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काय गाथा

यंय बाथा
वै शाखनं दन के ित
(जे दु ब ल आ िनरीह होला ओकरा के लोग अलग अलग
तरीका से सतावे ला | अब गदहा जइसन शाकाहारी,
रजकमु खे ण उवाí¯चत अपश¯दाहारी और िनरं तर डं डायाम
पीड़ाआहारी एह िनरीह 7ाणी के सािह¯यकार लोग भी
नईखे छोड़ले , मगज म के ¡ के कमी दे खके ओकरा के
तु लना एह िनरीह 7ाणी के सीधापन से कर द¯ | माने गरीब
के मे हरा¯ गांवभर के भौजाई | पढ़¯ एह वै शाखनं दन(गधा)
के भलमनसाहत के एह ¯प के आ आपण नज!रया बदल¯
|)

चौपाई-
चै त िबगत वै शाख ऋतू आई ,
खर भू षण दे íख हरसाई |
लहकत धु प दे ह सु खाई ,
खे त खíलहान सब सु न हो जाई |
त¹णी खरनी भी ली अं गडाई,
गद न झटका के धु ल उड़ाई |
दे íख के अं गडाई खर इतरइह ,
गद न फाड़ के गीत सु नइह |
ढ चू -ढ चू सु नी सकल समाजा ,
जय जय जय हो खर राजा |
भईल रजक पु त के न¯द हराम,
मगज के गमl बढ़ावत घाम |
कोना म से ब!ग उठवलस,
नवकु तानसे न पर तान चलवलस |
भईल म·यम सु र से पं चम सु र ,
झार दु लती के उडइले धु र |

दोहा-
एक ता खरनी के नजर के मारल,
ओह पे बाजल ब!ग |
राग बदल गईल भाग भी बदलल,
बु !] जगला के जोग ||

चौ० -
गोड झटक के तु डले छान,
एक ¬ण म लउकल िसवान |
हं सत खरनी के दे ख लजियले ,
राह नपले मु डी िनçरियले |
नै न म¸का के जागल अईसन जोग,
पीठ पे बाजल अनघा ब!ग |
मन मसोस के खे त म समियले ,
थु थू न से घास टु नगीयियले |
घास टु नगीआवत गोड बढ़ईले ,
एह खे त से ओह खे त म गईले |
सु खल घास से बहाल खíलहान,
ह!रयरी खोजत बढ़ले िसवान |
चलत चलत लागल िपयास ,
मु डी उठा लगईले पानी के आस |
बािक दे खले गांव अ!रयाियल,
पाछे खे तन के घास ओ!रयाियल|

दो०-
दे íख आपन खिनहारी,
उपजल मन म िव¯ास |
अनघा खा ले नी आज,
भईल सं तु िz के भास ||

चौ०-
अब सु खल घास के तना खियह ,
बािक एही तरे अघियह |
िपयर भईल सब जर के घास,
बािक खर के अलग िव¯ास |
हम खियनी भर भर के पे ट,
चर गईनी हम सउसे खे त |
अब त मन हमर गí¯भराियल,
आवे लागल अब ज¯हाई |
तं दु ¹¯ती बढे के इहे बा राज,
जब सं तु िz के िमले अनाज |
मू ख के उपािध काहे दे हब ,
आ¯मसं तु z के सं त काहे ना कहब |
मु ¯ी भर घास म हम अघाय¯,
जरत वै शाख म हम मोटाय¯ |
नू न भात पे दे ह फु लाियब ,
त रउओ काहे ना वै शाखनं दन कहाियब |

दो०-
वै शाख म जे मोटाई, वै शाखन¯दन कहाई |
इ उपािध सं त के , मु रख थोड़े समझ पाई ||
(श¯दाथ - खर: गधा; रजक: धोबी; वै शाखन¯दन: गधा/
मु ख )
शिश रं जन िम:











