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मिखाइल नईिी द्वारा रचित पस्

ु तक ‘ककताब-ए-िीरदाद’ अध्यात्ि का सवोत्कृष्ट बीसवीीं सदी की भाषा


िें मलखा ग्रन्थ है । ओशो ने एक बार कहा था कक ककसी कारण वश सारे ग्रन्थ नष्ट हो जाए एवीं यदद
यह कृतत शेष रहे तो सभ्यता किर भी ववकमसत हो सकती है । िकू कीं इस ग्रन्थ िें सभी सत्यों का सार
एवीं जीवन का सार है। इसिें सींस्कृतत का उद्वार करने की कला एवीं आत्ि ज्ञान को प्राप्त करने की
क्षिता है। यह एक ग्रन्थ नहीीं बल्कक प्रकाश स्तम्भ है ।
यह ग्रन्थ गीता,बाईबबल एवीं कुरान के सिकक्ष रखने योग्य है । इसिें आल्त्िक उन्नतत की ववचि एक
िठ की कथा की िाध्यि से रखी हुई है। उक्त कृतत िें पहाड़ पर स्थावपत पुराने िठ से जुड़ी कहानी
है । प्रततकात्िक भाषा िें गढ़
ू बातें इस पस्
ु तक िींेे मलखी हुई है । सािक की दृल्ष्ट को िजबत
ू कर
उसकी राह के कााँटे हटाती है। नकारात्िकता का सािना करने की सिग्र ववचि इसिींेे है ।
यह व्यवाहािरक पस्
ु तक नहीीं है , सींसार िें रस ल्जनको आता हो उनके मलए यह नहीीं है ेै। जो सींसार
से थक गए है उनके मलए ज्योतत प्रदायक है । जो नहीीं कहा जा सकता है, उसे कहने िें यह सक्षि
है । परि सत्य को लेखक को कथा के रूप िें बन
ु ने िें िहारथ प्राप्त है । यह हिारे उपतनषदों की तरह
है ।
लेखक मलखता है कक हि जीने के मलए िर रहे है जबकक लेखक िरने के मलए जी रहा है । वविारणीय
है कक जीने के मलए िरे या िरने के मलए ल्जए।
साथ ही इसिें मलखा है :
प्रेि ही प्रभु का वविान है ।
तुि जीते हो ताकक तुि प्रेि करना सीख लो।
तुि प्रेि करते हो ताकक तुि जीना सीख लो।
िनष्ु य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीीं।
और प्रेि करना क्या है, मसवाय इसके कक प्रेिी वप्रयति को
सदा के मलये अपने अन्दर लीन कर ले
ताकक दोनों एक हो जायें?
मिखाइल नईिी लेबनान के ईसाई पिरवार िें पैदा हुए, रुस िें मशक्षा ग्रहण की एवीं आगे की मशक्षा
अिेिरका िें। वहीीं पर वे खलील ल्जब्रान से जड़
ु े एवीं वहीीं िातभ
ृ ाषा अरबी की सींस्कृतत एवीं सादहत्य को
नव जीवन प्रदान करने के मलए 1947 िें द बक
ु आेि िीरदाद मलखी।

अध्याय एक

िीरदाद अपना पदाा हटाता है और पदों और िुहरों के बबषय िें बात करता है

नरौंदा ; उस शाि आठों साथी खाने की िेज के िारों ओर जिा थे और िीरदाद एक ओर खड़ा
िप
ु िाप उनके आदे शों की प्रतीक्षा कर रहा था। साचथयों पर लागू परु ातन तनयिों िें से एक यह था
कक जहााँ तक सम्भव हो वाताालाप िें ''िैं''शब्द का प्रयोग न ककया जाये। साथी शिदाि िखु खया के
रूप िें अल्जात अपनी उपलल्ब्ियों के बारे िें डीींग िार रहा था। यह ददखाते हुए कक उसने नौका की
सींपवि और प्रततष्ठा िें ककतनी वद्
ृ चि की है, उसने बहुत से आींकड़े प्रस्तुत ककये। ऐसा करते हुए उसने
वल्जात शब्द का बहुत अचिक प्रयोग ककया। साथी मिकेयन ने इसके मलए उसे एक हलकी सी खिड़की
दी। इस पर एक उिेजनापूणा वववाद तछड़ गया कक इस तनयि का क्या उद्दे श्य था और इसे बनाया था
वपता हजरत नूह ने या साथी अथाात सैि ने। उिेजना से एक-दस
ू रे पर दोष लगाने की नौबत आ गई
और इसके िलस्वरूप बात इतनी बाद गई कक कहा तो बहुत कुछ पर सिि िें ककसी की कुछ नहीीं
आया।

वववाद को हीं सी के वातावरण िें बदलने की इच्छा से शिदाि िीरदाद की ओर िुड़ा और स्पष्ट
उपहास के स्वर िें बोला :'' इिर दे खो, कुलवपता से भी बड़ी हस्ती यहााँ िौजूद है। िीरदाद, शब्दों
की इस भल
ू भुलैयााँ से तनकलने िें हिें राह बता। ''सबकी दृल्ष्ट िुड़कर िीरदाद पर दटक गई, और
हिें आश्िया तथा प्रसन्नता हुई जब, सात वषा की लम्बी अवचि िें पहली बार, िीरदाद ने अपना िह ींु
खोला िीरदाद ; नौका के िेरे साचथयों शिदाि की इक्षा िाहे उपहास िें प्रकट की गई है , ककन्तु
अनजाने ही िीरदाद के गींभीर तनणाय की पूवा सूिना दे ती है । क्योंकक ल्जस ददन िीरदाद ने इस नौका
िें प्रवेश ककया था, उसी ददन उसने अपनी िुहरें तोड़ने अपने परदे हटाने और तुम्हारे तथा सींसार के
सम्िुख अपने वास्तववक रूप िें प्रकट होने के मलए इसी सिय और स्थान को-- इसी पिरल्स्थतत को--
िन
ु ा था|सात िहु रों से िीरदाद ने अपना िह
ु बींद ककया हुआ है| सात पदों से उसने अपना िेहरा ढक
रखा है , ताकक तुि जब मशक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाओ तो वह तम्
ु हे और सींसार को मसखा दे
कक कैसे अपने होंठों पे लगी िोहरें तोड़ी जायें, कैसे आाँखों पे पड़े परदे हटाये जायें और इस तरह
अपने आपको अपने सािने अपने सम्पूणा तेज िें प्रकट ककया जाये ।तम् ु हारी आाँखें बहुत से पदों से
ढकी हुई हैं । हर वास्त,
ु ल्जस पर तुि द्रल्ष्ट डालते हो, िात्र एक पदाा है । तुम्हारे होठों पे बहुत सी
िुहरें लगी हुई हैं । हर शब्द ल्जसका तुि उच्िारण करते हो, िात्र एक िुहर है | क्योकक पदाथा िाहे
उसका कोई रूप या प्रकार क्यों न हो, केवल परदे और पोतड़े हैं ल्जनिे जीवन ढका और मलप्त हुआ
है । तम्
ु हारी आाँख, जो स्वयीं एक पदाा और पोतड़ा है, परदे और पोतड़े के मसवाय तम्
ु हे कहीीं और
कैसे ले जा सकती है ? और शब्द-- वे क्या अक्षरों और िात्राओीं िें बींद ककये हुए पदाथा नहीीं हैं ?
तम्
ु हारा होंठ, जो स्वयीं एक िुहर है , िुहरों के मसवाय और क्या बोल सकता है ? आाँखें पदाा डाल
सकती हैं, परदे को वेि नहीीं सकतीीं ।होंठ िुहर लगा सकते हैं, िुहरों को तोड़ नहीीं सकते ।इससे
अचिक इनसे कुछ न िाींगो । शरीर के कायों िें से इनके दहस्से का काया इतना ही है; और इसे ये
भली-भााँती तनभा रहे हैं । परदे डालकर, और िह
ु रें लगाकर ये ति
ु से पक
ु ार- पक
ु ार कर कह रहे हैं कक
आओ और उसकी खोज करो जो पदों के पीछे तछपा है,और उसका भेद प्राप्त करो जो िुहरों के नीिे
दबा है । अगर तुि अन्य वस्तुओीं को सही रूप से दे खना िाहते हो तो पहले स्वयीं आाँख को ठीक से
दे खो । तम्
ु हे आाँख के द्वारा नहीीं, आाँख िें से दे खना होगा ताकक इससे परे की सब वस्तुओीं को तुि
दे ख सको ।यदद तुि दस
ु रे शब्द ठीक से बोलना िाहते हो तो पहले होंठ और जबान ठीक से बोलो ।
तम्
ु हे होंठ और जबान के द्वारा नहीीं, वल्कक होंठ और जबान िें से बोलना होगा ताकक उनसे परे के
सारे शब्द तुि बोल सको ।यदद ति
ु केवल ठीक से दे खोगे और बोलोगे, तो तुम्हे अपने मसवाय और
कुछ नजर नहीीं आयेगा, और न तुि अपने मसवाय और कुछ बोलोगे । क्योंकक प्रत्येक वस्तु के अींदर
और प्रत्येक वस्तु से परे , सब शब्दों िें और सब शब्दों से परे , केवल तुि ही हो | यदद किर
तम्
ु हारा सींसार एक िकरा दे ने वाली पहे ली है, तो वह इसमलए कक तुि स्वयीं ही वह िकरा दे ने बाली
पहे ली हो । और यदद तम्
ु हारी वाणी एक ववकट भल
ू भल
ु य
ै ाीं है, तो वह इसमलए कक ति
ु स्वयीं ही वह
ववकट भूल भुलय
ै ाीं हो । िीजें जैसी हैं वैसी ही रहने दो; उन्हें बदलने का प्रयास ित करो । क्योंकक वे
जो प्रतीत होती हैं, इसमलए प्रतीत होती हैं कक तुि वह प्रतीत होते हो जो प्रतीत होते हो । जब तक
तुि उन्हें द्रल्ष्ट वाणी प्रदान नहीीं करते, वे न दे ख सकती हैं, न बोल सकती हैं । यदद उनकी वाणी
ककाश है तो अपनी ही ल्जभ्या की और दे खो । यदद वह कुरूप ददखाई दे ती हैं तो शरू
ु िें भी और
आखखर िें भी अपनी ही आाँख को परखो ।पदाथों से उनके कपडे उतार िेंकने को ित कहो । अपने
परदे उतार िेंको,पदाथों के परदे स्वयीं उतर जायेंगे । न ही पदाथों से उनकी िुहरें तोड़ने को कहो ।
अपनी िुहरें तोड़ दो, अन्य सब की िुहरें स्वयीं टूट जाएाँगी ।अपने परदे उतारने और अपनी िुहरें
तोड़ने की कींु जी एक शब्द है ल्जसे तुि सदै व अपने होंठों िें पकडे रहते हो । शब्द " िैं " यह सबसे
तच्
ु छ और सबसे िहान है । िीरदाद ने इसे सज
ृ नहार शब्द कहा है |

अध्याय -२
मसरजनहार शब्द - िैं
*********************************
सिस्त वस्तुओीं का श्रोत
और केंद्र है जब तम्
ु हारे िुह
से ”िैं” तनकले तो तरु ीं त
अपने हृदय िें कहो,
” प्रभ,
ु ”िैं”की ववपवियों िें िेरा आश्रय बनो,
और ”िैं” के परि आनींद
की ओर िलने िें िेरा िागा दशान करो ।”
क्योंकक इस शब्द के अींदर,
यद्यवप यह अत्यींत सािारण है ,
प्रत्येक अन्य शब्द की आत्िा कैद है ।
एक बार उसे िुक्त कर दो,
तो सुगि
ीं िैलाएगा तम्
ु हारा िुख,
मिठास िें पगी होगी तम्
ु हारी ल्जव्हा,
और तम्
ु हारे प्रत्येक शब्द से
जीवन िें आह्लाद का रस टपकेगा ।
उसे कैद रहने दो,
तो दग
ु न्
ा ि पूणा होगा तम्
ु हारा िुख,
कडवी होगी तम्
ु हारी ल्जव्हा और
तम्
ु हारे प्रत्येक शब्द से
ित्ृ यु का िवाद टपकेगा ।
क्योंकक मित्रो ”िैं” ही मसरजनहार शब्द है ।
और जब तक तुि इसकी
िित्कारी शल्क्त को प्राप्त नहीीं करोगे,
तब तक तम्
ु हारी हालत ऐसी होगी
यदद गाना िाहोगे तो आतानाद करोगे;
शाींतत िाहोगे तो यद्
ु ि करोगे;
यदद प्रकाश िें उड़ान भरना िाहोगे,
तो अाँिेरे कारागारों िें पड़े मसकुड़ोगे ।
तम्
ु हारा ”िैं” अल्स्तत्व की तम्
ु हारी िेतना िात्र है,
िूक और दे ह रदहत अल्स्तत्व की,
ल्जसे बानी और दे ह दे दी गई है ।
वह तम्
ु हारे अींदर का अश्रव्य है
ल्जसे श्रव्य बना ददया गया है ,
अदृश्य है ल्जसे दृश्य बना ददया
गया है,
ताकक तुि दे खो तो अदृश्य को दे ख सको;
और जब सन
ु ो तो अश्रव्य को सन
ु सको ।
क्योंकक अभी तुि आाँख
और कान के साथ बींिे हुए हो.
और यदद तुि इन आाँखों के द्वारा न केखो,
और यदद तुि इन कानो के द्वारा न सन
ु ो,
तो तुि कुछ भी दे ख और सन
ु नहीीं सकते ।
”िैं” के वविार–िात्र से तुि
अपने ददिाग िें वविारों के
सिुद्र को दहलकोरने लगते हो ।
वह सिद्र
ु रिना है तुम्हारे ”िैं”की
जो एक साथ वविार और वविारक दोनों है ।
यदद तम्
ु हारे वविार एसे हैं जो िुभते,
काटते या नोिते हैं,
तो सिि लो कक तुम्हारे
अींदर के ”िैं” ने ही उन्हें डींक,
दाींत, पींजे प्रदान ककये हैं …
िीरदाद िाहता है ….
कक ति
ु यह भी जान लो
कक जो प्रदान कर सकता है
वह छीन भी सकता है ।
”िैं” की भावना–िात्र से तुि अपने हृदय िें भावनाओीं का कुआाँ खोद लेते हो । यह कुआाँ रिना है
तम्
ु हारे ”िैं” की जो एक साथ अनभ
ु व करनेवाला और अनभ
ु व दोनों है । यदद तम्
ु हारे हृदय िें कींटीली
िाड़ड़यााँ हैं, तो जान लो तम्
ु हारे अींदर के ”िैं” ने ही उन्हें वहाीं लगाया है ।िीरदाद िाहता है कक ति

यह भी जान लो कक जो इतनी आसानी से लगा सकता है वह उतनी आसानी से जड़ से उखाड़ भी
सकता है । ”िैं” के उच्िारण–िात्र से तुि शब्दों के एक ववशाल सिूह को जन्ि दे ते हो; प्रत्येक शब्द
होता एक वस्तु का प्रतीक; प्रत्येक वस्तु होती है एक सींसार का प्रतीक;प्रत्येक सींसार होता है एक
ब्रम्हाण्ड का घटक अींग ।वह ब्रम्हाींड रिना है तम्
ु हारे ”िैं” की जो एक साथ स्रष्टा और स्रल्ष्ट दोनों है ।
यदद तम्
ु हारी स्रल्ष्ट िें कुछ हौए हैं, तो जान लो कक तुम्हारे अींदर के ”िैं” ने ही उन्हें अल्स्तत्व ददया
है ।िीरदाद िाहता है कक यह भी जान लो कक जो रिना कर सकता है वह नष्ट भी कर सकता है
।जैसा स्रष्टा होता है, वैसी ही होती है उसकी रिना । क्या कोई अपने आप से अचिक रिना रि
सकता है? या अपने आपसे कि?स्रष्टा केवल अपने आपको रिता है —-न अचिक, न कि ।एक िूल–
स्रोत है ”िैं”ल्जसिे वे सब वस्तए
ु ीं प्रवादहत होती हैं और ल्जसिे वे वापस िली जाती हैं ।जैसा िल
ू स्रोत
होता है, वैसा ही होता है उसका प्रवाह भी एक जाद ू की छड़ी है ”िैं” । किर भी यह छड़ी एसी ककसी
वस्तु को पैदा नहीीं कर सकती जो जादग
ू र िें न हो । जैसा जादग
ू र होता है, वैसी ही होती हैं उसकी
छड़ी की पैदा की हुई वस्तए ु ीं ।इसमलए जैसी तम्
ु हारी िेतना है , वैसा ही तम्
ु हारा ”िैं” । जैसा तम्
ु हारा
”िैं” है वैसा ही है तम्
ु हारा सींसार । यदद इस ;;िैं” का अथा स्पष्ट और तनल्श्ित है, तो तुम्हारे सींसार
का अथा भी स्पष्ट और तनल्श्ित है; और तब तम्
ु हारे शब्द कभी भल
ू भल
ु य
ै ााँ नहीीं होंगे; न ही होंगे
तम्
ु हारे किा कभी पीड़ा के घोंसले । यदद यह पिरवतान–रदहत तथा चिर स्थाई है, तो तम्
ु हारा सींसार भी
पिरवतान रदहत और चिर स्थाई है; और तब ति
ु हो सिय से भी अचिक िहान तथा स्थान से भी
कहीीं अचिक ववस्तत
ृ । यदद यह अस्थायी और अपिरवतानशील है, तो तुम्हारा सींसार भी अस्थायी और
अपिरवतानशील है; और तुि हो िए
ु ीं की एक परत ल्जस पर सय
ू ा अपनी कोिल साींस छोड़ रहा है
।यदद यह एक है तो तुम्हारा सींसार भी एक है; और तब तम्
ु हारे और स्वगा तथा पथ्
ृ वी के सब
तनवामसयों के बीि अनींत शाल्न्त है । यदद यह अनेक है तो तम्
ु हारा सींसार भी अनेक है ; और तुि
अपने साथ तथा प्रभु के असीि साम्राज्य के प्रत्येक प्राणी के साथ अन्त–हीन यद्
ु ि कर रहे हो ”िैं”
तम्
ु हारे जीवन का केंद्र है ल्जसिे से वे वस्तुएीं तनकलती हैं ल्जनसे तम्
ु हारा सम्पूणा सींसार बना है, और
ल्जनिे वे सब वापस आकर मिल जाती हैं । यदद यह ल्स्थर है तो तम्
ु हारा सींसार भी ल्स्थर है; ऊपर
या नीिे की कोई भी शल्क्त तम्
ु हे दायें या बाएीं नहीीं डुला सकती । यदद यह िलायिान है तो तम्
ु हारा
सींसार भी िलायिान है; और तुि एक असहाय पिा हो हो जो हवा के क्रुद्ि बवींडर की लपेट िें आ
गया है ।और दे खो तम्
ु हारा सींसार ल्स्थर अवश्य है, परन्तु केवल अल्स्थरता िें ।तनल्श्ित है तम्
ु हारा
सींसार, परन्तु केवल अतनल्श्ितता िें; तनत्य है तम्
ु हारा सींसार, परन्तु अतनत्यता िें; और एक है
तम्
ु हारा सींसार, परन्तु केवल अनेकता िें ।तम्
ु हारा सींसार है कब्रों िें बदलते पालनो का, और पालनो
िें बदलती कब्रों का, रातों को तनगलते ददनों का, और ददनों को उगलती रातों का, यद्
ु ि की घोषणा
कर रही शाल्न्त का, और शाल्न्त की प्राथाना कर रहे यद्
ु िों का, अश्रुओीं पर तैरती िस्
ु कानों का, और
िस्
ु कानों से दिकते अश्रओ
ु ीं का ।तम्
ु हारा सींसार तनरीं तर प्रसव-वेदना िें तड़पता सींसार है , ल्जसकी िाय
है ित्ृ यु ।तम्
ु हारा सींसार छलतनयों और िरतनयों का सींसार है ल्जसिे कोई दो छलतनयााँ या िरतनयााँ
एक जैसी नहीीं हैं । और तुि तनरीं तर उन वस्तओ
ु ीं को छानने और िारने िें खपते रहे हो ल्जन्हें छाना
या िारा नहीीं जा सकता ।तम्
ु हारा सींसार अपने ही ववरुद्ि ववभाल्जत है क्योंकक तम्
ु हारे अींदर का ”िैं”
इसी प्रकार ववभाल्जत है ।तम्
ु हारा सींसार अवरोिों और बाड़ों का सींसार है, क्योंकक तम्
ु हारे अींदर का
”िैं” अवरोिों बाड़ों का ;;िैं” है ।कुछ वस्तओ
ु ीं को यह पराया िान कर बाड के बाहर कर दे ना िाहता
है ; कुछ को अपना िानकर बाड़ के अींदर ले लेना िाहता है । परन्तु जो वस्तु बाड़ के बाहर है वह
सदा बलपव
ू क
ा बाड़ के अींदर आती रहती है, और जो वस्तु बाड़ के अींदर है वह सदा बलपव
ू क
ा बाड़ के
बाहर जाती रहती है । क्योंकक वे एक ही िााँ की–तम्
ु हारे ”िैं” की—सींतान होने के कारण अलग-अलग
नहीीं होना िाहतीीं ।और ति
ु , उनके शभ
ु मिलाप से प्रसन्न होने के बजाय, अलग न हो सकनेवालों
को अलग करने की तनष्िल िेष्टा िें िी जुट जाते हो । ”िैं” के अींदर की दरार को भरने की बजाय
तुि अपने जीवन को छील-छील कर नष्ट करते जाते हो; तुि आशा करते हो कक इस तरह तुि इसे
एक पच्िड़ बना लोगे ल्जसे तुि, जो तुम्हारी सिि िें तम्
ु हारा ”िैं” है और जो तुम्हारी ककपना िें
तम्
ु हारे ;;िैं;;से मभन्न है, उन दोनों के बीि ठोंक सको |हे सािुओ, िीरदाद तम्
ु हारे ”िैं” के अींदर
की दरारों को भर दे ना िाहता है ताकक ति
ु अपने साथ, िनष्ु य-िात्र के साथ, और सम्पण
ू ा ब्रम्हाींड के
साथ शाींततपव
ू क
ा जी सको ।िीरदाद तम्
ु हारे ”िैं” के अींदर भरे बबष को सोख लेना िाहता है ताकक तुि
ज्ञान की मिठास का रस िख सको ।िीरदाद तम्
ु हे तुम्हारे ”िैं” को तोलने की ववचि मसखाना िाहता है
ताकक तुि पूणा सींतुलन का आनींद ले सको |
अध्याय 3-
☞पावन बत्रपट
ु ी और पण
ू ा सींतल
ु न ☜

िीरदाद-यद्यवप तुििे से हर-एक


अपने-अपने ” िैं ” िें केल्न्द्रत हैं,
किर भी तुि सब एक
िैं िें केल्न्द्रत हो
प्रभु के िैं िें |
प्रभु का ‘िैं’…..
िेरे साचथयों, प्रभु का शाश्वत,
एकिात्र शब्द है . इसिें प्रभु प्रकट होता है
जो परि िेतना है . इसके बबना
व पूणा िौन ही रह जाता.
इसी के द्वारा स्रष्टा ने अपनी
रिना की है . इसी के द्वारा
वह तनराकार अनेक आकार िारण करता है
ल्जनिे से होते हुए जीव किर
से तनराकारता िें पहुाँि जायेंगे.
अपने आपका अनुभव करने के मलये;
अपने आप का चिींतन करने के मलये;
अपने आप का उच्िारण करने के
मलये प्रभु को ‘िैं’ से अचिक और कुछ बोलने की आवश्यकता नहीीं.
इसमलए ‘िैं’ उसका एकिात्र शब्द है .
इसमलए यही शब्द है .जब प्रभु ‘िैं’ कहता है
तो कुछ भी अनकहा नहीीं रह जाता.
दे खे हुए लोक और अनदे खे लोक;
जन्ि ले िक
ु ी वस्तए
ु ीं और जन्ि लेने
की प्रतीक्षा कर रही
वस्तए ीं बीत रहा सिय
ु ;
और अभी आने बाला
सिय – सब; सब-कुछ ही,
रे त के एक-एक कण तक,
इसी शब्द के द्वारा प्रकट होता है
और इसी शब्द िें सिा जाता है .
इसी के द्वारा सब वस्तए
ु ीं रिी गईं थी.
इसी के द्वारा सभी का पालन होता है .
यदद ककसी ककसी शब्द का कोई अथा न हो, तो वह शब्द शन्
ू य िें गूींजती केवल एक प्रतत ध्वनी है .
यदद इसका अथा सदा एक ही न हो, तो यह गले का कैंसर जबान पर पड़े छले से अचिक और कुछ
नहीीं |
प्रभु का शब्द शन्
ू य िें गज
ूीं ती प्रततध्वनी नहीीं है,
न ही गले का कैंसर है,
मसवाय उनके मलए जो ददव्य ज्ञान से रदहत हैं .
क्योंकक ददव्य ज्ञान वह पववत्र शल्क्त है ….
जो शब्द को प्राणवान बनाती है
और उसे िेतना के साथ जोड़ दे ती है .
यह उस अनींत तराजू की डींडी है
ल्जसके दो पलड़े हैं —
आदद िेतना और शब्द .आदद िेतना,
शब्द और ददव्य ज्ञान —-
दे खो सािुओ,
अल्स्तत्व की यह बत्रपट
ु ी,
वे तीन जो एक हैं, वह एक जो तीन हैं,
परस्पर सािान, सह-व्यापक, सह-शाश्वत; आत्ि-सींतमु लत, आत्ि- ज्ञानी, आत्ि-पूरक. यह न कभी
घटती है न बढती है — सदै व शाींत, सदै व सािान. यह है पूणा सींतुलन, ये सािुओ .िनुष्य ने इसे
प्रभु नाि ददया है, यद्यवप यह इतना ववलक्षण है कक इसे कोई नाि नहीीं ददया जा सकता. किर भी
पावन है यह नाि, और पावन है वह ल्जव्हा जो इसे पावन रखती है .िनष्ु य यदद इस प्रभु की सींतान
नहीीं तो और क्या है? क्या वह प्रभु सकता है से मभन्न हो? क्या बड़ का वक्ष
ृ अपने बीज के अींदर
सिाया हुआ नहीीं है? क्या प्रभु िनुष्य के अींदर व्याप्त नहीीं है? इसमलए िनुष्य भी एक ऐसी ही
पावन बत्रपट
ु ी है; िेतना, शब्द और ददव्य ज्ञान. िनुष्य भी, अपने प्रभु की तरह एक स्रष्टा है .उस्क
‘िैं’ उसकी रिना है .क़िर क्यों वह अपने प्रभु जैसा सींतुमलत नहीीं है? यदद ति
ु इस पहे ली का उिर
जानना िाहते हो, तो ध्यान से सन
ु ो जो कुछ भी िीरदाद तम्
ु हे बताने जा रहा है |
अध्याय4-
☞िनुष्य पोतड़ों िें मलपटा ☜
एक परिात्िा है

िनष्ु य पोतड़ों िें मलपटा एक परिात्िा है।


सिय एक पोतड़ा है,
स्थान एक पोतड़ा है,
दे ह एक पोतड़ा है और
इसी प्रकार हैं इल्न्द्रयाीं तथा
उनके द्वारा अनभ
ु व-गम्य वस्तए
ु ीं भी ।
िााँ भली प्रकार जानती है
की पोतड़े मशशु नहीीं हैं ।
परन्तु बच्िा यह नहीीं जानता ।
अभी िनुष्य का अपने पोतड़ों
िें बहुत ध्यान रहता है
जो हर ददन के साथ,
हर युग के साथ बदलते रहते हैं ।
इसमलए उसकी िेतना िें
तनरीं तर पिरवतान होता रहता है ;
इसीमलए उसका शब्द,
जो उसकी िेतना की
अमभव्यल्क्त है,
कभी भी अथा िें स्पष्ट और तनल्श्ित नहीीं होता;
और इसीमलए उसके वववेक पर िुींि छाई रहती है;
और इसीमलए उसका जीवन असींतमु लत है ।
यह ततगन
ु ी उलिन है ।
इसीमलए िनष्ु य सहायता के मलए प्राथाना करता है । उसका आतानाद अनादद काल से गाँज
ू रहा है ।
वायु उसके मिलाप से बोखिल है ।
सिुद्र उसके आींसुओीं के निक से खारा है ।
िरती पर उसकी कब्रों से गहरी िुिरायाीं पड़ गईं हैं । आकाश उसकी प्राथानाओीं से बहरा हो गया है ।
और यह सब इसमलए कक
अभी तक वह ;िैं’ का अथा
नहीीं सििता जो उसके मलए है
पोतड़े और उसिे मलपटा हुआ मशशु भी ।
‘िैं’ कहते हुए िनुष्य शब्द को
दो भागों िें िीर दे ता है;
एक, उसके पोतड़े;
दस
ू रा प्रभु का अिर अल्स्तत्व ।
क्या िनुष्य वास्तव िें
अववभाज्य को ववभाल्जत कर दे ता है ?
प्रभु न करे ऐसा हो ।
अववभाज्य को कोई शल्क्त ववभाल्जत नहीीं कर सकती–इश्वर की शल्क्त भी नहीीं ।
िनुष्य अपिरपक्व है
इसमलए ववभाजन की ककपना करता है ।
और िनुष्य, एक मशश,

उस अनींत अल्स्तत्व को अपने
अल्स्तत्व का बैरी िानकर लड़ाई
के मलए किर कस लेता है और
युद्ि की घोषणा कर दे ता है ।
इस यद्
ु ि िें, जो बराबरी का नहीीं है,
िनष्ु य अपने िाींस के िीथड़े उदा दे ता है,
अपने रक्त की नददयााँ वह दे ता है;
जबकक परिात्िा, जो िाता भी है
और वपता भी, स्नेह-पव
ू क
ा दे खता रहता है,
क्योंकक वह भली-भााँती जानता है
कक िनुष्य अपने उन िोटे पदों
को ही िाड़ रहा है और अपने
उस कड़वे द्वेष को ही बहा रहा है
जो उस एक के साथ उसकी
एकता के प्रतत उसे अाँिा बनाय हुए है ।
यही िनुष्य की तनयतत है –
लड़ना और रक्त बहाना और िूतछा त हो जाना,
और अींत िें जागना
और ‘िैं’ के अींदर की दरार को
अपने िाींस से भरना
और अपने रक्त से उसे
िजबत
ू ी से बींद कर दे ना ।
इसमलए साचथयों……..
तम्
ु हे साविान कर ददया गया है –
और बड़ी बद्
ु चििानी के साथ
साविान कर ददया गया है –
कक ‘िैं’ का कि से कि प्रयोग करो ।
क्योंकक जब तक ‘िैं’ से
तम्
ु हारा तात्पया पोतड़े है,
उसिे मलपटा केवल मशशु नहीीं;
जब तक इसका अथा तम्
ु हारे
मलए एक िलनी है, कुठली नहीीं,
तब तक तुि अपने मिथ्या अमभिान को छानते रहोगे और बटोरोगे केवल ित्ृ यु को, उससे उत्पन्न
सभी पीडाओीं और वेदनाओीं के साथ |
प्रभु रिना और प्रभु
एक ही तो भी

अध्याय–5..

कुठामलयााँ और िलतनयाीं शब्द प्रभु का


और िनुष्य का प्रभु का शब्द एक कुठली है ।
जो कुछ वह रिता है
उसको वपघलाकर एक कर दे ता है,
न उसिे से ककसी को अच्छा
िानकर स्वीकार करता है
न ही बुरा िानकर ठुकराता है ।
ददव्य ज्ञान से पिरपूणा होने के
कारण वह भली- जानता है
कक उसकी रिना और वह
स्वयीं एक हैं;
कक एक अींश को ठुकराना सम्परू को ठुकराना है;
और सम्पूणा को ठुकराना
अपने आप को ठुकराना है ।
इसमलए उसका उद्दे श्य और
आशय सदा एक ही रहता है ।
जबकक िनष्ु य का शब्द एक िलनी है ।
जो कुछ यह रिता है
उसे लड़ाई-िगड़े िें लगा दे ता है ।
यह तनरीं तर ककसी को मित्र
िानकर अपनाता रहता है
तो ककसी को ठुकराता रहता है ।
और अकसर इसका कल का मित्र आज का शत्रु बन जाता है ; आज का शत्र,
ु कल का मित्र ।
इस प्रकार िनुष्य का अपने ही ववरुद्ि क्रूर और तनरथाक यद्
ु ि तछड़ा रहता है ।
और यह सब इसमलए क्योंकक िनुष्य िें पववत्र शल्क्त का अभाव है;और केवल वही उसे बोि करा
सकती है
कक वह तथा उसकी रिना एक ही हैं;
कक शत्रु को त्याग दे ना मित्र को त्याग दे ना है ।
क्योंकक दोनों शब्द,
शत्रु और मित्र उसके शब्द
उसके िैं की रिना है ।
ल्जससे तुि घ्रणा करते हो
और बुरा िानकर त्याग दे ते हो,
उसे अवश्य ही कोई अन्य व्यल्क्त,
अथवा अन्य पदाथा अच्छा िानकर,
अपना लेता है क्या एक ही
वस्तु एक ही सिय िें
परस्पर ववपरीत दो वस्तए
ु ीं हो सकती है ?
वह न एक हैं,
न ही दस
ू री; केवल तम्
ु हारे ‘िैं ने उसे बरु ा बहा ददया है,
और ककसी दस
ु रे ;;िैं” ने उसे अच्छा बना बना ।
क्या िैंने कहा नहीीं कक जो रि सकता है?
वह अ-रचित भी कर सकता है ?
ल्जस प्रकार तुि ककसी को शत्रु बना लेते हो,
उसी प्रकार उसके साथ शत्रत
ु ा
को मिटा भी सकते हो,
या उसे शत्रु से मित्र बना सकते हो ।
इसके मलए तम्
ु हारे ”िैं” को
एक कुठाली बनना होगा।
इसके मलया तुहे ददव्य ज्ञान की आवश्यकता है ।
इसमलए िैं तुिसे कहता हूाँ
कक यदद ति
ु कभी ककसी वस्तु
के मलए प्राथाना करते ही हो,
तो केवल ददव्य ज्ञान के मलए प्राथाना करो।
छानने वाले कभी न बनना,
िेरे साचथयों …
क्योंकक प्रभु का शब्द जीवन है
और जीवन एक कुठाली है
ल्जसिे सब कुछ एक, अववभाज्य एक बन जाता है;
सब कुछ पूरी तरह सींतमु लत होता है,
और सबकुछ अपने रितयता–
पावन बत्रपट
ु ी–के योग्य होता है ।
और इससे और ककतना अचिक तुम्हारे योग्य होगा ? छानने वाले कभी न बनना, िेरे साचथयों; तब
तम्
ु हारा व्यल्क्तत्व इतना िहान, इतना सवाव्यापी और इतना सवाग्राही हो जाएगा कक ऐसी कोई भी
िलनी नहीीं मिल सकेगी जो तम्
ु हे अपने अींदर सिेट ले । छानने वाले कभी न बनना, िेरे साचथयों ।
पहले शब्द का ज्ञान प्राप्त करो ताकक तुि अपने खद
ु के शब्द को जान सको । जब तुि अपने शब्द
को जान लोगे तब अपनी िलतनयों को अल्ग्न की भेंट कर दोगे । क्योंकक तुम्हारा शब्द और प्रभु का
शब्द एक है, अींतर इतना ही है तुम्हारा शब्द अभी भी पदों िें तछपा हुआ है । िीरदाद तुिसे परदे
किीं कवा दे ना िाहता है ।प्रभु के शब्द के मलए सिय और स्थान का कोई अल्स्तत्व नहीीं । क्या कोई
ऐसा सिय था जब ति
ु प्रभु के साथ नहीीं थे ? क्या कोई ऐसा स्थान है जहााँ ति
ु प्रभु के अींदर नहीीं
थे ? किर क्यों बााँिते हो ति
ु अनन्तता को प्रहारों और ऋतुओीं की जींजीरों िें ? और क्यों सिेटते हो
स्थान को इींिों और िीलों िें ?प्रभु का शब्द वह जीवन है जो जन्िा नहीीं,इसी मलए अववनाशी है ।
किर तम्
ु हारा शब्द जन्ि और ित्ृ यु की लपेट िें क्यों है ? क्या तुि केवल प्रभु के सहारे जीववत नहीीं
हो ? और ित्ृ यु से िुक्त कोई ित्ृ यु का स्रोत हो सकता है ? प्रभु के शब्द िें सभी कुछ शामिल है
उसके अींदर न कोई अवरोि है न कोई बाड़ें । किर तम्
ु हारा शब्द अवरोिों और बाड़ों से क्यों इतना
जजार है ?
िैं ति
ु से कहता हूाँ, तम्
ु हारी हड्ड़डयााँ और िाींस भी केवल तम्
ु हारी ही हड्ड़डयााँ और िाींस नहीीं है ।
तम्
ु हारे हाथो के साथ और अनचगनत हाथ भी प्रथवी और आकाश की उन्ही दे गचियों िें डुबकी लगाते
हैं ल्जनिे से तुम्हारी हड्ड़डयााँ और िाींस आते हैं और ल्जनिे वो वापस िले जाते है ।न ही तम्
ु हारी
आाँखों की ज्योतत केवल तुम्हारी ज्योतत है । यह उन सबकी ज्योतत भी है जो सूया प्रकाश िें तम्
ु हारे
भागीदार हैं । यदद िुििे प्रकाश न होता तो क्या तम्
ु हारी आाँखे िुिे दे ख पातीीं ? यह िेरा प्रकाश है
जो तम्
ु हरी आाँखों िें िि
ु े दे खता है । यह तम्
ु हारा है जो िेरी आाँखों िें तम्
ु हे दे खता है । यदद िैं पण
ू ा
अन्िकार होता तो िेरी और ताकने पर तम्
ु हारी आाँखें पूणा अींिकार ही होतीीं । न ही तम्
ु हारे वक्ष िें
िलता श्वाींस तुम्हारा श्वाींस है । जो श्वास लेते हैं, या ल्जन्होंने कभी श्वास मलया था, वे सब तम्
ु हारे
वक्ष िें श्वास ले रहे हैं । क्या यह आदि का श्वास नहीीं जो अभी भी तम्
ु हारे िेंिडों को िुला रहा है
? क्या यह आदि का हृदय नहीीं जो आज भी तुम्हारे हृदय के अींदर िड़क रहा है ?न ही तम्
ु हारे
वविार तम्
ु हारे अपने वविार हैं । सावाजातनक चिींतन का सिद्र
ु दावा करता है कक यह वविार उसके हैं;
और यह दावा करते हैं चिींतन करने वाले अन्य प्राणी जो तम्
ु हारे साथ उस सिद्र
ु िें भाचगदार हैं ।न ही
तम्
ु हारे स्वप्न केवल तुम्हारे स्वप्न हैं तुम्हारे स्वप्नों िें सम्पूणा ब्रम्हाण्ड अपने सपने दे ख रहा है । न
ही तम्
ु हारा घर केवल तम्
ु हारा घर है । यह तम्
ु हारे िेहिान का और उस िक्खी, उस िूहे, उस
बबकली, और उन सब प्राखणयों का भी घर है जो तुम्हारे साथ उसका उपयोग करते हैं ।इसमलए, बाड़ों
से साविान रहो । ति
ु केवल भ्रि को बाद के अींदर लाते हो और सत्य को बाद के बाहर तनकलते हो
। और जब तुि अपने आप को बाद के अींदर दे खने के मलए िुड़ते हो, तो अपने सािने खडा पाते हो
ित्ृ यु को जो भ्रि का दस
ू रा नाि है ।िनुष्य को, हे सािओ
ु प्रभु से अलग नहीीं ककया जा सकता;
और इसमलए अपने साथी िनुष्य से और अन्य प्राखणयों से भी उसे अलग नहीीं ककया जा सकता
क्योंकक वे भी शब्द से उत्पन्न हुए हैं |शब्द सागर है, तुि बादल हो, और बादल क्या बादल हो
सकता है यदद सागर उसके अींदर न हो? तनिःसींदेह िख ू ा हैं वह बादल जो अपने रूप और अपने
अल्स्तत्व को सदा के मलए बनाये रखने के उद्दे श्य से आकाश िें अिर टीं गे रहने के प्रयास िें ही
अपना जीवन नष्ट करना िाहता है । अपने िूखत
ा ापूणा श्रि का उसे भग्न आशाओीं और कटु
मिथ्यामभिान के मसवाय और क्या िल प्राप्त होगा? यदद वह अपने आप को गाँवा नहीीं दे ता, तो
अपने आपको प ् नहीीं सकता । यदद वह बादल के रूप िें िरकर लप्ु त नहीीं हो जाता, तो अपने अींदर
के सागर को पा नहीीं सकता जो एकिात्र उसका अल्स्तत्व है ।िनष्ु य एक बादल है जो प्रभु को अपने
अींदर मलए हुए है । यदद वह अपने आप से िरक्त नहीीं हो जाता, तो वह अपने आप को पा नहीीं
सकता । आह, ककतना आनींद है िरक्त हो जाने िें !यदद तुि अपने आप को सदा के मलए शब्द िें
खो नहीीं दे ते तो ति
ु उस शब्द को सिि नहीीं सकते जो की तुि स्वयीं हो, जो की तम्
ु हारा ”िैं” ही है
। आह, ककतना आनींद है खो जाने िें !िैं ति ु से किर कहता हूाँ, ददव्य ज्ञान के मलए प्राथाना करो ।
जब तम्
ु हारे अन्तर िें ददव्य ज्ञान प्रकट हो जाएगा, तो प्रभु के ववशाल साम्राज्य िें ऐसा कुछ नहीीं
होगा जो तम् ु हारे द्वारा उच्िािरत प्रत्येक ”िैं” का उिर एक प्रसन्न हुाँकार से न दे ।और तब स्वयीं
ित्ृ यु तम्
ु हारे हाथों िें केवल एक अस्त्र होगी ल्जससे तुि ित्ृ यु को पराल्जत कर सको । और तब
जीवन तम्
ु हारे हृदय को असीि ह्रदय की कींु जी प्रदान करे गा । वह है प्रेि की सन
ु हरी कींु जी ।शिदाि
;– िैंने स्वप्न िें भी ककपना नहीीं की थी की जत
ू े बतान पोंछने के चिथड़े और िाड़ू िें से इतनी
बुद्चिििा तनिोड़ी जा सकती है । (उसका सींकेत िीरदाद के सेवक होने की ओर था )िीरदाद :–
बद्
ु चििानों के मलए सब कुछ बद्
ु चिििा का भण्डार है ।. बद्
ु चि हीनों के मलए बद्
ु चिििा स्वयीं एक
िूखत
ा ा है । शिदाि : — तेरी जब
ु ान, तनिःसींदेह बड़ी ितुर है । आश्िया है कक तन
ू े इसे इतने सिय
तक लगाि ददए रखी । परन्तु तेरे शब्द बहुत कठोर और कदठन हैं ।िीरदाद;– िेरे शब्द तो सरल हैं
शिदाि । कदठन तो तुम्हारे कानों को लगते हैं । अभागे हैं वे जो सन
ु कर भी नहीीं सन
ु ते; अभागे हैं
वे जो दे खकर भी नहीीं दे खते ।शिदाि:– िुिे खब
ू सन
ु ाई और ददखाई दे ता है, शायद जरुरत से कुछ
ज्यादा ही । किर भी िैं ऐसी िख
ू त
ा ा की बात नहीीं सन
ु ाँग
ू ा कक शिदाि और िीरदाद दोनों सािान हैं;
कक िामलक और नौकर िें कोई अींतर नहीीं ।
* पूरा अल्स्तत्व ही *
एक दस
ू रे की सेवा िें लीन है

अध्याय 6
िीरदाद :– िीरदाद ही शिदाि का
एकिात्र सेवक नहीीं है ।
शिदाि……..क्या तुि अपने सेवकों की
चगनती कर सकते हो ?
क्या कोई गरुड या बाज है;
क्या कोई दे वदार या बरगद है ;
क्या कोई पवात या नक्षत्र है;
क्या कोई िहासागर या सरोवर है;
क्या कोई ़ििरश्ता या बादशाह है
जो शिदाि की सेवा न कर रहा हो ?
क्या सारा सींसार ही शिदाि की सेवा िें नहीीं है ?
न ही िीरदाद शिदाि का एक िात्र स्वािी है ।
शिदाि, क्या तुि अपने स्वामियों
की चगनती कर सकते हो ?
क्या कोई भींग
ृ ी या कीट है;
क्या कोई उकलू या गौरै या है;
क्या कोई कााँटा या टहनी है;
क्या कोई कींकर या सीप है;
क्या कोई ओस-बबींद ु या तालाब है;
क्या कोई मभखारी या िोर है
ल्जसकी शिदाि सेवा न कर रहा हो ?
क्या शिदाि सम्पूणा सींसार की सेवा िें नहीीं है ?
क्योंकक अपना काया करते हुए
सींसार तम्
ु हारा काया भी करता है ।
और अपना काया करते हुए
तुि सींसार का काया भी करते हो ।
हााँ……..
िस्तक पेट का स्वािी है;
परन्तु पेट भी िस्तक
का कि स्वािी नहीीं ।
कोई भी िीज सेवा नहीीं कर सकती
जब तक सेवा करने िें
उसकी अपनी सेवा न होती हो ।
और कोई भी िीज सेवा नहीीं करवा सकती
जब तक उस सेवा से
सेवा करने वाले की सेवा न होती हो ।
शिदाि…..िैं ति
ु से और सभी से कहता हूाँ,
सेवक स्वािी का स्वािी है,
और स्वािी सेवक का सेवक ।
सेवक को अपना मसर न िक
ु ाने दो ।
स्वािी को अपना मसर न उठाने दो ।
क्रूर स्वािी के अहींकार को कुिल डालो ।
शमिान्दा सेवक की शमिान्दगी को जड़ से उखाड़ िेंको |
याद रखो,शब्द एक है ।
और उस शब्द के अक्षर होते हुए
तुि भी वास्तव िें एक ही हो ।
कोई भी अक्षर ककसी अन्य अक्षर से श्रेष्ठ नहीीं,
न ही ककसी अन्य अक्षर से अचिक आवश्यक है ।
अनेक अक्षर एक ही अक्षर हैं,
यहााँ तक कक शब्द भी ।
तम्
ु हे ऐसा एकाक्षर बनना होगा
यदद तुि उस अकथ आत्ि-प्रेि के
क्षखणक परि आनींद का अनभ
ु व
प्राप्त करना िाहते हो
जो सबके प्रतत,सब पदाथों के प्रतत, प्रेि है ।
शिदाि…
इस सिय िैं तुिसे उस तरह बात नहीीं कर रहा हूाँ
ल्जस तरह स्वािी सेवक से अथवा सेवक स्वािी से करता है ; बल्कक इस तरह बात कर रहा हूाँ
ल्जस तरह भाई भाई से बात करता है ।
तुि िेरी बातों से क्यों इतने व्याकुल हो रहे हो ?
ति
ु िाहो तो िि
ु े अस्वीकार कर दो ।
परन्तु िैं तम्
ु हे अस्वीकार नहीीं करूींगा ।
क्या िैंने अभी-अभी नहीीं कहा था
कक िेरे शरीर का िाींस
तम्
ु हारे शरीर के िाींस से मभन्न नहीीं है ?
िैं तुि पर वार नहीीं करूाँगा,
कहीीं ऐसा न हो कक िेरा रक्त बहे ।
इसमलए अपनी जबान को म्यान िें ही रहने दो,
यदद तुि अपने रक्त को बहने से बिाना िाहते हो ।
िेरे मलए अपने ह्रदय के द्वार खोल दो,
यदद तुि उन्हें व्यथा और पीड़ा
के मलए बींद कर दे ना िाहते हो ।
ऐसी ल्जव्हा से
ल्जसके शब्द काींटे और जाल हों
ल्जव्हा का न होना कींहीीं अच्छा है ।
और जब तक ल्जव्हा ददव्य
ज्ञान के द्वारा स्वच्छ नहीीं
की जाती तब तक उससे तनकले
शब्द सदा घायल करते रहें गे
और जाल िें िाँसाते रहें गे |
हे सािुओ…….
िेरा आग्रह है कक तुि अपने ह्रदय को टटोलो ।
िेरा आग्रह है कक ति
ु उसके अींदर के
सभी अवरोिों को उखाड़ िेंको ।
िेरा आग्रह है कक तुि उन
पोतड़ों को ल्जनिे तम्
ु हारा ;
िैं; अभी मलपटा हुआ है
िेंक दो,
ताकक तुि दे ख सको
कक अमभन्न है तम्
ु हारा ‘िैं’
प्रभु के शब्द से जो
अपने आपिें सदा शाींत है
और अपने िें से उत्पन्न हुए
सभी खण्डों–ब्रम्हान्डों के साथ
तनरीं तर एक- स्वर है ।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को ।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे है …
नरौन्दा;–इसके बाद हि सबको अवाक
और लल्ज्जत छोड़कर िीरदाद
अपनी कोठरी िें िला गया ।
कुछ सिय के िौन के बाद,
ल्जसका बोि असह्य हो रहा था,
सभी साथी उठकर जाने लगे और
जाते जाते हर साथी ने िीरदाद के
ववषय िें अपना वविार प्रकट ककया ।
शिदाि;– राज-िुकुट के स्वप्न दे खने वाला एक मभखारी ।
मिकेयन:- यह वही है जो गुप्त रूप से हजरत नूह की नौका िें सवार हुआ था ।
इसिें कहा नहीीं था, ”यही मशक्षा थी िेरी नह
ू को ?”
अबबिार:- उलिे हुए सतू की एक गच्
ु छी ।
मिकास्तर :- ककसी दस
ु रे ही आकाश का एक तारा ।
बैनन
ू :- एक िेिावी पुरुष, ककन्तु परस्पर ववरोिी बातों िें खोया हुआ ।
जिोरा :- एक ववलक्षण रबाब ल्जसके स्वरों को हि नहीीं पहिानते ।
दहम्बल :- एक भटकता शब्द ककसी सहृदय श्रोता की खोज िें
हर शब्द को प्राथाना
िें ढाल दो प्रभु िागा के मलए

अध्याय -7
मिकेयन और नरौंदा
रात को िीरदाद से बातिीत करते हैं
जो भावी जल-प्रलय का सींकेत दे ता है और
उनसे तैयार रहने का आग्रह करता है
***************************************
नरौन्दा :- राबत्र के तीसरे पहर की
लगभग दस
ू री घडी थी
जब िि
ु े लगा कक
िेरी कोठरी का द्वार खल
ु रहा है
और िैंने मिकेयन को िीिे स्वर िें कहते सुना….
क्या तुि जाग रहे हो, नरौन्दा ?””
इस रात िेरी कोठरी िें नीींद का
आगिन नहीीं हुआ है……मिकेयन
‘ न ही नीींद ने आकर िेरी आाँखों िें बसेरा ककया है । और वह क्या ति
ु सोिते हो कक वह सो रहा है
?””
तम्
ु हारा ितलब िमु शाद से है ?….
तुि अभी से उसे िुमशाद कहने लगे ?
शायद वह है भी ।
जब तक िैं तनश्िय नहीीं कर लेता
की वह कौन है,
िैं िैन से नहीीं बैठ सकता ।
िलो…..
इसी क्षण उसके पास िलें ।
हि दबे पााँव िेरी कोठरी से तनकले और िमु शाद की कोठरी िें जा पहुींिे ।
िीकी पड़ रही िाींदनी की कुछ ककरणें
दीवार के उपरी भाग के एक तछद्र से
िोरी तछपे घुसती हुई
उसके सािारण-से बबस्तर पर पड़ रहीीं थीीं
जो सा़ि-सुथरे ढीं ग से िरती पर बबछा हुआ था । स्पस्ट था कक उस रात उस पर कोई सोया न था ।
ल्जसकी तलाश िें हि वहाीं आये थे,
वह वहाीं नहीीं मिला ।
िककत, लल्ज्जत और तनराश हि लौटने ही लगे थे
की अिानक…..
इससे पहले कक हिारी आाँखे द्वार पर
उसके करुणािय िुख की िलक पातीीं,
उसका कोिल स्वर हिारे कानो िें पड़ा ।
िीरदाद :- घबराओ ित, शाींतत से बैठ जाओ ।
मशखरों पर राबत्र तेजी से प्रभात िें ववलीन
होती जा रही है ।
ववलीन होने के मलए यह घडी बड़ी अनुकूल है ।
मिकेयन :- ( उलिन,और रुक-रुक कर) इस अनाचिकार प्रवेश के मलए क्षिा करना ।
रात- भर हि सो नहीीं पाये ।
िीरदाद:- बहुत क्षखणक होता है
नीींद िें अपने आपको भल
ू जाना ।
नीींद की हलकी-हलकी िपककयााँ लेकर
अपने को भूलने से बेहतर हैं
जागते हुए ही अपने आपको
पूरी तरह से भल
ु ा दे ना । ….
िीरदाद से ति
ु क्या िाहते हो ?…
मिकेयन:- हि यह जानने के मलए आये थे
की तुि कौन हो ।
िीरदाद:- जब िैं िनुष्यों के साथ होता हूाँ
तो परिात्िा हूाँ ….
जब परिात्िा के साथ
तो िनुष्य ।
क्या ति
ु ने जान मलया मिकेयन ?
मिकेयन:- तुि परिात्िा की तनींदा कर रहे हो ।
िीरदाद:- मिकेयन के परिात्िा की-शायद हााँ,
िीरदाद के परिात्िा की बबलकुल नहीीं ।
मिकेयन:- क्या ल्जतने िनुष्य हैं उतने ही परिात्िा हैं
जो ति
ु िीरदाद के मलए एक परिात्िा की
और मिकेयन के मलए
दस
ु रे परिात्िा की बात करते हो ?
िीरदाद:- परिात्िा अनेक नहीीं हैं ।
परिात्िा एक है ।
ककन्तु िनष्ु यों की परछाइयााँ
अनेक और मभन्न-मभन्न हैं ।
जब तक िनुष्यों की परछाइयााँ
िरती पर पड़ती हैं,
तब तक ककसी िनुष्य का
परिात्िा उसकी परछाईं से बड़ा नहीीं हो सकता ।
केवल परछाईं -रदहत िनष्ु य ही
पूरी तरह से प्रकाश िें है ।
केवल परछाईं-रदहत िनुष्य ही
उस एक परिात्िा को जानता है ।
क्योंकक परिात्िा प्रकाश है,
और केवल प्रकाश ही
प्रकाश को जान सकता है ।
मिकेयन:- हिसे पहे मलयों िें बात ित करो ।
हिारी बद्
ु चि अभी बहुत िन्द है ।
िीरदाद:- जो िनुष्य परछाईं का पीछा करता है,
उसके मलये सबकुछ ही पहे ली है ।
ऐसा िनुष्य उिार ली हुई रौशनी िें िलता है,
इसमलए वह अपनी परछाईं से ठोकर खाता है ।
जब ति
ु ददव्य ज्ञान के प्रकश से ििक उठोगे
तब तम्
ु हारी कोई परछाईं रहे गी ही नहीीं ।
शीघ्र ही िीरदाद परछाइयााँ
इकट्ठी कर लेगा
और उन्हें सय
ू ा के ताप िें जला डालेगा ।
तब वह सब जो इस सिय तम्
ु हारे मलए पहे ली है,
एक ज्वलींत सत्य के रूप िें
सहसा तम्
ु हारे सािने प्रकट हो जायेगा,
और वह सत्य इतना प्रत्यक्ष होगा
कक उसे ककसी व्याख्या की आवश्यकता नहीीं होगी..
मिकेयन :- क्या तुि हिें बताओगे नहीीं
कक तुि कौन हो?
यदद हिे तम्
ु हारे नाि का–
तम्
ु हारे वास्तववक नाि का—
तथा तम्
ु हारे दे श
और तम्
ु हारे पव
ू ज
ा ों का ज्ञान होता
तो शायद हि तम्
ु हे अचिक
अच्छी तरह से सिि लेते ।
िीरदाद :- ओह, मिकेयन !
िीरदाद को अपनी जींजीरों िें बााँिने
और अपने पदों िें तछपाने का
तम्
ु हारा यह प्रयास ऐसा ही है
जैसा गरुड को वापस उस खोल िें
ठूींसना ल्जसिे से वह तनकला था ।
क्या नाि हो सकता है
उस िनुष्य का
जो अब ‘खोल के अींदर ‘ है ही नहीीं ?
ककस दे श की सीिाएाँ
उस िनुष्य को
अपने अींदर रख सकती हैं
ल्जसिे एक ब्रम्हाण्ड सिाया हुआ है ?
कौन-सा वींश उस िनष्ु य को अपना कह सकता है ल्जसका एकिात्र पव
ू ज
ा स्वयीं परिात्िा है ?
यदद तुि िुिे अच्छी तरह से
जानना िाहते हो, मिकेयन,
तो पहले मिकेयन को अच्छी तरह से जान लो ।
मिकेयन :- शायद तुि िनुष्य का िोला पहने एक ककपना हो ।
िीरदाद :- हााँ लोग ककसी ददन कहें गे कक िीरदाद केवल एक ककपना था ।
परन्तु तुम्हे शीघ्र ही पता िल जायेगा कक यह ककपना ककतनी यथाथा है —
िनुष्य के ककसी भी प्रकार के यथाथा से ककतनी अचिक यथाथा ।
इस सिय सींसार का ध्यान िीरदाद की ओर नहीीं है ।
पर िीरदाद सींसार को सदा ध्यान िें रखता है ।
सींसार भी शीघ्र ही मिरदाद की ओर ध्यान दे गा…..
मिकेयन:- कहीीं ति ु वही तो नहीीं जो गुप्त रूप से नूह की नौका िें सवार हुआ था ?
िीरदाद:- िैं प्रत्येक उस नाव िें गप्ु त रूप से सवार हुआ व्यल्क्त हूाँ जो भ्रि के ति
ू ानों से जि
ू रही है

जब भी उन नौकाओीं के कप्तान िुिे सहायता के मलये पुकारते हैं,
िैं आगे बढ़कर पतवार थाि लेता हूाँ ।
तम्
ु हारा ह्रदय भी,िाहे तुि नहीीं जानते,
दीघाकाल से उच्ि स्वर िें िि
ु े पक
ु ार रहा है ।
और दे खो !
िीरदाद तम्
ु हे सुरक्षक्षत खेने के मलए यहााँ आ गया है ताकक अपनी बारी आने पर तुि सींसार को खेकर
उस जल-प्रलय से बाहर तनकल सको
ल्जससे बड़ा जल-प्रलय कभी दे खा या सन
ु ा न गया होगा ।
मिकेयन:- एक और जल-प्रलय ?
मिरदाद :- िरती को बहा दे ने के मलए नहीीं,
बल्कक िरती के अींदर जो स्वगा है उसे बाहर लाने के मलए ।
िनुष्य का तनशान तक मिटा दे ने के मलए नहीीं,
बल्कक िनुष्य के अींदर तछपे
परिात्िा को प्रकट करने के मलए ।
मिकेयन :- अभी कुछ ही ददन तो हुए हैं जब इींद्रा-िनुष ने सात रीं गों से हिारे आकाश को सश
ु ोमभत
ककया था,
और तुि दस
ु रे जल-प्रलय की बात करते हो |
िीरदाद:- नूह के जल-प्रलय से अचिक ववनाशकारी होगा यह जल-प्रलय ल्जसकी ति
ू ानी लहरें अभी से
उठ रही हैं ।
जल िें डूबी िरती के गभा िें वसींत का वादा होता है । लेककन अपने ही तप्त लहू िें उबल रही िरती
ऐसी नहीीं होती ।
मिकेयन:- तो क्या हि सििें कक अन्त आनेवाला है ? क्योंकक हिें बताया गया था
कक गप्ु त रूप से नौका िें सवार होने वाले व्यल्क्त का आगिन अन्त का सि
ू क होगा ।
िीरदाद:- िरती के बारे िें कोई आशींका ित करो । अभी उसकी आयु बहुत कि है,
और उसके वक्ष का दि ू उसके अींदर
सिा नहीीं रहा है ।
अभी और इतनी पीदढयाीं
उसके दि
ू पर पलेंगी
कक तुि उन्हें चगन नहीीं सकते ।
न ही िरती के स्वािी िनुष्य
के मलए चिींता करो,
क्योंकक वह अववनाशी है ।
हााँ…….
अमिट है िनष्ु य ।
हााँ…अक्षय है िनष्ु य ।
वह भट्ठी िें प्रवेश िनुष्य–
रूप िें करे गा और तनकलेगा परिात्िा बनकर ।
ल्स्थर रहो ।
तैयार रहो ।
अपनी आाँखों, कानों और ल्जव्हाओीं को
भूखा रखो,
ताकक तम्
ु हारा ह्रदय उस पववत्र भूख का
अनुभव कर सके
ल्जसे यदद एक बार शाींत कर ददया जाये
तो वह सदा के मलये तप्ृ त कर दे ती है ।
तम्
ु हे सदा तप्ृ त रहना होगा,
ताकक तुि अतप्ृ तों को तल्ृ प्त प्रदान कर सको ।
तम्
ु हे सदा सबल और ल्स्थर रहना होगा,
ताकक ति
ु तनबाल और डगिगाने
वालों को सहारा दे सको ।
तम्
ु हे तू़िान के मलये सदा तैयार रहना होगा,
ताकक तुि त़ि
ू ान-पीड़ड़त बेआसरों को आसरा दे सको । तम्
ु हे सदा प्रकाशवान रहना होगा,
ताकक तुि अन्िकार िें िलनेवालों को
िागा ददखा सको ।
तनबाल के मलए तनबाल बोि है ;
परन्तु के मलए एक सुखद दातयत्व ।
तनबालों की खोज करो;
उनकी तनबालता तम्
ु हारा बल है ।
भूखे के मलए भूखे केवल भख
ू हैं;
परन्तु तप्ृ त के मलए कुछ दे ने का शुभ अवसर ।
भूखों की खोज करो; उनकी भूींख तम्
ु हारी तल्ृ प्त है ।
अींिे के मलए अींिे रास्ते के पत्थर हैं; परन्तु आींखोंवालों के मलए िील-पत्थर ।
अींिों की खोज करो; उनका
अन्िकार तम्
ु हारा प्रकाश है ।
नरौन्दा:- तभी प्रभात की प्राथाना के लीये आह्वान करता हुआ बबगुल बज उठा ।
िीरदाद:- जिोरा एक नये ददन के आगिन का बबगुल बजा रहा है –एक नये िित्कार के आगिन का
ल्जसे तुि गवाीं दोगे उठने–बैठने के बीि,
जींभाइयाीं लेते हुए, पेट को भरते
और खली करते हुए,
व्यथा के शब्दों से अपनी
ल्जव्हा को पैनी करते हुए और
ऐसे अनेक काया करते हुए
ल्जन्हें न करना बेहतर होता,
और ऐसे काया न करते हुए
ल्जन्हें करना आवश्यक है |
मिकेयन:- तो क्या हि प्राथाना के मलये न जायें ? िीरदाद:- जाओ ! करो प्राथाना
जैसे तुम्हे मसखाया गया है । जैसे भी हो सके प्राथाना करो, ककसी भी पदाथा के मलय करो ।
जाओ ! तम्
ु हे जो कुछ भी करने के आदे श मिले हैं
वह सब कुछ करो जब
तक ति
ु आत्ि- मशक्षक्षत और आत्ि-
तनयींबत्रत न हो जाओ,
जब तक तुि हर शब्द को
एक प्राथाना, हर काया को
एक बमलदान बनाना न सीख लो ।
शाींत िन से जाओ ।
िीरदाद को तो दे खना है
कक तम्
ु हारा सुबह का खाना
पयााप्त तथा स्वाददष्ट हो ।
सीिाएाँ न िैलाओ
☞ िैलते जाओ ☜

