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मीरदाद
मीरदाद
अध्याय एक
िीरदाद अपना पदाा हटाता है और पदों और िुहरों के बबषय िें बात करता है
नरौंदा ; उस शाि आठों साथी खाने की िेज के िारों ओर जिा थे और िीरदाद एक ओर खड़ा
िप
ु िाप उनके आदे शों की प्रतीक्षा कर रहा था। साचथयों पर लागू परु ातन तनयिों िें से एक यह था
कक जहााँ तक सम्भव हो वाताालाप िें ''िैं''शब्द का प्रयोग न ककया जाये। साथी शिदाि िखु खया के
रूप िें अल्जात अपनी उपलल्ब्ियों के बारे िें डीींग िार रहा था। यह ददखाते हुए कक उसने नौका की
सींपवि और प्रततष्ठा िें ककतनी वद्
ृ चि की है, उसने बहुत से आींकड़े प्रस्तुत ककये। ऐसा करते हुए उसने
वल्जात शब्द का बहुत अचिक प्रयोग ककया। साथी मिकेयन ने इसके मलए उसे एक हलकी सी खिड़की
दी। इस पर एक उिेजनापूणा वववाद तछड़ गया कक इस तनयि का क्या उद्दे श्य था और इसे बनाया था
वपता हजरत नूह ने या साथी अथाात सैि ने। उिेजना से एक-दस
ू रे पर दोष लगाने की नौबत आ गई
और इसके िलस्वरूप बात इतनी बाद गई कक कहा तो बहुत कुछ पर सिि िें ककसी की कुछ नहीीं
आया।
वववाद को हीं सी के वातावरण िें बदलने की इच्छा से शिदाि िीरदाद की ओर िुड़ा और स्पष्ट
उपहास के स्वर िें बोला :'' इिर दे खो, कुलवपता से भी बड़ी हस्ती यहााँ िौजूद है। िीरदाद, शब्दों
की इस भल
ू भुलैयााँ से तनकलने िें हिें राह बता। ''सबकी दृल्ष्ट िुड़कर िीरदाद पर दटक गई, और
हिें आश्िया तथा प्रसन्नता हुई जब, सात वषा की लम्बी अवचि िें पहली बार, िीरदाद ने अपना िह ींु
खोला िीरदाद ; नौका के िेरे साचथयों शिदाि की इक्षा िाहे उपहास िें प्रकट की गई है , ककन्तु
अनजाने ही िीरदाद के गींभीर तनणाय की पूवा सूिना दे ती है । क्योंकक ल्जस ददन िीरदाद ने इस नौका
िें प्रवेश ककया था, उसी ददन उसने अपनी िुहरें तोड़ने अपने परदे हटाने और तुम्हारे तथा सींसार के
सम्िुख अपने वास्तववक रूप िें प्रकट होने के मलए इसी सिय और स्थान को-- इसी पिरल्स्थतत को--
िन
ु ा था|सात िहु रों से िीरदाद ने अपना िह
ु बींद ककया हुआ है| सात पदों से उसने अपना िेहरा ढक
रखा है , ताकक तुि जब मशक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाओ तो वह तम्
ु हे और सींसार को मसखा दे
कक कैसे अपने होंठों पे लगी िोहरें तोड़ी जायें, कैसे आाँखों पे पड़े परदे हटाये जायें और इस तरह
अपने आपको अपने सािने अपने सम्पूणा तेज िें प्रकट ककया जाये ।तम् ु हारी आाँखें बहुत से पदों से
ढकी हुई हैं । हर वास्त,
ु ल्जस पर तुि द्रल्ष्ट डालते हो, िात्र एक पदाा है । तुम्हारे होठों पे बहुत सी
िुहरें लगी हुई हैं । हर शब्द ल्जसका तुि उच्िारण करते हो, िात्र एक िुहर है | क्योकक पदाथा िाहे
उसका कोई रूप या प्रकार क्यों न हो, केवल परदे और पोतड़े हैं ल्जनिे जीवन ढका और मलप्त हुआ
है । तम्
ु हारी आाँख, जो स्वयीं एक पदाा और पोतड़ा है, परदे और पोतड़े के मसवाय तम्
ु हे कहीीं और
कैसे ले जा सकती है ? और शब्द-- वे क्या अक्षरों और िात्राओीं िें बींद ककये हुए पदाथा नहीीं हैं ?
तम्
ु हारा होंठ, जो स्वयीं एक िुहर है , िुहरों के मसवाय और क्या बोल सकता है ? आाँखें पदाा डाल
सकती हैं, परदे को वेि नहीीं सकतीीं ।होंठ िुहर लगा सकते हैं, िुहरों को तोड़ नहीीं सकते ।इससे
अचिक इनसे कुछ न िाींगो । शरीर के कायों िें से इनके दहस्से का काया इतना ही है; और इसे ये
भली-भााँती तनभा रहे हैं । परदे डालकर, और िह
ु रें लगाकर ये ति
ु से पक
ु ार- पक
ु ार कर कह रहे हैं कक
आओ और उसकी खोज करो जो पदों के पीछे तछपा है,और उसका भेद प्राप्त करो जो िुहरों के नीिे
दबा है । अगर तुि अन्य वस्तुओीं को सही रूप से दे खना िाहते हो तो पहले स्वयीं आाँख को ठीक से
दे खो । तम्
ु हे आाँख के द्वारा नहीीं, आाँख िें से दे खना होगा ताकक इससे परे की सब वस्तुओीं को तुि
दे ख सको ।यदद तुि दस
ु रे शब्द ठीक से बोलना िाहते हो तो पहले होंठ और जबान ठीक से बोलो ।
तम्
ु हे होंठ और जबान के द्वारा नहीीं, वल्कक होंठ और जबान िें से बोलना होगा ताकक उनसे परे के
सारे शब्द तुि बोल सको ।यदद ति
ु केवल ठीक से दे खोगे और बोलोगे, तो तुम्हे अपने मसवाय और
कुछ नजर नहीीं आयेगा, और न तुि अपने मसवाय और कुछ बोलोगे । क्योंकक प्रत्येक वस्तु के अींदर
और प्रत्येक वस्तु से परे , सब शब्दों िें और सब शब्दों से परे , केवल तुि ही हो | यदद किर
तम्
ु हारा सींसार एक िकरा दे ने वाली पहे ली है, तो वह इसमलए कक तुि स्वयीं ही वह िकरा दे ने बाली
पहे ली हो । और यदद तम्
ु हारी वाणी एक ववकट भल
ू भल
ु य
ै ाीं है, तो वह इसमलए कक ति
ु स्वयीं ही वह
ववकट भूल भुलय
ै ाीं हो । िीजें जैसी हैं वैसी ही रहने दो; उन्हें बदलने का प्रयास ित करो । क्योंकक वे
जो प्रतीत होती हैं, इसमलए प्रतीत होती हैं कक तुि वह प्रतीत होते हो जो प्रतीत होते हो । जब तक
तुि उन्हें द्रल्ष्ट वाणी प्रदान नहीीं करते, वे न दे ख सकती हैं, न बोल सकती हैं । यदद उनकी वाणी
ककाश है तो अपनी ही ल्जभ्या की और दे खो । यदद वह कुरूप ददखाई दे ती हैं तो शरू
ु िें भी और
आखखर िें भी अपनी ही आाँख को परखो ।पदाथों से उनके कपडे उतार िेंकने को ित कहो । अपने
परदे उतार िेंको,पदाथों के परदे स्वयीं उतर जायेंगे । न ही पदाथों से उनकी िुहरें तोड़ने को कहो ।
अपनी िुहरें तोड़ दो, अन्य सब की िुहरें स्वयीं टूट जाएाँगी ।अपने परदे उतारने और अपनी िुहरें
तोड़ने की कींु जी एक शब्द है ल्जसे तुि सदै व अपने होंठों िें पकडे रहते हो । शब्द " िैं " यह सबसे
तच्
ु छ और सबसे िहान है । िीरदाद ने इसे सज
ृ नहार शब्द कहा है |
अध्याय -२
मसरजनहार शब्द - िैं
*********************************
सिस्त वस्तुओीं का श्रोत
और केंद्र है जब तम्
ु हारे िुह
से ”िैं” तनकले तो तरु ीं त
अपने हृदय िें कहो,
” प्रभ,
ु ”िैं”की ववपवियों िें िेरा आश्रय बनो,
और ”िैं” के परि आनींद
की ओर िलने िें िेरा िागा दशान करो ।”
क्योंकक इस शब्द के अींदर,
यद्यवप यह अत्यींत सािारण है ,
प्रत्येक अन्य शब्द की आत्िा कैद है ।
एक बार उसे िुक्त कर दो,
तो सुगि
ीं िैलाएगा तम्
ु हारा िुख,
मिठास िें पगी होगी तम्
ु हारी ल्जव्हा,
और तम्
ु हारे प्रत्येक शब्द से
जीवन िें आह्लाद का रस टपकेगा ।
उसे कैद रहने दो,
तो दग
ु न्
ा ि पूणा होगा तम्
ु हारा िुख,
कडवी होगी तम्
ु हारी ल्जव्हा और
तम्
ु हारे प्रत्येक शब्द से
ित्ृ यु का िवाद टपकेगा ।
क्योंकक मित्रो ”िैं” ही मसरजनहार शब्द है ।
और जब तक तुि इसकी
िित्कारी शल्क्त को प्राप्त नहीीं करोगे,
तब तक तम्
ु हारी हालत ऐसी होगी
यदद गाना िाहोगे तो आतानाद करोगे;
शाींतत िाहोगे तो यद्
ु ि करोगे;
यदद प्रकाश िें उड़ान भरना िाहोगे,
तो अाँिेरे कारागारों िें पड़े मसकुड़ोगे ।
तम्
ु हारा ”िैं” अल्स्तत्व की तम्
ु हारी िेतना िात्र है,
िूक और दे ह रदहत अल्स्तत्व की,
ल्जसे बानी और दे ह दे दी गई है ।
वह तम्
ु हारे अींदर का अश्रव्य है
ल्जसे श्रव्य बना ददया गया है ,
अदृश्य है ल्जसे दृश्य बना ददया
गया है,
ताकक तुि दे खो तो अदृश्य को दे ख सको;
और जब सन
ु ो तो अश्रव्य को सन
ु सको ।
क्योंकक अभी तुि आाँख
और कान के साथ बींिे हुए हो.
और यदद तुि इन आाँखों के द्वारा न केखो,
और यदद तुि इन कानो के द्वारा न सन
ु ो,
तो तुि कुछ भी दे ख और सन
ु नहीीं सकते ।
”िैं” के वविार–िात्र से तुि
अपने ददिाग िें वविारों के
सिुद्र को दहलकोरने लगते हो ।
वह सिद्र
ु रिना है तुम्हारे ”िैं”की
जो एक साथ वविार और वविारक दोनों है ।
यदद तम्
ु हारे वविार एसे हैं जो िुभते,
काटते या नोिते हैं,
तो सिि लो कक तुम्हारे
अींदर के ”िैं” ने ही उन्हें डींक,
दाींत, पींजे प्रदान ककये हैं …
िीरदाद िाहता है ….
कक ति
ु यह भी जान लो
कक जो प्रदान कर सकता है
वह छीन भी सकता है ।
”िैं” की भावना–िात्र से तुि अपने हृदय िें भावनाओीं का कुआाँ खोद लेते हो । यह कुआाँ रिना है
तम्
ु हारे ”िैं” की जो एक साथ अनभ
ु व करनेवाला और अनभ
ु व दोनों है । यदद तम्
ु हारे हृदय िें कींटीली
िाड़ड़यााँ हैं, तो जान लो तम्
ु हारे अींदर के ”िैं” ने ही उन्हें वहाीं लगाया है ।िीरदाद िाहता है कक ति
ु
यह भी जान लो कक जो इतनी आसानी से लगा सकता है वह उतनी आसानी से जड़ से उखाड़ भी
सकता है । ”िैं” के उच्िारण–िात्र से तुि शब्दों के एक ववशाल सिूह को जन्ि दे ते हो; प्रत्येक शब्द
होता एक वस्तु का प्रतीक; प्रत्येक वस्तु होती है एक सींसार का प्रतीक;प्रत्येक सींसार होता है एक
ब्रम्हाण्ड का घटक अींग ।वह ब्रम्हाींड रिना है तम्
ु हारे ”िैं” की जो एक साथ स्रष्टा और स्रल्ष्ट दोनों है ।
यदद तम्
ु हारी स्रल्ष्ट िें कुछ हौए हैं, तो जान लो कक तुम्हारे अींदर के ”िैं” ने ही उन्हें अल्स्तत्व ददया
है ।िीरदाद िाहता है कक यह भी जान लो कक जो रिना कर सकता है वह नष्ट भी कर सकता है
।जैसा स्रष्टा होता है, वैसी ही होती है उसकी रिना । क्या कोई अपने आप से अचिक रिना रि
सकता है? या अपने आपसे कि?स्रष्टा केवल अपने आपको रिता है —-न अचिक, न कि ।एक िूल–
स्रोत है ”िैं”ल्जसिे वे सब वस्तए
ु ीं प्रवादहत होती हैं और ल्जसिे वे वापस िली जाती हैं ।जैसा िल
ू स्रोत
होता है, वैसा ही होता है उसका प्रवाह भी एक जाद ू की छड़ी है ”िैं” । किर भी यह छड़ी एसी ककसी
वस्तु को पैदा नहीीं कर सकती जो जादग
ू र िें न हो । जैसा जादग
ू र होता है, वैसी ही होती हैं उसकी
छड़ी की पैदा की हुई वस्तए ु ीं ।इसमलए जैसी तम्
ु हारी िेतना है , वैसा ही तम्
ु हारा ”िैं” । जैसा तम्
ु हारा
”िैं” है वैसा ही है तम्
ु हारा सींसार । यदद इस ;;िैं” का अथा स्पष्ट और तनल्श्ित है, तो तुम्हारे सींसार
का अथा भी स्पष्ट और तनल्श्ित है; और तब तम्
ु हारे शब्द कभी भल
ू भल
ु य
ै ााँ नहीीं होंगे; न ही होंगे
तम्
ु हारे किा कभी पीड़ा के घोंसले । यदद यह पिरवतान–रदहत तथा चिर स्थाई है, तो तम्
ु हारा सींसार भी
पिरवतान रदहत और चिर स्थाई है; और तब ति
ु हो सिय से भी अचिक िहान तथा स्थान से भी
कहीीं अचिक ववस्तत
ृ । यदद यह अस्थायी और अपिरवतानशील है, तो तुम्हारा सींसार भी अस्थायी और
अपिरवतानशील है; और तुि हो िए
ु ीं की एक परत ल्जस पर सय
ू ा अपनी कोिल साींस छोड़ रहा है
।यदद यह एक है तो तुम्हारा सींसार भी एक है; और तब तम्
ु हारे और स्वगा तथा पथ्
ृ वी के सब
तनवामसयों के बीि अनींत शाल्न्त है । यदद यह अनेक है तो तम्
ु हारा सींसार भी अनेक है ; और तुि
अपने साथ तथा प्रभु के असीि साम्राज्य के प्रत्येक प्राणी के साथ अन्त–हीन यद्
ु ि कर रहे हो ”िैं”
तम्
ु हारे जीवन का केंद्र है ल्जसिे से वे वस्तुएीं तनकलती हैं ल्जनसे तम्
ु हारा सम्पूणा सींसार बना है, और
ल्जनिे वे सब वापस आकर मिल जाती हैं । यदद यह ल्स्थर है तो तम्
ु हारा सींसार भी ल्स्थर है; ऊपर
या नीिे की कोई भी शल्क्त तम्
ु हे दायें या बाएीं नहीीं डुला सकती । यदद यह िलायिान है तो तम्
ु हारा
सींसार भी िलायिान है; और तुि एक असहाय पिा हो हो जो हवा के क्रुद्ि बवींडर की लपेट िें आ
गया है ।और दे खो तम्
ु हारा सींसार ल्स्थर अवश्य है, परन्तु केवल अल्स्थरता िें ।तनल्श्ित है तम्
ु हारा
सींसार, परन्तु केवल अतनल्श्ितता िें; तनत्य है तम्
ु हारा सींसार, परन्तु अतनत्यता िें; और एक है
तम्
ु हारा सींसार, परन्तु केवल अनेकता िें ।तम्
ु हारा सींसार है कब्रों िें बदलते पालनो का, और पालनो
िें बदलती कब्रों का, रातों को तनगलते ददनों का, और ददनों को उगलती रातों का, यद्
ु ि की घोषणा
कर रही शाल्न्त का, और शाल्न्त की प्राथाना कर रहे यद्
ु िों का, अश्रुओीं पर तैरती िस्
ु कानों का, और
िस्
ु कानों से दिकते अश्रओ
ु ीं का ।तम्
ु हारा सींसार तनरीं तर प्रसव-वेदना िें तड़पता सींसार है , ल्जसकी िाय
है ित्ृ यु ।तम्
ु हारा सींसार छलतनयों और िरतनयों का सींसार है ल्जसिे कोई दो छलतनयााँ या िरतनयााँ
एक जैसी नहीीं हैं । और तुि तनरीं तर उन वस्तओ
ु ीं को छानने और िारने िें खपते रहे हो ल्जन्हें छाना
या िारा नहीीं जा सकता ।तम्
ु हारा सींसार अपने ही ववरुद्ि ववभाल्जत है क्योंकक तम्
ु हारे अींदर का ”िैं”
इसी प्रकार ववभाल्जत है ।तम्
ु हारा सींसार अवरोिों और बाड़ों का सींसार है, क्योंकक तम्
ु हारे अींदर का
”िैं” अवरोिों बाड़ों का ;;िैं” है ।कुछ वस्तओ
ु ीं को यह पराया िान कर बाड के बाहर कर दे ना िाहता
है ; कुछ को अपना िानकर बाड़ के अींदर ले लेना िाहता है । परन्तु जो वस्तु बाड़ के बाहर है वह
सदा बलपव
ू क
ा बाड़ के अींदर आती रहती है, और जो वस्तु बाड़ के अींदर है वह सदा बलपव
ू क
ा बाड़ के
बाहर जाती रहती है । क्योंकक वे एक ही िााँ की–तम्
ु हारे ”िैं” की—सींतान होने के कारण अलग-अलग
नहीीं होना िाहतीीं ।और ति
ु , उनके शभ
ु मिलाप से प्रसन्न होने के बजाय, अलग न हो सकनेवालों
को अलग करने की तनष्िल िेष्टा िें िी जुट जाते हो । ”िैं” के अींदर की दरार को भरने की बजाय
तुि अपने जीवन को छील-छील कर नष्ट करते जाते हो; तुि आशा करते हो कक इस तरह तुि इसे
एक पच्िड़ बना लोगे ल्जसे तुि, जो तुम्हारी सिि िें तम्
ु हारा ”िैं” है और जो तुम्हारी ककपना िें
तम्
ु हारे ;;िैं;;से मभन्न है, उन दोनों के बीि ठोंक सको |हे सािुओ, िीरदाद तम्
ु हारे ”िैं” के अींदर
की दरारों को भर दे ना िाहता है ताकक ति
ु अपने साथ, िनष्ु य-िात्र के साथ, और सम्पण
ू ा ब्रम्हाींड के
साथ शाींततपव
ू क
ा जी सको ।िीरदाद तम्
ु हारे ”िैं” के अींदर भरे बबष को सोख लेना िाहता है ताकक तुि
ज्ञान की मिठास का रस िख सको ।िीरदाद तम्
ु हे तुम्हारे ”िैं” को तोलने की ववचि मसखाना िाहता है
ताकक तुि पूणा सींतुलन का आनींद ले सको |
अध्याय 3-
☞पावन बत्रपट
ु ी और पण
ू ा सींतल
ु न ☜
अध्याय–5..
अध्याय 6
िीरदाद :– िीरदाद ही शिदाि का
एकिात्र सेवक नहीीं है ।
शिदाि……..क्या तुि अपने सेवकों की
चगनती कर सकते हो ?
क्या कोई गरुड या बाज है;
क्या कोई दे वदार या बरगद है ;
क्या कोई पवात या नक्षत्र है;
क्या कोई िहासागर या सरोवर है;
क्या कोई ़ििरश्ता या बादशाह है
जो शिदाि की सेवा न कर रहा हो ?
क्या सारा सींसार ही शिदाि की सेवा िें नहीीं है ?
न ही िीरदाद शिदाि का एक िात्र स्वािी है ।
शिदाि, क्या तुि अपने स्वामियों
की चगनती कर सकते हो ?
क्या कोई भींग
ृ ी या कीट है;
क्या कोई उकलू या गौरै या है;
क्या कोई कााँटा या टहनी है;
क्या कोई कींकर या सीप है;
क्या कोई ओस-बबींद ु या तालाब है;
क्या कोई मभखारी या िोर है
ल्जसकी शिदाि सेवा न कर रहा हो ?
क्या शिदाि सम्पूणा सींसार की सेवा िें नहीीं है ?
क्योंकक अपना काया करते हुए
सींसार तम्
ु हारा काया भी करता है ।
और अपना काया करते हुए
तुि सींसार का काया भी करते हो ।
हााँ……..
िस्तक पेट का स्वािी है;
परन्तु पेट भी िस्तक
का कि स्वािी नहीीं ।
कोई भी िीज सेवा नहीीं कर सकती
जब तक सेवा करने िें
उसकी अपनी सेवा न होती हो ।
और कोई भी िीज सेवा नहीीं करवा सकती
जब तक उस सेवा से
सेवा करने वाले की सेवा न होती हो ।
शिदाि…..िैं ति
ु से और सभी से कहता हूाँ,
सेवक स्वािी का स्वािी है,
और स्वािी सेवक का सेवक ।
सेवक को अपना मसर न िक
ु ाने दो ।
स्वािी को अपना मसर न उठाने दो ।
क्रूर स्वािी के अहींकार को कुिल डालो ।
शमिान्दा सेवक की शमिान्दगी को जड़ से उखाड़ िेंको |
याद रखो,शब्द एक है ।
और उस शब्द के अक्षर होते हुए
तुि भी वास्तव िें एक ही हो ।
कोई भी अक्षर ककसी अन्य अक्षर से श्रेष्ठ नहीीं,
न ही ककसी अन्य अक्षर से अचिक आवश्यक है ।
अनेक अक्षर एक ही अक्षर हैं,
यहााँ तक कक शब्द भी ।
तम्
ु हे ऐसा एकाक्षर बनना होगा
यदद तुि उस अकथ आत्ि-प्रेि के
क्षखणक परि आनींद का अनभ
ु व
प्राप्त करना िाहते हो
जो सबके प्रतत,सब पदाथों के प्रतत, प्रेि है ।
शिदाि…
इस सिय िैं तुिसे उस तरह बात नहीीं कर रहा हूाँ
ल्जस तरह स्वािी सेवक से अथवा सेवक स्वािी से करता है ; बल्कक इस तरह बात कर रहा हूाँ
ल्जस तरह भाई भाई से बात करता है ।
तुि िेरी बातों से क्यों इतने व्याकुल हो रहे हो ?
ति
ु िाहो तो िि
ु े अस्वीकार कर दो ।
परन्तु िैं तम्
ु हे अस्वीकार नहीीं करूींगा ।
क्या िैंने अभी-अभी नहीीं कहा था
कक िेरे शरीर का िाींस
तम्
ु हारे शरीर के िाींस से मभन्न नहीीं है ?
िैं तुि पर वार नहीीं करूाँगा,
कहीीं ऐसा न हो कक िेरा रक्त बहे ।
इसमलए अपनी जबान को म्यान िें ही रहने दो,
यदद तुि अपने रक्त को बहने से बिाना िाहते हो ।
िेरे मलए अपने ह्रदय के द्वार खोल दो,
यदद तुि उन्हें व्यथा और पीड़ा
के मलए बींद कर दे ना िाहते हो ।
ऐसी ल्जव्हा से
ल्जसके शब्द काींटे और जाल हों
ल्जव्हा का न होना कींहीीं अच्छा है ।
और जब तक ल्जव्हा ददव्य
ज्ञान के द्वारा स्वच्छ नहीीं
की जाती तब तक उससे तनकले
शब्द सदा घायल करते रहें गे
और जाल िें िाँसाते रहें गे |
हे सािुओ…….
िेरा आग्रह है कक तुि अपने ह्रदय को टटोलो ।
िेरा आग्रह है कक ति
ु उसके अींदर के
सभी अवरोिों को उखाड़ िेंको ।
िेरा आग्रह है कक तुि उन
पोतड़ों को ल्जनिे तम्
ु हारा ;
िैं; अभी मलपटा हुआ है
िेंक दो,
ताकक तुि दे ख सको
कक अमभन्न है तम्
ु हारा ‘िैं’
प्रभु के शब्द से जो
अपने आपिें सदा शाींत है
और अपने िें से उत्पन्न हुए
सभी खण्डों–ब्रम्हान्डों के साथ
तनरीं तर एक- स्वर है ।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को ।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे है …
नरौन्दा;–इसके बाद हि सबको अवाक
और लल्ज्जत छोड़कर िीरदाद
अपनी कोठरी िें िला गया ।
कुछ सिय के िौन के बाद,
ल्जसका बोि असह्य हो रहा था,
सभी साथी उठकर जाने लगे और
जाते जाते हर साथी ने िीरदाद के
ववषय िें अपना वविार प्रकट ककया ।
शिदाि;– राज-िुकुट के स्वप्न दे खने वाला एक मभखारी ।
मिकेयन:- यह वही है जो गुप्त रूप से हजरत नूह की नौका िें सवार हुआ था ।
इसिें कहा नहीीं था, ”यही मशक्षा थी िेरी नह
ू को ?”
अबबिार:- उलिे हुए सतू की एक गच्
ु छी ।
मिकास्तर :- ककसी दस
ु रे ही आकाश का एक तारा ।
बैनन
ू :- एक िेिावी पुरुष, ककन्तु परस्पर ववरोिी बातों िें खोया हुआ ।
जिोरा :- एक ववलक्षण रबाब ल्जसके स्वरों को हि नहीीं पहिानते ।
दहम्बल :- एक भटकता शब्द ककसी सहृदय श्रोता की खोज िें
हर शब्द को प्राथाना
िें ढाल दो प्रभु िागा के मलए
अध्याय -7
मिकेयन और नरौंदा
रात को िीरदाद से बातिीत करते हैं
जो भावी जल-प्रलय का सींकेत दे ता है और
उनसे तैयार रहने का आग्रह करता है
***************************************
नरौन्दा :- राबत्र के तीसरे पहर की
लगभग दस
ू री घडी थी
जब िि
ु े लगा कक
िेरी कोठरी का द्वार खल
ु रहा है
और िैंने मिकेयन को िीिे स्वर िें कहते सुना….
क्या तुि जाग रहे हो, नरौन्दा ?””
इस रात िेरी कोठरी िें नीींद का
आगिन नहीीं हुआ है……मिकेयन
‘ न ही नीींद ने आकर िेरी आाँखों िें बसेरा ककया है । और वह क्या ति
ु सोिते हो कक वह सो रहा है
?””
तम्
ु हारा ितलब िमु शाद से है ?….
तुि अभी से उसे िुमशाद कहने लगे ?
शायद वह है भी ।
जब तक िैं तनश्िय नहीीं कर लेता
की वह कौन है,
िैं िैन से नहीीं बैठ सकता ।
िलो…..
इसी क्षण उसके पास िलें ।
हि दबे पााँव िेरी कोठरी से तनकले और िमु शाद की कोठरी िें जा पहुींिे ।
िीकी पड़ रही िाींदनी की कुछ ककरणें
दीवार के उपरी भाग के एक तछद्र से
िोरी तछपे घुसती हुई
उसके सािारण-से बबस्तर पर पड़ रहीीं थीीं
जो सा़ि-सुथरे ढीं ग से िरती पर बबछा हुआ था । स्पस्ट था कक उस रात उस पर कोई सोया न था ।
ल्जसकी तलाश िें हि वहाीं आये थे,
वह वहाीं नहीीं मिला ।
िककत, लल्ज्जत और तनराश हि लौटने ही लगे थे
की अिानक…..
इससे पहले कक हिारी आाँखे द्वार पर
उसके करुणािय िुख की िलक पातीीं,
उसका कोिल स्वर हिारे कानो िें पड़ा ।
िीरदाद :- घबराओ ित, शाींतत से बैठ जाओ ।
मशखरों पर राबत्र तेजी से प्रभात िें ववलीन
होती जा रही है ।
ववलीन होने के मलए यह घडी बड़ी अनुकूल है ।
मिकेयन :- ( उलिन,और रुक-रुक कर) इस अनाचिकार प्रवेश के मलए क्षिा करना ।
रात- भर हि सो नहीीं पाये ।
िीरदाद:- बहुत क्षखणक होता है
नीींद िें अपने आपको भल
ू जाना ।
नीींद की हलकी-हलकी िपककयााँ लेकर
अपने को भूलने से बेहतर हैं
जागते हुए ही अपने आपको
पूरी तरह से भल
ु ा दे ना । ….
िीरदाद से ति
ु क्या िाहते हो ?…
मिकेयन:- हि यह जानने के मलए आये थे
की तुि कौन हो ।
िीरदाद:- जब िैं िनुष्यों के साथ होता हूाँ
तो परिात्िा हूाँ ….
जब परिात्िा के साथ
तो िनुष्य ।
क्या ति
ु ने जान मलया मिकेयन ?
मिकेयन:- तुि परिात्िा की तनींदा कर रहे हो ।
िीरदाद:- मिकेयन के परिात्िा की-शायद हााँ,
िीरदाद के परिात्िा की बबलकुल नहीीं ।
मिकेयन:- क्या ल्जतने िनुष्य हैं उतने ही परिात्िा हैं
जो ति
ु िीरदाद के मलए एक परिात्िा की
और मिकेयन के मलए
दस
ु रे परिात्िा की बात करते हो ?
िीरदाद:- परिात्िा अनेक नहीीं हैं ।
परिात्िा एक है ।
ककन्तु िनष्ु यों की परछाइयााँ
अनेक और मभन्न-मभन्न हैं ।
जब तक िनुष्यों की परछाइयााँ
िरती पर पड़ती हैं,
तब तक ककसी िनुष्य का
परिात्िा उसकी परछाईं से बड़ा नहीीं हो सकता ।
केवल परछाईं -रदहत िनष्ु य ही
पूरी तरह से प्रकाश िें है ।
केवल परछाईं-रदहत िनुष्य ही
उस एक परिात्िा को जानता है ।
क्योंकक परिात्िा प्रकाश है,
और केवल प्रकाश ही
प्रकाश को जान सकता है ।
मिकेयन:- हिसे पहे मलयों िें बात ित करो ।
हिारी बद्
ु चि अभी बहुत िन्द है ।
िीरदाद:- जो िनुष्य परछाईं का पीछा करता है,
उसके मलये सबकुछ ही पहे ली है ।
ऐसा िनुष्य उिार ली हुई रौशनी िें िलता है,
इसमलए वह अपनी परछाईं से ठोकर खाता है ।
जब ति
ु ददव्य ज्ञान के प्रकश से ििक उठोगे
तब तम्
ु हारी कोई परछाईं रहे गी ही नहीीं ।
शीघ्र ही िीरदाद परछाइयााँ
इकट्ठी कर लेगा
और उन्हें सय
ू ा के ताप िें जला डालेगा ।
तब वह सब जो इस सिय तम्
ु हारे मलए पहे ली है,
एक ज्वलींत सत्य के रूप िें
सहसा तम्
ु हारे सािने प्रकट हो जायेगा,
और वह सत्य इतना प्रत्यक्ष होगा
कक उसे ककसी व्याख्या की आवश्यकता नहीीं होगी..
मिकेयन :- क्या तुि हिें बताओगे नहीीं
कक तुि कौन हो?
यदद हिे तम्
ु हारे नाि का–
तम्
ु हारे वास्तववक नाि का—
तथा तम्
ु हारे दे श
और तम्
ु हारे पव
ू ज
ा ों का ज्ञान होता
तो शायद हि तम्
ु हे अचिक
अच्छी तरह से सिि लेते ।
िीरदाद :- ओह, मिकेयन !
िीरदाद को अपनी जींजीरों िें बााँिने
और अपने पदों िें तछपाने का
तम्
ु हारा यह प्रयास ऐसा ही है
जैसा गरुड को वापस उस खोल िें
ठूींसना ल्जसिे से वह तनकला था ।
क्या नाि हो सकता है
उस िनुष्य का
जो अब ‘खोल के अींदर ‘ है ही नहीीं ?
ककस दे श की सीिाएाँ
उस िनुष्य को
अपने अींदर रख सकती हैं
ल्जसिे एक ब्रम्हाण्ड सिाया हुआ है ?
कौन-सा वींश उस िनष्ु य को अपना कह सकता है ल्जसका एकिात्र पव
ू ज
ा स्वयीं परिात्िा है ?
यदद तुि िुिे अच्छी तरह से
जानना िाहते हो, मिकेयन,
तो पहले मिकेयन को अच्छी तरह से जान लो ।
मिकेयन :- शायद तुि िनुष्य का िोला पहने एक ककपना हो ।
िीरदाद :- हााँ लोग ककसी ददन कहें गे कक िीरदाद केवल एक ककपना था ।
परन्तु तुम्हे शीघ्र ही पता िल जायेगा कक यह ककपना ककतनी यथाथा है —
िनुष्य के ककसी भी प्रकार के यथाथा से ककतनी अचिक यथाथा ।
इस सिय सींसार का ध्यान िीरदाद की ओर नहीीं है ।
पर िीरदाद सींसार को सदा ध्यान िें रखता है ।
सींसार भी शीघ्र ही मिरदाद की ओर ध्यान दे गा…..
मिकेयन:- कहीीं ति ु वही तो नहीीं जो गुप्त रूप से नूह की नौका िें सवार हुआ था ?
िीरदाद:- िैं प्रत्येक उस नाव िें गप्ु त रूप से सवार हुआ व्यल्क्त हूाँ जो भ्रि के ति
ू ानों से जि
ू रही है
।
जब भी उन नौकाओीं के कप्तान िुिे सहायता के मलये पुकारते हैं,
िैं आगे बढ़कर पतवार थाि लेता हूाँ ।
तम्
ु हारा ह्रदय भी,िाहे तुि नहीीं जानते,
दीघाकाल से उच्ि स्वर िें िि
ु े पक
ु ार रहा है ।
और दे खो !
िीरदाद तम्
ु हे सुरक्षक्षत खेने के मलए यहााँ आ गया है ताकक अपनी बारी आने पर तुि सींसार को खेकर
उस जल-प्रलय से बाहर तनकल सको
ल्जससे बड़ा जल-प्रलय कभी दे खा या सन
ु ा न गया होगा ।
मिकेयन:- एक और जल-प्रलय ?
