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1.2.1 र्म ूऩ
1.2.3 ऱ करं जक ूऩ
1.2.7 रा््िदि
ू ूऩ
1.2.9 राजनीतिऻ ूऩ
1.2.10 जननायक ूऩ
1.2.12 वऻातनक ूऩ
समाहार
रीकृ्ण का बाऱ्वूप
उऩमु्
भ त ्तनु त स हभं मह ऻान ह ता ह कक बग्ान रीकृ्ण स्म ऩ ह जजनकी
्तुनत द्ता आहद बी कयत हं उन बग्ान रीकृ्ण का, जजनहंन ऩूणाभ्ताय धायण कय
ऩ्
ृ ्ी ऩय अ्ताय शरमा था उनही रीकृ्ण क ्् ऩ क जानन स ऩू्भ हभं कृ्ण नाभ का
अथभ, उनका उ्ब् जानना आ््मक ह।
ऩूणभ
भ द ऩूणशभ भद ऩूणाभ्ऩूणभ भुद्मत।
ऩूण्
भ म ऩूणभ
भ ादाम ऩूणभ
भ ्ा्शश्मत।। 2
1
रीभ्बाग्त ्, दशभ्कनध, ्व्तीम ऽ्माम : ्र क 26, ऩ.ृ 481
ू ूनतभ तऩ नन्ठ रीयाभ शभाभ आचामभ : ऋ््द सहहता (सयर हहदी बा्ाथभ सहहत) बाग-1
्दभ
2
1
्स 'कृ्ण' श्द कार ्णभ स स्फजनधत ह ककनतु आ्माज्भक अथभ स रीकृ्ण
ससाय क अचध्ठाता हं। ससाय क र ग भुज्तदाता ह न क कायण 'याभ क नाभ क
'तायक' कहत हं त रभदाता ह न स कृ्ण क नाभ क 'ऩायक' भानत हं जजनस रभ बज्त
रा्त ह ती ह।
बूशभ्भद्तनृऩ्माज द्मानीपशतामुत ।
आरानता बूरयबायण र्भाण शयण मम ।। 1
रीकृ्ण ऩण
ू ,भ सत ् औय ऻान शज्त रधान ह। आ्माज्भक रीकृ्ण क नाभ ऩय
रकाश डारा जाए त रीभ्बाग्त भं कृ्ण क नाभकयण स्काय का उ्रख शभरता
ह। द्की क गबभ स जनभ ह न क ऩ्चात ् ्सुद् जी कृ्ण क भथयु ा स ग कुर र गए ्
्हा स मश दा ् नदफाफा की ऩि
ु ी क भथयु ा र आए, मह कथा त स्भव््मात बी ह।
उसक ऩ्चात ् कृ्ण का ऩारन ऩ षण ग कुर भं मश दा ् नदयाम जी क महा ही हुआ।
उस सभम मद्
ु शशमं क कुर ऩुय हहत थ- री गगाभचामभ जी। ् ्सुद् जी की रयणा स
ग कुर आए। नदयाम जी न उनका आनत्म स्काय ककमा ् कहा- ''आचामभ जी, आऩ इस
एकात ग शारा भं क्र ््ज्त्ाचन कय य हहणी ् भय ऩुि का नाभ स्कयण कय
दीजजए। भय सग सफधी बी इस फात क न जानन ऩाए।'' ्मंकक गगाभचामभ जी मद्
ु शशमं
क कुर ऩुय हहत थ अत उनक ््ाया नाभ स्कयण स कस क कृ्ण क ्सुद् का ऩुि
सभझन की आशका ह जाती। अत उनहंन एकात भं नाभ स्कयण ककमा ् कहा मह
य हहणी का ऩुि ह, इसशरए इसका नाभ ह गा 'य हहणम'। मह अऩन सग स्फनधी औय
शभिं क अऩन गुणं स अ्मत आनहदत कयगा, इसशरए इसका दस
ू या नाभ ह गा 'याभ'।
2
इसक फर की क ई सीभा नही ह, अत इसका नाभ 'फर' बी ह। मह माद्ं औय तभ
ु र गं
भं पूट ऩ़न ऩय भर कयाएगा इसशरए इसका नाभ 'सकषभण' बी ह। मह ज सा्रा
सा्रा ह, मह र्मक मुग भं शयीय धायण कयता ह। वऩछर मुगं भं इसन रभश ््त,
य्त औय ऩीत म तीन यग ््ीकाय ककए थ। अफ की मह कृ्ण ्णभ हुआ ह, इसशरए
इसका नाभ 'कृ्ण' ह गा। नद जी, मह तु्हाया ऩुि ऩहर कबी ्सुद्जी क घय ऩदा हुआ
था, इस यह्म क जानन ्ार र ग इस 'रीभान ् ्ासुद्' बी कहत हं। तु्हाय ऩुि क औय
बी फहुत स नाभ हं तथा ऩ बी अनक हं।
अथाभत ्, तु्हं ्ही जान सकता ह जजस तुभ जनाना चाहत ह । मह फात उनही क
ऩ रीकृ्ण ऩय बी रागू ह ती ह। सचभुच क न जानता ह, उनकी मािा कहा स आय्ब
ह ती ह, क ई कृ्ण क अर ककक ऩयर्भ भानता ह त क ई भान्ं भं स्भर्ठ भान्।
3
हं औय उऩर्ध ह न ऩय ऩाचजनम क भा्मभ स 'सब्ाशभ मग
ु -मग
ु ' का उ्घ ष कयत
हं।''1 ऐस रीकृ्ण ज र ककक ह त हुए बी ससाय स ऩय अर कककता धायण ककए हुए थ।
इसशरए कृ्ण आज ऩूणभ रासचगक, ऩूणभ अ्बूत औय स्ऩूणभ न्र्त ता क ऩ भं
ऩहचान जात हं। भय ृज्टक ण स मह ्र क रीकृ्ण क शरए स्म शस्ध ह ता ह-
उभाकात भार्ीम : ्णु स शख तक, अहा ! जजनदगी, (अक 12), अग्त, 2012, ऩ.ृ 22
1
भ तीरार शा्िी, कराश चतु्ेदी (स.) : गीता भं कृ्ण त्् (रथभ ख्ड), ऩ.ृ 3-4
3
4
इस ्र क क सभान ही 'च यासी ््ण् की ्ाताभ' भं सयू दास का ऩ्म शभरता हं
३ १
च. क. २ १२ ्.ृ
४ गु.
