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विधिा हो जाने के फाद फूटी का स्िबाि फहुत कटु हो गमा था। जफ फहुत जी जरता तो अऩने भत
ृ ऩतत को कोसती-आऩ तो
ॉँ
ससधाय गए, भेये सरए मह जॊजार छोड़ गए । जफ इतनी जल्दी जाना था, तो ब्माह न जाने ककससरए ककमा । घय भें बूनी ब ग
नहीॊ, चरे थे ब्माह कयने ! िह चाहती तो दस
ू ययी सगाई कय रेती । अहीयों भें इसका रयिाज है । देखने -सन
ु ने भें बी फयु ी न थी ।
दो-एक आदभी तैमाय बी थे, रेककन फूटी ऩततव्रता कहराने के भोह को न छोड़ सकी । औय मह साया क्रोध उतयता था, फड़े रड़के
भोहन ऩय, जो अफ सोरह सार का था । सोहन अबी छोटा था औय भैना रड़की थी । मे दोनों अबी ककसी रामक न थे । अगय
मह तीनों न होते, तो फूटी को क्मों इतना कष्ट होता । जजसका थोड़ा-सा काभ कय दे ती, िही योटी-कऩड़ा दे दे ता। जफ चाहती ककसी
के ससय फैठ जाती । अफ अगय िह कहीॊ फैठ जाए, तो रोग मही कहें गे कक तीन-तीन फच्चों के होते इसे मह क्मा सूझी ।
भोहन बयसक उसका बाय हल्का कयने की चेष्टा कयता । गामों-बैसों की सानी-ऩानी, दह
ु ना- भथना मह सफ कय रेता, रेककन फूटी
का भॉह
ु सीधा न होता था । िह योज एक-न-एक खुचड़ तनकारती यहती औय भोहन ने बी उसकी घड़
ु ककमों की ऩयिाह कयना छोड़
ददमा था । ऩतत उसके ससय गह
ृ स्थी का मह बाय ऩटककय क्मों चरा गमा, उसे मही गगरा था । फेचायी का सिवनाश ही कय ददमा ।
न खाने का सुख सभरा, न ऩहनने-ओढ़ने का, न औय ककसी फात का। इस घय भें क्मा आमी, भानो बट्टी भें ऩड़ गई । उसकी
िैधव्म-साधना औय अतप्ृ त बोग-रारसा भें सदै ि द्िन्दद्ि-सा भचा यहता था औय उसकी जरन भें उसके रृदम की सायी भद
ृ त
ु ा
ॉँ सौ के गहने थे, रेककन एक-एक कयके सफ
जरकय बस्भ हो गई थी । ऩतत के ऩीछे औय कुछ नहीॊ तो फूटी के ऩास चाय-ऩ च
उसके हाथ से तनकर गए ।
उसी भह
ु ल्रे भें उसकी बफयादयी भें, ककतनी ही औयतें थीॊ, जो उससे जेठी होने ऩय बी गहने झभकाकय, आॉखों भें काजर रगाकय,
भाॉग भें सेंदयु की भोटी-सी ये खा डारकय भानो उसे जरामा कयती थीॊ , इससरए अफ उनभें से कोई विधिा हो जाती, तो फूटी को
खुशी होती औय मह सायी जरन िह रड़कों ऩय तनकारती, विशेषकय भोहन ऩय। िह शामद साये सॊसाय की जस्िमों को अऩने ही रूऩ
भें दे खना चाहती थी। कुत्सा भें उसे विशेष आनॊद सभरता था । उसकी िॊगचत रारसा, जर न ऩाकय ओस चाट रेने भें ही सॊतुष्ट
होती थी; कपय मह कैसे सॊबि था कक िह भोहन के विषम भें कुछ सुने औय ऩेट भें डार रे । ज्मोंही भोहन सॊध्मा सभम दध
ू
फेचकय घय आमा फूटी ने कहा-दे खती हूॉ, तू अफ साॉड़ फनने ऩय उतारू हो गमा है ।
'तू रूवऩमा से तछऩ-तछऩकय नहीॊ हॉसता-फोरता? उस ऩय कहता है कैसा साॉड़? तुझे राज नहीॊ आती? घय भें ऩैसे-ऩैसे की तॊगी है औय
िहाॉ उसके सरए ऩान रामे जाते हैं, कऩड़े यॉगाए जाते है।'
फूटी जर उठी । उसे फुदढ़मा कह दे ना उसकी सायी साधना ऩय ऩानी पेय दे ना था । फुढ़ाऩे भें उन साधनों का भहत्त्ि ही क्मा ?
