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उत्तर – तालऱका

(2018-19)
हिन्दी ‘ब’
कक्षा – दसव ीं

लनधााररत समय: 3 घींटे अलधकतम अींक : 80

खींड - क

उत्तय – 1) वे इॊ सान जी ईश्वय की सत्ता भें ववश्वास यखते हैं मा जड़ता भें यहते हैं , वे (2)
सुखी यहते हैं , इसका कायण मह है कक वे उन चीजों को जो उनके वश भें
नह ॊ है , ईश्वय ऩय छोड़कय ननश्चॊत हो जाते हैं ।
सॊदेह वाद वे होते हैं जो न जड़ता को ऩूय तयह स्वीकाय कयते हैं तथा न (2)
ईश्वय के आश्स्तत्व को ऩूय तयह नकायते हैं वे ननयतॊय वेदना भें यहते हैं ।
सॊदेहवाद रोक के सुख से इसनरए वॊनचत यहते हैं क्मोंकक वे जानवय (2)
फनकय जीने को तैमाय नह ॊ हैं औय ऩयरोक के अनादय से इसनरए वॊनचत
यहते है क्मोंकक ववऻान उनका सभथथन नह ॊ कयता
सॊदेहवाद से ऩीकड़त व्मवि ननयॊ तय व्माकुर यहता है तथा यह-यहकय अऩनी (2)
सभानि की कल्ऩना कयके व्माकुरता का ये चन कयता हैं ।
शीषथक – सुख – दख
ु की ऩरयकल्ऩना मा अन्म कोई उऩमुि शीषथक (1)
उत्तय – 2) कवव का तात्ऩमथ है कक मह दे श नैनतक भूल्मों की आधायनशरा है । सभाज (2)
(1) भें जफ तक नैनतक भूल्म यहते हैं , तबी तक वह जीववत यहता है , अत:
कवव दे श को भहाशीर की ‘अभय कल्ऩना’ कहा है ।
(2) बायतीम सॊस्कृनत फहुत ऩुयानी है ऩयॊ तु सभन्मवाद दृविकोण के कायण महाॉ (2)
नए ववचायों को अऩना नरमा जाता है । इस कायण बायत दे श सदै व नमा
यहता है ।
(3) प्रकृ नत भें फादर बायत का नभन कयते हैं , सागय उसके ऩैय धोते है महाॉ (2)
राखों खेत रहरहाते हैं । नभथदा, तािी, नसॊधु औय गोदावय नकदमाॉ सकदमों
से महाॉ ऩववत्र जर उऩरब्ध कयवाती यह है ।
अथवा
(1) फादरों को ऩाहुन कहा गमा है क्मोंकक वह फहुत कदनों भें रौटे हैं औय (2)
ससुयार भें ऩाहुन की बाॉनत फादरों का स्वागत हो यहा है ।
(2) भेघ फन-सॉवय के गाॉव भें आए औय भेघों के आने ऩय दयवाजों-श्खड़ककमाॉ (2)
खुरने रगी,ऩेड़ झुकने रगे, आॉधी चरीॊ औय धूर बागने रगी।
(3) फूढा ऩीऩर (गाॉव का समाना फूढा व्मवि) स्वागत कताथ है श्जसनें नवाॊगतुक (2)
(भेघ/ऩाहुन) का स्वागत ककमा।
खींड - ख
उत्तय.3 जफ तक शब्द कोश भें मा स्वतॊत्र रूऩ भें यहते हैं तफ तक वे शब्द कहराते (2)
हैं ऩयॊ तु जफ वे वाक्म भें प्रमुि होते हैं तफ वे ऩद फन जाते हैं ।
कभर – स्वतॊत्र याज्म (कभर कीचड़ भें श्खरता हैं महाॉ कभर ऩद हैं ।)
अथवा
ऩद कहराने के नरए शब्द को वाक्म का कहस्सा फनना ऩड़ता है औय नरॊग,
वचन, कार, ववबवि, वाक्म आकद उस ऩय प्रबाव ड़ारते है जैसे ‘कीचड’
स्वतॊत्र शब्द है ऩयॊ तु वाक्म भें प्रमुि होने ऩय उसे अन्म व्मावहारयक
इकाईमों का सहाया रेना ऩड़ता है कभर कीचड़ भें श्खरता है ।
उत्तय.4 रचना के आधार ऩर वाक्य रूऩातींरण (कोई त न) (3)