स.ू ५ ११
६ फ.ु या. ८ भ. १०
श.ु श. ७ ९
३ १
२ च. १२ क.
४
५ य. ११
६ फ.ु श. ८ भ. १०
श.ु श. ७ ९
5
की रायज्बक शताज्दमं स ही दषऺण तक ऩहुच गमा था। ्ही ऩय उसका सज्भरण
आबीयं की रभभमी फारग ऩार उऩासना स हुआ। इसक ऩ्चात ् 'गीता' क ्ासुद् औय
आबीयं क फारग ऩार भं अशबननता ्थावऩत हुई तबी त ऩुयाणं भं बी ग ऩार कृ्ण की
कथाओ क र्श का सूिऩात हुआ।'' 1
रककन इस रकाय की क्ऩनाओ का क ई ऩु्ट
आधाय बी नही ् क ई ऐनतहाशसक रभाण बी नही ह।
आबीयं क द्ता ग ऩार थ। इसी कायण ग ऩार कृ्ण की बा्ना उ्बूत हुई।
स्ब्त ग ऩार कृ्ण की बा्ना का सभम ईसा की ऩहरी औय तीसयी शता्दी क
भ्म भाना गमा ह औय महद कृ्ण ् राइ्ट क फाय भं फात की जाए त कनतऩम अरजं
न मह घ षणा की ह कक कृ्ण त क्र राइ्ट का ऩानतय भाि ह। इस फाय भं डॉ.
ब्डायकय न बी मह कहा ह कक ''आबीय जानत का 'कृ्ण' श्द ऩज्चभ भं राइ्ट का
ऩानतय ह।'' 2
6
उ्चायण 'कृ्टॉस' स कयत हं। ईसा का जनभ अ््शारा भं हुआ औय ककसी क ऩता नही
चरा, रीकृ्ण का जनभ बी इसी रकाय अऻात ऩ स कायागाय भं हुआ। रीकृ्ण क
भाता-वऩता ्सुद् ् द्की क आकाश्ाणी न कहा कक तु्हाया ऩुि ऐस या्म का
अचधऩनत ह गा जजसका रबा् भान् जानत ऩय अननतकार तक यहगा। ईसा क जनभ स
ऩू्भ बी ऐसी ही फात द्दत
ू ं ््ाया कही गमी।'' कृ्ण क कस स फचान क शरए भथयु ा स
1
राइ्ट श्द का स्फनध कर्टं मा कृ्ण क साथ रफठाना ठीक नही हं। ईसा का
नाभ त मीशु मा जीजस ही ह। ््म मीशु न बी मह ही कहा ह ''भं राइ्ट नही हू।'' उनही
क ईसाई धभभ का स्थाऩक भाना गमा ह। अत स्भि ही उनका नाभ 'जीजस' ही शरखा
7
गमा ह। ्स री ्््टय कृत 'इनटयनशनर डड्शनयी' भं ऩ्ृ ठ 362 ऩय 'राइ्ट' श्द का
अथभ भसीहा'' फतामा गमा ह। ईसाई र ग बी इसी धायणा स जीजस क सव्मय अथ्ा
'र कयऺक' की उऩाचध स ्भयण कयत हं।
गज
ु याती व्््ान री धभाभनद जी क सा्फी न त बायतीम स्कृनत क
फफीर ननमा की दन कहा ह। ् मह कहत हं कक कृ्ण क फटीर ननमा स रामा गमा ह
औय बायत स उनका क ई बी स्फनध नही ह। रककन म सबी भानमताए स्म शस्ध
नही ह ती हं। अत अत भं हभ मही कहं ग कक व््् फध्ु ् की बा्ना स त रीकृ्ण
सभ्त व््् क हं ऩयनतु ् ककसी व्दश मा ऩयदश स आम मा राम गम नही हं। कृ्ण ्
राइ्ट का नाभ ् ऩ भं क ई साभज्म नही ह। ईसाईमं की मह धायणा ननभूर
भ रानत
ह। रीकृ्ण त व्शु्ध बायतीम हं ्ह न ककसी का ऩानतय ह औय न ही ककसी का
रनत ऩ ह।2
8
भं खद
ु ्ामा। भथयु ा क सरहारम भं काशरमादभन क ृ्म स अककत एक शशरारख इसी
फात की ऩुज्ट कयता ह। याज्थान भं बी कई ्थानं ऩय कृ्णरीरा व्षमक शशरारख,
््ायऩ्ट शभर हं। फगार भं बी शभ्टी की भूनतभमं भं धनुकासुय ्ध, मभराजुन
भ उ्धाय,
भुज्टक चाणूय स भ्रमु्ध अककत ह। म सबी रभाण इस फात की ऩुज्ट कयत हं कक
ग ऩार कृ्ण की रीराओ का राइ्ट क फारचरयत स ककसी रकाय का क ई सफध नही
ह। ककनतु इतना अ््म भानना ह गा ग ऩार कृ्ण ् उनकी रीराओ का राय्ब ऩुयाणं
स ही हुआ ह।
्ासद
ु ् कृ्ण बायतीम ऩ याणणक कथा सभह
ू क स्ाभचधक भन हय चरयिं भं स
एक हं। शताज्दमं स बायतीम जन सभद
ु ाम क भ्म उनकी कथाए अ्मचधक र कवरम
यही हं। अत इसभं क ई आ्चमभ नही की बायतीम व््माव्दं का भु्म ्मान इनही की
ओय उनभुख यहा। सु्ीया जामस्ार न शरखा ह- "्तभभान कार क ऩा्चा्म व्््ानं भं
व््सन, फफय, फाथभ, चरमसभन, गाफे, हाऩककस, जक फी, कनडी, कीथ, इशरमट, फन ्
बायत क व्््ानं भं आय. जी. ब्डायकय, आय. ऩी. चद, एस. सी. यामच धयी, ज. एन.
