Professional Documents
Culture Documents
DEPARTMENT OF HINDI
SUB CODE : ULH20G101J
Learning Objective : To inculcate social and moral values, national integration and universal
brotherhood through the Hindi Literature component prescribed in the paper. Students are expected to
know the office and business procedure, official terminology and correspondence, Noting and drafting.
UNIT – 2 HOURS : 10
UNIT – 3 HOURS: 10
1. PATRKARITA
a. Arth
b. Paribhasha
c. Swarup
d. Prakar evam Daitava
UNIT – 4 HOURS:10
1. FILM SAMIKSHA
a. 2 MAINSTREAM MOVIES
b. 2 CLASSIC OR DOCUMENTARY
UNIT – 5 HOURS:10
1. TECHNICAL TERMINOLOGY
Course Outcome: By the end of this course, the students will be able to –
C02 - Acquaint the knowledge about one act play fundamentals and Importance in
The daily life.
CO4 – Acquiring the Knowledge of Film Criticism including main stream film or
Documentary film.
BOOK REFERENCE
यहसहणी सहचने रगी इतने सस्ते कैसे दे गमा है -? कैसे दे गमा है , मह तह सही जाने।
रेककन दे तह गमा ही है , इतना तह ननश्चम है ! मक जयासी फात ठहयी। यहसहणी अऩने काभ भी रग -
बी गई। कपय कबी उसे इस ऩय पसचाय की आसश्मकता बरा क्मन ऩडती। 2 छह भहीने फाद। नगय
बय भी दहबाई " - चाय सदनन से मक भुयरीसारे के आने का सभाचाय पैर गमा। रहग कहने रगे-
साहभयु री ! फजाने भी सह मक ही उस्ताद है । भयु री फजाकय, गाना सन
ु ाकय सह भयु री फेचता बी
है सह बी दहदह ऩैसे बरा-, इसभी उसे क्मा मभरता हहगा। भेहनत बी तह न आती हहगी"! मक
ामक्क्त ने ऩूछ मरमा कैसा है सह भुयरीसारा" -, भैंने भैं तह उसे नही दे खा"! उत्तय मभरा उम्र " -
तह उसकी अबी अचधक न हहगी, मही तीसऩतरा गहया मुसक है-फत्तीस का हहगा। दफ
ु रा-, फीकानेयी
यॊ गीन सापा फाॉधता है ।" "सही तह नहीॊ, हीॊ जह ऩहरे पखरौने फेचा कयता था?" "क्मा सह ऩहरे
पखरौने बी फेचा कयता था?' "हाॉ, जह आकायप्रकाय तभ
ु ने फतरामा-, उसी प्रकाय का सह बी था।"
"तह सही हहगा। ऩय बई, है सह मक उस्ताद।" प्रनतसदन इसी प्रकाय उस भयु रीसारे की चचाथ हहती।
प्रनतसदन नगय की प्रत्मेक गरी भी उसका भादक, भद
ृ र
ु स्सय सुनाई ऩडता फ चन कह " -
फहरानेसारा, भुयमरमासारा।" यहसहणी ने बी भयु रीसारे का मह स्सय सुना। तयु तत ही उसे
पखरौनेसारे का स्भयण हह आमा। उसने भन ही भन कहा गाकय -पखरौनेसारा बी इसी तयह गा" -
"पखरौने फेचा कयता था। यहसहणी उठकय अऩने ऩनत पसजम फाफू के ऩास गई या उस ज" -
भुयरीसारे कह फुराओ तह, चत
ु नभ
ू ुतनू के मरम रे रॉ ।ू - क्मा ऩता मह कपय इधय आम, न आम। से
बी, जान ऩडता है , ऩाकथ भी खेरने ननकर गम है ।" पसजम फाफू मक सभाचाय ऩत्र ऩ यहे थे। उसी
तयह उसे मरम हुम से दयसाजे ऩय आकय भुयरीसारे से फहरे क्मन" - बई, ककस तयह दे ते हह
भुयरी?" ककसी की हऩी गरी भी चगय ऩडी। ककसी का जूता ऩाकथ भी ही छू गमा, मय ककसी की
सहथनी ही ढीरी )ऩाजाभा( हहकय र क आई है । इस तयह दौडतेहाॉपते हुम फ चन का झत
ु ड आ -
अभ" - ऩहुॉचा। मक स्सय से सफ फहर उठे फी री दे री भुारी, मय अभ फी री दे री भुारी।"
भुयरीसारा हषथरेककन जया कह !दी गे बैमा" - गद्गद हह उठा। फहरा-, ठहयह, मकमक कह दे ने दह। -
अबी इतनी जादी हभ कहीॊ रौ थहडे ही जामॉगे। फेचने तह आम ही हैं , मय हैं बी इस सभम भेये
ऩास मकदह नहीॊ-, हीॊ ऩूयी सत्तासन।हाॉ ..., फाफूजी, क्मा ऩूछा था आऩने ककतने भी दीॊदीॊ दी तह ...!
तीन ऩैसे के सहसाफ से है-सैसे तीन, ऩय आऩकह दह"दह ऩैसे भी ही दे दॉ ग
ू ा।- पसजम फाफू बीतयफाहय -
दहनन रूऩन भी भुसेकया सदम। भन ही भन कहने रगे कैसा है । दे ता तह सफकह इसी बास - से है ,
ऩय भुझ ऩय उर ा महसान राद यहा है । कपय फहरे फहरने की आदत तुभ रहगन की झूठझू" -
हहती है। दे ते हहगे सबी कह दहदह ऩैसे भी -, ऩय महसान का फहझा भेये ही ऊऩय राद यहे हह।"
भुयरीसारा मकदभ अप्रनतब हह उठा। फहरा आऩकह क्मा ऩता फाफू जी कक इनकी असरी " -
रागत क्मा है । मह तह ग्राहकन का दस्तयू हहता है कक दक
ु ानदाय चाहे हानन उठाकय चीज क्मन न
फेच,े ऩय ग्राहक मही सभझते हैं - दक
ु ानदाय भुझे रू यहा है । आऩ बरा काहे कह पसश्सास कयी गे?
रेककन सच ऩूनछम तह फाफूजी, असरी दाभ दह ही ऩैसा है । आऩ कहीॊ से दह ऩैसे भी मे भुयमरमाॉ
नहीॊ ऩा सकते। भैंने भैं तह ऩूयी मक हजाय फनसाई थीॊ, थीॊ तफ भुझे इस बास ऩडी हैं।" पसजम फाफू
फहरे अ छा" -, भुझे मादा सक्त नहीॊ, हीॊ जादी से दह ठह ननकार दह।" दह भुयमरमाॉ रेकय पसजम
फाफू कपय भकान के बीतय ऩहुॉच गम। भुयरीसारा दे य तक उन फ चन के झुतड भी भुयमरमाॉ फेचता
यहा। उसके ऩास कई यॊ ग की भुयमरमाॉ थीॊ।थीॊ फ चे जह यॊ ग ऩसतद कयते, भुयरीसारा उसी यॊ ग की
भुयरी ननकार दे ता। "मह फडी अ छी भुयरी है । तभ
ु मही रे रह फाफू, याजा फाफू तुम्हाये रामक तह
फस मह है । हाॉ बैम, तभ
ु कह सही दी गे। मे रह।तभ
ु कह सैसी न चासहम ..., मह नायॊ गी यॊ ग की, अ छा
सही रह।रे आम ऩैसे ....? अ छा, मे रह तम्
ु हाये मरम भैंने भैं ऩहरे ही ननकार यखी थीतभ
ु कह !...
ऩैसे नहीॊ मभरे। तुभने अम्भा से ठीक तयह भाॉगे न हनगेहन गे। धहती ऩकडकय ऩैयन भी मरऩ कय,
अम्भा से ऩैसे भाॉगे जाते हैं फाफूहाॉ !, कपय जाओ। अफकी फाय मभर जामॉगे। दअ
ु तनी है ...? तह क्मा
हुआ, मे रह ऩैसे साऩस रह। ठीक हह गमा न सहसाफ?....मभर गम ऩैसे? दे खह, भैंने भैं तयकीफ फताई !
