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ब्रह्म गायत्री - भाग 1 - Mobile
ब्रह्म गायत्री - भाग 1 - Mobile
“इस्कॉन में
ब्रह्म-गायत्री-मं त्र”
को प्रारं भिक जवाब
द्वारा,
श्यामसंदर दास (ACBSP),
ज्योभिषी
Shyamasundara1976@gmail.com
शास्त्रचक्ुः पररषि्
की ओर से
Copyright © 2024
सारोद्धार
1
यह दनबोंि SAC के पेपर की प्रारम्भिक प्रदतदिया या जवाब के
रूप में प्रकादशत है । यहााँ , हम इस बात पर प्रकाश डालते हैं
दक SAC ने सोंशय समािान कर वास्तदवक अथथ को समझने की
कृष्ण की मूल पद्धदत -- मीमाों सा -- की उपेक्षा करते हुए सोंशय
समािान की अपनी नयी मनगढ़ों त पद्धदत बनाई (जो पूवथ
दनिाथ ररत पररणाम िे ती है ) । हम गु रु के कायों की व्याख्या करते
समय उनके " मनोऽभिष्टम ् " (मन की इच्छा) को समझने के
महत्व पर जोर िे ते हैं , दजसका मूल अोंततः शास्त्र में हैं । SAC
हमारी िीक्षा प्रदिया को समझने में गलती करती है । चूाँदक ब्रह्म-
गायत्री हमारे िीक्षा प्रोटोकॉल का दहस्सा है , इसदलए हमें पहले
यह समझना होगा दक हमारी िीक्षा प्रणाली कैसे काम करती
है । इस प्रकार हम अपने सों प्रिाय में िीक्षा के ढाों चे का दवश्लेषण
करते हैं -- दजसमें भागवत, पाों चरादत्रक और वैदिक परों पराओों
के तत्व शादमल हैं ।
2
दप्रय महाराजोों, प्रभुओ,ों और माताओों,
श्रील प्रभुपाि की जय ।
1
https://archive.org/details/brahma-gayatri-sac-
complete_202401
2
उन लोगोों की एक सभा दजनकी आों खें शास्त्र हैं । [जो शास्त्रोों के माध्यम से
िे खते हैं ।]
3
प्रारम्भिक टिप्पटियााँ
शुरू करने से पहले मैं "हे मेनेयुदटक्स" शब्द के बारे में कुछ
प्रारम्भिक दटप्पदणयााँ करना चाहाँ गा दजसे SAC अपने
मागथिशथक दसद्धान् के रूप में उपयोग करता है ।
"हे मेनेयुदटक्स" मूल रूप से एक ईसाई अविारणा है जो मानव
दनदमथत अकािदमक दवषयोों के ढे र में बिल गयी है , दजसमें "क्वीर
बाइदबल हे मेनेयुदटक्स,"3 "लेम्भियन हे मेनेयुदटक्स,"4
"माक्सथवािी हे मेनेयुदटक्स,"5 "फेदमदनस्ट हे मेनेयुदटक्स,"6
"पोस्टमॉडनथ हे मेनेयुदटक्स,"7 इत्यादि जैसे दवदवि मनगढ़ों त क्षेत्र
3
https://blog.smu.edu/ot8317/queer-bible-hermeneutics-
ot8317-at-perkins-school-of-theology/
4
https://www.wjkbooks.com/Products/0334029589/when-
deborah-met-jael-lesbian-biblical-hermeneutics.aspx
5
https://academiccommons.columbia.edu/doi/10.7916/D8CJ8Q8
8
6
https://academic.oup.com/edited-volume/41623/chapter-
abstract/353456419?redirectedFrom=fulltext&login=false
7
https://publish.iupress.indiana.edu/projects/the-hermeneutics-
of-postmodernity
4
शादमल हैं ।8 यह दृढ़ता से इों दगत करता है दक अब्राह्मीक
आिाओों और नाम्भस्तक िमथदनरपेक्ष अकािदमक दशक्षा जगत
का प्रभाव SAC में घुस गया है । यह उनमें हमारे दवश्वास को
ठे स पहुाँ चाता है । SAC, जहााँ "एस" का अथथ " शास्त्र" है , वैष्णव
िशथकोों के दलए बने ले खोों में म्ले च्छ और यवन अकािमी के
शब्दोों और भाषा का उपयोग क्योों करता है ?
