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ऩाठ ५ - वैऻाननक चेतना के वाहक: चॊद्रशेखर वें कट रामन

ऱेखक- धीरॊ जन माऱवे

ननम्नलऱखखत प्रश्नों के उत्तर दीजजए-

प्र॰१॰ कॉऱेज के ददनों में रामन की ददऱी इच्छा क्या थी ?

उ॰१॰ कॉरेज के ददनों से ही याभन ने वैऻाननक शोधकामों भें ददरचस्ऩी रेनी शरू
ु कय दी थी। वे अऩना साया जीवन
शोधकामों को ही सभर्ऩित कयना चाहते थे।ऩयॊ तु उन ददनों शोधकामि को कैरयमय रूऩ भें अऩनाने की सर्ु वधा नहीॊ थी।

प्र॰२ वाद्ययॊत्रों ऩर की गई खोजों से रामन ने कौन-सी भ्ाॊनत तोड़ने की कोलशश की ?

उ॰२ वामलरन, चैरो मा र्ऩमानो जैसे र्वदे शी वाद्ममॊत्रों औय वीणा, तानऩयू ा औय भद


ृ ॊ गभ जैसे दे शी वाद्ममॊत्रों ऩय
शोधकामों के दौयान याभन ने वैऻाननक लसद्धाॊतों के आधाय ऩय ऩश्चचभी दे शों की इस भ्ाॊनत को तोड़ने की कोलशश की
कक बायतीम वाद्ममॊत्र र्वदे शी वाद्मों की तर
ु ना भें घदिमा है ।

प्र॰३॰ रामन के लऱए नौकरी-सॊबध


ॊ ी कौन-सा ननर्णय कदठन था ?

उ॰३॰ याभन सयकाय के र्वत्त र्वबाग भें अत्मॊत प्रनतश्ठित ऩद ऩय थे, जहाॉ उन्हें अच्छी तनख्वाह औय अनेक सर्ु वधाएॉ
लभरती थीॊ।ऐसी अच्छी सयकायी नौकयी छोड़कय कभ वेतन औय कभ सर्ु वधाओॊ वारी प्रोपेसय की नौकयी भें जाने का
ननणिम रेना उनके लरए फहुत कदिन था।

प्र॰४॰ सर चॊद्रशेखर वें कट रामन को समय-समय ऩर ककन-ककन ऩरु स्कारों से सम्माननत ककया गया ?

उ॰४॰ सय चॊद्रशेखय वेंकि याभन को ननम्नलरखखत ऩयु स्कायों से सम्भाननत ककमा गमा –

 यॉमर सोसामिी की सदस्मता, हमज़


ू ऩदक
 ‘सय’ की उऩाधध
 बौनतकी भें नोफेर ऩयु स्काय
 योभ का भेत्मस
ु ी ऩदक
 कपराडेश्फपमा इॊस्िीट्मि
ू का फ़्रेंकलरन ऩदक
 सोर्वमत रूस का अॊतयािठरीम रेननन ऩयु स्काय
 बायत का सवोच्च सम्भान बायतयत्न

प्र॰५ रामन को लमऱनेवाऱे ऩरु स्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत ककया। ऐसा क्यों कहा गया है ?

उ॰५॰ याभन को अधधकाॊश सम्भान उस सभम लभरे, जफ बायत अॊग्रेजों का गर


ु ाभ था, इसलरए उन्हें लभरने वारे
सम्भानों ने बायत के रोगों भें आत्भसम्भान औय आत्भर्वचवास को जगामा । उनसे प्रेयणा प्राप्त कय अनेक छात्र
शोध-ऺेत्र भें आगे आए औय उनके भागिदशिन भें शोधकामि ककए। इस प्रकाय उनके ऩयु स्कायों ने बायतीम-चेतना को
जाग्रत ककमा।

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प्र॰६॰ रामन के प्रारॊ लभक शोधकायण को आधुननक हठयोग क्यों कहा गया है ?

उ॰६॰ याभन ने अऩना प्रायॊ लबक शोधकामि फहुत ही र्वऩयीत ऩरयश्स्थनतमों भें ककमा। । वे शोधकामों भें ददरचस्ऩी
यखते थे ,ककन्तु उनके ऩास ऩमािप्त सर्ु वधाएॉ व साधन नहीॊ थे।‘इॊडडमन एसोलसएशन पॉय द कफिीवेशन ऑप
साइन्स’ प्रमोगशारा भें काभचराऊ उऩकयण थे । दफ़्तय की कड़ी भेहनत के फाद इस प्रमोगशारा भें ऩहुॉचकय
वह साभान्म उऩकयणों का प्रमोग कयते औय अऩनी इच्छाशश्तत के फर ऩय बौनतक र्वऻान को सभद्
ृ ध कयने का
प्रमास कयते। मह अऩने आऩ भें एक आधनु नक हिमोग का उदाहयण था।

