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उत्तय
र्र्ाव ऋतु भें भौसभ फदरता यहता है । ते ज़ र्र्ाव होती है । जर ऩहाड़ों के नीचे इकट्ठा
होता है तो दऩवण जैसा रगता है । ऩर्व त भारांॊ ऩय ननिगनत पल र खिर जाते हैं ।
ऐसा रगता है कक ननेक़ों नेत्र िोरकय ऩर्वत दे ि यहा है । ऩर्वत़ों ऩय फहते झयने
भानो उनका गौयर् गान गा यहे हैं । रॊफे – रॊ फे र् ऺ
ृ आसभान को ननहायते िचॊताभग्न
ददिाई दे यहे हैं । नचानक कारे – कारे फादर निय आते हैं । ऐसा रगता है भानो फादर
रुऩी ऩॊ ि रगाकय ऩर्वत उडना चाहते हैं । कोहया धु एॉ जै सा रगता है । इॊ द्र दे र् ता फादऱों
के मान ऩय फै ठकय नए–नए जाद ल ददिाना चाहते हैं ।
2. भेि राकाय‘ शब्द का क्मा नथव है ? कवर् ने इस शब्द का प्रमोग महाॉ क्म़ों ककमा है ?
उत्तय : भेिराकाय का नथव है गोर, जैसे – कभयफॊ ध । महाॉ इस शब्द का प्रमोग ऩर्वत़ों
की श्ॊ ि
ृ रा के लरए ककमा गमा है । मे ऩार्स ऋतु भें द यल –द यल तक गोर आकृ नत भें
पै रे हु ए हैं ।
3. सहस्र दृग–सु भ न‘ से क्मा तात्ऩमव है ? कवर् ने इस ऩद का प्रमोग ककसके लरए ककमा
होगा?
उत्तय :
ऩर्वत़ों ऩय हज़ाय़ों यॊ ग -बफयॊ गे पल र खिरे हु ए हैं । कवर् को ऩहाड़ों ऩय खिरे हज़ाय़ों पल र
ऩहाड की आॉ ि़ों के सभान रगते हैं । मे ने त्र नऩने सुॊ द य वर्शारकाम आकाय को नीचे
ताराफ के जर रुऩी दऩवण भें आश्चमवच ककत हो ननहाय यहे हैं ।
4. कवर् ने ताराफ की सभानता ककसके साथ ददिाई है औय क्म़ों?
उत्तय
कवर् ने ताराफ की सभानता दऩवण से की है । जजस प्रकाय दऩवण से प्रनतबफॊफ स्र्च्छ र्
स्ऩष्ट ददिाई दे ता है , उसी प्रकाय ताराफ का जर स्र्च्छ औय ननभवर होता है । ऩर्वत
नऩना प्रनतबफॊफ दऩवण रुऩी ताराफ के जर भें दे ि ते हैं ।
5. ऩर्वत के हृदम से उठकय ऊॉचे – ऊॉ चे र् ऺ
ृ आकाश की औय क्म़ों दे ि यहे थे औय र्े
ककस फात को प्रनतबफॊबफत कयते हैं ?
उत्तय :
उत्तय :ऊॉचे - ऊॉ चे ऩर्वत ऩय उगे र् ऺ
ृ आकाश की ंय दे ि ते िचॊताभग्न प्रतीत हो यहे हैं ।
जैसे र्े आसभान की उॉ चाइम़ों को छल ना चाहते हैं । इससे भानर्ीम बार्नांॊ को
फतामा गमा है कक भनु ष्म सदा आगे फढ़ने का बार् नऩने भन भें यिता है ।
6. शार के र्ऺ
ृ बमबीत होकय धयती भें क्म़ों धॉस गए?
उत्तय-
कवव के अनुसाय वषाा इतनी तेज़ औय भूसराधाय थी कक ऐसा रगता था भानो
आकाश धयती ऩय टूट ऩडा हो। चायों तयप धआ
ु ॉ-सा उठता प्रतीत होता है । ऐसा रगता
है भानो ताराफ भें आग रग गई हो। चायों ओय कोहया छा जाता है , ऩवात, झयने आदद
सफ अदृश्म हो जाते हैं। वषाा के ऐसे बमॊकय रूऩ को दे खकय ही शार के वऺ
ृ बमबीत
होकय धयती भें पॉसे हुए प्रतीत होते हैं।
7.
झयने ककसके गौयर् का गान कय यहे हैं? फहते हुए झयने की तर
ु ना ककससे की गई है ?
उत्तय-
ऩवातों की ऊॉची चोदटमों से ‘सय-सय कयते फहते झयने दे खकय ऐसा प्रतीत होता है , भानों वे
ऩवातों की उच्चता व भहानता की गौयव-गाथा गा यहे हों। जहाॉ तक फहते हुए झयने की तर
ु ना
का सॊफधॊ है तो फहते हुए झयने की तर
ु ना भोती रूऩी रडडमों से की गई है ।
ि) ननम्नलरखित का बार् स्ऩष्ट कीजजए-
प्रश्न 1.
है टलट ऩडा बल ऩय नॊफय!