8
दजसे यवन "हमेनेयुदटक्स" कहते हैं, उसकी कई दकस्ोों की लोंबी चचाथ के
दलए िे खें https://plato.stanford.edu/entries/hermeneutics/
9
हरर सौरी िास, एक टर ान्सेंडैंटल डायरी: टर े वल्स दवि दहज दडवाइन ग्रेस ए।
सी. भम्भक्वेिाोंत स्वामी प्रभुपाि, जून 1976 - अगस्त 1976 (अलाचुआ,
फ्लोररडा: लोटस इम्भरोंट्स, 1994), 534.
10
https://tinyurl.com/sac-critique-herm
5
कृष्ण की वैदिक सोंस्कृदत में , सोंशय दनवारण करके वास्तदवक
अथथ को समझने की (समन्वय की) एक प्रणाली पहले से ही
मौजूि है -- मीमाों सा -- दजसे कृष्ण ने बनाया है । मीमाों सा की
दवशेष म्भिदत के बारे में दनम्नदलम्भखत स्पष्टीकरण मेरे अप्रकादशत
लेख -- क्या "वैदिक ज्योदतष" शब्द एक दमथ्यानाम है ? --
इससे उि् िृत है :
11
श्रीश चोंद् वसु, उपदनषि, मािवाचायथ की दटप्पदणयोों के साथ, भाग 1, ईश,
केना, कठ, प्रश्न, मुोंडक, और माण्डु क्य, अनुवाि. श्रीश चोंद् वसु (इलाहाबाि:
पादणदन कायाथलय, 1909). या,
https://www.wisdomlib.org/hinduism/book/kena-upanishad-
madhva-commentary/d/doc486104.html
6
ग्रोंथोों को समझने में , समन्वय12 प्राप्त करने के दलए इन तीनोों
घटकोों का उपयोग दकया जाना अदनवायथ है -- और इस
प्रकार ही वास्तव में वैदिक ज्ञान को समझना चादहए। यह
दिखाता है दक वेि, वेिाोंग और न्याय-मीमाोंसा ग्रन्थ हमेशा
से साथ में ही मौजूि हैं ।
12
सोंस्कृत में "समन्वय" शब्द दवरोिाभासोों को सुलझाने और सुसोंगतता और
एकवाक्यता बनाने के दलए दवदभन्न तत्वोों या दवचारोों को एक साथ लाने या
समन्वदयत करने के कायथ का प्रतीक है। इसका अथथ एक सामान्य लक्ष्य या
उद्दे श्य के प्रदत दवदभन्न पहलुओों की म्भिरता या सोंरेखण भी हो सकता है ।
7
बताएाँ या दवस्तार से समझाएाँ नहीों गये तथादप उन्ें वैदिक
ही समझा जाता है क्योोंदक उनके दबना वेिोों को नहीों समझा
जा सकता । इस प्रकार न्याय और मीमाोंसा जैसे दवषयोों को
वेिोों और वेिाोंगोों के साथ वैदिक दवद्याओों के रूप में दगना
जाता है ।13 ठीक इसी प्रकार, ज्योदतष (काल दवद्या) समय
का दवज्ञान, भी वेिोों को समझने के दलए आवश्यक था
क्योोंदक काल अथाथत् टाइम फैक्टर भगवान की ऊजाथओों में
से एक है ,14 जैसा दक हमने पहले िे खा। काल शब्द का
तात्पयथ केवल समय के माप से कहीों अदिक है।
13
मीमाोंसा, न्याय, और वेिाोंगोों का उल्लेख दवष्णु पुराण (3.6.28-29) और
ब्रह्माण्ड पुराण (1.2.35.87-89 ) में 14 (या कभी-कभी 18) दवद्याओों से
सोंबोंदित बताया गया है। और मत्स्य पुराण (3.2-4, 53.6) में कहा गया है दक
मीमाोंसा और न्याय शास्त्र वेिोों, वेिाोंगोों, और पुराणोों के साथ सीिे नारायण की
श्वास से उत्पन्न हुए हैं ।
14
उिाहरण के दलए, भगवि-गीता (11.32) और श्रीमि-भागवतम (3.26.16-
18) िे खें ।
8
सकते हैं और इस प्रकार सत्य का आनोंि ले
सकते हैं और िू सरोों को उनकी समझ बढ़ाने
में मिि कर सकते हैं। (पत्र: हयग्रीव, 18
जनवरी, 1972)
॥ मनोऽभीष्टम् ॥
श्रीचैतन्य मनोऽभीष्टम्
ििादत स्व-पिाम्भन्कम् ॥
10
बात है , गुरु िारा स्पष्ट रूप से दनिे दशत दकए जाने के बाि भी
उसकी अवज्ञा बनी रहती है ; वह काम नही ों करता ।15
15
उिाहरण के दलए वाल्मीकी रामायण 6.1.7-9 िे खें
