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SYLLABUS
45, Anurag Nagar, Behind Press Complex, Indore (M.P.) Ph.: 4262100, www.rccmindore.com
B.Com III Year Subject- Hindi
UNIT I
उन्हेआने नभमदा नदी के ककनाये -ककनाये ऩयू े चाय हजाय ककरोभीटय की मात्रा ऩैदर कय डारी. कोई साथ
मभरा तो ठीक, ना मभरा तो अकेरे ही. कहीॊ जगह मभरी तो सो मरमे, कहीॊ अन्न मभरा तो ऩेट बय
मरमा. सफ कुछ फेहद भौन, चऩ
ु चाऩ औय जफ उस मात्रा से सॊस्भयण शब्द औय ये खाॊकनेआ के द्वाया
साभने आमे तो नभमदा का सम्ऩूणम स्वरूऩ ननखयकय साभने आ गमा.
अभत
ृ रार वेगड़ अऩनी अॊनतभ साॊस तक मानन नब्फे सार की उम्र तक नभमदा के हय कण को
सभझने, सहे जने औय सॊवायने की उत्कॊठा भें मुवा यहे . उन्हेआने अऩनी मात्रा के सम्ऩूणम वत
ृ ान्त को
तीन ऩुस्तकेआ भें मरखा. ऩहरी ऩुस्तक ‘सौन्दमम की नदी नभमदा’ 1992 भें आई थी औय अबी तक इसके
आठ सॊस्कयण बफक चक
ु े हेऄ. वेगड़जी अऩनी इस ऩुस्तक का प्रायम्ब कयते हेऄ- ‚कबी-कबी भेऄ अऩने-आऩ
से ऩूछता हूॊ, मह जोखखभ बयी मात्रा भेऄने क्मेआ की? औय हय फाय भेया उत्तय होता, अगय भेऄ मात्रा न
कयता, तो भेया जीवन व्मथम जाता. जो जजस काभ के मरमे फना हो, उसे वह काभ कयना ही चाहहए
औय भेऄ नभमदा की ऩदमात्रा के मरमे फना हूॊ.’’
वेंगड़जी ने अऩनी ऩहरी मात्रा सन 1977 भें शुरू की थी जफ वे कोई 50 सार के थे औय अजन्तभ मात्रा
1987 भें 82 सार की उम्र भें . कोई चाय हजाय ककरोभीटय से अधधक वे इस नदी के तट ऩय ऩैदर चरते
यहे . इन ग्मायह सारेआ की दस मात्राओॊ का वववयण इन ऩुस्तकेआ भें है . रेखक अऩनी मात्रा भें केवर
रोक मा नदी के फहाव का सौन्दमम ही नहीॊ दे खते, फयगी फाॊध, इॊहदया सागय फाॊध, सयदाय सयोवय
आहद के कायण आ यहे फदराव, ववस्थाऩन की बी चचाम कयते हेऄ.
नभमदा के एक छोय से दस
ू ये छोय का सपय 1,312 ककरोभीटय रम्फा है . मानी ऩयू े 2614 ककरोभीटय
रम्फी ऩरयक्रभा. कामदे से कयें तो तीन सार, तीन भहीने औय 13 हदन भें ऩरयक्रभा ऩयू ी कयने का
ववधान है . जाहहय है इतने रम्फे सपय भें ककतनी ही कहाननमाॊ, ककतने ही दृश्म, ककतने ही अनब
ु व
सहे जता चरता है मात्री औय वो मात्री अगय धचत्रकाय हो, कथाकाय बी हो तो मात्राओॊ के स्वाद को
मसपम अऩने तक सीमभत नहीॊ यखता.
वे भूर रूऩ से धचत्रकाय थे औय उन्हेआने गुरू यवीन्रनाथ टै गोय के शाजन्त ननकेतन से 1948 से 1953 के
फीच करा की मशऺा री थी, कपय जफरऩुय के एक कॉरेज भें धचत्रकरा के अध्माऩन का काभ ककमा.
तबी उनके मात्रा वत
ृ ान्त भें इस फात का फायीकी से ध्मान यखा गमा है कक ऩाठक जफ शब्द फाॊचे तो
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उनके बावेआ भें मह बी ध्मान यखा जाता यहा है कक जो फात धचत्रेआ भें कही गई है उसकी ऩुनयावनृ त
शब्देआ भें ना हो, फजकक धचत्र उन शब्देआ के बाव-ववस्ताय का काभ कयें . वे अऩने बावेआ को इतनी
सहजता से प्रस्तुत कयते हेऄ कक ऩाठक उनका सहमात्री फन जाता है . रेखक ने ‘नछनगाॊव से
अभयकॊटक’ अध्माम भें मे उदगाय तफ व्मक्त ककमे जफ मात्रा के दौयान दीऩावरी के हदन वे एक गाॊव
भें ही थे.
‘‘आखखय भझ
ु से यहा नहीॊ गमा. एक स्त्री से एक दीमा भाॊग मरमा औय अऩने हाथ से जराकय कुण्ड भें
छोड़ हदमा. कपय भन-ही-भन फोरा, ‘भाॊ, नभमदे, तेयी ऩूजा भें एक दीऩ जरामा है . फदरे भें तू बी एक
दीऩ जराना- भेये रृदम भें . फड़ा अन्धेया है वहाॊ, ककसी तयह जाता नहीॊ. तू दीऩ जरा दे , तो दयू हो
जामे. इतनी मबऺा भाॊगता हूॊ. तो दीऩ जराना, बरा?’’ एक सॊवाद नदी के साथ औय साथ-ही-साथ
ऩाठक के साथ बी.
इस ऩुस्तक की सफसे फड़ी फात मह है कक मह भहज जरधाया की फात नहीॊ कयती, उसके साथ जीवन
ऩाते जीव, वनस्ऩनत, प्रकृनत, खेत, ऩॊऺी, इॊसान सबी को इसभें गूॊथा गमा है औय फतामा गमा है कक
ककस तयह नदी भहज एक जर सॊसाधन नहीॊ, फजकक भनुष्म के जीवन से भत्ृ मु तक का भूर आधाय
है . इसकी ये त बी उतनी ही भहत्त्वऩूणम है जजतनी जर धाया औय इसभें भछरी बी उतनी ही अननवामम
है जजतना उसके तट ऩय आने वारे भवेमशमेआ के खयु ेआ से धयती का भॊथना.
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सभ्मता-सॊस्कृनत शामद फच सके. नगयेआ भें सभ्मता तो है रेककन सॊस्कृनत गाॊव औय गयीफेआ भें ही
थोड़ी फहुत फची यह गई है
ऱोक नत्ृ य
बायत के ककसी अन्म हहस्से की तयह भध्मप्रदे श बी दे वी-दे वताओॊ के सभऺ ककए जानेवारे औय ववमबन्न
अनष्ु ठानेआ से सॊफधॊ धत रोक नत्ृ मेआ द्वाया अऩनी सॊस्कृती का एक ऩरयऩण
ू म दृश्म प्रदान कयता है । रॊफे सभम से सबी
ऩायॊ ऩरयक नत्ृ म, आस्था की एक ऩववत्र अमबव्मजक्त यहे है । भध्मप्रदे श ऩममटन ववबाग औय भध्मप्रदे श की
आहदवासी रोक करा अकादभी द्वाया खजुयाहो भें आमोजजत ‘रोकयॊ जन ' - एक वावषमक नत्ृ म भहोत्सव है , जो
भध्मप्रदे श औय बायत के अन्म बागेआ के रोकवप्रम रोक नत्ृ म औय आहदवासी नत्ृ मेआ को ऩेश कयने के मरए एक
फेहतयीन भॊच है ।
जफ फद
ुॊ े रखॊड ऺेत्र का प्राकृनतक औय सहज नत्ृ म भॊच ऩय आता है , तफ ऩयू ा भाहौर रहया जाता है औय दे खने वारे
भध्मप्रदे श की रम भें फहने रगते है । भद
ृ ॊ ग वादक ढोरक ऩय थाऩेआ की गनत फढाना शरू
ु कयता है औय नत्ृ म भें बी
गनत आ जाती है । गद्म मा काव्म सॊवादेआ से बया मह नत्ृ म प्रदशमन, ‘स्वाॊग' के नाभ से भशहूय है । सॊगीत साधनेआ
के साथ भाधुमम औय सॊगीत से बये नतमक के सद ुॊ य रोकनत्ृ म का मह अद्ववतीम सॊकरन है । फढ़ती धड़कन के साथ
गनत फढ़ती जाती है औय नतमकेआ के रहयाते शयीय, दशमकेआ को भॊत्रभग्ु ध कय दे ते हेऄ। मह नत्ृ म ववशेष रूऩ से ककसी
भौसभ मा अवसय के मरए नहीॊ है , रेककन इसे आनॊद औय भनोयॊ जन की एक करा भाना जाता है ।
फाघेरखॊड का ‘ये ' नत्ृ म, ढोरक औय नगाये जैसे सॊगीत वाद्ममॊत्र की सॊगत के साथ भहहरा के वेश भें ऩरू
ु ष ऩेश
कयते है । वैश्म सभद
ु ाम भें , ववशेष रूऩ से फच्चे के जन्भ के अवसय ऩय, फाघेरखॊड के अहीय सभद
ु ाम की भहहराएॊ
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मह नत्ृ म कयती है । इस नत्ृ म भें अऩने ऩायॊ ऩरयक ऩोशाक औय गहनेआ को ऩहने नतमककमाॊ शब
ु अवसय की बावना
व्मक्त कयती है |
मटकी
गणगौर
मह नत्ृ म भख्
