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उच्च वशक्षय ववभयग, मध्र्प्रदेश शयसन

हवर्य / Subject आधार पाठ्यक्रम / Foundation course

कक्षा एवं वर्ष / Class and Year बी.ए. / बी.कॉम. / बी.एससी. / बी.एच.एससी. / बी.सी.ए. /
बी.बी.ए. प्रथम वर्ष
कोसष कोड एवं शीर्षक / Course X1-FCEA1T / आधार पाठ्यक्रम, भार्ा एवं संस्कृ हत

Code and Title

कयर्ाक्रम / Program प्रमयण पत्र / Certificate

प्रश्न पत्र / Paper प्रथम, हिन्दी भार्ा, भार्ा एवं संस्कृ हत

मॉड्यूल शीर्षक / Module Title पर्यार्वयची शब्द, ववलोम शब्द, अनेक शब्द के वलए

एक शब्द

कं टेंट लेखक / Content Writer डॉ. लवीनय हििामा


सहयर्क प्रयध्र्यपक, हहंदी
शयसकीर् महयववद्ययलर्, छयपीहेडय

विलय – रयिगढ़

Key Words पयाषयवाची, हवलोम शब्द, अिेक के हलए एक शब्द,


शब्द संपदा, व्याकरण, भार्ा का वर्गीकरण
Paryayvachi, vilom shabd, anek ke lie ek

shabd, shabd sampada, vyakarn, bhasha

ka vargikran

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पर्यार्वयची शब्द , ववलोम शब्द , अनेक शब्द के वलए एक शब्द
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शैक्षवणक उद्देश्य / Learning objects

प्रस्तु
उ त पाठ्य सामग्री के अध्ययि के बाद हवद्याथी –
➢ हवद्याथी शब्दों के हवहभन्न प्रकारों से पररहचत िो सकें र्गे।

➢ हवद्याथी शब्दों के अध्ययि द्वारा भार्ा एवं संस्कृ हत बोध का हवकास कर पाएँ र्गे।

➢ हवद्याथी समाि अथों वाले शब्दों से पररहचत िो सकें र्गे।

➢ हवद्याथी अपिे शब्द भण्डार में वृहि कर सकें र्गे।

➢ हवद्याथी प्रहतयोर्गी परीक्षाओं के हलए सक्षम िो सकें र्गे।

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पर्यार्वयची शब्द , ववलोम शब्द , अनेक शब्द के वलए एक शब्द
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Content (विषय-िस्तु)

मािव जाहत के हवकास में भार्ा की मित्त्वपूणष भूहमका िै। भार्ा के संज्ञाि से मािव की क्षमता का हवकास हुआ। हजससे
मिुष्य दुहिया की सभी ज्ञाि-शाखाओं से जुड़ पाया। शब्द-संसार बहुत हवस्तृत िै। भार्ा में शब्दों का सिी प्रयोर्ग अहत
आवश्यक िै। हवश्व में अिेक भार्ाएँ िैं। हिंदी भार्ा एकमात्र ऐसी भार्ा िै जो अन्य भार्ाओं के शब्दों को सरलता से
समाहित करते हुए आर्गे बढ़ रिी िै। अथषहवज्ञाि (भार्ा हवज्ञाि की एक मित्त्वपूणष शाखा) के अंतर्गषत पयाषयवाची शब्द,
हवलोम शब्द, अिेक शब्द के हलए एक शब्द का हववेचि ककया जाता िै। हिंदी भार्ा में सवषग्राहिता की प्रवृहि िै इसहलए
अिेक भार्ाओं के शब्द उसमें सहममहलत िैं। तत्सम, तद्भव एवं देशी-हवदेशी शब्दों का सिज प्रवेश िै। अिजािे िी िम ककतिे
पयाषयवाची शब्द, हवलोम शब्द, अिेक शब्द के हलए एक शब्दों का प्रयोर्ग अपिी भार्ा में करते िै, ककन्तु इसके सिी स्थाि
व पररहस्थहत के अिुसार प्रयोर्ग ि करिे के कारण कई बार अथष का अिथष िो जाता िै इसहलए यि आवश्यक िै, कक िमें
शब्दों के सिी प्रयोर्ग की समझ िोिी चाहिए। यि तभी संभव िोर्गा जब िम अहधक से अहधक वाचि कर अभ्यास करेंर्गे।
शब्द हिमाषण व अथष की हवहशष्टता के आधार पर पयाषयवाची शब्द, हवलोम शब्द, अिेक शब्द के हलए एक शब्द का भार्ा
में अपिा हवहशष्ट स्थाि िै। इि शब्दों के सिी प्रयोर्ग से भार्ा की सुंदरता िी ििीं बढ़ती, बहकक भार्ा अत्यंत संप्रर्
े णीय एवं
प्रभावोत्पादक भी बिती िै। बहुभार्ी व्यहि की शब्द संपदा उत्कृ ष्ट िोती िै।