अध्याय 8
सात साथी िीरदाद से मिलने नीड़ िें जाते हैं
जहााँ वह उन्हें अाँिेरे िें काि करने से
साविान करता है
*************************************
नरौन्दा :- उस ददन िैं और मिकेयन
प्रभात की प्राथाना िें गए ही नहीीं ।
शिदाि को हिारी अनप
ु ल्स्थतत आखखर
और यह पता लग जाने पर
कक हि रात को िमु शाद से मिलने गए थे ।
वह बहुत अप्रसन्न हुआ ।
किर भी उसने अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीीं की;
उचित सिय की प्रतीक्षा करता रहा ।
बाींकी साथी हिारे व्यवहार से बहुत
उिेल्जत हो गये थे और उसका
कारण जानना िाहते थे ।
कुछ ने सोिा कक हिें हिें
प्राथाना िें शामिल न होने
की सलाह िुमशाद ने दी थी ।
अन्य कुछ साचथयों ने
उसकी पहिान के सम्बन्ि िें
कौतह
ू लपण
ू ा अटकलें लगाते हुए कहा
कक अपने आपको केवल हि पर
प्रकट करने के मलए िमु शाद ने हिें रात को अपने पास बल
ु ाया था ।
कोई भी यह िानने को तैयार नहीीं था
कक िीरदाद ही गुप्त रूप से नूह की
नौका िें सवार होने वाला व्यल्क्त था ।
ककन्तु सभी उससे मिलने
और अनेक बबषयों पर
उससे प्रश्न पछ
ू ने के इच्छुक थे ।
िुमशाद की आदत थी कक जब वे
नौका िें अपने कायों से िक्
ु त होते
तो अपना सिय काले खड्ड के
कगार पर दटकी गि
ु ा िें बबताते ।
इस गुिा को हि आपस िें नीड
कहकर पुकारते थे ।
उसी ददन दोपहर,
शिदाि के अततिरक्त हि सबने उन्हें वहाीं ढूींढ़ा
और ध्यान िें डूबे हुए पाया ।
उनका िेहरा ििक रहा था;
वह और भी ििक उठा
जब उनहोंने आाँखें ऊपर उठाई
और हिारी ओर दे खा ।
िीरदाद:- ककतनी जकदी तुिने
अपना नीड़ ढूींढ़ मलया है ।
िीरदाद तम्
ु हारी खाततर इस बात पर खश
ु है ।
अबबिार:- हिारा नीड़ तो नौका है ।
तुि कैसे कहते हो कक यह गुिा हिारा नीड़ है ?
िीरदाद:- नौका कभी नीड़ थी |
अबबिार:- और आज ।
िीरदाद:- अ़िसोस !
केवल एक छुछुींदर का बबल ।
अबबिार:- हााँ, आठ प्रसन्न छछूींदर और नौवाीं िीरदाद ।
िीरदाद:- ककतना आसान है िजाक उड़ाना;
सििना ककतना कदठन ।
पर िजाक ने सदा िजाक उड़ाने
वाले का िजाक उड़ाया है ।
अपनी ल्जव्हा को व्यथा कष्ट क्यों दे ते हो ।
अबबिार:- िजाक तो तुि हिारा उड़ाते हो जब हिें छछूींदर कहते हो ।
हिने ऐसा क्या ककया है
कक हिें यह नाि ददया जाये ?
क्या हिने हजरत नह
ू की
ज्योतत को जलाये नहीीं रखा ?
क्या हिने इस नौका को,
जो कभी िट्
ु ठी भर
मभखािरयों के मलये एक कुदटया-िात्र थी,
सबसे अचिक सिद्
ृ ि िहल से भी
ज्यादा सिद्
ृ ि नहीीं बना ददया ?
क्या हिने इसकी सीिाओीं का
दरू तक ववस्तार नहीीं ककया
जब तक कक यह एक
शल्क्तशाली साम्राज्य नहीीं बन गई ?
यदद हि छछूींदर हैं
तो तनिःसींदेह मशरोिखण हैं
हि बबल खोदने वालों िें ?
िीरदाद:- हजरत नह
ू की ज्योतत जल तो रही है,
ककन्तु केवल वेदी पर ।
यह ज्योतत तुम्हारे ककस काि की
यदद तुि स्वयीं वेदी न बने,
और नहीीं बने तम्
ु हारे ह्रदय ईंिन और तेल ?
नौका इस सिय सोने िाींदी
से बहुत अचिक लदी हुई है;
इसमलए इसके जोड़ िराा रहे हैं,
यह जोर से डगिगा रही है
और डूबने को तैयार है ।
जबकक िााँ-नौका जीवन से भरपरू थी
और उसिे कोई जड़ बोि नहीीं था;
इसमलये सागर उसके ववरुद्ि शल्क्तहीन था ।
जड़ बोि से साविान,
िेरे साचथयों ।
ल्जस िनष्ु य को अपने
ईश्वरत्व िें दृढ़ ववश्वास है
उसके मलये सबकुछ जड़ बोि है ।
वह सींसार को अपने अींदर िारण करता है,
ककन्तु सींसार का बोि नहीीं उठाता |
िैं तुिसे कहता हूाँ…..
यदद तुि अपने सोने और िाींदी को सिद्र
ु िें िेंककर नाव को हकका नहीीं कर लोगे,
तो वे तम्
ु हे अपने साथ सिद्र
ु की
तह तक खीींि ले जायेंगे ।
क्योंकक िनष्ु य ल्जस वास्तु
को कसकर पकड़ता है,
वही उसको जकड लेती है
वस्तओ
ु ीं को अपनी पकड़
से िुक्त कर दो
यदद तुि अपनी जकड से बिना िाहते हो ।
ककसी भी वस्तु का िोल न लगाओ,
क्योंकक सािारण से सािारण
वस्तु भी अनिोल होती है ।
तुि रोटी का िोल लगाते हो ।
सूय,

िरती,
वाय,

िरती,
सागर तथा िनुष्य के पसीने
और ितुरता का िोल क्यों नहीीं लगाते
ल्जनके बबना रोटी हो ही नहीीं सकती थी ?
ककसी भी वस्तु का िोल न लगाओ,
कहीीं ऐसा न हो तुि
अपने प्राणों का िोल लगा बैठो
िनुष्य के प्राण उस वस्तु से
अचिक िक
ू यवान नहीीं होते
ल्जस वस्तु को वह िक
ू यवान िानता है ।
ध्यान रखो…..
ति
ु अपने अनिोल प्राणों को कहीीं
सोने ल्जतना सस्ता न िान लो
नौका की सीिाएाँ तुिने
िीलों दरू तक िैला दी हैं ।
यदद तुि उन्हें िरती की
सीिाओीं तक भी िैला दो,
किर भी तुि सीिा के अींदर रहोगे
और उनिे कैद रहोगे ।
िीरदाद िाहता है
कक तुि अनींतता के के िरों
ओर सीिा रे खा खीींि दो,
उससे आगे तनकल जाओ ।
सिुद्र िरती पर दटकी एक बद
ूीं -िात्र है,
किर भी यह उसकी सीिा बना हुआ है,
उसे अपने घेरे िें मलये हुए है ।
और िनष्ु य तो उससे और भी कहीीं
अचिक असीि सागर है ।
ऐसे नादान न बनो
कक िनुष्य को एडी से छोटी तक
नाप कर यह सिि बैठो कक
ति
ु ने उसकी सीिाएाँ पा ली हैं ।
तुि बबल खोदनेवालों िें
मशरोिखण हो सकते हो,
जैसा की अबबिार ने कहा है;
परन्तु केवल उस छछूींदर की
तरह जो अाँिेरे िें काि करता है ।
ल्जतनी अचिक जदटल उसकी
भूलभुलैयााँ हों उतना ही दरू होता है
सूया से उसका िुख ।
िैं तम्
ु हारी भल
ू भल
ु य
ै ााँ
को जानता हूाँ, अबबिार ।
तुि िट
ु ठी भर प्राणी हो,
जैसा तुि कहते हो,
और कहने को सींसार के सब
प्रलोभनों से िक्
ु त और
परिात्िा को सिवपात हो ।
परन्तु कुदटल और अींिकारपण
ू ा है
वे रास्ते जो तुम्हे सींसार के साथ जोड़ते हैं ।
क्या िि
ु े तुम्हारे िनोवेग ििलते,
िुींकारते सन
ु ाई नहीीं दे ते ?
क्या िि
ु े तुम्हारी ईष्यााएाँ
तम्
ु हारे परिात्िा की वेदी पर रें गती
और तडपती ददखाई नहीीं दे तीीं ?
भले ही तुि िट्
ु ठी भर हो परन्त,

ओह,
ककतना ववशाल जनसिूह है
उस िट्
ु ठी भर िें !
यदद तुि वास्तव िें ही
बबल खोदनेवालों िें मशरोिखण होते,
जो तुि कहते हो तुि हो,
तो तुि खोदते-खोदते
बहुत पहले िरती िें से ही नहीीं,
सूया िें से भी तथा
गगन-िण्डल िें िक्कर काटते
हर ग्रह- उपग्रह िें से भी
अपनी राह बना ली होती
छछुन्दरों को थथ
ू नो
और पींजों से अपनी अाँिेरी
राहें बनाने दो तम्
ु हे अपना
राजपथ ढूींढने के मलये
पलक तक दहलाने की आवश्यकता नहीीं ।
इस नीड़ िें बैठे रहो
और अपनी ददव्य ककपना को उड़ान भरने दो ।
उस पथ-रदहत अल्स्तत्व के,
जो तम्
ु हारा साम्राज्य है,
अद्भत
ु खजानों तक पहुाँिने के मलये
यही तम्
ु हारा ददव्य पथ-प्रदशाक है ।
सशक्त और तनभाय िन से
अपने पथ-प्रदशाक के पीछे -पीछे िलो ।
उसके पद-चिन्ह िाहे वे दरू ति नक्षत्र पर हों,
तम्
ु हारे मलये इस बात का सि
ू क
और जिानत होंगे
कक तम्
ु हारी जड़ वहाीं
पहले ही रोपी जा िुकी है ।
क्योंकक तुि ऐसी ककसी
भी वस्तु की ककपना नहीीं कर सकते
जो पहले से तम्
ु हारे भीतर न हों,
या तम्
ु हारा अींग न हों ।
वक्ष
ृ अपनी जड़ों से आगे नहीीं ़िैल सकता,
जबकक िनष्ु य असीि तक ़िैल सकता है,
क्योंकक उसकी जड़ें अनींत िें हैं ।
अपने मलए सीिाएाँ तनिाािरत ित करो ।
िैलते जाओ
जब तक कक ऐसा कोई लोक न रहे
ल्जसिे तुि न होओ ।
िैलते जाओ जब तक
कक सारा सींसार वहााँ न हो
जहााँ सींयोगवश ति
ु होओ ।
िैलते जाओ ताकक जहााँ कहीीं भी
तुि अपने आपसे मिलो,
तुि प्रभु से मिलो ।
िैलते जाओ । िैलते जाओ !
अाँिेरे िें इस भरोसे कोई काया न करो
कक अन्िकार एक ऐसा आवरण है
ल्जसे कोई दृल्ष्ट बेि नहीीं सकती ।
यदद तम्
ु हे अन्िकार से अींिे हुए
लोगों से शिा नहीीं आती तो कि
से कि जुगनओ
ु ीं और
ििगादड़ों से तो शिा करो ।
अन्िकार का कोई अल्स्तत्व नहीीं है,
िेरे साचथयो ।
प्रकाश की िात्रा सींसार के हर
जीव की आवश्यकता की पतू ता
के मलये कि या अचिक होती है ।
तम्
ु हारे ददन का खल
ु ा प्रकाश
अिर पक्षी* के मलये साींि का िट
ु पट
ु ा है ।
तम्
ु हारी घनी अाँिेरी रात
िेंढक के मलये जगिगाता ददन है ।
यदद स्वयीं अन्िकार पर से ही
आवरण हटा ददये जायें
तो वह ककसी वस्तु के मलये
आवरण कैसे हो सकता है ?
ककसी भी वस्तु को ढकने का यत्न न करो ।
यदद यदद और कुछ तम्
ु हारे
रहस्यों को प्रकट नहीीं करे गा तो
उनका आवरण ही उन्हें प्रकट कर दे गा ।
क्या ढक्कन नहीीं जानता
की बतान के अींदर क्या है ?
ककतनी दद
ु ा शा होती है सााँपों
और कीड़ों से भरे बतानों की
जब उन पर से ढक्कन उठा ददये जाते हैं ।
िैं तुिसे कहता हूाँ, तम्
ु हारे अींदर
से एक भी ऐसा स्वास नहीीं तनकलता
जो तम्
ु हारे ह्रदय के गहरे से गहरे
रहस्यों को वापु िें बबखेर नहीीं दे ता ।
ककसी आाँख से एक भी
ऐसी क्षखणक दृष्टी नहीीं तनकलती
जो उसकी सभी लालसाओीं
तथा भयों को,
उसकी िस्
ु कानों तथा
अश्रुओीं को साथ न मलये हो ।
ककसी द्वार िें एक भी ऐसा
सपना प्रववष्ट नहीीं हुआ है
ल्जसने अन्य सब द्वारों पर
दस्तक न दी हो ।
तो ध्यान रखो तुि कैसे दे खते हो ।
ध्यान रखो ककन सपनों को
ति
ु द्वार के अींदर आने दे ते हो
और ककन्हें तुि पास से तनकल जाने दे ते हो ।
यदद तुि चिींता और पीड़ा से िुक्त होना िाहते हो,
तो िीरदाद तम्
ु हे ख़श
ु ी से रास्ता ददखायेगा ।
☞ आप का हर करि ☜
आकाश िें अींककत होता है

अध्याय 9

पीड़ा-िुक्त जीवन का िागा

मिकास्तर:- हिें िागा ददखाओ ।


िीरदाद; यह है चिींता और पीड़ा
से िल्ु क्त का िागा……
इस तरह सोिो िानो
तम्
ु हारे हर वविार को
आकाश िें अींककत होना है
ताकक उसे हर प्राणी,
हर पदाथा दे ख सके ।
और वास्तव िें वह अींककत होता भी है ।”
इस तरह बोलो िानो
सारा सींसार केवल
एक ही कान है
जो तम्
ु हारी बात सन
ु ने
के मलये उत्सुक है ।
और वास्तव िें वह उत्सक
ु है भी । ”
इस तरह किा करो िानो
तम्
ु हारे हर किा को
पलटकर तम्
ु हारे
मसर पर आना है ।
और वास्तव िें वह आता भी है । ”
इस तरह इच्छा करो िानो
ति
ु स्वयीं इच्छा हो ।
और वास्तव िें तुि हो भी । ”
इस तरह ल्जयो िानो
स्वयीं तम्
ु हारे प्रभु को
अपना जीवन जीने के
मलये तम्
ु हारी आवश्यकता है ।
और वास्तव िें उसे आवश्यता है भी ।”
दहम्बल: और कब तक तुि
हिें उलिन िें रखोगे, िीरदाद ?
तुि हिसे ऐसे बात करते हो
जैसे कभी ककसी व्यल्क्त ने नहीीं की,
न हिने ककसी ककताब िें पढ़ी ।
बैनन
ू :- बताओ ति
ु कौन हो
ताकक हि जान सकें
कक तम्
ु हारी बात हि
ककस कान से सुनें ।
यदद तुि ही नूह की नौका िें
गप्ु त रूप से िढ़ने वाले व्यल्क्त हो
तो हिें इसका कोई प्रिाण दो ।
िीरदाद: ठीक कहा तुिने, बैनन
ू ।
तम्
ु हारे बहुत- से कान हैं,
इसमलये ति ु सनु नहीीं सकते।
यदद तम्
ु हारा केवल एक ही
कान होता
जो सन
ु ता और सििता,
तो तम्
ु हे ककसी प्रिाण की
आवश्यकता न होती ।
बैनन
ू :- नह
ू की नौका िें गप्ु त रूप से
िढ़नेवाले व्यल्क्त को सींसार के
बारे िें तनणाय करने के मलये
आना िादहये
और हि नौका के तनवामसयों को
भी तनणाय करने िें
उसके साथ बैठना िादहये ।
क्या हि
तनणाय-ददवस की तैयारी करें ?

यह सींसार गवाहीयाीं के मलए नहीीं


प्रेि बबखेरने के मलए है ।
***********************************
अध्याय 10
☞ तनणाय तथा तनणाय-ददवस ☜
**************************************
िीरदाद: िुिे कोई तनणाय नहीीं दे ना है,
दे ना है केवल ददव्य ज्ञान ।

िैं सींसार िें तनणाय दे ने नहीीं आया,


बल्कक उसे तनणाय के बींिन
से िुक्त करने आया हूाँ ।
क्योंकक केवल अज्ञान ही न्यायिीश
की पोशाक पहनकर क़ानन
ू के
अनस
ु ार दण्ड दे ना िाहता है ।
अज्ञान का सबसे तनष्ठुर
तनणाायक स्वयीं अज्ञान है ।
िनुष्य को ही लो ।
क्या उसने अज्ञानवश अपने
आपको िीरकर दो नहीीं कर डाला
और इस प्रकार अपने मलये तथा
उन सब पदाथों के मलये ल्जनसे
उसका खल्ण्डत सींसार बना है
उसने ित्ृ यु को तनिींत्रण नहीीं दे ददया ?
िैं तुिसे कहता हूाँ………
प्रभु और िनष्ु य अलग नहीीं है ।
केवल है प्रभु-िनुष्य या िनुष्य-प्रभु ।
वह एक है ।
उसे िाहे जैसा गुणा करें ,
िाहे जैसे भी भाग दें , वह सदा एक है ।
प्रभु का एकत्व उसका स्थाई वविान है ।
यह वविान स्वयीं लागू होता है ।
अपनी घोषणा के मलये,
या अपना गौरव तथा सिा
बनाये रखने के मलये इसे न न्यायालय की आवश्यकता है न न्यायािीश की ।
सम्पूणा ब्रम्हाींड–
जो दृश्य है और जो अदृश्य है –
एकिात्र िख
ु है जो तनरीं तर
इसकी घोषणा कर रहा है–
उनके मलये ल्जनके पास सन
ु ने के मलये कान हैं ।
सागर, िाहे वह ववशाल और गहरा है, क्या एक ही बद
ूीं नहीीं ?
िरती, िाहे वह इतनी दरू तक िैली है,
क्या एक ही ग्रह नहीीं ?
इसी प्रकार सम्पूणा िानव–जातत
एक ही िनुष्य है;
इसी प्रकार िनुष्य, अपने सभी सींसारों सदहत,
एक पूणा इकाई है ।
प्रभु का एकत्व,
िेरे साचथयों,
अल्स्तत्व का एकिात्र कानन
ू है ।
इस्क दस
ू रा नाि है प्रेि ।
इसे जानना और स्वीकार करना जीवन को स्वीकार करना है ।
अन्य ककसी कानन
ू को स्वीकार करना अल्स्तत्व-हीनता या ित्ृ यु को स्वीकार करना है ।
जीवन अन्तर िें मसिटना है;
ित्ृ यु बाहर बबखर जाना ।
जीवन जुड़ना है;ित्ृ यु टूट जाना ।
इसमलये िनुष्य,
जो द्वैतवादी है,
दोनों के बीि लटक रहा है ।
क्योंकक मसिटे गा वह अवश्य,
ककन्तु बबखरकर ही ।
और जुड़ग
े ा वह अवश्य,
ककन्तु टूटकर ही ।
मसिटने और जुड़ने िें वह
कानन
ू के अनस
ु ार आिरण करता है;
और जीवन होता है उसका परु स्कार ।
बबखरने और टूटने िें
वह कानन
ू के ववरुद्ि आिरण करता है;
और ित्ृ यु होता है उसका कटु पिरणाि ।
किर भी ति
ु , अपनी दृष्टी के दोषी हो,
उन िनुष्यों पर तनणाय दे ने बैठते हो
जो तम्
ु हारी ही तरह अपने आपको दोषी िानते हैं ।
ककत्ने भयींकर है तनणाायक और उनका तनणाय !
तनिःसींदेह, इससे कि होंगे ित्ृ य-ु दण्ड के दो
अमभयुक्त जो एक-दस
ू रे को
िााँसी की सजा सन
ु ा रहे हों ।
कि हास्यजनक होंगे,
एक ही जए
ु िें जत
ु े दो बैल जो
एक-दस
ू रे को जोतने की ििकी दे रहे हों ।
कि घखृ णत होंगे एक ही
कब्र िें पड़े दो शव जो
एक-दस
ू रे को कब्र के योग्य ठहरा रहे हों ।
कि दयनीय होंगे दो तनटप अींिे
जो एक-दस
ू रे की आाँखें नोि रहे हों ।
न्याय के हर आसन से बिो,िेरे साचथयो ।
क्योंकक ककसी भी व्यल्क्त या
वस्तु पर िैसला सन
ु ाने के मलये
तम्
ु हे न केवल उस कानून को जानना होगा
और उसके अनुसार जीवन बबताना होगा,
बल्कक गवादहयााँ भी सन
ु नी होंगी ।
और ककसी भी वविारािीन िक
ु द्दिे
िें तुि गवाही ककनकी सुनोगे ?
क्या तुि वायु को न्यायालय िें बुलाओगे ?
क्योंकक आकाश के नीिे जो कुछ भी होता है,
वायु उसके होने िें सहायक और प्रेरक होती है ।
या किर ति
ु मसतारों को तलब करोगे ?
क्योंकक सींसार िें जो भी घटनाएाँ घटती हैं,
मसतारे उनके रहस्यों से पिरचित होते हैं ।
या किर तुि आदि से लेकर
आज तक के प्रत्येक ित
ृ क को
न्यायालय िें उपल्स्थत होने का आदे ह जारी करोगे ?
क्योकक सब ित
ृ क जीने वालों िें जी रहे हैं ।
ककसी भी िक
ु द्दिे िें पूरी गवाही प्राप्त करने के मलये ब्रम्हाींड का गवाह होना आवश्यक है ।
जब तुि ब्रम्हाींड को न्यायालय िें बुला सकोगे,
तम्
ु हे न्यायालयों की आवश्यकता ही नहीीं रहे गी ।
ति
ु न्यायासन से उतर जाओगे
और गवाह को न्यायािीश बनने दोगे ।
जब तुि सबकुछ जान लोगे,
तो ककसी के ववषय िें तनणाय नहीीं दोगे|
जब तम्
ु हारे अींदर सींसारों को
एकत्र करने का सािथ्या पैदा हो जायेगा,
तब तुि जो बाहर बबखर गये है
उनिे से एक को भी अपरािी नहीीं ठहराओगे;
क्योंकक तुि जान लोगे कक बबखरनेवाले को उसके बबखराव ने ही अपरािी घोवषत कर ददया है
और अपने आपको दोषी िाननेवाले को
दोषी ठहराने के बजाय तुि
उसे उसके दोष से िुक्त करने का प्रयत्न करोगे ।
इस सिय िनुष्य अपने ऊपर स्वयीं लादे हुए बोि से बुरी तरह दबा हुआ है ।
उसका रास्ता बहुत उबड़-खाबड़ तथा टे ढ़ा-िेढ़ा है ।
हर िैसला जज और अमभयक्
ु त दोनों के मलये सािान रूप से एक अततिरक्त बोि होता है ।
यदद तुि अपने बोि को हलका रखना िाहते हो,
तो ककसी के ववषय िें िैसला करने न बैठो ।
यदद तुि िाहते हो कक तम्
ु हारा
बोि अपने आप उतर जाये,
तो शब्द िें डूबकर सदा के मलये उसिे खो जाओ ।
यदद तुि िाहते हो कक तम्
ु हारा िागा
सीिा तथा सितल हो
तो ददव्य- ज्ञान को अपना िागादशाक बना लो ।
िैं तम्
ु हारे पास तनणाय लेकर नहीीं,
ददव्य-ज्ञान लेकर आया हूाँ ।
बैनन
ू :- तनणाय ददवस के ववषय िें तुि क्या कहते हो ?
िीरदाद -हर ददन तनणाय-ददवस है , बैनन
ू ।
पलक की हर िपक पर हर प्राणी के किों का दहसाब ककया जाता है|
कुछ तछपा नहीीं रहता ।
कुछ अन्तुला नहीीं रहता |
ऐसा कोई वविार नहीीं है,
कोई किा नहीीं,
कोई इच्छा जो वविार,
किा या इच्छा,
करनेवाले के अींदर अींककत न हो जाये ।
सींसार िें कोई वविार,
कोई इच्छा, कोई किा िल ददये बबना नहीीं रहता;
सब अपनी वविा और प्रकृतत के
अनुसार िल दे ते हैं|
जो कुछ भी प्रभु के वविान के अनक
ु ू ल होता है,
जीवन से जड़
ु जाता है|
जो कुछ उसके प्रततकूल होता है ,
ित्ृ यु से जा जुड़ता है|
सब ददन एक सािान नहीीं होते, बैनन
ू ।
कुछ शाींततपूणा होते हैं,
वे होते हैं ठीक तरह से
बबताई गई घड़ड़यों के िल|
कुछ बादलों से तघरे होते हैं,
वे वे होते है ित्ृ यु िें
अिा-सुप्त तथा जीवन िें
अिा-जाग्रत अवस्था िें बबताई गई घड़ड़यों के उपहार।
कुछ और होते हैं जो त़ि
ू ान पर सवार,
आाँखों िें बबजली की कौंि और
नथनों िें बादल की गरज मलए तुि पर टूट पड़ते हैं।
वे ऊपर से तुि पर प्रहार करते हैं;
वे िरती पर तम्
ु हे सपाट चगरा दे ते है
और वववश कर दे ते हैं
तम्
ु हे िल
ू िाटने पर
और यह िाहने पर कक
तुि कभी पैदा ही न हुए होते।
ऐसे ददन होते हैं
जान- बूि कर वविान के
ववरुद्ि बबताई गईं घड़ड़यों का िल।
सींसार िें भी ऐसा ही होता है।
इस सिय आकाश पर छाये हुए
साये उन सायों से रिी भर भी
कि अिींगल-सूिक नहीीं हैं जो
जल-प्रलय के अग्रदत
ू बनकर आये थे।
अपनी आाँखें खोलो और दे खो।
जब तुि दल्क्िनी वायु के घोड़े पर सवार
बादलों को उिर की ओर जाते दे खते हो,
तो कहते हो कक ये तुम्हारे मलये बषाा लाते हैं।
इींसानी बादलों के रुख से
यह अींदाजा लगाने िें कक वे क्या लायेंगे,
तुि इतने बद्
ु चििान क्यों नहीीं हो।
क्या तुि दे ख नहीीं सकते कक
िनष्ु य ककतनी बरु ी तरह से
अपने जालों िें उलि गए हैं।
जालों िें से तनकल आने का ददन तनकट है ।
और ककतना भयावह है वह ददन।
दे खो,
ककतनी सददयों के दौरान िन
और आत्िा की नसों से बुने गये हैं
िनुष्य के ये जाल!
िनुष्यों को उनके जालों िें से
खीींि तनकालने के मलये उनके िाींस तक को िाड़ना पड़ेगा; उनकी हड्ड़डयों तक को कुिलना पड़ेगा।
और िाींस को िाड़ने और हड्ड़डयों को कुिलने का काि िनष्ु य स्वयीं ही करें गे।
जब ढक्कन उठाये जायेंगे,
जो उठाये अवश्य जायेंगे,
और जब वतान बतायेंगे कक उनके अींदर क्या है,
जो वे तनिःसींदेह बतायेंगे,
तब िनष्ु य अपने कलींक को कहााँ तछपायेंगे
और भागकर कहााँ जायेंगे?
जीववत उस ददन ित
ृ कों से
ईष्याा करें गे, और ित
ृ क जीववतों को कोसेंगे।
िनुष्यों के शब्द उनके कन्ठ िें चिपककर रह जायेंगे,
और प्रकाश उनकी पलकों पर जि जायेगा।
उनके ह्रदय िें से तनकलेंगे नाग और बबच्छू,
और यह भल
ू कर कक उन्होंने स्वयीं
अपने ह्रदय िें इन्हें बसाया
और पाला था, वे घबराकर चिकला उठें गे,
कहााँ से आ रहे हैं ये नाग और बबच्छू?
अपनी आाँखे खोलो और दे खो।
ठीक इसी नौका के अींदर,
जो ठोकरें खा रहे सींसार के मलए
आलोक- स्तम्भ के रूप िें स्थावपत की गई थी,
इतनी दलदल है
कक तुि उसे ककसी तरह से भी पार नहीीं कर सकते.
यदद आलोक-स्तम्भ ही िन्दा बन जाये,
तो उन याबत्रयों की कैसी भयींकर
दशा होगी जो सिद्र
ु िें हैं!
िीरदाद तम्
ु हारे मलये
एक नई नौका का तनिााण करे गा।
ठीक इसी नीड़ के अन्दर वह
उसकी नीींव रखकर उसे खड़ा करे गा।
इस नीड़ िें से उड़ कर तुि
िनुष्य के मलये शाींतत का सन्दे श लेकर नहीीं,
अनन्त जीवन लेकर सींसार िें जाओगे।
उसके मलये अतनवाया है
कक तुि वविान को जानो
और उसका पालन करो।
जिोरा: हि प्रभु के वविान
को कैसे जानेंगे और कैसे करें गे उसका पालन?
सींसार हि
प्रेि मसखने आए है

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अध्याय 11
प्रेि प्रभु का वविान है।
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िीरदाद: प्रेि ही प्रभु का वविान है ।


तुि जीते हो ताकक तुि प्रेि करना सीख लो।
तुि प्रेि करते हो ताकक तुि जीना सीख लो।
िनुष्य को और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीीं।
और प्रेि क्या है,
मसवाय इसके कक प्रेिी वप्रयति को
सदा के मलये अपने अींदर लीन कर लें
ताकक दोनों एक हो जायें?
और िनुष्य को प्रेि ककस्से करना है?
क्या उसे जीवन- वक्ष
ृ के
एक ववशेष पिे को िुनकर
उस पर ही अपना पूरा प्यार उड़ेल दे ना है?
तो किर क्या होगा उस शाखा का
ल्जस पर वह पिा उगा है?
उस तने का ल्जससे वह शाखा तनकली है?
उस छाल का जो उस शाखा की रक्षा करती है?
उन जड़ों का जो छाल,
तने, शाखाओीं और पिो का पोषण करती हैं?
मिटटी का ल्जसने जड़ों को छाती से लगा रखा है?
सय ा सिद्र
ू , ु , वायु का जो मिटटी को उपजाऊ बनाते हैं?
यदद ककसी पेड़ पर लगा एक
छोटा सा पिा तम्
ु हारे प्रेि का अचिकारी हो
तो पूरा पेड़ उसका ककतना अचिक अचिकारी होगा?
जो प्रेि सम्पूणा के एक अींश को िुनता है,
वह अपने भाग्य िें आप ही
दख
ु ों की रे खा खीींि लेता है ।
तुि कहते हो, ”एक ही वक्ष
ृ पर
भााँती-भााँती के पिे होते हैं।
कुछ स्वस्थ होते हैं, कुछ अस्वस्थ,;
कुछ सद
ींु र होते हैं, कुछ कुरूप;
कुछ दै त्याकार होते हैं, कुछ बौने।
पसींद करने और िन
ु ने से
भला आप कैसे बि सकते हैं।”
िैं तुिसे कहता हूाँ कक बीिारों के
पीलेपन िें से तन्दरुु स्तों की ताजगी पैदा होती है।
िैं यह भी कहता हूाँ कक कुरूपता
सींद
ु रता की रीं ग-पटटी, रीं ग और काँू िी है,
और यह भी कक बौना,
बौना बौनापने कद िें से कुछ न होता
यदद उसने अपने कद कद िें से
कुछ कद दै त्य को भेंट न कर ददया होता|
ति
ु जीवन-वक्ष
ृ हो।
अपने आपको टुकड़ों िें बााँटने से साविान रहो।
िल की िल से तुलना न ित करो,
न पिे की पिे से,
न शाखा की शाखा से;
और न तने की जड़ों से तल
ु ना करो,
न वक्ष
ृ की िाटी-िााँ से।
पर तुि ठीक यही करते हो
जब तुि एक अींश को बाकी अींशों से अचिक,
अथवा बाकी अींशों को छोड़कर
केवल एक अींश को ही प्यार करते हो।
तुि जीवन-वक्ष
ृ हो।
तम्
ु हारी जड़ें हर स्थान पर है।
तम्
ु हारे िल हर िुींह िें हैं।
इस वक्ष
ृ पर िल जो भी हों;
इसकी शाखाएाँ और पिे जो भी हों;
जड़ें जो भी हों, वे तम्
ु हारे िल हैं;
वे तुम्हारी शाखाये और पिे हैं;
वे तुम्हारी जड़ें है ।
यदद ति
ु िाहते हो कक
वह सदा दृढ़ और हरा-भरा रहें ,
तो उस रस का ध्यान रखो
ल्जससे उसकी जड़ों का पोषण करते हों।
प्रेि जीवन का रस है,
जबकक घण
ृ ा ित्ृ यु का िवाद।
ककन्तु प्रेि का भी,
रक्त की तरह,
हिारी रगों िें बेरोक
प्रवादहत होना तनतान्त आवश्यक है ।
रक्त के प्रवाह को रोको तो
वह एक ख़तरा, एक सींकट बन जायेगा।
और घण
ृ ा क्या है
मसवाय दबा ददये गये या रोक मलये गये प्रेि के,
जो इसी मलये घातक बबष बन जाता है ।
खखलानेवाले और खानेवाले, दोनों के मलये;
घण
ृ ा करनेवाले और घण
ृ ा पानेवाले, दोनों के मलये?
तम्
ु हारे जीवन-वक्ष
ृ का पीला पिा
केवल प्रेि से वींचित पिा है।
पीले पिे को दोष ित दो।
िुरिाई हुई शाखा प्रेि की भख
ू ी शाखा है।
िुरिाई हुई शाखा को दोष ित दो।
सड़ा हुआ िल केवल घण ृ ा का पाला गया िल है।
सड़े हुए िल को दोष ित दो।
बल्कक दोष दो अपने अींिे और कृपण िन को,
जो जीवन-रस को भीख की तरह थोड़े-से व्यल्क्तयों िें बााँटकर अचिकााँश को उससे वींचित रखता है,
और ऐसा करते हुए अपने
आपको भी उससे वींचित रखता है।
आत्ि-प्रेि के अततिरक्त कोई प्रेि सम्भव नहीीं है।
अपने अींदर सबको सिा लेनेवाले अहि ् के अततिरक्त अन्य कोई अहि ् वास्तववक नहीीं हैं।
इसमलये प्रभु शब्द प्रेि है,
क्योंकक वह इसी अहि ् से प्रेि करता है।
जब तक प्रेि तुम्हे पीड़ा दे ता है ,
तम्
ु हे अपना वास्तववक अहि ् नहीीं मिला है,
न ही प्रेि की सन
ु हरी कींु जी तम्
ु हारे हाथ लगी है।
क्योंकक तुि एक क्षणभींगुर अहि ् को प्रेि करते हो, तुम्हारा प्रेि भी क्षण-भींगुर है।
स्त्री के मलए परु
ु ष का प्रेि, प्रेि नहीीं।
वह प्रेि का एक बहुत िुींिला चिन्ह है।
सींतान के मलये िाता या वपता का प्रेि,
प्रेि पववत्र िींददर की दे हरी-िात्र है ।
जब तक हर पुरुष हर स्त्री का प्रेिी नहीीं बन जाता
और हर स्त्री हर परु
ु ष की प्रेमिका,
जब तक हर सींतान हर िाता या वपता की सींतान नहीीं बन जाती और हर िाता या वपता हर सींतान
की िाता या वपता, जब तक स्त्री परु
ु ष हाड-िाींस के साथ हाड-िाींस के घतनष्ठ सम्बन्ि की डीींग भले
ही बााँि लें,
ककन्तु प्रेि के पववत्र शब्द का उच्िारण कभी न करें ।
क्योकक ऐसा करना प्रभु-तनींदा होगी।
जब तक तुि एक भी िनुष्य को शत्रु िानते हो,
तम्
ु हारा कोई मित्र नहीीं ल्जस ह्रदय िें शत्रत
ु ा का वास है, वह मित्रता के मलये सरु क्षक्षत
आवास कैसे हो सकता है?
जब तक तुम्हारे ह्रदय िें घण
ृ ा है ,
तुि प्रेि के आनींद से अपिरचित हो।
यदद तुि अन्य सभी वस्तुओीं का
जीवन-रस से पोषण करते हो,
पर ककसी छोटे -से कीड़े को उससे वींचित रखते हो,
तो वह छोटा-सा कीड़ा अकेला ही
तम्
ु हारे जीवन िें कडवाहट घोल दे गा।
क्योंकक ककसी वस्तु या
ककसी व्यल्क्त से प्रेि करते हुए
तुि वास्तव िें अपने आप से ही प्रेि करते हो।
इसी प्रकार,
ककसी वस्तु या ककसी
व्यल्क्त से घण
ृ ा करते हुए
तिु वास्तव िें अपने आपसे ही घण
ृ ा करते हो।
क्योंकक ल्जससे तुि घण
ृ ा करते हो
वह उसके साथ जुड़ा हुआ है
ल्जससे तुि प्रेि करते हो–
ऐसे जड़
ु ा हुआ है जैसे
ककसी मसक्के के दो पह्लू
ल्जन्हें कभी एक-दस
ू रे से अलग नहीीं ककया जा सकता।
यदद तुि अपने प्रतत ईिानदार रहना िाहते हो
तो उससे प्रेि करने से पहले ल्जसे तुि िाहते हो
और जो तम्
ु हे िाहता है,
उससे प्रेि करना होगा
ल्जससे तुि घण
ृ ा करते हो
और जो तम्
ु हे घण
ृ ा करता है|
प्रेि कोई गुण नहीीं हैं।
प्रेि एक आवश्यकता है;
रोटी और पानी से भी बड़ी,
प्रकाश और हवा से भी बड़ी।
कोई भी अपने प्रेि करने का अमभिान न करें ।
प्रेि को उसी सरलता और
स्वतींत्रता के साथ स्वीकार करो
ल्जस सरलता तथा
स्वतींत्रता से ति
ु साींस लेते हो।
क्योंकक प्रेि को उन्नत होने के मलये
ककसी की आवश्यकता नहीीं।
प्रेि तो उस ह्रदय को उन्नत कर दे गा
ल्जसे वह अपने योग्य सििता है।
प्रेि के बदले कोई परु स्कार ित िााँगो।
प्रेि ही प्रेि का पयााप्त पुरस्कार है,
जैसे घण
ृ ा ही घण
ृ ा का पयााप्त दण्ड है ।
न ही प्रेि के साथ कोई दहसाब-ककताब रखो;
क्योंकक प्रेि अपने मसवाय ककसी और को
दहसाब नहीीं दे ता।
प्रेि न उिार दे ता है
न उिार लेता है;
प्रेि न खरीदता है,
न बेिता है,
बल्कक जब दे ता है
तो अपना सब-कुछ दे दे ता है;
और जब लेता है तो सब-कुछ ले लेता है।
इसका लेना ही दे ना है ।
इसका दे ना ही लेना है ।
इसमलये यह आज,कल
और कल के बाद भी सदा एक-सा रहता है।
एक ववशाल नदी ज्यों-ज्यों अपने आपको सिद्र
ु िें खाली करती जाती है,
सिुद्र उसे किर से भरता जाता है।
इसी तरह तम्हे अपने आपको प्रेि
िें खाली करते रहना है,
ताकक प्रेि तम्
ु हे सदा भरता रहे ।
तालाब, जो सिद्र
ु से मिला उपहार
उसी को सौंपने से इनकार करता है,
एक गींदा पोखर बनकर रह जाता है।
प्रेि िें न अचिक होता है, न कि।
ल्जस क्षण ति
ु उसे ककसी श्रेणी िें
रखने या िापने का प्रयत्न करते हो,
उसी क्षण वह तम्
ु हारे हाथ से तनकल जाता है,
और पीछे छोड़ जाता है
अपनी कडवी यादें ।
न प्रेि िें अब और तब होता है ,
न ही यहााँ और वहााँ।
सब ऋतए
ु ीं प्रेि की ऋतुएाँ हैं,
सब स्थान प्रेि के तनवास के योग्य स्थान।
प्रेि कोई सीिा या बािा नहीीं जानता।
ल्जस प्रेि के िागा को ककसी भी प्रकार की बािा रोक लें,
वह अभी प्रेि कहलाने का अचिकारी नहीीं है।
िैं अकसर तुम्हे कहते सन ु ता हूाँ
कक प्रेि अींिा होता है,
अथाात उसे अपने वप्रयति िें
कोई दोष ददखाई नहीीं दे ता।
इस प्रकार का अींिापन सवोिि दृल्ष्ट है।
काश तुि सदा इतने अींिे होते कक तम्
ु हे ककसी भी वस्तु िें कोई दोष ददखाई न दे ता।
स्पष्टदशी और बेिक होती है प्रेि की आाँख।
इसमलए उसे कोई दोष ददखाई नहीीं दे ता।
जब प्रेि तम्
ु हारी दृल्ष्ट को तनिाल कर दे गा,
तब कोई भी वस्तु तम्
ु हे प्रेि के
अयोग्य ददखाई नहीीं दे गी।
केवल प्रेिहीन,
दोषपण
ू ा आाँख सदा दोष खोजने िें व्यस्त रहती है।
जो दोष उसे ददखाई दे ते हैं वे उसके अपने ही
दोष होते हैं।
प्रेि जोड़ता है । घण
ृ ा तोडती है ।
मिटटी और पत्थरों का यह
ववशाल और भारी ढे र,
ल्जसे तुि पज
ू ा मशखर कहते हो,
क्षण भर िें बबखर जाता
यदद इसे प्रेि से बााँि न रखा होता।
तम्
ु हारा शरीर भी,
िाहे वह नाशवान प्रतीत होता है ,
ववनाश का प्रततरोि अवश्य कर सकता था
यदद ति
ु उसके प्रत्येक कोषाणु को
सिान लगन के साथ प्रेि करते।
प्रेि जीवन के ििुर सींगीत से स्पींददत शाल्न्त है,
घण
ृ ा ित्ृ यु के पैशाचिक ििाकों से आकुल यद्
ु ि है ।
तुि क्या िाहोगे?
प्रेि करना और अनन्त शाल्न्त िें रहना,
या घण
ृ ा करना और अनन्त युद्ि िें जट
ु े रहना?
सिस्त िरती तम्
ु हारे अींदर जी रही है ।
सभी आकाश तथा उनके तनवासी
तम्
ु हारे अींदर जी रहे हैं।
अतिः िरती और उसकी गोद िें पल रहे
सब बच्िों से प्रेि करो
यदद तुि अपने आप से प्रेि करना िाहते हो।
और आकाशों तथा उनके सब वामसयों से प्रेि करो
यदद तुि अपने आप से प्रेि करना िाहते हो।
ति
ु नरौन्दा से घण
ृ ा क्यों करते हो, अबबिार ?
नरौन्दा: िमु शाद की आवाज और उनके वविार-प्रवाह िें इस आकल्स्िक पिरवतान से सब अिम्भे िें पड़
गये।
िैं और अबबिार तो अपने आपसी िन-िट
ु ाव के बारे िें ऐसा स्पष्ट प्रश्न पूछे जाने पर अवाक रह
गये,
क्योंकक उस िन-िट
ु ाव हिने
बड़ी साविानी के साथ सबसे तछपाकर रखा था
और हिें ववश्वास था, जो अकारण नहीीं था,
कक उसका ककसी को पता नहीीं है ।
सबने परि आश्िया के साथ हि
दोनों की ओर दे खा और
अबबिार के होंठ खल
ु ने की प्रतीक्षा करने लगे।
अबबिार:(चिक्कापण
ूा ा दृल्ष्ट से िुिे दे खते हए) नरौन्दा, क्या िमु शाद को तुिने बताया ?
नरौन्दा: जब अबबिार ने िुमशाद कह ददया है
तो िेरा ह्रदय प्रसन्ता से िूल उठा है,
क्योंकक जब िीरदाद ने अपना भेद खोला उससे बहुत पहले हिारे बीि इसी शब्द पर ितभेद पैदा हुआ
था;
िैं कहता था कक वह मशक्षक है
जो लोगों को ददव्य ज्ञान का िागा ददखने आया है,
और अबबिार का हठ था
कक वह केवल सािारण व्यल्क्त है।
िीरदाद: नरौन्दा को सींदेह की
दृल्ष्ट से न दे खो, अबबिार,
क्योंकक वह तम्
ु हारे द्वारा लगाए गए दोष से िुक्त है।
अबबिार: तो किर तुम्हे ककसने बताया?
क्या तुि िनुष्यों के वविारों को भी पढ़ लेते हो?
िीरदाद: िीरदाद को न गप्ु तिरों की
आवश्यकता है न दभ
ु ावषयों की।
यदद तुि िीरदाद से उसी
तरह प्रेि करते जैसे वह तुिसे करता है ,
तो तुि आसानी से उसके
वविारों को पढ़ लेते और
उसके ह्रदय के अींदर भी िााँक लेत|

अबबिार: एक अींिे और बहरे
िनुष्य को क्षिा करो, िुमशाद।
िेरे आाँख और कान खोल दो,
क्योंकक िैं दे खने और सन
ु ने
के मलए उत्सुक हूाँ।
िीरदाद: केवल प्रेि ही िित्कार कर सकता है ।
यदद तुि दे खना िाहते हो तो
अपनी आाँख की पत
ु ली िें प्रेि को बसा लो।
यदद ति
ु सन
ु ना िाहते हो
तो अपने कान के परदे िें कान को स्थान दो।
अबबिार: ककन्तु िैं ककसी से घण
ृ ा नहीीं करता,
नरौन्दा से भी नहीीं।
िीरदाद: घण
ृ ा न करना प्रेि करना
नहीीं होता, अबबिार।
क्योंकक प्रेि एक कक्रयाशील शल्क्त है;
और जब तक यह तम्
ु हारी हर िेष्टा को,
तम्
ु हारे हर पद को राह न ददखाये,
ति
ु अपना िागा नहीीं पा सकते;
और जब तह प्रेि तुम्हारी हर
इक्षा िें हर वविार िें हर
वविार िें पूरी तरह सिा न जाये,
तम्
ु हारी इच्छाएाँ तुम्हारे सपने िें
काँटीली िाड़ड़यााँ होंगी तम्
ु हारे
वविार तम्
ु हारे जीवन िें शोक गीत होंगे।
इस सिय िेरा ददल रबाब है,
और िेरा गाने को जी िाहता है ।
ऐ भले जिोरा,
तम्
ु हारा रबाब कहााँ है ?
जिोरा: क्या िैं जाकर उसे ले आऊीं, िुमशाद?
िीरदाद: जाओ, जिोरा।
जब जिोरा रबाब लेकर लौटा तो
िुमशाद ने िीरे से उसे अपने हाथ िें ले मलया
और स्नेह के साथ उस पर िुकते हुए
उसके हर तार का सुर मिलाया
और किर उसे बजाते हुए गाना शरू ु कर ददया।
िीरदाद: तैर, तैर, री नौका िेरी,
प्रभु तेरा कप्तान।
उगले जीवन और ित
ृ क पर
नरक अपना प्रकोप भयींकर,
आग िें उसकी तप कर
िरती हो जाये ज्यों वपघलता सीसक,
नभ-िींडल िें रहे न बाकी ककसी
तरह का कोई तनशान।
तैर,तैर, री नौका िेरी,
प्रभु तेरा कप्तान।
िल, िल री नौका िेरी,प्रेि
तेरा कम्पास।
उिर-दक्षक्षण, पूरब-पल्श्िि
कोष अपना तू जाकर बााँट।
तरीं ग-श्रींग पर तुिको
अपने कर लेगा त़ि
ू ान सवार,
िकलाहों को अन्िकार िें वहाीं से
तू दे गी प्रकाश।
िल, िल री ऐ नौका िेरी,
प्रेि तेरा कम्पास।
बह, बह, री ऐ नौका िेरी,
लींगर है ववश्वास।
गड़बड़ कर िाहे बादल गरजे,
कौंिे तड़ड़त कड़क के साथ,
थराा उठें अिल,
िट जाएाँ,खण्ड-खण्ड हों,
िैले त्रास, िानव दब
ु ल
ा -ह्रदय हो जायें,
भूल जायें वे ददव्य प्रकाश,
पर बहती जा री नौका िेरी,
लींगर है ववश्वास।
नरौन्दा: िमु शाद ने गाना बन्द ककया
और रबाब पर ऐसे िुक गये जैसे प्यार िें खोई िााँ छाती से लगे अपने बच्िे पर िक
ु जाती है ।
और यद्यवप रबाब के तार अब
कल्म्पत नहीीं हो रहे थे,
किर भी अभी उसिे से
‘तैर, तैर, री नौका िेरी,
प्रभु तेरा कप्तान”
की िन
ु आ रही थी।
और यद्यवप िमु शाद के होंठ बींद थे,
किर भी उनका स्वर कुछ सिय
तक नीड़ िें गज
ाँू ता रहा,
और तरीं गे बनकर तैरता हुआ
पहुाँि गया िारों ओर ऊाँ
िी-नीिी िोदटयों तक;
ऊपर पहाड़ड़यों और नीिे वाददयों तक;
दरू अशान्त सागर तक;
ऊपर िेहराबदार नीले आकाश तक।
उस स्वर िें मसतारों की
बौछारें और इन्द्र-िनष
ु थे,
उसिे भक
ू म्प थे और साथ ही थीीं
सनसनाती हवाएाँ
और गीत के नशे िें िूिती बुलबुलें।
उनिे कोिल, शबनि-लड़ी िुींि से ढके
लहराते सागर थे।
लगता था िानो सारी सल्ृ ष्ट
आभार-भरी प्रसन्नता के साथ
उस स्वर को सुन रही हैं।
और ऐसा भी लगता था िानो
दचू िया पवात-िाला
ल्जसके बीिोंबीि पज
ू ा-मशखर था,
अिानक िरती से अलग हो गई है
और अन्तिरक्ष िें तैर रही है—
गौरवशाली, सशक्त तथा
अपनी ददशा के बारे िें आश्वस्त।
इसके बाद तीन ददन तक
िुमशाद ककसी से एक शब्द भी नहीीं बोले।
िौन -अनअल्स्तत्व को
अल्स्तत्व िें बदल दे गा
*************************************
अध्याय 12
मसरजनहार िौन
**************************************

नरौन्दा: जब तीन ददन बीत गये तो सातों साथी,


िानो ककसी सम्िोहक आदे श के आिीन,
अपने आप इकटठे हो गये
और नीड़ की ओर िल पड़े।
िुमशाद हिसे यों मिले जैसे
उन्हें हिारे आने की पूरी आशा हो।
िीरदाद: िेरे नन्हे पींतछयों……
एक बार किर िैं तम्
ु हारे नीड़ िें
तम्
ु हारा स्वागत करता हूाँ।
अपने वविार और इच्छाएाँ
िीरदाद से स्पष्ट कह दो।
मिकेयन: हिारा एकिात्र वविार
और इच्छा िीरदाद के तनकट रहने की है,
ताकक हि उनके सत्य को िहसस
ू कर सकें
और सुन सकें;
शायद हि उतने ही छाया-िक्
ु त हो जायें
ल्जतने वे हैं।
किर भी उनका िौन हि
सबके िन िें श्रद्िामिचश्रत
भय उत्पन्न करता है।
क्या हिने उन्हें ककसी
तरह से नाराज कर ददया है?
िीरदाद: तम्
ु हे अपने आप से दरू हटाने के मलये िैं तीन ददन िौन नहीीं रहा हूाँ,
बल्कक िौन रहा हूाँ
तम्
ु हे अपने और अचिक
तनकट लाने के मलये।
जहाीं तक िुिे नाराज
करने की बात है,
याद रखो ल्जस ककसी ने
भी िौन की अजेय शाल्न्त
का अनभ
ु व ककया है,
उसे न कभी नाराज ककया जा सकता है;
न वह कभी ककसी को नाराज कर सकता है ।
मिकेयन: क्या िौन रहना बोलने से अचिक अच्छा है?
िीरदाद: िुख से कही बात अचिक से अचिक एक तनष्कपट िूठ है; जबकक िौन कि से कि सत्य
है ।
अबबिार: तो क्या हि यह तनष्कषा तनकालें कक िीरदाद के विन भी, तनष्कपट होते हुए भी, केवल
िूठ हैं?
िीरदाद: हााँ..
िीरदाद के विन भी उन
सबके मलए केवल िठ
ू हैं,
ल्जनका ”िैं” वही नहीीं जो िीरदाद का है ।
जब तक तुम्हारे सब वविार
एक ही खान िें से
खोदकर न तनकाले गए हों,
और जब तक तम्
ु हारी सब कािनाएाँ
एक ही कुएाँ िें से खीींिकर न तनकाली गई हों,
तब तक तम्
ु हारे शब्द,
तनष्कपट होते हुए भी िठ ू ही रहें गे।
जब तम्ु हारा ”िैं और िेरा ”िैं” एक हो जायेंगे,
जैसे िेरा ”िैं” प्रभु का ”िैं” एक हैं,
हि शब्दों को त्याग दें गे
और सच्िाई-भरे िौन िें भी
खल
ु कर ददल की बात करें गे।
क्योंकक तम्
ु हारा ”िैं” और
िेरा ”िैं” एक नहीीं है,
िैं तम्
ु हारे साथ शब्दों का
युद्ि करने को बाध्य हूाँ,
ताकक िैं तुम्हारे ही शस्त्रों
से तम्
ु हे पराल्जत कर सकूाँ
और तम्
ु हे अपनी खान और
अपने कुएाँ तक ले जा सकाँू ।
और केवल तभी तुि सींसार िें
जाकर उसे पराल्जत करके
अपने वश िें कर सकोगे,
जैसे िैं तम्
ु हे पराल्जत करके
अपने वश िें करूींगा।
और केवल तभी तुि इस होगे
कक सींसार को परि िेतना के िौन तक,
शब्द की खान तक,
और ददव्य ज्ञान के कुएाँ तक ले जा सको।
जब तक ति
ु िीरदाद के हाथों
इस प्रकार पराल्जत नहीीं हो जाते,
तुि सच्िे अथों िें अजेय
और िहान ववजेता नहीीं बनोगे।
न ही सींसार अपनी तनरीं तर
पराजय के कलींक को िो सकेगा
जब तक कक वह तम्
ु हारे हाथों
पराल्जत नहीीं हो जाता।
इसमलए, यद्
ु ि के मलए किर कस लो।
अपनी ढालों और कविों को ििका लो
और अपनी तलवारों और भालों को िार दे दो।
िौन को नगाड़े की िोट करने दो
और ध्वज भी उसी को थािने दो।
बैनन
ू : यह कैसा िौन है
ल्जसे एक साथ नगाड़िी
और ध्वज-िारी बनना होगा?
िीरदाद: ल्जस िौन िें िैं तम्
ु हे ले
जाना िाहता हूाँ,
वह एक ऐसा अींतहीन ववस्तार है
ल्जसिे अनल्स्तत्व अल्स्तत्व िें बदल जाता है,
अल्स्तत्व अनल्स्तत्व िें।
वह एक ऐसा ववलक्षण शून्य है
जहााँ हर ध्वतन उत्पन्न होती है
और शान्त कर दी जाती है;
जहााँ हर आकृतत को रूप ददया जाता है
और रूप-रदहत कर ददया जाता है;
जहााँ हर अहीं को मलखा जाता है
और अ-मलखखत ककया जाता है ;
जहााँ केवल ‘वह’ है,
और ‘वह’ के मसवाय कुछ नहीीं।
यदद तुि उस शून्य और
उस ववस्तार को िक

ध्यान िें पार नहीीं करोगे,
तो तुि नहीीं जान पाओगे
कक तम्
ु हारा अल्स्तत्व ककतना यथाथा है,
और तम्
ु हारा अनल्स्तत्व ककतना कल्कपत।
न ही ति
ु यह जान सकोगे
कक तम्
ु हारा यथाथा
सम्पूणा यथाथा से ककतनी दृढ़ता से बाँिा हुआ है।
िैं िाहता हूाँ कक इसी िौन िें भ्रिण करो
तुि, ताकक तुि अपनी पुरानी तींग केंिुली
उतार दो और बींिन- िक्
ु त,
अतनयल्न्त्रत होकर वविरण करो।
िैं िाहता हूाँ की इसी िौन िें बहा दो
तुि अपनी चिताओीं और आशींकाओीं को,
ताकक तुि उन्हें एक-एक करके
मिटते हुए दे खो
और इस तरह अपने कानों को
उनकी तनरीं तर िीख-पुकार से छुटकारा ददल दो,
और बिा लो अपनी पसमलयों को
उनकी नक
ु ीली एड़ों की पीड़न से।
िैं िाहता हूाँ कक इसी िौन िें िेंक दो
तुि इस सींसार के िनुष्य-बाण
ल्जनसे तुि सींतोष और
प्रसन्नता का मशकार
करने की आशा करते हो,
परन्तु वास्तव िें अशाींतत
और दिःु ख के मसवाय और
ककसी िीज का मशकार
नहीीं कर पाते।
िैं िाहता हूाँ कक इसी िौन िें
तुि अहीं के अाँिेरे और
घट
ु न-भरे खोल िें से
तनकलकर उस ‘एक अहीं ‘
की रौशनी और
खल
ु ी हवा िें आ जाओ।
इस िौन की मसिािरश करता हूाँ िैं तुिसे,
न की बोल-बोल कर थकी
तम्
ु हारी ल्जव्हा के मलये ववश्राि की।
िरती के िक दायक िौन की
मसिािरस करता हूाँ िैं
तुि से, न कक अपरािी
और ित
ू ा के भयानक िौन की।
अण्डे सेनेवाली िुगी के
िैया पूणा िौन की
मसिािरश करता हूाँ िैं तुिसे,
न कक अण्डे दे नेवाली
उसकी बहन की
अिीर कुडकुडाहट की।
एक इक्कीस ददन तक इस
िूक ववश्वाश के साथ अण्डे सेती है
कक उसकी रोएाँदार छाती
और पींखों के नीिे वह
अदृश्य हाथ करािात कर ददखायेगा।
दस
ू री तेजी से भागती हुई
अपने दरबे से तनकलती है
और पागलों की तरह
कुडकुडाती हुई दढींढोरा पीटती है
कक िैं अण्डा दे आई हूाँ।
डीींग िारती नेकी से खबरदार रहो,
िेरे साचथयों।
जैसे ति
ु अपनी शमिान्दगी का
िुाँह बन्द रखते हो,
वैसे ही अपने सम्िान का िह
ुाँ भी बन्द रखो।
क्योंकक डीींग िारता सम्िान
िूक कलींक से बदतर है;
शोर ििाती नेकी गाँग
ू ी बदी
से बदतर है ।बहुत बोलने से बिो।
बोले गये हजार शब्दों
िें से शायद एक,
केवल एक, ऐसा हो ल्जसे
बोलना सििि
ु आवश्यक है।
बाकी सब तो केवल बुद्चि
को िि
ुाँ ला करते हैं,
कानों को ठसाठस भरते हैं,
ल्जव्हा को कष्ट दे ते है,
और ह्रदय को भी अन्िा करते हैं।
ककतना कदठन है वह शब्द बोलना
ल्जसे बोलना सििि
ु आवश्यक है !
मलखे गए हजारों शब्दों िें से शायद एक,
केवल एक, ऐसा हो ल्जसे मलखना
सििुि आवश्यक है।
बाकी सब तो व्यथा िें
गाँवाई स्याही और कागज़ हैं,
और ऐसे क्षण हैं
ल्जन्हें प्रकाश के पींखों की
बजाय सीसे के पैर दे ददये गये हैं।
ककतना कदठन, ओह,
ककतना कदठन है वह शब्द मलखना
ल्जसे मलखना सििुि आवश्यक है !
बैनन
ू : और प्राथाना के बारे िें क्या कहें गे,
िुमशाद िीरदाद? प्राथाना िें हिें
आवश्यकता से कहीीं अचिक से कहीीं
अचिक शब्द बोलने पड़ते हैं,
और आवश्यकता से
कहीीं अचिक िीजें िााँगनी पड़ती हैं।
ककन्तु िााँगी हुई िीजों िें से
हिें शायद ही कभी कोई प्रदान की जाती है ।

हिेशा अपने -आप को


प्राथाना करो
************************************
अध्याय-13
☞ प्राथाना ☜
*************************************