प्र॰७॰ रामन की खोज ‘रामन प्रभाव’ क्या है ? स्ऩष्ट कीजजए।

उ॰७॰ ‘याभन प्रबाव’ अथाित याभन द्वाया खोजा गमा लसद्धाॊत। अनेक िोस यवों औय तयर ऩदाथों ऩय प्रकाश की
ककयणों का प्रबाव ‘याभन प्रबाव’ है । इसके अनस
ु ाय जफ एक यॊ ग के प्रकाश की ककयण के पोिान तयर मा िोस
यवों से गज़
ु यते हुए इनके अणओ
ु ॊ से िकयाते हैं, तो उनकी ऊजाि मा तो कभ हो जाती है मा फढ़ जाती है । सफसे
अधधक ऊजाि फैंगनी यॊ ग के प्रकाश भें होती है औय सफसे कभ ऊजाि रार यॊ ग के प्रकाश भें होती है । इसी के
अनस
ु ाय इनके यॊ ग भें बी ऩरयवतिन होता है ।

प्र॰८॰ ‘रामन प्रभाव’ की खोज से ववऻान के ऺेत्र में ननम्नलऱखखत कायण सॊभव हो सके-

१॰ याभन की खोज की वजह से ऩदाथों के अणओ


ु ॊ औय ऩयभाणओ
ु ॊ की आॊतरयक सॊयचना का अध्ममन सयर, सहज,
सिीक व प्राभाखणक हो गमा।

२॰ इसकी वजह से ऩदाथों का सॊचरेषण प्रमोगशारा भें कयना तथा अनेक उऩमोगी ऩदाथों का कृत्रत्रभ रूऩ से
ननभािण सॊबव हो गमा।

प्र॰९॰ दे श को वैऻाननक दृजष्ट और चचॊतन प्रदान करने में सर चॊद्रशेखर वेंकटरामन के महत्त्वऩर्
ू ण योगदान ऩर प्रकाश
डालऱए।

उ॰९॰ याभन का व्मश्ततत्व एक वैऻाननक का व्मश्ततत्व था। उनके अॊदय एक याठरीम चेतना थी औय उनका जीवन दे श
भें वैऻाननक दृश्ठि औय धचॊतन के र्वकास के प्रनत सभर्ऩित था।अऩने प्रायॊ लबक जीवन भें काभचराऊ उऩकयणों का
प्रमोग कय अऩनी इच्छाशश्तत के फर ऩय बौनतक र्वऻान को सभद्
ृ ध फनामा। उन्होंने फॊगरौय भें एक उन्नत
प्रमोगशारा औय शोध सॊस्थान की स्थाऩना की। उन्होंने बायत भें वैऻाननक अनस
ु ध
ॊ ान को फढ़ावा दे ने के लरए इॊडडमन
जयनर ऑप किश्जतस तथा कयें ि साइन्स नाभक ऩत्रत्रकाएॉ प्रायॊ ब की।सैकड़ों शोधछात्रों का भागिदशिन ककमा। वे चाहते
थे कक हभ प्रकृनत के उऩदानों को वैऻाननक दृश्ठि से दे खें औय उनभें नछऩे वैऻाननक यहस्मों की खोज कयें ।

प्र॰१०॰ सय चॊद्रशेखय वेंकि याभन के जीवन से हभें तमा सॊदेश लभरता है

सय चॊद्रशेखय वेंकि याभन के जीवन से हभें मह सॊदेश लभरता है कक मदद भनठु म के भन भें ककसी कामि को कयने की
इच्छाशश्तत हो तो ककतनी ही र्वऩयीत ऩरयश्स्थनतमाॉ तमों न साभने आएॉ , वह अऩने हिमोग के फर ऩय उसभें अवचम
सपर होता है ।सयकायी नौकयी कयते हुए बी उन्होंने साधनों के अबाव भें काभचराऊ उऩकयणों के प्रमोग से शोधकामि
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ककमा । सयस्वती की साधना के लरए उन्होंने सख
ु -सर्ु वधाओॊ वारी सयकायी नौकयी त्माग दी। उन्होंने अऩनी बायतीम
ऩहचान को अऺुण्ण फनाए यखा।उन्होंने अऩने द्ऺण बायतीम ऩहनावे औय शाकाहायी बोजन को नहीॊ त्मागा औय
भददया-ऩान से हभेशा ऩयहे ज़ यखा।इस प्रकाय कहा जा सकता है कक उनका साया जीवन ही अनक
ु यणीम था।

