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'आदिवासी' पत्रिका का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व
'आदिवासी' पत्रिका का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व
डी
(शोध) हे तु शोध-प्रबंध की रूपरे खा
हहन्दी विभाग
शोध विषय
शोध का विषय :
'आहदिासी' पत्रिका का सामाजिक-साांस्कृतिक महत्त्व
शोध-विषय की पररकल्पना :
पररकल्पना शब्ि परर + कल्पना िो शब्िों से समलकर िना है। परर का अथि चारों
ओर िथा कल्पना का अथि चचन्िन है। इस प्रकार पररकल्पना से िात्पयि ककसी समस्या से
सम्िप्न्धि समस्ि सम्भापवि समाधान पर पवचार करना है। पररकल्पना ककसी भी अनुसन्धान
प्रकक्रया का िस
ू रा महत्वपण
ू ि स्िम्भ है। इसका िात्पयि यह है कक ककसी समस्या के पवचलेषण
और पररभाषीकरण के पचचाि उसमें कारणों िथा कायि कारण सम्िन्ध में पव
ू ि चचन्िन कर
सलया गया है, अथािि ् अमक
ु समस्या का यह कारण हो सकिा है, यह ननप्चचि करने के पचचाि
उसका परीिण प्रारम्भ हो जािा है। अनस
ु ंधान कायि पररकल्पना के ननमािण और उसके परीिण
के िीच की प्रकक्रया है। यह परीिण के योग्य होनी चादहये। िेशक़, मेरे अनस
ु ार उपयित
ु ि पवषय
शोध के पवसभन्न समस्याओं और उसके परीिण के अनरू
ु प है प्जसपर कायि करने की आवचयकिा
िढ़ गई है। राधाकृष्ण का पवस्िि
ृ सादहत्य बिखरा पड़ा है। वे झारखंड के अि िक के सिसे
प्रिद
ु ध सादहत्यकारों में एक हैं। उनकी पिकाररिा उच्च कोदट की रही है। ‘आदिवासी’ पबिका
के संपािक के रूप में उन्होंने आदिवासी अप्स्मिा और उनके जनसंघषों को एक मंच दिया।
फलिः इस पररकल्पना के मध्य उपयुिति समस्याओं का हल ढूाँढना िेहि ज़रूरी हो गया है इस
हे िु मैं इस पवषय पर शोध-कायि करने का ननणिय सलया हूाँ।
शोध-लेखन की प्रविचध:
शोध-लेखन के स्रोत :
अध्यायों का िगीकरण
पहला अध्याय : ‘आहदिासी’ पत्रिका युगसन्दभय
क.) ‘आदिवासी’ पबिका का जन्म
ख.) ‘आदिवासी’ पबिका का इनिहास
ग.) सादहत्य और पिकाररिा : अंिःसंिंध
दस
ू रा अध्याय : ‘आदिवासी’ पबिका और संपािक राधाकृष्ण
क.) पिकार राधाकृष्ण
ख.) आदिवासी पबिका में प्रवेश
ग.) राधाकृष्ण का सम्पािकत्त्व
घ.) सम्पािन-कला
तीसरा अध्याय : आदिवासी प्रचन, ‘आदिवासी’ पबिका और राधाकृष्ण
क.) आदिवासी पबिका में सामाप्जक प्रचन
ख.) ‘आदिवासी’ पबिका का सांस्कृनिक प्रचन
ग.) ‘आदिवासी’ पबिका और दहन्िी सादहत्य
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