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ओशो – गीता-दशन – भाग 3


कृ का सं ास, उ वपू ण सं ास (अ ाय-6) वचन—पहला

ीम गव ीता
अथ ष ोऽ ाय:

ीभगवानुवाच

अनाि तः कमफलं काय कम करोित यः।


स सं ासी च योगी च न िनरि न चाि यः।। 1।।
ीकृ भगवान बोले, हे अजु न, जो पु ष कम के फल को न चाहता आ करने यो कम करता है, वह सं ासी
और योगी है और केवल अि को ागने वाला सं ासी, योगी नहीं है ; तथा केवल ि याओं को ागने वाला भी
सं ासी, योगी नहीं है ।

कृ के साथ इस पृ ी पर एक नए सं ास की धारणा का ज आ। सं ास सदा से सं सार-िवमु ख धारा थी–सं सार


के िवरोध म, श ुता म। जीवन का िनषे ध, कृ के पहले तक सं ास की ा ा थी; लाइफ िनगे िटव था। जो छोड़ दे
सब–कम को, गृ ह को, जीवन के सारे प को–िन य हो जाए, पलायन म चला जाए, हट जाए जीवन से, वै सा ही
सं ासी था। कृ ने सं ास को ब त नया आयाम, एक ू डायमशन िदया। वह नया आयाम इस सू म
कृ अजु न से कहते ह।

अजु न के मन म भी यही खयाल था सं ास का। अजु न भी यही सोचता था िक सब छोड़कर चला जाऊं, तो जीवन
सं ास को उपल हो जाएगा। अजु न भी सोचता था, कत छोड़ दू ं , करने यो है वह छोड़ दू ं , कुछ भी न क ं ,
अि य हो जाऊं, िन य हो जाऊं, अकम म चला जाऊं, तो सं ास को उपल हो जाऊंगा। ले िकन कृ ने उससे
इस सू म कहा है , फल की आकां ा न करते ए जो कम को करता है , उसे ही म सं ासी कहता ं । उसे नहीं, जो
कम को छोड़ दे ता है मा , ले िकन फल की आकां ा िजसकी शे ष रहती है । जो बा पों को छोड़ दे ता है , ले िकन
अंतर िजसका पुराना का पुराना ही बना रह जाता है , उसे म सं ासी नहीं कहता ं ।

तो सं ास की इस धारणा म दो बात समझ ले नी ज री ह। एक तो सं ास का बिहर प है ; ले िकन एक सं ास की


अंतरा ा भी है । पुराना सं ास बिहर प पर ब त जोर दे ता था। कृ का सं ास अंतरा ा के पां तरण पर, इनर
टां सफामशन पर जोर दे ता है ।

कम को छोड़ना ब त किठन नहीं है । आलसी भी कम को छोड़कर बै ठ जाते ह। और इसिलए, अगर पुराने सं ास


की धारणा ने आलिसयों को आकिषत िकया हो, तो ब त आ य नहीं है । और इसिलए, अगर पुराने सं ास की
धारणा को मानने वाले समाज धीरे -धीरे आलसी हो गए हों, तो भी आ य नहीं है । जो कुछ भी नहीं करना चाहते ह,
उनके िलए पुराने सं ास म बड़ा रस मालू म होता है । कुछ न करना कोई बड़ी उपल नहीं है ।

इस जगत म कोई भी कुछ नहीं करना चाहता है । ऐसा आदमी खोजना मु ल है , जो कुछ करना चाहता है । ले िकन
सारे लोग करते ए िदखाई पड़ते ह, इसिलए नहीं िक कम म ब त रस है, ब इसिलए िक फल िबना कम के नहीं
िमलते ह। हम कुछ चाहते ह, जो िबना कम के नहीं िमले गा। अगर यह तय हो िक हम िबना कम िकए, जो हम चाहते
ह, वह िमल सकता है , तो हम सभी कम छोड़ द, हम सभी सं ासी हो जाएं ! ले िकन चाह पूरी करनी है , तो कम
करना पड़ता है । यह मजबूरी है , इसिलए हम कम करते ह।

कृ इससे उलटी बात कह रहे ह। वे यह कह रहे ह, कम तो तु म करो और फल की आशा छोड़ दो। हम कर सकते
ह आसानी से, कम न कर और फल की आशा कर। जो आसान है , वह यह मालू म पड़ता है िक हम कम तो न कर
और फल की आशा कर। और अगर कोई फल पूरा कर दे , तो हम कम छोड़ने को सदा ही तै यार ह। कृ इससे
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ठीक उलटी ही बात कह रहे ह। वे यह कह रहे ह िक कम तो तुम करो ही, फल की आशा छोड़ दो। यह फल की
आशा छूट जाए, तो कृ के अथ म सं ास फिलत होगा।

फल की आशा के िबना कम कौन कर पाएगा? कम करे गा ही कोई ों? दौड़ते ह, इसिलए िक कहीं प ं च जाएं ।
चलते ह, इसिलए िक कोई मंिजल िमल जाए। आकां ाएं ह, इसिलए म करते ह; सपने ह, इसिलए सं घष करते ह।
कुछ पाने को दू र कोई तारा है , इसिलए ज ों-ज ों तक या ा करते ह।

वह तारा तोड़ दो। कृ कहते ह, वह तारा तोड़ दो। नाव तो खेओ ज र, ले िकन उस तरफ कोई िकनारा है , उसका
खयाल छोड़ दो। प ं चना है कहीं, यह बात छोड़ दो; प ं चने की चे ा जारी रखो।

असंभव मालू म पड़े गा। अित किठन मालू म पड़े गा। िफर नाव िकसिलए चलानी है, जब कोई तट पर प ंचना नहीं!

पर कृ ब त अदभुत बात कहते ह। वे यह कहते ह िक नाव चलाने से कोई तट पर नहीं प ंचता, ज ों-ज ों तक
चलकर भी कोई मंिजल पर नहीं प ं चता, आकां ाएं करने से कोई आकां ाएं पूरी होती नहीं ह। ले िकन जो आदमी
नाव चलाए और िकनारे पर प ंचने का खयाल छोड़ दे , उसे बीच मझधार भी िकनारा बन जाती है । और जो आदमी
कल की आशा छोड़ दे और आज कम करे , कम ही उसका फल बन जाता है, कम ही उसका रस बन जाता है । िफर
कम और फल म समय का वधान नहीं होता। िफर अभी कम और अभी फल।

सं ास जीवन का ाग नहीं है कृ के अथ म, जीवन का परम भोग है ।

जीवन का रह ही यही है िक हम िजसे पाना चाहते ह, उसे हम नहीं पा पाते ह। िजसके पीछे हम दौड़ते ह, वह
हमसे दू र हटता चला जाता है । िजसके िलए हम ाथनाएं करते ह, वह हमारे हाथ के बाहर हो जाता है । जीवन करीब-
करीब ऐसा है , जै से म मु ी म हवा को बां धूं। िजतने जोर से कसता ं मु ी को, हवा उतनी मु ी के बाहर हो जाती है ।
खुली मु ी म हवा होती है , बं द मु ी म हवा नहीं होती। हालां िक िजसने मु ी बां धी है , उसने हवा बां धने को बां धी है ।

जीवन को जो लोग िजतनी वासनाओं-आकां ाओं म बां धना चाहते ह, जीवन उतना ही हाथ के बाहर हो जाता है । अंत
म िसवाय र ता, े् रशन, िवषाद के कुछ भी हाथ नहीं पड़ता है ।

कृ कहते ह, खुली रखो मु ी; आकां ा से बां धो मत, इ ा से बां धो मत। जीओ, ले िकन िकसी आगे भिव म कोई
फल िमले गा, इसिलए नहीं। िफर िकसिलए? हम पूछना चाहगे िक िफर िकसिलए जीओ?

कृ कहते ह, जीना अपने म ही आनंद है ।

जीने के िलए कल की इ ा से बां धना नासमझी है । जीना अपने म ही आनंद है । यह पल भी काफी आनंदपू ण है ।
और तब म ही अपने म आनंद हो जाए, कम ही अपने म आनंद हो जाए, तो कुछ आ य नहीं है ।

ले िकन कृ के समय तक सारा सं ास भगोड़ा, ए े िप था, पलायनवादी था। हट जाओ। जहां-जहां दु ख है , वहां-
वहां से हट जाओ। जहां-जहां पीड़ा है, वहां-वहां से हट जाओ। ले िकन कृ कहते ह, पीड़ा थान की वजह से नहीं है ;
पीड़ा वासना के कारण है । वही उनकी बु िनयादी खोज है ।

पीड़ा इसिलए नहीं है िक आप बाजार म बै ठे हो; और जं गल म बै ठोगे, तो सु ख हो जाएगा। अगर आप िजस भां ित
दु कान पर बै ठे हो, उसी भां ित मंिदर म बै ठ गए, तो कोई सु ख न होगा। आप ही तो मंिदर म बैठ जाओगे! आप बाजार
म थे; आप ही जं गल म बै ठ जाओगे । आपम कोई फक न आ, तो जं गल म उतनी ही पीड़ा है, िजतनी बाजार म
दु कान पर थी।
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सवाल यह नहीं है िक जगह बदल ली जाए। जगह का कोई भी सं बंध नहीं है । जहां आज आपकी दु कान है, कल कभी
वहां जं गल रहा था। और कल कभी कोई सं ास ले कर उस जं गल म आकर बै ठ गया होगा। जगह वही है; अब वहां
दु कान है । जहां आज जं गल है , कल दु कान हो जाएगी। जहां आज दु कान है, कल जं गल हो जाएगा। जगहों म कोई
अंतर नहीं है । जमीन ने तय नहीं कर रखा है िक कहां जं गल हो और कहां दु कान हो। दु कान तय होती है मन से,
थान से नहीं। दु कान तय होती है मनः थित से, प र थित से नहीं।

कृ कहते ह, अगर तु म तु म ही रहे, तो तु म कहीं भी भाग जाओ, दु ख तु ारे साथ प ंच जाएगा। वह तु ारे भीतर
है , वह तु मम है , वह तु ारी वासना म है , वह तु ारी इ ा म है । जहां इ ा है , वहां दु ख छाया की तरह पीछा
करे गा। इसिलए भागो जं गल म, गु फाओं म, िहमालय पर, कैलाश पर। दु ख को तु म पाओगे िक वह तु ारे साथ
मौजू द है । खोलोगे आं ख, पाओगे , सामने खड़ा है । बं द करोगे आं ख, पाओगे, भीतर बै ठा है ।

दु ख उस िच म िनवास करता है , जो वासना म जीता है ।

िफर यह भी मजे की बात है िक जो आदमी सं सार छोड़कर भागता है , वह भी वासनाएं छोड़कर नहीं भागता। वह भी
िकसी वासना के िलए सं सार छोड़कर भागता है । इस बात को भी थोड़ा ठीक से समझ ले ना ज री है । वह पाना
चाहता होगा मो , पाना चाहता होगा परमा ा, पाना चाहता होगा ग, पाना चाहता होगा शां ित, पाना चाहता होगा
आनंद। ले िकन पाना ज र चाहता है ।

नी शे ने कहीं ब त ं िकया है उन सारे लोगों पर, जो जीवन को छोड़कर भागते ह। उसने कहा है िक तु म अजीब
हो पागल! तु म कहते हो, हम इ ाओं को छोड़कर भागते ह, ले िकन मने एक भी ऐसा आदमी नहीं दे खा जो िकसी
इ ा के िलए न भाग रहा हो। यहां इ ाएं छोड़ता है , वहां इ ाएं पाने के िलए भागता है ! और अगर िकसी इ ा के
िलए ही इ ा छोड़ी गई, तो इ ा कहां छोड़ी गई है? ऐसे तो कोई भी छोड़ दे ता है ।

एक आदमी को िसनेमा जाना होता है , तो दु कान छोड़कर जाता है । एक आदमी को वे ा को खरीदना होता है , तो
कुछ छोड़कर खरीदना होता है । जीवन की इकॉनामी है । एक ही चीज से आप सब चीज नहीं खरीद सकते । एक चीज
छोड़नी पड़ती है, तो दू सरी चीज खरीद सकते ह। जीवन का अपना अथशा है ।

आपके खीसे म एक पया पड़ा आ है । पया ब त चीज खरीद सकता है । जब तक नहीं खरीदा है, तब तक पया
ब त चीज खरीद सकता है । ले िकन जब खरीदने जाएं गे, तो एक ही चीज खरीद सकता है । जब आप एक चीज
खरीदगे, तो बाकी जो चीज पया खरीद सकता था, उनका ाग हो गया। अगर आपने एक पए से िटकट खरीद
ली और रात जाकर िसनेमा म बै ठ गए, तो आप एक पए से और जो खरीद सकते थे, उस सबका आपने ाग कर
िदया। आप भी ाग करके वहां गए ह। हो सकता है, ब े को दवा की ज रत हो, आपने उसका ाग कर िदया।
हो सकता है , प ी के तन पर कपड़ा न हो, उसको पकड़े की ज रत हो, आपने उसका ाग कर िदया। हो सकता
है , आपका खुद का पेट भू खा हो, ले िकन आपने अपनी भू ख का ाग कर िदया।

जगत म जीवन की एक इकॉनामी है , अथशा है । यहां एक इ ा पूरी करनी हो, तो दू सरी इ ाएं छोड़नी पड़ती ह।
तो जो आदमी सं सार की इ ाएं छोड़कर जं गल चला जाता है , पूछना ज री है , वह ा पाने वहां जा रहा है ?
कहे गा, परमा ा को पाने जा रहा ं, आ ा को पाने जा रहा ं , आनंद को पाने जा रहा ं । ले िकन इ ाओं को
छोड़कर अगर िकसी इ ा को पाने ही जा रहे ह, तो आप सं ासी नहीं ह।

कृ कहते ह सं ासी उसे, जो िकसी इ ा के िलए और इ ाओं को नहीं छोड़ता, जो इ ाओं को ही छोड़ दे ता है ।
इस फक को ठीक से समझ ल। िकसी इ ा के िलए छोड़ना, तो सभी से हो जाता है । नहीं, इ ाओं को ही छोड़ दे ता
है ।

हम कहगे िक इ ा छूटी िक कम छूट जाएगा! हम कहगे िक इ ा अगर छूट जाए, तो िफर हम कम ों करगे?
यह भी हमारा इ ा से भरा आ मन सवाल उठाता है । ोंिक हमने िबना इ ा के कभी कोई कम नहीं िकया है ।
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ले िकन कृ गहरा जानते ह। वे जानते ह िक इ ा छूट जाए, तो भी कम नहीं छूटे गा, िसफ गलत कम छूट जाएगा।
यह दू सरा सू इस सू म समझ ले ने जै सा है ।

इसिलए वे कहते ह, जो करने यो है , वही कम। जै से ही इ ा छूटी िक गलत कम छूट जाएगा, ठीक कम नहीं
छूटे गा। ोंिक ठीक कम जीवन से वै से ही िनकलता है , जै से झरने सागर की तरफ बहते ह। ठीक कम जीवन म वैसे
ही खलता है, जै से वृ ों म फूल खलते ह। ठीक कम जीवन का भाव है ।

गलत कम जीवन का भाव नहीं है । इ ाओं के कारण गलत कम जीवन करने को मजबूर होता है । जो आदमी
चोरी करता है, वह भी ऐसा अनुभव नहीं करता िक म चोर ं । बड़े से बड़ा चोर भी ऐसा ही अनुभव करता है िक
मजबू री म मने चोरी की है; म चोर नहीं ं । बड़े से बड़ा चोर भी ऐसा ही अनुभव करता है िक ऐसा दबाव था प र थित
का िक मुझे चोरी करनी पड़ी है , वै से म चोर नहीं ं । बु रे से बु रा कम करने वाला भी ऐसा नहीं मानता िक म बु रा ं ।
वह ऐसा ही मानता है, ए डट है बु रा कम।

आज तक पृ ी पर ऐसा एक भी आदमी नहीं आ, िजसने कहा हो िक म बु रा आदमी ं । वह इतना ही कहता है ,


आदमी तो म अ ा ं , ले िकन दु भा िक प र थितयों ने मुझे बु रा करने को मजबूर कर िदया।

ले िकन प र थितयां! उसी प र थित म बु भी पैदा हो जाते ह; उसी प र थित म एक डाकू भी पैदा हो जाता है;
उसी प र थित म एक ह ारा भी पैदा हो जाता है । एक ही घर म भी तीन लोग तीन तरह के पैदा हो जाते ह।
िबलकुल एक-सी प र थित भी एक-से आदमी पैदा नहीं कर पाती।

प र थित भे द कम डालती है ; इ ाएं भे द ादा डालती ह।

इ ाएं इतनी मजबू त हों, तो हम सोचते ह िक एक इ ा पूरी होती है , थोड़ा-सा बु रा भी करना हो, तो कर लो। इ ा
की गहरी पकड़ बु रा करने के िलए राजी करवा ले ती है । बु रा काम भी कोई आदमी िकसी अ ी इ ा को पूरा करने
के िलए करता है । बु रा काम भी िकसी अ ी इ ा को पूरा करने के िलए अपने मन को समझा ले ता है िक इ ा
इतनी अ ी है , सा इतना अ ा है , इसिलए अगर थोड़े गलत माग भी पकड़े गए, तो बु रा नहीं है । और ऐसा नहीं है
िक छोटे -छोटे साधारणजन ऐसा सोचते ह, बड़े बु मान कहे जाने वाले लोग भी ऐसा ही सोचते ह। मा ् स या ले िनन
जै से लोग भी ऐसा ही सोचते ह िक अगर अ े अंत के िलए बु रा साधन उपयोग म लाया जाए, तो कोई हजा नहीं है ;
ठीक है । ले िकन हम जो करना चाहते ह, वह तो अ ा ही करना चाहते ह।

बु रे से बु रे आदमी की भी तक-शै ली यही है िक जो म करना चाहता ं , वह तो अ ा ही है । अगर म एक मकान बना


ले ना चाहता ं और उसकी छाया म दोपहर िव ाम करना चाहता ं , तो बु रा ा है ! सहज, ाभािवक, मानवीय है ।
िफर इसके िलए थोड़ी कालाबाजारी करनी पड़ती है , थोड़ी चोरी करनी पड़ती है , थोड़ी र त दे नी पड़ती है, वह म दे
ले ता ं । ोंिक उसके िबना यह नहीं हो सकेगा।

कृ कहते ह िक िजस आदमी की इ ाएं छूट जाएं , उस आदमी के बु रे कम त ाल छूट जाते ह। ले िकन अ े
कम नहीं छूटते ।

अ ा कम वही है –उसकी प रभाषा अगर म दे ना चा ं, तो ऐसी दे ना पसं द क ं गा–अ ा कम वही है , जो िबना


इ ा के भी चल सके। और बु रा कम वही है , जो इ ा के पैरों के िबना न चल सके। िजस कम को चलाने के िलए
इ ा ज री हो, वह बु रा है; और िजस कम को चलाने के िलए इ ा िबलकुल भी गै र-ज री हो, वह कम अ ा है ।
अ े का एक ही अथ है , जीवन के भाव से िनकले, जीवन से िनकले ।

कृ कहते ह, अगर इ ाएं छोड़ दे कोई और िसफ कम करे , तो उसे म सं ासी कहता ं ।
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यह बड़ी इसोटे रक, बड़ी गु ा ा है । साधारणतः यही िदखाई पड़ता है सं ासी और गृ ह थ का फक िक गृ ह थ


वह है जो घर म रहे , सं ासी वह है जो घर छोड़ दे । कृ की प रभाषा म उलटा भी हो सकता है । घर म रहने वाला
भी सं ासी हो सकता है , घर छोड़ने वाला भी गृ ह थ हो सकता है ।

कृ की प रभाषा थोड़ी गहन है । अगर कोई आदमी घर छोड़ दे , िकसी इ ा के िलए, तो वह गृ ह थ है । और अगर
कोई आदमी घर म चुपचाप रहा आए िबना िकसी इ ा के, तो वह सं ासी है । अगर कोई आदमी अपने घर म िबना
इ ाओं के जीने लगे, तो घर आ म हो गया। और अगर कोई आदमी आ म म जाकर नई इ ाओं के आस-पास
जाल बु नने लगे, तो वह घर हो गया।

ऐसा सं ासी आपने दे खा है , िजसकी इ ा न हो? अगर ऐसा सं ासी नहीं दे खा िजसकी इ ा न हो, तो समझना िक
आपने सं ासी ही नहीं दे खा है ।

आदमी का मन, ब त पों म अपने को बचाने म कुशल है । सब तरफ से अपने को बचाने म कुशल है । िवपरीत
थितयों म भी अपने को बचा ले ता है । जं गल म भी बै ठ जाएं , तो वहां भी इ ा के जाल बु नता रहता है । मंिदर म,
तीथ म भी बै ठकर इ ाओं के जाल बु नता रहता है । मन का काम ही इ ाओं के जाल िनिमत करना है ।

अगर हम ऐसा कह िक मन ऐसा वृ है, िजस पर इ ाओं के प े लगते ह, लगते ही चले जाते ह। एक प ा
कु लाया, िगरा नहीं िक नए प े के पीके िनकलने शु हो गए, अंकु रत होने लगे । अगर और गहरे म दे ख, तो
पुराना प ा िगरता तभी है, जब उसके नीचे से नया प ा उसे िगराने के िलए ध े दे ने लगता है । एक इ ा छूटती
तभी है , जब दू सरी इ ा जगह बनाने के िलए मां ग करती है िक मुझे जगह खाली करो। एक इ ा हटती तभी है, जब
उससे भी बल इ ा ध े दे कर जगह बनाती है । मन म इ ाएं िनिमत होती चली जाती ह।

कृ कहते ह, इ ाएं न हों, तो सं ासी हो जाएगा। म आपसे कहता ं, िजसम इ ाएं न रहीं, उसम मन भी न रहा।
ोंिक मन और इ ाएं एक ही चीज का नाम है । मन सम इ ाओं का जोड़ है, सम कामनाओं का जोड़,
सम तृ ाओं का जोड़। अगर इ ाएं न रही, तो मन न रहा।

कृ कहते ह, िजसके पास मन न रहा, वह सं ासी है । कम न रहा, नहीं; मन न रहा, वह सं ासी है ।

बु रे कम तो िगर जाएं गे, ोंिक बु रे कम िबना इ ाओं के कोई भी नहीं कर सकता।

इसम एक ब त गहन आ था भी कट की गई है ।

कृ की मनु पर िन ा अप रसीम है । इतनी िन ा शायद ही िकसी दू सरे की पृ ी पर कभी रही हो। जो


आदमी भी मानता है िक तु अ ा होना पड़े गा, उस आदमी की आदमी पर ब त िन ा नहीं है । कृ की िन ा है
िक आदमी तो अ ा है , िसफ मन मौजू द न हो, तो आदमी की अ ाई म कोई कमी ही नहीं है । वह अ ा है ही।
वह भावतः अ ा है । वह शुभ है । इतनी ही शत काफी है िक वह इ ाएं छोड़ दे और उसके भीतर शु भ का ज
हो जाएगा। वह िबलकुल शु , पिव तम, िनद ष, िन लंक कट हो जाएगा। उसकी इनोसस, उसका िनद षपन
जािहर हो जाएगा।

जै से दपण पर धू ल जम गई हो और धू ल को िकसी ने पोंछ िदया हो और दपण शु हो जाए। ले िकन ा आप कहगे


िक जब दपण पर धू ल थी, तब दपण अशु हो गया था? आपको त ीर नहीं िदखाई पड़ती थी, यह बात दू सरी है ।
ले िकन दपण तब भी अशु नहीं हो गया था। दपण तब भी पूरा ही दपण था। िसफ धू ल की एक पत थी िक त ीर
िदखाई नहीं पड़ती थी। दपण म धू ल कहीं घु स नहीं गई थी, वेश नहीं कर गई थी, बाहर ही बाहर थी। फूंक मार दी,
झाड़ दी। धू ल हट गई, दपण साफ हो गया।
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कृ की ि म आदमी दपण की तरह शु है । इ ाएं करता है , तो धू ल इक ी कर ले ता है चारों तरफ, इ ाओं के


कण इक े कर ले ता है ।

अभी पि म म इस बात पर काफी िचं तन-मनन चलता है िक जब आदमी इ ाएं करता है , तो ा उसके मन म कोई
अंतर पड़ता है इ ाओं के करने से? जब एक आदमी ोध से भरता है , तब उसके पास वही मन रहता है , जो ोध
करने के पहले था? जब एक आदमी मा से भरता है , तब उसके पास वही मन रहता है , जो ोध के व था?

तो अब मनोिव ान कहता है िक मन तो वही रहता है , ले िकन मन के आस-पास की चीज बदल जाती ह। जब आदमी
ोध से भरता है , तो शरीर की ं िथयां ऐसे जहर को छोड़ दे ती ह, जो मन को चारों तरफ से घे र ले ता है , पायजनस
कर दे ता है, जै से दपण को धू ल घे र ले । और जब आदमी ेम से भरता है , तो उसकी रस- ं िथयां उसके सारे शरीर से
उस अमृत को छोड़ दे ती ह; तब भी मन वही रहता है, ले िकन उसके चारों तरफ रस की धार बहने लगती है–उसी
आदमी के पास।

कृ और भी गहरी बात कहते ह। वे कहते ह िक आदमी की चे तना तो िनद ष है ही। बस, तुमने चाहा िक दोष इक े
होने शु ए। वे भी बाहर ही इक े होते ह, भीतर वे श नहीं करते । एक ण को भी कोई इ ाएं छोड़ दे , तो वे
सारे दोष िगर जाते ह। और तब बु रा कम असंभव हो जाता है । ले िकन शु भ कम जारी रहता है । सच तो यह है िक जो
श हमारे बु रे कम म लगती है , वह सारी श बच जाती है और शु भ कम म समायोिजत हो जाती है ।

कृ के िलए, कम इ ाओं के कारण से नहीं होते; कम जीवन के भाव की ु रणा है ; जीवन की एनज से होते
ह। जहां श है , वहां कम आएगा। ोंिक श कम म कट होना चाहती है ।

यह परमा ा इतने बड़े िवराट जगत म कट होता है , यह उसकी ऊजा है, श है , जो कट होना चाहती है ।
जमीन से एक प र हटा िलया और एक फ ारा फूटने लगा। यह फ ारा कहीं जाने को नहीं फूट रहा है । इसके
भीतर ऊजा है , वह कट होना चाहती है ।

आदमी की अगर इ ाएं िगर जाएं , तो उसके जीवन की पूरी ऊजा शु भ म कट होना चाहती है । इ ाओं रिहत
चे तना शु भ की ऊजा को कट करने लगती है ।

तो कृ कहते ह, बु रे कम िगर जाएं गे । जो करने यो है, वही िकया जा सकेगा। इसको ही म सं ास कहता ं ।
उसको नहीं िक िजसने अि छोड़ दी।

उन िदनों अि को छोड़ना ब त बड़ी घटना थी। इसको थोड़ा खयाल म ले ल। यह सू जब कहा गया, तब अि को
छोड़ना ब त बड़ी घटना थी। आज हमारे मन म खयाल आएगा िक यह ा बात कहते ह कृ िक िजसने अि छोड़
दी! आज हमारे िलए अि उतनी बड़ी घटना नहीं है । ले िकन िजस िदन यह बात कही गई थी, उस िदन अि उतनी ही
बड़ी घटना थी, िजतनी अगर हम आज सोचना चाह, तो िसफ एक ही बात खयाल म आ सकती है । जै से आज अगर
हम कह िक िजस ने यं ों का उपयोग छोड़ िदया! आज अगर पैरेलल, समानां तर कोई बात कहना चाह; अगर
आज हम कह िक िजस ने यं ों का उपयोग छोड़ िदया!

तो आप सोच िक यं के उपयोग छोड़ने म करीब-करीब जीवन का सब कुछ छूट जाएगा। ोंिक आज जीवन को
यं ने सब तरफ से घे र िलया है। वह आदमी टे न म नहीं बै ठ सकेगा। वह आदमी माइक से नहीं बोल सकेगा। वह
आदमी च ा नहीं लगा सकेगा। वह आदमी कपड़ा नहीं पहन सकेगा। सब यं पर िनभर है । वह आदमी
फाउं टेनपेन से नहीं िलख सकेगा। वह आदमी जाकर नाई से बाल नहीं बनवा सकेगा। थोड़ा सोच िक िजस आदमी ने
यं का उपयोग छोड़ िदया, उसके जीवन म ा बच रहे गा? कुछ नहीं बच रहे गा।

उस िदन अि इतनी ही बड़ी घटना थी। तो उस िदन कृ कहते ह िक िजसने अि छोड़ दी। उस िदन सब कुछ
अि पर िनभर था: भोजन, जीवन की सु र ा, जीवन की व था। अि ब त बड़ी घटना थी। जब तक अि नहीं थी
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आदमी के पास, तब तक आदमी इतना असुरि त था, कहना चािहए, स नहीं था। आदमी स आ अि के
साथ।

अि नहीं थी, तो मां साहार भोजन के अित र और कोई उपाय न था। या क े फल खा ले ता, या मां स खा ले ता।
अि थी, तो भोजन पकाकर उसने खाना शु िकया। अि नहीं थी, तो िदनभर ही घू म-िफर सकता था। रात होते ही
खतरे म पड़ जाता था। चारों तरफ जं गली जानवर थे, उनका भय था। रातभर आधे लोगों को पहरा दे ना पड़ता, आधे
लोग सोते । तब भी खतरा हमेशा मौजू द रहता। स होने का मौका नहीं था। खाना और रात सो ले ना, दो काम जीवन
की सारी ऊजा ले ले ते थे । अि ने आकर बड़ा उपाय कर िदया। अि ने सु र ा दे दी। जं गल का आदमी चारों तरफ
अि जलाकर बीच म आराम से सोने लगा। अि पहला दे वता था, आदमी को स करने वाला। स ता आई अि
के साथ।

तो िजस िजन यह सू कहा गया, उस िदन अि ने जीवन को चारों तरफ से इसी तरह िसिवलाइज िकया था, स
िकया था, जै से आज यं ों ने िकया आ है ।

अि छोड़ दे जो उस िदन, उसका सब छूट जाता था। सब! उसके हाथ म कुछ बचता नहीं था। वह स जीवन से हट
जाता था। वह अस जीवन की ओर, वन की ओर, अर की ओर हट जाता था। वह उसी दु िनया म लौट जाता,
जहां अि के पहले आदमी रहता था, गु फाओं म। हाथ से खाना नहीं पकाता था। आग जलाकर ठं ड से अपने को नहीं
बचाता था। वह वहां लौट जाता था। अि छोड़ने का अथ यह है , गुफा-मानव की ओर वापस लौट जाए कोई।

तो भी कृ कहते ह, वह सं ासी नहीं है । ोंिक अगर यह कृ भी िकसी वासना से े रत होकर हो रहा है , तो


सं ास नहीं है ।

कृ कहते ह, वासनाशू कृ । कोई भी कृ वासना से शू हो जाए, िफर चाहे वह कृ िकतना ही बड़ा हो।
अजु न यु म जाने को खड़ा है । कृ कहते ह, तू यु म जा। अगर फल की आकां ा छोड़कर जा सके, तो यह यु
भी सं ास है । िफर कोई हज नहीं है ।

अजीब बात कहते ह! जो आदमी सब कुछ छोड़कर जं गल की गु फा म चला जाए, उसे कहते ह, वह भी सं ास नहीं।
अजु न जो यु म खड़ा है , यु म लड़े , उससे कहते ह, यह भी सं ास है!

कृ का यह व ब त सोचने जै सा है । सै ां ितक अथ म उतना मू वान नहीं, िजतना ावहा रक अथ म


मू वान है । अगर भिव म इस पृ ी पर कोई भी सं ास बचे गा, तो वह कृ का सं ास बच सकता है , और कोई
सं ास बच नहीं सकता है । ोंिक अगर आज कोई मान ले पुराने सं ास की धारणा को; पृ ी पर साढ़े तीन अरब
लोग ह, अगर ये छोड़कर जं गल म चले जाएं , तो जं गल म िसफ मेला भर जाएगा, और कुछ भी नहीं होगा! ये जहां
जाएं गे, वहीं जं गल नहीं रहे गा। ये कहीं भी चले जाएं , ये जहां जाएं गे, वहीं जं गल सपाट हो जाएगा।

यह साढ़े तीन अरब लोगों की पृ ी, जो रोज बढ़ती जा रही है । इस सदी के पूरे होते-होते और एक अरब सं ा बढ़
जाएगी। और वै ािनक कहते ह िक अगर सौ वष इसी तरह सं ा बढ़ती रही, तो आदमी को कोहनी िहलाने की
जगह नहीं बचेगी। सब जगह, जहां भी जाएगा, कोई हाथ चारों तरफ लगा रहे गा। अब भागकर आप नहीं जा सकगे ।

तो िफर ा होगा सं ास का? पुराना गु हा वाला सं ास तो िफर नहीं हो सकेगा। तो िफर इस पृ ी पर सं ास ही


नहीं होगा? तब जो जीवन का एक ब त अमृत-फूल न हो जाएगा। तब तो जीवन की एक ब त अदभुत सु गंध–
ोंिक िजसने सं ास नहीं जाना, उसने जीवन नहीं जाना–वह न हो जाएगा, वह खो जाएगा। कृ का सं ास बच
सकता है ।

इसिलए मुझे कई बार लगता है िक गीता भिव के िलए ब त साथक होती चली जाएगी। उसकी ि भिव के िलए
रोज अनुकूल पड़ती चली जाएगी। कृ रोज करीब आते चले जाएं गे । ोंिक वे गहरी बात कर रहे ह। वे कह रहे ह,
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कहीं कोई जाने की ज रत नहीं है । जहां हो वहीं, िसफ एक शत पूरी करो और तु म गृ ह थ न रह जाओगे । एक शत
पूरी करो, और तु म सं ासी हो जाओगे । और वह शत है िक तु म वासना मत करो, फल की आकां ा मत करो।

किठन होगा समझना िक फल की आकां ा कैसे न कर! चौबीस घं टे के िलए योग करके दे ख, तो खयाल म आ
जाएगा, अ था शायद जीवनभर समझने से खयाल म न आ सके।

कुछ चीज ह इस जीवन म, जो योग करने से त ाल समझ म आ जाती ह। मुंह पर कोई श र का एक टु कड़ा
रख दे , और त ाल समझ म आता है िक ाद ा है । एक जरा-सा टु कड?◌ा, एक ण की भी दे र नहीं लगती,
पूरा शरीर खबर दे ता है िक ा है । और िजस आदमी ने नहीं ाद िलया हो, उसे हम पूरे के पूरे जीवनभर समझाते
रह िक ाद ा है ; वह कहे गा, आप कहते ह, सब ठीक है । ले िकन िफर भी ाद ा है , अभी समझ म नहीं
आया। उसम समझ की कोई गलती नहीं है । समझ का काम ही नहीं है ; अनुभव का काम है । कुछ बात ह, जो समझ
से समझ म आती ह। बे कार बात समझने से समझ म आ जाती ह। गहरी और काम की बात िसफ अनुभव से समझ
म आती ह, समझने से समझ म नहीं आतीं।

कृ कहते ह, फल की आकां ा छोड़ दो।

हजारों साल से हम सु न रहे ह। गीता इतनी प रिचत है , िजतनी और कोई िकताब प रिचत नहीं है । मुझसे कोई बोला
िक गीता तो इतनी प रिचत है , आप गीता पर ों बोलते ह? मने कहा िक म इसीिलए बोलता ं , ोंिक म मानता ं
िक गीता के सं बंध म बड़ा म हो गया है िक प रिचत है । पढ़ ली, तो हम सोचते ह, प रिचत है । गीता से ादा
अप रिचत िकताब मु ल है । एक अथ म ठीक है िक प रिचत है । सभी लोगों के घरों म रखी है और धू ल इक ी
करती है । सभी लोगों को पता है िक गीता म ा िलखा है ।

काश, सभी लोगों को पता होता, तो यह दु िनया िबलकुल दू सरी हो सकती थी! नहीं, पता नहीं है । श पता ह। शायद
अथ भी पता है , ोंिक अथ श कोश म िमल जाता है । अिभ ाय पता नहीं है , ा योजन है !

ये कृ कहते ह िक तू फल िक आकां ा छोड़ दे और कम कर।

म आपसे क ं गा, एक चौबीस घं टे के िलए–दु िनया न नहीं हो जाएगी–एक िदन योग कर ल। सु बह छः बजे से दू सरे
िदन सु बह छः बजे तक फल की आकां ा छोड़ द और कम कर। और आपकी जीभ पर ाद आ जाएगा। और
आपको पता चलेगा िक कम हो सकता है , फल की आकां ा के िबना भी। और पहली दफे आपके जीवन म ऐसा कम
होगा, िजसको हम टोटल ए , पूण कम कह सकते ह। ोंिक मन कहीं नहीं दौड़े गा; फल की कोई आकां ा नहीं
है । और एक बार आपको ाद आ जाए, तो म आपको भरोसा िदलाता ं िक वे चौबीस घं टे िफर कभी खतम नहीं
होंगे। छः बजे शु ज र होगी या ा, ले िकन दू सरे छः िफर कभी नहीं बजगे ।

एक बार ाद आ जाए, तो आपको पता चले िक इतने िनकट जीवन के, इतना बड़ा सागर था आनंद का, हमने कभी
नजर न की; हम चू कते ही चले गए। हमारी गदन ही ितरछी हो गई है । हम भागते ही चले जाते ह। बस, चू कते चले
जाते ह। दे ख ही नहीं पाते िक िकनारे कोई एक और ाद भी है जीवन का। कभी-कभी उसकी झलक िमलती है
िक ीं कृ ों म।

कभी आप अपने ब े के साथ खेल रहे ह, कोई फल की आकां ा नहीं होती। कभी आपने खयाल िकया है िक ब े
के साथ खेलने म कैसा आ ाद! हां , अगर बड़े के साथ खेल रहे ह, तो उतना आ ाद नहीं होगा, ोंिक बड़े के साथ
खेल भी काम बन जाता है । बाजी! हार-जीत शु हो जाती है । फल की आकां ा आ जाती है । बाप अपने छोटे -से बे टे
के साथ खेल रहा है । कभी आपने िकसी बाप को अपने छोटे बेटे के साथ खेलते दे खा? वै से यह घटना दु लभ होती
जाती है ।
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बाप अपने छोटे बे टे के साथ खेल रहा है । हराने का कोई सवाल नहीं उठता। हराने का खयाल भी नहीं उठता। हां,
खेल म हार जाने का मजा ज र वह ले ता है । जमीन पर ले ट गया है , बे टे को छाती पर िबठा िलया है । बे टा नाच रहा
है खुश होकर; बाप को उसने हरा िदया है!

सभी बे टे बाप को हराना चाहते ह। और जो बाप िज करते ह, वे मु ल म पड़ जाते ह। और जो बाप होिशयार ह,


वे खुद जमीन पर ले ट जाते ह और हार जाते ह। और उनके ब े बाद म पछताते ह िक बाप ने ब त गहरी मजाक
कर दी। ले िकन तब कोई आकां ा नहीं है, िसफ उस छोटे -से खेल म सब समा गया है ।

मेरे एक िम जापान के एक घर म मेहमान थे । सु बह घर के ब ों ने उनको आकर खबर दी िक हमारे घर म िववाह


हो रहा है , आप शाम स िलत हों। उ थोड़ी है रानी ई, ोंिक ब त छोटे ब े थे । तो उ ोंने सोचा िक कुछ गु ा-
गु ी का िववाह करते होंगे। उ ोंने कहा, म ज र स िलत होऊंगा। ले िकन सां झ के पहले घर के बड़े -बू ढ़ों ने भी
आकर िनमं ण िदया िक घर म िववाह है , आप स िलत हों। तब वे समझे िक मुझसे भू ल हो गई।

ले िकन जब सां झ को घर के हाल म गए, जहां िक सब बड-बाजा सजा था, तो दे खा िक वहां दू ा तो नहीं है । वहां तो
गु ा ही रखा है और बारात तै यार हो रही है ! गांव के आस-पास के बू ढ़े भी इक े ए ह; बारात बाहर िनकल आई है ।
तब उ ोंने एक बू ढ़े से पूछा िक यह ा मामला है ? म तो सोचता था िक ब ों के खेल ब ों के िलए शोभा दे ते ह,
आप लोग इसम सब स िलत ह!

तो उस बू ढ़े ने हं सकर कहा िक अब हम बड़ों के खेल भी ब ों के खेल ही मालू म पड़ते ह। बड़ों के खेल भी! अब तो
जब असली दू ा भी बारात ले कर चलता है , तब भी हम जानते ह िक खेल ही है । तो इस खेल म गं भीरता से
स िलत होने म हम कोई हज नहीं है । दोनों बराबर ह।

गां व के बू ढ़े भी स िलत ए ह। मेरे िम तो परे शान ही रहे । सोचा िक सां झ खराब हो गई। मने उनसे पूछा िक आप
करते ा सां झ को, अगर खराब न होती तो? रे िडयो खोलकर सु नते , िसनेमा दे खते, राजनीित की चचा करते? सु बह
जो अखबार म पढ़ा था, उसकी जु गाली करते? ा करते? करते ा? कहा, नहीं, करता तो कुछ नहीं। तो िफर मने
कहा िक बे कार चली गई, यह खयाल कैसे पैदा हो रहा है ? बेकार ज र चली गई, ोंिक उस घं टेभर म आपको
एक मौका िमला था, जब िक आकां ा फल की कोई भी न थी, तब आपको एक खेल म स िलत होने का मौका
िमला था, वह आप चू क गए। मने कहा, दोबारा जाना। कोई िनमं ण न भी दे , तो भी स िलत हो जाना। और उस
घं टेभर इस बारात को आनंद से जीना, तो शायद एक ण म वह िदखाई पड़े , जो िक फलहीन कम है ।

खेल म कभी फलहीन कम की थोड़ी-सी झलक िमलती है । ले िकन नहीं िमलती है, हमने खेलों को न कर िदया है ।
हमने खेलों को भी काम बना िदया है । उनम भी हम तनाव से भर जाते ह। जीतने की आकां ा इतनी बल हो जाती
है िक खेल का सब मजा ही न हो जाता है ।

नहीं, कभी चौबीस घं टे एक योग करके दे ख, और वह योग आपकी िजंदगी के िलए कीमती होगा। उस योग को
करने के पहले इस सू को पढ़, िफर योग को करने के बाद इस सू को पढ़, तब आपको पता चले गा िक कृ
ा कह रहे ह। और एक काम भी अगर आप फल के िबना करने म समथ हो जाएं , तो आपकी पूरी िजंदगी पर
फलाकां ाहीन कम का िव ार हो जाएगा। वही िव ार सं ास है ।

होगा ा? अगर आप फल की आकां ा न कर, तो ा बनेगा, ा िमट जाएगा?

नहीं, े क को ऐसा लगता है िक सारी पृ ी उसी पर ठहरी ई है ! अगर उसने कहीं फल की आकां ा न की, तो
कहीं ऐसा न हो िक सारा आकाश िगर जाए। िछपकली भी घर म ऐसा ही सोचती है मकान पर टं गी ई िक सारा
मकान उस पर स ला आ है । अगर वह कहीं जरा हट गई, तो कहीं पूरा मकान न िगर जाए!

हम भी वै सा ही सोचते ह। हमसे पहले भी इस जमीन पर अरबों लोग रह चु के और इसी तरह सोच-सोचकर मर गए।
न उनके कम का कोई पता है, न उनके फलों का आज कोई पता है । न उनकी हार का कोई अथ है , न उनकी जीत
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का कोई योजन है । सब िम ी म खो जाते ह। ले िकन थोड़ी दे र िम ी ब त पागलपन कर ले ती है । थोड़ी दे र ब त


उछल-कूद; जैसे लहर उठती है सागर म, थोड़ी दे र ब त उछल-कूद; उछल-कूद हो भी नहीं पाती िक िगर जाती है
वापस। ऐसे ही हम ह।

कृ कहते ह िक जानो तु म िक िजस परमा ा ने तु पैदा िकया या िजस परमा ा की तु म एक लहर हो, िजसने
तु जीवन की ऊजा दी, वही तु मसे कम करवाता रहा है , वही तु मसे कम करवाता रहे गा। तु म ज ी मत करो। तु म
अपने िसर पर थ का बोझ मत लो। तु म उसी पर छोड़ दो। तु म इसकी भी िफ छोड़ दो िक कल ा होगा! जो
होगा कल, वह कल दे ख लगे । जो आज हो रहा है , तु म उसम राजी रहो। तु म अपने को पूरा छोड़ दो। जै से कोई पानी
म अपने को छोड़ दे और बह जाए। तै रे नहीं, बह जाए; ज ोिटं ग। तै रने का भी म मत करो। बस, बह जाओ।
जीवन तु जो दे , उसम चु पचाप बह जाओ। कोई आकां ा कल की मत बां धो, कोई फल िनि त मत करो, कोई कम
की िनयित मत बां धो, वह भु पर छोड़ दो। वह उस पर छोड़ दो, जो सम को जी रहा है । और ऐसा करते ही
सं ासी हो जाता है ।

सं ासी वह है, िजसने कहा िक कम म क ं गा, फल ते रे हाथ। सं ासी वह है , िजसने कहा िक श तू ने मुझे दी है,
तो काम करवा ले । न मुझे कल का पता है , न मुझे बीते कल का कोई पता है । न मुझे यह भी पता है िक ा मेरे िहत
म है और ा मेरे अिहत म है । मुझे कुछ भी पता नहीं है । बाकी तू स ाल। िजसने जीवन की परम स ा को कहा िक
सब तू स ाल; मुझम जो ऊजा है , उससे जो काम ले ना है , वह काम ले ले । काम म क ं गा, फल की बातचीत मुझसे
मत कर। ऐसा सं ासी है । सच, ऐसा ही सं ासी है ।

सं ास का अथ ही यही है िक िजसने अपनी अ ता का बोझ अलग कर िदया, िजसने अपने अहं कार का बोझ
अलग रख िदया, िजसने कहा िक अब समिपत ं । समपण सं ास है ।

समिपत फल की आकां ा नहीं करता। ोंिक हम जानते ही नहीं िक ा ठीक है और ा गलत है । ा


होना चािहए और ा नहीं होना चािहए, यह भी हम पता नहीं है ।

एक अरे िबक कहावत है िक अगर परमा ा सबकी आकां ाएं पूरी कर दे , तो लोग इतने दु ख म पड़ जाएं , िजसका
कोई िहसाब नहीं। उस कहावत के पीछे िफर बाद म एक सू फी कहानी वहां चिलत ई, वह म आपसे क ं, िफर
हम दू सरे सू पर बात कर।

सु ना है मने, एक आदमी ने यह कहावत पढ़ ली िक परमा ा आकां ाएं पूरी कर दे आदिमयों की, तो आदमी बड़ी
मुसीबत म पड़ जाएं । उसकी बड़ी कृपा है िक वह आपकी आकां ाएं पूरी नहीं करता। ोंिक अ ान म की गई
आकां ाएं खतरे म ही ले जा सकती ह। उस आदमी ने कहा, यह म नहीं मान सकता ं । उसने परमा ा की बड़ी
पूजा, बड़ी ाथना की। और जब परमा ा ने आवाज दी िक तू इतनी पूजा- ाथना िकसिलए कर रहा है? तो उसने
कहा िक म इस कहावत की परी ा करना चाहता ं । तो आप मुझे वरदान द और म आकां ाएं पूरी करवाऊंगा; और
म िस करना चाहता ं , यह कहावत गलत है ।

परमा ा ने कहा िक तू कोई भी तीन इ ाएं मां ग ले , म पूरी कर दे ता ं । उस आदमी ने कहा िक ठीक। पहले म घर
जाऊं, अपनी प ी से सलाह कर लूं ।

अभी तक उसने सोचा नहीं था िक ा मां गेगा, ोंिक उसे भरोसा ही नहीं था िक यह होने वाला है िक परमा ा
आकर कहे गा। आप भी होते, तो भरोसा नहीं होता िक परमा ा आकर कहे गा। िजतने लोग मंिदर म जाकर ाथना
करते ह, िकसी को भरोसा नहीं होता। कर ले ते ह। शायद! परहे ! ले िकन शायद मौजू द रहता है ।

तय नहीं िकया था; ब त घबड़ा गया। भागा आ प ी के पास आया। प ी से बोल िक कुछ चािहए हो तो बोल। एक
इ ा ते री पूरी करवा दे ता ं । िजं दगीभर ते रा म कुछ पूरा नहीं करवा पाया। प ी ने कहा िक घर म कोई कड़ाही नहीं
है । उसे कुछ पता नहीं था िक ा मामला है । घर म कड़ाही नहीं है ; िकतने िदन से कह रही ं । एक कड़ाही हािजर
हो गई। वह आदमी घबड़ाया। उसने िसर पीट िलया िक मूख, एक वरदान खराब कर िदया! इतने ोध म आ गया िक
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कहा िक तू तो इसी व मर जाए तो बे हतर है । वह मर गई। तब तो वह ब त घबड़ाया। उसने कहा िक यह तो बड़ी


मुसीबत हो गई। तो उसने कहा, हे भगवान, वह एक और जो इ ा बची है ; कृपा करके मेरी ी को िजंदा कर द।

ये उनकी तीन इ ाएं पूरी ईं। उस आदमी ने दरवाजे पर िलख छोड़ा है िक वह कहावत ठीक है ।

हम जो मां ग रहे ह, हम भी पता नहीं िक हम ा मां ग रहे ह। वह तो पूरा नहीं होता, इसिलए हम मां गे चले जाते ह।
वह पूरा हो जाए, तो हम पता चले । नहीं पूरा होता, तो कभी पता नहीं चलता है ।

कृ कहते ह, मां गो ही मत। ोंिक िजसने तु जीवन िदया, वह तु मसे ादा समझदार है । तु म अपनी समझदारी
मत बताओ। डोंट बी टू वाइज। ब त बु मानी मत करो। िजसने तु जीवन िदया और िजसके हाथ से चां द ारे
चलते ह और अनंत जीवन िजससे फैलता है और िजसम लीन हो जाता है , िनि त, इतना तो तय ही है िक वह हमसे
ादा समझदार है । और अगर वह भी नासमझ है, तो िफर हम समझदार होने की चे ा करनी िबलकुल बे कार है ।

कृ कहते ह, उस पर छोड़ दो। तु म िकए चले जाओ; सब उस पर छोड़ दो।

और बड़ा आ य तो यह है िक जो छोड़ दे ता है , वह सब पा लेता है जो िमलने जै सा है । और जो नहीं छोड़ता–इस


अरे िबयन कहावत म उस आदमी के हाथ म कड़ाही तो कम से कम हाथ लग गई–ले िकन जो नहीं छोड़ता है , उसके
हाथ म कड़ाही भी लगती होगी, इसका कोई भरोसा नहीं।

सं ासी वह है, िजसने फल का खयाल ही छोड़ िदया, जो आज जी रहा है , यहीं।

ा आप सोच सकते ह िक िबना फल के आप कुछ गलत काम कर सकगे? अगर चोर को भरोसा न हो िक पए
िमल सकगे ; ितजोरी लू ट ही लूं गा, फल पा ही लूं गा; चोर चोरी करने जा सकेगा? असंभव है । आपके जीवन से बु रा
कम त ण िगर जाएगा, अगर आकां ा और फल की कामना िगर गई। िफर भी जीवन की ऊजा काम करे गी।
ले िकन तब भु का हाथ बन जाती है जीवन की ऊजा, और वै सा भु के हाथ बने ए आदमी को कृ सं ासी कहते
ह।

यं सं ासिमित ा य गं तं िव पा व।

न सं संक ो योगी भवित क न।। 2।।

इसिलए हे अजु न, िजसको सं ास ऐसा कहते ह, उसी को तू योग जान, ोंिक सं क ों को न ागने वाला कोई भी
पु ष योगी नहीं होता।

सं क ों को न ागने वाला पु ष योगी नहीं होता है । और सं क ों को जो ाग दे , वही सं ासी है ।

सं क ों है हमारे मन म? सं क ा है ? इ ा हो, तो सं क पैदा होता है । कुछ पाना हो तो पाने की चे ा, कुछ


पाना हो तो पाने की श अिजत करनी होती है । सं क है वासना को पूरा करने की ती ता, वासना को पूरा करने
के िलए ती आयोजन। सं क िवल है । जब म कुछ पाना चाहता ं, तो अपने को दां व पर लगाता ं । अपने को दांव
पर लगाना सं क है ।

जु आरी सं क वान होते ह। भारी सं क करते ह। सब कुछ लगा दे ते ह कुछ पाने के िलए। हम सब भी जु आरी ह।
मा ा कम- ादा होती होगी। दां व छोटे -बड़े होते होंगे। लगाने की साम कम- ादा होती होगी। हम सब लगाते ह।
अपनी इ ाओं पर दांव लगाना ही पड़ता है । िसफ जु आरी वही नहीं है , िजसकी कोई फलाकां ा नहीं है । वह जु आरी
नहीं है । उसके पास दां व पर लगाने का कोई सवाल नहीं है । कोई उसका दां व नहीं है । हम तो सं क करगे ही।
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कृ कहते ह, सब सं क छोड़ दे , वही योगी है , वही सं ासी है ।

सं क तभी छूटगे, जब कुछ पाने का खयाल न रह जाए। नहीं तो सं क जारी रहगे । मन चौबीस घं टे सं क के
आस-पास अपनी श इक ी करता रहता है । जो इ ाएं सं क के िबना रह जाती ह, वे इं पोटट, नपुंसक रह जाती
ह। हमारे भीतर ब त इ ाएं पैदा होती ह। सभी इ ाएं सं क नहीं बनतीं। इ ाएं ब त पैदा होती ह, िफर िकसी
इ ा के साथ हम अपनी ऊजा को, अपनी श को लगा दे ते ह, तो वह इ ा सं क हो जाती है ।

िन य पड़ी ई इ ाएं धीरे -धीरे सपने बनकर खो जाती ह। िजसके पीछे हम अपनी श लगा दे ते ह, अपने को
लगा दे ते ह, वह इ ा सं क बन जाती है ।

सं क का अथ है , िजस इ ा को पूरा करने के िलए हमने अपने को दांव पर लगा िदया। तब वह िडजायर न रही,
िवल हो गई। और जब कोई सं क से भरता है , तब और भी गहन खतरे म उतर जाता है । ोंिक अब इ ा, मा
इ ा न रही िक मन म उसने सोचा हो िक महल बन जाए। अब वह महल बनाने के िलए िज पर भी अड़ गया। िज
पर अड़ने का अथ है िक अब इस इ ा के साथ उसने अपने अहं कार को जोड़ा। अब वह कहता है िक अगर इ ा
पूरी होगी, तो ही म ं । अगर इ ा पूरी न ई, तो म बे कार ं । अब उसका अहं कार इ ा को पूरा करके अपने को
िस करने की कोिशश करे गा। जब इ ा के साथ अहं कार सं यु होता है , तो सं क िनिमत होता है ।

अहं कार, म, िजस इ ा को पकड़ ले ता है, िफर हम उसके पीछे पागल हो जाते ह। िफर हम सब कुछ गं वा द,
ले िकन इस इ ा को पूरा करना बं द नहीं कर सकते । हम िमट जाएं । अ र ऐसा होता है िक अगर आदमी का
सं क पूरा न हो पाए, तो आदमी आ ह ा कर ले । कहे िक इस जीने से तो न जीना बे हतर है । पागल हो जाए। कहे
िक इस म का ा उपयोग है! सं क ।

ले िकन साधारणतः हम सभी को िसखाते ह सं क को मजबूत करने की बात। अगर ू ल म ब ा परी ा उ ीण


नहीं कर पा रहा है, तो िश क कहता है, सं क वान बनो। मजबू त करो सं क को। कहो िक म पूरा करके र ं गा।
दां व पर लगाओ अपने को। अगर बे टा सफल नहीं हो पा रहा है , तो बाप कहता है िक सं क की कमी है । चारों
तरफ हम सं क की िश ा दे ते ह। हमारा पूरा तथाकिथत सं सार सं क के ही ऊपर खड़ा आ चलता है ।

कृ िबलकुल उलटी बात कहते ह। वे कहते ह, सं क ों को जो छोड़ दे िबलकुल। सं क को जो छोड़ दे , वही भु


को उपल होता है । सं क को छोड़ने का मतलब आ, समपण हो जाए। कह दे िक जो ते री मज । म नहीं ं ।
समपण का अथ है िक जो हारने को, असफल होने को राजी हो जाए।

ान रख, फलाकां ा छोड़ना और असफल होने के िलए राजी होना, एक ही बात है । असफल होने के िलए राजी
होना और फलाकां ा छोड़ना, एक ही बात है । जो जो भी हो, उसके िलए राजी हो जाए; जो कहे िक म ं ही नहीं
िसवाय राजी होने के, ए ेि िबिलटी के अित र म कुछ भी नहीं ं । जो भी होगा, उसके िलए म राजी ं । ऐसा ही
सं ासी है ।

तो सं ासी का तो अथ आ, जो भीतर से िबलकुल िमट जाए; जो भीतर से िबलकुल मर जाए। सं ास एक गहरी


मृ ु है, एक ब त गहरी मृ ु ।

एक मृ ु से तो हम प रिचत ह, जब शरीर मर जाता है । ले िकन वह मृ ु नहीं है । वह िसफ धोखा है । ोंिक िफर मन


नए शरीर िनिमत कर ले ता है । वह िसफ व ों का प रवतन है । वह िसफ पुराने घर को छोड़कर नए घर म वे श है ।

इसिलए जो जानते ह, वे मृ ु को मृ ु नहीं कहते, िसफ नए जीवन का ारं भ कहते ह। जो जानते ह, वे तो योग को
मृ ु कहते ह। वे तो सं ास को मृ ु कहते ह।
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व ुतः आदमी भीतर से तभी मरता है , जब वह तय कर ले ता है िक अब मेरा कोई सं क नहीं, मेरी कोई फल की
आकां ा नहीं, म नहीं। जै से ही कोई यह कहने की िह त जु टा ले ता है िक अब म नहीं ं, तू ही है, उस ण
महामृ ु घिटत होती है ।

और ान रहे, उस महामृ ु से ही महाजीवन का आिवभाव होता है । जै से बीज टू टता है , तो अंकुर बनता है , वृ


बनता है । अंडा टू टता है , तो उसके भीतर से जीवन बाहर िनकलता है ; पंख फैलाता है, आकाश म उड़ जाता है । ऐसे
ही हम भी एक बं द बीज ह, अहंकार के स बीज। जब अहं कार की यह पत टू ट जाए और यह बीज की खोल टू ट
जाए, तो ही हमारे भीतर से एक महाजीवन का प ी पंख फैलाकर उड़ता है िवराट आकाश की ओर।

ले िकन हम तो इस बीज को बचाने म लगे रहते ह। हम उन पागलों की तरह ह, जो बीज को बचाने म लग जाएं । बीज
को बचाने से कुछ होगा? िसफ सड़े गा। बीज को बचाना पागलपन है । बीज बचाने के िलए नहीं, तोड़ने के िलए है ।
बीज िमटाने के िलए है । ोंिक बीज िमटे , तो अंकुर हो। अंकुर हो, तो अनंत बीज लग। अहं कार हमारा बीज है ,
स गांठ।

और ान रहे, बीज की खोल जो काम करती है , वही काम अहं कार करता है । बीज की स खोल ा काम करती
है ? वह जो भीतर है कोमल जीवन, उसको बचाने का काम करती है । वह से ी मेजर है , सु र ा का उपाय है । वह जो
खोल है स , वह भीतर कुछ कोमल िछपा है, उसको बचाने की व था है ।

ले िकन बचाने की व था अगर टू टने से इनकार कर दे , तो आ ह ा बन जाएगी। जै से िक हम एक िसपाही को


यु के मैदान पर कवच पहना दे ते ह लोहे के। वह बचाने की व था है िक बाहर से हमला हो, तो बच जाए। ले िकन
िफर कवच इतना स हो जाए और ाणों पर इस तरह कस जाए िक जब िसपाही यु से घर लौटे , तब भी कवच
छोड़ने को राजी न हो; िब र पर सोए, तो भी कवच को पकड़े रखे; और कह दे िक अब म कवच कभी नहीं
िनकालूंगा; तो वह कवच उसकी क बन जाएगी। वह मरे गा उसी कवच म, जो बचाने के िलए था।

बीज की स खोल, उसके भीतर कोमल जीवन िछपा है , उसको बचाने की व था है । उस समय तक बचाने की
व था है , जब तक उस बीज को ठीक जमीन न िमल जाए। जब ठीक जमीन िमल जाए, तो वह बीज टू ट जाए, स
खोल िमट जाए, गल जाए, हट जाए; अंकु रत हो जाए अंकुर; िनकल आए कोमल जीवन। सू य को छूने की या ा पर
चल पड़े ।

ठीक हमारा अहं कार भी हमारे बचाव की व था है । हमारा अहं कार भी हमारे बचाव की व था है । जब तक ठीक
भू िम न िमल जाए, वह हम बचाए। ठीक भू िम कब िमले गी?