आशय स्ऩष्ट कीजजए-

१॰ उनके लऱए सरस्वती की साधना सरकारी सख


ु - सवु वधाओॊ से कहीॊ अचधक महत्त्वऩर्
ू ण थी।

आशम- प्रस्तत
ु ऩॊश्ततमाॉ ‘वैऻाननक चेतना के वाहक :श्री चॊद्रशेखय वें कि याभन’ ऩाि से री गई है , श्जसके रेखक श्री
धीयॊ जन भारवे हैं। वें कि याभन सयस्वती के सच्चे साधक थे। फचऩन से ही उनका भश्स्तठक र्वऻान के यहस्मों को
सर
ु झाने भें रगा यहता था।उन्होंने र्वऩयीत ऩरयश्स्थनतमों भें बी खोज कामि जायी यखा। वे सयकायी नौकयी की सख
ु -
सर्ु वधाओॊ की अऩेऺा वैऻाननक शोधकामि को अधधक भहत्त्वऩण
ू ि भानते थे। इसीलरए उन्होंने र्वत्त र्वबाग की सख
ु -
सर्ु वधाओॊ से बयऩयू सयकायी नौकयी छोड़कय र्वचवर्वद्मारम की कभ सर्ु वधाओॊ वारी नौकयी स्वीकाय कय री थी। वे
अऩना जीवन अध्ममन, अध्माऩन औय शोधकामि भें रगाना चाहते थे।

२॰ हमारे आस-ऩास ऐसी न जाने ककतनी ही चीज़ें बबखरी ऩड़ी है जो अऩने ऩात्र की तऱाश में हैं।

आशम- प्रस्तत
ु ऩॊश्ततमाॉ ‘वैऻाननक चेतना के वाहक :श्री चॊद्रशेखय वें कि याभन’ ऩाि से री गई है , श्जसके रेखक श्री
धीयॊ जन भारवे हैं। हभ प्रकृनत भें यहकय ही अऩना जीवन व्मतीत कयते हैं। हभाये आस-ऩास प्रकृनत की असॊख्म ऐसी
चीज़ें हैं, श्जनकी ओय हभ कबी ध्मान नहीॊ दे त।े उन चीजों को ऐसे ककसी व्मश्तत की तराश यहती है , जो उनके
यहस्मों का उदघािन कय सके। हभें बी वें कियाभन के सभान प्राकृनतक उऩदानों तथा घिनाओॊ के यहस्मों ऩय से ऩदाि
उिाने का प्रमास कयना चादहए।

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६॰ अजननऩथ

कवव- हररवॊशराय बच्चन

१॰ अजननऩथ-------------------------------------------माॉग मत।

बाव- प्रस्तत
ु ऩॊश्ततमों भें कर्व कहते हैं कक मह जीवन कदिनाइमों बया हुआ है । महाॉ कदभ-कदभ ऩय भनठु म को
अनेक कठिों व चन
ु ौनतमों का साभना कयना ऩड़ता है । कर्व भानव जगत को सभझाते हुए कहते हैं कक जीवन रूऩी
याह भें चाहे ककतने बी घने वऺ
ृ आएॉ तफ बी कबी एक ऩत्ते के फयाफय बी छामा की उम्भीद नहीॊ कयना चादहए ।
आशम मह है कक जीवन भें घोय कदिनाइमों औय सॊकिों से जूझते हुए यास्ते भें थोड़ी बी सख
ु - सर्ु वधा औय आयाभ
की इच्छा नहीॊ कयनी चादहए।जीवन के इस अश्ननभम ऩथ ऩय ननयॊ तय फढ़ते यहना चादहए।

२॰ तू न थकेगा कभी----------------------------------------कर शऩथ।

बाव- कर्व कहते हैं कक इस जीवन को जीने का भागि सॊघषि औय सॊकिों से बया है । कपय बी तभ
ु जीवन की
कदिनाइमों से जझ
ू ते हुए कबी थकान का अनब
ु व भत कयना। कर्व भनठु मों को सॊदेश दे ते है कक हे भनठु म न तभ

कबी थकना न रुकना। न ही अऩने रक्ष्म को ऩाए त्रफना वाऩस रौिना ।महाॉ तक कक ऩीछे की ओय भड़
ु कय बी नहीॊ
दे खना है । सदै व आगे फढ़ते यहने की तथा , चरते यहने की शऩथ रेकय तभ
ु तफ तक गनतशीर फने यहना है जफ तक
भॊश्जर प्राप्त न हो जाए । मह जीवन सख
ु -सर्ु वधाओॊ की स्थान नहीॊ फश्फक आग बया यास्ता है ।

३॰ यह महान दृश्य है-------------------------------ऱथऩथ।

बाव- कर्व की दृश्ठि भें जीवन के भागि भें सॊघषों ऩय र्वजम प्राप्त कयने के लरए भनठु म को ननयॊ तय चरते यहना
आवचमक है औय मह कभियत यहने का दृचम ही भहान है । तमोंकक जीवन सॊकिों से बया है । व्मथाओॊ से नघयकय
भनठु म आॉसू फहाता है । जीने की ररक भें ऩसीना फहाता है , स्वमॊ को रहूरह
ु ान कयता है ककॊ तु जीवन से हाय भानकय
फैिता नहीॊ, रुकता नहीॊ। मह दृचम इस सॊसाय का सफसे भहान दृचम है ।

ननम्नलऱखखत प्रश्नों के उत्तर दीजजए-

(क) कवव ने ‘अजनन ऩथ’ ककसके प्रतीक स्वरूऩ प्रयोग ककया है ?

