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25.

ऊँ
ी क ववर पं. टे कचंदजी कृ त
ी पंचपरमे ी वधान
दोहा
मनरं जन भंजन करम, पंच परम गु सार। पूजत ह सुर नर खगा, पावत ह भवपार।।
सोरठा
थमदे व अ रहं त, गभ आ द षटमास के। म णमय नगर कर त, पीछे जन अवतार ले।।
चौपाई छ द
पर परजाय छां ़ड जनराय, गरभ वष अवतार धराय।
तब षोडश सुपना मा लेय, ितनक कथा सुनो पुिन जेय।।
अड ल छ द
ऐरावत गज वृषभ, सफेद सुजािनये। िसंह पहप
ु क माल, ल म हत दािनये।।
पूरण शिश र व कु भ, दोय शुभ दे खया। म छ जुगल जल थान, केिलजुत पे खया।।
प र छ द
सरवर कमलन क र पूण जोय, जलरािश समु फर ल यो सोय।
िसंहासन सुरग वमान जान, धरणदर दे यो जानमान।।
गीता छ द
रतनरािश िनहार अगनी, धूम बन जोई सह ।
ये व न ल ख मा हरष पायो, फे र जन ज म सह ।।
पुिन ठािन तप भवतरण अघह र, ान केवल पाय ह।
तब होय अितशय नाम सुिन जब ज मते दश थाय ह।।
छ द बेसर
तब होय दश जन लहे सु ानो, चौदह अितशय सुरकृ त मानो।
आठ तीहारज शुभ होव, अन त चतु य सब मल धोव।।
चाल छ द
ये छयालीस गुण जुत दे वा, वचर संग ादश भेवा।
छ व दे ख समोसण केर , ह र सुर पूज क र फेर ।।
चाल जोगीरासा क
फे र िस गुण आइ जु पाये, आठ करम के जारे ।
होय िनरं जन चेतन मूरित, लोकिशखर िचित धार।।
आचारज गुण धार छतीस , सुिन ितन कथा सुहाई।
दशधा धम तप ादश गाये, पंच अचार सुभाई।।

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जनजय क चाल
गुि तीन षट आवसी, सब िमिल ह य छतीसा जी।
बहु त
ु गुणप चीस है , अंगपूरवसबपूराजी, बहु त
ु पूज भावस ,
बीस आठ गुन साधु के, तहां पंच महा त सारोजी, पंचसिमित
पंचअ दम, षटआविश भट सुधारोजी।। तेगु अितसुखकार ह।।
कड़खा द द
भूिम सोव, सदा भंजन ते ना कर, याग व तन शीशलुंच।
खांय इकबार िचित, सुभग ठाने सदा, दं तधोवन तज, साधुमान।।
चाल (सुन भाई रे )
ये ह पँचगु पू जये, सुिन भाई रे । जी चाहे भव पार चेत मन भाई रे ।
ये ह भवदिध नाव ह सुिन भाई रे । को पु यत यह पाय, चेत मन भाई रे ।
कडखा छ द
ये ह परमे ी पाँच जग पू य ह, मोहसो सुभट इन हे र माय ।
शेष कम सात तब, परे कस िगनित म, मा र के पलक म काज साय ।।
आप भव ितर गये, और तारत भये, धा र क णा, जगत जीव केर ।
द न को तार, संसार-हर दे व ह, मे ट ह भगत क जगत फेर ।।
।। इित भ तुितः समा ा।।
अथ समु चय पूजा
(चाल पंचमंगल)
पंच परम गु सब सुखदाई, पूज भा वजन हष बढ़ाई।
ितनके पद सुर ह र िनत सेव, पूरब अघवन को धो दे व।।
दे व जो अ नी सकल वन क , और कहो कहा गाइये।
ताके सुफल भव छां ़ड भ व जन, मुकित रमणी पाइये।।
ऊँ ं पंचपरमे जनसमूह ! अ अवतार अवतरत संवौ । (आ ानं)
ऊँ ं पंचपरमे जनसमूह ! अ ित ित ठः ठः। ( थापनम ्)
ऊँ ं पंचपरमे जनसमूह ! अ मम स न हतो भव भव वष स नधापनम ्।
अ क - चाल (जोगीरासा क )
झार कनक सुघाट मनोहर, िनमल नीर भराई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः ज मजरामृ यु वनाशनाय जलम ् िनवपामीित वाहा।
च दन बावन िनमल पानी, घिस कर लेकर लाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः संसारताप वनाशनाय चंदनम ् िनवपामीित वाहा।

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अ त नखिसख शु सुग धत नैनन को सुखदाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः अ यपद ा ये अ तान ् िनवपामीित वाहा।
सुर मपहप
ु ु सुग ध मनोहर, मोहत अिल िचत भाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः कामबाण व वंसनाय पु पम ् िनवपामीित वाहा।
ष रस जुत नैवे प व र, ुधा वनाशनाय लाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः ुधारोग वनाशनाय नैवे म ् िनवपामीित वाहा।
रतन द प ध र थाल आरती, ह षत िच ले भाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः मोहा धकार वनाशनाय द पम ् िनवपामीित वाहा।
दशधा धूप िमलाय अ न मिध, खेऊँ अित उमगाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः अ कमदहनाय धूपम ् िनवपामीित वाहा।
ीफल ल ग सुपार खारक, सुर िशव फलदा भाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः मो फल ा ये फलम ् िनवपामीित वाहा।
जल च दन अ त पु प च ले, द प धूप फलदाई।
जन िस अचारज अ बहु त
ु धर, साधु जज हरषाई।।
ऊँ ं पंचपरमे यः अन यपद ा ये अ य िनवपामीित वाहा।
अड ल छ द
अ रह त िस आचाय उपा याय साधु जी। ये ह पन भवतार भ य अघघाित जी।
पूजत सुर नर खगा मुकत फल कारने। तात म भी जज पाप शठ टारने।।
ऊँ ं अहदा दपंचपरमे यः महा यम ् िनवपामीित वाहा।
अ रह त परमे ी पूजा ार भ
येक गुण के पृथक् -पृथक् अ य
ज म के दश अितशय, चौपाई
जनमत दश अितशय जन लेय, पूजत सुर नर हष धरे य।
ना हं पसेव होय तन मां ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं वेदर हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।1।।
मल न हं होय तास तन माँ ह, िनमल दे ह होय सुखदाँ ह।
यह अितशय जनतन म थाँ ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।