अ छा अफ तह ककसी कह नहीॊ रेना है ? सफ रे चक
ु े ? तम्
ु हायी भाॉ के ऩैसे नहीॊ हैं? अ छा, तभ
ु बी
मह रह। अ छा, तह अफ भैं चरता हूॉ।" इस तयह भुयरीसारा कपय आगे फ गमा। 3 आज अऩने
भकान भी फैठी हुई यहसहणी भुयरीसारे की सायी फाती सुनती यही। आज बी उसने अनुबस ककमा,
फ चन के साथ इतने तमाय से फाती कयनेसारा पेयीसारा ऩहरे कबी नहीॊ आमा। कपय मह सौदा बी
कैसा सस्ता फेचता है ! बरा आदभी जान ऩडता है । सभम की फात है , जह फेचाया इस तयह भाया-
भाया कपयता है । ऩे जह न कयाम, सह थहडा! इसी सभम भयु रीसारे का ऺीण स्सय दस
ू यी ननक की
गरी से सुनाई ऩडा फ चन कह फहरानेसारा" -, भुयमरमासारा"! यहसहणी इसे सुनकय भन ही भन
कहने रगी !मय स्सय कैसा भीठा है इसका - फहुत सदनन तक यहसहणी कह भुयरीसारे का सह भीठा
स्सय मय उसकी फ चन के प्रनत से स्नेहमसक्त फाती माद आती यहीॊ।हीॊ भहीने के भहीने आम मय
चरे गम। कपय भुयरीसारा न आमा। धीये धीये उसकी स्भनृ त बी ऺीण हह गई।- 4 आठ भास फाद -
सदी के सदन थे। यहसहणी स्नान कयके भकान की छत ऩय च कय आजानर
ु ॊबफत के याम सख
ु ा -
यही थी। इसी सभम नीचे की गरी भी सुनाई ऩडा कह फहरानेसारा फ चन" -, मभठाईसारा।"
मभठाईसारे का स्सय उसके मरम ऩरयचचत था, झ से यहसहणी नीचे उतय आई। उस सभम उसके
ऩनत भकान भी नहीॊ थे। हाॉ, उनकी सद्
ृ धा दादी थीॊ।थीॊ यहसहणी उनके ननक आकय फहरी दादी" -,
चत
ु नभ
ू ुतनू के मरम मभठाई रेनी है ।- जया कभये भी चरकय ठहयाओ। भैं उधय कैसे जाऊॉ, कहई
आता न हह। जया ह कय भैं बी चचक की ओ भी फैठी यहूॉगी।" दादी उठकय कभये भी आकय फहरीॊ
रीॊ म मभठाईसारे " -, इधय आना।" मभठाईसारा ननक आ गमा। फहरा ककतनी मभठाई दॉ "ू -, भाॉ? मे
नम तयह की मभठाइमाॉ हैं बफयॊ गी-यॊ ग -, कुछकुछ- खट् ी, कुछकुछ भीठी-, जामकेदाय, फडी दे य तक
भॉह
ु भी स कती हैं। जादी नहीॊ घुरतीॊ।तीॊ फ चे फडे चास से चस
ू ते हैं। इन गुणन के मससा मे खाॉसी
बी दयू कयती हैंककतनी दॉ ू !? चऩ ी, गहर, ऩहरदाय गहमरमाॉ हैं। ऩैसे की सहरह दे ता हूॉ।" दादी फहरीॊ
रीॊ सहरह तह फहुत कभ हहती हैं " -, बरा ऩचीस तह दे ते।" मभठाईसारा नहीॊ दादी" -, अचधक नहीॊ
दे सकता। इतना बी दे ता हूॉ, मह अफ भैं तुम्ही क्माखैय ..., भैं अचधक न दे सकॉू गा।" यहसहणी दादी
के ऩास ही थी। फहरी दादी" -, कपय बी कापी सस्ता दे यहा है । चाय ऩैसे की रे रह। मह ऩैसे यहे ।
मभठाईसारा मभठाइमाॉ चगनने रगा। "तह चाय की दे दह। अ छा, ऩ चीस नहीॊ सही, फीस ही दह। अये
हाॉ, भैं फू ी हुई भहरबास अफ भझ
ु े मादा कयना- आता बी नहीॊ।हीॊ " कहते हुम दादी के ऩहऩरे भॉह
ु
से जयासी भुस्कयाहय पू ननकरी।- यहसहणी ने दादी से कहा दादी" -, इससे ऩूछह, तुभ इस हय
भी मय बी कबी आम थे मा ऩहरी फाय आम हह? महाॉ के ननसासी तह तुभ हह नहीॊ।हीॊ " दादी ने
इस कथन कह दहहयाने की चेउ ा की ही थी कक मभठाईसारे ने उत्तय सदमा ऩहरी फाय नहीॊ" -, हीॊ
मय बी कई फाय आ चक
ु ा है ।" यहसहणी चचक की आड ही से फहरी ऩहरे मही मभठाई फेचते हुम " -
आम थे, मा मय कहई चीज रेकय?"
मभठाईसारा हषथ, सॊ म मय पसस्भमासद बासन भे डूफकय फहरा इससे ऩहरे भुयरी रेकय " -
आमा था, मय उससे बी ऩहरे पखरौने रेकय।" यहसहणी का अनभ
ु ान ठीक ननकरा। अफ तह सह
उससे मय बी कुछ फाती ऩूछने के मरम अक्स्थय हह उठी। सह फहरी इन ामससामन भी बरा " -
हहगा तुम्ही क्मा मभरता?" सह फहरा मही खाने बय कह मभर जाता है । !मभरता बरा क्मा है " -
कबी नहीॊ बी मभरता है । ऩय हाॉ; सततहष, धीयज मय कबीकबी असी-भ सुख जरूय मभरता है मय
मही भैं चाहता बी हूॉ।" "सह कैसे? सह बी फताओ।" "अफ ामथथ उन फातन की क्मन चचाथ क ॉ ? उतही
आऩ जाने ही दी । उन फातन कह सन
ु कय आऩ कह द"ु ख ही हहगा।: "जफ इतना फतामा है , तफ मय
बी फता दह। भैं फहुत उत्सुक हूॉ। तुम्हाया हजाथ न हहगा। मभठाई भैं मय बी कुछ रे रॉ ग
ू ी।"
अनत म गम्बीयता के साथ मभठाईसारे ने कहा भैं बी अऩने नगय का मक प्रनतक्उठत आदभी " -
-था। भकान ामससाम, गाडीडेघह-, नौकयचाकय सबी कुछ था। स्त्री थी-, छह े छह े दह फ चे बी थे। -
भेया सह सहने का सॊसाय था। फाहय सॊऩपत्त का सैबस था, बीतय साॊसारयक सुख था। स्त्री सत
ु दयी थी,
भेयी प्राण थी। फ चे ऐसे सत
ु दय थे, जैसे सहने के सजीस पखरौने। उनकी अठखेमरमन के भाये घय
भी कहराहर भचा यहता था। सभम की गनतपसधाता की ! रीरा। अफ कहई नहीॊ है । दादी, प्राण
ननकारे नहीॊ ननकरे। इसमरम अऩने उन फ चन की खहज भी ननकरा हूॉ। से सफ अतत भी हनगेहन
गे, तह महीॊ कहीॊ।हीॊ आपखय, कहीॊ न जतभे ही हनगेहन गे। उस तयह यहता, घुरघुर कय भयता। इस -
तयह सख
ु कबी अऩने उन फ चन की मक -ष के साथ भरूॉगा। इस तयह के जीसन भी कबीसॊतह-
सी मभर जाता है ।-झरक ऐसा जान ऩडता है , जैसे से इतहीॊ भी उछरखेर यहे हैं। -उछरकय हॉ स-
ऩैसन की कभी थहडे ही है , आऩकी दमा से ऩैसे तह कापी हैं। जह नहीॊ है , इस तयह उसी कह ऩा
जाता हूॉ।" यहसहणी ने अफ मभठाईसारे की ओय दे खा उसकी आॉखी आॉसुओॊ से तय हैं। - इसी सभम
चत
ु नभ
ू ुतनू आ गम। यहसहणी से मरऩ कय-, उसका आॉचर ऩकडकय फहरे अम्भाॉ" -, मभठाई"! "भुझसे
रह।मह कहकय ", तत्कार कागज की दह ऩडु डमाॉ, मभठाइमन से बयी, मभठाईसारे ने चत
ु नभ
ू त
ु नू कह दे -
दीॊ!दीॊ यहसहणी ने बीतय से ऩैसे पीक सदम। मभठाईसारे ने ऩे ी उठाई, मय कहा अफ इस फाय मे " -
"ऩैसे न रॉ ूगा। दादी फहरी अये -अये " -, न न, अऩने ऩैसे मरम जा बाई"! तफ तक आगे कपय सुनाई
ऩडा उसी प्रकाय भादक"फ चन कह फहरानेसारा मभठाईसारा।" - भद
ृ र
ु स्सय भी-
,ojsLV % esjh f'k[kj ;k=kk
फचेन्द्री ऩार
,ojsLV vfHk;ku ny 7 ekpZ dks fnYyh ls dkBekaMw osQ fy, gokbZ tgk”k ls py fn;kA ,d e”kcwr
vfxze ny cgqr igys gh pyk x;k Fkk ftlls fd og gekjs ^csl oSai* igq¡pus ls igys nqxZe fgeikr के
jkLrs dks lkQ dj lकेA
