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रथम अ्याय

कृ्ण क विभि्न ्िूऩ


रथम अ्याय
कृ्ण क विभि्न ्िूऩ

1.1 ‌कृ्ण श्द का उ्िि एिं विकास

1.1.1 'कृ्ण' श्द का अ्थ एवं उ्भव

1.1.2 कृ्ण का ज्म-ऩर

1.1.3 कृ्ण और राइ्ट

1.1.4 कृ्ण और वासुदव

1.2 कृ्ण क विभि्न ्िूऩ

1.2.1 र्म ूऩ

1.2.2 ऱ करऺक / ऱ क ऩकारक / ऱ कसवक ूऩ

1.2.3 ऱ करं जक ूऩ

1.2.4 साधारण मानव ूऩ

1.2.5 ग ऩीव्ऱभ या राधाव्ऱभ ूऩ

1.2.6 रा्र ्धारक ूऩ

1.2.7 रा््िदि
ू ूऩ

1.2.8 समाजवादी / समाज सध


ु ारक ूऩ,

1.2.9 राजनीतिऻ ूऩ

1.2.10 जननायक ूऩ

1.2.11 गीि ऩद्टा ूऩ

1.2.12 ‌वऻातनक ूऩ

 समाहार
रीकृ्ण का बाऱ्वूप

रीकृ्ण का यशोदानंदन ूप एवं नटखट ूप


रथम अ्याय

कृ्ण क विभि्न ्िूऩ


1.1 'कृ्ण' श्द का उ्िि एिं विकास

स्मरत स्मऩय रिस्म


स्म्म म नन ननहहत च स्म।
स्म्म स्मभृतस्मनि
स्मा्भक ््ा शयण रऩनना ।। 1

रीभ्बाग्त भं बग्ान रीकृ्ण की गबभ्तुनत आय्ब कयत हुए र्भा, शश्


् अनम द्ताओ न रीकृ्ण क शरए कहा हं - ''जजनक रत कभभ का सक्ऩ स्म ह।
स्म ही जजनका आधाय ह ज तीनं ऩ स स्म ह। ज स्म क कायण ह, ज अ्मम
ऩु ष ऩ बग्ान ऩयभ स्मश्
ु ध यस- ऩ र्भ भं ननहहत आ्भ ऩ स ज्थत ह, ज
स्म क बी स्म ह, अथाभत ् कायणं क बी कायण हं। कृत (जजनका कनर न ह - ्ामु, जर
आहद) औय जर (ज कनरफ्ध ह - तज, ऩ्
ृ ्ी) द नं जजनक नि (सि
ू ) हं औय ज ््म
बी स्म ऩ हं हभ उसी बग्ान की शयण भं हं।

उऩमु्
भ त ्तनु त स हभं मह ऻान ह ता ह कक बग्ान रीकृ्ण स्म ऩ ह जजनकी
्तुनत द्ता आहद बी कयत हं उन बग्ान रीकृ्ण का, जजनहंन ऩूणाभ्ताय धायण कय
ऩ्
ृ ्ी ऩय अ्ताय शरमा था उनही रीकृ्ण क ्् ऩ क जानन स ऩू्भ हभं कृ्ण नाभ का
अथभ, उनका उ्ब् जानना आ््मक ह।

1.1.1 'कृ्ण' श्द का अथथ एिं उ्िि

'कृ्ण' श्द ऩूण,भ शु्ध, नन्ममु्त ् चचनताभणण ्् ऩ हं। रीकृ्ण ही


ऩयर्भ बग्ान क ऩूणाभ्ताय हं, अत मह ्र क उनही क शरए साथभक शस्ध ह ता ह-

ऩूणभ
भ द ऩूणशभ भद ऩूणाभ्ऩूणभ भुद्मत।
ऩूण्
भ म ऩूणभ
भ ादाम ऩूणभ
भ ्ा्शश्मत।। 2

1
रीभ्बाग्त ्, दशभ्कनध, ्व्तीम ऽ्माम : ्र क 26, ऩ.ृ 481
ू ूनतभ तऩ नन्ठ रीयाभ शभाभ आचामभ : ऋ््द सहहता (सयर हहदी बा्ाथभ सहहत) बाग-1
्दभ
2

(भ्डर 1-2), बशू भका, ऩ.ृ 6

1
्स 'कृ्ण' श्द कार ्णभ स स्फजनधत ह ककनतु आ्माज्भक अथभ स रीकृ्ण
ससाय क अचध्ठाता हं। ससाय क र ग भुज्तदाता ह न क कायण 'याभ क नाभ क
'तायक' कहत हं त रभदाता ह न स कृ्ण क नाभ क 'ऩायक' भानत हं जजनस रभ बज्त
रा्त ह ती ह।

अत कृ्ण नाभ भं रभाननद ह। रबास ऩुयाण क री नायद-कुश््ज स्ाद भं


रीकृ्ण न ््म कहा हं- ''ह ऩयभतऩ ! सफ नाभं भं भया कृ्ण नाभ ही स्भर्ठ ह।''
काची क भठाधी््य री अननताचामभ जी न 'कृ्ण' श्द का अथभ ''बूशभ क सुख ऩहुचान
्ारा'' फतामा ह। मह भत स्म बी शस्ध ह ता ह। रीभ्बाग्त भं ऐसा ही ननदे श ह कक
बूशभ द्ी की राथभना ऩय ही कृ्णा्ताय हुआ। असुय याऺस ए् द्ु ट ऺरिमं स ऩीडडत
बूर क ्ासी जन सभुदाम क दख
ु क हयन क शरए ही रीकृ्ण न अ्ताय रहण ककमा
था। अत 'बूशभ' श्द स बूर क्ाशसमं का अथभ रहण कयन ऩय कृ्ण श्द की उ्ऩवि
ह ती ह।

बूशभ्भद्तनृऩ्माज द्मानीपशतामुत ।
आरानता बूरयबायण र्भाण शयण मम ।। 1

रीकृ्ण ऩण
ू ,भ सत ् औय ऻान शज्त रधान ह। आ्माज्भक रीकृ्ण क नाभ ऩय
रकाश डारा जाए त रीभ्बाग्त भं कृ्ण क नाभकयण स्काय का उ्रख शभरता
ह। द्की क गबभ स जनभ ह न क ऩ्चात ् ्सुद् जी कृ्ण क भथयु ा स ग कुर र गए ्
्हा स मश दा ् नदफाफा की ऩि
ु ी क भथयु ा र आए, मह कथा त स्भव््मात बी ह।
उसक ऩ्चात ् कृ्ण का ऩारन ऩ षण ग कुर भं मश दा ् नदयाम जी क महा ही हुआ।
उस सभम मद्
ु शशमं क कुर ऩुय हहत थ- री गगाभचामभ जी। ् ्सुद् जी की रयणा स
ग कुर आए। नदयाम जी न उनका आनत्म स्काय ककमा ् कहा- ''आचामभ जी, आऩ इस
एकात ग शारा भं क्र ््ज्त्ाचन कय य हहणी ् भय ऩुि का नाभ स्कयण कय
दीजजए। भय सग सफधी बी इस फात क न जानन ऩाए।'' ्मंकक गगाभचामभ जी मद्
ु शशमं
क कुर ऩुय हहत थ अत उनक ््ाया नाभ स्कयण स कस क कृ्ण क ्सुद् का ऩुि
सभझन की आशका ह जाती। अत उनहंन एकात भं नाभ स्कयण ककमा ् कहा मह
य हहणी का ऩुि ह, इसशरए इसका नाभ ह गा 'य हहणम'। मह अऩन सग स्फनधी औय
शभिं क अऩन गुणं स अ्मत आनहदत कयगा, इसशरए इसका दस
ू या नाभ ह गा 'याभ'।

्माभसुनदयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभय गीत, ऩ.ृ 51


1

2
इसक फर की क ई सीभा नही ह, अत इसका नाभ 'फर' बी ह। मह माद्ं औय तभ
ु र गं
भं पूट ऩ़न ऩय भर कयाएगा इसशरए इसका नाभ 'सकषभण' बी ह। मह ज सा्रा
सा्रा ह, मह र्मक मुग भं शयीय धायण कयता ह। वऩछर मुगं भं इसन रभश ््त,
य्त औय ऩीत म तीन यग ््ीकाय ककए थ। अफ की मह कृ्ण ्णभ हुआ ह, इसशरए
इसका नाभ 'कृ्ण' ह गा। नद जी, मह तु्हाया ऩुि ऩहर कबी ्सुद्जी क घय ऩदा हुआ
था, इस यह्म क जानन ्ार र ग इस 'रीभान ् ्ासुद्' बी कहत हं। तु्हाय ऩुि क औय
बी फहुत स नाभ हं तथा ऩ बी अनक हं।

इस रकाय गगाभचामभ जी क ््ाया 'कृ्ण' नाभ स्कयण हुआ। उनहंन कहा बी ह


कक कृ्ण क अनक नाभ हं। सही ृज्टक ण स 'कृ्ण' श्द क जानना मा रीकृ्ण क
जानना कहठन ह। ्मंकक ्ह र कककता की ृज्ट स ऩय ह ्ह ऩयर्भ ए् अर ककक हं।
साभानम त य ऩय कृ्ण का शाज्दक अथभ ह- कारा यग अथ्ा ्माभर ्णभ। कृ्ण का
ऩ्
ू ाभऩय सफधं ऩय आधारयत ऩय्ऩयागत अथभ ह- द्की ्सद
ु ् का आठ्ा ऩि
ु नद औय
मश दा का ऩ वषत ऩुि, फरयाभ का अनुज, उरसन का द हहि, ज्भणी आहद स रह
हजाय एक स आठ याननमं का ऩनत, याधा का वरमतभ, ग ऩ-ग वऩमं, ््ार फारं, अजुन

ए् र ऩदी क सखा। कृ्ण क फ ध क धयातर ऩय रहण कयना तबी सब् ह, जफ ््म
कृ्ण ही कृऩा कयं औय ऩाथभ (अजुन
भ ) क सभान हभं हद्म ृज्ट रदान कय अऩन उस
व्याट ऩ क दशभन कयाए। कपय बी शामद ही हभ उस जान ऩाए। याभामण भं री याभ क
व्षम भं तर
ु सीदास जी न कहा बी हं-

स ई जानइ जहह दहु जनाई, जानत तु्हहह तु्हइ ह इ जाई।


तु्हरयहह कृऩा तु्हहह यघुनदन, जानहह बगत बगतउय चदन।। 1

अथाभत ्, तु्हं ्ही जान सकता ह जजस तुभ जनाना चाहत ह । मह फात उनही क
ऩ रीकृ्ण ऩय बी रागू ह ती ह। सचभुच क न जानता ह, उनकी मािा कहा स आय्ब
ह ती ह, क ई कृ्ण क अर ककक ऩयर्भ भानता ह त क ई भान्ं भं स्भर्ठ भान्।

उभाकात भार्ीम न अऩन आरख भं शरखा ह- कृ्ण अऩन अऩरयभम अथभ भं


एक रतीनत ह, एक आनदानब
ु नू त हं। कृ्ण अऩन ऩरयभम अथभ भं एक अ्ममबा् हं, एक
'यस व्शष' हं, एक आ््ाद छद हं, एक अनुगूज की मािा हं, ज ्णु स ऩाचजनम शख क
भ्म सऩनन ह ती ह। ्ह एक ऩुकाय हं, टय हं, राथभना हं, ज ्णु क र्मक यर स उठत

तुरसीदासव्यचचत : रीयाभचरयतभानस, अम ्मा का्ड, ऩ.ृ 405


1

3
हं औय उऩर्ध ह न ऩय ऩाचजनम क भा्मभ स 'सब्ाशभ मग
ु -मग
ु ' का उ्घ ष कयत
हं।''1 ऐस रीकृ्ण ज र ककक ह त हुए बी ससाय स ऩय अर कककता धायण ककए हुए थ।
इसशरए कृ्ण आज ऩूणभ रासचगक, ऩूणभ अ्बूत औय स्ऩूणभ न्र्त ता क ऩ भं
ऩहचान जात हं। भय ृज्टक ण स मह ्र क रीकृ्ण क शरए स्म शस्ध ह ता ह-

्सुद् सुत द्, कस चाणूय भदभ नभ ्।


द्की ऩयभाननद, कृ्ण ्द जग्गु ।

रीकृ्ण ही स्च स्गु हं गीता भं ् एक गु क ऩ भं ही कभभम ग की शशऺा


दत हं। गुराफ क ठायी न अऩन रनथ 'कृ्ण त्् की ्ऻाननकता' भं कृ्ण श्द ऩय
रकाश डारत हुए कहा ह ''कृ्ण का एक अथभ ह कारा, मानन न हदखाई दन ्ारा। कृ्ण
अधकाय बी ह औय साय रकाशं का जनक कृ्ण म ग््य बी। ररम कार भं जफ कुछ
नही था, तफ कृ्ण था, अधकाय था, कृ्ण (कारा) ही सफ कुछ था।'' 2

ऩ. भ तीरार शा्िी न ''गीता भं कृ्ण त््'' भं कहा ह- चचदनुगह


ृ ी ननमनत स्म
का कृ्ण स स्फनध ह। इसी चचदनग
ु ह
ृ ीत (चचत ् का अनर
ु ह) ननमनत स्म क हभ
'कृ्ण' कहत हं।

महदह स्म स कृ्ण इनत रनतऩ्माभह। 3

्ह स्मकृ्ण एक हं, अ्व्तीम हं, स्मा्ताय ् भहाऩु ष हं।

1.1.2 कृ्ण का ज्म ऩर

रीभ्बाग्त ् की एक टीका क रखक री ऩ. गगासहाम जी भहायाज न दशभ


्कनध क तीसय अ्माम की ्मा्मा कयत सभम रीकृ्ण की जनभ ऩरिका क व्षम भं
एक ्र क हदमा हं-

उ्च्था शशशब भचजनरशनम र्न ्ष


ृ राबग ।
जी् शसहतुराशरषु रभ्शा्ऩुष शन याह् ।
नशीथ सभम ऽ्टभी फुधहदन र्भऺभभि ऺण।
री कृ्णाशबध्फजु ऺणाभबूदाव् ऩय र्भतत ्।। 4

उभाकात भार्ीम : ्णु स शख तक, अहा ! जजनदगी, (अक 12), अग्त, 2012, ऩ.ृ 22
1

ु ाफ क ठायी : कृ्ण त्् की ्ऻाननकता, रा्कथन, ऩ.ृ 10,11


गर
2

भ तीरार शा्िी, कराश चतु्ेदी (स.) : गीता भं कृ्ण त्् (रथभ ख्ड), ऩ.ृ 3-4
3

्माभसुनदयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभय गीत, ऩ.ृ 61


4

4
इस ्र क क सभान ही 'च यासी ््ण् की ्ाताभ' भं सयू दास का ऩ्म शभरता हं

नद जू भय भन आनद बम , भं सुनन भथुया त आम ।


असन, फसन, गज, फाजज, धनु, धन, बूरय-ब्डाय रुटाम ।
रज भं कृ्ण-जनभ क उ्स्, 'सूय' व्भर जम गाम ।। 1

इन द नं ्र क ् ऩद क आधाय ऩय रीकृ्ण की जनभ कु्डरी मह हं।

३ १
च. क. २ १२ ्.ृ
४ गु.

स.ू ५ ११

६ फ.ु या. ८ भ. १०

श.ु श. ७ ९

इसक अनतरय्त कनाभटक क रशस्ध व्््ान ्म नतषाचामभ री फी. एच. फडय


एभ. ए. न एक जनभ कु्डरी रकाशशत की ह। इनभं रहं की ज्थनत भं थ ़ा सा अनतय
ृज्टग चय ह ता ह ऩयनतु परादश भं सा्म ह।

३ १
२ च. १२ क.

