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क आवाज़
ए हाट टॅ ा ल ारा ल खत पु तक
श मान वतमान
(द पॉवर ऑफ नाउ
का ह द सं करण)
अ तर-शा त
क आवाज़
ए हाट टॅ ा ल
Yogi Impressions Books Pvt. Ltd.
1711, Centre 1, World Trade Centre,
Cuffe Parade, Mumbai 400 005, India.
Website: www.yogiimpressions.com
तावना
प रचय
अ याय 1
मौन और अ तर-शा त
अ याय 2
वचारवान बु से परे
अ याय 3
अहंकारी व
अ याय 4
वतमान
अ याय 5
तुम वा तव म कौन हो
अ याय 6
वीकृ त और समपण
अ याय 7
कृ त
अ याय 8
सबध
अ याय 9
मृ यु और शा त
अ याय 10
ःख और ःख का अ त
लेखक के स ब ध म
तावना
अ बट आइं ट न ने कहा, “शा त खड़े रहो, तु हारे सामने के वे पेड़ और पास म उगी
झा ड़यां लु त न हो जाएं.”
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तु हारे अ त व का सार है. यह अ तर-शा त ही नया का पा तरण और उसक सुर ा
करेगी.
अ याय 1
मौन और अ तर-शा त
तु हारा अ तरतम का बोध जो क तुम वयं हो, अ तर-शा त से अलग नह हो सकता. यही
म ं , जो क नाम और आकार से भी अ धक गहरा है.
वचार का बाहरी शोर अ तर के शोर के समान होता है. बाहरी मौन के समान ही अ तर क
शा त होती है.
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जब भी तु हारे चार तरफ़ कसी कार का मौन हो — उसे सुनो. मतलब उसे अनुभव करो.
उस पर यान दो. मौन को सुनने से तु हारे अ तर क शा त का व तार तुम म ही जाग
उठे गा, य क अ तर-शा त ारा ही तुम मौन को पहचान सकते हो.
यान रखो क अपने चार ओर फैले मौन को दे खते ए तुम सोच नह रहे हो. तुम चेतन हो,
पर तु सोच नह रहे हो.
जब तुम एक पेड़ क ओर दे खते हो और उसक अ तर-शा त को जान जाते हो, तुम वयं
भी शा त हो जाते हो. तुम उसके साथ एक गहराई के तर तक जुड़ जाते हो. जो कुछ भी
तुम उसके भीतर और अ तर-शा त के ारा दे खते हो तुम उसके साथ एका म हो जाने का
अनुभव करते हो. सभी व तु के साथ एका म हो जाने का अनुभव ही स चा ेम है.
बीच के ख़ाली थान पर यान दो — दो वचार के बीच के ख़ाली थान पर. यह बातचीत
म श द के बीच का सं त मौन व तार है. यानो या बांसुरी के वर के बीच या फर
ास- ास के बीच का खाली थान है.
जब तुम इन बीच के ख़ाली थान पर यान दे ते हो, तो यही “कुछ का” बोध चेतना बन
जाता है. स ची चेतना का आकारहीन व तार तु हारे भीतर जाग उठता है और आकार क
पहचान को हटा दे ता है.
स ची बु चुपचाप काय करती है. अ तर-शा त वह पर होती है, जहां सृजना मकता हो
और सम या का हल पाया जाता हो.
जसे तुम अपना आकार समझते हो, वह उसी से आया है और इसी के सहारे जी वत है.
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यह सभी आकाश-गंगा का, घास के तनक , फूल, पेड़, प ी और अ य सभी आकार
का मूल है.
जब तुम कसी मनु य या वृ को अ तर-शा त म दे खते हो, तब उसे कौन दे ख रहा होता
है? कोई चीज़ जो एक से भी अ धक गहरी है. चेतना ही अपने सृजन को दे ख रही
होती है.
वचारशील बु के परे
ब त से लोग अपना पूरा जीवन अपने वचार क सीमा म ही क़ैद रखकर जीते ह. वे
संकु चत, मान सक उपज और गत धारणा से कभी बाहर नह आते और अतीत
ारा प रचा लत रहते ह.
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अगर कभी-कभी अपने दमाग़ म से गुज़रते ए साधारण वचार के समान वचार तुम
पहचान सको, य द तुम अपनी दमागी भावना क त या करने वाली णाली को वयं
घटते ए दे ख सको, तो उस समय यह व तार तु हारे भीतर पहले से ही उ प हो रहा होता
है, जैसे जाग कता के समय जब वचार एवं भावना उ प होते ह — वह असमय अ तर
व तार, जसके भीतर तु हारे जीवन क घटनाएं घटती ह.