16
यदि कोई बात शास्त्र में वदणथत नहीों है तो हमें कृष्ण की वैदिक सोंस्कृदत में
प्रदशदक्षत ऐसे सिाचारी पुरुषोों के उिाहरण और आचरण का अनुसरण करने
के दलए दनिे दशत दकया जाता है। श्रीमि-भागवतम (11.19.17) और मनु स्ृदत
2.6 िे खें । यह दसद्धाोंत तब सबसे महत्वपूणथ होता है जब दकसी कायथ का
शास्त्रीय आिार खो जाता है या भुला दिया जाता है ।
11
सामान दनकालने का प्रयास दकया, लेदकन वह भ्रदमत हो
गया क्योोंदक निी के दकनारे अनदगनत लकदड़यााँ गड़ी हुई
थीों। उन्ोोंने अपने दशष्ोों से पूछा दक क्या हुआ। दशष्ोों ने
उिर दिया, "गुरुजी, हमने आपको रे त में लकड़ी गाड़ते हुए
िे खा, इसदलए हमने आपका अनुसरण दकया और वैसा ही
दकया।" मूखथ दशष्ोों ने गुरु के उद्दे श्य को जाने दबना नकल
करके गुरु का काम नष्ट कर दिया।
और,
दीक्षा के प्रकार
आगे चलते हैं । चूाँदक ब्रह्म-गायत्री हमारी िीक्षा प्रदिया का
दहस्सा है , इसदलए हमें यह समझना चादहए दक हमारी िीक्षा
17
"ता" -- श्लोक के तात्पयथ को िशाथता है ।
13
प्रणाली कैसे काम करती है । हमारे उद्दे श्योों के दलए , िीक्षा के
िो अलग-अलग प्रकार प्रासोंदगक हैं : वैदिकी और पञ्चरादत्रकी,
िोनोों का अलग-अलग भाग है । यद्यदप सामान्य रूप से िम
वैदिकी िीक्षा के बाि पञ्चरादत्रकी िीक्षा का होता है , उन्ें
परस्पर या समवती रूप से भी दकया जा सकता है । महत्वपूणथ
बात यह है दक ये िीक्षाएाँ आजीवन होती हैं ।
भागवती दीक्षा ?
चूोंदक हम मुख्य रूप से भागवत सोंप्रिाय हैं ,18 जो पदवत्र नाम
पर जोर िे ता है , तो भागवत िीक्षा के बारे में क्या? श्री चैतन्य-
चररतामृत (2.15.108) हमें सूदचत करता है दक पदवत्र नाम का
जप करने के दलए टकसी दीक्षा की आवश्यकता नही ां है ।
18
भम्भक्दसद्धाोंत सरस्वती ठाकुर, ब्राह्मण और वैष्णव, अनुवाि:- भूदमपदत िास
(नई दिल्ली: व्रजराज प्रेस, 1999), 90.
14
िीक्षा-पुरश्चयाथ -दवदि अपेक्षा न करे ।
और,
19
गौड़ीय मठ के अनुयादययोों में यह प्रचदलत है दक श्रील भम्भक्दसद्धाोंत
सरस्वती ठाकुर ने गौर-दकशोर िास बाबाजी से "भागवती िीक्षा" प्राप्त की थी
15
लेटकन कुछ चेतावटनयााँ हैं,
21
वैटदक दीक्षा
दवदशष्ट सामादजक समथथन प्रणादलयोों वाले कृष्ण के वैदिक
समाज में, पुरुष बच्चोों को उनके गुण और वे दकस वणथ की इच्छा
रखते हैं , उसके आिार पर उदचत उम्र में उपनयन ( वैदिक-
िीक्षा ) दमलता था । आिशथ रूप से , ब्राह्मण लड़कोों को
गभाथ िान के बाि 8 साल में उपनयन दमलता है ,21 क्षदत्रय लड़कोों
को 11 साल में, और वैश्य लड़कोों को 12 साल की उम्र में ।22
यदि वे ऊपरी सीमा के भीतर उपनयन प्राप्त करने से चूक जाते
हैं (अथाथ त, ब्राह्मण के दलए 16, क्षदत्रय के दलए 22 , और वैश्य
के दलए 24) तो उन्ें "' व्रात्य ' (िमथत्यागी) के रूप में जाना
जाता है , जो सभी अच्छे लोगोों िारा दतरस्कृत होते हैं ।"23
21
चैतन्य -भागवत 1.8.7 पर श्रील भम्भक्दसद्धान् की दटप्पदणयााँ िे खें | श्री
वृन्दावन िास ठाकुर और भम्भक्दसद्धान् सरस्वती ठाकुर, श्री चैतन्य भागवत,
अनुवाि:- भूदमपदत िास (वृोंिावन: रास दबहारी लाल एों ड सोंस, 2001). चैतन्य-
भागवत के अन्य सोंिभथ भी इसी सोंस्करण से उि् िृत दकये गये हैं ।
22
मनु 2.36.