अिधक लोग तो बीज ही रहकर मर जाते ह। उनको कभी ठीक भू िम िमलती ई मालू म नहीं पड़ती। उस ठीक भू िम
का नाम ही धम है । जीवन की सारी खोज म िजतने ज ी आप धम के रह को समझ ल, उतने ज ी आपको ठीक
भू िम िमल जाए।

यह म गीता पर बात कर रहा ं इसी आशय से िक शायद आपके िकसी बीज को भू िम की तलाश हो। कृ की बात
म, कहीं हवा म, वह भू िम िमल जाए। इस चचा के बहाने कहीं कोई र आपको सु नाई पड़ जाए और वह भू िम िमल
जाए, िजसम आपका बीज अपने को तोड़ने को राजी हो जाए।

इसिलए तो कृ पूरे समय अजुन से कह रहे ह िक तू अपने को छोड़ दे , तू अपने को तोड़ दे ।

सारा धम यही कहता है । सारी दु िनया के धम यही कहते ह। चाहे कुरान, चाहे बाइिबल, चाहे महावीर, चाहे बु ।
दु िनया म िज ोंने भी धम की बात कही है , उ ोंने कहा है िक तु म िमटो। अगर तु म अपने को बचाओगे, तो तु म
परमा ा को खो दोगे । और तु म अगर अपने को िमटाने को राजी हो गए, तो तु म परमा ा हो जाओगे । िमटो! अपने
को िमटा डालो!
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तु म ही तु ारे िलए बाधा हो। अब इस खोल को तोड़ो। इस खोल को कई ज ों तक खींच िलया। अब तु ारी आदत
हो गई खोल को खींचने की। अब तु म समझते हो िक म खोल ं । अब तु म, भीतर का वह जो कोमल जीवन है , उसको
भू ल ही चु के हो। वह जो आ ा है , िबलकुल भू ल गई है और शरीर को ही समझ िलया है िक म ं । वह जो चे तना है ,
िबलकुल भू ल गई है और मन की वासनाओं को ही समझ िलया है िक म ं । अब इस खोल को तोड़ो, इस खोल को
छोड़ दो।

ले िकन हम सं क करके इस खोल को बचाए चले जाते ह। सं क इस खोल को बचाने की चे ा है । हम कहते ह, म


अपने को बचाऊंगा। हम सब एक-दू सरे से लड़ रहे ह, तािक कोई हम न न कर दे । हम सब सं घष म लीन ह, तािक
हम बच जाएं ।

डािवन ने कहा है िक यह सारा जीवन गल फार सरवाइवल है । यह सब बचाव का सं घष है । और वे ही बचते ह, जो


सवािधक यो ह। सरवाइवल आफ िद िफटे । वे जो सवािधक यो ह, वे ही बचते ह।

ले िकन अगर डािवन ने कभी कृ को समझा होता, तो कृ कुछ दू सरा सू कहते ह। कृ कहते ह िक जो े तम
ह, वे तो अपने को बचाते ही नहीं। और जो िमटते ह, वे ही बचते ह।

जीसस से पूछा होता डािवन ने, तो जीसस भी यही कहते िक अगर तु मने बचाया अपने को, तो खो दोगे । और अगर
खोने को राजी हो गए, तो बच जाओगे ।

धम कहता है िक हमने खोल को समझ िलया अंकुर, तो हम भू ल म पड़ गए। यह खोल ही है । और आप मत िमटाओ,


इससे अंतर नहीं पड़ता। खोल तो िमटे गी। खोल को तो िमटना ही पड़े गा। िसफ एक जीवन का अवसर थ हो
जाएगा। िफर नई खोल, और िफर आप उस खोल को पकड़ ले ना िक यह म ं , और िफर आप एक जीवन के अवसर
को खो दे ना!

सं क हमारी बचाने की चे ा है । हर आदमी अपने को बचाने म लगा है । आदमी ही ों, छोटे से छोटा ाणी भी
अपने को बचाने म लगा है । छोटा-सा प ी भी बचा रहा है । छोटा-सा कीड़ा-मकोड़ा भी बचा रहा है । एक प र भी
अपनी सु र ा कर रहा है । सब अपनी सु र ा कर रहे ह। अगर हम पूरे जीवन की धारा को दे ख, तो हर एक अपनी
सु र ा म लगा है ।

सं ास असुर ा म उतरना है , ए जं प इनटु िद इनिस ो रटी। सं ास का अथ है , अपने को बचाने की कोिशश बं द।


अब हम मरने को राजी ह। हम बचाते ही नहीं ह, ोंिक हम कहते ह िक बचाकर भी कौन अपने को बचा पाया है !

कृ कहते ह, सं क ों को छोड़ दे ता है जो, वही योगी है ।

ले िकन एक आदमी कहता है िक मने सं क िकया है िक म परमा ा को पाकर र ं गा। िफर यह आदमी सं ास
नहीं पा सकेगा। अभी इसका सं क है । यह तो परमा ा को भी एक एडीशन बनाना चाहता है अपनी सं पि म।
इसके पास एक मकान है, दु कान है , इसके पास सिटिफकेट् स ह, बड़ी नौकरी है, बड़ा पद है । यह कहता है िक सब
है अपने पास, अपनी मु ी म भगवान भी होना चािहए! ऐसे नहीं चले गा। ऐसे नहीं चले गा, ऐसे सब तरह का फन चर
अपने घर म है ; यह भगवान नाम का फन चर भी अपने घर म होना चािहए! तािक हम मुह े-पड़ोस के लोगों को
िदखा सक िक पोच म दे खो, बड़ी कार खड़ी है । घर म मंिदर बनाया है , उसम भगवान है । सब हमारे पास है । भगवान
भी हमारा प र ह का एक िह ा है ।

जो भी सं क करे गा, वह भगवान को नहीं पा सकेगा। ोंिक सं क का मतलब ही यह है िक म मौजू द ं । और


जहां तक म मौजू द है, वहां तक परमा ा को पाने का कोई उपाय नहीं है । बूं द कहे िक म बूं द रहकर और सागर को
पा ले ना चाहती ं, तो आप उससे ा किहएगा, िक तु झे गिणत का पता नहीं है । बूं द कहे, म बूं द रहकर सागर को पा
ले ना चाहती ं ! बूं द कहे, म तो सागर को अपने घर म लाकर र ं गी! तो सागर हं सता होगा। आप भी हं सगे । बूं द
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नासमझ है । ले िकन जहां आदमी का सवाल है, आपको हं सी नहीं आएगी। आदमी कहता है , म तो बचूंगा और
परमा ा को भी पा लूं गा। यह वैसा ही पागलपन है , जै से बूं द कहे िक म तो बचूं गी और सागर को पा लूं गी।

अगर बूं द को सागर को पाना हो, तो बूं द को िमटना पड़े गा, उसे खुद को खोना पड़े गा। वह बूंद सागर म िगर जाए,
िमट जाए, तो सागर को पा ले गी। और कोई उपाय नहीं है । अ था कोई माग नहीं है । आदमी भी अपने को खो दे , तो
परमा ा को पा ले । बूं द की तरह है , परमा ा सागर की तरह है । आदमी अपने को बचाए और कहे िक म परमा ा
को पा लूं –पागलपन है । बूं द पागल हो गई है । ले िकन बूं द पर हम हं सते ह, आदमी पर हम हं सते नहीं ह। जब भी कोई
आदमी कहता है, म परमा ा को पाकर र ं गा, तो वह आदमी पागल है । वह पागल होने के रा े पर चल पड़ा है । म
ही तो बाधा है ।

कबीर ने कहा है िक ब त खोजा। खोजते-खोजते थक गया; नहीं पाया उसे । और पाया तब, जब खोजते-खोजते खुद
खो गया। िजस िदन पाया िक म नहीं ं , अचानक पाया िक वह है । ये दोनों एक साथ नहीं होते । इसिलए कबीर ने
कहा, ेम गली अित सां करी, ता म दो न समाय। वह दो नहीं समा सकगे वहां । या तो वह या म।

सं क है म का बचाव। वह जो ईगो है , अहं कार है, वह अपने को बचाने के िलए जो योजनाएं करता है , उनका नाम
सं क है । वह अपने को बचाने के िलए िजन फलों की आकां ा करता है , उन आकां ाओं को पूरा करने की जो
व था करता है , उसका नाम सं क है ।

नी शे ने एक िकताब िलखी है , उस िकताब का नाम ठीक इससे उलटा है । िकताब का नाम है , िद िवल टु पावर–
श का सं क । और नी शे कहता है, बस, एक ही जीवन का असली राज है और वह है , श का सं क ।
सं क िकए चले जाओ। और श , और श , और ादा श –चाहे धन, चाहे यश, चाहे पद, चाहे ान–ले िकन
और श चािहए। बस, जीवन का एक ही राज है, नी शे कहता है िक और श चािहए। उसका सं क िकए चले
जाओ। जो सं क करे गा, वह जीत जाएगा। जो नहीं करे गा, वह हार जाएगा। और जो हार जाएं , उ िमटा डालो।
उनको बचाने की भी कोई ज रत नहीं है । ोंिक वे जीवन के काम के नहीं ह। जो जीत जाएं , उ बचाओ।

नी शे जो कह रहा है , वह सं क की िफलासफी है ; वह सं क का दशन है । इसिलए नी शे ने कहीं कहा है िक म


एक ही सौंदय जानता ं । जब म िसपािहयों को रा े पर चलते दे खता ं और उनकी सं गीन सू रज की रोशनी म
चमकती ह, बस, इससे ादा सुं दर चीज मने कोई नहीं दे खी। िनि त ही, जब सं गीन चमकती है रा े पर, तो इससे
ादा सुं दर तीक अहं कार का और कोई नहीं हो सकता। नी शे कहता है, मने कोई और इससे मह पूण सं गीत
नहीं सु ना। जब िसपािहयों के यु के मैदान की तरफ जाते ए जू तों की आवाज रा ों पर लयब पड़ती है, इससे
सुं दर सं गीत मने कोई नहीं सु ना।

िनि त ही, अहं कार अगर कोई सं गीत बनाए, तो जू तों की लयब आवाज के अलावा और ा सं गीत बना सकता है !
अगर अहं कार कोई सं गीत, कोई मेलोडी, अगर अहं कार कभी कोई मोजाट और बीथोवन पैदा करे , अगर अहं कार
कभी कोई बड़ा सं गीत , तानसेन पैदा करे , तो अहं कार जो सं गीत बनाएगा, वह जू तों की आवाज से ही िनकलेगा। वह
जो आक ा होगा, उसम जू तों के िसवाय कुछ भी नहीं होगा। सं गीन हो सकती ह, जू ते हो सकते ह। सं गीनों की
चमकती ई धार हो सकती है , जू तों की लयब आवाज हो सकती है । ले िकन नी शे ठीक कहता है । सं क का यही
प रणाम है , सं क का यही अथ है । वह अहं कार की बे तहाशा पागल दौड़ है ।

कृ कहते ह, ले िकन सं क जहां है …।

इसिलए ब त-से लोगों को–यह म आपको इं िगत करना उिचत समझूंगा–ब त-से लोगों को यह ां ित ई है िक नी शे
और कृ के दशन म मेल है । ोंिक नी शे भी यु वादी है और कृ भी अजु न को कहते ह, यु म तू जा। इससे
बड़ी ां ित ई है । ले िकन उ पता नहीं िक दोनों की जीवन की मूल- ि ब त अलग है!
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कृ अजु न से कहते ह िक तू यु म जाने के यो तभी होगा, जब ते रा कोई सं क न रहे । तू यु म जाने के यो


तभी होगा, जब ते री कोई कामना न रहे । तू यु म जाने की तभी यो ता पाएगा, जब तू न रहे । सं ासी की तरह यु
म जा।

कृ का यु धमयु है । ब त और ही अथ है उसका। और जब नी शे कहता है िक यु म जा, तो वह कहता है,


यु का अथ ही है , दू सरे को न करने की आकां ा। यु का अथ ही है, यं को िस करने का यास। यु का
अथ ही है िक म ं , और तु झे नहीं रहने दू ं गा। यु एक सं घष है अहं कार की घोषणा का।

तो िजन लोगों ने भी नी शे और कृ के बीच तालमेल िबठालने की कोिशश की है, वे एकदम नासमझी से भरे ए
व ह। नी शे और कृ के बीच कोई तालमेल नहीं हो सकता, िबलकुल िवपरीत लोग ह। शत उनकी अलग ह।
कृ अजु न को यु पर भे ज सकते ह, जब अजु न िबलकुल शू वत हो जाए। और अगर शू लड़े गा, तो अधम के
िलए नहीं लड़ सकता। अधम के िलए लड़ने के िलए शू को ा कारण है ? शू अगर लड़े गा, तो धम के िलए ही
लड़ सकता है । ोंिक धम भाव है । और शू भाव म जीने लगता है । वह भाव से लड़ सकता है ।

इसिलए कृ ने अगर अजु न को इस यु के िलए कहा िक तू जा यु म, तो यु म जाने के पहले बड़ी शत ह


उनकी। वे शत अजु न पूरी करे , तो ही यु की पा ता आती है । वह शत पूरी कर दे , तो अजु न म कुछ भी नहीं रह
जाता जो अजु न का है, अजु न परमा ा का हाथ बन जाता है । जो भी ये शत पूरी कर दे गा, वह परमा ा का हाथ हो
जाता है । वह एक िसफ बां स की पोंगरी हो गया, िजसम गीत भु का होगा अब। वह तो िसफ खाली जगह है , िजससे
गीत बहे गा–एक पैसेज, एक माग, एक जगह, एक रा ा। बस, इससे ादा नहीं।

सं क सब छोड़ दे कोई। और सं क तभी छोड़े गा, जब इ ाएं छोड़ दे । इसिलए पहले सू म कृ ने कहा,
इ ाएं न हों। तब दू सरे सू म कहते ह, सं क न हों। अगर इ ाएं होंगी, तो सं क तो पैदा होंगे ही। इ ाएं जहां
होंगी, वहां सं क भी आरोिपत होंगे।

सं क का अथ है , िजस इ ा ने आपके अहं कार म जड़ पकड़ लीं, िजस इ ा ने आपके अहं कार को अपना
सहयोगी बना िलया, िजस इ ा ने आपके अहं कार को परसु एड कर िलया, फुसला िलया िक आओ मेरे साथ, चलो
मेरे पीछे , म तु झे ग प ंचा दे ती ं । अहं कार िजस इ ा के पीछे चलकर ग पाने की खोज करने लगा, वही
सं क है ।

इसिलए पहले सू म कहा, इ ाएं न हों; दू सरे सू म कहा, सं क न हों; तब सं ास है ।

तो सं ास का अथ सं क नहीं है । सं ास का अथ समपण है –समपण, सरडर।

मंिदर म तो जाकर हम भी परमा ा के चरणों म िसर रख दे ते ह। ले िकन जरा गौर से खोजकर दे खगे, तो ब त है रान
होंगे। यह शरीर वाला िसर तो नीचे रखा रहता है , ले िकन असली िसर पीछे खड़ा आ दे खता रहता है िक मंिदर म
और भी कोई दे खने वाला है या नहीं! अगर कोई दे खने वाला होता है, तो मं ो ार जोर से होता है । अगर कोई दे खने
वाला न हो, तो ज ी िनपटाकर आदमी चला जाता है । वह असली अहं कार तो पीछे खड़ा रहता है । वह परमा ा के
चरणों म भी िसर नहीं झुकाता है ।

असल म, हमारे जीवन का सारा ढं ग िसर झुकाने का नहीं है । जीवन का सारा ढं ग िसर को अकड़ाने का है । कभी-
कभी झुकाते ह, मजबूरी म! ले िकन वह अ थायी उपाय होता है । इसिलए िजस आदमी ने आपसे िसर झुकवा िलया,
उसको आपसे सदा सावधान रहना चािहए। ोंिक आप कभी इसका बदला चु काएं गे । िजस आदमी ने कभी आपके
सामने िसर झुकाया हो, अब उससे जरा बचकर रहना। आपने एक दु न बना िलया है । वह आपसे बदला ले गा।
ोंिक िसर मन मज से नहीं झुकाता। िसर मन बड़ी बे मज से झुकाता है । और ती ा करता है िक कब मौका िमल
जाए। कब मौका िमल जाए िक म भी इस िसर को झुकवा लूं !
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जब तक मन है , तब तक िसर नहीं झुक सकेगा। और जहां मन नहीं है , वहां िसर झुका ही आ है । वहां खड़ा आ
िसर भी झुका ही आ है ।

कृ जब कहते ह, सं क न रहे , तो वे यह कह रहे ह िक भीतर वह अहं कार न रह जाए, जो ि लाइज करता है


सब सं क ों को।

भीतर म का र जारी रहता है चौबीस घं टे। म यह नहीं कह रहा ं िक आप म न बोल। न! न बोलने से काम नहीं
चलेगा, बोलना तो पड़े गा ही। लेिकन जब आप बोलते हों िक म, तब भी जान िक भीतर कोई म सघन न हो पाए।
भीतर कोई म मजबू त न हो पाए। म यह िसफ श म रहे , भाषा म रहे , वहार म रहे, भीतर गहरा न हो पाए।
ले िकन हमारी हालत उलटी है । हम अ र बाहर से म का उपयोग न भी कर, तो भी भीतर म मौजू द रहता है !

बाड करके एक िवचारक है । उसने एक छोटा-सा अ ास िवकिसत िकया है साधकों के िलए। और वह अ ास यह


है िक िदन म तु म खयाल रखो िक िकतनी बार म का उपयोग िकया; इसे नोट करते रहो। तो बाड के साधक अपनी
जे ब म एक नोट बु क िलए रहते ह और िदनभर वे आं कड़े लगाते रहते ह िक िकतना म का उपयोग िकया। दं ग रह
जाते ह दे खकर िक िदनभर म इतना म! इतनी बार म बोले!

िफर बाड कहता है, इसका होश रखो। होश रखने से म का उपयोग कम होता चला जाता है। आज सौ दफे आ।
कल न े दफे आ। दो-चार महीने म वह दो-चार दफे होता है । चार-छः महीने म वह शू वत हो जाता है । ले िकन
तब साधक को पता चलता है िक म का उपयोग न भी करो, तो भी भीतर म खड़ा है । तब पता चलता है, तब खयाल म
आता है िक म का उपयोग मत करो, तो भी म खड़ा है ।

रा े पर आप चले जा रहे ह। कोई नहीं है , तो आप और ढं ग से चलते ह। िफर दो आदमी रा े पर िनकल आए,


आपका म मौजू द हो गया। भीतर कुछ िहला; भीतर कुछ तै यार हो गया। टाई वगै रह उसने ठीक कर ली; कपड़े उसने
ठीक िकए; चल पड़ा। बाथ म म आप होते ह तब? कल खयाल करना। बाथ म म वही आदमी रहता है , जो
बै ठकखाने म रहता है ? तब आपको पता चले गा िक बाथ म म और कोई ान करता है; बै ठकखाने म और कोई
बै ठता है! आप ही। आप ही जब बै ठकखाने म होते ह, तो कोई और होते ह। आप ही जब बाथ म म होते ह, तो कोई
और होते ह।

बाथ म म कोई दे ख नहीं रहा है , इसिलए म को थोड़ी दे र के िलए छु ी है । अभी इसकी कोई ज रत नहीं, ोंिक
म का सदा दू सरे के सामने मजा है , दू सरे के सामने िलया गया मजा है । बाथ म म छु ी दे दे ते ह। ले िकन बाथ म
म अगर आईना लगा है , तो आपको जरा मु ल पड़े गी। ोंिक आईने म दे खकर आप दो काम करते ह। िदखाई
पड़ने वाले का भी और दे खने वाले का भी। दो हो जाते ह, दो मौजू द हो जाते ह आईने के साथ। आईने के सामने खड़े
होकर िफर सब बदल जाता है ।

सू , भीतर, चौबीस घं टे बोल, न बोल, म की एक धारा सरक रही है । एक ब त अंतधारा, अंडर करट है । उसके
ित सजग होना ज री है । उसके ित सजग हो जाएं , तो धीरे -धीरे आप समझ सकते ह िक वही धारा सं क ों को
पैदा करवाती है । ोंिक िबना सं क के वह धारा ए ु अलाइज नहीं हो सकती।

ऐसा समझ िक जै से आकाश म भाप के बादल उड़ रहे ह। जब तक उनको ठं डक न िमले, तब तक वे पानी न बन


सकगे, आकाश म उड़ते रहगे। ठं डक िमले, तो पानी बन जाएं गे । और ठं डक िमले, तो बफ बन जाएं गे ।

ठीक हमारे मन म भी अंतधारा बड़ी बारीक बहती रहती है, भाप की तरह, अहं कार की। इस भाप की तरह बहने
वाली अहं कार की जो बदिलयां हमारे भीतर ह, उनका हम तब तक मजा नहीं आता, जब तक िक वे कट होकर
पानी न बन जाएं । पानी ही नहीं, जब तक वे बफ की तरह स , जमकर िदखाई न पड़ने लग सारी दु िनया को, तब
तक हम मजा नहीं आता।
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तो अहं कार ऐसे कम करे गा, िजनके ारा बादल पानी बन जाएं । ऐसे कम करे गा, िजनके ारा पानी स बफ, प र
बन जाए; तब लोगों को िदखाई पड़े गा। तो अगर आप अकेले ह, तब आपके भीतर अहं कार बादलों की तरह होता है ।
जब आप दू सरों के साथ ह, तब पानी की तरह हो जाता है । और अगर आप कुछ धन पाने म समथ हो गए, कुछ पद
पाने म सफल हो गए, कुछ ू ल से िश ा जु टा ली, कुछ कूड़ा-कबाड़ इक ा करने म अगर आप सफल हो गए, तो
िफर आपका पानी िबलकुल बफ, ठोस प र के बफ की तरह जम जाता है , ोजन। िफर वह साफ िदखाई पड़ने
लगता है । िदखाई ही नहीं पड़ने लगता है , गड़ने लगता है दू सरों को।

और जब तक अहं कार दू सरे को गड़ने न लगे, तब तक आपको मजा नहीं आता। तब तक मजा आ नहीं सकता। जब
तक आपका अहं कार दू सरे की छाती म चु भने न लगे, तब तक मजा नहीं आता। मजा तभी आता है, जब दू सरे की
छाती म घाव बनाने लगे । और दू सरा कुछ भी न कर पाए, तड़फकर रह जाए, और आपका अहं कार उसकी छाती म
घाव बनाए। तब आप िबलकुल िवन हो सकते ह। तब आप कह सकते ह, म तो कुछ भी नहीं ं । भीतर मजा ले
सकते ह उसकी छाती म चु भने का, और ऊपर से हाथ जोड़कर कह सकते ह िक म तो कुछ भी नहीं ं, सीधा-सादा
आदमी ं !

यह जो हमारे सं क ों की, अहं कारों की, वासनाओं की अंतधारा है, इस अंतधारा को ही िवसिजत कोई करे , तो
सं ास उपल होता है । इसिलए सं ास एक िव ान है । एक-एक इं च िव ान है । सं ास कोई ऐसी बात नहीं है िक
आप कहीं अंधेरे म पड़ी कोई चीज है िक बस उठा िलए। सं ास एक िव ान है , एक साइं स है । और आपके पूरे िच
का पां तरण हो, एक-एक इं च आपका िच बदले, आधार से बदले िशखर तक, तभी सं ास फिलत होता है ।

आधार ा है? आधार है फल की आकां ा। ि या ा है ? ि या है सं क । उपल ा है ? उपल है


अहं कार। ये तीन श खयाल ले ल: फल की आकां ा, सं क की ि या, अहं कार की िस । आधार म फल की
आकां ा, माग म सं क ों की दौड़, अंत म अहं कार की िस ।

यह हमारा गृ ह थ जीवन का प है । जो भी ऐसे जी रहा है , वह गृ ह थ है । जो इन तीन के बीच जी रहा है , वह गृ ह थ


है । जो इन तीन के बाहर जीना शु कर दे , वह सं है ।

कहां से शु करगे? वहीं से शु कर, जहां से कृ कहते ह। फल की आकां ा से शु कर, ोंिक वहां लड़ाई
सबसे आसान है । ोंिक अभी बादल है वहां, पानी भी नहीं बना है । बफ बन गया, तो ब त मु ल हो जाएगा। िफर
बफ को पहले िपघलाओ, पानी बनाओ। िफर पानी को गम करो, भाप बनाओ। और तभी भाप से मु आ जा
सकता है , आकाश म छोड़कर आप भाग सकते हो िक अब छु टकारा आ। वहीं से शु कर।

ब त कुछ तो आपके भीतर बफ बन चुका होगा। अभी उसके साथ हमला मत बोल। ब त कुछ अभी पानी होगा।
ि या चल रही होगी बफ बनने की, अभी उसको भी मत छु एं । अभी तो उन बादलों की तरफ दे ख, िजनको आप
पानी बना रहे ह। िजन आकां ाओं को अभी आप नए सं क दे रहे ह, उनकी तरफ दे ख। उन आकां ाओं के ित
सजग हों और लौटकर पीछे दे ख िक इतनी आकां ाएं पूरी कीं, पाया ा? इतने फल पाए, िफर भी िन ल ह।

अगर पचास साल की उ हो गई, तो लौटकर पीछे दे ख िक पचास साल म इतना पाने की कोिशश की, इतना पा भी
िलया, िफर भी प ंचे कहां? पाया ा? और अगर पचास साल और िमल जाएं , तो भी हम ा करगे? हम वही
पुन कर रहे ह। िजसके पास दस पए थे, उसने सौ कर िलए ह। सौ की जगह वह हजार कर ले गा। हजार होंगे,
दस हजार कर ले गा। दस हजार होंगे, लाख कर ले गा। ले िकन दस हजार जब कोई सु ख न दे पाए! और जब एक
पया पास म था, तो खयाल था िक दस पए भी हो जाएं , तो ब त सु ख आ जाएगा। दस हजार भी कोई सु ख न ला
पाए, तो दस लाख भी कैसे सु ख ला पाएं गे?

लौटकर पीछे दे ख। और अपने अतीत को समझकर, अपने भिव को पुनः धोखा न दे ने द। नहीं तो भिव रोज
धोखा दे ता है । भिव रोज िव ास िदलाता है िक नहीं आ कल, कोई बात नहीं; कल हो जाएगा। वही उसका सी े ट
है आपको पकड़े रखने का। कहता है , कोई िफ नहीं; हजार पए से नहीं हो सका, हजार म कभी होता ही नहीं;
लाख म होता है । जब लाख हो जाएं गे, तब यही मन कहे गा, लाख म कभी होता ही नहीं; दस लाख म होता है । यह मन
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कहे चला जाएगा। इस मन ने कभी भी नहीं छोड़ा िक कहना बं द िकया हो। िजनको पूरी पृ ी का रा िमल गया,
उनसे भी इसने नहीं छोड़ा िक तु म तृ हो गए हो। उनको भी कहा िक इतने से ा होगा?

अभी दे ख रहे ह आप, अमे रका और स के बीच एक जी-जान की बाजी चली िपछले दो ीन वष म िक चां द पर
प ं च जाएं । इस जमीन पर सा ा बढ़ाकर दे ख िलया, कुछ ब त रस िमला नहीं। अब चां द पर सा ा बढ़ाना है !
चां द पर झंडा गाड़ दे ना है । वह िकसी की छाती म झंडा गाड़ना है । मंगल पर कल गाड़ दगे । होगा ा?

हम गिणत को ही नहीं समझते , उसको फैलाए चले जाते ह। गिणत सीधा और साफ है िक फल की दौड़ से सु ख का
कोई भी सं बंध नहीं है । सं बंध ही नहीं है । सु ख का सं बंध है कम म रस ले ने से । सु ख का सं बंध फल म रस ले ने से जरा
भी नहीं है । सच तो यह है िक िजसने फल म िलया रस, िमले गा उसे दु ख।

फल म रस, दु ख उसकी िन ि है । िजतना ादा फल म रस िलया, उतना ादा दु ख िमले गा। दो कारण से दु ख
िमले गा। अगर फल नहीं िमला, तो दु ख िमले गा। यह दु ख िमले गा िक फल नहीं िमल पाया, म हार गया। परािजत,
पददिलत। अगर िमल गया, तो भी दु ख िमलेगा, ोंिक िमलते ही पता चलेगा िक इतनी मेहनत की, इतना म
उठाया और यह िमल भी गया और िफर भी कुछ नहीं िमला!

फल दो तरह से दु ख लाता है । हारे ओं को भी और जीते ओं को भी। हारे ओं को कहता है िक िफर कोिशश


करो, तो जीत जाओगे । जीते ओं को कहता है िक िकसी और चीज पर कोिशश करो। यह मकान तो बना िलया,
ठीक है । एक हवाई जहाज और खरीद लो। ोंिक हवाई जहाज के िबना कभी िकसी को सु ख िमला? हवाई जहाज
िजसको िमल जाता है , उसे कुछ आ नहीं। कुछ और कर डालो।

और कुछ लोग ऐसी जगह प ंच जाते ह एक िदन, जहां कुछ करने को नहीं बचता। सब कुछ उनके पास हो जाता है ।
आज अमे रका म वै सी हालत हो गई है । कुछ लोग तो उस जगह प ं च गए ह, िजनके पास सब है , अित र है । तो
अमे रका म जो आज चीज बेचने वाले लोग ह, वे मन की तरकीब को जानते ह। वे ा कहते ह? वे लोगों को समझाते
ह िक एक मकान से कहीं सु ख िमला? सु ख उनको िमलता है , िजनके पास दो मकान ह। वह एक ही मकान म पित-
प ी रह रहे ह कुल जमा, उसम बीस कमरे ह। वह उनको समझा रहा है–वह जो जमीन बे चने वाला, मकान बेचने
वाला आदमी–िक एक मकान से कहीं सु ख िमलता है?

अमे रका के मकानों का िव ापन अखबारों म दे ख, तो आपको ब त है रानी होगी। अखबारों म िव ापन कहते ह,
कहीं एक मकान से सु ख िमलता है ? एक मकान और चािहए िहल े शन पर। िजनके पास दो मकान ह, उनसे कहते
ह िक एक मकान और चािहए समु तट पर। वह मन की तरकीब का खयाल है िक सु ख! मन हमेशा कहता है िक
सु ख िमल सकता है । या तो तु मने गलत चीज म सोचा था पहले। इसी मन ने समझाया था वह भी। अब यही मन
समझाता है िक दू सरी चीज चु नो। या मन कहता है–अगर हार गए, तो वह कहता है –हारने म तो दु ख िमलता ही है ,
और सं क करो। और सं क करो, तो जीत जाओगे ।

मन के इस गिणत को समझगे आप, तो कृ का महागिणत समझ म आ सकेगा। वह सं ास का है , वह िबलकुल


उलटा है । वह यह है िक मन की इस ि या म जो उलझा, वह िसवाय दु ख के और कहीं भी नहीं प ंचता है ।

सु ख है । ऐसा नहीं िक सु ख नहीं है । सु ख िनि त है, ले िकन उसकी ि या दू सरी है । उसकी ि या है िक बफ को


पानी बनाओ, पानी को भाप बनाओ। भाप से छु टकारा, नम ार कर लो। भाप से कहो िक जाओ; या ा पर िनकल
जाओ आकाश की।

अहं कार को सं क ों म बदलो, सं क ों को कामनाओं म कामनाओं का छु टकारा कर दो। अहं कार को गलाओ,
सं क का पानी बनाओ। सं क को भी आं च दो, ान की आं च दो, उसको भाप बन जाने दो। वह बादल बनकर
तु मसे हट जाए। उसके बाहर हो जाओ।
20

और िजस िदन भी कोई ऐसी थित म आ जाता है –और कोई भी आ सकता है , ोंिक सभी उस थित के
हकदार ह। वह कृ कुल अजुन से ही कहते हों, ऐसा नहीं है । कोई भी, िजसके जीवन म िचंतना आ गई हो, उसके
िलए िसवाय इसके कोई भी माग नहीं है । िजसने सोचा हो जरा भी, उसके िलए िसवाय इसके कोई माग नहीं है ।

और अगर आपको अब तक यह पता न चला हो िक इ ाओं के माग से सु ख नहीं आता है , तो आप समझना िक


आपने अभी सोचना शु नहीं िकया। अगर आपको अभी यह खयाल न आया हो िक इ ाएं दु ख लाती ह, तो आप
समझना िक अभी आपके सोचने की शु आत नहीं ई। ोंिक जो आदमी भी सोचना शु करे गा, जीवन की पहली
बु िनयादी बात उसको यह खयाल म आएगी। यह पहला चरण है सोचने का िक इ ाएं कभी भी सु ख लाती नहीं, दु ख
म ले जाती ह। िफर सु ख कहां है ?

तो दो उपाय ह। या तो हम समझ िक िफर सु ख है ही नहीं; या िफर एक उपाय यह है िक सु ख इ ाओं के अित र


कहीं हो सकता है । इसके पहले िक हम िनणय कर िक सु ख है ही नहीं, कुछ ण इ ाओं के िबना जीकर दे ख ल।

ऐसे भी कुछ लोग ह, जो कहते ह, सु ख है ही नहीं; दु ख ही है । जै से ायड कहे गा, दु ख ही है । आप ादा से ादा
इतना कर सकते ह िक सहने यो दु ख उठाएं , ादा मत उठाएं । या ऐसा कर सकते ह िक अपने को इस यो बना
ल िक सब दु खों को सह सक। सु ख है नहीं। ायड कहता है , कहीं कोई सु ख नहीं है । ादा और कम दु ख हो
सकता है ; ादा सहने वाला कम सहने वाला आदमी हो सकता है । ले िकन दु ख ही है ।

ले िकन ायड का यह व अवै ािनक है । एक तरफ से ायड ठीक कहता है , ोंिक िजतना उसने समझा,
सभी इ ाएं दु ख म ले जाती ह। इसिलए उसका यह व ठीक है िक दु ख ही है । ले िकन ायड को उस ण का
कोई भी पता नहीं है , जो इ ाओं के बाहर जीया जा सकता है । एक ण का भी उसे कोई पता नहीं है , जो इ ाओं
के बाहर जीया जा सकता है ।

िजनको पता है , बु को या कृ को, वे हं सगे ायड पर िक तु म जो कहते हो, आधी बात सच कहते हो। इ ाओं म
कोई सु ख सं भव नहीं है । ले िकन सु ख सं भव नहीं है , यह मत कहो। ोंिक इ ाओं के िबना आदमी सं भव है । और
इ ाओं के िबना जो आदमी सं भव है , उसके जीवन म सु ख की ऐसी वषा हो जाती है –क नातीत! भी नहीं दे खा
था, इतने सु ख की वषा चारों ओर से हो जाती है । जै से ही इ ाएं हटीं, और सु ख आया।

अगर इसे म ऐसा क ं, तो शायद आसानी होगी समझने म। सु ख और इ ा म वै सा ही सं बंध है , जै सा काश और


अंधेरे म। अगर इसे ठीक से समझना चाह, तो ऐसा समझ िक सु ख के िवपरीत दु ख नहीं है , सु ख के िवपरीत इ ाएं
ह। सु ख का जो अपोिजट पोल है , वह दु ख नहीं है । सु ख का जो िवरोधी है , वह इ ा है । कमरे म दीया जलाया; अंधेरा
नहीं रहा। कमरे म दीया बु झाया; अंधेरा भर गया। इ ाएं भरी हों, अंधेरा भरा है । दीया जलाएं , इ ाहीन मन को
जलाएं , अंधेरा खो जाएगा। अंधेरे म दु ख है ; इ ाओं म दु ख है ।

कृ िजस सं ास की बात कर रहे ह, वह कोई उदास, जीवन से हारा आ, थका आ, आदमी नहीं है । कृ िजस
सं ास की बात कर रहे ह, वह हं सता आ, नाचता आ सं ास है । उस सं ास के होठों पर बां सुरी है ।

वह सं ास वै सा नहीं है , जै सा हम चारों तरफ दे खते ह सं ािसयों को–उदास, मुदा, मरने के पहले मर गए, जै से
अपनी-अपनी क खोदे ए बैठे ह! कृ उस सं ास की बात नहीं कर रहे ह। बड़े जीवं त, िलिवंग, ते ज ी सं ास
की बात कर रहे ह; नाचते ए सं ास की; जीवन को आिलं गन कर ले , ऐसे सं ास की। भागता नहीं है , ऐसे सं ास
की। हं सते ए, आनंिदत सं ास की।

ान रहे, जो आदमी इ ाओं की कामना को तो नहीं छोड़े गा, फल की कामना को नहीं छोड़े गा, िसफ जीवन और
कम के जीवन से भागे गा, वह उदास हो जाएगा। दु खी तो नहीं रहे गा, उदास हो जाएगा। इस फक को भी थोड़ा
खयाल म ले ले ना आपके िलए उपयोगी होगा।
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उदास उस आदमी को कहता ं म, जो सु खी तो नहीं है, और दु खी होने का भी उपाय नहीं पा रहा है । उदास वह
आदमी है , जो सु खी तो नहीं है , ले िकन दु खी होने का भी उपाय नहीं पा रहा है । अगर उसको दु ख भी िमल जाए, तो
थोड़ी-सी राहत िमले । बं द हो गया है सब तरफ से । सु ख की कोई या ा शु नहीं ई, दु ख की या ा बं द कर दी।
हीरे -जवाहरात हाथों म नहीं आए, कंकड़-प र रं गीन थे, खेल- खलौने थे, उनको स ालकर छाती से बै ठे थे, उनको
भी फक िदया। ऐसा आदमी उदास हो जाता है ।

कंकड़-प र स ाले बै ठे ह आप। भू ल-चू क से म आपके रा े से गु जर आया और आपसे कह िदया, ा कंकड़-


प र रखे हो? अरे , पकड़ना है तो हीरे -जवाहरात पकड़ो! छोड़ो कंकड़-प र। आप मेरी बातों म आ गए, फक िदए
कंकड़-प र। कंकड़-प र का बोझ तो कम हो जाएगा, उनसे आने वाली दु ख-पीड़ा भी कम हो जाएगी। कंकड़-
प र चोरी चले जाते, तो जो पीड़ा होती, वह भी नहीं होगी। कंकड़-प र खो जाते, तो जो दद होता, वह भी नहीं
होगा। कंकड़-प र कोई चु रा न ले जाए, उसकी जो िचंता होती है , वह भी नहीं होगी। रात आसानी से सो जाएं गे ।
ले िकन खाली हाथ! हीरे जवाहरात, कंकड़-प र फकने से नहीं आते । खाली हाथ उदास हो जाएं गे ।

िजस िच म सु ख का आगमन नहीं आ और दु ख की थित को छोड़कर भाग खड़ा आ, वह उदास हो जाता है ।


उदासी एक िनगे िटव थित है । वहां दु ख भी नहीं है; और सु ख का कोई रा ा नहीं िमल रहा। और जो भी रा ा
िमलता है, वह िफर दु ख की तरफ ले जाता है । तो वहां जाना नहीं है । सु ख का कोई रा ा नहीं िमलता। तो आं ख बं द
करके अपने को स ालकर खड़े रहना है । इस स ालकर खड़े रहने म उदासी पैदा होती है । सं ास जो इतना
उदास हो गया, उदासीन, उसका कारण यही है ।

कृ नहीं कहगे यह; म भी नही ं क ं गा। म कहता ं, कंकड़-प र फकने की उतनी िफ मत करो। हीरे -जवाहरात
मौजू द ह, उनको दे खने की िफ करो। जै से ही वे िदखाई पड़गे , कंकड़-प र हाथ से छूट जाएं गे, छोड़ने नहीं पड़गे ।
और उनके िदखाई पड़ने पर जीवन म जै से िक िबजली कौंध गई हो, ऐसे आनंद की लहर दौड़ जाएगी।

सं ासी अगर आनंिदत नहीं है , आ ािदत नहीं है , नाचता आ नहीं है , फु त नहीं है , तो सं ासी नहीं है ।

ले िकन वै सा सं ासी, िसफ कृ जो कहते ह, उस तरह से हो सकता है । कम को छोड़ा िक आप उदास ए; ोंिक


आपके जीवन की जो ऊजा है , जो एनज है , वह कहां जाएगी! उसे कट होना चािहए, उसे अिभ होना चािहए।
अगर हम िकसी झाड़ पर पाबं दी लगा द िक तू फूल नहीं खला सकेगा; बं द रख अपने फूलों को! तो झाड़ ब त
मु ल म पड़ जाएगा, ोंिक ऊजा का ा होगा?

ऐसे ही वह आदमी मु ल म पड़ जाता है , जो कम को छोड़ दे ता है ; जीवन को छोड़कर भाग जाता है । कट होने


का उपाय नहीं रह जाता। सब झरने भीतर बं द हो जाते ह; भीतर ही घू मने लगते ह; िवि करने लगते ह। िच को
ािन और उदासी से भर जाते ह; अनंत अपराधों से भर जाते ह, प ा ापों से भर जाते ह। और िफर, िफर वही
वासनाएं वापस मन को खींचने लगती ह, ोंिक उनका कोई तो अंत नहीं आ है ।

कृ कहते ह, कम करो पूरा, छोड़ दो फल का खयाल। कम को इतनी पूणता से करो िक फल के खयाल के िलए
जगह भी न रह जाए। और तब एक नए तरह का आनंद भीतर खलना शु हो जाता है । हीरे कट होने लगते ह;
िफर कंकड़-प र अपने आप छूटते चले जाते ह।

जो भी कर, उसे पूरा। अगर भोजन भी कर रहे ह, तो इतने आनंद से और इतना पूरा िक भोजन करते व िच म
और कुछ भी न रह जाए। सु न रहे ह मुझे, तो इतना पूरा िक सु नते व िच म और कुछ भी न रह जाए। बोल रहे ह,
तो इतना पूरा िक बोलना ही म हो जाऊं; बोलते व और कुछ भी भीतर न रह जाए।

अगर कम इतनी ती ता से और पूणता से िकए जाएं , तो आपका फल अपने आप छूटने लगे गा। फल के िलए जगह न
रह जाएगी मन म बै ठने की।
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कमहीन णों म ही फल भीतर वे श करता है । िन य णों म ही फल भीतर घु सता है । और आकां ाएं मन को


पकड़ती ह और हम कल का सोचने लगते ह िक कल ा कर? िजसके पास अभी करने को कुछ नहीं होता, िजसकी
श अभी म पूरी नहीं डूब पाती, उसकी श कल की योजना बनाने लगती है । आज और अभी और इस ण म
अपनी पूरी श को जो लगा दे , फल को वेश करने का मौका नहीं रह जाता।

और एक बार पूरे कम का आनंद आ जाए, तो फल आपसे हाथ भी जोड़े िक मुझे भीतर आ जाने दो, तो भी आप उसे
भीतर नहीं आने दगे । आप उससे कहगे, बात समा । वह नाता टू ट गया। पहचान िलया मने िक तु म आते हो सु ख
की आशा ले कर; दे जाते हो दु ख! तु ारा चे हरा, जब तु म दू र होते हो, तो मालू म पड़ता है सु ख है ; और जब तु म छाती
से लग जाते हो, तब पता चलता है दु ख है । तु म धोखेबाज हो। फल की आकां ा धोखेबाज है, वंचना है ।

ये तीन बात–फल की आकां ा, सं क की ि या, अहं कार का सघन होना–ये तीन गृ ह थी की व थाएं ह। इन
तीन के जो बाहर है , वह सं है ।

आज इतना ही।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


आस का स ोहन (अ ाय-6) वचन—दू सरा

आ ोमुनेय गं कम कारणमु ते।


योगा ढ त ैव शमः कारणमु ते।। 3।।
और सम बु प योग म आ ढ़ होने की इ ा वाले मननशील पु ष के िलए योग की ा म, िन ाम भाव से
कम करना ही हे तु कहा है और योगा ढ़ हो जाने पर उस योगा ढ़ पु ष के िलए सवसं क ों का अभाव ही क ाण
म हे तु कहा है ।

सम बु योग का सार है । सम बु को सबसे पहले समझ ले ना उपयोगी है । साधारणतः मन हमारा अितयों म


डोलता है , ए टी म डोलता है । या तो एक अित पर हम होते ह, या दू सरी अित पर होते ह। या तो हम िकसी के
ेम म पागल हो जाते ह, या िकसी की घृ णा म पागल हो जाते ह। या तो हम धन को पाने के िलए िवि होते ह, या
िफर हम ाग के िलए िवि हो जाते ह। ले िकन बीच म ठहरना अित किठन मालू म होता है । िम बनना आसान है ,
श ु भी बनना आसान है ; ले िकन िम ता और श ु ता दोनों के बीच म ठहर जाना अित किठन है। और जो दो के बीच
म ठहर जाए, वह सम को उपल होता है ।

जीवन सब जगह ं है । जीवन के सब प ं के ही प ह। जहां भी डालगे आं ख, जहां भी जाएगा मन, जहां भी


सोचगे, वही पाएं गे िक दो अितयां मौजू द ह। इस तरफ िगरगे, तो खाई िमल जाएगी; उस तरफ िगरगे, तो कुआं िमल
जाएगा। दोनों के बीच म ब त पतली धार है । वहां जो ठहर जाता है, वही योग को उपल होता है । दो के बीच, ं
के बीच जो पतली धार है , ं के बीच जो सं कीण माग है , वही सं कीण माग सम बु है ।

सम बु का अथ है, सं तुलन; ं के बीच सम हो जाना। जै से कभी दे खा हो दु कान पर दु कानदार को तराजू म


सामान को तौलते । जब दोनों पलड़े िबलकुल एक से हो जाएं और तराजू का कां टा सम पर ठहर जाए–न इस तरफ
झुकता हो बाएं , न उस तरफ झुकता हो दाएं ; न बाएं जाए; न दाएं जाए, न ले हो, न राइिट हो–बीच म ठहर
जाए, तो सम बु उपल होती है ।

कृ कहते ह, सम बु योग का सार है ।


कृ उसे योगी न कहगे, जो िकसी एक अित को पकड़ ले । वह भोगी के िवपरीत हो सकता है , योगी नहीं हो सकता।
ागी हो सकता है । अगर श कोश म खोजने जाएं गे, तो भोगी के िवपरीत जो श िलखा आ िमले गा, वह योगी है ।
श कोश म भोगी के िवपरीत योगी श िलखा आ िमल जाएगा। ले िकन कृ भोगी के िवपरीत योगी को नहीं
रखगे । कृ भोगी के िवपरीत ागी को रखगे ।
23

योगी तो वह है, िजसके ऊपर न भोग की पकड़ रही, न ाग की पकड़ रही। जो पकड़ के बाहर हो गया। जो ं म
सोचता ही नहीं; िन आ। जो नहीं कहता िक इसे चु नूंगा; जो नहीं कहता िक उसे चु नूंगा। जो कहता है , म चु नता
ही नहीं; म चु नाव के बाहर खड़ा ं । वह वाइसले स, चु नावरिहत है । और जो चु नावरिहत है , वही सं क रिहत हो
सकेगा। जहां चु नाव है , वहां सं क है ।

म कहता ं , म इसे चु नता ं । अगर म यह भी कहता ं िक म ाग को चु नता ं, तो भी मने िकसी के िवपरीत चु नाव
कर िलया। भोग के िवपरीत कर िलया। अगर म कहता ं , म सादगी को चु नता ं , तो मने वै भव और िवलास के
िवपरीत िनणय कर िलया। जहां चु नाव है , वहां अित आ जाएगी। चु नाव म म कभी भी नहीं ठहरता है । चु नाव सदा
ही एक छोर पर ले जाता है । और एक बार चु नाव शु आ, तो आप अंत आए िबना कगे नहीं।

और भी एक मजे की बात है िक अगर कोई चु नाव करके एक छोर पर चला जाए, तो ब त ादा दे र उस
छोर पर िटक न सकेगा; ोंिक जीवन िटकाव है ही नहीं। शी ही दू सरे छोर की आकां ा पैदा हो जाएगी। इसिलए
जो लोग िदन-रात भोग म डूबे रहते ह, वे भी िक ीं णों म ाग की क ना और सपने कर ले ते ह। और जो लोग
ाग म डूबे रहते ह, वे भी िक ीं णों म भोग के और भोगने के सपने दे ख ले ते ह। वह दू सरा िवक भी सदा
मौजू द रहे गा। उसका वै ािनक कारण है ।

ं सदा अपने िवपरीत से बं धा रहता है ; उससे मु नहीं हो सकता। म िजसके िवपरीत चु नाव िकया ं , वह भी मेरे
मन म सदा मौजू द रहे गा। अगर मने कहा िक म आपको चु नता ं उसके िवपरीत, तो िजसके िवपरीत मने आपको
चु ना है , वह आपके चु नाव म सदा मेरे मन म रहेगा। आपका चुनाव आपका ही चु नाव नहीं है , िकसी के िवपरीत चु नाव
है । वह िवपरीत भी मौजू द रहे गा।

और मन के िनयम ऐसे ह िक जो भी चीज ादा दे र ठहर जाए, उससे ऊब पैदा हो जाती है । तो जो मने चु ना है , वह
ब त दे र ठहरे गा म ऊब जाऊंगा। और ऊबकर मेरे पास एक ही िवक रहे गा िक उसके िवपरीत पर चला जाऊं।
और मन ऐसे ही एक ं से दू सरे ं म भटकता रहता है ।
जब कृ कहते ह, सम , तो अगर हम ठीक से समझ, तो सम को वही उपल होगा, जो मन को ीण कर दे ।
ोंिक मन तो चु नाव है । िबना चु नाव के मन एक ण भी नहीं रह सकता।

जब मने आपसे कहा िक तराजू का कां टा जब बीच म ठहर जाता है, तब अगर हम दू सरी तरह से कहना चाह, तो हम
यह भी कह सकते ह िक तराजू अब नहीं है । ोंिक तराजू का काम तौलना है । और जब कां टा िबलकुल बीच म ठहर
जाता है, तो तौलने का काम बं द हो गया; चीज समतु ल हो गईं। तौलने का तो मतलब यह है िक तराजू खबर दे ।
ले िकन अब दोनों पलड़े िथर हो गए और कां टा िबलकुल बीच म आ गया, समतु लता आ गई, तो वहां तराजू का काम
समा हो गया। समतु ल तराजू, तराजू होने के बाहर हो गया। ऐसे ही मन का काम अितयों का चु नाव है ।

अगर ठीक से हम समझ, अगर हम मनोवै ािनक से पूछ, तो वह कहे गा, मन का िवकास ही चुनाव की वजह से पैदा
आ। और इसीिलए आदमी के पास सबसे ादा िवकिसत मन है , ोंिक आदमी के पास सबसे ादा चु नाव की
आकां ा है । पशु ब त चु नाव नहीं करते, इसिलए ब त मन उनम पैदा नहीं होता। प ी ब त चु नाव नहीं करते। पौधे
ब त चु नाव नहीं करते। आदमी की साम यही है िक वह चु न सकता है । वह कह सकता है , यह भोजन म क ं गा
और वह भोजन म नहीं क ं गा। पशु तो वही भोजन करते चले जाएं गे, जो कृित ने उनके िलए चु न िदया है ।

अगर यहां हजार तरह की घास लगी हो और आप भस को छोड़ द, तो भस उसी घास को चु न-चु नकर चर ले गी जो
कृित ने उसके िलए तय िकया है , बाकी घास को छोड़ दे गी। भस खुद चु नाव नहीं करे गी, इसिलए भस के पास मन
भी पैदा नहीं होगा।

सारी कृित मनु को छोड़कर मन से रिहत है । ठीक से समझ, तो मनु हम कहते ही उसे ह, िजसके पास मन है ।
मनु श का भी वही अथ है , मन वाला।
24

मनु म और पशु ओ ं म इतना ही फक है िक पशु ओं के पास कोई मन नहीं और मनु के पास मन है । मनु
इसिलए मनु नहीं कहलाता िक मनु का बे टा है , ब इसिलए मनु कहलाता है िक मन का बे टा है ; मन से ही
पैदा होता है । वह उसका गौरव भी है, वही उसका क भी है । वही उसकी शान भी है , वही उसकी मृ ु भी है । मन
के कारण वह पशुओ ं से ऊपर उठ जाता है । ले िकन मन के कारण ही वह परमा ा नहीं हो पाता।
यह दू सरी बात भी खयाल म ले ल।

मन के कारण वह पशु ओ ं के ऊपर उठ जाता है । ले िकन मन के ही कारण वह परमा ा नहीं हो पाता। पशु ओ ं से
ऊपर उठना हो, तो मन का होना ज री है । और अगर मनु के भी ऊपर उठना हो और परमा ा को श करना
हो, तो मन का पुनः न हो जाना ज री है । य िप मनु जब मन को खो दे ता है , तो पशु नहीं होता, परमा ा हो जाता
है ।

मनु मन को जान िलया, और तब छोड़ता है । पशु ने मन को जाना नहीं, उसका उसे कोई अनुभव नहीं है । अनुभव
के बाद जब कोई चीज छोड़ी जाती है , तो हम उस अव था म नहीं प ंचते जब अनुभव नहीं आ था, ब उस
अव था म प ं च जाते ह जो अनुभव के अतीत है ।

मन है चु नाव, वाइस–यह या वह। मन सोचता है ईदर-आर की भाषा म। इसे चु नूं या उसे चु नूं! दु कान पर आप खड़े
ह; मन सोचता है , इसे चु नूं, उसे चु नूं! समाज म आप खड़े ह; मन सोचता है , इसे ेम क ं , उसे ेम क ं ! ितपल
मन चु नाव कर रहा है , यह या वह। सोते-जागते, उठते-बै ठते, मन कां टे की तरह डोल रहा है तराजू के। कभी यह
पलड़ा भारी हो जाता है, कभी वह पलड़ा भारी हो जाता है ।

और ान रहे, िजस चीज को मन चु नता है , ब त ज ी उससे ऊब जाता है । मन ठहर नहीं सकता। इसिलए मन
अ र िजसे चु नता है , उसके िवपरीत चला जाता है । आज िजसे ेम करते ह, कल उसे घृ णा करने लगते ह। आज
िजसे िम बनाया, कल उसे श ु बनाने म लग जाते ह। जो ब त गहरा जानते ह, वे तो कहगे, िम बनाना श ु बनाने
की तै यारी है । इधर बनाया िम िक श ु बनने की तै यारी शु हो गई। मन लौटने लगा।
िथयोडर रे क अमे रका का एक ब त िवचारशील मनोवै ािनक था। उसने िलखा है , मन के दो ही सू ह, इनफैचु एशन
और े शन। उसने िलखा है , मन के दो ही सू ह, िकसी चीज के ित आस हो जाना और िफर िकसी चीज से
िवर हो जाना।

या तो मन आस होगा, या िवर होगा। या तो पकड़ना चाहे गा, या छोड़ना चाहेगा। या तो गले लगाना चाहे गा, या
िफर कभी नहीं दे खना चाहेगा। मन ऐसी दो अितयों के बीच डोलता रहे गा। इन दो अितयों के बीच डोलने वाले मन का
ही नाम सं क ा क, सं क से भरा आ।
जहां सं क है, वहां िवक सदा पीछे मौजू द रहता है । जब आप िकसी को िम बना रहे ह, तब आपके मन का एक
िह ा उसम श ु ता खोजने म लग जाता है , फौरन लग जाता है ! आपने िकसी को ेम िकया और मन का दू सरा
िह ा त ाल उसम घृ णा के आधार खोजने म लग जाता है । आपने िकसी को सुं दर कहा और मन का दू सरा िह ा
त ाल तलाश करने लगता है िक कु प ा- ा है! आपने िकसी के ित ा कट की और मन का दू सरा
िह ा फौरन खोजने लगता है िक अ ा कैसे कट क ं !

मन का दू सरा पलड़ा मौजू द है , भला ऊपर उठ गया हो, अभी वजन उस पर न हो। ले िकन वह भी वजन की तलाश
शु कर दे गा। और ादा दे र नहीं लगे गी िक नीचे का पलड़ा थक जाएगा, ह ा होना चाहे गा। ऊपर का उठा
पलड़ा भी थक जाएगा और भारी होना चाहे गा। और हम एक पलड़े से दू सरे पलड़े पर वजन रखते ए िजंदगी गु जार
दगे । इस पलड़े से वजन उठाएं गे , उस पलड़े पर रख दगे । उस पलड़े से वजन उठाएं गे, इस पलड़े पर रख दगे । पूरी
िजं दगी, मन के एक अित से दू सरी अित पर बदलने म बीत जाती है ।

कृ कहते ह, उसे कहता ं म योगी, जो सम बु को उपल हो। जो पलड़ों पर वजन रखना बं द कर दे । इस


बचकानी, नासमझ हरकत को बं द कर दे और कहे िक म इस िकस जाल म पड़ गया! जो तराजू के पलड़ों से अपनी
आइडिटटी, अपना तादा तोड़ दे । और तराजू जहां ठहर जाता है, जहां समतु ल हो जाता है , वहां आ जाए, म म।
दो अितयों के बीच, ठीक म को जो खोज ले; न िम , न श ु; जो बीच म क जाए।
25

यह बड़ा अदभुत ण है , बीच म क जाने का। और एक बार इस बीच म कने का िजसे आनंद आ गया–और इस
बीच म कने के अित र कहीं कोई आनंद नहीं है । ोंिक जब भी एक पलड़े पर भार होता है , तभी िच म तनाव
हो जाता है ।

जब भी आप कुछ चु नते ह, िच म उ े जना शु हो जाती है । सच तो यह है िक उ े जना के िबना चु न ही नहीं


सकते । उ े जना से ही चु नते ह; उि हो जाते ह। और जब भी उ े जना से चु नते ह, तभी मन के िलए पीड़ा के िलए
िनमं ण दे िदया, दु ख को बु लावा दे िदया। िफर थोड़ी दे र म ऊब होगी, िफर थोड़ी दे र म परे शान होंगे। िफर इससे
िवपरीत चु नगे, यह सोचकर िक जब इसम कुछ सु ख न िमला, तो शायद िवपरीत म िमल जाए।

मन का गिणत ऐसा है । वह कहता है, इसम सु ख नहीं िमला, तो इससे उलटे को चु न लो। शायद उसम सु ख िमल
जाए! उसम सु ख नहीं िमला, तो िफर उलटे को चु न लो। और मन िनरं तर, िजसको हम अनुभव कर ले ते ह, उससे
ऊब जाता है ; और उससे िवपरीत, िजसका हम अनुभव नहीं करते, उसके िलए लालाियत बना रहता है ।

और ृित हमारी बड़ी कमजोर है । ऐसा नहीं है िक िजसे हम आज ऊबकर छोड़ रहे ह, उसे हम िफर पुनः कल न
चु न लगे । ृित हमारी बड़ी कमजोर है । कल िफर हम उसे चु न सकते ह। िजसे हमने आज ऊबकर छोड़ िदया है
और िवपरीत को पकड़ िलया है , कल हम िवपरीत से भी ऊब जाएं गे और िफर इसे पकड़ लगे। ृित बड़ी कमजोर
है ।

असल म अितयों से भरे ए िच म ृित होती ही नहीं। अितयों से भरे िच म तो िवपरीत का आकषण ही होता है ।
कभी लौटकर िजं दगी को दे ख। आपकी िजंदगी म आप उ ीं-उ ीं चीजों को बार-बार चु नते ए मालू म पड़गे ।

आज सां झ िकया है ोध; मन पछताया। ोध करते ही मन पछताना शु कर दे ता है । वह िवपरीत है । वह दू सरी


अित है । इधर ोध जारी आ, उधर मन ने पछताने की तै यारी शु की। ोध आ, आग जली, उ े िजत ए,
पीिड़त-परे शान ए। िफर मन दु खी आ, रोया, परािजत आ, पछताया। पछताने म दू सरी अित छू ली। ले िकन ान
रखना, पछताकर िफर आप ोध करने की तै यारी म पड़गे । कल सां झ तक आप िफर तै यारी कर लगे ोध की। वह
कल जो पछताए थे, उसकी ृित नहीं रह जाएगी।

िकतनी बार पछताए ह! प ा ाप कोई नई घटना नहीं है । वही िकया है रोज-रोज; िफर पछताए ह। िफर वही करगे,
िफर पछताएं गे । और कभी यह खयाल न आएगा िक इतनी बार प ा ाप िकया, कोई प रणाम तो होता नहीं।

तो अगर आप इतना भी कर ल िक अब ोध तो क ं गा, ले िकन प ा ाप नहीं क ं गा, तो भी आप बड़ी मु लम


पड़ जाएं गे । ोंिक अगर आपने प ा ाप नहीं िकया, तो िफर मन िफर से ोध की तै यारी नहीं कर पाएगा। यह
आपको उलटा लगेगा। ले िकन जीवन की धारा ऐसी है ।
आपसे म कहता ं, ोध मत छोड़, प ा ाप ही छोड़ द िसफ। िफर आप ोध नहीं कर पाएं गे , ोंिक प ा ाप पुनः
ोध की तै यारी है । ोध छोड़ द, तो प ा ाप नहीं कर पाएं गे, ोंिक प ा ाप की कोई ज रत न रह जाएगी।
प ा ाप छोड़ द, तो ोध नहीं कर पाएं गे, ोंिक प ा ाप के िबना ोध को भू लना असंभव है । िफर ोध के पलड़े
पर ही बै ठे रह जाएं गे; िफर दू सरे पलड़े पर जाना तराजू के ब त मु ल है । और मन एक ही पलड़े पर बै ठा नहीं रह
सकता; ब त घबड़ा जाएगा, ब त परे शान हो जाएगा। और अगर आपने इतना ही तय कर िलया िक म पछताऊंगा
नहीं, तो मन के िलए एक ही उपाय है िक वह म म चला जाए, जहां कोई पलड़ा नहीं है ।

ले िकन मन धोखा दे ता है । मन कहता है, ोध िकया है , पछताओ। और मन यह भी समझाता है , और न मालू म


िकतने लोग समझाते रहते ह–साधु ह, सं ासी ह–सारे मु म समझाते रहते ह, िबलकुल अवै ािनक बात। वे कहते
ह, ोध िकया है , तो प ा ाप करो। प ा ाप से, वे कहगे िक तु ारा ोध िमट जाएगा। कभी िकसी का नहीं िमटा।
वे कहते ह, ोध िकया, तो प ा ाप करो; प ा ाप से ोध िमट जाएगा। ोध नहीं िमटे गा, िसफ ोध को पुनः
करने की साम पैदा हो जाएगी। करके दे ख और आप पाएं गे िक पुनः आप समथ हो गए।
26

ोध से जो थोड़ा-सा दं श पैदा आ था, पीड़ा आई थी, वह िफर िमट गई। ोध से जो अहं कार को थोड़ी-सी चोट
लगी थी िक म कैसा बु रा आदमी ं , वह िफर िमट गई। प ा ाप से िफर लगा िक म तो अ ा आदमी ं । प ा ाप
करके आप पुनः उसी थित म आ गए, जै सा ोध करने के पहले थे । आपने े टस को, पुनः-पुनः पुरानी थित म
अपने को थािपत कर िलया। अब आप िफर ोध कर सकते ह। अब आप बु रे आदमी नहीं ह। अब आप ोध कर
सकते ह।

ं ! और जो मने ोध के िलए कहा, वही मन की सभी वृ ि यों के िलए लागू है । सभी वृ ि यों के िलए लागू है । कृ
कहते ह, बीच म है योग। ये दोनों ही अयोग ह– ोध भी, प ा ाप भी; ेम भी, घृ णा भी। बीच म है योग; वहीं है , जहां
सं तुलन है ।

ा कर? सं तुलन म कैसे ठहर जाएं ? कहां क?