जब भी तुम ववशता भरी सोच म डू बे ए होते हो, तुम जो है, उसक उपे ा करते हो. तुम
जहां हो, वहां नह होना चाहते. यहां, वतमान म.
या फर तुम अनुभव करके पता लगा सकते हो क बैचेनी व ऊब क हालत म कैसा लगता
है? जब तुम इन भावना पर जाग कता का आभास लाते हो, तब अचानक ही उसके
चार ओर थान और अ तर-शा त हो जाती है. शु म थोड़ा कम, पर तु जैसे ही अ तर के
थान क अनुभू त बढ़ती है, ऊब का अहसास ग भीरता और वा त वकता म कम होने
लगता है. इस कार यह ऊब भी तु ह यह सखा सकती है क तुम कौन हो और कौन नह
हो.
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“म ऊब गया ं” यह कसे मालूम?
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इस कार सजीवता के गहरे अथ म, भावना के पंदन के नीचे, तु हारे सोचने के नीचे
शरीर तब एक दरवाज़ा बन जाता है.
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“कुछ न जानने” क थ त म न त रहो. यह तु ह बु से परे ले जाएगी, य क बु
हमेशा नतीजे नकालने और ा या करने क को शश करती है. यह अ ान से डरती है.
इस लए तुम जब अ ान म भी न त हो जाते हो, तो तुम पहले से ही बु से परे हो जाते
हो. एक गहरा ान जो क धारणा र हत है, उस थ त म से पैदा हो जाता है.
अहंकारी व
जब तुम अपने बारे म सोचते और बोलते हो, जब तुम कहते हो “म” तो तुम वभावतः “म
और मेरी कहानी” के संग म कहते हो. तु हारा यह “म” ही पस द-नापस द करता है,
डरता और इ छा करता है, “म” कभी ल बे अस के लए स तु नह रहता. तुम या हो,
यह बु क उपज का बोध है. यह अतीत ारा भा वत होता और भ व य म अपनी
पूणता खोजता है.
जब येक वचार तु हारे यान को अपने ऊपर पूरी तरह के त कर लेता है, तब इसका
मतलब है क तुम अपने म त क क आवाज़ के साथ जुड़ गए हो. वचार तब व के बोध
से घर जाते ह. यही अहंकार है, बु ारा उपजा “म” है. बु ारा उपजा अहंकार अपने
को अधूरा व अ थर महसूस करता है. इसी लए डर और चाहत इसको ग त दे ने वाली मु य
श यां होती ह.
अहंकारी व हमेशा खोजने म जुटा रहता है. वह अ धकतर इस और उसको अपने साथ
जोड़ने के लए, अपने आपको और भी अ धक पूण अनुभव करने के लए को शश करता
है. यही अहंकार का भ व य के साथ बा यकारी गठजोड़ है.
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इस ण पर पूरा यान के त करने से अहंकारी बु से भी अ धक समझदारी तु हारे
जीवन म वेश कर जाती है.
चाहे तु हारी शकायत पूरी तरह “तकसंगत” ह , तुमने अपने लए पहचान क रचना कर
ली है. यह एक क़ैदखाने क तरह है, जसक सलाख़ वचार के प म ह. यह दे खो क
तुम अपने आप या कर रहे हो या फर तु हारी बु तुमसे या करवा रही है? अपने ःख
क दा तान से अपने भावना के लगाव को अनुभव करो और उसके बारे म ज़बरद ती
सोचने व बोलने म जाग क बने रहो. अपने अ तर के े के उप थत सा ी के प म
वहां मौजूद रहो. तु ह कुछ भी करने क ज़ रत नह . जाग कता के साथ पा तरण और
मु आती है.
वह कहा नयां, कथा-सा ह य कौनसा है, जससे तुम अपने अ त व का बोध ा त करते
हो?
अहंकारी व के ही ढांचे म वरोध, तरोध और अलग रहने क इ छा अलगाव क भावना
है, जसको बनाए रखने म ही उसका अ त व नभर करता है. इस कार यहां “म” “ सरे”
के और “हम” “उनके” के वरोध म ह.