23
मनु 2.38-39.
22
करने के दलए योग्य बनाता है । जैसा दक आपस्तोंब िमथ सूत्र 24
(1.1.1.9-10) में ( एक ब्राह्मण-ग्रन्थ के बल पर ) कहा गया है
दक सादवत्री गायत्री सीखने का उद्दे श्य वेि -अध्ययन की िु दनया
में प्रवेश करना है :
24
यह भी िे खें, "वैदिक सोंग्रह में आपस्तोंब िमथ सूत्र की म्भिदत ।"
https://archive.org/details/position-of-apastamba/mode/1up
23
पाञ्चराटत्रक दीक्षा
25
भम्भक्दसद्धाोंत सरस्वती ठाकुर, श्री ब्रह्म सोंदहता श्रील जीव गोस्वामी की
दटप्पणी के साथ (मद्ास: श्री गौड़ीय मठ, 1973), vii.
https://archive.org/details/shri-brahma-samhita-trans-by-
bhakthi-siddhanta-sarasvati-gosvami-thakur-
ocr/page/n6/mode/1up
26
अदिक जानकारी के दलए श्री चैतन्य-चररतामृत 2.1 िे खें । 120; 2.9.237-
241; 2.9.309,323; 2.11.143
25
आदि-केशव के मोंदिर में , श्री चैतन्य महाप्रभु
ने अत्यदिक उन्नत भक्ोों के बीच आध्याम्भिक
दवषयोों पर चचाथ की। वहााँ रहते हुए, उन्ें ब्रह्म
सोंदहता का एक अध्याय दमला । श्री चैतन्य
महाप्रभु इस एक अध्याय को प्राप्त कर बहुत
प्रसन्न थे और भावािक दवकार के लक्षण --
कोंपन, अश्रु, स्वेि, समादि और उल्लास --
उनके शरीर में प्रकट हुए थे।
27
इसके बारे में अदिक जानकारी के दलए पोंचरात्र का पररचय िे खें
27
पञ्चरादत्रक िीक्षा ( पोंच-सों स्कार28 ) के दवषय पर लौटते हुए :
इसमें शादमल है --- ऊध्वथपुण्डर ( दतलक - प्रभु के पिदचह्न),
िास्य नाम (हरर के दनत्य िास के रूप में नादमत होना), ताप
(उन स्वामी29 के दचह्नोों से दचदह्नत होना), मन्त्र (दवदभन्न
पञ्चरादत्रक मन्त्र), और याग (अचाथदवग्रह का पूजन) ।
28
पोंच-सोंस्कार के दवस्तृत दववरण के दलए िे खें : एम. लक्ष्मीथाथाचर और वी.
