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ज्मोतत

विधिा हो जाने के फाद फूटी का स्िबाि फहुत कटु हो गमा था। जफ फहुत जी जरता तो अऩने भत
ृ ऩतत को कोसती-आऩ तो
ॉँ
ससधाय गए, भेये सरए मह जॊजार छोड़ गए । जफ इतनी जल्दी जाना था, तो ब्माह न जाने ककससरए ककमा । घय भें बूनी ब ग
नहीॊ, चरे थे ब्माह कयने ! िह चाहती तो दस
ू ययी सगाई कय रेती । अहीयों भें इसका रयिाज है । देखने -सन
ु ने भें बी फयु ी न थी ।
दो-एक आदभी तैमाय बी थे, रेककन फूटी ऩततव्रता कहराने के भोह को न छोड़ सकी । औय मह साया क्रोध उतयता था, फड़े रड़के
भोहन ऩय, जो अफ सोरह सार का था । सोहन अबी छोटा था औय भैना रड़की थी । मे दोनों अबी ककसी रामक न थे । अगय
मह तीनों न होते, तो फूटी को क्मों इतना कष्ट होता । जजसका थोड़ा-सा काभ कय दे ती, िही योटी-कऩड़ा दे दे ता। जफ चाहती ककसी
के ससय फैठ जाती । अफ अगय िह कहीॊ फैठ जाए, तो रोग मही कहें गे कक तीन-तीन फच्चों के होते इसे मह क्मा सूझी ।

भोहन बयसक उसका बाय हल्का कयने की चेष्टा कयता । गामों-बैसों की सानी-ऩानी, दह
ु ना- भथना मह सफ कय रेता, रेककन फूटी
का भॉह
ु सीधा न होता था । िह योज एक-न-एक खुचड़ तनकारती यहती औय भोहन ने बी उसकी घड़
ु ककमों की ऩयिाह कयना छोड़
ददमा था । ऩतत उसके ससय गह
ृ स्थी का मह बाय ऩटककय क्मों चरा गमा, उसे मही गगरा था । फेचायी का सिवनाश ही कय ददमा ।
न खाने का सुख सभरा, न ऩहनने-ओढ़ने का, न औय ककसी फात का। इस घय भें क्मा आमी, भानो बट्टी भें ऩड़ गई । उसकी
िैधव्म-साधना औय अतप्ृ त बोग-रारसा भें सदै ि द्िन्दद्ि-सा भचा यहता था औय उसकी जरन भें उसके रृदम की सायी भद
ृ त
ु ा
ॉँ सौ के गहने थे, रेककन एक-एक कयके सफ
जरकय बस्भ हो गई थी । ऩतत के ऩीछे औय कुछ नहीॊ तो फूटी के ऩास चाय-ऩ च
उसके हाथ से तनकर गए ।

उसी भह
ु ल्रे भें उसकी बफयादयी भें, ककतनी ही औयतें थीॊ, जो उससे जेठी होने ऩय बी गहने झभकाकय, आॉखों भें काजर रगाकय,
भाॉग भें सेंदयु की भोटी-सी ये खा डारकय भानो उसे जरामा कयती थीॊ , इससरए अफ उनभें से कोई विधिा हो जाती, तो फूटी को
खुशी होती औय मह सायी जरन िह रड़कों ऩय तनकारती, विशेषकय भोहन ऩय। िह शामद साये सॊसाय की जस्िमों को अऩने ही रूऩ
भें दे खना चाहती थी। कुत्सा भें उसे विशेष आनॊद सभरता था । उसकी िॊगचत रारसा, जर न ऩाकय ओस चाट रेने भें ही सॊतुष्ट
होती थी; कपय मह कैसे सॊबि था कक िह भोहन के विषम भें कुछ सुने औय ऩेट भें डार रे । ज्मोंही भोहन सॊध्मा सभम दध

फेचकय घय आमा फूटी ने कहा-दे खती हूॉ, तू अफ साॉड़ फनने ऩय उतारू हो गमा है ।

भोहन ने प्रश्न के बाि से दे खा-कैसा साॉड़! फात क्मा है ?

