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ददल्ली ववश्वववद्यालय, ददल्ली के पंजाबी ववभाग में पीएच.डी. कायशक्रम में स्थाई
प्रवेर् की स्वीकृनत हे तु ररपोर्श
(2023-2024)
सलाहकार र्ोधकताश
श्री गरु
ु नानक दे ि खालसा कॉलेज
(दे ि नगर)
पंजाबी ववभाग
मेरे शोध कायय का शीर्यक श्रीमद भागित गीता और गुरु नानक बाणी:
दाशयननक अध्ययन है । सामान्यतः दशयनशास्त्र को अिंग्रेजी शब्द 'Philosophy' का
अनुिाद कहा जाता है परन्तु प्रत्येक शब्द एक समान (समानार्यक) नहीिं होता।
इसी कारण से, पजश्िम में दशयनशास्त्र दो 'ग्रीक' शब्दों से बना है फफलोस जजसका
अर्य है प्रेम और सोफफया जजसका अर्य है ज्ञान। अतः दशयन शब्द का अर्य है ज्ञान
प्रेम। दशयन शब्द के शाजब्दक अर्य की बात करें तो 'दशयन' शब्द की उत्पवि सिंस्त्कृत
शब्द 'दृश' से हुई है । 'दृश' का अर्य है 'दे खना'। दशयन का अर्य है जजसके माध्यम
से दे खा जाए। इस 'दे खना' शब्द का अर्य ज्ञान प्राप्त करना आदद है । दाशयननक
अध्ययन विधधयों का उपयोग जीिन से सिंबिंधधत मूलभूत प्रश्नों जैसे मनुष्य और
सिंसार की रिना का मूल कारण क्या है, के समाधान के सलए फकया जाता है ।
जन्म और मत्ृ यु के बीि क्या रहस्त्य है ? इस ब्रह्माण्ड का रिनयता कौन है , इसका
विस्त्तार कहााँ तक है आदद कई प्रश्नों के उिर खोजने के सलए फकया जाता है ।
इस विर्य को िन
ु ने का मेरा मल
ू उद्दे श्य भी िही है जो मैंने श्रीमद्भागित गीता
में ब्रह्म, जीि, जगत आदद के बारे में सलखा है और गुरु नानक बानी। कई दाशयननक
वििारों पर शोध फकया जाना है । इस शोध प्रफिया के दौरान, इन दोनों कायों में
दाशयननक वििारों के शोध के अलािा समानताएिं और अिंतर भी पढें गे। इस पद्धनत
के आधार पर श्रीमद्भागित गीता एििं गरु
ु नानक बानी के सिंबिंध में कोई शोध
कायय उपलब्ध नहीिं है । इससलए हमने अपने शोध के विर्य के रूप में मैनुअल
शोध कायय को िुना है ।
विर्य की प्रासिंधगकता:-
जब मनुष्य जिंगलों में रहता र्ा, जब िह धूप और छािंि में समय बबताता होगा,
तभी से मनुष्य के मन में धििंतन की शुरुआत हुई र्ी। उन्होंने बाररश-तूफान
और अन्य प्राकृनतक आपदाओिं से बिने के सलए उनकी पज
ू ा शरू
ु की। उन्होंने
इन आपदाओिं को अजनन-जल आदद दे िताओिं के नाम ददए। जब इससे भी उनका
मन नहीिं भरा तो िे ज्ञान (दशयन) की ओर मुड़ गये। यहािं यह भी कहा जा
सकता है फक यदद िह अपनी सुरक्षा के सलए दे िता की पज
ू ा करने लगा तो यह
भी धििंतन के दायरे में आता है । तभी से उन्होंने प्रकृनत के नछपे रहस्त्यों को
समझने के सलए तकय की पद्धनत को अपनाना शुरू कर ददया। जजससे
दशयनशास्त्र का जन्म हुआ। दशयनशास्त्र में आलोिनात्मक, ताफकयक सोि का
उपयोग फकया जाता है ।
दस
ू री रिना गुरु नानक दे ि जी की बानी है जो पिंजाबी के मध्य काल की रिना
है । यह श्लोक ससखों की पुस्त्तक 'श्री गुरु ग्रिंर् सादहब' में दजय है । इस श्लोक का
उद्दे श्य मानिता में धमों के आधार पर विभाजन को समटाना है । नानक बानी
की शुरुआत 'जपुजी' से होती है और इस बानी को सिंपूणय गुरु ग्रिंर् सादहब की
व्याख्या कहा जाता है । नानक बानी परमात्मा, जीि, सिंसार और प्रकृनत की बात
करते हुए इसके रिनयता (ब्रह्म) ननरिं कार को मानते हैं। िह ननरिं कार जन्म और
मत्ृ यु से रदहत है और िह इस सजृ ष्ट के जन्म और इसकी वपछली जस्त्र्नत से
स्त्ियिं पररधित है । नानक के दशयन के विमशय को समझने पर पता िलता है फक
यह सिंपूणय भारतीय दशयन के सार् सिंिाद करके 'बिंधन-मुजक्त' का उद्दे श्य प्रस्त्तुत
करता है । 'मन जीते जगु जीत' की अिधारणा को समझकर दशयन के हर पहलू
को इसमें समेटा जा सकता है आदद।
(अध्याय 7।)
(जपुजी सादहब)
अनस
ु िंधान का क्षेर:-
अनस
ु िंधान व्यिस्त्र्ा की सिंरिना:-
अनिंनतम रूपरे खा
अध्याय एक
अध्याय दो
अध्याय तीन
िौर्ा अध्याय
अध्याय पािंि
सहायक ग्रिंर् सि
ू ी
पिंजाबी पुस्त्तकें:-
दहंदी पुस्तकें:-
प्रकाशन,नयी ददल्ली,2019.
अकादमी,1974.
प्रेस गोरखपरु .
• िौधरी इन्रनार्, तुलनात्मक सादहत्य भारतीय पररप्रेक्ष्य, िाणी प्रकाशन,नयी
ददल्ली,2006.
पुणे,2000.
ददल्ली,अनप
ु ल्िद.
दहन्दी कोर्:-
बनारसीदास,1996.
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इलाहाबाद,1957.
प्रयाग, 1983.
English books:-
Websites:-
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• www.encyclopedia.com
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