जब भी एक पलड़े से दू सरे पलड़े पर जाने की तै यारी हो रही हो, तब दू सरे पलड़े पर न जाएं । ज ी न कर। दू सरे
पलड़े पर न जाएं । अगर ोध है , तो ोध म ही ठहर जाएं ; प ा ाप पर ज ी न कर जाने की। ोध म ही ठहर
जाएं ।

ठहर न सकगे । मन का िनयम नहीं है ठहरने का। अगर प ा ाप पर जाने से आपने रोक िलया, तो भी मन जाएगा।
ले िकन जाने का, तीसरा एक ही उपाय है िक वह पलड़े के बाहर चला जाए।

इसिलए जो आदमी ोध कर सके, वह ोध म ही ठहर जाए। बु रा है ोध ब त। ठहर नहीं सकगे, हटना पड़े गा।
क न सकगे, उतरना ही पड़े गा। ले िकन ज ी न कर दू सरी अित पर जाने की। तो िफर एक ही िवक रह जाएगा
अपने आप, आपको म म जाने के अलावा कहीं जाने की गित न रह जाएगी।

जो भी िच का रोग है , उसी रोग म ठहर जाएं । भाग मत; ज ी न कर। िवपरीत रोग को न पकड़; वहीं ठहर जाएं ।
मन के ठहरने का िनयम नहीं है; वह तो जाएगा। आप उसको ं म भर न जाने द, तो वह म म चला जाएगा। इसे
योग कर और आप है रान हो जाएं गे ।

ले िकन जै से ही ोध आ िक मन दू सरा कदम उठाकर प ा ाप के पलड़े म रखना शु कर दे ता है । आदमी का


आधा िह ा ोध करता है, आधा िह ा प ा ाप की तै यारी करने लगता है । ोध करते ए आदमी को दे ख।
उसके चेहरे पर खयाल रख, तो आप फौरन उसके चेहरे पर धू प-छाया पाएं गे । वह ोध भी कर रहा है, सकुचा भी
रहा है ; तै यारी भी कर रहा है िक प ा ाप कर ले । अभी हाथ मारने को उठाया था; थोड़ी दे र म हाथ जोड़कर माफी
मां ग ले गा। िनपटा िदया! वह मन के ं म पूरा एक कोने से दू सरे कोने म चला गया। इस मन की ं ा कता को,
डायले को समझ ले ना ज री है ।

मा ् स ने तो कहा है िक समाज डायले कल है, ं ा क है । समाज ं से जीता है । ले िकन ऐसा िदन तो कभी आ
सकता है , जब समाज ं से न जीए। मा ् स के खुद के खयाल से भी अगर कभी सा वाद दु िनया म आ जाए, तो
कोई ं नहीं रह जाएगा। िफर नान-डु अिल क हो जाएगा समाज। नान-डायले कल हो जाएगा; ं नहीं होगा।
ले िकन मन कभी भी, िकसी थित म भी गै र- ं ा क नहीं हो सकता। ं रहे गा। हां , मन ही न रह जाए–उसके सू
कृ कह रहे ह–वह बात दू सरी है । मन रहे गा, तो ं रहे गा। मन ही न रह जाए, तो ं हीनता आ जाएगी।
इसिलए कृ के सू को अगर कोई ठीक से समझे, तो मा ् स का सा वाद दु िनया म तब तक नहीं आ सकता, जब
तक िक दु िनया म बड़े पैमाने पर ऐसे लोग न हों, िजनके पास मन न रह जाए। नहीं तो ं जारी रहे गा। ं बच नहीं
सकता।

समाज म जो ं िदखाई पड़ते ह, वे के ही मन के ं ों का िव ार है । जब तक भीतर मन ं ा क है ,


डायले कल है , तब तक हम कोई ऐसा समाज िनिमत नहीं कर सकते, िजसम ं समा हो जाए। हां, ं बदल
जाएगा। अमीर-गरीब का न रहेगा, तो स ाधारी कमीसार और गै र-स ाधारी का हो जाएगा। पद वाले का और गै र-पद
वाले का हो जाएगा। धन का न रहे गा, सौंदय का हो जाएगा, बु का हो जाएगा।
27

और बड़े मजे की बात है ! पुराने जमाने म लोग कहते थे िक धन तो भा से िमलता है । कल अगर समाजवाद दु िनया
म आ जाए, तो कोई सुं दर होगा, कोई असुंदर होगा। िकसी के सुं दर होने से उतनी हीर् ई ा जगे गी, िजतनी िकसी के
धनी होने से जगती रही है । िफर सा वाद ा कहे गा िक सुं दर होना कैसे हो जाता है ? कहे गा, भा से हो जाता है ।
कहे गा, कृित से हो जाता है ।

िफर एक आदमी बु मान होगा और एक आदमी बु हीन होगा। और बु हीन स ा म तो नहीं प ंच पाएं गे;
बु मान स ा म प ं च जाएं गे। िफर समाजवाद ा कहे गा? िक ये बु मान स ा म प ंच गए। आ खर बु मान
और बु हीन को समान हक होना चािहए। पर यह बु मान स ा म प ंच जाता है । तब एक ही उ र रह जाएगा िक
बु मान के िलए हम कैसे बं टवारा कर! वह शायद भा से ही है । वह बु मान है पैदाइश से, और तु म बु मान
नहीं हो पैदाइश से ।

ं बदल जाएं गे । ं नहीं बदले गा; ं जारी रहे गा। ोंिक मन ं ा क है । ले िकन मा ् स को खयाल भी नहीं था
मन का, उसे तो खयाल था समाज की व था का।

बु या कृ या महावीर या ाइ को हम पूछ, तो वे कहगे, समाज की व था तो मन का फैलाव है । हां , उस


िदन समाज समतु ल हो सकता है , िजस िदन योगा ढ़ हो जाएं , बड़े पैमाने पर। इतने बड़े पैमाने पर
योगा ढ़ हो जाएं िक जो योगा ढ़ नहीं ह, वे अथहीन हो जाएं ; उनका होना, न होना थ हो जाए। पर अभी तो
एकाध आदमी कभी करोड़ म योगा ढ़ हो जाए, तो ब त है । इसिलए जो िसफ सपने दे खते ह, वे कह सकते ह िक
कभी ऐसा हो जाएगा िक सब लोग योगा ढ़ हो जाएं । यह िदखाई नहीं पड़ता। यह सं भावना बड़ी असंभव मालू म
पड़ती है ।
यह आशा बड़ी िनराशा से भरी मालू म पड़ती है िक समाज िकसी िदन समतु ल हो जाए। ोंिक अभी तो हम
को भी समबु का नहीं बना पाते ह। समाज तो बड़ी घटना है । और समाज तो बदलती ई घटना है । एक भी
हम िनिमत नहीं कर पाते ह, जो िक सम हो जाए। इसिलए सा कभी समाज म हो जाए, यह असंभव मालू म पड़ता
है । जब तक का िच पूरी समता को उपल न हो–और एक के िच के समता को उपल होने से
कुछ भी नहीं होता। ोंिक कुछ कृ और महावीर और कुछ बु सदा समता को उपल होते रहे ह। ले िकन
इसके अित र कोई भी माग नहीं है ।

मन दु ख लाएगा ही, ोंिक मन ं लाएगा। जहां होगा ं , वहां होगा सं घष, वहां होगी कलह, वहां होगा े ष, वहां
होगी उ े जना, वहां होगा तनाव; वहां पीड़ा सघन होगी, वहां सं ताप घना होगा, वहां जीवन नक होगा।

मन नक का िनमाता है । मन के रहते कोई ग म वे श नहीं कर सकता। ोंिक मन ही नक है । ले िकन अगर कोई


सम हो जाए…।
तो कभी छोटे -छोटे योग करके दे ख सम होने के। ब त छोटे -छोटे योग करके दे ख; उनसे ही रा ा धीरे -धीरे साफ
हो सकता है ।

कभी ान करके खड़े ह। खयाल कर, तो आप है रान होंगे िक या तो आपका वजन बाएं पैर पर है या दाएं पैर पर है ।
थोड़ा-सा खयाल कर आं ख बं द करके, तो आप पाएं गे, वजन बाएं पैर पर है या दाएं पैर पर है । अगर पता चले िक
आपके शरीर का वजन बाएं पैर पर है , तो थोड़ी दे र के ए दे खते रह। आप थोड़ी दे र म पाएं गे िक वजन दाएं पैर
पर हट गया। अगर दाएं पैर पर वजन मालू म पड़े , तो वै से ही खड़े रह और पीछे अंदर दे खते रह िक वजन दाएं पैर
पर है । ण म ही आप पाएं गे िक वजन बाएं पैर पर हट गया। मन इतने जोर से बदल रहा है भीतर। वह एक पैर पर
भी एक ण खड़ा नहीं रहता। बाएं से दाएं पर चला जाता है; दाएं से बाएं पर चला जाता है ।

अब अगर इस छोटे -से अनुभव म आप एक योग कर, उस थित म अपने को ऐसा समतु ल करके खड़ा कर िक न
वजन बाएं पैर पर हो, न दाएं पैर पर; दोनों पैरों के बीच म आ जाए। यह ब त छोटा-सा योग आपसे कह रहा ं ।
वजन दोनों के बीच आ जाए।
28

एक ण को भी उसकी झलक आपको िमले गी, तो आप है रान हो जाएं गे । और िमले गी झलक। ोंिक जब बाएं पर
जा सकता है और दाएं पर जा सकता है , तो बीच म ों नहीं रह सकता! कोई कारण नहीं है , कोई बाधा नहीं है ,
िसफ पुरानी आदत के अित र । एक ण को आप ऐसे अपने को समतु ल कर िक बीच म रह गए, न बाएं पर वजन
है , न दाएं पर। और िजस ण आपको पता चलेगा िक बीच म है , उसी ण आपको लगेगा िक शरीर नहीं है । एकदम
लगे गा, बाडीलेसनेस हो गई है; शरीर म कोई भार न रहा। शरीर जै से िनभार हो गया। ऐसा लगेगा, जै से आकाश म
चाह तो उड़ सकते ह! उड़ नहीं सकगे; ले िकन लगे गा ऐसा िक चाह तो उड़ सकते ह। े िवटे शन नहीं मालू म होता।
े िवटे शन तो है , जमीन तो अभी भी खींच रही है । ले िकन जमीन का जो भार है , वह असली भार नहीं है । असली भार
तो मन का है, जो िनरं तर ं , हर छोटी चीज म ं को खड़ा करता है ।

इस छोटे -से योग को भी अगर रोज पं ह िमनट कर पाएं , तो तीन महीने म आप उस थित म आ जाएं गे, जब दोनों
पैर के बीच म आपको खड़े होने का अनुभव शु हो जाएगा। तो इस छोटे -से सू से आपको मन को सम बु म ले
जाने का आधार िमल जाएगा। तब जब भी मन और कहीं भी बायां-दायां चु नना चाहे, तब आप वहां भी बीच म ठहर
पाएं गे । ले िकन बीच म ठहरने का अनुभव कहीं से तो शु करना पड़े । किठन बात मने नहीं कही है , ब त सरल
कही है । ोंिक और चीज ब त किठन ह।

और चीज ब त किठन ह। िम न बनाएं , श ु न बनाएं –बड़ा किठन मालू म पड़े गा। मन ने िकसी को दे खा नहीं िक
बनाना शु कर दे ता है । आपको थोड़ी दे र बाद पता चलता है ; मन उसके पहले बना चु का होता है । अजनबी आदमी
भी आपके कमरे म वेश करता है , आपका मन चौंककर िनणय ले चुका होता है । िनणय आपको भी बाद म जािहर
होते ह। मन कह दे ता है , पसं द नहीं है यह आदमी। अभी िमले भी नहीं, बात भी नहीं ई, चीत भी नहीं ई; अभी
पहचाना भी नहीं, ले िकन मन ने कह िदया िक पसं द नहीं है । पुराने अनुभव होंगे।

मन के पास अपने अनुभव ह। कभी इस शकल के आदमी ने कुछ गाली दे दी होगी। िक इस आदमी के शरीर से
जै सी गं ध आ रही है , वै से आदमी ने कभी अपमान कर िदया होगा। िक इस आदमी की आं खों म जै सा रं ग है , वै सी
आं खों ने कभी ोध िकया होगा। कोई एसोिसएशन इस आदमी से तालमेल खाता होगा। मन ने कह िदया िक
सावधान! यह आदमी तु क टोपी लगाए ए है , मुसलमान है । यह आदमी ितलक लगाए ए है, िहं दू है । जरा सावधान!
यही आदमी म द म आग लगा गया था; िक यही आदमी मंिदर को तोड़ गया था। सावधान!

यह ब त अचे तन है , यह आपके होश म नहीं घटता है । होश म घटने लगे, तब तो घट ही न पाए। यह आपकी बे होशी
म घटता है । आपके भीतर उन अंधेरे कोनों म घट जाता है यह िनणय, िजनके ित आप भी सचे तन नहीं ह। आप तो
थोड़ी दे र बाद सचे तन होंगे; दे र लगे गी। इस आदमी से बातचीत होगी। और आपके मन ने जो िनणय ले िलया, उस
िनणय के अनुसार मन इस आदमी म वे -वे बात खोज ले गा, जो आपने िनणय िलया है ।
आमतौर से आप सोचते ह िक आप सोच-समझकर िनणय ले ते ह। ले िकन जो मन को समझते ह, वे कहते ह, िनणय
आप पहले ले ते ह, सोच-समझ सब पीछे का बहाना है ।

एक आदमी के ेम म आप पड़ जाते ह। आपसे कोई पूछे, ों पड़ गए? तो आप कहते ह, उसकी शकल ब त


सुं दर है, िक उसकी वाणी ब त मधु र है । ले िकन मनोवै ािनक कहते ह, ेम म आप पहले पड़ जाते ह, ये तो िसफ
बाद के रे शनलाइजेशंस ह।

अगर कोई पूछे िक ों ेम म पड़ गए? तो आप इतने समझदार नहीं ह िक आप यह कह सक िक मुझे पता नहीं
ों ेम म पड़ गया! बस, पड़ गया ं ! समझदारी िदखाने के िलए आप कहगे िक इसकी शकल दे खते ह, िकतनी
सुं दर है! ले िकन इसी की शकल को दे खकर कोई घृ णा म पड़ जाता है । इसी की शकल को दे खकर कोई दु न हो
जाता है । कहते ह, दे खते ह, इसकी आवाज िकतनी मधु र है! इसी की आवाज सु नकर िकसी को रातभर नींद नहीं
आती। और आपको भी िकतने िदन आएगी, कहना प ा नहीं है । महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने बाद हो
सकता है , डायवोस की दर ा ले कर खड़े हों। यही आवाज ब त कणकटु हो जाए, जो ब त मधु र मालू म पड़ी
थी।
29

ा हो गया? आवाज वही है , आप वही ह, चे हरा वही है । इससे बड़ी सु गंध आती थी, अब दु गध आने लगी। नाक-
न वही है, ले िकन पहले िबलकुल सं गमरमर मालू म होता था, अब िबलकुल िम ी मालू म होने लगा। हो ा गया?

कुछ हो नहीं गया। मन भीतर पहले िनणय ले ले ता है ; पीछे आपकी बु उसका अनुसरण करती रहती है ।

ायड का कहना है –और ायड मन को िजतना जानता है , कम लोग जानते ह–कहना है िक मनु अपने सब
िनणय अंधेरे म और अचेतन म ले ता है । और उसकी सब बु म ा झूठी और बे ईमानी है । सब बात वह जो कहता है
िक मने बड़ी सोच-समझकर की ह, कोई सोच-समझकर नहीं करता। बात पहले कर ले ता है, पीछे सोच-समझ का
जाल खड़ा करता है ।

हम ऐसे मकान बनाने वाले ह–मकान बनाने के िलए र खड़ा करना पड़ता है न बाहर! चारों तरफ बां स-
लकिड़यां बां धनी पड़ती ह, िफर मकान बनता है । ले िकन मन का मकान उलटा बनता है । पहले मकान बन जाता है ,
िफर हम बाहर लकिड़यां वगै रह बां ध दे ते ह।

पहले मन िनणय ले ले ता है , िफर पीछे हम बु के सब बां स इक े करके खड़ा करते ह, तािक कोई यह न कह सके
िक हम िनबु ह। िकसी की छोड़ द, हम न कह सक अपने को ही िक हम िनबु ह। हम बु मान ह। हमने जो
भी िनणय िलया है , ब त सोच-समझकर िलया है ।
कोई िनणय आप सोच-समझकर नहीं ले रहे ह। ोंिक जो आदमी सोच-समझकर िनणय ले गा, वह एक ही िनणय
ले ता है , वह जो कृ ने कहा है , वह सम का िनणय ले ता है । वह कोई दू सरा िनणय कभी लेता ही नहीं।

ं के सब िनणय नासमझी के िनणय ह। िन होने का िनणय ही समझदारी का िनणय है । वे जो भी समझदार ह,


उ ोंने एक ही िनणय िलया है िक ं के बाहर हम खड़े होते ह। और िजसने कहा िक म ं के बाहर खड़ा होता ं,
वह मन के बाहर खड़ा हो जाता है । और जो मन के बाहर खड़ा हो गया, उसकी शां ित की कोई सीमा नहीं; ोंिक
अब उ ेजना का कोई उपाय न रहा।

उ े जना आती थी ं से, चु नाव से, वाइस से । अब कोई उ े जना का कारण नहीं। अब कोई टशन, अब कोई तनाव
पैदा करने वाले बीज न रहे । अब वह बाहर है । अब वह शां त है । अब वह मौन है । अब वह जीवन को दे ख सकता है ,
ठीक जै सा जीवन है । अब वह अपने भीतर झां क सकता है ठीक उन गहराइयों तक, जहां तक गहराइयां ह। और ऐसा
जो अपने भीतर पूण गहराइयों तक झां क पाता है–योगा ढ़, योग को आ ढ़, योग को उपल ।
योग का ारं भ है सम , ले िकन जै से ही सम फिलत आ िक आदमी योगा ढ़ हो जाता है । योगा ढ़ का अथ है,
अपने म ठहर गया।
हम योग अ ढ़ ह। हम ुत ह। हम कहीं-कहीं डोलते िफरते ह। वह जगह भर छोड़ दे ते ह, जहां हम ठहरना
चािहए। कभी बाएं पर, कभी दाएं पर, म म कभी भी नहीं। म म ही आ ा है । बाएं भी शरीर है, दाएं भी शरीर
है । जब बाएं पैर पर जोर पड़ता है , तब शरीर के एक िह े पर जोर पड़ता है । और जब दाएं पैर पर जोर पड़ता है ,
तब भी शरीर के एक िह े पर जोर पड़ता है । अगर आप दोनों पैर के बीच म ठहर पाए, तो आप शरीर के बाहर
ठहर गए; आप आ ा म ठहर गए। तब िकसी शरीर के िह े पर जोर नहीं पड़ता है ।

और ऐसा ही सब चीजों के िलए है । घृ णा भी मन का िह ा है , ेम भी मन का िह ा है । अगर दोनों के बाहर ठहर


गए, तो आ ा म ठहर गए। ोध भी मन है , और मा भी मन है । दोनों के बाहर ठहर गए, तो मन के बाहर ठहर
गए।
इन दोनों के बाहर ठहरे ए को कृ कहते ह, योगा ढ़, योग म ठहरा आ, योग म िथर।

ऐसी िथरता जीवन के सम राज को खोल जाती है । ऐसी िथरता जीवन के सब ार खोल दे ती है । हम पहली बार
अ की गहराइयों से सं बंिधत होते ह। पहली बार हम उतरते ह वहां, जहां जीवन का मंिदर है , या जहां जीवन का
दे वता िनवास करता है । पहली बार हम परमा ा म छलां ग लगाते ह।
30

योग के पंख िमल जाएं िजसे, वही परमा ा म छलां ग लगा पाता है । ले िकन योग के पंख उसे ही िमलते ह, िजसे सम
का दय िमल जाए। नहीं तो योग के पंख नहीं िमलते । सम से शु करना ज री है ।

ऐसा सं क ों से ीण हो जाता है , कृ कहते ह।

सं क की ज रत ही नहीं रह जाती। सं क की ज रत ही तब पड़ती है , जब मुझे कुछ चुनाव करना हो। कहता


ं , यह चाहता ं , तो िफर पाने के िलए मन को जु टाना पड़ता है । कहता ं, धन पाना है , तो िफर धन की या ा पर मन
को दौड़ाना पड़ता है । चाहता ं िक हीरे की खदान खोजनी ह, तो िफर खदानों की या ा पर श को िनयोिजत
करना पड़ता है । िनयोिजत श का नाम सं क है । इ ा िसफ ारं भ है । अकेली इ ा से कुछ भी नहीं होता।
िफर सारी ऊजा जीवन की उस िदशा म बहनी चािहए।

म हाथ म तीर िलए खड़ा ं , सामने वृ पर प ी बै ठा है । अभी तीर चले गा नहीं, अभी प ी मरे गा नहीं। मन म पहले
इ ा पैदा होनी चािहए, इस प ी का भोजन कर लूं , या इस प ी को कैद करके अपने घर म इसकी आवाज को बं द
कर लूं, िक इस प ी के सुं दर पंखों को अपने िपंजड़े म, कारागृ ह म डाल दू ं । इ ा पैदा होनी चािहए, इस प ी की
मालिकयत की। पर अकेली इ ा से कुछ भी न होगा। इ ा आपम रही आएगी, प ी बै ठा आ गीत गाता रहे गा वृ
पर। इ ा आपके भीतर जाल बु नती रहे गी, प ी वृ पर बै ठा रहे गा।

नहीं; इ ा को सं क बनना चािहए। सं क का मतलब है , सारी ऊजा िनयोिजत होनी चािहए। हाथ तीर पर प ंच
जाना चािहए। तीर प ी पर लग जाना चािहए। सारी एका ता, सारी मन की श , सारे शरीर की श तीर म
समािहत हो जानी चािहए। जब तीर चढ़ गया ंचा पर, प ी पर ान आ गया, तो इ ा न रही, सं क हो गया।
हां, अभी भी लौट सकते ह। अभी भी सं क छूट नहीं गया है । ले िकन अगर तीर छूट गया हाथ से, तो िफर लौट नहीं
सकते । सं क अगर चल पड़ा या ा पर, ंचा के बाहर हो गया, तो िफर लौट नहीं सकते ।

तो सं क की दो अव थाएं ह। एक अव था, जहां से लौट सकते ह; और एक अव था, जहां से लौट नहीं सकते ।
हमारे सौ म से िन ानबे सं क ऐसी ही अव था म होते ह, जहां से लौट सकते ह। िजन-िजन सं क ों से लौट सकते
ह, लौट जाएं । सं क से लौटगे, तो इ ा रह जाएगी। हमारी सौ ितशत इ ाएं ऐसी ह, िजनसे हम लौट सकते ह।
िन ानबे ितशत सं क ऐसे ह, िजनसे हम लौट सकते ह। केवल उ ीं सं क ों से लौटना मु ल है, िजनके तीर
हमारी ंचा के बाहर हो गए।

म उस ोध से भी वापस लौट सकता ं , जो अभी मेरी वाणी नहीं बना। म उस ोध से भी वापस लौट सकता ं , जो
अभी मुखर नहीं आ। ले िकन जो ोध गाली बन गया और मेरे होठों से बाहर हो गया, उससे वापस लौटने का कोई
उपाय न रहा; तीर छूट गया है ।

ले िकन िजन सं क ों के तीर छूट गए ह, तीर छूट गया, अब प ी को लगे गा और प ी िगरे गा मरकर, तो भी म इतना
तो कर ही सकता ं , सं क को थ कर सकता ं । लौट तो नहीं सकता, ले िकन थ कर सकता ं । थ करने
का मतलब यह है िक प ी पर मालिकयत न क ं । िजस इ ा को ले कर सं क िनिमत आ था, उस इ ा को पूरा
न क ं । अभी भी तीर खींचा जा सकता है प ी से । अभी भी प ी के घाव ठीक िकए जा सकते ह। अभी भी प ी को
िपंजड़े म न डाला जाए, इसका आयोजन िकया जा सकता है । अभी भी प ी िजं दा हो, तो उसे मु आकाश म छोड़ा
जा सकता है ।

तो जो सं क तीर की तरह िनकल गए हों, उन सं क ों को अनडन करने के िलए जो भी िकया जा सके, वह साधक
को करना चािहए, उनको थ करने के िलए। जो सं क अभी ं चा पर चढ़े ह, ंचा ढीली छोड़कर तीरों को
वापस तरकस म प ंचा दे ना चािहए। जो सं क इ ा रह जाएं , उन इ ाओं के ं को समझ ले ना चािहए िक
चु नाव से पैदा हो रहे ह। और दाएं और बाएं के बीच म खड़ा हो जाना चािहए। और कहना चािहए, म चु नूंगा नहीं। म
एक ही चु नाव करता ं िक म चुनूंगा नहीं। टु बी वाइसले स इज़ िद ओनली वाइस। एक ही चु नाव है मेरा िक अब म
चु नाव नहीं करता।
31

इ ाओं के बादल थोड़ी दे र म ही िबखर जाएं गे और ितरोिहत हो जाएं गे । और अगर आप बाएं और दाएं के बीच म
खड़े हो गए, तो सम का अनुभव होगा। और सम का अनुभव योगा ढ़ होने का ार खोल दे ता है । वहां कोई
सं क नहीं है ; वहां कोई िवक नहीं है । वहां प रपूण मौन, प रपूण शू है । उसी शू म परम सा ा ार है ।

कृ के सभी सू परम सा ा ार के िविभ ारों पर चोट करते ह। वे अजु न को कहते ह िक तू सम बु को


उपल हो जा, िफर तू योगा ढ़ हो जाएगा। और िफर योगा ढ़ होकर ते रे सारे सं क िगर जाएं गे, सब िवक
िगर जाएं गे; ते रे िच की सारी िचं ताएं िगर जाएं गी। तू िनि ंत हो जाएगा। सच तो यह है िक तू िच ातीत हो जाएगा।
िच ही ते रा न रह जाएगा, मन ही ते रा न रह जाएगा। अगर ऐसा कह, तो कह सकते ह िक िफर तू अजु न न रह
जाएगा, आ ा ही रह जाएगा।

और िजस िदन कोई िसफ आ ा रह जाता है , उसी िदन जान पाता है अ के आनंद को, वह जो समािध है
अ की, वह जो ए टै सी है , वह जो मंगल है, वह जो सौंदय है गहन–स , यं म िछपा–उसके उदघाटन को।
परम है सं गीत उसका, परम है का उसका।
ले िकन जानने के पहले एक तै यारी से गु जरना ज री है । उसी तै यारी का नाम योग है । उस तै यारी की िस को पा
ले ना योगा ढ़ हो जाना है । उस तै यारी की ि या सम बु है ।

:
भगवान ी, इस ोक म कहे गए शमः अथात सवसं क ों के अभाव म और िनिवचार अव था म ा कोई भे द है
अथवा दोनों एक ही ह? कृपया इस पर काश डाल।
िनिवचार और िनःसंक ा इन दोनों म कोई भे द है या दोनों एक ह?

जहां तक अंत का सं बंध है , दोनों एक ह। जहां तक िस का सं बंध है , दोनों एक ह। जहां तक उपल का सं बंध है,
दोनों एक ह। जहां पूण होता है िनःसंक होना या िनिवचार होना, वहां एक ही अनुभूित रह जाती है–शू की,
िनराकार की, परम की। ले िकन जहां तक माग का सं बंध है , दोनों म भे द है । जहां तक माग का सं बंध है, दोनों म भे द
है । जहां तक मैथडॉलाजी का, िविध का सं बंध है , वहां दोनों म भे द है ।

िनिवचार की ि या िभ है िनःसंक होने की ि या से । िनःसंक होने की ि या है , सम बु , ं के बीच म


ठहर जाना। िनःसंक होने की, सं क ातीत होने की, सं क शू होने की िविध है –जो मने अभी आपसे कही–
समबु को उपल हो जाना। िनिवचार होने की ि या है , साि को उपल हो जाना।

प रणाम एक होंगे। िनिवचार होने की ि या है , सा ी हो जाना िवचार के। कैसा ही िवचार हो, उस िवचार के केवल
िवटनेस हो जाना, दे खने वाले हो जाना, दशक बन जाना। खेल म होते ए, खेल के दशक हो जाना। जै से नाटक को
दे खते ह, ऐसा अपने मन को दे खने लगना। िवचारों की जो धारा बहती है , उसके िकनारे , जै से रा ा चल रहा है , लोग
चल रहे ह, उसके िकनारे बै ठकर रा े को दे खने लगा कोई। ऐसे िकनारे बै ठकर, मन के िवचारों की धारा को दे खने
लगना।

िवचारों के ित जाग कता िविध है । और जो िवचारों के ित जाग क होगा, वह वहीं प ं च जाएगा िनिवचार होकर,
िनराकार म। ले िकन उन दोनों के छलां ग के थान अलग-अलग ह। और के टाइप, कार पर िनभर
करता है िक कौन-सा उिचत होगा।

जै से उदाहरण के िलए, कुछ लोग ह, जो इ ाओं जै सी चीज ादा करते ही नहीं, िवचार ही करते ह। इं टले ु अ ,
बु की दु िनया म जीने वाले लोग इ ाओं के जाल म ब त नहीं पड़ते। अ र गहन बु म जीने वाला आदमी
ब त आ े रटी म, तप या म जीता है ।

आइं ीन! अब आइं ीन से अगर आप कहो िक चु नाव मत करो, तो वह कहे गा, चु नाव हम करते ही कहां! अगर
आइं ीन से आप कहो िक न काली कार चु नो, न नीली कार चु नो; वह कहता है िक हमने कभी खयाल ही नहीं िकया
िक कौन-सी कार काली है और कौन-सी नीली है !
32

आइं ीन का जीवन तो एक तप ी का जीवन है । भोजन करते व भी उसकी प ी को ही खयाल रखना पड़ता है


िक नमक ादा तो नहीं है , श र ादा तो नहीं है , ोंिक वह तो खा ले गा। वह जीता है िवचार की दु िनया म, वहीं
दौड़ता रहता है ।

डा र राममनोहर लोिहया एक दफा आइं ीन को िमलने गए थे । ारह बजे का व उनकी प ी ने िदया था िक


आप ठीक ारह बजे आ जाएं ; और जरा-सी भी दे र की, तो किठनाई होगी। तो लोिहया ने सोचा िक शायद कोई
ब त ज री काम होगा ारह के बाद आइं ीन को। वे भागे ए ठीक ारह बजे प ंचे, ले िकन िसफ एक िमनट
की दे री हो गई।

तो उनकी प ी ने कहा िक आप तो चू क गए। पर उ ोंने कहा, एक ही िमनट! मुझे दरवाजे पर भी वे िदखाई नहीं
पड़े । वे गए कहां? उसकी प ी ने कहा िक वे बाथ म म चले गए। उ ोंने कहा, आप भी ा बात करती ह! म
ती ा कर सकता ं । उसने कहा, ले िकन कोई िहसाब नहीं िक वे कब िनकल। उ ोंने कहा, बाथ म म िकतना
नहाते ह? उसने कहा, नहाने का तो सवाल कहां है ! कई दफा तो िबना नहाए िनकल आते ह! तो बाथ म म करते
ा ह? वे वही करते ह, जो चौबीस घं टे करते ह। टब म ले ट जाते ह; सोचना शु कर दे ते ह। नहाना तो भू ल जाते ह!

छः घं टे बाद वे िनकले । बड़े आनंिदत बाहर आए। कोई गिणत की पहेली हल हो गई। डा र लोिहया ने पूछा िक
गिणत की पहेली आप ा बाथ म म हल करते ह? तो आइं ीन ने कहा िक ए पिडं ग यू िनवस का जो िस ां त
मने िवकिसत िकया िक जगत िनरं तर फैल रहा है , ठहरा आ नहीं है , जै से िक कोई गु ारे म हवा भर रहा हो और
गु ारा बड़ा होता जाए, ऐसा जगत बड़ा होता जा रहा है; ठहरा आ नहीं है । जगत रोज बड़ा हो रहा है । आइं ीन के
िस ां त को समथन िमल पाया और सही िस आ। तो आइं ीन ने कहा िक यह िस ां त मने अपने बाथ म के टब
म बै ठकर साबु न के बबू ले उठाते व , जब साबु न के बबू ले बड़े होते, तब मुझे खयाल आया। यह साबु न के बबू ले
अपने टब म बनाते ए और बबू लों से खेलते व मुझे खयाल आया िक यह जगत ए पिडं ग हो सकता है ।

हमारे पास तो जो श है , उसका मतलब ही होता है, ए पशन। इस मु के ऋिष तो सदा से यह कहते रहे ह
िक जगत फैल रहा है , जगत ठहरा आ नहीं है । ां ड का अथ ही होता है, जो फैलता चला जाए। जो के ही नहीं,
फैलता ही चला जाए। भाव ही िजसका फैलाव है ।
पर आइं ीन को यह खयाल उसके बाथ म म िमला। ऐसे लोग इ ाओं म नहीं जीते, िवचारों म जीते ह। थोड़ा फक
है । ऐसे लोग इ ाओं म नहीं जीते, िवचारों म जीते ह। इनके िलए, दो इ ाओं के बीच ठहर जाओ, इस सू का ब त
अथ नहीं होगा। इनके िलए, िवचारों के ित सजग हो जाओ, इसका ादा अथ होगा।

तो जो इं टले ु अल टाइप है, जो बु वादी टाइप है , िजसका कार बु म जीने का है , वासनाओं म जीने का नहीं–
बु भी वासना है, पर ब त िविभ कार है उसके जीने का–उसके िलए तो िनिवचार की साधना है ।

ले िकन अिधकतम लोग िवचारों म नहीं जीते; अिधकतम लोग वासनाओं म जीते ह। कभी कोई आइं ीन जीता है
िवचार म। अिधक लोग वासनाओं म जीते ह। अगर आप िवचार भी करते ह, तो िकसी वासना के िलए। और आइं ीन
जै से आदमी अगर कभी वासना भी करते ह, तो िकसी िवचार के िलए।

इस फक को खयाल म ले ल।

अगर आप िवचार भी करते ह, तो िकसी वासना के िलए। आप चाहते ह, एक बड़ा मकान हो जाए, तो िवचार करते ह
िक कैसे हो जाए? ा धं धा क ं ? कैसे धन कमाऊं? अगर आइं ीन को कभी बड़े मकान का भी िवचार आता है,
तो वह तभी आता है , जब उसको लगता है िक उसकी योगशाला छोटी पड़ गई है । अब इसम िवचार ठीक से नहीं
हो पा रहा है । वह सोचता है, कोई बड़ी योगशाला िमल जाए। अगर आइं ीन जै सा आदमी बड़े मकान की वासना
भी करता है, तो िकसी िवचार के कारण। और हम अगर कभी बै ठकर थोड़ा िवचार भी करते ह, तो िकसी वासना के
कारण। यह भे द है । िजनकी वासना इं फेिटकली ते ज है , उनके िलए कृ जो कह रहे ह, वह ठीक कह रहे ह।
33

अजु न िवचार वाला आदमी नहीं है , इ ाओं वाला आदमी है, यो ा है । िवचार से ब त ले न-दे न नहीं है उसको। और
आइं ीन जै सा िवचार म खो जाए, तो यु न कर पाएगा। यु का सू ही है िक िवचार मत करना, लड़ना। िवचार
िकया, तो लड़ाई किठन हो जाएगी; हार सु िनि त हो जाएगी। यु म तो वह आदमी जीतता है , जो िवचार नहीं करता,
सम प से लड़ता है । िवचार करता ही नहीं।

जापान म यो ाओं का एक समू ह है , समु राई। समु राई िश क िसखाते ह िक अगर तु मने एक ण भी िवचार िकया,
तो तु म चू क जाओगे । तलवार चलाओ, िवचार मत करो। जब लड़ रहे हो, तो तलवार चलाओ, िवचार मत करो। अगर
जरा-सा िवचार िकया, तो तलवार उतनी दे र के िलए चू क जाएगी; उतनी दे र म दु न तो छाती म तलवार डाल दे गा।

तो अगर कभी दो समु राई यो ा उतर जाते ह तलवार के यु म, तो बड़ी मु ल हो जाती है जीत-हार तय करना।
ोंिक दोनों ही िनिवचार लड़ते ह एक अथ म, िवचार नहीं करते , सीधा लड़ते ह। और लड़ना इं टयूिटव होता है ,
ोंिक िवचार तो होता नहीं िक कहां चोट क ं ! जहां से पूरे ाण कहते ह चोट करो, वहीं चोट होती है । चोट होने म
और िवचार करने म फासला नहीं होता। चोट ही िवचार है ।

और बड़ी है रानी की बात है िक समु राई यो ाओं का अनुभव है यह िक दू सरा , दु न जब हमला करता है , तो
वह कहां हमला करे गा, पूरे ाण अपने आप वहां तलवार को उठा दे ते ह बचाव के िलए। िवचार म तो दे र लग
जाएगी। िवचार म तो थोड़ी दे र लग जाएगी। िवचार म टाइम गैप होगा ही।

अगर आप मुझ पर तलवार से हमला कर रहे ह और मने सोचा िक पता नहीं, यह हमला कहां करगे–गदन पर, िक
कमर म, िक छाती म! मने इतनी दे र िवचार िकया, तलवार की गित ते ज है, इतनी दे र म तलवार गदन काट गई
होगी। िवचार का मौका नहीं है । यहां तो मुझे िबना िवचार के तलवार चलाने की सु िवधा है , बस। तलवार वहां प ंच
जानी चािहए, जहां तलवार प ंच रही है दु न की। इसम िवचार की बाधा, इसम िवचार का वधान नहीं होना
चािहए।

तो अजु न तो समु राई है । उसकी तो सारी ि या पूरे ाणों से लड़ने की है । वासनाएं उसके जीवन म ह, िवचार का
ब त सवाल नहीं है । इसिलए कृ उससे कह रहे ह िक तू दो वासनाओं के बीच म सम हो जा। दो वासनाओं के बीच
म सम हो जाए अजु न, तो योगा ढ़ हो जाए।

आइं ीन को योगा ढ़ होना हो, तो वासनाओं म सम होने का कोई सवाल नहीं। आइं ीन कहे गा, वासनाएं ह कहां?
होश भी नहीं है उसे वासना का।
एक िम के घर एक रात भोजन के िलए गया था। ारह बजे भोजन समा हो गया। िफर बाहर बरांडे म बै ठकर
िम के साथ गपशप चलती रही। आइं ीन अनेक बार अपनी घड़ी दे खता है , िफर वह िसर खुजलाकर िफर बातचीत
म लग जाता है । िम बड़ा परे शान है । बारह बज गए, एक बज गए। अब िम की िह त भी नहीं है कहने की िक
आइं ीन जै से को कहे िक अब आप जाइए; अब म सोऊं! िफर दो बज गए। और है रानी इससे और बढ़ जाती
है िक आइं ीन कई दफा अपनी घड़ी दे खता है । िफर घड़ी दे खकर िसर खुजलाकर िफर बै ठा रह जाता है । वह िम
बड़ा परे शान है िक घड़ी भी दे ख ले ते ह! उनको पता भी है िक दो बज गए।

िफर आ खर म िम ने कहा िक ा आज सोइएगा नहीं? आइं ीन ने कहा, यही तो म सोच रहा ं बार-बार घड़ी
दे खकर िक आप जाएं गे कब! उसने कहा िक आप हद कर रहे ह! यह घर मेरा है । आइं ीन ने कहा, माफ करो; मुझे
ब त प ा नहीं रह जाता िक घर िकसका है । म जाता ं । म बार-बार घड़ी इसीिलए दे ख रहा ं िक अब जाओ! आप
जाएं गे कब?

अब िजस आदमी को यह खयाल न रह जाता हो िक कौन-सा घर मेरा है , वह घर बनाने की वासनाओं म नहीं पड़


सकता। वह कोई सवाल नहीं है ; वह नहीं है; वह उसके िच का िह ा नहीं है ।
34

मोटे दो िवभाजन हम कर सकते ह। एक वे , जो िवचार म जीते ह, बु म। एक वे, जो वृ ि म जीते ह, वासना म। उन


दोनों के बीच भी एक पतला िवभाजन है ; वे, जो भाव म जीते ह, भावना म। ये तीन मोटे िवभाजन ह। इन तीनों के िलए
अलग-अलग ि याएं ह।

वृ ि म जो जीता है, वासना म–और अिधकतम लोग वृ ि म जीते ह, सौ म से िन ानबे लोग; इससे कम नहीं।
अिधकतम लोग वृ ि म जीते ह। उनके िलए सू है िक वे दो वृि यों, दो वासनाओं के बीच म सम हों।

ब त थोड़े -से लोग, आधा परसट सौ म से, िवचार म जीते ह। उनके िलए सू है िक वे िवचार के ित सजग हों। और
आधा ितशत लोग, ब त कम लोग, भावना म जीते ह। उनके िलए भी सू है िक वे भाव के ित रण से भर। इन
तीनों म थोड़े -थोड़े फक ह।

िवचार से िजसको िनिवचार की तरफ जाना है , उसे अवे यरनेस, िवचार के ित जाग कता। भाव से िजसे िनभाव म
जाना है , उसे भाव के ित माइं डफुलनेस, ृित, होश। थोड़ा फक है । जाग कता म और ृित म थोड़ा फक है ।
और िज वृ ि यों से जाना है , उ सम , समबु , दो के ं के बीच ठहर जाना।

एक दो श बीच के सू के िलए और कह दू ं । वे जो भावना म जीते ह; न तो वासना म जीते, न िवचार म जीते,


भावना म जीते ह। िजनके िलए न तो ब त िकसी योगशाला से अथ है , न िकसी गिणत की खोज करनी है , न कोई
दशनशा की पहे ली हल करनी है । िस ां तों से िज ले ना-दे ना नहीं। न िज कोई बड़ा रा बनाना है, न कोई बड़े
भवन बनाने ह। ले िकन जो भाव म जीते ह, ेम म, ोध म, जो भाव म जीते ह।
जै से िक उमर ख ाम ने अपनी बाइयात म कहा है िक वृ हो छायादार, साथ म सु राही हो सु रा की, और ि य तु म
िनकट हो, का की कोई पु क पास हो, तो मने सब जगत जीत िलया है; िफर कुछ और चािहए नहीं। गीत को
कभी हम का की पु क से पढ़ लगे; सु रा को कभी हम पी लगे; और िफर तारों से भरे आकाश के नीचे आिलं गन
म िनम होकर सो जाएं गे । छायादार वृ हो, इतना काफी है । िकसी बड़े मकान की कोई आकां ा नहीं है ।

अब यह उमर ख ाम िजस टाइप की बात कर रहा है , वह भावनाशील। िजं दगी म ेम हो, गीत हो, छायादार वृ हो,
तो पया । न ब त िवचार का सवाल है , न वह इस िवचार म पड़े गा िक शराब पीना चािहए िक नहीं पीना चािहए; न
वह इस वृ ि और वासना म पड़े गा िक वृ के नीचे कहीं कोई ेम हो सकता है , महल होना चािहए। नहीं; ेम है , तो
वृ महल हो गया। और ऐसे को अगर ेम नहीं िमला, तो बड़ा महल भी वीरान हो जाएगा। यह भाव के तल
पर जीने वाला है । यह भी ब त कम है । यह भी ब त कम है ! एक का की पु क पास म हो, उमर ख ाम
कहता है, तो बस काफी है । कभी गीत गा लगे उससे िनकालकर।

ऐसे को जो ि या है, बु ने उस ि या को नाम िदया है , राइट माइं डफुलनेस, स क ृित। इस बात का


होश, इस बात की ृित िक यह ेम है , यह घृ णा है, यह ोध है , यह राग है । इस बात की पूरी ृित, इसका पूरा
एका बोध। यह ा है ? यह जो म कर रहा ं , यह ा है?

अगर भाव के ित कोई एका ृित को उपल हो जाए और जान पाए िक यह ेम है, तो वह ब त चिकत हो
जाएगा। ोंिक वह पाएगा िक जै से ही वह होश से भरा िक यह ेम है , वै से ही उसे िदखाई पड़ा िक यही घृ णा भी है ।
टां सपैरट हो जाएगा, पारदश हो जाएगा ेम, और उसके पार घृ णा खड़ी िदखाई पड़े गी। जै से ही उसे िदखाई पड़ा,
यह ोध है , अगर उसने गौर से दे खा, तो फौरन पीछे प ा ाप, मा भी खड़ी ई िदखाई पड़ जाएगी। टां सपैरट हो
जाएं गे भाव।

भाव ब त टां सपैरट ह, ब त पारदश ह, कां च की तरह ह। वासनाएं प र की तरह ह, नान-टां सपैरट ह, उनके आर-
पार कुछ नहीं िदखाई पड़ता। वृि यां ब त ठोस ह। भाव ब त तरल, भाव ब त झीने ह, उनके आर-पार िदखाई पड़
सकता है । वृ ि यों के आर-पार कुछ िदखाई नहीं पड़ता। वृ ि यों के तो, दो वृ ि यों के बीच म आप खड़े हों, तो ार
िमले गा। दो प र ह वे । ले िकन भाव म अगर आप सजग हो जाएं , तो भाव म से ही आप को पार िदखाई पड़ने लगेगा।
भाव कां च की तरह झीने ह, िदखाई पड़ सकता है उनके पार; पारदश ह।
35

िवचार के ित सजगता, भाव के ित ृित, वासना के ित सम । प रणाम एक होगा। ये भे द, तीन तरह के लोग ह
पृ ी पर, इसिलए ह। प रणाम एक होगा।

िनिवचार हो जाएं , िक िनभाव, िक िनःसंक । जो बचेगा, वह िनराकार है । आप एक ही गं गा म कूदगे, ले िकन घाट


अलग-अलग होंगे। घाट आपका अपना होगा। जब तक घाट पर खड़े ह, तब तक फक होगा। गं गा म कूद गए, िफर
कोई फक नहीं होगा। िफर आप ा फक करगे िक म अलग घाट से कूदा था, इसिलए मेरी गं गा अलग है! िक तु म
अलग घाट से कूदे थे, इसिलए तु ारी गं गा अलग है ! घाट तो उसी ण छूट गया, जब आप गं गा म कूदे । ले िकन घाट
के फक ह। अगर हम ठीक से समझ, तो सारी दु िनया के धम, घाट के फक ह।

जै न ब त ठीक श उपयोग करते ह अपने उपदे ाओं के िलए, िज ोंने ान िदया। उनको वे कहते ह, तीथकर।
तीथकर का अथ होता है , घाट बनाने वाला, तीथ बनाने वाला। उसका इतना ही मतलब होता है िक इस आदमी ने एक
घाट और बनाया, िजससे लोग कूद सकते ह। दावा गं गा का नहीं है, दावा िसफ घाट का है । इसिलए दावा िबलकुल
ठीक है । दावा यह नहीं है िक इस आदमी ने गं गा बनाई। दावा इतना ही है िक इस आदमी ने एक घाट और बनाया,
जहां से नाव छोड़ी जा सकती है । और भी घाट ह, उनका कोई इनकार नहीं है ।

इसिलए महावीर ने िकसी घाट का इनकार नहीं िकया। कहा, और भी घाट ह। उनसे भी कोई जा सकता है । इसिलए
महावीर को ब त कम समझ सके लोग, ोंिक महावीर िकसी को गलत ही न कहगे । वे कहगे िक वह भी ठीक है;
वह भी एक घाट है ।

ठीक िवपरीत कहने वाले को, जो कहता है िक म तु ारे तो िबलकुल िवपरीत खड़ा ं ; तु म इस तरफ घाट बनाए हो,
मने उस तरफ घाट बनाया है , हम दोनों एक कैसे हो सकते ह? महावीर उससे भी कहते ह िक नाव छोड़ो, तो हम
एक ही गं गा म प ंच जाएं गे । तुम जो ठीक अपोिजट, िवपरीत खड़े हो। उस तरफ घाट बनाया तु मने। ठीक है । उस
तरफ के उतरने वालों के िलए वही उपयोगी होगा। इस तरफ वाले उस तरफ के घाट से कैसे उतरगे? और उस तरफ
के लोग इस तरफ के घाट से कैसे उतरगे?

तो महावीर कहते ह, कहीं से भी घाट हो, गं गा म, स की गं गा म, अ की गं गा म उतर जाएं । तो कहते ह, सभी


ठीक ह। एक ही बात को महावीर गलत कहते ह। वे कहते ह, जब भी कोई घाट वाला कहता है िक बस, यही घाट है ,
तब गलत कहता है । बस, एक बात गलत है । जब कोई कहता है , यही घाट ठीक है , और सब घाटों को गलत कहता
है , तभी गलत कहता है । बाकी कोई गलती नहीं है । घाट िबलकुल ठीक है , दावा गलत है । उस घाट से भी उतर
सकते ह। ले िकन बस दावा यह गलत है िक इसी घाट से उतर सकते ह। महावीर कहते ह, इतना ही कहो, इससे भी
उतर सकते ह। यह मत कहो, इसी से उतर सकते ह। बस इसी म िहं सा आ जाएगी। दू सरे घाटों को इनकार हो
जाएगा।

और सब घाट बड़े छोटे ह, गं गा ब त बड़ी है । पूरी गं गा पर घाट बनाना भी मु ल है । हालां िक सभी धम कोिशश
करते ह िक पूरी गं गा पर मेरा ही घाट बन जाए! बन नहीं पाता। जब तक घाट बनता है , तब तक अ र गं गा अपनी
धारा बदल दे ती है । कभी बन नहीं पाता है ।

गं गा बड़ी है । अ की गं गा िवराट है । हम एक छोटे -से कोने म घाट बनाने म सफल हो जाएं , वह भी ब त है ।


उससे भी हम छलां ग लगा सक, वह भी ब त है ।

तीन कार के घाट मूल प से िभ ह–भाव वाला, िवचार वाला, वासना वाला। कृ ने जो यह सू कहा है , यह
वासना वाले के िलए है । सम के घाट से वह योगा ढ़ हो सकता है ।

यदा िह ने याथषु न कम नुष ते।


सवसंक सं ासी योगा ढ दो ते।। 4।।
और िजस काल म न तो इं ि यों के भोगों म आस होता है तथा न कम म ही आस होता है, उस काल म
सवसं क ों का ागी पु ष योगा ढ़ कहा जाता है ।
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न इं ि यों म आस है िजसकी, न कम म; ऐसे ण म, जहां ये दो आस यां शे ष नहीं ह–ऐसे ण म ऐसा पु ष


योगा ढ़ कहा जाता है ।
दो बातों को थोड़ा-सा समझ ले ना उपयोगी है , इं ि यों म आस नहीं है िजसकी और न कम म। दोनों सं यु ह।
इं ि यों म आस हो, तो ही कम म आस होती है । इं ि यों म आस न हो, तो कम म आस का कोई
उपाय नहीं है । इसिलए कृ जब भी कुछ कहते ह, तो उसम एक वै ािनक ि या की सीढ़ी होती है । पहले कहते
ह, इं ि यों म आस नहीं िजसकी। इं ि यों म आस नहीं, तो कम म आस हो ही नहीं सकती। कम की सारी
आस , इं ि य की आस का फैलाव है ।

आप अगर धन इक ा कर रहे ह और धन को इक ा करने म जो कम करना पड़ता है, उसम बड़े आस ह, तो


ऐसा आदमी खोजना मु ल है जो िसफ कम करने के िलए आस हो। धन इं ि यों के िलए जो दे सकता है, उसका
आ ासन ही आस का कारण है । धन इं ि यों के िलए जो दे सकता है , उसका आ ासन ही कम का आकषण है ।

अगर कल पता चल जाए िक धन अब कुछ भी नहीं खरीद सकता, तो सारा आकषण ीण हो जाएगा। तब दु कान पर
बै ठकर आप दो पैसे ादा छीन ल ाहक से, इसकी उ ुकता म न रह जाएं गे । कभी भी न थे । दो पैसे छीनने को
कोई भी उ ुक न था। दो पैसे म कुछ मू है! मू ा है ? मू इं ि यों की तृ है । धन का ठीक-ठीक जो मू
है , वै ू है , वह इकॉनािमक नहीं है , वह आिथक नहीं है । धन की गहरी मू व ा मानिसक है । धन का वा िवक
मू अथशा ी तय नहीं करते राजधािनयों म बै ठकर। धन का वा िवक मू मन की वासनाएं तय करती ह, इं ि यां
तय करती ह।

इसिलए महावीर जै सा अगर धन नहीं साथ रखता, तो उसका कारण धन का ाग नहीं है । उसका गहरा
कारण इं ि यों के िलए तृ के आयोजन की जो आकां ा है , उसका िवसजन है । िफर धन को रखने का कोई कारण
नहीं रह जाता। िफर वह िसफ बोझ हो जाएगा। उसको ढोने की नासमझी महावीर नहीं करगे ।

धन के िलए आदमी इतना आकुल- ाकुल म करता है । इतना दौड़ता है । वह इं ि यों के िलए दौड़ रहा है । धन म
भरोसा है , िव ास है । धन खरीद सकता है सब कुछ। धन से खरीद सकता है । धन भोजन खरीद सकता है । धन
व खरीद सकता है । धन मकान खरीद सकता है । धन सु िवधा खरीद सकता है । धन जो खरीद सकता है , उसम ही
धन का मू है । धन सब कुछ खरीद सकता है । िसफ सु ख को छोड़कर, धन सब कुछ खरीद सकता है ।
ले िकन अगर यह आपको पता चल जाए िक धन सु ख नहीं खरीद सकता, तो धन की दौड़ बं द हो जाए। इसिलए धन
आ ासन दे ता है िक म सु ख खरीद सकता ं । म ही सु ख खरीद सकता ं ! खरीदता है दु ख, ले िकन आ ासन सु ख का
है ।

सभी नक के ार पर जो त ी लगी है , वह ग की लगी है । इसिलए जरा स लकर भीतर वे श करना। त ी तो


ग की लगी है । नक वाले लोग इतने तो होिशयार ह ही िक बाहर जो दरवाजे पर नेम- ेट लगाएं , वह ग की
लगाएं । नहीं तो कौन वे श करे गा? िलखा हो साफ िक यहां नक है , कोई वे श नहीं करे गा।

तो आप इस म म मत रहना िक नक के ार पर दो हि यों का ास बनाकर और एक मुद का चे हरा लगा होगा


और िलखा होगा, डजर, इनिफिनट वो े ज! ऐसा कुछ नहीं िलखा होगा। िलखा है , ग। आओ, क वृ यहीं है !
तभी तो कोई नक के ार म वे श करे गा। ार तो सब ग के ही वेश करते ह लोग, प ं च जाते ह नक म, यह बात
दू सरी है । ार तो सभी ग के मालू म होते ह।

इं ि यां तृ चाहती ह। धन तृ को िदलाने का आ ासन िदलाता है । जीवन कम म रत हो जाता है । कम की


आस , मूल म इं ि यों की ही तृ के िलए दौड़ है ।

इसिलए कृ कहते ह, इं ि यों म िजसकी आस न रही।

िकसकी न रहे गी इं ि यों म आस ? हम तो जानते ही नहीं िक इं ि यों के जोड़ के अलावा भी हमम कुछ और है । है
कुछ और? अगर आं ख फूट जाए मेरी–आपकी नहीं कह रहा–अगर मेरी आं ख फूट जाए, मेरे कान टू ट जाएं , मेरे हाथ
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कट जाएं , मेरी जीभ न हो, मेरी नाक न हो, तो म ा ं ? कुछ भी न रहा। इन पांच इं ि यों के जोड़ से अगर मेरी एक-
एक इं ि य िनकाल ली जाए, तो पीछे ा बचेगा? कुछ भी बचता आ मालू म नहीं पड़ता।

आदमी की आं ख चली जाती है , तो आधा आदमी चला जाता है । कान चले जाते ह, तो और गया। हाथ चले जाते ह, तो
और गया। अगर हमारी पां चों इं ि यां छीनी जा सक और हम िकसी तरह िजं दा रखा जा सके, तो हमम ा बचे गा?
कुछ भी नहीं बचे गा। ोंिक हमारा सारा अनुभव इं ि यों के अनुभव का जोड़ है । अगर हम लगता है िक म कुछ ं ,
तो वह मेरी इं ि यों का जोड़ है ।

तो िजसको ऐसा लगता है िक म इं ि यों का जोड़ ं , वह पु ष कहीं इं ि यों की आस से मु हो सकेगा? अगर म


इं ि यों का जोड़ ं , तो इं ि यों की आस से मु होना तो िसफ आ घात है ; और कुछ भी नहीं। म मर जाऊंगा,
और ा होगा!

ले िकन कृ तो कहते ह िक इं ि यों की आस से जो पार हो गया, वह योगा ढ़ हो गया। वे कहते ह, मर नहीं


जाएगा, ब वही पूरे अथ म जीवन को पाएगा।

पर हम उस जीवन का कोई भी पता नहीं है । हम तो इं ि यों का जोड़ ही हमारा जीवन है । अगर हमारी इं ि यों के
अनुभव एक-एक करके हटा िदए जाएं , तो पीछे जीरो, शू बचेगा, कुछ भी नहीं बचे गा। हाथ कुछ भी नहीं लगेगा।
सब जोड़ कट जाएगा। तो हम कैसे इं ि यों से, इं ि यों की आस से मु हो जाएं ? इं ि यों की आस से मु
होने के िलए पहला सू खयाल म रख, तभी हो सकगे ।

जब कोई इं ि य मां ग करे , जब कोई इं ि य चु नाव करे , जब कोई इं ि य भोग करे , जब कोई इं ि य तृ के िलए आतु र
होकर दौड़े , तब आपको कुछ करना पड़े गा इस स को पहचानने के िलए िक म इं ि य नहीं ं ।

जब आप भोजन करते ह, तो आप भोजन की इं ि य ही हो जाते ह। उस समय थोड़ा रण रखना ज री है , सच म म


भोजन कर रहा ं? भोजन करते व चौंककर एक बार दे खना ज री है , म भोजन कर रहा ं ? कहीं भी भीतर
खोज, म भोजन कर रहा ं?

तो आपको एक फक िदखाई पड़े गा। आप भोजन कर ही नहीं रहे ह; आप तो भोजन से ब त दू र ह। शरीर भोजन
कर रहा है । भोजन आपको छूता भी नहीं कहीं। आपकी कांशसनेस को, आपकी चे तना को कहीं श भी नहीं करता
है । कर भी नहीं सकता है ।

चे तना को कोई पदाथ कैसे श करे गा! ले िकन चे तना चाहे, तो पदाथ के ित आस हो सकती है । पदाथ श
नहीं करता; ले िकन चे तना चाहे, तो आकिषत हो सकती है । चे तना चाहे, तो पदाथ के साथ अपने को बं धन म अनुभव
कर सकती है, बं धा आ मान सकती है ।

जब आप भोजन करते ह, तो कहते ह, म भोजन कर रहा ं । भू ल जरा और गहरी है; जब आपको भू ख लगती है , तभी
से शु हो जाती है । तब आप कहते ह, मुझे भू ख लगी है । थोड़ा गौर से दे ख, आपको कभी भी भू ख लगी है ? आप
कहगे, िनि त ही, रोज लगती है। िफर भी म आपसे कहता ं, आपको भू ख कभी भी नहीं लगी; ां ित ई है । भू ख तो
शरीर को ही लगती है । आपको िसफ पता चलता है िक शरीर को भू ख लगी है । ले िकन इतनी लं बी ि या म आप
नहीं जाते । सीधी छलां ग लगा दे ते ह िक मुझे भू ख लगी है । भू ख शरीर को लगती है, आप िसफ कां शस होते ह िक
शरीर को भू ख लगी है । आप िसफ होश से भरते ह िक शरीर को भू ख लगी है । ले िकन चूं िक शरीर को आपने माना म,
इसिलए आप कहते ह िक मुझे भू ख लगी है ।

अब जब भू ख लगे, तो आप गौर से दे ख िक आपकी चे तना, िजसे पता चलता है िक भू ख लगी है और आपका शरीर
जहां भू ख लगती है , ये एक चीज नहीं ह; दो चीज ह। जब पैर म चोट लगती है, तो आपको चोट नहीं लगती। आपको
पता चलता है िक शरीर को चोट लगी है । ले िकन भाषा ने बड़ी ां ितयां खड़ी कर दी ह। भाषा म सं ि , हम कहते
ह, मुझे चोट लगी है । अगर िसफ भाषा की भू ल हो, तब तो ठीक है । ले िकन गहरे म चे तना की भू ल हो जाती है ।
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जब आप जवान होते ह, तो कहते ह, म जवान हो गया। जब आप बू ढ़े होते ह, तो कहते ह, म बूढ़ा हो गया। वही भू ल
है । वह जो भू ख वाली भू ल है , वह फैलती चली जाती है । आप जरा भी बू ढ़े नहीं ए। आं ख बं द करके पता लगाएं िक
चे तना बू ढ़ी हो गई? चे तना पर कहीं भी बु ढ़ापे की झु रयां न िदखाई पड़गी। और चे तना पर कहीं भी बु ढ़ापे का कोई
झुकाव नहीं आया होगा। चेतना वै सी की वै सी है, जै से ब े म थी। ज के व िजतनी ताजी थी, मरते व भी
उतनी ही ताजी होती है ।

चे तना बासी होती ही नहीं। ले िकन शरीर बासा होता चला जाता है । शरीर जीण-जजर होता चला जाता है । और हम
चौबीस घं टे की पुरानी ां ित को दोहराए चले जाते ह िक म शरीर ं , इसिलए आदमी रोता है िक म बू ढ़ा हो गया।

चे तना कभी बू ढ़ी नहीं होती। और इसीिलए, अगर आपकी आं ख बं द रखी जाएं , और आपको आपके शरीर का पता न
चलने िदया जाए, और सालभर बीत जाए, दस साल बीत जाएं ; आपको भोजन दे िदया जाए, ले िकन कभी दपण न
दे खने िदया जाए, तो ा दस साल बाद आप िसफ भीतर चेतना के अनुभव से कह सकगे िक म दस साल बू ढ़ा हो
गया? आप न कह सकगे । आपको पता ही नहीं चले गा।

इसीिलए कई दफे बड़ी भू ल हो जाती ह। कई दफे भू ल हो जाती ह। कई दफे िक ीं गहरे णों म बू ढ़े भी ब ों के


जै सा वहार कर जाते ह। वह इसीिलए कर जाते ह, और कोई कारण नहीं है । भीतर चे तना तो कभी बू ढ़ी होती नहीं,
ऊपर की खोल ही बू ढ़ी होती है । इसिलए कभी-कभी बू ढ़े भी जवानों जै सा वहार कर जाते ह, उसका कारण वही
है । भीतर चे तना कभी बू ढ़ी नहीं होती।

और वै ािनक हाम खोज ही िलए ह, आज नहीं कल वे इं जे न तै यार कर ही लगे िक एक बू ढ़े आदमी को


इं जे न दे िदया, उसकी दस साल उ कम हो गई! एक इं जे न िदया, उसकी बीस साल उ कम हो गई! शरीर
के हाम न बदले जाएं , तो साठ साल का आदमी अपने को तीस साल का अनुभव िजस िदन करने लगे गा, उस िदन
बड़ी मु ल होगी उसको। शरीर तो साठ साल का ही मालू म पड़े गा। ले िकन हाम न के बदल जाने से उसकी
आइडिटटी िफर बदले गी। वह तीस साल जै सा वहार करना शु कर दे गा।

चे तना की कोई उ नहीं है । शरीर की जै सी उ हो जाए, चे तना अपने को वै सा ही मान ले ती है । चे तना को िसफ होश
है । और होश का हम दु पयोग कर रहे ह। होश से हम दो काम कर सकते ह। होश से हम चाह तो शरीर के साथ
अपने को एक मान सकते ह; यह अ ान है । होश से हम चाह तो शरीर से अपने को िभ मान सकते ह; यही ान है ।

इं ि यों की आस से वही मु होगा, जो शरीर से अपने को िभ मानने म समथ हो जाए।

तो उपाय कर, िजनसे आपके और शरीर के िभ ता का बोध तीखा और खर होता चला जाए। जब भू ख लगे, तो कह
जोर से िक मेरे शरीर को भू ख लगी है । और जब भोजन से तृ हो जाए, तो कह जोर से िक मेरा शरीर तृ आ।
जब नींद आए, तो कह िक मेरे शरीर को नींद आती है । और जब बीमार पड़ जाएं , तो कह िक मेरा शरीर बीमार
पड़ा। इसे जोर से कह, तािक आप भी इसे गौर से सु न सक और इस अनुभव को गहरा करते चले जाएं । ादा दे र
नहीं होगी िक आपको यह तीित सघन होने लगे गी।

ये सारी तीितयां सजे शंस ह हमारे । हम कहते ह, म शरीर ं बार-बार, तो यह सजे शन बन जाता है , यह मं बन
जाता है । हम िह ोटाइ हो जाते ह। मानने लगते ह, शरीर हो गए। कह जोर से, तो िह ोिट टू ट जाएगा, स ोहन
टू ट जाएगा; िडिह ोटाइ हो जाएं गे । और जान पाएं गे िक म शरीर नहीं ं ।

िजस िदन जान पाएं गे, म शरीर नहीं ं , उसी िदन इं ि यों की आस िवदा हो जाएगी। और िजस िदन इं ि यों की
आस िवदा होती है , उसी िदन कम म कोई आस नहीं रह जाती। ा इसका यह मतलब है िक िफर भू ख
लगे गी, तो आप भोजन नहीं करगे ? नहीं।
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हां, इसका यह मतलब ज र है िक िफर भू ख लगे गी, तो ही आप भोजन करगे । और इसका यह मतलब ज र है िक
जब भू ख समा हो जाएगी, तब आप त ाल भोजन बं द कर दगे । इसका यह मतलब भी ज र है िक तब आप
ादा भोजन न कर सकगे । और इसका यह मतलब भी ज र है िक तब आप गलत भोजन भी न कर सकगे ।

गलत, और ादा, और थ का भोजन जो हम लादे चले जाते ह, वह हमारी इं ि यों की आस से पैदा होता है ,
शरीर की भू ख से नहीं। मां साहार िकए चले जाते ह, शराब पीए चले जाते ह, कुछ भी खाए चले जाते ह, उसका कारण
भू ख नहीं है । उसका कारण इं ि यों की आस है ।
हां, इं ि यों की आस चली जाए, तो भू ख तो लगे गी; और म आपसे क ं िक और भी शु तर भू ख की तीित होगी।
और भी शु तर! ले िकन तब आप भोजन तभी कर सकगे, जब भू ख लगे गी। अभी तो जब भोजन िदख जाए, तभी भू ख
लग जाती है । भोजन न भी िदखे, तो मन म ही भोजन की क ना चलती है और भू ख लग जाती है । अभी तो हमारी
अिधक भू ख फैलेिसयस है , धोखे की है ।

जो लोग शरीर शा का अ यन करते ह, वे कहते ह िक अिधक लोग, भू ख नहीं लगती है , तब खा ले ते ह; और उसी


की वजह से हजारों बीमा रयां पैदा होती ह। समय से खा ले ते ह, िक बस हो गया व भोजन का, तो भोजन कर ले ते
ह। िफर ाद से खा ले ते ह, ोंिक अ ा
लग रहा है , ािद लग रहा है , तो और डाले चले जाते ह! और कभी इस बात की िफ नहीं करते िक भू ख का ा
हाल है !

