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पटकथा
-व ण ोवर
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गोपु
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- गाव
ल ू
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मनोहर चाचा
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बाबा -
क बेवाला 1
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क बेवाला 2
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बस ाईवर
दृ य – 1
दृ य – 2
दृ य – 3
मनोहर चाचा के घर का कमरा । सुबह के 8 बजे है।ं
(टीवी पर 26 जनवरी क परेड आ रही है। गोपू और उसके बाबा टकटक
लगाए देख रहे है।ं मनोहर चाचा बगल मे ं बैठे है।ं टीवी मे ं झा ँ कया ँ चल रही है,ं
और एक कमे ं ी भी।)
दृ य – 4
पहाड़ी सड़क। शाम के 4 बजे है।ं
(सड़क पार करने क को शश । सामने से तेज़ी से एक बस आती है। चु ी
दौड़कर पार कर लेती है, गोपू और ल ू खड़े रह जाते है।ं बस मे ं ज़ोर से क
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लगता है। ाइवर गु से मे ं सर बाहर नकालता है।)
दृ य – 5
क बे क स ज़ी मंडी। शाम के 5 बजे है।ं
(ल ू स ज़ी मंडी क भीड़ मे ं थोड़ा पीछे रह गया है। गोपू और चु ी आगे चल
रहे है।ं चु ी डरी हईु है।)
ुँ ग
चु ी : तुमने कहा था ज दी पहच ँ .े ..
े ं .े ... शाम तक वापस आएग
दृ य – 6
क बे क गली। शाम का समय । G Pe
(ब े एक गली के मोड़ पर है।ं सामने क े प े मकानो ं क कतार है।)
मु बोध
• एक था प ी। वह नीले आसमान मे ं खू ब ऊँचाई पर उड़ता
जा रहा था। उसके साथ उसके पता और म भी थे।
• एक दन वह नौजवान प ी ज़मीन पर चलती हईु एक बैल
गाड़ी को देख लेता है। उसमे ं बड़े -बड़े बोरे भरे हएु है।ं
गाड़ीवाला च ा- च ाकर कहता है, “दो दीमकें लो, एक
पंख दो।”
• वह अपनी ऊँचाइया ँ छोड़कर मड़
ँ राता हआ
ु नीचे उतरता
है, और पेड़ क एक डाल पर बैठ जाता है।
• दोनो ं का सौदा तय हो जाता है। अपनी चोच
ं से एक पर
ं कर तोड़ने मे ं उसे तकलीफ़ होती है;ं ले कन उसे
को खीच
वह बरदा त कर लेता है।
• एक दन उसके पता ने देख लया। उसने समझाने क
को शश क क बेटे, दीमकें हमारा वाभा वक आहार
नही ं है,ं और उनके लए अपने पंख तो हर गज़ नही ं दए
जा सकते।
• ले कन, उस नौजवान प ी ने बड़े ही गव से अपना मुहँ
दूसरी ओर कर लया।
• उसके पंखो ं क सं या लगातार घटती चली गई। अब
वह, ऊँचाइयो ं पर, अपना संतल
ु न साध नही ं सकता था, न
ु समय तक पंख उसे सहारा दे सकते थे। आकाश-
बहत
या ा के दौरान उसे, ज दी-ज दी पहाड़ी च ानो,ं पेड़ो ं क
ँ ते हएु बैठ जाना पड़ता।
चो टयो,ं गुंबदो ं और बुज पर हाफ
• वह खू ब मेहनत से ज़मीन मे ं से दीमकें चुन-चुनकर, खाने
के बजाय, उ हे ं इक ा करने लगा। अब उसके पास
दीमको ं के ढे र के ढे र हो गए।
• “ये मेरी दीमकें ले लो, और मेरे पंख मुझे वापस कर दो,"
प ी ने जवाब दया।
ँ पड़ा। उसने कहा, "बेवकूफ, मै ं
• गाड़ीवाला ठठाकर हस
दीमक के बदले पंख लेता हू,ँ पंख के बदले दीमक नही!ं “
• एक दन एक काली ब ी आई और अपने मुहँ मे ं उसे
दबाकर चली गई।
ड़ायर
मज़ा ग़ा लब
• अं ज़
े ो ं ने द ी मे ं आते ही सीधे-सादे लोगो ं को मारना
शु कर दया। उ होनं े गरीबो ं के घर भी जला दए। गोरो ं
के डर से द ीवालो ं मे ं भगदड़ मच गई। अपनी-अपनी
जान बचाकर वे भाग नकले।
• जो लोग भाग नही ं पाए उन सब ने मलकर गली का
दरवाज़ा भीतर से बंद कर दया और वहा ँ प थर रख दए।
• ले कन जब यास बदा त नही ं हईु , वे पानी क तलाश मे ं
बतन लेकर - नकल पड़े । शोरा बा द बनाने के काम मे ं
आता है। उसी शोरे का पानी जब आसपास मला तो
गलीवाले उस पानी को घरो ं मे ं ले आए।
• असली मुसीबत 5 अ ू बर 1857 को आई, जब कुछ
अं ज़
े मेरे घर मे ं घुस आए। उ होनं े मेरे साथ मेरे दोनो ं ब ो ं
और नौकरो ं के साथ ही कुछ पड़ो सयो ं को भी गर तार
कर लया। वहा ँ से कुछ दूरी पर कनल ाउन नाम का
एक अं ज़
े अफ़सर था।
• कनल ाउन ने गा लब से पू छा, "आप या करते है?ं ”
उ होनं े कहा, “उदू मे ं क वता लखता हू।ँ ” “तो तुम
पोयट हो?” उसने कहा। उ होनं े सर हलाकर हामी भरी,
“हा।ँ ”