'तू रूवऩमा से तछऩ-तछऩकय नहीॊ हॉसता-फोरता? उस ऩय कहता है कैसा साॉड़? तुझे राज नहीॊ आती? घय भें ऩैसे-ऩैसे की तॊगी है औय
िहाॉ उसके सरए ऩान रामे जाते हैं, कऩड़े यॉगाए जाते है।'

भोहन ने विद्रोह का बाि धायण ककमा-अगय उसने भझ


ु से चाय ऩैसे के ऩान भाॉगे तो क्मा कयता ? कहता कक ऩैसे दे , तो राऊॉगा ?
अऩनी धोती यॉगने को दी, उससे यॉगाई भाॊगता ?

'भुहल्रे भें एक तू ही धन्दनासेठ है! औय ककसी से उसने क्मों न कहा?'

'मह िह जाने , भैं क्मा फताऊॉ ।'

'तुझे अफ छैरा फनने की सूझती है । घय भें बी कबी एक ऩैसे का ऩान रामा?'

'महाॉ ऩान ककसके सरए राता ?'

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'क्मा तेये सरखे घय भें सफ भय गए ?'

'भैं न जानता था, तुभ ऩान खाना चाहती हो।'

'सॊसाय भें एक रुवऩमा ही ऩान खाने जोग है ?'

'शौक-ससॊगाय की बी तो उसभय होती है ।'

फूटी जर उठी । उसे फुदढ़मा कह दे ना उसकी सायी साधना ऩय ऩानी पेय दे ना था । फुढ़ाऩे भें उन साधनों का भहत्त्ि ही क्मा ?
जजस त्माग-कल्ऩना के फर ऩय िह जस्िमों के साभने ससय उठाकय चरती थी, उस ऩय इतना कुठायाघात ! इन्दहीॊ रड़कों के ऩीछे
उसने अऩनी जिानी धर
ू भें सभरा दी । उसके आदभी को भये आज ऩाॉच सार हुए । तफ उसकी चढ़ती जिानी थी । तीन फच्चे
बगिान ् ने उसके गरे भढ़ ददए, नहीॊ अबी िह है कै ददन की । चाहती तो आज िह बी ओठ रार ककए, ऩाॉि भें भहािय रगाए,
अनिट-बफछुए ऩहने भटकती कपयती । मह सफ कुछ उसने इन रड़कों के कायण त्माग ददमा औय आज भोहन उसे फुदढ़मा कहता
है! रुवऩमा उसके साभने खड़ी कय दी जाए, तो चुदहमा-सी रगे । कपय बी िह जिान है, आैैय फूटी फुदढ़मा है!

फोरी-हाॉ औय क्मा । भेये सरए तो अफ पटे चीथड़े ऩहनने के ददन हैं । जफ तेया फाऩ भया तो भैं रुवऩमा से दो ही चाय सार फड़ी
थी । उस िक्त कोई घय रेती तो, तुभ रोगों का कहीॊ ऩता न रगता । गरी-गरी बीख भाॉगते कपयते । रेककन भैं कह दे ती हूॉ,
अगय तू कपय उससे फोरा तो मा तो तू ही घय भें यहे गा मा भैं ही यहूॉगी ।

भोहन ने डयते-डयते कहा-भैं उसे फात दे चुका हूॉ अम्भा!

'कैसी फात ?'

'सगाई की।'

'अगय रुवऩमा भेये घय भें आमी तो झाडू भायकय तनकार दॉ ग


ू ी । मह सफ उसकी भाॉ की भामा है । िह कुटनी भेये रड़के को भुझसे
छीने रेती है। याॉड़ से इतना बी नहीॊ दे खा जाता । चाहती है कक उसे सौत फनाकय छाती ऩय फैठा दे ।'

भोहन ने व्मगथत कॊठ भें कहा,अम्भाॉ, ईश्िय के सरए चऩ


ु यहो । क्मों अऩना ऩानी आऩ खो यही हो । भैंने तो सभझा था, चाय ददन
भें भैना अऩने घय चरी जाएगी, तुभ अकेरी ऩड़ जाओगी । इससरए उसे राने की फात सोच यहा था । अगय तुम्हें फुया रगता है
तो जाने दो ।

'तू आज से महीॊ आॉगन भें सोमा कय।'

'औय गामें-बैंसें फाहय ऩड़ी यहें गी ?'