भू ख से कोई सं बंध हमारे भोजन का नहीं रह गया है । भोजन एक मानिसक िवलास बन गया है । भू ख एक शारी रक
ज रत है, भू ख एक आव कता है । भोजन एक वासना बन गई है । हमने भू ख के अित र भी भोजन म रस पैदा
कर िलए ह, वे जो इं ि यों की आस से आते ह।

सभी तरफ ऐसा आ है । कामवासना के सं बंध म भी ऐसा आ है । पशु भी हमसे ादा सं यत वहार करते ह
कामवासना म। पी रयािडकल है । एक अविध होती है , तब पशु कामातु र होता है । ले िकन मनु अकेला पशु है पृ ी
पर, जो चौबीस घं टे, सालभर कामातु र होता है । चौबीस घं टे! पशु जब कामातुर होता है, तब मादा नर को या नर मादा
को खोजता है । मनु अलग है । उसको नारी िदख जाए, पु ष िदख जाए, कामातु र हो जाता है । उलटा है ।
कामातु रता पहले आ जाती है पशु म, तब खोज शु होती है । मनु को पहले आ े िदखाई पड़ जाए, िवषय
िदखाई पड़ जाए, और कामातु रता पैदा हो जाती है ।

मेरे एक िम बड़े िशकारी ह, ब त िसं हों और ब त शे रों का िशकार िकया है । उनके घर म मेहमान था। उनसे म
पूछने लगा िक कभी आपने िकसी शे र को या िसं ह को भोजन कर ले ने के बाद भोजन म उ ुक पाया? उ ोंने कहा,
कभी नहीं। भोजन पर हम बै ठे थे । उनके भोजन को दे खकर ही मने उनसे यह पूछा था। िम के भोजन को दे खकर!
वे खाए ही चले जा रहे थे । उनको दे खकर ही मने पूछा था। उनको िफर भी खयाल नहीं आया।
उ ोंने कहा, आप यह ों पूछते ह? मने कहा, म इसिलए पूछता ं िक म दे ख रहा ं िक भोजन की ज रत ब त
दे र पहले पूरी हो गई है । वै से भी आपके शरीर म इतना इक ा है िक महीने दो महीने भोजन न कर, तो कोई भू ख
नहीं लगे गी। ले िकन आप खाए चले जा रहे ह! इसिलए म आपसे पूछता ं िक िकसी शे र को आपने भोजन करने के
बाद उ ु क दे खा? उ ोंने कहा िक नहीं दे खा। भोजन करने के बाद तो शे र के पास बकरी भी खड़ी रहे, तो वह
दे खता भी नहीं। ले िकन आदमी के पास िमठाई रखी रहे , तो न भी दे खे िफर भी दे खता रहता है। न दे खे िफर भी
दे खता रहता है !

इं ि यास शरीर को िवकृत व था दे जाती है । ऐसा , िजसकी इं ि य की आस नहीं है , उसको भी भू ख


लगे गी। ले िकन भू ख शु होगी। और भू ख वहीं तक होगी, जहां तक आव कता है । और आव कताएं ब त कम
ह। वासनाएं अनंत ह; आव कताएं बड़ी सीिमत ह। ाद का कोई अंत नहीं। भोजन तो ब त थोड़ा काफी है ।

और जीवन की सम िदशाओं म ऐसा ही प रणाम होगा। सब तरफ शु तम आव कताएं रह जाएं गी। कुछ
आव कताएं ऐसी ह, जो की आव कताएं ही नहीं ह। उनसे मु हो जाएगा। जै से से । यह ब त
मजे की बात है िक भोजन आपके शरीर की आव कता है , लेिकन आपने कभी सोचा न होगा िक कामवासना
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आपकी आव कता नहीं है । कामवासना समाज की आव कता है । अगर आप भोजन न कर, तो आप मर जाएं गे ।
और अगर आप म कामवासना न रहे , तो सं तित मर जाएगी, आगे समाज की धारा मर जाएगी। से जो है,
बायोलािजकल है । आपकी आव कता नहीं है उतनी, िजतनी कृित आपसे िकसी को पैदा करवा ले गी, इसके पहले
िक आप मर। वह कृित की ज रत है ।

और जो यह जान ले ता है िक म इं ि यों के पार ं, वह यह भी जान ले ता है िक म कृित के पार ं । वह कृित


के चं गुल और जाल के बाहर हो जाता है ।

तो जै से भोजन तो जारी रहे गा, ले िकन काम ितरोिहत हो जाएगा। यह मने फक करने को कहा िक हमारी
आव कताओं म भी भे द ह। िजस की इं ि य-आस िमट गई, उसकी भू ख शु होकर सीिमत, ाभािवक
हो जाएगी। उसका काम शु होकर राम की ओर गितमान हो जाएगा। उसकी कामवासना िवलीन हो जाएगी।
ोंिक वह की ज रत ही नहीं है, वह कृित की ज रत है । आप मर जाएं , इसके पहले कृित आपसे इतना
काम ले ले ना चाहती है िक अपनी जगह िकसी को छोड़ जाएं । बस, उससे आपका कोई योजन नहीं है । वह आपकी
ज रत नहीं है गहरे म।

ले िकन इं ि य से भरा आ मन उलटा सोचे गा। वह सोचे गा, एक बार भू खा रह जाए, राजी हो जाएगा, ले िकन
कामवासना से कने को राजी नहीं रहे गा। भू ख छोड़ दे गा, धन छोड़ दे गा, ा छोड़ दे गा, ले िकन कामवासना के
पीछे पड़ा रहे गा। वे िवकृत हो गई इं ि यां ह।

जै से ही इं ि यां कृित थ होंगी, सु कृत होंगी, सहज होंगी, वै से ही जो की आव कता है , वह सरल हो जाएगी।
और जो की आव कता नहीं है , वह ितरोिहत हो जाएगी।

ऐसे के कम का ा होगा?

कम के ित उसकी आस खो जाएगी, ले िकन कम बं द नहीं होगा। और जब कम के ित आस खोती है, तो जो


गलत कम ह, वे िवदा हो जाते ह; और जो सही कम ह, वे और भी बड़ी ऊजा से सि य हो जाते ह। धीरे -धीरे
के जीवन म शु भ कम रह जाते ह, अशु भ कम ितरोिहत हो जाते ह।

आज इतना ही।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


मालिकयत की घोषणा—(अ ाय-6) वचन—तीसरा

उ रे दा नाऽ ानं ना ानमवसादयेत्।


आ ैव ा नो ब ुरा ैव रपुरा नः।। 5।।
और यह योगा ढ़ता क ाण म हे तु कही है । इसिलए मनु को चािहए िक अपने ारा आपका सं सार समु से
उ ार करे और अपने आ ा को अधोगित म न प ं चावे । ोंिक यह जीवा ा आप ही तो अपना िम है और आप ही
अपना श ु है अथात और कोई दू सरा श ु या िम नहीं है ।

योग परम मंगल है । परम मंगल इस अथ म िक केवल योग के ही मा म से जीवन के स की और जीवन के आनंद
की उपल है । परम मंगल इस अथ म भी िक योग की िदशा म गित करता अपना िम बन जाता है । और
योग के िवपरीत िदशा म गित करने वाला अपना ही श ु िस होता है ।
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कृ कह रहे ह अजु न से, उिचत है , समझदारी है , बु म ा है इसी म िक अपनी आ ा का अधोगमन न


करे , ऊ गमन करे ।

और ये दोनों बात सं भव ह। इस बात को ठीक से समझ ले ना ज री है ।

की आ ा तं है नीचे या ा करने के िलए भी, ऊपर या ा करने के िलए भी। तं ता म सदा ही खतरा भी
है । तं ता का अथ ही होता है , अपने अिहत की भी तं ता। अगर कोई आपसे कहे िक आप िसफ वही करने म
तं ह, जो आपके िहत म है ; वह करने म आप तं नहीं ह, जो आपके िहत म नहीं है–तो आपकी तं ता का
कोई भी अथ नहीं होगा। कोई अगर मुझसे कहे िक म तं ं िसफ धम करने म और अधम करने के िलए तं
नहीं ं , तो उस तं ता का कोई अथ नहीं होगा; वह परतं ता का ही एक प है ।

मनु की आ ा तं है । और जब भी हम कहते ह, कोई तं है, तो दोनों िदशाओं की तं ता उपल हो


जाती है–बु रा करने की भी, भला करने की भी। दू सरे के साथ बु रा करने की तं ता, अपने साथ बु रा करने की
तं ता बन जाती है । और दू सरे के साथ भला करने की तं ता, अपने साथ भला करने की तं ता बन जाती है ।

मनु चाहे तो अंितम नक के दु ख तक या ा कर सकता है ; और चाहे–वही मनु , ठीक वही मनु , जो अंितम नक
को छूने म समथ है–चाहे तो मो के अंितम सोपान तक भी या ा कर सकता है ।

ये दोनों िदशाएं खुली ह। और इसीिलए मनु अपना िम भी हो सकता है और अपना श ु भी। हम म से ब त कम


लोग ह जो अपने िम होते ह, अिधक तो अपने श ु ही िस होते ह। ोंिक हम जो भी करते ह, उससे अपना ही
आ घात होता है, और कुछ भी नहीं।

िकसे हम कह िक अपना िम है ? और िकसे हम कह िक अपना श ु है ?

एक छोटी-सी प रभाषा िनिमत की जा सकती है । हम ऐसा कुछ भी करते हों, िजससे दु ख फिलत होता है , तो हम
अपने िम नहीं कहे जा सकते । यं के िलए दु ख के बीज बोने वाला अपना श ु है । और हम सब यं के
िलए दु ख के बीज बोते ह।

िनि त ही, बीज बोने म और फसल काटने म ब त व लग जाता है । इसिलए हम याद भी नहीं रहता िक हम अपने
ही बीजों के साथ की गई मेहनत की फसल काट रहे ह। अ र फासला इतना हो जाता है िक हम सोचते ह, बीज तो
हमने बोए थे अमृत के, न मालूम कैसा दु भा िक फल जहर के और िवष के उपल ए ह!

ले िकन इस जगत म जो हम बोते ह, उसके अित र हम कुछ भी न िमलता है , न िमलने का कोई उपाय है ।

हम वही पाते ह, जो हम अपने को िनिमत करते ह। हम वही पाते ह, िजसकी हम तै यारी करते ह। हम वहीं प ं चते ह,
जहां की हम या ा करते ह। हम वहां नहीं प ं च सकते, जहां की हमने या ा ही न की हो। य िप हो सकता है , या ा
करते समय हमने अपने मन म क ना की मंिजल कोई और बनाई हो। रा ों को इससे कोई योजन नहीं है ।

म नदी की तरफ जा रहा ं । मन म सोचता ं िक नदी की तरफ जा रहा ं । ले िकन अगर बाजार की तरफ चलने
वाले रा े पर चलूंगा, तो म िकतना ही सोचूं िक म नदी की तरफ जा रहा ं, म प ं चूंगा बाजार। सोचने से नहीं
प ं चता है आदमी; िकन रा ों पर चलता है , उनसे प ं चता है । मंिजल मन म तय नहीं होतीं, रा ों से तय होती ह।

आप कोई भी सपना दे खते रह। अगर आपने बीज नीम के बो िदए ह, तो सपने आप शायद ले रहे हों िक कोई
ािद मधु र फल लगगे । आपके सपनों से फल नहीं िनकलते। फल आपके बोए गए बीजों से िनकलते ह। इसिलए
आ खर म जब नीम के कड़वे फल हाथ म आते ह, तो शायद आप दु खी होते ह और पछताते ह। सोचते ह, मने तो
बीज बोए थे अमृत के, फल कड़वे कैसे आए?
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ान रहे, फल ही कसौटी है , परी ा है बीज की। फल ही बताता है िक बीज आपने कैसे बोए थे । आपने क ना ा
की थी, उससे बीजों को कोई योजन नहीं है ।

हम सभी आनंद लाना चाहते ह जीवन म, ले िकन आता कहां है आनंद! हम सभी शां ित चाहते ह जीवन म, ले िकन
िमलती कहां है शां ित! हम सभी चाहते ह िक सु ख, महासुख बरसे, पर बरसता कभी नहीं है ।

तो इस सं बंध म एक बात इस सू से समझ ले नी ज री है िक हमारी चाह से नहीं आते फल; हम जो बोते ह, उससे
आते ह।

हम चाहते कुछ ह, बोते कुछ ह। हम बोते जहर ह और चाहते अमृत ह! िफर जब फल आते ह, तो जहर के ही आते
ह, दु ख और पीड़ा के ही आते ह, नक ही फिलत होता है ।

हम सब अपने जीवन को दे ख, तो खयाल म आ सकता है । जीवनभर चलकर हम िसवाय दु ख के गङ् ढों के और कहीं
भी नहीं प ंचते मालू म पड़ते ह। रोज दु ख घना होता चला जाता है । रोज रात कटती नहीं, और बड़ी होती चली जाती
है । रोज मन पर और सं ताप के कां टे फैलते चले जाते ह। फूल आनंद के कहीं खलते ए मालूम नहीं पड़ते । पैरों म
प र बं ध जाते ह दु ख के। पैर नृ नहीं कर पाते ह उस खुशी म, िजस खुशी की हम तलाश म ह। िफर कहीं न कहीं
हम–हम ही– ोंिक और कोई नहीं है ; हम ही कुछ गलत बो ले ते ह। उस गलत बोने म ही हम अपने श ु िस होते
ह। बीज बोते व खयाल रखना, ा बो रहे ह।

ब त है रानी की बात है , एक आदमी ोध के बीज बोए, और शां ित पाना चाहे! और एक आदमी घृ णा के बीज बोए,
और ेम की फसल काटना चाहे ! और एक आदमी चारों तरफ श ु ता फैलाए, और चाहे िक सारे लोग उसके िम हो
जाएं ! और एक आदमी सब की तरफ गािलयां फके, और चाहे िक शु भाशीष सारे आकाश से उसके ऊपर बरसने
लग!

पर आदमी ऐसी ही असंभव चाह करता है , िद इं पािसबल िडजायर! म गाली दू ं और दू सरा मुझे आदर दे जाए, ऐसी ही
असंभव कामना हमारे मन म बैठी चलती है । म दू सरे को घृ णा क ं और दू सरे मुझे ेम कर जाएं । म िकसी पर
भरोसा न क ं , और सब मुझ पर भरोसा कर ल। म सबको धोखा दू ं , और मुझे कोई धोखा न दे । म सबको दु ख
प ं चाऊं, ले िकन मुझे कोई दु ख न प ंचाए। यह असंभव है । जो हम बोएं गे, वह हम पर लौटने लगे गा।

और जीवन का सू है िक जो हम फकते ह, वही हम पर वापस लौट आता है । चारों ओर से हमारी ही फकी गई


िनयां ित िनत होकर हम िमल जाती ह। दे र लगती है । जाती है िन; टकराती है बाहर की िदशाओं से; वापस
लौटती है । व लग जाता है । जब तक लौटती है , तब तक हम खयाल भी नहीं रह जाता िक हमने जो गाली फकी थी,
वही वापस लौट रही है ।

बु का एक िश मौ लायन एक रा े से गु जर रहा है । उसके साथ दस-पं ह सं ासी और ह। जोर से पैर म प र


लग जाता है रा े पर, खून बहने लगता है । मौ लायन आकाश की तरफ हाथ जोड़कर िकसी आनंद-भाव म लीन हो
जाता है । उसके चारों तरफ वे पं ह िभ ु है रानी म खड़े रह जाते ह।

मौ लायन जब अपने ान से वापस लौटता है, तो वे उससे पूछते ह, आप ा कर रहे थे? पैर म चोट लगी, प र
लगा, खून बहा, और आप कुछ ऐसे हाथ जोड़े थे, जै से िकसी को ध वाद दे रहे हों! मौ लायन ने कहा, बस, यह
एक ही मेरा िवष का बीज और बाकी रह गया था। मारा था िकसी को प र कभी, आज उससे छु टकारा हो गया।
आज नम ार करके ध वाद दे िदया है भु को िक अब मेरे कुछ भी बोए ए बीज न बचे । यह आ खरी फसल
समा हो गई।

ले िकन अगर आपको रा े पर चलते व प र पैर म लग जाए, तो इसकी ब त कम सं भावना है िक आप ऐसा सोच
िक िकसी बोए ए बीज का फल हो सकता है । ऐसा नहीं सोच पाएं गे । सं भावना यही है िक गली या रा े पर पड़े ए
प र को भी आप एक गाली ज र दगे। प र को भी! और कभी खयाल भी न करगे िक प र को दी गई गाली भी
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िफर बीज बो रहे ह आप। प र को दी गई गाली भी बीज बनेगी। सवाल यह नहीं है , िकसको गाली दी। सवाल यह है
िक आपने गाली दी। वह वापस लौटे गी। यह ब त मह पूण नहीं है िक िकसको गाली दी। वह गाली वापस लौटे गी।

सु ना है मने िक जीसस के पास एक आदमी आया। गांव का साधारण ामीण िकसान है । बै लों को गाली दे ने म ब त
ही कुशल है अपनी बै लगाड़ी म जोतकर। जीसस िनकलते ह गांव के रा े से । वह आदमी अपने बै लों को बे दी
गािलयां दे रहा है । बड़े आं त रक सं बंध बना रहा है गािलयों से । जीसस उसे रोकते ह और कहते ह िक पागल, तू यह
ा कर रहा है ! तो वह आदमी कहता है िक कोई बै ल मुझे गाली वापस तो नहीं लौटा दगे । तो ा मेरा िबगड़े गा?

वह आदमी ठीक कहता है । हमारा गिणत िबलकुल ऐसा ही है । जो आदमी गाली वापस नहीं लौटा सकता, उसे गाली
दे ने म हज ा है? इसिलए अपने से कमजोर को दे खकर हम सब गाली दे ते ह। कभी तो हम बे व भी गाली दे ते ह,
जब िक कोई ज रत भी न हो। कमजोर िदखा, िक हमारा िदल मचल आता है िक थोड़ा इसको सता लो।

जीसस ने कहा िक बै लों को गाली तू दे रहा है, अगर वे गाली लौटा सकते, तो कम खतरा था, ोंिक िनपटारा अभी
हो जाता। ले िकन चूं िक वे गाली नहीं लौटा सकते, ले िकन गाली तो लौटे गी। तू महं गे सौदे म पड़े गा। यह गाली दे ना
छोड़।

जीसस की तरफ उस आदमी ने दे खा; जीसस की आं खों को दे खा, उनके आनंद को, उनकी शां ित को। उसने उनके
पैर छु ए और कहा िक म कसम ले ता ं िक अब म इन बै लों को गाली नहीं दू ं गा।

जीसस दू सरे गां व चले गए। दो-चार िदन उस आदमी ने बड़ी मेहनत से अपने को रोका। ले िकन कसमों से दु िनया म
कोई कावट नहीं होतीं। कसम से कहीं कोई कावट होती है ? समझ से कावट होती है । दो-चार िदन रोका अपने
को, जबरद ी। खा ली थी कसम ईसा के भाव म। दो-चार िदन म भाव ीण आ, आदमी अपनी जगह वापस
लौट आया। उसने कहा िक छोड़ो भी, ऐसे तो हम मुसीबत म पड़ जाएं गे । बै लगाड़ी चलाना मु ल हो गया है ।
िहसाब बै लगाड़ी चलाने का रख िक गाली न दे ने का रख! बै लों को जोत िक अपने को जोते रह! बै लों को स ाल िक
खुद को स ाल! यह तो एक ब त मुसीबत हो गई। गाली उसने वापस दे नी शु कर दी। चार िदन िजतनी रोकी थी,
उतनी एक िदन म िनकाल ली। रफा-दफा आ। मामला ह ा आ। मन उसका शां त आ।

कोई तीन-चार महीने बाद जीसस उस गां व से वापस िनकल रहे ह। उसको तो पता भी नहीं था िक यह आदमी िफर
िमल जाएगा रा े पर। वह धु आंधार गािलयां दे रहा है बै लों को। जीसस ने खड़े होकर राह के िकनारे से कहा, मेरे
भाई!

उसने दे खा जीसस को, उसने कहा बै लों से, दे खो बै ल, ये मने तु गािलयां बताईं जै सी िक म तु पहले िदया करता
था। बै लों से बोला, ये मने तु गािलयां दीं जै सी िक म तु पहले िदया करता था। अब मेरे ारे बे टो, जरा ते जी से
चलो।

जीसस ने कहा िक तू बै लों को ही धोखा नहीं दे रहा है , तू मुझे भी धोखा दे रहा है । और तू मुझे धोखा दे , इससे कुछ
ब त हजा नहीं है ; तू अपने को धोखा दे रहा है । अंितम धोखा तो खुद पर ही िगर जाता है । जीसस ने कहा, हो सकता
है , म दु बारा इस गां व िफर कभी न आऊं। म माने ले ता ं िक तू बै लों को गािलयां नहीं दे रहा था, िसफ बै लों को
पुरानी याद िदला रहा था। ले िकन िकसिलए याद िदला रहा था! तू मुझे धोखा दे िक तू बै लों को धोखा दे , इसका ब त
अथ नहीं है । ले िकन तू अपने को ही धोखा दे रहा है ।

जीवन म जब भी हम कुछ बु रा कर रहे ह, तो हम िकसी दू सरे के साथ कर रहे ह, यह ां ित है आपकी। ाथिमक


प से हम अपने ही साथ कर रहे ह। ोंिक अंितम फल हम भोगने ह। वह जो भी हम बो रहे ह, उसकी फसल हम
काटनी है । इं च-इं च का िहसाब है । इस जगत म कुछ भी बे िहसाब नहीं जाता है ।

अपने ही श ु हो जाते ह हम, कृ कहते ह। उस ण म हम अपने श ु हो जाते ह, जब हम कुछ ऐसा करते ह,


िजससे हम अपने को ही दु ख म डालते ह; अपने ही दु ख म उतरने की सीिढ़यां िनिमत करते ह।
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तो ठीक से दे ख ले ना, जो आदमी अपना श ु है, वही आदमी अधािमक है । अधािमक वह है , जो अपना श ु है । और
जो अपना श ु है , वह िकसी का िम तो कैसे हो सकेगा? जो अपना भी िम नहीं, वह िकसका िम हो सकेगा! जो
अपने िलए ही दु ख के आधार बना रहा है, वह सबके िलए दु ख के आधार बना दे गा।

पहला पाप अपने साथ श ुता है । िफर उसका फैलाव होता है । िफर अपने िनकटतम लोगों के साथ श ुता बनती है ,
िफर दू रतम लोगों के साथ। िफर जहर फैलता चला जाता है । हम पता भी नहीं चलता। जै से िक झील म कोई, शांत
झील म, एक प र फक दे । पड़ती है चोट, प र तो नीचे बै ठ जाता है णभर म, ले िकन झील की सतह पर उठी ई
लहर दू र-दू र तक या ा पर िनकल जाती ह। प र तो बै ठ जाता है कभी का, ले िकन लहर चलती चली जाती ह अनंत
तक।

ऐसे ही हम जो करते ह, हम तो करके चु क भी जाते ह। आपने एक गाली दे दी। बात ख हो गई। िफर आप गीता
पढ़ने लगे । ले िकन वह गाली की जो रप , जो तरं ग पैदा ईं, वे चल पड़ीं। वे न मालू म िकतने दू र के छोरों को
छु एं गी। और िजतना अिहत उस गाली से होगा, उतने सारे अिहत के िलए आप िज ेवार हो गए।

आप कहगे, िकतना अिहत हो सकता है एक गाली से? अक नीय अिहत हो सकता है । और िजतना अिहत हो
जाएगा इस िव के तं म, उतने के िलए आप िज ेवार हो जाएं गे । और कौन िज ेवार होगा? आपने ही उठाईं वे
लहर। आपने ही पैदा िकया वह सब। आपने ही बोया बीज। अब वह चल पड़ा। अब वह दू र-दू र तक फैल जाएगा।
एक छोटी-सी दी गई गाली से ा- ा हो सकता है! अगर आपने अकेले म दी हो और िकसी ने न सु नी हो, तब तो
शायद आप सोचगे िक कुछ भी नहीं होगा इसका प रणाम।

ले िकन इस जगत म कोई भी घटना िन रणामी नहीं है । उसके प रणाम होंगे ही। किठन मालू म पड़े गा। िकसी को
गाली दी हो, उसका िदल दु खाया हो, तब तो हमने कोई श ु ता खड़ी की है । ले िकन अंधेरे म गाली दे दी हो, तो उससे
कोई श ुता पैदा हो सकती है? उससे भी पैदा होती है ।

आप ब त सू तरं ग पैदा करते ह अपने चारों ओर। वे तरं ग फैलती ह। उन तरं गों के भाव म जो लोग भी आएं गे, वे
गलत रा े पर ध ा खाएं गे । उन तरं गों के भाव म गलत रा े पर ध ा खाएं गे ।

अभी इस पर ब त काम चलता है , सू तम तरं गों पर। और खयाल म आता है िक अगर गलत लोग एक जगह इक े
हों, िसफ चु पचाप बै ठे हों, कुछ न कर रहे हों, िसफ गलत हों, और आप उनके पास से गु जर जाएं , तो आपके भीतर
जो गलत िह ा है , वह ऊपर आ जाता है । और जो ठीक िह ा है , वह नीचे दब जाता है ।

दोनों िह े आपके भीतर ह। अगर कुछ अ े लोग बै ठे हों एक जगह, भु का रण करते हों, िक भु का गीत गाते
हों, िक िक ीं सदभावों के फूलों की सु गंध म जीते हों, िक िसफ मौन ही बै ठे हों। जब आप उनके पास से गु जरते ह–
वही आप, जो गलत लोगों के पास से गु जरे थे, और आपका गलत िह ा ऊपर आ गया था–जब आप इन लोगों के
पास से गु जरते ह, तो दू सरी घटना घटती है । आपका गलत िह ा नीचे दब जाता है; आपका े िह ा ऊपर आ
जाता है ।

आपकी सं भावनाओं म इतने सू तम अंतर होते ह। और हम चौबीस घं टे जो कर रहे ह, उसका कोई िहसाब नहीं
रखता िक हम ा कर रहे ह। एक छोटा-सा गलत बोला गया श िकतने दू र तक कां टों को बो जाएगा, हम कुछ
पता नहीं है ।

बु अपने िभ ुओं से कहते थे िक तु म चौबीस घं टे, राह पर तु कोई िदखे, तो उसके मंगल की कामना करना। वृ
भी िमल जाए, तो उसके मंगल की कामना करके उसके पास से गु जरना। पहाड़ भी िदख जाए, तो मंगल की कामना
करके उसके िनकट से गु जरना। राहगीर िदख जाए अनजान, तो मंगल की कामना करके उसके पास से गु जरना।

एक िभ ु ने पूछा, इससे ा फायदा?


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बु ने कहा िक इसके दो फायदे ह। पहला तो यह िक तु गाली दे ने का अवसर न िमले गा; तु बु रा खयाल करने
का अवसर न िमले गा। तु ारी श िनयोिजत हो जाएगी मंगल की िदशा म। और दू सरा फायदा यह िक जब तु म
िकसी के िलए मंगल की कामना करते हो, तो तु म उसके भीतर भी रजोनस, ित िन पैदा करते हो। वह भी तु ारे
िलए मंगल की कामना से भर जाता है ।

अगर इस मु ने राह पर चलते ए अनजान आदमी को भी राम-राम करने की ि या बनाई थी–वह शायद दु िनया
म कहीं नहीं बनाई जा सकी। अं े जी म या पि म के मु ों म अगर वे कहते ह गुड माघनग, तो वह श ब त
साधारण है , से कुलर है । उसका कोई ब त मतलब नहीं है , सु बह अ ी है । ले िकन इस मु ने हजारों साल के
अनुभव के बाद एक श खोजा था नम ार के िलए, वह था, राम। राह पर कोई िमला है और हमने कहा, जय राम!
उस आदमी से कोई मतलब नहीं है , जय राम जी का कोई मतलब नहीं है । यह राम का रण है । उस आदमी को
दे खकर हमने भु का रण िकया।

जो ठीक से नम ार करना जानते ह, वे िसफ उ ारण नहीं करगे, वे उस आदमी म राम की ितमा को भी दे खकर
गु जर जाएं गे । उ ोंने उस आदमी को दे खकर भु को रण िकया। उस आदमी की मौजू दगी भु के रण की
घटना बन गई। इस मौके को छोड़ा नहीं; इस मौके पर एक शुभ कामना पैदा की गई, भु के रण की घड़ी पैदा
की गई।

और हो सकता है , वह आदमी शायद राम को मानता भी न हो, जानता भी न हो, ले िकन उ र म वह भी कहे गा, जय
राम। उसके भीतर भी कुछ ऊपर आएगा। और अगर राह से, पुराने गांव की राह से गु जरते ह, तो राह पर प ीस
दफा जय राम कर ले ना पड़ता है ।

जीवन ब त छोटी-छोटी घटनाओं से िनिमत होता है ।

मंगल की कामना या भु का रण, आपके भीतर जो े है , उसको ऊपर लाता है ; और दू सरे के भीतर जो े है ,
उसे भी ऊपर लाता है । जब आप िकसी के सामने दोनों हाथ जोड़कर िसर झुका दे ते ह, तो आप उसको भी झुकने का
एक अवसर दे ते ह। और झुकने से बड़ा अवसर इस जगत म दू सरा नहीं है, ोंिक झुका आ िसर कुछ भी बु रा नहीं
सोच पाता। झुका आ िसर गाली नहीं दे पाता। गाली दे ने के िलए अकड़ा आ िसर चािहए।

और कभी आपने खयाल िकया हो या न िकया हो, ले िकन अब आप खयाल करना। जब िकसी को दयपूवक
नम ार करके िसर झुकाएं और क ना भी कर सक अगर िक परमा ा दू सरी तरफ है, तो आप अपने म भी फक
पाएं गे और उस आदमी म भी फक पाएं गे । वह आदमी आपके पास से गु जरा, तो आपने उसको पारस का काम
िकया, उसके भीतर कुछ आपने सोना बना िदया। और जब आप िकसी के िलए पारस का काम करते ह, तो दू सरा भी
आपके िलए पारस बन जाता है ।

जीवन सं बंध है , रलेशनिशप है। हम सं बंधों म जीते ह। हम अपने चारों तरफ अगर पारस का काम करते ह, तो यह
असंभव है िक बाकी लोग हमारे िलए पारस न हो जाएं । वे भी हो जाते ह।

अपना िम वही है , जो अपने चारों ओर मंगल का फैलाव करता है , जो अपने चारों ओर शु भ की कामना करता है , जो
अपने चारों ओर नमन से भरा आ है , जो अपने चारों ओर कृत ता का ापन करता चलता है ।

और जो दू सरों के िलए मंगल से भरा हो, वह अपने िलए अमंगल से कैसे भर सकता है ! जो दू सरों के िलए भी
सु ख की कामना से भरा हो, वह अपने िलए दु ख की कामना से नहीं भर सकता। अपना िम हो जाता है । और अपना
िम हो जाना ब त बड़ी घटना है । जो अपना िम हो गया, वह धािमक हो गया। अब वह ऐसा कोई भी काम नहीं कर
सकता, िजससे यं को दु ख िमले ।

तो अपना िहसाब रख ले ना चािहए िक म ऐसे कौन-कौन से काम करता ं , िजससे म ही दु ख पाता ं । िदन म हम
हजार काम कर रहे ह; िजनसे हम दु ख पाते ह, हजार बार पा चु के ह। ले िकन कभी हम ठीक से तक नहीं समझ पाते
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ह जीवन का िक हम इन कामों को करके दु ख पाते ह। वही बात, जो आपको हजार बार मु ल म डाल चु की है ,
आप िफर कह दे ते ह। वही वहार, जो आपको हजार बार पीड़ा म ध े दे चु का है, आप िफर कर गु जरते ह। वही
सब दोहराए चले जाते ह यं की भां ित।

िजं दगी एक पुन से ादा नहीं मालू म पड़ती, जै सा हम जीते ह, एक मैकेिनकल रपीटीशन। वही भू ल, वही
चू क। नई भू ल करने वाले आिव ारी आदमी भी ब त कम ह। बस, पुरानी भू ल ही हम िकए चले जाते ह। इतनी
बु भी नहीं िक एकाध नई भूल कर। पुराना; कल िकया था वही; परसों भी िकया था वही! आज िफर वही करगे ।
कल िफर वही करगे।

इसके ित सजग होंगे, अपनी श ुता के ित सजग होंगे, तो अपनी िम ता का आधार बनना शु होगा।

कृ या बु या महावीर या ाइ जै से लोग अपने िलए, अपने िलए ही इतने आनंद का रा ा बनाते ह, िजसका
कोई िहसाब नहीं है । ऊपर से हम लगता है िक ये लोग िबलकुल ागी ह; ले िकन म आपसे कहता ं, इनसे ादा
परम ाथ और कोई भी नहीं है ।

हम ागी कहे जा सकते ह, ोंिक हमसे ादा मूढ़ कोई भी नहीं है । हम, जो भी मह पूण है , उसका ाग कर
दे ते ह; और जो थ है , उस कचरे को इक ा कर ले ते ह। और ये ब त होिशयार लोग ह। ये, जो थ है, उस सबको
छोड़ दे ते ह; जो साथक है , उसको बचा ले ते ह।

जीसस एक गां व के बाहर ठहरे ए ह। सां झ का व है । उस गां व के पंिडत-पुरोिहतों को बड़ी तकलीफ है जीसस के
आने से । सदा होती है । जब भी कोई जानने वाला पैदा हो जाता है , तो झूठे जानने वालों को तकलीफ शु हो जाती
है । जो ाभािवक है । उसम कुछ आ य नहीं है । पंिडत तो जानते ह िकताबों से । जीसस जानते ह जीवन से । तो
िकताबों से जानने वाला आदमी, जीवन से जानने वाले आदमी के सामने फीका पड़ जाता है , किठनाई म पड़ जाता है ,
मु ल म पड़ जाता है ।

गां व के पंिडत परे शान ह। उ ोंने कहा िक जीसस को फंसाने का कोई उपाय खोजना ज री है । उ ोंने बड़ा
इं तजाम िकया और उपाय खोज िलया। उपाय की कोई कमी नहीं है । वे गां व से एक ी को पकड़ लाए, जो िक
िभचार म पकड़ी गई थी। य िदयों की पुरानी धम की िकताब म िलखा है िक जो ी िभचार म पकड़ी जाए,
उसको प र मारकर मार डालना चािहए।

तो उस ी को वे ले आए जीसस के पास और उ ोंने कहा िक यह िकताब है हमारी पुरानी, धम ं थ की। इसम िलखा
है िक जो ी िभचार करे , उसे प र मारकर मार डालना चािहए। आप ा कहते ह? इस ी ने िभचार िकया
है । यह पूरा गांव गवाह है ।

यह जीसस को िद त म डालने के िलए बड़ा सीधा उपाय था। अगर जीसस कह िक ठीक है , पुरानी िकताब को
मानकर प रों से मार डालो इसे; तो जीसस के उस वचन का ा होगा, िजसम जीसस ने कहा है िक जो तु एक
चां टा मारे , तु म उसके सामने दू सरा गाल कर दो। और जो तु ारा कोट छीने, उसे कमीज भी दे दो। और अपने
श ुओं को भी ेम करो। उन सब वचनों का ा होगा? तो जीसस को किठनाई खड़ी हो जाएगी। और अगर जीसस
कह िक नहीं, प र मार नहीं सकते इसे । माफ कर दो, मा कर दो। तो हम कहगे, तु म हमारी धम-पु क के
िवपरीत बात कहते हो! तो तु म धम के दु न हो।

ले िकन उ पता नहीं था िक जीसस जै से आदमी को मुि यों म बां धना आसान नहीं होता। पारे की तरह होते ह ऐसे
लोग। मु ी बां धी िक बाहर िनकल जाते ह।

जीसस ने कहा िक िबलकुल ठीक कहती है पुरानी िकताब! प र हाथ म उठा लो और इस ी को प रों से मार
डालो। वे तो बड़े है रान ए। उ ोंने तो सोचा भी न था िक यह होगा। पर जीसस ने कहा, खयाल रख, पहला आदमी
वह हो प र मारने वाला, िजसने िभचार न िकया हो और िभचार का िवचार न िकया हो।
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कोई आदमी नहीं था उस गां व म, िजसने िभचार का िवचार न िकया हो। िकस गां व म ऐसा आदमी है ! जो लोग
आगे खड़े थे साफे-पगिड़यां वगै रह बांधकर, प र हाथ म िलए, वे धीरे -धीरे भीड़ म पीछे सरकने लगे । यह तो उप व
की बात है । जो पीछे खड़े थे, वे तो भाग खड़े ए। उ ोंने कहा िक यहां ठहरना ठीक नहीं है । थोड़ी दे र म वह नदी
का तट खाली हो गया था। वह ी थी और जीसस थे ।

जब सारे लोग जा चु के, तो उस ी ने जीसस से पूछा िक आप मुझे जो सजा द, म ले ने को तै यार ं ; म िभचारी ं ।


मुझ पर कृपा कर और मुझे सजा द। जीसस ने कहा, मुझे माफ कर। परमा ा न करे िक म िकसी का िनणायक बनूं,
ोंिक म िकसी को अपना िनणायक नहीं बनाना चाहता ं ।

जीसस ने कहा, परमा ा न करे िक म िकसी का िनणायक बनूं। ोंिक म िकसी को अपना िनणायक नहीं बनाना
चाहता ं । जीसस का वचन है , जज यी नाट, दै ट यी शु ड नाट बी ज । तु म िकसी के िनणायक मत बनो, तािक कोई
तु ारा कभी िनणायक न बने।

म कौन ं ! म इतना अहं कार कैसे क ं िक ते रा िनणय क ं ! म ं कौन! तू जान, ते रा परमा ा जाने । म कौन ं ! म
ते रे बीच म खड़ा होने वाला कौन ं ! म अगर तु झे जरा ऊंची जगह पर खड़े होकर भी दे खूं, तो पापी हो गया। म कौन
ं ! म कोई भी नहीं ं । और िफर तू ने खुद ीकार िकया िक तू िभचा रणी है , तो तू पाप से मु हो गई, बात
समा हो गई।

ीकृित मु है । अ ीकृित म पाप िछपता है , ीकृित म िवसिजत हो जाता है ।

जीसस ने कहा िक मुझे मत उलझा। म ते रा िनणायक नहीं बनूंगा, ोंिक म नहीं चाहता िक कोई मेरा िनणय करे ।

जो आप नहीं चाहते िक दू सरे आपके साथ कर, कृपा करके वह आप दू सरों के साथ न कर। जीसस की पूरी नई
बाइिबल का सार एक ही वचन है , दू सरों के साथ वह मत कर, जो आप नहीं चाहते िक दू सरे आपके साथ कर। और
अगर इस वा को ठीक से समझ ल, तो कृ का सू समझ म आ जाए।

और कई बार ऐसा मजे दार होता है िक कृ के िकसी वा की ा ा बाइिबल म होती है । और बाइिबल के िकसी
वा की ा ा गीता म होती है । कभी कुरान के िकसी सू की ा ा वे द म होती है । कभी वे द के िकसी सू की
ा ा कोई य दी फकीर करता है । कभी बु का वचन चीन म समझा जाता है । और कभी चीन म लाओ े का
कहा गया वचन िहं दु ान का कोई कबीर समझता है ।

ले िकन धम ने इतनी दीवाल खड़ी कर दी ह इन सबके बीच िक इनके बीच जो ब त आं त रक सं बंध के सू दौड़ते ह,
उनका हम कोई रण नहीं रहा। नहीं तो हर मंिदर और म द के नीचे सु रंग होनी चािहए, िजसम से कोई भी
मंिदर से म द म जा सके। और हर गु ारे के नीचे से मंिदर को जोड़ने वाली सु रंग होनी चािहए, िक कभी भी
िकसी की मौज आ जाए, तो त ाल गु ारे से मंिदर या म द या चच म जा सके। ले िकन सु रंगों की तो बात दू र,
ऊपर के रा े भी बं द ह, सब रा े बं द ह।

अपना िम दू सरों के साथ वही करे गा, जो वह चाहता है िक दू सरे उसके साथ कर। अपना श ु दू सरों के साथ वही
करे गा, जो वह चाहता है िक दू सरे कभी उसके साथ न कर। और जो अपना िम हो गया, वह योग की या ा पर
िनकल पड़ा है । और आ ा अपनी िम भी हो सकती है , श ु भी हो सकती है ।

ान रखना, श ु होना सदा आसान है । श ु होने के िलए ा करना पड़ता है , कभी आपने खयाल िकया है! अगर
आपको िकसी का श ु होना है , तो एक से कड म हो सकते ह। और अगर िम होना है , तो पूरा ज भी ना काफी है ।
अगर आपको िकसी का श ु होना है , तो ण की भी तो ज रत नहीं है, ण भी काफी है । एक जरा-सा श और
श ुता की पूरी की पूरी व था हो जाएगी। ले िकन अगर आपको िकसी का िम होना है , तो पूरा जीवन भी ना काफी
है , नाट इनफ। पूरी िजं दगी म करने के बाद भी कहीं कोई चीज, अभी दरार बाकी रह जाएगी, जो पूरी नहीं हो
पाती।
48

िम ता बड़ी साधना है , श ु ता ब ों का खेल है । इसिलए हम श ु ता म आसानी से उतर जाते ह। और खुद के साथ


िम ता तो ब त ही किठन है । दू सरे के साथ इतनी किठन है , खुद के साथ तो और भी किठन है।

आप कहगे, ों? दू सरे के साथ इतनी किठन है, तो खुद के साथ और भी किठन ों होगी? खुद के साथ तो आसान
होनी चािहए। हम तो सब समझते ह िक हम सब अपने को ेम करते ही ह।

ां ित है वह बात, फैले सी है, झूठ है । हमम से ऐसा आदमी ब त मु ल है , जो अपने को ेम करता हो। ोंिक जो
अपने को ेम कर ले , उसकी िजं दगी म बु राई िटक नहीं सकती; असंभव है । अपने को ेम करने वाला शराब पी
सकता है ? अपने को ेम करने वाला ोध कर सकता है?

बु िनकलते ह एक रा े से और एक आदमी बु को गािलयां दे ता है । तो बु के साथ एक िभ ु है आनंद, वह


कहता है िक आप मुझे आ ा द, तो म इस आदमी को ठीक कर दू ं । तो बु ब त हं सते ह। तो आनंद पूछता है , आप
हं सते ों ह? वह आदमी भी पूछता है, आप हं सते ों ह? तो बु कहते ह, म आनंद की बात सु नकर हं सता ं ।
यह भी बड़ा पागल है । दू सरे की गलती के िलए खुद को सजा दे ना चाहता है । बु कहते ह, दू सरे की गलती के िलए
खुद को सजा दे ना चाहता है । आनंद ने कहा, म समझा नहीं! बु ने कहा, गाली उसने दी, ोध तू करना चाहता है !
सजा तू भोगे गा। ोध तो अपने म आग लगाना है ।

हम सब ोध को भलीभां ित जानते ह। ोध से बड़ी सजा ा हो सकती है ? ले िकन दू सरा गाली दे ता है, हम ोध


करते ह। बु कहते ह, दू सरे की गलती के िलए खुद को सजा!

हम सब वही कर रहे ह। िम ता अपने साथ कोई भी नहीं है । और अपने साथ िम ता इसिलए भी किठन है िक दू सरा
तो िविजबल है , दू सरा तो िदखाई पड़ता है; हाथ फैलाया जा सकता है दो ी का। ले िकन खुद तो ब त इनिविजबल,
अ स ा है ; वहां तो हाथ फैलाने का भी उपाय नहीं है । दू सरे िम को तो कुछ भट दी जा सकती है , कुछ शं सा
की जा सकती है , कुछ दो ी के रा े बनाए जा सकते ह, कुछ से वा की जा सकती है । खुद के साथ तो कोई भी रा े
नहीं ह। खुद के साथ तो शु मै ी का भाव ही! और कोई रा ा नहीं है , और कोई से तु नहीं है । अगर हो समझ,
अंडर िडं ग ही िसफ से तु बनेगी। उतनी समझ हमम नहीं है ।

हम सब नासमझी म जीते ह। लेिकन नासमझी म इतनी अकड़ से जीते ह िक समझ को आने का दरवाजा भी खुला
नहीं छोड़ते । असल म नासमझ लोगों से ादा यं को समझदार समझने वाले लोग नहीं होते! और िजसने अपने को
समझा िक ब त समझदार ह, समझना िक उसने ार बं द कर िलए। अगर समझदारी उसके दरवाजे पर द क भी
दे , तो वह दरवाजा खोलने वाला नहीं है । वह खुद ही समझदार है !

हमारी समझदारी का सबसे गलत जो आधार है, वह यह है िक हम अपने को ेम करते ही ह। यह िबलकुल झूठ है ।
अगर हम अपने को ेम करते होते, तो दु िनया की यह हालत नहीं हो सकती थी, जै सी हालत है । अगर हम अपने को
ेम करते होते, तो आदमी पागल न होते, आ ह ाएं न करते। अगर हम अपने को ेम करते होते, तो दु िनया म
इतना मानिसक रोग न होता।

िचिक क कहते ह िक इस समय कोई स र ितशत रोग मानिसक ह। वे अपने को घृ णा करने से पैदा ए रोग ह।
हम सब अपने को घृ णा करते ह। हजार तरह से अपने को सताते ह। सताने के नए-नए ढं ग ईजाद करते ह! अपने को
दु ख और पीड़ा दे ने की भी नई-नई व थाएं खोजते ह। य िप हम सबके पीछे ब त तक इं तजाम कर ले ते ह।

यह तो िचिक क कहते ह िक स र ितशत बीमा रयां आदमी अपने को सजा दे ने के िलए िवकिसत कर रहा है ।
ले िकन मनस-िचिक क कहते ह िक यह आं कड़ा छोटा है अभी; अंडरए मेशन है । असली आं कड़ा और बड़ा है ।
और अगर आं कड़ा िकसी िदन ठीक गया, तो िन ानबे ितशत बीमा रयां मनु अपने को सजा दे ने के िलए ईजाद
करता है ।
49

इतनी घृ णा है खुद के साथ! वह हमारे हर कृ म कट होती है । हर कृ म! जो भी हम करते ह–एक बात ान म


रख ले ना, तो कसौटी आपके पास हो जाएगी–जो भी आप करते ह, करते व सोच ले ना, इससे मुझे सु ख िमले गा या
दु ख? अगर आपको िदखता हो, दु ख िमले गा और िफर भी आप करने को तै यार ह, तो िफर आप समझ ले ना िक
अपने को घृ णा करते ह। और ा कसौटी हो सकती है ?

मुंह से गाली िनकलने के िलए तैयार हो गई है ; पंख फड़फड़ाकर खड़ी हो गई है जबान पर; उड़ने की तै यारी है । सोच
ले ना एक ण िक इससे अपने को दु ख िमले गा या सु ख! दू सरे की मत सोचना, ोंिक दू सरे की सोचने म धोखा हो
जाता है । आदमी सोचता है , दू सरे को दु ख िमले गा या सु ख! यह मत सोचना। पहले तो अपना ही सोच ले ना िक इससे
मुझे दु ख िमले गा या सु ख! और अगर आपको पता चले िक दु ख िमले गा, और िफर भी आप गाली दो, तो िफर ा
कहा जाए, आप अपने को ेम करते ह!

नहीं, हम सोचने का मौका भी नहीं दे ते। नहीं तो डर यह है िक कहीं ऐसा न हो िक गाली न दे पाएं ।

गु रिजएफ एक ब त अदभुत फकीर आ। उसने अपने सं रणों म िलखा है िक मेरा बाप मरा, तो उसके पास मुझे
दे ने को कुछ भी न था। ले िकन वह मुझे इतनी बड़ी सं पदा दे गया है िजसका कोई िहसाब नहीं है । जब भी वह िकसी
से यह कहता, तो वह चौंकता। ोंिक वह पूछता िक तु म कहते हो, तु ारे बाप के पास कुछ भी न था, िफर वह ा
सं पदा दे गया?

तो गु रिजएफ कहता िक म ादा से ादा नौ-दस साल का था, जब मेरे बाप की मृ ु ई। म सबसे छोटा बे टा था।
सभी को बु लाकर मेरे बाप ने कान म कुछ कहा। मुझे भी बु लाया और मेरे कान म कहा िक तू अभी ादा नहीं समझ
सकता, ले िकन तू जो समझ सकता है , उतनी बात म तु झसे कह दे ता ं । और ान रख, अगर इतनी बात तू ने समझ
ली, तो िजं दगी म और कुछ समझने की ज रत न पड़े गी। छोटी-सी बात, जो ते री समझ म आ जाए, वह म तु झसे यह
कहे जाता ं । मरते ए बाप का खयाल रखना, इतनी-सी बात को मान ले ना। मेरे पास दे ने को और कुछ भी नहीं है ।

तो गु रिजएफ, उस छोटे -से ब े ने कहा िक आप कह, भरसक म चे ा क ं गा। उसके बाप ने कहा, ब त किठन
काम तु झे नहीं दू ं गा, ोंिक ते री उ ही िकतनी है! इतना ही कहता ं तु झसे िक जब भी कोई ऐसा काम करने का
खयाल आए, िजससे तु झे या दू सरे को दु ख होगा, तो चौबीस घं टे क जाना, िफर तू करना। उस लड़के ने पूछा, िफर
म कर सकता ं ? उसके बाप ने कहा िक तू पूरी ताकत से करना। और बाप हं सा और मर गया।

गु रिजएफ अपने सं रणों म िलखता है, म िजं दगी म कोई बु रा काम नहीं कर पाया। मेरे बाप ने मुझे धोखा दे िदया।
उसने कहा, चौबीस घं टे बाद कर ले ना। ले िकन चौबीस घं टा तो ब त व है , चौबीस से कड भी कोई बु रा काम करते
व क जाए, तो नहीं कर सकता। चौबीस से कड भी! ोंिक उतने म ही होश आ जाएगा िक म अपनी दु नी कर
रहा ं । इसिलए बु रा काम हम ब त शी ता से करते ह; दे र नहीं लगाते ।

अगर एक िम को सं ास ले ना है , तो वह पूछता है िक एक साल और क जाऊं! उसको जु आ खेलना है, तो वह


नहीं पूछता। अगर उसे सं ास ले ना है, तो वह पूछता है िक एक साल क जाएं , तो कोई हज है ? ले िकन उसे ोध
करना होता है, तब वह एक से कड नहीं कता। ब त आ यजनक है । अ ा काम करना हो, तो आप पूछते ह, थोड़ा
थिगत कर द तो कोई हज है? और बु रा काम करना हो तो! तो त ाल कर ले ते ह। त ाल। एक से कड नहीं चू कते!
ों?

वह बु रा काम अगर एक से कड चू के, िकया नहीं जा सकेगा। और उसे करना है, इसिलए एक से कड थिगत करना
ठीक नहीं है । और अ े काम को करना नहीं है , इसिलए िजतना थिगत कर सक, उतना अ ा है । िजतना टाल
सक, उतना अ ा है ।

हम अ े कामों को टालते चले जाते ह कल पर और बु रे काम करते चले जाते ह आज। और एक िदन आता है िक
मौत कल को छीन ले ती है । बु रे कामों का ढे र लग जाता है ; अ े काम का कोई हाथ म िहसाब ही नहीं होता।
50

मने सु ना है, एक आदमी मरा, एक ब त करोड़पित। जै सी उसकी आदत थी, गवनर के घर म भी जाता था, तो सं तरी
उसको रोक नहीं सकता था। धानमं ी के घर म जाता था, तो सं तरी हटकर खड़ा हो जाता था। उसने तो सोचा ही
नहीं िक नक की तरफ जाने का कोई सवाल है । सीधा ग के दरवाजे पर प ं च गया। जोर से जाकर दरवाजा
खटखटाया। दरवाजा खुला न दे खकर नाराज हो गया।

ारपाल ने झां ककर दे खा और कहा िक महाशय, इतने जोर से दरवाजा मत खटखटाइए। पर उस आदमी ने कहा
िक मुझे भीतर आने दो। ारपाल उसे भीतर ले गया। पूछा ारपाल ने िक ऐसा कौन सा काम िकया है , िजसकी वजह
से ग म इतनी ते जी से आ रहे ह! ारपाल ने जाकर द र म कहा िक जरा इन महाशय के नाम का पता लगाएं ,
ोंिक अभी तो हम कोई खबर भी नहीं है िक इस तरह का आदमी ग म आने को है! इनके िहसाब म कुछ है ?

बड़ा लं बा िहसाब था। पोथे के पोथे थे । द र का क थक गया उलट-उलटकर। पर उसने कहा िक कहीं कोई
ऐसी चीज िदखाई नहीं पड़ती। हां, कई जगह इस आदमी ने अ े सं क करने की योजना बनाई; ले िकन पीछे िलखा
है , थिगत, पो पोंड! यह कई दफे ग िमलते-िमलते चू क गया। कई दफे इसने योजना बनाई िक ऐसा कर दू ं , िफर
इसने थिगत कर िदया।

िफर भी, उस ारपाल ने कहा िक बे चारा इतनी मेहनत करके आ गया है , थोड़ा खोज लो, शायद कोई थोड़ी-ब त
जगह, इसने कुछ न कुछ िकया हो। बड़ा खोजकर पता चला िक इस आदमी ने एक नया पैसा िकसी िभखारी को
कभी दान िदया था। ले िकन को क म यह भी िलखा है िक िभखारी को नहीं िदया था, इसके साथ दो ीन आदमी खड़े
थे, वे ा कहगे अगर एक पैसे के िलए भी इनकार करे गा, इसिलए िदया था। मगर िदया था। इसने एक पैसा िदया
था, वह थिगत नहीं िकया था। कारण दू सरा था, ले िकन िभखारी को एक पैसा इसने िदया था।

उस करोड़पित के चे हरे पर थोड़ी रौनक आई। लगा िक कुछ आसार ग म वे श के बनते ह। उस क ने कहा,
ले िकन इतने से आधार पर! और वह भी धोखे का आधार, ोंिक इसने िभखारी को िदया ही नहीं, इसने अपने िम ों
को िदया है । िदखाई पड़ा िक िभखारी को िदया है ।

इसिलए तो िभखारी, आप अकेले हों, तो आपसे भीख नहीं मां गते । दो-चार िम हों, तो पकड़ ले ते ह। जानते ह
तरकीब, िक िभखारी को कौन दे ता है ! वह दो-चार जो आदमी पास खड़े ह, उनकी शघमदगी म, िक ा कहगे िक
यह आदमी एक पैसा नहीं दे पा रहा है, आप भी दे दे ते ह। और आप दे दे ते ह, तो उनको भी दे ना पड़ता है िक अब
यह आदमी ा कहे गा! मगर यह आपसी ले न-दे न है , इसका िभखारी से कोई भी सं बंध नहीं है ।

िफर भी इसने िदया था, तो ा कर? तो उस क ने कहा, एक ही उपाय है । वह एक पैसा इसे वापस कर िदया
जाए और नक की तरफ वापस भे ज िदया जाए। इस आदमी ने बड़ी टे कल गड़बड़ खड़ी कर दी है । एक दफा
और थिगत कर दे ता, तो इसका ा िबगड़ता था! टे कल भू ल हो गई है ।

हम थिगत िकए चले जाते ह, जो भी शु भ है उसे । शायद मौत के बाद हम करगे । और जो अशु भ है , उसे हम आज
कर ले ते ह, िक पता नहीं, कल व िमला िक न िमला।

िम वह है अपना, जो अशु भ को थिगत कर दे और शु भ को कर ले । और श ु वह है अपना, जो शु भ को थिगत


कर दे और अशु भ को कर ले । एक ण ककर दे ख ले ना िक िजस चीज से दु ख आता हो, उसे आप कर रहे ह? तो
िफर अपने श ु ह।

और जो अपना श ु है , उसकी अधोया ा जारी है । वह नीचे िगरे गा, िगरता चला जाएगा–अंधकार और महा अंधकार,
पीड़ा और पीड़ा। वह अपने ही हाथ से अपने को नक म धकाता चला जाएगा।

ले िकन जो अपना िम बन जाता है , वह ऊपर की ऊ -या ा पर िनकल जाता है । उसकी या ा दीए की


ोित की तरह आकाश की तरफ होने लगती है । वह िफर पानी की तरह गङ् ढों म नहीं उतरता, अि की तरह
आकाश की तरफ उठने लगता है ।
51

यह जो ऊपर उठती ई चेतना है , यही योग है । अपना िम होना ही योग है । अपना श ु होना ही अयोग है । ऊपर की
तरफ बढ़ते चले जाना ही आनंद है ।

कृ अजु न से कह रहे ह िक योग है मंगल अजु न; और सार सू है िक आ ा तं है । अपना अिहत भी कर सकती


है , िहत भी। अिहत करना आसान, ोंिक गङ् ढे म उतरना आसान। िहत करना किठन, ोंिक पवत िशखर की
ऊंची चढ़ाई है । ले िकन जो अपना िम बन जाए, वह जीवन म मु को अनुभव कर पाता है । और जो अपना श ु
बन जाए, वह जीवन म रोज बं धनों, कारागृ हों म िगरता चला जाता है ।

इस सू को अपने जीवन म कहीं-कहीं ककर उपयोग करके दे खना, तो खयाल म आ सकेगा। कुछ चीज ह, िज
समझ ले ना काफी नहीं, िज योग करना ज री है । ये सब के सब ले बोरे टरी मेथड् स ह, यह जो भी कृ कह रहे
ह अजु न से ।

कृ उन लोगों म से नहीं ह, जो एक श भी थ कह। वे उन लोगों म से नहीं ह, जो श ों का आडं बर रच। वे उन


लोगों म से नहीं ह, िज कुछ भी नहीं कहना है और िफर भी कहे चले जा रहे ह। वे कोई राजनीितक नेता नहीं ह।

कृ उतना ही कह रहे ह, िजतना अ ं त आव क है, और िजतने के िबना नहीं चल सकेगा। योगा क ह उनके
सारे व । एक-एक सू एक-एक जीवन के िलए योग बन सकता है ।

और एक सू पर भी योग कर ल, तो धीरे -धीरे पूरी गीता, िबना पढ़े , आपके सामने खुल जाएगी। और पूरी गीता पढ़
जाएं और योग कभी न कर, तो गीता बं द िकताब रहे गी। वह कभी खुल नहीं सकती। उसे खोलने की चाबी कहीं से
योग करना है ।

इस सू को समझ, जांच, अपने िम ह िक श ु! बस इस छोटे -से सू को जांचते चल और थोड़े ही िदन म आप पाएं गे


िक आपको अपनी श ुता इं च-इं च पर िदखाई पड़ने लगी है । कदम-कदम पर आप अपने दु न ह। और अब तक
की पूरी िजं दगी आपने अपनी दु नी म िबताई है । और िफर रोकर िच ाते ह िक म अभागा ं ; दु ख म मरा जा रहा
ं । अपने ही हाथ से कोड़े मारते ह अपनी ही पीठ पर, ल लुहान कर ले ते ह। और दू सरे हाथ से ल पोंछते ह और
कहते ह िक मेरा भा ! अपने ही हाथ से दु ख िनिमत करते ह और िफर िच ाते ह, मेरी िनयित!

