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अ तर-शा त

क आवाज़
ए हाट टॅ ा ल ारा ल खत पु तक

श मान वतमान
(द पॉवर ऑफ नाउ
का ह द सं करण)
अ तर-शा त
क आवाज़

ए हाट टॅ ा ल
Yogi Impressions Books Pvt. Ltd.
1711, Centre 1, World Trade Centre,
Cuffe Parade, Mumbai 400 005, India.
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Copyright © 2003 Eckhart Tolle

Hindi Translation by: Pratibha Arya


Edited by: Shiv Sharma

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Author photo by Rick Tang


Cover image from Desert Dolphin

Originally published in the United States by


New World Library, 2003

First India printing: August 2003


First Hindi Edition: February 2010
ISBN 978-81-88479-62-7
सूची

तावना

प रचय

अ याय 1
मौन और अ तर-शा त

अ याय 2
वचारवान बु से परे

अ याय 3
अहंकारी व

अ याय 4
वतमान

अ याय 5
तुम वा तव म कौन हो

अ याय 6
वीकृ त और समपण

अ याय 7
कृ त

अ याय 8
सबध
अ याय 9
मृ यु और शा त

अ याय 10
ःख और ःख का अ त

लेखक के स ब ध म
तावना

अ बट आइं ट न ने कहा, “शा त खड़े रहो, तु हारे सामने के वे पेड़ और पास म उगी
झा ड़यां लु त न हो जाएं.”

इस युग म, जब क हमारे म त क दशाहीन यं चा लत से दौड़ रहे ह — और वहाँ तेज़ी से


प ंच रहे ह — अ तर-शा त क आवाज़ म ए हाट का संदेश तेज़ और प है.
— गौतम सचदे वा
प रचय

एक स चे आ या मक गु के लए शा दक प म श ा नह दे नी होती, उसे तु ह कुछ


दे ना या फर तुमसे जोड़ना नह होता है, जैसे कोई नई सूचना, व ास, या फर आचरण के
नयम. ऐसे गु का केवल यह काय होता है क उस कावट को हटाने म तु हारी मदद करे,
जो तु ह स य से र करती है, जब क तुम कौन और या हो, यह अपने अ तर क गहराइय
म पहले से ही जानते हो. आ या मक गु का काय उसे उघारने और अ तर क गहराइय
क सीमाएं बताने का है, जहां शा त बसती है.

य द तुम कसी आ या मक गु के पास — या फर इस पु तक के क़रीब इस लए आते हो


क तु ह नए वचार, स ा त, व ास या फर बौ क चचा के लए ो साहन ा त ह , तो
तु ह नराशा होगी. सरे श द म, य द तुम च तन क भूख शा त करने क से खोज
रहे हो, तो तु ह वह यहां नह मलेगी और तुम इन श ा के मूल त व और इस पु तक
का सार, जो, क श द म नह , ब क तु हारे भीतर है, को खो दोगे. यह याद रखना ठ क
रहेगा क तुम जो कुछ भी पढ़ते हो, उसे अनुभव करो. श द एक दशा सूचक के अलावा
कुछ नह . वे जसक ओर इशारा करते ह, वचार क सीमा के भीतर वह ा त नह होगा,
ब क तु हारे अ तर के व तार म, जो क वचार से भी अ धक व तृत व गहरा है, उसम
ा त होगा. एक जीव त शा त ही उस व तार क व श ता म से एक है. इस लए पढ़ते
समय जब तु ह आ त रक शा त का उदय अनुभव होने लगे, तो समझ लो क पु तक गु
के प म अपना काम कर रही है. यह तु ह याद दला रही है क तुम कौन हो और वा पस
घर आने का रा ता बता रही है.

यह पु तक पृ दर पृ पढ़कर एक ओर रख दे ने के लए नह है. इसके साथ जयो, इसे


अ सर उठाओ और उससे भी अ धक मह वपूण यह है क इसे बीच-बीच म छोड़ दो, या
फर बजाय पढ़ने के, उसे यादा समय तक हाथ म पकड़े रखो. कई पाठक येक लेख
पढ़ते समय स भवतः पढ़ना छोड़ना चाहगे, कना, च तन करना चाहगे, या फर एकदम
क जाना चाहगे. पढ़ते समय बीच-बीच म इसे पढ़ना छोड़ दे ना अ धक सहायक और
ो े े े ो ो े
मह वपूण होगा, बजाय इसके क तुम इसे लगातार पढ़ते रहो. पु तक को अपना काय करने
दो, उसे तु हारी पुरानी लीक के दोहराव और जड़ वचारधारा से जगाने का काय करने दो.

इस पु तक को हम वतमान युग के लए आ या मक श ा के ाचीनतम प, ाचीन


भारतीय सू के पुनरो ार के प म दे ख सकते ह. स य क ओर इशारा करने वाली छोट
बात अथवा सू य के प म ये सू श शाली सूचक ह, जनम ब त थोड़े
आड बरहीन वचार जुड़े ह. वेद और उप नषद सू के प म, सबसे ाचीन लखी ई
प व श ाएं ह, जैसे बु के श द ह. यीशू क श ा और उदाहरण म से य द
कथा मक भाग नकाल दया जाए, तो वह सू के समान ही रह जाएंगी. इसी कार ान
क ाचीन चीनी पु तक ताओ ती चग म भी ग भीर श ाएं सं हीत ह. सू का सं त
होना ही उनका मह व है. दमाग़ को ज़ रत से अ धक सोचने क आव यकता नह होती.
बजाए कुछ कहने के, जो वे नह कहते, केवल उसक ओर संकेत करते ह, वही मह व
रखता है. सू क तरह लखने क व ध का योग इस पु तक के पहले अ याय “मौन और
अ तर-शा त” म वशेष प से कया गया है. इसम सब कुछ सं ेप म ही है. यह अ याय
पूरी पु तक का सार है और कुछ पाठक क ज़ रत को पूरा भी करेगा, बाक़ अ याय उन
सबके लए ह, ज ह कुछ और दशा सूचक क ज़ रत है.

ाचीन सू क भां त इस पु तक के सभी ल खत अंश प व ह और चेतना क थ त से


उभरे ह, जसे हम अ तर-शा त कह सकते ह. ाचीन सू क भां त ये कसी धम या
आ या मक पर परा से नह जुड़े ह, ब क पूरी मानवता क प ंच के भीतर ह. इनम यहां
एक कार का ता का लक का बोध जुड़ा है. मानव चेतना का पा तरण एक वला सता
नह है, मतलब केवल कुछ गने-चुने लोग के लए ही नह , ब क सबके लए ज़ री है,
अगर मानवता अपने को न नह करना चाहती. आज के युग म ाचीन चेतना न य
और नवीन का ज म, ब त तेज़ी से हो रहे ह. मु कल यह है क सभी व तुएं एक ही समय
पर अ छ और बुरी हो रही ह, हालां क बुरी ही अ धक मुख ह, य क वे यादा “शोर”
मचाती ह.

यह पु तक वा तव म ऐसे श द का योग करती है, ज ह पढ़ने से ही यह आपके म त क


म वचार म बदल जाए. ले कन दोहराए गए, शोर मचाने वाले, जड़, अपने म समाए, यान
आक षत करने के लए कोलाहल करने वाले कोई मामूली वचार नह ह. येक
आ या मक गु क तरह, ाचीन सू क भां त, इस पु तक के वचार यह नह कहते,
“मेरी तरफ़ दे खो”, ब क “मुझसे परे दे खो”. चूं क ये वचार अ तर-शा त से उपजे ह,
इस लए इनम श है, ऐसी श जो तु ह वा पस उसी अ तर-शा त म ले जाती है, जसम
से ये उ प ए ह. यह शा त ही अ तर क शा त है और यह शा त और शा त ही

े ै ी औ
तु हारे अ त व का सार है. यह अ तर-शा त ही नया का पा तरण और उसक सुर ा
करेगी.
अ याय 1

मौन और अ तर-शा त

जब तुम अपने भीतर क अ तर-शा त से स पक खो दे ते हो, तो अपने आपसे भी स पक


तोड़ लेते हो. जब तुम अपने आपसे स पक खो दे ते हो, तो वयं को भी संसार म खो दे ते हो.

तु हारा अ तरतम का बोध जो क तुम वयं हो, अ तर-शा त से अलग नह हो सकता. यही
म ं , जो क नाम और आकार से भी अ धक गहरा है.

अ तर-शा त तु हारा मूल वभाव है. अ तर-शा त या है? यह अ तर का व तार है या


फर ऐसी जाग कता है, जसम इस पृ पर लखे श द प दखाई पड़ते ह और वचार
म बदल जाते ह. इस जाग कता के बना कुछ भी बोध नह , न ही वचार और न ही यह
संसार है.

वचार का बाहरी शोर अ तर के शोर के समान होता है. बाहरी मौन के समान ही अ तर क
शा त होती है.

ी े ी ौ ो े ो े ो
जब भी तु हारे चार तरफ़ कसी कार का मौन हो — उसे सुनो. मतलब उसे अनुभव करो.
उस पर यान दो. मौन को सुनने से तु हारे अ तर क शा त का व तार तुम म ही जाग
उठे गा, य क अ तर-शा त ारा ही तुम मौन को पहचान सकते हो.

यान रखो क अपने चार ओर फैले मौन को दे खते ए तुम सोच नह रहे हो. तुम चेतन हो,
पर तु सोच नह रहे हो.

जब तुम मौन को पहचान लेते हो, तब अचानक एक अंद नी अ तर-शा त क चेतना क


थ त हो जाती है. तुम वतमान हो. हज़ार वष के सामू हक मानवीय सं कार से तुम बाहर
आ जाते हो.

एक पेड़, फूल और पौधे को दे खो. अपनी चेतना को उस पर के त कर दो. वे कतने शा त


ह, अपने अ त व म कतने गहरे धंसे ए ह. कृ त से अ तर-शा त का पाठ सीखो.

जब तुम एक पेड़ क ओर दे खते हो और उसक अ तर-शा त को जान जाते हो, तुम वयं
भी शा त हो जाते हो. तुम उसके साथ एक गहराई के तर तक जुड़ जाते हो. जो कुछ भी
तुम उसके भीतर और अ तर-शा त के ारा दे खते हो तुम उसके साथ एका म हो जाने का
अनुभव करते हो. सभी व तु के साथ एका म हो जाने का अनुभव ही स चा ेम है.

मौन हमारे लए सहायक है, पर तु अ तर-शा त पाने के लए तु ह उसक ज़ रत नह .


अगर चार तरफ़ शोर भी हो, तो तुम शोर के नीचे छपी अ तर-शा त को जान सकते हो,
उस व तार को पहचान सकते हो, जहां से शोर पैदा होता है. स ची जाग कता का यही
अ तरतम व तार वयं क चेतना है.

अपने सभी वचार और ाने य क पृ भू म म तुम इसी चेतना के त सचेत हो सकते


हो. चेतना के त सचेत हो जाना ही अ तर क शा त का जाग जाना है.
कसी कार का परेशान करने वाला शोर भी मौन क भां त सहायक हो सकता है. कैसे?
अपने अ दर के तरोध को शोर के सामने झुका दो और वह जैसा है, वैसा ही रहने दो. यही
वीकृ त तु ह अ तर क शा त के दे श म ले जाएगी, जो क शा त है.

जब भी तुम इस ण को गहराई म वीकार करते हो, वह चाहे कसी भी प म य न हो


— तुम थर हो जाते हो और तु ह शा त मल जाती है.

बीच के ख़ाली थान पर यान दो — दो वचार के बीच के ख़ाली थान पर. यह बातचीत
म श द के बीच का सं त मौन व तार है. यानो या बांसुरी के वर के बीच या फर
ास- ास के बीच का खाली थान है.

जब तुम इन बीच के ख़ाली थान पर यान दे ते हो, तो यही “कुछ का” बोध चेतना बन
जाता है. स ची चेतना का आकारहीन व तार तु हारे भीतर जाग उठता है और आकार क
पहचान को हटा दे ता है.

स ची बु चुपचाप काय करती है. अ तर-शा त वह पर होती है, जहां सृजना मकता हो
और सम या का हल पाया जाता हो.

या शोर और अ तव तु क अनुप थ त ही अ तर-शा त है? नह , यह वयं बु ही है —


हमारे भीतर क छपी ई चेतना, जससे सभी आकार ज म लेते ह. जससे तुम हो, उसी से
अलग कैसे हो सकते हो?

जसे तुम अपना आकार समझते हो, वह उसी से आया है और इसी के सहारे जी वत है.

ी े े ीऔ ी
यह सभी आकाश-गंगा का, घास के तनक , फूल, पेड़, प ी और अ य सभी आकार
का मूल है.

इस संसार म केवल अ तर-शा त ही ऐसी चीज़ है, जसका कोई आकार नह . यह वा तव


म कोई व तु भी नह है और इस संसार क भी नह है.

जब तुम कसी मनु य या वृ को अ तर-शा त म दे खते हो, तब उसे कौन दे ख रहा होता
है? कोई चीज़ जो एक से भी अ धक गहरी है. चेतना ही अपने सृजन को दे ख रही
होती है.

बाई बल म लखा है क परमा मा ने इस जगत को बनाया और दे खा क यह अ छा है. तुम


भी यही दे खते हो, जब तुम बना वचार के अ तर-शा त के साथ दे खते हो.

या तु ह और जानकारी क आव यकता है? या और भी अ धक सूचनाएं अथवा तेज़


र तार क यूटर, अ धक वै ा नक और बौ क गणनाएं संसार क र ा कर सकते ह? या
ऐसा नह है क मानवता को इस समय केवल समझदारी या स य ान क आव यकता है?

पर तु यह स य ान या है और कहां मलेगा? शा त रहने क मता से ही ान ा त होता


है. केवल दे खो और सुनो. और कुछ भी करने क ज़ रत नह है. शा त रहने, दे खने और
सुनने से तु हारे भीतर का भावना वहीन ान जा त हो जाता है. अ तर-शा त को ही
अपने श द और काय को दशा बताने दो.
अ याय 2

वचारशील बु के परे

मनु य क थ त : वचार म गुम.

ब त से लोग अपना पूरा जीवन अपने वचार क सीमा म ही क़ैद रखकर जीते ह. वे
संकु चत, मान सक उपज और गत धारणा से कभी बाहर नह आते और अतीत
ारा प रचा लत रहते ह.

तु हारे भीतर और येक मनु य के भीतर चेतना का आयाम वचार से भी अ धक गहरा


होता है, तुम जो भी हो, यह उसी का सार है. हम इसे उप थ त, जाग कता, अ नयं त
चेतना कह सकते ह. ाचीन श ा म, यही अ तर का यीशू अथवा तु हारी बु कृ त है.