फनजी, डी. सी. सयकाय आहद अनक व्््ानं न व्शबनन ऩऺं स कृ्ण गाथा का
व््चन औय व््रषण ककमा हं।''1 उनकी मह धायणा थी कक ्ासुद् कृ्ण सा््त ्श
क ऩू्म ऩु ष थ ए् उनही क ््ाया ् स्भरथभ द्ता मा ई््य क ऩ भं भान गए थ।
फाद भं उनही र गं स कृ्ण ऩासना अनम र गं भं परी ककनतु कुछ व्््ानं न इस फात
ऩय सशम रकट ककमा ह। स्भरथभ ए. ग व्दाचामभ ््ाशभन ् न इस ऩय र्न उठामा।
उनकी भानमता थी कक बाग्त धभभ की उ्ऩवि बग्ान ्ासुद् स हुई, ज ्सुद् ए्
द्की क ऩुि ्ासुद् कृ्ण स शबनन थ, रककन कारातय भं म द नं अशबनन भान शरए
गए। उनकी मह धायणा ऩचयाि रथ ऩ्भति क एक अ्तयण ऩय आचरत ह, जजसभं कहा
गमा ह कक ्सुद् क ऩुि की रनतभा बग्ान ्ासुद् जस फनाई जानी चाहहए। रककन
इसका ख्डन याम च धयी न ककमा ् उनहंन कहा कक बग््गीता ज कक ''ऩ्भति' स
ऩहर का रथ ह, उसभं ्ासद
ु ् क ्जृ ्णमं का ्शज कहा गमा ह। रीकृ्ण न गीता भं
््म कहा ह-
9
््ृ णीना ्ासुद् ज्भ। 1
डॉ. सु्ीया जामस्ार न रीकृ्ण क फाय भं मही कहा ह ''कृ्ण की गाथा अनक
1
रीभ्बग््गीता : अ्माम 10, ्र क 10-77
ु दयरार दीषऺत : कृ्ण का्म भं रभयगीत, ऩ.ृ 63
्माभसन
2
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रकाय ईसा क राइ्ट कहकय ऩक
ु ाया गमा। ्सद
ु ् क ऩि
ु ह न स रीकृ्ण क ्ासद
ु ्
कहा गमा ह जस ऩयाशय क ऩि
ु क ऩायाशय ् ऩा्डु ऩि
ु ं क ऩा्ड् कहा गमा ह। इसशरए
द्की ऩि
ु कृ्ण औय ्ासद
ु ् कृ्ण भं अचधक ्ष्म नही ह ना चाहहए। भहाबायत भं बी
कृ्ण क द नं ऩं का ्णभन हं। रीकृ्ण ही बाग्त ् धभभ क स्थाऩक थ उनक ब्त
भं भानमता शभरी।
बायतनद ु हरय्चनर स रकय धभभ्ीय बायती ए् 'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' क यचनाकाय
आहद भ्
ु मत आत हं। इन सबी का सषऺ्त चचिण ही हभ महा कयं ग व््तत
ृ ्णभन
अ्माम तत
ृ ीम ए् चतथ
ु भ भं ककमा गमा ह।
1.2.1 र्म ूऩ
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र्भ्् ऩ क अऩन का्मं भं र्तत
ु ककमा, जजसभं कृ्ण क ऩयर्भ, अर ककक,
हद्म, ई््य, व्याट आहद ्् ऩ चचरित ह। 'वरमर्ास' क अनतभगत कव् हरयऔध न
स्भि उसका ही भि गूजता ह। इसशरए कव् न याधा ््ाया मही कहर्ामा कक र्भ साय
कृ्ण भं ही दखा ह औय सबी जगत उसी ई््य अथाभत ् भय कृ्ण की ही कीनतभ गाता ह।
उनकं शरए ऩूया व््् उनक वरमतभ कृ्ण भं ्मा्त ह तथा ऩूय व््् भं उनका राण
12
औय मह र्ाह भं फहती हुई,
तु्हायी अस्म सजृ ्टमं का रभ भहज,
हभाय गहय ्माय रगा़ व्रास,
औय अत्ृ तरी़ा की अननत ऩुनया्वृ िमा ह।
औय भय ्ि्टा/तु्हाय स्ऩूणभ अज्त्् का अथभ ह
भाि तु्हायी सजृ ्ट/तु्हायी स्ऩूणभ सजृ ्ट का अथभ ह
भाि तु्हायी इ्छा/औय तु्हायी स्ऩूणभ इ्छा का अथभ हू
क्र भं/क्र भं/क्र भं।। 1
क ई ह , सफ धभभ छ ़ तू,
आ, फस भया शयण धय। 2
13
अनत उदास रफन आस, सफ-तन सुयनत बुरानी।
ऩूत रभ सं बयी ऩयभ दयसन ररचानी।
रफरऩनत करऩनत अनत जफ, रणख जननी ननज ्माभ।
बगत-बगत आम तफ, बाम भन अशबयाभ।
रभय क ऩ भं ।। 1
'आय हण का्ड' क अनतगभत कृ्ण ््ाया भिम क हदए उऩदश भं कृ्ण ््म
क स्ाभनतमाभभी ् अऻम फतात हं।
्ही, ऩ.ृ 14
3
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अजुन
भ क हदए गए गीता ऻान भं बी कृ्ण क ऩयर्भ ए् व्याट ्् ऩ की
गुराफ क ठायी की का्म कृनत 'भं ही याधा, भं ही कृ्ण' भं बी कव् न कही कही
्ऩ्ट ह-
2
रीभ्बग््गीता : चतुथभ अ्माम, ्र क 7-8
गुराफ क ठायी : भं ही याधा, भं ही कृ्ण, धभभ-10, ऩ.ृ 70
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क ठायी जी न 'भ ऺ' क अनतगभत हभं कृ्ण त्् का ऻान बी हदमा ह। उनहंन
सबी कभं क कृ्ण क सभवऩभत कयन ए् नन्काभ कभभम ग क शरए कहा। इस रकाय
इन सबी कव्मं न कृ्ण का ऩु ष ऩुयाण, ई््य, ऩयर्भ ए् अ्तायी ऩ का चचिण
ककमा।
््-जानत की दख अती् दद
ु भ शा।
व्गहभणा दख भनु्म-भाि की।।
व्चाय क राणण-सभुह-क्ट क ।
हुए सभुिजजत ्ीय कशयी।। 1
््जानत फधओ
ु की यऺा हतु ् इनर क ्र स बी बमबीत नही ह त। कृ्ण ऩय ऩकाय हतु
सदा त्ऩय हं। कृ्ण क ही साहस स ्दा्न
ृ क र गं क कुछ बी हानन नही ह ती।
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भन्ु म का द ु ख औय य चगमं की आऩदा क दयू कयत। फ़ं का स्काय कयत, ननफभर क