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ऊँ ं मलर हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।2।।
सं थान समचतुर जु होय, ओछ घाट कबहँू न हं जोय।
यह अितशय जो ज मत पाँ ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं समचतुर सं थानस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।3।।
व वृषभ संहनन जु होय, अ त
ु म हमा धार सोय।
यह अितशय जन ज मत पा हं , सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं व वृषभनाराचसंहननस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।4।।
होय शर र सुग ध अपार, नासा वष हष करतार।
ऐसी शोभा अ य न पां ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं सुग धतशर रस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
ऐसो प जने र लह, कामदे व को टक झ व जह।
यह अितशय ज मत जो पां ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं महा पाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
भले भले ल ण से जान, गुण अनेक तन है खान।
यह शुभ छ व सो ज मत पां ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं शुभल णाितशयर हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
ज मत ह ितनके तन होय, शो णत वेत वरन अवलोय।
यह अितशय धार तन मां ह, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं ेतवणशो णताितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
ऐसो वचन कह मुख सोय, जनको सुिन जन मो हत होय।
मधुर िम वच अितसुख दाय, सो जन पूज अ य चढ़ाय।।
ऊँ ं मधुरवचनाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
ताके बल सम और न धाम, है बल अतु य जने र ठाम।
ज मत ह बल अितशय पाय, सो जन पूज अ य चढ़ां ह।।
ऊँ ं अतु यबलाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
केवल ान के दस अितशय
(अ ड ल छ द)
समोसरण जुत जहां, जने र िथित कर, तँहत योजन इक शत, दरिभख
ु ना परे ।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं शतयोजनदिभ
ु िनवारक जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।1।।
जब जन केवल लह, गमन नम म कर। दे व असं ये गैल, भ मुख उ चर।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं आकाशगमनाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।2।।

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जनवर जहाँ िथित कर, सदा हतदाय जी। ितस थानक न हं कोय, मारने पायजी।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं दयाभावाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।3।।
दे व नरा पशु खगा, और को दठ
ु तनी। इन उपसग सु ना हं वािन जन य भनी।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं उपसगर हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।4।।
ुधा अिधक दख
ु करे , जगत इस वश पय । सो जन कबलाहार, खान सब प रहय ।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं कवलाहारर हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।5।।
समोशरण तँह दे व, जने र िथित कर। जब मुख द ख चार, भ वन को सुख कर।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं चतुमुखशोिभतर हत जने े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।6।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है । ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ाकृ त सं कृ त देश, सकल भाषा सह । सब व ा अिधप य, सकल जानत सह ।।
ऊँ ं सकल व ािधप ययुत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।7।।
पु ल तन आकार, मूरती, बन र ो। ताक छाया नह ं, महा अचरज भयो।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं छायार हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।8।।
नख कच तन जो ह य, बँधन ितनको र ो। ह जैसे ह रह, एक गुण यह ल ो।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।
ऊँ ं नखकेशवृ र हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।9।।
ने का टमकार, नाँ ह भ कच हल। नासापर दठ सदा, काल जन ुव तुले।।
ऐसो अितशय केवल, उपजे होय है , ताके पद सुर नरा, जज मद खोय है ।।10।।
सोरठा
ये दश अितशय सार, केवल उपजे जन लह। सो जन ह भवतार, सेवो भ व वसु यत।।
ऊँ ं केवल ान य दशाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।11।।
दे वकृ तचतुदशाितशय वणन
अघ-मागधी वान, सब जीवन सुखदाय ह।
अितशय जन को मान, दे व िनिम क धुिन कह।।
ऊँ ं अधमागधीभाषास हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।1।।
जँह जनक िथित होय, सकल जीव मै ी समा।
अितशय जनके जोय, दे व िनिम क वरनयो।।
ऊँ ं सवजीवमै ीभावयुत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।2।।

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षट रतु के फल फूल, फल जहां जन िथित कर।
जन अितशय सुखमूल, िनिमत मा सुर ह सह ।।
ऊँ ं ष ऋतुफलपु पसहोपल धस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।3।।
दपण सी सब भूिम, होय जहां जन वच र ह।
जन अितशय अघ-होिम, दे विनिमत मातर कहे ।।
ऊँ ं दपणसमभू यितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।4।।
म द सुग धी पौन, होय जीयको हतकर ।
जन अितशय शुभ सौिन, मो गमन को है सह ।।
ऊँ ं सुग धतपवनाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।5।।
सव जीव आन द, होय जहाँ जन वच र ह।
कटत पाप के फ द, दे व िनिमत-मा र सह ।।
ऊँ ं सवान दकारक जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।6।।
गतकंटक भू होय, अितशय सो जनदे व को।
दे व-िनिम क सोय, पूज िशवसुख अवतरे ।।
ऊँ ं क टकर हतधराितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।7।।
ग धोदक-शुभवृ , दे व कर अितशुभ लहे ।
सुख पावत ल ख सृ , म हमा जनवर दे व क ।।
ऊँ ं ग धोदकवृ यितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।8।।
जनपद पूज दे व, कमल रच हत कारने।
अ त
ु म हमा लेव, भा षत जन सब भ व करो।।
ऊँ ं पदतलकमलरचनास हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।9।।
िनमल होय अकाश,सब जीवन सुखकार जी।
अितशय जन सुखरािश, दे व कर उर भ त।।
ऊँ ं िनमलगमनाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।10।।
सब दश िनमल होय, धूम मेह व जत सुभग।
अितशय जनको जोय, दे व कर वश भ के।।
ऊँ ं सव दशािनमलताितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।11।।
दे व कर जयकार, ता क र नभ बहरो कयो।
अितशय जनको सार, दे व भ वश उ चर।।
ऊँ ं जयजयश दाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।12।।
धमच सुर लेय, अगवानी िनत संचर।
अितशय जनको जेय, दे व कर वश भ क।
ऊँ ं धमच ाितशयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।13।।

790
मंगल व वसु जान, दे व लेय आगे चल।
अितशय जनको मान, दे व सहायक भ के।।
ऊँ ं वसुमंगल यस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।14।।
केवल ान हये
ु ह भाई, ये चौदह त
ु ान बताई।
इनम दे व िनिम बखान , यात ये दे व कृ त मानो।।
ऊँ ं दे वकृ तचतुदशाितशयस हत जने यः महा यम ् िनवपामीित वाहा।।
अ ाितहाय वणन
(भुजंगीछ द)
कहो ाितहाय वसु हषदाई, तहाँ बरछ अशोक नह ं शोकदाई।
लखे तास को शोक हे रो न पाव, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं अशोकवृ ाितहायस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।1।।
दे व सुर म
ु के फूल याव, महाभ वशमेघ जय ते चलाव।
मनो योितषी यान नभ से सु याव, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं पु पवृ ाितहायस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।2।।
द यधुनी सकल जीय को सुहाई, सुन पापछय हो भला पु यदाई।
नम दे व खग और सबै पाप जावे, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं द य विन ाितहायस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।3।।
चमर गंध धारा जम शोभदाई, चल दे वक र वोपमा भू र थाई।
घने जीव मुखत भू भ गाव, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं चतुःष चामरवी यमान जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।4।।
जगपू य िसह पीठ भगवान केरो, नम ता सको नािशहै जगत फेरो।
लगे कनक जुत रतन बहशोभ
ु ाव, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं िसंहासन ाितहायस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।5।।
महा जोित जन तनतनो च थायो, भा पूजता ने भलो नाम पायो।
तखे तास को सात भौ दरिस आब, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं भाम डल ाितहायस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।6।।
घनी जाित के दे व बाजे बजाव, ितको दं द
ु िभ
ु श द शुभ नाम पाव।
भने दे व मुख वीनती हष याव, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं दे वद ु दिभ
ु ाितहायस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।7।।
जड़े कनक नग छ म ण दं ड धार, लगी माल मोितन क िलप ट सार।
मनोतीन जगजीव को छाय आवे, ये महागुण जन बना ना हं आव।।
ऊँ ं छ य ाितहाय वभू षत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।8।।

