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3.3 बीज
3.3 बीज
कोसष कोड एवं शीर्षक / Course Code and Title X1-FCEA1T, आधार पाठ्यक्रम
मॉड्यूल शीर्षक / Module Title 3.3 बीज शब्द- धमष, अद्वैि, भार्ा, अवधारणा,
उदारीकरण
कं टें ट लेखक / Content Writer डॉ. अपषणा बादल, स ायक प्राध्यापक, ह ंदी
स्वामी तववेकानंद शासकीय म ातवद्यालय,
बैरतसया, भोपाल (मध्य प्रदेश)
मुख्य शब्द / Key Words धमष, अद्वैि, भार्ा, अवधारणा, उदारीकरण,
udarikaran
2. तवर्य-वस्िु / Content
प्रस्िावना
‘बीज’ शब्द व अव्यक्त सांकेतिक वणष समुदाय या शब्द ै तजसका सांकेतिक अथष ो। य संभावनावान भावपूणष
शब्द ै तजसको समझने के तलए अतिररक्त समझ अथवा एक स्िरीय ज्ञान की आवश्यकिा ोिी ै । बीज शब्द
का भाव बहुि ी सूक्ष्म ोिा ै । एक छोटा सा वणष-समुदाय 'बीज' शब्द क लािा ै । बीज अपने अंदर भतवष्य
का तवशाल वृक्ष समात ि ककए ोिा ै। पल्लतवि वृक्ष तजस प्रकार अपने आप में सभी गुणों से युक्त ोिा ै,
उसी प्रकार बीज शब्द में भी एक व्यापक अवधारणा ोिी ै। प्रत्येक तवर्य का अपना-अपना बीज शब्द ोिा
ै और उसी के अनुरूप उसकी व्याख्या ोिी ै । धमष, अद्वैि, भार्ा, अवधारणा, उदारीकरण इसी िर के शब्द
ैं ।
‘धमष’ भारिीय संस्कृ ति और भारिीय दशषन की प्रमुख संकल्पना वाला बीज शब्द ै । ‘अद्वैि’ दाशषतनक दृतिकोण
वाला बीज शब्द ै जो ‘ब्रह्म सत्यं जगि तमथ्या’ के तसद्ांि को लेकर चलिा ै । ‘भार्ा’ मानव समुदाय के
संवाद से संबतं धि बीज शब्द ै । ‘भार्ा’ का अथष ै ’व्यक्त वाणी’ तजसके माध्यम से तवचारों का सम्प्प्रर्
े ण ोिा
ै । ‘अवधारणा’ दशषन का शब्द ै तजसका अथष ै सुतवचार अथवा धारणा । ककसी तवर्य पर मन में आने वाले
तवचार या मि अवधारणा ैं । उदारीकरण व्यापक अथों वाला शब्द ै । ‘उदारीकरण’ का अथष ऐसे तनयंत्रण में
ढील देना या उन् ें टा लेना ै तजससे तवकास को बढ़ावा तमले । विषमान में ‘उदारीकरण’ शब्द का प्रयोग
आर्थषक तनयमों, नीतियों और प्रशासतनक तनयंत्रणों में ढील के तलए ककया जािा ै । उपरोक्त बीज शब्द अपने
आप में एक व्यापक अवधारणा को समात ि ककये हुए ैं और भार्ा को समृद् करने में म त्त्वपूणष भूतमका
तनभािे ैं ।
धमष भारिीय संस्कृ ति और दशषन की प्रमुख संकल्पना ै। य 'धृ' धािु से बना ै तजसका अथष ै धारण करना,
आलंबन देना और पालन करना। व सभी गुण जो धारण करने योग्य ों धमष के अंिगषि आिे ैं । तनरंिर कमष,
मानवीय उदारिा, सत्य, दान आकद धमष के अंग ैं । धमष समाजशास्त्रीय तवश्लेर्ण का क्षेत्र ै और एक सामूत क