हवद्वािों िे शब्द को अिेक दृहष्ट पररभाहर्त ककया िै।

“शब्द वि िै, जो कािों से सुिा जा सके , बुहि से ग्राह्य िो सके , प्रयोर्ग के द्वारा हसि िो सके और जो आकाशव्यापी िो।”
मिर्र्ष पतंजहल
“भार्ा की साथषक, लघुिम और स्वतंत्र इकाई को शब्द किते िैं ।”
डॉ. भोलािाथ हतवारी
“ध्वहियों के मेल से बिे साथषक वणष समुदाय को शब्द किते िैं।”
डॉ. वासुदेविंदि प्रसाद

भयषय की सबसे छोटी इकयई वणा है। वणों के साथषक मेल से शब्द, शब्दों के साथषक मेल से वाक्य तथा वाक्यों के साथषक मेल

से भार्ा बिती िै। हहंदी भयषय ववशयल सयगर के समयन है, विसमें अन्र् भयषयओं की शब्द रूपी िकदयाँ आकर वमलती रहती

हैं, इसे और समृद्ध बनयती रहती है। शब्दों को वर्गीकृ त करते हुए भी शब्दों के हिमाषण को समझा जा सकता िै। व्याकरण
सममत वर्गीकरण हिम्नािुसार िै।

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पर्यार्वयची शब्द , ववलोम शब्द , अनेक शब्द के वलए एक शब्द
शब्दों का वर्गीकरण
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रचिा के उत्पहि अथष के व्याकरहणक प्रयोर्ग के


आधार के आधार प्रकायष के आधार
पर आधार पर आधार पर पर
पर

पयाषयवाची शब्द / समािाथी शब्द

हवलोम शब्द / हवपरीताथषक शब्द

अिेक के हलए एक शब्द

एकाथी शब्द

अिेकाथषक शब्द

समरूपी हभन्नाथषक शब्द

पयाषयवाची शब्द

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ककताब, पहत्रका, पोथी, पुस्तक, ग्रंथ अिल, अहि, आर्ग, पावक, ज्वाला

खर्ग, पंछी, हविर्ग, पक्षी

औरत, िारी, महिला, वहिता हर्गरी, नग, पवात, शैल

उपर्याक्त वचत्रों के वलए िो शब्द ददए गए हैं, र्ह सभी शब्द इन वचत्रों के लगभग समयन अर्ा दे रहे हैं। हहंदी
भयषय में इस तरह के समयन अर्ा वयले शब्दों कय पयाषप्त भंडयर है। इस तरह के शब्द अलर्ग–अलर्ग िोते हुए भी लगभग समयन
होते हैं। अपने समयन अर्ा की विह से र्ह शब्द समयनयर्ी र्य पर्यार्वयची शब्द कहलयते हैं। पयाषयवाची शब्द को अलर्ग
करिे पर- ‘पयाषय’ का अथष िै– समाि, ‘वाची’ का अथष िै– ‘बोले जािे वाले’। ऐसे शब्द विनके अर्ा में समयनतय िो वे
पर्यार्वयची शब्द कहलयते हैं। आधुहिक भार्ाहवज्ञाि के अंतर्गषत पयाषयवाची शब्दों का अध्ययि पयाषयहवज्ञाि
(synonymics या synonymology) के अंतर्गषत िोता िै। डॉ. भोलािाथ हतवारी के अिुसार अथषहवज्ञाि भार्ा हवज्ञाि

