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तंत्र साधना

1. तॊत्र शास्त्त्र बायत की एक प्राचीन विद्मा है । तॊत्र ग्रॊथ बगिान शशि के भुख से आविबत
भू हुए हेऄ।
उनको ऩवित्र औय प्राभाणणक भाना गमा है । बायतीम साहहत्म भें 'तॊत्र' की एक विशशष्ट स्स्त्थतत है ,
ऩय कुछ साधक इस शस्तत का दरु
ु ऩमोग कयने रग गए, स्जसके कायण मह विद्मा फदनाभ हो
गई। काभी, क्रोधी, रारची, इनसे बस्तत न होम । बस्तत कये कोइ सभयभा, जातत ियन कुर खोम ॥
जो तॊत्र से बम खाता हेऄ, िह भनुष्म ही नहीॊ हेऄ, िह साधक तो फन ही नहीॊ सकता! गुरु गोयखनाथ
के सभम भें तॊत्र अऩने आऩ भें एक सिोत्कृष्ट विद्मा थी औय सभाज का प्रत्मेक िगू उसे अऩना
यहा था! जीिन की जहटर सभस्त्माओॊ को सुरझाने भें केिर तॊत्र ही सहामक हो सकता हेऄ! ऩयन्तु
गोयखनाथ के फाद भें बमानन्द आहद जो रोग हुए उन्होंने तॊत्र को एक विकृत रूऩ दे हदमा!
उन्होंने तॊत्र का तात्ऩमू बोग, विरास, भद्म, भाॊस, ऩॊचभकाय को ही भान शरमा ! ―भद्मॊ भाॊसॊ तथा
भत्स्त्मॊ भद्र
ु ा भैथन
ु भेि च, भकाय ऩॊचिगूस्त्मात सह तॊत्र् सह तास्न्त्रकाॊ‖ जो व्मस्तत इन ऩाॊच भकायो
भें शरप्त यहता हेऄ िही ताॊत्रत्रक हेऄ, बमानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे भाॊस, भछरी औय
भहदया तो खानी ही चाहहए, औय िह तनत्म स्त्त्री के साथ सभागभ कयता हुआ साधना कये ! मे ऐसी
गरत धयना सभाज भें पैरी की जो ढोंगी थे, जो ऩाखॊडी थे, उन्होंने इस श्रोक को भहत्िऩण
भ ू भान
शरमा औय शयाफ ऩीने रगे, धनोऩाजून कयने रगे, औय भर
भ तॊत्र से अरग हट गए, धत
भ त
ू ा औय छर
भात्र यह गमा! औय सभाज ऐसे रोगों से बम खाने रगे! औय दयभ हटने रगे! रोग सोचने रगे कक
ऐसा कैसा तॊत्र हेऄ, इससे सभाज का तमा हहत हो सकता हेऄ? रोगों ने इन ताॊत्रत्रकों का नाभ रेना
फॊद कय हदमा, उनका सम्भान कयना फॊद कय हदमा, अऩना द्ु ख तो बोगते यहे ऩयन्तु अऩनी
सभस्त्माओॊ को उन ताॊत्रत्रकों से कहने भें कतयाने रगे, तमोंकक उनके ऩास जाना ही कई प्रकाय की
सभस्त्माओॊ को भोर रेना था! औय ऐसा रगने रगा कक तॊत्र सभाज के शरए उऩमोगी नहीॊ हेऄ!

ऩयन्तु दोष तॊत्र का नहीॊ, उन ऩथभ्रष्ट रोगों का यहा, स्जनकी िजह से तॊत्र बी फदनाभ हो गमा!
सही अथों भें दे खा जामें तो तॊत्र का तात्ऩमू तो जीिन को सबी दृस्ष्टमों से ऩभणत
ू ा दे ना हेऄ!

जफ हभ भॊत्र के भाध्मभ से दे िता को अनुकभर फना सकते हेऄ, तो कपय तॊत्र की हभाये जीिन भें
कहाॉ अनुकभरता यह जाती हेऄ? भॊत्र का तात्ऩमू हेऄ, दे िता की प्राथूना कयना, हाथ जोड़ना, तनिेदन
कयना, बोग रगाना, आयती कयना, धऩ
ु अगयफत्ती कयना, ऩय मह आिश्मक नहीॊ कक रक्ष्भी
प्रसन्ना हो ही औय हभाया घय अऺम धन से बय दे ! तफ दस
ु ये तयीके से महद आऩभें हहम्भत हेऄ,
साहस हेऄ, हौसरा हेऄ, तो ऺभता के साथ रक्ष्भी की आॉख भें आॉख डारकय आऩ खड़े हो जाते हेऄ
औय कहते हेऄ कक भेऄ मह तॊत्र साधना कय यहा हभॉ, भेऄ तुम्हें तॊत्र भें आफद्ध कय यहा हभॉ औय तुम्हें हय
हारत भें सम्ऩन्नता दे नी हेऄ, औय दे नी ही ऩड़ेगी!

ऩहरे प्रकाय से स्त्तुतत मा प्राथूना कयने से दे िता प्रसन्ना न बी हो ऩयन्तु तॊत्र से तो दे िता फाध्म
होते ही हेऄ, उन्हें ियदान दे ना ही ऩड़ता हेऄ! भॊत्र औय तॊत्र दोनों ही ऩद्धततमों भें साधना विधध, ऩभजा
का प्रकाय, न्मास सबी कुछ रगबग एक जैसा ही होता हेऄ, फस अॊतय होता हेऄ, तो दोनों के भॊत्र
विन्मास भें , ताॊत्रोतत भॊत्र अधधक तीक्ष्ण होता हेऄ! जीिन की ककसी बी विऩयीत स्स्त्थतत भें तॊत्र
अचक
भ औय अतनिामू विधा हेऄ.

आज के मग
ु भें हभाये ऩास इतना सभम नहीॊ हेऄ, कक हभ फाय-फाय हाथ जोड़े, फाय-फाय घी के हदए
जराएॊ, फाय-फाय बोग रगामें, रक्ष्भी की आयती उतायते यहे औय फीसों सार दरयद्री फने यहे , इसशरए
तॊत्र ज्मादा भहत्िऩण
भ ू हेऄ, कक रक्ष्भी फाध्म हो ही जामें औय कभ से कभ सभम भें सपरता शभरे!
फड़े ही व्मिस्स्त्थत तयीके से भॊत्र औय साधना कयने की कक्रमा तॊत्र हेऄ! ककस ढॊ ग से भॊत्र का प्रमोग
ककमा जामें, साधना को ऩभणत
ू ा दी जामें, उस कक्रमा का नाभ तॊत्र हेऄ! औय तॊत्र साधना भें महद कोई
न्मन
भ ता यह जामें, तो मह तो हो सकता हेऄ, कक सपरता नहीॊ शभरे ऩयन्तु कोई विऩयीत ऩरयणाभ
नहीॊ शभरता! तॊत्र के भाध्मभ से कोई बी गह
ृ स्त्थ िह सफ कुछ हस्त्तगत कय सकता हेऄ, जो उसके
जीिन का रक्ष्म हेऄ! तॊत्र तो अऩने आऩ भें अत्मॊत सौम्म साधना का प्रकाय हेऄ, ऩॊचभकाय तो उसभें
आिश्मक हेऄ ही नहीॊ! फस्कक इससे ऩये हटकय जो ऩभणू ऩवित्रभम सास्त्िक तयीके, हय प्रकाय के
व्मसनों से दयभ यहता हुआ साधना कयता हेऄ तो िह तॊत्र साधना हेऄ! जनसाधायण भें इसका व्माऩक
प्रचाय न होने का एक कायण मह बी था कक तॊत्रों के कुछ अॊश सभझने भें इतने कहठन हेऄ कक
गुरु के त्रफना सभझे नहीॊ जा सकते । अत् ऻान का अबाि ही शॊकाओॊ का कायण फना। तॊत्र
शास्त्त्र िेदों के सभम से हभाये धभू का अशबन्न अॊग यहा है । िैसे तो सबी साधनाओॊ भें भॊत्र, तॊत्र
एक-दस भ ये से इतने शभरे हुए हेऄ कक उनको अरग-अरग नहीॊ ककमा जा सकता, ऩय स्जन साधनों भें
तॊत्र की प्रधानता होती है , उन्हें हभ 'तॊत्र साधना' भान रेते हेऄ। 'मथा वऩण्डे तथा ब्रह्भाण्डे' की उस्तत
के अनुसाय हभाये शयीय की यचना बी उसी आधाय ऩय हुई है स्जस ऩय ऩभणू ब्रह्भाण्ड की। ताॊत्रत्रक
साधना का भभर उद्देश्म शसवद्ध से साऺात्काय कयना है । इसके शरए अन्तभख
ुू ी होकय साधनाएॉ की
जाती हेऄ। ताॊत्रत्रक साधना को साधायणतमा तीन भागू : िाभ भागू, दक्षऺण भागू ि भधमभ भागू
कहा गमा है । श्भशान भें साधना कयने िारे का तनडय होना आिश्मक है । जो तनडय नहीॊ हेऄ, िे
दस्त्
ु साहस न कयें । ताॊत्रत्रकों का मह अटभट विश्िास है , जफ यात के सभम साया सॊसाय सोता है तफ
केिर मोगी जागते हेऄ। ताॊत्रत्रक साधना का भभर उद्देश्म शसवद्ध से साऺात्काय कयना है । मह एक
अत्मॊत ही यहस्त्मभम शास्त्त्र है । चॉ कभ क इस शास्त्त्र की िैधता वििाहदत है अत् हभाये द्िाया दी जा
यही साभग्री के आधाय ऩय ककसी बी प्रकाय के प्रमोग कयने से ऩभिू ककसी मोग्म ताॊत्रत्रक गुरु की
सराह अिश्म रें। अन्मथा ककसी बी प्रकाय के राब-हातन की स्जम्भेदायी आऩकी होगी। ऩयस्त्ऩय
आधित मा आऩस भें सॊकक्रमा कयने िारी चीजों का सभभह, जो शभरकय सम्ऩभणू फनती हेऄ, तनकाम,
तॊत्र, प्रणारी मा शसस्त्टभ (System) कहरातीॊ हेऄ। काय है औय चराने का भन्त्र बी आता है , मानी
शुद्ध आधतु नक बाषा भे ड्राइविन्ग बी आती है , यास्त्ते भे जाकय काय ककसी आन्तरयक खयाफी के
कायण खयाफ होकय खडी हो जाती है , अफ उसके अन्दय का तन्त्र नही आता है , मानी कक ककस
कायण से िह खयाफ हुई है औय तमा खयाफ हुआ है , तो मन्त्र मानी काय औय भन्त्र मानी ड्राइविन्ग
दोनो ही फेकाय हो गमे, ककसी बी िस्त्तु, व्मस्तत, स्त्थान, औय सभम का अन्दरूनी ऻान यखने िारे
को तास्न्त्रक कहा जाता है , तो तन्त्र का ऩयभ ा अथू इन्जीतनमय मा भैकेतनक से शरमा जा सकता है
जो कक बौततक िस्त्तओ
ु ॊ का औय उनके अन्दय की जानकायी यखता है , शयीय औय शयीय के अन्दय
की जानकायी यखने िारे को डातटय कहा जाता है , औय जो ऩयाशस्ततमों की अन्दय की औय फाहय
की जानकायी यखता है , िह ज्मोततषी मा ब्रह्भऻानी कहराता है , स्जस प्रकाय से त्रफजरी का
जानकाय राख कोशशश कयने ऩय बी ताय के अन्दय की त्रफजरी को नही हदखा सकता, केिर अऩने
विषेष मन्त्रों की सहामता से उसकी नाऩ मा प्रमोग की विधध दे सकता है , उसी तयह से ब्रह्भऻान
की जानकायी केिर भहसभस कयिाकय ही दी जा सकती है , जो िस्त्तु स्जतने कभ सभम के प्रतत
अऩनी जीिन कक्रमा को यखती है िह उतनी ही अच्छी तयह से हदखाई दे ती है औय अऩना प्रबाि
जरूय कभ सभम के शरमे दे ती है भगय रोग कहने रगते है , कक िे उसे जानते है , जैसे कभ
िोकटे ज ऩय िकि धीभी योशनी दे गा, भगय अधधक सभम तक चरेगा, औय जो िकि अधधक योशनी
अधधक िोकटे ज की िजह से दे गा तो उसका चरने का सभम बी कभ होगा, उसी तयह से जो
कक्रमा हदन औय यात के गुजयने के फाद चौफीस घॊटे भें शभरती है िह साऺात सभझ भे आती है
कक कर ठॊ ड थी औय आज गभॉ है , भगय भनुष्म की औसत उम्र अगय साठ सार की है तो जो
जीिन का हदन औय यात होगी िह उसी अनुऩात भें रम्फी होगी, औय उसी कक्रमा से सभझ भें
आमेगा.स्जतना रम्फा सभम होगा उतना रम्फा ही कायण होगा, अधधकतय जीिन के खेर फहुत
रोग सभझ नही ऩाते, भगय जो योजाना विशबन्न कायणों के प्रतत अऩनी जानकायी यखते है िे
तुयत फुयत भें अऩनी सटीक याम दे दे ते है .मही तन्त्र औय औय तास्न्त्रक का रूऩ कहराता है . तन्त्र
ऩयम्ऩया से जुडे हुए आगभ ग्रन्थ हेऄ। इनके ितता साधायणतम् शशिजी होते हेऄ। तन्त्र का शास्ददक
उद्भि इस प्रकाय भाना जाता है - ―तनोतत त्रामतत तन्त्र‖ । स्जससे अशबप्राम है – तनना, विस्त्ताय,
पैराि इस प्रकाय इससे त्राण होना तन्त्र है । हहन्द,भ फौद्ध तथा जैन दशूनों भें तन्त्र ऩयम्ऩयामें
शभरती हेऄ। महाॉ ऩय तन्त्र साधना से अशबप्राम "गुह्म मा गभढ़ साधनाओॊ" से ककमा जाता यहा है ।

तन्त्रों को िेदों के कार के फाद की यचना भाना जाता है औय साहहत्मक रूऩ भें स्जस प्रकाय ऩुयाण
ग्रन्थ भध्ममुग की दाशूतनक-धाशभूक यचनामें भाने जाते हेऄ उसी प्रकाय तन्त्रों भें प्राचीन-अख्मान,
कथानक आहद का सभािेश होता है । अऩनी विषमिस्त्तु की दृस्ष्ट से मे धभू, दशून, सस्ृ ष्टयचना
शास्त्त्र, प्रचीन विऻान आहद के इनसातरोऩीडडमा बी कहे जा सकते हेऄ। ........................स्त्िास्त््म के
शरमे टोटके

1॰ सदा स्त्िस्त्थ फने यहने के शरमे यात्रत्र को ऩानी ककसी रोटे मा धगरास भें सुफह उठ कय ऩीने के
शरमे यख दें । उसे ऩी कय फतून को उकटा यख दें तथा हदन भें बी ऩानी ऩीने के फाद फतून
(धगरास आहद) को उकटा यखने से मकृत सम्फन्धी ऩये शातनमाॊ नहीॊ होती तथा व्मस्तत सदै ि
स्त्िस्त्थ फना यहता है ।

2॰ रृदम विकाय, यततचाऩ के शरए एकभख


ु ी मा सोरहभख
ु ी रूद्राऺ िेष्ठ होता है । इनके न शभरने
ऩय ग्मायहभख
ु ी, सातभख
ु ी अथिा ऩाॊचभुखी रूद्राऺ का उऩमोग कय सकते हेऄ। इस्च्छत रूद्राऺ को
रेकय िािण भाह भें ककसी प्रदोष व्रत के हदन, अथिा सोभिाय के हदन, गॊगाजर से स्त्नान कया
कय शशिजी ऩय चढाएॊ, कपय सम्बि हो तो रूद्राशबषेक कयें मा शशिजी ऩय ―ॲ नभ: शशिाम´´
फोरते हुए दध
भ से अशबषेक कयाएॊ। इस प्रकाय अशबभॊत्रत्रत रूद्राऺ को कारे डोये भें डार कय गरे भें
ऩहनें।

3॰ स्जन रोगों को 1-2 फाय हदर का दौया ऩहरे बी ऩड़ चक


ु ा हो िे उऩयोतत प्रमोग सॊख्मा 2 कयें
तथा तनम्न प्रमोग बी कयें :- एक ऩाचॊभुखी रूद्राऺ, एक रार यॊ ग का हकीक, 7 साफुत (डॊठर
सहहत) रार शभचू को, आधा गज रार कऩड़े भें यख कय व्मस्तत के ऊऩय से 21 फाय उसाय कय
इसे ककसी नदी मा फहते ऩानी भें प्रिाहहत कय दें ।

4॰ ककसी बी सोभिाय से मह प्रमोग कयें । फाजाय से कऩास के थोड़े से पभर खयीद रें। यवििाय
शाभ 5 पभर, आधा कऩ ऩानी भें साप कय के शबगो दें । सोभिाय को प्रात: उठ कय पभर को
तनकार कय पेंक दें तथा फचे हुए ऩानी को ऩी जाएॊ। स्जस ऩात्र भें ऩानी ऩीएॊ, उसे उकटा कय के
यख दें । कुछ ही हदनों भें आश्चमूजनक स्त्िास्त््म राब अनुबि कयें गे।

5॰ घय भें तनत्म घी का दीऩक जराना चाहहए। दीऩक जराते सभम रौ ऩि


भ ू मा दक्षऺण हदशा की
ओय हो मा दीऩक के भध्म भें (पभरदाय फाती) फाती रगाना शब
ु पर दे ने िारा है ।

6॰ यात्रत्र के सभम शमन कऺ भें कऩभय जराने से फीभारयमाॊ, द:ु स्त्िऩन नहीॊ आते, वऩत ृ दोष का
नाश होता है एिॊ घय भें शाॊतत फनी यहती है।

7॰ ऩणभ णूभा के हदन चाॊदनी भें खीय फनाएॊ। ठॊ डी होने ऩय चन्द्रभा औय अऩने वऩतयों को बोग
रगाएॊ। कुछ खीय कारे कुत्तों को दे दें । िषू बय ऩभणणूभा ऩय ऐसा कयते यहने से गह
ृ तरेश,
फीभायी तथा व्माऩाय हातन से भुस्तत शभरती है ।
8॰ योग भुस्तत के शरए प्रततहदन अऩने बोजन का चौथाई हहस्त्सा गाम को तथा चौथाई हहस्त्सा
कुत्ते को णखराएॊ।

9॰ घय भें कोई फीभाय हो जाए तो उस योगी को शहद भें चन्दन शभरा कय चटाएॊ।

10॰ ऩुत्र फीभाय हो तो कन्माओॊ को हरिा णखराएॊ। ऩीऩर के ऩेड़ की रकड़ी शसयहाने यखें ।

11॰ ऩत्नी फीभाय हो तो गोदान कयें । स्जस घय भें स्त्त्रीिगू को तनयन्तय स्त्िास्त््म की ऩीड़ाएॉ यहती
हो, उस घय भें तुरसी का ऩौधा रगाकय उसकी िद्धाऩभिक
ू दे खशर कयने से योग ऩीड़ाएॉ सभाप्त
होती है ।

12॰ भॊहदय भें गप्ु त दान कयें ।

13॰ यवििाय के हदन फभॊदी के सिा ककरो रड्डभ भॊहदय भें प्रसाद के रूऩ भें फाॊटे।

14॰ सदै ि ऩि
भ ू मा दक्षऺण हदषा की ओय शसय यख कय ही सोना चाहहए। दक्षऺण हदशा की ओय शसय
कय के सोने िारे व्मस्तत भें चम्
ु फकीम फर ये खाएॊ ऩैय से शसय की ओय जाती हेऄ, जो अधधक से
अधधक यतत खीॊच कय शसय की ओय रामेंगी, स्जससे व्मस्तत विशबन्न योंगो से भत
ु त यहता है औय
अच्छी तनद्रा प्राप्त कयता है ।

15॰ अगय ऩरयिाय भें कोई ऩरयिाय भें कोई व्मस्तत फीभाय है तथा रगाताय औषधध सेिन के
ऩश्चात ् बी स्त्िास्त््म राब नहीॊ हो यहा है , तो ककसी बी यवििाय से आयम्ब कयके रगाताय 3 हदन
तक गेहभॊ के आटे का ऩेड़ा तथा एक रोटा ऩानी व्मस्तत के शसय के ऊऩय से उफाय कय जर को
ऩौधे भें डार दें तथा ऩेड़ा गाम को णखरा दें । अिश्म ही इन 3 हदनों के अन्दय व्मस्तत स्त्िस्त्थ
भहसभस कयने रगेगा। अगय टोटके की अिधध भें योगी ठीक हो जाता है , तो बी प्रमोग को ऩभया
कयना है , फीच भें योकना नहीॊ चाहहए।

16॰ अभािस्त्मा को प्रात: भें हदी का दीऩक ऩानी शभरा कय फनाएॊ। तेर का चौभुॊहा दीऩक फना कय
7 उड़द के दाने, कुछ शसन्दयभ , 2 फभॊद दही डार कय 1 नीॊफभ की दो पाॊकें शशिजी मा बैयों जी के धचत्र
का ऩभजन कय, जरा दें । भहाभत्ृ मुजॊम भॊत्र की एक भारा मा फटुक बैयि स्त्तोत्र का ऩाठ कय योग-
शोक दयभ कयने की बगिान से प्राथूना कय, घय के दक्षऺण की ओय दयभ सभखे कुएॊ भें नीॊफभ सहहत
डार दें । ऩीछे भुड़कय नहीॊ दे खें। उस हदन एक ब्राह्भण -ब्राह्भणी को बोजन कया कय िस्त्त्राहद का
दान बी कय दें । कुछ हदन तक ऩक्षऺमों, ऩशुओॊ औय योधगमों की सेिा तथा दान-ऩुण्म बी कयते
यहें । इससे घय की फीभायी, बभत फाधा, भानशसक अशाॊतत तनश्चम ही दयभ होती है ।
17॰ ककसी ऩुयानी भभततू के ऊऩय घास उगी हो तो शतनिाय को भभततू का ऩभजन कयके, प्रात: उसे घय
रे आएॊ। उसे छामा भें सुखा रें । स्जस कभये भें योगी सोता हो, उसभें इस घास भें कुछ धऩ
भ शभरा
कय ककसी बगिान के धचत्र के आगे अस्ग्न ऩय साॊम, धऩ
भ की तयह जराएॊ औय भन्त्र विधध से ´´
ॲ भाधिाम नभ:। ॲ अनॊताम नभ:। ॲ अच्मुताम नभ:।´´ भन्त्र की एक भारा का जाऩ कयें ।
कुछ हदन भें योगी स्त्िस्त्थ हो जामेगा। दान-धभू औय दिा उऩमोग अिश्म कयें । इससे दिा का
प्रबाि फढ़ जामेगा।

18॰ अगय फीभाय व्मस्तत ज्मादा गम्बीय हो, तो जौ का 125 ऩाि (सिा ऩाि) आटा रें। उसभें
साफुत कारे ततर शभरा कय योटी फनाएॊ। अच्छी तयह सेंके, स्जससे िे कच्ची न यहें । कपय उस ऩय
थोड़ा सा ततकरी का तेर औय गुड़ डार कय ऩेड़ा फनाएॊ औय एक तयप रगा दें । कपय उस योटी
को फीभाय व्मस्तत के ऊऩय से 7 फाय िाय कय ककसी बेऄसे को णखरा दें । ऩीछे भुड़ कय न दे खें औय
न कोई आिाज रगाए। बेऄसा कहाॉ शभरेगा, इसका ऩता ऩहरे ही भारभभ कय के यखें । बेऄस को योटी
नहीॊ णखरानी है , केिर बेऄसे को ही िेष्ठ यहती है । शतन औय भॊगरिाय को ही मह कामू कयें ।

19॰ ऩीऩर के िऺ
ृ को प्रात: 12 फजे के ऩहरे, जर भें थोड़ा दध
भ शभरा कय सीॊचें औय शाभ को
तेर....19॰ ऩीऩर के िऺ
ृ को प्रात: 12 फजे के ऩहरे, जर भें थोड़ा दध
भ शभरा कय सीॊचें औय शाभ
को तेर का दीऩक औय अगयफत्ती जराएॊ। ऐसा ककसी बी िाय से शुरू कयके 7 हदन तक कयें ।
फीभाय व्मस्तत को आयाभ शभरना प्रायम्ब हो जामेगा।

20॰ ककसी कब्र मा दयगाह ऩय सभमाूस्त्त के ऩश्चात ् तेर का दीऩक जराएॊ। अगयफत्ती जराएॊ औय
फताशे यखें , कपय िाऩस भुड़ कय न दे खें। फीभाय व्मस्तत शीघ्र अच्छा हो जामेगा।

21॰ ककसी ताराफ, कभऩ मा सभुद्र भें जहाॊ भछशरमाॉ हों, उनको शुक्रिाय से शुक्रिाय तक आटे की
गोशरमाॊ, शतकय शभरा कय, चग
ु ािें । प्रततहदन रगबग 125 ग्राभ गोशरमाॊ होनी चाहहए। योगी ठीक
होता चरा जामेगा।

22॰ शक्र
ु िाय यात को भट्ड
ु ी बय कारे साफत
ु चने शबगोमें। शतनिाय की शाभ कारे कऩड़े भें उन्हें
फाॊधे तथा एक कीर औय एक कारे कोमरे का टुकड़ा यखें । इस ऩोटरी को ककसी ताराफ मा कुएॊ
भें पेंक दें । पेंकने से ऩहरे योगी के ऊऩय से 7 फाय िाय दें । ऐसा 3 शतनिाय कयें । फीभाय व्मस्तत
शीघ्र अच्छा हो जामेगा।

23॰ सिा सेय (1॰25 सेय) गुरगुरे फाजाय से खयीदें । उनको योगी ऩय से 7 फाय िाय कय चीरों को
णखराएॊ। अगय चीरें साये गुरगुरे, मा आधे से ज्मादा खा रें तो योगी ठीक हो जामेगा। मह कामू
शतन मा भॊगरिाय को ही शाभ को 4 औय 6 के भध्म भें कयें । गुरगुरे रे जाने िारे व्मस्तत को
कोई टोके नहीॊ औय न ही िह ऩीछे भुड़ कय दे खे।

24॰ महद रगे कक शयीय भें कष्ट सभाप्त नहीॊ हो यहा है , तो थोड़ा सा गॊगाजर नहाने िारी फाकटी
भें डार कय नहाएॊ।

25॰ प्रततहदन मा शतनिाय को खेजड़ी की ऩभजा कय उसे सीॊचने से योगी को दिा रगनी शुरू हो
जाती है औय उसे धीये -धीये आयाभ शभरना प्रायम्ब हो जामेगा। महद प्रततहदन सीॊचें तो 1 भाह तक
औय केिर शतनिाय को सीॊचें तो 7 शतनिाय तक मह कामू कयें । खेजड़ी के नीचे गभगर का धऩ

औय तेर का दीऩक जराएॊ।

26॰ हय भॊगर औय शतनिाय को योगी के ऊऩय से इभयती को 7 फाय िाय कय कुत्तों को णखराने से
धीये -धीये आयाभ शभरता है । मह कामू कभ से कभ 7 सप्ताह कयना चाहहमे। फीच भें रूकािट न
हो, अन्मथा िाऩस शुरू कयना होगा।

27॰ साफत
ु भसयभ , कारे उड़द, भॊग
भ औय ज्िाय चायों फयाफय-फयाफय रे कय साप कय के शभरा दें ।
कुर िजन 1 ककरो हो। इसको योगी के ऊऩय से 7 फाय िाय कय उनको एक साथ ऩकाएॊ। जफ चायों
अनाज ऩभयी तयह ऩक जाएॊ, तफ उसभें तेर-गुड़ शभरा कय, ककसी शभट्टी के दीमे भें डार कय दोऩहय
को, ककसी चौयाहे ऩय यख दें । उसके साथ शभट्टी का दीमा तेर से बय कय जराएॊ, अगयफत्ती
जराएॊ। कपय ऩानी से उसके चायों ओय घेया फना दें । ऩीछे भुड़ कय न दे खें। घय आकय ऩाॊि धो
रें। योगी ठीक होना शुरू हो जामेगा।

28॰ गाम के गोफय का कण्डा औय जरी हुई रकड़ी की याख को ऩानी भें गभॊद कय एक गोरा
फनाएॊ। इसभें एक कीर तथा एक शसतका बी खोंस दें । इसके ऊऩय योरी औय काजर से 7 तनशान
रगाएॊ। इस गोरे को एक उऩरे ऩय यख कय योगी के ऊऩय से 3 फाय उताय कय सम
ु ाूस्त्त के सभम
भौन यह कय चौयाहे ऩय यखें । ऩीछे भड़
ु कय न दे खें।

29॰ शतनिाय के हदन दोऩहय को 2॰25 (सिा दो) ककरो फाजये का दशरमा ऩकाएॊ औय उसभें थोड़ा
सा गुड़ शभरा कय एक शभट्टी की हाॊडी भें यखें । सभमाूस्त्त के सभम उस हाॊडी को योगी के शयीय ऩय
फामें से दाॊमे 7 फाय कपयाएॊ औय चौयाहे ऩय भौन यह कय यख आएॊ। आते-जाते सभम ऩीछे भुड़ कय
न दे खें औय न ही ककसी से फातें कयें ।

30॰ धान कभटने िारा भभसर औय झाडभ योगी के ऊऩय से उताय कय उसके शसयहाने यखें ।
31॰ सयसों के तेर को गयभ कय इसभें एक चभड़े का टुकड़ा डारें , ऩुन: गभू कय इसभें नीॊफभ,
कपटकयी, कीर औय कारी काॊच की चड़
भ ी डार कय शभट्टी के फतून भें यख कय, योगी के शसय ऩय
कपयाएॊ। इस फतून को जॊगर भें एकाॊत भें गाड़ दें ।.........................ऋण भुस्तत बैयि साधना- हय
व्मस्तत के जीिन भें ऋण एक अशबशाऩ है !एक िाय व्मस्तत इस भें पस गमा तो धस्त्ता चरा
जाता है ! सभत की धचॊता धीये धीये भष्तश ऩे हािी होती चरी जाती है स्जस का असय स्त्िस्त्थ ऩे
होना बी स्त्िाशबक है ! प्रत्मेक व्तमती ऩे छ ककस्त्भ का ऋण होता है स्जस भें वऩत्र ऋण भातू ऋण
बशभ भ ऋण गरु
ु ऋण औय भ्राता ऋण औय ऋण स्जसे ग्रह ऋण बी कहते है !सॊसायी ऋण (कजू
)व्मस्तत की कभय तोड़ दे ता है भगय हजाय ऩयमत्न के फाद बी व्मस्तत छुटकाया नहीॊ ऩाता तो
भेमस
भ हो के खद
ु कुशी तक सोच रेता है !भेऄ जहाॊ एक फहुत ही सयर अनब
ु त
भ साधना प्रमोग दे यहा
हु आऩ तनहधचॊत हो कय कये फहुत जकद आऩ इस अशबशाऩ से भस्ु तत ऩा रें गे ! विधध – शब
ु हदन
स्जस हदन यवि ऩष्ु म मोग हो जा यवि िाय हस्त्त नऺत्र हो शक
भ र ऩऺ हो तो इस साधना को शरू

कये िस्त्त्र --- रार यॊ ग की धोती ऩहन सकते है ! भारा – कारे हकीक की रे ! हदशा –दक्षऺण !
साभग्री – बैयि मन्त्र जा धचत्र औय हकीक भारा कारे यॊ ग की ! भॊत्र सॊख्मा – 12 भारा 21 हदन
कयना है ! ऩहरे गुरु ऩभजन कय आऻा रे औय कपय िी गणेश जी का ऩॊचौऩचाय ऩभजन कये तद
ऩहश्चाॊत सॊककऩ रे ! के भेऄ गुरु स्त्िाभी तनणखरेश्िया नन्द जी का शशष्म अऩने जीिन भें स्त्भस्त्थ
ऋण भुस्तत के शरए मह साधना कय यहा हु हे बैयि दे ि भुझे ऋण भुस्तत दे !जभीन ऩे थोया ये त
विशा के उस उऩय कुतभ से ततकोण फनाए उस भें एक ऩरेट भें स्त्िास्स्त्तक शरख कय उस ऩे रार
यॊ ग का पभर यखे उस ऩे बैयि मन्त्र की स्त्थाऩना कये उस मन्त्र का जा धचत्र का ऩॊचौऩचाय से
ऩभजन कये तेर का हदमा रगाए औय बोग के शरए गुड यखे जा रड्डभ बी यख सकते है ! भन को
स्स्त्थय यखते हुमे भन ही भन ऋण भुस्तत के शरए ऩाथूना कये औय जऩ शुरू कये 12 भारा जऩ
योज कये इस प्रकाय 21 हदन कये साधना के फाद स्त्भगयी भारा मन्त्र औय जो ऩभजन ककमा है िोह
सभान जर प्रिाह कय दे साधना के दोयान यवि िाय जा भॊगर िाय को छोटे फच्चो को भीठा
बोजन आहद जरूय कयामे ! शीघ्र ही कजू से भुस्तत शभरेगी औय कायोफाय भें प्रगतत बी होगी !
भॊत्र—ॲ ऐॊ तरीभ ह्ीॊ बभ बैयिामे भभ ऋणविभोचनामे भहाॊ भहा धन प्रदाम तरीभ
स्त्िाहा !!....................ऩारयिारयक तरेश तनिायक तॊत्र ( उऩाम ) अऺय रोग हभाये ऩास नोकयी –
त्रफजनेश – आधथूक सॊकट – वििाह – सॊतान – मा कपय शायीरयक तकरीप मह सायी ऩये शानी
ज्मादा रेकय आते औय उनभे से ज्मादातय रोगो से िाताूराऩ भें मह साभने आता हें की उनके
घय औय जीिन भें तरेश बी हें स्जस िजह से िो ऩये शान हें , महद ऩारयिारयक जीिन सुखभम हो
औय ऩरयिाय के सभ्मो का सॊऩभणू सहमोग शभरता हो तो व्मतत शीघ्र ही उन्नतत को प्राप्त कयता
हें – भें महाॉ कुछ ऐसे उऩाम दे यहा हभ जो कय के आऩ अऩने जीिन से तरेश को शभटा कये
जीिन को सुखभम फना शके .
... ऩरयिाय के सबी सदस्त्मों को सार भें एक फाय ककसी नदी मा सयोिय भें एक साथ स्त्नान कयना
चाहहए

... अगय आऩके ऩरयिाय भें ककसी भहहरा सदस्त्म की िजह से करश उत्ऩन्न हो यहा हो तो उस
भहहरा का स्त्िबाि शाॊत कयने के शरए उसे एक चाॊदी की चैन भें चाॊदी के ऩत्र ऩय चॊद्रभा का
मन्त्र फनिाकय उसे धायण कयिाना चाहहए ( ककसी बी सोभिाय को

... अगय आऩके ऩरयिाय भें ककसी ऩुरुष सदाशम की िजह से तरेश उत्ऩन्न हो यहा हो तो उस
ऩरु
ु ष से हय सोभिाय को चािर का दान कयिाए औय हययोज सम
भ ोदम के सभम सम
भ ू को जर
अऩूण कयिाए, अिश्म उसका स्त्िबाि शाॊत होगा

... अगय आऩके ऩरयिाय भें स्त्त्री िगू भें ऩयस्त्ऩय तनाि मा वििाद की िजह से तरेश उत्ऩन्न हो
यहा हो तो ध्मान यहे की सबी भहहरा सदस्त्म कबी रार िस्त्त्र एक साथ नहीॊ ऩहने औय हो शके
तो उन भहहराओ से कहे की िो भाॉ दग
ु ाू का ऩभजन अिश्म कये

... अगय आऩके ऩरयिाय भें ऩरु


ु ष िगू भें ऩयस्त्ऩय तनाि मा वििाद की िजह से तरेश उत्ऩन्न हो
यहा हो तो मह घय के भें एक कदम्फ िऺ
ृ की डारी राकय घय भें यखनी चाहहए ( डारी भें कभसे
कभ ७ अखॊडडत ऩत्ते होने चाहहए ) हय ऩभणणूभा को मे डारी रे जाकय िही कदम्फ िऺ
ृ के आगे
छोड़ दे औय िह से दस
भ यी रे आमे इस तयह १८ ऩणभ णूभा तक कये औय साथै भें उन ऩुरुषों को कहे
की िो िी हयी विष्णु के दशून अिश्म कये

... अगय ऩरयिाय के मुिा एिॊ िद्ध


ृ व्मस्तत के त्रफच भें तनाि मा वििाद की िजह से तरेश उत्ऩन्न
हो यहा हो तो घय के हय एक कऺ के दयिाजे ऩय हय ऩभणणूभा के हदन सुफह अशोक के ऩत्तों का
तोयण फनाकय रगाना चाहहए

... महद उऩयोतत उऩामों के फािजभत बी घय भें ज्मादा ही तरेश उत्ऩन्न हो यहा हो तो प्रत्मेक
व्मस्तत की कॊु डरी के अनुसाय सभस्त्मा का सभाधान कयना चाहहए............................ Pandit
Rajesh Dubey ज्मोततष को बी आधतु नक विषमों एिॊ ऩयम्ऩयाओॊ की जानकारयम यखना चाहहए.
जफ कबी ज्मोततष आऩनी यचनाओॊ को मा रेख को यखे तो तनबॉक होना चाहहए. प्राचीनकार भें
िात्सामन ऋवष ने तनबॉक होकय कोराचाय जैसे गभढ़ विषम ग्रन्थ शरखे थे आज इसक्रभ भें
जानकायी है जो ज्मोततष के अनुसाय है .( पोटो टे ग केिर प्रस्त्तािना के शरए है .) जफ कबी ककसी
स्त्त्री की जन्भ कॊु डरी भें शुक्र ,याहु,शतन तीन ग्रहों की मुतत होती है तो िह अॊग प्रदशून कयने भें
अशबरुधच यखती है .महाॉ तक की ऐसी स्त्त्री नगय-िधु मोग की बागी होती है . जाततका के सप्त
बािगत शुक्र याहु हो तो िह काभुक ,स्त्िेतछाचायी फहु-ऩुरुष गाभी होती है . भाॊस,शयाफ आहद का
सेिन कयनेिारी होती है .झगडारभ स्त्िाबाि होता है . जाततका के सातिे बाि भें शुक्र हो तो िो ऩुष्ट
अन्गोिारी होती है एिभ हदखने भें आकषूक होती है . आऩने सुन्दयता के फर ऩय ऩयामे ऩुरुषों से
छर-कऩट कयते हुए धन हयण कयती है . शुक्र के साथ शतन हो सातिे बाि भें तो आऩने से कभ
उम्र के मुिा से बोगी होती है . प्रेभ प्रसॊग भें अनेको मुिाओॊ से सम्फन्ध फनाने िारी होती है .नगय
िधु मोगी होती है .
............................................................................................................................................................
...अॊक ज्मोततष के अनुसाय तनन्भ उऩाम कये भभराॊक १ - िी गणेश की ऩभजा कये औय भहीने भें
एक यवििाय को गेहभ दान कये भभराॊक २ - भहारक्ष्भी की ऩभजा कये औय भहीने भें एक सोभिाय
को चािर का दान कये भभराॊक ३ – िी गणेश औय रक्ष्भी की साथ भें ऩभजा कये औय भहीने भें
एक गुरुिाय को चने की दार का दान कये भभराॊक ४ – िी हनुभानजी का ऩभजन कये औय भहीने
भें एक शतनिाय को कारे ततर का दान कये भभराॊक ५ – िी हयी विष्णु का ऩभजन कये औय भहीने
भें एक फुधिाय को साफुत भुॊग का दान कये भभराॊक ६ – आशुतोष शशि का ऩभजन कये औय भहीने
भें एक फाय फुधिाय को गाम को हया चाया डारे भभराॊक ७ - हययोज शशिशरॊग ऩय जराशबषेक कये
औय हय भॊगरिाय को सफेद ततर का दान कये भभराॊक ८ – िी कृष्ण का ऩभजन कये औय भहीने
के हय शतनिाय को साफुत भुॊग का दान कये भभराॊक ९ - िी बैयि का ऩभजन कये औय भहीने भें
हय भॊगरिाय को भसभय की दार का दान कये ......................हरयद्रा ककऩ तॊत्र हरयद्रा साभान्मत्
हकदी के नाभ से प्रचशरत हें स्जसे हभ योजफयोज के खाने के भसरो भें इस्त्तभार कयते हें असर
भें मह एक ऩोंधे की जड़ हें | हकदी कई प्रकाय की होती हें जैस आिा हकदी , दारू हकदी, कशर
हकदी इत्मादी | हभाये दै तनक प्रमोग भें आनेिारी हकदी वऩत्त िणॉ औय नायॊ गी दो प्रकाय की होती
हें इसभे कोई कोई गाॊठ कारे यॊ ग की बी शभर जाती हें ऩयन्तु मह कारे यॊ ग की गाॊठ सही होना
जरुयी हें , मह गाॊठ ऊऩय से कारी औय अॊदय से कत्थई यॊ ग की होती हें | इसकी जड़ से कऩयभ के
जैसी सघ
ु ॊध आती हें | कारी हकदी के ऩोंधो ऩय गछ
ु े दाय ऩीरे यॊ ग का ऩष्ु ऩ णखरता हें

मह कारी हकदी हदखने भें स्जतनी कुरूऩ, अनाकषूक औय अनुऩमोगी हें उतनी ही अधधक भभकमिान
दर
ु ब
ू औय हदव्म गुण मुतत होती हें | अगय आऩको कशर हकदी शभर जामे तो फहोत ही अच्छी
फात हें ( कृऩमा सािधान फाजाय भें ज्मादातय नकरी हकदी ही प्राप्त होती हें ) उसे घय राकय
उसे ऩभजा के स्त्थान ऩय यख रे, िैसे मह कशर हकदी जहा बी यहती हें िहा सहज ही िी सभवृ द्ध
का आगभन होने रगता हें | इस हदव्म कशर हकदी को कोई नए िस्त्त्र भें चािर औय चाॊदी के
शसतके मा टुकड़े के साथ यख कय उसका ऩॊचोऩचाय ऩभजन कय उस कऩडे को गाॊठ फाॊध रे औय
उसे अऩने जहा आऩ ऩैसे यखते हें िह कोई फतसे भें यख दे तो अिश्म आऩको आश्चमू जनक
अथूराब प्राप्त होगा .. कृऩमा राब उठामे....................तॊत्र तमा है ..कॊु डशरनी तमा होती है ....तमा
होती है इसकी जाग्रत औय सुप्त अिस्त्था....साधक कैसा होता है ....औय मोगी कैसा होता है ....तमा
इन दोनों भें कोई बेद है ....तमा है हदव्मा बभशभ मा दे ि बभशभ....औय शसद्ध स्स्त्थतत कैसी होती
है ....ऐसी कौन सी कक्रमा हो सकती है जो उऩयोतत प्रश्नों को ना शसपू सुरझा दे फस्कक मथाधचत
िो उत्तय बी दे जो सिू भाननीम हो... ककसी बी चीज़ को सभझने के शरए कभ से कभ आज के
मुग भें मे फहुत जरुयी हो गमा है की कही गमी फात के ऩीछे कोई ठोस तकू काभ कयता हो औय
मही स्स्त्थतत आज तॊत्र के ऺेत्र भें बी फनी हुई है ...अऩनी अऩनी जगह ऩे हभ सफ जानते हेऄ की
कोई बी साधना शरू ु कयने से ऩहरे हभे इस फात को जानने की जकदी होती है की इससे राब
तमा होगा...तो भेया अध्ममन भझ
ु े फताता है की तॊत्र ही जीिन है , मे कोई कोयी ककऩना नहीॊ
फस्कक एक ठोस ऻान है . ऻान केिर तफ तक ऻान यहता है जफ तक की िो ऩयभ ी तयह से
आऩकी ऩकड़ भें नहीॊ आ जाता ऩय जैसे ही आऩ उसके अॊश विशेष को जानकय उसे अऩने
आधीन कय रेते हेऄ तो िही ऻान...विऻान फन जाता है , िो विऻान स्जसभें आऩका जीिन ऩरयितून
कयने की ऺभता होती है . तॊत्र बी एक ऐसा ही विऻान है ऩय हभ इसभें विजमी हो सके उसके
शरए जरूयी है कॊु डशरनी जागयण. हभ सफ जानते हेऄ की हभाये शयीय भें इड़ा (जो की चॊद्र का
प्रतीक है ), वऩॊगरा (जो सभमू रूऩ भें है ) औय सुष्भना (जो चन्द्र औय सभमू भें सभबाि स्त्थावऩत
कयती है ) विधभान हेऄ जो क्रभ अनुसाय दक्षऺण शस्तत, िाभ शस्तत औय भध्म शस्तत के रूऩ भें
हेऄ...औय इन शस्ततमों का त्रत्रकोण रूऩ भें जो आधाय त्रफॊद ु है िो शशि है ऩय मे त्रफॊद ु शसपू फोर दे ने
से शशि रूऩ नहीॊ रे रेता इसके शरए तीनो त्रत्रकोतनमे शस्ततमों को जागत
ृ होना ऩड़ता है अथाूत
शशि तबी अऩने चयभ रूऩ भें जाग्रत होते है जफ तीनो शस्ततमाॉ जो की आहदशस्तत भाॉ कारी, भाॉ
ताया औय भाॉ याजयाजेश्ियी के रूऩ भें हेऄ िो जागती हेऄ तमोकक शस्तत के त्रफना शशि अधयभ े हेऄ .भाॉ
कारी की जाग्रत अिस्त्था भें शशि मा त्रफॊद ु के शशिभम होने की प्रथभ स्स्त्थतत है ...ऩय इस ितत
शशि शि अथाूत कक्रमा हीन यहते हेऄ...भाॉ ताया के जाग जाने से शशि अऩने श्व्त्ि भें चयभ रूऩ भें
होते हेऄ औय याजयाजेश्ियी भाॉ के जागने से शशि का श्व्त्ि तो बॊग हो जाता है ऩय िो तनॊद्रा भें
चरे जाते हेऄ ऩय एक साधक के शरए मे ऩभयी प्रकक्रमा कॊु डशरनी जागयण ही होती है तमोकक इसभें
बी नाशब कॊु ड भें स्त्थावऩत कभरासन खर
ु ता है ऩय याजयाजेश्ियी भाॉ बगिती उसभें वियाजभान
नहीॊ होती िो वियाजभान होती है गुरु कृऩा से...औय जफ गुरु की कृऩा दीऺा मा शस्ततऩात से
प्राप्त हो जाती है तो स्स्त्थतत फनती है आनॊद की, विऻान की औय कपय सत्म की...स्जसे मोगी
अऩनी बाषा भें खॊड, अखॊड औय भहाखॊड की अिस्स्त्थतत भें िणणूत कयते हेऄ....जहाॉ हभ भें औय
हभाये इष्ट भें कोई बेद नहीॊ होता है िो भेऄ औय भेऄ िो फन जाते हेऄ.......................-:भॊत्र प्रमोग:-
भभर भॊत्र भें सॊऩुट रगा दे ने से मह भॊत्र भहाभत्ृ मुञ्जम हो जाता है ।रघु भत्ृ मज
ुॊ म तथा फहुत से
ऐसे भॊत्र है ,स्जसका जऩ ककमा जाता है ।जीि को भत्ृ मु भुख से खीॊच राते है ,भत्ृ मुॊजम।आज तो
हभेशा बम रगा यहता है कक कफ तमा हो जाम।ग्रह के अशुब दशा मा दै विक,दै हहक प्रबाि,तॊत्र मा
कोई बी अतनष्टकायी प्रबाि को दयभ कय दे ते है ऩर भें ।ऩयु ा ऩरयिाय सयु क्षऺत यहता है ,छोटा योग हो
मा असाध्म त्रफभायी,आऩये शन हो मा भहाभायी,कोई खो जाम मा कोई बी सॊकट आन ऩड़े भत्ृ मुॊजम
की कृऩा से सफ कुछ अच्छा हो जाता हेऄ।भत्ृ मुॊजम भॊत्र ३२ अऺय का "त्र्मम्फक भॊत्र" बी कहराता
हेऄ ।"ॲ" रगा दे ने से मह ३३ अऺय का हो जाता हेऄ,इस भॊत्र भें सॊऩुट रगा दे ने से भॊत्र का कई
रूऩ प्रकट हो जाता है ।गामत्री भॊत्र के साथ प्रमोग कयने ऩय मह "भत
ृ सॊजीिनी भॊत्र" हो जाता
हेऄ।भॊत्र प्रमोग के शरए "शशि िास" दे खकय ही जऩ शुरू कयें ।शशि भॊहदय भें भॊत्र जऩ कयने ऩय कोई
तनमभ की ऩाफन्दी नहीॊ हेऄ।महद घय भें ऩभजन कयते है तो ऩहरे ऩाधथूि शशि ऩभजन कयके मा धचत्र
का ऩज
भ न कय घी का दीऩक अऩूण कय,ऩष्ु ऩ,प्रसाद के साथ काभना के शरए दामें हाथ भें
जर,अऺत रेकय सॊककऩ कय रे।ककतनी सॊख्मा भें जऩ कयना है मह तनणूम कय रे साथ ही जऩ
भारा रूद्राऺ का ही हो।एक तनस्श्चत सॊख्मा भें ही जऩ होना चाहहए।हिन के हदन "अस्ग्निास"
दे ख रेना चाहहए।आज भै "भत्ृ मॊज
ु म प्रमोग" दे यहा हभॉ,विधध सॊक्षऺप्त हेऄ ऩयभ ी िद्धा के साथ प्रमोग
कये ,औय शशि कृऩा दे खे।साथ ही शशि ऩाधथूि ऩज भ न विधध िािण भें दे दॊ ग भ ा।गरू
ु ,गणेश ऩजभ न के
फाद शशि ऩज
भ न कय,ऩि
भ ू हदशा भें ऊनी आसन ऩय फैठ एकाग्र धचत जऩ कयना चाहहमे।आचभनी
तनम्न भॊत्र से कय सॊककऩ कय रे।दाएॉ हाथ भे जर रेकय भॊत्र फोरे भॊत्र १.ॲ केशिाम नभ्।जर
ऩी जाए। २.ॲ नायामणाम नभ्।जर ऩी जाए। ३.ॲ भाधिाम नभ्।जर ऩी रें। अफ हाथ इस भॊत्र
से धो रे।४.ॲ रृवषकेषाम नभ्।