ueps ck”kkj] 'ksjikySaM dk ,d lokZfèkd egÙoiw.kZ uxjh; {ks=k gSA vfèkoQka'k 'ksjik blh LFkku
rFkk ;gha osQ vklikl osQ xk¡oksa osQ gksrs gSaA ;g ueps ck”kkj gh Fkk] tgk¡ ls eSaus loZizFke ,ojsLV dks
fugkjk] tks usikfy;ksa esa ^lkxjekFkk* osQ uke ls izflद्ध gSA eq>s ;g uke vPNk yxkA
,ojsLV dh rjI+ kQ xkSj ls ns[krs gq,] eSaus ,d Hkkjh cI+ kZQ dk cM+k iwQy (Iywe) ns[kk] tks
ioZr&f'k[kj ij ygjkrk ,d èot&lk yx jgk FkkA eq>s crk;k x;k fd ;g n`'; f'k[kj dh mQijh
lrg osQ vklikl 150 fdyksehVj vFkok blls Hkh vfèkd dh xfr ls gok pyus osQ dkj.k curk Fkk]
D;ksafd rs”k gok ls lw[kk cI+ kZQ ioZr ij mM+rk jgrk FkkA cI+ kZQ dk ;g èot 10 fdyksehVj ;k blls
Hkh yack gks ldrk FkkA f'k[kj ij tkusokys izR;sd O;fDr dks nf{k.k&iwohZ igkM+h ij bu rwI+ kQkuksa dks
>syuk iM+rk Fkk] fo'ks"kdj [kjkc ekSle esaA ;g eq>s Mjkus osQ fy, dkI+ kQh Fkk] fiQj Hkh eSa ,ojsLV
osQ izfr fofp=k :i ls vkdf"kZr Fkh vkSj bldh dfBure pqukSfr;ksa dk lkeuk djuk pkgrh FkhA
tc ge 26 ekpZ dks iSfjp igq¡ps] gesa fge&L[kyu osQ dkj.k gqbZ ,d 'ksjik oqQyh dh e`R;q dk
nq%[kn lekpkj feykA [kaqHkq fgeikr ij tkusokys vfHk;ku&ny osQ jkLrs osQ ckb± rjI+ kQ lhèkh igkM+h
osQ èkldus ls] YgksRls dh vksj ls ,d cgqr cM+h cयQ dh p^ट् ाu uhps f[kld vkbZ FkhA lksyg 'ksjik
oqQfy;ksa osQ ny esa ls ,d dh e`R;q gks xbZ vkSj pkj ?kk;y gks x, FksA
bl lekpkj osQ dkj.k vfHk;ku ny osQ lnL;ksa osQ psgjksa ij Nk, volkn dks ns[kdj gekjs
usrk duZy [kqYyj us Li"V fd;k fd ,ojsLV tSls egku vfHk;ku esa [krjksa dks vkSj dHkh&dHkh rks e`R;q
Hkh vkneh dks lgt Hkko ls Lohdkj djuh pkfg,A
miusrk izsepan] tks vfxze ny dk usr`Ro dj jgs Fks] 26 ekpZ dks iSfjp ykSV vk,A mUgksua s
gekjh igyh cM+h ckèkk [kqaHkq fgeikr dh fLFkfr ls gesa voxr djk;kA mUgksaus dgk fd muosQ ny us
oSaQi&,d (6000 eh-)] tks fgeikr osQ Bhd mQij gS] ogk¡ rd dk jkLrk lkI+ kQ dj fn;k gSA
mUgksaus ;g Hkh crk;k fd iqy cukdj] jfLl;k¡ ck¡èkdj rFkk >afM;ksa ls jkLrk fpfÉr dj] lHkh cM+h
dfBukb;ksa dk tk;”kk ys fy;k x;k gSA mUgksua s bl ij Hkh è;ku fnyk;k fd Xysf'k;j cI+ kZQ dh unh gS
vkSj cI+ kZQ dk fxjuk vHkh tkjh gSA fgeikr esa vfu;fer vkSj vfuf'pr cnyko osQ dkj.k vHkh rd
osQ fd, x, lHkh dke O;FkZ gks ldrs gSa vkSj gesa jkLrk [kksyus dk dke nksckjk djuk iM+ ldrk gSA
^csl oSaQi* esa igq¡pus ls igys gesa ,d vkSj e`R;q dh [kcj feyhA tyok;q vuqowQy u gksus osQ
dkj.k ,d jlksbZ lgk;d dh e`R;q gks xbZ FkhA fuf'pr :i ls ge vk'kktud fLFkfr esa ugha py jgs
FksA
,ojsLV f'k[kj dks eSaus igys nks ckj ns[kk Fkk] ysfdu ,d nwjh lsA csl oSaQi igq¡pus ij nwljs
fnu eSaus ,ojsLV ioZr rFkk bldh vU; Jsf.k;ksa dks ns[kkA eSa HkkSapDdh gksdj [kM+h jg xbZ vkSj ,ojsLV]
YgksRls vkSj uqRls dh m¡Qpkb;ksa ls f?kjh] cI+ kQhZyh Vs<+h&es unh dks fugkjrh jghA
fgeikr vius vkiesa ,d rjg ls cI+ kZQ osQ [kaMksa dk vO;ofLFkr gh FkkA gesa crk;k x;k fd
Xysf'k;j osQ cgus ls vdlj cI+ kZQ esa gypy gks tkrh Fkh] ftlls cM+h&cM+h cI+ kZQ dh p^kusa rRdky
fxj tk;k djrh Fkha vkSj vU; dkj.kksa ls Hkh vpkud izk;% [krjukd fLFkfr èkkj.k dj ysrh FkhaA lhèks
èkjkry ij njkj iM+us dk fopkj vkSj bl njkj dk xgjs&pkSMs+ fge&fonj esa cny tkus dk ek=k
[k;ky gh cgqr Mjkouk FkkA blls Hkh ”;knk Hk;kud bl ckr dh tkudkjh Fkh fd gekjs laiw.kZ izokl
osQ nkSjku fgeikr yxHkx ,d ntZu vkjksfg;ksa vkSj oqQfy;ksa dks izfrfnu Nwrk jgsxkA
nwljs fnu u, vkusokys vius vfèkdka'k lkeku dks ge fgeikr osQ vkèks jkLrs rd ys x,A MkW -
ehuw esgrk us gesa vY;wfefu;e dh lhf<+;ksa ls vLFkk;h iqyksa dk cukuk] y_kas vkSj jfLl;ksa dk mi;ksx]
cI+ kZQ dh vkM+h&frjNh nhokjksa ij jfLl;ksa dks ck¡èkuk vkSj gekjs vfxze ny osQ vfHk;kaf=kdh dk;ks± osQ
ckjs esa gesa foLr`r tkudkjh nhA rhljk fnu fgeikr ls oSaQi&,d rd lkeku <ksdj p<+kbZ dk vH;kl
djus osQ fy, fuf'pr FkkA jhrk xksca w rFkk eSa lkFk&lkFk p<+ jgs FksA gekjs ikl ,d okWdh&VkWdh Fkk]
ftlls ge vius gj dne dh tkudkjh csl oSaQi ij ns jgs FksAduZy [kqYyj ml le; [kq'k gq,] tc
geus mUgsa vius igq¡pus dh lwpuk nhD;ksfa d oaSQi&,d ij ig¡qpusokyh osQoy ge nks gh efgyk,¡ FkhaA
vaxnksjth] yksilkax vkSj xxu fcLlk varr% lkmFk dksy igq¡p x, vkSj 29 viSzy dks 7900
ehVj ij mUgksua s oSaQi&pkj yxk;kA ;g larks"ktud izxfr FkhA tc vizSy eas eSa csl oSaQi esa Fkh]
rsuftax viuh lcls NksVh lqiq=kh Msdh osQ lkFk gekjs ikl vk, FksA mUgksua s bl ckr ij fo'ks"k egÙo
fn;k fd ny osQ izR;sd lnL; vkSj izR;sd 'ksjik oqQyh ls ckrphr dh tk,A tc esjh ckjh vkbZ] eSaus
viuk ifjp; ;g dgdj fn;k fd eSa fcyoqQy gh ukSflf[k;k gw¡ vkSj ,ojsLV esjk igyk vfHk;ku gSA
rsuftax g¡ls vkSj eq>ls dgk fd ,ojsLV muosQ fy, Hkh igyk vfHk;ku gS] ysfdu ;g Hkh Li"V fd;k
fd f'k[kj ij igq¡pus ls igys mUgsa lkr ckj ,ojsLV ij tkuk iM+k FkkA fiQj viuk gkFk esjs oaQèks ij
j[krs gq, mUgksaus dgk] ¶rqe ,d iDdh ioZrh; yM+dh yxrh gksA rqEgsa rks f'k[kj ij igys gh iz;kl esa
igq¡p tkuk pkfg,A
15&16 ebZ 1984 dks cqद्ध iwf.kZek osQ fnu eSa YgksRls dh cQhZyh lhèkh <yku ij yxk, x,
lqanj jaxhu ukbykWu osQ cus racw osQ oSaQi&rhu esa FkhA oSai es a 10 vkSj O;fDr FksA yksilkx] r'kkfjax