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की एक शाखा िै। इसके अंतर्गषत पयाषयवाची शब्दों का अध्ययि करते िैं, पयाषयवाची शब्द प्रायः समािाथी िोते िैं। पयाषय
शब्दों के हिम्नांककत भेद िैं– 1. पूणष पयाषयवाची शब्द

2. अपूणष पयाषयवाची शब्द ---- (क) शैलीमूलक भेद

(ख) हवचारमूलक भेद

(र्ग) प्रयोर्गमूलक भेद

1. पूणष पयाषयवाची शब्द– पूणष पयाषयवाची शब्द वे शब्द िोते िैं, जो पूणषतः एक अथष रखते िैं। उिमें आपस में कोई भेद
ििीं िोता । इिमें एक के स्थाि पर दूसरे शब्द का प्रयोर्ग ककया जा सकता िै । जैसे – पहथक, पंथी, यात्री। पवि, िवा,
वायु आकद।
2. अपूणष पयाषयवाची शब्द – अपूणष पयाषयवाची शब्द वे शब्द िैं, जो अथष की दृहष्ट से समाि अथष देते िैं परंतु प्रयोर्ग की
दृहष्ट से इिमें भेद िैं। प्रत्येक स्थाि पर एक शब्द के स्थाि पर दूसरे का प्रयोर्ग ििीं ककया जा सकता िै । इिमें तीि
भेद िोते िै– (क) शैलीमूलक भेद, (ख) हवचारमूलक भेद (र्ग) प्रयोर्गमूलक भेद।
(क) शैलीमूलक भेद- समािाथी शब्दों में शैली की दृहष्ट से एक या अहधक शब्दों का अथष तो प्रायः एक िोता िै ककन्तु
प्रयोर्ग में शैली की दृहष्ट से एक रचिा या वाक्य में कोई एक िी शब्द आ सकता िै। उदािरण – अस्त्र-शस्त्र, आमंत्रण-
हिमंत्रण आकद ।
(ख) हवचारमूलक भेद - हवचारमूलक भेद से तात्पयष िै, अथष के समीप िोिा ककन्तु पूणषतः एक ि िोिा। जैसे –जल–
िीर–पािी आकद।
(र्ग) प्रयोर्गमूलक भेद - शैलीमूलक या हवचारमूलक में अंतर ि िोिे पर भी परंपरार्गत प्रयोर्ग के कारण एक के स्थाि
पर दूसरा शब्द प्रयोर्ग में ििीं आ सकता। मुिावरों व समास में यि प्रवृहि देखिे को हमलती िै। ‘र्गंर्गाजल’ के स्थाि
पर ‘िीराजल’ का प्रयोर्ग ििीं कर सकते।

भार्ा में पयाषयों के हवकास के प्रमुख कारण

1. अथष पररवतषि – इसके कारण बहुत से शब्द अथष की दृहष्ट से दूसरे शब्दों के हिकट पहुँच जाते िैं, फलतः पयाषयों में
वृहि िो जाती िै। जैसे– लाल झण्डा ‘कमयुहिज़्म’, रोटी ‘खािे का’, पैसा ‘धि’, का पयाषय बि र्गया िै।
2. हवकास के साथ िया ज्ञाि– भार्ा में हवकास के कारण ज्ञाि की पररहध में वृहि से पयाषयों में भी वृहि हुई िै। जैसे –
लाल-टमाटरी-हसंदरू ी, िरी–हबय–शैमपेि–वाइि इसी वर्गष के उदािरण िैं।
3. हवदेशी संपकष – हिंदी भार्ा में फ़ारसी, अंग्रज
े ी, तुकी, पुतषर्गाली, आकद शब्दों के आिे से पयाषयों में अहधक वृहि हुई
िै। अंहतम–आहखरी, आयु–उम्र, भवि-इमारत-हबहकडंर्ग आकद।
4. प्रत्यय, उपसर्गष आकद व्याकरहणक साधिों का प्रयोर्ग– इिके प्रयोर्ग के कारण भी पयाषयों में वृहि िोती िै। जैसे –
भावमय–भावपूण,ष थकावट–थकाि, सुंदरता–सौंदयष आकद।