वरिाचारी, ईश्वरसोंदहता खोंड 4 (दिल्ली: इों दिरा गाोंिी राष्टरीय कला केंद्, और
मोतीलाल बनारसीिास पम्भिशसथ प्राइवेट दलदमटे ड, 2009), 1335
ईश्वरसोंदहता मेलुकोटे में, जो श्री वैष्णववाि के सबसे महत्वपूणथ केंद्ोों में से एक
है और जो श्रीपाि रामानुज आचायथ िारा व्यम्भक्गत रूप से पुनः िादपत
दकया गया है, वहााँ पर मुख्य पोंचरादत्रक ग्रन्थ के रूप में उपयोग होती है ।
29
श्री और मािव सोंप्रिाय में, शोंख और चि की तप्तिातु मुद्ाओों से शरीर को
अोंदकत करके ताप दिया जाता है, लेदकन श्री चैतन्यिे व ने (पद्म पुराण के
आिार पर) दनिे श दिया है दक हम इसके बजाय चोंिन के लेप आदि का
उपयोग करके शरीर को हरर-नाम से दचदह्नत करें ।
28
पञ्चरात्र शास्त्रोों के मानकोों के अनुसार और उसकी अपनी
म्भिदत एवों उसके सरिाय के अनुरूप की जाती है ।
दकों जन्मादभम्भस्त्रदभवेहा
शुि-सादवत्र-यादज्ञकैः ।
कमथदभवाथ त्रयी-प्रोक्ैः
पुोंसोऽदप दवबुिायुषा ॥
और नाम है
31
https://tinyurl.com/5n859p4h
32
https://tinyurl.com/4twedh48
30
होगा। सूक्ष्म अोंतर यह है दक याग अच्रादवग्रह की पूजा से
सोंबोंदित है ।33
33
नारि-पोंचरात्र (भारिाज-सोंदहता) पररदशष्ट 2.48-50
https://archive.org/details/VDNAP/page/n129/mode/2up
34
लक्ष्मीथाथाचार और वरिाचारी, ईश्वरसोंदहता खोंड 4 , 1287.
31
पटवत्र नाम का जप और कीतशन --
पञ्चराटत्रक-दीक्षा के एक भाग के रूप में
हमने पहले ऊपर बताया था दक हरे कृष्ण महा-मन्त्र की िीक्षा
पञ्चरादत्रक िीक्षा के माध्यम से होती है । अब हम इस िावे को
प्रमादणत करने के दलए प्रमाण प्रिान करें गे। श्रीमद्भागवत में
हमें दनम्नदलम्भखत श्लोक दमलते हैं :
स्तुवम्भन् जगिीश्वरम् ।
नाना-तोंत्र-दविानेन
तात्पयथ
कृष्णवणथम् म्भत्वषाकृष्णम्
सोंगोपाोंगास्त्र-पाषथिम् ।
यज्ञैः सोंकीतथन-प्रायैर्
यजम्भन् दह सुमेिशः ॥
"कदलयुग में , बुम्भद्धमान व्यम्भक् भगवान् के
एक ऐसे अवतार की पूजा करने के दलए
सामूदहक कीतथन करते हैं जो अवतार लगातार
कृष्ण के नाम गाते रहते हैं। यद्यदप उनका रों ग
काला नहीों है , वे स्वयों कृष्ण हैं। वे अपने
पाषथिोों, सेवकोों, अस्त्रोों, और दनजी पररकरोों
िारा दघरे रहते हैं ।" (श्रीमद्भागवतम् 11.5.32)
35
इस तन्त्र शब्द को तामदसक शैव , शाक् और बौद्ध ताोंदत्रक परों पराओों से न
जोड़े ।
33
उनका कहना है दक बुम्भद्धमान लोग कृष्ण (या गौराों ग) की पूजा
"यज्ञैः सोंकीतथन-प्रायैर्" के माध्यम से करें ग, अथाथ त, अचथना
प्रदिया के माध्यम से ( यज्ञैः ) दजसमें सोंकीतथन मुख्य भाग
(सोंकीतथन-प्रायैर्) के रूप में दकया जाता है । सभी आचायथ अपनी
व्याख्याओों में इस दबोंिु पर एकमत हैं । िू सरे शब्दोों में , अचथ न
सोंकीतथन के साथ दकया जाना चादहए, क्योोंदक यह सोंकीतथन ही
है जो अचथन को सफल बनाता है । इसीदलए हम िे खते हैं दक
इस्कॉन और गौड़ीय मठ में आरदतयोों (और यज्ञ आदि के दलए
होम) के साथ-साथ महा-मोंत्र का सोंकीतथन भी चलता है , जो
वास्तव में आरती आदि को अपना प्रभाव दिखाकर उदचत
पररणाम प्रिान करने में सक्षम बनाने वाली मुख्य प्रदिया है ।
तात्पयथ:
35
सांकीतशन-यज्ञ दीक्षा
हमने पहले िीक्षा का उल्लेख दकया था दजसमें यजमान को यज्ञ
करने के दलए िीदक्षत दकया जाता है । श्रीमि् -भागवतम्