791
अड ल छ द
वृ अशोक िसंहासन भाम डल चमर, पुहु पवृ द यधुिन, द ु दिभ
ु छ वर।
ये वसु ातीहाय, जन के होय ह, इन बन ये न हं , और दे व के होय ह।।
ऊँ ं वसु ाितहाय वभू षत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।
अन तचतु य का वणन (वेसर छ द)
दशन अन त अन त ह जोवे, जो जो भई होय वा होवे।
यात पद सव सु होई, ये गुण जन वन लहे न कोई।।
ऊँ ं अन तदशनस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।1।।
ान अन तान त जनावे, तीन लोक यकाल लखावे।
पद सव ताज त होई, ये गुण जन वन लहे न कोई।।
ऊँ ं अन त ानस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।2।।
सुख अन त मनोहर होवे, बाधा अन तकाल न हं जोवे।
सुख अन त बन देव न होई, ये गुण जन वन लहे न कोई।।
ऊँ ं अन तसुखस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।3।।
अ तराय भट जन जय लीन , ितनभव दख
ु हर कारज क नो।
अन तवीय परकाशन होई, ये गुण जन वन लहे न कोई।।
ऊँ ं अन तवीयस हत जने यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।।4।।
दश ज मत दश केवल उपजे होय ह, चौदह सुरकृ त अन त चतु य सोय ह।।
ाितहाय वसु सब िमिल गुण िछयालीस जी, इन अितशय जुत होय सोय जगद श जी।।
ऊँ ं ष च वा रं श गुणस हत जने यः महा यम ् िनवपामीित वाहा।।
जयमाला - बेसर छ द
जन अितशय छयालीस सुपावे, ताक कथा सकल मन भावे।
सो भ व िचत दे सुनो बखान , तात होय पापमल हान ।।
ज मत दश ये वेद न होई, सं थानक समचतुर सुजोई।
संहनन व वृषभ नाराचै, मलन हं तन सुग ध शुभ माचै।
महापु ष शुभ ल ण हो ह, वेत िधर वच मधुर सुसोह।
बल अन त जन तन म पावे, ज मत तो ये दशगुण थावे।।
केवल ान भये दश जानो, शतयोजन दिभ
ु न मानो।
नभ म गमन दया सब यावे, ना उपसग दे व के थावे।।
कबलाहार नह ं जन केरो, चौमुख द खे छांह न हे रो।
सब व ा के ई र होई, नख अ केश बढ़े नह ं कोई।
आ खन क भ टमक नांह , ये दश केवल उपजे थाह ं।
अब सुिन दे व चतुदश ठाने, अ मागधी भाषा माने।।

792
सकल जीव के मै ी भावो, सब रतु के फल फूल फलावो।
दपणतु य भूिम तहां होई, म द सुग ध पवन शुभ जोई।।
सब जीवन को आनंद होवे, भूिम कं टकार हत सु होवे।
ग धोदक क वरषा जानो, पदतल कमल रचत हतथानो।।
िनमल गगन दे व जयवानी, दश दशा िनमल अिधकानी।
धमच वसु मंगल ठानो, ये चौदह दे व कृ त मानो।।
अब सुिन ाितहाय वसुभाई, त अशोक सुमवषा थाई।
द यधुनी िसंहासन जानो, भाम डल द ु दिभ
ु सुखदानो।।
छ चमर वसु जानो भाई, फर ये चार चतु य थाई।
दशन ान वीय सुख वेवा, ये छयालीस सुनगुणयुत दे वा।।
ये गुण जाम दे व कहावे, इन वन दे वपना ना पावे।
यात दे व परख क र सेवो, सुरग मुकित सुख को भ व वेवो।।
घ ा
जँह ये गुण होई, दे व सु सोई, मंगलकार भ यन को।
सो मोक तारो, पार उतारो, िशवस पित दे सव जनको।।
ऊँ ं ष च वा रं शदगुणस हत जने यः पूणा यम।्
िस परमे पूजा
अड ल
आठ कम िनवा र, धा र गुण आठजू, भये िनंरजन िछन म सुख के ठाठ जू।
बातबलै तनु ठये, लोक यपित भये, ते िसध नम सुभाय ानपूरित ठये।।
ऊँ ं णमो िस ाणं ी िस परमे न ् ! अ अवतार अवतरत संवौ । (आ ानं)
ऊँ ं णमो िस ाणं ी िस परमे न ् ! अ ित ित ठः ठः। ( थापनम ्)
ऊँ ं णमो िस ाणं ी िस परमे न ् ! अ मम स न हतो भव भव वष स नधापनम।्
प र छ द
ये ानावरणी पंच वीर, जन घा यो जयगुण ान धीर।
सब घाित अ ता लयो ान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं पंच कार ानावरणकम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
नवदशन वरनी दरश छाय, इन घात त भगवान थाय।
सो धरे अन त दशन सुथान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं नव कारदशनावरणकम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
कम एक वेदनी दोय भेव, जनक सुख दख
ु दे वे वमेव।
हो वेदिन वजय अबाध थान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं कारवेदनीयकमर हतिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

793
मोह दो कार वश जगत जोर, ितन जय स यक गुण जयो सोर।
ता मोह वजय स य ववान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं वधमोहकम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
कम आयु चार वश जगत जेर, पोडे ़ पग य परवश पड़े र।
ितन आयुघाित अवगाह ठान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं चतुः कारायुःकम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
कम नाम चतेरा य बखान, इन घाित अमूरित भये सुजान।
गित वांग धरन यागो महान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं नवित कारनामकम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
ये गो कम दो वध स प, ता विश कबहँू फर रँ कभूप।
ये नािश अगु लघु गुण समान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं गो कम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
विध अ तराय कम पाँच भेव, जन जयको गुन धा यो वमेव।
ताको हित के बल अन त ठान, ते िस जज य जग धान।।
ऊँ ं पंच कारा तरायकम वनाशकिस े यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
गीता छ द
ान दरशनावरण वेदनी, मोह जुत चार हनी।
आयु नाम गो कम अ तराय हर क नी मनी।।
ये आठ कम ह र दा ह आतम, आपको पद शुध कयो।
ये भये तीन लोक नायक, नम , ुव चाहो जयो।।
ऊँ ं अ कम वनाशकिस े यः महा यम ् िनवपामीित वाहा।
जयमाला
चाल पंचमंगल क
तीन लोक य शत तेताली, घनाकार ताके मिध नाली।
चौदह राजू स तहां होई, चार गित रचना मिध सोई।।
अधोभाग नक सात बताये, नर ितयच म य म गाये।
योितषी भी इस ह म गाये, ऊपर वैमािनक बतलाये।।
गाये ऊपर िसधदे व थानक, ऊ वक फर िसधिशला।
ता ऊपर िसधदे व राजे, पवन इकथल म िमला।।
ते कम को ट सुवाट जाव, ते सकल इस थल म रह।
र ह ह अन ते काल सु थर, फे र भवतन ना लहे ।।
एक एक िशवथानक माह ं, िस रह ह अन ता ठाह ं।
िभनिभन रह िमल न हं कोई, गुण पयाय य िनज सोई।।