(क) फारक यो – योकय चुऩ हो गमा
(ख) सूमोदम हुआ औय ऩऺी चहचहने रगे ।
( ग) तुभ वहाॉ चरे जाओ जहाॉ गाड़ रुकती है ।
(घ) उसे ऩवत्रका ऩढनी थी इसनरए वह ऩुस्तकारम गमा।
उत्तय.5 शब्दों का समास-ववग्रि करते िुए समास का नाम लऱखखए (कोई दो) (2)
(क) - स्नेह भें भग्न (तत्ऩुरुष सभास)
- अॊधा है जो कूऩ (कभथधायम सभास)
- शत अब्दों का सभाहाय (कदव्गु सभास)
(ख) समस्त ऩद बनाकर समास का नाम - (कोई दो) (2)
ऩतझड़ – (फहुव्रीकह सभास)
बयऩेट – (अव्ममी बाव सभास)
सुख-दख
ु (द्वॊ द्व सभास)
उत्तय.6 वाक्मों के शुदध रूऩ - (कोई चाय) (4)
(क) प्रधानभॊत्री हवाई अड्डे ऩय ऩहुॉचे
(ख) भुॊशी प्रेभचॊद ने ‘गोदान’ उऩन्मास नरखा ।
( ग) उसने चभड़े के तयह – तयह के जूते खय दे ।
(घ) महाॉ केवर दो ऩुस्तकें हैं ।
(ङ) खयगोश को गाजय काटकय श्खराओ।
उत्तय.7 उनचत भुहावयों द्वाया रयि स्थानों की ऩूनतथ (कोई दो) (2)
(क) (तरवाय खीॊचना ) मा अन्म कोई उऩमुि भुहावया
(ख) नजय यखना/यखे) मा अन्म कोई उऩमुि भुहावया
(ग) (फाट जोहना) मा अन्म कोई उऩमुि भुहावया
खींड - ग
उत्तय.8 केवर व्मविगत काभ के नरए सजग, हानन – राब का कहसाफ उठाकय (2)
(क) कदभ उठाते, सफकी फजाम केवर अऩने कहत की फात सभाज के प्रनत
दानमत्वों भें बी ‘आदशथ’ का प्रमोग बी केवर व्मविगत कहत के नरए ।
(ख) फड़े – फड़े वफल्डयों ने सभुद्र के ककनाये ऊॉची – ऊॉची वफश्ल्डॊ ग फना रीॊ, (2)
सभुद्र
की जभीन हनथमा री, मह प्रकिमा फढती गई, सभुद्र को गुस्सा आ गमा,
जो श्जतना फड़ा उसे उतना कभ गुस्सा, ऩयॊ तु जफ आता है तो योकना
असॊबव, एक यात गुस्से भें तीन जहाजों को पैंक कदमा ।
(ग) तॉताया की तरवाय के फाये भें रोग सोचते थे कक तरवाय भें कोई दै वीम (1)
शवि रकड़ की होने के फावजूद अऩने बीतय ववरऺण यहस्मों को बीतय
सभाकहत यखती थी ।
अथवा
कौंनसर की ओय से नोकटस ननकरा कक ठीक चाय फजकय चौफीस नभनट ऩय
भोनुभेंट के नीचे झॊड़ा पहयामा जाएगा औय स्वतॊत्रता की प्रनतऻा ऩढ
जाएगी।
उत्तय.9 (हकस एक प्रश्न का उत्तर) (5)
छोटे बाई का व्मककतत्व – ऩढाई भें भन न रगना, प्रनतबावान छात्र, फड़े
बाई का आदय, बाई के प्रनत सहानुबूनत व श्रद्धा, भैदान के खेरों भें रुनच व
बोराऩन । (छात्र उऩयोि वफॊदओ
ु की ऩुवि उदाहयणों द्वाया दे सकते हैं ।)
अथवा
वजीय अरी का चरयत्र
(साहसी वीय, ननबीक व्मवित्व अऩनी आजाद से प्रेभ, दे शबि सूझफूझ,
चाराक व फुवद्धभान)
(छात्र उऩयोि वफन्दओ
ु ॊ की ऩुवि उदाहयणों द्वाया दे सकते हैं ।)
उत्तय.10 (क) सच्चे भन भें ईश्वय का वास, कच्चे भन वारे व्मथथ भें ह नाचते हैं , बवि (2)
न होने ऩय बी नतरक, भारा, चादय (याभ नाभ ) आकद ऩहनकय बवि का
केवर ढोंग । ईश्वय फाह्य नचह्नों की फजाम सच्चे भन भें ननवास कयते हैं ।