इस आयाम को खोजना, तु ह और ःख क नया को, जसे तुम अपने और सर पर लाद


लेते हो, उससे आज़ाद कर दे ता है, जब क बु से उपजे “न हे से म” को ही केवल तुम
जानते हो और यही तु हारे जीवन को चलाया करता है. ेम, ख़ुशी, रचना मक व तार और
असीम अ तर-शा त सफ़ चेतना क उस अ तबं धत सीमा ारा तु हारे जीवन म आ
सकते ह.

ी ी े े े े
अगर कभी-कभी अपने दमाग़ म से गुज़रते ए साधारण वचार के समान वचार तुम
पहचान सको, य द तुम अपनी दमागी भावना क त या करने वाली णाली को वयं
घटते ए दे ख सको, तो उस समय यह व तार तु हारे भीतर पहले से ही उ प हो रहा होता
है, जैसे जाग कता के समय जब वचार एवं भावना उ प होते ह — वह असमय अ तर
व तार, जसके भीतर तु हारे जीवन क घटनाएं घटती ह.

सोचने के ोत म तेज़ ग त होती है, जो तु ह आसानी से अपने साथ बहाकर ले जा सकती


है. येक वचार यही भाव उ प करता है क वह ख़ास है. वह तु हारा यान पूरी तरह से
अपनी ओर ख चना चाहता है.

तु हारे लए अब एक नया आ या मक अ यास है क अपने वचार को ब त ग भीरता से


मत लो.

मनु य के लए अपनी धारणा क क़ैद म फंस जाना कतना आसान है.

मनु य का म त क जानने, समझने और क़ाबू करने क इ छा म वचार और अपने


कोण क ग़लती को स य मान लेता है. वह कहता है क यह ऐसा ही है. तु ह वचार से
भी बड़ा होना होगा, ता क तुम “अपना जीवन” या फर कसी अ य के जीवन या वहार
के बारे म ा या करते समय, चाहे तुम कसी भी प र थ त को जांचो, यह केवल एक
कोण से अ धक कुछ नह है, ब त सारे होने वाले कोण म से केवल एक. यह
केवल वचार क पोटली से अ धक कुछ नह है, पर तु स य तो एक संयु पूणता है,
जसम सभी कुछ आपस म गुंथा आ है, जहां अपने आप म कुछ नह है और कुछ होता
भी नह है. मनु य क सोच यथाथ के टु कड़े कर दे ती है — उसे धारणा के न हे-न हे
टु कड़ म काट दे ती है.

वचार करने वाला म त क एक लाभदायक व श शाली औज़ार है, पर तु यह ब त


सी मत भी है, जब यह तु हारे जीवन को पूरी तरह लपेट लेता है, जब तुम इस बात का भी
अहसास नह करते क यह तु हारी चेतना का एक छोटा-सा प है.
बु मानी वचार का ज म नह है. ग भीर जानकारी , बु मानी है, जो कसी को कुछ दे ने
या कसी व तु पर पूरा यान दे ने के सरल काय से उ प होती है. यान ाकृ तक है,
बु मानी अपने आप म वयं क चेतना है. जड़ वचार ारा उ प कावट को यह मटा
दे ती है, इसके साथ यह पहचान आती है क अपने आप म कुछ भी मौजूद नह . यह दे खने
वाले और दे खे जा चुके को जाग कता क एक हो जाने क थ त म जोड़ दे ता है. यह
अलगाव का उपचारक है.

जब भी तुम ववशता भरी सोच म डू बे ए होते हो, तुम जो है, उसक उपे ा करते हो. तुम
जहां हो, वहां नह होना चाहते. यहां, वतमान म.

धा मक, राजनै तक, वै ा नक स ा त इस ग़लत व ास म से पैदा होते ह क वचार स य


या वा त वकता को समेट सकते ह. स ा त सामू हक मन के भाव क क़ैद होते ह. हैरानी
क बात यह है क लोग अपने क़ैदख़ान से ेम करते ह, य क वह उसे सुर ा का भाव
और “म जानता ँ” का झूठा भरोसा दान करते है.

मानवता को इन स ा त से अ धक पीड़ा कसी ने नह द . यह सच है क हरेक स ा त


आज या कल बखर जाता है, य क अ त म स चाई उसका पदाफ़ाश कर दे ती है,
हालां क जब तक उसका बु नयाद म दखाई दे क वह या है, कोई और उसका थान ले
लेता है.

यह बु नयाद म या है? वचार के साथ पहचान होना.

वचार के सपन से जा त हो जाना ही आ या मक जागना है.


जतना क वचार भी पकड़ नह सकते, चेतना का े उससे कह अ धक बड़ा है. जब
तुम अपने हर वचार पर व ास करना छोड़ दे ते हो, तब तुम वचार से बाहर आ जाते हो
और साफ़ दे ख सकते हो क जो वचारक है, वह तुम नह हो.

बु हमेशा “काफ़ नह ” क थ त म रहती है, इस लए हमेशा और पाने का लालच


करती है. जब तुम बु के साथ प र चत हो जाते हो, तो तुम ब त आसानी से बैचेन होते हो
और ऊब जाते हो. ऊबने का मतलब है क बु और ो साहन के लए भूखी है, वह
सोचने के लए और भोजन चाहती है, उसक भूख शा त नह हो पा रही है.

जब तुम अपने म त क क भूख को अनुभव करते हो, तो कोई प का उठाकर, फोन


करके, ट .वी. चलाकर या वेबसाइट खोलकर अथवा बाज़ार म ख़रीदारी करके उसे शा त
कर सकते हो और यह असामा य नह है क मान सक समझ म कमी और अ धक क
ज़ रत को थोड़े समय के लए शरीर क आव यकता के प म अ धक भोजन करने के
लए अ त हण कर लेते हो.

या फर तुम अनुभव करके पता लगा सकते हो क बैचेनी व ऊब क हालत म कैसा लगता
है? जब तुम इन भावना पर जाग कता का आभास लाते हो, तब अचानक ही उसके
चार ओर थान और अ तर-शा त हो जाती है. शु म थोड़ा कम, पर तु जैसे ही अ तर के
थान क अनुभू त बढ़ती है, ऊब का अहसास ग भीरता और वा त वकता म कम होने
लगता है. इस कार यह ऊब भी तु ह यह सखा सकती है क तुम कौन हो और कौन नह
हो.

तु ह पता चल जाएगा क “ऊबा आ ” जो है, वह तुम नह हो. ऊब तु हारे भीतर क


केवल एक प र थ त से उपजी ऊजा है. न ही तुम ोधी, ःखी अथवा डरे ए हो.
ऊब, ोध, ःख अथवा डर “तु हारे” अपने नह ह. ये केवल मानव मन क थ तयां ह. ये
आती और जाती रहती ह.

जो भी आता और जाता है, वह तुम नह हो.

“ ” े
“म ऊब गया ं” यह कसे मालूम?

“म ोधी, ःखी और डरा आ ं” यह कसे मालूम?

तुम वह थ त, जो मालूम है, नह हो, ब क तुम वयं जानकारी हो.

कसी भी कार का पूवा ह यह बताता है क तुम सोचने वाले म त क के साथ प र चत


हो. इसका अथ यह है क तुम सरे कसी और को अब ब कुल नह दे ख रहे हो,
ब क उस के वषय म यह तु हारी अपनी धारणा ही है. कसी सरे क
सजीवता कम करके, उसे धारणा से जोड़कर तुम एक कार क हसा करते हो.

वचार जो क जाग कता से जुड़ा आ नह है, केवल आ मलीन और अ याशील हो


जाता है. बना बु क चतुराई ब त ख़तरनाक और वनाशकारी होती है. आज मानवता
क अ धकतर यही थ त है. वचार को व ान एवं तकनीक म ढालना वा त वकता म न
तो अ छा है, न ही बुरा. यह भी व वंसक बन गया है, य क जस वचारधारा से यह
उ प आ है, उसक जड़ जाग कता म नह ह.

मानव मू यांकन का अगला पग वचार से आगे बढ़ना है. अब यही हमारा ब त ज़ री


काय है. इसका मतलब यह नह क और वचार पूरी तरह न कर, ले कन आसानी से ही
वचार के साथ न जुड़े, वचार से त न हो जाएं.

अपने शरीर के अ दर क ऊजा को अनुभव करो. मान सक शोर एकदम कम या समा त हो


जाएगा. इस ऊजा को अपने हाथ म, अपने पैर म, अपने पेट म, अपनी छाती म अनुभव
करो. जीवन को अनुभव करो जो क वयं तुम हो. यही जीवन या ाण शरीर का प
धारण करता है.

ी े े े े ी े े ो े े ी े
इस कार सजीवता के गहरे अथ म, भावना के पंदन के नीचे, तु हारे सोचने के नीचे
शरीर तब एक दरवाज़ा बन जाता है.

तु हारे भीतर एक सजीवता है, जसे केवल म त क म ही नह , तुम अपने पूरे अ त व के


साथ अनुभव कर सकते हो. उस उप थ त म येक अणु सजीव है, जसम तु ह सोचने क
आव यकता नह हो. फर भी उस थ त म य द कसी ावहा रक उद्दे य के लए वचार
क आव यकता है, तो वह वहां मौजूद है. बु फर भी काय कर सकती है और वह
अ धक सु दरता के साथ काय कर सकती है, जब क महानतम बु , जो क तुम वयं हो,
उसका योग करती है और उसी के ारा होती है.

तुमने उन छोटे -छोटे ण को अनदे खा कर दया होगा, जनम “ वचार र हत चेतना”


वभा वक तौर पर व वे छा से, तु हारे जीवन म पहले से ही घट रही है. तुम चाहे कसी भी
शारी रक या म त हो, या फर कमरे म चहलक़दमी कर रहे हो, या हवाईअड् डे के
काउ टर पर इंतज़ार कर रहे हो और पूरी तरह ऐसी मौजूदगी हो क सोचने क वभा वक
थरता दब जाए और उसका थान एक जाग क उप थ त ले ले, या फर बना कसी
कार क भीतर क मान सक ट का- ट पणी के तुम अपने को आकाश क ओर दे ख पाते
हो, या फर कसी को सुन रहे होते हो. तु हारा य ान वचार ारा बना धुंधला ए
एकदम प हो जाता है.

म त क के लए यह मह वपूण नह है, य क उसके सोचने के लए और भी “अ धक


मह वपूण” चीज ह. यह याद करने यो य भी नह है, इस लए तुमने उसक उपे ा कर द ,
जब क वह अपने आप घट रहा है.

सच तो है क सबसे मह वपूण बात यह है, जो तु हारे साथ घट सकती है. वचार से


जाग क उप थ त के थाना तरण क यह शु आत है.

“ े” ो े े े ी
“कुछ न जानने” क थ त म न त रहो. यह तु ह बु से परे ले जाएगी, य क बु
हमेशा नतीजे नकालने और ा या करने क को शश करती है. यह अ ान से डरती है.
इस लए तुम जब अ ान म भी न त हो जाते हो, तो तुम पहले से ही बु से परे हो जाते
हो. एक गहरा ान जो क धारणा र हत है, उस थ त म से पैदा हो जाता है.

कला मक सृजन, खेल, नृ य, श ण, सलाहकारी — कसी े म द ता — यह बताता


है क सोचने वाली बु या तो उसम ब कुल शा मल नह है या फर वह सरा थान ले
रही है. एक श और बु मानी जो तुमसे बड़ी है और अब तक तु हारे साथ एका म है,
अ धकार जमा लेती है. यहां नणय लेने क या अब और नह रहती. सही या तुरंत
अपने आप होती है, जब क “तुम” उसे नह कर रहे होते हो. जीवन का कौशल नयं ण का
उलट होता है. तुम महानतम चेतना से जुड़ जाते हो. यह अ भनय करता, बोलता, काय
करता है.

ख़तरे का एक ण वचार के बहाव म अ थायी कावट ला सकता है और इस कार तु ह


उप थत, सावधान और जाग क होने का वाद अनुभव करा सकता है.

स य चार ओर से और अ धक घेर लेता है, जतना बु कभी सोच भी नह सकती. कोई


भी वचार स य को मुट्ठ म ब द नह कर सकता. यादा से यादा उसक ओर इशारा कर
सकता है. उदाहरण के लए वह कह सकता है — “सभी व तुएं बु नयाद तौर पर एक ह.”
यह केवल इशारा ह, ा या नह . इन श द को समझने का अथ है, अपने भीतर क
गहराई म से उस स य को अनुभव करना, जसक ओर वे इशारा करते ह.
अ याय 3

अहंकारी व

बु लगातार केवल वचार के लए ही भोजन नह खोजती, ब क अपने अ त व के


लए भी भोजन खोजती है, अपने व क पहचान के लए भी. इस कार अहंकार अ त व
म आता है और लगातार अपनी फर से रचना करता जाता है.

जब तुम अपने बारे म सोचते और बोलते हो, जब तुम कहते हो “म” तो तुम वभावतः “म
और मेरी कहानी” के संग म कहते हो. तु हारा यह “म” ही पस द-नापस द करता है,
डरता और इ छा करता है, “म” कभी ल बे अस के लए स तु नह रहता. तुम या हो,
यह बु क उपज का बोध है. यह अतीत ारा भा वत होता और भ व य म अपनी
पूणता खोजता है.

या तुम दे ख सकते हो क यह “म” ण-भंगुर है, एक अ थायी संरचना है. यह पानी क


सतह पर लहर ारा बनाए गए नमून क तरह है.

वह कौन है, जो यह दे खता है? वह कौन है, जो तु हारे इस शारी रक और मनोवै ा नक प


क ण-भंगुरता को जानता है? म ं. यह गहनतम “म” अहंकार है. इसका अतीत और
भ व य दोन से ही कोई स ब ध नह .
तु हारे सम या से भरे जीवन के हालात से जुड़े डर और चाहत तु हारे यान को हर घड़ी
अपने ऊपर के त रखते ह. या ये शेष रहगे? तु हारी क पर लगे प थर पर ज म और
मृ यु क तारीख के बीच का एक ख़ाली थान, एक या दो इंच ल बी लक र.

अहंकारी व के लए यह एक नराशा म डू बा वचार है और तु हारे लए मु दे ने वाला है.

जब येक वचार तु हारे यान को अपने ऊपर पूरी तरह के त कर लेता है, तब इसका
मतलब है क तुम अपने म त क क आवाज़ के साथ जुड़ गए हो. वचार तब व के बोध
से घर जाते ह. यही अहंकार है, बु ारा उपजा “म” है. बु ारा उपजा अहंकार अपने
को अधूरा व अ थर महसूस करता है. इसी लए डर और चाहत इसको ग त दे ने वाली मु य
श यां होती ह.

जब तुम यह पहचान लेते हो क तु हारे म त क म कोई आवाज़ है, जो तु हारे अ त व का


दावा करती है और लगातार पुकारती रहती है, तो तुम वचार के बहाव के साथ अपनी
अनजानी पहचान से जाग रहे होते हो. जब तुम उस आवाज़ पर यान दे ते हो, तब तु ह ान
हो जाता है क तुम वह आवाज़ नह , ब क वचारक हो, जो इसे पहचानता है.