794
लोक िशखर पर जाय वराजे, भवसागर से हो िनरवारे ।
सब ह चेतनगुण बहु धारे , सुखमय ित त कम कुजारे ।।
जारे जु आठ कम भवदा, आठ गुण परकाशये।
ितन ान म यलोक घटपट, आिन के सब भासये।।
ते नम सब िसधच उर ध र, तास फल िशवथल लह ।
और थुित फल ना ह बांछा, नां ह अन मुखत कह ।।
ऊँ ं णमोिस ाणं ी िस परमे यः पूणा यम ् िनवपामीित वाहा।
आचाय परमे पूजा
दोहा
गुण छतीस ितन ढं ग रतन, भववनसंकट टार।
नम चरण ितनके सह , ितन गुण जांचन सार।।
ऊँ ं ष श
ं णस
ु हताचायपरमे न ् ! अ अवतार अवतरत संवौ । (आ ानं)
ऊँ ं ष ंश णस
ु हताचायपरमे न ् ! अ ित ित ठः ठः। ( थापनम ्)
ऊँ ं ष ंश णस
ु हताचायपरमे न ् ! अ मम स न हतो भव भव वष स नधापनम।्
चाल छ द
जे सब त क ना आन, सो उिचत मा को जान।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं उ म माधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जो मान रं च न हं लाव, सो मादव गुन को पाव।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं उ मादवधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जाके उर माया नाह ं सो आजव भाव कहाह ं।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं उ माजवधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
तन जावे तो भी भाई, ते झूठ न कह हं कदाई।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं उ मस यधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जाके उर वांछा नाह ,ं सो िनमल शौच कहाह ं।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं उ मशौचधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
वश ाण सुइ रासो, सो संजम दो विध भाखे।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं वधसंयमधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

795
जो ादश विध तप यावे, परतन न हं खेद लगावे।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं ादशतपः स हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पर य नह ं अपनावे, सो यागधम िचत भावे।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं यागधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जो अ तर बा हर नागा, सो आ कंचन भय भागा।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं आ कंच यधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
िनजपरितय को शुभ यागी, सो चय अनुरागी।
ते आचारज सुखदाई, स पूज अ य चढ़ाई।।
ऊँ ं चयधमस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
कड़खा छ द
एक दोय चार ष , अ दन प लगौ, खानपानी तनो याग यावे।
माह दो एक षट, चारवासी भलो, धीर त ज अशन, उर सासो यावे।।
इन हं आ दकितको, वास द ु र कर, ना हं परणित वष, खेद आने।
जीय के घोर त धार आचाय ह, नम ितन चरन फल पाप भाने।।
ऊँ ं अनशनतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
भूखत अध खावे, तथा भाग य, भाग चौथो भखै धार ।
एक दो ास ले, भाव समता धरे , तास त जा अघ सूर हार ।।
नाम ऊनोदर वृ याक क ो, तास के धार गु जगत जाने।
जीय के घोर त धार आचाय ह, नम ितन चरन फल पाप भाने।।
ऊँ ं ऊनोदरतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
धर जो त ताम महा ढ़ रहे , रोज को तास परमान यावे।
तास कूंयाद र ख, सकल कारज करे , नेम परमानता विध िनभावे।।
खान अ पानगमना द प रमाण ले, वृ प रसं यान सूर आने।
जीय के धार तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं तप रसं यानतपोधारकाचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
रोज षटरस वष, रसन को यािग ह, ना हं सबरसा एक बार खाव,
मोह बल वष वनराग िच रािग ह, ना हं रसनावशी आप आव।
भोग अछरसनत ज, आप भोगी भयो, रै न दन यानधी मां हं आने।
जीय के धार तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं रसप र यागतपोधारकाचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

796
जा ह आसन थक , धीर तँह िथित करे , तास विध ल नह ं ठाम ोरे ।
काल जेते तनो, नेम धार बुधा, वार तेतो वपू, ीित तोरे ।
दे व खगनर पशूकृत जो दख
ु िमल, त हते
ु धीर दःखनां
ु हमाने।
जीय के धार तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं व व श यासनतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
तन वष खेद को िनिमत जा वध िमले सो ह वध ठािन सम भाव लावे।
याग तन को कये, त ऐसो बने, मोहवश जीव इह नां ह पाबे।।
वीतरागी वना त को िसर धरे , रागजुत जीवतो हा र माने।
जीय के धार तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं काय लेशतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
बोल परमादवश, दोषपरणित वष तथा चलहलन को, पाप लागे।
तास को छे द कारन लहे दं ड मुिन, धीरता दे ख अघ, नां हं जागे।।
आप ह आप को, दं ड लेते मुनी, धीरता दे ख अघ, नां हं जागे।
जीय के धार तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं ाय ततपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
आपत गुनी ितन, को वनय जे कर, ते महा त को, ओप याव।
वगरनबनी कये, हािनसबगुणन क तासत दे खबुिध, मानढाव।।
सकलसंजमतनी, वा ढ दढ है यह जतन त, गुनी, या ह आने।
जीयको धीर तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं वनयतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
आपत महं त गुणधार ह जे जती, तथा त
ु दे व महासौ यदाई।
ितन हं वंदगी प, परणती जािनये, सोइवैयावृ यवा िनगाई।
वृ ऐसोबने, मो मारं गलहे , होयम दमोहयह, र ितठाने।
जीयको धीर तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं वैयावृ यतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
रै न दन वािन जन, पाठ मुखत कर, तथा उपदे श दे , हरष लाई,
उर वष वािन जन सदा िच तनवन कर, रहे जन आिन म भ भाई।
कर गु पाद परसन वनै ठािनके, या वधी पांच वा याय आने।
जीयको धीर तधार आचाय ह, नम ितन चरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं वा यायतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
याग तन को कर, वृ ऐसो धर, सूर उपसगत, ना हं भागे,
िलख कमकेठाठ दख
ु सुखसहे गत म छा ़ड पर मोहिनज मां हं जागे।
राग तन मां ह सो दढत पानां ह युत सग तप धा रतन ीितहाने।