अफ सॊककऩ कये ।सॊककऩ अऩने काभना अनुसाय छोटा,फड़ा कय सकते है ।दाएॉ हाथ भें
जर,अऺत,फेरऩत्र,द्रव्म,सुऩायी यख सॊककऩ कयें । सॊककऩ "ॲ विष्णुविूष्णुविूष्णु्िीभद् बगितो
भहाऩभरूषस्त्म,विष्णुयाऻमा प्रितूभानस्त्म अद्म ब्रह्भाणोॱहतन द्वितीमे ऩयाधे िी श्िेत
िायाहककऩे,िैिस्त्ित भन्िन्तये अष्टाविॊशतत तभे कशरमुगे कशर प्रथभचयणे बायतिषे बयतखण्डे
जम्फद्
भ िीऩे आमाूितैक दे शान्तगूते अभक
ु सॊितसये भहाॊभागकमप्रद भासोतभे भासे अभक
ु भासे
अभक
ु ऩऺे,अभक
ु ततथौ्अभुकिासये ,अभक
ु गोत्रोत्ऩन्नोहॊ अभक
ु शभाूहॊ,मा िभाूहॊ भभात्भन्ितु त
स्त्भतृ त,ऩयु ाणतन्त्रोतत परप्राप्तमे भभ जन्भऩत्रत्रका ग्रहदोष,दै हहक,दै विक,बौततक ताऩ सिाूरयष्ट
तनयसन ऩि
भ क
ू सिूऩाऩ ऺमाथं भनसेस्प्सत पर प्रास्प्त
ऩि
भ क
ू ,दीघाूम,ु विऩर
ु ॊ,फर,धन,धान्म,मश,ऩस्ु ष्ट,प्राप्तमथूभ सकर आधध,व्माधध,दोष ऩरयहाथूभ
सकराबीष्टशसद्धमे िी शशि भत्ृ मॊज
ु म प्रीत्मथू ऩज
भ न,न्मास,ध्मान मथा सॊख्माक भॊत्र जऩ करयष्मे।"
गणेश प्राथूना गजाननॊ बभतगणाहद सेवितॊ कवऩत्थजम्फभ परचारूबऺणभ ्।उभासुतॊ शोक विनाशकायकॊ
नभाशभ विघ्नेश्िय ऩाद ऩॊकजभ ्॥नागाननाम ितु तमऻविबभवषताम,गौयीसुताम गणनाथ नभो
नभस्त्ते॥ॲ िी गणेशाम नभ्।

गुरू प्राथूना गुरूब्रूह्भा,गुरूविूष्णु,गुरूदे िो भहे श्िय्।गरू


ु साऺात ऩयब्रह्भ तस्त्भै िी गुरूिे नभ्॥
गौयी प्राथूना ॲ नभो दे व्मै भहादे व्मै शशिामै सततॊ नभ्।नभ् प्रकृत्मै बद्रामै तनमता् प्रणता्
स्त्भताभ ्॥

वितनमोग अस्त्म त्र्मम्फक भन्त्रस्त्म िशसष्ठ ऋवष्अनुष्टुऩ छन्द्त्र्मम्फक ऩािूतीऩततदे िता,त्र्मॊ


फीजभ ्,िॊ शस्तत्,कॊ कीरकभ ्,सिेष्टशसद्धमथे जऩे वितनमोग्। ऋष्माहदन्मास ॲ िशसष्ठषूमे
नभ्शशयशस।अनुष्टुऩ ् छन्दसे नभ् भुखे।त्र्मम्फकऩािूतीऩतत दे ितामै नभ् रृहद।त्र्मॊ फीजाम नभ्
गुह्मे।िॊ शततमे नभ् ऩादमो्।कॊ कीरकाम नभ् नाबौ। वितनमोगाम नभ्सिाूगें। कयन्मास
त्र्मम्फकभ ् अॊगुष्ठाभ्माॊ नभ्।मजाभहे तजूनीभ्माॊ नभ्।सुगॊधधॊ ऩुस्ष्टिद्धूनॊ भध्मभाभ्माॊ
नभ्।उिाूरूकशभि फन्धनात ् अनाशभकाभ्माॊ नभ्।भत्ृ मोभऺ
ुू ीम कतनस्ष्ठकाभ्माॊ नभ्।भाभत
ृ ात ्
कयतरकयऩष्ृ ठाभ्माॊ नभ्। रृदमाहदन्मास ॲ त्र्मम्फकॊ रृदमाम नभ्।मजाभहे शशयसे स्त्िाहा।सुगस्न्धॊ
ऩुस्ष्टिद्धूनॊ शशखामै िषट्।उिाूरूकशभि फन्धनात ् किचाम हुॊ।भत्ृ मोभऺ
ुू ीम नेत्रत्रमाम िौषट्।भाभत
ृ ात ्
अस्त्त्राम पट्। ध्मान हस्त्ताभ्माॊ करशद्िमाभत
ृ यसैयाप्रािमन्तॊ शशयो द्िाभ्माॊ तौ दधतॊ भग
ृ ाऺिरमे
द्िाभ्माॊ फहन्तॊ ऩयभ ्।अॊकन्मस्त्तकयद्िमाभत
ृ घटॊ कैरासकान्तॊ शशिॊ स्त्िच्छाम्बोजगतॊ निेन्दभ
ु ुकुटॊ
दे िॊ त्रत्रनेत्रॊ बजे। भॊत्र ॲ त्र्मम्फकॊ मजाभहे सुगस्न्धॊ ऩुस्ष्टिधूनभ ् उिाूरूकशभि फन्धनान्भत्ृ मोभऺ
ुू ीम
भाभत
ृ ात ्॥ हिन विधध जऩ के सभाऩन के हदन हिन के शरए
त्रफकिपर,ततर,चािर,चन्दन,ऩॊचभेिा,जामपर,गुगुर,कयामर,गुड़,सयसों धऩ
भ ,घी शभराकय हिन
कये ।योग शास्न्त के शरए,दि
भ ाू,गुरूचका चाय इॊच का टुकड़ा,घी शभराकय हिन कये ।िी प्रास्प्त के शरए
त्रफकिपर,कभरफीज,तथा खीय का हिन कये ।ज्ियशाॊतत भें अऩाभागू,भत्ृ मुबम भें जामपर एिॊ
दही,शत्रतु निायण भें ऩीरा सयसों का हिन कयें ।हिन के अॊत भें सुखा नारयमर गोरा भें घी बयकय
खीय के साथ ऩुणाूहुतत दें ।इसके फाद तऩूण,भाजून कये ।एक काॊसे,ऩीतर की थारी भें जर,गो दध

शभराकय अॊजरी से तऩूण कये ।भॊत्र के दशाॊश हिन,उसका दशाॊश तऩूण,उसका दशाॊश भाजून,उसका
दशाॊश का शशिबतत औय ब्राह्भण को बोजन कयाना चाहहए।तऩूण,भाजून भें भर
भ भॊत्र के अॊत भे
तऩूण भें "तऩूमाभी" तथा भाजून भे "भाजूमाभी" रगा रें।अफ इसके दशाॊश के फयाफय मा
१,३,५,९,११ ब्राह्भणों औय शशि बततों को बोजन कय आशशिाूद रे।जऩ से ऩि
भ ू किच का ऩाठ बी
ककमा जा सकता है ,मा तनत्म ऩाठ कयने से आमु िवृ द्ध के साथ योग से छुटकाया शभरता है ।
भत्ृ मञ्
ु जम किच वितनमोग अस्त्म भत्ृ मञ्
ु जम किचस्त्म िाभदे ि ऋवष्गामत्रीछन्द् भत्ृ मञ्
ु जमो दे िता
साधकाबीष्टशसद्धमूथ जऩे वितनमोग्। ऋष्माहदन्मास िाभदे ि ऋषमे नभ्शशयशस,गामत्रीच्छन्दसे
नभ्भुखे,भत्ृ मुञ्जम दे ितामै नभ्रृदमे,वितनमोगाम नभ्सिांगे। कयन्मास ॲ जभॊ स्अगुष्ठाभ्माॊ
नभ्।ॲ जभॊ स् तजूनीभ्माॊ नभ्।ॲजभॊ स् भध्माभ्माॊ नभ्।ॲजभॊ स्अनाशभकाभ्माॊ नभ्।ॲजभॊ
स्कतनस्ष्ठकाभ्माॊ नभ्।ॲजभॊ स्कयतरकयऩष्ृ ठाभ्माॊ नभ्। रृदमाहदन्मास ॲजभॊ स् रृदमाम
नभ्।ॲजभॊ स्शशयसे स्त्िाहा।ॲजभॊ स्शशखामै िषट्।ॲजभॊ स्किचाम हुॊ।ॲजभॊस्नेत्रत्रमाम िौषट्।ॲजभॊ
स्अस्त्त्राम पट्। ध्मान हस्त्ताभ्माॊ.....उऩयोतत ध्मान ही ऩढ रे। शशयो भे सिूदा ऩातु भत्ृ मुञ्जम
सदाशशि्।स त्र्मऺयस्त्िरूऩो भे िदनॊ च भहे श्िय्॥ ऩञ्चाऺयात्भा बगिान ् बुजौ भे
ऩरययऺतु।भत्ृ मुञ्जमस्स्त्त्रफीजात्भा ह्मामभ यऺतु भे सदा॥ त्रफकििऺ
ृ सभासीनो दक्षऺणाभभततूयव्मम्।सदा
भे सिूदा ऩातु षट्त्रत्रॊशद् िणूरूऩधक
ृ ् ॥ द्िाविॊशत्मऺयो रूद्र् कुऺौ भे ऩरययऺतु।त्रत्रिणाूत्भा नीरकण्ठ्
कण्ठॊ यऺतु सिूदा॥ धचन्ताभणणफॉजऩभये ह्मद्धूनायीश्ियो हय्।सदा यऺतु भें गह्
ु मॊ सिूसम्ऩत्प्रदामक्॥
स त्र्मऺय स्त्िरूऩात्भा कभटरूऩो भहे श्िय्।भातूण्डबैयिो तनत्मॊ ऩादौ भे ऩरययऺतु॥ ॲ जभॊ स् भहाफीज
स्त्िरूऩस्स्त्त्रऩुयान्तक्।ऊध्िूभभघतू न चेशानो भभ यऺतु सिूदा॥ दक्षऺणस्त्माॊ भहादे िो यऺेन्भे
धगरयनामक्।अघोयाख्मो भहादे ि्ऩि
भ स्त्
ू माॊ ऩरययऺत॥
ु िाभदे ि् ऩस्श्चभामाॊ सदा भे ऩरययऺत।ु उत्तयस्त्माॊ
सदा ऩातु सद्मोजातस्त्िरूऩधक
ृ ्॥

इस किच को विधध विधान से अशबभॊत्रत्रत कय धायण कयने का विशेष राब हेऄ।भहाभत्ृ मुञ्जम भॊत्र
का फड़ा भहात्भम है ।शशि के यहते कैसी धचन्ता मे अऩने बततों के साये ताऩ शाऩ बस्त्भ कय दे ते
है ।शशि है तो हभ है ,मह सस्ृ ष्ट है तथा जगत का साया विस्त्ताय है ,शशि बोरेबारे है औय उनकी
शस्तत है बोरी शशिा,मही रीरा हेऄ।................."भहाभत्ृ मुञ्जम शशि".....(प्राणों के यऺक) शशि
आहद दे ि है ।शशि को सभझना मा जानना सफ कुछ जान रेना जैसा हेऄ।अऩने बततों ऩय ऩयभ
करूणा जो यखते है ,स्जनके कायण मह सस्ृ ष्ट सॊबि हो ऩामी है ,िह एकभात्र शशि ही है ।शशि इस
ब्रह्भाण्ड भें सफसे उदाय एिॊ ककमाणकायी हेऄ।अनेक रुऩों भें शशि शसपू दाता हेऄ।सम्ऩभणू रोक के
सबी दे िता औय दे विमाॉ भहा ऐश्िमूशारी हेऄ,ऩयन्तु शशि के ऩास सफ कुछ यहते हुए बी िे िैयागी
हेऄ।कायण िे ही तनयाकाय औय साकाय ऩभणू ब्रह्भ हेऄ।शशि ऩर ऩर ककतने विष ऩीते है ,कहना
तमा?दऺ प्रजाऩतत ने अऩनी ऩुत्री सती का कन्मादान ककमा था,शशि दभाद थे।ऩयन्तु एक फाय
ककसी सबा भें सबी दे िों की उऩस्स्त्थती भें दऺ के आने ऩय सबी दे िता औय कवषगण सम्भान भें
दऺ को प्रणाभ कयने रगे,ऩयन्तु शशि कुछ नही फोरे।इस फात को स्त्िमॊ का अनादय सभझ कय
दऺ शशि को बत
भ ों का स्त्िाभी,िेद से फहहष्कृत यहने िारा कह अऩभान कयने रगे,ऩयन्तु शशि ने
कुछ नहीॊ कहा। कुछ कार फाद दऺ प्रजाऩतत ने एक फहुत फड़े मऻ का आमोजन कनखर ऺेत्र भें
यखा सबी दे िी,दे िता,कवष,भतु न सहहत असयु ,निग्रह,नऺत्र भण्डर को बी तनभॊत्रत्रत ककमा ऩयन्तु
शशि को नही फर
ु ामा।कायण शशि के अऩभान के शरए ही मऻ यखा गमा था।शशि बतत दधधधच
शशि के त्रफना मऻ को अभॊगरकायी फताकय िहाॊ से चरे गमे।अशबभानी रोगों का मही हार है िो
थोड़ी सी शस्तत आ जाने ऩय अऩने को सिूऻ सभझ रेते है ।योहहणी सॊग चन्द्रभा को जाते दे ख
सती को जफ इस फात का ऻान हुआ कक भेये वऩता के महाॊ मऻ भें मे जा यहे है तो आश्चमू हुआ
कक हभे तमों नही फुरामा?िे शशि जी के सभीऩ जाकय फोरी कक स्त्िाभी भेये वऩता ने हभें मऻ भें
नहीॊ फुरामा कपय बी भेऄ जाना चाहती हभॉ।सती को शशि नें सभझामा कक त्रफन फुराए जाना भत्ृ मु के
सभान हेऄ,ऩयन्तु सतत द्िाया हठ कयने ऩय शशि ने आऻा प्रदान की।मऻ भें जफ शशि की तनन्दा
सुन सती ने आत्भदाह कय शरमा तो शशि ने अऩनी जटा से िीयबद्र तथा काशरका को प्रकट कय
असॊख्म गणों के साथ दऺ मऻ के विनाश के शरए बेजा।तमा ऩरयणाभ हुआ अॊहकायी,दे ि,दानि के
साथ दऺ का बी शसय भुण्डन हो गमा।कपय शशि की दमा ही थी कक ब्रह्भा जी के स्त्तुतत से
प्रसन्न होकय दऺ को ऩशु भुख दे कय अबम दान प्रदान ककमा। शशि है तो सायी सस्ृ ष्ट हेऄ।शशि का
एक रूऩ है "भहाभत्ृ मुञ्जम" जो सबी को अभत
ृ प्रदान कयते है ।आज प्रकृतत हभाये विरूद्ध हो गई
है ,कायण हभ उस हदव्म प्रकृतत को ही नष्ट कय यहे हेऄ।हभ शामद ज्मादा फुवद्धभान िैऻातनक हो
गमे है ।इतने ही अगय हभ मोग्म हो गमे है तो,भहाभायी,बभकम्ऩ औय गॊगा आहद नदीमों की
अशद्ध
ु ता,आसयु ी फवु द्ध धचॊतन को फदरने का विऻान तमों नहीॊ ढभढॉ रेते हेऄ।हय मग
ु भें विऻान यहा
है ।द्िाऩय भें कृष्ण के सभम बी इस सस्ृ ष्ट भें आसयु ी प्रितृ त की कभी नहीॊ थी,तबी तो भहाबायत
जैसा मद्धु हुआ था।आज उन्हीॊ आसयु ी जीिों का ज्मादा विकास हो यहा सभाज भें ,शशि को भनाना
होगा स्त्ततु त से प्रसन्न कयना होगा तबी सॊतर
ु न होगा।बतती तो आज फहुत से रोग कय यहे
है ।बगित कृऩा,हदव्म दशून बी ज्मादा से ज्मादा हो यहे है ,ऩयन्तु हभायी आॉखे कबी प्रबु को
खोजती बी हेऄ तमा।शशि तो सदा हभाये साभने ही खड़े है तमा हभ उन्हें दे ख ऩाते है ,नहीॊ!कायण
हभेशा व्मथू की चीजों को दे ख अऩनी आॉखो को थका रेते है ,स्जस कायण से अफ उजाू ही नहीॊ
यही तीसये नेत्र से दे खने की हभभे।शशि व्माकुर हेऄ हभाये शरए ऩय हभे तो बस्तत कयने का बी
ढॊ ग नही है ।हभे बी तो शशि के शरए व्माकुर होना ऩड़ेगा।हभ दश
ु भन है अऩने ऩरयिाय के,अऩनी
सॊतान के अऩनी नमी ऩीढी के स्जसे अऩने अॊहकाय िश विॊध्िस के याह ऩय रे जा यहे है ,कायण
शयीय,भन,फुवद्ध से हभ योगग्रस्त्त है ।महाॉ फस शशि भत्ृ मुञ्जम की अयाधना से ही हभ स्त्िस्त्थ हो
ऩामेंगे।इस विषभ ऩरयस्स्त्थततमों से फचने के शरए शशि कृऩा ही एकभात्र सहाया है ।भत्ृ मु तमा
है ?शसपू शयीय के भत्ृ मु की फात नहीॊ हेऄ मह,हभाये इच्छाओॊ की भत्ृ मु।हभाये जीिन की फहुत सी
बौततक जरूयते,िॊश औय सभाज की अिनतत तथा कोई बी अबाि भत्ृ मु ही तो
हेऄ।.......................भेऄ आज महाॉ ऩाधथूि ऩभजन की विधध दे यहा हभॉ इसे कोई बी कभ सभम भें कय
शशि की कृऩा प्राप्त कय सकता है ।शशि सफके अयाध्म है एक फाय बी हदर से कोई फस कहे "ॲ
नभ् शशिाम" कपय शशि बतत के ऩास ऺण बय भें चरे आते है । -:ऩाधथूि शशि शरॊग ऩभजा विधध:-
ऩाधथूि शशिशरॊग ऩभजन से सबी काभनाओॊ की ऩभततू होती है ।इस ऩभजन को कोई बी स्त्िमॊ कय
सकता है ।ग्रह अतनष्ट प्रबाि हो मा अन्म काभना की ऩभततू सबी कुछ इस ऩभजन से प्राप्त हो जाता
है ।सिू प्रथभ ककसी ऩवित्र स्त्थान ऩय ऩुिाूशबभुख मा उतयाशबभुख ऊनी आसन ऩय फैठकय गणेश
स्त्भयण आचभन,प्राणामाभ ऩवित्रत्रकयण कयके सॊककऩ कयें ।दामें हाथ भें जर,अऺत,सुऩायी,ऩान का
ऩता ऩय एक द्रव्म के साथ तनम्न सॊककऩ कयें । -:सॊककऩ:- "ॲ विष्णुविूष्णुविूष्णु् िी भद् बगितो
भहा ऩुरूषस्त्म विष्णोयाऻमा ऩिूतभानस्त्म अद्म ब्रह्भणोॱहतन द्विततमे ऩयाधे िी श्िेतिायाह ककऩे
िैिस्त्ित भन्िन्तये अष्टाविॊशतत तभे कशरमुगे कशर प्रथभचयणे बायतिषे बयतखण्डे जम्फभद्िीऩे
आमाूितेक दे शान्तगूते फौद्धािताये अभुक नाभतन सॊित सये अभुकभासे अभुकऩऺे अभुक ततथौ
अभक
ु िासये अभक
ु नऺत्रे शेषेशु ग्रहे षु मथा मथा याशश स्त्थानेषु स्स्त्थतेषु सत्सु एिॊ ग्रह गण
ु गण
विशेषण विशशष्टामाॊ अभुक गोत्रोत्ऩन्नोॱभुक नाभाहॊ भभ कातमक िाधचक,भानशसक ऻाताऻात
सकर दोष ऩरयहाथं ितु त स्त्भतृ त ऩुयाणोतत पर प्राप्तमथं िी भन्भहा भहाभत्ृ मुञ्जम शशि प्रीत्मथं
सकर काभना शसद्धमथं शशि ऩाधथूिेश्िय शशिशरगॊ ऩभजनभह करयष्मे।"

तत्ऩश्चात त्रत्रऩुण्ड औय रूद्राऺ भारा धायण कये औय शुद्ध की हुई शभट्टी इस भॊत्र से अशबभॊत्रत्रत
कये ... "ॲ ह्ीॊ भतृ तकामै नभ्।" कपय "िॊ"भॊत्र का उच्चायण कयते हुए शभटी् भें जर डारकय "ॲ
िाभदे िाम नभ्इस भॊत्र से शभराए। १.ॲ हयाम नभ्, २.ॲ भड
ृ ाम नभ्, ३.ॲ भहे श्ियाम नभ्
फोरते हुए शशिशरॊग,भाता ऩािूती,गणेश,काततूक,एकादश रूद्र का तनभाूण कये ।अफ ऩीतर,ताॊफा मा
चाॊदी की थारी मा फेर ऩत्र,केरा ऩता ऩय मह भॊत्र फोर स्त्थावऩत कये , ॲ शभरऩाणमे नभ्। अफ
"ॲ"से तीन फाय प्राणामाभ कय न्मास कये । -:सॊक्षऺप्त न्मास विधध:- वितनमोग्- ॲ अस्त्म िी शशि
ऩञ्चाऺय भॊत्रस्त्म िाभदे ि ऋवष अनुष्टुऩ छन्द्िी सदाशशिो दे िता ॲ फीजॊ नभ्शस्तत्शशिाम
कीरकभ भभ साम्फ सदाशशि प्रीत्मथें न्मासे वितनमोग्। ऋष्माहदन्मास्- ॲ िाभदे ि ऋषमे नभ्
शशयशस।ॲ अनुष्टुऩ ् छन्दसे नभ् भुखे।ॲ साम्फसदाशशि दे ितामै नभ् रृदमे।ॲ ॲ फीजाम नभ्
गुह्मे।ॲ नभ् शततमे नभ् ऩादमो्।ॲ शशिाम कीरकाम नभ् नाबौ।ॲ वितनमोगाम नभ् सिांगे।
शशि ऩॊचभुख न्मास् ॲ नॊ तत्ऩुरूषाम नभ् रृदमे।ॲ भभ ् अघोयाम नभ्ऩादमो्।ॲ शश ॊ
सद्मोजाताम नभ् गुह्मे।ॲ िाॊ िाभदे िाम नभ् भस्त्तके।ॲ मभ ् ईशानाम नभ्भुखे। कय न्मास्-
ॲ ॲ अॊगुष्ठाभ्माॊ नभ्।ॲ नॊ तजूनीभ्माॊ नभ्।ॲ भॊ भध्मभाभ्माॊ नभ्।ॲ शश ॊ अनाशभकाभ्माॊ
नभ्।ॲ िाॊ कतनस्ष्टकाभ्माॊ नभ्।ॲ मॊ कयतरकय ऩष्ृ ठाभ्माॊ नभ्। रृदमाहदन्मास्- ॲ ॲ रृदमाम
नभ्।ॲ नॊ शशयसे स्त्िाहा।ॲ भॊ शशखामै िषट्।ॲ शश ॊ किचाम हुभ।ॲ िाॉ नेत्रत्रमाम िौषट्।ॲ मॊ
अस्त्त्राम पट्। "ध्मानभ ्" ध्मामेतनत्मभ भहे शॊ यजतधगरय तनबॊ चारू चन्द्राितॊसॊ,यत्ना ककऩोज्जिरागॊ
ऩयशभ
ु ग
ृ फयाबीतत हस्त्तॊ प्रसन्नभ। ऩदभासीनॊ सभन्तात ् स्त्तत
ु भ भयगणै िमाूघ्र कृततॊ िसानॊ,विश्िाधॊ
विश्ििन्धॊ तनणखर बम हयॊ ऩञ्चितत्रॊ त्रत्रनेत्रभ ्। -:प्राण प्रततष्ठा विधध्- वितनमोग्- ॲ अस्त्म िी
प्राण प्रततष्ठा भन्त्रस्त्म ब्रह्भा विष्णु भहे श्िया ऋषम्ऋञ्मज्ु साभातनच्छन्दाॊशस प्राणख्मा दे िता आॊ
फीजभ ् ह्ीॊ शस्तत् कौं कीरकॊ दे ि प्राण प्रततष्ठाऩने वितनमोग्। ऋष्माहदन्मास्- ॲ ब्रह्भा विष्णु
रूद्र ऋवषभ्मो नभ् शशयशस।ॲ ऋग्मज्ु साभच्छन्दोभ्मो नभ्भख
ु े।ॲ प्राणाख्म दे ितामै
नभ्रृदमे।ॲआॊ फीजाम नभ्गह्
ु मे।ॲह्ीॊ शततमे नभ् ऩादमो्।ॲ क्रौं कीरकाम नभ् नाबौ।ॲ
वितनमोगाम नभ्सिांगे। अफ न्मास के फाद एक ऩुष्ऩ मा फेरऩत्र से शशिशरॊग का स्त्ऩशू कयते हुए
प्राणप्रततष्ठा भॊत्र फोरें। प्राणप्रततष्ठा भॊत्र्- ॲ आॊ ह्ीॊ क्रौं मॊ यॊ रॊ िॊ शॊ षॊ सॊ हॊ शशिस्त्म प्राणा इह
प्राणा्ॲ आॊ ह्ीॊ क्रों मॊ यॊ रॊ िॊ शॊ षॊ सॊ शशिस्त्म जीि इह स्स्त्थत्।ॲ आॊ ह्ीॊ क्रौं मॊ यॊ रॊ िॊ शॊ षॊ
सॊ हॊ शशिस्त्म सिेस्न्द्रमाणण,िाङ् भनस्त्त्िक् चऺु् िोत्र स्जह्िा घ्राण ऩाणणऩाद ऩामभऩस्त्थातन इहागत्म
सुखॊ धचयॊ ततष्ठन्तु स्त्िाहा।अफ नीचे के भॊत्र से आिाहन कयें । आिाहन भॊत्र्- ॲ बभ् ऩुरूषॊ साम्फ
सदाशशिभािाहमाशभ,ॲ बुि् ऩुरूषॊ साम्फसदाशशिभािाहमाशभ,ॲ स्त्ि् ऩुरूषॊ
साम्फसदाशशिभािाहमाशभ।अफ शशद्ध जर,भधु,गो
घत
ृ ,शतकय,हकदीचण
भ ू,योड़ीचॊदन,जामपर,गुराफजर,दही,एक,एक कय स्त्नान कयामे",नभ्शशिाम"भॊत्र
का जऩ कयता यहे ,कपय चॊदन, बस्त्भ,अभ्रक,ऩुष्ऩ,बाॊग,धतुय,फेरऩत्र से िग
ॊ ृ ाय कय नैिेद्म अऩूण कयें
तथा भॊत्र जऩ मा स्त्तोत्र का ऩाठ,बजन कयें ।अॊत भें कऩभय का आयती हदखा ऺभा प्राथूना का
भनोकाभना तनिेदन कय अऺत रेकय तनम्न भॊत्र से विसजून कये ,कपय ऩाधथूि को नदी,कुआॉ,मा
ताराफ भें प्रिाहहत कयें । विसजून भॊत्र्- गच्छ गच्छ गुहभ गच्छ स्त्िस्त्थान भहे श्िय ऩभजा अचूना
कारे ऩन
ु यगभनाम च। "गरु
ु भहहभा"..........(सद्गरु
ु ओॊ का सास्न्नध्म) "िी गणेश":-(शशि शस्तत के
प्माये ) िी स्त्िाभी "भहाभत्ृ मञ्
ु जम शशि".....(प्राणों के यऺक)........"ऩाधथूि भें फसे शशि
ककमाणकायी" शशि सनातन दे ि हेऄ।दतु नमाॊ भें स्जतने बी धभू है िे ककसी न ककसी रूऩ मा नाभ से
शशि की ही अयाधना कयते है ।मे कही गरू
ु रूऩ भें ऩज्
भ म है तो कही तनगण
ुू ,तनयाकाय रूऩ भें ।शशि
फस एक ही हेऄ ऩय रीरा िश कइ रूऩों भें प्रकट होकय जगत का ककमाण कयते हेऄ।शस्तत इनकी
कक्रमा शस्तत है ।सस्ृ ष्ट भें जफ कुछ नहीॊ था तफ सज
ृ न हे तु शशि की शस्तत को साकाय रूऩ धायण
कयना ऩड़ा औय शशि बी साकाय रूऩ भें आ ऩामे इसशरए मे दोनों एक ही हेऄ।बेद रीरा िश होता
है ।औय इसका कायण तो मे ही जानते हेऄ तमोककॊ इनके यहस्त्म को कोई बी जान नहीॊ सकता औय
जो इनकी कृऩा से कुछ जान गमे उन्होनें कुछ कहा ही नहीॊ,सबी भौन यह गए।शशि बोरे
औघड़दानी है इसशरए दाता है सफको कुछ न कुछ दे ते है ,दे ना उनको फहुत वप्रम है ।मे बाि प्रधान
दे ि है ,बस्तत से प्रसन्न हो जाते है ,तबी तो मे भहादे ि कहराते है ।....................बैयि कृऩा बैयि
बतत ित्सर है शीघ्र ही सहामता कयते है ,बयण,ऩोषण के साथ यऺा बी कयते है ।मे शशि के
अततवप्रम तथा भाता के राडरे है ,इनके आऻा के त्रफना कोई शस्तत उऩासना कयता है तो उसके
ऩुण्म का हयण कय रेते है कायण हदव्म साधना का अऩना एक तनमभ है जो गुरू ऩयम्ऩया से आगे
फढता है ।अगय कोई उदण्डता कये तो िो कृऩा प्राप्त नहीॊ कय ऩाता है । बैयि शसपू शशि भाॉ के
आऻा ऩय चरते है िे शोधन,तनिायण,यऺण कय बतत को राकय बगिती के सन्भुख खड़ा कय दे ते
है ।इस जगत भें शशि ने स्जतनी रीराएॊ की है उस रीरा के ही एक रूऩ है बैयि।बैयि मा ककसी
बी शस्तत के तीन आचाय जरूय होते है ,जैसा बतत िैसा ही आचाय का ऩारन कयना ऩड़ता है ।मे
बी अगय गुरू ऩयम्ऩया से शभरे िही कयना चाहहए।आचाय भें सात्िीक ध्मान ऩभजन,याजशसक ध्मान
ऩभजन,तथा ताभशसक ध्मान ऩभजन कयना चाहहए।बम का तनिायण कयते है बैयि।...बैयि स्त्िरुऩ इस
जगत भें सफसे ज्मादा जीि ऩय करूणा शशि कयते है औय शस्तत तो सनातनी भाॉ है इन दोनो भें
बेद नहीॊ है कायण दोनों भाता वऩता है ,इस शरए करूणा,दमा जो इनका स्त्िबाि है िह बैयि जी भें
विद्मभान है ।सस्ृ ष्ट भें आसुयी शस्ततमाॊ फहुत उऩद्रि कयती है ,उसभें बी अगय कोई विशेष साधना
औय बस्तत भागू ऩय चरता हो तो मे कई एक साथ साधक को कष्ट ऩहुॉचाते है ,इसशरए अगय
बैयि कृऩा हो जाए तो सबी आसुयी शस्तत को बैयि फाफा भाय बगाते है ,इसशरमे मे साऺात यऺक
है ।................."बम का तनिायण कयते है ".....(बैयि) अनब
ु तभ तमाॉ फटुक बैयि शशिाॊश है तथा शातत
उऩासना भें इनके त्रफना आगे फढना सॊबि ही नहीॊ है ।शस्तत के ककसी बी रूऩ की उऩासना हो
बैयि ऩभजन कय उनकी आऻा रेकय ही भाता की उऩासना होती है ।बैयि यऺक है साधक के जीिन
भें फाधाओॊ को दयभ कय साधना भागू सयर सुरब फनाते है ।िह सभम माद है जफ त्रफना बैयि
साधना ककमे ही कई भॊत्रों ऩुश्चयण कय शरमा था तबी एक यात एकाॊत भाता भॊहदय से दयभ हटकय
आभ िऺ
ृ के नीचे आसन रगामे फैठा था तबी गजूना के साथ जोय से एक चीखने की आिाज
सुनाई ऩड़ी,नजय घुभाकय दे खा तो एक सुन्दय हदव्म फारक हाथ भें सोटा शरए खड़ा था औय
उसके आसऩास पैरे हकके प्रकाश भें िह फड़ा ही सन्
ु दय रगा।भेऄ आिाक हो गमा औय सोचने रगा
मे कौन है तबी िो फोरे कक "याज भझ
ु े नहीॊ ऩहचाने इतने हदनो से भेऄ तम्
ु हायी सहामता कय यहा
हभॉ औय तभ
ु ने कबी सोचा भेये फाये भें ऩयन्तु तभ
ु तनत्म भेया स्त्भयण,नभस्त्काय कयते हो जाओ
काशी शशि जी का दशून कय आओ।" भेऄने प्रणाभ ककमा औय कहा हे फटुक बैयि आऩको फाय फाय
नभस्त्काय है ,आऩ दमारु है ,कृऩारु है भेऄ सदा से आऩका बतत हभॉ,भेये बरभ के शरए आऩ भझ ु े ऺभा
कये ।भेये ऐसा कहने से िे प्रसन्न भद्रु ा भें अऩना हदव्म रूऩ हदखाकय िहाॉ से अदृश्म हो गमे।भझ
ु े
माद आमा कक कहठन साधनाओॊ के सभम बैयि,हनुभान,गणेश इन तीनों ने भेया फहुत भागूदशून
ककमा था,तथा आज बी कयते है ।जीिन भें कहीॊ बी बटकाि हो मा कहठनाई बैयि फताते है कक
आगे तमा कयना चाहहए,तबी जाकय सत्म का याह सभझ भें आता है ।..भॊत्र शस्तत ऩभणत
ू म: ध्ितन
विऻान के शसद्धान्तों ऩय आधारयत है । इनभें प्रमत
ु त होने िारे शबन्न शबन्न शददों का जो गुॊथन
है ---िही भहत्िऩभणू है , अथू का सभािेश गौण है । ककतने ही फीज भन्त्र ऎसे हेऄ, स्जनका खीॊचतान के
ही बरे ही कुछ अथू गढ शरमा जाए, िस्त्तुत: उनका कुछ अथू है नहीॊ। ह्ीॊ, तरीॊ, िीॊ, ऎ,ॊ हुॊ, मॊ, पट
इत्माहद शददों का तमा अथू हो सकता है , इस प्रश्न ऩय कैसी बी भाथाऩच्ची कयना फेकाय है ।
उनका स ृ ्जन इस आधाय ऩय ककमा गमा है कक उनका उच्चायण ककस स्त्तय का शस्तत कम्ऩन
उत्ऩन कयता है । औय उनका जऩ कयने िारे, उसके अबीष्ट प्रमोजन तथा फाह्म िाताियण ऩय
तमा प्रबाि ऩडता है। औय जो भानशसक, िाधचक औय उऩाॊशु जाऩ की फात कही जाती है , उसभें बी
शसपू ध्ितनमों के हकके बायी ककए जाने की प्रकक्रमा ही काभ भें राई जाती है । भेऄ सभझता हभॉ कक
उऩयोतत रेखों सहहत इस ऩोस्त्ट को ऩढकय आऩ शदद तथा भन्त्र की साभ्मू, शस्ततमों एिॊ जगत
ऩय ऩडने िारे उनके प्रबािों से अच्छे से ऩरयधचत हो चक
ु े होंगें । चशरए इस विषम को ओय
अधधक विस्त्ताय न दे ते हुए वऩछरी ऩोस्त्ट भें आऩसे कहे अनुरूऩ आऩको आज एक ऎसे भन्त्र के
फाये भें फताना चाहभॉगा----स्जसका प्रत्मऺ प्रबाि आऩ स्त्िमॊ अनुबि कय सकते हेऄ। ऩारयिारयक
अशान्ती, आऩसी िैचारयक भतबेदो का हायक भन्त्र :- कबी कबी ग्रह दोष अथिा अन्म ककन्ही
फाह्म मा आन्तरयक कायणों के परस्त्िरूऩ ऩतत-ऩस्त्न,वऩता-ऩुत्र,बाई-बाई अथिा अन्म ककन्ही
सदस्त्मों के फीच आऩसी भतबेद उत्ऩन होकय घय ऩरयिाय की शान्ती भें विघ्न उत्ऩन हो जाता है ।
ओय ऎसा प्रतीत होता है कक जैसे सबी ऩारयिारयक सम्फॊध त्रफगडते जा यहे हेऄ , स्जनके कायण भन
अशान्त एिॊ अधीय हो उठता है । हय सभम कुछ अतनष्ट हो जाने का बम भन भें फना यहता है।
महाॉ भेऄ जो भन्त्र आऩको फता यहा हभॉ----मे जातनए कक ऎसी ककसी बी स्स्त्थतत के उन्भभरन के शरए
मे भन्त्र सचभुच याभफाण औषधध का कामू कयता है । ऎसा नहीॊ कक इसके शरए आऩको कोई ऩभजा
अनुष्ठान कयना ऩडेगा मा अन्म ककसी प्रकाय की कोई साभग्री, कोई भारा इत्माहद की जरूयत
ऩडेगी। न कोई ऩाठ ऩभजा, न साभग्री, न भारा मा अन्म कैसे बी तनमभ, विधध-विधान की कोई
आिश्मकता नहीॊ औय न ही सभम का कोई तनस्श्चत फन्धन। आऩ अऩनी सुविधा अनुसाय जैसा
औय जफ, स्जतनी भात्रा भें चाहें उतना जाऩ कय सकते हेऄ। फस भन्त्र एिॊ शभरने िारे उसके सुपर
के फाये भें िद्धा फनाए यणखए तो सभणझए कुछ ही हदनों भें आऩको इसका प्रत्मऺ राब हदखराई
ऩडने रगेगा। भन्त्र है :- ॲ तरीॊ विघ्न तरेश नाशाम हुॉ पट.......................शत्र-ु भोहन

―चन्द्र-शत्रु याहभ ऩय, विष्णु का चरे चक्र। बागे बमबीत शत्र,ु दे खे जफ चन्द्र िक्र। दोहाई काभाऺा
दे िी की, पॉभ क-पॉभ क भोहन-भन्त्र। भोह-भोह-शत्रु भोह, सत्म तन्त्र-भन्त्र-मन्त्र।। तझ
ु े शॊकय की आन,
सत-गुरु का कहना भान। ॲ नभ् काभाऺाम अॊ कॊ चॊ टॊ तॊ ऩॊ मॊ शॊ ह्ीॊ क्रीॊ िीॊ पट् स्त्िाहा।।‖
विधध्- चन्द्र-ग्रहण मा सभम-ू ग्रहण के सभम ककसी फायहों भास फहने िारी नदी के ककनाये , कभय
तक जर भें ऩभिू की ओय भुख कयके खड़ा हो जाए। जफ तक ग्रहण रगा यहे , िी काभाऺा दे िी का
ध्मान कयते हुए उतत भन्त्र का ऩाठ कयता यहे । ग्रहण भोऺ होने ऩय सात डुफककमाॉ रगाकय
स्त्नान कये । आठिीॊ डुफकी रगाकय नदी के जर के बीतय की शभट्टी फाहय तनकारे। उस शभट्टी को
अऩने ऩास सुयक्षऺत यखे। जफ ककसी शत्रु को सम्भोहहत कयना हो, तफ स्त्नानाहद कयके उतत भन्त्र
को १०८ फाय ऩढ़कय उसी शभट्टी का चन्दन रराट ऩय रगाए औय शत्रु के ऩास जाए। शत्रु इस
प्रकाय सम्भोहहत हो जामेगा कक शत्रत
ु ा छोड़कय उसी हदन से उसका सच्चा शभत्र फन
जाएगा।..............................नजय उतायने के उऩाम १॰ फच्चे ने दध
भ ऩीना मा खाना छोड़ हदमा
हो, तो योटी मा दध
भ को फच्चे ऩय से ‗आठ‘ फाय उताय के कुत्ते मा गाम को णखरा दें । २॰ नभक,
याई के दाने, ऩीरी सयसों, शभचू, ऩयु ानी झाडभ का एक टुकड़ा रेकय ‗नजय‘ रगे व्मस्तत ऩय से ‗आठ‘
फाय उताय कय अस्ग्न भें जरा दें । ‗नजय‘ रगी होगी, तो शभचों की धाॊस नहीीँ आमेगी। ३॰ स्जस
व्मस्तत ऩय शॊका हो, उसे फर
ु ाकय ‗नजय‘ रगे व्मस्तत ऩय उससे हाथ कपयिाने से राब होता है । ४॰
ऩस्श्चभी दे शों भें नजय रगने की आशॊका के चरते ‗टच िड
ु ‘ कहकय रकड़ी के पनॉचय को छभ
रेता है । ऐसी भान्मता है कक उसे नजय नहीॊ रगेगी। ५॰ धगयजाघय से ऩवित्र-जर राकय वऩराने
का बी चरन है । ६॰ इस्त्राभ धभू के अनुसाय ‗नजय‘ िारे ऩय से ‗अण्डा‘ मा ‗जानिय की करेजी‘
उताय के ‗फीच चौयाहे ‘ ऩय यख दें । दयगाह मा कब्र से पभर औय अगय-फत्ती की याख राकय ‗नजय‘
िारे के शसयहाने यख दें मा णखरा दें । ७॰ एक रोटे भें ऩानी रेकय उसभें नभक, खड़ी रार शभचू
डारकय आठ फाय उताये । कपय थारी भें दो आकृततमाॉ- एक काजर से, दस
भ यी कुभकुभ से फनाए।
रोटे का ऩानी थारी भें डार दें । एक रम्फी कारी मा रार यङ्ग की त्रफन्दी रेकय उसे तेर भें
शबगोकय ‗नजय‘ िारे ऩय उताय कय उसका एक कोना धचभटे मा सॉडसी से ऩकड़ कय नीचे से
जरा दें । उसे थारी के फीचो-फीच ऊऩय यखें। गयभ-गयभ कारा तेर ऩानी िारी थारी भें धगये गा।
महद नजय रगी होगी तो, छन-छन आिाज आएगी, अन्मथा नहीॊ। ८॰ एक नीॊफभ रेकय आठ फाय
उताय कय काट कय पेंक दें । ९॰ चाकभ से जभीन ऩे एक आकृतत फनाए। कपय चाकभ से ‗नजय‘ िारे
व्मस्तत ऩय से एक-एक कय आठ फाय उतायता जाए औय आठों फाय जभीन ऩय फनी आकृतत को
काटता जाए। १०॰ गो-भभत्र ऩानी भें शभराकय थोड़ा-थोड़ा वऩराए औय उसके आस-ऩास ऩानी भें
शभराकय तछड़क दें । महद स्त्नान कयना हो तो थोड़ा स्त्नान के ऩानी भें बी डार दें । ११॰ थोड़ी सी
याई, नभक, आटा मा चोकय औय ३, ५ मा ७ रार सख
भ ी शभचू रेकय, स्जसे ‗नजय‘ रगी हो, उसके
शसय ऩय सात फाय घभ
ु ाकय आग भें डार दें । ‗नजय‘-दोष होने ऩय शभचू जरने की गन्ध नहीॊ
आती। १२॰ ऩयु ाने कऩड़े की सात धचस्न्दमाॉ रेकय, शसय ऩय सात फाय घभ
ु ाकय आग भें जराने से
‗नजय‘ उतय जाती है । १३॰ ―नभो सत्म आदे श। गरु
ु का ओभ नभो नजय, जहाॉ ऩय-ऩीय न जानी।
फोरे छर सो अभत
ृ -फानी। कहे नजय कहाॉ से आई ? महाॉ की ठोय ताहह कौन फताई ? कौन जातत
तेयी ? कहाॉ ठाभ ? ककसकी फेटी ? कहा तेया नाभ ? कहाॊ से उड़ी, कहाॊ को जाई ? अफ ही फस कय रे,
तेयी भामा तेयी जाए। सुना धचत राए, जैसी होम सुनाऊॉ आम। तेशरन-तभोशरन, चड़
भ ी-चभायी,
कामस्त्थनी, खत-यानी, कुम्हायी, भहतयानी, याजा की यानी। जाको दोष, ताही के शसय ऩड़े। जाहय ऩीय
नजय की यऺा कये । भेयी बस्तत, गुरु की शस्तत। पुयो भन्त्र, ईश्ियी िाचा।‖ विधध- भन्त्र ऩढ़ते हुए
भोय-ऩॊख से व्मस्तत को शसय से ऩैय तक झाड़ दें । १४॰ ―िन गुरु इद्मास करु। सात सभुद्र सुखे
जाती। चाक फाॉधभॉ, चाकोरी फाॉध,भॉ दृष्ट फाॉध।भॉ नाभ फाॉधभॉ तय फार त्रफयाभनाची आतनङ्गा।‖

विधध- ऩहरे भन्त्र को सभम-ू ग्रहण मा चन्द्र-ग्रहण भें शसद्ध कयें । कपय प्रमोग हे तु उतत भन्त्र के
मन्त्र को ऩीऩर के ऩत्ते ऩय ककसी करभ से शरखें । ―दे िदत्त‖ के स्त्थान ऩय नजय रगे हुए व्मस्तत
का नाभ शरखें। मन्त्र को हाथ भें रेकय उतत भन्त्र ११ फाय जऩे। अगय-फत्ती का धि ु ाॉ कये । मन्त्र
को कारे डोये से फाॉधकय योगी को दे । योगी भॊगरिाय मा शक्र
ु िाय को ऩि
भ ाूशबभख
ु होकय ताफीज को
गरे भें धायण कयें । १५॰ ―ॲ नभो आदे श। तभ ज्मा नािे, बत
भ ऩरे, प्रेत ऩरे, खफीस ऩरे, अरयष्ट
ऩरे- सफ ऩरे। न ऩरे, तय गरु
ु की, गोयखनाथ की, फीद माहीॊ चरे। गरु
ु सॊगत, भेयी बगत, चरे
भन्त्र, ईश्ियी िाचा।‖ विधध- उतत भन्त्र से सात फाय ‗याख‘ को अशबभस्न्त्रत कय उससे योगी के
कऩार ऩय हटका रगा दें । नजय उतय जामेगी। १६॰ ―ॲ नभो बगिते िी ऩाश्िूनाथाम, ह्ीॊ धयणेन्द्र-
ऩद्मािती सहहताम। आत्भ-चऺु, प्रेत-चऺु, वऩशाच-चऺु-सिू नाशाम, सिू-ज्िय-नाशाम, त्रामस त्रामस, ह्ीॊ
नाथाम स्त्िाहा।‖ विधध- उतत जैन भन्त्र को सात फाय ऩढ़कय व्मस्तत को जर वऩरा दें । १७॰ झाडभ
को चक
भ हे / गैस की आग भें जरा कय, चक
भ हे / गैस की तयप ऩीठ कय के, फच्चे की भाता इस
जरती झाडभ को 7 फाय इस तयह स्त्ऩशू कयाए कक आग की तऩन फच्चे को न रगे। तत्ऩश्चात ्
झाडभ को अऩनी टागों के फीच से तनकार कय फगैय दे खे ही, चक
भ हे की तयप पेंक दें । कुछ सभम
तक झाडभ को िहीॊ ऩड़ी यहने दें । फच्चे को रगी नजय दयभ हो जामेगी।
१८॰ नभक की डरी, कारा कोमरा, डॊडी िारी 7 रार शभचू, याई के दाने तथा कपटकयी की डरी को
फच्चे मा फड़े ऩय से 7 फाय उफाय कय, आग भें डारने से सफकी नजय दयभ हो जाती है ।

१९॰ कपटकयी की डरी को, 7 फाय फच्चे/फड़े/ऩशु ऩय से 7 फाय उफाय कय आग भें डारने से नजय तो
दयभ होती ही है, नजय रगाने िारे की धध
ुॊ री-सी शतर बी कपटकयी की डरी ऩय आ जाती है । २०॰
तेर की फत्ती जरा कय, फच्चे/फड़े/ऩशु ऩय से 7 फाय उफाय कय दोहाई फोरते हुए दीिाय ऩय धचऩका
दें । महद नजय रगी होगी तो तेर की फत्ती बबक-बबक कय जरेगी। नजय न रगी होने ऩय शाॊत
हो कय जरेगी। नोट :- नजय उतायते सभम, सबी प्रमोगों भें ऐसा फोरना आिश्मक है कक ―इसको
फच्चे की, फभढ़े की, स्त्त्री की, ऩुरूष की, ऩश-ु ऩऺी की, हहन्द भ मा भुसरभान की, घय िारे की मा फाहय
िारे की, स्जसकी नजय रगी हो, िह इस फत्ती, नभक, याई, कोमरे आहद साभान भें आ जाए तथा
नजय का सतामा फच्चा-फभढ़ा ठीक हो जाए। साभग्री आग मा फत्ती जरा दॊ ग
भ ी मा जरा
दॊ ग
भ ा।´..........................................शत्र-ु भोहन