• ग़ा लब के जवाब से ाउन को खुशी हईु । उसने अपने
सपा हयो ं को ह ु म दया, “इनको इ ज़त के साथ घर
वापस छोड़ आओ।"
• मेरी पहचान का भ ती था- चराग अली । अ ाह के गुण
ु सड़को ं को सीच
गाता हआ ं ा करता।
• एक रोज़ द ी के बड़े हा कम हडसन साहब जब सड़क
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वयं काश
ँ ीजी को अंधरे े से ड़र लगता था। उ हे ं लगता था
• बचपन मे ं गाध
क कोई भू त आकर उ हे ं पकड़ लेगा।
• जब उ हे ं का ठयावाड़ हाई कूल मे ं पहली क ा मे ं भत
कराया गया तब उनक उ थी यारह साल और उ हे ं जो वषय
पढ़ाए जाते थे वे थे- इ तहास, भू गोल, ग णत और अं ज़
े ी।
कूल क फ स थी आठ आने त माह यानी पचास पैसे हर
महीने। पहली परी ा मे ं गांधीजी चौत
ं ीस ब ो ं मे ं से ब ीसवे ं
थान पर रहे। और दो वषयो ं मे ं तो उ हे ं ज़ीरो मला।
ँ ीजी एक बार मदरु ै गए भाषण देन।े वहा ँ एक औरत को
• गाध
देखा जो तालाब मे ं अपनी धोती धो रही थी। आधी पहनती थी
और बाक आधी धोती थी। फर धुली हईु को पहन लेती थी
और शेष को धोती थी। उसक हालत देखकर गांधीजी ने
ँ ा।
फ़ैसला कर लया क अब सफ़ एक धोती ही पहनू ग
• गांधीजी लखते थे एक ब ढ़या पैन से। वह पैन एक दन चोरी
चला गया। उसी समय एक ब े ने अपनी पे ं सल दे दी।
• तो तय कर लया क अब पे ं सल से ही लखेग
ं ।े और पे ं सल से
उ होनं े पहली च ी भारत के वायसरॉय के नाम पर लखा था।
• गांधीजी क यह सोच थी क जब आपके देश के अ धकांश
लोग गरीब हो ं तो आपको फजू लखच और दखावा नही ं करना
चा हए। अगर आप सचमुच अपने देश और देशवा सयो ं से यार
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करते है ं तो आपको कम से कम मे ं काम चलाना चा हए। और
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सादगी का मह व समझना चा हए।
• अपिर ह यानी फालतू क चीज़े ं जमा मत करना।
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• तीन बंदर और जेब-घड़ी।
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क वता
लोचन
कहानी
ं टेश माड़गुलकर
वेक
• बेबी को एक पैर नही ं है। वह बैसा खयो ं के सहारे चलती है।
• दोपहर मे ं बेबी को हमेशा अकेलापन लगता।
• उस समय बू ढा पो टमैन आ जाया करता था।
• अब पो टमैन बदल गया है।
• नया पो टमैन फश पर डाक फेंककर नही ं लौटता।
• बेबी को देखने पर नया पो टमैन को ध ा-सा लगता है।
• नया पो टमैन नंगे पैर घू मते देखकर बेबी मे ं उसके त
सहानुभू त जगता है।
• नया पो टमैन के लए बेबी जू ता देने को न य करती है।
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• हरीबा को पाच पया देकर जू ता बनाती है।
• होली के अवसर पर बेबी पो टमैन को उपहार क तरह जू ता
देती है।
• कथा के अंत मे ं पो टमैन लाइन बदलकर शहर क ओर जाता
है।
क वता
केदारनाथ संह
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or
प
जवाहरलाल नेह
• यह जवाहरलाल नेह ँ ी के नाम
ारा अपनी बेटी इं दरा गाध
लखा गया प है।
• प लखते समय नेह जी अलहाबाद मे ं एक जैल मे ं था और
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डा ँ ए प जे अ दल
ु कलाम
• उस समय कलाम दस साल का था।
ँ त मलनाड के रामे रम मे ं है।
• उनका गाव
• उनका पिरवार एक वशाल संय ु पिरवार था।
• वे अपने श क ी वा मयार के पास ग णत पढ़ने जाने के
लए ायः चार बजे जग जाता था।
• वे नःशु क ँ ही ब ो ं
ू शन पढ़ाते थे और एक साल मे ं पाच
को पढ़ाते थे। अपने सभी छा ो ं पर उ होनं े एक कठोर शत लगा
रखी थी। शत यह क सभी छा ँ बजे उनक
ान करके पाच
क ा मे ं उप थत हो जाए।ँ
ँ बजे घर वापस लौटता। उस समय नमाज़
• कलाम साढ़े पाच
अदा करने तथा अरबी कूल मे ं कुरान शरीफ़ सीखने के लए
उ हे ं ले जाने को पता ती ा कर रहे होते ।
• कलाम अपने घर से तीन कलोमीटर क दूरी पर थत
रामे रम रोड़ रेलवे टेशन पैदल जाता। वहा ँ से होकर
गुज़रनेवाली धनु कोडी मेल से समाचार प ो ं का बंडल लेता।
• पढाई और कमाई एकसाथ करने से ना ता कुछ वशेष होता।
• वे एकसाथ रोटी खा रहे थे। मा ँ के ह से का रोटी भी कलाम ने
खाया।
• बड़े भाई कलाम को डाटँ दया।
• कलाम को सहरन क अनुभू त हईु ।
पद
सुरदास