हावत बा िक दे वी दे वता के बु लावा
होला तबे लोग तीथाटन पे जाला |
ना त के तनो नाक रगड़ ल¯ पçँ च
ना पाियब | एकर भु ¬भोगी हम सा¬ात बानी | बाबू जी
के कॉले ज के छु ¸ी होखे के रहे एह जू न म | ¯लान
बनल िक वै ¯णोदे वी के दश न कईल जाई | इं टरने ट पे
तमाम सु चना दे ख ले नी , !टकट भी िमल जाईत बाकी
कु छ अईसन सं जोग बनल िक या¯ा रोके पडल |
शायद माता रानी के बु लावा ना रहे | खै र बु लावा
आियल ¯वाजा गरीब नवाज के | अचानक मन म
आियल आ हम !टकट बु क करा ले नी | अजमे र आ
लगले पु ¯कर म दश न भईल मन 7स¯न रहे बािक जू न
के गमl आ मं गलवारी 7त म दे ह के द ु द शा होत रहे |
ओही शाम िफर िद¯ली लौटे के ¯लान, मतलब शरीर
के आउरी द ु िग ं जन | सु िवधा खाितर द ु िगना भाड़ा दे के
एसी बस म !टकट ले नी िक या¯ा कु छ सकू ँ वाला
रही, बाकी सारी सु कु िनयत के हवा िनकल गईल जब
एसी बस म इ¯कॉन मं िदर के पु जा!रयन के अ¯याचार
भियल | पढ़¯ एह या¯ा वृ तांत म -
जू न के पिहला तारीख के दश न के िनí¯त
भईल रहे | ३१ मई, सोमवार के रात ९ बजे ¯वाजा के
नाम ले के या¯ा शु ¯ भईल | बस िडल+स रहे बाकी
या¯ा कु छ ¯यादे ही िडल+स भईल | गरम हवा के
थपे ड़ा आ रे ह-माटी-धु ल के िवषपान करत सबे रे
अजमे र पçं चनी, होटल म सामान रख पु ¯कर दश न के
¯लान बनल | िव¯ म एकमा¯ मं िदर जवन 9rा के
समिप त बा, दश न कईनी | लहकत घाम म १-२ आउरी
मं िदर के दश न करके २ बजे द ु पह!रया म अजमे र
होटल पे वापसी भईल | आजे ¯वाजा के पास भी
हाजरी हो जियत त आउरी एक िदन ¹के के कवनो
मतलब ना त वापसी के !टकट भी बना ले नी | रात के
१०.३० पे बस रहे | होटल म चाय पानी करते धरते ४
बज गईल | तै यार होके खवाजा के दरबार म हािजरी
दे नी |
दरगाह से वापस होत होत ७ बजत रहे | खाए
िपए के त कु छ ना रहे , होटल म फे र से नहा धोके बस
पड़ाव खाितर िनकल गईनी | १० बजे बस आियल त
बै ग के यथा¯थान रख के आपन सीट पकड़नी | एसी
के ठं ढक म िदनभर के थकन भु लाये लगनी | बस मा¯
आधा भरल | खु लत खु लत ४ गो इ¯कॉन मं िदर के
भ¬ लोगन के पदाप ण भईल | उ लोग पीछे के सीट
पकड़ ले ले लोग | जयपु र तक के या¯ी रहन जा | खै र
बस चलल |हमार कपार के ठीक ऊपर एसी के हवा
खाितर जवन छे द होला ओह म एगो टू टल रहे , त बस
याा वृ तांत: अजमे र याा म इकौनी बाबा लोग के अयाचार
के पदा के ओह म क!च दे नी आ अँ धे रा करे खाितर
आपन ¹माल के आँ ख पे बाँध ले नी | या¯ा शु ¯ भईल |
रात के एक बजे जयपु र आियल त न¯द
खु लल | या¯ी लोग म खलबली भईल उतरे खाितर,
बस के पड़ाव १५ िमनट खाितर रहे | िपछे के पु जारी
लोग के एिहजा उतरे के रहे उ लोग हमनी के सीट से
आगे िनकलल | त बçत ही अजीब गं ध आियल |
बु झाईल के ¡ तीन िदन के पे ट म के पचावल हवा
उ¯सिज त कईले बा | हमर आँ ख प के ¹माल नाक पे
आियल आउरी दोसर लोग के हाथ नाक पे | खै र २
िमनट म सभे कोई उतरल | हम भु खासल रह¯ त सामने