अपने आपको आवाज़ के पीछे क जाग कता समझना ही मु है.

अहंकारी व हमेशा खोजने म जुटा रहता है. वह अ धकतर इस और उसको अपने साथ
जोड़ने के लए, अपने आपको और भी अ धक पूण अनुभव करने के लए को शश करता
है. यही अहंकार का भ व य के साथ बा यकारी गठजोड़ है.

जब भी तुम अपने बारे म जाग क हो जाते हो — “अगले ण के लए जी वत रहते हो”


— तुम उसी समय अहंकारी बु क बनावट से बाहर आ जाते हो और उस ण पर यान
के त करने क स भावना भी साथ-साथ उ प हो जाती है.

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इस ण पर पूरा यान के त करने से अहंकारी बु से भी अ धक समझदारी तु हारे
जीवन म वेश कर जाती है.

जब तुम अहंकार के सहारे जीते हो, तो तुम वतमान ण को अ त के एक अथ म हमेशा


कम कर दे ते हो. तुम भ व य के लए जीते हो और जब अपने ल य को ा त कर लेते हो,
तो वे तु ह स तु नह कर पाते, कम से कम ल बे समय तक नह .

जब तुम काय पर अ धक यान दे ते हो, बजाय भ व य के नतीजे के और ज ह तुम उसके


ारा ा त करना चाहते हो, तो तुम पछले अहंकारी पूवा ह को तोड़ दे ते हो. तु हारा यह
काय न केवल और अ धक भावशाली हो जाता है, ब क असीम आन द और स तोष दे ने
वाला बन जाता है.

येक अहंकार म अ सर एक त व अव य होता है, जसे हम “उ पी ड़त अ त व” कह


सकते ह. कुछ लोग अपने बारे म इतनी कठोर और ःख भरी क पना बना लेते ह क वह
उनके अहंकार के बीच क धुरी बन जाता है. पछतावा और शकायत उसके अ त व के
बोध का ज़ री ह सा बन जाते ह.

चाहे तु हारी शकायत पूरी तरह “तकसंगत” ह , तुमने अपने लए पहचान क रचना कर
ली है. यह एक क़ैदखाने क तरह है, जसक सलाख़ वचार के प म ह. यह दे खो क
तुम अपने आप या कर रहे हो या फर तु हारी बु तुमसे या करवा रही है? अपने ःख
क दा तान से अपने भावना के लगाव को अनुभव करो और उसके बारे म ज़बरद ती
सोचने व बोलने म जाग क बने रहो. अपने अ तर के े के उप थत सा ी के प म
वहां मौजूद रहो. तु ह कुछ भी करने क ज़ रत नह . जाग कता के साथ पा तरण और
मु आती है.

शकायत और त या पस द दा मान सक नमूने ह. इनके ारा अहंकार अपने को मज़बूत


करता है. ब त से लोग के लए उनक मान सक भावना क याएं इस या उसक
शकायत अथवा त या करने क होती ह. ऐसा करके तुम सर को या प र थ त को
“ग़लत” और अपने को “सही” ठहराते हो. “सही” बताकर तुम अपने को बेहतर समझते
ोऔ े ो े े े ो ो े ो
हो और अपने को बेहतर मानकर, तुम वयं के अ त व के बोध को मजबूत करते हो.
असल म तुम केवल अहंकार के म को मज़बूत करते हो.

या तुम इस या क अपने भीतर जांच कर सकते हो और अपने म त क से शकायत


क आवाज़ को पहचान सकते हो क वह या है?

अपनी अहंकारी भावना को संघष क ज़ रत है, य क उसक अलग पहचान इसके और


उसके ख़लाफ़ संघष करने और यह बताने म क “म” यह ं और “म” वह नह ं, इसम
और भी श शाली हो जाती है.

श ु क मौजूदगी म अ सर जा तयां, रा और धम, सामू हक पहचान क श शाली


भावना को महसूस करते ह. “अ व सनीय” के बना “ व सनीय” कौन हो सकता है?

य के साथ वहार करते समय या तुम उनके लए अपने भीतर े तर अथवा


न नतर का ती भाव महसूस करते हो? अगर ऐसा है, तो तुम अहंकार क तरफ़ ताकते हो,
जो इस तरह क तुलना म ही लगा रहता है.

ई या अहंकार का ही एक उ पाद है और वह अपने को न न समझ लेता है, य द कसी


सरे के साथ कुछ भी अ छा घट रहा हो फर सरे के कुछ यादा ही हो, उसके पास
अ धक जानकारी हो अथवा वह तुमसे कुछ अ धक कर सकता हो. अहंकार क पहचान
तुलना पर नभर करती है और वह अ धक पर जी वत है. वह कसी भी चीज़ को पकड़
लेगा. य द कुछ भी न मले, तो तुम अपने साथ ए जीवन के अ धक अ याय या कसी और
से अपने को अ धक बीमार या पी ड़त समझकर अपनी पहचान के मनगढ़ त भाव को श
दान करते हो.

वह कहा नयां, कथा-सा ह य कौनसा है, जससे तुम अपने अ त व का बोध ा त करते
हो?
अहंकारी व के ही ढांचे म वरोध, तरोध और अलग रहने क इ छा अलगाव क भावना
है, जसको बनाए रखने म ही उसका अ त व नभर करता है. इस कार यहां “म” “ सरे”
के और “हम” “उनके” के वरोध म ह.

अहंकार को कसी चीज़ या कसी के साथ संघष क आव यकता होती है. इससे
साफ़ होता है क तुम शा त, आन द और ेम क खोज म हो, पर तु उ ह ल बे समय तक
बदा त नह कर पाते हो. तुम कहते हो क तु ह ख़ुशी चा हए, पर तु तु ह ःखी रहने क
आदत पड़ी ई है.

तु हारा ःख तु हारे जीवन क प र थ तय के कारण नह , ब क तु हारे म त क क शत


के कारण पैदा आ है.

या तुम पहले कभी कसी कए गए या नह कए गए काम के लए पछतावे क भावना


रखते हो? यह तो तय है क तुमने उस समय अपनी चेतना के तर के अनुसार या कसी
अचेतन अव था म ही यह काय कया होगा. य द तुम और अ धक जाग क और सचेत
होते, तब तुमने अलग तरह का वहार कया होता.

व के बोध के लए ला न अहंकार ारा अपनी पहचान के सृजन क को शश है. अहंकार


के लए इस बात से कोई भी फ़क़ नह पड़ता क यह व सकारा मक है या नकारा मक. जो
भी तुमने कया या करने म असफ़ल रहे, वह अ ान मानवीय अचेतनता का ही दशन था,
ले कन अहंकार उसे गत बनाता है और कहता है “मने वह कया” और इस कार तुम
अपने “बुरे” होने क एक का प नक त वीर बना लेते हो.

इ तहास म मनु य ने अन गनत हसाएं, ू र और एक सरे को चोट प ंचाने वाले काम कए


ह और ऐसा करना जारी है. या उन सबको दोषी ठहराया जाए. या वे सब श मदा ह? या
फर वे सब काय अचेतनता का आसान-सा दशन है, एक ऐसी वकास क ओर बढ़ने
वाली थ त है, जसम से हम आज गुज़र रहे ह?

ी “ ो े े े े ”
यीशू का कथन क “उ ह माफ़ कर दो, य क वे नह जानते क वे या कर रहे ह”, यह
अपने आप पर भी लागू होता है.

य द अपनी मु के उद्दे य से अहंकार के ल य को चुनते हो, अपनी मह ा क या फर


वयं को ऊंचा करने क भावना रखते हो और उ ह ा त कर भी लेते हो, तो वे तु ह संतोष
दान नह करगे.

ल य चुन लो, पर तु यह जान लो क वहां प ंचना ही मह वपूण नह है. जब वतमान म से


कुछ उभरता है, तो इसका मतलब है क यह ण अंतःसमा त का साधन नह है, ब क हर
ण अपने आप म काय करते रहना है. तुम अब वतमान को अंतःसमा त के साधन के प
म कम नह करते, जो क अहंकारी चेतना है.

“ व नह , सम या नह ” एक बौ गु ने तब कहा, जब बौ धम क गहराई क ा या
करने के लए उनसे कहा गया.
अ याय 4

वतमान

ऊपरी तौर पर दे खने पर ऐसा महसूस होता है क वतमान ण अनेक ण म से एक है.


तु हारे जीवन के हर दन म हज़ार ण होते ह, जनम अलग-अलग घटनाएं घटती ह,
ले कन अगर तुम यान से दे खो, तो या सदा यहां एक ही ण नह रहता? या जीवन
सदा “यही ण” नह है?

यह एक ण — वतमान — ही एक ऐसा त य है, जससे तुम कभी छु टकारा नह पा


सकते, यह तु हारे जीवन का न बदलने वाला त य है. चाहे कुछ भी हो जाए, बेशक तु हारा
जीवन बदल जाए, एक त य तय है, वह है वतमान.

चूं क वतमान से कभी छु टकारा नह मल सकता, तो फर य न उसका वागत कर, उसके


साथ म ता य न रख?

जब तुम वतमान ण के साथ म ता कर लेते हो, तो तुम कह भी य न हो, तुम अपने


आपको सहज अनुभव करोगे. जब तुम वतमान म सहज अनुभव नह करते, तो फर तुम
कह भी चले जाओ, तुम अपने साथ बैचेनी ले जाओगे.
वतमान ण जैसा है, वैसा ही हमेशा रहेगा, या तुम उसे रहने दोगे?

जीवन का वभाजन भूत, वतमान और भ व य बु ारा बना है. वा तव म यह का प नक


है. भूत और भ व य वचार से उपजे प ह, मान सक अमू तकरण ह. भूत केवल वतमान
म ही याद कया जा सकता है. जो कुछ तुम याद रखते हो, वह एक घटना है, जो वतमान म
घट है और तुम उसे वतमान म ही याद करते हो. भ व य जब आता है, तो वह वतमान ही
है, इस लए यह बात स य है क केवल वतमान ही है, जो सदा हमारे साथ रहता है.

अपना यान वतमान म बनाए रखने का मतलब यह नह क तु ह जीवन म जो चा हए,


उससे इनकार करो. इसका मतलब यह है क जो भी ाथ मक है, उसे पहचानो. फर तुम
उसके बाद तीय जो भी सामने आए, उससे आसानी से नपट सकते हो. इसका मतलब
यह कहना नह है क “म आगे कसी और बात या चीज़ से स ब ध नह रखूंगा, य क
अब यहां केवल वतमान है”. नह , जो ाथ मक है, उसे पहले खोजो और वतमान को
अपना म बनाओ, अपना श ु नह . उसे वीकार करो, उसका आदर करो. जब वतमान
तु हारे जीवन का ाथ मक के और आधार बन जाता है, तो तु हारा जीवन आसानी से
गुज़रने लगता है.

बतन समेटना, ापार के लए नी त बनाना, या ा क तैयारी करना — इनम सबसे अ धक


मह वपूण या है : कम या प रणाम, जसे तुम कम ारा ा त करना चाहते हो? यह ण
या भ व य का कोई ण?

या तुम इस ण को ऐसा मानते हो, जैसे वह एक बाधा है, जसे पार करना चा हए? या
तुम यह महसूस करते हो क तु हारे पास भ व य म कोई ऐसा ण होगा, जसे ा त करना
अ धक ज़ री होगा?

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लगभग हर इसी कार जीवन गुज़ारता है. चूं क भ व य, सवाय वतमान के प म
कभी नह आता, इस तरह जीना, ग़लत ढ़ं ग से जीना है. इसम लगातार एक बैचेनी, तनाव
और अस तोष क अ तधारा बहती रहती है. यह जीवन का स मान नह करता, जो अभी
वतमान है और हमेशा वतमान ही रहेगा.

अपनी भीतरी सजीवता को अनुभव करो. यह तु ह वतमान म थरता दान करती है.

तुम अपने जीवन का भार तब तक नह उठा पाओगे, जब तक तुम इस ण यानी वतमान


का दा य व नह उठाओगे, य क वतमान ही वह थान है, जहां जीवन को पाया जा
सकता है.

इस ण का दा य व लेने का अथ यही है क वतमान का “इस कार” अ तर से भी वरोध


न करो, वह जो भी है, उससे बहस न करो. इसका मतलब है, जीवन के साथ शा मल होकर
चलो.

वतमान ऐसा ही है, य क वह और कसी भी कार का नह हो सकता. बौ धम को


मानने वाले यह सब हमेशा से ही जानते थे, अब भौ तकवाद भी इसे वीकार करते ह :
यहां अलग व तुएं या घटनाएं कभी नह होत . सतह के नाचे सभी व तुएं आपस म जुड़ी
ई ह, ा ड क पूणता का अंश ह, जो क यही प लेता है और जसे यह ण ा त
करता है.

जब तुम जो भी है, उसे “हाँ” कहते हो, तो तुम वयं ही जीवन क ऊजा एवं बु से जुड़
जाते हो. तभी तुम जगत म सकारा मक प रवतन के त न ध बन जाते हो.

एक सरल, पर तु त व प आ या मक अ यास तो यही है क वतमान म जो भी पैदा हो,


उसके भीतर व बाहर से — उसे वीकार करो.
जब तु हारा यान वतमान से जुड़ जाता है, तो वहां सजगता आ जाती है. यह ऐसा है, जैसे
तुम सपने से जाग रहे हो, वचार के सपने, अतीत और भ व य के सपने से. कतनी प ता
और कतनी सरलता है. इसम सम या के पैदा होने के लए कोई जगह नह है. बस, यह
ण, जैसा है, वैसा ही है.

जैसे ही तुम वतमान म यान के साथ वेश करते हो, तुम अनुभव करते हो क जीवन द
है. जब तुम उप थत होते हो, येक व तु, जसे तुम दे खते हो, उसम द ता आ जाती है.
जतना अ धक तुम वतमान म रहते हो, उतना ही अ धक तुम अपने अ त व और स पूण
जीवन क द ता म सरल, पर तु अ य धक आन द अनुभव करते हो.

अ धकतर लोग वतमान को और इस समय जो घ टत हो रहा है , उसको एक समान समझने


क ग़लती कर बैठते ह, पर तु यह ऐसा नह है. वतमान म जो घट रहा है, वह उससे अ धक
गहरा है. यह तो थान है, जसम वह घट रहा है.

इस लए इस ण क वषयव तु को वतमान से मत मत समझो. उन सब वषयव तु म


से जो पैदा होता है, वतमान उससे कह अ धक गहरा है.

जब तुम वतमान म वेश करते हो, तो तुम अपने म त क क वषय-व तु से बाहर आ


जाते हो. वचार का नरंतर वाह क जाता है. वचार तु हारे यान को अब और नह
ख चते और तु ह पूणता म नह ले जाते. वचार के बीच म ख़ाली थान पैदा हो जाता है —
व तार और अ तर-शा त. तुम यह अनुभव करना शु कर दे ते हो क अपने वचार के
मुक़ाबले म तुम कतने अ धक वशाल और गहन हो.