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5. अिुवाद– सोशहलज़्म–समाजवाद, कमयूहिज़्म–सामयवाद, हप्रहन्सपल–प्राचायष आकद। हिंदी में इस प्रकार के अिेक


पयाषय आए िैं।
6. पुरािे शब्दों का पुिः उपयोर्ग– हिंदी साहित्य, संस्कृ त साहित्य व स्वतंत्रता के बाद अिेक पुरािे शब्दों का प्रयोर्ग
पुिः िोिे लर्गा िै। इिके आर्गमि से पयाषयों मे भी वृहि हुई िै। जैसे– पत्र-पिा, िस्त–िाथ, पोथी–पुस्तक आकद।
7. संक्षप
े ण– शब्दों के संक्षेपण से भी पयाषयों में वृहि हुई िै। जैसे–भारतवर्ष–भारत, पाककस्ताि–पाक आकद।

❖ कु छ पयाषयवाची शब्दों के उदािरण अभ्यास िेतु इस प्रकार िैं -

अवतवर् मेह मयन, आगंतक


य , अभ्र्यगत, पयहुनय नयव नौकय, िैया, दकश्ती, बेडय, डोंगी, तरी

अनयचर दयस, सेवक, नौकर, पररचयरक, भृत्र् पंवडत प्रयज्ञ, ववद्वयन, कोववद, बयध

अमृत पीर्ूष, अवमर्, सुधा , अमी पत्र्र पयहन, पयषयण, प्रस्तर, अश्म

अश्व घोडय, तयरंर्ग, बयवि, हर्, घोटक पवर्क रयही, बटोही, पंर्ी, यात्री

आम्र रसाल, मधुदूत, पीकवकलभ पवन हवय, वयर्य, अवनल, समीर, वयत, मरुत,

अहंकयर घमंड, अवभमयन, दपा, दंभ पयत्र बेटय, अंशि, आत्मि, सयत, तिय

आकयश अंबर, गगन, आसमयन, व्योम, शून्र् पयत्री बेटी, अंशिय, आत्मिय, सयतय, तिया

आभूषण गहनय, भूषण, अलंकयर, िेवर पयष्प फू ल, कय सयम, सयमन, प्रसून, पहुप, र्गुल

ध्वज ध्वजा, पताका, के तु, के ति, झण्डा पृथ्वी धरय, भूवम, धरती, वसयध
ं रय, वसयधय

भ्रमर भौंरा, अली, मधुप, मधुकर बादल मेघ, घन, िलद, पर्ोद, वयररद

उन्नवत तरक्की, प्रगवत, ववकयस, उत्र्यन हजह्वा जीभ, रसिा, रसज्ञा, जबाि

उपवन बयग, बगीचय, उद्ययन, वयरटकय मयतय मयाँ, अममा, िननी, धयत्री

कपडय वस्त्र, वसन, चीर, पट, अंबर र्श कीर्ता, प्रवसवद्ध, ख्र्यवत, शोहरत

कमल पंकि, अरहवंद, रयिीव, सरोि, अंबि


य रयत वनशय, रिनी, रयवत्र, र्यवमनी, हवभावरी

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दकनयरय तट, कू ल, तीर, कगयर शत्रय अरर, दयश्मन, ररपय, बैरी