मिरदाद :- िरती को बहा दे ने के मलए नहीीं,
बल्कक िरती के अींदर जो स्वगा है उसे बाहर लाने के मलए ।
िनुष्य का तनशान तक मिटा दे ने के मलए नहीीं,
बल्कक िनुष्य के अींदर तछपे
परिात्िा को प्रकट करने के मलए ।
मिकेयन :- अभी कुछ ही ददन तो हुए हैं जब इींद्रा-िनुष ने सात रीं गों से हिारे आकाश को सश
ु ोमभत
ककया था,
और तुि दस
ु रे जल-प्रलय की बात करते हो |
िीरदाद:- नूह के जल-प्रलय से अचिक ववनाशकारी होगा यह जल-प्रलय ल्जसकी ति
ू ानी लहरें अभी से
उठ रही हैं ।
जल िें डूबी िरती के गभा िें वसींत का वादा होता है । लेककन अपने ही तप्त लहू िें उबल रही िरती
ऐसी नहीीं होती ।
मिकेयन:- तो क्या हि सििें कक अन्त आनेवाला है ? क्योंकक हिें बताया गया था
कक गप्ु त रूप से नौका िें सवार होने वाले व्यल्क्त का आगिन अन्त का सि
ू क होगा ।
िीरदाद:- िरती के बारे िें कोई आशींका ित करो । अभी उसकी आयु बहुत कि है,
और उसके वक्ष का दि ू उसके अींदर
सिा नहीीं रहा है ।
अभी और इतनी पीदढयाीं
उसके दि
ू पर पलेंगी
कक तुि उन्हें चगन नहीीं सकते ।
न ही िरती के स्वािी िनुष्य
के मलए चिींता करो,
क्योंकक वह अववनाशी है ।
हााँ…….
अमिट है िनष्ु य ।
हााँ…अक्षय है िनष्ु य ।
वह भट्ठी िें प्रवेश िनुष्य–
रूप िें करे गा और तनकलेगा परिात्िा बनकर ।
ल्स्थर रहो ।
तैयार रहो ।
अपनी आाँखों, कानों और ल्जव्हाओीं को
भूखा रखो,
ताकक तम्
ु हारा ह्रदय उस पववत्र भूख का
अनुभव कर सके
ल्जसे यदद एक बार शाींत कर ददया जाये
तो वह सदा के मलये तप्ृ त कर दे ती है ।
तम्
ु हे सदा तप्ृ त रहना होगा,
ताकक तुि अतप्ृ तों को तल्ृ प्त प्रदान कर सको ।
तम्
ु हे सदा सबल और ल्स्थर रहना होगा,
ताकक ति
ु तनबाल और डगिगाने
वालों को सहारा दे सको ।
तम्
ु हे तू़िान के मलये सदा तैयार रहना होगा,
ताकक तुि त़ि
ू ान-पीड़ड़त बेआसरों को आसरा दे सको । तम्
ु हे सदा प्रकाशवान रहना होगा,
ताकक तुि अन्िकार िें िलनेवालों को
िागा ददखा सको ।
तनबाल के मलए तनबाल बोि है ;
परन्तु के मलए एक सुखद दातयत्व ।
तनबालों की खोज करो;
उनकी तनबालता तम्
ु हारा बल है ।
भूखे के मलए भूखे केवल भख
ू हैं;
परन्तु तप्ृ त के मलए कुछ दे ने का शुभ अवसर ।
भूखों की खोज करो; उनकी भूींख तम्
ु हारी तल्ृ प्त है ।
अींिे के मलए अींिे रास्ते के पत्थर हैं; परन्तु आींखोंवालों के मलए िील-पत्थर ।
अींिों की खोज करो; उनका
अन्िकार तम्
ु हारा प्रकाश है ।
नरौन्दा:- तभी प्रभात की प्राथाना के लीये आह्वान करता हुआ बबगुल बज उठा ।
िीरदाद:- जिोरा एक नये ददन के आगिन का बबगुल बजा रहा है –एक नये िित्कार के आगिन का
ल्जसे तुि गवाीं दोगे उठने–बैठने के बीि,
जींभाइयाीं लेते हुए, पेट को भरते
और खली करते हुए,
व्यथा के शब्दों से अपनी
ल्जव्हा को पैनी करते हुए और
ऐसे अनेक काया करते हुए
ल्जन्हें न करना बेहतर होता,
और ऐसे काया न करते हुए
ल्जन्हें करना आवश्यक है |
मिकेयन:- तो क्या हि प्राथाना के मलये न जायें ? िीरदाद:- जाओ ! करो प्राथाना
जैसे तुम्हे मसखाया गया है । जैसे भी हो सके प्राथाना करो, ककसी भी पदाथा के मलय करो ।
जाओ ! तम्
ु हे जो कुछ भी करने के आदे श मिले हैं
वह सब कुछ करो जब
तक ति
ु आत्ि- मशक्षक्षत और आत्ि-
तनयींबत्रत न हो जाओ,
जब तक तुि हर शब्द को
एक प्राथाना, हर काया को
एक बमलदान बनाना न सीख लो ।
शाींत िन से जाओ ।
िीरदाद को तो दे खना है
कक तम्
ु हारा सुबह का खाना
पयााप्त तथा स्वाददष्ट हो ।
सीिाएाँ न िैलाओ
☞ िैलते जाओ ☜
अध्याय 8
सात साथी िीरदाद से मिलने नीड़ िें जाते हैं
जहााँ वह उन्हें अाँिेरे िें काि करने से
साविान करता है
*************************************
नरौन्दा :- उस ददन िैं और मिकेयन
प्रभात की प्राथाना िें गए ही नहीीं ।
शिदाि को हिारी अनप
ु ल्स्थतत आखखर
और यह पता लग जाने पर
कक हि रात को िमु शाद से मिलने गए थे ।
वह बहुत अप्रसन्न हुआ ।
किर भी उसने अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीीं की;
उचित सिय की प्रतीक्षा करता रहा ।
बाींकी साथी हिारे व्यवहार से बहुत
उिेल्जत हो गये थे और उसका
कारण जानना िाहते थे ।
कुछ ने सोिा कक हिें हिें
प्राथाना िें शामिल न होने
की सलाह िुमशाद ने दी थी ।
अन्य कुछ साचथयों ने
उसकी पहिान के सम्बन्ि िें
कौतह
ू लपण
ू ा अटकलें लगाते हुए कहा
कक अपने आपको केवल हि पर
प्रकट करने के मलए िमु शाद ने हिें रात को अपने पास बल
ु ाया था ।
कोई भी यह िानने को तैयार नहीीं था
कक िीरदाद ही गुप्त रूप से नूह की
नौका िें सवार होने वाला व्यल्क्त था ।
ककन्तु सभी उससे मिलने
और अनेक बबषयों पर
उससे प्रश्न पछ
ू ने के इच्छुक थे ।
िुमशाद की आदत थी कक जब वे
नौका िें अपने कायों से िक्
ु त होते
तो अपना सिय काले खड्ड के
कगार पर दटकी गि
ु ा िें बबताते ।
इस गुिा को हि आपस िें नीड
कहकर पुकारते थे ।
उसी ददन दोपहर,
शिदाि के अततिरक्त हि सबने उन्हें वहाीं ढूींढ़ा
और ध्यान िें डूबे हुए पाया ।
उनका िेहरा ििक रहा था;
वह और भी ििक उठा
जब उनहोंने आाँखें ऊपर उठाई
और हिारी ओर दे खा ।
िीरदाद:- ककतनी जकदी तुिने
अपना नीड़ ढूींढ़ मलया है ।
िीरदाद तम्
ु हारी खाततर इस बात पर खश
ु है ।
अबबिार:- हिारा नीड़ तो नौका है ।
तुि कैसे कहते हो कक यह गुिा हिारा नीड़ है ?
िीरदाद:- नौका कभी नीड़ थी |
अबबिार:- और आज ।
िीरदाद:- अ़िसोस !
केवल एक छुछुींदर का बबल ।
अबबिार:- हााँ, आठ प्रसन्न छछूींदर और नौवाीं िीरदाद ।
िीरदाद:- ककतना आसान है िजाक उड़ाना;
सििना ककतना कदठन ।
पर िजाक ने सदा िजाक उड़ाने
वाले का िजाक उड़ाया है ।
अपनी ल्जव्हा को व्यथा कष्ट क्यों दे ते हो ।
अबबिार:- िजाक तो तुि हिारा उड़ाते हो जब हिें छछूींदर कहते हो ।
हिने ऐसा क्या ककया है
कक हिें यह नाि ददया जाये ?
क्या हिने हजरत नह
ू की
ज्योतत को जलाये नहीीं रखा ?
क्या हिने इस नौका को,
जो कभी िट्
ु ठी भर
मभखािरयों के मलये एक कुदटया-िात्र थी,
सबसे अचिक सिद्
ृ ि िहल से भी
ज्यादा सिद्
ृ ि नहीीं बना ददया ?
क्या हिने इसकी सीिाओीं का
दरू तक ववस्तार नहीीं ककया
जब तक कक यह एक
शल्क्तशाली साम्राज्य नहीीं बन गई ?
यदद हि छछूींदर हैं
तो तनिःसींदेह मशरोिखण हैं
हि बबल खोदने वालों िें ?
िीरदाद:- हजरत नह
ू की ज्योतत जल तो रही है,
ककन्तु केवल वेदी पर ।
यह ज्योतत तुम्हारे ककस काि की
यदद तुि स्वयीं वेदी न बने,
और नहीीं बने तम्
ु हारे ह्रदय ईंिन और तेल ?
नौका इस सिय सोने िाींदी
से बहुत अचिक लदी हुई है;
इसमलए इसके जोड़ िराा रहे हैं,
यह जोर से डगिगा रही है
और डूबने को तैयार है ।
जबकक िााँ-नौका जीवन से भरपरू थी
और उसिे कोई जड़ बोि नहीीं था;
इसमलये सागर उसके ववरुद्ि शल्क्तहीन था ।
जड़ बोि से साविान,
िेरे साचथयों ।
ल्जस िनष्ु य को अपने
ईश्वरत्व िें दृढ़ ववश्वास है
उसके मलये सबकुछ जड़ बोि है ।
वह सींसार को अपने अींदर िारण करता है,
ककन्तु सींसार का बोि नहीीं उठाता |
िैं तुिसे कहता हूाँ…..
यदद तुि अपने सोने और िाींदी को सिद्र
ु िें िेंककर नाव को हकका नहीीं कर लोगे,
तो वे तम्
ु हे अपने साथ सिद्र
ु की
तह तक खीींि ले जायेंगे ।
क्योंकक िनष्ु य ल्जस वास्तु
को कसकर पकड़ता है,
वही उसको जकड लेती है
वस्तओ
ु ीं को अपनी पकड़
से िुक्त कर दो
यदद तुि अपनी जकड से बिना िाहते हो ।
ककसी भी वस्तु का िोल न लगाओ,
क्योंकक सािारण से सािारण
वस्तु भी अनिोल होती है ।
तुि रोटी का िोल लगाते हो ।
सूय,
ा
िरती,
वाय,
ु
िरती,
सागर तथा िनुष्य के पसीने
और ितुरता का िोल क्यों नहीीं लगाते
ल्जनके बबना रोटी हो ही नहीीं सकती थी ?
ककसी भी वस्तु का िोल न लगाओ,
कहीीं ऐसा न हो तुि
अपने प्राणों का िोल लगा बैठो
िनुष्य के प्राण उस वस्तु से
अचिक िक
ू यवान नहीीं होते
ल्जस वस्तु को वह िक
ू यवान िानता है ।
ध्यान रखो…..
ति
ु अपने अनिोल प्राणों को कहीीं
सोने ल्जतना सस्ता न िान लो
नौका की सीिाएाँ तुिने
िीलों दरू तक िैला दी हैं ।
यदद तुि उन्हें िरती की
सीिाओीं तक भी िैला दो,
किर भी तुि सीिा के अींदर रहोगे
और उनिे कैद रहोगे ।
िीरदाद िाहता है
कक तुि अनींतता के के िरों
ओर सीिा रे खा खीींि दो,
उससे आगे तनकल जाओ ।
सिुद्र िरती पर दटकी एक बद
ूीं -िात्र है,
किर भी यह उसकी सीिा बना हुआ है,
उसे अपने घेरे िें मलये हुए है ।
और िनष्ु य तो उससे और भी कहीीं
अचिक असीि सागर है ।
ऐसे नादान न बनो
कक िनुष्य को एडी से छोटी तक
नाप कर यह सिि बैठो कक
ति
ु ने उसकी सीिाएाँ पा ली हैं ।
तुि बबल खोदनेवालों िें
मशरोिखण हो सकते हो,
जैसा की अबबिार ने कहा है;
परन्तु केवल उस छछूींदर की
तरह जो अाँिेरे िें काि करता है ।
ल्जतनी अचिक जदटल उसकी
भूलभुलैयााँ हों उतना ही दरू होता है
सूया से उसका िुख ।
िैं तम्
ु हारी भल
ू भल
ु य
ै ााँ
को जानता हूाँ, अबबिार ।
तुि िट
ु ठी भर प्राणी हो,
जैसा तुि कहते हो,
और कहने को सींसार के सब
प्रलोभनों से िक्
ु त और
परिात्िा को सिवपात हो ।
परन्तु कुदटल और अींिकारपण
ू ा है
वे रास्ते जो तुम्हे सींसार के साथ जोड़ते हैं ।
क्या िि
ु े तुम्हारे िनोवेग ििलते,
िुींकारते सन
ु ाई नहीीं दे ते ?
क्या िि
ु े तुम्हारी ईष्यााएाँ
तम्
ु हारे परिात्िा की वेदी पर रें गती
और तडपती ददखाई नहीीं दे तीीं ?
भले ही तुि िट्
ु ठी भर हो परन्त,
ु
ओह,
ककतना ववशाल जनसिूह है
उस िट्
ु ठी भर िें !
यदद तुि वास्तव िें ही
बबल खोदनेवालों िें मशरोिखण होते,
जो तुि कहते हो तुि हो,
तो तुि खोदते-खोदते
बहुत पहले िरती िें से ही नहीीं,
सूया िें से भी तथा
गगन-िण्डल िें िक्कर काटते
हर ग्रह- उपग्रह िें से भी
अपनी राह बना ली होती
छछुन्दरों को थथ
ू नो
और पींजों से अपनी अाँिेरी
राहें बनाने दो तम्
ु हे अपना
राजपथ ढूींढने के मलये
पलक तक दहलाने की आवश्यकता नहीीं ।
इस नीड़ िें बैठे रहो
और अपनी ददव्य ककपना को उड़ान भरने दो ।
उस पथ-रदहत अल्स्तत्व के,
जो तम्
ु हारा साम्राज्य है,
अद्भत
ु खजानों तक पहुाँिने के मलये
यही तम्
ु हारा ददव्य पथ-प्रदशाक है ।
सशक्त और तनभाय िन से
अपने पथ-प्रदशाक के पीछे -पीछे िलो ।
उसके पद-चिन्ह िाहे वे दरू ति नक्षत्र पर हों,
तम्
ु हारे मलये इस बात का सि
ू क
और जिानत होंगे
कक तम्
ु हारी जड़ वहाीं
पहले ही रोपी जा िुकी है ।
क्योंकक तुि ऐसी ककसी
भी वस्तु की ककपना नहीीं कर सकते
जो पहले से तम्
ु हारे भीतर न हों,
या तम्
ु हारा अींग न हों ।
वक्ष
ृ अपनी जड़ों से आगे नहीीं ़िैल सकता,
जबकक िनष्ु य असीि तक ़िैल सकता है,
क्योंकक उसकी जड़ें अनींत िें हैं ।
अपने मलए सीिाएाँ तनिाािरत ित करो ।
िैलते जाओ
जब तक कक ऐसा कोई लोक न रहे
ल्जसिे तुि न होओ ।
िैलते जाओ जब तक
कक सारा सींसार वहााँ न हो
जहााँ सींयोगवश ति
ु होओ ।
िैलते जाओ ताकक जहााँ कहीीं भी
तुि अपने आपसे मिलो,
तुि प्रभु से मिलो ।
िैलते जाओ । िैलते जाओ !
अाँिेरे िें इस भरोसे कोई काया न करो
कक अन्िकार एक ऐसा आवरण है
ल्जसे कोई दृल्ष्ट बेि नहीीं सकती ।
यदद तम्
ु हे अन्िकार से अींिे हुए
लोगों से शिा नहीीं आती तो कि
से कि जुगनओ
ु ीं और
ििगादड़ों से तो शिा करो ।
अन्िकार का कोई अल्स्तत्व नहीीं है,
िेरे साचथयो ।
प्रकाश की िात्रा सींसार के हर
जीव की आवश्यकता की पतू ता
के मलये कि या अचिक होती है ।
तम्
ु हारे ददन का खल
ु ा प्रकाश
अिर पक्षी* के मलये साींि का िट
ु पट
ु ा है ।
तम्
ु हारी घनी अाँिेरी रात
िेंढक के मलये जगिगाता ददन है ।
यदद स्वयीं अन्िकार पर से ही
आवरण हटा ददये जायें
तो वह ककसी वस्तु के मलये
आवरण कैसे हो सकता है ?
ककसी भी वस्तु को ढकने का यत्न न करो ।
यदद यदद और कुछ तम्
ु हारे
रहस्यों को प्रकट नहीीं करे गा तो
उनका आवरण ही उन्हें प्रकट कर दे गा ।
क्या ढक्कन नहीीं जानता
की बतान के अींदर क्या है ?
ककतनी दद
ु ा शा होती है सााँपों
और कीड़ों से भरे बतानों की
जब उन पर से ढक्कन उठा ददये जाते हैं ।
िैं तुिसे कहता हूाँ, तम्
ु हारे अींदर
से एक भी ऐसा स्वास नहीीं तनकलता
जो तम्
ु हारे ह्रदय के गहरे से गहरे
रहस्यों को वापु िें बबखेर नहीीं दे ता ।
ककसी आाँख से एक भी
ऐसी क्षखणक दृष्टी नहीीं तनकलती
जो उसकी सभी लालसाओीं
तथा भयों को,
उसकी िस्
ु कानों तथा
अश्रुओीं को साथ न मलये हो ।
ककसी द्वार िें एक भी ऐसा
सपना प्रववष्ट नहीीं हुआ है
ल्जसने अन्य सब द्वारों पर
दस्तक न दी हो ।
तो ध्यान रखो तुि कैसे दे खते हो ।
ध्यान रखो ककन सपनों को
ति
ु द्वार के अींदर आने दे ते हो
और ककन्हें तुि पास से तनकल जाने दे ते हो ।
यदद तुि चिींता और पीड़ा से िुक्त होना िाहते हो,
तो िीरदाद तम्
ु हे ख़श
ु ी से रास्ता ददखायेगा ।
☞ आप का हर करि ☜
आकाश िें अींककत होता है
अध्याय 9
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
अध्याय 11
प्रेि प्रभु का वविान है।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
िीरदाद: ति
ु व्यथा िें प्राथाना करते हो
जब तुि अपने आप को छोड़
दे वताओीं को सम्बोचित करते हो।
क्योकक तम्
ु हारे अींदर है
आकवषात करने की शल्क्त,
जैसे दरू भगाने की की शल्क्त तम्
ु हारे अींदर है ।
और तम्
ु हारे अींदर हैं वे वस्तए
ु ाँ
ल्जन्हें तुि आकवषात करना िाहते हो,
जैसे वे वस्तुएाँ ल्जन्हें तुि दरू
भगाना िाहते हो तम्
ु हारे अींदर हैं।
क्योंकक ककसी वस्तु को लेने का
सािथ्या रखना उसे दे ने का
सािथ्या रखना भी है।
जहाीं भूख है, वहाीं भोजन है।
जहाीं भोजन है, वहाीं भूख भी अवश्य होगी।
भूख की पीड़ा से व्यचथत होना
तप्ृ त होने का आनींद लेने का सािथ्या रखना है ।
हााँ, आवश्यकता िें ही
आवश्यकता की पूतता है।
क्या िाबी ताले के प्रयोग
का अचिकार नहीीं दे ती?
क्या ताला िाबी के प्रयोग
का अचिकार नहीीं दे ती ?
क्या ताला और िाबी दोनों
दरवाजे के प्रयोग का अचिकार नहीीं दे ते ?
जब भी तुि िाबी गाँवा बैठो
या उसे कहीीं रखकर भूल जाओ,
तो लोहार से आग्रह करने के मलये
उतावले ित होओीं।
लोहार ने अपना काि कर ददया है,
और अच्छी तरह से कर ददया है ;
उसे वही काि बार-बार
करने के मलये ित कहो।
तुि अपना काि करो और
लोहार को अकेला छोड़ दो;
क्योंकक जब एक बार वह ति
ु से तनपट िूका है,
उसे और भी काि करने हैं।
अपनी स्ितृ त िें से दग
ु न्
ा ि
और किरा तनकाल िेंको,
और िाबी तम्
ु हे तनश्िय ही मिल जायेगी|
अकथ प्रभु ने उच्िारण द्वारा
जब तम्
ु हे रिा तो तम्
ु हारे रूप
िें उसने अपनी ही रिना की।
इस प्रकार तुि भी अकथ हो।
प्रभु ने तुम्हे अपना कोई
अींश प्रदान नहीीं ककया–
क्योंकक वह अींशों िें नहीीं बााँट सकता;
उसने तो अपना सिग्र,
अववभाज्य, अकथ ईश्वरत्व ही
तुि सबको प्रदान कर ददया।
इससे बड़ी ककस ववरासत की
कािना कर सकते हो ति
ु ?
और तम्
ु हारी अपनी कायरता का
अन्िेपन के मसवाय और कौन,
या क्या, तम्
ु हे पाने से रोक सकता हैं ?
किर भी, कुछ–अन्िे कृतध्न लोग–
अपनी ववरासत के मलये
कृतज्ञीं होने के बजाय,
उसे प्राप्त करने की
राह खोजने के बजाय,
प्रभु एक प्रकार का कूडाघर
बना दे ना िाहते हैं
ल्जसने वे अपने दाींत
और पेट के ददा ,
व्यापार िें अपने घाटे ,
अपने िगडे, अपनी बदले
की भावनाएीं तथा
अपनी तनद्राहीन रातें ले
जाकर िेंक सकें।
कुछ अन्य लोग प्रभु को
अपना तनजी कोष बना लेना िाहते हैं
जहाीं से वे जब िाहें सींसार की
ििकदार तनकम्िी वस्तओ
ु ीं िें से
हर ऐसी वस्तु को पाने की
आशा रखते हैं ल्जसके
मलए वे तरस रहे हैं।
कुछ अन्य लोग प्रभु को
एक प्रकार का तनजी िन
ु ीि
बना लेना िाहते हैं,
जो केवल यह दहसाब ही न रखे
कक वे ककन िीजों के मलये दस
ू रों के कजादार हैं
और ककन िीजों के मलये उनके कजादार है,
बल्कक उनके ददये कजा को वसल
ू भी करे
और उनके उनके खाते िें हिेशा
एक बड़ी रकि जिा ददखाये।
हााँ…..
अनेक तथा नाना प्रकार के हैं
वे काि जो िनष्ु य प्रभु को सौंप दे ता है।
किर भी बहुत थोड़े लोग ऐसे होंगे
जो सोिते हों कक यदद सििि ु
इतने सारे काि करने की
ल्जम्िेदारी प्रभु पर है
तो वह अकेला ही उनको तनपटा लेगा,
और उसे यह आवश्यकता नहीीं होगी
कक कोई उसे प्रेिरत करता रहे
या अपने कािों की याद ददलाता रहे ।
क्या प्रभु को ति
ु उन घड़ड़यों की
याद ददलाते हो
जब सय
ू ा उदय होना है
और जब िन्द्र को अस्त ?
क्या उसे तुि दरू के खेत िें पड़े
अनाज के उस दाने की याद ददलाते हो
ल्जसिे जीवन िूट रहा है ?
क्या उसे तुि उस िकडी की
याद ददलाते हो
जो रे शे से अपना कौशल-पूणा
ववश्राि-गह
ृ बना रही है ?
क्या उसे तुि घोंसले िें पड़े
गौरे या के छोटे -छोटे बच्िों की
याद ददलाते हो ?
क्या तुि उसे उन अनचगनत
वस्तुओीं की याद ददलाते हो
ल्जनसे यह असीि ब्रह्िाण्ड भरा हुआ है ?
तिु अपने तच्
ु छ व्यल्क्तत्व को
अपनी सिस्त अथाहीन
आवश्यकताओीं सदहत बार-बार
उसकी स्ितृ त पर क्यों लादते हो ?
क्या तुि उसकी दृल्ष्ट िें गौरे या,
अनाज और िकड़ी की तल
ु ना िें
कि कृपा के पात्र हो ?
तुि उनकी तरह अपने उपहार
स्वीकार क्यों नहीीं करते
और बबना शोर ििाये,
बबना बबना घट
ु ने टे के,
बबना हाथ िैलाये और
बबना चिींता-पूवक
ा भववष्य िें
िााँके अपना-अपना काि
क्यों नहीीं करते ?
और प्रभु दरू कहााँ है
कक उसके कानों तक अपनी सनकों
और मिथ्यामभिानों को, अपनी
स्तुततयों और अपनी
ििरयादों को पहुाँिाने के मलये
तम्
ु हे चिकलाना पड़े ?
क्या वह
तम्
ु हारे अींदर और
तम्
ु हारे िारों ओर नहीीं है ?
ल्जतनी तम्
ु हारी ल्जव्हा
तम्
ु हारे तालू के तनकट है,
क्या उसका कान तुम्हारे
िुाँह के उससे कहीीं
अचिक तनकट नहीीं है ?
प्रभु के मलये तो उसका
ईश्वरत्व ही कािी है ल्जसका
बीज उसने तम्
ु हारे अींदर रख ददया है ।
यदद अपने ईश्वरत्व का बीज
तम्
ु हे दे कर तम्
ु हारे बजाय
प्रभु को ही उसका ध्यान
रखना होता तो तुििे क्या खब
ू ी होती ?
और जीवन िें तम्
ु हारे करने के
मलये क्या होता ?
और यदद तुम्हारे करने को
कुछ भी नहीीं है,
बल्कक प्रभु को ही तम्
ु हारी
खाततर सब करना है,
तो तम्
ु हारे जीवन का क्या िहत्व है ?
तम्
ु हारी सारी प्राथाना से क्या लाभ है ?
अपनी अनचगनत चिींताएाँ और
आशाएाँ प्रभु के पास ित ले जाओ।
ल्जन दरवाजों की िाबबयााँ
उसने तुम्हे सौंप दी है,
उन्हें तम्
ु हारी खाततर खोलने
के मलये मिन्नतें ित करो।
बल्कक अपने ह्रदय की ववशालता िें खोजो।
क्योंकक ह्रदय की ववशालता िें मिलती है
हर दरवाजे की िाबी।
और ह्रदय की ववशालता िें िौजद
ू हैं
वे सब िीजें ल्जनकी तुम्हे भख
ू और प्यास है,
िाहे उनका सम्बन्ि बरु ाई से है या भलाई से।
तम्
ु हारे छोटे से छोटे आदे श
का पालन करने को तैयार
एक ववशाल सेना तम्
ु हारे
इशारे पर काि करने के
मलये तैनात कर दी गयी है ।
यदद वह अच्छी तरह से सल्ज्जत हो,
उसे कुशलतापव
ू क
ा मशक्षण ददया गया हो
और तनडरता पूवक
ा उसका
सींिालन ककया गया हो,
तो उसके मलये कुछ भी
करना असम्भव नहीीं,
और कोई भी बािा उसे
अपनी िींल्जल पर पहुाँिने से रोक नहीीं सकती।
और यदद वह पूरी तरह सल्ज्जत न हो,
उसे उचित मशक्षण न ददया गया हो
और उसका सञ्िालन साहसहीन हो,
तो वह ददशाहीन भटकती रहती है,
या छोटी से छोटी बािा के सािने
िोरिा छोड़ दे ती है,
और उसके पीछे -पीछे
िली आती है शिानाक पराजय।
वह सेना और कोई नहीीं,
सिुओ…
इस सिय तम्
ु हारी रगों िें
िुपिाप िक्कर लगा रही
सूक्ष्ि लाल कखणकाएाँ हैं;
उनिे से हरएक शल्क्त का िित्कार,
हरएक तम्
ु हारे सिूिे जीवन का
और सिस्त जीवन का–उनकी
अन्तरति सूक्ष्िताओीं सदहत–
पूरा और सच्िा वववरण।
ह्रदय िें एकबत्रत होती है यह सेना;
ह्रदय िें से ही बाहर तनकलकर
यह िोरिा लगाती है ।
इसी कारण ह्रदय को इतनी
ख्यातत और इतना सम्िान प्राप्त है।
तम्
ु हारे सुख और दिःु ख के आाँसू
इसी िें से िूटकर बाहर तनकलते हैं।
तम्
ु हारे जीवन और ित्ृ यु के भय
दौड़कर इसी के अन्दर घुसते हैं।
तम्
ु हारी लालसाएाँ और कािनाएाँ
इस सेना के उपकरण हैं
तम्
ु हारी बुद्चि इसे अनश
ु ासन िें रखती है ।
तम्
ु हारा सींककप इससे कवायद करवाता है
और इसकी बागडोर सींभालता है ।
जब ति
ु अपने रक्त को एक प्रिख
ु
कािना से सल्ज्जत कर लो
जो सब कािनाओीं को िप
ु कर दे ती है
और उन पर छा जाती है;
और अनुशासन एक प्रिुख वविार को सौंप दो,
तब तुि ववश्वास कर सकते हो
कक तम्
ु हारी वह कािना पूरी होगी।
कोई सींत भला सींत कैसे हो सकता है
जब तक वह अपने िन की
वतृ त को सींत-पद के अयोग्य
हर कािना से तथा हर वव
िार से िुक्त न कर दे ,
और किर एक अड़डग सींककप के द्वारा
उसे अन्य सभी लक्ष्यों को
छोड़ केवल सींत-पद की प्राल्प्त
के मलये यत्नशील रहने का तनदे श न दे ?
िैं कहता हूाँ कक आदि के सिय से
लेकर आज तक की हर पववत्र कािना,
हर पववत्र वविार,
हर पववत्र सींककप उस िनुष्य की
सहायता के मलये िला आयेगा
ल्जसने सींत-पद प्राप्त करने का
ऐसा दृढ़ तनश्िय कर मलया हो।
क्योंकक सदा ऐसा होता आया है
कक पानी, िाहे वह कहीीं भी हो,
सिुद्र की खोज करता है
जैसे प्रकाश की ककरने
सूया को खोजती हैं।
कोई हत्यारा अपनी योजनाएाँ
कैसे पूरी करता है?
वह कवल अपने रक्त को
उिेल्जत उसिे ह्त्या के
मलये एक उन्िाद-भरी
प्यास पैदा करता है,
उसके कण-कण को हत्यापूणा
वविारों के कोड़ों की
िार से एकत्र करता है,
और किर तनष्ठुर सींककप से
उसे घातक बार करने
का आदे श दे ता है।
िैं तुिसे कहता हूाँ कक केन*
से लेकर आज तक का हर
हत्यारा बबना बुलाये
उस िनष्ु य की भज
ु को
सबल और ल्स्थर बनाने के
मलये दौड़ा आयेगा ल्जस पर
ह्त्या का ऐसा नशा सवार हो।
क्योंकक सदा ऐसा होता आया है
कक कौए, कौओीं का साथ दे ते हैं
और लकड़ बग्घे लकड़-बग्घों का।
इसमलये प्राथाना करना
अपने अींदर एक ही प्रिुख कािना की
एक ही प्रिुख वविार की
एक ही प्रिख
ु सींककप की
सींिार करना है ।
यह अपने आप को इस
तरह सुर िें कक ल्जस वस्तु
के मलये भी तुि प्राथाना करो,
उसके साथ परू ी तरह एक-सरु ,
एक-ताल हो जाओ।
इस ग्रह का वातावरण,
जो अपने सम्पूणा रूप िें
तम्
ु हारे ह्रदय िें प्रततबबल्म्बत है ,
उन सब बातों की आवारा
स्ितृ तयों से तरीं चगत है ल्जन्हें
उसने अपने जन्ि से दे खा है।
कोई विन या किा;
कोई इक्षा या तनिःश्वास;
कोई क्षखणक वविार या
अस्थाई सपना; िनुष्य या
पशु का कोई श्वास;
कोई परछाईं; कोई भ्रि ऐसा
नहीीं जो आज के ददन तक
अपने-अपने रहस्यिय रास्ते
पर न िलता रहा हो,
और सिय के अींत तक इसी
प्रकार उस पर िलते न रहना हो।
उनिे से ककसी एक के साथ भी तुि
अपने ह्रदय का सुर मिला लो,
और वह तनश्िय ही उसके तारों
पर िन
ु बजाने के मलय तेजी से दौड़ा आयेगा।
प्राथाना करने के मलए तम्
ु हे
ककसी होंठ या ल्जव्हा की
आवश्यकता नहीीं।
बल्कक आवश्यकता है एक िौन,
सिेत ह्रदय की,
एक प्रिुख कािना की,
एक प्रिुख वविार की,
और सबसे बढ़कर,
एक प्रिख
ु सींककप की
जो न सींदेह करता है न सींकोि।
क्योंकक शब्द व्यथा हैं
यदद प्रत्येक अक्षर िें ह्रदय
अपनी पूणा जागरूकता के
साथ उपल्स्थत न हो।
और जब ह्रदय उपल्स्थत और सजग है,
तो ल्जव्हा के मलये यह बेहतर होगा कक
वह सो जाये,
या िह
ु रबन्द होंठों के पीछे तछप जाये।
न ही प्राथाना करने के मलये
तम्
ु हें िल्न्दरों की आवश्यकता है ।
जो कोई अपने ह्रदय िें
िल्न्दर को नहीीं पा सकता,
वह ककसी भी िल्न्दर िें
अपने ह्रदय को नहीीं पा सकता।
किर भी िैं तुिसे यह सब कहता हूाँ,
और जो तुि जैसे हैं उनसे भी,
ककन्तु प्रत्येक िनुष्य से नहीीं,
क्योंकक अचिकााँश लोग अभी भ्रि िें हैं।
वे प्राथाना की जरुरत तो िहसूस करते हैं,
लेककन प्राथाना करने का ढीं ग नहीीं जानते।
वे शब्दों के बबना प्राथाना कर नहीीं सकते,
और शब्द उन्हें मिलते नहीीं
जब तक शब्द उनके िुाँह िें न
डाल ददये जायें।
और जब उन्हें अपने ह्रदय
की ववशालता िें वविरण
करना पड़ता है तो वे खो जाते हैं,
और भयभीत हो जाते हैं;
परन्तु िींददरों की दीवारों के
अींदर और अपने जैसे प्राखणयों
के िुींडों के बीि उन्हें साींत्वना
और सुख मिलता है ।
कर लेने दो उन्हें अपने िींददरों का तनिााण।
कर लेने दो उन्हें अपनी प्राथानाएाँ।
ककन्तु तम्
ु हें तथा प्रत्येक िनष्ु य
को ददव्य ज्ञान के मलये
प्राथाना करने का आदे श दे ता हूाँ।
उसके मसवाय अन्य ककसी
वस्तु की िाह रखने का अथा है
कभी तप्ृ त न होना।
याद रखो,
जीवन की कींु जी ”
मसरजनहार शब्द” है । ‘
मसरजनहार शब्द’ की कींु जी प्रेि है ।
प्रेि की कींु जी ददव्य ज्ञान है।
अपने ह्रदय को इनसे भर लो,
और बिा लो अपनी ल्जव्हा को
अनेक शब्दों की पीड़ा से,
और रक्षा कर लो
अपनी बुद्चि का अनेक प्रा
थानाओीं के बोि से,
और िुक्त कर लो अपने ह्रदय
को सब दे वताओीं की दासता
से जो तम्
ु हे उपहार दे कर
अपना दास बना लेना िाहते हैं;
जो तम्
ु हें एक हाथ से केवल
इसमलए सहलाते हैं कक दस
ू रे
हाथ से तुि पर बार का सकें;
जो तम्
ु हारे द्वारा प्रशींसा
ककये जाने पर सींतष्ु ट और कृपालु होते हैं,
ककन्तु तम्
ु हारे द्वारा कोसे जाने
पर क्रोि और बदले की भावना से भर जाते हैं;
जो तब तक तम्
ु हारी बात नहीीं
सुनते जब तक तुि उन्हें पक
ु ारते नहीीं;
और तब तक तम्
ु हे दे कर
बहुिा दे ने पर पछताते हैं;
ल्जनके मलये तम्ु हारे आाँसू अगरबिी हैं,
ल्जनकी शान तम्
ु हारी दयनीयता िें है ।
हााँ…….