औ ो ी े ो ी े ी
वचार, भावनाएं, इ य ान और जो कुछ भी तुम अनुभव करते हो, वही तु हारे जीवन क
वषयव तु बन जाती है. “मेरा जीवन” वही है, जो तुम अपने व के ान से ा त करते हो
और “मेरा जीवन” ही वषयव तु है, इसी म तुम व ास करते हो.

तुम लगातार एक मौजूदा स चाई को अनदे खा कर दे ते हो. म ं के तु हारे अ तर-बोध का


तु हारे जीवन क घटना से कुछ लेना-दे ना नह , उसे वषयव तु से कुछ मतलब नह . म
ं का बोध ‘वतमान’ के साथ है. यह हमेशा ऐसा ही रहता है. बचपन और बुढ़ापे म, वा य
और बीमारी म, सफलता या असफ़लता म — म ं — वतमान का थान — अपने
गहनतम तर तक बना बदले रहता है. अ सर वषयव तु से म हो जाता है, इस लए
अपने जीवन क वषयव तु ारा म ं या फर वतमान को ब त ही धुंधला और अ य
अनुभव करते हो. सरे श द म तु हारे अ त व का बोध तु हारे वचार के वाह और इस
जगत क अ य ब त-सी बात से ढक जाता है. वतमान समय म खो जाता है.

इस कार आप भूल जाते हो, अपने अ त व का अपनी जड़ से जुड़ा होना, अपनी द


वा त वकता और संसार म अपने आपको खो दे ते हो. जब मानव यह भूल जाता है क वह
कौन है, तब म, ोध, नराशा, हसा और संघष पैदा हो जाते ह.

इस कार स य को याद रखना कतना आसान है और इससे घर वापस लौटना भी.

म अपने वचार, भावनाएं, इ य-बोध और अनुभव नह ं. म अपने जीवन क वषयव तु


नह ं. म जीवन ं. म वह थान ं, जसम सब कुछ घटता है. म चेतना ं. म ही वतमान
ं. म ं.
अ याय 5

वा तव म तुम कौन हो

तु हारे भीतर क गहराइय से वतमान को अलग नह कया जा सकता.

यूं तो तु हारे जीवन म ब त सी व तुएं ज़ री होती ह, पर तु केवल एक ही व तु स पूण


होती है.

तुम जीवन म सफ़ल हो या असफ़ल, यह संसार क नज़र म मह वपूण हो सकता है. तुम
तंद त हो या बीमार, श त हो या अ श त यह भी मह व रखता है. तुम अमीर हो या
ग़रीब, यह भी मह व रखता ह — वा तव म ये सब तु हारे जीवन को भा वत करते ह. जी
हां, ये सब बात मह व रखती ह — पर तु तुलना करके दे ख, तो ब कुल भी मह व नह
रखत .

यहां ऐसा भी है, जो उन सबसे अ धक मह व रखता है और वह है, इस त व को खोजना क


इस ण-भंगुर जीवन के परे तुम कौन हो, वही ण-भर का परक व का बोध.

अपने जीवन क प र थ तय को फरसे व थत करके तुम शा त ा त नह कर सकते,


ब क ‘तुम कौन हो’ का बोध अपने जीवन क गहराइय म समझकर ा त कर सकते हो.
पुनज म अगले ज म म भी तु हारी मदद नह कर सकता, य द तुम अभी तक यह नह
जानते क तुम कौन हो.

इस धरती पर सभी ःख “म” और “हम” के गत बोध से ही उ प होते ह. तुम कौन


हो, इसका पूरा सार इसी म आ जाता है. जब तुम अपने अ तर के इस त व से अनजान रहते
हो, तो अ त म तुम सदा ःख ही पाते रहते हो. यह बात उतनी ही सरल है. जब तुम यह
नह जानते क तुम कौन हो, तुम अपने सु दर और द अ त व को बु ारा रचे गए व
के बदले म रख दे ते हो और उस भयभीत और लोभी व से चपट जाते हो.

उस नकली व के बोध क र ा करना और उसे बढ़ाना ही तब तु हारी पहली ेरक श


बन जाता है.

ब त सी अ भ यां जो क आम बोलचाल म ह और अ सर भाषा क ही बनावट बन


जाती ह — यही बताती ह क मनु य यह नह जानता क वह या है. तुम कहते हो
“उसका जीवन समा त हो गया” या फर “मेरा जीवन”, मानो यह जीवन कुछ ऐसा है,
जसे पाया या खोया जा सकता है. स य तो यह है क जीवन तु हारे पास नह है , तुम ही
जीवन हो . एक पूण जीवन, केवल एक चेतना, जो पूरे जगत म फैल जाती है और अनुभव
के लए एक प थर, घास का तनका, पशु, एक , तारे का ह का अ थायी आकार
ा त कर लेती है.

या अपने भीतर गहराई से तुम यह अनुभव करते हो क तुम पहले से ही यह जानते हो?
या तु ह इस बात का ान है क तुम वह पहले से ही हो?

ी े ै ै े ी ौ
जीवन म अ धकतर काय के लए तु ह समय क ज़ रत है, जैसे कसी नए कौशल,
मकान नमाण, वशेष बनने, एक कप चाय बनाने के लए. समय बेकार है, पर तु जीवन
क सबसे मह वपूण घटनाएं, जो तुमसे स ब धत ह, उनम एक बात जो सबसे अ धक
ज़ री है, वह है, व का ान, जसका मतलब है, यह जानना क ऊपरी तौर पर दखाई
दे ने के अलावा, तु हारा नाम, तु हारा शारी रक प, तु हारा इ तहास, तु हारी कहानी के
अलावा तुम या हो.

तुम अपने को भूत या भ व य म नह पा सकते. केवल एक थान जहां तुम अपने को पा


सकते हो, वह है वतमान.

अ या म क खोज करने वाले ‘ व’ को पहचानने या ान ा त करने के लए भ व य म


झांकते ह. खोजने वाले का अथ है क तु ह भ व य क ज़ रत है. य द इसी पर तुम
व ास करते हो, तो तु हारे लए यही स य बन जाता है. तु ह समय क ज़ रत होती है,
जब तक तु ह वयं पता नह चल जाता क अपने अ त व के लए तु ह समय क ज़ रत
नह है.

जब तुम एक पेड़ दे खते हो, तो तुम पेड़ को पहचानते हो. जब तु हारे मन म कोई वचार या
संवेदना उ प होती है, तुम उस वचार अथवा संवेदना को जानते हो. जब तु ह कोई
ःखदायक अथवा आन ददायक अनुभव होता है, तो तुम उस अनुभव को पहचानते हो.

ये सभी प और सही बात ह, फर भी य द तुम उ ह यान से दे खोगे, तो तुम पाओगे क


ब त बारीक से इस संरचना म म है. एक ऐसा म, जो भाषा के योग के समय एकदम
थ हो जाता है. वचार और भाषा दोहरेपन और अलग व को ज म दे ते ह, जब क
स चाई म वहां कोई भी नह होता. स य यह है क वृ , वचार, संवेदना अथवा अनुभव को
जानने वाले तुम कोई नह हो. तुम तो वह चेतना अथवा जाग कता हो, जसम व जसके
ारा सब व तुएं दखाई दे ती ह.

जब तुम अपने जीवन क तरफ़ दे खते हो, तो या तुम अपने को एक चेतना के प म जान
सकते हो, जसम तु हारे पूरे जीवन क वषयव तु प हो जाती है?

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तुम कहते हो “म अपने को जानना चाहता ं.” तुम इसम म हो . तुम ही ान हो . तुम ही
वह चेतना हो , जसके ारा सभी कुछ जाना जाता है. चेतना अपने आपको नह जान
सकती , ब क वह अपने आप है .

इसके परे कुछ भी नह जानना है, फर भी सभी जानना उससे पैदा होता है. “म” ान का,
चेतना का वषय अपने आप नह बन सकता है.

इस लए तुम अपनी ही वषयव तु खुद नह बन सकते. यही कारण है क अहंकारी ‘ व’ का


म पैदा हो जाता है — य क मान सक प से तुमने अपने आपको ही वषय बना लया
है. तुम कहते हो, “वह म ँ”. इस कार तुम अपने आपसे र ता था पत कर लेते हो और
सर को और अपने आपको अपनी कहानी सुनाते हो.

अपने को जाग कता के प म, जसम असाधारण अ त व घ टत होता है, जान लेने से


तुम असाधारणता पर नभरता से मु हो जाते हो और प र थ तय म, थान म और
अलग अव था म व क पहचान से मु हो जाते हो. सरे श द म यह क जो भी
घ टत होता अथवा घ टत नह होता है, तब मह वपूण नह रहता. व तुएं अपनी नीरसता
और ग भीरता छोड़ दे ती ह. तु हारे जीवन म चंचलता आ जाती है. तुम इस जगत को
ा डीय नृ य के प म दे खते हो — आकार का नृ य — न कुछ अ धक, न कम.

जब तुम जान जाते हो क वा तव म तुम या हो, तु हारे भीतर शा त का जीव त बोध


थायी हो जाता है. तुम उसे आन द भी कह सकते हो, य क वही तो आन द है — क पन
भरी जी वत शा त. आकार हण करने से पहले के जीवन त व के प म अपने को जानना
ही आन द है. यही अपने होने का आन द है, तुम वा तव म जो हो उसीका.

जस कार पानी ठोस, तरल और गैस के प म हो सकता है, उसी कार चेतना भी
शारी रक त व के प म “ठोस”, बु और वचार के प म “तरल” और शु चेतना के

ी े ी ी ै
प म आकारहीन दे खी जा सकती है.

शु चेतना आकार लेने से पहले जीवन है और यह जीवन आकार के संसार म “तु हारी”
आंख ारा ही दे खता है, य क तुम ही चेतना हो. जब अपने को उस प म पाते हो, तब
तुम येक व तु के भीतर अपने को पहचान लेते हो. यह पूरी तरह साफ़-साफ़ य ान
क थ त है. तुम अब अपने बो झल अतीत से जुड़ा अ त व नह हो, जो वचार का ऐसा
पदा बन जाता है, जससे होकर आने वाले अनुभव क ा या क जाती है.

जब तुम बना अथ लगाए कसी व तु को महसूस करते हो, तो तु ह तब इस बात का ान


हो जाता है क वह या है, जसे महसूस कर रहे हो. श द के प म य द हम कहना पड़े ,
तो हम कह सकते ह क, जहां य ान घ टत होता है, वहां सजग अ तर-शा त का े
बन जाता है.

आकारहीन चेतना “तु हारे” ारा ही अपने वषय म जाग क हो जाती है.

ब त से लोग का जीवन ज़ रत और भय ारा ही चलता है.

अपने को और अ धक ‘पूण’ बनाने के लए अपने आप म जोड़ने क ज़ रत ही इ छा है.


हर तरह का भय कुछ खोने का और अ त व खो दे ने या उसके कम हो जाने का भय होता
है.

ये दोन ही याएं इस त य म क अ त व को न तो लया और न ही दया जा सकता है,


कावट बन जाती ह. अ त व अपनी पूणता म तु हारे ही अ दर है, यही वतमान है.
अ याय 6

वीकृ त और समपण

जब भी तु ह समय मले अपने भीतर “झांको.” उस ण अपनी बाहरी प र थ तय के


बीच दे खो क तुम कहां हो, तुम कसके साथ हो और तुम या कर रहे हो और अपने वचार
और भावनाएं जानो, अंदर और बाहरी प र थ तय के बीच या तुम अचेतन म ही संघष
पैदा कर रहे हो? या तुम अनुभव कर सकते हो क जो भी वा तव म है , उसके वरोध म
अपने अ तर म खड़ा होना कतना पीड़ा दे ने वाला होता है?

जब तुम इसे पहचान लेते हो, तब यह भी समझ लेते हो क तुम इस थ के संघष —


अ तर के यु क दशा को छोड़ दे ने के लए अब वतं हो.

य द तु ह अपने अ तर के स य को उस ण करना पड़े , तो येक दन म कतनी बार


तु ह यह कहना पड़े गा, “म जहां पर ं, म वहां नह होना चाहता.” ै फक जाम, तु हारे
काम का थान, एयरपोट का लाउंज या जन लोग के साथ तुम हो, जहां कह भी हो, वहां
न होने क इ छा का अनुभव कैसा होता है?

यह स य है क कुछ जगह को छोड़ दे ना ही अ छा होता है और तु हारे करने के लए


कभी-कभी यही सबसे सही काम होगा. कई प र थ तय म उ ह छोड़ दे ने से समाधान
संभव नह होता. ऐसी थ तय म “म यहां नह होना चाहता ं” केवल थ ही नह ,
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ब क क ठन भी होता है. यह थ त तु ह और तु हारे नज़द क के लोग को ःखी कर दे ती
है.

यह कहा गया है क “तुम जहां जाते हो, वह पर होते हो.” सरे श द म “तुम यहां पर
हो.” हमेशा. या इसे वीकार करना मु कल है?

या येक इ य ान व अनुभव क मान सक प से नशानदे ही करने क तु ह ज़ रत


है? या तु ह अ सर प र थ तय और लोग के साथ लगातार संघष करते रहना पड़ता है,
जहां तु ह वा तव म जीवन के साथ पस द या नापस द के त या वाले स ब ध रखने क
आव यकता हो, ज़ री है? या यह अ तर क गहराई म दबी एक मान सक आदत है,
जसे छोड़ा जा सकता है? यह बना कुछ कए इस ण को जैसा है, उसी प म वीकार
करने से हो सकता है.

वभाव वाला और त या करने वाला “नह ” अहंकार को मज़बूत बनाता है. “हां” उसे
कमज़ोर करता है. तु हारे व क पहचान अहंकार समपण के आगे जी वत नह रह
पाती.

“मुझे ब त कुछ करना है.” हम ऐसा मान भी ल, पर तु तु हारे काम का तर या है? काम
पर जाने के लए गाड़ी चलाना, अपने मुव कल से बात करना, क यूटर पर काम करना,
छोटे -मोटे काम नपटाना, ऐसे अन गनत काम करना, जो तु हारे दै नक जीवन का ह सा ह.
तुम जो भी करते हो, उसम कतने नपुण हो? तु हारा यह काय करना समपण का है या
बना समपण का? यही तु हारे जीवन म सफलता को न त करते ह, यह नह क तुमने
कतना प र म कया. प र म तनाव और थकान क ओर इशारा करता है — भ व य म
एक न त ल य पर प ंचने क घोर इ छा अथवा कसी वशेष प रणाम को ा त करने के
लए.

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या तुम अपने भीतर ऐसा एक त व खोज सकते हो, जो तु ह ऐसा एहसास करवाए क जो
कुछ भी तुम कर रहे हो, उसे न करना चाहते हो? यह जीवन को अ वीकार करना है,
इस लए एक न त सफल प रणाम स भव नह .

