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The Book of Mirdad Hindipdf
The Book of Mirdad Hindipdf
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Mirdad
मीरदाद एक व्यक्तित्व
kitab-e-mirdad
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and pdf part two
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प्रथम-पवच-आरं भ
ममखाइल नईमी द्वारा रचिि पुस्िक ‘किताब-ए-मीरदाद’ अध्यात्म का सवोत्कृष्ट बीसवीीं सदी की भाषा
में मलखा ग्रन्थ है । ओशो ने एक बार कहा था कक ककसी कारण वश सारे ग्रन्थ नष्ट हो जाए एवीं यदद
यह कृति शेष रहे िो सभ्यिा किर भी ववकमसि हो सकिी है । िकू कीं इस ग्रन्थ में सभी सत्यों का
सार एवीं जीवन का सार है । इसमें सींस्कृति का उद्वार करने की कला एवीं आत्म ज्ञान को प्राप्ि करने
की क्षमिा है । यह एक ग्रन्थ नहीीं बक्कक प्रकाश स्िम्भ है ।
यह ग्रन्थ गीिा,बाईबबल एवीं कुरान के समकक्ष रखने योग्य है । इसमें आक्त्मक उन्नति की ववचि एक
मठ की कथा की माध्यम से रखी हुई है । उति कृति में पहाड़ पर स्थावपि पुराने मठ से जुड़ी कहानी
है । प्रतिकात्मक भाषा में गूढ़ बािें इस पस्
ु िक में मलखी हुई है । सािक की दृक्ष्ट को मजबूि कर
उसकी राह के कााँटे हटािी है । नकारात्मकिा का सामना करने की समग्र ववचि इसमें है ।
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यह व्यवाहाररक पस्
ु िक नहीीं है , सींसार में रस क्जनको आिा हो उनके मलए यह नहीीं है ैै। जो सींसार
से थक गए है उनके मलए ज्योति प्रदायक है । जो नहीीं कहा जा सकिा है , उसे कहने में यह सक्षम है ।
परम सत्य को लेखक को कथा के रूप में बुनने में महारथ प्राप्ि है । यह हमारे उपतनषदों की िरह
है ।
लेखक मलखिा है कक हम जीने के मलए मर रहे है जबकक लेखक मरने के मलए जी रहा है ।
वविारणीय है कक जीने के मलए मरे या मरने के मलए क्जए।
ममखाइल नईमी लेबनान के ईसाई पररवार में पैदा हुए, रुस में मशक्षा ग्रहण की एवीं आगे की मशक्षा
अमेररका में । वहीीं पर वे खलील क्जब्रान से जुड़े एवीं वहीीं मािभ
ृ ाषा अरबी की सींस्कृति एवीं सादहत्य को
नव जीवन प्रदान करने के मलए 1947 में द बुक आैि मीरदाद मलखी।
अध्याय एि
मीरदाद अपना पदाच टाता ै और पदों और मु रों िे बबषय में बात िरता
ै
नरौंदा ; उस शाम आठों साथी खाने की मेज के िारों ओर जमा थे और मीरदाद एक ओर खड़ा िुपिाप उनके
आदे शों की प्रिीक्षा कर रहा था। साचथयों पर लागू परु ािन तनयमों में से एक यह था कक जहााँ िक सम्भव हो
वािाालाप में ''मैं''शब्द का प्रयोग न ककया जाये। साथी शमदाम मखु खया के रूप में अक्जाि अपनी उपलक्ब्ियों के
बारे में डीींग मार रहा था। यह ददखािे हुए कक उसने नौका की सींपक्त्ि और प्रतिष्ठा में ककिनी ववृ ि की है ,
उसने बहुि से आींकड़े प्रस्िि
ु ककये। ऐसा करिे हुए उसने वक्जाि शब्द का बहुि अचिक प्रयोग ककया। साथी
ममकेयन ने इसके मलए उसे एक हलकी सी खिड़की दी। इस पर एक उत्िेजनापण ू ा वववाद तछड़ गया कक इस
तनयम का तया उद्देश्य था और इसे बनाया था वपिा हजरि नह
ू ने या साथी अथााि सैम ने। उत्िेजना से एक -
दस
ू रे पर दोष लगाने की नौबि आ गई और इसके िलस्वरूप बाि इिनी बाद गई कक कहा िो बहुि कुछ पर
समि में ककसी की कुछ नहीीं आया।
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अक्षरों और मात्राओीं में बींद ककये हुए पदाथा नहीीं हैं ? िम्ु हारा होंठ, जो स्वयीं एक महु र है, महु रों के मसवाय
और तया बोल सकिा है ? आाँखें पदाा डाल सकिी हैं, परदे को वेि नहीीं सकिीीं ।होंठ मह
ु र लगा सकिे हैं ,
मह
ु रों को िोड़ नहीीं सकिे ।इससे अचिक इनसे कुछ न माींगो । शरीर के कायों में से इनके दहस्से का काया
इिना ही है और इसे ये भली भााँिी तनभा रहे हैं । परदे डालकर और मह
; - ु रें लगाकर ये िम
, ु से पक
ु ार पक
ु ार -
कर कह रहे हैं कक आओ और उसकी खोज करो जो पदों के पीछे तछपा है और उसका भेद प्राप्ि करो जो मह
, ु रों
के नीिे दबा है । अगर िम
ु अन्य वस्िओ
ु ीं को सही रूप से दे खना िाहिे हो िो पहले स्वयीं आाँख को ठीक से
दे खो । िम्
ु हे आाँख के द्वारा नहीीं आाँख में से दे खना होगा िाकक इससे परे की सब वस्िओ
, ु ीं को िम
ु दे ख सको
।यदद िम
ु दस
ु रे शब्द ठीक से बोलना िाहिे हो िो पहले होंठ और जबान ठीक से बोलो । िम्
ु हे होंठ और जबान
के द्वारा नहीीं वक्कक होंठ और जबान में से बोलना होगा िाकक उनसे परे के सारे शब्द िम
, ु बोल सको ।यदद
िम
ु केवल ठीक से दे खोगे और बोलोगे िो िम्
ु हे अपने मसवाय और कुछ नजर नहीीं आयेगा और न िम
, ु अपने ,
मसवाय और कुछ बोलोगे । तयोंकक प्रत्येक वस्िु के अींदर और प्रत्येक वस्िु से परे सब शब्दों में और सब शब्दों
,
से परे केवल िम
, ु ही हो | यदद किर िम्ु हारा सींसार एक िकरा दे ने वाली पहेली है, िो वह इसमलए कक िमु
स्वयीं ही वह िकरा दे ने बाली पहे ली हो । और यदद िम् ु हारी वाणी एक ववकट भल ू भल ु य
ै ाीं है , िो वह इसमलए
कक िम ु स्वयीं ही वह ववकट भल ू भल
ु य ै ाीं हो । िीजें जैसी हैं वैसी ही रहने दो; उन्हें बदलने का प्रयास मि करो
। तयोंकक वे जो प्रिीि होिी हैं, इसमलए प्रिीि होिी हैं कक िम ु वह प्रिीि होिे हो जो प्रिीि होिे हो । जब
िक िम ु उन्हें द्रक्ष्ट वाणी प्रदान नहीीं करिे, वे न दे ख सकिी हैं, न बोल सकिी हैं । यदद उनकी वाणी ककाश
है िो अपनी ही क्जभ्या की और दे खो । यदद वह कुरूप ददखाई दे िी हैं िो शरू
ु में भी और आखखर में भी अपनी
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ही आाँख को परखो ।पदाथों से उनके कपडे उिार िेंकने को मि कहो । अपने परदे उिार िेंको पदाथों के परदे
,
स्वयीं उिर जायेंगे । न ही पदाथों से उनकी मह
ु रें िोड़ने को कहो । अपनी मह
ु रें िोड़ दो अन्य सब की मह
, ु रें
स्वयीं टूट जाएाँगी ।अपने परदे उिारने और अपनी मह
ु रें िोड़ने की कींु जी एक शब्द है क्जसे िम
ु सदै व अपने होंठों
में पकडे रहिे हो । शब्द " मैं " यह सबसे िच्ु छ और सबसे महान है । मीरदाद ने इसे सज
ृ नहार शब्द कहा
है |
अध्याय -२
मसरजन ार िब्द - मैं
*********************************
समस्ि वस्िओु ीं का श्रोि
और केंद्र है जब िुम्हारे मुह
से ”मैं” तनकले िो िुरींि
अपने हृदय में कहो,
” प्रभ,ु ”मैं”की ववपक्त्ियों में मेरा आश्रय बनो,
मीरदाद िाहिा है ….
कक िुम यह भी जान लो
कक जो प्रदान कर सकिा है
वह छीन भी सकिा है ।
”मैं” की भावना–मात्र से िम
ु अपने हृदय में भावनाओीं का कुआाँ खोद
लेिे हो । यह कुआाँ रिना है िुम्हारे ”मैं” की जो एक साथ अनुभव
करनेवाला और अनभ
ु व दोनों है । यदद िम्
ु हारे हृदय में कींटीली
िाड़ड़यााँ हैं, िो जान लो िुम्हारे अींदर के ”मैं” ने ही उन्हें वहाीं लगाया
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में खपिे रहे हो क्जन्हें छाना या िारा नहीीं जा सकिा ।िुम्हारा सींसार
अपने ही ववरुि ववभाक्जि है तयोंकक िम्
ु हारे अींदर का ”मैं” इसी प्रकार
ववभाक्जि है ।िुम्हारा सींसार अवरोिों और बाड़ों का सींसार है , तयोंकक
िम्
ु हारे अींदर का ”मैं” अवरोिों बाड़ों का ;;मैं” है ।कुछ वस्िओ
ु ीं को यह
पराया मान कर बाड के बाहर कर दे ना िाहिा है ; कुछ को अपना
मानकर बाड़ के अींदर ले लेना िाहिा है । परन्िु जो वस्िु बाड़ के
बाहर है वह सदा बलपव
ू क
ा बाड़ के अींदर आिी रहिी है , और जो वस्िु
बाड़ के अींदर है वह सदा बलपूवक
ा बाड़ के बाहर जािी रहिी है ।
तयोंकक वे एक ही मााँ की–िुम्हारे ”मैं” की—सींिान होने के कारण
अलग-अलग नहीीं होना िाहिीीं ।और िम
ु , उनके शभ
ु ममलाप से
प्रसन्न होने के बजाय, अलग न हो सकनेवालों को अलग करने की
तनष्िल िेष्टा में िी जुट जािे हो । ”मैं” के अींदर की दरार को भरने
की बजाय िम
ु अपने जीवन को छील-छील कर नष्ट करिे जािे हो;
िुम आशा करिे हो कक इस िरह िुम इसे एक पच्िड़ बना लोगे
क्जसे िुम, जो िुम्हारी समि में िुम्हारा ”मैं” है और जो िुम्हारी
ककपना में िम्
ु हारे ;;मैं;;से मभन्न है , उन दोनों के बीि ठोंक सको |हे
सािुओ, मीरदाद िुम्हारे ”मैं” के अींदर की दरारों को भर दे ना िाहिा है
िाकक िुम अपने साथ, मनुष्य-मात्र के साथ, और सम्पूणा ब्रम्हाींड के
साथ शाींतिपव
ू क
ा जी सको ।मीरदाद िम्
ु हारे ”मैं” के अींदर भरे बबष को
सोख लेना िाहिा है िाकक िुम ज्ञान की ममठास का रस िख सको
।मीरदाद िुम्हे िम्
ु हारे ”मैं” को िोलने की ववचि मसखाना िाहिा है
िाकक िम
ु पण
ू ा सींिल
ु न का आनींद ले सको |
अध्याय 3-
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किर भी िुम सब एक
मैं में केक्न्द्रि हो
प्रभु के मैं में |
प्रभु का ‘मैं’…..
वस्िए
ु ;ीं बीि रहा समय
और अभी आने बाला
समय – सब; सब-कुछ ही,
रे ि के एक-एक कण िक,
इसी शब्द के द्वारा प्रकट होिा है
और इसी शब्द में समा जािा है .
इसी के द्वारा सब वस्िए
ु ीं रिी गईं थी.
इसी के द्वारा सभी का पालन होिा है .
यदद ककसी ककसी शब्द का कोई अथा न हो, िो वह शब्द शून्य में
गूींजिी केवल एक प्रति ध्वनी है . यदद इसका अथा सदा एक ही न हो,
िो यह गले का कैं सर जबान पर पड़े छले से अचिक और कुछ नहीीं |
अध्याय4-
☞मनुष्य पोिड़ों में मलपटा ☜
एक परमात्मा है
स्थान एक पोिड़ा है ,
दे ह एक पोिड़ा है और
इसी प्रकार हैं इक्न्द्रयाीं िथा
उनके द्वारा अनभ
ु व-गम्य वस्िए
ु ीं भी ।
और यह सब इसमलए कक
अभी िक वह ;मैं’ का अथा
नहीीं समििा जो उसके मलए है
पोिड़े और उसमे मलपटा हुआ मशशु भी ।
जो उस एक के साथ उसकी
एकिा के प्रति उसे अाँिा बनाय हुए है ।
यही मनुष्य की तनयति है –
इसमलए साचथयों……..
िुम्हे साविान कर ददया गया है –
और बड़ी बुविमानी के साथ
साविान कर ददया गया है –
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िब िक िम
ु अपने ममथ्या अमभमान को छानिे रहोगे और बटोरोगे
केवल मत्ृ यु को, उससे उत्पन्न सभी पीडाओीं और वेदनाओीं के साथ |
अध्याय–5..
क्जससे िम
ु घ्रणा करिे हो
और बरु ा मानकर त्याग दे िे हो,
उसे अवश्य ही कोई अन्य व्यक्ति,
अथवा अन्य पदाथा अच्छा मानकर,
अपना लेिा है तया एक ही
वस्िु एक ही समय में
परस्पर ववपरीि दो वस्िए
ु ीं हो सकिी है ?
वह न एक हैं,
न ही दस
ू री; केवल िुम्हारे ‘मैं ने उसे बुरा बहा ददया है ,
और ककसी दस
ु रे ;;मैं” ने उसे अच्छा बना बना ।
तया मैंने कहा नहीीं कक जो रि सकिा है ?
वह अ-रचिि भी कर सकिा है ?
क्जस प्रकार िम
ु ककसी को शत्रु बना लेिे हो,
उसी प्रकार उसके साथ शत्रुिा
को ममटा भी सकिे हो,
या उसे शत्रु से ममत्र बना सकिे हो ।
इसके मलया िह
ु े ददव्य ज्ञान की आवश्यकिा है ।
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मेरे साचथयों …
तयोंकक प्रभु का शब्द जीवन है
और जीवन एक कुठाली है
क्जसमे सब कुछ एक, अववभाज्य एक बन जािा है ;
सब कुछ परू ी िरह सींिमु लि होिा है ,
और सबकुछ अपने रितयिा–
पावन बत्रपुटी–के योग्य होिा है ।
थे ? तया कोई ऐसा स्थान है जहााँ िुम प्रभु के अींदर नहीीं थे ? किर
तयों बााँििे हो िम
ु अनन्ििा को प्रहारों और ऋिओ
ु ीं की जींजीरों में ?
और तयों समेटिे हो स्थान को इींिों और मीलों में ?प्रभु का शब्द वह
जीवन है जो जन्मा नहीीं,इसी मलए अववनाशी है । किर िम्
ु हारा शब्द
जन्म और मत्ृ यु की लपेट में तयों है ? तया िम
ु केवल प्रभु के सहारे
जीववि नहीीं हो ? और मत्ृ यु से मुति कोई मत्ृ यु का स्रोि हो सकिा
है ? प्रभु के शब्द में सभी कुछ शाममल है उसके अींदर न कोई अवरोि
है न कोई बाड़ें । किर िुम्हारा शब्द अवरोिों और बाड़ों से तयों इिना
जजार है ?
मैं िम
ु से कहिा हूाँ, िम्
ु हारी हड्ड़डयााँ और माींस भी केवल िम्
ु हारी ही
हड्ड़डयााँ और माींस नहीीं है । िम्ु हारे हाथो के साथ और अनचगनि
हाथ भी प्रथवी और आकाश की उन्ही दे गचियों में डुबकी लगािे हैं
क्जनमे से िम्
ु हारी हड्ड़डयााँ और माींस आिे हैं और क्जनमे वो वापस
िले जािे है ।न ही िुम्हारी आाँखों की ज्योति केवल िुम्हारी ज्योति है
। यह उन सबकी ज्योति भी है जो सूया प्रकाश में िुम्हारे भागीदार हैं
। यदद मि
ु मे प्रकाश न होिा िो तया िम्
ु हारी आाँखे मि
ु े दे ख पािीीं ?
यह मेरा प्रकाश है जो िुम्हरी आाँखों में मुिे दे खिा है । यह िुम्हारा
है जो मेरी आाँखों में िुम्हे दे खिा है । यदद मैं पण
ू ा अन्िकार होिा िो
मेरी और िाकने पर िम्
ु हारी आाँखें पण
ू ा अींिकार ही होिीीं । न ही
िुम्हारे वक्ष में िलिा श्वाींस िुम्हारा श्वाींस है । जो श्वास लेिे हैं, या
क्जन्होंने कभी श्वास मलया था, वे सब िुम्हारे वक्ष में श्वास ले रहे हैं
। तया यह आदम का श्वास नहीीं जो अभी भी िम्
ु हारे िेंिडों को
िुला रहा है ? तया यह आदम का हृदय नहीीं जो आज भी िुम्हारे
हृदय के अींदर िड़क रहा है ?न ही िुम्हारे वविार िुम्हारे अपने वविार
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* परा अजस्तत्व ी *
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अध्याय 6
मीरदाद :– मीरदाद ही शमदाम का
एकमात्र सेवक नहीीं है ।
शमदाम……..तया िुम अपने सेवकों की
चगनिी कर सकिे हो ?
तया कोई गरुड या बाज है ;
तया कोई दे वदार या बरगद है ;
तया कोई पवाि या नक्षत्र है ;
तया कोई महासागर या सरोवर है ;
तया कोई ़िररश्िा या बादशाह है
जो शमदाम की सेवा न कर रहा हो ?
तया सारा सींसार ही शमदाम की सेवा में नहीीं है ?
न ही मीरदाद शमदाम का एक मात्र स्वामी है ।
शमदाम, तया िुम अपने स्वाममयों
की चगनिी कर सकिे हो ?
याद रखो,शब्द एक है ।
और उस शब्द के अक्षर होिे हुए
िुम भी वास्िव में एक ही हो ।
कोई भी अक्षर ककसी अन्य अक्षर से श्रेष्ठ नहीीं,
न ही ककसी अन्य अक्षर से अचिक आवश्यक है ।
अनेक अक्षर एक ही अक्षर हैं,
यहााँ िक कक शब्द भी ।
ऐसी क्जव्हा से
क्जसके शब्द काींटे और जाल हों
क्जव्हा का न होना कींहीीं अच्छा है ।
और जब िक क्जव्हा ददव्य
ज्ञान के द्वारा स्वच्छ नहीीं
की जािी िब िक उससे तनकले
शब्द सदा घायल करिे रहें गे
और जाल में िाँसािे रहें गे |
हे सािुओ…….
मेरा आग्रह है कक िुम अपने ह्रदय को टटोलो ।
मेरा आग्रह है कक िम
ु उसके अींदर के
सभी अवरोिों को उखाड़ िेंको ।
बैनून :- एक मेिावी पुरुष, ककन्िु परस्पर ववरोिी बािों में खोया हुआ
।
जमोरा :- एक ववलक्षण रबाब क्जसके स्वरों को हम नहीीं पहिानिे ।
दहम्बल :- एक भटकिा शब्द ककसी सहृदय श्रोिा की खोज में
र िब्द िो प्राथचना
में ढाल दो प्रभु मागच िे मलए
अध्याय -7
ममकेयन और नरौंदा
राि को मीरदाद से बाििीि करिे हैं
जो भावी जल-प्रलय का सींकेि दे िा है और
उनसे िैयार रहने का आग्रह करिा है
***************************************
नरौन्दा :- राबत्र के िीसरे पहर की
लगभग दस
ू री घडी थी
जब मुिे लगा कक
मेरी कोठरी का द्वार खल
ु रहा है
और मैंने ममकेयन को िीमे स्वर में कहिे सुना….
तया िम
ु जाग रहे हो, नरौन्दा ?””
इस राि मेरी कोठरी में नीींद का
आगमन नहीीं हुआ है ……ममकेयन
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िलो…..
इसी क्षण उसके पास िलें ।
मीरदाद से िम
ु तया िाहिे हो ?…
िो मनुष्य ।
तया िम
ु ने जान मलया ममकेयन ?
िथा िुम्हारे दे श
और िम्
ु हारे पव
ू ज
ा ों का ज्ञान होिा
िो शायद हम िम्
ु हे अचिक
अच्छी िरह से समि लेिे ।
ममकेयन:- कहीीं िम
ु वही िो नहीीं जो गप्ु ि रूप से नह
ू की नौका में
सवार हुआ था ?
मीरदाद:- मैं प्रत्येक उस नाव में गुप्ि रूप से सवार हुआ व्यक्ति हूाँ
जो भ्रम के िि ू ानों से जि
ू रही है ।
जब भी उन नौकाओीं के कप्िान मुिे सहायिा के मलये पुकारिे हैं,
मैं आगे बढ़कर पिवार थाम लेिा हूाँ ।
िम्
ु हारा ह्रदय भी,िाहे िम
ु नहीीं जानिे,
दीघाकाल से उच्ि स्वर में मुिे पक
ु ार रहा है ।
और दे खो !
मीरदाद िम्
ु हे सरु क्षक्षि खेने के मलए यहााँ आ गया है िाकक अपनी
बारी आने पर िम
ु सींसार को खेकर उस जल-प्रलय से बाहर तनकल
सको
ममकेयन:- एक और जल-प्रलय ?
ममरदाद :- िरिी को बहा दे ने के मलए नहीीं,
बक्कक िरिी के अींदर जो स्वगा है उसे बाहर लाने के मलए ।
मनष्ु य का तनशान िक ममटा दे ने के मलए नहीीं,
बक्कक मनष्ु य के अींदर तछपे
परमात्मा को प्रकट करने के मलए ।
मीरदाद:- नह
ू के जल-प्रलय से अचिक ववनाशकारी होगा यह जल-
प्रलय क्जसकी िि
ू ानी लहरें अभी से उठ रही हैं ।
जल में डूबी िरिी के गभा में वसींि का वादा होिा है । लेककन अपने
ही िप्ि लहू में उबल रही िरिी ऐसी नहीीं होिी ।
अध्याय 8
मीरदाद:- अ़िसोस !
केवल एक छुछुींदर का बबल ।
अबबमार:- मजाक िो िम
ु हमारा उड़ािे हो जब हमें छछूींदर कहिे हो
।
हमने ऐसा तया ककया है
कक हमें यह नाम ददया जाये ?
तया हमने हजरि नूह की
ज्योति को जलाये नहीीं रखा ?
तया हमने इस नौका को,
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जो कभी मुट्ठी भर
मभखाररयों के मलये एक कुदटया-मात्र थी,
सबसे अचिक समि
ृ महल से भी
ज्यादा समि
ृ नहीीं बना ददया ?
तया हमने इसकी सीमाओीं का
दरू िक ववस्िार नहीीं ककया
जब िक कक यह एक
शक्तिशाली साम्राज्य नहीीं बन गई ?
यदद हम छछूींदर हैं
िो तनिःसींदेह मशरोमखण हैं
हम बबल खोदने वालों में ?
मेरे साचथयों ।
क्जस मनष्ु य को अपने
ईश्वरत्व में दृढ़ ववश्वास है
उसके मलये सबकुछ जड़ बोि है ।
वह सींसार को अपने अींदर िारण करिा है ,
ककन्िु सींसार का बोि नहीीं उठािा |
यदद िम
ु अपनी जकड से बिना िाहिे हो ।
ध्यान रखो…..
िम
ु अपने अनमोल प्राणों को कहीीं
सोने क्जिना सस्िा न मान लो
नौका की सीमाएाँ िुमने
मीलों दरू िक िैला दी हैं ।
मीरदाद िाहिा है
कक िम
ु अनींििा के के िरों
ओर सीमा रे खा खीींि दो,
उससे आगे तनकल जाओ ।
समद्र
ु िरिी पर दटकी एक बद
ींू -मात्र है ,
किर भी यह उसकी सीमा बना हुआ है ,
उसे अपने घेरे में मलये हुए है ।
तया मि
ु े िम्
ु हारी ईष्यााएाँ
िुम्हारे परमात्मा की वेदी पर रें गिी
और िडपिी ददखाई नहीीं दे िीीं ?
भले ही िम
ु मट्ठ
ु ी भर हो परन्ि,ु
ओह,
ककिना ववशाल जनसमूह है
उस मट्ठ
ु ी भर में !
यदद िुम वास्िव में ही
बबल खोदनेवालों में मशरोमखण होिे,
जो िम
ु कहिे हो िम
ु हो,
िो िुम खोदिे-खोदिे
बहुि पहले िरिी में से ही नहीीं,
सय
ू ा में से भी िथा
गगन-मण्डल में ितकर काटिे
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छछुन्दरों को थूथनो
और पींजों से अपनी अाँिेरी
राहें बनाने दो िम्
ु हे अपना
राजपथ ढूींढने के मलये
पलक िक दहलाने की आवश्यकिा नहीीं ।
सशति और तनभाय मन से
अपने पथ-प्रदशाक के पीछे -पीछे िलो ।
उसके पद-चिन्ह िाहे वे दरू िम नक्षत्र पर हों,
िुम्हारे मलये इस बाि का सूिक
और जमानि होंगे
कक िम्
ु हारी जड़ वहाीं
पहले ही रोपी जा िुकी है ।
िैलिे जाओ जब िक
कक सारा सींसार वहााँ न हो
जहााँ सींयोगवश िम
ु होओ ।
िैलिे जाओ िाकक जहााँ कहीीं भी
िम
ु अपने आपसे ममलो,
िुम प्रभु से ममलो ।
िैलिे जाओ । िैलिे जाओ !
यदद िम्
ु हे अन्िकार से अींिे हुए
लोगों से शमा नहीीं आिी िो कम
से कम जुगनुओीं और
िमगादड़ों से िो शमा करो ।
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ककिनी दद
ु ा शा होिी है सााँपों
और कीड़ों से भरे बिानों की
जब उन पर से ढतकन उठा ददये जािे हैं ।
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ककसी आाँख से एक भी
ऐसी क्षखणक दृष्टी नहीीं तनकलिी
जो उसकी सभी लालसाओीं
िथा भयों को,
उसकी मस्
ु कानों िथा
अश्रओ
ु ीं को साथ न मलये हो ।
ककसी द्वार में एक भी ऐसा
सपना प्रववष्ट नहीीं हुआ है
क्जसने अन्य सब द्वारों पर
दस्िक न दी हो ।
िो ध्यान रखो िम
ु कैसे दे खिे हो ।
ध्यान रखो ककन सपनों को
िुम द्वार के अींदर आने दे िे हो
और ककन्हें िुम पास से तनकल जाने दे िे हो ।
यदद िम
ु चिींिा और पीड़ा से मत
ु ि होना िाहिे हो,
िो मीरदाद िुम्हे ख़ुशी से रास्िा ददखायेगा ।
☞ आप िा र िरम ☜
आिाि में अंकित ोता ै
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अध्याय 9
पीड़ा-मत
ु ि जीवन का मागा
मसर पर आना है ।
और वास्िव में वह आिा भी है । ”
दहम्बल: और कब िक िुम
हमें उलिन में रखोगे, मीरदाद ?
िम
ु हमसे ऐसे बाि करिे हो
जैसे कभी ककसी व्यक्ति ने नहीीं की,
न हमने ककसी ककिाब में पढ़ी ।
बैनन
ू :- बिाओ िम
ु कौन हो
िाकक हम जान सकें
कक िुम्हारी बाि हम
ककस कान से सन
ु ें ।
यदद िुम ही नूह की नौका में
गुप्ि रूप से िढ़ने वाले व्यक्ति हो
िो हमें इसका कोई प्रमाण दो ।
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**************************************
मीरदाद: मुिे कोई तनणाय नहीीं दे ना है ,
दे ना है केवल ददव्य ज्ञान ।
अनस
ु ार दण्ड दे ना िाहिा है ।
मनष्ु य को ही लो ।
वह एक है ।
सम्पूणा ब्रम्हाींड–
जो दृश्य है और जो अदृश्य है –
एक ही मनष्ु य है ;
एक पूणा इकाई है ।
प्रभु का एकत्व,
मेरे साचथयों,
इस्क दस
ू रा नाम है प्रेम ।
जीवन जड़
ु ना है ;मत्ृ यु टूट जाना ।
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इसमलये मनुष्य,
जो द्वैिवादी है ,
ककन्िु बबखरकर ही ।
और जुड़ग
े ा वह अवश्य,
ककन्िु टूटकर ही ।
मसमटने और जड़
ु ने में वह
जो िम्
ु हारी ही िरह अपने आपको दोषी मानिे हैं ।
अमभयुति जो एक-दस
ू रे को
कम हास्यजनक होंगे,
एक ही जए
ु में जुिे दो बैल जो
एक-दस
ू रे को जोिने की िमकी दे रहे हों ।
कम घखृ णि होंगे एक ही
एक-दस
ू रे को कब्र के योग्य ठहरा रहे हों ।
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जो एक-दस
ू रे की आाँखें नोि रहे हों ।
वस्िु पर िैसला सन
ु ाने के मलये
बक्कक गवादहयााँ भी सन
ु नी होंगी ।
आज िक के प्रत्येक मि
ृ क को
तयोकक सब मि
ृ क जीने वालों में जी रहे हैं ।
ककसी भी मक
ु द्दमे में परू ी गवाही प्राप्ि करने के मलये ब्रम्हाींड का गवाह होना आवश्यक है ।
िब िम
ु जो बाहर बबखर गये है
तयोंकक िुम जान लोगे कक बबखरनेवाले को उसके बबखराव ने ही अपरािी घोवषि कर ददया है
इस समय मनुष्य अपने ऊपर स्वयीं लादे हुए बोि से बुरी िरह दबा हुआ है ।
हर िैसला जज और अमभयत
ु ि दोनों के मलये सामान रूप से एक अतिररति बोि होिा है ।
यदद िम
ु िाहिे हो कक िम्
ु हारा
बैनन
ू :- तनणाय ददवस के ववषय में िम
ु तया कहिे हो ?
कमा या इच्छा,
अनुसार िल दे िे हैं|
मत्ृ यु से जा जड़
ु िा है |
वे िरिी पर िम्
ु हे सपाट चगरा दे िे है
और वववश कर दे िे हैं
िुम्हे िल
ू िाटने पर
और यह िाहने पर कक
कम अमींगल-सि
ू क नहीीं हैं जो
जल-प्रलय के अग्रदि
ू बनकर आये थे।
िो कहिे हो कक ये िम्
ु हारे मलये बषाा लािे हैं।
िम
ु इिने बवु िमान तयों नहीीं हो।
दे खो,
मनष्ु य के ये जाल!