अहंकार को कसी चीज़ या कसी के साथ संघष क आव यकता होती है. इससे
साफ़ होता है क तुम शा त, आन द और ेम क खोज म हो, पर तु उ ह ल बे समय तक
बदा त नह कर पाते हो. तुम कहते हो क तु ह ख़ुशी चा हए, पर तु तु ह ःखी रहने क
आदत पड़ी ई है.
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यीशू का कथन क “उ ह माफ़ कर दो, य क वे नह जानते क वे या कर रहे ह”, यह
अपने आप पर भी लागू होता है.
“ व नह , सम या नह ” एक बौ गु ने तब कहा, जब बौ धम क गहराई क ा या
करने के लए उनसे कहा गया.
अ याय 4
वतमान
या तुम इस ण को ऐसा मानते हो, जैसे वह एक बाधा है, जसे पार करना चा हए? या
तुम यह महसूस करते हो क तु हारे पास भ व य म कोई ऐसा ण होगा, जसे ा त करना
अ धक ज़ री होगा?
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लगभग हर इसी कार जीवन गुज़ारता है. चूं क भ व य, सवाय वतमान के प म
कभी नह आता, इस तरह जीना, ग़लत ढ़ं ग से जीना है. इसम लगातार एक बैचेनी, तनाव
और अस तोष क अ तधारा बहती रहती है. यह जीवन का स मान नह करता, जो अभी
वतमान है और हमेशा वतमान ही रहेगा.
अपनी भीतरी सजीवता को अनुभव करो. यह तु ह वतमान म थरता दान करती है.
जब तुम जो भी है, उसे “हाँ” कहते हो, तो तुम वयं ही जीवन क ऊजा एवं बु से जुड़
जाते हो. तभी तुम जगत म सकारा मक प रवतन के त न ध बन जाते हो.
जैसे ही तुम वतमान म यान के साथ वेश करते हो, तुम अनुभव करते हो क जीवन द
है. जब तुम उप थत होते हो, येक व तु, जसे तुम दे खते हो, उसम द ता आ जाती है.
जतना अ धक तुम वतमान म रहते हो, उतना ही अ धक तुम अपने अ त व और स पूण
जीवन क द ता म सरल, पर तु अ य धक आन द अनुभव करते हो.
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वचार, भावनाएं, इ य ान और जो कुछ भी तुम अनुभव करते हो, वही तु हारे जीवन क
वषयव तु बन जाती है. “मेरा जीवन” वही है, जो तुम अपने व के ान से ा त करते हो
और “मेरा जीवन” ही वषयव तु है, इसी म तुम व ास करते हो.
वा तव म तुम कौन हो
तुम जीवन म सफ़ल हो या असफ़ल, यह संसार क नज़र म मह वपूण हो सकता है. तुम
तंद त हो या बीमार, श त हो या अ श त यह भी मह व रखता है. तुम अमीर हो या
ग़रीब, यह भी मह व रखता ह — वा तव म ये सब तु हारे जीवन को भा वत करते ह. जी
हां, ये सब बात मह व रखती ह — पर तु तुलना करके दे ख, तो ब कुल भी मह व नह
रखत .
या अपने भीतर गहराई से तुम यह अनुभव करते हो क तुम पहले से ही यह जानते हो?
या तु ह इस बात का ान है क तुम वह पहले से ही हो?
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जीवन म अ धकतर काय के लए तु ह समय क ज़ रत है, जैसे कसी नए कौशल,
मकान नमाण, वशेष बनने, एक कप चाय बनाने के लए. समय बेकार है, पर तु जीवन
क सबसे मह वपूण घटनाएं, जो तुमसे स ब धत ह, उनम एक बात जो सबसे अ धक
ज़ री है, वह है, व का ान, जसका मतलब है, यह जानना क ऊपरी तौर पर दखाई
दे ने के अलावा, तु हारा नाम, तु हारा शारी रक प, तु हारा इ तहास, तु हारी कहानी के
अलावा तुम या हो.
जब तुम एक पेड़ दे खते हो, तो तुम पेड़ को पहचानते हो. जब तु हारे मन म कोई वचार या
संवेदना उ प होती है, तुम उस वचार अथवा संवेदना को जानते हो. जब तु ह कोई
ःखदायक अथवा आन ददायक अनुभव होता है, तो तुम उस अनुभव को पहचानते हो.
जब तुम अपने जीवन क तरफ़ दे खते हो, तो या तुम अपने को एक चेतना के प म जान
सकते हो, जसम तु हारे पूरे जीवन क वषयव तु प हो जाती है?