(ख) ‘सय ऩय कपन फाॉधना’ सैननक दे शवानसमों से अऩेऺा यखते हुए भृत्मु से (2)
गरे नभरने की फात कय यहे है , श्जसके नरए उन्हें हभेशा तैमाय यहना
चाकहए ।
(ग) ताराफ की सभानता दऩथण के साथ कदखाई गई है । (1)
अथवा
भीया कृष्ण के सभीऩ यहने के नरए उनकी सेववका फनने को तैमाय है ।
उत्तय – 11) हकस एक प्रश्न का उत्तर (5) (5)
आत्भत्राण कववता भें कवव न तो ईश्वय से ककठनाईमों को कभ कयने की
(5)
प्राथथना कयते हैं , न ककसी प्रकाय की सहामता की भाॉग कयते हैं वह स्वमॊ
(5)
प्रत्मेक ककठन से ककठन ऩारयश्स्थनत का साभना स्वमॊ कयना चाहते हैं । वह
स्वमॊ स्वस्थ यहकय धैमव
थ ान फनकय केवर बराई एवॊ ईश्वय के प्रनत
धन्मवाद यखने भें ववश्वास यखते हैं ।
अथवा
कफीय के दोहों की प्रासॊगककता – कफीय के दोहों की नशऺा प्रत्मेक कार भें
साथथक भीठी वाणी का प्रमोग, आऩसी ववश्वास, ईश्वय का प्रत्मेक भन भें
ववश्वास, अॊहकाय को सभाि कयने का सॊदेश, झूठे ऩाखॊडो का ववयोध, ईश्वय
एक व सबी भनुष्म सभान ननदॊ कों को सभीऩ यखने का ऩयाभशथ ... आकद
ऐसे भूल्मों से स्वस्थ सभाज व ववकास सॊबव ।
उत्तय – 12) हकस एक प्रश्न का उत्तर
5
‘हरयहय काका’ ऩाठ भें धभथ के नाभ ऩय सीधे – सादे गाॉव के रोगों को
ठाकुयवाय के नाभ ऩय फेवकूप फनाना, धभथ के ठे केदायों द्वाया जैसे भहॊ त
इत्माकद के द्वाया केवर आयाभ से ठाठ – फाठ का जीवन व्मतीत कयना,
रोगों से ऩैसा, जभीन हड़ऩना, सभम आने ऩय गुॊडागदी भायऩीट मा कहॊ सा ऩय
उतय आना जैसे काका से जभीन हनथमाने के नरए ऩहरे फहराना –
पुसराना कपय न भानने उन्हें फॊधक फनाकय जफयदस्ती अॉगूठा रगवाना
इत्माकद ।
अथवा
ऩाठ ‘सऩनों के से कदन’ भें ववद्यानथथमो की अनुशासन भें यखने के नरए
उन्हें कई प्रकाय के शाय रयक दॊ ड कदए जाते थे । वऩटाई बी इतनी अनधक
कक चभड़ उधेड़ने वारी कहावत चरयताथथ, दॊ ड ऐसा कक फच्चे चक्कय खा
जाए, फच्चों का कोभर भन ऐसे फफथयता ऩूणथ व्मवहाय से अनधक उद्डॊ मा
कपय दब्फू फना दे ता है , ऩढाई – नरखाई भें अरुनच आ सकती है इन्ह ॊ
कायणों को सभझकय भनोनचककत्सकों के अनुसाय शाय रयक दॊ ड उनचत नह ॊ
आज की नशऺा प्रणारी भें प्माय, सभझ, सूझ – फुझ व सभस्मा की जड़
ऩय ऩहुॉच कय उसका ननदान कयने भें ववश्वास । शारयरयक दॊ ड का आज की
नशऺा नीनत भें कोई स्थान नह ॊ ।
खींड – ‘घ’
उत्तय – 13) अनुच्छे द रेखन (5)
प्रारूऩ - 2 अॊक
ववषम वस्तु – 2 अॊक
बाषा – 1 अॊक
उत्तय – 14) औऩचारयक ऩत्र (5)
ऩत्र प्रारूऩ – 2 अॊक
ववषम वस्तु – 2 अॊक
बाषा - 1 अॊक
उत्तय – 15) सूचना रेखन (5)
सूचना ऩारुऩ – 2 अॊक
ववषम वस्तु – 3 अॊक
उत्तय – 16) सॊवाद रेखन (5)
बाषा शैरी – 2 अॊक
ववषम वस्तु – 3 अॊक

उत्तय – 17) ववऻाऩन रेखन (5)


प्रारूऩ – 2 अॊक
ववषम वस्तु – 2 अॊक
बाषा – 1 अॊक

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