के होटल म चाय ले नी| पिहलके घ!ट पे ह¯ला
बु झाईल | मािमला का बा दे खे खाितर बस भी पçं चनी
त मालू म भईल िक एगो पु जारी जी जवन करीब ४० के
आस पास होइह बस म ही िनवृ त हो गईल बाड़े आ
आपन धोती भी खराब कर दे ले बाड़े | उ त बस से
उतरते गायब होखे के फे रा म रहन, िक एकजना उनका
के ध ले ले | लोग उनकर फजीहत करे ए शु ¯ कईलन
त उ इ कहत िनकल गईलन –
“मलमू ¯ िवसज न पर िकसी का अिधकार है +या ?”
खै र अब आफत हमनी के रहे , एसी बस चारो
तरफ से बं द, आ पीछे के सीट पे पु जारी जी के चउका
पु रल, गं ध के मारे के ¡ जात ना रहे | आधा घं टा िबत
गईल, तब दोसर गाड़ी के मं गावल गईल | उहो गाड़ी
दोसर जगह से आवे के रहे | आउरी १ घं टा िवल¯ब के
सु चना पे हमनी के मन मशोस ले नी जा | आपन आपन
सामान के ¡ तरह िनकाल ले सभे कोई ¯ट ड पे बियठल
| ओह स¯जन के 7ित लोगन के हा¯य और ¬ोभ के
िमि:त भाव फू टे लागल | हम¡ँ ¯¯त रह¯ त हम¡ँ ओह
चौपाल म शािमल भियनी | अब ओिहजा का का
बयान बाजी भईल गौर कर¯ जा-
पिहला- “ इ पं िडत लोग साले इतना खाते +य ू ँ ह िक
पचा नह¯ पाते ?”
द ू सरा - “अरे मु +त का धन होगा तो आप भी ऐसे ही
खाियये गा “
तीसरा- “¯साला, ब¯चा को भी पे शाब लगता है तो
कम से कम दो बार बोलता है | ये बोल नह¯ सकता था
| गाड़ी कह¯ खड़ी हो जाती |”
चौथा- “ अरे शरमा रहा होगा िक रोड िकनारे कै से
जाय गे !!! इ¯कॉन के पाखान! म ततो +लश लगे ह
यहाँ कहाँ िमले गा”
पांचवा कं ड+टर से - “ यार आगे से नो!टश लगा दो,
िक बस म सवार होने से पहले , फा!रग होएं |”
कं ड+टर- “ इ कांड हम अब तक के िजनगी म पहली
बार दे ख रहे ह |”
पिहला- “खाíलश घी का तरमाल खाये गा सब, दे खे
नह¯ दे ह कियसा मोटा के रखा है “
तीसरा- “ अरे उसी घी िक िचकनाई म िनकल गया
होगा.... हा हा हा बे चारा के कोई दोष नह¯ है |”
हा हा हा हा हा...
अब हं सी के अईसन फु लझरी छु टल िक सब
कु छ भु ला गईनी |
एक जाना कहले िक हम एकरा के इ¯टरने ट पे
सनसनीखे ज ¯य ू ज बना के पे श करब | ढे र बतकही
भईल, जवना के एिहजा íलखल मयादा से बाहर हो
जाई... सं ¬े प म इहे कहब िक उ पु जारी जी अपना
साथे सभे 9ाrण के पा!रवा!रक !र¯ता के बíखया
उधे ड़वा दे ले | ¬मा चाहब िक ओकर िव¯तृ त वण न
एिहजा सं भव नईखे |
खै र दोसर बस आियल, एह हा¯य-¬ोभ तरं ग
म २ घं टा के िवल¯ब हो गईल रहे , गाड़ी तु रं त खु लल |
अब हमरो भीतर के िमिसर बाबा कु लबु लाये लगले त
घटना +म के फरमा दर फरमा आपन मगज म सहे ज
ले नी | िवचार एहे भईल िक िद¯ली पçँ चते क¯पू टर के
कीबोड खटखटाईब आ शाम तक ¹आ सभे तक एह
मजे दार या¯ा वृ तांत के राखब | बाकी सं भव ना भईल |
थकावट कु छ िवशे ष रहे , िम¯ के घरे २ रोटी ना¯ता कर
के आपन कमरा पे पçं चनी त फे र सब कु छ भु ला गईनी
| िदन के १० बजे से शाम के ६ बजे तक िनिव ¯न
िन,पान कर के तरोताजा भियनी | त इ घटना+म के
íलख पियनी |

