खीींि तनकालने के मलये उनके माींस िक को िाड़ना पड़ेगा; उनकी हड्ड़डयों िक को कुिलना पड़ेगा।
जो वे तनिःसींदेह बिायेंगे,
जीववि उस ददन मि
ृ कों से
इिनी दलदल है
सींसार हम
प्रेम मसखने आए है
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°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
अध्याय 11
प्रेम प्रभु िा ववधान ै।
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िम
ु प्रेम करिे हो िाकक िम
ु जीना सीख लो।
और प्रेम तया है ,
एक ववशेष पत्िे को िन
ु कर
उन जड़ों का जो छाल,
दख
ु ों की रे खा खीींि लेिा है ।
पसींद करने और िन
ु ने से
और यह भी कक बौना,
िुम जीवन-वक्ष
ृ हो।
िल की िल से िल
ु ना न मि करो,
और न िने की जड़ों से िल
ु ना करो,
न वक्ष
ृ की माटी-मााँ से।
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िम
ु जीवन-वक्ष
ृ हो।
इस वक्ष
ृ पर िल जो भी हों;
वे िुम्हारी जड़ें है ।
यदद िम
ु िाहिे हो कक
िो उस रस का ध्यान रखो
प्रेम जीवन का रस है ,
जबकक घण
ृ ा मत्ृ यु का मवाद।
रति की िरह,
और घण
ृ ा तया है
घण
ृ ा करनेवाले और घण
ृ ा पानेवाले, दोनों के मलये?
िुम्हारे जीवन-वक्ष
ृ का पीला पत्िा
जो जीवन-रस को भीख की िरह थोड़े-से व्यक्तियों में बााँटकर अचिकााँश को उससे वींचिि रखिा है ,
अपने अींदर सबको समा लेनेवाले अहम ् के अतिररति अन्य कोई अहम ् वास्िववक नहीीं हैं।
न ही प्रेम की सन
ु हरी कींु जी िम्
ु हारे हाथ लगी है ।
तयोंकक िुम एक क्षणभींगुर अहम ् को प्रेम करिे हो, िुम्हारा प्रेम भी क्षण-भींगुर है ।
वह प्रेम का एक बहुि िि
ींु ला चिन्ह है ।
की मािा या वपिा, जब िक स्त्री पुरुष हाड-माींस के साथ हाड-माींस के घतनष्ठ सम्बन्ि की डीींग भले
ही बााँि लें,
जब िक िम
ु एक भी मनष्ु य को शत्रु मानिे हो,
यदद िम
ु अन्य सभी वस्िओ
ु ीं का
इसी प्रकार,
व्यक्ति से घण
ृ ा करिे हुए
िम
ु वास्िव में अपने आपसे ही घण
ृ ा करिे हो।
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क्जससे िुम घण
ृ ा करिे हो
और जो िुम्हे घण
ृ ा करिा है |
प्रेम कोई गण
ु नहीीं हैं।
प्रेम एक आवश्यकिा है ;
स्विींत्रिा से िम
ु साींस लेिे हो।
जैसे घण
ृ ा ही घण
ृ ा का पयााप्ि दण्ड है ।
प्रेम न उिार दे िा है
न उिार लेिा है ;
प्रेम न खरीदिा है ,
न बेििा है ,
बक्कक जब दे िा है
िो अपना सब-कुछ दे दे िा है ;
इसका लेना ही दे ना है ।
इसका दे ना ही लेना है ।
इसमलये यह आज,कल
एक ववशाल नदी ज्यों-ज्यों अपने आपको समुद्र में खाली करिी जािी है ,
समद्र
ु उसे किर से भरिा जािा है ।
क्जस क्षण िम
ु उसे ककसी श्रेणी में
न ही यहााँ और वहााँ।
काश िुम सदा इिने अींिे होिे कक िुम्हे ककसी भी वस्िु में कोई दोष ददखाई न दे िा।
केवल प्रेमहीन,
दोषपण
ू ा आाँख सदा दोष खोजने में व्यस्ि रहिी है ।
प्रेम जोड़िा है । घण
ृ ा िोडिी है ।
ममटटी और पत्थरों का यह
ववशाल और भारी ढे र,
घण
ृ ा मत्ृ यु के पैशाचिक िमाकों से आकुल युि है ।
िम
ु तया िाहोगे?
या घण
ृ ा करना और अनन्ि युि में जुटे रहना?
यदद िम
ु अपने आप से प्रेम करना िाहिे हो।
िुम नरौन्दा से घण
ृ ा तयों करिे हो, अबबमार ?
नरौन्दा: मुमशाद की आवाज और उनके वविार-प्रवाह में इस आकक्स्मक पररविान से सब अिम्भे में
पड़ गये।
मैं और अबबमार िो अपने आपसी मन-मुटाव के बारे में ऐसा स्पष्ट प्रश्न पूछे जाने पर अवाक रह
गये,
दोनों की ओर दे खा और
अबबमार के होंठ खल
ु ने की प्रिीक्षा करने लगे।
अबबमार:(चितकापण
ूा ा दृक्ष्ट से मुिे दे खिे हए) नरौन्दा, तया मुमशाद को िुमने बिाया ?
तयोंकक जब मीरदाद ने अपना भेद खोला उससे बहुि पहले हमारे बीि इसी शब्द पर मिभेद पैदा
हुआ था;
और अबबमार का हठ था
तया िम
ु मनष्ु यों के वविारों को भी पढ़ लेिे हो?
आवश्यकिा है न दभ
ु ावषयों की।
यदद िम
ु मीरदाद से उसी
यदद िम
ु सन
ु ना िाहिे हो
नरौन्दा से भी नहीीं।
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मीरदाद: घण
ृ ा न करना प्रेम करना
िम्
ु हारे हर पद को राह न ददखाये,
और जब िह प्रेम िुम्हारी हर
ऐ भले जमोरा,
िम्
ु हारा रबाब कहााँ है ?
और स्नेह के साथ उस पर िक
ु िे हुए
उगले जीवन और मि
ृ क पर
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आग में उसकी िप कर
िेरा कम्पास।
उत्िर-दक्षक्षण, पूरब-पक्श्िम
िू दे गी प्रकाश।
लींगर है ववश्वास।
िट जाएाँ,खण्ड-खण्ड हों,
लींगर है ववश्वास।
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और रबाब पर ऐसे िुक गये जैसे प्यार में खोई मााँ छािी से लगे अपने बच्िे पर िुक जािी है ।
की िन
ु आ रही थी।
सनसनािी हवाएाँ
क्जसके बीिोंबीि पज
ू ा-मशखर था,
मीरदाद: िुम्हे अपने आप से दरू हटाने के मलये मैं िीन ददन मौन नहीीं रहा हूाँ,
मीरदाद: मख
ु से कही बाि अचिक से अचिक एक तनष्कपट िठ
ू है ; जबकक मौन कम से कम सत्य
है ।
अबबमार: िो तया हम यह तनष्कषा तनकालें कक मीरदाद के विन भी, तनष्कपट होिे हुए भी, केवल
िठ
ू हैं?
मीरदाद: हााँ..
मीरदाद के विन भी उन
सबके मलए केवल िूठ हैं,
क्जनका ”मैं” वही नहीीं जो मीरदाद का है ।
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जब िक िम्
ु हारे सब वविार
एक ही खान में से
खोदकर न तनकाले गए हों,
और जब िक िुम्हारी सब कामनाएाँ
एक ही कुएाँ में से खीींिकर न तनकाली गई हों,
िब िक िुम्हारे शब्द,
तनष्कपट होिे हुए भी िूठ ही रहें गे।
जब िुम्हारा ”मैं और मेरा ”मैं” एक हो जायेंगे,
जैसे मेरा ”मैं” प्रभु का ”मैं” एक हैं,
िम
ु सच्िे अथों में अजेय
और महान ववजेिा नहीीं बनोगे।
िो िम
ु नहीीं जान पाओगे
कक िम्
ु हारा अक्स्ित्व ककिना यथाथा है ,
और िम्
ु हारा अनक्स्ित्व ककिना कक्कपि।
एक इतकीस ददन िक इस
मूक ववश्वाश के साथ अण्डे सेिी है
कक उसकी रोएाँदार छािी
और पींखों के नीिे वह
अदृश्य हाथ करामाि कर ददखायेगा।
दस
ू री िेजी से भागिी हुई
अपने दरबे से तनकलिी है
और पागलों की िरह
कुडकुडािी हुई दढींढोरा पीटिी है
कक मैं अण्डा दे आई हूाँ।
जैसे िम
ु अपनी शममान्दगी का
माँह
ु बन्द रखिे हो,
वैसे ही अपने सम्मान का माँह
ु भी बन्द रखो।
बैनन
ू : और प्राथाना के बारे में तया कहें गे,
प्राथचना िरो
************************************
अध्याय-13
☞ प्राथचना ☜
*************************************
जहाीं भख
ू है , वहाीं भोजन है ।
जहाीं भोजन है , वहाीं भख
ू भी अवश्य होगी।
भख
ू की पीड़ा से व्यचथि होना
िप्ृ ि होने का आनींद लेने का सामथ्या रखना है ।
और िम्
ु हारी अपनी कायरिा का
अन्िेपन के मसवाय और कौन,
या तया, िम्
ु हे पाने से रोक सकिा हैं ?
किर भी, कुछ–अन्िे कृिध्न लोग–
अपनी ववरासि के मलये
कृिज्ञीं होने के बजाय,
उसे प्राप्ि करने की
राह खोजने के बजाय,
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हााँ…..
अनेक िथा नाना प्रकार के हैं
वे काम जो मनुष्य प्रभु को सौंप दे िा है ।
किर भी बहुि थोड़े लोग ऐसे होंगे
जो सोििे हों कक यदद सिमुि
इिने सारे काम करने की
क्जम्मेदारी प्रभु पर है
िो वह अकेला ही उनको तनपटा लेगा,
और उसे यह आवश्यकिा नहीीं होगी
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तया प्रभु को िम
ु उन घड़ड़यों की
याद ददलािे हो
जब सूया उदय होना है
और जब िन्द्र को अस्ि ?
तया उसे िुम दरू के खेि में पड़े
अनाज के उस दाने की याद ददलािे हो
क्जसमे जीवन िूट रहा है ?
तया िम
ु उसकी दृक्ष्ट में गौरे या,
अनाज और मकड़ी की िल
ु ना में
कम कृपा के पात्र हो ?
िम
ु उनकी िरह अपने उपहार
स्वीकार तयों नहीीं करिे
और बबना शोर मिाये,
बबना बबना घुटने टे के,
बबना हाथ िैलाये और
बबना चिींिा-पूवक
ा भववष्य में
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तया वह
िुम्हारे अींदर और
िुम्हारे िारों ओर नहीीं है ?
और यदद िम्
ु हारे करने को
कुछ भी नहीीं है ,
बक्कक प्रभु को ही िुम्हारी
खातिर सब करना है ,
िो िुम्हारे जीवन का तया महत्व है ?
सिओ
ु …
इस समय िम्
ु हारी रगों में
िप
ु िाप ितकर लगा रही
सूक्ष्म लाल कखणकाएाँ हैं;
उनमे से हरएक शक्ति का िमत्कार,
िम्
ु हारा सींककप इससे कवायद करवािा है
और इसकी बागडोर सींभालिा है ।
जब िम
ु अपने रति को एक प्रमख
ु
कामना से सक्ज्जि कर लो
जो सब कामनाओीं को िप
ु कर दे िी है
और उन पर छा जािी है ;
और अनश
ु ासन एक प्रमख
ु वविार को सौंप दो,
िब िुम ववश्वास कर सकिे हो
कक िुम्हारी वह कामना पूरी होगी।
हर कामना से िथा हर वव
िार से मत
ु ि न कर दे ,
हर पववत्र वविार,
हर पववत्र सींककप उस मनुष्य की
सहायिा के मलये िला आयेगा
क्जसने सींि-पद प्राप्ि करने का
ऐसा दृढ़ तनश्िय कर मलया हो।
उस मनष्ु य की भज
ु को
सबल और क्स्थर बनाने के
मलये दौड़ा आयेगा क्जस पर
ह्त्या का ऐसा नशा सवार हो।
उन सब बािों की आवारा
स्मतृ ियों से िरीं चगि है क्जन्हें
उसने अपने जन्म से दे खा है ।
कोई विन या कमा;
कोई इक्षा या तनिःश्वास;
कोई क्षखणक वविार या
अस्थाई सपना; मनष्ु य या
पशु का कोई श्वास;
कोई परछाईं; कोई भ्रम ऐसा
नहीीं जो आज के ददन िक
अपने-अपने रहस्यमय रास्िे
पर न िलिा रहा हो,
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किर भी मैं िम
ु से यह सब कहिा हूाँ,
और जो िमु जैसे हैं उनसे भी,
ककन्िु प्रत्येक मनुष्य से नहीीं,
याद रखो,
जीवन की कींु जी ”
मसरजनहार शब्द” है । ‘
से जो िुम्हे उपहार दे कर
अपना दास बना लेना िाहिे हैं;
जो िुम्हें एक हाथ से केवल
इसमलए सहलािे हैं कक दस
ू रे
हाथ से िुम पर बार का सकें;
जो िुम्हारे द्वारा प्रशींसा
ककये जाने पर सींिुष्ट और कृपालु होिे हैं,
और िब िक िुम्हे दे कर
बहुिा दे ने पर पछिािे हैं;
क्जनके मलये िुम्हारे आाँसू अगरबत्िी हैं,
क्जनकी शान िम्
ु हारी दयनीयिा में है ।
हााँ…….
अपने ह्रदय को इन सब दे विाओीं
से मत
ु ि कर लो, िाकक िम्
ु हें उसमे
वह एकमात्र प्रभु ममल सके जो
िम्
ु हें अपने आप से भर दे िा है िाहिा है
की िुम सदै व भरे रहो।
दस
ू रा दे वदि
ू बोला;एक गौरवशाली
राजा को जन्म ददया है स्वगा ने;
और स्वगा हषा ववभोर है ।
दस
ू रा; यह शाश्वि ममलन है —
वपिा, मािा और बालक।
दस
ु रा; इससे अवगा साथाक हुआ है ।
दस
ु रा; राि इसके ह्रदय में जाग रही है ।
दस
ु रा; इसका कींठ गीि का सरगम है ।
पहला; इसकी भज
ु ाएाँ पवािों
का आमलींगन करिी हैं।
दस
ु रा; इसकी उीं गमलयााँ मसिारे िुनिी हैं।
दस
ु रा; सय
ू ा दौड़ रहे हैं इसकी रगों में ।
दस
ु रा; हथोड़ा और अहरन है इसकी क्जव्हा।
दस
ु रा; इसके ह्रदय में उन बेड़ड़यों की कींु जी है ।
दस
ु रा; सब अींकों को जानिा है यह,
मसवाय पववत्र एक के,
जो प्रथम और अींतिम है ।
सब शब्दों को जानिा है यह,
मसवाय उस ”मसरजनहार शब्द” के,
जो प्रथम और अींतिम है ।
दस
ु रा; ओह, गौरवशाली, अत्यींि
गौरवशाली है स्वगा का यह राजा।
दस
ु रा; और इसने अनामी का प्रभु नाम रखा है ।
दस
ु रा; प्रभु मनुष्य का शब्द है ।
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दस
ु रा; िन्य है वह क्जसका शब्द प्रभु है ।
दस
ु रा यहााँ और हर स्थान पर।
यों बाििीि हुई मनष्ु य के
काल-मत ु ि जन्म पर ब्रम्हाींड के
उपरी छोर पर दो प्रमख
ु
दे वदि
ू ों के बीि।
उसी समय ब्रम्हाींड के तनिले
छोर पर दो प्रमख
ु यमदि
ू ों के
बीि तनम्नमलखखि बाििीि िल रही थी;
पहले यमदि
ू ने कहा;
एक वीर योिा हमारे वगा में आ ममला है ।
इसकी सहायिा से हम ववजय प्राप्ि कर लेंगे।
दस
ू रा यमदि
ू बोला; बक्कक चिडचिडा
और पाखींडी कायर कहो इसे।
और ववश्वासघाि ने इसके माथे
पर डेरा डाल रखा है ।
लेककन भयींकर है यह अपनी कायरिा
और ववश्वासघाि में।
दस
ु रा; अश्रुपूणा और दब
ु ल
ा है
इसका ह्रदय। ककन्िु भयानक है
यह अपनी दब
ु ल
ा िा और आाँसओ
ु ीं में ।
दस
ु रा; आलसी और मींद है इसका कान।
ककन्िु खिरनाक है यह अपने
आलस्य और मींदिा में ।
दस
ु रा; दहिककिािा और सस्
ु ि है
इसका पैर। परन्िु भयानक है
इसकी सस्
ु िी और डरावनी है इसकी दहिककिाहट।
पहला; हमारा भोजन इसकी नाड़ड़यों के मलए िौलाद होगा। हमारी शराब इसके
लहू के मलए आग होगी।
दस
ु रा; हमारे भोजन के ड़डब्बों से यह हमें मारे गा।
हमारे शराब के मटके यह हमारे सर पर िोड़ेगा।
दस
ू रा; अींिहीन भख
ू और अममि
प्यास इसे अजेय बना दें गी
और हमारे मशववर में यह ववद्रोह पैदा कर दे गा।
दस
ु रा; मत्ृ यु इसका सारथी होगी िो यह अमर हो जायेगा।
दस
ु रा; हााँ, इिनी िींग आ जायेगी मत्ृ यु इसकी तनरीं िर मशकायिों से कक वह
आखखर इसे जीवन के मशववर में ले जायेगी।
दस
ु रा; नहीीं जीवन जीवन के साथ विादारी करे गा।
दस
ु रा; किर भी यह िरसेगा उन िलों के मलए जो इस छोर पर नहीीं उगिे।
दस
ु रा; किर भी ढूींढेंगी इसकी आाँख अन्य िूल और इसकी नाक अन्य सग
ु ींि ।
दस
ु रा; किर भी इसका कान ककसी अन्य सींगीि की ओर रहे गा।
दस
ु रा; ववश्वास इसे पीड़ा से मत
ु ि कर दे गा।
पहला; हम इसकी तनद्रा पर उलिनों से भरे सपनों की िादर डाल दें गे, और इसके
जागरण में पहे मलयों से भरी परछाईयााँ बबखेर दें गे।
दस
ू रा; इसकी ककपना उलिनों को सल
ु िा लेगी और परछाईयों को ममटा दे गी।
दस
ु रा; मान लो इसे हमारे साथ यदद िुम िाहो िो; ककन्िु इसे हमारे ववरुि ही
मानो।
दस
ु रा; रणभमू म में यह एकाकी योिा है ।
इसका एकमात्र शत्रु इसकी परछाईं है ।
जैसे परछाईं का स्थान बदलिा है ,
वैसे ही युि का स्थान भी बदल जािा है।
दस
ु रा; परन्िु सय
ू ा को हमेशा इसकी पीठ के पीछे कौन रखेगा ?
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दस
ु रा; एक पहे ली है यह परछाईं।
दस
ु रा; स्वागि है इस एकाकी परछाईं का।
दस
ु रा; स्वागि है इसका जब यह हमारे ववरुि है ।
पहला; आज और हमेशा।
दस
ू रा; यहााँ और हर जगह।
मुखखया की आाँखों से आग बरस रही थी, और उसका िेहरा क्रोि से िमिमा रहा
था। वह मुमशाद की ओर बढ़ा और एकाएक उन्हें बााँह से पकड़ मलया। स्पष्ट था कक
वह उन्हें घसीट कर बाहर तनकालने का यत्न कर रहा था।
शमदाम: मैंने अभी- अभी िुम्हारे दष्ु ट मन के अत्यींि भयानक उदगार सुने हैं ।
िुम्हारा मुींह ववष का िव्वारा िुम्हारी उपक्स्थति एक अपशकुन है । इस नौका का
मुखखया होने के नािे मैं िुन्हें इसी क्षण यहााँ से िले जाने का आदे श दे िा हूाँ ।
शमदाम: वह िम्
ु हारी दद
ु ा शा थी क्जसे दे खकर मेरे ह्रदय में दया उमड़ आई थी, और
मैंने िुम्हे आने की अनुमति दे दी थी ।
शमदाम: जब िुम्हारी सााँस ने वायु को दवू षि करना शुरू ककया उससे बहुि पहले मैं
इस नौका का मखु खया था । िम्
ु हारी नीि क्जव्हा कैसे कहिी है कक मैं यहााँ नहीीं हूाँ ?
मीरदाद: मैं इन पवािों से पहले था, और इसके िूर-िूर होकर ममटटी में ममल जाने
के बाद भी रहूींगा । मैं नौका हूाँ, वेदी हूाँ, और अक्ग्न भी। जब िक िुम मेरी शरण में
नहीीं आओगे, िुम िू़िान के मशकार बने रहोगे। जब िक िुम मेरे सामने अपने आप
को ममटा नहीीं दोगे, िुम मत्ृ यु के अनचगनि कसाइयों की तनरीं िर साीं दी जा रही
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शमदाम: तया िम
ु सब ने सन
ु ा ?
सुना नहीीं तया िुमने ? मेरा साथ दो, साचथयों ।
आओ, इस प्रभ-ु तनींदक पाखींडी को नीिे
खड्ड में िेंक दें ।
परन्िु मुमशाद न वविमलि हुए न अपनी जगह से हटे ; न ही कोई साथी ितनक भी
दहला। एक बेिैन ख़ामोशी के बाद शमदाम का मसर उसकी छािी पर िक
ु गया
और मींद स्वर में मानो अपने आपसे कहिे हुए वह नीड़ से तनकल गया ”मैं इस
नौका का मुखखया हूाँ , मैं अपने प्रभु-प्रदत्ि अचिकार पर डटा रहूींगा।” मुमशाद बहुि दे र
िक सोििे रहे , पर कुछ बोले नहीीं। ककन्िु जमोरा िप
ु न रह सका।
अच्छाई को आकृष्ट करना उिना ही आसान है क्जिना बुराई को। प्रेम के साथ सुर
ममलाना उिना ही आसान है क्जिना घण
ृ ा के साथ।अनींि आकाश में से,
अपने ह्रदय की ववशालिा में से शुभ कामना लेकर सींसार को दो। तयोकक हर वस्िु
जो सींसार के मलये वरदान है िुम्हारे मलए भी वरदान है । सभी जीवों के दहि के
मलये प्राथाना करो। तयोकक हर जीव का हर दहि िुम्हारा भी दहि है । इसी प्रकार हर
जीव का अदहि िुम्हारा भी अदहि है ।
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तया िुम सब अक्स्ित्व की अनन्ि सीढ़ी की गतिमान पौड़ी के सामान नहीीं हो? जो
पववत्र स्विींत्रिा के ऊाँिे मींडल पर िढ़ना िाहिे हैं, उन्हें वववश होकर दस
ू रों के िढ़ने
के मलए सीढ़ी की पौड़ी बनना पड़िा है ।
िुम स्वयीं भी दोष-रदहि रहो, िाकक क्जन लोगों की ईमारि में िुम पत्थर बनकर
लगो उनकी इमारिों में कोई दोष न हो। तया िुम सोििे हो कक िुम्हारे पास दो से
अचिक आाँखें नहीीं हैं ?
मैं कहिा हूाँ कक दे ख रही हर आाँख, िाहे वह िरिी पर हो, उससे उपर हो, या उसके
नीिे, िम्
ु हारी आाँख का ही भाग है । क्जस हद िक िम्
ु हारे पड़ोसी की नजर सा़ि है ,
उस हद िक िुम्हारी नजर भी सा़ि है ।
िाकक िुम अचिक स्पष्ट दे ख सको। अपनी दृक्ष्ट को सींभालकर रखो, िाकक िुम्हारा
पड़ोसी ठोकर न खा जाये और कहीीं िुम्हारे द्वार को ही न रोक ले।
जमोरा सोििा है शमदाम ने मेरा अपमान ककया है । शमदाम का अज्ञान मेरे ज्ञान
को अस्ि-व्यस्ि कैसे कर सकिा है ?
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समद्र
ु कीिड़ को सहषा ग्रहण कर लेगा िथा उसे िह में बबछा लेगा, और बदले में
दे गा नाले को स्वच्छ जल।
िरिी हर मनष्ु य िथा पशु की गींदगी को स्वीकार कर लेिी है और बदले में उन्हें
दे िी है मीठे िल िथा सुगक्न्िि िूल, प्रिुर मात्रा में अनाज िथा घाींस।
अन्िे और लोभी अज्ञान से उत्पन्न हुआ अहीं कार नीि और सींकीणा आपे का
अहीं कार होिा है जो अपमान कर सकिा है और करवा सकिा है ,
वह िम्
ु हे व्यवस्था का शत्रु और अव्यवस्था का काररन्दा घोवषि करे गा। वह िम्
ु हारी
राहों में जाल बबछायेगा और िुम्हारी सेजों को बबच्छू-बूटी से सजायेगा। वह िुम्हारे
कानों में गामलयााँ बोयेगा और तिरस्कारपूवक
ा िुम्हारे िेहरों पर थूकेगा। अपने ह्रदय
को दब
ु ल
ा न होने दो।
और िरिी की िरह उदार िथा शान्ि बनो और मनष्ु यों के ह्रदय के मैल को
स्वास्थ्य और सौन्दया में बदल दो। और हवा की िरह स्विींत्र और लिीले बनो।
जो िलवार िम्
ु हे घायल करना िाहे गी वह अींि में अपनी िमक खो बैठेगी और उसे
जींग लग जायेगा।
जो भुजा िुम्हारा अदहि करना िाहे गी वह अींि में थककर रुक जायेगी। सींसार िुम्हे
अपना नहीीं सकिा, तयोंकक वह िुम्हे नहीीं जानिा। इसमलए वह िुम्हारा स्वागि क्रुि
गुरााहट के साथ करे गा।
परन्िु िम
ु सींसार को अपना सकिे हो, तयोंकक िम
ु सींसार को जानिे हो। अिएव
िुम्हे उसके क्रोि को सहृदयिा द्वारा शान्ि करना होगा,
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अध्याय 16
लेनदार और दे नदार
िन तया है ?
***********************************
रक्स्िददयन को नौका के
तया उसने िल-सींपक्त्ि िुम्हारे मलए इस उद्देश्य से छोड़ी थी कक िुम उसे व्यापार में
लगा दो,
या जमीनें इस उद्देश्य से कक िम
ु उन्हें काश्िकारों को दे कर अनाज की जमाखोरी
करो?
तयोंकक दातनयों द्वारा ददये गये उपहारों से ही िुम उन्हें अपने आिीन करिे हो। जो
सूि वे िुम्हारे मलये काििे हैं उसी से िम
ु उन पर कोड़े बरसािे हो।
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जो कपड़ा वे िुम्हारे मलए बुनिे हैं उसी से िुम उन्हें नींगा करिे हो। जो रोटी वे
िुम्हारे मलये पकािे हैं उसी से िुम उन्हें भूखों मारिे हो।
उसका अपना खन
ू -पसीना ही िुम उन्हें वापस उिार दे दे िे हो ब्याज पर। तयोंकक
और तया है पैसा मसवाय लोगों के खन
ू -पसीने के क्जसे िि
ू ों ने छोटे - बड़े मसतकों में
ढाल मलया है , िाकक उनसे वे लोगों को बींदी बना लें ?
चितकार है, बार-बार चितकार है उनको जो िन-दौलि इकट्ठी करने में अपने ह्रदय
और बुवि को खपा दे िे हैं, अपने ददनों और रािों का खून कर दे िे हैं तयोंकक वे नहीीं
जानिे कक वे तया इकटठा कर रहे हैं।
तयोंकक खन
ू और पसीना िो आखखर अपनी कीमि वसूल करें गे ही । और भीषण
होगी यह कीमि और भयींकर उसकी वसल
ू ी । उिार दे ना, और वह भी ब्याज पर !
यह सिमुि कृिध्निा है , इिनी तनलाज्ज कक इसे क्षमा नहीीं ककया जा सकिा ।
तयोंकक उिर दे ने के मलए िुम्हारे पास है तया ? तया िुम्हारा जीवन ही एक उपहार
नहीीं है ? यदद परमात्मा को िम्
ु हे ददये अपने छोटे से छोटे उपहार का भी ब्याज
लेना हो िो िुम उसे ककस िीज से िक
ु ाओगे ?
तया बुलबुल अपना गीि और िरना अपना उज्ज्वल जल िुम्हे उिार दे िे हैं ?तया
बरगद अपनी छाया और खजरू अपने शहद-से मीठे िल तकाजा पर दे िे है ?तया
भेड़ अपना ऊन और गाय अपना दि
ू िुम्हे ब्याज पर दे िी हैं ? तया बादल अपनी
बषाा और सय
ू ा अपनी गमी और प्रकाश िम्
ु हे मोल दे िे हैं ?
इन वस्िुओीं िथा अन्य हजारों वस्िुओीं के बबना िुम्हारा जीवन कैसा होिा ? और
िुममे से कौन बिा सकिा है कक सींसार के कोष में, ककस मनष्ु य,ककस वस्िु ने
सबसे अचिक और ककसने सबसे कम जमा ककया है ?
शमदाम, तया िुम नौका के कोष में रक्स्िददयन के योगदान का दहसाब लगा सकिे
हो ? किर भी िम
ु उसी के योगदान को—-शायद उसके योगदान के केवल एक िच्
ु छ
अींश को—उसे ऋण के रूप में वापस दे िे हो और साथ ही उस पर ब्याज भी माींगिे
हो ?
किर भी िुम उसे जेल भेजना िाहिे हो और सड़ने के मलये वहाीं छोड़ दे ना िाहिे
हो ? तया ब्याज माींगिे हो िुम रक्स्िददयन से ?
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इिनी िक
ु ी पीठ पर ये इिने चिथड़े—इससे अचिक और तया ब्याज वसूल कर
सकिे हो िुम ?
आह..
