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“रुद्रयामल उत्तर तं त्र में हठ योग साधना और ससद्धियों का

द्धिश्लेषणात्मक अध्ययन”

कद्धिकु लगुरु कासलदास सं स्कृ त द्धिश्वद्धिद्यालय,रामटे क योग द्धिज्ञान तथा समग्र स्वास्थ्य
द्धिभाग के अंतगगत द्धिद्यािाररसध उपासध हेतु प्रस्तुत
(सं सिप्त सं शोधन रूपरेखा)

शोध सारांश

सं शोधक
योगेन्द्र कु मार

मागगदशगक
डॉ. मधुसूदन पेन्ना,
प्राध्यापक, भारतीय दशगन द्धिभाग

कद्धिकु लगुरू कासलदास सं स्कृ त द्धिश्वद्धिद्यालय, रामटे क, (महाराष्ट्र)


िषग – २०२१-२२
द्धिषय सूची

अनुक्रमांक द्धिषय

१. प्रस्तािना

२. पूिग सं शोधन

३. द्धिषय की आिश्यकता

४. उद्दे श्य

५. प्राक्कल्पना

६. सं शोधन द्धिसध

७. द्धिषय की व्याद्धप्त और मयागदा

८. अध्याय द्धिभाग

९. सं दभग ग्रन्थ सूची


प्रस्तािना
योग और तं त्र का उत्स सनातन ज्ञान और गुरु सशष्य की परम्पराओ से पोद्धषत

अध्यात्म है यह अद्धिरल धारा द्धनरंतर िैद्धदक काल से बहती आ रही है। इस

आध्यासत्मक चेतना का आनन्द भारतीय सचन्तन में सम्भि हुआ और द्धिश्व को एक

पररिार के रूप में स्वीकार करने की दृद्धष्ट् भारतीय पररिेश से द्धमली। मानि समाज

को शारीररक रूप से स्वस्थ, मानससक रूप से सजग और अध्यासत्मक रूप से तृप्त करने

का कायग भारतीय मनीद्धषयों की ज्ञान दीिा ने द्धकया। इससे अनेक सम्प्रदायो का जन्म

हुआ और िह मानि कल्याण के सलए साधना पि से जुड़े और यम द्धनयमो के पालन

का महत्व बताते हुए जीिन को कै से सं यद्धमत और आनसन्दत रख सकते है इसकी

अनेक द्धिसधयों का प्रकटीकरण हुआ। इन्ही साधना द्धिसधयों की परम्पराओ को आगम

और द्धनगम से जाना जाता है द्धनगम में िैद्धदक परम्पराए द्धनद्धहत है इसके अंतगगत कमग,

ज्ञान तथा उपासना और िैद्धदक ससधान्तो को बताया है तथा आगम तन्त्र, द्धक्रयाओं

और अनुष्ठान पर बल दे ता है। तं त्र शास्त्र के अन्तगगत द्धिद्धिध प्रकार की साधना और

द्धक्रया द्धनद्धहत है इसमें सृद्धष्ट्, स्थस्थद्धत, प्रलय, दे िताचगन, सिगसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म,

के द्धिषय उपलब्ध है तं त्र शास्त्र की मुख्य तीन रूप द्धिकससत हुए इनमे िैष्णि, शैि

और शाक्त आगम मुख्य है। तं त्र के चार पाद द्धिभाग होते है ज्ञान, योग, चयाग और

द्धक्रया इनके माध्यम से द्धिषयों को प्रद्धतपाद्धदत द्धकया जाता है। तं त्र के द्धिषय में िसणगत

है के आगमो की उत्पद्धत भगिान सशि के पांच मुखो से हुई है इनको सद्योजात,

िामदेि, अघोर, तत्पुरुष, ईशान इनके मुखो से द्धनद्धमगत है आगम शास्त्र या तं त्र उन्हें
कहा जाता है सजसमे पािगती सशि भगिान से प्रश्न कर रही है और सशि पािगती के

प्रश्नो का उत्तर दे रहे है सशि उत्तर मे उन रहस्ों पर ज्ञान का प्रकाश कर रहे है

सजसका लाभ देिताओं और मनुष्यों को हुआ सभी परम्पराओ का उदेश्य मोि की

प्राद्धप्त है। तं त्र में आगम के बाद यामल और डामर तं त्रों का िणगन द्धमलता है यामल

भी आगम तं त्र की तरह िातागलाप पर आधाररत है। आगम मे मुख्य सशि पािगती

सं िाद है और यामल मे सशि , भैरि , ब्रह्मा , नारद आद्धद देिताओं का सं िाद है

सजसमे तं त्र की गोपनीय साधनाओ और द्धक्रयाओ का उल्लेख द्धमलता है। यामल

साद्धहत्य के प्रमुख ग्रन्थ रुद्रयामल उत्तर तं त्र में सशि और शद्धक्त के सं िाद का रूप

द्धनद्धहत है इसमें योग साधना, कुं डसलनी, मन्त्र साधना द्धिसध और ससद्धियों का िणगन

द्धिस्तार से द्धदया गया है इस ग्रन्थ के द्धिषयों का यौद्धगक दृद्धष्ट् से द्धिश्लेषण द्धकया