―चन्द्र-शत्रु याहभ ऩय, विष्णु का चरे चक्र। बागे बमबीत शत्र,ु दे खे जफ चन्द्र िक्र। दोहाई काभाऺा
दे िी की, पॉभ क-पॉभ क भोहन-भन्त्र। भोह-भोह-शत्रु भोह, सत्म तन्त्र-भन्त्र-मन्त्र।। तझ
ु े शॊकय की आन,
सत-गुरु का कहना भान। ॲ नभ् काभाऺाम अॊ कॊ चॊ टॊ तॊ ऩॊ मॊ शॊ ह्ीॊ क्रीॊ िीॊ पट् स्त्िाहा।।‖
विधध्- चन्द्र-ग्रहण मा सभम-ू ग्रहण के सभम ककसी फायहों भास फहने िारी नदी के ककनाये , कभय
तक जर भें ऩभिू की ओय भुख कयके खड़ा हो जाए। जफ तक ग्रहण रगा यहे , िी काभाऺा दे िी का
ध्मान कयते हुए उतत भन्त्र का ऩाठ कयता यहे । ग्रहण भोऺ होने ऩय सात डुफककमाॉ रगाकय
स्त्नान कये । आठिीॊ डुफकी रगाकय नदी के जर के बीतय की शभट्टी फाहय तनकारे। उस शभट्टी को
अऩने ऩास सुयक्षऺत यखे। जफ ककसी शत्रु को सम्भोहहत कयना हो, तफ स्त्नानाहद कयके उतत भन्त्र
को १०८ फाय ऩढ़कय उसी शभट्टी का चन्दन रराट ऩय रगाए औय शत्रु के ऩास जाए। शत्रु इस
प्रकाय सम्भोहहत हो जामेगा कक शत्रत
ु ा छोड़कय उसी हदन से उसका सच्चा शभत्र फन
जाएगा।.....................................दक
भ ान की त्रफक्री अधधक हो- १॰ ―िी शुतरे भहा-शुतरे कभर-
दर तनिासे िी भहारक्ष्भी नभो नभ्। रक्ष्भी भाई, सत्त की सिाई। आओ, चेतो, कयो बराई। ना
कयो, तो सात सभुद्रों की दहु ाई। ऋवद्ध-शसवद्ध खािोगी, तो नौ नाथ चौयासी शसद्धों की दहु ाई।‖ विधध-
घय से नहा-धोकय दक
ु ान ऩय जाकय अगय-फत्ती जराकय उसी से रक्ष्भी जी के धचत्र की आयती
कयके, गद्दी ऩय फैठकय, १ भारा उतत भन्त्र की जऩकय दक
ु ान का रेन-दे न प्रायम्ब कयें । आशातीत
राब होगा। २॰ ―बॉियिीय, तभ चेरा भेया। खोर दक
ु ान कहा कय भेया। उठे जो डण्डी त्रफके जो भार,
बॉियिीय सोखे नहहॊ जाए।।‖ विधध- १॰ ककसीशुब यवििाय से उतत भन्त्र की १० भारा प्रततहदन के
तनमभ से दस हदनों भें १०० भारा जऩ कय रें। केिर यवििाय के ही हदन इस भन्त्र का प्रमोग
ककमा जाता है । प्रात् स्त्नान कयके दक
ु ान ऩय जाएॉ। एक हाथ भें थोड़े-से कारे उड़द रे रें। कपय
११ फाय भन्त्र ऩढ़कय, उन ऩय पॉभ क भायकय दक
ु ान भें चायों ओय त्रफखेय दें । सोभिाय को प्रात् उन
उड़दों को सभेट कय ककसी चौयाहे ऩय, त्रफना ककसी के टोके, डार आएॉ। इस प्रकाय चाय यवििाय तक
रगाताय, त्रफना नागा ककए, मह प्रमोग कयें । २॰ इसके साथ मन्त्र का बी तनभाूण ककमा जाता है ।
इसे रार स्त्माही अथिा रार चन्दन से शरखना है । फीच भें सम्फस्न्धत व्मस्तत का नाभ शरखें।
ततकरी के तेर भें फत्ती फनाकय दीऩक जराए। १०८ फाय भन्त्र जऩने तक मह दीऩक जरता यहे ।
यवििाय के हदन कारे उड़द के दानों ऩय शसन्दयभ रगाकय उतत भन्त्र से अशबभस्न्त्रत कये । कपय
उन्हें दक
भ ान भें त्रफखेय दें ।....................................१॰ हनभ
ु ान यऺा-शाफय भन्त्र ―ॲ गजून्ताॊ
घोयन्ताॊ, इतनी तछन कहाॉ रगाई ? साॉझ क िेरा, रौंग-सऩ
ु ायी-ऩान-पभर-इरामची-धऩ
भ -दीऩ-योट॒ रॉगोट-
पर-पराहाय भो ऩै भाॉगै। अञ्जनी-ऩत्र
ु प्रताऩ-यऺा-कायण िेधग चरो। रोहे की गदा कीर, चॊ चॊ
गटका चक कीर, फािन बैयो कीर, भयी कीर, भसान कीर, प्रेत-ब्रह्भ-याऺस कीर, दानि कीर, नाग
कीर, साढ़ फायह ताऩ कीर, ततजायी कीर, छर कीर, तछद कीर, डाकनी कीर, साकनी कीर, दष्ु ट
कीर, भष्ु ट कीर, तन कीर, कार-बैयो कीर, भन्त्र कीर, काभरु दे श के दोनों दयिाजा कीर, फािन
िीय कीर, चौंसठ जोधगनी कीर, भायते क हाथ कीर, दे खते क नमन कीर, फोरते क स्जह्िा कीर,
स्त्िगू कीर, ऩातार कीर, ऩ्
ृ िी कीर, ताया कीर, कीर फे कीर, नहीॊ तो अञ्जनी भाई की दोहाई
कपयती यहे । जो कयै िज्र की घात, उरटे िज्र उसी ऩै ऩयै । छात पाय के भयै । ॲ खॊ-खॊ-खॊ जॊ-जॊ-जॊ
िॊ-िॊ-िॊ यॊ -यॊ -यॊ रॊ-रॊ-रॊ टॊ -टॊ -टॊ भॊ-भॊ-भॊ। भहा रुद्राम नभ्। अञ्जनी-ऩुत्राम नभ्। हनुभताम नभ्।
िामु-ऩुत्राम नभ्। याभ-दत
भ ाम नभ्।‖

विधध्- अत्मन्त राब-दामक अनुबभत भन्त्र है । १००० ऩाठ कयने से शसद्ध होता है । अधधक कष्ट
हो, तो हनुभानजी का पोटो टाॉगकय, ध्मान रगाकय रार पभर औय गुग्गभर की आहुतत दें । रार
रॉ गोट, पर, शभठाई, ५ रौंग, ५ इरामची, १ सऩ
ु ायी चढ़ा कय ऩाठ कयें ।...............................―शाफय
भन्त्र साधना‖ के त्म १॰ इस साधना को ककसी बी जातत, िणू, आमु का ऩरु
ु ष मा स्त्त्री कय सकती
है । २॰ इन भन्त्रों की साधना भें गरु
ु की इतनी आिश्मकता नहीॊ यहती, तमोंकक इनके प्रितूक स्त्िमॊ
शसद्ध साधक यहे हेऄ। इतने ऩय बी कोई तनष्ठािान ् साधक गरु
ु फन जाए, तो कोई आऩस्त्त नहीॊ
तमोंकक ककसी होनेिारे विऺेऩ से िह फचा सकता है । ३॰ साधना कयते सभम ककसी बी यॊ ग की
धरु ी हुई धोती ऩहनी जा सकती है तथा ककसी बी यॊ ग का आसन उऩमोग भें शरमा जा सकता है ।
४॰ साधना भें जफ तक भन्त्र-जऩ चरे घी मा भीठे तेर का दीऩक प्रज्िशरत यखना चाहहए। एक
ही दीऩक के साभने कई भन्त्रों की साधना की जा सकती है । ५॰ अगयफत्ती मा धऩ
भ ककसी बी
प्रकाय की प्रमुतत हो सकती है , ककन्तु शाफय-भन्त्र-साधना भें गभगर तथा रोफान की अगयफत्ती मा
धऩ
भ की विशेष भहत्ता भानी गई है । ६॰ जहाॉ ‗हदशा‘ का तनदे श न हो, िहाॉ ऩभिू मा उत्तय हदशा की
ओय भुख कयके साधना कयनी चाहहए। भायण, उच्चाटन आहद दक्षऺणाशबभुख होकय कयें ।
भुसरभानी भन्त्रों की साधना ऩस्श्चभाशबभुख होकय कयें । ७॰ जहाॉ ‗भारा‘ का तनदे श न हो, िहाॉ
कोई बी ‗भारा‘ प्रमोग भें रा सकते हेऄ। ‗रुद्राऺ की भारा सिोत्तभ होती है । िैष्णि दे िताओॊ के
विषम भें ‗तुरसी‘ की भारा तथा भुसरभानी भन्त्रों भें ‗हकीक‘ की भारा प्रमोग कयें । भारा
सॊस्त्काय आिश्मक नहीॊ है । एक ही भारा ऩय कई भन्त्रों का जऩ ककमा जा सकता है । ८॰ शाफय
भन्त्रों की साधना भें ग्रहण कार का अत्मधधक भहत्त्ि है । अऩने सबी भन्त्रों से ग्रहण कार भें
कभ से कभ एक फाय हिन अिश्म कयना चाहहए। इससे िे जाग्रत यहते हेऄ। ९॰ हिन के शरमे भन्त्र
के अन्त भें ‗स्त्िाहा‘ रगाने की आिश्मकता नहीॊ होती। जैसा बी भन्त्र हो, ऩढ़कय अन्त भें आहुतत
दें । १०॰ ‗शाफय‘ भन्त्रों ऩय ऩण
भ ू िद्धा होनी आिश्मक है । अधयभ ा विश्िास मा भन्त्रों ऩय अिद्धा होने
ऩय पर नहीॊ शभरता। ११॰ साधना कार भें एक सभम बोजन कयें औय ब्रह्भचमू-ऩारन कयें ।
भन्त्र-जऩ कयते सभम स्त्िच्छता का ध्मान यखें। १२॰ साधना हदन मा यात्रत्र ककसी बी सभम कय
सकते हेऄ। १३॰ ‗भन्त्र‘ का जऩ जैसा-का-तैसा कयॊ । उच्चायण शद्ध
ु रुऩ से होना चाहहए। १४॰ साधना-
कार भें हजाभत फनिा सकते हेऄ। अऩने सबी कामू-व्माऩाय मा नौकयी आहद सम्ऩन्न कय सकते
हेऄ। १५॰ भन्त्र-जऩ घय भें एकान्त कभये भें मा भस्न्दय भें मा नदी के तट- कहीॊ बी ककमा जा
सकता है । १६॰ ‗शाफय-भन्त्र‘ की साधना महद अधयभ ी छभट जाए मा साधना भें कोई कभी यह जाए,
तो ककसी प्रकाय की हातन नहीॊ होती। १७॰ शाफय भन्त्र के छ् प्रकाय फतरामे गमे हेऄ- (क) सिैमा,
(ख) अढ़ै मा, (ग) झुभयी, (घ) मभयाज, (ड़) गरुड़ा, तथा (च) गोऩार
शाफय।..................................शाफय भन्त्रों का आशम्- स्त्ि॰ िाभन शशियाभ आप्टे ने सन ् १९४२
ई॰ भें अऩने ‗सॊस्त्कृत-कोष‘ भें ‗शाफय‘ शदद की व्मत्ु ऩस्त्त इस प्रकाय दी है ; ‗शफ (ि)-य-अण ्-शाफय्,
शािय्, शाफयी।‘ अथू भें ‗जॊगरी जातत‘ मा ‗ऩिूतीम‘ रोगों द्िाया फोरी जानीिारी ‗बाषा‘ फतामा
गमा है । िह एक प्रकाय का भन्त्र बी है , इसका िहॉ कोई उकरेख नहीॊ है । गोस्त्िाभी तुरसीदास जी
ने ‗िीयानचरयतभानस‘ (सॊित ् १६३१) भें शाफय भन्त्रों का भहत्त्ि स्त्िीकाय ककमा है , मह बी
यहस्त्मोद्घाटन बी ककमा है कक इस ‗साफय-भन्त्र-जार‘ के स्रष्टा बी शशि-ऩािूती ही हेऄ। कशर
त्रफरोकक जग-हहत हय धगरयजा, ‗साफय-भन्त्र-जार‘ स्जन्ह शसरयजा। अनशभर आखय अयथ न जाऩभ,
प्रगट प्रबाि भहे श प्रताऩभ।। आधतु नक कार भें भहा-भहोऩाध्माम स्त्ि॰ ऩस्ण्डत गोऩीनाथ कवियाज जी
ने अऩने प्रशसद्ध ‗तास्न्त्रक-साहहत्म‘ ग्रन्थ के ऩष्ृ ठ ६२३-२४ भें ‗शाफय‘- सम्फन्धी ऩाॉच ऩाण्डुशरवऩमों
का उकरेख ककमा है ् १॰ शाफय-धचन्ताभणण ऩािूती-ऩुत्र आहदनाथ वियधचत, २॰ शाफय तन्त्र
गोयखनाथ वियधचत, ३॰ शाफय तन्त्र सिूस्त्ि, शाफय भन्त्र, तथा ५॰ शाफय भन्त्र धचन्ताभणण। उतत
ऩाॉच ऩाण्डुशरवऩमों भें सा प्रथभ ऩाण्डुशरवऩ एशशमाहटक सोसाइटी फॊगार के सभचीऩत्र भें सॊख्मा ६१००
से सम्फस्न्धत है । द्वितीम ऩाण्डुशरवऩ की चाय प्रततमों का उकरेख कवियाज जी ने ककमा है । ऩहरी
उतत सोसाइटी की सभची-ऩत्र ६०९९ से सम्फस्न्धत है , दस
भ यी भ॰भ॰ हयप्रसाद शास्त्त्री के विियण की
सॊ॰ १।३५९ है । तीसयी प्रतत डेकन कारेज, ऩभना सभचीऩत्र ५८० है । चौथी प्रतत की तीन ऩाण्डुशरवऩमों
का उकरेख है , जो सॊस्त्कृत विश्िविद्मारम, िायाणसी के सभचीऩत्र की सॊख्मा २३८६७, २४८१५ औय
२४५७९ ऩय िणणूत है । मे तीनों अऩण
भ ू है । तत
ृ ीम ऩाण्डुशरवऩ ‗शाफय-तन्त्र-सिूस्त्ि‘ के सम्फन्ध भें
अऩुष्ट कथन शरखा है । चतुथू ऩाण्डुशरवऩ की तीन प्रततमों का उकरेख हुआ है । ऩहरी प्रतत
एशशमाहटक सोसाइटी के सभचीऩत्र की सॊख्मा ६५५८ है । दसभ यी प्रतत फड़ौदा ऩुस्त्तकारम के अकायाहद
सभचीऩत्र की सॊख्मा ५६१४ ऩय है । तीसयी प्रतत की दो ऩाण्डुशरवऩमाॊ सॊस्त्कृत विश्िविद्मारम,
िायाणसी के सभचीऩत्र की सॊख्मा २३८५६ औय २६२३२ से सम्फद्ध है । ऩञ्चभ ऩाण्डुशरवऩ एशशमाहटक
सोसाइटी के सभचीऩत्र की सॊख्मा ६१०० ऩय उस्करणखत है । ‗उ॰प्र॰ हहन्दी सॊस्त्थान‘ द्िाया प्रकाशशत
‗हहन्द भ धभू कोश‘ भें सम्ऩादक डा॰ चन्द्रफरी ऩाण्डेम ने ‗शाफय‘ शदद को अऩने ‗कोश‘ भें स्त्थान
तक नहीॊ हदमा है -जफकक ‗शफय-शॊकय-विरास‘, ‗शफय-स्त्िाभी‘, ‗शाफय-बाष्म‘ जैसे शददों को उन्होनें
सस्म्भशरत ककमा है । िीतायानाथ तकू-िाचस्त्ऩतत बट्टाचामू द्िाया सॊकशरत एिॊ चौखम्बा सॊस्त्कृत
सीयीज आकपस, िायाणसी द्िाया प्रकाशशत प्रख्मात ‗िह
ृ त ् सॊस्त्कृताशबधानभ ्‘ (कोश) भें बी ‗शफय‘
मा ‗शाफय‘ शदद का उकरेख नहीॊ है । उतत विश्रेषण के ऩश्चात बी शाफय विद्मा सिूत्र बायत भें
अऩना एक विशशष्ट अस्स्त्तत्ि तथा प्रबाि यखती है । िस्त्तत
ु ् दे खा जामे तो सभस्त्त विश्ि भें शाफय
विद्मा मा सभानाथॉ विद्मा प्रचरन भें है । ऻान की सॊऻा बरे ही फदर जामे भर
भ बािना तथा
कक्रमा िही यहती है ।.......................................सिाूरयष्ट तनिायण स्त्तोत्र ॲ गॊ गणऩतमे नभ्।
सिू-विघ्न-विनाशनाम, सिाूरयष्ट तनिायणाम, सिू-सौख्म-प्रदाम, फारानाॊ फुवद्ध-प्रदाम, नाना-प्रकाय-धन-
िाहन-बभशभ-प्रदाम, भनोिाॊतछत-पर-प्रदाम यऺाॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ गुयिे नभ्, ॲ िीकृष्णाम
नभ्, ॲ फरबद्राम नभ्, ॲ िीयाभाम नभ्, ॲ हनभ
ु ते नभ्, ॲ शशिाम नभ्, ॲ जगन्नाथाम
नभ्, ॲ फदयीनायामणाम नभ्, ॲ िी दग
ु ाू-दे व्मै नभ्।। ॲ सभमाूम नभ्, ॲ चन्द्राम नभ्, ॲ
बौभाम नभ्, ॲ फुधाम नभ्, ॲ गुयिे नभ्, ॲ बग
ृ िे नभ्, ॲ शतनश्चयाम नभ्, ॲ याहिे नभ्,
ॲ ऩुच्छानमकाम नभ्, ॲ नि-ग्रह यऺा कुरू कुरू नभ्।। ॲ भन्मेियॊ हरयहयादम एि दृष्ट्िा द्रष्टे षु
मेषु रृदमस्त्थॊ त्िमॊ तोषभेतत विविऺते न बिता बुवि मेन नान्म कस्श्िन्भनो हयतत नाथ
बिान्तये ॱवऩ। ॲ नभो भणणबद्रे । जम-विजम-ऩयास्जते ! बद्रे ! रभ्मॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ बभबि
ुू ्
स्त्ि् तत ्-सवितुियू े ण्मॊ बगो दे िस्त्म धीभहह धधमो मो न् प्रचोदमात ्।। सिू विघ्नॊ शाॊन्तॊ कुरू कुरू
स्त्िाहा।। ॲ ऐॊ ह्ीॊ तरीॊ िीफटुक-बैयिाम आऩदद्ध
ु ायणाम भहान ्-श्माभ-स्त्िरूऩाम हदघाूरयष्ट-विनाशाम
नाना प्रकाय बोग प्रदाम भभ (मजभानस्त्म िा) सिूरयष्टॊ हन हन, ऩच ऩच, हय हय, कच कच, याज-
द्िाये जमॊ कुरू कुरू, व्मिहाये राबॊ िवृ द्धॊ िवृ द्धॊ, यणे शत्रन
ु ् विनाशम विनाशम, ऩभणाू आमु् कुरू कुरू,
स्त्त्री-प्रास्प्तॊ कुरू कुरू, हुभ ् पट् स्त्िाहा।। ॲ नभो बगिते िासुदेिाम नभ्। ॲ नभो बगिते, विश्ि-
भभतम
ू े, नायामणाम, िीऩुरूषोत्तभाम। यऺ यऺ, मुग्भदधधकॊ प्रत्मऺॊ ऩयोऺॊ िा अजीणं ऩच ऩच, विश्ि-
भभततूकान ् हन हन, ऐकास्ह्नकॊ द्िास्ह्नकॊ त्रास्ह्नकॊ चतुयस्ह्नकॊ ज्ियॊ नाशम नाशम, चतुयस्ग्न िातान ्
अष्टादष-ऺमान ् याॊगान ्, अष्टादश-कुष्ठान ् हन हन, सिू दोषॊ बॊजम-बॊजम, तत ्-सिं नाशम-नाशम,
शोषम-शोषम, आकषूम-आकषूम, भभ शत्रुॊ भायम-भायम, उच्चाटम-उच्चाटम, विद्िेषम-विद्िेषम,
स्त्तम्बम-स्त्तम्बम, तनिायम-तनिायम, विघ्नॊ हन हन, दह दह, ऩच ऩच, भथ भथ, विध्िॊसम-विध्िॊसम,
विद्रािम-विद्रािम, चक्रॊ गह
ृ ीत्िा शीघ्रभागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, ऩा-विद्माॊ छे दम-छे दम, चौयासी-
चेटकान ् विस्त्पोटान ् नाशम-नाशम, िात-शुष्क-दृस्ष्ट-सऩू-शसॊह-व्माघ्र-द्विऩद-चतुष्ऩद अऩये फाह्मॊ
तायाशब् बव्मन्तरयऺॊ अन्मान्म-व्मावऩ-केधचद् दे श-कार-स्त्थान सिाून ् हन हन, विद्मुन्भेघ-नदी-ऩिूत,
अष्ट-व्माधध, सिू-स्त्थानातन, यात्रत्र-हदनॊ, चौयान ् िशम-िशम, सिोऩद्रि-नाशनाम, ऩय-सैन्मॊ विदायम-
विदायम, ऩय-चक्रॊ तनिायम-तनिायम, दह दह, यऺाॊ कुरू कुरू, ॲ नभो बगिते, ॲ नभो नायामणाम, हुॊ
पट् स्त्िाहा।। ठ् ठ् ॲ ह्ीॊ ह्ीॊ। ॲ ह्ीॊ तरीॊ बुिनेश्िमाू् िीॊ ॲ बैयिाम नभ्। हरय ॲ उस्च्छष्ट-
दे व्मै नभ्। डाककनी-सुभुखी-दे व्मै, भहा-वऩशाधचनी ॲ ऐॊ ठ् ठ्। ॲ चकक्रण्मा अहॊ यऺाॊ कुरू कुरू,
सिू-व्माधध-हयणी-दे व्मै नभो नभ्। सिू प्रकाय फाधा शभनभरयष्ट तनिायणॊ कुरू कुरू पट्। िीॊ ॲ
कुस्दजका दे व्मै ह्ीॊ ठ् स्त्िाहा।। शीघ्रभरयष्ट तनिायणॊ कुरू कुरू शाम्फयी क्रीॊ ठ् स्त्िाहा।। शारयका
बेदा भहाभामा ऩण
भ ं आम्ु कुरू। हे भिती भर
भ ॊ यऺा कुरू। चाभण्
ु डामै दे व्मै शीघ्रॊ विध्नॊ सिं िामु कप
वऩत्त यऺाॊ कुरू। भन्त्र तन्त्र मन्त्र किच ग्रह ऩीडा नडतय, ऩि
भ ू जन्भ दोष नडतय, मस्त्म जन्भ दोष
नडतय, भातद
ृ ोष नडतय, वऩत ृ दोष नडतय, भायण भोहन उच्चाटन िशीकयण स्त्तम्बन उन्भर
भ नॊ बत

प्रेत वऩशाच जात जाद भ टोना शभनॊ कुरू। सस्न्त सयस्त्ित्मै कस्ण्ठका दे व्मै गर विस्त्पोटकामै
विक्षऺप्त शभनॊ भहान ् ज्िय ऺमॊ कुरू स्त्िाहा।। सिू साभग्री बोगॊ सप्त हदिसॊ दे हह दे हह, यऺाॊ कुरू
ऺण ऺण अरयष्ट तनिायणॊ, हदिस प्रतत हदिस द्ु ख हयणॊ भॊगर कयणॊ कामू शसवद्धॊ कुरू कुरू। हरय
ॲ िीयाभचन्द्राम नभ्। हरय ॲ बभबि
ुू ् स्त्ि् चन्द्र ताया नि ग्रह शेषनाग ऩ्ृ िी दे व्मै आकाशस्त्म
सिाूरयष्ट तनिायणॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ ऐॊ ह्ीॊ िीॊ फटुक बैयिाम आऩदद्ध
ु ायणाम सिू विघ्न
तनिायणाम भभ यऺाॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ ऐॊ ह्ीॊ तरीॊ िीिासुदेिाम नभ्, फटुक बैयिाम
आऩदद्ध
ु ायणाम भभ यऺाॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ ऐॊ ह्ीॊ तरीॊ िीविष्णु बगिान ् भभ अऩयाध ऺभा
कुरू कुरू, सिू विघ्नॊ विनाशम, भभ काभना ऩभणं कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ ऐॊ ह्ीॊ तरीॊ िीफटुक बैयिाम
आऩदद्ध
ु ायणाम सिू विघ्न तनिायणाम भभ यऺाॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।। ॲ ऐॊ ह्ीॊ तरीॊ िीॊ ॲ िीदग
ु ाू
दे िी रूद्राणी सहहता, रूद्र दे िता कार बैयि सह, फटुक बैयिाम, हनुभान सह भकय ध्िजाम,
आऩदद्ध
ु ायणाम भभ सिू दोषऺभाम कुरू कुरू सकर विघ्न विनाशाम भभ शुब भाॊगशरक कामू
शसवद्धॊ कुरू कुरू स्त्िाहा।।

एष विद्मा भाहात्म्मॊ च, ऩयु ा भमा प्रोततॊ ध्रि


ु ॊ। शभ क्रतो तु हन्त्मेतान ्, सिाूश्च फशर दानिा्।। म
ऩभ
ु ान ् ऩठते तनत्मॊ, एतत ् स्त्तोत्रॊ तनत्मात्भना। तस्त्म सिाून ् हह सस्न्त, मत्र दृस्ष्ट गतॊ विषॊ।। अन्म
दृस्ष्ट विषॊ चैि, न दे मॊ सॊक्रभे ध्रि
ु भ ्। सॊग्राभे धायमेत्मम्फे, उत्ऩाता च विसॊशम्।। सौबाग्मॊ जामते
तस्त्म, ऩयभॊ नात्र सॊशम्। द्रत
ु ॊ सद्मॊ जमस्त्तस्त्म, विघ्नस्त्तस्त्म न जामते।। ककभत्र फहुनोततेन, सिू
सौबाग्म सम्ऩदा। रबते नात्र सन्दे हो, नान्मथा िचनॊ बिेत ्।। ग्रहीतो महद िा मत्नॊ, फारानाॊ
विविधैयवऩ। शीतॊ सभुष्णताॊ मातत, उष्ण् शीत भमो बिेत ्।। नान्मथा ित
ु मे विद्मा, ऩठतत कधथतॊ
भमा। बोज ऩत्रे शरखेद् मन्त्रॊ, गोयोचन भमेन च।। इभाॊ विद्माॊ शशयो फध्िा, सिू यऺा कयोतु भे।
ऩुरूषस्त्माथिा नायी, हस्त्ते फध्िा विचऺण्।। विद्रिस्न्त प्रणश्मस्न्त, धभूस्स्त्तष्ठतत तनत्मश्।
सिूशत्रयु धो मास्न्त, शीघ्रॊ ते च ऩरामनभ ्।।

‗िीबग
ृ ु सॊहहता‘ के सिाूरयष्ट तनिायण खण्ड भें इस अनुबभत स्त्तोत्र के 40 ऩाठ कयने की विधध
फताई गई है। इस ऩाठ से सबी फाधाओॊ का तनिायण होता है । ककसी बी दे िता मा दे िी की
प्रततभा मा मन्त्र के साभने फैठकय धऩ
भ दीऩाहद से ऩभजन कय इस स्त्तोत्र का ऩाठ कयना चाहहमे।
विशेष राब के शरमे ‗स्त्िाहा‘ औय ‗नभ्‘ का उच्चायण कयते हुए ‗घत ृ शभधित गुग्गुर‘ से आहुततमाॉ
दे सकते हेऄ।.......................................फजयङग िशीकयण भन्त्र ―ॲ ऩीय फजयङ्गी, याभ रक्ष्भण
के सङ्गी। जहाॊ-जहाॊ जाए, पतह के डङ्के फजाम। ‗अभुक‘ को भोह के, भेये ऩास न राए, तो
अञ्जनी का ऩभत न कहाम। दहु ाई याभ-जानकी की।‖ विधध- ११ हदनों तक ११ भारा उतत भन्त्र
का जऩ कय इसे शसद्ध कय रे। ‗याभ-निभी‘ मा ‗हनुभान-जमन्ती‘ शुब हदन है । प्रमोग के सभम
दध
भ मा दध
भ तनशभूत ऩदाथू ऩय ११ फाय भन्त्र ऩढ़कय णखरा मा वऩरा दे ने से, िशीकयण
होगा।..................................................आकषूण हे तु हनुभद्-भन्त्र-तन्त्र ―ॲ अभुक-नाम्ना ॲ नभो
िामु-सभनिे झहटतत आकषूम-आकषूम स्त्िाहा।‖ विधध- केसय, कस्त्तुयी, गोयोचन, यतत-चन्दन, श्िेत-
चन्दन, अम्फय, कऩयभू औय तुरसी की जड़ को तघस मा ऩीसकय स्त्माही फनाए। उससे द्िादश-दर-
करभ जैसा ‗मन्त्र‘ शरखकय उसके भध्म भें , जहाॉ ऩयाग यहता है , उतत भन्त्र को शरखे। ‗अभुक‘ के
स्त्थान ऩय ‗साध्म‘ का नाभ शरखे। फायह दरों भें क्रभश् तनम्न भन्त्र शरखे- १॰ हनुभते नभ्, २॰
अञ्जनी-सभनिे नभ्, ३॰ िामु-ऩुत्राम नभ्, ४॰ भहा-फराम नभ्, ५॰ िीयाभेष्टाम नभ्, ६॰ पाकगुन-
सखाम नभ्, ७॰ वऩङ्गाऺाम नभ्, ८॰ अशभत-विक्रभाम नभ्, ९॰ उदधध-क्रभणाम नभ्, १०॰ सीता-
शोक-विनाशकाम नभ्, ११॰ रक्ष्भण-प्राण-दाम नभ् औय १२॰ दश-भुख-दऩू-हयाम नभ्। मन्त्र की
प्राण-प्रततष्ठा कयके षोडशोऩचाय ऩज
भ न कयते हुए उतत भन्त्र का ११००० जऩ कयें । ब्रह्भचमू का
ऩारन कयते हुए रार चन्दन मा तर ु सी की भारा से जऩ कयें । आकषूण हे तु अतत प्रबािकायी
है ।.............................................आकषूण एिॊ िशीकयण के प्रफर सम
भ ू भन्त्र १॰ ―ॲ नभो
बगिते िीसम
भ ाूम ह्ीॊ सहस्त्त्र-ककयणाम ऐॊ अतर
ु -फर-ऩयाक्रभाम नि-ग्रह-दश-हदक् -ऩार-रक्ष्भी-दे ि-
िाम, धभू-कभू-सहहतामै ‗अभक
ु ‘ नाथम नाथम, भोहम भोहम, आकषूम आकषूम, दासानद
ु ासॊ कुरु-कुरु,
िश कुरु-कुरु स्त्िाहा।‖ विधध- सम
ु द
ू े ि का ध्मान कयते हुए उतत भन्त्र का १०८ फाय जऩ प्रततहदन ९
हदन तक कयने से ‗आकषूण‘ का कामू सपर होता है । २॰ ―ऐॊ वऩन्स्त्थाॊ करीॊ काभ-वऩशाधचनी शशघ्रॊ
‗अभुक‘ ग्राह्म ग्राह्म, काभेन भभ रुऩेण िश्िै् विदायम विदायम, द्रािम द्रािम, प्रेभ-ऩाशे फन्धम
फन्धम, ॲ िीॊ पट्।‖ विधध- उतत भन्त्र को ऩहरे ऩिू, शुब सभम भें २०००० जऩ कय शसद्ध कय रें।
प्रमोग के सभम ‗साध्म‘ के नाभ का स्त्भयण कयते हुए प्रततहदन १०८ फाय भन्त्र जऩने से
‗िशीकयण‘ हो जाता है ।........................................३॰ काशभमा शसन्दयभ -भोहन भन्त्र- ―हथेरी भें
हनुभन्त फसै, बैरु फसे कऩाय। नयशसॊह की भोहहनी, भोहे सफ सॊसाय। भोहन ये भोहन्ता िीय, सफ
िीयन भें तेया सीय। सफकी नजय फाॉध दे , तेर शसन्दयभ चढ़ाऊॉ तुझ।े तेर शसन्दयभ कहाॉ से आमा ?
कैरास-ऩिूत से आमा। कौन रामा, अञ्जनी का हनुभन्त, गौयी का गनेश रामा। कारा, गोया,
तोतरा-तीनों फसे कऩाय। त्रफन्दा तेर शसन्दयभ का, दश्ु भन गमा ऩातार। दहु ाई कशभमा शसन्दयभ की,
हभें दे ख शीतर हो जाए। सत्म नाभ, आदे श गुरु की। सत ् गुरु, सत ् कफीय। विधध- आसाभ के
‗काभ-रुऩ काभाख्मा, ऺेत्र भें ‗काभीमा-शसन्दयभ ‘ ऩामा जाता है । इसे प्राप्त कय रगाताय सात यवििाय
तक उतत भन्त्र का १०८ फाय जऩ कयें । इससे भन्त्र शसद्ध हो जाएगा। प्रमोग के सभम ‗काशभमा
शसन्दयभ ‘ ऩय ७ फाय उतत भन्त्र ऩढ़कय अऩने भाथे ऩय टीका रगाए। ‗टीका‘ रगाकय जहाॉ जाएॉगे,
सबी िशीबत
भ होंगे।................................. शसद्ध िशीकयण भन्त्र

१॰ ―फाया याखौ, फयै नी, भॉह


भ भ याखौं काशरका। चण्डी भ याखौं भोहहनी, बुजा भ याखौं जोहनी। आगभ
भ याखौं शसरेभान, ऩाछे भ याखौं जभादाय। जाॉघे भ याखौं रोहा के झाय, वऩण्डयी भ याखौं सोखन
िीय। उकटन कामा, ऩुकटन िीय, हाॉक दे त हनुभन्ता छुटे । याजा याभ के ऩये दोहाई, हनुभान के ऩीड़ा
चौकी। कीय कये फीट त्रफया कये , भोहहनी-जोहहनी सातों फहहनी। भोह दे फे जोह दे फे, चरत भ
ऩरयहारयन भोहों। भोहों फन के हाथी, फत्तीस भस्न्दय के दयफाय भोहों। हाॉक ऩये शबयहा भोहहनी के
जाम, चेत सम्हाय के। सत गुरु साहे फ।‖ विधध- उतत भन्त्र स्त्िमॊ शसद्ध है तथा एक सज्जन के
द्िाया अनुबभत फतरामा गमा है । कपय बी शुब सभम भें १०८ फाय जऩने से विशेष परदामी होता
है । नारयमर, नीॊफभ, अगय-फत्ती, शसन्दयभ औय गुड़ का बोग रगाकय १०८ फाय भन्त्र जऩे। भन्त्र का
प्रमोग कोटू -कचहयी, भुकदभा-वििाद, आऩसी करह, शत्र-ु िशीकयण, नौकयी-इण्टयव्मभ, उच्च
अधीकारयमों से सम्ऩकू कयते सभम कये । उतत भन्त्र को ऩढ़ते हुए इस प्रकाय जाॉए कक भन्त्र की
सभास्प्त ठीक इस्च्छत व्मस्तत के साभने हो।...........महद शयीय स्त्िस्त्थ है तो जीिन का हय सुख
अच्छा रगता है औय महद शयीय ही स्त्िस्त्थ नहीॊ हेऄ तो ककसी बी सख
ु भें भजा नहीॊ आता। महद
आऩ बी ककसी असाध्म योग से ऩीडडत हेऄ तो नीचे शरखे हनभ
ु ान भॊत्र का जऩ भॊगरिाय को कयें
इससे आऩका योग दयभ हो सकता है । मह हनभ
ु ान भॊत्र इस प्रकाय है -

भॊत्र

हनभ
ु न्नॊजनी सन
ु ो िामऩ
ु त्र
ु भहाफर:।

अकस्त्भादागतोत्ऩाॊत नाशमाशु नभोस्त्तुते।।

जऩ विधध
- प्रतत भॊगरिाय सुफह जकदी उठकय सिूप्रथभ स्त्नान आहद तनत्म कभू से तनित्ृ त होकय साप
िस्त्त्र ऩहनें।

- इसके फाद हनुभानजी की ऩभजा कयें औय उन्हें शसॊदयभ तथा गुड़-चना चढ़ाएॊ।

- इसके फाद ऩभिू हदशा की ओय भुख कयके कुश का आसन ग्रहण कयें ।

- तत्ऩश्चात रार चॊदन की भारा से ऊऩय शरखे भॊत्र का जऩ कयें ।

- इस भॊत्र का प्रबाि आऩको कुछ ही सभम भें हदखने रगेगा।................. सभमू को िरुण दे िता
का नेत्र बी भाना जाता है , सम
भ ू को कई ऩत्र
ु औय ऩत्रु त्रमाॊ हेऄ ! ऐसा कहा जाता है की विस्त्िकभाू की
ऩत्र
ु ी सॊऻा उनकी सदरभख
ुू ऩत्नी हेऄ !इन्हीॊ के गबू से मभ औय मभन
ु ा का जन्भ हुआ ! इनकी दस
भ यी
ऩत्नी का नाभ छामा फतामा जाता है ,इनके गबू से शतन औय ताप्ती का जन्भ हुआ !

कवऩयाज सुग्रीि औय दानिीय कणू इन्हीॊ के िॊसज थे !

ऩतछयाज गरुण के फड़े बाई अरुण सम


भ ू के सात घोड़े िारे यथ के सायधथ भाने गए हेऄ ! मे सात
घोड़े सम
भ ू की सात ज्मोततओॊ के यॊ ग हेऄ ! फैगनी ,नीरा,आसभानी,हया,ऩीरा,नायॊ गी औय रार मे सातों
यॊ ग शभरकय प्रकाश-ऩुॊज फनाते हेऄ ! इसे सभमू की धुऩ का यॊ ग कहा जाता है !!

ओभ सभमाूम: नभह !! ॲ ॲ ......... अशुब ग्रहों का उऩाम ककस प्रकाय से कये : 1. सभमू : फहते ऩानी
भें गुड़ फहाएॉ। सभमू को जर दे , वऩता की सेिा कये मा गेहभॉ औय ताॊफे का फतून दान कयें ., 2. चॊद्र :
ककसी भॊहदय भें कुछ हदन कच्चा दध भ औय चािर यखें मा खीय-फपी का दान कयें , मा भाता की
सेिा कये , मा दध
भ मा ऩानी से बया फतून यात को शसयहाने यखें . सुफह उस दध
ु मा ऩानी से ककसी
काॊटेदाय ऩेड़ की जड़ भें डारे मा चन्द्र के शरए चािर, दध
ु एिॊ चान्दी के िस्त्तुएॊ दान कयें . 3.
भॊगर : फहते ऩानी भें ततर औय गुड़ से फनी ये िाडडमाॊ प्रिाहहत कये . मा फयगद के िऺ
ृ की जड़ भें
भीठा कच्चा दध
भ 43 हदन रगाताय डारें। उस दध
भ से शबगी शभट्टी का ततरक रगाएॉ। मा ८
भॊगरिाय को फॊदयो को बुना हुआ गड ु औय चने णखरामे , मा फड़े बाई फहन के सेिा कये , भॊगर के
शरए साफतु , भसयभ की दार दान कयें 4. फध
ु : ताॉफे के ऩैसे भें सयभ ाख कयके फहते ऩानी भें फहाएॉ।
कपटकयी से दन्त साप कये , अऩना आचयण ठीक यखे ,फध
ु के शरए साफत
ु भॊभग का दान कयें ., भाॉ
दग
ु ाू की आयाधना कयें . 5. फह
ृ स्त्ऩतत : केसय का ततरक योजाना रगाएॉ मा कुछ भात्रा भें केसय
खाएॉ औय नाशब मा जीब ऩय रगाएॊ मा फ ृ ्हस्त्ऩतत के शरए चने की दार मा वऩरी िस्त्तु दान कयें .
6. शुक्र : गाम की सेिा कयें औय घय तथा शयीय को साप-सुथया यखें , मा कारी गाम को हया चाया
डारे .शुक्र के शरए दही, घी, कऩभय आहद का दान कयें . 7. शतन : फहते ऩानी भें योजाना नारयमर
फहाएॉ। शतन के हदन ऩीऩर ऩय तेर का हदमा जरामे ,मा ककसी फतून भें तेर रेकय उसभे अऩना
ऺामा दे खें औय फतून तेर के साथ दान कये . तमोंकक शतन दे ि तेर के दान से अधधक प्रसन्ना
होते है , मा हनुभान जी की ऩभजा कये औय फजयॊ ग फाण का ऩथ कये , शतन के शरए कारे साफुत
उड़द एिॊ रोहे की िस्त्तु का दान कयें . 8. याहु : जौ मा भभरी मा कारी सयसों का दान कयें मा अऩने
शसयहाने यख कय अगरे हदन फहते हुए ऩानी भें फहाए , 9. केतु : शभट्टी के फने तॊदयभ भें भीठी योटी
फनाकय 43 हदन कुत्तों को णखराएॉ मा सिा ककरो आटे को बुनकय उसभे गुड का चयु ा शभरा दे
औय ४३ हदन तक रगाताय चीॊहटमों को डारे, मा करा सफेद कम्फर कोहढमों को दान कयें मा
आधथूक नक
ु ासन से फचने के शरए योज कौओॊ को योटी णखराएॊ. मा कारा ततर दान कये , अऩना
कभू ठीक यखे तबी बाग्म आऩ का साथ दे गा औय कभू ठीक हो इसके शरए आऩ भस्न्दय भें
प्रततहदन दशून के शरए जाएॊ., भाता-वऩता औय गरु
ु जानो का सम्भान कये , अऩने धभं का ऩारन
कये , बाई फन्धओ
ु ॊ से अच्छे सम्फन्ध फनाकय यखें ., वऩतयो का िाद्ध कयें . मा प्रत्मेक अभािस को
वऩतयो के तनशभत्त भॊहदय भें दान कये , गाम औय कुत्ता ऩारें , महद ककसी कायणिश कुत्ता भय जाए
तो दोफाया कुत्ता ऩारें. अगय घय भें ना ऩार सके तो फाहय ही उसकी सेिा कये , महद सन्तान
फाधा हो तो कुत्तों को योटी णखराने से घय भें फड़ो के आशीिाूद रेने से औय उनकी सेिा कयने से
सन्तान सुख की प्रास्प्त होगी . गौ ग्रास. योज बोजन कयते सभम ऩयोसी गमी थारी भें से एक
हहस्त्सा गाम को, एक हहस्त्सा कुत्ते को एिॊ एक हहस्त्सा कौए को णखराएॊ आऩ के घय भें हभेसा
फयतकत यहे गी, ........... जन्भ कॊु डरी आऩ के जीिन भें प्रकाश रा सकती है , अगय ककसी का
जन्भ हदन , जन्भ सभम औय जन्भ स्त्थान एकदभ ठीक है तो ककसी बी विद्िान से अऩनी
कॊु डरी के फाये भें गड़ना जरुय कयाएॉ … जन्भ ऩत्रत्रका के अनुसाय कामू कयने से जीिन भें प्राम्
सपरता शभरती है …. कभो के अनुसाय अच्छे – फुये पर शभरते है ,िैहदक विधधमों द्िाया ककमा
गमा उऩाम कबी खारी नहीॊ जाता है , अच्छे कभों से आऩ अऩनी ककस्त्भत फना बी सकते है औय
उसे खयाफ बी कय सकते है ..….. जन्भ ऩत्रत्रका से अनेक राब है … कॊु डरी भें १२ बाि होते है
प्रत्मेक बाि का अऩना पर है जैसे :- १-आऩके जीिन भें कौन कौन सी ऩये शातनमाॊ हेऄ, औय कफ
आएगी…? , शयीय तमों औय कफ साथ नहीॊ दे ता इसका ऩता होना चाहहए।…? इन्शान के अन्दय
सबी गुण होते हुए बी िो आणखय राचाय तमों यहता है ….? २- धन – सम्ऩतत सम्फॊधधत जानकायी
…? . धन का सॊग्रह ना होना , ३- आऩकी कुण्डरी भें कहीॊ दोष तो नहीॊ जो आऩके बाई फहन के
साथ सम्फन्ध खयाफ कय दे औय साझेदायी मा व्माऩय कयने भें आऩ को आऩय भें करह कयना
ऩड़े.,…? ४- भकान , िाहन, जभीन-जामदाद रेने के फाद मा अचानक काभ भें नुतसान मा रेने के
फाद बी सुख- सुविधािो भें कभी मा आऩके घय भें तरेश तमों यहता है ? ५. ककस विषम को चन
ु े
जो आऩ को नई उचाई ऩय रे जामेगा…? साथ ही सॊतान के फाये भें जाने की हभाये फच्चे दख
ु का
कायण तो नही फन यहें हेऄ औय आगे साथ दे गे बी मा नहीॊ …..? ६- आऩके जीिन भें कौन सा फुया
ितत कफ औय कैसे आएगा , कहीॊ आऩके शभत्र ही शत्रु न फन जामे , मा आऩ का अऩना ही
शायीय आऩ का साथ न छोड़ दे .. दघ
ु ट
ू ना मा त्रफभायी कैसे आ सकती है , कहीॊ ऐसा तो नहीॊ कक
स्जसके शरए आऩने अऩना ऩभया जीिन अच्छा कयें िही आऩको धोखा दें .?, ७- आऩकी कुण्डरी भें
शादी के फाद जीिन साथी का सुख है मा नहीॊ औय होगा बी तो कफ होगी , प्रेभ वििाह कयने के
फाद बी तराक की भुशीफत न आमे …? ८- विदे श मात्रा … कॊु डरी भें जन्भ स्त्थान से दयभ जाने
को ही विदे शा मात्रा कहते है ,,,,? अकस्त्भात दघ
ु ट
ू ना कही आऩ की जीिन भें तो नहीॊ होगी….? ९-
आऩ का बाग्म आऩ का साथ दे गा मा नहीॊ , कही आऩ अऩना कीभती सभम फस मभॉ ही भौज
भस्त्ती भें गज
ु ाय यहे है , आऩको फहुत ज्मादा सपरता तमों नही शभरती मा कफ शभरेगी ?….? १०-
व्माऩय कये तो कौन सा कयें , वऩता से ककतना सहमोग शभरेगा , ऩैत्रत्रक सम्ऩतत शभरेगी मा नहीॊ
,.. ११- जीिन भें राब होगा मा नहीॊ औय होगा बी तो कफ होगा औय कैसे मा हभाये फड़े बाई –
फहन मा सगे सम्फन्धी साथ दे गे मा नहीॊ , ..? १२ बाि हभें हानी के फाये भें फताता है जैसे ककस
कामू को कये स्जससे हभें हानी न हो मा कही आऩका त्रफज़नस ऩाटू नय ही आऩ को नक
ु सान न
ऩहुॊचा दे , मा स्जसे आऩ अऩना सभझते है िो शसपू आऩ की दौरत से प्माय कयते है ….. स्जस
बाि भें जो ग्रह अशुब पर प्रदान कये उसका हभें उऩाम कयना चाहहए , ........... जम बगितत दे वि
नभो ियदे जम ऩाऩविनाशशतन फहुपरदे । जम शुम्बतनशुम्बकऩारधये प्रणभाशभ तु दे वि
नयाततूहये ॥1॥ जम चन्द्रहदिाकयनेत्रधये जम ऩािकबभवषतितत्रिये । जम बैयिदे हतनरीनऩये जम
अन्धकदै त्मविशोषकये ॥2॥ जम भहहषविभहदू तन शभरकये जम रोकसभस्त्तकऩाऩहये । जम दे वि
वऩताभहविष्णुनते जम बास्त्कयशक्रशशयोिनते॥3॥ जम षण्भुखसामुधईशनुते जम सागयगाशभतन
शम्बुनुते। जम द:ु खदरयद्रविनाशकये जम ऩुत्रकरत्रवििवृ द्धकये ॥4॥ जम दे वि सभस्त्तशयीयधये जम
नाकविदशशूतन द:ु खहये । जम व्माधधविनाशशतन भोऺ कये जम िाञ ्स् छतदातमतन शसवद्धिये ॥5॥
एतद्व्मासकृतॊ स्त्तोत्रॊ म: ऩठे स्न्नमत: शुधच:। गह
ृ े िा शुद्धबािेन प्रीता बगिती सदा॥6॥ बािाथू :- हे
ियदातमनी दे वि! हे बगितत! तुम्हायी जम हो। हे ऩाऩों को नष्ट कयने िारी औय अनन्त पर दे ने
िारी दे वि। तुम्हायी जम हो! हे शुम्बतनशुम्ब के भुण्डों को धायण कयने िारी दे वि! तुम्हायी जम
हो। हे भुष्मों की ऩीडा हयने िारी दे वि! भेऄ तुम्हें प्रणाभ कयता हभॉ॥1॥ हे सभम-ू चन्द्रभारूऩी नेत्रों को
धायण कयने िारी! तुम्हायी जम हो। हे अस्ग्न के सभान दे दीप्माभान भुख से शोशबत होने िारी!
तुम्हायी जम हो। हे बैयि-शयीय भें रीन यहने िारी औय अन्धकासुयका शोषण कयने िारी दे वि!
तुम्हायी जम हो, जम हो॥2॥ हे भहहषसुय का भदू न कयने िारी, शभरधारयणी औय रोक के सभस्त्त
ऩाऩों को दयभ कयने िारी बगितत! तुम्हायी जम हो। ब्रह्भा, विष्णु, सभमू औय इन्द्र से नभस्त्कृत होने
िारी हे दे वि! तुम्हायी जम हो, जम हो॥3॥ सशस्त्त्र शङ्कय औय काततूकेमजी के द्िाया िस्न्दत होने
िारी दे वि! तुम्हायी जम हो। शशि के द्िाया प्रशॊशसत एिॊ सागय भें शभरने िारी गङ्गारूवऩणण दे वि!
तुम्हायी जम हो। द:ु ख औय दरयद्रता का नाश तथा ऩुत्र-करत्र की िवृ द्ध कयने िारी हे दे वि! तुम्हायी
जम हो, जम हो॥4॥ हे दे वि! तुम्हायी जम हो। तुभ सभस्त्त शयीयों को धायण कयने िारी, स्त्िगूरोक
का दशून कयानेिारी औय द:ु खहारयणी हो। हे व्मधधनाशशनी दे वि! तम्
ु हायी जम हो। भोऺ तम्
ु हाये
कयतरगत है , हे भनोिास्च्छत पर दे ने िारी अष्ट शसवद्धमों से सम्ऩन्न ऩया दे वि! तुम्हायी जम
हो॥5॥