ु म रूऩ से गणगौय त्मोहाय के नौ हदनेआ के दौयान ककमा जाता है । इस त्मोहाय के अनष्ु ठानेआ के साथ
कई नत्ृ म औय गीत जुडे हुए है । मह नत्ृ म, ननभाड़ ऺेत्र भें गणगौय के अवसय ऩय उनके दे वता याणुफाई औय
धननमाय सम ू द
म े व के सम्भान भें की जानेवारी बजक्त का एक रूऩ है ।
बधाईं
फद
ुॊ े रखॊड ऺेत्र भें जन्भ, वववाह औय त्मोहायेआ के अवसयेआ ऩय ‘फधाईं' रोकवप्रम है । इसभें सॊगीत वाद्ममॊत्र की धुनेआ
ऩय ऩरु
ु ष औय भहहराएॊ सबी, जोय-शोय से नत्ृ म कयते हेऄ। नतमकेआ की कोभर औय कराफाज हयकतें औय उनके
यॊ गीन ऩोशाक दशमकेआ को चककत कय दे ते है ।
बरे डी
हदवारी के त्मोहाय से ऩखू णमभा के हदन तक की अवधध के दौयान फये डी नत्ृ म ककमा जाता है । भध्मप्रदे श के इस सफसे
आश्चममजनक नत्ृ म प्रदशमन भें , एक ऩरु
ु ष कराकाय की प्रभख
ु ता भें , यॊ गीन कऩड़े ऩहने 8-10 मव
ु ा ऩरु
ु षेआ का एक
सभह
ू नत्ृ म कयता हेऄ। आभतौय ऩय, ‘दीवायी' नाभक दो ऩॊजक्तमेआ की बजक्त कववता से इस नत्ृ म प्रदशमन की
शरू
ु वात होती है ।
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नौराता
भध्मप्रदे श के फद
ुॊ े रखॊड ऺेत्र भें अवववाहहत रड़ककमेआ के मरए इस नत्ृ म का ववशेष भहत्त्व है । नौयाता नत्ृ म के
जयीमे, बफनब्माही रडककमाॊ एक अच्छा ऩनत औय वैवाहहक आनॊद की भाॊग कयते हुए बगवान का आह्वान कयती
है । नवयाबत्र उत्सव के दौयान नौ हदन, घय के फाहय चूने औय ववमबन्न यॊ गेआ से नौयाता की यॊ गोरी फनाई जाती है ।
अहहराई
भगोररयाॊ
ववरऺण रम वारे दशहया औय डाॊडरयमाॊ नत्ृ म के भाध्मभ से भध्मप्रदे श की फैगा आहदवासी जनजानत की
साॊस्कृनतक ऩहचान होती है । फैगा के ऩायॊ ऩरयक रोक गीतेआ औय नत्ृ म के साथ दशहया त्मोहाय की उकरासबयी
शरु
ु आत होती है । दशहया त्मोहाय के अवसय ऩय फैगा सभद
ु ाम के वववाहमोग्म ऩरु
ु ष एक गाॊव से दस
ू ये गाॊव जाते हेऄ,
जहाॊ दस
ू ये गाॊव की मव
ु ा रड़ककमाॊ अऩने गामन औय डाॊडयीमाॊ नत्ृ म के साथ उनका ऩयॊ ऩयागत तयीके से स्वागत
कयती है । मह एक हदरचस्ऩ रयवाज है , जजससे फैगा रड़की अऩनी ऩसॊद के मव
ु ा ऩरु
ु ष का चमन कय उससे शादी
की अनभ
ु नत दे ती है । इसभें शामभर गीत औय नत्ृ म, इस रयवाज द्वाया प्रेरयत होते हेऄ। भाहौर खखर उठता है औय
सायी ऩये शाननमेआ से दयू , अऩने ही तार भें फह जाता है ।
ऩयधौनी, फैगा सभद
ु ाम का एक औय रोकवप्रम नत्ृ म है । मह नत्ृ म भख्
ु म रूऩ से दक
ू हे की ऩाटी का स्वागत औय
भनोयॊ जन कयने के मरए कयते हेऄ। इसके द्वाया खुशी औय शब
ु अवसय की बावना व्मक्त होती है । कभाम औय सैरी
(गेआड), बगोरयमाॊ (मबर), रेहॊगी (सहारयमाॊ) औय थाप्ती (कोयकू) मह कुछ अन्म जानेभाने आहदवासी नत्ृ म है ।
ऱोक गीत
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ककसी बी दे श का इनतहास, वहाॊ के रोकवप्रम गीतेआ के द्वाया फतामा जाता है । ऩायॊ ऩरयक सॊगीत के चाहने वारेआ के
मरए भध्मप्रदे श फेहतयीन दावते प्रदान कयता है । मह रोक गीत, गामन की ववमशष्ट शैरी के द्वाया फमरदान,
प्माय, कतमव्म औय वीयता की कहाननमाॊ सन
ु ाते हेऄ। भर
ू रूऩ से याजस्थान के ‘ढोरा भारू' रोकगीत, भारवा,
ननभाड़ औय फद
ॊु े रखॊड ऺेत्र भें रोकवप्रम है औय इन ऺेत्रेआ के रोग अऩनी ववमशष्ट रोक शैरी भें प्माय, जद
ु ाई औय
ऩन
ु मभमरन के ढोरा भारू गीत गाते है ।
भध्मप्रदे श के ननभाड़ ऺेत्र भें हय अवसय ऩय, महाॊ तक कक भौत ऩय बी भहहराओॊ को रोक गीत गाते दे खना, कोई
आशचमम वारी फात नही है ।
ननभाड़ भें नवयाबत्र का त्मोहाय, रोकवप्रम रोक-नत्ृ म गयफा के साथ भनामा जाता है । गयफा गीत के साथ गयफा
नत्ृ म, दे वी शजक्त को सभवऩमत होता है । ऩायॊ ऩरयक रूऩ से गयफा ऩरु
ु षेआ द्वाया ककमा जाता है औय मह ननभाड़ी रोक-
नत्ृ म औय नाटक का एक अमबन्न हहस्सा है । गामन को भद
ृ ॊ ग (ढोर एक रूऩ) का साथ होता है । यासरीरा के
दौयान मह गौरन गीत गाए जाते हेऄ। भारवा ऺेत्र के नाथ सभद
ु ाम के फीच बतह
मृ यी रोक-कथा के प्रवचन सफसे
रोकवप्रम गामन पाभम है । धचॊकाया नाभक (सायॊ गी का एक रूऩ, जो घोड़े के फार से फने तायेआ वारा वाद्म होता है ,
भख्
ु म शयीय फाॊस से फना होता है औय नारयमर खोर से धनष
ु फनामा जाता हेऄ) स्थानीम साज के साथ भहान याजा
बतह
मृ यी औय कफीय, भीया, गोयख औय गोऩीचॊद जैसे सॊतेआ द्वाया यधचत बजन गाए जाते है । इससे एक अद्ववतीम
ध्वनन ननकरती है ।
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होरी, ठाकुय, इसयु ी औय याम पाग उत्सव से सॊफधॊ धत गाने बी होते हेऄ। हदवारी के त्मोहाय के अवसय ऩय ढोरक,
नगाया औय फाॊसयु ी की धन
ु के साथ दे वयी गीत गाए जाते हेऄ। मशवयात्री, फसॊत ऩॊचभी औय भकय सॊक्राॊनत के त्मोहाय
के भौकेआ ऩय फफ
ुॊ मु रमा गीत गाए जाते हेऄ। फाघेरखॊड ऺेत्र के रोक-गीतेआ की गामन शैरी भध्मप्रदे श के अन्म ऺेत्रेआ से
अरग है । इसभे ऩरु
ु ष औय भहहरा, दोनेआ की आवाज भजफत
ू औय शजक्तशारी होती हेऄ। इन गानेआ भें सभद्
ृ धध औय
ववववधता होती है , जो इस ऺेत्र की सॊस्कृनत औय ववयासत को दशामते है । गीतेआ के ववषम भें कापी ववववधता होती है
औय उनभे ववमबन्न ववषम शामभर होते है ।
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भध्मप्रदे श भें खयाफ ऩय रकड़ी को सुडोर रूऩ दे ने की करा अनत प्राचीन है खखरौने औय सजावट की
साभग्री तैमाय कयने की अनॊत सॊबावनाएॊ होती है फायात कराकाय ऩयॊ ऩयागत होते हेऄ मशवऩुय करा
फुधनी घाट यीवा भुयैना की खयाद करा ने प्रदे श ही नहीॊ फजकक प्रदे श के फाहय की प्रमसद्धध ऩाई है
रकड़ी ऩय चढ़ाए जाने वारे यॊ गेआ का ननभामण इन कराकायेआ द्वाया अऩने डेट रूऩ भें
कॊघी करा सॊऩूणम बायत के ग्राभीण सभाज भें आभतौय ऩय औय आहदवासी सभाज भें खासतौय ऩय अनेक प्रकाय
की कॊनघमेआ का प्राचीन कार से ही प्रचरन चरा यहा है
आहदवामसमेआ भेऄ तो कॊनघमेआ का इतना अधधक भहत्व है की कमभमाॊ अरॊकयण गोदना एवॊ मबवत्त धचत्रेआ के भेऄ एक
अमबप्राम के रूऩ भें प्रनतष्ठा प्राप्त कय चुकी है इन ऩॊजक्तमेआ भें घड़ाई के सुॊदय काभ के साथ ही यत्नेआ की जड़ाई
भीनाकायी औय अनेकेआ अमबप्रामेआ का द्वाया उनका अरॊकयण ककमा जाता है कॊनघघी फनाने का श्रेम फॊजाया
जानत को है भारवा भें कॊघी फनाने का कामम उज्जैन यतराभ नीभच से होता है !