िीरदाद: ति
ु व्यथा िें प्राथाना करते हो
जब तुि अपने आप को छोड़
दे वताओीं को सम्बोचित करते हो।
क्योकक तम्
ु हारे अींदर है
आकवषात करने की शल्क्त,
जैसे दरू भगाने की की शल्क्त तम्
ु हारे अींदर है ।
और तम्
ु हारे अींदर हैं वे वस्तए
ु ाँ
ल्जन्हें तुि आकवषात करना िाहते हो,
जैसे वे वस्तुएाँ ल्जन्हें तुि दरू
भगाना िाहते हो तम्
ु हारे अींदर हैं।
क्योंकक ककसी वस्तु को लेने का
सािथ्या रखना उसे दे ने का
सािथ्या रखना भी है।
जहाीं भूख है, वहाीं भोजन है।
जहाीं भोजन है, वहाीं भूख भी अवश्य होगी।
भूख की पीड़ा से व्यचथत होना
तप्ृ त होने का आनींद लेने का सािथ्या रखना है ।
हााँ, आवश्यकता िें ही
आवश्यकता की पूतता है।
क्या िाबी ताले के प्रयोग
का अचिकार नहीीं दे ती?
क्या ताला िाबी के प्रयोग
का अचिकार नहीीं दे ती ?
क्या ताला और िाबी दोनों
दरवाजे के प्रयोग का अचिकार नहीीं दे ते ?
जब भी तुि िाबी गाँवा बैठो
या उसे कहीीं रखकर भूल जाओ,
तो लोहार से आग्रह करने के मलये
उतावले ित होओीं।
लोहार ने अपना काि कर ददया है,
और अच्छी तरह से कर ददया है ;
उसे वही काि बार-बार
करने के मलये ित कहो।
तुि अपना काि करो और
लोहार को अकेला छोड़ दो;
क्योंकक जब एक बार वह ति
ु से तनपट िूका है,
उसे और भी काि करने हैं।
अपनी स्ितृ त िें से दग
ु न्
ा ि
और किरा तनकाल िेंको,
और िाबी तम्
ु हे तनश्िय ही मिल जायेगी|
अकथ प्रभु ने उच्िारण द्वारा
जब तम्
ु हे रिा तो तम्
ु हारे रूप
िें उसने अपनी ही रिना की।
इस प्रकार तुि भी अकथ हो।
प्रभु ने तुम्हे अपना कोई
अींश प्रदान नहीीं ककया–
क्योंकक वह अींशों िें नहीीं बााँट सकता;
उसने तो अपना सिग्र,
अववभाज्य, अकथ ईश्वरत्व ही
तुि सबको प्रदान कर ददया।
इससे बड़ी ककस ववरासत की
कािना कर सकते हो ति
ु ?
और तम्
ु हारी अपनी कायरता का
अन्िेपन के मसवाय और कौन,
या क्या, तम्
ु हे पाने से रोक सकता हैं ?
किर भी, कुछ–अन्िे कृतध्न लोग–
अपनी ववरासत के मलये
कृतज्ञीं होने के बजाय,
उसे प्राप्त करने की
राह खोजने के बजाय,
प्रभु एक प्रकार का कूडाघर
बना दे ना िाहते हैं
ल्जसने वे अपने दाींत
और पेट के ददा ,
व्यापार िें अपने घाटे ,
अपने िगडे, अपनी बदले
की भावनाएीं तथा
अपनी तनद्राहीन रातें ले
जाकर िेंक सकें।
कुछ अन्य लोग प्रभु को
अपना तनजी कोष बना लेना िाहते हैं
जहाीं से वे जब िाहें सींसार की
ििकदार तनकम्िी वस्तओ
ु ीं िें से
हर ऐसी वस्तु को पाने की
आशा रखते हैं ल्जसके
मलए वे तरस रहे हैं।
कुछ अन्य लोग प्रभु को
एक प्रकार का तनजी िन
ु ीि
बना लेना िाहते हैं,
जो केवल यह दहसाब ही न रखे
कक वे ककन िीजों के मलये दस
ू रों के कजादार हैं
और ककन िीजों के मलये उनके कजादार है,
बल्कक उनके ददये कजा को वसल
ू भी करे
और उनके उनके खाते िें हिेशा
एक बड़ी रकि जिा ददखाये।
हााँ…..
अनेक तथा नाना प्रकार के हैं
वे काि जो िनष्ु य प्रभु को सौंप दे ता है।
किर भी बहुत थोड़े लोग ऐसे होंगे
जो सोिते हों कक यदद सििि ु
इतने सारे काि करने की
ल्जम्िेदारी प्रभु पर है
तो वह अकेला ही उनको तनपटा लेगा,
और उसे यह आवश्यकता नहीीं होगी
कक कोई उसे प्रेिरत करता रहे
या अपने कािों की याद ददलाता रहे ।
क्या प्रभु को ति
ु उन घड़ड़यों की
याद ददलाते हो
जब सय
ू ा उदय होना है
और जब िन्द्र को अस्त ?
क्या उसे तुि दरू के खेत िें पड़े
अनाज के उस दाने की याद ददलाते हो
ल्जसिे जीवन िूट रहा है ?
क्या उसे तुि उस िकडी की
याद ददलाते हो
जो रे शे से अपना कौशल-पूणा
ववश्राि-गह
ृ बना रही है ?
क्या उसे तुि घोंसले िें पड़े
गौरे या के छोटे -छोटे बच्िों की
याद ददलाते हो ?
क्या तुि उसे उन अनचगनत
वस्तुओीं की याद ददलाते हो
ल्जनसे यह असीि ब्रह्िाण्ड भरा हुआ है ?
तिु अपने तच्
ु छ व्यल्क्तत्व को
अपनी सिस्त अथाहीन
आवश्यकताओीं सदहत बार-बार
उसकी स्ितृ त पर क्यों लादते हो ?
क्या तुि उसकी दृल्ष्ट िें गौरे या,
अनाज और िकड़ी की तल
ु ना िें
कि कृपा के पात्र हो ?
तुि उनकी तरह अपने उपहार
स्वीकार क्यों नहीीं करते
और बबना शोर ििाये,
बबना बबना घट
ु ने टे के,
बबना हाथ िैलाये और
बबना चिींता-पूवक
ा भववष्य िें
िााँके अपना-अपना काि
क्यों नहीीं करते ?
और प्रभु दरू कहााँ है
कक उसके कानों तक अपनी सनकों
और मिथ्यामभिानों को, अपनी
स्तुततयों और अपनी
ििरयादों को पहुाँिाने के मलये
तम्
ु हे चिकलाना पड़े ?
क्या वह
तम्
ु हारे अींदर और
तम्
ु हारे िारों ओर नहीीं है ?
ल्जतनी तम्
ु हारी ल्जव्हा
तम्
ु हारे तालू के तनकट है,
क्या उसका कान तुम्हारे
िुाँह के उससे कहीीं
अचिक तनकट नहीीं है ?
प्रभु के मलये तो उसका
ईश्वरत्व ही कािी है ल्जसका
बीज उसने तम्
ु हारे अींदर रख ददया है ।
यदद अपने ईश्वरत्व का बीज
तम्
ु हे दे कर तम्
ु हारे बजाय
प्रभु को ही उसका ध्यान
रखना होता तो तुििे क्या खब
ू ी होती ?
और जीवन िें तम्
ु हारे करने के
मलये क्या होता ?
और यदद तुम्हारे करने को
कुछ भी नहीीं है,
बल्कक प्रभु को ही तम्
ु हारी
खाततर सब करना है,
तो तम्
ु हारे जीवन का क्या िहत्व है ?
तम्
ु हारी सारी प्राथाना से क्या लाभ है ?
अपनी अनचगनत चिींताएाँ और
आशाएाँ प्रभु के पास ित ले जाओ।
ल्जन दरवाजों की िाबबयााँ
उसने तुम्हे सौंप दी है,
उन्हें तम्
ु हारी खाततर खोलने
के मलये मिन्नतें ित करो।
बल्कक अपने ह्रदय की ववशालता िें खोजो।
क्योंकक ह्रदय की ववशालता िें मिलती है
हर दरवाजे की िाबी।
और ह्रदय की ववशालता िें िौजद
ू हैं
वे सब िीजें ल्जनकी तुम्हे भख
ू और प्यास है,
िाहे उनका सम्बन्ि बरु ाई से है या भलाई से।
तम्
ु हारे छोटे से छोटे आदे श
का पालन करने को तैयार
एक ववशाल सेना तम्
ु हारे
इशारे पर काि करने के
मलये तैनात कर दी गयी है ।
यदद वह अच्छी तरह से सल्ज्जत हो,
उसे कुशलतापव
ू क
ा मशक्षण ददया गया हो
और तनडरता पूवक
ा उसका
सींिालन ककया गया हो,
तो उसके मलये कुछ भी
करना असम्भव नहीीं,
और कोई भी बािा उसे
अपनी िींल्जल पर पहुाँिने से रोक नहीीं सकती।
और यदद वह पूरी तरह सल्ज्जत न हो,
उसे उचित मशक्षण न ददया गया हो
और उसका सञ्िालन साहसहीन हो,
तो वह ददशाहीन भटकती रहती है,
या छोटी से छोटी बािा के सािने
िोरिा छोड़ दे ती है,
और उसके पीछे -पीछे
िली आती है शिानाक पराजय।
वह सेना और कोई नहीीं,
सिुओ…
इस सिय तम्
ु हारी रगों िें
िुपिाप िक्कर लगा रही
सूक्ष्ि लाल कखणकाएाँ हैं;
उनिे से हरएक शल्क्त का िित्कार,
हरएक तम्
ु हारे सिूिे जीवन का
और सिस्त जीवन का–उनकी
अन्तरति सूक्ष्िताओीं सदहत–
पूरा और सच्िा वववरण।
ह्रदय िें एकबत्रत होती है यह सेना;
ह्रदय िें से ही बाहर तनकलकर
यह िोरिा लगाती है ।
इसी कारण ह्रदय को इतनी
ख्यातत और इतना सम्िान प्राप्त है।
तम्
ु हारे सुख और दिःु ख के आाँसू
इसी िें से िूटकर बाहर तनकलते हैं।
तम्
ु हारे जीवन और ित्ृ यु के भय
दौड़कर इसी के अन्दर घुसते हैं।
तम्
ु हारी लालसाएाँ और कािनाएाँ
इस सेना के उपकरण हैं
तम्
ु हारी बुद्चि इसे अनश
ु ासन िें रखती है ।
तम्
ु हारा सींककप इससे कवायद करवाता है
और इसकी बागडोर सींभालता है ।
जब ति
ु अपने रक्त को एक प्रिख

कािना से सल्ज्जत कर लो
जो सब कािनाओीं को िप
ु कर दे ती है
और उन पर छा जाती है;
और अनुशासन एक प्रिुख वविार को सौंप दो,
तब तुि ववश्वास कर सकते हो
कक तम्
ु हारी वह कािना पूरी होगी।
कोई सींत भला सींत कैसे हो सकता है
जब तक वह अपने िन की
वतृ त को सींत-पद के अयोग्य
हर कािना से तथा हर वव
िार से िुक्त न कर दे ,
और किर एक अड़डग सींककप के द्वारा
उसे अन्य सभी लक्ष्यों को
छोड़ केवल सींत-पद की प्राल्प्त
के मलये यत्नशील रहने का तनदे श न दे ?
िैं कहता हूाँ कक आदि के सिय से
लेकर आज तक की हर पववत्र कािना,
हर पववत्र वविार,
हर पववत्र सींककप उस िनुष्य की
सहायता के मलये िला आयेगा
ल्जसने सींत-पद प्राप्त करने का
ऐसा दृढ़ तनश्िय कर मलया हो।
क्योंकक सदा ऐसा होता आया है
कक पानी, िाहे वह कहीीं भी हो,
सिुद्र की खोज करता है
जैसे प्रकाश की ककरने
सूया को खोजती हैं।
कोई हत्यारा अपनी योजनाएाँ
कैसे पूरी करता है?
वह कवल अपने रक्त को
उिेल्जत उसिे ह्त्या के
मलये एक उन्िाद-भरी
प्यास पैदा करता है,
उसके कण-कण को हत्यापूणा
वविारों के कोड़ों की
िार से एकत्र करता है,
और किर तनष्ठुर सींककप से
उसे घातक बार करने
का आदे श दे ता है।
िैं तुिसे कहता हूाँ कक केन*
से लेकर आज तक का हर
हत्यारा बबना बुलाये
उस िनष्ु य की भज
ु को
सबल और ल्स्थर बनाने के
मलये दौड़ा आयेगा ल्जस पर
ह्त्या का ऐसा नशा सवार हो।
क्योंकक सदा ऐसा होता आया है
कक कौए, कौओीं का साथ दे ते हैं
और लकड़ बग्घे लकड़-बग्घों का।
इसमलये प्राथाना करना
अपने अींदर एक ही प्रिुख कािना की
एक ही प्रिुख वविार की
एक ही प्रिख
ु सींककप की
सींिार करना है ।
यह अपने आप को इस
तरह सुर िें कक ल्जस वस्तु
के मलये भी तुि प्राथाना करो,
उसके साथ परू ी तरह एक-सरु ,
एक-ताल हो जाओ।
इस ग्रह का वातावरण,
जो अपने सम्पूणा रूप िें
तम्
ु हारे ह्रदय िें प्रततबबल्म्बत है ,
उन सब बातों की आवारा
स्ितृ तयों से तरीं चगत है ल्जन्हें
उसने अपने जन्ि से दे खा है।
कोई विन या किा;
कोई इक्षा या तनिःश्वास;
कोई क्षखणक वविार या
अस्थाई सपना; िनुष्य या
पशु का कोई श्वास;
कोई परछाईं; कोई भ्रि ऐसा
नहीीं जो आज के ददन तक
अपने-अपने रहस्यिय रास्ते
पर न िलता रहा हो,
और सिय के अींत तक इसी
प्रकार उस पर िलते न रहना हो।
उनिे से ककसी एक के साथ भी तुि
अपने ह्रदय का सुर मिला लो,
और वह तनश्िय ही उसके तारों
पर िन
ु बजाने के मलय तेजी से दौड़ा आयेगा।
प्राथाना करने के मलए तम्
ु हे
ककसी होंठ या ल्जव्हा की
आवश्यकता नहीीं।
बल्कक आवश्यकता है एक िौन,
सिेत ह्रदय की,
एक प्रिुख कािना की,
एक प्रिुख वविार की,
और सबसे बढ़कर,
एक प्रिख
ु सींककप की
जो न सींदेह करता है न सींकोि।
क्योंकक शब्द व्यथा हैं
यदद प्रत्येक अक्षर िें ह्रदय
अपनी पूणा जागरूकता के
साथ उपल्स्थत न हो।
और जब ह्रदय उपल्स्थत और सजग है,
तो ल्जव्हा के मलये यह बेहतर होगा कक
वह सो जाये,
या िह
ु रबन्द होंठों के पीछे तछप जाये।
न ही प्राथाना करने के मलये
तम्
ु हें िल्न्दरों की आवश्यकता है ।
जो कोई अपने ह्रदय िें
िल्न्दर को नहीीं पा सकता,
वह ककसी भी िल्न्दर िें
अपने ह्रदय को नहीीं पा सकता।
किर भी िैं तुिसे यह सब कहता हूाँ,
और जो तुि जैसे हैं उनसे भी,
ककन्तु प्रत्येक िनुष्य से नहीीं,
क्योंकक अचिकााँश लोग अभी भ्रि िें हैं।
वे प्राथाना की जरुरत तो िहसूस करते हैं,
लेककन प्राथाना करने का ढीं ग नहीीं जानते।
वे शब्दों के बबना प्राथाना कर नहीीं सकते,
और शब्द उन्हें मिलते नहीीं
जब तक शब्द उनके िुाँह िें न
डाल ददये जायें।
और जब उन्हें अपने ह्रदय
की ववशालता िें वविरण
करना पड़ता है तो वे खो जाते हैं,
और भयभीत हो जाते हैं;
परन्तु िींददरों की दीवारों के
अींदर और अपने जैसे प्राखणयों
के िुींडों के बीि उन्हें साींत्वना
और सुख मिलता है ।
कर लेने दो उन्हें अपने िींददरों का तनिााण।
कर लेने दो उन्हें अपनी प्राथानाएाँ।
ककन्तु तम्
ु हें तथा प्रत्येक िनष्ु य
को ददव्य ज्ञान के मलये
प्राथाना करने का आदे श दे ता हूाँ।
उसके मसवाय अन्य ककसी
वस्तु की िाह रखने का अथा है
कभी तप्ृ त न होना।
याद रखो,
जीवन की कींु जी ”
मसरजनहार शब्द” है । ‘
मसरजनहार शब्द’ की कींु जी प्रेि है ।
प्रेि की कींु जी ददव्य ज्ञान है।
अपने ह्रदय को इनसे भर लो,
और बिा लो अपनी ल्जव्हा को
अनेक शब्दों की पीड़ा से,
और रक्षा कर लो
अपनी बुद्चि का अनेक प्रा
थानाओीं के बोि से,
और िुक्त कर लो अपने ह्रदय
को सब दे वताओीं की दासता
से जो तम्
ु हे उपहार दे कर
अपना दास बना लेना िाहते हैं;
जो तम्
ु हें एक हाथ से केवल
इसमलए सहलाते हैं कक दस
ू रे
हाथ से तुि पर बार का सकें;
जो तम्
ु हारे द्वारा प्रशींसा
ककये जाने पर सींतष्ु ट और कृपालु होते हैं,
ककन्तु तम्
ु हारे द्वारा कोसे जाने
पर क्रोि और बदले की भावना से भर जाते हैं;
जो तब तक तम्
ु हारी बात नहीीं
सुनते जब तक तुि उन्हें पक
ु ारते नहीीं;
और तब तक तम्
ु हे दे कर
बहुिा दे ने पर पछताते हैं;
ल्जनके मलये तम्ु हारे आाँसू अगरबिी हैं,
ल्जनकी शान तम्
ु हारी दयनीयता िें है ।
हााँ…….
अपने ह्रदय को इन सब दे वताओीं
से िक्
ु त कर लो, ताकक तम्
ु हें उसिे
वह एकिात्र प्रभु मिल सके जो
तम्
ु हें अपने आप से भर दे ता है िाहता है
की तुि सदै व भरे रहो।
बैनन
ू : कभी तुि िनुष्य को
सवाशल्क्तिान कहते हो तो
कभी उसे लावािरस
कहकर तुच्छ बताते हो।
लगता है तुि हिें िुन्ि िें लाकर छोड़ रहे हो।
िीरदाद हाँसता है और आकाश की और दे खता ..
िौन से कुछ अलोककक
आता ददखाई दे ता है ….
िनुष्य जन्ि सिय
परिात्िा और शैतान
की सींवेदना लेकर आता है
************************************
अध्याय -14
िनुष्य के काल-िुक्त जन्ि पर
दो प्रिुख दे वदत
ू ों का सींवाद
और दो प्रिुख यिदत
ू ों का सींवाद
************************************

िीरदाद :- िनष्ु य के काल-िक्


ु त जन्ि पर
ब्रम्हाींड के उपरी छोर पर दो प्रिुख
दे वदत
ू ों के बीि तनम्न मलखखत
बातिीत हुई ☜
पहले दे वदत
ू ने कहा; एक ववलक्षण
बालक को जन्ि ददया है िरती ने;
और िरती प्रकाश से जगिगा रही है ।
दस
ू रा दे वदत
ू बोला;एक गौरवशाली
राजा को जन्ि ददया है स्वगा ने;
और स्वगा हषा ववभोर है ।
पहला; बालक स्वगा और
िरती के मिलन का िल है।
दस
ू रा; यह शाश्वत मिलन है—
वपता, िाता और बालक।
पहला; इस बालक से िरती
की िदहिा बढ़ी है।
दस
ु रा; इससे अवगा साथाक हुआ है ।
पहला; ददन इसकी आाँखों िें सो रहा है।
दस
ु रा; रात इसके ह्रदय िें जाग रही है।
पहला; इसका वक्ष ति
ू ानों का नीड़ है।
दस
ु रा; इसका कींठ गीत का सरगि है ।
पहला; इसकी भज
ु ाएाँ पवातों
का आमलींगन करती हैं।
दस
ु रा; इसकी उीं गमलयााँ मसतारे िुनती हैं।
पहला; सागर गरज रहे हैं इसकी हड्ड़डयों िें।
दस
ु रा; सूया दौड़ रहे हैं इसकी रगों िें।
पहला; भट्ठी और सााँिा है इसका िुख।
दस
ु रा; हथोड़ा और अहरन है इसकी ल्जव्हा।
पहला; इसके पैरों िें आने बाले
काल की बेड़ड़यााँ हैं।
दस
ु रा; इसके ह्रदय िें उन बेड़ड़यों की कींु जी है ।
पहला; किर भी मिटटी के पालने
िें पड़ा है यह मशशु। दस
ु रा;
ककन्तु ककपों के
पोतड़ों िें मलपटा है यह।
पहला; प्रभु की तरह ज्ञाता है
यह अींकों के हर रहस्य का।
प्रभु की तरह जानता है
शब्दों के ििा को।
दस
ु रा; सब अींकों को जानता है यह,
मसवाय पववत्र एक के,
जो प्रथि और अींतति है।
सब शब्दों को जानता है यह,
मसवाय उस ”मसरजनहार शब्द” के,
जो प्रथि और अींतति है।
पहला; किर भी जान लेगा यह उस
अींक को और उस शब्द को।
तब तक नहीीं जब तक स्थान
के पथ-ववहीन वीरानों िें
िलते-िलते इसके पााँव तघस न जाएाँ;
तब तक नहीीं जब तक सिय के
भयानक भमू िगह
ृ ों को दे खते-दे खते
इसकी आाँखें पथरा न जाएाँ।
पहला; ओह,ववलक्षण, अतत ववलक्षण है
िरती का यह बालक।
दस
ु रा; ओह, गौरवशाली, अत्यींत
गौरवशाली है स्वगा का यह राजा।
पहला; अनािी ने इसका नाि िनुष्य रखा है ।
दस
ु रा; और इसने अनािी का प्रभु नाि रखा है ।
पहला; िनुष्य प्रभु का शब्द है ।
दस
ु रा; प्रभु िनष्ु य का शब्द है ।
पहला; िन्य है वह ल्जसका शब्द िनष्ु य है ।
दस
ु रा; िन्य है वह ल्जसका शब्द प्रभु है ।
पहला; अब और सदा के मलये।
दस
ु रा यहााँ और हर स्थान पर।
यों बातिीत हुई िनष्ु य के
काल-िुक्त जन्ि पर ब्रम्हाींड के
उपरी छोर पर दो प्रिुख
दे वदत
ू ों के बीि।
उसी सिय ब्रम्हाींड के तनिले
छोर पर दो प्रिख
ु यिदत
ू ों के
बीि तनम्नमलखखत बातिीत िल रही थी;
पहले यिदत
ू ने कहा;
एक वीर योद्िा हिारे वगा िें आ मिला है।
इसकी सहायता से हि ववजय प्राप्त कर लेंगे।
दस
ू रा यिदत
ू बोला; बल्कक चिडचिडा
और पाखींडी कायर कहो इसे।
और ववश्वासघात ने इसके िाथे
पर डेरा डाल रखा है।
लेककन भयींकर है यह अपनी कायरता
और ववश्वासघात िें।
पहला; तनडर और तनरीं कुश है इसकी दृल्ष्ट।
दस
ु रा; अश्रप
ु ण
ू ा और दब
ु ल
ा है
इसका ह्रदय। ककन्तु भयानक है
यह अपनी दब
ु ल
ा ता और आाँसओ
ु ीं िें।
पहला;पैनी और प्रयत्नशील है इसकी बद्
ु चि।
दस
ु रा; आलसी और िींद है इसका कान।
ककन्तु खतरनाक है यह अपने
आलस्य और िींदता िें।
पहला; िुतीला और तनल्श्ित है इसका हाथ।
दस
ु रा; दहिककिाता और सुस्त है
इसका पैर। परन्तु भयानक है
इसकी सस्
ु ती और डरावनी है इसकी दहिककिाहट।
पहला; हिारा भोजन इसकी नाड़ड़यों के मलए िौलाद होगा। हिारी शराब इसके लहू के मलए आग
होगी।
दस
ु रा; हिारे भोजन के ड़डब्बों से यह हिें िारे गा।
हिारे शराब के िटके यह हिारे सर पर तोड़ेगा।
पहला; हिारे भोजन के मलये इसकी भूख और हिारी शराब के मलये इसकी प्यास लड़ाई िें इसका रथ
बनेंगे।
दस
ू रा; अींतहीन भूख और अमित
प्यास इसे अजेय बना दें गी
और हिारे मशववर िें यह ववद्रोह पैदा कर दे गा।
पहला; परन्तु ित्ृ यु इसका सारथी होगी।
दस
ु रा; ित्ृ यु इसका सारथी होगी तो यह अिर हो जायेगा।
पहला; ित्ृ यु क्या इसे ित्ृ यु के मसवाय कहीीं ओर ले जायेगी?
दस
ु रा; हााँ, इतनी तींग आ जायेगी ित्ृ यु इसकी तनरीं तर मशकायतों से कक वह आखखर इसे जीवन के
मशववर िें ले जायेगी।
पहला; ित्ृ यु क्या ित्ृ यु के साथ ववश्वासघात करे गी?
दस
ु रा; नहीीं जीवन जीवन के साथ विादारी करे गा।
पहला; इसकी जीव्हा को दल
ु भ
ा और स्वाददष्ठ िलों से परे शान करें गे।
दस
ु रा; किर भी यह तरसेगा उन िलों के मलए जो इस छोर पर नहीीं उगते।
पहला; इसकी आाँखों और नाक को हि सद
ींु र और सुगींििय िूलों से लभ
ु ायेंगे|
दस
ु रा; किर भी ढूींढेंगी इसकी आाँख अन्य िूल और इसकी नाक अन्य सग
ु ींि ।
पहला; और हि इसे तनरीं तर ििुर ककन्तु दरू का सींगीत सुनायेंगे।
दस
ु रा; किर भी इसका कान ककसी अन्य सींगीत की ओर रहे गा।
पहला; भय इसे हिारा दास बना दे गा।दस
ु रा; आशा भय से इसकी रक्षा करे गी।पहला पीड़ा इसे हिारे
आिीन कर दे गी।
दस
ु रा; ववश्वास इसे पीड़ा से िक्
ु त कर दे गा।
पहला; हि इसकी तनद्रा पर उलिनों से भरे सपनों की िादर डाल दें गे, और इसके जागरण िें
पहे मलयों से भरी परछाईयााँ बबखेर दें गे।
दस
ू रा; इसकी ककपना उलिनों को सुलिा लेगी और परछाईयों को मिटा दे गी।
पहला; यह सब होते हुए भी हि इसे अपने िें से एक िान सकते हैं।
दस
ु रा; िान लो इसे हिारे साथ यदद ति
ु िाहो तो; ककन्तु इसे हिारे ववरुद्ि ही िानो।
पहला; क्या यह एक ही सिय िें हिारे साथ और हिारे ववरुद्ि हो सकता है ?
दस
ु रा; रणभूमि िें यह एकाकी योद्िा है।
इसका एकिात्र शत्रु इसकी परछाईं है।
जैसे परछाईं का स्थान बदलता है,
वैसे ही यद्
ु ि का स्थान भी बदल जाता है ।
यह हिारे साथ है जब इसकी परछाईं इसके आगे है। यह हिारे ववरुद्ि है जब इसकी परछाईं इसके
पीछे है । पहला; तो क्या हि इसको इस तरह से न रखें की इसकी पीठ हिेशा सय
ू ा की ओर रहे ?
दस
ु रा; परन्तु सय
ू ा को हिेशा इसकी पीठ के पीछे कौन रखेगा ?
पहला एक पहे ली है यह योद्िा।
दस
ु रा; एक पहे ली है यह परछाईं।
पहला; स्वागत है इस एकाकी शूरवीर का।
दस
ु रा; स्वागत है इस एकाकी परछाईं का।
पहला; स्वागत है इसका जब यह हिारे साथ है।
दस
ु रा; स्वागत है इसका जब यह हिारे ववरुद्ि है ।
पहला; आज और हिेशा।
दस
ू रा; यहााँ और हर जगह।
यों बातिीत हुई ब्रम्हाींड के तनिले मसरे पर दो प्रिुख यिदत
ू ों के बीि िनुष्य के काल-िुक्त जन्ि पर।

हवा की तरह स्वतींत्र तथा


लिीले बनो
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
अध्याय┉15
शिदाि िीरदाद को नौका से
बाहर तनकाल दे ने का प्रयत्न करता है
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
नरौन्दा: िमु शाद ने अभी अपनी बात परू ी की ही थी कक िखु खया की भारी-भरकि दे ह नीड़ के द्वार पर
ददखाई दी।
और ऐसा लगा जैसे उसने हवा और रौशनी की राह बींद कर दी हो। और उस एक क्षण के मलए िेरे
िन िें वविार कौंिा कक द्वार पर ददखाई दे रही आकृतत कोई ओर नहीीं है, केवल उन दो प्रिुख
यिदत
ू ों िें से एक है ल्जसके बारे िें िुमशाद ने हिें अभी-अभी बताया था।
िुखखया की आाँखों से आग बरस रही थी, और उसका िेहरा क्रोि से तितिा रहा था। वह िुमशाद की
ओर बढ़ा और एकाएक उन्हें बााँह से पकड़ मलया। स्पष्ट था कक वह उन्हें घसीट कर बाहर तनकालने
का यत्न कर रहा था।
शिदाि: िैंने अभी- अभी तम्
ु हारे दष्ु ट िन के अत्यींत भयानक उदगार सन
ु े हैं । तम्
ु हारा िुींह ववष का
िव्वारा तुम्हारी उपल्स्थतत एक अपशकुन है । इस नौका का िखु खया होने के नाते िैं तुन्हें इसी क्षण
यहााँ से िले जाने का आदे श दे ता हूाँ ।
नरौन्दा: िमु शाद इकहरे शरीर के थे तो भी शाींततपूवक
ा अपनी जगह डटे रहे , िानो वे ववशालकाय हों
और शिदाि केवल एक मशशु । उनकी अवविमलत शाींतत आश्िया-जनक थी । उन्होंने शिदाि की ओर
दे खा और कहा;-
िीरदाद: िले जाने का आदे श दे ने का अचिकार केवल उसी को है ल्जसे आने का आदे श दे ने का
अचिकार है । िि
ु े नौका पर आने का आदे श क्या तुिने ददया था शिदाि ?
शिदाि: वह तम्
ु हारी दद
ु ा शा थी ल्जसे दे खकर िेरे ह्रदय िें दया उिड़ आई थी, और िैंने तम्
ु हे आने
की अनुितत दे दी थी ।
िीरदाद : यह िेरा प्रेि है, शिदाि, जो तम्
ु हारी दद
ु ा शा को दे खकर उिड़ आया था। और दे खो, िैं
यहााँ हूाँ और िेरे साथ है िेरा प्रेि। परन्तु अ़िसोस तुि न यहााँ हो न वहाीं | केवल तम्
ु हारी परछाईं
इिर-उिर भटक रही है | और िैं सब परछाइयों को बटोरने और उन्हें सय ू ा के ताप िें जलाने आया हूाँ
|
शिदाि: जब तम्
ु हारी सााँस ने वायु को दवू षत करना शुरू ककया उससे बहुत पहले िैं इस नौका का
िुखखया था । तम् ु हारी नीि ल्जव्हा कैसे कहती है कक िैं यहााँ नहीीं हूाँ ?
िीरदाद: िैं इन पवातों से पहले था, और इसके िरू -िरू होकर मिटटी िें मिल जाने के बाद भी रहूींगा
। िैं नौका हूाँ, वेदी हूाँ, और अल्ग्न भी। जब तक तुि िेरी शरण िें नहीीं आओगे, तुि त़ि
ू ान के
मशकार बने रहोगे। जब तक तुि िेरे सािने अपने आप को मिटा नहीीं दोगे, तुि ित्ृ यु के अनचगनत
कसाइयों की तनरीं तर साीं दी जा रही छुिरयों से बि नहीीं पाओगे । और यदद िेरी कोिल अल्ग्न तम्
ु हे
जलाकर राख नहीीं कर दे गी, तुि नरक की क्रूर अल्ग्न का ईंिन बन जाओगे ।
शिदाि: क्या ति
ु सब ने सन
ु ा ?
सुना नहीीं क्या तुिने ? िेरा साथ दो, साचथयों ।
आओ, इस प्रभु-तनींदक पाखींडी को नीिे
खड्ड िें िेंक दें ।
नरौन्दा: शिदाि किर तेजी से िुमशाद की ओर बढ़ा और घसीटकर उन्हें बाहर तनकाल दे ने के इरादे से
उसने एकाएक बाींह से पकड़ मलया।
परन्तु िमु शाद न वविमलत हुए न अपनी जगह से हटे ; न ही कोई साथी ततनक भी दहला। एक बेिन ै
ख़ािोशी के बाद शिदाि का मसर उसकी छाती पर िक ु गया और िींद स्वर िें िानो अपने आपसे
कहते हुए वह नीड़ से तनकल गया ”िैं इस नौका का िुखखया हूाँ , िैं अपने प्रभ-ु प्रदि अचिकार पर
डटा रहूींगा।” िमु शाद बहुत दे र तक सोिते रहे , पर कुछ बोले नहीीं। ककन्तु जिोरा िुप न रह सका।
जिोरा; शिदाि ने हिारे िमु शाद का अपिान ककया है । िुमशाद, बतायें हि उसके साथ क्या करें ?
हुक्ि दें , और हि पालन करें गे।
िीरदाद; शिदाि के मलये प्राथाना करो, िेरे साचथयों।
िैं िाहता हूाँ कक उसके साथ तुि केवल इतना ही करो। प्राथाना करो की उसकी आाँखों पर से पदाा उठ
जाये और उसकी परछाईं मिट जाये |
अच्छाई को आकृष्ट करना उतना ही आसान है ल्जतना बरु ाई को। प्रेि के साथ सुर मिलाना उतना ही
आसान है ल्जतना घण
ृ ा के साथ।अनींत आकाश िें से,
अपने ह्रदय की ववशालता िें से शभ
ु कािना लेकर सींसार को दो। क्योकक हर वस्तु जो सींसार के मलये
वरदान है तम्
ु हारे मलए भी वरदान है । सभी जीवों के दहत के मलये प्राथाना करो। क्योकक हर जीव का
हर दहत तम्
ु हारा भी दहत है । इसी प्रकार हर जीव का अदहत तम्
ु हारा भी अदहत है।
क्या तुि सब अल्स्तत्व की अनन्त सीढ़ी की गततिान पौड़ी के सािान नहीीं हो? जो पववत्र स्वतींत्रता के
ऊाँिे िींडल पर िढ़ना िाहते हैं, उन्हें वववश होकर दस
ू रों के िढ़ने के मलए सीढ़ी की पौड़ी बनना पड़ता
है ।
तम्
ु हारे अल्स्तत्व की सीढ़ी िें शिदाि एक पााँवरी के अततिरक्त और क्या है ? क्या ति
ु नहीीं िाहते
तम्
ु हारी सीढ़ी िजबत
ू और सरु क्षक्षत हो ?
तो उसकी हर पााँवरी का ध्यान रखो और उसे िजबत
ू और सरु क्षक्षत बनाये रखो।
तम्
ु हारे जीवन की नीव िें शिदाि एक पत्थर के अततिरक्त और क्या है ? और तुि उसके और
प्रत्येक प्राणी के जीवन की इिारत िें लगे पत्थर के अततिरक्त और क्या हो ? यदद तुि िाहते हो
तम्
ु हारी इिारत पूणत
ा या दोष रदहत हो, तो ध्यान रखो शिदाि एक दोष-रदहत पत्थर हो।
तुि स्वयीं भी दोष-रदहत रहो, ताकक ल्जन लोगों की ईिारत िें तुि पत्थर बनकर लगो उनकी इिारतों
िें कोई दोष न हो। क्या ति
ु सोिते हो कक तम्
ु हारे पास दो से अचिक आाँखें नहीीं हैं ?
िैं कहता हूाँ कक दे ख रही हर आाँख, िाहे वह िरती पर हो, उससे उपर हो, या उसके नीिे, तम्
ु हारी
आाँख का ही भाग है । ल्जस हद तक तम्
ु हारे पड़ोसी की नजर सा़ि है, उस हद तक तम्
ु हारी नजर भी
सा़ि है।
ल्जस हद तक तम्
ु हारे पड़ोसी की नजर िुींिली हो गई है, उसी हद तक तम्
ु हारी नजर भी िि
ुीं ली हो
गई है ।
यदद एक िनष्ु य आाँखों से अाँिा है तो तुि एक जोड़ी आाँखों से वींचित हो जो तुम्हारी आाँखों की ज्योतत
को और बढ़ातीीं। अपने पड़ोसी की आाँखों की ज्योतत को सींभालकर रखो,
ताकक तुि अचिक स्पष्ट दे ख सको। अपनी दृल्ष्ट को सींभालकर रखो, ताकक तम्
ु हारा पड़ोसी ठोकर न
खा जाये और कहीीं तम्
ु हारे द्वार को ही न रोक ले।
जिोरा सोिता है शिदाि ने िेरा अपिान ककया है। शिदाि का अज्ञान िेरे ज्ञान को अस्त-व्यस्त
कैसे कर सकता है ?
एक कीिड़ – भरा नाला दस
ु रे नाले को आसानी के साथ कीिड़ से भर सकता है । परन्तु क्या कोई
कीिड़-भरा नाला सिद्र
ु को कीिड़ से भर सकता है ?
सिुद्र कीिड़ को सहषा ग्रहण कर लेगा तथा उसे तह िें बबछा लेगा, और बदले िें दे गा नाले को
स्वच्छ जल।
तुि िरती के एक वगा िुट को–शायद एक िील को—गींदा, या रोगाण-ु िुक्त कर सकते हो। िरती को
कौन गींदा या
रोगाण-ु िुक्त कर सकता है ?
िरती हर िनुष्य तथा पशु की गींदगी को स्वीकार कर लेती है और बदले िें उन्हें दे ती है िीठे िल
तथा सुगल्न्ित िूल, प्रिुर िात्रा िें अनाज तथा घाींस।
तलवार शरीर को तनश्िय ही घायल कर सकती है । परन्तु क्या वह हवा को घायल कर सकती है,
िाहे उसकी िार ककतनी ही तेज और उसे िलाने वाली भज
ु ा ककतनी ही बलशाली क्यों न हो ?
अन्िे और लोभी अज्ञान से उत्पन्न हुआ अहींकार नीि और सींकीणा आपे का अहींकार होता है जो
अपिान कर सकता है और करवा सकता है,
जो अपिान का बदला अपिान से लेना िाहता है और गींदगी को गींदगी से िोना िाहता है। अहीं कार के
घोड़े पर सवार तथा आपे के नशे िें िूर सींसार तम्
ु हारे साथ ढे रों अन्याय करे गा। वह अपने जजािरत
तनयिों, दग
ु न्
ा ि–भरे मसद्िान्तों और तघसे-वपटे सम्िानों के रक्त-वपपासु कुिे ति
ु पर छोड़ दे गा।
वह तुम्हे व्यवस्था का शत्रु और अव्यवस्था का कािरन्दा घोवषत करे गा। वह तम्
ु हारी राहों िें जाल
बबछायेगा और तम्
ु हारी सेजों को बबच्छू-बट
ू ी से सजायेगा। वह तुम्हारे कानों िें गामलयााँ बोयेगा और
ततरस्कारपव
ू क
ा तम्
ु हारे िेहरों पर थक
ू े गा। अपने ह्रदय को दब
ु ल
ा न होने दो।
बल्कक सागर की तरह ववशाल और गहरे बनो, और उसे आशीवााद दो जो तम्
ु हे केवल शाप दे ता है।
और िरती की तरह उदार तथा शान्त बनो और िनष्ु यों के ह्रदय के िैल को स्वास्थ्य और सौन्दया िें
बदल दो। और हवा की तरह स्वतींत्र और लिीले बनो।
जो तलवार तुम्हे घायल करना िाहे गी वह अींत िें अपनी ििक खो बैठेगी और उसे जींग लग जायेगा।
जो भज
ु ा तम्
ु हारा अदहत करना िाहे गी वह अींत िें थककर रुक जायेगी। सींसार तम्
ु हे अपना नहीीं
सकता, क्योंकक वह तम्
ु हे नहीीं जानता। इसमलए वह तम्
ु हारा स्वागत क्रुद्ि गुरााहट के साथ करे गा।
परन्तु तुि सींसार को अपना सकते हो, क्योंकक ति
ु सींसार को जानते हो। अतएव तम्
ु हे उसके क्रोि
को सहृदयता द्वारा शान्त करना होगा,
और उसके द्वेष-भरे आरोपों को प्रेिपूणा ददव्य ज्ञान िें डुबाना होगा।
और जीत अींत िें ददव्य ज्ञान की ही होगी।यही मशक्षा थी िेरी नह
ू को।यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।
ध्यान रखना तुि कभी लेनदार न बनो

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अध्याय 16
लेनदार और दे नदार
िन क्या है ?
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रल्स्तददयन को नौका के
ऋण से िुक्त ककया जाता है☜
नरौन्दा: एक ददन जब सातों साथी और िमु शाद नीड़ से नौका की ओर लौट रहे थे तो उन्होंने द्वार पर
खड़े शिदाि को अपने पैरों िें चगरे एक व्यल्क्त के सािने कागज़ का एक टुकड़ा दहलाते हुए क्रुद्ि
स्वर िें कहते सूना;
‘तम्
ु हारी लापरवाही ने िेरे िैया को सिाप्त कर ददया है । अब िैं और नरिी नहीीं बारात सकता।
अपना ऋण अभी िक
ु ाओ नहीीं तो जेल िें सड़ो।”
हि उस व्यल्क्त को पहिान गये,
उसका नाि रल्स्तददयन था।
वह नौका के अनेक काश्तकारों िें से एक था, जो कुछ रकि के मलये नौका का ऋणी था। वह चिथड़ों
के बोि से उतना ही िुका हुआ था ल्जतना कक आयु के बोि से। उसने ब्याज िक ु ाने के मलए यह
कहते हुए िुखखया से ववनयपव
ू क
ा सिय िााँगा कक इन्ही ददनों िैंने अपना एकिात्र पुत्र खो ददया है और
इसी सप्ताह अपनी गाय भी,
और इस शोक के िलस्वरूप िेरी बढ़
ू ी पत्नी को लकवा हो गया है । ककन्तु शिदाि का ह्रदय नहीीं
वपघला।
िुमशाद रल्स्तददयन की ओर गये और कोिलतापूवक
ा उसकी बााँह थािते हुए बोले;
िीरदाद: उठो, िेरे रल्स्तददयन।
तुि भी प्रभु का रूप हो, और प्रभु के रूप को ककसी परछाईं के सािने िक
ु ने के मलये वववश नहीीं
ककया जाना िादहये।
किर शिदाि की ओर िड़
ु ते हुए वे बोले;
िुिे ऋण-आलेख ददखाओ।
नरौन्दा: शिदाि ने, जो केवल एक पल पहले क्रोिाकुल हो रहा था, हि सबको िककत कर ददया
जब उसने िेिने से भी अचिक आज्ञाकारी होकर अपने हाथ का कागज़ िुपिाप िमु शाद के हाथ िें दे
ददया।
िमु शाद ने कागज़ ले मलया और दे र तक उसकी जाींि की, जबकक शिदाि स्तब्ि, बबना कुछ कहे
दे खता रहा, िानो उस पर कोई जाद ू कर ददया गया हो।
िीरदाद: कोई साहूकार नहीीं था इस नौका का सींस्थापक। क्या उसने िन ववरासत के रूप िें तम्
ु हारे
मलये इस उद्दे श्य से छोड़ा था कक तुि उसे उिार दे कर सद
ू खोरी करो ?
क्या उसने िल-सींपवि तम्
ु हारे मलए इस उद्दे श्य से छोड़ी थी कक तुि उसे व्यापार िें लगा दो,
या जिीनें इस उद्दे श्य से कक ति
ु उन्हें काश्तकारों को दे कर अनाज की जिाखोरी करो?
क्या उसने तम् ु हारे भाइयों का खनू -पसीना तुम्हे सौंपते हुए कारागार उन लोगों को बींदी बनाने के
उद्दे श्य से छोड़े थे ल्जनका सारा पसीना तिु ने बहा ददया है और ल्जनका खन ू तिु ने आखरी बद ाँू तक
िूस मलया है ?
एक नौका, एक वेदी, और एक ज्योतत सौंपी थी उसने तम्
ु हे इससे अचिक कुछ नहीीं।
नौका जो उसका जीववत शरीर है । वेदी जो उसका तनभीक ह्रदय है । ज्योतत जो उसका ज्वलन्त ववश्वास
है । और उसने तम्
ु हे आदे श ददया था कक इन तीनों को इस सींसार िें सदा सुरक्षक्षत और पववत्र रखना;
इस सींसार िें जो ववश्वास के अभाव के कारण ित्ृ यु के ताल पर नाि रहा है और अन्याय की दलदल
िें लोट रहा है।
और तम्
ु हारे शरीर की चिींताएाँ कहीीं तम्
ु हारे ध्यान को इस लक्ष्य से हटा न दें , इसमलये तम्
ु हे
श्रद्िालुओीं के दान पर तनवााह करने की अनुितत दी गई थी।
और जबसे नौका की स्थापना हुई है दान की कभी किी नहीीं रही।ककन्तु दे खो ! इस दान को तुिने
अब एक अमभशाप बना मलया है , अपने और दातनयों के मलये।
क्योंकक दातनयों द्वारा ददये गये उपहारों से ही तुि उन्हें अपने आिीन करते हो। जो सूत वे तुम्हारे
मलये कातते हैं उसी से तुि उन पर कोड़े बरसाते हो।
जो कपड़ा वे तम्
ु हारे मलए बन
ु ते हैं उसी से तुि उन्हें नींगा करते हो। जो रोटी वे तम्
ु हारे मलये पकाते हैं
उसी से ति
ु उन्हें भूखों िारते हो।
ल्जन पत्थरों को वे तम्
ु हारे मलये काटते और तराशते हैं उन्ही से ति
ु उनके मलये बींदीगह
ृ बनाते हो।
जो लकड़ी वे तुम्हे गिााहट के मलये दे ते हैं उसी से तुि उनके मलये जुए और ताबत
ू बनाते हो।
उसका अपना खन
ू -पसीना ही तुि उन्हें वापस उिार दे दे ते हो ब्याज पर। क्योंकक और क्या है पैसा
मसवाय लोगों के खन
ू -पसीने के ल्जसे ित
ू ों ने छोटे - बड़े मसक्कों िें ढाल मलया है, ताकक उनसे वे लोगों
को बींदी बना लें ?
और क्या है िन-दौलत मसवाय लोगों के खन
ू -पसीने के ल्जसे उन ित
ू ा व्यल्क्तयों ने बटोरा है जो सबसे
कि खन
ू -पसीना बहाते हैं, ताकक वे इससे उन्ही लोगों को पीस डालें जो सबसे अचिक खन
ू -पसीना
बहाते हैं?
चिक्कार है, बार-बार चिक्कार है उनको जो िन-दौलत इकट्ठी करने िें अपने ह्रदय और बद्
ु चि को
खपा दे ते हैं, अपने ददनों और रातों का खन
ू कर दे ते हैं क्योंकक वे नहीीं जानते कक वे क्या इकटठा कर
रहे हैं।
वेश्याओीं,हत्यारों और िोरों का पसीना; तपेददक,कोढ़ और लकवे के रोचगयों का पसीना; अींिों का
पसीना,लींगड़ों तथा लल
ू ों का पसीना; और साथ ही पसीना ककसान और उसके बैल का, िरवाहे तथा
उसकी भेड़ का, िसल को काटने तथा बेिने वाले का—-ये सब, और ककतने ही और पसीने इकट्ठे
कर लेते हैं िन-दौलत के जिाखोर |
अनाथों और दष्ु टों का खन
ू ; तानाशाहों और शहीदों का खन
ू ; दरु ािािरयों और न्यायवानों का खन
ू ;
लुटेरों और लट
ु े जाने वालों का खन
ू ; जकलादों और उनके हाथों िरनेवालों का खन
ू ; शोषकों और ठगों
तथा उनके द्वारा शोवषत ककये जाने वालों और ठगे जाने वालों का खन
ू – ये सब,
और ककतने ही और खन
ू इकट्ठे कर लेते हैं िन-दौलत के जिाखोर। हााँ, चिक्कार है, बार-बार
चिक्कार है उनको ल्जनकी िन-दौलत और ल्जनके व्यापार का िाल लोगों का खन
ू और पसीना है।
क्योंकक खन
ू और पसीना तो आखखर अपनी कीित वसूल करें गे ही । और भीषण होगी यह कीित और
भयींकर उसकी वसूली । उिार दे ना, और वह भी ब्याज पर ! यह सििि
ु कृतध्नता है , इतनी
तनलाज्ज कक इसे क्षिा नहीीं ककया जा सकता ।
क्योंकक उिर दे ने के मलए तम्
ु हारे पास है क्या ? क्या तम्
ु हारा जीवन ही एक उपहार नहीीं है ? यदद
परिात्िा को तम्
ु हे ददये अपने छोटे से छोटे उपहार का भी ब्याज लेना हो तो ति
ु उसे ककस िीज से
िुकाओगे ?
क्या यह सींसार एक सींयुक्त कोष नहीीं ल्जसिे हर िनष्ु य, हर पदाथा सबके भरण-पोषण के मलये
अपना सब-कुछ जिा कर दे ता है ?
क्या बुलबल
ु अपना गीत और िरना अपना उज्ज्वल जल तम्
ु हे उिार दे ते हैं ?क्या बरगद अपनी छाया
और खजरू अपने शहद-से िीठे िल क्काजा पर दे ते है ?क्या भेड़ अपना ऊन और गाय अपना दि

तम्
ु हे ब्याज पर दे ती हैं ? क्या बादल अपनी बषाा और सय ू ा अपनी गिी और प्रकाश तम्
ु हे िोल दे ते हैं
?
इन वस्तुओीं तथा अन्य हजारों वस्तओ ु ीं के बबना तम्
ु हारा जीवन कैसा होता ? और ति ु िे से कौन बता
सकता है कक सींसार के कोष िें, ककस िनुष्य,ककस वस्तु ने सबसे अचिक और ककसने सबसे कि
जिा ककया है ?
शिदाि, क्या ति
ु नौका के कोष िें रल्स्तददयन के योगदान का दहसाब लगा सकते हो ? किर भी
तुि उसी के योगदान को—-शायद उसके योगदान के केवल एक तुच्छ अींश को—उसे ऋण के रूप िें
वापस दे ते हो और साथ ही उस पर ब्याज भी िाींगते हो ?
किर भी तुि उसे जेल भेजना िाहते हो और सड़ने के मलये वहाीं छोड़ दे ना िाहते हो ? क्या ब्याज
िाींगते हो तुि रल्स्तददयन से ?
क्या तिु दे ख नहीीं सकते तम्
ु हारे ऋण ने उसे ककतना लाभ पहुींिाया है ? ित
ृ पत्र
ु , ित
ृ गाय, और
पक्षाघात से पीड़ड़त पत्नी–इससे अचिक अच्छा भुगतान ति ु क्या िाहते हो ?
इतनी िक
ु ी पीठ पर ये इतने चिथड़े—इससे अचिक और क्या ब्याज वसूल कर सकते हो तुि ?
आह..
अपनी आाँखें िलो, शिदाि ! जागो इससे पहले कक तम्
ु हे भी ब्याज सदहत अपना ऋण िक
ु ाने के
मलये कहा जाये, और भुगतान न कर पाने की सूरत िें तम्
ु हे भी घसीटकर जेल िें डाल ददया जाये
और वहाीं सड़ने को छोड़ ददया जाये।
यही बात िैं तुि सबसे कहता हूाँ, साचथयों।
अपनी आाँखें िलो, और जागो। जब दे सको, और ल्जतना दे सको, दो। लेककन ऋण कभी ित दो,
कहीीं ऐसा न हो कक जो कुछ तम्
ु हारे पास है, तम्
ु हारा जीवन भी, एक ऋण बनकर रह जाये और वह
ऋण लौटाने का सिय तुरन्त ही आ जाये,
और तुि ददवामलया पाये जाओ और तुम्हे जेल िें डाल ददया जाये।
नरौन्दा: िमु शाद ने तब हाथ िें थािे हुए कागज़ पर एक नजर डाली और कुछ सोिकर उसे टुकड़े-टुकड़े
कर ददया, और उन टुकड़ों को हवा िें बबखेर ददया। किर दहम्बल की ओर िुड़ते हुए, जो नौका का
कोषाध्यक्ष था,
वे बोले;िीरदाद: रल्स्तददयन को इतना िन दे दो कक वह दो गाय खरीद सके
और जीवन के अींत तक अपनी और अपनी पत्नी की दे ख-भाल कर सके।
और तुि रल्स्तददयन शान्त िन से जाओ। तुि अपने ऋण से िुक्त हुए।
ध्यान रखना कक तुि कभी लेनदार न बनो। क्योंकक लेनदार का ऋण दे नदार के ऋण से कहीीं अचिक
बड़ा और भारी होता है ।
अध्याय- 17
शिदाि हि से
ही आता है
**************************************
िीरदाद के ववरुद्ि अपने सींघषा िें शिदाि िरश्वत का सहारा लेता है नरौन्दा: कई ददन तक
रल्स्तददयन का िािला नौका िें ििाा का िख्
ु य बबषय बना रहा।
मिकेयन, मिकास्तर, तथा जिोरा ने जोश के साथ िमु शाद की सराहना की;
जिोरा ने तो कहा उसे िन को दे खने और छूने तक से घण
ृ ा है
बैनन
ू तथा अबबिार ने दबे स्वर िें सहिती और असहितत प्रकट की।
लेककन दहम्बल ने ने यह कहते हुए स्पष्ट बबरोि ककया कक िन के बबना सींसार का काि कभी नहीीं
िल सकता और कि-खिी और पिरश्रि के मलये िन- सींपवि परिात्िा का उचित परु स्कार है,
जैसे आलस्य और किजूल-खिी के मलये गरीबी परिात्िा का प्रत्यक्ष दण्ड है ।
उसने यह भी कहा की लेनदार और दे नदार तो सिय के अींत तक सींसार िें रहें गे ही।
इस दौरान शिदाि िखु खया के रूप अपनी प्रततष्ठा को सि
ु रने िें व्यस्त था।
उसने एक बार िुिे बुलाया और अपने किरे के एकाींत िें िुिसे कहा; ” तुि इस नौका के लेखक
और इततहासकार हो;
और तुि एक तनिान व्यल्क्त के पुत्र हो।
तम्
ु हारे वपता के पास जिीन नहीीं,
उनके सात बच्िे और पत्नी है ल्जनके मलये उसे पिरश्रि करना पड़ता है
और ल्जनकी न्यन
ू ति आवश्यकताएीं उसे पूरी करना पड़ती हैं।
इस दख
ु द का एक भी शब्द ित मलखना,
कहीीं ऐसा न हो कक हिारे बाद आने वाले लोग शिदाि को हास्य का पात्र बना लें।
तुि एक पततत िीरदाद का साथ छोड़ दो,
और िैं तुम्हारे वपता को भमू िपतत बना दीं ग
ू ा उसका कोठार तथा ततजोरी पूरी तरह भर दीं ग
ू ा।”
िैंने उिर ददया कक परिात्िा िेरे वपता तथा उसके पिरवार का शिदाि की अपेक्षा कहीीं अचिक अच्छा
ध्यान रखेगा।
जहाीं तक िीरदाद का सम्बन्ि है, उसे िैंने अपना िमु शाद और िल्ु क्तदाता स्वीकार कर मलया है, और
उसका साथ छोड़ने से पहले िैं अपने प्राण त्याग दीं ग
ू ा।
रही नौका के इततहास की बात, वह तो िैं ईिानदारी के साथ अपनी पूरी सिि और योग्यता के
अनुसार मलखग
ूाँ ा।
बाद िें िुिे पता िला कक शिदाि ने ऐसे ही प्रस्ताव हरएक साथी के सािने रखे थे, ककन्तु वे
ककतने सिल रहे यह िैं नहीीं कह सकता।
हााँ, इतना अवश्य दे खने िें आया कक दहम्बल पहले की तरह तनयमित रूप से नीड़ िें उपल्स्थत नहीीं
होता था।
पने िारों और घूिने दो
पर सिय साथ खद
ु ित घूिो।
**********************************
अध्याय -18
सिय सबसे बड़ा िदारी है
सिय का िक्र,
उसकी हाल और उसकी िुरी
****************************************

नरौन्दा: एक लींबे सिय के बाद, जब बहुत-सा जल पहाड़ों से नीिे बहता हुआ सिद्र
ु िें जा मिला
था,
दहम्बल के मसवाय बाकी सभी साथी एक बार किर नीड़ िें िुमशाद के िरों और इकट्ठे हुए।
िमु शाद प्रभु-इच्छा पर ििाा कर रहे थे।
ककन्तु अकस्िात वे रुक गये और बोले;
िीरदाद: दहम्बल सींकट िें है और वह सहायता के मलये हिारे पास आना िाहता है, ककन्तु सींकोि के
कारण उसके पैर इस ओर उठ नहीीं पा रहे हैं। जाओ अबबिार उसकी सहायता करो।
नरौन्दा: अबबिार बाहर गया और शीघ्र ही दहम्बल को साथ लेकर लौट आया। दहम्बल की दहिककयााँ
बाँिी हुई थीीं और िेहरा उदास था।
िीरदाद: िेरे पास आओ, दहम्बल। ओह, दहम्बल, दहम्बल। तुम्हारे वपता की ित्ृ यु हो गई इसमलये
तुि इतने असहाय हो गये कक दिःु ख ने तम्
ु हारे ह्रदय को बेि ददया और तम्
ु हारे रक्त को आाँसुओीं िें
बदल ददया।
जब तम्
ु हारे पिरवार के सब लोगों की ित्ृ यु हो जायेगी तब तुि क्या करोगे ? क्या करोगे तुि जब
तुि सींसार के सब वपता और िाताएाँ, और सब बहनें और भाई तुम्हारे हाथों और आाँखों की पहुाँि से
परे िले जायेंगे ?
दहम्बल; हााँ िुमशाद। िेरे वपता की ित्ृ यु दहींसापूणा हुई है । एक बैल ने, ल्जसे उन्होंने हाल ही िें खरीदा
था, कल शाि उनके पेट िें सीींग भोंक ददया और उनका मसर कुिल डाला। िुिे अभी-अभी एक
सन्दे श वाहक ने सि
ू ना दी है।
हाय, अ़िसोस !
मिरदाद: और उनकी ित्ृ य,
ु जान पड़ता है, ठीक उसी सिय हुई जब उनका भाग्य उदय होने वाला
था।
दहम्बल; ऐसा ही हुआ, िुमशाद। ठीक ऐसा ही हुआ।
िीरदाद: और उनकी ित्ृ यु तम्
ु हे इसमलये और भी अचिक दिःु ख दे रही है कक वह बैल उन्ही पैसों से
खरीदा गया था जो तुिने भेजे थे।
दहम्बल; यह सि है, िमु शाद। ठीक ऐसा ही हुआ है । लगता है आप सब-कुछ जानते हैं।
िीरदाद: और वे पैसे िीरदाद के प्रतत तम्
ु हारे प्रेि की कीित थे।
नरौन्दा; दहम्बल आगे कुछ न बोल सका, क्योंकक आाँसओ
ु ीं से उसका गला रूाँि गया था।
िीरदाद: तम्
ु हारे वपता िरे नहीीं हैं, दहम्बल। न ही उनका स्वरूप और परछाईं नष्ट हुए हैं। परन्तु
वास्तव तम्
ु हारे वपता के बदले हुए स्वरूप और परछाईं को दे खने िें तम्
ु हारी इल्न्द्रयााँ असिथा हैं।
क्योंकक कुछ स्वरूप इतने सक्ष्
ू ि होते हैं, और उनकी परछाइयााँ इतनी क्षीण कक िनष्ु य की स्थूल आाँख
उन्हें दे ख नहीीं सकती।
जींगल िें ककसी दे वदार की परछाईं वैसी नहीीं होती जैसी परछाईं उसी दे वदार से बने जहाज के
िस्तूल,या िींददर के स्तम्भ, या िाींसी के यखते की होती है।
न ही उस दे वदार की परछाईं िुप िें वैसी होती है जैसी िााँद और मसतारों के प्रकाश िें, या भोर की
मसींदरू ी िि
ुीं िें होती है ।
ककन्तु वह दे वदार, िाहे वह ककतना ही बदल गया हो, दे वदार के रूप िें जीववत रहता है, यद्यवप
जींगल के दे वदार अब पहिान नहीीं पाते कक वह बीते ददनों िें उनका भाई था।
पिे पर बैठा रे शि का कीड़ा क्या रे शिी खोल िें पल रहे कीड़े िें अपने भाई की ककपना कर सकता है
? या खोल िें पल रहा कीड़ा उड़ते हुए रे शि के पतींगे िें अपना भाई दे ख सकता है ?
क्या िरती के अींदर पडा गेहूीं का दाना िरती के ऊपर खड़े गेहूीं के डींठल से अपना नाता सिि सकता
है ?
क्या हवा िें उड़ती भाप या सागर का जल पवात की दरार िें लटक रहे दहम्लाम्बों को भाई-बहनों के
रूप िें स्वीकार कर सकता है ?
क्या िरती अन्तिरक्ष की गहराइयों िें से अपनी ओर िेंके गये टूटे तारे िें एक भाई तारा दे ख सकती
है ?
क्या बरगद का वक्ष
ृ अपने बीज के अींदर अपने आपको दे ख सकता है ?
क्योंकक तम्
ु हारे वपता अब एक ऐसे प्रकाश िें हैं ल्जसे दे खने की तम्
ु हारी आाँख अभ्यस्त नहीीं हैं, और
ऐसे रूप िें हैं ल्जसे तुि पहिान नहीीं सकते, तुि कहते हो कक तम्
ु हारे वपता अब नहीीं हैं।
ककन्तु िनष्ु य का भौततक अल्स्तत्व, िाहे वह कहीीं भी पहुाँि गया हो, ककतना भी बदल गया हो,
एक परछाईं जरुर िेंकेगा
जब तक वह िनष्ु य के ईश्वरीय प्रकाश िें परू ी तरह ववलीन नहीीं हो जाता।
लकड़ी का एक टुकडा िाहे वह आज पेड़ की हरी शाखा हो और कल दीवार िें गड़ी खट
ूीं ी, लकड़ी ही
रहता है। और अपना रूप तथा परछाईं बदलता रहता है।
जब तक वह अपने अींदर तछपी आग िें जलकर भस्ि नहीीं हो जाता।
इसी तरह िनष्ु य, जीते हुए और िरकर भी, िनुष्य ही रहे गा जब तक उसके अींदर का प्रभु उसे पूरी
तरह अपने िें सिा न ले;
अथाात जब तक वह उस एक के साथ अपने एकत्व का अनुभव न कर ले। परन्तु ऐसा आाँख के एक
तनिेष िें नहीीं हो जाता ल्जसे िनुष्य जीवन-काल का नाि दे ता है।सम्पूणा सिय जीवन-काल है, िेरे
साचथयों।
सिय िें कोई आरीं भ या पड़ाव नहीीं है। न ही उसिे कोई सराय है जहाीं यात्री जल-पान और ववश्राि के
मलये रुक सकें।
सिय एक तनरीं तरता है जो अपने आप िें मसिटती जाती है । इसका पछला छोर इसके अगले छोर के
साथ जड़
ु ा है। सिय िें कुछ भी सिाप्त और ववसल्जात नहीीं होता;
कुछ भी आरम्भ तथा पूणा नहीीं होता।सिय इल्न्द्रयों के द्वारा रचित एक िक्र है, और इल्न्द्रयों के
द्वारा ही उसे स्थान के शून्यों िें घुिा ददया जाता है।
तुि ऋतओ
ु ीं के िक्र दे नेवाले पिरवतान का अनुभव करते हो, और इसमलये ववश्वास करते हो कक सब
कुछ पिरवतान की जकड िें है ।
परन्तु साथ ही ति
ु यह भी िानते हो कक ऋतओ
ु ीं को प्रकट और ववलीन करनेवाली शल्क्त एक रहती
है ,
सदै व वहती रहती है ।
तुि वस्तुओीं के ववकास तथा क्षय को दे खते हो, और तनराशपूवक
ा घोषणा करते हो कक सभी
ववकासशील वस्तुओीं का अींत क्षय होता है ।
परन्तु साथ ही ति
ु यह भी स्वीकार करते हो कक ववकमसत और क्षीण करनेवाली शल्क्त स्वयीं न
ववकमसत होती है न क्षीण।
तुि बयार की तुलना िें वायु के वेग का अनुभव करते हो, और कह दे ते हो दोनों िें से वायु अचिक
वेगवान है। ककन्तु इसके बावजूद तुि स्वीकार करते हो कक वायु को गतत दे नेवाला और बयार को गतत
दे नेवाला एक ही है, और वह न तो वायु के साथ वेग से दौड़ता है न ही बयार के साथ ठुिकता है ।
ककतनी आसानी से ववश्वास कर लेते हो ति
ु ! ककतनी आसानी से ति
ु इल्न्द्रयों के हर िोखे िें आजाते
हो ! कहााँ है तुम्हारी ककपना ?
क्योंकक उसी के द्वारा तुि यह दे ख सकते हो कक जो पिरवतान तम्
ु हे िकरा दे ते है, वे केवल हाथ की
सिाई हैं।
वायु बयार से तेज कैसे हो सकती है ? क्या बयार ही वायु को जन्ि नहीीं दे ती ? क्या वायु बयार को
अपने साथ मलये नहीीं किरती ?
ऐ िरती पर िलनेवालो,
तुि अपने पैरों द्वारा तय की गई दिू रयों को क़दिों और कोसों िें क्यों नापते हो? तुि िाहे िीरे -िीरे
िलो िाहे सरपट दौड़ो,
क्या िरती की गतत तन्
ु हें उन अींतिरक्षों और िण्डलों िें नहीीं ले जाती जहााँ स्वयीं िरती को ले जाया
जाता है ?
इसमलये तुम्हारी िाल क्या वही नहीीं जो िरती की िाल है ? और किर, क्या िरती को अन्य वपण्ड
अपने साथ नहीीं ले जाते, और उसकी गतत को अपनी गतत के बराबर नहीीं कर लेते ?
हााँ,
िीिा ही वेगवान को जन्ि दे ता है। वेगवान िीिे का वाहक है । िीिे और वेगवान को सिय और
स्थान के ककसी भी बबन्द ु पर एक-दस
ू रे से अलग नहीीं ककया जा सकता।
तुि यह कैसे कहते हो कक ववकास ववकास है और क्षय क्षय है, और वे एक दस
ू रे के बैरी हैं ?
क्या कभी ककसी वस्तु का उद्गि क्षीण हो िक
ु ी ककसी वस्तु के अततिरक्त और कहीीं से हुआ है?
और क्या कभी ककसी वस्तु िें क्षय का आगिन ववकमसत हो रही ककसी वस्तु के अततिरक्त और कहीीं
से हुआ ह ?
क्या तुि तनरीं तर क्षीण होकर ही ववकमसत नहीीं हो रहे हो? क्या तुि तनरीं तर ववकमसत होकर क्षीण नहीीं
हो रहे हो?
जो जीववत हैं, ित
ृ क क्या उनके मलये मिटटी की तनिली परत नहीीं हैं ?
और जो ित
ृ क हैं, जीववत क्या उनके मलये अनाज के गोदाि नहीीं हैं ?
यदद ववकास क्षय की सींतान है और क्षय ववकास की; यदद जीवन ित्ृ यु की जननी है, और ित्ृ यु
जीवन की, तो वास्तव िें वे सिय और स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक ही हैं।
और जीने तथा ववकमसत होने पर तम्
ु हारी प्रसन्नता वास्तव िें उतनी ही बड़ी िख
ु त
ा ा है ल्जतनी िरने
और क्षीण होने पर तम्
ु हारा शोक।
तुि यह कैसे कह सकते हो कक पतिड़ ही अींगूर की ऋतु है ?
िैं कहता हूाँ कक अींगूर शीत ऋतु िें भी पका होता है जब वह बेल के अींदर अदृश्य रूप िें स्पींददत हो
रहा और सपने दे ख रहा केवल सुप्त रस होता है; और वह पका होता है बसींत ऋतु िें भी, जब वह
हरे रीं ग के छोटे -छोटे िनकों के कोिल गच्
ु छों के रूप िें प्रकट होता है; और ग्रीष्ि िें भी, जब गच्
ु छे
़िैल जाते हैं, िनके िूल उठते हैं और उनके गाल सय
ू ा के स्वणा िें रीं ग जाते हैं।
यदद हर ऋतु अपने भीतर तीनों ऋतुओीं को िारण ककये हुए है, तो तनिःसींदेह सब ऋतुएाँ सिय और
स्थान के प्रत्येक बबन्द ु पर एक हैं।
हााँ,
सिय सबसे बड़ा िदारी है,
और िनुष्य िोखे का सबसे बड़ा मशकार है । पदहये की हाल पर दौड़ती चगलहरी की तरह ही िनुष्य,
ल्जसने स्वयीं ही सिय के पदहये को गतत दी है, पदहये की गतत पर इतना िोदहत है, उससे इतना
प्रभाववत है कक अब उसे ववश्वास नहीीं होता कक उसे घुिानेवाला वह स्वयीं है,
न ही वह सिय की गतत को रोकने के मलये ‘सिय तनकाल पाता’ है। और उस बबकली की तरह ही जो
इस ववश्वास िें कक जो रक्त वह िाट रही है वह पत्थर िें से िरस रहा है िाींस को िाटने िें अपनी
जीभ तघसा दे ती है,
िनुष्य भी इस ववश्वास िें की सिय का रक्त और िाींस है सिय की हाल पर चगरा अपना ही रक्त
िाटता जाता है
और सिय के आरों द्वारा िीर डाला गया अपना ही िाींस िबाये जाता है।
सिय का पदहया स्थान के शून्य िें घि
ू ता है । इसकी हाल पर ही वे सब वस्तए
ु ाँ हैं ल्जनका इल्न्द्रयााँ
अनुभव कर सकती हैं,
लेककन वे केवल ककसी सिय और स्थान की सीिा के अींदर ही ककसी वस्तु का अनुभव कर सकती हैं।
इस्कये वस्तुएीं प्रकट और लुप्त होती रहती हैं। जो वस्तु एक के मलये सिय और स्थान के एक बबींद ु
पर लप्ु त होती है,
वह दस
ू रे के मलये ककसी दस
ू रे बबींद ु पर प्रकट हो जाती है। जो एक के मलये ऊपर है, वह दस
ु रे के मलये
नीिे है । जो एक के मलये ददन हो, वह दस
ु रे के मलये रात है।
और यह तनभार करता है दे खने वाले के ‘कब’ और ‘कहााँ’ पर।
सिय के पदहये की हाल पर जीवन और ित्ृ यु का रास्ता एक ही है, सािुओ।
क्योंकक गोलाई िें हो रही गतत कभी ककसी अींत पर नहीीं पहुाँि सकती, न ही वह कभी ख़त्ि होकर
रुक सकती है। और सींसार िें हो रही प्रत्येक गतत गोलाई िें हो रही गतत है।
तो क्या िनष्ु य अपने आपको सिय के अींतहीन िक्र से कभी िक्
ु त नहीीं करे गा ? करे गा, अवश्य
करे गा, क्योंकक िनुष्य प्रभु की ददव्य स्वतींत्रता का उिराचिकारी है ।
सिय का पदहया घूिता है,
ककन्तु इसकी िुरी ल्स्थर है ।
प्रभु सिय के पदहये की िुरी है ।
यद्यवप सब वस्तए
ु ीं सिय और स्थान िें प्रभु के िारों ओर घि
ू ती हैं, किर भी प्रभु सदै व सिय-
िुक्त, स्थान-िुक्त और ल्स्थर है ।
यदयवप सब वस्तुएीं उसके शब्द से उत्पन्न होती हैं, किर भी उसका शब्द उतना ही सिय-िुक्त और
स्थान-िुक्त है ल्जतना वह स्वयीं।
िुरी िें शाल्न्त ही शाल्न्त है,
हाल िें अशाल्न्त ही अशाल्न्त है ।
तुि कहााँ रहना पसन्द करोगे ?
िैं तुिसे कहता हूाँ, तुि सिय की हाल पर से सरककर उसकी िुरी पर आ जाओ

