Professional Documents
Culture Documents
दसरा
ू ू : या एक क व को भीतर ू व होने के िलए का य-सजना के साथ-साथ यान क साधना
भी आवँयक है ? य द आवँयक है , तो रवींिनाथ और खलील जॄान ने अपने जीवन म कौन सी
यान-साधना का आौय िलया? य द आवँयक नह ं, तो बताएं क का य-सृजना ह कैसे जीवन-साधना
बन जाए, क क व को एक चोर क भांित भीतर न घुसना पड़े । वह भी एक अितिथ क तरह मं दर म
ू व होने का आनंद अनुभव कर सके।
तीसरा ू : आपने उस दन कहा, क ूभु िमलन के िलए यास तीोतम हो और साथ ह धैय भी
असीम हो; या ये दोन ःथितयां असंगत नह ं ह?
चौथा ू : मुझे ऐसा समझ म आया, क आपने परस कहा क सब मन के रोग ूेम क कमी से पैदा
होते ह।
य क जीवन का ार ह मृ यु का ार है ।
जीवन मृ यु दो ह, इस ॅांित को छोड़ो; अलग-अलग ह, इस ॅांित को छोड़ो; वपर त ह, इस ॅांित
को छोड़ो। जीवन-मृ यु एक साथ ह; जैसे प ी के दो पंख साथ ह; तु हारा दायां और बायां पैर साथ ह।
दायां और बायां पैर दोन के होने से तुम चलते हो। मृ यु और ज म दोन से जीवन चलता है ; वे दोन
पैर ह।
यह बात ह छोड़ दो, क निचकेता मृ यु के ार पर बैठा था। वह जीवन के ह ार पर बैठा था। जीवन
का ार ह तो मृ यु का ार है । अगर तुम गौर से दे खोगे, तो ूितपल मृ यु घ टत होती है । ऐसा थोड़ा
ह है , क स र वष बाद अचानक एक दन मृ यु आ जाती है ! तो तुमने जीवन को समझा ह नह ं।
तुम जस दन से पैदा हए ु हो, उसी दन से मर भी रहे हो। ूितपल जीते हो, ूितपल मरते हो। मृ यु
तो सांस क भांित है ।
अगर तुम ठ क से समझो, ब चा जब पैदा होता है , तो पहला काम करता है , ास भीतर लेने का।
बाहर तो छोड़ने का कर ह नह ं सकता। य क ास भीतर है ह नह ं। तो पहला कृ य है ास को भीतर
लेना। ास को भीतर लेना ज म है । उसके पहले ब चा जी वत नह ं है ।
इसिलए िच क सक और प रवार के लोग ज द करते ह, क ब चा चीखे, िच लाए, ास ले ले। अगर
जरा दे र हो गई और ब चे ने रोना नह ं शु कया और ास नह ं ली-- य क रोने के ारा ह ब चा
ास लेता है । सारा फेफड़ा अभी तो ेंमा से भरा होता है य क ास का ार अभी बंद है । घरघराहट
होती है छाती म। उसको ह हम रोना जैसा समझते ह। उस घबड़ाहट और घरघराहट म ह ब चा ास
लेता है , जी वत हो उठता है । अगर पांच-सात िमनट तक ास न ले, तो गया।
तो जीवन का, ज म क शु आत है ास के लेने से। फर एक आदमी मरता है , यह ब चा बूढ़ा होकर
मरे गा, तो मरने का आ खर काम या होगा? सांस छोड़ना! लेना तो हो ह नह ं सकता आ खर काम,
य क अगर सांस ले ली, तो मरोगे ह नह ं।
तो ज म शु होता है सांस भीतर लेने से, मृ यु आती है सांस बाहर जाने से। अगर वह बात तु ह समझ
म आ जाए तो ूितपल तुम ज म ले रहे हो, ूितपल तुम मर रहे हो, य क सांस भीतर-बाहर आ रह
है । जब तुमने सांस भीतर ली तो तुम जी वत होते हो, जब तुमने सांस बाहर छोड़ तुम मरे ।
पर यह इतनी तीोता से घट रहा है , क तु ह पता नह ं चलता। इसिलए ानी कहते ह क ूितपल
ज म है , ूितपल मृ यु। पल का आधा हःसा ज म है , पल का आधा हःसा मृ यु। तुम एक दन
अचानक थोड़े ह मर जाओगे! रोज-रोज मर रहे हो। रोज-रोज मरते-मरते एक दन मृ यु का पलड़ा भार
हो जाएगा। ज म के समय ज म का पलड़ा भार था, मृ यु के समय मृ यु का पलड़ा भार हो जाएगा।
भार होने का केवल इतना ह अथ है , क ज म के समय सांस लेने का यंऽ मजबूत था, मृ यु के समय
सांस लेने का यंऽ अब िशिथल हो गया, थक गया। अब सांस और भीतर नह ं ली जा सकती। वौाम म
जाना चाहता है यंऽ। पंचत व लौट जाना चाहते ह अपने पंचत व म, थक गए! स र वष क दौड़धूप--