नहीं, कोई िनयित नहीं है , आप ही ह। और अगर कोई िनयित है , तो वह आपके ारा ही काम करती है । और आप
उस िनयित को माग दे ने म परम तं ह, ोंिक आप परमा ा के िह े ह।

आपकी तं ता म र ीभर कमी नहीं है । आप इतने तं ह िक नक जा सकते ह; आप इतने तं ह िक ग


िनिमत कर सकते ह। आप इतने तं ह िक आपके एक-एक पैर पर एक-एक ग बस जाए। और आप इतने
तं भी ह िक आपके एक-एक पैर पर एक-एक नक िनिमत हो जाए। और सब आप पर िनभर है । आपके
अित र कोई भी िज ेवार नहीं है ।

तो अपने िम ह या श ु, इसे थोड़ा सोचना, दे खना। और धीरे -धीरे आप पाएं गे िक श ु होना मु ल होने लगेगा, िम
होना आसान होने लगे गा। और तब इस सू को पढ़ना। तब इस सू के अथ, अिभ ाय कट होते ह।

ब ु रा ा न ये ना ैवा ना िजतः।

अना न ु श ु े वतता ैव श ु वत् ।। 6।।

उस जीवा ा का तो वह आप ही िम है , िक िजस जीवा ा ारा मन और इं ि यों सिहत शरीर जीता आ है , और


िजसके ारा मन और इं ि यों सिहत शरीर नहीं जीता गया है , उसका वह आप ही श ु के स श, श ु ता म बतता है ।
52

इं ि यों और शरीर को िजसने जीता है , वह अपना िम हो पाता है । और िजसे अपनी इं ि यों और अपने शरीर पर कोई
भी वश, कोई भी काबू नहीं, वह अपना श ु िस होता है ।

िम ता और श ुता को दू सरे आयाम से समझ। इस सू म दू सरे आयाम से, दू सरी िदशा से िम ता और श ुता के सू
को समझाने की कोिशश है ।

शरीर और इं ि यां िजसके परतं नहीं ह; िजसकी इं ि यां कुछ कहती ह, िजसका शरीर कुछ कहता है; िजसका मन
कुछ कहता है ; और यं की िजसकी कोई आवाज नहीं है । कभी इं ि यों की मान ले ता है , कभी शरीर की मान ले ता
है , कभी मन की मान ले ता है, ले िकन खुद की अपनी कोई भी समझ नहीं है । वह ठीक भावतः वै सी ही थित म हो
जाएगा, जै से कोई रथ चलता हो। सारथी सोया हो। लगाम टू टी पड़ी हों। सब घोड़े अपनी-अपनी िदशाओं म जाते हों,
िजसे जहां जाना हो! घोड़ों को बां धने का, िनकट ले ने का, एक-सू रखने का, एक िदशा पर चलाने की कोई व था
न हो। सारथी सोया हो। लगाम टू टी पड़ी हों। घोड़े अपनी-अपनी जगह जाते हों। कोई बाएं चलता हो, कोई दाएं चलता
हो। कोई चलता ही न हो। कोई दौड़ता हो, कोई बै ठा हो। तो जैसी थित उस रथ की हो जाए, और जै सी थित उस
रथ म बै ठे ए मािलक की हो जाए, वै सी थित हमारी हो जाती है ।

कभी आपने खयाल न िकया होगा िक आपकी इं ि यां एक-दू सरे के िवपरीत मां ग करती ह, और आप दोनों की मान
ले ते ह। आपका शरीर और मन िवपरीत मां ग करते ह, और आप दोनों की मान ले ते ह। शरीर कहता है, क जाओ,
अब खाना मत डालो, ोंिक पेट म तकलीफ शु हो गई। और मन कहता है , ाद ब त अ ा आ रहा है; थोड़ा
डाले चले जाओ। आप दोनों की माने चले जाते ह। आप दे खते नहीं िक आप ा कर रहे ह! एक कदम बाएं चलते ह,
साथ ही एक कदम दाएं भी चल ले ते ह। एक कदम आगे जाते ह, एक कदम पीछे भी आ जाते ह!

एक ही साथ िवपरीत काम िकए चले जाते ह, ोंिक िवपरीत इं ि यों और िवपरीत वासनाओं की साथ ही ीकृित दे
दे ते ह। एक हाथ बढ़ाते ह िकसी से दो ी का, दू सरे हाथ म छु रा िदखा दे ते ह–एक साथ! िकसी को हाथ जोड़कर
नम ार करते ह, और भीतर से उसको गाली िदए चले जाते ह िक इस दु की शकल सु बह-सु बह कहां िदखाई पड़
गई! और हाथ जोड़कर उससे ऊपर कह रहे ह िक बड़े शु भ दशन ए। आज का िदन बड़ा शु भ है । और भीतर कहते
ह िक मरे ; आज पता नहीं धं धे म नुकसान लगे गा, िक प ी से कलह होगी, िक ा होगा! यह सु बह-सु बह कहां से यह
शकल िदखाई पड़ गई है! और इसके साथ हाथ भी जोड़ रहे ह, नम ार भी कर रहे ह; मन म यह भी चलता जाता
है ।

मन खंड-खंड है । एक-एक इं ि य अपने-अपने खंड को पकड़े ए है । सभी इं ि यों के खंड भीतर अखंड होकर एक
नहीं ह। कोई भीतर मािलक नहीं है ।

गु रिजएफ कहा करता था, हम उस मकान की तरह ह, िजसका मािलक बाहर गया है । और िजसम ब त बड़ा महल
है और ब त नौकर-चाकर ह। और जब भी रा े से कोई गु जरता है और बड़े महल को दे खता है , सीिढ़यों पर कोई
िमल जाता है घर का नौकर, तो उससे पूछता है, िकसका है मकान? तो वह कहता है , मेरा। मकान का मािलक बाहर
गया है । कभी वह राहगीर वहां से गु जरता है, दू सरा नौकर सीिढ़यों पर िमल जाता है, वह पूछता है, िकसका है यह
मकान? वह कहता है, मेरा।

हर नौकर मािलक है । मािलक घर म मौजू द नहीं है । बड़ी कलह होती है उस मकान म। मकान जीण-जजर आ
जाता है । ोंिक मािलक कोई भी नहीं है, इसिलए मकान को कोई सु धारने की िफ नहीं करता है , न कोई रं ग-
रोगन करता है , न कोई साफ करता है । सब नौकर ह; सब एक-दू सरे से चाहते ह िक तु म नौकर का वहार करो, म
मािलक का वहार क ं ! ले िकन सब जानते ह िक तु म भी नौकर हो, तु म कोई मािलक नहीं हो; तु म मुझ पर
नहीं चला सकते । वह घर िगरता जाता है , उसकी दीवाल िगरती जाती ह, उसकी ईंट िगरती जाती ह। कोई जोड़ने
वाला नहीं। कोई कचरा साफ करता नहीं। सब कचरा इक ा करते ह। सब मािलक होने के दावेदार ह।

भीतर करीब-करीब हमारी आ ा ऐसी ही सोई रहती है, जै से मौजू द ही न हो। आपने कभी अपनी आ ा की आवाज
भी सु नी है ?
53

हां, अगर राजनीित होंगे, तो सु नी होगी! अभी िपछले इले न म ब त-से राजनीित एकदम आ ा की आवाज
सु नते थे । और िजस िदन राजनीित की आ ा म आवाज आने लगे गी, उस िदन इस दु िनया म कोई पापी नहीं रह
जाएगा। िजनके पास आ ा नाम-मा को नहीं होती, उनको आवाज आ रही ह! और आवाज भी बदल जाती ह! सु बह
आवाज कुछ आती है, सां झ कुछ आती है! आ ा भी बड़ी पोिलिटकल ं ट करती है !

आपने कभी आ ा की आवाज सु नी है ? अगर राजनीित नहीं ह, तो कभी नहीं सु नी होगी! इं ि यों की आवाज ही हम
सु नते ह। कभी एक इं ि य कहती है, यह चािहए; कभी दू सरी इं ि य कहती है , यह चािहए। कभी तीसरी इं ि य कहती
है , यह नहीं िमला, तो जीवन थ है । कभी चौथी इं ि य कहती है , लगा दो सब दांव पर; यही है सब कुछ। ले िकन
कभी उसकी भी आवाज सु नी है , जो भीतर िछपा जीवन है ? उसकी कोई आवाज नहीं है ।

कृ कहते ह, ऐसी दशा अपनी ही श ु ता की दशा है ।

और गु लामी भयं कर है , जो नहीं करना चाहतीं इं ि यां, वह भी करा ले ती ह। कई बार आपको अनुभव आ होगा। कई
बार आप लोगों से कहते ह िक मेरे बावजू द, इं ाइट आफ मी, यह मने कर िदया! म नहीं करना चाहता था, िफर कर
िदया। जब आप नहीं करना चाहते थे, तो कैसे कर िदया? आप कहते ह, मेरी िबलकुल इ ा नहीं थी िक चां टा मार दू ं
आपको; ले िकन ा क ं ! सोचा भी नहीं था, मारने का इरादा भी नहीं था, भाव भी नहीं था ऐसा। ले िकन मारा है, यह
तो प ा है । िफर यह िकसने मारा? अब यह जो पीछे कह रहा है िक नहीं कोई इ ा थी, नहीं कोई भाव था, नहीं
कोई खयाल था, बात ा है ?

नहीं, भीतर कोई मािलक तो है नहीं। एक नौकर दरवाजे पर था, तो उसने एक चां टा मार िदया। अब दू सरा नौकर
मा मां ग रहा है । यह भी मािलक नहीं है । इसिलए आप यह मत सोचना िक अब यह आदमी कल चां टा नहीं मारे गा।
कल िफर मार सकता है ।

यह जो हमारी इं ि यों की थित है , खंड-खंड, िडसइं िट े टेड। और एक-एक इं ि य इस तरह करवाए चली जाती है
िजसका कोई िहसाब नहीं है । और कभी-कभी ऐसे काम करवा ले ती है िक िजनका दां व भारी है । ब त भारी दां व
लगवा दे ती है । इतना बड़ा दां व लगवा दे ती है िक इतनी-सी, छोटी-सी चीज के िलए इतना बड़ा दां व आप लगाते न।
कभी-कभी ऐसा हो जाता है िक दो पैसे की चीज के िलए लोग एक-दू सरे की जान ले ले ते ह। दो पैसे की भी नहीं होती
कई बार तो चीज। कई बार कुछ होता ही नहीं बीच म, िसफ एक श होता है कोरा और जान चली जाती है । पीछे
अगर कोई बै ठकर सोचे…।

मने सु ना है िक एक ू ल म इितहास का एक िश क अपने ब ों से पूछ रहा है , तु म कोई बड़ी से बड़ी लड़ाई के


सं बंध म बताओ। तो एक लड़का खड़े होकर कहता है िक म बता तो सकता ं , ले िकन मेरे घर आप खबर मत
करना। उसने कहा, कौन सी लड़ाई? तो उसने कहा िक लड़ाई तो बड़ी से बड़ी म एक ही जानता ं, मेरी मां और मेरे
बाप की! उस िश क ने कहा िक नासमझ, तु झे इतनी भी अ नहीं है िक यह भी कोई लड़ाई है ! वह लड़का घर
वापस आया, उसने अपने िपता से कहा िक आपकी बड़ी से बड़ी लड़ाई की मने चचा की, तो मेरे इितहास के िश क
ने कहा, यह भी कोई लड़ाई है ! उसके बाप ने एक िच ी िलखकर िश क को पूछा िक तु म मुझे कोई ऐसी लड़ाई
बताओ, जो इससे बड़ी रही हो!

बड़ी से बड़ी लड़ाइयों के पीछे भी कारण तो सब छोटे ही छोटे होते ह। बड़े छोटे -छोटे कारण होते ह। चाहे वह राम
और रावण की लड़ाई हो, तो कारण बड़ा छोटा-सा होता है ; बड़ा छोटा-सा कारण! चाहे वह महाभारत का इतना बड़ा
यु हो, िजसम इस गीता को फिलत होने का मौका आया, कारण बड़ा छोटा-सा था। इस बड़े महाभारत के यु म
पता है आपको, कारण िकतना छोटा था! ब त छोटा-सा कारण, ौपदी की छोटी-सी हं सी इस पूरे यु का कारण।

कौरव िनमंि त ए ह पां डवों के घर। और पां डवों ने एक घर बनाया है आलीशान। और इस तरह की कला क
उसम व था की है िक घर कई जगह धोखा दे दे ता है । जहां पानी नहीं है , वहां मालू म पड़ता है पानी है , इस तरह के
दपण लगाए ह। जहां दरवाजा नहीं है , वहां मालू म पड़ता है दरवाजा है, इस तरह के दपण लगाए ह। जहां दरवाजा है ,
वहां मालू म पड़ती है दीवाल है, इस तरह के कां च लगाए ह।
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एक मजाक थी, इनोसट। िकसी ने सोचा भी न होगा िक इतना बड़ा यु इसके पीछे फैले गा! कौन सोचता है ? ब त
छोटी-सी मजाक थी, जो िक दे वर-भाभी म हो सकती है , इसम कोई ऐसी झगड़े की बात नहीं थी बड़ी। और जब
दु य धन टकराने लगा और दीवाल से िनकलने की कोिशश करने लगा, जहां दरवाजा न था; और दरवाजे से िनकलने
लगा, और िसर टकरा गया दीवाल से । तो ौपदी खल खलाकर हं सी। िनि त ही…। और उसने मजाक म पीछे से
िकसी से कहा िक अंधे के ही तो बे टे ठहरे ! अंधे के बे टे ह, कुछ भू ल तो हो नहीं गई।

जब दु य धन को यह पता चला िक कहा गया है , अंधे के बे टे ह! बस बीज बो गया। छोटी-सी मजाक, अंधे के बे टे, ऐसा
छोटा-सा श ! इतना बड़ा यु ! सब िनिमत आ, फैला! िफर इसके बदले िलए जाने ज री हो गए। िफर ौपदी को
न िकया जाना इस हं सी का, मजाक का उ र था।

बड़े से बड़े यु के पीछे भी बड़े छोटे -छोटे कारण रहे ह। ले िकन एक बार इं ि यां पकड़ ल, तो िफर वे आपको अंत
तक ले जाती ह। उनका अपना लािजकल कन ूजन है । वे िफर आपको छोड़ती नहीं बीच म िक आप कह िक अब
बस छोड़ो; अब तो मजाक ब त हो गई; बात ब त आगे बढ़ गई। िफर क नहीं सकते, िफर वे ध ा दे ती ह।
कहती ह, जब यहां तक बात खींची, तो अब डटे रहो। िफर आपको आगे बढ़ाए चली जाती ह।

इं ि यां इस तरह आदमी को खींचती ह जै से िक जानवरों के गले म र ी बांधकर कोई उनको खींचता हो। इसिलए
तं के शा तो हम पशु कहते ह। पशु का मतलब, पाश म बंधे ए। पशु का मतलब होता है , िजसके गले म र ी
बं धी है । तं के ं थ कहते ह, दो तरह के लोग ह, पशु और पशुपित। पशु वे, िजनकी इं ि यां उनको गले म बां धकर
खींचती रहती ह; और पशु पित वे, जो इं ि यों के मािलक हो गए, पित हो गए।

कृ भी वही कह रहे ह! एक बड़े गहरे तां ि क सू की ा ा है, इस श म। कहते ह, जो अपनी इं ि यों और


अपने शरीर का मािलक है , वही अपना िम है । वही भरोसा कर सकता है अपनी िम ता का। ले िकन िजसे अपनी
इं ि यों पर कोई काबू नहीं है , और िजसकी इं ि यां िजसे कहीं भी दौड़ा सकती ह, और िजसका शरीर िजसे िक ीं भी
अंधे रा ों पर ले जा सकता है, वह अपनी िम ता का भरोसा न करे । अ ा है िक वह जाने िक म अपना श ु ं ।

रथ म बं धे ए घोड़े िम हो सकते ह, अगर लगाम हो और सारथी होिशयार हो। नहीं तो रथ म घोड़े न बं धे हों, तो ही
रथ की कुशलता है । घोड़े ही न हों, तो भी रथ सु रि त है । ले िकन घोड़े बं धे हों और लगाम न हो और सारथी कुशल न
हो या सोया हो, तो रथ के दु न ह घोड़े , िम नहीं। घोड़ों का कोई कसू र नहीं है ले िकन, ान रखना, नहीं तो आप
सोच िक घोड़ों की गलती है ।

अभी म पढ़ रहा था कहीं िक एक आदमी पर अमे रका म मुकदमे चले ब त-से । और आ खरी मुकदमा चल रहा था।
और मिज े ट ने उससे कहा िक म तु मसे कहना चाहता ं िक तु ारे सब अपराधों का एक ही कारण है , अ ोहल,
अ ोहल, अ ोहल; शराब, शराब, शराब! उस आदमी ने कहा िक कोई िफ नहीं है । आप मुझे लं बी सजा दे रहे
ह, ले िकन म ध वाद दे ता ं आपको। आप अकेले आदमी ह िजसने मुझे िज ेवार नहीं ठहराया। नहीं तो हर कोई
कहता है, तु ीं िज ेवार हो। जो दे खो वही कहता है , तु ीं िज ेवार हो। आप एक समझदार आदमी िजं दगी म
िमले, जो कहता है , शराब िज ेवार है मेरे सब अपराधों के िलए, म िज ेवार नहीं ं ।

बड़े मजे की बात है । आप भी िकसी िदन पकड़े जाएं गे, तो यह मत सोचना िक कह दगे िक इं ि यों ने करवा िदया, म
ा क ं ! उस िदन आपकी हालत इसी आदमी जै सी हो जाएगी। इं ि यां आपसे कुछ नहीं करवा सकतीं। करवा
सकती ह, ोंिक आपने कभी मालिकयत घोिषत नहीं की। आपने कभी घोषणा नहीं की िक म मािलक ं ।

और ान रहे, मालिकयत की घोषणा करनी पड़ती है । और ान रहे, मालिकयत मु म नहीं िमलती, मालिकयत
के िलए म करना पड़ता है । और ान रहे, िबना म के जो मालिकयत िमल जाए, वह इं पोटट होती है, उसम कोई
बल नहीं होता। जो म से िमलती है, उसकी शान ही और होती है ।

ान रहे, रथ म सबसे शानदार घोड़ा वही है , िजस पर लगाम न हो, तो जो रथ को खतरे म डाल दे । सबसे शानदार
घोड़ा वही है । िजस पर लगाम ही न हो, तो आप कोई टट् टू या ख र बां ध, और खतरे म भी न डाले, आपका रथ भी
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चला जा रहा है! जो घोड़ा लगाम के न होने पर गङ् ढे म िगरा दे , वही शानदार घोड़ा है ; लगाम होने पर वही चलाएगा
भी। ान रखना, वही चलाएगा। यह ख र नहीं चलाएगा, जो िक खतरे म भी नहीं डालता। लगाम नहीं है , तो िव ाम
करता है । वह लगाम होने पर भी ब त मु ल है िक आप उसको थोड़ा-ब त सरका ल।

जो इं ि यां आपको गङ् ढों म डालती ह, वे आपकी सबल श यां ह। ले िकन मालिकयत आपकी होनी चािहए, तो
शु भ हो जाएगा फिलत। अगर मालिकयत नहीं है, तो अशु भ हो जाएगा फिलत।

सबसे ादा कौन-सी इं ि यां हम गङ् ढे म डाल दे ती ह?

जननि य, से सबसे ादा गङ् ढे म डालती है । सबसे श शाली है इसिलए। और सबसे ादा पोटिशयल है,
ऊजावान है । और ान रहे, िजस ने अपनी काम-ऊजा पर मालिकयत पा ली, उसके पास इतना अदभु त,
उसके पास इतना बलशाली घोड़ा होता है िक वही घोड़ा उसे ग के ार तक प ंचा दे ता है । काम की ऊजा ही, जब
आप गु लाम होते ह उसके, तो वे ालयों म पटक दे ती है आपको–डबरों म, गङ् ढों म, कीड़े -मकोड़ों म। और जब
काम की ऊजा पर आपका वश होता है , तो वही काम-ऊजा चय बन जाती है और ई र के ार तक ले जाने म
सहयोगी हो जाती है ।

सभी इं ि यां–उदाहरण के िलए काम मने कहा, वह सबसे सबल है इसिलए–सभी इं ि यां, अगर उनकी मालिकयत
हो, तो िम बन जाती ह; और मालिकयत न हो, तो श ु बन जाती ह।

मालिकयत की आप कभी घोषणा ही नहीं करते । और अगर कभी करते भी ह, तो उसी तरह की करते ह, जै सा मने
सु ना है िक एक आदमी था द ू, जै से िक अिधक आदमी होते ह। सड़क पर तो ब त अकड़ म रहता था, ले िकन घर
म प ी से ब त डरता था, जै सा िक सभी डरते ह! कभी-कभी कोई अपवाद होता है, उसको छोड़ा जा सकता है ।
उसके कुछ कारण ह। िदनभर लड़ा आ, थका-मां दा आदमी घर म और लड़ाई नहीं करना चाहता; िकसी तरह
िनपटारा कर ले ना चाहता है । प ी िदनभर लड़ी-करी नहीं, तै यार रहती है , पूरी श यां हाथ म रहती ह। वह आदमी
थका-मां दा लौट रहा है , अब लड़ने की िह त भी नहीं। यु के थल से वापस आ रहे ह, कु े से! अब वे और
दू सरा कु े खड़ा करना नहीं चाहते ।

प ी पहले िदन से ही आकर क ा कर ली थी उस आदमी पर; बड़ी मु ल म डाल िदया था। और प ी इसकी
चचा भी करती थी। और एक िदन तो और यों ने कहा िक हम मान नहीं सकते । हां , यह तो हम सब जानते ह िक
पित डरते ह। ले िकन इतना हम नहीं मान सकते, िजतना तू बताती है िक डरते ह। तो उसने कहा िक आज तु म
दोपहर को घर आ जाओ। आज छु ी का िदन है और पित घर पर होंगे। आज तु म आ जाओ। आज म तु िदखा दू ं ।

पं ह-बीस यां मुह े की इक ी हो गईं। जब सब यां इक ी हो गईं, तो उस ी ने अपने पित से कहा िक उठ


और िब र के नीचे सरक! वह बे चारा ज ी से उठा और िब र के नीचे सरक गया। िफर उसने और रौब िदखाने के
िलए कहा िक अब दू सरी तरफ से बाहर िनकल! उस आदमी ने कहा िक अब म बाहर नहीं िनकल सकता। म
िदखाना चाहता ं , इस घर म असली मािलक कौन है ! उसने कहा िक अब म बाहर नहीं िनकल सकता। अब म
िदखाना चाहता ं , इस घर का असली मािलक कौन है !

िब र के नीचे तो घु स गया, ोंिक बाहर रहता तो मार-पीट, झंझट-झगड़ा हो सकता था। उसने कहा िक अब अ ा
मौका है । अब िब र के नीचे से ही उसने कहा िक अब तू समझ ले । अब म बाहर नहीं िनकलता; आ ा नहीं मानता।
अब म बताना चाहता ं िक इज़ िद रयल ओनर।

हम भी कभी अगर इं ि यों पर कोई मालिकयत करते ह, तो वह ऐसे ही, िब र के नीचे घु सकर! और कोई
मालिकयत हमने कभी इं ि यों पर नहीं की है । कभी ब त कमजोर हालत म, ऐसा मौका पाकर कभी हम घोषणा
करते ह। मगर ठीक सामने इं ि य के, उसकी श शाली इं ि य के सामने हम कभी घोषणा नहीं करते । जै से िक
आदमी बू ढ़ा हो गया, तो वह कहता है , मने अब तो काम-इं ि य पर िवजय पा ली। वह पागलपन की बात कर रहा है ।
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ये िब र के नीचे घु सकर बात हो रही ह। तो जब जवान है और जब इं ि य सबल है , तभी मौका है घोषणा


का।

अब आपका पेट खराब हो गया है , लीवर के मरीज हो गए ह, खाया नहीं जाता। आपने कहा, अब तो हमने भोजन पर
िबलकुल िवजय पा ली। दांत न रहे, दां त िगर गए, अब चबाते नहीं बनता। अब आप कहने लगे िक हम तो िल ड
आहार ले ते ह; कुछ रस न रहा! ये िब र के नीचे घु सकर आप घोषणाएं कर रहे ह।

इससे नहीं होगा। इससे अपने को आप िफर धोखा दे रहे ह। इं ि यों का एनकाउं टर करना पड़े गा, जब वे सबल ह।
और तब उनको जीता, तो उसका रह और राज है , उसकी श है । और जब इं ि यां िनबल हो गईं और कोई
श न रही, हारने का भी उपाय न रहा जब, तब जीतने का कोई अथ नहीं रह जाता।

कृ कहते ह, इं ि यों का जो मािलक है !

और इं ि यों का मािलक कब होता है कोई? इं ि यों की मालिकयत के दो सू आपसे क ं, तो यह सू आपको पूरा


हो सके।

पहली बात, इं ि यों का मािलक वही हो सकता है , जो इं ि यों से अपने को पृथक जाने । अ था मािलक होगा कैसे?
हम उसके ही मािलक हो सकते ह, िजससे हम िभ ह। िजससे हम िभ नहीं ह, उसके हम मािलक कैसे होंगे? पर
हम अपने को इं ि यों से अलग मानते ही नहीं। हम तो अपनी इं ि यों से इतनी आइडिटटी, इतना तादा िकए ह िक
लगता है, हम इं ि यां ही ह, और कुछ भी नहीं।

तो िजसे भी इं ि यों की मालिकयत की तरफ जाना हो, उसे अपनी इं ि यों और अपने बीच म थोड़ा फासला, गै प खड़ा
करना चािहए। उसे जानना चािहए िक म आं ख नहीं ं ; आं ख के पीछे कोई ं । आं ख से दे खता ं ज र, ले िकन आं ख
नहीं दे खती, दे खता है कोई और। आं ख िबलकुल नहीं दे ख सकती। आं ख म दे खने की कोई मता नहीं है । आं ख तो
िसफ झरोखा है । आं ख तो िसफ पैसेज है , माग है, जहां से दे खने की सु िवधा बनती है । जै से आप खड़की पर खड़े हों
और धीरे -धीरे यह कहने लग िक खड़की आकाश दे ख रही है, वै सा ही पागलपन है । आं ख िसफ खड़की है आपके
शरीर की, जहां से आप बाहर की दु िनया म झां कते ह। मन जो भीतर है , चेतना जो और भीतर है , वही असली दे खने
वाला है; आं ख भी नहीं दे खती।

कभी आपको अनुभव आ होगा ऐसा। रा े से भागा चला जा रहा है एक आदमी। उसके घर म आग लग गई है ।
उसको नम ार कर, उसको कुछ िदखाई नहीं पड़ता। उससे कह, किहए कैसे ह? वह कोई जबाब नहीं दे ता। वह
सु नाई भी नहीं पड़ता उसको। वह भागा जा रहा है ।

दू सरे िदन उसको िमिलए और उससे किहए, आपको ा हो गया था? कल मने नम ार भी िकया, आपको रोका
भी, िहलाया भी। आप एकदम छूटकर भागे। आपने मुझे दे खा भी नहीं! आपको खयाल है? वह आदमी कहे गा, मुझे
कुछ खयाल नहीं है । कल मेरे घर म आग लग गई थी।

तो जब घर म आग लगी हो, तो सारी चेतना उस तरफ कि त हो जाती है । आं ख की खड़की से चे तना हट जाती है,
कान की खड़की से हट जाती है । िफर आं ख म िदखाई पड़ता रहे, िफर भी िदखाई नहीं पड़ता। सु नाई पड़ता रहे
कान म, िफर भी सु नाई नहीं पड़ता।

अगर अटशन हट गई हो इं ि य से, ान हट गया हो, तो इं ि य िबलकुल बे कार हो जाती है । िजस इं ि य से ान


जु ड़ा होता है , वही इं ि य साथक, सफल होती है , सि य होती है , सश होती है ।

ान िकसका है ? ान मािलक का है । इं ि य तो िसफ गु लाम है , इं मट है , उपकरण है ।


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ले िकन इसे थोड़ा दे खना पड़े । जब आप िकसी को दे ख, िफलहाल जै से मुझे दे ख रहे ह, तो थोड़ा खयाल कर, आं ख
दे ख रही है या आप दे ख रहे ह? तब आं ख िसफ बीच का ार रह जाएगी। उस पार आप ह; और िजसको आप दे ख
रहे ह, वह भी म नहीं ं ; वे भी मेरे ार ह, िजनको आप दे ख रहे ह; इस पार म ं । जब दो आदमी िमलते ह, तो दो
तरफ दो आ ाएं होती ह और दोनों के बीच म उपकरणों के दो जाल होते ह। जब म हाथ फैलाकर आपके हाथ को
अपने हाथ म ले ता ं, तो हाथ के ारा म अपनी आ ा से आपको श करने की कोिशश कर रहा ं । हाथ तो िसफ
उपकरण है ।

उपकरणों को हम अपनी आ ा समझ ल, तो िफर यह मालिकयत जो कृ चाहते ह, कभी भी पूरी नहीं होने वाली
है ।

उपकरणों को समझ उपकरण, अपने को दे ख पृथक। चलते समय रा े पर खयाल रख िक शरीर चल रहा है , आप
नहीं चल रहे ह। आप कभी चले ही नहीं; आप चल ही नहीं सकते । आप शरीर के भीतर ऐसे ही बै ठे ह, जै से चलती
ई कार के भीतर कोई आदमी बै ठा हो। कार चल रही है और आदमी बै ठा आ है । य िप आदमी की भी या ा हो
जाएगी, ले िकन चले गा नहीं। ऐसे ही आप अपने शरीर के भीतर बै ठे ही रहे ह, कभी चले नहीं। या ा आपकी ब त हो
जाती है, ले िकन चलता शरीर है, आप सदा बै ठे ह।

वह जो भीतर बै ठा है , उसे जरा खयाल कर चलते व ; वह तो नहीं चल रहा है , वह कभी नहीं चलता। भोजन करते
व खयाल कर िक भोजन शरीर म ही जा रहा है , उसम नहीं जा रहा है , जो आप ह। इसे रण रख।

यह रण, रमबरस िजतनी घनी हो जाएगी, उतना ही आप पाएं गे, आप अलग ह। िजस िदन आप पाएं गे, आप अलग
ह, उसी िदन आपकी मालिकयत की घोषणा सं भव हो पाएगी। और किठन नहीं है िफर यह घोषणा कर दे ना िक म
मािलक ं । ले िकन एक दफे पृथकता को अनुभव करना किठन है ; मालिकयत की घोषणा आसान है ।

और जो इं ि य और शरीर का मािलक हो जाता है , वह अपना िम हो जाता है । िम इसिलए हो जाता है िक


उसकी इं ि यां वही करती ह, जो उसके िहत म है ।

अ था इं ि यों के हाथ म चलाना बड़ा खतरनाक है । शरीर हम चला रहा है , िजसके पास कोई भी होश नहीं, समझ
नहीं, चे तना नहीं। इं ि यां हम दौड़ा रही ह, ले िकन हम खयाल म नहीं है िक दौड़ िकस तरह की है ।

अभी स म एक मनोवै ािनक कुछ समय पहले चल बसा, पावलव। उसने मनु की ं िथयों पर ब त से काम िकए
ह। उसम एक काम आपको खयाल म ले ले ने जै सा है । उसका यह कहना है िक अगर आदमी की कोई ं िथ, िवशे ष
ं िथ काट दी जाए, कोई ड अलग कर दी जाए, तो उसम से कुछ चीज त ाल नदारद हो जाती ह।

जै से आप म ोध है । आप सोचते ह, म ोध करता ं , तो आप गलती म ह। आपकी इं ि यों म ोध की ं िथयां ह


और जहर इक ा है । वह आपने ज ों-ज ों के सं ारों से इक ा िकया है । वही आपसे ोध करवा ले ता है –वह
जहर।

पावलव ने सै कड़ों योग िकए िक वह जहर की गां ठ काटकर फक दी, अलग कर दी। िफर उस आदमी को आप
िकतनी ही गािलयां द, वह ोध नहीं कर सकता; ोंिक ोध करने वाला उपकरण न रहा। ऐसे ही, जै से मेरा हाथ
आप काट द। और िफर मुझसे कोई िकतना ही कहे िक हाथ बढ़ाओ और मुझसे हाथ िमलाओ, म हाथ न िमला सकूं।
िकतना ही चा ं, तो भी न िमला सकूं। ोंिक हाथ तो नहीं है , चाह रह जाएगी नपुंसक पीछे । हाथ तो िमलेगा नहीं,
उपकरण नहीं िमलेगा।

इं ि यों के पास अपने-अपने सं ह ह हाम स के, और े क इं ि य आपसे कुछ काम करवाती रहती है और आप
उसके ध े म काम करते रहते ह। जब आपकी कामि य पर जाकर वीय इक ा हो जाता है , केिमक इक े हो
जाते ह, वे आपको ध ा दे ने लगते ह िक अब कामातुर हो जाओ। चौदह साल के पहले कोई कामवासना उठती ई
मालू म नहीं पड़ती। चौदह साल ए, ड प रप हो जाती है , सि य हो जाती है । सि य ई ड िक उसने
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आपको ध े दे ने शु िकए िक कामवासना म उतरो, भागो, दौड़ो। जाओ, नंगी त ीर दे खो, िफ दे खो, कहानी
पढ़ो; कुछ करो। कुछ न िमले, तो रा े पर िकसी को ध ा दे दो, गाली दे दो, कुछ न कुछ करो।

अब यह आप कर रहे ह, इस ां ित म मत पड़ना, ोंिक आप तो चौदह साल पहले भी थे । ले िकन एक ड सि य


नहीं थी; एक इं ि य सोई ई थी। अब वह जग गई है । वह इं ि य ही आपसे करा रही है । अगर इतना होश पैदा कर
सक िक यह इं ि य मुझसे करा रही है ; और म पृथक ं ; िजस िदन आपको पृथकता का अनुभव हो जाए, उसी िदन
आप अपनी मालिकयत की घोषणा कर सकते ह।

और मजा ऐसा है िक आपने घोषणा की िक म मािलक ं , िक सारी इं ि यां िसर झुकाकर पैर पर पड़ जाती ह।
आपकी घोषणा की साम चािहए बस।

मने आपसे कहानी कही है िक उस महल का मािलक घर के बाहर है , या सोया है, या बे होश है , या मौजू द नहीं है ।
नौकर सब मािलक हो गए ह। उस कहानी को हम थोड़ा और आगे बढ़ा ले सकते ह िक मािलक वापस लौट आया।
उसका रथ ार पर आकर का। जो नौकर दरवाजे पर था, उसने िच ाकर यह नहीं कहा िक म मािलक ं । कैसे
कहता! वह ज ी से उठा और उसके पैर छु ए। उसने कहा िक ब त दे र लगाई। हम बड़ी ती ा कर रहे थे! वह
मािलक घर के भीतर आया। सारे नौकरों म खबर प ं च गई। वे सब स ह; नाराज भी नहीं ह; मािलक वापस लौट
आया। अब घर म कोई घोषणा नहीं करता िक म मािलक ं । मािलक की मौजू दगी ही घोषणा बन गई।

ठीक ऐसी ही घटना इं ि यों के जगत म घटती है । एक दफे आप जान ल िक म पृथक ं, और एक बार खड़े होकर
कह द िक म पृथक ं , आप अचानक पाएं गे िक जो इं ि यां कल तक आपको खींचती थीं, वे आपके पीछे छाया की
तरह खड़ी हो गई ह। वह आपकी आ ा मानना उ ोंने शु कर िदया है ।

आप आ ा ही न द, तो इं ि यों का कसू र ा है ? आप मौजू द ही न हों, तो आ ा कौन दे ? और इं ि यों को गाली मत


दे ना, जै सा िक अिधक लोग दे ते रहते ह। कई लोग यही गािलयां दे ते रहते ह िक इं ि यां बड़ी दु न ह।

इं ि यां दु न नहीं ह। इं ि यां दु न ह, अगर आप मािलक नहीं ह। ान रखना, यह फक है । इं ि यां िम हो जाती


ह, अगर आप मािलक ह। इसिलए भू लकर इं ि यों को गाली मत दे ना। कई बै ठे-बैठे यही गािलयां दे ते रहते ह िक
इं ि यां बड़ी श ु ह, बड़े गङ् ढों म िगरा दे ती ह! कोई इं ि य गङ् ढे म नहीं िगराती। आप गङ् ढे म िगरते ह, तो इं ि यां
बे चारी साथ दे ती ह। आप ग की तरफ जाने लग, इं ि यां वहां भी साथ दे ती ह; वे उपकरण ह।

मगर आपने कभी मालिकयत की घोषणा न की। आप अपने नौकरों के पीछे चल रहे ह। कसूर िकसका है ? और
नौकरों के पीछे चलकर िफर गािलयां दे रहे ह िक नौकर हमको भटका रहे ह, वे हमको गलत जगह ले जा रहे ह!

कम से कम कहीं तो ले जा रहे ह! चला तो रहे ह िकसी तरह। आप तो मौजू द ही नहीं ह। आप तो मरे की भां ित ह;
िजं दा ही नहीं ह। आप ह या नहीं, इसका भी पता नहीं चलता।

कृ इसिलए ब त ठीक िड ं न करते ह। वे इं ि यों को नहीं कहते िक इं ि यां श ु ह। और जो आदमी आपसे


कहे, इं ि यां श ु ह, समझना िक उसे कुछ भी पता नहीं है । कृ कहते ह, मािलक न होना श ुता बन जाती है
अपनी। मािलक हो गए िक िम हो गए।

आज के िलए इतना ही।


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ओशो – गीता-दशन – भाग 3


ान िवजय है (अ ाय-6) वचन—चौथा

िजता नः शा परमा ा समािहतः।


शीतो सुखदु ःखेषु तथा मानापमानयोः।। 7।।
और हे अजु न, सद -गम और सु ख-दु खािदकों म तथा मान और अपमान म िजसके अंतःकरण की वृ ि यां अ ी
कार शां त ह अथात िवकाररिहत ह, ऐसे ाधीन आ ा वाले पु ष के ान म स दानं दघन परमा ा स क कार
से थत है अथात उसके ान म परमा ा के िसवाय अ कुछ है ही नहीं।

सु ख-दु ख म, ीितकर-अ ीितकर म, सफलता- असफलता म, जीवन के सम ं ों म िजसकी आं त रक थित


डां वाडोल नहीं होती है; िकतने ही तू फान बहते हों, िजसकी अंतस चे तना की ोित कंपती नहीं है; जो िनिवकार भाव
से भीतर शां त ही बना रहता है –अनुि , अनु े िजत–ऐसी चे तना के मंिदर म, परम स ा सदा ही िवराजमान है , ऐसा
कृ ने अजु न से कहा। तीन बात खयाल म ले ले नी ज री ह।

एक, ं म जो िथर है, िवपरीत अव थाओं म जो समान है । सफलता हो िक असफलता, मान हो िक अपमान, जै से
उसके भीतर कोई अंतर ही नहीं पड़ता है , जै से भीतर कोई श ही नहीं होता है । घटनाएं बाहर घट जाती ह और
भीतर अछूता छूट जाता है । पहले तो इस बात को ठीक से खयाल म ले ले ना ज री है िक इसका ा अथ है ,
ा अिभ ाय है ? ा ि या इस तक प ं चने की है ? ा माग है ?

पहले तो यह ठीक से समझ ल िक हम उि कैसे हो जाते ह? जब दु ख आता है तब भी और जब सु ख आता है तब


भी, तब भीतर चेतना की ोित को कंपने का अवसर ों बन जाता है? ा है कारण? ा दु ख ही कारण है ? यिद
दु ख ही कारण है, तब तो कृ जो कहते ह, वह कभी सं भव नहीं हो पाएगा, ोंिक कृ पर भी दु ख आएं गे।

जब भीतर की चे तना समतु लता खो दे ती है सु ख म, उ े िजत हो जाती है , ा सु ख ही कारण है? यिद सु ख ही कारण
है , तब तो िफर इस पृ ी पर कोई भी कभी उस थित को नहीं पा सकेगा, िजसकी कृ बात करते ह। यं कृ
भी नहीं पा सकगे ।

हम सब ऐसा ही सोचते ह िक उि हो गए दु ख के कारण; उ ेिजत हो गए सु ख के कारण। नहीं, सु ख और दु ख


कारण नहीं ह। जब तक आप सु ख और दु ख को कारण समझगे , तब तक उ े िजत होते ही रहगे । आपने कारण ही
गलत समझा है , आपका िनदान ही ां त है ।

सु ख से उ े िजत नहीं होता है कोई। सु ख के साथ अपने को एक समझ ले ता है, इससे उ े िजत होता है । दु ख से कोई
उ े िजत नहीं होता। दु ख म अपने को खो दे ता है , इसिलए उ ेिजत होता है ।

दु ख और सु ख के बाहर खड़े रहने म हम समथ नहीं ह; भीतर वे श कर जाते ह। एक आइडिटटी हो जाती है , एक


तादा हो जाता है । जब आप पर दु ख आता है, तो ऐसा नहीं लगता है, मुझ पर दु ख आया। ऐसा लगता है, म दु ख हो
गया। जब सु ख आपको घे र ले ता है , तो ऐसा नहीं लगता है िक सु ख आपके चारों ओर आपको घे रकर खड़ा है ; ऐसा
लगता है िक आप ही सु ख हो गए; सु ख की एक लहर मा ।

यह तादा , यह सु ख और दु ख के साथ बं ध जाने की वृ ि ही उ े जना का कारण है । और यह वृ ि तोड़ी जा सकती


है ।

सु ख-दु ख आते रहगे । सु ख-दु ख बं द नहीं होते । बु के पैरों म भी कां टे चु भ जाते ह। बु भी बीमार पड़ते ह। बु को
भी मृ ु आती है । ले िकन हमसे कुछ िभ ढं ग से आती है । मृ ु तो ढं ग नहीं बदले गी। मृ ु तो अपने ही ढं ग से
आएगी। ले िकन बु अपने को इतना बदल ले ते ह िक मृ ु के आने का ढं ग पूरा का पूरा बदल जाता है ।
60

बु मरने के करीब ह। जीवन का दीया बु झने के करीब है । शरीर छूटने को है । और एक िभ ु बु से पूछता है,
ब त पीड़ा हो रही है । िभ ु कहता है , ब त मन दु खी हो रहा है । थोड़े ही णों बाद आप नहीं होंगे! बु कहते ह, जो
नहीं था, वही नहीं हो जाएगा। जो था, वह रहे गा। मृ ु आ रही है । बु कहते ह, जो नहीं था, वही नहीं हो जाएगा।
इसिलए तु म थ दु खी मत हो जाओ। ोंिक मृ ु उसे ही िमटा सकती है , जो नहीं था; िजसे हमने सोचा भर था िक
है । था जो। हमारी धारणा मा थी, अ नहीं था िजसका। िवचार मा था, व ु-जगत म िजसकी कोई
सं भावना भी न थी, वही िमट जाएगा। जो नहीं था, वही िमट जाएगा; वह था ही नहीं। और जो था, उसके िमटने का
कोई उपाय नहीं है । जो है , वह रहे गा।

मृ ु तो आ रही है, ले िकन बु मृ ु को और तरह से दे खते ह। म म ं गा, ऐसा बु नहीं दे खते । बु दे खते ह, जो
मर सकता है , जो मरा ही आ है , वह मरे गा। यं को दू र खड़ा कर पाते ह, तट थ हो पाते ह। मृ ु की नदी बह
जाएगी, बु तट पर खड़े रह जाएं गे–अछूते, बाहर।

पीड़ा भी आती है , दु ख भी आता है । सब आता रहे गा। रात भी आएगी, सु बह भी होगी। इस पृ ी पर आप ान को


उपल हो जाएं गे, तो रात उजाली नहीं हो जाएगी। आप ान को उपल हो जाएं गे, तो दु ख सु ख नहीं बन जाएगा।
आप ान को उपल हो जाएं गे , तो कां टा गड़े गा तो फूल जै सा मालू म नहीं पड़े गा, कांटे जै सा ही मालू म पड़े गा। िफर
अंतर कहां होगा?

भीतर की चेतना कब डां वाडोल होती है ? पैर म कां टा चु भता है तब? नहीं; जब भीतर की चेतना ऐसा मानती है िक
मुझे कां टा चु भ गया, तब। अगर भीतर की चे तना कां टे के पार रह जाए, तो अनुि रह जाती है । तो िफर चे तना
अ िशत, अनट ड, बाहर रह जाती है ।

यह बाहर रह जाने की कला ही योग है । इस बाहर रह जाने की कला के सं बंध म ही कृ कह रहे ह। और ऐसी िथर
हो गई चे तना म, ऐसी जै सी ोित को हवा के झोंकों म कोई अंतर न पड़ता हो; ऐसी चे तना म ही परम स ा
िवराजमान हो जाती है । ार खुल जाते ह उसके मंिदर के। वह िवराजमान है ही। हम उसका पता नहीं चलता।

चे तना दो म से एक चीज का ही पता चला सकती है । या तो तादा की दु िनया म सं यु रहे, तो सं सार का पता
चलता रहता है । या तादा की दु िनया से हट जाए, तट थ हो जाए, तो परमा ा का पता चलना शु हो जाता है ।

ऐसा समझ िक हम बीच म खड़े ह। इस ओर सं सार है , उस ओर परमा ा है । जब तक हमारी नजर सं सार के साथ
जोर से िचपटी रहती है , तब तक पीछे नजर उठाने का मौका नहीं आता। जब सं सार से नजर थोड़ी ढीली होती है,
पृथक होती है , अलग होती है, तो अनायास ही–अनायास ही–परमा ा पर नजर जानी शु हो जाती है ।

ि तो कहीं जाएगी ही। ि का कहीं जाना धम है । ले िकन दो तरफ जा सकती है , पदाथ की तरफ जा सकती है ,
परमा ा की तरफ जा सकती है । और परमा ा की तरफ जाने का एक ही सु गम उपाय है िक वह पदाथ की तरफ
तादा को उपल न हो। बस, परमा ा की तरफ बहनी शु हो जाती है ।

वह परमा ा सदा मौजू द ही है । ले िकन हमारी ि उस पर मौजू द नहीं है । हम उससे िवपरीत दे खे चले जाते ह। हम
जो ह, उससे हम अपना तादा नहीं करते; और जो हम नही ं ह, उससे हम अपने को एक समझ ले ते ह! ों हो
जाती है ऐसी भू ल?

भू ल इतनी बड़ी है िक उसे भू ल कहना शायद ठीक नहीं। ोंिक भू ल उसे ही कहना चािहए, िजसे कोई कभी करता
हो। िजसे सभी िनरं तर करते ह, उसे भू ल कहना एकदम ठीक नहीं मालू म पड़ता।

भू ल का मतलब ही यह होता है िक सौ म कभी एक कर ले ता हो, तो हम हकदार ह कहने के िक कह, भू ल। सौ म सौ


ही करते ह। कभी करोड़ दो करोड़ म एक आदमी नहीं करता है । तो भू ल एकदम िसफ भू ल नहीं है; मैथमेिटकल
इरर जै सी भू ल नहीं है िक दो और दो जोड़े और पांच हो गए, ऐसी भू ल नहीं है । वह कोई कभी करता है । िसफ भू ल
कहने से नहीं चलेगा; ां ित है ।
61

भू ल और ां ित म थोड़ा फक है। और भू ल और ां ित के फक को खयाल म ले ले ना, दू सरी बात है । तो इस सू को


समझा जा सकेगा।

भू ल वह है , िजसम िज ेवार होता है , खुद की ही कुछ गलती से कर जाता है । ां ित वह है, िजसम जाित,
मनु जै सा है, वही िज ेवार होती है । मनु के होने का ढं ग ही िज ेवार होता है ।

रा े से आप गु जर रहे ह और एक र ी को आपने सां प समझ िलया, तो वह आपकी भू ल है। सब गु जरने वाले सां प
नहीं समझगे । वह सां प से डरने वाला िच , सां प से भयभीत िच , सां प के अनुभवों से भरा आ िच , र ी से भी
सां प का अनुमान कर ले गा। वह इनफरस है उसका िक कहीं सां प न हो। ले िकन सभी को सां प नहीं िदखाई पड़े गा।
वह भू ल है , इसिलए ब त किठनाई नहीं है । टाच जला ली जाए, दीया जला िलया जाए और भू ल िमट जाएगी। वह
गत है । वह मनु के िच से पैदा नहीं होती; गत िच से पैदा होती है । वह इं िडिवजु अल है, कले व
नहीं है ।

ले िकन िजस भू ल की म बात कर रहा ं या कृ इस सू म बात कर रहे ह, वह कले व है । ऐसा नहीं है िक िकसी
को र ी सां प िदखाई पड़ती है । जो भी गु जरता है , उसी को िदखाई पड़ती है । ब िकनारे बु और महावीर और
कृ जै से लोग खड़े होकर िच ाते रह िक यह सां प नहीं, र ी है , िफर भी सां प ही िदखाई पड़ता है । तो इसको भू ल
कहना आसान नहीं है ।

दीए जला लो, रोशनी कर दो, िच ा-िच ाकर कहते रहो िक यह र ी है, सां प नहीं! िफर भी जो गु जरता है ,
सु नकर भी उसे सां प ही िदखाई पड़ता है , र ी िदखाई नहीं पड़ती। तो यह भू ल कले व माइं ड की है , इसिलए
ां ित है ।

यह उस तरह की है , जै से हम एक लकड़ी को पानी म डाल द और वह ितरछी हो जाए। ितरछी होती नहीं, िदखाई
पड़ती है । लकड़ी को बाहर खींच ल, वह िफर सीधी मालू म होती है । िफर पानी म डाल, वह िफर ितरछी मालू म होती
है । अंदर लकड़ी को पानी म हाथ डालकर टटोल, वह सीधी मालू म पड़ती है । ले िकन आं ख को िफर भी ितरछी
िदखाई पड़ती है! वह भू ल नहीं है , ां ित है । आप हजार दफे जान िलए ह भलीभां ित िक लकड़ी ितरछी नहीं होती पानी
म, िफर भी जब लकड़ी पानी म िदखाई पड़े गी, तो ितरछी ही िदखाई पड़े गी।

ां ित वह है , जो समू हगत मन से पैदा होती है ।

इसे म ां ित कहता ं , हमारे तादा को। दु ख और सु ख के साथ हम अपने को एकदम एक कर ले ते ह। यह


समू हगत मन, कले व माइं ड से पैदा होने वाली ां ित है । जै से पानी म लकड़ी डाल दी और वह ितरछी मालू म ई।
यह सां प िदखाई पड़ने लगे र ी म, वै सी भू ल नहीं है । इसिलए हजार दफे समझने के बाद, िफर, िफर वही भू ल हो
जाती है ।

अचेतन से आती है यह ां ित। आप कम िज ेवार ह, अभी। आप अनंत ज ों म िजस ढं ग से जीए ह, उसकी


िज ेवारी ादा है । गहरे म बै ठ गई है यह बात। ों बै ठ गई है ? बै ठ जाने का सू भी समझ ले ना चािहए।

इतने गहरे म जब ां ित बैठी हो, तो उसका कोई सू ब त गहरा होता है । और इसीिलए तोड़ने म इतनी मु ल
पड़ती है । गीता िच ाती रहती है , पढ़ते रहते ह। कोई तोड़ता नहीं। ब त मु ल मालू म पड़ता है । ोंिक गीता तो
आप पढ़ते ह बु से, जो ब त ऊपर है । और ां ित आती है ब त गहरे से आपके। उन दोनों का कोई मेल नहीं हो
पाता।

पढ़ ले ते ह, सु ख-दु ख म समबु रखनी चािहए। िफर जरा-सा पैर म कां टा गड़ा, और सब सू खो जाते ह। गीता भू ल
जाती है, पैर पकड़ ले ते ह। और कहते ह, मुझे कां टा गड़ गया! वह जो बु ने सोचा था, वह काम नहीं पड़ता। बु
से भी ादा गहरी ां ित है कहीं। ां ित अचेतन म है । और ों है ?
62

दु ख के कारण नहीं है ां ित; ां ित सु ख के कारण है । ां ित दु ख के कारण नहीं है , इस बात को तो कोई भी मानने को


राजी हो जाएगा। यह बड़ी सु खद है बात िक यह पता चल जाए िक पैर म कां टा गड़ता है, वह मुझे नहीं गड़ता। यह तो
कोई भी मानने को राजी हो जाएगा। बीमारी आती है , वह मुझे नहीं आती। मौत आती है , वह मुझे नहीं आती। यह तो
कोई भी मानने को राजी हो जाएगा।

नहीं, किठनाई दु ख से नहीं है; किठनाई सु ख से है । सु ख म नही ं ं , यह मानने को हम यं ही राजी नहीं होते ।
इसिलए दु ख सवाल नहीं है, सवाल सु ख है । जब आप कहते ह िक म िजं दा ं , तो िफर आपको कहना पड़े गा िक म
म ं गा।

ान रख, भू ल मरने से नहीं आती, िजं दगी के साथ आती है । िजं दगी–म िजं दा ं ! और अगर भू ल तोड़नी है, तो
िजं दगी से तोड़नी पड़े गी, मौत से नहीं। ले िकन लोग मौत से तोड़ने का उपाय करते ह। बै ठ-बैठकर याद करते रहते ह
िक आ ा अमर है । म कभी नहीं म ं गा।

ले िकन उनको खयाल नहीं है िक जब आप अपने को जीिवत समझ रहे ह, तो एक िदन आपको, मरता ं , यह भी
समझना पड़े गा। यह उसका दू सरा िह ा है । ले िकन कोई भी बै ठकर यह रण नहीं करता िक म जीिवत कहां ं!
यह ब त घबड़ाने वाली बात होगी। अगर तोड़ना है , तो यहां से तोड़ना पड़े गा।

जब सु ख आए, तब तो मन त ाल राजी हो जाता है िक म सु ख ं । जब कोई गले म फूलमाला डाले, तब तो ऐसा


लगता है, मेरे ही गले म डाली है । मुझ म कुछ गु ण ह। और जब कोई जू तों की माला गले म डाल दे , तो हम समझते
ह, वह आदमी शै तान था, दु था; मेरे गले म नहीं डाली।

जब कोई स ान करे , तब तो तादा करने के िलए बड़ी तै यारी होती है । ले िकन जब कोई अपमान करे , तब तो हम
खुद ही तादा तोड़ना चाहते ह। दु ख से तो कोई तादा बनाना चाहता नहीं। बनता है । बनता इसिलए है िक सु ख
से सब तादा बनाना चाहते ह।

सु ख से हम ों तादा बनाना चाहते ह? और जब तक सु ख से न टू टे , तब तक दु ख से कभी न टू टे गा। जब तक


स ान से न टू टे , तब तक अपमान से न टू टे गा। जब तक शं सा से न टू टे , तब तक िनंदा से न टू टे गा। जब तक जीवन
से न टू टे , तब तक मृ ु से न टू टे गा।

इसिलए साधक को शु करना है सु ख से । दु ख से तो सभी शु करते ह, कभी नहीं टू टता। सु ख से शु करना है ।


सु ख म अपने को बाहर रखने की चे ा! जब सु ख आए, तब दू र खड़े करने की कोिशश अपने को!

और यह बड़े मजे की बात है िक सु ख से कोई शु नहीं करता। य िप सु ख से कोई शु करे , तो ब त सरल है । यह


दू सरी बात आपसे कहना चाहता ं । सु ख से कोई शु नहीं करता। सु ख से कोई शु करे , तो ब त सरल है । दु ख से
लोग शु करते ह। दु ख से शु िकया नहीं जा सकता। दु ख से शु करना असंभव है ।

हमारे सं बंध सु ख से ह, दु ख तो सु ख के पीछे आता है । इनडायरे ह उससे हमारे सं बंध, डायरे नहीं ह; परो ह,
नहीं ह। िजससे हमारे सं बंध ह, उससे ही सं बंध तोड़े जा सकते ह। और सरलता से तोड़े जा सकते ह।

ले िकन सु ख से कोई शु नहीं करता, और वहीं सरलता से टू ट सकते ह। दु ख से सभी लोग शु करते ह, वहां कभी
टू ट नहीं सकते । इसिलए अ र ऐसा होता है िक दु खी लोग धम की तलाश म िनकल जाते ह। सु खी आदमी धम की
तलाश म कभी नहीं जाता।

एक िम अपने िकसी िम को मेरे पास लाए थे । कई बार मुझे कहा था िक उ आपके पास लाना है । ले िकन वे आने
को राजी नहीं होते, वे कहते ह, म सब भां ित सु खी ं । अभी उनके पास जाने की ा ज रत! मने कहा, तो थोड़ा
ठहरो। ोंिक सब भां ित सु खी रहना सदा नहीं हो सकता। थोड़ा को। थोड़ा ठहरो। थोड़ा धीरज रखो। ज ी दु ख
63

आ जाएगा। और जो आदमी कहता है िक म सब भां ित सु खी ं , अभी म ों जाऊं; वह दु ख म आने को राजी हो


जाएगा, हालां िक तब आना बे कार होगा। अभी आने म कुछ हो सकता है । ोंिक सु ख बीज है, दु ख फल है । सु ख के
बीज को न करना ब त आसान है ; दु ख के बड़े िवराट वृ को न करना ब त मु ल हो जाएगा।

और जै से एक बीज को बोने से वृ एक और करोड़ बीज हो जाते ह, ऐसे ही एक सु ख की आकां ा करने से बड़े दु ख


का वृ फिलत होता है । ले िकन उस दु ख के वृ म करोड़ सु खों की आकां ाएं िफर लग जाती ह।

मने कहा, ले िकन को। यही िनयम है िक लोग दु ख म धम की तलाश करते ह, जब िक तलाश नहीं की जा सकती।
और लोग सु ख म कहते ह िक हम तो सु खी ह; तलाश की ा ज रत है ?

ऐसा ों होता है ? ऐसा इसिलए होता है िक लोग धम को भी सु ख के िलए तलाश करते ह। धम को भी सु ख के िलए
तलाश करते ह! इसिलए दु ख म कहते ह िक ठीक है , अभी िच दु खी है , तो हम धम की तलाश कर।

और धम का सु ख से कोई भी सं बंध नहीं है । धम का तो पूरा िव ान सु ख से तोड़ने का िव ान है । य िप जो सु ख से


टू ट जाता है, वह आनंद से जु ड़ जाता है । वह िबलकुल दू सरी बात है ।

कभी भू लकर भी आप यह मत समझना िक िजसे आप सु ख कहते ह, उससे आनंद का कोई भी सं बंध है । इतना ही
सं बंध हो सकता है –है–िक सु ख के कारण आनंद कभी नहीं आ पाता। बस इतना ही सं बंध है । सु ख के कारण ही
अटकाव खड़ा रहता है और आनंद के ार तक आप नहीं प ंच पाते ।

िफर जै सा होता है, उनकी प ी चल बसी; दु ख आ गया। िफर उनके िम उ ले आए। कहने लगे िक प ी चल बसी
है ; म ब त दु खी हो गया ं । िच ब त उि है । कुछ रा ा बताएं । तो मने उ कहा िक अब ठीक से दु खी ही हो
लो। ठीक से दु खी हो लो। रोओ, छाती पीटो, िसर पटको। वे ब त चौंके। उ ोंने कहा िक आपसे ऐसी आशा ले कर
नहीं आया। कुछ कंसोले शन, कुछ सां ना चािहए! तो मने कहा िक िफर तु म मेरे पास भी सु ख की ही तलाश म आए,
िक िकसी तरह तु ारे दु ख को हलका क ं और तु थोड़ा सु ख िमल जाए! इसके पहले िक तु म नई प ी खोजो,
थोड़ा म तु मको सु व थत कर दू ं । इस श को ले कर नई प ी खोजने म ब त मु ल होगी।

वे कहने लगे , आप कैसी बात कर रहे ह? मेरी प ी मर गई है ! मने उनसे कहा िक ईमान से पूछो अपने मन से, नई
प ी की तलाश शु नहीं हो गई है ? वे कहने लगे, आपको कैसे पता चल गया? मने कहा, मुझे कुछ पता नहीं चल
गया। आदमी के मन को म जानता ं; तु ारे बाबत म कुछ नहीं कह रहा ं । ज ी ही तु म नई प ी खोज लोगे । िफर
तु म कहोगे, म सब सु ख म ं; अब धम की ा ज रत है !