(11.5.32) हमें बताता है दक कदलयुग में दनिाथ ररत यज्ञ है
सोंकीतथन यज्ञ। कदलयुग के दलए, पदवत्र नामोों के सोंकीतथन में
िीक्षा की तुलना यज्ञ-िीक्षा से की जा सकती है । नाम-आचायथ
के रूप में पहचाने जाने वाले हररिास ठाकुर इस िावे का
समथथन करते हैं :36
36
उल्लेखनीय रूप से कुछ लोग यह दनष्कषथ दनकालते हैं दक चूोंदक यहााँ िीक्षा
गुरु का नाम नहीों दिया गया है या हररिास ठाकुर के दलए िीक्षा समारोह का
वणथन नहीों दकया गया है , इसदलए दकसी को िीक्षा लेने की आवश्यकता नहीों है
! यह "आगुथमेंटम एक्स साइलेंदटयो" (मौन से तकथ) का एक रूप है । यह एक
मजबूत तकथ नहीों है क्योोंदक "सबूत की अनुपम्भिदत अनुपम्भिदत का सबूत नहीों
होती ।" हररिास ठाकुर स्पष्ट रूप से कहते हैं दक उन्ें िीक्षा िी गई थी ।
दिर दसफथ इसदलए दक हम (इस समय) नहीों जानते दक उनके गुरु कौन थे ,
इसका मतलब यह नहीों है दक उन्ें गुरु िारा िीक्षा नहीों दमदल थी और दक
िू सरोों के दलए भी दकसी गुरु की आवश्यकता नहीों है। 36
चैतन्य-मोंगल ने सोंकीतथन-यज्ञ को एक वैदिक यज्ञ के रूप में
वदणथत दकया है , जहााँ जीवोों के कान यज्ञ िार हैं , जीभ -- स्रुक्-
स्रुव है , और भगवान् कृष्ण की मदहमा -- यज्ञीय घी है ।
इस्कॉन की पहली िीक्षा में पााँ च में से पहले तीन सों स्कार
औपचाररक रूप से दिए जाते हैं ( ऊध्वथपुण्डर, ताप, और िास्य
37
https://www.wisdomlib.org/hinduism/book/chaitanya-
mangala/d/doc1112748.html
38
दवशेष रूप से श्रील भम्भक्दसद्धान् सरस्वती ठाकुर के अनुयायी ।
39
नारि-पोंचरात्र (भारिाज-सोंदहता) पररदशष्ट 2.54-56
https://archive.org/details/VDNAP/page/n131/mode/2up
37
नाम ) । और िू सरी िीक्षा में अन्य िो (याग के साथ मन्त्र -
सोंस्कार) प्रिान दकये जाते हैं ।40 िू सरी िीक्षा में दिए गए
पञ्चरादत्रक मन्त्र गुरु बीज, गुरु गायत्री, काम बीज, आदि हैं जो
अचाथ दवग्रह पूजन और ध्यान करने के दलए आवश्यक हैं । 41
40
ऐसा प्रतीत होता है दक गौड़ीय मठ में िास्य नाम को कभी-कभी िू सरी
िीक्षा में शादमल दकया जाता था, और कभी-कभी पहली में। जैसा दक कहा
गया है, यह गुरु का दवशेषादिकार है दक व्यम्भक्गत सोंस्कार दकस िम में,
दकतने और कब दिए जाएाँ ।
41
उिाहरण के दलए, भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्माोंड का दनमाथण करने के दलए काम
बीज में ध्यान लगाया ।
42
उिाहरण के दलए, गरुड़ और हनुमान मनुष् नहीों हैं ।
43
नारि-पोंचरात्र (भारिाज-सोंदहता) 1.14-15
https://archive.org/details/VDNAP/page/n107/mode/2up
38
इसके बाि पुरुषोों के दलए अदतररक् के रूप में , श्रील
भम्भक्दसद्धान् सरस्वती ठाकुर उन्ें उपनयन िे ते थे -- पदवत्र
उपवीत और ब्रह्म-गायत्री (वैदिक तत्व) के साथ। पहले वे व्रात्य
थे और उपनयन की समय सीमा के भीतर नही ों थे , लेदकन पञ्च
-सोंस्कार के माध्यम से दिज बनने के बाि अब वे नए दसरे से
पैिा हुए हैं और यदि उनमें अपेदक्षत चररत्र और गुण हैं तो वे
उपनयन के दलए पात्र हैं ।
गृहाथोऽदिपरीदिया ॥
44
इस्कॉन के कुछ भक्ोों सदहत, समकालीन नाम्भस्तक दविानोों के बीच एक
गलत िारणा प्रचदलत है दक प्राचीन वैदिक सोंस्कृदत में, मदहलाओों को उपनयन
