहॊदी साहहत्म का फह


ृ द प्रेऺाऩट मभरा । हहॊदी साहहत्म

बी असभ के इन भहानब
ु र्वों की यचनाओॊ की आरोचना से सम्फद्ध
ृ हुआ ।

34
सॊदबव सूची:-

१. मभश्र, डॉ॰ याभप्रसाद, आरोचना की कुछ नई हदशाएॉ, प्रेभ प्रकाशन, 1977 , ऩष्ृ ठ

सॊख्मा 125

२. नर्वर, नन्द ककशोय, हहॊदी आरोचना का वर्वकास, याजकभर प्रकाशन, ऩटना,

2007, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 26

३. चतर्व
ु दे ी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फक
ू डडऩो-

एभ, 2005, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 106

४. चतुर्वेदी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फूक डडऩो-

एभ, 2005, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 107

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


५. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 271

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


६. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 274

७. चतुर्वेदी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फूक डडऩो-

एभ, 2005, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 108

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


८. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशनकेंद्र, रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा277

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


९. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 268

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


१०. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 2

ु ेदी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फक


११. चतर्व ू डडऩो-

एभ, 2005, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 68

35
ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के
१२. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 2

१३. अर्वस्थी, डॉ॰ दे र्वीशॊकय, आरोचना का द्र्वॊद, र्वाणी प्रकाशन, नमी हदल्री, 2009,

ऩष्ृ ठ सॊख्मा 78

ु ेदी, डॉ॰ याजेश्र्वय प्रसाद, हहॊदी आरोचना के आधाय स्तम्ब, यीगर फक


१४. चतर्व ू डडऩो-

एभ, 2005, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 69

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


१५. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 4

१६. Jr. Wimsatt, William K., Cleanth Brooks, Literary Criticism A short

history, Oxford and IBH publishing co. pvt. Ltd., New Delhi, 1957, ऩष्ृ ठ

सॊख्मा 724.

१७. ततर्वायी, डॉ॰ याभचन्द्र, साहहत्म का भूल्माॊकन(अनुर्वाद), वर्वश्र्ववर्वद्मारम

प्रकाशन, र्वायाणसी, 2008, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 11

१८. अर्वस्थी, दे र्वीशॊकय, आरोचना का द्र्वॊद, र्वाणी प्रकाशन, नमी हदल्री, 2009, ऩष्ृ ठ

सॊख्मा 79

ु ावशॊकय मभश्र, बायतीम एर्वॊ ऩाश्चात्म काव्मशास्त्र के


१९. मसॊह, डॉ॰ याजककशोय, डॉ॰ दग

मसद्धाॊत, प्रकाशन केंद्र रखनऊ, 1985, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 269

२०. ततर्वायी, डॉ॰ याभचन्द्र, साहहत्म का भूल्माॊकन(अनुर्वाद), वर्वश्र्ववर्वद्मारम

प्रकाशन, र्वायाणसी, 2008, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 18

२१. अर्वस्थी, दे र्वीशॊकय, आरोचना का द्र्वॊद, र्वाणी प्रकाशन, नमी हदल्री, 2009, ऩष्ृ ठ

सॊख्मा 82

२२. नर्वर, नॊदककशोय, हहॊदी आरोचना का वर्वकास, याजकभर प्रकाशन, नमी हदल्री,

2007, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 1

36
२३. मभश्र, डॉ॰ बगर्वतस्र्वरूऩ, हहॊदी आरोचना: उद्भर्व औय वर्वकास, , ऩष्ृ ठ सॊख्मा 276

२४. शभाव, डॉ॰ सत्मेंद्रनाथ, असमभमा साहहत्मय सभीऺात्भक इततफत्ृ त, सौभाय प्रकाश,

गर्व
ु ाहाटी, 2013, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 376

२५. नेओग, डॉ॰ भहे श्र्वय, असमभमा साहहत्मय रूऩये खा’, चॊद्रप्रकाश, गुर्वाहाटी, 2012 ,

ऩष्ृ ठ सॊख्मा 314

२६. फरुआ डॉ॰ बफरयत्चच कुभाय, History of Assamese Literature, साहहत्म

अकादे भी, कोरकाता , 2003 ऩष्ृ ठ सॊख्मा 190

२७. फरुआ डॉ॰ बफरयत्चच कुभाय, History of Assamese Literature, साहहत्म

अकादे भी, कोरकाता , 2003 ऩष्ृ ठ सॊख्मा 191

२८. शभाव, डॉ॰ सत्मेंद्रनाथ, असमभमा साहहत्मय सभीऺात्भक इततफत्ृ त, सौभाय प्रकाश,

गुर्वाहाटी, 2013, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 281

२९. शभाव, डॉ॰ सत्मेंद्रनाथ, असमभमा साहहत्मय सभीऺात्भक इततफत्ृ त, सौभाय प्रकाश,

गुर्वाहाटी, 2013, ऩष्ृ ठ सॊख्मा 18

37

You might also like