५ य. ११

६ फ.ु श. ८ भ. १०

श.ु श. ७ ९

इस रकाय द नं जनभ कु्डशरमं भं सा्म ्ष्म द नं ृज्टग चय ह ता ह।

1.1.3 कृ्ण और राइ्ट

महद हभ कृ्ण क नाभ की रनत्ठा क फाय भं व्चाय कयं त डॉ. नगनर ्


हयदमार न 'हहनदी साहह्म क इनतहास' भं शरखा ह- ''ग ऩार कृ्ण क सफध भं ऩा्चा्म
व्््ानं क अनुकयण ऩय ही बायतीम व्््ानं न बी मह शरखा हं कक '्ासुद् धभभ' ईसा

्माभसुनदयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभय गीत, ऩ.ृ 61


1

5
की रायज्बक शताज्दमं स ही दषऺण तक ऩहुच गमा था। ्ही ऩय उसका सज्भरण
आबीयं की रभभमी फारग ऩार उऩासना स हुआ। इसक ऩ्चात ् 'गीता' क ्ासुद् औय
आबीयं क फारग ऩार भं अशबननता ्थावऩत हुई तबी त ऩुयाणं भं बी ग ऩार कृ्ण की
कथाओ क र्श का सूिऩात हुआ।'' 1
रककन इस रकाय की क्ऩनाओ का क ई ऩु्ट
आधाय बी नही ् क ई ऐनतहाशसक रभाण बी नही ह।

ग ऩार कृ्ण की क्ऩना क सफध भं ऩा्चा्म व्््ानं का ्मान गमा ह औय


उनभं चरमसभन, कनडी, ्फय आहद व्््ानं न कृ्ण की फार रीराओ क राइ्ट क
फारचरयत का अनक
ु यण कहा ह। अत हभं कृ्ण ् राइ्ट क फाय भं बी जानकायी की
आ््मकता ह ्मंकक ्ह बी कृ्ण स ही स्फजनधत ह।

आबीयं क द्ता ग ऩार थ। इसी कायण ग ऩार कृ्ण की बा्ना उ्बूत हुई।
स्ब्त ग ऩार कृ्ण की बा्ना का सभम ईसा की ऩहरी औय तीसयी शता्दी क
भ्म भाना गमा ह औय महद कृ्ण ् राइ्ट क फाय भं फात की जाए त कनतऩम अरजं
न मह घ षणा की ह कक कृ्ण त क्र राइ्ट का ऩानतय भाि ह। इस फाय भं डॉ.
ब्डायकय न बी मह कहा ह कक ''आबीय जानत का 'कृ्ण' श्द ऩज्चभ भं राइ्ट का
ऩानतय ह।'' 2

र्मात रखक सननी अशष न कहा ह- ''रीकृ्ण आकृ्ट कयत हं औय मही


'कृ्ण' श्द का भूर अथभ बी ह। 'कृ्ण' भं राइ्ट' बी नछऩ हुए हं। र्भ व््मा क
राचीन द्ता्ज फतात हं कक सखा मा भिम क ऩ भं आन ्ार र गं भं स द ्मज्त
कृ्ण ् राइ्ट ््ारं क ऩ भं आ चक
ु हं। फस, कृ्ण स्ऩूणभ ह कय आए थ, राइ्ट
ऩूणत
भ ा की मािा ऩय थ।'' 3

इस रकाय ् कृ्ण ् राइ्ट भं सभानता ् शबननता द नं दखत हं। ऩा्चा्म


व्््ान मह भानत हं बज्त की बा्ना बी हहनद ु जानत क भसीही दन ह। इसक अरा्ा
बी ् राइ्ट क जी्न की घटनाओ क कृ्ण क जी्न स सा्म फतात हं। ्माभसुनदय
रार दीषऺत न अऩनी ऩु्तक भं शरखा ह- "मूनान ् य भ नन्ासी बी राइ्ट का

नगनर हयदमार : हहनदी साहह्म इनतहास, ऩ.ृ 181-182


1

सत ष ऩायाशय : हहनदी कृ्ण का्म भं बज्त ए् ्दानत, ऩ.ृ 8


2

सननी अशष : रभ की फशी फजात ह ग व्द, अहा ! जजनदगी, अक 12, ऩ.ृ 19


3

6
उ्चायण 'कृ्टॉस' स कयत हं। ईसा का जनभ अ््शारा भं हुआ औय ककसी क ऩता नही
चरा, रीकृ्ण का जनभ बी इसी रकाय अऻात ऩ स कायागाय भं हुआ। रीकृ्ण क
भाता-वऩता ्सुद् ् द्की क आकाश्ाणी न कहा कक तु्हाया ऩुि ऐस या्म का
अचधऩनत ह गा जजसका रबा् भान् जानत ऩय अननतकार तक यहगा। ईसा क जनभ स
ऩू्भ बी ऐसी ही फात द्दत
ू ं ््ाया कही गमी।'' कृ्ण क कस स फचान क शरए भथयु ा स
1

ग कुर ऩहुचामा गमा त ्ही ईसाभसीह क बी हयाड नाभक नश


ृ स याजा स फचान क
शरए शभर दश ऩहुचा हदमा गमा। द नं क उऩदशं भं बी रगबग व्य धाबास नही ह।
फाइरफर की ्जजभर औय बाग्त की ऩूतना भं बी सा्म ह। एक फाय ईसाभसीह अऩन
शश्म ऩीटय औय जॉन क एक ऩहा़ी ऩय र गम, ्हा उनक ््ि अ्मनत ््त हदखाई
दन रग। उसी तयह अजुन
भ की राथभना ऩय रीकृ्ण न बी अऩना व्याट ्् ऩ उस
हदखामा। राइ्ट न रास ऩय च़कय अऩना राण ्सगभ ककमा त रीकृ्ण क ऩद तार भं
्माध न फाण स आघात ककमा।

ऐस सा्म क दखकय ईसाइमं न त महा तक कह डारा कक शतान क उनक


ऩग्फय का हार भारूभ था कक ईसाभसीह अ्तरयत हंग इसशरए उसन ईसा क जनभ स
ऩहर ही उनक धभभ क सभान एक दस
ू या धभभ महा ्थावऩत कय हदमा। इस रकाय त
ईसाईमं न कृ्ण क शतान की सजृ ्ट फतामा। ऐनतहाशसक श ध कयन ऩय हभं मह ऻात
ह ता ह कक ईसाई र ग सफस ऩहर भरास रानत भं उतय औय ्हा क ब्त आर्ाय
र गं क स्ऩकभ भं आए तफ म ब्त कृ्ण का बजन ककमा कयत थ त शामद ईसाईमं
न अऩन धभभ की रनत्ठा क शरए ही ऐसा ककमा ह । हभायी भानमता त मह ह कक ईसाई
रचायकं न भरास रानत भं ्मा्त जानत बद स राब उठाकय अऩन धभभ क रचायाथभ
स्भरथभ त कृ्ण धभभ क शतान ््ाया स्थावऩत घ वषत कयक उसकी भानमता ख्ड-
ख्ड कयन की च्टा की। उसक ऩ्चात ् भहदय ननभाभण कयक, बजनं क ््ाया जनता क
आकवषभत कयना चाहा।

राइ्ट श्द का स्फनध कर्टं मा कृ्ण क साथ रफठाना ठीक नही हं। ईसा का
नाभ त मीशु मा जीजस ही ह। ््म मीशु न बी मह ही कहा ह ''भं राइ्ट नही हू।'' उनही
क ईसाई धभभ का स्थाऩक भाना गमा ह। अत स्भि ही उनका नाभ 'जीजस' ही शरखा

्माभसुनदयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभयगीत, ऩ.ृ 41


1

7
गमा ह। ्स री ्््टय कृत 'इनटयनशनर डड्शनयी' भं ऩ्ृ ठ 362 ऩय 'राइ्ट' श्द का
अथभ भसीहा'' फतामा गमा ह। ईसाई र ग बी इसी धायणा स जीजस क सव्मय अथ्ा
'र कयऺक' की उऩाचध स ्भयण कयत हं।

इस रकाय मह शस्ध ह जाता ह कक 'राइ्ट' त ईसा की क्र उऩाचध थी उनका


्ा्तव्क नाभ त 'जीजस' ही था, अतए् राइ्ट, कर्ट औय कृ्ण की सभानता मा
तर
ु ना कयना क्र रभ बद रऻा क फढाना ही ह।

जहा तक आबीयं की फात ह आबीय नाभक एक जानत थी ज ई््ी सन ् क ऩहर


ही उिय बायत भं फस गई थी। भथयु ा रानत इस जानत का कनर था। इस जानत क उऩा्म
द्ता 'ग ऩ कृ्ण' थ। मही जानत ऩीछ दषऺण भं परी थी औय अऩन साथ रीकृ्ण क
फा्म जी्न की कहाननमा र गमी थी। इनही क आधाय ऩय ही उस दश भं बज्त का
रसाय हुआ।

डॉ. हजायी रसाद ्व््दी का भत ह कक ''आबीयं का याजा ई््यसन ग ऩार


कृ्ण का उऩासक था ए् आग चरकय इसी ्श क आबीय याजाओ न अऩन रबा् स
ग ऩारकृ्ण क ्ासुद् कृ्ण क साथ ज ़ हदमा।'' 1

गज
ु याती व्््ान री धभाभनद जी क सा्फी न त बायतीम स्कृनत क
फफीर ननमा की दन कहा ह। ् मह कहत हं कक कृ्ण क फटीर ननमा स रामा गमा ह
औय बायत स उनका क ई बी स्फनध नही ह। रककन म सबी भानमताए स्म शस्ध
नही ह ती हं। अत अत भं हभ मही कहं ग कक व््् फध्ु ् की बा्ना स त रीकृ्ण
सभ्त व््् क हं ऩयनतु ् ककसी व्दश मा ऩयदश स आम मा राम गम नही हं। कृ्ण ्
राइ्ट का नाभ ् ऩ भं क ई साभज्म नही ह। ईसाईमं की मह धायणा ननभूर
भ रानत
ह। रीकृ्ण त व्शु्ध बायतीम हं ्ह न ककसी का ऩानतय ह औय न ही ककसी का
रनत ऩ ह।2

कुछ व्््ानं का मह व्चाय ह कक ग ऩार कृ्ण भूरत शूयसन रदश क सा््त


्जृ ्ण्शी ऩशऩ
ु ारक ऺरिमं क कुरद् थ। उनकी री़ाओ की भन हय कथाए उस रदश
भं रचशरत थी। इन भ णखक कथाओ क कारातय भं शशरारखं, र्तयं औय चचिं क ऩ

नगनर : हहनदी साहह्म का इनतहास, ऩ.ृ 24


1

्माभसुनदयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभयगीत, ऩ.ृ 46-49


2

8
भं खद
ु ्ामा। भथयु ा क सरहारम भं काशरमादभन क ृ्म स अककत एक शशरारख इसी
फात की ऩुज्ट कयता ह। याज्थान भं बी कई ्थानं ऩय कृ्णरीरा व्षमक शशरारख,
््ायऩ्ट शभर हं। फगार भं बी शभ्टी की भूनतभमं भं धनुकासुय ्ध, मभराजुन
भ उ्धाय,
भुज्टक चाणूय स भ्रमु्ध अककत ह। म सबी रभाण इस फात की ऩुज्ट कयत हं कक
ग ऩार कृ्ण की रीराओ का राइ्ट क फारचरयत स ककसी रकाय का क ई सफध नही
ह। ककनतु इतना अ््म भानना ह गा ग ऩार कृ्ण ् उनकी रीराओ का राय्ब ऩुयाणं
स ही हुआ ह।

1.1.4 रीकृ्ण और िासुदि

्ासद
ु ् कृ्ण बायतीम ऩ याणणक कथा सभह
ू क स्ाभचधक भन हय चरयिं भं स
एक हं। शताज्दमं स बायतीम जन सभद
ु ाम क भ्म उनकी कथाए अ्मचधक र कवरम
यही हं। अत इसभं क ई आ्चमभ नही की बायतीम व््माव्दं का भु्म ्मान इनही की
ओय उनभुख यहा। सु्ीया जामस्ार न शरखा ह- "्तभभान कार क ऩा्चा्म व्््ानं भं
व््सन, फफय, फाथभ, चरमसभन, गाफे, हाऩककस, जक फी, कनडी, कीथ, इशरमट, फन ्
बायत क व्््ानं भं आय. जी. ब्डायकय, आय. ऩी. चद, एस. सी. यामच धयी, ज. एन.
फनजी, डी. सी. सयकाय आहद अनक व्््ानं न व्शबनन ऩऺं स कृ्ण गाथा का
व््चन औय व््रषण ककमा हं।''1 उनकी मह धायणा थी कक ्ासुद् कृ्ण सा््त ्श
क ऩू्म ऩु ष थ ए् उनही क ््ाया ् स्भरथभ द्ता मा ई््य क ऩ भं भान गए थ।
फाद भं उनही र गं स कृ्ण ऩासना अनम र गं भं परी ककनतु कुछ व्््ानं न इस फात
ऩय सशम रकट ककमा ह। स्भरथभ ए. ग व्दाचामभ ््ाशभन ् न इस ऩय र्न उठामा।
उनकी भानमता थी कक बाग्त धभभ की उ्ऩवि बग्ान ्ासुद् स हुई, ज ्सुद् ए्
द्की क ऩुि ्ासुद् कृ्ण स शबनन थ, रककन कारातय भं म द नं अशबनन भान शरए
गए। उनकी मह धायणा ऩचयाि रथ ऩ्भति क एक अ्तयण ऩय आचरत ह, जजसभं कहा
गमा ह कक ्सुद् क ऩुि की रनतभा बग्ान ्ासुद् जस फनाई जानी चाहहए। रककन
इसका ख्डन याम च धयी न ककमा ् उनहंन कहा कक बग््गीता ज कक ''ऩ्भति' स
ऩहर का रथ ह, उसभं ्ासद
ु ् क ्जृ ्णमं का ्शज कहा गमा ह। रीकृ्ण न गीता भं
््म कहा ह-

सु्ीया जामस्ार : ््ण् धभभ का उ्ब् औय व्कास, ऩ.ृ 55


1

9
््ृ णीना ्ासुद् ज्भ। 1

ु ् हू। इसस मह शस्ध ह ता ह कक रीकृ्ण का जनभ


अथाभत ् "भं ्जृ ्णमं भं ्ासद

्जृ ्ण कुर भं हुआ था। भहाबायत भं ्ासद


ु ् श्द का अथभ मह शरमा गमा ह कक ्ह
्ासद
ु ् इसशरए कहराता ह कक ्ह सबी राणणमं क अऩनी भामा स अथ्ा अऩनी
अर ककक ्म नत स आ्छाहदत कयता ह।''

फसनानस्भबूताना ्सु््ा्द् म ननत । ्ासुद् ्तत ््म । 2

''सूमभ क ऩ भं भं अऩनी ककयणं स सभ्त व््् क ठक रता हू औय सबी

राणणमं का अचध्ास ह न स भया नाभ ्ासुद् ह।'' ऩयनतु भहाबायत भं ही एक अनम

्थान ऩय ्ासुद् क '्सुद् का ऩुि' बी कहा गमा ह औय एक कृरिभ ्ासुद् का ्णभन

बी शभरता ह ज ऩ ्रक जानत का याजा था।

इसक अरा्ा भहाबायत क बी्भ ऩ्भ अथाभत ् 65्ं अ्माम भं कहा ह कक

र्भद् न ऩु ष ऩयभ््य स राथभना की ् उनहं '्ासद


ु ्' नाभ स सफ चधत बी ककमा। डॉ.
ब्डायकय न मह कहा ह कक "्ासद
ु ् बज्त स्रदाम क र्तभक का ही नाभ था।
सर
ु शस्ध ्माकयण ऩाणणनी क एक सि
ू स मह बी ऻात ह ता हं कक ्ासद
ु ् ककसी धभभ
अथ्ा स्रदाम व्शष क उऩा्मद् थ।"3 ऩतजशर न बी ऐसा ही भाना ह ् दस
ू य सि

ऩय बा्म शरखत हुए कहत हं कक ्ासद
ु ् औय फरद् म द नं ्जृ ्ण नाभ हं। शतऩथ
रा्भण भं बी ्ा्णेम श्द आमा ह।

डॉ. सु्ीया जामस्ार न रीकृ्ण क फाय भं मही कहा ह ''कृ्ण की गाथा अनक

व्जातीम त््ं का एक साभज्मऩूणभ शभरण ह। उनक चरयि की अनक ऩता न अनक

व्््ानं का ्मान आकृ्ट ककमा ह। अत ् एक साथ ही म ्धा, धभोऩद्टा, ककसी

ऩशुऩा्म जनजानत क शशशु द्ता तथा र करचशरत कथाओ क रभ द्ता हं।'' 4

नन्कषभत हभ मह कह सकत हं कक ऩयभा्भा क '्ासुद्' भाना गमा ह। हभायी

मह धायणा ह कक रीकृ्ण क ्ासुद् की उऩाचध स व्बूवषत ककमा गमा ह गा जजस

1
रीभ्बग््गीता : अ्माम 10, ्र क 10-77
ु दयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभयगीत, ऩ.ृ 63
्माभसन
2

्ही, ऩ.ृ 63, 64


3

सु्ीया जामस्ार : ््ण्धभभ का उ्ब् ् व्कास, ऩ.ृ 58


4

10
रकाय ईसा क राइ्ट कहकय ऩक
ु ाया गमा। ्सद
ु ् क ऩि
ु ह न स रीकृ्ण क ्ासद
ु ्
कहा गमा ह जस ऩयाशय क ऩि
ु क ऩायाशय ् ऩा्डु ऩि
ु ं क ऩा्ड् कहा गमा ह। इसशरए
द्की ऩि
ु कृ्ण औय ्ासद
ु ् कृ्ण भं अचधक ्ष्म नही ह ना चाहहए। भहाबायत भं बी
कृ्ण क द नं ऩं का ्णभन हं। रीकृ्ण ही बाग्त ् धभभ क स्थाऩक थ उनक ब्त