जायेगा और साधना पि से जुड़े नये ज्ञान को प्रकाश में लाया जायेगा।

पूिग सं शोधन
सं स्कृ त शोध पद्धत्रका में प्रकासशत शोध पत्र के अनुसार रूद्रयामल उत्तर तं त्र में ५३

योग आसनों1 के बारे में बताया गया है इस शोध पत्र में पुरातन ग्रंथो में िसणगत योग

आसनों का द्धिस्तृत अध्ययन द्धकया गया है। सम्बस्थित ग्रन्थ पर एक पुस्तक उपलब्ध

हुई है। “रुद्रयामल उत्तर तं त्र धमग और दशगन”2 यह एक शोध कायग पर प्रकासशत की

गयी है इस शोध का शीषगक “रुद्रयामल उत्तर तं त्र का पररशीलन” है। रूद्रयामल

उत्तर तं त्र की हठ योग साधना और ससद्धियों के द्धिश्लेषण पि से सम्बस्थित कोई

शोध कायग उपलब्ध नहीं है।


1. Sriharisukesh N and Subramanya Pailoor-2019, A review of asanas referenced in ancient texts and a brief comparative study of selected asanas,
International Journal of Sanskrit Research 2019; 5(4): 270-273
2. डॉ. रर्ा शंकर मर्श्र,१९८९ रुद्रयार्ल उत्तर तत्रं धर्म और दशमन, पररर्ल पमललके शन ISBN 81-7110-084-8
द्धिषय की आिश्यकता

तं त्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ उपलब्ध है सजनके अंतगगत अनेक साधनाओं और ससद्धियों

का िणगन द्धमलता है इनमे मं त्र साधना, देि उपासना, सृष्ट्ी उत्पद्धत, कुं डसलनी साधना,

द्धनयम द्धिचार और मं त्र ससद्धियों का ज्ञान द्धनद्धहत है इन सभी द्धिषयों पर शोध की दृद्धष्ट्

से बहुत कम कायग हुआ है। पूिग प्राप्त शोध कायो में तं त्र साद्धहत्य का यौद्धगक दृद्धष्ट् से

अिलोकन न के बराबर है लेद्धकन तं त्र के ग्रंथों में योग सम्बिी अनेक द्धिचार दे खने

को द्धमलते है। उन्ही यौद्धगक पिों को स्थाद्धपत करने हेतु तं त्र साद्धहत्य पर शोधकायग

की आिश्यकता है।

रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत यौद्धगक द्धिषय षट्चक्र, योग आसन,

प्राणायाम, योगद्धिद्या के साधन, योद्धगयों के भोजन द्धनयम और ससद्धियों का स्वरूप,

कुं डसलनी जाग्रद्धत उपाय बहुत महत्वपूणग है इस सलए रुद्रयामल उत्तर तं त्र पर शोध

कायग से योग सम्बिी नूतन द्धिषय प्रकट होंगे इससे योग साधना के प्रायोद्धगक पि

को बल द्धमलेगा।

उद्दे श्य

• यामल तं त्रों के ग्रन्थ में िसणगत योग साधनाओ का प्रकटीकरण।

• यामल तं त्र के साद्धहत्य में िसणगत द्धिषयों का योग दृद्धष्ट् से प्रद्धतपादन।

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत हठ योग द्धिषयों का िणगन।

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र ग्रन्थ में िसणगत योग ससद्धियों का द्धििेचन।

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र ग्रन्थ में िसणगत गूढ़ द्धिषयों का रहस्ोद्घाटन।


प्राक्कल्पना

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत नये यौद्धगक द्धिषयों की जानकारी प्राप्त होगी।

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत साधनाओं का प्रयोग सम्भि होगा।

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत द्धिषयों का अन्य शास्त्रों से सम्बि प्रकट होगा।

• रुद्रयामल उत्तर तं त्र में िसणगत ससद्धियों के ज्ञान का साधको को लाभ होगा।

सं शोधन द्धिसध

सिग प्रथम सं पूणग ग्रंथ का सकल अध्ययन द्धकया जायेगा। इस शोध प्रबं ध में

द्धिश्लेषणात्मक पिद्धत का चयन द्धकया गया है।

द्धिषय की व्याद्धप्त और मयागदा

तं त्र शास्त्र के द्धिपुल ग्रन्थ उपलब्ध है इन ग्रंथो में यामल तं त्र का द्धिशेष स्थान है

इस साद्धहत्य के प्रससि ग्रन्थ रुद्रयामल उत्तर तं त्र को सलया गया है इसके कु ल ९०

अध्याय है इसमें शोध करने हेतु व्याद्धप्त द्धदखाई देती है। इस सलए प्रमुख तं त्र ग्रंथो

में िसणगत योग द्धिचारो के स्वरूप का अध्ययन एिं रूद्रयामल तं त्र में िसणगत यौद्धगक