और अपने आपको गतत की


बेिन
ै ी से बिा लो।
सिय को अपने िारों ओर घि
ू ने दो; पर सिय के साथ खद
ु ित घि
ू ो।
अध्याय -19

सिय के पदहये को
☞ कैसे रोका जाये ☜
•••••••••••••••••••••••••••••••••••
तका और ववश्वास
अहि ् को नकारना अहि ् को उभारना है
सिय के पदहये को कैसे रोका जाये
रोना और हाँसना

बैनन
ू : क्षिा करें , िुमशाद। आपका तका अपनी तकाहीनता से िुिे उलिन िें डाल दे ता है।
िीरदाद: है रानी की बात नहीीं, बैनन
ू , कक तम्
ु हे ‘न्यायिीश’ कहा गया है। ककसी िािले तका-सींगत
होने का ववश्वास हो जाने पर ही तुि उस पर तनणाय दे सकते हो। ति
ु इतने सिय तक न्यायिीश रहे
हो, तो भी क्या तुि अब तक यह नहीीं जान पाये कक तका का एकिात्र उपयोग िनष्ु य को तका से
छुटकारा ददलाना और उसको ववश्वास की ओर प्रेिरत करना है जो ददव्य ज्ञान की ओर ले जाता है ।
तका अपिरपक्वता है जो ज्ञान के ववशालकाय पशु को िाँसाने के इरादे से अपने बारीक जाल बन
ु ता
रहता है जब तका वयस्क हो जाता है तो अपने ही जाल िें अपना दि घोंट लेता है,
और किर बदल जाता है ववश्वास िें जो वास्तव िें गहरा ज्ञान है। तका अपादहजों के मलये बैसाखी है;
ककन्तु तेज पैरवालों के मलये एक बोि है, और पींख वालों के मलये तो और भी बड़ा बोि है । तका
सदठया गया ववश्वास है। ववश्वास वयस्क हो गया तका है। जब तम्
ु हारा तका वयस्क हो जायेगा,
बैनन
ू ,
और वयस्क वह जकदी ही होगा,तब तुि कभी तका की बात नहीीं करोगे।
बैनन
ू : सिय की हाल से उसकी िुरी पर आने के मलये हिें अपने आपको नकारना होगा। क्या िनुष्य
अपने अल्स्तत्व को नकार सकता है ?
िीरदाद: बेशक! इसके मलये तम्
ु हे उस अहि ् को नकारना होगा जो सिय के हाथों िें एक खखलोना है
और इस तरह उस अहि ् को उभारना होगा ल्जस पर सिय के जाद ू का असर नहीीं होता।
बैनन
ू ; क्या एक अहि ् को नकारना दस
ू रे अहि ् को उभारना हो सकता है ?
िीरदाद: हााँ, अहि ् को नकारना ही अहि ् को उभारना है। जब कोई पिरवतान के मलये िर जाता है तो
वह पिरवतान– रदहत हो जाता है । अचिकााँश लोग िरने के मलये जीते हैं। भाग्यशाली हैं वे जो जीने के
मलये िरते हैं।
बैनन
ू : परन्तु िनुष्य को अपनी अलग पहिान बड़ी वप्रय है । यह कैसे सींभव है कक वह प्रभु िें लीीं हो
जाये और किर भी उसे अपनी अलग पहिान का बोि रहे ?
िीरदाद: क्या ककसी नदी-नाले के मलये सागर िें सिा जाना और इस प्रकार अपने आपको सागर के
रूप िें पहिानने लगना घाटे का सौदा है ? अपनी अलग पहिान को प्रभु के अल्स्तत्व िें लीन कर
दे ना वास्तव िें िनुष्य का अपनी परछाईं को खो दे ना है और अपने अल्स्तत्व का परछाईं रदहत सार
पा लेना है।
मिकास्तर: िनष्ु य, जो सिय का जीव है, सिय की जकड से कैसे छूट सकता है ?
िीरदाद: ल्जस प्रकार ित्ृ यु तम्
ु हे ित्ृ यु से छुटकारा ददलायेगी और जीवन जीवन से, उसी प्रकार सिय
तम्
ु हे सिय से िल्ु क्त ददलायेगा। िनुष्य पिरवतान से इतना ऊब जायेगा कक उसका परू ा अल्स्तत्व
पिरवतान से अचिक शल्क्तशाली वस्तु के मलये तरसेगा, कभी िींद न पड़ने वाली तीब्रता के साथ
तरसेगा। और तनश्िय ही वह उसे अपने अींदर प्राप्त करे गा।
भाग्यशाली हैं वे जो तरसते है क्योंकक वे स्वतींत्रता की दे हरी पर पहुाँि िकु े हैं। उन्ही की िि
ु े तलाश है
और उन्ही के मलये िैं उपदे श दे ता हूाँ। क्या तम्
ु हारी ब्याकुल पुकार सन ु कर ही िैंने तुम्हे नहीीं िन
ु ा है
?पर अभागे हैं वे जो सिय और िक्र के साथ घूिते हैं और उसी िें अपनी स्वतींत्रता और शाींतत ढूढने
की कोमशश करते हैं।
वे अभी जन्ि पर िस्
ु कराते ही हैं कक उन्हें ित्ृ यु पर रोना पड़ जाता है। वे अभी भरते ही हैं कक उन्हें
खली कर ददया जाता है । वे अभी शाींतत के कपोत को पकड़ते ही हैं कक उनके िें ही उसे यद्
ु ि के
चगद्ि िें बदल ददया जाता है । अपनी सिि िें वे ल्जतना अचिक जानते हैं, वास्तव िें वे उतना ही
कि जानते हैं।
ल्जतना वे आगे बढ़ते हैं, उतनी ही पीछे हट जाते हैं। ल्जतना वे ऊपर उठते है, उतना ही नीिे चगर
जाते हैं। उनके मलये िेरे शब्द केबल एक अस्पष्ट और उिेजक िुसिुसाहट होंगे;
पागलखाने िें की गई प्राथाना के सािान होंगे, और होंगे अींिों के सािने जलाई गई मिशाल के
सािान। जब तक वे भी स्वतींत्रता के मलये तरसने नहीीं लगें गे, िेरे शब्दों की ओर ध्यान नहीीं दें गे।
दहम्बल: ( रोते हुए) आपने केवल िेरे कान ही नहीीं खोल ददये, िुमशाद, बल्कक िेरे ह्रदय के द्वार भी
खोल ददये हैं। कल के बहरे और अींिे दहम्बल को क्षिा करें ।
िीरदाद: अपने आींसओ
ु ीं को रोको, दहम्बल। सिय और स्थान की सीिाओीं से परे के क्षक्षततजों को
खोजने वाली आाँख िें आाँसू शोभा नहीीं दे ते। जो सिय की िालाक अाँगुमलयों द्वारा गद
ु गुदाये जाने पर
हाँसते हैं, उन्हें सिय के नाखन
ू ों द्वारा अपनी ििड़ी के तार-तार ककये जाने पर रोने दो। जो यौवन
की काल्न्त के आगिन पर नािते और गाते हैं, उन्हें बढ
ु ापे की ििु रा यों के आगिन पर लडखडाने और
कराहने दो।
सिय के उत्सवों िें आनन्द िनानेवालों को सिय की अन्त्येल्ष्टयों िें अपने मसर पर राख डालने दो।
ककन्तु ति
ु सदा शाींत रहो। पिरवतान के बहुरुपदशी दपाण िें केवल पिरवतान-िुक्त को खोजो।
सिय िें कोई वस्तु इस योग्य नहीीं है कक ल्जसके मलये आाँसू बहाये जायें। कोई वस्तु इस योग्य नहीीं
कक उसके मलये िस्
ु कुराया जाये। हाँसता हुआ िेहरा और रोता हुआ िेहरा सािान रूप से अशोभनीय
और ववकृत होते हैं। क्या ति
ु आींसुओीं के खारे पन से बिना िाहते हो?
तो किर हाँसी की कुरूपता से बिो।
आाँसू जब भाप बनकर उड़ता है
तो हाँसी का रूप िारण कर लेता है;
हाँसी जब मसिटती है तो आाँसू बन जाती है ।
ऐसे बनो कक तुि न हषा िें िैलकर खो जाओ,
और न शोक िें मसिटकर अपने
अींदर घट
ु जाओ।
बल्कक दोनों िें ति
ु सािान रहो शाींत रहो।

अध्याय-20
पश्िाताप
िरने के बाद हि कहाीं जाते है
••••••••••••••••••••••••••••••••••
िीरदाद: इस सिय तुि कहााँ हो,मिकास्तर ?
मिकास्तर: नीड़ िें।
िीरदाद: तुि सििते हो कक यह नीड़ तम्
ु हे अपने अींदर रखने के मलये कािी बड़ा है ? तुि सििते
हो यह िरती िनुष्य का एकिात्र घर है ?
तम्
ु हारा शरीर िाहे वह सिय की सीिा से बींिा हुआ है, सिय और स्थान िें ववद्यिान हर पदाथा िें
से मलया जाता है। तम्
ु हारा जो अींश सय
ू ा िें से आता है, वह सय
ू ा िें जीता है । तम्
ु हारा जो अींश िरती
िें से आता है, वह िरती िें जीता है।
और ऐसा ही सभी ग्रहों और उनके बीि पथहीन शून्यों के साथ भी है । केवल िूखा ही सोिना पसींद
करते हैं कक िनुष्य का एकिात्र आवास िरती है।
तथा आकाश िें तैरते असींख्य वपींड मसिा िनष्ु य के आवास की सजावट के मलये हैं, उसकी दृल्ष्ट को
भरिाने के मलये हैं।प्रभात- तारा, आकाश-गींगा, कृततका िनुष्य के मलये इस िाती से कि नहीीं हैं।
जब-जब वे उसकी आाँख िें ककरण डालते हैं, वे उसे अपनी ओर उठाते है । जब-जब वह उनके नीिे से
गुजरता है, वह उनको अपनी ओर खीिते हैं। सब वस्तए
ु ीं िनुष्य िें सिाई हुई हैं, और िनुष्य सब
वस्तुओीं िें।
यह ब्रम्हाींड केवल एक ही वपण्ड है । इसके सक्ष्
ू ि से सक्ष्
ू ि कण के साथ सींपका कर लो, और तम्
ु हारा
सभी के साथ सींपका हो जायेगाऔर ल्जस प्रकार ति
ु जीते हुए िरते हो, उसी प्रकार िरकर तुि जीते
रहते हो;
यदद इस शरीर िें नहीीं, तो ककसी अन्य रूप बाले शरीर िें। परन्तु तुि शरीर िें तनरीं तर रहते हो जब
तक परिात्िा िें ववलीन नहीीं हो जाते; दस
ु रे शब्दों िें, जब तक तुि हर प्रकार के पिरवतान पर
ववजय नहीीं पा लेते|
मिकास्तर: शरीर से दस
ु रे शरीर िें जाते हुए क्या हि वापस िरती इस पर आते हैं ?
िीरदाद: सिय का तनयि पन ु राववृ ि है। सिय िें जो एक बार घाट गया, उसका बार-बार घटना
अतनवाया है; जहाीं तक िनुष्य का सम्बन्ि है, अींतराल लम्बे या छोटे हो सकते हैं,
और यह तनभार करता है पुनराववृ ि के मलये प्रत्येक िनुष्य की इच्छा और सींककप की प्रबलता पर।
जब तुि जीवन कहलानेवाले िक्र िें से तनकलकर ित्ृ यु कहलानेवाले िक्र िें प्रवेश करोगे, और अपने
साथ ले जाओगे िरती के मलये,उसके भोगों के मलये अनबुिी प्यास तथा उसके भोगों के मलये अतप्ृ त
कािनाएाँ,
तब िरती का िुम्बक तम्
ु हे वापस उसके वक्ष की ओर खीींि लेगा। तब िरती तम्
ु हे अपना दि

वपलायेगी, और सिय तुम्हारा दि
ू छुडवायेगा –एक के बाद दस
ु रे जीवन िें और एक के बाद दस
ू री
िौत तक,
और यह क्रि तब तक िलता रहे गा जब तक तुि स्वयीं अपनी ही इच्छा और सींककप से िरती का
दि
ू सदा के मलये त्याग नहीीं दोगे।
अबबिार: हिारी िरती का प्रभुत्व क्या आप पर भी है, िुमशाद ? क्योंकक आप हि जैसे ही ददखाई
दे ते हैं।
िीरदाद: िैं जब िाहता हूाँ आता हूाँ, और जब िाहता हूाँ िला जाता हूाँ। िैं इस िरती के वामसयों को
िरती की दासता से िुक्त करवाने आता हूाँ।
मिकेयन: िैं सदा के मलये िरती से अलग होना िाहता हूाँ। यह िैं कैसे कर सकता हूाँ; िमु शाद ?
िीरदाद: िरती तथा उसके सब बच्िों से प्रेि करके। जब िरती के साथ तम्
ु हारे खाते िें केवल प्रेि ही
बाकी रह जायेगा, तब िरती के साथ तुम्हारे खाते िें केवल प्रेि ही बाकी रह जायेगा, तब िरती
तम्
ु हे अपने ऋण से िक्
ु त कर दे गी।
मिकेयन: परन्तु प्रेि िोह है, और िोह एक बींिन है।
िीरदाद: नहीीं, केवल प्रेि ही िोह से िल्ु क्त है। तुि जब हर वस्तु से प्रेि करते हो, तम्
ु हारा ककसी
भी वस्तु के प्रतत िोह नहीीं रहता।
जिोरा: क्या प्रेि के द्वारा कोई प्रेि के प्रतत मलये गये अपने पापों को दोहराने से बि सकता है और
क्या इस तरह सिय के िक्र को रोक सकता है ?
मिरदाद: यह तुि पश्िािाप के द्वारा कर सकते हो। तम्
ु हारी ल्जव्हा से तनकले दव
ु ि
ा न जब लौटकर
तम्
ु हारी ल्जव्हा को प्रेिपूणा शभ
ु कािनाओीं से मलप्त पायेंगे तो अपने मलये कोई ओर दठकाना ढूींढेंगे ।
इअ प्रकार प्रेि उन दव
ु ि
ा नो की पुनरावतृ त को रोक दे गा। काम्पूणा दृल्ष्ट जब लौटकर उस आाँख को,
ल्जसिे से वह तनकली है, प्रेिपूणा चितवनों से छलकती हुई पायेगी तो कोई दस
ू री कािपूणा आाँख
ढूींढेगी।
इस प्रकार प्रेि उस कािातुर चितवन की पन
ु रावतृ त पर रोक लगा दे गा। दष्ु ट ह्रदय से तनकली दष्ु ट
इच्छा जब लौटकर उस ह्रदय को प्रेिपण
ू ा कािनाओीं से छलकता हुआ पायेगी, तो कहीीं और घोंसला
ढूाँढेगी ।
इस प्रकार प्रेि उस दष्ु ट इच्छा से किर से जन्ि लेने के प्रयास को तनष्िल कर दे गा। यही है
पश्िािाप।
जब तम्
ु हारे पास केवल प्रेि ही बाींकी रह जाता है तो सिय तुम्हारे मलये प्रेि के मसवाय और कुछ नहीीं
दोहरा सकता। जब हर जगह और वक्त पर एक िीज दोहराई जाती है तो वह एक तनत्यता बन जाती
है
जो सम्पूणा सिय और स्थान िें व्याप्त हो जाती है और इस प्रकार दोनों के अल्स्तत्व को ही मिटा
दे ता है।
दहम्बल: किर भी एक और बात िेरे ह्रदय को बैिेन और िेरी बद्
ु चि को िि
ुीं ला करती है , िुमशाद।
िेरे वपता ऐसी िौत क्यों िरे ,
ककसी और िौत क्यों नहीीं?
☞ परिात्िा की िौज ☜
***************************************

अध्याय -२१ घटनाएीं जैसे और जब घटती हैं


वैसे और तब क्यों घटती हैं
***************************************

िीरदाद: कैसी ववचित्र बात है कक ति


ु ,
जो सिय और स्थान के बालक हो,
अभी तक यह नहीीं जानते कक सिय
स्थान की मशलाओीं पर अींककत की
हुई ब्रम्हाींड की स्ितृ त है ।
यदद इल्न्द्रयों द्वारा सीमित होने के बावजद
ू तुि अपने जन्ि और ित्ृ यु के बीि की कुछ ववशेष बातों
को याद रख सकते हो तो सिय, जो तुम्हारे जन्ि से पहले भी था और तम्
ु हारी ित्ृ यु के बाद भी
सदा रहे गा, ककतनी अचिक बातों को याद रख सकता है?
िैं तुिसे कहता हूाँ, सिय हर छोटी से छोटी बात को याद रखता है–केवल उन बातों को ही नहीीं जो
तम्
ु हे स्पष्ट याद हैं, बल्कक उन बातों को भी ल्जनसे तुि पूरी तरह अनजान हो।
क्योंकक सिय कुछ भी नहीीं भूलता; छोटी से छोटी िेष्टा, श्वास-तनिःश्वास, या िन की तरीं ग तक को
नहीीं। और वह सब कुछ जो सिय की स्ितृ त िें अींककत होता है स्थान िें िौजद
ू पदाथा पर गहरा खोद
ददया जाता है ।
वही िरती ल्जस पर तुि िलते हो, वही हवा ल्जसिे ति
ु श्वास लेते हो, वाही िकान ल्जसिे तुि
रहते हो, तम्
ु हारे अतीत, वतािान तथा भावी जीवन की सूक्ष्िति बातों को सहज ही तम्
ु हारे सािने
प्रकट कर सकते हैं,
यदद तुििे केवल पढ़ने की शल्क्त और अथा को ग्रहण करने की उत्सुकता हो।जैसे जीवन िें वैसे ही
ित्ृ यु िें, जैसे िरती पर वैसे ही िरती से परे , ति
ु कभी अकेले नहीीं हो, बल्कक उन पथाथों और
जीवों की तनरीं तर सींगतत िें ही जो तम्
ु हारे जीवन और ित्ृ यु िें भागीदार हो।
जैसे तुि उनसे कुछ लेते हो, वैसे ही वे तुिसे कुछ लेते हैं, औए जैसे तुि उन्हें ढूींढ़ते हो, वैसे हो वे
तम्
ु हे ढूींढ़ते हैं।हर पदाथा िें िनुष्य की इच्छा शामिल है और िनुष्य िें शामिल है पदाथा की इच्छा।
यह परस्पर ववतनिय तनरीं तर िलता है। परन्तु िनष्ु य की दब
ु ल
ा स्ितृ त एक बहुत ही घदटया िन
ु ीि है ।
सिय की अिक ू स्ितृ त का यह हाल नहीीं है;
वह िनुष्य के अपने साथी िनुष्य के साथ तथा ब्रम्हाींड के एनी सब जीवों के साथ सींबींिों का पूरा-पूरा
दहसाब रखती है, और िनष्ु य को हर जीवन हर ित्ृ यु िें प्रततक्षण अपना दहसाब िक
ु ाने पर वववश
करती है ।
बबजली कभी ककसी िकान पर नहीीं चगरती जब तक वह िकान उसे अपनी ओर न खीींिे।
अपनी बबाादी के मलये यह िकान उतना ही ल्जम्िेदार होता है, ल्जतनी बबजली।
सााँड कभी ककसी को सीग नहीीं िारता जब तक वह िनुष्य उसे सीींग िारने का तनिींत्रण न दे और
वास्तव िें वह िनष्ु य इस रक्त-पात के मलये सााँड से अचिक उिरदायी होता है ।
िारा जाने वाला िारनेवाले के छुरे को सान दे ता है और घातक बार दोनों करते हैं।
लुटनेवाला लट
ू नेवाले की िेष्टाओीं को तनदे श दे ता है और डाका दोनों डालते हैं।
हााँ, िनुष्य अपनी ववपवियों को तनिींत्रण दे ता है और किर इन दख
ु दायी अततचथयों के प्रतत ववरोि
प्रकट करता है,
क्योंकक वह भल
ू जाता है कक उसने कैसे, कब और कहााँ उन्हें तनिींत्रण-पत्र मलखे और भेजे थे। परन्तु
सिय नहीीं भूलता; सिय उचित अवसर पर हर तनिींत्रण-पत्र ठीक पते पर दे दे ता है। और सिय ही
हर अततचथ को िेजबान के घर पहुींिाता है।
िैं तुिसे कहता हूाँ, ककसी अचथतत का ववरोि ित करो, कहीीं ऐसा न हो बहुत ज्यादा ठहरकर, या
ल्जतनी बार वह अन्यथा आवश्यक सििता उससे अचिक बार आकर, वह अपने स्वामभिान को लगी
ठे स का बदला ले।अपने सभी अततचथयों का प्रेिपूवक
ा सत्कार करो, उनकी िाल-ढाल और उनका
व्यवहार कैसा भी हो, क्योंकक वे वास्तव िें केवल तम्
ु हारे लेनदार हैं।
खासकर अवप्रय अततचथयों का ल्जतना िादहए उससे भी अचिक सत्कार करो ताकक वे सींतष्ु ट और
आभारी होकर जाएाँ, और दब
ु ारा तम्
ु हारे घर आयें तो मित्र बनकर आयें, लेनदार नहीीं।प्रत्येक अततचथ
की ऐसी आवभगत करो िानो वह तम्
ु हारा ववशेष सम्िातनत अततचथ हो, ताकक तुि उसका ववश्वास
प्राप्त कर सको और उसके आने के गुप्त उद्दे श्यों को जान सको।
दभ
ु ााग्य को इस प्रकार स्वीकार करो िानो वह सौभाग्य हो, क्योंकक दभ
ु ााग्य को यदद एक बार सिि
मलया जाये तो वह शीघ्र ही सौभाग्य िें बदल जाता है। जबकक सौभाग्य का यदद गलत अथा लगा मलया
जाये तो वह शीघ्र ही दभ
ु ााग्य बन जाता है ।
तम्
ु हारी अल्स्थर स्ितृ त स्पष्ट ददखाई दे रहे तछद्रों और दरारों से भरा भ्रिों का जाल है; इसके बावजूद
अपने जन्ि तथा ित्ृ यु का, उसके सिय,स्थान और ढीं ग का िुनाव भी तुि स्वयीं ही करते हो।
बुद्चिििा का दावा करने वाले घोषणा करते हैं कक अपने जन्ि और ित्ृ यु िें िनुष्य का कोई हाथ
नहीीं होता।
आलसी लोग, जो सिय और स्थान को अपनी सींकीणा तथा टे ढ़ी नजर से दे खते हैं, सिय और स्थान
िें घटनेवाली अचिकााँश घटनाओीं को सींयोग िानकर उन्हें सहज ही िन से तनकाल दे ते हैं। उनके
मिथ्या गवा और िोखे से साविान, िेरे साचथयो।
सिय और स्थान के अींदर कोई आकल्स्िक घटना नहीीं होती। सब घटनाएीं प्रभु-इच्छा के आदे श से
घटती हैं, जो जो न ककसी बात िें गलती करती हैं, न ककसी िीज को अनदे खा करती हैं।जैसे बषाा
की बूाँदें अपने आप को िरनों िें एकत्र कर लेती हैं,
िरने, नालों और छोटी नददयों िें इकट्ठे होने के मलये बहते हैं, छोटी नददयााँ तथा नाले अपने आपको
सहायक नददयों के रूप िें बड़ी नददयों को अवपात कर दे ते हैं, िहानददयााँ अपने जल को सागर तक
पहुींिा दे ती हैं, और सागर िहासागर िें इकट्ठे हो जाते हैं,
वैसे ही हर सष्ृ ट पदाथा या जीव की हर इच्छा एक सहायक नदी के रूप िें बहकर प्रभु-इच्छा िें जा
मिलती है।िैं तुिसे कहता हूाँ कक हर पदाथा की इच्छा होती है। यहााँ तक कक पत्थर भी, जो दे खने िैं
इतना गाँग
ू ा, बहरा और बेजान होता है, इच्छा से ववहीन नहीीं होता।
इसके बबना इसका अल्स्तत्व ही नहीीं होता, और न वह ककसी िीज को प्रभाववत करता न कोई िीज
उसे प्रभाववत करती। इच्छा करने का और अल्स्तत्व का उसका बोि िात्रा िें िहुष्य के बोि से मभन्न
हो सकता है, परन्तु अपने िूल रूप िें नहीीं।
एक ददन के जीवन के ककतने अींश के बोि का तुि दावा कर सकते हो? तनिःसींदेह, एक बहुत ही थोड़े
अींश का। बद्
ु चि और स्िरण-शल्क्त से तथा भावनाओीं और वविारों को दजा करने के सािनों से
सम्पन्न होते हुए भी यदद ति
ु ददन के जीवन के अचिकााँश भाग से बेखबर रहते हो, तो किर पत्थर
अपने जीवन और इच्छा से इस तरह बेखबर रहता है तो तम् ु हे आश्िया क्यों होता है?
और ल्जस प्रकार जीने और िलने-किरने का बोि न होते हुए तुि इतना जी लेते हो, िल-किर लेते
हो, उसी प्रकार इच्छा करने का बोि न होते हुए भी ति
ु इतनी इच्छाएाँ कर लेते हो। ककन्तु प्रभ-ु इच्छा
को तम्
ु हारे और ब्रम्हाींड के हर जीव और पदाथा की तनबोिता का ज्ञान है । सिय के प्रत्येक क्षण और
और स्थान के प्रत्येक बबींद ु पर अपने आपको किरसे बााँटना प्रभ–ु इच्छा का स्वभाव है।
और ऐसा करते हुए प्रभु– इच्छा हर िनुष्य को और हर पदाथा को वह सब लौटा दे ती है —न उससे
अचिक न कि–ल्जसकी उसने जानते हुए और अनजाने िें इच्छा की थी। परन्तु िनष्ु य यह बात नहीीं
जानते, इसमलए प्रभु- इच्छा के थैले िें से, ल्जसिे सबकुछ होता है, उनके दहस्से िें जो भी आता है
उससे वह बहुिा तनराश हो जाते हैं।
और किर हताश होकर मशकायत करते हैं और अपनी तनराशा के मलये िींिल भाग्य को दोषी ठहराते
हैं।भाग्य िींिल नहीीं होता, सािुओ, क्योंकक भाग्य प्रभु-इच्छा का ही दस
ु रा नाि है। यह तो िनुष्य
की इच्छा है जो अभी तक अत्यींत िपल, अत्यींत अतनयमित तथा अपने िागा के बारे िें अतनल्श्ित
है ।
यह आज तेजी से पूवा की ओर दौड़ती है तो कल पल्श्िि की ओर। यह ककसी िीज पर यहााँ अच्छाई
की िोहर लगा दे ती है, तो उसी को वहाीं बुरा कहकर उसकी तनींदा करती है। अभी यह ककसी को मित्र
के रूप िें स्वीकार करती है,
अगले ही पल उसी को शत्रु िानकर उससे युद्ि छे ड़ दे ती है । तम्
ु हारी इच्छा को िींिल नहीीं होना
िादहये, िेरे साचथयो।
यह जान लो कक पदाथा और िनुष्य के साथ तम्
ु हारे सम्बन्ि इस बात से तय होते हैं कक तुि उससे
क्या िाहते हो और वे ति
ु से क्या िाहते हैं। और जो ति
ु उनसे िाहते हो, उसी से यह तनिाािरत होता
है कक वे तुि से क्या िाहते हैं।
इसमलये िैंने पहले भी तुिसे कहा था, और अब भी कहता हूाँ: ध्यान रखो ति ु कैसे सााँस लेते हो,
कैसे बोलते हो, क्या िाहते हो, क्या सोिते,कहते और करते हो। क्योंकक तम्
ु हारी इच्छा हर साींस
िें,हर िाह िें, तुम्हारे हर वविार, विन और किा िें तछपी रहती है । और जो तुिसे तछपा है वह
प्रभ-ु इच्छा के मलये सदा प्रकट है।
ककसी िनष्ु य से ऐसे सुख की इच्छा न रखो जो उसके मलये दिःु ख हो; कहीीं ऐसा न हो कक तुम्हारा
सुख तम्
ु हे उस दिःु ख से अचिक पीड़ा दे । न ही ककसी से ऐसे दहत की कािना करो जो उसके मलये
अदहत हो;कहीीं ऐसा न हो कक तुि अपने ही मलये अदहत की कािना कर रहे होओीं।बल्कक सब िनुष्यों
और सब पदाथों से उनके प्रेि की इच्छा करो;
क्योंकक उसी के द्वारा तम्
ु हारे परदे उठें गे, तम्
ु हारे ह्रदय िें ज्ञान प्रकट होगा जो तम्
ु हारी इच्छा को
प्रभ-ु इच्छा के अद्भत
ु रहस्यों से पिरचित करा दे गा।जब तक तम्
ु हे सब पदाथों का बोि नहीीं हो जाता,
तब तक तम्
ु हे न अपने अींदर उनकी इच्छा का बोि हो सकता है और न उनके अींदर अपनी इच्छा का।
जब तक तुम्हे सभी पदाथों िें अपनी इच्छा तथा अपने अींदर उनकी इच्छा का बोि नहीीं हो जाता,
तब तक तुि प्रभु-इच्छा के रहस्यों को नहीीं जान सकते।
और जब तक प्रभ-ु इच्छा के रहस्यों को जान न लो, तम्
ु हे अपनी इच्छा को उसके ववरोि िें खडा नहीीं
करना िादहये; क्योंकक पराजय तनिःसींदेह तम्
ु हारी होगी। हर टकराव िें तुम्हारा शारीर घायल होगा और
तम्
ु हारा ह्रदय कटुता से भर जायेगा। तब तुि बदला लेने का प्रयास करोगे, और पिरणाि यह होगा
तम्
ु हारे घावों िें नये घाव जड़
ु जायेंगे और तम्
ु हारी कटुता का प्याला भरकर छलकने लगेगा।
िैं तुिसे कहता हूाँ, यदद ति
ु हार को जीत िें बदलना िाहते हो तो प्रभु-इच्छा को स्वीकार करो। बबना
ककसी आपवि के स्वीकार करो उन सब पदाथों को जो उसके रहस्यपण ू ा थैले िें से तम्
ु हारे मलये
तनकलें; कृतज्ञता तथा इस ववश्वास के साथ स्वीकार करो कक प्रभु इच्छा िें वे तुम्हारा उचित तथा
तनयत दहस्सा हैं। उनका िक
ू य और अथा सििने की दृढ़ भावना से उन्हें स्वीकार करो।
और जब एक बार ति
ु अपनी इच्छा की गप्ु त काया-प्रणाली को सिि लोगे,तो ति
ु प्रभु इच्छा को
सिि लोगे। ल्जस बात को तुि नहीीं जानते उसे स्वीकार करो ताकक उसे जानने िें वह तम्
ु हारी
सहायता करे । उसके प्रतत रोष प्रकट करोगे तो वह एक अनबूि पहे ली बनी रहे गी।
अपनी इच्छा को तब तक
प्रभ-ु इच्छा की दासी बनी रहने दो
जब तक ददव्य ज्ञान प्रभु-इच्छा को
तम्
ु हारी इच्छा की दासी न बना दे ।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।
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अध्याय -22

स्वयीं अपने स्वािी बनो


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िीरदाद जिोरा को उसके रहस्य


के भार से िुक्त करता है
औरपुरुष तथा स्त्री की,वववाह की,
ब्रहििया की तथा आत्ि-ववजेता की बात करता है…….
िीरदाद: नरौन्दा, िेरी ववश्वसनीय स्ितृ त !
क्या कहते हैं तुिसे ये कुिद
ु नी के िूल ?
नरौन्दा: ऐसा कुछ नहीीं जो िुिे सुनाई दे ता हो, िेरे िुमशाद।
िीरदाद: िैं इन्हें कहते सन
ु रहा हूाँ, ”हि नारौन्दा से प्यार करते हैं, और अपने प्यार-स्वरूप अपनी
सुगल्न्ित आत्िा उसे प्रसन्नता पूवक ा भेंट करते है ।”
नरौन्दा, िेरे ल्स्थर ह्रदय ! क्या कहता है ति
ु से इस सरोवर का पानी ?
नरौन्दा: ऐसा कुछ नहीीं जो
िि
ु े सन
ु ाई दे ता हो,िेरे िमु शाद।
मिरदाद: िैं इसे कहते सन ु ता हूाँ, ” िैं नरौन्दा से प्यार करता हूाँ, इसमलये िैं उसकी प्यास बुिाता
हूाँ, और उसके प्यारे कुिदु नी के िूलों की प्यास भी।”
नरौन्दा िेरे जाग्रत नेत्र!
क्या कहते हैं तुिसे यह ददन,उन सब िीजों को अपनी िोली िें मलये ल्जन्हें यह िप
ू िें नहाई अपनी
बाींहों िें इतनी कोिलता से िल
ु ाता है ?”
नरोन्दा: ऐसा कुछ नहीीं जो िुिे सुनाई दे ता हो, िेरे िुमशाद।
िीरदाद िैं इसे कहते सुनता हूाँ, ” िैं नरौन्दा से बहुत प्यार करता हूाँ, इसमलए िैं अपने वप्रय
पिरवार के एनी सदस्यों सदहत उसे िप ू िें नहाई अपनी बाहों िें इतनी कोिलता से िुलाता हूाँ।”
जब प्यार करने के मलए और प्यार पाने के ककये इतना कुछ है तो नरौन्दा का जीवन क्या इतना
भरपूर नहीीं कक सारहीन स्वप्न और वविार उसिे घोंसला न बना सकें, अपने अण्डे न से सकें ?
सििि ु िनष्ु य ब्रम्हाण्ड का दल
ु ारा है। सब िीजें उससे बहुत लाड़-प्यार करके प्रसन्न होती हैं। ककन्तु
इने-चगने हैं ऐसे िनुष्य जो इतने अचिक लाड़-प्यार से बबगड़ते नहीीं, तथा और भी कि हैं ऐसे िनुष्य
जो लाड-प्यार करनेवाले हाथों को काट नहीीं खाते।
जो बबगड़े हुए नहीीं हैं उनके मलये सपा-दीं श भी स्नेहिय िम्
ु बन होता है । ककन्तु बबगड़े हुए लोगों के
मलए स्नेहिय िम्ु बन भी सपा-दीं श होता है। क्या ऐसा नहीीं है, जिोरा ? जिोरा; ल्जस बात को
िमु शाद सि कहते हैं, वह अवश्य सि होगी।िीरदाद; क्या तम्
ु हारे सम्बन्ि िें यह सि नहीीं है,
जिोरा ? क्या तम् ु हे बहुत-से प्रेिपूणा िम्
ु बनों का बबष नहीीं िढ़ गया है? क्या तम्
ु हे अपने बबषैले प्रेि
की स्ितृ तयााँ अब दख ु ी नहीीं कर रही है?
जिोरा; ( नेत्रों से अश्र-ु िारा बहाते हुए िमु शाद के पैरों िें चगरकर ) ओह, िुमशाद !
ककसी भेद को ह्रदय के सबसे गहरे कोने िें रखकर भी आपसे तछपाना िेरे मलये, या ककसी के मलये,
कैसा बिपना है, कैसा व्यथा अमभिान है !
मिरदाद; ( जिोरा को उठाकर ह्रदय से लगाते हुए ) कैसा बिपना है, कैसा व्यथा अमभिान है इन
कुिद
ु -पष्ु पों से भी उसे तछपाना।
जिोरा; िैं जानता हूाँ कक िेरा ह्रदय अभी पववत्र नहीीं है, क्योंकक िेरे गत राबत्र के स्वप्न अपववत्र थे।
िेरे िुमशाद, आज, िैं अपने ह्रदय का शोिन कर लाँ ग
ू ा।
िैं इसे तनवास्त्र कर दाँ ग
ू ा, आपके सािने,नरौन्दा के सािने, और इन कुिद
ु -पुष्पों तथा इनकी जड़ों िें
रें गते केंिुओीं के सािने। कुिल डालनेवाले इस रहस्य के बोि से िैं अपनी आत्िा को िुक्त कर लाँ ग
ू ा।
आज इस िींद सिीर को िेरे इस रहस्य को उड़ाकर सींसार के हर प्राणी,हर वस्तु तक ले जाने दो।
अपनी युवावस्था िें िैंने एक युवती से प्रेि ककया था।
प्रभात के तारे से भी अचिक सुींदर थी वह। िेरी पलकों के मलये नीींद ल्जतनी िीठी थी, िेरी ल्जव्हा के
मलये उससे कहीीं अचिक िीठा था उसका नाि।
जब आपने हिें प्राथाना और रक्त के प्रवाह के सम्बन्ि िें उपदे श ददया था, तब िैं सििता हूाँ,
आपके शाल्न्तप्रद शब्दों के रस का पान सबसे पहले िैंने ककया था,
क्योंकक िेरे रक्त की बागडोर होगला ( यही नाि था उस कन्या का ) के प्रेि के हाथ िें थी, और िैं
जानता था एक कुशल सींिालक पाकर रक्त क्या कुछ कर सकता है। होगला का प्रेि िेरा था तो अनींत
काल िेरा था।
उसके प्रेि को िैं वववाह की अींगूठी की तरह पहने हुए था। और स्वयीं ित्ृ यु को िैंने कवि िान मलया
था। िैं आयु िें अपने आपको हर बीते हुए कल से बड़ा और भववष्य िें जन्ि लेने बाले अींतति काल
से छोटा अनभ
ु व करता था। िेरी भुजाओीं ने आकाश को थाि रखा था, िेरे पैर िरती को गतत प्रदान
करते थे,
जबकक िेरे ह्रदय िें थे अनेक ििकते सय
ू ।ा परन्तु होगला िर गई, और जिोरा आग िें जल रहा
अिरपक्षी, राख का ढे र होकर रह गया। अब उस बुिे हुए तनजीव ढे र िें से ककसी नये अिरपक्षी को
प्रकट नहीीं होना था।
जिोरा, जो एक तनडर मसींह था, एक सहिा हुआ खरगोश बनकर रह गया। जिोरा, जो आकाश का
स्तम्भ था, प्रवाह-हीन पोखर िें पड़ा एक शोिनीय खण्डहर बनकर रह गया। ल्जतने भी जिोरा को िैं
बिा सका उसे लेकर िैं नौका की ओर िला आया, इस आशा के साथ कक िैं अपने आपको नौका की
प्रलयकालीन स्ितृ तयों और परछाइयों िें जीववत दिना दीं ग
ू ा।
िेरा सौभाग्य था कक िैं ठीक उस सिय यहााँ पहुींिा जब एक साथी ने सींसार से कूि ककया ही था,
और िुिे उसकी जगह स्वीकार कर मलया गया। पन्द्रह वषा तक इस नौका िें साचथयों ने जिोरा को
दे खा और सुना है, पर जिोरा का रहस्य उनहोंने न दे खा न सन
ु ा।
हो सकता है कक नौका की परु ातन दीवारें और िींि
ु ले गमलयारे इस रहस्य से अपिरचित न हों। हो
सकता है कक इस उद्यान के पेड़ों, िूलों और पक्षक्षयों को इसका कुछ आभास हो। परन्तु िेरे रबाब के
तार तनश्िय ही आपको िेरी होगला के बारे िें िुिसे अचिक बता सकते हैं, िुमशाद।
आपके शब्द जिोरा की राख को दहलाकर गिा करने ही लगे थे और िि
ु े एक नये जिोरा के जन्ि का
ववशवास हो ही रहा था कक होगला ने िेरे सपनो िें आकर िेरे रक्त को उबाल ददया, और िुिे
उछाल िेंका आज के यथाथा के उदास िट्टानी मशखरों पर — एक बि
ु िक
ु ी िशाल, एक ित
ृ -जात
आनींद, एक बेजान राख का ढे र।
आह, हो गला, हो गला !
िुिे क्षिा कर दें , िुमशाद।
िैं अपने आींसुओीं को रोक नहीीं सकता। शरीर क्या शरीर के मसवाय कुछ और हो सकता है? दया करें
िेरे शरीर पर। दया करें जिोरा पर।
िीरदाद : स्वयीं दया को दया की जरुरत है । मिरदाद के पास दया नहीीं है। लेककन अपार प्रेि है
मिरदाद के पास सब िीजों के मलये, शरीर के मलये भी, और उससे अचिक आत्िा के मलये जो शरीर
का स्थूल रूप केवल इसमलये िारण करती है कक उसे तनराकारता से वपघला दे । मिरदाद का प्रेि
जिोरा को उसकी राख िें से उठा लेगा और उसे आत्ि– ववजेता बना दे गा।
आत्ि-ववजेता बनने का उपदे श दे ता हूाँ िैं—एक ऐसा िनुष्य बनने का जो एक हो िक
ु ा हो, जो स्वयीं
अपना स्वािी हो। स्त्री के प्रेि द्वारा बींदी बनाया गया परु
ु ष और पुरुष के प्रेि द्वारा बींदी बनाई गई
स्त्री, दोनों स्वतींत्रता के अनिोल िक
ु ु ट को पहनने के अयोग्य हैं।
परन्तु ऐसे परु
ु ष और स्त्री परु स्कार के अचिकारी हैं ल्जन्हें प्रेि ने एक कर ददया हो, ल्जन्हें एक-दस
ू रे
से अलग न ककया जा सके, ल्जनकी अपनी अलग-अलग कोई पहिान ही न रही हो। वह प्रेि नहीीं जो
प्रेिी को अपने आिीन कर लेता है। वह प्रेि नहीीं जो रक्त और िाींस पर पलता है । वह प्रेि नहीीं जो
स्त्री को पुरुष की ओर केवल इसमलये आकवषात करता है कक और ल्स्त्रयााँ तथा परु
ु ष पैदा ककये जायें
और इस तरह उनके शारीिरक बन्िन स्थायी हो जायें।
…आत्ि-ववजेता बनने का उपदे श दे ता हूाँ िैं—-उस अिरपक्षी जैसा िनुष्य बनने का जो इतना स्वतींत्र है
की पुरुष नहीीं हो सकता, और इतना िहान और तनिाल कक स्त्री नहीीं हो सकता। ल्जस प्रकार जीवन
के स्थूल क्षेत्रों िें परु
ु ष और स्त्री एक हैं, उसी प्रकार जीवन के सक्ष्
ू ि क्षेत्रों िें वे एक हैं। स्थूल और
सूक्ष्ि के बीि का अींतर तनत्यता का केवल एक ऐसा खण्ड है
ल्जस पर द्वेत का भ्रि छाया हुआ है। जो न आगे दे ख पाते हैं न पीछे , वे तनत्यता के इस खण्ड को
तनत्यता ही िान लेते हैं। यह न जानते हुए कक जीवन का तनयि एकता है, वे द्वेत के भ्रि से ऐसे
चिपके रहते हैं जैसे वाही जीवन का सार है। द्वेत सिय िें आनेवाली एक अवस्था है। द्वेत ल्जस
प्रकार एकता से तनकलता है, उसी प्रकार एकता की ओर ले जाता है । ल्जतनी जकदी तुि इस अवस्था
को पार कर लोगे,उतनी ही जकदी अपनी स्वतींत्रता को गले लगा लोगे।
और परु
ु ष और स्त्री हैं क्या ? एक ही िानव जो अपने एक होने से बेखबर है, और ल्जसे इसमलये दो
टुकड़ों िें िीर ददया गया है तथा द्वेत का ववष पीने के मलये वववश कर ददया गया है कक वह एकता
के अितृ के मलये तड़पे; और तडपते हुए दृढ़ तनश्िय के साथ उसकी तलाश करे ; और तलाश करते
हुए उसे पा ले,
तथा उसका स्वािी बन जाये ल्जसे उसकी परि स्वतींत्रता का बोि हो। घोड़े को घोड़ी के मलये
दहनदहनाने दो, दहरनी को दहरन को पक
ु ारने दो। स्वयीं प्रकृतत उन्हें इसके मलये प्रेिरत करती है, उनके
इस किा को आशीवााद दे ती है और उसकी प्रशींसा करती है , क्योंकक सींतान को जन्ि दे ने से अचिक
ऊाँिी ककसी तनयतत का उन्हें अभी बोि ही नहीीं है।
जो पुरुष और ल्स्त्रयााँ अभी तक घोड़े घोड़ी से तथा दहरन और दहरनी से मभन्न नहीीं है, उन्हें काि के
अाँिेरे एकाींत िें एक- दस
ू रे को खोजने दो। उन्हें शयन-कक्ष की वासना िें वववाह- बींिन की छूट का
मिश्रण करने दो। उन्हें अपनी कदट की जननक्षिता तथा अपनी कोख की उवारता िें प्रसन्न होने दो।
उन्हें अपनी नस्ल को बढ़ाने दो। स्वयीं उनकी प्रेिरका तथा िाय बनकर खश
ु है;प्रकृतत उन्हें िूलों की
सेज बबछाती है, पर साथ ही उन्हें कााँटों की िुभन दे ने से भी नहीीं िक
ू ती।
लेककन आत्ि-ववजय के मलये तडपनेवाले परु
ु षों और ल्स्त्रओीं को शरीर िें रहते हुए भी अपनी एकता का
अनुभव जरूर करना िादहये; शारीिरक सींपका के द्वारा नहीीं, बल्कक शारीिरक सींपका की भूख और उस
भूख द्वारा पूणा एकता और ददव्य ज्ञान के रास्ते िें खड़ी की गई रुकावटों से िल्ु क्त पाने के सींककप
द्वारा।
तुि प्रायिः लोगों को िानव प्रकृतत के बारे िें यों बात करते हुए सन
ु ते हो जैसे वह कोई ठोस तत्व हो,
ल्जसे अच्छी तरह नापा-तोला गया है, ल्जसके तनल्श्ित लक्षण हैं, ल्जसकी पूरी तरह छान-बीन कर ली
गई है और जो ककसी ऐसी वस्तु द्वारा िारों ओर से प्रततबींचित है ल्जसे लोग ”काि” कहते हैं। लोग
कहते हैं काि के िनोवेग को सींतुष्ट करना िनुष्य की प्रकृतत है,
लेककन उसके प्रिींड प्रवाह को तनयींबत्रत करके काि पर ववजय पाने के सािन के रूप िें उसका उपयोग
करना तनश्िय ही िानव-स्वभाव के ववरुद्ि है और दिःु ख को न्योता दे ना है । लोगों की इन अथाहीन
बातों की ओर ध्यान ित दो। बहुत ववशाल है िनुष्य और बहुत अनबूि है उसकी प्रकृतत। अत्यींत
ववववि हैं उसकी प्रततभाएाँ और अटूट है उसकी शल्क्त।
साविान रहो उन लोगों से जो उसकी सीिाएाँ तनिाािरत करने का प्रयास करते हैं। …
काि-वासना तनश्िय ही िनष्ु य पर एक भारी कर लगाती है । लेककन यह कर वह कुछ सिय तक ही
दे ता है।
तुििे से कौन अनींतकाल के मलये दास बना रहना िाहे गा?
कौन-सा दास अपने राजा का जुआ उतार िेंकने और ऋण-िुक्त होने के सपने नहीीं दे खता ? िनुष्य
दास बन्ने के मलये पैदा नहीीं हुआ था, अपने परु
ु षत्व का दास भी नहीीं। िनष्ु य तो सदै व हर प्रकार
की दासता से िक्ु त होने के मलये तडपता है;
और वह िल्ु क्त उसे अवश्य मिलेगी। जो आत्ि-ववजय प्राप्त करने की तीव्र इच्छा रखते हैं, उनके
मलये खन
ू के िरश्ते क्या ? एक बींिन ल्जसे दृढ़ सींककप द्वारा तोड़ना जरुरी है । आत्ि-ववजेता हर रक्त
के साथ अपने रक्त का सम्बन्ि िहसस
ू करता है । इसमलये वह ककसी के साथ बाँिा नहीीं होता। जो
तड़पते नहीीं, उन्हें अपनी नस्ल बढ़ाने दो।
जो तड़पते हैं, उन्हें एक और नस्ल बढ़ानी है –आत्ि-ववजेताओीं की नस्ल। आत्ि-ववजेताओीं की नस्ल
किर और कोख से नहीीं तनकलती। बल्कक उसका उदय होता है सींयिी हृदयों से रक्त की बागडोर
ववजय पाने के तनभीक सींककप के हाथों िें होती है।
िैं जानता हूाँ ति
ु ने तथा ति
ु जैसे अन्य अनेक लोगों ने ब्रम्हिया का व्रत ले रखा है। ककन्तु अभी बहुत
दरू हो तुि ब्रम्हिया से, जैसा कक जिोरा का गत राबत्र का स्वप्न मसद्ि करता है। ब्रम्हिारी वे नहीीं
हैं जो िठ की पोशाक पहनकर अपने आपको िोटी दीवारों और ववशाल लौह-द्वारों के पीछे बींद कर
लेते हैं। अनेक सािू और साल्ध्वयाीं अतत कािुक लोगों से भी अचिक कािुक होते हैं, िाहे उनके शरीर
सौगींि खाकर कहें ,
और परू ी सच्िाई के साथ कहें , कक उनहोंने कभी ककसी दस
ू रे के साथ सम्पका नहीीं ककया। ब्रम्हिारी
तो वे हैं, ल्जनके ह्रदय और िन ब्रम्हिारी हैं, िाहे वे िठों िें रहें िाहे खल
ु े बाजारों िें। स्त्री का
आदर करो, िेरे साचथयों, और उसे पववत्र िानो। िनष्ु य जाती की जननी के रूप िें नहीीं, पत्नी या
प्रेमिका के रूप िें नहीीं, बल्कक द्वैत पूणा जीवन के लम्बे श्रि और दिःु ख िें कदि-कदि पर िनुष्य
के प्रततरूप और बराबर के भाचगदार के रूप िें।
क्योंकक उसके बबना परु
ु ष द्वेत के खण्ड को पार नहीीं कर सकता। स्त्री िें ही मिलेगी पुरुष को अपनी
एकता और परु
ु ष िें ही मिलेगी स्त्री को द्वैत से अपनी िुल्क्त। सिय आने पर ये दो मिलकर एक हो
जायेंगे–यहााँ तक कक आत्ि-ववजेता बन जायेंगे जो न नर है न नारी, जो है, पण
ू ा िानव।
आत्ि-ववजेता बनने का उपदे श दे ता हूाँ िैं—ऐसा िनुष्य बनने का जो एकता प्राप्त कर िुका हो, जो
स्वयीं अपना स्वािी हो। और इससे पहले कक िीरदाद तम्
ु हारे बीि िें से अपने आप को उठा ले, तुि
िें से प्रत्येक आत्ि-ववजेता बन जायेगा।जिोरा; आपके िुख से हिें छोड़ जाने की बात सन
ु कर िेरा
ह्रदय दख
ु ी होता है।
यदद वह ददन कभी आ गया जब हि ढूींढ़ें और आप न मिलें, तो जिोरा तनश्िय ही अपने जीवन का
अन्त कर दे गा। मिरदाद; अपनी इक्षा–शल्क्त से ति
ु बहुत-कुछ कर सकते हो, जिोरा–सब कुछ कर
सकते हो। पर एक काि नहीीं कर सकते और वह है अपनी इक्षा-शल्क्त का अन्त कर दे ना, जो जीवन
की इच्छा है, जो प्रभु–इच्छा है । क्योंकक जीवन, जो अल्स्तत्व है, अपनी इच्छा शल्क्त से अल्स्तत्व
हीन नहीीं हो सकता; न ही अल्स्तत्वहीन की कोई इच्छा हो सकती है। नहीीं,परिात्िा भी जिोरा का
अन्त नहीीं कर सकता।
जहाीं तक िेरा तुिको छोड़ जाने का प्रश्न है, वह ददन अवश्य आयेगा जब ति
ु िुिे दे ह रूप िें ढूींढोगे
और िैं नहीीं मिलूींगा, क्योंकक इस िरती के अततिरक्त कहीीं और भी िेरे मलये काि हैं। पर िैं कहीीं
भी अपने काि को अिूरा नहीीं छोड़ता। इसमलये खश
ु रहो। िीरदाद तब तक तुिसे ववदा नहीीं लेगा जब
तक वह तम्
ु हे आत्ि-ववजेता नहीीं बना दे ता—
ऐसे िानव जो एकता प्राप्त कर िक
ु े हों, जो पूणत
ा या अपने स्वािी बन गये हों। जब तुि अपने
स्वािी बन जाओगे और एकता प्राप्त कर लोगे, तब तुि अपने ह्रदय िें मिरदाद को तनवास करता
पाओगे, और उसका नाि िम्
ु हारी स्ितृ त िें कभी िमू िल नहीीं होगा।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा ही िेरी तम्
ु हे ।