बाग्त ् अथ्ा सा््त ् कह जात थ। ्सद


ु ् ऩि
ु ह न क साथ ही उनभ ्ासद
ु ््् तथा
र्भत्् की अ्धायणा बी की गई औय तबी ् र्भ्् ऩ, ऩण
ू ाभ्ताय ्ासद
ु ् रीकृ्ण
कह जान रग। इस रकाय ग कुर क फारकृ्ण, भधस
ु ूदन, भहाबायत क कुटनीनतऻ
कृ्ण, ््ायका क नन्ासी थ। ््ायकानाथ कृ्ण ् गीत ऩदशक रीकृ्ण एक ही ्मज्त

थ। ्ासुद् सभन्म ए् सज्भरण की रकरमा क ््ाया ही एक जनवरम द्ता रीकृ्ण

क र्भ, नायामण, व््णु क स्ाभचधक भह््ऩूणभ शज्तशारी नया्ताय रीकृ्ण क ऩ

भं भानमता शभरी।

1.2 कृ्ण क विभि्न ्िूऩ

आधनु नक हहनदी कृ्णका्म भं हभं कृ्ण क व्शबनन ्् ऩ हदखामी दत हं।

बायतनद ु हरय्चनर स रकय धभभ्ीय बायती ए् 'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' क यचनाकाय

गुराफ क ठायी तक कव्मं न कृ्ण क व्शबनन ए् न्ीन ्् ऩं की झरक अऩन

का्म भं चचरित की ह। हभ महा आधनु नक कृ्णका्म क अनतगभत छह ऩु्तकं-

वरमर्ास, कृ्णामन, रभयदत


ू , ््ाऩय, कनुवरमा ए् भं ही याधा भं ही कृ्ण आहद
का्म-कृनतमं क अनतगभत आए कृ्ण क व्शबनन ्् ऩं का अ्ममन कयं ग। जजनभं

कृ्ण क र कभगर ऩ, र्भ ऩ, र कयजक ऩ, र कयऺक मा र क ऩकायक ऩ,

ग ऩी््रब ए् याधा््रब ऩ, राजनतदत


ू ऩ, सभाज्ादी ऩ, याजनीनतऻ ऩ,

या्र ्धायक ऩ, ऩूणऩ


भ ु ष ऩ, ्ऻाननक ऩ, असुयसहायक ऩ ए् जननामक ऩ

आहद भ्
ु मत आत हं। इन सबी का सषऺ्त चचिण ही हभ महा कयं ग व््तत
ृ ्णभन
अ्माम तत
ृ ीम ए् चतथ
ु भ भं ककमा गमा ह।

1.2.1 र्म ूऩ

ऩु षं भं कृ्ण क र्भ ऩ क राथशभकता रदान की गई ह। बाग््ऩुयाण भं त

कृ्ण क ऩयर्भ तथा व््णु क अ्ताय ऩ भं ऩूजा ह। अत कव्मं न बी कृ्ण क

11
र्भ्् ऩ क अऩन का्मं भं र्तत
ु ककमा, जजसभं कृ्ण क ऩयर्भ, अर ककक,
हद्म, ई््य, व्याट आहद ्् ऩ चचरित ह। 'वरमर्ास' क अनतभगत कव् हरयऔध न

याधा क भा्मभ स उनक कृ्ण क रनत साज््क बा् ए् रभ की ऩयाका्ठा क दशाभत

हुए, याधा का अऩन वरमतभ कृ्ण क र्भ ऩ भं दखत हुए फतामा ह।

महा कृ्ण क र्भ ऩ ए् व्याट ्् ऩ द नं ृ्ट्म हं। जजसभं कृ्ण क अनक

शीश ए् र चन ह। अनक चयण ए् ह्त ह। कृ्ण की सुनदय छव् क बी कव् न

अर ककक फतामा। जहा कृ्ण क तन की श बा, सायी धयती ऩय नछटक यही थी औय

उनकी ्यदीज्त-हदशाओ क अनत तक परी हुई थी।

र्भ की काजनत तायं भं , सूमभ भं , व््मुत भं , य्नं ् भणणमं भं स्भि हदखामी

दती ह। आकाश, धयती, ्ऺ


ृ , ्ामु, ऩानी भं ज भहानता ह, ्ह बी ससाय भं ्मा्त उसी
र्भ की ह। ्ह फनध हं, ऩू्म हं, काजनतशारी हं। उस र्भा का व्धान अऩाय ह ए्

स्भि उसका ही भि गूजता ह। इसशरए कव् न याधा ््ाया मही कहर्ामा कक र्भ साय

ससाय क ऩ भं ह औय ससाय भय वरम ्माभ भं सभामा हुआ ह। भंन ई््य क बी अऩन

कृ्ण भं ही दखा ह औय सबी जगत उसी ई््य अथाभत ् भय कृ्ण की ही कीनतभ गाता ह।

उनकं शरए ऩूया व््् उनक वरमतभ कृ्ण भं ्मा्त ह तथा ऩूय व््् भं उनका राण

्माया कृ्ण ही सभामा हुआ ह। महा बी कृ्ण का र्भ ऩ, व्याट ऩ ् ई््य ऩ ही

कव् न इस छद भं अ्मत ही सुनदय ढग स चचरित ककमा ह।

भंन की हं कथन जजतनी शा्ि-व्ऻात फातं ।


् फातं हं रकट कयती र्भ ह व्््- ऩी।।
्माऩी ह व््् वरमतभ भं व््् भं राण्माया।
मं ही भन जगत ऩनत क ्माभ भं ह व्र का।। 1

'कनुवरमा' का्म भं बी धभभ्ीय बायती जी न याधा क भा्मभ स कृ्ण क

र्भ्् क रकट ककमा ह। महा याधा-कृ्ण क हद्म रभ क साथ कृ्ण का ऩयर्भ,

व्याट ए् आहद ऩु ष ऩ बी ृज्टग चय ह ता ह। 'सजृ ्ट सक्ऩ' भं याधा क कनर भं

यखकय कही गई म ऩज्तमा इसी ओय सकत कयती हं।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 16, ऩद 12


1

12
औय मह र्ाह भं फहती हुई,
तु्हायी अस्म सजृ ्टमं का रभ भहज,
हभाय गहय ्माय रगा़ व्रास,
औय अत्ृ तरी़ा की अननत ऩुनया्वृ िमा ह।
औय भय ्ि्टा/तु्हाय स्ऩूणभ अज्त्् का अथभ ह
भाि तु्हायी सजृ ्ट/तु्हायी स्ऩूणभ सजृ ्ट का अथभ ह
भाि तु्हायी इ्छा/औय तु्हायी स्ऩूणभ इ्छा का अथभ हू
क्र भं/क्र भं/क्र भं।। 1

याधा औय कृ्ण का सीभा यहहत ए् उनभु्त रभ ह। कृ्ण की सज


ृ नसचगनी ए्
जी्नसचगनी याधा न कृ्ण क अऩना सहमािी फनामा औय उनक साथ अनत तक चरन
क कहा। कनवु रमा महा कनु की हद््धू औय कार्धू बी ह।

'््ाऩय', का्म क यचनमता कव् भचथरीशयण गु्त न बी स्भरथभ कृ्ण क ही


अ्तरयत ककमा। जहा कृ्ण ््ाया कव् न कहर्ामा ह कक ऩाऩी स ऩाऩी बी महद सबी
धभं का ्माग कय भयी शयण भं आ जाए, त बी उसका उ्धाय ह जाएगा। महा कृ्ण
का गीता का उऩदशक ह ना ् ई््य ऩ द नं ्ऩ्ट ह त हं।

क ई ह , सफ धभभ छ ़ तू,
आ, फस भया शयण धय। 2

इस का्म भं 'याधा' न बी र्भ ्् ऩ कृ्ण क अऩना स्भ्् सभवऩभत ककमा।


'उ्ध्' सगभ भं उ्ध् ््ाया मश दा क कह गए ््त्म भं बी कृ्ण क 'अ्मुत'
भाना। कृ्ण क ऩयभा्भा ऩ भं मश दा क दम भं ही व्याजजत ह ना फतामा। उ्ध्
मश दा स अऩन ऩुि क रनत सबी चचता क छ ़न क कहत हं ्मंकक उनका ऩुि 'अ्मुत'
ह। ् उनहं मह बी कहत हं कक महद आऩ आ्भ चचनतन कयं त कृ्ण ऩयभा्भा ऩ भं
आऩ भं ही सभामा हुआ ह।

स्मनायामण कव्य्न न 'रभयदत


ू ' भं कृ्ण क ई््यीम ऩ क ््ीकाया ह।
महा बी भाता मश दा क जफ कृ्ण अऩन व्यह भं ्माकुर दखत हं, तफ ् ््म रभय क
ऩ भं अऩनी भाता क व्यह व्राऩ क सुनन आ जात हं।

धभभ्ीय बायती : कनुवरमा, ऩ.ृ 46, 47


1

भचथरीशयण गु्त : ््ाऩय, रीकृ्ण सगभ, ऩ.ृ 12


2

13
अनत उदास रफन आस, सफ-तन सुयनत बुरानी।
ऩूत रभ सं बयी ऩयभ दयसन ररचानी।
रफरऩनत करऩनत अनत जफ, रणख जननी ननज ्माभ।
बगत-बगत आम तफ, बाम भन अशबयाभ।
रभय क ऩ भं ।। 1

'कृ्णामन' क यचनमता ््ायका रसाद शभर जी न त अऩन भहाका्म की ऩुयाणं


क आधाय ऩय यचना की। उनहंन कृ्ण क र्भ का ही अ्ताय भाना। उनहंन इस
भहाका्म भं ्थान-्थान ऩय कृ्ण का र्भत्् ््ीकाया। उनक कृ्ण न बायत भाता
की ऩक
ु ाय ऩय तथा धभभ, स्कृनत औय सन
ु ीनत की यऺा क शरए, ऩ्
ृ ्ी का बाय उतायन,
स्जनं का ऩरयिाण कयन ् दज
ु न
भ ं क व्नाश क शरए, याभ की बानत अ्ताय शरमा।

इसक अरा्ा बी द्की क गबभ स जनभ रन स ऩ्


ू भ कृ्ण ऩयर्भ ऩ भं रकट
ह कय द्की औय ्सद
ु ् क चतब
ु ुज
भ व््णु ऩ भं दशभन दत हं।

रफनु अ्र्फ भातु वऩतु जाना, सहसा रकट बम बग्ाना।


ननशभफहह भह शशशु ्ष दयु ा्ा, ऩ चतुबुज
भ रबु रकटा्ा।। 2

र ऩदी चीय-हयण रसग भं बी र ऩदी की राज की यऺा कृ्ण ््ाया की जाती ह।


मह ृ्म बी कृ्ण क अर ककक ऩ क रकट कयता ह। महा र ऩदी कृ्ण क व्शबनन
नाभं स बी स्फ चधत कयती ह। ् कृ्ण क दीनफध,ु जगदी््य, ््ाभी, ग ऩी््रब,
भाध्, भधस
ु ूदन आहद कह कय अऩन उ्धाय ए् राज की यऺा हतु फुराती ह। मह सही
ह कक महद सभऩभण बा् स मा एक भाि कृ्ण का ही आरम रकय उनहं ऩुकाया जाए त
'ब्त््सर' बग्ान उसकी ऩक
ु ाय अ््म सन
ु त हं। मही साथभकता कव् न बी महा दन
का रमास ककमा ह।

'आय हण का्ड' क अनतगभत कृ्ण ््ाया भिम क हदए उऩदश भं कृ्ण ््म
क स्ाभनतमाभभी ् अऻम फतात हं।

ख जत ननज उय ज न अबागी, भं अऻम तात नतन रागी। 3

व्म गी हरय (स.) : रजभाधुयीसाय, स्मनायामण कव्य्न, रभयदत


ू , ऩद 28, ऩ.ृ 376
1

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, अ्तयण का्ड, ऩ.ृ 13


2

्ही, ऩ.ृ 14
3

14
अजुन
भ क हदए गए गीता ऻान भं बी कृ्ण क ऩयर्भ ए् व्याट ्् ऩ की

झाकी ृ्ट्म ह ती ह। 'गीताका्ड' भं कव् न अजुन


भ ््ाया मह बी कहर्ामा कक ''कृ्ण

आऩ ही अनत ऩ ह । मह साया व््् आऩ भं ही ्मा्त ह। आऩ ही अज्न, ् ण, मभ,

्ामु रजाऩनत, ननशाऩनत, आहद, अननत ह।'' अजुन


भ ््म बी कृ्ण क आहद द् ए्

ऩु ष ऩुयाण फतात हुए उनहं ही भ ऺ रदाता भानत हं।

आहद द् तुभ ऩु ष ऩुयाणा, तुभ महह ससनृ त ऩयभ ननधाना।


तुभही ऻम, तुभहह ऩुनन ऻाता, तुभहह ऩयभ ऩद भ ऺ रदाता। 1

गुराफ क ठायी की का्म कृनत 'भं ही याधा, भं ही कृ्ण' भं बी कव् न कही कही

कृ्ण क र्भ ऩ ् अ्तायी ऩ क उऩज्थत ककमा ह। गीता क उऩदशक ऩ भं कृ्ण

का र्भ्् बी रकट ह ता ह। साथ ही क ठायी जी न बग्ान व््णु क दस्ं अ्ताय भं

करकी अ्ताय ऩ भं धभभ की ्थाऩना हतु कृ्ण क आगभन की फात कही।

मदा मदा हह धभभ्म ्राननबभ्नत बायत।


अ्मु्थानभधभभ्म तदा्भान सज
ृ ा्महभ ्।
ऩरयिाणाम साधुना व्नाशाम च द्ु कृताभ ्।
धभभस्थाऩाथाभम स्ब्ाशभ मुग-मुग।। 2

महा गीता क इस ्र क क बी कव् न साथभकता दी ह। नन्न उदाहयण स

्ऩ्ट ह-

शष ह अबी /आना एक अ्ताय का,


करकी का / ्ही ह ग व््णु क / दस्ं अ्ताय,
कृ्ण न कहा ह -
मदा मदा हह धभभ्म
आमंग ज य / ्थावऩत कयं ग
कपय स धभभ क / व््् भं ,
भान् दम भं । 3

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, गीता का्ड ऩ.ृ 329


1

2
रीभ्बग््गीता : चतुथभ अ्माम, ्र क 7-8
गुराफ क ठायी : भं ही याधा, भं ही कृ्ण, धभभ-10, ऩ.ृ 70
3

15
क ठायी जी न 'भ ऺ' क अनतगभत हभं कृ्ण त्् का ऻान बी हदमा ह। उनहंन
सबी कभं क कृ्ण क सभवऩभत कयन ए् नन्काभ कभभम ग क शरए कहा। इस रकाय
इन सबी कव्मं न कृ्ण का ऩु ष ऩुयाण, ई््य, ऩयर्भ ए् अ्तायी ऩ का चचिण
ककमा।

1.2.2 ऱोकरऺक / ऱोकोऩकारक / ऱोकसिक ूऩ

ऩुयाणं, उऩननषदं आहद भं कृ्ण क ई््य ऩ ् र्भ ऩ क भह्् हदमा गमा


ह। भहाबायत भं बी कृ्ण ई््य ऩ भं ृ्ट्म ह त हं। आधनु नक कार क कृ्ण-बज्त
साहह्म भं कृ्ण क र्भ ्् ऩ क अरा्ा उनहं र कयऺक ् र क ऩकायक ऩ भं बी
चचरित ककमा ह। वरमर्ास भं कृ्ण का चरयि एक कतभ्मनन्ठ, र कस्क ए् आदशभ
भहाऩु ष का चरयि ह।

वरमर्ास भं कव् न कृ्ण क भहाभान्, र कस्क ् र क ऩकायक ऩ क


चचरित ककमा। इसभं उनहंन कृ्ण क ्माग ् क्ट सहन कयन हतु बी सद् त्ऩय
फतामा ह। मभुना नदी भं व्शार काशरम नाग क व्ष क कायण ऩशु-ऩऺी ् ््ार फारं
ऩय सकट आमा। मभुना का ऩानी व्षरा ह गमा। इस दर
ु ब
भ ्माचध स कृ्ण न ््जानत
फधओ
ु ऩय कृऩा की औय नाग क मभुना स बगामा। महा कृ्ण का र क ऩकायक ्
र कयऺक ऩ ृ्ट्म ह ता ह -

््-जानत की दख अती् दद
ु भ शा।
व्गहभणा दख भनु्म-भाि की।।
व्चाय क राणण-सभुह-क्ट क ।
हुए सभुिजजत ्ीय कशयी।। 1