'ऩड़ी यहने दे , कोई डाका नहीॊ ऩड़ा जाता।'

'भझ
ु ऩय तझ
ु े इतना सन्ददे ह है ?'

'हाॉ !'

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'तो भैं महाॉ न सोऊॉगा।'

'तो तनकर जा घय से।'

'हाॉ, तेयी मही इच्छा है तो तनकर जाऊॉगा।'

भैना ने बोजन ऩकामा । भोहन ने कहा-भझ


ु े बख
ू नहीॊ है! फट
ू ी उसे भनाने न आमी । भोहन का मि
ु क-रृदम भाता के इस कठोय
शासन को ककसी तयह स्िीकाय नहीॊ कय सकता। उसका घय है , रे रे। अऩने सरए िह कोई दस
ू या दठकाना ढूॉढ़ तनकारेगा। रुवऩमा
ने उसके रूखे जीिन भें एक जस्नग्धता बय ही दी थी । जफ िह एक अव्मक्त काभना से चॊचर हो यहा था, जीिन कुछ सूना-सूना
रगता था, रुवऩमा ने नि िसॊत की बाॉतत आकय उसे ऩल्रवित कय ददमा । भोहन को जीिन भें एक भीठा स्िाद सभरने रगा।
कोई काभ कयना होता, ऩय ध्मान रुवऩमा की ओय रगा यहता। सोचता, उसे क्मा, दे दे कक िह प्रसन्दन हो जाए! अफ िह कौन भॉह

रेकय उसके ऩास जाए ? क्मा उससे कहे कक अम्भाॉ ने भुझे तुझसे सभरने को भना ककमा है? अबी कर ही तो फयगद के नीचे दोनों
भें केसी-कैसी फातें हुई थीॊ । भोहन ने कहा था, रूऩा तभ
ु इतनी सन्द
ु दय हो, तम्
ु हाये सौ गाहक तनकर आएॉगे। भेये घय भें तम्
ु हाये
सरए क्मा यखा है ? इस ऩय रुवऩमा ने जो जिाफ ददमा था, िह तो सॊगीत की तयह अफ बी उसके प्राण भें फसा हुआ था-भैं तो
तुभको चाहती हूॉ भोहन, अकेरे तुभको । ऩयगने के चौधयी हो जाि, तफ बी भोहन हो; भजूयी कयो, तफ बी भोहन हो । उसी रुवऩमा
से आज िह जाकय कहे -भुझे अफ तुभसे कोई सयोकाय नहीॊ है !

नहीॊ, मह नहीॊ हो सकता । उसे घय की ऩयिाह नहीॊ है । िह रुवऩनमा के साथ भाॉ से अरग यहे गा । इस जगह न सही, ककसी दस
ू ये
भुहल्रे भें सही। इस िक्त बी रुवऩमा उसकी याह दे ख यही होगी । कैसे अच्छे फीड़े रगाती है। कहीॊ अम्भाॊ सुन ऩािें कक िह यात
को रुवऩमा के द्िाय ऩय गमा था, तो ऩयान ही दे दें । दे दें ऩयान! अऩने बाग तो नहीॊ फखानतीॊ कक ऐसी दे िी फहू सभरी जाती है।
न जाने क्मों रुवऩमा से इतना गचढ़ती है। िह जया ऩान खा रेती है , जया साड़ी यॉगकय ऩहनती है। फस, मही तो।

चूडड़मों की झॊकाय सुनाई दी। रुवऩमा आ यही है! हा; िही है।

रुवऩमा उसके ससयहाने आकय फोरी-सो गए क्मा भोहन ? घड़ी-बय से तम्


ु हायी याह दे ख यही हूॉ। आमे क्मों नहीॊ ?