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तुम कहते हो “म अपने को जानना चाहता ं.” तुम इसम म हो . तुम ही ान हो . तुम ही
वह चेतना हो , जसके ारा सभी कुछ जाना जाता है. चेतना अपने आपको नह जान
सकती , ब क वह अपने आप है .
इसके परे कुछ भी नह जानना है, फर भी सभी जानना उससे पैदा होता है. “म” ान का,
चेतना का वषय अपने आप नह बन सकता है.
जस कार पानी ठोस, तरल और गैस के प म हो सकता है, उसी कार चेतना भी
शारी रक त व के प म “ठोस”, बु और वचार के प म “तरल” और शु चेतना के
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प म आकारहीन दे खी जा सकती है.
शु चेतना आकार लेने से पहले जीवन है और यह जीवन आकार के संसार म “तु हारी”
आंख ारा ही दे खता है, य क तुम ही चेतना हो. जब अपने को उस प म पाते हो, तब
तुम येक व तु के भीतर अपने को पहचान लेते हो. यह पूरी तरह साफ़-साफ़ य ान
क थ त है. तुम अब अपने बो झल अतीत से जुड़ा अ त व नह हो, जो वचार का ऐसा
पदा बन जाता है, जससे होकर आने वाले अनुभव क ा या क जाती है.
आकारहीन चेतना “तु हारे” ारा ही अपने वषय म जाग क हो जाती है.
वीकृ त और समपण
यह कहा गया है क “तुम जहां जाते हो, वह पर होते हो.” सरे श द म “तुम यहां पर
हो.” हमेशा. या इसे वीकार करना मु कल है?
वभाव वाला और त या करने वाला “नह ” अहंकार को मज़बूत बनाता है. “हां” उसे
कमज़ोर करता है. तु हारे व क पहचान अहंकार समपण के आगे जी वत नह रह
पाती.
“मुझे ब त कुछ करना है.” हम ऐसा मान भी ल, पर तु तु हारे काम का तर या है? काम
पर जाने के लए गाड़ी चलाना, अपने मुव कल से बात करना, क यूटर पर काम करना,
छोटे -मोटे काम नपटाना, ऐसे अन गनत काम करना, जो तु हारे दै नक जीवन का ह सा ह.
तुम जो भी करते हो, उसम कतने नपुण हो? तु हारा यह काय करना समपण का है या
बना समपण का? यही तु हारे जीवन म सफलता को न त करते ह, यह नह क तुमने
कतना प र म कया. प र म तनाव और थकान क ओर इशारा करता है — भ व य म
एक न त ल य पर प ंचने क घोर इ छा अथवा कसी वशेष प रणाम को ा त करने के
लए.
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या तुम अपने भीतर ऐसा एक त व खोज सकते हो, जो तु ह ऐसा एहसास करवाए क जो
कुछ भी तुम कर रहे हो, उसे न करना चाहते हो? यह जीवन को अ वीकार करना है,
इस लए एक न त सफल प रणाम स भव नह .
य द तुम अपने भीतर यह खोज सकते हो, तब या तुम उसे छोड़ भी सकते हो और जो
कुछ भी कर रहे हो, उसी म डू ब सकते हो.
एक समय म एक काम करने का मतलब है, जो कुछ भी करो, उसम पूणता हो, उस पर
अपना पूरा यान दो. यह सम पत या है — अ धकार दे ने क या.
ऊपरी तौर पर तुम धूप के दन म ख़ुश और वषा के दन म उतना ख़ुश नह रहते, तुम एक
म लयन डालर जीतने पर ख़ुश होगे और अपना सब कुछ खो दे ने पर ःखी हो जाओगे.
ख़ुशी और ःख, इनम से कोई भी उतनी गहराई तक अब कभी नह प ंचता. ये तु हारे
अ त व क ऊपरी सतह पर लहर मा होते ह. बाहरी प र थ तयां कैसी भी य न ह ,
तु हारे भीतर क बु नयाद शा त को भा वत नह करत .
“जो है” उसका वीकार तु हारे भीतर क गहराइय क सीमा प करता है, जससे
लगातार ऊपर नीचे होने वाले वचार और भावना के ऊपर तु हारी न तो बाहरी, न ही
भीतरी प र थ तयां नभर करती ह.