जो कहीॊ बी यहकय ऩवित्र बाि से तनमभऩभिक


ू इस व्मासकृत स्त्तोत्र का ऩाठ कयता है अथिा शुद्ध
बाि से घय ऩय ही ऩाठ कयता है , उसके ऊऩय बगिती सदा ही प्रसन्न यहती हेऄ॥6॥ ............. दस
भहाविद्मामें शस्तत ग्रॊथों भें दस भहाविद्माओॊ का िणून शभरता है ,रेककन जन ितु त के अनुसाय
इन विद्माओॊ का रूऩ अऩने अऩने अनुसाय फतामा जाता है ,मह दस विद्मा तमा है औय ककस
कायण से इन विद्माओॊ का रूऩ सॊसाय भें िणणूत है ,मह दस विद्मामें ही तमों है इसके अरािा औय
तमों नही इससे कभ बी होनी चाहहमे थी,आहद फातें जनभानस के अन्दय अऩना अऩना रूऩ
हदखाकय भ्रशभत कयती है । .......... शतनश्चयी अभािस्त्मा ऩय शतनदे ि का विधधित ऩभजन कय
ऩमाूप्त राब उठा सकते हेऄ :- 1. सिूप्रथभ तनत्मकभू से तनित
ृ हो स्त्नानोऩयाॊत भाता-वऩता के चयण
स्त्ऩशू कयें । 2. बोजन भें उड़द दार, गुड़ ततर के ऩकिान, भीठी ऩभड़ी फनाकय शतनदे ि को बोग
रगाकय गाम, गयीफ, कुत्ते को बोजन कयाने के फाद स्त्िमॊ बोजन कयें तथा प्रशाद फाॊटे। इस हदन
केसयीमा, कारा िस्त्त्र ऩहनना राबदामक ि अनुकभर यहे गा। 3. शतन अभािस्त्मा के हदन सॊऩभणू िद्धा
बाि से ऩवित्र कयके घोडे की नार मा नाि की ऩें दी की कीर का छकरा भध्मभा अॊगुरी भें धायण
कयें । (ककसी मोग्म ऩॊडडत जी से ज़रूय ऩभछ रे, धायण कयने से ऩहरे) 4. शतन अभािस्त्मा के हदन
108 फेरऩत्र की भारा बगिान शशि के शशिशरॊग ऩय चढाए। 5. शतनिाय को साफुत उडद ककसी
शबखायी को दान कयें .मा ऩक्षऺमों को ( कौए ) खाने के शरए डारे। 6. शतन ग्रह की िस्त्तुओॊ का
दान कयें , शतन ग्रह की िस्त्तुएॊ हेऄ –कारा उड़द,चभड़े का जभता, नभक, सयसों तेर, तेर, नीरभ, कारे
ततर, रोहे से फनी िस्त्तुए,ॊ कारा कऩड़ा आहद। (मोग्म ऩॊडडत जी से ज़रूय ऩभछ रे, दान कयने से
ऩहरे) 7. उडद के आटे के 108 गोरी फनाकय भछशरमों को णखराने से राब होगा । 8. १६ शतनिाय
सम
भ ाूस्त्त्र के सभम एक ऩानी िारा नारयमर, ५ फादाभ, कुछ दक्षऺणा शतन भॊहदय भें चढामें । (मोग्म
ऩॊडडत जी से ज़रूय ऩछ
भ रे) 9. शतन को दरयद्र नायामण बी कहते हेऄ इसशरए दरयद्रो की सेिा से बी
शतन प्रसन्न होते हेऄ, असाध्म व्मस्तत को कारा छाता, चभडे के जत
भ े चप्ऩर ऩहनाने से शतन दे ि
प्रसन्न होते हेऄ । 10. शतनिाय को हनभ
ु ान भस्न्दय भें ऩज
भ ा उऩासना कय तथा प्रसाद चढामें । 11.
शतन के कोऩ से फचने के शरमे भॊगरभतभ तू िी गणेश की बस्तत बी फहुत भॊगरकायी है । इसशरए
शतनिाय को िी गणेश ऩभजन भें 21 दि
भ ाू मा भोदक का बोग रगाएॊ औय काभ ऩय जाते सभम िी
गणेश भभततू से कामूशसद्धी औय शतन कोऩ ि अतनष्ठ से यऺा की काभना कयें । 12. शुक्रिाय की यात
सिा-सिा ककरो कारे चने अरग-अरग तीन फतूनों भें शबगो कय यख दें । शतनिाय की सुफह
नहाकय साप िस्त्त्र ऩहनकय शतनदे ि का ऩभजन कयें औय चनों को सयसौं के तेर भें छौंककय इनका
बोग शतनदे ि को रगाएॊ औय अऩनी सभस्त्माओॊ के तनिायण के शरए प्राथूना कयें । इसके फाद
ऩहरा सिा ककरो चना बेऄसे को णखरा दें । दस
भ या सिा ककरो चना कुष्ट योधगमों भें फाॊट दें औय
तीसया सिा ककरो चना अऩने ऊऩय से ऊतायकय ककसी सुनसान स्त्थान ऩय यख आएॊ। इस टोटके
को कयने से शतनदे ि के प्रकोऩ भें अिश्म कभी होगी।

भेष याशश ऩीऩर के ऩेड़ के नीचे 11 उड़द की ढे यी ऩय 11 सयसों के तेर के दीऩक यखें । िष
ृ याशश
भाॊ बगिती के भॊहदय भें 11 घी के औय 11 सयसों के तेर के दीऩक जराएॊ ि िीचयणों भें चुन्नी
बें ट कयें । शभथन
ु याशश भाॊ बगिती के िीचयणों भें 11 घी के औय 11 सयसों के तेर के दीऩक
जराएॊ। ककू याशश ऩीऩर के ऩेड़ के नीचे 11 सयसों के तेर के दीऩक ि 11 डरी गुड़ यख दें । शसॊह
याशश बगिान शशि के भॊहदय भें 21 सयसों के तेर के दीऩक जराएॊ। कन्मा याशश हनुभान जी
िीचयणों भें 11 सयसों के तेर के दीऩक जराएॊ। तुरा याशश सभमोदम से ऩभिू फयगद के ऩेड़ के नीचे
24 सयसों के तेर के दीऩक जराएॊ। िस्ृ श्चक याशश घय के भुख्म द्िाय के फाहय 11 सयसों के तेर
के दीऩक जराएॊ। धनु याशश बगिान शशि के भॊहदय भें 24 सयसों के तेर के दीऩक जराएॊ। भकय
याशश ऩीऩर के ऩेड़ भें 11 दीऩक जराएॊ। कॊु ब याशश अऩनी छत के ऊऩय 11 सयसों के तेर के
दीऩक जराएॊ। भीन याशश हनुभान जी के भॊहदय भें सयसों के तेर के 24 दीऩक जराएॊ। ............
बगिान िीकृष्ण कहते हेऄ- ब्राह्भणऺत्रत्रमविशाॊ शभद्राणाॊ च ऩयन्तऩ।कभाूणण प्रविबततातन
स्त्िबािप्रबिैगण
ुू ै्॥(गीता १८/४१) 'ब्राह्भण, ऺत्रत्रम औय िैश्मों के तथा शभद्रों के कभू स्त्िबाि से
उत्ऩन्न गुणों द्िाया विबतत ककए गए हेऄ। मह कभूबभशभ है , महाॉ ककसी का बी कभू व्मथू नहीॊ
जाता। इस धया-धाभ भें सबी को अऩने कभों का पर स्त्िम ही बोगना ऩड़ता है , अच्छे कभू
इन्शान को अच्छा औय फुये कभू इन्शान को फुया फनती है .. कभू के कायन ही कोई जीिात्भा
याजा फन जाती है औय कभू के कायन ही कोई शबखायी फन जाता है ,

गोस्त्िाभी तुरसीदासजी ने याभामण भें शरखा है कक :-―कभू प्रधान विस्त्ि यधच याखा, जो जस कयहहॊ
तो तस पर चाखा‖

अथाूत ईश्िय ने सॊसाय को कभू प्रधान फना यखा है , इसभें जो भनष्ु म जैसा कभू कयता है , उसको
िैसा ही पर प्राप्त होता है । इस धयती ऩय स्जतने बी प्राणी हेऄ, िे सफ अऩने-अऩने सॊधचत कभों
के कायण ही सॊसाय भें चतकय रगामा कयते हेऄ। अऩने ककए कभों के अनस
ु ाय िे शबन्न-शबन्न
मोतनमों भें जन्भ रेते हेऄ। ककए हुए कभों का पर बोगे त्रफना प्राणी का छुटकाया नहीॊ होता।अच्छा
कभू कये गा, अच्छा पर शभरेगा; फयु ा कभू कये गा फयु ा पर शभरेगा । कभू के पर से कोई बी फच
नहीॊ सकता । हभाया सुख-द:ु ख सबी हभाये अच्छे औय फुये कभों का नतीजा है । हभाया अगरा
जन्भ कैसा औय कहाॉ होगा मह वऩछ्रे जन्भों के कभों के आधाय ऩय तनधाूरयत होता है । कभूपर
अिश्म ही बोगना ऩड़ता है :-प्रत्मेक भनुष्म को अऩने ककए कभू का पर अिश्म बुगतना ऩडता
है । ईश्िय ने जीि को भनुष्म मोतन भें अच्छे कभू कयके आिागभन के चतकय से छुटकाया ऩाने
का प्रमास कयने के शरए बेजा है । जीि को ऩशु ऩऺी औय अन्म मोतनमों भें उसके द्िाया ककए
गए कभो का पर बुगतने के शरए बेजा जाता है । इसशरए इन्हें बोग मोतन कहा जाता है । केिर
भनुष्म मोतन ही ऐसी है स्जसभें जीि अऩने वऩछरे कभो का पर बोगता है औय अच्छे औय फुये
कभू कय अऩने आगे के जीिन को सपर औय असपर फना सकता है । िह अच्छे कभू कयके
भोऺ के भागू ऩय अऩने कदभ फढा सकता है अथिा फुये कभू कयके अऩने ऩतन का भागू अऩना
सकता है । इसीशरए सॊत सभझाते हेऄ कक अगय इस जन्भ भें औय अगरे जन्भों भें बी सुखी होना
चाहते हो तो ―भनसा- िाचा-कभूणा ―ककसी का बी फुया ना कयो । मातन भन से, कभू से औय
िचन से ककसी का बी फुया न सोचो औय न कयो ।नाबत
ु तॊ ऺीमते कभू ककऩकोहटशतैयवऩ।
अिश्मभेि बोततव्मॊ कृतॊ कभू शब
ु ाशब
ु भ ्।।(नायद ऩयु ाण् ऩि
भ ू बाग् 31.69-70)

चाहे कोई दे खे मा न दे खे कपय बी कोई है जो हय सभम दे ख यहा है , स्जसके ऩास हभाये ऩाऩ-ऩुण्म
सबी दे ख यहा है , स्जसके ऩास हभाये ऩाऩ-ऩुण्म सबी कभों का रेखा-जोखा है । इस दतु नमा की
सयकाय से शामद कोई फच बी जाम ऩय उस सयकाय से आज तक न कोई फचा है औय न फच
ऩामेगा। ककसी प्रकाय की शसपारयश अथिा रयश्ित िहाॉ काभ नहीॊ आमेगी। उससे फचने का कोई
भागू नहीॊ है । कभू कयने भें तो भानि स्त्ितॊत्र है ककॊतु पर भें बोगने भें कदावऩ नहीॊ, इसरे हभेशा
अशुब कभों का त्माग कयके शुब कभू कयने चाहहए।

जो कभू स्त्िमॊ को औय दस
भ या को बी सुख-शाॊतत दें तथा दे य-सिेय बगिान तक ऩहुॉचा दें , िे शुब
कभू हेऄ औय जो ऺण बय के शरए ही (अस्त्थामी) सुख दे तथा बविष्म भें अऩने को ि दस
भ यों को
बगिान से दयभ कय दें , नयकों भें ऩहुॉचा दें उन्हें अशुब कभू कहते हेऄ।

ककमे हुए शुब मा अशुब कभू कई जन्भों तक भनुष्म का ऩीछा नहीॊ छोडते। ऩभिज ू न्भों के कभों के
जैसे सॊस्त्काय होते हेऄ, िैसा पर बोगना ऩड़ता है । ............ यह बेषज जर ऩिन ऩट ऩाइ कुजोग
सज
ु ोग !! होहहॉ कुफस्त्तु सफ
ु स्त्तु जग रखहहॉ सर
ु च्छन रोग !! ग्रह , ओषधध , जर , िामु औय िस्त्त्र ..
मे सफ बी कुसॊग औय सस
ु ॊग ऩाकय सॊसाय भेँ फयु े औय बरे ऩदाथू फन जाते हेः ,चतयु एिॊ
विचायशीर ऩरु
ु ष ही इस फात को जान ऩाते हेः ! भहाकवि िी गोस्त्िाभी तर
ु सीदास जी कहते है ,
इस सॊसाय भें सॊगतत का अत्मॊत प्रबाि है , हभ स्जस प्रकाय की सॊगतत कयें गे हभायी प्रकृतत बी
सदै ि उसी प्रकाय की होगी , बरे ही कोई िस्त्तु ककतनी बी भहत्िऩण
भ ू एिॊ उऩमोगी तमों ना हो
ककन्तु महद उसकी सॊगतत मा प्रबाि सम्मक रूऩेण ककसी अिाॊछनीम िस्त्तु के साथ हो जाता है
तफ उसका जीिनोऩमोगी स्त्िबाफ जीि हॊ ता बी हो सकता है !!

सॊगतत सुगतत ना ऩािहह ऩये कुभतत के धन्ध !!याखो भेर कऩभय के हीॊग ना होम सुगॊध !! .............
उऩाम
स्जस हदन ककसी कामू विशेष के शरए जाना हो उस हदन जकदी उठकय स्त्नान आहद तनत्म काभों
से तनऩटकय सफसे ऩहरे बगिान िीगणेश का ऩभजन कयें । उन्हें धऩ
भ -दीऩ, पभर, दि
भ ाू आहद चढ़ाएॊ।
गुड़-धतनए का प्रसाद अवऩूत कयें । इसके फाद गणेशजी के साभने फैठकय रुद्राऺ मा ऩन्ना की
भारा से ऊॉ गॊ गणऩतमे नभ: भॊत्र का मथाशस्तत जऩ कयें । जफ घय से तनकरने िारे हों तफ
िीगणेश को चढ़ाई दि
भ ाू भें से थोड़ी दि
भ ाू अऩनी जेफ भें यख रें ।

इस उऩाम से तनस्श्चत रूऩ से आऩका हय सोचा हुआ काभ जकदी औय ठीक से हो जाएगा
............ रार ककताफ के अनुसाय तमा दान कयें तमा ना कयें :- अॊकुय नागौयी समू के उच्च होने
ऩय गुड़ मा गेहभॊ का, भॊगर के उच्च होने ऩय भीठी िस्त्तुओॊ का, फुध उच्च िारे व्मस्तत को करभ
औय घड़े का दान, फह
ृ स्त्ऩतत के उच्च होने ऩय ऩीरी िस्त्त, ु चने की दार, सोना औय ऩुस्त्तक का,
शुक्र के उच्च होने ऩय ऩयफ्मभभ ि ये डीभेड कऩड़ों का, शतन के उच्च होने ऩय अॊडा, भाॊस, तेर ि
कारे उड़द का दान नहीॊ कयना चाहहए। महद आऩकी जन्भ ऩत्रत्रका भें चॊद्र चतुथू बाि भें है तो
आऩको कबी बी दध
भ , जर अथिा दिा का भभकम नहीॊ रेना चाहहए। महद आऩकी ऩत्रत्रका भें गुरु
सातिें बाि भें हो तो आऩको कबी बी कऩड़े का दान नहीॊ कयना चाहहए अन्मथा स्त्िमॊ िस्त्त्रहीन
हो जामेंगे। अथाूत आऩ ऩय इतना अधधक आधथूक सॊकट आ जामेगा कक आऩके स्त्िमॊ के ऩहनने
के शरए कऩड़े बी नहीॊ फचें गे। गुरु महद निभ बाि भें फैठे हों तो भॊहदय आहद भें अथाूत ककसी बी
प्रकाय के धाशभूक कामू के शरए दान नहीॊ कयना चाहहए। महद आऩकी जन्भऩत्रत्रका भें शतन, आठिें
बाि भें हो तो कबी बी बोजन, िस्त्त्र मा जभते आहद का दान नहीॊ कयना चाहहए। महद दशभ बाि
भें फह
ृ स्त्ऩतत एिॊ चतुथू भें चॊद्र हो तो भॊहदय फनिाने ऩय व्मस्तत झभठे भाभरे भें जेर बी जा
सकता है । महद सभमू सातिें मा आठिें घय भें विद्मभान हो तो जातक को सुफह शाभ दान नहीॊ
कयना चाहहए। उसके शरए विष ऩान सभान सात्रफत होगा। जातक का शक्र
ु नौिें खाने भें हो औय
िह अनाथ फच्चे को गोद रे तो स्त्िमॊ अनाथ हो जाता है । महद शतन प्रथभ बाि भें तथा फह
ृ स्त्ऩतत
ऩॊचभ बाि भें हो तो ऐसे व्मस्तत द्िाया ताॊफे का दान कयने ऩय सॊतान नष्ट हो जाती है । अष्टभ
बािस्त्थ शतन होने ऩय भकान फनिाना भत्ृ मु का कायक होगा। स्जन व्मस्ततमों का दस
भ या घय
खारी हो तथा आठिें घय भें शतन जैसा क्रभय ग्रह विद्मभान हो, उन्हें कबी भॊहदय नहीॊ जाना
चाहहए। फाहय से ही अऩने इष्टदे ि को नभस्त्काय कयें । महद 6, 8, 12 बाि भें शत्रु ग्रह हों तथा बाि
2 खारी हों तो बी भॊहदय न जामें। जन्भऩत्री भें केतु बाि सात भें हो तो रोहे का दान नहीॊ कयना
चाहहए। जन्भऩत्री के चौथे बाि भें भॊगर फैठा हो तो िस्त्त्र का दान नहीॊ कयना चाहहए। याहु दस
भ ये
बाि भें हो तो तेर ि धचकनाई िारी चीजों का दान नहीॊ कयना चाहहए। सभम-ू चॊद्रभा ग्मायहिें बाि
भें हो तो शयाफ ि कफाफ का सेिन न कयें । नहीॊ तो आधथूक स्स्त्थतत खयाफ हो जामेगी। सभम-ू फुध
की मुतत ग्मायहिें बाि भें हो तो अऩने घय भें कोई ककयामेदाय नहीॊ यखना चाहहए। फुध महद चौथे
बाि भें हो तो घय भें तोता नहीॊ ऩारना चाहहए। महद ऩारे तो भाता को कष्ट होता है ।
जन्भऩत्रत्रका के बाि तीन भें केतु हो तो जातक को दक्षऺणभुखी घय भें नहीॊ यहना चाहहए। चॊद्र -
केतु एक साथ ककसी बी बाि भें हो तो जातक को ककसी के ऩेशाफ के ऊऩय ऩेशाफ नहीॊ कयना
चाहहए। महद जन्भऩत्रत्रका के ककसी बी बाि भें फुध-शुक्र की मुतत हो तो गद्दे ऩय न सोमें। महद
बाि ऩाॊच भें गुरु फैठा हो तो धन का दान नहीॊ कयना चाहहए। एक फाय बिन तनभाूण शुरू हो
जामे तो उसे फीच भें ना योकें। अन्मथा अधयभ े भकान भें याहु का िास हो जामेगा। चतुथॉ (4)
निभी (9) औय चतुदूशी (14) को नमा कामू आयॊ ब न कयें तमोंकक मे रयतता ततधथ होती हेऄ। इन
ततधथमों को कोई बी कामू शसद्ध नहीॊ होता। ............. "ॲ अभक
ु -नाम्ना ॲ नभो िामु-सन
भ िे
झहटतत आकषूम-आकषूम स्त्िाहा।"

विधध- केसय, कस्त्तुयी, गोयोचन, यतत-चन्दन, श्िेत-चन्दन, अम्फय, कऩयभू औय तर


ु सी की जड़ को तघस
मा ऩीसकय स्त्माही फनाए। उससे द्िादश-दर-करभ जैसा ‗मन्त्र‘ शरखकय उसके भध्म भें , जहाॉ
ऩयाग यहता है , उतत भन्त्र को शरखे। ‗अभुक‘ के स्त्थान ऩय ‗साध्म‘ का नाभ शरखे। फायह दरों भें
क्रभश् तनम्न भन्त्र शरखे-

१. हनभ
ु ते नभ्, २. अञ्जनी-सन
भ िे नभ्, ३. िाम-ु ऩत्र
ु ाम नभ्, ४. भहा-फराम नभ्, ५. िीयाभेष्टाम
नभ्, ६. पाकगुन-सखाम नभ्, ७. वऩङ्गाऺाम नभ्, ८. अशभत-विक्रभाम नभ्, ९. उदधध-क्रभणाम
नभ्, १०. सीता-शोक-विनाशकाम नभ्, ११. रक्ष्भण-प्राण-दाम नभ् औय १२. दश-भुख-दऩू-हयाम
नभ्।

मन्त्र की प्राण-प्रततष्ठा कयके षोडशोऩचाय ऩभजन कयते हुए उतत भन्त्र का ११००० जऩ कयें ।
ब्रह्भचमू का ऩारन कयते हुए रार चन्दन मा तुरसी की भारा से जऩ कयें । आकषूण हे तु अतत
प्रबािकायी है । ........... होया कामाूॱकामू वििेचना

यवि की होया - सॊगीत िाद्माहद शशऺा, स्त्िास्त््म, विचाय औषधसेिन, भोअय मान, सिायी, नौकयी, ऩशु
खयीदी, हिन भॊत्र, उऩदे श, शशऺा, दीऺा, अस्त्त्र, शस्त्त्र धातु की खयीद ि फेचान, िाद-वििाद, न्माम
विषमक सराह कामू, निीन कामू ऩद ग्रहण तथा याज्म प्रशासतनक कामू, सेना सॊचारन आहद कामू
शुब।

सोभ की होया - कृवष खेती मॊत्र खयीदी, फीज फोना, फगीचा, पर, िऺ
ृ रगाना, िस्त्त तथा यत्न
धायण, औषध क्रम-विक्रम, भ्रभण-मात्रा, करा-कामू, निीन कामू, अरॊकाय धायण, ऩशऩ
ु ारन, स्त्त्रीबष
भ ण
क्रम-विक्रम कयने हे तु शुब।
भॊगर की होया - बेद रेना, ऋण दे ना, गिाही, चोयी, सेना-सॊग्राभ, मुद्ध नीतत-यीतत, िाद-वििाद तनणूम,
साहस कृत्म आहद कामू शुब, ऩय भॊगर का ऋण रेना अशुब है ।

फुध की होया -ऋण रेना अहहतकय तथा शशऺा-दीऺा विष्ऻमक कामू, विद्मायॊ ब, अध्ममन चातुमू
कामू, सेिािस्ृ त्त, फही-खाता, हहसाफ विचाय, शशकऩ काय्र तनभाूण कामू, नोहटस दे ना, गह
ृ -प्रिेश,
याजनीतत विचाय, शारागभन शुब है ।

गुरू की होया- ऻान-विऻान की शशऺा, धभू-न्माम विषमक कामू, अनुष्ठान, साइॊस, कानभनी ि करा
सॊकाम शशऺा आयॊ ब, शाॊतत ऩाठ, भाॊगशरक कामू, निीन ऩद ग्रहण, िस्त्त आबष
भ ण धायण, मात्रा, अॊक,
अेतटय, इॊजन, भोटय, मान, औषध सेिन ि तनभाूण शीु ा साथ ही शऩथ ग्रहण शब
ु द।

शुक्र की होया - गुप्त विचाय गोष्ठी, प्रेभ-व्मिहाय, शभत्रता, िस्त्त्र, भणणयत्न धायण तथा तनभाूण, अॊक,
इत्र, नाटक, छामा-धचत्र, सॊगीत आहद कामू शुब, बॊडाय बयना, खेती कयना, हर प्रिाह, धन्मयोऩण, आमु,
ठान, शशऺा शुब।

शतन की होया - गह
ृ प्रिेश ि तनभाूण, नौकय चाकय यखना, धातर
ु ोह, भशीनयी, करऩज
ु ों के कामू,
गिाही, व्माऩाय विचाय, िाद-वििाद, िाहन खयीदना, सेिा विषमक कामू कयना शब
ु । ऩयन्तु फीज
फोना, कृवष खेती कामू शुब नहीॊ। ................ दत्तात्रेम बगिान ् दत्तात्रेम बी िीविद्मा के एक िेष्ठ
उऩासक थे । दि
ु ाूसा के सभान मे बी आ सभमा गबू से सभुद्भत
भ थे । प्रशसद्ध के अनुसाय इन्होंने
शशष्मों के हहतसाधन के शरए िीविद्मा के उऩासनाथू िीदत्त -सॊहहता नाभक एक विशार ग्रन्थ
की यचना की थी । फाद भें ऩयशुयाभ ने उसका अध्ममन कयके ऩचास खण्डों भें एक सभत्र ग्रन्थ
की यचना की थी । कहा जात है कक इनके फाद शशष्म सुभेधा ने दत्त -सॊहहता औय ‗ऩयशुयाभ
ककऩ सभत्र ‘ का सायाॊश रेकय ‗त्रत्रऩुय -यहस्त्म ‘ की यचना की । प्रशसवद्ध मह बी है कक दत्तात्रेम
‗भहाविद्मा भहाकाशरका ‘ के बी उऩासक थे । ............ िी हनुभान जी के फायह नाभ ...
१.हनुभान २.अॊजनी सुनभ ३.भहाफर ४.िामु ऩुत्रा ५.सभेष्ट ६.पाकगुन सख ७.वऩॊगाऺ ८.आशभत
विक्रभ ९.दघीक्रभण १०.सीता शोक विनासन ११.रक्ष्भण प्राण दाता १२.दस ग्रीि दऩूहा नाभ की
भहहभा--- प्रात् कार सो कय उठते ही स्जस बी अिस्त्था भें हो इन फायह नाभों को ११ फाय रेने
िारा व्मस्तत दीघाूमु होता है |तनत्म तनमभ के सभम नाभ रेने से ईष्ट की प्रास्प्त होती है |दोऩहय
भें नाभ रेने िारा व्मस्तत रक्ष्भीिान होटा है |सॊध्मा के सभम नाभ रेने िारा व्मस्तत ऩारयिारयक
सुखों से तप्ृ त होता है |यात्रत्र को सोते सभम नाभ रेने िारे व्मस्तत की शत्रु ऩय जीत होती
है |उऩयोतत सभम के अततरयतत इस फायह नाभों का तनयॊ तय जऩ कयने िारे व्मस्तत की िी
हनुभान जी भहायाज दसों हदशाओॊ से एिॊ आकाश-ऩातार से यऺा कयते हेऄ|मात्रा के सभम एिॊ
न्मामारम भें ऩड़े वििाद के शरए मह फायह नाभ अऩना चभत्काय हदखामेंगे|रार स्त्माही से
भॊगरिाय को बोजऩत्र ऩय मे फायह नाभ शरखकय भॊगरिाय के ही हदन ताफीज फाॉधने से कबी
शसय ददू नहीॊ होगा|गरे मा फाजभ भें ताॊफे का ताफीज ज्मादा उत्तभ है |बोजऩत्र ऩय शरखने के काभ
आने िारा ऩैन मा साइन ऩैन नमा होना चाहहए| ............ अप्सयामे अत्मॊत सुॊदय औय जिान होती
हेऄ. उनको सुॊदयता औय शस्तत वियासत भें शभरी है . िह गुराफ का इत्र औय चभेरी आहद की गॊध
ऩसॊद कयती हेऄ। तुभको उसके शयीय से फहुत प्रकाय की खशु फभ आती भहसभस कय सकते हेऄ. मह
गन्ध ककसी बी ऩुरुष को आकवषूत कय सकती हेऄ। िह चस्त्
ु त कऩड़े ऩहनना के साथ साथ अधधक
गहने ऩहना ऩसॊद कयती है . इनके खर
ु े-रॊफे फार होते है । िह हभेशा एक 16-17 सार की रड़की
की तयह हदखती है । दयअसर, िह फहुत ही सीधी होती है । िह हभेशा उसके साधक को सभवऩूत
यहती है । िह साधक को कबी धोखा नहीॊ दे ती हेऄ। इस साधना के दौयान अनब
ु ि हो सकता है , कक
िह साधना ऩयभ ी होने से ऩहरे हदखाई दे । अगय ऐसा होता है , तो अनदे खा कय दें । आऩको अऩने
भॊत्र जाऩ ऩयभ ा कयना चाहहए जैसा कक आऩ इसे तनमशभत रूऩ से कयते थे। कोई जकदफाजी ना कये
स्जतने हदन की साधना फताई हेऄ उतने हदन ऩयु ी कयनी चाहहए। काभ बाि ऩय तनमॊत्रण यखे।
िासना का साधना भे कोई स्त्थान नहीॊ होता हेऄ। अप्सया ऩयीऺण बी रे सकती हेऄ। जफ सुॊदय
अप्सया आती है तो साधक सोचता है , कक भेयी साधना ऩभणू हो गमा है । रेककन जफ तक िो
वििश ना हो जामे तफ तक साधना जायी यखनी चाहहए। केई साधक इस भोड़ ऩय, अप्सया के
साथ मौन ककऩना रग जाते है । मौन बािनाओॊ से फचें , मह साधना खयाफ कयती हेऄ। जफ सॊककऩ
के अनुसाय भॊत्र जाऩ सभाप्त हो औय िो आऩसे अनुयोध कयें तो आऩ उसे गुराफ के पभर औय
कुछ इत्र दे । उसे दध
भ का फनी शभठाई ऩान आहद बें ट दे । उससे िचन रे रे की िह जीिन-बय
आऩके िश भें यहे गी। िो कबी आऩको छोड़ कय नहीॊ जाएगी औय आऩक कहा भानेगी। जफ तक
कोई िचन न दे तफ तक उस ऩय विश्िास नही ककमा जा सकता तमोंकक िचन दे ने से ऩहरे तक
िो स्त्िमॊ ही चाहती हेऄ कक साधक की साधना बॊग हो जामे। ककसी बी साधना भेऄ सफसे भहत्िऩुणू
बाग उसके तनमभ हेऄ. साभान्मता सबी साधना भें एक जैसे तनमभ होते हेऄ. ऩयतुॊ भेऄ महाॉ ऩय
विशेष तौय ऩय मक्षऺणी औय अप्सया साधना भें प्रमोग होने िारे तनमभ का उकरेख कय यहा हभॉ ।
अप्सया मा मक्षऺणी साधना भें ऊऩय जो अण्डयराइन औय हये यॊ ग से शरखे गमे तनमभ ही प्रमोग
भें आने िारे तनमभ हेऄ । 1. ब्रह्भचमे : सबी साधना भेऄ ब्रह्भचयी यहना ऩयभ जरुयी होता हेऄ. सेतस
के फाये भें सोचना, कयना, ककसी स्त्त्री के फाये भें विचायना, सम्बोग, भन की अऩवित्रा, गन्दे धचत्र
दे खना आहद सफ भना हेऄ, अगय कुछ विचायना हेऄ तो केिर अऩने ईष्ट को, आऩ सदै ि मह सोचे
कक िो सुन्दय सी अरॊकाय मुतत अप्सया मा दे िी आऩके ऩास ही भौजुद हेऄ औय आऩको दे ख यही
हेऄ. औय उसके शयीय भें से गर
ु ाफ जैसी मा अष्टगन्ध की खश
ु फभ आ यही हेऄ । साकाय रुऩ भेऄ
उसकी ककऩना कयते यहो . 2. बभशभ शमन : केिर जभीन ऩय ही अऩने सबी काभ कयें . जभीन ऩय
एक िस्त्त्र त्रफछा सकते हेऄ औय त्रफछना बी चाहहए 3. बोजन : भाॊस, शयाफ, अन्डा, नशे, तम्फाकभ,
रहसन
ु , प्माज आहद सबी का प्रमोग भना हेऄ. केिर सास्त्िक बोजन ही कयें . 4. िस्त्त्र : िस्त्त्रो भें
उन्ही यॊ ग का चन
ु ाि कयें जो दे िता ऩसन्द कयता हो. ( आसन, ऩहनने औय दे िता को दे ने के
शरमे) (सपेद मा ऩीरा अप्सया के शरमे ) 5. तमा कयना हेऄ :- तनत्म स्त्नान, तनत्म गुरु सेिा , भौन,
तनत्म दान, जऩ भें ध्मान- विश्िास , योज ऩुजा कयना आहद अतनिामू हेऄ. औय जऩ से कभ से कभ
दो- तीन घॊटे ऩहरे बोजन कयना चाहहए 6. तमा ना कयें :- जऩ का सभम ना फद्रे, क्रोध भत कयो
, अऩना आसन ककसी को प्रमोग भत कयने दो, खाना खाते सभम औय सोकय जागते सभम जऩ
ना कयें . फासी खाना ना खामे, चभडे का प्रमोग ना कयना, साधना के अनुबि साधना के दोयान
ककसी को भत फताना (गरु
ु को छोडकय) 7. भॊत्र जऩ के सभम कृऩा कयके नीॊद्, आरस्त्म, उफासी,
छीॊक, थक
भ ना, डयना, शरॊग को हाथ रगाना , फतिास, सेर पोन को ऩास यखना, जऩ को ऩहरे हदन
तनधारयत सॊख्मा से कभ-ज्मादा जऩना , गा-गा कय जऩना, धीभे- धीभे जऩना, फहुत ् तेज-तेज
जऩना, शसय हहराते यहना, स्त्िमॊ हहरते यहना, भॊत्र को बर
ु जाना ( ऩहरे से माद नहीॊ ककमा तो
बर
ु जाना ), हाथ-ऩेऄय पैराकय जऩ कयना, वऩछ्रे हदन के गन्दे िस्त्त्र ऩहनकय भॊत्र जऩ कयना, मह
सफ कामू भना हेऄ (हय भॊत्र की एक भर
ु ध्ितन होती हेऄ अगय भर
ु ध्ितन- रम भें भॊत्र जऩा तो
भज़ा ही जामेगा, भॊत्र शसवद्ध फहुत जकद प्राप्त हो सकती हेऄ जो केिर गुरु से शसखी जा सकती हेऄ
) 8. माहद आऩको शसवद्ध कयनी हेऄ तो िी शशि शॊकय बगिान के कथन को कबी ना बुरना कक "
स्जस साधक की स्जव्हा ऩयान्न (दस
ु ये का बोजन) से जर गमी हो, स्जसका भन भें ऩयस्त्त्री (अऩनी
ऩस्त्न के अरािा कोई बी) हो औय स्जसे ककसी से प्रततशोध रेना हो उसे बरा केसै शसवद्ध प्राप्त
हो सकती हेऄ " 9. औय एक सफसे भहत्िऩुणू कक आऩ स्जस अप्सया की साधना उसके फाये भें मह
ना सोचे कक िो आमेगी औय आऩसे सेतस कयें गी तमोंकक िासना का ककसी बी साधना भें कोई
स्त्थान नहीॊ हेऄ । फाद कक फातें फाद ऩय छोड दे । तमोंकक सेतस भें उजाू नीचे (भुराधाय) की ओय
चरती हेऄ जफकक साधना भें उजाू ऊऩय (सहस्त्त्राय) की ओय चरती हेऄ 10. ककसी बी स्त्त्री िगू से
केिर भाॉ, फहन, प्रेशभका औय ऩत्नी का सम्फन्ध हो सकता हेऄ । मही सम्फन्ध साधक का अप्सया
मा दे िी से होता हेऄ । 11.मह सफ िाक शसद्ध होती हेऄ । ककसी के नशसफ भें अगय कोई चीज़ ना हो
तफ बी दे ने का सभथू यखती हेऄ । इनसे सदै ि आदय से फात कयनी चाहहए। ............ जीिन से
हय सभस्त्मा का सभाधान शास्त्त्रों भें फतामा गमा है । एक उऩाम तो मे है कक हभ अऩनी भेहनत
से औय स्त्िमॊ की सभझदायी इन सभस्त्माओॊ को दयभ कयने का प्रमास कयें औय दस
भ या उऩाम है
धाशभूक कामू कयें । हभें प्राप्त होने िारे सुख-दख
ु हभाये कभों का प्रततपर ही है । ऩुण्म कभू ककए
जाए तो दख
ु का सभम जकदी तनकर जाता है । शास्त्त्रों के अनुसाय गाम, ऩऺी, कुत्ता, चीॊहटमाॊ औय
भछरी से हभाये जीिन की सबी सभस्त्माएॊ दयभ हो सकती हेऄ। 1.महद कोई व्मस्तत तनमशभत रूऩ से
गाम को योटी णखराएॊ तो उसके ज्मोततषीम ग्रह दोष नष्ट हो जाते हेऄ। गाम को ऩभज्म औय ऩवित्र
भाना जाता है , इसी िजह से इसकी सेिा कयने िारे व्मस्तत को सबी सुख प्राप्त हो जाते हेऄ। 2.
इसी प्रकाय ऩक्षऺमों को दाना डारने ऩय आधथूक भाभरों भें राब प्राप्त होता है । व्मिसाम कयने
िारे रोगों को विशेष रूऩ से प्रततहदन ऩक्षऺमों को दाना अिश्म डारना चाहहए। 3. महद कोई
व्मस्तत दश्ु भनों से ऩये शान हेऄ औय उनका बम हभेशा ही सताता यहता है तो कुत्ते को योटी
णखराना चाहहए। तनमशभत रूऩ से जो कुत्ते को योटी णखराते हेऄ उन्हें दश्ु भनों का बम नहीॊ सताता
है । 4.कजू से ऩये शान से रोग चीॊहटमों को शतकय औय आटे डारें। ऐसा कयने ऩय कजू की
सभास्प्त जकदी हो जाती है । 5. स्जन रोगों की ऩुयानी सॊऩस्त्त उनके हाथ से तनकर गई है मा कई
भभकमिान िस्त्तु खो गई है तो ऐसे रोग महद प्रततहदन भछरी को आटे की गोशरमाॊ णखराते हेऄ तो
उन्हें राब प्राप्त होता है । भछशरमों को आटे की गोशरमाॊ दे ने ऩय ऩुयानी सॊऩस्त्त ऩुन: प्राप्त होने
के मोग फनते हेऄ। इन ऩाॊचों को जो बी व्मस्तत खाना णखराते हेऄ उनके सबी दख
ु -ददू दयभ हो जाते
हेऄ औय अऺम ऩण्
ु म की प्रास्प्त होती है । .............. अनब
ु त
ु ज्ियहय फशरदानव्रत - धचयकारीन
ज्ियकी शास्न्तके शरमे भेने मे व्रत औय उऩाम ककमा औय ऩण
ु त
ू ् राब हुआ ।रगाताय फख ु ाय कपय
ठीक कपय फख ु ाय ,सभझ ना ऩङते दे ख मे व्रत औय ऊऩाम कये ,दिाई बी रेते यहे । क्रष्ण
अष्टभीके अऩयाह्णभें चािरोंके चण
भ स
ू े भनष्ु मकीआकृततका ऩत
ु रा फनाकय उसके हरदीका रेऩ कये
। भख
ु , हदम, कण्ठ औय नाशबभें ऩीरी कौड़ी रगािे, कपय खसके आसनऩय वियाजभान कयके उसके
चायों कोणोंभें ऩीरे यॊ गकी चाय ऩताका रगािे तथा उनके ऩास हरदीके यससे बये हुए
ऩीऩरकेऩत्तोंके ऩत्तोके चाय दोने यखे औय ' भभ धचयकारीनज्ियजतन तऩाऩताऩाहदशप्रशभनाथं
ज्ियहफशरदानॊ करयष्मे । ' मह सॊककऩ कयके ऩुतरेका ऩभजन कये । सामॊकार होनेऩय ज्ियिारे
भनुष्मकी ' ॲ नभो बगिते गरुडासनाम त्र्मम्फकाम स्त्िस्स्त्तयस्त्तु स्त्िस्स्त्तयस्त्तु स्त्िाहा । ॲ कॊ ठॊ मॊ
सॊ िैनतेमाम नभ् । ॲ ह्रीॊ ऺ् ऺेत्रऩाराम नभ् । ॲ ठ् ठ् बो बो ज्िय िण
ृ ु िण
ृ ु हर हर
गजू गजू नैशभस्त्तकॊ भौहभस्त्तूकॊ एकाहहकॊ द्िमाहहकॊ त्र्माहहकॊ चातुधथूकॊ ऩाक्षऺकाहदकॊ चपट् हर हर
भुञ्च भुञ्च बभम्माॊ गच्छ गच्छ स्त्िाहा ।' इस भन्त्नसे तीन मा सात आयती उतायकय ऩभिोतत
ऩुतरेको ऩभजा - साभग्रीसहहत ककसी िऺ
ृ के भभर, चौयाहे मा श्भशानभें यख आिे । इस प्रकाय तीन
हदन कये औय तीनों ही हदनोंभें नततव्रत ( यात्रत्रभें एक फाय बोजन ) कये । स्त्भयण यहे कक
ऩुत्तरऩभजन फीभायके दक्षऺण बागके स्त्थानभें कयना चाहहमे । इससे ज्ियजातव्माधधमाॉ शीघ्र ही
शान्त होती हेऄ ............... कार बैयि का नाभ सुनते ही एक अजीफ-सी बम शभधित अनुबभतत
होती है । एक हाथ भें ब्रह्भाजी का कटा हुआ शसय औय अन्म तीनों हाथों भें खप्ऩय, त्रत्रशभर औय
डभरू शरए बगिान शशि के इस रुद्र रूऩ से रोगों को डय बी रगता है , रेककन मे फड़े ही दमारु-
कृऩारु औय जन का ककमाण कयने िारे हेऄ।

बैयि शदद का अथू ही होता है बयण-ऩोषण कयने िारा, जो बयण शदद से फना है । कार बैयि की
चचाू रुद्रमाभर तॊत्र औय जैन आगभों भें बी विस्त्तायऩभिक
ू की गई है । शास्त्त्रों के अनुसाय कशरमुग
भें कार बैयि की उऩासना शीघ्र पर दे ने िारी होती है । उनके दशून भात्र से शतन औय याहु जैसे
क्रभय ग्रहों का बी कुप्रबाि सभाप्त हो जाता है । कार बैयि की सास्त्त्िक, याजशसक औय ताभसी
तीनों विधधमों भें उऩासना की जाती है ।
इनकी ऩभजा भें उड़द औय उड़द से फनी िस्त्तुएॊ जैसे इभयती, दही फड़े आहद शाशभर होते हेऄ। चभेरी
के पभर इन्हें विशेष वप्रम हेऄ। ऩहरे बैयि को फकये की फशर दे ने की प्रथा थी, स्जस कायण भाॊस
चढ़ाने की प्रथा चरी आ यही थी, रेककन अफ ऩरयितून आ चक
ु ा है । अफ फशर की प्रथा फॊद हो
गई है ।

शयाफ इस शरए चढ़ाई जाती है तमोंकक भान्मता है कक बैयि को शयाफ चढ़ाकय फड़ी आसानी से
भन भाॊगी भुयाद हाशसर की जा सकती है । कुछ रोग भानते हेऄ कक शयाफ ग्रहण कय बैयि अऩने
उऩासक ऩय कुछ उसी अॊदाज भें भेहयफान हो जाते हेऄ स्जस तयह आभ आदभी को शयाफ वऩराकय
अऩेऺाकृत अधधक राब उठामा जा सकता है । मह छोटी सोच है ।

आजकर धन की चाह भें स्त्िणाूकषूण बैयि की बी साधना की जा यही है । स्त्िणाूकषूण बैयि कार
बैयि का सास्त्त्िक रूऩ हेऄ , स्जनकी ऩज
भ ा धन प्रास्प्त के शरए की जाती है । मह हभेशा ऩातार भें
यहते हेऄ, जैसे सोना धयती के गबू भें होता है । इनका प्रसाद दध
भ औय भेिा है । महाॊ भहदया-भाॊस
सख्त िस्जूत है । बैयि यात्रत्र के दे िता भाने जाते हेऄ। इस कायण इनकी साधना का सभम भध्म
यात्रत्र मानी यात के 12 से 3 फजे के फीच का है । इनकी उऩस्स्त्थतत का अनब
ु ि गॊध के भाध्मभ से
होता है । शामद मही िजह है कक कुत्ता इनकी सिायी है । कुत्ते की गॊध रेने की ऺभता
जगजाहहय है ।

दे िी भहाकारी, कार बैयि औय शतन दे ि ऐसे दे िता हेऄ स्जनकी उऩासना के शरए फहुत कड़े
ऩरयिभ, त्माग औय ध्मान की आिश्मकता होती है । तीनों ही दे ि फहुत कड़क, क्रोधी औय कड़ा दॊ ड
दे ने िारे भाने जाते है । धभू की यऺा के शरए दे िगणों की अऩनी-अऩनी विशेषताएॊ है । ककसी बी
अऩयाधी अथिा ऩाऩी को दॊ ड दे ने के शरए कुछ कड़े तनमभों का ऩारन जरूयी होता ही है । रेककन
मे तीनों दे िगण अऩने उऩासकों, साधकों की भनाकाभनाएॊ बी ऩयभ ी कयते हेऄ। कामूशसवद्ध औय
कभूशसवद्ध का आशीिाूद अऩने साधकों को सदा दे ते यहते हेऄ।

बगिान बैयि की उऩासना फहुत जकदी पर दे ती है । इस कायण आजकर उनकी उऩासना कापी
रोकवप्रम हो यही है । इसका एक प्रभख
ु कायण मह बी है कक बैयि की उऩासना क्रभय ग्रहों के प्रबाि
को सभाप्त कयती है । शतन की ऩभजा फढ़ी है । अगय आऩ शतन मा याहु के प्रबाि भें हेऄ तो शतन
भॊहदयों भें शतन की ऩभजा भें हहदामत दी जाती है कक शतनिाय औय यवििाय को कार बैयि के
भॊहदय भें जाकय उनका दशून कयें । भान्मता है कक 40 हदनों तक रगाताय कार बैयि का दशून
कयने से भनोकाभना ऩभयी होती है । इसे चारीसा कहते हेऄ। चन्द्रभास के 28 हदनों औय 12 याशशमाॊ
जोड़कय मे 40 फने हेऄ।
ऩभजा भें शयाफ, भाॊस ठीक नहीॊ हभाये महाॊ तीन तयह से बैयि की उऩासना की प्रथा यही है ।
याजशसक, सास्त्त्िक औय ताभशसक। हभाये दे श भें िाभऩॊथी ताभशसक उऩासना का प्रचरन हुआ, तफ
भाॊस औय शयाफ का प्रमोग कुछ उऩासक कयने रगे। ऐसे उऩासक विशेष रूऩ से श्भशान घाट भें
जाकय भाॊस औय शयाफ से बैयि को खश
ु कय राब उठाने रगे।

रेककन बैयि फाफा की उऩासना भें शयाफ, भाॊस की बें ट जैसा कोई विधान नहीॊ है । शयाफ, भाॊस
आहद का प्रमोग याऺस मा असुय ककमा कयते थे। ककसी दे िी-दे िता के नाभ के साथ ऐसी चीजों
को जोड़ना उधचत नहीॊ है । कुछ रोगों के कायण ही आभ आदभी के भन भें मह बािना जाग उठी
कक कार बैयि फड़े क्रभय, भाॊसाहायी औय शयाफ ऩीने िारे दे िता हेऄ। ककसी बी दे िता के साथ ऐसी
फातें जोड़ना ऩाऩ ही कहराएगा।

गह
ृ स्त्थ के शरए इन दोनों चीजों का ऩज
भ ा भें प्रमोग िस्जूत है । गह
ृ स्त्थों के शरए कार बैयिाष्टक
स्त्तोत्र का तनमशभत ऩाठ सिोत्तभ है , जो अनेक फाधाओॊ से भस्ु तत हदराता है । कार बैयि तॊत्र के
अधधष्ठाता भाने जाते हेऄ। ऐसी भान्मता है कक तॊत्र उनके भख
ु से प्रकट होकय उनके चयणों भें
सभा जाता है । रेककन, बैयि की ताॊत्रत्रक साधना गरु
ु गम्म है । मोग्म गरु
ु के भागूदशून भें ही मह
साधना की जानी चाहहए।

कार बैयि की उत्ऩस्त्त औय काशी से सॊफॊध

कथा-एक ऩहरी कथा है कक ब्रह्भा जी ने ऩभयी सस्ृ ष्ट की यचना की। ऐसा भानते हेऄ कक उस सभम
प्राणी की भत्ृ मु नहीॊ होती थी। ऩ्
ृ िी के ऊऩय रगाताय बाय फढ़ने रगा। ऩ्
ृ िी ऩये शान होकय
ब्रह्भा के ऩास गई। ऩ्
ृ िी ने ब्रह्भा जी से कहा कक भेऄ इतना बाय सहन नहीॊ कय सकती। तफ
ब्रह्भा जी ने भत्ृ मु को रार ध्िज शरए स्त्त्री के रूऩ भें उत्ऩन्न ककमा औय उसे आदे श हदमा कक
प्राणणमों को भायने का दातमत्त्ि रे। भत्ृ मु ने ऐसा कयने से भना कय हदमा औय कहा कक भेऄ मे
ऩाऩ नहीॊ कय सकती। ब्रह्भाजी ने कहा कक तुभ केिर इनके शयीय को सभाप्त कयोगी रेककन
जीि तो फाय-फाय जन्भ रेते यहें गे। इस ऩय भत्ृ मु ने ब्रह्भाजी की फात स्त्िीकाय कय री औय तफ
से प्राणणमों की भत्ृ मु शुरू हो गई।

सभम के साथ भानि सभाज भें ऩाऩ फढ़ता गमा। तफ शॊकय बगिान ने ब्रह्भा जी से ऩछ
भ ा कक
इस ऩाऩ को सभाप्त कयने का आऩके ऩास तमा उऩाम है । ब्रह्भाजी ने इस विषम भें अऩनी
असभथूता जताई। शॊकय बगिान शीघ्र कोऩी हेऄ। उन्हें क्रोध आ गमा औय उनके क्रोध से कार
बैयि की उत्ऩस्त्त हुई। कार बैयि ने ब्रह्भाजी के उस भस्त्तक को अऩने नाखन
भ से काट हदमा
स्जससे उन्होंने असभथूता जताई थी। इससे कार बैयि को ब्रह्भ हत्मा रग गमी।
कार बैयि तीनों रोकों भें भ्रभण कयते यहे रेककन ब्रह्भ हत्मा से िे भुतत नहीॊ हो ऩाए। ऐसी
भान्मता है कक जफ कार बैयि काशी ऩहुॊच,े तफ ब्रह्भ हत्मा ने उनका ऩीछा छोड़ा। उसी सभम
आकाशिाणी हुई कक तुभ महीॊ तनिास कयो औय काशीिाशसमों के ऩाऩ-ऩुण्म के तनणूम का
दातमत्त्ि सॊबारो। तफ से बगिान कार बैयि काशी भें स्त्थावऩत हो गए।

