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Muhavare(Idioms)( मुहावरे )

मुहावरा (Idioms) की पररभाषा

 ऐसे वाक्ाांश, जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर ककसी कवलक्षण अर्थ की प्रतीकत
कराये , मुहावरा कहलाता है।
 दू सरे शब्दों में- मुहावरा भाषा कवशेष में प्रचकलत उस अकभव्यक्तिक इकाई को कहते
हैं, कजसका प्रयोग प्रत्यक्षार्थ से अलग रूढ़ लक्ष्यार्थ के कलए ककया जाता है।

इसी पररभाषा से मुहावरे के ववषय में विम्नविखित बातें सामिे आती हैं-
(1) मुहावरोां का सांबांध भाषा कवशेष से होता है अर्ाथत हर भाषा की प्रकृकत, उसकी सांरचना
तर्ा सामाकजक साांस्कृकतक सांदभो के अनुसार उस भाषा के मुहावरे अपनी सांरचना तर्ा
अर्थ ग्रहण करते हैं।
(2) मुहावरोां का अर्थ उनके प्रत्यक्षार्थ से कभन्न होता है अर्ाथत मुहावरोां के अर्थ सामान्य
उक्तियोां से कभन्न होते हैं। इसका तात्पयथ यही है कक सामान्य उक्तियोां या कर्नोां की तुलना में
मुहावरोां के अर्थ कवकशष्ट होते हैं।
(3) मुहावरोां के अर्थ अकभधापरक न होकर लक्षणापरक होते हैं अर्ाथत उनके अर्थ लक्षणा
शक्ति से कनकलते हैं तर्ा अपने कवकशष्ट अर्थ (लक्ष्यार्थ ) में रूढ़ हो जाते हैं।

उदाहरण के विए-
(1) कक्षा में प्रर्म आने की सूचना पाकर मैं ख़ुशी से फूला न समाया अर्ाथत बहुत खुश हो
जाना।
(2) केवल हवाई ककले बनाने से काम नहीां चलता, मेहनत भी करनी पड़ती है अर्ाथत कल्पना
में खोए रहना।
इन वाक्ोां में ख़ुशी से फूला न समाया और हवाई ककले बनाने वाक्ाांश कवशेष अर्थ दे रहे हैं।
यहााँ इनके शाक्तिक अर्थ नहीां कलए जाएाँ गे। ये कवशेष अर्थ ही 'मुहावरे ' कहलाते हैं।

'मुहावरा' शि अरबी भाषा से कलया गया है, कजसका अर्थ होता है- अभ्यास। कहांदी भाषा में
मुहावरोां का प्रयोग भाषा को सुांदर, प्रभावशाली, सांकक्षप्त तर्ा सरल बनाने के कलए ककया

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जाता है। ये वाक्ाांश होते हैं। इनका प्रयोग करते समय इनका शाक्तिक अर्थ न लेकर
कवशेष अर्थ कलया जाता है। इनके कवशेष अर्थ कभी नहीां बदलते। ये सदै व एक-से रहते हैं। ये
कलांग, वचन और किया के अनुसार वाक्ोां में प्रयुि होते हैं।

अरबी भाषा का 'मुहावर:' शि कहन्दी में 'मुहावरा' हो गया है। उदू थ वाले 'मुहाकवरा' बोलते हैं।
इसका अर्थ 'अभ्यास' या 'बातचीत' से है। कहन्दी में 'मुहावरा' एक पाररभाकषक शि बन
गया है। कुछ लोग मुहावरा को रोजमराथ या 'वाग्धारा' कहते है।
मुहावरा का प्रयोग करना और ठीक-ठीक अर्थ समझना बड़ा ही ककठन है, यह अभ्यास
और बातचीत से ही सीखा जा सकता है। इसकलए इसका नाम मुहावरा पड़ गया।

मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, सरसता, चमत्कार और प्रवाह उत्पत्र होते है। इसका
काम है बात इस खूबसूरती से कहना की सुननेवाला उसे समझ भी जाय और उससे
प्रभाकवत भी हो।

मुहावरा की ववशेषता

(1) मुहावरे का प्रयोग वाक् के प्रसांग में होता है, अलग नही। जैसे, कोई कहे कक 'पेट
काटना' तो इससे कोई कवलक्षण अर्थ प्रकट नही होता है। इसके कवपरीत, कोई कहे कक 'मैने
पेट काटकर' अपने लड़के को पढ़ाया, तो वाक् के अर्थ में लाक्षकणकता, लाकलत्य और
प्रवाह उत्पत्र होगा।