भोहन नीॊद का भक्कय ककए ऩड़ा यहा।

रुवऩमा ने उसका ससय दहराकय कपय कहा-क्मा सो गए भोहन ?

उन कोभार उॊ गसरमों के स्ऩशव भें क्मा ससद्तघ थी, कौन जाने । भोहन की सायी आत्भा उन्दभत्त हो उठी। उसके प्राण भानो फाहय
तनकरकय रुवऩमा के चयणों भें सभवऩवत हो जाने के सरए उछर ऩड़े। दे िी ियदान के सरए साभने खड़ी है। साया विश्ि जैसे नाच
यहा है। उसे भारूभ हुआ जैसे उसका शयीय रुप्त हो गमा है , केिर िह एक भधुय स्िय की बाॉतत विश्ि की गोद भें गचऩटा हुआ
उसके साथ नत्ृ म कय यहा है ।

रुवऩमा ने कहा-अबी से सो गए क्मा जी ?

भोहन फोरा-हाॉ, जया नीॊद आ गई थी रूऩा। तुभ इस िक्त क्मा कयने आमीॊ ? कहीॊ अम्भा दे ख रें, तो भुझे भाय ही डारें ।

'तुभ आज आमे क्मों नहीॊ?'

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'आज अम्भाॉ से रड़ाई हो गई।'

'क्मा कहती थीॊ?'

'कहती थीॊ, रुवऩमा से फोरेगा तो भैं ऩयान दे दॉ ग


ू ी।'

'तभ
ु ने ऩछ
ू ा नहीॊ, रुवऩमा से क्मों गचढ़ती हो ?'

'अफ उनकी फात क्मा कहूॉ रूऩा? िह ककसी का खाना-ऩहनना नहीॊ दे ख सकतीॊ। अफ भुझे तुभसे दयू यहना ऩड़ेगा।'

भेया जी तो न भानेगा।'

'ऐसी फात कयोगी, तो भैं तम्


ु हें रेकय बाग जाऊॉगा।'

'तुभ भेये ऩास एक फाय योज आमा कयो। फस, औय भैं कुछ नहीॊ चाहती।'

'औय अम्भाॉ जो बफगड़ेंगी।'

'तो भैं सभझ गई। तभ


ु भझ
ु े प्माय नहीॊ कयते।

'भेया फस होता, तो तुभको अऩने ऩयान भें यख रेता।'

इसी सभम घय के ककिाड़ खटके । रुवऩमा बाग गई।

भोहन दस
ू ये ददन सोकय उठा तो उसके रृदम भें आनॊद का सागय-सा बया हुआ था। िह सोहन को फयाफय डाॉटता यहता था। सोहन
आरसी था। घय के काभ-धॊधे भें जी न रगाता था । भोहन को दे खते ही िह साफन
ु तछऩाकय बाग जाने का अिसय खोजने रगा।

भोहन ने भुस्कयाकय कहा-धोती फहुत भैरी हो गई है सोहन ? धोफी को क्मों नहीॊ दे ते?

सोहन को इन शब्दों भें स्नेह की गॊध आई।

'धोबफन ऩैसे भाॉगती है।'

'तो ऩैसे अम्भाॉ से क्मों नहीॊ भाॉग रेते ?'

'अम्भाॉ कौन ऩैसे ददमे दे ती है ?'

'तो भझ
ु से रे रो!'

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मह कहकय उसने एक इकन्दनी उसकी ओय पेंक दी। सोहन प्रसन्दन हो गमा। बाई औय भाता दोनों ही उसे गधक्कायते यहते थे।
फहुत ददनों फाद आज उसे स्नेह की भधुयता का स्िाद सभरा। इकन्दनी उठा री औय धोती को िहीॊ छोड़कय गाम को खोरकय रे
चर।

भोहन ने कहा-यहने दो, भैं इसे सरमे जाता हूॉ।

सोहन ने ऩगदहमा भोहन को दे कय कपय ऩूछा-तुम्हाये सरए गचरभ यख राऊॉ ?