अपनी आाँखें मलो, शमदाम ! जागो इससे पहले कक िुम्हे भी ब्याज सदहि अपना
ऋण िक
ु ाने के मलये कहा जाये, और भग
ु िान न कर पाने की सरू ि में िम्
ु हे भी
घसीटकर जेल में डाल ददया जाये और वहाीं सड़ने को छोड़ ददया जाये।
और िुम ददवामलया पाये जाओ और िुम्हे जेल में डाल ददया जाये।
नरौन्दा: ममु शाद ने िब हाथ में थामे हुए कागज़ पर एक नजर डाली और कुछ
सोिकर उसे टुकड़े-टुकड़े कर ददया, और उन टुकड़ों को हवा में बबखेर ददया। किर
दहम्बल की ओर मुड़िे हुए, जो नौका का कोषाध्यक्ष था,
और िम
ु रक्स्िददयन शान्ि मन से जाओ। िम
ु अपने ऋण से मत
ु ि हुए।
अध्याय- 17
िमदाम म से
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ी आता ै
**************************************
मीरदाद के ववरुि अपने सींघषा में शमदाम ररश्वि का सहारा लेिा है नरौन्दा: कई
ददन िक रक्स्िददयन का मामला नौका में ििाा का मुख्य बबषय बना रहा।
ममकेयन, ममकास्िर, िथा जमोरा ने जोश के साथ ममु शाद की सराहना की;
बैनून िथा अबबमार ने दबे स्वर में सहमिी और असहमति प्रकट की।
इस दौरान शमदाम मुखखया के रूप अपनी प्रतिष्ठा को सुिरने में व्यस्ि था।
उसने एक बार मि
ु े बुलाया और अपने कमरे के एकाींि में मि
ु से कहा; ” िम
ु इस
नौका के लेखक और इतिहासकार हो;
और िम
ु एक तनिान व्यक्ति के पुत्र हो।
िुम्हारे वपिा के पास जमीन नहीीं,
उनके साि बच्िे और पत्नी है क्जनके मलये उसे पररश्रम करना पड़िा है
और क्जनकी न्यूनिम आवश्यकिाएीं उसे पूरी करना पड़िी हैं।
इस दख
ु द का एक भी शब्द मि मलखना,
कहीीं ऐसा न हो कक हमारे बाद आने वाले लोग शमदाम को हास्य का पात्र बना लें।
मैंने उत्िर ददया कक परमात्मा मेरे वपिा िथा उसके पररवार का शमदाम की अपेक्षा
कहीीं अचिक अच्छा ध्यान रखेगा।
जहाीं िक मीरदाद का सम्बन्ि है , उसे मैंने अपना ममु शाद और मक्ु तिदािा स्वीकार
कर मलया है , और उसका साथ छोड़ने से पहले मैं अपने प्राण त्याग दीं ग
ू ा।
रही नौका के इतिहास की बाि, वह िो मैं ईमानदारी के साथ अपनी पूरी समि
और योग्यिा के अनस
ु ार मलखग
ूाँ ा।
बाद में मुिे पिा िला कक शमदाम ने ऐसे ही प्रस्िाव हरएक साथी के सामने रखे
थे, ककन्िु वे ककिने सिल रहे यह मैं नहीीं कह सकिा।
हााँ, इिना अवश्य दे खने में आया कक दहम्बल पहले की िरह तनयममि रूप से नीड़
में उपक्स्थि नहीीं होिा था।
नरौन्दा: एक लींबे समय के बाद, जब बहुि-सा जल पहाड़ों से नीिे बहिा हुआ समुद्र
में जा ममला था,
दहम्बल के मसवाय बाकी सभी साथी एक बार किर नीड़ में मुमशाद के िरों और
इकट्ठे हुए।
मीरदाद: दहम्बल सींकट में है और वह सहायिा के मलये हमारे पास आना िाहिा है ,
ककन्िु सींकोि के कारण उसके पैर इस ओर उठ नहीीं पा रहे हैं। जाओ अबबमार
उसकी सहायिा करो।
नरौन्दा: अबबमार बाहर गया और शीघ्र ही दहम्बल को साथ लेकर लौट आया।
दहम्बल की दहिककयााँ बाँिी हुई थीीं और िेहरा उदास था।
मीरदाद: मेरे पास आओ, दहम्बल। ओह, दहम्बल, दहम्बल। िुम्हारे वपिा की मत्ृ यु हो
गई इसमलये िुम इिने असहाय हो गये कक दिःु ख ने िुम्हारे ह्रदय को बेि ददया और
िम्
ु हारे रति को आाँसओ
ु ीं में बदल ददया।
दहम्बल; हााँ मुमशाद। मेरे वपिा की मत्ृ यु दहींसापूणा हुई है । एक बैल ने, क्जसे उन्होंने
हाल ही में खरीदा था, कल शाम उनके पेट में सीींग भोंक ददया और उनका मसर
कुिल डाला। मि
ु े अभी-अभी एक सन्दे श वाहक ने सूिना दी है ।
हाय, अ़िसोस !
ममरदाद: और उनकी मत्ृ यु, जान पड़िा है , ठीक उसी समय हुई जब उनका भाग्य
उदय होने वाला था।
नरौन्दा; दहम्बल आगे कुछ न बोल सका, तयोंकक आाँसुओीं से उसका गला रूाँि गया
था।
मीरदाद: िम्
ु हारे वपिा मरे नहीीं हैं, दहम्बल। न ही उनका स्वरूप और परछाईं नष्ट
हुए हैं। परन्िु वास्िव िुम्हारे वपिा के बदले हुए स्वरूप और परछाईं को दे खने में
िुम्हारी इक्न्द्रयााँ असमथा हैं।
तयोंकक कुछ स्वरूप इिने सूक्ष्म होिे हैं, और उनकी परछाइयााँ इिनी क्षीण कक
मनुष्य की स्थूल आाँख उन्हें दे ख नहीीं सकिी।
जींगल में ककसी दे वदार की परछाईं वैसी नहीीं होिी जैसी परछाईं उसी दे वदार से बने
जहाज के मस्िूल,या मींददर के स्िम्भ, या िाींसी के यखिे की होिी है ।
न ही उस दे वदार की परछाईं िप
ु में वैसी होिी है जैसी िााँद और मसिारों के प्रकाश
में, या भोर की मसींदरू ी िुींि में होिी है ।
ककन्िु वह दे वदार, िाहे वह ककिना ही बदल गया हो, दे वदार के रूप में जीववि रहिा
है , यद्यवप जींगल के दे वदार अब पहिान नहीीं पािे कक वह बीिे ददनों में उनका भाई
था।
पत्िे पर बैठा रे शम का कीड़ा तया रे शमी खोल में पल रहे कीड़े में अपने भाई की
ककपना कर सकिा है ? या खोल में पल रहा कीड़ा उड़िे हुए रे शम के पिींगे में
अपना भाई दे ख सकिा है ?
तया िरिी के अींदर पडा गेहूीं का दाना िरिी के ऊपर खड़े गेहूीं के डींठल से अपना
नािा समि सकिा है ?
तया हवा में उड़िी भाप या सागर का जल पवाि की दरार में लटक रहे दहम्लाम्बों
को भाई-बहनों के रूप में स्वीकार कर सकिा है ?
तया िरिी अन्िररक्ष की गहराइयों में से अपनी ओर िेंके गये टूटे िारे में एक भाई
िारा दे ख सकिी है ?
तयोंकक िुम्हारे वपिा अब एक ऐसे प्रकाश में हैं क्जसे दे खने की िुम्हारी आाँख
अभ्यस्ि नहीीं हैं, और ऐसे रूप में हैं क्जसे िुम पहिान नहीीं सकिे, िुम कहिे हो कक
िम्
ु हारे वपिा अब नहीीं हैं।
ककन्िु मनुष्य का भौतिक अक्स्ित्व, िाहे वह कहीीं भी पहुाँि गया हो, ककिना भी
बदल गया हो, एक परछाईं जरुर िेंकेगा
इसी िरह मनष्ु य, जीिे हुए और मरकर भी, मनष्ु य ही रहे गा जब िक उसके अींदर
का प्रभु उसे पूरी िरह अपने में समा न ले;
समय में कोई आरीं भ या पड़ाव नहीीं है । न ही उसमे कोई सराय है जहाीं यात्री जल-
पान और ववश्राम के मलये रुक सकें।
समय एक तनरीं िरिा है जो अपने आप में मसमटिी जािी है । इसका पछला छोर
इसके अगले छोर के साथ जुड़ा है । समय में कुछ भी समाप्ि और ववसक्जाि नहीीं
होिा;
कुछ भी आरम्भ िथा पूणा नहीीं होिा।समय इक्न्द्रयों के द्वारा रचिि एक िक्र है ,
और इक्न्द्रयों के द्वारा ही उसे स्थान के शून्यों में घुमा ददया जािा है ।
िुम ऋिुओीं के िक्र दे नेवाले पररविान का अनुभव करिे हो, और इसमलये ववश्वास
करिे हो कक सब कुछ पररविान की जकड में है ।
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िम
ु बयार की िल
ु ना में वायु के वेग का अनभ
ु व करिे हो, और कह दे िे हो दोनों में
से वायु अचिक वेगवान है । ककन्िु इसके बावजूद िुम स्वीकार करिे हो कक वायु को
गति दे नेवाला और बयार को गति दे नव
े ाला एक ही है , और वह न िो वायु के साथ
वेग से दौड़िा है न ही बयार के साथ ठुमकिा है ।
वायु बयार से िेज कैसे हो सकिी है ? तया बयार ही वायु को जन्म नहीीं दे िी ?
तया वायु बयार को अपने साथ मलये नहीीं किरिी ?
ऐ िरिी पर िलनेवालो,
िुम अपने पैरों द्वारा िय की गई दरू रयों को क़दमों और कोसों में तयों नापिे हो?
िम
ु िाहे िीरे -िीरे िलो िाहे सरपट दौड़ो,
तया िरिी की गति िुन्हें उन अींिररक्षों और मण्डलों में नहीीं ले जािी जहााँ स्वयीं
िरिी को ले जाया जािा है ?
इसमलये िुम्हारी िाल तया वही नहीीं जो िरिी की िाल है ? और किर, तया िरिी
को अन्य वपण्ड अपने साथ नहीीं ले जािे, और उसकी गति को अपनी गति के
बराबर नहीीं कर लेिे ?
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हााँ,
िीमा ही वेगवान को जन्म दे िा है । वेगवान िीमे का वाहक है। िीमे और वेगवान
को समय और स्थान के ककसी भी बबन्द ु पर एक-दस
ू रे से अलग नहीीं ककया जा
सकिा।
तया िुम तनरीं िर क्षीण होकर ही ववकमसि नहीीं हो रहे हो? तया िुम तनरीं िर
ववकमसि होकर क्षीण नहीीं हो रहे हो?
जो जीववि हैं, मि
ृ क तया उनके मलये ममटटी की तनिली परि नहीीं हैं ?
और जो मि
ृ क हैं, जीववि तया उनके मलये अनाज के गोदाम नहीीं हैं ?
यदद ववकास क्षय की सींिान है और क्षय ववकास की; यदद जीवन मत्ृ यु की जननी
है , और मत्ृ यु जीवन की, िो वास्िव में वे समय और स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर
एक ही हैं।
और जीने िथा ववकमसि होने पर िुम्हारी प्रसन्निा वास्िव में उिनी ही बड़ी
मुखि
ा ा है क्जिनी मरने और क्षीण होने पर िुम्हारा शोक।
िम
ु यह कैसे कह सकिे हो कक पििड़ ही अींगरू की ऋिु है ?
मैं कहिा हूाँ कक अींगरू शीि ऋिु में भी पका होिा है जब वह बेल के अींदर अदृश्य
रूप में स्पींददि हो रहा और सपने दे ख रहा केवल सुप्ि रस होिा है ; और वह पका
होिा है बसींि ऋिु में भी, जब वह हरे रीं ग के छोटे -छोटे मनकों के कोमल गुच्छों के
रूप में प्रकट होिा है; और ग्रीष्म में भी, जब गुच्छे ़िैल जािे हैं, मनके िूल उठिे हैं
और उनके गाल सय
ू ा के स्वणा में रीं ग जािे हैं।
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यदद हर ऋिु अपने भीिर िीनों ऋिुओीं को िारण ककये हुए है , िो तनिःसींदेह सब
ऋिुएाँ समय और स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक हैं।
हााँ,
समय सबसे बड़ा मदारी है ,
और मनुष्य िोखे का सबसे बड़ा मशकार है । पदहये की हाल पर दौड़िी चगलहरी की
िरह ही मनुष्य, क्जसने स्वयीं ही समय के पदहये को गति दी है , पदहये की गति पर
इिना मोदहि है, उससे इिना प्रभाववि है कक अब उसे ववश्वास नहीीं होिा कक उसे
घम
ु ानेवाला वह स्वयीं है ,
और समय के आरों द्वारा िीर डाला गया अपना ही माींस िबाये जािा है ।
वह दस
ू रे के मलये ककसी दस
ू रे बबींद ु पर प्रकट हो जािी है । जो एक के मलये ऊपर है ,
वह दस
ु रे के मलये नीिे है । जो एक के मलये ददन हो, वह दस
ु रे के मलये राि है ।
तयोंकक गोलाई में हो रही गति कभी ककसी अींि पर नहीीं पहुाँि सकिी, न ही वह
कभी ख़त्म होकर रुक सकिी है । और सींसार में हो रही प्रत्येक गति गोलाई में हो
रही गति है ।
िो तया मनुष्य अपने आपको समय के अींिहीन िक्र से कभी मुति नहीीं करे गा ?
करे गा, अवश्य करे गा, तयोंकक मनुष्य प्रभु की ददव्य स्विींत्रिा का उत्िराचिकारी है ।
समय का पदहया घम
ू िा है ,
ककन्िु इसकी िुरी क्स्थर है ।
प्रभु समय के पदहये की िरु ी है ।
यद्यवप सब वस्िुएीं समय और स्थान में प्रभु के िारों ओर घूमिी हैं, किर भी प्रभु
सदै व समय-मत
ु ि, स्थान-मत
ु ि और क्स्थर है ।
यदयवप सब वस्िुएीं उसके शब्द से उत्पन्न होिी हैं, किर भी उसका शब्द उिना ही
समय-मुति और स्थान-मुति है क्जिना वह स्वयीं।
िम
ु कहााँ रहना पसन्द करोगे ?
मैं िुमसे कहिा हूाँ, िुम समय की हाल पर से सरककर उसकी िुरी पर आ जाओ
अध्याय -19
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समय के पदहये को
☞ कैसे रोका जाये ☜
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िका और ववश्वास
अहम ् को नकारना अहम ् को उभारना है
समय के पदहये को कैसे रोका जाये
रोना और हाँ सना
मीरदाद: है रानी की बाि नहीीं, बैनून, कक िुम्हे ‘न्यायिीश’ कहा गया है । ककसी मामले
िका-सींगि होने का ववश्वास हो जाने पर ही िुम उस पर तनणाय दे सकिे हो। िुम
इिने समय िक न्यायिीश रहे हो, िो भी तया िम
ु अब िक यह नहीीं जान पाये
कक िका का एकमात्र उपयोग मनुष्य को िका से छुटकारा ददलाना और उसको
ववश्वास की ओर प्रेररि करना है जो ददव्य ज्ञान की ओर ले जािा है ।
और किर बदल जािा है ववश्वास में जो वास्िव में गहरा ज्ञान है । िका अपादहजों के
मलये बैसाखी है ; ककन्िु िेज पैरवालों के मलये एक बोि है, और पींख वालों के मलये
िो और भी बड़ा बोि है । िका सदठया गया ववश्वास है । ववश्वास वयस्क हो गया
िका है । जब िुम्हारा िका वयस्क हो जायेगा, बैनून,
बैनून: समय की हाल से उसकी िुरी पर आने के मलये हमें अपने आपको नकारना
होगा। तया मनष्ु य अपने अक्स्ित्व को नकार सकिा है ?
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मीरदाद: बेशक! इसके मलये िुम्हे उस अहम ् को नकारना होगा जो समय के हाथों
में एक खखलोना है और इस िरह उस अहम ् को उभारना होगा क्जस पर समय के
जाद ू का असर नहीीं होिा।
बैनन
ू : परन्िु मनष्ु य को अपनी अलग पहिान बड़ी वप्रय है । यह कैसे सींभव है कक
वह प्रभु में लीीं हो जाये और किर भी उसे अपनी अलग पहिान का बोि रहे ?
मीरदाद: तया ककसी नदी-नाले के मलये सागर में समा जाना और इस प्रकार अपने
आपको सागर के रूप में पहिानने लगना घाटे का सौदा है ? अपनी अलग पहिान
को प्रभु के अक्स्ित्व में लीन कर दे ना वास्िव में मनुष्य का अपनी परछाईं को खो
दे ना है और अपने अक्स्ित्व का परछाईं रदहि सार पा लेना है।
वे अभी जन्म पर मुस्करािे ही हैं कक उन्हें मत्ृ यु पर रोना पड़ जािा है । वे अभी
भरिे ही हैं कक उन्हें खली कर ददया जािा है । वे अभी शाींति के कपोि को पकड़िे
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ही हैं कक उनके में ही उसे युि के चगि में बदल ददया जािा है । अपनी समि में वे
क्जिना अचिक जानिे हैं, वास्िव में वे उिना ही कम जानिे हैं।
क्जिना वे आगे बढ़िे हैं, उिनी ही पीछे हट जािे हैं। क्जिना वे ऊपर उठिे है , उिना
ही नीिे चगर जािे हैं। उनके मलये मेरे शब्द केबल एक अस्पष्ट और उत्िेजक
िुसिुसाहट होंगे;
दहम्बल: ( रोिे हुए) आपने केवल मेरे कान ही नहीीं खोल ददये, मुमशाद, बक्कक मेरे
ह्रदय के द्वार भी खोल ददये हैं। कल के बहरे और अींिे दहम्बल को क्षमा करें ।
समय के उत्सवों में आनन्द मनानेवालों को समय की अन्त्येक्ष्टयों में अपने मसर
पर राख डालने दो। ककन्िु िुम सदा शाींि रहो। पररविान के बहुरुपदशी दपाण में
केवल पररविान-मुति को खोजो।
समय में कोई वस्िु इस योग्य नहीीं है कक क्जसके मलये आाँसू बहाये जायें। कोई
वस्िु इस योग्य नहीीं कक उसके मलये मुस्कुराया जाये। हाँसिा हुआ िेहरा और रोिा
हुआ िेहरा सामान रूप से अशोभनीय और ववकृि होिे हैं। तया िुम आींसुओीं के
खारे पन से बिना िाहिे हो?
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अध्याय-20
पश्िािाप
मरने के बाद हम कहाीं जािे है
••••••••••••••••••••••••••••••••••
मीरदाद: इस समय िुम कहााँ हो,ममकास्िर ?
मीरदाद: िुम समििे हो कक यह नीड़ िुम्हे अपने अींदर रखने के मलये कािी बड़ा है ? िुम समििे
हो यह िरिी मनुष्य का एकमात्र घर है ?
िुम्हारा शरीर िाहे वह समय की सीमा से बींिा हुआ है , समय और स्थान में ववद्यमान हर पदाथा में
से मलया जािा है । िुम्हारा जो अींश सूया में से आिा है , वह सूया में जीिा है । िम्
ु हारा जो अींश िरिी
में से आिा है , वह िरिी में जीिा है ।
िथा आकाश में िैरिे असींख्य वपींड मसिा मनष्ु य के आवास की सजावट के मलये हैं, उसकी दृक्ष्ट को
भरमाने के मलये हैं।प्रभाि- िारा, आकाश-गींगा, कृतिका मनष्ु य के मलये इस िािी से कम नहीीं हैं।
जब-जब वे उसकी आाँख में ककरण डालिे हैं, वे उसे अपनी ओर उठािे है । जब-जब वह उनके नीिे से
गज
ु रिा है, वह उनको अपनी ओर खीििे हैं। सब वस्िए ु ीं मनष्ु य में समाई हुई हैं, और मनष्ु य सब
वस्िुओीं में ।
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यदद इस शरीर में नहीीं, िो ककसी अन्य रूप बाले शरीर में । परन्िु िुम शरीर में तनरीं िर रहिे हो जब
िक परमात्मा में ववलीन नहीीं हो जािे; दस
ु रे शब्दों में , जब िक िुम हर प्रकार के पररविान पर ववजय
नहीीं पा लेि|े
ममकास्िर: शरीर से दस
ु रे शरीर में जािे हुए तया हम वापस िरिी इस पर आिे हैं ?
मीरदाद: समय का तनयम पुनरावक्ृ त्ि है । समय में जो एक बार घाट गया, उसका बार-बार घटना
अतनवाया है ; जहाीं िक मनुष्य का सम्बन्ि है , अींिराल लम्बे या छोटे हो सकिे हैं,
और यह तनभार करिा है पुनरावक्ृ त्ि के मलये प्रत्येक मनुष्य की इच्छा और सींककप की प्रबलिा पर।
जब िुम जीवन कहलानेवाले िक्र में से तनकलकर मत्ृ यु कहलानेवाले िक्र में प्रवेश करोगे, और अपने
साथ ले जाओगे िरिी के मलये,उसके भोगों के मलये अनबुिी प्यास िथा उसके भोगों के मलये अिप्ृ ि
कामनाएाँ,
िब िरिी का िम्
ु बक िुम्हे वापस उसके वक्ष की ओर खीींि लेगा। िब िरिी िुम्हे अपना दि
ू
वपलायेगी, और समय िुम्हारा दि
ू छुडवायेगा –एक के बाद दस
ु रे जीवन में और एक के बाद दस
ू री
मौि िक,
मीरदाद: मैं जब िाहिा हूाँ आिा हूाँ, और जब िाहिा हूाँ िला जािा हूाँ। मैं इस िरिी के वामसयों को
िरिी की दासिा से मत ु ि करवाने आिा हूाँ।
ममकेयन: मैं सदा के मलये िरिी से अलग होना िाहिा हूाँ। यह मैं कैसे कर सकिा हूाँ; ममु शाद ?
मीरदाद: िरिी िथा उसके सब बच्िों से प्रेम करके। जब िरिी के साथ िम्
ु हारे खािे में केवल प्रेम
ही बाकी रह जायेगा, िब िरिी के साथ िम्
ु हारे खािे में केवल प्रेम ही बाकी रह जायेगा, िब िरिी
िम्
ु हे अपने ऋण से मत
ु ि कर दे गी।
जमोरा: तया प्रेम के द्वारा कोई प्रेम के प्रति मलये गये अपने पापों को दोहराने से बि सकिा है और
तया इस िरह समय के िक्र को रोक सकिा है ?
ममरदाद: यह िम
ु पश्िात्िाप के द्वारा कर सकिे हो। िम्
ु हारी क्जव्हा से तनकले दव
ु ि
ा न जब लौटकर
िुम्हारी क्जव्हा को प्रेमपूणा शुभ कामनाओीं से मलप्ि पायेंगे िो अपने मलये कोई ओर दठकाना ढूींढेंगे ।
इअ प्रकार प्रेम उन दव
ु ि
ा नो की पुनरावतृ ि को रोक दे गा। काम्पूणा दृक्ष्ट जब लौटकर उस आाँख को,
क्जसमे से वह तनकली है , प्रेमपूणा चििवनों से छलकिी हुई पायेगी िो कोई दस
ू री कामपूणा आाँख
ढूींढेगी।
इस प्रकार प्रेम उस कामािुर चििवन की पुनरावतृ ि पर रोक लगा दे गा। दष्ु ट ह्रदय से तनकली दष्ु ट
इच्छा जब लौटकर उस ह्रदय को प्रेमपूणा कामनाओीं से छलकिा हुआ पायेगी, िो कहीीं और घोंसला
ढूाँढेगी ।
इस प्रकार प्रेम उस दष्ु ट इच्छा से किर से जन्म लेने के प्रयास को तनष्िल कर दे गा। यही है
पश्िात्िाप।
जब िुम्हारे पास केवल प्रेम ही बाींकी रह जािा है िो समय िुम्हारे मलये प्रेम के मसवाय और कुछ
नहीीं दोहरा सकिा। जब हर जगह और वति पर एक िीज दोहराई जािी है िो वह एक तनत्यिा बन
जािी है
जो सम्पूणा समय और स्थान में व्याप्ि हो जािी है और इस प्रकार दोनों के अक्स्ित्व को ही ममटा
दे िा है ।
☞ परमात्मा की मौज ☜
***************************************
यदद इक्न्द्रयों द्वारा सीममि होने के बावजूद िुम अपने जन्म और मत्ृ यु के बीि की
कुछ ववशेष बािों को याद रख सकिे हो िो समय, जो िुम्हारे जन्म से पहले भी था
और िुम्हारी मत्ृ यु के बाद भी सदा रहे गा, ककिनी अचिक बािों को याद रख सकिा
है ?
मैं िुमसे कहिा हूाँ, समय हर छोटी से छोटी बाि को याद रखिा है –केवल उन बािों
को ही नहीीं जो िम्
ु हे स्पष्ट याद हैं, बक्कक उन बािों को भी क्जनसे िम
ु पूरी िरह
अनजान हो।
यदद िुममे केवल पढ़ने की शक्ति और अथा को ग्रहण करने की उत्सुकिा हो।जैसे
जीवन में वैसे ही मत्ृ यु में, जैसे िरिी पर वैसे ही िरिी से परे , िुम कभी अकेले
नहीीं हो, बक्कक उन पथाथों और जीवों की तनरीं िर सींगति में ही जो िम्
ु हारे जीवन
और मत्ृ यु में भागीदार हो।
वह मनुष्य के अपने साथी मनुष्य के साथ िथा ब्रम्हाींड के एनी सब जीवों के साथ
सींबींिों का पूरा-पूरा दहसाब रखिी है, और मनुष्य को हर जीवन हर मत्ृ यु में प्रतिक्षण
अपना दहसाब िक
ु ाने पर वववश करिी है ।
सााँड कभी ककसी को सीग नहीीं मारिा जब िक वह मनुष्य उसे सीींग मारने का
तनमींत्रण न दे और वास्िव में वह मनष्ु य इस रति-पाि के मलये सााँड से अचिक
उत्िरदायी होिा है ।
मारा जाने वाला मारनेवाले के छुरे को सान दे िा है और घािक बार दोनों करिे हैं।
मैं िुमसे कहिा हूाँ, ककसी अचथति का ववरोि मि करो, कहीीं ऐसा न हो बहुि ज्यादा
ठहरकर, या क्जिनी बार वह अन्यथा आवश्यक समििा उससे अचिक बार आकर,
वह अपने स्वामभमान को लगी ठे स का बदला ले।अपने सभी अतिचथयों का प्रेमपूवक
ा
सत्कार करो, उनकी िाल-ढाल और उनका व्यवहार कैसा भी हो, तयोंकक वे वास्िव में
केवल िुम्हारे लेनदार हैं।
खासकर अवप्रय अतिचथयों का क्जिना िादहए उससे भी अचिक सत्कार करो िाकक
वे सींिुष्ट और आभारी होकर जाएाँ, और दब
ु ारा िुम्हारे घर आयें िो ममत्र बनकर
आयें, लेनदार नहीीं।प्रत्येक अतिचथ की ऐसी आवभगि करो मानो वह िुम्हारा ववशेष
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सम्मातनि अतिचथ हो, िाकक िुम उसका ववश्वास प्राप्ि कर सको और उसके आने
के गुप्ि उद्देश्यों को जान सको।
दभ
ु ााग्य को इस प्रकार स्वीकार करो मानो वह सौभाग्य हो, तयोंकक दभ
ु ााग्य को यदद
एक बार समि मलया जाये िो वह शीघ्र ही सौभाग्य में बदल जािा है । जबकक
सौभाग्य का यदद गलि अथा लगा मलया जाये िो वह शीघ्र ही दभ
ु ााग्य बन जािा है ।
िुम्हारी अक्स्थर स्मतृ ि स्पष्ट ददखाई दे रहे तछद्रों और दरारों से भरा भ्रमों का जाल
है ; इसके बावजूद अपने जन्म िथा मत्ृ यु का, उसके समय,स्थान और ढीं ग का िुनाव
भी िम
ु स्वयीं ही करिे हो। बुविमत्िा का दावा करने वाले घोषणा करिे हैं कक अपने
जन्म और मत्ृ यु में मनुष्य का कोई हाथ नहीीं होिा।
आलसी लोग, जो समय और स्थान को अपनी सींकीणा िथा टे ढ़ी नजर से दे खिे हैं,
समय और स्थान में घटनेवाली अचिकााँश घटनाओीं को सींयोग मानकर उन्हें सहज
ही मन से तनकाल दे िे हैं। उनके ममथ्या गवा और िोखे से साविान, मेरे साचथयो।
समय और स्थान के अींदर कोई आकक्स्मक घटना नहीीं होिी। सब घटनाएीं प्रभु-
इच्छा के आदे श से घटिी हैं, जो जो न ककसी बाि में गलिी करिी हैं, न ककसी
िीज को अनदे खा करिी हैं।जैसे बषाा की बाँूदें अपने आप को िरनों में एकत्र कर
लेिी हैं,
िरने, नालों और छोटी नददयों में इकट्ठे होने के मलये बहिे हैं, छोटी नददयााँ िथा नाले
अपने आपको सहायक नददयों के रूप में बड़ी नददयों को अवपाि कर दे िे हैं,
महानददयााँ अपने जल को सागर िक पहुींिा दे िी हैं, और सागर महासागर में इकट्ठे
हो जािे हैं,
वैसे ही हर सष्ृ ट पदाथा या जीव की हर इच्छा एक सहायक नदी के रूप में बहकर
प्रभु-इच्छा में जा ममलिी है ।मैं िुमसे कहिा हूाँ कक हर पदाथा की इच्छा होिी है ।
यहााँ िक कक पत्थर भी, जो दे खने मैं इिना गाँूगा, बहरा और बेजान होिा है, इच्छा
से ववहीन नहीीं होिा।
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एक ददन के जीवन के ककिने अींश के बोि का िुम दावा कर सकिे हो? तनिःसींदेह,
एक बहुि ही थोड़े अींश का। बुवि और स्मरण-शक्ति से िथा भावनाओीं और वविारों
को दजा करने के सािनों से सम्पन्न होिे हुए भी यदद िुम ददन के जीवन के
अचिकााँश भाग से बेखबर रहिे हो, िो किर पत्थर अपने जीवन और इच्छा से इस
िरह बेखबर रहिा है िो िम्
ु हे आश्िया तयों होिा है?