जब तुम यह जान जाते हो क अनुभव का अ थायी वभाव और जगत तु ह कुछ भी
थायी दान नह कर सकते, तब समपण आसान हो जाता है. अहंकारी व क इ छा
और भय के बना तुम लोग से मलने लगते हो, अनुभव और काम म त हो जाते हो.
कहने का मतलब है, तु ह कोई ख़ास प र थ त, , थान या घटना स तोष दान करे
या ख़ुश करे, ऐसी आशा तुम नह करते. तुम उसका अद्भुत और अधूरा वभाव ऐसे ही
वीकार कर लेते हो.
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समपण का मतलब है इस ण के त समपण, उस कहानी के त नह , जसके ारा तुम
इस ण क ा या करते हो और उसके सामने अपने आपको झुका दे ने क को शश करते
हो.
तु हारी बु अब एक कार क कहानी शायद ऐसे बनाएगी, “मेरा जीवन कैसा हो गया है.
म एक हीलचेयर म ही ख़ म हो जाऊंगा. ज़दगी ने मेरे साथ ब त ही बेरहमी से अ याय
भरा वहार कया है. म तो यह नह चाहता था.”
समपण तब ही आता है, जब तुम यह नह पूछते, “यह सब मेरे साथ ही य हो रहा है?”
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ऐसी भी प र थ तयां आती ह, जब सभी कार क ा याएं और उ र असफल हो जाते
ह. जीवन का कोई भी मतलब नह रह जाता या जब कोई तु हारे पास वप म सहायता
के लए आता है और तुम नह जानते क या कहना या करना है.
ो ी े ी े ो ओ े ी
जो कुछ भी तुम पूण प से वीकार करते हो, वह तु ह शा त क ओर ले जाएगा, वीकृ त
भी, जसे तुम वीकार नह कर सकते उसे भी, य क तुम तरोध म हो.
कृ त
जब तुम अपना यान कसी ाकृ तक व तु म लगाते हो, ऐसी व तु, जो आदमी के दख़ल
के बना अ त व म आई हो, तुम धारणागत सोच क क़ैद से बाहर आ जाते हो और एक
सीमा तक, अ त व से जुड़ने क दशा म भाग लेते हो, जसम सभी ाकृ तक व तुएं अभी
तक मौजूद ह.
कसी प थर, पेड़ या फर पशु म अपना यान लगाने का मतलब यह नह ह क उसके बारे
म सोचो , ब क उसे दे खो और अपनी जाग कता म उसे पकड़े रखो.
े े ीओ ो ै े ो
तब उसके सार म से कुछ वयं तु हारी ओर वा हत होता है. तुम अनुभव करते हो क वह
कतना थर है और इस अनुभव ारा वही अ तर-शा त तु हारे भीतर जाग उठती है. तुम
महसूस करते हो क अ त व म कतनी गहराई म मौजूद है, वह जैसी भी है और जहां भी
है, उससे पूरी तरह एका म है. यह जान लेने के बाद तुम भी अपने अ तर क गहराई म एक
परम व ाम- थल पर प ंच जाते हो.
कृ त का अवलोकन तु ह इस “म” से, जो सबसे बड़ा क ठनाई पैदा करने वाला है, उससे
छु टकारा दला सकता है.
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तुमने अपने शरीर को नह रचा, न ही तुम शरीर क काय णाली को नयं ण म कर सकते
हो. आदमी के म त क से अ धक बढ़कर एक बौ कता काम करती है. अपने अ तर के
ऊजा े को जाने बना, शरीर के भीतर क सजीव उप थ त, जी वत होने को महसूस
कए बना, तुम उस बु के नकट नह जा सकते.
जब तुम कृ त को केवल म त क या वचार ारा दे खते हो, तब तुम उसक सजीवता को,
उसके अ त व को महसूस नह कर सकते. तुम केवल प को दे खते हो और उस प के
भीतर के जीवन के द रह य से अनजान रहते हो. वचार कृ त को एक व तु के प म
रखकर उसका मह व कम कर दे ते ह, जसका योग लाभ अथवा ान या फर कसी अ य
उपयो गता के उद्दे य के लए कया जा सके. पुराने जंगल, इमारती लकड़ी, प ी शोध क
प रयोजना बन जाते ह और पवत कसी व तु क खुदाई अथवा चढ़ाई के लए ही रह जाते
ह.