उ॰ कर्व ने ‘अश्नन ऩथ’ जीवन के सॊघषों से बये हुए भागि के प्रतीक स्वरूऩ प्रमोग ककमा है ।जीवन के भागि भें भनठु म
को अनेक कठिों व चुनौनतमों का साभना कयना ऩड़ता है ।

(ख) ‘ माॉग मत’, ‘कर शऩथ’, ‘ऱथऩथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवव क्या कहना चाहता है ?

उ॰ इन शब्दों का फाय-फाय प्रमोग कय कर्व भनठु म के भन को सदृ


ु ढ़ व श्स्थय कयना चाहता है औय उसका
उत्साहवद्िधन कयना चाहता है । कर्व भनठु म को प्रेरयत कय यहा है कक वह कदिनाइमों से घफयाकय ककसी से सहामता
नहीॊ भाॉगेगा औय त्रफना रुके, त्रफना थभे व त्रफना थके सॊघषि कयते हुए रक्ष्म की ओय फढ़ता जाएगा।

(ग) ‘एक ऩत्र- छाॉह भी माॉग मत’ इस ऩॊजक्त का आशय स्ऩष्ट कीजजए।

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उ॰ कर्व कहते हैं कक जीवन के भागि ऩय चरते हुए तझ
ु े अनेक चुनौनतमों व कठिों का साभना कयना ऩड़ेगा, ऩय तू
ननयाशा की श्स्थनत भें ककसी से कोई सहामता नहीॊ भाॉगेगा। तझ
ु े स्वावरॊफी फनना होगा औय चुनौनतमों का साभना खद

ही कयना होगा।

२॰ ननम्नलऱखखत का भाव स्ऩष्ट कीजजए-

(क) तू न थमेगा कभी, तू न मड़


ु ग
े ा कभी।

उ॰ कर्व ने भनठु म को प्रेरयत कयते हुए कहा है कक मह जीवन भागि कदिनाइमों से बया हुआ है , ऩयॊ तु हे भनठु म! तू
प्रण कय कक ननयाशा मा असपरता की श्स्थनत भें कबी रुकेगा नहीॊ औय न ही अऩना भागि फदर रेगा, फश्फक दृढ़
ननचचम व आत्भर्वचवास के साथ रक्ष्म की प्राश्प्त के लरए ननयॊ तय आगे फढ़ता जाएगा।

(ख) चऱ रहा मनष्ु य है , अश्र-ु स्वेद-रक्त से ऱथऩथ, ऱथऩथ,ऱथऩथ

बाव- कर्व कहते हैं कक भनठु म हय ऩरयश्स्थनत का दृढ़ताऩव


ू क
ि साभना कयते हुए अऩने रक्ष्म की प्राश्प्त के लरए ननयॊ तय
चरता यहता है । चरते हुए उसे अनेक फाय ननयाशा व असपरता लभरने ऩय उसे आॉसू फहाने ऩड़ते हैं, भेहनत कयते
हुए ऩसीना फहाना ऩड़ता है, सॊघषि कयते हुए खून से रथऩथ बी होना ऩड़ता है, ऩयॊ तु कपय बी वह हतोत्सादहत नहीॊ
होता।अऩनी भॊश्ज़र को प्राप्त कयने के लरए वह र्वघ्न-फाधाओॊ से ितकय रेता हुआ अर्वयर गनत से आगे फढ़ता
जाता है ।

३॰ इस कववता का मऱ
ू भाव क्या है ?

उ॰ ‘अश्नन ऩथ’ का भर
ू बाव है - भनठु म का सॊघषिभम जीवन आग ऩय चरने के सभान है । महाॉ कदभ-कदभ ऩय
भस
ु ीफतों, कठिों, चुनौनतमों आदद का साभना कयना ऩड़ता है । भनठु म इनसे न घफयाए वह अऩना आत्भफर फनाए यखे।
दख
ु ों को सहते हुए, भेहनत कयते हुए औय सॊघषि कयते हुए ननयॊ तय आगे फढ़ता जाए। ऐसे रोगों को ही जीवन भें
सपरता लभरती है ।

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