दकरण रवश्म, मर्ूख, अंश,य मरीवच सयधय वैरयगी, संत, संन्यासी, मयवन, वीतरयगी

कय बेर धनपवत, र्क्षरयि, दकन्नरयवधपवत हसंह शेर, वनरयि, के हरर, व्याग्र, नयहर

कृ षक दकसयन, खेवतहर, हलधर, खेतीिीवी सेनय चमू, फ़ौि, लश्कर, वाहििी, चतुरंर्ग

कृ ष्ण के शव, घनश्र्यम, गोपयल, श्र्यम सोनय स्वणा, कनक, कं चन, हेम, वहरण्र्

कोर्ल कोदकल, श्र्यम, वपक, वसन्तदूत इच्छय आकयंक्षय, अवभलयषय, मनोरर्, कयमनय

काि कणष, श्रुहतपट, श्रवणेंकिय दूध दयग्ध, पर्, क्षीर, गोरस, पीयूर्

चंद्रमय चाँद, शवश, शशयंक, चंद्र, वहमयंशय चतयर दक्ष, चयलयक, कय शल, प्रवीण, वनपयण

तलवयर कृ पयण, खडक, चंद्रहयस, शमशीर छोर िोक, कोर, ककिारा, हसरा

थोड़ा न्यूि, अकप, जरा, कम ठर्ग छली, धूत,ष धोखेबाज

थाती जमापूज
ँ ी, धरोिर, अमाित शुभ्र र्गौर, श्वेत, अमल, धवल

दांत दंत, दशि, रदि सपष अहि, भुजर्ग


ं , हवर्धर, सारं र्ग

दीि रं क, कं र्गाल, हिधषि सम सवष, समस्त, पूण,ष समग्र

देव अमर, सुर, आकदत्य सिेली आली, सखी, सिचरी

िरक यमलोक, यमपुर समूि दल, झुड


ं , टोली, र्गण

िर जि, मािव, मिुष्य, मिुज संसार लोक, जर्ग, जिाि, जर्गत

पहत िाथ, स्वामी, कांत, भताष समीप सहन्नकट, हिकट, आसन्न, पास

पत्नी कांता, भायाष, अधाांहर्गिी, िस्त िाथ, कर, बाहु, भुजा

बंदर कहप, मकष ट, शाखामृर्ग, वािर हिरण सुरहभ, मृर्ग, कृ ष्णसार

मकदरा शराब, मधु, िाला, मद, आसव िंस कलकं ठ, मराल, हसपपक्ष

मोर के की, हशखी, हशखंडी, मयूर हिम बफष , तुर्ार, तुहिि, हििार

मैिा सारी, साररका हिमांशु हिमकर, हिशाचर, चंिमा

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हवलोम शब्द

‘हवलोम’ का अथष– हवपरीत, उलटा, प्रहतलोम । ववपरीत अर्ा को वहन करने वयले शब्द ववपरीतयर्ाक अर्वय

ववलोम शब्द कहलयते हैं। ‘संज्ञय’ के ववपरीतयर्ाक शब्द ‘संज्ञय’ तर्य ववशेषण के ववपरीतयर्ाक शब्द सवादय ‘ववशेषण’ ही होते

हैं। ववपरीतयर्ाक शब्द की रचनय कई प्रकयरों से होती है, कभी मूल शब्द में उपसगा (अ, अप, अि्, हिस, िीर, हव, प्रहत, कु

आकद) लर्गाकर ववपरीतयर्ाक शब्द बनयर्य ियतय है, तो कभी-कभी वभन्न शब्द भी ववपरीत अर्ा के वलए प्रर्यक्त होतय है।

सामान्यतः हवलोम शब्दों को दो भार्गों में बाँटा र्गया िैं– 1. श्रेणीबि 2. श्रेणीिीि

1. श्रेणीबि– ऐसे हवलोम शब्दों का युग्म हजिको श्रेणीबि ककया जा सकता िै । इसके अंतर्गषत हिम्नहलहखत प्रकार के हवलोम

शब्द आते िैं– (क ) क्रहमकीय हवलोम शब्द (graded antonyms)

(ख) परस्पर हवरोधी शब्द (conversive antonyms / binary antonyms)

(क ) क्रहमकीय हवलोम शब्द (graded antonyms)– ऐसे शब्द युग्म हजिकी तुलिा की जा सकती िै । जैसे– छोटा–बड़ा,

ऊँचा–िीचा, खट्टा–मीठा आकद।

(ख) परस्पर हवरोधी शब्द (conversive antonyms / binary antonyms ) – इसमें एक शब्द का अथष अपिे शब्द युग्म

से पूणषतः समाि ििीं िोता, इिमें सूक्ष्म-सा अंतर िोता िै। उदािरण- चौड़ा–सकरा, ठोस–तरल आकद।

2. श्रेणीिीि– ऐसे हवलोम शब्दों का युग्म हजिको श्रेणीबि ििीं ककया जा सकता । इसके अंतर्गषत हिम्न प्रकार के हवलोम

शब्द आते िैं– (क) पररपूरक हवलोमता (complementary antonyms)