कव् न कृ्ण ््ाया मह बी कहर्ामा कक भं सदा स्भबूत का हहत क गा।

््जानत फधओ
ु की यऺा हतु ् इनर क ्र स बी बमबीत नही ह त। कृ्ण ऩय ऩकाय हतु
सदा त्ऩय हं। कृ्ण क ही साहस स ्दा्न
ृ क र गं क कुछ बी हानन नही ह ती।

्मंकक उनक यऺक ््म कृ्ण थ। ् बमकय अधय ् तप


ू ानं स ऱन भं त्ऩय यहत।

अहीय ् ग ऩ बी कृ्ण क गुणं का फखान कयत औय कहत हं कक कृ्ण भधयु


्ाणी फ रत थ ए् सबी का क्माण चाहन ्ार थ। ् अऩना सफ-कुछ बूरकय दख
ु ी

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 11, ऩद 22


1

16
भन्ु म का द ु ख औय य चगमं की आऩदा क दयू कयत। फ़ं का स्काय कयत, ननफभर क
महद क ई सताता त ् उस नतय्कृत कयत। सबी फारकं क साथ खर खरत ्
््ाहद्ट पर णखराकय उनहं आनजनदत कयत। ् याजऩूि थ, ककनतु उनक भन भं थ ़ा-
सा बी अहकाय नही था। इस रकाय महा बी कव् न कृ्ण का र क ऩकायी ् र कयऺक
ऩ हदखामा ह।

य गी दख
ु ी व्ऩद-आऩद भं ऩ़ं की।
स्ा सद् कयत ननज-ह्त स थ।
ऐसा ननकत रज भं न भुझ हदखामा।
क ई जहा दणु खत ह ऩय ् न ह ्ं। 1

कव् न मह बी कहा ह कक कृ्ण क रज बशू भ अ्मत वरम ह, ककनतु उनहं अऩन


््ाथभ की अऩऺा र क-क्माण की अचधक चचता ह। उनहंन अऩन आऩ क ऩूणभ ऩण
र कक्माण भं रगा यखा ह, इसशरए ् अऩन भ ह ् आकाऺाओ क म गी क सभान
कुचर दत हं।

््ाथं क औ व्ऩुर-सुख क तु्छ दत फना हं।


ज आ जाता जगत-हहत ह साभन र चनं क।
ह म गी सा दभन कयत र क-स्ा ननशभि।
शर्साओ स बरयत उय की सक़ं रारसाम। 2

महा कृ्ण क म गी क सभान बी फतामा हं। कव् न ऐस ही अनक छनदं भं


कृ्ण क र कक्माणकायी ऩ क हदखामा ह, ज अन खा ् न्ीन ह। कव् न उ्ध्
््ाया मह बी कहा ह कक कृ्ण र क-क्माण क ऐस-ऐस कामभ कयत हं, जजनक सभऺ ्
सबी काभनाओ, ्ासनाओ ् इ्छाओ क बी बूर जात। ् स्च दम स र क ऩकाय क
भहान ् रती ह चक
ु हं, अत सासारयक ्ासनाओ स बी ऊऩय उठ चक
ु हं।

हरयऔध जी क इस का्म का रशस्ध छनद बी कृ्ण क इसी र कभगर ऩ मा


र क ऩकायी ऩ क दशाभता ह, जजसभं कृ्ण, याधा क स्च आ्भ्मागी की ऩरयबाषा
दत हुए, उनक व्यह भं व्धाता ््ाया 'रम का फीज' ननहहत ह ना फतात हं। मह छद
दणखए -

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 12, ऩद 87


1

्ही, सगभ 14, ऩद 22


2

17
जाना जाता भयभ व्चध क फधनं का नही ह।
त बी ह गा उचचत चचि भं मं वरम स च रना।
ह त जात व्पर महद ह स्भ-सम ग-सूि।
त ह ्गा ननहहत इसभं रम का फीज क ई।। 1

इस रकाय अनम कृ्णका्म स हटकय हरयऔध जी न अऩन इस भहाका्म भं

कृ्ण औय याधा द नं का र कस्क ् र क सव्का ऩ चचरित ककमा हं, ज ऩूणत


भ मा

न्ीन ऩ ह।

'््ाऩय' का्म क '््ार-फार' सगभ भं ग कुर क सबी ््ार-फार कृ्ण ््ाया की

गई ग ्धभन ऩज
ू ा की रशसा कयत हं। इनर क रक ऩ स ह न ्ारी, ररमकायी ्षाभ स
कृ्ण ््ाया ्नृ दा्न्ाशसमं की यऺा की जाती ह। महा कृ्ण ग ्धभन ऩ्भत क उठाकय

सबी की यऺा कयत ए् इनर क ग्भ क न्ट कयत हं। इसस रसनन ह कय ््ार-फार

कृ्ण की जम-जमकाय कयत हं। तफ कृ्ण क ् चगयधय ग ऩार, नागय-नट्य कहकय,

अऩन याजा क ऩ भं उनकी रशसा कयत हं। ् कृ्ण ऩय फशरहायी ह। कव् न कृ्ण क

महा ऩूय ्नृ दा्न का शसयभ य बी कहा ह।

'उ्ध्' सगभ भं उ्ध् मश दा क कृ्ण क फाय भं सभझात हुए कृ्ण क शशशु न

फताकय कु्य कनहमा फतात हं औय कहत हं कक ् अफ फड ह गए हं। तु्हायी गामं क

त क ई, चयाकय र आएगा ककनतु द्ु टं क न्ट कयक र कक्माण कयन ्ारा शासक

बी इस ससाय भं ्ही ह। उ्ध् न कृ्ण क कु्रमाऩी़ हाथी क भायन ्ारा ्ीय ए्

सबी क दख
ु ं क दयू कयन ्ारा दख
ु हताभ बी फतामा। इस रकाय महा बी कृ्ण, र क
क्माण हतु त्ऩय हदखाई दत हं।

'रभयदत
ू ' का्म भं बी कव् न भाता मश दा क बायत-भाता का रतीक भाना।
इसशरए मश दा ््ाया कृ्ण क फुरान का कायण बी ्मज्तगत अनुयाग न फताकय रज

की दद
ू भ शा तथा सभाज भं ्मा्त अशाजनत औय अनाचाय स रज की यऺा कयना फतामा ह।
कृ्ण, बू-बाय क उतायन, द्ु टं का दरन कयन ए् र कक्माण कयन हतु ही रज स

इतनी दयू ््ायका चर गए हं। नन्न ऩद भं कृ्ण का र कयऺक औय साथ ही र कयजक

ऩ बी चचरित ह ता ह।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 16, ऩद 40


1

18
कस भारय बू-बाय- उतायन खर दर का तायन।
व््तायन व्ऻान व्भर रुनत-सतु-स्ायन।। 1

महा मश दा अऩन ऩुि क व्यह भं रफरखती ह, ्ह ्माकुर औय व्कर ह, ककनतु


मुग क क्टं क दयू ह त सुनकय ् रसनन बी ह।

इसी तयह 'कृ्णामन' भहाका्म भं कव् न कृ्ण का अ्तयण ही बायत भाता क


ऩुकायन क कायण भाना। ्र्छ जफ बायत भं आकय, महा की धभभ, स्कृनत ए् सुनीनत
आहद न्ट कयत हं। बायतभाता उस सभम हरय क ऩुकायती ह, तफ री हरय कृ्ण अऩनी
स रह कराओ स ऩण
ू भ ह कय अ्ताय रत हं।

कृ्ण न जनभ रन क ऩ्चात ् शशशु ऩ ए् फार ऩ भं ही ्नृ दा्न ऩय आई


व्ऩनतमं क दयू ककमा। जस-काशरम नाग-भान-भदभ न भं मभुना क व्षर जर का
श्
ु चधकयण ककमा औय इनर क रक ऩ स ्नृ दा्न्ाशसमं की यऺा की। महा तक रज क
जगर भं आग रगन ऩय दा्ाज्न-ऩान कय रज की यऺा की। महा कृ्ण का रजयऺक ए्
र कयऺक ऩ हदखामी दता ह।

रज्ाशसन भूद नमन, कीनह अज्न रबु ऩान,


शसशभहट सभानी ््ार भुख, शीतर नीय सभान। 2

'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' भं बी कव् न कृ्ण ््ाया हदम गए गीता क उऩदश
भं कभभम ग, ऻानम ग ए् बज्तम ग आहद उऩदशं क जनता ऩय उनका उऩकाय ही
भाना। ससाय क र ग आज कृ्ण क इनही उऩदशं क भागभ ऩय चरकय अऩना जी्न
साथभक कय ऩात हं। इस रकाय इन कव्मं न अऩन का्म भं कृ्ण का र कक्माणकायी
ह ना चचरित ककमा ज आधनु नक ए् न्ीन ह।

1.2.3 ऱोकरं जक ूऩ

कृ्ण की फार-सर
ु ब रीराओ भं हभं कृ्ण का र कयजक ऩ ही हदखामी दता
ह। उनका ऩ स नदमभ औय नटखट रीराए र कयजक थी। उनकी रीराए ्नृ दा्न्ासी
औय उनक भाता-वऩता क आनजनदत कयती थी। 'वरमर्ास' भहाका्म भं कव् न जहा
तहा कृ्ण क स नदमभ ए् फार रीराओ का ्णभन ््ारं ए् ्नृ दा्न्ाशसमं क भा्मभ
स ककमा ह।

व्म गी हरय (स.) : रजभाधुयीसाय, स्मनायामण कव्य्न, रभयदत


ू , ऩद 12, ऩ.ृ 372
1

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, अ्तयण का्ड, ऩ.ृ 36


2

19
कृ्ण की छव् ऩण
ू भ चनर क बी रज्जत कयन ्ारी थी। कभर का स नदमभ
उनक अगं भं झरकता था। कृ्ण जफ घुटनं ऩय चरत थ, ्ह ृ्म मश दा क दम ऩी
सागय भं सुखं क जनभ दन ्ारी रहयं क सभान था।

फार कृ्ण क शयीय ऩय रगी धर


ू ऩंछत सभम कृ्ण अ्मत भ द-भ्न ह जात।
उस सभम उनकी हसी दखन ्ारं क बी फ़ा आनद ह ता था।

नमन यजन अजन भजु-सी।


छव्भमी याज ्माभर गात की।
जननन थी कय स जफ ऩंछती।
उरहती तफ ्शर व्न द की।। 1

जफ कृ्ण क चयण बूशभ ऩय ऩ़न रग। तफ उनक नूऩुय की ््नन स ऩूया घय


््ननत ह उठता था। इसका बी सुनदय ्णभन कव् न ककमा। कव् न मश दा भाता की
्भनृ तमं भं कृ्ण क नटखनऩन का भन हायी चचिण ककमा।

आ क भय ननकट रारची रार भया।


रीरामं था व्व्ध कयता धूभ बी था भचाता।। 2

््ारं ््ाया कृ्ण क गुणं क ्णभन भं कव् न कृ्ण का र कयजक ऩ चचरित


ककमा। जजसभं कृ्ण का जर भं तयना ए् कद्फ की डारी ऩय फठकय भ्न ह कय भयु री
फजान का सन
ु दय ृ्म ह।

'््ाऩय' का्म भं गु्त जी न 'मश दा' सगभ भं भाता मश दा क भा्मभ स कृ्ण


क फार ऩ की सुनदय झाकी ए् उनकी सुनदय रीराओ का ्णभन ककमा ह। भाता मश दा
फारक कृ्ण क ब जन कयाकय जी्न जीन का पर ऩा जाती ह।

गामक फन फठा ्ह, भुझस


य ता क्ठ शभरा क;
उस सुराती थी हाथं ऩय
जफ भं हहरा हहरा क
जीन का पर ऩा जाती हू,
रनतहदन उस णखरा क। 3

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 8, ऩद 41


1

्ही, सगभ 10, ऩद 42


2

भचथरीशयण ग्ु त : ््ाऩय, मश दा सगभ, ऩ.ृ 16


3

20
कव् न कृ्ण क फार ऩ भं उनक नटखटऩन क चचरित ककमा। कारीम नाग

भान-भदभ न क शरए जफ कृ्ण मभन


ु ा भं , कारी-दह भं कूद गए तफ उनक ्ाऩस र टन क
ऩ्चात ् मश दा उनहं डाटती ह। उस सभम कृ्ण अऩन सयर-सहज ््बा् ् नटखटऩन

स ज्ाफ दत हं कक ''तभ
ु भ्खन क ऊऩय छीक भं यखती ह औय जफ भंन भ्खन
चयु ामा त ्ह भटकी सहहत आ चगया औय उसी क कायण तभ
ु स फचन क शरए भं ्हा स
बाग गमा।''

कारी-दह भं तू ्मं कूदा,


डाटा त हस फ रा -
''तू कहती थी'' औय चुयाना
तुभ भ्खन का ग रा।
छीक ऩय यख छ ़गी सफ
अफ शब़-बया भठ रा!
ननकर उ़ी ् शब़ रथभ ही
बाग फचा भं ब रा ! 1

रभयदत
ू ' भं बी मश दा का कृ्ण क जन-भन-यजन स्फ धन क अतगभत कृ्ण
का र कयजक ऩ रकट ह ता ह।

जन-भन यजन स हना, गुन-आगय चचतच य।


ब्-बम-बजन भ हना, नागय नद-ककश य।
गम जफ ््ारयका।। 2

'कृ्णामन' भहाका्म भं बी कव् न कृ्ण की फार रीरा का अ्मत ही सुनदय

्णभन ककमा ह। उनहंन अऩन का्म भं फाररीरा ्णभन भं कव् सूयदास क ऩदं स सा्म

फतामा। जस- कृ्ण का भाखन खाना, चनर णखर ना भागना, मश दा ््ाया कृ्ण की

नजय उतायना, शभ्टी खाना आहद। कृ्ण क कभ खाना ककनतु भख


ु ऩय शरऩटाना। ््म
खाकय नद क णखराना औय शभचभ रगन ऩय य ना आहद रीरा जनता क भन क यजजत

कयन ्ारी ह।

भचथरीशयण गु्त : ््ाऩय, मश दा सगभ, ऩ.ृ 17


1

व्म गी हरय (स.) : रजभाधुयीसाय, स्मनायामण कव्य्न, रभयदत


ू , ऩद 12, ऩ.ृ 372
2

21
कव् न कृ्ण क कध ऩय कभरी (क्फर) औय हाथ भं रकुटी यख, ्णु फजात
हुए ग चायण र्थान कयत बी हदखामा ह। फार रीरा भं ही कृ्ण ््ाया ्न जान हतु
हठ कयना औय भाता मश दा ््ाया कृ्ण क ्न भं 'हाऊ' आन क नाभ स डयाना।

कृ्ण क फार-स नदमभ ्णभन भं कृ्ण न शयीय ऩय ऩीता्फय धायण ककमा ह।

उनक ऩयं की ऩामर नझन


ु - नझन
ु ््नन कयती ह। कृ्ण क भद
ृ र
ु कऩ र ए् सन
ु दय
नमन अ्मत ही आकषभक ह, ज जनता क भन क आनजनदत कयत हं।

कठ फघनखा कठुरा याजत, ्माभ शयीय ऩीत ऩट राजत।


श शबत शीत रार च तननमा, नझुन फजत ऩा् ऩंजननमा।। 1

इस रकाय कृ्ण क फार ऩ की झाकी जनता क भन क रुबान ्ारी ह। जजसका

्णभन इन आधनु नक कव्मं ््ाया ककमा गमा।

1.2.4 साधारण मानि ूऩ

आधनु नक कव्मं न कृ्णका्म भं कृ्ण क भहाऩु ष ऩ भं चचरित कय अऩन


का्म भं न्ीनता ए् भ शरकता राए ह। इनक कृ्ण र्भ क अ्ताय न ह कय एक
भहाऩु ष ऩ भं अककत हुए। ््म हरयऔध जी न अऩन भहाका्म 'वरमर्ास' की
बूशभका क अनतगभत शरखा ह - ''भंन रीकृ्णचनर क इस रथ भं एक भहाऩु ष की बानत
अककत ककमा हं, र्भ कय क नही।''2 इस तयह ्ऩ्ट ह कक महा कृ्ण साधायण भान्
ऩ भं ही र गं ऩय उऩकाय कयत हं। इस का्म भं कृ्ण औय कृ्ण कथा द नं क कव् न
आधनु नक फनामा ह। अत महा नायामण का भान् ऩ भं चचिण न ह कय भान् का
नायामण ऩ भं चचिण हुआ ह। कृ्ण अ्बूत जनहहतकायी ए् साहसी कामभ कयत हं,
जजसस जनता उनक रनत आकृ्ट ह। महा कृ्ण क अर ककक ् हद्म कामभ बी भान्
दम क शरए अ््ाबाव्क नही ह। हरयऔध जी न अऩनी क्ऩना कुशरता क फर ऩय
उन अर ककक घटनाओ क स्भथा ््ाबाव्क ए् व्््ासऩण
ू भ ऩ हदमा। जस-ग ्धभन-
धायण कयन ्ारी घटना भं कृ्ण का ई््य्् हदखाई दता ह, ककनतु महा कव् न बमकय
्षाभ क कायण कृ्ण क , ्माकुर रज्ाशसमं क फ़ धमभ ् साहस क साथ ग ्धभन
ऩ्भत क ऊच ्थान ऩय ऩहुचात हुए ए् हदन-यात एक कय उनकी यऺा कयत हुए हदखामा