काफ थकान हो गई; अब लौट जाना चाहते ह। फर आने के िलए ताजे ह गे।
ज म और मृ यु दो नह ं ह। एक-साथ, एक ह िस के के दो पहलू ह। तो जहां भी तुम हो, मृ यु के
ार पर बैठे हो। और अगर ठ क समझ म आ जाए, तो तुम जहां बैठे हो, वह ं तुम निचकेता हो। और
वह ं से यम से तु हार चचा शु हो सकती है ।
यम से चचा तो ूतीक है । यम से चचा का अथ ह यह है क मृ यु से संवाद करो। मृ यु से संबंध जोड़ो।
मृ यु से थोड़ बातचीत करो। डरो मत, भागो मत। मृ यु से मुलाकात करो। इतना ह अथ है यम का।
और मृ यु तु ह कतने ह ूलोभन दे , राजी मत होना। तुम तो कहना, अमृत से कम पर हम राजी नह ं
ह। मृ यु से कहना, क तू हम कुंजी बता दे अमृत क ।
अब यह जरा मजे क बात है , क निचकेता को अमृत क कुंजी चा हए और पूछ रहा है मृ यु से;
य क मृ यु के पास कुंजी है । इसम अचरज कुछ भी नह ं है । मृ यु म ह ूगट होता है अमृत।
य ऐसा है ? ःकूल म िश क िलखता है काले लैक बोड पर सफेद ख ड़या से। सफेद द वाल पर नह ं
िलखता; िलखेगा तो दखाई ह न पड़े गा। काला त ता चा हए, सफेद-शुॅ ख ड़या चा हए, तब िलखावट
होती है तुम सफेद कागज पर िलखते हो, तो काली ःयाह से िलखते हो। और सफेद रं ग से िलखोगे, तो
िलखना यथ ह चला जाएगा। वपर त म चीज ूगाढ़ होकर दखाई पड़ती है । मृ यु का जब लैक बोड,
काला त ता चार तरफ से घेर लेता है , तभी तु हारे भीतर जो अमृत है वह अलग होकर दखाई पड़ता
है ; उसके पहले दखाई नह ं पड़ता। दखाई पड़ भी नह ं सकता।
जीवन से िघरे हो--वृ , प ी, आकाश, मनुंय; सब तरफ जीवन लहलहा रहा है , तुम भी जीवन हो;
सब तरफ जीवन है । इस जीवन म तुम अपने जीवन को कैसे दे ख पाओगे? सफेद द वाल पर सफेद अ र
िलखे ह। मृ यु के ण म तु हारे चार तरफ एक कािलमा िघर जाएगी। यम तु ह घेर लेगा। दे खा है ?
यम क तःवीर दे खी, काली! भसे पर सवार, काले भसे पर सवार!
अब यह बड़े मजे क बात है । अगर यह गोरे लोग ने कया होता, तो ठ क था। नीमो भी मृ यु को काला
ह मानते ह। उनको तो मानना चा हए बलकुल शुॅ, सफेद चमड़ ! वे भी काला ह मानते ह मृ यु को।
उनको समझ म आ जाएगी, तो वे बदल दगे।
मने सुना है , क कुछ इस तरह का िसलिसला चलता है , क ई र को काला िच ऽत कया जाए य क
नीमो ई र काला होना चा हए। यह तो सफेद चमड़ वाले लोग क करतूत है , क ई र गोरा; और
सफेद चमड़ वाल क करतूत है , क शैतान काला। तो कुछ राजनीित चलती है । और कोई आ य न
होगा, क नीमो तय कर ल क हम तो अब मौत को सफेद रखगे; सफेद घोड़े पर सवार, सफेद।
मगर जंचेगी न! य क इससे कोई संबंध नीमो और सफेद चमड़ का नह ं है । यह तो एक बहुत गहरा
ूतीक है , क जीवन एक ेत तरं ग है , एक शुॅ तरं ग है , एक लहर है ूकाश क ।
तुमने कभी खयाल कया? दया जलता है , दया बुझता है ; अंधेरा सदा है । अंधेरे को न जलाना पड़ता
है , न बुझाना पड़ता है । दया आता है , जाता है , अंधेरा सदा है । ज म आता है , जाता है , मृ यु सदा
है । जैसे ह तुम थक गए, मृ यु क गोद तैयार है । वह सदा से तैयार है । अभी तुम चाहो, अभी लौट
जाओ। मृ यु का अंधकार सदा है ।
और अंधकार का ूतीक क मती है य क अंधकार वौाम है । ूकाश म वौाम मु ँकल है , इसीिलए तो
दन म नींद मु ँकल है । सूरज आकाश म हो, तो नींद मु ँकल है । रात भी कोई ब ब जलाकर सोए, तो
मु ँकल है । अंधेरे म वौाम आसान है , अंधेरे म एक वौाम है , अंधेरा बड़ा शांत है , वरामपूण है ।
इसिलए मृ यु अंधकार है , य क वह वौांित है । सब चहल-पहल खो गई, सब तरं ग जा चुक ं, कुछ