सोंस्कार (पदवत्र उपवीत और ब्रह्म-गायत्री) प्राप्त होते थे । इस िावे की इस
दलोंक पर दवस्तार से जाोंच की गई है: https://guru-sadhu-
sastra.blogspot.com/p/women-upanayana.html
39
अदि की िे खभाल,’ इस प्रकार करके दविाता
ने सौोंपा है।" (मनु -सोंदहता 2.67)
40
भी सोंभव है । श्रील प्रभुपाि ने इसे अपने दशष्ोों को दवशेष
रूप से भम्भक् के अोंग के रूप में दिया है ।
42
व्याख्या में उपनयन -- पदवत्र उपवीत समारोह -- का कारण
इस प्रकार बताते हैं :
45
“सोंस्कार” शब्द यहााँ पर मानक वैदिक सोंस्कारोों जैसे गभाथिान, उपनयन,
दववाह, इत्यादि को लदक्षत करता है ।
46
श्रीपाि भम्भक् दवकास स्वामी के अनुसार श्रील भम्भक्दसद्धाोंत ने गौड़ीय मठ
में जो प्रोटोकॉल िादपत दकया था, वह यह था दक उपनयन (ब्रह्म -गायत्री मोंत्र
और पदवत्र उपवीत) ६ पोंचरादत्रका मोंत्र दिए जाने के बाि उसी दिन एक अलग
समारोह में दिया जाता था ।
43
और श्रील भम्भक्दसद्धान् सरस्वती ठाकुर के जातीय ब्राह्मणोों के
साथ युद्ध के सोंबोंि में --- श्रील प्रभुपाि ने इसे शुरू करने का
अपना अन्य कारण बताया है :
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जीबीसी का प्रस्ताव
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जीबीसी के प्रस्ताव को दे र्ते हैं , इसका सबसे गांभीर
टहस्सा तो समस्या को और अटधक जटिल और धूां धला बना
दे ता है:
2. िू सरी िीक्षा में , िीक्षा िे ने वाले गुरु वहीों दवदशष्ट सात मन्त्र
िें गे जो श्रील प्रभुपाि ने सभी िीदक्षतोों को दिए थे , दजसे हम
ब्राह्मि-दीक्षा या िू सरी िीक्षा कहते हैं , और उन्ें इन मन्त्रोों
का दिन में तीन बार जप करने का दनिे श िें गे --- (सुबह
में, मध्याह्न में , सायों काल में) ।
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हालाोंदक यह सच है दक कृष्ण की वैदिक सोंस्कृदत में, वैश्योों और क्षदत्रयोों को
भी उपनयन दमलता था, दकन्ु इस बात के भी प्रचुर प्रमाण हैं दक श्रील
प्रभुपाि ने इस्कॉन की कल्पना ब्राह्मणोों के दनमाथण करने वाली एक सोंिा के
रूप में की थी ।
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वणाथ श्रम-िमथ को लागू करने का एक मनगढ़ों त तरीका है । 48
चाहे कोई कब्र खोिने वाला हो, ऑटो मैकेदनक हो, स्टोर क्लकथ
हो, या दकसी वेतनभोगी कमथचारी ( शूद् ) के रूप में काम कर
रहा हो, उसे भी अभी ब्राह्मण के पि पर घोदषत दकया जाना
होगा। मेरा मानना है दक वे लोग इसे "प्रगदतशील" मानते है ।
इसके दवपरीत, वास्तव में दकसी पुरुष के दलए वणथ 49 में गु ण
और कमथ शादमल होते हैं , जहााँ कमथ उसके गुण के अनुरूप
कायथ होता है । जीबीसी का प्रस्ताव सीिे तौर पर इस्कॉन के
दलए श्रील प्रभुपाि के मागथिशथन का खोंडन करता है । श्रील
प्रभुपाि ने "िजी ब्राह्मणोों" के दवचार का दवरोि दकया है , ऐसे
ब्राह्मण जो ब्राह्मण के मानकोों को पालन करने के प्रदत उत्साही
नही ों होते । उन्ोोंने ऐसे भक्ोों को िू सरी िीक्षा िे ने के दवषय में
चेतावनी िी है । श्रील प्रभुपाि ने इस बात पर जोर दिया दक हर
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इस बात के प्रचुर प्रमाण हैं दक श्रील प्रभुपाि इस्कॉन में वणाथश्रम-िमथ की
िापना करना चाहते थे । सुिामा को दलखा पत्र, दजसे हमने नीचे उि् िृत