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िहत्त्व शब्दों का नहीीं िहत्व भावना का है
जो शब्दों िें गुींजती है
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अध्याय 23
िीरदाद मसि-मसि को ठीक करता है
और बढ
ु ापे के बारे िें बताता है ”
नरौन्दा: नौका की पशुशालाओीं की सबसे बढ़
ू ी गाय मसि-मसि पाींि ददन से बीिार थी और िारे या
पानी को िुींह नहीीं लगा रही थी।
इस पर शिदाि ने कसाई को बल
ु वाया। उसका कहना था कक गाय को िारकर उसके िाींस और खाल
की बबक्री से लाभ उठाना अचिक सििदारी है,
बतनस्बत इसके कक गाय को िरने ददया जाये और वह ककसी काि न आये। जब िमु शाद ने यह सन
ु ा
तो गहरे सोि िें डूब गये, और तेजी से सीिे पशुशाला की ओर िल पड़े तथा मसि-मसि के ठान पर
जा पहुींिे।
उनके पीछे सातों साथी भी वहाीं पहुाँि गये।मसि-मसि उदास और दहलने-डुलने असिथा-सी थी।
उसका सर नीिे लटका हुआ था, आाँखें अििद ुाँ ी थीीं, शरीर के बाल सख्त और काल्न्त-हीन थे। ककसी
ढीठ िक्खी को उड़ाने के मलये वह कभी–
कभी अपने कान को थोड़ा सा दहला दे ती थी। उसका ववशाल दग्ु ि-कोष उसकी टाींगों के बीि ढीला और
खाली लटक रहा था, क्योंकक वह अपने लम्बे तथा िलपूणा जीवन के अींतति भाग िें िातत्ृ व की
ििुर वेदना से वींचित हो गई थी।
उसके कूकहों की हड्ड़डयााँ उदास और असहाय, कब्र के दो पत्थरों की तरह बाहर तनकली हुई थीीं।
उसकी पसमलयााँ और रीढ़ की हड्ड़डयााँ आसानी से चगनी जा सकती थीीं। उसकी लम्बी और पतली पछ ींू
मसरे पर बालों का भारी गुच्छा मलये अकड़ी हुई सीिी लटक अदह थी। िमु शाद बीिार पशु के तनकट गये
और उसे आाँखों तथा सीींगों के बीि और ठोड़ी के नीिे सहलाने लगे।
कभी-कभी वे उसकी पीठ और पेट पर हाथ िेरते। पूरा सिय वे उससे इस प्रकार बातें करते रहे जैसे
ककसी िनष्ु य के साथ बातें कर रहे हों :
िीरदाद: तम्
ु हारी जग
ु ाली कहााँ है ,
िेरी उदार मसि-मसि?
इतना ददया है मसि-मसि ने कक अपने मलये थोड़ा-सा जुगाल रखना भी भूल गई। अभी और बहुत दे ना
है मसि-मसि को।
उसका बिा-सा स़िेद दि
ू आज तक हिारी रगों िें गहरा लाल रीं ग मलये दौड़ रहा है। उसके पुष्ट बछड़े
हिारे खेतों िें भारी हल खीींि रहे है और अनेक भूखे जीवों को भोजन दे ने िें हिारी सहायता कर रहे
हैं। उसकी सद
ींु र बतछयााँ अपने बच्िों से हिारी िारागाहों को भर रही हैं। उसका गोबर भी हिारे बैग
की रस-भरी सल्ब्जयों और िलोद्यान के स्वाददष्ट िलों िें हिारे भोजन की बरकत बना हुआ है।
हिारी घादटयााँ नेक मसि-मसि के खल
ु कर राँभाने की ध्वनी और प्रततध्वतन से अभी तक गाँूज रही हैं।
हिारे िरने उसके सौम्य तथा सुींदर िुख को अभी तक प्रततबबल्म्बत कर रहे हैं। हिारी िरती की
मिटटी उसके खरु ों की अमित छाप को अभी तक सीने से लगाय हुए है और साविानी के साथ उसकी
साँभाल कर रही है ।
बहुत प्रसन्न होती है हिारी घाींस मसि-मसि का भोजन बनकर। बहुत सींतुष्ट होती है हिारी िप
ू उसे
सहला कर। बहुत आनींददत होता हिारा िन्द सिीर उसके कोिल और ििकीले रोि-रोि को छूकर।
बहुत आभार िहसूस करता है िीरदाद उसे वद् ृ िावस्था के रे चगस्तान को पार करवाते हुए, उसे एनी
सूयों तथा सिीरों के दे श िें नयी िरागाहों का िागा ददखाते हुए। बहुत ददया है मसि-मसि ने,
और बहुत मलया है;
लेककन मसि-मसि को अभी
और भी दे ना और लेना है ।
मिकास्तर: क्या मसि-मसि आपके शब्दों को सिि सकती है जो आप उससे ऐसे बातें कर रहे हैं िानो
वह िनुष्य की-सी बद्
ु चि रखती हो?
िीरदाद; िहत्व शब्द का नहीीं होता, भले मिकास्तर। िहत्व उस भावना का होता है जो शब्द के
अींदर गूींजती है; और पशु भी उससे प्रभाववत होते हैं।
और किर, िि
ु े तो ऐसा प्रतीत होता है कक बेिारी मसि-मसि की आाँखों िें से एक स्त्री िेरी ओर दे ख
रही है ।
मिकास्तर; बूढी और दब
ु ल
ा मसि-मसि के साथ इस प्रकार बातें करने का क्या लाभ ? क्या आप आशा
करते है कक इस प्रकार आप बुढापे के प्रकोप को रोककर मसि-मसि की आयु लम्बी कर दें गे ?
िीरदाद; एक ददा नाक बोि है बढ
ु ापा िनुष्य के मलये, और पशु के मलये भी। िनुष्य ने अपनी
उपेक्षापण
ू ा तनदा यता से इसे और भी ददा नाक बना ददया है । एक नवजात मशशु पे वे अपना अचिक से
अचिक ध्यान और प्यार लट
ु ाते हैं।
परन्तु बढ
ु ापे के बोि से दबे िनुष्य के मलये वे अपने ध्यान से अचिक अपनी उदासीनता, और अपनी
सहानुभतू त से अचिक अपनी उपेक्षा बिाकर रखते हैं। ल्जतने अिीर वे ककसी दि
ू िुींहे बच्िे को जवान
होता दे खने के मलये होते हैं, उतने ही अिीर होते हैं वे ककसी वद्
ृ ि िनुष्य को कब्र का ग्रास बनता
दे खने के मलये।
बच्िे और बढ़
ू े दोनों ही सािान रूप से असहाय होते हैं ककन्तु बच्िों की बेबसी बरबस सबकी प्रेि और
त्याग से पूणा सहायता प्राप्त कर लेती है;
जब कक बढ
ू ों की बेबसी ककसी ककसी की ही अतनच्छा पव
ू क
ा दी गई सहायता को पाने िें सिल होती
है । वास्तव िें बच्िों की तुलना िें बढ़
ू े सहानुभतू त के अचिक अचिकारी होते हैं। जब शब्दों को उस
कान िें प्रवेश पाने के मलये जो कभी हलकी से हलकी िुसिुसाहट के प्रतत भी सींवेदनशील और सजग
था, दे र तक और जोर से खटखटाना पड़ता है ;
जब आाँखें, जो कभी तनिाल थीीं, ववचित्र िब्बों और छायाओीं के मलये नत्ृ य िींि बन जाती हैं ;जब
पैर, ल्जनिें कभी पींख लगे हुये थे, शीशे के ढे ले बन जाते हैं ;
और हाथ जो जीवन को सााँिे िें ढालते थे, टूटे सााँिों िें बदल जाते हैं ;जब घट
ु नों के जोड़ ढीले पड़
जाते हैं, और मसर गदा न पर रखी एक कठपत
ु ली बन जाता है ;जब िक्की के पाट तघस जाते हैं,
और स्वयीं िक्की-घर सन
ु सान गुिा हो जाता है ;जब उठने का अथा होता है चगर जाने के भय से
पसीने-पसीने होना, और बैठने का अथा होता है इस दिःु खदायी सींदेह के साथ बैठना कक शायद किर
कभी उठा ही न जा सके ;
जब खाने-पीने का अथा होता है खाने-पीने के पिरणाि से डरना, और न खाने-पीने का अथा होता है
घ्रखणत ित्ृ यु का दबे-पााँव िले आना ;हााँ जब बुढ़ापा िनुष्य को दबोि लेता है, तब सिय होता है,
िेरे साचथयो,
उसे कान और नेत्र प्रदान करने का, उसे हाथ और पैर दे ने का, उसकी क्षीण हो रही शल्क्त को अपने
प्यार के द्वारा पुष्ट करने का, ताकक उसे िहसूस हो कक अपने खखलते बिपन और यौवन िें वह
जीवन को ल्जतना प्यारा था, इस ढलती आयु िें उससे रिी भर भी कि प्यारा नहीीं है ।
अस्सी वषा अनन्तकाल िें िाहे एक पल से कि न हों; ककन्तु वह िनुष्य ल्जसने अस्सी वषों तक
अपने आप को बोया हो, एक पल से कहीीं अचिक होता है । वह अनाज होता है उन सब के मलये जो
उसके जीवन की िसल काटते हैं। और वह कौन-सा जीवन है ल्जसकी िसल सब नहीीं काटते हैं ?
क्या तुि इस क्षण भी उस प्रत्येक स्त्री और पुरुष के जीवन की िसल नहीीं काट रहे हो जो कभी इस
िरती पर िले थे ? तुम्हारी बोली उनकी बोली की िसल के मसवाय और क्या है ?
तम्
ु हारे वविार उनके वविारों के बीने गये दानों के मसवाय और क्या हैं ? तम्
ु हारे वस्त्र और िकान
तक, तम्
ु हारा भोजन, तम्
ु हारे उपकरण,तम्
ु हारे क़ानन
ू , तम्
ु हारी परम्पराएाँ और तम्
ु हारी पिरपादटयााँ—ये
क्या उन्हीीं लोगों के वस्त्र, िकान, भोजन, उपकरण, क़ानन
ू , परम्पराएाँ और पिरपादटयााँ नहीीं हैं जो
तुिसे पहले यहााँ आ िक
ु े हैं और यहााँ से जा िक
ु े हैं।एक सिय िें तुि एक ही िीज की िसल नहीीं
काटते हो, बल्कक सब िीजों की िसल काटते हो, और हर सिय काटते हो।
तुि ही बोने वाले हो, िसल हो, लुनेरे हो, खेत हो और खमलहान भी। यदद तम्
ु हारी िसल खराब है
तो उस बीज की ओर दे खो जो ति
ु ने दस
ू रों के अींदर बोया है, और उस बीज की ओर भी जो ति
ु ने
उन्हें अपने अींदर बोने ददया है । लन
ु ेरे और उसकी दरााँती की ओर भी दे खो, और खेत और खमलहान
की ओर भी।
एक वद्
ृ ि िनुष्य ल्जसके जीवन की िसल तुिने काटकर अपने कोठारों िें भर ली है, तनश्िय ही
तम्
ु हारी अचिकति दे ख-रे ख का अचिकारी है । यदद तुि उसके उन वषों िें जो अभी काटने के मलए
बिी वस्तओ
ु ीं से भरपरू है, अपनी उदासीनता से कड़वाहट घोल दोगे, तो जो कुछ ति
ु ने उससे बटोर
कर सींभल मलया है,
और जो कुछ तुम्हें अभी बटोरना है, वह सब तनश्िय ही तम्
ु हारे िुींह को कड़वाहट से भर दे गा। अपनी
शल्क्त खो रहे पशु की उपेक्षा करके भी तम्
ु हे ऐसी ही कड़वाहट का अनुभव होगा। यह उचित नहीीं कक
िसल से लाभ उठा मलया जाये, और किर बीज बोने वाले और खेत को कोसा जाये। हर जाती तथा
हर दे श के लोगों के प्रतत दयावान बनो, िेरे साचथयो।
वे प्रभु की ओर तम्
ु हारी यात्रा िें तम्
ु हारा पाथेय हैं। परन्तु िनुष्य के बढ़
ु ापे िें उसके प्रतत ववशेष रूप
से दयावान बनो; कहीीं ऐसा न हो कक तनदा यता के कारण तम्
ु हारा पाथेय खराब हो जाये और तुि
अपनी िींल्जल पर कभी पहुाँि ही न सको। हर प्रकार के और हर उम्र के पशओ ु ीं के प्रतत दयावान बनो;
यात्रा की लम्बी और कदठन तैयािरयों िें वे तम्
ु हारे गाँग
ू े ककन्तु बहुत विादार सहायक हैं।
परन्तु पशुओीं के बढ़
ु ापे िें उनके प्रतत ववशेष रूप से दयावान रहो; ऐसा न हो तम्
ु हारे ह्रदय की
कठोरता के कारण उनकी विादारी बेविाई िें बदल जाये और उनसे मिलने वाली सहायता बािा बन
जाये।
मसि-मसि के दि
ू पर पलना
और जब उसके पास दे ने को
और न रहे तो उसकी गदा न
पर कसाई की छुरी रख
दे ना िरि कृतध्नता है ।
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अध्याय - २४
दस
ू रे की पीड़ा पर जीना
पीड़ा का मशकार होना है
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खाने के मलये िारना क्या उचित है? जब शिदाि और कसाई िले गए तो मिकेयन ने िमु शाद से
पूछा: मिकेयन: खाने के मलये िारना क्या उचित नहीीं है िुमशाद ?
िीरदाद: ित्ृ यु से पेट भरना ित्ृ यु का आहार बनना है । दस
ू रों की पीड़ा पर जीना पीड़ा का मशकार होना
है । यही आदे श है प्रभु-इच्छा का यह सिि लो और किर अपना िागा िन
ु ो, मिकेयन।
मिकेयन: यदद िैं िन
ु सकता तो अिर पक्षी की तरह वस्तओ
ु ीं की सग
ु ि
ीं पर जीना पसींद करता, उसके
िाींस पर नहीीं।
िीरदाद: तम्
ु हारी पसींद सििि
ु उिि है। ववश्वास करो, मिकेयन, वह ददन आ रहा है जब िनष्ु य
वस्तुओीं की सुगींि पर ल्जयेंगे जो उनकी आत्िा है, उनके अक्त िाींस पर नहीीं।
और तड़पने वाले के मलये वह ददन दरू नहीीं। क्योंकक तड़पने वाले जानते हैं कक दे ह का जीवन और
कुछ नहीीं, दे ह-रदहत जीवन तक पहुाँिने वाला पल ु -िात्र है। और तड़पने वाले जानते हैं कक स्थल ू और
अक्षि इल्न्द्रयााँ अत्यींत सूक्ष्ि तथा पूणा ज्ञान के सींसार के अींदर िााँकने के मलये िरोखे-िात्र हैं।
और तड़पने वाले जानते हैं कक ल्जस भी िाींस को वे काटते है, उसे दे र-सवेर, अतनवाया रूप से, उन्हें
अपने ही िाींस से जोड़ना पडेगा;
और ल्जस भी हड्डी को वे कुिलते हैं, उसे उन्हें अपनी ही हड्डी से किर बनाना पडेगा; और रक्त की
जो बींद
ू वे चगराते हैं, उसकी पतू ता उन्हें अपने ही रक्त से करनी पड़ेगी। क्योंकक शरीर का यही तनयि
है । पर तड़पने वाले इस तनयि की दासता से िुक्त होना िाहते हैं।
इसमलये वे अपनी शारीिरक आवश्यकताओीं को कि से कि कर लेते हैं और इस प्रकार कि कर लेते हैं
शरीर के प्रतत अपने ऋण को जो वास्तव िें पीड़ा और ित्ृ यु के प्रतत ऋण है।तड़पने वाले पर रोक
केवल उसकी अपनी इच्छा और तड़प की होती है,
जबकक न तड़पने वाला दस
ू रों द्वारा रोके जाने की प्रतीक्षा करता है अनेक वस्तओ
ु ीं को, ल्जन्हें न
तड़पने वाला उचित सििता है तड़पने वाला अपने मलये अनचु ित िानता है । न तड़पने वाला अपने पेट
या जेब िें डालकर रखने के मलये अचिक से अचिक िीजें हचथयाने का प्रयत्न करता है , जबकक
तदपने वाला जब अपने िागा पर िलता है तो न उसकी जेब होती है और न ही उसके पेट िें ककसी
जीव के रक्त और पीड़ा-भरी एींठ्नों की गींदगी।
न तड़पने वाला जो ख़श
ु ी ककसी पदाथा को बड़ी िात्रा िें पाने से करता है –या सििता है कक वह प्राप्त
करता है —तड़पने वाला उसे आत्िा के हलकेपन और ददव्य ज्ञान की ििुरता िें प्राप्त करता है। एक
हरे -भरे खेत को दे ख रहे दो व्यल्क्तयों िें से एक उसकी उपज का अनि
ु ान िन और सेर िें लगाता है
और उसका िक
ू य सोने-िाींदी िें आाँकता है।
दस
ू रा अपने नेत्रों से खेत की हिरयाली का आनींद लेता है, अपने वविारों से हर पिी को िूिता है,
और अपनी आत्िा िें हर छोटी से छोटी जड़,हर कींकड़ और मिटटी के हर ढे ले के प्रतत भ्रातभ
ृ ाव
स्थावपत कर लेता है । िैं तुिसे कहता हूाँ, दस
ु रा व्यल्क्त उस खेत का असली िामलक है , भले ही
क़ानन ू की दृष्टी से पहला व्यल्क्त उसका िामलक हो।एक िकान िें बैठे दो व्यल्क्तयों िें से एक उसका
िामलक है,
दस
ू रा केवल एक अततचथ। िामलक तनिााण तथा दे ख-रे ख के खिा की, और पदों,गलीिों तथा अन्य
साज-सािग्री के िक
ू य की ववस्तार के साथ ििाा करता है। जबकक अततचथ िन ही िन निन करता है
उन हाथों को ल्जन्होंने खोदकर खदान िें से पत्थरों को तनकाला, उनको तराशा और उनसे तनिााण
ककया; उन हाथों को ल्जन्होंने गलीिों तथा पदों को बन
ु ा;
और उन हाथों को ल्जन्होंने जींगलों िें जाकर उन्हें खखडककयों और दरवाजों का,कुमसायों और िेजों का
रूप दे ददया। इन वस्तओ
ु ीं को अल्स्तत्व िें लानेवाले तनिााण-कताा हाथ की प्रशींसा करने िें उसकी
आत्िा का उत्थान होता है । िैं तुिसे कहता हूाँ, वह अततचथ उस घर का स्थायी तनवासी है;
जब कक वह ल्जसके नाि वह िकान है केवल एक भारवाहक पशु है जो िकान को पीठ पर ढोता है,
उसिे रहता नहीीं। दो व्यल्क्तयों िें से,जो ककसी बछड़े के साथ उसकी िााँ के दि
ू के सहभागी हैं, एक
बछड़े को इस भावना के साथ दे खता है कक बछड़े का कोिल शरीर उसके आगािी जन्ि-ददवस पर
उसके तथा उसके मित्रों की दावत के मलये उन्हें बदढ़या िाींस प्रदान करे गा।
दस
ू रा बछड़े को अपना िाय-जाया भाई सििता है और उसके ह्रदय िें उस नन्हे पशु तथा उसकी िााँ
के प्रतत स्नेह उिड़ता है। िैं तुिसे कहता हूाँ, उस बछड़े के िाींस से दस
ू रे व्यल्क्त का सििुि पोषण
होता है; जबकक पहले के मलये वह ववष बन जाता है। हााँ बहुत सी ऐसी िीजें पेट िें दाल ली जाती हैं
ल्जन्हें ह्रदय िें रखना िादहये।
बहुत सी ऐसी िीजें जेब और कोठारों िें बन्द कर दी जाती हैं ल्जनका आनींद आाँख और नाक के द्वारा
लेना िादहये। बहुत सी ऐसी िीजें दाींतों द्वारा िबाई जाती हैं ल्जनका स्वाद बुद्चि द्वारा लेना
िादहये।जीववत रहने के मलये शरीर की आवश्यकता बहुत कि है। तुन उसे ल्जतना कि दोगे, बदले िें
वह तुम्हे उता ही अचिक दे गा; ल्जतना अचिक दोगे, बदले िें उतना ही कि दे गा।
वास्तव िें तम्
ु हारे कोठार और पेट से बाहर रहकर िीजें तम्
ु हारा उससे अचिक पोषण करती हैं ल्जतना
कोठार और पेट के अन्दर जाकर करती हैं। परन्तु अभी ति
ु वस्तओ
ु ीं की केवल सग
ु ि
ीं पर जीववत नहीीं
रह सकते, इसमलये िरती के उदार ह्रदय से अपनी जरुरत के अनुसार तनिःसींकोि लो,
लेककन जरुरत से ज्यादा नहीीं। िरती इतनी उदार और स्नेहपूणा है कक उसका ददल अपने बच्िों के
मलये सदा खल
ु ा रहता है ।
िरती इससे मभन्न हो भी कैसे सकती है ?
और अपने पोषण के मलये अपने आपसे बाहर जा भी कहााँ सकती है ? िरती का पोषण िरती को ही
करना है, और िरती कोई कींजूस गह
ृ णी नहीीं, उसका भोजन तो सदा परोसा रहता है और सबके मलये
पयााप्त होता है। ल्जस प्रकार िरती तुम्हे भोजन पर आिींबत्रत करती है और कोई भी िीज तम्
ु हारी
पहुाँि से बाहर नहीीं रखती,
ठीक उसी प्रकार ति ु भी िरती को भोजन पर आिींबत्रत करो और अत्यींत प्यार के साथ तथा सच्िे
ददल से उससे कहो;”िेरी अनुपि िााँ !
ल्जस प्रकार तन
ू े अपना ह्रदय िेरे सािने िैला रखा है ताकक जो कुछ िुिे िादहये ले लाँ ू, उसी प्रकार
िेरा ह्रदय तेरे सम्िुख प्रस्तत
ु है ताकक जो कुछ तुिे िादहये ले ले।”
यदद िरती के ह्रदय से आहार प्राप्त करते हुए तम्
ु हे ऐसी भावना प्रेिरत करती है, तो इस बात का
कोई िहत्व नहीीं कक ति
ु क्या खाते हो।परन्तु यदद वास्तव िें यह भावना तम् ु हे प्रेिरत करती है तो
तम्
ु हारे अन्दर इतना वववेक और प्रेि होना िादहये कक ति
ु िरती से उसके ककसी बच्िे को न छीनो,
ववशेष रूप से उन बच्िों िें से ककसी को जो
जीने के आनींद और िरने की पीड़ा अनुभव करते हैं–जो द्वेत के खण्ड िें पहुाँि िक
ु े हैं; क्योंकक उन्हें
भी िीरे -िीरे और पिरश्रि के साथ, एकता की ओर जानेवाले िागा पर िलना है । और उनका िागा
तम्
ु हारे िागा से अचिक लींबा है । यदद तुि उनकी गतत िें बािक बनते हो तो वे भी तम्
ु हारी गतत िें
बािक होंगे।
अबबिार; जब ित्ृ यु सभी जीवों की तनयतत है, िाहे वह एक कारण से हो या ककसी दस
ू रे कारण से,
तो ककसी पशु की ित्ृ यु का कारण बनने िें िि
ु े कोई नैततक सींकोि क्यों हो ?
मिरदाद: यह सि है कक सब जीवों का िरना तनल्श्ित है, किर भी चिक्कार है उसे जो ककसी भी जीव
की ित्ृ यु का कारण बनता है। ल्जस प्रकार यह जानते हुए कक िैं नरौन्दा से बहुत प्रेि करता हूाँ और
िेरे िन िें कोई रक्त-वपपासा नहीीं है, तुि िुिे उसे िारने का काि नहीीं सौंपोगे, उसी प्रकार प्रभ-ु
इच्छा ककसी िनष्ु य को ककसी दस
ू रे िनष्ु य या पशु को िारने का काि नहीीं सौंपती, जब तक कक वह
उस िौत के मलये सािन रूप िें उसका उपयोग करना आवश्यक न सििती हो।
जब तक िनुष्य वैसे ही रहें गे जैसे वे हैं, तब तक रहें गे उनके बीि िोिरयााँ और डाके, िूठ, युद्ि
और हत्याएाँ, तथा इस प्रकार के दवू षत और पाप पूणा िनोवेग।लेककन चिक्कार है िोर को और डाकू
को, चिक्कार है िठ
ू े को और यद्
ु ि-प्रेिी को, तथा हत्यारे को और हर ऐसे िनुष्य को जो अपने
ह्रदय िें दवू षत तथा पाप पण
ू ा िनोवेगों को आश्रय दे ता है ,
क्योकक अतनष्ट पूणा होने के कारण इन लोगों का उपयोग प्रभ-ु इच्छा अतनष्ट के सींदेह-वाहकों के रूप िें
करती है ।परन्तु तुि, िेरे साचथयों,
अपने ह्रदय को हर दवू षत
और पाप पूणा आवेग से
अवश्य िक्
ु त करो
ताकक प्रभु-इच्छा तम्
ु हे दख
ु ी
सींसार िें सुखद सन्दे श
पहुाँिाने का अचिकारी
सििे–दिःु ख से िल्ु क्त का
सन्दे श, आत्ि-ववजय का सन्दे श,
प्रेि और ज्ञान द्वारा मिलने वाली
स्वतींत्रता का सन्दे श।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।

िुमशाद गुि हो कर भी
हिारे बीि रहता है ☜
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अध्याय -25

अींगूर-बेल का ददवस और उसकी तैयारीउससे


एक ददन पहले िीरदाद लापता पाया जाता है
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नरौन्दा: अींगू-बेल का ददवस तनकट आ रहा था और हि नौका के तनवासी, ल्जनिे िमु शाद भी शामिल
थे, बाहर से आये स्वयीं सेवी सहायकों की टुकड़ड़यों के साथ ददन-रात बड़े प्रततभोज की तैयािरयों िें
जुटे थे।
िुमशाद अपनी सम्पूणा शल्क्त से और इतने अचिक उत्साह के साथ काि कर रहे थे कक शिदाि तक ने
स्पष्ट रूप से सींतोष प्रकट करते हुए इस पर दटप्पणी की।
नौका के बड़े-बड़े तहखानों को बुहारना था और उनकी पत ु ाई करनी थी, और शराब के बीमसयों बड़े बड़े
िताबानों और िटकों को सा़ि करके यथास्थान रखना था ताकक उनिे नयी शराब भरी जा सके।
उतने ही और िताबानों और िटकों को, ल्जनिे वपछले साल के अींगूरों की िसल से बनी शराब रखी
थी सजाकर प्रदमशात करना था ताकक ग्राहक शराब को आसानी से िख और परख सकें, क्योंकक हर
अींगरू -बेल के ददवस पर गत बषा की शराब बेिने की प्रथा है । सप्ताह भर के आनींदोत्सव के मलये नौका
के खल
ु े आाँगनों को भली प्रकार सजाना-साँवारना था;
आने वाले याबत्रयों के मलये सैकड़ों तम्बू लगाने थे और व्यापािरयों के सािान के प्रदशान के मलये
अस्थायी दक ु ाने बनानी थीीं। अींगूर पेरने के ववशाल कोकहू को ठीक करना था ताकक अींगूरों के वे
असींख्य ढे र उसिे डाले जा सकें ल्जन्हें नौका के बहुत से काश्तकार तथा दहतैषी गिों,टट्टुओीं और ऊाँटों
की पीठ पर लादकर लाने वाले हैं। ल्जनकी रसद कि पड़ जाये, या जो बबना रसद मलये आयें, उनको
बेंिने के मलये बड़ी िात्रा िें रोदटयााँ पकानी थीीं और अन्य खाद्य सािग्री तैयार करनी थी।
अींगरू -बेल का ददवस शरू
ु -शरू
ु िें आभार प्रदशान का ददन था। परन्तु शिदाि की असािारण व्यापािरक
सूि-बूि ने इसे एक सप्ताह तक खीींिकर एक प्रकार के िेले का रूप दे ददया ल्जसिे तनकट और दरू
से हर व्यवसाय के स्त्री-परु
ु ष प्रततबषा बढती हुई सींख्या िें एकत्र होने लगे। राज और रीं क, कृषक और
कारीगर, लाभ के इच्छुक, आिोद-प्रिोद तथा अन्य ध्येयों की पतू ता के िाहवान; शराबी और पुरे
परहे जगार; ििाात्िा यात्री और अििी आवारागदा ; िींददर के भक्त और ििुशाला के दीवाने, और
इन सबके साथ लदद ू जानवरों के िण्
ु ड–ऐसी होती है यह रीं ग-बबरीं गी भीड़ जो पूजा मशखर के शाींत
वातावरण पर िावा बोलती है साल िें दो बार,
पतिड़ िें अींगरू -बेल ददवस पर और बसींत िें नौका-ददवस पर। इन दोनों अवसरों िें से एक पर भी
कोई यात्री नौका िें खाली हाथ नहीीं आता;
सब ककसी न ककसी प्रकार का उपहार साथ लाते हैं जो अींगूर के गुच्छों या िीड़ के िल से लेकर
िोततयों की लड़ड़यों या हीरे के हारों तक कुछ भी हो सकता है। और सब व्यापािरयों से उनकी बबक्री
का दस प्रततशत कर के रूप िें मलया जाता है।
यह प्रथा है कक आनींदोत्सव के पहले ददन अींगरू के गच्
ु छों से सजाये लता-िण्डप के नीिे एक ऊाँिे िींि
पर बैठकर िखु खया भीड़ का स्वागत करता है और आशीवााद दे ता है, और उनके उपहार स्वीकार करता
है । इसके बाद वह उनके साथ नयी अींगूरी शराब का जाि पीता है। वह अपने मलये एक बड़ी, लम्बी
खोखली तुम्बी िें से प्याले िें शराब उड़ेलता है,
और किर एकबत्रत जन-सिूह िें घुिाने के मलये वह तुम्बी ककसी भी एक साथी को थिा दे ता है । तम्
ु बी
जब-जब खाली होती है उसे किर से भर ददया जाता है । और जब सब अपने प्याले भर लेते हैं तो
िुखखया सबको प्याले ऊाँिे उठाकर अपने साथ पववत्र अींगरू -बेल का स्ततु त-गीत गाने का आदे श दे ता है।
कहा जाता है कक यह स्ततु त-गीत हजरत नह
ू और उनके पिरवार ने तब गया था जब उन्होंने पहली
बार अींगूर-बेल का रस िखा था। स्ततु त-गीत गा लेने के बाद भीड़ खश
ु ी के नारे लगाती हुई प्याले
खाली कर दे ती है और किर अपने-अपने व्यापार करने तथा खमु शयााँ िनाने के मलये ववसल्जात हो जाती
है ।और पववत्र अींगूर-बेल का स्तुतत गीत यह है; निस्कार इस पण्
ु य बेल को !
निस्कार उस अद्भत
ु जड़ कोिद
ृ ु अींकुर का पोषण जो करती,स्वखणाि िल िें िददरा भारती। निस्कार
इस पण्
ु य बेल को। जल-प्रलय से अनाथ हुए जो,कीिड िें हैं िाँसे हुए जो,आओ, िखो और आमशष
दो सब इस दयालु शाखा के रस को। निस्कार इस पण्ु य बेल को। िाटी के सब बींिक हो तुि, यात्री
हो, पर भटक गये तुि; िुल्क्त-िक
ू य िक
ु ा सकते हो,पथ भी अपना पा सकते हो,
इसी ददव्य पौिे के रस से, इसी बेल से,इसी बेल से। उत्सव के आरम्भ से एक ददन पहले प्रातिः-काल
िुमशाद लापता हो गये। सातों साथी इतने घबरा गये कक उसका वणान नहीीं ककया जा सकता; उन्होंने
तरु ीं त परू ी साविानी के साथ खोज आरम्भ कर दी। परू ा ददन और परू ी रात, िशालें और लालटे नें मलये
वे नौका िें और उसके आस-पास खोज रहे थे;
ककन्तु िुमशाद का कोई सुराग नहीीं पा सके। शिदाि ने इतनी चिींता प्रकट की और वह इतना व्याकुल
ददखाई दे रहा था कक िुमशाद के इस प्रकार रहस्यिय ढीं ग से लापता हो जाने िें उसका हाथ होने का
ककसी को सींदेह नहीीं हुआ। परन्तु सबको पूरा ववशवास था कक िुमशाद ककसी कपटपूणा िाल के मशकार
हो गये हैं|
िहान आनींदोत्सव िल रहा था लेककन सातों साचथयों की जुबान शोक से जड़वत हो गई थी और वे
परछाइयों की तरह घूि रहे थे।
जन-सिूह स्ततु त-गीत गा िक
ु ा था और शराब पी िुका था और िखु खया ऊाँिे िींि से उतरकर नीिे आ
गया था जब भीड़ के शोर शराबे से बहुत ऊाँिी एक िीखती आवाज सन
ु ाई दी, ”हि मिरदाद को
दे खना िाहते हैं, हि मिरदाद को सन
ु ना िाहते हैं।”
हिने पहिान मलया कक यह आवाज रल्स्तददयन की थी। िुमशाद ने जो कुछ उससे कहा था और जो
उसके मलये ककया था वह सब रल्स्तददयन ने दरू -दरू तक लोगों को बता ददया था।
जन-सिह
ू ने उसकी पक
ु ार को तरु ीं त अपनी पक
ु ार बना मलया। िमु शाद के मलये की जा रही पक
ु ार िारो
ओर िैलकर कानों को बेिने लगी, और हिारी आाँखें भर आईं, हिारे गले रूाँि गये िानो मशकींजे िें
जकड़ मलये गए हों। अिानक कोलाहल शाींत हो गया,
और पुरे सिद
ु ाय पर एक गहरा सन्नाटा छा गया। बड़ी कदठनाई से हि अपनी आाँखों पर ववशवास कर
पाये जब हिने नजर उठाई और िुमशाद को उस ऊाँिे िींि पर जनता को शाींत करने के मलये हाथ
दहलाते हुए दे खा।
िीरदाद प्रेि की शराब से लदा है
अपने खाली पयाले ले आयो..
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अध्याय 26

अींगूर-बेल के ददवस पर आये याबत्रयों को मिरदाद प्रभावशाली उपदे श दे ता है और नौका को कुछ


अनावश्यक भार से िक् ु त करता है
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मिरदाद: दे खो मिरदाद को–अींगूर की उस बेल को ल्जसकी िसल अभी तक नहीीं काटी गई, ल्जसका
रस अभी तक नहीीं वपया गया।
अपनी िसल से लदा हुआ है मिरदाद। पर, अ़िसोस, लुनेरे दसू री ही अींगूर-वादटकाओीं िें व्यस्त हैं।
और रस की बहुलता से मिरदाद का दि घुट रहा है। लेककन पीने और वपलाने वाले दस ू री ही शराबों के
नशे िें िरू हैं।
हल, कुदाल, और दरााँती िलानेवाली, तुम्हारे हालों, कुदालों और दराींततयों को िैं आशीवााद दे ता हूाँ।
आज तक ति ु ने क्या जोता है , क्या खोदा है, क्या काटा है ?
क्या तुिने अपनी आत्िा के सुनसान बींजरों िें हल िलाया है जो हर प्रकार के घास-पात से इतने भरे
पड़े हैं कक सििि
ु जींगल ही बन गये हैं ल्जनिे भयींकर और तघनौने सपा, बबच्छू आदद पनप रहे हैं
और उनकी सख्या बढ़ रही है !
क्या तुिने उन घातक जड़ों को उखाड़ िेंका है जो अाँिेरे िें तम्
ु हारी जड़ों से मलपटकर उन्हें दबोि रही
हैं, और इस प्रकार तम्
ु हारे िल को कमल की अवस्था िें ही नोि रही हैं? क्या ति
ु ने अपनी उन
शाखाओीं की छाँ टाई की है जीने व्यस्त कीड़ों ने खोखला कर ददया है, या परजीवी बेलों के आक्रिण ने
सुखा ददया है?
अपनी लौककक अींगूर वादटकाओीं िें हल िलाना और उनकी खद
ु ाई तथा छाँ टाई करना तुिने भली भााँती
सीख मलया है। पर वह अलौककक अींगूर-वादटका जो तुि खद
ु हो बुरी तरह से उजाड़ और उपेक्षक्षत पड़ी
है ।
ककतना तनरथाक तम्
ु हारा सब श्रि जब तक तुि वादटका से पहले वादटका के स्वािी की ओर ध्यान
नहीीं दे ते! श्रि-जन्य घट्ठों से भरे हाथ वाले लोगो ! िैं तम्
ु हारे घट्ठों को आशीवााद दे ता हूाँ।
लम्बसूत्र और पैिाने के मित्रो, हथोड़े और अहरन के साचथयों, छे नी और आरे के हिरादहयो, अपने-
अपने मशकप िें ति
ु ककतने कुशल और योग्य हो ! तुम्हे िालुि है की वस्तओ
ु ीं का स्तर और उनकी
गहराई कैसे जानी जाती है; परन्तु अपना स्तर और गहराई कैसे जानी जाती है, इसका तम्
ु हे पता
नहीीं।
ति
ु लौहे के टुकड़े को हथौड़े और अहरन से कुशलतापव
ू क
ा गढ़ते हो, पर नहीीं जानते कक ज्ञान की
अहरन पर सींककप के हथौड़े से अनगढ़ िनष्ु य को कैसे गढ़ा जाता है। न ही तुिने अहरन से यह
अनिोल मशक्षा ली है कक िोट के बदले िोट पहुाँिाने का रिी भर वविार ककये बबना भी िोट कैसे खाई
जाती है।
लकड़ी पर आरा और पत्थर पर िलाने िें ति
ु सािान रूप से तनपुण हो; पर नहीीं जानते कक गींवारू
और उलिे हुए िनष्ु य को सभ्य और सल
ु िा हुआ कैसे बनाया जाता है। ककतने तनरथाक हैं तम्
ु हारे सब
मशकप जब तक पहले तुि मशकपी पर उनका प्रयोग नहीीं करते!अपनी िरती-िााँ के ददये उपहारों और
साथी िनुष्य के हाथों से बनी िीजों की िनुष्य की आवश्यकता होती है,
और िनुष्य अपने लाभ के मलये ही इस आवश्यकता का व्यापार कर रहे हैं। िैं आवश्यकताओीं को,
उपहारों को, और उत्पाददत वस्तुओीं को आशीवााद दे ता हूाँ, आशीवााद दे ता हूाँ व्यापार को भी। ककन्तु
स्वयीं उस लाभ के मलये, जो वास्तव िें हातन है, िेरे िख ु से शभ
ु कािना नहीीं तनकलतीरात के
िहत्वपूणा सन्नाटे िें जब ति
ु ददन भर हकी आय के जिा-खिा का दहसाब करते हो तो लाभ के खाते
िें क्या डालते हो और हातन के खाते िें क्या?
क्या लाभ के खाते िें वह िन डालते हो जो तुम्हे तम्
ु हारी लागत से अचिक प्राप्त हुआ है? तो
सििुि बेकार गया वह ददन ल्जसे बेंिकर तुिने वह पूींजी प्राप्त की, िाहे वह पजूीं ी ककतनी ही बड़ी
क्यों न रही हो।
और उस ददन के सौहादा , शाल्न्त और प्रकाश के अींतहीन खजाने से तुि पूणत
ा या बींचित रह गये। उस
ददन के द्वारा स्वतींत्रता के मलये ददये गये तनरीं तर आिींत्रणों का भी ति
ु लाभ न उठा सके और खो बैठे
उन िानव-हृदयों को ल्जन्हें उसने तुम्हारे मलये उपहार के रूप िें अपनी हथेली पर रखा था।
जब तम्
ु हारी िुख्य रूचि लोगों के बटुओीं िें है, तब तुम्हे उनके ह्रदय िें प्रवेश का िागा कैसे मिल
सकता है ? और यदद तुम्हे िनुष्य के ह्रदय िें प्रवेश का िागा नहीीं मिलता तो प्रभु के ह्रदय तक
पहुाँिने की आशा कैसे कर सकते हो ? और यदद तुि प्रभु के ह्रदय तक नहीीं पहुींिे तो क्या अथा है
तम्
ु हारे जीवन का ?
ल्जसे तुि लाभ सििते हो यदद वह हातन हो, तो ककतनी अपार होगी वह हातन ! तनश्िय ही व्यथा है
तम्
ु हारा सम्पूणा व्यापार जब तक तम्
ु हारे लाभ के खाते िें प्रेि और ददव्य ज्ञान न आये। राजदण्ड
थािनेवाले िक ु ु टिािरयो ! ऐसे हाथों िें जो घायल करने िें बहुत िस्
ु त, लेककन घाव पर िरहि लगाने
िें बहुत सस्
ु त हैं राजदण्ड सपा के सािान है।
जबकक प्रेि का िरहि लगाने वाले हाथों िें राजदण्ड एक ववद्यत
ु -दण्ड के सािान है जो ववषाद और
ववनाश को पास नहीीं िटकने दे ता।भली प्रकार परखो अपने हाथों को। मिथ्या अमभिान, अज्ञान तथा
िनुष्यों पर प्रभत्ु व के लोभ से िूले हुए िस्तक पर सजा हीरे , लाल और नीलि से जुड़ा सोने का
िुकुट बोि, उदासी बेिैनी िहसूस करता है।
हााँ, ऐसा िक
ु ु ट तो अपनी पीदठका का–ल्जस पर वह रखा है उसका ििाभेदी उपहास ही होता है । जब
कक अत्यींत दल
ु भ
ा और उत्कृष्ट रत्नों से जड़ा िक
ु ु ट भी ज्ञान तथा आत्ि-ववजय से आलोककत िस्तक
के अयोग्य होने के कारण लज्जा का अनभ
ु व करता है। भली प्रकार परखो अपने िस्तकों को। लोगों
पर शासन करना िाहते हो तुि ?
तो पहले अपने आप पर शासन करना सीखो। अपने आप पर शासन ककये बबना ति
ु औरों पर शासन
कैसे कर सकते हो ?
वायु से प्रताड़ड़त, िेन उगलती लहर क्या सागर को शाल्न्त तथा ल्स्थरता प्रदान कर सकती है ?
अश्र-ु पिू रत आाँख क्या ककसी अश्रु-पिू रत ह्रदय िें आनींदपूणा िुस्कान जाग्रत कर सकती है ?
भय और क्रोि से काींपता हाथ क्या जहाज का सींतल
ु न बनाये रख सकता है ?
िनष्ु यों पर शासन करनेवाले लोग िनष्ु यों द्वारा शामसत होते हैं। और िनष्ु य अशाल्न्त, अराजकता
तथा अव्यवस्था से भरे हुए हैं,
क्योंकक वे सागर ही की तरह आकाश की हर िींिा के प्रहार के सािने बेबस हैं; सागर ही की तरह
उनिे ज्वार-भाटा आता है, और कभी-कभी लगता है कक वे अपनी सीिा का उकलींघन करने ही वाले
हैं।
लेककन सागर ही की तरह उनकी गहराईयााँ शाींत और सतह पर होने वाले िींिाओीं के प्रहारों के प्रभाव
से िुक्त रहती हैं।यदद तुि सििुि लोगों पर शासन करना िाहते हो तो उिकी िरि गहराईयों तक
पहुाँिो, क्योंकक िनष्ु य केवल उिनती लहरें नहीीं है।
परन्तु िनुष्यों की िरि गहराईयों तक पहुाँिने मलये तम्ु हे पहले अपनी िरि गहराई तक पहुाँिना
होगा। और ऐसा करने के मलये तुम्हे राजदण्ड तथा िुकुट को त्यागना होगा ताकक तुम्हारे हाथ िहसूस
करने के मलये स्वतींत्र हों, और तम्
ु हारा िस्तक सोिने और परखने के मलये भार-िक्
ु त हो।िप
ू -दानों
और ििा-पस्
ु तकों वालो ! क्या जलाते हो तुि िप
ू -दानों िें ?
क्या पढ़ते हो ति
ु ििा-पस्
ु तकों िें ?
क्या तुि वह रस जलाते हो जो कुछ पौिों के सुगींि पूणा ह्रदय िें से िरस-िरस कर जि जाता है?
ककन्तु वह तो आि बाजारों िें खरीदा तथा बेंिा जाता है, और दो टे क का रस ककसी भी दे वता को
कष्ट दे ने के मलये कािी है ।
क्या तुि सििते हो कक िप
ू की सुगि
ीं घण
ृ ा, ईष्याा और लोभ की दग
ु न्
ा ि को दबा दे गी?
दबा सकती है िरे बी आाँखों की,िठ
ू बोलती ल्जव्हा की, और वासनापण
ू ा हाथों की दग
ु न्
ा ि को? दबा
सकती है ववश्वास का नाटक करते अववश्वास और ढोल पीटती अिि पाचथावता की दग
ु न्
ा ि को?
इन सब को भूखों िारकर, एक-एक कर ह्रदय िें जला दे ने से, और उनकी राख को िारों ददशाओीं िें
बबखेर दे ने से जो सुगींि उठे गी वह तम्
ु हारे प्रभु की नामसका को कहीीं अचिक सह
ु ावनी लगेगी। क्या
जलाते हो तुि िूप-दानों िें? अनुनय,प्रशींसा और प्राथाना?
अच्छा है क्रोिी दे वता को अपने क्रोि की अल्ग्न िें िल
ु सते छोड़ दे ना।
अच्छा है प्रशींसा के भूखे दे वता को प्रशींसा की भूख से तड़पने के मलये छोड़ दे ना।
अच्छा है कठोर-ह्रदय दे वता को अपने ही ह्रदय की कठोरता के हाथों िरने के मलये छोड़ दे ना।
ककन्तु प्रभु न क्रोिी है, न प्रशींसा का भूखा और न ही कठोर-ह्रदय। क्रोि से भरे , प्रशींसा के भूखे और
कठोर-ह्रदय तो तुि हो।प्रभु यह नहीीं िाहता कक तुि िप
ू जलाओ; वह तो िाहता है कक तुि अपने
क्रोि को. अहीं कार को और कठोरता को जला डालो ताकक ति
ु उसी जैसे स्वतींत्र और सवाशल्क्तिान हो
जाओ।
वह िाहता है कक तम्
ु हारा ह्रदय ही िूप-दान बन जाये| क्या पढ़ते हो तुि अपनी ििा-पुस्तकों िें?
क्या तुि ििाादेशों को पढ़ते हो ताकक उन्हें सुनहरे अक्षरों िें िींददरों की दीवारों और गुम्बदों पर मलख
दो?
या तुि पढ़ते हो जीवन सत्य को ताकक उसे अपने ह्रदय िें अींककत कर सको?
क्या तुि मसद्िाींतों को पढ़ते हो ताकक िामिाक िींिों से उनकी मशक्षा दे सको और तका तथा विन-
िातुरी द्वारा, और यदद आवश्यकता पड़े तो तलवार की िार द्वारा, उनकी रक्षा कर सको?
या तुि अध्ययन करते हो जीवन का जो कोई मसद्िाींत नहीीं है ल्जसकी मशक्षा दी जाये और रक्षा की
जाये, बल्कक एक िागा है ल्जस पर स्वतन्त्रता प्राप्त करने के दृढ़ सींककप के साथ िलना है, िींददर
के अींदर भी वैसे ही जैसे उसके बाहर, रात िें भी वैसे ही जैसे ददन िें, और तनिले पदों पर भी वैसे
ही जैसे ऊाँिे पदों पर।
और जब तक तुि उस िागा पर िलते नहीीं तुम्हे उसकी िींल्जल का तनल्श्ित रूप से पता नहीीं लग
जाता, तब तक तुि औरों को उस िागा पर िलने का तनिन्त्रण दे ने का दिःु साहस कैसे कर सकते हो?
क्या ति
ु अपनी ििा-पस्
ु तकों िें तामलकाओीं, िानचित्रों और िक
ू य-सचू ियों को दे खते हो जो िनष्ु य को
बताती हैं कक इतनी या इतनी िरती से ककतना स्वगा खरीदा जा सकता है?
िालवाजो और पाप के प्रतततनचियों ! ति
ु िनष्ु य को स्वगा बेंिकर उनसे िरती का दहस्सा िोल लेना
िाहते हो। ति
ु िरती को नरक बनाकर िनुष्यों को यहााँ से भाग जाने के मलये प्रेिरत करते हो और
अपने आप को और भी िजबूती के साथ यहााँ जिा लेना िाहते हो। तुि िनुष्यों को यह क्यों नहीीं
सििाते कक वह िरती के कुछ दहस्से के बदले स्वगा िें अपना दहस्सा बेंि दें ?
यदद तुि अपनी ििा-पुस्तकों अच्छी तरह पढ़ते तो लोगों को ददखाते कक िरती को स्वगा कैसे बनाया
जाता है, क्योंकक ददव्य-ह्रदय िनष्ु य के मलये िरती एक स्वगा है; जबकक उनके मलये ल्जनका ह्रदय
सींसार िें है स्वगा एक िरती है ।िनुष्य और उसके साचथयों के बीि, िनुष्य और अन्य जीवों के बीि,
िनुष्य और प्रभु के बीि खड़ी सब बािाओीं को हटाकर िनुष्य के ह्रदय िें स्वगा को प्रकट कर दो।
परन्तु इसके मलये तम्
ु हे स्वयीं ददव्य ह्रदय बनना पड़ेगा। स्वगा कोई खखला हुआ उद्यान नहीीं है ल्जसे
खरीदा या ककराये पर मलया जा सके। स्वगा तो अल्स्तत्व की एक अवस्था है
ल्जसे िरती पर उतनी ही आसानी से प्राप्त ककया जा सकता है ल्जतनी आसानी से इस असीि ब्रम्हाींड
िें कहीीं भी। किर उसे िाती से प्रे दे खने के मलये अपने गदा न क्यों तानते हो, अपनी आाँखों पर क्यों
जोर डालते हो?
न ही नरक कोई दहकती हुई भटठी है ल्जससे प्राथानाएाँ करके या िप
ू जलाकर बिा जा सके। नरक तो
िन की एक अवस्था है ल्जसका िरती पर उतनी ही आसानी से अनुभव ककया जा सकता है ल्जतनी
आसानी से इस अमिट ववशालता िें कहीीं भी।
ल्जस आग का ईंिन िन हो उस आग से भागकर तुि कहााँ जाओगे जब तक तुि िन से ही नहीीं
भाग जाते? जब तक िनुष्य अपनी ही छाया का बींदी है तब तक व्यथा है स्वगा की खोज, और व्यथा
है नरक से बिने का प्रयास। क्योंकक स्वगा और नरक द्वेत की स्वाभाववक अवस्थाएाँ हैं। जब तक
िनुष्य की बद्
ु चि एक न हो, ह्रदय एक न हो, और शरीर एक न हो;
जब तक वह छ्या-िुक्त न हो और उसका सींककप एक न हो, तब तक उसका एक पैर हिेशा स्वगा
िें रहे गा और दस
ू रा हिेशा नरक िें। और यह अवस्था तनिःसींदेह नरक है। और यह तो नरक से भी
बदतर है की पींख प्रकाश के हों और पैर सीसे के;
कक आशा ऊपर उठाये और तनराशा नीिे घसीट ले; कक भय-िुक्त बन्िन को खोले और भयपूणा सींशय
बन्िन िें जकड ले।स्वगा नहीीं है वह स्वगा जो दस
ू रों के मलये नरक हो। नरक नहीीं है वह नरक जो
दस
ू रों के मलये स्वगा हो।
और क्योंकक एक का नरक प्रायिः
दस
ू रे का स्वगा होता है,
और एक का स्वगा प्रायिः दस
ू रे का नरक,
इसमलये और नरक स्थायी और परस्पर ववरोिी अवस्थाएाँ नहीीं, बल्कक पड़ाव हैं ल्जन्हें स्वगा और नरक
दोनों से स्वतींत्रता प्राप्त करने की लम्बी यात्रा िें पार करना है।
पववत्र अींगूर-बेल के याबत्रयों ! सदािारी बनने के इच्छुक व्यल्क्तयों को बेिने और प्रदान करने के मलये
मिरदाद के पास कोई स्वगा नहीीं है; न ही उसके पास पास कोई नरक है ल्जसे वह दरु ािारी बनने के
इच्छुक लोगों के मलये हौआ बनाकर खड़ा कर दे ।
जब तक कक तम्
ु हारी सदािािरता खद
ु ही स्वगा नहीीं बन जाती, वह एक ददन के मलये खखलेगी और
किर िुरिा जायेगी। जब तक तुम्हारी दरु ािािरता खद
ु ही हौआ नहीीं बन जाती, वह एक ददन के मलये
दबी रहे गी पर अनक
ु ू ल अवसर पाते ही खखल उठे गी। तम्
ु हे दे ने के मलये मिरदाद के पास कोई स्वगा या
नरक नहीीं है, परन्तु है ददव्य ज्ञान जो तम्
ु हे ककसी भी नरक की आग और ककसी भी स्वगा के ऐश्वया
से बहुत ऊपर उठा दे गा।
हाथ से नहीीं,ह्रदय से स्वीकार करना होगा तम्
ु हे यह उपहार। इसके मलये तम्
ु हे अपने ह्रदय को ज्ञान-
प्राल्प्त की इक्षा और सींककप के अततिरक्त अन्य हर इच्छा और सींककप के बोि से िक्
ु त करना होगा।
तुि िरती के मलये कोई अजनबी नहीीं हो, न ही िरती तम्
ु हारे मलये सौतेली िााँ है । तुि तो उसके
ह्रदय का ही सारभत
ू अींश हो, और उसके िेरुदण्ड का ही बल हो। अपनी सबल, िौड़ी और सदृ
ु ढ़ पीठ
पर तुम्हे उठाने िें उसे ख़श
ु ी होती है; तुि क्यों अपने दब
ु ल
ा और क्षीण व्क्शिःस्थल पर उसे उठाने का
हाथ करते हो,
और पिरणाि स्वरूप कराहते, हााँिते और साींस के मलये छटपटाते हो?दि
ू और शहद बहते हैं िरती के
थनों से। लोभ के कारण अपनी आवश्यकता से अचिक िात्रा िें इन्हें लेकर तुि इन दोनों को खट्टा
क्यों करते हो?
शाींत और सुन्दर है िरती का िुखड़ा। तुि दख
ु द कलह और भय से उसे अशाींत और कुरूप क्यों बनाना
िाहते हो? एक पण
ू ा ईकाई है िरती। ति
ु तलवारों और सीिा-चिन्हों से क्यों इसके टुकड़े-टुकड़े कर दे ने
पर तुले हो? आज्ञाकारी और तनल्श्िन्त है िरती। तुि क्यों इतने चिन्ता-ग्रस्त और अवज्ञाकारी हो ?
किर भी तुि िरती से, सूया से, तथा आकाश के सभी ग्रहों से अचिक स्थायी हो। सब नष्ट हो
जायेंगे, पर तुि नहीीं। किर तुि क्यों हवा िें पिों की तरह कााँपते हो? यदद अन्य कोई वस्तु तुम्हे
ब्रम्हाींड के साथ तम्
ु हारी एकता का अनभ
ु व नहीीं करवा सकती तो अकेली िरती से ही तम्
ु हे इसका
अनभ
ु व हो जाना िादहये। परन्तु िरती स्वयीं केवल दपाण है ल्जसिे तम्
ु हारी परछाइयााँ प्रततबबल्म्बत
होती हैं।
क्या दपाण प्रततबबल्म्बत वास्तु से अचिक िहत्वपूणा है? क्या िनुष्य की परछाईं िनुष्य से अचिक
िहत्वपूणा है? आाँखें िलो और जागो। क्योंकक तुि केवल मिट्टी नहीीं हो। तुम्हारी तनयतत केवल जीना
और िरना तथा ित्ृ यु के भख
ू े जबड़ों के मलये आहार बन कर रह जाना नहीीं है।
तम्
ु हारी तनयतत है प्रभु की सतत िलदातयनी अींगूर-वादटका की िलवती अींगूर-बेल बनना। ल्जस प्रकार
ककसी अींगूर-बेल की जीववत शाखा िरती िें दबा ददये जाने पर जड़ पकड़ लेती है और अींत िें अपनी
िाता की ही तरह, ल्जसके साथ वह जुडी रहती है,
अींगूर दे ने वाली स्वतींत्र बेल बन जाती है, उसी प्रकार िनुष्य, जो ददव्य लता की जीववत शाखा है,
अपनी ददव्यता की मिटटी िें दबा दे ये जाने पर परिात्िा का रूप बन जाएगा और सदा परिात्िा के
साथ एक–रूप रहे गा।क्या िनष्ु य जीववत दिना ददया जाये ताकक वह जीवन पा ले? हााँ, तनिःसींदेह हााँ।
जब तक तुि जीवन और ित्ृ यु के द्वेत के प्रतत द़िन नहीीं हो जाते, तुि अल्स्तत्व के एकत्व को
नहीीं पाओगे। जब तक तुि ददव्य प्रेि के अींगूरों से पोवषत नहीीं होते, तुि ददव्य ज्ञान की िददरा से
भरे नहीीं जाओगे।
और जब तक ति
ु ददव्य ज्ञान की िददरा के नशे िें बेहोश नहीीं हो जाते, ति
ु स्वतींत्रता के िम्
ु बन से
होश िें नहीीं आओगे। प्रेि का आहार नहीीं करते हो तुि जब पथ्
ृ वी की अींगूर-बेल के िल खाते हो।
ति
ु एक छोटी भख
ू को शाींत करने के मलये एक बड़ी भख
ू को आहार बनाते हो। ज्ञान का पान नहीीं
करते हो तुि जब पथ्
ृ वी की अींगूर-बेल का रस पीते हो।
तुि केवल पीड़ा की क्षखणक ववस्ितृ त का पान करते हो जो अपना प्रभाव सिाप्त होते ही तम्
ु हारी पीड़ा
की तीव्रता को दग
ु ना कर दे ती है। तुि एक दिःु ख दायी अहि ् से दरू भागते हो और वाही अहि ् तम्
ु हे
अगले िोड़ पर खडा मिलता है ।
जो अींगरू तम्
ु हे मिरदाद पेश करता है उसे न ििींू दी लगती है न वे सड़ते हैं। उनसे एक बार तप्ृ त हो
जाना सदा के मलये तप्ृ त हो रहना है। जो िददरा उसने तम्
ु हारे मलये तैयार की है वह उन ओींठों के
ल्जये बहुत तीखी है जो जलने से डरते हैं; लेककन वह जान डाल दे ती है उन हृदयों िें अनन्तकाल
काल तक आत्ि-ववस्ितृ त िें डूबे रहना िाहते हैं।
क्या तुििे ऐसे िनुष्य हैं जो िेरे अींगूरों के भूखे हैं ? वे अपनी टोकिरयााँ लेकर आगे आ जायें।क्या
कोई ऐसे हैं जो िेरे रस के प्यासे हैं ?
वे अपने प्याले लेकर आ जायें।
क्योंकक मिरदाद अपनी िसल से लदा है, और रस की वहुलता से उसकी साींस रुक रही है । पववत्र
अींगूर-बेल का ददवस आत्ि-ववस्ितृ त का ददन था—प्रेि की िददरा से उन्ित और ज्ञान की आभा से
स्नात ददन, स्वतन्त्रता के पाँखों के सींगीत से आनींद-ववभोर ददन. बािाओीं को हटाकर एक को सबिे
और सबको एक िें ववलीन कर दे ने का ददन। पर दे खो, आज यह क्या बन गया है।
एक सप्ताह बन गया है यह रोगों अहि ् के दावे का; घखृ णत लोभ का जो घखृ णत लोभ का ही व्यापार
कर रहा है; दासता का जो दासता के साथ ही क्रीडा कर रहा है; अज्ञानता का जो अज्ञानता को ही
दवू षत कर रही है। जो नौका कभी ववश्वास, प्रेि और स्वतींत्रता की िददरा बनाने का केंद्र थी, उसी
को अब शराब की एक ववशाल भट्ठी तथा घखृ णत व्यापार िण्डी िें बड़क ददया गया है ।
वह तुम्हारी अींगूर-वादटकाओीं की उपज लेती है और उसे ितत-भ्रष्ट करनेवाली िददरा के रूप िें वावपस
तम्
ु हे ही बेंि दे ती है । और तम्
ु हारे हाथों के श्रि की वह तम्
ु हारे ही हाथों के मलये हथकड़ड़यााँ गढ़ दे ती
है ।
तम्
ु हारे श्रि के पसीने को वह जलते हुए अींगार बना दे ती है तम्
ु हारे ही िस्तक को दागने के मलये। दरू
बहुत दरू भटक गई है नौका अपने तनयत िागा से। ककन्तु अब इसकी पतवार को ठीक दे शा दे दी गई
है ।
अब इसे सारे अनावश्यक भार से िुक्त कर ददया जायेगा ताकक यह अपने िागा पर सुवविापव
ू क
ा और
सरु क्षक्षत िल सके। इसमलये सब उपहार उन्ही को, ल्जन्होंने ददये थे,
लौटा ददये जायेंगे और सब कजादारों को िा़ि कर ददये जायेंगे। नौका मसवाय प्रभु के ककसी को डाटा
स्वीकार नहीीं करती, और प्रभु िाहता है कोई भी कजादार न रहे –उसका अपना कजादार भी नहीीं।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को थी यही मशक्षा है िेरी तुिको ...
अध्याय 27.
अल्स्तत्व का हर कण सत्य का अचिकारी
••••••••••••••••••••••••••••••••••
सत्य का उपदे श क्या सबको
ददया जाना िादहये या
कुछ िुने हुए व्यल्क्तयों को ?
अींगूर-बेल के ददवस से एक ददन पहले मिरदाद अपने लप्ु त होने का भेद प्रकट करता है और िूठी सिा
की ििाा करता है
नरौन्दा: प्रीतत- भोज जब स्ितृ त िात्र रह गया था, उसके कािी सिय बाद एक ददन सातों साथी
पवातीय नीड़ िें िमु शाद के पास इकटठे हुए थे।
उस ददन की स्िरणीय घटनाओीं पर जब साथी वविार कर रहे थे तो िमु शाद िुप रहे । कुछ साचथयों ने
उत्साह के साथ उद्वेग पर पर आश्िया प्रकट ककया ल्जसके साथ जन सिूह ने िुमशाद के विनों का
स्वागत ककया था।
और कुछ ने शिदाि के उस सिय के ववचित्र तथा रहस्य पूणा व्यवहार पर दटप्पणी की जब सैकड़ों
ऋण-आलेख नौका के कोषागार से तनकाल कर सबके सािने नष्ट ककये थे, शराब के सैकड़ों िताबान
और िटके तहखानों िें से तनकाल कर दे ददये गए थे और अनेक िूकयवान उपहार लौटा ददये गए थे,
क्योंकक उस सिय शिदाि ने ककसी प्रकार का ववरोि—ल्जसका हिें डर था—नहीीं ककया था, बल्कक
िुपिाप, बबना दहले-डुले, आाँखों से आींसओ
ु ीं की िारा बहाते हुए सब कुछ दे खता रहा था।
बैनन
ू ने कहा कक यद्यवप जय-जयकार करते-करते लोगों के गले बैठ गये थे, उनकी सराहना िुमशाद
के विनों के मलये नहीीं बल्कक िा़ि कर ददये गए ऋणों और लौटा ददये गए उपहारों के मलये थी। उसने
तो िमु शाद की हलकी-सी आलोिना भी की कक उन्होंने ऐसी भीड़ पर सिय नष्ट ककया ल्जसे खाने-पीने
तथा आनींद िनाने से बढ़कर ककसी ख़श
ु ी की तलाश नहीीं थी।
बैननू वविार प्रकट ककया कक सत्य का उपदे श बबना सोि-वविार के सबको नहीीं, कुछ िुने हुए
व्यल्क्तयों को ही ददया जाना िादहये। इस पर िमु शाद ने अपना िौन तोड़ा और कहा:
िीरदाद: हवा िें छोड़ा तम्
ु हारा श्वास तनश्िय ही ककसी के िेिड़ों िें प्रवेश करे गा। ित पूछो कक िेिड़े
ककसके हैं। केवल इतना ध्यान रखो कक तुम्हारा श्वास पववत्र हो। तम्
ु हारा शब्द कोई कान खोजेगा और
तनश्िय ही उसे पा लेगा। ित पछ
ू ो की कान ककसका है ।
केवल इतना ध्यान रखो कक तम्
ु हारा शब्द स्वतींत्रता का सच्िा सन्दे श-वाहक हो। तम्
ु हारा िूक वविार
तनश्िय ही ककसी ल्जव्हा को को बोलने के मलये प्रेिरत करे गा। ित पूछो की ल्जव्हा ककसकी है। केवल
इतना ध्यान रखो कक तुम्हारा वविार प्रेिपूणा ज्ञान से आलोककत।
ककसी भी प्रयत्न को व्यथा गया ित सििो। कुछ बीज वषों िरती िें दबे पड़े रहते हैं, परन्तु जब
पहली अनक
ु ू ल ऋतू का श्वास उनिे प्राण िाँू कता है, वे तरु ीं त सजीव हो उठते हैं। सत्य का बीज
प्रत्येक िनष्ु य और वस्तु के अन्दर िौजूद है ।
तम्
ु हारा काि सत्य को बोना नहीीं है, बल्कक उसके अींकुिरत होने के मलये अनुकूल ऋतू तैयार करना
है ।अनन्तकाल िें सबकुछ सींभव है ।
इसमलये ककसी भी िनुष्य की स्वतींत्रता के ववषय िें तनराश न होओीं, बल्कक िुल्क्त का सन्दे श सािान
ववश्वास तथा उत्साह के साथ सब तक पहुाँिाओ—जैसे तड़पने वालों तक वैसे ही न तड़पने वालों तक
भी।
क्योंकक न तड़पने वाले कभी अवश्य तड़पें गे, और आज ल्जनके पींख नहीीं हैं वे ककसी ददन िप
ू िोंि से
अपने पींखो को साँवारें गे और अपनी उड़ानों से आकाश की दरू ति तथा अगि ऊाँिाइयों को िीर डालेंगे।
मिकास्तर: हिें बहुत दिःु ख है कक आज तक, हिारे बार-बार पछ
ू ने पर भी, िुमशाद ने अींगूर-बेल के
ददवस से एक ददन पहले अपने रहस्यपूणा ढीं ग से गायब हो जाने का भेद हि पर प्रकट नहीीं ककया है ।
क्या हि उनके ववश्वास के योग्य नहीीं हैं ? मिरदाद: जो भी िेरे प्यार के योग्य हैं तनिःसींदेह िेरे
ववश्वास के योग्य भी हैं। ववश्वास क्या प्रेि से बड़ा है, मिकास्तर ? क्या िैं तम्
ु हे ददल खोलकर प्रेि
नहीीं दे रहा हूाँ? िैंने उस अवप्रय घटना की ििाा नहीीं की तो इसमलये कक िैं शिदाि को प्रायल्श्ित
करने के मलये सिय दे ना िाहता था,
क्योंकक वाही था ल्जसने दो अजनबबयों की सहायता से उस शाि िुिे बलपूवक
ा इस नीड़ िें से उठाकर
काले खड्डे िें डाल ददया था। अभागा शिदाि ! उसने स्वप्न िें भी नहीीं सोिा था कक काला खड्ड
कोिल हाथों से मिरदाद का स्वागत करे गा और उसके मशखर तक पहुाँिने के मलये जाद ू की सीदढयााँ
लगा दे गा।
दहम्बल: जब हिारे िमु शाद शिदाि को इतना प्रेि करते हैं तो वह उन्हें क्यों सताता है ?
िीरदाद: शिदाि िुिे नहीीं सताता। शिदाि शिदाि को ही सताता है। अींिों के हाथ िें नाििात्र की
भी सिा दे दी तो वे उन सब लोगों की आाँखे तनकाल दें गे जो दे ख सकते हैं: उनकी भी जो उन्हें दे खने
की शल्क्त प्रदान करने के मलये कठोर पिरश्रि करते हैं। गल
ु ाि को केवल एक ददन िनिानी करने की
छूट दे दो,
और वह सींसार को गुलािों के सींसार िें बदल दे गा। सबसे पहले वह उन पर डींडे बरसायेगा और उन्हें
बेड़ड़यााँ पहनायेगा जो उसे स्वतींत्र कराने के मलये तनरीं तर पिरश्रि कर रहे हैं।सींसार की प्रत्येक सिा,
उसका आिार िाहे कुछ भी हो. िूठी है।
इसमलये वह अपनी एड़ें खनकाती है, तलवार घि
ु ाती है, तथा कोलाहलपण
ू ा ठाट-वाट और ििक-दिक
के साथ सवारी करती है ताकक कोई उसके कपटी ह्रदय के अन्दर िााँकने का साहस न कर सके।
अपने डोलते मसींहासन को वह बींदक
ू ों और भालों के सहारे ल्स्थर रखती है । मिथ्यामभिान की लपेट िें
आई अपनी आत्िा को वह डरावने-तावीजों और अींि-ववश्वासों की आड़ िें तछपाती है ताकक कुतूहली
लोगों की आाँखें उसकी तघनौनी तनिानता को न दे ख सकें।
ऐसी सिा उसका उपयोग करने को उत्सक
ु व्यल्क्त की आाँखों पर पदाा भी डालती है और उसके मलये
अमभशाप भी होती है। वह हर िूकय पर अपने आपको बनाये रखना िाहती है, िाहे बनाये रखने का
भयींकर िूकय िुकाने के मलये उसे स्वयीं सिािारी को और उसके सिथाकों को ही नष्ट करना पड़े,
और साथ ही उनको जो उसका ववरोि करते हैं। सिा की भूख के कारण िनुष्य तनरीं तर व्याकुल रहते
हैं।
ल्जनके पास सिा है वे उसे बनाये रखने के मलये सदा लड़ते रहते हैं, ल्जनके पास नहीीं वे सिािािरयों
के हाथों से सिा छीनने के मलये सदा सींघषारत रहते हैं। जबकक िनष्ु य को, उसिे तछपे प्रभु को, पैरों
और खरु ों तले रौंदकर यद्
ु ि-भूमि िें छोड़ ददया जाता है —उपेक्षक्षत, असहाय और प्रेि से वींचित।
इतना भयींकर है यह युद्ि, और रक्त-पात के ऐसे दीवाने हैं यह योद्िा कक नकली दक
ु हन के िेहरे
पर से रीं गा हुआ िख
ु ौटा कोई नहीीं हटाता, उसकी राक्षसी कुरूपता प्रकट करने के मलये कोई नहीीं
रुकता;
अ़िसोस कोई नहीीं। ववश्वास करो, सािओ
ु , ककसी भी सिा का रिी भर िक
ू य नहीीं है , मसवाय ददव्य
ज्ञान की सिा के जो अनिोल है । उसे पाने के मलये कोई त्याग बड़ा नहीीं है। एक बार उस सिा को पा
लो तो सिय के अींत तक वह तम्
ु हारे पास रहे गी।
वह तुम्हारे शब्द िें इतनी शल्क्त भर दे गी ल्जतनी सींसार की सारी सेनाओीं के हाथ िें कभी नहीीं आ
सकती; अपने आशीवााद से वह तुम्हारे कायों िें इतना उपकार भर दे गी ल्जतना सींसार की सब सिाएाँ
मिलकर भी कभी सींसार की िोली िें डालने का स्वप्न भी नहीीं दे ख सकतीीं। क्योंकक ददव्य ज्ञान स्वयीं
अपनी ढाल है;
इसकी शल्क्तशाली भुज प्रेि है । यह न सताता है न अत्यािार करता है, यह तो हृदयों पर ओस की
तरह चगरता है; और जो इसे स्वीकार नहीीं करते उन्हें भी वह उसी प्रकार राहत दे ता है ल्जस प्रकार
इसका पान करने वालों को। क्योंकक इसे अपनी आींतिरक शल्क्त पर बहुत गहरा ववश्वास है ,
यह ककसी बाहरी शल्क्त का सहारा नहीीं लेता। क्योंकक यह तनताींत भय रदहत है, यह ककसी भी व्यल्क्त
पर अपने आपको थोपने के मलये भय को सािन नहीीं बनाता। सींसार ददव्य ज्ञान की दृष्टी से तनिान
है —-अ़िसोस, अतत तनिान!! इसमलये वह अपनी तनिानता को िठ
ू ी सिा के परदे के पीछे तछपाने का
प्रयास करता है ।
िूठी सिा िूठी शल्क्त के साथ रक्षात्िक तथा आक्रिक सींचियााँ करती है, और दोनों अपना नेतत्ृ व
भय को सौंप दे ते हैं। और भय दोनों को नष्ट कर दे ता है। क्या ऐसा नहीीं होता आया कक दब
ु ल
ा अपनी
दब
ु ल
ा ता की रक्षा के मलये सींगदठत हो जाते हैं?
इस प्रकार सींसार की सिा तथा सींसार की पाशववक शल्क्त दोनों, हाथ िें हाथ डाले, भय के तनयींत्रण
िें िलते हैं और अज्ञानता को यद्
ु ि, रक्त तथा आींसओ
ु ीं के रूप िें उसका दै तनक कर दे ते हैं।
और अज्ञानता िींद-िींद िस्
ु कराती है और सबको कहती है ‘शाबाश!’मिरदाद को खड्ड के हवाले करके
शिदाि ने शिदाि से कहा, ‘शाबाश !’ परन्तु शिदाि ने यह नहीीं सोिा कक िि
ु े खड्ड िें िेंककर
उसने िुिे नहीीं अपने आपको िेंका था।
क्योंकक खड्ड ककसी मिरदाद को रोककर नहीीं रख सकता; जबकक ककसी शिदाि को उसकी काली और
किसलन भरी दीवारों पर िढ़ने के मलए दे र तक कदठन पिरश्रि करना पड़ता है । सींसार की प्रत्येक सिा
केवल नकली आभष
ू ण है।
जो ददव्य ज्ञान की दृष्टी से अभी मशशु हैं, उन्हें इससे अपना िन बहलाने दो। ककन्तु तुि स्वयीं अपने
आपको कभी ककसी पर ित थोपो; क्योकक जो बलपूवक
ा थोपा जाता है उसे दे र-सवेर बलपव
ू क
ा हटा भी
ददया जाता है । िनुष्यों के जीवन पर ककसी प्रकार का प्रभत्ु व जिाने का प्रयत्न न करो; वह प्रभ-ु
इच्छा के अिीन हैं।
न ही िनष्ु यों की सींपवि पर अचिकार जिाने का प्रयत्न करो; क्योंकक िनष्ु य अपनी सींपवि से उतना
ही बींिा हुआ है ल्जतना अपने जीवन से, और उसकी जींजीरों को छे ड़नेवालों को वह सींदेह और घण
ृ ा
की दृष्टी से दे खता है ।
लेककन प्रेि और ददव्य ज्ञान के द्वारा लोगों के ह्रदय िें स्थान पाने का िागा खोजो; एक बार वहाीं
स्थान पा लेने पर तुि लोगों को उनकी जींजीरों से छुटकारा ददलवाने के मलये अचिक कुशलता पूवक