कथा-दो दस
भ यी कथा मह बी है कक एक फाय दे िताओॊ की सबा हुई थी। उसभें ब्रह्भा जी के भुख
से शॊकय बगिान के प्रतत कुछ अऩभानजनक शदद तनकर गए। तफ शॊकय बगिान ने क्रोध भें
हुॊकाय बयी औय उस हुॊकाय से कार बैयि प्रकट हुए औय ब्रह्भा जी के उस शसय को काट हदमा
स्जससे ब्रह्भा जी ने शॊकय बगिान की तनॊदा की थी। कार बैयि को ब्रह्भ हत्मा दोष रगने औय
काशी भें िास कयने तक की आगे की कथा ऩहरी कथा जैसी ही है ।

मह बी भान्मता है कक धभू की भमाूदा फनाएॊ यखने के शरए बगिान शशि ने अऩने ही अिताय
कार बैयि को आदे श हदमा था कक हे बैयि, तभ
ु ने ब्रह्भाजी के ऩाॊचिें शसय को काटकय ब्रह्भ हत्मा
का जो ऩाऩ ककमा है , उसके प्रामस्श्चत के शरए तम्
ु हें ऩ्
ृ िी ऩय जाकय भामा जार भें पॊसना होगा
औय विश्ि भ्रभण कयना होगा। जफ ब्रह्भा जी का कटा हुआ शसय तम्
ु हाये हाथ से धगय जाएगा,
उसी सभम तुभ ब्रह्भ हत्मा के ऩाऩ से भुतत हो जाओगे औय उसी स्त्थान ऩय स्त्थावऩत हो जाओगे।
कार बैयि की मह मात्रा काशी भें सभाप्त हुई थी। .............. दारयद्र्म नाशक धभ
भ ािती साधना
जीिन भें कई फाय ऐसे ऩर आ जाते है की हभ तनयाश हो जाते है ,अऩनी गयीफी से अऩनी
तकरीपों से,औय इस फात को नहीॊ नाकाया जा सकता की हय इन्सान को धन की आिश्मकता
होती है जीिन के ९९ % काभ धन के आबाि भें अधयभ े है महाॉ तक की साधना कयने के शरए बी
धन रगता है ,तो तमों औय कफ तक फैठे यहोगे इस गयीफी का योना रेकय तमों ना इसे उठा कय
पेक हदमा जामे जीिन से.भेये सबी प्माये बाइमो औय फहनों के शरए एक विशेष साधना दे यहा हु
स्जससे उनके आधथूक कष्ट भाॉ की कृऩा से सभाप्त हो जामेंगे.मे भेयी अनुबभत साधना है आऩ
सॊऩन्न कये औय भाॉ की कृऩा के ऩात्र फने. साधना साभग्री. एक सभऩड़ा,स्त्पहटक मा तुरसी भारा.
विधध: मह साधना धभ
भ ािती जमॊती से आयम्ब कये ,सभम यात्रत्र १० फजे का होगा,आऩ सफेद िस्त्त्र
धायण कय सफेद आसन ऩय ऩभिू भुख कय फैठ जामे.साभने फजोट ऩय सभऩड़ा यख कय उसभे सफेद
िस्त्त्र त्रफछा दे कपय उसभे धभ
भ ािती मन्त्र स्त्थावऩत कये ,इसके फाद गाम के कॊडे से फनी बस्त्भ मन्त्र
ऩय अऩूण कये घी का दीऩक जरामे,ऩेठे का बोग अऩूण कये ,भाॉ से प्राथूना कये की भें मह साधना
अऩनी दरयद्रता से भुस्तत के शरए कय यहा हु आऩ भेयी साधना को सपरता प्रदान कये तथा भेये
सबी कष्टों को दयभ कय दे .इसके फाद तनम्न भॊत्र की एक भारा कये ॲ धम्र
भ शशिाम नभ् इसके
फाद धभॊ धभॊ धभ
भ ािती ठह ठह की २१ भारा कये .कपय ऩुन् एक भारा ऩहरे िारे भॊत्र की कये .जऩ के
फाद हदर से भाॉ से प्राथूना कये औय इस साधना को २१ हदन तक कये .साधना ऩभयी होने के फाद
सुऩडे को मन्त्र सहहत उठाकय भाॉ से प्राथूना कये की भाॉ आऩ हभायी सबी ऩाऩो को ऺभा कये औय
आज आऩ हभाये जीिन के साये द्ु ख सायी दरयद्रता को आऩके इस ऩवित्र सुऩडे भें बय के रे जामे
है भाॉ हभाये जीिन भें कबी दरयद्रता ना रोटे ऐसी दमा कये .इसके फाद.सुऩडे औय मन्त्र को जर भें
प्रिाहहत कय दे मा ककसी तनजून स्त्थान भें यख दे .तनस्श्चत भाॉ की आऩ ऩय कृऩा फयसेगी औय
जीिन की दरयद्रता कोसो दयभ चरी जाएगी.साधना के ऩहरे गुरुदे ि ऩभजन तथा गणऩतत ऩभजन कये
मे हय फाय फताना आिश्मक नहीॊ है .जम धभ
भ ािती. ............. िी गुरु स्त्तिन

गुरुब्रूह्भा गुरुविूष्णु् गुरुदे िो भहे श्िय् | गुरुसाूऺात ऩयब्रह्भ तस्त्भै िी गुयिे नभ् ||

ध्मानभर
भ ॊ गरु
ु भतभू तू ऩज
भ ाभर
भ ॊ गयु ो् ऩदभ ् | भॊत्रभर
भ ॊ गयु ोिाूतमॊ भोऺभर
भ ॊ गयु ो् कृऩा ||

अखॊडभॊडराकायॊ व्माप्तॊ मेन चयाचयभ ् | तत्ऩदॊ दशशूतॊ मेन तस्त्भै िी गुयिे नभ् ||

ब्रह्भानॊदॊ ऩयभ सख
ु दॊ केिरॊ ऻानभतभ तं | द्िन्द्िातीतॊ गगनसदृशॊ तत्त्िभस्त्माहदरऺमभ ् ||

एकॊ तनत्मॊविभरॊ अचरॊ सिूधीसाऺीबभतभ ् | बािातीतॊ त्रत्रगुणयहहतॊ सदगुरुॊ तॊ नभाशभ ||

त्िभेि भाता च वऩता त्िभेि, त्िभेि फॊधश्ु च सखा त्िभेि | त्िभेि विद्मा द्रविणॊ त्िभेि, त्िभेि सिं
भभ दे ि दे ि || ................ गुरुदे ि प्रदत ऋण भुस्तत भेऄ जहाॊ एक फहुत ही सयर अनुबभत साधना
प्रमोग दे यहा हु आऩ तनहधचॊत हो कय कये फहुत जकद आऩ इस अशबशाऩ से भुस्तत ऩा रें गे !
विधध – शुब हदन स्जस हदन यविऩुष्म मोग हो जा यवि िाय हस्त्त नऺत्र हो शभकर ऩऺ हो तो इस
साधना को शुरू कये िस्त्त्र --- रार यॊ ग की धोतीऩहन सकते है ! भारा – कारे हकीक की रे !
हदशा –दक्षऺण ! साभग्री – बैयि मन्त्र जा धचत्र औय हकीक भारा कारे यॊ ग की ! भॊत्र सॊख्मा – 12
भारा 21 हदन कयना है ! ऩहरे गुरु ऩभजन कय आऻा रेऔय कपय िी गणेश जी का ऩॊचौऩचाय ऩभजन
कये तद ऩहश्चाॊत सॊककऩ रे ! के भेऄ गुरु स्त्िाभी तनणखरेश्िया नन्द जी का शशष्म अऩने जीिन भें
स्त्भस्त्थ ऋण भुस्तत के शरए महसाधना कय यहा हु हे बैयि दे ि भुझे ऋण भुस्तत दे !जभीन ऩे थोया
ये त विशा के उस उऩय कुतभ से ततकोण फनाएउस भें एक ऩरेट भें स्त्िास्स्त्तक शरख कय उस ऩे
रारयॊ ग का पभर यखे उस ऩे बैयि मन्त्र की स्त्थाऩना कये उस मन्त्र का जा धचत्र का ऩॊचौऩचाय से
ऩभजन कये तेर का हदमा रगाए औय बोग के शरए गुड यखे जा रड्डभ बी यख सकते है ! भन को
स्स्त्थय यखते हुमे भन ही भन ऋण भुस्तत के शरए ऩाथूना कये औय जऩ शुरूकये 12 भारा जऩ योज
कये इस प्रकाय 21 हदन कये साधना केफाद स्त्भगयी भारा मन्त्र औय जो ऩभजन ककमा है िोह सभान
जर प्रिाह कय दे साधना के दोयान यवि िाय जा भॊगर िाय को छोटे फच्चो को भीठा बोजनआहद
जरूय कयामे ! शीघ्र ही कजू से भुस्तत शभरेगी औय कायोफाय भें प्रगतत बी होगी ! जम गुरुदे ि !!
भॊत्र—ॲ ऐॊ तरीभ ह्ीॊ बभबैयिामे भभ ऋणविभोचनामे भहाॊ भहा धन प्रदाम तरीभ स्त्िाहा !!
........... तनिायक इस्त्राशभक अभर आज आऩको एक इस्त्राशभक अभर फताने जा यहा हु .स्जसके
जरयमे आऩ अऩने शत्रु ऩय विजम ऩा सकते है .भात्र उॊ गरी उठाकय महद आऩ इन ऩाक आमत को
ऩड़ दें गे तो शत्रु अऩनी शत्रत
ु ा बभर जामेगा.इसे शसद्ध कयने की अिधध ४० हदन है .इसके फाद जफ
शत्रु आऩको तॊग कये अऩनी तजूनी उॊ गरी उसकी तयप कये मा उसके घय की हदशा की औय कये
औय इसे ७ फाय ऩड़ दे आखयी भें उसका नाभ रेकय कह दे की इसकी शत्रुता खशत्रु तभ हुई.शत्रु
शाॊत हो जामेगा.मे अभर इतना फाकभार है की महद भात्र अभर ऩड़कय उॊ गरी हहरा दी जामे तो
शत्रु का सय उड़ जामे,ऩय उसकी विधध अरग है जो हय ककसी को फताना उधचत नहीॊ है .िो मोग्म
तथा सोम्म रोगो को ही शसखाई जा सकती है .अत् केिर शत्रु को शाॊत कयने की विधध फता यहा
हु.मे अभर आऩ ककसी बी शक्र
ु िाय से शरू
ु कये जफ सयभ ज उगना शरू
ु हो तफ उसकी तयप भह ु
कयके खड़े हो जामे औय इस अभर को ऩड़ना शरूु कये .अभर ऩड़ते जामे औय अऩनी तजूनी
उॊ गरी ऩय पभकते जामे.ऐसा १००० फाय कये ४० हदन तक.मे अभर भक
ु म्भर हो जामेगा.औय प्रमोग
कैसे कयना है ऩहरे ही फतामा जा चक
भ ा है . इन्ना अमतैना कर कौसय प सकरी री यदफीक िन्हय
इन्ना शानी अक हुिर अदतय ............ प्रचॊड ऩीताम्फया रुद्राऺ १.स्जसके धायण कय रेने भात्र से
गहृ अऩनी चर फदर दे ते है औय अनुकभर हो जाते है ,न चाहते हुए बी उन्हें हभाये हहसाफ से
चरना ऩड़ता है ,बगिती ऩीताम्फय का ऐसा िज्र ऩड़ता है ग्रहों ऩय की िे भजफभय हो जाते है
आऩको सुख दे ने के शरमे. २. स्जसके धायण कयने से शत्रु शत्रत
ु ा बभरकय शयण भें आ जाते है ,औय
उनका स्त्तम्बन हो जाता है .सायी तॊत्र फाधा अऩने आऩ सभाप्त हो जाती है ,तथा साधक के जीिन
भें सुख का आगभन होने रगता है .स्जस घय भें स्त्थावऩत होगा िहा कोई तॊत्र फाधा असय नहीॊ
कये गी.साधक एक तयह से हय ऺेत्र भें सपरता ऩता है तथा स्जस साधना के िक़्त इसे धायण
कये गा िो साधना अिश्म सपर होगी ३.इसके धायण कयने िारे की ग्रहस्त्ती भें सुख का आगभन
होता है ,ऩारयिारयक सभफन्ध भधयु हो जाते है . औय सफसे फड़ी फात साधना के िक़्त स्जसके
शायीय ऩय मे रुद्राऺ होगा कोई शस्तत साधक का कुछ नहीॊ त्रफगड़ ऩामेगी,मे रुद्राऺ मभ िरुण
अस्ग्न जर इन्द्र आहद के ऩसीने छुडिा दे तो औय ककसी की फात ही तमा कये .साधक के शरमे मे
एक किच है .शभशान भें धायण कयके चरे गए तो सायी दष्ु ट शस्ततमा साधक से दस हाथ दयभ
यहती है ,औय तमा कहभ इस रुद्राऺ के फाये भें आऩ स्त्िमॊ कये औय इसका चभत्काय दे खे. जकद ही
इस रुद्राऺ को कैसे तैमाय ककमा जामे कैसे शसद्ध ककमा जामे इसकी विधध आऩ सफ के त्रफच रेकय
आऊॊगा.ऩय इस रुद्राऺ को िही साधक शसद्ध कय सकता है स्जसने अऩने जीिन भें कबी गुरु भॊत्र
अथिा ॲ नभ् शशिाम का एक राख जऩ ककमा हो.अत् मे साधना उन रोगो को ही दी जाएगी
महद आऩ भुजह्से असत्म फोरकय मे साधना रेते है औय इसे कयते है तो इसके जिाफदाय िे
रोग होंगे स्जन्होंने असत्म फोरकय साधना री है ,तमुकी इस साधना की ऩहरी औय आखयी शतू
ही मही है की स्जसने गरु
ु भॊत्र अथिा ॲ नभ् शशिाम के जऩ एक राख ककमे हो िो ही इसे कये
अन्मथा मे इस साधना से हातन हो सकती है नहीॊ,फस्कक हो ही जाएगी मे अटर सत्म है .अत् मे
साधना टाइऩ होने के फाद भें सबी को सभधचत कय दॊ ग
भ ा आऩ अऩने इभेर दे कय प्राप्त कय रेना
अगय अऩने इस शतू को ऩभया कय शरमा हो तो.भाॉ भेये सबी साधक बाइमो का ककमाण कये .जम
भाॉ ............ बभत- प्रेत साधना

तॊत्र भें बभत - प्रेत का अस्स्त्तत्ि स्त्िीकाय ककमा गमा है | मह भाना गमा है की भत्ृ मु के उऩयाॊत
भनुष्म को कई फाय प्रेत मोनी भें जाना ऩड़ता है ऩय ऩुनजून्भ की अनेक घटनाए इस सम्फन्ध भें
सोचने के शरए वििश कय दे ती है | भत्ृ मु के फाद की दतु नमा का कही कुछ न कुछ अस्स्त्तत्ि है |
इस फात को स्त्िीकाय कयना ऩड़ता है | प्रेत मोनी भें जाकय भनष्ु म कई फाय उत्ऩाती हो जाता है |
िह अनेक प्रकाय के आतॊक त्रफखया दे ता है | इस प्रकाय का उऩद्रि शान्त कयने का विधान तॊत्र
शास्त्त्र भें है | हभाये मोग्म ताॊत्रत्रक उनका सभम -सभम ऩय प्रमोग कयते है | प्रेतों की उऩद्रिी
सकती ऩय तनमॊत्रण कयने के शरए तनम्नशरणखत तॊत्र है -

' ॲ ह्ॊ च ह्ॊ च ह्ॊ च पट स्त्िाहा | '

मे फहुत ही सयर साधना है | ककसी एकाॊत स्त्थान भें शशि जी की भतभ तू की स्त्थाऩना कय प्रत्मेक
अधूयात्रत्र भें २५ फाय ऩाठ आिश्मक है | इस प्रकाय तनमशभत रूऩ से त्रफना नागा के २५०० हजाय
भॊत्र का ऩाठ १०० हदन तक रगाताय कयना आिश्मक है | जऩ की भारा रूद्राऺ की होनी चाहहए |
हदशा ऩभिू मा उत्तय की होनी चाहहए | २५०००० हजाय भॊत्र का ऩाठ हो जामे तो साधक शशि जी
की आकृतत की ऩभजा कय आ जामे | इस प्रकाय की साधना कयने के फाद साधक बभत-प्रेत ग्रस्त्त
ककसी बी व्मस्तत को मा स्त्थान को भुतत कय सकता है | साधक के आदे श का ऩारन बभत-प्रेत
कयते है औय साधक बभत-प्रेत को दे ख सकता है औय उनसे फात बी कय सकता है | ...... ..........
सुख-सभवृ द्ध के टोटका 1॰ महद ऩरयिभ के ऩश्चात ् बी कायोफाय ठप्ऩ हो, मा धन आकय खचू हो
जाता हो तो मह टोटका काभ भें रें । ककसी गुरू ऩुष्म मोग औय शुब चन्द्रभा के हदन प्रात: हये
यॊ ग के कऩड़े की छोटी थैरी तैमाय कयें । िी गणेश के धचत्र अथिा भभततू के आगे "सॊकटनाशन
गणेश स्त्तोत्र´´ के 11 ऩाठ कयें । तत्ऩश्चात ् इस थैरी भें 7 भभॊ...ग, 10 ग्राभ साफुत धतनमा, एक
ऩॊचभुखी रूद्राऺ, एक चाॊदी का रूऩमा मा 2 सुऩायी, 2 हकदी की गाॊठ यख कय दाहहने भुख के गणेश
जी को शुद्ध घी के भोदक का बोग रगाएॊ। कपय मह थैरी ततजोयी मा कैश फॉतस भें यख दें ।
गयीफों औय ब्राह्भणों को दान कयते यहे । आधथूक स्स्त्थतत भें शीघ्र सुधाय आएगा। 1 सार फाद नमी
थैरी फना कय फदरते यहें ।
2॰ ककसी के प्रत्मेक शुब कामू भें फाधा आती हो मा विरम्फ होता हो तो यवििाय को बैयों जी के
भॊहदय भें शसॊदयभ का चोरा चढ़ा कय "फटुक बैयि स्त्तोत्र´´ का एक ऩाठ कय के गौ, कौओॊ औय कारे
कुत्तों को उनकी रूधच का ऩदाथू णखराना चाहहए। ऐसा िषू भें 4-5 फाय कयने से कामू फाधाएॊ नष्ट
हो जाएॊगी।

3॰ रूके हुए कामों की शसवद्ध के शरए मह प्रमोग फहुत ही राबदामक है । गणेश चतुथॉ को गणेश
जी का ऐसा धचत्र घय मा दक ु ान ऩय रगाएॊ, स्जसभें उनकी सभॊड दामीॊ ओय भुड़ी हुई हो। इसकी
आयाधना कयें । इसके आगे रौंग तथा सुऩायी यखें। जफ बी कहीॊ काभ ऩय जाना हो, तो एक रौंग
तथा सुऩायी को साथ रे कय जाएॊ, तो काभ शसद्ध होगा। रौंग को चस
भ ें तथा सुऩायी को िाऩस रा
कय गणेश जी के आगे यख दें तथा जाते हुए कहें `जम गणेश काटो करेश´।

4॰ सयकायी मा तनजी योजगाय ऺेत्र भें ऩरयिभ के उऩयाॊत बी सपरता नहीॊ शभर यही हो, तो
तनमभऩि
भ क
ू ककमे गमे विष्णु मऻ की विबतभ त रे कय, अऩने वऩतयों की `कुशा´ की भतभ तू फना कय,
गॊगाजर से स्त्नान कयामें तथा मऻ विबतभ त रगा कय, कुछ बोग रगा दें औय उनसे कामू की
सपरता हे तु कृऩा कयने की प्राथूना कयें । ककसी धाशभूक ग्रॊथ का एक अध्माम ऩढ़ कय, उस कुशा
की भभततू को ऩवित्र नदी मा सयोिय भें प्रिाहहत कय दें । सपरता अिश्म शभरेगी। सपरता के
ऩश्चात ् ककसी शुब कामू भें दानाहद दें ।

5॰ व्माऩाय, वििाह मा ककसी बी कामू के कयने भें फाय-फाय असपरता शभर यही हो तो मह टोटका
कयें - सयसों के तैर भें शसके गेहभॉ के आटे ि ऩुयाने गुड़ से तैमाय सात ऩभमे, सात भदाय (आक) के
ऩुष्ऩ, शसॊदयभ , आटे से तैमाय सयसों के तैर का रूई की फत्ती से जरता दीऩक, ऩत्तर मा अयण्डी के
ऩत्ते ऩय यखकय शतनिाय की यात्रत्र भें ककसी चौयाहे ऩय यखें औय कहें -"हे भेये दब
ु ाूग्म तुझे महीॊ
छोड़े जा यहा हभॉ कृऩा कयके भेया ऩीछा ना कयना।´´ साभान यखकय ऩीछे भड़
ु कय न दे खें।

6॰ शसन्दयभ रगे हनुभान जी की भभततू का शसन्दयभ रेकय सीता जी के चयणों भें रगाएॉ। कपय भाता
सीता से एक श्िास भें अऩनी काभना तनिेहदत कय बस्तत ऩभिक
ू प्रणाभ कय िाऩस आ जाएॉ। इस
प्रकाय कुछ हदन कयने ऩय सबी प्रकाय की फाधाओॊ का तनिायण होता है ।

7॰ ककसी शतनिाय को, महद उस हदन `सिाूथू शसवद्ध मोग' हो तो अतत उत्तभ साॊमकार अऩनी
रम्फाई के फयाफय रार ये शभी सत
भ नाऩ रें । कपय एक ऩत्ता फयगद का तोड़ें। उसे स्त्िच्छ जर से
धोकय ऩोंछ रें। तफ ऩत्ते ऩय अऩनी काभना रुऩी नाऩा हुआ रार ये शभी सभत रऩेट दें औय ऩत्ते
को फहते हुए जर भें प्रिाहहत कय दें । इस प्रमोग से सबी प्रकाय की फाधाएॉ दयभ होती हेऄ औय
काभनाओॊ की ऩभततू होती है ।
८॰ यवििाय ऩुष्म नऺत्र भें एक कौआ अथिा कारा कुत्ता ऩकड़े। उसके दाएॉ ऩैय का नाखन
भ काटें ।
इस नाखन
भ को ताफीज भें बयकय, धऩ
भ दीऩाहद से ऩभजन कय धायण कयें । इससे आधथूक फाधा दयभ
होती है । कौए मा कारे कुत्ते दोनों भें से ककसी एक का नाखन
भ रें । दोनों का एक साथ प्रमोग न
कयें ।

9॰ प्रत्मेक प्रकाय के सॊकट तनिायण के शरमे बगिान गणेश की भभततू ऩय कभ से कभ 21 हदन


तक थोड़ी-थोड़ी जावित्री चढ़ािे औय यात को सोते सभम थोड़ी जावित्री खाकय सोिे। मह प्रमोग 21,
42, 64 मा 84 हदनों तक कयें ।

10॰ अतसय सन ु ने भें आता है कक घय भें कभाई तो फहुत है , ककन्तु ऩैसा नहीॊ हटकता, तो मह
प्रमोग कयें । जफ आटा वऩसिाने जाते हेऄ तो उससे ऩहरे थोड़े से गें हभ भें 11 ऩत्ते तर
ु सी तथा 2
दाने केसय के डार कय शभरा रें तथा अफ इसको फाकी गें हभ भें शभरा कय वऩसिा रें । मह कक्रमा
सोभिाय औय शतनिाय को कयें । कपय घय भें धन की कभी नहीॊ यहे गी।

11॰ आटा वऩसते सभम उसभें 100 ग्राभ कारे चने बी वऩसने के शरमें डार हदमा कयें तथा केिर
शतनिाय को ही आटा वऩसिाने का तनमभ फना रें।

12॰ शतनिाय को खाने भें ककसी बी रूऩ भें कारा चना अिश्म रे शरमा कयें ।

13॰ अगय ऩमाूप्त धनाूजन के ऩश्चात ् बी धन सॊचम नहीॊ हो यहा हो, तो कारे कुत्ते को प्रत्मेक
शतनिाय को कड़िे तेर (सयसों के तेर) से चऩ
ु ड़ी योटी णखराएॉ।

14॰ सॊध्मा सभम सोना, ऩढ़ना औय बोजन कयना तनवषद्ध है । सोने से ऩभिू ऩैयों को ठॊ डे ऩानी से
धोना चाहहए, ककन्तु गीरे ऩैय नहीॊ सोना चाहहए। इससे धन का ऺम होता है ।

15॰ यात्रत्र भें चािर, दही औय सत्तभ का सेिन कयने से रक्ष्भी का तनयादय होता है । अत: सभवृ द्ध
चाहने िारों को तथा स्जन व्मस्ततमों को आधथूक कष्ट यहते हों, उन्हें इनका सेिन यात्रत्र बोज भें
नहीॊ कयना चाहहमे।

16॰ बोजन सदै ि ऩभिू मा उत्तय की ओय भुख कय के कयना चाहहए। सॊबि हो तो यसोईघय भें ही
फैठकय बोजन कयें इससे याहु शाॊत होता है । जभते ऩहने हुए कबी बोजन नहीॊ कयना चाहहए।

17॰ सफ
ु ह कुकरा ककए त्रफना ऩानी मा चाम न ऩीएॊ। जठ
भ े हाथों से मा ऩैयों से कबी गौ, ब्राह्भण
तथा अस्ग्न का स्त्ऩशू न कयें ।
18॰ घय भें दे िी-दे िताओॊ ऩय चढ़ामे गमे पभर मा हाय के सभख जाने ऩय बी उन्हें घय भें यखना
अराबकायी होता है ।

19॰ अऩने घय भें ऩवित्र नहदमों का जर सॊग्रह कय के यखना चाहहए। इसे घय के ईशान कोण भें
यखने से अधधक राब होता है ।

20॰ यवििाय के हदन ऩुष्म नऺत्र हो, तफ गभरय के िऺ


ृ की जड़ प्राप्त कय के घय राएॊ। इसे धऩ
भ ,
दीऩ कयके धन स्त्थान ऩय यख दें । महद इसे धायण कयना चाहें तो स्त्िणू ताफीज भें बय कय धायण
कय रें। जफ तक मह ताफीज आऩके ऩास यहे गी, तफ तक कोई कभी नहीॊ आमेगी। घय भें सॊतान
सख
ु उत्तभ यहे गा। मश की प्रास्प्त होती यहे गी। धन सॊऩदा बयऩभय होंगे। सख
ु शाॊतत औय सॊतस्ु ष्ट
की प्रास्प्त होगी।

21॰ `दे ि सखा´ आहद 18 ऩुत्रिगू बगिती रक्ष्भी के कहे गमे हेऄ। इनके नाभ के आहद भें औय अन्त
भें `नभ:´ रगाकय जऩ कयने से अबीष्ट धन की प्रास्प्त होती है । मथा - ॲ दे िसखाम नभ:,
धचतरीताम, आनन्दाम, कदू भाम, िीप्रदाम, जातिेदाम, अनुयागाम, सम्िादाम, विजमाम, िकरबाम,
भदाम, हषाूम, फराम, तेजसे, दभकाम, सशरराम, गुग्गुराम, ॲ कुरूण्टकाम नभ:।

22॰ ककसी कामू की शसवद्ध के शरए जाते सभम घय से तनकरने से ऩभिू ही अऩने हाथ भें योटी रे
रें। भागू भें जहाॊ बी कौए हदखराई दें , िहाॊ उस योटी के टुकड़े कय के डार दें औय आगे फढ़ जाएॊ।
इससे सपरता प्राप्त होती है ।

23॰ ककसी बी आिश्मक कामू के शरए घय से तनकरते सभम घय की दे हरी के फाहय, ऩभिू हदशा
की ओय, एक भुट्ठी घुघॊची को यख कय अऩना कामू फोरते हुए, उस ऩय फरऩभिक
ू ऩैय यख कय, कामू
हे तु तनकर जाएॊ, तो अिश्म ही कामू भें सपरता शभरती है ।

24॰ अगय ककसी काभ से जाना हो, तो एक नीॊफभ रें । उसऩय 4 रौंग गाड़ दें तथा इस भॊत्र का जाऩ
कयें : `ॲ िी हनुभते नभ:´। 21 फाय जाऩ कयने के फाद उसको साथ रे कय जाएॊ। काभ भें ककसी
प्रकाय की फाधा नहीॊ आएगी।

25॰ चट
ु की बय हीॊग अऩने ऊऩय से िाय कय उत्तय हदशा भें पेंक दें । प्रात:कार तीन हयी इरामची
को दाएॉ हाथ भें यखकय "िीॊ िीॊ´´ फोरें , उसे खा रें , कपय फाहय जाए¡।

26॰ स्जन व्मस्ततमों को राख प्रमत्न कयने ऩय बी स्त्िमॊ का भकान न फन ऩा यहा हो, िे इस
टोटके को अऩनाएॊ। प्रत्मेक शुक्रिाय को तनमभ से ककसी बभखे को बोजन कयाएॊ औय यवििाय के
हदन गाम को गुड़ णखराएॊ। ऐसा तनमशभत कयने से अऩनी अचर सम्ऩतत फनेगी मा ऩैतक

सम्ऩतत प्राप्त होगी। अगय सम्बि हो तो प्रात:कार स्त्नान-ध्मान के ऩश्चात ् तनम्न भॊत्र का जाऩ
कयें । "ॲ ऩद्मािती ऩद्म कुशी िज्रिज्राॊऩुशी प्रततफ बिॊतत बिॊतत।।´´

27॰ मह प्रमोग नियात्रत्र के हदनों भें अष्टभी ततधथ को ककमा जाता है । इस हदन प्रात:कार उठ कय
ऩभजा स्त्थर भें गॊगाजर, कुआॊ जर, फोरयॊग जर भें से जो उऩरदध हो, उसके छीॊटे रगाएॊ, कपय एक
ऩाटे के ऊऩय दगु ाू जी के धचत्र के साभने, ऩभिू भें भुॊह कयते हुए उस ऩय 5 ग्राभ शसतके यखें । साफुत
शसतकों ऩय योरी, रार चन्दन एिॊ एक गुराफ का ऩुष्ऩ चढ़ाएॊ। भाता से प्राथूना कयें । इन सफको
ऩोटरी फाॊध कय अऩने गकरे, सॊदक
भ मा अरभायी भें यख दें । मह टोटका हय 6 भाह फाद ऩुन:
दोहयाएॊ।

28॰ घय भें सभवृ द्ध राने हे तु घय के उत्तयऩस्श्चभ के कोण (िामव्म कोण) भें सन्
ु दय से शभट्टी के
फतून भें कुछ सोने-चाॊदी के शसतके, रार कऩड़े भें फाॊध कय यखें । कपय फतून को गेहभॊ मा चािर से
बय दें । ऐसा कयने से घय भें धन का अबाि नहीॊ यहे गा।

29॰ व्मस्तत को ऋण भुतत कयाने भें मह टोटका अिश्म सहामता कये गा : भॊगरिाय को शशि
भस्न्दय भें जा कय शशिशरॊग ऩय भसभय की दार "ॲ ऋण भुततेश्िय भहादे िाम नभ:´´ भॊत्र फोरते
हुए चढ़ाएॊ।

30॰ स्जन व्मस्ततमों को तनयन्तय कजू घेये यहते हेऄ, उन्हें प्रततहदन "ऋणभोचक भॊगर स्त्तोत्र´´ का
ऩाठ कयना चाहहमे। मह ऩाठ शुतर ऩऺ के प्रथभ भॊगरिाय से शुरू कयना चाहहमे। महद प्रततहदन
ककसी कायण न कय सकें, तो प्रत्मेक भॊगरिाय को अिश्म कयना चाहहमे।

31॰ सोभिाय के हदन एक रूभार, 5 गर


ु ाफ के पभर, 1 चाॊदी का ऩत्ता, थोड़े से चािर तथा थोड़ा सा
गड़
ु रें। कपय ककसी विष्णुण्रक्ष्भी जी के शभन्दय भें जा कय भस्भ त्तू के साभने रूभार यख कय शेष
िस्त्तओ
ु ॊ को हाथ भें रेकय 21 फाय गामत्री भॊत्र का ऩाठ कयते हुए फायी-फायी इन िस्त्तओ
ु ॊ को उसभें
डारते यहें । कपय इनको इकट्ठा कय के कहें की `भेयी ऩये शातनमाॊ दयभ हो जाएॊ तथा भेया कजाू उतय
जाए´। मह कक्रमा आगाभी 7 सोभिाय औय कयें । कजाू जकदी उतय जाएगा तथा ऩये शातनमाॊ बी दयभ
हो जाएॊगी।

32॰ सिूप्रथभ 5 रार गुराफ के ऩभणू णखरे हुए पभर रें । इसके ऩश्चात ् डेढ़ भीटय सपेद कऩड़ा रे
कय अऩने साभने त्रफछा रें । इन ऩाॊचों गुराफ के पुरों को उसभें , गामत्री भॊत्र 21 फाय ऩढ़ते हुए फाॊध
दें । अफ स्त्िमॊ जा कय इन्हें जर भें प्रिाहहत कय दें । बगिान ने चाहा तो जकदी ही कजू से भुस्तत
प्राप्त होगी।

34॰ कजू-भुस्तत के शरमे "गजेन्द्र-भोऺ´´ स्त्तोत्र का प्रततहदन सभमोदम से ऩभिू ऩाठ अभोघ उऩाम है ।

35॰ घय भें स्त्थामी सुख-सभवृ द्ध हे तु ऩीऩर के िऺ


ृ की छामा भें खड़े यह कय रोहे के फतून भें
जर, चीनी, घी तथा दध
भ शभरा कय ऩीऩर के िऺ
ृ की जड़ भें डारने से घय भें रम्फे सभम तक
सुख-सभवृ द्ध यहती है औय रक्ष्भी का िास होता है ।

33॰ अगय तनयन्तय कजू भें पॉसते जा यहे हों, तो श्भशान के कुएॊ का जर राकय ककसी ऩीऩर के
िऺ
ृ ऩय चढ़ाना चाहहए। मह 6 शतनिाय ककमा जाए, तो आश्चमूजनक ऩरयणाभ प्राप्त होते हेऄ।

36॰ घय भें फाय-फाय धन हातन हो यही हो तों िीयिाय को घय के भख्


ु म द्िाय ऩय गर
ु ार तछड़क
कय गर
ु ार ऩय शद्ध
ु घी का दोभख
ु ी (दो भुख िारा) दीऩक जराना चाहहए। दीऩक जराते सभम
भन ही भन मह काभना कयनी चाहहए की `बविष्म भें घय भें धन हातन का साभना न कयना
ऩड़े´। जफ दीऩक शाॊत हो जाए तो उसे फहते हुए ऩानी भें फहा दे ना चाहहए।

37॰ कारे ततर ऩरयिाय के सबी सदस्त्मों के शसय ऩय सात फाय उसाय कय घय के उत्तय हदशा भें
पेंक दें , धनहातन फॊद होगी।

38॰ घय की आधथूक स्स्त्थतत ठीक कयने के शरए घय भें सोने का चौयस शसतका यखें । कुत्ते को
दध
भ दें । अऩने कभये भें भोय का ऩॊख यखें ।

39॰ अगय आऩ सुख-सभवृ द्ध चाहते हेऄ, तो आऩको ऩके हुए शभट्टी के घड़े को रार यॊ ग से यॊ गकय,
उसके भुख ऩय भोरी फाॊधकय तथा उसभें जटामुतत नारयमर यखकय फहते हुए जर भें प्रिाहहत
कय दे ना चाहहए।

40॰ अखॊडडत बोज ऩत्र ऩय 15 का मॊत्र रार चन्दन की स्त्माही से भोय के ऩॊख की करभ से
फनाएॊ औय उसे सदा अऩने ऩास यखें।

41॰ व्मस्तत जफ उन्नतत की ओय अग्रसय होता है , तो उसकी उन्नतत से ईष्माूग्रस्त्त होकय कुछ
उसके अऩने ही उसके शत्रु फन जाते हेऄ औय उसे सहमोग दे ने के स्त्थान ऩय िे ही उसकी उन्नतत
के भागू को अिरूद्ध कयने रग जाते हेऄ, ऐसे शत्रओ
ु ॊ से तनऩटना अत्मधधक कहठन होता है । ऐसी
ही ऩरयस्स्त्थततमों से तनऩटने के शरए प्रात:कार सात फाय हनभ
ु ान फाण का ऩाठ कयें तथा हनभ
ु ान
जी को रड्डभ का बोग रगाए¡ औय ऩाॉच रौंग ऩभजा स्त्थान भें दे शी कऩयभू के साथ जराएॉ। कपय
बस्त्भ से ततरक कयके फाहय जाए¡। मह प्रमोग आऩके जीिन भें सभस्त्त शत्रओ
ु ॊ को ऩयास्त्त कयने
भें सऺभ होगा, िहीॊ इस मॊत्र के भाध्मभ से आऩ अऩनी भनोकाभनाओॊ की बी ऩभततू कयने भें
सऺभ होंगे।

42॰ कच्ची धानी के तेर के दीऩक भें रौंग डारकय हनुभान जी की आयती कयें । अतनष्ट दयभ
होगा औय धन बी प्राप्त होगा।

43॰ अगय अचानक धन राब की स्स्त्थततमाॉ फन यही हो, ककन्तु राब नहीॊ शभर यहा हो, तो गोऩी
चन्दन की नौ डशरमाॉ रेकय केरे के िऺ
ृ ऩय टाॉग दे नी चाहहए। स्त्भयण यहे मह चन्दन ऩीरे धागे
से ही फाॉधना है ।

44॰ अकस्त्भात ् धन राब के शरमे शुतर ऩऺ के प्रथभ फुधिाय को सपेद कऩड़े के झॊडे को ऩीऩर
के िऺ
ृ ऩय रगाना चाहहए। महद व्मिसाम भें आककस्त्भक व्मिधान एिॊ ऩतन की सम्बािना प्रफर
हो यही हो, तो मह प्रमोग फहुत राबदामक है ।

45॰ अगय आधथूक ऩये शातनमों से जझ


भ यहे हों, तो भस्न्दय भें केरे के दो ऩौधे (नय-भादा) रगा दें ।

46॰ अगय आऩ अभािस्त्मा के हदन ऩीरा त्रत्रकोण आकृतत की ऩताका विष्णु भस्न्दय भें ऊॉचाई िारे
स्त्थान ऩय इस प्रकाय रगाएॉ कक िह रहयाता हुआ यहे , तो आऩका बाग्म शीघ्र ही चभक उठे गा।
झॊडा रगाताय िहाॉ रगा यहना चाहहए। मह अतनिामू शतू है ।

47॰ दे िी रक्ष्भी के धचत्र के सभऺ नौ फस्त्तमों का घी का दीऩक जराए¡। उसी हदन धन राब
होगा।

48॰ एक नारयमर ऩय काशभमा शसन्दयभ , भोरी, अऺत अवऩूत कय ऩभजन कयें । कपय हनुभान जी के
भस्न्दय भें चढ़ा आएॉ। धन राब होगा।

49॰ ऩीऩर के िऺ
ृ की जड़ भें तेर का दीऩक जरा दें । कपय िाऩस घय आ जाएॉ एिॊ ऩीछे भुड़कय
न दे खें। धन राब होगा।

50॰ प्रात:कार ऩीऩर के िऺ


ृ भें जर चढ़ाएॉ तथा अऩनी सपरता की भनोकाभना कयें औय घय से
फाहय शद्ध
ु केसय से स्त्िस्स्त्तक फनाकय उस ऩय ऩीरे ऩष्ु ऩ औय अऺत चढ़ाए¡। घय से फाहय
तनकरते सभम दाहहना ऩाॉि ऩहरे फाहय तनकारें।
51॰ एक हॊ डडमा भें सिा ककरो हयी साफुत भभॊग की दार, दस
भ यी भें सिा ककरो डशरमा िारा नभक
बय दें । मह दोनों हॊ डडमा घय भें कहीॊ यख दें । मह कक्रमा फुधिाय को कयें । घय भें धन आना शुरू
हो जाएगा।

52॰ प्रत्मेक भॊगरिाय को 11 ऩीऩर के ऩत्ते रें। उनको गॊगाजर से अच्छी तयह धोकय रार
चन्दन से हय ऩत्ते ऩय 7 फाय याभ शरखें । इसके फाद हनुभान जी के भस्न्दय भें चढ़ा आएॊ तथा
िहाॊ प्रसाद फाटें औय इस भॊत्र का जाऩ स्जतना कय सकते हो कयें । `जम जम जम हनुभान
गोसाईं, कृऩा कयो गुरू दे ि की नाॊई´ 7 भॊगरिाय रगाताय जऩ कयें । प्रमोग गोऩनीम यखें। अिश्म
राब होगा।

53॰ अगय नौकयी भें तयतकी चाहते हेऄ, तो 7 तयह का अनाज धचडड़मों को डारें।

54॰ ऋग्िेद (4/32/20-21) का प्रशसद्ध भन्त्र इस प्रकाय है - `ॲ बभरयदा बभरय दे हहनो, भा दभ्रॊ बभमाू
बय। बभरय घेहदन्द्र हदत्सशस। ॲ बभरयदा त्मशस ित
ु : ऩुरूत्रा शभय ित्र
ृ हन ्। आ नो बजस्त्ि याधशस।।´ (हे
रक्ष्भीऩते ! आऩ दानी हेऄ, साधायण दानदाता ही नहीॊ फहुत फड़े दानी हेऄ। आप्तजनों से सुना है कक
सॊसायबय से तनयाश होकय जो माचक आऩसे प्राथूना कयता है उसकी ऩुकाय सुनकय उसे आऩ
आधथूक कष्टों से भुतत कय दे ते हेऄ - उसकी झोरी बय दे ते हेऄ। हे बगिान भुझे इस अथू सॊकट से
भुतत कय दो।)

51॰ तनम्न भन्त्र को शुबभुहभत्तू भें प्रायम्ब कयें । प्रततहदन तनमभऩभिक


ू 5 भारा िद्धा से बगिान ्
िीकृष्ण का ध्मान कयके, जऩ कयता यहे - "ॲ तरीॊ नन्दाहद गोकुरत्राता दाता दारयद्र्मबॊजन।
सिूभॊगरदाता च सिूकाभ प्रदामक:। िीकृष्णाम नभ:।।´´

52॰ बाद्रऩद भास के कृष्णऩऺ बयणी नऺत्र के हदन चाय घड़ों भें ऩानी बयकय ककसी एकान्त
कभये भें यख दें । अगरे हदन स्जस घड़े का ऩानी कुछ कभ हो उसे अन्न से बयकय प्रततहदन
विधधित ऩज
भ न कयते यहें । शेष घड़ों के ऩानी को घय, आॉगन, खेत आहद भें तछड़क दें । अन्नऩण
भ ाू
दे िी सदै ि प्रसन्न यहे गीॊ।

53॰ ककसी शुब कामू के जाने से ऩहरे - यवििाय को ऩान का ऩत्ता साथ यखकय जामें। सोभिाय
को दऩूण भें अऩना चेहया दे खकय जामें। भॊगरिाय को शभष्ठान खाकय जामें। फुधिाय को हये
धतनमे के ऩत्ते खाकय जामें। गुरूिाय को सयसों के कुछ दाने भुख भें डारकय जामें। शुक्रिाय को
दही खाकय जामें। शतनिाय को अदयक औय घी खाकय जाना चाहहमे।
54॰ ककसी बी शतनिाय की शाभ को भाह की दार के दाने रें। उसऩय थोड़ी सी दही औय शसन्दयभ
रगाकय ऩीऩर के िऺ
ृ के नीचे यख दें औय त्रफना भुड़कय दे खे िावऩस आ जामें। सात शतनिाय
रगाताय कयने से आधथूक सभवृ द्ध तथा खश
ु हारी फनी यहे गी। .............. तमा आऩ इनभें से ककसी
रऺण से ऩीडड़त हेऄ - भतरी, बभख न रगना, जी अच्छा न होना इत्माहद? हो सकता है कक आऩ
शसय ददू के रऺणों का अनुबि कय यहे हों! शसय ददू शसय भें होने िारे ककसी

कभ, भध्मभ मा तीव्र ददू को कहा जाता है जो कक सय भें आॊखों मा कानों के ऊऩय, सय के
वऩछरे हहस्त्से भें मा गदू न भें होता है ।

ज्मोततष के भाध्मभ से दयभ बगामें शसय ददू .....

एक चेतािनी! ... महद सय भें चोट रगने ऩय आऩको अचानक फहुत तेज़, शसय ददू होता हो मा
गदू न भें अकड़न, फुखाय, फेहोशी मा आॊख मा कान भें ददू होना इत्माहद की शशकामत हो तो मह
एक गॊबीय विकाय बी हो सकता है औय स्जसके शरए आऩको तत्कार धचककत्सीम ऩयाभशू रेना
चाहहए।

ज्मोततष विऻान आऩकी भदद कय सकता है !

महद ककसी विशेषऻ को जन्भकॊु डरी हदखाई जाए तो िह फता सकता है कक व्मस्तत भें ककन योगों
के आक्रण की अधधक सॊबािना है औय उसके स्त्िास्त््म की बािी स्स्त्थतत तमा है । प्राचीन सभम भें
प्रशसद्ध योग विऻानी हहप्ऩोक्रेट्स सफसे ऩहरे व्मस्तत की जन्भसॊफॊधी ताशरका का अध्ममन कयता
था औय कपय उऩचाय सॊफॊधी कोई तनणूम रेता था!