महद क ई सताता त ् उस नतय्कृत कयत। सबी फारकं क साथ खर खरत ्
््ाहद्ट पर णखराकय उनहं आनजनदत कयत। ् याजऩूि थ, ककनतु उनक भन भं थ ़ा-
सा बी अहकाय नही था। इस रकाय महा बी कव् न कृ्ण का र क ऩकायी ् र कयऺक
ऩ हदखामा ह।
य गी दख
ु ी व्ऩद-आऩद भं ऩ़ं की।
स्ा सद् कयत ननज-ह्त स थ।
ऐसा ननकत रज भं न भुझ हदखामा।
क ई जहा दणु खत ह ऩय ् न ह ्ं। 1
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जाना जाता भयभ व्चध क फधनं का नही ह।
त बी ह गा उचचत चचि भं मं वरम स च रना।
ह त जात व्पर महद ह स्भ-सम ग-सूि।
त ह ्गा ननहहत इसभं रम का फीज क ई।। 1
न्ीन ऩ ह।
गई ग ्धभन ऩज
ू ा की रशसा कयत हं। इनर क रक ऩ स ह न ्ारी, ररमकायी ्षाभ स
कृ्ण ््ाया ्नृ दा्न्ाशसमं की यऺा की जाती ह। महा कृ्ण ग ्धभन ऩ्भत क उठाकय
सबी की यऺा कयत ए् इनर क ग्भ क न्ट कयत हं। इसस रसनन ह कय ््ार-फार
अऩन याजा क ऩ भं उनकी रशसा कयत हं। ् कृ्ण ऩय फशरहायी ह। कव् न कृ्ण क
त क ई, चयाकय र आएगा ककनतु द्ु टं क न्ट कयक र कक्माण कयन ्ारा शासक
सबी क दख
ु ं क दयू कयन ्ारा दख
ु हताभ बी फतामा। इस रकाय महा बी कृ्ण, र क
क्माण हतु त्ऩय हदखाई दत हं।
'रभयदत
ू ' का्म भं बी कव् न भाता मश दा क बायत-भाता का रतीक भाना।
इसशरए मश दा ््ाया कृ्ण क फुरान का कायण बी ्मज्तगत अनुयाग न फताकय रज
की दद
ू भ शा तथा सभाज भं ्मा्त अशाजनत औय अनाचाय स रज की यऺा कयना फतामा ह।
कृ्ण, बू-बाय क उतायन, द्ु टं का दरन कयन ए् र कक्माण कयन हतु ही रज स
ऩ बी चचरित ह ता ह।
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कस भारय बू-बाय- उतायन खर दर का तायन।
व््तायन व्ऻान व्भर रुनत-सतु-स्ायन।। 1
'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' भं बी कव् न कृ्ण ््ाया हदम गए गीता क उऩदश
भं कभभम ग, ऻानम ग ए् बज्तम ग आहद उऩदशं क जनता ऩय उनका उऩकाय ही
भाना। ससाय क र ग आज कृ्ण क इनही उऩदशं क भागभ ऩय चरकय अऩना जी्न
साथभक कय ऩात हं। इस रकाय इन कव्मं न अऩन का्म भं कृ्ण का र कक्माणकायी
ह ना चचरित ककमा ज आधनु नक ए् न्ीन ह।
1.2.3 ऱोकरं जक ूऩ
कृ्ण की फार-सर
ु ब रीराओ भं हभं कृ्ण का र कयजक ऩ ही हदखामी दता
ह। उनका ऩ स नदमभ औय नटखट रीराए र कयजक थी। उनकी रीराए ्नृ दा्न्ासी
औय उनक भाता-वऩता क आनजनदत कयती थी। 'वरमर्ास' भहाका्म भं कव् न जहा
तहा कृ्ण क स नदमभ ए् फार रीराओ का ्णभन ््ारं ए् ्नृ दा्न्ाशसमं क भा्मभ
स ककमा ह।
19
कृ्ण की छव् ऩण
ू भ चनर क बी रज्जत कयन ्ारी थी। कभर का स नदमभ
उनक अगं भं झरकता था। कृ्ण जफ घुटनं ऩय चरत थ, ्ह ृ्म मश दा क दम ऩी
सागय भं सुखं क जनभ दन ्ारी रहयं क सभान था।
20
कव् न कृ्ण क फार ऩ भं उनक नटखटऩन क चचरित ककमा। कारीम नाग
स ज्ाफ दत हं कक ''तभ
ु भ्खन क ऊऩय छीक भं यखती ह औय जफ भंन भ्खन
चयु ामा त ्ह भटकी सहहत आ चगया औय उसी क कायण तभ
ु स फचन क शरए भं ्हा स
बाग गमा।''
रभयदत
ू ' भं बी मश दा का कृ्ण क जन-भन-यजन स्फ धन क अतगभत कृ्ण
का र कयजक ऩ रकट ह ता ह।
्णभन ककमा ह। उनहंन अऩन का्म भं फाररीरा ्णभन भं कव् सूयदास क ऩदं स सा्म
फतामा। जस- कृ्ण का भाखन खाना, चनर णखर ना भागना, मश दा ््ाया कृ्ण की
कयन ्ारी ह।
21
कव् न कृ्ण क कध ऩय कभरी (क्फर) औय हाथ भं रकुटी यख, ्णु फजात
हुए ग चायण र्थान कयत बी हदखामा ह। फार रीरा भं ही कृ्ण ््ाया ्न जान हतु
हठ कयना औय भाता मश दा ््ाया कृ्ण क ्न भं 'हाऊ' आन क नाभ स डयाना।
22
ह। महा कव् न कृ्ण क साहसी ् साधायण ऩ भं हदखामा ह। इसी रकाय दा्ानर
्ारी घटना भं बी कृ्ण क अज्न-ऩान कयत हुए फतामा जाता ह, ककनतु कव् न कृ्ण
क कामं क साधायण भान् क ््ाबाव्क कामभ का ऩ हदमा औय अज्न ऩान कयन क
फजाम ग ऩं क जगर की आग स फचान का रमास कयत हदखामा ह।
23
'््ाऩय' का्म भं ग्ु त जी न कृ्ण क फार ऩ ए् ्ीय ् साहसी र्नृ त क साथ
कृ्ण का साधायण भान् ऩ र्तुत ककमा ह। 'मश दा' सगभ भं मश दा अऩन ऩुि कृ्ण
क फर्ीय ए् साहसी र्वृ ि क साथ कृ्ण की फु्चधभिा का बी ्णभन कयती ह। महा
मश दा कृ्ण क शरए कहती ह-
एक भा क दम भं अऩन ऩि
ु क रनत म व्चाय उ्ऩनन ह ना ््ाबाव्क ह। कही
कही कृ्ण की फार ऩ की छव् बी उनक साधायण भान् ऩ क चचरित कयती ह।
भय ्माभ-सर न की ह,
भधु स भीठी फ री?