काया कर सकते हो।
क्योंकक प्रेि तम्
ु हे िागा ददखाएगा
और ददव्य ज्ञान होगा तम्
ु हारा दीप-वाहक।

अध्याय -28
अपना नाि लोगो के िुींह पर ित थोपो
लोगो के ह्रदय िें अपना नाि अींककत कर दो

**************************************
बेसार का सुलतान शिदाि
के साथ नीड़ िें आता है
युद्ि और शाल्न्त के ववषय िें
”सुलतान और िीरदाद”
िें वाताालाप शिदाि
िीरदाद को जाल िें िाँसाता है ……
सल
ु तान ; प्रणाि, िहात्िन । हि उस िहान िीरदाद का अमभवादन करने आये हैं ल्जसकी प्रमसद्चि
इन पवातों िें दरू -दरू तक िैलती हुई हिारी दरू स्थ राजिानी िें भी पहुाँि गई है ।
िीरदाद ; प्रमसद्चि ववदे श िें द्रत
ु गािी रथ पर सवारी करती है ; जबकक घर िें वह बैसाखखयों के
सहारे लड़खड़ाती हुई िलती है । इस बात िें िुखखया िेरे गवाह हैं । प्रमसद्चि की िींिलता पर ववश्वाश
न करो, सुलतान ।
सल
ु तान ; किर भी ििरु होती है प्रमसद्चि की िींिलता, और सख
ु द होता है लोगों के ओठों पर
अपना नाि अींककत करना ।
िीरदाद ; लोगों के ओठों पे अींककत नाि वैसा ही होता है जैसा सिुद्र-तट की रे त पर नाि अींककत
करना । हवाएीं और लहरें उसे रे त पर से बहा ले जाएींगी । ओठों पर से तो उसे एक छीींक ही उड़ा दे गी
। यदद तुि नहीीं िाहते कक लोगों की छीींकें तम्
ु हे उड़ा दें तो अपना नाि उनके ओठों पर ित छापो,
बल्कक उनके हृदयों पर अींककत कर दो ।
सल
ु तान ; लेककन लोगों का ह्रदय
तो अनेक तालों िें बींद है ।
िीरदाद ; ताले िाहे अनेक हों, पर िाबी एक है ।
सुलतान ; क्या आपके पास है वह िाबी ?
िुिे उसकी बहुत सख्त जरुरत है ।
िीरदाद ; वह तम्
ु हारे पास भी है ।
सुलतान ; अ़िसोस ! आप िेरा िूकय िेरी योग्यता से कहीीं अचिक लगा रहे हैं ।
िैं लम्बे सिय से खोज रहा हूाँ वह िाबी ल्जससे अपने पड़ोसी के ह्रदय िें प्रवेश पा सकाँू ,
परन्तु वह िुिे कहीीं नहीीं मिली ।
वह एक शल्क्तशाली सुलतान है
और िि
ु से यद्
ु ि करने पे उतारू है ।
अपने शाींतत-वप्रय स्वभाव के
बावजद
ू िैं उसके ववरुद्ि हचथयार
उठाने के मलए वववश हूाँ । िमु शाद,
िेरे िुकुट और िोततयों-जड़े वस्त्रों के िोके िें न आयें । ल्जस िाबी की िुिे तलाश है वह िुिे इनिे
नहीीं मिल रही है ।
िीरदाद ; ये वस्तए
ु ीं िाबी को तछपा तो दे ती हैं, पर उसे अपने पास नहीीं रखतीीं । ये तुम्हारे द्वारा
उठाये गए कदि को जकड दे ती हैं, तम्
ु हारे हाथ को रोक लेती हैं, तम्
ु हारी दृष्टी को लक्ष्य-भ्रष्ट कर
दे ती हैं, और इस प्रकार तम्
ु हारी तलाश को वविल कर दे ती हैं ।
सुलतान ; इससे िुमशाद का क्या अमभप्राय है िुिे अपने िुकुट और राजसी वस्त्रों को िेक दे ना होगा
ताकी िुिे अपने पडोसी के ह्रदय िें प्रवेश करने की िाबी मिल जाये ।
िीरदाद ; इन्हे रखना है तो तम्
ु हे अपने पडोसी को खोना होगा, अपने पडोसी को रखना है तो तम्
ु हे
इन्हे खोना होगा । और अपने पडोसी को खोना अपने आप को खो दे ना है ।
सुलतान ; िैं अपने पडोसी की मित्रता इतनी बड़ी कीित पर नहीीं खरीदना िाहता ।
िीरदाद ; क्या तुि इस ज़रा-सी कीित पर भी अपने आपको नहीीं खरीदना िाहते ?
सुलतान ; अपने आप को खरीदीं ू िैं कोई कैदी नहीीं हूाँ कक िरहाई की कीित दाँ ू । और इसके अततिरक्त
िेरी रक्षा के मलए िेरे पास सेना है ल्जसे अच्छा बेटन ददया जाता है और ल्जसके पास पयााप्त युद्ि
सािग्री है । िेरा पडोसी इससे उिि सेना होने का दावा नहीीं कर सकता ।
िीरदाद ; एक व्यल्क्त या वस्तु का बींदी होना ही असहनीय कारावास है । िनुष्यों की एक ववशाल
सेना, और कई वस्तओ
ु ीं के सिूह का बींदी होना तो अींतहीन दे श-तनकाला है । क्योंकक ककसी वस्तु पर
तनभार होना उस वस्तु का बींदी बनना है । इसमलए केवल प्रभु पर तनभार रहो, क्योंकक प्रभु का बींदी
होना तनिःसींदेह स्वतींत्र होना है ।
सल
ु तान ; तो क्या िैं अपने आपको,
अपने मसींहासन को अपनी
प्रजा को असुरक्षक्षत छोड़ दाँ ू ?
िीरदाद ;
अपने आपको असरु क्षक्षत न छोडो ।
सुलतान ;
इसमलए तो िैं सेना रखता हूाँ ।
िीरदाद ;
इसमलए तो तम्
ु हे अपनी सेना
को भींग कर दे ना िादहये ।
सुलतान ; परन्तु तब िेरा पडोशी
िेरे राज्य को रौंद डालेगा ।
िीरदाद ; तम्
ु हारे राज्य को रौंद सकता है
लेककन तुम्हे कोई नहीीं तनगल सकता ।
दो कारागार मिलकर एक हो जाएाँ तो
भी वे स्वतींत्रता के मलए
एक छोटा-सा घर
नहीीं बन जाते ।
यदद कोई िनुष्य तम्
ु हे तम्
ु हारे कारागार िें से तनकाल दे तो ख़श
ु ी िनाओ ; परन्तु उस व्यल्क्त से
ईष्याा न करो जो खद
ु तम्
ु हारे कारागार िें बींद होने के मलए आ जाये ।
सुलतान ; िैं एक ऐसे कुल की सींतान हूाँ जो रणभूमि िें अपनी वीरता के मलए ववख्यात है । हि
दस
ू रों को यद्
ु ि के मलए कभी वववश नहीीं करते । ककन्तु जब हिें यद्
ु ि के मलए वववश ककया जाता है
तो हि कभी पीछे नहीीं हटते, और शत्रु की लाशों पर ऊाँिी ववजय पताकाएीं लहराये बबना रण-भूमि से
ववदा नहीीं लेते । आपकी सलाह कक िैं अपने पड़ोसी को िनिानी करने दाँ ू ,
उचित सलाह नहीीं है ।
िीरदाद : क्या तुिने कहा नहीीं
था कक ति
ु शाींतत िाहते हो ?
सुलतान : हााँ शाींतत तो िैं िाहता हूाँ ।
िीरदाद : तो यद्ु ि ित करो ।
सुलतान : पर िेरा पडोसी िि ु से यद्
ु ि करने पर तुला हुआ है ; और िुिे उससे युद्ि करना ही
पड़ेगा ताकक हिारे बीि शाींतत स्थावपत हो सके ।
िीरदाद : ति
ु अपने पडोसी को इसमलए िार डालना िाहते हो ताकक उसके साथ शाींततपव
ू क
ा जी सको !
कैसी ववचित्र बात है ! िुदों के साथ शाींततपव
ू क
ा जीने िें कोई खब
ू ी नहीीं ; खब
ू ी तो है उसके साथ
शाींतत पूवक
ा जीने िें जो ल्जन्दा हैं । यदद तम्
ु हे ककसी ऐसे ल्ज़ींदा िनष्ु य या वस्तु से यद्
ु ि करना ही है
ल्जसकी रूचि और दहत तम्
ु हारी रूचि और दहत से कभी-कभी टकराते हैं, तो यद्
ु ि करो उस प्रभु से
जो इन्हे अल्स्तत्व िें लाया है । और यद्
ु ि करो सींसार से ;
क्योंकक उसके अींदर ऐसी अनचगनत वस्तए
ु ीं हैं जो तम्
ु हारे िन को व्याकुल करती हैं, तम्
ु हारे ह्रदय को
पीड़ा पहुाँिाती हैं, और अपने आप को जबरदस्ती तम्
ु हारे जीवन पर थोपती हैं ।
सुलतान ; यदद िैं अपने पड़ोसी के साथ शाींततपूवक
ा रहना िाहूाँ पर वह यद्
ु ि करना िहता है .
तो िैं क्या करूाँ ?
िीरदाद ; यद्
ु ि करो ।
सुलतान ; अब आप िि
ु े ठीक सलाह दे रहे हैं ।
िीरदाद ; हााँ , युद्ि करो, परन्तु अपने पड़ोसी से नहीीं । युद्ि करो उन सभी वस्तुओीं से जो तम्
ु हे
और तम्
ु हारे पड़ोसी को आपस िें लड़ाती हैं ।
सुलतान, तुम्हारा पडोसी ति
ु से लड़ना िाहता है तुम्हारे राजसी वस्त्रों के मलए, तुम्हारे मसींहासन,
तम्
ु हारी सींम्पवि और तम्
ु हारे प्रताप के मलए,
और उन सब वस्तुओीं के मलए ल्जनके तुि बींदी हो । क्या तुि उसके ववरुद्ि शास्त्र उठाये बबना उसे
पराल्जत करना िाहोगे ? तो इससे पहले कक वह तुिसे युद्ि छे ड़े, तुि स्वयीं ही इन सब वस्तुओीं के
ववरुद्ि यद्
ु ि कक घोषणा कर दो ।
जब तुि अपनी आत्िा को इनके मशकींजे से छुड़ाकर इन पर ववजय पा लोगे ; जब तुि इन्हे बाहर
कूड़े के ढे र पर िेंक दोगे, सम्भव है कक तब तम्
ु हारा पड़ोसी अपने कदि थाि ले, और अपनी
तलवार वावपस म्यान िें रख ले और अपने आप से कहे ” यदद ये वस्तए
ु ीं इस योग्य होतीीं कक इनके
मलए यद्
ु ि ककया जाये, तो िेरा पड़ोसी इन्हे कूड़े के ढे र पर न िेंक दे ता ।”
यदद तम्
ु हारा पड़ोसी अपना पागलपन न छोड़े और उस कूड़े के ढे र को उठाकर ले जाये, तो ऐसे
घखृ णत बोि से अपनी िल्ु क्त पर ख़श
ु ी िनाओ, लेककन अपने पडोसी के दभ
ु ााग्य पर, अ़िसोस करो ।
सुलतान ; िेरे िान का, िेरी इज्जत का क्या होगा जो िेरी सारी सींम्पवि से कहीीं अचिक िक
ू य वान
है ?
िीरदाद ; िनष्ु य का िान केवल िनष्ु य बने रहने िें है —- िनष्ु य जो कक प्रभु का जीता-जागता
प्रततबबम्ब और प्रततरूप है । बाकी सब िान तो अपिान ही हैं । िनष्ु यों द्वारा प्रदान ककये गए
सम्िान िनुष्य आसानी से छीन लेते हैं । तलवार से मलखे गए िान को तलवार आसानी से मिटा दे ती
है ।
कोई भी िान इस लायक नहीीं कक उसके मलए जींग लगा तीर भी िलाया जाये, तप्त आींसू बहाना या
रक्त की एक भी बींद
ू चगराना तो दरू रहा ।
सुलतान ; और स्वतींत्रता, िेरी और िेरी प्रजा कक स्वतन्त्रता, क्या बड़े से बड़े
बमलदान के लायक नहीीं ?
िीरदाद ; सच्िी स्वतींत्रता तो इस लायक है कक उसके मलए अपने अहि ् की बमल दे दी जाये ।
तम्
ु हारे पडोसी के हचथयार उस स्वतींत्रता को छीन नहीीं सकते ; तुम्हारे अपने हचथयार उसे प्राप्त नहीीं
कर सकते, उसकी रक्षा नहीीं कर सकते । और यद्
ु ि का िैदान तो सच्िी स्वतन्त्रता के मलए एक कब्र
है । सच्िी स्वतींत्रता ह्रदय िें ही पाई और खोई जाती है ।
क्या यद्
ु ि िाहते हो तुि ? तो अपने ह्रदय िें अपने ही ह्रदय से यद्
ु ि करो । दरू करो अपने ह्रदय से
हर आशा को,हर भय और खोखली कािना को जो तम् ु हारे सींसार को एक घट
ु न-भरा बाड़ा बनाये हुए
हैं, और तुि इसे ब्रह्िाण्ड से भी अचिक ववशाल पाओगे ।
इस ब्रह्िाण्ड िें तुि स्वेच्छा से वविरण करोगे, और कोई भी वस्तु बािा नहीीं बनेगी तम्
ु हारे िागा िें
। केवल यही एक यद्
ु ि है जो छे ड़ने योग्य है । जट
ु जाओ इस युद्ि िें और तब तम्
ु हे अन्य ककसी
यद्
ु ि के मलए सिय ही नहीीं मिलेगा ।
और तब युद्ि तम्
ु हे घखृ णत तथा आसुरी दााँव-पेंि प्रतीत होने लगें गे ल्जनका काि होगा तम्
ु हारे िन को
भटकाना और तम्
ु हारी शल्क्त को सोखना, और इस प्रकार अपने आपके ववरुद्ि तम्
ु हारे िहायद्
ु ि िें
जो वास्तव िें ििा यद्
ु ि है, तम्
ु हारी पराजय का कारण बनना ।
इस यद्
ु ि को जीतने का अथा है अनींत जीवन को पाना, ककन्तु अन्य ककसी भी यद्
ु ि िें ववजय पूणा
पराजय से भी बरु ी होती है । और िनष्ु य के हर यद्
ु ि का भयानक पक्ष यही है कक ववजेता और
पराल्जत दोनों के पकले पराजय ही पड़ती है । क्या शाल्न्त िाहते हो तुि ?
तो ित खोजो उसे दस्तावेजों के शब्द जाल िें; और ित प्रयत्न करो उसे िट्टानों पर अींककत करने
िें ।क्योंकक जो लेखनी इतनी आसानी से शाींतत मलख सकती है, वह उतनी ही आसानी से यद्
ु ि भी
मलख सकती है ;
और जी छे नी ” आओ शाींतत स्थावपत करें ।” खोदती है, वह उतनी ही आसानी से ”आओ यद्
ु ि करें ”
भी खोद सकती है ।
और इसके अततिरक्त, कागज़ और िट्टान, लेखनी और छे नी जकदी ही कीड़े ,जलन,जींग और
प्रकृतत के पिरवतान लाने वाले तत्वों का मशकार हो जाते हैं । ककन्तु िनुष्य के काल-िुक्त ह्रदय की
बात अलग है वह तो ददव्य ज्ञान के बैठने का मसींहासन है ।
जब एक बार ददव्य ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, तो यद्
ु ि तुरींत जीत मलया जाता है और ह्रदय िें
स्थायी शाींतत स्थावपत हो जाती है । अज्ञानी ह्रदय द्वैतपण
ू ा होता है । द्वैतपूणा ह्रदय का पिरणाि होता
है ववभाल्जत सींसार, और ववभाल्जत सींसार जन्ि दे ता है तनरीं तर सींघषा और यद्
ु ि को । ज्ञानवान ह्रदय
एकतापूणा होता है ।
एकतापूणा ह्रदय का पिरणाि होता है एक सींसार, और एक सींसार शाींततपूणा सींसार होता है, जबकक
लड़ने के मलए दो की जरुरत होती है । इसमलए िैं तुम्हे सलाह दे ता हूाँ कक अपने ह्रदय को एकतापूणा
बनाने के मलए उसी के ववरुद्ि यद्
ु ि करो ववजय का पुरस्कार होगा स्थायी शाींतत ।
हे सल
ु तान, जब ति
ु हर मशला िें मसींहासन दे ख सकोगे, और हर गि
ु ा िें दग
ु ा पा सकोगे, तब सय
ू ा
तम्
ु हारा मसींहासन और तारा िींडल तम्
ु हारे दग
ु ा बनकर बहुत प्रसन्न होंगे । जब तुि अपने ह्रदय पर
शासन कर सकोगे, तब तम् ु हे इससे क्या िका पडेगा कक तम्ु हारे शरीर पर ककसका शासन है,?
जब सारा ब्रह्िाण्ड तम्
ु हारा होगा, तो इससे क्या िका पड़ेगा कक िरती के ककसी
टुकड़े पर ककसका प्रभत्ु व है ?
सल
ु तान ; आपके शब्द कािी लभ
ु ावने हैं किर भी िि
ु े लगता है कक यद्
ु ि प्रकृतत का तनयि है ।
क्या सिुद्र की िछमलयाीं भी तनरीं तर लड़ती नहीीं रहतीीं ? क्या दब
ु ल
ा बलवान का मशकार नहीीं होता ?
पर िैं ककसी का मशकार नहीीं बनना िाहता ।
िीरदाद ; जो तम्
ु हे युद्ि प्रतीत होता है वह अपना पेट भरने और अपना ववस्तार करने का प्रकृतत का
केवल एक ढीं ग है । बलवान को उसी प्रकार दब
ु ल
ा का आहार बनाया गया है ल्जस प्रकार दब
ु ल
ा को
बलवान के मलए । और किर प्रकृतत िें कौन बलवान है और कौन दब
ु ल
ा ? केबल प्रकृतत ही बलवान
है ; अन्य सभी तो तनबाल जीव हैं जो प्रकृतत की इक्षा का पालन करते है और िुप िाप ित्ृ यु की िारा
िें बहे िले जाते हैं ।
केवल ित्ृ यु से िक्
ु त जीवों को बलवान का दजाा ददया जा सकता है । और िनष्ु य, ऐ सल
ु तान,ित्ृ य-ु
िुक्त है । हााँ, प्रकृतत से अचिक शल्क्तशाली है िनुष्य । वह केवल इसमलए सिद्र
ु प्रकृतत का शोषण
करता है कक अपने अभावों की पूतता कर सके ।
वह केवल इसमलए सींतान के िाध्यि से अपना ववस्तार करता है कक अपने आपको ऐसे ववस्तार से
ऊपर उठा सके । जो िनुष्य पशु की स्वच्छ िूल-प्रवतृ तयों का उकलेख कर के अपनी दवू षत कािनाओीं
को उचित मसद्ि करना िाहते हैं, उन्हें अपने आपको जींगली सअ
ू र, या भेड़ड़ये, या गीदड़ या और
कुछ भी कह लेने दो, परन्तु उन्हें िनुष्य के श्रेष्ठ नाि को दवू षत ित करने दो । िीरदाद पर
ववश्वास करो सुलतान,
और शाींतत प्राप्त करो ।
सुलतान ; िुखखया ने िुिे बताया कक िीरदाद जाद ू टोने के रहस्यों का अच्छा ज्ञाता है , और िैं
िाहता हूाँ कक वह अपनी कुछ शल्क्तयों का प्रदशान करे ताकक िैं उन पर ववश्वास कर सकूाँ ।
िीरदाद ; यदद िनुष्य के अींदर प्रभु प्रकट करना जाद ू है तो िीरदाद जादग
ू र है । क्या तुि िेरे जाद ू
का कोई प्रिाण और कोई प्रदशान िाहते हो ?तो दे खो िैं ही प्रिाण और प्रदशान हूाँ । अब जाओ ल्जस
काि के मलए आये हो वह करो ।
सुलतान ; ठीक अनुिान लगाया है तुिने कक िुिे तम्
ु हारी सनकी बातों से कान बहलाने के अलावा
और भी काि हैं । क्योंकक बेसार का सुलतान एक दस
ू री तरह का जादग
ू र है ; और अपने कौशल का
वह अभी प्रदशान करे गा । मसपादहयो, अपनी जींजीरें लाओ और इस प्रभु- िनुष्य या िनुष्य – प्रभु के
हाथ पैर बााँि दो ।
आओ , ददखा दें इसे तथा यहााँ उपल्स्थत व्यल्क्तयों को कक हिारा जाद ू कैसा है ?
नरौंदा ; मसपाही दहींसक पशओ
ु ीं की तरह िुमशाद पे िपटे और उनके हाथों और पैरों को जींजीरों से
बाींिने लगे । क्षण भर के मलए सातों साथी स्तब्ि बैठे रहे ; उनकी सिि िें नहीीं आ रहा था कक
उनके सािने जो हो रहा है उसे िजाक सििें या गम्भीर घटना ।
मिकेयन और जािोरा ने उस अवप्रय ल्स्थतत की गम्भीरता को पहले से ही सिि मलया । दो क्रोचित
मसींहों की तरह वे मसपादहयों पर टूट पड़े ; और यदद िमु शाद की रोकती और िैया बींिाती आवाज उन्हें
सुनाई न दे ती तो उन्होंने मसपादहयों को पछाड़ ददया होता ।
िीरदाद ; इन्हे अपने कौशल का प्रयोग कर लेने दो, उतावले मिकेयन । इन्हे अपनी इच्छा पूरी कर
लेने दो, भले जािोरा । काले खड्ड से भयानक नहीीं हैं इनकी जींजीरें िीरदाद के मलए ।
शिदाि को अपनी सिा पर बेसार के सल
ु तान की सिा का पैबद
ीं लगाने की खमु शयाीं िना लेने दो ।
यह पैबद
ीं ही इन दोनों को िीर डालेगा ।
सुलतान ;- ऐसा ही व्यवहार ककया जाएगा हर उस दष्ु ट और पाखण्डी के साथ जो वैि अचिकार और
सिा का ववरोि करने का दिःु साहस करे गा ।
िीरदाद को सुलतान के मसपाही बाहर ले गए, और सुलतान तथा शिदाि ख़श
ु ी से अकड़ते हुए पीछे
पीछे िल ददए ।
अध्याय 29
िीरदाद कोई िित्कार करने नहीीं आया
ददव्य ज्ञान अपने आप िें ही िित्कार है .

*************************************
शिदाि साचथयों को िनाकर अपने साथमिलाने का असिल यत्न करता है िीरदाद िित्कारपण
ू ा ढीं ग
से लौटता है और शिदाि के अततिरक्त सभी साचथयों को ववश्वास का िम्
ु बन प्रदान करता है
नरौंदा ; जाड़े ने हिें आ दबोिा था, बहुत सख्त, बिीले, काँपा दे ने वाले जाड़े ने । सातों साथी
कभी आशा तो कभी सींदेह की लहरों के थपेड़े खा रहे थे ।
मिकेयन, मिकास्तर, जािोरा इस आशा का दािन थािे हुए थे कक िमु शाद अपने विन के अनुसार
लौट आयेंगे । बेनन
ू , दहम्बल तथा अबबिार िमु शाद के लौटने के बारे िें सींदेह को पकडे बैठे थे ।
लेककन सब एक भयानक खालीपन तथा वेदनापूणा तनरथाकता का अनुभव कर रहे थे । नौका शीत-ग्रस्त
थी तनष्ठुर और स्नेह हीन । उसकी दीवारों पर एक विीली खािोशी छाई हुई थी,
यदयवप शिदाि उसिे जीवन तथा उत्साह का सींिार करने का भरपूर प्रयास कर रहा था । क्योंकक
जब िीरदाद को ले जाया गया तब से शिदाि दया के द्वारा हिें वश िें करने की कोमशश कर रहा
था ।
पर उसकी नम्रता और स्नेह ने हिें उससे और अचिक दरू कर ददया ।
शिदाि ; िेरे साचथयो, यदद तुि सििते हो कक िैं िीरदाद से घण ृ ा करता हूाँ तो ति
ु िेरे साथ
अन्याय कर रहे हो । िुिे तो सच्िे ददल से उसपर दया आती है । िीरदाद एक बरु ा व्यल्क्त भले ही
न हो लेककन वह एक खतरनाक आदशावादी है,
और ल्जस मसद्िान्त का वह इस ठोस वास्तववकता और व्यावहािरकता के जगत िें प्रिार कर रहा,
वह सवाथा अव्यावहािरक और िूठा है । गत कई वषों िें नौका का प्रबन्ि कौन िुिसे अचिक
लाभदायक ढीं ग से िला सकता था ?
ल्जसका हि इतने सिय से तनिााण करते आ रहे हैं वह सब एक अजनबी के हाथों क्यों नष्ट करने
ददया जाए । और जहाीं ववश्वास का प्रभत्ु व था वहााँ उसे अववश्वास का, तथा जहााँ शाींती का राज्य था
वहााँ उसे कलह का बीज क्यों बोने ददया जाए ?
वह हवा िें, अपार शून्य िें एक नौका जट
ु ाने का वादा करता है .एक पागल का सपना, एक
बिकानी ककपना, एक ििरु असींभावना ।
क्या वह िााँ नौका के सींस्थापक वपता नूह से भी अचिक सििदार है ? उसकी बे-सर पैर की बातों पर
वविार करने के मलए तुिसे कहते हुए
िुिे बहुत दिःु ख हो रहा है ।
िीरदाद के ववरुद्ि अपने मित्र बेसार के सुलतान से उसकी सशक्त भुजाओीं की सहायता िाींगकर िैंने
नौका तथा उसकी पववत्र परम्पराओीं के प्रतत अपराि भले ही ककया हो, ककन्तु िैं तम्
ु हारी भलाई
िाहता था ।
ककन्तु अब, िेरे साचथयो, िैं अपने आपको हजरत नूह के प्रभु तथा उनकी नौका की, और तम्
ु हारी
सेवा िें सिवपात करता हूाँ । पहले की तरह प्रसन्न रहो ताकक तम्
ु हारी प्रसन्नता से िेरी प्रसन्नता पूणा
हो जाए ।
नरौंदा ; यह कहते-कहते शिदाि रो पड़ा । बहुत दयनीय थे उसके आींसू क्योंकक आींसू बहाने वाला वह
अकेला था ; उसके आींसओु ीं को हिारे ह्रदय और आाँखों िें कोई साथी नहीीं मिल रहा था । एक ददन
प्रातिःकाल, जब िींि
ु ले िौसि की लम्बी घेराबन्दी के बाद सय
ू ा ने पहाड़ड़यों पर अपनी ककरणें बबखेरीीं,
ज़िोरा ने अपना रबाब उठाया और गाने लगा अब जि गया है गाना शीतहत होठों परिेरे रबाब के ।
तघर गया बिा िें सपना बिा से तघरे ह्रदय िें िेरे रबाब के । है श्वाींस कहााँ वह तेरे गाने को जो दे
वपघला ऐ रबाब िेरे ? हैं हाथ कहााँ वह तेरे सपने को जो छुड़वा दें , ऐ रबाब िेरे ? बेसार के
तहखाने िें । आओ, ऐ मभखािरन वायु , िाींग लो िेरी खाततरइक गाना जींजीरों से बेसार के तहखाने
की ।
जाओ , ऐ ितुर रवव ककरणो, िुरा लाओ िेरी खाततरएक सपना जींजीरों सेबेसार के तहखाने की ।
पींख गरुड़ का िेरेछाया था परु े नभ पर,उसके नीिे िैं राजा । अब हूाँ अनाथ इक केवल और पिरत्यक्त
इक बालक, है नभ पर राज उलूक का,क्योंकक उड़ गया गरुड़ है बहुत दरू एक नीड़ को …….बेसार के
तहखाने को ।
नरौंदा ; ज़िोरा के हाथ मशचथल हो गये, सर रबाब पर िक
ु गया और उसकी आाँखों से आींसू टपक
पड़ा । उस आींसू ने हिारी दबी हुई वेदना के बााँि को तोड़ ददया और हिारी आाँखों से आींसुओीं की िारा
बह िली।
मिकेयन सहसा उठकर खड़ा हो गया,
और ऊाँिे स्वर िें यह कहते हुए
कक िेरा दि घुट रहा है । वह तेजी से बाहर खल
ु ी हवा िें िला गया । जािोरा मिकास्तर और िैं
उसके पीछे -पीछे िार ददवारी के द्वार तक पहुाँि गए ल्जससे आगे बढ़ने का साहस करने की
अनि
ु तत साचथयों की नहीीं थी.
मिकेयन ने एक जोरदार िटके के साथ भारी अगाला को खीींि मलया, िक्का दे कर द्वार खोल ददया
और वपींजरे से भागे बाघ की तरह बाहर तनकल गया अन्य तीनो भी मिकेयन के साथ-साथ बाहर िले
आये ।
सूया की सुहावनी गिी और ििक थी, और उसकी ककरणे जिी हुई बिा से टकराते हुए िुड़कर अपनी
ििक से हिारी आाँखों को िकािोंि कर रहीीं थी, जहााँ तक दृष्टी पहुाँिती बिा से ढकी ऊाँिी-नीिी
वक्ष
ृ -रदहत पहाड़ड़यााँ हिारे सािने िैली हुई थीीं लगता था िानो सब कुछ प्रकाश के ववलक्षण रीं गों से
प्रदीप्त है िारों ओऱ गहरी ख़ािोशी छाई हुई थी जो कानो िें िुभ रही थी, केवल हिारे पैरों के नीिे
िरिरा रही बिा उस ख़ािोशी के जाद ू को तोड़ रही थी ।
हवा यदयवप शरीर को वेि रही थी , किर भी हिारे िेिड़ों को इस तरह दल
ु ार रही थी कक हिें लग
रहा था हि अपनी ओऱ से कोई यत्न ककये बबना ही उड़े जा रहे हैं । और तो और, मिकेयन की
िनोदशा भी बदल गई । वह रूककर ऊाँिी आवाज िें बोला, ” ककतना अच्छा लगता है सााँस ले
सकना ।
आह, केवल साींस ले सकना ।
और सििुि ऐसा लगा कक हिने पहली बार स्वतन्त्रता से साींस लेने का आनींद पाया है और साींस के
अथा को जाना है ।हि थोड़ी दरू िले ही थे कक मिकास्तर को दरू ऊाँिे टीले पर एक काली छाया सी
ददखाई दी । हििें से कुछ ने सोिा याक कोई अकेला भेड़ड़या है ; कुछ को लगा वह एक िट्टान है ।
पर वह छाया हिारी ओर आती लग रही थी ; हिने उसकी ददशा िें िलने का तनश्िय ककया ।
वह हिारे तनकट और तनकट आती गई और िीरे -िीरे उसने एक िानवीय आकार िारण कर मलया ।
अिानक मिकेयन ने आगे की ओर छलााँग लगाते हुए जोर से कहा अरे ” ये तो वही हैं ! ये तो वही हैं
!और वे थे भी वही — उन्ही की िनिोहक िाल, उन्ही की गौरवशाली िुद्रा, उन्ही का गिरिािय
उन्नत िस्तक । परन्तु उनके काले, स्वप्न दशी, सदा की तरह ज्योततिाय नेत्रों से गम्भीर शाींतत
और ववजयी प्रेि की लहरें प्रभाववत हो रहीीं थीीं ।
मिकेयन सबसे पहले उनके पास पहुींिा । मससकते तथा हाँसते हुए उनके िरणो िें चगर गया और
बेसुिी- की-सी दशा िें बड़बड़ाया ” िेरी आत्िा िुिे वावपस मिल गई ।”एक एक सभी उनके िरणों िें
चगर पड़े । िुमशाद ने एक एक करके उठाया असीि प्यार से हर एक को गले लगाया और कहा
;िीरदाद ; ववश्वास का िम्
ु बन ग्रहण करो । अब से ति
ु ववश्वास िें सोओगे और ववश्वास िें जागोगे
; सींदेह तम्
ु हारे तककये िें बसेरा नहीीं करे गा,
और न ही तम्
ु हारे कदिो को अतनश्िय के द्वारा जकड़ेगा । शिदाि शन्
ू य दल्ॄ ष्ट से दे खता रहा । वह
सर से पैर तक कााँप रहा था उसका िेहरा िद
ु े जैसा पीला पद गया था । अिानक वह अपने आसन से
सरका और हाथो तथा पैरों के बल रें गते हुए वहााँ जा पहुाँिा जहााँ िमु शाद खड़े थे ।
उसने िमु शाद के पैरों को अपनी बाहों िें ले मलया और जिीन की तरि िुींह ककये हुए व्याकुलता के
साथ कहा ” िुिे भी ववश्वास है ।” िमु शाद ने उसे भी उठाया, लेककन उसे िूिे बबना कहा ;िीरदाद ;
यह भय है जो शिदाि के भारी- भरकि शरीर को काँपा रहा है और उससे कहलवा रहा है ” िुिे भी
ववश्वास है । शिदाि उस जाद ू के सािने कााँप रहा है और मसर िक
ु ा रहा है ल्जसने िीरदाद को काले
– खड्ड तथा बेसार की कालकोठरी से बाहर तनकाल ददया ।
और शिदाि को डर है कक उससे बदला मलया जाएगा । इस बारे िें उसे तनल्श्िन्त रहना िादहए और
अपने ह्रदय को ववश्वास की ददशा िें िोड़ना िादहए । वह ववश्वास जो भय की लहरों पर उठता है,
भय का िाग िात्र होता है ; वह भय के साथ उठता है और उसी के साथ बैठ जाता है । सच्िा
ववश्वास प्रेि की टहनी पर ही खखलता है, और कहीीं नहीीं । उसका िल होता है ददव्य ज्ञान ।
अगर तम् ु हे प्रभु से डर लगता है तो प्रभु पर ववश्वास ित करो । ….शिदाि ; ( पीछे हटते हुए आाँखें
तनरीं तर िशा पे गड़ाये हुए ) अपने ही घर िें अनाथ और बदहष्कृत है शिदाि कि से कि एक ददन
के मलए तो िुिे आपका सेवक बनने और आपके मलए कुछ भोजन तथा कुछ गिा कपडे लाने की
अनुितत दें , क्योंकक आपको बहुत भूख लगी होगी और ठण्ड सता रही होगी ।
िीरदाद ; िेरे पास वह भोजन है ल्जससे रसोई घर अनजान है : और वह गिााहट है जो ऊन के िागों
या आग की लपटों से उिार नहीीं ली जा सकती । काश, शिदाि ने अपने भण्डार िें वह भोजन और
गिााहट अचिक तथा अन्य खाद्य- सािग्री और ईंिन कि रखे होते । दे खो, सिुद्र पवात-मशखरों पर
शीतकाल बबताने आया है ।
मशखर जिे हुए सिद्रु को कोट के सिान पहनकर प्रसन्न हो रहे हैं, और अपने कोट िें गिााहट
िहसूस कर रहे हैं । प्रसन्न है सिद्र
ु भी कुछ सिय के मलए मशखरों पर इतना शाींत, इतना िींत्रिुग्ि
हो लेटने िें, लेककन कुछ सिय के मलए ही ।
क्योंकक बसींत अवश्य आयेगा, और सिुद्र शीतकाल िें तनल्ष्क्रय पड़े सपा की तरह अपनी कुण्डली
खोलेगा तथा अस्थाई तौर पर चगरवी रखी अपनी स्वतन्त्रता वापस ले लेगा एक बार किर वह एक तट
से दस
ू रे तट की ओर लहरायेगा ; एक बार किर वह हवा पर सवार होकर आकाश की सैर करे गा,
और जहााँ िाहे गा िुहार के रूप िें अपने आपको बबखेर दे गा ।
ककन्तु ति
ु जैसे लोग भी हैं ल्जनका जीवन एक अन्तहीन शीतकाल और गहरी दीघा- तनद्रा है । ये वे
लोग हैं ल्जन्हे अभी तक बसींत के आगिन का सींकेत नहीीं मिला । दे खो, िीरदाद वह सींकेत है ।
जीवन का सींकेत है िीरदाद, ित्ृ यु का सन्दे श नहीीं तुि और कब तक गहरी नीींद सोते रहोगे ?
ववश्वास करो शिदाि जो ल्जींदगी लोग जीते हैं और जो िौत वे िरते हैं दोनों ही दीघा – तनद्रा हैं ।
और िैं लोगों को उनकी नीींद से जगाने और उनकी गि
ु ाओीं और बबलों से तनकालकर उन्हें अिर जीवन
की स्वतींत्रता िें ले जाने के मलए आया हूाँ । िि
ु पर ववश्वास करो िेरी खाततर नहीीं, तम्
ु हारी अपनी
खाततर ।
िीरदाद ; बेसार का बींदीगह
ृ अब बींदीगह
ृ नहीीं रहा, एक पूजा- स्थल बन गया है । बेसार का सुलतान
भी अब सल
ु तान नहीीं रहा । आज वह तम्
ु हारी तरह सत्य का खोजी यात्री है । ककसी अाँिेरी कालकोठरी
को एक उज्जवल प्रकाश – स्तम्भ िें बदला
जा सकता है, बेनन
ू ।
ककसी अमभिानी सल
ु तान को भी सत्य के िक
ु ु ट के सािने अपना िक
ु ु ट त्यागने के मलए प्रेिरत ककया
जा सकता है ।
और क्रुद्ि जींजीरों से भी ददव्य
सींगीत उत्पन्न ककया जा सकता है
ददव्य ज्ञान के मलए
कोई काि िित्कार नहीीं है ।
िित्कार तो स्वयीं ददव्य ज्ञान है ।
अध्याय 30
िुमशाद आप के सभी
सपनों को जानता है
——————————
☞तनज घर के मलए िहाववरह ☜
************************************
िुमशाद मिकेयन का स्वप्न सन
ु ाते हैं
नरौंदा ; िुमशाद के बेसार से लौटने से पहले और इसके बाद कािी सिय तक हिने मिकेयन को एक
िुसीबत िें पड़े व्यल्क्त कक तरह आिरण करते दे खा । अचिकतर वह अलग रहता, न कुछ बोलता,
न खता और कि ही अपनी कोठरी से बाहर तनकलता । एक ददन जब मिकेयन तथा बाक़ी साथी
अाँगीठी के िारों ओर बैठे आग ताप रहे थे, िुमशाद ने ” तनज घर के मलए िहाववरह ” के ववषय िें
प्रविन आरम्भ ककया ।
िीरदाद ; एक बार ककसी ने एक सपना दे खा, और वह सपना यह था ; उसने अपने आपको एक
िौड़ी, गहरी खािोशी से बहती नदी के हरे -भरे तट पर खड़े दे खा । तट हर आयु के और हर बोली
बोलनेबाले स्त्री-पुरुष और बच्िों के ववशाल सिूह से भरा हुआ था । सबके पास अलग-अलग नाप तथा
रीं ग के पदहये थे ल्जन्हे वे तट पर ऊपर और नीिे की ओर ठे ल रहे थे ।
ये जन-सिहू शोख रीं ग के वस्त्र पहने हुए थे और िौज िनाने तथा खाने – पीने के मलए तनकले थे ।
उनके कोलाहल से वातावरण गूींज रहा था । अशाींत सागर की लहरों की तरह वे ऊपर-नीिे, आगे-पीछे
आ-जा रहे थे । वही एक ऐसा व्यल्क्त था जो दावत के मलए सजा- साँवरा नहीीं था, क्योंकक उसे ककसी
दावत की जानकारी नहीीं थी ।
और केवल उसी के पास ठे लने के मलए कोई पदहया नहीीं था । उसने बड़े ध्यान से सन
ु ने का यत्न
ककया, पर उस उस बहुभाषी भीड़ से वह एक भी ऐसा शब्द नहीीं सन
ु पाया जो उसकी अपनी बोली से
मिलता हो, उसने बड़े ध्यान से दे खने का यत्न ककया,।
पर उसकी दल्ॄ ष्ट एक भी ऐसे िेहरे पर नहीीं अटकी जो उसका जाना पहिाना हो । इसके अततिरक्त
भीड़ जो उसके िारों ओर उिड़ रही थी उसकी ओर अथा – भरी नजरें डाल रही थी िानो कह रही हों,
” यह ववचित्र व्यल्क्त कौन है ?”
किर अिानक उसकी सिि िें आया यह दावत उसके मलए नहीीं है ; और तब उसके िन िें एक टीस
उठी । …….शीघ्र ही उसे तट के ऊपरी मसरे से आती हुई एक ऊाँिी गरज सन ु ाई दी, और उसी क्षण
उसने दे खा वे असींख्य लोग दो पींल्क्तयों िें बाँटते हुए घट
ु नो के बल िक
ु गए, उन्होंने अपने हाथों से
अपनी आाँखें बींद कर लीीं और अपने सर िरती पर िक
ु ा ददये ;
और उन पींल्क्तयों के बीि तट की पूरी लम्बाई तक एक खली, सीिा और तींग रास्ता बन गया और
वह अकेला ही रास्ते के बीि खड़ा रह गया ।
वह सिि नहीीं पा रहा था कक वह क्या करे और ककस ओर िुड़े । जब उसने उस ओर दे खा ल्जिर से
गरज कक आवाज आ रही थी तो उसे एक बहुत बड़ा सााँड़ ददखाई ददया जो िींह ु से आग की लपटें और
नथन
ु ों से िुींएाँ के अम्बार, और जो उस िागा पर बबजली की गतत से बेतहाशा दौड़ता हुआ आ रहा था

भयभीत होकर उसने उस क्रोिोन्ििपअस की ओर दे खा तथा दाईं या बाईं तरि भागकर बिना िाहा,
पर बिाव का कोई रास्ता ददखाई नहीीं ददया । उसे लगा वह जिीन िें गाड़ गया और अब ित्ृ यु
तनल्श्ित है ।
ज्यों ही सााँड़ उसके इतना नजदीक पहुींिा कक उसे िल
ु साती लौं और िुआाँ िहसूस हुआ, उसे ककसी ने
हवा िें उठा मलया । उसके नीिे खड़ा सााँड़ ऊपर की ओर आग और िुींआीं छोड़ रहा था ; ककन्तु वह
ऊाँिा और ऊाँिा उठता गया, और यद्यवप आग और िआ
ुीं ीं उसे अब भी िहसूस हो रहे थे तो भी उसे
कुछ ववश्वाश हो गया था कक अब सााँड़ उसका कुछ नहीीं बबगाड़ सकता ।
उसने नदी को पार करना शरू
ु कर ददया। नीिे हरे -भरे तट पर उसने दृष्टी डाली तो दे खा कक जन
सिुदाय अब भी पहले की तरह घट ु नोके बल िकु ा हुआ है , और सााँड़ अब उस पर आग और िए ु ाँ के
बजाय तीर छोड़ रहा है । अपने नीिे से होकर तनकलने रहे तीरों की सरसराहट उसे सन
ु ाई दे रही थी
; उसिे से कुछ उसके कपड़ों िें िाँस गए, पर उसके शरीर को एक भी न छू सका ।
आखखर सााँड़, भीड़, नदी आाँखों से ओिल हो गए ; और वह व्यल्क्त उड़ता िला गया । उड़ते उड़ते
वह एक सन
ु सान, िप
ू से िल
ु से भ-ू खण्ड पर से गज
ु रा ल्जस पर जीवन का कोई चिन्ह न था । अींत
िें वह एक ऊाँिे, बीहड़ पवात की उजाड़ तलहटी िें उतरा जहााँ घाींस की एक पवि तो क्या, एक
तछपकली, एक िीींटी तक न थी । उसे लगा कक पवात के ऊपर से होकर जाने के मसवाय उसके मलए
कोई िारा नहीीं है ।
बड़ी दे र तक वह ऊपर िढ़ने का कोई सरु क्षक्षत िागा ढूाँढता रहा, ककन्तु उसे एक पगडण्डी ही मिली जो
िुल्श्कल से ददखाई दे ती थी , और ल्जस परमसिा बकिरयाीं ही िल सकती थीीं । उसने उसी राह पर
िलना तनश्िय ककया ।वह अभी कुछ सौ िुट ही ऊपर िढ़ा होगा कक उसे अपनी बाईं ओर तनकट ही
एक िौड़ा और सितल िागा ददखाई ददया ।
वह रुका और अपनी पगडन्डी को छोड़ने बल ही था कक वह िागा एक िानवीय प्रवाह बन गया
ल्जसका आिा भाग बड़े श्रि से ऊपर िढ़ रहा था, और दस
ू रा आिा भाग अींिािि
ींु बड़ी तेजी के साथ
पहाड़ से नीिे आरहा था । अनचगनत स्त्री परु
ु ष सींघषा करते हुए ऊपर िढ़ते, और किर कलाबाजी
खाते हुए नीिे लुढक जाते थे, और जब बे नीिे लढ़ ु कते थे तो ऐसी िीख -पक
ु ार करते थे कक ददल
दहल जाता था ।
वह व्यल्क्त थीींदी दे र यह अद्भत
ु दृष्य दे खता रहा और िन ही िन इस नतीजे पर पहुींिा कक पहाड़ के
ऊपर कहीीं एक बहुत बड़ा पागलखाना है, और नीिे लड़ ु कने वाले लोग उनिे से तनकल भागने वाले
पागलों िें से कुछ हैं । कभी चगरते तो कभी सींभलते हुए वह अपनी घुिावदार पगडण्डी पर िलता
रहा, लेककन िक्कर काटते हुए वह तनरीं तर ऊपर की ओर बढ़ता गया |
थके, बोखिल पैरों से िागा पर रक्त-चिन्ह छोड़ते हुए वह आगे बढ़ता गया । कदठन जी-तोड़ पिरश्रि
के बाद वह एक ऐसी जगह पहुाँिा जहााँ मिटटी नरि और पत्थरों से रदहत थी । उसकी ख़श ु ी का
दठकाना न रहा जब उसे िारों ओर घाींस के कोिल अींकुर ददखाई ददए ; घाींस इतनी नरि थी और
मिटटी इतनी िखिली और हवा इतनी सुगींििय और शाल्न्त दायक कक उसे वैसा ही अनुभव हुआ
जैसा अपनी शल्क्त के अींतति अींश को खो दे ने वाले ककसी व्यल्क्त को होता है ।
अतएव उसने हाथ-पैर ढीले छोड़ ददए उसे नीींद आगई । ककसी हाथ के स्पशा और एक आवाज ने उसे
जगाया, ”उठो ! मशखर सािने है और बसींत मशखर पर तम्
ु हारी प्रतीक्षा कर रहा है ।” वह हाथ और
वह स्वर था स्वगा की अप्सरा-सी एक अत्यींत रूपवती कन्या का जो अत्यींत उज्जवल स़िेद वस्त्र पहने
थी ।
उस कन्या ने कोिलता-पव
ू क
ा उस व्यल्क्त का हाथ अपने हाथ िें मलया और एक नै स्िूतता तथा उत्साह
के साथ वह उठ खड़ा हुआ उसे सििुि मशखर ददखाई ददया । उसे सििुि बसींत की सुगन्ि आई ।
ककन्तु जैसे ही उसने पहला डग भरने को पैर उठाया, वह जाग पड़ा और उसका सपना टूट गया ।
ऐसे सपने से जागकर मिकेयन यदद दे खे कक वह िार सािारण दीवारों से तघरे एक सािारण-से बबस्तर
पर पड़ा हुआ है, परन्तु उसकी पलकों की ओट िें उस कन्या की छवव जगिगा रही हो और उस
मशखर की सग ु ींिपण
ू ा काींटी उसके ह्रदय िें ताजी हो,
तो वह क्या करे गा ?
मिकेयन ; (िानो उसे सहसा गहरी िोट लगी हो ) पर वह सपना दे खने वाला तो िैं हूाँ िेरा ही वह
सपना । िैंने ही दे खा है उस कन्या और मशखर की िलक ।
आज तक वह सपना िुिे रह रह कर सताता है और िि
ु े ज़रा भी िैन नहीीं लेने दे ता । उसने तो िुिे
िेरे मलए ही अजनबी बना ददया है ।
उसी के कारण मिकेयन मिकेयन को नहीीं पहिानता । आह ! उस मशखर की स्वतींत्रता ! आह, उस
कन्या का सौंदया ! ककतना तच्
ु छ है और सब उनकी तुलना िें । िेरी अपनी आत्िा उनकी खाततर िुिे
छोड़ गई थी । ल्जस ददन िैंने आपको बेसार से आते दे खा उसी ददन िेरी आत्िा िेरे पास लौटी और
िैंने अपने आपको शाींत तथा सबल पाया ।
पर यह एहसास अब िि
ु े छोड़ गया है, और अनदे खे तार िुिे एक बार किर िुिसे दरू खीींि रहे हैं ।
िुिे बिा लो, िेरे िहान साथी । िैं वैसे नज़ारे की एक िलक के मलए घुला जा रहा हूाँ । िीरदाद ;
तुि नहीीं जानते, तुि क्या िाींग रहे हो, मिकेयन । क्या तुि अपने िुल्क्तदाता से िुक्त होना िाहते
हो ?
मिकेयन ; िैं इस सींसार िें, जो अपने घर िें इतना सख
ु ी है, बेघर होने की इस असह्य यातना से
िुक्त होना िाहता हूाँ । िैं उस मशखर पर कन्या के
पास पहुींिना िाहता हूाँ ।
ख़श
ु ी िनाओ कक तनज घर के
मलए िहाववरह ने तम्
ु हारे ह्रदय
को जकड मलया है ।
क्योंकक वह एक अटल आश्वासन है कक तम्
ु हे अपना दे श और अपना घर आवश्य मिलेगा और ति
ु उस
मशखर पर उस कन्या के पास अवश्य पहुींिोगे
अबीिार,; कृपया हिें इस ववरह के
बारे िें और बताएीं ।
हि इसे ककन चिन्हों से पहिान सकते हैं ?
अध्याय -31
तनज– घर के मलए िहाववरह
*****************************************