जीिन भें आज ऩहरी फाय सोहन ने बाई के प्रतत ऐसा सद्बाि प्रकट ककमा था। इसभें क्मा यहस्म है, मह भोहन की सभझ भें
नहीॊ आमा। फोरा-आग हो तो यख आओ।

भैना ससय के फार खेरे आॉगन भें फैठी घयौंदा फना यही थी। भोहन को दे खते ही उसने घयौंदा बफगाड़ ददमा औय अॊचर से फार
तछऩाकय यसोईधय भें फयतन उठाने चरी।

भोहन ने ऩूछा-क्मा खेर यही थी भैना ?

भैना डयी हुई फोरी-कुछ नहीॊ तो।

'तू तो फहुत अच्छे घयौंदे फनाती है। जया फना, दे ख।ूॉ '

भैना का रुआॊसा चेहया खखर उठा। प्रेभ के शब्द भें ककतना जाद ू है! भॉह
ु से तनकरते ही जैसे सुगॊध पैर गई। जजसने सुना, उसका
रृदम खखर उठा। जहाॉ बम था, िहाॉ विश्िास चभक उठा। जहाॉ कटुता थी, िहाॉ अऩनाऩा छरक ऩड़ा। चायों ओय चेतनता दौड़ गई।
कहीॊ आरस्म नहीॊ, कहीॊ खखन्दनता नहीॊ। भोहन का रृदम आज प्रेभ से बया हुआ है। उसभें सुगॊध का विकषवण हो यहा है।

भैना घयौंदा फनाने फैठ गई ।

भोहन ने उसके उरझे हुए फारों को सुरझाते हुए कहा-तेयी गुडड़मा का ब्माह कफ होगा भैना, नेिता दे , कुछ सभठाई खाने को सभरे।

भैना का भन आकाश भें उड़ने रगा। जफ बैमा ऩानी भाॉगे, तो िह रोटे को याख से खूफ चभाचभ कयके ऩानी रे जाएगी।

'अम्भाॉ ऩैसे नहीॊ दे तीॊ। गुड्डा तो ठीक हो गमा है। टीका कैसे बेजॉ?ू '

'ककतने ऩैसे रेगी ?'

'एक ऩैसे के फतासे रॉ ग


ू ी औय एक ऩैसे का यॊ ग। जोड़े तो यॉगे जाएॉगे कक नहीॊ ?'

'तो दो ऩैसे भें तेया काभ चर जाएगा?'

'हाॉ, दो ऩैसे दे दो बैमा, तो भेयी गडु ड़मा का ब्माह धूभधाभ से हो जाए।'

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भोहन ने दो ऩैसे हाथ भें रेकय भैना को ददखाए। भैना रऩकी, भोहन ने हाथ ऊऩय उठामा, भैना ने हाथ ऩकड़कय नीचे खीॊचना शरू

ककमा। भोहन ने उसे गोद भें उठा सरमा। भैना ने ऩैसे रे सरमे औय नीचे उतयकय नाचने रगी। कपय अऩनी सहे सरमों को वििाह
का नेिता दे ने के सरए बागी।

उसी िक्त फूटी गोफय का झाॉिा सरमे आ ऩहुॊची। भोहन को खड़े दे खकय कठोय स्िय भें फोरी- अबी तक भटयगस्ती ही हो यही है।
बैंस कफ दह
ु ी जाएगी?

आज फूटी को भोहन ने विद्रोह-बया जिाफ न ददमा। जैसे उसके भन भें भाधुमव का कोई सोता- सा खुर गमा हो। भाता को गोफय
का फोझ सरमे दे खकय उसने झाॉिा उसके ससय से उताय सरमा।

फूटी ने कहा-यहने दे , यहने दे , जाकय बैंस दह


ु , भैं तो गोफय सरमे जाती हूॉ।

'तुभ इतना बायी फोझ क्मों उठा रेती हो, भुझे क्मों नहीॊ फुजरा रेतीॊ?'

भाता का रृदम िात्सल्म से गदगद हो उठा।

'तू जा अऩना काभ दे खॊ भेये ऩीछे क्मों ऩड़ता है!'