वन्म जानतमेआ भें भेऄ तीय धनुष यखने की ऩयॊ ऩया है तीय धनुष फाण भोयऩॊखी रकड़ी रोहे ,यस्सी आहद से फनाए
जाते हेऄ तीय धनुष मशकाय के मरए फनाए जाते हेऄ बीर, ऩहाड़ी कोयवा, कुभाय आहद जनजानतमाॊ तीय धनुष
चराने भें कुशर होते हेऄ तीय धनुष बीर आहदवामसमेआ की ऩहचान फन गई है प्रत्मेक बीर धनुष फाण अऩने
साथ यखता है बीर तीय चराने भें ननऩुण औय ननशाना रगाने भें अचूक होते हेऄ सफसे फड़ी फात मह है कक
प्रत्मेक आहदवासी तीय कभान अऩने हाथ से तैमाय कयते हेऄ
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ऩत्ता मशकऩ के कराकाय भूकमत: झाड़ू फनाने वारे होते हेऄ ऩेड़ ऩौधेआ के ववमबन्न आकायेआ से मभरने वारे ऩत्तेआ के
मरए भनुष्म का भन आहद कार से ही आकवषमत यहा है भनुष्म ने इन ऩत्तेआ भें करा के आमाभ ढूॊढे हेऄ नछन्द ऩत्तेआ
से करात्भक खखरौने चटाई आसन, दक
ू हा दक
ु हन के भोड़ आहद फनाए जाते हेऄ ऩत्तेआ की कोभरता के अनुरूऩ
उन्हें ववमबन्न करा अमबप्राम को फनने भें अनेक जानतमेआ औय जनजानतमेआ के ऩायॊ ऩरयक कराकाय आज बी
रगे हेऄ
Puppet ( कठऩत
ु ऱी )
कथा औय ऐनतहामसक घटनाओॊ को नाटकीम अॊदाज भें व्मक्त कयने की भनोयॊ जक ववधा कठऩुतरी है इसभें
भानवीम ववचायेआ औय बावेआ को अमबव्मक्त कयने की गुॊजाइश नहीॊ है कठऩुतरी के प्रमसद्ध ऩात्र अनायकरी,
फीयफर, फादशाह अकफय ,ऩॊुगी वारा घड़
ु सवाय ,साॊऩ औय जोगी होते हेऄ !
बायतवषम भें कठऩुतरी का इनतहास बायतीम नाट्म से ही प्राचीन है फट ऩुतमरमाॊ कहठन से कहठन भानवी
जस्थनतमेआ को प्रस्तत
ु कयने भें असभथम होती है कठऩुतरी की चाय प्रकाय की शैमरमाॊ हेऄ :- दस्ताना ऩुतरी,
धड़ऩुतरी, सत्र
ू ी सॊफॊधी ऩुतरी औय छामा ऩुतरी ! कठऩुतमरमेआ के ववमबन्न कराकाय दर अऩनी शैरी भें
बायतीम ऐनतहामसक आख्मानेआ को करात्भक ढॊ ग से गाॊव-गाॊव भें प्रस्तुत कयते हेऄ जजन्हें वे कठऩुतरी का खेर
कहते हेऄ
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नई ऩुयानी यॊ गीन धचॊहदमेआ औय कागजेआ से गुडड़मा फनाने की ऩयॊ ऩया रोक भें सफ दयू दे खी जा सकती है खखरौने
भेऄ गुडड़मा फनाने की प्रथा फहुत ऩुयानी है ऩयॊ तु कुछ गुडड़मा है ऩवम त्मोहायेआ से जुड़कय भाॊगमरक अनुष्ठान ऩय
एक बी होती है जून का ननभामण औय बफक्री उसी अवसय ऩय होती हेऄ
ग्वामरमय अॊचर भें कऩड़े रकड़ी औय कागज से फनाई जाने वारी गुडड़मेआ की ऩयॊ ऩया अनुष्ठाननक है गुड्डा
गुडड़मा का ब्माह यचामा जाता है उनके नाभ से व्रत ऩूजा की जाती है ग्वामरमय अॊचर की गुडड़मा आएॊ अऩने
आकाय-प्रकाय सहहत सजा सज्जा वेशबूषा औय चेहये की फनावट के मरए प्रमसद्ध है झाफुआ बीरी गुडड़मेआ का
केंर फन गमा है
बीरो की शायीरयक फनावट उनकी वेशबूषा आबूषण अरॊकयण तीय धनुष आहद को दे खकय उनकी आकृनत को
कऩड़े रकड़ी ताया आदी से फनाने का काभ स्थानीम कराकायो ने ककमा है तफ से झाफुआ की बीरी गुडड़मा
प्रदे श औय प्रदे श के फाहय तक प्रमसद्धध ऩा गई है झाफुआ की गुडड़मा याज्म स्तय ऩय प्रशॊसा ऩुयस्काय प्राप्त कय
चुकी है ग्वामरमय की गडु ड़मा दे श तथा ववदे श भें ववख्मात हुई है
छीऩा शिल्ऩ
कऩड़े ऩय हाथ से फनाए जाने वारे छीऩा मशकऩ भें ववमबन्न भें ववचायेआ को उकेया जाता है इनभें बीर
आहदवामसमेआ के ववमबन्न भें जातीम प्रतीकेआ का सभावेश होता है आज बी अधधकाॊश बीर आहदवामसमेआ द्वाया
इन्हीॊ वस्तओ
ु ॊ का उऩमोग ककमा जाता है वऩछरे वषों भें छीऩा मशकऩ करा ने एक व्मवसानमक उद्मोग का रूऩ
रे मरमा है
फाग.कुऺी भनावय गोवावाॊ खखयारा उज्जैन छीऩा मशकऩ के ऩायॊ ऩरयक केंर हेऄ उज्जैन को मशफा सेकपी बेरूगढ़
के नाभ से दे श तथा ववदे श भें ववख्मात है नछऩा मशकऩ भें कई कराकायेआ को प्रदे श स्तय ऩय औय याष्रीम स्तय
के सम्भान मभर चुके हेऄ !
भहे श्वयी साडड़माॊ अऩनी फनावट सजावटी यॊ ग औय करात्भकता के मरए बायत ही नहीॊ अवऩतु ववदे शेआ भें बी
सयाही जाती हेऄ भहे श्वय के ऩायॊ ऩरयक फुनकयेआ द्वाया फोरी गई सूती औय ये शभी साडड़माॊ सुॊदय हटकाऊ एवॊ ऩक्के
यॊ ग की होती हेऄ
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जजन ऩय जयी औय केरे के धागेआ से छोटे फेर-फूटे गडे जाते हेऄ भहे श्वयी साड़ी की प्रभुख ववशेषता चोखाडा
चौकड़ी करात्भक ककनाया,भनभोहक ऩकरू, हकके कैसे चभकदाय चाॊदी औय सोने भें यॊ गेआ भें जयी ये शभ के
हथकयघा की कढ़ाई है भहे श्वयी साडड़मेआ उद्मोग को स्थावऩत कयने का श्रेम प्रमसद्ध शासक आहहकमाफाई को है
भहे श्वयी साड़ी ऩूणत
म ा दे सी वस्तु करा की दे न है मह करा भहे श्वय भें जन्भी ऩनऩी औय ववस्तारयत हुई है !