(ख) ध्रुवीय हवलोमता (polar antonyms)

(क) पररपूरक हवलोमता (complementary antonyms)- इि शब्द युग्म में प्रथम अंश तभी संभव िै, जब हद्वतीय अंश

हवद्यमाि िो। एक कक्रया दूसरे की अिुवती िोती िै। जैसे – बाँधिा–खोलिा, उठिा–हर्गरिा, पिििा–उतारिा।

(ख) ध्रुवीय हवलोमता (polar antonyms)- दोिों शब्द परस्पर हवपरीत छोर पर िोते िैं। उदािरणाथष जो जीहवत ििीं
िै, उसे मृत किा जाएर्गा और जो मृत ििीं िै उसे जीहवत किा जाएर्गा। इि शब्द युग्मों के द्वारा तुलिा ििीं की जा सकती।
ये हवलोम शब्द दोिों हस्थहतयों में से एक हस्थहत को िी स्वीकार कर सकते िैं। उदािरण जन्म-मृत्यु आकद। प्रत्येक शब्द का

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एक हिहित अथष िोता िै। हजसकी सिायता से दो हवपरीत अथष देिे वाले शब्दों के बीच अंतर करिे और समझिे में सिायता
हमलती िै। तत्सम शब्दों के ववपरीतयर्ाक शब्द तत्सम शब्द तर्य तद्भव शब्दों के ववपरीतयर्ाक शब्द तद्भव शब्द बनते हैं,

इसी प्रकयर देशि-ववदेशी शब्दों में भी ध्र्यन देनय पडतय है, आइए कय छ ववपरीतयर्ाक शब्द देखें–

शब्द ववलोम शब्द ववलोम शब्द ववलोम

अर्ा अनर्ा सदय हिदषय सगयण वनगयण


जड़ चेति संवध हवच्छे द तयच्छ महयन

आदद अनयदद आज्ञा अवज्ञा दयलभ


ा सयलभ

अपेक्षय उपेक्षय बलवाि बलिीि मयनव दयनव

रार्ग द्वेर् पोर्क शोर्क ध्वंस वनमयाण

उज्ज्वल मलीि उदयर अनयदयर नूतन पयरयतन

चढ़नय उतरनय कर्नीर् अकर्नीर् ऊध्वष वनम्न

परयधीन स्वयधीन क्रर् ववक्रर् एकल बहुल

रयिय प्रिय उज्ज्वल धूवमल संश्लर्


े ण हवश्लेर्ण

अकपज्ञ बहुज्ञ हनंदय प्रशंसय उग्र सौम्र्

सबल दयबल
ा वनरक्षर सयक्षर उपसगा प्रत्र्र्

िरटल सरल औहचत्य अिौहचत्य एकयग्र चंचल

तरल ठोस वृि तरुण कय ख्र्यत ववख्र्यत

शब्द ववलोम शब्द ववलोम शब्द ववलोम

अवर प्रवर उदाि अिुदाि आकाश पृथ्वी

अपषण ग्रिण उधार िर्गद र्गृिी त्यार्गी

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अस्त उदय उद्घाटि समापि चर अचर

अरुहच सुरुहच ऊपर िीचे जोड़ घटाव

अटल हवतल उपचार अपचार चंचल हस्थर

अहभज्ञ अिहभज्ञ हवश्लेर्ण संश्लर्


े ण िख हशख

क्षहणक शाश्वत ओजस्वी हिस्तेज थलचर जलचर

अर्गम सुर्गम क्षर अक्षर तुल अतुल

अजेय जेय क्रम व्यहतक्रम धीर अधीर

आतुर अिातुर कृ हत्रम प्रकृ त िैहतक अिैहतक

आदि प्रदि कु कृ त्य सुकृत्य दृश्य अदृश्य

आिा जािा खर्गोल भूर्गोल िेकी बदी

इहत अथ घि तरल भोर्गी योर्गी

इष्ट अहिष्ट कोप कृ पा रत हवरत

टीप – स्थाि, िाम, संबध


ं व संख्या के हवलोमाथी शब्द ििीं िोते। जैस े- राम-लक्ष्मण, भाई-बिि, एक, दो,

मिाराष्ट्र इत्याकद । ये शब्द एक दूसरे के पूरक किे जा सकते िैं ककन्तु हवरोधी ििीं ।