अपने ह्रदय को इन सब दे वताओीं
से िक्
ु त कर लो, ताकक तम्
ु हें उसिे
वह एकिात्र प्रभु मिल सके जो
तम्
ु हें अपने आप से भर दे ता है िाहता है
की तुि सदै व भरे रहो।
बैनन
ू : कभी तुि िनुष्य को
सवाशल्क्तिान कहते हो तो
कभी उसे लावािरस
कहकर तुच्छ बताते हो।
लगता है तुि हिें िुन्ि िें लाकर छोड़ रहे हो।
िीरदाद हाँसता है और आकाश की और दे खता ..
िौन से कुछ अलोककक
आता ददखाई दे ता है ….
िनुष्य जन्ि सिय
परिात्िा और शैतान
की सींवेदना लेकर आता है
************************************
अध्याय -14
िनुष्य के काल-िुक्त जन्ि पर
दो प्रिुख दे वदत
ू ों का सींवाद
और दो प्रिुख यिदत
ू ों का सींवाद
************************************
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
अध्याय 16
लेनदार और दे नदार
िन क्या है ?
***********************************
रल्स्तददयन को नौका के
ऋण से िुक्त ककया जाता है☜
नरौन्दा: एक ददन जब सातों साथी और िमु शाद नीड़ से नौका की ओर लौट रहे थे तो उन्होंने द्वार पर
खड़े शिदाि को अपने पैरों िें चगरे एक व्यल्क्त के सािने कागज़ का एक टुकड़ा दहलाते हुए क्रुद्ि
स्वर िें कहते सूना;
‘तम्
ु हारी लापरवाही ने िेरे िैया को सिाप्त कर ददया है । अब िैं और नरिी नहीीं बारात सकता।
अपना ऋण अभी िक
ु ाओ नहीीं तो जेल िें सड़ो।”
हि उस व्यल्क्त को पहिान गये,
उसका नाि रल्स्तददयन था।
वह नौका के अनेक काश्तकारों िें से एक था, जो कुछ रकि के मलये नौका का ऋणी था। वह चिथड़ों
के बोि से उतना ही िुका हुआ था ल्जतना कक आयु के बोि से। उसने ब्याज िक ु ाने के मलए यह
कहते हुए िुखखया से ववनयपव
ू क
ा सिय िााँगा कक इन्ही ददनों िैंने अपना एकिात्र पुत्र खो ददया है और
इसी सप्ताह अपनी गाय भी,
और इस शोक के िलस्वरूप िेरी बढ़
ू ी पत्नी को लकवा हो गया है । ककन्तु शिदाि का ह्रदय नहीीं
वपघला।
िुमशाद रल्स्तददयन की ओर गये और कोिलतापूवक
ा उसकी बााँह थािते हुए बोले;
िीरदाद: उठो, िेरे रल्स्तददयन।
तुि भी प्रभु का रूप हो, और प्रभु के रूप को ककसी परछाईं के सािने िक
ु ने के मलये वववश नहीीं
ककया जाना िादहये।
किर शिदाि की ओर िड़
ु ते हुए वे बोले;
िुिे ऋण-आलेख ददखाओ।
नरौन्दा: शिदाि ने, जो केवल एक पल पहले क्रोिाकुल हो रहा था, हि सबको िककत कर ददया
जब उसने िेिने से भी अचिक आज्ञाकारी होकर अपने हाथ का कागज़ िुपिाप िमु शाद के हाथ िें दे
ददया।
िमु शाद ने कागज़ ले मलया और दे र तक उसकी जाींि की, जबकक शिदाि स्तब्ि, बबना कुछ कहे
दे खता रहा, िानो उस पर कोई जाद ू कर ददया गया हो।
िीरदाद: कोई साहूकार नहीीं था इस नौका का सींस्थापक। क्या उसने िन ववरासत के रूप िें तम्
ु हारे
मलये इस उद्दे श्य से छोड़ा था कक तुि उसे उिार दे कर सद
ू खोरी करो ?
क्या उसने िल-सींपवि तम्
ु हारे मलए इस उद्दे श्य से छोड़ी थी कक तुि उसे व्यापार िें लगा दो,
या जिीनें इस उद्दे श्य से कक ति
ु उन्हें काश्तकारों को दे कर अनाज की जिाखोरी करो?
क्या उसने तम् ु हारे भाइयों का खनू -पसीना तुम्हे सौंपते हुए कारागार उन लोगों को बींदी बनाने के
उद्दे श्य से छोड़े थे ल्जनका सारा पसीना तिु ने बहा ददया है और ल्जनका खन ू तिु ने आखरी बद ाँू तक
िूस मलया है ?
एक नौका, एक वेदी, और एक ज्योतत सौंपी थी उसने तम्
ु हे इससे अचिक कुछ नहीीं।
नौका जो उसका जीववत शरीर है । वेदी जो उसका तनभीक ह्रदय है । ज्योतत जो उसका ज्वलन्त ववश्वास
है । और उसने तम्
ु हे आदे श ददया था कक इन तीनों को इस सींसार िें सदा सुरक्षक्षत और पववत्र रखना;
इस सींसार िें जो ववश्वास के अभाव के कारण ित्ृ यु के ताल पर नाि रहा है और अन्याय की दलदल
िें लोट रहा है।
और तम्
ु हारे शरीर की चिींताएाँ कहीीं तम्
ु हारे ध्यान को इस लक्ष्य से हटा न दें , इसमलये तम्
ु हे
श्रद्िालुओीं के दान पर तनवााह करने की अनुितत दी गई थी।
और जबसे नौका की स्थापना हुई है दान की कभी किी नहीीं रही।ककन्तु दे खो ! इस दान को तुिने
अब एक अमभशाप बना मलया है , अपने और दातनयों के मलये।
क्योंकक दातनयों द्वारा ददये गये उपहारों से ही तुि उन्हें अपने आिीन करते हो। जो सूत वे तुम्हारे
मलये कातते हैं उसी से तुि उन पर कोड़े बरसाते हो।
जो कपड़ा वे तम्
ु हारे मलए बन
ु ते हैं उसी से तुि उन्हें नींगा करते हो। जो रोटी वे तम्
ु हारे मलये पकाते हैं
उसी से ति
ु उन्हें भूखों िारते हो।
ल्जन पत्थरों को वे तम्
ु हारे मलये काटते और तराशते हैं उन्ही से ति
ु उनके मलये बींदीगह
ृ बनाते हो।
जो लकड़ी वे तुम्हे गिााहट के मलये दे ते हैं उसी से तुि उनके मलये जुए और ताबत
ू बनाते हो।
उसका अपना खन
ू -पसीना ही तुि उन्हें वापस उिार दे दे ते हो ब्याज पर। क्योंकक और क्या है पैसा
मसवाय लोगों के खन
ू -पसीने के ल्जसे ित
ू ों ने छोटे - बड़े मसक्कों िें ढाल मलया है, ताकक उनसे वे लोगों
को बींदी बना लें ?
और क्या है िन-दौलत मसवाय लोगों के खन
ू -पसीने के ल्जसे उन ित
ू ा व्यल्क्तयों ने बटोरा है जो सबसे
कि खन
ू -पसीना बहाते हैं, ताकक वे इससे उन्ही लोगों को पीस डालें जो सबसे अचिक खन
ू -पसीना
बहाते हैं?
चिक्कार है, बार-बार चिक्कार है उनको जो िन-दौलत इकट्ठी करने िें अपने ह्रदय और बद्
ु चि को
खपा दे ते हैं, अपने ददनों और रातों का खन
ू कर दे ते हैं क्योंकक वे नहीीं जानते कक वे क्या इकटठा कर
रहे हैं।
वेश्याओीं,हत्यारों और िोरों का पसीना; तपेददक,कोढ़ और लकवे के रोचगयों का पसीना; अींिों का
पसीना,लींगड़ों तथा लल
ू ों का पसीना; और साथ ही पसीना ककसान और उसके बैल का, िरवाहे तथा
उसकी भेड़ का, िसल को काटने तथा बेिने वाले का—-ये सब, और ककतने ही और पसीने इकट्ठे
कर लेते हैं िन-दौलत के जिाखोर |
अनाथों और दष्ु टों का खन
ू ; तानाशाहों और शहीदों का खन
ू ; दरु ािािरयों और न्यायवानों का खन
ू ;
लुटेरों और लट
ु े जाने वालों का खन
ू ; जकलादों और उनके हाथों िरनेवालों का खन
ू ; शोषकों और ठगों
तथा उनके द्वारा शोवषत ककये जाने वालों और ठगे जाने वालों का खन
ू – ये सब,
और ककतने ही और खन
ू इकट्ठे कर लेते हैं िन-दौलत के जिाखोर। हााँ, चिक्कार है, बार-बार
चिक्कार है उनको ल्जनकी िन-दौलत और ल्जनके व्यापार का िाल लोगों का खन
ू और पसीना है।
क्योंकक खन
ू और पसीना तो आखखर अपनी कीित वसूल करें गे ही । और भीषण होगी यह कीित और
भयींकर उसकी वसूली । उिार दे ना, और वह भी ब्याज पर ! यह सििि
ु कृतध्नता है , इतनी
तनलाज्ज कक इसे क्षिा नहीीं ककया जा सकता ।
क्योंकक उिर दे ने के मलए तम्
ु हारे पास है क्या ? क्या तम्
ु हारा जीवन ही एक उपहार नहीीं है ? यदद
परिात्िा को तम्
ु हे ददये अपने छोटे से छोटे उपहार का भी ब्याज लेना हो तो ति
ु उसे ककस िीज से
िुकाओगे ?
क्या यह सींसार एक सींयुक्त कोष नहीीं ल्जसिे हर िनष्ु य, हर पदाथा सबके भरण-पोषण के मलये
अपना सब-कुछ जिा कर दे ता है ?
क्या बुलबल
ु अपना गीत और िरना अपना उज्ज्वल जल तम्
ु हे उिार दे ते हैं ?क्या बरगद अपनी छाया
और खजरू अपने शहद-से िीठे िल क्काजा पर दे ते है ?क्या भेड़ अपना ऊन और गाय अपना दि
ू
तम्
ु हे ब्याज पर दे ती हैं ? क्या बादल अपनी बषाा और सय ू ा अपनी गिी और प्रकाश तम्
ु हे िोल दे ते हैं
?
इन वस्तुओीं तथा अन्य हजारों वस्तओ ु ीं के बबना तम्
ु हारा जीवन कैसा होता ? और ति ु िे से कौन बता
सकता है कक सींसार के कोष िें, ककस िनुष्य,ककस वस्तु ने सबसे अचिक और ककसने सबसे कि
जिा ककया है ?
शिदाि, क्या ति
ु नौका के कोष िें रल्स्तददयन के योगदान का दहसाब लगा सकते हो ? किर भी
तुि उसी के योगदान को—-शायद उसके योगदान के केवल एक तुच्छ अींश को—उसे ऋण के रूप िें
वापस दे ते हो और साथ ही उस पर ब्याज भी िाींगते हो ?
किर भी तुि उसे जेल भेजना िाहते हो और सड़ने के मलये वहाीं छोड़ दे ना िाहते हो ? क्या ब्याज
िाींगते हो तुि रल्स्तददयन से ?
क्या तिु दे ख नहीीं सकते तम्
ु हारे ऋण ने उसे ककतना लाभ पहुींिाया है ? ित
ृ पत्र
ु , ित
ृ गाय, और
पक्षाघात से पीड़ड़त पत्नी–इससे अचिक अच्छा भुगतान ति ु क्या िाहते हो ?
इतनी िक
ु ी पीठ पर ये इतने चिथड़े—इससे अचिक और क्या ब्याज वसूल कर सकते हो तुि ?
आह..
अपनी आाँखें िलो, शिदाि ! जागो इससे पहले कक तम्
ु हे भी ब्याज सदहत अपना ऋण िक
ु ाने के
मलये कहा जाये, और भुगतान न कर पाने की सूरत िें तम्
ु हे भी घसीटकर जेल िें डाल ददया जाये
और वहाीं सड़ने को छोड़ ददया जाये।
यही बात िैं तुि सबसे कहता हूाँ, साचथयों।
अपनी आाँखें िलो, और जागो। जब दे सको, और ल्जतना दे सको, दो। लेककन ऋण कभी ित दो,
कहीीं ऐसा न हो कक जो कुछ तम्
ु हारे पास है, तम्
ु हारा जीवन भी, एक ऋण बनकर रह जाये और वह
ऋण लौटाने का सिय तुरन्त ही आ जाये,
और तुि ददवामलया पाये जाओ और तुम्हे जेल िें डाल ददया जाये।
नरौन्दा: िमु शाद ने तब हाथ िें थािे हुए कागज़ पर एक नजर डाली और कुछ सोिकर उसे टुकड़े-टुकड़े
कर ददया, और उन टुकड़ों को हवा िें बबखेर ददया। किर दहम्बल की ओर िुड़ते हुए, जो नौका का
कोषाध्यक्ष था,
वे बोले;िीरदाद: रल्स्तददयन को इतना िन दे दो कक वह दो गाय खरीद सके
और जीवन के अींत तक अपनी और अपनी पत्नी की दे ख-भाल कर सके।
और तुि रल्स्तददयन शान्त िन से जाओ। तुि अपने ऋण से िुक्त हुए।
ध्यान रखना कक तुि कभी लेनदार न बनो। क्योंकक लेनदार का ऋण दे नदार के ऋण से कहीीं अचिक
बड़ा और भारी होता है ।
अध्याय- 17
शिदाि हि से
ही आता है
**************************************
िीरदाद के ववरुद्ि अपने सींघषा िें शिदाि िरश्वत का सहारा लेता है नरौन्दा: कई ददन तक
रल्स्तददयन का िािला नौका िें ििाा का िख्
ु य बबषय बना रहा।
मिकेयन, मिकास्तर, तथा जिोरा ने जोश के साथ िमु शाद की सराहना की;
जिोरा ने तो कहा उसे िन को दे खने और छूने तक से घण
ृ ा है
बैनन
ू तथा अबबिार ने दबे स्वर िें सहिती और असहितत प्रकट की।
लेककन दहम्बल ने ने यह कहते हुए स्पष्ट बबरोि ककया कक िन के बबना सींसार का काि कभी नहीीं
िल सकता और कि-खिी और पिरश्रि के मलये िन- सींपवि परिात्िा का उचित परु स्कार है,
जैसे आलस्य और किजूल-खिी के मलये गरीबी परिात्िा का प्रत्यक्ष दण्ड है ।
उसने यह भी कहा की लेनदार और दे नदार तो सिय के अींत तक सींसार िें रहें गे ही।
इस दौरान शिदाि िखु खया के रूप अपनी प्रततष्ठा को सि
ु रने िें व्यस्त था।
उसने एक बार िुिे बुलाया और अपने किरे के एकाींत िें िुिसे कहा; ” तुि इस नौका के लेखक
और इततहासकार हो;
और तुि एक तनिान व्यल्क्त के पुत्र हो।
तम्
ु हारे वपता के पास जिीन नहीीं,
उनके सात बच्िे और पत्नी है ल्जनके मलये उसे पिरश्रि करना पड़ता है
और ल्जनकी न्यन
ू ति आवश्यकताएीं उसे पूरी करना पड़ती हैं।
इस दख
ु द का एक भी शब्द ित मलखना,
कहीीं ऐसा न हो कक हिारे बाद आने वाले लोग शिदाि को हास्य का पात्र बना लें।
तुि एक पततत िीरदाद का साथ छोड़ दो,
और िैं तुम्हारे वपता को भमू िपतत बना दीं ग
ू ा उसका कोठार तथा ततजोरी पूरी तरह भर दीं ग
ू ा।”
िैंने उिर ददया कक परिात्िा िेरे वपता तथा उसके पिरवार का शिदाि की अपेक्षा कहीीं अचिक अच्छा
ध्यान रखेगा।
जहाीं तक िीरदाद का सम्बन्ि है, उसे िैंने अपना िमु शाद और िल्ु क्तदाता स्वीकार कर मलया है, और
उसका साथ छोड़ने से पहले िैं अपने प्राण त्याग दीं ग
ू ा।
रही नौका के इततहास की बात, वह तो िैं ईिानदारी के साथ अपनी पूरी सिि और योग्यता के
अनुसार मलखग
ूाँ ा।
बाद िें िुिे पता िला कक शिदाि ने ऐसे ही प्रस्ताव हरएक साथी के सािने रखे थे, ककन्तु वे
ककतने सिल रहे यह िैं नहीीं कह सकता।
हााँ, इतना अवश्य दे खने िें आया कक दहम्बल पहले की तरह तनयमित रूप से नीड़ िें उपल्स्थत नहीीं
होता था।
पने िारों और घूिने दो
पर सिय साथ खद
ु ित घूिो।
**********************************
अध्याय -18
सिय सबसे बड़ा िदारी है
सिय का िक्र,
उसकी हाल और उसकी िुरी
****************************************
नरौन्दा: एक लींबे सिय के बाद, जब बहुत-सा जल पहाड़ों से नीिे बहता हुआ सिद्र
ु िें जा मिला
था,
दहम्बल के मसवाय बाकी सभी साथी एक बार किर नीड़ िें िुमशाद के िरों और इकट्ठे हुए।
िमु शाद प्रभु-इच्छा पर ििाा कर रहे थे।
ककन्तु अकस्िात वे रुक गये और बोले;
िीरदाद: दहम्बल सींकट िें है और वह सहायता के मलये हिारे पास आना िाहता है, ककन्तु सींकोि के
कारण उसके पैर इस ओर उठ नहीीं पा रहे हैं। जाओ अबबिार उसकी सहायता करो।
नरौन्दा: अबबिार बाहर गया और शीघ्र ही दहम्बल को साथ लेकर लौट आया। दहम्बल की दहिककयााँ
बाँिी हुई थीीं और िेहरा उदास था।
िीरदाद: िेरे पास आओ, दहम्बल। ओह, दहम्बल, दहम्बल। तुम्हारे वपता की ित्ृ यु हो गई इसमलये
तुि इतने असहाय हो गये कक दिःु ख ने तम्
ु हारे ह्रदय को बेि ददया और तम्
ु हारे रक्त को आाँसुओीं िें
बदल ददया।
जब तम्
ु हारे पिरवार के सब लोगों की ित्ृ यु हो जायेगी तब तुि क्या करोगे ? क्या करोगे तुि जब
तुि सींसार के सब वपता और िाताएाँ, और सब बहनें और भाई तुम्हारे हाथों और आाँखों की पहुाँि से
परे िले जायेंगे ?
दहम्बल; हााँ िुमशाद। िेरे वपता की ित्ृ यु दहींसापूणा हुई है । एक बैल ने, ल्जसे उन्होंने हाल ही िें खरीदा
था, कल शाि उनके पेट िें सीींग भोंक ददया और उनका मसर कुिल डाला। िुिे अभी-अभी एक
सन्दे श वाहक ने सि
ू ना दी है।
हाय, अ़िसोस !
मिरदाद: और उनकी ित्ृ य,
ु जान पड़ता है, ठीक उसी सिय हुई जब उनका भाग्य उदय होने वाला
था।
दहम्बल; ऐसा ही हुआ, िुमशाद। ठीक ऐसा ही हुआ।
िीरदाद: और उनकी ित्ृ यु तम्
ु हे इसमलये और भी अचिक दिःु ख दे रही है कक वह बैल उन्ही पैसों से
खरीदा गया था जो तुिने भेजे थे।
दहम्बल; यह सि है, िमु शाद। ठीक ऐसा ही हुआ है । लगता है आप सब-कुछ जानते हैं।
िीरदाद: और वे पैसे िीरदाद के प्रतत तम्
ु हारे प्रेि की कीित थे।
नरौन्दा; दहम्बल आगे कुछ न बोल सका, क्योंकक आाँसओ
ु ीं से उसका गला रूाँि गया था।
िीरदाद: तम्
ु हारे वपता िरे नहीीं हैं, दहम्बल। न ही उनका स्वरूप और परछाईं नष्ट हुए हैं। परन्तु
वास्तव तम्
ु हारे वपता के बदले हुए स्वरूप और परछाईं को दे खने िें तम्
ु हारी इल्न्द्रयााँ असिथा हैं।
क्योंकक कुछ स्वरूप इतने सक्ष्
ू ि होते हैं, और उनकी परछाइयााँ इतनी क्षीण कक िनष्ु य की स्थूल आाँख
उन्हें दे ख नहीीं सकती।
जींगल िें ककसी दे वदार की परछाईं वैसी नहीीं होती जैसी परछाईं उसी दे वदार से बने जहाज के
िस्तूल,या िींददर के स्तम्भ, या िाींसी के यखते की होती है।
न ही उस दे वदार की परछाईं िुप िें वैसी होती है जैसी िााँद और मसतारों के प्रकाश िें, या भोर की
मसींदरू ी िि
ुीं िें होती है ।
ककन्तु वह दे वदार, िाहे वह ककतना ही बदल गया हो, दे वदार के रूप िें जीववत रहता है, यद्यवप
जींगल के दे वदार अब पहिान नहीीं पाते कक वह बीते ददनों िें उनका भाई था।
पिे पर बैठा रे शि का कीड़ा क्या रे शिी खोल िें पल रहे कीड़े िें अपने भाई की ककपना कर सकता है
? या खोल िें पल रहा कीड़ा उड़ते हुए रे शि के पतींगे िें अपना भाई दे ख सकता है ?
क्या िरती के अींदर पडा गेहूीं का दाना िरती के ऊपर खड़े गेहूीं के डींठल से अपना नाता सिि सकता
है ?
क्या हवा िें उड़ती भाप या सागर का जल पवात की दरार िें लटक रहे दहम्लाम्बों को भाई-बहनों के
रूप िें स्वीकार कर सकता है ?
क्या िरती अन्तिरक्ष की गहराइयों िें से अपनी ओर िेंके गये टूटे तारे िें एक भाई तारा दे ख सकती
है ?
क्या बरगद का वक्ष
ृ अपने बीज के अींदर अपने आपको दे ख सकता है ?
क्योंकक तम्
ु हारे वपता अब एक ऐसे प्रकाश िें हैं ल्जसे दे खने की तम्
ु हारी आाँख अभ्यस्त नहीीं हैं, और
ऐसे रूप िें हैं ल्जसे तुि पहिान नहीीं सकते, तुि कहते हो कक तम्
ु हारे वपता अब नहीीं हैं।
ककन्तु िनष्ु य का भौततक अल्स्तत्व, िाहे वह कहीीं भी पहुाँि गया हो, ककतना भी बदल गया हो,
एक परछाईं जरुर िेंकेगा
जब तक वह िनष्ु य के ईश्वरीय प्रकाश िें परू ी तरह ववलीन नहीीं हो जाता।
लकड़ी का एक टुकडा िाहे वह आज पेड़ की हरी शाखा हो और कल दीवार िें गड़ी खट
ूीं ी, लकड़ी ही
रहता है। और अपना रूप तथा परछाईं बदलता रहता है।
जब तक वह अपने अींदर तछपी आग िें जलकर भस्ि नहीीं हो जाता।
इसी तरह िनष्ु य, जीते हुए और िरकर भी, िनुष्य ही रहे गा जब तक उसके अींदर का प्रभु उसे पूरी
तरह अपने िें सिा न ले;
अथाात जब तक वह उस एक के साथ अपने एकत्व का अनुभव न कर ले। परन्तु ऐसा आाँख के एक
तनिेष िें नहीीं हो जाता ल्जसे िनुष्य जीवन-काल का नाि दे ता है।सम्पूणा सिय जीवन-काल है, िेरे
साचथयों।
सिय िें कोई आरीं भ या पड़ाव नहीीं है। न ही उसिे कोई सराय है जहाीं यात्री जल-पान और ववश्राि के
मलये रुक सकें।
सिय एक तनरीं तरता है जो अपने आप िें मसिटती जाती है । इसका पछला छोर इसके अगले छोर के
साथ जड़
ु ा है। सिय िें कुछ भी सिाप्त और ववसल्जात नहीीं होता;
कुछ भी आरम्भ तथा पूणा नहीीं होता।सिय इल्न्द्रयों के द्वारा रचित एक िक्र है, और इल्न्द्रयों के
द्वारा ही उसे स्थान के शून्यों िें घुिा ददया जाता है।
तुि ऋतओ
ु ीं के िक्र दे नेवाले पिरवतान का अनुभव करते हो, और इसमलये ववश्वास करते हो कक सब
कुछ पिरवतान की जकड िें है ।
परन्तु साथ ही ति
ु यह भी िानते हो कक ऋतओ
ु ीं को प्रकट और ववलीन करनेवाली शल्क्त एक रहती
है ,
सदै व वहती रहती है ।
तुि वस्तुओीं के ववकास तथा क्षय को दे खते हो, और तनराशपूवक
ा घोषणा करते हो कक सभी
ववकासशील वस्तुओीं का अींत क्षय होता है ।
परन्तु साथ ही ति
ु यह भी स्वीकार करते हो कक ववकमसत और क्षीण करनेवाली शल्क्त स्वयीं न
ववकमसत होती है न क्षीण।
तुि बयार की तुलना िें वायु के वेग का अनुभव करते हो, और कह दे ते हो दोनों िें से वायु अचिक
वेगवान है। ककन्तु इसके बावजूद तुि स्वीकार करते हो कक वायु को गतत दे नेवाला और बयार को गतत
दे नेवाला एक ही है, और वह न तो वायु के साथ वेग से दौड़ता है न ही बयार के साथ ठुिकता है ।
ककतनी आसानी से ववश्वास कर लेते हो ति
ु ! ककतनी आसानी से ति
ु इल्न्द्रयों के हर िोखे िें आजाते
हो ! कहााँ है तुम्हारी ककपना ?
क्योंकक उसी के द्वारा तुि यह दे ख सकते हो कक जो पिरवतान तम्
ु हे िकरा दे ते है, वे केवल हाथ की
सिाई हैं।
वायु बयार से तेज कैसे हो सकती है ? क्या बयार ही वायु को जन्ि नहीीं दे ती ? क्या वायु बयार को
अपने साथ मलये नहीीं किरती ?
ऐ िरती पर िलनेवालो,
तुि अपने पैरों द्वारा तय की गई दिू रयों को क़दिों और कोसों िें क्यों नापते हो? तुि िाहे िीरे -िीरे
िलो िाहे सरपट दौड़ो,
क्या िरती की गतत तन्
ु हें उन अींतिरक्षों और िण्डलों िें नहीीं ले जाती जहााँ स्वयीं िरती को ले जाया
जाता है ?
इसमलये तुम्हारी िाल क्या वही नहीीं जो िरती की िाल है ? और किर, क्या िरती को अन्य वपण्ड
अपने साथ नहीीं ले जाते, और उसकी गतत को अपनी गतत के बराबर नहीीं कर लेते ?
हााँ,
िीिा ही वेगवान को जन्ि दे ता है। वेगवान िीिे का वाहक है । िीिे और वेगवान को सिय और
स्थान के ककसी भी बबन्द ु पर एक-दस
ू रे से अलग नहीीं ककया जा सकता।
तुि यह कैसे कहते हो कक ववकास ववकास है और क्षय क्षय है, और वे एक दस
ू रे के बैरी हैं ?
क्या कभी ककसी वस्तु का उद्गि क्षीण हो िक
ु ी ककसी वस्तु के अततिरक्त और कहीीं से हुआ है?
और क्या कभी ककसी वस्तु िें क्षय का आगिन ववकमसत हो रही ककसी वस्तु के अततिरक्त और कहीीं
से हुआ ह ?
क्या तुि तनरीं तर क्षीण होकर ही ववकमसत नहीीं हो रहे हो? क्या तुि तनरीं तर ववकमसत होकर क्षीण नहीीं
हो रहे हो?
जो जीववत हैं, ित
ृ क क्या उनके मलये मिटटी की तनिली परत नहीीं हैं ?
और जो ित
ृ क हैं, जीववत क्या उनके मलये अनाज के गोदाि नहीीं हैं ?
यदद ववकास क्षय की सींतान है और क्षय ववकास की; यदद जीवन ित्ृ यु की जननी है, और ित्ृ यु
जीवन की, तो वास्तव िें वे सिय और स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक ही हैं।
और जीने तथा ववकमसत होने पर तम्
ु हारी प्रसन्नता वास्तव िें उतनी ही बड़ी िख
ु त
ा ा है ल्जतनी िरने
और क्षीण होने पर तम्
ु हारा शोक।
तुि यह कैसे कह सकते हो कक पतिड़ ही अींगूर की ऋतु है ?
िैं कहता हूाँ कक अींगूर शीत ऋतु िें भी पका होता है जब वह बेल के अींदर अदृश्य रूप िें स्पींददत हो
रहा और सपने दे ख रहा केवल सुप्त रस होता है; और वह पका होता है बसींत ऋतु िें भी, जब वह
हरे रीं ग के छोटे -छोटे िनकों के कोिल गच्
ु छों के रूप िें प्रकट होता है; और ग्रीष्ि िें भी, जब गच्
ु छे
़िैल जाते हैं, िनके िूल उठते हैं और उनके गाल सय
ू ा के स्वणा िें रीं ग जाते हैं।
यदद हर ऋतु अपने भीतर तीनों ऋतुओीं को िारण ककये हुए है, तो तनिःसींदेह सब ऋतुएाँ सिय और
स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक हैं।
हााँ,
सिय सबसे बड़ा िदारी है,
और िनुष्य िोखे का सबसे बड़ा मशकार है । पदहये की हाल पर दौड़ती चगलहरी की तरह ही िनुष्य,
ल्जसने स्वयीं ही सिय के पदहये को गतत दी है, पदहये की गतत पर इतना िोदहत है, उससे इतना
प्रभाववत है कक अब उसे ववश्वास नहीीं होता कक उसे घुिानेवाला वह स्वयीं है,
न ही वह सिय की गतत को रोकने के मलये ‘सिय तनकाल पाता’ है। और उस बबकली की तरह ही जो
इस ववश्वास िें कक जो रक्त वह िाट रही है वह पत्थर िें से िरस रहा है िाींस को िाटने िें अपनी
जीभ तघसा दे ती है,
िनुष्य भी इस ववश्वास िें की सिय का रक्त और िाींस है सिय की हाल पर चगरा अपना ही रक्त
िाटता जाता है
और सिय के आरों द्वारा िीर डाला गया अपना ही िाींस िबाये जाता है।
सिय का पदहया स्थान के शून्य िें घि
ू ता है । इसकी हाल पर ही वे सब वस्तए
ु ाँ हैं ल्जनका इल्न्द्रयााँ
अनुभव कर सकती हैं,
लेककन वे केवल ककसी सिय और स्थान की सीिा के अींदर ही ककसी वस्तु का अनुभव कर सकती हैं।
इस्कये वस्तुएीं प्रकट और लुप्त होती रहती हैं। जो वस्तु एक के मलये सिय और स्थान के एक बबींद ु
पर लप्ु त होती है,
वह दस
ू रे के मलये ककसी दस
ू रे बबींद ु पर प्रकट हो जाती है। जो एक के मलये ऊपर है, वह दस
ु रे के मलये
नीिे है । जो एक के मलये ददन हो, वह दस
ु रे के मलये रात है।
और यह तनभार करता है दे खने वाले के ‘कब’ और ‘कहााँ’ पर।
सिय के पदहये की हाल पर जीवन और ित्ृ यु का रास्ता एक ही है, सािुओ।
क्योंकक गोलाई िें हो रही गतत कभी ककसी अींत पर नहीीं पहुाँि सकती, न ही वह कभी ख़त्ि होकर
रुक सकती है। और सींसार िें हो रही प्रत्येक गतत गोलाई िें हो रही गतत है।
तो क्या िनष्ु य अपने आपको सिय के अींतहीन िक्र से कभी िक्
ु त नहीीं करे गा ? करे गा, अवश्य
करे गा, क्योंकक िनुष्य प्रभु की ददव्य स्वतींत्रता का उिराचिकारी है ।
सिय का पदहया घूिता है,
ककन्तु इसकी िुरी ल्स्थर है ।
प्रभु सिय के पदहये की िुरी है ।
यद्यवप सब वस्तए
ु ीं सिय और स्थान िें प्रभु के िारों ओर घि
ू ती हैं, किर भी प्रभु सदै व सिय-
िुक्त, स्थान-िुक्त और ल्स्थर है ।
यदयवप सब वस्तुएीं उसके शब्द से उत्पन्न होती हैं, किर भी उसका शब्द उतना ही सिय-िुक्त और
स्थान-िुक्त है ल्जतना वह स्वयीं।
िुरी िें शाल्न्त ही शाल्न्त है,
हाल िें अशाल्न्त ही अशाल्न्त है ।
तुि कहााँ रहना पसन्द करोगे ?
िैं तुिसे कहता हूाँ, तुि सिय की हाल पर से सरककर उसकी िुरी पर आ जाओ
सिय के पदहये को
☞ कैसे रोका जाये ☜
•••••••••••••••••••••••••••••••••••
तका और ववश्वास
अहि ् को नकारना अहि ् को उभारना है
सिय के पदहये को कैसे रोका जाये
रोना और हाँसना
बैनन
ू : क्षिा करें , िुमशाद। आपका तका अपनी तकाहीनता से िुिे उलिन िें डाल दे ता है।
िीरदाद: है रानी की बात नहीीं, बैनन
ू , कक तम्
ु हे ‘न्यायिीश’ कहा गया है। ककसी िािले तका-सींगत
होने का ववश्वास हो जाने पर ही तुि उस पर तनणाय दे सकते हो। ति
ु इतने सिय तक न्यायिीश रहे
हो, तो भी क्या तुि अब तक यह नहीीं जान पाये कक तका का एकिात्र उपयोग िनष्ु य को तका से
छुटकारा ददलाना और उसको ववश्वास की ओर प्रेिरत करना है जो ददव्य ज्ञान की ओर ले जाता है ।
तका अपिरपक्वता है जो ज्ञान के ववशालकाय पशु को िाँसाने के इरादे से अपने बारीक जाल बन
ु ता
रहता है जब तका वयस्क हो जाता है तो अपने ही जाल िें अपना दि घोंट लेता है,
और किर बदल जाता है ववश्वास िें जो वास्तव िें गहरा ज्ञान है। तका अपादहजों के मलये बैसाखी है;
ककन्तु तेज पैरवालों के मलये एक बोि है, और पींख वालों के मलये तो और भी बड़ा बोि है । तका
सदठया गया ववश्वास है। ववश्वास वयस्क हो गया तका है। जब तम्
ु हारा तका वयस्क हो जायेगा,
बैनन
ू ,
और वयस्क वह जकदी ही होगा,तब तुि कभी तका की बात नहीीं करोगे।
बैनन
ू : सिय की हाल से उसकी िुरी पर आने के मलये हिें अपने आपको नकारना होगा। क्या िनुष्य
अपने अल्स्तत्व को नकार सकता है ?