य द तुम अपने भीतर यह खोज सकते हो, तब या तुम उसे छोड़ भी सकते हो और जो
कुछ भी कर रहे हो, उसी म डू ब सकते हो.

“एक समय म एक ही काम करना” एक ज़ेन गु ने ज़ेन क इस कार ा या क .

एक समय म एक काम करने का मतलब है, जो कुछ भी करो, उसम पूणता हो, उस पर
अपना पूरा यान दो. यह सम पत या है — अ धकार दे ने क या.

“जो है” उसक वीकृ त तु ह गहराई के उस तल तक ले जाती है, जहां तु हारी अ तर क


दशा, यहां तक क तु हारी व क अनुभू त, बु ारा कए गए “अ छे ” या “बुरे” के
नणय पर ब कुल नभर नह करती.

जब तुम जीवन के “होने को” को “हां” कर दे ते हो, जब तुम इस ण को इसी प म


वीकार कर लेते हो, तब तुम अपने भीतर व तार के भाव को अनुभव कर सकते हो, जो
क गहरी शा त दान करता है.

ऊपरी तौर पर तुम धूप के दन म ख़ुश और वषा के दन म उतना ख़ुश नह रहते, तुम एक
म लयन डालर जीतने पर ख़ुश होगे और अपना सब कुछ खो दे ने पर ःखी हो जाओगे.
ख़ुशी और ःख, इनम से कोई भी उतनी गहराई तक अब कभी नह प ंचता. ये तु हारे
अ त व क ऊपरी सतह पर लहर मा होते ह. बाहरी प र थ तयां कैसी भी य न ह ,
तु हारे भीतर क बु नयाद शा त को भा वत नह करत .

“जो है” उसका वीकार तु हारे भीतर क गहराइय क सीमा प करता है, जससे
लगातार ऊपर नीचे होने वाले वचार और भावना के ऊपर तु हारी न तो बाहरी, न ही
भीतरी प र थ तयां नभर करती ह.
जब तुम यह जान जाते हो क अनुभव का अ थायी वभाव और जगत तु ह कुछ भी
थायी दान नह कर सकते, तब समपण आसान हो जाता है. अहंकारी व क इ छा
और भय के बना तुम लोग से मलने लगते हो, अनुभव और काम म त हो जाते हो.
कहने का मतलब है, तु ह कोई ख़ास प र थ त, , थान या घटना स तोष दान करे
या ख़ुश करे, ऐसी आशा तुम नह करते. तुम उसका अद्भुत और अधूरा वभाव ऐसे ही
वीकार कर लेते हो.

आ य क बात तो यह है क जब तुम कसी कार क कोई अस भव इ छा नह करते,


येक प र थ त, , थान अथवा घटना न केवल तु ह स तोष दान करते ह, ब क
और भी मा फ़क शा त दे ने वाले हो जाते ह.

जब तुम इस ण को पूरी तरह से वीकार कर लेते हो, जब तुम“जो है” से अब और तक


नह करते हो, तो सोचने क मजबूरी कम हो जाती है और सजग अ तर-शा त उसका
थान ले लेती है. तुम पूरी तरह सचेत हो, फर भी बु इस ण को कसी ख़ास नाम से
नशानदे ही नह करती. अ तर क तरोध न करने वाली थ त तु ह बना शत नमल
चेतनता क ओर ले जाती है, जो सचमुच मनु य क बु म अनंत प म महान है. यह
व तृत बु तब तु हारे ारा अपने आपको बयान करती है और सहायता भी करती है. यह
तु हारे भीतर से और बाहर दोन तरह से होता है. इसी लए अ तर के ं को छोड़ दे ने से
तुम दे खते हो क अ सर प र थ तयां बेहतर हो जाती ह.

या म कह रहा ं, “इस ण का आन द उठाओ, ख़ुश रहो?” नह .

यह ण “जैसा है” उसे वैसे ही अपनाओ, यही काफ़ है.

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समपण का मतलब है इस ण के त समपण, उस कहानी के त नह , जसके ारा तुम
इस ण क ा या करते हो और उसके सामने अपने आपको झुका दे ने क को शश करते
हो.

उदाहरण के लए, तुमम कसी कार क वकलांगता हो और तुम अब चल नह सकते हो,


यह थ त उसी कार है.

तु हारी बु अब एक कार क कहानी शायद ऐसे बनाएगी, “मेरा जीवन कैसा हो गया है.
म एक हीलचेयर म ही ख़ म हो जाऊंगा. ज़दगी ने मेरे साथ ब त ही बेरहमी से अ याय
भरा वहार कया है. म तो यह नह चाहता था.”

या तुम इस ण के होने को वीकार कर सकते हो और म त क ारा उसके इद- गद


बनाई गई कहानी से मत नह होते?

समपण तब ही आता है, जब तुम यह नह पूछते, “यह सब मेरे साथ ही य हो रहा है?”

सबसे अ धक अ वीकृत और ःख दे ने वाली प र थ त भी अपने भीतर एक गहरी अ छाई


को छपाए ए है. येक घोर वप म ई रीय कृपा का बीज छपा होता है.

इ तहास गवाह है, ऐसे ब त सारे ी व पु ष ए ह, ज ह ने ब त अ धक नुकसान,


बीमारी, क़ैद या फर सामने खड़ी मृ यु क अनचाही मौजूदगी को, जसे साधारण मनु य
अ वीकार करता है, उसको वीकार कया और “उस शा त को, जो सभी कार के ान से
उ च है,” उसको ा त कया.

अ वीकृत को वीकार करना ही इस जगत म ई रीय कृपा का सबसे बड़ा ोत है.

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ऐसी भी प र थ तयां आती ह, जब सभी कार क ा याएं और उ र असफल हो जाते
ह. जीवन का कोई भी मतलब नह रह जाता या जब कोई तु हारे पास वप म सहायता
के लए आता है और तुम नह जानते क या कहना या करना है.

जब तुम पूरी तरह वीकार कर लेते हो क तुम कुछ नह जानते, तब अपनी सी मत बु से


उ र खोजने के लए तुम संघष करना ब द कर दे ते हो, तो उसी ण एक बेहतर बु
तु हारे ारा काय करना शु कर दे ती है. वचार भी उससे लाभ ा त कर सकते ह, य क
बेहतर बु उनम वा हत हो सकती है और उसे ेरणा दे ती है.

समपण का अथ कई बार समझने के य न को छोड़ दे ना और बना जानकारी के साथ


संतु रहना होता है.

या तुम कसी को जानते हो, जसका मु य काम अपने और सर के जीवन को ःखी


बनना और अ स ता फैलाना ही होता है? उ ह मा कर दो, य क वे भी मानवता के
जाग क होने का ही एक ह सा ह. जो भू मका वे नभाते ह, वह अहंकारी बु के बुरे
सपने क गहराई, समपण न करने क दशा को ही बताता है. इसम गत कुछ नह
होता. वे असल म ऐसे नह ह.

हम कह सकते ह, समपण तरोध से वीकार के बीच का प रवतनकाल है, “न” से “हां”


तक का. जब तुम समपण करते हो, तो तु हारे व का बोध अ त व क पहचान क
त या और मान सक फ़ैसले से हटकर त या या फ़ैसले के ‘चार तरफ़ थान’ म
बदल जाता है. आकार ( प) ारा अ त व क पहचान वचार अथवा भावना से
थाना तरण है. अपने इस प क पहचान के लए, जो आकार के बना है, यही एक
वशाल जाग कता है.

ो ी े ी े ो ओ े ी
जो कुछ भी तुम पूण प से वीकार करते हो, वह तु ह शा त क ओर ले जाएगा, वीकृ त
भी, जसे तुम वीकार नह कर सकते उसे भी, य क तुम तरोध म हो.

जीवन को अकेला छोड़ दो. उसे चलने दो.


अ याय 7

कृ त

हम कृ त पर अपनी शारी रक सुर ा के लए ही नभर नह रहते, हमारे ल य का सही


रा ता दखाने के लए भी हम कृ त क आव यकता होती है, अपने म त क क क़ैद से
बाहर नकलने का रा ता सुझाने के लए ही. हम काम करने, सोचने और याद म या फर
भ व य म कुछ पाने म ही खो गए ह, सम या क नयां और क ठनाइय क भूलभुलैयां
म खो गए ह.

प थर, पौधे और पशु जो अभी तक जानते ह, हम वह सब भूल गए ह. हम भूल गए ह क


हम कैसे रह , शा त रह, अपने आप म रह, जहां जीवन है, वहां रह, “यहां” और इस
वतमान म.

जब तुम अपना यान कसी ाकृ तक व तु म लगाते हो, ऐसी व तु, जो आदमी के दख़ल
के बना अ त व म आई हो, तुम धारणागत सोच क क़ैद से बाहर आ जाते हो और एक
सीमा तक, अ त व से जुड़ने क दशा म भाग लेते हो, जसम सभी ाकृ तक व तुएं अभी
तक मौजूद ह.

कसी प थर, पेड़ या फर पशु म अपना यान लगाने का मतलब यह नह ह क उसके बारे
म सोचो , ब क उसे दे खो और अपनी जाग कता म उसे पकड़े रखो.
े े ीओ ो ै े ो
तब उसके सार म से कुछ वयं तु हारी ओर वा हत होता है. तुम अनुभव करते हो क वह
कतना थर है और इस अनुभव ारा वही अ तर-शा त तु हारे भीतर जाग उठती है. तुम
महसूस करते हो क अ त व म कतनी गहराई म मौजूद है, वह जैसी भी है और जहां भी
है, उससे पूरी तरह एका म है. यह जान लेने के बाद तुम भी अपने अ तर क गहराई म एक
परम व ाम- थल पर प ंच जाते हो.

जब तुम कृ त के बीच घूमते या आराम कर रहे होते हो, तब उस थ त म पूरी तरह


डू बकर उसका आदर करो. शा त रहो. दे खो. सुनो. ग़ौर करो क कस कार येक पौधा
और हर जानवर अपने आप म पूण है. उ ह ने अपने को मनु य क तरह दो ह स म बांटा
नह है. वे अपने मान सक प म नह जीते, अतः उनके लए इन प क र ा और
उनको बढ़ाने के लए य न करने क कोई ज़ रत नह . हरन अपने आप ही है . नर गस
का फूल अपने आप म ही है .

कृ त म सब व तुएं अपने म एका म ही नह , ब क पूणता से एक ह. उ ह ने अपना अलग


अ त व मानते ए — अख डता के ढांचे से अपने को अलग नह कया — “म” और शेष
ा ड म से.

कृ त का अवलोकन तु ह इस “म” से, जो सबसे बड़ा क ठनाई पैदा करने वाला है, उससे
छु टकारा दला सकता है.

कृ त क मंद आवाज़ के त सचेत हो, जैसे हवा म प क सरसराहट, वषा क बूंद क


टप-टप, कसी क ड़े -मकोड़े क गज गजाहट, भोर क पहली चहचहाहट. सुनने क या
म अपने आपको पूरी तरह डु बा दो. इन आवाज़ के परे कुछ और भी अ धक ख़ास है, एक
ऐसी द ता, जसे वचार ारा नह जाना जा सकता.

े े ी ो ी ी ी ो े
तुमने अपने शरीर को नह रचा, न ही तुम शरीर क काय णाली को नयं ण म कर सकते
हो. आदमी के म त क से अ धक बढ़कर एक बौ कता काम करती है. अपने अ तर के
ऊजा े को जाने बना, शरीर के भीतर क सजीव उप थ त, जी वत होने को महसूस
कए बना, तुम उस बु के नकट नह जा सकते.

एक कु े का खलाड़ीपना और ख़ुशी, उसका अपार ेम और हर पल जीवन का आन द


उठाना, अ सर कु े के मा लक क मनोदशा के एकदम उलटा होता है — नराशा,
उ सुकता, सम या के बोझ से दबे, वचार म डू बे, उस एक थान व समय म अनुप थत,
जहां उसे होना चा हए — “यहां” और इस ‘वतमान’ म. आ य होता है क ऐसे के
साथ रहते ए भी कु ा कैसे अपने आप को इतना सहज व स रख पाता है.

जब तुम कृ त को केवल म त क या वचार ारा दे खते हो, तब तुम उसक सजीवता को,
उसके अ त व को महसूस नह कर सकते. तुम केवल प को दे खते हो और उस प के
भीतर के जीवन के द रह य से अनजान रहते हो. वचार कृ त को एक व तु के प म
रखकर उसका मह व कम कर दे ते ह, जसका योग लाभ अथवा ान या फर कसी अ य
उपयो गता के उद्दे य के लए कया जा सके. पुराने जंगल, इमारती लकड़ी, प ी शोध क
प रयोजना बन जाते ह और पवत कसी व तु क खुदाई अथवा चढ़ाई के लए ही रह जाते
ह.

जब तुम कृ त को दे खते हो, तो अपनी बु और वचार अलग कर दो और उनम थान


रहने दो. जब तुम कृ त के समीप इस कार समीप जाते हो, तो वह तु ह उ र दे गी और
मानव व ा ड चेतना के वकास म भाग लेगी.

एक फूल कस कार मौजूद है, जीवन के त कैसे सम पत है, इस पर यान दो.

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तु हारे घर म जो पौधा है — या तुमने कभी उसक ओर यान से दे खा है? या तुमने उस
जाने-पहचाने, पर तु रह यमय अ त व, जसे हम ‘पौधा’ कहते ह, को अपने रह य
सखाने दए? या तुमने दे खा क वह कतनी गहराई तक शा त से पूण है? कस कार
वह अ तर-शा त के े से घरा आ है? जस पल तुम पौधे से उभरने वाली शा त और
अ तर-शा त को पहचान जाते हो, वह पौधा तु हारा गु बन जाता है.

एक पशु, एक फूल, एक पेड़ को यान से दे खो, वह कैसे अपने अ त व म व ाम करता


है. वह अपने आप म ‘है’ . उसके पास असीम ग रमा, मासू मयत और प व ता है. फर भी
उसे दे खने को उसक नशानदे ही व नाम दे ने क अपनी वैचा रक आदत से परे जाना होगा.
जैसे ही तुम इन वचार पूण नशानदे ही से परे जाओगे, तुम कृ त क उस अकथनीय सीमा
को महसूस कर सकोगे, जो क वचार ारा समझी और इ य ारा दे खी नह जा सकती.
यह एक स तुलन है, एक प व ता है, जो क न केवल स पूण कृ त म ा त हो जाती है,
ब क वयं तु हारे भीतर भी है.

हवा जसम तुम सांस लेते हो, कृ त ही है, जैसे क सांस लेने क या है.

अपना यान अपनी सांस पर के त करो और यह समझो क तुम यह नह कर रहे हो. यह


कृ त का ही सांस को अंदर लेना और बाहर छोड़ना है. य द तु ह याद रखना पड़े क सांस
भी लेनी है, तो तुम शी ही मर जाओगे और य द तुमने सांस रोकने क को शश क , तो
कृ त जीत जाएगी.