धम तु ारा उपकरण नहीं बन सकता। धम कोई इमरजसी मेजर नहीं है िक तु म तकलीफ म हो, तो ज ी से
इमरजसी दरवाजा खोल िलया धम का और चले गए। धम तु ारे दु ख से छु टकारे का उपाय नहीं है । अगर ठीक से
समझ, तो धम सु ख से छु टकारे का उपाय है । उसके िलए तो मन कभी तै यार नहीं होता है , इसिलए कभी धम जीवन
म आता नहीं।

और ान रहे, जो सु ख से छूट जाता है, वह दु ख से त ाल छूट जाता है । और जो दु ख से छूटना चाहता है और सु ख


पाना चाहता है, वह कभी दु ख से छूट ही नहीं सकता, ोंिक वह सु ख से नहीं छूट सकता।

दु ख सु ख का ही दू सरा पहलू है , अिनवाय। और दु ख को छोड़ने की हमारी तै यारी है, उससे हम छूट नहीं सकते । सु ख
को छोड़ने की हमारी तै यारी नहीं है ।

म आपसे यह कहना चाहता ं िक सु ख की पीड़ा को समझ। सु ख के पूरे प को समझ। हर सु ख के पीछे िछपे ए


दु ख को समझ। हर सु ख के धोखे के ित जाग। हर सु ख िसफ लोभन है आपको िफर एक नए दु ख म िगरा दे ने का।
जब तक सु ख के ित इतना होश न हो, तब तक आप िकनारे पर खड़े न हो पाएं गे ।
64

लाओ े कहता था, जब भी कोई मेरा स ान करने आया, तो मने कहा, मुझे माफ करो, ोंिक म अपमान नहीं
चाहता ं । उस आदमी ने कहा, ले िकन हम स ान दे ने आए ह! लाओ े ने कहा, तु म स ान दे ने आए हो, और
अगर म स ान ले ने को राजी आ, तो आस-पास गां व के कहीं अपमान िनकट ही होगा। वह अपनी या ा शु कर
दे गा। ोंिक मने कभी सु ना नहीं िक ये दोनों अलग-अलग जीते ह। ये पेयर है, जोड़ा है । ये साथ ही चलते ह। इनम
कभी डायवोस आ नहीं है । इनम कभी कोई तलाक नहीं आ है । ये सदा साथ ही खड़े रहते ह। यह अिनवाय जोड़ा
है । तु म मुझ पर कृपा करो। तु म मेरे अपमान को िनमं ण मत िदलवाओ। तु म अपने स ान को वापस ले जाओ।

लाओ े को उस मु के स ाट ने धन-धा से भट दे नी चाही। लोगों ने कहा िक इतना बड़ा अदभु त फकीर तु ारे
दे श म और भीख मां गे, तु ारे िलए शोभा नहीं है । स ाट खुद उप थत आ लाओ े के झोपड़े पर, ब त रथों म
धन-धा , व , आभू षण, सब ले कर, करोड़ों का सामान ले कर। लाओ े ने कहा िक अभी म मेरा मािलक ं, तु म
मुझे नाहक िभखारी बना दोगे । तु म अपना यह सब साज-सामान ले जाओ। और अगर तु मेरी मालिकयत से कोई
एतराज हो, तो म तु ारे रा की भू िम छोड़कर चला जाऊं। ले िकन तु म मुझे परे शान मत करो। राजा ने कहा िक
ा कहते ह आप? म तो सु ख दे ने आया था! लाओ े ने कहा, अनंत ज ों का अनुभव यह कहता है िक जो भी सु ख
दे ने आया, वह दु ख के अित र कुछ दे नहीं गया। अब और धोखा नहीं।

ले िकन जागना पड़े सु ख म; जागना पड़े स ान म; जागना पड़े वहां, जहां अहं कार को तृ िमलती है ; अहं कार के
चारों तरफ फूल सज जाते ह, वहां जागना पड़े । और वहां जागना सरल है, ोंिक शु आत है वहां; अभी या ा शु
होती है । दु ख तो अंत है, सु ख ारं भ है । और सदा जो ारं भ म सजग हो जाए, वह बाहर हो सकता है । बीच म सजग
होना ब त मु ल हो जाता है।

ले िकन हम ारं भ म सोना चाहते ह। लोग कहते ह, सु ख की नींद। सु ख एक नींद ही है । सु ख म ब त मु ल से कोई


जागता है ।

दू सरा सू रण रख िक ज र ज ी, आजकल म सु ख आएगा, तब सजग रह िक दु ख पीछे खड़ा है , ती ा कर


रहा है । ज र आजकल म स ान आएगा, तब चौंककर खड़े हो जाएं ; लाओ े को रण कर िक अब यह आदमी
अपमान का इं तजाम िकए दे रहा है । ज ी कोई िसं हासन पर बै ठने का मौका आएगा, तब भाग खड़े हों। िफर दु ख से
आपकी कभी कोई मुलाकात न होगी।

और एक बार यह सू आपकी समझ म आ गया िक सु ख से बचने की साम दु ख से बचने की पा ता है ; और िजस


िदन आप सु ख से बचने की साम जु टा ले ते ह, दु ख से बचने की पा ता िमल जाती है , उसी िदन आनंद का ार खुल
जाता है । जै से ही सु ख से कोई अपने को दू र खड़ा कर ले , वै से ही िच की डोलती ई लौ िथर हो जाती है । और जो
सु ख म नहीं डोला, वह दु ख म कभी नहीं डोले गा।

ान रख, सु ख म डोल गए, तो दु ख म डोलना ही पड़े गा। वह अिनवाय कंपन है , जो सु ख के पैदा ए कंपनों की
प रपूित करते ह, कां मटी ह। जै से घड़ी का पडु लम बाएं आपने घु मा िदया, तो वह दाएं जाएगा, जाना ही पड़े गा।
कोई उपाय नहीं है बचने का। सु ख म कंिपत हो गए, तो दु ख म कंिपत होना पड़े गा।

ले िकन हम सु ख म कंिपत होना चाहते ह और दु ख म कंिपत नहीं होना चाहते । इससे उलटा करना पड़े । सु ख म
कंिपत न होना चाह, िफर आपको दु ख छू भी नहीं सकेगा। सु ख की खोज म रह िक जब सु ख िमले, तब होश से भर
जाएं और दे ख िक सु ख आपको कंिपत तो नहीं कर रहा है ।

किठन नहीं है । बस, रण करने की बात है । किठन जरा भी नहीं है । हम खयाल ही नहीं है , बस इतनी ही बात है ।
हम ृित ही नहीं है इस बात की िक सु ख ही हमारा दु ख है । दु ख को हम दु ख समझते ह, सु ख को हम सु ख समझते
ह; बस, वहीं ां ित है । और वह ां ित समू हगत है । गत नहीं है, समू हगत है ।

जब आपका बे टा ू ल से थम क ा म उ ीण होकर घर नाचता आ आए, तब आप जानना िक वह दु ख की तै यारी


कर रहा है । काश, मां -बाप बु मान हों, तो उसे कह िक इतने सु खी होने की कोई ज रत नहीं है । ोंिक िजतना तू
65

सु खी होगा, उतना ही दु ख दू सरे पलड़े पर रख िदया जाएगा, जो आजकल म लौट आएगा। उस ब े म समू हगत मन
पैदा हो रहा है , और हम सहयोग दे रहे ह। हम भी घर म बड-बाजा बजाकर, फूल-िमठाई बांट दगे । हमने उसके सु ख
के साथ तादा होने की, जोड़ बां धने की चे ा शु कर दी। हमने उसके मन को एक िदशा दे दी, जो उसे दु ख म ले
जाएगी।

हम सब ब ों को अपनी श म ढाल दे ते ह। हमारे मां -बाप हम ढाल गए थे, उनके मां-बाप उ ढाल गए थे!
बीमा रयां बीमा रयों को ढालती चली जाती ह। रोग रोग को ज दे ते चले जाते ह।

उस ब े के भी अतीत के अनुभव ह, उस ब े के भी िपछले ज ों के अनुभव ह। उनम भी उसने इसी भू ल को


दोहराया था। इस ज म िफर हम बचपन से उसके िदमाग को, उसके म को िफर कंडीशन करते ह, िफर
सं ा रत करते ह। सु ख म सु खी होने की तैयारी िदखलाते ह। िफर दु ख म वह दु खी होता है ।

ज होता है, तो बड-बाजा बजाकर हम बड़ी खुशी मनाते ह। हमने कंडीशिनंग शु कर दी। आप कहगे, छोटे ब े
को तो पता भी नहीं चलेगा, पहले िदन के ब े को िक बड-बाजा खुशी म बज रहा है ।

ले िकन अभी जो लोग, जो वै ािनक मनु के शरीर की ृित पर काम करते ह, बाडी मेमोरी पर, उनका कहना है
िक वे बड-बाजे भी ब े के अचेतन मन म वेश करते ह। वे बड-बाजे ही नहीं, मां के पेट म जब ब ा होता है , तब
भी जो घटनाएं घटती ह, वे भी ब े की अचे तन ृित का िह ा हो जाती ह; वे भी ब े को िनिमत करती ह।

ये बड-बाजे, यह खुशी की लहर, यह चारों तरफ जो सु ख के साथ एक होने की भावना कट की जा रही है , इसकी
तरं ग भी ब े म वेश कर जाती ह। िफर यही तरं ग मृ ु के व दु ख लाएं गी।

अगर मृ ु के व दु ख न लाना हो, तो ज के व सु ख के साथ तादा पैदा करने की व था को हटाएं । सु ख


जहां से शु होता है , वहां से तोड़ना शु कर।

योग सु ख म जागने का नाम है । जागकर दे ख िक म अलग ं । और िफर आप अपने दु ख म भी जागकर दे ख सकगे


िक अलग ह; कोई अड़चन न आएगी, कोई किठनाई न पड़े गी। तट थ होते रह।

समय लगेगा। समय लगने का आं त रक कारण नहीं है; समय लगने का कुल कारण इतना है िक हमारी आदत
मजबूत ह और पुरानी ह। डोलने की आदत मजबूत है, ब त पुरानी है । हम पता ही नहीं चलता, कब हम डोलने लगे ।
जब कोई आपकी शं सा के दो श कहता है, तब आपको पता ही नहीं चलता िक मन सु नने के साथ ही, ब
शायद सु नने के थोड़ी दे र पहले ही डोल गया। उस आदमी का चे हरा दे खा। लगा िक कुछ शंसा म कहे गा, और
भीतर कुछ डोल गया। यह भी जानकर डोल जाएगा िक शं सा झूठी है, तो भी डोल जाएगा। ोंिक आप भी जानते
ह िक आप भी दू सरों की झूठी शं साएं कर रहे ह और उनको डु ला रहे ह! और कोई आपकी भी शं सा कर रहा है
और आपको डोला रहा है!

िबना आपको कंिपत िकए, आपका उपयोग नहीं िकया जा सकता। आपको कंपाकर ही उपयोग िकया जा सकता है ।
इसिलए इतनी खुशामद दु िनया म चलती है । इतनी खुशामद चलती है , ोंिक पहले आपको थोड़ा डां वाडोल िकया
जाए, तभी आपका उपयोग िकया जा सकता है । डां वाडोल होते ही आप कमजोर हो जाते ह।

ान रख, जै से ही आपकी चेतना कंपी िक आप कमजोर हो जाते ह। िफर आपका कुछ भी उपयोग िकया जा सकता
है । जो आपकी खुशामद कर रहा है, वह आपको कमजोर कर रहा है, वह आपको भीतर से तोड़ रहा है ।

इसिलए कृ ने इसम एक श उपयोग िकया है िक जो सु ख-दु ख म अनडोल रह जाए, वही ाधीन है । इसम एक
श उपयोग िकया है िक वही ाधीन है , जो सु ख और दु ख म सम रह जाए। उसे दु िनया म कोई पराधीन नहीं बना
सकता।
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हम तो कोई भी पराधीन बना सकता है , ोंिक हम कोई भी कंपा सकता है । और जै से ही हम कंपे िक जमीन हमारे
पैर के नीचे की गई। कोई भी कंपा सकता है । कोई भी आपसे कह सकता है िक ऐसी सुं दर श कभी दे खी नहीं,
ब त सुं दर चे हरा है आपका! कंप गए आप। अब आपका उपयोग िकया जा सकता है ; अब आपसे गु लामी करवाई
जा सकती है ।

कोई भी आपसे कह दे ता है िक आपकी बु म ा का कोई मुकाबला नहीं; बे जोड़ ह आप! कंप गए आप। और उस
आदमी ने आपको बु मान कहकर बु द्धू बना िदया! अब आपसे कम बु का आदमी भी आपसे गु लामी करवा
सकता है । कंप गए आप। कंपे िक कमजोर हो गए। कंपे िक पराधीन ए।

जो आदमी भीतर कंिपत होता है सु ख-दु ख म, वह कभी भी गु लाम हो जाएगा। उसकी पराधीनता सु िनि त है । वह
पराधीन है ही। एक छोटा-सा श , और उसको गु लाम बनाया जा सकता है । िसफ उस आदमी को पराधीन नहीं
बनाया जा सकता, िजसको सु ख और दु ख नहीं कंपाते । उसको अब इस दु िनया म कोई पराधीन नहीं बना सकता।
कोई उपाय न रहा। उस आदमी को िहलाने का उपाय न रहा। अब तलवार उसके शरीर को काट सकती ह, ले िकन
वह अिडग रह जाएगा। अब सोने की वषा उसके चरणों म हो सकती है , ले िकन िम ी की वषा से ादा कोई प रणाम
नहीं होगा। अब सारी पृ ी का िसं हासन उसे िमल सकता है, वह उस पर ऐसे ही चढ़ जाएगा, जै से िम ी के ढे र पर
चढ़ता है ; और ऐसे ही उतर जाएगा, जै से िम ी के ढे र से उतरता है ।

भीतरी श अकंपन से आती है । भीतरी श , आं त रक ऊजा, परम श उस को उपल होती है , जो


अकंप को उपल हो जाता है । और अकंप वही हो सकता है , जो सु ख-दु ख म कंिपत न हो।

योगा ढ़ होने के पहले यह अकंप, यह िन ं प दशा उपल होनी ज री है । और इस िन ं प दशा म ही आदमी के


पास इतनी ऊजा, इतनी श , इतनी तं ता और इतनी ाधीनता होती है , कहना चािहए, आदमी होता है,
यं होता है िक इस पा ता म ही परमा ा से िमलन है ; इसके पहले कोई िमलन नहीं है ।

जो सु ख-दु ख से कंप जाता है , वह इतना कमजोर है िक परमा ा को सह भी न पाएगा। इतना कमजोर है ! एक चां दी
के िस े से िजसके ाण डांवाडोल हो जाते ह। एक जरा-सा कां टा िजसकी आ ा तक िछद जाता है । एक जरा-सी
ितरछी आं ख िकसी की िजसकी रातभर की नींद को खराब कर जाती है । वह आदमी इतना कमजोर है िक कृपा है
परमा ा की िक उस आदमी को न िमले । नहीं तो आदमी टू टकर, फूटकर, ए ोड ही हो जाएगा, िबलकुल न ही
हो जाएगा।

इतनी बड़ी घटना उस आदमी की िजंदगी म घटे गी, जो एक पए से कंप जाता है, िजसका एक पया रा े पर खो
जाए, तो मु ल म पड़ जाता है ! इतनी बड़ी घटना को झेलने की उसकी साम नहीं होगी। वह इतना ि लाइ
नहीं है , इतना सं गिठत नहीं है भीतर, इतना स ावान नहीं है िक परमा ा को झेल सके। वह पा ता उसकी नहीं है ।

िनयम से सब घटता है । िजस िदन आप पा हो जाएं गे ाधीन होने के, उसी िदन परम स ा आप पर अवत रत हो
जाती है । वह सदा उतरने को तैयार है , िसफ आपकी ती ा है । और आप इतनी ु बातों म डोल रहे ह िक िजसका
कोई िहसाब नहीं। कभी िहसाब लगाकर दे ख िक आपको कैसी-कैसी बात डां वाडोल कर जाती ह! कैसी ु बात
डां वाडोल कर जाती ह! रा े से गु जर रहे ह, दो आदमी जरा जोर से हं स दे ते ह; आप डां वाडोल हो जाते ह।

एक िम को सं ास ले ना है । वे मुझसे रोज कहते ह, ले ना है , ले िकन म तो इ ीं कपड़ों म सं ासी ं । अनेक लोग


आकर मुझसे यही कहते ह िक हमम कमी ही ा है ? हम तो इ ीं कपड़ों म सं ासी ह! तो म कहता ं , िफर डर
ा है ? डाल लो गे ए व । तब कंप जाते ह। बड़ा श शाली सं ास है! वह गे आ व डालने से कंपता है । ों
कंपता है?

वह दू सरों की आं खों का कंपन है । रा े से गु जरगे, लोग ा कहगे? द र म जाएं गे, लोग ा कहगे? द र म
गए, कहीं चपरासी ने हं स िदया ऐसा मुंह करके, मु राकर, तो िफर ा होगा? कोई ा कहेगा? इतना भयभीत
कर दे ती है बात। इतने कमजोर िच म ब त बड़ी घटनाएं नहीं घट सकतीं।
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गे ए कपड़े पहनने से कोई बड़ी घटना नहीं घट जाएगी। ले िकन गे आ कपड़ा पहनने से एक सू चना हो जाती है िक
अब दू सरे ा कहते ह, इसकी िफ छोड़ी। यह बड़ी घटना है । गे ए कपड़े म कुछ भी नहीं है , ले िकन इस घटना म
ब त कुछ है ।

लोग ा कहगे! लोगों के कहे ए श िकतना कंपा जाते ह! श ! िजनम कुछ भी नहीं होता है ; हवा के बबू ले। एक
आदमी ने होंठ िहलाए। एक आवाज पैदा ई हवा म। आपके कान से टकराई। आप कंप गए। इतनी कमजोर आ ा!
नहीं; िफर बड़ी घटनाओं की पा ता पैदा नहीं हो सकती।

कृ कहते ह िक सु ख-दु ख म जो अडोल रह जाए, अकंप, उसकी चेतना िथर होती है । और वै सी चेतना परमा ा के
भीतर िवराजमान है और वै सी चे तना म परमा ा िवराजमान है ।

चल िन ं प चे तना की तरफ! बढ़! सु ख से शु कर, दु ख से कभी शु मत करना। सु ख से शु कर, दु ख तक


प ं च जाएगी बात। दु ख से कभी शु मत करना। दु ख से कभी शु नहीं होती बात।

सु ख को ठीक से दे ख और पाएं गे िक सु ख दु ख का ही प है । सु ख म ही तलाश कर और पाएं गे िक सु ख म ही दु ख


के सारे के सारे बीज, सारी सं भावना िछपी है । और सु ख से अपने को न कंपने द।

न कंपने दे ने के िलए ा करना पड़े गा? ा आं ख बं द करके खड़े हो जाएं गे िक सु ख न कंपाए? अगर ब त ताकत
लगाकर खड़े हो गए, तो आप कंप गए!

अगर एक आदमी कहे िक म तो अंधेरे म से िनकल जाता ं । आं ख बं द कर ले ता ं ; हाथ पकड़कर जोर से ताकत
लगाता ं ; िबलकुल िनकल जाता ं िबना डरे । यह हाथ और यह ताकत, ये सब डर के ल ण ह। इस आदमी का यह
कहना िक म अंधेरे म िबना डरे िनकल जाता ं , यह भी डरे ए आदमी का व है । नहीं तो अंधेरे का पता ही नहीं
चलता; यह िनकल जाता। उजाले म तो नहीं कहता यह आदमी िक म उजाले म िबना डरे िनकल जाता ं! अंधेरे की
कहता है िक अंधेरे म िबना डरे िनकल जाता ं ।

नहीं; अगर आपने ब त ताकत लगाई, तो समझ ले ना िक आप कंप गए, वह ताकत कंपन ही है । नहीं; ताकत लगाने
की कोई ज रत नहीं है ।

इस बात को, तीसरे सू को, ठीक से खयाल म ले ल। इससे साधक को बड़ी किठनाई होती है ।

ताकत लगाई अगर आपने और कहा िक ठीक है , अब सु ख आएगा, तु म डालना मेरे गले म माला और म िबलकुल
छाती को अकड़ाकर और सां स को रोककर िबलकुल अकंप रह जाऊंगा!

आप कंप गए। बु री तरह कंप गए। यह इतनी ताकत लगाई माला के िलए! चार आने म बाजार म िमल जाती है । चार
आने के िलए इतनी ताकत लगानी पड़ी आ ा की, तब तो कंपन काफी हो गया। और िकतनी दे र मु ी बां धकर
र खएगा? थोड़ी दे र म मु ी ढीली करनी पड़े गी। सां स िकतनी दे र रोिकएगा? थोड़ी दे र म सां स लगे । तो जो डर था,
वह थोड़ी दे र बाद शु हो जाएगा।

नहीं; समझ की ज रत है, श की ज रत नहीं है । समझ की ज रत है । जब सु ख आए, तो समझने की कोिशश


क रए; ताकत लगाकर दु न बनकर मत खड़े हो जाइए। ोंिक िजसके खलाफ आप दु न बनकर खड़े ए,
उसकी ताकत आपने मान ली। ताकत मत लगाइए, समझ।

और ान र खए, िजतनी समझ कम हो, लोग उतनी ादा ताकत लगाते ह। सोचते ह, ताकत से समझ का काम
पूरा कर लगे । कभी नहीं पूरा होता। र ीभर समझ, पहाड़भर ताकत से ादा ताकतवर है । समझ का काम कभी
ताकत से पूरा नहीं होगा। समझ को ही िवकिसत क रए।
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जब सु ख आए, तो उसको दे खए गौर से, भोिगए, समझने की कोिशश क रए। और दे खए िक रोज कैसे सु ख दु ख म
बदलता जा रहा है । और अंत तक या ा क रए और दे खए िक सु ख से शु आ था और दु ख पर पूरा आ! दो-चार-
दस सु खों के बीच से गु ज रए समझते ए। और आप पाएं गे िक आपकी समझ म वह जगह आ गई, वह मै ो रटी,
वह ौढ़ता आपकी समझ म आ गई िक अब ताकत लगाने की ज रत नहीं है । आप, बस अब सु ख आता है और
जानते ह िक वह दु ख है । इतनी सरलता से िजस िदन आप रहगे, उस िदन िन ं प िच पैदा होगा; ताकत से नहीं पैदा
होगा।

इसिलए ब त से हठवादी धम को ताकत से छीनना चाहते ह। वे कभी धम को नहीं उपल हो पाते, िसफ अहं कार
को उपल होते ह। ताकत से अहं कार िमल सकता है । समझ से अहं कार गलता है ।

अगर ताकत लगाकर आपने कहा िक ठीक, अब हम सु ख को सु ख नहीं मानते , दु ख को दु ख नहीं मानते; और खड़े
हो गए आं ख बद करके ताकत लगाकर, तो िसफ अहं कार मजबू त होगा। और कुछ भी होने वाला नहीं है । और यह
अहं कार अपने तरह के सु ख दे ने लगे गा; और यह अहं कार अपने तरह के दु ख लाने लगेगा; खेल शु हो जाएगा।

समझ, अंडर िडं ग पर खयाल र खए। िजतनी समझ बढ़ती है , िजतनी ा बढ़ती है , उतना ही…।

बु ने तीन श उपयोग िकए ह– ा, शील, समािध। बु कहते ह, िजतनी ा बढ़े , िजतनी समझ बढ़े , उतना
शील पांत रत होता है, च र बदलता है । िजतना च र पांत रत हो, उतनी समािध िनकट आती है ।

ले िकन शु आत करनी पड़ती है ा से, समझ से । समझ बनती है शील बाहर की दु िनया म, और भीतर की दु िनया
म समािध। यहां समझ बढ़ती है , तो बाहर की दु िनया म च र पैदा होता है । और च र का अगर ठीक-ठीक अथ
समझ, तो च र केवल उसी के पास होता है, जो अकंप है । जो जरा-जरा सी बात म कंप जाता है , उसके पास कोई
च र नहीं होता।

सु ना है मने िक इमेनुअल कां ट, जमनी का एक ब त ावान पु ष, रात दस बजे सो जाता था, सु बह चार बजे उठता
था। नौकर से कह रखा था, जो उसकी से वा करता था, िक दस और चार के बीच कुछ भी हो जाए, भू कंप भी आ
जाए, तो मुझे मत उठाना।

ले िकन िफर ऐसा आ िक इमेनुअल कां ट िजस िव िव ालय म िश क था, अ ापक था, उस िव िव ालय ने तय
िकया िक उसे चां सलर, कुलपित बना िदया जाए। रात बारह बजे तार आया; नौकर को तार िमला। इतनी खुशी की
बात थी। गरीब इमेनुअल कां ट, साधारण ोफेसर था, चां सलर होने का िनणय िकया िव िव ालय की एकेडे िमक
कौंिसल ने! तो नौकर भू ल गया यह। सोचा था िक भू कंप के िलए मना िकया है । मगर यह तो बात इतनी खुशी की,
इतने सु ख की है , इसकी तो खबर दे दे नी चािहए।

गया और जाकर इमेनुअल कां ट को िहलाया और उठाया, कहा िक शु भकामनाएं करता ं ! आपको िव िव ालय ने
कुलपित चु ना। इमेनुअल कां ट ने आं ख खोली, एक चां टा नौकर को मारा और वापस चादर ओढ़कर सो गया।

नौकर तो ब त है रान आ। बड़ा है रान आ! यह ा आ? भू कंप को मना िकया था; यह तो बात ही कुछ और है!

सु बह इमेनुअल कां ट ने उठकर पहला तार यू िनविसटी आिफस को िकया िक मुझे मा कर, इस पद को म ीकार
न कर सकूंगा, ोंिक इस पद के कारण मेरे नौकर को भी ां ित ई और कहीं मुझे न हो जाए। इसम म नहीं पडूंगा।
इस पद के कारण मेरी कल की नींद खराब ई, अब और आगे की नींद म खराब न क ं गा। इससे झंझट आएं गी।
इससे झंझटों की शु आत हो गई। वष से म कभी दस और चार के बीच उठा नहीं!

सु बह नौकर से कहा िक तू िबलकुल पागल है ! नौकर ने कहा, ले िकन आपने तो कहा था, भू कंप आए तो नहीं उठाना
है ! कां ट ने उसे कहा िक दु ख के भी भू कंप होते ह, सु ख के भी भू कंप होते ह। और जो सु ख के भू कंप ीकार कर
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ले ता है , उसी के घर दु ख के भू कंप आते ह; अ था कोई कारण नहीं है । शु आत हो गई थी। अगर म कल खुश


होकर तु झे ध वाद दे दे ता, तो म गया था! बस, मने िफर िनमं ण दे िदया, दरवाजे खोल िदए दु ख के िलए।

उस नौकर ने कहा, ले िकन मुझे आपने चां टा ों मारा? कां ट ने कहा िक तू समझता होगा, िमठाई बां टूंगा! तो मने
तु झे खबर दी िक िजसे तू सु ख समझकर आ रहा है , उससे भी आ खर म दु ख ही आने वाला है, इसिलए मने कहा,
चां टा अभी ही मार दू ं । तु झे भी पता होना चािहए िक सु ख सदा दु ख को ही लाता है पीछे , दे र-अबे र।

जाग। सु ख को समझने की कोिशश कर। वह जै से-जै से समझ बढ़ती जाएगी, वै से-वै से सं तुलन, तट थता, उपे ा आती
जाएगी। आप पार खड़े हो जाएं गे । उस पार खड़े को कह सकते ह हम िक वह मंिदर बन गया परम स ा का।
परम स ा उसके भीतर िति त ही है ।

:
भगवान ी, इस ोक म एक श आया है , िजता नः, िजस पु ष ने अपनी आ ा जीत ली। आ ा के साथ जीतना
श का कैसा अथ होगा, इसे कर।
िजसने यं को जीता, यं की आ ा जीती, इसका ा अथ होगा?

दो अथ खयाल म ले ने जै से ह। एक तो, हम यं को भी नहीं जीत पाए ह और सब जीतने की योजनाएं बनाते ह। यं


को भी नहीं जीत पाए! और जो यं को जीते िबना और सारी जीत की योजना बनाता है , उससे ादा िवि
और कौन होगा! अगर जीत की ही या ा करनी है, तो पहले यं की कर ले नी चािहए। यं को न जीतने का ा अथ
है ?

अगर म आपसे क ं िक आज आप ोध मत करना, तो ा आपकी यं पर इतनी श है िक आज आप ोध न


कर? यह तो बड़ी बात हो गई। अगर म आपसे इतना ही क ं िक पांच िमनट आं ख बं द करके बै ठ जाएं और राम
श को भीतर न आने द, तब आपको पता चल जाएगा िक अपने ऊपर िकतनी मालिकयत है !

आं ख बं द कर ल और म कहता ं , पांच िमनट राम श आपके भीतर न आने पाए। तो इतनी भी ताकत नहीं है िक
राम श को आप भीतर आने से रोक सक। इस पां च िमनट म इतना आएगा, िजतना िजं दगी म कभी नहीं आया था!
एकदम राम-जप शु हो जाएगा! राम-जप का जो फायदा होगा, वह होगा। ले िकन यं की हार िस हो जाएगी।
यं पर हमारा र ीभर भी वश नहीं है ।

तो िजसने यं की आ ा जीती! यहां आ ा से एक अथ तो यं की स ा; यं के होने पर िजसकी मालिकयत है ।

जांच कर, तो अपनी गु लामी पता चलेगी िक हम कैसे कमजोर ह! कैसे कमजोर ह! हमारी कमजोरी सब तरफ िलखी
ई है । हर ार-दरवाजे पर, हर इं ि य पर, हर वृ ि पर, हर वासना पर, हर िवचार पर हमारी कमजोरी और गु लामी
िलखी ई है । अपने को धोखा दे ने से कुछ न होगा।

तो एक तो यं को जीतने का रण िदलाया है । आ ा का एक अथ तो है , यं। और आ ा जीती िजसने, इसका


दू सरा अथ है , और भी गहरा, और वह है , िजसने जाना यं को। ोंिक जानना जीतना बन जाता है । ान िवजय है ।
आ ान आ -िवजय है ।

तो एक तो अथ है िक हमारा जो है, वह इतना ाधीन हो िक म कह सकूं िक मेरा बल, मेरा वश मेरे ऊपर
है । आप मुझ पर भरोसा कर सकते ह। म अपने पर भरोसा कर सकता ं ।

ले िकन कर सकते ह? अगर सोचगे, तो पाएं गे, ा भरोसा कर सकते ह! एक को आप कहते ह िक कल भी


तु झे म ेम क ं गा। कभी सोचा है आपने िक एक गु लाम आदमी यह वादा कर रहा है । कल? कल भी ेम कर
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सकगे? थोड़ा एक बार और सोच। और कल अगर ेम कपूर की तरह ितरोिहत हो गया आकाश म, तो ा होगा
उपाय उसको वापस लाने का?

इसे ऐसा दे ख, आज ेम म पड़ गए ह िकसी के, अगर म आपसे क ं िक एक घं टा इस को अब ेम मत कर।


अगर आप समथ हों िक कह िक ठीक, यह एक घं टा मेरी िजंदगी म इससे ेम का घं टा नहीं रहे गा। तो भरोसा िकया
जा सकता है िक कल जब ेम उड़ जाए, तब भी आप, ेम करने का जो वचन िदया है , वह पूरा कर सक। अ था
भरोसा नहीं िकया जा सकता है। अभी आप कहगे, यह कैसे हो सकता है िक म ेम न क ं ? कल आप कहगे िक
यह कैसे हो सकता है िक म ेम क ं ? िववश, बं धे ए ह।

एक तो पहला, ाथिमक और बिहर अथ है , यं को इस अथ म जीत ले ने का िक म अपने पर भरोसा कर सकूं।


दू सरा अथ है , यं को जान ले ने का।

महावीर ने कहा है , िजसने जाना यं को, उसने जीता भी। इसिलए महावीर के साथ िजन जु ड़ गया। िजन का अथ है ,
िजसने जीता। ले िकन जाना, तो जीता। ोंिक िजसे हम जानते ही नहीं, उसे हम जीतगे कैसे? िजसे जीतना है, उसे
जाने िबना जीतने का कोई उपाय नहीं है । ान िवजय है । िजसे भी हम जान ले ते ह, उसके हम मािलक हो जाते ह।

तो दू सरे अथ म हम आ -अ ानी ह। हम कुछ पता ही नहीं िक म कौन ं ! नाम-धाम पता है, उससे कुछ होने का
हमारा सं बंध नहीं है । पता ही नहीं, म कौन ं ! इसकी कोई खबर ही नहीं। िजसे यह भी पता नहीं िक म कौन ं , उसे
आ वान कहना भी िसफ श ों के साथ खलवाड़ है ।

अभी एक फकीर था, गु रिजएफ। वह कहता था, सभी के भीतर आ ा नहीं है । और जब उसने पहली दफा यह कहा,
तो ब त हड़बड़ी मची। ोंिक लोगों ने कहा िक यह तो िकसी शा म नहीं िलखा है । सभी शा ों म िलखा है ,
सबके भीतर आ ा है । और तुम कहते हो िक सभी के भीतर आ ा नहीं है! तो गु रिजएफ कहता था िक िजसे पता ही
नहीं है , उसके भीतर होना और न होना बराबर है । यानी एक आदमी कहे िक मेरे घर म खजाना है । उससे पूछो, कहां
है ? वह कहे िक यह मुझे पता नहीं। तो न होने और होने म ा फक है ? कोई भी तो फक नहीं है ; वचु अली कोई भी
फक नहीं है ।

तो गु रिजएफ कहता था, म नहीं मानता िक सबके भीतर आ ा है । और म कहता ं िक वह ठीक कहता था। आ ा
उसी के भीतर है, जो जानता है ।

एक आदमी के बाबत मने सु ना है , बड़ी हड़बड़ी म एक सड़क के िकनारे खड़े होकर वह अपने सब खीसे दे ख रहा
है । दो-चार लोग भी इक े खड़े हो गए ह उसकी हड़बड़ी दे खकर। िफर इस खीसे म हाथ डालता है , िफर उस खीसे
म हाथ डालता है । िसफ एक खीसा कोट का ऊपर का छोड़ दे ता है ।

िफर आ खर िकसी ने पूछा िक महाशय, आप कई बार खीसों म हाथ डालकर दे ख चु के और बड़े परे शान ह; पसीने
की बूं द आ गईं; मामला ा है? उस आदमी ने कहा िक मेरा बटु आ खो गया है । मने सब खीसे दे ख िलए ह, िसफ
एक को छोड़कर। तो उ ोंने पूछा िक महाशय, उसको भी दे ख ों नहीं ले ते? उस आदमी ने कहा िक उसे दे खने म
बड़ा डर लगता है िक अगर उसम भी न आ तो? इसिलए म उसको छोड़कर बाकी म दे ख रहा ं!

भीतर जाने म भी हम डरते ह िक कहीं आ ा न ई तो? इधर बाहर से िकताब पढ़कर बै ठ जाते ह; बड़ी चै न िमलती
है िक भीतर आ ा है, परमा ा है । अमृत के झरने फूट रहे ह। आनंद की धाराएं बह रही ह। बाहर िकताब म पढ़कर
बड़े िनि ंत हो जाते ह। ले िकन कभी खीसे म हाथ नहीं डालते भीतर। कहीं न ई तो? तो एक भरोसा और टू ट जाए,
एक आशा और िवखं िडत हो जाए। एक आ ासन, िजसके सहारे सब दु ख झेले जा सकते थे; सब खीसे टटोले जा
सकते थे िजसके सहारे िक अगर यहां न िमला तो ठीक है, कोई हज नहीं, वहां तो खोज ही लगे; तो वहां तो िमल ही
जाएगा। कहीं वह भी न टू ट जाए, उस भय से भीतर झां ककर भी नहीं दे खते।
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आ जयी का अथ है , वह , जो अपने भीतर पूरी आं खों से दे ख सकता है । वह जानता है िक वहां है; उसने दे खा
है िक वहां है; उसने पाया है िक वहां है । अब वह िनभय है । अब उसकी छाती म छु रा भोंक दो, तो भी िनभय है ;
ोंिक वह जानता है, यह छु रा उसम वेश नहीं कर सकेगा, िजसे उसने जान िलया है । अब मौत उसके दरवाजे पर
खड़ी हो जाए, तो आिलं गन कर ले गा; ोंिक वह जानता है िक िजसे उसने अपने भीतर जाना है , उसको मौत छू पाए,
इसका कोई उपाय नहीं है । अब आप उसको गािलयां द और अपमािनत कर, तो वह हं सेगा, ोंिक वह जानता है,
तु ारी गािलयां उस तक नहीं प ं च सकतीं; तु ारे अपमान उस तक नहीं प ंच सकते, जो वह है । अब वह िवजयी
आ, अब वह िजन हो गया।

तो एक तो बाहर के अथ म िक हम अपनी िकसी भी चीज के िलए अपने पर भी भरोसा नहीं कर सकते; हमारी
वृ ि यां हम जहां ले जाती ह, हम जाना पड़ता है; परवश, पराधीन। और एक इस अथ म िक हम यं का भी कोई
पता नहीं है । इसिलए कृ कहते ह, आ जयी, आ ा को जीत िलया है िजसने, उसम परमा ा सदा िति त है ।

ानिव ानतृ ा ा कूट थो िविजते यः।


यु इ ु ते योगी समलो ा का चनः।। 8।।
और ान-िव ान से तृ है अंतःकरण िजसका, िवकाररिहत है थित िजसकी और अ ी कार जीती ई ह इं ि यां
िजसकी तथा समान है िम ी, प र और सु वण िजसको, वह योगी यु अथात भगवत की ा वाला है, ऐसा कहा
जाता है ।

इस ोक म िपछले सू म कुछ और नई िदशाएं सं यु की गई ह। ान-िव ान से तृ है जो!

ान कहते ह यं को जान ले ने को। िव ान कहते ह पर को जान ले ने को। िव ान का अथ है , दू सरे को जानने की जो


व था है । ान का अथ है , यं को जान ले ने की जो व था है ।

कृ कहते ह, तृ है जो ान-िव ान से । इसका ा अथ होगा? इसका ा यह अथ होगा िक जो


आ ानी है, योगा ढ़ है , योग को उपल है , ा वह सम िव ान को जानकर तृ हो गया है ?

ऐसा अथ ले ने की कोिशश की गई है , जो गलत है । ोंिक अगर ऐसा होता, तो इस हमारे भारत म, जहां हमने ब त
योगा ढ़ पैदा िकए, हमने सम िव ानों का सार खोज िलया होता। वह हमने नहीं खोजा। तब तो हमारा एक
योगी सम आइं ीनों और सम ूटनों और सम ां कों का काम पूरा कर दे ता। तब तो कोई बात ही न थी।
तब तो अणु का रह हम खोज िलए होते । तब तो सम िवराट ऊजा का जो भी रह है , हमने खोज िलया होता।
इसिलए जो इसका ऐसा अथ लेता हो, वह गलत ले ता है । ऐसा इसका अथ नहीं है । इसका अथ और गहरा है । यह
ब त ऊपरी अथ भी है, यह ब त गहरा अथ भी नहीं है ।

सम ान-िव ान से आ ा है तृ िजसकी!

िव ान से तृ का अथ है , िजसके जीवन से कुतू हल िवदा हो गया। कुतू हल, ू रआिसटी िवदा हो गई। असल म
ू रआिसटी ब त बचकाने मन का ल ण है ।

यह ब त सोचने जै सी बात है । िजतनी छोटी उ , उतना कुतू हल होता है –यह कैसा है , वह कैसा है ? यह ों आ,
यह ों नहीं आ? िजतना छोटा मन, िजतनी कम बु , उतना कुतू हल होता है ।

इसिलए एक और बड़े मजे की बात है िक िजस तरह ब े कुतू हल से भरे होते ह, इसी तरह जो स ताएं बचकानी
होती ह, वे िव ान को ज दे ती ह। ब त है रानी होगी! जो स ताएं िजतनी चाइ श होती ह, उतनी साइं िटिफक हो
जाती ह।
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योरोप या अमे रका एक अथ म ब त बचकाने ह, ब त बालपन म ह, इसिलए वै ािनक ह। कुतू हल भारी है । चां द
पर ा है, जानना है! कुतू हल भारी है । मंगल पर ा है , जानना है ! जानते ही चले जाना है । कुतू हल का तो कोई अंत
नहीं है । ोंिक सं सार का कोई अंत नहीं है ।

इसिलए कोई सोचता हो िक जब म सब जान लूं गा, तब तृ होऊंगा, तो वह पागल है । वह िसफ पागल हो जाएगा।

ान-िव ान से तृ है िजसका मन, इसका अथ? इसका अथ है , िजसका कुतू हल चला गया। जो इतना ौढ़ हो गया
िक अब वह यह नहीं पूछता िक ऐसा ों है , वै सा ों है ? ौढ़ कहता है , ऐसा है ।

फक समझ। ब े पूछते ह, ऐसा ों है ? वृ के प े हरे ों ह? गु लाब का फूल लाल ों है ? आकाश म तारे ों


ह? ौढ़ कहता है , ऐसा है , िदस इज़ सो। वह कहता है , ऐसा है । ोंिक अगर प े वृ के पीले होते, तो भी
तु म पूछते िक पीले ों ह? अगर वृ पर प े न होते, तो तु म पूछते िक प े ों नहीं ह?

एक नव-सं ास म दीि त सं ािसनी ने–वह अमे रका से आई है –उसने मुझसे पूछा चार-छः िदन पहले िक ाय
आई है व कम टु यू–म तु ारे पास ों आ गई? मने कहा िक तू मेरे पास न आती, तो पूछ सकती थी, ाय आई है व
नाट कम टु यू? इसका ा मतलब है ! िकसी और के पास प ं चती, तो तू पूछती िक ाय? आपके पास ों आ
गई? यह तो कहीं भी साथक हो सकता था–कहीं भी–इसिलए थ है ।

समझ। यह कहीं भी साथक हो सकता था, इसिलए थ है । जो िकसी जगह साथक होता है, सब कहीं नहीं,
वही साथक है । जो सभी जगह लग सकता है , उसका कोई अथ नहीं रह जाता। उसका कोई भी अथ नहीं रह
जाता।

ौढ़ जानता है, जगत ऐसा है । इसिलए ौढ़ स ताओं ने िव ान को ज नहीं िदया, ौढ़ स ताओं ने धम को


ज िदया। जब भी स ता अपने ाथिमक चरण म होती है, तो िव ान को ज दे ती है ; और जब स ता अपने
िशखर पर प ं चती है , तो धम को ज दे ती है । धम उस ौढ़ म की खबर है, जो कहता है , चीज ऐसी ह–िथं
आर सच।

कुतू हल थ है, बचकाना है । ब े कर, ठीक। कुतू हल बचपन है ।

तो जब कृ कहते ह, ान-िव ान से तृ है जो, िजसके अब कोई न रहे ! उसका यह मतलब नहीं है िक िजसको
सब उ र िमल गए। सब उ र कभी िकसी को िमलने वाले नहीं ह। और अगर िकसी िदन सब उ र िमल गए, तो
उससे खतरनाक कोई थित न होगी। िजस िदन सब उ र िमल जाएं गे, उस िदन मरने के िसवाय कोई उपाय नहीं
रह जाएगा। और िजस िदन सब उ र िमल जाएं गे, उसका यही अथ होगा िक परमा ा सीिमत है , अनंत नहीं है ,
असीम नहीं है । जो असीम है स , उसके बाबत सब उ र कभी नहीं िमल सकते ।

और सब उ र टटे िटव ह, सब उ र कामचलाऊ ह। कल नए खड़े हो जाएं गे और सब उ र िबखर जाते ह। जब


ूटन एक उ र दे ता है, तो िबलकुल सही मालू म पड़ता है । बीस-प ीस साल बीत नहीं पाते ह िक दू सरा आदमी नए
सवाल खड़े कर दे ता है और ूटन के सब उ र िबखर जाते ह। िफर आइं ीन उ र दे ता है , पुराने उ र िबखर जाते
ह। अब तो हर दो साल म उ र िबखर जाते ह, नए सवाल खड़े हो जाते ह। सब पुराने उ र एकदम िगर जाते ह।

ौढ़ जानता है िक सब उ र मनु के ारा िनिमत ह और अ िन र है । अ िन र है, इसीिलए


अ रह है ।

रह का मतलब होता है , िन र। जहां से कोई उ र कभी नहीं आएगा। अ मेट आं सर कोई भी नहीं है , कोई
चरम उ र नहीं है । कोई नहीं कह सकता िक बस, यह उ र हो गया, िदस इज़ िद आं सर। कोई ऐसा नहीं है । दे यर
आर आं सस, बट नो आं सर। उ र ह, ले िकन कोई उ र नहीं है , जो कह दे िक बस, यह उ र हो गया; अब कोई
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सवाल उठने का सवाल न रहा। कुतू हल पैदा होता ही चला जाएगा। और हर नया उ र नए ों के कुतू हल पैदा कर
जाता है ।

जब कोई इस रह को समझ ले ता है िक िकसी का कोई अंितम उ र नहीं है , तब वह ही छोड़ दे ता


है । उस -िगरी ई थित का नाम, िव ान- ान से तृ हो जाना है । वह ौढ़ आ। उस का अब
कोई कुतू हल न रहा। अब वह राह से गु जर जाता है िबना पूछे, ोंिक वह जानता है िक पूछ-पूछकर भी कुछ नहीं
पाया जा सकता है । और सब उ र िसफ नए ों को ज दे ने वाले िस होते ह। न वह अब यह पूछता है िक म
कौन ं? न वह अब यह पूछता है िक तू कौन है ? वह पूछता ही नहीं।

ा होगा? जब कोई नहीं पूछता है , तब कौन-सी घटना घटे गी? जब िच कोई भी नहीं पूछता, तब बड़े रह
की बात है । जब कोई भी नहीं होता िच म, सब िगर जाते ह, तब िच इतना मौन होता है, इतना शां त होता
है िक िकसी दू सरे माग से जीवन के रह के साथ एक हो जाता है । उ र नहीं िमलता, ले िकन जीवन िमल जाता है ।
उ र नहीं िमलता, ले िकन अ िमल जाता है । वही उ र है । रह के साथ आ सात हो जाता है ।

एक ढं ग है, पूछकर जानने का; और एक ढं ग है , न पूछकर जानने का। न पूछकर जानने का ढं ग, धम का ढं ग है ।


पूछकर जानने का ढं ग, िव ान का ढं ग है ।

ले िकन कृ कहते ह, ान-िव ान दोनों से जो तृ हो गया। ौढ़ हो गया, मै ोर आ, अब पूछता ही नहीं। ोंिक


कहता है, सब पूछना ब ों का पूछना है । और सब उ र थोड़े ादा उ के ब ों के ारा िदए गए उ र ह। और
कोई फक नहीं है । थोड़ी छोटी उ के ब े सवाल पूछते ह; थोड़ी बड़ी उ के ब े सवालों का जवाब दे दे ते ह।

कभी आपने घर म खयाल िकया िक अगर आपके घर म दो ब े ह, एक छोटा है , एक थोड़ा बड़ा है । आपसे सवाल
पूछते ह; आप जवाब दे ते ह। आप जरा घर के बाहर चले जाएं । छोटा ब ा बड़े ब े से सवाल पूछने लगता है , बड़ा
ब ा छोटे ब े को जवाब दे ने लगता है । वही काम जो आप कर रहे थे, वह करने लगता है!

ये सब सवाल-जवाब ब ों के बीच ई चचाएं ह। ौढ़ता उस ण घिटत होती है, जहां कोई सवाल नहीं है , जहां कोई
जवाब नहीं है , जहां इतना परम मौन है िक पूछने का भी कोई–कोई पूछने का भी िव नहीं है ।

तो कृ कहते ह, ान-िव ान से जो तृ है ।

नहीं, ऐसा नहीं िक सब ान-िव ान जान िलया। ब ऐसा िक सब जानने की चे ा को ही थ जाना। सब जानने की
चे ा को ही थ जाना। सब कुतू हल थ जाने । सब पूछना थ जाना। ूिटिलटी जािहर हो गई िक कुछ पूछने से
कभी कुछ िमला नहीं। यही अंतर है िफलासफी और धम का। यही अंतर है दशन और धम का।

दाशिनक पूछे चले जाते ह। वे बू ढ़े हो गए ब े ह, िजनका बचपन हटा नहीं। वे पूछे चले जाते ह। वे पूछते ह, जगत
िकसने बनाया? और पूछते ह िक िफर उस बनाने वाले को िकसने बनाया? और िफर पूछते ह िक उस बनाने वाले को
िकसने बनाया? और पूछते चले जाते ह। और उ कभी खयाल भी नहीं आता िक वे ा पागलपन कर रहे ह! इसका
कोई अंत होगा? इसका कोई भी तो अंत नहीं होने वाला है ।

अ ान अपनी जगह रहे गा। ये सारे उ र अ ान से िदए गए उ र ह। इनसे कुछ हल नहीं होगा। िफर खड़ा हो
जाएगा। पूछते ह, जगत िकसने बनाया? कहते ह, ई र ने बनाया। अ ान म िदया गया उ र है । सच तो यह है िक
अ ानी ही पूछते रहते ह, अ ानी ही उ र दे ते रहते ह!

उ र और ों म जगत की पहेली हल होने वाली नहीं है । तो कहते ह िक जै से कु ार घड़ा बनाता है , ऐसे भगवान ने
यह सं सार बना िदया। भगवान को भी कु ार बनाने से नहीं चूकते! उसको कु ार बना िदया। घड़ा कैसे बनेगा िबना
कु ार के? तो जगत कैसे बनेगा िबना भगवान के? तो एक महा कु ार, उसने घड़े की तरह जगत को बना िदया।
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ले िकन कोई ब ा ज र पूछेगा िक यह तो हम समझ गए िक जगत उसने बना िदया, ले िकन उसको िकसने बनाया?
तो जो जरा धै यवान ह, वे िफर कुछ और उ र खोजगे। कोई अधै यवान ह, तो डं डा उठा लगे। वे कहगे, बस, अित
हो गया! अब आगे मत पूछो, नहीं िसर खोल दगे!

जब अित ही कहना था, तो पहले पर ही कह दे ना था िक थ मत पूछो। ोंिक फक ा पड़ा! बात तो वही ं


की वही ं खड़ी है । राज वही ं का वहीं खड़ा है । िसफ पहले जगत के साथ लगा था िक िकसने बनाया, अब वही
परमा ा के साथ लग गया िक िकसने बनाया। अ मेट के साथ जु ड़ा है वह, अ मेट के साथ ही जु ड़ा आ है ।
पहले जगत आ खरी था, अब परमा ा आ खरी है । हम पूछते ह, उसको िकसने बनाया? और अगर आप कहते ह िक
वह िबना बनाया, यं भू है , तो िफर पहले जगत को ही यंभू मान ले ने म कौन-सी अड़चन आती थी?

दाशिनक ब ों के कुतू हल म पड़े ए लोग ह। इसिलए सब िफलासफी चाइ श होती है । िकतने ही बड़े दाशिनक
हों, िकतने ही गु -गं भीर उ ोंने ं थ िलखे हों, चाहे हीगल हों और चाहे बड़े मीमां सक हों, िकतने ही उ ोंने गु -
गं भीर ं थ िलखे हों और िकतने ही बड़े -बड़े श ों का उपयोग िकया हो और िकतना ही जाल बु ना हो, अगर ब त
गहरे म उतरकर दे खगे, तो िछपा आ ब ा पाएं गे, जो कुतू हल कर रहा है , ू रअस है िक यह ों है , वह ों है !
िफर अपने ही उ र दे ले ता है । खुद के ही सवाल ह और खुद के ही जवाब ह और खुद का ही खेल है ।

कृ कहते ह, जो तृ आ इस सब बचकानेपन से । जो ौढ़ आ, जो कहता है , पूछना ही थ है , ोंिक उ र


कौन दे गा! जो इतना ौढ़ आ िक कहता है िक चीजों का भाव ऐसा है । कोई सवाल नहीं है । आग जलाती है और
पानी ठं डा है । ऐसा है । ऐसा व ु ओं का भाव है ।

महावीर का एक वचन है ब त कीमती, िजसम उ ोंने कहा है , व ू भावो ध , व ु के भाव को जान ले ना ही


धम है । ऐसा जान ले ना िक ऐसा व ु ओं का भाव है ; इसका यह भाव है , उसका वह भाव है ; बस, इतना ही
जान ले ना धम है । मगर ऐसा जानना तभी सं भव हो सकता है , जब ान-िव ान की वह जो िज ासा है–अनंत िज ासा
है , दौड़ाती ही रहती है िक और जानूं, और जानूं–वह शां त हो जाए, तृ हो जाए।

तो कृ कहते ह, िजसकी िज ासा, िजसका कुतू हल ीण आ, जो ौढ़ आ। िजसने अ को ीकार िकया


और पूछना बं द िकया। और िजसने जाना िक म एक लहर ं इस िवराट सागर म, ा पूछूं? िकससे पूछूं? कौन दे गा
जवाब? म खुद ही जवाब ं । चुप हो जाऊं, मौन हो जाऊं, उत ं गहरे म। जानूं िक अ ा है ! पूछूं न, उ र की
तलाश न क ं , अनुभव की तलाश क ं । उस अनुभव म जो फिलत होता है , उस अनुभव म परमा ा को
उपल हो जाता है, ऐसा जानने वालों ने कहा है ।

कृ कहते ह, ऐसा जानने वालों ने कहा है । ऐसा कहा जाता है।

ऐसा ों कहते ह? यह आ खरी बात, िफर हम सां झ बात करगे । कृ ऐसा ों कहते ह िक ऐसा कहा जाता है ?

ऐसा कृ इसिलए कहते ह िक मेरा कोई दावा नहीं है िक ऐसा म कहता ं । िज ोंने भी जाना है , उ ोंने ऐसा ही
कहा है । म कोई दावे दार नहीं ं । कृ ऐसा नहीं कहते िक ऐसा म ही कह रहा ं । ऐसा उ ोंने भी कहा है, जो
जानते ह। ान ऐसा कहता है । इससे को िवदा करने की कोिशश है ।

और ान रहे, ानी म नहीं रह जाता। बोले, तो भी नहीं रह जाता। म कहे, तो भी नहीं रह जाता। ये िसफ
कामचलाऊ बात रह जाती ह।

इसिलए कृ कहते ह, ऐसा कहा जाता है । ऐसा म भी कहता ं । ऐसा और भी कहते ह। ऐसा जो भी जानते ह, वे
कहते ह। ऐसा ान का कथन है । ऐसा ान कहता है ।
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सम ं ों से पार, कुतू हल से पार, थ जानने की दौड़ और िज ासा से पार, ौढ़ आ िच , समतु ल आ िच ,


िन आ िच , समबु म ठहरा आ िच , अकंप आ िच , परमा ा को उपल हो जाता है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


दय की अंतर-गु फा (अ ाय-6) वचन—पां चवां

सु ायुदासीनम थ े ब ुषु।
साधु िप च पापेषु समबु िविश ते।। 9।।
और जो पु ष सु द, िम , बै री, उदासीन, म थ, े षी और बं धुगणों म तथा धमा ाओं म और पािपयों म भी समान
भाव वाला है , वह अित े है ।

कृ के िलए सम बु सम योग का सार है । इसके पूव के सू ों म भी अलग-अलग ारों से सम बु के मंिदर


म ही वे श की योजना कृ ने कही है । इस सू म भी पुनः िकसी और िदशा से वे सम बु की घोषणा करते ह।
ब त-ब त पों म सम बु की बात करने का योजन है ।

योजन है , िभ -िभ , भां ित-भांित वृि और कृितयों के लोग ह। सम बु का प रणाम तो एक ही होगा, ले िकन
या ा िभ -िभ होगी। हो सकता है , कोई सु ख और दु ख के बीच समबु को साधे । ले िकन ऐसा भी हो सकता है िक
सु ख और दु ख के ित िकसी की सं वेदनशीलता ही ब त कम हो। हम सबकी सं वेदनशीलताएं , सिसिटिवटीज
अलग-अलग ह। हो सकता है , िकसी के िलए सु ख और दु ख उतने मह पूण ार ही न हों; यश और अपयश
ादा मह पूण हों।

आप कहगे िक यश तो सु ख ही है और अपयश दु ख ही है! नहीं; थोड़ा बारीकी से दे खगे, तो फक खयाल म आ


जाएगा।

ऐसा हो सकता है िक एक यश पाने के िलए िकतना ही दु ख झेलने को राजी हो जाए; और ऐसा भी हो सकता
है िक कोई , अपयश न िमले, इसिलए िकतना ही दु ख झेलने को राजी हो जाए। इससे उलटा भी हो सकता है ।
ऐसा हो सकता है, जो अपने सु ख के िलए िकतना ही अपयश झेलने को राजी हो जाए। ऐसा हो सकता
है , जो दु ख से बचने के िलए िकतना ही यश खोने को राजी हो जाए।

तो िजसके िलए अपयश और यश ादा मह पूण ह, उसके िलए सु ख और दु ख का ार काम नहीं करे गा। उसके
िलए यश और अपयश म समबु को साधना पड़े गा।

वही साधना पड़े गा हम, जो हमारा चु नाव है, जो हमारा ं है । हम सबके ं अलग अलग ह।

यह भी हो सकता है िक िकसी के िलए अपयश, यश का भी कोई मू न हो, ले िकन िम ता और श ु ता का


भारी मू हो। एक ऐसा हो सकता है िक िम के िलए हजार तरह के यश खोने को राजी हो जाए; और एक
ऐसा भी हो सकता है िक यश के िलए हजार िम ों को खोने के िलए राजी हो जाए। तो िजस के िलए
िम और श ु मह पूण बात है , उसे न यश मह पूण है , न सु ख; न दु ख मह पूण है , न अपयश। उसके िलए िम ता
और श ु ता के बीच ही सम को साधना होगा।

जो आपके िलए मह पूण है ं , वही ं आपके िलए माग बने गा। दू सरे का ं आपके िलए माग नहीं बनेगा।
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एक हो सकता है , िजसे सौंदय का कोई बोध ही न हो। ब त लोग ह, िज सौंदय का कोई बोध ही नहीं है । वे
भी िदखलाते ह िक उ सौंदय का बोध है । और अगर उनके पास थो॰? पैसे की सु िवधा है, तो वे भी अपने घर म
वानगाग के िच लटका सकते ह और िपकासो की पिटं लटका सकते ह, ले िकन िफर भी सौंदय का बोध और बात
है । िजसे सौंदय का बोध है , उसके िलए ं , कु पता और सौंदय के बीच सं तुलन का होगा। सभी को वह बोध नहीं
है ।

सौंदय का बोध रवी ं नाथ जै से िकसी को होता है । तो उस बोध के प रणाम ये होते ह िक छोटा-सा असौंदय भी
सहना किठन हो जाता है । छोटा-सा, ब त छोटा-सा, िजस पर हमारी ि भी न जाए, वह भी रवी ं नाथ को अस हो
जाएगा। अगर कोई थोड़ा इरछा-ितरछा भी रवीं नाथ के पास आकर बै ठ गया, तो वे बे चैन हो जाएं गे । जरा-सा
अनुपात अगर ठीक नहीं है, तो उ बड़ी किठनाई शु हो जाएगी। एक अगर जोर की आवाज म बोल दे
और सौंदय खो जाए आवाज का, सं गीत खो जाए, तो रवी ं नाथ को पीड़ा हो जाएगी। और हो सकता है , आपको जोर
से बोलना महज आदत हो। आपको कोई बोध ही न हो।

ेक के बोध ंतु िभ -िभ ह। हम सभी के पास अपना-अपना ं है । तो समझ िक अपना ं ही अपना


ार बनेगा। इसिलए कृ हर ं की बात करते ह।

इस सू म वे कहते ह, िम और श ु के बीच जो सम है ।

अजु न के िलए यह सू उपयोगी हो सकता है । अजु न के िलए िम ता और श ु ता कीमत की बात है । ि य के िलए


सदा से रही है । ब त सं वेदनशील ि य अपनी जान दे दे , वचन न छोड़े । िम को िदया गया वायदा पूरा करे , चाहे
ाण चले जाएं । अगर विणक बु का हो, तो एक पैसा बचा ले, चाहे हजार वचन चले जाएं , हजार िम खो
जाएं । बु रे-भले की बात नहीं है, अपना-अपना ं है ।

सु ना है मने, राज थान म एक लोक-कथा है । एक गां व म गांव के राजपूत सरदार ने गां वभर म खबर रख छोड़ी है िक
कोई मूंछ बड़ी न करे । खुद मूंछ बड़ी कर रखी है । और अपने दरवाजे पर त डालकर बै ठा रहता है । और गांव म
खबर कर रखी है िक कोई मूंछ ऊंची करके सामने से न िनकले । अगर मूंछ भी हो, तो नीची कर ले ।

गां व म एक नया विणक आया है , नया वै आया है । उसने नई दु कान खोली है । उसको भी मूंछ रखने का शौक है ।
पहली बार राजपूत के सामने से िनकल रहा है । राजपूत ने कहा, विणक-पु , मूंछ नीची कर लो! शायद तु पता
नहीं, मेरे दरवाजे के सामने मूंछ ऊंची नहीं जा सकती। विणक-पु ने कहा, मूंछ तो ऊंची ही जाएगी! तलवार खंच
गईं। राजपूत दो तलवार ले कर बाहर आ गया। राजपूत था इसिलए दो लाया। एक विणक-पु के िलए, एक अपने
िलए।

विणक-पु ने तलवार दे खी। कभी पकड़ी तो न थी। िसफ मूंछ ऊंची रखने का शौक था। सोचा, यह झंझट हो गई।
विणक-पु ने कहा, ठीक है । खुशी से इस यु म म उत ं गा। ले िकन एक ाथना िक जरा म घर होकर लौट आऊं।
उस राजपूत ने कहा, िकसिलए? विणक-पु ने कहा, आपको भी ठीक जंचे, तो आप भी यही कर। हो सकता है , म
मर जाऊं, तो मेरे पीछे मेरी प ी और ब े दु खी न हों; उनकी म गदन काटकर आता ं । अगर आपको भी जंचती हो
बात, हो सकता है , आप मर जाएं , तो आप अपनी प ी और ब ों की गदन काट द; िफर हम लड़ मौज से । राजपू त ने
कहा, बात ठीक है ।

विणक-पु अपने घर गया। राजपूत ने भीतर जाकर गदन साफ कर दीं। बाहर आकर बै ठ गया। थोड़ी दे र म विणक-
पु मूंछ नीची करके लौट आया। उसने कहा, मने सोचा नाहक झंझट ों करनी! जरा-सी मूंछ को नीची करने के
िलए उप व ों करना! यह तु ारी तलवार स ालो! उस राजपू त ने कहा, तु म आदमी कैसे हो? मने अपनी प ी
और ब े साफ कर िदए! तो उस विणक-पु ने कहा िक िफर तु म जानते ही नहीं िक विणक का अपना गिणत होता
है । हमारा अपना िहसाब है!
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ेक का टाइप है , और ेक के झान ह, और ेक की सं वेदनशीलताएं ह, और ेक


के िलए उसके जीवन का मह पूण ं है । और हर एक को अपना ं दे ख ले ना चािहए िक मेरा ं ा है ?
ेम और घृ णा मेरा ं है? िम ता-श ु ता मेरा ं है? धन-िनधनता मेरा ं है? यश-अपयश मेरा ं है ? सु ख-दु ख,
ान-अ ान, शां ित-अशां ित, मेरा ं ा है?