कोई व्मस्तत ककस योग से ऩीडडत होता है , मह इस ऩय तनबूय कयता है कक उसके बाि मा याशश
का सॊफॊध जन्भ कॊु डरी भें कौन से अतनष्टकय ग्रह से ककस रूऩ भें है । ऐसा इसशरए है कक प्रत्मेक
याशश एक मा एकाधधक शायीरयक अॊगों से जुड़ी होती है । इसके साथ ही प्रत्मेक ग्रह िाम,ु अस्ग्न,
जर मा आद्रू प्रकृतत िारा कोई एक प्रबुत्िकायी गुण शरए हुए होता है । आमुिेद भें इसे िात-
वऩत्त-कप के रूऩ भें फतामा गमा है । इस तयह याशश चक्र भें अॊककत शायीरयक अॊग औय
प्रबुत्िकायी ग्रह की विशेषता के भेर से मह तम होता है कक ककस व्मस्तत को कौन-सी फीभायी
होगी।

शसय, भस्स्त्तष्क एिॊ आॊखों, विशेष रूऩ से सय का अगरा हहस्त्सा, आॊखों से नीचे औय सय के ऩीछे
िारे हहस्त्से से रेकय खोऩड़ी के आधाय तक का हहस्त्सा भेष द्िाया तनमॊत्रत्रत होता है । मह भॊगर
को प्रततत्रफॊत्रफत कयता है जो हदभाग भें अस्ग्नभम ऊजाू का स्रोत है । सभम,ू चॊद्रभा मा भेष का कोई
अन्म उदीमभान ग्रह स्जस व्मस्तत के साथ जुड़ा होगा उसके सयददू की सॊबािना अन्म रोगों की
तुरना भें अधधक होगी।

महद सभमू ऩहरे, दस भ ये मा फायहिें घय भें विघ्नऩभणू है मा भॊगर फहुत कभजोय है मा नीच के चॊद्रभा
के साथ दाहक स्स्त्थतत भें है तफ ऐसे रोग अधकऩायी सयददू (भाइग्रेन) से ऩीडड़त होंगे। साथ ही
महद अतनष्टकय सभमू मा भॊगर छठे घय भें फैठा है (व्मस्तत की जन्भ कॊु डरी भें योगों का द्मोतक)
तो व्मस्तत सयददू का शशकाय होगा।

जन्भऩत्री की कभजोयी औय/मा जन्भऩत्री भें उच्च स्त्थान ऩय फैठे अतनष्टकय दे ि के कायण एक
योगकायी ऩरयस्स्त्थतत तनशभूत होती है। इससे सयददू की सॊबािना फनती है । भजफत
भ सम
भ ू औय
भॊगर, जो कक क्रभश् प्राण ऺभता औय ऊजाू के प्रतीक हेऄ, सयु ऺात्भक किच प्रदान कयते हेऄ।
Read: In English िैहदक नस्त्
ु खे

सफसे आसान ककॊतु फेहद प्रबािी उऩामों भें से एक मह है कक सुफह उठकय सभमू की ओय दे खकय
कभ से कभ 42 हदनों तक 3, 11, 21, 51 मा 108 फाय ओभ सभमाूम् नभ् मा ओभ आहदत्माम नभ्
मा गामत्री भॊत्र का जाऩ कयें मा सभमू नभस्त्काय कयें ।

धन्िॊतरय होभ औय भॊगर होभ का आमोजन कयने से बी प्रबािी तौय ऩय अतनष्टकय ग्रहों के
प्रबाि दयभ हो जाते हेऄ औय इस प्रकाय सयददू आऩसे भीरों दयभ चरा जाता है । ............... हीये की
बाॊतत कीभती राब प्रदान कयने िारी कुछ जडडमाॉ---------------------- शभत्र जनों !जया
सोचें ....ककतने %रोग ग्रह उऩचायाथू भहॊ गे नग आहद धायण कय ऩाते हेऄ...?भेये खमार से आज के
इस भहॊ गाई के मुग भें फहुत कभ %रोग भहॊ गे नगों के एिॊ विशशष्ट अनुष्ठान के भाध्मभ से
अऩने रुष्ट ग्रह शाॊत कय ऩते हेऄ! औय जो सॊऩन्न रोग हेऄ उन्हें बी असरी नग शभरे इस की बी
ऩभणू तमा ग्मायॊ टी है? नग ऩत्थय तनजॉि हेऄ कपय बी िो प्राण प्रततस्ष्ठत एिॊ चैतन्म होकय एक
सजीि व्मस्तत को ऩभणू राब प्रदान कयने भें सऺभ हेऄ ..तो १ सजीि िऺ
ृ की जड़ िनस्त्ऩतत
विऻान के हहसाफ से ऩभणू प्रततस्ष्ठत होने के िाद प्रबाि नहीॊ डारेगा तमा? ऐसा सोच के भेऄने कुछ
ऩॊचाॊग एिॊ विद्िद जनों के भाध्मभ द्िाया उकरेणखत रेखों के भाध्मभ से कुछ जडडमों के प्रमोग
भेये ऩास आने िारे रोगों को कयामा....स्जस का पर रगबग १ उच्चस्त्तयीम नग की तयह एिॊ
कुछ जडडमाॉ तो उस से बी अधधक कायगय हदखी...स्जस से प्रबावित होकय सबी धतन एिॊ
साभान्म ऩरयिाय िारे शभत्र जन बी इस का राब रे सकें इस के शरए आगे ग्रहों का विियण एिॊ
उन की शान्त्मथू कौन से िऺ
ृ की जड़ी काभ कये गी उस के फाये भें फताने की प्रमास करूॉगा
उम्भीद है सही जड़ी ग्रहण कय के आऩ सुधधजन राब प्राप्त कयें गे......!! ग्रह --सभम-ू -(यत्न-
भाणणतम)जड़ी-फेर िऺ
ृ की जड़ .. ,,,,,--चन्द्र -(यत्न-भोती) जड़ी -णखयनी की मा ढाक की जड़
........भॊगर -(यत्न भभॊगा) जड़ी -नाग पनी की जड़ ........फुध (यत्न -ऩन्ना) जड़ी -ततधाया जड़
........गुरु (यत्न-pukhraaj ) जड़ी-bhring याज मा केरे की जड़ .......शुक्र (यत्न-heera ) जड़ी-शसॊहनी
ृ जड़ .......शतन (नीरभ) जड़ी -त्रफच्छु की जड़ '''''''राहू (रत्न-गौमेद) जड़ी -सफेद चन्दन
िऺ
........केतु (यत्न-रहसुतनमा) जड़ी-असगॊध जड़ इन को धायण कयते सभम ग्रहों के हदन के हहसाफ
से उनका मथोऩचाय ऩभजन ग्रह यॊ ग के अनुसाय कऩडे भें चैतन्म प्राण प्रततस्ष्ठत कयाकय ही धायण
कयें ....शत प्रततशत राब प्राप्त होगा....स्जन की जन्भ ऩत्रत्रका नहीॊ है िो बी अऩने स्जस नाभ का
शसग्नेचय कयते है उसी नाभ की याशी तनकारकय याशी स्त्िभी ग्रह अनस
ु ाय जड़ी धायण कय के ऩण
भ ू
राब प्राप्त कय सकते है .... आऩ का हदन ि ् जीिन भॊगर भम हो .. ............... पशरत ज्मोततष:--
- पशरत ज्मोततष उस विद्मा को कहते हेऄ स्जसभें भनुष्म तथा ऩ्
ृ िी ऩय, ग्रहों औय तायों के शब

तथा अशब
ु प्रबािों का अध्ममन ककमा जाता है । ज्मोततष शदद का मौधगक अथू ग्रह तथा नऺत्रों
से सॊफॊध यखनेिारी विद्मा है । इस शदद से मद्मवऩ गणणत (शसद्धाॊत) ज्मोततष का बी फोध होता
है , तथावऩ साधायण रोग ज्मोततष विद्मा से पशरत विद्मा का अथू ही रेते हेऄ। ग्रहों तथा तायों के
यॊ ग शबन्न-शबन्न प्रकाय के हदखराई ऩड़ते हेऄ, अतएि उनसे तनकरनेिारी ककयणों के बी शबन्न
शबन्न प्रबाि हेऄ। इन्हीॊ ककयणों के प्रबाि का बायत, फैफीरोतनमा, खस्कडमा, मभनान, शभस्र तथा चीन
आहद दे शों के विद्िानों ने प्राचीन कार से अध्ममन कयके ग्रहों तथा तायों का स्त्िबाि ऻात ककमा।
ऩ्
ृ िी सौय भॊडर का एक ग्रह है । अतएि इसऩय तथा इसके तनिाशसमों ऩय भुख्मतमा सभमू तथा
सौय भॊडर के ग्रहों औय चॊद्रभा का ही विशेष प्रबाि ऩड़ता है । ऩ्
ृ िी विशेष कऺा ...भें चरती है
स्जसे क्राॊततित्ृ त कहते हेऄ। ऩ्
ृ िी के तनिाशसमों को सभमू इसी भें चरता हदखराई ऩड़ता है । इस
कऺा के इदू धगदू कुछ तायाभॊडर हेऄ, स्जन्हें याशशमाॉ कहते हेऄ। इनकी सॊख्मा 12 है । इन्हें , भेष, िष

आहद कहते हेऄ। प्राचीन कार भें इनके नाभ इनकी विशेष प्रकाय की ककयणें तनकरती हेऄ, अत:
इनका बी ऩ्
ृ िी तथा इसके तनिाशसमों ऩय प्रबाि ऩड़ता है । प्रत्मेक याशश 30 की होती है । भेष
याशश का प्रायॊ ब विषुित ् तथा क्राॊततित्ृ त के सॊऩातत्रफॊद ु से होता है । अमन की गतत के कायण मह
त्रफॊद ु स्स्त्थय नहीॊ है । ऩाश्चात्म ज्मोततष भें विषुित ् तथा क्राततित्ृ त के ितूभान सॊऩात को आयॊ बत्रफॊद ु
भानकय, 30-30 अॊश की 12 याशशमों की ककऩना की जाती है । बायतीम ज्मोततष भें सभमशू सद्धाॊत
आहद ग्रॊथों से आनेिारे सॊऩात त्रफॊद ु ही भेष आहद की गणना की जाती है । इस प्रकाय ऩाश्चात्म
गणनाप्रणारी तथा बायतीम गणनाप्रणारी भें रगबग 23 अॊशों का अॊतय ऩड़ जाता है । बायतीम
प्रणारी तनयमण प्रणारी है । पशरत के विद्िानों का भत है कक इससे पशरत भें अॊतय नहीॊ ऩड़ता,
तमोंकक इस विद्मा के शरमे विशबन्न दे शों के विद्िानों ने ग्रहों तथा तायों के प्रबािों का अध्ममन
अऩनी अऩनी गणनाप्रणारी से ककमा है । बायत भें 12 याशशमों के 27 विबाग ककए गए हेऄ, स्जन्हें
नऺत्र कहते हेऄ। मे हेऄ अस्श्िनी, बयणी आहद। पर के विचाय के शरमे चॊद्रभा के नऺत्र का विशेष
उऩमोग ककमा जाता है । .................... 1 भई 2012 को शाभ ऩाॊच फजे से गुरु ताया अस्त्त हो
गमा है । (ऩॊचाॊग बेद से तायीखों भें शबन्नता हो सकती है ।) स्जसके कायण वििाहाहद सभस्त्त शब

कामों ऩय योक रग गई। गुरु अस्त्त हो जाने के कायण भॊहदयों की प्राण प्रततष्ठा बी नहीॊ हो सकेगी
एिॊ नए प्रततष्ठानों के उद्घाटन बी नहीॊ ककमे जाने चाहहमे। गुरु का उदम 28 भई 2012 को होगा।
सभमू से सॊमुतत गुरु का अस्त्त होने से कहीॊ-कहीॊ िषाू के मोग फनें गे तथा भॊहगाई भें िवृ द्ध होगी।
ग्रीष्भ का प्रबाि बी तेज होगा तथा प्राकृततक सॊकटों की सॊबािानाएॊ फनी यहे गी। गुरु अस्त्त स्स्त्थतत
भें ही अऩनी याशश फदरकय िष
ृ ब भें 14 भई 2012 को प्रिेश कये गा कई ऩॊचाॊग से 17 भई 2012 से
) तथा इस याशश भें मह अगरे 13 भाह तक गुरु यहे गे। इसके कायण शभथन
ु , तुरा, कॊु ब याशश िारी
कन्माओॊ के वििाह तनषेध यहें गे तथा िष
ृ ब, भीन, शसॊह, धनु याशश िारी कन्माओॊ को ऩीरे ऩज
भ न के
ऩश्चात वििाह ककमे जा सकते है । कॊु ब, तर
ु ा मा शभथन
ु याशश कक कन्माओ का वििाह ऩयभ ा एक िषू
तक इॊतजाय कयना ऩड़ेगा। तीन याशशमों भें शादी का मह अड़ॊगा गरु
ु की चार से रग यहा है ।इस
दयभमान भॊगनी (सगाई) कयने के शरए कोई योक नहीॊ है । गरु
ु तमों यहे गा एक िषू : - वििाह के
शरए रड़का औय रड़की की कॊु डरी शभराकय चॊद्र फर दे खे जाते हेऄ। चॊद्रभा हय दो मा सिा दो हदन
फाद फदर जाता है । अकेरे रड़के की कॊु डरी भें चॊद्र के साथ सम
भ ू फर दे खा जाता है । सम
भ ू बी हय
एक भाह फाद फदर जाता है , जफकक रड़की की कॊु डरी भें चॊद्र के साथ गुरु दे खा जाता है । गुरु
एक याशश से दस
भ यी याशश भें जाने के शरए एक िषू का ितत रगाता है। ज्मोततष विऻान के
भुतात्रफक गुरु ऻान दे ने िारा होता है । ऐसे भें महद त्रफना भुहभतू के शादी की जाती है तो इसका
असय सीधे दाॊऩत्म जीिन ऩय ऩड़ता है । गुरु उच्च याशश का हो, शभत्र याशश का हो, स्त्िमॊ की याशश
का हो मा शुब निभान्म का हो तो गुरु के चौथे, आठिें ि फायहिें घय भें होने ऩय बी वििाह हो
सकता है । रेककन 17 भई को गुरु िष
ृ ब याशश ऩय शत्रु याशश का आ यहा है , इसशरए शभथन
ु , कॊु ब
औय तुरा याशश िारी रड़ककमों का वििाह भुहभतू एक िषू तक नहीॊ फनेगा। 28 भई के ऩश्चात गुरु
उदम होगा रेककन शुक्र के अस्त्त यहने के कायण िषाू एिॊ तभपान के मोग फनेंगे। जनता के भध्म
आऩसी तनाि तथा सयकाय मुद्ध की नीतत ऩय अधधक ध्मान दे सकती है । िाहन दघ
ु ट
ू नाओॊ के
मोग बी फनेंगे। याशश अनस
ु ाय पर- भेष, ककू, तुरा, भकय- शुब िष
ृ ब, शसॊह, िस्ृ श्चक, कॊु ब- भध्मभ
शभथन
ु , कन्मा, धनु, भीन- ग्रहो के अनुसाय ............. कई फाय व्मस्तत की सभवृ द्ध अचानक रुष्ट हो
जाती है ,साये फने फनामे कामू त्रफगड जाते है ,जीिन की सायी खशु शमा नायाज सी रगती हेऄ,स्जस बी
काभ भें हाथ डारो असपरता ही हाथ रगती है .घय का कोई सदस्त्म जफ चाहे तफ घय से बाग
जाता है ,मा हभेशा गुभसुभ सा ऩागरों सा व्मिहाय कयता हो,तफ मे प्रमोग जीिन की विशबन्न
सभस्त्माओॊ का न शसपू सभाधान कयता है अवऩतु ऩभयी तयह उन्हें नष्ट ही कय दे ता औय आने
िारे ऩभये जीिन भें बी आऩको सऩरयिाय तॊत्र फाधा औय स्त्थान दोष ,हदशा दोष से भुतत कय
अबम ही दे दे ता हेऄ.

इस भॊत्र को महद ऩभणू विधध ऩभिक


ू गुरु ऩभजन सॊऩन्न कय ११०० की सॊख्मा भें जऩ कय शसद्ध कय
शरमा जामे तो साधक को मे भॊत्र उसकी तीक्ष्ण साधनाओॊ भें बी सुयऺा प्रदान कयता है औय मात्रा
भें चोयी आहद घटनाओॊ से बी फचाता है .भॊत्र को शसद्ध कयने के फाद स्जस बी भकान मा दक
ु ान भें
उऩयोतत फाधाएॊ आ यही हो,ककसी प्रेत का िास हो गमा हो मा अऻात कायणों से फाधाएॉ आ यही
हो,उस भकान भें फाहय के दयिाजे से रेकय अॊदय तक कुर स्जतने दयिाजे हो उतनी ही छोटी
नागपनी कीरें औय एक भुट्ठी कारी उडद रे रे.इसके फाद भकान के फाहय आकय प्रत्मेक कीर
ऩय ५ फाय भॊत्र ऩढ़ कय पॉभ क भाये औय उडद को बी पॉभ क भाय कय अशबभॊत्रत्रत कय रे,स्जतनी
कीरो को आऩ अशबभॊत्रत्रत कयें गे उतनी फाय उडद ऩय बी पॉभ क भायनी होगी.अफ इस साभग्री को
रेकय उस भकान भें प्रिेश कये औय भन ही भन भन्त्र जऩ कयते यहे .आणखयी कभये भें प्रिेश कय
४-५ दाने उडद के त्रफखेय दे औय औय उस कभये से फाहय आकय उस कभये की दयिाजे की चौखट
ऩय कीर ठोक दे .मही कक्रमा प्रत्मेक कभयों भें कये . औय आणखय भें फाहय तनकर कय भख्
ु म दयिाजे
को बी कीशरत कय दे .इस प्रमोग से खोमी खशु शमाॉ िावऩस आती ही है . मे भेया स्त्िमॊ का कई फाय
ऩयखा हुआ प्रमोग है . भन्त्र- ओभ नभो आदे श गरुु न को ईश्िय िाचा,अजयी-फजयी फाड़ा फज्जयी भेऄ
फज्जयी फाॉधा दशौ दि ु ाय छिा ,औय के घारों तो ऩरट हनभु ॊत िीय उसी को भाये ,ऩहरी चौकी
गणऩती,दज
भ ी चौकी हनुभॊत,तीजी चौकी भें बैयों,चौथी चौकी दे त यऺा कयन को आिें िी नयशसॊह
दे ि जी, शदद साॉचा,वऩण्ड काॉचा,चरे भन्त्र ईश्ियो िाचा. .. ................ नायामणास्त्त्रभ ् ।। हरय् ॲ
नभो बगिते िीनायामणाम नभो नायामणाम विश्िभभतम
ू े नभ् िी ऩुरुषोत्तभाम ऩुष्ऩदृस्ष्टॊ प्रत्मऺॊ िा
ऩयोऺॊ अजीणं ऩञ्चविषभधचकाॊ हन हन ऐकाहहकॊ द्िमाहहकॊ त्र्माहहकॊ चातुधथूकॊ ज्ियॊ नाशम नाशम
चतुयशशततिातानष्टादशकुष्ठान ् अष्टादशऺम योगान ् हन हन सिूदोषान ् बॊजम बॊजम तत्सिं नाशम
नाशम आकषूम आकषूम शत्रन
भ ् शत्रन
भ ् भायम भायम उच्चाटमोच्चाटम विद्िेषम विदे िे् षम स्त्तॊबम
स्त्तॊबम तनिायम तनिायम विघ्नैहून विघ्नैहून दह दह भथ भथ विध्िॊसम विध्िॊसम चक्रॊ गह
ृ ीत्िा
शीघ्रभागच्छागच्छ चक्रेण हत्िा ऩयविद्माॊ छे दम छे दम बेदम बेदम चतु्शीतातन विस्त्पोटम
विस्त्पोटम अशूिातशभरदृस्ष्ट सऩूशसॊहव्माघ्र द्विऩदचतुष्ऩद ऩद फाह्मास्न्दवि बुव्मन्तरयऺे अन्मेॱवऩ
केधचत ् तान्द्िेषकान्सिाून ् हन हन विद्मुन्भेघनदी ऩिूताटिीसिूस्त्थान यात्रत्रहदनऩथचौयान ् िशॊ कुरु
कुरु हरय् ॲ नभो बगिते ह्ीॊ हुॊ पट् स्त्िाहा ठ् ठॊ ठॊ ठ् नभ् ।। ।। विधानभ ् ।। एषा विद्मा
भहानाम्नी ऩुया दत्ता भरुत्िते । असुयास्ञ्जतिान्सिाूञ्च्छ क्रस्त्तु फरदानिान ् ।। १।। म् ऩुभान्ऩठते
बतत्मा िैष्णिो तनमतात्भना । तस्त्म सिाूणण शसद्धमस्न्त मच्च दृस्ष्टगतॊ विषभ ् ।। २।।
अन्मदे हविषॊ चैि न दे हे सॊक्रभेद्ध्रि
ु भ ् । सॊग्राभे धायमत्मङ्गे शत्रन्
भ िै जमते ऺणात ् ।। ३।। अत्
सद्मो जमस्त्तस्त्म विघ्नस्त्तस्त्म न जामते । ककभत्र फहुनोततेन सिूसौबाग्मसॊऩद् ।। ४।। रबते नात्र
सॊदेहो नान्मथा तु बिेहदतत । गह ृ ीतो महद िा मेन फशरना विविधैयवऩ ।। ५।। शततॊ सभष्ु णताॊ मातत
चोष्णॊ शीतरताॊ व्रजेत ् । अन्मथाॊ न बिेद्विद्माॊ म् ऩठे त्कधथताॊ भमा ।। ६।। बभजऩ
ू त्रे शरखेन्भॊत्रॊ
गोयोचनजरेन च । इभाॊ विद्माॊ स्त्िके फद्धा सिूयऺाॊ कयोतु भे ।। ७।। ऩुरुषस्त्माथिा स्त्त्रीणाॊ हस्त्ते
फद्धा विचेऺण् । विद्रिॊतत हह विघ्नाश्च न बिॊतत कदाचन् ।। ८।। न बमॊ तस्त्म कुिंतत गगने
बास्त्कयादम् । बत
भ प्रेतवऩशाचाश्च ग्राभग्राही तु डाककनी ।। ९।। शाककनीषु भहाघोया िेताराश्च
भहाफरा् । याऺसाश्च भहायौद्रा दानिा फशरनो हह मे ।। १०।। असुयाश्च सुयाश्चैि अष्टमोतनश्च
दे िता । सिूत्र स्त्तस्म्बता ततष्ठे न्भन्त्रोच्चायणभात्रत् ।। ११।। सिूहत्मा् प्रणश्मॊतत सिू परातन
तनत्मश् । सिे योगा विनश्मॊतत विघ्नस्त्तस्त्म न फाधते ।। १२।। उच्चाटनेॱऩयाह्णे तु सॊध्मामाॊ
भायणे तथा । शास्न्तके चाधूयात्रे तु ततोॱथू् सिूकाशभक् ।। १३।। इदॊ भन्त्रयहस्त्मॊ च
नायामणास्त्त्रभेि च । त्रत्रकारॊ जऩते तनत्मॊ जमॊ प्राप्नोतत भानि् ।। १४।। आमुयायोग्मभैश्िमं ऻानॊ
विद्माॊ ऩयाक्रभ् । धचॊततताथू सुखप्रास्प्तॊ रबते नात्र सॊशम् ।। १५।। ।। इतत नायामणास्त्त्रभ ्
।।…………. ............. बविष्म अऩने आऩ भें कई यहस्त्म सभेटे हुए हेऄ | मही िजह हेऄ कक हभ सफ
अऩने बविष्म के फाये जानने के शरम उत्सक
ु हेऄ || सबी सभस्त्मा का सभाधान िैहदक विधधमों
द्िाया सभस्त्माओॊ का सभाधान... जन्भ कॊु डरी के द्िाया , विद्मा, कायोफाय, वििाह, सॊतान सख
ु ,
विदे श-मात्रा, राब-हातन, गह
ृ -तरेश , गप्ु त- शत्रु , कजू से भस्ु तत, साभास्जक, आधथूक, याजतनततक
.व्माऩाय नौकयी. प्माय जीिन साथी.धन राब. आधथूक सॊऩन्नता.सॊतान की धचॊता.शशऺा, .ऩारयिारयक
अशाॊतत. औय के फाये भें . तमा अच्छा होगा ,तमा फयु ा होगा होगा ,भेया अच्छा सभम कफ आएगा
अन्म व्मस्ततगत सभस्त्मा है मह जानना सफके शरए कापी योचक होता हेऄ इन प्रश्नों के उत्तय
जन्भ कॊु डरी से आसानी हदए जा सकते || जानने के शरए सम्ऩकू कये ० िीयाभ ज्मोततष सदन.
ऩस्न्डत आशु फहुगुणा …….आऩकी कोई ज्मोततष सॊफॊधधत है सभस्त्मा तो आऩ अऩनी जानकायी
तनम्न प्रारूऩ सबी हभाये ईभेर... shriramjyotishsadan16gmail.com... ऩय बेजे. मथा सॊबि हहॊदी
भें जानकायी बेजने का कष्ट कये ..धन्मिाद.. नोट:-- मे भेया शोख नही हेऄ कृप्मा आऩ भुतत सेिा
के शरए कष्ट ना दे ... हभसे ...आऩ .Mob.9411813740..Mob.9760924411. इसी नॊफय ऩय सॊऩकू
कयें ... ............... भनुष्म के जीिन भें आए हदन ऩये शातनमाॊ आती यहती है । महद कुछ साधायण
ताॊत्रत्रक प्रमोग ककए जाएॊ तो िह सभस्त्माएॊ शीघ्र ही सभाप्त बी हो जाती हेऄ। ताॊत्रत्रक प्रमोग भें
एक ऐसे ऩत्थय का उऩमोग ककमा जाता है जो हदखने भें साधायण होता है रेककन आश्चमूजनक
तयीके से अऩना प्रबाि हदखाता है । उस ऩत्थय का नाभ है गोभती चक्र। गोभती चक्र कभ कीभत
िारा एक ऐसा ऩत्थय है जो गोभती नदी भें शभरता है । विशबन्न ताॊत्रत्रक कामों तथा असाध... ्म
योगों भें इसका प्रमोग होता है । इसका ताॊत्रत्रक उऩमोग फहुत ही सयर होता है । जैसे-

1- ऩतत-ऩत्नी भें भतबेद हो तो तीन गोभती चक्र रेकय घय के दक्षऺण भें हरॊभ फरजाद कहकय
पेंद दें , भतबेद सभाप्त हो जाएगा।

2- ऩुत्र प्रास्प्त के शरए ऩाॊच गोभती चक्र रेकय ककसी नदी मा ताराफ भें हहशर हहशर शभशर शभशर
धचशर धचशर हुक ऩाॊच फोरकय विसस्जूत कयें , ऩुत्र प्रास्प्त की सॊबािनाएॊ फढ़ जाती हेऄ।

3- महद फाय-फाय गबू धगय यहा हो तो दो गोभती चक्र रार कऩड़े भें फाॊधकय कभय भें फाॊध दें तो
गबू धगयना फॊद हो जाता है ।
4- महद कोई कचहयी जाते सभम घय के फाहय गोभती चक्र यखकय उस ऩय दाहहना ऩाॊि यखकय
जाए तो उस हदन कोटू -कचहयी भें सपरता प्राप्त होती है ।

5- महद शत्रु फढ़ गए हों तो स्जतने अऺय का शत्रु का नाभ है उतने गोभती चक्र रेकय उस ऩय
शत्रु का नाभ शरखकय उन्हें जभीन भें गाड़ दें तो शत्रु ऩयास्त्त हो जाएॊगे ............ तूभान सभम भें
फेयोजगायी एक फहुत फड़ी सभस्त्मा है । नौकयी न होने के कायण न तो सभाज भें भान-सम्भान
शभरता है औय न ही घय-ऩरयिाय भें । महद आऩ बी फेयोजगाय हेऄ औय फहुत प्रमत्न कयने ऩय बी
योजगाय नहीॊ शभर यहा है तो तनयाश होने की कोई जरुयत नहीॊ है । नीचे शरखे साधायण उऩाम कय
आऩ कुछ ही हदनों भें योजगाय ऩा सकते हेऄ।

उऩाम

मह उऩाम सोभिाय से प्रायॊ ब कयना है । सोभिाय के हदन सुफह जकदी उठकय स्त्नान आहद तनत्म
कभू कयने... के फाद ऩास ही स्स्त्थत ककसी शशि भॊहदय भें नॊगे ऩैय जाएॊ औय शशिजी को त्रफकिऩत्र
तथा जर अवऩूत कयें । आते-जाते सभम कहीॊ रुके नहीॊ तथा भागू भें ऊॉ नभ: शशिाम: भॊत्र का जऩ
कयते यहें । ऐसा रगाताय 21 हदनों तक कयें । जफ आऩ कहीॊ इॊटयव्मभ दे ने जाएॊ तो उसके ऩहरे रार
चॊदन की भारा से नीचे शरखे भॊत्र का ११ फाय जऩ कयें -

भॊत्र- ऊॉ िक्रतुण्डाम हुॊ

भॊत्र जऩ के फाद इॊटयव्मभ दे ने जाएॊ। अिश्म ही आऩकी भनोकाभना ऩभयी होगी।

प्रस्त्तुतकताू Pandit AshuBahuguna ...............................................................................ऩेड़-ऩौधों के


टोटके हभाये आसऩास ऩाए जाने िारे विशबन्न ऩेड़-ऩौधों के ऩत्तों, परों आहद का टोटकों के रूऩ
भें उऩमोग बी हभायी सुख-सभवृ द्ध की िवृ द्ध भें सहामक हो सकता है । महाॊ कुछ ऐसे ही सहज औय
सयर उऩामों का उकरेख प्रस्त्तुत है , स्जन्हें अऩना कय ऩाठकगण राब उठा सकते हेऄ। विकि ऩत्र :
अस्श्िनी नऺत्र िारे हदन एक यॊ ग िारी गाम के दध
भ भें फेर के ऩत्ते डारकय िह दघ
भ तन्सॊतान
स्त्त्री को वऩराने से उसे सॊतान की प्रास्प्त होती है। अऩाभागू की जड़ : अस्श्िनी नऺत्र भें अऩाभागू
की जड़ राकय इसे तािीज भें यखकय ककसी सबा भें जाएॊ, सबा के रोग िशीबभत होंगे। नागय फेर
का ऩत्ता : महद घय भें ककसी िस्त्तु की चोयी हो गई हो, तो बयणी नऺत्र भें नागय फेर का ऩत्ता
राकय उस ऩय कत्था रगाकय ि सुऩायी डारकय चोयी िारे स्त्थान ऩय यखें , चोयी की गई िस्त्तु का
ऩरा चरा जाएगा। सॊखाहुरी की जड़ : बयणी नऺत्र भें सॊखाहुरी की जड़ राकय तािीज भें ऩहनें
तो विऩयीत शरॊग िारे प्राणी आऩसे प्रबावित होंगे। आक की जड़ : कोटू कचहयी के भाभरों भें
विजम हे तु आद्राू नऺत्र भें आक की जड़ राकय तािीज की तयह गरे भें फाॊधें। दध
भ ी की जड़ : सुख
की प्रास्प्त के शरए ऩुनिूसु नऺत्र भें दध
भ ी की जड़ राकय शयीय भें रगाएॊ। शॊख ऩुष्ऩी : ऩुष्म नऺत्र
भें शॊखऩुष्ऩी राकय चाॊदी की डडविमा भें यखकय ततजोयी भें यखें , धन की िवृ द्ध होगी। फयगद का
ऩत्ता : अश्रेषा नऺत्र भें फयगद का ऩत्ता राकय अन्न बॊडाय भें यखें , बॊडाय बया यहे गा। धतभये की
जड़ : अश्रेषा नऺत्र भें धतभये की जड़ राकय घय भें यखें , घय भें सऩू नहीॊ आएगा औय आएगा बी
तो कोई नुकसान नहीॊ ऩहुॊचाएगा। फेहड़े का ऩत्ता : ऩभिाू पाकगुनी नऺत्र भें फेहड़े का ऩत्ता राकय
घय भें यखें , घय ऊऩयी हिाओॊ के प्रबाि से भत
ु त यहे गा। नीफभ की जड़ : उत्तया पाकगन ु ी नऺत्र भें
नीफभ की जड़ राकय उसे गाम के दध
भ भें शभराकय तन्सॊतान स्त्त्री को वऩराएॊ, उसे ऩत्र
ु की प्रास्प्त
होगी। चॊऩा की जड़ : हस्त्त नऺत्र भें चॊऩा की जड़ राकय फच्चे के गरे भें फाॊधें, फच्चे की प्रेत फाधा
तथा नजय दोष से यऺा होगी। चभेरी की जड़ : अनयु ाधा नऺत्र भें चभेरी की जड़ गरे भें फाॊधें,
शत्रु बी शभत्र हो जाएॊगे। कारे एयॊ ड की जड़ : ििण नऺत्र भें एयॊ ड की जड़ राकय तन्सॊतान स्त्त्री के
गरे भें फाॊधें, उसे सॊतान की प्रास्प्त होगी। तर
ु सी की जड़ : ऩि
भ ाू बाद्रऩद नऺत्र भें तर
ु सी की जड़
राकय भस्स्त्तष्क ऩय यखें , अस्ग्नबम से भुस्तत शभरेगी।..............................................चभत्कायी
ताॊत्रत्रक टोटको से कयें बाग्म िवृ द्ध: ................ ताॊत्रत्रक टोटकों भें काभ आने िारी चीजों भें
शसमाय शसॊगी, हत्था जोड़ी, कारे घोड़े की नार औय श्िेताकू का अऩना अरग ही भहत्ि है तमोंकक
इनके विशबन्न प्रमोगों से चभत्काय घहटत होते हेऄ। ऐसे ही कुछ उऩामों की जानकायी बाग्म भें
चभत्काय उत्ऩन्न कय सकती है । राब की सीभा अनुबि कयके जानी जा सकती है । तॊत्र का
टोटका-साधना बौततक िस्त्तुओ ऩय आधारयत होता है । विशबन्न प्रकाय की चभत्कायी िनस्त्ऩततमों
एिॊ प्रकृतत की अनोखी िस्त्तुओ का विधध-विद्गोष के साथ प्रमोग ही व्मिाहारयक तॊत्र का आधाय
है । तॊत्र-टोटका केिर तन को सुख दे ने िारा होता है । साधना- कक्रमा भे भॊत्र की बी
आिद्गमकता होती है । ऩय स्जस प्रकाय प्राण-धायण के शरए शयीय आिद्गमक है उसी प्रकाय
तॊत्रटोटका भे अदब
ु ुत दर
ु ूब िस्त्तुओॊ की ऩयभ आिद्गमकता होती है । महाॊ अनुबि शसद्ि ताॊत्रत्रक
टोटका िस्त्तुओ की ऩभणू जानकायी के शरमे ताॊत्रत्रक प्रमोग के फाये भें विशेष सतकूता आिश्मक है ।
आजकर फाजायों भें नकरी शसमायशसॊगी ि हत्थाजोडी अधधक शभरती है अत् इनसे िाॊस्च्छत
प्रबाि नही की जा सकती। प्राभाणणक असरी िस्त्तु ऩयीऺण कय सािधानी ऩभिक
ू खयीदकय राब
प्राप्त कयें । उससे सपरता अिद्गम शभरती है । असरी साभग्री शसद्ध होकय साधक का सबी कामू
ऩभणू कयती है ! 1-शसॊमाय शसॊगी्-मह ऩद्गा ु तॊत्र शास्त्त्र की अभभकम तनधध है इसको गीदडशसॊगी बी
कहते है । िन्म-ऩद्गा ुओॊ भें नयशसमाय के शसय ऩय एक प्रकाय की गाॊठ होती हेऄ उसे ही शसॊमाय
शसॊगी कहा जाता है । शसमायशसॊगी की गाठें तॊत्र शास्त्त्र भें अदब
ु ुत शस्तत सम्ऩन्न फतामी गई है ।
शसॊमायशसगी भें सुयऺा, सम्भोहन, िॊद्गा ीकयण, सम्ऩतत िद्धून की हदव्म-शस्तत होती हेऄ। इसे ककसी
विद्गिसनीम तात्रत्रॊक से ही प्राप्त कय तनम्न भॊत्र द्िाया 'शसद्ि कुरू-कुरू नभ्' भॊत्र से शुब भुहुतू
भें एक आक के ऩते ऩय यखना चाहहए। ऩि भ ू भें भख
ु कयके शसॊमाय शसॊगी को यखना चाहहए। साधक
108 फाय एक रूद्राऺ भारा से 11 हदन तक पभॊक भाये । आक-ऩत्र को योजाना फदरना चाहहए। ऐसा
कयने ऩय शसमायशसॊगी शसद्ि होगी। शसद्ि होने ऩय इसे चाॊदी मा स्त्टीर की डडदफी के अन्दय
यखना चाहहए, साथ भे शसॊदयभ , रौंग ि इरामची यखनी चाहहए। स्जस के ऩास गीदड शसॊगी होती है
उसे आने िारी दघ
ु ट
ू ना मा शुब घटना की सत्म सभचना स्त्िप्न भें प्राप्त हो जाती है । ऐसे व्मस्तत
के घय भें सदेऄि रक्ष्भी का िास यहता हेऄ, उसके नाभ की विजम ऩताका पहयाती हेऄ तथा कोई
सॊकट बी उसे छभ नही सकता। शसॊमायशसॊगी के अन्म तॊत्र-टोटके् 1. िॊद्गा ीकयण प्रमोग् 'तक नभ्
नय-भादा शसॊमायशसगाम् अभक
ु भभ िद्गम कुरू-कुरू स्त्िाहा्। स्जस स्त्त्री ऩरू
ु ष को अऩने िद्गा भें
कयना हो तफ अभक
ु के स्त्थान ऩय इस्च्छत व्मस्तत का नाभ आक के ऩते ऩय शरखकय शसॊमायशसगी
को उसके ऊऩय यखे। उऩयोतत भॊत्र का जाऩ 108 फाय कय के पॊभ क भायें । भॊत्र जाऩ के सभम अभक