ejs racw esa Fks] ,u-Mh- 'ksjik rFkk vkSj vkB vU; 'kjhj ls e”kcwr vkSj m¡Qpkb;k esa jgus okys 'ksjik
nwljs racqvksa esa FksA eSa xgjh uhan esa lksbZ gqbZ Fkh fd jkr esa 12-30 cts osQ yxHkx esjs flj osQ fiNy s
fgLls esa fdlh ,d l[r ph”k osQ Vdjkus ls esjh uhan vpkud [k qy xbZ vkSj lkFk gh ,d ”kk sjnkj
èkekdk Hkh gqvkA rHkh eq>s eglwl gqvk fd ,d BaMh] cgqr Hkkjh dksbZ ph”k esjs 'kjhj ij ls eq>s
oqQpyrh gqbZ py jgh gSA eq>s lk¡l ysus esa Hkh dfBukbZ gks jgh FkhA
;g D;k gks x;k Fkk\ ,d yack cI+ kZQ dk fiaM gekjs oSaQi osQ Bhd mQij YgksRls Xysf'k;j ls
VwVdj uhps vk fxjk Fkk vkSj mldk fo'kky fgeiqat cuk x;k FkkA fge[kaMksa] cI+ kZQ osQ VqdM+ksa rFkk
teh gqbZ cI+ kZQ osQ bl fo'kkydk; iqat us] ,d ,Dlizsl jsyxkM+h dh rs”k xfr vkSj Hkh"k.k xtZuk osQ
lkFk] lhèkh s ml cI+ kZQ dh dcz ls fudky ckgj [khap ykus esa liQy gks x,A lqcg rd lkjs lqj{kk
ny vk x, Fks vkSj 16 ebZ dks izkr% 8 cts rd ge izk;% lHkh oSaQi&nks ij igq¡p x, FksA ftl 'ksjik
dh Vk¡x dh gah VwV xbZ Fkh] mls ,d [kqn osQ cuk, LVsªpj ij fyVkdj uhps yk,A gekjs usrk duZy
[kqYyj osQ 'kCnksa esa] ¶;g bruh m¡QpkbZ ij lqj{kk&dk;Z dk ,d ”kcjnLr lkgfld dk;Z FkkA** lHkh
ukS iqjQ"k lnL;ksa dks pksVksa vFkok VwVh gड्डडमनsa vkfn osQ dkj.k csl oSaQi esa Hkstuk iM+kA rHkh duZy
[kqYyj esjh rjQ eqM+dj dgus yxs] D;k rqe Hk;Hkhr Fkha\
th gk¡A
D;k rqe okfil tkuk pkgksxh\
ugha eSaus fcuk fdlh fgpfdpkgV mÙkj fn;kA
tSls gh eSa lkmFk dksy oSaQi igq¡ph] eSaus vxys fnu dh viuh egÙoiw.kZ p<+kbZ dh rS;kjh 'kq: dj nhA
eSaus [kkuk] oqQfoaQx xSl rFkk oqQN vkWDlhtu flfyaMj bd_s fd,A tc nksigj Ms<+ cts fcLlk
vk;k] mlus eq>s pk; osQ fy, ikuh xje djrs ns[kkA dh] t; vkSj ehuw vHkh cgqr ihNs FksA eSa fpafrr
Fkh D;ksafd eq>s vxys fnu muosQ lkFk gh p<+kbZ djuh FkhA os èkhjs&èkhjs vk jgs Fks D;ksfa d os Hkkjh cks>
ysdj vkSj fcuk vkWDlhtu osQ py jgs FksA nksigj ckn eSaus vius ny osQ nwljs lnL;ksa dh enn
djus vkSj vius ,d Fkjel dks twl ls vkSj nwljs dks xje pk; ls Hkjus osQ fy, uhps tkus dk
fu'p; fd;kA eSaus cI+kQhZyh gok esa gh racw ls ckgj dne j[kkA tSls gh eSa oSaQi {ks=k ls ckgj vk jgh
Fkh esjh eqykdkr ehuw ls gqbZA dh vkSj t; vHkh oqQN ihNs FksA eq>s t; tsusok Lij dh pksVh osQ
Bhd uhps feykA mlus ÑrKrkiwod Z pk; oxSjg ih ysfdu eq>s vkSj vkxs tkus ls jksdus dh dksf'k'k
dhA exj eq>s dh ls Hkh feyuk FkkA FkksM+k&lk vkSj vkxs uhps mrjus ij eSaus dh dks ns[kkA og eq>s
ns[kdj gDdk&cDdk jg x;kA
¶rqeus bruh cM+h tksf[ke D;ksa yh cpsna zh\¸ eSaus mls n`<+rkiwoZd dgk] ¶eSa Hkh vkSjksa dh rjg ,d
ioZrkjksgh gw¡] blhfy, bl ny esa vkbZ gw¡A 'kkjhfjd :i ls eSa Bhd gw¡A blfy, eq>s vius ny osQ
lnL;ksa dh enn D;ksa ugha djuh pkfg,A¸ dh g¡lk vkSj mlus is; inkFkZ ls I;kl cq>kbZ] ysfdu mlus
eq>s viuk fdV ys tkus ugha fn;kA
FkksM+h nsj ckn lkmFk dksy oSaQi ls YgkVw vkSj fcLlk geas feyus uhps mrj vk,A vkSj ge lc
lkmFk dksy ij tSlh Hkh lqj{kk vkSj vkjke dh txg miyCèk Fkh] ml ij ykSV vk,A lkmFk dksy
^i`Foh ij cgqr vfèkd dBksj* txg osQ uke ls izflद्ध gSA
vxys fnu eSa lqcg pkj cts mB xbZA cI+kZQ fi?kyk;k vkSj pk; cukbZ] oqQN fcLoqQV vkSj
vkèkh pkWdysV dk gydk uk'rk djus osQ ckn eSa yxHkxlk<+s ik¡p cts vius racw ls fudy iM+hA
vaxnksjth ckgj [kM+k Fkk vkSj dksbZ vklikl ugha FkkA vaxnksjth fcuk vkWDlhtu osQ gh p<+kbZ
djusokyk FkkA ysfdu blosQ dkj.k mlosQ iSj BaMs iM+ tkrs FksA blfy, og m¡QpkbZ ij yacs le;
rd [kqys esa vkSj jkf=k esa f'k[kj oSaQi ij ugha tkuk pkgrk FkkA blfy, mls ;k rks mlh fnu pksVh
rd p<+dj lkmFk dksy ij okil vk tkuk Fkk vFkok vius iz;kl dks NksM+ nsuk FkkA
og rqjar gh p<+kbZ 'kq: djuk pkgrk Fkk--- vkSj mlus eq>ls iwNk] D;k eSa mlo sQ lkFk tkuk
pkg w ¡xh\ ,d gh fnu esa lkmFk dksy ls pksVh rd tkuk vk Sj okil vkuk cgqr dfBu vkSj Jelkè;
gksxk! blosQ vykok ;fn vaxnksjth osQ iSj BaMs iM+ x, rks mlosQ ykSVdj vkus dk Hkh tksf[ke FkkA
eq>s fiQj Hkh v axnk sjth ij fo'okl Fkk vk Sj lkFk&lkFk eSa vkjksg.k dh {kerk vkSj deZBrk osQ ckjs
esa Hkh vk'oLr FkhA vU; dksbZ Hkh O;fDr bl le; lkFk pyus osQ fy, rS;kj ugha FkkA
lqcg 6-20 ij tc vaxnksjth vkSj eSa lkmFk dksy ls ckgj vk fudys rks fnu mQij p<+
vk;k FkkA gydh&gydh gok py jgh Fkh] ysfdu BaM Hkh cgqr vfèkd FkhA eSa vius vkjksgh miLdj esa
dkI+kQh lqjf{kr vkSj xje FkhA geus cxSj jLlh osQ gh p<+kbZ dhA vaxnksjth ,d fuf'pr xfr ls
mQij p<+rs x, vkSj eq>s Hkh muosQ lkFk pyus esa dksbZ dfBukbZ ugha gqbZA
tes gq, cI+kZQ dh lhèkh o <ykmQ p^kusa bruh l[r vkSj HkqjHkqjh Fkha] ekuks 'kh'ks dh pknjsa fcNh
gksAa gesa cI+kZQ dkVus osQ iQkoMs+ dk bLrseky djuk gh iM+k vkSj eq>s bruh l[rh ls iQkoM+k pykuk
iM+k ftlls fd ml tes gq, cI+kZQ dh èkjrh dks iQkoMs+ osQ nk¡rs dkV losQ a A eSaus mu [krjukd
LFkyksa ij gj dne vPNh rjg lksp&le>dj mBk;kA
nks ?kaVs ls de le; esa gh ge f'k[kj oSaQi ij igq¡p x,A vaxnksjth us ihNs eqM+dj ns[kk vkSj
eq>ls dgk fd D;k eSa Fkd xbZ gw¡A eSaus tokc fn;k] ¶ughaA¸ ftls lqudj os cgqr vfèkd vk'p;Zpfdr
vkSj vkuafnr gq,A mUgksaus dgk fd igysokys ny us f'k[kj oSaQi ij igq¡pus esa pkj ?kaVs yxk, Fks vkSj