पन छोटहन नांव के उ¯टा बडहन गांव
ह पवना | नांव पे मत जाय¯, पवना-
पवनी भला इ कवनो नांव ह ? इ सही बा िक जगह के
नांव से ओह जगहा के उं च-नीच के मालू मात होला
बाकी एिहजा गांव के नांव से कथानक के कवनो लाग
लपे ट नईखे | िवशे ष म इहे बा िक िमिसर बाबा माने
कथाकार के लियकाय¯ के दे ह म एिहजे के धू र
लपे टाियल बा | आउरी छोट-बड िवशे षता बा, राउर
नजरी के सोझा आगे आई |
ल¯ गांव के नांव से शु ¯ भियनी आ एिहजे
अटक गईनी | कहे के ढे र बा, आ एतने ना रउरो सु ने
के ढे र बा... िमिसर बाबा के परबचन !!!
अब रउओ इ मत कहब िक िमिसर बबवा का
का íलखत रहे ला | अब पवना जईसन गांव पे íलखला
के माने का, जहाँ न कवनो ताजमहल बा, ना कवनो
चम¯कारी मं िदर-मí¯जद भा दरगाह के नामो िनशान |
त िमिसर बाबा काहे आपन मगज के कचरस पे दोसरा
के मगज पकावत बाड़े |
बाकी पढ़ ल¯, मने -मने गु न ल¯, काहे से िक
कबो कबो कचरा पे मं िदर के चढावल फू ल भी भ टा
जाला | कवनो हरजा नईखे , आ पढला के बाद
ले खक पे भु नभु नाियब मत ... काहे से िक एह रचना
खाितर कथाकार के नोबे ल पु र¯कार िमली, राज के
बात बा... इ हम आजे भोरे भोरे सपना म दे खनी ह |
अब रउआ न+शा पे पवना के खोजब त
जçआ जाइब | एह से हम एह गांव के ठीक ठीक र¯ता
दे खावत बानी | गव -गव चल¯ हमरा जोरे , पै दल भा
गाड़ी से भा मन के कोरे कोरे , रा¯ता आसान बा | मन
मनसायी ना, आ कबो अकबकाई ना | त बाँध ल¯
फ टा आ गोडे जू ता चमरे टा | ल¯ िस!रराम जी के नाम
आ कर¯ परसथान |
िबहार के भोजपु र िजला के नांव जानत
होखब !!!
ना...!!!?
अरे उहे जवना के ढे र लोग अबç¯ आरा
िजला कहे ला |
हँ हँ हँ .... ठीक बु झनी | उहे ...
त कु छ ब!रस पिहले तक भोजपु !रया इलाका
म एगो कहावत चलत रहे - “ए०बी०सी०डी०” माने
आरा, बíलया, छपरा आ दे व!रया िजला | अब एह म
आरा, छपरा त िबहार म भईल, आ बíलया-दे व!रया
उ¬र7दे श म | अब एह ए०बी०सी०डी० के पदवी काहे
िमलल एकर कहानी तनी अं द¯नी मिमला बा, जवन
एह ¬े ¯ खाितर बदनामी जईसन कह सिकला, बाकी
हम ना कहब | ¯यादे जाने के बा त िबहार-बं गाल के
ाम कथा: पवना के पं डी जी
कोईलरी के लोगन से िमल¯, बता िदह | रं गदार- लठै त
इहे चार जगहा से रहन आ ओह म आरा सबले आगे
रहे | इनका लोग से दहशत रहे | कहावत रही स-
“िजला म िजला आरा, आउरी सभे िज¯ली |
बीरन म बीर कु ं वर िसं ह आउरी सभे िब¯ली ||”
भा- “आरा िजला घर बा, कवन बात के डर
बा |”
त जे बा से िक एह कहावत के थोर-बçत छाप
एह गांव म भी रहे | बाबु साहे ब( लईका भा से यान)
आपन बबु अियनी ना छोडत रहन | भले घरे सतु आ पे
िजनगी कटत होखे गांव के गा¯ही चउक ( गाँधी
चौक) पे इनका सभे के रईसी दे खे के िमल जात रहे |
पने हे री के दोकान पे बही के के तना प¯ना भराियल बा
इ त उहे पने हरी जाने | बाकी बाबू साहे ब के ठाट रहे |
आउरी भे द के बात कहब बािक अभी गांव म चले द¯
|
आरा के जीरो माइल से द ू िकलो मीटर आगे
गड़हनी रोड पे बढब, त ते त!रयां गांव भ टाई | एिहजा
से एगो रा¯ता बाएं गईल बा जवन सहार तक जाले ,
बस इहे पकड़ ल¯ | कह¯ मु ड़े के नईखे इहे राह पवना
जाला | ते त!रया से १४ िक०मी० पड़ी पवना | अब गांव
म घु सते जवन नजारा िमली त रउओ कहब िक जवन