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तु हारे घर म जो पौधा है — या तुमने कभी उसक ओर यान से दे खा है? या तुमने उस
जाने-पहचाने, पर तु रह यमय अ त व, जसे हम ‘पौधा’ कहते ह, को अपने रह य
सखाने दए? या तुमने दे खा क वह कतनी गहराई तक शा त से पूण है? कस कार
वह अ तर-शा त के े से घरा आ है? जस पल तुम पौधे से उभरने वाली शा त और
अ तर-शा त को पहचान जाते हो, वह पौधा तु हारा गु बन जाता है.
हवा जसम तुम सांस लेते हो, कृ त ही है, जैसे क सांस लेने क या है.
अपनी सांस के बारे म जानकर, और अपना यान वहां लगाना सीखकर, ब त ही अपनेपन
और भावशाली ढं ग से तुम कृ त से दोबारा जुड़ ज़ाते हो. यह पीड़ा का नाश करने व
ब त ही भावशाली बनाने यो य काम है. यह च तन क वैचा रक नयां को सहज चेतना
के अ तर- े म थाना त रत कर दे ता है.
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अ त व के साथ दोबारा जुड़ने के लए तु ह कृ त क गु के प म आव यकता है.
केवल तु ह ही नह , कृ त को भी तु हारी आव यकता है.
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तु हारे ारा कृ त भी अपने बारे म सजग हो जाती है, मानो कृ त तु हारी ही ती ा कर
रही है, जैसे क पछले लाख वष से यह कर रही है.
अ याय 8
सबध
औ ी े ो ी औ े
यह तु ह और साथ ही सरे को भी अनुकूलता, प और म त क के साथ व
क पहचान से मु करा दे गा. अहंकार तु हारे स ब ध को अब और भा वत नह करता है.
जब तुम वतमान ण को ही, बजाय उसे अपना अ तम ल य मानने के, अपने यान क
मु य धुरी मान लोगे, तो तुम अहंकार भाव से परे चले जाओगे, तुम अहंकार और सरे
लोग के अपने ल य क ा त म एक साधन मानने क , अनचाही मजबूरी से परे चले
जाओगे. यही अ तम ल य, जो क सर के सहारे तु हारे व को बढ़ाता है. जब तुम
अपना पूरा यान इस बात पर लगा दे ते हो क तुम कससे स पक बना रहे हो, सवाय कुछ
ावहा रक कारण से तुम अपने स ब ध म से अतीत और भ व य को बाहर कर दे ते हो.
जब तुम येक से मलते समय पूरी तरह उप थत रहते हो, तो तुमने उनका जो
वैचा रक अ त व बना रखा है, उसे कम कर दे ते हो. वे या ह, उ ह ने अतीत म या कया
— अपनी इस धारणा के चलते इस कार भय और इ छा क अहंकारी त या के
बना तुम उनसे स पक था पत कर पाते हो. सावधानी सजग अ तर-शा त है. यही इसक
कुंजी है.
अगर उसका अतीत तु हारा अतीत होता, उसका ःख तु हारा ःख और उसक चेतना का
तर तु हारी चेतना का तर होता, तो तुम एकदम वैसा ही सोचते और करते, जैसा वह
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सोचती व करती. इस बोध के साथ ही मा, स तोष और शा त तु ह ा त हो जाती है.
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कोई भी स ब ध जो क अ तर-शा त से आता है, व तार क भावना के बना नह फल
सकता. यान करो या फर कृ त के बीच शा त से समय गुज़ारो. सैर करते समय, कार म
बैठे ए या फर घर म बैठे ए, अ तर-शा त के साथ घुल- मलकर एक- सरे के साथ रहो.
अ तर-शा त पैदा नह क जा सकती है. अ तर-शा त को केवल वीकार करो, जो क
वहां पहले से ही है, केवल मान सक शोर ही उसक कावट होता है.
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पैदा करते हो?
ऐसे सभी कार के अनुभव क जड़ म बु नयाद तौर पर अहंकारी वृ होती है. अपने
सही होने और बेशक सरे के ग़लत होने क आव यकता, यानी मान सक थ त के साथ
अ त व क पहचान का होना. इसम अहंकार को कसी या व तु से समय-समय पर
संघष क इ छा भी होती है, ता क वह “म” और “ सरे” के बीच अलगाव क भावना को
मज़बूत कर सके, जसके बना वह वयं जी वत नह रह सकता.