'गोफय तनकारने का काभ भेया है।'

'औय दध
ू कौन दह
ु े गा ?'

'िह बी भैं करूॉगा !'

'तू इतना फड़ा जोधा है कक साये काभ कय रेगा !'

'जजतना कहता हूॉ, उतना कय रॉ ग


ू ा।'

'तो भैं क्मा करूॉगी ?'

'तुभ रड़कों से काभ रो, जो तुम्हाया धभव है।'

'भेयी सुनता है कोई?'

आज भोहन फाजाय से दध
ू ऩहुॉचाकय रौटा, तो ऩान, कत्था, सऩ
ु ायी, एक छोटा-सा ऩानदान औय थोड़ी-सी सभठाई रामा। फट
ू ी बफगड़कय
फोरी-आज ऩैसे कहीॊ पारतू सभर गए थे क्मा ? इस तयह उड़ािेगा तो कै ददन तनफाह होगा?

'भैंने तो एक ऩैसा बी नहीॊ उड़ामा अम्भाॉ। ऩहरे भैं सभझता था, तुभ ऩान खातीॊ ही नहीॊ।

'तो अफ भैं ऩान खाऊॉगी !'

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'हाॉ, औय क्मा! जजसके दो-दो जिान फेटे हों, क्मा िह इतना शौक बी न कये ?'

फूटी के सूखे कठोय रृदम भें कहीॊ से कुछ हरयमारी तनकर आई, एक नन्दही-सी कोंऩर थी; उसके

अॊदय ककतना यस था। उसने भैना औय सोहन को एक-एक सभठाई दे दी औय एक भोहन को दे ने रगी।

'सभठाई तो रड़कों के सरए रामा था अम्भाॉ।'

'औय तू तो फूढ़ा हो गमा, क्मों ?'

'इन रड़कों क साभने तो फूढ़ा ही हूॉ।'

'रेककन भेये साभने तो रड़का ही है।'

भोहन ने सभठाई रे री । भैना ने सभठाई ऩाते ही गऩ से भॉह


ु भें डार री थी। िह केिर सभठाई का स्िाद जीब ऩय छोड़कय कफ
की गामफ हो चुकी थी। भोहन को ररचाई आॉखों से दे खने रगी। भोहन ने आधा रड्डू तोड़कय भैना को दे ददमा। एक सभठाई
दोने भें फची थी। फूटी ने उसे भोहन की तयप फढ़ाकय कहा-रामा बी तो इतनी-सी सभठाई। मह रे रे।

भोहन ने आधी सभठाई भॉह


ु भें डारकय कहा-िह तुम्हाया दहस्सा है अम्भा।

'तुम्हें खाते दे खकय भुझे जो आनॊद सभरता है। उसभें सभठास से ज्मादा स्िाद है।'

उसने आधी सभठाई सोहन औय आधी भोहन को दे दी; कपय ऩानदान खोरकय दे खने रगी। आज जीिन भें ऩहरी फाय उसे मह
सौबाग्म प्राप्त हुआ। धन्दम बाग कक ऩतत के याज भें जजस विबूतत के सरए तयसती यही, िह रड़के के याज भें सभरी। ऩानदान भें
कई कुजल्हमाॉ हैं। औय दे खो, दो छोटी- छोटी गचभगचमाॉ बी हैं; ऊऩय कड़ा रगा हुआ है , जहाॉ चाहो, रटकाकय रे जाओ। ऊऩय की
तश्तयी भें ऩान यखे जाएॉगे।

ज्मों ही भोहन फाहय चरा गमा, उसने ऩानदान को भाॉज-धोकय उसभें चूना, कत्था बया, सुऩायी काटी, ऩान को सबगोकय तश्तयी भें
यखा । तफ एक फीड़ा रगाकय खामा। उस फीड़े के यस ने जैसे उसके िैधव्म की कटुता को जस्नग्ध कय ददमा। भन की प्रसन्दनता
व्मिहाय भें उदायता फन जाती है। अफ िह घय भें नहीॊ फैठ सकती। उसका भन इतना गहया नहीॊ कक इतनी फड़ी विबतू त उसभें
जाकय गुभ हो जाए। एक ऩुयाना आईना ऩड़ा हुआ था। उसने उसभें भॉह
ु दे खा। ओठों ऩय रारी है। भॉह
ु रार कयने के सरए उसने
थोड़े ही ऩान खामा है।