और क्जस प्रकार जीने और िलने-किरने का बोि न होिे हुए िुम इिना जी लेिे
हो, िल-किर लेिे हो, उसी प्रकार इच्छा करने का बोि न होिे हुए भी िम
ु इिनी
इच्छाएाँ कर लेिे हो। ककन्िु प्रभु-इच्छा को िुम्हारे और ब्रम्हाींड के हर जीव और
पदाथा की तनबोििा का ज्ञान है । समय के प्रत्येक क्षण और और स्थान के प्रत्येक
बबींद ु पर अपने आपको किरसे बााँटना प्रभु– इच्छा का स्वभाव है ।
और किर हिाश होकर मशकायि करिे हैं और अपनी तनराशा के मलये िींिल भाग्य
को दोषी ठहरािे हैं।भाग्य िींिल नहीीं होिा, सािओ
ु , तयोंकक भाग्य प्रभु-इच्छा का ही
दस
ु रा नाम है । यह िो मनुष्य की इच्छा है जो अभी िक अत्यींि िपल, अत्यींि
अतनयममि िथा अपने मागा के बारे में अतनक्श्िि है ।
इसमलये मैंने पहले भी िुमसे कहा था, और अब भी कहिा हूाँ: ध्यान रखो िुम कैसे
सााँस लेिे हो, कैसे बोलिे हो, तया िाहिे हो, तया सोििे,कहिे और करिे हो। तयोंकक
िम्
ु हारी इच्छा हर साींस में,हर िाह में, िम्
ु हारे हर वविार, विन और कमा में तछपी
रहिी है । और जो िुमसे तछपा है वह प्रभ-ु इच्छा के मलये सदा प्रकट है ।
मैं िुमसे कहिा हूाँ, यदद िुम हार को जीि में बदलना िाहिे हो िो प्रभु-इच्छा को
स्वीकार करो। बबना ककसी आपक्त्ि के स्वीकार करो उन सब पदाथों को जो उसके
रहस्यपूणा थैले में से िम्
ु हारे मलये तनकलें; कृिज्ञिा िथा इस ववश्वास के साथ
स्वीकार करो कक प्रभु इच्छा में वे िुम्हारा उचिि िथा तनयि दहस्सा हैं। उनका
मूकय और अथा समिने की दृढ़ भावना से उन्हें स्वीकार करो।
और जब एक बार िम
ु अपनी इच्छा की गुप्ि काया-प्रणाली को समि लोगे,िो िुम
प्रभु इच्छा को समि लोगे। क्जस बाि को िुम नहीीं जानिे उसे स्वीकार करो िाकक
उसे जानने में वह िम्
ु हारी सहायिा करे । उसके प्रति रोष प्रकट करोगे िो वह एक
अनबूि पहे ली बनी रहे गी।
अपनी इच्छा को िब िक
प्रभु- इच्छा की दासी बनी रहने दो
जब िक ददव्य ज्ञान प्रभु-इच्छा को
िम्
ु हारी इच्छा की दासी न बना दे ।
*********************************अध्याय -22
स्वयं अपने स्वामी बनो
*********************************
मीरदाद: मैं इन्हें कहिे सुन रहा हूाँ, ”हम नारौन्दा से प्यार करिे हैं, और अपने प्यार-
स्वरूप अपनी सुगक्न्िि आत्मा उसे प्रसन्निा पूवक
ा भेंट करिे है ।”
नरौन्दा, मेरे क्स्थर ह्रदय ! तया कहिा है िम
ु से इस सरोवर का पानी ?
ममरदाद: मैं इसे कहिे सुनिा हूाँ, ” मैं नरौन्दा से प्यार करिा हूाँ, इसमलये मैं उसकी
प्यास बुिािा हूाँ, और उसके प्यारे कुमुदनी के िूलों की प्यास भी।”
नरौन्दा मेरे जाग्रि नेत्र!
तया कहिे हैं िुमसे यह ददन,उन सब िीजों को अपनी िोली में मलये क्जन्हें यह
िप
ू में नहाई अपनी बाींहों में इिनी कोमलिा से िल
ु ािा है ?”
मीरदाद मैं इसे कहिे सुनिा हूाँ, ” मैं नरौन्दा से बहुि प्यार करिा हूाँ, इसमलए मैं
अपने वप्रय पररवार के एनी सदस्यों सदहि उसे िूप में नहाई अपनी बाहों में इिनी
कोमलिा से िुलािा हूाँ।”
जमोरा; ( नेत्रों से अश्र-ु िारा बहािे हुए मुमशाद के पैरों में चगरकर ) ओह, मुमशाद !
ककसी भेद को ह्रदय के सबसे गहरे कोने में रखकर भी आपसे तछपाना मेरे मलये, या
ककसी के मलये, कैसा बिपना है , कैसा व्यथा अमभमान है !
ममरदाद; ( जमोरा को उठाकर ह्रदय से लगािे हुए ) कैसा बिपना है , कैसा व्यथा
अमभमान है इन कुमद
ु -पुष्पों से भी उसे तछपाना।
जमोरा; मैं जानिा हूाँ कक मेरा ह्रदय अभी पववत्र नहीीं है , तयोंकक मेरे गि राबत्र के
स्वप्न अपववत्र थे। मेरे ममु शाद, आज, मैं अपने ह्रदय का शोिन कर लाँ ग
ू ा।
प्रभाि के िारे से भी अचिक सुींदर थी वह। मेरी पलकों के मलये नीींद क्जिनी मीठी
थी, मेरी क्जव्हा के मलये उससे कहीीं अचिक मीठा था उसका नाम।
जब आपने हमें प्राथाना और रति के प्रवाह के सम्बन्ि में उपदे श ददया था, िब मैं
समििा हूाँ, आपके शाक्न्िप्रद शब्दों के रस का पान सबसे पहले मैंने ककया था,
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जमोरा, जो एक तनडर मसींह था, एक सहमा हुआ खरगोश बनकर रह गया। जमोरा,
जो आकाश का स्िम्भ था, प्रवाह-हीन पोखर में पड़ा एक शोिनीय खण्डहर बनकर
रह गया। क्जिने भी जमोरा को मैं बिा सका उसे लेकर मैं नौका की ओर िला
आया, इस आशा के साथ कक मैं अपने आपको नौका की प्रलयकालीन स्मतृ ियों और
परछाइयों में जीववि दिना दीं ग
ू ा।
आपके शब्द जमोरा की राख को दहलाकर गमा करने ही लगे थे और मुिे एक नये
जमोरा के जन्म का ववशवास हो ही रहा था कक होगला ने मेरे सपनो में आकर मेरे
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मैं अपने आींसुओीं को रोक नहीीं सकिा। शरीर तया शरीर के मसवाय कुछ और हो
सकिा है? दया करें मेरे शरीर पर। दया करें जमोरा पर।
मीरदाद : स्वयीं दया को दया की जरुरि है । ममरदाद के पास दया नहीीं है । लेककन
अपार प्रेम है ममरदाद के पास सब िीजों के मलये, शरीर के मलये भी, और उससे
अचिक आत्मा के मलये जो शरीर का स्थल
ू रूप केवल इसमलये िारण करिी है कक
उसे तनराकारिा से वपघला दे । ममरदाद का प्रेम जमोरा को उसकी राख में से उठा
लेगा और उसे आत्म– ववजेिा बना दे गा।
परन्िु ऐसे पुरुष और स्त्री पुरस्कार के अचिकारी हैं क्जन्हें प्रेम ने एक कर ददया हो,
क्जन्हें एक-दस
ू रे से अलग न ककया जा सके, क्जनकी अपनी अलग-अलग कोई
पहिान ही न रही हो। वह प्रेम नहीीं जो प्रेमी को अपने आिीन कर लेिा है । वह
प्रेम नहीीं जो रति और माींस पर पलिा है । वह प्रेम नहीीं जो स्त्री को पुरुष की ओर
केवल इसमलये आकवषाि करिा है कक और क्स्त्रयााँ िथा पुरुष पैदा ककये जायें और
इस िरह उनके शारीररक बन्िन स्थायी हो जायें।
क्जस पर द्वेि का भ्रम छाया हुआ है । जो न आगे दे ख पािे हैं न पीछे , वे तनत्यिा
के इस खण्ड को तनत्यिा ही मान लेिे हैं। यह न जानिे हुए कक जीवन का तनयम
एकिा है, वे द्वेि के भ्रम से ऐसे चिपके रहिे हैं जैसे वाही जीवन का सार है । द्वेि
समय में आनेवाली एक अवस्था है । द्वेि क्जस प्रकार एकिा से तनकलिा है, उसी
प्रकार एकिा की ओर ले जािा है । क्जिनी जकदी िुम इस अवस्था को पार कर
लोगे,उिनी ही जकदी अपनी स्विींत्रिा को गले लगा लोगे।
िथा उसका स्वामी बन जाये क्जसे उसकी परम स्विींत्रिा का बोि हो। घोड़े को
घोड़ी के मलये दहनदहनाने दो, दहरनी को दहरन को पुकारने दो। स्वयीं प्रकृति उन्हें
इसके मलये प्रेररि करिी है , उनके इस कमा को आशीवााद दे िी है और उसकी प्रशींसा
करिी है , तयोंकक सींिान को जन्म दे ने से अचिक ऊाँिी ककसी तनयति का उन्हें अभी
बोि ही नहीीं है ।
जो पुरुष और क्स्त्रयााँ अभी िक घोड़े घोड़ी से िथा दहरन और दहरनी से मभन्न नहीीं
है , उन्हें काम के अाँिेरे एकाींि में एक- दस
ू रे को खोजने दो। उन्हें शयन-कक्ष की
वासना में वववाह- बींिन की छूट का ममश्रण करने दो। उन्हें अपनी कदट की
जननक्षमिा िथा अपनी कोख की उवारिा में प्रसन्न होने दो। उन्हें अपनी नस्ल को
बढ़ाने दो। स्वयीं उनकी प्रेररका िथा िाय बनकर खश
ु है;प्रकृति उन्हें िूलों की सेज
बबछािी है , पर साथ ही उन्हें कााँटों की िभ
ु न दे ने से भी नहीीं िूकिी।
लेककन आत्म-ववजय के मलये िडपनेवाले पुरुषों और क्स्त्रओीं को शरीर में रहिे हुए
भी अपनी एकिा का अनुभव जरूर करना िादहये; शारीररक सींपका के द्वारा नहीीं,
बक्कक शारीररक सींपका की भूख और उस भूख द्वारा पूणा एकिा और ददव्य ज्ञान के
रास्िे में खड़ी की गई रुकावटों से मक्ु ति पाने के सींककप द्वारा।
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िुम प्रायिः लोगों को मानव प्रकृति के बारे में यों बाि करिे हुए सुनिे हो जैसे वह
कोई ठोस ित्व हो, क्जसे अच्छी िरह नापा-िोला गया है, क्जसके तनक्श्िि लक्षण हैं,
क्जसकी पूरी िरह छान-बीन कर ली गई है और जो ककसी ऐसी वस्िु द्वारा िारों
ओर से प्रतिबींचिि है क्जसे लोग ”काम” कहिे हैं। लोग कहिे हैं काम के मनोवेग को
सींिुष्ट करना मनुष्य की प्रकृति है ,
लेककन उसके प्रिींड प्रवाह को तनयींबत्रि करके काम पर ववजय पाने के सािन के रूप
में उसका उपयोग करना तनश्िय ही मानव-स्वभाव के ववरुि है और दिःु ख को न्योिा
दे ना है । लोगों की इन अथाहीन बािों की ओर ध्यान मि दो। बहुि ववशाल है मनष्ु य
और बहुि अनबूि है उसकी प्रकृति। अत्यींि ववववि हैं उसकी प्रतिभाएाँ और अटूट है
उसकी शक्ति।
साविान रहो उन लोगों से जो उसकी सीमाएाँ तनिााररि करने का प्रयास करिे हैं।
सींयमी हृदयों से रति की बागडोर ववजय पाने के तनभीक सींककप के हाथों में होिी
है ।
तयोंकक उसके बबना पुरुष द्वेि के खण्ड को पार नहीीं कर सकिा। स्त्री में ही
ममलेगी पुरुष को अपनी एकिा और पुरुष में ही ममलेगी स्त्री को द्वैि से अपनी
मुक्ति। समय आने पर ये दो ममलकर एक हो जायेंगे–यहााँ िक कक आत्म-ववजेिा
बन जायेंगे जो न नर है न नारी, जो है , पूणा मानव।
तयोंकक जीवन, जो अक्स्ित्व है , अपनी इच्छा शक्ति से अक्स्ित्व हीन नहीीं हो सकिा;
न ही अक्स्ित्वहीन की कोई इच्छा हो सकिी है । नहीीं,परमात्मा भी जमोरा का अन्ि
नहीीं कर सकिा।
जहाीं िक मेरा िुमको छोड़ जाने का प्रश्न है , वह ददन अवश्य आयेगा जब िुम मुिे
दे ह रूप में ढूींढोगे और मैं नहीीं ममलूींगा, तयोंकक इस िरिी के अतिररति कहीीं और
भी मेरे मलये काम हैं। पर मैं कहीीं भी अपने काम को अिूरा नहीीं छोड़िा। इसमलये
खुश रहो। मीरदाद िब िक िुमसे ववदा नहीीं लेगा जब िक वह िुम्हे आत्म-ववजेिा
नहीीं बना दे िा—
*************************************
म त्त्व िब्दों िा न ीं म त्व भावना िा ै
जो िब्दों में गंज
ु ती ै
*************************************
अध्याय 23
मीरदाद मसम-मसम को ठीक करिा है
और बुढापे के बारे में बिािा है”
नरौन्दा: नौका की पशुशालाओीं की सबसे बूढ़ी गाय मसम-मसम पाींि ददन से बीमार
थी और िारे या पानी को मींह
ु नहीीं लगा रही थी।
उसका सर नीिे लटका हुआ था, आाँखें अिमुाँदी थीीं, शरीर के बाल सख्ि और
काक्न्ि-हीन थे। ककसी ढीठ मतखी को उड़ाने के मलये वह कभी–
कभी अपने कान को थोड़ा सा दहला दे िी थी। उसका ववशाल दग्ु ि-कोष उसकी टाींगों
के बीि ढीला और खाली लटक रहा था, तयोंकक वह अपने लम्बे िथा िलपूणा
जीवन के अींतिम भाग में माित्ृ व की मिरु वेदना से वींचिि हो गई थी।
कभी-कभी वे उसकी पीठ और पेट पर हाथ िेरिे। पूरा समय वे उससे इस प्रकार
बािें करिे रहे जैसे ककसी मनष्ु य के साथ बािें कर रहे हों :
हमारी िारागाहों को भर रही हैं। उसका गोबर भी हमारे बैग की रस-भरी सक्ब्जयों
और िलोद्यान के स्वाददष्ट िलों में हमारे भोजन की बरकि बना हुआ है ।
बहुि प्रसन्न होिी है हमारी घाींस मसम-मसम का भोजन बनकर। बहुि सींिुष्ट होिी है
हमारी िप
ू उसे सहला कर। बहुि आनींददि होिा हमारा मन्द समीर उसके कोमल
और िमकीले रोम-रोम को छूकर।
मीरदाद; महत्व शब्द का नहीीं होिा, भले ममकास्िर। महत्व उस भावना का होिा है
जो शब्द के अींदर गज
ींू िी है; और पशु भी उससे प्रभाववि होिे हैं।
और किर, मि
ु े िो ऐसा प्रिीि होिा है कक बेिारी मसम-मसम की आाँखों में से एक
स्त्री मेरी ओर दे ख रही है ।
ममकास्िर; बूढी और दब
ु ल
ा मसम-मसम के साथ इस प्रकार बािें करने का तया लाभ ?
तया आप आशा करिे है कक इस प्रकार आप बुढापे के प्रकोप को रोककर मसम-मसम
की आयु लम्बी कर दें गे ?
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मीरदाद; एक ददा नाक बोि है बुढापा मनष्ु य के मलये, और पशु के मलये भी। मनुष्य
ने अपनी उपेक्षापूणा तनदा यिा से इसे और भी ददा नाक बना ददया है । एक नवजाि
मशशु पे वे अपना अचिक से अचिक ध्यान और प्यार लट
ु ािे हैं।
परन्िु बुढापे के बोि से दबे मनुष्य के मलये वे अपने ध्यान से अचिक अपनी
उदासीनिा, और अपनी सहानुभूति से अचिक अपनी उपेक्षा बिाकर रखिे हैं। क्जिने
अिीर वे ककसी दि
ू मह
ुीं े बच्िे को जवान होिा दे खने के मलये होिे हैं, उिने ही अिीर
होिे हैं वे ककसी वि
ृ मनुष्य को कब्र का ग्रास बनिा दे खने के मलये।
बच्िे और बूढ़े दोनों ही सामान रूप से असहाय होिे हैं ककन्िु बच्िों की बेबसी
बरबस सबकी प्रेम और त्याग से पूणा सहायिा प्राप्ि कर लेिी है ;
जब आाँखें, जो कभी तनमाल थीीं, ववचित्र िब्बों और छायाओीं के मलये नत्ृ य मींि बन
जािी हैं ;जब पैर, क्जनमें कभी पींख लगे हुये थे, शीशे के ढे ले बन जािे हैं ;
और हाथ जो जीवन को सााँिे में ढालिे थे, टूटे सााँिों में बदल जािे हैं ;जब घुटनों
के जोड़ ढीले पड़ जािे हैं, और मसर गदा न पर रखी एक कठपुिली बन जािा है ;जब
ितकी के पाट तघस जािे हैं, और स्वयीं ितकी-घर सुनसान गि
ु ा हो जािा है ;जब
उठने का अथा होिा है चगर जाने के भय से पसीने-पसीने होना, और बैठने का अथा
होिा है इस दिःु खदायी सींदेह के साथ बैठना कक शायद किर कभी उठा ही न जा सके
उसे कान और नेत्र प्रदान करने का, उसे हाथ और पैर दे ने का, उसकी क्षीण हो रही
शक्ति को अपने प्यार के द्वारा पुष्ट करने का, िाकक उसे महसूस हो कक अपने
खखलिे बिपन और यौवन में वह जीवन को क्जिना प्यारा था, इस ढलिी आयु में
उससे रत्िी भर भी कम प्यारा नहीीं है ।
तया िुम इस क्षण भी उस प्रत्येक स्त्री और पुरुष के जीवन की िसल नहीीं काट रहे
हो जो कभी इस िरिी पर िले थे ? िम्
ु हारी बोली उनकी बोली की िसल के मसवाय
और तया है ?
िुम्हारे वविार उनके वविारों के बीने गये दानों के मसवाय और तया हैं ? िुम्हारे
वस्त्र और मकान िक, िम्
ु हारा भोजन, िम्
ु हारे उपकरण,िम्
ु हारे क़ानन
ू , िम्
ु हारी
परम्पराएाँ और िुम्हारी पररपादटयााँ—ये तया उन्हीीं लोगों के वस्त्र, मकान, भोजन,
उपकरण, क़ानन
ू , परम्पराएाँ और पररपादटयााँ नहीीं हैं जो िम
ु से पहले यहााँ आ िक
ु े हैं
और यहााँ से जा िुके हैं।एक समय में िम
ु एक ही िीज की िसल नहीीं काटिे हो,
बक्कक सब िीजों की िसल काटिे हो, और हर समय काटिे हो।
िुम ही बोने वाले हो, िसल हो, लुनेरे हो, खेि हो और खमलहान भी। यदद िुम्हारी
िसल खराब है िो उस बीज की ओर दे खो जो िुमने दस
ू रों के अींदर बोया है , और
उस बीज की ओर भी जो िम
ु ने उन्हें अपने अींदर बोने ददया है। लन
ु ेरे और उसकी
दरााँिी की ओर भी दे खो, और खेि और खमलहान की ओर भी।
एक वि
ृ मनुष्य क्जसके जीवन की िसल िुमने काटकर अपने कोठारों में भर ली
है , तनश्िय ही िुम्हारी अचिकिम दे ख-रे ख का अचिकारी है । यदद िुम उसके उन
वषों में जो अभी काटने के मलए बिी वस्िुओीं से भरपूर है, अपनी उदासीनिा से
कड़वाहट घोल दोगे, िो जो कुछ िम
ु ने उससे बटोर कर सींभल मलया है ,
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वे प्रभु की ओर िुम्हारी यात्रा में िुम्हारा पाथेय हैं। परन्िु मनष्ु य के बुढ़ापे में उसके
प्रति ववशेष रूप से दयावान बनो; कहीीं ऐसा न हो कक तनदा यिा के कारण िुम्हारा
पाथेय खराब हो जाये और िम
ु अपनी मींक्जल पर कभी पहुाँि ही न सको। हर प्रकार
के और हर उम्र के पशुओीं के प्रति दयावान बनो; यात्रा की लम्बी और कदठन
िैयाररयों में वे िम्
ु हारे गाँग
ू े ककन्िु बहुि विादार सहायक हैं।
परन्िु पशुओीं के बुढ़ापे में उनके प्रति ववशेष रूप से दयावान रहो; ऐसा न हो िुम्हारे
ह्रदय की कठोरिा के कारण उनकी विादारी बेविाई में बदल जाये और उनसे
ममलने वाली सहायिा बािा बन जाये।
मसम-मसम के दि
ू पर पलना
और जब उसके पास दे ने को
और न रहे िो उसकी गदा न
पर कसाई की छुरी रख
दे ना िरम कृिध्निा है ।
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अध्याय - २४
दसरे िी पीड़ा पर जीना
पीड़ा िा मििार ोना ै
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खाने के मलये मारना तया उचिि है ? जब शमदाम और कसाई िले गए िो ममकेयन
ने ममु शाद से पूछा: ममकेयन: खाने के मलये मारना तया उचिि नहीीं है ममु शाद ?
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मीरदाद: िुम्हारी पसींद सिमुि उत्िम है । ववश्वास करो, ममकेयन, वह ददन आ रहा है
जब मनुष्य वस्िुओीं की सुगींि पर क्जयेंगे जो उनकी आत्मा है, उनके अति माींस पर
नहीीं।
और िड़पने वाले के मलये वह ददन दरू नहीीं। तयोंकक िड़पने वाले जानिे हैं कक दे ह
का जीवन और कुछ नहीीं, दे ह-रदहि जीवन िक पहुाँिने वाला पल
ु -मात्र है । और
िड़पने वाले जानिे हैं कक स्थूल और अक्षम इक्न्द्रयााँ अत्यींि सूक्ष्म िथा पूणा ज्ञान
के सींसार के अींदर िााँकने के मलये िरोखे-मात्र हैं।
और िड़पने वाले जानिे हैं कक क्जस भी माींस को वे काटिे है, उसे दे र-सवेर,
अतनवाया रूप से, उन्हें अपने ही माींस से जोड़ना पडेगा;
और क्जस भी हड्डी को वे कुिलिे हैं, उसे उन्हें अपनी ही हड्डी से किर बनाना
पडेगा; और रति की जो बूींद वे चगरािे हैं, उसकी पूतिा उन्हें अपने ही रति से करनी
पड़ेगी। तयोंकक शरीर का यही तनयम है । पर िड़पने वाले इस तनयम की दासिा से
मुति होना िाहिे हैं।
अचिक िीजें हचथयाने का प्रयत्न करिा है , जबकक िदपने वाला जब अपने मागा पर
िलिा है िो न उसकी जेब होिी है और न ही उसके पेट में ककसी जीव के रति
और पीड़ा-भरी एींठ्नों की गींदगी।
न िड़पने वाला जो ख़ुशी ककसी पदाथा को बड़ी मात्रा में पाने से करिा है–या
समििा है कक वह प्राप्ि करिा है —िड़पने वाला उसे आत्मा के हलकेपन और
ददव्य ज्ञान की मिुरिा में प्राप्ि करिा है। एक हरे -भरे खेि को दे ख रहे दो
व्यक्तियों में से एक उसकी उपज का अनुमान मन और सेर में लगािा है और
उसका मक
ू य सोने-िाींदी में आाँकिा है ।
दस
ू रा अपने नेत्रों से खेि की हररयाली का आनींद लेिा है , अपने वविारों से हर पत्िी
को िम
ू िा है, और अपनी आत्मा में हर छोटी से छोटी जड़,हर कींकड़ और ममटटी के
हर ढे ले के प्रति भ्रािभ
ृ ाव स्थावपि कर लेिा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ, दस
ु रा व्यक्ति
उस खेि का असली मामलक है, भले ही क़ानून की दृष्टी से पहला व्यक्ति उसका
मामलक हो।एक मकान में बैठे दो व्यक्तियों में से एक उसका मामलक है,
दस
ू रा केवल एक अतिचथ। मामलक तनमााण िथा दे ख-रे ख के खिा की, और
पदों,गलीिों िथा अन्य साज-सामग्री के मक
ू य की ववस्िार के साथ ििाा करिा है ।
जबकक अतिचथ मन ही मन नमन करिा है उन हाथों को क्जन्होंने खोदकर खदान में
से पत्थरों को तनकाला, उनको िराशा और उनसे तनमााण ककया; उन हाथों को
क्जन्होंने गलीिों िथा पदों को बुना;
बछड़े का कोमल शरीर उसके आगामी जन्म-ददवस पर उसके िथा उसके ममत्रों की
दावि के मलये उन्हें बदढ़या माींस प्रदान करे गा।
दस
ू रा बछड़े को अपना िाय-जाया भाई समििा है और उसके ह्रदय में उस नन्हे
पशु िथा उसकी मााँ के प्रति स्नेह उमड़िा है । मैं िुमसे कहिा हूाँ, उस बछड़े के माींस
से दस
ू रे व्यक्ति का सिमुि पोषण होिा है ; जबकक पहले के मलये वह ववष बन
जािा है । हााँ बहुि सी ऐसी िीजें पेट में दाल ली जािी हैं क्जन्हें ह्रदय में रखना
िादहये।
बहुि सी ऐसी िीजें जेब और कोठारों में बन्द कर दी जािी हैं क्जनका आनींद आाँख
और नाक के द्वारा लेना िादहये। बहुि सी ऐसी िीजें दाींिों द्वारा िबाई जािी हैं
क्जनका स्वाद बुवि द्वारा लेना िादहये।जीववि रहने के मलये शरीर की आवश्यकिा
बहुि कम है । िुन उसे क्जिना कम दोगे, बदले में वह िुम्हे उिा ही अचिक दे गा;
क्जिना अचिक दोगे, बदले में उिना ही कम दे गा।
लेककन जरुरि से ज्यादा नहीीं। िरिी इिनी उदार और स्नेहपूणा है कक उसका ददल
अपने बच्िों के मलये सदा खुला रहिा है ।
ठीक उसी प्रकार िुम भी िरिी को भोजन पर आमींबत्रि करो और अत्यींि प्यार के
साथ िथा सच्िे ददल से उससे कहो;”मेरी अनप
ु म मााँ !
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क्जस प्रकार िूने अपना ह्रदय मेरे सामने िैला रखा है िाकक जो कुछ मुिे िादहये ले
लाँ ू, उसी प्रकार मेरा ह्रदय िेरे सम्मुख प्रस्िुि है िाकक जो कुछ िुिे िादहये ले ले।”
ममु िचद गम
ु ो िर भी
मारे बीर् र ता ै ☜
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अध्याय -25
पििड़ में अींगूर-बेल ददवस पर और बसींि में नौका-ददवस पर। इन दोनों अवसरों में
से एक पर भी कोई यात्री नौका में खाली हाथ नहीीं आिा;
सब ककसी न ककसी प्रकार का उपहार साथ लािे हैं जो अींगूर के गुच्छों या िीड़ के
िल से लेकर मोतियों की लड़ड़यों या हीरे के हारों िक कुछ भी हो सकिा है । और
सब व्यापाररयों से उनकी बबक्री का दस प्रतिशि कर के रूप में मलया जािा है ।
नमस्कार उस अद्भि
ु जड़ कोमद
ृ ु अींकुर का पोषण जो करिी,स्वखणाम िल में मददरा
भारिी। नमस्कार इस पुण्य बेल को। जल-प्रलय से अनाथ हुए जो,कीिड में हैं िाँसे
हुए जो,आओ, िखो और आमशष दो सब इस दयालु शाखा के रस को। नमस्कार इस
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पुण्य बेल को। माटी के सब बींिक हो िुम, यात्री हो, पर भटक गये िुम; मुक्ति-मूकय
िुका सकिे हो,पथ भी अपना पा सकिे हो,
इसी ददव्य पौिे के रस से, इसी बेल से,इसी बेल से। उत्सव के आरम्भ से एक ददन
पहले प्राििः-काल मुमशाद लापिा हो गये। सािों साथी इिने घबरा गये कक उसका
वणान नहीीं ककया जा सकिा; उन्होंने िुरींि पूरी साविानी के साथ खोज आरम्भ कर
दी। पूरा ददन और पूरी राि, मशालें और लालटे नें मलये वे नौका में और उसके आस-
पास खोज रहे थे;
ककन्िु ममु शाद का कोई सरु ाग नहीीं पा सके। शमदाम ने इिनी चिींिा प्रकट की और
वह इिना व्याकुल ददखाई दे रहा था कक मुमशाद के इस प्रकार रहस्यमय ढीं ग से
लापिा हो जाने में उसका हाथ होने का ककसी को सींदेह नहीीं हुआ। परन्िु सबको
पूरा ववशवास था कक मुमशाद ककसी कपटपूणा िाल के मशकार हो गये हैं|
जन-समूह ने उसकी पुकार को िुरींि अपनी पुकार बना मलया। मुमशाद के मलये की
जा रही पुकार िारो ओर िैलकर कानों को बेिने लगी, और हमारी आाँखें भर आईं,
हमारे गले रूाँि गये मानो मशकींजे में जकड़ मलये गए हों। अिानक कोलाहल शाींि
हो गया,
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ममरदाद: दे खो ममरदाद को–अींगरू की उस बेल को क्जसकी िसल अभी िक नहीीं
काटी गई, क्जसका रस अभी िक नहीीं वपया गया।
तया िम
ु ने अपनी आत्मा के सन
ु सान बींजरों में हल िलाया है जो हर प्रकार के
घास-पाि से इिने भरे पड़े हैं कक सिमुि जींगल ही बन गये हैं क्जनमे भयींकर और
तघनौने सपा, बबच्छू आदद पनप रहे हैं और उनकी सख्या बढ़ रही है !
तया िुमने उन घािक जड़ों को उखाड़ िेंका है जो अाँिेरे में िुम्हारी जड़ों से
मलपटकर उन्हें दबोि रही हैं, और इस प्रकार िुम्हारे िल को कमल की अवस्था में ही
नोि रही हैं? तया िम
ु ने अपनी उन शाखाओीं की छाँ टाई की है जीने व्यस्ि कीड़ों ने
खोखला कर ददया है , या परजीवी बेलों के आक्रमण ने सुखा ददया है?
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अपनी लौककक अींगूर वादटकाओीं में हल िलाना और उनकी खुदाई िथा छाँ टाई करना
िुमने भली भााँिी सीख मलया है । पर वह अलौककक अींगूर-वादटका जो िुम खुद हो
बुरी िरह से उजाड़ और उपेक्षक्षि पड़ी है ।
तया लाभ के खािे में वह िन डालिे हो जो िुम्हे िुम्हारी लागि से अचिक प्राप्ि
हुआ है ? िो सिमुि बेकार गया वह ददन क्जसे बेंिकर िुमने वह पूींजी प्राप्ि की, िाहे
वह पींज
ू ी ककिनी ही बड़ी तयों न रही हो।
जब िम्
ु हारी मख्
ु य रूचि लोगों के बटुओीं में है , िब िम्
ु हे उनके ह्रदय में प्रवेश का
मागा कैसे ममल सकिा है ? और यदद िम्
ु हे मनुष्य के ह्रदय में प्रवेश का मागा नहीीं
ममलिा िो प्रभु के ह्रदय िक पहुाँिने की आशा कैसे कर सकिे हो ? और यदद िम
ु
प्रभु के ह्रदय िक नहीीं पहुींिे िो तया अथा है िुम्हारे जीवन का ?
क्जसे िुम लाभ समििे हो यदद वह हातन हो, िो ककिनी अपार होगी वह हातन !