अपनी सांस के बारे म जानकर, और अपना यान वहां लगाना सीखकर, ब त ही अपनेपन
और भावशाली ढं ग से तुम कृ त से दोबारा जुड़ ज़ाते हो. यह पीड़ा का नाश करने व
ब त ही भावशाली बनाने यो य काम है. यह च तन क वैचा रक नयां को सहज चेतना
के अ तर- े म थाना त रत कर दे ता है.

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अ त व के साथ दोबारा जुड़ने के लए तु ह कृ त क गु के प म आव यकता है.
केवल तु ह ही नह , कृ त को भी तु हारी आव यकता है.

तुम कृ त से अलग नह हो. हम सभी एक जीवन का ह सा ह, जो इस जगत म अपने


आपको अन गनत प म कट करता है — प जो पूरी तरह आपस म जुड़े ए ह. जब
तुम द ता, सु दरता अद्भुत अ तर-शा त और गौरव, जसम फूल या पेड़ मौजूद ह, उसे
पहचान लेते हो, तो तुम उस पेड़ या फूल म कुछ और जोड़ दे ते हो. तु हारे पहचानने और
तु हारी जाग कता ारा कृ त भी अपने को पहचान लेती है. वह तु हारे ारा अपनी
सु दरता और द ता को जान जाती है.

एक वशाल शा त थान, अपनी बांह म सारी कृ त को समेट लेता है. वह तु ह भी समेट


लेता है.

उस समय जब तुम अभी अपने आप म थर होते हो, तुम अ तर-शा त के उस े म


प ंच पाते हो, जसम प थर, पौधे और पशु रहते ह. जब तु हारा शोर से भरा म त क
शा त हो जाता है, तुम कृ त से ब त गहराई तक जुड़ जाते हो और ब त अ धक च तन
से पैदा क गई अलगाव क भावना से र चले जाते हो.

वचार करना जीवन के मू यांकन क एक थ त है. कृ त भोली-भाली अ तर-शा त म


नवास करती है, जो वचार के पैदा होने से पूव ही होता है. पेड़, फूल, च ड़या और प थर
अपनी सु दरता और द ता के बारे म अनजान होते ह. जब मनु य का अ त व शा त हो
जाता है, तो वे च तन से परे हो जाता ह. यहां ान के व तार म वृ हो जाती है, वचार
से परे अ तर-शा त म, जाग कता क .

कृ त तु ह अ तर-शा त म ले जाती है. तु हारे लए उसका यह उपहार है. जब तुम कृ त


को दे खते और उससे अ तर-शा त के े म जुड़ जाते हो, तो वह े तु हारी जाग कता
से भर जाता है. कृ त के लए यही तु हारा उपहार है.

े ी े े ो ी ै ो ी ी ी
तु हारे ारा कृ त भी अपने बारे म सजग हो जाती है, मानो कृ त तु हारी ही ती ा कर
रही है, जैसे क पछले लाख वष से यह कर रही है.
अ याय 8

सबध

कसी भी के बारे म हम ज द ही राय बना लेते ह और अपने मन म एक नणय भी


ले लेते ह. कसी सरे क नशानदे ही करना, उसे एक का प नक व दान
करना, उसके बारे म दो टू क नणय थोप दे ना, अहंकार से भरे म त क को ब त संतोष
दान करता है.

अपने ज मगत वभाव, बचपन के अनुभव और सां कृ तक वातावरण के कारण येक


एक वशेष कार से सोचता और वहार करता है.

वे वैसे नह ह, ले कन वैसे दखाई दे ते ह. जब तुम कसी के बारे म नणय करते हो, तो


उसके साथ उन सहज मान सक त प को मत कर दे ते हो. ऐसा करना अपने आप म
एक गहरा सशत और अचेतन त प है. तुम उ ह एक वैचा रक व दान करते हो
और वह नक़ली व न केवल उस के लए, ब क तु हारे लए भी क़ैद बन जाती
है.

नणय न लेने का अथ यह नह क तुम यह नह दे खते क वे या करते ह, ब क इसका


मतलब यह है क तुम उनके वहार को अनुकूलता के एक वशेष प म पहचानते हो
और उसी प म दे खते और वीकार कर लेते हो. तुम उस के लए उससे अलग कोई
और व नह बनाते हो.

औ ी े ो ी औ े
यह तु ह और साथ ही सरे को भी अनुकूलता, प और म त क के साथ व
क पहचान से मु करा दे गा. अहंकार तु हारे स ब ध को अब और भा वत नह करता है.

जब तक अहंकार तु हारे जीवन को चलाता है, तु हारे अ धकतर वचार, भावनाएं और


याकलाप इ छा और भय से ही उ प होते ह. स ब ध म तुम सरे से कुछ आशा
करते हो या फर उससे भयभीत रहते हो.

ख़ुशी, भौ तक लाभ, अपनी पहचान, शंसा या त ा या तुम जो हो या जो कुछ भी


तु हारे पास है या फर तुम सरे से अ धक जानते हो, यह सब तुलना ारा अपने व क
अनुभू त को मजबूत करने के लए तुम उनसे चाहते हो. तु ह इस बात का डर है क वरोधी
तु हारे अ त व को कसी-न- कसी प म कम या नीचा कर दे गा.

जब तुम वतमान ण को ही, बजाय उसे अपना अ तम ल य मानने के, अपने यान क
मु य धुरी मान लोगे, तो तुम अहंकार भाव से परे चले जाओगे, तुम अहंकार और सरे
लोग के अपने ल य क ा त म एक साधन मानने क , अनचाही मजबूरी से परे चले
जाओगे. यही अ तम ल य, जो क सर के सहारे तु हारे व को बढ़ाता है. जब तुम
अपना पूरा यान इस बात पर लगा दे ते हो क तुम कससे स पक बना रहे हो, सवाय कुछ
ावहा रक कारण से तुम अपने स ब ध म से अतीत और भ व य को बाहर कर दे ते हो.
जब तुम येक से मलते समय पूरी तरह उप थत रहते हो, तो तुमने उनका जो
वैचा रक अ त व बना रखा है, उसे कम कर दे ते हो. वे या ह, उ ह ने अतीत म या कया
— अपनी इस धारणा के चलते इस कार भय और इ छा क अहंकारी त या के
बना तुम उनसे स पक था पत कर पाते हो. सावधानी सजग अ तर-शा त है. यही इसक
कुंजी है.

अपने स ब ध म डर और इ छा से र चले जाना कतना सुखदायी होता है. ेम न कुछ है,


न ही कसी चीज़ से डरता है.

अगर उसका अतीत तु हारा अतीत होता, उसका ःख तु हारा ःख और उसक चेतना का
तर तु हारी चेतना का तर होता, तो तुम एकदम वैसा ही सोचते और करते, जैसा वह
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सोचती व करती. इस बोध के साथ ही मा, स तोष और शा त तु ह ा त हो जाती है.

यह सुनना अहंकार को पस द नह है, य क य द वह त या करने वाला और याय-


संगत फर कभी नह हो पाता, तो वह अपनी श खो दे ता है.

‘वतमान’ के थान के भीतर आने वाले येक को जब तुम कुलीन अ त थ के पम


वीकार कर लेते हो, तो उसम बदलाव आने लगता है.

कसी के बारे म सार प से जानने के लए तु ह उसके बारे म उसका अतीत, उसका


इ तहास, उसक कहानी कुछ भी जानने क ज़ रत नह . हम ‘इस जानकारी’ को धारणा से
हटकर ग भीर जानकारी से मत कर लेते ह. कुछ जानना और कुछ के बारे म जानना दो
एकदम अलग ढं ग ह. इसम एक प व सरा पहीनता से जुड़ा आ है. एक वचार ारा
प रचा लत होता है, सरा अ तर-शा त ारा.

कसी के ‘बारे म’ जानना ावहा रक से सहायक हो सकता है. उस तर पर हम उसके


बना कुछ भी नह कर सकते. स ब ध म जब यह बल या होती है, तब वह अ य त
सी मत करने वाली, यहां तक क वनाशकारी हो जाती है. वचार एवं धारणाएं
अ वाभा वक बाधा उ प कर दे ते ह, मनु य के बीच वभाजन जैसी. तु हारे स पक तब
अ त व म नह , ब क म त क म थत होते ह. वैचा रक बाधा के न होने पर सभी
मनु य के बीच स पक से ेम ाकृ तक प म आ जाता है.

अ सर सभी मानवीय स पक वचार के े म श द के आदान- दान तक ही सी मत होते


ह. कुछ अ तर-शा त का होना ब त ही ज़ री होता है, वशेषकर तु हारे नकट स ब ध
म.

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कोई भी स ब ध जो क अ तर-शा त से आता है, व तार क भावना के बना नह फल
सकता. यान करो या फर कृ त के बीच शा त से समय गुज़ारो. सैर करते समय, कार म
बैठे ए या फर घर म बैठे ए, अ तर-शा त के साथ घुल- मलकर एक- सरे के साथ रहो.
अ तर-शा त पैदा नह क जा सकती है. अ तर-शा त को केवल वीकार करो, जो क
वहां पहले से ही है, केवल मान सक शोर ही उसक कावट होता है.

य द व तृत अ तर-शा त का अभाव है, तो स ब ध म त क ारा शा सत होने लगगे और


ब त शी ही वह सम या और ं ारा क़ ज़े म आ जाएंगे. य द वहां अ तर-शा त है,
तो वहां और कुछ नह हो सकता.

यान से सुनना भी स ब ध म अ तर-शा त था पत करने का एक और तरीक़ा है. जब तुम


यान से सरे क बात सुनते हो, अ तर-शा त के फैलाव जाग उठते ह और स ब ध का
एक न टू टने वाला ह सा बन जाते ह, पर तु वा त वक प म सुनना एक असाधारण नर
है. कसी भी क जाग कता का यादातर ह सा उसका अपने वचार ही ले लेते ह.
यादा-से- यादा वे या तो तु हारे श द का मू यांकन कर रहे होते ह या फर कहने के लए
सरी बात तैयार कर लेते ह या फर वे अपने ही वचार म खोकर, तु हारी बात सुन ही नह
रहे होते.

वा त वक प म सुनना सुनने संबंधी बोध से ब त आगे तक होता है. यह सचेत मनोयोग


का जागना होता है, उप थ त का ऐसा थान, जसम श द वीकार कए जाते ह. श द अब
सरे थान पर हो जाते ह. वे साथक भी हो सकते ह और नरथक भी. तुम जो कुछ भी सुन
रहे हो, उससे सुनने क या अ धक मह वपूण हो जाती है और जब तुम सुनते हो, तो
चेतन उप थ त का थान तु हारे भीतर जाग उठता है. यह थान जाग कता को जोड़ने
वाला वह थान बन जाता है, जसके भीतर तुम सरे से वैचा रक बु ारा रची गई
बांटने वाली बाधा के बना मलते हो. अब सरा ‘ सरा’ नह रहता. उस थान म
तुम दोन एक- सरे से एक ही जाग कता, एक ही चेतना के प म जुड़ जाते हो.

या तुम अपने नकट के स ब ध म बार-बार नाटक य बदलाव को अनुभव करते हो?


वचार म चाही गई सहम त न होने से या तुम भावना से भरे ःख और हसक वाद- ववाद

ै े ो
पैदा करते हो?

ऐसे सभी कार के अनुभव क जड़ म बु नयाद तौर पर अहंकारी वृ होती है. अपने
सही होने और बेशक सरे के ग़लत होने क आव यकता, यानी मान सक थ त के साथ
अ त व क पहचान का होना. इसम अहंकार को कसी या व तु से समय-समय पर
संघष क इ छा भी होती है, ता क वह “म” और “ सरे” के बीच अलगाव क भावना को
मज़बूत कर सके, जसके बना वह वयं जी वत नह रह सकता.

इसके साथ-साथ इसम अतीत से सं चत भावना मक पीड़ा भी होती है, जसे तुम और
येक अपने नजी अतीत और साथ ही मानवता क सामू हक पीड़ा को भी, जो
पछले काफ़ समय से चली आ रही है, उसे अपने साथ लेकर चलता है. यह “ ःखी शरीर”
ही तु हारे भीतर का ऊजा े है, जो तुम पर अ धकार जमा लेता है, य क उसे अपने
लए और अ धक भावना मक पीड़ा अनुभव करने क ज़ रत है, ता क वह उस पर जी वत
रह सके और अपने को ताक़तवर बना सके. यह तु हारी बु को अ धकार म करने और
उसे पूरी तरह नकारा मक बनाने का य न करेगा. यह तु हारे नकारा मक वचार से ेम
करता है, य क यह उसके उतार-चढ़ाव से भा वत होता है, इस लए उन पर नभर रहता
है. यह तु हारे नकट रहने वाले लोग , वशेषकर तु हारे सा थय म भी नकारा मक
भावना मक त याएं जा त करता है, ता क यह उससे होने वाली घटना और
भावना मक ःख पर जी वत रह सके.

तुम इस अचेतन पहचान से जो क अ दर गहराई तक ःख के साथ थत है और तु हारे


जीवन म इतना अ धक क लाती है, उससे कस कार अपने को मु कर सकते हो?

उसे पहचान लो. यह समझो क यह ‘वो’ नह है, जो क तुम हो और वह जो है, बीता आ


ःख है, उसे पहचानो. इसे अपने ऊपर या फर अपने साथी के साथ घटता आ दे खो. जब
उसके साथ तु हारी यह अचेतन पहचान समा त हो जाए, जब तुम उसे अपने अ दर
पहचानने के यो य हो जाओ, तो तुम उसक परवाह नह करते, तब वह धीरे-धीरे अपनी
श खो दे गा.

मानवीय स ब ध का आदान- दान नरक समान हो सकता है अथवा वह एक महान


अ या मक अ यास भी बन सकता है.
जब तुम अ य क ओर दे खते हो और उसके लए मन म अपार ेम उमड़ आता है
अथवा जब तुम कृ त म सु दरता दे खते हो और उसके लए तु हारे दल क गहराई म कुछ
जाग उठता है, तब एक ण के लए आंखे मूंद लो और तु हारी स ची कृ त म, तुम जो भी
हो उससे अलग ए बना, ेम के उस त व को अथवा उस सु दरता को अपने भीतर अनुभव
करो. तुम भीतर से जो हो, तु हारा बाहरी प उसका ही अ थायी त ब ब है और तु हारे
ही सार प म है. इस लए ेम और सु दरता तु ह कभी नह छोड़ सकते, जब क सभी
कार के बाहरी प छोड़ दे ते ह.