िीरदाद: बेशक! इसके मलये तम्
ु हे उस अहि ् को नकारना होगा जो सिय के हाथों िें एक खखलोना है
और इस तरह उस अहि ् को उभारना होगा ल्जस पर सिय के जाद ू का असर नहीीं होता।
बैनन
ू ; क्या एक अहि ् को नकारना दस
ू रे अहि ् को उभारना हो सकता है ?
िीरदाद: हााँ, अहि ् को नकारना ही अहि ् को उभारना है। जब कोई पिरवतान के मलये िर जाता है तो
वह पिरवतान– रदहत हो जाता है । अचिकााँश लोग िरने के मलये जीते हैं। भाग्यशाली हैं वे जो जीने के
मलये िरते हैं।
बैनन
ू : परन्तु िनुष्य को अपनी अलग पहिान बड़ी वप्रय है । यह कैसे सींभव है कक वह प्रभु िें लीीं हो
जाये और किर भी उसे अपनी अलग पहिान का बोि रहे ?
िीरदाद: क्या ककसी नदी-नाले के मलये सागर िें सिा जाना और इस प्रकार अपने आपको सागर के
रूप िें पहिानने लगना घाटे का सौदा है ? अपनी अलग पहिान को प्रभु के अल्स्तत्व िें लीन कर
दे ना वास्तव िें िनुष्य का अपनी परछाईं को खो दे ना है और अपने अल्स्तत्व का परछाईं रदहत सार
पा लेना है।
मिकास्तर: िनष्ु य, जो सिय का जीव है, सिय की जकड से कैसे छूट सकता है ?
िीरदाद: ल्जस प्रकार ित्ृ यु तम्
ु हे ित्ृ यु से छुटकारा ददलायेगी और जीवन जीवन से, उसी प्रकार सिय
तम्
ु हे सिय से िल्ु क्त ददलायेगा। िनुष्य पिरवतान से इतना ऊब जायेगा कक उसका परू ा अल्स्तत्व
पिरवतान से अचिक शल्क्तशाली वस्तु के मलये तरसेगा, कभी िींद न पड़ने वाली तीब्रता के साथ
तरसेगा। और तनश्िय ही वह उसे अपने अींदर प्राप्त करे गा।
भाग्यशाली हैं वे जो तरसते है क्योंकक वे स्वतींत्रता की दे हरी पर पहुाँि िकु े हैं। उन्ही की िि
ु े तलाश है
और उन्ही के मलये िैं उपदे श दे ता हूाँ। क्या तम्
ु हारी ब्याकुल पुकार सन ु कर ही िैंने तुम्हे नहीीं िन
ु ा है
?पर अभागे हैं वे जो सिय और िक्र के साथ घूिते हैं और उसी िें अपनी स्वतींत्रता और शाींतत ढूढने
की कोमशश करते हैं।
वे अभी जन्ि पर िस्
ु कराते ही हैं कक उन्हें ित्ृ यु पर रोना पड़ जाता है। वे अभी भरते ही हैं कक उन्हें
खली कर ददया जाता है । वे अभी शाींतत के कपोत को पकड़ते ही हैं कक उनके िें ही उसे यद्
ु ि के
चगद्ि िें बदल ददया जाता है । अपनी सिि िें वे ल्जतना अचिक जानते हैं, वास्तव िें वे उतना ही
कि जानते हैं।
ल्जतना वे आगे बढ़ते हैं, उतनी ही पीछे हट जाते हैं। ल्जतना वे ऊपर उठते है, उतना ही नीिे चगर
जाते हैं। उनके मलये िेरे शब्द केबल एक अस्पष्ट और उिेजक िुसिुसाहट होंगे;
पागलखाने िें की गई प्राथाना के सािान होंगे, और होंगे अींिों के सािने जलाई गई मिशाल के
सािान। जब तक वे भी स्वतींत्रता के मलये तरसने नहीीं लगें गे, िेरे शब्दों की ओर ध्यान नहीीं दें गे।
दहम्बल: ( रोते हुए) आपने केवल िेरे कान ही नहीीं खोल ददये, िुमशाद, बल्कक िेरे ह्रदय के द्वार भी
खोल ददये हैं। कल के बहरे और अींिे दहम्बल को क्षिा करें ।
िीरदाद: अपने आींसओ
ु ीं को रोको, दहम्बल। सिय और स्थान की सीिाओीं से परे के क्षक्षततजों को
खोजने वाली आाँख िें आाँसू शोभा नहीीं दे ते। जो सिय की िालाक अाँगुमलयों द्वारा गद
ु गुदाये जाने पर
हाँसते हैं, उन्हें सिय के नाखन
ू ों द्वारा अपनी ििड़ी के तार-तार ककये जाने पर रोने दो। जो यौवन
की काल्न्त के आगिन पर नािते और गाते हैं, उन्हें बढ
ु ापे की ििु रा यों के आगिन पर लडखडाने और
कराहने दो।
सिय के उत्सवों िें आनन्द िनानेवालों को सिय की अन्त्येल्ष्टयों िें अपने मसर पर राख डालने दो।
ककन्तु ति
ु सदा शाींत रहो। पिरवतान के बहुरुपदशी दपाण िें केवल पिरवतान-िुक्त को खोजो।
सिय िें कोई वस्तु इस योग्य नहीीं है कक ल्जसके मलये आाँसू बहाये जायें। कोई वस्तु इस योग्य नहीीं
कक उसके मलये िस्
ु कुराया जाये। हाँसता हुआ िेहरा और रोता हुआ िेहरा सािान रूप से अशोभनीय
और ववकृत होते हैं। क्या ति
ु आींसुओीं के खारे पन से बिना िाहते हो?
तो किर हाँसी की कुरूपता से बिो।
आाँसू जब भाप बनकर उड़ता है
तो हाँसी का रूप िारण कर लेता है;
हाँसी जब मसिटती है तो आाँसू बन जाती है ।
ऐसे बनो कक तुि न हषा िें िैलकर खो जाओ,
और न शोक िें मसिटकर अपने
अींदर घट
ु जाओ।
बल्कक दोनों िें ति
ु सािान रहो शाींत रहो।
अध्याय-20
पश्िाताप
िरने के बाद हि कहाीं जाते है
••••••••••••••••••••••••••••••••••
िीरदाद: इस सिय तुि कहााँ हो,मिकास्तर ?
मिकास्तर: नीड़ िें।
िीरदाद: तुि सििते हो कक यह नीड़ तम्
ु हे अपने अींदर रखने के मलये कािी बड़ा है ? तुि सििते
हो यह िरती िनुष्य का एकिात्र घर है ?
तम्
ु हारा शरीर िाहे वह सिय की सीिा से बींिा हुआ है, सिय और स्थान िें ववद्यिान हर पदाथा िें
से मलया जाता है। तम्
ु हारा जो अींश सय
ू ा िें से आता है, वह सय
ू ा िें जीता है । तम्
ु हारा जो अींश िरती
िें से आता है, वह िरती िें जीता है।
और ऐसा ही सभी ग्रहों और उनके बीि पथहीन शून्यों के साथ भी है । केवल िूखा ही सोिना पसींद
करते हैं कक िनुष्य का एकिात्र आवास िरती है।
तथा आकाश िें तैरते असींख्य वपींड मसिा िनष्ु य के आवास की सजावट के मलये हैं, उसकी दृल्ष्ट को
भरिाने के मलये हैं।प्रभात- तारा, आकाश-गींगा, कृततका िनुष्य के मलये इस िाती से कि नहीीं हैं।
जब-जब वे उसकी आाँख िें ककरण डालते हैं, वे उसे अपनी ओर उठाते है । जब-जब वह उनके नीिे से
गुजरता है, वह उनको अपनी ओर खीिते हैं। सब वस्तए
ु ीं िनुष्य िें सिाई हुई हैं, और िनुष्य सब
वस्तुओीं िें।
यह ब्रम्हाींड केवल एक ही वपण्ड है । इसके सक्ष्
ू ि से सक्ष्
ू ि कण के साथ सींपका कर लो, और तम्
ु हारा
सभी के साथ सींपका हो जायेगाऔर ल्जस प्रकार ति
ु जीते हुए िरते हो, उसी प्रकार िरकर तुि जीते
रहते हो;
यदद इस शरीर िें नहीीं, तो ककसी अन्य रूप बाले शरीर िें। परन्तु तुि शरीर िें तनरीं तर रहते हो जब
तक परिात्िा िें ववलीन नहीीं हो जाते; दस
ु रे शब्दों िें, जब तक तुि हर प्रकार के पिरवतान पर
ववजय नहीीं पा लेते|
मिकास्तर: शरीर से दस
ु रे शरीर िें जाते हुए क्या हि वापस िरती इस पर आते हैं ?
िीरदाद: सिय का तनयि पन ु राववृ ि है। सिय िें जो एक बार घाट गया, उसका बार-बार घटना
अतनवाया है; जहाीं तक िनुष्य का सम्बन्ि है, अींतराल लम्बे या छोटे हो सकते हैं,
और यह तनभार करता है पुनराववृ ि के मलये प्रत्येक िनुष्य की इच्छा और सींककप की प्रबलता पर।
जब तुि जीवन कहलानेवाले िक्र िें से तनकलकर ित्ृ यु कहलानेवाले िक्र िें प्रवेश करोगे, और अपने
साथ ले जाओगे िरती के मलये,उसके भोगों के मलये अनबुिी प्यास तथा उसके भोगों के मलये अतप्ृ त
कािनाएाँ,
तब िरती का िुम्बक तम्
ु हे वापस उसके वक्ष की ओर खीींि लेगा। तब िरती तम्
ु हे अपना दि
ू
वपलायेगी, और सिय तुम्हारा दि
ू छुडवायेगा –एक के बाद दस
ु रे जीवन िें और एक के बाद दस
ू री
िौत तक,
और यह क्रि तब तक िलता रहे गा जब तक तुि स्वयीं अपनी ही इच्छा और सींककप से िरती का
दि
ू सदा के मलये त्याग नहीीं दोगे।
अबबिार: हिारी िरती का प्रभुत्व क्या आप पर भी है, िुमशाद ? क्योंकक आप हि जैसे ही ददखाई
दे ते हैं।
िीरदाद: िैं जब िाहता हूाँ आता हूाँ, और जब िाहता हूाँ िला जाता हूाँ। िैं इस िरती के वामसयों को
िरती की दासता से िुक्त करवाने आता हूाँ।
मिकेयन: िैं सदा के मलये िरती से अलग होना िाहता हूाँ। यह िैं कैसे कर सकता हूाँ; िमु शाद ?
िीरदाद: िरती तथा उसके सब बच्िों से प्रेि करके। जब िरती के साथ तम्
ु हारे खाते िें केवल प्रेि ही
बाकी रह जायेगा, तब िरती के साथ तुम्हारे खाते िें केवल प्रेि ही बाकी रह जायेगा, तब िरती
तम्
ु हे अपने ऋण से िक्
ु त कर दे गी।
मिकेयन: परन्तु प्रेि िोह है, और िोह एक बींिन है।
िीरदाद: नहीीं, केवल प्रेि ही िोह से िल्ु क्त है। तुि जब हर वस्तु से प्रेि करते हो, तम्
ु हारा ककसी
भी वस्तु के प्रतत िोह नहीीं रहता।
जिोरा: क्या प्रेि के द्वारा कोई प्रेि के प्रतत मलये गये अपने पापों को दोहराने से बि सकता है और
क्या इस तरह सिय के िक्र को रोक सकता है ?
मिरदाद: यह तुि पश्िािाप के द्वारा कर सकते हो। तम्
ु हारी ल्जव्हा से तनकले दव
ु ि
ा न जब लौटकर
तम्
ु हारी ल्जव्हा को प्रेिपूणा शभ
ु कािनाओीं से मलप्त पायेंगे तो अपने मलये कोई ओर दठकाना ढूींढेंगे ।
इअ प्रकार प्रेि उन दव
ु ि
ा नो की पुनरावतृ त को रोक दे गा। काम्पूणा दृल्ष्ट जब लौटकर उस आाँख को,
ल्जसिे से वह तनकली है, प्रेिपूणा चितवनों से छलकती हुई पायेगी तो कोई दस
ू री कािपूणा आाँख
ढूींढेगी।
इस प्रकार प्रेि उस कािातुर चितवन की पन
ु रावतृ त पर रोक लगा दे गा। दष्ु ट ह्रदय से तनकली दष्ु ट
इच्छा जब लौटकर उस ह्रदय को प्रेिपण
ू ा कािनाओीं से छलकता हुआ पायेगी, तो कहीीं और घोंसला
ढूाँढेगी ।
इस प्रकार प्रेि उस दष्ु ट इच्छा से किर से जन्ि लेने के प्रयास को तनष्िल कर दे गा। यही है
पश्िािाप।
जब तम्
ु हारे पास केवल प्रेि ही बाींकी रह जाता है तो सिय तुम्हारे मलये प्रेि के मसवाय और कुछ नहीीं
दोहरा सकता। जब हर जगह और वक्त पर एक िीज दोहराई जाती है तो वह एक तनत्यता बन जाती
है
जो सम्पूणा सिय और स्थान िें व्याप्त हो जाती है और इस प्रकार दोनों के अल्स्तत्व को ही मिटा
दे ता है।
दहम्बल: किर भी एक और बात िेरे ह्रदय को बैिेन और िेरी बद्
ु चि को िि
ुीं ला करती है , िुमशाद।
िेरे वपता ऐसी िौत क्यों िरे ,
ककसी और िौत क्यों नहीीं?
☞ परिात्िा की िौज ☜
***************************************
*************************************
िहत्त्व शब्दों का नहीीं िहत्व भावना का है
जो शब्दों िें गुींजती है
*************************************
अध्याय 23
िीरदाद मसि-मसि को ठीक करता है
और बढ
ु ापे के बारे िें बताता है ”
नरौन्दा: नौका की पशुशालाओीं की सबसे बढ़
ू ी गाय मसि-मसि पाींि ददन से बीिार थी और िारे या
पानी को िुींह नहीीं लगा रही थी।
इस पर शिदाि ने कसाई को बल
ु वाया। उसका कहना था कक गाय को िारकर उसके िाींस और खाल
की बबक्री से लाभ उठाना अचिक सििदारी है,
बतनस्बत इसके कक गाय को िरने ददया जाये और वह ककसी काि न आये। जब िमु शाद ने यह सन
ु ा
तो गहरे सोि िें डूब गये, और तेजी से सीिे पशुशाला की ओर िल पड़े तथा मसि-मसि के ठान पर
जा पहुींिे।
उनके पीछे सातों साथी भी वहाीं पहुाँि गये।मसि-मसि उदास और दहलने-डुलने असिथा-सी थी।
उसका सर नीिे लटका हुआ था, आाँखें अििद ुाँ ी थीीं, शरीर के बाल सख्त और काल्न्त-हीन थे। ककसी
ढीठ िक्खी को उड़ाने के मलये वह कभी–
कभी अपने कान को थोड़ा सा दहला दे ती थी। उसका ववशाल दग्ु ि-कोष उसकी टाींगों के बीि ढीला और
खाली लटक रहा था, क्योंकक वह अपने लम्बे तथा िलपूणा जीवन के अींतति भाग िें िातत्ृ व की
ििुर वेदना से वींचित हो गई थी।
उसके कूकहों की हड्ड़डयााँ उदास और असहाय, कब्र के दो पत्थरों की तरह बाहर तनकली हुई थीीं।
उसकी पसमलयााँ और रीढ़ की हड्ड़डयााँ आसानी से चगनी जा सकती थीीं। उसकी लम्बी और पतली पछ ींू
मसरे पर बालों का भारी गुच्छा मलये अकड़ी हुई सीिी लटक अदह थी। िमु शाद बीिार पशु के तनकट गये
और उसे आाँखों तथा सीींगों के बीि और ठोड़ी के नीिे सहलाने लगे।
कभी-कभी वे उसकी पीठ और पेट पर हाथ िेरते। पूरा सिय वे उससे इस प्रकार बातें करते रहे जैसे
ककसी िनष्ु य के साथ बातें कर रहे हों :
िीरदाद: तम्
ु हारी जग
ु ाली कहााँ है ,
िेरी उदार मसि-मसि?
इतना ददया है मसि-मसि ने कक अपने मलये थोड़ा-सा जुगाल रखना भी भूल गई। अभी और बहुत दे ना
है मसि-मसि को।
उसका बिा-सा स़िेद दि
ू आज तक हिारी रगों िें गहरा लाल रीं ग मलये दौड़ रहा है। उसके पुष्ट बछड़े
हिारे खेतों िें भारी हल खीींि रहे है और अनेक भूखे जीवों को भोजन दे ने िें हिारी सहायता कर रहे
हैं। उसकी सद
ींु र बतछयााँ अपने बच्िों से हिारी िारागाहों को भर रही हैं। उसका गोबर भी हिारे बैग
की रस-भरी सल्ब्जयों और िलोद्यान के स्वाददष्ट िलों िें हिारे भोजन की बरकत बना हुआ है।
हिारी घादटयााँ नेक मसि-मसि के खल
ु कर राँभाने की ध्वनी और प्रततध्वतन से अभी तक गाँूज रही हैं।
हिारे िरने उसके सौम्य तथा सुींदर िुख को अभी तक प्रततबबल्म्बत कर रहे हैं। हिारी िरती की
मिटटी उसके खरु ों की अमित छाप को अभी तक सीने से लगाय हुए है और साविानी के साथ उसकी
साँभाल कर रही है ।
बहुत प्रसन्न होती है हिारी घाींस मसि-मसि का भोजन बनकर। बहुत सींतुष्ट होती है हिारी िप
ू उसे
सहला कर। बहुत आनींददत होता हिारा िन्द सिीर उसके कोिल और ििकीले रोि-रोि को छूकर।
बहुत आभार िहसूस करता है िीरदाद उसे वद् ृ िावस्था के रे चगस्तान को पार करवाते हुए, उसे एनी
सूयों तथा सिीरों के दे श िें नयी िरागाहों का िागा ददखाते हुए। बहुत ददया है मसि-मसि ने,
और बहुत मलया है;
लेककन मसि-मसि को अभी
और भी दे ना और लेना है ।
मिकास्तर: क्या मसि-मसि आपके शब्दों को सिि सकती है जो आप उससे ऐसे बातें कर रहे हैं िानो
वह िनुष्य की-सी बद्
ु चि रखती हो?
िीरदाद; िहत्व शब्द का नहीीं होता, भले मिकास्तर। िहत्व उस भावना का होता है जो शब्द के
अींदर गूींजती है; और पशु भी उससे प्रभाववत होते हैं।
और किर, िि
ु े तो ऐसा प्रतीत होता है कक बेिारी मसि-मसि की आाँखों िें से एक स्त्री िेरी ओर दे ख
रही है ।
मिकास्तर; बूढी और दब
ु ल
ा मसि-मसि के साथ इस प्रकार बातें करने का क्या लाभ ? क्या आप आशा
करते है कक इस प्रकार आप बुढापे के प्रकोप को रोककर मसि-मसि की आयु लम्बी कर दें गे ?
िीरदाद; एक ददा नाक बोि है बढ
ु ापा िनुष्य के मलये, और पशु के मलये भी। िनुष्य ने अपनी
उपेक्षापण
ू ा तनदा यता से इसे और भी ददा नाक बना ददया है । एक नवजात मशशु पे वे अपना अचिक से
अचिक ध्यान और प्यार लट
ु ाते हैं।
परन्तु बढ
ु ापे के बोि से दबे िनुष्य के मलये वे अपने ध्यान से अचिक अपनी उदासीनता, और अपनी
सहानुभतू त से अचिक अपनी उपेक्षा बिाकर रखते हैं। ल्जतने अिीर वे ककसी दि
ू िुींहे बच्िे को जवान
होता दे खने के मलये होते हैं, उतने ही अिीर होते हैं वे ककसी वद्
ृ ि िनुष्य को कब्र का ग्रास बनता
दे खने के मलये।
बच्िे और बढ़
ू े दोनों ही सािान रूप से असहाय होते हैं ककन्तु बच्िों की बेबसी बरबस सबकी प्रेि और
त्याग से पूणा सहायता प्राप्त कर लेती है;
जब कक बढ
ू ों की बेबसी ककसी ककसी की ही अतनच्छा पव
ू क
ा दी गई सहायता को पाने िें सिल होती
है । वास्तव िें बच्िों की तुलना िें बढ़
ू े सहानुभतू त के अचिक अचिकारी होते हैं। जब शब्दों को उस
कान िें प्रवेश पाने के मलये जो कभी हलकी से हलकी िुसिुसाहट के प्रतत भी सींवेदनशील और सजग
था, दे र तक और जोर से खटखटाना पड़ता है ;
जब आाँखें, जो कभी तनिाल थीीं, ववचित्र िब्बों और छायाओीं के मलये नत्ृ य िींि बन जाती हैं ;जब
पैर, ल्जनिें कभी पींख लगे हुये थे, शीशे के ढे ले बन जाते हैं ;
और हाथ जो जीवन को सााँिे िें ढालते थे, टूटे सााँिों िें बदल जाते हैं ;जब घट
ु नों के जोड़ ढीले पड़
जाते हैं, और मसर गदा न पर रखी एक कठपत
ु ली बन जाता है ;जब िक्की के पाट तघस जाते हैं,
और स्वयीं िक्की-घर सन
ु सान गुिा हो जाता है ;जब उठने का अथा होता है चगर जाने के भय से
पसीने-पसीने होना, और बैठने का अथा होता है इस दिःु खदायी सींदेह के साथ बैठना कक शायद किर
कभी उठा ही न जा सके ;
जब खाने-पीने का अथा होता है खाने-पीने के पिरणाि से डरना, और न खाने-पीने का अथा होता है
घ्रखणत ित्ृ यु का दबे-पााँव िले आना ;हााँ जब बुढ़ापा िनुष्य को दबोि लेता है, तब सिय होता है,
िेरे साचथयो,
उसे कान और नेत्र प्रदान करने का, उसे हाथ और पैर दे ने का, उसकी क्षीण हो रही शल्क्त को अपने
प्यार के द्वारा पुष्ट करने का, ताकक उसे िहसूस हो कक अपने खखलते बिपन और यौवन िें वह
जीवन को ल्जतना प्यारा था, इस ढलती आयु िें उससे रिी भर भी कि प्यारा नहीीं है ।
अस्सी वषा अनन्तकाल िें िाहे एक पल से कि न हों; ककन्तु वह िनुष्य ल्जसने अस्सी वषों तक
अपने आप को बोया हो, एक पल से कहीीं अचिक होता है । वह अनाज होता है उन सब के मलये जो
उसके जीवन की िसल काटते हैं। और वह कौन-सा जीवन है ल्जसकी िसल सब नहीीं काटते हैं ?
क्या तुि इस क्षण भी उस प्रत्येक स्त्री और पुरुष के जीवन की िसल नहीीं काट रहे हो जो कभी इस
िरती पर िले थे ? तुम्हारी बोली उनकी बोली की िसल के मसवाय और क्या है ?
तम्
ु हारे वविार उनके वविारों के बीने गये दानों के मसवाय और क्या हैं ? तम्
ु हारे वस्त्र और िकान
तक, तम्
ु हारा भोजन, तम्
ु हारे उपकरण,तम्
ु हारे क़ानन
ू , तम्
ु हारी परम्पराएाँ और तम्
ु हारी पिरपादटयााँ—ये
क्या उन्हीीं लोगों के वस्त्र, िकान, भोजन, उपकरण, क़ानन
ू , परम्पराएाँ और पिरपादटयााँ नहीीं हैं जो
तुिसे पहले यहााँ आ िक
ु े हैं और यहााँ से जा िक
ु े हैं।एक सिय िें तुि एक ही िीज की िसल नहीीं
काटते हो, बल्कक सब िीजों की िसल काटते हो, और हर सिय काटते हो।
तुि ही बोने वाले हो, िसल हो, लुनेरे हो, खेत हो और खमलहान भी। यदद तम्
ु हारी िसल खराब है
तो उस बीज की ओर दे खो जो ति
ु ने दस
ू रों के अींदर बोया है, और उस बीज की ओर भी जो ति
ु ने
उन्हें अपने अींदर बोने ददया है । लन
ु ेरे और उसकी दरााँती की ओर भी दे खो, और खेत और खमलहान
की ओर भी।
एक वद्
ृ ि िनुष्य ल्जसके जीवन की िसल तुिने काटकर अपने कोठारों िें भर ली है, तनश्िय ही
तम्
ु हारी अचिकति दे ख-रे ख का अचिकारी है । यदद तुि उसके उन वषों िें जो अभी काटने के मलए
बिी वस्तओ
ु ीं से भरपरू है, अपनी उदासीनता से कड़वाहट घोल दोगे, तो जो कुछ ति
ु ने उससे बटोर
कर सींभल मलया है,
और जो कुछ तुम्हें अभी बटोरना है, वह सब तनश्िय ही तम्
ु हारे िुींह को कड़वाहट से भर दे गा। अपनी
शल्क्त खो रहे पशु की उपेक्षा करके भी तम्
ु हे ऐसी ही कड़वाहट का अनुभव होगा। यह उचित नहीीं कक
िसल से लाभ उठा मलया जाये, और किर बीज बोने वाले और खेत को कोसा जाये। हर जाती तथा
हर दे श के लोगों के प्रतत दयावान बनो, िेरे साचथयो।
वे प्रभु की ओर तम्
ु हारी यात्रा िें तम्
ु हारा पाथेय हैं। परन्तु िनुष्य के बढ़
ु ापे िें उसके प्रतत ववशेष रूप
से दयावान बनो; कहीीं ऐसा न हो कक तनदा यता के कारण तम्
ु हारा पाथेय खराब हो जाये और तुि
अपनी िींल्जल पर कभी पहुाँि ही न सको। हर प्रकार के और हर उम्र के पशओ ु ीं के प्रतत दयावान बनो;
यात्रा की लम्बी और कदठन तैयािरयों िें वे तम्
ु हारे गाँग
ू े ककन्तु बहुत विादार सहायक हैं।
परन्तु पशुओीं के बढ़
ु ापे िें उनके प्रतत ववशेष रूप से दयावान रहो; ऐसा न हो तम्
ु हारे ह्रदय की
कठोरता के कारण उनकी विादारी बेविाई िें बदल जाये और उनसे मिलने वाली सहायता बािा बन
जाये।
मसि-मसि के दि
ू पर पलना
और जब उसके पास दे ने को
और न रहे तो उसकी गदा न
पर कसाई की छुरी रख
दे ना िरि कृतध्नता है ।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
अध्याय - २४
दस
ू रे की पीड़ा पर जीना
पीड़ा का मशकार होना है
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
खाने के मलये िारना क्या उचित है? जब शिदाि और कसाई िले गए तो मिकेयन ने िमु शाद से
पूछा: मिकेयन: खाने के मलये िारना क्या उचित नहीीं है िुमशाद ?
िीरदाद: ित्ृ यु से पेट भरना ित्ृ यु का आहार बनना है । दस
ू रों की पीड़ा पर जीना पीड़ा का मशकार होना
है । यही आदे श है प्रभु-इच्छा का यह सिि लो और किर अपना िागा िन
ु ो, मिकेयन।
मिकेयन: यदद िैं िन
ु सकता तो अिर पक्षी की तरह वस्तओ
ु ीं की सग
ु ि
ीं पर जीना पसींद करता, उसके
िाींस पर नहीीं।
िीरदाद: तम्
ु हारी पसींद सििि
ु उिि है। ववश्वास करो, मिकेयन, वह ददन आ रहा है जब िनष्ु य
वस्तुओीं की सुगींि पर ल्जयेंगे जो उनकी आत्िा है, उनके अक्त िाींस पर नहीीं।
और तड़पने वाले के मलये वह ददन दरू नहीीं। क्योंकक तड़पने वाले जानते हैं कक दे ह का जीवन और
कुछ नहीीं, दे ह-रदहत जीवन तक पहुाँिने वाला पल ु -िात्र है। और तड़पने वाले जानते हैं कक स्थल ू और
अक्षि इल्न्द्रयााँ अत्यींत सूक्ष्ि तथा पूणा ज्ञान के सींसार के अींदर िााँकने के मलये िरोखे-िात्र हैं।
और तड़पने वाले जानते हैं कक ल्जस भी िाींस को वे काटते है, उसे दे र-सवेर, अतनवाया रूप से, उन्हें
अपने ही िाींस से जोड़ना पडेगा;
और ल्जस भी हड्डी को वे कुिलते हैं, उसे उन्हें अपनी ही हड्डी से किर बनाना पडेगा; और रक्त की
जो बींद
ू वे चगराते हैं, उसकी पतू ता उन्हें अपने ही रक्त से करनी पड़ेगी। क्योंकक शरीर का यही तनयि
है । पर तड़पने वाले इस तनयि की दासता से िुक्त होना िाहते हैं।
इसमलये वे अपनी शारीिरक आवश्यकताओीं को कि से कि कर लेते हैं और इस प्रकार कि कर लेते हैं
शरीर के प्रतत अपने ऋण को जो वास्तव िें पीड़ा और ित्ृ यु के प्रतत ऋण है।तड़पने वाले पर रोक
केवल उसकी अपनी इच्छा और तड़प की होती है,
जबकक न तड़पने वाला दस
ू रों द्वारा रोके जाने की प्रतीक्षा करता है अनेक वस्तओ
ु ीं को, ल्जन्हें न
तड़पने वाला उचित सििता है तड़पने वाला अपने मलये अनचु ित िानता है । न तड़पने वाला अपने पेट
या जेब िें डालकर रखने के मलये अचिक से अचिक िीजें हचथयाने का प्रयत्न करता है , जबकक
तदपने वाला जब अपने िागा पर िलता है तो न उसकी जेब होती है और न ही उसके पेट िें ककसी
जीव के रक्त और पीड़ा-भरी एींठ्नों की गींदगी।
न तड़पने वाला जो ख़श
ु ी ककसी पदाथा को बड़ी िात्रा िें पाने से करता है –या सििता है कक वह प्राप्त
करता है —तड़पने वाला उसे आत्िा के हलकेपन और ददव्य ज्ञान की ििुरता िें प्राप्त करता है। एक
हरे -भरे खेत को दे ख रहे दो व्यल्क्तयों िें से एक उसकी उपज का अनि
ु ान िन और सेर िें लगाता है
और उसका िक
ू य सोने-िाींदी िें आाँकता है।
दस
ू रा अपने नेत्रों से खेत की हिरयाली का आनींद लेता है, अपने वविारों से हर पिी को िूिता है,
और अपनी आत्िा िें हर छोटी से छोटी जड़,हर कींकड़ और मिटटी के हर ढे ले के प्रतत भ्रातभ
ृ ाव
स्थावपत कर लेता है । िैं तुिसे कहता हूाँ, दस
ु रा व्यल्क्त उस खेत का असली िामलक है , भले ही
क़ानन ू की दृष्टी से पहला व्यल्क्त उसका िामलक हो।एक िकान िें बैठे दो व्यल्क्तयों िें से एक उसका
िामलक है,
दस
ू रा केवल एक अततचथ। िामलक तनिााण तथा दे ख-रे ख के खिा की, और पदों,गलीिों तथा अन्य
साज-सािग्री के िक
ू य की ववस्तार के साथ ििाा करता है। जबकक अततचथ िन ही िन निन करता है
उन हाथों को ल्जन्होंने खोदकर खदान िें से पत्थरों को तनकाला, उनको तराशा और उनसे तनिााण
ककया; उन हाथों को ल्जन्होंने गलीिों तथा पदों को बन
ु ा;
और उन हाथों को ल्जन्होंने जींगलों िें जाकर उन्हें खखडककयों और दरवाजों का,कुमसायों और िेजों का
रूप दे ददया। इन वस्तओ
ु ीं को अल्स्तत्व िें लानेवाले तनिााण-कताा हाथ की प्रशींसा करने िें उसकी
आत्िा का उत्थान होता है । िैं तुिसे कहता हूाँ, वह अततचथ उस घर का स्थायी तनवासी है;
जब कक वह ल्जसके नाि वह िकान है केवल एक भारवाहक पशु है जो िकान को पीठ पर ढोता है,
उसिे रहता नहीीं। दो व्यल्क्तयों िें से,जो ककसी बछड़े के साथ उसकी िााँ के दि
ू के सहभागी हैं, एक
बछड़े को इस भावना के साथ दे खता है कक बछड़े का कोिल शरीर उसके आगािी जन्ि-ददवस पर
उसके तथा उसके मित्रों की दावत के मलये उन्हें बदढ़या िाींस प्रदान करे गा।
दस
ू रा बछड़े को अपना िाय-जाया भाई सििता है और उसके ह्रदय िें उस नन्हे पशु तथा उसकी िााँ
के प्रतत स्नेह उिड़ता है। िैं तुिसे कहता हूाँ, उस बछड़े के िाींस से दस
ू रे व्यल्क्त का सििुि पोषण
होता है; जबकक पहले के मलये वह ववष बन जाता है। हााँ बहुत सी ऐसी िीजें पेट िें दाल ली जाती हैं
ल्जन्हें ह्रदय िें रखना िादहये।
बहुत सी ऐसी िीजें जेब और कोठारों िें बन्द कर दी जाती हैं ल्जनका आनींद आाँख और नाक के द्वारा
लेना िादहये। बहुत सी ऐसी िीजें दाींतों द्वारा िबाई जाती हैं ल्जनका स्वाद बुद्चि द्वारा लेना
िादहये।जीववत रहने के मलये शरीर की आवश्यकता बहुत कि है। तुन उसे ल्जतना कि दोगे, बदले िें
वह तुम्हे उता ही अचिक दे गा; ल्जतना अचिक दोगे, बदले िें उतना ही कि दे गा।
वास्तव िें तम्
ु हारे कोठार और पेट से बाहर रहकर िीजें तम्
ु हारा उससे अचिक पोषण करती हैं ल्जतना
कोठार और पेट के अन्दर जाकर करती हैं। परन्तु अभी ति
ु वस्तओ
ु ीं की केवल सग
ु ि
ीं पर जीववत नहीीं
रह सकते, इसमलये िरती के उदार ह्रदय से अपनी जरुरत के अनुसार तनिःसींकोि लो,
लेककन जरुरत से ज्यादा नहीीं। िरती इतनी उदार और स्नेहपूणा है कक उसका ददल अपने बच्िों के
मलये सदा खल
ु ा रहता है ।
िरती इससे मभन्न हो भी कैसे सकती है ?
और अपने पोषण के मलये अपने आपसे बाहर जा भी कहााँ सकती है ? िरती का पोषण िरती को ही
करना है, और िरती कोई कींजूस गह
ृ णी नहीीं, उसका भोजन तो सदा परोसा रहता है और सबके मलये
पयााप्त होता है। ल्जस प्रकार िरती तुम्हे भोजन पर आिींबत्रत करती है और कोई भी िीज तम्
ु हारी
पहुाँि से बाहर नहीीं रखती,
ठीक उसी प्रकार ति ु भी िरती को भोजन पर आिींबत्रत करो और अत्यींत प्यार के साथ तथा सच्िे
ददल से उससे कहो;”िेरी अनुपि िााँ !
