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Mahishasura Mardini stotram lyrics


in Hindi with Meaning

Mahishasur Mardini Stotram lyrics in hindi- (Click here for English


lyrics)

Mahishasura Mardini stotram (also known as ayi giri nandini stotra) was
originally written by Guru Adi Shankaracharya. (some sources say that it
was rst orated by Lord Vishnu at the time Devi Durga killed the demon
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Mahishasura).

Adi Shankara says, "Devi Durga is the most virtuous in all worlds. She is
erce warrior and destroyer of demons, yet she is tender and kind for
her children. Devi sits on a yellow lion and shines like thousands of
Suns are shining together."

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 Here, this stotra is given with hindi meaning. Hindi Translation  is done
with the help of a website greenmesg.org and English lyrics are also
given below. Here goes Mahishasura Mardini Stotram meaning in hindi-

।। अथ ी म हषासुरम द न तो म ।।

अ य ग र न दनी न दतमे द न व वनो द न न दनुते।


ग रवर व य शरो ध नवा सनी व णु वला स न ज णुनुते ।
भगव त हे श तक ठकु टु ब न भू रकु टु ब न भू रकृ ते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१।।

Meaning- हे हमालायराज क क या, व को आनंद दे ने वाली, नंद गण के ारा नम कृ त,


ग रवर व याचल के शरो ( शखर) पर नवास करने वाली, भगवान् व णु को स करने वाली,
इ दे व के ारा नम कृ त, भगवान् नीलकं ठ क प नी, व म वशाल कु टुं ब वाली और व को
संप ता दे ने वाली हे म हषासुर का मदन करने वाली भगवती! अपने बाल क लता से आक षत
करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सुरवरव ष ण धरध ष ण मुखम ष ण हषरते ।


भुवनपो ष ण शंकरतो ष ण क बषमो ष ण घोषरते ।।
दनुज नरो ष ण द तसुतरो ष ण मदशो षणी स ुसुते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।२।।
अथ- दे व को वरदान दे ने वाली, धर और मुख असुर को मारने वाली और वयं म ही ह षत
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( स ) रहने वाली, तीन लोक का पोषण करने वाली, शंकर को संतु करने वाली, पाप को हरने
वाली और घोर गजना करने वाली, दानव पर ोध करने वाली, अहंका रय के घमंड को सुखा दे ने
वाली, समु क पु ी हे म हषासुर का मदन करने वाली, अपने बाल क लता से आक षत करने
वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ य जगद बमद बकद ब वन यवा स न हासरते ।


शख र शरोम ण तु हमालय शृंग नजालय म यगते ।।
मधुमधुरे मधुकैटभग ज न कै टभभं ज न रासरते ।
 जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।३।।

अथ- हे जगतमाता, मेरी माँ, ेम से कद ब के वन म वास करने वाली, हा य भाव म रहने वाली,
हमालय के शखर पर त अपने भवन म वरा जत, मधु (शहद) क तरह मधुर, मधु-कै टभ का
मद न करने वाली, म हष को वद ण करने वाली,सदा यु म ल त रहने वाली हे म हषासुर का
मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय
हो, जय हो।

अ य शतख ड वख डत ड वतु डतशु ड गजा धपते ।


रपु गजग ड वदारणच ड परा म शु ड मृगा धपते ।।
नजभुज द ड नप तत ख ड वपा तत मुंड भटा धपते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।४।।

अथ- श ु के हा थय क सूंड काटने वाली और उनके सौ टु कड़े करने वाली, जनका सह


श ु के हा थय के सर अलग अलग टु कड़े कर दे ता है, अपनी भुजा के अ से च ड और
मुंड के शीश काटने वाली हे म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत
करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ य रण मद श ुवधो दत धर नजर श भृते ।