(2) मुहावरा अपना असली रूप कभी नही बदलता अर्ाथत उसे पयाथयवाची शिोां में
अनूकदत नही ककया जा सकता। जैसे- कमर टू टना एक मुहावरा है, लेककन स्र्ान पर
ककटभांग जैसे शि का प्रयोग गलत होगा।

(3) मुहावरे का शिार्थ नहीां, उसका अवबोधक अर्थ ही ग्रहण ककया जाता है; जैसे- 'क्तखचड़ी
पकाना'। ये दोनोां शि जब मुहावरे के रूप में प्रयुि होांगे, तब इनका शिार्थ कोई काम न
दे गा। लेककन, वाक् में जब इन शिोां का प्रयोग होगा, तब अवबोधक अर्थ होगा- 'गुप्तरूप
से सलाह करना'।

(4) मुहावरे का अर्थ प्रसांग के अनुसार होता है। जैसे- 'लड़ाई में खेत आना' । इसका अर्थ
'युद्ध में शहीद हो जाना' है, न कक लड़ाई के स्र्ान पर ककसी 'खेत' का चला आना।

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(5) मुहावरे भाषा की समृक्तद्ध और सभ्यता के कवकास के मापक है। इनकी अकधकता अर्वा
न्यूनता से भाषा के बोलनेवालोां के श्रम, सामाकजक सम्बन्ध, औद्योकगक क्तस्र्कत, भाषा-कनमाथण
की शक्ति, साांस्कृकतक योग्यता, अध्ययन, मनन और आमोदक भाव, सबका एक सार् पता
चलता है। जो समाज कजतना अकधक व्यवहाररक और कमथठ होगा, उसकी भाषा में इनका
प्रयोग उतना ही अकधक होगा।

(6) समाज और दे श की तरह मुहावरे भी बनते -कबगड़ते हैं। नये समाज के सार् नये मुहावरे
बनते है। प्रचकलत मुहावरोां का वैज्ञाकनक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जायेगा कक हमारे
सामाकजक जीवन का कवकास ककतना हुआ। मशीन युग के मुहावरोां और सामन्तवादी युग
के मुहावरोां तर्ा उनके प्रयोग में बड़ा अन्तर है।

(7) कहन्दी के अकधकतर मुहावरोां का सीधा सम्बन्ध शरीर के कभत्र-कभत्र अांगोां से है। यह बात
दू सरी भाषाओां के मुहावरोां में भी पायी जाती है; जैसे- मुाँह, कान, हार्, पााँव इत्याकद पर
अनेक मुहावरे प्रचकलत हैं। हमारे अकधकतर कायथ इन्ीां के सहारे चलते हैं।

मुहावरे के प्रयदग में विम्नविखित सावधावियााँ बरतिी चावहए :

(1) मुहावरे वाक्ोां में ही शोभते हैं, अलग नहीां। जैसे- यकद कहें 'कान काटना' तो इसका
कोई अर्थ व्यांकजत नहीां होता; ककन्तु यकद ऐसा कहा जाय- 'वह छोटा बच्चा तो बड़ोां-बड़ोां के
कान काटता है' तो वाक् में अदभुत लाक्षकणकता, लाकलत्य और प्रवाह स्वतः आ जाता है।

(2) मुहावरोां का प्रयोग उनके असली रूपोां में ही करना चाकहए। उनके शि बदले नहीां
जाते हैं। उनके पद-समूहोां में रूप-भेद करने से उसकी लाक्षकणकता और कवलक्षणता नष्ट हो
जाती है। जैसे- 'नौ-दो ग्यारह होना' की जगह 'आठ तीन ग्यारह होना' । सवथर्ा अनुकचत है।

(3) मुहावरे का एक कवलक्षण अर्थ होता है। इसमें वाच्यार्थ का कोई स्र्ान नहीां होता। जैसे-
'उलटी गांगा बहाना' का जब वाक्-प्रयोग होगा, तब इसका अर्थ होगा- 'रीकत-ररवाज के
क्तखलाफ काम करना'।

(4) मुहावरे का प्रयोग प्रसांग के अनुसार होता है और उसके अर्थ की प्रतीकत भी प्रसांगानुसार
ही होती है। जैसे- अमरीका की कनकत को सभी कवकासशील राष्टर धोखे और अकवश्वास की
मानते हैं। यकद ऐसा कहा जाय- 'पाककस्तान अपना उल्लू सीधा करने के कलए अमीरीका की