ित्त्व ै तजसमें अलौककक और पतवत्र, तवश्वास और आचार, नैतिक आचार संत िा को स्थान कदया गया ै ।
प्राचीन भारि में धमष का अथष आध्यातत्मक प्रौढ़िा, भतक्त, दया, मानविा और कर्त्षव्य था । धमष की शुरुआि
मनुष्य से ोिी ै और उसकी पररतणति ईश्वर में अथाषि मनुष्य के तलए ईश्वर िक पहुुँचने का माध्यम धमष ै।
भारिीय पररप्रेक्ष्य में धमष की अवधारणा व्यापक ै । धमष ी व ित्त्व जो व्यतक्त को मनुष्य बनािा ै। भारिीय
संस्कृ ति तजन चार पुरुर्ाथों (धमष, अथष, काम, मोक्ष) को स्वीकार करिी ै उनमें प ला पुरुर्ाथष धमष ै। ये चार
पुरुर्ाथष मनुष्य के जीवन के लक्ष्य ैं । भारिीय संस्कृ ति पर आधाररि ग्रन्थ इसकी पुति करिे ैं ।
'अह ंसा परमो धमषः' अथाषि् जीव की त्या न करना मारा श्रेष्ठ धमष ै।- म ाभारि । 'आचारः परमो धमषः'
अथाषि् आचार तनयमों का पालन करना मारा श्रेष्ठ धमष ै। -मनु स्मृति 01/108 । 'आत्म शुतद् साधनं धमषः'।
अथाषि् तजससे आत्मा की शुतद् ो उसे धमष क िे ैं। - जैन तसद्ांि दीतपका (723) 'सुखस्य मूलं धमष'। अथाषि
धमष सुख का मूल ै। -चाणक्य सूत्रातण (1) । 'धमो ी परमो लोके धमे सत्यं प्रतिष्ठम्।’अथाषि् धमष संसार में
सवषश्रेष्ठ ै। धमष में सत्य प्रतितष्ठि ै।-वाल्मीकक रामायण (अयो.21/41)। मनु स्मृति में क ा गया ै–धैयष, क्षमा,
दम, अस्िेय, शौच, इतन्ियतनग्र , बुतद्, तवद्या, सत्य और अक्रोध ये दस धमष के लक्षण ैं। रामचररिमानस में
क ा गया ै "परत ि सररस धरम नह ं भाई" अथाषि दूसरों की भलाई के समान कोई धमष न ीं ै।
समाज में सामातजक तनयंत्रण ेिु धमष की म त्त्वपूणष भूतमका ै। आकदम युग में धमष के द्वारा ी समाज का
संचालन ककया जािा था। सामातजक व्यवस्था धमष पर आधाररि ोिी थी । सभी प्रकार के सामातजक संबंध धमष
पर आधाररि ोिे थे और उनके किषव्य स्पि रूप से तनधाषररि थे । समाज में समरसिा का वािावरण बनाने के
तलए धमष की आवश्यकिा थी । सनािन ग्रंथों में धमष को धारण ककये जाने के तनदेश ैं । धमष का अथष ै धारण
करना और धारण करने के तलए मारे पास दो चीजें ,ैं आत्मा और शरीर। मनुष्य के तलए सवषश्रेष्ठ धमष ै आत्मा
के माध्यम से सदा परमात्मा को धारण करे और परमात्मा के ध्यान के साथ शरीर के माध्यम से माया को धारण
करके सांसाररक कमों का ी तनयमपूवषक पालन करे। शरीर की र अवस्था जैसे- ब्रह्मचयष, गृ स्थ, वानप्रस्थ,
और संन्यास अवस्था के साथ-साथ शरीर का धमष बदलिा जािा ै। जब िक जीवन ै िब िक उसका आचरण,
और कमष उसका प्रमुख धमष ै। मारे समाज में व्यतक्त का मुख्य धमष समाज के अनुकूल ो िभी एक अच्छा