अनेक शब्द के वलए एक शब्द

‘भार्ा को प्रभयवशयली बनयने िेतु अनेक शब्द के वलए एक शब्द कय प्रर्ोग दकर्य ियतय है, इनके प्रर्ोग से भयषय

में संवक्षप्ततय तर्य सौंदर्ा आतय है, इन्हें वयकर्यंश बोधक शब्द भी कह सकते हैं।‘ - कामतप्रसाद र्गुरु
‘भार्ा की सुदृढ़ता, भावों की र्गंभीरता के हलए आवश्यक िै कक लेखक हवस्तृत हवचारों व भावों को कम से कम
शब्दों मे व्यि कर सके ।’ - डॉ. वासुदेविन्दि प्रसाद
‘र्गार्गर में सार्गर भरिा‘ किावत यिाँ चररताथष िोती िै। कम से कम शब्दों में अहधक से अहधक हवचारों की
अहभव्यहि के हलए अिेक शब्दों के स्थाि पर एक शब्द का प्रयोर्ग ककया जाता िै। जैसे– आकाश में उड़िे वाले जीवों को
‘िभचर या खर्ग’ किते िैं। रेंर्गिे वाले जीवों को ‘सरीसृप’ किते िैं। जल में रििे वाले जीवों को ‘जलचर’ किते िैं। यिाँ अिेक
शब्दों के स्थाि पर एक िी शब्द का प्रयोर्ग ककया र्गया िैं। इसी कारण इन्िें ‘अिेक शब्द के हलए एक शब्द’ किा जाता िै।
इससे भार्ा अलंकृत िोती िै। इसका प्रयोर्ग अिुच्छेद लेखि में भी ककया जाता िै।

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अनेक शब्द एक शब्द अनेक शब्द एक शब्द

विसे ियनय न िय सके अज्ञेर् मरिे की इच्छा मुमूर्ाष

विसमें शवक्त न हो अशक्त शरण में आर्य हुआ शरणयगत

विसकय कोई िाथ न हो अनयर् प्रहतकदि िोिे वाला दैहिक

विसमें ियनने की इच्छय हो विज्ञयसय जो प्रशंसा के योग्य िो प्रशंसिीय

विसकय पवत िीववत हो सधवय जो भाग्य का धिी िो भाग्यवाि

विसकय पवत मर गर्य हो ववधवय कम खचष करिे वाला हमतव्ययी

िो ज्र्यदय बोलतय हो वयचयल जो स्वयं उत्पन्न हुआ िो स्वयंभू

िो कम बोलतय िै वमतभयषी िाथ का हलखा हुआ िस्तहलहखत

िो मयह में एक बयर होतय है मयवसक िो िन्म से अंधय हो िन्मयंध

िो वषा में एक बयर होतय है वयर्षाक िो उपकयर मयने कृ तज्ञ

िो सप्तयह में एक बयर होतय हो सयप्तयवहक िो देखने र्ोग्र् िो दशानीर्

िो पंिि ददन में एक बयर होतय िै पयवक्षक रयत में घूमने वयलय वनशयचर

विसकय अंत न हो अनंत अपनी हत्र्य करने वयलय आत्मघयती

सदय रहने वयलय शयश्वत िो देखने में वप्रर् लगे वप्रर्दशी

ववष्णय कय भक्त वैष्णव माँस न खयने वयलय शयकयहयरी

वशव कय भक्त शैव माँस खयने वयलय मयंसयहयरी

बहुत तेि चलने वयलय द्रयतगयमी िो भूवम उपियऊ हो उवार

विसकय इलयि न हो सके असयध्र् िो भूवम उपियऊ ि िो बंिर

कयम से िी चयरयने वयलय कयमचोर िो सबको वप्रर् हो सवावप्रर्

वशव कय भक्त शैव िो आँखों के सयमने हो प्रत्र्क्ष

मेहनत करने वयलय कमाठ िो कभी बूढ़य न हो अिर

स्नातक प्रथम वर्ष आधार पाठ्यक्रम हिन्दी भार्ा


पर्यार्वयची शब्द , ववलोम शब्द , अनेक शब्द के वलए एक शब्द
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Summary / सारांश