साधनाओं और ससद्धियों का हठ योग के पररपेक्ष्य से द्धिश्लेषण द्धकया जाएगा यह

इस द्धिश्लेषणात्मक अध्ययन की मयागदा है।


अध्याय द्धिभाग

प्रस्तािना

प्रथम अध्याय आगम और तं त्र

द्धितीय अध्याय यामल तं त्र और रूद्रयामल उत्तर तं त्र द्धिस्तृत पररचय

तृतीय अध्याय रुद्रयामल उत्तर तं त्र के हठ योग द्धिषयों का अध्ययन

चतुथग अध्याय तं त्र ग्रंथो के योग द्धिचारों का स्वरूप

पं चम अध्याय रुद्रयामल उत्तर तं त्र में ससद्धियों का अध्ययन

उपसं हार

पररसशष्ट्
प्रथम अध्याय:- आगम और तं त्र

आगम का सं सिप्त पररचय, िैष्णि आगम, शैि आगम और शाक्त आगम

स्वरूप, तं त्र शास्त्र का महत्व, तं त्र शास्त्र में िसणगत द्धिषयों का प्रद्धतपादन,

तं त्र शास्त्र के प्रमुख ग्रंथो का सं सिप्त पररचय, तं त्र परम्पराओ का द्धिस्तार

द्धितीय अध्याय:- यामल तं त्र और रूद्रयामल उत्तर तं त्र द्धिस्तृत पररचय

यामल तं त्र ग्रंथो का पररचय, रुद्रयामल उत्तर तं त्र पररचय महत्व और द्धिषयों

का सं सिप्त प्रद्धतपादन

तृतीय अध्याय:- रुद्रयामल उत्तर तं त्र के हठ योग द्धिषयो का अध्ययन

योग का पररचय, हठ योग के ग्रंथो की द्धिषय िस्तु का स्वरूप, रुद्रयामल

उत्तर तं त्र में िसणगत योग द्धिषयों का द्धििेचन तथा प्रायोद्धगक स्वरूप

चतुथग अध्याय:- तं त्र ग्रंथो के योग द्धिचारो का स्वरूप

प्रमुख तं त्र ग्रंथो में यौद्धगक स्वरूप, तं त्र के प्रमुख ग्रंथो का महत्व, तं त्र ग्रंथो

में यौद्धगक द्धिचारो के प्रायोद्धगक पि का महत्व

पं चम अध्याय:- रुद्रयामल उत्तर तं त्र में ससद्धियों का अध्ययन

ससद्धियों का पररचय ससद्धियों का उद्दे श्य, ससद्धियों की साधना, ससद्धियों का

पररणाम, लौद्धकक पररपेि मे ससद्धियों का स्वरूप और भ्राद्धतया, तं त्र के ससि

योद्धगयों का पररचय
सं दभग ग्रन्थ सूची

1. Sriharisukesh N and Subramanya Pailoor-2019, A review of


asanas referenced in ancient texts and a brief comparative
study of selected asanas, International Journal of Sanskrit
Research 2019; 5(4): 270-273
2. Pandit Rajmani Tigunait,1999, Tantra Unveiled, The
Himalayan Institute Press, RR 1, Box 1129, Honesdale, PA
18431-9709
3. Sir john woodroffe, 2008, Introduction ot Tantra Sastra,
Celephais Press.
4. Arthur Avalon- 1974, The Serpent Power: The Secrets of
Tantric and Shaktic Yoga-ISBN: B007CJ4120
5. Arthur Avalon-2012, Introduction to Tantra Sastra, Martino
Fine Books, ISBN: 1614273391
6. Dover Publications, Incorporated
7. बी. के . अयं गर, “योग-दीद्धपका”, ओररयन्ट लॉगमैन सलद्धमटे ड, नई द्धदल्ली १९९४
8. महद्धषग यतीन्द्र, “कु ण्डसलनी तं त्र”, दीप पस्थिके शन, आगरा, २००१
9. रामकृ ष्ण शमाग 'राजद्धषग', “अष्ट्ांग योग रहस्” (घेरण्ड सं द्धहता), रणधीर प्रकाशन -
रेल्वेरोड (हररिार) २४९४११.
10.स्वामी सचन्मयानन्द, “ध्यान और जीिन”, श्रीमती शीलापुरी, द्धदल्ली
11. स्वामी स्वात्माराम, “हठ योग प्रदीद्धपका”, योग प्रकाशन, मुं गेर द्धबहार
12. नन्दलालदशोरा,”द्धिज्ञानं भैरि भैरि-भैरिी सं िाद”, रणधीर प्रकाशन पेपरबैक-१९८०
13. पं . रमादत्त शुक्ल,“द्धहन्दी महाद्धनिागण तन्त्र”,कल्याण मसन्दर प्रकाशक प्रयागराज-२०११
14. प्रो. राधेश्याम, “श्रीकृ ष्णयामलमहातन्त्र”, चोखम्बा प्रकाशक-२०१८
15. कद्धपलदेि नरायण, “रुद्रयामल श्री देिी रहस्म”, चोखम्बा सुभारती प्रकाशक-२०१२

सं शोधक मागगदशगक
योगेन्द्र कु मार डॉ. मधुसूदन पेन्ना,
प्राध्यापक, भारतीय दशगन द्धिभाग

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