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स ांख्य दर्शन (SANKHYA PHILOSOPHY )

परिचय (Introduction) :
 स ांख्य दर्शन भ ित क अत्यन्त प्र चीन दर्शन है ।
 स ांख्य दर्शन के प्रणेत महर्षश कर्पल हैं।
 स ांख्य दर्शन के ज्ञ न क प्र म णणक स्रोत महर्षश कर्पल , ननर्मशत ‘स ांख्य – सत्र
ू ’ औि इश्विकृष्ण
िचचत ‘स ांख्य क रिक ’ है ।
 स ांख्य र्ब्द क अर्श सम्यक ज्ञ न तर् सांख्य बत य गय है ।
 यह एक आस्ततक दर्शन है ।
 स ांख्य दर्शन एक द्वैतव दी दर्शन है । यह प्रकृनत औि परू
ु ष दोनों की सत्त तवीक ि कित है ।
 स ांख्य दर्शन र्वक सव द क समर्शक है । यह परू
ु ष औि प्रकृनत के सहयोग से र्वश्व को उत्पन्न
बत त है ।
क यश – क रण क ससद् ांत (Theory of Causation)

 सत्क यशव द क र् स्ब्दक अर्श – सत्त (Existance), क यश (Effect) , व द (Theory) है ।


 सत्क यशव द उस र्सद्् ांत को कहते हैं जो उत्पर्त्त के पव
ू श क िण में क यश की सत्त तवीक ि कित है ।
 स ांख्य के क िणत र्सद्् ांत सत्क यशव द तर् न्य य – वैर्ेर्षक के क िणत र्सद्् ांत को
असतक यशव द कह ज त है ।
 स ांख्य – दर्शन क यश की सत्त को उत्पर्त्त के पव
ू श क िण में मौजूद म नत है ।
सत्यक यशव द के रूप

 सत्यक यशव द के सन्दभश में एक महत्वपण


ू श प्रश्न उठत है कक क्य क यश क िण क व ततर्वक
रूप न्तिण है ?
 स ांख्य-योग एवां र्वर्र्ष्टत द्वैत वेद न्त इस प्रश्न क भ व त्मक उत्ति दे त है जबकक अद्वैतवेद न्त
प्रवतशक आच यश र्ांकि इस प्रश्न क ननषे् त्मक उत्ति दे तें हैं।
 स ांख्य दर्शन एवां ि म नज
ु के र्वच ि को परिण मव द एवां आच यश र्ांकि के र्वच ि को र्ववतशव द
कहते हैं।
 स ांख्य समतत र्वश्व को प्रकृनत क परिण म म नत है । अतः स ांख्य के इस मत को प्रकृनत
परिण मव द कह ज त है ।
 ि म नुज के मत को ब्रह्म परिण मव द कह ज त है क्योंकक यह र्वश्व को ब्रह्म क परिण म
म नत है
 र्ववतशव द के अनस
ु ि क यश क िण क र्ववतश है अर् शत क यश क िण क अव ततर्वक रूप न्तिण है ।
सत्क यशव द के रूप (Forms of satkaryavada)

सत्क यशव द

परिण मव द र्ववतशव द

ब्रह्म-परिण मव द
प्रकृनत परिण मव द
डॉ.सच्चिद नांद प्रस द
डॉ. र ज न र यण ससांह

दर्शनर् तत्र र्वभ ग


आि आि एस कॉलेज , मोक म
(प टर्लपत्र
ु र्वश्वर्वद्य लय)

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