चॊदेयी भें फनने के कायण इस साड़ी का नाभ चॊदेयी साड़ी ऩड़ा चॊदेयी साड़ी ये श्भी औय सूती दोनेआ तयह की फनाई
जाती है साड़ी भें सूजक्त औय यश्भी फड़े छोटे फूटे डारे जाते हेऄ चॊदेयी साड़ी की ववशेषता उसके हकके औय गहये
यॊ ग करात्भक चौड़े फॉडमय तयह साड़ी के फीच भें फड़ा जयी के जरयए ये शभ औय सूती फेर फुटे होते हेऄ चॊदेयी साड़ी
की फनावट ऩय आमा शादी होती है रेककन उसके ऩकरू ऩय ववमबन्न यॊ गेआ धागेआ से सुननमोजजत फड़े आकाय के
फेर-फूटे भोय फतक आहद की आकृनतमाॊ गाड़ी जाती है चॊदेयी साड़ी की रोकवप्रमता प्रदे श के फाहय ववदे शेआ तक
ऩहुॊची है
बीर मबरार भहहराएॊ दै ननक उऩमोग के मरए यॊ गीन धागेआ से सुॊदय कोभर फटुआ औय थैमरमाॊ फनाती हेऄ धाय
झाफुआ ऺेत्र भें करात्भक कोभर फटुआ अत्मधधक रोकवप्रम है बीरी भहहराएॊ उन्हें फनाने भें ऩायॊ ऩरयक रूऩ से
ऩायॊ गत होती है बीर भहहराएॊ तयह-तयह के भोनतमेआ की भारा ऩहनने की अत्मधधक शौकीन होती है मह
भाराएॊ बीरी जस्त्रमाॊ स्वमॊ तैमाय कयती हेऄ बीर रड़ककमाॊ फचऩन भें घय भें अऩने से फड़ी उम्र की भहहराओॊ से
खाना फनाना सीख जाती है भोती भारा की प्रभुख ववशेषता उनकी गुथाफन है जजससे भहहराओॊ भें सुॊदय
जामरमाॊ तथा पूरेआ का आकाय फनता है भारा भें छोटे -छोटे यॊ गीन तथा सपेद भोनतमेआ का उऩमोग अधधकता से
होता है
प्रस्तार शिल्ऩ
भॊदसौय औय यतराभ जजरा इसके केंर कहे जा सकते हेऄ जहाॊ ऩत्थय को ववमबन्न प्रकाय प्रदान कयने वारे श्रेष्ठ
औय ऩयॊ ऩयागत कराकाय भौजूद हेऄ मह मशकऩकाय गुजयम गामयी जाट बीर आहद जानतमेआ औय जनजानतमेआ के
मरए दे वनायामण,फाधा, ऩाठ्मचमाम, नाग फावजी,बेरु फावजी ,याभदे वजी शजक्त भहे श्वयीभाता,नाहय श्री भाता
गऩकमा वीय तेजाजी गणऩनत दग
ु ाम हनभ
ु ान आहद हहॊद ू रोग दे व रोक से जड़
ु ी भनू तममेआ का ननभामण कयते हेऄ इनके
अरावा बी कुछ भूनतममाॊ तथा मशकऩ ऐसे बी फनाते हेऄ
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जजसका भहत्व सौंदमामत्भक अथवा दै ननक उऩमोगी वस्तुओॊ का है दे वड़ा घाट सॊगभयभय की भूनतममाॊ औय
ग्वामरमय ऩौयाखणक दे वी दे वताओॊ की भूनतममाॊ फनाने का केंर है
वऺ
ृ के गेआहदमा यस से राख फनाई जाती है राख को गभम कयके उसभें ववमबन्न यॊ गेआ को मभराकय अरग-अरग
यॊ गेआ के पूर फनाए जाते हेऄ राख का काभ कयने वारी एक जानत का नाभ ही राख है राख कराकाय जानत की
स्त्री ऩुरुष दोनेआ ऩायॊ ऩरयक रुऩ से रखा कभम भें दऺ होते हेऄ
राख के चूड़े करात्भक खखरौने मसॊगाय ऩटे यी डडजब्फमाॊ राख के अरॊकृत ऩशु ऩऺी आहद करात्भक वस्तए
ु ॊ
फनाई जाती है उज्जैन इॊदौय यतराभ भॊदसौय भहे श्वय राख सेकप के ऩयॊ ऩयागत केंर भें से हेऄ !
आहदभ जानतमेआ भें प्रागैनतहामसक कार से ही जीवन औय सौंदमम फहुत ववकमसत हुआ गह
ु ा ग्रहेआ की दीवायेआ ऩय
अरॊकयण औय मशकाय धचत्र इसके प्रभाण है घय की धायणा फनते ही घय की दीवायेआ को अरॊकृत कयने की तीव्र
रारसा बीतो ऩय धचत्र औय अरॊकयण के ववमबन्न रूऩेआ कामम भें सबी जानतमेआ औय जानतमेआ के ग्राभीण
स्थाऩत्म करा भें आज बी हदखाई दे ते हेऄ
भॊडरा के गेआड, फेगा.ऩयधान,फैगा, फेतूर के गेआड, कोयकु,, नछॊ दवाड़ा के गोन्ड़ बारयमा झाफुआ के बीर मबरारा
यीवा शहडोर के गेआड कोर आहद भें ऩायॊ ऩरयक धचत्रकरा आरेखन करा औय मभट्टी से तयह-तयह की करात्भक
जामरमा कोषहठमा ऩशु-ऩऺी भूनतममाॊ स्थानीम दे वी दे वताओॊ की भूनतम फनाने की प्रथा हदखाई दे ती है
भॊडरा जजरे भें ननवास कयने वारी कौन दे गा प्रधान धीभा जेन बायत ऩुननमा औय अयहरयमा जनजानतमेआ के
ऩाटयी औय टे याकोटा मशकऩ के मशकऩी होते हेऄ इस मशकऩ भें धामभमक भान्मताओॊ औय ऩयॊ ऩयाओॊ भें काभ आने
वारी प्रनतबाओॊ का ननभामण होता है इसभें फड़ी दे वी पुरवायी दे वी की प्रनतभाए प्रमसद्ध हेऄ इस मशकऩ भें तयह
तयह के खखरौने सजावटी साभान औय गभरो का ननभामण बी होता है
भरे वा शिल्ऩ:- फैतूर के आहदवासी द्वाया धातु से दै ननक उऩमोग की करात्भक वस्तुएॊ तथा दे वी दे वताओॊ की
भूनतममाॊ फनाई जाती है
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ऩीतऱ शिल्ऩ:- ऩीतर एवॊ ताॊफे से नयमसॊहऩुय जजरे (धचॊचरी) भें करात्भक वस्तुएॊ फनाई जाती है महाॊ प्रभुख
रूऩ से फतमन फनाने का काभ होता है जजसभें ऩयात, डेचकी व गॊज शामभर है
धातु शिल्ऩ:- सतना के उचेहया कस्फे भें कासे से प्रमसद्ध फटरोही नाभक ऩात्र फनाए जाते हेऄ
खखऱौना शिल्ऩ:- सीहोय जजरे के फुधनी तहसीर काष्ठ करा कृनतमेआ के मरए प्रमसद्ध है महाॊ ऩय रकड़ी के
खखरौने फनाए जाते हेऄ
साभान्म अथम का फोध न कयाकय ववशेष अथवा ववरऺण अथम का फोध कयाने वारे ऩदफन्ध को
भुहावया कहते हेः। इन्हेँ वाग्धाया बी कहते हेः।
भुहावया एक ऐसा वाक्माॊश है, जो यचना भेँ अऩना ववशेष अथम प्रकट कयता है । यचना भेँ
बावगत सौन्दमम की दृजष्ट से भुहावयेअ का ववशेष भहत्त्व है । इनके प्रमोग से बाषा सयस, योचक
एवॊ प्रबावऩण
ू म फन जाती है । इनके भर
ू रूऩ भेँ कबी ऩरयवतमन नहीीँ होता अथामत ् इनभेँ से ककसी
बी शब्द का ऩमाममवाची शब्द प्रमुक्त नहीीँ ककमा जा सकता। हाॉ, कक्रमा ऩद भेँ कार, ऩुरुष, वचन
आहद के अनुसाय ऩरयवतमन अवश्म होता है । भुहावया अऩूणम वाक्म होता है । वाक्म प्रमोग कयते
सभम मह वाक्म का अमबन्न अॊग फन जाता है । भह
ु ावये के प्रमोग से वाक्म भेँ व्मॊग्माथम उत्ऩन्न
होता है । अत् भुहावये का शाजब्दक अथम न रेकय उसका बावाथम ग्रहण कयना चाहहए।
प्रभुख भुहावये व उनका अथम:
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– फुद्धधभान।
• अक्र के ऩीछे रठ मरए कपयना
– भूखत
म ा का काभ कयना।
• अऩनी खखचड़ी खुद ऩकाना
– मभरजर
ु कय न यहना।
• अऩना उकरू सीधा कयना
– स्वाथम मसद्ध कयना।
• अऩना सा भॉह
ु रेकय यहना
– रजज्जत होना।
• अयभान ननकारना
– भन का गुफाय ऩूया कयना।
रोकोजक्त का अथम है , रोक की उजक्त अथामत ् जन–कथन। रोकोजक्तमाॉ अथवा कहावतेँ रोक–
जीवन की ककसी घटना मा अन्तकमथा से जड़
ु ी यहती हेः। इनका जन्भ रोक–जीवन भेँ ही होता है ।
प्रत्मेक रोकोजक्त सभाज भेँ प्रचमरत होने से ऩव
ू म भेँ अनेक फाय रोगेअ के अनब
ु व की कसौटी ऩय
कसी गई है औय सबी रोगेअ के अनुबव उस रोकोजक्त के साथ एक से यहे हेः, तफ वह कथन
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सवमभान्म रूऩ से हभाये साभने है । रोकोजक्तमाॉ हदखने भेँ छोटी रगती हेः, ऩयन्तु उनभेँ अधधक