समाज बन पाएगा। मैतथलीशरण गुप्त ने तलखा ै –
अद्वैि
अद्वैि एक दाशषतनक दृतिकोण ै और इसका अथष एक अथवा एकात्म ै । इसे व्यवतस्थि रूप देने का कायष
शंकराचायष ने ककया । उन् ोंने अपने ‘ब्रह्मसूत्र’ में ‘अ ं ब्रह्मातस्म’ क कर अद्वैि तसद्ांि को बिाया ै । शंकराचायष
ने ज्ञान के साथ तनगुषण ब्रह्म की उपासना का प्रचार ककया। उन् ोंने ईश्वर को तशव का स्वरूप देकर जनसाधारण
के तलए शैव उपासना और ज्ञान मागष के द्वारा एके श्वरवाद मागष को प्रशस्ि ककया ।अद्वैि का आधार ै 'ब्रह्म सत्यं
जगि तमथ्या' अथाषि ब्रह्म ी सत्य ै, बाकी सारा जगि तमथ्या (असत्य) ै। आत्मा और परमात्मा आपस में
तभन्न न ीं ैं, वे दोनों एक ी ैं । उनके इस आत्मद्वैिवाद को ी अद्वैिवाद के नाम से जाना जािा ै। अद्वैि
दशषन का मूल आधार ग्रंथ 'ब्रह्मसूत्र' ै । इसके अतिररक्त उपतनर्दों और गीिा में भी इसे स्पि ककया गया ै ।
अद्वैि मि के अनुसार जीव अपने आपको अतवद्या के कारण ब्रह्म से अलग समझिा ै। जीव और ब्रह्म की तभन्निा
का कारण माया ै और इसे अतवद्या भी क िे ैं। अतवद्या अथाषि ज्ञान की कमी। स्वामी शंकराचायष ब्रह्म के दो
रूप मानिे ैं, एक अतवद्या उपातध सत ि ै, जो जीव क लािा ै और दूसरा सब प्रकार की उपातधयों से रत ि
शुद् ब्रह्म ै। जब जीव अतवद्या से रत ि ोकर अथाषि माया (सांसाररक माया-मो ) से रत ि ोकर स्वयं में
ब्रह्म की उपतस्थति को देखिा ै अथाषि 'अ म ब्रह्मातस्म' (मैं ी ब्रह्म हुँ) की अवस्था में पहुुँच जािा ै िो उसमें
जीवपन नि ो जािा ै। माया के संबंध से ी ब्रह्म जीव क लािा ै और य माया रूपी उपातध अनाकद-काल
से ी ब्रह्म को लगी हुई ै और इसी कारण जीव अपने आपको ब्रह्म से अलग अथाष ि तभन्न समझिा ै।
अद्वैि मि के अनुसार जगि को तमथ्या बिाया गया ै। तजस प्रकार स्वप्न झूठे ोिे ैं और अंधेरे में में रस्सी को
देखकर साुँप समझने का भ्रम ोिा ै, उसी प्रकार अतवद्या और अज्ञान के कारण ी जीव इस तमथ्या संसार को
सत्य मान लेिा ै । वास्िव में न िो संसार की कोई उत्पतर्त् ै, न ी प्रलय। न कोई साधक ै न ी कोई मुमुक्षु
(मुतक्त चा ने वाला)। के वल ब्रह्म ी सत्य ै और कु छ न ीं।
• अद्वैि के अनुसार समस्ि सृति में के वल एक ी सर्त्ा व्याप्त ै तजसे ब्रह्म (परमात्मा) क ा गया ै। य
ब्रह्म ी जगि की उत्पतर्त्, तस्थति और लय का कारण ै।
• ब्रह्म के 3 लक्षण माने गए - सि्, तचि् और आनंद, अथाषि व चैिन्य या चेिनाशील ै िथा सदा आनंद
में र िा ै।
• ब्रह्म माया के रूप में जगि के नाना जीवों के रूप में पररवर्िषि ो जािा ै। इसे परमेश्वर की बीज शतक्त