797
जीयको धीर तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं यु सगतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
मन वचन काय य जोग इक ठाम क र आप शुध याय पर भाव यागे।
तथा दे व अ रह त, परमे िसध के गुण, तनी मान शुभ भाव लागे।
रोक िच मृग शुभ यान जाली वष एकथल रा ख िशव ठां ह आने।
जीयको धीर तधार आचाय ह, नम ितनचरनफल पाप भाने।।
ऊँ ं यानतपः स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
कहे तप अ तर बा हर करो ादश, धीर तन याग बन राग याव,
जीव रागी वष, चाह ताक रहे , सो नव इन दसी भाव यावे।
यह जािन रागी, बना राग क पर ा ठािन, तप धा रते, धीर आने।
जीय को धीर त धार आचाय ह, नम ितन चरण फल पाप भाने।।
ऊँ ं ादशतपः स हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
ष आव यक का वणन
प र छ द
जे ष आविश धार सद व, ते शु स पी ह य जीव।
गुणधा र जा र कमा वीर, िनज ितर और तारक सुधीर।।
ऊँ ं षडाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
सब जीव सु स, थावर सुजान, समभाव सकल पै िच ठान।
त ज आरत रौ सुभाव सोय, ममता सामाियक सुखद होय।।
ऊँ ं सामाियकाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
अ रह त िस आ दक महं त, ितनक थुित िनज मुिन वर करं त।
उर िनमल क र शुध भाव ठान, ता फल पावे िशव लोक थान।।
ऊँ ं तवनाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
ते शु भाव कारण महान, बंदन विध क र ह दे व थान।
तात अघरज धोव सुवीर, ता फल पाव भव समुद तीर।।
ऊँ ं व दनाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
मुिन के मन वच तन दोष लाय, सो द ू र करे ित मण भाय।
उर आलोचन क र शु होय, ते सू र नम मद टा र जोय।।
ऊँ ं ित मणाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
मनवच तन अघ विध याग होय, ल ख आविश या यान सोय।
ये कर रोज आचाय जान, ता फल िच ते अघ होय हान।।
ऊँ ं या यानाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
तन याग ह य िथर थान सोय, कायो सगाविश कम होय।

798
ये कर रोज आचाय मान, ताफल िच ते अघ होय हान।।
ऊँ ं कायो सगाव यकस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पंचाचार का वणन
सोरठा
सकल पदारथ सोय, दे खे शुध क र सरदह। तात िशव सुख होय, सो दशन आचार है ।।
ऊँ ं दशनाचारस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
शु पदारथ भाव, जाने गुण पयाय सब। ताक र हो िशव वास, ानाचार सो जािनये।।
ऊँ ं ानाचारस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
छोड़े सकल कषाय, गुि सिमित त आदरै । बरत नगन सुभाय, सो च र ाचार है ।।
ऊँ ं चा र ाचारस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
कम हरण के काज, बल परकासै आपनो। तप संजम बहु साज, सो वीरज आचार है ।।
ऊँ ं वीयाचारस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
ादश वध तप ठािन, समता भाव सु प रणये। सो क र है कमहािन, तपाचार सो जािनये।।
ऊँ ं तपाचारस हताचाय परमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
गुि य का वणन (गीता छ द)
मन चपल है क र काय जैसो, क प तने पद को लह।
ताक वकलता लहर दिध य , जगत जय विश ना रहे ।।
ते ध य गु वश कया याको, आप या विश ना रहे ।
मनगुि याको जािन भ वजिन, या फलै िशव सुर ठहे ।।।
ऊँ ं मनोगुि स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
वचन िनजवश रा ख भाषत, जन तनी वानी कहे ।
परमाद वच कबहंू न भाषे, ता थक जय अघ लहे ।।
यह वचन गुि सद व आचारज, जको पाव सह ।
मन वचन तन वसु य ले क र, पद जज इनके सह ।।
ऊँ ं वचनगुि स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जो काय अपने हाथ राखे, चपलता मटे सह ।
परमाद टा र सुधा र िथरता, जा र अघ, ले शुभ मह ।।
ल ख कायगुि सुनाम याको, सदा आचारज कर।
ते धीर या फल कम हरके, मु सी रमणी वर।।
ऊँ ं कायगुि स हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
धम दश वध वरत बारह, गुि तीन बखािनये।
आचार पांच महा सु दर, ष आविश शुभ मािनये।।
ये गुण छ ीस , धर सोह सूर आचारज कहे ।

799
ितन चरण कमल सु य वसु ले, जज मन वच तन ठहे ।।
ऊँ ं ष - श
ं दगुणस हताचायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जयमाला -दोहा
आचारज गुण आरती, कहंू हये थुित आन। ताक निम पुिन फल लह, होय पाप क हान।
प र छ द
उ म मा को कोपभट माय , मादव मान जसो अ र टाय ।
आजव माया कुटनी टार , स पथ कौ सब झूठ िनवार ।।
शौच सकल उर को शुिच क नो, संयम त अ त जय लीनो।
तप त प सकल पाप िनरवारे , यागभाव पर त परवारे ।।
आ कंचन प र ह प रहारे , चय ितय भाव िनवारे ।
ये ह धम दश सुखदाई, अब सुिन ादश तप मन लाई।।
अनशन वास तनी विध सोह , अवमौदय खान लघु हो ह ।
त प रसं या िनत त ठाने, रस प र यागी रस न हं जाने।।
वव श या थल दढ़ होहे , काय लेश क वध जोहे ।
ये तो बा तने ष जानो, अब ष अंतरतप सुिन कानो।।
ाय त अपराध स हारे , वनय बड़ क नमन सुधार।
वैयावृत गु को सुख ठाने, सो वा याय वािन मुख आने।।
यु सग काय याग विध होई, यान धम मन िच ते सोई।
अब सुिन षट आविश क बात, तात होय महा शुभदा त।।
सामाियक सब त समभावा, तवन जन िसध क थुित चाबा।
वंदन सो जनके िसर नावे, ित मण जो पाप िमटावे।।
या यान याग सो जानो, कायो सग तन याग बखानो।
अब सुिन पंचाचार सुभाई, ितन बल बहु जीवन िशव पाई।
ानाचार ान वध ठाने, दशन सो दशन विध आने।
चा रत चा च रत विध लावे, तपाचार तप र ित करावे।।
वीयाचार पु षारथ जान , अब सुिन तीन गु बखान ।
मन वच तन वश राखे सोई, गुि नाम जाने भ व होई।।
दोहा
इन छ स गुण स हत जो, नम सू र मन लाय। ताके गुन पावन िनिम भव भव होहु सहाय।
ऊँ ं ष - श
ं दगुणस हताचायपरमे यः पूणा यम ् िनवपामीित वाहा।
उपा याय परमे पूजा - दोहा
अंग पूव धारक मुनी, नम तास पद जान। ता फल अघ िमट शुभ बने, लहे शु िशव थान।।
ऊँ ं ी उपा याय परमे न ् ! अ अवतार अवतरत संवौ । (आ ानं)