के स्त्थान ऩय नाभ का प्रमोग अिद्गम कयें । शसमायशसॊगी को डडदफी भें फन्द कयके रौंगइरामची
के साथ यखें । दस
भ ये हदन साभने िारे व्मस्तत को डडदफी भें यखी रौंग इरामची णखरा हदमा जाम
तो िह व्मस्तत चाहे िह स्त्त्री हो मा ऩरु
ु ष मा सयकायी अधधकायी, मा ककतनी ही कठोय रृदम िारी
स्त्त्री, ऩभणरू
ू ऩ से आऩके िश भें होगा। मह चभत्कायी प्रमोग ऩतत-ऩत्नी ऩय, गह
ृ तरेद्गा से
ऩये द्गा ान ऩरयिाय ऩय कय के राब उठामें, तराक एिॊ आत्भ हत्मा जैसी सभस्त्माओॊ का गायण्टी
से इराज सॊबि है । मोग्म व्मस्तत साऺात्काय एॊि प्रततमोधगता भें बी प्रमोग कयके उधचत राब
प्राप्त कय सकता हेऄ। 2 धनिद्
ृ वि के शरए्-तक नभ् नय-भादा शसॊमायशसगाम भभ ् घय धन िषाू
कुरू-कुरू स्त्िाहा्' इस भॊत्र का प्रमोग ऋण-भुस्तत एॊि धन िवृ द्ध कयने भें सऺभ होता है । ऩभजा
स्त्थर ऩय डडदफी का ढतकन खोर कय आक के ऩते ऩय अऩना नाभ शरखकय यखें। दीऩािरी की
यात्रत्र को जफ तक नीदॊ आमे तफ तक उऩयोतत भॊत्र का एक रूद्राऺ भारा से दक्षऺणाितॉ शॊख के
साभने जाऩ कय पभॊक भायें , ऐसा कयने से रक्ष्भी की अऩाय कृऩा होगी। साधक के घय धनिषाू होने
रगेगी, व्माऩाय स्त्थर ऩय यखने ऩय फन्द व्माऩाय बी चरने रग जाता है । स्त्थाई रक्ष्भी की
चभत्कायी कृऩा फनी यहती है । मह प्रमोग सबी साधक कय सकते है । यवि-ऩुष्म, गुरु-ऩुष्म नऺत्र
मोग भें बी मह प्रमोग सम्ऩन्न ककमा जा सकता है । 3-द्गायीय सुयऺा के शरए्-नभ् शसमाॊयशसगाम
भभ ् स्त्ियऺा कुरू-कुरू स्त्िाहा इस भॊत्र की साधना साधक को अऩनी सुयऺा हे तु कयनी चाहहए।
जॊगर भें ककसी एकान्त स्त्थान ऩय जाकय उतयाभुखी फैठकय 108 फाय धऩ
भ -दीऩक के साथ
शसमायशसॊगी को अशबभॊत्रत्रत कये शत्रु एॊि बुत-प्रेत बम, एतसीडेन्ट औय असाध्म योग से सुयऺा फनी
यहती है । साधक की दीघाूमु होकय हभेद्गा ा सुखी जीिन फना यहता है । मह शयीय के सुयऺा
किच का काभ कयती है । उच्चाटन एॊि ताॊत्रत्रक कक्रमाओॊ का प्रकोऩ नही होता हेऄ, साधक को
अनामास बम से तुयन्त भुस्तत शभरती है । मह प्रमोग स्त्त्री मा ऩुरूष कोई बी साधक कय सकता
है । 4-स्जन स्स्त्त्रमों के ऩतत कुसॊगतत के कायण ककसी गरत स्त्त्री की चग
ुॊ र भें पॊस गमे हो तो नय-
भादा शसॊमायशसगी के साथ िारें शसन्दयभ से भाॊग बये एिॊ भाशसक धभू के सभम ऩत्नी यात को ऩतत
के फार काट कय जराकय बस्त्भ को शसॊदयभ के साथ केरे के यस भे ततरक कये तो सफ ठीक हो
जामेगा, नायी की कुसॊगतत उसी हदन से छभट जामेगी 5. अगय स्त्त्री अऩनी भाहिायी का यतत एिॊ
शसद्ध शसॊमायशसगी के साथ के शसॊदयभ को शभराकय ऩतत को टीका रगा दे , तो ऩतत तनद्धगचत रूऩ
से िद्गा भे यहता है । मह प्रमोग अन्म स्त्त्री-ऩुरुष बी कय सकते हेऄ 2. हत्था जोडी् तॊत्र विद्मा भें
हत्थाजोडी अऩना भहत्िऩभणू स्त्थान यखती है । िास्त्ति भें मह एक ऩौधे की जड है । ऩयन्तु अऩनी
अदबुत रूऩाकृतत औय विधचत्र सॊयचना के कायण साधको के भन को भोह रेती है । इसके तनभाूण
भें फायीकी के साथ सौंदमू का ऩभणू सभािेद्गा है । मह िस्त्तु िनस्त्ऩतत िेणी भें आती है । इसकी
उत्ऩतत बायत, ईयान, इयाक, फ्ाॊस, ्जभूनी, ऩाककस्त्तान, एद्धगामा भहाद्िीऩ भें सबी जगह होती है ।
िनस्त्ऩतत होने के कायण मह औषधीम गण ु ो भे प्रबािकायी भानी गई है । ऩयन्तु ताॊत्रत्रको द्धाया फहुत
भान्मता प्राप्त तॊत्र है । तॊत्र शास्त्त्र भें इसके अनेक अद्भतु ् प्रमोग िणणूत है हत्थाजोडी तॊत्र जगत की
शीघ ् ्या प्रबािी चभत्कायी विधचत्र िस्त्तु है । स्जस व्मस्तत के ऩास असरी शसद्ध हाथाजोडी होती है
उसके बाग्म को चभका दे ती है । उसके णखराप कोई बी व्मस्तत कुछ नही कय ऩाता है । कोटू के
भक
ु दभे भें विजम प्रास्प्त तथा शत्रु को िशीबत
भ कयने भें कभार हदखाती है । इसे ऩास यखने से
याजा ि अधधकायी बी िॊद्गा ीबभत हो जाते हेऄ। हाथाजोडी को स्त्टीर की डडदफी भें रौंग, इरामची ि
शसन्दयभ के साथ ही यखना चाहहए। असरी प्रभाणणक हाथाजोडी प्राप्त कय प्रमोग कयके राब
उठािें। महद ककसी का फच्चा योता अधधक है एिॊ जकदी-जकदी फीभाय हो जाता है तो शाभ के
सभम, हत्थाजोडी के साथ यखे रौंग-इरामची को रेकय धऩ
भ दे ना चाहहए। मह शतनिाय के हदन
अधधक राब दे ता है । हत्थाजोडी के ताॊत्रत्रक टोटका प्रमोग 1-तक हत्थाजोडी भभ ् सिू कामू शसद्ध
कुरू-कुरू स्त्िाहा्' भॊत्र से ऩीऩर के ऩते ऩय अऩना नाभ शरखकय हत्थाजोड़ी को ऩत्ते ऩय यखें।
रुद्राऺ - भारा से योजाना तीन भारा ऩाॊच हदन तक जाऩ कयें । इसे शसद्ध-अशबभॊत्रत्रत होने ऩय ऩभजा-
स्त्थर ऩय यखें। साधक के सबी कामू कयने हे तु जागत
ृ हो जाती है । 2. िद्गा ीकयण के शरए्-तक
हत्थाजोड़ी अभुक भभ ् िद्गम कुरू-कुरू स्त्िाहा्' श्िेत आक के ऩते ऩय साभने िारे व्मस्तत का
नाभ शरख कय हत्थाजोड़ी को डडदफी से तनकार कय ऩते ऩय यखना चाहहए। कपय उऩयोतत भॊत्र
108 फाय स्त्पहटक भारा से जऩ कय पभॊक भायें तथा उसी हदन िद्गा ीकयण प्रमोग कयने िारे
व्मस्तत के ऩास जाना चाहहए एिॊ अऩने काभ की फात कयनी चाहहए। तनद्गचम ही कामू सपर
होगा, साघक के कहे अनुसाय कामू कये गा। 3-कन्मा के शीध्र वििाह हे तु्-तक नभ् हत्थाजोडी भभ ्
वििाह विरॊफ ऩतन कुरू-कुरू स्त्िाहा्' हय सोभिाय को इस भॊत्र के जाऩ से कन्मा का वििाह शीध्र
हो जाता है । इसके अरािा कन्मा गामत्री भॊत्र बी शसद्धकय सकती है । इसभें भाता जी का िास
होता है । आज कर तो भाता-वऩता अऩनी कन्माओॊ को काय-फॊगरे की जगह हाथाजोडी दहे ज भें
दे ते हेऄ स्जससे ऩतत ि सास िद्गा भें यहती हेऄ ऩरयिारयक गह
ृ तरेद्गा बी नही होता हेऄ।
दाऩत्मजीिन सपरताऩभिक
ू सम्ऩन्न होता है , तराक ि आत्भहत्मा जैसे भहाऩाऩो से बी भुस्तत
शभरती है । 4-जीिन भें सपरता हे तु्-तक ऐॊ हीॊ तरी चाभुण्डामै विच्चे इस भॊत्र द्िाया शसद्ध की
गई हाथाजोडी जीिन के विशबन्न ऺेत्रो भें साधक को सपरता प्रदान कयती है । स्जस घय भें
विधधित शसद्ध की गई असरी हाथाजोडी की ऩभजा होती है , िह साघक सबी प्रकाय से सुयक्षऺत औय
िी सम्ऩन्न यहता है । इसका प्रबाि अचक
भ होता है । इसका प्रमोग कोई बी साधक स्त्त्री-ऩुरूष कय
सकता है । मह स्जसके ऩास बी होगी िह व्मस्तत अिश्म ही अद्भत
भ रूऩ से प्रबािद्गा ारी होगा।
उसभे सम्भोहन, िशीकयण, सुयऺा औय सम्ऩस्त्तिद्धून की चभत्कायी शस्तत आ जाती है । मात्रा,
वििाद, प्रततमोधगता, साऺात्काय, मुद्ध ऺेत्र आहद भे साघक की यऺा कयके उसे विजम प्रदान कयती
है । बभत-प्रेत, िामव्म आत्भाओॊ का कोई बम नही यहता है , धन सम्ऩतत दे ने भे फहुत चभत्कारयक
ि प्राभाणणक शसद्ध हुई है । हत्थाजोडी के साथ चान्दी का शसतका मा एक नेऩारी रुऩमा यख दे ना
चाहहए। दै तनक ऩज
भ न-दद्ूगान कयना फहुत ही राबकायी होता है । इसकी शस्तत को उतयोतय फढाने
के शरए नय-भादा शसॊमायशसगी को साभने आक के ऩते ऩय यखकय उऩयोतत भॊत्र से हिन कयना
चाहहए। होरी, दीऩािरी ्नियात्र को भॊत्र जाऩ से तीव्र िॊद्गा ीकयण प्रमोग सम्ऩन्न ककमे जा
सकते हेऄ! 5-ऩतत को िद्गा भें कयने के शरए्-स्त्त्री अऩनी भाहिायी के यतत के साथ तीन-तीन
रौंग ि इरामची, ्शसमायशसगीॊ की डडदफी से तनकार कय बस्त्भ फनामें। भहािायी के यतत भें
शभराकय ऩतत को टीका रगाने से सफ ठीक हो जाता है । ऩतत दस
भ यी स्त्त्री का साथ छोड दे ता है ,
अऩनी स्त्त्री को अतघक प्माय कयना शुरू कय दे गा। मह प्रमोग गायण्टी से राब दे ता है । 6-महद
ककसी का फच्चा योता अधधक है एिॊ जकदी-जकदी फीभाय हो जाता है तो शाभ के सभम, हत्थाजोडी
के साथ यखे रौंग-इरामची को रेकय धऩ
भ दे ना चाहहए। मह शतनिाय के हदन अधधक राब दे ता है ।
7-महद घय भें रडाई-झगडा ि तरेद्गा अधधक होता हेऄ तो शुतर ऩऺ भें ऩरयिाय भें सबी सदस्त्मों
के नाखन
भ काटकय हाथाजोडी िारे रोग-इरामची को नाखन
भ के साथ बिन कें ब्रह्मस्त्थान ऩय
जराकय बस्त्भ फनाकय सबी को टीका रगामें एिॊ स्त्त्री भाॊग बये तो ऩरयिाय भे सुख शास्न्त होती
है ! 3-कारे धोडे की नार्-द्गातनिाय के हदन कारे घोडे की नार को खर
ु िा कय घय रेजाने से
ऩभिू ककसी चौयाहे ऩय तीन फाय नार से भाये , तत्ऩश्चात नार को गॊगा जर ि कच्चे दध
भ से स्त्नान
कयाकय अगयफत्ती, धऩ
भ ि दीऩक के साथ ऩभजन कयना चाहहमे। मह नार ऩ्
ृ िी तत्ि से बयऩभय
होती है तमोकक अद्गि जफ दोड रगाता है तफ फाय-फाय नार ऩ्
ृ िी ऩय टकयाने के कायण
सकायात्भक उजाू एकत्रत्रत कय ऩ्
ृ िी का गुरुत्िाकषूण फर एिॊ घषूण के कायण चम्
ु फकीम प्रिाह के
रुऩ भे काभ कयती है । शद्ध
ु -प्राभाणणक नार प्राप्त कय ताॊत्रत्रक प्रमोग कयें तो सपरता शभरती
है ।................सुखी दाॊऩत्म जीिन हे तु महद आऩके दाॊऩत्म सुख भें कभी है , आऩको शत्रु ऩये शान
कय यहे हेऄ, कायोफाय भें हभेशा उठा-ऩटक रगी यहती हो घय भें धन की कभी यहती हो मा आऩ
शायीरयक योगों से ग्रस्त्त है तो हय योज तुरसी के ऩौधे भें जर चढ़ाएॊ। ऊॉ नभो बगिते िासुदेिाम
नभ:भॊत्र का जाऩ कयें ।೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦ ೦೦೦೦೦೦೦೦टोटकों द्िाया
चभत्काय:- भानशसक, आधथूक एिॊ शायीरयक कष्टों का तनिायण टोटके जैसे उऩामों से हो सकता है
रेककन उसके शरए भन भें विश्िास की ऩभणू शस्तत होनी चाहहए तबी भनका चाहा अिश्म भें
शभरता है तमोंकक विश्िास ही परदामक होता है । ऐसे ही कुछ टोटकों की जानकायी प्रस्त्तुत है इस
रेख भें कृ आधथूक सभवृ द्ध के शरए :- फहुत सभम से आधथूक स्स्त्थतत खयाफ चर यही हो तो 5
िीयिाय भहारक्ष्भी की िॊग
ृ ाय साभग्री भॊहदय भें ऩुजारयन को दान भें दें । रेककन दी हुई साभग्री
दफ
ु ाया उस ऩुजारयन को न दें । इससे आऩका व्माऩाय मा आम का साधन सुधयता जामेगा। धीये -धीये
आऩ भहसभस कयें गे। भेहनत कयने ऩय बी आम के ऩमाूप्त साधन नहीॊ जुटा ऩाने की स्स्त्थतत भें 9
िीयिाय केसय िारे शभठे चािर गयीफ मा भजदयभ ी कयने िारे भजदयभ ों को फाॊटें, 3 िीयिाय के फाद
आऩकी भेहनत आऩको अच्छा पर दे ने रगेगी। इस उऩाम को आऩ 45 हदनों के फाद दोफाया कय
सकते हेऄ, ऩयन्तु सार भें 1 मा दो फाय ही कय सकते हेऄ। आधथूक सॊऩन्नता एिॊ घय भें अन्न की
फयकत फनामे यखने के शरए गेहभॊ को वऩसिाते ितत उसभें केसय की ऩस्त्तमाॊ एिॊ तर
ु सी दर
शभराकय वऩसा रें औय उस आटे की फनी हुई योटी घय भें खाने से अन्न औय धन की कबी कभी
नहीॊ यहती। नजय के शरए :-महद आऩ को एिॊ आऩके व्मिसाम को फाय फाय ककसी की नजय रग
यही हो तो सेंधा नभक शक्र
ु िाय को ऩानी भें शबगोकय यात को यखें औय शतनिाय को सफ
ु ह अऩने
व्मािसातमक स्त्थर ऩय उस ऩानी का ऩौंछा रगिामें। 21 शतनिाय रगाताय कयने से फयु ी नजय से
फचा जा सकता है औय जातक खद
ु यात को कपटकयी से दाॊत साप कयके सोएॊ। इस उऩाम से
नजय दोष से फचा जा सकता है । फुयी नजय से फचने के शरए ताॊफे का 9ग9 एिॊ सिा इॊच भोटा
स्त्िास्स्त्तक फनाकय भेन गेट ऩय रगाने से फुयी नजय िारे रोगों से फचा जा सकता है । फुयी नजय
का जातक ऩय महद फहुत ज्मादा प्रबाि हो यहा हो तो उस जातक को गरे भें गोभती चक्र चाॊदी
के अॊदय फनाकय धायण कय रेना चाहहए। ऩन्ना नग धायण कयने से बी फुयी आत्भाओॊ एिॊ नजय
से फचा जा सकता है । कजू भुस्तत के उऩाम : फाय-फाय कजू उतायने के फाद महद कोई जातक कपय
से कजू से मुतत हो जाता है तो उस जातक को अऩने आस-ऩास के धभू स्त्थान भें घय से नॊगे
ऩैय जाकय ऩयभात्भा से भापी भाॊगनी चाहहए एिॊ शशिजी ऩय गन्ने का जभस चढ़ाते हुए तक नभो
शशिाम भॊत्र का जाऩ कयें । रगाताय 108 हदन कयने से धीये धीये जातक कजू से भुतत हो जाएगा।
ककसी हनुभान भॊहदय भें शतनिाय की यात्रत्र के सभम जहाॊ ऩीऩर का िऺ
ृ हो, आटे का चौभुखी
दीऩक सयसों का तेर डारकय ऩीऩर के नीचे जराएॊ औय हनुभान भभततू की तयप भुॊह कयके 11
हनुभान चारीसा का ऩाठ कयें । 21 शतनिाय रगाताय िद्ध ाऩभिक
ू कयने से व्मिसाम की उन्नतत
होगी एिॊ कजू से भुस्तत शभरेगी। योग भुस्तत के शरए : फाय फाय दिा रेने ऩय बी ककसी जातक
का योग दयभ न हो यहा हो तो उस जातक को यात के 9 फजे सिा ककरो कच्चा दध
भ रेकय
शशिशरॊग ऩय ऩतरी धाय भें 'तक नभ् शशिाम' भॊत्र का जाऩ कयते हुए चढ़ाना चाहहए। मह ध्मान
यहे कक िह दध
भ शशिशरॊग की जरेयी से होते हुए िावऩस ककसी फतून भें ही आएॊ। उस दध भ को
ककसी कारे यॊ ग के साॊड को वऩराएॊ। 45 हदन रगाताय ऐसा कयने से जातक को दिा रगने रगेगी
औय योग से भुस्तत प्राप्त होगी। ...............भनोिाॊतछत िेष्ठ िय-प्रास्प्त प्रमोग १॰ बगिती सीता ने
गौयी की उऩासना तनम्न भन्त्र द्िाया की थी, स्जसके परस्त्िरुऩ उनका वििाह बगिान ् िीयाभ से
हुआ। अत् कुभायी कन्माओॊ को भनोिास्ञ्छत िय ऩाने के शरमे इसका ऩाठ कयना चाहहए। ―ॲ
िीदग
ु ाूमै सिू-विघ्न-विनाशशन्मै नभ् स्त्िाहा। सिू-भङ्गर-भङ्गकमे, सिू-काभ-प्रदे दे वि, दे हह भे
िास्ञ्छतॊ तनत्मॊ, नभस्त्ते शॊकय-वप्रमे।। दग
ु े शशिेॱबमे भामे, नायामणण सनाततन, जऩे भे भङ्गरे दे हह,
नभस्त्ते सिू-भङ्गरे।।‖ विधध- प्रततहदन भाॉ गौयी का स्त्भयण-ऩभजन कय ११ ऩाठ कये । २॰ कन्माओॊ
के वििाहाथू अनुबभत प्रमोग इसका प्रमोग द्िाऩय भें गोवऩमों ने िीकृष्ण को ऩतत-रुऩ भें प्राप्त
कयने के शरए ककमा था। ‗नन्द-गोऩ-सुतॊ दे वि‘ ऩद को आिश्मकतानुसाय ऩरयिततूत ककमा जा
सकता है , जैस-े ‗अभुक-सुतॊ अभुकॊ दे वि‘। ―कात्मामतन भहा-भामे भहा-मोधगन्मधीश्िरय। नन्द-गोऩ-
सत
ु ॊ दे वि, ऩततॊ भे कुरु ते नभ्।‖ विधध- बगिती कात्मामनी का ऩञ्चोऩचाय (१ गन्ध-अऺत २ ऩष्ु ऩ
३ धऩ
भ ४ दीऩ ५ नैिेद्म) से ऩज
भ न कयके उऩमत
ुू त भन्त्र का १०,००० (दस हजाय) जऩ तथा दशाॊश
हिन, तऩूण तथा कन्मा बोजन कयाने से कुभारयमाॉ इस्च्छत िय प्राप्त कय सकती है । ३॰. रड़की
के शीघ्र वििाह के शरए ७० ग्राभ चने की दार, ७० से॰भी॰ ऩीरा िस्त्त्र, ७ ऩीरे यॊ ग भें यॊ गा शसतका,
७ सऩ
ु ायी ऩीरा यॊ ग भें यॊ गी, ७ गड़
ु की डरी, ७ ऩीरे पभर, ७ हकदी गाॊठ, ७ ऩीरा जनेऊ- इन सफको
ऩीरे िस्त्त्र भें फाॊधकय वििाहे च्छु जाततका घय के ककसी सयु क्षऺत स्त्थान भें गरु
ु िाय प्रात् स्त्नान
कयके इष्टदे ि का ध्मान कयके तथा भनोकाभना कहकय ऩोटरी को ऐसे स्त्थान ऩय यखें जहाॉ ककसी
की दृस्ष्ट न ऩड़े। मह ऩोटरी ९० हदन तक यखें। ४॰ िेष्ठ िय की प्रास्प्त के शरए फारकाण्ड का
ऩाठ कये । ५॰ ककसी स्त्त्री जाततका को अगय ककसी कायणिश वििाह भें विरम्फ हो यहा हो, तो
िािण कृष्ण सोभिाय से मा नियात्री भें गौयी-ऩभजन कयके तनम्न भन्त्र का २१००० जऩ कयना
चाहहए- ―हे गौरय शॊकयाधांधग मथा त्िॊ शॊकय वप्रमा। तथा भाॊ कुरु ककमाणी कान्त कान्ताॊ
सुदर
ु ब
ू ाभ।।‖ ६॰ ―ॲ गौयी आिे शशि जी व्माहिे (अऩना नाभ) को वििाह तुयन्त शसद्ध कये , दे य न
कयै , दे य होम तो शशि जी का त्रत्रशभर ऩड़े। गुरु गोयखनाथ की दहु ाई।।‖ उतत भन्त्र की ११ हदन
तक रगाताय १ भारा योज जऩ कयें । दीऩक औय धऩ
भ जराकय ११िें हदन एक शभट्टी के कुकहड़ का
भुॊह रार कऩड़े भें फाॊध दें । उस कुकहड़ ऩय फाहय की तयप ७ योरी की त्रफॊदी फनाकय अऩने आगे
यखें औय ऊऩय हदमे गमे भन्त्र की ५ भारा जऩ कयें । चऩ
ु चाऩ कुकहड़ को यात के सभम ककसी
चौयाहे ऩय यख आिें। ऩीछे भुड़कय न दे खें। सायी रुकािट दयभ होकय शीघ्र वििाह हो जाता है । ७॰
स्जस रड़की के वििाह भें फाधा हो उसे भकान के िामव्म हदशा भें सोना चाहहए। ८॰ रड़की के
वऩता जफ जफ रड़के िारे के महाॉ वििाह िाताू के शरए जामें तो रड़की अऩनी चोटी खुरी यखे।
जफ तक वऩता रौटकय घय न आ जाए तफ तक चोटी नहीॊ फाॉधनी चाहहए। ९॰ रड़की गुरुिाय को
अऩने तककए के नीचे हकदी की गाॊठ ऩीरे िस्त्त्र भें रऩेट कय यखे। १०॰ ऩीऩर की जड़ भें रगाताय
१३ हदन रड़की मा रड़का जर चढ़ाए तो शादी की रुकािट दयभ हो जाती है । ११॰ वििाह भें
अप्रत्माशशत विरम्फ हो औय जाततकाएॉ अऩने अहॊ के कायण अनेक मुिकों की स्त्िीकृतत के फाद
बी उन्हें अस्त्िीकाय कयती यहें तो उसे तनम्न भन्त्र का १०८ फाय जऩ प्रत्मेक हदन ककसी शुब
भुहभत्तू से प्रायम्ब कयके कयना चाहहए। ―शसन्दयभ ऩत्रॊ यस्जकाभदे हॊ हदव्माम्फयॊ शसन्धस
ु भोहहताॊगभ ्
सान्ध्मारुणॊ धन्ु ऩॊकजऩुष्ऩफाणॊ ऩॊचामध
ु ॊ बि
ु न भोहन भोऺणाथूभ तरेऄ भन्मथाभ।
भहाविष्णुस्त्िरुऩाम भहाविष्णु ऩुत्राम भहाऩुरुषाम ऩततसुखॊ भे शीघ्रॊ दे हह दे हह।।‖ १२॰ ककसी बी रड़के
मा रड़की को वििाह भें फाधा आ यही हो मो विघ्नहताू गणेशजी की उऩासना ककसी बी चतुथॉ से
प्रायम्ब कयके अगरे चतुथॉ तक एक भास कयना चाहहए। इसके शरए स्त्पहटक, ऩायद मा ऩीतर से
फने गणेशजी की भभततू प्राण-प्रततस्ष्ठत, काॊसा की थारी भें ऩस्श्चभाशबभुख स्त्थावऩत कयके स्त्िमॊ
ऩभिू की ओय भॉह
ु कयके जर, चन्दन, अऺत, पभर, दि
भ ाू, धऩ
भ , दीऩ, नैिेद्म से ऩभजा कयके १०८ फाय ―ॲ
गॊ गणेशाम नभ्‖ भन्त्र ऩढ़ते हुए गणेश जी ऩय १०८ दि भ ाू चढ़ामें एिॊ नैिेद्म भें भोतीचयभ के दो
रड्डभ चढ़ामें। ऩज
भ ा के फाद रड्डभ फच्चों भें फाॊट दें । मह प्रमोग एक भास कयना चाहहए। गणेशजी
ऩय चढ़मे गमे दि
भ ाू रड़की के वऩता अऩने जेफ भें दामीॊ तयप रेकय रड़के के महाॉ वििाह िाताू के
शरए जामें। १३॰ ऩतत-स्त्तिनभ ् नभ् कान्ताम सद्-बत्रे, शशयश्छत्र-स्त्िरुवऩणे। नभो माित ् सौख्मदाम,
सिू-सेि-भमाम च।। नभो ब्रह्भ-स्त्िरुऩाम, सती-सत्मोद्-बिाम च। नभस्त्माम प्रऩज्
भ माम, रृदाधायाम ते
नभ्।। सती-प्राण-स्त्िरुऩाम, सौबाग्म-िी-प्रदाम च। ऩत्नीनाॊ ऩयनानन्द-स्त्िरुवऩणे च ते नभ्।।
ऩततब्रूह्भा ऩततविूष्ण्ु , ऩततये ि भहे श्िय्। ऩततिंश-धयो दे िो, ब्रह्भात्भने च ते नभ्।। ऺभस्त्ि बगिन ्
दोषान ्, ऻानाऻान-विधावऩतान ्। ऩत्नी-फन्धो, दमा-शसन्धो दासी-दोषान ् ऺभस्त्ि िै।। ।।पर-ितु त।।
स्त्तोत्रशभदॊ भहारस्क्ष्भ, सिेस्प्सत-पर-प्रदभ ्। ऩततव्रतानाॊ सिाूसाण, स्त्तोत्रभेतच्छुबािहभ ्।। नयो नायी
िण
ृ ुमाच्चेकरबते सिू-िास्ञ्छतभ ्। अऩुत्रा रबते ऩुत्रॊ, तनधूना रबते ध्रि
ु भ ्।। योधगणी योग-भुतता
स्त्मात ्, ऩतत-हीना ऩततॊ रबेत ्। ऩततव्रता ऩततॊ स्त्तुत्िा, तीथू-स्त्नान-परॊ रबेत ्।। विधध्- १॰ ऩततव्रता
नायी प्रात्-कार उठकय, यात्रत्र के िस्त्त्रों को त्माग कय, प्रसन्नता-ऩभिक
ू उतत स्त्तोत्र का ऩाठ कये ।
कपय घय के सबी काभों से तनफट कय, स्त्नान कय शुद्ध िस्त्त्र धायण कय, बस्तत-ऩभिक
ू ऩतत को
सुगस्न्धत जर से स्त्नान कया कय शुतर िस्त्त्र ऩहनािे। कपय आसन ऩय उन्हें त्रफठाकय भस्त्तक ऩय
चन्दन का ततरक रगाए, सिांग भें गन्ध का रेऩ कय, कण्ठ भें ऩुष्ऩों की भारा ऩहनाए। तफ धऩ
भ -
दीऩ अवऩूत कय, बोजन कयाकय, ताम्फभर अवऩूत कय, ऩतत को िीकृष्ण मा िीशशि-स्त्िरुऩ भानकय
स्त्तोत्र का ऩाठ कये । २॰ कुभारयमाॉ िीकृष्ण, िीविष्णु, िीशशि मा अन्म ककन्हीॊ इष्ट-दे िता का ऩभजन
कय उतत स्त्तोत्र के तनमशभत ऩाठ द्िाया भनो-िास्ञ्छत ऩतत ऩा सकती है । ३॰ प्रणम सम्फन्धों भें
भाता-वऩता मा अन्म रोगों द्िाया फाधा डारने की स्स्त्थतत भें उतत स्त्तोत्र ऩाठ कय कोई बी दख
ु ी
स्त्त्री अऩनी काभना ऩभणू कय सकती है । ४॰ उतत स्त्तोत्र का ऩाठ केिर स्स्त्त्रमों को कयना चाहहए।
ऩुरुषों को ‗वियह-ज्िय-विनाशक, ब्रह्भ-शस्तत-स्त्तोत्र‘ का ऩाठ कयना चाहहए, स्जससे ऩत्नी का सुख
प्राप्त हो सकेगा।.....................सिू -भनोकाभना ऩभततू हे तभ बैयि साफय भॊत्र प्रमोग हदन :- कृष्ण
ऩऺ की अष्टभी से शुरु कये (७ हदन की साधना है ) सभम :- यात्रत्र (९;35) ऩय हदशा :- दक्षऺण
आसन:- कम्फर का होना चाहहए ऩभजन साभग्री :- कनेय मा गें दे के पभर ,,फेसन के रड्डभ ,,शसॊदयभ
,,दो रौंग ,,चौभुखा तेर का दीऩक,,ताम्फे की प्रेट ,,रोफान ,,गाम का कच्चा दध
भ ,,गॊगाजर ,,
साधना साभग्री :- बैयि मन्त्र ,, सापकम भारा मा कारे हकीक की भारा भॊत्र :-""ॲ ह्ीॊ फटुक बैयि
,फारक िेश ,बगिान िेश ,सफ आऩत को कार ,बतत जन हट को ऩार ,कय धये शसय कऩार,दज
भ े
कयिारा त्रत्रशस्तत दे िी को फार ,बतत जन भानस को बार ,तैतीस कोहट भॊत्र का जार ,प्रत्मऺ
फटुक बैयि जातनए ,भेयी बस्तत गुरु की शस्तत ,पुयो भॊत्र ईश्ियो िाचा "" विधध :- सिू प्रथभ गुरु
ऩभजन कय के गुरुदे ि से प्रमोग की आऻा रे रे ,,कपय अऩनी भनोकाभना एक कागज भें शरख कय
गुरु मन्त्र के नीचे यख दे ,,औय भन ही भन गुरुदे ि से साधना की सपरता के शरए विनती कये ,,
कपय ताम्फे की प्रेट भें बैयि मन्त्र स्त्थावऩत कये उसे दध
भ से स्त्नान कयाए ,,कपय गॊगाजर से
स्त्नान कयाकय मन्त्र को ऩोछ रे ,,इस के फाद मन्त्र भें शसॊदयभ से ततरक रगामे ,,औय मन्त्र के
साभने दो रौंग स्त्थावऩत कये ,,औय उस मन्त्र को रोफान का धऩ
ु दे ,,तेर का दीऩक अऩने फामीॊ
ओय जरा के यख रे ,,साधना कार तक दीऩक अखॊड जरना चाहहए ,,कपय सापकम भारा मा
कारे हकीक की भारा से तनम्न भॊत्र का दो भारा जऩ कये ,,मह प्रक्रभ सात हदन तक कयना है
,,आठिे हदन मन्त्र औय भारा को जर भें प्रिाहहत कय दे .................टोटके का प्रमोग टोटके का
प्रमोग कयते सभम उसके अनरु
ु ऩ भह
ु भ त्तू का ध्मान अिश्म यखना चाहहए, ताकक कामू की शसवद्ध
तनविूघ्न हो सके औय कयने भें कोई फाधा मा अड़चन न ऩड़े । आकाश भें स्स्त्थत ग्रह, नऺत्र
प्रततऺण ब्रह्भाण्ड के ऩमाूियण को फदरते यहते हेऄ औय उनका प्रबाि जड़ ि चेतन सबी ऩदाथों
ऩय अिश्म ही ऩड़ता है । अत् साधना के सम्ऩादन भें हदन, सभम, ततधथ, नऺत्र सबी का ध्मान
यखना आिश्मक है । रग्न* िष
ृ , धनु औय भीन रग्न भें ककसी बी प्रकाय की साधना मा
अनुष्ठान नहीॊ कयना चाहहए, तमोंकक इन रग्नों का प्रबाि साधक को तनयाशा, असपरता, द्ु ख औय
अिभानना दे ने िारा होता है ।* शभथन
ु रग्न बी अनुष्ठान के शरमे प्रततकुर परदामी होती है ,
स्जसका दष्ु प्रबाि साधक की सॊतान को बोगना ऩड़ सकता है ।* भेष, ककू, शसॊह, कन्मा, तुरा,
िस्ृ श्चक, भकय औय कुम्ब रग्न भें ककमे गमे अनुष्ठान शुब, सुपरदामक, िीसम्ऩस्त्त-दामक औय
भान फढ़ाने िारे होते हेऄ । हदशा* ऩभिू हदशा्- सम्भोहन, दे ि-कृऩा, सास्त्त्िक कभू के उऩमुतत ।*
ऩस्श्चभ्- सुख-सभवृ द्ध, रक्ष्भी-प्रास्प्त, भान-प्रततष्ठा के शरमे शीघ्रपरदामक ।* उत्तय्- योगों की
धचककत्सा, भानशसक-शास्न्त, आयोग्म-प्रास्प्त हे तु ।* दक्षऺण्- अशबचाय-कभू, भायण, उच्चाटन, शत्र-ु
शभन हे तु । भास तथा ऋतुभास्-चैत्र - द्ु सह-कायक, िैशाख – धनप्रद, ज्मेष्ठ - भत्ृ मु, आषाढ -
ऩुत्र, िािण – शुब, बाद्रऩद - ऻान-हातन,आस्श्िन - सिू-शसवद्ध, काततूक - ऻान-शसवद्ध, भागूशीषू - शुब,
ऩौष – द्ु ख, भाघ - भेघािवृ द्ध, पाकगुन – िशीकयण कायक होता है ।ऋतु्-हे भन्त - शास्न्त, ऩुस्ष्ट के
अनुष्ठान । िसन्त - िशीकयण । शशशशय - स्त्तम्बन । ग्रीष्भ – विद्िेषण, भायण । िषाू –
उच्चाटन । शयद – भायण ।ततधथ तथा ऩऺततधथ्- सुख-साधन, सॊऩन्नता के शरए सप्तभी ततधथ,
ऻान एिॊ शशऺा के शरए द्वितीमा, ऩॊचभी ि एकादशी शुब भानी गमी है । शत्रन
ु ाश के शरमे
दशभी, सबी काभनाओॊ के शरए द्िादशी िेष्ठ होती है ।ऩऺ्- ऐश्िमू, शास्न्त, ऩुस्ष्टकय भन्त्रों की
साधना शुतर ऩऺ भें औय भुस्ततप्रद भन्त्रों की साधना कृष्ण ऩऺ भें प्रायम्ब की जाती
है ।...................टोटकों द्िाया चभत्काय:- भानशसक, आधथूक एिॊ शायीरयक कष्टों का तनिायण
टोटके जैसे उऩामों से हो सकता है रेककन उसके शरए भन भें विश्िास की ऩण
भ ू शस्तत होनी चाहहए
तबी भनका चाहा अिश्म भें शभरता है तमोंकक विश्िास ही परदामक होता है । ऐसे ही कुछ
टोटकों की जानकायी प्रस्त्तुत है इस रेख भें कृ आधथूक सभवृ द्ध के शरए :- फहुत सभम से आधथूक
स्स्त्थतत खयाफ चर यही हो तो 5 िीयिाय भहारक्ष्भी की िग
ॊ ृ ाय साभग्री भॊहदय भें ऩुजारयन को दान
भें दें । रेककन दी हुई साभग्री दफ
ु ाया उस ऩुजारयन को न दें । इससे आऩका व्माऩाय मा आम का
साधन सुधयता जामेगा। धीये -धीये आऩ भहसभस कयें गे। भेहनत कयने ऩय बी आम के ऩमाूप्त
साधन नहीॊ जुटा ऩाने की स्स्त्थतत भें 9 िीयिाय केसय िारे शभठे चािर गयीफ मा भजदयभ ी कयने
िारे भजदयभ ों को फाॊटें, 3 िीयिाय के फाद आऩकी भेहनत आऩको अच्छा पर दे ने रगेगी। इस
उऩाम को आऩ 45 हदनों के फाद दोफाया कय सकते हेऄ, ऩयन्तु सार भें 1 मा दो फाय ही कय सकते
हेऄ। आधथूक सॊऩन्नता एिॊ घय भें अन्न की फयकत फनामे यखने के शरए गेहभॊ को वऩसिाते ितत
उसभें केसय की ऩस्त्तमाॊ एिॊ तर
ु सी दर शभराकय वऩसा रें औय उस आटे की फनी हुई योटी घय
भें खाने से अन्न औय धन की कबी कभी नहीॊ यहती। नजय के शरए :-महद आऩ को एिॊ आऩके
व्मिसाम को फाय फाय ककसी की नजय रग यही हो तो सेंधा नभक शक्र
ु िाय को ऩानी भें शबगोकय
यात को यखें औय शतनिाय को सुफह अऩने व्मािसातमक स्त्थर ऩय उस ऩानी का ऩौंछा रगिामें।
21 शतनिाय रगाताय कयने से फुयी नजय से फचा जा सकता है औय जातक खद
ु यात को कपटकयी
से दाॊत साप कयके सोएॊ। इस उऩाम से नजय दोष से फचा जा सकता है । फुयी नजय से फचने के
शरए ताॊफे का 9ग9 एिॊ सिा इॊच भोटा स्त्िास्स्त्तक फनाकय भेन गेट ऩय रगाने से फुयी नजय िारे
रोगों से फचा जा सकता है । फुयी नजय का जातक ऩय महद फहुत ज्मादा प्रबाि हो यहा हो तो उस
जातक को गरे भें गोभती चक्र चाॊदी के अॊदय फनाकय धायण कय रेना चाहहए। ऩन्ना नग धायण
कयने से बी फुयी आत्भाओॊ एिॊ नजय से फचा जा सकता है । कजू भुस्तत के उऩाम : फाय-फाय कजू
उतायने के फाद महद कोई जातक कपय से कजू से मुतत हो जाता है तो उस जातक को अऩने
आस-ऩास के धभू स्त्थान भें घय से नॊगे ऩैय जाकय ऩयभात्भा से भापी भाॊगनी चाहहए एिॊ शशिजी
ऩय गन्ने का जभस चढ़ाते हुए तक नभो शशिाम भॊत्र का जाऩ कयें । रगाताय 108 हदन कयने से धीये
धीये जातक कजू से भुतत हो जाएगा। ककसी हनुभान भॊहदय भें शतनिाय की यात्रत्र के सभम जहाॊ
ऩीऩर का िऺ
ृ हो, आटे का चौभुखी दीऩक सयसों का तेर डारकय ऩीऩर के नीचे जराएॊ औय
हनुभान भभततू की तयप भुॊह कयके 11 हनुभान चारीसा का ऩाठ कयें । 21 शतनिाय रगाताय िद्ध
ाऩभिक
ू कयने से व्मिसाम की उन्नतत होगी एिॊ कजू से भुस्तत शभरेगी। योग भुस्तत के शरए : फाय
फाय दिा रेने ऩय बी ककसी जातक का योग दयभ न हो यहा हो तो उस जातक को यात के 9 फजे
सिा ककरो कच्चा दध
भ रेकय शशिशरॊग ऩय ऩतरी धाय भें 'तक नभ् शशिाम' भॊत्र का जाऩ कयते
हुए चढ़ाना चाहहए। मह ध्मान यहे कक िह दध भ शशिशरॊग की जरेयी से होते हुए िावऩस ककसी फतून
भें ही आएॊ। उस दध भ को ककसी कारे यॊ ग के साॊड को वऩराएॊ। 45 हदन रगाताय ऐसा कयने से
जातक को दिा रगने रगेगी औय योग से भुस्तत प्राप्त होगी।...................(कुछ अनुबभत टोटके
कौऐ का एक एक ऩयभ ा कारा ऩॊख कही से शभर जाए जो अऩने आऩ ही तनकरा हो उसे ―ॲ
काकबभशुॊडी नभ् सिूजन भोहम भोहम िश्म िश्म कुरु कुरु स्त्िाहा‖इस भॊत्र को फोरते जाए औय
ऩॊख ऩय पभॊक रगाते जाए, इस प्रकाय १०८ फाय कये . कपय उस ऩॊख को आग रगा कय बस्त्भ कय
दे . उस बस्त्भ को अऩने साभने यख कय रोफान धुऩ दे औय कपय से १०८ फाद त्रफना ककसी भारा
के अऩने साभने यख कय दक्षऺण हदशा की औय भुख कय जाऩ कये . इस बस्त्भ का ततरक ७ हदन
तक कये . ततरक कयते सभम बी भॊत्र को ७ फाय फोरे. ऐसा कयने ऩय सिू जन साधक से भोहहत
होते है भोय के ऩॊख को घय के भॊहदय भे यखने से सभवृ द्ध की िवृ द्ध होती है गधे के दाॊत ऩय ―ॲ
नभो कारयात्रत्र सिूशत्रु नाशम नभ्‖का जाऩ १०८ फाय कय के उसे तनजून स्त्थान भे यात्री कार भे
गाड दे तो सिू शत्रओ
ु से भस्ु तत शभरती है . उकरभ का ऩॊख शभरे तो उसे अऩने साभने यख कय
―ॲ उकरक
ु ाना विद्िेषम पट‖का जाऩ १००० फाय कय उसे स्जस के घय भे पेंक हदमा जाए िहा
ऩय विद्िेषण होता है आक के रुई से दीऩक फना कय उसे शशि भॊहदय भे प्रज्िस्करत कयने से
शशि प्रस्त्सन होते है , ऐसा तनमशभत रूऩ से कयने से ग्रह फाधा से भस्ु तत शभरती है धतयभ े की जड़
अऩने आऩ भे भहत्िऩण
भ ू है , इसे अऩने घय भे स्त्थावऩत कय के भहाकारी का ऩज
भ न कय ―क्रीॊ‖ फीज
का जाऩ ककमा जाए तो धन सफॊधी सभस्त्माओ से भुस्तत शभरती है अऩने घय भे अऩयास्जता की
फेर को उगाए, उसे योज धऩ
ु दे कय ―ॲ भहारक्ष्भी िास्न्छताथू ऩभयम ऩभयम नभ्का जाऩ १०८ फाय
कये तो भनोकाभना की ऩभततू होती है तनजून स्त्थान भे ―प्रेत भोऺॊ प्रदोभबि्‖का ११ फाय उच्चायण
कय के खीय तथा जर यख कय आ जाए ऐसा ३ हदन कये तो भनोकाभना ऩभततू भे सहामता
शभरती है . धऩ
ु कयते सभम चन्दन का टुकड़ा ड़ार कय धऩ
ु कयने से ग्रह प्रस्त्सन यहते है ककसी
चेतनािान भज़ाय ऩय शभठाई को फाॊटना अत्मॊत ही शुब भाना गमा है ऐसा विियण कई प्राच्म
ग्रॊथो भे प्राप्त होता है , इससे सबी प्रकायसे उन्नतत की प्रास्प्त होती
है .................................‗साफय‘ भन्त्रों की साधना के ऩभिू ‗सिाूथ-ू साधक‘ भन्त्र को 21 फाय जऩ
रेना चाहहए । इसके फाद अऩने अबीष्ट भन्त्र की साधना कयें । ‗सिाूथ-ू साधक‘ भन्त्र का जऩ
कयते सभम ध्मान यखें कक इसका कोई बी शदद मा िणू उच्चायण भें अशुद्ध न हो । सिाूथ-ू
साधक-भन्त्र- ―गुरु सठ गुरु सठ गुरु हेऄ िीय, गुरु साहफ सुभयौं फड़ी बाॉत । शसॊगी टोयों फन कहौं,
भन नाऊॉ कयताय । सकर गुरु की हय बजे, घट्टा ऩकय उठ जाग, चेत सम्बाय िी ऩयभ-हॊ स ।‖
इसके ऩश्चात ् गणेश जी का ध्मान कयके तनम्न भन्त्र की एक भारा जऩें - ध्मान्- ―िक्र-तुन्ड,
भाह-काम ! कोहट-सभम-ू सभ-प्रब ! तनविूघ्नॊ कुरु भे दे ि ! सिू-कामेषु सिूदा ।।‖ भन्त्र्- ―िक्र-तुण्डाम हुॊ
।‖ कपय तनम्न-शरणखत भन्त्र से हदग्फन्धन कय रें - ―िज्र-क्रोधाम भहा-दन्ताम दश-हदशो फन्ध
फन्ध, हभॊ पट् स्त्िाहा ।‖ उतत भन्त्र से दशों हदशाएॉ सुयक्षऺत हो जाती है औय ककसी प्रकाय का विघ्न
साधक की साधना भें नहीॊ ऩड़ता । नाशब भें दृस्ष्ट जभाने से ध्मान फहुत शीघ्र रगता है औय
भन्त्र शीघ्र शसद्ध होते हेऄ । इसके फाद भन्त्र को शसद्ध कयने के शरए उसका जऩ कयना चाहहए ।
ककसी भन्त्र को शसद्ध कयने के शरए ‗दशहया‘, ‗दीऩािरी‘, ‗होरी‘, ‗ग्रहण-कार′, ‗शशियात्रत्र‘, नियात्रत्र
आहद स्त्िमॊ शसद्ध ऩिू भाने जाते हेऄ....................कारी के अरद-अरग तॊत्रों भें अनेक बेद हेऄ ।
कुछ ऩभिू भें फतरामे गमे हेऄ । अन्मच्च आठ बेद इस प्रकाय हेऄ - १॰ सॊहाय-कारी, २॰ दक्षऺण-कारी,
३॰ बद्र-कारी, ४॰ गुह्म-कारी, ५॰ भहा-कारी, ६॰ िीय-कारी, ७॰ उग्र-कारी तथा ८॰ चण्ड-कारी ।
‗काशरका-ऩुयाण‘ भें उकरेख हेऄ कक आहद-सस्ृ ष्ट भें बगिती ने भहहषासुय को ―उग्र-चण्डी‖ रुऩ से
भाया एिॊ द्वितीमसस्ृ ष्ट भें ‗उग्र-चण्डी‘ ही ―भहा-कारी‖ अथिा भहाभामा कहराई । मोगतनद्रा
भहाभामा जगद्धात्री जगन्भमी । बुजै् षोडशशबमत
ुू ता् इसी का नाभ ―बद्रकारी‖ बी है । बगिती
कात्मामनी ‗दशबुजा‘ िारी दग
ु ाू है , उसी को ―उग्र-कारी‖ कहा है । काशरकाऩुयाणे –
कात्मामनीभग्र
ु कारी दग
ु ाूशभतत तु ताॊविद्ु । ―सॊहाय-कारी‖ की चाय बज
ु ाएॉ हेऄ मही ‗धम्र
भ -रोचन‘ का
िध कयने िारी हेऄ । ―िीय-कारी‖ अष्ट-बज
ु ा हेऄ, इन्होंने ही चण्ड का विनाश ककमा
―बज
ु ैयष्टाशबयतर
ु ैव्माूप्माशेषॊ िभौ नभ्‖ इसी ‗िीय-कारी‘ विषम भें दग
ु ाू-सप्तशती भें कहा हेऄ ।
―चण्ड-कारी‖ की फत्तीस बज
ु ाएॉ हेऄ एिॊ शम्
ु ब का िध ककमा था । मथा – चण्डकारी तु मा प्रोतता
द्िात्रत्रॊशद् बुज शोशबता । सभमाचाय यहस्त्म भें उऩयोतत स्त्िरुऩों से सम्फस्न्धत अन्म स्त्िरुऩ बेदों
का िणून ककमा है । सॊहाय-कारी – १॰ प्रत्मॊधगया, २॰ बिानी, ३॰ िाग्िाहदनी, ४॰ शशिा, ५॰ बेदों से
मुतत बैयिी, ६॰ मोधगनी, ७॰ शाककनी, ८॰ चस्ण्डका, ९॰ यततचाभुण्डा से सबी सॊहाय-काशरका के बेद
स्त्िरुऩ हेऄ । सॊहाय काशरका का भहाभॊत्र १२५ िणू का ‗भुण्ड-भारा तॊत्र‘ भें शरखा हेऄ, जो प्रफर-शत्र-ु
नाशक हेऄ । दक्षऺण-काशरका -कयारी, विकयारी, उभा, भुञ्जुघोषा, चन्द्र-ये खा, धचत्र-ये खा, त्रत्रजटा,
द्विजा, एकजटा, नीरऩताका, फत्तीस प्रकाय की मक्षऺणी, ताया औय तछन्नभस्त्ता मे सबी दक्षऺण
काशरका के स्त्िरुऩ हेऄ । बद्र-कारी - िारुणी, िाभनी, याऺसी, यािणी, आग्नेमी, भहाभायी, घुघयुू ी,
शसॊहितत्रा, बुजॊगी, गारुडी, आसुयी-दग
ु ाू मे सबी बद्र-कारी के विशबन्न रुऩ हेऄ । श्भशान-कारी – बेदों
से मुतत भातॊगी, शसद्धकारी, धभ
भ ािती, आद्रू ऩटी चाभुण्डा, नीरा, नीरसयस्त्िती, घभूटी, बकूटी, उन्भुखी
तथा हॊ सी मे सबी श्भशान-काशरका के बेद रुऩ हेऄ । भहा-कारी - भहाभामा, िैष्णिी, नायशसॊही,
िायाही, ब्राह्भी, भाहे श्ियी, कौभायी, इत्माहद अष्ट-शस्ततमाॉ, बेदों से मुतत-धाया, गॊगा, मभुना, गोदाियी,
नभूदा इत्माहद सफ नहदमाॉ भहाकारी का स्त्िरुऩ हेऄ । उग्र-कारी - शभशरनी, जम-दग
ु ाू, भहहषभहदू नी
दग
ु ाू, शैर-ऩुत्री इत्माहद नि-दग
ु ाूएॉ, भ्राभयी, शाकम्बयी, फॊध-भोऺणणका मे सफ उग्रकारी के विशबन्न
नाभ रुऩ हेऄ । िीय-कारी -िीविद्मा, बुिनेश्ियी, ऩद्मािती, अन्नऩभणाू, यतत-दॊ ततका, फारा-त्रत्रऩुय-सुॊदयी,
षोडशी की एिॊ कारी की षोडश तनत्मामें, कारयास्त्त, िशीनी, फगराभुखी मे सबी िीयकारी मे सबी
िीयकारी के नाभ बेद रुऩ हेऄ ।............................िी फटुक-फशर-भन्त्र्- घय के फाहय दयिाजे के
फामीॊ ओय दो रौंग तथा गुड़ की डरी यखें । तनम्न तीनों भें से ककसी एक भन्त्र का उच्चायण कयें
- १॰ ―ॲ ॲ ॲ एह्मेहह दे िी-ऩुत्र, िी भदाऩद्धुद्धायण-फटुक-बैयि-नाथ, सिू-विघ्नान ् नाशम नाशम,
इभॊ स्त्तोत्र-ऩाठ-ऩभजनॊ सपरॊ कुरु कुरु सिोऩचाय-सहहतॊ फशर शभभॊ गह्
ृ ण गह्
ृ ण स्त्िाहा, एष फशरिं
फटुक-बैयिाम नभ्।‖ २॰ ―ॲ ह्ीॊ िॊ एह्मेहह दे िी-ऩुत्र, िी भदाऩद्धुद्धायक-फटुक-बैयि-नाथ कवऩर-जटा-
बायबासुय ज्िरस्त्ऩॊगर-नेत्र सिू-कामू-साधक भद्-दत्तशभभॊ मथोऩनीतॊ फशरॊ गह्ृ ण ् भभ ् कभाूणण
साधम साधम सिूभनोयथान ् ऩयभ म ऩयभ म सिूशत्रन
भ ् सॊहायम ते नभ् िॊ ह्ीॊ ॲ ।।‖ ३॰ ―ॲ फशर-दानेन
सन्तुष्टो, फटुक् सिू-शसवद्धद्। यऺाॊ कयोतु भे तनत्मॊ, बभत-िेतार-सेवित्।।‖೦೦೦जो तॊत्र से बम
खाता हेऄ, िह भनुष्म ही नहीॊ हेऄ, िह साधक तो फन ही नहीॊ सकता! गुरु गोयखनाथ के सभम भें
तॊत्र अऩने आऩ भें एक सिोत्कृष्ट विद्मा थी औय सभाज का प्रत्मेक िगू उसे अऩना यहा था!
जीिन की जहटर सभस्त्माओॊ को सुरझाने भें केिर तॊत्र ही सहामक हो सकता हेऄ! ऩयन्तु
गोयखनाथ के फाद भें बमानन्द आहद जो रोग हुए उन्होंने तॊत्र को एक विकृत रूऩ दे हदमा!
उन्होंने तॊत्र का तात्ऩमू बोग, विरास, भद्म, भाॊस, ऩॊचभकाय को ही भान शरमा !
हेऄ:....................ऩुयाणों भें श्रोक सॊख्मा सुखसागय के अनुसाय् (1) ब्रह्भऩुयाण भें श्रोकों की
सॊख्मा दस हजाय हेऄ। (2) ऩद्मऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा ऩचऩन हजाय हेऄ। (3) विष्णुऩुयाण भें
श्रोकों की सॊख्मा तेइस हजाय हेऄ। (4) शशिऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा चौफीस हजाय हेऄ। (5)
िीभद्भाितऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा अठायह हजाय हेऄ। (6) नायदऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा
ऩच्चीस हजाय हेऄ। (7) भाकूण्डेमऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा नौ हजाय हेऄ। (8) अस्ग्नऩुयाण भें श्रोकों
की सॊख्मा ऩन्द्रह हजाय हेऄ। (9) बविष्मऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा चौदह हजाय ऩाॉच सौ हेऄ। (10)
ब्रह्भिैितूऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा अठायह हजाय हेऄ। (11) शरॊगऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा
ग्मायह हजाय हेऄ। (12) िायाहऩुयाण भें श्रोकों की सॊख्मा चौफीस हजाय हेऄ। (13) स्त्कन्धऩुयाण भें
श्रोकों की सॊख्मा इतमासी हजाय एक सौ हेऄ। (14) िाभनऩयु ाण भें श्रोकों की सॊख्मा दस हजाय हेऄ।
(15) कभभूऩयु ाण भें श्रोकों की सॊख्मा सत्रह हजाय हेऄ। (16) भत्समऩयु ाण भें श्रोकों की सॊख्मा चौदह
हजाय हेऄ। (17) गरुड़ऩयु ाण भें श्रोकों की सॊख्मा उन्नीस हजाय हेऄ। (18) ब्रह्भाण्डऩयु ाण भें श्रोकों
की सॊख्मा फायह हजाय हेऄ।.............................योग एिॊ अऩभत्ृ मु-तनिायक प्रमोग ।। िी अभत
ृ -
भत्ृ मञ्
ु जम-भन्त्र प्रमोग ।। ककसी प्राचीन शशिारम भें जाकय गणेश जी की ―ॲ गॊ गणऩतमे नभ्‖
भन्त्र से षोडशोऩचाय ऩज
भ न कये । तदनन्तय ―ॲ नभ् शशिाम‖ भन्त्र से भहा-दे ि जी की ऩभजा कय
हाथ भें जर रेकय वितनमोग ऩढ़े - वितनमोग्- ॲ अस्त्म िी अभत
ृ -भत्ृ मञ्
ु जम-भन्त्रस्त्म िी कहोर
ऋवष्, वियाट् छन्द्, अभत
ृ -भत्ृ मुञ्जम सदा-शशिो दे िता, अभुक गोत्रोत्ऩन्न अभुकस्त्म-शभूणो भभ
सभस्त्त-योग-तनयसन-ऩभिक
ू ॊ अऩ-भत्ृ म-ु तनिायणाथे जऩे वितनमोग् । ऋष्माहद-न्मास्- िी कहोर
ऋषमे नभ् शशयशस, वियाट् छन्दसे नभ् भुखे, अभत
ृ -भत्ृ मुञ्जम सदा-शशिो दे ितामै नभ् रृहद, भभ
सभस्त्त-योग-तनयसन-ऩभिक
ू ॊ अऩ-भत्ृ म-ु तनिायणाथे जऩे वितनमोगाम नभ् सिाूङ्गे । कय-न्मास्- ॲ
अॊगुष्ठाभ्माॊ नभ्, जभॊ तजूनीभ्माॊ नभ्, स् भध्मभाभ्माॊ नभ्, भाॊ अनाशभकाभ्माॊ नभ्, ऩारम
कतनस्ष्ठकाभ्माॊ नभ्, ऩारम कय-तर-कय-ऩष्ृ ठाभ्माॊ नभ् । षडङ्ग-न्मास्- ॲ रृदमाम नभ्, जभॊ
शशयसे स्त्िाहा, स् शशखामै िषट्, भाॊ किचाम हुॊ, ऩारम नेत्र-त्रमाम िोषट्, ऩारम अस्त्त्राम पट् ।
ध्मान्- स्त्पुहटत-नशरन-सॊस्त्थॊ, भौशर-फद्धेन्द-ु ये खा-स्रिदभत
ृ -यसाद्रू चन्द्र-िन्ह्मकू-नेत्रभ ् । स्त्ि-कय-
रशसत-भुद्रा-ऩाश-िेदाऺ-भारॊ, स्त्पहटक-यजत-भुतता-गौयभीशॊ नभाशभ ।। भभर-भन्त्र्- ―ॲ जभॊ स् भाॊ
ऩारम ऩारम ।‖ ऩुयश्चयण्- सिा राख भन्त्र-जऩ के शरए ऩाॉच हजाय जऩ प्रततहदन कयना चाहहए
। जऩ के फाद न्मास आहद कयके ऩुन् ध्मान कये । कपय जर रेकय - ‗अनेन-भत ् कृतेन जऩेन
िी-अभत
ृ -भत्ृ मुञ्जम् प्रीमताभ ्‘ कहकय जर छोड़ दे । जऩ का दशाॊश हिनाहदक कये । ‗हिन‘ हे तु
‗ततराज्म‘ भें ‗धगरोम‘ बी डारनी चाहहए । हिनाहद न कय सकने ऩय ‗चतग
ु णुू णत जऩ‘ कयने से
अनुष्ठान ऩभणू होता है एिॊ आयोग्मता शभरती है , अऩ-भत्ृ मु-तनिायण होता है .........................शयीय
यऺा शाफय भन्त्र भन्त्र्- ―ॲ नभ् िज्र का कोठा, स्जसभें वऩण्ड हभाया फैठा । ईश्िय कुञ्जी, ब्रह्भा
का तारा, भेये आठों माभ का मतत हनुभन्त यखिारा ।‖ प्रमोग एिॊ विधध्- ककसी भॊगरिाय से
उतत भन्त्र का जऩ कये । दस हजाय जऩ द्िाया ऩुयश्चयण कय रें । िी हनुभान ् जी को सिामा
योट का चयभ भा (गड़
ु , घी शभधित) अवऩूत कयें । कामू के सभम भन्त्र का तीन फाय उच्चायण कय
शयीय ऩय हाथ कपयाएॉ, तो शयीय यक्षऺत हो जाता है ।.........................निग्रह शाफय भन्त्र यविदे ि
हिन - हिन साभग्री्- गौघत
ृ तथा अकू की रकड़ी । हदशा्- ऩि
भ ,ू भद्र
ु ा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९ फाय मा
१०८ फाय । भन्त्र्- ―सत नभो आदे श । गरु
ु जी को आदे श । ॲ गरु
ु जी । सन
ु फा मोग भर
भ कहे
फायी फाय । सतगरु
ु का सहज विचाय ।। ॲ आहदत्म खोजो आिागभन घट भें याखो दृढ़ कयो भन
।। ऩिन जो खोजो दसिें द्िाय । तफ गरु
ु ऩािे आहदत्म दे िा ।। आहदत्म ग्रह जातत का ऺत्रत्रम ।
यतत यॊ स्जत कश्मऩ ऩॊथ ।। कशरॊग दे श स्त्थाऩना थाऩ रो । रो ऩभजा कयो सभमू नायामण की । सत
पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-
शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । सोभ-भॊगर शुक्र शतन ।
फुध-गुरु-याहु-केतु सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ सभमू भन्त्र गामत्री जाऩ ।
यऺा कये िी शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

सोभदे ि हिन - हिन साभग्री्- गौघत


ृ तथा ऩराश की रकड़ी । हदशा्- ऩभि,ू भुद्रा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९
फाय मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गुरुजी, सोभदे ि भन धयी फा शभन्म । तनभूर कामा ऩाऩ न ऩुण्म
।। शशी-हय फयसे अम्फय झये । सोभदे ि गण
ु मेता कयें । सोभदे ि जातत का भारी । शत
ु र िणॉ
गोत्र अत्री ।। ॲ जभन
ु ा तीय स्त्थाऩना थाऩ रो । कन्हये ऩष्ु ऩ शशि शॊकय की ऩज
भ ा कयो ।। सत
पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩज
भ ा चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-
शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । भॊगर यवि शक्र
ु शतन ।
फध
ु -गरु
ु -याहु-केतु सख
ु कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ सोभ भन्त्र गामत्री जाऩ ।
यऺा कये िी शम्बज
ु ती गरु
ु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

भॊगरदे ि हिन - हिन साभग्री्- गौघत


ृ तथा खैय की रकड़ी । हदशा्- ऩभि,ू भुद्रा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९
फाय मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गुरुजी, भॊगर विषम भामा छोड़े । जन्भ-भयण सॊशम हयै । चन्द्र-
सभमू दो सभ कयै । जन्भ-भयण का कार । एता गण
ु ऩािो भॊगर ग्रह ।। भॊगर ग्रह जातत का
सोनी । यतत-यॊ स्जत गोत्र बायद्िाजी ।। अिस्न्तका ऺेत्र स्त्थाऩना थाऩरो । रे ऩभजा कयो निदग
ु ाू
बिानी की ।। सत पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा चढ़ै ।
हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ ।
सोभ-यवि शुक्र शतन । फुध-गुरु-याहु-केतु सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ बोभ
भन्त्र गामत्री जाऩ । यऺा कये िी शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

फुधग्रह हिन - हिन साभग्री्- गौघत


ृ तथा अऩाभागू की रकड़ी । हदशा्- ऩभि,ू भुद्रा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९
फाय मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गुरुजी, फुध ग्रह सत ् गुरुजी हदनी फुवद्ध । विियो कामा ऩािो शसवद्ध
।। शशि धीयज धये । शस्तत उन्भनी नीय चढ़े ।। एता गुण फुध ग्रह कयै । फुध ग्रह जातत का
फतनमा ।। हरयत हय गोत्र अत्रेम । भगध दे श स्त्थाऩना थाऩरो । रे ऩभजा गणेशजी की कयै । सत
पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-
शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । सोभ-यवि शुक्र शतन ।
भॊगर-गुरु-याहु-केतु सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ फुध भन्त्र गामत्री जाऩ ।
यऺा कये िी शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

गरु
ु (फह
ृ स्त्ऩतत) हिन - हिन साभग्री्- गौघत
ृ तथा ऩीऩर की रकड़ी । हदशा्- ऩि
भ ,ू भद्र
ु ा-हॊ सी,
सॊख्मा्- ९ फाय मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गरु
ु जी, फह
ृ स्त्ऩतत विषमी भन जो धयो । ऩाॉचों इस्न्द्रम
तनग्रह कयो । त्रत्रकुटी बई ऩिना द्िाय । एता गुण फह
ृ स्त्ऩतत दे ि ।। फह
ृ स्त्ऩतत जातत का ब्राह्भण ।
वऩत ऩीरा अॊधगयस गोत्र ।। शसन्धु दे श स्त्थाऩना थाऩरो । रो ऩभजा िीरक्ष्भीनायामण की कयो ।।
सत पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा चढ़ै । हभाये आसन ऩय
ऋवद्ध-शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । सोभ-यवि शुक्र शतन ।
भॊगर-फुध-याहु-केतु सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ गुरु भन्त्र गामत्री जाऩ ।
यऺा कये िी शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

शक्र
ु दे ि हिन हिन साभग्री्- गौघत
ृ तथा गर
भ य की रकड़ी । हदशा्- ऩि
भ ,ू भद्र
ु ा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९ फाय
मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गरु
ु जी, शक्र
ु दे ि सोधे सकर शयीय । कहा फयसे अभत
ृ कहा फयसे नीय
।। निनाड़ी फहात्तय कोटा ऩचन चढ़ै । एता गण
ु शक्र
ु दे ि कयै । शक्र
ु जातत का सय्मद । शत
ु र
िणू गोत्र बागूि ।। बोजकय दे श स्त्थाऩना थाऩ रो । ऩज
भ ो हजयत ऩीय भह
ु म्भद ।। सत पुयै सत
िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩज
भ ा चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-शसवद्ध धयै ,
बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । सोभ-यवि भॊगर शतन । फध
ु -गरु
ु -याहु-
केतु सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ शुक्र भन्त्र गामत्री जाऩ । यऺा कये िी
शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