कुहटर अरक ्ार की आकृनत
ह ्मा ब री-बारी। 2
'रभयदत
ू ' का्म भं बी कृ्ण की फार रीराओ की ्भनृ तमा उनक फार ऩ क
साकाय कयती हं। कव् न कृ्ण क सा्र-सर न ऩ, नट्य-नागय, भाखन च य,
भुयरीधय, ग ए चयान ्ार नद क रारा क ््ाबाव्क चचिण भं उनका साधायण भान्
ऩ चचरित ककमा ह। मश दा की ्भनृ त भं कृ्ण जफ भाखन खाकय तभार ्ऺ
ृ स हाथ
ऩंछ दत थ। भाता मश दा उसी ्ऺ
ृ ऩय कृ्ण क बागकय आन का आबास कयती ह। एक
साधायण फारक इसी तयह नटखट ह ता ह। मश दा क व्दश भं यहन ्ार अऩन ऩि
ु क
ब जन की चचनता बी ह ती ह। ्ह रात भ्खन ननकारत सभम बी कृ्ण का ्भयण
कयती ह। ् मह बी स चकय चचनतत ह ती ह कक कही भया रार (कृ्ण) बूख त नही यहता
ह।
24
भह
ु भं रत हुए हदखामा ह, ज भन क आनजनदत कयन ्ारा ृ्म ह। कृ्ण ््ाया अऩन
ऩय का अगूठा भुह भं रना उनक साधायण फारक ऩ क रकट कयता ह।
'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' का्म भं कृ्ण ््ाया कभभम ग क उऩदश भं उनका
साधायण भान् ऩ बी ृ्ट्म ह ता ह ्मंकक एक कभभशीर भान् ही ऐसा उऩदश दन
भं सऺभ ह। उनहंनं मह बी कहा कक कभभ ही भनु्म का बा्म फनाता ह।
इस रकाय उऩमु्
भ त आधनु नक का्मं क कव्मं न ककसी न ककसी भा्मभ स
कृ्ण क साधायण भान् ऩ क अऩन का्मं भं चचरित ककमा ह। मह मथाथभ बी ह कक
कृ्ण का अ्तयण जफ धयती ऩय हुआ ह त ्ह भान् ऩ भं ही हुआ ह, ककनतु उनक
उ्च कभं ए् स्ऩण
ू भ भान्ीम गण
ु ं क कायण ही ् आज ई््य क ऩ भं ऩज
ू जात हं।
कृ्ण न बी सही कहा ह कक कभभ ही भन्ु म का बा्म फनाता ह। इसशरए अऩन श्
ु ध
कभं क कायण ही आज ् र क भं ऩूजनीम फन हं। व््् भं ्ही ्मज्त ऩूजा जाता ह
मा स्काय ऩाता ह ज नन्््ाथभ बा् स सबी का भगर कयता ह ् र क-स्ा कयता ह।
25
्माय जी्ं जगहहत कयं , गह चाह न आ्ं। 1
याधा का कृ्ण क रनत रभ बी अगाध था। उनहं कृ्ण इतन ्माय हं कक कृ्ण क
भथयु ा न जान हतु ् उऩाम स चती ह। उऩाम न शभरन ऩय स चती ह मह यािी ही कबी ना
क एकानत भं चचरित कयत हं। महा कृ्ण का याधा््रब ऩ ृ्ट्म ह ता ह। महा याधा
क जह
ु ी की करी, चभरी आहद स फात कयत हुए औय व्यह ्दना रकट कयत हुए
हदखामा गमा ह।
्ही, सगभ 8 ऩद 4
2
26
याधा की बानत ग वऩमं क बी कृ्ण की ् सबी फातं माद आती ज ् रकृनत क
दखत हुए कहत थ। उनहं कृ्ण क साथ यारि सभम ककमा गमा ्न-व्हाय, ्हा दखी
कृ्ण की अर ककक छव् ए् फासुयी का भादक सगीत आहद ्भरयत ह जाता ह। महा
कृ्ण का ग ऩी््रब ए् रज््रब द नं ही ऩं का कव् न अ्मनत ही सुनदय ढग स
चचिण ककमा ह।
27
मह ्मा, मह ्मा रभ मा व्रभ/
दशभन नही अधूय/
एक भूनतभ आध भं याधा आध भं हरय ऩूय ! 1
'रभयदत
ू ' का्म भं बी कव् न कृ्ण क 'याधा्य' स्फ चधत ककमा ए् याधा की
्दना की। साथ ही रज-भनबा्न कहकय कृ्ण का रज््रब ऩ बी चचरित ककमा।
महा कृ्ण क यशसक शशय भणण, भन-हयण कयन ्ारा, आनद का ऩुज औय यगीरा बी
फतामा ह।
महा कव् न याधा-कृ्ण भं बद नही भाना। याधा भं 'कृ्ण तथा कृ्ण भं याधा
अथाभत ् कृ्ण का याधाभम ह ना ् याधा का कृ्णभम ह ना ््ीकाय। तबी कृ्ण ््ाया
कहर्ामा ह-
28
'भं ही याधा , भं ही कृ्ण ' का्म भं गर
ु ाफ क ठायी जी न का्म की बशू भका भं
हदमा हं। इनहं अरग नही ककमा जा सकता। कृ्ण महद सूमभ हं त याधा ककयणं ् यज्भमा
हं।''1 इसशरए कव् न जी्न क सभझन का ऩहरा स ऩान मही फतामा हं कक हभ अऩन
ृ्ट्म ह ता ह।
1.2.6 रा्रो्धारक ूऩ
रभयदत
ू भं रज अथाभत ् बायत की यऺा क शरए मश दा ््ाया कृ्ण क फुरामा जाता ह।
अजुन
भ क या्र क उ्थान हतु ररयत कयना ह, ताकक अजुन
भ भ ह क ्माग, म्
ु ध क शरए
तमाय ह ।
'बरयदत
ू ' का्म भं कव् न बायत की ्तभभान ज्थनत क ्ऩ्ट ककमा। कव् न
मश दा ््ाया रभय क हदए गए सदश भं दश की ्तभभान ज्थनत क सुधायन क शरए
कृ्ण क रज अथाभत ् बायत आन का सदश हदरामा ह। मश दा ् कहती ह - आज दश की
्तभभान ज्थनत फदर चक
ु ी ह। ््दशी ्श, बाषा ् धभभ का ऩरय्माग कय, सभाज
ऩा्चा्म स्मता का अनुकयण कयना चाहता ह। ज्िमा बी अऩन गुण-नरता, शीर,
सक च का ्मागकय अहकाय भं बयी हुई इधय-उधय इतयाती हुई-सी घूभती ह। मश दा मह