800
ऊँ ं ी उपा याय परमे न ् ! अ ित ित ठः ठः। ( थापनम ्)
ऊँ ं ी उपा याय परमे न ् ! अ मम स न हतो भव भव वष स नधापनम।्
सोरठा
चौदह पूरब सार, एकादश अंग जूत सह । ये प चस गुण धार, होय उपा या सो नम ।।
ऊँ ं पंच वंशितगुणस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
मरहठा छ द
आचारँ ग म य बतलायो, सुनो भ वत िचत आन।
काज सकल ह करो जतनत, महाशु उर आन।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं आचारां ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
सू कृ तांग दसरो
ू अंग है , ताम य या यान।
धम तनी क रया सब याम, भाषी है भगवान।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं सू कृ तांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जान तीजो अँग सथाना, ता मिघ जीव सुथान बताय।
एक दोय आ द उ नीस , चौसठ षट जय ठाम सुपाय।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं थानांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
है समवाय अँग चौथो यह, या मिध सकल व तु सम गाय।
धम अधम य सम भाषे, जगत जीव सम सम िसध भाय।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं समवायांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
या या गपित अंग पंचम , ितन म ऐसो कथन चलाय।
अ ती जीव ना ती जानो, एक अनेक सुव तु सुभाय।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं या या यंगस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
छठवाँ ातृकथा अँग जानो, ताम सकल कहो या यान।
च कामदे व तीथकर, इन आ दक पहँु चे शुभ थान।।

801
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं ातृधमकथांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जान उपासका ययन सातम , तामिध ावक कथन कहाय।
एकादश ितमा आ दक बहु, क रया का समुदाय बताय।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं उपासका ययनांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
अ तकृ तांग दशांग महाअँग, अ म यामिध य िलख पाय।
इक इक जनबारे अ तःकृ त, दश दश केविल कथन चलाय।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं अ तःकृ शांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
अनु रो पादक दशांग अँग, ताम इक इक जनक बार।
दश दश मुिन अित सहो उप व, गये अनु रय लखसार।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं अनु रो पादकदशांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
याकरण अँग वष, या, गई व तु इ या द बताय।
जीवन मरण सौ य दख
ु क विध, सब के भेद दखाय।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं याकरणांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
सू वपाक अँग एकादश, ताम कम वपाक बखान।
ती म द भावत बाँध,े सो रस दे इ या द सुजान।।
या अंग रहस सकल ह पाव, उपा याय ह सोय।
जनके पद वसु य थक भ व, पूजो मन शुध होय।
ऊँ ं वपाकसू ांग ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
चौदहपूव का वणन
अड ल
अब चौदह पूरब क कथा सुहावनी, ितन यह पाई र जने अघरज हनी।
इनके धार उपा याय जगगु कहे , ितनके पद वसु य थक ज ज अघ दहे ।।
ऊँ ं चतुदशपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

802
गीता छ द
पूव है उ पाद पहला, कथम ताम य सह ।
व तु के उ पाद यय ुव, आ द म हमा अित लह ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं उ पादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव अ ायण सु दजो
ू , कथन नय दणय
ु करे ।
त व य पदाथ के पर-माण जाने उर धरे ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं अ ायणीपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव वीय वाद तीज , कथ वीरज को चले।
आ मवीय सु काल ेतर, ान चा रत पर िमले।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं वीयानुवादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
अ त ना त सुपूव चौथो, स भंग बखािनये।
य त व पदाथ के सब, अ त ना त सुजािनये।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं अ तना तपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव ान वाद पंचम, ान वसु ल ण कहे ।
सब ानफल परमान इनको, आ द सब विध ते लहे ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं ान वादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव स य वाद ष म, गुि भेद बखािनये।
स य अस य अनेक वैन, सुभेद तात जािनये।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं स य वादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
आ म वाद सुपूव स म, जीव ल ण तँह क ो।
जीव आयो वा गयो इन, आ द इस पूरब ठ ो।।

803
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं आ म वादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव कम- वाद जु तामिध, कम क सब विध कह ।
स व ब ध उदय कृ ितयाँ, आ द सब भाषीं सह ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं कम वादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव या यान नवम , व तु इ या दक कह ।
अ य े सुकाल संवर, वास म या दक सह ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं या यानपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव है व ानुवाद सु, अ िनिम बखािनये।
व ा सुसाधन प फल बल, आ द र ित सु मािनये।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं व ानुवादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव है क याणानुवाद सु, वहां इस विध वर यो।
क याण पांच जन तने, योितष गमनको फल चयो।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं क याणानुवादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव ाणावाद मांह ,ं म त सु विध कह ।
फर वै योितष भूतनाशन, क सकल विधहै सह ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं ाणानुवादपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पूव या वशाल के मिध, गीत छ द सु विध कह ।
शा नय लंकार चौसठ, कला ितयक तहां सह ।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं या वशालपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

804
पूव चरम लोक- ब द,ू सुकथन तँह य वरनयो।
लोक य के सुखदख
ु का, मुकुरसम वणन कयो।।
इस पूव को जो अथ जाने, उपा याय सो जािनये।
वसु यत पद जज मन वच, भ उर अित आिनये।।
ऊँ ं लोक ब दपू
ु व ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
प र छ द
अंगएकदश अ त
ु सु ान, फर पूव चौदह और जान।
इनके गुण वे ा ते मह त, जन उपा याय पूज सुस त।।
ऊँ ं एकादशांगचतुदशपूव ानस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जयमाला - दोहा
बीस पाँच गुण धार गु , उपा याय हतदाय। ितन ब दे थुित के कये, महापु य उपजाय।।
बेसर छ द
आचारांग भने सुखदाई, सू कृ तांग रहस सब पाई।
थाना अँग सथान बताये, समवाया अँग के गुण थाये।।
या या गपित अँग को जाने, ातृकथा को भेद बखाने।
अँग उपासका यन सुधायो, अ तकृ तांगदशांग सुझायो।
अनु रपाददशांग सुजानो, अँग याकरण बतानो।
सू वपाक अँग हतकार , ताको रहस िलयो गु सार ।।
ये एकादश अँग ितन पाये, उपा याय सो सब मन भाये।
अब पूरब चौदह सुन भाई, थम पूव उ पाद कहाई।।
अ ाय ण पूरब क धार, वीय वादपूव अघ जारे ।
अ त ना त परवाद सु जानो, ान वाद पंचम मानो।।
स य वाद पूव को पावे, आ म वाद पूव समझावे।
कम वाद पूव सुखकार , या यान पूव को धार ।।
पूव व ानुवाद को जाने, पूव क याणवाद अघ हाने।
ाणवाद पूरब ह र पायो, पूव या वशाल उर जायो।।
अ तम लोक ब द ु है भाई, ये चौदह पूरब सुखदाई।
इनके धार उपा या होव, ितनके जज सुरग िशव जोवे।।
सोरठा
जो पूरब अंग धार, ितन जग पूजत पद लयो।
सो क र है अघछार, ितन पूजे जनपद जयो।।
ऊँ ं पंच वंशितगुणस हतोपा यायपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