िीरदाद ; िुींि के सािान है तनज-घर के


मलए िहाववरह । ल्जस प्रकार सिुद्र और
िरती से उठी िुींि सिुद्र और िरती पर
ऐसे छा जाती है कक
उन्हें कोई दे ख नहीीं सकता,
इसी प्रकार ह्रदय से उठा
िहाववरह ह्रदय पर ऐसे छा जाता है
कक उसिे और कोई भावना
प्रवेश नहीीं कर सकती ।
और जैसे िुींि स्पष्ट ददखाई दे ने वाले पदाथा को आाँखों से ओिलकरके स्वयीं एकिात्र यथाथा बन जाती
है , वैसे ही वह ववरह िन की अन्य भावनाओीं को दबाकर स्वयीं प्रिुख भावना बन जाता है ।
और यद्यवप ववरह उतना ही आकारहीन, लक्ष्यहीन तथा अींिा प्रतीत होता है ल्जतनी कक िुींि, किर
भी िुींि की तरह ही इसिें अनींत अज्ञात आकार भी होते हैं, इसकी दृष्टी स्पष्ट होती है तथा इसका
लक्ष्य सतु नल्श्ित । ज्वर के सािान है यह िहाववरह ।
जैसे शरीर िें सुलगा ज्वर शरीर के ववष को भस्ि करते हुए िीरे -िीरे उसकी प्राण-शल्क्त को क्षीण कर
दे ता है । वैसे ही अींतर की तड़प से जन्िा यह ववरह िन के िैल तथा िन िें एकबत्रत हर अनावश्यक
वविार को नष्ट करते हुए िन को तनबाल बना दे ता है ।
एक िोर के सािान है यह िहा ववरह । जैसे तछपकर अींदर घुसा िोर अपने मशकार का भार तो कुछ
हलका करता है, पर उसे बहुत दख ु ी कर जाता है, वैसे ही यह ववरह गुप्त रूप से िन के सारे बोि
तो हर लेता है, पर ऐसा करते हुए उसे बहुत उदास कर दे ता है और बोि के अभाव के बोि तले ही
दबा दे ता है ।
िौड़ा और हरा-भरा है वह ककनारा जहााँ परु ु ष और ल्स्त्रयाीं नािते, गाते, पिरश्रि करते तथा रोते हुए
अपने क्षणभींगुर ददन गाँवा दे ते हैं । ककन्तु भयानक है आग और िुआाँ उगलता वह सााँड़ जो उनके पैरों
को बााँि दे ता है, उनसे घट
ु ने दटकवा दे ता है, उनके गीतों को वापस उनके ही कींठ िें ठूाँस दे ता है
और उनकी सज ू ी हुई पलकों को उन्ही के आींसुओीं िें चिपका दे ता है ।
िौड़ी और गहरी भी है वह नदी जो उन्हें दस
ू रे ककनारे से अलग रखती है । और उसे वे न तैरकर,
और न ही िप्पू अथवा पाल से नौका को खेकर पार कर सकते हैं । उनिे से थोड़े, बहुत ही थोड़े
लोग उस पर चिींतन का पुल बााँिने का साहस करते हैं ।
ककन्तु सभी, लगभग सभी, बड़े िाव से अपने ककनारों से चिपके रहते हैं । जहााँ हर कोई अपना
सिय रूपी प्यारा पदहया ठे लता रहता है । िहाववरही के पास ठे लने के मलए कोई िनपसींद पदहया नहीीं
होता ।
तनावपूणा व्यस्तता और सियाभाव द्वारा सताये इस सींसार िें केवल उसी के पास कोई काि िींिा
नहीीं होता, उसीको जकदी नहीीं होती । पहनावे, बोलिाल, और आिार- व्यवहार िें इतनी शालीन
िनष्ु य जाती के बीि वह अपने आपको वस्त्र हीन, हकलाता हुआ और अनाड़ी पाता है ।
हाँसने वाले के साथ वह हाँस नहीीं पाता, और n ही रोने वाले के साथ वह रो पाता है । िनुष्य खाते
हैं, पीते हैं, और खाने-पीने िें आनींद लेते हैं ; पर वह स्वाद के मलए खाना नहीीं खाता, और जो
वह पीटा है वह उसके मलए नीरस ही होता है ।
औरों के जीवन साथी होते हैं, या वे जीवन साथी खोजने िें व्यस्त हैं ; पर वह अकेला िलता है,
अकेला सोता है अकेला ही अपने सपने दे खता है ।
लोग साींसािरक बद्
ु चि तथा सििदारी की दृष्टी से बड़े अिीर हैं ; एक वही िूढ़ और बेसिि है ।
औरों के पास सुखद स्थान हैं ल्जसे वह घर कहते हैं , एक वही बेघर है औरों के पास कोई ववशेष भू-
खण्ड हैं ल्जन्हे वे अपना दे श कहते हैं तथा ल्जनका गौरव गान वे बहुत ऊाँिे स्वर िें करते हैं ;
अकेला वही है ल्जसके पास ऐसा कोई भ-ू खींड नहीीं ल्जसका वह गौरव-गान करे और ल्जसे वह अपना
दे श कहे ।यह सब इसमलए कक उसकी आींतिरक दृष्टी दस
ू रे ककनारे की ओर है ।तनद्रािारी होता है
िहाववरही इस पूणत
ा या जागरूक ददखने वाले सींसार के बीि ।
वह एक ऐसे स्वप्न से प्रेिरत होता है ल्जसे उसके आस-पास के लोग न दे ख सकते हैं, न िहसूस कर
सकते हैं । और इसमलये वे उसका तनरादर करते हैं और दबी आवाज िें उसकी खखकली उड़ाते हैं ।
ककन्तु जब भय का दे वता– आग और िआ
ु ाँ उगलता वह सााँड़— प्रकट होता है तो उन्हें िुल िाटनी
पड़ती है, जबकी तनद्रािारी, ल्जसका वे तनरादर करते और खखकली उड़ाते थे,
ववश्वास के पींखों पर उनसे और उनके सााँड़ से ऊपर उठ जाता है, और दरू , दस
ू रे ककनारे के पार,
बीहड़ पवात की तलहटी िें पहुाँि जाता है । बींजर, और उजाड़, और सुनसान है वह भूमि ल्जस पर से
तनद्रािारी उड़ता है । ककन्तु ववश्वास के पींखों िें बल है ;
और वह व्यल्क्त उड़ता िला जाता है । उदास, और वनस्पतत हीन और अत्यींत भयानक है वह पवात
ल्जसकी तलहटी िें वह उतरता है । ककन्तु ववश्वाश का ह्रदय अजेय है ; और उस व्यल्क्त का ह्रदय
साहसपूवक
ा िड़कता िला जाता है ।
पथरीला, रपटीला और कदठनाई से ददखाई दे ने वाला है पहाड़ पर जाता उसका रास्ता । परन्तु रे शि-
सा कोिल है ववश्वास का हाथ, ल्स्थर है उसका पैर, और तेज है उसकी आाँख, और वह व्यल्क्त
िढ़ता िला जाता है ।रास्ते िें उसे सितल, िौड़े िागा से पहाड़ पर िढ़ते हुए पुरुष और ल्स्त्रयाीं
मिलते हैं ।
वे अकपववरही परु
ु ष और ल्स्त्रयाीं हैं जो िोटी पर पहुाँिने की तीव्र इच्छा तो रखते हैं, परन्तु एक लींगड़े
और दृल्ष्टहीन िागादशाक के साथ । क्योंकक उनका िागादशाक है उन वस्तुओीं िें ववश्वास ल्जन्हे आाँखें
दे ख सकती हैं, और ल्जन्हे कान सन
ु सकते हैं, और ल्जन्हे हाथ छू सकते हैं,और ल्जन्हे नाक और
ल्जव्हा सघ
ींू और िख सकते हैं । उनिे से कुछ पवात के टखनों से ऊपर नहीीं िढ़ पाते कुछ उसके
घट
ु नों तक पहुाँिते हैं कुछ कूकहे तक, और बहुत थोड़े किर तक ।
ककन्तु उस सुन्दर िोटी की िलक पाये बबना वे सब अपने िागादशाक सदहत किसलकर पवात से नीिे
लुढ़क जाते हैं ।क्या आाँखें वह सब दे ख सकती हैं जो दे खने योग्य है, और क्या कान वह सब सुन
सकते हैं जो सन
ु ने योग्य है ?
क्या हाथ वह सब छू सकता है जो छूने योग्य है, और क्या नाक वह सब सूींघ सकती है जो सूींघने
योग्य है ?
क्या ल्जव्हा वह सब िख सकती है जो िखने योग्य है ? जब ददव्य ककपना से उत्पन्न ववश्वास
उनकी सहायता के मलए आगे बढ़े गा, केवल तभी ज्ञानेल्न्द्रयााँ वास्तव िें अनभ
ु व करें गी और इस प्रकार
मशखर तक पहुाँिने के मलये सीदढ़यााँ बनेंगी ।ववश्वास से रदहत ज्ञानेल्न्द्रयााँ अत्यींत अववश्वसनीय
िागादशाक हैं ।
िाहे उनका िागा सितल और िौड़ा प्रतीत होता हो, किर भी उनिे कई तछपे िन्दे और अनजाने
खतरे होते हैं । और जो लोग स्वतन्त्रता के मशखर पर पहुाँिने के मलए इस िागा को अपनाते हैं, वे या
तो रास्ते िें ही िर जाते हैं, या किसलकर वापस लढ़
ु कते हुए वापस वहीीँ पहुाँि जाते हैं जहाीं से वे
िले थे ;
और वहााँ वे अपनी टूटी हड्ड़डयों को जोड़ते हैं और अपने खल
ु े घावों को सीींते हैं | अकपववरही वे हैं जो
अपनी ज्ञानेल्न्द्रयों से एक सींसार रि तो लेते हैं, लेककन जकदी ही उसे छोटा तथा घट
ु न-भरा पाते हैं ;
और इसमलए वे एक अचिक बड़े और अचिक हवादार घर की ककपना करने लगते हैं ।
परन्तु नई तनिााण– सािग्री और नये कुशल राजगीर को ढूाँढ़ने के बजाय वे पुरानी तनिााण– सािग्री ही
बटोर लेते हैं और उसी राजगीर को —- ज्ञानेल्न्द्रयों को —–अपने मलए एक अचिक बड़े घर का नक्शा
बनाने और उसका तनिााण करने का काि सौंप दे ते हैं ।
नये घर के बनते ही वह उन्हें परु ाने घर की तरह छोटा तथा घट
ु न-भरा प्रतीत होने लगता है । इस
प्रकार वे ढहाने-बनाने िें ही लगे रहते हैं और सुख तथा स्वतन्त्रता प्रदान करने वाले ल्जस घर के मलए
वे तड़पते हैं, उसे कभी नहीीं बना पाते, क्योंकक ठगे जाने से बिने के मलए वे उन्हीीं का आसरा लेते
हैं ल्जनके द्वारा वे ठगे जा िुके हैं ।
और जैसे िछली कड़ाही िें से उछलकर भट्टी िें जा चगरती है, वैसे ही वे जब ककसी छोटी िग
ृ तष्ृ णा
से दरू भागते हैं तो कोई बड़ी िग
ृ तष्ृ णा उन्हें अपनी ओर खीींि लेती है । िहाववरही तथा अकपववरही
व्यल्क्तयों के बीि ऐसे िनष्ु यों के ववशाल सिूह हैं ल्जन्हे कोई ववरह िहसूस नहीीं होता ।
वे खरगोशों की तरह अपने मलए बबल खोदने और उन्ही िें रहने, बच्िे पैदा करने और िर जाने िें
सन्तुष्ट हैं । अपने बबल उन्हें कािी सुन्दर, ववशाल और आरािदे ह प्रतीत होते हैं ल्जन्हे वे ककसी
राजिहल के वैभव से भी बदलने को तैयार नहीीं ।
वे तनद्रािािरयों का िजाक उड़ाते हैं, खासकर उनका जो एक ऐसी सन
ू ी पगडण्डी पर िलते हैं ल्जस पर
पद चिन्ह ववरले ही होते हैं और बड़ी िुल्श्कल से पहिाने जाते हैं ।
अपने साथी िनुष्यों के बीि िें िहाववरही वैसा ही होता है जैसा वह गरुड़ ल्जसे िुगी ने सेया है और
जो िज
ू ों के साथ उनके बाड़े िें बन्द है ।
उसके भाई-िज
ू े तथा िााँ-िग
ु ी िाहते हैं कक वह बाल- गरुड़ उन्ही के जैसे स्वभाव और आदतों वाला,
और उन्ही की तरह रहनेवाला । और वह िाहता है कक िज
ू े उसके सिान हों, अचिक खल
ु ी हवा और
अनींत आकाश के स्वप्न दे खने वाले । पर शीघ्र ही वह उनके बीि अपने आपको एक अजनबी और
अछूत पाता है ; वे सब उसको िोंि िारते हैं यहााँ तक कक उसकी िााँ भी ।
ककन्तु उसे अपने रक्त िें मशखरों की पुकार बड़े जोर से सुनाई दे ती है, और बाड़े की दग
ु न्
ा ि उसकी
नाक िें बुरी तरह िुभती है । किर भी वह सब कुछ िप
ु िाप सहता रहता है जब तक उसके पींख पूरी
तरह नहीीं तनकल आते । और तब वह हवा पर सवार हो जाता है, और प्यार-भरी ववदा-दृष्टी डालता है
अपने भत ू पव
ू ा भाइयों और उनकी िााँ पर जो दानो और कीड़ों के मलये मिटटी कुरे दते हुए िस्ती िें
कुड़कुड़ाते रहते हैं ।ख़शु ी िनाओ, मिकेयन ।
तम्
ु हारा सपना एक पैगम्बर का सपना है । िहाववरह ने तम्ु हारे सींसार को बहुत छोटा कर ददया है,
और तम् ु हे उस सींसार िें एक अजनबी बना ददया है । उसने तम्
ु हारी ककपना को तनरीं कुश ज्ञानेल्न्द्रयों
की पकड़ से िुक्त कर ददया है , ; और िुक्त ककपना ने तुम्हारे अींदर ववश्वास जाग्रत कर ददया है ।
और ववश्वास तम्
ु हे दग
ु न्ा िपण ा घट
ू , ु न-भरे सींसार िें बहुत ऊाँिा उठाकर वीरान खोखलेपन के पार बीहड़
पवात के ऊपर ले जाएगा जहााँ हर ववश्वास को परखा जाता है और सींदेह की अल्न्ति तलछट को
तनकालकर उसे तनिाल ककया जाता है ।
और इस प्रकार तनिाल हो िक ु ा ववश्वास तम्
ु हें सदै व हरे -भरे रहनेवाले मशखर की सीिाओीं पर पहुींिा
दे गा और वहााँ तम्
ु हें ददव्य ज्ञान के हाथों िें सौंप दे गा । अपना काया पूरा करके ववश्वास पीछे हट
जायेगा,
और ददव्य ज्ञान तम्
ु हारे कदिो को उस मशखर की अकथनीय स्वतन्त्रता की राह ददखायेगा जो प्रभु
तथा आत्िववजयी िनुष्य का वास्तववक, सीिा– रदहत आनींदपूणा िाि है ।परख िें खरे उतरना,
मिकेयन । ति
ु सब खरे उतरना, िेरे साचथयो ।
उस मशखर पर क्षण– भर भी खड़े हो सकने का सौभाग्य प्राप्त करने के मलये िाहे कोई भी पीड़ा सहनी
पड़े, ज्यादा नहीीं है । परन्तु उस मशखर पर स्थायी तनवास प्राप्त करने िें यदद अनींत काल भी लग
जाए तो कि है ।
दहम्बल ; क्या आप हिें अपने
मशखर पर अभी नहीीं ले जा सकते,
एक िलक के मलए िाहे वह क्षखणक ही हो ?
िीरदाद ; उतावले ित बनो, दहम्बल ।
अपने सिय की प्रतीक्षा करो ।
जहााँ िैं आराि से सााँस लेता हूाँ,
वहााँ तम्
ु हारा दि घट
ु े गा ।
जहााँ िैं आराि से िलता हूाँ,
वहााँ तुि हााँिने और ठोकरें खाने लगोगे |
ववश्वास का दािन थािे रहो ;
और ववश्वास बहुत बड़ा किाल कर ददखायेगा ।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को ।
अध्याय 32
☞ पाप और आवरण ☜
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

िीरदाद : पाप के ववषय िें तम्


ु हे बता ददया गया है,
और यह तुि जान जाओगे कक िनुष्य पापी कैसे बना । तम्
ु हारा कहना है,
और वह सारहीन भी नहीीं है, कक परिात्िा का प्रततबबम्ब और प्रतत-रूप िनुष्य यदद पापी है,
तो स्पष्ट है कक पाप का श्रोत स्वयीं परिात्िा ही है ।
इस तका िें भोले-भाले लोगों को एक जाल है ;
और तम्
ु हे िेरे साचथयो, िैं जाल िें िाँसने नहीीं दाँ ग
ू ा ।
इसमलए इस जाल को िैं तम्
ु हारे रास्ते से हटा दाँ ग
ू ा ताकक तुि इसे अन्य िनष्ु यों के रास्ते से हटा
सको । परिात्िा िें कोई पाप नहीीं ; क्या सय
ू ा का अपने प्रकाश िें से िोिबिी को प्रकाश दे ना पाप
है ?
न ही िनुष्य िें पाप है ; क्या एक िोिबिी के मलये िप
ू िें जलकर अपने आपको मिटा दे ना और
इस प्रकार सय
ू ा के साथ मिल जाना पाप है ?
लेककन पाप है उस िोिबिी िें जो अपना प्रकाश बबखेरना नहीीं िाहती, और जब उसे जलाया जाता है
तो ददयासलाई तथा ददयासलाई जलानेवाले हाथ को कोसती है । पाप है उस िोिबिी िें ल्जसे िप
ू िें
जलने िें शिा आती है, और जो इसी मलये सूया से तछपा लेना िाहती है ।
िनुष्य ने प्रभु के वविान का उलींघन करके पाप नहीीं ककया, बल्कक पाप ककया है उस वविान के प्रतत
अपने अज्ञान पर पदाा डालकर ।हााँ, पाप तो अींजीर- पिे के आवरण से अपनी नग्न ता तछपाने िें था

क्या तुिने िनुष्य के पतन की कथा नहीीं पढ़ी जो शब्दों की दृष्टी से सरल और सींक्षक्षप्त, परन्तु अथा
की दृष्टी से गहरी और िहान है ?
क्या तुिने नहीीं पढ़ा कक जब परिात्िा िनुष्य परिात्िा िें से नया-नया तनकला था तो ककस प्रकार
वह मशशु – परिात्िा जैसा था —-तनश्िेष्ट, गततहीन, सज
ृ न िें असिथा ?
क्योंकक परिात्िा के सभी गण
ु ों से यक्
ु त होते हुए भी वह सब मशशुओीं की तरह अपनी अनींत शल्क्तयों
और योग्यताओीं को प्रयोग िें लाने िें ही नहीीं, बल्कक उन्हें जानने िें भी असिथा था ।
एक सद
ींु र शीशी िें बन्द अकेले बीज की तरह था िनष्ु य अदन की वादटका िें । शीशी िें पड़ा बीज
बीज ही रहे गा, और जब तक उसे उसकी प्रकृतत के अनक
ु ू ल मिटटी िें दवाया न जाये और उसका
खोल िूट न जाये उसके अन्दर बन्द िित्कार सजीव होकर प्रकाश िें नहीीं आयेगा ।
परन्तु िनुष्य के पास उसकी प्रकृतत के अनक
ु ू ल कोई मिटटी नहीीं थी ल्जसिे वह अपने आपको रोपता
और अींकुिरत हो जाता । उसके िेहरे को ककसी अन्य सिरूपी िेहरे िें अपनी िलक नहीीं मिलती थी
उसके िानवी कान को कोई अन्य िानव-स्वर सन
ु ाई नहीीं दे ता था । उसका िानव-स्वर ककसी अन्य
िानव- कण्ठ िें गज
ाँू कर नहीीं लौटता था ।
उसके एकाकी-ह्रदय के साथ एक-सुर होने के मलए कोई अन्य ह्रदय नहीीं था । इस सींसार िें, ल्जसे
उपयुक्त जोड़ों के रूप िें अपनी यात्रा पर रवाना ककया गया था, िनुष्य अकेला था बबलकुल अकेला ।
वह अपने मलए एक अजनबी था ।
उसके करने के मलये अपना कोई काि नहीीं था और न ही था उसके मलए तनिाािरत कोई िागा । अदन
उसके मलये वही था जो ककसी मशशु के मलये एक आरािदे ह पालना होता है —तनल्ष्क्रय आनींद की एक
अवस्था ।
वह उसके मलए सब प्रकार की सुख- सुवविा का स्थान था ।नेकी और बदी के ज्ञान का वक्ष
ृ तथा
जीवन का वक्षृ दोनों उसकी पहुाँि िें थे ; किर भी वह उनके िल तोड़ने और िखने के मलए हाथ नहीीं
बढ़ाता था ;
क्योंकक उसकी रूचि और उसकी सींककप-शल्क्त, उसके वविार तथा उसकी कािनाएाँ, यहााँ तक की
उसका जीवन भी, सब उसके अींदर बींद पड़े थे और इस प्रतीक्षा िें थे की उन्हें कोई िीरे - िीरे खोले
उन्हें स्वयीं खोलना उसके मलए सम्भव नहीीं था ।
अतएव उसे अपने अींदर से ही अपने मलए एक साथी पैदा करने के मलए वववश ककया गया — एक ऐसा
हाथ जो उसके बींिन खोलने िें उसका सहायक बने । उसे सहायता और कहााँ से मिल सकती थी
मसवाय अपने अींदर के जो ददव्यत्व से सींम्पन होने के कारण सहायता से भरपूर था ?
और यह बात अत्यन्त िहत्व पण
ू ा है । ककसी नई मिटटी और साींस से नहीीं बनी थी हौवा; बल्कक
आदि की अपनी ही मिटटी और साींस थी — उसकी हड्डी िें से एक हड्डी, उसके िाींस िें से िाींस
का एक टुकड़ा । कोई अन्य जीव रीं गिींि पर प्रकट नहीीं हुआ था ;
बल्कक स्वयीं उसी एक आदि को युगल बना ददया गया था — एक परु ु ष आदि और एक स्त्री आदि ।
इस प्रकार उस अकेले, दपाण-रदहत िेहरे को एक साथी और एक दपाण मिल जाता है ; और वह नाि
जो पहले ककसी िानव- स्वर िें नहीीं गाँज
ू ा था अदन की वीचथकाओीं िें ऊपर, नीिे, सवात्र ििरु स्वरों
िें गाँूजने लगता है ;
और वह ह्रदय ल्जसकी उदास िड़कन एक सूने वक्ष िें दबी पड़ी थी एक साथी वक्ष िें एक साथी ह्रदय
के अींदर अपनी गतत िहसस
ू करने और िड़कन सन
ु ने लगता है । इस प्रकार चिींगारी- रदहत िौलाद
का उस िकिक पत्थर से िेल हो जाता है और उसिे से बहुत सी चिींगािरयााँ पैदा कर दे ता है
इस प्रकार अनजली िोिबिी दोनों मसरों से जला दी जाती है ।िोिबिी एक है, बिी एक है, और
रौशनी भी एक है, यद्यवप वह दे खने िें दो अलग-अलग मसरों से पैदा हो रही है । इस प्रकार शीशी
िें पड़े बीज को वह मिटटी मिल जाती है ल्जसिे अींकुिरत होकर वह अपने रहस्य प्रकट कर सकता है

इस प्रकार अपने आप से अनजान एकत्व द्वैत को जन्ि दे ता है, ताकक द्वैत िें तनदहत सींघषा और
ववरोि के द्वारा उसे अपने एकत्व का ज्ञान कराया जा सके । इस प्रकक्रया िें भी िनुष्य अपने
परिात्िा का सही प्रततबबम्ब है , उसका प्रततरूप है ।
क्योंकक परिात्िा —आदद िेतना—अपने आपिें से शब्द को प्रकट करता है ; और शब्द तथा िेतना
दोनों ददव्य ज्ञान िें एक हो जाते हैं |द्वैत कोई दण्ड नहीीं है , बल्कक, एकत्व की प्रकृतत िें तनदहत
एक प्रकक्रया है, उसकी ददव्यता के प्रकट होने का एक आवश्यक सािन । कैसा बिपना है और ककसी
तरह सोिना !
कैसा बिपना है यह ववश्वास करना कक इतनी बड़ी प्रकक्रया से उसका िागा तीन बीसी और दस सालों
या तीन बीसी दस-लाख सालों िें भी तय करवाया जा सकता है । आत्िा का परिात्िा बनना क्या
कोई िािूली बात है ?
क्या परिात्िा इतना कठोर और कींजस
ू िामलक है कक दे ने के मलए उसके पास परू ा अनन्त काल होते
हुए भी वह िनुष्य को किर से एक होकर, अपने ईश्वरत्व तथ परिात्िा के साथ अपनी एकता का
परू ी तरह ज्ञान प्राप्त करके वापस अपने िल
ू िाि अदन िें पहुाँिने के मलए केवल सिर बषा का इतना
कि सिय प्रदान करे ?
लींबा है द्वैत का िागा ; और िूखा हैं वे जो इसे ततचथ पत्रों से नापते हैं ;
अनन्त काल मसतारों के िक्कर नहीीं चगनता । जब तनल्ष्क्रय, गततहीन, सज
ृ न िें असिथा आदि को
एक से दो कर ददया गया तो वह तुरींत कक्रयाशील, गततिान, तथा सज
ृ न और सन्तानोत्पादन िें
सिथा हो गया ।दो कर ददए जाने पर आदि का पहला काि क्या था ?
वह था नेकी और बदी के ज्ञान के वक्ष
ृ का िल खाना और इस प्रकार अपने सारे सींसार को अपने
जैसा ही दो कर दे ना । अब सब कुछ वैसा न रहा था जैसा पहले था— तनष्पाप और तनल्श्िन्त बल्कक
सब कुछ अच्छा या बुरा, लाभकारी या हातनकारक, सुखकर या कष्टकर हो गया था, दो ववरोिी दलों
िें बाँट गया था जबकक पहले एक था ।
और ल्जस साींप ने हौवा को नेकी और बदी का स्वाद िखने के मलए िुसलाया था, क्या वह उस
सकक्रय ककन्तु अनुभवहीन द्वैत की गहरी आवाज नहीीं थी जो कुछ करने तथा अनुभव प्राप्त करने के
मलए अपने आपको प्रेिरत कर रहा था ?
यह कोई आश्िया की बात नहीीं है कक इस आवाज को पहले हौवा ने सुना और उसका कहा िाना ।
क्योंकक हौवा िानो सान का पत्थर थी —
अपने साथी िें तछपी शल्क्तयों को प्रकट करने के मलए बनाया गया उपकरण ।
इस प्रथि िानव-कथा िें िोरी से अदन के पेड़ों िें से अपना िागा बना रही इस प्रथि स्त्री कीसाजीव
ककपना के मलये क्या तुि अक्सर रुक नहीीं गये— ऐसी स्त्री की ककपना जो घबराई हुई थी,
ल्जसका ह्रदय वपींजरे िें बन्द पक्षी की तरह िड़िड़ा रहा था, ल्जसकी आाँखें िारों तरि दे ख रहीीं थीीं
कक कहीीं कोई ताक तो नहीीं रहा है, और ल्जसके िुींह िें पानी भर आया था जब उसने अपना काींपता
हुआ हाथ उस लभ
ु ावने िल की ओर बढ़ाया था ?
क्या तुिने अपनी साींस रोक नहीीं ली जब उसने वह िल तोड़ा और उसके कोिल गद
ु े िें अपने दाींत
गड़ा ददये, ऐसी क्षखणक मिठास का स्वाद लेने के मलये जो स्वयीं उसके और उसकी सींतान के मलये
कड़वाहट िें बदलने बाली थी ?
क्या तुिने जी- जान से नहीीं िाहा कक जब हौवा अपना वववेक-शून्य काया करने ही बाली थी,
परिात्िा उसी सिय प्रकट होकर उसकी उन्ित िष्ृ टता को रोक दे ता, बजाय बाद िें प्रकट होने के
जैसा कक कहानी िें होता है ?
और जब हौवा ने वह गुनाह कर ही मलया, तो क्या तुिने नहीीं िाहा कक आदि के पास इतना वववेक
और साहस होता कक वह अपने आपको हौवा का सह-अपरािी बनने से रोक लेता ?
ककन्तु न तो परिात्िा ने हस्तक्षेप ककया, न आदि ने अपने आपको रोका, क्योंकक परिात्िा नहीीं
िाहता था कक उसका प्रततरूप उससे मभन्न हो ।
यह उसकी इच्छा और योजना थी कक िनष्ु य अपनी खद
ु की इच्छा और योजना को साँजोये और ददव्य
ज्ञान द्वारा अपने आपको एक करने के मलये द्वैत का लींबा रास्ता तय करे । जहााँ तक आदि का
सवाल है, वह िाहता भी तो अपनी पत्नी के ददये िल को खाने से अपने आपकी रोक नहीीं सकता था

वह िल खाने के मलये बाध्य था, केवल इसमलये कक उसकी पत्नी वह िल खा िक
ु ी थी; क्योकक
दोनों एक शरीर थे, और दोनों एक-दस
ू रे के किों के मलये उिरदायी थे ।क्या परिात्िा िनुष्य के
नेकी और बदी का िल खाने से अप्रसन्न और क्रुद्ि हुआ ?
यह सम्भव नहीीं था, क्योकक परिात्िा जानता था कक िनुष्य िल खाये बबना नहीीं रह सकेगा,
और वह िाहता था कक िनुष्य िल खाये; ककन्तु वह यह भी िाहता था कक िनुष्य पहले ही जान ले
कक खाने का पिरणाि क्या होगा
और उसिे पिरणाि का सािना करने की शल्क्त हो । और िनुष्य िें वह शल्क्त थी । और िनष्ु य ने
िल खाया । और िनुष्य ने पिरणाि का सािना ककया । और वह पिरणाि था ित्ृ यु ।
क्योंकक प्रभु इक्षा से कक्रयाशील दो बनने िें िनुष्य कक कक्रया-रदहत एकता सिाप्त हो गई । अतएव
ित्ृ यु कोई दण्ड नहीीं है, बल्कक जीवन का एक पक्ष है, द्वैत का ही एक अींश है । क्योकक द्वैत कक
प्रकृतत है सब वस्तओ
ु ीं को एक से दो का रूप दे दे ना, प्रत्येक वस्तु को एक परछाईं प्रदान कर दे ना ।
इसमलए आदि ने अपनी परछाईं पैदा कर ली हौवा के रूप िें, और अपने जीवन के मलये दोनों ने
एक परछाईं पैदा करली ल्जसका नाि है ित्ृ यु ।
परन्तु आदि और हौवा ित्ृ यु की छाया िें रहते हुये भी प्रभु के जीवन िें परछाईं-रदहत जीवन जी रहे
हैं ।द्वैत एक तनरीं तर सींघषा है ; और सींघषा यह भ्रि पैदा करता है कक दो ववरोिी पक्ष अपने आपको
मिटा दे ने पर तल
ु े हैं । ववरोिी ददखनेवाले पक्ष वास्तव िें एक-दस
ू रे के परू क हैं, एक-दस
ू रे के सािक
हैं
और कन्िे से कन्िा मिलाकर एक ही उद्दे श्य के मलये, सम्पूणा शाींतत,एकता और ददव्य ज्ञान से
उत्पन्न होने वाले सींतुलन के मलये काया-रत हैं । परन्तु भ्रि कक जड़ ज्ञानेल्न्द्रयों िें जिी हुई है, और
वह जब तक बना रहे गा जब तक ज्ञानेल्न्द्रयााँ हैं ।
द्वैत एक तनरीं तर सींघषा है ; और सींघषा यह भ्रि पैदा करता है कक दो ववरोिी पक्ष अपने आपको
मिटा दे ने पर तुले हैं । ववरोिी ददखनेवाले पक्ष वास्तव िें एक-दस
ू रे के पूरक हैं, एक-दस
ू रे के सािक
हैं और कन्िे से कन्िा मिलाकर एक ही उद्दे श्य के मलये,
सम्पूणा शाींतत,एकता और ददव्य ज्ञान से उत्पन्न होने वाले सींतुलन के मलये काया-रत हैं । परन्तु भ्रि
कक जड़ ज्ञानेल्न्द्रयों िें जिी हुई है , और वह जब तक बना रहे गा जब तक ज्ञानेल्न्द्रयााँ हैं ।
इसमलए आदि की आाँखें खल ु ने के बाद प्रभु ने जब उसे बुलाया तो उसने उिर ददया, ”िैंने बाग़ िें
तेरी आवाज सन
ु ी, और िैं डर गया क्योंकक ‘िैं’ नींगा था ; और ‘िैंने’ अपने आप को तछपा मलया
।”आदि ने यह भी कहा, ” जो स्त्री तन
ू े ‘िि
ु े’ साथी के रूप िें दी थी, उसने ‘िि
ु ’े वक्ष
ृ का िल
ददया, और ‘िैंने’ खाया ।”हौवा और कोई नहीीं थी आदि का अपना ही हाड-िाींस थी ।
किर भी आदि के इस नवजात ‘िैं’ पर वविार करो जो आाँख खल
ु ने के बाद अपने आपको हौवा से,
परिात्िा से, और परिात्िा कक सिूिी रिना से मभन्न, पथ
ृ क और स्वतन्त्र सििने लगा । एक
भ्रि था यह ‘िैं’ । उस अभी-अभी खल
ु ी आाँख का एक भ्रि था परिात्िा से पथ
ृ क हुआ यह व्यल्क्तत्व

इसिें न सार था, न यथाथा । इसका जन्ि इसमलये हुआ था कक इसकी ित्ृ यु के िाध्यि से िनष्ु य
अपने वास्तववक अहि ् को पहिान ले जो परिात्िा का अहि ् है । यह भ्रि तब लप्ु त होगा जब बाहर
की आाँख के सािने अाँिेरा छा जाएगा और अींदर की आाँख के सािने प्रकाश हो जाएगा ।
और इसने यद्यवप आदि को िकरा ददया, किर भी इसने उसके िन िें एक प्रबल ल्जज्ञासा उत्पन्न
कर दी और उसकी ककपना को लुभा मलया । िनुष्य के मलये, ल्जसे ककसी भी अहि ् का अनभ
ु व न
हुआ हो, एक ऐसा अहि ् पा लेना ल्जसे वह पूरी तरह अपना कह सके सििुि एक बहुत बड़ा प्रलोभन
था, और उसके मिथ्यामभिान के मलये बहुत बड़ा प्रोत्साहन भी ।
और आदि अपने इस भ्रािक अहि ् के प्रलोभन और बहकावे िें आ गया । यद्यवप वह इसके मलये
लल्ज्जत था, क्योंकक वह अवास्तववक था, नग्न था, किर भी वह इसे त्यागने के मलये तैयार नहीीं
था ; वह तो इसे अपने पूरे ह्रदय से और अपने नये मिले सिूिे कौशल से पकडे बैठा था ।
उसने अींजीर के पिे सीींकर जोड़ मलये तथा अपने मलए एक आवरण तैयार कर मलया ल्जससे वह अपने
नग्न व्यल्क्तत्व को ढक ले और उसे परिात्िा की सवा-वचि दृष्टी से बिाकर अपने ही पास रखे । इस
प्रकार अदन, आनींदपूणा भोलेपन की अवस्था, अपने आप से बेखबर एकता, पिों का आवरण एक से
दो बने िनष्ु य के हाथ से तनकल गई ;
और िनुष्य तथा ददव्य जीवन के वक्ष
ृ के बीि ज्वाला की तलवारें खड़ी हो गईं ।िनुष्य नेकी और बदी
के दोहरे द्वार से अदन से बाहर आया था; वह ददव्य ज्ञान के इकहरे द्वार से अदन के अींदर जाएगा
। वह ददव्य जीवन के वक्ष
ृ कक ओर पीठ ककये तनकला था ; उस वक्ष
ृ की ओर िींह
ु ककये प्रवेश करे गा

जब वह अपने लम्बे कदठन स़िर पर रवाना हुआ था तो अपनी नग्न ता पर लल्ज्जत था और अपनी
लज्जा को तछपाये रखने के मलये आतुर : जब वह अपनी यात्रा के अींत िें पहुाँिेगा तो उसकी पववत्रता
आवरण-िुक्त होगी और उसे अपनी नग्न ता पर गवा होगा ।
परन्तु ऐसा तब तक नहीीं होगा जब तक कक पाप िनष्ु य को पाप से िक्
ु त न कर दे । क्योकक पाप
स्वयीं अपने ववनाश का कारण मसद्ि होगा । और पाप आवरण के मसवाय और कहााँ है ?
हााँ, पाप और कुछ नहीीं है मसवाय उस दीवार के जो िनष्ु य ने अपने और परिात्िा के बीि िें खड़ी
कर ली है —अपने क्षण भर अहि ् और अपने स्थायी अहि ् के बीि । वह ओट जो शुरू िें अींजीर के
िट्
ु ठी भर पिे थी अब एक ववशाल परकोटा बन गई है ।
क्योंकक जब िनुष्य ने अदन के भोलेपन को उतार िेंका तब से वह अचिकाचिक पिे जिा करने और
आवरण पर आवरण सीने िें जी-जान से जट ु ा हुआ है । आलसी लोग अपने िेहनती पड़ोमसयों द्वारा
िेंके गए िीथड़ों से अपने आवरणों के छे दों पर पैबन्द लगा-लगा के सींतोष कर लेते हैं ।
पाप की पौशाक पर लगाया गया हर पैबन्द पाप ही होता है , क्योंकक वह उस लज्जा को स्थायी बनाने
का सािन होता है ल्जसे परिात्िा से अलग होने पर िनष्ु य ने पहली बार और बड़ी तीव्रता के साथ
िहसूस ककया था । क्या िनष्ु य अपनी लज्जा पर ववजय पाने के मलये कुछ कर रहा है ?
अ़िसोस, उसके सब उद्िि लज्जा पर लादे गए लज्जा के ढे र हैं, आवरणों पर िढ़े और आवरण हैं
।िनुष्य की कलाएाँ और ववद्द्याएाँ आवरणों के मसवाय और क्या हैं ? उसके साम्राज्य राष्र, जातीय
अलगाव, और यद्
ु ि के िागा पर िल रहे ििा—क्या ये आवरण की पज
ू ा के सम्प्रदाय नहीीं हैं ?
उसके उचित और अनचु ित,िान और अपिान, न्याय और अन्याय के तनयि ; उसके असींख्य
सािल्जक मसद्िाींत और रूदढ़यााँ —-क्या वे आवरण नहीीं हैं ? उसके द्वारा अिक
ू य का िूकयाींकन और
उसका अमित को िापना, असीि को सीिाींककत करना–क्या यह सब उस लींग
ु ी पर और पैबन्द लगाना
नहीीं है ल्जस पर पहले ही कई पैबन्द लगे हुए हैं ।
पीड़ा से भरे सुखों के मलए उसकी अमिट भूींख; तनिान बना दे नेवाले िन के मलए उसका लोभ ; दास
बना दे नेवाले प्रभुत्व के मलए उसकी प्यास; और तुच्छ बना दे नेवाली शान के मलए उसकी लालसा—क्या
ये सब आवरण नहीीं हैं ? नग्न ता को ढकने के मलये अपनी दयनीय आतुरता िें िनष्ु य ने बहुत
अचिक आवरण पहन मलये हैं जो सिय के साथ उसकी त्विा इतने कस कर चिपक गए हैं कक अब
वह उनिे और अपनी त्विा िें भेद नहीीं कर पाता ।
और िनुष्य सााँस लेने के मलये तड़पता है,; वह अपनी अनेक त्विाओीं से छुटकारा पाने के मलये
प्राथाना करता है । अपने बोि से छुटकारा पाने के मलये िनुष्य अपने उन्िाद िें सब कुछ करता है,
लेककन वही एक काि नहीीं करता जो वास्तव िें उसे उसके बोि से छुटकारा ददला सकता है, और वह
है उस बोि को िेंक दे ना ।
वह अपनी अततिरक्त त्विाओीं से िुक्त होना िाहता है, पर अपनी पूरी शल्क्त से उनसे चिपका हुआ
है । वह आवरण िुक्त होना िाहता है, पर साथ ही िाहता है कक पूरी तरह कपडे पहने रहे ।तनवारण
होने का सिय सिीप है और िैं अततिरक्त त्विाओीं को– आवरणों को — उतार िेंकने िें तम्
ु हारी
सहायता करने के मलए आया हूाँ ताकक त्विाओीं को उतार िेंकने िें तुि भी सींसार के उन सब लोगों
की सहायता कर सको ल्जनिे तड़प है ।
िैं तो केवल ववचि बताता हूाँ ; ककन्तु अपनी त्विा को उतार िेंकने का काि हरएक को स्वयीं ही
करना होगा, िाहे वह ककतना ही कष्टदायी क्यों न हो ।अपने आपसे अपने बिाव के मलये ककसी
िित्कार की प्रतीक्षा न करो, न ही पीड़ा से डरो; क्योंकक आवरण-रदहत ज्ञान तम्
ु हारी पीड़ा को स्थायी
आनींद िें बदल दे गा ।
किर यदद ददव्य ज्ञान की नग्न ता िें तम्
ु हारा अपने आप से सािना हो और यदद परिात्िा तम्
ु हे
बुलाकर पछ
ू े , ”तुि कहााँ हो ?” तो तुि शिा िहसूस नहीीं करोगे, न तुि डरोगे, न ही तुि
परिात्िा से तछपोगे । बल्कक तुि अडोल, बन्िन-िुक्त, ददव्य शाींतत से युक्त खड़े रहोगे और
परिात्िा को उिर दें गे;”
हिारे प्रभ,
ु हिारी आत्िा, हिारे अल्स्तत्व, हिारे एक िात्र अहि ्, हिें दे खखये । लज्जा, भय,और
पीड़ा से हि नेकी और बदी के लम्बे, ववषि, और टे ढ़े-िेढ़े, उस रास्ते पर िलते रहे हैं ल्जसे आपने
हिारे मलये सिय के आरन्भ िें तनिाािरत ककया था ।
तनज-घर के मलए िहाववरह ने हिारे पैरों को प्रेरणा दी और ववश्वास ने हिारे ह्रदय को थािे रखा,
और अब ददव्य ज्ञान ने हिारे बोि उतार ददये हैं,
हिारे घाव भर ददये हैं, और हिें वापस आपकी पावन उपल्स्थतत िें ला खड़ा ककया है — नेकी और
बदी से िुक्त, जीवन और ित्ृ यु के आवरणों से िुक्त;
द्वैत के सभी भ्रिों से िुक्त; आपके सवाग्राही अहि ् के मसवाय और हर अहि ् से िक्
ु त । अपनी
नगनता को तछपाने के मलये कोई आवरण पहने बबना हि लज्जा िुक्त, प्रकाशिान भय-रदहत होकर
आपके सम्िुख खड़े हैं । दे खखये, हि एक हो गये हैं ।
दे खखये, हिने आत्ि-ववजय प्राप्त कर ली है । ”और परिात्िा तम्
ु हे अनन्त प्रेि से गले लगा लेगा,
और तम्
ु हे सीिे अपने ददव्य जीवन-वक्ष
ृ तक ले जायेगा।
यही मशक्षा थी िेरी नह
ू को ।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।
नरौंदा; यह बात भी िमु शाद ने
तब कही थी जब हि अाँगीठी के पास बैठे थे ।

अध्याय -33
सिय आ गया है
आदिी आदिी को लट ु ना बींद करे
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राबत्र अनप
ु ि गातयका
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नरौंदा ; पवातीय नीड़ के मलये, ल्जसे बिीली हवाओीं और बिा के भारी अम्बारों ने परू े शीतकाल िें
हिारी पहुाँि से परे रखा था,
हि सब इस प्रकार तरस रहे थे ल्जस प्रकार कोई तनवाामसत व्यल्क्त अपने घर के मलए तरसता है ।
हिें नीड़ िें ले जाने के मलये िुमशाद ने बसन्त की एक ऐसी रात िन
ु ी ल्जसके नेत्र कोिल और
उज्जवल थे, उसकी सााँस उष्ण और सुगल्न्ित थी, ल्जसका ह्रदय सजीव और सजग था ।
वे आठ सपाट पत्थर, जो हिारे बैठने के काि आते थे, अभी तक वैसे ही अिा-िक्र के आकार िें
रखे थे जैसे हि उन्हें उस ददन छोड़ गए थे जब िुमशाद को बेसार ले जाया गया था ।
स्पष्ट था कक उस ददन से कोई
भी नीड़ िें नहीीं गया था । एक मशला से दस
ू री मशला पर चगर रहे पहाड़ी िरनों ने राबत्र को अपने
तुिुल सींगीत से भर ददया था ।बीि-बीि िें ककसी उकलू की घू-घू या ककसी िीींगुर के गीत के खल्ण्डत
स्वर सुनाई दे ते थे
िीरदाद;- इस रात की शाींतत िें िीरदाद िाहता है कक तुि राबत्र के गीत सन
ु ो ।
राबत्र के गायक-वन्ृ द को सन
ु ो । क्योंकक सििुि ही राबत्र एक अनुपि गातयका है । अतीत की सबसे
अाँिेरी दरारों िें से, भववष्य के उज्जवल दग
ु ों िें से, आकाश के मशखरों तथा िरती की गहराईयों िें
से तनकल रहे है राबत्र के स्वर, और तेजी से पहुाँि रहे हैं ववश्व के दरू ति कोनों तक ।
ववशाल तरीं गों के रूप िें ये तम्
ु हारे कानों के िारों ओर लहरा रहे हैं । अपने कानों को अन्य सब स्वरों
से िुक्त कर दो ताकक इन्हे सुन सको । उतावली- भरा ददन ल्जसे आसानी से मिटा दे ता है, उतावली
से िुक्त राबत्र उसे अपने क्षण भर के जाद ू से पन
ु िः बना दे ती है क्या िााँद और तारे ददन की रौशनी िें
तछप नहीीं जाते ?
ददन ल्जसे ककपना और असत्य के मिश्रण िें डुबा दे ता है, राबत्र उसे नपे-तल
ु े उकलास के साथ दरू -दरू
तक गाती है । जड़ी-बदू टयों के सपने भी राबत्र के गायक-वन्ृ द िें शामिल होकर उनके गीत िें योग दे ते
हैं सुनो आकाशवपण्डों को :गगन िें वे िूलते सन
ु ाते हैं
लोिरयााँदलदली बालू के पालने िें सो रहे भीिकाय मशशु को,िीथड़े कींगाल के पहने हुए राजा
को,बेड़ड़यों-जींजीरों िें जकड़ी हुई दामिनी को–पोतड़ों िें मलपटे स्वयीं परिात्िा को सुनो तुि िरती
को,एक ही सिय पर जो प्रसव िें कराहती है, दि
ू भी वपलाती है,पालती है,
ब्याहती है, कब्र िें सुलाती है । सन
ु ो वन पशुओीं को : घि
ू ते हैं जींगलों िें टोह िें मशकार की, िीखते,
गरु ााते हैं, िीरते, चिर जाते हैं ;
सुनो अपनी राहों पर रें गते जींतओ
ु ीं को,रहस्यिय गीत अपने गन
ु गुनाते कीड़ों को;ककस्से िारागाहों के,
गीत जल- प्रवाहों के , सुनो अपने सपनों िें दोहराते ववहीं गों को; वक्ष
ृ ों को, िाड़ड़यों को, हर एक
जीव को ित्ृ यु के प्याले िें गट-गट पीते जीवन को । मशखर से और वादी से, िरुस्थल और सागर
से,
तण
ृ ावत भमू ि के नीिे से और वायु से आ रही हैं िन
ु ौती सिय िें तछपे प्रभु को । सन
ु ो सभी िाताओीं
को, कैसे वे रोती हैं, कैसे बबलखती हैं और सभी वपताओीं को, कैसे वे कराहते हैं कैसे आहें भरते हैं ।
सुनो उनके बेटों को और उनकी बेदटयों को बन्दक
ू लेने भागते, बन्दक
ू से डर भागते,प्रभु को
िटकारते,और भाग्य को चिक्कारते ।स्वााँग रिते प्यार का और घण
ृ ा िुसिुसाते हैं,पीते हैं जोश, और
डर से पसीने छूट जाते हैं, बोते हैं िस्
ु काने और काटते आाँसू हैं,अपने लाल खन
ू से उिड़ रही बाढ़ के
प्रकोप को पैनाते हैं ।
सुनो उनके क्षुिा-ग्रस्त पेटों को वपिकते,सूजी हुई उनकी पलकों को िपकते, कुम्हलाई अाँगमु लयों को
उनकी आशा की लाश को ढूींढते, और उनके हृदयों को िूलत–िूलते ढे रों िें िूटते । सुनो क्रूर िशीनों
को तुि गड़गड़ाते हुए,दपा-भरे नगरों को खण्डहर बन जाते हुए,शल्क्तशाली दग ु ों को अपने ही अवसान
की घल्ण्टयााँ बजाते हुए,पुरातन कीतता-स्तम्भों को पींककल रक्त-ताल िें चगर छीटे उड़ाते हुए ।
सन
ु ो न्यायी लोगों की ति
ु प्राथानाओीं को लोभ की िीखों के साथ सरु मिलाते हुए, बच्िों की भोली-
भाली तोतली बातों को दष्ु टों की बकबक के साथ तक ु मिलाते हुए। और ककसी कन्या की लज्जारुण
िुस्कान को वेश्या की ििू त
ा ा के सींग िहिहाते हुए, और एक वीर के हषोन्िाद को ककसी िायावी के
वविार गनु गुनाते हुए ।
हर जनजाती और हर एक गोत्र के हर खेिे,हर कुदटया िें राबत्र सन
ु ाती है ऊाँिे स्वर िें तम्
ु ही पर
यद्
ु ि-गीत िनष्ु य के । पर जादग
ू रनी राबत्र लोिरयााँ, िन
ु ोततयााँ, यद्
ु ि-गीत, सब कुछ ढाल दे ती एक
ही ििुरि सींगीत िें ।
गीत इतना सक्ष्
ू ि जो कान सुन पाये न —गीत इतना भव्य, और अनन्त िैलाव िें,स्वर िें गहराई
और टे क िें मिठास इतनी,तल
ु ना िें ििरश्तों के तराने और वन्ृ द गान लगते िात्र कोलाहल और
बड़बड़ाहट हैं आत्ि-ववजेता का यही ववजय-गान है ।
पवात जो राबत्र की गोद िें हैं ऊाँघते,यादों िें डूबे िरू मलये टीले रे त के,भ्रिणशील तारे , सागर नदी िें
जो घूिते, तनवासी-प्रेत-पिु रयों के,पावन-त्रयी और हरी इच्छा ,करते आत्ि-ववजेता का स्वागत है,
जय घोष है । भाग्य वान हैं वे जो सन
ु ते हैं और बूिते ।
भाग्य वान हैं लोग ल्जनको राबत्र सींग अकेले िें होती अनुभूतत है राबत्र जैसी शाल्न्त की,गहराई की,
ववस्तार की ;लोग वे, अाँिेरे िें िेहरों पर ल्जनके अाँिेरे िें ककये गयेअपने कुकिों की पड़ती नहीीं िार
है ;
लोग वे, आाँसू ल्जनकी ररकते नहीीं पलकों िें साचथयों की आाँखों से जो उन्होंने बहाये थे ;हाथों िें न
ल्जनके लोभ से, द्वेष से, होती कभी खाज है ;कानो को न ल्जनके अपनी तष्ृ णाओीं की घेरती
िूत्कार है ;वववेक को न ल्जनके डींक कभी िारते उनके वविार हैं भाग्य वान हैं,
ह्रदय ल्जनके सिय के हर कोने से तघरकर आती हुई ववववि चिन्ताओीं के बैठने के छिे नहीीं ;बद् ु चि
िें ल्जनकी भय सुरींग खोद लेते नहीीं ;साहस के साथ जो कह सकते हैं राबत्र से, ”ददखा दो हिें ददन
को ”कह सकते हैं ददन को, ”ददखा दो हिें राबत्र को ”।
हााँ, बहुत भाग्यवान हैं ल्जनको राबत्र सींग अकेले िें होती अनभ
ु ूतत है राबत्र जैसी सिस्वरता, नीरवता,
अनन्तता की । उनके मलए ही केवल गाती है राबत्र यह गीत आत्ि-ववजेता का ।यदद तुि ददन के िूींठे
लाींछनों का सािना मसर ऊींिा रखकर ववश्वास से ििकती आाँखों से करना िाहते हो, तो शीघ्र ही राबत्र
की मित्रता प्राप्त करो ।
राबत्र के साथ िैत्री करो । अपने ह्रदय को अपने ही जीवन रक्त से अच्छी तरह िोकर उसे राबत्र के
ह्रदय िें रख दो । अपनी आवरण हीीं कािनाएाँ राबत्र के वक्ष को सौंप दो, और ददव्य ज्ञान के द्वारा
स्वतन्त्र होने की िहत्त्वाकााँक्षा के अततिरक्त अन्य सभी िहत्त्वाकाींक्षाओीं की उसके िरणों िें बमल दे दो

तब ददन का कोई भी तीर तम्
ु हे वेि नहीीं सकेगा, और तब राबत्र तम्
ु हारी ओर से लोगों के सािने
गवाही दे गी कक ति
ु सििि
ु आत्ि- ववजेता हो ।बेिन
ै ददन भले ही पटकें तम्
ु हे इिर- उिरतारक-हीन
रातें िाहे अाँिेरे िें अपने लपेट लें तुिको,िेंक ददया जाये तम्
ु हे ववश्व के िौराहों पर,चिन्ह पदचिन्ह न
हों राह तम्
ु हें ददखाने को किर भी न डरोगे तुि ककसी भी िनुष्य से और न ककसी ल्स्थतत से,न ही
होगा शक तम्
ु हे लेशिात्र इसका कक ददन और रातें,
िनुष्य और िीजें भी जकदी ही या दे र से आयेंगे तम्
ु हारे पास, और ववनयपव
ू क
ा प्राथाना वे करें गे आदे श
उन्हें दे ने का । ववश्वास क्योंकक राबत्र का प्राप्त होगा ति
ु को । और ववश्वास राबत्र का प्राप्त जो कर
लेता है सहज ही आदे श वह अगले ददन को दे ता है ।
राबत्र के ह्रदय को ध्यान से सुनो, क्योंकक उसी के अींदर आत्ि-ववजेता का ह्रदय िड़कताहै । यदद िेरे
पास आींसू होते तो आज रात िैं उन्हें भेंट कर दे ता हर दटिदटिाते मसतारे और रज-कण को; हर कल-
कल करते नाले और गीत गाते दटड्डे को; वायु िें अपनी सुगल्न्ित आत्िा को बबखेरते हर नील-पुष्प
को ;
हर सरसराते सिीर को; हर पवात और वादी को; हर पेड़ और घाींस की हर कोंपल को — इस राबत्र
की सम्पूणा अस्थाई शाल्न्त और सुींदरता को । िैं अपने आींसू िनष्ु य की कृतध्नता तथा बबार अज्ञान
के मलये क्षिायािना के रूप िें इनके सािने उाँ ड़ेल दे ता ।
क्योंकक िनष्ु य, घखृ णत पैसे के गुलाि, अपने स्वािी की सेवा िें व्यस्त है, इतने व्यस्त की स्वािी
की आवाज और इच्छा के अततिरक्त और ककसी आवाज और इच्छा की ओर ध्यान नहीीं दे सकते ।और
भयींकर है िनुष्य के स्वािी का कारोबार — िनुष्य के सींसार को एक ऐसे कसाईखाने िें बदल दे ना
जहााँ वे ही गला काटनेवाले हैं और वे ही गला कटवाने वाले ।
और इसमलए, लहू के नशे िें िरू िनष्ु य िनष्ु यों को इस ववश्वास िें िारते िले जाते हैं कक ल्जन
िनुष्यों का कोई खन
ू करता है , िरती के सब प्रसादों और आकाश की सिस्त उदारता िें उन िनष्ु यों
का सभी दहस्सा उसे ववरासत िें मिल जाता है ।
अभागे िूखा ! क्या कभी कोई भेड़ड़या ककसी दस
ू रे भेड़ड़ये का पेट िीर कर िेिना बना है ? क्या कभी
कोई सााँप अपने साथी सााँपों कुिल और तनगल कर कपोत बना है ? क्या कभी ककसी िनुष्य ने अन्य
िनष्ु यों की ह्त्या करके उनके दख
ु ों को छोड़ उनकी खमु शयााँ ववरासत िें पाईं हैं ? क्या कोई कान दस
ू रे
कान िें डाट लगाकर जीवन की स्वर-तरीं गों का अचिक आनन्द ले सकता है ?
या कभी कोई आाँख अन्य आाँखों को नोिकर सद ींु रता के ववववि रूपों के प्रतत अचिक सजग हुई है
?क्या ऐसा कोई िनुष्य या िनुष्य का सिद
ु ाय है जो केवल एक घण्टे के वरदानों का भी पूरी तरह
उपयोग कर सके, वरदान िाहे खाने पीने के पदाथों के हों,
िाहे प्रकाश और शाल्न्त के ? िरती ल्जतने जीवों को पाल सकती है उससे अचिक जीवों को जन्ि
नहीीं दे ती । आकाश अपने बच्िों के पालन के मलये न भीख िाींगता है, न िोरी करता है ।वे िूठ
बोलते हैं जो िनष्ु य से कहते हैं, ”यदद ति
ु तप्ृ त होना िाहते हो तो िारो और ल्जन्हे िारो उनकी
ववरासत प्राप्त करो ।”
जो िनुष्य का प्यार, िरती का दि
ू और िि,
ु तथा आकाश का गहरा स्नेह पाकर नहीीं िला-िूला,
वह िनुष्य के आींस,
ू रक्त और पीड़ा के आिार पर कैसे िले-िूलेगा ? वे िूठ बोलते हैं जो िनुष्य से
कहते हैं, ”हर राष्र अपने मलये है ।”कनख़जूरा कभी एक इींि भी आगे कैसे बढ़ सकता है यदद उसका
हर पैर दस
ू रे पैरों के ववरुद्ि ददशा िें िले, या उसके पैरों के आगे बढ़ने िें रुकावट डाले, या दस
ू रे
पैरों के ववनाश के मलए षड्यन्त्र रिे ?
िनुष्य भी क्या एक दै त्याकार कनखजूरा नहीीं है, राष्र ल्जसके अनेक पैर हैं ?वे िूठ बोलते हैं जो
िनुष्य से कहते हैं, ” शासन करना सम्िान की बात है, शामसत होना लज्जा की ।” क्या गिे को
हाींकने वाला उसकी दि
ु के पीछे -पीछे नहीीं िलता ? क्या जेलर कैदी से बाँिा नहीीं होता । वास्तव िें
गिा अपने हााँकने वाले को हााँकता है ;
कैदी अपने जेलर को जेल िें बींद रखता है । वे िूठ बोलते हैं जो िनुष्य से कहते हैं, ”दौड़ उसी की
जो तेज दौड़े, सच्िा वही जो सिथा हो ।”क्योंकक जीवन िाींसपेमशयों और बाहुबल की दौड़ नहीीं है ।
लूले- लाँ गड़े भी बहुिा स्वस्थ लोगों से बहुत पहले िींल्जल पर पहुाँि जाते हैं ।
और कभी-कभी तो एक तुच्छ िच्छर भी कुशल योद्िा को पछाड़ दे ता है । वे िूठ बोलते हैं जो
िनष्ु य से कहते हैं कक अन्याय का उपिार केवल अन्याय से ही ककया जा सकताहै । अन्याय के बदले
िें थोपा गया अन्याय कभी न्याय नहीीं बन सकता । अन्याय को अकेला छोड़ दो, वह स्वयीं ही अपने
आपको मिटा दे गा ।
परन्तु भोले लोग अपने स्वािी पैसे के मसद्िाींतों को आसानी से सि िान लेते हैं । पैसे और जिाखोरों
िें वे भल्क्तपूणा ववश्वास रखते हैं और उनकी हर िनिानी सनक के आगे मसर िक
ु ाते हैं ।राबत्र का न
वे ववश्वास करते हैं न परवाह । जबकक राबत्र िुल्क्त के गीत गाती है, और िल्ु क्त तथा प्रभु-प्राल्प्त की
प्रेरणा दे ती है ।
तम्
ु हे तो िेरे साचथयो, वे या तो पागल करार दें गे या पाखण्डी ।िनुष्य की कृतध्नता और तीखे
उपहास का बरु ा ित िानना ; बल्कक प्रेि और असीि िैया के साथ स्वयीं उनसे तथा आग और खन

की बाढ़ से, जो शीघ्र ही उनपे टूट पड़ेगी, उनके बिाव के मलये उद्यि करना । सिय अ गया है कक
िनुष्य िनुष्य की हत्या करना बींद कर दें । सय ा िन्द्र, और तारे अनाददकाल से प्रतीक्षा कर रहे हैं
ू ,
कक उन्हें दे खा, सुना और सििा जाये;
िरती की मलवप प्रतीक्षा कर रही है कक उसे पढ़ा जाये; आकाश के राजपथ, कक उन पर यात्रा कक
जाये, सिय का उलिा हुआ िागा, कक उसिे पड़ी गाींठों को खोला जाये, ब्रह्िाण्ड की सग ु ींि, कक
उसे सूाँघा जाये; पीड़ा के कबब्रस्तान, कक उन्हें मिटा ददया जाये; िौत ककई गुिा, कक उसे ध्वस्त
ककया जाये; ज्ञान की रोटी, कक उसे िखा जाये; और िनष्ु य पदों िें तछपा परिात्िा, प्रतीक्षा कर
रहा है कक उसे अनावत
ृ ककया जाये ।
सिय आ गया है कक िनुष्य िनुष्यों को लट
ू ना बन्द कर दें और सवाादहत के काि को पूरा करने के
मलए एक हो जाएाँ ।
बहुत बड़ी है यह िन
ु ौती, पर ििुर होगी ववजय भी । तल
ु ना िें और सब तुच्छ तथा खोखला है ।
हााँ, सिय आ गया है । पर ऐसे बहुत कि हैं जो ध्यान दें गे ।
बाक़ी को एक और पक
ु ार की
प्रतीक्षा करनी होगी —–
एक और भोर की ।

अध्याय -34
आदिी एक लघु परिात्िा है
☞ ववराट कैसे होगा ☜
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िााँ–अण्डाणु
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िीरदाद; िीरदाद िाहता है कक इस रात के सन्नाटे िें ति
ु एकाग्र चिि होकर िााँ–अण्डाणु के ववषय िें
वविार करो । स्थान और जो कुछ्ह उसके अींदर है एक अण्डाणु है ल्जसका खोल सिय है यही िााँ-
अण्डाणु है ।
जैसे िरती को वायु लपेटे हुए है, वैसे ही इस अण्डाणु को लपेटे हुए है ववकमसत परिात्िा, ववराट
परिात्िा—जीवन जो कक अित ा अनन्त और अकथ है ।
ू ,
इस अण्डाणु िें मलपटा हुआ है कींु डमलत परिात्िा लघ–ु परिात्िा–जीवन जो ित
ू ा है ककन्तु उसी तरह
अनन्त और अकथ ।
भले ही प्रिमलत िानवीय िानदण्ड के अनुसार िााँ–अण्डाणु अमित है, किरभी इसकी सीिाएाँ हैं ।
यद्यवप यह स्वयीं अनन्त नहीीं है, किर भी इसकी सीिाएाँ हर ओर अनन्त को छूती हैं |
ब्रह्िाण्ड िें जो भी पदाथा और जीव हैं, वे सब उसी लघु- परिात्िा को लपेटे हुए सिय-स्थान के
अण्डाणओ ु ीं से अचिक और कुछ नहीीं, परन्तु सबिें लघु-परिात्िा प्रसार की मभन्न-मभन्न अवस्थाओीं िें
है ।
पशु के अींदर के लघु- परिात्िा की अपेक्षा िनुष्य के अींदर के लघु-परिात्िा का और वनस्पतत के
अींदर के लघु-परिात्िा की अपेक्षा पशु के अींदर के लघु- परिात्िा का सिय-स्थान िें प्रसार अचिक है

और सल्ृ ष्ट िें नीिे-नीिे की श्रेणी िें क्रिानुसार ऐसा ही है । दृश्य तथा अदृश्य सब पदाथो और जीवों
का प्रतततनचित्व करते अनचगनत अण्डाणओ
ु ीं को िााँ-अण्डाणु के अींदर इस क्रि िें रखा गया है कक
प्रसार िें बड़े अण्डाणु के अींदर उसकेतनकटति छोटा अण्डाणु है , और यही क्रि सबसे छोटे अींडाणु तक
िलता है ।
अण्डाणओ
ु ीं के बीि िें जगह है और सबसे छोटा अण्डाणु केन्द्रीय नामभक है जो अत्यन्त अकप सिय
तथा स्थान के अींदर बन्द है । अण्डाणु के अींदर अण्डाण,
ु किर उस अण्डाणु के अींदर अण्डाण,