बी कहती ह- जफ कृ्ण रज भं थ, तफ अनत्जृ ्ट क कायण कृ्ण न ग ्धभन ऩ्भत धायण
कय ्नृ दा्न, ््ारं ए् ग ओ की यऺा की उसी रज भं कृ्ण क अबा् भं आज अकार
29
ऩ़ यहा ह। अथाभत ् कव् न मह कहना चाहा कक सश्त नता क अबा् भं ्््छाचारयता
औय र्टाचाय फ़ यहा ह। अत कृ्ण का या्र क हहत हतु ्दा्न
ृ आना आ््मक ह।
महा ्दा्न,
ृ बायत का रतीक तथा मश दा बायत भाता का रतीक ह। अत महा
बायत भाता ही बायत की दद
ू भ शा सुधायन क शरए कृ्ण क फुराती ह, ्मंकक कृ्ण ही
या्र का उ्धाय कयन क शरए सभथभ ह। रभयदत
ू क ऩद 38 भं कव् न दफ
ु र
भ ् व्कृत
सभाज की ज्थनत क फतामा ह। अत रज की दद
ू भ शा क सुधायन हतु कृ्ण क फुरामा
जाता ह। महा कृ्ण का या्र ्धायक ऩ व्शषत कव् ््ाया ्णणभत ककमा गमा ह।
30
1.2.7 रा््िदि
ू ूऩ
महा कृ्ण राजनत हतु ग ऩं क '्ीय' स्फ चधत कयत हुए, ््जानत की बराई
ए् यऺा क शरए ररयत कयत हं। इस रकाय कव् न महा कृ्ण क राजनतदत
ू ऩ क
चचरित ककमा ह।
31
कव् न याधा क भा्मभ स कृ्ण क अठायह अऺ हहणी सना क साथ म्
ु धयत
बी हदखामा ह। अत महा बी कव् न कृ्ण क नत्ृ ्कताभ क साथ राजनत क दत
ू क ऩ
भं चचरित ककमा ह।
'रभयदत
ू ' भं कव् न रभय का आगभन न्ीन ढग स ककमा। महा रभय क रनत
मश दा क उराहनाऩूणभ ्चन न ह कय ््दश रभ ए् जातीम-उ्थान की काभना यही ह।
मश दा या्र क उ्धाय क शरए औय बायत भं एक न्ीन राजनत रान क शरए कृ्ण क
्ाऩस ्नृ दा्न अथाभत ् बायत भं फर
ु ाती ह। महा कव् न मश दा क भा्मभ स या्रीम
चतना ए् या्रीम जागनृ त का ््य हदमा ह। मह राजनत रान ्ार कृ्ण ही ह। जफ भाता
मश दा ्नृ दा्न की दद
ू भ शा ए् कृ्ण क व्म ग स रफरखती ह, त ््म कृ्ण अऩनी
अऩनी भाता की ्दना सुनन क शरए रभय क ऩ भं उनक ऩास आत हं।
32
शाजनत का म्न नन्पर ह जान ऩय कृ्ण म्
ु ध कयन का ननणभम रत हं। ् धभभ
की ्थाऩना क शरए राजनत का आ््ान कयत हं औय अजुन
भ क भ ह ह न ऩय उस म्
ु ध
कयन ् राजनत रान हतु ररयत बी कयत हं। कव् न 'गीता का्ड' भं इसका ्णभन ककमा ह
की बानत ऻान म ग, फ्
ु चधम ग, बज्तम ग ए् कभभ म ग का उऩदश बी दत हं।
इसी रकाय 'भ ही याधा, भं ही कृ्ण' ख्ड का्म भं बी कव् न कृ्ण क कभभम ग,
ऻान म ग ् बज्तम ग क फतामा ह।
अत वरमर्ास, रभयदत
ू , ््ाऩय, कनवु रमा ए् कृ्णामन आहद का्म भं
कव्मं न राजनतदत
ू ऩ भं कृ्ण क र्तुत ककमा ह। 'भं ही याधा, भं ही कृ्ण' का्म भं
कृ्ण का राजनतदत
ू ऩ न ह कय गीताऩद्टा ऩ ही चचरित हुआ ह।
कृ्ण का जहा जनता ऩय उऩकाय कयना, जनता की यऺा कयना आहद दानम््
यहा ह, त ्ही सभाज भं कुयीनतमं, कुरथाओ ए् सभाज क कुकभं क सुधायन भं बी
उनकी बशू भका यही ह। कव्मं न कृ्ण क नत्ृ ्कताभ क साथ सभाजसध
ु ायक क ऩ भं
बी अऩन का्म भं र्तुत ककमा ह। 'वरमर्ास' भहाका्म भं कव् हरयऔध जी न कृ्ण
क अहहसा का व्य ध कयत हुए हदखामा ह। महा कृ्ण सभाज उ्ऩी़क, अहहसक,
््जानत क शिु, भनु्म क र ही ए् ऩाऩी क ऺभा न कयक, उस भायन क शरए कहत हं।
कृ्ण क ऐस ही सभाज्ादी ऩ का चचिण कव् न इस रकाय ककमा ह। नन्न ऩदं क
दणखए -
सभाज-उ्ऩी़क ध्भभ-व््र्ी।
््जानत का शिु दु त ऩारकी।
X X X
ऺभा नही ह खर क शरम बरी।
सभाज-उ्ऩी़क द्ड म ्म ह। 1
33
इसशरए कृ्ण ््ाया कई द्ु ट असयु ं का ्ध ककमा जाता ह ज सभाज ् जनता
क द ु ख दत हं। कव् न कृ्ण क दख
ु ी सभाज क सुखी कयत हुए हदखामा ह। महा कृ्ण
््म क्ट सह रंग ककनतु जहा र क का राब ननहहत ह गा ्ह कामभ ् अ््म कयं ग।
महा बी कव् न कृ्ण का सभाज्ादी ऩ चचरित ककमा ह।
'रभयदत
ू ' का्म भं कव् न कृ्ण का सभाज्ादी ऩ चचरित न कयक, मश दा क
त्कारीन बायतीम नायी की सभाज भं ज्थनत का रतीक भाना हं, मश दा अऩन व्दश
गए ऩि
ु क ऩि शरखना चाहती ह, ककनतु ् ननयऺय ् अनऩढ ह न क कायण कृ्ण क
ऩि नही शरख ऩाती। सभाज भं उस सभम ्िी-शशऺा का व्य ध ह ता था। मश दा ््ाया
ककमा ह।
न सश धन कयक र्तत
ु ककमा ह।
हं। ्मंकक ् जर भं न्न ्नान कयन ्ारी ग वऩमं क पटकाय रगात हं। कृ्ण कहत
हं-
कहहु हरयहु- ''ज रागनत राजा, ््ि उतायत ननत कहह काजा ?