ल्जस प्रकार तन
ू े अपना ह्रदय िेरे सािने िैला रखा है ताकक जो कुछ िुिे िादहये ले लाँ ू, उसी प्रकार
िेरा ह्रदय तेरे सम्िुख प्रस्तत
ु है ताकक जो कुछ तुिे िादहये ले ले।”
यदद िरती के ह्रदय से आहार प्राप्त करते हुए तम्
ु हे ऐसी भावना प्रेिरत करती है, तो इस बात का
कोई िहत्व नहीीं कक ति
ु क्या खाते हो।परन्तु यदद वास्तव िें यह भावना तम् ु हे प्रेिरत करती है तो
तम्
ु हारे अन्दर इतना वववेक और प्रेि होना िादहये कक ति
ु िरती से उसके ककसी बच्िे को न छीनो,
ववशेष रूप से उन बच्िों िें से ककसी को जो
जीने के आनींद और िरने की पीड़ा अनुभव करते हैं–जो द्वेत के खण्ड िें पहुाँि िक
ु े हैं; क्योंकक उन्हें
भी िीरे -िीरे और पिरश्रि के साथ, एकता की ओर जानेवाले िागा पर िलना है । और उनका िागा
तम्
ु हारे िागा से अचिक लींबा है । यदद तुि उनकी गतत िें बािक बनते हो तो वे भी तम्
ु हारी गतत िें
बािक होंगे।
अबबिार; जब ित्ृ यु सभी जीवों की तनयतत है, िाहे वह एक कारण से हो या ककसी दस
ू रे कारण से,
तो ककसी पशु की ित्ृ यु का कारण बनने िें िि
ु े कोई नैततक सींकोि क्यों हो ?
मिरदाद: यह सि है कक सब जीवों का िरना तनल्श्ित है, किर भी चिक्कार है उसे जो ककसी भी जीव
की ित्ृ यु का कारण बनता है। ल्जस प्रकार यह जानते हुए कक िैं नरौन्दा से बहुत प्रेि करता हूाँ और
िेरे िन िें कोई रक्त-वपपासा नहीीं है, तुि िुिे उसे िारने का काि नहीीं सौंपोगे, उसी प्रकार प्रभ-ु
इच्छा ककसी िनष्ु य को ककसी दस
ू रे िनष्ु य या पशु को िारने का काि नहीीं सौंपती, जब तक कक वह
उस िौत के मलये सािन रूप िें उसका उपयोग करना आवश्यक न सििती हो।
जब तक िनुष्य वैसे ही रहें गे जैसे वे हैं, तब तक रहें गे उनके बीि िोिरयााँ और डाके, िूठ, युद्ि
और हत्याएाँ, तथा इस प्रकार के दवू षत और पाप पूणा िनोवेग।लेककन चिक्कार है िोर को और डाकू
को, चिक्कार है िठ
ू े को और यद्
ु ि-प्रेिी को, तथा हत्यारे को और हर ऐसे िनुष्य को जो अपने
ह्रदय िें दवू षत तथा पाप पण
ू ा िनोवेगों को आश्रय दे ता है ,
क्योकक अतनष्ट पूणा होने के कारण इन लोगों का उपयोग प्रभ-ु इच्छा अतनष्ट के सींदेह-वाहकों के रूप िें
करती है ।परन्तु तुि, िेरे साचथयों,
अपने ह्रदय को हर दवू षत
और पाप पूणा आवेग से
अवश्य िक्
ु त करो
ताकक प्रभु-इच्छा तम्
ु हे दख
ु ी
सींसार िें सुखद सन्दे श
पहुाँिाने का अचिकारी
सििे–दिःु ख से िल्ु क्त का
सन्दे श, आत्ि-ववजय का सन्दे श,
प्रेि और ज्ञान द्वारा मिलने वाली
स्वतींत्रता का सन्दे श।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।
िुमशाद गुि हो कर भी
हिारे बीि रहता है ☜
**************************************
अध्याय -25
अध्याय -28
अपना नाि लोगो के िुींह पर ित थोपो
लोगो के ह्रदय िें अपना नाि अींककत कर दो
**************************************
बेसार का सुलतान शिदाि
के साथ नीड़ िें आता है
युद्ि और शाल्न्त के ववषय िें
”सुलतान और िीरदाद”
िें वाताालाप शिदाि
िीरदाद को जाल िें िाँसाता है ……
सल
ु तान ; प्रणाि, िहात्िन । हि उस िहान िीरदाद का अमभवादन करने आये हैं ल्जसकी प्रमसद्चि
इन पवातों िें दरू -दरू तक िैलती हुई हिारी दरू स्थ राजिानी िें भी पहुाँि गई है ।
िीरदाद ; प्रमसद्चि ववदे श िें द्रत
ु गािी रथ पर सवारी करती है ; जबकक घर िें वह बैसाखखयों के
सहारे लड़खड़ाती हुई िलती है । इस बात िें िुखखया िेरे गवाह हैं । प्रमसद्चि की िींिलता पर ववश्वाश
न करो, सुलतान ।
सल
ु तान ; किर भी ििरु होती है प्रमसद्चि की िींिलता, और सख
ु द होता है लोगों के ओठों पर
अपना नाि अींककत करना ।
िीरदाद ; लोगों के ओठों पे अींककत नाि वैसा ही होता है जैसा सिुद्र-तट की रे त पर नाि अींककत
करना । हवाएीं और लहरें उसे रे त पर से बहा ले जाएींगी । ओठों पर से तो उसे एक छीींक ही उड़ा दे गी
। यदद तुि नहीीं िाहते कक लोगों की छीींकें तम्
ु हे उड़ा दें तो अपना नाि उनके ओठों पर ित छापो,
बल्कक उनके हृदयों पर अींककत कर दो ।
सल
ु तान ; लेककन लोगों का ह्रदय
तो अनेक तालों िें बींद है ।
िीरदाद ; ताले िाहे अनेक हों, पर िाबी एक है ।
सुलतान ; क्या आपके पास है वह िाबी ?
िुिे उसकी बहुत सख्त जरुरत है ।
िीरदाद ; वह तम्
ु हारे पास भी है ।
सुलतान ; अ़िसोस ! आप िेरा िूकय िेरी योग्यता से कहीीं अचिक लगा रहे हैं ।
िैं लम्बे सिय से खोज रहा हूाँ वह िाबी ल्जससे अपने पड़ोसी के ह्रदय िें प्रवेश पा सकाँू ,
परन्तु वह िुिे कहीीं नहीीं मिली ।
वह एक शल्क्तशाली सुलतान है
और िि
ु से यद्
ु ि करने पे उतारू है ।
अपने शाींतत-वप्रय स्वभाव के
बावजद
ू िैं उसके ववरुद्ि हचथयार
उठाने के मलए वववश हूाँ । िमु शाद,
िेरे िुकुट और िोततयों-जड़े वस्त्रों के िोके िें न आयें । ल्जस िाबी की िुिे तलाश है वह िुिे इनिे
नहीीं मिल रही है ।
िीरदाद ; ये वस्तए
ु ीं िाबी को तछपा तो दे ती हैं, पर उसे अपने पास नहीीं रखतीीं । ये तुम्हारे द्वारा
उठाये गए कदि को जकड दे ती हैं, तम्
ु हारे हाथ को रोक लेती हैं, तम्
ु हारी दृष्टी को लक्ष्य-भ्रष्ट कर
दे ती हैं, और इस प्रकार तम्
ु हारी तलाश को वविल कर दे ती हैं ।
सुलतान ; इससे िुमशाद का क्या अमभप्राय है िुिे अपने िुकुट और राजसी वस्त्रों को िेक दे ना होगा
ताकी िुिे अपने पडोसी के ह्रदय िें प्रवेश करने की िाबी मिल जाये ।
िीरदाद ; इन्हे रखना है तो तम्
ु हे अपने पडोसी को खोना होगा, अपने पडोसी को रखना है तो तम्
ु हे
इन्हे खोना होगा । और अपने पडोसी को खोना अपने आप को खो दे ना है ।
सुलतान ; िैं अपने पडोसी की मित्रता इतनी बड़ी कीित पर नहीीं खरीदना िाहता ।
िीरदाद ; क्या तुि इस ज़रा-सी कीित पर भी अपने आपको नहीीं खरीदना िाहते ?
सुलतान ; अपने आप को खरीदीं ू िैं कोई कैदी नहीीं हूाँ कक िरहाई की कीित दाँ ू । और इसके अततिरक्त
िेरी रक्षा के मलए िेरे पास सेना है ल्जसे अच्छा बेटन ददया जाता है और ल्जसके पास पयााप्त युद्ि
सािग्री है । िेरा पडोसी इससे उिि सेना होने का दावा नहीीं कर सकता ।
िीरदाद ; एक व्यल्क्त या वस्तु का बींदी होना ही असहनीय कारावास है । िनुष्यों की एक ववशाल
सेना, और कई वस्तओ
ु ीं के सिूह का बींदी होना तो अींतहीन दे श-तनकाला है । क्योंकक ककसी वस्तु पर
तनभार होना उस वस्तु का बींदी बनना है । इसमलए केवल प्रभु पर तनभार रहो, क्योंकक प्रभु का बींदी
होना तनिःसींदेह स्वतींत्र होना है ।
सल
ु तान ; तो क्या िैं अपने आपको,
अपने मसींहासन को अपनी
प्रजा को असुरक्षक्षत छोड़ दाँ ू ?
िीरदाद ;
अपने आपको असरु क्षक्षत न छोडो ।
सुलतान ;
इसमलए तो िैं सेना रखता हूाँ ।
िीरदाद ;
इसमलए तो तम्
ु हे अपनी सेना
को भींग कर दे ना िादहये ।
सुलतान ; परन्तु तब िेरा पडोशी
िेरे राज्य को रौंद डालेगा ।
िीरदाद ; तम्
ु हारे राज्य को रौंद सकता है
लेककन तुम्हे कोई नहीीं तनगल सकता ।
दो कारागार मिलकर एक हो जाएाँ तो
भी वे स्वतींत्रता के मलए
एक छोटा-सा घर
नहीीं बन जाते ।
यदद कोई िनुष्य तम्
ु हे तम्
ु हारे कारागार िें से तनकाल दे तो ख़श
ु ी िनाओ ; परन्तु उस व्यल्क्त से
ईष्याा न करो जो खद
ु तम्
ु हारे कारागार िें बींद होने के मलए आ जाये ।
सुलतान ; िैं एक ऐसे कुल की सींतान हूाँ जो रणभूमि िें अपनी वीरता के मलए ववख्यात है । हि
दस
ू रों को यद्
ु ि के मलए कभी वववश नहीीं करते । ककन्तु जब हिें यद्
ु ि के मलए वववश ककया जाता है
तो हि कभी पीछे नहीीं हटते, और शत्रु की लाशों पर ऊाँिी ववजय पताकाएीं लहराये बबना रण-भूमि से
ववदा नहीीं लेते । आपकी सलाह कक िैं अपने पड़ोसी को िनिानी करने दाँ ू ,
उचित सलाह नहीीं है ।
िीरदाद : क्या तुिने कहा नहीीं
था कक ति
ु शाींतत िाहते हो ?
सुलतान : हााँ शाींतत तो िैं िाहता हूाँ ।
िीरदाद : तो यद्ु ि ित करो ।
सुलतान : पर िेरा पडोसी िि ु से यद्
ु ि करने पर तुला हुआ है ; और िुिे उससे युद्ि करना ही
पड़ेगा ताकक हिारे बीि शाींतत स्थावपत हो सके ।
िीरदाद : ति
ु अपने पडोसी को इसमलए िार डालना िाहते हो ताकक उसके साथ शाींततपव
ू क
ा जी सको !
कैसी ववचित्र बात है ! िुदों के साथ शाींततपव
ू क
ा जीने िें कोई खब
ू ी नहीीं ; खब
ू ी तो है उसके साथ
शाींतत पूवक
ा जीने िें जो ल्जन्दा हैं । यदद तम्
ु हे ककसी ऐसे ल्ज़ींदा िनष्ु य या वस्तु से यद्
ु ि करना ही है
ल्जसकी रूचि और दहत तम्
ु हारी रूचि और दहत से कभी-कभी टकराते हैं, तो यद्
ु ि करो उस प्रभु से
जो इन्हे अल्स्तत्व िें लाया है । और यद्
ु ि करो सींसार से ;
क्योंकक उसके अींदर ऐसी अनचगनत वस्तए
ु ीं हैं जो तम्
ु हारे िन को व्याकुल करती हैं, तम्
ु हारे ह्रदय को
पीड़ा पहुाँिाती हैं, और अपने आप को जबरदस्ती तम्
ु हारे जीवन पर थोपती हैं ।
सुलतान ; यदद िैं अपने पड़ोसी के साथ शाींततपूवक
ा रहना िाहूाँ पर वह यद्
ु ि करना िहता है .
तो िैं क्या करूाँ ?
िीरदाद ; यद्
ु ि करो ।
सुलतान ; अब आप िि
ु े ठीक सलाह दे रहे हैं ।
िीरदाद ; हााँ , युद्ि करो, परन्तु अपने पड़ोसी से नहीीं । युद्ि करो उन सभी वस्तुओीं से जो तम्
ु हे
और तम्
ु हारे पड़ोसी को आपस िें लड़ाती हैं ।
सुलतान, तुम्हारा पडोसी ति
ु से लड़ना िाहता है तुम्हारे राजसी वस्त्रों के मलए, तुम्हारे मसींहासन,
तम्
ु हारी सींम्पवि और तम्
ु हारे प्रताप के मलए,
और उन सब वस्तुओीं के मलए ल्जनके तुि बींदी हो । क्या तुि उसके ववरुद्ि शास्त्र उठाये बबना उसे
पराल्जत करना िाहोगे ? तो इससे पहले कक वह तुिसे युद्ि छे ड़े, तुि स्वयीं ही इन सब वस्तुओीं के
ववरुद्ि यद्
ु ि कक घोषणा कर दो ।
जब तुि अपनी आत्िा को इनके मशकींजे से छुड़ाकर इन पर ववजय पा लोगे ; जब तुि इन्हे बाहर
कूड़े के ढे र पर िेंक दोगे, सम्भव है कक तब तम्
ु हारा पड़ोसी अपने कदि थाि ले, और अपनी
तलवार वावपस म्यान िें रख ले और अपने आप से कहे ” यदद ये वस्तए
ु ीं इस योग्य होतीीं कक इनके
मलए यद्
ु ि ककया जाये, तो िेरा पड़ोसी इन्हे कूड़े के ढे र पर न िेंक दे ता ।”
यदद तम्
ु हारा पड़ोसी अपना पागलपन न छोड़े और उस कूड़े के ढे र को उठाकर ले जाये, तो ऐसे
घखृ णत बोि से अपनी िल्ु क्त पर ख़श
ु ी िनाओ, लेककन अपने पडोसी के दभ
ु ााग्य पर, अ़िसोस करो ।
सुलतान ; िेरे िान का, िेरी इज्जत का क्या होगा जो िेरी सारी सींम्पवि से कहीीं अचिक िक
ू य वान
है ?
िीरदाद ; िनष्ु य का िान केवल िनष्ु य बने रहने िें है —- िनष्ु य जो कक प्रभु का जीता-जागता
प्रततबबम्ब और प्रततरूप है । बाकी सब िान तो अपिान ही हैं । िनष्ु यों द्वारा प्रदान ककये गए
सम्िान िनुष्य आसानी से छीन लेते हैं । तलवार से मलखे गए िान को तलवार आसानी से मिटा दे ती
है ।
कोई भी िान इस लायक नहीीं कक उसके मलए जींग लगा तीर भी िलाया जाये, तप्त आींसू बहाना या
रक्त की एक भी बींद
ू चगराना तो दरू रहा ।
सुलतान ; और स्वतींत्रता, िेरी और िेरी प्रजा कक स्वतन्त्रता, क्या बड़े से बड़े
बमलदान के लायक नहीीं ?
िीरदाद ; सच्िी स्वतींत्रता तो इस लायक है कक उसके मलए अपने अहि ् की बमल दे दी जाये ।
तम्
ु हारे पडोसी के हचथयार उस स्वतींत्रता को छीन नहीीं सकते ; तुम्हारे अपने हचथयार उसे प्राप्त नहीीं
कर सकते, उसकी रक्षा नहीीं कर सकते । और यद्
ु ि का िैदान तो सच्िी स्वतन्त्रता के मलए एक कब्र
है । सच्िी स्वतींत्रता ह्रदय िें ही पाई और खोई जाती है ।
क्या यद्
ु ि िाहते हो तुि ? तो अपने ह्रदय िें अपने ही ह्रदय से यद्
ु ि करो । दरू करो अपने ह्रदय से
हर आशा को,हर भय और खोखली कािना को जो तम् ु हारे सींसार को एक घट
ु न-भरा बाड़ा बनाये हुए
हैं, और तुि इसे ब्रह्िाण्ड से भी अचिक ववशाल पाओगे ।
इस ब्रह्िाण्ड िें तुि स्वेच्छा से वविरण करोगे, और कोई भी वस्तु बािा नहीीं बनेगी तम्
ु हारे िागा िें
। केवल यही एक यद्
ु ि है जो छे ड़ने योग्य है । जट
ु जाओ इस युद्ि िें और तब तम्
ु हे अन्य ककसी
यद्
ु ि के मलए सिय ही नहीीं मिलेगा ।
और तब युद्ि तम्
ु हे घखृ णत तथा आसुरी दााँव-पेंि प्रतीत होने लगें गे ल्जनका काि होगा तम्
ु हारे िन को
भटकाना और तम्
ु हारी शल्क्त को सोखना, और इस प्रकार अपने आपके ववरुद्ि तम्
ु हारे िहायद्
ु ि िें
जो वास्तव िें ििा यद्
ु ि है, तम्
ु हारी पराजय का कारण बनना ।
इस यद्
ु ि को जीतने का अथा है अनींत जीवन को पाना, ककन्तु अन्य ककसी भी यद्
ु ि िें ववजय पूणा
पराजय से भी बरु ी होती है । और िनष्ु य के हर यद्
ु ि का भयानक पक्ष यही है कक ववजेता और
पराल्जत दोनों के पकले पराजय ही पड़ती है । क्या शाल्न्त िाहते हो तुि ?
तो ित खोजो उसे दस्तावेजों के शब्द जाल िें; और ित प्रयत्न करो उसे िट्टानों पर अींककत करने
िें ।क्योंकक जो लेखनी इतनी आसानी से शाींतत मलख सकती है, वह उतनी ही आसानी से यद्
ु ि भी
मलख सकती है ;
और जी छे नी ” आओ शाींतत स्थावपत करें ।” खोदती है, वह उतनी ही आसानी से ”आओ यद्
ु ि करें ”
भी खोद सकती है ।
और इसके अततिरक्त, कागज़ और िट्टान, लेखनी और छे नी जकदी ही कीड़े ,जलन,जींग और
प्रकृतत के पिरवतान लाने वाले तत्वों का मशकार हो जाते हैं । ककन्तु िनुष्य के काल-िुक्त ह्रदय की
बात अलग है वह तो ददव्य ज्ञान के बैठने का मसींहासन है ।
जब एक बार ददव्य ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, तो यद्
ु ि तुरींत जीत मलया जाता है और ह्रदय िें
स्थायी शाींतत स्थावपत हो जाती है । अज्ञानी ह्रदय द्वैतपण
ू ा होता है । द्वैतपूणा ह्रदय का पिरणाि होता
है ववभाल्जत सींसार, और ववभाल्जत सींसार जन्ि दे ता है तनरीं तर सींघषा और यद्
ु ि को । ज्ञानवान ह्रदय
एकतापूणा होता है ।
एकतापूणा ह्रदय का पिरणाि होता है एक सींसार, और एक सींसार शाींततपूणा सींसार होता है, जबकक
लड़ने के मलए दो की जरुरत होती है । इसमलए िैं तुम्हे सलाह दे ता हूाँ कक अपने ह्रदय को एकतापूणा
बनाने के मलए उसी के ववरुद्ि यद्
ु ि करो ववजय का पुरस्कार होगा स्थायी शाींतत ।
हे सल
ु तान, जब ति
ु हर मशला िें मसींहासन दे ख सकोगे, और हर गि
ु ा िें दग
ु ा पा सकोगे, तब सय
ू ा
तम्
ु हारा मसींहासन और तारा िींडल तम्
ु हारे दग
ु ा बनकर बहुत प्रसन्न होंगे । जब तुि अपने ह्रदय पर
शासन कर सकोगे, तब तम् ु हे इससे क्या िका पडेगा कक तम्ु हारे शरीर पर ककसका शासन है,?
जब सारा ब्रह्िाण्ड तम्
ु हारा होगा, तो इससे क्या िका पड़ेगा कक िरती के ककसी
टुकड़े पर ककसका प्रभत्ु व है ?
सल
ु तान ; आपके शब्द कािी लभ
ु ावने हैं किर भी िि
ु े लगता है कक यद्
ु ि प्रकृतत का तनयि है ।
क्या सिुद्र की िछमलयाीं भी तनरीं तर लड़ती नहीीं रहतीीं ? क्या दब
ु ल
ा बलवान का मशकार नहीीं होता ?
पर िैं ककसी का मशकार नहीीं बनना िाहता ।
िीरदाद ; जो तम्
ु हे युद्ि प्रतीत होता है वह अपना पेट भरने और अपना ववस्तार करने का प्रकृतत का
केवल एक ढीं ग है । बलवान को उसी प्रकार दब
ु ल
ा का आहार बनाया गया है ल्जस प्रकार दब
ु ल
ा को
बलवान के मलए । और किर प्रकृतत िें कौन बलवान है और कौन दब
ु ल
ा ? केबल प्रकृतत ही बलवान
है ; अन्य सभी तो तनबाल जीव हैं जो प्रकृतत की इक्षा का पालन करते है और िुप िाप ित्ृ यु की िारा
िें बहे िले जाते हैं ।
केवल ित्ृ यु से िक्
ु त जीवों को बलवान का दजाा ददया जा सकता है । और िनष्ु य, ऐ सल
ु तान,ित्ृ य-ु
िुक्त है । हााँ, प्रकृतत से अचिक शल्क्तशाली है िनुष्य । वह केवल इसमलए सिद्र
ु प्रकृतत का शोषण
करता है कक अपने अभावों की पूतता कर सके ।
वह केवल इसमलए सींतान के िाध्यि से अपना ववस्तार करता है कक अपने आपको ऐसे ववस्तार से
ऊपर उठा सके । जो िनुष्य पशु की स्वच्छ िूल-प्रवतृ तयों का उकलेख कर के अपनी दवू षत कािनाओीं
को उचित मसद्ि करना िाहते हैं, उन्हें अपने आपको जींगली सअ
ू र, या भेड़ड़ये, या गीदड़ या और
कुछ भी कह लेने दो, परन्तु उन्हें िनुष्य के श्रेष्ठ नाि को दवू षत ित करने दो । िीरदाद पर
ववश्वास करो सुलतान,
और शाींतत प्राप्त करो ।
सुलतान ; िुखखया ने िुिे बताया कक िीरदाद जाद ू टोने के रहस्यों का अच्छा ज्ञाता है , और िैं
िाहता हूाँ कक वह अपनी कुछ शल्क्तयों का प्रदशान करे ताकक िैं उन पर ववश्वास कर सकूाँ ।
िीरदाद ; यदद िनुष्य के अींदर प्रभु प्रकट करना जाद ू है तो िीरदाद जादग
ू र है । क्या तुि िेरे जाद ू
का कोई प्रिाण और कोई प्रदशान िाहते हो ?तो दे खो िैं ही प्रिाण और प्रदशान हूाँ । अब जाओ ल्जस
काि के मलए आये हो वह करो ।
सुलतान ; ठीक अनुिान लगाया है तुिने कक िुिे तम्
ु हारी सनकी बातों से कान बहलाने के अलावा
और भी काि हैं । क्योंकक बेसार का सुलतान एक दस
ू री तरह का जादग
ू र है ; और अपने कौशल का
वह अभी प्रदशान करे गा । मसपादहयो, अपनी जींजीरें लाओ और इस प्रभु- िनुष्य या िनुष्य – प्रभु के
हाथ पैर बााँि दो ।
आओ , ददखा दें इसे तथा यहााँ उपल्स्थत व्यल्क्तयों को कक हिारा जाद ू कैसा है ?
नरौंदा ; मसपाही दहींसक पशओ
ु ीं की तरह िुमशाद पे िपटे और उनके हाथों और पैरों को जींजीरों से
बाींिने लगे । क्षण भर के मलए सातों साथी स्तब्ि बैठे रहे ; उनकी सिि िें नहीीं आ रहा था कक
उनके सािने जो हो रहा है उसे िजाक सििें या गम्भीर घटना ।
मिकेयन और जािोरा ने उस अवप्रय ल्स्थतत की गम्भीरता को पहले से ही सिि मलया । दो क्रोचित
मसींहों की तरह वे मसपादहयों पर टूट पड़े ; और यदद िमु शाद की रोकती और िैया बींिाती आवाज उन्हें
सुनाई न दे ती तो उन्होंने मसपादहयों को पछाड़ ददया होता ।
िीरदाद ; इन्हे अपने कौशल का प्रयोग कर लेने दो, उतावले मिकेयन । इन्हे अपनी इच्छा पूरी कर
लेने दो, भले जािोरा । काले खड्ड से भयानक नहीीं हैं इनकी जींजीरें िीरदाद के मलए ।
शिदाि को अपनी सिा पर बेसार के सल
ु तान की सिा का पैबद
ीं लगाने की खमु शयाीं िना लेने दो ।
यह पैबद
ीं ही इन दोनों को िीर डालेगा ।
सुलतान ;- ऐसा ही व्यवहार ककया जाएगा हर उस दष्ु ट और पाखण्डी के साथ जो वैि अचिकार और
सिा का ववरोि करने का दिःु साहस करे गा ।
िीरदाद को सुलतान के मसपाही बाहर ले गए, और सुलतान तथा शिदाि ख़श
ु ी से अकड़ते हुए पीछे
पीछे िल ददए ।
अध्याय 29
िीरदाद कोई िित्कार करने नहीीं आया
ददव्य ज्ञान अपने आप िें ही िित्कार है .
*************************************
शिदाि साचथयों को िनाकर अपने साथमिलाने का असिल यत्न करता है िीरदाद िित्कारपण
ू ा ढीं ग
से लौटता है और शिदाि के अततिरक्त सभी साचथयों को ववश्वास का िम्
ु बन प्रदान करता है
नरौंदा ; जाड़े ने हिें आ दबोिा था, बहुत सख्त, बिीले, काँपा दे ने वाले जाड़े ने । सातों साथी
कभी आशा तो कभी सींदेह की लहरों के थपेड़े खा रहे थे ।
मिकेयन, मिकास्तर, जािोरा इस आशा का दािन थािे हुए थे कक िमु शाद अपने विन के अनुसार
लौट आयेंगे । बेनन
ू , दहम्बल तथा अबबिार िमु शाद के लौटने के बारे िें सींदेह को पकडे बैठे थे ।
लेककन सब एक भयानक खालीपन तथा वेदनापूणा तनरथाकता का अनुभव कर रहे थे । नौका शीत-ग्रस्त
थी तनष्ठुर और स्नेह हीन । उसकी दीवारों पर एक विीली खािोशी छाई हुई थी,
यदयवप शिदाि उसिे जीवन तथा उत्साह का सींिार करने का भरपूर प्रयास कर रहा था । क्योंकक
जब िीरदाद को ले जाया गया तब से शिदाि दया के द्वारा हिें वश िें करने की कोमशश कर रहा
था ।
पर उसकी नम्रता और स्नेह ने हिें उससे और अचिक दरू कर ददया ।
शिदाि ; िेरे साचथयो, यदद तुि सििते हो कक िैं िीरदाद से घण ृ ा करता हूाँ तो ति
ु िेरे साथ
अन्याय कर रहे हो । िुिे तो सच्िे ददल से उसपर दया आती है । िीरदाद एक बरु ा व्यल्क्त भले ही
न हो लेककन वह एक खतरनाक आदशावादी है,
और ल्जस मसद्िान्त का वह इस ठोस वास्तववकता और व्यावहािरकता के जगत िें प्रिार कर रहा,
वह सवाथा अव्यावहािरक और िूठा है । गत कई वषों िें नौका का प्रबन्ि कौन िुिसे अचिक
लाभदायक ढीं ग से िला सकता था ?
ल्जसका हि इतने सिय से तनिााण करते आ रहे हैं वह सब एक अजनबी के हाथों क्यों नष्ट करने
ददया जाए । और जहाीं ववश्वास का प्रभत्ु व था वहााँ उसे अववश्वास का, तथा जहााँ शाींती का राज्य था
वहााँ उसे कलह का बीज क्यों बोने ददया जाए ?
वह हवा िें, अपार शून्य िें एक नौका जट
ु ाने का वादा करता है .एक पागल का सपना, एक
बिकानी ककपना, एक ििरु असींभावना ।
क्या वह िााँ नौका के सींस्थापक वपता नूह से भी अचिक सििदार है ? उसकी बे-सर पैर की बातों पर
वविार करने के मलए तुिसे कहते हुए
िुिे बहुत दिःु ख हो रहा है ।
िीरदाद के ववरुद्ि अपने मित्र बेसार के सुलतान से उसकी सशक्त भुजाओीं की सहायता िाींगकर िैंने
नौका तथा उसकी पववत्र परम्पराओीं के प्रतत अपराि भले ही ककया हो, ककन्तु िैं तम्
ु हारी भलाई
िाहता था ।
ककन्तु अब, िेरे साचथयो, िैं अपने आपको हजरत नूह के प्रभु तथा उनकी नौका की, और तम्
ु हारी
सेवा िें सिवपात करता हूाँ । पहले की तरह प्रसन्न रहो ताकक तम्
ु हारी प्रसन्नता से िेरी प्रसन्नता पूणा
हो जाए ।
नरौंदा ; यह कहते-कहते शिदाि रो पड़ा । बहुत दयनीय थे उसके आींसू क्योंकक आींसू बहाने वाला वह
अकेला था ; उसके आींसओु ीं को हिारे ह्रदय और आाँखों िें कोई साथी नहीीं मिल रहा था । एक ददन
प्रातिःकाल, जब िींि
ु ले िौसि की लम्बी घेराबन्दी के बाद सय
ू ा ने पहाड़ड़यों पर अपनी ककरणें बबखेरीीं,
ज़िोरा ने अपना रबाब उठाया और गाने लगा अब जि गया है गाना शीतहत होठों परिेरे रबाब के ।
तघर गया बिा िें सपना बिा से तघरे ह्रदय िें िेरे रबाब के । है श्वाींस कहााँ वह तेरे गाने को जो दे
वपघला ऐ रबाब िेरे ? हैं हाथ कहााँ वह तेरे सपने को जो छुड़वा दें , ऐ रबाब िेरे ? बेसार के
तहखाने िें । आओ, ऐ मभखािरन वायु , िाींग लो िेरी खाततरइक गाना जींजीरों से बेसार के तहखाने
की ।
जाओ , ऐ ितुर रवव ककरणो, िुरा लाओ िेरी खाततरएक सपना जींजीरों सेबेसार के तहखाने की ।
पींख गरुड़ का िेरेछाया था परु े नभ पर,उसके नीिे िैं राजा । अब हूाँ अनाथ इक केवल और पिरत्यक्त
इक बालक, है नभ पर राज उलूक का,क्योंकक उड़ गया गरुड़ है बहुत दरू एक नीड़ को …….बेसार के
तहखाने को ।
नरौंदा ; ज़िोरा के हाथ मशचथल हो गये, सर रबाब पर िक
ु गया और उसकी आाँखों से आींसू टपक
पड़ा । उस आींसू ने हिारी दबी हुई वेदना के बााँि को तोड़ ददया और हिारी आाँखों से आींसुओीं की िारा
बह िली।
मिकेयन सहसा उठकर खड़ा हो गया,
और ऊाँिे स्वर िें यह कहते हुए
कक िेरा दि घुट रहा है । वह तेजी से बाहर खल
ु ी हवा िें िला गया । जािोरा मिकास्तर और िैं
उसके पीछे -पीछे िार ददवारी के द्वार तक पहुाँि गए ल्जससे आगे बढ़ने का साहस करने की
अनि
ु तत साचथयों की नहीीं थी.