805
साधु परमे पूजा
दोहा
बीस आठ गुण साधु के, नम तास कर जोर।
ताके ब दे पाप सब, जाय सकल ढग छोर।।
ऊँ ं अ ा वंशितमूलगुणस हतायसाधुपरमे न ्! अ अवतार अवतरत संवौ । (आ ानं)
ऊँ ं अ ा वंशितमूलगुणस हतायसाधुपरमे न ्! अ ित ित ठः ठः। ( थापनम ्)
ऊँ ं अ ा वंशितमूलगुणस हतायसाधुपरमे न ्! अ मम स न हतो भव भव वष
स नधापनम।्
अ ा वंशित गुणजुत होय, साधु हये
ु जग के गु जोय।
आतम रं ग राचे मुिननाथ, पाऊँ इन पद भव भव साथ।।
ऊँ ं अ ा वंशितमूलगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
ितरस थावर जीव सबह , आज सम जाने सह ।
मन वचन तन जय को न दखदा
ु , सकल पै समता लह ।।
जो द ु कोई आय पीड़े , तो न कबहंू दख
ु कर।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं अ हं सामहा तस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
तन जाय तो न हं असत भाषत, कहे सतवच सारजू।
चवै स यक वैन सोहू, सू के अनुसार जू।।
ितस वचन को मुिन सकल ानी, पापमित अपनी हरे ।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं स यमहा तस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
बन दये पर का माल कबहंू , मन वचन छूव नह ं।
तन आपने हू त सु वरकत, दये त भोजन लह ।।
काय न न चल सुचया, याचनामित ना कर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं अचौयमहा तस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
ना र, दे व मनु य पशु क , मन वचन तन क र तज।
सो शीलधर हो बालसम, िनद ष अपनी पद सज।।
ते जगत ितय त ज मुकित नार , वरन को उ म कर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं चयमहा तस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जे तज दो वध ह प र ह, बा अ तर जािनये।
ितलमा पु ल ब ध सेती, ममत क विध भािनये।।

806
जे रहे वमुख सुभाव तन ते, सो ह ममता उर धर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं प र ह यागमहा तस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
चार कर भू शोधक पद, धर शुभिचत लायके।
जो बने कारन जोर इत उत, तो लख न हं भायके।।
सजीव थावर सकल सेती, भाव समता उर धर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं ईयासिमितस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जो बोिल ह वच सकल हतदा, खेद को जय ना लहे ।
जन बैन भा षत याय भाषत, फे र समता जुत रह।
ितन वचन को सुिन भ य ाणी, आपने अघ क हर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं भाषासिमितस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जे लह अनजल शोिध शुभिचत, एकटक ठाँड़े भख।
न हं सैन अँगुर नैन मुखत, बोल हू नाँह अख।।
फर दोष ष चालीस टाल, और दषण
ू बहु टर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं एषणासिमितस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जे धर व तु संभाल पृ वी, लय भू त जोयक।
परमाद त ल धर नाह ,ं महाशुभ-िचत होयके।।
ितन मा हं ना हं पमाद राख, लगे अगले अघ हर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं आदानिन ेपणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
मल मू छोड़ थान ल ख के, ितरस थावर पािलया।
िनजभाव मीतो करम र तो, और के अघ टािलया।।
ितस बने राजे आप जोगी, वैर जय सब प रहर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं यु सगसिमितस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जे लघु भार उ ण शीतल, नरम ककश जािनये।
खी िचकन आठ ल ण, फरस इ मािनये।।
या फरस इ जगत जी यो, तासु को जे वश कर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं पशने यजयिनरतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

807
िम ख टा कटु कषायल, चरपर पाँच सह ।
ये रसन इ वषय जयको, जक ़ड क र बाँध मह ।।
इ जु रसना जगत जी यो, ता सकूं जे वश कर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं रसने यजयिनरतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
शुभग ध अ दग
ु ध दो वध, ग ध इ य जािनये।
इस वषयवश जय होय रागी, े ष उर म हं आिनये।।
इन जीय जग के सकल जीते, तास को जे वश कर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं ाणे यजयिनरतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
पीत याम सुफेद स ज सु लाल यह पाँच कहे ।
इनके वशी जय दे ख पु ल, राग ेष विचत लह।।
जो ने इ वषय वश क र, आज िनरअंकुश फर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं चतु र यजयिनरतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
सिचत अिचत तु िम तीन , वषय वण तने कहे ।
शुभ सुने रागी अशुभ सुिनके, दोष जुत उर म थहे ।।
जन वषं कण जु आप वश क र, भाव वच समता धर।।
ते साधु पूज अ य कर ले, तास फल सुख संचर।।
ऊँ ं कण यजयिनरतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
चाल (जोगीरासा क )
समताभाव सकल जीवन त, आप स श सब जाने।
संयम तप शुभ रहे भावना, राग े ष न हं आने।।
आरत रौ न भोग भूमह , िनर आकुल रस र झे।
ितन साधुन के िनत ित जुगपद, पूजे त अघ सीझे।।
ऊँ ं सामाियकाव यकस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
अरहत िसधक जो थुित क जे, भ भाव उर आनी।
ताह रस आतमरँ ग यावे, सो अ तुित विध जानी।।
सो साधु भी िनश दन ठाने, मनवचकाय लगाई।
ितनके पद वसु य थक म, पूज इकिचत लाई।।
ऊँ ं तवनाव यकस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
मनवच तन अ रह त िस को, कर धर शीश नवाव।
सो वंदन विध मुिनिनत ठाने, अगले पाप खपाव।।