धतनमा ने आकय कहा-काकी, ततनक यस्सी दे दो, भेयी यस्सी टूट गई है।

कर फूटी ने साप कह ददमा होता, भेयी यस्सी गाॉि-बय के सरए नहीॊ है। यस्सी टूट गई है तो फनिा रो। आज उसने धतनमा को
यस्सी तनकारकय प्रसन्दन भुख से दे दी औय सद्बाि से ऩूछा-रड़के के दस्त फॊद हुए कक नहीॊ धतनमा ?

धतनमा ने उदास भन से कहा-नहीॊ काकी, आज तो ददन-बय दस्त आए। जाने दाॉत आ यहे हैं।

'ऩानी बय रे तो चर जया दे ख,ॉू दाॉत ही हैं कक कुछ औय पसाद है। ककसी की नजय-िजय तो नहीॊ रगी ?'

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'अफ क्मा जाने काकी, कौन जाने ककसी की आॉख पूटी हो?'

'चोंचार रड़कों को नजय का फड़ा डय यहता है।'

'जजसने चुभकायकय फुरामा, झट उसकी गोद भें चरा जाता है। ऐसा हॉसता है कक तुभसे क्मा कहूॉ!'

'कबी-कबी भाॉ की नजय बी रग जामा कयती है।'

'ऐ नौज काकी, बरा कोई अऩने रड़के को नजय रगाएगा!'

'मही तो तू सभझती नहीॊ। नजय आऩ ही रग जाती है।'

धतनमा ऩानी रेकय आमी, तो फूटी उसके साथ फच्चे को दे खने चरी।

'तू अकेरी है। आजकर घय के काभ-धॊधे भें फड़ा अॊडस होता होगा।'

'नहीॊ काकी, रुवऩमा आ जाती है , घय का कुछ काभ कय दे ती है , नहीॊ अकेरे तो भेयी भयन हो जाती।'

फूटी को आश्चमव हुआ। रुवऩमा को उसने केिर तततरी सभझ यखा था।

'रुवऩमा!'

'हाॉ काकी, फेचायी फड़ी सीधी है। झाडू रगा दे ती है , चौका-फयतन कय दे ती है , रड़के को सॉबारती है। गाढ़े सभम कौन, ककसी की फात
ऩछ
ू ता है काकी !'

'उसे तो अऩने सभस्सी-काजर से छुट्टी न सभरती होगी।'

'मह तो अऩनी-अऩनी रुगच है काकी! भुझे तो इस सभस्सी-काजर िारी ने जजतना सहाया ददमा, उतना ककसी बजक्तन ने न ददमा।
फेचायी यात-बय जागती यही। भैंने कुछ दे तो नहीॊ ददमा। हाॉ, जफ तक जीऊॉगी, उसका जस गाऊॉगी।'

'तू उसके गन
ु अबी नहीॊ जानती धतनमा । ऩान के सरए ऩैसे कहाॉ से आते हैं ? ककनायदाय साडड़माॉ कहाॉ से आती हैं ?'

'भैं इन फातो भें नहीॊ ऩड़ती काकी! कपय शौक-ससॊगाय कयने को ककसका जी नहीॊ चाहता ? खाने-ऩहनने की मही तो उसभय है।'

धतनमा ने फच्चे को खटोरे ऩय सुरा ददमा। फूटी ने फच्चे के ससय ऩय हाथ यखा, ऩेट भें धीये - धीये उॉ गरी गड़ाकय दे खा। नाबी ऩय
हीॊग का रेऩ कयने को कहा। रुवऩमा फेतनमा राकय उसे झरने रगी।

फूटी ने कहा-रा फेतनमा भझ


ु े दे दे ।

'भैं डुरा दॉ ग
ू ी तो क्मा छोटी हो जाऊॉगी ?'