क ा गया ै एवं माया को भी ब्रह्म की शतक्त क ा जािा ै।
तनकला ै। इसका अथष ै 'व्यक्त वाणी' अथाषि् व तजससे कु छ बोला या क ा जाए। भार्ा मनुष्य के तवचारों
और भावों की अतभव्यतक्त का माध्यम ै। व्याकरण की दृति में व्याकरण संबंधी पदों, धािुओं, वाक्यों एवं अथष
आकद की एक व्यवतस्थि समति भार्ा ै। कोशकारों के अनुसार भार्ा अथषवान शब्दों से तनर्मषि अतभव्यतक्त का
साधन ै। सात त्यकारों की दृति से भार्ा एक समतन्वि प्रभाव उत्पन्न करने वाले शब्दों की सुव्यवतस्थि शृंखला
ै।
"भार्ा व माध्यम ै तजसके द्वारा म अपने तवचारों का तवतनमय करिे ैं।" - कामिा प्रसाद गुरु
"तजसकी स ायिा से मनुष्य परस्पर तवचार तवतनमय या स योग करिे ैं उस यादृतच्छक रूढ़ संकेि प्रणाली को
भार्ा क िे ैं।" - देवेंि नाथ शमाष
"भार्ा उच्चारण अवयवों से उच्चररि, यादृतच्छक (Arbitrary) ध्वतन प्रिीकों की व्यवस्था ै तजसके द्वारा समाज
तवशेर् के लोग आपस में तवचारों का आदान प्रदान करिे ैं"। - डॉ भोलानाथ तिवारी
"तजन ध्वतन तचह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर तवचार तवतनमय करिे ैं उसे भार्ा क िे ैं।" - बाबूराम सक्सेना
"भार्ा वाणी के द्वारा व्यक्त स्वच्छंद प्रिीकों की रीतिबद् पद्ति ै तजससे मनुष्य अपने भावों का परस्पर
आदान-प्रदान करिा ै।" - डॉ. सरयू प्रसाद अग्रवाल
उपयुषक्त पररभार्ाएुँ भार्ा को तवतभन्न दृतियों से समझने में मारी स ायिा करिी ैं ।
भार्ा के प्रकार
1:-मौतखक (बोलकर)
मौतखक भार्ा:- व भार्ा तजसमें व्यतक्त बोल कर अपने तवचारों का आदान-प्रदान करिा ै। मौतखक भार्ा
क लािी ै।
सांकेतिक भार्ा :- भार्ा तजसमें के वल संकेिों के माध्यम से, इशारों के द्वारा तवचारों की अतभव्यतक्त ोिी ै,
व सांकेतिक भार्ा ोिी ै । जैसे -यािायाि पुतलस, कक्रके ट एंपायर का तनणषय, इमोजी के माध्यम आकद।
भार्ा की तवशेर्िाएुँ -
• भार्ा एक सामातजक कक्रया ै व ककसी व्यतक्त की कृ ति न ीं समाज में तवचार तवतनमय का साधन ै।
• भार्ा परंपरागि संपतर्त् ै उसकी धारा अतवतच्छन्न चलिी र िी ै।
• भार्ा का मानक स्वरूप ोिा ै ।
• भार्ा की अपनी तलतप ोिी ै।
• भार् अर्जषि संपतर्त् ै, अथाषि् आपस में सामातजक सा चयष से सीखी जािी ै।
• भार्ा पररविषनशील ोिी ै सभ्यिा के तवकास, मानतसक व भौतिक पररविषन के अनुसार भार्ा का
तवकास ोिा र िा ै। भार्ा का कोई अंतिम स्वरूप न ीं ोिा।
• भार्ा प्रिीकात्मक वाग्ध्वतनयों का प्रयोग ोिा ै अथाषि इसमें प्रयुक्त ध्वतनयाुँ साथषक ोिी ैं। इसमें