व तु क नया से तु हारा या स ब ध है? ढे र व तुएं जो तु ह चार ओर से घेरे ए ह


और ज ह तुम त दन योग करते हो, कुस जस पर तुम बैठते हो, क़लम, कार, याला
आ द? या ये तु हारे लए ल य ा त करने का एक साधन मा ह? उनका होना, चाहे यह
कतने ही कम समय के लए य न हो, उ ह दे खकर उन पर अपना यान के त करके
या तुम उनके अ त व को कभी-कभी वीकार करते हो?

जब तुम व तु के लए मोह म पड़ते हो, जब तुम उनका योग अपने और सर क नज़र


म ऊंचा उठने के लए करते हो, तब इन व तु के लए तु हारा यह मोह तु हारे पूरे जीवन
को लपेट लेगा. जब व क पहचान इन व तु ारा होगी, तब तुम उन व तु क शंसा,
वे जैसी ह, इस लए नह करोगे, ब क अपने लए उसम जो भी दे खते हो, इस लए करोगे.

जब तुम कसी व तु क उसी के कारण शंसा करते हो, जब तुम अपनी मान सक तु त
के बना उसे वीकार कर लेते हो, तब तुम उसके अ त व के लए आभारी अनुभव ‘नह ’
करते. तुम यह भी अनुभव करोगे क वह वा तव म नज व नह है. केवल इ य ारा ही
ऐसा तीत होता है. भौ तकशा ी इस बात क पु करगे क अणु के तर पर वह सचमुच
पंदनशील ऊजा े है.

व तु के प रम डल क व के बना शंसा ारा तु हारे चार ओर क नयां इस कार


सजीव हो उठे गी, जसक क पना भी तुम बु ारा नह कर सकते.

ी ी े े ो े े ी े ो
जब भी तुम कसी से मलते हो, चाहे कतने भी कम समय के लए य न हो, या तब उन
पर अपना पूरा यान के त करके उनके अ त व को वीकार करते हो? या केवल एक
ल य, या या उद्दे य के प म या तुम उनके दज म कमी कर दे ते हो?

सुपर माकट के एक ख़जांची या कार पा कग के कमचारी या फर मर मत करने वाले म ी


से तु हारा या स ब ध है? या ाहक का?

एक पल के लए भी यान दे ना काफ़ होता है. जब तुम उ ह दे खते या उनक बात सुनते हो,
उस समय यहां एक सजग अ तर-शा त होती है, शायद केवल एक या दो सेक ड मा के
लए या फर कुछ और अ धक समय के लए. कुछ अ धक वा त वकता उभरने के लए वह
काफ़ है, बजाय उस भू मका के, जो हम अ सर खेलते और उसके साथ पहचान बनाते ह.
हमारी सभी भू मकाएं सहज चेतना के ही ह से ह जो क मानव म त क ह. सजगता के
वहार से जो उभरता है, वह सहज है, जो नाम और प के नीचे, सार म तुम वयं हो.
तुम कसी ल खत अंश पर अ भनय नह करते, तुम वा त वक बन जाते हो. जब ये व तार
तु हारे भीतर से जाग उठते ह, तब वे सरे के भीतर से भी उसको बाहर ख च लेते ह.

अ त म यहां कोई सरा नह , तुम हमेशा अपने से ही मलते हो.


अ याय 9

मृ यु और शा त

जब तुम कसी ऐसे जंगल से गुज़रते हो, जसक दे खभाल न ई हो, और जहां मनु य क
आवाजाही न ई हो, तु ह वहां चार ओर न केवल भरपूर जीवन दखाई दे गा, ब क साथ
ही गरे ए पेड़, टू टे तने, सड़ी गली प यां और हर क़दम पर गलते-सड़ते पदाथ मलगे.
जधर भी तुम नज़र घुमाओगे, तु ह मृ यु और जीवन साथ-साथ ही दखाई दगे.

नज़द क से दे खने पर, तुम पाओगे क ये टू टे तने और सड़ी ई प यां नए जीवन को ज म


ही नह दे ते, ब क अपने आप म भी जीवन से भरपूर होते ह. सू म जीव काम कर रहे होते
ह, अणु अपने को दोबारा बना रहे होते ह. इस लए मृ यु कह पर भी दखाई नह दे ती. यहां
तो केवल जीवन का पा तरण हो रहा है. तुम इससे या सीख सकते हो?

मृ यु जीवन के वपरीत नह है. जीवन का कोई भी वपरीत नह . मृ यु का वपरीत है ज म.


जीवन शा त है.

ऋ षय और क वय ने पछले न जाने कतने युग से मनु य के ( म या) व जैसे गुण को


पहचाना है. दे खने म एकदम ठोस और वा त वकता म फर भी इतना अ थायी क कसी
भी ण समा त हो सकता है.

ी े े ी ी े ी
तु हारी मृ यु के समय तु हारे जीवन क कहानी वा तव म तु ह एक व क तरह लगेगी,
जो अ त पर प ंच रही है, फर भी व म कुछ तो त व होता है, जो वा त वक हो. एक
चेतना अव य होती है, जसम व घ टत होता है, नह तो वह ऐसा कभी भी नह होता.

उस चेतना को या शरीर पैदा करता है या चेतना ही शरीर के सपन को, कुछ होने के
सपन को बनाती है?

ऐसा य होता है क मृ यु के नकट प ंचने पर लोग को जो अनुभव होते ह, उसके बाद वे


मौत से नह डरते? इस पर सोचो.

तुम बेशक यह जानते हो क तुम ज़ र मरोगे, पर तु जब तक मौत से तु हारा गत


प से आमना-सामना पहली बार नह होता, यह केवल मान सक धारणा ही रहती है.
कसी एक ग भीर बीमारी के समय या फर तु हारे साथ या तु हारे य के साथ घटना होने
पर, कसी यजन के दे हा त पर, अपनी न रता क जानकारी के प म मृ यु तु हारे
जीवन म वेश करती है.

भय के कारण ब त से लोग उससे मुंह मोड़ लेते ह, पर तु अगर तुम डरो नह , और इस


त य का सामना करो क यह शरीर अ थायी है और कसी भी ण समा त हो सकता है,
तब तु हारे अपने शारी रक और मनोवै ा नक प “म” के साथ कुछ हद तक अलगाव आ
ही जाता है, बेशक यह कतना भी कम य न हो. जब तुम जीवन के सभी प और न र
कृ त को वीकार कर लेते हो, तो एक व च कार क शा त तु हारे अ दर आ जाती है.

मृ यु का सामना करने से तु हारी चेतना कुछ हद तक प के साथ-साथ पहचान से भी


आज़ाद हो जाती है. यही कारण है क बौ धम क री तय म साधू मशान म नयम के
साथ कुछ समय के लए बैठते ह और मृत शरीर के बीच उपासना करते ह.

पा ा य सं कृ त म काफ़ हद तक मृ यु के लए नकारा मक भाव है. यहां तक क बूढ़े लोग


भी उसके वषय म बात करना और सोचना तक पस द नह करते और मृत शरीर आंख से
र हटा दए जाते ह. एक सं कृ त जो मौत को अ वीकार करती है, ब त ही उथली और
बनावट हो जाती है और केवल ऊपरी चीज़ से स ब ध रखती है. जब हम मौत को
अ वीकार करते ह, तो ज़दगी भी अपनी ग भीरता खो बैठती है. नाम और प के परे हम

ौ ो े े े े े े ी ी
कौन ह, इसको जानने क स भावना से उस ान के परे के त व के आयाम हमारी ज़दगी
से गुम हो जाते ह, य क मौत ही उस आयाम का वेश ार है.

लोग अ सर अ त से असु वधा महसूस करते ह, य क हर समा त एक छोट -सी मृ यु


होती है. इस लए कई भाषा म “अल वदा” श द का मतलब “ फर मलगे” होता है.

जब भी कोई अनुभव समा त पर आता है, जैसे म का इकट् ठा होना, छु ट् टय का समय,


तु हारे ब च का घर छोड़ कर जाना, तो तुम छोट -सी मौत मर जाते हो. एक आकार, जो
तु हारी चेतना म उस अनुभव के प म उभरता है, वह समा त हो जाता है. अ सर यह
अपने पीछे ख़ालीपन का अहसास छोड़ता है, जसे अ सर लोग अनुभव न करने का,
उसका सामना न करने का क ठन य त करते ह.

य द तुम जीवन म इन समा तय को वीकार करना और यहां तक क उनका वागत करना


सीख लो, तो तुम दे खोगे क ख़ालीपन क यह भावना, जो शु म एकदम असु वधा दे ने
वाली लगती थी, बाद म अ तर के व तार म बदल जाती है, जो क गहराई तक शा तमय
है.

हर रोज़ इस कार मरना सीखने से तुम अपने को जीवन के स मुख पाते हो.

ब त से लोग यह सोचते ह क उनक पहचान और उनका व के बारे म बोध एक सीमा तक


ब त अ धक क़ मती है, जसे वे कसी भी हालत म छोड़ना नह चाहते. इसी लए वे मृ यु से
डरते ह.

यह काफ़ सीमा तक क पना से परे और भयभीत कराने वाला होता है क इस “म” का


अ त व समा त हो सकता है, पर तु तुम इस क़ मती “म” को अपने नाम व प और उसके
साथ जुड़ी कहानी से जोड़ लेते हो. यह ‘म’ चेतना के े म एक अ थायी प के अलावा
कुछ नह .

ो ी े ो ो े
जहां तक प क पहचान को ही तुम मानते हो, तो तुम नह जानते क यह ब मू य
भावना तु हारा अपना ही त व है, जो तु हारे अ दर का बोध “म ं” है और जो वयं ही
चेतना है. यही तु हारे अ दर का न य है और यही वह चीज़ है, जो क तुम “खो” नह
सकते.

तु हारे जीवन म जब कसी कार क हा न हो जाती है, जैसे जायदाद का लुट जाना, घर से
बेघर हो जाना, कसी नकट के र तेदार का साथ छू ट जाना या तु हारी इ ज़त, नौकरी या
फर शारी रक यो यता का खो जाना, तो कुछ तु हारे अ दर मर जाता है. तु हारे अ दर “म
कौन ं” का बोध समा त हो जाता है. एक भटकाव का अहसास क “इसके बना म कौन
ं,” तुम म आ जाता है.

जब एक प, जसे तुमने अनजाने म अपनी पहचान के प म जान लया है, तु ह छोड़


दे ता है या फर समा त हो जाता है, तब यह ब त ःखदायी होता है. वह तु हारे जीवन म
एक ख़ालीपन भर दे ता है.

जब यह घ टत होता है, उस व त तुम ःख और उदासी को अनुभव करने या उसे


अ वीकार करने का य न मत करो. वीकार करो क वह है. उस हा न, जसका तुम अपने
को शकार समझने लगते हो, उसके चार ओर कहानी बनाने क अपनी बु क आदत से
सावधान रहो. भय, ोध, अ वीकार या फर अपने हालात पर रोना, ऐसी भावनाएं उस
थ त के साथ-साथ चलती ह. उन भावना और बु ारा रची कहानी के पीछे जो है,
उसे जानो, वह एक शू य है, एक ख़ाली व तार है. या तुम इस अनजाने ख़ालीपन क
भावना को वीकार कर उसका सामना कर सकते हो? य द तुम कर सकते हो, तो तुम
दे खोगे क यह अब डरने का थान नह है. यह दे खकर तु ह हैरानी होगी क शा त उसम से
वा हत हो रही है.

मौत जब भी आती है, एक जीवन जब भी मटता है, ई र, नराकार, अना द, मटते ए


प ारा छोड़े गए ख़ाली थान म से चमकता है. इसी लए जीवन म सबसे द व तु मृ यु
है. इस लए मृ यु क इ छा को यान म रखने और वीकार करने से ही ई रीय शा त आती
है.

े ो े े ो ै ी
हर का अनुभव कतने थोड़े समय के लए होता है, हमारा जीवन कतना ण-भंगुर
होता है? या कुछ ऐसा भी है, जो ज म और मृ यु का वषय नह है, ऐसा कुछ जो क
अ वनाशी है?

इस बात पर सोचो, य द यहां केवल एक रंग होता, मान लो नीला रंग और सारी नया और
उसम हर चीज़ नीली होती, तब नीला रंग होता ही नह . ऐसा कुछ ज़ र होना चा हए, जो
क नीला न हो, तब ही तो नीले रंग क पहचान हो सकती है. य द वह भ नह होगा, तो
वह नह रहेगा.

इसी कार या इस बात क ज़ रत नह क कुछ ऐसा हो. जो अ थायी और ण-भंगुर न


हो, ता क सरी चीज़ का अ थायीपन पहचाना जा सके? सरे श द म य द तुम भी
अ थायी होते, तो या सभी कुछ तुम जान पाते? यह जानते और दे खते ए क सभी चीज़
का और तु हारा ख़ुद का वभाव ण-भंगुर है. इसका मतलब यह नह क तु हारे अ दर
ऐसा कुछ है, जो समा त नह हो सकता?

जब तुम बीस साल के होते हो, तो तुम अपने शरीर क मज़बूती और श को पहचानते हो,
साठ साल बाद तुम अपने शरीर क कमज़ोरी और बुढ़ापे को भी जान जाते हो. बीस साल
क उ से लेकर साठ साल क उ तक तु हारा सोचना भी बदल गया है, पर तु बु यह
पहचान लेती है क तुम जवान या बूढ़े हो गए हो या फर तु हारे वचार बदल गए ह, पर तु
वह बु नह बदली. जाग कता जो तु हारे भीतर शा त है, अपने आप म एक चेतना ही
है. यह एक पहीन जीवन है. या तुम इसे खो सकते हो? नह , य क तुम ही यह हो.

कुछ लोग मृ यु से पहले एकदम शा त से भरे और तेज से पूण हो जाते ह, जैसे समा त होते
शरीर म से कुछ रोशन होने लगा हो.

कई बार ऐसा होता है क ब त बूढ़े या बीमार लोग अपने जीवन के अ तम दन , ह त ,


महीन और कभी-कभी तो साल पहले ही एकदम पारदश हो जाते ह. जब वे तु हारी तरफ़
दे खते ह, तो तु ह उनक आंख म से एक चमकती ई रोशनी नज़र आती है. उनम कसी
कार का मनोवै ा नक ःख बचा नह रहता. उ ह ने समपण कर दया है, इस लए बु
ारा रचा आ अहंकारी ‘म’ पहले ही समा त हो जाता है. वे अपनी “मृ यु से पहले ही मर
जाते ह” और अपने भीतर मृ युहीन होने क जानकारी के साथ एक गहरी शा त को अपने
अ दर पा लेते ह.
हर घटना और वनाश से जुड़ा आ हमारे अ दर एक ताक़तवर उ ार करने वाला आयाम
बन जाता है, जसके बारे म अ सर हम अनजान रहते ह.