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, अ्तयण का्ड ऩ.ृ 20


1

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, रथ का व्षम, ऩ.ृ 30


2

22
ह। महा कव् न कृ्ण क साहसी ् साधायण ऩ भं हदखामा ह। इसी रकाय दा्ानर
्ारी घटना भं बी कृ्ण क अज्न-ऩान कयत हुए फतामा जाता ह, ककनतु कव् न कृ्ण
क कामं क साधायण भान् क ््ाबाव्क कामभ का ऩ हदमा औय अज्न ऩान कयन क
फजाम ग ऩं क जगर की आग स फचान का रमास कयत हदखामा ह।

अरूय ््ाया कृ्ण क ग कुर स भथयु ा र जान ऩय भाता मश दा व्््र ह


उठती ह। तफ बी कृ्ण क धमभ धायण कय भाता स मान ऩय फठन की आऻा भागन भं
उनका साधायण भान् ऩ ही ृ्ट्म ह ता ह। कृ्ण रभ क रतीक हं औय स्ऩूणभ
भान्ीम गण
ु ं क ननधान हं। कव् न कृ्ण का रजजनं ऩय कृऩा कयना, याजऩि
ु ह न ऩय
बी ग्भ न कयना, ््मस्क फन रज क कामभ कयना ् ग ऩं क दख
ु दयू कयन ्ार कृ्ण
क सबी भान्ीम गुणं स ऩूणभ फतामा हं। कृ्ण क र क ऩकाय भं बी एक साधायण भान्
की छव् हदखामी दती ह।

उ्ध् ््ाया ग वऩमं क कृ्ण क व्षम भं कहा गमा कक ् ससाय ए् र गं क


हहत की काभना कयत हं, उनहं अऩन राणं स बी अचधक व््् का रभ ्माया ह। कव् न
न्ीन ढग स इस भहाका्म भं कृ्ण क साधायण भान् ऩ रदान ककमा ज कक हभायी
फ्
ु चध ््ीकाय कयती ह। कव् न ऩय्ऩयागत व्चायधाया क अनस
ु ाय फकाहद क असयु मा
याऺस ऩ भं नही हदखामा ्यन ् उनहं द्ु ट जनतुओ मा आधी, तूपान क ऩ भं हदखामा
ताकक कृ्ण का भान्ीम ऩ ्हा साथभक ह सकं।

'कनवु रमा' का्म भं बी बायती जी न कृ्ण क इनतहास का सजभक ् जगत ् का


कणभधाय भानत हुए, याधा ् कृ्ण क रभ क व्शश्ट रभ भाना। कृ्ण का रभ साय
ससाय स ऩथ
ृ क, व्शश्ट रभ ह। जजस याधा क बी सभझन भं कहठनता हदखाई दती ह।
महा कृ्ण का रभी ह ना साधायण भान् ऩ क बी ्म्त कयता ह।

महा याधा का बी द्ी ऩ की अऩऺा भान्ीम ऩ अचधक उबया ह, ्ही कृ्ण


क ्रानत ् असभथभ हदखान भं बी कृ्ण का साधायण भान्ीम ऩ ्ऩ्ट चचरित ह ता
ह। महा कृ्ण णखनन, उदासीन, व्ज्भत औय आहत ह कय हदखामी दत हं। अत ्
साधायण ऩु ष क ऩ भं ृज्टग चय ह त हं। कृ्ण क याधा स्ऩण
ू त
भ ा का र बी सभझती
ह ्मंकक ् याधा का रणाभ ््ीकाय नही कयत। महा बी कृ्ण एक र ककक ऩु ष क ऩ
भं हदखाए गए हं।

23
'््ाऩय' का्म भं ग्ु त जी न कृ्ण क फार ऩ ए् ्ीय ् साहसी र्नृ त क साथ
कृ्ण का साधायण भान् ऩ र्तुत ककमा ह। 'मश दा' सगभ भं मश दा अऩन ऩुि कृ्ण
क फर्ीय ए् साहसी र्वृ ि क साथ कृ्ण की फु्चधभिा का बी ्णभन कयती ह। महा
मश दा कृ्ण क शरए कहती ह-

उसका र क िय साहस सुन


राण सूख जाता ह। 1

एक भा क दम भं अऩन ऩि
ु क रनत म व्चाय उ्ऩनन ह ना ््ाबाव्क ह। कही
कही कृ्ण की फार ऩ की छव् बी उनक साधायण भान् ऩ क चचरित कयती ह।

भय ्माभ-सर न की ह,
भधु स भीठी फ री?
कुहटर अरक ्ार की आकृनत
ह ्मा ब री-बारी। 2

'रभयदत
ू ' का्म भं बी कृ्ण की फार रीराओ की ्भनृ तमा उनक फार ऩ क
साकाय कयती हं। कव् न कृ्ण क सा्र-सर न ऩ, नट्य-नागय, भाखन च य,
भुयरीधय, ग ए चयान ्ार नद क रारा क ््ाबाव्क चचिण भं उनका साधायण भान्
ऩ चचरित ककमा ह। मश दा की ्भनृ त भं कृ्ण जफ भाखन खाकय तभार ्ऺ
ृ स हाथ
ऩंछ दत थ। भाता मश दा उसी ्ऺ
ृ ऩय कृ्ण क बागकय आन का आबास कयती ह। एक
साधायण फारक इसी तयह नटखट ह ता ह। मश दा क व्दश भं यहन ्ार अऩन ऩि
ु क
ब जन की चचनता बी ह ती ह। ्ह रात भ्खन ननकारत सभम बी कृ्ण का ्भयण
कयती ह। ् मह बी स चकय चचनतत ह ती ह कक कही भया रार (कृ्ण) बूख त नही यहता
ह।

'कृ्णामन' भहाका्म भं बी कृ्ण क फार ऩ भं उनकी फार सुरब करमाओ भं


उनका साधायण भान् ऩ हदखामी दता ह। जस-भाखन खाना, भुह ऩय भाखन शरऩटाना,
चनर णखर ना भागना, 'हाऊ' क नाभ स डयना, मश दा ््ाया कृ्ण की नजय उतायना
आहद। इनही क अनतगभत कव् न कृ्ण क साधायण शशशु की बानत अऩन ऩय का अगुठा

भचथरीशयण गु्त : ््ाऩय, मश दा सगभ, ऩ.ृ 18


1

्ही, मश दा सगभ, ऩ.ृ 17


2

24
भह
ु भं रत हुए हदखामा ह, ज भन क आनजनदत कयन ्ारा ृ्म ह। कृ्ण ््ाया अऩन
ऩय का अगूठा भुह भं रना उनक साधायण फारक ऩ क रकट कयता ह।

मचु धज्ठय ््ाया ककए गए याजसम


ू -मऻ भं रथभ ऩज
ू ा क शरए कृ्ण क ही सबी
सबासद म ्म भानत हं ्मंकक कृ्ण सबी भान्ीम गण
ु ं स ऩरयऩण
ू भ थ। महा सबी
कृ्ण की ऩूजा हतु कहत हं ् उनकी रशसा कयत हुए उनहं अर-ऩू्म भानत हं। ् मह बी
भानत ह कक इस ऩूय ससाय न कृ्ण क अरा्ा अर ऩू्म ह न का अचधकायी क ई नही ह।
ऩा्ड्ं का त कृ्ण क रनत इतना रभ था कक ् अऩन कृ्ण क रफना भ्ृ मु का ्यण
उचचत सभझत हं। महा बी कृ्ण का साधायण भान् ऩ ्ऩ्ट ह ता ह।

'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' का्म भं कृ्ण ््ाया कभभम ग क उऩदश भं उनका
साधायण भान् ऩ बी ृ्ट्म ह ता ह ्मंकक एक कभभशीर भान् ही ऐसा उऩदश दन
भं सऺभ ह। उनहंनं मह बी कहा कक कभभ ही भनु्म का बा्म फनाता ह।

इस रकाय उऩमु्
भ त आधनु नक का्मं क कव्मं न ककसी न ककसी भा्मभ स
कृ्ण क साधायण भान् ऩ क अऩन का्मं भं चचरित ककमा ह। मह मथाथभ बी ह कक
कृ्ण का अ्तयण जफ धयती ऩय हुआ ह त ्ह भान् ऩ भं ही हुआ ह, ककनतु उनक
उ्च कभं ए् स्ऩण
ू भ भान्ीम गण
ु ं क कायण ही ् आज ई््य क ऩ भं ऩज
ू जात हं।
कृ्ण न बी सही कहा ह कक कभभ ही भन्ु म का बा्म फनाता ह। इसशरए अऩन श्
ु ध
कभं क कायण ही आज ् र क भं ऩूजनीम फन हं। व््् भं ्ही ्मज्त ऩूजा जाता ह
मा स्काय ऩाता ह ज नन्््ाथभ बा् स सबी का भगर कयता ह ् र क-स्ा कयता ह।

1.2.5 गोऩीि्ऱि या राधाि्ऱि ूऩ

कृ्ण स्भवरम थ। ् रज््रब ह न क साथ ही ग वऩमं ए् उनकी रमसी याधा


क वरम बी थ। आधनु नक कव्मं न उनक इस ऩ क बी अऩन का्म क अनतगभत
चचरित ककमा ह।

'वरमर्ास' भं कव् न कृ्ण क र कस्क ऩ क साथ ही याधा का बी


र कसव्का ऩ अककत ककमा। महा याधा र्मक ्थान ऩय कृ्ण का ्भयण कयती ह
ककनतु अतत ् बी कृ्ण की रभ बा्ना स ऩूणभ ह उनही का अनुगभन कयती ह औय
र कक्माण क शरए र कसव्का फन जाती ह। तबी त ् कहती ह -

25
्माय जी्ं जगहहत कयं , गह चाह न आ्ं। 1

याधा का कृ्ण क रनत रभ बी अगाध था। उनहं कृ्ण इतन ्माय हं कक कृ्ण क

भथयु ा न जान हतु ् उऩाम स चती ह। उऩाम न शभरन ऩय स चती ह मह यािी ही कबी ना

रफतं , त हभाय राण ्माय रज क ्माग कय नही जाऐग।

वरमर्ास भं कव् साभूहहक ्ाताभ स क्र एक फाशरका (याधा) की व्यह ्दना

क एकानत भं चचरित कयत हं। महा कृ्ण का याधा््रब ऩ ृ्ट्म ह ता ह। महा याधा

क जह
ु ी की करी, चभरी आहद स फात कयत हुए औय व्यह ्दना रकट कयत हुए
हदखामा गमा ह।

याधा कृ्ण की रशभका ह औय कृ्ण स शभरन क ्माकुर ह। उ्ध् बी जफ


याधा क इस अननम रभ क दखत हं त उनका दम बी बज्त-बा् स बय जाता ह। महा
कृ्ण बी याधा स मही कहत हं कक ह ! राणं क आधाय, शीर ् ऩव्ि रभ की रनतभा द्ी
याधा, व्धाता न ्मं भुझ तुभस व्रग कय हदमा। सुख राज्त ् ब ग की इ्छाए फ़ी
ही आकषभक ् भधयु ह ती ह, ककनतु ह वरम ! ससाय क राणणमं क क्माण की आशा हभं
अचधक वरम ह। अत महा कृ्ण ् याधा क रभ भं र क ऩकाय की बा्ना अ्मचधक रफर
ह। याधा कृ्ण का सदश सन
ु कय मही कहती ह, कक वरम जीव्त यहं औय ससाय का
क्माण कयत यह। घय चाह आ्ं मा न आ्ं। कृ्ण का ऩ याधा क रकृनत भं बी हदखाई
दता ह, ्मंकक ् कृ्ण क व््भत
ृ नही कय ऩाती। रकृनत भं बी कृ्ण क दखकय ्
शाजनत औय आनद रा्त कयती ह। महा कव् न याधा क ऩयभवरम कृ्ण का व्व्ध बानत
चचिण ककमा ज कृ्ण क याधा््रब ऩ क दशाभता ह।

इसी तयह कृ्ण रजजनं क बी जी्नाधाय ् राण्माय थ। राण्माय कृ्ण का


्दन (भुख) दखकय ही रज क र ग जी यह थ। ज अफ उनहं ख कय अ्मत दख
ु ी ह। महा
कृ्ण का रज््रब ए् ग ऩी््रब ऩ चचरित हुआ हं।

ग ग ऩी क सकर रज क ्माभ थ राण ्माय।


्मायी आशा सकर ऩुय की र्न बी थी उनही की। 2

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 16, ऩद 98


1

्ही, सगभ 8 ऩद 4
2

26
याधा की बानत ग वऩमं क बी कृ्ण की ् सबी फातं माद आती ज ् रकृनत क
दखत हुए कहत थ। उनहं कृ्ण क साथ यारि सभम ककमा गमा ्न-व्हाय, ्हा दखी
कृ्ण की अर ककक छव् ए् फासुयी का भादक सगीत आहद ्भरयत ह जाता ह। महा
कृ्ण का ग ऩी््रब ए् रज््रब द नं ही ऩं का कव् न अ्मनत ही सुनदय ढग स
चचिण ककमा ह।

'कनुवरमा' का्म भं कृ्ण का याधा््रब ऩ व्शषत हदखाई दता ह। इस


का्म भं याधा की बा्ा्भक तनभमता ए् कृ्ण क रनत उनक रभ की ऩयाका्ठा का
्णभन ह। याधा, कृ्ण क 'कन'ु नाभ स स्फ चधत कयती ह। कृ्ण उनक रभी ह न क
साथ ही सखा, फध,ु शशशु, आया्म, हद्म ् सहचय आहद भं ह, त याचधका बी कृ्ण की
सखी, साचधका, भा, ्धू ए् सहचयी ह। याधा कबी कहती ह कक कनु भया अतयग सखा
ह। कबी कहती कानह, भया यऺक, भया फध,ु भया सह दय, भया भनत्म, आया्म ् र्म
ह, औय जफ कृ्ण याधा की सखी क साभन उनहं छ़त हं त ् कहती हं- कानह ! भया
क ई नही ह।

याधा न कृ्ण क धभभ, कभभ ् श्दं स ऩय यखा ह। ् तनभमता क ऺणं भं कृ्ण


क अधयं की क्ऩना कयती हं। महा कृ्ण का याधा््रब ऩ हदखाई दता ह। याधा,
कृ्ण स ऩूछती ह कक महद उसका रभ अथभहीन, अस्म ् ऺणणक था, त कपय साथभक
्मा ह? साथ ही याधा मह बी जानती ह कक कृ्ण क ऩास इसका क ई उतय नही ह। कृ्ण
क कभभ, ््धभभ, ननणभम, दानम्् आहद श्द बी याधा तक आत-आत फदर जात हं औय
उस क्र याधन ् याधन ् ही सुनाई दता ह। महा बी कृ्ण का याधा््रब ऩ ृ्ट्म ह ता
ह।

गु्त जी न अऩन '््ाऩय' का्म भं बी कृ्ण क द नं ऩ चचरित ककए हं। 'याधा'


सगभ भं याधा बी कृ्ण क अऩना स्भ्् सभवऩभत कय उनकी शयण भं जाती ह। ् कृ्ण
ऩय ही अऩन सबी धभभ नम छा्य कयती ह। याधा का एकभाि सहाया कृ्ण ह अत ् उनही
क ऩान की इ्छा यखती ह। 'ग ऩी' सगभ भं बी ग वऩमं क ््ाया याधा ् कृ्ण क रभ क
फतामा ह। उनहंन कृ्ण क याजा, ग़ऩनत, दख
ु ् व्ऩविमं क हयन ्ारा फतामा। महा
कही-कही कृ्ण क याधा््रब ऩ क बी दशभन ह त हं।

ग वऩमं न महा याधा क रभ की ऩयाका्ठा फताई तथा याधा का कृ्णभम ह ना


औय कृ्ण का याधा ऩ ह ना बी फतामा ह। महा कृ्ण ् याधा क एक ही फतामा गमा ह-

27
मह ्मा, मह ्मा रभ मा व्रभ/
दशभन नही अधूय/
एक भूनतभ आध भं याधा आध भं हरय ऩूय ! 1

'उ्ध्' सगभ भं ग वऩमं क रनत उ्ध् क कृ्ण ग ऩी््रब ऩ भं ृज्टगत


ह त हं, ्मंकक ग वऩमा कृ्ण क अ्मचधक रभ कयती ह औय उनही क दशभन की रतीऺा
भं ह। महा उ्ध् क सबी ग वऩमं भं एक याधा हदखामी दती ह औय याधा भं कृ्ण ऩ
ृ्ट्म ह त हं।