बोधगम्प्यिा ोना अतनवायष ै ।
• भार्ा के माध्यम से जन समू पारस्पररक स योग करिा ै।
• भार्ा परंपरागि ोिी ै और समाज द्वारा स्वीकृ ि ोिी ै।
भार्ा में ध्वतन, शब्द, पद, वाक्य आकद का एक तनतिि क्रम र िा ै अथाषि य व्याकरण से अनुशातसि ोिी
ै । यकद ककसी भार्ा में य व्यवस्था न ीं ोिी िो उसे कोई सीख न ीं सकिा। भार्ा एक व्यवस्था ोिी ै
उसके अपने तनयम ोिे ैं तजससे उस भार्ा के सभी बोलने वाले पररतचि ोिे ैं। इसतलए वक्ता जो कु छ
क िा ै श्रोिा व ी समझिा ै भूिकाल का वाक्य भूिकाल का ी समझ आ जािा ै भतवष्य काल का न ीं का
न ीं।
अवधारणा (concept)
अवधारणा या संकल्पना भार्ा दशषन का शब्द ै तजसका अथष ै सुतवचार, धारणा या तवचार। ककसी तवर्य पर
मन में आने वाले तवचार या मि अवधारणाएुँ ैं। अवधारणा भार्ा के माध्यम से व्यक्त ोिी ै व इसका अपना
एक म त्त्व ोिा ै। अवधारणा के माध्यम से एक संपूणष तवचार या तस्थति को अतिसंतक्षप्त िौर पर कम से कम
शब्दों के द्वारा व्यक्त ककया जािा ै। व्यापक अथष में अवधारणा यथाथष का अमूिष एवं जरटल पक्ष ै य ककसी
यथाथष की एक अमूिष मानतसक संरचना ोिी ै।
"अवधारणा तवतशि अवलोकनों के सामान्यीकरण के आधार पर तनर्मषि एक अमूिष मानतसक संरचना ै।" -एफ.
एन. कतलगषल
"िथ्यों का प्रत्येक नया वगष, तजसे कक अन्य वगों से तनतिि तवशेर्िाओं के आधार पर पृथक कर तलया गया ै,
एक नाम, एक लेबल दे कदया जािा ै, संक्षप
े में अवधारणा क लािा ै। वास्िव में अवधारणा िथ्यों के एक
वगष या समू की संतक्षप्त पररभार्ा ै।" - श्रीमिी पी.वी. यंग
मानतसक न ीं अतपिु िकष पूणष अतस्ित्व ी अवधारणा ै। - इनसाइक्लोपीतडया तब्रटातनका
उपरोक्त पररभार्ाओं के आधार पर अवधारणा के अथष को इस प्रकार से समझ सकिे ैं :-
• अवधारणा के वल शब्द न ीं बतल्क प्रिीक ै क्योंकक य एक तवशेर् अथष देिा ै।
• अवधारणा का स्वरूप संतक्षप्त ोिा ै तजसमें एक या दो शब्दों में तवर्य वस्िु का अथष बिलाया जािा
ै।
• अवधारणा अनुसंधान की आरंतभक कडी ोिी ै एवं अनुसंधान के तवकास के साथ पररविषनशील ोिी
ै। य एक तसद्ांि तनमाषण की कडी भी ै।
उदारीकरण (liberalization)
उदारीकरण एक नई आर्थषक नीति ै तजसके द्वारा देश में ऐसा आर्थषक वािावरण स्थातपि करने का प्रयास
ककया जािा ै, तजससे व्यवसाय व उद्योग पर लगे प्रतिबंधों को कम ककया जा सके , िाकक देश के व्यवसाय
उद्योग स्विंत्र रूप से तवकतसि ो सकें एवं उद्यमी को कायष करने में ककसी भी प्रकार की बाधाओं का सामना न
करना पडे। उदारीकरण नई औद्योतगक नीति का पररणाम ै। भारि में आर्थषक उदारीकरण की नीति 24