और जो भी आपका ं हो, कृ कहते ह, उस ं म समबु को उपल होना माग है ।

ान रहे, दू सरे के ं म आप समबु को बड़ी आसानी से उपल हो सकते ह। अपने ही ं का सवाल है । दू सरे
के ं म आपको समबु लाने म जरा भी किठनाई नहीं पड़े गी। आप कहगे िक िबलकुल ठीक है । अगर आपकी
िजं दगी म कभी यश का खयाल नहीं पकड़ा, अगर आपको कभी राजनीित का ेत सवार नहीं आ, यश का, तो आप
कहगे िक ठीक है, इले न जीते िक हारे । इसम तो हम सम ही रहते ह, इसम कोई हम किठनाई नहीं है । आपको
कभी वह भू त नहीं पकड़ा हो, तो आप िबलकुल समबु बता सकते ह। ले िकन असली सवाल यह नहीं है िक आप
बताएं ; असली सवाल वह है िक िजसे भू त पकड़ा हो। आपका अपना भू त ा है , आपका अपना ेत ा है, जो
आपका पीछा कर रहा है? उसकी ठीक पहचान ज री है ।

इसिलए कृ अलग-अलग सू म अलग-अलग ेतों की चचा कर रहे ह। वे यहां कहते ह िक िम और श ु के बीच


समभाव।

बड़ी किठनाई है । एक बार धन और िनधनता के बीच समभाव आसान है, ोंिक धन िनज व व ु है । इसे थोड़ा ठीक
से समझ लगे।

एक बार यश और अपयश के बीच समभाव आसान है, ोंिक यश और अपयश आपकी िनजी बात है । ले िकन िम
और श ु के बीच समभाव रखना ब त किठन है । ोंिक एक तो िनजी बात नहीं रही; कोई और भी स िलत हो
गया; िम और श ु भी स िलत हो गए। आप अकेले न रहे , दू सरा भी मौजू द हो गया। और इसिलए भी मह पूण
और किठन है िक धन जै सी िनज व व ु नहीं है सामने । आप सोने को और िम ी को समान समझ ल एक बार, तो
ब त किठनाई नहीं है , ोंिक दोनों जड़ ह। ले िकन िम और श ु दोनों जीवं त ह, चे तन ह, उतने ही िजतने आप।
आपके ही तल पर खड़े ए लोग ह; आप जै से ही लोग ह। किठनाई, जिटलता ादा है ।

इसिलए िम और श ु के बीच समभाव रखने की ा ि या होगी? कौन रख सकेगा िम और श ु के बीच


समभाव? उसको ही कृ योगी कहते ह। कौन रख सकेगा? तो इसके थोड़े से सू खयाल म ले ल।

एक, जो अपने िलए िकसी का भी शोषण नहीं करता, जो अपने िलए िकसी का भी शोषण नहीं करता,
वही िम और श ु के बीच समभाव रखने म सफल हो पाएगा।

आप िम कहते ही उसे ह, जो आपके काम पड़ता है । कहावत है िक िम की कसौटी तब होती है, जब मुसीबत पड़े ।
जो आपके काम पड़ जाए, उसे आप िम कहते ह। जो आपके काम म बाधा बन जाए, उसे आप श ु कहते ह। और
तो कोई फक नहीं है । इसिलए िम कभी भी श ु हो सकता है , अगर काम म बाधा डाले । और श ु कभी भी िम हो
सकता है , अगर काम म सहयोगी बन जाए।

अगर आपका कोई भी काम है, तो आप समभाव न रख सकगे। िम और श ु के बीच वही समभाव रख सकता है ,
जो कहता है , मेरा कोई काम ही नहीं है , िजसम कोई सहयोगी बन सके और िजसम कोई िवरोधी बन सके। जो कहता
है , इस िजं दगी को म नाटक समझता ं, काम नहीं। जो कहता है , यह िजं दगी मेरे िलए सपने जै सी है, स नहीं। जो
कहता है, यह िजंदगी मेरे िलए रं गमंच है; यहां म खेल रहा ं, कोई काम नहीं कर रहा ं ।

जो थोड़ा भी गं भीर है जीवन के ित और कहता है िक यह काम मुझे करना है , वह श ु ओ ं और िम ों के बीच कभी


भी समभाव को उपल नहीं हो सकता। ोंिक काम ही कहे गा िक िम ों के ित िभ भाव रखो, श ुओं के ित
िभ भाव रखो। अगर मुझे कुछ भी करना है इस जमीन पर, अगर मुझे कोई भी खयाल है िक म कुछ करना चाहता
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ं , तो िफर म िम और श ु के बीच समभाव न रख सकूंगा। िम और श ु के बीच समभाव तभी हो सकता है, जब


मेरा कोई काम ही नहीं है इस पृ ी पर। मुझे कहीं प ंचना नहीं है । मुझे कुछ करके नहीं िदखा दे ना है ।

इसका यह भी मतलब नहीं है िक म िबलकुल िनठ ा और िन य बै ठ जाऊं, तो िम और श ु के बीच समभाव हो


जाएगा। अगर मने िनठ ा बै ठना भी अपनी िजंदगी का काम बना िलया, तो कुछ मेरे िम होंगे जो िनठ े बै ठने म
सहायता दगे और कुछ मेरे श ु हो जाएं गे जो बाधा डालगे ।

इसका यह अथ नहीं है । इसका इतना ही अथ है िक काम तो म करता ही र ं गा, ले िकन यह िज , यह अहं कार मेरे
भीतर न हो िक यह काम मुझे करके ही रहना है। तो िफर ठीक है । जो काम म साथ दे दे ता है , उसका ध वाद; और
जो काम म बाधा दे दे ता है , उसका भी ध वाद। जो रा े से प र हटा दे ता है, उसका भी ध वाद; और रा े पर
जो प र िबछा दे ता है , उसका भी ध वाद।

न मुझे कहीं प ं चना है, न मुझे कुछ कर ले ना है । जीता ं ; परमा ा जो काम मुझसे ले ना चाहे, ले ले । िजतना मुझसे
बन सकेगा, कर दू ं गा। कोई ऐसी िज नहीं है िक यह ल पूरा होना ही चािहए। तो िफर िम और श ु के बीच कोई
बाधा नहीं रह जाती। िफर समान हो जाती है बात।

तो पहली बात तो आपसे यह कहना चा ं िक िजस को भी जीवन को एक काम समझ ले ने की नासमझी आ


गई हो, और िजसे ऐसा खयाल हो िक उसे िजं दगी म कुछ करके जाना है , वह श ु और िम िनिमत करे गा ही। और
वह समभाव भी न रख सकेगा।

दू सरी बात आपसे यह कहना चाहता ं िक श ु और िम के बीच समभाव रखना तभी सं भव है , जब आपके भीतर
वह जो ेम पाने की आकां ा है , वह िवदा हो गई हो। दू सरी बात भी ठीक से समझ ल।

हम सबके मन म मरते ण तक भी ेम पाने की आकां ा िवदा नहीं होती। पहले िदन ब ा पैदा होता है तब भी वह
ेम पाने के िलए आतु र होता है , उतना ही िजतना बू ढ़ा मरते व आ खरी ास ले ते व होता है । ेम पाने की
आतु रता बनी रहती है ; ढं ग बदल जाते ह। ले िकन ेम कोई करे मुझे! कोई मुझे ेम दे ! ेम का भोजन न िमले गा, तो
म भू खा होकर मर जाऊंगा, मु ल म पड़ जाऊंगा।

एक बार शरीर को भोजन न िमले , तो हम सह पाते ह। ले िकन अगर िच को भोजन न िमले– ेम िच का भोजन है ।
िच को ाण िमलते ह ेम से ।

तो जब तक ज रत है ेम की, तब तक िम और श ु को एक कैसे समिझएगा! सम कैसे हो जाइएगा! तट थ कैसे


होंगे! िम वह है , जो ेम दे ता है । श ु वह है, जो ेम नहीं दे ता है । तो जब तक आपकी ेम की आकां ा शे ष है िक
कोई मुझे ेम दे …।

और यह बड़े मजे की बात है िक दु िनया म सारे लोग चाहते ह िक कोई उ ेम दे । शायद ही कोई चाहता है िक म
िकसी को ेम दू ं ! इसको थोड़ा बारीकी से समझ ले ना उिचत होगा।

हम सबको यह म होता है िक हम ेम दे ते ह। ले िकन अगर आप ेम िसफ इसीिलए दे ते ह, तािक आपको लौटते म


ेम िमल जाए, तो आप िसफ इनवे मट करते ह, दे ते नहीं ह। आप िसफ वसाय म सं ल होते ह।

म अगर आपको ेम दे ता ं िसफ इसिलए िक म ेम चाहता ं और िबना ेम िदए ेम नहीं िमले गा, तो म िसफ सौदा
कर रहा ं । मेरी चे ा तो ेम पाने की है । दे ता ं इसिलए िक िबना िदए ेम नहीं िमले गा।

यह मेरा िदया आ ेम वै सा ही है , जै सा िक कोई मछली को मारने वाला कां टे पर आटा लगा दे ता है । आटा लगाकर
कां टे पर और लटकाकर बै ठ जाता है अपनी बं सी को। मछिलयां सोचती होंगी िक आटा खलाने के िलए कोई बड़ी
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कृपा करके आया है ! पर आटा िसफ ऊपर है, भीतर कां टा है । मछली आटा ही खाने को आएगी और तब पाएगी िक
कां टा उसके ाणों तक चु भ गया है । अगर िकसी म कां टा भी डालना हो, तो आटा लगाकर ही डालना पड़ता है ।

अगर मुझे िकसी से ेम ले ना है और िकसी के ऊपर ेम की मालिकयत कायम करनी है, तो पहले घु टने टे ककर ेम
िनवे दन करना पड़ता है । वह आटा है ।

तो दू सरा सू आप खयाल म ले ल, जब तक ेम की आकां ा है िक कोई मुझे ेम दे …।

और ान रहे, जब तक यह आकां ा है , तब तक आप ब े ह, जु वेनाइल ह, आप िवकिसत नहीं ए। िवकिसत


मनु वह है, ेम पाने का कोई सवाल िजसे नहीं रह गया। जो िबना ेम के जी सकता है । ौढ़ मनु वह है , जो ेम
नहीं मां गता।

और यह बड़े मजे की बात है , और इसी से तीसरा सू िनकलता है । जो आदमी ेम नहीं मां गता, वह आदमी ेम दे ने
म समथ हो जाता है । और जो आदमी ेम मां गता चला जाता है , वह कभी ेम दे ने म समथ नहीं होता।

मगर बड़ा उलटा है । हम सबको लगता है, हम ेम दे ने म समथ ह। बाप सोचता है, म बे टे को ेम दे रहा ं । ले िकन
मनोवै ािनक से पूछ, मनसिवद से पूछ। वह कहता है , बाप भी बे टे को थपथपाकर आशा करता है िक बे टा भी बाप
को थपथपाए। हां , थपथपाने के ढं ग अलग होते ह। बे टा और ढं ग से थपथपाएगा, बाप और ढं ग से थपथपाएगा। बे टा
कहे गा, डै डी, आप जै सा ताकतवर डै डी इस दु िनया म कोई भी नहीं है ! डै डी, िजनकी छाती म हि यां भी नहीं ह,
उनकी छाती फूलकर आकाश जै सी हो जाएगी। बे टा भी थपथपा रहा है ।

बे टा भी अगर बाप का ेम चु पचाप ले ले और उ र न दे , तो बाप दु खी और पीिड़त लौटता है । बे टा अगर मां का ेम


वापस न लौटाए, तो मां भी िचं ितत और परे शान और पीिड़त हो जाती है ।

बू ढ़े से बू ढ़ा आदमी भी ेम वापस मां ग रहा है । आदिमयों से नहीं िमलता, तो लोग कु े पाल ले ते ह। दरवाजे पर आते
ह, कु ा पूंछ िहला दे ता है । ोंिक अब पि यां पूंछ िहलाएं , ज री नहीं है । ब े पूंछ िहलाएं , ज री नहीं है । सब
गड़बड़ हो गई है पुरानी व था पूंछ िहलाने की।

िजन-िजन मु ों म आदमी पूंछ िहलाना बं द कर रहे ह, वहां-वहां कु े का फैशन बढ़ता जाता है । वह स ीटयूट है ।
दरवाजे पर खड़ा रहता है; आप आए, वह पूंछ िहला दे ता है । आप बड़े खुश हो जाते ह। आ यजनक है ! कु े की
िहलती पूंछ भी आपको तृ दे ती है । कम से कम कु ा तो ेम दे रहा है! हालां िक कु े का भी योजन वही है । वह
भी पूंछ िहलाकर आटा डाल रहा है । उसके भी अपने कां टे ह। वह भी जानता है िक िबना पूंछ िहलाए यह आदमी
िटकने नहीं दे गा। यह भोजन िमलता है , घर म िव ाम िमलता है, यह पूंछ िहलाकर वह आपसे खरीद रहा है । वह भी
इनवे कर रहा है । सारी दु िनया इनवे मट म है ।

जो आदमी ेम मां ग रहा है , वह िम और श ु के बीच समबु को उपल नहीं हो सकता। िसफ वही आदमी
समबु को उपल हो सकता है , वह तीसरा सू आपसे कहता ं, जो ेम मां गने के पार चला गया और जो ेम दे ने
म समथ हो गया। िजसे ेम दे ना है और ले ना नहीं है , वह िम को भी दे सकता है , श ु को भी दे सकता है । ोंिक
ले ने का तो कोई सवाल नहीं है , इसिलए फक करने की कोई आव कता नहीं है ।

सु ना है मने, जीसस एक कहानी कहा करते थे । वह कहानी आपको इस बात को समझाने म सहयोगी होगी। जीसस
कहा करते थे ेम को ही समझाने के िलए। कभी-कभी जीसस के िश सवाल उठा दे ते थे िक म तो आपकी इतनी
से वा करता ं , िफर भी आप मुझे इतना ही ेम करते ह, िजतना िक उस आदमी को करते ह, िजसने आपकी कभी
कोई से वा नहीं की! म आपके साथ बरसों से परे शान होता ं, दर-दर भटकता ं । मुझे भी आप उतना ही ेम दे ते ह,
उस अजनबी आदमी को भी उतना ही ेम दे दे ते ह, जो रा े पर आपको पहली बार िमलता है !
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तो जीसस एक कहानी कहा करते थे । वे कहते थे िक एक ब त बड़ा धनपित था–ब त बड़ा। उसके पास ब त धन
था, िजसका कोई िहसाब भी न था। मगर इस वजह से ब त बड़ा धनपित था, इसिलए नहीं। ईसा कहते थे, वह
इसिलए बड़ा धनपित था िक धन पर उसकी पकड़ खो गई थी और धन की उसकी आकां ा खो गई थी। उसकी अब
कोई और आकां ा न थी िक मुझे और धन िमल जाए। इसिलए वह बड़ा धनपित था। और वह धन बां ट सकता था।
ोंिक िजसकी आकां ा शे ष है िक मुझे और धन िमल जाए, वह बां ट नहीं सकता, वह दान नहीं कर सकता। वह
बां ट सकता था। अब पाने की कोई आकां ा न थी।

एक िदन सु बह उसके अंगूर के खेत पर उसने अपने मजदू र भेजे और कहा िक गां व से कुछ मजदू र बु ला लाओ।
सु बह सू रज उगने के व कुछ मजदू र खेत पर काम करने आए। ले िकन मजदू र कम थे । िफर उसने आदमी भे जा;
िफर बाजार से कुछ मजदू र आए। ले िकन तब सू रज काफी चढ़ चु का था; दोपहर होने के करीब थी। ले िकन िफर भी
मजदू र कम थे, काम ादा था। िफर उसने और आदमी भे जे। ऐसा आ िक दोपहर के बाद भी कुछ लोग आए।
और ऐसा आ िक सां झ ढलते ए भी कुछ लोग आए। और िफर सू रज ढलने लगा। और मजदू री बं टने का समय आ
गया। उसने सब मजदू रों को बराबर पैसे िदए।

सु बह से जो मजदू र आए थे, उनकी ते वर चढ़ गईं। उ ोंने कहा, यह अ ाय है । हम सु बह से आए ह! िदनभर सू रज


के चढ़ते और उतरते हमने काम िकया। और कुछ लोग ऐसे भी ह, जो अभी आए ह, िज ोंने काम हाथ म िलया ही था
िक सू रज ढल गया और सां झ हो गई और अंधेरा उतर आया। और हम सबको तु म बराबर दे ते हो!

उस धनपित ने कहा, म तु मसे यह पूछता ं िक तु मने िजतना काम िकया, उतना काम के यो तु िमल गया या
उससे कम है? उ ोंने कहा, नहीं, हम उससे ादा ही िमल गया है । तो उस आदमी ने कहा, िफर तु म इनकी िचं ता
मत करो। इ म इनके काम के कारण नहीं दे ता; मेरे पास ब त है, इसिलए दे ता ं । तु तु ारे काम से ादा िमल
गया हो, तु म िनि ंत चले जाओ। और इ म इनके काम के कारण नहीं दे ता; मेरे पास दे ने को ब त है , इसिलए दे ता
ं।

िजसके पास दे ने को ेम है –और उसी के पास है , िजसको अब मां गने की इ ा न रही, जो अब ेम का िभखारी न
रहा, जो स ाट आ। ब त मु ल से कभी कोई बु , कभी कोई कृ इस हालत म आते ह, जब िक वे ेम के
मािलक होते ह, जब वे िसफ दे ते ह और ले ते नहीं। मां गते नहीं, मां गने का कोई सवाल ही नहीं, िसफ बां टते चले जाते
ह। ऐसा श ु को भी दे दे गा और िम को भी दे दे गा, ोंिक कोई कमी पड़ने वाली नहीं है । और िम और
श ु म फक ों कर? जब दोनों को दे ना ही है , तो फक का ा सवाल है ! ले ना हो, तो फक का सवाल है , ोंिक
िम दे गा और श ु नहीं दे गा। ले िकन दे ना ही हो, तो फक का ा सवाल है !

तो तीसरा सू खयाल रख ल िक जो ेम के मािलक ए, वे ही केवल िम और श ु के बीच समबु को उपल हो


सकते ह।

मने कहा िक धन और िनधनता के बीच समबु लानी ब त किठन नहीं है, ोंिक धन बड़ी बाहरी घटना है । और
यश-अपयश के बीच भी समबु लानी ब त बड़ी बात नहीं है , ोंिक यश-अपयश भी लोगों की आं खों का खेल है ।
ले िकन िम और श ु के बीच समभाव लाना ब त गहरी घटना है । ोंिक आप और आपका ेम और आपका पूरा
समािहत है । आप पूरे पांत रत हों, तो ही िम और श ु को समभाव से दे ख पाएं गे ।

ये तीन तो आधारभूत सू आपको खयाल म रखने चािहए। और जब भी, जब भी मन कहे िक यह आदमी िम है, तब
पूछना चािहए, ों? यह सवाल, जब भी मन कहे, फलां आदमी श ु है , तो पूछना चािहए, ों? ा इसिलए िक
उससे मुझे ेम नहीं िमले गा? ा इसिलए िक वह मेरे िकसी काम म बाधा डाले गा? िकसिलए वह मेरा श ु है ? और
िकसिलए कोई मेरा िम है ? ा इसिलए िक वह मुझे ेम दे गा, म भरोसा कर सकता ं ? मेरे व पर काम पड़े गा?
मेरे काम म सहयोगी होगा, बाधा नहीं बनेगा?

अगर यही सवाल आपको उठते हों, तो िफर एक बार सोचना िक आप िजं दगी म कोई काम करने के पागलपन से भरे
ह। अहं कार सदा कहता है िक कुछ करने को आप ह।
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जो भी करने को है, वह परमा ा कर ले ता है । आप नाहक के बोझ से न भर। आप थ िवि न हों। उससे कुछ
काम तो न होगा, उससे िसफ आप परे शान हो लगे । उससे कुछ भी न होगा।

इस दु िनया म िकतने लोग आते ह, जो सोचते ह, कुछ करना है उनको। आप ज र कुछ करते रह, ले िकन इस
खयाल से मत कर िक आपको कुछ करना है । इस खयाल से करते रह िक परमा ा की मज ; वह आपसे कुछ
कराता है, आप करते ह।

अगर ऐसा आपने दे खा, तो श ु भी आपको परमा ा का ही काम करता आ िदखाई पड़े गा, ोंिक परमा ा के
अित र और कोई है नहीं। तब आप समझगे िक परमा ा का कोई िहसाब होगा; वह श ु से भी काम ले रहा है,
मुझसे भी काम ले रहा है । उसके अनंत हाथ ह; वह हजार ढं ग से काम ले रहा है । तब आपको श ु और िम बनाने
की कोई ज रत न रह जाएगी।

इसका यह मतलब नहीं है िक आपके श ु और िम नहीं बनगे। वे बनगे; वह उनकी मज । आपको बनाने की कोई
ज रत न रह जाएगी। और आप दोनों के बीच समभाव रख सकगे ।

यह समता आ जाए, तो भी मनु योग म िति त हो जाता है । सम कहीं से आए; वही सार है ।

तो कृ इस सू म कहते ह श ु और िम के बीच ठहर जाने को। अजु न के िलए यह सू काम का हो सकता है ।


उसकी सारी तकलीफ गीता म यही है । उसको क यही हो रहा है िक उस तरफ ब त-से िम ह, िजनको मारना
पड़े गा। श ु ह, उनको मारना पड़े , उसम तो उसे अड़चन नहीं है ; अजु न को अड़चन नहीं है । अगर िवभाजन साफ-
साफ होता, तो बड़ी आसानी होती। मगर िवभाजन बड़ा उलटा था। यु ब त अनूठा था। और इसीिलए गीता उस
यु के मंथन से िनकल सकी; नहीं तो नहीं िनकल पाती।

यु इसिलए अनूठा था िक उस तरफ भी िम खड़े थे, सगे -साथी खड़े थे, ि यजन खड़े थे, प रवार के लोग थे । कोई
भाई था, कोई भाई का सं बंधी था, कोई प ी का भाई था, कोई िम का िम था। सब गुं थे ए थे । उस तरफ, इस
तरफ एक ही प रवार खड़ा था। साफ नहीं था िक कौन है श ु, कौन है िम ! सब धुं धला था। उसी से अजु न िचं ितत हो
आया। उसे लगा, अपने ही इन िम ों को, ि यजनों को मारकर अगर यह इतना बड़ा रा िमलता हो, तो हे कृ ,
छोडूं इस रा को, भाग जाऊं जं गल। इससे तो मर जाना बे हतर। आ ह ा कर लूं , वह अ ा। इतने सब िम ों की,
इतने ि यजनों की ह ा करके रा पाकर ा क ं गा? वह ि य बोला। वह ि य का मन है । रा दो कौड़ी का
है , ले िकन ि यजनों को, िम ों को मारने का ा योजन है ?

वह ि य का ही मन बोल रहा है , जो िम और श ु की कीमत आं कता है । उस तरफ भी अपने ही लोग खड़े ह।


दु भा , अभा का ण िक बंटवारा ऐसा आ है । ऐसा ही होने वाला था। ोंिक जो अजु न के िम थे, वे ही दु य धन
के भी िम थे । खुद कृ बड़ी मु ल म बं टकर खड़े थे । कृ इस तरफ खड़े थे, कृ की सारी फौज कौरवों की
तरफ खड़ी थीं। अजीब थी लड़ाई! अपनी ही फौजों के खलाफ, अपने ही से नापितयों के खलाफ कृ को लड़ना
था। और उस तरफ से कृ के ही से नापित कृ के खलाफ लड़ने को त र थे ।

सारा बं टवारा ि यजनों का था। मजबू री म कोई इस तरफ खड़ा हो गया था, कोई उस तरफ। ले िकन सभी बे चैन थे ।
िफर भी अजु न सवािधक बे चैन था। ोंिक कहा जा सकता है िक अजु न उस यु म सवािधक शु ि य था। वह
सवािधक बे चैन हो उठा था। भीम उतना बेचैन नहीं है । उसे िम िदखाई ही पड़ नहीं रहे ह। श ु इतने साफ िदखाई
पड़ रहे ह िक पहले इनको िमटा डालना उिचत है , िफर सोचा जाएगा। अजु न िचं ता और सं ताप म पड़ा है ।

कृ का यह सू अजु न के िलए िवशे ष है , िम और श ु के बीच समभाव। इसका मतलब है िक कोई िफ न करो,


कौन िम है , कौन श ु है । दोनों के बीच तट थ हो जाओ। कौन अपना है , कौन पराया है, इस भाषा म मत सोचो। यह
भाषा ही गलत है । योगी के िलए िनि त ही गलत है ।
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और बड़े मजे की बात यही है िक अजु न तो केवल यु से बचने का उपाय चाहता था। उसकी सारी िज ासा िनगे िटव,
नकारा क थी। िकसी तरह यु से बचने का उपाय िमल जाए! ले िकन कृ जै सा िश क ऐसा अवसर चू क नहीं
सकता था।

कृ की सारी िश ा पािजिटव है । कृ की सारी चे ा अजु न के भीतर योग को उ कर दे ने की है । अजु न तो


िसफ इतना ही चाहता था, िकसी तरह से यह जो सं ताप पैदा हो गया है मेरे मन म, यह जो िचंता हो गई है , इससे म
बच जाऊं। कृ ने इसका पूरा उपयोग िकया, अजु न के इस िचं ता के ण का, इस अवसर का। कृ इसके िलए
उ ुक नहीं ह िक वह िचंता से कैसे बच जाए। कृ इसके िलए उ ु क ह िक वह िनि ंत कैसे हो जाए।

इस फक को आप समझ ले ना। िचंता से बच जाना एक बात है । वह तो रात म ट े लाइजर ले कर भी आप िचं ता से बच


जाते ह। शराब पी ल, तो भी िचंता से बच जाते ह। शराब कई तरह की ह। अजु न को भी शराब िपलाई जा सकती थी।
भू ल-भाल जाता नशे म; टू ट पड़ता यु म।

शराब कई तरह की ह–कुल की, यश की, धन की, रा की, ित ा की, अहं कार की। वह कुछ भी उसे िपलाई जा
सकती थी। भू ल जाता। दीवाना हो जाता। उसके घाव छु ए जा सकते थे । कृ उसके घाव छू सकते थे िक अजु न, तू
जानता है िक ते री ौपदी के साथ दु य धन ने ा िकया! नशा शु हो जाता।

उसके घाव छु ए जा सकते थे । घाव ब त गहरे थे और हरे थे । कृ के िलए किठनाई न पड़ती। इतनी लं बी गीता
कहने की कोई भी ज रत न थी। जरा से घाव उकसाने की ज रत थी। जहर फैल जाता उसके भीतर। कहना था
िक याद आता है वह िदन, जब ौपदी को न िकया था! भू ल गया वह ण, जब ौपदी को न करने की चे ा के
बीच तू िसर झुकाए बै ठा था और ते रे ही सामने दु य धन अपनी जांघ को उघाड़कर थपथपा रहा था और ौपदी से कह
रहा था, आ मेरी जां घ पर बै ठ जा! वह ण तु झे याद है ? बस, इतना काफी होता। गीता कहने की कोई ज रत न थी।
अजु न कूद पड़ा होता।

ले िकन कृ ने वह नहीं िकया। उसको िसफ नशा दे कर लड़ा दे ने की बात न थी; िसफ िचं ता से बचा दे ने की बात न
थी; िनि ंत बनाने की, िवधायक ि या की बात थी।

तो कृ पूरी मेहनत यह कर रहे ह िक वह िचंता के बाहर हो जाए, इतना काफी नहीं; यु म उतर जाए, इतना
काफी नहीं; काफी यह है िक वह योगा ढ़ हो जाए। ज री यह है िक वह योग थ हो जाए, वह योगी हो जाए। और
योगी होकर ही यु म उतरे , तो यु धमयु बन सकेगा, अ था यु धमयु नहीं होगा।

दु िनया म जब भी दो लोग लड़ते ह, तो कभी ऐसा हो सकता है , थोड़ी-ब त मा ा का भे द होता है । कोई थोड़ा ादा
अधािमक, कोई थोड़ा कम अधािमक। ले िकन ऐसा मु ल से होता है िक एक धािमक हो और दू सरा अधािमक।
अधािमक होने म ही मा ा-भे द होता है । कोई न े ितशत अधािमक होता है, कोई पंचानबे ितशत अधािमक होता
है । ले िकन यु हमेशा अधम और अधम के बीच ही चलता है।

कृ एक अनूठा योग करना चाह रहे ह; शायद िव के इितहास म पहला, और अभी तक उसके समानां तर कोई
दू सरा योग हो नहीं सका। वह योग यह करना चाह रहे ह, यु को एक धमयु बनाने की कीिमया अजु न को दे ना
चाह रहे ह।

वे अजु न से कह रहे ह, तू योगी होकर लड़; तू सम बु को उपल होकर लड़; तू श ु और िम के बीच िबलकुल
तट थ होकर लड़; अपने और पराए के बीच फासला छोड़ दे । ा होगा फल, इसकी िचं ता न कर। इसकी ही िचं ता
कर िक ा है ते रा िच ! कौन मरे गा, कौन बचे गा, इसकी िफ मत कर। इसकी ही िफ कर िक चाहे कोई मरे ,
चाहे कोई बचे, चाहे तू मरे या तू बचे, ले िकन मृ ु और ज के बीच तु झे कोई फक न हो; तू सम को उपल हो
जा। चाहे सफलता आए चाहे असफलता, चाहे िवजय आए और चाहे पराजय, तू दोनों को समभाव से झेल सके। ते रे
िच की लौ जरा भी कंिपत न हो। तू िन ं प हो जा।
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यु के ण म िकसी को योगी बनाने की यह चे ा बड़ी इं पािसबल है , बड़ी असंभव है ।

ये कृ जै से लोग सदा ही असंभव यास म लगे रहते ह। उनकी वजह से ही िजंदगी म थोड़ी रौनक है; उनकी वजह
से ही, ऐसे असंभव यास म लगे ए लोगों की वजह से ही, िजंदगी म कहीं-कहीं कां टों के बीच एकाध फूल खलता
है ; और िजं दगी के उप व के बीच कभी कोई गीत ज ता है । असंभव यास, िद इं पािसबल रे वो ू शन, एक असंभव
ां ित की आकां ा है िक अजु न योगी होकर यु म चला जाए।

दो बात आसान ह। अजु न को योगी मत बनाओ, बे होश करो, और भी भोगी बना दो–यु म चला जाएगा। दू सरी भी
बात सं भव है, अजु न को योगी बनाओ–यु को छोड़कर जं गल चला जाएगा। ये दो बात िबलकुल आसान और सं भव
ह। ये िबलकुल पािसबल के भीतर ह। दो म से कुछ भी करो। अजु न को और भोग की लालच दो–यु म लगा दो।
अजु न को योगी बनाओ–जं गल चला जाए।

कृ एक असंभव चे ा म सं ल ह। और इसीिलए गीता एक ब त ही असंभव यास है । असंभव होने की वजह से ही


अदभु त; असंभव होने की वजह से ही इतना ऊंचा, इतना ऊ गामी है । वह असंभव यास यह है िक अजु न, तू योगी
भी बन और यु म भी खड़ा रह। तू हो जा बु जै सा, िफर भी ते रे हाथ से धनुष-बाण न छूटे ।

बु जै सा होकर बोिधवृ के नीचे बै ठ जाने म अड़चन नहीं है; कोई अड़चन नहीं है । ले िकन बु जै सा होकर यु के
ण म यु के मैदान पर खड़े रहने म बड़ी अड़चन है । और इसिलए वे सब ार खटखटा रहे ह। कहीं से भी अजु न
को काश िदखाई पड़ जाए।

इस सू म वे कहते ह, िम और श ु के बीच समबु , तो तू योग को उपल हो जाता है ।

योगी यु ीत सततमा ानं रहिस थतः।


एकाकी यतिच ा ा िनराशीरप र हः।। 10।।
इसिलए उिचत है िक िजसका मन और इं ि यों सिहत शरीर जीता आ है , ऐसा वासनारिहत और सं हरिहत योगी
अकेला ही एकांत थान म थत आ िनरं तर आ ा को परमे र के ान म लगाए।

यहां दो ीन बात कृ कहते ह, जो बड़ी िवपरीत जाती ई मालू म पड़गी। और ऐसे सू ों की बड़ी गलत ा ा की
गई है । कट ा ा मालू म पड़ती है , इसिलए गलती करने म आसानी भी हो जाती है ।

कहते ह वह, वासना से रिहत आ, सं ह से मु आ, सम को पाया आ, ऐसा जो योगी-िच है , वह एकांत म


परमा ा का रण करे , परमा ा को ाये, परमा ा का ान करे ; परम स ा की िदशा म गित करे ।

एकां त म! तो इस सू के गलत अथ ब त आसान हो गए। तो यही तो अजु न कह रहा है िक मुझे जाने दो महाराज इस
यु से । एकां त म जाऊं, िचं तन-मनन क ं , भु का रण क ं । जाने दो मुझे। कृ िफर उसे रोक ों रहे ह?
िफर यु ो ुख ों कर रहे ह? िफर कम ुख ों कर रहे ह? िफर ों कह रहे ह िक कम म रत रहकर तू जी?
सम होकर, सम को पाकर, पर कम म रत होकर।

एकां त! तो एकां त से कृ का जो अथ है , वह समझ ले ना चािहए।

एकां त से अथ अकेलापन नहीं है । एकां त से अथ अकेलापन नहीं है, आइसोले शन नहीं है । एकां त से अथ लोनलीनेस
नहीं है । एकांत से अथ है , अलोननेस। एकां त से अथ है, यं होना, पर-िनभर न होना। एकां त से अथ, दू सरे की
अनुप थित नहीं है । एकां त से अथ है , दू सरे की उप थित की कोई ज रत नहीं है ।

इस फक को ठीक से समझ ल।
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आप जं गल म बै ठे ह। िबलकुल एकां त है । कोई नहीं चारों तरफ। दू र कोसों तक कोई नहीं। िफर भी म नहीं मानता
िक आप एकां त म हो सकगे । आपके होने का ढं ग भीड़ म होने का ढं ग है । आप अकेले हो सकगे; एकांत म नहीं हो
सकगे । अकेले तो कट ह। अकेले बै ठे ह। कोई नहीं िदखाई पड़ता आस-पास। ले िकन एकां त नहीं हो सकता। भीतर
झां ककर दे खगे, तो उन सबको मौजू द पाएं गे, िजनको गां व म, घर छोड़ आए ह। िम भी वहां होंगे, श ु भी वहां होंगे;
ि यजन भी वहां होंगे, प रवार भी वहां होगा; दु कान-बाजार, काम-धं धा, सब वहां होगा। भीतर सब मौजू द होंगे। पूरी
भीड़ मौजू द होगी। तो अकेले म तो आप ह, ले िकन एकां त म नहीं ह। एकांत का तो अथ है िक भीतर एक ही र
बजे, कोई दू सरे की मौजू दगी न रह जाए भीतर। तो इससे उलटा भी हो सकता है । िजस आदमी को एकांत का रह
पता चल गया हो, वह भीड़ म खड़े होकर भी एकांत म होता है । भीड़ कोई बाधा नहीं डालती। भीड़ सदा बाहर है ।
कौन आपके भीतर वेश कर सकता है ?

आप यहां बै ठे ह, इतनी भीड़ म बै ठे ह। आप अकेले हो सकते ह। भीड़ अपनी जगह बै ठी है । कोई आपकी जगह पर
नहीं चढ़ा आ है । अपनी-अपनी जगह पर लोग बै ठे ए ह। कोई चाहे, तो भी आपकी जगह पर नहीं बै ठ सकता है ।
अपनी-अपनी जगह पर लोग ह। अगर उनका हाथ भी आपको छू रहा है चारों तरफ से, तो हाथ ही छू रहा है । हाथ
का श भीतर वे श नहीं करता। भीतर आप िबलकुल एकां त म हो सकते ह।

एक ही र हो भीतर, यं के होने का; एक ही ाद हो भीतर, यं के होने का; एक ही सं गीत हो भीतर, यं के


होने का। दू सरे का कोई भी पता नहीं। कोसों तक नहीं, अनंत तक कोई भी पता नहीं। भीतर कोई है ही नहीं दू सरा।
आप िबलकुल अकेले ह।

इस एकां त, इस आं त रक, इनर एकां त का अथ और है , और बा अकेले पन का अथ और है । भीड़ से भाग जाना


बड़ी सरल बात है , ले िकन यं के भीतर से भीड़ को बाहर िनकाल दे ना ब त किठन बात है ।

भीड़ से िनकल जाने म कौन-सी किठनाई है? दो पैर आपके पास ह, िनकल भािगए! दो पैर काफी ह भीड़ से बाहर
िनकलने के िलए, कोई किठन बात है ? दो पैर आपके पास ह, िनकल भािगए! मत िकए तब तक, जब तक िक भीड़
न छं ट जाए। एकां त म प ं च जाएं गे? अकेले पन वाले एकां त म प ं च जाएं गे।

ले िकन भीड़ को भीतर से बाहर िनकाल फकना अित किठन मामला है । पैर साथ न दगे; िकतना ही भािगए, भीतर की
भीड़ भीतर मौजू द रहे गी। जहां भी जाइएगा, साथ खड़ी हो जाएगी। जहां भी वृ के नीचे िव ाम करने बै ठगे, भीतर के
िम बात-चीत शु कर दगे िक किहए, ा हाल है! मौसम कैसा है? सब शु हो जाएगा! बै ठकखाना वापस
आपके साथ भीतर मौजू द हो जाएगा। और कई बार तो ऐसा होगा िक िजनकी मौजू दगी म िजनका कोई पता नहीं
चलता, उनकी गै र-मौजू दगी म उनका पता और भी ादा चलता है!

अपनी प ी के पास बै ठे ह घं टेभर, तो भू ल भी जा सकते ह िक प ी है । भू ल भी जा सकते ह। अ र भू ल ही जाते ह।


प ी नहीं है , तब उसकी खाली जगह उसका ादा रण िदलाती है । आदमी िजंदा है , तो पता नहीं चलता; मर जाता
है , तो घाव छोड़ जाता है ; ादा याद आता है । जगह खाली हो जाती है ।

िकसी की मौजू दगी की वजह से आपके भीतर भीड़ नहीं होती; आपके भीतरी रसों की वजह से ही भीड़ होती है ।
आं त रक रस है । दू सरे म हम रस ले ते ह। इसिलए जब कोई मौजू द होता है , तो उतनी ज ी नहीं रहती है । जानते ह
िक कभी भी रस ले लगे; मौजू द तो है । ले िकन पता चल जाए िक मौजू द नहीं है, तो रस ादा आने लगता है । ोंिक
पता नहीं, अभी रस ले ना चाह, तो दू सरा मौजू द िमले, न िमले । तो गै र-मौजू दगी और भी ादा पकड़ ले ती है, जोर से
पकड़ ले ती है ।

रवी ं नाथ ने कहीं मजाक म िलखा है िक िजन पित-पि यों को अपना ेम िजंदा रखना हो, उ बीच-बीच म एक-
दू सरे से छु ी, हॉलीडे ले ते रहना चािहए। रवी ं नाथ के एक पा ने तो अपनी ेयसी से कहा है–ब त पीछे पड़ी है वह
ी, तो उसने कहा िक ठीक है िक हम राजी हो जाएं , िववाह कर ल। उस पा ने कहा, म राजी ं िववाह करने को।
ले िकन ते री दू सरी शत मेरी समझ म नहीं आती! ोंिक उस ी की दू सरी शत यह है िक हम िववाह तो कर ल,
ले िकन झील के एक तरफ म र ं गी और झील के दू सरी तरफ तु म रहना। कभी-कभी िनमं ण पर हम एक-दू सरे से
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िमल िलया करगे । या कभी-कभी अनायास, झील म नाव खेते या नदी के तट पर टहलते मुलाकात हो जाएगी, तो
िकसी झाड़ के नीचे बै ठकर बात कर लगे ! तो वह आदमी कहता है, इससे बे हतर है, हम िववाह ही न कर। िववाह
िकस िलए? पर वह ी कहती है , िववाह तो हम कर ल, ले िकन रह फासले पर; तािक एक-दू सरे की याद आती रहे;
तािक एक-दू सरे को भू ल न जाएं । कहीं ऐसा न हो िक एक-दू सरे के पास इतने आ जाएं िक भू ल ही जाएं । भू ल ही जाते
ह। अनुप थित याद को जगा जाती है ।

तो इस खयाल म मत रहना आप िक भीड़ के बीच म ह, तो भीड़ म ह। भीड़ म होने का अथ है िक भीड़ आपके भीतर
है , तो आप भीड़ म ह। भीड़ आपके भीतर नहीं है , तो आप िबलकुल अकेले ह।

कृ जै सा आदमी कहीं भी खड़ा हो–कैसी भी भीड़ म, कैसे भी बाजार म–अर ही चलता है , जं गल ही है । हम


जै सा आदमी कहीं भी खड़ा हो जाए, जं गल म भी, तो भीड़ ही चलती है , बाजार ही है । हमारे होने के ढं ग पर िनभर है ।

तो जब अजु न से कहा कृ ने िक ऐसा सम को उपल आ, िथर आ, शां त आ, एकां त म भु को


ाता है , भु का ान करता है , तो ा अथ होगा? िकसी जंगल म, िकसी पहाड़ पर, िकसी गु फा म?

नहीं, एक और गुफा है , अंतर- दय की, वहां । एक और अर है यं के भीतर ही, शू का, वहां । एक इनर ेस
है , एक भीतरी आकाश है । इस बाहर के आकाश से भी िवराट और बड़ा, वहां । दय की गुफा म। वहां एकांत म वह
भु को ाता है । और वहीं भु का ान िकया जा सकता है ; बाहर के जं गलों म कोई भु का ान नहीं िकया जा
सकता।

इसे भी थोड़ा-सा समझ ल।

साधक के िलए िवशे ष ान म ले ले ने जै सी बात है िक भु का ान अंतर-गु फा म िकया जाता है , दय की गु फा म।


नकल म हम िकतनी ही गु फाएं बाहर बना ल प रों को खोदकर, उनसे हल नहीं होता। प र ब त कमजोर है ।
दय को खोदना प र से भी जिटल चीज को तोड़ना है; ादा किठन है । हीरे की छे िनयां भी टू ट जाएं गी।

दय म गु फा है । सबके भीतर एक अंतर-आकाश है ।

एक आं -भारतीय िवचारक आबरी मेनन ने एक छोटी-सी िकताब िलखी है । उसके िपता तो भारतीय थे, उसकी मां
अं े ज थी। आबरी मेनन ने एक छोटी-सी िकताब िलखी है , िद ेस आफ िद इनर हाट, अंतर- दय का आकाश।
िकताब ब त मधु र सं रण से शु की है ।

वे िटकन के पोप से िमलने गया था मेनन; तो वे िटकन के पोप के चरणों म िसर झुकाकर आशीवाद ले ने को झुका।
तभी वे िटकन के पोप ने अपने साथ खड़े ए महासिचव को पूछा, िकस जाित का है यह, कौन है ? िकस जाित
का है यह, कौन है ? साथ खड़े ए से े टरी ने वे िटकन के पोप को कहा, अं े ज है, आं है । वे िटकन के पोप
ने मेनन के चे हरे पर हाथ फेरा और कहा, नहीं। इसके चे हरे का ढं ग भारतीय है ।

झुका आ मेनन अपने मन म सोचने लगा, सच म म कौन ं? उसको एक सवाल उठा िक म भारतीय ं या अं े ज
ं ? ले िकन अं े ज होना और भारतीय होना चमड़ी से ादा गहरी बात नहीं है । भीतर म कौन ं ? चमड़ी तो मेरी दोनों
की है । अं े ज की भी है थोड़ी चमड़ी मेरे पास और एक भारतीय की भी चमड़ी है थोड़ी मेरे पास। खून भी मेरे पास
भारतीय का है और अं े ज का भी है । िफर म कौन ं? ा यही चमड़ी और खून का जोड़ म ं ? या म कुछ और भी
ं ? वह झुका आ मेनन नीचे सोचने लगा।

उठकर खड़ा आ, वे िटकन के पोप ने िफर पूछा िक कहो, कौन हो तु म? तो उसके मन म आ िक वे िटकन के पोप
के सं बंध म कहा जाता है िक वह इनफािलबल है , वह कभी भू ल नहीं करता। ईसाई मानते ह िक उनका जो बड़ा
पुरोिहत है , वह कभी भू ल नहीं करता। मधु र मा ता है । मेनन को खयाल आया िक अगर म क ं िक आं -भारतीय
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ं , आधा भारतीय आधा अं ेज ं , तो कहीं पोप को दु ख न हो। वह यह न सोचे िक मने उसे फािलबल िस िकया,
मने कहा िक वह भी गलती कर सकता है । तो मेनन ने कहा िक हां , आप ठीक कहते ह महानुभाव! म भारतीय ं ।

पोप ब त खुश आ। मेनन ने अपनी िकताब म िलखा है िक इसिलए नहीं खुश आ िक म भारतीय था और भारतीय
से िमलकर उसे खुशी ई। इसिलए भी खुश नहीं आ िक म कोई खास आदमी था और मुझसे िमलकर खुशी ई।
खुश इसिलए आ िक पोप इनफािलबल है, उससे कभी भू ल नहीं होती।

पर मेनन ने िलखा है िक मेरे िच म एक च र चल पड़ा उस िदन से िक म कौन ं? ा म यह ह ी और मां स


और चमड़ी का जोड़ म ं ? म कौन ं? अगर सच म यह पोप मेरी आं खों म झां ककर कहता और कहता िक ठीक है ,
म समझ गया; तु ारा शरीर तो भारतीय है या अं े ज, पर तु म कौन हो? ा तु म शरीर ही हो? तो वह बड़ी खोज म
लग गया िक म कहां पाऊं िक म कौन ं ?

उसने ब त खोजा, ब त खोजा, और आ खर म हम सोच भी नहीं सकते िक उसे अपना उ र छां दो उपिनषद से
िमला। छां दो उपिनषद पढ़ते व उसे यह श सु नाई पड़ा, खयाल आया, दय की गु फा, िद इनर ेस आफ िद
हाट, वह अंतर- दय का आकाश। उसने कहा िक अगर म कोई भी ं, तो मेरे दय की गु फा म ही भीतर वे श क ं
तो जान पाऊंगा, अ था नहीं जान पाऊंगा।

िफर उसने एक कमरे म अपने को बं द कर िलया महीनों के िलए। रोटी सरका जाता कोई समय पर, वह रोटी खा
ले ता। पानी सरका जाता, वह पानी पी ले ता। और वह आं ख बं द करके बस एक ही िचं तन म लग गया, एक ही ान म
िक म कौन ं?

शरीर म नहीं ं । उसने एक महीने तक इसका ही िनरं तर ान िकया िक शरीर म नहीं ं , शरीर म नहीं ं । एक
महीने तक इस एक श के िसवा उसने कोई उपयोग न िकया िक शरीर म नहीं ं । सोते-जागते , उठते-बै ठते, होश
म, बे होशी म, जानता रहा, दोहराता रहा, समझता रहा, रण करता रहा–शरीर म नहीं ं । एक महीने के बाद उसने
आं ख खोलकर अपने शरीर को दे खा और पाया िक िनि त ही शरीर म नहीं ं । एक या ा का पड़ाव पूरा हो गया।

और उसने िलखा है िक िजस िदन मने पाया िक म शरीर नहीं ं , िफर मने आं ख बं द की और मने कहा िक अब म
जानने चलूं िक म कौन ं ! एक बात तो पूरी ई िक ा म नहीं ं । अब म जानूं िक म कौन ं !

और जब मने भीतर झां का, तो मुझे छां दो की बात समझ म आई िक भीतर एक अंतर-गु फा है दय की, जहां म ं,
जो म ं । और जै से-जै से उस अंतर-गु फा म मने वे श िकया, तो मने पाया, आ य! इतना बड़ा आकाश भी नहीं है ,
िजतनी बड़ी वह अंतर-गु फा है । और जै से-जै से म उसम भीतर गया, वै से-वै से एक रह उदघािटत आ िक जै से-जै से
चला भीतर, वै से-वै से म िमटता गया। खाली, शू ही रह गया। एकां त ही रह गया। िसफ एकांत, म भी न रहा। मेरी
मौजू दगी भी तो एकांत म बाधा है ।

तो आपको एकां त का अंितम अथ कहता ं , िजससे कृ का योजन है । अगर आप भी बच रहे, तो भी एकांत नहीं
है । एक ण ऐसा आता है, जब आप भी नहीं ह; िसफ चै त रह जाता है, आप भी नहीं होते ह। आपको पता भी नहीं
होता िक म भी ं, िसफ होना रह जाता है । उस शु होने म एकां त है । उस एकां त म भु को ाया जाता है । ाया
ा जाता है, उस एकां त म भु को जान ही िलया जाता है । उस एकां त म भु से िमलन ही हो जाता है ।

तो कृ कहते ह, ऐसा पु ष एकां त म भु को ाता है ।

यह ाता श ब त अदभु त है । भु का ान करता है । ा आप िकसी ऐसी चीज का ान कर सकते ह, िजसका


आपको पता न हो? ा यह सं भव है िक िजसको आप जानते न हों, उसका आप ान कर सक? यह कैसे सं भव है ?
िजसे जानते नहीं, उसका ान कैसे क रएगा? ान के िलए तो जानना ज री है । ले िकन हम सब भु का ान
करते ह। और हम भु का कोई भी पता नहीं है !
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ान हो कैसे सकता है, िजसका हम पता नहीं है ! िजसे हमने जाना ही नहीं, यह भी नहीं जाना िक जो है भी या नहीं
है ! यह भी नहीं जाना िक है , तो कैसा है! कुछ भी िजसकी हम खबर नहीं है , उसका ान कर रहे ह लोग बै ठकर!
आं ख बं द करके लोग कहते ह िक हम भु का ान कर रहे ह!

अगर उनकी खोपड़ी थोड़ी चीरी जा सके और उनकी खोपड़ी म झां का जा सके, तो आपको पता चल जाएगा, वे
िकसका ान कर रहे ह! िकसका ान कर रहे ह, पता चल जाएगा।

नानक एक गांव म ठहरे ह। और नानक कहते ह, न कोई िहं दू है , न कोई मुसलमान है । तो गांव का मुसलमान नवाब
नाराज हो गया। उसने कहा, बुला लाओ उस फकीर को। कैसे कहता है ? िकस िह त से कहता है िक न कोई िहं दू
है , न कोई मुसलमान है?

नानक आए। उस नवाब ने पूछा िक मने सु ना है, तु म कहते हो, न कोई िहं दू है , न कोई मुसलमान? नानक ने कहा,
हां, न कोई िहं दू है , न कोई मुसलमान। तो तु म कौन हो? तो नानक ने कहा िक मने ब त खोजा, ब त खोजा। चमड़ी,
ह ी, मां स, म ा, वहां तक तो मुझे लगा िक हां, िहं दू भी हो सकता है , मुसलमान भी हो सकता है । ले िकन वहां तक
म नहीं था। और जब उसके पार म गया, तो मने पाया िक वहां तो कोई िहं दू-मुसलमान नहीं है !

तो उस नवाब ने कहा िक िफर तु म हमारे साथ म द म नमाज पढ़ने चलोगे? ोंिक जब कोई िहं दू-मुसलमान नहीं,
तो म द म जाने म एतराज नहीं कर सकते हो। नानक ने कहा, एतराज! म तो यह पूछने ही आया था िक म द म
ठह ं , तो आपको कोई एतराज तो नहीं है?

नवाब थोड़ा िचं ितत आ, एक िहं दू कहे ! पर उसने कहा िक दे ख, परी ा कर ले नी ज री है । म द म नमाज पढ़ने
के िलए ले गया नानक को। नवाब तो म द म नमाज पढ़ने लगा, नानक पीछे खड़े होकर हं सने लगे । तो नवाब को
बड़ा ोध आया। हालां िक नमाज पढ़ने वाले को ोध आना नहीं चािहए। ले िकन नमाज कोई पढ़े तब न!

बड़ा ोध आया और जै से ोध बढ़ने लगा, नानक की हं सी बढ़ने लगी। अब नमाज पूरी करनी बड़ी मु ल पड़
गई। तिबयत तो होने लगी, गदन दबा दो इस फकीर की। ले िकन नमाज पूरी करनी ज री थी। बीच म तोड़ा नहीं जा
सकता नमाज को। तो ज ी पूरी की, जै सा िक अिधक लोग करते ह।

पूजा अिधक लोग ज ी करते ह। इतने ज ी करते ह िक कोई भी शाट कट िमल जाए, तो ज ी छलां ग लगाकर वे
पूजा िनपटा दे ते ह। लां ग ट से पूजा म शायद ही कोई जाता हो। शाट कट सबने अपने-अपने बनाए ए ह, उनसे वे
िनकल जाते ह, त ाल! बाई पास! पूजा को िनपटाकर वे भागे, तो िफर लौटकर नहीं दे खते पूजा की तरफ। एक
मजबू री, एक काम, उसे िनपटा दे ना है !

नवाब ने ज ी-ज ी नमाज पूरी की और आकर नानक से कहा िक बे ईमान िनकले, धोखेबाज िनकले । तु मने कहा
था, नमाज म साथ दू ं गा। साथ न िदया। नानक ने कहा, मने कहा था नमाज म साथ दू ं गा, ले िकन तु मने नमाज ही न
पढ़ी, साथ िकसका दे ता? तु म तो न मालू म ा- ा कर रहे थे! कभी मेरी तरफ दे खते थे । कभी नाराज होते थे । कभी
मुि यां बां धते थे । कभी दां त पीसते थे । यह कैसी नमाज पढ़ रहे थे? मने कहा िक ऐसी नमाज तो म नहीं जानता। साथ
भी कैसे दू ं ! और सच, भीतर तु मने एक भी बार अ ाह का नाम िलया? ोंिक जहां तक म दे ख पाया, मने दे खा िक
तु म काबु ल के बाजार म घोड़े खरीद रहे हो!

नवाब तो मु ल म पड़ गया। उसने कहा, ा कहते हो! काबु ल के बाजार म घोड़े ! बात तो सच ही कहते हो। कई
िदन से सोच रहा ं िक अ े घोड़े पास म नहीं ह। तो नमाज के व फुरसत का समय िमल जाता है । और तो काम
म लगा रहता ं । तो अ र ये काबु ल के घोड़े मुझे नमाज के व ज र सताते ह। म खरीद रहा था। तु म ठीक
कहते हो। मुझे माफ करो। मने नमाज नहीं पढ़ी, िसफ काबु ल के बाजार म घोड़े खरीदे ।

आप जब भु का रण कर रहे ह, तो ान रखना, भु को छोड़कर और सब कुछ कर रहे होंगे। भु को तो आप


जानते नहीं, रण कैसे क रएगा? ान कैसे क रएगा?
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कृ कहते ह, ऐसा पु ष–यह शत है ान की, इतनी शत पूरी हो, तो ही भु का ान होता है , नहीं तो ान नहीं
होता। हां, और चीजों का ान हो सकता है । भु का ान, उसकी शत–सम को जो उपल आ, िन ं प
िजसका िच आ, ऐसा िफर एकां त म, अंतर-गु हा म भु को ाता है । िफर भु ही भु चारों तरफ िदखाई
पड़ता है । खुद तो खोजे से नहीं िमलता, भु ही भु िदखाई पड़ता है । उसकी ही ृित रोम-रोम म गूं जने लगती है ।
उसका ही ाद ाणों के कोने-कोने तक ितर जाता है । उसकी ही धु न बजने लगती है रोएं -रोएं म। ास- ास म वही।
तब ान है ।

ान का अथ है , िजसके साथ हम आ सात होकर एक हो जाएं । नहीं तो ान नहीं है । अगर आप बच रहे, तो ान


नहीं है । ान का अथ है , िजसके साथ हम एक हो जाएं । ान का अथ है िक कोई आपको काटे , तो आपके मुंह से
िनकले िक भु को ों काट रहे हो! ान का अथ है िक कोई आपके चरणों म िसर रख दे , तो आप जान िक भु को
नम ार िकया गया है । सोच नहीं, जान। आपका रोआं -रोआं भु से एक हो जाए। ले िकन यह घटना तो एकां त म
घटती है । इनर अलोनने स, वह जो भीतरी एकां त गु हा है, जहां सब दु िनया खो जाती, बाहर समा हो जाता। िम ,
ि यजन, श ु सब छूट जाते । धन, दौलत, मकान सब खो जाते । और आ खरी पड़ाव पर यं भी खो जाते ह आप।
ोंिक उस यं की भीतर कोई ज रत नहीं है , बाहर ज रत है ।

अगर ठीक से समझ, तो वह िजसको आप कहते ह म, वह साइनबोड है , जो घर के बाहर लगाने के िलए दू सरों के
काम पड़ता है । आपने कभी खयाल िकया िक जब आप अपने दरवाजे के भीतर घु सते ह, तो साइनबोड को अपनी
छाती पर लटकाकर मकान के भीतर नहीं जाते । ों? आपका ही घर है , यहां साइनबोड को ले जाने की ा ज रत
है ? साइनबोड तो दरवाजे की चौखट पर लगा दे ते ह। बाहर से जाने वाले, राह से गु जरने वाले, औरों को पता चले िक
कौन यहां रहता है । आप अपना साइनबोड अपनी छाती पर लटकाकर घर के भीतर नहीं जाते।

वह िजसको हम कहते ह, म, नाम-धाम, पता-िठकाना, वह भी एक साइनबोड है ब त सू , जो हमने दू सरों के िलए


लगाया है । जब भीतर के एकां त म कोई वेश करता है , तो उसे ले जाने की कोई भी ज रत नहीं पड़ती। वहां
आपकी भी कोई ज रत नहीं है । आप भी वहां शू वत हो जाते ह। उस शू वत एकाकार थित म भु को ाया
जाता है ।

यह एकां त जं गल म, अर म भाग जाने वाला एकांत नहीं, यह यं के भीतर िव हो जाने वाला एकांत है ।

और कृ ने यहां अजु न को जो कहा है, वह योग की परम उपल है । सम योग इसिलए है िक हम अंतर-गु फा म
कैसे वेश कर। योग िविध है अंतर-गु फा म वेश की। और अंतर-गु फा म वेश के बाद जो भु का ान है, वह
अनुभव है , वह तीित है, वह सा ा ार है ।

सबके भीतर है वह गु फा। ले िकन सब अपनी गु फा के बाहर घू मते रहते ह, कोई भीतर जाता नहीं। शायद हम रण
ही नहीं रहा है , ोंिक न मालूम िकतने ज ों से हम बाहर घू मते ह। और जब भी एकां त होता है , तो हम अकेले पन
को एकांत समझ ले ते ह। और तब हम त ाल अपने अकेले पन को भरने के िलए कोई उपाय कर ले ते ह। िप र
दे खने चले जाते ह, िक रे िडयो खोल ले ते ह, िक अखबार पढ़ने लगते ह। कुछ नहीं सू झता, तो सो जाते ह, सपने दे खने
लगते ह। मगर अपने अकेले पन को ज ी से भर ले ते ह।

ान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है , एकां त आनंद लाता है । वे उनके ल ण ह। अगर आप घड़ीभर एकां त म
रह जाएं , तो आपका रोआं -रोआं आनंद की पुलक से भर जाएगा। और आप घड़ीभर अकेले पन म रह जाएं , तो
आपका रोआं -रोआं थका और उदास, और कु लाए ए प ों की तरह आप झुक जाएं गे । अकेले पन म उदासी
पकड़ती है , ोंिक अकेले पन म दू सरों की याद आती है । और एकां त म आनंद आ जाता है, ोंिक एकां त म भु से
िमलन होता है । वही आनंद है , और कोई आनंद नहीं है ।

तो अगर आपको अकेले बै ठे ए उदासी मालू म होने लगे , तो आप समझना िक यह एकांत नहीं है; यह दू सरों की याद
आ रही है आपको। और एकांत की खोज करना। और एकां त खोजा जा सकता है ।
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ान कह, रण कह, सु रित कह, नाम कह, कोई भी, सब एकां त की खोज है । इस बात की खोज है िक म उस
जगह प ं च जाऊं, जहां कोई प-रे खा न रह जाए दू सरे की। और जहां दू सरे की कोई प-रे खा नहीं रह जाती, वहां
यं की भी प-रे खा के बचने का कोई कारण नहीं रह जाता। सब हो जाता है िनराकार।

उस िनराकार ण म ई र को ाया जाता है , जाना जाता है , जीया जाता है । हम िफर अलग होकर नहीं दे खते उसे ।
वह प रचय नहीं है । हम उसके साथ एकमेक होकर जानते ह। वह पहचान नहीं है दू र से, बाहर से, अलग से । वह
एक होकर ही जान ले ना है । हम वही होकर जानते ह।

और िजस िदन कोई अपनी अंतर-गु हा म प ं च जाता है , वह यं ही भगवान हो जाता है ।

भगवान हो जाने का अथ िसफ इतना ही है िक वहां उसके और भगवान के बीच कोई फासला नहीं रह जाता। और
ेक की मंिजल यही है िक वह भगवान हो जाए। भगवान के होने के पहले कोई पड़ाव मंिजल मत समझ
ले ना।

िनराकार हो जाने के पहले, कहीं क मत जाना। सब पड़ाव ह। कना तो वहीं है , जहां यं भी िमट जाए, सब िमट
जाए; शू , िनराकार रह जाए। वही है परम आनंद। उस परम आनंद की िदशा म ही कृ अजु न को इस सू म
इशारा करते ह।

आज के िलए इतना ही।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


अंतया ा का िव ान (अ ाय—6) वचन—छठवां

शुचौ दे शे ित ा थरमासनमा नः।


ना ु तं नाितनीचं चैलािजनकुशो रम्।। 11।।
त ैका ं मनः कृ ा यतिच े यि यः।
उपिव ासने यु ा ोगमा िवशु ये।। 12।।
शु भू िम म कुशा, मृगछाला और व है उपरोप र िजसके, ऐसे अपने आसन को न अित ऊंचा और न अित नीचा
थर थापन करके, और उस आसन पर बै ठकर

तथा मन को एका करके, िच और इं ि यों की ि याओं को वश म िकया आ, अंतःकरण की शु के िलए योग


का अ ास करे ।

अंतर-गु हा म वेश के िलए, वह जो दय का अंतर- आकाश है , उसम वेश के िलए कृ ने कुछ िविधयों का सं केत
अजु न को िकया है ।

योग की सम िविधयां बाहर से ारं भ होती ह और भीतर समा होती ह। यही ाभािवक भी है । ोंिक मनु
जहां है , वही ं से ारं भ करना पड़े गा। मनु की जो थित है, वही पहला कदम बनेगी। और मनु बाहर है । इसिलए
योग की कोई भी शु आत भावतः बाहर से होगी। हम जहां ह, वहीं से या ा पर िनकल सकते ह। जहां हम नहीं ह,
वहां से या ा शु नहीं की जा सकती है ।

इस सं बंध म दो ीन अिनवाय बात समझ ले नी चािहए, िफर कृ की िविध पर हम िवचार कर।


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ब त बार ऐसा आ है । जो जानते ह, उनका मन होता है आपसे कह, वहीं से शु करो, जहां वे ह। उनकी बात इं च-
इं च सही होती है, िफर भी बे कार हो जाती है ।

म जहां ं , अगर म िकसी दू सरे को क ं िक वहां से शु करो, तो भला बात िकतनी ही सही हो, वह दू सरे के िलए
थ हो जाएगी। उिचत और साथक तो यही होगा िक दू सरा जहां है, वहां से म क ं िक यहां से शु करो।

ब त बार जानने वाले लोगों ने भी अपनी थित से व दे िदए ह, जो िक िकसी के काम नहीं पड़ते ह। और उन
व ों से ब त बार हािन भी हो जाती है । ोंिक वहां से आप कभी शु ही नहीं कर सकते ह। सु नगे, समझगे ,
सारी बात खयाल म आ जाएगी और िफर भी पाएं गे िक अपनी जगह ही खड़े ह; इं चभर हट नहीं पाते ह। ोंिक जहां
आप खड़े ह, वहां से वह बात शु नहीं हो रही है । वह बात वहां से शु हो रही है, जहां करने वाला खड़ा है । और
या ा तो वहां से शु होगी, जहां आप खड़े ह।

म अगर मंिदर के भीतर खड़ा ं , तो म आपसे कह सकता ं िक मंिदर के भीतर आ जाओ। और सीिढ़यों की चचा
छोड़ सकता ं । ोंिक जहां म खड़ा ं , वहां सीिढ़यों का कोई भी योजन नहीं है । ार-दरवाजों की बात न क ं , हो
सकता है । ोंिक जहां म खड़ा ं , अब वहां कोई ार-दरवाजा नहीं है । ले िकन आपको ार-दरवाजा भी चािहए
होगा, सीिढ़यां भी चािहए होंगी, तभी मंिदर के भीतर वे श हो सकता है ।

जो आ ं ितक व ह, अंितम व ह, वे सही होते ए भी उपयोगी नहीं होते ह।

कृ ऐसी बात कह रहे ह, जो िक पूरी सही नहीं है , ले िकन िफर भी उपयोगी है । और ब त बार कृ जै से िश कों
को ऐसी बात कहनी पड़ी ह, जो िक उ ोंने मजबू री म कही होंगी–आपको दे खकर, आपकी कमजोरी को दे खकर।
वे व आप पर िनभर ह, आपकी कमजोरी और सीमाओं पर िनभर ह।

अब जै से कृ कह रहे ह आसन की बात िक आसन न ब त ऊंचा हो, न ब त नीचा हो।

जो भीतर प ंच गया, वहां ऊपर-नीचा आसन, न-आसन, कुछ भी शे ष नहीं रह जाते । वै सा भीतर प ंचा आ आदमी
कह सकता है, जै सा कबीर ने ब त जगह कहा है िक ा होगा आसन लगाने से? सब थ है! कबीर गलत नहीं
कहते । कबीर एकदम ठीक ही कहते ह। ले िकन कबीर जो कहते ह उसम और आप म इतना बड़ा अंतराल, इतना
बड़ा गै प है िक वह कभी पूरा नहीं होगा।

कबीर कहते ह, ा होगा मृगछाल िबछा ले ने से? ठीक ही कहते ह, गलत नहीं कहते ह। मृग की चमड़ी भी िबछा
ली, उस पर बै ठ भी गए, तो ा होगा? आ ंितक ि से, आ खरी ि से कबीर ठीक ही कहते ह िक ा होगा?
िकतने ही मृगचम िबछाकर बै ठ जाएं , तो होना ा है ?