इसके साथ-साथ इसम अतीत से सं चत भावना मक पीड़ा भी होती है, जसे तुम और
येक अपने नजी अतीत और साथ ही मानवता क सामू हक पीड़ा को भी, जो
पछले काफ़ समय से चली आ रही है, उसे अपने साथ लेकर चलता है. यह “ ःखी शरीर”
ही तु हारे भीतर का ऊजा े है, जो तुम पर अ धकार जमा लेता है, य क उसे अपने
लए और अ धक भावना मक पीड़ा अनुभव करने क ज़ रत है, ता क वह उस पर जी वत
रह सके और अपने को ताक़तवर बना सके. यह तु हारी बु को अ धकार म करने और
उसे पूरी तरह नकारा मक बनाने का य न करेगा. यह तु हारे नकारा मक वचार से ेम
करता है, य क यह उसके उतार-चढ़ाव से भा वत होता है, इस लए उन पर नभर रहता
है. यह तु हारे नकट रहने वाले लोग , वशेषकर तु हारे सा थय म भी नकारा मक
भावना मक त याएं जा त करता है, ता क यह उससे होने वाली घटना और
भावना मक ःख पर जी वत रह सके.
जब तुम कसी व तु क उसी के कारण शंसा करते हो, जब तुम अपनी मान सक तु त
के बना उसे वीकार कर लेते हो, तब तुम उसके अ त व के लए आभारी अनुभव ‘नह ’
करते. तुम यह भी अनुभव करोगे क वह वा तव म नज व नह है. केवल इ य ारा ही
ऐसा तीत होता है. भौ तकशा ी इस बात क पु करगे क अणु के तर पर वह सचमुच
पंदनशील ऊजा े है.
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जब भी तुम कसी से मलते हो, चाहे कतने भी कम समय के लए य न हो, या तब उन
पर अपना पूरा यान के त करके उनके अ त व को वीकार करते हो? या केवल एक
ल य, या या उद्दे य के प म या तुम उनके दज म कमी कर दे ते हो?
एक पल के लए भी यान दे ना काफ़ होता है. जब तुम उ ह दे खते या उनक बात सुनते हो,
उस समय यहां एक सजग अ तर-शा त होती है, शायद केवल एक या दो सेक ड मा के
लए या फर कुछ और अ धक समय के लए. कुछ अ धक वा त वकता उभरने के लए वह
काफ़ है, बजाय उस भू मका के, जो हम अ सर खेलते और उसके साथ पहचान बनाते ह.
हमारी सभी भू मकाएं सहज चेतना के ही ह से ह जो क मानव म त क ह. सजगता के
वहार से जो उभरता है, वह सहज है, जो नाम और प के नीचे, सार म तुम वयं हो.
तुम कसी ल खत अंश पर अ भनय नह करते, तुम वा त वक बन जाते हो. जब ये व तार
तु हारे भीतर से जाग उठते ह, तब वे सरे के भीतर से भी उसको बाहर ख च लेते ह.
मृ यु और शा त
जब तुम कसी ऐसे जंगल से गुज़रते हो, जसक दे खभाल न ई हो, और जहां मनु य क
आवाजाही न ई हो, तु ह वहां चार ओर न केवल भरपूर जीवन दखाई दे गा, ब क साथ
ही गरे ए पेड़, टू टे तने, सड़ी गली प यां और हर क़दम पर गलते-सड़ते पदाथ मलगे.
जधर भी तुम नज़र घुमाओगे, तु ह मृ यु और जीवन साथ-साथ ही दखाई दगे.
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तु हारी मृ यु के समय तु हारे जीवन क कहानी वा तव म तु ह एक व क तरह लगेगी,
जो अ त पर प ंच रही है, फर भी व म कुछ तो त व होता है, जो वा त वक हो. एक
चेतना अव य होती है, जसम व घ टत होता है, नह तो वह ऐसा कभी भी नह होता.
उस चेतना को या शरीर पैदा करता है या चेतना ही शरीर के सपन को, कुछ होने के
सपन को बनाती है?
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कौन ह, इसको जानने क स भावना से उस ान के परे के त व के आयाम हमारी ज़दगी
से गुम हो जाते ह, य क मौत ही उस आयाम का वेश ार है.
हर रोज़ इस कार मरना सीखने से तुम अपने को जीवन के स मुख पाते हो.
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जहां तक प क पहचान को ही तुम मानते हो, तो तुम नह जानते क यह ब मू य
भावना तु हारा अपना ही त व है, जो तु हारे अ दर का बोध “म ं” है और जो वयं ही
चेतना है. यही तु हारे अ दर का न य है और यही वह चीज़ है, जो क तुम “खो” नह
सकते.