दखाई नह ं पड़ता, महा अंधकार ने घेर िलया। उस महा अंधकार के ण म अचानक च कते हो तुम,
क म तो मरा ह नह ं! म तो हंू ! और म इतना ूगाढ़ता से हंू , जनक ूगाढ़ता से कभी भी न था।
इस अंधेरे म तु हार शुॅ रे खा चमकती हईु दखाई पड़ती है ।
जैसे जतने काले बादल ह , उतनी ह बजली चमकदार मालूम पड़ती है । जतनी अंधेर रात हो, तारे
उतने ह शुॅ मालूम पड़ते ह। दन म भी तारे ह आकाश म। तुम यह मत सोचना, क कह ं चले गए।
जाएंगे कहां? दन म भी ह ले कन दखाई नह ं पड़ते; चार तरफ ूकाश है । अगर तुम कसी गहरे कुएं
म चले जाओ तीन सौ फ ट नीचे, तो वहां से तु ह दन म भी तारे दखाई पड़गे। य क बीच म तीन
सौ फ ट क अंधकार क पत आ जाएगी।
मृ यु के ह ण म अमृत दखाई पड़ता है । इसिलए उपिनषद क कथा बड़ मधुर है । निचकेता को भेज
दया है मृ यु के पास, क वह अमृत को जान ले। मृ यु के पास भेजा है , पता ने कहा, तुझे गु के
पास भेजता हंू । य क मृ यु के अित र कोई गु नह ं हो सकता। मृ यु गु है ।
और इससे उलटा भी सह है , क हर गु मृ यु है । वह तु ह िमटाएगा, काटे गा, तोड़े गा। िसफ उतना ह
बचने दे गा, जसको िमटाने का कोई उपाय नह ं है ; ता क सब टटे ू -फूटे खंडहर के बीच, अहं कार के
खंडहर के बीच सपन के खंडहर के बीच तुम उसे पहचान लो, जो स य है ; जसको कोई, तोड़ना चाहे ,
तोड़ नह ं सकता; छे दना चाहे , छे द नह ं सकता।
कृ ंण ने गीता म कहा है , "नैनं िछं दं ित श ा ण'--मुझे श छे द नह ं सकते।' "नैनं दहित पावकः'--
मुझे आग जला नह ं सकती।
मगर आग म ह पता चलेगा, क जला सकती है या नह ं! श िछदगे तभी पता चलेगा, क िछदते ह
या नह ं! मौत म आग भी जलेगी, श भी िछदगे, अंधकार सब तरफ से घेर लेगा, उस ण अगर
होश रहा, तो तुम दे ख लोगे, क तुम अमृत हो। इसिलए असली सवाल जीवन म होश को साध लेने का
है । अ यथा मरते तो सभी ह, अमृत को बना जाने मर जाते ह, होश ह नह ं रहता। तो मृ यु तो बार-
बार आती है िसखाने, तुम बार-बार चूक जाते हो।
मृ यु का गु बहत ु बार तु ह घेरता है ले कन तुम िशंय व से ह वंिचत हो। तुम सीखने से वंिचत हो
य क तुम होश म नह ं हो।
लैटो मर रहा था--यूनान का सबसे बड़ा वचारक। लैटो का वचार और लेटो क वचार क मता
इतनी ूगाढ़ थी, क उसका नाम बु मानी का ूतीक हो गया।
म छोटा था, मेरे दादा गैर-पढ़े -िलखे आदमी थे। उ ह ने लैटो का तो कभी नाम भी नह ं सुना था,
ले कन लेटो का जो भारतीय नाम है --अफलातून--वे जब मुझ पर नाराज होते थे तो वे कहते थे, बड़े
अफलातून के बेटा बने हो! म उनसे पूछता, अफलातून कौन? तो वे कहते, होगा कोई! उनको पता
नह ं, क अफलातून कौन है ; ले कन अफलातून लेटो का नाम है । लेटू न से आया--अफलातून। इतना
ूगाढ़ वचारक था लेटो, क अफलातून ूतीक ह हो गया, क बड़े वचारक के बेटे बने हो! वे जब
बहत ु ह नाराज हो जाते तब वे अफलातून का उपयोग करते थे।
यह लेटो मर रहा था, मरण-श या पर पड़ा था, िमऽ इक ठे थे; कसी ने पूछा, क एक आ खर
सवाल और! तुमने जीवनभर जो कुछ कहा, जो कुछ समझाया, जो कुछ िसखाया, उसे सार म कह दो।
य क तु हारे शा तो बड़े ह और ज टल ह और हम समझ पाएं, न समझ पाएं, भूल जाएं, भटक
जाएं, तुम हम सार म कह दो। एक ह वचन म कह दो, दो-चार श द म कह दो, ता क हम कंठःथ
कर ल और सूऽ को याद रख।
लेटो ने आंख खोली और उसने कहा, सारे जीवन मने एक ह बात िसखाई, वह है , मरने क कला:
"द आट टू डाइ।' उसने आंख बंद कर ली और मर गया। ये उसके आ खर वचन थे--"मरने क कला!'