'तू ददन-बय महाॉ काभ-धॊधा कयती है। थक गई होगी।'

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'तुभ इतनी बरीभानस हो, औय महाॉ रोग कहते थे, िह बफना गारी के फात नहीॊ कयती। भाये डय के तुम्हाये ऩास न आमी।'

फूटी भुस्कायामी।

'रोग झूठ तो नहीॊ कहते।'

'भैं आॉखों की दे खी भानॉू कक कानों की सुनी ?' कह तो दी होगी। दस


ू यी रड़की होती, तो भेयी ओय से भुॊह पेय रेती। भुझे जराती,
भुझसे ऐॊठती। इसे तो जैसे कुछ भारूभ ही न हो। हो सकता हे कक भोहन ने इससे कुछ कहा ही न हो। हाॉ , मही फात है।

आज रुवऩमा फूटी को फड़ी सुन्ददय रगी। ठीक तो है, अबी शौक-ससॊगाय न कये गी तो कफ कये गी? शौक-ससॊगाय इससरए फुया रगता है
कक ऐसे आदभी अऩने बोग-विरास भें भस्त यहते हैं। ककसी के घय भें आग रग जाए, उनसे भतरफ नहीॊ। उनका काभ तो खारी
दस
ू यों को रयझाना है। जैसे अऩने रूऩ की दक
ू ान सजाए, याह-चरतों को फुराती हों कक जया इस दक
ू ान की सैय बी कयते जाइए।
ऐसे उऩकायी प्राखणमों का ससॊगाय फुया नहीॊ रगता। नहीॊ, फजल्क औय अच्छा रगता है। इससे भारूभ होता है कक इसका रूऩ जजतना
सन्द
ु दय है, उतना ही भन बी सन्द
ु दय है; कपय कौन नहीॊ चाहता कक रोग उनके रूऩ की फखान कयें । ककसे दस
ू यों की आॉखों भें छुऩ
जाने की रारसा नहीॊ होती ? फूटी का मौिन कफ का विदा हो चुका; कपय बी मह रारसा उसे फनी हुई है। कोई उसे यस-बयी आॉखों
से दे ख रेता है, तो उसका भन ककतना प्रसन्दन हो जाता है। जभीन ऩय ऩाॉि नहीॊ ऩड़ते। कपय रूऩा तो अबी जिान है।

उस ददन से रूऩा प्राम: दो-एक फाय तनत्म फट


ू ी के घय आती। फट
ू ी ने भोहन से आग्रह कयके उसके सरए अच्छी-सी साड़ी भॉगिा
दी। अगय रूऩा कबी बफना काजर रगाए मा फेयॊगी साड़ी ऩहने आ जाती, तो फूटी कहती- फहू-फेदटमों को मह जोगगमा बेस अच्छा
नहीॊ रगता। मह बेस तो हभ जैसी फूदढ़मों के सरए है।

रूऩा ने एक ददन कहा-तभ


ु फढ़
ू ी काहे से हो गई अम्भाॉ! रोगों को इशाया सभर जाए, तो बौंयों की तयह तम्
ु हाये द्िाय ऩय धयना दे ने
रगें ।

फूटी ने भीठे ततयस्काय से कहा-चर, भैं तेयी भाॉ की सौत फनकय जाऊॉगी ?

'अम्भाॉ तो फूढ़ी हो गई।'

'तो क्मा तेये दादा अबी जिान फैठे हैं?'

'हाॉ ऐसा, फड़ी अच्छी सभट्टी है उनकी।'

फूटी ने उसकी ओय यस-बयी आॉखों से ददे खकय ऩूछा-अच्छा फता, भोहन से तेया ब्माह कय दॉ ू ?

रूऩा रजा गई। भुख ऩय गर


ु ाफ की आबा दौड़ गई।

आज भोहन दध
ू फेचकय रौटा तो फूटी ने कहा-कुछ रुऩमे-ऩैसे जुटा, भैं रूऩा से तेयी फातचीत कय यही हूॉ।

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