तनश्िय ही व्यथा है िम्
ु हारा सम्पूणा व्यापार जब िक िम्
ु हारे लाभ के खािे में प्रेम
और ददव्य ज्ञान न आये। राजदण्ड थामनेवाले मक
ु ु टिाररयो ! ऐसे हाथों में जो
घायल करने में बहुि िस्
ु ि, लेककन घाव पर मरहम लगाने में बहुि सस्
ु ि हैं
राजदण्ड सपा के सामान है ।
जबकक प्रेम का मरहम लगाने वाले हाथों में राजदण्ड एक ववद्युि-दण्ड के सामान है
जो ववषाद और ववनाश को पास नहीीं िटकने दे िा।भली प्रकार परखो अपने हाथों
को। ममथ्या अमभमान, अज्ञान िथा मनुष्यों पर प्रभुत्व के लोभ से िूले हुए मस्िक
पर सजा हीरे , लाल और नीलम से जड़
ु ा सोने का मक
ु ु ट बोि, उदासी बेिैनी महसस
ू
करिा है ।
हााँ, ऐसा मुकुट िो अपनी पीदठका का–क्जस पर वह रखा है उसका ममाभेदी उपहास
ही होिा है । जब कक अत्यींि दल
ु भ
ा और उत्कृष्ट रत्नों से जड़ा मुकुट भी ज्ञान िथा
आत्म-ववजय से आलोककि मस्िक के अयोग्य होने के कारण लज्जा का अनुभव
करिा है । भली प्रकार परखो अपने मस्िकों को। लोगों पर शासन करना िाहिे हो
िुम ?
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मनष्ु यों पर शासन करनेवाले लोग मनष्ु यों द्वारा शामसि होिे हैं। और मनष्ु य
अशाक्न्ि, अराजकिा िथा अव्यवस्था से भरे हुए हैं,
लेककन सागर ही की िरह उनकी गहराईयााँ शाींि और सिह पर होने वाले िींिाओीं
के प्रहारों के प्रभाव से मुति रहिी हैं।यदद िुम सिमुि लोगों पर शासन करना
िाहिे हो िो उमकी िरम गहराईयों िक पहुाँिो, तयोंकक मनष्ु य केवल उिनिी लहरें
नहीीं है ।
परन्िु मनुष्यों की िरम गहराईयों िक पहुाँिने मलये िुम्हे पहले अपनी िरम गहराई
िक पहुाँिना होगा। और ऐसा करने के मलये िुम्हे राजदण्ड िथा मुकुट को त्यागना
होगा िाकक िुम्हारे हाथ महसूस करने के मलये स्विींत्र हों, और िुम्हारा मस्िक
सोिने और परखने के मलये भार-मत
ु ि हो।िप
ू -दानों और िमा-पुस्िकों वालो ! तया
जलािे हो िुम िूप-दानों में ?
तया िुम वह रस जलािे हो जो कुछ पौिों के सुगींि पूणा ह्रदय में से ररस-ररस कर
जम जािा है ?
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तया िम
ु समििे हो कक िप
ू की सग
ु ींि घण
ृ ा, ईष्याा और लोभ की दग
ु न्
ा ि को दबा
दे गी?
दबा सकिी है िरे बी आाँखों की,िूठ बोलिी क्जव्हा की, और वासनापूणा हाथों की
दग
ु न्
ा ि को? दबा सकिी है ववश्वास का नाटक करिे अववश्वास और ढोल पीटिी
अिम पाचथाविा की दग
ु न्
ा ि को?
इन सब को भख
ू ों मारकर, एक-एक कर ह्रदय में जला दे ने से, और उनकी राख को
िारों ददशाओीं में बबखेर दे ने से जो सुगींि उठे गी वह िुम्हारे प्रभु की नामसका को
कहीीं अचिक सह
ु ावनी लगेगी। तया जलािे हो िम
ु िप
ू -दानों में? अनन
ु य,प्रशींसा और
प्राथाना?
अच्छा है क्रोिी दे विा को अपने क्रोि की अक्ग्न में िुलसिे छोड़ दे ना।
अच्छा है प्रशींसा के भख
ू े दे विा को प्रशींसा की भख
ू से िड़पने के मलये छोड़ दे ना।
अच्छा है कठोर-ह्रदय दे विा को अपने ही ह्रदय की कठोरिा के हाथों मरने के मलये
छोड़ दे ना।
वह िाहिा है कक िम्
ु हारा ह्रदय ही िप
ू -दान बन जाये| तया पढ़िे हो िम
ु अपनी
िमा-पुस्िकों में?
तया िुम िमाादेशों को पढ़िे हो िाकक उन्हें सुनहरे अक्षरों में मींददरों की दीवारों और
गुम्बदों पर मलख दो?
या िुम पढ़िे हो जीवन सत्य को िाकक उसे अपने ह्रदय में अींककि कर सको?
तया िम
ु मसिाींिों को पढ़िे हो िाकक िाममाक मींिों से उनकी मशक्षा दे सको और
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िका िथा विन-िािुरी द्वारा, और यदद आवश्यकिा पड़े िो िलवार की िार द्वारा,
उनकी रक्षा कर सको?
या िम
ु अध्ययन करिे हो जीवन का जो कोई मसिाींि नहीीं है क्जसकी मशक्षा दी
जाये और रक्षा की जाये, बक्कक एक मागा है क्जस पर स्विन्त्रिा प्राप्ि करने के दृढ़
सींककप के साथ िलना है , मींददर के अींदर भी वैसे ही जैसे उसके बाहर, राि में भी
वैसे ही जैसे ददन में, और तनिले पदों पर भी वैसे ही जैसे ऊाँिे पदों पर।
यदद िुम अपनी िमा-पुस्िकों अच्छी िरह पढ़िे िो लोगों को ददखािे कक िरिी को
स्वगा कैसे बनाया जािा है , तयोंकक ददव्य-ह्रदय मनुष्य के मलये िरिी एक स्वगा है;
जबकक उनके मलये क्जनका ह्रदय सींसार में है स्वगा एक िरिी है ।मनुष्य और उसके
साचथयों के बीि, मनष्ु य और अन्य जीवों के बीि, मनष्ु य और प्रभु के बीि खड़ी सब
बािाओीं को हटाकर मनुष्य के ह्रदय में स्वगा को प्रकट कर दो। परन्िु इसके मलये
िुम्हे स्वयीं ददव्य ह्रदय बनना पड़ेगा। स्वगा कोई खखला हुआ उद्यान नहीीं है क्जसे
खरीदा या ककराये पर मलया जा सके। स्वगा िो अक्स्ित्व की एक अवस्था है
न ही नरक कोई दहकिी हुई भटठी है क्जससे प्राथानाएाँ करके या िूप जलाकर बिा
जा सके। नरक िो मन की एक अवस्था है क्जसका िरिी पर उिनी ही आसानी से
अनभ
ु व ककया जा सकिा है क्जिनी आसानी से इस अममट ववशालिा में कहीीं भी।
जब िक वह छ्या-मत
ु ि न हो और उसका सींककप एक न हो, िब िक उसका एक
पैर हमेशा स्वगा में रहे गा और दस
ू रा हमेशा नरक में। और यह अवस्था तनिःसींदेह
नरक है । और यह िो नरक से भी बदिर है की पींख प्रकाश के हों और पैर सीसे के;
कक आशा ऊपर उठाये और तनराशा नीिे घसीट ले; कक भय-मुति बन्िन को खोले
और भयपूणा सींशय बन्िन में जकड ले।स्वगा नहीीं है वह स्वगा जो दस
ू रों के मलये
नरक हो। नरक नहीीं है वह नरक जो दस
ू रों के मलये स्वगा हो।
इसमलये और नरक स्थायी और परस्पर ववरोिी अवस्थाएाँ नहीीं, बक्कक पड़ाव हैं क्जन्हें
स्वगा और नरक दोनों से स्विींत्रिा प्राप्ि करने की लम्बी यात्रा में पार करना है ।
हाथ से नहीीं,ह्रदय से स्वीकार करना होगा िुम्हे यह उपहार। इसके मलये िुम्हे अपने
ह्रदय को ज्ञान-प्राक्प्ि की इक्षा और सींककप के अतिररति अन्य हर इच्छा और
सींककप के बोि से मुति करना होगा।
िम
ु िरिी के मलये कोई अजनबी नहीीं हो, न ही िरिी िम्
ु हारे मलये सौिेली मााँ है ।
िुम िो उसके ह्रदय का ही सारभूि अींश हो, और उसके मेरुदण्ड का ही बल हो।
अपनी सबल, िौड़ी और सदृ
ु ढ़ पीठ पर िम्
ु हे उठाने में उसे ख़श
ु ी होिी है ; िम
ु तयों
अपने दब
ु ल
ा और क्षीण व्तशिःस्थल पर उसे उठाने का हाथ करिे हो,
शाींि और सन्
ु दर है िरिी का मख
ु ड़ा। िम
ु दख
ु द कलह और भय से उसे अशाींि
और कुरूप तयों बनाना िाहिे हो? एक पूणा ईकाई है िरिी। िुम िलवारों और सीमा-
चिन्हों से तयों इसके टुकड़े-टुकड़े कर दे ने पर िुले हो? आज्ञाकारी और तनक्श्िन्ि है
िरिी। िुम तयों इिने चिन्िा-ग्रस्ि और अवज्ञाकारी हो ?
किर भी िुम िरिी से, सूया से, िथा आकाश के सभी ग्रहों से अचिक स्थायी हो। सब
नष्ट हो जायेंगे, पर िम
ु नहीीं। किर िम
ु तयों हवा में पत्िों की िरह कााँपिे हो? यदद
अन्य कोई वस्िु िुम्हे ब्रम्हाींड के साथ िम्
ु हारी एकिा का अनुभव नहीीं करवा सकिी
िो अकेली िरिी से ही िुम्हे इसका अनभ
ु व हो जाना िादहये। परन्िु िरिी स्वयीं
केवल दपाण है क्जसमे िुम्हारी परछाइयााँ प्रतिबबक्म्बि होिी हैं।
तया दपाण प्रतिबबक्म्बि वास्िु से अचिक महत्वपूणा है? तया मनुष्य की परछाईं
मनष्ु य से अचिक महत्वपूणा है ? आाँखें मलो और जागो। तयोंकक िम
ु केवल ममट्टी नहीीं
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िम्
ु हारी तनयति है प्रभु की सिि िलदातयनी अींगरू -वादटका की िलविी अींगरू -बेल
बनना। क्जस प्रकार ककसी अींगूर-बेल की जीववि शाखा िरिी में दबा ददये जाने पर
जड़ पकड़ लेिी है और अींि में अपनी मािा की ही िरह, क्जसके साथ वह जुडी
रहिी है ,
अींगूर दे ने वाली स्विींत्र बेल बन जािी है , उसी प्रकार मनुष्य, जो ददव्य लिा की
जीववि शाखा है , अपनी ददव्यिा की ममटटी में दबा दे ये जाने पर परमात्मा का रूप
बन जाएगा और सदा परमात्मा के साथ एक–रूप रहे गा।तया मनुष्य जीववि दिना
ददया जाये िाकक वह जीवन पा ले? हााँ, तनिःसींदेह हााँ।
जब िक िुम जीवन और मत्ृ यु के द्वेि के प्रति द़िन नहीीं हो जािे, िुम अक्स्ित्व
के एकत्व को नहीीं पाओगे। जब िक िुम ददव्य प्रेम के अींगूरों से पोवषि नहीीं होिे,
िम
ु ददव्य ज्ञान की मददरा से भरे नहीीं जाओगे।
और जब िक िुम ददव्य ज्ञान की मददरा के नशे में बेहोश नहीीं हो जािे, िुम
स्विींत्रिा के िम्
ु बन से होश में नहीीं आओगे। प्रेम का आहार नहीीं करिे हो िम
ु जब
पथ्
ृ वी की अींगूर-बेल के िल खािे हो।
िुम एक छोटी भूख को शाींि करने के मलये एक बड़ी भूख को आहार बनािे हो।
ज्ञान का पान नहीीं करिे हो िुम जब पथ्
ृ वी की अींगूर-बेल का रस पीिे हो।
िुम केवल पीड़ा की क्षखणक ववस्मतृ ि का पान करिे हो जो अपना प्रभाव समाप्ि
होिे ही िम्
ु हारी पीड़ा की िीव्रिा को दग
ु ना कर दे िी है । िम
ु एक दिःु ख दायी अहम ्
से दरू भागिे हो और वाही अहम ् िुम्हे अगले मोड़ पर खडा ममलिा है ।
जो अींगूर िुम्हे ममरदाद पेश करिा है उसे न ििूींदी लगिी है न वे सड़िे हैं। उनसे
एक बार िप्ृ ि हो जाना सदा के मलये िप्ृ ि हो रहना है । जो मददरा उसने िुम्हारे
मलये िैयार की है वह उन ओींठों के क्जये बहुि िीखी है जो जलने से डरिे हैं; लेककन
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तया िम
ु मे ऐसे मनष्ु य हैं जो मेरे अींगरू ों के भख
ू े हैं ? वे अपनी टोकररयााँ लेकर आगे
आ जायें।तया कोई ऐसे हैं जो मेरे रस के प्यासे हैं ?
वे अपने प्याले लेकर आ जायें।
अब इसे सारे अनावश्यक भार से मुति कर ददया जायेगा िाकक यह अपने मागा पर
सुवविापूवक
ा और सुरक्षक्षि िल सके। इसमलये सब उपहार उन्ही को, क्जन्होंने ददये थे,
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लौटा ददये जायेंगे और सब कजादारों को मा़ि कर ददये जायेंगे। नौका मसवाय प्रभु
के ककसी को डाटा स्वीकार नहीीं करिी, और प्रभु िाहिा है कोई भी कजादार न रहे –
उसका अपना कजादार भी नहीीं।
अध्याय 27.
अक्स्ित्व का हर कण सत्य का अचिकारी
••••••••••••••••••••••••••••••••••
सत्य का उपदे श तया सबको
ददया जाना िादहये या
कुछ िुने हुए व्यक्तियों को ?
अींगरू -बेल के ददवस से एक ददन पहले ममरदाद अपने लप्ु ि होने का भेद प्रकट
करिा है और िूठी सत्िा की ििाा करिा है
नरौन्दा: प्रीति- भोज जब स्मतृ ि मात्र रह गया था, उसके कािी समय बाद एक ददन
सािों साथी पवािीय नीड़ में मुमशाद के पास इकटठे हुए थे।
बैनून ने कहा कक यद्यवप जय-जयकार करिे-करिे लोगों के गले बैठ गये थे, उनकी
सराहना मुमशाद के विनों के मलये नहीीं बक्कक मा़ि कर ददये गए ऋणों और लौटा
ददये गए उपहारों के मलये थी। उसने िो मुमशाद की हलकी-सी आलोिना भी की कक
उन्होंने ऐसी भीड़ पर समय नष्ट ककया क्जसे खाने-पीने िथा आनींद मनाने से
बढ़कर ककसी ख़श
ु ी की िलाश नहीीं थी।
बैनून वविार प्रकट ककया कक सत्य का उपदे श बबना सोि-वविार के सबको नहीीं,
कुछ िन
ु े हुए व्यक्तियों को ही ददया जाना िादहये। इस पर ममु शाद ने अपना मौन
िोड़ा और कहा:
मीरदाद: हवा में छोड़ा िुम्हारा श्वास तनश्िय ही ककसी के िेिड़ों में प्रवेश करे गा।
मि पूछो कक िेिड़े ककसके हैं। केवल इिना ध्यान रखो कक िम्
ु हारा श्वास पववत्र
हो। िुम्हारा शब्द कोई कान खोजेगा और तनश्िय ही उसे पा लेगा। मि पूछो की
कान ककसका है ।
केवल इिना ध्यान रखो कक िुम्हारा शब्द स्विींत्रिा का सच्िा सन्दे श-वाहक हो।
िुम्हारा मूक वविार तनश्िय ही ककसी क्जव्हा को को बोलने के मलये प्रेररि करे गा।
मि पूछो की क्जव्हा ककसकी है । केवल इिना ध्यान रखो कक िुम्हारा वविार प्रेमपूणा
ज्ञान से आलोककि।
ककसी भी प्रयत्न को व्यथा गया मि समिो। कुछ बीज वषों िरिी में दबे पड़े रहिे
हैं, परन्िु जब पहली अनुकूल ऋिू का श्वास उनमे प्राण िूाँकिा है , वे िुरींि सजीव हो
उठिे हैं। सत्य का बीज प्रत्येक मनुष्य और वस्िु के अन्दर मौजूद है ।
िुम्हारा काम सत्य को बोना नहीीं है, बक्कक उसके अींकुररि होने के मलये अनुकूल
ऋिू िैयार करना है ।अनन्िकाल में सबकुछ सींभव है ।
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इसमलये ककसी भी मनुष्य की स्विींत्रिा के ववषय में तनराश न होओीं, बक्कक मुक्ति
का सन्दे श सामान ववश्वास िथा उत्साह के साथ सब िक पहुाँिाओ—जैसे िड़पने
वालों िक वैसे ही न िड़पने वालों िक भी।
तयोंकक न िड़पने वाले कभी अवश्य िड़पेंगे, और आज क्जनके पींख नहीीं हैं वे ककसी
ददन िूप िोंि से अपने पींखो को साँवारें गे और अपनी उड़ानों से आकाश की दरू िम
िथा अगम ऊाँिाइयों को िीर डालेंगे। ममकास्िर: हमें बहुि दिःु ख है कक आज िक,
हमारे बार-बार पूछने पर भी, मुमशाद ने अींगूर-बेल के ददवस से एक ददन पहले अपने
रहस्यपूणा ढीं ग से गायब हो जाने का भेद हम पर प्रकट नहीीं ककया है ।
तया हम उनके ववश्वास के योग्य नहीीं हैं ? ममरदाद: जो भी मेरे प्यार के योग्य हैं
तनिःसींदेह मेरे ववश्वास के योग्य भी हैं। ववश्वास तया प्रेम से बड़ा है, ममकास्िर ? तया
मैं िुम्हे ददल खोलकर प्रेम नहीीं दे रहा हूाँ? मैंने उस अवप्रय घटना की ििाा नहीीं की
िो इसमलये कक मैं शमदाम को प्रायक्श्िि करने के मलये समय दे ना िाहिा था,
दहम्बल: जब हमारे मुमशाद शमदाम को इिना प्रेम करिे हैं िो वह उन्हें तयों
सिािा है ?
मीरदाद: शमदाम मि
ु े नहीीं सिािा। शमदाम शमदाम को ही सिािा है । अींिों के
हाथ में नाममात्र की भी सत्िा दे दी िो वे उन सब लोगों की आाँखे तनकाल दें गे जो
दे ख सकिे हैं: उनकी भी जो उन्हें दे खने की शक्ति प्रदान करने के मलये कठोर
पररश्रम करिे हैं। गल
ु ाम को केवल एक ददन मनमानी करने की छूट दे दो,
इसमलये वह अपनी एड़ें खनकािी है, िलवार घुमािी है, िथा कोलाहलपूणा ठाट-वाट
और िमक-दमक के साथ सवारी करिी है िाकक कोई उसके कपटी ह्रदय के अन्दर
िााँकने का साहस न कर सके।
क्जनके पास सत्िा है वे उसे बनाये रखने के मलये सदा लड़िे रहिे हैं, क्जनके पास
नहीीं वे सत्िािाररयों के हाथों से सत्िा छीनने के मलये सदा सींघषारि रहिे हैं।
जबकक मनष्ु य को, उसमे तछपे प्रभु को, पैरों और खरु ों िले रौंदकर यि
ु -भमू म में छोड़
ददया जािा है —उपेक्षक्षि, असहाय और प्रेम से वींचिि।
वह िुम्हारे शब्द में इिनी शक्ति भर दे गी क्जिनी सींसार की सारी सेनाओीं के हाथ
में कभी नहीीं आ सकिी; अपने आशीवााद से वह िम्
ु हारे कायों में इिना उपकार भर
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इसकी शक्तिशाली भज
ु प्रेम है । यह न सिािा है न अत्यािार करिा है , यह िो
हृदयों पर ओस की िरह चगरिा है ; और जो इसे स्वीकार नहीीं करिे उन्हें भी वह
उसी प्रकार राहि दे िा है क्जस प्रकार इसका पान करने वालों को। तयोंकक इसे
अपनी आींिररक शक्ति पर बहुि गहरा ववश्वास है ,
िूठी सत्िा िूठी शक्ति के साथ रक्षात्मक िथा आक्रमक सींचियााँ करिी है , और
दोनों अपना नेित्ृ व भय को सौंप दे िे हैं। और भय दोनों को नष्ट कर दे िा है । तया
ऐसा नहीीं होिा आया कक दब
ु ल
ा अपनी दब
ु ल
ा िा की रक्षा के मलये सींगदठि हो जािे
हैं?
इस प्रकार सींसार की सत्िा िथा सींसार की पाशववक शक्ति दोनों, हाथ में हाथ डाले,
भय के तनयींत्रण में िलिे हैं और अज्ञानिा को युि, रति िथा आींसुओीं के रूप में
उसका दै तनक कर दे िे हैं।
तयोंकक खड्ड ककसी ममरदाद को रोककर नहीीं रख सकिा; जबकक ककसी शमदाम को
उसकी काली और किसलन भरी दीवारों पर िढ़ने के मलए दे र िक कदठन पररश्रम
करना पड़िा है । सींसार की प्रत्येक सत्िा केवल नकली आभूषण है ।
जो ददव्य ज्ञान की दृष्टी से अभी मशशु हैं, उन्हें इससे अपना मन बहलाने दो। ककन्िु
िम
ु स्वयीं अपने आपको कभी ककसी पर मि थोपो; तयोकक जो बलपव
ू क
ा थोपा जािा
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न ही मनष्ु यों की सींपक्त्ि पर अचिकार जमाने का प्रयत्न करो; तयोंकक मनष्ु य अपनी
सींपक्त्ि से उिना ही बींिा हुआ है क्जिना अपने जीवन से, और उसकी जींजीरों को
छे ड़नेवालों को वह सींदेह और घण
ृ ा की दृष्टी से दे खिा है ।
लेककन प्रेम और ददव्य ज्ञान के द्वारा लोगों के ह्रदय में स्थान पाने का मागा खोजो;
एक बार वहाीं स्थान पा लेने पर िुम लोगों को उनकी जींजीरों से छुटकारा ददलवाने
के मलये अचिक कुशलिा पव
ू क
ा काया कर सकिे हो।
अध्याय -28
अपना नाम लोगो के मींह
ु पर मि थोपो
लोगो के ह्रदय में अपना नाम अींककि कर दो
**************************************
बेसार का सुलिान शमदाम
के साथ नीड़ में आिा है
यि
ु और शाक्न्ि के ववषय में
”सुलिान और मीरदाद”
में वािाालाप शमदाम
मीरदाद को जाल में िाँसािा है……
सुलिान ; प्रणाम, महात्मन । हम उस महान मीरदाद का अमभवादन करने आये हैं
क्जसकी प्रमसवि इन पवािों में दरू -दरू िक िैलिी हुई हमारी दरू स्थ राजिानी में भी
पहुाँि गई है ।
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सुलिान ; अ़िसोस ! आप मेरा मूकय मेरी योग्यिा से कहीीं अचिक लगा रहे
हैं ।
मैं लम्बे समय से खोज रहा हूाँ वह िाबी क्जससे अपने पड़ोसी के ह्रदय में प्रवेश पा
सकाँू ,
परन्िु वह मुिे कहीीं नहीीं ममली ।
वह एक शक्तिशाली सुलिान है
और मुिसे युि करने पे उिारू है ।
अपने शाींति-वप्रय स्वभाव के
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मेरे मक
ु ु ट और मोतियों-जड़े वस्त्रों के िोके में न आयें । क्जस िाबी की मि
ु े िलाश
है वह मुिे इनमे नहीीं ममल रही है ।
मीरदाद ; ये वस्िुएीं िाबी को तछपा िो दे िी हैं, पर उसे अपने पास नहीीं रखिीीं । ये
िुम्हारे द्वारा उठाये गए कदम को जकड दे िी हैं, िुम्हारे हाथ को रोक लेिी हैं,
िुम्हारी दृष्टी को लक्ष्य-भ्रष्ट कर दे िी हैं, और इस प्रकार िुम्हारी िलाश को वविल
कर दे िी हैं ।
मीरदाद ; इन्हे रखना है िो िुम्हे अपने पडोसी को खोना होगा, अपने पडोसी को
रखना है िो िम्
ु हे इन्हे खोना होगा । और अपने पडोसी को खोना अपने आप को
खो दे ना है ।
सल
ु िान ; मैं अपने पडोसी की ममत्रिा इिनी बड़ी कीमि पर नहीीं खरीदना िाहिा ।
मीरदाद ; तया िुम इस ज़रा-सी कीमि पर भी अपने आपको नहीीं खरीदना िाहिे ?
सुलिान ; अपने आप को खरीदीं ू मैं कोई कैदी नहीीं हूाँ कक ररहाई की कीमि दाँ ू । और
इसके अतिररति मेरी रक्षा के मलए मेरे पास सेना है क्जसे अच्छा बेटन ददया जािा
है और क्जसके पास पयााप्ि युि सामग्री है । मेरा पडोसी इससे उत्िम सेना होने का
दावा नहीीं कर सकिा ।
सुलिान ;
इसमलए िो मैं सेना रखिा हूाँ ।
मीरदाद ;
इसमलए िो िुम्हे अपनी सेना
को भींग कर दे ना िादहये ।
यदद कोई मनुष्य िुम्हे िुम्हारे कारागार में से तनकाल दे िो ख़ुशी मनाओ ; परन्िु
उस व्यक्ति से ईष्याा न करो जो खद
ु िम्
ु हारे कारागार में बींद होने के मलए आ
जाये ।
सुलिान ; मैं एक ऐसे कुल की सींिान हूाँ जो रणभूमम में अपनी वीरिा के मलए
ववख्याि है । हम दस
ू रों को युि के मलए कभी वववश नहीीं करिे । ककन्िु जब हमें
युि के मलए वववश ककया जािा है िो हम कभी पीछे नहीीं हटिे, और शत्रु की लाशों
पर ऊाँिी ववजय पिाकाएीं लहराये बबना रण-भमू म से ववदा नहीीं लेिे । आपकी सलाह
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मीरदाद : तया िम
ु ने कहा नहीीं
था कक िुम शाींति िाहिे हो ?
मीरदाद : िो यि
ु मि करो ।
सुलिान : पर मेरा पडोसी मुिसे युि करने पर िुला हुआ है ; और मुिे उससे यि
ु
करना ही पड़ेगा िाकक हमारे बीि शाींति स्थावपि हो सके ।
मीरदाद : िुम अपने पडोसी को इसमलए मार डालना िाहिे हो िाकक उसके साथ
शाींतिपूवक
ा जी सको ! कैसी ववचित्र बाि है ! मद
ु ों के साथ शाींतिपूवक
ा जीने में कोई
खूबी नहीीं ; खूबी िो है उसके साथ शाींति पूवक
ा जीने में जो क्जन्दा हैं । यदद िुम्हे
ककसी ऐसे क्ज़ींदा मनष्ु य या वस्िु से युि करना ही है क्जसकी रूचि और दहि
िम्
ु हारी रूचि और दहि से कभी-कभी टकरािे हैं, िो यि
ु करो उस प्रभु से जो इन्हे
अक्स्ित्व में लाया है । और युि करो सींसार से ;
मीरदाद ; हााँ , युि करो, परन्िु अपने पड़ोसी से नहीीं । युि करो उन सभी वस्िुओीं से
जो िुम्हे और िुम्हारे पड़ोसी को आपस में लड़ािी हैं ।
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सुलिान, िुम्हारा पडोसी िुमसे लड़ना िाहिा है िुम्हारे राजसी वस्त्रों के मलए, िुम्हारे
मसींहासन, िुम्हारी सींम्पक्त्ि और िुम्हारे प्रिाप के मलए,
और उन सब वस्िओ
ु ीं के मलए क्जनके िम
ु बींदी हो । तया िम
ु उसके ववरुि शास्त्र
उठाये बबना उसे पराक्जि करना िाहोगे ? िो इससे पहले कक वह िुमसे युि छे ड़े,
िुम स्वयीं ही इन सब वस्िुओीं के ववरुि युि कक घोषणा कर दो ।
सुलिान ; मेरे मान का, मेरी इज्जि का तया होगा जो मेरी सारी सींम्पक्त्ि से कहीीं
अचिक मक
ू य वान है ?
मीरदाद ; मनुष्य का मान केवल मनुष्य बने रहने में है —- मनुष्य जो कक प्रभु का
जीिा-जागिा प्रतिबबम्ब और प्रतिरूप है । बाकी सब मान िो अपमान ही हैं ।
मनुष्यों द्वारा प्रदान ककये गए सम्मान मनुष्य आसानी से छीन लेिे हैं । िलवार से
मलखे गए मान को िलवार आसानी से ममटा दे िी है ।
कोई भी मान इस लायक नहीीं कक उसके मलए जींग लगा िीर भी िलाया जाये , िप्ि
आींसू बहाना या रति की एक भी बूींद चगराना िो दरू रहा ।
अपने हचथयार उसे प्राप्ि नहीीं कर सकिे, उसकी रक्षा नहीीं कर सकिे । और युि का
मैदान िो सच्िी स्विन्त्रिा के मलए एक कब्र है । सच्िी स्विींत्रिा ह्रदय में ही पाई
और खोई जािी है ।
तया युि िाहिे हो िुम ? िो अपने ह्रदय में अपने ही ह्रदय से युि करो । दरू करो
अपने ह्रदय से हर आशा को,हर भय और खोखली कामना को जो िुम्हारे सींसार को
एक घुटन-भरा बाड़ा बनाये हुए हैं, और िम
ु इसे ब्रह्माण्ड से भी अचिक ववशाल
पाओगे ।
इस ब्रह्माण्ड में िम
ु स्वेच्छा से वविरण करोगे, और कोई भी वस्िु बािा नहीीं बनेगी
िुम्हारे मागा में । केवल यही एक युि है जो छे ड़ने योग्य है । जुट जाओ इस युि
में और िब िम्
ु हे अन्य ककसी यि
ु के मलए समय ही नहीीं ममलेगा ।
और िब युि िुम्हे घखृ णि िथा आसुरी दााँव-पें ि प्रिीि होने लगें गे क्जनका काम
होगा िुम्हारे मन को भटकाना और िुम्हारी शक्ति को सोखना, और इस प्रकार
अपने आपके ववरुि िम्
ु हारे महायि
ु में जो वास्िव में िमा यि
ु है , िम्
ु हारी पराजय
का कारण बनना ।
इस यि
ु को जीिने का अथा है अनींि जीवन को पाना, ककन्िु अन्य ककसी भी यि
ु में
ववजय पूणा पराजय से भी बुरी होिी है । और मनुष्य के हर युि का भयानक पक्ष
यही है कक ववजेिा और पराक्जि दोनों के पकले पराजय ही पड़िी है । तया शाक्न्ि
िाहिे हो िुम ?