;fn ge blh xfr ls pyrs jgs rks ge f'k[kj ij nksigj ,d cts ,d igq¡p tk,¡xAs YgkVw gekjs
ihNs&ihNs vk jgk Fkk vkSj tc ge nf{k.kh f'k[kj osQ uhps vkjke dj jgs Fks] og gekjs ikl igq¡p
x;kA FkksM+h&FkksM+h pk; ihus osQ ckn geus fiQj p<+kbZ 'kq: dhA YgkVw ,d uk;ykWu dh jLlh yk;k
FkkA blfy, vaxnksjth vkSj eSa jLlh osQ lgkjs p<s]+ tcfd YgkVw ,d gkFk ls jLlh idMs+ gq, chp esa
pykA mlus jLlh viuh lqj{kk dh ctk; gekjs larqyu osQ fy, idM+h gqbZ FkhA YgkVw us è;ku fn;k
fd eSa bu m¡Qpkb;ksa osQ fy, lkekU;r% vko';d] pkj yhVj vkWDlhtu dh vis{kk] yxHkx <kbZ yhVj
vkWDlhtu izfr feuV dh nj ls ysdj p<+ jgh FkhA esjs jsxqysVj ij tSls gh mlus vkWDlhtu dh
vkiwfrZ c<+kbZ] eq>s eglwl gqvk fd likV vkSj dfBu p<+kbZ Hkh vc vklku yx jgh FkhA
nf{k.kh f'k[kj osQ mQij gok dh xfr c<+ xbZ FkhA ml m¡QpkbZ ij rs”k gok osQ >ksoa Q s
HkqjHkqjs cI+kZQ osQ d.kksa dks pkjksa rjI+kQ mM+k jgs Fks] ftlls n`';rk 'kwU; rdvk xbZ FkhA vusd ckj ns[kk
fd osQoy FkksM+h nwj osQ ckn dksbZ m¡Qph p<+kbZ ugha gSA <yku ,dne lhèkk uhps pyk x;k gSA esjh
lk¡l ekuks jQd xbZ FkhA eq>s fopkj dkSaèkk fd liQyrk cgqr u”knhd gSA 23 ebZ 1984 osQ fnu
nksigj osQ ,d ctdj lkr feuV ij eSa ,ojsLV dh pksVh ij [kM+h FkhA ,ojsLV dh pksVh ij
igq¡pusokyh eSa izFke Hkkjrh; efgyk FkhA ,ojsLV 'kaoQ q dh pksVh ij bruh txg ugha Fkh fd nks O;fDr
lkFk&lkFk
[kMs + gks losQA pkjksa rjI+kQ g”kkjksa ehVj yach lhèkh <yku dks ns[krs gq, gekjs lkeus iz'u
lqj{kk dk FkkA geus igys cI+kZQ osQ iQkoMs + ls cZQ dh [kqnkbZ dj vius vkidks lqjf{kr :i ls fLFkj
fd;kA blosQ ckn] eSa vius ?kqVuksa osQ cy cSBh] cZQ ij vius ekFks dks yxkdj eSa us ^lkxjekFks* osQ
rkt dk pqcu fy;kA fcuk mBs gh eS aus vius FkS ysls nqxkZ ek¡ dk fp=k vkSj guqeku pkyhlk fudkykA
eSaus budks vius lkFk yk, yky diMs+ esa yisVk] NksVh&lh iwtk&vpZuk dh vkSj budks cI+kZQ esa nck
fn;kA vkuan osQ bl {k.k esa eq>s vius ekrk&firk dk è;ku vk;kA
tSls eSa mBh] eSaus vius gkFk tksMs+ vkSj eSa vius jTtq&usrk vaxnksjth osQ izfr vknj Hkko ls
>qdhA vaxnksjth ftUgksua s eq>s izksRlkfgr fd;k vkSj eq>s y{; rd igq¡pk;kA eSaus mUgsa fcuk vkWDlhtu
osQ ,ojsLV dh nwljh p<+kbZ p<+us ij cèkkbZ Hkh nhA mUgksaus eq>s xys ls yxk;k vkSj esjs dkuksa esa
iqQliqQlk;k] ¶nhnh] rqeus vPNh p<+kbZ dhA eSa cgqr izlUu gw¡!
oqQN nsj ckn lksue iqytj igq¡ps vkSj mUgksaus iQksVks ysus 'kq: dj fn,Abl le; rd YgkVw us
gekjs usrk dks ,ojsLV ij ge pkjksa osQ gksus dh lwpuk ns nh FkhA rc esjs gkFk esa okWdh&VkWdh fn;k
x;kA duZy [kqYyj gekjh liQyrk ls cgqr izlUu FksA eq>s cèkkbZ nsrs gq, mUgksaus dgk] ¶eSa rqEgkjh bl
vuwBh miyfCèk osQ fy, rqEgkjs ekrk&firk dks cèkkbZ nsuk pkgw¡xk!¸ os cksys fd ns'k dks rqe ij xoZ gS
vkSj vc rqe ,sls lalkj esa okil tkvksxh] tks rqEgkjs vius ihNs NksM+s gq, lalkj ls ,dne fHkUu gksxk!
ऩच्चीस चौका डेढ सौ
ओभप्रकाश वाल्मभकी
पऩता जी रम्फे-रम्फे डग बयकय चर यहे थे। उसे उनके साथ चरने भी दौडना ऩडता था ।
उसने भैरी सी मक फदयॊ ग कभी-ज मय ऩट् े दाय ननक्कयनुभा क छा ऩहन यखा था । क्जसे थहडी
द ऊऩय खीॊथहडी दे य फा-चना ऩडता था । स्कूर के फयाभदे भी ऩहुॉचकय पऩता जी ऩर बय के मरम
सठठके। कपय धीयधी-ये चरकय इस कभये से उस कभये भी झाॉकने रगे। हय मक कभये भी अॉधेया
था , क्जसभी फ चे ऩ यहे थे। भास् य कुमसथमन ऩय उकडू फैठे फीडी ऩी यहे थे मा ऊॉघ यहे थे। पऩता
जी पूरमसॊहमसॊ भास् य कह ढूॉढ यहे थे। दह तीन कभयन भी झाॉकने के फाद मक छह- े से कभये की -
ओय भुड।े उस कभये भेेेॊ अतम कभयन से मादा अॉधेया था । पूरमसॊहमसॊ भास् य अकेरे फैठे
फीडी ऩी यहे थे। उतही दयसाजे ऩय दे खकय पूरमसॊहमसॊ भास् य खद
ु ही फाहय आ गम थे। पऩता जी
ने भास् य जी कह दे खते ही दमनीम स्सय भी चगडचगडाकय कहा , “भास् य जी इस जातक )फ चे(
कू अऩणी सयण भी रे रह । दह अ छय ऩ रेगा तह थायी दमा ते महफी आदभी फॊण जागा ।
म्हायी क्जनगी फी कुछ सुधाय जागी ।” सुदीऩ पऩता जी की उस भुरा कह बूर नहीॊ ऩामा । से हाथ
जहडकय झुके खडे थे। पूरमसॊहमसॊ भास् य ने फीडी का न ा अॉगूठे के इ ाये से दयू उछारा मय
पऩता जी कह रेकय हे डभास् य के कभये भी चरे गम। सद
ु ीऩ का दापखरा हह गमा था । पऩता जी
खु थे। उनकी खु ी भी बी सही चगडचगडाह झरक यही थी । से झक
ु झक
ु कय भा स् य-
पूरमसॊहमसॊ कह सराभ कय यहे थे। फस सहचकहरे खा खा कय यी ग यही थी । आसऩास के माबत्रमन -
मस- ने फीडीगये का धआ
ुॊ ऐसे उगरना ुरू कय सदमा था , जैसे सबी अऩनी अऩनी -
दक्ु श्चदक्ु श्चतताओॊ कह धम
ु ॉ के फादरन भी पसरी न कय दी गे। उसने अऩने ऩास की पखडकी का ी ा
सयकामा । ताजा हसा की हाकीहाकी सयसयाह बी-तय घस
ु आई। उसकी स्भनृ त भी स्कूर के सदन
मक के फाद मक रौ कय आने रगे। दस
ू यी कऺा तक आतेजाते सह अ छे पसद्माचथथमनचथथमन भी
चगना जाने रगा था । तभाभ साभाक्जक दफासन मय बेदबासन के फासजूद सह ऩूयी रगन से स्कूर
जाता यहा । सबी पसषमन भी सह ठीकठाक था । गपणत भी उसका भन कुछ मादा ही रगता था-।
ऩत्रकारयता ब्द अॊग्रेजी के 'जनथमर म' का सहतदी रूऩाॊतय है । सहतदी भे बी ऩत्रकारयता का अथथ बी
रगबग मही है । 'ऩत्र' से 'ऩत्रकाय' मय कपय 'ऩत्रकारयता' से इसे सभझा जा सकता है । 'ऩत्रकाय' का
अथथ सभाचाय-ऩत्र का सॊऩादक मा रेखक मय 'ऩत्रकारयता' का अथथ ऩत्रकाय का काभ मा ऩे ा,
सभाचाय के सॊऩादन, सभाचाय इकट्ठे कयने आसद का पससेचन कयने सारी पसद्मा। रगबग सबी