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आरती उतारता है'- तो यहााँ न तो टे ढ़े उल्लू को सीधा करने की बात है, न ही, दीप जलाकर
ककसी की आरती उतारने की। यहााँ दोनोां की प्रकृकत से अर्थ कनकलता है- 'मतलब कनकालना
और 'खुशामद करना'।
अतएव, मुहावरे का प्रयोग करते समय इस बात का सदै व ख्याल रखना चाकहए कक समुकचत
पररक्तस्र्कत, पात्र, घटना और प्रसांग का वाक् में उल्लेख अवश्य हो। केवल वाक्-प्रयोग कर
दे ने पर सांदभथ के अभाव में मुहावरे अपने अर्थ को अकभव्यक्ति नहीां कर सकते हैं।

मुहावरे : भेद-प्रभेद

मुहावरोां को कनम्नकलक्तखत आधारोां पर वगीकृत ककया जा सकता है-


(1) सादृश्य पर आधाररत
(2) शारीररक अांगोां पर आधाररत
(3) असांभव क्तस्र्कतयोां पर आधाररत
(4) कर्ाओां पर आधाररत
(5) प्रतीकोां पर आधाररत
(6) घटनाओां पर आधाररत

(1) सादृश्य पर आधाररत मुहावरे - बहुत से मुहावरे सादृश्य या समानता पर आधाररत


होते हैं।
जैसे- चूकड़यााँ पहनना, दाल न गलना, सोने पर सुहागा, कुांदन-सा चमकना, पापड़ बेलना
आकद।

(2) शारीररक अोंगदों पर आधाररत मुहावरे - कहांदी भाषा के अांतगथत इस वगथ में बहुत मुहावरे
कमलते हैं।
जैसे- अांग-अांग ढीला होना, आाँ खें चुराना, अाँगूठा कदखाना, आाँ खोां से कगरना, कसर कहलाना,
उाँ गली उठाना, कमर टू टना, कलेजा मुाँह को आना, गरदन पर सवार होना, छाती पर सााँप
लोटना, तलवे चाटना, दााँत खट्टे करना, नाक रगड़ना, पीठ कदखाना, बगलें झााँकन, मुाँह
काला करना आकद।

(3) असोंभव खथिवतयदों पर आधाररत मुहावरे - इस तरह के मुहावरोां में वाच्यार्थ के स्तर पर
इस तरह की क्तस्र्कतयााँ कदखाई दे ती हैं जो असांभव प्रतीत होती हैं।
जैसे- पानी में आग लगाना, पत्थर का कलेजा होना, जमीन आसमान एक करना, कसर पर
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पााँव रखकर भागना, हर्ेली पर सरसोां जमाना, हवाई ककले बनाना, कदन में तारे कदखाई दे ना
आकद।

(4) किाओों पर आधाररत मुहावरे - कुछ मुहावरोां का जन्म लोक में प्रचकलत कुछ कर्ा-
कहाकनयोां से होता हैं।
जैसे-टे ढ़ी खीर होना, एक और एक ग्यारह होना, हार्ोां-हार् कबक जाना, सााँप को दू ध
कपलाना, राँ गा कसयार होना, दु म दबाकर भागना, काठ में पााँव दे ना आकद।

(5) प्रतीकदों पर आधाररत मुहावरे - कुछ मुहावरे प्रतीकोां पर आधाररत होते हैं।
जैसे- एक आाँ ख से दे खना, एक ही लकड़ी से हााँकना, एक ही र्ैले के चट्टे -बट्टे होना, तीनोां
मुहावरोां में प्रयुि 'एक' शि 'समानता' का प्रतीक है।
इसी तरह से डे ढ़ पसली का होना, ढाई चावल की खीर पकाना, ढाई कदन की बादशाहत
होना, में डे ढ़ तर्ा ढाई शि 'नगण्यता' के प्रतीक है।

(6) घटिाओों पर आधाररत मुहावरे - कुछ मुहावरोां के मूल में कोई घटना भी रहती है।
जैसे- कााँटा कनकालना, कााँव-कााँव करना, ऊपर की आमदनी, गड़े मुदे उखाड़ना आकद।

उपयुथि भेदोां के अलावा मुहावरोां का वगीकरण स्रोत के आधार पर भी ककया जा सकता है।
कहांदी में कुछ मुहावरे सांस्कृत से आए हैं तो कुछ अरबी-फारसी से आए हैं। इसके अकतररि
मुहावरोां की कवषयवस्तु क्ा है, इस आधार पर भी उनका वगीकरण ककया जा सकता है।
जैसे- स्वास्थ्य कवषयक, युद्ध कवषयक आकद। कुछ मुहावरोां का वगीकरण ककसी क्षेत्र कवशेष
के आधार पर भी ककया जा सकता है। जैसे- िीडाक्षेत्र में प्रयुि होने वाले मुहावरे , सेना के
क्षेत्र में प्रयुि होने वाले मुहावरे आकद।

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