मिकेयन ने एक जोरदार िटके के साथ भारी अगाला को खीींि मलया, िक्का दे कर द्वार खोल ददया
और वपींजरे से भागे बाघ की तरह बाहर तनकल गया अन्य तीनो भी मिकेयन के साथ-साथ बाहर िले
आये ।
सूया की सुहावनी गिी और ििक थी, और उसकी ककरणे जिी हुई बिा से टकराते हुए िुड़कर अपनी
ििक से हिारी आाँखों को िकािोंि कर रहीीं थी, जहााँ तक दृष्टी पहुाँिती बिा से ढकी ऊाँिी-नीिी
वक्ष
ृ -रदहत पहाड़ड़यााँ हिारे सािने िैली हुई थीीं लगता था िानो सब कुछ प्रकाश के ववलक्षण रीं गों से
प्रदीप्त है िारों ओऱ गहरी ख़ािोशी छाई हुई थी जो कानो िें िुभ रही थी, केवल हिारे पैरों के नीिे
िरिरा रही बिा उस ख़ािोशी के जाद ू को तोड़ रही थी ।
हवा यदयवप शरीर को वेि रही थी , किर भी हिारे िेिड़ों को इस तरह दल
ु ार रही थी कक हिें लग
रहा था हि अपनी ओऱ से कोई यत्न ककये बबना ही उड़े जा रहे हैं । और तो और, मिकेयन की
िनोदशा भी बदल गई । वह रूककर ऊाँिी आवाज िें बोला, ” ककतना अच्छा लगता है सााँस ले
सकना ।
आह, केवल साींस ले सकना ।
और सििुि ऐसा लगा कक हिने पहली बार स्वतन्त्रता से साींस लेने का आनींद पाया है और साींस के
अथा को जाना है ।हि थोड़ी दरू िले ही थे कक मिकास्तर को दरू ऊाँिे टीले पर एक काली छाया सी
ददखाई दी । हििें से कुछ ने सोिा याक कोई अकेला भेड़ड़या है ; कुछ को लगा वह एक िट्टान है ।
पर वह छाया हिारी ओर आती लग रही थी ; हिने उसकी ददशा िें िलने का तनश्िय ककया ।
वह हिारे तनकट और तनकट आती गई और िीरे -िीरे उसने एक िानवीय आकार िारण कर मलया ।
अिानक मिकेयन ने आगे की ओर छलााँग लगाते हुए जोर से कहा अरे ” ये तो वही हैं ! ये तो वही हैं
!और वे थे भी वही — उन्ही की िनिोहक िाल, उन्ही की गौरवशाली िुद्रा, उन्ही का गिरिािय
उन्नत िस्तक । परन्तु उनके काले, स्वप्न दशी, सदा की तरह ज्योततिाय नेत्रों से गम्भीर शाींतत
और ववजयी प्रेि की लहरें प्रभाववत हो रहीीं थीीं ।
मिकेयन सबसे पहले उनके पास पहुींिा । मससकते तथा हाँसते हुए उनके िरणो िें चगर गया और
बेसुिी- की-सी दशा िें बड़बड़ाया ” िेरी आत्िा िुिे वावपस मिल गई ।”एक एक सभी उनके िरणों िें
चगर पड़े । िुमशाद ने एक एक करके उठाया असीि प्यार से हर एक को गले लगाया और कहा
;िीरदाद ; ववश्वास का िम्
ु बन ग्रहण करो । अब से ति
ु ववश्वास िें सोओगे और ववश्वास िें जागोगे
; सींदेह तम्
ु हारे तककये िें बसेरा नहीीं करे गा,
और न ही तम्
ु हारे कदिो को अतनश्िय के द्वारा जकड़ेगा । शिदाि शन्
ू य दल्ॄ ष्ट से दे खता रहा । वह
सर से पैर तक कााँप रहा था उसका िेहरा िद
ु े जैसा पीला पद गया था । अिानक वह अपने आसन से
सरका और हाथो तथा पैरों के बल रें गते हुए वहााँ जा पहुाँिा जहााँ िमु शाद खड़े थे ।
उसने िमु शाद के पैरों को अपनी बाहों िें ले मलया और जिीन की तरि िुींह ककये हुए व्याकुलता के
साथ कहा ” िुिे भी ववश्वास है ।” िमु शाद ने उसे भी उठाया, लेककन उसे िूिे बबना कहा ;िीरदाद ;
यह भय है जो शिदाि के भारी- भरकि शरीर को काँपा रहा है और उससे कहलवा रहा है ” िुिे भी
ववश्वास है । शिदाि उस जाद ू के सािने कााँप रहा है और मसर िक
ु ा रहा है ल्जसने िीरदाद को काले
– खड्ड तथा बेसार की कालकोठरी से बाहर तनकाल ददया ।
और शिदाि को डर है कक उससे बदला मलया जाएगा । इस बारे िें उसे तनल्श्िन्त रहना िादहए और
अपने ह्रदय को ववश्वास की ददशा िें िोड़ना िादहए । वह ववश्वास जो भय की लहरों पर उठता है,
भय का िाग िात्र होता है ; वह भय के साथ उठता है और उसी के साथ बैठ जाता है । सच्िा
ववश्वास प्रेि की टहनी पर ही खखलता है, और कहीीं नहीीं । उसका िल होता है ददव्य ज्ञान ।
अगर तम् ु हे प्रभु से डर लगता है तो प्रभु पर ववश्वास ित करो । ….शिदाि ; ( पीछे हटते हुए आाँखें
तनरीं तर िशा पे गड़ाये हुए ) अपने ही घर िें अनाथ और बदहष्कृत है शिदाि कि से कि एक ददन
के मलए तो िुिे आपका सेवक बनने और आपके मलए कुछ भोजन तथा कुछ गिा कपडे लाने की
अनुितत दें , क्योंकक आपको बहुत भूख लगी होगी और ठण्ड सता रही होगी ।
िीरदाद ; िेरे पास वह भोजन है ल्जससे रसोई घर अनजान है : और वह गिााहट है जो ऊन के िागों
या आग की लपटों से उिार नहीीं ली जा सकती । काश, शिदाि ने अपने भण्डार िें वह भोजन और
गिााहट अचिक तथा अन्य खाद्य- सािग्री और ईंिन कि रखे होते । दे खो, सिुद्र पवात-मशखरों पर
शीतकाल बबताने आया है ।
मशखर जिे हुए सिद्रु को कोट के सिान पहनकर प्रसन्न हो रहे हैं, और अपने कोट िें गिााहट
िहसूस कर रहे हैं । प्रसन्न है सिद्र
ु भी कुछ सिय के मलए मशखरों पर इतना शाींत, इतना िींत्रिुग्ि
हो लेटने िें, लेककन कुछ सिय के मलए ही ।
क्योंकक बसींत अवश्य आयेगा, और सिुद्र शीतकाल िें तनल्ष्क्रय पड़े सपा की तरह अपनी कुण्डली
खोलेगा तथा अस्थाई तौर पर चगरवी रखी अपनी स्वतन्त्रता वापस ले लेगा एक बार किर वह एक तट
से दस
ू रे तट की ओर लहरायेगा ; एक बार किर वह हवा पर सवार होकर आकाश की सैर करे गा,
और जहााँ िाहे गा िुहार के रूप िें अपने आपको बबखेर दे गा ।
ककन्तु ति
ु जैसे लोग भी हैं ल्जनका जीवन एक अन्तहीन शीतकाल और गहरी दीघा- तनद्रा है । ये वे
लोग हैं ल्जन्हे अभी तक बसींत के आगिन का सींकेत नहीीं मिला । दे खो, िीरदाद वह सींकेत है ।
जीवन का सींकेत है िीरदाद, ित्ृ यु का सन्दे श नहीीं तुि और कब तक गहरी नीींद सोते रहोगे ?
ववश्वास करो शिदाि जो ल्जींदगी लोग जीते हैं और जो िौत वे िरते हैं दोनों ही दीघा – तनद्रा हैं ।
और िैं लोगों को उनकी नीींद से जगाने और उनकी गि
ु ाओीं और बबलों से तनकालकर उन्हें अिर जीवन
की स्वतींत्रता िें ले जाने के मलए आया हूाँ । िि
ु पर ववश्वास करो िेरी खाततर नहीीं, तम्
ु हारी अपनी
खाततर ।
िीरदाद ; बेसार का बींदीगह
ृ अब बींदीगह
ृ नहीीं रहा, एक पूजा- स्थल बन गया है । बेसार का सुलतान
भी अब सल
ु तान नहीीं रहा । आज वह तम्
ु हारी तरह सत्य का खोजी यात्री है । ककसी अाँिेरी कालकोठरी
को एक उज्जवल प्रकाश – स्तम्भ िें बदला
जा सकता है, बेनन
ू ।
ककसी अमभिानी सल
ु तान को भी सत्य के िक
ु ु ट के सािने अपना िक
ु ु ट त्यागने के मलए प्रेिरत ककया
जा सकता है ।
और क्रुद्ि जींजीरों से भी ददव्य
सींगीत उत्पन्न ककया जा सकता है
ददव्य ज्ञान के मलए
कोई काि िित्कार नहीीं है ।
िित्कार तो स्वयीं ददव्य ज्ञान है ।
अध्याय 30
िुमशाद आप के सभी
सपनों को जानता है
——————————
☞तनज घर के मलए िहाववरह ☜
************************************
िुमशाद मिकेयन का स्वप्न सन
ु ाते हैं
नरौंदा ; िुमशाद के बेसार से लौटने से पहले और इसके बाद कािी सिय तक हिने मिकेयन को एक
िुसीबत िें पड़े व्यल्क्त कक तरह आिरण करते दे खा । अचिकतर वह अलग रहता, न कुछ बोलता,
न खता और कि ही अपनी कोठरी से बाहर तनकलता । एक ददन जब मिकेयन तथा बाक़ी साथी
अाँगीठी के िारों ओर बैठे आग ताप रहे थे, िुमशाद ने ” तनज घर के मलए िहाववरह ” के ववषय िें
प्रविन आरम्भ ककया ।
िीरदाद ; एक बार ककसी ने एक सपना दे खा, और वह सपना यह था ; उसने अपने आपको एक
िौड़ी, गहरी खािोशी से बहती नदी के हरे -भरे तट पर खड़े दे खा । तट हर आयु के और हर बोली
बोलनेबाले स्त्री-पुरुष और बच्िों के ववशाल सिूह से भरा हुआ था । सबके पास अलग-अलग नाप तथा
रीं ग के पदहये थे ल्जन्हे वे तट पर ऊपर और नीिे की ओर ठे ल रहे थे ।
ये जन-सिहू शोख रीं ग के वस्त्र पहने हुए थे और िौज िनाने तथा खाने – पीने के मलए तनकले थे ।
उनके कोलाहल से वातावरण गूींज रहा था । अशाींत सागर की लहरों की तरह वे ऊपर-नीिे, आगे-पीछे
आ-जा रहे थे । वही एक ऐसा व्यल्क्त था जो दावत के मलए सजा- साँवरा नहीीं था, क्योंकक उसे ककसी
दावत की जानकारी नहीीं थी ।
और केवल उसी के पास ठे लने के मलए कोई पदहया नहीीं था । उसने बड़े ध्यान से सन
ु ने का यत्न
ककया, पर उस उस बहुभाषी भीड़ से वह एक भी ऐसा शब्द नहीीं सन
ु पाया जो उसकी अपनी बोली से
मिलता हो, उसने बड़े ध्यान से दे खने का यत्न ककया,।
पर उसकी दल्ॄ ष्ट एक भी ऐसे िेहरे पर नहीीं अटकी जो उसका जाना पहिाना हो । इसके अततिरक्त
भीड़ जो उसके िारों ओर उिड़ रही थी उसकी ओर अथा – भरी नजरें डाल रही थी िानो कह रही हों,
” यह ववचित्र व्यल्क्त कौन है ?”
किर अिानक उसकी सिि िें आया यह दावत उसके मलए नहीीं है ; और तब उसके िन िें एक टीस
उठी । …….शीघ्र ही उसे तट के ऊपरी मसरे से आती हुई एक ऊाँिी गरज सन ु ाई दी, और उसी क्षण
उसने दे खा वे असींख्य लोग दो पींल्क्तयों िें बाँटते हुए घट
ु नो के बल िक
ु गए, उन्होंने अपने हाथों से
अपनी आाँखें बींद कर लीीं और अपने सर िरती पर िक
ु ा ददये ;
और उन पींल्क्तयों के बीि तट की पूरी लम्बाई तक एक खली, सीिा और तींग रास्ता बन गया और
वह अकेला ही रास्ते के बीि खड़ा रह गया ।
वह सिि नहीीं पा रहा था कक वह क्या करे और ककस ओर िुड़े । जब उसने उस ओर दे खा ल्जिर से
गरज कक आवाज आ रही थी तो उसे एक बहुत बड़ा सााँड़ ददखाई ददया जो िींह ु से आग की लपटें और
नथन
ु ों से िुींएाँ के अम्बार, और जो उस िागा पर बबजली की गतत से बेतहाशा दौड़ता हुआ आ रहा था
।
भयभीत होकर उसने उस क्रोिोन्ििपअस की ओर दे खा तथा दाईं या बाईं तरि भागकर बिना िाहा,
पर बिाव का कोई रास्ता ददखाई नहीीं ददया । उसे लगा वह जिीन िें गाड़ गया और अब ित्ृ यु
तनल्श्ित है ।
ज्यों ही सााँड़ उसके इतना नजदीक पहुींिा कक उसे िल
ु साती लौं और िुआाँ िहसूस हुआ, उसे ककसी ने
हवा िें उठा मलया । उसके नीिे खड़ा सााँड़ ऊपर की ओर आग और िुींआीं छोड़ रहा था ; ककन्तु वह
ऊाँिा और ऊाँिा उठता गया, और यद्यवप आग और िआ
ुीं ीं उसे अब भी िहसूस हो रहे थे तो भी उसे
कुछ ववश्वाश हो गया था कक अब सााँड़ उसका कुछ नहीीं बबगाड़ सकता ।
उसने नदी को पार करना शरू
ु कर ददया। नीिे हरे -भरे तट पर उसने दृष्टी डाली तो दे खा कक जन
सिुदाय अब भी पहले की तरह घट ु नोके बल िकु ा हुआ है , और सााँड़ अब उस पर आग और िए ु ाँ के
बजाय तीर छोड़ रहा है । अपने नीिे से होकर तनकलने रहे तीरों की सरसराहट उसे सन
ु ाई दे रही थी
; उसिे से कुछ उसके कपड़ों िें िाँस गए, पर उसके शरीर को एक भी न छू सका ।
आखखर सााँड़, भीड़, नदी आाँखों से ओिल हो गए ; और वह व्यल्क्त उड़ता िला गया । उड़ते उड़ते
वह एक सन
ु सान, िप
ू से िल
ु से भ-ू खण्ड पर से गज
ु रा ल्जस पर जीवन का कोई चिन्ह न था । अींत
िें वह एक ऊाँिे, बीहड़ पवात की उजाड़ तलहटी िें उतरा जहााँ घाींस की एक पवि तो क्या, एक
तछपकली, एक िीींटी तक न थी । उसे लगा कक पवात के ऊपर से होकर जाने के मसवाय उसके मलए
कोई िारा नहीीं है ।
बड़ी दे र तक वह ऊपर िढ़ने का कोई सरु क्षक्षत िागा ढूाँढता रहा, ककन्तु उसे एक पगडण्डी ही मिली जो
िुल्श्कल से ददखाई दे ती थी , और ल्जस परमसिा बकिरयाीं ही िल सकती थीीं । उसने उसी राह पर
िलना तनश्िय ककया ।वह अभी कुछ सौ िुट ही ऊपर िढ़ा होगा कक उसे अपनी बाईं ओर तनकट ही
एक िौड़ा और सितल िागा ददखाई ददया ।
वह रुका और अपनी पगडन्डी को छोड़ने बल ही था कक वह िागा एक िानवीय प्रवाह बन गया
ल्जसका आिा भाग बड़े श्रि से ऊपर िढ़ रहा था, और दस
ू रा आिा भाग अींिािि
ींु बड़ी तेजी के साथ
पहाड़ से नीिे आरहा था । अनचगनत स्त्री परु
ु ष सींघषा करते हुए ऊपर िढ़ते, और किर कलाबाजी
खाते हुए नीिे लुढक जाते थे, और जब बे नीिे लढ़ ु कते थे तो ऐसी िीख -पक
ु ार करते थे कक ददल
दहल जाता था ।
वह व्यल्क्त थीींदी दे र यह अद्भत
ु दृष्य दे खता रहा और िन ही िन इस नतीजे पर पहुींिा कक पहाड़ के
ऊपर कहीीं एक बहुत बड़ा पागलखाना है, और नीिे लड़ ु कने वाले लोग उनिे से तनकल भागने वाले
पागलों िें से कुछ हैं । कभी चगरते तो कभी सींभलते हुए वह अपनी घुिावदार पगडण्डी पर िलता
रहा, लेककन िक्कर काटते हुए वह तनरीं तर ऊपर की ओर बढ़ता गया |
थके, बोखिल पैरों से िागा पर रक्त-चिन्ह छोड़ते हुए वह आगे बढ़ता गया । कदठन जी-तोड़ पिरश्रि
के बाद वह एक ऐसी जगह पहुाँिा जहााँ मिटटी नरि और पत्थरों से रदहत थी । उसकी ख़श ु ी का
दठकाना न रहा जब उसे िारों ओर घाींस के कोिल अींकुर ददखाई ददए ; घाींस इतनी नरि थी और
मिटटी इतनी िखिली और हवा इतनी सुगींििय और शाल्न्त दायक कक उसे वैसा ही अनुभव हुआ
जैसा अपनी शल्क्त के अींतति अींश को खो दे ने वाले ककसी व्यल्क्त को होता है ।
अतएव उसने हाथ-पैर ढीले छोड़ ददए उसे नीींद आगई । ककसी हाथ के स्पशा और एक आवाज ने उसे
जगाया, ”उठो ! मशखर सािने है और बसींत मशखर पर तम्
ु हारी प्रतीक्षा कर रहा है ।” वह हाथ और
वह स्वर था स्वगा की अप्सरा-सी एक अत्यींत रूपवती कन्या का जो अत्यींत उज्जवल स़िेद वस्त्र पहने
थी ।
उस कन्या ने कोिलता-पव
ू क
ा उस व्यल्क्त का हाथ अपने हाथ िें मलया और एक नै स्िूतता तथा उत्साह
के साथ वह उठ खड़ा हुआ उसे सििुि मशखर ददखाई ददया । उसे सििुि बसींत की सुगन्ि आई ।
ककन्तु जैसे ही उसने पहला डग भरने को पैर उठाया, वह जाग पड़ा और उसका सपना टूट गया ।
ऐसे सपने से जागकर मिकेयन यदद दे खे कक वह िार सािारण दीवारों से तघरे एक सािारण-से बबस्तर
पर पड़ा हुआ है, परन्तु उसकी पलकों की ओट िें उस कन्या की छवव जगिगा रही हो और उस
मशखर की सग ु ींिपण
ू ा काींटी उसके ह्रदय िें ताजी हो,
तो वह क्या करे गा ?
मिकेयन ; (िानो उसे सहसा गहरी िोट लगी हो ) पर वह सपना दे खने वाला तो िैं हूाँ िेरा ही वह
सपना । िैंने ही दे खा है उस कन्या और मशखर की िलक ।
आज तक वह सपना िुिे रह रह कर सताता है और िि
ु े ज़रा भी िैन नहीीं लेने दे ता । उसने तो िुिे
िेरे मलए ही अजनबी बना ददया है ।
उसी के कारण मिकेयन मिकेयन को नहीीं पहिानता । आह ! उस मशखर की स्वतींत्रता ! आह, उस
कन्या का सौंदया ! ककतना तच्
ु छ है और सब उनकी तुलना िें । िेरी अपनी आत्िा उनकी खाततर िुिे
छोड़ गई थी । ल्जस ददन िैंने आपको बेसार से आते दे खा उसी ददन िेरी आत्िा िेरे पास लौटी और
िैंने अपने आपको शाींत तथा सबल पाया ।
पर यह एहसास अब िि
ु े छोड़ गया है, और अनदे खे तार िुिे एक बार किर िुिसे दरू खीींि रहे हैं ।
िुिे बिा लो, िेरे िहान साथी । िैं वैसे नज़ारे की एक िलक के मलए घुला जा रहा हूाँ । िीरदाद ;
तुि नहीीं जानते, तुि क्या िाींग रहे हो, मिकेयन । क्या तुि अपने िुल्क्तदाता से िुक्त होना िाहते
हो ?
मिकेयन ; िैं इस सींसार िें, जो अपने घर िें इतना सख
ु ी है, बेघर होने की इस असह्य यातना से
िुक्त होना िाहता हूाँ । िैं उस मशखर पर कन्या के
पास पहुींिना िाहता हूाँ ।
ख़श
ु ी िनाओ कक तनज घर के
मलए िहाववरह ने तम्
ु हारे ह्रदय
को जकड मलया है ।
क्योंकक वह एक अटल आश्वासन है कक तम्
ु हे अपना दे श और अपना घर आवश्य मिलेगा और ति
ु उस
मशखर पर उस कन्या के पास अवश्य पहुींिोगे
अबीिार,; कृपया हिें इस ववरह के
बारे िें और बताएीं ।
हि इसे ककन चिन्हों से पहिान सकते हैं ?
अध्याय -31
तनज– घर के मलए िहाववरह
*****************************************
अध्याय -33
सिय आ गया है
आदिी आदिी को लट ु ना बींद करे
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राबत्र अनप
ु ि गातयका
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नरौंदा ; पवातीय नीड़ के मलये, ल्जसे बिीली हवाओीं और बिा के भारी अम्बारों ने परू े शीतकाल िें
हिारी पहुाँि से परे रखा था,
हि सब इस प्रकार तरस रहे थे ल्जस प्रकार कोई तनवाामसत व्यल्क्त अपने घर के मलए तरसता है ।
हिें नीड़ िें ले जाने के मलये िुमशाद ने बसन्त की एक ऐसी रात िन
ु ी ल्जसके नेत्र कोिल और
उज्जवल थे, उसकी सााँस उष्ण और सुगल्न्ित थी, ल्जसका ह्रदय सजीव और सजग था ।
वे आठ सपाट पत्थर, जो हिारे बैठने के काि आते थे, अभी तक वैसे ही अिा-िक्र के आकार िें
रखे थे जैसे हि उन्हें उस ददन छोड़ गए थे जब िुमशाद को बेसार ले जाया गया था ।
स्पष्ट था कक उस ददन से कोई
भी नीड़ िें नहीीं गया था । एक मशला से दस
ू री मशला पर चगर रहे पहाड़ी िरनों ने राबत्र को अपने
तुिुल सींगीत से भर ददया था ।बीि-बीि िें ककसी उकलू की घू-घू या ककसी िीींगुर के गीत के खल्ण्डत
स्वर सुनाई दे ते थे
िीरदाद;- इस रात की शाींतत िें िीरदाद िाहता है कक तुि राबत्र के गीत सन
ु ो ।
राबत्र के गायक-वन्ृ द को सन
ु ो । क्योंकक सििुि ही राबत्र एक अनुपि गातयका है । अतीत की सबसे
अाँिेरी दरारों िें से, भववष्य के उज्जवल दग
ु ों िें से, आकाश के मशखरों तथा िरती की गहराईयों िें
से तनकल रहे है राबत्र के स्वर, और तेजी से पहुाँि रहे हैं ववश्व के दरू ति कोनों तक ।
ववशाल तरीं गों के रूप िें ये तम्
ु हारे कानों के िारों ओर लहरा रहे हैं । अपने कानों को अन्य सब स्वरों
से िुक्त कर दो ताकक इन्हे सुन सको । उतावली- भरा ददन ल्जसे आसानी से मिटा दे ता है, उतावली
से िुक्त राबत्र उसे अपने क्षण भर के जाद ू से पन
ु िः बना दे ती है क्या िााँद और तारे ददन की रौशनी िें
तछप नहीीं जाते ?
ददन ल्जसे ककपना और असत्य के मिश्रण िें डुबा दे ता है, राबत्र उसे नपे-तल
ु े उकलास के साथ दरू -दरू
तक गाती है । जड़ी-बदू टयों के सपने भी राबत्र के गायक-वन्ृ द िें शामिल होकर उनके गीत िें योग दे ते
हैं सुनो आकाशवपण्डों को :गगन िें वे िूलते सन
ु ाते हैं
लोिरयााँदलदली बालू के पालने िें सो रहे भीिकाय मशशु को,िीथड़े कींगाल के पहने हुए राजा
को,बेड़ड़यों-जींजीरों िें जकड़ी हुई दामिनी को–पोतड़ों िें मलपटे स्वयीं परिात्िा को सुनो तुि िरती
को,एक ही सिय पर जो प्रसव िें कराहती है, दि
ू भी वपलाती है,पालती है,
ब्याहती है, कब्र िें सुलाती है । सन
ु ो वन पशुओीं को : घि
ू ते हैं जींगलों िें टोह िें मशकार की, िीखते,
गरु ााते हैं, िीरते, चिर जाते हैं ;
सुनो अपनी राहों पर रें गते जींतओ
ु ीं को,रहस्यिय गीत अपने गन
ु गुनाते कीड़ों को;ककस्से िारागाहों के,
गीत जल- प्रवाहों के , सुनो अपने सपनों िें दोहराते ववहीं गों को; वक्ष
ृ ों को, िाड़ड़यों को, हर एक
जीव को ित्ृ यु के प्याले िें गट-गट पीते जीवन को । मशखर से और वादी से, िरुस्थल और सागर
से,
तण
ृ ावत भमू ि के नीिे से और वायु से आ रही हैं िन
ु ौती सिय िें तछपे प्रभु को । सन
ु ो सभी िाताओीं
को, कैसे वे रोती हैं, कैसे बबलखती हैं और सभी वपताओीं को, कैसे वे कराहते हैं कैसे आहें भरते हैं ।
सुनो उनके बेटों को और उनकी बेदटयों को बन्दक
ू लेने भागते, बन्दक
ू से डर भागते,प्रभु को
िटकारते,और भाग्य को चिक्कारते ।स्वााँग रिते प्यार का और घण
ृ ा िुसिुसाते हैं,पीते हैं जोश, और
डर से पसीने छूट जाते हैं, बोते हैं िस्
ु काने और काटते आाँसू हैं,अपने लाल खन
ू से उिड़ रही बाढ़ के
प्रकोप को पैनाते हैं ।
सुनो उनके क्षुिा-ग्रस्त पेटों को वपिकते,सूजी हुई उनकी पलकों को िपकते, कुम्हलाई अाँगमु लयों को
उनकी आशा की लाश को ढूींढते, और उनके हृदयों को िूलत–िूलते ढे रों िें िूटते । सुनो क्रूर िशीनों
को तुि गड़गड़ाते हुए,दपा-भरे नगरों को खण्डहर बन जाते हुए,शल्क्तशाली दग ु ों को अपने ही अवसान
की घल्ण्टयााँ बजाते हुए,पुरातन कीतता-स्तम्भों को पींककल रक्त-ताल िें चगर छीटे उड़ाते हुए ।
सन
ु ो न्यायी लोगों की ति
ु प्राथानाओीं को लोभ की िीखों के साथ सरु मिलाते हुए, बच्िों की भोली-
भाली तोतली बातों को दष्ु टों की बकबक के साथ तक ु मिलाते हुए। और ककसी कन्या की लज्जारुण
िुस्कान को वेश्या की ििू त
ा ा के सींग िहिहाते हुए, और एक वीर के हषोन्िाद को ककसी िायावी के
वविार गनु गुनाते हुए ।
हर जनजाती और हर एक गोत्र के हर खेिे,हर कुदटया िें राबत्र सन
ु ाती है ऊाँिे स्वर िें तम्
ु ही पर
यद्
ु ि-गीत िनष्ु य के । पर जादग
ू रनी राबत्र लोिरयााँ, िन
ु ोततयााँ, यद्
ु ि-गीत, सब कुछ ढाल दे ती एक
ही ििुरि सींगीत िें ।
गीत इतना सक्ष्
ू ि जो कान सुन पाये न —गीत इतना भव्य, और अनन्त िैलाव िें,स्वर िें गहराई
और टे क िें मिठास इतनी,तल
ु ना िें ििरश्तों के तराने और वन्ृ द गान लगते िात्र कोलाहल और
बड़बड़ाहट हैं आत्ि-ववजेता का यही ववजय-गान है ।
पवात जो राबत्र की गोद िें हैं ऊाँघते,यादों िें डूबे िरू मलये टीले रे त के,भ्रिणशील तारे , सागर नदी िें
जो घूिते, तनवासी-प्रेत-पिु रयों के,पावन-त्रयी और हरी इच्छा ,करते आत्ि-ववजेता का स्वागत है,
जय घोष है । भाग्य वान हैं वे जो सन
ु ते हैं और बूिते ।
भाग्य वान हैं लोग ल्जनको राबत्र सींग अकेले िें होती अनुभूतत है राबत्र जैसी शाल्न्त की,गहराई की,
ववस्तार की ;लोग वे, अाँिेरे िें िेहरों पर ल्जनके अाँिेरे िें ककये गयेअपने कुकिों की पड़ती नहीीं िार
है ;
लोग वे, आाँसू ल्जनकी ररकते नहीीं पलकों िें साचथयों की आाँखों से जो उन्होंने बहाये थे ;हाथों िें न
ल्जनके लोभ से, द्वेष से, होती कभी खाज है ;कानो को न ल्जनके अपनी तष्ृ णाओीं की घेरती
िूत्कार है ;वववेक को न ल्जनके डींक कभी िारते उनके वविार हैं भाग्य वान हैं,
ह्रदय ल्जनके सिय के हर कोने से तघरकर आती हुई ववववि चिन्ताओीं के बैठने के छिे नहीीं ;बद् ु चि
िें ल्जनकी भय सुरींग खोद लेते नहीीं ;साहस के साथ जो कह सकते हैं राबत्र से, ”ददखा दो हिें ददन
को ”कह सकते हैं ददन को, ”ददखा दो हिें राबत्र को ”।
हााँ, बहुत भाग्यवान हैं ल्जनको राबत्र सींग अकेले िें होती अनभ
ु ूतत है राबत्र जैसी सिस्वरता, नीरवता,
अनन्तता की । उनके मलए ही केवल गाती है राबत्र यह गीत आत्ि-ववजेता का ।यदद तुि ददन के िूींठे
लाींछनों का सािना मसर ऊींिा रखकर ववश्वास से ििकती आाँखों से करना िाहते हो, तो शीघ्र ही राबत्र
की मित्रता प्राप्त करो ।
राबत्र के साथ िैत्री करो । अपने ह्रदय को अपने ही जीवन रक्त से अच्छी तरह िोकर उसे राबत्र के
ह्रदय िें रख दो । अपनी आवरण हीीं कािनाएाँ राबत्र के वक्ष को सौंप दो, और ददव्य ज्ञान के द्वारा
स्वतन्त्र होने की िहत्त्वाकााँक्षा के अततिरक्त अन्य सभी िहत्त्वाकाींक्षाओीं की उसके िरणों िें बमल दे दो
।
तब ददन का कोई भी तीर तम्
ु हे वेि नहीीं सकेगा, और तब राबत्र तम्
ु हारी ओर से लोगों के सािने
गवाही दे गी कक ति
ु सििि
ु आत्ि- ववजेता हो ।बेिन
ै ददन भले ही पटकें तम्
ु हे इिर- उिरतारक-हीन
रातें िाहे अाँिेरे िें अपने लपेट लें तुिको,िेंक ददया जाये तम्
ु हे ववश्व के िौराहों पर,चिन्ह पदचिन्ह न
हों राह तम्
ु हें ददखाने को किर भी न डरोगे तुि ककसी भी िनुष्य से और न ककसी ल्स्थतत से,न ही
होगा शक तम्
ु हे लेशिात्र इसका कक ददन और रातें,
िनुष्य और िीजें भी जकदी ही या दे र से आयेंगे तम्
ु हारे पास, और ववनयपव
ू क
ा प्राथाना वे करें गे आदे श
उन्हें दे ने का । ववश्वास क्योंकक राबत्र का प्राप्त होगा ति
ु को । और ववश्वास राबत्र का प्राप्त जो कर
लेता है सहज ही आदे श वह अगले ददन को दे ता है ।
राबत्र के ह्रदय को ध्यान से सुनो, क्योंकक उसी के अींदर आत्ि-ववजेता का ह्रदय िड़कताहै । यदद िेरे
पास आींसू होते तो आज रात िैं उन्हें भेंट कर दे ता हर दटिदटिाते मसतारे और रज-कण को; हर कल-
कल करते नाले और गीत गाते दटड्डे को; वायु िें अपनी सुगल्न्ित आत्िा को बबखेरते हर नील-पुष्प
को ;
हर सरसराते सिीर को; हर पवात और वादी को; हर पेड़ और घाींस की हर कोंपल को — इस राबत्र
की सम्पूणा अस्थाई शाल्न्त और सुींदरता को । िैं अपने आींसू िनष्ु य की कृतध्नता तथा बबार अज्ञान
के मलये क्षिायािना के रूप िें इनके सािने उाँ ड़ेल दे ता ।
क्योंकक िनष्ु य, घखृ णत पैसे के गुलाि, अपने स्वािी की सेवा िें व्यस्त है, इतने व्यस्त की स्वािी
की आवाज और इच्छा के अततिरक्त और ककसी आवाज और इच्छा की ओर ध्यान नहीीं दे सकते ।और
भयींकर है िनुष्य के स्वािी का कारोबार — िनुष्य के सींसार को एक ऐसे कसाईखाने िें बदल दे ना
जहााँ वे ही गला काटनेवाले हैं और वे ही गला कटवाने वाले ।
और इसमलए, लहू के नशे िें िरू िनष्ु य िनष्ु यों को इस ववश्वास िें िारते िले जाते हैं कक ल्जन
िनुष्यों का कोई खन
ू करता है , िरती के सब प्रसादों और आकाश की सिस्त उदारता िें उन िनष्ु यों
का सभी दहस्सा उसे ववरासत िें मिल जाता है ।
अभागे िूखा ! क्या कभी कोई भेड़ड़या ककसी दस
ू रे भेड़ड़ये का पेट िीर कर िेिना बना है ? क्या कभी
कोई सााँप अपने साथी सााँपों कुिल और तनगल कर कपोत बना है ? क्या कभी ककसी िनुष्य ने अन्य
िनष्ु यों की ह्त्या करके उनके दख
ु ों को छोड़ उनकी खमु शयााँ ववरासत िें पाईं हैं ? क्या कोई कान दस
ू रे
कान िें डाट लगाकर जीवन की स्वर-तरीं गों का अचिक आनन्द ले सकता है ?
या कभी कोई आाँख अन्य आाँखों को नोिकर सद ींु रता के ववववि रूपों के प्रतत अचिक सजग हुई है
?क्या ऐसा कोई िनुष्य या िनुष्य का सिद
ु ाय है जो केवल एक घण्टे के वरदानों का भी पूरी तरह
उपयोग कर सके, वरदान िाहे खाने पीने के पदाथों के हों,
िाहे प्रकाश और शाल्न्त के ? िरती ल्जतने जीवों को पाल सकती है उससे अचिक जीवों को जन्ि
नहीीं दे ती । आकाश अपने बच्िों के पालन के मलये न भीख िाींगता है, न िोरी करता है ।वे िूठ
बोलते हैं जो िनष्ु य से कहते हैं, ”यदद ति
ु तप्ृ त होना िाहते हो तो िारो और ल्जन्हे िारो उनकी
ववरासत प्राप्त करो ।”
जो िनुष्य का प्यार, िरती का दि
ू और िि,
ु तथा आकाश का गहरा स्नेह पाकर नहीीं िला-िूला,
वह िनुष्य के आींस,
ू रक्त और पीड़ा के आिार पर कैसे िले-िूलेगा ? वे िूठ बोलते हैं जो िनुष्य से
कहते हैं, ”हर राष्र अपने मलये है ।”कनख़जूरा कभी एक इींि भी आगे कैसे बढ़ सकता है यदद उसका
हर पैर दस
ू रे पैरों के ववरुद्ि ददशा िें िले, या उसके पैरों के आगे बढ़ने िें रुकावट डाले, या दस
ू रे
पैरों के ववनाश के मलए षड्यन्त्र रिे ?