िो मि खोजो उसे दस्िावेजों के शब्द जाल में; और मि प्रयत्न करो उसे िट्टानों पर
अींककि करने में ।तयोंकक जो लेखनी इिनी आसानी से शाींति मलख सकिी है , वह
उिनी ही आसानी से युि भी मलख सकिी है ;
मीरदाद ; जो िुम्हे यि
ु प्रिीि होिा है वह अपना पेट भरने और अपना ववस्िार
करने का प्रकृति का केवल एक ढीं ग है । बलवान को उसी प्रकार दब
ु ल
ा का आहार
बनाया गया है क्जस प्रकार दब
ु ल
ा को बलवान के मलए । और किर प्रकृति में कौन
बलवान है और कौन दब
ु ल
ा ? केबल प्रकृति ही बलवान है; अन्य सभी िो तनबाल जीव
हैं जो प्रकृति की इक्षा का पालन करिे है और िुप िाप मत्ृ यु की िारा में बहे िले
जािे हैं ।
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सल
ु िान ; मखु खया ने मि
ु े बिाया कक मीरदाद जाद ू टोने के रहस्यों का अच्छा ज्ञािा
है , और मैं िाहिा हूाँ कक वह अपनी कुछ शक्तियों का प्रदशान करे िाकक मैं उन पर
ववश्वास कर सकूाँ ।
मीरदाद ; यदद मनष्ु य के अींदर प्रभु प्रकट करना जाद ू है िो मीरदाद जादग
ू र है ।
तया िुम मेरे जाद ू का कोई प्रमाण और कोई प्रदशान िाहिे हो ?िो दे खो मैं ही
प्रमाण और प्रदशान हूाँ । अब जाओ क्जस काम के मलए आये हो वह करो ।
सुलिान ; ठीक अनुमान लगाया है िुमने कक मुिे िुम्हारी सनकी बािों से कान
बहलाने के अलावा और भी काम हैं । तयोंकक बेसार का सुलिान एक दस
ू री िरह
का जादग
ू र है ; और अपने कौशल का वह अभी प्रदशान करे गा । मसपादहयो, अपनी
जींजीरें लाओ और इस प्रभु- मनष्ु य या मनुष्य – प्रभु के हाथ पैर बााँि दो ।
आओ , ददखा दें इसे िथा यहााँ उपक्स्थि व्यक्तियों को कक हमारा जाद ू कैसा है ?
नरौंदा ; मसपाही दहींसक पशुओीं की िरह मुमशाद पे िपटे और उनके हाथों और पैरों
को जींजीरों से बाींिने लगे । क्षण भर के मलए सािों साथी स्िब्ि बैठे रहे ; उनकी
समि में नहीीं आ रहा था कक उनके सामने जो हो रहा है उसे मजाक समिें या
गम्भीर घटना ।
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मीरदाद ; इन्हे अपने कौशल का प्रयोग कर लेने दो, उिावले ममकेयन । इन्हे अपनी
इच्छा पूरी कर लेने दो, भले जामोरा । काले खड्ड से भयानक नहीीं हैं इनकी जींजीरें
मीरदाद के मलए ।
सल
ु िान ;- ऐसा ही व्यवहार ककया जाएगा हर उस दष्ु ट और पाखण्डी के साथ जो
वैि अचिकार और सत्िा का ववरोि करने का दिःु साहस करे गा ।
मीरदाद िो सल
ु तान िे मसपा ी बा र ले गए, और सल
ु तान तथा िमदाम ख़ि
ु ी से
अिड़ते ु ए पीछे पीछे र्ल हदए ।
*************************************
शमदाम साचथयों को मनाकर अपने साथममलाने का असिल यत्न करिा है मीरदाद
िमत्कारपण
ू ा ढीं ग से लौटिा है और शमदाम के अतिररति सभी साचथयों को ववश्वास
का िुम्बन प्रदान करिा है
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नरौंदा ; जाड़े ने हमें आ दबोिा था, बहुि सख्ि, बिीले, काँपा दे ने वाले जाड़े ने ।
सािों साथी कभी आशा िो कभी सींदेह की लहरों के थपेड़े खा रहे थे ।
ममकेयन, ममकास्िर, जामोरा इस आशा का दामन थामे हुए थे कक ममु शाद अपने
विन के अनुसार लौट आयेंगे । बेनून, दहम्बल िथा अबबमार मुमशाद के लौटने के
बारे में सींदेह को पकडे बैठे थे ।
यदयवप शमदाम उसमे जीवन िथा उत्साह का सींिार करने का भरपूर प्रयास कर
रहा था । तयोंकक जब मीरदाद को ले जाया गया िब से शमदाम दया के द्वारा हमें
वश में करने की कोमशश कर रहा था ।
पर उसकी नम्रिा और स्नेह ने हमें उससे और अचिक दरू कर ददया ।
तया वह मााँ नौका के सींस्थापक वपिा नूह से भी अचिक समिदार है ? उसकी बे-
सर पैर की बािों पर वविार करने के मलए िम
ु से कहिे हुए
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ककन्िु अब, मेरे साचथयो, मैं अपने आपको हजरि नूह के प्रभु िथा उनकी नौका की,
और िुम्हारी सेवा में समवपाि करिा हूाँ । पहले की िरह प्रसन्न रहो िाकक िुम्हारी
प्रसन्निा से मेरी प्रसन्निा पूणा हो जाए ।
तघर गया बिा में सपना बिा से तघरे ह्रदय में मेरे रबाब के । है श्वाींस कहााँ वह िेरे
गाने को जो दे वपघला ऐ रबाब मेरे ? हैं हाथ कहााँ वह िेरे सपने को जो छुड़वा दें ,
ऐ रबाब मेरे ? बेसार के िहखाने में । आओ, ऐ मभखाररन वायु , माींग लो मेरी
खातिरइक गाना जींजीरों से बेसार के िहखाने की ।
जाओ , ऐ ििुर रवव ककरणो, िुरा लाओ मेरी खातिरएक सपना जींजीरों सेबेसार के
िहखाने की । पींख गरुड़ का मेरेछाया था पुरे नभ पर,उसके नीिे मैं राजा । अब हूाँ
अनाथ इक केवल और पररत्यति इक बालक, है नभ पर राज उलूक का,तयोंकक उड़
गया गरुड़ है बहुि दरू एक नीड़ को …….बेसार के िहखाने को ।
ममकास्िर और मैं उसके पीछे -पीछे िार ददवारी के द्वार िक पहुाँि गए क्जससे
आगे बढ़ने का साहस करने की
अनम
ु ति साचथयों की नहीीं थी.
सूया की सुहावनी गमी और िमक थी, और उसकी ककरणे जमी हुई बिा से टकरािे
हुए मड़
ु कर अपनी िमक से हमारी आाँखों को िकािोंि कर रहीीं थी, जहााँ िक दृष्टी
पहुाँििी बिा से ढकी ऊाँिी-नीिी वक्ष
ृ -रदहि पहाड़ड़यााँ हमारे सामने िैली हुई थीीं
लगिा था मानो सब कुछ प्रकाश के ववलक्षण रीं गों से प्रदीप्ि है िारों ओऱ गहरी
ख़ामोशी छाई हुई थी जो कानो में िुभ रही थी, केवल हमारे पैरों के नीिे िरमरा
रही बिा उस ख़ामोशी के जाद ू को िोड़ रही थी ।
और सिमुि ऐसा लगा कक हमने पहली बार स्विन्त्रिा से साींस लेने का आनींद
पाया है और साींस के अथा को जाना है ।हम थोड़ी दरू िले ही थे कक ममकास्िर को
दरू ऊाँिे टीले पर एक काली छाया सी ददखाई दी । हममें से कुछ ने सोिा याक
कोई अकेला भेड़ड़या है ; कुछ को लगा वह एक िट्टान है । पर वह छाया हमारी ओर
आिी लग रही थी ; हमने उसकी ददशा में िलने का तनश्िय ककया ।
गौरवशाली मुद्रा, उन्ही का गररमामय उन्नि मस्िक । परन्िु उनके काले, स्वप्न
दशी, सदा की िरह ज्योतिमाय नेत्रों से गम्भीर शाींति और ववजयी प्रेम की लहरें
प्रभाववि हो रहीीं थीीं ।
ममकेयन सबसे पहले उनके पास पहुींिा । मससकिे िथा हाँसिे हुए उनके िरणो में
चगर गया और बेसुिी- की-सी दशा में बड़बड़ाया ” मेरी आत्मा मुिे वावपस ममल गई
।”एक एक सभी उनके िरणों में चगर पड़े । मुमशाद ने एक एक करके उठाया असीम
प्यार से हर एक को गले लगाया और कहा ;मीरदाद ; ववश्वास का िुम्बन ग्रहण
करो । अब से िम
ु ववश्वास में सोओगे और ववश्वास में जागोगे ; सींदेह िम्
ु हारे
िककये में बसेरा नहीीं करे गा,
और न ही िम्
ु हारे कदमो को अतनश्िय के द्वारा जकड़ेगा । शमदाम शन्
ू य दक्ॄ ष्ट से
दे खिा रहा । वह सर से पैर िक कााँप रहा था उसका िेहरा मद
ु े जैसा पीला पद
गया था । अिानक वह अपने आसन से सरका और हाथो िथा पैरों के बल रें गिे
हुए वहााँ जा पहुाँिा जहााँ ममु शाद खड़े थे ।
उसने मुमशाद के पैरों को अपनी बाहों में ले मलया और जमीन की िरि मुींह ककये
हुए व्याकुलिा के साथ कहा ” मि
ु े भी ववश्वास है ।” ममु शाद ने उसे भी उठाया,
लेककन उसे िूमे बबना कहा ;मीरदाद ; यह भय है जो शमदाम के भारी- भरकम
शरीर को काँपा रहा है और उससे कहलवा रहा है ” मुिे भी ववश्वास है । शमदाम
उस जाद ू के सामने कााँप रहा है और मसर िक
ु ा रहा है क्जसने मीरदाद को काले –
खड्ड िथा बेसार की कालकोठरी से बाहर तनकाल ददया ।
अगर िम्
ु हे प्रभु से डर लगिा है िो प्रभु पर ववश्वास मि करो । ….शमदाम ; (
पीछे हटिे हुए आाँखें तनरीं िर िशा पे गड़ाये हुए ) अपने ही घर में अनाथ और
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तयोंकक बसींि अवश्य आयेगा, और समुद्र शीिकाल में तनक्ष्क्रय पड़े सपा की िरह
अपनी कुण्डली खोलेगा िथा अस्थाई िौर पर चगरवी रखी अपनी स्विन्त्रिा वापस
ले लेगा एक बार किर वह एक िट से दस
ू रे िट की ओर लहरायेगा ; एक बार किर
वह हवा पर सवार होकर आकाश की सैर करे गा, और जहााँ िाहे गा िुहार के रूप में
अपने आपको बबखेर दे गा ।
ककन्िु िुम जैसे लोग भी हैं क्जनका जीवन एक अन्िहीन शीिकाल और गहरी
दीघा- तनद्रा है । ये वे लोग हैं क्जन्हे अभी िक बसींि के आगमन का सींकेि नहीीं
ममला । दे खो, मीरदाद वह सींकेि है ।
बदला
जा सकिा है, बेनून ।
ककसी अमभमानी सल
ु िान को भी सत्य के मक
ु ु ट के सामने अपना मक
ु ु ट त्यागने के
मलए प्रेररि ककया जा सकिा है ।
अध्याय 30
मुमिचद आप िे सभी
सपनों िो जानता ै
——————————
☞ननज घर िे मलए म ाववर ☜
************************************
मुमशाद ममकेयन का स्वप्न सुनािे हैं
नरौंदा ; मुमशाद के बेसार से लौटने से पहले और इसके बाद कािी समय िक हमने
ममकेयन को एक मस
ु ीबि में पड़े व्यक्ति कक िरह आिरण करिे दे खा । अचिकिर
वह अलग रहिा, न कुछ बोलिा, न खिा और कम ही अपनी कोठरी से बाहर
तनकलिा । एक ददन जब ममकेयन िथा बाक़ी साथी अाँगीठी के िारों ओर बैठे आग
िाप रहे थे, मुमशाद ने ” तनज घर के मलए महाववरह ” के ववषय में प्रविन आरम्भ
ककया ।
ये जन-समह
ू शोख रीं ग के वस्त्र पहने हुए थे और मौज मनाने िथा खाने – पीने के
मलए तनकले थे । उनके कोलाहल से वािावरण गूींज रहा था । अशाींि सागर की
लहरों की िरह वे ऊपर-नीिे, आगे-पीछे आ-जा रहे थे । वही एक ऐसा व्यक्ति था
जो दावि के मलए सजा- साँवरा नहीीं था, तयोंकक उसे ककसी दावि की जानकारी नहीीं
थी ।
और केवल उसी के पास ठे लने के मलए कोई पदहया नहीीं था । उसने बड़े ध्यान से
सुनने का यत्न ककया, पर उस उस बहुभाषी भीड़ से वह एक भी ऐसा शब्द नहीीं
सन
ु पाया जो उसकी अपनी बोली से ममलिा हो, उसने बड़े ध्यान से दे खने का यत्न
ककया,।
पर उसकी दक्ॄ ष्ट एक भी ऐसे िेहरे पर नहीीं अटकी जो उसका जाना पहिाना हो ।
इसके अतिररति भीड़ जो उसके िारों ओर उमड़ रही थी उसकी ओर अथा – भरी
नजरें डाल रही थी मानो कह रही हों, ” यह ववचित्र व्यक्ति कौन है ?”
किर अिानक उसकी समि में आया यह दावि उसके मलए नहीीं है ; और िब उसके
मन में एक टीस उठी । …….शीघ्र ही उसे िट के ऊपरी मसरे से आिी हुई एक
ऊाँिी गरज सुनाई दी, और उसी क्षण उसने दे खा वे असींख्य लोग दो पींक्तियों में
बाँटिे हुए घुटनो के बल िुक गए, उन्होंने अपने हाथों से अपनी आाँखें बींद कर लीीं
और अपने सर िरिी पर िुका ददये ;
ज्यों ही सााँड़ उसके इिना नजदीक पहुींिा कक उसे िुलसािी लौं और िुआाँ महसूस
हुआ, उसे ककसी ने हवा में उठा मलया । उसके नीिे खड़ा सााँड़ ऊपर की ओर आग
और िुींआीं छोड़ रहा था ; ककन्िु वह ऊाँिा और ऊाँिा उठिा गया, और यद्यवप आग
और िुींआीं उसे अब भी महसूस हो रहे थे िो भी उसे कुछ ववश्वाश हो गया था कक
अब सााँड़ उसका कुछ नहीीं बबगाड़ सकिा ।
उसने नदी को पार करना शुरू कर ददया। नीिे हरे -भरे िट पर उसने दृष्टी डाली िो
दे खा कक जन समद
ु ाय अब भी पहले की िरह घट
ु नोके बल िक
ु ा हुआ है , और सााँड़
अब उस पर आग और िए
ु ाँ के बजाय िीर छोड़ रहा है । अपने नीिे से होकर
तनकलने रहे िीरों की सरसराहट उसे सुनाई दे रही थी ; उसमे से कुछ उसके कपड़ों
में िाँस गए, पर उसके शरीर को एक भी न छू सका ।
आखखर सााँड़, भीड़, नदी आाँखों से ओिल हो गए ; और वह व्यक्ति उड़िा िला गया
। उड़िे उड़िे वह एक सन
ु सान, िप
ू से िल
ु से भू-खण्ड पर से गज
ु रा क्जस पर जीवन
का कोई चिन्ह न था । अींि में वह एक ऊाँिे, बीहड़ पवाि की उजाड़ िलहटी में
उिरा जहााँ घाींस की एक पक्त्ि िो तया, एक तछपकली, एक िीींटी िक न थी । उसे
लगा कक पवाि के ऊपर से होकर जाने के मसवाय उसके मलए कोई िारा नहीीं है ।
बड़ी दे र िक वह ऊपर िढ़ने का कोई सुरक्षक्षि मागा ढूाँढिा रहा, ककन्िु उसे एक
पगडण्डी ही ममली जो मक्ु श्कल से ददखाई दे िी थी , और क्जस परमसिा बकररयाीं ही
िल सकिी थीीं । उसने उसी राह पर िलना तनश्िय ककया ।वह अभी कुछ सौ िुट
ही ऊपर िढ़ा होगा कक उसे अपनी बाईं ओर तनकट ही एक िौड़ा और समिल मागा
ददखाई ददया ।
सींघषा करिे हुए ऊपर िढ़िे, और किर कलाबाजी खािे हुए नीिे लुढक जािे थे, और
जब बे नीिे लुढ़किे थे िो ऐसी िीख -पुकार करिे थे कक ददल दहल जािा था ।
थके, बोखिल पैरों से मागा पर रति-चिन्ह छोड़िे हुए वह आगे बढ़िा गया । कदठन
जी-िोड़ पररश्रम के बाद वह एक ऐसी जगह पहुाँिा जहााँ ममटटी नरम और पत्थरों
से रदहि थी । उसकी ख़श
ु ी का दठकाना न रहा जब उसे िारों ओर घाींस के कोमल
अींकुर ददखाई ददए ; घाींस इिनी नरम थी और ममटटी इिनी मखमली और हवा
इिनी सुगींिमय और शाक्न्ि दायक कक उसे वैसा ही अनुभव हुआ जैसा अपनी
शक्ति के अींतिम अींश को खो दे ने वाले ककसी व्यक्ति को होिा है ।
अिएव उसने हाथ-पैर ढीले छोड़ ददए उसे नीींद आगई । ककसी हाथ के स्पशा और
एक आवाज ने उसे जगाया, ”उठो ! मशखर सामने है और बसींि मशखर पर िम्
ु हारी
प्रिीक्षा कर रहा है ।” वह हाथ और वह स्वर था स्वगा की अप्सरा-सी एक अत्यींि
रूपविी कन्या का जो अत्यींि उज्जवल स़िेद वस्त्र पहने थी ।
उस कन्या ने कोमलिा-पूवक
ा उस व्यक्ति का हाथ अपने हाथ में मलया और एक नै
स्िूतिा िथा उत्साह के साथ वह उठ खड़ा हुआ उसे सिमुि मशखर ददखाई ददया ।
उसे सिमि
ु बसींि की सग
ु न्ि आई । ककन्िु जैसे ही उसने पहला डग भरने को पैर
उठाया, वह जाग पड़ा और उसका सपना टूट गया ।
ममकेयन ; (मानो उसे सहसा गहरी िोट लगी हो ) पर वह सपना दे खने वाला िो मैं
हूाँ मेरा ही वह सपना । मैंने ही दे खा है उस कन्या और मशखर की िलक ।
आज िक वह सपना मि
ु े रह रह कर सिािा है और मि
ु े ज़रा भी िैन नहीीं लेने
दे िा । उसने िो मि
ु े मेरे मलए ही अजनबी बना ददया है ।
पर यह एहसास अब मि
ु े छोड़ गया है , और अनदे खे िार मि
ु े एक बार किर मि
ु से
दरू खीींि रहे हैं । मि
ु े बिा लो, मेरे महान साथी । मैं वैसे नज़ारे की एक िलक के
मलए घुला जा रहा हूाँ । मीरदाद ; िुम नहीीं जानिे, िुम तया माींग रहे हो, ममकेयन ।
तया िम
ु अपने मक्ु तिदािा से मत
ु ि होना िाहिे हो ?
ममकेयन ; मैं इस सींसार में, जो अपने घर में इिना सुखी है , बेघर होने की इस
असह्य यािना से मत
ु ि होना िाहिा हूाँ । मैं उस मशखर पर कन्या के
पास पहुींिना िाहिा हूाँ ।
ख़ुशी मनाओ कक तनज घर के
मलए महाववरह ने िम्
ु हारे ह्रदय
को जकड मलया है ।
अध्याय -31
मीरदाद ; िींि
ु के सामान है तनज-घर के
मलए महाववरह । क्जस प्रकार समुद्र और
िरिी से उठी िुींि समुद्र और िरिी पर
ऐसे छा जािी है कक
उन्हें कोई दे ख नहीीं सकिा,
इसी प्रकार ह्रदय से उठा
महाववरह ह्रदय पर ऐसे छा जािा है
कक उसमे और कोई भावना
प्रवेश नहीीं कर सकिी ।
और यद्यवप ववरह उिना ही आकारहीन, लक्ष्यहीन िथा अींिा प्रिीि होिा है क्जिनी
कक िुींि, किर भी िि
ुीं की िरह ही इसमें अनींि अज्ञाि आकार भी होिे हैं, इसकी
दृष्टी स्पष्ट होिी है िथा इसका लक्ष्य सुतनक्श्िि । ज्वर के सामान है यह
महाववरह ।
जैसे शरीर में सुलगा ज्वर शरीर के ववष को भस्म करिे हुए िीरे -िीरे उसकी प्राण-
शक्ति को क्षीण कर दे िा है । वैसे ही अींिर की िड़प से जन्मा यह ववरह मन के
मैल िथा मन में एकबत्रि हर अनावश्यक वविार को नष्ट करिे हुए मन को तनबाल
बना दे िा है ।
गुप्ि रूप से मन के सारे बोि िो हर लेिा है, पर ऐसा करिे हुए उसे बहुि उदास
कर दे िा है और बोि के अभाव के बोि िले ही दबा दे िा है ।
ककन्िु सभी, लगभग सभी, बड़े िाव से अपने ककनारों से चिपके रहिे हैं । जहााँ हर
कोई अपना समय रूपी प्यारा पदहया ठे लिा रहिा है । महाववरही के पास ठे लने के
मलए कोई मनपसींद पदहया नहीीं होिा ।
िनावपण
ू ा व्यस्ििा और समयाभाव द्वारा सिाये इस सींसार में केवल उसी के पास
कोई काम िींिा नहीीं होिा, उसीको जकदी नहीीं होिी । पहनावे, बोलिाल, और
आिार- व्यवहार में इिनी शालीन मनुष्य जािी के बीि वह अपने आपको वस्त्र
हीन, हकलािा हुआ और अनाड़ी पािा है ।
हाँसने वाले के साथ वह हाँस नहीीं पािा, और n ही रोने वाले के साथ वह रो पािा है
। मनष्ु य खािे हैं, पीिे हैं, और खाने-पीने में आनींद लेिे हैं ; पर वह स्वाद के मलए
खाना नहीीं खािा, और जो वह पीटा है वह उसके मलए नीरस ही होिा है ।
औरों के जीवन साथी होिे हैं, या वे जीवन साथी खोजने में व्यस्ि हैं ; पर वह
अकेला िलिा है , अकेला सोिा है अकेला ही अपने सपने दे खिा है ।
लोग साींसाररक बुवि िथा समिदारी की दृष्टी से बड़े अमीर हैं ; एक वही मूढ़ और
बेसमि है । औरों के पास सख
ु द स्थान हैं क्जसे वह घर कहिे हैं , एक वही बेघर है
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औरों के पास कोई ववशेष भू-खण्ड हैं क्जन्हे वे अपना दे श कहिे हैं िथा क्जनका
गौरव गान वे बहुि ऊाँिे स्वर में करिे हैं ;
अकेला वही है क्जसके पास ऐसा कोई भ-ू खींड नहीीं क्जसका वह गौरव-गान करे और
क्जसे वह अपना दे श कहे ।यह सब इसमलए कक उसकी आींिररक दृष्टी दस
ू रे ककनारे
की ओर है ।तनद्रािारी होिा है महाववरही इस पूणि
ा या जागरूक ददखने वाले सींसार
के बीि ।
वे अकपववरही पुरुष और क्स्त्रयाीं हैं जो िोटी पर पहुाँिने की िीव्र इच्छा िो रखिे हैं,
परन्िु एक लींगड़े और दृक्ष्टहीन मागादशाक के साथ । तयोंकक उनका मागादशाक है
उन वस्िओ
ु ीं में ववश्वास क्जन्हे आाँखें दे ख सकिी हैं, और क्जन्हे कान सन
ु सकिे हैं,
और क्जन्हे हाथ छू सकिे हैं,और क्जन्हे नाक और क्जव्हा सूींघ और िख सकिे हैं ।
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उनमे से कुछ पवाि के टखनों से ऊपर नहीीं िढ़ पािे कुछ उसके घुटनों िक पहुाँििे
हैं कुछ कूकहे िक, और बहुि थोड़े कमर िक ।
ककन्िु उस सन्
ु दर िोटी की िलक पाये बबना वे सब अपने मागादशाक सदहि
किसलकर पवाि से नीिे लुढ़क जािे हैं ।तया आाँखें वह सब दे ख सकिी हैं जो दे खने
योग्य है , और तया कान वह सब सुन सकिे हैं जो सुनने योग्य है ?
िाहे उनका मागा समिल और िौड़ा प्रिीि होिा हो, किर भी उनमे कई तछपे िन्दे
और अनजाने खिरे होिे हैं । और जो लोग स्विन्त्रिा के मशखर पर पहुाँिने के मलए
इस मागा को अपनािे हैं, वे या िो रास्िे में ही मर जािे हैं, या किसलकर वापस
लढ़
ु किे हुए वापस वहीीँ पहुाँि जािे हैं जहाीं से वे िले थे ;
और वहााँ वे अपनी टूटी हड्ड़डयों को जोड़िे हैं और अपने खुले घावों को सीींिे हैं |
अकपववरही वे हैं जो अपनी ज्ञानेक्न्द्रयों से एक सींसार रि िो लेिे हैं, लेककन जकदी
ही उसे छोटा िथा घट
ु न-भरा पािे हैं ; और इसमलए वे एक अचिक बड़े और अचिक
हवादार घर की ककपना करने लगिे हैं ।
नये घर के बनिे ही वह उन्हें पुराने घर की िरह छोटा िथा घुटन-भरा प्रिीि होने
लगिा है । इस प्रकार वे ढहाने-बनाने में ही लगे रहिे हैं और सख
ु िथा स्विन्त्रिा
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प्रदान करने वाले क्जस घर के मलए वे िड़पिे हैं, उसे कभी नहीीं बना पािे, तयोंकक
ठगे जाने से बिने के मलए वे उन्हीीं का आसरा लेिे हैं क्जनके द्वारा वे ठगे जा िुके
हैं ।
और जैसे मछली कड़ाही में से उछलकर भट्टी में जा चगरिी है, वैसे ही वे जब ककसी
छोटी मग
ृ िष्ृ णा से दरू भागिे हैं िो कोई बड़ी मग
ृ िष्ृ णा उन्हें अपनी ओर खीींि लेिी
है । महाववरही िथा अकपववरही व्यक्तियों के बीि ऐसे मनुष्यों के ववशाल समूह हैं
क्जन्हे कोई ववरह महसूस नहीीं होिा ।
वे खरगोशों की िरह अपने मलए बबल खोदने और उन्ही में रहने, बच्िे पैदा करने
और मर जाने में सन्िुष्ट हैं । अपने बबल उन्हें कािी सुन्दर, ववशाल और आरामदे ह
प्रिीि होिे हैं क्जन्हे वे ककसी राजमहल के वैभव से भी बदलने को िैयार नहीीं ।
अपने साथी मनुष्यों के बीि में महाववरही वैसा ही होिा है जैसा वह गरुड़ क्जसे
मग
ु ी ने सेया है और जो िज
ू ों के साथ उनके बाड़े में बन्द है ।
उसके भाई-िूजे िथा मााँ-मुगी िाहिे हैं कक वह बाल- गरुड़ उन्ही के जैसे स्वभाव
और आदिों वाला, और उन्ही की िरह रहनेवाला । और वह िाहिा है कक िज
ू े
उसके समान हों, अचिक खुली हवा और अनींि आकाश के स्वप्न दे खने वाले । पर
शीघ्र ही वह उनके बीि अपने आपको एक अजनबी और अछूि पािा है ; वे सब
उसको िोंि मारिे हैं यहााँ िक कक उसकी मााँ भी ।
ककन्िु उसे अपने रति में मशखरों की पुकार बड़े जोर से सुनाई दे िी है , और बाड़े की
दग
ु न्
ा ि उसकी नाक में बुरी िरह िुभिी है । किर भी वह सब कुछ िुपिाप सहिा
रहिा है जब िक उसके पींख पूरी िरह नहीीं तनकल आिे । और िब वह हवा पर
सवार हो जािा है , और प्यार-भरी ववदा-दृष्टी डालिा है अपने भूिपूवा भाइयों और
उनकी मााँ पर जो दानो और कीड़ों के मलये ममटटी कुरे दिे हुए मस्िी में कुड़कुड़ािे
रहिे हैं ।ख़ुशी मनाओ, ममकेयन ।
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और इस प्रकार तनमाल हो िक
ु ा ववश्वास िम्
ु हें सदै व हरे -भरे रहनेवाले मशखर की
सीमाओीं पर पहुींिा दे गा और वहााँ िुम्हें ददव्य ज्ञान के हाथों में सौंप दे गा । अपना
काया परू ा करके ववश्वास पीछे हट जायेगा,
अध्याय 32
☞ पाप और आवरण ☜
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
मनुष्य ने प्रभु के वविान का उलींघन करके पाप नहीीं ककया, बक्कक पाप ककया है उस
वविान के प्रति अपने अज्ञान पर पदाा डालकर ।हााँ, पाप िो अींजीर- पत्िे के आवरण
से अपनी नग्न िा तछपाने में था ।
तया िुमने मनुष्य के पिन की कथा नहीीं पढ़ी जो शब्दों की दृष्टी से सरल और
सींक्षक्षप्ि, परन्िु अथा की दृष्टी से गहरी और महान है ?
तया िुमने नहीीं पढ़ा कक जब परमात्मा मनुष्य परमात्मा में से नया-नया तनकला था
िो ककस प्रकार वह मशशु – परमात्मा जैसा था —-तनश्िेष्ट, गतिहीन, सज
ृ न में
असमथा ?
एक सुींदर शीशी में बन्द अकेले बीज की िरह था मनष्ु य अदन की वादटका में ।
शीशी में पड़ा बीज बीज ही रहे गा, और जब िक उसे उसकी प्रकृति के अनक
ु ूल
ममटटी में दवाया न जाये और उसका खोल िूट न जाये उसके अन्दर बन्द
िमत्कार सजीव होकर प्रकाश में नहीीं आयेगा ।
परन्िु मनुष्य के पास उसकी प्रकृति के अनुकूल कोई ममटटी नहीीं थी क्जसमे वह
अपने आपको रोपिा और अींकुररि हो जािा । उसके िेहरे को ककसी अन्य समरूपी
िेहरे में अपनी िलक नहीीं ममलिी थी उसके मानवी कान को कोई अन्य मानव-
स्वर सुनाई नहीीं दे िा था । उसका मानव-स्वर ककसी अन्य मानव- कण्ठ में गाँूजकर
नहीीं लौटिा था ।
उसके एकाकी-ह्रदय के साथ एक-सुर होने के मलए कोई अन्य ह्रदय नहीीं था । इस
सींसार में, क्जसे उपयत
ु ि जोड़ों के रूप में अपनी यात्रा पर रवाना ककया गया था,
मनुष्य अकेला था बबलकुल अकेला । वह अपने मलए एक अजनबी था ।
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उसके करने के मलये अपना कोई काम नहीीं था और न ही था उसके मलए तनिााररि
कोई मागा । अदन उसके मलये वही था जो ककसी मशशु के मलये एक आरामदे ह
पालना होिा है —तनक्ष्क्रय आनींद की एक अवस्था ।
तयोंकक उसकी रूचि और उसकी सींककप-शक्ति, उसके वविार िथा उसकी कामनाएाँ,
यहााँ िक की उसका जीवन भी, सब उसके अींदर बींद पड़े थे और इस प्रिीक्षा में थे
की उन्हें कोई िीरे - िीरे खोले उन्हें स्वयीं खोलना उसके मलए सम्भव नहीीं था ।
अिएव उसे अपने अींदर से ही अपने मलए एक साथी पैदा करने के मलए वववश
ककया गया — एक ऐसा हाथ जो उसके बींिन खोलने में उसका सहायक बने । उसे
सहायिा और कहााँ से ममल सकिी थी मसवाय अपने अींदर के जो ददव्यत्व से सींम्पन
होने के कारण सहायिा से भरपूर था ?