बाव यहता है । रोकोजक्तमेअ के प्रमोग से यचना भेँ बावगत ववशेषता आ जाती है ।
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UNIT II
जनसॊचार
1) रे डडयों- ये डडमेआ जनसॊचाय का सशक्त भाध्मभ यहा है । इसे आकाशवाणी बी कहा जाता है ।
क्मेआकक सभाचायेआ को आकाश भें प्रसारयत कय साभान्म जनता तक ऩहुचामे जाते है । जहा
सभाचाय ऩत्र नहीॊ ऩहुॉचता वहा ये डडमेआ द्वाया जनसॊचाय का कामम होता है । भनोयॊ जनात्भक औय
ऻानवधमक काममक्रभेआ की वजह से ये डडमेआ ननयऺय औय गरयफ जनता भें रोकवप्रम औय प्रबावी
भाध्मभ आज बी है
2) दरू दिशन:- दयू दशमन दृश्म श्राव्म भाध्मभ है । ऩहरे मसपम सभाचाय ये डडमेआ ऩय सन
ू सकते थे ऩय
दयू दशमन के आगभनसे रोग घय ऩय ही ववश्व भें घटीत होने वारी अच्छी फुयी घटना का सीधा
प्रसायण दयू दशमन तयॊ गो द्वाया दे ख औय सून सकते है । इसी कायण वह जनसॊचाय के भाध्मभ भें
प्रबावशारी भाध्मभ फना है । ’’ ’’ अत्वववश्वास तथ साभाजजक कुयीनतमेआ के खखराप दयू दशमन
जफयदस्त धभममुध्द छे ड सकता है औय इसकी ऺभता दयू दशमन भें है । 3) इसी कायण दशमकेआ की
ऩहरी ऩसॊद दयू दशमन है । दयू दशमन ऩय आज कई चैनर है जो हदनबय रगाताय सभाचाय प्रसारयत
कयते यहते है । जजसभें हय घटना का ववस्तत
ृ स्ऩष्टीकयण बी होता है । इसमरए दयू दशमन जनसॊचाय
का एक सशक्त भाध्मभ है ।
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6) इॊटयनेट:- कई कम्प्मट
ू य को जोडने का काभ इॊटयनेट द्वाया होता है । इॊटयनेट की सहामता से
इरेक्राॅॎननक भेर द्वाया हभ ववश्व के ककसी बी कोने भें अऩना सॊदेश कुछ ही ऩर भें बेज
सकते है । साया ववश्व इॊटयनेट द्वाया एक सुत्र भें फाॊध हदमा है । छोटी जानकायी से रेकय फडी
जानकायी आज इॊटयनेट ऩय उऩरध्द है । वतमभान इॊटयनेट जीवन की जरुयत फन गमा है । क्मेआकक
इॊटयनेट का प्रमोग कयके सूचनाओॊ का आदान प्रदान कयने के साथ-साथ मशऺा , साभाजजक ,
सॊफॊध भनोयॊ जन धचककत्सा सॊरग्न जानकायी हभें मभरती है । ववदे श भें यहने वारे रोग इॊटयनेट
ऩय अऩने ववचायेआ को व्मक्त कय सकते है साथ ही बायतीम सभाचाय ऩत्र बी ऩढ सकते है ।
वतमभान भें इॊटयनेट जनसॊचाय का एक सशक्त भाध्मभ फना है । इसके अरावा ऩेजय , सेकमूरय
पोन , पॎक्स आहद द्वाया बी जनसॊचाय का आदान प्रदान फडी सयरता से कय सकते है ।
ऩूयाने जभाने भें जनसॊचाय का कामम धभम प्रचायक , धभम गुरु , औय रोकगीत के भाध्मभसे होता
था साथ ही रोककथा औय रोककरा द्वाया की जनसॊचाय का कामम होता यहा है । स्वतॊत्रता
आॊदोरन के शुरुवानत कार भें जनसॊचाय के ऩयॊ ऩयागत भाध्मभ ही प्रबावी मसध्द हुए है ।
आधनु नक भाध्मभ भें सभाचाय ऩत्र आजबी जनसॊचाय भें प्रबावी भाध्मभ है । कार
क्रभानुसाय इरेक्रोननक भाध्मभ भें ये डडमो ने भनोयॊ जन के साथ ऻानवघमक
जानकायी ऩहुचाने का कामम ककमा है । दयू दशमन ने तो घय - घय भे ॅॊजनसॊचाय के
ऺेत्र भें अऩना स्थान ननजश्चत ककमा है । ववऻाऩन आजकी जरुयत हो गमी है ।
इसभें साभाजजक ववऻाऩन होते है जैसे दहे जफॊदी , फेटी फचाव फेटी ऩढाओॊ ,
ऩरयवाय ननमोजन , स्वच्छता अमबमान ऐसे ववऻाऩनेआ द्वाया बी जनसॊचाय कामम
होता है । कपकभ तो सभाज के हय ऩहरू को छूनत हुई ननयॊ तय अग्रसय होती
नजय आनत है । सभाज की फुयाई सभाज हहत की फात कपकभ द्वाया उजागय
होनत है । कम्प्मट
ू य ऩय इॊटयनॊट द्वाया हभ साये ववश्व की जानकायी का आदान
प्रदान कुछ ही ऩर भें कय सकते है । जजसभें ई - भेर , फडी भहत्वऩण
ू म बमू भका
ननबाता है । इॊटयनेट वतमभान भें जनसॊचाय के ऺेत्र भें सफसे आगे भाना जाता
है ।
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UNIT III
ऩत्रकाररता-एक ऩररचय
ऩत्रकारयता का सॊफॊध सच
ू नाओॊ को सॊकमरत औय सॊऩाहदत कयके आभ ऩाठकेआ तक ऩहुॉचाने से है । रेककन
हय सूचना सभाचाय नहीॊ है । ऩत्रकाय कुछ ही घटनाओॊ, सभस्माओॊ औय ववचायेआ को सभाचाय के रूऩ भें
प्रस्तुत कयते हेऄ। ककसी घटना के सभाचाय फनने के मरए उसभें नवीनता, जनरुधच, ननकटता, प्रबाव जैसे
तत्वेआ का होना जरूयी है ।
. ऩत्रकाररता:
ऐसी सूचनाओॊ का सॊकरन एवॊ सॊऩादन कय आभ ऩाठकेआ तक ऩहुॉचना, जजनभें अधधक से अधधक
रोगेआ की रुधच हो तथा जो अधधक से अधधक रोगेआ को प्रबाववत कयती हेआ, ऩत्रकारयता कहराता
है ।
७. समाचार: सभाचाय ककसी बी ऐसी ताजा घटना, ववचाय मा सभस्मा की रयऩोटम है ,जजसभें अधधक
से अधधक रोगेआ की रुधच हो औय जजसका अधधक से अधधक रोगेआ ऩय प्रबाव ऩड़ता हो ।
८. समाचार के तत्त्व: ऩत्रकारयता की दृजष्ट से ककसी बी घटना, सभस्मा व ववचाय को सभाचाय का
रूऩ धायण कयने के मरए उसभें ननम्न तत्त्वेआ भें से अधधकाॊश मा सबी का होना आवश्मक होता
है : नवीनता, ननकटता, प्रबाव, जनरुधच, सॊघषम, भहत्त्वऩूणम रोग, उऩमोगी जानकारयमाॉ, अनोखाऩन
आहद ।
डेडऱाइन- सभाचाय भाध्मभेआ के मरए सभाचायेआ को कवय कयने के मरमे ननधामरयत सभम-सीभा को
डेडराइन कहते हेऄ।
९. सॊऩादन : प्रकाशन के मरए प्राप्त सभाचाय साभग्री से उसकी अशुद्धधमेआ को दयू कयके
ऩठनीम तथा प्रकाशन मोग्म फनाना सॊऩादन कहराता है ।
१०. सॊऩादकीय:सॊऩादक द्वाया ककसी प्रभुख घटना मा सभस्मा ऩय मरखे गए ववचायत्भक रेख
को, जजसे सॊफॊधधत सभाचायऩत्र की याम बी कहा जाता है , सॊऩादकीम कहते हेऄ।सॊऩादकीम ककसी
एक व्मजक्त का ववचाय मा याम न होकय सभग्र ऩत्र-सभूह की याम होता है, इसमरए सॊऩादकीम भें
सॊऩादक अथवा रेखक का नाभ नहीॊ मरखा जाता ।
११: ऩत्रकाररता के प्रमुख प्रकार:
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ऩत्र रेखन
ऩत्र का महत्व
मदवऩ सच
ू ना तथा दयू सॊचाय तकनीक के अधधक ववकमसत हो जाने के कायण अफ ऩत्रेआ का
रेखन औय प्रेषण फहुत कभ हो गमा है. तथावऩ मा कपय बी ऩत्र रेखन का भहत्व अफ बी
मथावत ् फना हुआ है . ऩत्र रेखन भें कुछ ववशेषताएॊ हेऄ जो सॊदेश बेजने के अन्म भाध्मभेआ
से सॊबव नही है .
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ऩत्र रेखन भें हभ अऩने ववचायेआ को मथारूधच ववस्ताय दे सकते है . ऩत्र भें अऩने बाव सोच
सभझकय अच्छी बाषा भें मरखने का ऩमामप्त अवसय यहता है . ऩत्र भें महद कुछ गरत मा
अशोबनीम मा गरत मरख जाए तो उसे ननयस्त कय ऩन
ु ् दस
ू या ऩत्र मरखा जा सकता है.
ऩत्र को प्रभाण के रूऩ भें कबी तक यखा जा सकता है . कबी कबी तो रोग ऩत्र के भाध्मभ
से सदा के मरए मभत्र फन जाते है .