उत्तय-
इसका बाव है कक जफ आकाश भें चायों तयफ़ असॊख्म फादर छा जाते हैं , तो वातावयण
धध
ॊु भम हो जाता है औय केवर झयनों की झय-झय ही सन
ु ाई दे ती है , तफ ऐसा प्रतीत
होता है कक भानों धयती ऩय आकाश टूट ऩडा हो।
प्रश्न 2.
- म़ों जरद-मान भें वर्चय-वर्चय
था इॊद्र िेरता इॊद्रजार।
उत्तय-
ऩवातीम प्रदे श भें वषाा ऋतु भें ऩर-ऩर प्रकृतत के रूऩ भें ऩरयवतान आ जाता है । कबी गहया
फादर, कबी तेज़ वषाा व ताराफों से उठता धआ
ु ॉ। ऐसे वातावयण को दे खकय रगता है भानो
वषाा का दे वता इॊद्र फादर रूऩी मान ऩय फैठकय जाद ू का खेर ददखा यहा हो। आकाश भें
उभडते-घभ
ु डते फादरों को दे खकय ऐसा रगता था जैसे फडे-फडे ऩहाड अऩने ऩॊखों को पडपडाते
हुए उड यहे हों। फादरों का उडना, चायों ओय धुआॉ होना औय भस
ू राधाय वषाा का होना मे सफ
जाद ू के खेर के सभान ददखाई दे यहे थे।
प्रश्न 3.
गगरयवय के उय से उठ-उठ कय
उच्चाकाॊऺाओॊ से तरुवय
हैं झाॉक यहे नीयव नब ऩय
अतनभेष, अटर, कुछ गचॊताऩय।
उत्तय-
इस अॊश का बाव है कक ऩवातीम प्रदे श भें वषाा के सभम भें ऺण-ऺण होने वारे प्राकृततक
ऩरयवतानों तथा अरौककक दृश्मों को दे ख कय ऐसा प्रतीत होता है , जैसे इॊद्र दे वता ही अऩना
इॊद्रजार जरद रूऩी मान भें घभ
ू -घभ
ू कय पैरा यहा है , अथाात ् फादरों का ऩवातों से टकयाना औय
उनहीॊ फादरों भें ऩवातों व ऩेडों का ऩरबय भें तछऩ जाना, ऊॉचे-ऊॉचे ऩेडों का आकाश की ओय
तनयॊ तय ताकॊना, फादरों के भध्म ऩवात जफ ददखाई नहीॊ ऩडते तो रगता है , भानों वे ऩॊख
रगाकय उड गए हों आदद, इॊद्र का ही पैरामा हुआ भामाजार रगता है ।
कवर्ता का सौंदमव :
प्रश्न 1) इस कवर्ता भें भानर्ीकयण नरॊकाय का प्रमोग ककस प्रकाय ककमा गमा है ?
स्ऩष्ट कीजजए।
उत्तय-इस कववता भें भानवीकयण अरॊकाय का प्रमोग ववववधताऩव
ू क
ा ककमा गमा है ।
कवव के लरए प्रकृतत के सफ अॊग भानवीम चेतना से ऩरयऩण
ू ा हैं। उनहें झयने मशोगान
कयने वारे गामक प्रतीत होते हैं। ऩहाड हज़ाय-हज़ाय आॉखों से अऩना ववशार आकाय
तनहायता हुआ ववयाट दे व प्रतीत होता है । ताराफ बी ऩहाड की कृऩा से ऩालरत लशशु
प्रतीत होता है । ऩेड उच्च आकाॊऺा से प्रेरयत होकय शाॊत आकाश को छूने के लरए
ववचायभग्न-से प्रतीत होते हैं। कवव को रगता है कक अचानक उठे फादर कोई उडता
हुआ ऩहाड है जो फादर रूऩी ऩॊख पडपडाकय उड गमा है । फादरों का अचानक फारयश
कयना उनहें आक्रभण प्रतीत होता है । शार के वऺ
ृ बमबीत रगते हैं। प्रकृतत की मे
सफ कौतुक-क्रीडाएॉ बगवान इॊद्र का खेर प्रतीत होती हैं। भानवीकयण का उदाहयण -
• गगरयवय के उय से उठ-उठ कय
इनभें झय-झय तथा उठ-उठ अऩेऺाकृत गततशीर ऩुनरुक्ततमाॉ है । मे कक्रमा शब्द होने के कायण कववता
की गतत औय शक्तत को तीव्र कयते हैं।
(ख) शब्दों की गचत्रभमी बाषा –ऩॊत जी ने गचत्रात्भक शब्दों के द्वाया कववता भें सौंदमा उत्ऩनन ककमा है ।
उदाहयणतमा
- इसभें ऩहाड ऩय उगे पूरों को आॉख पाड ववशार व्मक्ततत्व के सभान गचत्रत्रत ककमा गमा है।
(ग) कववता की सॊगीतात्भकता - इस कववता भें सॊगीत रम तुक का बी ध्मान यखा गमा है। कवव ने
अॊत्मानुप्रास का तनवााह ककमा है । ऩयॊ तु हभ कह सकते है कक इस कववता भें शेष दोनों उऩमत
ु त गुण
अगधक प्रफर हैं।