सभाचाय भाखमभन से सॊदे मा सूचना का प्रसाय मक तयपा हहता है । ऩत्रकारयता मक ऐसा
करात्भक सेसा कामथ है क्जसभी साभनमक घ नाओॊ कह ब्द मसॊ चचत्र के भाखमभ से जन-जन
तक आकषथक ढॊ ग से प्रस्तुत ककमा हह मय जह ामक्क्त से रेकय सभूह तक मय दे से रेकय
पसश्स तक के पसचाय, अथथ, याजनीनत मय महाॉ तक कक सॊस्कृनत कह बी प्रबापसत कयने भी सऺभ
हह। इसमरम सभाचाय जादी भे मरखा गमा इनतहास हहता है । सभम के साथ ऩत्रकारयता का भूाम
फदरता गमा है । आज इॊ यने मय सूचना अचधकाय ने ऩत्रकारयता कह फहु आमाभी मय अनॊत
फना सदमा है ।
डाॅ. फन्द्रीनाथ कऩूय के शब्दों भे," ऩत्रकारयता ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ के मरम सभाचाय, रेख आसद मकबत्रत
तथा सॊऩासदत कयने, प्रका न-आदे आसद दे ने का कामथ है ।"
चम्फसथ डडक्शनयी के अनुसाय," आकषथक ीषथक दे ना, ऩउृ ठन का आकषथक फनास, जादी से जादी
सभाचाय दे ने की हहड, दे -पसदे के प्रभुख उद्महग-धॊधन के पसऻाऩन प्रातत कयने की चतयु ाई,
सतु दय छऩाई तथा ऩाठक के हाथ भी सफसे जादी ऩत्र ऩहुॊचा दे ने की त्सया, मे सफ ऩत्रकाय-करा
के अॊतगथत आ गमे है ।"
अभेरयकन इनसाइक्रोऩीडडमा ने ऩत्रकारयता के स्वरूऩ को सभझाते हुमे लरखा है कक," 'जनथमर भ'
फ्रीच ब्द 'जनज' से ामुत्ऩतन है , क्जसका अथथ हहता है -- मक-मक सदसस का कामथ अथसा उसकी
पससयपणका प्रस्तुत कयना। ऩत्रकारयता दै ननक जीसन की घ नाओॊ तथा उनके आधाय ऩय प्रकाम त
ऩत्रन की सॊसासहका हहती है । इसभी घ नाओॊ, तथ्मन, ामसस्थाऩयकता के साथ-साथ याजनीनतक,
साभाक्जक, धामभथक तथा करात्भक सॊदबों की प्रस्तुनत हहती है ।"
ऩत्रकारयता का स्वरूऩ
1. सभाज का दऩथण
ऩत्रकारयता सभाज का दऩथण है । सभाज भी कफ, कहाॊ, क्मन, कैसे, क्मा हह यहा है ? इन प्रश्नन का
उत्तय ऩत्रकारयता है । "ऩत्रकारयता सह भाखमभ है , क्जसके द्साया हभ अऩने भक्स्तउक भी उस दनु नमा
के फाये भी सभस्त सच
ू नामॊ सॊकमरत कयते है , क्जसे हभ स्सतः कबी नही जान सकते। ऩत्रकारयता
साभाक्जक जीसन की सत-असत, दृश्म-अदृश्म तथा ब
ु -अ ब
ु छपसमन का दऩथण है । सभाज भी
पैरी कुयीनतमन, अॊधपसश्सासन रूस मन आसद के प्रनत बी ऩत्रकारयता सॊघषथ छे डती है तथा सभाज से
इन फयु ाइमन कह मभ ाने का प्रमत्न कयती है ।
2. सूक्ष्भ शल्क्त
3. सजथनात्भकता
स्सस्थ ऩत्रकारयता का रऺण नीय-ऺीयसत पससेचन मसॊ ननणथम का काभ हहता है । जह ऩत्रकारयता
गहयाई तक अऩनी ऩहुॊच यखती है , उसे भात्र ननषेधात्भक भानना मचचत्मऩूणथ है , क्मनकक मक
'ऩत्रकाय बपसउमदृउ ा हहता है । सह सभस्त याउर की जनता की चचत्तसपृ त्तमन, अनुबूनतमन मय
आत्भा का साऺात्काय कयता है । ऩत्रकाय ककसी कह ब्रह्राऻानी नही फना सकता, ऩयततु भनुउम की
बाॊनत जीते यहने की प्रेयणा दे ता है । जहाॊ उसे अतमाम, अऻान, उत्ऩीडन, प्रसॊचना, भ्रउ ाचाय, कदाचाय
सदखाई दे ता है , सह उनका तार ठहककय पसयहध कयता है तथा आ ातीत आत्भपसश्सास मसॊ दृ ता
से प्राणी-प्राणी भी ाॊनत मसॊ सद् बास की स्थाऩना कयता है । स चा ऩत्रकाय ननभाथण क्राॊनत की
रऩ न से, सभाज की फुयाइमन कह बस्भ कयने का आमहजन कयता है ।"
6. ववववधात्भकता
7. ववकृयत ववनाशक
ऩत्रकारयता के प्रकाय
2. वाचडाग ऩत्रकारयता - इसका भुख्म कामथ सयकाय के काभकाज ऩय ननगाह यखना है मय कहीॊ
बी कहई गडफडी हह तह उसका ऩदाथपा कयना है । इसे ऩयॊ ऩयागत रूऩ से साचडाग ऩत्रकारयता कहा
जा सकता है ।
3. एडवोकेसी ऩत्रकारयता - मडसहकेसी मानन ऩैयसी कयना। ककसी खास भद्
ु दे मा पसचायधाया के ऩऺ
भी जनभत फनाने के मरम रगाताय अमबमान चरानेसारी ऩत्रकारयता कह मडसहकेसी ऩत्रकारयता कहा जाता
है । भीडडमा ामसस्था का ही मक अॊग है । मय ामसस्था के साथ तारभेर बफठाकय चरनेसारे भीडडमा कह
भख्
ु मधाया भीडडमा कहा जाता है ।
दस
ू यी ओय कुछ ऐसे सैकक्ाऩक सहच यखनेसारा भीडडमा हहते हैं जह ककसी पसचायधाया मा ककसी
खास उद्दे श्म की ऩूनतथ के मरम ननकारे जाते हैं।
इस तयह की ऩत्रकारयता कह मडसहकेसी )ऩैयसी( ऩत्रकारयता कहा जाता है । जैसे याउरीम पसचायधाया,
धामभथक पसचायधाया से जुडे ऩत्र ऩबत्रकामॉ।
4. ऩीत ऩत्रकारयता - ऩाठकन कह रब
ु ाने के मरम झठ
ू ी अपसाहन, आयहऩन प्रत्मायहऩन प्रेभ सॊफॊधन आसद
से सॊफॊचधत सनसनीखेज सभाचायन से सॊफॊचधत ऩत्रकारयता कह ऩीत ऩत्रकारयता कहा जाता है ।
इसभी सही सभाचायन की उऩेऺा कयके सनीसनी पैराने सारे सभाचाय मा खमान खीॊचने सारा
ीषथकन का फहुतामत भी प्रमहग ककमा जाता है । इसे सभाचाय ऩत्रन की बफक्री फ ाने, इरेक्क्रननक
भीडडमा की ीआयऩी फ ाने का घस मा तयीका भाना जाता है ।
इसभी ककसी सभाचाय खासकय ऐसे सासथजननक ऺेत्र से जुडे ामक्क्त द्साया ककमा गमा कुछ
आऩपत्तजनक कामथ, घह ारे आसद कह फ ाच ाकय सनसनी फनामा जाता है । इसके अरासा ऩत्रकाय
द्साया अामससानमक तयीके अऩनाम जाते हैं।
5. ऩेज थ्री ऩत्रकारयता - ऩजे थ्री ऩत्रकारयता उसे कहते हैं क्जसभी पै न, अभीयन की ऩास थ मन
भसहराओॊ मय जानेभाने रहगन के ननजी जीसन के फाये भी फतामा जाता है ।
6. खेर ऩत्रकारयता - खेर से जुडी ऩत्रकारयता कह खेर ऩत्रकारयता कहा जाता है । खेर आधनु नक हन
मा प्राचीन खेरन भी हहनेसारे अद्बुत कायनाभन कह जग जासहय कयने तथा उसका ामाऩक प्रचाय-
प्रसाय कयने भी खेर ऩत्रकारयता का भहत्सऩूणथ महगदान यहा है । आज ऩूयी दनु नमा भी खेर मसद
रहकपप्रमता के म खय ऩय है तह उसका कापी कुछ श्रेम खेर ऩत्रकारयता कह बी जाता है ।
9. ग्राभीण एवं कृवष ऩत्रकारयता - बायत भी आज बी रगबग 70 प्रनत त आफादी गाॊसन भी फसती
है । दे के फज प्रासधानन का फडा सहस्सा कृपष मसॊ ग्राभीण पसकास ऩय खचथ हहता है । ग्राभीण
पसकास के बफना दे का पसकास अधयू ा है । ऐसे भी आचथथक ऩत्रकारयता का मक भहत्सऩूणथ
क्जम्भेदायी है कक सह कृपष मसॊ कृपष आधारयत महजनाओॊ तथा ग्राभीण बायत भी चर यहे पसकास