जजस त्माग-कल्ऩना के फर ऩय िह जस्िमों के साभने ससय उठाकय चरती थी, उस ऩय इतना कुठायाघात ! इन्दहीॊ रड़कों के ऩीछे
उसने अऩनी जिानी धर
ू भें सभरा दी । उसके आदभी को भये आज ऩाॉच सार हुए । तफ उसकी चढ़ती जिानी थी । तीन फच्चे
बगिान ् ने उसके गरे भढ़ ददए, नहीॊ अबी िह है कै ददन की । चाहती तो आज िह बी ओठ रार ककए, ऩाॉि भें भहािय रगाए,
अनिट-बफछुए ऩहने भटकती कपयती । मह सफ कुछ उसने इन रड़कों के कायण त्माग ददमा औय आज भोहन उसे फुदढ़मा कहता
है! रुवऩमा उसके साभने खड़ी कय दी जाए, तो चुदहमा-सी रगे । कपय बी िह जिान है, आैैय फूटी फुदढ़मा है!
फोरी-हाॉ औय क्मा । भेये सरए तो अफ पटे चीथड़े ऩहनने के ददन हैं । जफ तेया फाऩ भया तो भैं रुवऩमा से दो ही चाय सार फड़ी
थी । उस िक्त कोई घय रेती तो, तुभ रोगों का कहीॊ ऩता न रगता । गरी-गरी बीख भाॉगते कपयते । रेककन भैं कह दे ती हूॉ,
अगय तू कपय उससे फोरा तो मा तो तू ही घय भें यहे गा मा भैं ही यहूॉगी ।
'सगाई की।'
'भझ
ु ऩय तझ
ु े इतना सन्ददे ह है ?'
'हाॉ !'
नहीॊ, मह नहीॊ हो सकता । उसे घय की ऩयिाह नहीॊ है । िह रुवऩनमा के साथ भाॉ से अरग यहे गा । इस जगह न सही, ककसी दस
ू ये
भुहल्रे भें सही। इस िक्त बी रुवऩमा उसकी याह दे ख यही होगी । कैसे अच्छे फीड़े रगाती है। कहीॊ अम्भाॊ सुन ऩािें कक िह यात
को रुवऩमा के द्िाय ऩय गमा था, तो ऩयान ही दे दें । दे दें ऩयान! अऩने बाग तो नहीॊ फखानतीॊ कक ऐसी दे िी फहू सभरी जाती है।
न जाने क्मों रुवऩमा से इतना गचढ़ती है। िह जया ऩान खा रेती है , जया साड़ी यॉगकय ऩहनती है। फस, मही तो।
चूडड़मों की झॊकाय सुनाई दी। रुवऩमा आ यही है! हा; िही है।
उन कोभार उॊ गसरमों के स्ऩशव भें क्मा ससद्तघ थी, कौन जाने । भोहन की सायी आत्भा उन्दभत्त हो उठी। उसके प्राण भानो फाहय
तनकरकय रुवऩमा के चयणों भें सभवऩवत हो जाने के सरए उछर ऩड़े। दे िी ियदान के सरए साभने खड़ी है। साया विश्ि जैसे नाच
यहा है। उसे भारूभ हुआ जैसे उसका शयीय रुप्त हो गमा है , केिर िह एक भधुय स्िय की बाॉतत विश्ि की गोद भें गचऩटा हुआ
उसके साथ नत्ृ म कय यहा है ।
भोहन फोरा-हाॉ, जया नीॊद आ गई थी रूऩा। तुभ इस िक्त क्मा कयने आमीॊ ? कहीॊ अम्भा दे ख रें, तो भुझे भाय ही डारें ।
'तभ
ु ने ऩछ
ू ा नहीॊ, रुवऩमा से क्मों गचढ़ती हो ?'