चतुर वचारधुरीणमहा शव तकृ त थमा धपते ।।
रत रीह राशय म त दानव त कृ ता तमते ।
 जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।५।।
अथ- रण म मद मत श ु का वध करने वाली, अजर अ वनाशी श यां धारण करने वाली,
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मथनाथ ( शव) क चतुराई जानकार उ ह अपना त बनाने वाली, म त और बुरे वचार वाले
दानव के त के ताव का अंत करने वाली, हे म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क
लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ य शरणागत वै रवधूवर वीरवराभय दायकरे ।


भुवनम तक शुल वरो ध शरोऽ धकृ तामल शूलकरे ।।
म मतामर धु भनादमहोमुखरीकृ त द करे ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।६।।

अथ- शरणागत श ु क प नय के आ ह पर उ ह अभयदान दे ने वाली, तीन लोक को पी ड़त


करने वाले दै य पर हार करने यो य शूल धारण करने वाली, दे वता क भी से ' म म'
क व न को सभी दशा म ा त करने वाली हे म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क
लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ य नज ङ् कृ त मा नराकृ त धू वलोचन धू शते।


समर वशो षत शो णतबीज समु वशो णत बीजलते।।
शव शवशु नशु महाहव त पतभूत पशाचरते।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते।।७।।

अथ- मा अपनी ंकार से धू लोचन रा स को धू (धुए)ं के सामान भ म करने वाली, यु म


कु पत र बीज के र से उ प अ य र बीज का र पीने वाली, शु और नशु दै य क
बली से शव और भूत- ेत को तृ त करने वाली हे म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क
लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

धनुरनुष रण णस प र ु रद नट कटके ।
कनक पश पृष क नष रस टशृ हताबटु के ।।
कृ तचतुर बल तर घट र रट टु के ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।८।।

अथ- यु भू म म जनके हाथ के कं गन धनुष के साथ चमकते ह, जनके सोने के तीर श ु को


वद ण करके लाल हो जाते ह और उनक चीख नकालते ह, चार कार क सेना [हाथी, घोडा,
पैदल, रथ] का संहार करने वाली अनेक कार क व न करने वाले बटु क को उ प करने वाली हे
म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी
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तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सुरललना ततथे य तथे य कृ ता भनयोदर नृ यरते ।


कृ त कु कु थः कु कु थो गडदा दकताल कु तूहल गानरते ।।
धुधुकुट धु कु ट ध ध मत व न धीर मृदंग ननादरते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।९।।

अथ- दे वांगना के तत-था थे य-थे य आ द श द से यु भावमय नृ य म म न रहने वाली, कु -


कु थ अ ी व भ कार क मा ा वाले ताल वाले वग य गीत को सुनने म लीन, मृदंग क धू-
धुकुट, ध म- ध म आ द गंभीर व न सुनने म ल त रहने वाली हे म हषासुर का मदन करने वाली
अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

जय जय ज य जयेजयश द पर तु त त पर व नुते ।
झणझण झ झ म झङ् कृ त नूपुर श तमो हत भूतपते ।।
न टत नटाध नट नट नायक ना टतना सुगानरते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१०।।

अथ- जय जयकार करने और तु त करने वाले सम त व के ारा नम कृ त, अपने नूपुर के झण-


झण और झ झम श द से भूतप त महादे व को मो हत करने वाली, नट -नट के नायक
अधनारी र के नृ य से सुशो भत ना म त लीन रहने वाली हे म हषासुर का मदन करने वाली
अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ य सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरका तयुते ।


तरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करव वृते ।।
सुनयन व मर मर मर मर मरा धपते।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।११।।

अथ- आकषक का त के साथ अ त सु दर मन से यु और रा के आ य अथात चं दे व क


आभा को अपने चेहरे क सु दरता से फ का करने वाली, काले भंवर के सामान सु दर ने वाली हे
म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी
तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।
स हतमहाहव म लमत लक म लतर लक म लरते ।
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वर चतव लक प लकम लक झ लक भ लक वगवृते ।।
शतकृ तफु ल समु ल सता ण त लजप लव स ल लते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१२।।