कामथक्रभ का स ीक आकरन कय तस्सीय ऩे कयी ।
10. ये डडमो ऩत्रकारयता - भुरण के आपसउकाय के फाद सॊदे ा मय पसचायन कह क्क्त ारी आयै
प्रबासी ढॊ ग से अचधक से अचधक रहगन तक ऩहुॊचना भनुउम का रक्ष्म फन गमा। इसी से ये डडमह
का जतभ हुआ। ये डडमह के आपसउकाय के जरयम आसाज मक ही सभम भी असॊख्म रहगन तक
उनके घयन कह ऩहुॊचने रगा। इस प्रकाय श्राम भाखमभ के रूऩ भी जनसॊचाय कह ये डडमह ने नमे
आमाभ सदम। आगे चरकय ये डडमह कह मसनेभा मय े रीपसजन मय इॊ यने से कडी चन ु ौनतमाॊ
मभरी रेककन ये डडमह अऩनी पसम उ ता के कायण आगे फ ता गमा मय आज इसका स्थान
सुयक्षऺत है ।
ये डडमह की पस ष
े ता मह है कक मह सासथजननक बी है मय ामक्क्तगत बी।
12. ववकास ऩत्रकारयता सयकायी महजनाओॊ से दे का पसकास हह यहा है मा नहीॊ उसका आकरन
कयना ही पसकास ऩत्रकारयता का कामथ है । पसकास ऩत्रकारयता के जरयम ही इसभी मथा सॊबस
सुधाय राने का भागथ प्र स्त हहगा।
13. संसदीम ऩत्रकारयता - रहकतॊत्र भी सॊसदीम ामसस्था की प्रभुख बूमभका है । सॊसदीम ामसस्था
के तहत सॊसद भी जनता द्साया चन ु े हुम प्रनतननचध ऩहुॊचते हैं। फहुभत हामसर कयने सारा ासन
कयता है ताेे दस
ू या पसऩऺ भी फैठता है । दानेन की अऩनी अऩनी अहभ बूमभका हहती है । इनके
द्साया ककम जा यहे कामथ ऩय नजय यखना ऩत्रकारयता की अहभ क्जम्भेदायी है क्मनकक रहकतॊत्र भी
मही मक कडी है जह जनता मसॊ नेता के फीच काभ कयता है ।
जनता ककसी का चन
ु ास इसमरम कयते हैं तह सह रहगन की सुख सुपसधा तथा जीसनस्तय सुधायने
भी कामथ कये । रेककन चन
ु ा हुआ प्रनतननचध मा सयकाय अगय अऩने भागथ ऩय नहीॊ चरते हैं तह
उसकह चेताने का कामथ ऩत्रकारयता कयती है । इनकी गनतपसचध, इनके कामथ की ननगयानी कयने का
कामथ ऩत्रकारयता कयती है ।
15. ववर्ध ऩत्रकारयता - नम कानून, उनके अनुऩारन मय उसके प्रबास से रहगन कह ऩरयचचत
कयाना फहुत ही जरूयी है । कानन
ू ामसस्था फनाम यखना, अऩयाधी कह सजा दे ना से रेकय ासन
ामसस्था भी अऩयाध याके ने, रहगन कह तमाम प्रदान कयना इसका भख्
ु म कामथ है । इसके मरम
ननचरी अदारत से रेकय उ च तमामारम, ससो च तमामारम तक ामसस्था है । इसभी यहजाना
कुछ न कुछ भहत्सऩण
ू थ पैसरे सन
ु ाम जाते हैं। कई फडी फडी घ नाओॊ के ननणथम, उसकी सन
ु साई
की प्रकक्रमा चरती यहती है । इस फाये भी रहग जानने की इ छुक यहते हैं, क्मनकक कुछ भक
ु दभे
ऐसे हहते हैं क्जनका प्रबास सभाज, सॊप्रदाम, प्रदे मसॊ दे ऩय ऩडता है ।
दस
ू यी फात मह है कक दफास के चरते कानून ामसस्था अऩयाधी कह छहडकय ननदोष कह सजा तह
नहीॊ दे यही है इसकी ननगयानी बी पसचध ऩत्रकारयता कयती है ।
16. पोटो ऩत्रकारयता - पह ह ऩत्रकारयता ने छऩाई तकनीक के पसकास के साथ ही सभाचाय ऩत्रन
भी अहभ स्थान फना मरमा है । कहा जाता है कक जह फात हजाय ब्दाॊेे भी मरखकय नहीॊ की जा
सकती है सह मक तस्सीय कह दे ती है ।
17. ववऻान ऩत्रकारयता - सतथभान भी पसऻान ने कापी तयक्की कय री है । इसकी हय जगह ऩहुॊच
हह चरी है । पसऻान भी हभायी जीसन ैरी कह फदरकय यख सदमा है । सैऻाननकन द्साया यहजाना
नई नई खहज की जा यही है । इसभी कुछ तह जन कामाणकायी हैं तह कुछ पसखसॊसकायी बी है ।
जैसे ऩयभाणु की खहज से कई फदरास रा सदमा है रेककन इसका पसखसॊसकायी ऩऺ बी है । इसे
ऩयभाणु फभ फनाकय उऩमहग कयने से पसखसॊस हागेा।
इस तयह पसऻान ऩत्रकारयता दहनन ऩऺन का पसश्रेषण कय उसे ऩे कयने का कामथ कयता है । जहाॊ
पसऻान के उऩमहग से कैसे जीसन ैरी भी सुधाय आ सकता है तह उसका गरत उऩमहग से
सॊसाय खसॊस हह सकता है।
18. शैक्षऺक ऩत्रकारयता - ऩत्रकारयता सबी नई सच
ू ना कह रहगन तक ऩहुॊचाकय ऻान भी सद्
ृ चध
कयती है । जफ से म ऺा कह मऩचारयक फनामा गमा है तफ से ऩत्रकारयता का भहत्स मय फ
गमा है । जफ तक हभी नई सूचना नहीॊ मभरेगी हभी तफ तक अऻानता घेय कय यखी यहे गी। उस
अऻानता कह दयू कयने का सफसे फडा भाखमभ है ऩत्रकारयता। चाहे सह ये डडमह हाेे मा े रीपसजन
मा सभाचाय ऩत्र मा ऩबत्रकामॊ सबी भी नई सूचना हभी प्रातत हातेी है क्जससे हभी नई म ऺा
मभरती है । मक फात आयै कक म क्षऺत ामक्क्त मक भाखमभ भी सॊतुउ नहीॊ हहता है ।
19. सांस्कृयतक-साहहल्त्मक ऩत्रकारयता - भनुउम भी नछऩी प्रनतबा, करा चाहे सह ककसी बी रूऩ भी
हह उसे दे खने से भन कह तक्ृ तत मभरती है । इसमरम भनुउम हभे ा नई नई करा, प्रनतबा की
खहज भी रगा यहता है । इस करा प्रनतबा कह उजागय कयने का मक स क्त भाखमभ है
ऩत्रकारयता। करा प्रनतबाओॊ के फाये भी जानकायी यखना, उसके फाये भी रहगन कह ऩहुॊचाने का काभ
ऩत्रकारयता कयता है । इस साॊस्कृनतक सासहक्त्मक ऩत्रकारयता के कायण आज कई पसरुतत प्राचीन
करा जैसे रहकनत्ृ म, रहक सॊगीत, स्थाऩत्म करा कह खहज ननकारा गमा है मय कपय से जीपसत
हह उठे हैं।
20. अऩयाध ऩत्रकारयता - याजनीनतक सभाचाय के फाद अऩयाध सभाचाय ही भहत्सऩूणथ हहते हैं।
फहुत से ऩाठकन स द क थ न कह अऩयाध सभाचाय जानने की बूख हहती है । इसी बूख कह ाॊत कयने
के मरम ही सभाचायऩत्रन स चैनरन भी अऩयाध डामयी, सनसनी, सायदात, क्राइभ पाइर जैसे सभाचाय
कामथक्रभ प्रकाम त मसॊ प्रसारयत ककम जा यहे हैं। मक अनुभान के अनुसाय ककसी सभाचाय ऩत्र भी
रगबग ऩैंतीस प्रनत त सभाचाय अऩयाध से जड
ु े हातेेे हैं। इसी से अऩयाध ऩत्रकारयता कह फर
मभरा है ।
दस
ू यी फात मह कक अऩयाचधक घ नाओॊ का सीधा सॊफॊध ामक्क्त, सभाज, सॊप्रदाम, धभथ मय दे से
हातेा है । अऩयाचधक घ नाओॊ का प्रबास ामाऩक हातेा है ।
21. याजनैयतक ऩत्रकारयता - सभाचाय ऩत्रन भी सफसे अचधक ऩ े जानेसारे आयै चैनरन ऩय ससाथचधक
दे खे सुने जानेसारे सभाचाय याजनीनत से जुडे हहते हैं। याजनीनत की उठा ऩ क, र के झ के,
आयहऩ प्रत्मायहऩ, यहचक यहभाॊचक, झूठ-सच, आना जाना आसद से जुडे सभाचाय सुपखथमन भी हहते हैं।
याजनीनत से जुडे सभाचायन का ऩूया का ऩूया फाजाय पसकमसत हह चक