1. सक्षऺप्तता– ऩत्र भें ववषम का वणमन सॊऺेऩ भें कयना चाहहए. एक ही फात को फाय फाय
दोहयाने की प्रवनृ त से फचना चाहहए.
2. सॊतशु ऱत भाषा का प्रयोग- ऩत्र भें सयर, फोधगम्म बाषा का ही प्रमोग कयना चाहहए. ऐसे
शब्देआ का प्रमोग नही कयना चाहहए, जजन्हें ऩत्र ऩाने वारा नही सभझता हो.
3. तारतम्यता– ऩत्र भें सबी फातें एक तायतम्म भें यखी जानी चाहहए. ऐसा न हो कक
आवश्मक फाते छुट जाए औय कभ भहत्व की फातेआ का अधधकाॉश बाग भें प्रमक्
ु त हो जाए.
ऩत्र भें सबी फातें उधचत क्रभ भें मरखी होनी चाहहए.
4. शिष्टता- ऩत्र भें सॊममभत, ववनम्र औय मशष्ट शब्दावरी का प्रमोग ककमा जाना चाहहए.
कडवाहट बये शब्द मरखना मा अमशष्ट बाषा का प्रमोग कयना सवमथा अनधु चत है .
5. सज्जा- ऩत्र को साफ सथ
ु ये कागज ऩय सर
ु ेख भें मरखा जाए. नतधथ, स्थान व सॊफोधन
मथास्थान मरखने से ऩत्र भें आकषमण फढ़ जाता है .
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जो फातें साभान्मत सबी प्रकाय के ऩत्रेआ भें होती है , उन्हें ऩत्र के आवश्मक अॊग कहते है .
ऩत्रेआ के छ अॊग होते है जो मे है .
सॊबोधन और अशभवादन- मह ऩत्र भें फाई ओय मरखा जाता है. ऩारयवारयक ऩत्रेआ भें सॊफोधन
मरखा जाता है . जैसे ऩज्
ू म वऩताजी, वप्रम बाई आहद. सयकायी औय व्मावसानमक ऩत्रेआ भें
सॊफोधन की ववधध ननधामरयत होती है
अनौऩचारयक ऩत्रेआ भें बेजने वारे के ऩते के नीचे, हदनाकॊ, भहहना औय सन मरखा जाता
है . औऩचारयक ऩत्रेआ भें हदनाकॊ सफसे नीचे मरखा जाता है .
मह ऩत्र का भख्
ु म बाग है . इसी भें सभाचाय सच
ू नाएॉ, आवेदन, आदे श व मशकामत आहद
अरग अरग अनच्
ु छे देआ भें मरखा जाता है .
ऩत्र के अॊत भें फाई ओय ही ऩत्र मरखने वारे के द्वाया अऩने सम्फन्ध मा ऩड़ के अनरू
ु ऩ
शब्द मथा बवदीम, आऩका, आऻाकायी, शब
ु ेच्छु आहद मरखकय नीचे अऩने हस्ताऺय
ककमे जाते है .
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भेजने वाऱे का ऩता-फाई ओय ऩत्र बेजने वारे का ऩता मरखा जाता है . इससे ऩत्र प्राप्त
कयने वारे को, ऩत्र बेजने वारे का सही सही ऩता ऻात हो जाता है . औय उसे उतय बेजने
भें कहठनाई नही होती है .
ऩत्र ऩाने वाऱे का ऩता– ऩत्र सभाजप्त के फाद ऩोस्टकाडम, अॊतयदे शीम ऩत्र तथा मरफाफे ऩय
ऩत्र ऩाने वारे का स्ऩष्ट ऩता मरखा जाता है . ऩते के साथ वऩनकोड अवश्म मरखना
चाहहए.
सम्फोधन, अमबवादन तथा ऩत्र के अॊत भें प्रमक्
ु त होने वारे शब्देआ के कुछ उदहायण
गरु
ु जनों और ऩररवार के ब़िे ऱोगों को
बराबर वाऱों को
छोटों को
ऩररचचत को
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अऩररचचत को
ककसी अचधकारी को
औऩचारयक ऩत्र व्मवहाय उन व्मजक्तमेआ के साथ ककमा जाता है . जजनके साथ ऩत्र रेखक
का कोई ननजी मा ऩारयवारयक सम्फन्ध नही होता है . औऩचारयक ऩत्रेआ भें व्मजक्तगत
सभाचाय ऩय फातचीत अथवा आत्भीमता का कोई स्थान नही होता है . इस प्रकाय के ऩत्रेआ
भें भख्
ु म तथ्म ही केंर होता है .
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तथा व्मजक्तगत फातेआ का उकरेख बी ककमा जाता है . अनौऩचारयक ऩत्रेआ भें ननम्नमरखखत
प्रकाय के ऩत्र यखे जा सकते है .
फधाई ऩत्र
शब
ु काभना ऩत्र
ननभॊत्रण ऩत्र
ववशेष अवसयेआ ऩय मरखे गमे ऩत्र
साॊत्वना ऩत्र
ककसी प्रकाय की जानकायी दे ने के मरए
कोई सराह आहद दे ने के मरए
ऩत्र शऱखते समय ध्यान रखने योग्य सावधातनयाॉ (Letter writing to keep in mind
considerations)
1. ऩत्र रेखक तथा प्राऩक की आम,ु मोग्मता, ऩद आहद का ध्मान यखा जाना चाहहए
2. ऩत्र सायगमबमत होना चाहहए
3. ऩत्र सर
ु ेख भें मरखा होना चाहहए
4. ऩत्र भें सयर बाषा का प्रमोग ककमा जाना चाहहए
5. ऩत्र भें ववषम हदनाॊक, बेजने वारे का नाभ आहद का स्ऩष्ट उकरेख ककमा जाना चाहहए.
6. ऩत्र भें काट छाॊट नही होनी चाहहए.
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UNIT IV
हभाये दे श का सॊववधान 2 वषम, 11 भाह तथा 18 हदन की अवधध भें ननमभमत हुआ तथा 26 जनवयी, 1950
को रागू हुआ था। स्वतॊत्रता प्राजप्त से ऩूवम दे श भें स्वतॊत्रता आॊदोरन के साथ-साथ हहॊदी को दे श की
याष्रबाषा फनामे जाने की सवामधधक भाॊग की जाती यही थी।
सॊववधान ननभामताओॊ ने हहॊदी को याष्रबाषा फनाए जाने की भाॊग को दृजष्टगत यखते हुए सॊववधान सबा ने
14/9/1949 को हहॊदी को सॊघ की याजबाषा स्वीकाय कयते हुए याजबाषा हहॊदी के सॊफॊध भें प्रावधान ककए।
सॊववधान के बाग 5 एवॊ 6 के क्रभश: अनुच्छे द 120 तथा 210 भें तथा बाग 17 के अनुचछे द 343, 344,
345, 346, 347, 348, 349, 350 तथा 351 भें याजबाषा हहॊदी के सॊफॊध भें ननम्न प्रावधान ककमे गए हेऄ।
इन प्रावधानेआ के साथ ही सॊप्रनत बायत की 22 बाषाओॊ को सॊववधान की अनुसूची-8 भें भान्मता दी गई है ।
मे बाषाएॉ इस प्रकाय हेऄ-
हहॊदी, ऩॊजाफी, उदम ,ू कश्भीयी, सॊस्कृत, असमभमा, ओडड़मा, फाॊगरा, गुजयाती, भयाठी, मसॊधी, तमभर, तेरुग,ु
भरमारभ, कन्नड़, भखणऩुयी, केआकणी, नेऩारी, सॊथारी, भैधथरी, फोड़ो ता डोगयी।
सन 1967 भें 21वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया मसॊधी बाषा 8वीॊ अनुसूची भें जोड़ी गई थी। सन 1992 भें
71वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया केआकणी, नेऩारी तथा भखणऩुयी बाषाएॉ 8वीॊ अनुसूची भें जोड़ी गई थीॊ। सन
2003 भें 92वें सॊववधान सॊशोधन द्वाया सॊथारी, भैधथरी, फोडो तथा डोगयी बाषाएॉ 8वीॊ अनुसूची भें जोड़ी
गई थीॊ।
अनुवाद का अथश
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‘अनव
ु ाद’ का अथम- अॊग्रेजी भें एक कथन है : ‘Terms are to be identified before we enter into the
argument’ इसमरए अनव
ु ाद की चचाम कयने से
ऩहरे ‘अनव
ु ाद’ शब्द भें ननहहत अथम औय भर
ू अवधायणा से ऩरयधचत होना
आवश्मक है । ‘अनुवाद’ शब्द सॊस्कृत का मौधगक शब्द है जो ‘अनु’ उऩसगम
तथा ‘वाद’ के सॊमोग से फना है । सॊस्कृत के ‘वद्’ धातु भें ‘घञ’ प्रत्मम जोड़
दे ने ऩय बाववाचक सॊऻा भें इसका ऩरयवनतमत रूऩ है ‘वाद’। ‘वद्’ धातु का
अथम है ‘फोरना मा कहना’ औय ‘वाद’ का अथम हुआ ‘कहने की कक्रमा’ मा