बक्कक स्वयीं उसी एक आदम को युगल बना ददया गया था — एक पुरुष आदम
और एक स्त्री आदम । इस प्रकार उस अकेले, दपाण-रदहि िेहरे को एक साथी और
एक दपाण ममल जािा है ; और वह नाम जो पहले ककसी मानव- स्वर में नहीीं गाँज
ू ा
था अदन की वीचथकाओीं में ऊपर, नीिे, सवात्र मिुर स्वरों में गाँज
ू ने लगिा है ;
और वह ह्रदय क्जसकी उदास िड़कन एक सूने वक्ष में दबी पड़ी थी एक साथी वक्ष
में एक साथी ह्रदय के अींदर अपनी गति महसूस करने और िड़कन सुनने लगिा है
। इस प्रकार चिींगारी- रदहि िौलाद का उस िकमक पत्थर से मेल हो जािा है और
उसमे से बहुि सी चिींगाररयााँ पैदा कर दे िा है
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कैसा बिपना है यह ववश्वास करना कक इिनी बड़ी प्रकक्रया से उसका मागा िीन
बीसी और दस सालों या िीन बीसी दस-लाख सालों में भी िय करवाया जा सकिा
है । आत्मा का परमात्मा बनना तया कोई मामूली बाि है ?
और क्जस साींप ने हौवा को नेकी और बदी का स्वाद िखने के मलए िुसलाया था,
तया वह उस सकक्रय ककन्िु अनुभवहीन द्वैि की गहरी आवाज नहीीं थी जो कुछ
करने िथा अनुभव प्राप्ि करने के मलए अपने आपको प्रेररि कर रहा था ?
इस प्रथम मानव-कथा में िोरी से अदन के पेड़ों में से अपना मागा बना रही इस
प्रथम स्त्री कीसाजीव ककपना के मलये तया िुम अतसर रुक नहीीं गये— ऐसी स्त्री
की ककपना जो घबराई हुई थी,
क्जसका ह्रदय वपींजरे में बन्द पक्षी की िरह िड़िड़ा रहा था, क्जसकी आाँखें िारों
िरि दे ख रहीीं थीीं कक कहीीं कोई िाक िो नहीीं रहा है , और क्जसके मुींह में पानी भर
आया था जब उसने अपना काींपिा हुआ हाथ उस लभ
ु ावने िल की ओर बढ़ाया था
?
तया िुमने अपनी साींस रोक नहीीं ली जब उसने वह िल िोड़ा और उसके कोमल
गुदे में अपने दाींि गड़ा ददये, ऐसी क्षखणक ममठास का स्वाद लेने के मलये जो स्वयीं
उसके और उसकी सींिान के मलये कड़वाहट में बदलने बाली थी ?
तया िम
ु ने जी- जान से नहीीं िाहा कक जब हौवा अपना वववेक-शन्
ू य काया करने ही
बाली थी,
परमात्मा उसी समय प्रकट होकर उसकी उन्मि िष्ृ टिा को रोक दे िा, बजाय बाद
में प्रकट होने के जैसा कक कहानी में होिा है ?
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यह सम्भव नहीीं था, तयोकक परमात्मा जानिा था कक मनुष्य िल खाये बबना नहीीं
रह सकेगा,
और वह िाहिा था कक मनुष्य िल खाये; ककन्िु वह यह भी िाहिा था कक मनुष्य
पहले ही जान ले कक खाने का पररणाम तया होगा
तयोंकक प्रभु इक्षा से कक्रयाशील दो बनने में मनुष्य कक कक्रया-रदहि एकिा समाप्ि
हो गई । अिएव मत्ृ यु कोई दण्ड नहीीं है, बक्कक जीवन का एक पक्ष है , द्वैि का ही
एक अींश है । तयोकक द्वैि कक प्रकृति है सब वस्िुओीं को एक से दो का रूप दे
दे ना, प्रत्येक वस्िु को एक परछाईं प्रदान कर दे ना ।
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इसमलए आदम ने अपनी परछाईं पैदा कर ली हौवा के रूप में, और अपने जीवन के
मलये दोनों ने एक परछाईं पैदा करली क्जसका नाम है मत्ृ यु ।
परन्िु आदम और हौवा मत्ृ यु की छाया में रहिे हुये भी प्रभु के जीवन में परछाईं-
रदहि जीवन जी रहे हैं ।द्वैि एक तनरीं िर सींघषा है ; और सींघषा यह भ्रम पैदा करिा
है कक दो ववरोिी पक्ष अपने आपको ममटा दे ने पर िुले हैं । ववरोिी ददखनेवाले पक्ष
वास्िव में एक-दस
ू रे के पूरक हैं, एक-दस
ू रे के सािक हैं
सम्पूणा शाींति,एकिा और ददव्य ज्ञान से उत्पन्न होने वाले सींिुलन के मलये काया-रि
हैं । परन्िु भ्रम कक जड़ ज्ञानेक्न्द्रयों में जमी हुई है, और वह जब िक बना रहे गा
जब िक ज्ञानेक्न्द्रयााँ हैं ।
इसमलए आदम की आाँखें खुलने के बाद प्रभु ने जब उसे बुलाया िो उसने उत्िर
ददया, ”मैंने बाग़ में िेरी आवाज सुनी, और मैं डर गया तयोंकक ‘मैं’ नींगा था ; और
‘मैंने’ अपने आप को तछपा मलया ।”आदम ने यह भी कहा, ” जो स्त्री िूने ‘मुि’े साथी
के रूप में दी थी, उसने ‘मि
ु े’ वक्ष
ृ का िल ददया, और ‘मैंने’ खाया ।”हौवा और कोई
नहीीं थी आदम का अपना ही हाड-माींस थी ।
किर भी आदम के इस नवजाि ‘मैं’ पर वविार करो जो आाँख खुलने के बाद अपने
आपको हौवा से, परमात्मा से, और परमात्मा कक समूिी रिना से मभन्न, पथ
ृ क और
स्विन्त्र समिने लगा । एक भ्रम था यह ‘मैं’ । उस अभी-अभी खुली आाँख का एक
भ्रम था परमात्मा से पथ
ृ क हुआ यह व्यक्तित्व ।
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इसमें न सार था, न यथाथा । इसका जन्म इसमलये हुआ था कक इसकी मत्ृ यु के
माध्यम से मनुष्य अपने वास्िववक अहम ् को पहिान ले जो परमात्मा का अहम ् है
। यह भ्रम िब लप्ु ि होगा जब बाहर की आाँख के सामने अाँिेरा छा जाएगा और
अींदर की आाँख के सामने प्रकाश हो जाएगा ।
और इसने यद्यवप आदम को िकरा ददया, किर भी इसने उसके मन में एक प्रबल
क्जज्ञासा उत्पन्न कर दी और उसकी ककपना को लुभा मलया । मनुष्य के मलये,
क्जसे ककसी भी अहम ् का अनुभव न हुआ हो, एक ऐसा अहम ् पा लेना क्जसे वह
पूरी िरह अपना कह सके सिमि
ु एक बहुि बड़ा प्रलोभन था, और उसके
ममथ्यामभमान के मलये बहुि बड़ा प्रोत्साहन भी ।
उसने अींजीर के पत्िे सीींकर जोड़ मलये िथा अपने मलए एक आवरण िैयार कर
मलया क्जससे वह अपने नग्न व्यक्तित्व को ढक ले और उसे परमात्मा की सवा-वचि
दृष्टी से बिाकर अपने ही पास रखे । इस प्रकार अदन, आनींदपूणा भोलेपन की
अवस्था, अपने आप से बेखबर एकिा, पत्िों का आवरण एक से दो बने मनुष्य के
हाथ से तनकल गई ;
पाप की पौशाक पर लगाया गया हर पैबन्द पाप ही होिा है, तयोंकक वह उस लज्जा
को स्थायी बनाने का सािन होिा है क्जसे परमात्मा से अलग होने पर मनष्ु य ने
पहली बार और बड़ी िीव्रिा के साथ महसूस ककया था । तया मनुष्य अपनी लज्जा
पर ववजय पाने के मलये कुछ कर रहा है ?
पीड़ा से भरे सख
ु ों के मलए उसकी अममट भींख
ू ; तनिान बना दे नव
े ाले िन के मलए
उसका लोभ ; दास बना दे नेवाले प्रभुत्व के मलए उसकी प्यास; और िुच्छ बना
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और मनुष्य सााँस लेने के मलये िड़पिा है,; वह अपनी अनेक त्विाओीं से छुटकारा
पाने के मलये प्राथाना करिा है । अपने बोि से छुटकारा पाने के मलये मनष्ु य अपने
उन्माद में सब कुछ करिा है , लेककन वही एक काम नहीीं करिा जो वास्िव में उसे
उसके बोि से छुटकारा ददला सकिा है, और वह है उस बोि को िेंक दे ना ।
मैं िो केवल ववचि बिािा हूाँ ; ककन्िु अपनी त्विा को उिार िेंकने का काम हरएक
को स्वयीं ही करना होगा, िाहे वह ककिना ही कष्टदायी तयों न हो ।अपने आपसे
अपने बिाव के मलये ककसी िमत्कार की प्रिीक्षा न करो, न ही पीड़ा से डरो; तयोंकक
आवरण-रदहि ज्ञान िुम्हारी पीड़ा को स्थायी आनींद में बदल दे गा ।
किर यदद ददव्य ज्ञान की नग्न िा में िुम्हारा अपने आप से सामना हो और यदद
परमात्मा िम्
ु हे बुलाकर पूछे, ”िम
ु कहााँ हो ?” िो िम
ु शमा महसस
ू नहीीं करोगे, न
िुम डरोगे, न ही िुम परमात्मा से तछपोगे । बक्कक िुम अडोल, बन्िन-मुति, ददव्य
शाींति से यत
ु ि खड़े रहोगे और परमात्मा को उत्िर दें गे;”
हमारे प्रभ,ु हमारी आत्मा, हमारे अक्स्ित्व, हमारे एक मात्र अहम ्, हमें दे खखये ।
लज्जा, भय,और पीड़ा से हम नेकी और बदी के लम्बे, ववषम, और टे ढ़े-मेढ़े, उस रास्िे
पर िलिे रहे हैं क्जसे आपने हमारे मलये समय के आरन्भ में तनिााररि ककया था ।
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हमारे घाव भर ददये हैं, और हमें वापस आपकी पावन उपक्स्थति में ला खड़ा ककया
है — नेकी और बदी से मुति, जीवन और मत्ृ यु के आवरणों से मुति;
समय आ गया ै
हमें नीड़ में ले जाने के मलये ममु शाद ने बसन्ि की एक ऐसी राि िन
ु ी क्जसके नेत्र
कोमल और उज्जवल थे, उसकी सााँस उष्ण और सुगक्न्िि थी, क्जसका ह्रदय सजीव
और सजग था ।
वे आठ सपाट पत्थर, जो हमारे बैठने के काम आिे थे, अभी िक वैसे ही अिा-िक्र
के आकार में रखे थे जैसे हम उन्हें उस ददन छोड़ गए थे जब मुमशाद को बेसार ले
जाया गया था ।
ववशाल िरीं गों के रूप में ये िुम्हारे कानों के िारों ओर लहरा रहे हैं । अपने कानों
को अन्य सब स्वरों से मुति कर दो िाकक इन्हे सुन सको । उिावली- भरा ददन
क्जसे आसानी से ममटा दे िा है , उिावली से मत
ु ि राबत्र उसे अपने क्षण भर के जाद ू
से पुनिः बना दे िी है तया िााँद और िारे ददन की रौशनी में तछप नहीीं जािे ?
ददन क्जसे ककपना और असत्य के ममश्रण में डुबा दे िा है, राबत्र उसे नपे-िुले उकलास
के साथ दरू -दरू िक गािी है । जड़ी-बूदटयों के सपने भी राबत्र के गायक-वन्ृ द में
शाममल होकर उनके गीि में योग दे िे हैं सुनो आकाशवपण्डों को :गगन में वे िूलिे
सन
ु ािे हैं
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लोररयााँदलदली बालू के पालने में सो रहे भीमकाय मशशु को,िीथड़े कींगाल के पहने
हुए राजा को,बेड़ड़यों-जींजीरों में जकड़ी हुई दाममनी को–पोिड़ों में मलपटे स्वयीं
परमात्मा को सन
ु ो िम
ु िरिी को,एक ही समय पर जो प्रसव में कराहिी है, दि
ू भी
वपलािी है ,पालिी है ,
सुनो अपनी राहों पर रें गिे जींिुओीं को,रहस्यमय गीि अपने गुनगुनािे कीड़ों
को;ककस्से िारागाहों के, गीि जल- प्रवाहों के , सन
ु ो अपने सपनों में दोहरािे ववहीं गों
को; वक्ष
ृ ों को, िाड़ड़यों को, हर एक जीव को मत्ृ यु के प्याले में गट-गट पीिे जीवन
को । मशखर से और वादी से, मरुस्थल और सागर से,
िण
ृ ावि भूमम के नीिे से और वायु से आ रही हैं िुनौिी समय में तछपे प्रभु को ।
सुनो सभी मािाओीं को, कैसे वे रोिी हैं, कैसे बबलखिी हैं और सभी वपिाओीं को, कैसे
वे कराहिे हैं कैसे आहें भरिे हैं ।
सुनो न्यायी लोगों की िुम प्राथानाओीं को लोभ की िीखों के साथ सुर ममलािे हुए,
बच्िों की भोली-भाली िोिली बािों को दष्ु टों की बकबक के साथ िुक ममलािे हुए।
और ककसी कन्या की लज्जारुण मस्
ु कान को वेश्या की ित्ू िािा के सींग िहिहािे
हुए, और एक वीर के हषोन्माद को ककसी मायावी के वविार गुनगुनािे हुए ।
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गीि इिना सूक्ष्म जो कान सुन पाये न —गीि इिना भव्य, और अनन्ि िैलाव
में,स्वर में गहराई और टे क में ममठास इिनी,िुलना में िररश्िों के िराने और वन्ृ द
गान लगिे मात्र कोलाहल और बड़बड़ाहट हैं आत्म-ववजेिा का यही ववजय-गान है ।
पवाि जो राबत्र की गोद में हैं ऊाँघिे,यादों में डूबे मरू मलये टीले रे ि के,भ्रमणशील
िारे , सागर नदी में जो घम
ू िे, तनवासी-प्रेि-पुररयों के,पावन-त्रयी और हरी इच्छा ,करिे
आत्म-ववजेिा का स्वागि है , जय घोष है । भाग्य वान हैं वे जो सुनिे हैं और बूििे
।
भाग्य वान हैं लोग क्जनको राबत्र सींग अकेले में होिी अनुभूति है राबत्र जैसी शाक्न्ि
की,गहराई की, ववस्िार की ;लोग वे, अाँिेरे में िेहरों पर क्जनके अाँिेरे में ककये
गयेअपने कुकमों की पड़िी नहीीं मार है ;
लोग वे, आाँसू क्जनकी ररकिे नहीीं पलकों में साचथयों की आाँखों से जो उन्होंने बहाये
थे ;हाथों में न क्जनके लोभ से, द्वेष से, होिी कभी खाज है ;कानो को न क्जनके
अपनी िष्ृ णाओीं की घेरिी िूत्कार है ;वववेक को न क्जनके डींक कभी मारिे उनके
वविार हैं भाग्य वान हैं,
ह्रदय क्जनके समय के हर कोने से तघरकर आिी हुई ववववि चिन्िाओीं के बैठने के
छत्िे नहीीं ;बुवि में क्जनकी भय सुरींग खोद लेिे नहीीं ;साहस के साथ जो कह सकिे
हैं राबत्र से, ”ददखा दो हमें ददन को ”कह सकिे हैं ददन को, ”ददखा दो हमें राबत्र को
”।
हााँ, बहुि भाग्यवान हैं क्जनको राबत्र सींग अकेले में होिी अनुभतू ि है राबत्र जैसी
समस्वरिा, नीरविा, अनन्ििा की । उनके मलए ही केवल गािी है राबत्र यह गीि
आत्म-ववजेिा का ।यदद िुम ददन के िठ
ूीं े लाींछनों का सामना मसर ऊींिा रखकर
ववश्वास से िमकिी आाँखों से करना िाहिे हो, िो शीघ्र ही राबत्र की ममत्रिा प्राप्ि
करो ।
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राबत्र के साथ मैत्री करो । अपने ह्रदय को अपने ही जीवन रति से अच्छी िरह
िोकर उसे राबत्र के ह्रदय में रख दो । अपनी आवरण हीीं कामनाएाँ राबत्र के वक्ष को
सौंप दो, और ददव्य ज्ञान के द्वारा स्विन्त्र होने की महत्त्वाकााँक्षा के अतिररति
अन्य सभी महत्त्वाकाींक्षाओीं की उसके िरणों में बमल दे दो ।
तयोंकक मनुष्य, घखृ णि पैसे के गुलाम, अपने स्वामी की सेवा में व्यस्ि है , इिने
व्यस्ि की स्वामी की आवाज और इच्छा के अतिररति और ककसी आवाज और
इच्छा की ओर ध्यान नहीीं दे सकिे ।और भयींकर है मनष्ु य के स्वामी का कारोबार
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और इसमलए, लहू के नशे में िरू मनष्ु य मनुष्यों को इस ववश्वास में मारिे िले
जािे हैं कक क्जन मनुष्यों का कोई खून करिा है , िरिी के सब प्रसादों और आकाश
की समस्ि उदारिा में उन मनुष्यों का सभी दहस्सा उसे ववरासि में ममल जािा है ।
या कभी कोई आाँख अन्य आाँखों को नोिकर सुींदरिा के ववववि रूपों के प्रति
अचिक सजग हुई है ?तया ऐसा कोई मनुष्य या मनष्ु य का समुदाय है जो केवल
एक घण्टे के वरदानों का भी परू ी िरह उपयोग कर सके, वरदान िाहे खाने पीने के
पदाथों के हों,
िाहे प्रकाश और शाक्न्ि के ? िरिी क्जिने जीवों को पाल सकिी है उससे अचिक
जीवों को जन्म नहीीं दे िी । आकाश अपने बच्िों के पालन के मलये न भीख माींगिा
है , न िोरी करिा है ।वे िठ
ू बोलिे हैं जो मनुष्य से कहिे हैं, ”यदद िुम िप्ृ ि होना
िाहिे हो िो मारो और क्जन्हे मारो उनकी ववरासि प्राप्ि करो ।”
मनष्ु य भी तया एक दै त्याकार कनखजरू ा नहीीं है, राष्र क्जसके अनेक पैर हैं ?वे िठ
ू
बोलिे हैं जो मनुष्य से कहिे हैं, ” शासन करना सम्मान की बाि है , शामसि होना
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परन्िु भोले लोग अपने स्वामी पैसे के मसिाींिों को आसानी से सि मान लेिे हैं ।
पैसे और जमाखोरों में वे भक्तिपूणा ववश्वास रखिे हैं और उनकी हर मनमानी सनक
के आगे मसर िक
ु ािे हैं ।राबत्र का न वे ववश्वास करिे हैं न परवाह । जबकक राबत्र
मुक्ति के गीि गािी है , और मुक्ति िथा प्रभु-प्राक्प्ि की प्रेरणा दे िी है ।
िम्
ु हे िो मेरे साचथयो, वे या िो पागल करार दें गे या पाखण्डी ।मनष्ु य की कृिध्निा
और िीखे उपहास का बुरा मि मानना ; बक्कक प्रेम और असीम िैया के साथ स्वयीं
उनसे िथा आग और खून की बाढ़ से, जो शीघ्र ही उनपे टूट पड़ेगी, उनके बिाव के
मलये उद्यम करना । समय अ गया है कक मनुष्य मनुष्य की हत्या करना बींद कर
दें । सूय,ा िन्द्र, और िारे अनाददकाल से प्रिीक्षा कर रहे हैं कक उन्हें दे खा, सुना और
समिा जाये;
बहुि बड़ी है यह िन
ु ौिी, पर मिरु होगी ववजय भी । िल
ु ना में और सब िच्
ु छ
िथा खोखला है । हााँ, समय आ गया है । पर ऐसे बहुि कम हैं जो ध्यान दें गे ।
बाक़ी को एक और पुकार की
प्रिीक्षा करनी होगी —–
एक और भोर की ।
अध्याय -34
आदमी एक लघु परमात्मा है
☞ ववराट कैसे होगा ☜
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मााँ–अण्डाणु
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मीरदाद; मीरदाद िाहिा है कक इस राि के सन्नाटे में िुम एकाग्र चित्ि होकर मााँ–
अण्डाणु के ववषय में वविार करो । स्थान और जो कुछ्ह उसके अींदर है एक
अण्डाणु है क्जसका खोल समय है यही मााँ-अण्डाणु है ।
जैसे िरिी को वायु लपेटे हुए है, वैसे ही इस अण्डाणु को लपेटे हुए है ववकमसि
परमात्मा, ववराट परमात्मा—जीवन जो कक अमूि,ा अनन्ि और अकथ है ।
इस अण्डाणु में मलपटा हुआ है कींु डमलि परमात्मा लघ–ु परमात्मा–जीवन जो मूिा है
ककन्िु उसी िरह अनन्ि और अकथ ।
ब्रह्माण्ड में जो भी पदाथा और जीव हैं, वे सब उसी लघु- परमात्मा को लपेटे हुए
समय-स्थान के अण्डाणुओीं से अचिक और कुछ नहीीं, परन्िु सबमें लघु-परमात्मा
प्रसार की मभन्न-मभन्न अवस्थाओीं में है ।
और सक्ृ ष्ट में नीिे-नीिे की श्रेणी में क्रमानुसार ऐसा ही है । दृश्य िथा अदृश्य सब
पदाथो और जीवों का प्रतितनचित्व करिे अनचगनि अण्डाणओ
ु ीं को मााँ-अण्डाणु के
अींदर इस क्रम में रखा गया है कक प्रसार में बड़े अण्डाणु के अींदर उसकेतनकटिम
छोटा अण्डाणु है, और यही क्रम सबसे छोटे अींडाणु िक िलिा है ।
शब्द, अचिक से अचिक, बबजली की कौंि हैं जो क्षक्षतिजों की िलक ददखिी हैं; ये
उन क्षक्षतिजों िक पहुाँिने का मागा नहीीं हैं ;
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िब िुम दे खोगे कक मेरे शब्द िुम्हारी कमजोर बुवि के मलये बलशाली पींख हैं ।अपने
िारों ओर की प्रकृति पर ध्यान दो ।तया िुम उसे अण्डाणु के तनयम पर रिी गई
नहीीं पािे हो ? हााँ, अण्डाणु में िुम्हे सम्पूणा सक्ृ ष्ट की कींु जी ममल जायेगी ।
तया जीवन तनरीं िर अण्डाणु में से ही नहीीं तनकल रहा है और वापस अण्डाणु में ही
नहीीं जा रहा है ? तनिःसींदेह िमत्कारपूणा और तनरीं िर है सक्ृ ष्ट की प्रकक्रया ।
जीवन का प्रवाह मााँ अण्डाणु कक सिह से उसके केंद्र िक, िथा केंद्र से वापस सिह
िकबीना रुके जारी रहिा है ।
केंद्र- क्स्थि लघु- परमात्मा जैसे-जैसे समय िथा स्थान में िैलिा जािा है, जीवन
के तनम्निम वगा से जीवन के उच्ििम वगा िक एक अण्डाणु से दस
ू रे अण्डाणु में
प्रवेश करिा िला जािा है ।
सबसे नीिे का वगा समय िथा स्थान में सबसे कम िैला हुआ है और सबसे ऊाँिा
बगा सबसे अचिक । एक अण्डाणु से दस
ू रे अण्डाणु में जाने में लगने वाला समय
मभन्न-मभन्न होिा है–कुछ क्स्थतियों पलक की एक िपक होिा है िो कुछ में पूरा
यग
ु ।
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जबकक वास्िव में ववृ ि का िात्पया है समय और स्थान में सब िरि िैलना ; और
प्रगति का िात्पया है सब ददशाओीं में समान गति ; पीछे भी और आगे भी, और नीिे
िथा दायें-बायें और ऊपर भी ।
अिएव िरम ववृ ि है स्थान से परे ़िैल जाना और िरम प्रगति है समय की
सीमाओीं से आगे तनकल जाना, और इस प्रकार ववराट-परमात्मा में लीन हो जाना
और समय िथा स्थान के बन्िनों में से तनकलकर परमात्मा की स्विन्त्रिा िक जा
पहुाँिना जो स्विन्त्रिा कहलाने योग्य एकमात्र अवस्था है ।
मीरदाद िाहिा है कक िुम इन शब्दों को समि लो िाकक इन्हें समिने में िुम सब
िड़पने वालों की सहायिा कर सको ।
मनुष्य से नीिे जीवों के सब वगा सामूदहक अण्डाणुओीं में बन्द हैं । इस िरह पौिों
के मलए उिने ही अण्डाणु हैं क्जिने पौिों के प्रकार हैं,
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जो अचिक ववकमसि हैं उनके अींदर सभी कम ववकमसि बन्द हैं और यही क्स्थति
कीड़ों, मछमलयों और स्िनपायी जीवों की है ; सदा ही जीवन के एक अचिक ववकमसि
वगा के अन्दर उससे नीिे के सभी वगा बन्द होिे हैं ।
जैसे सािारण अण्डे के भीिर की जदी और सिेदी उसके अींदर के िूजों के भ्रूण का
पोषण और ववकास करिी है , वैसे ही ककसी भी अण्डाणु में बन्द सभी अण्डाणु उसके
अन्दर के लघ-ु परमात्मा का पोषण और ववकास करिे हैं ।
इसमलए समय-स्थान में लघु-परमात्मा के प्रसार में अन्िर होिा है । गैस में वह
बबखरा हुआ आकारहीन होिा है , पर िरल पदाथा में अचिक घना हो जािा है और
आकर िारण करने की क्स्थति में आ जािा है;
पशु में वह महसूस करिा है , िलिा है और सींिान पैदा करिा है ; उसमे स्मरण
शक्ति होिी है और सोि-वविार के मूल ित्व भी लेककन मनुष्य में, इन सब गुणों के
अतिररति, वह एक व्यक्तित्व और सोि-वविार करने, अपने आपको अमभव्यति करने
िथा सज
ृ न करने की क्षमिा भी प्राप्ि कर लेिा है ।
तनिःसींदेह परमात्मा के सज
ृ न की िल
ु ना में मनष्ु य का सज
ृ न ऐसा ही है जैसा ककसी
महान वास्िुकार द्वारा तनममाि एक भव्य मींददर या सुन्दर दग
ु ा की िुलना में एक
बच्िे द्वारा बनाया गया िाींस के पत्िों का घर। ककन्िु है िो वह किर भी सज
ृ न
ही।प्रत्येक मनष्ु य एक अलग अण्डाणु बन जािा है,
ककसी मनष्ु य को अपने अींदर बींद रखने वाले अण्डाणु का ववस्िार उस मनष्ु य के
समय-स्थान के क्षक्षतिजों के ववस्िार से नापा जािा है । जहााँ एक मनुष्य की समय
िेिना और उसके शैशव से लेकर वत्िामान घडी िक की अकप अवचि से अचिक
और कुछ नहीीं समा सकिा,
और उसके स्थान के क्षक्षतिजों के घेरे में उसकी दृष्टी की पहुाँि से परे का कोई
पदाथा नहीीं आिा, वहााँ दस
ू रे व्यक्ति के क्षक्षतिज स्मरणािीि भि
ू और सद
ु रू भववष्य
को, िथा स्थान की लम्बी दरू रयों को क्जन पर अभी उसकी दृष्टी नहीीं पड़ी है अपने
घेरे में ले आिे हैं।
प्रसार के मलए सब मनुष्यों को समान भोजन ममलिा है, पर उनका खाने और पिाने
का सामथ्या समान नहीीं होिा ; तयोंकक वे एक ही अण्डाणु में से एक ही समय और
एक ही स्थान पर नहीीं तनकले हैं।
इसमलए समय-स्थान में उनके प्रसार में अन्िर होिा है; और इसी मलये कोई दो
मनष्ु य ऐसे नहीीं ममलिे जो हूबहू एक जैसे हों।सब लोगों के सामने प्रिरु मात्रा में
और खुले हाथों परोसे गये भोजन में से एक व्यक्ति स्वणा की शुििा और सुींदरिा
को दे खने का आनींद लेिा है और िप्ृ ि हो जािा है ,
जब कक दस
ू रा स्वणा का स्वामी होने का रस लेिा है और सदा भूखा रहिा है । एक
मशकारी एक सुींदर दहरनी को दे खकर उसे मारने और खाने के मलये प्रेररि होिा है ;
एक कवी उसी दहरनी को दे खकर मानो पींखों पर उड़ान भरिा हुआ उस समय और
स्थान में जा पहुाँििा है क्जसका मशकारी कभी सपना भी नहीीं दे खिा ।
ककन्िु आत्म-ववजेिा के सदा कुछ ऐसे पक्ष होिे हैं क्जन्हे आत्म-ववजेिा के मसवाय
और कोई न कभी समि सकिा है , न महसूस कर सकिा है । यही कारण है कक वह
सबके बीि में रहिे हुए भी अकेला है; वह सींसार में है किर भी सींसार का नहीीं है ।
लघु-परमात्मा बन्दी नहीीं रहना िाहिा। वह मनुष्य की बुवि से कहीीं ऊाँिी बुवि का
प्रयोग करिे हुये समय िथा स्थान के कारावास से अपनी मुक्ति के मलये सदै व
काया-रि रहिा है । तनम्न स्िर के लोगों में इस बुवि को लोग सहज-बुवि कहिे हैं।
सािारण मनुष्यों में वे इसे िका और उच्ि कोदट के मनुष्यों में इसे ददव्य बुवि
कहिे हैं। यह सब िो वह है ही, पर इससे अचिक भी बहुि कुछ है । यह वह अनाम
शक्ति है क्जसे कुछ लोगों ने ठीक ही पववत्र शक्ति का नाम ददया है , और क्जसे
मीरदाद ददव्य ज्ञान कहिा है ।
समय के खोल को बेिने वाला और स्थान की सीमा को लााँघने वाला प्रथम मानव-
पुत्र ठीक ही प्रभु का पुत्र कहलािा है । उसका अपने ईश्वरत्व का ज्ञान ठीक ही पववत्र
शक्ति कहलािा है ।
ककन्िु ववश्वास रखो िुम भी प्रभु के पुत्र हो, और िुम्हारे अन्दर भी वह पववत्र शक्ति
अपना काया कर रही है । उसके साथ काया करो उसके ववरुि नहीीं।परन्िु जब िक
िुम समय के खोल को बेि नहीीं दे िे और स्थान की सीमा को लााँघ नहीीं जािे, िब
िक कोई यह न कहे , ”मैं प्रभु हूाँ”।
बक्कक यह कहो ” प्रभु ही मैं हैं।” इस बाि को अच्छी िरह ध्यान में रखो, कहीीं ऐसा
न हो कक अहींकार िथा खोखली ककपनाएाँ िुम्हारे ह्रदय को भ्रष्ट कर दें और िुम्हारे
अन्दर हो रहे पववत्र शक्ति के काया का ववरोि करें । तयोंकक अचिकााँश लोग पववत्र
शक्ति के ववरुि काया करिे हैं, और इस प्रकार अपनी अींतिम मुक्ति को
स्थचगिकअऋ दे िे हैं।
दोनों में से एक का भी स्नेहपूणा स्वागि करना दोनों का बन्द होना िथा नेकी और
बदी की अन्िहीन हास्य-जनक िेष्टाओीं का बन्िक बने रहना है ।
सम्भव है कक वे एक ही जीवन- काल में युगों को समेट लें िथा अपार दरू रयों को
ममटा दें । वे इस बाि की प्रिीक्षा नहीीं करिे कक मत्ृ यु उन्हें उनके इस अण्डाणु से
अगले अण्डाणु में ले जाये;
िाकक समय िथा स्थान की िुम्हारे ह्रदय पर कोई पकड़ न रहे । क्जिना अचिक
िम्
ु हारा पररग्रह होगा, उिने ही अचिक होंगे िम्
ु हारे बन्िन।
जजतना िम तुम् ारा पररग्र ोगा, उतने ी िम ोंगे तुम् ारे बन्धन।
ााँ, अपने ववश्वास, अपने प्रेम
तथा हदव्य ज्ञान िे द्वारा
मजु क्त िे मलये अपनी तड़प िे
अनतररक्त र वस्तु िी
लालसा िो त्याग दो।
*************************************
मीरदाद; इस राि के सन्नाटे में मीरदाद परमात्मा परमात्मा की ओर जानेवाली राह पर कुछ प्रकाश-
कण ववखेरना िाहिा है ।
वववाद से बिो सत्य स्वयीं प्रमाखणि है ; उसे ककसी प्रमाण की आवश्यकिा नहीीं है ।
क्जसे िका और प्रमाण कक आवश्यकिा होिी है ,
उसे दे र-सवेर िका और प्रमाण के द्वारा ही चगरा ददया जािा है । ककसी बाि को
मसि करना उसके प्रतिपक्ष को खींड़डि करना है । उसके प्रतिपक्ष को मसि करना
उसका खींडन करना है । परमात्मा का कोई प्रतिपक्ष है ही नहीीं किर िम
ु कैसे उसे
मसि करोगे या कैसे उसका खींडन करोगे ?