सारा धम मरने क कला है , सारा यान मरने क कला है । मरने क कला का मतलब यह है , क तुम
होश से मरना। मगर होश से तुम तभी मर सकोगे, जब तुम होश से जीओ। य क होश कोई ऐसी चीज
नह ं है , क अचानक मरने लगे और साध िलया।
तुमने मोिमन का ूिस वचन सुना होगा:
"उॆ तो गुजर इँके बुता म, मोिमन,
अब मरते व या खाक मुसलमां ह गे।'
क जंदगीभर तो मूितपूजा म गुजर उॆ। मोिमन का मतलब है , क जंदगीभर तो खूबसूरत य को
पूजते रहे , वह मूितपूजा है । स दय को पूजते रहे । "उॆ तो गुजर इँके बुता म मोिमन, अब मरते व
या खाक मुसलमां ह गे!' और अब मरते व तुम कहते हो, मूितयां छोड़ दो, परमा मा क कोई मूित
नह ं। न! अब यह न हो सकेगा।
अगर जीवनभर होश को न साधा, तो मरते व तुम न साध सकोगे। अभी साध लो, अभी समय है ; तो
मौत जब आए, तु ह जागा हआ ु पाए। और जसको भी मौत ने जागा हआ ु पाया, मौत उससे हार जाती
है । जसको भी मौज ने जागा हआ ु पाया, उसक मौत होती ह नह ं। उस तरह के आदमी के मरण को ह
हम मु कहते ह, मो कहते ह। वह मरता नह ं है , वह मु होता है । उस तरह के आदमी क मृ यु
को हम मृ यु नह ं कहते, समािध कहते ह। उसका तो समाधान हो गया मृ यु के आने से।
अब तक क जो िचंता थी, क जीवन या है , या है रहःय जीवन का, या है लआय, या है
गंत य, और जीवन बचता है या नह ं, यह णभंगुर है , या शा त है --सार समःया मृ यु के आने से
समाधान हो जाती है , उसक , जो जागा हआ ु है । इसिलए जागे हए
ु क मृ यु को हम समािध कहते ह।
जागा हआ ु आदमी जब मर जाता है , तो उसक कॄ को भी हम समािध कहते ह। साधारण आदमी क
कॄ को हम समािध नह ं कहते, वह तो कॄ ह है ! ये तो फर आएंगे। ये तो अभी थोड़ दे र वौाम कर
रहे ह कॄ म; लौट आएंगे। ये अभी गए नह ं ह। इनका एक पैर अभी यह ं है । ये ज द ह लौटने क
तैयार करगे। ये जरा सो गए ह, थोड़े थक गए थे, फर वा पस आ जाएंगे।
हम उस य क कॄ को समािध कहते ह, जो अब लौटे गा नह ं। य क जसने मृ यु का राज समझ
िलया, उसे लौटने क ज रत ह न रह । जसने मृ यु को जान िलया, उसने ज म को भी जान िलया।
जसने ज म और मृ यु को जान िलया, उसको अब कुछ जानने को बाक न रहा।
तो तीन मह वपूण घटनाएं ह; ज म और मृ यु, और ूेम। ज म तु हारे बस म नह ं है । तुम पैदा हो
गए। अब लौटकर कुछ कया नह ं जा सकता।
ूेम तु हारे बस म है , कुछ कया जा सकता है । ले कन शायद संःकृ ित, स यता, समाज तु ह ूेम न
करने दे , अड़चन डाले, बाधा खड़ करे । समाज, स यता, संःकृ ित ववाह म भरोसा करती है , ूेम म
नह ं। उसके कारण ह। य क ववाह यादा सुर त सु वधापूण मालूम पड़ता है ।
ूेम खतरनाक है । ूेम ऐसा है , जैसे तूफान आए समुि म नाव को छोड़ना; अनजाने वन-पथ पर
पगडं डय से याऽा करना।