‘कही हुई फात’। ‘अन’ु उऩसगम अनुवनतमता के अथम भें व्मवरृत होता है । ‘वाद’
भें मह ‘अन’ु उऩसगॅ्म ा जुड़कय फनने वारा शब्द ‘अनुवाद’ का अथम हुआ-’प्राप्त
कथन को ऩुन: कहना’। महाॉ ध्मान दे ने की फात मह है कक ‘ऩुन: कथन’ भें
अथम की ऩुनयाववृ त्त होती है , शब्देआ की नहीॊ। हहन्दी भें अनुवाद के स्थान ऩय
प्रमुक्त होने वारे अन्म शब्द हेऄ : छामा, टीका, उकथा, बाषान्तय आहद। अन्म
बायतीम बाषाओॊ भें ‘अनुवाद’ के सभानान्तय प्रमोग होने वारे शब्द हेऄ :
बाषान्तय(सॊस्कृत, कन्नड़, भयाठी), तजभ
ुम ा (कश्भीयी, मसॊधी, उदम )ू , वववतमन,
तज्र्जुभा(भरमारभ), भोवषमे चण्र्मु(तमभर), अनुवादभ ्(तेरुगु), अनुवाद (सॊस्कृत,
हहन्दी, असमभमा, फाॊग्रा, कन्नड़, ओडड़आ, गुजयाती, ऩॊजाफी, मसॊधी)।
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भें गरु
ु द्वाया उच्चरयत भॊत्रेआ को मशष्मेआ द्वाया दोहयामे जाने को ‘अनव
ु चन’ मा
‘अनव
ु ाक् ’ कहा जाता था, जो ‘अनव
ु ाद’ के ही ऩमामम हेऄ। भहान ् वैमाकयण
ऩाखणनी ने अऩने ‘अष्टाध्मामी’ के एक सत्र
ू भें अनव
ु ाद शब्द का प्रमोग ककमा
है : ‘अनव
ु ादे चयणानाभ ्’। ‘अष्टाध्मामी’ को ‘मसद्धान्त कौभद
ु ी’ के रूऩ भें
प्रस्तुत कयने वारे बट्टोजज दीक्षऺत ने ऩाखणनी के सूत्र भें प्रमुक्त ‘अनुवाद’
शब्द का अथम ‘अवगताथमस्म प्रनतऩादनभ ्’ अथामत ् ‘ऻात तथ्म की प्रस्तुनत’ ककमा
है । ‘वात्स्मामन बाष्म’ भें ‘प्रमोजनवान ् ऩुन:कथन’ अथामत ् ऩहरे कही गई फात
को उद्दे श्मऩूणम ढॊ ग से ऩुन: कहना ही अनुवाद भाना गमा है । इस प्रकाय
बतय्ॅृहरय ने बी अनुवाद शब्द का प्रमोग दहु याने मा ऩुनकमथन के अथम भें ककमा
है : ‘आववृ त्तयनुवादो वा’। ‘शब्दाथम धचन्ताभखण’ भें अनुवाद शब्द की दो
व्मुत्ऩवत्तमाॉ दी गई हेऄ : ‘प्राप्तस्म ऩुन: कथनभ ्’ व ‘ऻाताथमस्म प्रनतऩादनभ ्’।
प्रथभ व्मुत्ऩवत्त के अनुसाय ‘ऩहरे कहे गमे अथम ग्रहण कय उसको ऩुन: कहना
अनुवाद है ’ औय द्ववतीम व्मुत्ऩवत्त के अनुसाय ‘ककसी के द्वाया कहे गमे को
बरीबाॉनत सभझ कय उसका ववन्मास कयना अनुवाद है । दोनेआ व्मुत्ऩवत्तमेआ को
मभराकय अगय कहा जाए ‘ऻाताथमस्म ऩुन: कथनभ ्’, तो जस्थनत अधधक स्ऩष्ट
हो जाती है । इस ऩरयबाषा के अनुसाय ककसी के कथन के अथम को बरीबाॉनत
सभझ रेने के उऩयान्त उसे कपय से प्रस्तुत कयने का नाभ अनुवाद है ।
सॊस्कृत भें ‘अनुवाद’ शब्द का प्रमोग फहुत प्राचीन होते हुए बी हहन्दी
भें इसका प्रमोग फहुत फाद भें हुआ। हहन्दी भें आज अनुवाद शब्द का अथम
उऩमक्
ुम त अथों से मबन्न होकय केवर भूर-बाषा के अवतयण भें ननहहत अथम
मा सन्दे श की यऺा कयते हुए दस
ू यी बाषा भें प्रनतस्थाऩन तक सीमभत हो गमा
है । अॊग्रेजी ववद्वान भोननमय ववमरमम्स ने सवमप्रथभ अॊग्रेजी भें ‘translation’
शब्द का प्रमोग ककमा था। ‘अनुवाद’ के ऩमामम के रूऩ भें स्वीकृत अॊग्रेजी
‘translation’ शब्द, सॊस्कृत के ‘अनुवाद’ शब्द की बाॉनत, रैहटन के ‘trans’
तथा ‘lation’ के सॊमोग से फना है , जजसका अथम है ‘ऩाय रे जाना’-मानी एक
स्थान बफन्द ु से दस
ू ये स्थान बफन्द ु ऩय रे जाना। महाॉ एक स्थान बफन्द ु
‘स्रोत-बाषा’ मा ‘Source Language’ है तो दस
ू या स्थान बफन्द ु ‘रक्ष्म-बाषा’
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अनुवाद के प्रकार
अनुवाद के तीन प्रकाय हेऄ।
(1) िब्दानव
ु ाद (Literal translation)- मह भर
ू बाषा का शाजब्दक अनव
ु ाद हेऄ।
उदाहरणाथश- He first went to school in his own village, but while he was yet very
young he went to Calcutta इसका शब्दानुवाद इस प्रकाय होगा- 'ऩहरे वह अऩने ही गाॉव की
ऩाठशारा भें ऩढ़ने गमा। फाद भें, जफ वह फहुत छोटा ही था, तबी उसे करकत्ता ऩढ़ने जाना ऩड़ा।'
महाॉ 'He went to Calcutta का सीधा-सादा अनुवाद 'वह करकत्ता गमा' कय दे ना ठीक नहीॊ
जॉचता क्मेआकक महाॉ चचाम मशऺा की हो यही हेऄ। महाॉ इसका अनुवाद 'ऩढ़ने जाना ऩड़ा' मरखना ठीक
होगा।
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इसी प्रकाय अॉग्रेजी का एक ऩद है 'To be patient with' जजसका अथम होता है - ककसी उद्धत मा
अनुधचत व्मवहाय ऩय बी शान्त यहना, गभ खाना मा तयह दे जाना आहद। अॉग्रेजी के एक वाक्म भें
इसका प्रमोग 'being patient with' के रूऩ भें हुआ था। हहन्दी के एक ऩत्रकाय ने बफना सभझे-
फूझे उस वाक्म का इस प्रकाय शब्दानुवाद कयके यख हदमा था- 'याष्रऩनत रूजफेकट श्री ववन्स्टे न
चधचमर के भयीज हेऄ।' 'Patient' शब्द हदखाई ऩड़ा औय उसका सीधा-साधा अथम 'भयीज' कयके यख
हदमा। ...... एक फाय जफ फॊगार के एक प्रधान भॊत्री ढाका का दॊ गा शान्त कयाने के मरए वहाॉ गमे
थे, तफ उनकी उस 'flying visit' के सम्फन्ध भें एक ऩत्र भें मरखा हदमा था- 'वे हवाई जहाज से
ढाका गमे थे।''
(2) भावानुवाद (Faithful translation)- रेखक के भूर बावेआ मा अथों को अऩनी बाषा भें प्रकट
कय दे ना 'बावानुवाद' है । अॉग्रेजी भें इसे 'Faithful translation' कहते हेऄ। इसभें मह दे खना ऩड़ता
है कक भूर बाषा का एक बी बाव छूटने न ऩामे। इसकी सपरता इस फात भें है कक भूर बाषा के
सबी बाव दस
ू यी बाषा भें रूऩान्तरयत हो जामॉ। महाॉ अनुवादक का ध्मान शब्देआ ऩय न जा कय
ववशेष रूऩ से भूर बाव ऩय यहता हेऄ।
''बावानव
ु ाद भें हभ भर
ू बाषा के शब्देआ को तोड़-भयोड़ सकते हेऄ, वाक्मेआ को आगे-ऩीछे कय सकते
हेऄ, भुहावयेआ को अऩने साॉचे भें ढार सकते हेऄ, रेककन वाक्मेआ को अऩने इच्छानुसाय घटा-फढ़ा नहीॊ
सकते। बावानुवाद तात्ऩमम भें, आकाय-प्रकाय भें, भूर बाषा से बफककुर मभरता-जुरता हेऄ। इसभें
न अऩनी ओय से ननभक-मभचम रगा सकते हेऄ, न रम्फी-चौड़ी बूमभका फाॉध सकते हेऄ। जो फात जजस
उद्दे श्म को रे कय जजस ढॊ ग से कही गमी हेऄ, उस फात को, उसी उद्दे श्म से औय जहाॉ तक हो उसी
ढॊ ग से कहना ऩड़ता हेऄ।''
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UNIT V
1- /keZ dh vo/kkj.kk%
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1- fgUnw /keZ
2- ckS) /keZ
3- tSu /keZ
4- flD[k /keZ
5- bLyke /keZ
6- bZlkbZ /keZ
7- ikjlh /keZ
8- ;gwnh /keZ