तु हारे जीवन म जब कसी कार क हा न हो जाती है, जैसे जायदाद का लुट जाना, घर से
बेघर हो जाना, कसी नकट के र तेदार का साथ छू ट जाना या तु हारी इ ज़त, नौकरी या
फर शारी रक यो यता का खो जाना, तो कुछ तु हारे अ दर मर जाता है. तु हारे अ दर “म
कौन ं” का बोध समा त हो जाता है. एक भटकाव का अहसास क “इसके बना म कौन
ं,” तुम म आ जाता है.
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हर का अनुभव कतने थोड़े समय के लए होता है, हमारा जीवन कतना ण-भंगुर
होता है? या कुछ ऐसा भी है, जो ज म और मृ यु का वषय नह है, ऐसा कुछ जो क
अ वनाशी है?
इस बात पर सोचो, य द यहां केवल एक रंग होता, मान लो नीला रंग और सारी नया और
उसम हर चीज़ नीली होती, तब नीला रंग होता ही नह . ऐसा कुछ ज़ र होना चा हए, जो
क नीला न हो, तब ही तो नीले रंग क पहचान हो सकती है. य द वह भ नह होगा, तो
वह नह रहेगा.
जब तुम बीस साल के होते हो, तो तुम अपने शरीर क मज़बूती और श को पहचानते हो,
साठ साल बाद तुम अपने शरीर क कमज़ोरी और बुढ़ापे को भी जान जाते हो. बीस साल
क उ से लेकर साठ साल क उ तक तु हारा सोचना भी बदल गया है, पर तु बु यह
पहचान लेती है क तुम जवान या बूढ़े हो गए हो या फर तु हारे वचार बदल गए ह, पर तु
वह बु नह बदली. जाग कता जो तु हारे भीतर शा त है, अपने आप म एक चेतना ही
है. यह एक पहीन जीवन है. या तुम इसे खो सकते हो? नह , य क तुम ही यह हो.
कुछ लोग मृ यु से पहले एकदम शा त से भरे और तेज से पूण हो जाते ह, जैसे समा त होते
शरीर म से कुछ रोशन होने लगा हो.
ःख और ःख का अ त
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वतमान के साथ यह अ तर का तालमेल रख पाना ही ःख का अ त है.
जैसा ःख तुमने सहा है, वैसा न सहा होता, तो मनु य के प म तुमम कोई गहराई, न ता
और क णा न होती. तुम इस समय इसे पढ़ न रहे होते. ःख अहंकार के कवच को तोड़
दे ता है, तब एक ऐसा ण आता है, जब उसका उद्दे य पूरा हो जाता है. जब तक तुम ःख
क थता नह समझ लेते, तब तक ःख ज़ री है.
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“इस समय म जो कुछ भी सोच रहा ं, मुझे ःखी बना रहा है.” यह बोध तु हारी अचेतन
पहचान को उन वचार से अलग कर दे ता है.
वाभा वक मान सक नणय और भावना मक संकोच ारा तु हारा अपने जीवन म लोग
और घटना से नजी त या से पूण स ब ध होता है. यह सभी अलग-अलग तरह के
व ारा रचे गए ःख ह, पर तु उ ह इस प म पहचाना नह जाता, य क वे अहंकार को
स तु करते ह. अहंकार त या और वरोध ारा अपने को आगे बढ़ाता है.
बा रश हो रही है.
वह मलने नह आया.
कसी को बुरे कारण से नाम दे ना तु हारे भीतर एक भावना मक संकोच पैदा कर दे ता है.
जब तुम उसे बना नाम दए छोड़ दे ते हो, तो तु हारे अ दर एक ताक़तवर श उ प हो
जाती है.
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जब तुम एक अनुभव को उतना ‘बुरा’ नह कहते, तो दे खो, या होता है, ब क तब अ तर
क वीकृ त ही अ तर क ‘हां’ हो जाती है, इसी लए उसे ऐसा ही रहने दो.
ब त पुरानी शरीर क असा य पीड़ा तु हारा सबसे कठोर गु होती है. “ वरोध थ है,”
यही उसक श ा है.
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जगत के शा त स य को समझने के लए, जो क सूली के तीक म है, उसके लए तु ह
ईसाई होना ज़ री नह है.
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