808
ऐसे साधुन के पद पंकज, भ भाव उर आनी।
पूजन करहु दरव आठ से, अ य तनी विध ठानी।।
ऊँ ं व दनाव यकस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
दोष लगे मन वच तन कोई, ताके य विध काजे।
सो ह र ित करे उर आनी, अपनी शुधता साजे।।
ित मण त भाव शु क र, आलोचन मन आने।
म ते साधु नम सुख काजे, ता फल मो अघ भाने।।
ऊँ ं ित मणाव यकस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
यागकरण परव तु सकत सम, या यान सुजानो।
जो विध अशन रसा दक कोई, इन आ दक को मानो।।
िनत ित या विध करे सु सबह , समता जुत िचतठाने।
ते गु म पूज वसु व ले, श ु िम सम आने।।
ऊँ ं या यानाव यकस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जँह िथित धार जप जग पीहर, ऐसो साहस धार।
बहु शर ठाम छुड़ायो चाहत, क बहत
ु विध पार।।
तो हु धीर तज न हं आसन, आतम-रस िलपटाये।
म ते साधु नम जुत कर िशर, मन वच शीश नवाये।।
ऊँ ं काय सगाव यकस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
प र छ द
जो ऊँच नीच भू लखे न कोय, तृण िशलख ड िगने ना कोय।
शुध भूिम जीव बन शयन लाय, ते साधु जज उर हरष लाय।।
ऊँ ं भूिमशयनगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जे कर न तन आभरन सार, तन ग धलेप याग सुधार।
इ या द कायरचना जु ना हं , ते मुिनवर ब द हरष लां हं ।।
ऊँ ं मल यागमूलगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जे रह नगन तन मातजात, ितन पै न हं तृणतुष वसन पात।
नभ ओढ़ भूतल तन बछाय, ते साधु नम वसु य लाय।
ऊँ ं व यागमूलगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
िनजकर त िनज कच ल च लेय, िचतक णा क र उर धीर जेय।
तन शोभा त ज मन शु भाय, ते साधु नम वसु य लाय।।
ऊँ ं कचलुंचनगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।

809
चौपाई
एक बार लघु भोजन खाय, रस वन तथा स हत रस पाय।
भरना उदर ममत कछु नांय, ते म साधु जज उमगाय।।
ऊँ ं एकभु गुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
एक ठाम िथित भोजन करे , तन िथर काज राग बन भरे ।
मो प थ साधन के काज, ते म साधु जज िशवकाज।।
ऊँ ं थितभु गुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
सू म जीवदया के काज, दांतुन भी याग मुिनराज।
सकल ज तु ब धू सम जान, ते म साधु नम अघहान।।
ऊँ ं द तधावनर हतगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
चाल जोगीरासा क
पंच महा त सिमित पाँच ल ख, इ सब वश आने।
आविश ष भू शयन नहन
ु त ज, वसन याग शुभ ठाने।।
कचलोचन इकवार लघू अन, एकठाम िथित काजे।
द त न धोबन बीस आठ इह, साधु सुभग गुण साजे।।
ऊँ ं अ ा वंशितमूलगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
जयमाला - दोहा
ये अ ठाइस गुण सकल, धर मो मग जान। ितनको सुिन या यान भ व धारत उपजे ान।।
चाल भरथर क
ते गु पूज भाव स , जे क णा ितपाल। सो मुिन द न दयाल, ते गु पूज भव स ।।टे क।।
पंच महा त आदर, पांच सिमित समेत। इ पाँच वश कर, षट आव यक हे त।।
भूिम शयन मंजनतजन, पटके यागी जान। कचलुंचन लघु अशन है , असिथित है शुभ आन।।
दांतुन कबहंू ना कर, ह मिन द नदयाल। सब जय र क हत धनी, सब ह जग ितपाल।।
स य महा त जे धर, भाष असत न वैन। याग अद ादान को, चय सुख चैन।।
न न वपू प र ह तज, चाल भूिम िनहार। खांय दे ख धर लेय सो, जो हू ठाम वचार।।
म मू ा दक याग ह, सो हू भूिम िनहार। इ पाँच वश कर, वरकत िच उदार।।
सपरस इ वश कर, आठ वषय िनवार। रसना के पांच वषय, याग ममत हार।।
ग ध तने दोऊ वषय, जीते दखदा
ु जान। पाँच वषय ने तने, जीते शुभिचत आन।।
कारण- वषय तीन हरे , िम अिच सिच । क ठन भूिम सोवन बने, र ण जीव िनिम ।।
मंजन- विध न हं तन वष, झलके नसासु जाल। वसन र हत-तन सोहनो, पजत सुर सु वशाल।
िशर सुख डाढ़ कच लुंच, बाधा लहे न कोय। एक बार भोजन लघू िनरदषण
ू ल सोय।।
तन िथित िशवसुख कारने, आनकाज ना जान। द त न धोव दयािनधी, िनजसम सबको मान।।
ऐसे बीस अ आठ, गुणधार मुिन कोय। ितनके पद वसु य त, पूज मन शुध होय।।

810
सोरठा
तन- वरकत िशविम त, सकल ज तु रखपाल ह। िनज सुख धारत स त, पूज त बहु सुख बढ़े ।।
ऊँ ं अ ा वंशितगुणगुणस हतसाधुपरमे यः अ यम ् िनवपामीित वाहा।
समु चय जयमाल
(क व छ द)
ज मत दश दश केवल उपज, चौदह दे व कर थुित लाय।
अनंत चतु य ाितहाय वसु, सब िमिल गुण यालीस सुथाय।।
इनको धरे दे व सो मोक , भव भव शरण होहु सुखदाय।
सुर नर ह र पूजत भगवत पद, अपनो आतम सफल कराय।।
सम कत दरश ान वीरज गुण, सू म व अवगाहन जान।
अगु लघु स म गुन जानो, अ म अ याबोध बखान।।
ये गुण आठ धर बन मूरित, चेतन एक सदा अखदान।
ऐसे िस लोक िशर राज, ितन पद ‘टे क’ नम उर आन।।
दशल ण शुभधम तने ह, ादश भेद कहे तपसार।
षट आविश शुभ गुि तीन ल ख, पांच भेद जान आचार।।
ये शुभ छ ीस गुण धार, आचारज सब जय हतकार।
ितनके पद मनवचन काय शुध, पूज भव भव ‘टे क’ िनवार।।
एकादश अंग ान धरे उर, ितनको रहस सकल प हचान।
चौदह पूरब लह र ितन, क णाक र उपदे श बखान।।
आप पढ़ िश यन पढ़वाव, समताभाव रागपद भान।
ऐसे गुण को धर उपा या, ितनपद ‘टे क’ भजे िशव जान।।
पंच महा त सिमित पाँच िगन, इ पाँच कर वश घेर।
षट आव यक कर िन य ह , ताक र पाप हरे वर वीर।।
भूिम शयन आ दक गुण सात जु और िमलावो इनके तीर।
अ ा वंशित हो सकल िमल, इन धर साधु कर िशवसीर।।
ये ह पंच गु परमे ी, ये ह सकल हतु सुखकार।
ये ह मंगलदायक जग म, ये ह कर भवोदिध पार।।
ये ह पांच पंचमगितमय, ये ह पंच मुकित करतार।
इनके पद को भव भव सरन , माग उर क ‘टे क’ िनवार।।
दोहा
अ रहं त िस आचाय के, पांय उपा या पाय। साधु स हत पाँच चरनं, पूज ‘‘टे क’’ लगाय।।
ऊँ ं ी पंचपरमे यः पूणा यम ् िनवपामीित वाहा।
।।इित पंचपरमे वधान समा म।।

811

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