न्न नीय तुभ कीनह र्शू, हभहह सुना्त अफ उऩदशू। 2
इस रकाय उऩमु्
भ त का्मं क अनतगभत कृ्ण का सभाज सध
ु ायक ऩ र्तत
ु
ह ता ह।
34
1.2.9 राजनीतिऻ ूऩ
'््ाऩय' का्म भं 'ग ऩी' सगभ भं ग वऩमा कृ्ण क सगुण ऩ क भह्् दती ह।।
उनक शरए याधा म चगनी ह औय कृ्ण म चगयाज। कही-कही ऩय उनहंन उस साकाय कृ्ण
क ननयाकाय ऩ भं बी फतामा ह। भथयु ा जान क फाद कृ्ण अफ याजनीनत का खर खरन
भं ऩरयऩ्् ह गए, इसशरए ् साकाय स अफ ननयाकाय बी ह गए। महा बी कृ्ण का
याजनीनतऻ ऩ ृ्ट्म ह ता ह-
याजनीनत का खर ्हा ह
सू्भ-फु्चध ऩय साया;
ननयाकाय सा हुआ ठीक ही
्ह साकाय हभाया ! 1
35
इसी तयह कव् न 'सद
ु ाभा' सगभ भं कृ्ण क ््ायकाधीश ऩ भं उनक शासक ऩ
ए् याजनीनतऻ ऩ क बी चचरित ककमा ह। ््ायकाधीश ऩ चचरित कयत हुए, कव् न
सद
ु ाभा ््ाया कहरामा ह कक उनका कृ्ण ज ्दा्न
ृ भं व्हाय कयता था, आज ््ायका
भक
ु ु ट जजसक भ्तक ऩय श शबत था, अफ ्ह य्नं का भक
ु ु ट धायण कयता ह। ग ऩं क
साथ यहन ्ारा, आज ऩरयष् की श बा फ़ाता ह। थ ़ी सी छाछ क शरए ज ग वऩमं क
स्भुख नाचता था, आज याजनीनतक आदश दता ह। अफ उसक हाथ भं भुयरी नही ्यन ्
शासक चर ह।
कयत हुए मह कहा कक "कृ्ण क जसा याजनीनतऻ ससाय भं क ई नही हुआ तबी त ्
इस रकाय उऩमु्
भ त का्मं भं ही कृ्ण का याजनीनतऻ ऩ कव्मं न र्तत
ु
ककमा ह। ्ा्त् भं कृ्ण का याजनीनतक ृज्टक ण आज क मग
ु भं बी रासचगक ह।
36
1.2.10 जननायक ूऩ
्ही, िम दश सगभ, ऩद 24
2
37
महद अनशन ह ता अनन औ र्म दत।
ज-रशसत हदखाता औषधी त णखरात।
महद करह व्त्डा्ाद की ््
ृ चध ह ती।
्ह भृद-ु ्चनं स त उस बी बगात। 1
'््ाऩय' का्म भं बी कृ्ण ््ाया ग ्धभन ऩ्भत अऩनी उगरी ऩय उठाकय इनर
क रक ऩ स रज्ाशसमं की यऺा कयन भं उनका जननामक ऩ ही हदखाई दता ह। उ्ध्
््ाया बी मश दा क कृ्ण क फाय भं सभझामा जाता ह कक अफ कु्य कनहमा फ़ ह
गए। ् इस ससाय भं द्ु टं क न्ट कयन ्ार ए् कुशर शासक हं।
'रभयदत
ू ' का्म भं कव् न रभय क भा्मभ स कृ्ण ऩय ्म्म नही ककमा औय
न ही ननगुण
भ र्भ का ऻान कयामा ह। इसभं कृ्ण ््म अऩनी भाता क दख
ु क सन
ु न
आत हं औय मश दा भाता बी या्र-हहत हतु ही कृ्ण क ऩुकायती ह। कव् न मश दा क
व्यह-्णभन भं बायत-भाता का क ण रनदन सुनामा ह। इसभं या्रीमता का सभा्श
ह न क कायण कृ्ण क हद्म ऩ की अऩऺा र कनामक ऩ का उ्घाटन हुआ ह।
38
कृ्ण या्र की एकता औय उनननत क शरए हभशा रम्नशीर नजय आत हं। भहाबायत
मु्ध क उऩयानत मुचधज्ठय क भन भं उ्ऩनन आ्भ्रानन औय ्या्म बा् क बी
कृ्ण क सदऩ
ु दश क भा्मभ स दयू ककमा जाता ह। इसक अरा्ा अजुन
भ क भ ह क बी
कृ्ण ््ाया हदए गए गीता उऩदश स त ़ा जाता ह। अत महा कृ्ण का जननामक ऩ
चचरित हुआ ह।
कषभत हहठ द्ु शासन चीया, फढउ ्सन रणख चककत अधीया।
कषभत जस जस रयस करय बायी, तस तस फ़नत र ऩदी-सायी।। 1
1.2.11 गीिोऩद्टा ूऩ
39
अ्मम, अव्नाशी अजहु, नन्म ज जानत माहह,
कस स कहह कय ्ध कयत, फध्ा्त स काहह ? 1
अजुन
भ की तयह कबी
भुझ बी सभझा द
साथभकता ह ्मा फधु? 4
40
'वरमर्ास' क कृ्ण भहाबायत क कृ्ण नही ह न क कायण कव् न उनका
गीताऩद्टा जस ऩ का कही ्णभन नही ककमा ह। अत उऩमु्
भ त का्म कृ्णामन, भं ही
याधा, भं ही कृ्ण, ए् कनुवरमा भं ही कृ्ण क इस ऩ का चचिण हुआ ह।
1.1.12 िऻातनक ूऩ
41
डॉ. जमा वरमदशशभनी श्
ु र न अऩन श ध आरख 'रज स्कृनत औय रज र क