अथ- महायो ा से यु म चमेली के पु प क भाँ त कोमल य के साथ रहने वाली तथा


चमेली क लता क भाँ त कोमल भील य से जो झ गुर के झु ड क भाँती घरी ई ह, चेहरे
पर उ लास (ख़ुशी) से उ प , उषाकाल के सूय और खले हए लाल फू ल के समान मु कान वाली,
हे म हषासुर का मदन करने वाली, अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी
तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ वरलग ड गल मदमे र म मत जराजपते ।


भुवनभूषण भूतकला न ध पपयो न ध राजसुते ।।
अ य सुदतीजन लालसमानस मोहन म मथराजसुते ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१३।।

अथ- जसके कान से अ वरल (लगातार) मद बहता रहता है उस हाथी के समान उ े जत हे


गजे री, तीन लोक के आभूषण प-स दय, श और कला से सुशो भत हे राजपु ी, सुंदर
मु कान वाली य को पाने के लए मन म मोह उ प करने वाली म मथ (कामदे व) क पु ी के
समान, हे म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क
पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

कमलदलामल कोमलका त कलाक लतामल भाललते ।


सकल वलास कला नलय म के लचल कल हंसकु ले ।।
अ लकु लसङ् कु ल कु वलयम डल मौ ल मल कु ला लकु ले ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१४।।

अथ- जनका कमल दल (पंखुड़ी) के समान कोमल, व और कां त (चमक) से यु म तक है,


हंस के समान जनक चाल है, जनसे सभी कला का उ व आ है, जनके बाल म भंवर से
घरे कु मुदनी के फू ल और बकु ल पु प सुशो भत ह उन म हषासुर का मदन करने वाली अपने बाल
क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी क जय हो, जय हो, जय हो।
करमुरलीरव वी जतकू जत ल तको कल म ुमते।
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म लतपु ल द मनोहरगु त र तशैल नकु गते।।

नजगणभूत महाशबरीगण स णस ृत के लतले।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१५।।

अथ- जनके हाथ क मुरली से बहने वाली व न से कोयल क आवाज भी ल त हो जाती है,
जो [ खले ए फू ल से] रंगीन पवत से वचरती यी, पु लद जनजा त क य के साथ मनोहर
गीत जाती ह, जो स ण से स ान शबरी जा त क य के साथ खेलती ह उन म हषासुर का
मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी क जय हो, जय हो,
जय हो।

क टतटपीत कू ल व च मयुख तर कृ त च चे।


णतसुरासुर मौ लम ण ु र दं शुलस ख च चे।।
जतकनकाचल मौ लमदो जत नभरकु र कु कु चे।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१६।।

अथ- जनक चमक से च मा क रौशनी फ क पड़ जाए ऐसे सु दर रेशम के व से जनक


कमर सुशो भत है, दे वता और असुर के सर झुकने पर उनके मुकुट क म णय से जनके पैर
के नाखून चं मा क भां त दमकते ह और जैसे सोने के पवत पर वजय पाकर कोई हाथी मदो मत
होता है वैसे ही दे वी के उरोज (व ल) कलश क भाँ त तीत होते ह ऐसी हे म हषासुर का
मदन करने वाली अपने बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय
हो, जय हो।

व जतसह करैक सह करैक सह करैकनुते।


कृ तसुरतारक स रतारक स रतारक सूनुसुते।।
सुरथसमा ध समानसमा ध समा धसमा ध सुजातरते।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१७।।

अथ- सह (हजार ) दै य के सह हाथ से सह यु जीतने वाली और सह हाथ से


पू जत, सुरतारक (दे वता को बचाने वाला) उ प करने वाली, उसका तारकासुर के साथ यु
कराने वाली, राजा सुरथ और समा ध नामक वै य क भ से सामान प से संतु होने वाली हे
म हषासुर का मदन करने वाली बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय
हो, जय हो, जय हो।
पदकमलं क णा नलये व रव य त योऽनु दनं सु शवे।
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अ य कमले कमला नलये कमला नलयः स कथं न भवेत् ।।