ववाह राजपथ पर चलना है । सीमट-पटा माग है , करोड़ लोग साथ चल रहे ह, कह ं कोई भय नह ं।
दोन तरफ पुिलसवाले भी चल रहे ह, म जःशे ट भी साथ है , सब यव ःथत है । जरा गड़बड़ हई ु तो
अदालत है । ूेम झंझट है , ववाह सु वधा है । सु वधा के कारण लोग ला ःटक के फूल खर द िलए ह।
असु वधा से बचने के िलए असली फूल से बच गए ह।
इसिलए ज म म तो तुम कुछ अब कर नह ं सकते, हो गया! ूेम भी करने म तु ह बड़ बाधाएं पड़गी,
ले कन कुछ कर सकते हो। बड़ अड़चन होगी, ले कन कुछ कर सकते हो।
पर मृ यु के संबंध म तो सब कुछ कर सकते हो। कोई अड़चन नह ं, कोई बाधा नह ं। इसिलए ज म क
भी फब छोड़ दो अगर, तो चलेगा। अगर ूेम म भी पाओ, क अब बहत ु उलझन है , समय जा चुका,
अब कुछ करना उलझन ह बढ़ाएगा--जाने दो! मृ यु को साध लो। होश को साधो। और मरते व एक
ह बात अगर तुम बचा लो, क तुम जागे हए ु मर जाओ; मौत आए, तु ह बेहोश न पाए, सब हो
जाएगा। जागा हआ ु जो मरता है , वह मरता ह नह ं। वह अमृत को उपल ध हो जाता है ।
ले कन अगर ूेम क कोई भी संभावना हो-- य क कुछ आ य नह ं क तु ह अपनी प ी से ह ूेम हो,
तु ह अपने ब चे से ूेम हो; ले कन तुम उससे भी डर रहे हो।
म एक िमऽ के घर म रहता था। मने उ ह कभी उनके ब च से बात करते नह ं दे खा, प ी को कभी
पास बैठे नह ं दे खा। चलते थे तो इतनी तेजी से, नौकर क तरफ यहां वहां नह ं दे खते थे। बड़े धनपित
थे। मने उनसे पूछा, क मामला या है ? उ ह ने कहा, अगर जरा ब च से पूछो, या हाल है ? पैसे के
िलए हाथ बढ़ाते ह। प ी से पूछो, या हाल है ? वह कहती है हार, बाजार म गई थी, बड़ा अ छा है ,
लौटते म ले आना। नौकर क तरफ दे खा, तन वाह फौरन बढ़ाओ! तो म सीख ह गया हंू , कसी के
तरफ दे खना ह नह ं, तेजी से चलना। और कसी के पास बैठना नह ं, हमेशा अखबार पढ़ना। प ी वहां
है , तो बीच म अखबार! य क जरा ह कुछ करो, महं गा पड़ता है ।
अब यह आदमी मर गया। इस आदमी के जीवन म ूेम क कोई सुगंध ह न रह । यह सड़ गया, वह
लाश है । यह पैसा बचा लेगा, खुद को गंवा दे गा।
अगर ूेम क कोई संभावना है , तो उसे खलने दे ना। डरो मत। खोने को कुछ भी नह ं है , िसफ पाने को
है । और जो खोने का तु ह डर है , वह खो जाने दो य क उसे तुम बचा भी न सकोगे। जो खोने को है ,
वह खोएगा ह । जो बच सकता है , वह केवल बचेगा। तु हारे उपाय कुछ काम नह ं आते।
इस भावदशा को ह म समपण कहता हंू , तुम जीवन के ूित सम पत हो जाओ। और तुम पाओगे क
तुम ध यभाग से भर गए हो। तुम पर आशीवाद क वषा हो गई। तु हारे ूाण पुल कत हो गए ह। अब
तुम उदास नह ं, थके-मांदे नह ं। जीवन क धार सागर से जुड़ गई। अब तुम उलीचो कतना ह , चुकता
नह ं है ; बढ़ता है ।
आज इतना ह ।