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मानव व्यवहार दर्शन
मानव व्यवहार दर्शन
असाइनिेंट 2
िानर् व्यर्हार दर्वन
(पृष्ठ संख्या 74 से 83)
द्वारा :-भेरु लाल िाली
15155020
खनन अमभयाांमिकी
* क्रिया को क्रनर्दे क्रित करने के क्रिये प्रयुक्त अक्षर या अक्षर समूह को ' िब्द' ,िब्द
पररभाषा सहज मौक्रिकता ही भाव' है । अस्तित्व में भाव बिु के रूप में होता
िब्द केवि क्रकसी क्रिया एवं विु का नाम ,जबक्रक पररभाषा, ज्ञाब्द एवं क्रिया को
क्रनक्रश्चत क्रिया को क्रनर्दे ि काने वािे िब्द को सार्वक और इसके क्रवपरीत ज्ञाब्द को
आकार, आयतन एवं घनता से "रूप" का; सम, क्रवषम और मध्यस्र् के भेर्द से
"गुण" का; इकाई द्वारा गुण को उपयोक्रगता से ' स्वभाव' का क्रनणव य होता है ।
स्वभाव उर्दभव वार्दी, क्रवभव वार्दी या प्रियबार्दी स्वभाव के प्रवृक्रत के रूप में
धारणा को अनुकूि चेष्टा को सफूरन अर्वा िां क्रत तर्ा इसकी प्रक्रतकूि चेष्टा को
प्रक्रतिां क्रत संज्ञा है । सफूरन से समाधान तर्ा प्रक्रतिां क्रत से समस्या ।
आत्मा को प्रेरणा से संपन्न संकल्प, इच्छा, क्रवचार और आिा स्व- सापेक्ष सफूरन है
।
चैतन्य पक्ष को एक सुत्रता के अभाव से उत्पन्न संकल्प के नाम से इच्छा, आज्ञा एवं
क्रवचार पर- सापेक्ष है , जो प्रक्रतिां क्रतहै ैँ ।
स्व- सापेक्षता में क्रवश्राम तर्ा पर- सापेक्षता में ( जइ पक्ष के सार् अग्सक्रवत में) श्रम
का प्रसव हे ।
• पररवार समाज तर्ा व्यवस्र्ा र्दत्त भेर्द से कतव व्य को स्वीकारने तर्ा इसे क्रनष्ठा
क्रनयम एवं सत्यता पूववक पािन करने पर ही मानव में क्रविे ष प्रक्रतभा का क्रवकास हर
िर पर अर्ार्व पाररवाररक सामाक्रजक तर्ा व्यवस्र्ा के सार् सफिताएं इसके
क्रवपरीत स्तस्र्क्रत में प्राप्त प्रक्रतभा तर्ा सफिता में भी क्रनरि होती है |
* सुख एक वैचाररक तथ्य है बुस्ति के अभाव में क्रवचार तर्ा ज्ञान के अभाव में
बुस्ति की क्रियािीिता क्रसि नहीं होती है | सुख सृक्रष्ट सहज सवोत्कृष्ट सृजन
मानव इकाई का धमव है | जहां कहीं भी पर्दार्व नहीं है वहां मानव को िे जाने पर
भी सुख धक्रमवता का अभाव मानव में नहीं पाया गया इसीक्रिए सुख का आधार ज्ञान
संपन्नता साववर्देक्रिक क्रसि हुआ है क्ोंक्रक जो नहीं है उसकी उपिस्ति संभव नहीं
है इस प्रकार ज्ञान सवव व्यापक क्रसि हुआ है | ज्ञान र्दाता द्वारा ज्ञय सक्रहत मानव
परं परा में प्रमाक्रणत होता है सवव मानव ज्ञाता होने योग्य है |
* ठीक इसी प्रकार प्राण अवस्र्ा में समूह के सार् सार् पुक्रष्टकरण पूरकता
के अर्व में प्रक्रिया भी पररिक्रक्षत हो रही है यर्ा एक प्राण कोटा
अनेकानेक खक्रनज द्रव्य को एकक्रत्रत कर र्दे ता है और सार् ही उन्हें रचना
भी क्रसि कर र्दे ता है इससे हमें यह प्रेरणा क्रमिती है क्रक अस्तित्व के क्रिए
हर प्राणी अपने ढं ग से पूणव रचना एवं उपयोग में व्यि है |
* इससे ज्ञात होता है क्रक वतवमान में मानव समुर्दाय में सामाक्रजकता को
पाना चाहता है उसके मूि में भय है इसके क्रनवारण प्रक्रिया क्ा आिय है
या प्रवृक्रत्त मानव में से, के क्रिए क्रवकक्रसत चेतना में संिमण है इससे यह
स्पष्ट क्रसि होता है क्रक मानव ज्ञान क्रववेक क्रवज्ञान पूववक गुणों व स्वभाव के
उपाजव न से अपनी मौक्रिकता क्रसि करना चाहता है |
* इस प्रकार संपूणव मानव को एक जगह में पाने की तर्ा एक जगह में होने
की इच्छा के मूि कारण में उसका सुख धमी होना है |
* सभी मानव सुख के क्रिए प्रत्यािी है सुख के क्रिए प्रयास कर रहे हैं सवव
मानव सुख का अनुभव करना चाहते हैं इसी केंद्र क्रबंर्दु के आधार पर सभी
पक्षों का अध्ययन नीक्रत एवं व्यवहार में क्रनष्ठानक्रवत होना एक आवश्यक है |
”सर्व र्ुभ हो “
अध्याय 6
किव एर्ां फल
अध्याय 7
िानर्ीय व्यर्हार