'रभयदत
ू ' का्म भं बी कव् न कृ्ण क 'याधा्य' स्फ चधत ककमा ए् याधा की
्दना की। साथ ही रज-भनबा्न कहकय कृ्ण का रज््रब ऩ बी चचरित ककमा।
महा कृ्ण क यशसक शशय भणण, भन-हयण कयन ्ारा, आनद का ऩुज औय यगीरा बी
फतामा ह।

'कृ्णामन' भहाका्म भं त कव् न याधा््रब कृ्ण का चचिण बी


आ्माज्भक ्तय ऩय कयामा ह। महा कव् न याधा का ऩयकीमा न भानकय ््कीमा
भाना। ्मंकक याधा क रथभ दशभन भं कृ्ण क ऺीय-सागय की ्भनृ त ह आती ह।

महा कव् न याधा-कृ्ण भं बद नही भाना। याधा भं 'कृ्ण तथा कृ्ण भं याधा
अथाभत ् कृ्ण का याधाभम ह ना ् याधा का कृ्णभम ह ना ््ीकाय। तबी कृ्ण ््ाया
कहर्ामा ह-

याधा भाध् शभरन अनूऩा, हरययाधा, याधा हरय - ऩा। 2

कृ्ण ्नृ दा्न भं स्भवरम थ। ग वऩमा बी कृ्ण क अऩन घय आकय भाखन


खान की भन ही भन अशबराषा यखती। कव् ््ाया महा कृ्ण का ग ऩी््रब ऩ
हदखामा गमा ह।

कृ्ण क रभ भं भ्न ग वऩमं क अऩनी सुध-फुध बी नही यहती। ् जफ कुछ


््तु फचन ननकरती ्हा बी ््तु का नाभ न रकय 'रहु ्माभ' कहती। कृ्ण जहा याधा
औय अऩन भं कुछ बदबा् नही भानत ्ही ग वऩमा बी कृ्ण क रभ की भ्ती भं डूफी
हुई यहती। इस रकाय महा कव् न हभं कृ्ण क द नं ही ऩं का दशभन कयामा ह।

भचथरीशयण गु्त : ््ाऩय, ग ऩी सगभ, ऩ.ृ 133


1

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, गीताका्ड, ऩ.ृ 294


2

28
'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' का्म भं गर
ु ाफ क ठायी जी न का्म की बशू भका भं

रकृनत औय ऩु ष क अ्भधनायी््य ऩ भाना। उनहंन कहा हं- ''महा एक शज्त ह त

एक शज्तभान हं। उनहंन कृ्ण क शज्तभान ऩ, त याधा क उनकी शज्त का ऩ

हदमा हं। इनहं अरग नही ककमा जा सकता। कृ्ण महद सूमभ हं त याधा ककयणं ् यज्भमा

हं।''1 इसशरए कव् न जी्न क सभझन का ऩहरा स ऩान मही फतामा हं कक हभ अऩन

बीतय क इन शज्त औय शज्तभान द नं क दख सकं, उनक ्् ऩ क सभझ सकं

साथ ही मह बी सभझ सकं कक महद कृ्ण क ऩाना ह, त हय राणी क याधा फनना ही

ऩ़गा। चाह ्ह नय ह मा नायी। अत महा बी कही न कही कृ्ण का याधा््रब ऩ

ृ्ट्म ह ता ह।

1.2.6 रा्रो्धारक ूऩ

आधनु नक कव्मं न कृ्ण क र क ऩकायक ऩ क साथ या्र उ्थान की काभना

शरए उनका या्र ्धायक ऩ बी चचरित ककमा। व्शष ऩ स कृ्णामन ए् रभयदत



का्म भं । कृ्णामन भं जहा कृ्ण का अ्तयण ही बायतभाता क ऩुकायन ऩय हुआ, त

रभयदत
ू भं रज अथाभत ् बायत की यऺा क शरए मश दा ््ाया कृ्ण क फुरामा जाता ह।

'कृ्णामन' भं 'गीताका्ड' भं कृ्ण ््ाया हदए गए उऩदशं भं बी उनका उ्द्म

अजुन
भ क या्र क उ्थान हतु ररयत कयना ह, ताकक अजुन
भ भ ह क ्माग, म्
ु ध क शरए
तमाय ह ।

'बरयदत
ू ' का्म भं कव् न बायत की ्तभभान ज्थनत क ्ऩ्ट ककमा। कव् न
मश दा ््ाया रभय क हदए गए सदश भं दश की ्तभभान ज्थनत क सुधायन क शरए
कृ्ण क रज अथाभत ् बायत आन का सदश हदरामा ह। मश दा ् कहती ह - आज दश की
्तभभान ज्थनत फदर चक
ु ी ह। ््दशी ्श, बाषा ् धभभ का ऩरय्माग कय, सभाज
ऩा्चा्म स्मता का अनुकयण कयना चाहता ह। ज्िमा बी अऩन गुण-नरता, शीर,
सक च का ्मागकय अहकाय भं बयी हुई इधय-उधय इतयाती हुई-सी घूभती ह। मश दा मह
बी कहती ह- जफ कृ्ण रज भं थ, तफ अनत्जृ ्ट क कायण कृ्ण न ग ्धभन ऩ्भत धायण
कय ्नृ दा्न, ््ारं ए् ग ओ की यऺा की उसी रज भं कृ्ण क अबा् भं आज अकार

गुराफ क ठायी : भं ही याधा, भं ही कृ्ण, बूशभका


1

29
ऩ़ यहा ह। अथाभत ् कव् न मह कहना चाहा कक सश्त नता क अबा् भं ्््छाचारयता
औय र्टाचाय फ़ यहा ह। अत कृ्ण का या्र क हहत हतु ्दा्न
ृ आना आ््मक ह।

महा ्दा्न,
ृ बायत का रतीक तथा मश दा बायत भाता का रतीक ह। अत महा
बायत भाता ही बायत की दद
ू भ शा सुधायन क शरए कृ्ण क फुराती ह, ्मंकक कृ्ण ही
या्र का उ्धाय कयन क शरए सभथभ ह। रभयदत
ू क ऩद 38 भं कव् न दफ
ु र
भ ् व्कृत
सभाज की ज्थनत क फतामा ह। अत रज की दद
ू भ शा क सुधायन हतु कृ्ण क फुरामा
जाता ह। महा कृ्ण का या्र ्धायक ऩ व्शषत कव् ््ाया ्णणभत ककमा गमा ह।

'््ाऩय' का्म भं 'फरयाभ' सगभ भं फरयाभ कभभ क भह्् दत हुए, कृ्ण का


उऩदश दत हं औय राजनत क शरए ग ऩं क कृ्ण का ही सदश सुनाकय तमाय कयत हं।
महा कृ्ण का चचनतक ऩ ए् न्ीन मग
ु रणता ऩ ए् या्र ्धायक ऩ बी हदखामी
दता ह। फरयाभ ग ऩं क कृ्ण क ्ीयताऩण
ू भ ककए गए कामं क फतात हं। मह बी फतात
हं कक अफ बी कृ्ण ्नृ दा्न क सकट क दयू कयन हतु त्ऩय ह। महा बी कृ्ण क
या्रहहत हतु त्ऩय हदखाकय कव् न उनक या्र ्धायक ऩ क रकट ककमा ह।

'वरमर्ास' भहाका्म भं बी ऩय ऩकाय की बा्ना क ही कृ्ण क चरयि की


रभुख व्शषता फतामा ह। जानत, सभाज ् दश क उ्थान की बा्ना क कायण ही ्
अ्मनत र कवरम थ। उनका भथयु ागभन बी या्र ए् दश्ाशसमं क उ्धाय कयन हतु
ही हुआ। कृ्ण क भथयु ागभन ऩय रज क र गं क दख
ु ह ता ह। उनक कृ्ण रज ्श क
उजार, गयीफं का ऩयभ धन, निं का ताया ए् फारकं क सखा ह। ् किभ्मऩयामण
्मज्त हं।

या्र ्धायक ए् र कक्माण क शरए ही ् रज औय अऩनी रमसी याधा स दयू


हुए ह। कृ्ण या्र ्धाय हतु ही भथयु ा गभन कयत ह। अत महा बी कव् न कृ्ण क
या्र ्धायक ऩ क अऩनका्म भं चचरित ककमा ह। 'कनुवरमा' भं कृ्ण या्र क उ्धाय,
इनतहास ननभाभण हतु ही मु्ध सचाशरत कयत हं। महा कृ्ण की ्भनृ तमं भं डुफी याधा क
कृ्ण ्््न भं मुदध ् भुरा भं आतुय, भ्म्थ, तट्थ ् मु्धयत हुआ दखती ह।

कव् न कनुवरमा भं कृ्ण क इनतहास ननभाभता, मुग रणता ए् सज


ृ नकताभ बी
फतामा ह इस रकाय उऩमु्
भ त का्म भं कृ्ण का या्र ्धायक ऩ बी कव्मं न चचरित
ककमा ह।

30
1.2.7 रा््िदि
ू ूऩ

'राजनत' अथाभत ऩरय्तभन, कृ्ण कई रथाओ, यीनत-रय्ाजं भं राजनत राए।


अधभभ का उ्थान ह ता दख ् धभभ की स्थाऩना क शरए बी राजनतदत
ू क ऩ भं र्तत

ह त हं। इनर क ग्भ क न्ट कयन क शरए उनहंन इनर ऩूजा क ्थान ऩय, ग ्धभन ऩूजा
क भह्् हदमा। इसी तयह ्नृ दा्न भं उनक फार ऩ भं बी राजनतदत
ू ऩ का चचिण
हुआ तथा भहाबायत मु्ध त इस ऩ का चयभ था। महा कृ्ण न धभभ की ्थाऩना क
शरए मु्ध क उचचत भाना ए् राजनत क आ््मक भाना।

'वरमर्ास' भं कव् न कृ्ण क भहाभान् फतामा ह। कृ्ण रज भं रगी बीषण


आग भं ््जनं की यऺाथभ ््म ही नही गए ्यन ् उनहंन इसक शरए अऩन सखाओ मा
अनम ््ार फारं क बी ररयत ककमा। सबी ग ऩं क मह कहा कक ््जानत क सकट स
उफायना ही भनु्म का स्भ-रधान धभभ ह। महा ऩय कृ्ण का राजनतदत
ू ऩ बी चचरित
हुआ ह। कृ्ण न र ककक ऩ भं चभ्काय क भह्् नही दकय ््ारं का नत्ृ ् ककमा
ए् उनहं ््जानत-उ्धाय, व्ऩवि स यऺण ए् असहाम जी् की सहामता कयन हतु
ररयत कय एक नई राजनत राए।

महा कृ्ण राजनत हतु ग ऩं क '्ीय' स्फ चधत कयत हुए, ््जानत की बराई
ए् यऺा क शरए ररयत कयत हं। इस रकाय कव् न महा कृ्ण क राजनतदत
ू ऩ क
चचरित ककमा ह।

फ़ कय ्ीय ््-जानत का बरा।


अऩाय द नं व्ध राब ह हभं ।
ककमा ््-किभ्म उफाय ज शरमा।
सु-कीनतभ ऩाई महद ब्भ ह गई।। 1

'कनुवरमा' का्म भं बी कृ्ण, मुगननभाभता ए् दाशभननक हं, जजनहंन अजुन


भ क
््धभभ, कभभ, दानम्् ् ननणभम का ऩाठ ऩ़ाकय कभभम गी फनामा ए् या्र-हहत हतु
मु्ध क शरए ररयत ककमा। ् महा बी राजनतदत
ू क ऩ भं र्तुत हुए। ककनतु इनतहास
क नकायती हुई याधा कृ्ण स ऩछ
ू ती हं कक महद उसका रभ अथभहीन, अस्म ् ऺणणक
था, त कपय साथभक ्मा ह ? तुभ भुझ सभझा द कृ्ण जजस तयह स तुभन मु्ध की
साथभकता का ऻान अजुन
भ क हदमा।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 11, ऩद 87


1

31
कव् न याधा क भा्मभ स कृ्ण क अठायह अऺ हहणी सना क साथ म्
ु धयत
बी हदखामा ह। अत महा बी कव् न कृ्ण क नत्ृ ्कताभ क साथ राजनत क दत
ू क ऩ
भं चचरित ककमा ह।

'््ाऩय' भं बी कव् न 'फरयाभ' सगभ भं फरयाभ क कृ्ण का उऩदश दत हुए


फतामा हं। ् ग ऩं क कृ्ण क फार्ीय ऩ का ्भयण कयात हुए, राजनत क शरए कृ्ण
का सदश सुनात हं। महा ््म फरयाभ बी राजनतकायी नता क ऩ भं चचरित ककए गए
हं।

'रभयदत
ू ' भं कव् न रभय का आगभन न्ीन ढग स ककमा। महा रभय क रनत
मश दा क उराहनाऩूणभ ्चन न ह कय ््दश रभ ए् जातीम-उ्थान की काभना यही ह।
मश दा या्र क उ्धाय क शरए औय बायत भं एक न्ीन राजनत रान क शरए कृ्ण क
्ाऩस ्नृ दा्न अथाभत ् बायत भं फर
ु ाती ह। महा कव् न मश दा क भा्मभ स या्रीम
चतना ए् या्रीम जागनृ त का ््य हदमा ह। मह राजनत रान ्ार कृ्ण ही ह। जफ भाता
मश दा ्नृ दा्न की दद
ू भ शा ए् कृ्ण क व्म ग स रफरखती ह, त ््म कृ्ण अऩनी
अऩनी भाता की ्दना सुनन क शरए रभय क ऩ भं उनक ऩास आत हं।

महा कव् न कृ्ण औय रभय भं सभानता बी फताई ह। रभय का शयीय बी कृ्ण


क सभान ह। रभय का गुजन कयना औय कृ्ण ््ाया भधयु भुयरी फजाना, रभय क शयीय
ऩय ऩीरी यखा का ह ना औय कृ्ण ््ाया ऩीता्फय धायण कयना आहद सभानताए कव्
््ाया फताई गई ह। अत महा कृ्ण रभयदत
ू क साथ ही राजनतदत
ू ऩ भं बी चचरित
हुए हं।

'कृ्णामन' भहाका्म भं शभर जी न कृ्ण क राजनतदत


ू क साथ ही भहाबायत
मु्ध न ह इसशरए ऩा्ड्ं की ओय स शाजनतदत
ू फनकय क य्ं क ऩास बजा। ककनतु
दम
ु ोधन की हठधशभभता क कायण मु्ध का ह ना ननज्चत ह जाता ह। कृ्ण महा
धभाभनुयागी ए् शाजनतदत
ू ऩ भं चचरित हुए ह। कृ्ण ््म कहत बी हं-

वरम न ऩा्डु-सुत, वरम भ हह ्मागा, वरम भ हह शीर, धभभ-अनुयागा।


X X X
उचचत सभय नहह सभयहह हतू, धभभ यहहत यण ऩाऩ ननकतू। 1

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, गीता का्ड, ऩ.ृ 267


1

32
शाजनत का म्न नन्पर ह जान ऩय कृ्ण म्
ु ध कयन का ननणभम रत हं। ् धभभ
की ्थाऩना क शरए राजनत का आ््ान कयत हं औय अजुन
भ क भ ह ह न ऩय उस म्
ु ध
कयन ् राजनत रान हतु ररयत बी कयत हं। कव् न 'गीता का्ड' भं इसका ्णभन ककमा ह

महा कृ्ण राजनतदत


ू ऩ भं बी चचरित हुए हं। कृ्ण, गीता का्ड भं रीभ्बग््गीता

की बानत ऻान म ग, फ्
ु चधम ग, बज्तम ग ए् कभभ म ग का उऩदश बी दत हं।

कभभ-म ग रफनु अनत कहठन, रहफ ममाथभ। सनमास,


रहत शीर मनत र्भऩद, जाहह म ग-अ्मास।

इसी रकाय 'भ ही याधा, भं ही कृ्ण' ख्ड का्म भं बी कव् न कृ्ण क कभभम ग,
ऻान म ग ् बज्तम ग क फतामा ह।

अत वरमर्ास, रभयदत
ू , ््ाऩय, कनवु रमा ए् कृ्णामन आहद का्म भं
कव्मं न राजनतदत
ू ऩ भं कृ्ण क र्तुत ककमा ह। 'भं ही याधा, भं ही कृ्ण' का्म भं
कृ्ण का राजनतदत
ू ऩ न ह कय गीताऩद्टा ऩ ही चचरित हुआ ह।