साहह्म भं आधनु नक फ ध' क अनतगभत कृ्ण ््ाया की गई कारीमा भान-भदभ न रीरा
क कृ्ण ््ाया मभुना जर का शु्चधकयण कयना भाना।1 कृ्ण जानत थ कक व्षर
सऩभ क मभुना भं ह न क कायण जर-रदवु षत ह यहा ह। अत उस व्षर सऩभ क ्हा स
फाहय ननकारन ऩय ही जर का श्
ु चधकयण ह गा। इस रकाय महा बी कृ्ण का ्ऻाननक
ऩ ्ऩ्ट ह ता ह।
समाहार
कृ्ण अऩन सभम क र्ठ भान् थ। उनक ्मज्त्् की कई व्शशता ए्
गण
ु ं क कायण ही ् कई ऩं भं हभं ृ्ट्म ह त हं। कृ्ण क अ्ताय भानन ऩय उनका
र्भ ऩ, अर ककक ऩ ए् ऩूणऩ
भ ु ष ऩ हदखाई दता ह, त कही जनता की यऺा ए्
उनक दख
ु ं क दयू कयन ऩय र क ऩकायक ऩ बी हदखता ह। फाररीरा क अनतगभत
उनका य ना, इधय-उधय द डना, चनर णखर ना भागना, हठ कयना, भाखन खाना आहद भं
् जहा साधायण फारक हदखत हं त कही ग ऩ-ग वऩमं, भाता-वऩता ए् याधा क भन क
भ हन ्ार कृ्ण उनक अटूट रभ क म ्म फन, अऩन स नदमभ ए् आकषभक रीराओ स
् ग ऩी््रब ए् याधा््रब बी हं। कृ्ण या्र क उ्थान हतु हभशा त्ऩय हं, ् अऩन
सभाज क क्माण की काभना यखन ्ार हं। या्र ऩय आई व्ऩवि क दयू कयन हतु ्
राजनत क दत
ू बी फन जात हं त मु्ध क य कन क रमास भं शाजनतदत
ू फनकय क य्ं
क ऩास बी चर जात हं।
कृ्ण जहा ब्तं ऩय कृऩा कयन ्ार ब्त ््सर हं त याऺसं मा असयु ं का
नाश कयन ्ार असुय सहायक बी हं। कृ्ण जननामक हं, उनहंन ्नृ दा्न भं जहा ््ार
भ्डरी का नत्ृ ् ककमा ्ही भहाबायत मु्ध का नत्ृ ् बी उनहंन ही सबारा। ् कुशर
याजनीनत-व्शायद हं। अनक याजनीनतक दा्ऩं च यचकय उनहंन कई द्ु ट याजाओ का
नाश ककमा औय भहाबायत मु्ध भं बी अऩनी अऺ हहणी सना क य्ं क दी ए् ््म
अजुन
भ क नत्ृ ् रदान कयन हतु उसक सायथी फन गए। अजुन
भ क मु्ध न कयन क
ननणभम ऩय उनहंन उस ऻान ् उऩदश हदमा औय गीत ऩद्टा फन। इन सबी ऩं क
आधनु नक कव्मं न अऩन का्म भं चचरित ककमा ह। इनक अरा्ा बी कृ्ण का
42
फार ऩ, नटखट ऩ, फर्ीय ऩ मा फर्ान, ऩ, कृ्ण की स नदमभ छव्, याजसी मा
शासक ऩ, धभभ रनत्ठाऩक ऩ, असूयसहायक ऩ ए् ््ायाकाधीश आहद ऩ बी
आधनु नक कव्मं क का्मभं ृ्ट्म ह त हं।
भ य भुकुट, ऩट ऩीत धत
ृ , ्नभारा अशबयाभ,
्ादत ्शी धरय अधय, क हट काभ छव् ्माभ। 2
43
कृ्ण क सन
ु दय रराट ऩय अनऩ
ु भ छि श बा दता ह, स्क गण सन
ु दय च्य
ढुरात हं, ् स न क फन भन हय गहनं क धायण ककए हुए ह, जजनभं हद्म रकाश स
म्
ु त य्न ज़ हुए हं। कृ्ण क भथयु ा भं जान ऩय याजसी ऩ की मह छव् बी अ्मत
भन हायी ह।
धभभ की ्थाऩना ए् अधभभ क नाश हतु उनहंन गीता का उऩदश हदमा। अजुन
भ क
म्
ु ध हतु ररयत ककमा। उनका धभभस्थाऩक ऩ बी कव्मं न ्णणभत ककमा ह। इसी क
साथ कृ्ण जफ ्नृ दा्न स भथयु ा ए् भथयु ा स ््ायका चर जात हं, तफ उनकी एक
'सद
ु ाभा' सगभ भं सद
ु ाभा क ््ाया कृ्ण क ््ायकाधीश ऩ का फहुत ही सन
ु दय चचिण
ककमा ह, ज सयाहनीम ह।
आज ््ायकाधीश फना ह
भया रज्नचायी
कारी कभरी छ ़ चुका ह
्ह ऩीता्फय धायी। 2
महा कृ्ण की सद
ु ाभा क शभि ए् ््ायका क याजा द नं भं तर
ु ना की गई ह। इस
रकाय आधनु नक कृ्ण का्म क अनतगभत आए कृ्ण क न्ीन ऩं का ्णभन कव्मं न
अऩनी का्म कृनतमं भं ककमा ह। महा कृ्ण कुछ ऩं भं रीभ्बाग्तऩुयाण ए्
भहाबायत स सा्म यखत हं, ककनतु न्ीन ्् ऩ चचरित कयन भं इन कव्मं का रमास
्राघनीम ह।
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