'अफ उनकी फात क्मा कहूॉ रूऩा? िह ककसी का खाना-ऩहनना नहीॊ दे ख सकतीॊ। अफ भुझे तुभसे दयू यहना ऩड़ेगा।'
भेया जी तो न भानेगा।'
'तुभ भेये ऩास एक फाय योज आमा कयो। फस, औय भैं कुछ नहीॊ चाहती।'
भोहन दस
ू ये ददन सोकय उठा तो उसके रृदम भें आनॊद का सागय-सा बया हुआ था। िह सोहन को फयाफय डाॉटता यहता था। सोहन
आरसी था। घय के काभ-धॊधे भें जी न रगाता था । भोहन को दे खते ही िह साफन
ु तछऩाकय बाग जाने का अिसय खोजने रगा।
भोहन ने भुस्कयाकय कहा-धोती फहुत भैरी हो गई है सोहन ? धोफी को क्मों नहीॊ दे ते?
'तो भझ
ु से रे रो!'
जीिन भें आज ऩहरी फाय सोहन ने बाई के प्रतत ऐसा सद्बाि प्रकट ककमा था। इसभें क्मा यहस्म है, मह भोहन की सभझ भें
नहीॊ आमा। फोरा-आग हो तो यख आओ।
भैना ससय के फार खेरे आॉगन भें फैठी घयौंदा फना यही थी। भोहन को दे खते ही उसने घयौंदा बफगाड़ ददमा औय अॊचर से फार
तछऩाकय यसोईधय भें फयतन उठाने चरी।
'तू तो फहुत अच्छे घयौंदे फनाती है। जया फना, दे ख।ूॉ '
भैना का रुआॊसा चेहया खखर उठा। प्रेभ के शब्द भें ककतना जाद ू है! भॉह
ु से तनकरते ही जैसे सुगॊध पैर गई। जजसने सुना, उसका
रृदम खखर उठा। जहाॉ बम था, िहाॉ विश्िास चभक उठा। जहाॉ कटुता थी, िहाॉ अऩनाऩा छरक ऩड़ा। चायों ओय चेतनता दौड़ गई।
कहीॊ आरस्म नहीॊ, कहीॊ खखन्दनता नहीॊ। भोहन का रृदम आज प्रेभ से बया हुआ है। उसभें सुगॊध का विकषवण हो यहा है।
भोहन ने उसके उरझे हुए फारों को सुरझाते हुए कहा-तेयी गुडड़मा का ब्माह कफ होगा भैना, नेिता दे , कुछ सभठाई खाने को सभरे।
भैना का भन आकाश भें उड़ने रगा। जफ बैमा ऩानी भाॉगे, तो िह रोटे को याख से खूफ चभाचभ कयके ऩानी रे जाएगी।
'अम्भाॉ ऩैसे नहीॊ दे तीॊ। गुड्डा तो ठीक हो गमा है। टीका कैसे बेजॉ?ू '
उसी िक्त फूटी गोफय का झाॉिा सरमे आ ऩहुॊची। भोहन को खड़े दे खकय कठोय स्िय भें फोरी- अबी तक भटयगस्ती ही हो यही है।
बैंस कफ दह
ु ी जाएगी?
आज फूटी को भोहन ने विद्रोह-बया जिाफ न ददमा। जैसे उसके भन भें भाधुमव का कोई सोता- सा खुर गमा हो। भाता को गोफय
का फोझ सरमे दे खकय उसने झाॉिा उसके ससय से उताय सरमा।
'तुभ इतना बायी फोझ क्मों उठा रेती हो, भुझे क्मों नहीॊ फुजरा रेतीॊ?'