शतनदे ि हिन हिन साभग्री्- गौघत


ृ तथा शभी की रकड़ी । हदशा्- ऩभि,ू भुद्रा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९ फाय
मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गुरुजी, शतनदे ि ऩाॉच तत दे ह का आसन स्स्त्थय । साढ़े सात, फाया
सोरह धगन धगन धये धीय । शशश हय के घय आिे बान । तौ हदन हदन शतनदे ि स्त्नान । शतनदे ि
जातत का तेरी । कृष्ण कारीक कश्मऩ गोत्री ।। सौयाष्र ऺेत्र स्त्थाऩना थाऩ रो । रो ऩभजा
हनुभान िीय की कयो ।। सत पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा
चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ
। सोभ-भॊगर शुक्र यवि । फुध-गुरु-याहु-केतु सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ
शतन भन्त्र गामत्री जाऩ । यऺा कये िी शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

याहु ग्रह हिन - हिन साभग्री्- गौघतृ तथा दि भ ाू की रकड़ी । हदशा्- ऩभि,ू भुद्रा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९
फाय मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गरुु जी, याहु साधे अयध शयीय । िीमू का फर फनामे िीय ।। धम ुॊ े
की कामा तनभूर नीय । मेता गुण का याहु िीय । याहु जातत का शभद्र । कृष्ण कारा ऩैठीनस गोत्र
।। याठीनाऩुय ऺेत्र स्त्थाऩना थाऩ रो । रो ऩभजा कयो कार बैयो ।। सत पुयै सत िाचा पुयै
िीनाथजी के शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-शसवद्ध धयै , बण्डाय
बये । ७ िाय, २७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । सोभ-यवि शुक्र शतन । भॊगर केतु फुध-गुरु
सुख कयै , द्ु ख हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ याहु भन्त्र गामत्री जाऩ । यऺा कये िी
शम्बुजती गुरु गोयखनाथ । नभो नभ् स्त्िाहा ।‖

केतु ग्रह हिन हिन साभग्री्- गौघत


ृ तथा कुशा की रकड़ी । हदशा्- ऩभि,ू भुद्रा-हॊ सी, सॊख्मा्- ९
फाय मा १०८ फाय । भन्त्र्- ―ॲ गुरुजी, केतु ग्रह कृष्ण कामा । खोजो भन विषम भामा । यवि
चन्द्रा सॊग साधे । कार केतु माते ऩािे । केतु जातत का असरु जेशभनी गोत्र कारा नुय ।।
अन्तयिेद ऺेत्र स्त्थाऩना थाऩ रो । रो ऩभजा कयो यौद्र घोय ।। सत पुयै सत िाचा पुयै िीनाथजी के
शसॊहासन ऊऩय ऩान पभर की ऩभजा चढ़ै । हभाये आसन ऩय ऋवद्ध-शसवद्ध धयै , बण्डाय बये । ७ िाय,
२७ नऺत्र, ९ ग्रह, १२ याशश, १५ ततधथ । सोभ-यवि शुक्र शतन । भॊगर फुध-याहु-गुरु सुख कयै , द्ु ख
हयै । खारी िाचा कबी ना ऩड़ै ।। ॲ केतु भन्त्र गामत्री जाऩ । यऺा कये िी शम्बुजती गुरु
गोयखनाथ । नभो नभ्.............................धभं-Sanskar 16 सॊस्त्कायों भें राइप भैनेजभें ट के सभत्र
हहॊद भ धभू भें ककए जाने िारे 16 सॊस्त्काय केिर कभूकाॊड मा यस्त्भें नहीॊ हेऄ। इनभें जीिन प्रफॊधन के
कई सभत्र छुऩे हेऄ। आज के बागदौड़ बये जीिन भें मे सभत्र हभें जीिन के बौततक औय आध्मास्त्भक
दोनों विकास को आगे फढ़ाते हेऄ। हभें इन सॊस्त्कायों भें खद
ु के िैिाहहक, विद्माथॉ औय व्मिसातमक
जीिन के सभत्र तो शभरते ही हेऄ साथ ही अऩनी सॊतान को कैसे सॊस्त्कायिान फनाएॊ इसके तयीके बी
शभरते हेऄ। ऩुॊसिन सॊस्त्काय : इस सॊस्त्काय के अॊतगूत बािी भाता-वऩता को मह सभझामा जाता है
कक शायीरयक, भानशसक एिॊ आधथूक दृस्ष्ट से ऩरयऩति मातन ऩभणू सभथू हो जाने के फाद, सभाज
को िेष्ठ, तेजस्त्िी नई ऩीढ़ी दे ने के सॊककऩ के साथ ही सॊतान उत्ऩन्न कयें । नाभकयण सॊस्त्काय:
फारक का नाभ शसपू उसकी ऩहचान के शरए ही नहीॊ यखा जाता। भनोविऻान एिॊ अऺय-विऻान
के जानकायों का भत है कक नाभ का प्रबाि व्मस्तत के स्त्थर
भ -सभक्ष्भ व्मस्ततत्ि ऩय गहयाई से
ऩड़ता यहता है । इन्हीॊ फातों को ध्मान भें यखकय नाभकयण सॊस्त्काय ककमा जाता है । चड़
भ ाकभू
सॊस्त्काय: (भुण्डन, शशखा स्त्थाऩना) साभान्म अथू भें , भाता के गबू से शसय ऩय आए िारों को हटाकय
खोऩड़ी की सपाई कयना आिश्मक होता है । ककन्तु सभक्ष्भ दृस्ष्ट से निजात शशशु के व्मिस्स्त्थत
फौवद्धक विकास, कुविचायों के ऩरयस्त्काय के शरमे बी मह सॊस्त्काय फहुत आिश्मक है । अन्नप्राशसन
सॊस्त्काय: जफ शशशु के दाॊत उगने रगें , तो भानना चाहहए कक प्रकृतत ने उसे ठोस आहाय, अन्नाहाय
कयने की स्त्िीकृतत प्रदान कय दी है । स्त्थर
भ (अन्नभमकोष) के विकास के शरए तो अन्न के विऻान
सम्भत उऩमोग को ध्मान भें यखकय शशशु के बोजन का तनधाूयण ककमा जाता है । इन्हीॊ तभाभ
फातों को ध्मान भें यखकय मह भहत्िऩण
भ ू सॊस्त्काय सॊऩन्न ककमा जाता है । विद्मायॊ ब सॊस्त्काय: जफ
फारक/ फाशरका की उम्र शशऺा ग्रहण कयने रामक हो जाम, तफ उसका विद्मायॊ ब सॊस्त्काय कयामा
जाता है । इसभें सभायोह के भाध्मभ से जहाॊ एक ओय फारक भें अध्ममन का उत्साह ऩैदा ककमा
जाता है , िहीॊ ऻान के भागू का साधक फनाकय अॊत भें आत्भऻान की औय प्रेरयत ककमा जाता है ।
मऻोऩिीत सॊस्त्काय : जफ फारक/ फाशरका का शायीरयक-भानशसक विकास इस मोग्म हो जाए कक
िह अऩने विकास के शरए आत्भतनबूय होकय सॊककऩ एिॊ प्रमास कयने रगे, तफ उसे िेष्ठ
आध्मास्त्भक एिॊ साभास्जक अनुशासनों का ऩारन कयने की स्जम्भेदायी सोंऩी जाती है । वििाह
सॊस्त्काय : सपर गह
ृ स्त्थ की, ऩरयिाय तनभाूण की स्जम्भेदायी उठाने के मोग्म शायीरयक, भानशसक एिॊ
आधथूक साभथ्र्म आ जाने ऩय मुिक-मुिततमों का वििाह सॊस्त्काय कयामा जाता है । मह सॊस्त्काय
जीिन का फहुत भहत्िऩभणू सॊस्त्काय है जो एक िेष्ठ सभाज के तनभाूण भें अहभ बभशभका तनबाता
है । िानप्रस्त्थ सॊस्त्काय : गह
ृ स्त्थ की स्जम्भेदारयमाॊ मथा शीघ्र सॊऩन्न कयके, उत्तयाधधकारयमों को अऩने
कामू सौंऩकय अऩने व्मस्ततत्ि को धीये -धीये साभास्जक, उत्तयदातमत्ि, ऩायभाधथूक कामों भें ऩभयी
तयह रगा दे ना ही इस सॊस्त्काय का उद्देश्म है । अन्मेस्ष्ट सॊस्त्काय : भत्ृ मु जीिन का एक अटर सत्म
है । इसे जया-जीणू को निीन-स्त्पभततूिान जीिन भें रूऩान्तरयत कयने िारा भहान दे िता बी कह
सकते हेऄ । भयणोत्तय (िाद्ध सॊस्त्काय): भयणोत्तय (िाद्ध सॊस्त्काय) जीिन का एक अफाध प्रिाह है ।
शयीय की सभास्प्त के फाद बी जीिन की मात्रा रुकती नहीॊ है । आगे का क्रभ बी अच्छी तयह
सही हदशा भें चरता यहे , इस हे तु भयणोत्तय सॊस्त्काय ककमा जाता है । जन्भ हदिस सॊस्त्काय : भनुष्म
को अन्मान्म प्राणणमों भें सिूिेष्ठ भाना गमा है । जन्भहदन िह ऩािन ऩिू है , स्जस हदन ईश्िय ने
हभें िेष्ठतभ भनुष्म जीिन भें बेजा। िेष्ठ जीिन प्रदान कयने के शरमे ईश्िय का धन्मिाद एिॊ
जीिन का सदऩ
ु मोग कयने का सॊककऩ ही इस सॊस्त्काय का भभर उद्देश्म है । वििाह हदिस सॊस्त्काय :
जैसे जीिन का प्राॊयब जन्भ से होता है , िैसे ही ऩरयिाय का प्रायॊ ब वििाह से होता है । िेष्ठ ऩरयिाय
औय उस भाध्मभ से िेष्ठ सभाज फनाने का शुब प्रमोग वििाह सॊस्त्काय से प्रायॊ ब होता है ।

1.
सही रुद्राऺ ऩहनकय कयें कारसऩू दोष तनिायण

कारसूऩ मोग ऩय अनेक शोध हुए है । ज्मोततष इसके प्रबाि कभ कयने के शरए अनेक उऩाम
फताते है । कॊु डरी भें भुख्म रूऩ से फायह तयह के कारसऩू मोग फताए गए हेऄ। आऩने कार सऩू
दोष शाॊतत के शरए अनेक तयह के उऩामों के फाये भें सुना होगा, रेककन तमा आऩ जानते हेऄ कक
केिर सही रुद्राऺ धायण कयके बी कारसऩू मोग के प्रबाि को कभ ककमा जा सकता है । - प्रथभ
बाि भें फनने िारे कारसऩू मोग के शरए एकभुखी, आठभुखी औय नौ भुखी रुद्राऺ कारे धागे भें
डारकय गरे भें धायण कयें । - दस
भ ये बाि भें फनने िारे कारसऩू मोग के शरए ऩाॊचभुखी, आठभुखी
औय नौभुखी रुद्राऺ गुरुिाय के हदन कारे धागे भें डारकय गरे भें ऩहनें। - महद कारसऩू मोग
तीसये बाि भें फन यहा हो तो तीनभुखी, आठभुखी औय नौ भुखी रुद्राऺ रार धागे भें भॊगरिाय
को धायण कयें । - चतुथू बाि भें महद कारसऩू मोग हो तो दोभुखी, आठभुखी, नौभुखी रुद्राऺ सपेद
धागे भें डारकय सोभिाय को यात्रत्र के सभम धायण कयें । - ऩॊचभ बाि भें फनने िारा कारसऩूमोग
हो तो ऩाॊचभुखी, आठभुखी, नौभुखी रुद्राऺ ऩीरे धागे भें गुरुिाय के हदन धायण कयें । छटे बाि के
कारसऩू मोग के शरए भॊगरिाय के हदन तीनभुखी आठभुखी औय नौभुखी रुद्राऺ एक रार धागे
भें ऩहनें। - सप्तभ बाि भें कारसऩू मोग हो तो छहभुखी, आठभुखी औय नौभुखी रुद्राऺ एक
चभकीरे मा सपेद धागे भें यात्रत्र के सभम ऩहनना चाहहए। - अष्टभ बाि भें कारसऩू मोग फन
यहा हो तो नौ भुखी रुद्राऺ धायण कयें । - निभ ् बाि भें कारसऩू मोग हो तो गुरुिाय के हदन
दोऩहय भें ऩीरे धागे भें ऩाॊचभुखी आठभुखी औय नौभुखी रुद्राऺ ऩहनना चाहहए। - दशभ बाि भें
कारसऩू मोग हो तो फुधिाय के हदन सॊध्मा के सभम चायभुखी, आठभुखी औय नौभुखी रुद्राऺ हये
यॊ ग के धागे भें डारकय धायण कयें । - एकादश बाि भें महद कारसऩू मोग हो तो एक ऩीरे धागे
भें दशभख
ु ी, तीनभख
ु ी, चायभख
ु ी रुद्राऺ धायण कयना चाहहए। - महद द्िादश बाि भें कारसऩू मोग
हो तो शतनिाय के हदन शाभ को सातभख
ु ी, आठभख
ु ी, औय नौभख
ु ी रुद्राऺ कारे धागे भें डारकय
गरे भें धायण कये उसके फाद कारसऩू दोष शाॊतत की ऩज
भ ा के फाद मे रुद्राऺ धायण कयने से
कारसऩू मोग िारे के जीिन से कारसऩू मोग का प्रबाि कभ हो जाएगा। इस दोष िारे जातक
अद्भत
ु भानशसक शाॊतत एिॊ सख
ु का अनब
ु ि कयें गे।

Puja बगिान की ऩभजा भें ध्मान यखने मोग फातें साभान्मत: ऩभजा हभ सबी कयते हेऄ ऩयॊ तु कुछ
छोटी-छोटी फातें स्जन्हें ध्मान यखना औय उनका ऩारन कयना अततआिश्मक है । इन छोटी-छोटी
फातें के ऩारन से बगिान जकद ही प्रसन्न होते हेऄ औय भनोिाॊतछत पर प्रदान कयते हेऄ। मह फातें
इस प्रकाय हेऄ- - सभम,ू गणेश, दग
ु ाू, शशि, विष्णु- मह ऩॊचदे ि कहे गए हेऄ, इनकी ऩभजा सबी कामों भें
कयनी चाहहए।- बगिान की केिर एक भभततू की ऩभजा नहीॊ कयना चाहहए, अनेक भभततूमों की ऩभजा
से ककमाण की काभना जकद ऩभणू होती है । - भभततू रकड़ी, ऩत्थय मा धातु की स्त्थावऩत की जाना
चाहहए।- गॊगाजी भें , शाशरग्राभशशरा भें तथा शशिशरॊग भें सबी दे िताओॊ का ऩभजन त्रफना आिाहन-
विसजून ककमा जा सकता है ।- घय भें भभततूमों की चर प्रततष्ठा कयनी चाहहए औय भॊहदय भें अचर
प्रततष्ठा।- तुरसी का एक-एक ऩत्ता कबी नहीॊ तोड़ें, उसका अग्रबाग तोड़ें। भॊजयी को बी ऩत्रों
सहहत तोड़ें।- दे िताओॊ ऩय फासी पभर औय जर कबी नहीॊ चढ़ाएॊ।- पभर चढ़ाते सभम का ऩुष्ऩ का
भुख ऊऩय की ओय यखना चाहहए।

Devi मह शस्तत भॊत्र ऩभयी कये हय आयजभ जीिन भें इच्छाओॊ का अॊत नहीॊ होता। एक ऩभयी होते ही
दस
भ यी इच्छा ऩैदा हो जाती है । इसी किामद भें उम्र फढ़ती है औय सभम फीतता जाता है । इस
दौयान कुछ इच्छाएॊ ऩभयी होती बी है , ककॊतु जो अधभयी यह जाती है । उसके भरार भें इॊसान ऩये शान
मा फैचन
े यहता है । सशरए इच्छाओॊ ऩय तनमॊत्रण के शरए धभू के यास्त्ते अनेक उऩाम फताए गए
है । इन उऩामों भें जऩ, ऩभजा, हिन आहद प्रभख
ु है । इसी कड़ी भें शस्तत आयाधना के विशेष कार भें
भातश
ृ स्तत के आिाहन औय जऩ का एक ऐसा उऩाम है । स्जससे जीिन से जुड़ी हय इच्छा जैसे
धन, सॊऩस्त्त, स्त्िास्त््म, मोग्म जीिनसाथी आहद ऩभयी कयने भें आने िारी फाधा एक ही भॊत्र द्िाया
दयभ की जा सकती है । जानते है नियात्रत्र के विशेष सभम भें ककमा जाने िारा मह उऩाम - -
नियात्रत्र के ककसी बी हदन दग
ु ाू ऩभजा के सभम ऩभिू हदशा भें भुख कयके फैठ जाएॊ।- नियात्रत्र के
हदन अनुसाय दग
ु ाू रुऩ की मथाविधध ऩभजा कय 21 नारयमर रार कऩड़े ऩय यखकय रार चॊदन,
अऺत से ऩभजा कयें । - इसके फाद अऩनी काभनाऩभततू का सॊककऩ रेकय 21 भारा नीचे शरखे भॊत्र
का जऩ कयें - ॲ ऐॊ ह्ीॊ तरीॊ चाभुण्डामै विच्चै। - भॊत्र जऩ रुद्राऺ की भारा से ही कयें । - भॊत्र
जऩ ऩभये होने ऩय 21 नारयमर रार कऩड़े भें फाॊधकय फहते जर भें प्रिाहहत कयें मा ककसी मोग्म
ब्राह्भण को दान कयें ।- िद्धा औय आस्त्था से ककमा गमा मह उऩाम भनोयथ ऩभततू भें फहुत प्रबािी
भाना गमा है ।

2. भाराभार फनाती है िीमॊत्र ऩज


भ ा

दौरतभॊद फनाती है ऐसी रक्ष्भी ऩभजा धन मा ऩैसा जीिन की अहभ जरुयतों भें एक है । आज तेज
यफ्ताय के जीिन भें कईं अिसयों ऩय मह दे खा जाता है कक मुिा ऩीढ़ी चकाचौंध से बयी
जीिनशैरी को दे खकय प्रबावित होती है औय फहुत कभ सभम भें ज्मादा कभाने की सोच भें
गरत तयीकें अऩनाती है । जफकक धन का िास्त्तविक सुख औय शाॊतत भेहनत, ऩरयिभ की कभाई
भें ही है । ऐसा कभामा धन न केिर आत्भविश्िास के साथ दस
भ यों का बयोसा बी दे ता है , फस्कक
रुतफा औय साख बी फनाता है । धभू भें आस्त्था यखने िारा व्मस्तत ऐसे ही तयीकों भें विश्िास
यखता है । इसशरए भातश
ृ स्तत की आयाधना के इस कार भें महाॊ फतामा जा यहा है , एक ऐसा ही
उऩाम स्जसको अऩनाकय जीिन भें ककसी बी सुख से िॊधचत नहीॊ यहें गे औय धन का अबाि कबी
नहीॊ सताएगा। मह उऩाम है िीमॊत्र ऩभजा। धाशभूक दृस्ष्ट से रक्ष्भी कृऩा के शरए की जाने िारी
िीमॊत्र साधना सॊमभ औय तनमभ की दृस्ष्ट से कहठन होती है । इसशरए महाॊ फताई जा यही है
िीमॊत्र ऩभजा की सयर विधध स्जसे कोई बी साधायण बतत अऩनाकय सुख औय िैबि ऩा सकता
है । सयर शददों भें मह ऩभजा भाराभार फना दे ती है । िीमॊत्र ऩभजा की आसान विधध कोई बी बतत
नियात्रत्र मा उसके फाद बी शुक्रिाय मा प्रततहदन कय सकता है । िीमॊत्र ऩभजा के ऩहरे कुछ साभान्म
तनमभों का जरुय ऩारन कयें - - ब्रह्भचमू का ऩारन कयें औय ऐसा कयने का प्रचाय न कयें । -
स्त्िच्छ िस्त्त्र ऩहनें।- सग
ु ॊधधत तेर, ऩयफ्मभ
भ , इत्र न रगाएॊ।- त्रफना नभक का आहाय रें। - प्राण-
प्रततस्ष्ठत िीमॊत्र की ही ऩभजा कयें । मह ककसी बी भॊहदय, मोग्म औय शसद्ध ब्राह्भण, ज्मोततष मा तॊत्र
विशेषऻ से प्राप्त कयें । - मह ऩज
भ ा रोब के बाि से न कय सख
ु औय शाॊतत के बाि से कयें ।
इसके फाद िीमॊत्र ऩज
भ ा की इस विधध से कयें । इसे ककसी मोग्म ब्राह्भण से बी कया सकते हेऄ -
नियात्रत्र मा ककसी बी हदन सफ
ु ह स्त्नान कय एक थारी भें िीमॊत्र स्त्थावऩत कयें । - इस िीमॊत्र को
रार कऩड़े ऩय यखें। - िीमॊत्र का ऩॊचाभत
ृ मातन दध
ु , दही, शहद, घी औय शतकय को शभराकय
स्त्नान कयाएॊ। गॊगाजर से ऩवित्र स्त्नान कयाएॊ।- इसके फाद िीमॊत्र की ऩभजा रार चॊदन, रार पभर,
अफीय, भें हदी, योरी, अऺत, रार दऩ
ु ट्टा चढ़ाएॊ। शभठाई का बोग रगाएॊ।- धऩ
भ , दीऩ, कऩयभू से आयती
कयें । - िीमॊत्र के साभने रक्ष्भी भॊत्र, िीसभतत, दग
ु ाू सप्तशती मा जो बी श्रोक आऩको आसान रगे,
का ऩाठ कयें । ककॊतु रारच, रारसा से दयभ होकय िद्धा औय ऩभयी आस्त्था के साथ कयें ।- अॊत भें
ऩभजा भें जाने-अनजाने हुई गरती के शरए ऺभा भाॊगे औय भाता रक्ष्भी का स्त्भयण कय सुख,
सौबाग्म औय सभवृ द्ध की काभना कयें । िीमॊत्र ऩभजा की मह आसान विधध नियात्रत्र भें फहुत ही शुब
परदामी भानी जाती है । इससे नौकयीऩेशा से रेकय त्रफजनेसभेन तक धन का अबाि नहीॊ दे खते।
इसे प्रतत शुक्रिाय मा तनमशभत कयने ऩय जीिन भें आधथूक कष्टों का साभना नहीॊ कयना ऩड़ता।

Devi गामत्री के ऩाॊच भुखों का यहस्त्म धाशभूक ऩुस्त्तकों भें ऐसे कई प्रसॊग मा ित
ृ ाॊत ऩढऩे भें आते
हेऄ, जो फहुत ही आश्चमूजनक हेऄ। राखों-कयोड़ों दे िी-दे िता, स्त्िगू-नकू, आकाश-ऩातार, ककऩिऺ
ृ ,
काभधेनु गाम, इन्द्ररोक....औय बी न जाने तमा-तमा। इन आश्चमूजनक फातों का महद हभ
शास्ददक अथू तनकारें तो शामद ही ककसी तनणूम ऩय ऩहुॊच सकते हेऄ। अधधकाॊस घटनाओॊ का
िणून प्रतीकात्भक शैरी भें ककमा गमा है । गामत्री के ऩाॊच भख
ु ों का आश्चमूजनक औय
यहस्त्मात्भक प्रसॊग बी कुछ इसी तयह का है । मह सॊऩभणू ब्रह्भाण्ड जर, िाम,ु ऩ्
ृ िी, तेज औय
आकाश के ऩाॊच तत्िों से फना है । सॊसाय भें स्जतने बी प्राणी हेऄ, उनका शयीय बी इन्हीॊ ऩाॊच तत्िों
से फना है । इस ऩ्
ृ िी ऩय प्रत्मेक जीि के बीतय गामत्री प्राण-शस्तत के रूऩ भें विद्मभान है । मे
ऩाॊच तत्ि ही गामत्री के ऩाॊच भुख हेऄ। भनुष्म के शयीय भें इन्हें ऩाॊच कोश कहा गमा है । इन ऩाॊच
कोशों का उधचत क्रभ इस प्रकाय है :- - अन्नभम कोश - प्राणभम कोश - भनोभम कोश -
विऻानभम कोश - आनन्दभम कोश मे ऩाॊच कोश मातन कक बॊडाय, अनॊत ऋवद्ध-शसवद्धमों के अऺम
बॊडाय हेऄ। इन्हें ऩाकय कोई बी इॊसान मा जीि सिूसभथू हो सकता है । मोग साधना से इन्हें जाना
जा सकता है , ऩहचाना जा सकता है । इन्हें शसद्ध कयके मातन कक जाग्रत कयके जीि सॊसाय के
सभस्त्त फॊधनों से भुतत हो जाता है । जन्भ-भत्ृ मु के चक्र से छभट जाता है । जीि का 'शयीय' अन्न
से, 'प्राण' तेज से, 'भन' तनमॊत्रण से, 'ऻान' विऻान से औय करा से 'आनन्द की िीिवृ द्ध होती है ।
गामत्री के ऩाॊच भुख इन्हीॊ तत्िों के प्रतीक हेऄ।

Devi गामत्री की दस बुजाओॊ का यहस्त्म िैऻातनक तयीके से शोध-अनुसॊधान कयने के फाद ही दे िी-
दे िता सम्फॊधी भान्मता की स्त्थाऩना हुई है । आज के तथाकधथत ऩढ़े शरखे रोग दे िी-दे िता
सम्फॊधी फातों को अॊधविश्िास मा अॊध िद्ध ृ ा कहते हेऄ, ककन्तु उनका ऐसा सोचना, उनके आधे-अधयभ े
ऻान की ऩहचान है । धचत्रों औय भभततूमों भें दे िी-दे िताओॊ को एक से अधधक हाथ औय कई भुखों
िारा हदखामा जाता है । इन फातों के िास्त्तविक अथू तमा है ? इस तयह के साये प्रिों औय
स्जऻासाओॊ का सभाधान हभ रगाताय कयते यहें गे। इसी कड़ी भें आज मह जानेगे कक गामत्री की
दश बुजाओॊ का तमा अथू है :- इॊसान के जीिन भें दस शभर मातन कक कष्ट हेऄ। मे दस कष्ट है —
दोषमुतत दृस्ष्ट, ऩयािरॊफन ( दस
भ यों ऩय तनबूय होना) , बम, ऺुद्रता, असािधानी, क्रोध, स्त्िाथूऩयता,
अवििेक, आरस्त्म औय तष्ृ णा। गामत्री की दस बुजाएॊ इन दस कष्टों को नष्ट कयने िारी हेऄ।
इसके अततरयतत गामत्री की दाहहनी ऩाॊच बुजाएॊ भनुष्म के जीिन भें ऩाॊच आस्त्भक राब—
आत्भऻान, आत्भदशून, आत्भ-अनुबि, आत्भ-राब औय आत्भ-ककमाण दे ने िारी हेऄ तथा गामत्री
की फाईं ऩाॊच बुजाएॊ ऩाॊच साॊसारयक राब—स्त्िास्त््म, धन, विद्मा, चातुमू औय दस
भ यों का सहमोग
दे ने िारी हेऄ। दस बुजी गामत्री का धचत्रण इसी आधाय ऩय ककमा गमा है । मे सबी जीिन विकास
की दस हदशाएॊ हेऄ। भाता के मे दस हाथ, साधक को उन दसों हदशाओॊ भें सुख औय सभवृ द्ध प्रदान
कयते हेऄ। गामत्री के सहस्रो नेत्र, सहस्रों कणू, सहस्रों चयण बी कहे गए हेऄ। उसकी गतत सिूत्र है ।
Devi कौन हेऄ रक्ष्भी, कारी औय सयस्त्िती ? सेकड़ों दे िी-दे िताओॊ िारे हहन्द भ धभू को अऻानतािश
कुछ रोग अॊधिद्ध
ृ ा िारा धभू कह दे ते हेऄ, ककन्तु सॊसाय भें सिाूधधक िैऻातनक धभू कोई है तो िह
सनातन हहन्द भ धभू ही है । साभान्म इॊसान बी धभू के भभू मातन गहयाई को सभझ सके, मह सौच
कय ही ऋवष-भतु नमों ने विश्ि की विशबन्न सक्ष्
भ भ शस्ततमों को दे िी-दे िताओॊ के रूऩ भें धचत्रत्रत
ककमा है । ईश्िय मा ऩयभात्भा अऩने तीन कतूव्मों को ऩयभ ा कयने के शरए तीन रूऩों भें प्रकट हुआ-
ब्रह्भ, विष्णु औय भहे श। ब्रह्भ को यचनाकाय, विष्णु को ऩारनहाय औय भहे श को सॊहाय का दे िता
कहा गमा है । इस त्रत्रभभततू की तीन शस्ततमाॊ हेऄ- ब्रह्भ की भहासयस्त्िती, विष्णु की भहारक्ष्भी औय
भहे श की भहाकारी।इस तयह ऩयभात्भा अऩनी शस्तत से सॊसाय का सॊचारन कयता है । हभ ककसी
बी िस्त्तु के फाये भें उसका इततहास इसी क्रभ से जानते हेऄ- उसका तनभाूण, उसकी अिस्त्था औय
उसका अॊत। इसी क्रभ भें ब्रह्भ-विष्णु-भहे श का क्रभ बी त्रत्रभभततू भें कहा गमा है । ककॊतु जफ जीिन
भें शस्तत की उऩासना होती है तो मह क्रभ उरटा हो जाता है - भहाकारी, भहारक्ष्भी औय
भहासयस्त्िती। सॊहाय- हभ उन फुयाइमों का सॊहाय कयें , जो फीभायी की तयह हभाये सभभचे जीिन को
नष्ट कय दे ती है । फीभायी को जड़ से काट कय जीिन को फचाएॊ। ऩोषण- जफ फीभायी कट जाए
तो शयीय की ताकत फढ़ाने िारा आहाय रेना चाहहए। फुयाइमाॊ हटाकय जीिन भें सद्गुणों का
योऩण कयें , स्जससे आत्भविश्िास भजफभत हो। यचना- जफ जीिन फुयाइमों से भुतत होकय सद्गुणों
को अऩनाता है तो हभाये आदशू व्मस्ततत्ि का तनभाूण शुरू होता है । सॊसाय सॊचारन के शरए
ऩयभात्भा को अतुरनीम शस्तत, ऩमाूप्त धन औय तनभूर विद्मा की आिश्मकता होती है , इसीशरए
उसकी शस्तत भहाकारी का यॊ ग कारा, भहारक्ष्भी का यॊ ग ऩीरा (स्त्िणू) औय सयस्त्िती का यॊ ग
सपेद (शद्ध
ु ता) है । हभें जीिन भें मही भागू अऩनाना चाहहए अथाूत सभाज से फयु ाइमों का नाश
औय सदाचाय का ऩोषण कयें , तबी आदशू सभाज का नितनभाूण होगा। मह हभ तफ ही कय सकते
हेऄ जफ हभाये ऩास िीयता, धन औय शशऺा जैसी शस्ततमाॊ हों।

बगिान ् से विनती प्राथूना अथाूत ् बगिान से विनती जफ बी हभ ककसी बी ऩये शानी भें पॊस जाते
हेऄ, स्जसका हर हभाये ऩास नहीॊ होता मा बगिान से हभें कोई भनोकाभना ऩण
भ ू कयाना हो तो ऐसी
ऩरयस्स्त्थतत भें हभ बगिान से जो विनती कयते हेऄ उसे प्राथूना कहते हेऄ। प्राथूना कई प्रकाय से की
जाती है , जैसे: - इच्छाऩतभ तू के शरए प्राथूना- ककसी भनोकाभना की ऩतभ तू के शरए बगिान से जो
विनती की जाती है उसे इच्छाऩभततू की प्राथूना कहते हेऄ।- साभान्म प्राथूना- कई फाय त्रफना ककसी
काभना मा सभस्त्मा के िद्धा औय बस्तत से बगिान की प्राथूना की जाती है , िह साभान्म प्राथूना
कहराती है ।- फुयाइमों से भुस्तत के शरए प्राथूना- अऩनी कभजोयी ि फुयाइमों को दयभ कयने मा
उनसे रडऩे की शस्तत प्राप्त कयने के शरए बगिान से प्राथूना की जाती है । स्त्िीकायने की
प्राथूना- कुछ रोग ईश्िय की भहहभा, सत्ता, प्रबुता को सभझकय उसे स्त्िीकाय कय मा भानकय बी
प्राथूना कयते हेऄ।- धन्मिाद की प्राथूना- भनोकाभना की ऩभततू हो जाने ऩय मा जीिन सुखभम होने
ऩय बगिान की कृऩा का धन्मिाद दे ने के शरए बी प्राथूना की जाती है ।- भौन प्राथूना- ऩभणू
सभऩूण बािना से भौन होकय प्राथूनाशीर हो जाना। कैसे कयें प्राथूना - सयर, रृदम से।- सफके
ककमाण को ध्मान भें यखकय। - हय ऩर हय सभम प्राथूनाभम फनें (काभनाभम नहीॊ)।- महद
इच्छा बी कयें तो उसे ऩभणू कयने की आजादी ईश्िय को दें ।- जीिन औय अस्स्त्तत्ि के प्रतत
िद्धािान फनें।

3. तमा है बद्रा? जफ कोई भाॊगशरक, शब


ु कभू मा व्रत-उत्सि की घड़ी आती है , तो ऩॊचक की तयह
ही बद्रा मोग को बी दे खा जाता है । तमोंकक बद्रा कार भें भॊगर औय उत्सि की शुरुआत मा
सभास्प्त अशुब भानी जाती है । हाराॊकक हय धाशभूक व्मस्तत बद्रा के विषम भें ऩभयी जानकायी नहीॊ
यखता, ककॊतु ऩयॊ ऩयाओॊ भें चरी आ यही बद्रा कार की अशुबता को भानकय शुब कामू नहीॊ कयता।
इसशरए जानते हेऄ कक आणखय तमा होती है - बद्रा। ऩुयाण अनुसाय बद्रा बगिान सभमू दे ि की ऩुत्री
औय शतनदे ि की फहन है । शतन की तयह ही इसका स्त्िबाि बी क्रभय फतामा गमा है । इस उग्र
स्त्िबाि को तनमॊत्रत्रत कयने के शरए ही बगिान ब्रह्भा ने उसे कारगणना मा ऩॊचाग के एक प्रभुख
अॊग कयण भें स्त्थान हदमा। जहाॊ उसका नाभ विष्टी कयण यखा गमा। बद्रा की स्स्त्थतत भें कुछ
शुब कामों, मात्रा औय उत्ऩादन आहद कामों को तनषेध भाना गमा। ककॊतु बद्रा कार भें तॊत्र कामू,
अदारती औय याजनैततक चन
ु ाि कामों सुपर दे ने िारे भाने गए हेऄ। अफ जानते हेऄ ऩॊचाॊग की
दृस्ष्ट बद्रा का भहत्ि। हहन्द भ ऩॊचाॊग के ऩाॊच प्रभुख अॊग होते हेऄ। मह है - ततधथ, िाय, मोग, नऺत्र
औय कयण। इनभें कयण एक भहत्िऩण
भ ू अॊग होता है । मह ततधथ का आधा बाग होता है । कयण
की सॊख्मा ग्मायह होती है । मह चय औय अचय भें फाॊटे गए हेऄ। चय मा गततशीर कयण भें फि,
फारि, कौरि, तैततर, गय, िणणज औय विस्ष्ट धगने जाते हेऄ। अचय मा अचशरत कयण भें शकुतन,
चतष्ु ऩद, नाग औय ककस्त्तघ्
ु न होते हेऄ। इन ग्मायह कयणों भें सातिाॊ कयण विस्ष्ट का नाभ ही बद्रा
है । मह सदै ि गततशीर होती है । ऩॊचाग शवु द्ध भें बद्रा का खास भहत्ि होता है । बद्रा का शास्ददक
अथू ककमाण कयने िारी होता है । ककॊतु इस अथू के विऩयीत बद्रा मा विष्टी कयण भें शब
ु कामू
तनषेध फताए गए हेऄ। धभूग्रॊथो औय ज्मोततष विऻान के अनुसाय अरग-अरग याशशमों के अनुसाय
बद्रा तीनों रोकों भें घभभती है । इसी दौयान जफ मह ऩ्
ृ िी मा भत्ृ मुरोक भें होती है , तो सबी शुब
कामों भें फाधक मा मा उनका नाश कयने िारी भानी गई है । रेककन अफ मह जानना बी जरुयी है
कक कैसे भारभभ हो कक बद्रा ऩ्
ृ िी ऩय विचयण कय यही है , तो शास्त्त्रों भें मह जानकायी बी स्त्ऩष्ट
है । स्जसके अनुसाय - जफ चॊन्द्रभा, ककू, शसॊह, कॊु ब ि भीन याशश भें विचयण कयता है औय बद्रा
विष्टी कयण का मोग होता है , तफ बद्रा ऩ्
ृ िीरोक भें यहती है । इस सभम सबी कामू शुब कामू
िस्जूत होते है । इसके दोष तनिायण के शरए बद्रा व्रत का विधान बी धभूग्रॊथों भें फतामा गमा है ।
बद्रा का िणून हहन्द भ धभू के ऩुयाणों भें बी शभरता है । बद्रा कौन है , उसका स्त्िरुऩ तमा है , िह कक
सकी ऩुत्री है । इस फाये भें विस्त्ताय से जाने इसी िेफसाईट के बद्रा सॊफॊधधत अन्म आहटू कर भें ।

Devi दौरतभॊद फनाती है ऐसी रक्ष्भी ऩभजा

शायदीम नियात्रत्र भें शस्तत ऩज


भ ा का भहत्ि है । शस्तत के अरग-अरग रुऩों भें भहारक्ष्भी की धन-
िैबि, भहासयस्त्िती की ऻान औय विद्मा औय भहादग
ु ाू की फर औय शस्तत प्रास्प्त के शरए
उऩासना का भहत्ि है । दतु नमा भें ताकत का ऩैभाना धन बी होता ह इस फाय नियात्रत्र का आयॊ ब
शक्र
ु िाय से हो यहा है । इस हदन दे िी की ऩज
भ ा भहत्ि है । शक्र
ु िाय के हदन विशेष रुऩ से भहारक्ष्भी
ऩभजा फहुत ही धन-िैबि दे ने िारी औय दरयद्रता का अॊत कयने िारी भानी जाती है । ऩुयाणों भें बी
भाता रक्ष्भी को धन, सुख, सपरता औय सभवृ द्ध दे ने िारी फतामा गमा है । नियात्रत्र भें दे िी ऩभजा
के विशेष कार भें हय बतत दे िी के अनेक रुऩों की उऩासना के अरािा भहारक्ष्भी की ऩभजा कय
अऩने व्मिसाम से अधधक धनराब, नौकयी भें तयतकी औय ऩरयिाय भें आधथूक सभवृ द्ध की काभना
ऩभयी कय सकता है । जो बतत नौकयी मा व्मिसाम के कायण अधधक सभम न दे ऩाएॊ उनके शरए
महाॊ फताई जा यही है रक्ष्भी के धनरक्ष्भी रुऩ की ऩभजा की सयर विधध। इस विधध से रक्ष्भी
ऩभजा नियात्रत्र के नौ यातों के अरािा हय शुक्रिाय को कय धन की काभना ऩभयी कय सकते हेऄ - -
आरस्त्म छोड़कय सुफह जकदी उठकय स्त्नान कयें । तमोंकक भाना जाता है कक रक्ष्भी कभू से प्रसन्न
होती है , आरस्त्म से रुठ जाती है । - घय के दे िारम भें चौकी ऩय रार कऩड़ा त्रफछाकय उस ऩय
चािर मा अन्न यखकय उस ऩय जर से बया शभट्टी का करश यखें। मह करश सोने, चाॊदी, ताॊफा,
ऩीतर का होने ऩय बी शब
ु होता है । - इस करश भें एक शसतका, पभर, अऺत मातन चािर के
दाने, ऩान के ऩत्ते औय सऩ
ु ायी डारें ।- करश को आभ के ऩत्तों के साथ चािर के दाने से बया
एक शभट्टी का दीऩक यखकय ढाॊक दें । जर से बया करश विघ्रविनाशक गणेश का आिाहन होता
है । तमोंकक िह जर के दे िता बी भाने जाते हेऄ। - चौकी ऩय करश के ऩास हकदी का कभर
फनाकय उस ऩय भाता रक्ष्भी की भतभ तू औय उनकी दामीॊ ओय बगिान गणेश की प्रततभा फैठाएॊ। -
ऩज
भ ा भें करश फाॊई ओय औय दीऩक दाईं ओय यखना चाहहए।- भाता रक्ष्भी की भतभ तू के साभने
िीमॊत्र बी यखें। - इसके अरािा सोने-चाॊदी के शसतके, शभठाई, पर बी यखें। - इसके फाद भाता
रक्ष्भी की ऩॊचोऩचाय मातन धऩ
भ , दीऩ, गॊध, पभर से ऩभजा कय नैिेद्म मा बोग रगाएॊ।- आयती के
सभम घी के ऩाॊच दीऩक रगाएॊ। इसके फाद ऩभये ऩरयिाय के सदस्त्मों के साथ ऩभयी िद्धा बस्तत के
साथ भाता रक्ष्भी की आयती कयें ।- आयती के फाद जानकायी होने ऩय िीसभतत का ऩाठ बी कयें । -
अॊत भें ऩभजा भें हुई ककसी बी गरती के शरए भाता रक्ष्भी से ऺभा भाॊगे औय उनसे ऩरयिाय से हय
करह औय दरयद्रता को दयभ कय सुख-सभवृ द्ध औय खश ु हारी की काभना कयें ।- आयती के फाद अऩने
घय के द्िाय औय आस-ऩास ऩभयी नियात्रत्र मा हय शुक्रिाय को दीऩ जराएॊ।

दे िी आऩकी याशश के शरए ककस दे िी की ऩज


भ ा? ऩॊचोऩचाय नियात्रत्र आयाधना का िेष्ठ पर ऩाने
का अिसय होता है । हय याशश के रोगों के शरए नियात्रत्र भें अरग-अरग दे िी की उऩासना फताई
गई है । स्जससे िे अऩनी भनोकाभना ऩण
भ ू कयने के शरए सही ऩज
भ ा ऩाठ कय सकें। हय याशश के
ग्रह औय नऺत्रों के आधाय ऩय उनकी अरग-अरग दे विमाॊ भानी गई हेऄ। दश भहाविद्मा के
भत
ु ात्रफक हय याशश के शरए एक अरग भहाविद्मा की उऩासना कयने से, उनके फीज भॊत्रों के जऩ
से ककसी बी काभ भें आसानी से सपरता ऩाई जा सकती है । भेष- भेष याशश के जातक शस्तत
उऩासना के शरए द्वितीम भहाविद्मा ताया की साधना कयें । ज्मोततष के अनुसाय इस भहाविद्मा
का स्त्िबाि भॊगर की तयह उग्र है । भेष याशश िारे भहाविद्मा की साधना के शरए इस भॊत्र का
जऩ कयें । भॊत्र- ह्ीॊ स्त्त्रीॊ हभॊ पट् िष
ृ ब- िष
ृ ब याशश िारे धन औय शसवद्ध प्राप्त कयने के शरए िी
विद्मा मातन षोडषी दे िी की साधना कयें औय इस भॊत्र का जऩ कयें । भॊत्र- ऐॊ तरीॊ सौ: शभथन ु -
अऩना गह
ृ स्त्थ जीिन सुखी फनाने के शरए शभथन
ु याशश िारे बुिनेश्ियी दे िी की साधना कयें ।
साधना भॊत्र इस प्रकाय है । भॊत्र- ऐॊ ह्ीॊ ककू- इस नियात्रत्र ऩय ककू याशश िारे कभरा दे िी का
ऩभजन कयें । इनकी ऩभजा से धन ि सुख शभरता है । नीचे शरखे भॊत्र का जऩ कयें । भॊत्र- ऊॊ िीॊ शसॊह
- ज्मोततष के अनुसाय शसॊह याशश िारों को भाॊ फगराभुखी की आयाधना कयना चाहहए। स्जससे
शत्रओ
ु ॊ ऩय विजम शभरती है । भॊत्र- ऊॊ रृी फगराभुखी सिूदष्ु टानाॊ िाचॊ भुखॊ ऩदॊ स्त्तॊबम स्जरृॊ कीरम
कीरम फुवद्धॊ विनाशाम रृी ऊॊ स्त्िाहा कन्मा- आऩ चतुथू भहाविद्मा बुिनेश्ियी दे िी की साधना कयें
आऩको तनस्श्चत ही सपरता शभरेगी। भॊत्र- ऐॊ ह्ीॊ ऐॊ तुरा- तुरा याशश िारों को सुख ि ऐश्िमू की
प्रास्प्त के शरए षोडषी दे िी की साधना कयनी चाहहए। भॊत्र- ऐॊ तरीॊ सौ: िस्ृ श्चक- िस्ृ श्चक याशश
िारे ताया दे िी की साधना कयें । इससे आऩको शासकीम कामों भें सपरता शभरेगी। भॊत्र- िीॊ ह्ीॊ
स्त्त्रीॊ हभॊ पट् धनु - धन औय मश ऩाने के शरए धनु याशश िारे कभरा दे िी के इस भॊत्र का जऩ
कयें । भॊत्र- िीॊ भकय- भकय याशश के जातक अऩनी याशश के अनस ु ाय भाॊ कारी की उऩासना कयें ।
भॊत्र- क्रीॊ कारीकामे नभ: कॊु ब- कॊु ब याशश िारे बी कारी की उऩासना कयें इससे उनके शत्रओ
ु ॊ का
नाश होगा। भॊत्र- क्रीॊ कारीकामे नभ: भीन- इस याशश के जातक सख
ु सभवृ द्ध के शरए कभरा दे िी
की उऩासना कयें । भॊत्र- िी कभरामे नभ:

वऩतयों को नहीॊ बर
भ ें अॊततभ भौका है , न बर
भ ें वऩतयों की खश
ु ी के ऐसे उऩाम

हहन्द भ ऩॊचाॊग के आस्श्िन भाह के कृष्णऩऺ मातन िाद्धऩऺ भें वऩतयों की प्रसन्नता के शरए अॊततभ
अिसय सिूवऩत ृ अभािस्त्मा भाना जाता है । मह ततधथ इस फाय (7 अतटभफय) को आएगी। कोई िाद्ध
का अधधकायी वऩतऩ
ृ ऺ की सबी ततधथमों ऩय वऩतयों का िाद्ध मा तऩूण चक
भ जाएॊ मा वऩतयों की
ततधथ माद न हो तफ इस ततधथ ऩय सबी वऩतयों का िाद्ध कय सकते हेऄ। इसशरए मह वऩतभ
ृ ोऺ
अभािस्त्मा मा सिूवऩत ृ अभािस्त्मा के नाभ से प्रशसद्ध है ।

स्जन दॊ ऩस्त्तमों के महाॊ ३ ऩुत्रत्रमों के फाद एक ऩुत्र जन्भ रेता है मा जुड़िाॊ सॊतान ऩैदा होती है ।
उनको सिूवऩत ृ अभािस्त्मा का िाद्ध जरुय कयना चाहहए।

सिूवऩत ् अभािस्त्मा को वऩतयों के िाद्ध से सौबाग्म औय स्त्िास्त््म प्राप्त होता है । धाशभूक भान्मता
है कक इस ततधथ ऩय वऩत ृ आत्भा अऩने ऩरयजनों के ऩास िामु रुऩ भें ब्राह्भणों के साथ आते हेऄ।
उनकी सॊतस्ु ष्ट ऩय वऩतय बी प्रसन्न होते हेऄ। ऩरयजनों के िद्धाऩि
भ क
ू िाद्ध कयने से िह तप्ृ त औय
प्रसन्न होकय आशीिाूद दे कय जाते हेऄ, ककॊतु उनकी उऩेऺा से द:ु खी होने ऩय िाद्धकताू का जीिन
बी कष्टों से फाधधत होता है ।
सिूवऩत ृ अभािस्त्मा के हदन वऩतयों की तस्ृ प्त से ऩरयिाय भें खशु शमाॊ राने का िाद्धऩऺ का अॊततभ
अिसय न चक
भ जाएॊ। इसशरए महाॊ फताए जा यहे हेऄ कुछ उऩाम स्जनका अऩनाने से बी आऩ
वऩतयों की तस्ृ प्त कय सकते हेऄ -

- सिूवऩत ृ अभािस्त्मा को ऩीऩर के ऩेड़ के नीचे ऩुड़ी, आरभ ि इभयती मा कारा गुराफ जाभुन यखें ।
- ऩेड़ के नीचे धऩ
भ -दीऩ जराएॊ ि अऩने कष्टों को दयभ कयने की प्राथूना कयें । वऩतयों का ध्मान कय
नभस्त्काय कयें । ऐसा कयने ऩय आऩ जीिन भें खशु शमाॊ ि अनऩेक्षऺत फदराि जरुय दे खेंगे। - घय के
भुख्म प्रिेश द्िाय सपेद पभर से सजाएॊ। - इस हदन ऩाॊच पर गाम को णखराएॊ। - वऩतयों के
तनशभत्त धऩ
भ दे कय इस हदन तैमाय बोजन भें से ऩाॊच ग्रास गाम, कुत्ता, कौिा, दे िता औय चीॊटी मा
भछरी के शरए जरुय तनकारें औय णखराएॊ। - मथाशस्तत ब्राह्भण को बोजन कयाएॊ। िस्त्त्र, दक्षऺणा
दें । जफ ब्राह्भण जाने रगे तो उनके चयण छुएॊ, आशीिाूद रें औय उनके ऩीछे आठ कदभ चरें। -
ब्राह्भण के बोजन के शरए आने से ऩहरे धऩ
भ फत्ती अिश्म जराएॊ।

इस तयह सिूवऩत ृ अभािस्त्मा को िद्धा से ऩि


भ ज
ू ों का ध्मान, ऩज
भ ा-ऩाठ, तऩूण कय वऩतद
ृ ोष के
कायण आने िारे कष्ट औय दब
ु ाूग्म को दयभ कयें । इस हदन को वऩतयों की प्रसन्नता से ियदान
फनाकय भॊगरभम जीिन व्मतीत ककमा जा सकता है । ...........................

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