1.2.8 समाजिादी या समाजसुधारक ूऩ

कृ्ण का जहा जनता ऩय उऩकाय कयना, जनता की यऺा कयना आहद दानम््
यहा ह, त ्ही सभाज भं कुयीनतमं, कुरथाओ ए् सभाज क कुकभं क सुधायन भं बी
उनकी बशू भका यही ह। कव्मं न कृ्ण क नत्ृ ्कताभ क साथ सभाजसध
ु ायक क ऩ भं
बी अऩन का्म भं र्तुत ककमा ह। 'वरमर्ास' भहाका्म भं कव् हरयऔध जी न कृ्ण
क अहहसा का व्य ध कयत हुए हदखामा ह। महा कृ्ण सभाज उ्ऩी़क, अहहसक,
््जानत क शिु, भनु्म क र ही ए् ऩाऩी क ऺभा न कयक, उस भायन क शरए कहत हं।
कृ्ण क ऐस ही सभाज्ादी ऩ का चचिण कव् न इस रकाय ककमा ह। नन्न ऩदं क
दणखए -

सभाज-उ्ऩी़क ध्भभ-व््र्ी।
््जानत का शिु दु त ऩारकी।
X X X
ऺभा नही ह खर क शरम बरी।
सभाज-उ्ऩी़क द्ड म ्म ह। 1

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ, 13 ऩद 80-81


1

33
इसशरए कृ्ण ््ाया कई द्ु ट असयु ं का ्ध ककमा जाता ह ज सभाज ् जनता
क द ु ख दत हं। कव् न कृ्ण क दख
ु ी सभाज क सुखी कयत हुए हदखामा ह। महा कृ्ण
््म क्ट सह रंग ककनतु जहा र क का राब ननहहत ह गा ्ह कामभ ् अ््म कयं ग।
महा बी कव् न कृ्ण का सभाज्ादी ऩ चचरित ककमा ह।

हाथं भं ज वरम-कु्य क नम्त ह कायमभ क ई।


ऩी़ाकायी सकर-कुर का जानत का फाध्ं का।
त ह क बी दणु खत उसक ् सुखी ह कयं ग।
ज दखंग ननहहत उसभं र क का राब क ई। 1

'रभयदत
ू ' का्म भं कव् न कृ्ण का सभाज्ादी ऩ चचरित न कयक, मश दा क
त्कारीन बायतीम नायी की सभाज भं ज्थनत का रतीक भाना हं, मश दा अऩन व्दश

गए ऩि
ु क ऩि शरखना चाहती ह, ककनतु ् ननयऺय ् अनऩढ ह न क कायण कृ्ण क
ऩि नही शरख ऩाती। सभाज भं उस सभम ्िी-शशऺा का व्य ध ह ता था। मश दा ््ाया

्िी शशऺा क व्य धी की ब्सभना की जाती ह। महा बी कव् न सभाज्ाद क ही चचरित

ककमा ह।

'कृ्णामन' भहाका्म भं शभर जी न कृ्ण क सभाज-सुधायक ऩ क र्तुत

ककमा ह। कव् न कृ्ण क चरयि क रीभ्बाग्त ् क अनुसाय आदशभ ऩ भं चचरित

ककमा ह। अत कुछ घटनाए ज उनक चरयि क हीन फताती ह, उन घटनाओ क बी कव्

न सश धन कयक र्तत
ु ककमा ह।

'चीय-हयण रीरा' ्ार रसग भं कृ्ण एक सभाज-सुधायक क ऩ भं ृ्ट्म ह त

हं। ्मंकक ् जर भं न्न ्नान कयन ्ारी ग वऩमं क पटकाय रगात हं। कृ्ण कहत

हं-

कहहु हरयहु- ''ज रागनत राजा, ््ि उतायत ननत कहह काजा ?
न्न नीय तुभ कीनह र्शू, हभहह सुना्त अफ उऩदशू। 2

इस रकाय उऩमु्
भ त का्मं क अनतगभत कृ्ण का सभाज सध
ु ायक ऩ र्तत

ह ता ह।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ, 14 ऩद 29


1

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, अ्तयण का्ड, ऩ.ृ 38


2

34
1.2.9 राजनीतिऻ ूऩ

कृ्ण का मह ऩ सफस र कवरम ऩ ह। ् साधायण भान् ह न क साथ कुशर


याजनीनत व्शायद थ। या्म कामभ भं उनकी कुटनीनतऻता औय दयू दशशभता सयाहनीम ह।
भथयु ा स ््ारयका र्थान, जयासध ्ध औय ऩूय भहाबायत मु्ध भं कृ्ण का कुशर
याजनीनतऻ ऩ रकट ह ता ह। अत आधनु नक कव्मं न बी अऩन का्मं भं कृ्ण क
इस न्ीन ऩ क चचरित ककमा ह। 'कृ्णामन' भहाका्म भं कृ्ण का मह ऩ भ्
ु मतमा
्णणभत हं। महा कृ्ण अऩनी याजनीनतऻता क कायण ही, भहाबायत मु्ध भं द व्क्ऩ
यखत हं जजसभं एक तयप ् ््म रफना हचथमाय क र्तुत ह, त दस
ू यी तयप उनकी
अठायह अऺ हहणी सना ह। महा दम
ु ोधन सहामता भागन हतु ऩहर उऩज्थत ह ता ह,
ककनतु स्भरथभ अजुन
भ क दखन का कायण फताकय, ् अजुन
भ क ऩहर अऩनी भाग
यखन आऻा दत हं। महा कृ्ण का याजनीनतऻ ऩ कव् न चचरित ककमा ह।

'गीता का्ड' क साथ 'जमका्ड' भं बी उनका कुशर याजनीनतव्शायद ऩ


ृ्ट्म ह ता ह। कुशरनीनतऻ ह न क कायण ही ् अऩनी सभ्त सनाए क य्ं क दत
हं। ््म कु ऺि मु्ध भं ऩा्ड्ं का साथ दत हं। इसक अरा्ा भहाबायत मु्ध की
स्ऩूणभ गनतव्चधमं का सचारन ् अऩनी कुशरनीनतऻता स कयत हं। महा तक की
'गीता का्ड' भं अजुन
भ क भ ह ह न ऩय बी कृ्ण ््ाया नन्काभ कभभ कयन का उऩदश
हदमा जाता ह।

'््ाऩय' का्म भं 'ग ऩी' सगभ भं ग वऩमा कृ्ण क सगुण ऩ क भह्् दती ह।।
उनक शरए याधा म चगनी ह औय कृ्ण म चगयाज। कही-कही ऩय उनहंन उस साकाय कृ्ण
क ननयाकाय ऩ भं बी फतामा ह। भथयु ा जान क फाद कृ्ण अफ याजनीनत का खर खरन
भं ऩरयऩ्् ह गए, इसशरए ् साकाय स अफ ननयाकाय बी ह गए। महा बी कृ्ण का
याजनीनतऻ ऩ ृ्ट्म ह ता ह-

याजनीनत का खर ्हा ह
सू्भ-फु्चध ऩय साया;
ननयाकाय सा हुआ ठीक ही
्ह साकाय हभाया ! 1

भचथरीशण गु्त : ््ाऩय, ग ऩी सगभ, ऩ.ृ 118


1

35
इसी तयह कव् न 'सद
ु ाभा' सगभ भं कृ्ण क ््ायकाधीश ऩ भं उनक शासक ऩ
ए् याजनीनतऻ ऩ क बी चचरित ककमा ह। ््ायकाधीश ऩ चचरित कयत हुए, कव् न

सद
ु ाभा ््ाया कहरामा ह कक उनका कृ्ण ज ्दा्न
ृ भं व्हाय कयता था, आज ््ायका

का याजा ह। ऩहर ज कारी कभरी धायण कयता था, अफ ऩीता्फयधायी ह। ऩहर भ य-

भक
ु ु ट जजसक भ्तक ऩय श शबत था, अफ ्ह य्नं का भक
ु ु ट धायण कयता ह। ग ऩं क
साथ यहन ्ारा, आज ऩरयष् की श बा फ़ाता ह। थ ़ी सी छाछ क शरए ज ग वऩमं क

स्भुख नाचता था, आज याजनीनतक आदश दता ह। अफ उसक हाथ भं भुयरी नही ्यन ्

शासक चर ह।

तननक छाछ स जजस ग वऩमा


नाच नचामा कयती;
याजनीनतमा आ उसक घय
अफ ह ऩानी बयती। 1

महा कृ्ण ््ारयकाधीश फनन क फाद सुदाभा क शभि कृ्ण स शबनन ह गए ह

ए् याजनीनतक दा्-ऩच यचन ्ार ह गए हं।

वरमर्ास' भं त कृ्ण ््म ही भानत हं कक ् भथयु ा भं आकय याजनीनत क

ऩच़ भं चगय गए ह अत ् रज बूशभ का क्र ्भयण ही कय सकत हं। साथ ही

कतभ्मऩयामण ह ना बी उनहं रज बशू भ जान स य कता ह।

ऩचीर न् याजनीनत ऩच़ ज ््


ृ चध हं ऩा यह।
मािा भं रज-बूशभ की अहह ् ह व््नकायी फ़।। 2

'वरमर्ास की टीका' ऩु्तक क रखक न कृ्ण क याजनीनतऻ ऩ क रकट

कयत हुए मह कहा कक "कृ्ण क जसा याजनीनतऻ ससाय भं क ई नही हुआ तबी त ्

आज क सभम भं अ्ताय क ऩ भं चगन जात हं।"3

इस रकाय उऩमु्
भ त का्मं भं ही कृ्ण का याजनीनतऻ ऩ कव्मं न र्तत

ककमा ह। ्ा्त् भं कृ्ण का याजनीनतक ृज्टक ण आज क मग
ु भं बी रासचगक ह।

भचथरीशण ग्ु त : ््ाऩय, सद


ु ाभा सगभ, ऩ.ृ 143
1

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 9, ऩद 6


2

र्भणदि ग तभ : वरमर्ास की टीका, ऩ.ृ 256


3

36
1.2.10 जननायक ूऩ

जनता का नामक मा र क नामक ्ही ह ता ह, ज सभम सभम ऩय जनता की


यऺा कयन क साथ ही उनहं साहसी कामभ कयन हतु उनका नत्ृ ् कयता ह। जनता क
व्ऩनत का साहस ऩू्क
भ साभना कयन हतु ररयत कयता ह। जननामक कृ्ण भं म सबी
गुण व््मभान थ, इसी कायण आधनु नक कव्मं न बी कुशर नत्ृ ्कताभ, आदशभ नता,
र कनामक मा जननामक क ऩ भं कृ्ण क अऩन का्म भं अककत ककमा ह। कृ्ण
््ाया ््-जानत क हहत कयन हतु ए् अऩन कतभ्म ऩारन हतु ््ारं का ननदे शन ककमा
जाता ह। महा कृ्ण उनक नता क ऩ भं हदखाए गए ह, ज व्ऩवि क सभम बी उसका
साभना कयन हतु ््ारं स कहत हं। व्ऩवि क सभम ््ारं की फु्चध जफ न्ट ह जाती
मा ् रभ भं यहत, तफ कृ्ण क ननदे श स ही ् कपय स सच्ट ह त।

अत हुए र ग ननतानत रानत थ।


व्र ऩ ह ती सुचध थी शन शन ।
रजागना-््रब क ननदश स।
स च्ट ह त बय ् ऺणक थ। 1

कृ्ण न ््ारं ् ग ऩं क भहानता की शशऺा दी। उनहंन ऩशुओ जस भनु्म क


बी सही अथं भं भन्ु मता की सीख दकय भन्ु म फना हदमा। महा कृ्ण का आदशभ ऩ ्
जननामक ऩ ृ्ट्म ह ता हं।

अऩू्भ आदशभ हदखा नय्् का।


रदान की ह ऩशु क भनु्मता।
शसखा उनहंन चचि की सभु्मता।
फना हदमा भान् ग ऩ ्नृ द क । 2

््ारं न बी कृ्ण क व्नीत, सयर भधयु बाषी औय ऩयहहत चचनतक ह न आहद


््बा् क फाय भं फतामा। आचामभ धनजम क अनुसाय ऐस गुणं स मु्त ्मज्त क
रथभ रणी क नता क ऩ स जाना जाता हं।3 नन्न ऩद भं बी कृ्ण का जननामक ऩ
चचरित हुआ ह।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, एकादश सगभ, ऩद 93


1

्ही, िम दश सगभ, ऩद 24
2

र्भणदि ग तभ : वरमर्ास की टीका, ऩ.ृ 292


3

37
महद अनशन ह ता अनन औ र्म दत।
ज-रशसत हदखाता औषधी त णखरात।
महद करह व्त्डा्ाद की ््
ृ चध ह ती।
्ह भृद-ु ्चनं स त उस बी बगात। 1

'््ाऩय' का्म भं बी कृ्ण ््ाया ग ्धभन ऩ्भत अऩनी उगरी ऩय उठाकय इनर
क रक ऩ स रज्ाशसमं की यऺा कयन भं उनका जननामक ऩ ही हदखाई दता ह। उ्ध्
््ाया बी मश दा क कृ्ण क फाय भं सभझामा जाता ह कक अफ कु्य कनहमा फ़ ह
गए। ् इस ससाय भं द्ु टं क न्ट कयन ्ार ए् कुशर शासक हं।

'रभयदत
ू ' का्म भं कव् न रभय क भा्मभ स कृ्ण ऩय ्म्म नही ककमा औय
न ही ननगुण
भ र्भ का ऻान कयामा ह। इसभं कृ्ण ््म अऩनी भाता क दख
ु क सन
ु न
आत हं औय मश दा भाता बी या्र-हहत हतु ही कृ्ण क ऩुकायती ह। कव् न मश दा क
व्यह-्णभन भं बायत-भाता का क ण रनदन सुनामा ह। इसभं या्रीमता का सभा्श
ह न क कायण कृ्ण क हद्म ऩ की अऩऺा र कनामक ऩ का उ्घाटन हुआ ह।

मश दा क उ्फ धन भं कव् न कृ्ण का नता ऩ बी दशाभमा ह। ग कुर भं अफ


कृ्ण जस नता क अबा् भं ््ारं का ऩथ-रदशभन कयन ्ारा औय उनहं ््तिता,
सभानता ए् रात्ृ ् की बा्ना शसखान ्ारा बी क ई नही ह। मश दा क इस कथन भं
बी कृ्ण का जननामक ऩ ही हदखामी दता ह।

्ा रफनु क ््ारनु क हहत की फात सुझा्।


अ ््तिता, सभता, सहरातत
ृ ा शसखा्।।
2

कृ्ण क अबा् भं ्दा्न्ासी


ृ मा बायत्ासी अऩन दख
ु ं क सहन कय यह हं।
बम क कायण उनक दम बी सकुचचत ह गए। क ई बी अऩनी जातीम उ्थान क रनत
सजग नही ह। मह सबी र कनामक मा कुशर नता क अबा् भं ह यहा ह। अत महा बी
मश दा क भा्मभ स कव् न कृ्ण का जननामक ऩ रकट ककमा ह।

'कृ्णामन' भं बी कृ्ण हभं सपर जन नता क ऩ भं हदखाई दत हं। उनहंन


्थान-्थान ऩय ऩा़््ं क नत्ृ ् रदान ककमा। फार ऩ भं बी ्, ््ार-फार भ्डरी
क नता ही थ, जजनहंन अऩन साचथमं क कई व्ऩदाओ स फचामा। इस भहाका्म भं

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 13


1

ू , ऩद 40, ऩ.ृ 378-379


व्म गी हरय (स.) : रजभाधुयीसाय, स्मनायामण कव्य्न, रभयदत
2

38
कृ्ण या्र की एकता औय उनननत क शरए हभशा रम्नशीर नजय आत हं। भहाबायत
मु्ध क उऩयानत मुचधज्ठय क भन भं उ्ऩनन आ्भ्रानन औय ्या्म बा् क बी
कृ्ण क सदऩ
ु दश क भा्मभ स दयू ककमा जाता ह। इसक अरा्ा अजुन
भ क भ ह क बी
कृ्ण ््ाया हदए गए गीता उऩदश स त ़ा जाता ह। अत महा कृ्ण का जननामक ऩ
चचरित हुआ ह।

द्ु शासन जफ र ऩदी का चीय-हयण कयता ह तफ सबा भं फठ इतन भहाऩु षं


््ाया बी र ऩदी की राज की यऺा नही की जाती। थक हायकय र ऩदी कृ्ण क ऩुकायती
ह तफ कृ्ण ््ाया ही र ऩदी की राज की यऺा की जाती ह। महा कृ्ण का मह ्् ऩ
अ्मत ही आकषभक फन ऩ़ा ह। महा भु्म नामक ही कृ्ण हं। शभर जी न इसका अ्मत
ही सन
ु दयता स ्णभन बी ककमा ह।

कषभत हहठ द्ु शासन चीया, फढउ ्सन रणख चककत अधीया।
कषभत जस जस रयस करय बायी, तस तस फ़नत र ऩदी-सायी।। 1