भार्ा हवज्ञाि की एक मित्त्वपूणष शाखा अथषहवज्ञाि के अंतर्गषत पयाषयवाची शब्द, हवलोम शब्द एवं अिेक के हलए एक शब्द
का अध्ययि ककया जाता िै। भार्ा में इिका अपिा एक स्थाि िै। शब्द और अथष की रचिा सुहिहित िोती िै। एक अथष को
समझिे के हलए एक शब्द हवशेर् िोता िै, ककन्तु भार्ा के प्रयोर्ग की दृहष्ट से उस एक शब्द का प्रयोर्ग बार–बार करिा उहचत
ििीं लर्गता। ऐसी पररहस्थहत में शब्द के अथष को समझिे के हलए उसी के समाि या उसी के हवपरीत अथष रखिे वाले शब्दों
(पयाषयवाची शब्द, हवलोम शब्द, अिेक के हलए एक शब्द) का प्रयोर्ग ककया जाता िैं। अपिी भार्ा शैली को प्रभावशाली
बिािे व पुिरावृहि से बचिे के हलए इि शब्दों का प्रयोर्ग अहतआवश्यक िै । सार रूप में देख े तो- ‘पयाषय’ का अथष िै– समाि,

‘वाची’ का अथष िै– ‘बोले जािे वाले’। ऐसे शब्द विनके अर्ा में समयनतय िो वे पर्यार्वयची शब्द कहलयते हैं। कहीं-कहीं

पर बहुत सूक्ष्म-सय अंतर होतय है, िो पररवस्र्वतर्ों के अनयसयर बदलतय है। जैसे– सूरज–सूयष, कदवाकर, रहव आकद।

‘हवलोम’ का अथष– हवपरीत, उलटा, प्रहतलोम । शब्दों के अपने वनवित अर्ा होते हैं, उसके ववपरीत अर्ा को वहन करने
वयले शब्द ववपरीतयर्ाक अर्वय ववलोम शब्द कहलयते हैं। जैसे– अमृत–हवर्, उदय–अस्त आकद।

वाक्य को कम शब्दों में प्रभावशाली ढंर्ग से कििे के हलए िम अिेक शब्दों के हलए एक शब्द का प्रयोर्ग करते िैं। जैसे–
मेिित करिे वाला–मेििती, हशव का भि –शैव ।

इस प्रकार के शब्दों के उपयोर्ग से हिंदी भार्ा की शब्द संपदा में ि के वल हवस्तार िी आया िै बहकक हवहवधता भी आयी िै।
अतः िमें िमारी भार्ा में शब्दों के सिी उपयोर्ग िेतु अहधक से अहधक साहित्य वाचि एवं जिसमपकष करिा चाहिए। आप
अभ्यास के हलए शब्दकोश का भी उपयोर्ग कर सकते िैं। शब्द भंडार के समृि िो जािे से र्गररमायुि भार्ा के प्रयोर्ग में
सिजता आ जाती िै। हवशेर् प्रकार की भार्ा में दक्षता पािे के हलए शब्द के साथषक प्रयोर्ग की समझ हवकहसत िोिी चाहिए।
इस िेतु पयाषयवाची शब्द, हवलोम शब्द व अिेक शब्द के हलए एक शब्द के प्रयोर्ग से भार्ा मे दक्षता प्राप्त की जा सकती िै।

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References / संदभष

• प्रसाद डॉ. वासुदेविंदि, आधुहिक हिंदी व्याकरण और रचिा, भारती भवि, पुणे

• हिंदी भार्ा संरचिा, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल (म.प्र.)

• हतवारी डॉ. भोलािाथ, हिंदी पयाषयवाची कोश, प्रभात प्रकाशि, न्यू कदकली

• हतवारी डॉ. भोलािाथ, भार्ा हवज्ञाि, ककताबघर, इलािाबाद

• कु मार डॉ . सुरेश, हिंदी भार्ा तथा भार्ा हवज्ञाि, आलेख प्रकाशि, कदकली

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