और अनेक बींदरगाहों पर रुकिे हैं। साविान रहो कक िुम उनमे तया लादिे हो;
तयोंकक अपनी यात्रा समाप्ि करने के बाद वे अपना माल आखखर िह
ु ारे द्वार पर ही
उिारें गे। घर के मलए जो महत्वज िाड़ू का है , वही महत्व ह्रदय के मलए आत्म-
तनरीक्षण का है ।
अपने ह्रदय को अच्छी िरह बुहारो। अच्छी िरह बुहारा गया ह्रदय एक अजेय गुगा
है ।जैसे िुम लोगों और पदाथों को अपना आहार बनािे हो, वैसे ही वे िुम्हे अपना
आहार बनािे हैं। यदद िम
ु िाहिे हो कक िम्
ु हे ववष न ममले, िो दस
ू रों के मलए
स्वास्थ्य-प्रद भोजन बनो। जब िुम्हे अगले कदम के ववषय में सींदेह हो, तनश्छल
खड़े रहो।
क्जसे िुम नापसींद करिे हो वह िुम्हे नापसींद करिा है, उसे पसींद करो और ज्यों का
त्यों रहने दो। इस प्रकार िुम अपने रास्िे से एक बािा हटा दोगे। सबसे अचिक
असह्य परे शानी है ककसी बाि को परे शानी समिना। अपनी पसींद का िन
ु ाव कर
लो; हर वस्िु स्वामी बनना है या ककसी का भी नहीीं। बीि का कोई मागा सम्भव
नहीीं। रास्िे का हर रोड़ा एक िेिावनी है ।
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िेिावनी को अच्छी िरह पढ़ लो, और रास्िे का रोड़ा प्रकाश स्िम्भ बन जायेगा।
सीिा टे ढ़े का भाई है। एक छोटा रास्िा है दस
ू रा घुमावदार। टे ढ़े के प्रति िैया रखो।
ववश्वास-यत
ु ि िैया स्वास्थ्य है । ववश्वास-रदहि िैया अिाांग है ।होना, महसस
ू करना,
सोिना, ककपना करना, जानना –यह हैं मनुष्य के जीवन-िक्र के मुख्य पड़ावों का
क्रम। प्रशींसा करने और पाने से बिो;
िम
ु लोगों को केवल वाही दे िे हो जो िम्
ु हारे पास उनकी अमानि है । जो िम्
ु हारा
है , मसिा िुम्हारा ही, वह िुम दे नहीीं सकिे िाहो िो भी नहीीं। अपना सींिुलन बनाये
रखो, और िुम मनुष्यों के मलए अपने आपको नापने का मापदण्ड और िौलने की
िराजू बन जाओ।
गरीबी और अमीरी नाम की कोई िीज नहीीं है , बाि वस्िुओीं का उपयोग करने के
कौशल की है असल में गरीब वह है जो उन वस्िओ
ु ीं का जो उसके पास हैं गलि
उपयोग करिा है । अमीर वह है जो अपनी वस्िुओीं का सही उपयोग करिा है ।
बासी रोटी की सूखी पपड़ी भी ऐसी दौलि हो सकिी है क्जसे आींका न जा सके।
सोने से भरा िहखाना भी ऐसी गरीबी हो सकिा है क्जससे छुटकारा न ममल सके।
जहााँ बहुि से रास्िे एक केंद्र में ममलिे हों वहााँ इस अतनश्िय में मि पड़ो कक ककस
रस्िे से िला जाये।
प्रभु की खोज में लगे ह्रदय को सभी रास्िे प्रभु की ओर लेजा रहे हैं। जीवन के सब
रूपों के प्रति आदर-भाव रखो। सबसे िुच्छ रूप में सबसे अचिक महत्त्वपूणरू
ा प की
कींु जी छुपी तछपी रहिी है ।
प्रकृति के कारखाने में कोई वस्िु िभी बनिी है जब वह प्रकृति की प्रेमपूणा दे खभाल
और श्रमपूणा कौशल की अचिकारी हो। िो तया वह कम से कम िुम्हारे आदर कक
अचिकारी नहीीं होनी िादहए ?
यदद मच्छर और िीींदटयााँ आदर के योग्य हों, िो िुम्हारे साथी मनुष्य उनसे ककिने
अचिक आदर के योग्य होने िादहयें ? ककसी मनुष्य से घण
ृ ा न करो। एक भी मनुष्य
से घण
ृ ा करने की अपेक्षा प्रत्येक मनुष्य से घण
ृ ा पाना कहीीं अच्छा है ।
आज िुम मशष्य हो। कल िुम मशक्षक बन जाओगे। अच्छे मशक्षक बनने के मलये
अच्छे मशष्य बने रहना आवश्यक है । सींसार में से बदी के घाींस-पाि को उखाड़
िेंकने का यत्न न करो; तयोंकक घास-पाि की भी अच्छी खाद बनिी है ।
पाखण्ड पर पदाा डाला जा सकिा है ,लेककन कुछ समय के मलए ही;उसे सदा ही परदे
में नहीीं रखा जा सकिा, न ही उसे हटाया या नष्ट ककया जा सकिा है । दवू षि
वासनाएाँ अींिकार में जन्म लेिी हैं और वहीीँ िलिी-िूलिी हैं। यदद िुम उन्हें
तनयींत्रण में रखना िाहिे हो िो उन्हें प्रकाश में आने की स्विन्त्रिा दो।
ऊाँिे स्थान पर रखो, और उसे दे खने के मलये लोगों को बुलािे न किरो क्जन्हे प्रकाश
कक आवश्यकिा है उन्हें ककसी तनमींत्रण की आवश्यकिा नहीीं होिी।
क्जस पथ पर पद-चिन्ह बहुि कम और दरू -दरू हैं, वह सीिा और सरु क्षक्षि है, िाहे
कहीीं-कहीीं उबड़-खाबड़ और सुनसान है । जो मागादशान िाहिे हैं उन्हें मागा ददखा
सकिे है , उस पर िलने के मलए वववश नहीीं कर सकिे। याद रखो िुम मागादशाक
हो। अच्छा मागादशाक बनने के मलये आवश्यक है कक स्वयीं अच्छा मागादशान पाया
हो। अपने मागादशाक पर ववश्वास रखो।
कई लोग िम
ु से कहें गे, ”हमें रास्िा ददखाओ।” ककन्िु थोड़े ही बहुि ही थोड़े कहें गे,
”हम िुमसे ववनिी करिे हैं कक रास्िे में हमारी रहनुमाई करो”।आत्म-ववजय के मागा
में वे थोड़े- से लोग उन कई लोगों से अचिक महत्त्व रखिे हैं। िुम जहााँ िल न
सको रें गो।
जहााँ दौड़ न सको, िलो; जहााँ उड़ न सको, दौड़ो; जहााँ समूिे ववश्व को अपने अींदर
रोक कर खड़ा न कर सको,उड़ो। जो व्यक्ति िम्
ु हारी अगआ
ु ई में िलिे हुए ठोकर
खािा है उसे केवल एक बार, दो बार या सौ बार ही नहीीं उठाओ।
भाग्यशाली हैं वे मनष्ु य जो ददव्य ज्ञान से प्राप्ि होने वाली पववत्र स्विींत्रिा के नशे
में उन्मत्ि रहिे हैं। मनुष्य के ज्वर का रूप-पररविान ककया जा सकिा है ; युि के
ज्वर को शाक्न्ि के ज्वर में बदला जा सकिा है
और िन-सींिय के ज्वर को प्रेम का सींिय करने के ज्वर में। ऐसी है ददव्य ज्ञान की
वह रसायन-ववद्या क्जसे िम्
ु हे उपयोग में लाना है और क्जसकी िम्
ु हे मशक्षा दे नी है ।
जो मर रहे हैं उन्हें जीवन का उपदे श दो,
जो जी रहे हैं उन्हें मत्ृ यु का। ककन्िु जो आत्म ववजय के मलए िड़प रहे हैं, उन्हें
दोनों से मुक्ति का उपदे श दो।वश में रखने और वश में होने में बड़ा अींिर है । िुम
उसी को वश में रखिे हो क्जससे िुम प्यार करिे हो।
क्जससे िम
ु घण
ृ ा करिे हो, उसके िम
ु वश में होिे हो। वश में होने से बिो। समय
और स्थान के ववस्िार में एक से अचिक पक्ृ थ्वयााँ अपने पथ पर घूम रहीीं हैं।
िम्
ु हारी पथ्
ृ वी इस पररवार में सबसे छोटी है , और यह बड़ी हृष्ट-पुष्ट बामलका है ।
एक तनश्िल गति—–कैसा ववरोिाभास है ।
ककन्िु परमात्मा में सींसारों की गति ऐसी ही है ।यदद िुम जानना िाहिे हो कक
छोटी-बड़ी वस्िुएाँ बराबर कैसे हो सकिी हैं िो अपने हाथों की अाँगुमलयों पर दृष्टी
डालो। सींयोग बुविमानों के हाथ में एक खखलौना है ; मुखा सींयोग के हाथ में खखलौना
होिे हैं। कभी ककसी िीज की मशकायि न करो।
ककसी िीज की मशकायि करना उसे अपने आपके मलये अमभशाप बना लेना है । उसे
भली प्रकार सहन कर लेना उसे उचिि दण्ड दे ना है । ककन्िु उसे समि लेना उसे
एक सच्िा सेवक बना लेना है ।
प्रायिः ऐसा होिा है कक मशकारी लक्ष्य ककसी दहरनी को बनािा है परन्िु लक्ष्य िुकने
से मारा जािा है कोई खरगोश क्जसकी उपक्स्थति का उसे बबलकुल ज्ञान न था।
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ऐसी क्स्थति में एक समिदार मशकारी कहे गा, ”मैंने वास्िव में खरगोश को ही लक्ष्य
बनाया था, दहरनी को नहीीं। और मैंने अपना मशकार मार मलया। ”लक्ष्य अच्छी िरह
से सािो।
हो सकिा है ककसी मछली के ददए सौ अण्डों में से केवल एक में से बच्िा तनकले।
िो भी बाकी तनन्यानवे व्यथा नहीीं जािे। प्रकृति बहुि उदार है, और बहुि वववेक है
उसकी वववेकहीनिा में।
िुम भी लोगों के ह्रदय और बुवि में अपने ह्रदय और बुवि को बोने में उसी प्रकार
उदार और वववेकपूवक
ा वववेकहीन बनो। ककसी भी पररश्रम के मलए पुरस्कार मि
मााँगो। जो अपने पररश्रम से प्यार करिा है ,
उसका पररश्रम स्वयीं पयााप्ि पुरस्कार है ।
सज
ृ नहार शब्द िथा पूणा सींिल
ु न को याद रखो। जब िम
ु ददव्य ज्ञान के द्वारा यह
सींिुलन प्राप्ि कर लोगे िभी िुम आत्म-ववजेिा बनोगे, और िुम्हारे हाथ प्रभु के
हाथों के साथ ममलकर काया करें गे।
इस ददन के अनेक िाममाक अनष्ु ठानों में सबसे अचिक महत्वपूणा हैं; बमल िढ़ाये
जाने वाले बैल का वि, बाली-कुण्ड की अक्ग्न को प्रज्वमलि करना, और उस अक्ग्न
से वेदी पर पुराने दीपक के स्थान पर नये दीपक को जलना। इस वषा दीपक भेंट
करने के मलए बेसार के सुलिान को िुना गया था।
उत्सव के एक ददन पहले शमदाम ने हमें और मुमशाद को अपने कक्ष में बुलाया
और हमसे अचिक ममु शाद को सम्बोचिि करिे हुए उसने ये शब्द कहे ;शमदाम:> कल
एक पववत्र-ददवस है ;
िम
ु भी अपने अवसर की प्रिीक्षा करो। यदद मैंने मीरदाद के साथ अन्याय ककया है
िो वह मेरे अन्याय को क्षमा कर दे ।
मीरदाद : मीरदाद के साथ िुमने कोई अन्याय नहीीं ककया है लेककन शमदाम के
साथ िुमने घोर अन्याय ककया है ।
मीरदाद : अन्याय करने की स्विींत्रिा ? ककिने बेमोल हैं ये शब्द ! तयोंकक अपने
साथ अन्याय करना भी अन्याय का दास बनना है ; जबकक दस
ू रों के साथ अन्याय
करना एक दास का दास बन जाना है । ओह, भारी होिा है अन्याय का बोि।
शमदाम; यदद मैं अपने अन्याय का बोि उठाने को िैयार हूाँ िो इसमें िुम्हारा तया
बबगड़िा है ?
शमदाम : ओह, मि
ु े ऐसा ही रहने दो, बस ऐसा ही रहने दो। अपना भरी हाथ
मुिसे दरू हटा लो, और मि मारो मुिे िाबुक अपनी ििुर क्जव्हा से। मुिे अपने
बाकी ददन वैसे ही जी लेने दो जैसे मैं अब िक पररश्रम करिे हुए जीिा आया हूाँ।
जाओ, अपनी नौका कहीीं और बना लो, पर इस नौका में हस्िक्षेप न करो। िुम्हारे
और मेरे मलए, िथा िुम्हारी और मेरी नौकाओीं के मलए यह सींसार बहुि बड़ा है ।
कल मेरा ददन है । िम
ु सब एक ओर खड़े रहो और मि
ु े अपना काया करने दो —
तयोंकक मैं िुममें से ककसी का भी
हस्िक्षेप सहन नहीीं करूाँगा।
इस वषा का दीपक भेंट करने का सम्मान मुिे प्राप्ि हुआ था, इसमलए मैंने बुवि
और िन का उपयोग करने में कोई सींकोि नहीीं ककया िाकक मेरा उपहार नौका के
योग्य हो। और मेरे प्रयास पूणि
ा या सिल रहे ; तयोंकक मेरे वैभव और मेरे मशकपकारों
के कौशल से जो दीपक िैयार हुआ, वह सिमि
ु एक दे खने योग्य िमत्कार था।
‘लेककन प्रभु मेरे मलए क्षमाशील और कृपालु था, वह मेरी दररद्रिा का भेद नहीीं
खोलना िाहिा था। तयोंकक उसने मि
ु े एक ऐसे दीपक के पास पहुींिा ददया क्जसका
प्रकश िकािौंि कर दे िा है और क्जसे बुिाया नहीीं जा सकिा, क्जसकी सुींदरिा
अनुपम और तनष्कलींक है ।
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उस दीपक को दे खकर मैं इस वविार से लज्जा में डूब गया कक मैंने अपने दीपक
की कभी कोई कीमि समिी थी। सो मैंने उसे कूड़े के ढे र पर िेंक ददया।
अध्याय -37
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मुमिचद लोगों िोआग और
खन िी बाढ़ से सावधान िरते ैं..
बर्ने िा मागच बताते ैं,
औरअपनी नौिा िो जल में उतारते ैं
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मीरदाद : तया िाहिे हो िुम मीरदाद से ? वेदी को सजाने के मलए सोने का रत्न-जड़ड़ि दीपक ?
परन्िु मीरदाद न सन
ु ार है , न जौहरी, आलोक-स्िम्भ और आश्रय वह भले ही हो।
या िुम िाबीज िाहिे हो बुरी नजर से बिने के मलये ? हााँ, िाबीज मीरदाद के पास
बहुि हैं, परन्िु ककसी और ही प्रकार के।
कौन है जो सय
ू ा पर कृपणिा का दोष लगा सके ? वह आाँख ककस काम की जो पैर
को िो अपने मागा पर ठोकर खाने से बिा ले,
लेककन जब ह्रदय राह टटोलने का व्यथा प्रयास कर रहा हो िो उसे ठोकरें खाने के
मलये और अपना रति बहाने के मलये छोड़ दे ?
दे खने की क्षमिा रखनेवाला ह्रदय और प्रकश में नहाई आत्मा िाहिे हो और उनके
मलए व्याकुल हो रहे हो, िो िम्
ु हारी व्याकुलिा व्यथा नहीीं है ।
और गरीब बकरे के प्राण अपनी प्राण-रक्षा के मलए भेंट करना िो वास्िव में मनुष्य
के मलये अत्यींि लज्जा की बाि है । तया ककया है िुमने इस पववत्र-ददन की पववत्र
भावना में योग दे ने के मलये,
जो प्रकट ववश्वास और हर परख में सिल प्रेम का ददन है ? हााँ, तनश्िय ही िुमने
िरह-िरह की रस्में तनभाई हैं, और अनेक प्राथानाएाँ दोहराई हैं।
तयोंकक नूह ने अपने समुद्रों को पराक्जि करिे समय िुम्हारे समुद्रों को पराक्जि
नहीीं ककया था, केवल उन पर ववजय पाने का मागा बिाया था।
और दे खो िम्
ु हारे समद्र
ु उिन रहे हैं और िम्
ु हारे जहाज को डुबाने पर िल
ु े हुए हैं।
जब िक िुम अपने िू़िान पर ववजय नहीीं पा लेि,े िुम आज का ददन मानाने के
योग्य नहीीं हो सकिे। िुममे से हर एक जल-प्रलय भी है ,
लहरें कभी उसे ऊींिाई के मशखर िक उठा दे िी हैं िो कभी गहराइयों िक खीींि ले
जािी हैं। तयोंकक क्जस प्रकार उसका जोड़ा बना हुआ है, उसकी कामनाओीं के भी
जोड़े बने हुए हैं। और यद्यवप दो परस्पर ववरोिी िीजें वास्िव में एक दस
ू रे की
पूरक होिी हैं, किर भी अज्ञानी लोगों को वे आपस में लड़िी-िगड़िी प्रिीि होिी हैं
और क्षण भर के यि
ु -ववराम की घोषणा करने के मलये िैयार नहीीं जान पड़िीीं।
यही है वह बाढ़ क्जससे मनुष्य को अपने अत्यींि लम्बे, कदठन द्वैिपूणा जीवन में
प्रतिक्षण, प्रतिददन सींघषा करना पड़िा है । यही है वह बाढ़ क्जसकी जोरदार बौछार
ह्रदय से िूट तनकलिी है और िुम्हे अपनी प्रबल िारा में बहा ले जािी है । यही है
वह बाढ़ क्जसका इींद्रिनुष िब िक िुम्हारे आकाश को शोमभि नहीीं करे गा जब िक
िम्
ु हारा आकाश िम्
ु हारी िरिी के साथ न जड़
ु जाये और दोनों एक न हो जाएाँ।
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जबसे आदम ने अपने आपको हौवा में बोया है , मनुष्य बवण्डरों और बािों की िसलें
काटिे िले आ रहे हैं। जब एक प्रकार के मनोवेगों का प्रभाव अचिक हो जािा है,
िब मनष्ु यों के जीवन का सींिल
ु न बबगड़ जािा है, और िब मनष्ु य एक या दस
ू री
बाढ़ की लपेट में आ जािे हैं िाकक सींिुलन पुनिः स्थावपि हो सके।
अ़िसोस ! िुम व्यस्ि हो बोि लादने में; व्यस्ि हो अपने रति में दख
ु ों से भरपूर
भोगों का नशा घोलने में; व्यस्ि हो कहीीं न ले जाने वाले मागों के मान-चित्र बनाने
में; व्यस्ि हो अींदर िााँकनेका कष्ट ककये बबना जीवन के गोदामों के वपछले अहािों
से बीज िन
ु ने में।
िुम डूबोगे तयों नहीीं मेरे लावाररश बच्िो ? िुम पैदा हुए थे ऊाँिी उड़ाने भरने के
मलये, असीम आकाश में वविरने के मलये, ब्रम्हाण्ड को अपने डैनों में समेि लेने के
मलये। परन्िु िम
ु ने अपने आप को उन परम्पराओीं और ववश्वासों के दरबों में बींद
कर मलया है
जो िम्
ु हारे परों को काटिे हैं, िम्
ु हारी दृष्टी को क्षीण करिे हैं और िम्
ु हारी नसों को
तनजीव कर दे िे हैं। िुम आने वाली बाढ़ पर ववजय कैसे पाओगे मेरे लावाररस बच्िो
? िुम प्रभु के प्रतिबबम्ब और समरूप थे,
क्जस बाढ़ के द्वार िुमने स्वयीं खोले हैं उसका सामना िुम कैसे करोगे मेरे
लावाररस बच्िो ? यदद िुम मीरदाद की बाि पर ध्यान नहीीं दोगे िो िरिी िुम्हारे
मलए कभी भी एक कब्र से अचिक कुछ नहीीं होगी, न ही आकाश एक क़िन से
अचिक कुछ होगा।
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पर सब में व्याप्ि है िुम्हारी सींककप- शक्ति और उनके ऊपर है िुम्हारे ददव्य ज्ञान
की छत्र-छाया।यह तनश्िय कर लो कक िुम्हारी नौका में पानी न ररस सके और वह
समुद्र- यात्रा के योग्य हो; ककन्िु इसी में अपना जीवन न गाँवा दे ना; अन्यथा यात्रा
आरम्भ का समय कभी नहीीं आयेगा, और अींि में िम
ु वहीीँ पड़े-पड़े अपनी नौका
समेि सड़-गल कर डूब जाओगे।
जला दो हर मनोवेग को, इससे पहले कक वह िुम्हें जला दें । ककसी मनोवेग के मुख
में यह दे खने के मलए मि िााँको कक उसके दाींि जहर से भरे हैं या शहद से। मिु-
मतखी जो िूलों का अमि
ृ इकट्ठा करिी है उनका ववष भी जमा कर लेिी है ।
ख़ुशी से िूले िथा उसके बोि के नीिे दबे ऐसे मनोवेग भी हैं जो िेजी से शोक के
कींकालों में बदल जािे हैं। कोमल दृष्टी िथा ववनीि आिरण वाले ऐसे मनोवेग भी
हैं जो अिानक भेड़ड़यों से भी अचिक भख
ू े,
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क्जस िि
ू ी से िम
ु जीवन का दि
ू पीिे हो उसी से मत्ृ यु का दि
ू भी तनकलिा है ।
जो हाथ िुम्हे पालने में िुलािा है वही हाथ िुम्हारी कब्र भी खोदिा है । द्वैि की
यही प्रकृति है, मेरे लावाररस बच्िो।
इिने हठी और अहीं कारी न हो जाना कक इसे बदलने का प्रयत्न करो। न ही ऐसी
मूखि
ा ा करना कक इसे दो आिे-आिे भागों में बााँटने का प्रयत्न करो िाकक अपनी
पसींद के आिे भाग को रख लो और दस
ू रे भाग को िेंक दो। तया िम
ु द्वैि के
स्वामी बनना िाहिे हो ? िो इसे न अच्छा समिो न बुरा। तया जीवन और मत्ृ यु
का दि
ू िम्
ु हारे मींह
ु में खट्टा नहीीं हो गया है ?
तया समय नहीीं आ गया है कक िुम एक ऐसी िीज से आिमन करो जो न अच्छी
है न बुरी, तयोंकक वह दोनों से श्रेष्ठ है ? तया समय नहीीं आ गया है कक िुम ऐसे
िल की कामना करो जो न मीठा है न कड़वा, तयोंकक वह नेकी और बदी के वक्ष
ृ
पर नहीीं लगा है ?तया िुम द्वैि के िींगुल से मुति होना िाहिे हो ?
िो उसके वक्ष
ृ को—नेकी और बदी के वक्ष
ृ को—अपने ह्रदय में से उखाड़ िेंको। हााँ,
उसे जसद और शाखाओीं सदहि उखाड़ िेंको िाकक ददव्य ज्ञान का बीज, पववत्र ज्ञान
का बीज जो समस्ि नेकी और बदी से परे है , इसकी जगह अींकुररि और पकलववि
हो सके।
जबकक हम जोशीले प्रतियोगी बनना िाहिे हैं। तयोंकक बड़ी ममठास है प्रतियोचगिा
में, दाव पर िाहे कुछ भी लगा हो।
ककसी िालाब का जल स्वच्छ और तनश्िल कैसे रहे गा यदद हर क्षण िुम उसे
हलोरिे रहोगे ?दिःु ख में डूबे सींसार से शाक्न्ि की रकम मि मााँगो, कहीीं ऐसा न हो
कक िुम्हे अदायगी दिःु ख के रूप में हो। दम िोड़ रहे सींसार से जीवन की रकम मि
माींगो, कहीीं ऐसा न हो कक िम्
ु हे अदायगी मत्ृ यु के रूप में हो।
सींसार अपनी मुद्रा के मसवाय और ककसी मुद्रा में िुम्हे अदायगी नहीीं कर सकिा,
और उसकी मुद्रा के दो पहलू हैं। जो कुछ मााँगना है अपने ईश्वरीय अहम ् से मााँगो
जो शाक्न्िपूणा ज्ञान से से इिना समि
ृ है।
दरू कर दो इन्हे ,मेरे लावाररस बच्िो, दरू , बहुि दरू । क्स्थर रहो िाकक िुम उलिनो से
मुति रह सको। उलिनों से मुति रहो िाकक िुम सींसार को स्पष्ट दे ख सको। जब
िुम सींसार के रूप को स्पष्ट दे ख लोगो, िब िुम्हे पिा िलेगा कक जो स्विन्त्रिा,
शाक्न्ि िथा जीवन िुम उससे िाहिे हो, वह सब िुम्हें दे ने में वह ककिना असहाय
और असमथा है ।
लहरों के प्रहार सहने के योग्य रखना, उसकी पाशववक वतृ ियों को बााँिकर तनयींत्रण
में रखना—यह िुम्हारा किाव्य है , केवल िुम्हारा। आशा से दीप्ि िथा पूणि
ा या
सजग ववश्वास रखना क्जसको पिवार थमाई जा सके, प्रभु-इच्छा में अटल ववश्वास
रखना जो अदन के आनन्दपूणा प्रवेश-द्वार पर पहुाँिने में िुम्हारा मागादशाक हो—
यह भी िुम्हारा काम है , केवल िुम्हारा।
तनभाय सींककप हो, आत्म-ववजय प्राप्ि करने िथा ददव्य- ज्ञान के जीवन-वक्ष
ृ का
िल िखने के सींककप को अपना केवट बनाना—-यह भी िुम्हारा काम है, केवल
िम्
ु हारा।मनष्ु य की मींक्जल परमात्मा है ।
उससे नीिे की कोई मींक्जल इस योग्य नहीीं कक मनुष्य उसके मलये कष्ट उठाये।
तया हुआ यदद रास्िा लम्बा है और उस पर िींिा और ितकड़ का राज है ?
तया पववत्र ह्रदय िथा पैनी दृक्ष्ट से युति ववश्वास िींिा को परास्ि नहीीं कर दे गा
और ितकड़ पर ववजय नहीीं पा लेगा ?जकदी करो, तयोंकक आवारगी में बबिाया
समय पीड़ा-ग्रस्ि समय होिा है । और मनष्ु य, सबसे अचिक व्यस्ि मनष्ु य भी,
वास्िव में आवारा ही होिे हैं।
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नौका के तनमाािा हो िुम सब, और साथ हो नाववक भी हो। यही काया सौंपा गया है
िुम्हे अनादद काल से िाकक िुम उस असीम सागर की यात्रा करो जो िुम स्वयीं हो,
और उसमे खोज लो अक्स्ित्व के उस मक
ू सींगीि को क्जसका नाम परमात्मा है ।
सभी वस्िुओीं का एक केन्द्र होना जरुरी है जहााँ से वे ़िैल सकें और क्जसके िारों
ओऱ वे घूम सकें। यदद जीवन—-मनुष्य का जीवन—-एक वत्ृ ि है और परमात्मा की
खोज उसका केन्द्र, िो िुम्हारे हर काया का केंद्र परमात्मा की खोज ही होना िादहये;
नहीीं िो िुम्हारा हर काया व्यथा होगा, िाहे वह गहरे लाल पसीने से िर-बिर ही तयों
न हो।पर तयोंकक मनष्ु य को उसकी मींक्जल िक ले जाना मीरदाद का काम है, दे खो
!
मीरदाद ने िम्
ु हारे मलए एक अलौककक नौका िैयार की है, क्जसका तनमााण उत्िम है
और क्जसका सींिालन अत्यन्ि कौशलपूण।ा यह दयार से बनी और िारकोल से पुिी
नहीीं है; और न ही यह कौओीं, तछपकमलयों और लकड़बग्घों के मलये बनी है ।