जुलाई, 1991 से शुरू हुई।
उदारीकरण का उद्देश्य:-
उदारीकरण के लाभ
उदारीकरण की ातनयाुँ
• सरकार तवदेशी व्यापार पर ज्यादा टैक्स न ीं लगा सकिी इस कारण क ीं न क ीं घाटा ोिा ै।
• घरेलू व्यापार व देशी लघु उद्योगों को सुरक्षा न ीं तमल पािी चूुँकक भारि कृ तर् प्रधान देश र ा ै ऐसी
तस्थति में देशी वस्िुओं, कु टीर उद्योगों को ातन ोिी ै।
• कु टीर उद्योगों में देशी िकनीक से बनी वस्िुएुँ बनाई जािी ैं इसतलए वे म ुँगी ोिी ै जबकक तवदेशी
वस्िुओं को उन्नि िकनीक से बनाया जािा ,ै तजससे कम समय व कम लागि में अतधक वस्िुओं का
उत्पादन ोिा ै और वे काफी सस्िी ोिी ैं , अिः व्यतक्त सस्िी चीजों को लेने के तलए आकृ ि ोिा ै
और अपने देश की बनी वस्िुओं को घाटा पहुुँचिा ै।
3. सारांश / Summary
उपरोक्त बीज शब्द जो कदखिे बहुि संक्षेप ैं परंिु एक बडा अथष देिे ैं। ‘धमष’ शब्द अपने आप में एक व्यापक
संकल्पना को समात ि ककए हुए ै। ‘अद्वैि’ 'ब्रह्म सत्यं जगि तमथ्या' तसद्ांि को लेकर चलिा ै। ‘अद्वैि’ के
अनुसार समस्ि सृति में के वल एक ी सर्त्ा व्याप्त ै तजसे ब्रह्म (परमात्मा) क ा गया ै। ‘भार्ा’ मनुष्य के
तवचारों और भावों की अतभव्यतक्त का माध्यम ै और एक समतन्वि प्रभाव उत्पन्न करने वाले शब्दों की
अमूिष मानतसक संरचना ै। ‘उदारीकरण’ नई औद्योतगक नीति का पररणाम ै । उदारीकरण में व्यवसाय व
उद्योग पर लगे प्रतिबंधों को कम ककया जािा ै, िाकक देश के व्यवसाय उद्योग स्विंत्र रूप से तवकतसि ो सकें
एवं उद्यमी को कायष करने में ककसी भी प्रकार की बाधाओं का सामना न करना पडे। इन बीज शब्दों के माध्यम
से म बडी से बडी गूढ़ बािों को संक्षप
े में अतभव्यक्त कर सकिे ैं। तवतशि तवर्य अथवा तसद्ांिों के संप्रेर्ण के
तलए सामान्य शब्दों के स्थान पर बीज शब्दों की आवश्यकिा ोिी ै।
4. संदभष / References
1. वाष्णेय लक्ष्मीसागर, ह दं ी सात त्य का इति ास, लोकभारिी प्रकाशन, इला ाबाद
2. सागर म ोपाध्याय लतलिप्रभ, तवश्व संस्कृ ि सूतक्त कोश, भार्ाभवन, मथुरा 281001
3. हसं अमर, ह ंदी आलोचना की पाररभातर्क शब्दावली, डॉ. अमर हसं , राजकमल प्रकाशन, नई
कदल्ली 110002
4. शमाष रामतवलास, भार्ा और समाज, राजकमल प्रकाशन, नई कदल्ली
5. हसं बच्चन, आधुतनक ह ंदी आलोचना के बीज शब्द, वाणी प्रकाशन, नई कदल्ली 110002
7. प्रसाद वासुदेव नंदन, आधुतनक ह ंदी व्याकरण और रचना, भारिी भवन प्रकाशन, पटना
8. भारिी हसं रामगोपाल, सामातजक अनुसंधान तवतध, वैज्ञातनक एवं िकनीकी शब्दावली आयोग,