ु ा है । याजनीनतक सभाचायन के
फाजाय भी सभाचाय ऩत्र मय सभाचाय चैनर अऩने उऩबेक्ताओॊ कह रयझाने के मरम ननत नमे
प्रमहग कयते नजय आ यहे हैं। चन
ु ास के भौसभ भी तह प्रमहगन की झॊडी रग जाती है मय हय कहई
मक दस
ू ये कह ऩछाडकय आगे ननकर जाने की हहड भी ामभर हह जाता है ।
याजनीनतक सभाचायन की प्रस्तुनत भी ऩहरे से अचधक फेफाकी आमी है । रहकतॊत्र की दहु ाई के साथ
जीसन के रगबग हय ऺेत्र भी याजनीनत की दखर फ ा है मय इस कायण याजनीनतक सभाचायन
की बी सॊख्मा फ ी है । ऐसे भी इन सभाचायन कह नजयअॊदाज कय जाना सॊबस नहीॊ है ।
याजनीनतक सभाचायन की आकषथक प्रस्तनु त रहकपप्रमा हामसर कयने का फहुत फडा साधन फन चक
ु ी
है ।
ऩत्रकारयता का दायमत्व
अमबामक्क्त की आज़ादी बरे ही हभी कानूनी रूऩ से अऩने सॊपसधान से मभरी है भगय सास्तस भी
मह हभाया भानसीम अचधकाय है । रहकततत्र भी इसका भहत्स मय बी फ जाता है । रहकततत्र की
सपरता असहॊसक सभाज भी ही सॊबस हह सकती है । ऐसे सभाज भी जहाॊ पैसरे ायीरयक मा
आमुध की ताकत से नहीॊ फक्ाक तकथ से, फहस से मय पसभत के अचधकाय की यऺा कयते
हुम तमामसॊगत आभ सहभनत से हहते हन।
ऩत्रकारयमा का दानमत्स केसर सूचना दे ना ही नहीॊ फक्ाक सूचनाओॊ का पसश्रेषण कयना मय उतही
आभ ऩाठक के मरम सॊदबथ दे ना बी हहता है । मय मह खाॊडे की धाय ऩय चरने जैसा है ।
सच
ू ना भी खह नहीॊ हह मह दानमत्स बी ऩत्रकायन का हहता है । ऩत्रकारयता मक ऩे ा बी है मय सह
मक कायहफाय बी है । भगय मह कायहफाय अतम कायहफायन मय ऩे न से अरग है । ऩत्रकाय मक साथ
कई बमू भकामॉ ननबाता है । सह सच
ू नाओॊ का हयकाया है तह सह म ऺक बी है , सह यऺक बी
है , मय सह खाक की ज़ुफान बी है ।
ऩत्रकारयता के भहत्स मय दानमत्स कह हभ भहात्भा गाॊधी के जरयमे ठीक से सभझ सकते हैं।
उतहनने कहा था “ऩत्रकारयता का काभ ऩाठक के सदभाग भी चाही-अनचाही चीजी थहऩना नहीॊ है
फक्ाक आभ जन के सदभाग कह जाग्रत कयना है ।” उनका कहना कक “आधनु नक ऩत्रकारयता भी
सतहीऩन, मकऩऺता, गरनतमाॊ, मय महाॊ तक कक फेईभानी बी, प्रसे कय गई हैं” आज ककतना
स ीक रगता है । इसके फासजूद गाॊधी अखफाय की आज़ादी के ऩूये ऩऺधय थे। उतहनने
कहा “अखफाय की आज़ादी इतनी अनभहर है कक कहई बी दे उसे छहड नहीॊ सकता।” गाॊधी ने
मक मय फडी फात कही : “प्रेस रहकततत्र का चौथा स्तम्ब कहराता है । सह ननक्श्चत रूऩ से मक
ताकत है । भगय मसद इस ताकत का द ु ऩमहग ककमा जाता है तह सह अऩयाध है ”।
गाॊधी ने कहा: “अखफायन के बफना सत्माग्रह जैसा अमबमान सॊबस नहीॊ हह सकता था।” उनके
अऩने अखफाय खद
ु उनके ब्दन भी उनके मरम “आत्भ-सॊमभ के प्रम ऺण स्थर फने। मय
भाखमभ फने भानस की प्रकृनत कह उसके सबी बेदन मय पसपसधताओॊ ससहत सभझने भी ।”
ऩत्रकारयता कह मभरी आज़ादी उसकी अऩनी मभक्ाकमत नहीॊ है । मह आज़ादी उसे ससथ जन कह
प्रातत अमबामक्क्त की स्सततत्रता के तहत मभरी है । अभेरयकी सॊपसधान के ऩहरे सॊ हधन के
जरयमे प्रैस की आज़ादी सुननक्श्चत की गई है । भगय हभाये महाॉ ऩत्रकारयता की आज़ादी आभ
नागरयक कह मभरी अमबामक्क्त की आज़ादी का ही सहस्सा है । अमबामक्क्त की स्सततत्रता से ही
ऩत्रकारयता का दानमत्स ऩूया हहता है । ऩय मह आज़ादी ननफाथध बी नहीॊ है । उसकी
सीभामॊ हैं। रहकततत्र के तीन सॊसैधाननक स्तॊबन – पसधानमका, कामथऩामरका मय तमामऩामरका –
की बी सीभामॊ हैं।
गरती सफसे हहती है। ऩत्रकाय बी गरती कय सकता है । ऩत्रकाय कह गरती कयने की आज़ादी बी
है । क्मनकक गरती नहीॊ हह जामे इसके साये जतन कयने के फाद बी ऩत्रकारयता भी असत्म चरा
आता है । भगय ऩत्रकायन का मह गु त्तय दानमत्स फनता है कक ऩता चरते ही से अऩनी गरती
सुधाय री । ऩत्रकारयता कह गरती सुधायने की फडी आज़ादी है ।
कई फाय सत्म श्सेत-श्माभ नहीॊ हहता। सह साप मय स्ऩउ बी नहीॊ हहता। उसके कई ऩहरू हह
सकते हैं। इसीमरम ऩत्रकायन का दानमत्स फनता है कक से मसक्के के दहनन ऩहरुओॊ की जानकायी
अऩने ऩाठकन कह दे । फीफीसी े रीपसज़न का मक प्रहभह है क्जसभी मह सॊचाय भाखमभ दासा कयता
है कक “सत्म के कई यॊ ग हहते हैं मय हभ सबी यॊ ग प्रस्तुत कयते हैं।”
अखफाय की आज़ादी दनु नमा भी फडे सॊघषथ से मभरी है । मह भान के नहीॊ चरना चासहम कक मक
फाय मह आज़ादी मभर गई तह सह हभे ा फनी यहेगी। इसकी सुयऺा के मरम हभे ा जागरूक फने
यहना हहता है।
अमबामक्क्त की आज़ादी फहुतन कह नहीॊ सुहाती। क्जतही मह नहीॊ सुहाती से रहकततत्र के सहतैषी
नहीॊ हह सकते। भगय उतही अऩने ककसी न ककसी कारे कायनाभे ऩय ऩदाथ फनाम यखना हहता है ।
रहकततत्र ऩयू ी ऩायदम त
थ ा की भाॊग कयता है । सह सफकी बागीदायी से परता-पूरता है । इसभी
साभॊती मा ताना ाही प्रसपत्तमन का कहई स्थान नहीॊ हहता। ऩत्रकारयता का दानमत्स इन प्रसपत्तमन का
भन कयने भी भदद कयना हहता है ।
ऩत्रकारयता भनहयॊ जन नहीॊ हहता। “इतपह े नभी ” ऩत्रकारयता नहीॊ हहती। अखफाय केसर स्माही से
कारे ककम हुम कागज़ नहीॊ हहते। ऩत्रकारयता केसर-आम अजथन का साधन नहीॊ हहती। सह नौकयी
नहीॊ हहती। ऩत्रकारयता मक प्रसपत्त हहती है । मह ककसी भी हहती है मा नहीॊ हहती है । इसभी फीच की
कहई क्स्थनत नहीॊ हहती।
आज इस दआ
ु की सफसे मादा जरूयत है कक ऩत्रकारयता भी ऐसी प्रसपत्त सारे रहग अचधक से
अचधक आमी मय उसे सफर फनामॉ। ऩत्रकारयता सफर हहगी तह रहकततत्र सफर हहगा, आभ
आदभी सफर हहगा।
Technical Terminology
First Semester
1. Advance
2. Exchange
3. Import
4. Investment
5. Risk
6. Agent
7. Act
8. Account
9. Address
10. Ad hoc
11. Advice
12. Aid
13. Allowance
14. Administration
15. Abstract
16. Acknowledgement
17. Income Tax
18. Store
19. Advocate General
20. Supreme Court
21. Typist
22. Education Officer
23. Record
24. Telegram
25. Log Book
26. Allotment
27. Approval
28. Director
29. Allegation
30. Notification