'जमका्ड' भं बी ऩा्ड्ं की व्जम क अनतगभत कृ्ण का नामक्् ही र्तुत


हुआ ह। 'कनुवरमा' भं कृ्ण क इनतहास का सजभक ् जगत ् का कणभधाय भानत हुए कव्
न उनक जननामक ऩ क बी हदखामा ह। इस रकाय इन का्मं क अनतगभत कव्मं न
कृ्ण क र कनामक ए् जननामक ऩ भं र्तुत ककमा ह ज कृ्ण क चरयि क स्भथा
अनुकूर हदखाई ऩ़ता ह।

1.2.11 गीिोऩद्टा ूऩ

गीता क उऩदशक क ऩ भं कृ्ण अचधकाश का्मं भं चचरित हुए हं। अजुन


भ जफ
मु्ध कयन क शरए भना कयत हं, तबी कृ्ण ््ाया अजुन
भ क ज उऩदश हदमा जाता ह
्ही गीता का उऩदश कहराता ह। कृ्ण का मही ऩ गीत ऩद्टा ऩ कहराता ह।

'कृ्णामन' क 'गीताका्ड' भं शभर जी न कृ्ण क इसी ऩ का चचिण ककमा ह।


महा कृ्ण ््ाया फु्चधम ग ् कभभम ग का उऩदश हदमा जाता ह। महा कृ्ण ही अ्मम,
अव्नाशी, ऩयफ्भ क ऩ भं व््मभान ह। इसशरए ् अजुन
भ क क न ककस भायता ह
औय ककसका ्ध नही ह ता ह मा ह ता ह, इन सफ भं ऩयभा्भा की ही इ्छा ननहहत ह ती
ह, मह सभझात हं।

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, ऩूजा का्ड ऩ.ृ 240


1

39
अ्मम, अव्नाशी अजहु, नन्म ज जानत माहह,
कस स कहह कय ्ध कयत, फध्ा्त स काहह ? 1

इसी तयह गीता का्ड भं कृ्ण क ई््य ऩ क साथ उनक व्याट ऩ क बी

दशभन ह त ह। महा अजुन


भ कृ्ण क व्याट ऩ क दखकय ही कहत हं-

तुभहह अनत ऩ ! मह साया, ्माऩउ ननणखर व्््-व््ताय।


अज्न, ् ण, मभ, ्ामु, रजाऩनत, रनतताभह तुभ, तुभहह ननशाऩनत।। 2

'भं ही याधा, भं ही कृ्ण' का्म भं बी क ठायी जी न कृ्ण का गीत ऩद्टा ऩ ही


चचरित ककमा। जजसभं कव् न कृ्ण क कभभम ग, ऻानम ग ए् बज्तम ग क सभझात
हुए कृ्ण क म ग््य बी कहा।

महा कव् न कृ्ण क अनास्त कभभम गी ऩ क अऩन का्म भं चचरित ककमा।


कृ्ण ््म त अनास्त थ ही उनहंन गीता भं अऩन इसी गुण क सफक शरए रहणीम
बी फनामा। कृ्ण का कभभम ग फतात हुए कव् न कहा बी ह-

कह गमा कृ्ण त / कभभ कयत यह ,


भत यख इ्छा / पर ऩान की
पर नही ह / तु्हाय हाथ भं
ऩता बी नही / शभरगा कफ
कुदयत दती ह / पर कभं क। 3

'कनुवरमा' भं बी कृ्ण मुगननभाभता हं, जजनहंन अजुन


भ क ््धभभ, कभभ, दानम््
् ननणभम का ऩाठ ऩ़ाकय कभभम गी फनामा। याधा इनही कृ्ण क अजुन
भ की तयह ््म
क सभझान क शरए कहती ह। महा कृ्ण का गीत ऩद्टा ऩ बी ृ्ट्म ह ता ह। याधा
््म कृ्ण क कहती ह-

अजुन
भ की तयह कबी
भुझ बी सभझा द
साथभकता ह ्मा फधु? 4

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, गीता का्ड, ऩ.ृ 304


1

्ही, ऩ.ृ 330


2

गुराफ क ठायी : भं ही याधा, भं ही कृ्ण, धभभ 9 ऩ.ृ 60


3

धभभ्ीय बायती : कनुवरमा, ऩ.ृ 74


4

40
'वरमर्ास' क कृ्ण भहाबायत क कृ्ण नही ह न क कायण कव् न उनका
गीताऩद्टा जस ऩ का कही ्णभन नही ककमा ह। अत उऩमु्
भ त का्म कृ्णामन, भं ही
याधा, भं ही कृ्ण, ए् कनुवरमा भं ही कृ्ण क इस ऩ का चचिण हुआ ह।

1.1.12 िऻातनक ूऩ

आधनु नक मुग भं हुए अनक श ध रथ क भा्मभ स हभं कृ्ण का मह न्ीन ऩ


्ऻाननक त्् ऩ क फाय भं बी जानकायी शभरती ह। कव् गुराफ क ठायी जी न अऩन
रथ 'कृ्ण त्् की ्ऻाननकता' भं कृ्ण क ्ऻाननक शस्धानत क ऩ भं गीता
व्ऻान क साथभक ऻान भाना ह। उनहंन कृ्ण क अ्मम भाना ह। क ठायी जी कहत हं-
''कृ्ण ््म क अ्मम ऩु ष कहकय बी अऩना सजृ ्ट भूर ्ऩ्ट कय यह हं, ्ऻाननक
शस्धानत क ऩ भं । इसका अथभ ह कक गीता क्र आचधब नतक मा आ्माज्भक
धयातर की ही फात नही कय यही, आचधदव्क धयातर की बी सायी ऩ यखा उसभं
सभाहहत ह। तबी कृ्ण मह बी कहन क अचधकायी फन जात हं कक 'भभ् अश जी्
र क।' कृ्ण क ्ऻाननक त्् की तयह दखना ऩहरी आ््मकता ह। जफ कुछ नही था,
ररम कार भं , तफ कृ्ण था। अधकाय था, कृ्ण (कारा) सफ कुछ था। व््णु स भ र क
क अचधऩनत कह गए हं औय कृ्ण स भ्शी। ऩयभज्ठ र क ही सजृ ्ट का उ्गभ ्थर ह,
मही ग र क ह....। महद हभ ग स नही जु़ त कृ्ण क अश कस ह सकत हं। ज
करमाकराऩ ऩयभज्ठ र क भं ह त यहत हं ् साय ही हभं कृ्ण क जी्न भं बी ह त हुए
हदखाई दन चाहहए। तबी त हभं उनका अ्ताय ऩ सभझ भं आ सकगा।'' 1

इस रकाय कव् न कृ्ण क अ्मम ए् ्ऻाननक त्् क ऩ भं ््ीकाया ह।


जहा तक हभ कृ्ण की रीराओ क दख त महा बी हभं कई ्थानं ऩय कृ्ण का
्ऻाननक ऩ हदखाई दता ह। कृ्ण की ग ्धभन रीरा रसग क अनतगभत हभ मह भान
सकत हं कक उनहं ब-ू व्ऻान का अ्छा ऻान था, इसशरए ्नृ दा्न की ब ग शरक
व्शषता क ्भनृ त भं यखत हुए ग ्धभन ऩ्भत क ग चायण म ्म भाना ए् उस ही अनन
उऩजाऊ ऺि भानकय उनकी ऩूजा कयन का व्चाय यखा। कृ्ण न ग कुर ्ाशसमं क
अधव्््ास ऩय बी य क रगामी औय र्मऺ ऩय व्््ास कयन ऩय फर हदमा। महा कृ्ण
का र कनामक्् बी चचरित ह ता ह ्मंकक उनही क ््ाया ररयत ककए जान ्ार ््ारं
््ाया बी मह कामभ ककमा गमा।

गुराफ क ठायी : कृ्ण त्् की ्ऻाननकता, रा्कथन


1

41
डॉ. जमा वरमदशशभनी श्
ु र न अऩन श ध आरख 'रज स्कृनत औय रज र क
साहह्म भं आधनु नक फ ध' क अनतगभत कृ्ण ््ाया की गई कारीमा भान-भदभ न रीरा
क कृ्ण ््ाया मभुना जर का शु्चधकयण कयना भाना।1 कृ्ण जानत थ कक व्षर
सऩभ क मभुना भं ह न क कायण जर-रदवु षत ह यहा ह। अत उस व्षर सऩभ क ्हा स
फाहय ननकारन ऩय ही जर का श्
ु चधकयण ह गा। इस रकाय महा बी कृ्ण का ्ऻाननक
ऩ ्ऩ्ट ह ता ह।

 समाहार
कृ्ण अऩन सभम क र्ठ भान् थ। उनक ्मज्त्् की कई व्शशता ए्
गण
ु ं क कायण ही ् कई ऩं भं हभं ृ्ट्म ह त हं। कृ्ण क अ्ताय भानन ऩय उनका
र्भ ऩ, अर ककक ऩ ए् ऩूणऩ
भ ु ष ऩ हदखाई दता ह, त कही जनता की यऺा ए्
उनक दख
ु ं क दयू कयन ऩय र क ऩकायक ऩ बी हदखता ह। फाररीरा क अनतगभत
उनका य ना, इधय-उधय द डना, चनर णखर ना भागना, हठ कयना, भाखन खाना आहद भं
् जहा साधायण फारक हदखत हं त कही ग ऩ-ग वऩमं, भाता-वऩता ए् याधा क भन क
भ हन ्ार कृ्ण उनक अटूट रभ क म ्म फन, अऩन स नदमभ ए् आकषभक रीराओ स
् ग ऩी््रब ए् याधा््रब बी हं। कृ्ण या्र क उ्थान हतु हभशा त्ऩय हं, ् अऩन
सभाज क क्माण की काभना यखन ्ार हं। या्र ऩय आई व्ऩवि क दयू कयन हतु ्
राजनत क दत
ू बी फन जात हं त मु्ध क य कन क रमास भं शाजनतदत
ू फनकय क य्ं
क ऩास बी चर जात हं।

कृ्ण जहा ब्तं ऩय कृऩा कयन ्ार ब्त ््सर हं त याऺसं मा असयु ं का
नाश कयन ्ार असुय सहायक बी हं। कृ्ण जननामक हं, उनहंन ्नृ दा्न भं जहा ््ार
भ्डरी का नत्ृ ् ककमा ्ही भहाबायत मु्ध का नत्ृ ् बी उनहंन ही सबारा। ् कुशर
याजनीनत-व्शायद हं। अनक याजनीनतक दा्ऩं च यचकय उनहंन कई द्ु ट याजाओ का
नाश ककमा औय भहाबायत मु्ध भं बी अऩनी अऺ हहणी सना क य्ं क दी ए् ््म
अजुन
भ क नत्ृ ् रदान कयन हतु उसक सायथी फन गए। अजुन
भ क मु्ध न कयन क
ननणभम ऩय उनहंन उस ऻान ् उऩदश हदमा औय गीत ऩद्टा फन। इन सबी ऩं क
आधनु नक कव्मं न अऩन का्म भं चचरित ककमा ह। इनक अरा्ा बी कृ्ण का

जमा वरमदशशभनी शु्र : रज स्कृनत औय रज र क साहह्म भं आधुननक फ ध, हहनदी का


1

कृ्ण बज्त का्म औय आधुननकता की अ्धायणा, (याज्थान रजबाषा अकादभी, जमऩुय


््ाया 27 पय्यी, 2016 क आम जजत या्रीम सग ्ठी भं ऩहठत आरख)

42
फार ऩ, नटखट ऩ, फर्ीय ऩ मा फर्ान, ऩ, कृ्ण की स नदमभ छव्, याजसी मा
शासक ऩ, धभभ रनत्ठाऩक ऩ, असूयसहायक ऩ ए् ््ायाकाधीश आहद ऩ बी
आधनु नक कव्मं क का्मभं ृ्ट्म ह त हं।

कृ्ण क फार ऩ की सुनदय झाकी 'कृ्णामन' भहाका्म भं शभरती ह, जजसभं


कृ्ण का ऩीता्फय धायण कयना, उनकी नझुन फजती हुई ऩामर, भद
ृ र
ु कऩ र सुनदय
नमन आहद चचरित ह। इसी तयह उनक फार ऩ भं उनका नटखटऩन बी चचरित हुआ ह।
जस भाखन मा शभ्टी खाना ककनतु भाता मश दा स झूठ फ रना, चनर णखर ना भागन क
शरए हठ कयना आहद।

फर्ीय मा फर्ान ऩ क अनतगभत कृ्ण ््ाया फारऩन भं अनक असयू ं का


फरऩू्क
भ साभना कय उनका ्ध कयना आहद रीराए आती ह। 'वरमर्ास' भं कृ्ण
््ाया तण
ृ ा्तभ याऺस क भायन क ऩ्चात ् कृ्ण सबी ्नृ दा्न ्ाशसमं क इस रकाय
हदखाई हदए-

रकृनत शानत हुई ्य ्म भ भं ।


चभकन यव् की ककयणं रगी।
ननकट ही ननज सुनदय सहन क।
ककरकत हसत हरय बी शभर। 1

असुयं का ्ध कयन क ऩ्चात ् बी ् हसत हुए हदखाई दत हं। कृ्ण ््ाया

शकटासुय, रर्फ, अघासूय, तण


ृ ा्तभ, ््सासुय, फक ् धनुक आहद असुयं का सहाय
ककमा गमा। अत महा कृ्ण का असुय सहायक ऩ रकट ह ता हं। उनहंन शशशु ऩ भं ही

ऩुतना, ज उनहं भायन आई थी, उसका बी उ्धाय ककमा।

आधनु नक कव्मं न कृ्ण क स नदमभ चचिण बी अ्मत सन


ु दय ढग स ककमा ह।

भ य भुकुट, ऩट ऩीत धत
ृ , ्नभारा अशबयाभ,
्ादत ्शी धरय अधय, क हट काभ छव् ्माभ। 2

'््ाऩय' का्म भं कस क कृ्ण स बम ह न क कायण ्ह कृ्ण क भ यभुकुट

धायण कयन ऩय कृ्ण क शासक ऩ भं ही दखता ह।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 2, ऩद 44


1

््ायका रसाद शभर : कृ्णामन, भथुया का्ड ऩ.ृ 125


2

43
कृ्ण क सन
ु दय रराट ऩय अनऩ
ु भ छि श बा दता ह, स्क गण सन
ु दय च्य
ढुरात हं, ् स न क फन भन हय गहनं क धायण ककए हुए ह, जजनभं हद्म रकाश स

म्
ु त य्न ज़ हुए हं। कृ्ण क भथयु ा भं जान ऩय याजसी ऩ की मह छव् बी अ्मत

भन हायी ह।

शशय ऩय उनक ह याजता छि नमाया।


सु-चभय ढुरात हं, ऩाट ह य्न श बी।1

धभभ की ्थाऩना ए् अधभभ क नाश हतु उनहंन गीता का उऩदश हदमा। अजुन
भ क

म्
ु ध हतु ररयत ककमा। उनका धभभस्थाऩक ऩ बी कव्मं न ्णणभत ककमा ह। इसी क

साथ कृ्ण जफ ्नृ दा्न स भथयु ा ए् भथयु ा स ््ायका चर जात हं, तफ उनकी एक

अरग ही छव् ््ायकाधीश ऩ भं ृ्ट्म ह ती ह। '््ाऩय' का्म भं कव् ग्ु त जी न

'सद
ु ाभा' सगभ भं सद
ु ाभा क ््ाया कृ्ण क ््ायकाधीश ऩ का फहुत ही सन
ु दय चचिण
ककमा ह, ज सयाहनीम ह।

आज ््ायकाधीश फना ह
भया रज्नचायी
कारी कभरी छ ़ चुका ह
्ह ऩीता्फय धायी। 2

महा कृ्ण की सद
ु ाभा क शभि ए् ््ायका क याजा द नं भं तर
ु ना की गई ह। इस
रकाय आधनु नक कृ्ण का्म क अनतगभत आए कृ्ण क न्ीन ऩं का ्णभन कव्मं न
अऩनी का्म कृनतमं भं ककमा ह। महा कृ्ण कुछ ऩं भं रीभ्बाग्तऩुयाण ए्
भहाबायत स सा्म यखत हं, ककनतु न्ीन ्् ऩ चचरित कयन भं इन कव्मं का रमास
्राघनीम ह।

नन्कषभत हभ कह सकत हं कक ऩयु ाणं भं हभं कृ्ण क ई््यीम ऩ, र्भ ऩ,


अर ककक ऩ, याधा््रब ् ग ऩी््रब ऩ की ही छव् दखन क शभरती ह ककनतु
आधनु नक मुग क कव्मं न कृ्ण क अनक न्ीन ्् ऩं का चचिण कयक आज क मुग
भं बी कृ्ण की रासचगकता क फतामा ह ज कक मथाथभ रतीत ह ता ह।

अम ्मा शसह उऩा्माम 'हरयऔध' : वरमर्ास, सगभ 13, ऩद 108


1

भचथरीशयण ग्ु त : ््ाऩय, सद


ु ाभा सगभ, ऩ.ृ 143
2

44

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