तव पदमेव पर द म यनुशीलयतो मम क न शवे।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१८।।

अथ- जो भी तु हारे दयामय पद कमल क सेवा करता है, हे कमला! (ल मी) वह


कमला नवास (धनी) कै से न बने? हे शवे! तु हारे पदकमल ही परमपद ह उनका यान करने पर भी
परम पद कै से नह पाऊंगा? हे म हषासुर का मदन करने वाली बाल क लता से आक षत करने
वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

कनकलस कल स ुजलैरनु ष च त तेगुणर भुवम् ।


भज त स क न शचीकु चकु तट प रर सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवा ण नतामरवा ण नवा स शवम् ।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।१९।।

अथ- सोने के समान चमकते ए नद के जल से जो तु हे रंग भवन म छड़काव करेगा वो शची


(इं ाणी) के व से आ ल गत होने वाले इं के समान सुखानुभू त य न पायेगा? हे वाणी!
(महासर वती) तुममे मांग य का नवास है, म तु हारे चरण म शरण लेता ँ, हे म हषासुर का मदन
करने वाली बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय
हो।

तव वमले कु लं वदने मलं सकलं ननुकूलयते।


कमु पु तपुरी मुखीसु मुखी भरसौ वमुखी यते।
ममतु मतं शवनामधने भवती कृ पया कमुत यते।
जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते ।।२०।।

अथ- तु हारा नमल च समान मुख च मा का नवास है जो सभी अशु य को र कर दे ता है,


नह तो य मेरा मन इं पूरी क सु दर य से वमुख हो गया है? मेरे मत के अनुसार तु हारी
कृ पा के बना शव नाम के धन क ा त कै से संभव हो सकती है? हे म हषासुर का मदन करने
वाली बाल क लता से आक षत करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अ य म य द न दयालु-तया कृ पयैव वया भ वत मुमे।


अ य जगतो जननी कृ पया स यथा स तथानु मता सरते।।
य चतम भव युररीकु ता तापमपाकु ते।
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जय जय हे म हषासुरम द न र यकप द न शैलसुते।।२१।।

अथ- हे द न पर दया करने वाली उमा! मुझ पर भी दया कर ही दो, हे जगत जननी! जैसे तुम दया
क वष करती हो वैसे ही तीर क वष भी करती हो, इस लए इस समय जैसा तु ह उ चत लगे वैसा
करो मेरे पाप और ताप र करो, हे म हषासुर का मदन करने वाली बाल क लता से आक षत
करने वाली पवत क पु ी तु हारी जय हो, जय हो, जय  हो।

।। इ त ी म हषासुरम दनी तो म स ूणम् ।।

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Mahishasura Mardini Stotram lyrics in English

Bene ts of Mahishasura Mardini Stotram

Chanting this Stotra gives immence con dence and peace of mind to
the devotee. When a devotee reads or listens to it, he feels energy of
Devi owing through him.

It gives strength and courage to face challenges in life. Some say that
Lord Rama also recited this mantra before his battle with Ravana.

Some frequently asked questions-

1. Who can recite Aigiri Nandini Stotra?

Anyone who can correctly pronunciate this mantra, can recite it. If you
do not know correct pronunciation or any other problem, you can listen
to it focusing your mind on Devi Durga.
2. Can pregnent woman read this Stotra?
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Pregnent woman can read this Stotra but if you have a problem
standing or sitting in meditative posture for long time, it is best that you
listen to it.

3. Which Chhanda (poetry style) is used Mahishasura mardini stotra?

This Stotra is written in Kanaka Manjari poetry style or Kanaka Manjari


Chhanda (कनकमंजरी).

4. What is the number of stanzas or paragraphs in Aigiri Nandini


Stotram?

There are total 21 paragraphs in this Stotra.

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