िानवीय गणना से परे और सब प्रभु द्वारा अनप्र
ु िाखणत—यही ब्रह्िाण्ड है .
िेरे साचथयो । किर भी िैं िहसूस करता हूाँ कक िेरे शब्द कदठन हैं, वे तम्
ु हारी बद्
ु चि की पकड़ िें
नहीीं आ सकते । और यदद शब्द पूणा ज्ञान तक ले जाने वाली सीढ़ी के सरु क्षक्षत तथा ल्स्थर डण्डे बनाये
गए होते तो िि
ु े भी अपने शब्दों को सुरक्षक्षत तथा ल्स्थर डण्डे बनाने िें प्रसन्नता होती ।
इसमलये यदद तुि उन ऊींिाइयों, गहराइयों और िौड़ाइयों तक पहुाँिना िाहते हो ल्जन तक िीरदाद
तम्
ु हे पहुाँिाना िाहता है, तो बद्
ु चि से बड़ी ककसी शल्क्त के द्वारा शब्दों से बड़ी ककसी वस्तु का
सहारा लो ।
शब्द, अचिक से अचिक, बबजली की कौंि हैं जो क्षक्षततजों की िलक ददखती हैं; ये उन क्षक्षततजों
तक पहुाँिने का िागा नहीीं हैं ;
स्वयीं क्षक्षततज तो बबलकुल नहीीं । इसमलए जब िैं तम्
ु हारे सम्िुख िााँ–अण्डाणु और अण्डाणओ
ु ीं की,
तथा ववराट-परिात्िा और लघ-ु परिात्िा की बात करता हूाँ तो िेरे शब्दों को पकड़कर न बैठ जाओ,
बल्कक कौंि की ददशा िें िलो ।
तब तुि दे खोगे कक िेरे शब्द तम्
ु हारी किजोर बुद्चि के मलये बलशाली पींख हैं ।अपने िारों ओर की
प्रकृतत पर ध्यान दो ।क्या ति
ु उसे अण्डाणु के तनयि पर रिी गई नहीीं पाते हो ? हााँ, अण्डाणु िें
तम्
ु हे सम्पूणा सल्ृ ष्ट की कींु जी मिल जायेगी ।
तम्
ु हारा मसर, तम्
ु हारा ह्रदय,तम्
ु हारी आाँख अण्डाणु हैं । अण्डाणु है हर िूल और उसका हर बीज ।
अींडाणु है पानी की एक बद
ूाँ तथा प्रत्येक प्राणी का प्रत्येक वीयााणु ।
और आकाश िें अपने रहस्यिय िागों पर िल रहे अनचगनत नक्षत्र क्या अण्डाणु नहीीं हैं
ल्जनके अींदर प्रसार की मभन्न-मभन्न
अवस्थाओीं िें पहुाँिा हुआ जीवन का
सार—लघु–परिात्िा—तनदहत है ?
क्या जीवन तनरीं तर अण्डाणु िें से ही नहीीं तनकल रहा है और वापस अण्डाणु िें ही नहीीं जा रहा है ?
तनिःसींदेह िित्कारपूणा और तनरीं तर है सल्ृ ष्ट की प्रकक्रया ।
जीवन का प्रवाह िााँ अण्डाणु कक सतह से उसके केंद्र तक, तथा केंद्र से वापस सतह तकबीना रुके
जारी रहता है ।
केंद्र- ल्स्थत लघु- परिात्िा जैसे-जैसे सिय तथा स्थान िें िैलता जाता है, जीवन के तनम्नति वगा
से जीवन के उच्िति वगा तक एक अण्डाणु से दस
ू रे अण्डाणु िें प्रवेश करता िला जाता है ।
सबसे नीिे का वगा सिय तथा स्थान िें सबसे कि िैला हुआ है और सबसे ऊाँिा बगा सबसे अचिक ।
एक अण्डाणु से दस
ू रे अण्डाणु िें जाने िें लगने वाला सिय मभन्न-मभन्न होता है–कुछ ल्स्थततयों पलक
की एक िपक होता है तो कुछ िें पूरा युग ।
और इस प्रकार िलती रहती है सल्ृ ष्ट की प्रकक्रया जब तक िााँ–अण्डाणु का खोल टूट नहीीं जाता और
लघ-ु परिात्िा ववराट-परिात्िा होकर बाहर नहीीं तनकल आता ।इस प्रकार जीवन एक प्रसार, एक
वद्
ृ चि और एक प्रगतत है, लेककन उस अथा िें नहीीं ल्जस अथा िें लोग वद्
ृ चि और पगतत का उकलेख
प्रायिः करते हैं; क्योंकक उनके मलए वद्
ृ चि है आकार िें बढ़ना, और प्रगतत आगे बढ़ना ।
जबकक वास्तव िें वद्
ृ चि का तात्पया है सिय और स्थान िें सब तरि िैलना ; और प्रगतत का
तात्पया है सब ददशाओीं िें सिान गतत ; पीछे भी और आगे भी, और नीिे तथा दायें-बायें और ऊपर
भी ।
अतएव िरि वद्
ृ चि है स्थान से परे ़िैल जाना और िरि प्रगतत है सिय की सीिाओीं से आगे तनकल
जाना, और इस प्रकार ववराट-परिात्िा िें लीन हो जाना और सिय तथा स्थान के बन्िनों िें से
तनकलकर परिात्िा की स्वतन्त्रता तक जा पहुाँिना जो स्वतन्त्रता कहलाने योग्य एकिात्र अवस्था है ।
और यही है वह तनयतत जो िनष्ु य के मलये तनिाािरत है ।इन शब्दों पर ध्यान दो, सािओ
ु । यदद
तम्
ु हारा रक्त तक इन्हे प्रसन्नता पव
ू क
ा न कर ले, तो सम्भव है कक अपने आप और दस
ू रों को
स्वतन्त्र कराने के तम्
ु हारे प्रयत्न तम्
ु हारी और उनकी जींजीरों िें और अचिक बेड़ड़याीं जोड़ दें ।
िीरदाद िाहता है कक तुि इन शब्दों को सिि लो ताकक इन्हें सििने िें तुि सब तड़पने वालों की
सहायता कर सको ।
िीरदाद िाहता है कक ति
ु स्वतन्त्र हो जाओ ताकक उन सब लोगों को जो आत्ि-ववजयी और स्वतन्त्र
होने के मलए तड़प रहे हैं तुि स्वतन्त्रता तक पहुाँिा सको । इसमलए िीरदाद अण्डाणु के इस तनयि
को और अचिक स्पष्ट करना िाहे गा, खासकर जहााँ तक इसका सम्बन्ि िनष्ु य से है ।
िनुष्य से नीिे जीवों के सब वगा सािदू हक अण्डाणओ
ु ीं िें बन्द हैं । इस तरह पौिों के मलए उतने ही
अण्डाणु हैं ल्जतने पौिों के प्रकार हैं,
जो अचिक ववकमसत हैं उनके अींदर सभी कि ववकमसत बन्द हैं और यही ल्स्थतत कीड़ों, िछमलयों
और स्तनपायी जीवों की है; सदा ही जीवन के एक अचिक ववकमसत वगा के अन्दर उससे नीिे के
सभी वगा बन्द होते हैं ।
जैसे सािारण अण्डे के भीतर की जदी और सिेदी उसके अींदर के िूजों के भ्रूण का पोषण और ववकास
करती है, वैसे ही ककसी भी अण्डाणु िें बन्द सभी अण्डाणु उसके अन्दर के लघु-परिात्िा का पोषण
और ववकास करते हैं ।
प्रत्येक अण्डाणु िें सिय- स्थान का जो अींश लघु-परिात्िा को मिलता है, वह वपछले अण्डाणु िें
मिलने वाले अींश से थोड़ा मभन्न होता है ।
इसमलए सिय-स्थान िें लघ-ु परिात्िा के प्रसार िें अन्तर होता है । गैस िें वह बबखरा हुआ
आकारहीन होता है, पर तरल पदाथा िें अचिक घना हो जाता है और आकर िारण करने की ल्स्थतत
िें आ जाता है;
जबकक खतनज िें वह एक तनल्श्ित आकार और ल्स्थरता िारण कर लेता है । परन्तु इन सब
ल्स्थततयों िें वह जीवन के गण
ु ों से रदहत होता है जो उच्ितर श्रेखणयों िें प्रकट होते हैं। वनस्पतत िें
वह ऐसा रूप अपनाता है ल्जसिे बढ़ने, अपनी सींख्या-वद्
ृ चि करने और िहसस
ू करने की क्षिता होती
है ।
पशु िें वह िहसूस करता है, िलता है और सींतान पैदा करता है; उसिे स्िरण शल्क्त होती है और
सोि-वविार के िूल तत्व भी लेककन िनुष्य िें, इन सब गुणों के अततिरक्त, वह एक व्यल्क्तत्व और
सोि-वविार करने, अपने आपको अमभव्यक्त करने तथा सज
ृ न करने की क्षिता भी प्राप्त कर लेता है

तनिःसींदेह परिात्िा के सज
ृ न की तुलना िें िनुष्य का सज
ृ न ऐसा ही है जैसा ककसी िहान वास्तक
ु ार
द्वारा तनमिात एक भव्य िींददर या सन्
ु दर दग
ु ा की तल
ु ना िें एक बच्िे द्वारा बनाया गया ताींस के पिों
का घर। ककन्तु है तो वह किर भी सज
ृ न ही।प्रत्येक िनष्ु य एक अलग अण्डाणु बन जाता है,
और ववकमसत िनुष्य िें कि ववकमसत िानव-अण्डाणओ
ु ीं के साथ सब पश,
ु वनस्पतत तथा उनके
तनिले स्तर के अण्डाण,
ु केंद्रीय नामभक तक, बन्द होते हैं। जबकक सबसे अचिक ववकमसत िनुष्य
िें—आत्ि-ववजेता िें—सभी िानव अण्डाणु और उनसे तनिले स्तर के सभी अण्डाणु भी बन्द होते हैं।
ककसी िनष्ु य को अपने अींदर बींद रखने वाले अण्डाणु का ववस्तार उस िनष्ु य के सिय-स्थान के
क्षक्षततजों के ववस्तार से नापा जाता है। जहााँ एक िनुष्य की सिय िेतना और उसके शैशव से लेकर
विािान घडी तक की अकप अवचि से अचिक और कुछ नहीीं सिा सकता,
और उसके स्थान के क्षक्षततजों के घेरे िें उसकी दृष्टी की पहुाँि से परे का कोई पदाथा नहीीं आता, वहााँ
दस
ू रे व्यल्क्त के क्षक्षततज स्िरणातीत भत
ू और सद
ु रू भववष्य को, तथा स्थान की लम्बी दिू रयों को
ल्जन पर अभी उसकी दृष्टी नहीीं पड़ी है अपने घेरे िें ले आते हैं।
प्रसार के मलए सब िनुष्यों को सिान भोजन मिलता है, पर उनका खाने और पिाने का सािथ्या
सिान नहीीं होता ; क्योंकक वे एक ही अण्डाणु िें से एक ही सिय और एक ही स्थान पर नहीीं
तनकले हैं।
इसमलए सिय-स्थान िें उनके प्रसार िें अन्तर होता है; और इसी मलये कोई दो िनुष्य ऐसे नहीीं
मिलते जो हूबहू एक जैसे हों।सब लोगों के सािने प्रिरु िात्रा िें और खल
ु े हाथों परोसे गये भोजन िें
से एक व्यल्क्त स्वणा की शद्
ु िता और सद ींु रता को दे खने का आनींद लेता है और तप्ृ त हो जाता है,
जब कक दस
ू रा स्वणा का स्वािी होने का रस लेता है और सदा भूखा रहता है। एक मशकारी एक सुींदर
दहरनी को दे खकर उसे िारने और खाने के मलये प्रेिरत होता है; एक कवी उसी दहरनी को दे खकर
िानो पींखों पर उड़ान भरता हुआ उस सिय और स्थान िें जा पहुाँिता है ल्जसका मशकारी कभी सपना
भी नहीीं दे खता ।
एक आत्ि-ववजेता का जीवन हर व्यल्क्त के जीवन को हर ओर से छूता है, क्योंकक सब व्यल्क्तयों के
जीवन उसिे सिाये हुये हैं। परन्तु आत्ि-ववजेता के जीवन को ककसी भी व्यल्क्त का जीवन हर ओर
से नहीीं छूता। अत्यन्त सरल व्यल्क्त को आत्ि-ववजेता अत्यन्त सरल प्रतीत होता है। अत्यन्त
ववकमसत व्यल्क्त को वह अत्यन्त ववकमसत ददखाई दे ता है ।
ककन्तु आत्ि-ववजेता के सदा कुछ ऐसे पक्ष होते हैं ल्जन्हे आत्ि-ववजेता के मसवाय और कोई न कभी
सिि सकता है, न िहसूस कर सकता है । यही कारण है कक वह सबके बीि िें रहते हुए भी अकेला
है ; वह सींसार िें है किर भी सींसार का नहीीं है।
लघ-ु परिात्िा बन्दी नहीीं रहना िाहता। वह िनष्ु य की बद्
ु चि से कहीीं ऊाँिी बद्
ु चि का प्रयोग करते हुये
सिय तथा स्थान के कारावास से अपनी िल्ु क्त के मलये सदै व काया-रत रहता है। तनम्न स्तर के लोगों
िें इस बद्
ु चि को लोग सहज-बुद्चि कहते हैं।
सािारण िनुष्यों िें वे इसे तका और उच्ि कोदट के िनष्ु यों िें इसे ददव्य बद्
ु चि कहते हैं। यह सब तो
वह है ही, पर इससे अचिक भी बहुत कुछ है । यह वह अनाि शल्क्त है ल्जसे कुछ लोगों ने ठीक ही
पववत्र शल्क्त का नाि ददया है , और ल्जसे िीरदाद ददव्य ज्ञान कहता है।
सिय के खोल को बेिने वाला और स्थान की सीिा को लााँघने वाला प्रथि िानव- पुत्र ठीक ही प्रभु
का पत्र
ु कहलाता है । उसका अपने ईश्वरत्व का ज्ञान ठीक ही पववत्र शल्क्त कहलाता है।
ककन्तु ववश्वास रखो तुि भी प्रभु के पुत्र हो, और तम्
ु हारे अन्दर भी वह पववत्र शल्क्त अपना काया कर
रही है । उसके साथ काया करो उसके ववरुद्ि नहीीं।परन्तु जब तक तुि सिय के खोल को बेि नहीीं दे ते
और स्थान की सीिा को लााँघ नहीीं जाते, तब तक कोई यह न कहे , ”िैं प्रभु हूाँ”।
बल्कक यह कहो ” प्रभु ही िैं हैं।” इस बात को अच्छी तरह ध्यान िें रखो, कहीीं ऐसा न हो कक
अहीं कार तथा खोखली ककपनाएाँ तम्
ु हारे ह्रदय को भ्रष्ट कर दें और तम्
ु हारे अन्दर हो रहे पववत्र शल्क्त
के काया का ववरोि करें । क्योंकक अचिकााँश लोग पववत्र शल्क्त के ववरुद्ि काया करते हैं, और इस
प्रकार अपनी अींतति िल्ु क्त को स्थचगतकअऋ दे ते हैं।
सिय को जीतने के मलए यह आवश्यक है कक तुि सिय द्वारा ही सिय के ववरुद्ि लड़ो। स्थान को
पराल्जत करने के मलए यह आवश्यक है कक तुि स्थान को ही स्थान का आहार बनने दो।
दोनों िें से एक का भी स्नेहपण
ू ा स्वागत करना दोनों का बन्द होना तथा नेकी और बदी की अन्तहीन
हास्य-जनक िेष्टाओीं का बन्िक बने रहना है ।
ल्जन लोगों ने अपनी तनयतत को पहिान मलया है और उस तक पहुाँिने के मलए तड़पते हैं, वे सिय
के साथ लाड़ करने िें सिय नहीीं गाँवाते और न ही स्थान िें भटकने िें अपने कदि नष्ट करते हैं।
सम्भव है कक वे एक ही जीवन- काल िें युगों को सिेट लें तथा अपार दिू रयों को मिटा दें । वे इस
बात की प्रतीक्षा नहीीं करते कक ित्ृ यु उन्हें उनके इस अण्डाणु से अगले अण्डाणु िें ले जाये;
वे जीवन पर ववश्वास रखते हैं कक बहुत से अण्डाणओ ु ीं के खोलों को एक साथ तोड़ डालने िें वह उनकी
सहायता करे गा। इसके मलए तम्ु हे हर वस्तु के िोह का त्याग करना होगा,
ताकक सिय तथा स्थान की तम्
ु हारे ह्रदय पर कोई पकड़ न रहे । ल्जतना अचिक तम्
ु हारा पिरग्रह होगा,
उतने ही अचिक होंगे तुम्हारे बन्िन।
ल्जतना कि तम्
ु हारा पिरग्रह होगा, उतने ही कि होंगे तम्
ु हारे बन्िन।
हााँ, अपने ववश्वास, अपने प्रेि
तथा ददव्य ज्ञान के द्वारा
िुल्क्त के मलये अपनी तड़प के
अततिरक्त हर वस्तु की
लालसा को त्याग दो।
अध्याय-35
परिात्िा की राह पर
हर िागा प्रकाश से भर ददया जाएगा
*************************************
परिात्िा की राह पर प्रकाश-कण
*************************************
िीरदाद; इस रात के सन्नाटे िें िीरदाद परिात्िा परिात्िा की ओर जानेवाली राह पर कुछ प्रकाश-
कण ववखेरना िाहता है ।
वववाद से बिो सत्य स्वयीं प्रिाखणत है; उसे ककसी प्रिाण की आवश्यकता नहीीं है । ल्जसे तका और
प्रिाण कक आवश्यकता होती है ,
उसे दे र-सवेर तका और प्रिाण के द्वारा ही चगरा ददया जाता है। ककसी बात को मसद्ि करना उसके
प्रततपक्ष को खींड़डत करना है। उसके प्रततपक्ष को मसद्ि करना उसका खींडन करना है। परिात्िा का
कोई प्रततपक्ष है ही नहीीं किर तुि कैसे उसे मसद्ि करोगे या कैसे उसका खींडन करोगे ?
यदद ल्जव्हा को सत्य का वाहक बनाना िाहते हो तो उसे कभी िूसल, ववषदीं त, वातसूिक ,कलाबाज
या सिाई करनेवाला नहीीं बनाना िादहए। बेजबानों को राहत दे ने के मलये बोलो। अपने आप को राहत
दे ने के मलये िौन रहो। शब्द जहाज हैं जो स्थान के सिद्र
ु ों िें िलते हैं।
और अनेक बींदरगाहों पर रुकते हैं। साविान रहो कक तुि उनिे क्या लादते हो; क्योंकक अपनी यात्रा
सिाप्त करने के बाद वे अपना िाल आखखर तह ु ारे द्वार पर ही उतारें गे। घर के मलए जो िहत्वज िाड़ू
का है, वही िहत्व ह्रदय के मलए आत्ि-तनरीक्षण का है ।
अपने ह्रदय को अच्छी तरह बुहारो। अच्छी तरह बुहारा गया ह्रदय एक अजेय गुगा है।जैसे तुि लोगों
और पदाथों को अपना आहार बनाते हो, वैसे ही वे तम्
ु हे अपना आहार बनाते हैं। यदद तुि िाहते हो
कक तम्
ु हे ववष न मिले, तो दस
ू रों के मलए स्वास्थ्य-प्रद भोजन बनो। जब तम्
ु हे अगले कदि के ववषय
िें सींदेह हो, तनश्छल खड़े रहो।
ल्जसे तुि नापसींद करते हो वह तम्
ु हे नापसींद करता है, उसे पसींद करो और ज्यों का त्यों रहने दो।
इस प्रकार तुि अपने रास्ते से एक बािा हटा दोगे। सबसे अचिक असह्य परे शानी है ककसी बात को
परे शानी सििना। अपनी पसींद का िन
ु ाव कर लो; हर वस्तु स्वािी बनना है या ककसी का भी नहीीं।
बीि का कोई िागा सम्भव नहीीं। रास्ते का हर रोड़ा एक िेतावनी है।
िेतावनी को अच्छी तरह पढ़ लो, और रास्ते का रोड़ा प्रकाश स्तम्भ बन जायेगा। सीिा टे ढ़े का भाई
है । एक छोटा रास्ता है दस
ू रा घुिावदार। टे ढ़े के प्रतत िैया रखो। ववश्वास-युक्त िैया स्वास्थ्य है ।
ववश्वास-रदहत िैया अिाांग है।होना, िहसूस करना, सोिना, ककपना करना, जानना –यह हैं िनुष्य
के जीवन-िक्र के िुख्य पड़ावों का क्रि। प्रशींसा करने और पाने से बिो;
जब प्रशींसा सवाथा तनश्छल और उचित हो तब भी। जहााँ तक िापलूसी का सम्बन्ि है , उसकी
कपटपूणा कसिों के प्रतत गाँूगे और बहरे बन जाओ । दे ने का एहसास रखते हुए कुछ भी दे ना उिार
लेना ही है । वास्तव िें ति
ु ऐसा कुछ भी नहीीं दे जो तम्
ु हारा है ।
तुि लोगों को केवल वाही दे ते हो जो तम्
ु हारे पास उनकी अिानत है । जो तम्
ु हारा है, मसिा तम्
ु हारा
ही, वह तुि दे नहीीं सकते िाहो तो भी नहीीं। अपना सींतुलन बनाये रखो, और तुि िनुष्यों के मलए
अपने आपको नापने का िापदण्ड और तौलने की तराजू बन जाओ।
गरीबी और अिीरी नाि की कोई िीज नहीीं है, बात वस्तुओीं का उपयोग करने के कौशल की है असल
िें गरीब वह है जो उन वस्तओ
ु ीं का जो उसके पास हैं गलत उपयोग करता है। अिीर वह है जो अपनी
वस्तुओीं का सही उपयोग करता है।
बासी रोटी की सूखी पपड़ी भी ऐसी दौलत हो सकती है ल्जसे आींका न जा सके। सोने से भरा तहखाना
भी ऐसी गरीबी हो सकता है ल्जससे छुटकारा न मिल सके। जहााँ बहुत से रास्ते एक केंद्र िें मिलते हों
वहााँ इस अतनश्िय िें ित पड़ो कक ककस रस्ते से िला जाये।
प्रभु की खोज िें लगे ह्रदय को सभी रास्ते प्रभु की ओर लेजा रहे हैं। जीवन के सब रूपों के प्रतत
आदर-भाव रखो। सबसे तुच्छ रूप िें सबसे अचिक िहत्त्वपूणरू
ा प की कींु जी छुपी तछपी रहती है।
जीवन की सब कृततयााँ िहत्वपण
ू ा हैं —हााँ, अद्भत
ु ,श्रेष्ठ और अद्ववतीय। जीवन अपने आपको
तनरथाक, तुच्छ कािों िें नहीीं लगाता।
प्रकृतत के कारखाने िें कोई वस्तु तभी बनती है जब वह प्रकृतत की प्रेिपूणा दे खभाल और श्रिपूणा
कौशल की अचिकारी हो। तो क्या वह कि से कि तम्
ु हारे आदर कक अचिकारी नहीीं होनी िादहए ?
यदद िच्छर और िीींदटयााँ आदर के योग्य हों, तो तम्
ु हारे साथी िनुष्य उनसे ककतने अचिक आदर के
योग्य होने िादहयें ? ककसी िनष्ु य से घण
ृ ा न करो। एक भी िनष्ु य से घण
ृ ा करने की अपेक्षा प्रत्येक
िनुष्य से घण
ृ ा पाना कहीीं अच्छा है।
क्योंकक ककसी िनुष्य से घण
ृ ा करना उसके अींदर के लघु-परिात्िा से घण
ृ ा करना है । ककसी भी िनुष्य
के अींदर लघु-परिात्िा से घण
ृ ा करना अपने अींदर के लघु-परिात्िा से घण
ृ ा करना है ।
वह व्यल्क्त भला अपने बींदरगाह तक कैसे पहुाँिेगा जो बींदरगाह तक ले जाने वाले अपने एकिात्र
िकलाह का अनादर करता हो ?नीिे क्या है, यह जानने के मलये ऊपर दृष्टी डालो। ऊपर क्या है,
यह जानने के मलये नीिे दृष्टी डालो। ल्जतना ऊपर िढ़ते हो उतना ही नीिे उतरो; नहीीं तो तुि
अपना सींतुलन खो बैठोगे।
आज तुि मशष्य हो। कल ति
ु मशक्षक बन जाओगे। अच्छे मशक्षक बनने के मलये अच्छे मशष्य बने
रहना आवश्यक है। सींसार िें से बदी के घाींस-पात को उखाड़ िेंकने का यत्न न करो; क्योंकक घास-
पात की भी अच्छी खाद बनती है।
उत्साह का अनचु ित प्रयोग बहुिा उत्साही को ही िार डालता है। केवल ऊाँिे और शानदार वक्ष
ृ ों से ही
जींगल नहीीं बन जाता; िाड़ड़याीं और मलपटती लताओीं की भी आवश्यकता होती है ।
पाखण्ड पर पदाा डाला जा सकता है,लेककन कुछ सिय के मलए ही;उसे सदा ही परदे िें नहीीं रखा जा
सकता, न ही उसे हटाया या नष्ट ककया जा सकता है। दवू षत वासनाएाँ अींिकार िें जन्ि लेती हैं और
वहीीँ िलती-िूलती हैं। यदद ति
ु उन्हें तनयींत्रण िें रखना िाहते हो तो उन्हें प्रकाश िें आने की
स्वतन्त्रता दो।
यदद तुि हजार पाखल्ण्डयों िें से एक को भी सहज ईिानदारी की राह पर वापस लाने िें सिल हो हो
जाते हो तो सििुि िहान है तम्
ु हारी सिलता। िशाल को ऊाँिे स्थान पर रखो, और उसे दे खने के
मलये लोगों को बल
ु ाते न किरो ल्जन्हे प्रकाश कक आवश्यकता है उन्हें ककसी तनिींत्रण की आवश्यकता
नहीीं होती।
बुद्चिििा अिूरी बद्
ु चि वाले के मलये बोि है, जैसे िूखत
ा ा िुखा के मलये बोि है। बोि उठाने िें
अिूरी बद्
ु चि वाले कक सहायता करो और िूखा को अकेला छोड़ दो; अिूरी बद्
ु चि वाला िुखा को तुिसे
अचिक मसखा सकता है।
कई बार तम्
ु हे अपना िागा दग
ु ि
ा ,अींिकारपण
ू ा और एकाकी लगेगा। अपना इरादा पक्का रखो और
दहम्ित के साथ कदि बढ़ाते जाओ; और हर िोड़ पर तम्
ु हे एक नया साथी मिल जायेगा। पथ-ववहीन
स्थान िें ऐसा कोई पथ नहीीं ल्जस पर अभी तक कोई न िला हो।
ल्जस पथ पर पद-चिन्ह बहुत कि और दरू -दरू हैं, वह सीिा और सुरक्षक्षत है, िाहे कहीीं-कहीीं उबड़-
खाबड़ और सुनसान है । जो िागादशान िाहते हैं उन्हें िागा ददखा सकते है, उस पर िलने के मलए
वववश नहीीं कर सकते। याद रखो ति
ु िागादशाक हो। अच्छा िागादशाक बनने के मलये आवश्यक है कक
स्वयीं अच्छा िागादशान पाया हो। अपने िागादशाक पर ववश्वास रखो।
कई लोग तिु से कहें गे, ”हिें रास्ता ददखाओ।” ककन्तु थोड़े ही बहुत ही थोड़े कहें गे, ”हि ति
ु से
ववनती करते हैं कक रास्ते िें हिारी रहनुिाई करो”।आत्ि-ववजय के िागा िें वे थोड़े- से लोग उन कई
लोगों से अचिक िहत्त्व रखते हैं। तुि जहााँ िल न सको रें गो।
जहााँ दौड़ न सको, िलो; जहााँ उड़ न सको, दौड़ो; जहााँ सिूिे ववश्व को अपने अींदर रोक कर खड़ा
न कर सको,उड़ो। जो व्यल्क्त तम्
ु हारी अगुआई िें िलते हुए ठोकर खाता है उसे केवल एक बार, दो
बार या सौ बार ही नहीीं उठाओ।
याद रखो कक तुि भी कभी बच्िे थे, और उसे तब तक उठाते रहो जब तक वह ठोकर खाना बन्द न
कर दे । अपने ह्रदय और िन को क्षिा से पववत्र कर लो ताकक जो भी सपने तम्
ु हे आयें वे पववत्र हों।
जीवन एक ज्वर है जो हर िनुष्य कक प्रवतृ त या िुन के अनस
ु ार मभन्न-मभन्न प्रकार का और मभन्न-
मभन्न िात्रा िें होता है; और इसिें िनष्ु य सदा प्रलाप की अवस्था िें रहता है।
भाग्यशाली हैं वे िनष्ु य जो ददव्य ज्ञान से प्राप्त होने वाली पववत्र स्वतींत्रता के नशे िें उन्िि रहते हैं।
िनुष्य के ज्वर का रूप-पिरवतान ककया जा सकता है; यद्
ु ि के ज्वर को शाल्न्त के ज्वर िें बदला जा
सकता है
और िन-सींिय के ज्वर को प्रेि का सींिय करने के ज्वर िें। ऐसी है ददव्य ज्ञान की वह रसायन-
ववद्या ल्जसे तम्
ु हे उपयोग िें लाना है और ल्जसकी तम्
ु हे मशक्षा दे नी है। जो िर रहे हैं उन्हें जीवन का
उपदे श दो,
जो जी रहे हैं उन्हें ित्ृ यु का। ककन्तु जो आत्ि ववजय के मलए तड़प रहे हैं, उन्हें दोनों से िुल्क्त का
उपदे श दो।वश िें रखने और वश िें होने िें बड़ा अींतर है। तुि उसी को वश िें रखते हो ल्जससे तुि
प्यार करते हो।
ल्जससे तुि घण
ृ ा करते हो, उसके तुि वश िें होते हो। वश िें होने से बिो। सिय और स्थान के
ववस्तार िें एक से अचिक पल्ृ थ्वयााँ अपने पथ पर घि
ू रहीीं हैं। तम्
ु हारी पथ्
ृ वी इस पिरवार िें सबसे
छोटी है, और यह बड़ी हृष्ट-पुष्ट बामलका है। एक तनश्िल गतत—–कैसा ववरोिाभास है।
ककन्तु परिात्िा िें सींसारों की गतत ऐसी ही है।यदद तुि जानना िाहते हो कक छोटी-बड़ी वस्तए
ु ाँ बराबर
कैसे हो सकती हैं तो अपने हाथों की अाँगुमलयों पर दृष्टी डालो। सींयोग बद्
ु चििानों के हाथ िें एक
खखलौना है; िख
ु ा सींयोग के हाथ िें खखलौना होते हैं। कभी ककसी िीज की मशकायत न करो।
ककसी िीज की मशकायत करना उसे अपने आपके मलये अमभशाप बना लेना है। उसे भली प्रकार सहन
कर लेना उसे उचित दण्ड दे ना है। ककन्तु उसे सिि लेना उसे एक सच्िा सेवक बना लेना है ।
प्रायिः ऐसा होता है कक मशकारी लक्ष्य ककसी दहरनी को बनाता है परन्तु लक्ष्य िक
ु ने से िारा जाता है
कोई खरगोश ल्जसकी उपल्स्थतत का उसे बबलकुल ज्ञान न था। ऐसी ल्स्थतत िें एक सििदार मशकारी
कहे गा, ”िैंने वास्तव िें खरगोश को ही लक्ष्य बनाया था, दहरनी को नहीीं। और िैंने अपना मशकार
िार मलया। ”लक्ष्य अच्छी तरह से सािो।
पिरणाि जो भी हो अच्छा ही होगा। जो तम्
ु हे पास आ जाता है, वह तुम्हारा है। जो आने िें ववलम्ब
करता है, वह इस योग्य नहीीं कक उसकी प्रतीक्षा की जाये। प्रतीक्षा उसे करने दो।ल्जसका तनशाना तुि
सािते हो यदद वह तम्
ु हे तनशाना बना ले तो तिु तनशाना कभी नहीीं िक
ू ोगे िक
ू ा हुआ तनशाना सिल
तनशाना होता है। अपने ह्रदय को तनराशा के सािने अभेद्य बना लो।
तनराशा वह िील है ल्जसे दब
ु ल
ा ह्रदय जन्ि दे ते हैं और वविल आशाओीं के सड़े-गले िाींस पर पालते हैं।
एक पणू ा हुई आशा कई ित
ृ -जात आशाओीं को जन्ि दे ती है । यदद ति
ु अपने ह्रदय को कबब्रस्तान नहीीं
बनाना िाहते तो साविान रहो, आशा के साथ उसका वववाह ित करो।
हो सकता है ककसी िछली के ददए सौ अण्डों िें से केवल एक िें से बच्िा तनकले। तो भी बाकी
तनन्यानवे व्यथा नहीीं जाते। प्रकृतत बहुत उदार है, और बहुत वववेक है उसकी वववेकहीनता िें।
तुि भी लोगों के ह्रदय और बुद्चि िें अपने ह्रदय और बद् ु चि को बोने िें उसी प्रकार उदार और
वववेकपव
ू क
ा वववेकहीन बनो। ककसी भी पिरश्रि के मलए परु स्कार ित िााँगो। जो अपने पिरश्रि से प्यार
करता है,
उसका पिरश्रि स्वयीं पयााप्त पुरस्कार है।
सज
ृ नहार शब्द तथा पूणा सींतल
ु न को याद रखो। जब तुि ददव्य ज्ञान के द्वारा यह सींतुलन प्राप्त कर
लोगे तभी तुि आत्ि-ववजेता बनोगे, और तम्
ु हारे हाथ प्रभु के हाथों के साथ मिलकर काया करें गे।
परिात्िा करे इस राबत्र की नीरवता और शाल्न्त का स्पन्दन तम्
ु हारे अींदर तब तक होता रहे जब तक
तुि उन्हें ददव्य ज्ञान की नीरवता और शाल्न्त िें डुबा न दो।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हें ।
अध्याय-36
नौका-ददवस तथा उसके िामिाक अनष्ु ठान
जीववत दीपक के बारे िें बेसार
के सुलतान का सन्दे श
*************************************
नरौंदा ; जबसे िमु शाद बेसार से लौटे से लौटे तब से शिदाि उदास और अलग-अलग सा रहता था।
ककन्तु जब नौका- ददवस तनकट आ गया तो वह उकलास तथा उत्साह से भर गया और सभी जदटल
तैयािरयों का छोटी से छोटी बातों तक का,
तनयींत्रण उसने स्वयीं सींभल मलया।
अींगूर-बेल के ददवस की तरह नौका-ददवस को भी एक ददन से बढ़ाकर उकलास- भरे आिोद-प्रिोद का
पूरा सप्ताह बना मलया गया था ल्जसिे सब प्रकार की वस्तुओीं तथा सािान का तेजी के साथ व्यापार
होता है ।
इस ददन के अनेक िामिाक अनुष्ठानों िें सबसे अचिक िहत्वपूणा हैं; बमल िढ़ाये जाने वाले बैल का
वि, बाली-कुण्ड की अल्ग्न को प्रज्वमलत करना, और उस अल्ग्न से वेदी पर पुराने दीपक के स्थान
पर नये दीपक को जलना। इस वषा दीपक भेंट करने के मलए बेसार के सुलतान को िन
ु ा गया था।
उत्सव के एक ददन पहले शिदाि ने हिें और िमु शाद को अपने कक्ष िें बुलाया और हिसे अचिक
िमु शाद को सम्बोचित करते हुए उसने ये शब्द कहे ;शिदाि:> कल एक पववत्र-ददवस है ;
हि सभी को यही शोभा दे ता है कक उसकी पववत्रता को बनाये रखें। वपछले िगड़े कुछ भी रहे हों,
आओ उन्हें हि यहीीं और अभी दिना दें । यह नहीीं होना िादहए कक नौका की प्रगतत िीिी पद जाये,
या हिारे उत्साह िें कोई किी आ जाये। और परिात्िा न करे कक नौका ही रुक जाये। िैं इस नौका
का िखु खया हूाँ।
इसके सींिालन का कदठन दातयत्व िि
ु पर है। इसका िागा तनल्श्ित करने का अचिकार िि
ु े प्राप्त है ।
ये कताव्य और अचिकार िुिे ववरासत िें मिले हैं ; इसी प्रकार िेरी ित्ृ यु के बाद वे तनश्िय ही
ति
ु िें से ककसी को मिलेंगे। जैसे िैंने अपने अवसर की प्रतीक्षा की थी,
तुि भी अपने अवसर की प्रतीक्षा करो। यदद िैंने िीरदाद के साथ अन्याय ककया है तो वह िेरे
अन्याय को क्षिा कर दे ।
िीरदाद : िीरदाद के साथ ति
ु ने कोई अन्याय नहीीं ककया है लेककन शिदाि के साथ तुिने घोर
अन्याय ककया है।
शिदाि : क्या शिदाि को शिदाि के साथ अन्याय करने की स्वतींत्रता नहीीं है ?
िीरदाद : अन्याय करने की स्वतींत्रता ? ककतने बेिोल हैं ये शब्द ! क्योंकक अपने साथ अन्याय करना
भी अन्याय का दास बनना है ; जबकक दस
ू रों के साथ अन्याय करना एक दास का दास बन जाना है ।
ओह, भारी होता है अन्याय का बोि।
शिदाि; यदद िैं अपने अन्याय का बोि उठाने को तैयार हूाँ तो इसिें तम्
ु हारा क्या बबगड़ता है ?
िीरदाद : क्या कोई बीिार दाींत िहाँु से कहे गा कक कक यदद िैं अपनी पीड़ा सहने को तैयार हूाँ तो
इसिें तम्
ु हारा क्या बबगड़ता है ?
शिदाि : ओह, िुिे ऐसा ही रहने दो, बस ऐसा ही रहने दो। अपना भरी हाथ िि
ु से दरू हटा लो,
और ित िारो िि
ु े िाबुक अपनी ितुर ल्जव्हा से। िि
ु े अपने बाकी ददन वैसे ही जी लेने दो जैसे िैं
अब तक पिरश्रि करते हुए जीता आया हूाँ। जाओ, अपनी नौका कहीीं और बना लो, पर इस नौका िें
हस्तक्षेप न करो। तम्
ु हारे और िेरे मलए, तथा तम्
ु हारी और िेरी नौकाओीं के मलए यह सींसार बहुत
बड़ा है।
कल िेरा ददन है । तुि सब एक ओर खड़े रहो और िुिे अपना काया करने दो —
क्योंकक िैं तुििें से ककसी का भी
हस्तक्षेप सहन नहीीं करूाँगा।
ध्यान रहे शिदाि का प्रततशोि उतना ही भयानक है ल्जतना परिात्िा का। साविान ! साविान !
िीरदाद ; शिदाि का ह्रदय अभी तक शिदाि का ही ह्रदय है ।उस क्षण एक लम्बा और प्रभावशाली
व्यल्क्त, जो स़िेद वस्त्र पहने हुए था, िक्कि िक्का करते कदठनाई से अपना रास्ता बनाते हुए वेदी
की ओर आता ददखाई ददया।
तत्काल दबी आवाज िें कानों-कान बात ़िैल गई कक यह बेसार के सक
ु तान का तनजी दत
ू है जो नया
दीपक ले कर आया है ;
और सब लोग उस बहुिूकय तनचि की िलक पाने के मलए उत्सक ु हो उठे । ओरों की तरह यह िानते
हुए कक वह नए वषा की बहुिूकय भेंट लेकर आया है शिदाि ने बहुत नीिे तक िक ु कर उस दत
ू को
प्रणाि ककया।
लेककन उस व्यल्क्त ने शिदाि को दबी आवाज से कुछ कहकर अपनी जेब से एक ििा-पत्र तनकला
और, यह स्पष्ट कर दे ने के बाद कक इसिें बेसर के सुकतान का सन्दे श है
ल्जसे लोगों तक खद
ु पहुाँिाने का
उसे आदे श ददया गया है,
वह पत्र पढ़ने लगा :”बेसार के भत
ू पव
ू ा सल
ु तान की ओर से आज के ददन नौका िें एकबत्रत दचू िया
पवातिाला के अपने सब साथी िनुष्यों के मलए शाींतत-कािना और प्यार। नौका के प्रतत गहरी श्रद्िा के
आप सब प्रत्यक्ष साक्षी हैं।
इस वषा का दीपक भेंट करने का सम्िान िि ु े प्राप्त हुआ था, इसमलए िैंने बद्
ु चि और िन का
उपयोग करने िें कोई सींकोि नहीीं ककया ताकक िेरा उपहार नौका के योग्य हो। और िेरे प्रयास
पूणत
ा या सिल रहे ; क्योंकक िेरे वैभव और िेरे मशकपकारों के कौशल से जो दीपक तैयार हुआ, वह
सििुि एक दे खने योग्य िित्कार था।
‘लेककन प्रभु िेरे मलए क्षिाशील और कृपालु था, वह िेरी दिरद्रता का भेद नहीीं खोलना िाहता था।
क्योंकक उसने ििु े एक ऐसे दीपक के पास पहुींिा ददया ल्जसका प्रकश िकािौंि कर दे ता है और ल्जसे
बुिाया नहीीं जा सकता, ल्जसकी सद ुीं रता अनप
ु ि और तनष्कलींक है।
उस दीपक को दे खकर िैं इस वविार से लज्जा िें डूब गया कक िैंने अपने दीपक की कभी कोई कीित
सििी थी। सो िैंने उसे कूड़े के ढे र पर िेंक ददया।
‘यह वह जीववत दीपक है ल्जसे ककसी के हाथों ने नहीीं बनाया है । िैं ति
ु सबको हाददा क सि
ु ाव दे ता हूाँ
कक उसके दशान से अपने नेत्रों को तप्ृ त करो,
उसी की ज्योतत से अपनी
िोिबवियों को जलाओ।
दे खो वह तम्
ु हारी पहुाँि िें है ।
उसका नाि है िीरदाद।
प्रभु करे कक तुि उसके प्रकाश के योग्य बनो। ”.
अध्याय -37
जो आत्ि ववजय के मलए तड़ि रहे है
वह आए और नौका पर सवार हो जाए

************************************
िमु शाद लोगों कोआग और
खन
ू की बाढ़ से साविान करते हैं..
बिने का िागा बताते हैं,
औरअपनी नौका को जल िें उतारते हैं
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
िीरदाद : क्या िाहते हो तुि िीरदाद से ? वेदी को सजाने के मलए सोने का रत्न-जड़ड़त दीपक ?
परन्तु िीरदाद न सन
ु ार है, न जौहरी, आलोक-स्तम्भ और आश्रय वह भले ही हो।
या तुि ताबीज िाहते हो बुरी नजर से बिने के मलये ? हााँ, ताबीज िीरदाद के पास बहुत हैं, परन्तु
ककसी और ही प्रकार के।
या ति
ु प्रकाश िाहते हो ताकक अपने-अपने पव
ू -ा तनल्श्ित िागा पर सरु क्षक्षत िल सको ?
ककतनी ववचित्र बात है। सय
ू ा है तम्
ु हारे पास, िन्द्र है, तारे हैं, किर भी तम्
ु हे ठोकर खाने और चगरने
का डर है ? तो किर तम्
ु हारी आाँखें तुम्हारा िागादशाक बनने के योग्य नहीीं हैं ; या तम्
ु हारी आाँखों के
मलए प्रकाश बहुत कि है । और तुििे से ऐसा कौन है जो अपनी आाँखों के बबना काि िला सके ?
कौन है जो सयू ा पर कृपणता का दोष लगा सके ? वह आाँख ककस काि की जो पैर को तो अपने िागा
पर ठोकर खाने से बिा ले,
लेककन जब ह्रदय राह टटोलने का व्यथा प्रयास कर रहा हो तो उसे ठोकरें खाने के मलये और अपना
रक्त बहाने के मलये छोड़ दे ?
वह प्रकाश ककस काि का जो आाँख को तो ज्यादा भर दे , लेककन आत्िा को खाली और प्रकाशहीन
छोड़ दे ? क्या िाहते हो ति
ु िीरदाद से ?
दे खने की क्षिता रखनेवाला ह्रदय और प्रकश िें नहाई आत्िा िाहते हो और उनके मलए व्याकुल हो
रहे हो, तो तुम्हारी व्याकुलता व्यथा नहीीं है।
क्योंकक िेरा सम्बन्ि िनष्ु य की आत्िा और ह्रदय से है ।इस ददन के मलए जो गौरवपण
ू ा आत्ि-ववजय
का ददन है, तुि उपहार-स्वरुप क्या लाये हो ?
बकरे , िेढ़े और बैल ? ककतनी तुच्छ कीित िक
ु ाना िाहते हो तुि िुल्क्त के मलये ! ककतनी सस्ती
होगी वह िुल्क्त ल्जसे तुि खरीदना िाहते हो !ककसी बकरे पर ववजय पा लेना िनुष्य के मलए कोई
गौरव की बात नहीीं।
और गरीब बकरे के प्राण अपनी प्राण-रक्षा के मलए भेंट करना तो वास्तव िें िनष्ु य के मलये अत्यींत
लज्जा की बात है। क्या ककया है तुिने इस पववत्र-ददन की पववत्र भावना िें योग दे ने के मलये,
जो प्रकट ववश्वास और हर परख िें सिल प्रेि का ददन है ? हााँ, तनश्िय ही ति
ु ने तरह-तरह की
रस्िें तनभाई हैं, और अनेक प्राथानाएाँ दोहराई हैं।
ककन्तु सींदेह तुम्हारी हर कक्रया के साथ रहा है, और घण
ृ ा तम्
ु हारी हर प्राथाना पर ”तथास्तु”कहती रही
है । क्या ति
ु जल-प्रलय का उत्सव िानाने के मलये नहीीं आये हो ? पर ति
ु एक ऐसी ववजय का
उत्सव क्यों िानते हो ल्जसिे तुि पराल्जत हो गये ?
क्योंकक नूह ने अपने सिुद्रों को पराल्जत करते सिय तम्
ु हारे सिुद्रों को पराल्जत नहीीं ककया था, केवल
उन पर ववजय पाने का िागा बताया था।
और दे खो तम्
ु हारे सिद्र
ु उिन रहे हैं और तम्
ु हारे जहाज को डुबाने पर तुले हुए हैं। जब तक तुि अपने
त़ि
ू ान पर ववजय नहीीं पा लेत,
े ति
ु आज का ददन िानाने के योग्य नहीीं हो सकते। ति ु िे से हर एक
जल-प्रलय भी है,
नौका भी और केवट भी। और जब तक वह ददन नहीीं आ जाता जब तुि अपनी ककसी नहाई-साँवरी
कुाँआरी लींगर डाल लो, अपनी ववजय का उत्सव िानाने की जकदी न करना।तुि जानना िाहोगे कक
िनष्ु य अपने ही मलये बाढ़ कैसे बन गया।
जब पववत्र-प्रभु- इच्छा ने आदि को िीर कर दो कर ददया ताकक वह अपने आप को पहिाने और उस
एक के साथ अपनी एकता का अनुभव कर सके,
तब वह एक परु
ु ष और एक स्त्री बन गया—एक नर-आदि और एक िादा-आदि। तभी डूब गया वह
कािनाओीं की बाढ़ िें जो द्वैत से उत्पन्न होती हैं—कािनाएाँ इतनी बहुसींख्य,
इतनी रीं ग-बबरीं गी, इतनी ववशाल, इतनी कलवु षत और इतनी उवार कक िनष्ु य आज तक उनकी लहरों
िें बेसहारा बह रहा है ।
लहरें कभी उसे ऊींिाई के मशखर तक उठा दे ती हैं तो कभी गहराइयों तक खीींि ले जाती हैं। क्योंकक
ल्जस प्रकार उसका जोड़ा बना हुआ है, उसकी कािनाओीं के भी जोड़े बने हुए हैं। और यद्यवप दो
परस्पर ववरोिी िीजें वास्तव िें एक दस
ू रे की परू क होती हैं, किर भी अज्ञानी लोगों को वे आपस िें
लड़ती-िगड़ती प्रतीत होती हैं और क्षण भर के यद्
ु ि-ववराि की घोषणा करने के मलये तैयार नहीीं जान
पड़तीीं।
यही है वह बाढ़ ल्जससे िनष्ु य को अपने अत्यींत लम्बे, कदठन द्वैतपण
ू ा जीवन िें प्रततक्षण, प्रततददन
सींघषा करना पड़ता है। यही है वह बाढ़ ल्जसकी जोरदार बौछार ह्रदय से िूट तनकलती है और तम्
ु हे
अपनी प्रबल िारा िें बहा ले जाती है। यही है वह बाढ़ ल्जसका इींद्रिनष
ु तब तक तम्
ु हारे आकाश को
शोमभत नहीीं करे गा जब तक तम्
ु हारा आकाश तुम्हारी िरती के साथ न जुड़ जाये और दोनों एक न हो
जाएाँ।
जबसे आदि ने अपने आपको हौवा िें बोया है, िनष्ु य बवण्डरों और बािों की िसलें काटते िले आ
रहे हैं। जब एक प्रकार के िनोवेगों का प्रभाव अचिक हो जाता है, तब िनष्ु यों के जीवन का सींतुलन
बबगड़ जाता है, और तब िनुष्य एक या दस
ू री बाढ़ की लपेट िें आ जाते हैं ताकक सींतुलन पन
ु िः
स्थावपत हो सके।
और सींतुलन तब तक स्थावपत नहीीं होगा जब तक िनुष्य अपनी सब कािनाओीं को प्रेि की परात िें
गाँि
ू कर उनसे ददव्य-ज्ञान की रोटी पकाना नहीीं सीख लेता।
अ़िसोस ! तुि व्यस्त हो बोि लादने िें; व्यस्त हो अपने रक्त िें दख
ु ों से भरपूर भोगों का नशा
घोलने िें; व्यस्त हो कहीीं न ले जाने वाले िागों के िान-चित्र बनाने िें; व्यस्त हो अींदर िााँकनेका
कष्ट ककये बबना जीवन के गोदािों के वपछले अहातों से बीज िन
ु ने िें।
तुि डूबोगे क्यों नहीीं िेरे लावािरश बच्िो ? तुि पैदा हुए थे ऊाँिी उड़ाने भरने के मलये, असीि
आकाश िें वविरने के मलये, ब्रम्हाण्ड को अपने डैनों िें सिेत लेने के मलये। परन्तु ति ु ने अपने आप
को उन परम्पराओीं और ववश्वासों के दरबों िें बींद कर मलया है
जो तम्
ु हारे परों को काटते हैं, तम्
ु हारी दृष्टी को क्षीण करते हैं और तुम्हारी नसों को तनजीव कर दे ते
हैं। तुि आने वाली बाढ़ पर ववजय कैसे पाओगे िेरे लावािरस बच्िो ? तुि प्रभु के प्रततबबम्ब और
सिरूप थे,
ककन्तु ति
ु ने उस सिानता और सिरूपता को लगभग मिटा ददया है । अपने ईश्वरीय आकर को तुिने
इतना बौना कर ददया है कक अब तुि खद
ु उसे नहीीं पहिानते। अपने ददव्य िुख-िण्डल पर तुिने
कीिड़ पोत मलया है, और उस पर ककतने ही िसखरे िख
ु ौटे लगा मलए हैं।
ल्जस बाढ़ के द्वार तुिने स्वयीं खोले हैं उसका सािना ति
ु कैसे करोगे िेरे लावािरस बच्िो ? यदद
तुि िीरदाद की बात पर ध्यान नहीीं दोगे तो िरती तम्
ु हारे मलए कभी भी एक कब्र से अचिक कुछ
नहीीं होगी, न ही आकाश एक क़िन से अचिक कुछ होगा।
जबकक एक का तनिााण तम्
ु हारा पालना बनने के मलए ककया गया था, दस
ू रे का तुम्हारा मसींहासन
बनने के मलए। िैं ति ु से किर कहता हूाँ कक ति ु ही बाढ़ हो, नौका हो और केवट भी। तम्
ु हारे िनोवेग
बाढ़ हैं। तम्
ु हारा शरीर नौका है । तुम्हारा ववश्वास केवट है।
पर सब िें व्याप्त है तम्
ु हारी सींककप- शल्क्त और उनके ऊपर है तम्
ु हारे ददव्य ज्ञान की छत्र-छाया।यह
तनश्िय कर लो कक तम्
ु हारी नौका िें पानी न िरस सके और वह सिद्र
ु - यात्रा के योग्य हो; ककन्तु
इसी िें अपना जीवन न गाँवा दे ना; अन्यथा यात्रा आरम्भ का सिय कभी नहीीं आयेगा, और अींत िें
ति
ु वहीीँ पड़े-पड़े अपनी नौका सिेत सड़-गल कर डूब जाओगे।
यह भी तनश्िय कर लेना कक तम्
ु हारा केवट योग्य और िैयव
ा ान हो। पर सबसे अचिक िहत्त्वपूणा यह है
कक ति
ु बाढ़ से से स्रोतों का पता लगाना सीख लो, और उन्हें एक-एक करके सख
ु दे ने के मलए अपनी
सींककप-शल्क्त को साि लो। तब तनश्िय ही बाढ़ थिेगी और अींत िें अपने आप सिाप्त हो जायेगी।
जला दो हर िनोवेग को, इससे पहले कक वह तम्
ु हें जला दें । ककसी िनोवेग के िुख िें यह दे खने के
मलए ित िााँको कक उसके दाींत जहर से भरे हैं या शहद से। ििु-िक्खी जो िूलों का अित
ृ इकट्ठा
करती है उनका ववष भी जिा कर लेती है ।
न ही ककसी िनोवेग के िेहरे को यह पता लगाने के मलए जााँिो कक वह सन्
ु दर है या कुरूप। सााँप का
िेहरा हौवा को परिात्िा के िेहरे से अचिक सद
ींु र ददखाई ददया था। न ही ककसी िनोवेग के भार का
ठीक पता लगाने के मलए उसे तराजू पे रखो। भार िें िक
ु ु ट की तुलना पहाड़ से कौन करे गा ?
परन्तु वास्तव िें िक
ु ु ट पहाड़ से कहीीं अचिक भारी होता है । और ऐसे िनोवेग भी हैं, जो ददन िें तो
ददव्य गीत गाते हैं, परन्तु रात के काले परदे के पीछे क्रोि से दाींत पीसते हैं, काटते हैं और डींक
िारते हैं।
ख़श
ु ी से िूले तथा उसके बोि के नीिे दबे ऐसे िनोवेग भी हैं जो तेजी से शोक के कींकालों िें बदल
जाते हैं। कोिल दृष्टी तथा ववनीत आिरण वाले ऐसे िनोवेग भी हैं जो अिानक भेड़ड़यों से भी अचिक
भूखे,
लकड़बग्घों से भी अचिक िक्कार बन जाते हैं। ऐसे िनोवेग भी हैं जो गुलाब से भी अचिक सुगि
ीं दे ते
हैं जब तक उन्हें छे ड़ा न जाये, लेककन उन्हें छूते और तोड़ते ही उनसे सड़े-गले िाींस तथा कबरबबज्जू
से भी अचिक तघनौनी दग
ु न्ा ि आने लगती है ।
अपने िनोवेगों को अच्छे और बुरे िें ित बााँटो, क्योंकक यह एक व्यथा का पिरश्रि होगा। अच्छाई
बुराई के बबना दटक नहीीं सकती; और बुराई अच्छाई के अींदर ही जड़ पकड़ सकती है। एक ही है नेकी
और बदी का वक्ष
ृ । एक ही है उसका िल भी। तुि नेकी का स्वाद नहीीं ले सकते जब तक साथ ही
बदी को भी न िख लो।
ल्जस िूिी से तुि जीवन का दि
ू पीते हो उसी से ित्ृ यु का दि
ू भी तनकलता है। जो हाथ तम्
ु हे पालने
िें िुलाता है वही हाथ तम्
ु हारी कब्र भी खोदता है। द्वैत की यही प्रकृतत है, िेरे लावािरस बच्िो।
इतने हठी और अहीं कारी न हो जाना कक इसे बदलने का प्रयत्न करो। न ही ऐसी िख
ू त
ा ा करना कक इसे
दो आिे-आिे भागों िें बााँटने का प्रयत्न करो ताकक अपनी पसींद के आिे भाग को रख लो और दस
ू रे
भाग को िेंक दो। क्या तुि द्वैत के स्वािी बनना िाहते हो ? तो इसे न अच्छा सििो न बुरा। क्या
जीवन और ित्ृ यु का दि
ू तम्
ु हारे िुींह िें खट्टा नहीीं हो गया है ?
क्या सिय नहीीं आ गया है कक तुि एक ऐसी िीज से आििन करो जो न अच्छी है न बुरी, क्योंकक
वह दोनों से श्रेष्ठ है ? क्या सिय नहीीं आ गया है कक ति
ु ऐसे िल की कािना करो जो न िीठा है
न कड़वा, क्योंकक वह नेकी और बदी के वक्ष
ृ पर नहीीं लगा है ?क्या तुि द्वैत के िींगुल से िुक्त
होना िाहते हो ?
तो उसके वक्ष
ृ को—नेकी और बदी के वक्ष
ृ को—अपने ह्रदय िें से उखाड़ िेंको। हााँ, उसे जसद और
शाखाओीं सदहत उखाड़ िेंको ताकक ददव्य ज्ञान का बीज, पववत्र ज्ञान का बीज जो सिस्त नेकी और
बदी से परे है, इसकी जगह अींकुिरत और पकलववत हो सके।
तुि कहते हो िीरदाद का सन्दे श तनरानन्द है। यह हिें आने वाले कल की प्रतीक्षा के आनन्द से
वींचित रखता है । यह हिें जीवन िें गाँग
ू े, उदासीन दशाक बना दे ता है, जबकक हि जोशीले प्रततयोगी
बनना िाहते हैं। क्योंकक बड़ी मिठास है प्रततयोचगता िें, दाव पर िाहे कुछ भी लगा हो।
और ििुर है मशकार का जोखखि, मशकार िाहे एक छलावे से अचिक कुछ भी न हो। जब तुि िन िें
इस तरह सोिते हो तब भूल जाते हो कक तम्
ु हारा िन तम्
ु हारा नहीीं है जब तक उसकी बागडोर अच्छे
और बुरे िनोवेगों के साथ है।
अपने िन का स्वािी बनने के मलये अपने अच्छे -बरु े सब िनोवेगों को प्रेि की एकिात्र परात िें गि
ाँू
लो ताकक तुि उन्हें ददव्य ज्ञान के तन्दरू िें पका सको जहााँ द्वैत प्रभु िें ववलीन होकर एक हो जाता
है । सींसार को जो पहले ही अतत दिःु खी है और दिःु ख दे ना बन्द कर दो। तुि उस कुएाँ से तनिाल जल
तनकालने की आशा कैसे कर सकते हो ल्जसिें तुि तनरन्तर हर प्रकार का कूड़ा-करकट और कीिड़
िेंकते रहते हो ?
ककसी तालाब का जल स्वच्छ और तनश्िल कैसे रहे गा यदद हर क्षण ति
ु उसे हलोरते रहोगे ?दिःु ख िें
डूबे सींसार से शाल्न्त की रकि ित िााँगो, कहीीं ऐसा न हो कक तुम्हे अदायगी दिःु ख के रूप िें हो। दि
तोड़ रहे सींसार से जीवन की रकि ित िाींगो, कहीीं ऐसा न हो कक तम्
ु हे अदायगी ित्ृ यु के रूप िें हो।
सींसार अपनी िद्र
ु ा के मसवाय और ककसी िद्र
ु ा िें तम्
ु हे अदायगी नहीीं कर सकता, और उसकी िद्र
ु ा के
दो पहलू हैं। जो कुछ िााँगना है अपने ईश्वरीय अहि ् से िााँगो जो शाल्न्तपूणा ज्ञान से से इतना सिद्
ृ ि
है ।
सींसार से ऐसी िााँग ित करो जो तुि अपने आप से नहीीं करते। न ही ककसी िनुष्य से कोई ऐसी
िााँग करो जो तुि नहीीं िाहते कक वह तुिसे करे ।
और वह कौन-सी वस्तु है जो यदद सम्पूणा सींसार द्वारा तम्
ु हे प्रदान कर दी जाये तो तम्
ु हारी अपनी
बाढ़ पर ववजय पाने और ऐसी िरती पर पहुाँिने िें तम्
ु हारी सहायता कर सके जो दिःु ख और ित्ृ यु से
नाता तोड़ िक
ु ी है और आकाश से जड़
ु कर स्थायी प्रेि और ज्ञान की शाल्न्त प्राप्त कर िक
ु ी है ?
क्या वह वस्तु सम्पवि है, सिा है, प्रमसद्चि है ? क्या वह अचिकार है,प्रततष्ठा है, सम्िान है ?
क्या वह सिल हुई िहत्त्वाकाींक्षा है, पूणा हुई आशा है ? ककन्तु इन िें से तो हरएक जल का एक
स्रोत है जो तम्
ु हारी बाढ़ का पोषण करता है।
दरू कर दो इन्हे ,िेरे लावािरस बच्िो, दरू , बहुत दरू । ल्स्थर रहो ताकक तुि उलिनो से िुक्त रह
सको। उलिनों से िुक्त रहो ताकक ति ु सींसार को स्पष्ट दे ख सको। जब तुि सींसार के रूप को स्पष्ट
दे ख लोगो, तब तम्
ु हे पता िलेगा कक जो स्वतन्त्रता, शाल्न्त तथा जीवन तुि उससे िाहते हो, वह
सब तुम्हें दे ने िें वह ककतना असहाय और असिथा है ।
सींसार तम्
ु हे दे सकता है केवल एक शरीर—द्वैतपण
ू ा जीवन के सागर िें यात्रा के मलये एक नौका। और
शरीर तम्
ु हे सींसार के ककसी व्यल्क्त से नहीीं मिला है । तम्
ु हे शरीर दे ना और उसे जीववत रखना ब्रम्हाण्ड
का कताव्य है । उसे ति
ु ानो का सािना करने के मलये अच्छी हालत िें,
लहरों के प्रहार सहने के योग्य रखना, उसकी पाशववक वतृ तयों को बााँिकर तनयींत्रण िें रखना—यह
तम्
ु हारा कताव्य है, केवल तम्
ु हारा। आशा से दीप्त तथा पूणत
ा या सजग ववश्वास रखना ल्जसको पतवार
थिाई जा सके, प्रभ-ु इच्छा िें अटल ववश्वास रखना जो अदन के आनन्दपण
ू ा प्रवेश-द्वार पर पहुाँिने िें
तम्
ु हारा िागादशाक हो—यह भी तम् ु हारा काि है, केवल तम्
ु हारा।
तनभाय सींककप हो, आत्ि-ववजय प्राप्त करने तथा ददव्य- ज्ञान के जीवन-वक्ष
ृ का िल िखने के
सींककप को अपना केवट बनाना—-यह भी तम्
ु हारा काि है, केवल तम्
ु हारा।िनुष्य की िींल्जल परिात्िा
है ।
उससे नीिे की कोई िींल्जल इस योग्य नहीीं कक िनुष्य उसके मलये कष्ट उठाये। क्या हुआ यदद रास्ता
लम्बा है और उस पर िींिा और िक्कड़ का राज है ?
क्या पववत्र ह्रदय तथा पैनी दृल्ष्ट से यक्
ु त ववश्वास िींिा को परास्त नहीीं कर दे गा और िक्कड़ पर
ववजय नहीीं पा लेगा ?जकदी करो, क्योंकक आवारगी िें बबताया सिय पीड़ा-ग्रस्त सिय होता है । और
िनुष्य, सबसे अचिक व्यस्त िनुष्य भी, वास्तव िें आवारा ही होते हैं।
नौका के तनिााता हो तुि सब, और साथ हो नाववक भी हो। यही काया सौंपा गया है तम्
ु हे अनादद
काल से ताकक तुि उस असीि सागर की यात्रा करो जो तुि स्वयीं हो, और उसिे खोज लो अल्स्तत्व
के उस िक
ू सींगीत को ल्जसका नाि परिात्िा है।
सभी वस्तुओीं का एक केन्द्र होना जरुरी है जहााँ से वे ़िैल सकें और ल्जसके िारों ओऱ वे घूि सकें।
यदद जीवन—-िनुष्य का जीवन—-एक वि
ृ है और परिात्िा की खोज उसका केन्द्र, तो तम्
ु हारे हर काया
का केंद्र परिात्िा की खोज ही होना िादहये; नहीीं तो तम्
ु हारा हर काया व्यथा होगा, िाहे वह गहरे
लाल पसीने से तर-बतर ही क्यों न हो।पर क्योंकक िनुष्य को उसकी िींल्जल तक ले जाना िीरदाद का
काि है, दे खो !
िीरदाद ने तम्
ु हारे मलए एक अलौककक नौका तैयार की है, ल्जसका तनिााण उिि है और ल्जसका
सींिालन अत्यन्त कौशलपूण।ा यह दयार से बनी और तारकोल से पत
ु ी नहीीं है; और न ही यह कौओीं,
तछपकमलयों और लकड़बग्घों के मलये बनी है।
इसका तनिााण ददव्य ज्ञान से हुआ है जो तनश्िय ही उन सबके मलए आलोक-स्तम्भ होगा जो आत्ि-
ववजय के मलये तड़पते हैं। इसका सींतल
ु न-भार शराब के िटके और कोकहू नहीीं, बल्कक हर पदाथा हर
प्राणी के प्रतत प्रेि से भरपूर ह्रदय होंगे। न ही इसिें िल या अिल सम्पवि, िााँदी, सोना, रत्न
आदद लदे होंगे,
बल्कक इसिें होंगी अपनी परछाइयों से िक्
ु त हुई तथा ददव्य ज्ञान के प्रकाश और स्वतन्त्रता से
सुशोमभत आत्िाएाँ। जो िरती के साथ अपना नाता तोड़ना िाहते हैं, जो एकत्व प्राप्त करना िाहते
हैं,
जो आत्ि-ववजय के मलए तड़प रहे हैं, वे आयें और नौका पर सवार हो जायें।
नौका तैयार है । वायु अनक
ु ू ल है ।
सागर शान्त है।
यही मशक्षा थी िेरी नूह को।
यही मशक्षा है िेरी तम्
ु हे ।

****सिाप्त ******

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