'औय दध
ू कौन दह
ु े गा ?'
आज भोहन फाजाय से दध
ू ऩहुॉचाकय रौटा, तो ऩान, कत्था, सऩ
ु ायी, एक छोटा-सा ऩानदान औय थोड़ी-सी सभठाई रामा। फट
ू ी बफगड़कय
फोरी-आज ऩैसे कहीॊ पारतू सभर गए थे क्मा ? इस तयह उड़ािेगा तो कै ददन तनफाह होगा?
'भैंने तो एक ऩैसा बी नहीॊ उड़ामा अम्भाॉ। ऩहरे भैं सभझता था, तुभ ऩान खातीॊ ही नहीॊ।
फूटी के सूखे कठोय रृदम भें कहीॊ से कुछ हरयमारी तनकर आई, एक नन्दही-सी कोंऩर थी; उसके
अॊदय ककतना यस था। उसने भैना औय सोहन को एक-एक सभठाई दे दी औय एक भोहन को दे ने रगी।
'तुम्हें खाते दे खकय भुझे जो आनॊद सभरता है। उसभें सभठास से ज्मादा स्िाद है।'
उसने आधी सभठाई सोहन औय आधी भोहन को दे दी; कपय ऩानदान खोरकय दे खने रगी। आज जीिन भें ऩहरी फाय उसे मह
सौबाग्म प्राप्त हुआ। धन्दम बाग कक ऩतत के याज भें जजस विबूतत के सरए तयसती यही, िह रड़के के याज भें सभरी। ऩानदान भें
कई कुजल्हमाॉ हैं। औय दे खो, दो छोटी- छोटी गचभगचमाॉ बी हैं; ऊऩय कड़ा रगा हुआ है , जहाॉ चाहो, रटकाकय रे जाओ। ऊऩय की
तश्तयी भें ऩान यखे जाएॉगे।
ज्मों ही भोहन फाहय चरा गमा, उसने ऩानदान को भाॉज-धोकय उसभें चूना, कत्था बया, सुऩायी काटी, ऩान को सबगोकय तश्तयी भें
यखा । तफ एक फीड़ा रगाकय खामा। उस फीड़े के यस ने जैसे उसके िैधव्म की कटुता को जस्नग्ध कय ददमा। भन की प्रसन्दनता
व्मिहाय भें उदायता फन जाती है। अफ िह घय भें नहीॊ फैठ सकती। उसका भन इतना गहया नहीॊ कक इतनी फड़ी विबतू त उसभें
जाकय गुभ हो जाए। एक ऩुयाना आईना ऩड़ा हुआ था। उसने उसभें भॉह
ु दे खा। ओठों ऩय रारी है। भॉह
ु रार कयने के सरए उसने
थोड़े ही ऩान खामा है।
धतनमा ने आकय कहा-काकी, ततनक यस्सी दे दो, भेयी यस्सी टूट गई है।
कर फूटी ने साप कह ददमा होता, भेयी यस्सी गाॉि-बय के सरए नहीॊ है। यस्सी टूट गई है तो फनिा रो। आज उसने धतनमा को
यस्सी तनकारकय प्रसन्दन भुख से दे दी औय सद्बाि से ऩूछा-रड़के के दस्त फॊद हुए कक नहीॊ धतनमा ?
धतनमा ने उदास भन से कहा-नहीॊ काकी, आज तो ददन-बय दस्त आए। जाने दाॉत आ यहे हैं।
'ऩानी बय रे तो चर जया दे ख,ॉू दाॉत ही हैं कक कुछ औय पसाद है। ककसी की नजय-िजय तो नहीॊ रगी ?'
'जजसने चुभकायकय फुरामा, झट उसकी गोद भें चरा जाता है। ऐसा हॉसता है कक तुभसे क्मा कहूॉ!'
