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सर्वानुक्रमणी
सर्वानुक्रमणी
मु ानकोश िविकपीिडया से
वेदरािश क सुर ा के लए तथा मं क ाचीन परंपरा को सु यव थत बनाए रखने के उ े य से ाचीन महिषय ने येक वैिदक संिहता के िविवध िवषय क
मब अनु मणी (या 'अनु मिणका') बनाई है। सं कृत वा य के सू सािह य के अंतगत छह वेदांग के अित र अनु मिणय का भी समावेश है।
ऐसी अनु मािणयाँ अनेक ह। इनम वैिदक संिहताओं के सकल सू , उनम यु पद, येक मं के ा ऋिष, येक ऋचा के छं द और देवता मब प से
अनुसूिचत ह। संक लत िवषय के अनुसार इनक पृथक् पृथक् सं ाएँ ह- जैसे
उसी तरह मंडलांतानु म और देवानु म भी है। इस कार िकसी भी वैिदक मं का ऋिष, छं द या देवता कौन है अथवा वह मं िकस मंडल, अनुवाक या सू
का है, यह जानने के लए त संबध
ं ी अनु मणी का अवलोकन सहायक होता है।
सवानु मणी
व तुत: उपरो अनु मिणयाँ कोश क भाँित िवषयानुसध
ं ान म सहायक ही न थ , अिपतु इनका ल य सू एवं अनुवाक के यथावत् व प तथा मं के पाठ
को न होने देने का अपूव साधन है। िफर भी िकसी भी एक मं के संबध
ं म उसके छं द, देवता आिद के ान के लए अनेक अनु मिणयाँ देखनी पड़ती थ ,
य िक त संबध
ं ी सकल ात य िवषय एक जगह उपल ध न था।
इस किठनाई को दरू करने क ि से महिष का यायन ने एक ऐसी अनु मणी क रचना क जसम संिहता के अंतगत सम त मं के संबध े व तु
ं म सकल य
क एक उपल ध हो जाए। इसम येक मं का छं द, देवता, ऋिष, मंडल, सू , एवं अनुवाद का िववरण पूण प से एक ही थान पर िदया हआ िमलता है।
े ाथ वणनात् सवानु मणीश दं िनबुवंित िवप चत:।
इसे उ होने सवानु मिण नाम िदया। का यायन णीत सवानु मणी क सं ा का िनवचन िकया है- सव य
सवानु मणी का रचनाकाल सू युग के अंितम चरण म ही माना जा सकता है। सू युग का कालिनणय पा चा य इितहासकार ने ईसापूव 600 से 200 तक का
वीकार िकया है।
ऋ वेद संबध
ं ी सवानु मणी सू शैली म रिचत एक बड़ा ंथ है। मुि त प म इसका आयाम लगभग 46 पृ का है। इसके पहले 12 अ याय म ा तािवक चचा
है जनम से 9 अ याय म वैिदक छं द के व प और रचनाप ित पर प रचया मक िनबंध है। सवानु मणी के णेता का यायन ने ंथारंभ म "यथोपदेश म
ऋ वेद क ऋचाओं के तीक आिद क अनु मणी तुत करता हँ" ऐसी ित ा क है। यथोपदेश से यह संकेत है िक यह रचना त पूव शौनक णीत िविवध
छं दोब के आधार पर क गई है। य िक सवानु मणी म कितपय ग ांश वृ गंधी ह ओर शौनक य आषानु मणी और बृह ेवता म यु कितपय पद व पतः
प रगृहीत ह। का यायन णीत ऋ वेद क सवानु मणी का संपादन आचाय मै डोनल ने िकया है जो ऑ सफ़ड से सन् 1886 ईसवी म कािशत हई। इसम
अनुवाकानु मणी तथा ष गु िश य का भा य भी प रिश म मुि त है।
का यायन णीत शु लयजुवदीय सवानु मणी म केवल पाँच ही अ याय ह। पहले चार अ याय म याजुष मं के ा ऋिषय , देवताओं और छं द क नामत:
गणना है। इसक एक और िवशेषता यह है िक संिहताकाल से उ रवत युग के नए ऋिषय के भी नाम संगृहीत ह जनम कितपय शतपथ ा ण से संबध
ं
रखनेवाले भी ह। इसके अंितम अ याय म वाजसनेिय संिहता के मं का संि िववरण भी िदया है। शु लयजुवदीय सवानु मणी का काशन वेबर ारा
संपािदत यजुवद के सं करण म प रिश प से संगृहीत है, तथा वतं प से यह ंथ सभा य बनारस सं कृत सीरीज़ के अंतगत ईसवी सन् 1893-94 म
सव थम कािशत हआ िमलता है। ंथ का नाम "का यायन णीत शु ल यजु: सवानु मसू -या कानंतदेव कृत भा य सिहत" िदया है।
बाहरी किड़याँ
का यायन रिचत सवानु मिणका (भारत का आं िकक पु तकालय)
Index of Vedic Concordances
VEDIC PADANUKRAMA KOSH PART 1
VEDIC PADANUKRAMA KOSH PART 2
VEDIC PADANUKRAMA KOSH PART 3
यह साम ी ि येिटव कॉम स ऍटी यूशन/शेयर-अलाइक लाइसस के तहत उपल ध है; अ य शत लागू हो सकती ह। िव तार से जानकारी हेतु देख उपयोग क
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