मौत का एकदम पास आ जाने का एक ध का अचानक ही तु हारी चेतना पर ज़बरद त


असर डाल कर पहचान को प से एकदम अलग कर दे ता है. शरीर क मृ यु से कुछ ण
पहले और जब तुम आ ख़री सांस ले रहे होते हो, तुम चेतना के प से आज़ाद हो जाते हो.
अचानक कसी तरह का डर बाक़ नह रहता, केवल शा त और यह जानकारी रह जाती है
क “सब कुछ ठ क है” और मृ यु केवल प का न होना है. मौत तब एक ामक के प
म नज़र आती है, उसी तरह के ामक प म, जससे तुमने अपनी पहचान बना रखी थी.

मृ यु नयम के व अथवा सभी कार क घटना म सबसे भयंकर नह होती, जैसा


आधु नक सं कृ त ने तु ह व ास दलाया आ है, ब क यह नया क सबसे अ धक
वाभा वक बात है, जो बांट नह जा सकती है, जैसे क यह ज म का होना न त है. जब
तुम कसी मरते ए के पास बैठते हो, इसको तब भी याद रखो.

तुम जब कसी मरते ए के पास साथी और गवाह के प म बैठते हो, तो यह ब त


ही सौभा य क बात और प व काय होता है.

जब तुम कसी मरते ए के पास बैठते हो, उस समय के अनुभव के कसी भी प


को अ वीकार मत करो. जो कुछ भी घट रहा है, उसे अ वीकार मत करो और अपनी
भावना को भी अ वीकार मत करो. यह अनुभव क तुम कुछ नह कर सकते, तु ह
असहाय, ःखी अथवा ग़ सैल कर दे गा. उससे भी एक क़दम आगे चलो : इसे वीकार करो
क तुम उस समय कुछ भी नह कर सकते. इसे पूरी तरह वीकार करो. तुम क़ाबू म नह
हो. तु हारी भावनाएं, यहां तक क ःख अथवा बैचेनी, जो मरता आ अनुभव कर
रहा होगा, उस अनुभव के आगे पूरी तरह समपण कर दो. तु हारी चेतना क सम पत दशा
और साथ आई अ तर-शा त मरते ए को सहारा दे गी और उसके पा तरण को
आसान बना दे गी. य द श द क ज़ रत हो, तो वे तु हारे भीतर मौजूद अ तर-शा त से
नकलगे, पर तु वे गौण ह गे.

अ तर-शा त के साथ शा त का क याण आता ह.


अ याय 10

ःख और ःख का अ त

सभी व तु का अ तर-स ब ध होना बौ मत को मानने वाले पहले से ही जानते थे और


भौ तकशा ी भी अब उसी का समथन करते ह. जो कुछ भी घटता है, वह एकाक घटना
नह होती. वह तो सफ़ ऐसी दखाई दे ती है. जतना हम उस पर नणय दे ते है और उसक
नशानदे ही करते ह, तो उतना ही हम उसे अलग कर दे ते ह. हमारी वचारधारा के कारण
जीवन क पूणता बखर जाती है, फर भी जीवन क पूणता इस घटना को प करती है.
अ तर-स ब ध के ये जाल, ज ह हम ा ड कहते ह, उसीका ही एक ह सा ह.

इसका मतलब है क जो कुछ भी है, उसके अलावा और कुछ नह हो सकता.

अ सर कई बार हम यह सोच भी नह सकते क दखाई पड़ने वाली एक बेकार-सी घटना


का इस ा ड क अख डता पर या भाव पड़े गा, पर तु पूणता के व तार के भीतर
उसक अ नवायता को पहचानकर, जो भी “है”, उसको अ तर क वीकृ त के साथ
अपनाकर इससे जीवन क पूणता के साथ दोबारा तालमेल मलाकर हम आगे बढ़ सकते ह.

स ची वतं ता मलना और ःख का अ त जीवन म इस कार होता है क इस ण तुम जो


भी अनुभव करते और टटोलते हो, वह तुमने वयं पूरी तरह चुना है.

े े ी ै
वतमान के साथ यह अ तर का तालमेल रख पाना ही ःख का अ त है.

या ःख वा तव म ज़ री है? हां और नही.

जैसा ःख तुमने सहा है, वैसा न सहा होता, तो मनु य के प म तुमम कोई गहराई, न ता
और क णा न होती. तुम इस समय इसे पढ़ न रहे होते. ःख अहंकार के कवच को तोड़
दे ता है, तब एक ऐसा ण आता है, जब उसका उद्दे य पूरा हो जाता है. जब तक तुम ःख
क थता नह समझ लेते, तब तक ःख ज़ री है.

अ स ता के लए बु ारा गढ़ गई कहानी के साथ ‘म’ क ज़ रत होती है, एक


धारणागत पहचान को गुज़रे ए समय या भ व य म आने वाले कल क ज़ रत. जब तुम
अपनी अ स ता म से इस ‘समय’ को नकाल दे ते हो, तो या है, जो शेष रह जाता है?
इस ण का ऐसा होना ही शेष रहता है.

भारीपन, घबराहट, घुटन, ग़ सा या फर उबकाई का अनुभव भी हो सकता है. यह


अ स ता नह है, यह तु हारी गत सम या भी नह है. मानव के ःख म कुछ भी
नजी नह होता. यह केवल एक ब त गहरा दबाव या भारी श है, जसे तुम अपने शरीर
के अ दर कह अनुभव करते हो. उस पर यान दे ने से वह भावना वचार म नह बदलती,
ब क ःखी “म” के प म त या करती है.

जब तुम कसी एक भावना को होने दे ते हो, तो दे खो या होता है.

म त क म उठने वाले हर वचार को जब तुम स य मान लेते हो, तो तु हारे मन म ब त


अ धक ःख और अ स ता ही पैदा होती ही है. हालात तु ह ःखी नह करते. वे तु ह शरीर
क पीड़ा दे सकते ह, पर तु ःखी नह बनाते. तु हारे वचार ही तु ह ःखी बनाते ह. तु हारी
ा याएं, कहा नयां, जो तुम खुद को सुनाते हो, तु ह ःखी बनाती ह.

“ ो ी ो े ी ै” ो ी े
“इस समय म जो कुछ भी सोच रहा ं, मुझे ःखी बना रहा है.” यह बोध तु हारी अचेतन
पहचान को उन वचार से अलग कर दे ता है.

यह दन कतना बेकार रहा.

उसे इस बात क भी तमीज़ नह क मुझे जवाब दे .

उसने मुझे नीचा दखाया.

ऐसी छोट -छोट कहा नयां हम अ सर अपने को और सर को शकायत के प म सुनाते


ह. अपने को सही बताना और सर को या सरी चीज़ को ग़लत स करना भी हमारी
ग़लत व क भावना को अनजाने म और भी उकसाती है. हम “सही” ह, यह बात हम
अपनी का प नक े ता क थ त म ले जाती है और अपने व के नक़ली भाव, यानी
अहंकार को मज़बूत बनाती है. यह एक कार के श ु को पैदा करती है, जी हां, अहं को
अपनी सीमाएं न त करने के लए श ु क ज़ रत होती है, यहां तक क मौसम भी
यह काम करने म मदद कर सकता है.

वाभा वक मान सक नणय और भावना मक संकोच ारा तु हारा अपने जीवन म लोग
और घटना से नजी त या से पूण स ब ध होता है. यह सभी अलग-अलग तरह के
व ारा रचे गए ःख ह, पर तु उ ह इस प म पहचाना नह जाता, य क वे अहंकार को
स तु करते ह. अहंकार त या और वरोध ारा अपने को आगे बढ़ाता है.

उन कहा नय के बना जीवन कतना सरल होता.

बा रश हो रही है.

वह मलने नह आया.

म वहां था. वह नह थी.


जब तुम ःखी हो, जब तुम अस तु हो, तुम पूरी तरह से ‘वतमान’ म रहो. ःख या
सम याएं कभी ‘वतमान’ म जी वत नह रहत .

ःख तब शु होता है, जब तुम कसी प र थ त को मान सक प म अ छा या बुरा तय


कर लेते हो. तुम एक प र थ त से नाराज़ होते हो और तु हारी यह नाराज़गी उसे ख़ास बना
दे ती है और यह त या करने वाले ‘म’ को उस म ले आती है.

नाम और पहचान दे ना आदतन होते ह, पर तु इस आदत को तोड़ा जा सकता है. छोट -


छोट बात से नाम न दे ने का अ यास करो. य द तुम हवाई-जहाज़ पर नह प ंच पाते या
फर याला गराकर तोड़ दे ते हो या फसल कर क चड़ म गर जाते हो, तब या तुम इस
अनुभव को ःखद या बुरा करने से अपने को रोक सकते हो? या तुम फ़ौरन उस ण
“जैसा है”, वैसा वीकार कर सकते हो?

कसी को बुरे कारण से नाम दे ना तु हारे भीतर एक भावना मक संकोच पैदा कर दे ता है.
जब तुम उसे बना नाम दए छोड़ दे ते हो, तो तु हारे अ दर एक ताक़तवर श उ प हो
जाती है.

संकोच तु ह जीवन क श से अलग कर दे ता है.

उ ह ने ान के वृ से अ छाई और बुराई के फल को चखा.

अ छे और बुरे से र चले जाओ, अपने वचार से कसी को अ छा या बुरा दखाने क


आदत से अपने को रोको. जब अ छे -बुरे से परे चले जाओगे, तो जगत क श तु हारे
बीच म वा हत होगी. जब तुम अनुभव से बना त या का स ब ध रखोगे, तो जस को
तुमने पहले ‘बुरा’ कहा था, वह जीवन क श ारा एकदम पूरा घूम जाएगा, चाहे यह
उसी समय न हो.

ो ‘ ’ े ो े ो ो ै
जब तुम एक अनुभव को उतना ‘बुरा’ नह कहते, तो दे खो, या होता है, ब क तब अ तर
क वीकृ त ही अ तर क ‘हां’ हो जाती है, इसी लए उसे ऐसा ही रहने दो.

तु हारे जीवन क प र थ त कैसी भी य न हो, तब तुम कैसा अनुभव करोगे, य द तुमने


उसे अभी के अभी जैसा है, वैसा ही वीकार कर लया होता है?

यहां पर कई ब त मामूली और कई जो क मामूली नह ह, ऐसे ब त से ःख के प ह, जो


इतने ‘मामूली’ ह क उ ह ःख के प म पहचाना भी नह जा पाता. यहां तक क वे
अहंकार को स तु करते ह, जैसे उतावलापन, बैचेनी, ग़ सा, कसी व तु या कसी
से कसी कार क नाराज़गी, शकायत आ द.

तुम उन सब कार के ःख को जैसे-जैसे वे घटते ह, उ ह पहचान और जान सकते हो क


उस समय, म अपने लएं ही ःख पैदा कर रहा ं.

य द तु ह अपने लए ःख पैदा करने क आदत हो गई है, तो शायद तुम सर के लए भी


ःख पैदा कर रहे होते हो. जब वे घटते ह, तो उस समय उनके बारे म जाग क होकर यह
सारी वैचा रक या उ ह बोध कराने से समा त हो सकती है.

तुम सचेत होकर अपने लए ःख पैदा नह कर सकते.

यह क र मा है : हर क दशा और प र थ त के पीछे जो “अ छाई” या “बुराई”


दखाई दे ती है, उसम गहरी अ छाई छपी ई होती है. यह गहरी अ छाई तुम पर कट
होती है, भीतर और बाहर दोन तरह से और जो भी है, वह उसके अ तर क वीकृ त है.

“बुराई का वरोध न करो,” यही मानवता का सबसे महान स य है.


एक संवाद :

जो भी है उसे वीकार करो.

म सचमुच नह कर सकता. म इस वषय म नाराज़ और ग़ से म ं.

तब जो है, उसे वीकार करो.

वीकार करो क म नाराज़ और ग़ से म ं? वीकार करो क म इसे वीकार नह कर


सकता?

हां, अपनी अ वीकृ त म वीकृ त को लाओ, अपने असमपण म समपण लाओ, तब दे खो


या होता है.

ब त पुरानी शरीर क असा य पीड़ा तु हारा सबसे कठोर गु होती है. “ वरोध थ है,”
यही उसक श ा है.

ःख न सहने क अ न छा से बढ़कर कुछ भी वभा वक नह होता है. य द तुम इस


अ न छा को छोड़ दो और उसके बदले पीड़ा को वहां पर रहने दो, तो दद से वहां एक ती
अ तर का अलगाव आ जाता है, तु हारे और दद के बीच एक अंतराल होगा, जो वहां पहले
से मौजूद था. इसका मतलब जान-बूझकर ख़ुशी के साथ दद को झेलो. जब तुम सचेत
होकर दद को झेलते हो, तब शरीर का दद तु हारे भीतर के अहंकार को समा त कर दे ता है,
य क अहंकार अ धकतर तरोध पर ही जी वत रहता है. शरीर क ब त अ धक अपंगता
के लए भी यही नयम लागू होता है.

तुम “अपने दद को ई र को सम पत कर दो,” यह भी कहने का एक सरा तरीक़ा है.

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जगत के शा त स य को समझने के लए, जो क सूली के तीक म है, उसके लए तु ह
ईसाई होना ज़ री नह है.

सूली यातना का एक उपकरण है. यह ब त अ धक यातना, पाब द , असहायता, जससे


कोई भी परेशान हो सकता है, उसका ही तीक है. तब अचानक वह समपण
कर दे ता है, अपनी इ छा से जान-बूझकर दद सहता और यह कहता है, “मेरी नह , ब क
तु हारी इ छा पूण हो”. उस समय सूली, जो यातना का औज़ार है, अपना छपा आ चेहरा
दखाता है. यह एक ब त ही प व तीक भी है, द ता का तीक.

जो जीवन के अ तर म ात आयाम के अ त व को अ वीकार करता तीत होता है,


समपण ारा उस आयाम म रा ता खुल जाता है.
लेखक के स ब ध म

ए हाट टॉ ल जमनी म पैदा ए, जहां उ ह ने अपने जीवन के शु के तेरह वष बताए.


लंदन व व ालय से बी.ए. करने के बाद, वह कै ज व व ालय म शोधकता और
सुपरवाइज़र हो गए. जब वह उनतीस वष के ए, तब एक गहरे आ या मक पा तरण ने
इनक पुरानी पहचान को एक तरह से समा त कर दया और इनके जीवन क दशा को एक
ा तकारी मोड़ दे दया.

अगले कई वष उस पा तरण को समझने, उसका सम वय करने और उसम गहराई लाने म


बीते, जसने इनके जीवन म एक अ तमुखी या ा ार भ कर द .

ए हाट कसी वशेष मत या धम से जुड़े ए नह ह. अपनी श ा म वह ाचीन


आ या मक वषय क समयातीत और बना उलझन वाली प ता के साथ सरल, फर
भी मह वपूण संदेश दे ते ह, जो ःख से बाहर नकलकर शा त म जाने का एक रा ता है.

आजकल ए हाट लगातार या ाएं कर रहे ह और अपनी श ा को वयं प ंचकर सारी


नया म फैला रहे ह. वह 1996 से वैनकूवर, कनाडा म रहते ह.
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