िनुष्य भी क्या एक दै त्याकार कनखजूरा नहीीं है, राष्र ल्जसके अनेक पैर हैं ?वे िूठ बोलते हैं जो
िनुष्य से कहते हैं, ” शासन करना सम्िान की बात है, शामसत होना लज्जा की ।” क्या गिे को
हाींकने वाला उसकी दि
ु के पीछे -पीछे नहीीं िलता ? क्या जेलर कैदी से बाँिा नहीीं होता । वास्तव िें
गिा अपने हााँकने वाले को हााँकता है ;
कैदी अपने जेलर को जेल िें बींद रखता है । वे िूठ बोलते हैं जो िनुष्य से कहते हैं, ”दौड़ उसी की
जो तेज दौड़े, सच्िा वही जो सिथा हो ।”क्योंकक जीवन िाींसपेमशयों और बाहुबल की दौड़ नहीीं है ।
लूले- लाँ गड़े भी बहुिा स्वस्थ लोगों से बहुत पहले िींल्जल पर पहुाँि जाते हैं ।
और कभी-कभी तो एक तुच्छ िच्छर भी कुशल योद्िा को पछाड़ दे ता है । वे िूठ बोलते हैं जो
िनष्ु य से कहते हैं कक अन्याय का उपिार केवल अन्याय से ही ककया जा सकताहै । अन्याय के बदले
िें थोपा गया अन्याय कभी न्याय नहीीं बन सकता । अन्याय को अकेला छोड़ दो, वह स्वयीं ही अपने
आपको मिटा दे गा ।
परन्तु भोले लोग अपने स्वािी पैसे के मसद्िाींतों को आसानी से सि िान लेते हैं । पैसे और जिाखोरों
िें वे भल्क्तपूणा ववश्वास रखते हैं और उनकी हर िनिानी सनक के आगे मसर िक
ु ाते हैं ।राबत्र का न
वे ववश्वास करते हैं न परवाह । जबकक राबत्र िुल्क्त के गीत गाती है, और िल्ु क्त तथा प्रभु-प्राल्प्त की
प्रेरणा दे ती है ।
तम्
ु हे तो िेरे साचथयो, वे या तो पागल करार दें गे या पाखण्डी ।िनुष्य की कृतध्नता और तीखे
उपहास का बरु ा ित िानना ; बल्कक प्रेि और असीि िैया के साथ स्वयीं उनसे तथा आग और खन
ू
की बाढ़ से, जो शीघ्र ही उनपे टूट पड़ेगी, उनके बिाव के मलये उद्यि करना । सिय अ गया है कक
िनुष्य िनुष्य की हत्या करना बींद कर दें । सय ा िन्द्र, और तारे अनाददकाल से प्रतीक्षा कर रहे हैं
ू ,
कक उन्हें दे खा, सुना और सििा जाये;
िरती की मलवप प्रतीक्षा कर रही है कक उसे पढ़ा जाये; आकाश के राजपथ, कक उन पर यात्रा कक
जाये, सिय का उलिा हुआ िागा, कक उसिे पड़ी गाींठों को खोला जाये, ब्रह्िाण्ड की सग ु ींि, कक
उसे सूाँघा जाये; पीड़ा के कबब्रस्तान, कक उन्हें मिटा ददया जाये; िौत ककई गुिा, कक उसे ध्वस्त
ककया जाये; ज्ञान की रोटी, कक उसे िखा जाये; और िनष्ु य पदों िें तछपा परिात्िा, प्रतीक्षा कर
रहा है कक उसे अनावत
ृ ककया जाये ।
सिय आ गया है कक िनुष्य िनुष्यों को लट
ू ना बन्द कर दें और सवाादहत के काि को पूरा करने के
मलए एक हो जाएाँ ।
बहुत बड़ी है यह िन
ु ौती, पर ििुर होगी ववजय भी । तल
ु ना िें और सब तुच्छ तथा खोखला है ।
हााँ, सिय आ गया है । पर ऐसे बहुत कि हैं जो ध्यान दें गे ।
बाक़ी को एक और पक
ु ार की
प्रतीक्षा करनी होगी —–
एक और भोर की ।
अध्याय -34
आदिी एक लघु परिात्िा है
☞ ववराट कैसे होगा ☜
************************************
िााँ–अण्डाणु
****************************************
िीरदाद; िीरदाद िाहता है कक इस रात के सन्नाटे िें ति
ु एकाग्र चिि होकर िााँ–अण्डाणु के ववषय िें
वविार करो । स्थान और जो कुछ्ह उसके अींदर है एक अण्डाणु है ल्जसका खोल सिय है यही िााँ-
अण्डाणु है ।
जैसे िरती को वायु लपेटे हुए है, वैसे ही इस अण्डाणु को लपेटे हुए है ववकमसत परिात्िा, ववराट
परिात्िा—जीवन जो कक अित ा अनन्त और अकथ है ।
ू ,
इस अण्डाणु िें मलपटा हुआ है कींु डमलत परिात्िा लघ–ु परिात्िा–जीवन जो ित
ू ा है ककन्तु उसी तरह
अनन्त और अकथ ।
भले ही प्रिमलत िानवीय िानदण्ड के अनुसार िााँ–अण्डाणु अमित है, किरभी इसकी सीिाएाँ हैं ।
यद्यवप यह स्वयीं अनन्त नहीीं है, किर भी इसकी सीिाएाँ हर ओर अनन्त को छूती हैं |
ब्रह्िाण्ड िें जो भी पदाथा और जीव हैं, वे सब उसी लघु- परिात्िा को लपेटे हुए सिय-स्थान के
अण्डाणओ ु ीं से अचिक और कुछ नहीीं, परन्तु सबिें लघु-परिात्िा प्रसार की मभन्न-मभन्न अवस्थाओीं िें
है ।
पशु के अींदर के लघु- परिात्िा की अपेक्षा िनुष्य के अींदर के लघु-परिात्िा का और वनस्पतत के
अींदर के लघु-परिात्िा की अपेक्षा पशु के अींदर के लघु- परिात्िा का सिय-स्थान िें प्रसार अचिक है
।
और सल्ृ ष्ट िें नीिे-नीिे की श्रेणी िें क्रिानुसार ऐसा ही है । दृश्य तथा अदृश्य सब पदाथो और जीवों
का प्रतततनचित्व करते अनचगनत अण्डाणओ
ु ीं को िााँ-अण्डाणु के अींदर इस क्रि िें रखा गया है कक
प्रसार िें बड़े अण्डाणु के अींदर उसकेतनकटति छोटा अण्डाणु है , और यही क्रि सबसे छोटे अींडाणु तक
िलता है ।
अण्डाणओ
ु ीं के बीि िें जगह है और सबसे छोटा अण्डाणु केन्द्रीय नामभक है जो अत्यन्त अकप सिय
तथा स्थान के अींदर बन्द है । अण्डाणु के अींदर अण्डाण,
ु किर उस अण्डाणु के अींदर अण्डाण,
ु
िानवीय गणना से परे और सब प्रभु द्वारा अनप्र
ु िाखणत—यही ब्रह्िाण्ड है .
िेरे साचथयो । किर भी िैं िहसूस करता हूाँ कक िेरे शब्द कदठन हैं, वे तम्
ु हारी बद्
ु चि की पकड़ िें
नहीीं आ सकते । और यदद शब्द पूणा ज्ञान तक ले जाने वाली सीढ़ी के सरु क्षक्षत तथा ल्स्थर डण्डे बनाये
गए होते तो िि
ु े भी अपने शब्दों को सुरक्षक्षत तथा ल्स्थर डण्डे बनाने िें प्रसन्नता होती ।
इसमलये यदद तुि उन ऊींिाइयों, गहराइयों और िौड़ाइयों तक पहुाँिना िाहते हो ल्जन तक िीरदाद
तम्
ु हे पहुाँिाना िाहता है, तो बद्
ु चि से बड़ी ककसी शल्क्त के द्वारा शब्दों से बड़ी ककसी वस्तु का
सहारा लो ।
शब्द, अचिक से अचिक, बबजली की कौंि हैं जो क्षक्षततजों की िलक ददखती हैं; ये उन क्षक्षततजों
तक पहुाँिने का िागा नहीीं हैं ;
स्वयीं क्षक्षततज तो बबलकुल नहीीं । इसमलए जब िैं तम्
ु हारे सम्िुख िााँ–अण्डाणु और अण्डाणओ
ु ीं की,
तथा ववराट-परिात्िा और लघ-ु परिात्िा की बात करता हूाँ तो िेरे शब्दों को पकड़कर न बैठ जाओ,
बल्कक कौंि की ददशा िें िलो ।
तब तुि दे खोगे कक िेरे शब्द तम्
ु हारी किजोर बुद्चि के मलये बलशाली पींख हैं ।अपने िारों ओर की
प्रकृतत पर ध्यान दो ।क्या ति
ु उसे अण्डाणु के तनयि पर रिी गई नहीीं पाते हो ? हााँ, अण्डाणु िें
तम्
ु हे सम्पूणा सल्ृ ष्ट की कींु जी मिल जायेगी ।
तम्
ु हारा मसर, तम्
ु हारा ह्रदय,तम्
ु हारी आाँख अण्डाणु हैं । अण्डाणु है हर िूल और उसका हर बीज ।
अींडाणु है पानी की एक बद
ूाँ तथा प्रत्येक प्राणी का प्रत्येक वीयााणु ।
और आकाश िें अपने रहस्यिय िागों पर िल रहे अनचगनत नक्षत्र क्या अण्डाणु नहीीं हैं
ल्जनके अींदर प्रसार की मभन्न-मभन्न
अवस्थाओीं िें पहुाँिा हुआ जीवन का
सार—लघु–परिात्िा—तनदहत है ?
क्या जीवन तनरीं तर अण्डाणु िें से ही नहीीं तनकल रहा है और वापस अण्डाणु िें ही नहीीं जा रहा है ?
तनिःसींदेह िित्कारपूणा और तनरीं तर है सल्ृ ष्ट की प्रकक्रया ।
जीवन का प्रवाह िााँ अण्डाणु कक सतह से उसके केंद्र तक, तथा केंद्र से वापस सतह तकबीना रुके
जारी रहता है ।
केंद्र- ल्स्थत लघु- परिात्िा जैसे-जैसे सिय तथा स्थान िें िैलता जाता है, जीवन के तनम्नति वगा
से जीवन के उच्िति वगा तक एक अण्डाणु से दस
ू रे अण्डाणु िें प्रवेश करता िला जाता है ।
सबसे नीिे का वगा सिय तथा स्थान िें सबसे कि िैला हुआ है और सबसे ऊाँिा बगा सबसे अचिक ।
एक अण्डाणु से दस
ू रे अण्डाणु िें जाने िें लगने वाला सिय मभन्न-मभन्न होता है–कुछ ल्स्थततयों पलक
की एक िपक होता है तो कुछ िें पूरा युग ।
और इस प्रकार िलती रहती है सल्ृ ष्ट की प्रकक्रया जब तक िााँ–अण्डाणु का खोल टूट नहीीं जाता और
लघ-ु परिात्िा ववराट-परिात्िा होकर बाहर नहीीं तनकल आता ।इस प्रकार जीवन एक प्रसार, एक
वद्
ृ चि और एक प्रगतत है, लेककन उस अथा िें नहीीं ल्जस अथा िें लोग वद्
ृ चि और पगतत का उकलेख
प्रायिः करते हैं; क्योंकक उनके मलए वद्
ृ चि है आकार िें बढ़ना, और प्रगतत आगे बढ़ना ।
जबकक वास्तव िें वद्
ृ चि का तात्पया है सिय और स्थान िें सब तरि िैलना ; और प्रगतत का
तात्पया है सब ददशाओीं िें सिान गतत ; पीछे भी और आगे भी, और नीिे तथा दायें-बायें और ऊपर
भी ।
अतएव िरि वद्
ृ चि है स्थान से परे ़िैल जाना और िरि प्रगतत है सिय की सीिाओीं से आगे तनकल
जाना, और इस प्रकार ववराट-परिात्िा िें लीन हो जाना और सिय तथा स्थान के बन्िनों िें से
तनकलकर परिात्िा की स्वतन्त्रता तक जा पहुाँिना जो स्वतन्त्रता कहलाने योग्य एकिात्र अवस्था है ।
और यही है वह तनयतत जो िनष्ु य के मलये तनिाािरत है ।इन शब्दों पर ध्यान दो, सािओ
ु । यदद
तम्
ु हारा रक्त तक इन्हे प्रसन्नता पव
ू क
ा न कर ले, तो सम्भव है कक अपने आप और दस
ू रों को
स्वतन्त्र कराने के तम्
ु हारे प्रयत्न तम्
ु हारी और उनकी जींजीरों िें और अचिक बेड़ड़याीं जोड़ दें ।
िीरदाद िाहता है कक तुि इन शब्दों को सिि लो ताकक इन्हें सििने िें तुि सब तड़पने वालों की
सहायता कर सको ।
िीरदाद िाहता है कक ति
ु स्वतन्त्र हो जाओ ताकक उन सब लोगों को जो आत्ि-ववजयी और स्वतन्त्र
होने के मलए तड़प रहे हैं तुि स्वतन्त्रता तक पहुाँिा सको । इसमलए िीरदाद अण्डाणु के इस तनयि
को और अचिक स्पष्ट करना िाहे गा, खासकर जहााँ तक इसका सम्बन्ि िनष्ु य से है ।
िनुष्य से नीिे जीवों के सब वगा सािदू हक अण्डाणओ
ु ीं िें बन्द हैं । इस तरह पौिों के मलए उतने ही
अण्डाणु हैं ल्जतने पौिों के प्रकार हैं,
जो अचिक ववकमसत हैं उनके अींदर सभी कि ववकमसत बन्द हैं और यही ल्स्थतत कीड़ों, िछमलयों
और स्तनपायी जीवों की है; सदा ही जीवन के एक अचिक ववकमसत वगा के अन्दर उससे नीिे के
सभी वगा बन्द होते हैं ।
जैसे सािारण अण्डे के भीतर की जदी और सिेदी उसके अींदर के िूजों के भ्रूण का पोषण और ववकास
करती है, वैसे ही ककसी भी अण्डाणु िें बन्द सभी अण्डाणु उसके अन्दर के लघु-परिात्िा का पोषण
और ववकास करते हैं ।
प्रत्येक अण्डाणु िें सिय- स्थान का जो अींश लघु-परिात्िा को मिलता है, वह वपछले अण्डाणु िें
मिलने वाले अींश से थोड़ा मभन्न होता है ।
इसमलए सिय-स्थान िें लघ-ु परिात्िा के प्रसार िें अन्तर होता है । गैस िें वह बबखरा हुआ
आकारहीन होता है, पर तरल पदाथा िें अचिक घना हो जाता है और आकर िारण करने की ल्स्थतत
िें आ जाता है;
जबकक खतनज िें वह एक तनल्श्ित आकार और ल्स्थरता िारण कर लेता है । परन्तु इन सब
ल्स्थततयों िें वह जीवन के गण
ु ों से रदहत होता है जो उच्ितर श्रेखणयों िें प्रकट होते हैं। वनस्पतत िें
वह ऐसा रूप अपनाता है ल्जसिे बढ़ने, अपनी सींख्या-वद्
ृ चि करने और िहसस
ू करने की क्षिता होती
है ।
पशु िें वह िहसूस करता है, िलता है और सींतान पैदा करता है; उसिे स्िरण शल्क्त होती है और
सोि-वविार के िूल तत्व भी लेककन िनुष्य िें, इन सब गुणों के अततिरक्त, वह एक व्यल्क्तत्व और
सोि-वविार करने, अपने आपको अमभव्यक्त करने तथा सज
ृ न करने की क्षिता भी प्राप्त कर लेता है
।
तनिःसींदेह परिात्िा के सज
ृ न की तुलना िें िनुष्य का सज
ृ न ऐसा ही है जैसा ककसी िहान वास्तक
ु ार
द्वारा तनमिात एक भव्य िींददर या सन्
ु दर दग
ु ा की तल
ु ना िें एक बच्िे द्वारा बनाया गया ताींस के पिों
का घर। ककन्तु है तो वह किर भी सज
ृ न ही।प्रत्येक िनष्ु य एक अलग अण्डाणु बन जाता है,
और ववकमसत िनुष्य िें कि ववकमसत िानव-अण्डाणओ
ु ीं के साथ सब पश,
ु वनस्पतत तथा उनके
तनिले स्तर के अण्डाण,
ु केंद्रीय नामभक तक, बन्द होते हैं। जबकक सबसे अचिक ववकमसत िनुष्य
िें—आत्ि-ववजेता िें—सभी िानव अण्डाणु और उनसे तनिले स्तर के सभी अण्डाणु भी बन्द होते हैं।
ककसी िनष्ु य को अपने अींदर बींद रखने वाले अण्डाणु का ववस्तार उस िनष्ु य के सिय-स्थान के
क्षक्षततजों के ववस्तार से नापा जाता है। जहााँ एक िनुष्य की सिय िेतना और उसके शैशव से लेकर
विािान घडी तक की अकप अवचि से अचिक और कुछ नहीीं सिा सकता,
और उसके स्थान के क्षक्षततजों के घेरे िें उसकी दृष्टी की पहुाँि से परे का कोई पदाथा नहीीं आता, वहााँ
दस
ू रे व्यल्क्त के क्षक्षततज स्िरणातीत भत
ू और सद
ु रू भववष्य को, तथा स्थान की लम्बी दिू रयों को
ल्जन पर अभी उसकी दृष्टी नहीीं पड़ी है अपने घेरे िें ले आते हैं।
प्रसार के मलए सब िनुष्यों को सिान भोजन मिलता है, पर उनका खाने और पिाने का सािथ्या
सिान नहीीं होता ; क्योंकक वे एक ही अण्डाणु िें से एक ही सिय और एक ही स्थान पर नहीीं
तनकले हैं।
इसमलए सिय-स्थान िें उनके प्रसार िें अन्तर होता है; और इसी मलये कोई दो िनुष्य ऐसे नहीीं
मिलते जो हूबहू एक जैसे हों।सब लोगों के सािने प्रिरु िात्रा िें और खल
ु े हाथों परोसे गये भोजन िें
से एक व्यल्क्त स्वणा की शद्
ु िता और सद ींु रता को दे खने का आनींद लेता है और तप्ृ त हो जाता है,
जब कक दस
ू रा स्वणा का स्वािी होने का रस लेता है और सदा भूखा रहता है। एक मशकारी एक सुींदर
दहरनी को दे खकर उसे िारने और खाने के मलये प्रेिरत होता है; एक कवी उसी दहरनी को दे खकर
िानो पींखों पर उड़ान भरता हुआ उस सिय और स्थान िें जा पहुाँिता है ल्जसका मशकारी कभी सपना
भी नहीीं दे खता ।
एक आत्ि-ववजेता का जीवन हर व्यल्क्त के जीवन को हर ओर से छूता है, क्योंकक सब व्यल्क्तयों के
जीवन उसिे सिाये हुये हैं। परन्तु आत्ि-ववजेता के जीवन को ककसी भी व्यल्क्त का जीवन हर ओर
से नहीीं छूता। अत्यन्त सरल व्यल्क्त को आत्ि-ववजेता अत्यन्त सरल प्रतीत होता है। अत्यन्त
ववकमसत व्यल्क्त को वह अत्यन्त ववकमसत ददखाई दे ता है ।
ककन्तु आत्ि-ववजेता के सदा कुछ ऐसे पक्ष होते हैं ल्जन्हे आत्ि-ववजेता के मसवाय और कोई न कभी
सिि सकता है, न िहसूस कर सकता है । यही कारण है कक वह सबके बीि िें रहते हुए भी अकेला
है ; वह सींसार िें है किर भी सींसार का नहीीं है।
लघ-ु परिात्िा बन्दी नहीीं रहना िाहता। वह िनष्ु य की बद्
ु चि से कहीीं ऊाँिी बद्
ु चि का प्रयोग करते हुये
सिय तथा स्थान के कारावास से अपनी िल्ु क्त के मलये सदै व काया-रत रहता है। तनम्न स्तर के लोगों
िें इस बद्
ु चि को लोग सहज-बुद्चि कहते हैं।
सािारण िनुष्यों िें वे इसे तका और उच्ि कोदट के िनष्ु यों िें इसे ददव्य बद्
ु चि कहते हैं। यह सब तो
वह है ही, पर इससे अचिक भी बहुत कुछ है । यह वह अनाि शल्क्त है ल्जसे कुछ लोगों ने ठीक ही
पववत्र शल्क्त का नाि ददया है , और ल्जसे िीरदाद ददव्य ज्ञान कहता है।
सिय के खोल को बेिने वाला और स्थान की सीिा को लााँघने वाला प्रथि िानव- पुत्र ठीक ही प्रभु
का पत्र
ु कहलाता है । उसका अपने ईश्वरत्व का ज्ञान ठीक ही पववत्र शल्क्त कहलाता है।
ककन्तु ववश्वास रखो तुि भी प्रभु के पुत्र हो, और तम्
ु हारे अन्दर भी वह पववत्र शल्क्त अपना काया कर
रही है । उसके साथ काया करो उसके ववरुद्ि नहीीं।परन्तु जब तक तुि सिय के खोल को बेि नहीीं दे ते
और स्थान की सीिा को लााँघ नहीीं जाते, तब तक कोई यह न कहे , ”िैं प्रभु हूाँ”।
बल्कक यह कहो ” प्रभु ही िैं हैं।” इस बात को अच्छी तरह ध्यान िें रखो, कहीीं ऐसा न हो कक
अहीं कार तथा खोखली ककपनाएाँ तम्
ु हारे ह्रदय को भ्रष्ट कर दें और तम्
ु हारे अन्दर हो रहे पववत्र शल्क्त
के काया का ववरोि करें । क्योंकक अचिकााँश लोग पववत्र शल्क्त के ववरुद्ि काया करते हैं, और इस
प्रकार अपनी अींतति िल्ु क्त को स्थचगतकअऋ दे ते हैं।
सिय को जीतने के मलए यह आवश्यक है कक तुि सिय द्वारा ही सिय के ववरुद्ि लड़ो। स्थान को
पराल्जत करने के मलए यह आवश्यक है कक तुि स्थान को ही स्थान का आहार बनने दो।
दोनों िें से एक का भी स्नेहपण
ू ा स्वागत करना दोनों का बन्द होना तथा नेकी और बदी की अन्तहीन
हास्य-जनक िेष्टाओीं का बन्िक बने रहना है ।
ल्जन लोगों ने अपनी तनयतत को पहिान मलया है और उस तक पहुाँिने के मलए तड़पते हैं, वे सिय
के साथ लाड़ करने िें सिय नहीीं गाँवाते और न ही स्थान िें भटकने िें अपने कदि नष्ट करते हैं।
सम्भव है कक वे एक ही जीवन- काल िें युगों को सिेट लें तथा अपार दिू रयों को मिटा दें । वे इस
बात की प्रतीक्षा नहीीं करते कक ित्ृ यु उन्हें उनके इस अण्डाणु से अगले अण्डाणु िें ले जाये;
वे जीवन पर ववश्वास रखते हैं कक बहुत से अण्डाणओ ु ीं के खोलों को एक साथ तोड़ डालने िें वह उनकी
सहायता करे गा। इसके मलए तम्ु हे हर वस्तु के िोह का त्याग करना होगा,
ताकक सिय तथा स्थान की तम्
ु हारे ह्रदय पर कोई पकड़ न रहे । ल्जतना अचिक तम्
ु हारा पिरग्रह होगा,
उतने ही अचिक होंगे तुम्हारे बन्िन।
ल्जतना कि तम्
ु हारा पिरग्रह होगा, उतने ही कि होंगे तम्
ु हारे बन्िन।
हााँ, अपने ववश्वास, अपने प्रेि
तथा ददव्य ज्ञान के द्वारा
िुल्क्त के मलये अपनी तड़प के
अततिरक्त हर वस्तु की
लालसा को त्याग दो।
अध्याय-35
परिात्िा की राह पर
हर िागा प्रकाश से भर ददया जाएगा
*************************************
परिात्िा की राह पर प्रकाश-कण
*************************************
िीरदाद; इस रात के सन्नाटे िें िीरदाद परिात्िा परिात्िा की ओर जानेवाली राह पर कुछ प्रकाश-
कण ववखेरना िाहता है ।
वववाद से बिो सत्य स्वयीं प्रिाखणत है; उसे ककसी प्रिाण की आवश्यकता नहीीं है । ल्जसे तका और
प्रिाण कक आवश्यकता होती है ,
उसे दे र-सवेर तका और प्रिाण के द्वारा ही चगरा ददया जाता है। ककसी बात को मसद्ि करना उसके
प्रततपक्ष को खींड़डत करना है। उसके प्रततपक्ष को मसद्ि करना उसका खींडन करना है। परिात्िा का
कोई प्रततपक्ष है ही नहीीं किर तुि कैसे उसे मसद्ि करोगे या कैसे उसका खींडन करोगे ?
यदद ल्जव्हा को सत्य का वाहक बनाना िाहते हो तो उसे कभी िूसल, ववषदीं त, वातसूिक ,कलाबाज
या सिाई करनेवाला नहीीं बनाना िादहए। बेजबानों को राहत दे ने के मलये बोलो। अपने आप को राहत
दे ने के मलये िौन रहो। शब्द जहाज हैं जो स्थान के सिद्र
ु ों िें िलते हैं।
और अनेक बींदरगाहों पर रुकते हैं। साविान रहो कक तुि उनिे क्या लादते हो; क्योंकक अपनी यात्रा
सिाप्त करने के बाद वे अपना िाल आखखर तह ु ारे द्वार पर ही उतारें गे। घर के मलए जो िहत्वज िाड़ू
का है, वही िहत्व ह्रदय के मलए आत्ि-तनरीक्षण का है ।
अपने ह्रदय को अच्छी तरह बुहारो। अच्छी तरह बुहारा गया ह्रदय एक अजेय गुगा है।जैसे तुि लोगों
और पदाथों को अपना आहार बनाते हो, वैसे ही वे तम्
ु हे अपना आहार बनाते हैं। यदद तुि िाहते हो
कक तम्
ु हे ववष न मिले, तो दस
ू रों के मलए स्वास्थ्य-प्रद भोजन बनो। जब तम्
ु हे अगले कदि के ववषय
िें सींदेह हो, तनश्छल खड़े रहो।
ल्जसे तुि नापसींद करते हो वह तम्
ु हे नापसींद करता है, उसे पसींद करो और ज्यों का त्यों रहने दो।
इस प्रकार तुि अपने रास्ते से एक बािा हटा दोगे। सबसे अचिक असह्य परे शानी है ककसी बात को
परे शानी सििना। अपनी पसींद का िन
ु ाव कर लो; हर वस्तु स्वािी बनना है या ककसी का भी नहीीं।
बीि का कोई िागा सम्भव नहीीं। रास्ते का हर रोड़ा एक िेतावनी है।
िेतावनी को अच्छी तरह पढ़ लो, और रास्ते का रोड़ा प्रकाश स्तम्भ बन जायेगा। सीिा टे ढ़े का भाई
है । एक छोटा रास्ता है दस
ू रा घुिावदार। टे ढ़े के प्रतत िैया रखो। ववश्वास-युक्त िैया स्वास्थ्य है ।
ववश्वास-रदहत िैया अिाांग है।होना, िहसूस करना, सोिना, ककपना करना, जानना –यह हैं िनुष्य
के जीवन-िक्र के िुख्य पड़ावों का क्रि। प्रशींसा करने और पाने से बिो;
जब प्रशींसा सवाथा तनश्छल और उचित हो तब भी। जहााँ तक िापलूसी का सम्बन्ि है , उसकी
कपटपूणा कसिों के प्रतत गाँूगे और बहरे बन जाओ । दे ने का एहसास रखते हुए कुछ भी दे ना उिार
लेना ही है । वास्तव िें ति
ु ऐसा कुछ भी नहीीं दे जो तम्
ु हारा है ।
तुि लोगों को केवल वाही दे ते हो जो तम्
ु हारे पास उनकी अिानत है । जो तम्
ु हारा है, मसिा तम्
ु हारा
ही, वह तुि दे नहीीं सकते िाहो तो भी नहीीं। अपना सींतुलन बनाये रखो, और तुि िनुष्यों के मलए
अपने आपको नापने का िापदण्ड और तौलने की तराजू बन जाओ।
गरीबी और अिीरी नाि की कोई िीज नहीीं है, बात वस्तुओीं का उपयोग करने के कौशल की है असल
िें गरीब वह है जो उन वस्तओ
ु ीं का जो उसके पास हैं गलत उपयोग करता है। अिीर वह है जो अपनी
वस्तुओीं का सही उपयोग करता है।
बासी रोटी की सूखी पपड़ी भी ऐसी दौलत हो सकती है ल्जसे आींका न जा सके। सोने से भरा तहखाना
भी ऐसी गरीबी हो सकता है ल्जससे छुटकारा न मिल सके। जहााँ बहुत से रास्ते एक केंद्र िें मिलते हों
वहााँ इस अतनश्िय िें ित पड़ो कक ककस रस्ते से िला जाये।
प्रभु की खोज िें लगे ह्रदय को सभी रास्ते प्रभु की ओर लेजा रहे हैं। जीवन के सब रूपों के प्रतत
आदर-भाव रखो। सबसे तुच्छ रूप िें सबसे अचिक िहत्त्वपूणरू
ा प की कींु जी छुपी तछपी रहती है।
जीवन की सब कृततयााँ िहत्वपण
ू ा हैं —हााँ, अद्भत
ु ,श्रेष्ठ और अद्ववतीय। जीवन अपने आपको
तनरथाक, तुच्छ कािों िें नहीीं लगाता।
प्रकृतत के कारखाने िें कोई वस्तु तभी बनती है जब वह प्रकृतत की प्रेिपूणा दे खभाल और श्रिपूणा
कौशल की अचिकारी हो। तो क्या वह कि से कि तम्
ु हारे आदर कक अचिकारी नहीीं होनी िादहए ?
यदद िच्छर और िीींदटयााँ आदर के योग्य हों, तो तम्
ु हारे साथी िनुष्य उनसे ककतने अचिक आदर के
योग्य होने िादहयें ? ककसी िनष्ु य से घण
ृ ा न करो। एक भी िनष्ु य से घण
ृ ा करने की अपेक्षा प्रत्येक
िनुष्य से घण
ृ ा पाना कहीीं अच्छा है।
क्योंकक ककसी िनुष्य से घण
ृ ा करना उसके अींदर के लघु-परिात्िा से घण
ृ ा करना है । ककसी भी िनुष्य
के अींदर लघु-परिात्िा से घण
ृ ा करना अपने अींदर के लघु-परिात्िा से घण
ृ ा करना है ।
वह व्यल्क्त भला अपने बींदरगाह तक कैसे पहुाँिेगा जो बींदरगाह तक ले जाने वाले अपने एकिात्र
िकलाह का अनादर करता हो ?नीिे क्या है, यह जानने के मलये ऊपर दृष्टी डालो। ऊपर क्या है,
यह जानने के मलये नीिे दृष्टी डालो। ल्जतना ऊपर िढ़ते हो उतना ही नीिे उतरो; नहीीं तो तुि
अपना सींतुलन खो बैठोगे।
आज तुि मशष्य हो। कल ति
ु मशक्षक बन जाओगे। अच्छे मशक्षक बनने के मलये अच्छे मशष्य बने
रहना आवश्यक है। सींसार िें से बदी के घाींस-पात को उखाड़ िेंकने का यत्न न करो; क्योंकक घास-
पात की भी अच्छी खाद बनती है।
उत्साह का अनचु ित प्रयोग बहुिा उत्साही को ही िार डालता है। केवल ऊाँिे और शानदार वक्ष
ृ ों से ही
जींगल नहीीं बन जाता; िाड़ड़याीं और मलपटती लताओीं की भी आवश्यकता होती है ।
पाखण्ड पर पदाा डाला जा सकता है,लेककन कुछ सिय के मलए ही;उसे सदा ही परदे िें नहीीं रखा जा
सकता, न ही उसे हटाया या नष्ट ककया जा सकता है। दवू षत वासनाएाँ अींिकार िें जन्ि लेती हैं और
वहीीँ िलती-िूलती हैं। यदद ति
ु उन्हें तनयींत्रण िें रखना िाहते हो तो उन्हें प्रकाश िें आने की
स्वतन्त्रता दो।
यदद तुि हजार पाखल्ण्डयों िें से एक को भी सहज ईिानदारी की राह पर वापस लाने िें सिल हो हो
जाते हो तो सििुि िहान है तम्
ु हारी सिलता। िशाल को ऊाँिे स्थान पर रखो, और उसे दे खने के
मलये लोगों को बल
ु ाते न किरो ल्जन्हे प्रकाश कक आवश्यकता है उन्हें ककसी तनिींत्रण की आवश्यकता
नहीीं होती।
बुद्चिििा अिूरी बद्
ु चि वाले के मलये बोि है, जैसे िूखत
ा ा िुखा के मलये बोि है। बोि उठाने िें
अिूरी बद्
ु चि वाले कक सहायता करो और िूखा को अकेला छोड़ दो; अिूरी बद्
ु चि वाला िुखा को तुिसे
अचिक मसखा सकता है।
कई बार तम्
ु हे अपना िागा दग
ु ि
ा ,अींिकारपण
ू ा और एकाकी लगेगा। अपना इरादा पक्का रखो और
दहम्ित के साथ कदि बढ़ाते जाओ; और हर िोड़ पर तम्
ु हे एक नया साथी मिल जायेगा। पथ-ववहीन
स्थान िें ऐसा कोई पथ नहीीं ल्जस पर अभी तक कोई न िला हो।
ल्जस पथ पर पद-चिन्ह बहुत कि और दरू -दरू हैं, वह सीिा और सुरक्षक्षत है, िाहे कहीीं-कहीीं उबड़-
खाबड़ और सुनसान है । जो िागादशान िाहते हैं उन्हें िागा ददखा सकते है, उस पर िलने के मलए
वववश नहीीं कर सकते। याद रखो ति
ु िागादशाक हो। अच्छा िागादशाक बनने के मलये आवश्यक है कक
स्वयीं अच्छा िागादशान पाया हो। अपने िागादशाक पर ववश्वास रखो।
कई लोग तिु से कहें गे, ”हिें रास्ता ददखाओ।” ककन्तु थोड़े ही बहुत ही थोड़े कहें गे, ”हि ति
ु से
ववनती करते हैं कक रास्ते िें हिारी रहनुिाई करो”।आत्ि-ववजय के िागा िें वे थोड़े- से लोग उन कई
लोगों से अचिक िहत्त्व रखते हैं। तुि जहााँ िल न सको रें गो।
जहााँ दौड़ न सको, िलो; जहााँ उड़ न सको, दौड़ो; जहााँ सिूिे ववश्व को अपने अींदर रोक कर खड़ा
न कर सको,उड़ो। जो व्यल्क्त तम्
ु हारी अगुआई िें िलते हुए ठोकर खाता है उसे केवल एक बार, दो
बार या सौ बार ही नहीीं उठाओ।
याद रखो कक तुि भी कभी बच्िे थे, और उसे तब तक उठाते रहो जब तक वह ठोकर खाना बन्द न
कर दे । अपने ह्रदय और िन को क्षिा से पववत्र कर लो ताकक जो भी सपने तम्
ु हे आयें वे पववत्र हों।
जीवन एक ज्वर है जो हर िनुष्य कक प्रवतृ त या िुन के अनस
ु ार मभन्न-मभन्न प्रकार का और मभन्न-
मभन्न िात्रा िें होता है; और इसिें िनष्ु य सदा प्रलाप की अवस्था िें रहता है।
भाग्यशाली हैं वे िनष्ु य जो ददव्य ज्ञान से प्राप्त होने वाली पववत्र स्वतींत्रता के नशे िें उन्िि रहते हैं।
िनुष्य के ज्वर का रूप-पिरवतान ककया जा सकता है; यद्
ु ि के ज्वर को शाल्न्त के ज्वर िें बदला जा
सकता है
और िन-सींिय के ज्वर को प्रेि का सींिय करने के ज्वर िें। ऐसी है ददव्य ज्ञान की वह रसायन-
ववद्या ल्जसे तम्
ु हे उपयोग िें लाना है और ल्जसकी तम्
ु हे मशक्षा दे नी है। जो िर रहे हैं उन्हें जीवन का
उपदे श दो,
जो जी रहे हैं उन्हें ित्ृ यु का। ककन्तु जो आत्ि ववजय के मलए तड़प रहे हैं, उन्हें दोनों से िुल्क्त का
उपदे श दो।वश िें रखने और वश िें होने िें बड़ा अींतर है। तुि उसी को वश िें रखते हो ल्जससे तुि
प्यार करते हो।
ल्जससे तुि घण
ृ ा करते हो, उसके तुि वश िें होते हो। वश िें होने से बिो। सिय और स्थान के
ववस्तार िें एक से अचिक पल्ृ थ्वयााँ अपने पथ पर घि
ू रहीीं हैं। तम्
ु हारी पथ्
ृ वी इस पिरवार िें सबसे
छोटी है, और यह बड़ी हृष्ट-पुष्ट बामलका है। एक तनश्िल गतत—–कैसा ववरोिाभास है।
ककन्तु परिात्िा िें सींसारों की गतत ऐसी ही है।यदद तुि जानना िाहते हो कक छोटी-बड़ी वस्तए
ु ाँ बराबर
कैसे हो सकती हैं तो अपने हाथों की अाँगुमलयों पर दृष्टी डालो। सींयोग बद्
ु चििानों के हाथ िें एक
खखलौना है; िख
ु ा सींयोग के हाथ िें खखलौना होते हैं। कभी ककसी िीज की मशकायत न करो।
ककसी िीज की मशकायत करना उसे अपने आपके मलये अमभशाप बना लेना है। उसे भली प्रकार सहन
कर लेना उसे उचित दण्ड दे ना है। ककन्तु उसे सिि लेना उसे एक सच्िा सेवक बना लेना है ।
प्रायिः ऐसा होता है कक मशकारी लक्ष्य ककसी दहरनी को बनाता है परन्तु लक्ष्य िक
ु ने से िारा जाता है
कोई खरगोश ल्जसकी उपल्स्थतत का उसे बबलकुल ज्ञान न था। ऐसी ल्स्थतत िें एक सििदार मशकारी
कहे गा, ”िैंने वास्तव िें खरगोश को ही लक्ष्य बनाया था, दहरनी को नहीीं। और िैंने अपना मशकार
िार मलया। ”लक्ष्य अच्छी तरह से सािो।
पिरणाि जो भी हो अच्छा ही होगा। जो तम्
ु हे पास आ जाता है, वह तुम्हारा है। जो आने िें ववलम्ब
करता है, वह इस योग्य नहीीं कक उसकी प्रतीक्षा की जाये। प्रतीक्षा उसे करने दो।ल्जसका तनशाना तुि
सािते हो यदद वह तम्
ु हे तनशाना बना ले तो तिु तनशाना कभी नहीीं िक
ू ोगे िक
ू ा हुआ तनशाना सिल
तनशाना होता है। अपने ह्रदय को तनराशा के सािने अभेद्य बना लो।
तनराशा वह िील है ल्जसे दब
ु ल
ा ह्रदय जन्ि दे ते हैं और वविल आशाओीं के सड़े-गले िाींस पर पालते हैं।
एक पणू ा हुई आशा कई ित
ृ -जात आशाओीं को जन्ि दे ती है । यदद ति
ु अपने ह्रदय को कबब्रस्तान नहीीं
बनाना िाहते तो साविान रहो, आशा के साथ उसका वववाह ित करो।
हो सकता है ककसी िछली के ददए सौ अण्डों िें से केवल एक िें से बच्िा तनकले। तो भी बाकी
तनन्यानवे व्यथा नहीीं जाते। प्रकृतत बहुत उदार है, और बहुत वववेक है उसकी वववेकहीनता िें।
तुि भी लोगों के ह्रदय और बुद्चि िें अपने ह्रदय और बद् ु चि को बोने िें उसी प्रकार उदार और
वववेकपव
ू क
ा वववेकहीन बनो। ककसी भी पिरश्रि के मलए परु स्कार ित िााँगो। जो अपने पिरश्रि से प्यार
करता है,
उसका पिरश्रि स्वयीं पयााप्त पुरस्कार है।
सज
ृ नहार शब्द तथा पूणा सींतल
ु न को याद रखो। जब तुि ददव्य ज्ञान के द्वारा यह सींतुलन प्राप्त कर
लोगे तभी तुि आत्ि-ववजेता बनोगे, और तम्
ु हारे हाथ प्रभु के हाथों के साथ मिलकर काया करें गे।
परिात्िा करे इस राबत्र की नीरवता और शाल्न्त का स्पन्दन तम्
ु हारे अींदर तब तक होता रहे जब तक
तुि उन्हें ददव्य ज्ञान की नीरवता और शाल्न्त िें डुबा न दो।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हें ।
अध्याय-36
नौका-ददवस तथा उसके िामिाक अनष्ु ठान
जीववत दीपक के बारे िें बेसार
के सुलतान का सन्दे श
*************************************
नरौंदा ; जबसे िमु शाद बेसार से लौटे से लौटे तब से शिदाि उदास और अलग-अलग सा रहता था।
ककन्तु जब नौका- ददवस तनकट आ गया तो वह उकलास तथा उत्साह से भर गया और सभी जदटल
तैयािरयों का छोटी से छोटी बातों तक का,
तनयींत्रण उसने स्वयीं सींभल मलया।
अींगूर-बेल के ददवस की तरह नौका-ददवस को भी एक ददन से बढ़ाकर उकलास- भरे आिोद-प्रिोद का
पूरा सप्ताह बना मलया गया था ल्जसिे सब प्रकार की वस्तुओीं तथा सािान का तेजी के साथ व्यापार
होता है ।
इस ददन के अनेक िामिाक अनुष्ठानों िें सबसे अचिक िहत्वपूणा हैं; बमल िढ़ाये जाने वाले बैल का
वि, बाली-कुण्ड की अल्ग्न को प्रज्वमलत करना, और उस अल्ग्न से वेदी पर पुराने दीपक के स्थान
पर नये दीपक को जलना। इस वषा दीपक भेंट करने के मलए बेसार के सुलतान को िन
ु ा गया था।
उत्सव के एक ददन पहले शिदाि ने हिें और िमु शाद को अपने कक्ष िें बुलाया और हिसे अचिक
िमु शाद को सम्बोचित करते हुए उसने ये शब्द कहे ;शिदाि:> कल एक पववत्र-ददवस है ;
हि सभी को यही शोभा दे ता है कक उसकी पववत्रता को बनाये रखें। वपछले िगड़े कुछ भी रहे हों,
आओ उन्हें हि यहीीं और अभी दिना दें । यह नहीीं होना िादहए कक नौका की प्रगतत िीिी पद जाये,
या हिारे उत्साह िें कोई किी आ जाये। और परिात्िा न करे कक नौका ही रुक जाये। िैं इस नौका
का िखु खया हूाँ।
इसके सींिालन का कदठन दातयत्व िि
ु पर है। इसका िागा तनल्श्ित करने का अचिकार िि
ु े प्राप्त है ।
ये कताव्य और अचिकार िुिे ववरासत िें मिले हैं ; इसी प्रकार िेरी ित्ृ यु के बाद वे तनश्िय ही
ति
ु िें से ककसी को मिलेंगे। जैसे िैंने अपने अवसर की प्रतीक्षा की थी,
तुि भी अपने अवसर की प्रतीक्षा करो। यदद िैंने िीरदाद के साथ अन्याय ककया है तो वह िेरे
अन्याय को क्षिा कर दे ।
िीरदाद : िीरदाद के साथ ति
ु ने कोई अन्याय नहीीं ककया है लेककन शिदाि के साथ तुिने घोर
अन्याय ककया है।
शिदाि : क्या शिदाि को शिदाि के साथ अन्याय करने की स्वतींत्रता नहीीं है ?