दकया है, दृढ़तापूवथक सुझाव िे ता है दक ब्राह्मणीय िीक्षा इसका अदभन्न अोंग
थी। उन उद्धरणोों के सोंग्रह के दलए दजनमें श्रील प्रभुपाि इस बात पर जोर िे ते
हैं दक वणाथश्रम-िमथ की िापना उनका अगला प्रोजेक्ट है : https://guru-
sadhu-sastra.blogspot.com/p/varnasrama-srila-prabhupadas-
plan-for.html
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म्भस्त्रयोों का कोई वणथ नहीों होता; क्योों? क्योोंदक जबदक म्भस्त्रयोों मेंअलग-अलग
गुण होते हैं, लेदकन उन सभी का कमथ एक ही होता है -- स्त्री-िमथ -- जैसा
दक श्रीमद्भागवत 7.11.20-25 में उम्भल्लम्भखत हुआ है। यह एक बड़ा दवषय है
दजस पर हम बाि में कभी दवस्तार से चचाथ करें गे ।
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दकसी को ब्राह्मण नही ों बनना चादहए और जो लोग ब्राह्मण
दसद्धान्ोों का पालन नही ों करते हैं उन्ें पु नः शूद् बन जाना
चादहए ।
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गायत्री-मन्त्र का जप करें ।" (सुबह की सैर -
12 दिसोंबर, 1973, लॉस एों दजल्स)
न श्रुतों न च सोंतदत: ।
कारणादन दिजत्वस्य
वृिों एव तु कारणम् ॥
इससे पता चलता है दक श्रील प्रभु पाि ने शुरुआत में िू सरी िीक्षा
के सोंबोंि में उिारता दिखाई लेदकन बाि में मानकोों को कड़ा
कर दिया। इसका तात्पयथ यह है दक कृष्ण की वैदिक सोंस्कृदत
के मूल मानिों ड पर वापस लौटना अनुदचत नही ों है अदपतु
अपेदक्षत या वाों छनीय है , दजस सोंस्कृदत के मानिों डोों में मदहलाओों
को ब्रह्म-गायत्री प्राप्त करने से बाहर रखा गया है ।
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जीबीसी सोंकल्प पर लौटते हुए,
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म्भस्त्रयोों और शूद्ोों के दलये मात्र घर में ही पूजा का दविान है ।
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श्रील प्रभुपाि की गुरु-बहनें, जो स्त्री-िमथ का पालन कर रही थीों और कृष्ण
की वैदिक सोंस्कृदत को जानती थीों, उन्ोोंने यह गलती नहीों की।
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अभी भी एक स्त्री भक् पञ्च-सों स्कार पूरा करके िू सरी िीक्षा
प्राप्त कर सकती है , लेदकन वह वैदिक उपनयनम -- पदवत्र
उपवीत और ब्रह्म-गायत्री प्राप्त करने के दलए पात्र नही ां है।
अांटतम टिप्पटियााँ
हमने दिखाया है दक SAC सोंशय दनवारण कर वास्तदवक अथथ
को समझने के दलए कृष्ण की मीमाों सा प्रणाली के बजाय
"हे मेनेयुदटक्स" की यवन प्रणाली को दनयोदजत करता है । और
दक उस SAC ने, अपने मनगढ़ों त "हे मेनेयुदटक्स" का उपयोग
करके श्रील भम्भक्दसद्धान् सरस्वती ठाकुर के मनोऽभीष्ट को
भी नजरअोंिाज कर दिया है । और यह दक जीबीसी ने यह िे खने
की प्रतीक्षा दकए दबना ही दक SAC पेपर पर कोई प्रदतदिया हुई
या नही,ों जल्दबाजी में एक गोंभीर त्रुदटपूणथ प्रस्ताव पाररत कर
दिया -- जो एक ऐसा तथ्य है दजसे उदचत स्पष्टीकरण की
आवश्यकता है ।
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अटग्रम पठन के टलये सामग्री
का सुझाव
(https://www.youtube.com/watch?v=u
LFBxCk2l9Q )
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