1- fgUnw /keZ& fgUnw /keZ dks lukru /keZ vFkok oSfnd /keZ ds uke ls Hkh tkuk tkrk gSA
fgUnw /keZ fdlh ,d izorZd ;k /keZxzaFk ds uke ds uke ij fodflr u gksdj cgqvk;keh
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_’kHknso dks ekuk tkrk gS bl /keZ ds 23osa rhFkZdj ik‛oZukFk FksA ik‛oZukFk dk tUe
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3- jkenkl ve`rlj dh LFkkiuk dhA
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6- bZlkbZ /keZ& igyh ‚krkCnh esa lsaV Fkkel izFke dh Hkkjr&;k=k ls gh bZlkbZ /keZ dk
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सत्म के प्रमोग
ग ांधी की ‘ाअत्मकथ ’ जो ाऄांग्रेजी में प्रससद्ध हुाइ है; ाईसके ाऄसली स्वरूप में तथ ाईसमें जो ‘दसिण ाऄफ्रीक
क सत्य ग्रह क ाआसतह स’ है, ाआन दोनों के कु ल पुष्ठ करीब एक हज र होते हैं। ाआन दोनों पुस्तकों के कथ वस्तु
को पहली ब र सांसिप्त करके ाआकट्ठ करके प्रस्तुत करने क प्रय स ककय गय है। क्योंकक ग ांधीजी की शैली
ही सांसिप्त में कहने की है ाआससलए यह क यय सरल नहीं है। एक ब त और भी है कक वे सद सजतन ाईदेश्य
पूणय महत्व क हो ाईतन ही कहते हैं। ाऄताः ाईन्होंने जो भी कु छ सलख है, ाईसमें क ट-छ ट करने से पहले दो
ब र सोचन ही पडेग ।
ाअधुसनक प ठक ग ांधीजी की ‘ाअत्मकथ ’ ‘सांसिप्त मे म ाँगत है। ाईसकी ाआस म ाँग को मद्देनज़र रखते हुए तथ
स्कू ल-क लेजों के युव -सवद्य र्थथयों के सलये यह सांसिप्त ाअवृसिय ाँ तैय र की गयी है। ाऄसल ग्रन्थ क स्थ न
तो यह सांसिप्त ाअवृसि कभी नहीं ले सके गी; लेककन ऐसी ाअश रखन ाऄवश्य ाऄपेसित है कक यह सांिेप
प ठक में सजज्ञ स ाऄवश्य ाईत्पन्न करे ग और ब द में ाऄपनी ाऄनुकूलत से जब फु रसत समलेगी तब ाऄसली
ग्रन्थ क ाऄध्ययन करे ग
ाअत्मकथ सलखने क मेर ाअशय नहीं है। मुझे तो ाअत्मकथ के बह ने सत्य के जो ाऄनेक प्रयोग मैंने ककये हैं,
ाईसकी कथ सलखनी है। ाईसमें मेर जीवन ओतप्रोत होने के क रण कथ एक जीवन ओतप्रोत होने के क रण
कथ एक जीवन-वृि न्त जैसी बन ज येगी, यह सहीं है; लेककन ाईसके हर पन्ने पर मेरे प्रयोग ही प्रकट हो तो
मैं स्वयां ाआस कथ को सनदोष म नूाँग । मैं ऐस म नत हाँ कक मेरे सब प्रयोगों क पूर लेख जनत के स मने
रहे, तो वह ल भद यक ससद्ध होग ाऄथव यों समसझये कक मेर मोह है। र जनीसत के िेत्र में हुए प्रयोगों को
तो ाऄब सहन्दुस्त न ज नत है, लेककन मेरे ाअध्य सत्मक प्रयोगों को, सजन्हें मैं ज न सकत हाँ, और सजनके
क रण र जनीसत के िेत्र में मेरी शसि भी जन्मी है, ाईन प्रयोगों क वणयन करन मुझे ाऄवश्य ही ाऄच्छ
लगेग । ाऄगर ये प्रयोग सचमुच ाअध्य सत्मक हैं तो ाआनमें गवय करने की गुांज ाआश ही नहीं। ाआनमें तो के वल
नम्रत की ही वृसद्ध होगी। ज्यों-ज्यों मैं ाऄपने भूतक ल के जीवन पर दृसि ड लत ज त हाँ, त्यों-त्यों ाऄपनी
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मुझे जो करन है, तीस वषों से मैं सजसकी ाअतुर-भ व से रट लग ये हुए हाँ वह तो ाअत्मदशयन है,. ाइश्वर क
स ि त्क र है, मोि है। मेरे स रे क म ाआसी दृसि से होते हैं। मेर सब लेखन भी ाआसी दृसि से होत है; और
मेर र जनीसत के िेत्र में पडन भी ाआसी वस्तु के ाऄधीन है। लेककन ठे ठ से ही मेर यह मत रह है कक जो
एक के सलए शक्य है, वह सबके सलये भी शक्य है। ाआस क रण मेरे प्रयोग ख नगी नहीं हुए-नहीं रहे। ाईन्हें
सब देख सके , तो मुझे नहीं लगत कक ाईससे ाईनकी ाअध्य सत्मकत कम होगी। ऐसी कु छ चीजें ाऄवश्य हैं कक
सजन्हें ाअत्म ही ज नती है, जो ाअत्म में ही सम ज ती हैं परन्तु ऐसी वस्तु देन , यह मेरी शसि से परे की
ब त है। मेरे प्रयोगों में ाअध्य सत्मकत क मतलब है नैसतक, धमय क ाऄथय है नीसत; ाअत्म की दृसि से प ली
गयी नीसत ही धमय है।
ाआससलये सजन वस्तुओं क सनणयय ब लक, नौजव न और बूढें करते है और कर सकते है, ाआस कथ में ाईन्हीं
वस्तुओं क सम वेश होग । ाऄगर ऐसी कथ में मैं तटस्थ भ व से सनरसभम न रहकर सलख सकूाँ , तो ाईसमें से
दूसरे प्रयोग करने व लों को कु छ स मग्री समलेगी। ाआन प्रयोगों के ब रे में मैं ककसी भी प्रक र की सम्पूणयत क
द व नहीं करत । सजस तरह वैज्ञ सनक ाऄपने प्रयोग ाऄसतशय सनयमपूवयक, सवच रपूवयक और ब रीकी से
करत है, कफर भी ाईसमें ाईत्पन्न पररण मों को वह ाऄसन्तम नहीं करत ाऄथव वे पररण म सत्य ही हैं, ाआस
ब रे में मेर भी वैस ही द व है मैंने खूब ाअत्मसनरीिण ककय है; एक-एक भ व की ज ाँच की है, ाईसक
पृथक्करण ककय हैं। ककन्तु ाईसमें से सनकले हुए पररण म सबके सलये ाऄसन्तम ही है, वे सच हैं ाऄथव वे ही
सच है ऐस द व मैं कभी करन नहीं च हत । ह ाँ यह द व मैं ाऄवश्य करत हाँ कक मेरी दृसि से ये सच हैं
और ाआस समय तो ाऄसन्तम जैसे ही म लूम होते हैं। ाऄगर न म लूम हो तो मुझे ाईनके सह रे कोाइ भी क यय
खड नहीं करन च सहये। लेककन मैं तो पग-पग पर सजन-सजन वस्तुओं को देखत हाँ ाईनके त्य ज्य और
ग्र ह्य-ऐसे दो भ ग कर लेत हाँ, और सजन्हें ग्र ह्य समझत हाँ, ाईनके ाऄनुस र ाऄपन ाअचरण बन लेत हाँ।
और जब तक ाआस तरह बन हुाअ ाअचरण मुझे, ाऄथ यत् मेरी बुसद्ध को और मेरी ाअत्म को सन्तोष देत है ,
तब तक मुझे ाईसके शुभ पररण मों के ब रे में ाऄसवचसलत सवश्व स रखन ही च सहए।
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मैं तो ससफय यह च हत हाँ कक ाईनमें बत यें गये प्रयोगों को दृि न्तरूप म नकर सब ाऄपने-ाऄपने प्रयोग
यथ शसि करें । मुझे सवश्व स है कक ाआस सांकुसचत िेत्र में ाअत्मकथ के मेरे लेखों से बहुत कु छ समल सके ग ;
क्योंकक कहने योग्य एक भी ब त मैं सछप ाउाँग नहीं। मुझे ाअश है कक मैं ाऄपने दोषों क खय ल प ठकों को
पूरी तरह दे सकूाँ ग । मुझे सत्य के श स्त्रीय प्रयोगों क वणयन करन हैं; मैं ककतन भल हाँ, ाआसक वणयन करने
की मेरी तसनक भी ाआच्छ नहीं होती है। सजस गज से स्वयां मैं ाऄपने को म पन च हत हाँ सजसक ाईपयोग
हम सबको ाऄपने-ाऄपने सवषय में करन च सहये, ाईसके ाऄनुस र तो मैं ाऄवश्य कहाँग कक ‘ाईनसे’ तो ाऄभी मैं
दूर हाँ।
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