िीरदाद : अन्याय करने की स्वतींत्रता ? ककतने बेिोल हैं ये शब्द ! क्योंकक अपने साथ अन्याय करना
भी अन्याय का दास बनना है ; जबकक दस
ू रों के साथ अन्याय करना एक दास का दास बन जाना है ।
ओह, भारी होता है अन्याय का बोि।
शिदाि; यदद िैं अपने अन्याय का बोि उठाने को तैयार हूाँ तो इसिें तम्
ु हारा क्या बबगड़ता है ?
िीरदाद : क्या कोई बीिार दाींत िहाँु से कहे गा कक कक यदद िैं अपनी पीड़ा सहने को तैयार हूाँ तो
इसिें तम्
ु हारा क्या बबगड़ता है ?
शिदाि : ओह, िुिे ऐसा ही रहने दो, बस ऐसा ही रहने दो। अपना भरी हाथ िि
ु से दरू हटा लो,
और ित िारो िि
ु े िाबुक अपनी ितुर ल्जव्हा से। िि
ु े अपने बाकी ददन वैसे ही जी लेने दो जैसे िैं
अब तक पिरश्रि करते हुए जीता आया हूाँ। जाओ, अपनी नौका कहीीं और बना लो, पर इस नौका िें
हस्तक्षेप न करो। तम्
ु हारे और िेरे मलए, तथा तम्
ु हारी और िेरी नौकाओीं के मलए यह सींसार बहुत
बड़ा है।
कल िेरा ददन है । तुि सब एक ओर खड़े रहो और िुिे अपना काया करने दो —
क्योंकक िैं तुििें से ककसी का भी
हस्तक्षेप सहन नहीीं करूाँगा।
ध्यान रहे शिदाि का प्रततशोि उतना ही भयानक है ल्जतना परिात्िा का। साविान ! साविान !
िीरदाद ; शिदाि का ह्रदय अभी तक शिदाि का ही ह्रदय है ।उस क्षण एक लम्बा और प्रभावशाली
व्यल्क्त, जो स़िेद वस्त्र पहने हुए था, िक्कि िक्का करते कदठनाई से अपना रास्ता बनाते हुए वेदी
की ओर आता ददखाई ददया।
तत्काल दबी आवाज िें कानों-कान बात ़िैल गई कक यह बेसार के सक
ु तान का तनजी दत
ू है जो नया
दीपक ले कर आया है ;
और सब लोग उस बहुिूकय तनचि की िलक पाने के मलए उत्सक ु हो उठे । ओरों की तरह यह िानते
हुए कक वह नए वषा की बहुिूकय भेंट लेकर आया है शिदाि ने बहुत नीिे तक िक ु कर उस दत
ू को
प्रणाि ककया।
लेककन उस व्यल्क्त ने शिदाि को दबी आवाज से कुछ कहकर अपनी जेब से एक ििा-पत्र तनकला
और, यह स्पष्ट कर दे ने के बाद कक इसिें बेसर के सुकतान का सन्दे श है
ल्जसे लोगों तक खद
ु पहुाँिाने का
उसे आदे श ददया गया है,
वह पत्र पढ़ने लगा :”बेसार के भत
ू पव
ू ा सल
ु तान की ओर से आज के ददन नौका िें एकबत्रत दचू िया
पवातिाला के अपने सब साथी िनुष्यों के मलए शाींतत-कािना और प्यार। नौका के प्रतत गहरी श्रद्िा के
आप सब प्रत्यक्ष साक्षी हैं।
इस वषा का दीपक भेंट करने का सम्िान िि ु े प्राप्त हुआ था, इसमलए िैंने बद्
ु चि और िन का
उपयोग करने िें कोई सींकोि नहीीं ककया ताकक िेरा उपहार नौका के योग्य हो। और िेरे प्रयास
पूणत
ा या सिल रहे ; क्योंकक िेरे वैभव और िेरे मशकपकारों के कौशल से जो दीपक तैयार हुआ, वह
सििुि एक दे खने योग्य िित्कार था।
‘लेककन प्रभु िेरे मलए क्षिाशील और कृपालु था, वह िेरी दिरद्रता का भेद नहीीं खोलना िाहता था।
क्योंकक उसने ििु े एक ऐसे दीपक के पास पहुींिा ददया ल्जसका प्रकश िकािौंि कर दे ता है और ल्जसे
बुिाया नहीीं जा सकता, ल्जसकी सद ुीं रता अनप
ु ि और तनष्कलींक है।
उस दीपक को दे खकर िैं इस वविार से लज्जा िें डूब गया कक िैंने अपने दीपक की कभी कोई कीित
सििी थी। सो िैंने उसे कूड़े के ढे र पर िेंक ददया।
‘यह वह जीववत दीपक है ल्जसे ककसी के हाथों ने नहीीं बनाया है । िैं ति
ु सबको हाददा क सि
ु ाव दे ता हूाँ
कक उसके दशान से अपने नेत्रों को तप्ृ त करो,
उसी की ज्योतत से अपनी
िोिबवियों को जलाओ।
दे खो वह तम्
ु हारी पहुाँि िें है ।
उसका नाि है िीरदाद।
प्रभु करे कक तुि उसके प्रकाश के योग्य बनो। ”.
अध्याय -37
जो आत्ि ववजय के मलए तड़ि रहे है
वह आए और नौका पर सवार हो जाए
************************************
िमु शाद लोगों कोआग और
खन
ू की बाढ़ से साविान करते हैं..
बिने का िागा बताते हैं,
औरअपनी नौका को जल िें उतारते हैं
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
िीरदाद : क्या िाहते हो तुि िीरदाद से ? वेदी को सजाने के मलए सोने का रत्न-जड़ड़त दीपक ?
परन्तु िीरदाद न सन
ु ार है, न जौहरी, आलोक-स्तम्भ और आश्रय वह भले ही हो।
या तुि ताबीज िाहते हो बुरी नजर से बिने के मलये ? हााँ, ताबीज िीरदाद के पास बहुत हैं, परन्तु
ककसी और ही प्रकार के।
या ति
ु प्रकाश िाहते हो ताकक अपने-अपने पव
ू -ा तनल्श्ित िागा पर सरु क्षक्षत िल सको ?
ककतनी ववचित्र बात है। सय
ू ा है तम्
ु हारे पास, िन्द्र है, तारे हैं, किर भी तम्
ु हे ठोकर खाने और चगरने
का डर है ? तो किर तम्
ु हारी आाँखें तुम्हारा िागादशाक बनने के योग्य नहीीं हैं ; या तम्
ु हारी आाँखों के
मलए प्रकाश बहुत कि है । और तुििे से ऐसा कौन है जो अपनी आाँखों के बबना काि िला सके ?
कौन है जो सयू ा पर कृपणता का दोष लगा सके ? वह आाँख ककस काि की जो पैर को तो अपने िागा
पर ठोकर खाने से बिा ले,
लेककन जब ह्रदय राह टटोलने का व्यथा प्रयास कर रहा हो तो उसे ठोकरें खाने के मलये और अपना
रक्त बहाने के मलये छोड़ दे ?
वह प्रकाश ककस काि का जो आाँख को तो ज्यादा भर दे , लेककन आत्िा को खाली और प्रकाशहीन
छोड़ दे ? क्या िाहते हो ति
ु िीरदाद से ?
दे खने की क्षिता रखनेवाला ह्रदय और प्रकश िें नहाई आत्िा िाहते हो और उनके मलए व्याकुल हो
रहे हो, तो तुम्हारी व्याकुलता व्यथा नहीीं है।
क्योंकक िेरा सम्बन्ि िनष्ु य की आत्िा और ह्रदय से है ।इस ददन के मलए जो गौरवपण
ू ा आत्ि-ववजय
का ददन है, तुि उपहार-स्वरुप क्या लाये हो ?
बकरे , िेढ़े और बैल ? ककतनी तुच्छ कीित िक
ु ाना िाहते हो तुि िुल्क्त के मलये ! ककतनी सस्ती
होगी वह िुल्क्त ल्जसे तुि खरीदना िाहते हो !ककसी बकरे पर ववजय पा लेना िनुष्य के मलए कोई
गौरव की बात नहीीं।
और गरीब बकरे के प्राण अपनी प्राण-रक्षा के मलए भेंट करना तो वास्तव िें िनष्ु य के मलये अत्यींत
लज्जा की बात है। क्या ककया है तुिने इस पववत्र-ददन की पववत्र भावना िें योग दे ने के मलये,
जो प्रकट ववश्वास और हर परख िें सिल प्रेि का ददन है ? हााँ, तनश्िय ही ति
ु ने तरह-तरह की
रस्िें तनभाई हैं, और अनेक प्राथानाएाँ दोहराई हैं।
ककन्तु सींदेह तुम्हारी हर कक्रया के साथ रहा है, और घण
ृ ा तम्
ु हारी हर प्राथाना पर ”तथास्तु”कहती रही
है । क्या ति
ु जल-प्रलय का उत्सव िानाने के मलये नहीीं आये हो ? पर ति
ु एक ऐसी ववजय का
उत्सव क्यों िानते हो ल्जसिे तुि पराल्जत हो गये ?
क्योंकक नूह ने अपने सिुद्रों को पराल्जत करते सिय तम्
ु हारे सिुद्रों को पराल्जत नहीीं ककया था, केवल
उन पर ववजय पाने का िागा बताया था।
और दे खो तम्
ु हारे सिद्र
ु उिन रहे हैं और तम्
ु हारे जहाज को डुबाने पर तुले हुए हैं। जब तक तुि अपने
त़ि
ू ान पर ववजय नहीीं पा लेत,
े ति
ु आज का ददन िानाने के योग्य नहीीं हो सकते। ति ु िे से हर एक
जल-प्रलय भी है,
नौका भी और केवट भी। और जब तक वह ददन नहीीं आ जाता जब तुि अपनी ककसी नहाई-साँवरी
कुाँआरी लींगर डाल लो, अपनी ववजय का उत्सव िानाने की जकदी न करना।तुि जानना िाहोगे कक
िनष्ु य अपने ही मलये बाढ़ कैसे बन गया।
जब पववत्र-प्रभु- इच्छा ने आदि को िीर कर दो कर ददया ताकक वह अपने आप को पहिाने और उस
एक के साथ अपनी एकता का अनुभव कर सके,
तब वह एक परु
ु ष और एक स्त्री बन गया—एक नर-आदि और एक िादा-आदि। तभी डूब गया वह
कािनाओीं की बाढ़ िें जो द्वैत से उत्पन्न होती हैं—कािनाएाँ इतनी बहुसींख्य,
इतनी रीं ग-बबरीं गी, इतनी ववशाल, इतनी कलवु षत और इतनी उवार कक िनष्ु य आज तक उनकी लहरों
िें बेसहारा बह रहा है ।
लहरें कभी उसे ऊींिाई के मशखर तक उठा दे ती हैं तो कभी गहराइयों तक खीींि ले जाती हैं। क्योंकक
ल्जस प्रकार उसका जोड़ा बना हुआ है, उसकी कािनाओीं के भी जोड़े बने हुए हैं। और यद्यवप दो
परस्पर ववरोिी िीजें वास्तव िें एक दस
ू रे की परू क होती हैं, किर भी अज्ञानी लोगों को वे आपस िें
लड़ती-िगड़ती प्रतीत होती हैं और क्षण भर के यद्
ु ि-ववराि की घोषणा करने के मलये तैयार नहीीं जान
पड़तीीं।
यही है वह बाढ़ ल्जससे िनष्ु य को अपने अत्यींत लम्बे, कदठन द्वैतपण
ू ा जीवन िें प्रततक्षण, प्रततददन
सींघषा करना पड़ता है। यही है वह बाढ़ ल्जसकी जोरदार बौछार ह्रदय से िूट तनकलती है और तम्
ु हे
अपनी प्रबल िारा िें बहा ले जाती है। यही है वह बाढ़ ल्जसका इींद्रिनष
ु तब तक तम्
ु हारे आकाश को
शोमभत नहीीं करे गा जब तक तम्
ु हारा आकाश तुम्हारी िरती के साथ न जुड़ जाये और दोनों एक न हो
जाएाँ।
जबसे आदि ने अपने आपको हौवा िें बोया है, िनष्ु य बवण्डरों और बािों की िसलें काटते िले आ
रहे हैं। जब एक प्रकार के िनोवेगों का प्रभाव अचिक हो जाता है, तब िनष्ु यों के जीवन का सींतुलन
बबगड़ जाता है, और तब िनुष्य एक या दस
ू री बाढ़ की लपेट िें आ जाते हैं ताकक सींतुलन पन
ु िः
स्थावपत हो सके।
और सींतुलन तब तक स्थावपत नहीीं होगा जब तक िनुष्य अपनी सब कािनाओीं को प्रेि की परात िें
गाँि
ू कर उनसे ददव्य-ज्ञान की रोटी पकाना नहीीं सीख लेता।
अ़िसोस ! तुि व्यस्त हो बोि लादने िें; व्यस्त हो अपने रक्त िें दख
ु ों से भरपूर भोगों का नशा
घोलने िें; व्यस्त हो कहीीं न ले जाने वाले िागों के िान-चित्र बनाने िें; व्यस्त हो अींदर िााँकनेका
कष्ट ककये बबना जीवन के गोदािों के वपछले अहातों से बीज िन
ु ने िें।
तुि डूबोगे क्यों नहीीं िेरे लावािरश बच्िो ? तुि पैदा हुए थे ऊाँिी उड़ाने भरने के मलये, असीि
आकाश िें वविरने के मलये, ब्रम्हाण्ड को अपने डैनों िें सिेत लेने के मलये। परन्तु ति ु ने अपने आप
को उन परम्पराओीं और ववश्वासों के दरबों िें बींद कर मलया है
जो तम्
ु हारे परों को काटते हैं, तम्
ु हारी दृष्टी को क्षीण करते हैं और तुम्हारी नसों को तनजीव कर दे ते
हैं। तुि आने वाली बाढ़ पर ववजय कैसे पाओगे िेरे लावािरस बच्िो ? तुि प्रभु के प्रततबबम्ब और
सिरूप थे,
ककन्तु ति
ु ने उस सिानता और सिरूपता को लगभग मिटा ददया है । अपने ईश्वरीय आकर को तुिने
इतना बौना कर ददया है कक अब तुि खद
ु उसे नहीीं पहिानते। अपने ददव्य िुख-िण्डल पर तुिने
कीिड़ पोत मलया है, और उस पर ककतने ही िसखरे िख
ु ौटे लगा मलए हैं।
ल्जस बाढ़ के द्वार तुिने स्वयीं खोले हैं उसका सािना ति
ु कैसे करोगे िेरे लावािरस बच्िो ? यदद
तुि िीरदाद की बात पर ध्यान नहीीं दोगे तो िरती तम्
ु हारे मलए कभी भी एक कब्र से अचिक कुछ
नहीीं होगी, न ही आकाश एक क़िन से अचिक कुछ होगा।
जबकक एक का तनिााण तम्
ु हारा पालना बनने के मलए ककया गया था, दस
ू रे का तुम्हारा मसींहासन
बनने के मलए। िैं ति ु से किर कहता हूाँ कक ति ु ही बाढ़ हो, नौका हो और केवट भी। तम्
ु हारे िनोवेग
बाढ़ हैं। तम्
ु हारा शरीर नौका है । तुम्हारा ववश्वास केवट है।
पर सब िें व्याप्त है तम्
ु हारी सींककप- शल्क्त और उनके ऊपर है तम्
ु हारे ददव्य ज्ञान की छत्र-छाया।यह
तनश्िय कर लो कक तम्
ु हारी नौका िें पानी न िरस सके और वह सिद्र
ु - यात्रा के योग्य हो; ककन्तु
इसी िें अपना जीवन न गाँवा दे ना; अन्यथा यात्रा आरम्भ का सिय कभी नहीीं आयेगा, और अींत िें
ति
ु वहीीँ पड़े-पड़े अपनी नौका सिेत सड़-गल कर डूब जाओगे।
यह भी तनश्िय कर लेना कक तम्
ु हारा केवट योग्य और िैयव
ा ान हो। पर सबसे अचिक िहत्त्वपूणा यह है
कक ति
ु बाढ़ से से स्रोतों का पता लगाना सीख लो, और उन्हें एक-एक करके सख
ु दे ने के मलए अपनी
सींककप-शल्क्त को साि लो। तब तनश्िय ही बाढ़ थिेगी और अींत िें अपने आप सिाप्त हो जायेगी।
जला दो हर िनोवेग को, इससे पहले कक वह तम्
ु हें जला दें । ककसी िनोवेग के िुख िें यह दे खने के
मलए ित िााँको कक उसके दाींत जहर से भरे हैं या शहद से। ििु-िक्खी जो िूलों का अित
ृ इकट्ठा
करती है उनका ववष भी जिा कर लेती है ।
न ही ककसी िनोवेग के िेहरे को यह पता लगाने के मलए जााँिो कक वह सन्
ु दर है या कुरूप। सााँप का
िेहरा हौवा को परिात्िा के िेहरे से अचिक सद
ींु र ददखाई ददया था। न ही ककसी िनोवेग के भार का
ठीक पता लगाने के मलए उसे तराजू पे रखो। भार िें िक
ु ु ट की तुलना पहाड़ से कौन करे गा ?
परन्तु वास्तव िें िक
ु ु ट पहाड़ से कहीीं अचिक भारी होता है । और ऐसे िनोवेग भी हैं, जो ददन िें तो
ददव्य गीत गाते हैं, परन्तु रात के काले परदे के पीछे क्रोि से दाींत पीसते हैं, काटते हैं और डींक
िारते हैं।
ख़श
ु ी से िूले तथा उसके बोि के नीिे दबे ऐसे िनोवेग भी हैं जो तेजी से शोक के कींकालों िें बदल
जाते हैं। कोिल दृष्टी तथा ववनीत आिरण वाले ऐसे िनोवेग भी हैं जो अिानक भेड़ड़यों से भी अचिक
भूखे,
लकड़बग्घों से भी अचिक िक्कार बन जाते हैं। ऐसे िनोवेग भी हैं जो गुलाब से भी अचिक सुगि
ीं दे ते
हैं जब तक उन्हें छे ड़ा न जाये, लेककन उन्हें छूते और तोड़ते ही उनसे सड़े-गले िाींस तथा कबरबबज्जू
से भी अचिक तघनौनी दग
ु न्ा ि आने लगती है ।
अपने िनोवेगों को अच्छे और बुरे िें ित बााँटो, क्योंकक यह एक व्यथा का पिरश्रि होगा। अच्छाई
बुराई के बबना दटक नहीीं सकती; और बुराई अच्छाई के अींदर ही जड़ पकड़ सकती है। एक ही है नेकी
और बदी का वक्ष
ृ । एक ही है उसका िल भी। तुि नेकी का स्वाद नहीीं ले सकते जब तक साथ ही
बदी को भी न िख लो।
ल्जस िूिी से तुि जीवन का दि
ू पीते हो उसी से ित्ृ यु का दि
ू भी तनकलता है। जो हाथ तम्
ु हे पालने
िें िुलाता है वही हाथ तम्
ु हारी कब्र भी खोदता है। द्वैत की यही प्रकृतत है, िेरे लावािरस बच्िो।
इतने हठी और अहीं कारी न हो जाना कक इसे बदलने का प्रयत्न करो। न ही ऐसी िख
ू त
ा ा करना कक इसे
दो आिे-आिे भागों िें बााँटने का प्रयत्न करो ताकक अपनी पसींद के आिे भाग को रख लो और दस
ू रे
भाग को िेंक दो। क्या तुि द्वैत के स्वािी बनना िाहते हो ? तो इसे न अच्छा सििो न बुरा। क्या
जीवन और ित्ृ यु का दि
ू तम्
ु हारे िुींह िें खट्टा नहीीं हो गया है ?
क्या सिय नहीीं आ गया है कक तुि एक ऐसी िीज से आििन करो जो न अच्छी है न बुरी, क्योंकक
वह दोनों से श्रेष्ठ है ? क्या सिय नहीीं आ गया है कक ति
ु ऐसे िल की कािना करो जो न िीठा है
न कड़वा, क्योंकक वह नेकी और बदी के वक्ष
ृ पर नहीीं लगा है ?क्या तुि द्वैत के िींगुल से िुक्त
होना िाहते हो ?
तो उसके वक्ष
ृ को—नेकी और बदी के वक्ष
ृ को—अपने ह्रदय िें से उखाड़ िेंको। हााँ, उसे जसद और
शाखाओीं सदहत उखाड़ िेंको ताकक ददव्य ज्ञान का बीज, पववत्र ज्ञान का बीज जो सिस्त नेकी और
बदी से परे है, इसकी जगह अींकुिरत और पकलववत हो सके।
तुि कहते हो िीरदाद का सन्दे श तनरानन्द है। यह हिें आने वाले कल की प्रतीक्षा के आनन्द से
वींचित रखता है । यह हिें जीवन िें गाँग
ू े, उदासीन दशाक बना दे ता है, जबकक हि जोशीले प्रततयोगी
बनना िाहते हैं। क्योंकक बड़ी मिठास है प्रततयोचगता िें, दाव पर िाहे कुछ भी लगा हो।
और ििुर है मशकार का जोखखि, मशकार िाहे एक छलावे से अचिक कुछ भी न हो। जब तुि िन िें
इस तरह सोिते हो तब भूल जाते हो कक तम्
ु हारा िन तम्
ु हारा नहीीं है जब तक उसकी बागडोर अच्छे
और बुरे िनोवेगों के साथ है।
अपने िन का स्वािी बनने के मलये अपने अच्छे -बरु े सब िनोवेगों को प्रेि की एकिात्र परात िें गि
ाँू
लो ताकक तुि उन्हें ददव्य ज्ञान के तन्दरू िें पका सको जहााँ द्वैत प्रभु िें ववलीन होकर एक हो जाता
है । सींसार को जो पहले ही अतत दिःु खी है और दिःु ख दे ना बन्द कर दो। तुि उस कुएाँ से तनिाल जल
तनकालने की आशा कैसे कर सकते हो ल्जसिें तुि तनरन्तर हर प्रकार का कूड़ा-करकट और कीिड़
िेंकते रहते हो ?
ककसी तालाब का जल स्वच्छ और तनश्िल कैसे रहे गा यदद हर क्षण ति
ु उसे हलोरते रहोगे ?दिःु ख िें
डूबे सींसार से शाल्न्त की रकि ित िााँगो, कहीीं ऐसा न हो कक तुम्हे अदायगी दिःु ख के रूप िें हो। दि
तोड़ रहे सींसार से जीवन की रकि ित िाींगो, कहीीं ऐसा न हो कक तम्
ु हे अदायगी ित्ृ यु के रूप िें हो।
सींसार अपनी िद्र
ु ा के मसवाय और ककसी िद्र
ु ा िें तम्
ु हे अदायगी नहीीं कर सकता, और उसकी िद्र
ु ा के
दो पहलू हैं। जो कुछ िााँगना है अपने ईश्वरीय अहि ् से िााँगो जो शाल्न्तपूणा ज्ञान से से इतना सिद्
ृ ि
है ।
सींसार से ऐसी िााँग ित करो जो तुि अपने आप से नहीीं करते। न ही ककसी िनुष्य से कोई ऐसी
िााँग करो जो तुि नहीीं िाहते कक वह तुिसे करे ।
और वह कौन-सी वस्तु है जो यदद सम्पूणा सींसार द्वारा तम्
ु हे प्रदान कर दी जाये तो तम्
ु हारी अपनी
बाढ़ पर ववजय पाने और ऐसी िरती पर पहुाँिने िें तम्
ु हारी सहायता कर सके जो दिःु ख और ित्ृ यु से
नाता तोड़ िक
ु ी है और आकाश से जड़
ु कर स्थायी प्रेि और ज्ञान की शाल्न्त प्राप्त कर िक
ु ी है ?
क्या वह वस्तु सम्पवि है, सिा है, प्रमसद्चि है ? क्या वह अचिकार है,प्रततष्ठा है, सम्िान है ?
क्या वह सिल हुई िहत्त्वाकाींक्षा है, पूणा हुई आशा है ? ककन्तु इन िें से तो हरएक जल का एक
स्रोत है जो तम्
ु हारी बाढ़ का पोषण करता है।
दरू कर दो इन्हे ,िेरे लावािरस बच्िो, दरू , बहुत दरू । ल्स्थर रहो ताकक तुि उलिनो से िुक्त रह
सको। उलिनों से िुक्त रहो ताकक ति ु सींसार को स्पष्ट दे ख सको। जब तुि सींसार के रूप को स्पष्ट
दे ख लोगो, तब तम्
ु हे पता िलेगा कक जो स्वतन्त्रता, शाल्न्त तथा जीवन तुि उससे िाहते हो, वह
सब तुम्हें दे ने िें वह ककतना असहाय और असिथा है ।
सींसार तम्
ु हे दे सकता है केवल एक शरीर—द्वैतपण
ू ा जीवन के सागर िें यात्रा के मलये एक नौका। और
शरीर तम्
ु हे सींसार के ककसी व्यल्क्त से नहीीं मिला है । तम्
ु हे शरीर दे ना और उसे जीववत रखना ब्रम्हाण्ड
का कताव्य है । उसे ति
ु ानो का सािना करने के मलये अच्छी हालत िें,
लहरों के प्रहार सहने के योग्य रखना, उसकी पाशववक वतृ तयों को बााँिकर तनयींत्रण िें रखना—यह
तम्
ु हारा कताव्य है, केवल तम्
ु हारा। आशा से दीप्त तथा पूणत
ा या सजग ववश्वास रखना ल्जसको पतवार
थिाई जा सके, प्रभ-ु इच्छा िें अटल ववश्वास रखना जो अदन के आनन्दपण
ू ा प्रवेश-द्वार पर पहुाँिने िें
तम्
ु हारा िागादशाक हो—यह भी तम् ु हारा काि है, केवल तम्
ु हारा।
तनभाय सींककप हो, आत्ि-ववजय प्राप्त करने तथा ददव्य- ज्ञान के जीवन-वक्ष
ृ का िल िखने के
सींककप को अपना केवट बनाना—-यह भी तम्
ु हारा काि है, केवल तम्
ु हारा।िनुष्य की िींल्जल परिात्िा
है ।
उससे नीिे की कोई िींल्जल इस योग्य नहीीं कक िनुष्य उसके मलये कष्ट उठाये। क्या हुआ यदद रास्ता
लम्बा है और उस पर िींिा और िक्कड़ का राज है ?
क्या पववत्र ह्रदय तथा पैनी दृल्ष्ट से यक्
ु त ववश्वास िींिा को परास्त नहीीं कर दे गा और िक्कड़ पर
ववजय नहीीं पा लेगा ?जकदी करो, क्योंकक आवारगी िें बबताया सिय पीड़ा-ग्रस्त सिय होता है । और
िनुष्य, सबसे अचिक व्यस्त िनुष्य भी, वास्तव िें आवारा ही होते हैं।
नौका के तनिााता हो तुि सब, और साथ हो नाववक भी हो। यही काया सौंपा गया है तम्
ु हे अनादद
काल से ताकक तुि उस असीि सागर की यात्रा करो जो तुि स्वयीं हो, और उसिे खोज लो अल्स्तत्व
के उस िक
ू सींगीत को ल्जसका नाि परिात्िा है।
सभी वस्तुओीं का एक केन्द्र होना जरुरी है जहााँ से वे ़िैल सकें और ल्जसके िारों ओऱ वे घूि सकें।
यदद जीवन—-िनुष्य का जीवन—-एक वि
ृ है और परिात्िा की खोज उसका केन्द्र, तो तम्
ु हारे हर काया
का केंद्र परिात्िा की खोज ही होना िादहये; नहीीं तो तम्
ु हारा हर काया व्यथा होगा, िाहे वह गहरे
लाल पसीने से तर-बतर ही क्यों न हो।पर क्योंकक िनुष्य को उसकी िींल्जल तक ले जाना िीरदाद का
काि है, दे खो !
िीरदाद ने तम्
ु हारे मलए एक अलौककक नौका तैयार की है, ल्जसका तनिााण उिि है और ल्जसका
सींिालन अत्यन्त कौशलपूण।ा यह दयार से बनी और तारकोल से पत
ु ी नहीीं है; और न ही यह कौओीं,
तछपकमलयों और लकड़बग्घों के मलये बनी है।
इसका तनिााण ददव्य ज्ञान से हुआ है जो तनश्िय ही उन सबके मलए आलोक-स्तम्भ होगा जो आत्ि-
ववजय के मलये तड़पते हैं। इसका सींतल
ु न-भार शराब के िटके और कोकहू नहीीं, बल्कक हर पदाथा हर
प्राणी के प्रतत प्रेि से भरपूर ह्रदय होंगे। न ही इसिें िल या अिल सम्पवि, िााँदी, सोना, रत्न
आदद लदे होंगे,
बल्कक इसिें होंगी अपनी परछाइयों से िक्
ु त हुई तथा ददव्य ज्ञान के प्रकाश और स्वतन्त्रता से
सुशोमभत आत्िाएाँ। जो िरती के साथ अपना नाता तोड़ना िाहते हैं, जो एकत्व प्राप्त करना िाहते
हैं,
जो आत्ि-ववजय के मलए तड़प रहे हैं, वे आयें और नौका पर सवार हो जायें।
नौका तैयार है । वायु अनक
ु ू ल है ।
सागर शान्त है।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।
****सिाप्त ******