धतनमा ऩानी रेकय आमी, तो फूटी उसके साथ फच्चे को दे खने चरी।
'तू अकेरी है। आजकर घय के काभ-धॊधे भें फड़ा अॊडस होता होगा।'
'नहीॊ काकी, रुवऩमा आ जाती है , घय का कुछ काभ कय दे ती है , नहीॊ अकेरे तो भेयी भयन हो जाती।'
फूटी को आश्चमव हुआ। रुवऩमा को उसने केिर तततरी सभझ यखा था।
'रुवऩमा!'
'हाॉ काकी, फेचायी फड़ी सीधी है। झाडू रगा दे ती है , चौका-फयतन कय दे ती है , रड़के को सॉबारती है। गाढ़े सभम कौन, ककसी की फात
ऩछ
ू ता है काकी !'
'मह तो अऩनी-अऩनी रुगच है काकी! भुझे तो इस सभस्सी-काजर िारी ने जजतना सहाया ददमा, उतना ककसी बजक्तन ने न ददमा।
फेचायी यात-बय जागती यही। भैंने कुछ दे तो नहीॊ ददमा। हाॉ, जफ तक जीऊॉगी, उसका जस गाऊॉगी।'
'तू उसके गन
ु अबी नहीॊ जानती धतनमा । ऩान के सरए ऩैसे कहाॉ से आते हैं ? ककनायदाय साडड़माॉ कहाॉ से आती हैं ?'
'भैं इन फातो भें नहीॊ ऩड़ती काकी! कपय शौक-ससॊगाय कयने को ककसका जी नहीॊ चाहता ? खाने-ऩहनने की मही तो उसभय है।'
धतनमा ने फच्चे को खटोरे ऩय सुरा ददमा। फूटी ने फच्चे के ससय ऩय हाथ यखा, ऩेट भें धीये - धीये उॉ गरी गड़ाकय दे खा। नाबी ऩय
हीॊग का रेऩ कयने को कहा। रुवऩमा फेतनमा राकय उसे झरने रगी।
'भैं डुरा दॉ ग
ू ी तो क्मा छोटी हो जाऊॉगी ?'
फूटी भुस्कायामी।
आज रुवऩमा फूटी को फड़ी सुन्ददय रगी। ठीक तो है, अबी शौक-ससॊगाय न कये गी तो कफ कये गी? शौक-ससॊगाय इससरए फुया रगता है
कक ऐसे आदभी अऩने बोग-विरास भें भस्त यहते हैं। ककसी के घय भें आग रग जाए, उनसे भतरफ नहीॊ। उनका काभ तो खारी
दस
ू यों को रयझाना है। जैसे अऩने रूऩ की दक
ू ान सजाए, याह-चरतों को फुराती हों कक जया इस दक
ू ान की सैय बी कयते जाइए।
ऐसे उऩकायी प्राखणमों का ससॊगाय फुया नहीॊ रगता। नहीॊ, फजल्क औय अच्छा रगता है। इससे भारूभ होता है कक इसका रूऩ जजतना
सन्द
ु दय है, उतना ही भन बी सन्द
ु दय है; कपय कौन नहीॊ चाहता कक रोग उनके रूऩ की फखान कयें । ककसे दस
ू यों की आॉखों भें छुऩ
जाने की रारसा नहीॊ होती ? फूटी का मौिन कफ का विदा हो चुका; कपय बी मह रारसा उसे फनी हुई है। कोई उसे यस-बयी आॉखों
से दे ख रेता है, तो उसका भन ककतना प्रसन्दन हो जाता है। जभीन ऩय ऩाॉि नहीॊ ऩड़ते। कपय रूऩा तो अबी जिान है।
फूटी ने भीठे ततयस्काय से कहा-चर, भैं तेयी भाॉ की सौत फनकय जाऊॉगी ?
फूटी ने उसकी ओय यस-बयी आॉखों से ददे खकय ऩूछा-अच्छा फता, भोहन से तेया ब्माह कय दॉ ू ?
आज भोहन दध
ू फेचकय रौटा तो फूटी ने कहा-कुछ रुऩमे-ऩैसे जुटा, भैं रूऩा से तेयी फातचीत कय यही हूॉ।