गांव पे हे तना बतरस íलखाियल द ु रे से उजाड लउकत
बा | अरे महाराज ! घबराय¯ जन इ उजाड जमीन त इ
गांव के िवशे ष पिहचान दे ले बा | एकर चचा आगे
िमली | आगे बढ़¯ त एगो चउर¯ता आई, जवना के
एगो नाम दे वल बा- गा¯ही चउक |
ना ना...
गा¯ही बाबा से जु डल एिहजा कवनो अईसन
बात नईखे | अब पु रिनया लोगन के सरधा से राखल
एह नाम के मह¯व ढे रे बा | इहे चौक से एगो आउरी
र¯ता फु टल बा जवन स¯दे श जाले | एह र¯ता के कारन
गांव तीन-चार टोला म बं टा गईल बा |
घबड़ायी जन !!! अब कह¯ नईखे जायके ,
इहे गा¯ही चउक पे सगरी गांव के भे द खु ली | पं िडजी
के गांव के कथा, पं िड जी के मु खारिवं द से उवाच!रत
|
पं िडजी के अलग पिहचान बा एिहजा | इहाँ
इनकर आí¯त¯व इनकर बाबा के नावे जानल जाला |
फलाना बाबा के नाती-पोता हवे | त उहे फलाना बाबा
के पोता के लियकाय¯ से जु डल कु छ इयाद म गोता
लगाय¯ जा |
त गांव म 7वे श भईल आ गा¯ही चौक पर
पçं चनी िक लोग बाग के नज़र म आ जाईब िक गांव
खाितर के तना पु रान बानी | जान-पिहचान ढे र होई त
पं वलगी शु ¯ हो जाई |
“गोड लाग¯ ए बाबा ! ढे र िदन पे ...”
“और हालचाल ठीक बा नू !!??? अभी रहे
के बा नू ? साँझ के भ ट करब...”
एह गा¯ही चउक से ले के िमिसर बाबा के
मकान तक सड़क के द ु नो ओरे दोकान बाड़ीसन | एक
से बढ़के एक िजिनस के सामान भ टा जाई | चाय के
गु मटी से ले के खीरमोहन के झांपी तक | ल+ठो आ
घु घनी के खोमचा से ले के ताड़ी के हांडी तक |
मजमु आ इतर से ले के रे +सोना के बोतल से फु हार
फ के वाला स ट तक | मरिकन के कु रता से ले के
िसíलक के अं िगया तक सब एिहजे भ टा जाई |
अब अचकचाय¯, दम धर¯... ढे र चीज
भ टाई दे खे के ... ल¯ गा¯ही चउक पे गं गामात एह
सु गं ध के िनशा म त हम भु लाईये गईनी | िमठ आ तनी
कासाह ग¯ह एह गांव के एगो िवशे ष िमठाई के ह |
अब कहब त हँ सब मत... एह गांव खाितर इहे िमठाई
बं गाली रसगु ¯ला ह, आगरा के पे ठा ह | अ¯छा अब
एकर नाम बता दे त बानी | इ ह िजले बी, आधा पकल
जामु न के रं ग के िजले बी , तीसी के ते ल म के छानल
िजले बी | गरमा गरम खाईब, त इ भु ला जाईब िक
के तना खियनी, रस के चु वत धार के अईसन सु डपब
िक मन िमजाज तर हो जाई | खा ल¯... अरे पचास
िगराम आउरी ल¯ ...
अब िजले बी 7िस] त एिहजा के चाट भी
7िस] | िनराला, िदलवाला, िद¯लीवाला,
कलकतावाला आ ना जाने का का... टाट के झोपड़ी
म आगे िसं घाडा कचौड़ी, कोइला के चू ¯हा पे िदनभर
पानी िमलत आ गरम होत मटर के छोला | ओह
झोपडी म घु स के दे ख¯, गणे श आ ल+मी जी के मू ित
के साथे बदन उघाड़ हीरो आ कु ¯हा के बल पे
अटकल िहरोइन के फोटो ज¹र भ टाई | दोकानदार
सािह¯य के बçत 7े मी बा, िब¯लो रानी चमन बहार
लखनऊवाली के íलखल शायरी के िकताब के चार
लाइन भी लगियले बा...
“सोना िदया सु नार को पायल बना िदया, िदल
िदया यार को घायल बना िदया”
भा “ये खु दा हम तु मसे फ!रयाद करते ह , मत
भे ज उधार मांगने वाले जो हम बबाद करते ह ”
त चाट के चटपटाहट से आगे बढ़¯ |
चाय पानी के दोकान आ पान बीड़ी के
दोकान अईसन द ू जगह होला जहाँ गांव भर के खबर
पçं चे ला | के करा घर म आज िहं ग के छ!का पडल बा
इहो खबर िमल जाई एिहजा |

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