िफर भी जब कृ कहते ह, तो कबीर से ादा क णा है उनके मन म। जब वे अजु न से कहते ह िक मृगचम पर


बै ठकर, न अित ऊंचा हो आसन, न अित नीचा हो, सम हो, ऐसे आसन म बै ठकर, िच को एका करे , इं ि यों के
ापार को समे ट ले, इं ि यों का मिलक हो जाए–तो ही योग म वे श होता है ।

कृ और कबीर के इन व ों म इतना फासला ों है ? दे खकर लगेगा िक या तो कृ गलत होने चािहए, अगर


कबीर सही ह। या कबीर गलत होने चािहए, अगर कृ सही ह, जै सा िक सारी दु िनया म चलता है ।

हम सदा ऐसा सोचते ह, इन दोनों म से दोनों तो सही नहीं हो सकते । हां , दोनों गलत हो सकते ह। ले िकन दोनों सही
नहीं हो सकते ।

कबीर तो कहते ह, फक दो यह सब। इस सबसे कुछ न होगा। और कृ अजु न को कह रहे ह िक इस सबसे या ा


शु होगी! ा कारण है? और म कहता ं , दोनों सही ह। कारण िसफ इतना है िक कबीर वहां से बोल रहे ह, जहां
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वे खड़े ह। और कृ वहां से बोल रहे ह, जहां अजु न खड़ा है । कबीर वह बोल रहे ह, जो उनके िलए स है । कृ
वह बोल रहे ह, जो िक अजु न के िलए स हो सके।

गहरे अथ म ा फक पड़ता है ? आ ा का कोई आसन होता है ? गङ् ढे म बै ठ गए, तो आ ा न िमले गी? ऊंची
जमीन पर बै ठ गए, तो आ ा न िमले गी? अगर ऐसी छोटी शत से आ ा का िमलना बं धा हो, तो बड़ा स ा खेल हो
गया!

नहीं; आ ा तो िमल जाएगी कहीं से भी। िफर भी, जहां हम खड़े ह, वहां इतनी ही छोटी चीजों से फक पड़े गा, ोंिक
हम इतने ही छोटे ह। जहां हम खड़े ह, इतनी ु बातों से भी भे द पड़े गा।

कभी ान करने बै ठे हों, तो खयाल म आएगा। अगर जरा ितरछी जमीन है , तो पता चलेगा िक उस जमीन ने ही सारा
व ले िलया। अगर पैर म एक जरा-सा कंकड़ गड़ रहा है , तो पता चले गा िक परमा ा पर ान नहीं जा सका,
कंकड़ पर ही ान रह गया! एक जरा-सी चीट ं ी काट रही है, तो पता चले गा िक चीट
ं ी परमा ा से ादा बड़ी है!
परमा ा की तरफ इतनी चे ा करके ान नहीं जाता और चीटं ी की तरफ रोकते ह, तो भी ान जाता है !

जहां हम खड़े ह अित सीमाओं म िघरे , अित ु ताओं म िघरे ; जहां हमारे ान ने िसवाय ु िवषयों के और कुछ भी
नहीं जाना है , वहां फक पड़े गा। वहां इस बात से फक पड़े गा िक कैसे आसन म बै ठे। इस बात से फक पड़े गा िक
कैसी भू िम चु नी। इस बात से फक पड़े गा िक िकस चीज पर बै ठे। ों फक पड़ जाएं गे? हमारे कारण से फक
पड़े गा। हम इतनी छोटी चीज प रवितत करती ह, िजसका कोई िहसाब नहीं है !

तो कबीर जै से लोगों के व हमारे िलए खतरनाक िस भी हो जाते ह। ोंिक हम कहते ह, ठीक है । कबीर
कहते ह िक ा आसन? और िबलकुल ठीक कहते ह। बात िबलकुल ठीक लगती है । ले िकन िफर भी जहां हम ह,
वहां िबलकुल ठीक नहीं है ।

और सारे व इस जगत म रले िटव ह, सापे ह। और जो लोग भी ए ो ू ट, िनरपे व दे ने की आदत से


भर जाते ह, वे हमारे िकसी काम के िस नहीं होते ।

जै से कृ मूित ह। उनके सारे व िनरपे ह, ए ो ू ट ह, और इसिलए िबलकुल बे कार ह। सही होते ए भी


िबलकुल बे कार ह। वष कोई सु नता रहे; वहीं खड़ा रहे गा जहां खड़ा था, इं चभर या ा नहीं होगी। ोंिक िजन चीजों
से हम या ा कर सकते ह, उन सबका िनषे ध है । और बात िबलकुल सही है , इसिलए समझ म आ जाएगी िक बात
िबलकुल सही है । समझ म आ जाएगी और अनुभव म कुछ भी न आएगा। और समझ और अनुभव के बीच इतना
फासला बना रहे गा िक उसकी पूित कभी होनी सं भव नहीं है ।

और कृ मूित को सु नने वाले, चालीस साल से सु नने वाले लोग कभी मेरे पास आते ह। वे कहते ह िक हम चालीस
साल से सु न रहे ह। हम सब समझते ह िक वे ा कहते ह। िबलकुल ठीक समझते ह। इं टले ु अल अंडर िडं ग
हमारी िबलकुल पूरी है । ले िकन पता नहीं, कुछ होता ों नहीं है !

अगर उनसे कहो िक आसन ऐसा लगाना, तो वे कहगे, आप भी ा बात कर रहे ह! आ ा का आसन से ा ले ना-
दे ना? अगर उनसे कहो िक ि इस िबं दु पर रखना, वे कहगे िक इससे ा होगा? अगर उनसे कहो, इस िविध का
उपयोग करना, तो वे कहते ह, कृ मूित कहते ह, कोई मेथड नहीं है ।

वे िबलकुल ठीक कहते ह, मगर आप गलत आदमी ह। और आपको नहीं सु नना चािहए था उ । िबना िविध के
आपने िजंदगी म कुछ भी नहीं िकया है , िबना मेथड के कुछ भी नहीं िकया है । आपके मन की सारी समझ, आपके
िच की सारी व था मेथड और िविध से चलती है ।
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एक ब त बड़ा व आपने सु ना िक िकसी मेथड की कोई ज रत नहीं है । आपका वह जो आलसी मन है, वह


कहे गा िक बात तो िबलकुल ठीक है , मेथड की ा ज रत है ! झंझट से भी बच गए। अब कोई िविध भी नहीं लगानी
है । कोई आसन भी नहीं लगाना है । कोई मं नहीं पढ़ना है । कोई रण नहीं करना है । कुछ नहीं करना है । मगर
कुछ नहीं तो आप पहले से ही कर रहे ह। अगर प ंचना होता, तो ब त पहले प ं च गए होते । और अब आपको और
एक प ा मजबू त खयाल िमल गया िक कुछ भी नहीं करना है ।

ान रहे, कुछ भी नहीं करना इस पृ ी पर सबसे किठन करने वाली बात है । इसिलए आप िजसको समझते ह, कुछ
भी न करना, वह कुछ भी न करना नहीं है ।

तो कृ का यह व ऐसा लगे गा िक बड़ा साधारण है , ले िकन साधारण नहीं है । अगर समतु ल आसन हो और
आपके शरीर के दोनों िह े िबलकुल समान थित म भू िम पर हों, कोई िह ा नीचा-ऊपर न हो, आपके शरीर को
झुकना न पड़े , तो उसके ब त वै ािनक कारण ह।

जमीन चौबीस घं टे ितपल अपने े िवटे शन से हमारे शरीर को भािवत करती है । उसका गु ाकषण पूरे समय
काम कर रहा है । जब आप िबलकुल समतु ल होते ह, तो गु ाकषण ूनतम होता है, िमिनमम होता है । जब आप
जरा भी ितरछे होते ह, तो गु ाकषण बढ़ जाता है , ोंिक गु ाकषण का और आपके शरीर का सं बंध बढ़ जाता
है । अगर म िबलकुल सीधे आसन म बै ठा आ ं , तो गु ाकषण िबलकुल सीधी रे खा म, िसफ रीढ़ को ही भािवत
करता है । अगर म जरा झुक गया, तो िजतना म झुक गया, पृ ी उतने ही िह े म कोण बनाकर गु ाकषण से
शरीर को भािवत करने लगती है ।

इसीिलए ितरछे खड़े होकर आप ज ी थक जाएं गे, सीधे बै ठकर आप कम थकगे। ितरछे बै ठकर आप ज ी थक
जाएं गे । जमीन आपको ादा खींचेगी। इसिलए ले टकर आप िव ाम पा जाते ह, ोंिक ले टकर आप जरा भी ितरछे
नहीं होते, पूरी जमीन का गु ाकषण आपके शरीर पर समान होता है ।

समान गु ाकषण आधार है कृ के इस व का। ज री नहीं है िक कृ को गु ाकषण का कोई पता हो;


आव क भी नहीं है । कोई ूटन ने गु ाकषण को पैदा नहीं िकया है । ूटन नहीं था, तो भी गु ाकषण था।
श नहीं था हमारे पास िक ा है । ले िकन इतना पता था िक जमीन खींचती है , और शरीर को चौबीस घं टे ितपल
खींचती है ।

शरीर को हम ऐसी थित म रख सकते ह िक जमीन का अिधकतम आकषण शरीर पर हो। और जहां शरीर पर
अिधकतम आकषण होगा, वहां शरीर ज ी थकेगा, बेचैन होगा, परे शान होगा और िच को िथर करने म आपके
िलए किठनाई होगी–कृ के िलए नहीं।

शरीर ऐसी थित म हो सकता है , जहां गु ाकषण ूनतम है , िमिनमम है । िजसको हम िस ासन कहते ह,
सु खासन कहते ह, प ासन कहते ह, वे ूनतम गु ाकषण के आसन ह। और आज तो वै ािनक भी ीकार करता
है िक अगर िस ासन म आदमी ब त िदन तक, ब त समय तक रह सके, तो उसकी उ बढ़ जाएगी। बढ़ जाएगी
िसफ इसिलए िक उसके शरीर और जमीन के आकषण के बीच जो सं घष है, वह कम से कम होगा और शरीर कम
से कम जरा-जीण होगा।

अगर कृ कहते ह िक ऐसी भू िम चु नना ान के िलए, जो नीची-ऊंची न हो; ब त ऊंची भी न हो, ब त नीची भी न
हो। उसके भी कारण ह। एक आदमी गङ् ढे म भी बै ठ सकता है । एक आदमी एक मचान बांधकर भी बै ठ सकता है ।
खतरे ा ह? अगर आप गङ् ढे म बै ठ जाते ह, जमीन के नीचे बै ठ जाते ह, तो एक दू सरे िनयम पर ान दे दे ना
ज री है ।

म यहां बोल रहा ं , इस माइक को थोड़ा म नीचे कर लूं, अपने हाथ के तल पर ले आऊं, तो मेरी आवाज इस माइक
के ऊपर से िनकल जाएगी। मेरी िन तरं ग इसके ऊपर से िनकल जाएं गी। यह आवाज मेरी ठीक से नहीं पकड़
पाएगा। इसे म ब त ऊंचा कर दू ं , तो भी मेरी िन तरं ग नीचे से िनकल जाएं गी। यह माइक उ पकड़ नहीं पाएगा।
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यह माइक मेरी िन तरं गों को तभी ठीक से पकड़े गा, जब यह ठीक समानां तर, वाणी की तरं गों के समानां तर होगा।
मेरे होंठों के िजतने समानां तर होगा, उतनी ही सु िवधा होगी इसे मेरी िन पकड़ ले ने के िलए।

पूरी पृ ी पूरे समय अनंत तरह की तरं गों से वािहत है । अनंत तरं ग चारों ओर फैल रही ह। इन तरं गों म कई वजन
की तरं ग, कई भार की तरं ग ह। और यह बड़े आ य की बात है िक िजतने बु रे िवचारों की तरं ग ह, वे उतनी ही भारी
ह, उतनी ही हैवी ह। िजतने शुभ िवचारों की तरं ग ह, उतनी हलकी ह, िनभार ह।

अगर आप एक गङ् ढे म बै ठकर ान करते ह, कुएं म बै ठकर ान करते ह, तो आपके सं पक म इस पृ ी पर


उठने वाली िजतनी िन तम तरं ग ह, उनसे ही आपका सं पक हो पाएगा। वे तो कुएं म उतर जाएं गी, े तरं ग कुएं के
ऊपर से ही वािहत होती रहगी।

इसिलए पहाड़ों पर लोगों ने या ा की। पहाड़ों पर या ा का कारण था। कारण थी ऊंचाई, और ऊंचाई से तरं गों का
भे द।

तरं गों की अपनी पूरी थितयां ह। हर तल पर िविभ कार की तरं ग या ा कर रही ह। और एक तरह की तरं ग एक
सतह पर या ा करती है । तो गङ् ढे के िलए इनकार िकया है ।

ले िकन आप पूछगे िक िफर ब त ऊंची जगह के िलए ों इनकार िकया है ? ोंिक ऊंचे िजतने हम होंगे, उतनी
े तर तरं ग िमल जाएं गी!

तो वह भी आप ान रख ल। ऊंचे पर े तर तरं ग िमलगी, ले िकन अगर आपकी पा ता न हो, तो े तर तरं ग भी


िसफ आपके भीतर उ ात पैदा करगी। आपकी पा ता के साथ ही े तर तरं गों को झेलने की मता पैदा होती है ।

आप िकतना झेल सकते ह? हम जहां जीते ह, वही तल अभी हमारे झेलने का तल है । जहां बै ठकर आप दु कान करते
ह, भोजन करते ह, बात करते ह, जीते ह जहां, ेम करते ह, झगड़ते ह जहां, वही आपके जीवन का तल है । उस तल
से ही शु करना उिचत है ; न ब त नीचे, न ब त ऊपर।

जहां आप ह, वहीं आपकी टयू िनं ग है । अभी आप वहीं से शु कर। और जै से-जै से आपकी मता बढ़े वै से-वै से ऊपर
की या ा हो सकती है । और जै से-जै से आपकी मता बढ़े , तो आप गङ् ढे म बै ठकर भी ान कर सकते ह। मता
बढ़े , तो ऊपर जा सकते ह, पवत िशखरों की या ा कर सकते ह।

पुराने तीथ इस िहसाब से बनाए गए थे िक जो े तम तीथ हो, वह सबसे ऊपर हो। और धीरे -धीरे साधक या ा करे ;
धीरे -धीरे या ा करे । वह आ खरी या ा कैलाश पर हो उसकी पूरी। वहां जाकर वह समािध म लीन हो। वहां शु तम
तरं ग उसे उपल होंगी। ले िकन उसकी मता भी िनरं तर ऊंची उठती जानी चािहए, तािक उतनी शु तरं गों को वह
झेलने म समथ हो सके। अ था शु तम को झेलना भी उ ात का कारण हो सकता है । िजतनी आपकी पा ता नहीं
है , उससे ादा आपके ऊपर िगर पड़े , तो वह आपको हािन ही प ं चाता है , लाभ नहीं।

सू फी फकीरों म गङ् ढे म जाकर ान करने की ि या है , कुएं म जाकर ान करने की ि या है , नीचे जमीन म


उतरकर ान करने की ि या है । ले िकन इस ि या के िलए तभी आ ा दी जाती है , जब कोई े तम पवत
िशखर पर ान करने म समथ हो जाता है–तब। यह ों? यह तब आ ा दी जाती है , जब वह इस थित म
प ं च जाता है िक उसके आस-पास सब तरह की गलत तरं ग मौजू द रह, ले िकन वह अ भािवत रह सके, तब उसे
गङ् ढे म बै ठकर साधना करने की आ ा दी जाती है ।

कृ ने अजु न को दे खकर कहा है िक तू ऐसा आसन चु न, जो ब त नीचा न हो, ऊंचा न हो, ितरछा-आड़ा न हो। वहां
तू सरलता से शां त होने म सु गमता पाएगा।
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मृगचम की बात कही है । उसके भी कारण ह। और कारण ऐसे ह, जो आज ादा हो सके ह। इतने कृ
के समय म भी नहीं थे । तीित थी, तीित थी िक कुछ फक पड़ता है । ले िकन िकस कारण से पड़ता है , उसकी
वै ािनक थित का कोई बोध नहीं था।

सं ासी इस दे श म हजारों, लाखों वष से कहना चािहए, लकड़ी की खड़ाऊं का उपयोग करता रहा है , अकारण
नहीं। मृगचम का उपयोग करता रहा है, अकारण नहीं। िसं हचम का उपयोग करता रहा है, अकारण नहीं। लकड़ी के
त पर बै ठकर ान करता रहा है, अकारण नहीं। कुछ तीितयां खयाल म आनी शु हो गई थीं िक भे द पड़ता
है ।

जो चीज भी िवद् यु त के िलए नान-कंड व ह, वे सभी ान म सहयोगी होती ह। ले िकन अब इसके वै ािनक कारण
हो सके ह। आज िव ान कहता है िक िजन चीजों से भी िवद् यु त वािहत होती है , उन पर बै ठकर ान करना
खतरे से खाली नहीं है । ों? ोंिक जब आप गहरे ान म लीन होते ह, तो आपका शरीर एक ब त अनूठे प से
एक ब त नए तरह की अंतिवद् यु त पैदा करता है , एक इनर इले िसटी पैदा करता है । जब आप पूरे ान म होते
ह, तो आपके शरीर की बाडी इले िसटी सि य होती है ।

और सबके शरीर म िवद् यु त का बड़ा आगार है । हम सबके शरीर म िवद् यु त का बड़ा आगार है। उसी िवद् युत से हम
जीते ह, चलते ह, उठते ह, बै ठते ह। यह जो ास आप ले रहे ह, वह िसफ आपके शरीर की िवद् यु त को आ ीजन
प ं चाकर जीिवत रखती है, और कुछ नहीं करती। वह आ ीडाइजे शन करती है । आपको ितपल आपके शरीर की
िवद् यु त को चलाए रखने के िलए आ ीजन की ज रत है , इसिलए ास के िबना आप जी नहीं सकते । और शरीर
िवद् यु त का, कहना चािहए, एक जे नेरेटर है । वहां पूरे समय िवद् यु त पैदा हो रही है । इस िवद् युत को ान के समय म
कंजरवे शन िमलता है , सं र ण िमलता है ।

साधारणतः आप िवद् युत को फक रहे ह। मने इतना हाथ िहलाया, तो भी मने िवद् युत की एक मा ा हाथ से बाहर
फक दी। म एक श बोला, तो उस श को गित दे ने के िलए मेरे शरीर की िवद् यु त की एक मा ा िवन ई। रा े
पर आप चले, उठे , िहले, आपने कुछ भी िकया िक शरीर की िवद् युत की एक मा ा उपयोग म आई।

ले िकन ान म तो सब िहलन-डु लन बं द हो जाएगा। वाणी शांत होगी, िवचार शू होंगे, शरीर िन ं प होगा, िच
मौन होगा, इं ि यां िशिथल होकर िन य हो जाएं गी। तो वह जो चौबीस घं टे िवद् युत बाहर िफंकती है , वह सब कंजव
होगी, वह सब भीतर इक ी होगी।

अगर आप ऐसी जगह बै ठे ह, जहां से िवद् युत आपके शरीर के बाहर जा सके, तो आपको ठीक वै सा ही शॉक
अनुभव होगा, जै सा िबजली के तार को छूकर अनुभव होता है । और जो लोग ान म थोड़े गहरे गए ह, उनम से
अनेकों का यह अनुभव है । मेरे पास सै कड़ों लोग ह, िजनका यह अनुभव है िक अगर वे गलत जगह बै ठकर ान
िकए ह, तो उनको शॉक लगा है , उनको ध ा लगा है ।

जब आप िबजली का तार छूते ह, अगर लकड़ी की खड़ाऊं पहनकर छू ल, तो शॉक नहीं लगेगा। ों? शॉक िबजली
की वजह से नहीं लगता, िबजली के तार को छूने से नहीं लगता शॉक। शॉक लगता है, िबजली के तार से आपके
भीतर िबजली आ जाती है और झटके के साथ जमीन उसको खींच ले ती है । वह जो जमीन खींचती है झटके के साथ,
उसकी वजह से शॉक लगता है । अगर आप खड़ाऊं पहने खड़े ह, तो शॉक नहीं लगे गा। िबजली का तार आपने छू
िलया है । वह नहीं लगेगा इसिलए िक जमीन उसे झटके से खींच नहीं सकी और लकड़ी की खड़ाऊं ने िबजली को
वापस वतु ल बनाकर लौटा िदया।

शॉक लगता है वतुल के टू टने से, सिकट टू टने से शॉक लगता है । अगर िबजली एक वतुल बना ले , तो आपको कभी
ध ा नहीं लगता। और वतु ल बनाने का एक ही उपाय है िक आप नान-कंड र पर बैठे हों।
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मृगचम नान-कंड र है , िसं हचम नान-कंड र है । िबजली उसके पार नहीं जा सकती, वह िबजली को वापस
लौटाता है । लकड़ी नान-कंड र है , वह िबजली को वापस लौटा दे ती है । खड़ाऊं नान-कंड र है , वह िबजली को
वापस लौटा दे ती है ।

तो जो ान कर रहा है , उसके िलए खड़ाऊं उपयोगी है । जो ान कर रहा है , उसे लकड़ी के त पर बै ठना


उपयोगी है । जो ान कर रहा है , उसे मृगचम का उपयोग सहयोगी है ।

िफजूल लगे गा। अगर कबीर से पूछने जाएं गे, कृ मूित से, वे कहगे, बकवास है । ले िकन अगर वै ािनक से पूछने
जाएं गे, वह कहे गा, साथक है बात। और साथक है ।

एक घड़ी ऐसी आ जाती है , जहां िबलकुल बे कार है । ले िकन वह घड़ी अभी आ नहीं गई है । वह घड़ी आ जाए, तब
तक उपयोगी है । एक घड़ी ऐसी आ जाती है िक शरीर की िवद् यु त का अंतर-वतु ल िनिमत हो जाता है । और जो लोग
भी परम शां ित को उपल होते ह, उनके दय म अंतर-वतुल िनिमत हो जाता है । िवद् युत अंतर-वतु ल बना ले ती है ।
िफर वे जमीन पर बै ठ जाएं , तो उ कोई शॉक नहीं लगने वाला है ।

ले िकन वह घटना अभी आपको नहीं घट गई है । आपके भीतर कोई अंतर-वतु ल नहीं है , कोई इनर सिकट नहीं है ।
आपको तो अभी बा -वतुल पर िनभर रहना पड़े गा। वह मजबूरी है; उससे बचने का उपाय नहीं है; उससे पार होने
का उपाय है । जो बचने की कोिशश करे गा, िक इसे बाई-पास कर जाएं , वह िद त म पड़े गा। उसके पार हो जाना
ही उिचत है । ोंिक पार होकर ही पा ता िनिमत होती है ।

तो कृ कहते ह, ऐसी आसनी पर बै ठे, ऐसा आसन लगाए, ऐसी जमीन पर हो, ऊंचा न हो, नीचा न हो और तब, तब
इं ि यों को िसकोड़ ले ।

और इं ि यों को िसकोड़ना ऐसी थित म आसान होता है । बा िव और बाधाओं को िनषे ध करने की व था कर


ले ने पर इं ि यों को िसकोड़ ले ना आसान होता है ।

कभी आपने खयाल न िकया होगा, योग ने ऐसे आसन खोजे ह, जो आपकी इं ि यों को अंतमुखी करने म अदभु त प
से सहयोगी हो सकते ह। इस तरह की मु ाएं खोजी ह, जो आपकी इं ि यों को अंतमुखी करने म सहयोगी हो सकती
ह। बै ठने के ऐसे ढं ग खोजे ह, जो आपके शरीर के िवशे ष क ों पर दबाव डालते ह और उस दबाव का प रणाम
आपकी िवशे ष इं ि यों को िशिथल कर जाना होता है ।

अभी अमे रका म एक ब त बड़ा िवचारक और वै ािनक था, िथयोडर रे क। उसने मनु के शरीर के बाबत िजतनी
जानकारी की, कम लोगों ने की है । वह कहता था िक शरीर म ऐसे िबं दु ह मनु के, िजन िबं दुओं को दबाने से मनु
की वृ ि यों म बु िनयादी अंतर पड़ता है । और यह कोई योगी नहीं था रे क। रे क तो एक मनसिवद था। ायड के िश ों
म से, बड़े िश ों म से एक था। और उसने हजारों लोगों को सहायता प ंचाई। उसे कुछ पता नहीं था। काश, उसे
पता होता ित त और भारत म खोजे गए योगासनों का, तो उसकी समझ ब त गहरी हो जाती।

वह िबलकुल अंधेरे म टटोल रहा था; ले िकन उसने ठीक जगह टटोल ली। उसने कुछ थान शरीर म खोज िलए,
िजनको दबाने से प रणाम होते ह। जै से उसने दां तों के आस-पास ऐसी जगह खोज ली जबड़ों म, िजनम आदमी की
िहं सा सं गृहीत है । आपको खयाल म भी नहीं आ सकता। और अगर कोई आदमी ब त वायलट है , ब त िहं सक है, तो
िथयोडर रे क उसकी जो िचिक ा करे गा, वह ब त अनूठी है । वह यह है िक उसको िलटाकर वह िसफ उसके जबड़ों
के िवशे ष थानों को दबाएगा, इतने जोर से िक वह आदमी चीखे गा, िच ाएगा, मारने-पीटने लगे गा। और अ र यह
होता था िक िथयोडर रे क को उसके मरीज बु री तरह पीटकर जाते थे, मारकर जाते थे! ले िकन दू सरे िदन से ही उनम
अंतर होना शु हो जाता। उनकी िहं सा म जै से बु िनयादी फक हो गया।

रे क का कहना था, और कहना ठीक है , िक िहं सा का जो बु िनयादी क है, वे दांत ह–सम जानवरों म, आदिमयों म
भी। ोंिक आदमी िसफ एक जानवरों की ंखला म आगे आ गया जानवर है , उससे ादा नहीं।
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सम जानवर दांत से ही िहं सा करते ह। दां त या नाखून, बस दो ही िह े ह। आदमी ने िहं सा की ऐसी तरकीब खोज
ली ह, िजनम नाखून की भी ज रत नहीं है , दां त की भी ज रत नहीं है । ले िकन शरीर का जो मैकेिन है , शरीर
का जो यं है , उसे कुछ भी पता नहीं िक आपने छु री बना ली है। उसे कुछ भी पता नहीं िक आपने दां तों की जगह
औजार बना िलए ह, िजनसे आप आदमी को ादा सु िवधा से काट सकते ह। शरीर को कोई पता नहीं है । शरीर के
अंग तो, से ल तो, पुराने ढं ग से ही काम करते चले जाते ह।

इसिलए जब भी आप िहं सा से भरते ह, खयाल करना, आपके दां तों म कंपन शु हो जाता है। आपके दां तों म िवशे ष
िवद् यु त दौड़नी शु हो जाती है। दां त पीसने लगते ह। आप कहते ह, ोध म इतना आ गया िक दां त पीसने लगा।
दां त पीसने का ोध से ा लेना-दे ना! आप मजे से ोध म आइए, दांत मत पीिसए! ले िकन दां त पीसे िबना आप न
बच सकगे, ोंिक दां त म िवद् यु त दौड़नी शु हो गई।

ले िकन दां त का उपयोग स आदमी करता नहीं। कभी-कभी अस लोग कर ले ते ह िक ोध म आ जाएं , तो काट
ल आपको। स आदमी काटता नहीं। ले िकन दांतों को कुछ पता नहीं िक आप स हो गए ह। जब आप नहीं
काटते, तो दांतों म जो िवद् यु त पैदा हो गई, जो काटने से रलीज हो जाती, वह रलीज नहीं हो पाएगी। वह दां तों के
मसूढ़ों के आस-पास सं गृहीत होती चली जाएगी, उसके पाकेट् स बन जाएं गे ।

आदमी के दां तों की बीमा रयों म न े ितशत कारण दां तों के आस-पास बने िहं सा के पाकेट ह। इसिलए जानवरों के
दां त जै से थ ह! जरा कु े के दां त खोलकर दे ख ले ना, तो खुद शम आएगी िक न कभी दतौन करता, न कभी मंजन
करता, न कोई टु थपे का, िकसी माक के टु थपे का कोई उपयोग करता। ऐसी चमक, ऐसी रौनक, ऐसी सफेदी!
बात ा है ? बात गहरे म शारी रक कम और मनस से ादा जु ड़ी ई है ।

िहं सा के पाकेट् स कु े के दांत म नहीं ह। और अगर कु ों के दां तों म कभी िहं सा के पाकेट् स हो जाते ह, तो वे
खेलकर उसको रलीज कर लेते ह। आपने कु ों को दे खा होगा, खेलने म काटगे। काटते नही ं ह, िसफ भरगे मुंह,
छोड़ दगे । वे रलीज कर रहे ह। खेलकर िहं सा को मु कर लगे । तो जानवरों के दां त जै से थ ह, आदमी सपने म
भी नहीं सोच सकता िक उतने थ दांत पा जाए।

आपकी अंगुिलयों के आस-पास भी िहं सा के पाकेट् स इक े होते ह। वहां भी िहं सा है । वह भी हमने बं द कर दी है ।


अब हम अंगुिलयों से िकसी को चीरते-फाड़ते नहीं। कभी-कभी गु े म हो जाता है, िकसी का कपड़ा फाड़ दे ते ह,
नाखून चु भा दे ते ह, अलग बात है । ले िकन सामा तया, हम आमतौर से दू सरी चीजों का उपयोग करते ह,
स ीटयू ट। हमने बु िनयादी कृित की चीजों का उपयोग बं द कर िदया है । तो हमारी अंगुिलयों के आस-पास िहं सा
इक ी हो जाएगी।

आदमी की अंगुिलयों को दे खकर कहा जा सकता है िक उसके िच म िकतनी िहं सा है । उसकी अंगुिलयों के मोड़
बता दगे िक उसके भीतर िकतनी िहं सा है । ोंिक अंगुिलयां अकारण नहीं मुड़ती ह।

तो बु की अंगुिलयों का मोड़ अलग होगा। अलग होगा ही। कोई िहं सा भीतर नहीं है । हाथ एक फूल की तरह खल
जाएगा। अंगुिलयों के भीतर कोई पाकेट् स नहीं ह।

और ठीक ऐसे ही हमारे पूरे शरीर म पाकेट् स ह। ऐसे िबं दु ह, जहां ब त कुछ इक ा है । अगर उन िबं दुओं को दबाया
जा सके, उन िबं दुओं को मु िकया जा सके, तो भे द पड़े गा।

इस मु ने जो योगासन खोजे, िवशे ष प ितयां बै ठने की खोजीं…। अगर आपने बु या महावीर की मूित दे खी है,
करीब-करीब सभी ने दे खी होगी, गौर से नहीं दे खी होगी। उ ोंने भी गौर से नहीं दे खी, जो रोज महावीर को नम ार
करने मंिदर म जाते ह! ले िकन असली राज उस मूित की व था म िछपा आ है ।

अगर महावीर की मूित को गौर से दे खगे, तो आपको ा िदखाई पड़े गा िक महावीर का पूरा शरीर एक िवद् यु त
सिकट है । दोनों पैर जु ड़े ए ह। दोनों पैरों की गि यां घु टनों के पास जु ड़ी ई ह।
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िवद् यु त के रलीज के जो िबं दु ह, वह हमेशा नुकीली चीजों से िवद् युत बाहर िगरती है । गोल चीजों से कभी िवद् यु त
बाहर नहीं िगरती, िसफ नुकीली चीजों से िवद् यु त बाहर या ा करती है । िजतनी नुकीली चीज हो, उतनी ादा
िवद् यु त बाहर या ा करती है ।

जननि य से सवािधक िवद् यु त बाहर जाती है । और इसीिलए सं भोग के बाद आप इतने थके ए और इतने बे चैन और
उि हो गए होते ह। ोंिक आपका शरीर ब त-सी िवद् युत खो िदया होता है । सं भोग के बाद आपका ड- ेशर
ब त ादा बढ़ गया होता है । दय की धड़कन बढ़ गई होती है । आपकी नाड़ी की गित बढ़ गई होती है । और पीछे
िनपट थकान हाथ लगती है । उसका कारण? उसका कारण िसफ वीय का लन नहीं है । वीय के लन के साथ-
साथ जननि य ब त बड़ी मा ा म िवद् यु त को शरीर के बाहर फक रही है । उस िवद् युत के भी पाकेट् स ह।

इसिलए िस ासन या प ासन म जो बै ठने का ढं ग है, एिड़यां उन िबं दुओं को दबा दे ती ह, जहां से जननि य तक
िवद् यु त प ंचती है । और उसका प ं चना बं द हो जाता है । दोनों पैर शरीर के साथ जु ड़ जाते ह और दोनों पैर से जो
िवद् यु त िनकलती है , वह शरीर वापस ए ाब कर ले ता है , िफर पुनः अपने भीतर ले ले ता है । दोनों हाथ जु ड़े होते ह,
इसिलए दोनों हाथों की िवद् यु त बाहर नहीं िफंकती, एक हाथ से दू सरे हाथ म या ा कर जाती है। पूरा शरीर एक
सिकट म है ।

महावीर की या बु की मूित आप दे खगे, तो खयाल म आएगा िक पूरा शरीर एक िवद् युत च म है । इस बने ए
िवद् यु त वतुल के भीतर इं ि यों को िसकोड़ ले ना अ ं त आसान है । अ ं त आसान है , ब त सरल है ।

यह िवद् युत का जो वतु ल िनिमत हो जाता है , यह आपके और आपकी इं ि यों के बीच एक ोटे न, एक दीवाल बन
जाता है । आप अलग कट जाते ह, इं ि यां अलग पड़ी रह जाती ह।

ान रहे, िवद् यु त का ोत आपके भीतर है । इं ि यां केवल िवद् युत का उपयोग करती ह। और अगर बीच म वतु ल
बन जाए–जो िक िबलकुल एक वै ािनक ि या है , एक साइं िटिफक ोसे स है–बीच म वतुल बन जाए, तो इं ि यां
बाहर रह जाती ह, आप भीतर रह जाते ह। और आपके और इं ि यों के बीच म िवद् युत की एक दीवाल खड़ी हो जाती
है , िजसको पार नहीं िकया जा सकता। इस ण म अंतर-आकाश म या ा आसान हो जाती है । अित आसान हो जाती
है ।

इसिलए कृ मूित िकतना ही कह या कबीर िकतना ही कह, थोड़ी सावधानी से उनकी बात सु नना। उनकी बात खतरे
म ले जा सकती है । वे कह द, आसन से ा होगा? वे कह द िक इससे ा होगा, उससे ा होगा? मेथडॉलाजी से
ा होगा? अपनी तरफ से वे ठीक कह रहे ह। उनका अंतर-आकाश और उनकी अंतिवद् यु त की या ा शु हो गई
है । शायद उ पता भी नहीं हो।

कृ मूित के साथ तो िनि त ही यह बात है िक कृ मूित के साथ जो योग उनके बचपन म िकए गए, वे करीब-
करीब उनको बे होश करके िकए गए। इसिलए उनको कुछ भी पता नहीं है िक वे िकन योगों से गु जरे ह। कां शसली
उ कुछ भी पता नहीं है , सचे तन प से , िक वे िकन योगों से गु जरे ह; और जहां प ंचे ह, िकस माग से गु जरकर
प ं चे ह।

उनकी हालत करीब-करीब वै सी है , जै से हम िकसी आदमी को सोया आ उसके घर से उठा लाएं और बगीचे म
उसकी खाट रख द। और बगीचे म उसकी आं ख खुले और वह कहे िक ठीक। और कोई पूछे उससे िक बगीचे म
कैसे आऊं? तो वह कहे, कोई रा ा नहीं है; बस आ जाओ। कोई माग नहीं है, बस आ जाओ। जागो, और बगीचे म
पाओगे िक तु म हो। वे ठीक कह रहे ह। वे गलत नहीं कह रहे ह।

ले िकन कृ मूित को बगीचे म ले आने वाले कुछ लोग थे, एनीबीसट थी, लीडबीटर था। उन लोगों ने कृ मूित के
बचपन म, जब करीब-करीब कोई होश उनके पास नहीं था…। इसिलए कृ मूित को बचपन की कोई याद नहीं है,
बचपन की कोई याददा नहीं है । बचपन और उनके बीच म एक भारी बै रयर है, एक भारी दीवाल खड़ी हो गई है ।
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कृ मूित को अपनी मातृ भाषा का कोई भी रण नहीं है । य िप नौ साल का या दस साल का ब ा अपनी मातृ भाषा
को कभी नहीं भू लता। दस साल का ब ा अपनी मातृ भाषा काफी सीख चु का होता है –काफी, करीब-करीब पूरी।
ले िकन कृ मूित को उसकी कोई याददा नहीं है ।

कृ मूित के नाम से एक िकताब है , एट िद फीट आफ िद मा र– ी गु चरणों म। नाम उस पर कृ मूित का है ।


वह तब िलखी गई। ले िकन वे कहते ह िक मुझे कुछ याद नहीं, मने कब िलखी! वह उनसे िलखवाई गई। िसफ
मीिडयम की तरह उ ोंने उसम काम िकया। उ कुछ रण नहीं िक उ ोंने कब िलखी। वे यह भी नहीं कहते िक
म उसका ले खक ं या नहीं।

लीडबीटर, एनीबीसट और िथयोसािफ ों ने कृ मूित को ब त ही अचेतन माग से वहां प ं चाया, जहां प ंचकर,
जहां जागकर उ ोंने पाया िक िकसी माग की कोई ज रत नहीं है । ले िकन वे भी माग से प ं चे ह।

आज जब वे लोगों से कह दे ते ह, कोई माग नहीं है , कोई िविध, कोई व था नहीं है , तो सु नने वालों का इतना अिहत
हो जाता है िक िजसका िहसाब लगाना मु ल है ।

कृ मूित के स ों ने न मालू म िकतने लोगों को भयं कर हािनयां प ं चाई ह। और उसके कारण ह। उनका कोई कसू र
नहीं है । उ ोंने आं ख खोली और पाया िक वे बगीचे म ह। वे आपसे भी कहते ह, आं ख खोलो और पाओगे िक तु म
बगीचे म हो!

नहीं! कई बार ऐसा होता है िक अतीत ज ों म कोई साधक या ा कर चु का होता है, प रप हो गई होती है या ा।
जै से िन ानबे िड ी पर पानी खौल रहा हो गम। अभी भाप नहीं बना है , एक िड ी की कमी रह गई है । िपछले ज
से वह िन ानबे िड ी की हालत ले कर आया है । और इस ज म कुछ छोटी-सी घटना हो जाए िक एक िड ी गम
पूरी हो जाए िक वह भाप बनना शु हो जाए। और आप उससे कह िक म कैसे गम होऊं? तो वह कहे , कुछ खास
करने की ज रत नहीं है । जरा आकर धू प म, खुले आकाश म खड़े हो जाओ; भाप बन जाओगे । और आप जमे ए
बरफ के प र ह। आप खड़े हो जाना धू प म, कुछ न होगा। बरफ तो कुछ िसकुड़ा आ था, एक जगह म सीिमत था;
और पानी बनकर और फैल जाएं गे; ादा जमीन घे र लगे; और मुसीबत खड़ी हो जाएगी।

आपके िलए तो भयं कर आग की भि यां चािहए। एटािमक भि यां! तब, तब शायद आप भाप बन पाएं उतनी ही
ती ता से ।

इसिलए कई बार िपछले ज से आया आ साधक, अगर ब त या ा पूरी कर चु का है ; इं च, आधा इं च बाकी रह गया
है ; जरा-सा झटका, जरा-सी बात, कोई भी जरा-सी बात, जो हम लगे गा िक कैसे इससे हो सकता है …!

रं झाई ने कहा है , एक फकीर ने, जो िक जरा-सी बात से जाग गया। सोया है एक रात एक वृ के तले । पतझड़ के
िदन ह और वृ से पके प े नीचे िगर रहे ह। वह खड़ा होकर नाचने लगा और गां व-गां व कहता िफरा िक अगर िकसी
को भी ान चािहए हो, तो पतझड़ के समय म वृ के नीचे सो जाए। और जब पके प े नीचे िगरते ह, तो ान घिटत
हो जाता है!

उसे आ। पका प ा टू टते दे खकर उसके िलए सारी िजं दगी पके प े की तरह टू ट गई। मगर वह या ा कर चुका है
िन ानबे दशमलव नौ िड ी तक। नाइनटी नाइन ाइं ट नाइन िड ी पर वह जी रहा होगा। एक सू खा प ा िगरा और
सौ िड ी पूरी हो गई बात, वह भाप बनकर उड़ गया।

उसका कोई कसू र नहीं है िक वह लोगों से कहता है , ान चािहए? पतझड़ म सू खे वृ के नीचे बै ठ जाओ, ान
करो। जब सू खा प ा िगरे , मेिडटे ट आन इट; उस पर ान करो, ान हो जाएगा।
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िज ोंने सु ना, उ ोंने, कई ने पतझड़ के प ों के नीचे बै ठकर कोिशश की। ोंिक जब रं झाई जै सा आदमी कहता
है , तो ठीक ही कहता है । और रं झाई की आं ख गवाही दे ती ह िक वह ठीक कहता है । झूठ कहने का कोई कारण भी
तो नहीं है । उसका आनंद कहता है िक उसे घटना घटी है । और सारा गांव जानता है उसका िक पतझड़ म घटी है
और सू खे प े िगरते थे रात म, तब घटी है । सु बह हमने इसे नाचते ए पाया। सां झ उदास था, सु बह आनंद से भरा
था। रात कुछ आ है; ए ोजन आ है । झूठ तो कहता नहीं। वह आदमी गवाह है ; उसकी िजं दगी गवाह है ;
उसकी रोशनी, उसकी सु गंध गवाह है । ले िकन िफर अनेक लोगों ने प ों के नीचे रात-रात गु जारी; ब त ान िकया।
कुछ न आ। िसफ सू खे प े िगरते रहे! सु बह वे और उदास होकर घर लौट आए। रातभर की नींद और खराब हो
गई।

लोगों के थान ह उनकी या ाओं के।

कृ जो कह रहे ह, वह अजु न के िलए कह रहे ह। अजु न जहां खड़ा है वहां से–वहां से या ा शु करनी है ।

आसन उपयोगी होगा। थान, समय उपयोगी होगा। दोपहर म बै ठकर ान कर, ब त किठनाई हो जाएगी। कोई
कारण नहीं है । ोंिक दोपहर कोई ान का दु न नहीं है । ले िकन ब त किठनाई हो जाएगी।

सू य जब पूरा उ है और िसर के ऊपर आ जाता है , तब िसर को शांत करना ब त किठन है । सू य जब जाग रहा है
सु बह, बालक है अभी। अभी गम भी नहीं है उसम। और जब उसकी िकरण आप पर सीधी नहीं पड़ती ं, आड़ी पड़ती
ह; आपके शरीर के आर-पार जाती ह, िसर से नीचे की तरफ नहीं आतीं।

ठीक दोपहर म जब सू य िसर के ऊपर है , तब सू य की सारी िकरण आपके शीष से, िजसे सह ार कहते ह योगी,
उससे वे श करती ह और आपके से सटर तक चोट प ं चाती ह। उस व पूरी धारा आपके िसर से यौन क
तक बह रही है ।

और ान की या ा उलटी है । ान की या ा यौन क से सह ार की तरफ है । और सू य की िकरण दोपहर के ण


म सह ार से यौन क की तरफ आ रही ह। नदी जै से उलटी जा रही हो और आप उलटे तै र रहे हों, ऐसी तकलीफ
होगी। ऐसी तकलीफ होगी!

सु बह यह तकलीफ नहीं होगी। सू य की िकरण आर-पार जा रही ह आपके। आपको सू य की िकरणों से नहीं लड़ना
पड़े गा। सं ा भी यह तकलीफ नहीं होगी। िफर िकरण आर-पार जा रही ह। इसिलए ाथना का नाम ही धीरे -धीरे
सं ा हो गया। सं ा का मतलब ही इतना है , वह ण, जब सू य की िकरण आर-पार जा रही ह। चाहे सु बह हो, चाहे
सां झ हो, बीच का गै प–जब सू रज आपके ऊपर से सीधा भाव नहीं डालता।

ले िकन रात के बारह बजे, आधी रात फायदा हो सकता है । उसका उपयोग योिगयों ने िकया है , अधराि का। ोंिक
तब सू रज आपके ठीक नीचे प ं च गया। और सू रज की िकरण आपके यौन क से सह ार की तरफ जाने लगी ह।
िदखाई नहीं पड़ रही ह, पर अंत र म उनकी या ा जारी है । उस व नदी सीधी बह रही है । आप उसम बह जाएं ,
तो सरलता से तै र जाएं गे । तै रने की भी शायद ज रत न पड़े ; बह जाएं , ज ोट, और आप ऊपर की तरफ
िनकल जाएं गे ।

ले िकन दोपहर के ण म जब सू रज आपके ऊपर से नीचे की तरफ या ा कर रहा है , तब आप ोट न कर सकगे,


बह न सकगे । तै रना भी मु ल पड़े गा; ोंिक सू य की िकरण आपके जीवन का आधार ह! सू य जीवन है , उससे
लड़ना ब त मु ल मामला है ।

इसिलए सू य पर ाटक शु आ। वह अ ास है सू य से लड़ने का। वह आपके खयाल म नहीं होगा। ाटक करने
वाले के खयाल म भी नहीं होता; ोंिक िकताब म कहीं कोई पढ़ ले ता है और करना शु कर दे ता है ।
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सू य की िकरणों पर जो ाटक है , घं टों लं बा अ ास है खुली आं खों से, वह इस बात की चे ा है िक हम सू य की


िकरणों के िवपरीत लड़ने के िलए अपने को तै यार कर रहे ह! अगर िकसी ने ाटक का गहन अ ास िकया है , तो वह
ठीक दोपहर बारह बजे भी ान म ऊपर या ा कर सकता है ; ोंिक उसने सू य की िकरणों के साथ सीधा सं घष
करके तै रने की व था कर ली है । अ था नहीं।

तो अगर पूछ िक िकस समय ान कर? तो जो परम ानी है , वह कहे गा, समय का कोई सवाल नहीं है । ान तो
टाइमले सने स है । आप समय के बाहर चले जाएं गे । समय का कोई सवाल ही नहीं है । सु बह हो, िक दोपहर हो, िक
सां झ हो।

वह ठीक कह रहा है । ान की जो परम थित है, वह समय के बाहर है , कालातीत है । ले िकन ान का ारं भ समय
के भीतर है , इन िद टाइम। ान का अंत समय के बाहर है । ान का ारं भ समय के भीतर है । और जो समय की
व था को ठीक से न समझे, वह ान म थ की तकलीफ पाएगा, थ के क पाएगा। अकारण मुसीबत खड़ी
कर ले गा; थ ही अपने हारने का इं तजाम करे गा। जीतने की सु िवधाएं जो िमल सकती थीं, वह खो दे गा।

करीब-करीब ऐसा है, जै से िक नदी म नाव चलाते ह पाल बां धकर। जब हवाओं का ख एक तरफ होता है , तो या ा
करते ह। पाल को खुला छोड़ दे ते ह, िफर मां झी को, नािवक को पतवार नहीं चलानी पड़ती। हवाएं पाल म भर जाती
ह और नाव या ा करने लगती है ।

ान की नाव के भी ण ह, थितयां ह। जब हवाएं अनुकूल होती ह–और ान की हवाएं सू य की िकरण ह–जब


हवाएं अनुकूल होती ह, जब े िवटे शन अनुकूल होता है , जब तरं ग अनुकूल होती ह, जब चारों तरफ ठीक अनुकूल
थित होती है , तब पाल खुला छोड़ द; ब त कम म म या ा हो जाएगी।

और जब सब चीज ितकूल होती ह, तो िफर ब त मेहनत करनी पड़ती है । तब भी ज री नहीं है िक दू सरा िकनारा
िमल जाए। हवाएं ब त ते ज ह, नदी की धार ब त गाढ़ है । आप ब त कमजोर ह। ब त सं भावना तो यही है िक
थककर अपने िकनारे पर वापस लग जाएं । हाथ जोड़ ल िक यह अपने से न हो सकेगा।

यही होता है । ान म जो लोग भी लगते ह, ठीक व था न जानने से, राइट टयू िनंग न जानने से थ परे शान होते ह
और परे शान होकर िफर यह सोच ले ते ह िक शायद अपने भा म नहीं है , अपनी िनयित म नहीं है , अपने कम ठीक
नहीं ह, अपनी पा ता नहीं है । ऐसा अपने को समझाकर, वह जो दु िनया है थ की, उसम िफर वापस लौटकर लग
जाते ह, अपने िकनारे पर लग जाते ह।

ऐसा न हो, इसिलए कृ अजु न को ठीक ाथिमक बात कह रहे ह।

:
भगवान ी, इस ोक म दो और छोटी बात साफ कर, तो अ ा हो। पहली बात कुशा, मृगचम और व , यह म
िदया है , उपरोप र। और दू सरी बात, शु भू िम। इस पर कुछ कह।

कुश का ब त उपयोग ान के िलए िकया गया है, कई कारणों से । एक तो, िजन िदनों ान की ि या िवकिसत हो
रही थी इस पृ ी पर, िजन णों म ान का उदघाटन हो रहा था, आिव ार हो रहा था, उन णों से ब त सं बंध
कुश का है ।

हमारे पास श है उस समय का, कुशल। वह कुश से ही बना आ श है । आपने कभी सोचा न होगा िक हम एक
आदमी को कहते ह िक ब त कुशल डाइवर है ; कहते ह, ब त कुशल अ ापक है; ले िकन कुशल का मतलब
आपको पता है ।
101

कुशल का कुल मतलब इतना ही है, ठीक कुश को ढूंढ़ ले ने वाला। सभी घास कुश नहीं है । तो िजन िदनों ान इस
पृ ी पर बड़ा ापक था, िवशेषकर इस दे श म, और िजस िदन ान के ाथिमक चरण हमने उदघािटत िकए थे,
उस िदन कुशल उस आदमी को कहते थे, जो हजारों तरह की घास म से उस घास को खोज लाए, जो ान म
सहयोगी होती है , उस कुश को खोज लाए।

एक िवशे ष तरह की घास अपने साथ एक िवशे ष तरह का वातावरण, एक िवशे ष तरह की ताजगी ले आती है ।

हम अनुभव होता है कई बार िक कुछ चीजों की मौजू दगी कैटे िलिटक का काम करती है–कुछ चीजों की मौजू दगी।
आपने अपने चारों तरफ फूल रख िलए ह, आपने अपने चारों तरफ एक सु गंध िछड़क रखी है, आपने अपने चारों
तरफ धू प जला रखी है , तो आप एक िवशे ष मौजू दगी के भीतर िघर गए ह। इस मौजू दगी म कुछ बात सोचनी
मु ल, कुछ बात सोचनी आसान हो जाएं गी। जब चारों तरफ आपके सु गंध हो, तो दु गध के खयाल आने मु ल
हो जाएं गे ।

कुछ िवशे ष कार की घास, कुछ िवशे ष कार की धू प, जो िक ान के ही मा म से खोजी गई थी िक सहयोगी हो


सकती है । उसकी अपनी पूरी वै ािनक ि या है ।

लु कमान के जीवन म उ ेख है िक लु कमान पौधों के पास जाता, उनके पास आं ख बं द करके, ान करके बै ठ
जाता और उन पौधों से पूछता िक तु म िकस काम म आ सकते हो, मुझे बता दो! तु म िकस काम म आ सकते हो?
तु ारे प े िकस काम म आएं गे, िकस बीमारी के काम आएं गे? तु ारी जड़ िकस काम म आएगी? तु ारी छाल
िकस काम म आएगी?

कहानी अजीब-सी मालू म पड़ती है , ले िकन लु कमान ने लाखों पौधों के प े, जड़ों और उन सबका िववरण िदया है िक
वे िकस काम म आएं गे ।

असंभव मालू म पड़ता है िक पौधे बता द। ले िकन जब लु कमान की िकताब हाथ म लगी वै ािनकों के, तो किठनाई
यह ई िक दू सरी बात और भी असंभव है िक लु कमान के पास कोई योगशाला रही हो, िजसम लाखों पौधों की
करोड़ों कार की चीजों का वह पता लगा पाए। वह और भी असंभव है । ोंिक ले बोरे टरी मेथड् स तो अब िवकिसत
ए ह; और केिमकल एनािलिसस तो अब िवकिसत ई है , लु कमान के व म तो थी ही नहीं। ले िकन आपकी
केिमकल एनािलिसस, रासायिनक ि या से और रासायिनक िव ेषण से आप जो पता लगा पाते ह, वह गरीब
लु कमान ब त पहले अपनी िकताबों म िलख गया है, सु ुत अपनी िकताबों म िलख गया है , धनवं त र ने उसकी बात
कर दी है । और इनके पास कोई योगशाला नहीं थी, कोई योगशाला की िविधयां नहीं थीं। इनके पास जानने का
ज र कोई और िविध, कोई और मेथड था, कोई और उपाय था।

वह ान का उपाय है । ान के गहरे ण म आप िकसी भी व ु के साथ तादा थािपत कर सकते ह।

मनोवै ािनक उसे एक खास नाम दे ते ह, पािटिसपेशन िम ीक। एक ब त रह मय ढं ग से आप िकसी के साथ


एका हो सकते ह।

ान के ण म, गहरी शां ित और मौन के ण म, अगर आप गु लाब के फूल को सामने रख ल और इतने एका हो


जाएं िक उस गु लाब से पूछ सक िक बोल, तू िकस काम म आ सकता है ? तो गु लाब नहीं बोले गा, ले िकन आपके ाण
ही, आपकी अंत ा ही कहेगी, इस काम म।

तो कुशल उस को कहते थे, जो अनंत तरह की घासों के बीच से उस कुश घास को खोज लाता था, जो ान म
सहयोगी होने का वातावरण िनिमत करती है ।

इसिलए कृ ने कहा सबसे पहले, कुश।


102

व ! िवशे ष व । सभी व सहयोगी नहीं होते । िजन व ों म आपने भोजन िकया है , उ ीं व ों म ान करना
किठन होगा। िजन व ों म आपने सं भोग िकया है , उ ीं व ों म ान करना तो महा किठन होगा। िजस िब र पर
ले टकर आपने कामवासना के िवचार िकए ह, उसी िब र पर बै ठकर ान करना ब त मु ल होगा। ोंिक
े क वृ ि और े क वासना अपने चारों तरफ की चीजों को इनफे कर जाती है ।

ऐसे लोग आज भी पृ ी पर ह और ऐसी ि याएं भी ह िक मेरा माल उ दे िदया जाए, तो वे मेरे बाबत सब कुछ
बता दगे, हालां िक वे कुछ भी नहीं जानते िक म कौन ं और यह माल िकसका है । ोंिक यह माल मेरे साथ
रहकर मेरी सब तरह की सं वेदनाओं को, मेरी सब तरह की तरं गों को, मेरे सब तरह के भाव को आ सात कर
जाता है, पी जाता है ।

सू ती कपड़े ब त ती ता से पीते ह, रे शमी कपड़े ब त मु ल से पीते ह। रे शमी कपड़े ब त रे िस ट ह। इसिलए


ान के िलए रे शमी कपड़ों का ब त िदन उपयोग िकया जाता रहा है । वे िबलकुल रे िस ट न के बराबर ह। कम से
कम दू सरी चीजों के भावों को पीते ह, इं ेिसव नहीं ह, उन पर इं ेशन नहीं पड़ता। कम पड़ता है , िफसल जाता है ,
िबखर जाता है , टू ट जाता है ।

सू ती कपड़ा एकदम पी जाता है । तो सू ती कपड़े की खूबी भी है , खतरा भी है । अगर ान के व सू ती कपड़े का


उपयोग कर, तो वह ान को पी जाएगा। ले िकन िफर उसकी सु र ा करनी पड़े गी, उसको बचाना पड़े गा। ोंिक
वह दू सरे भावों को भी इसी तरह पी जाएगा। और चौबीस घं टे म तो ान का मु ल से कभी एक ण आएगा,
बाकी तो ण ब त होंगे; वह सब पी जाएगा।

इसिलए रे शमी कपड़े का उपयोग िकया जाता रहा। वह भावों को नहीं पीता है । और आपके चारों तरफ एक
िन भाव की धारा बना दे ता है । तम हों, कोरे हों, रे शमी हों।

और िफर िज ोंने पाया िक कपड़े का िकसी भी तरह उपयोग करो, कुछ न कुछ किठनाई होती है, तो महावीर ने
िदगंबर होकर योग िकया। उसके कारण थे । ऐसे ही न नहीं हो गए। ऐसा कोई िदमाग खराब नहीं था। कारण थे ।
कैसे ही कपड़े का उपयोग करो, कुछ न कुछ भाव सं िमत हो जाते ह। आप अगर अपने ान के कपड़े भी अलग
रख द, तो आप ही रखगे, आप ही उठाएं गे; कहीं तो रखगे । और अब हमारे घरों म ऐसी कोई जगह नहीं है , िजसे हम
सम भावों के बाहर रख सक।

अगर आप अपने घर म एक छोटा-सा कोना सम भावों के बाहर रख सकते ह, तो वह मंिदर हो गया। मंिदर का
उतना ही मतलब है । गांव म अगर एक घर आप ऐसा रख सकते ह, जो सम भावों के बाहर है , तो वह मंिदर है ।
मंिदर का उतना ही अथ है । ले िकन कुछ भी अब बाहर रखना ब त मु ल है । एक कोना…।

इसिलए वे कह रहे ह, शु थान।

शु थान से मतलब है , अ भािवत थान। जो जीवन की िन तर वासनाएं ह, उनसे िबलकुल अ भािवत थान। और
इस तरह के अ भािवत थान का प रणाम गहरा है । और वह घर ब त गरीब है , चाहे वह िकतना ही अमीर का घर
हो, िजस घर म ऐसी थोड़ी-सी जगह नहीं, िजसे शु कहा जा सके। िकस जगह को शु कह?

िजस जगह बै ठकर आपने कभी कोई दु चार नहीं सोचा; िजस जगह बै ठकर आपने कोई दु म नहीं िकया; िजस
जगह बै ठकर आपने िसवाय परमा ा के रण के और कुछ भी नहीं िकया; िजस जगह बै ठकर आपने ान, ाथना,
पूजा के और कुछ भी नहीं िकया; िजस जगह वे श करने के पहले आप अपनी सारी ु ताओं को बाहर छोड़ गए–
ऐसा एक छोटा-सा कोना!

और िनि त ही ऐसा कोना िनिमत हो जाता है । और अगर इस कोने पर सै कड़ों लोगों ने योग िकया हो, तो वह धीरे -
धीरे घनीभू त होता चला जाता है , ि लाइज हो जाता है । वह आपकी इस दु िनया के बीच एक अलग दु िनया बस
103

जाती है । वह एक अलग कोना हो जाता है । िजसके भीतर वेश करते से ही प रणाम शु हो जाएं गे । िजसके भीतर
कोई अजनबी आदमी भी आएगा, तो प रणाम शु हो जाएं गे।

कई बार आपको अनुभव म आया होगा, इससे उलटा आया होगा, ले िकन बात तो समझ म आ जाएगी। कई बार
आपको अनुभव म आया होगा, िकसी घर म वेश करते, िकसी थान पर बै ठते, मन ब त दु चारों से भर जाता है ।
िकसी के पास जाते, मन ब त दु म की वासनाओं से भर जाता है । इससे उलटा ब त कम खयाल म आया
होगा। ोंिक इससे उलटे आदमी ब त कम ह, इससे उलटी जगह ब त कम ह िक िकसी के पास जाकर मन
उड़ान ले ने लगता है आकाश की, जमीन को छोड़ दे ता है । ु से हट जाता है , िवराट की या ा करने लगता है –िकसी
के पास।

इस तरह िकसी के पास होने का पुराना नाम स ंग था। स ं ग का मतलब िकसी को सु नना नहीं था। स ं ग का
मतलब कोई ा ान नहीं था। स ं ग का मतलब, सि िध; ऐसे की सि िध, जहां प ं चकर आपकी अंतया ा
को सु गमता िमलती है ।

इसिलए इस मु म दशन का बड़ा मू हो गया। पि म के लोग ब त है रान होते ह िक दशन से ा होगा? िकसी
के पास जाकर आप नम ार कर आए, उससे ा होगा? पि म के लोगों को पता नहीं िक कोई गहरा वै ािनक
कारण दशन के पीछे है ।

अगर िकसी पिव के पास जाकर आप दो ण खड़े भी ए ह, दो ण िसर भी झुकाया है , तो प रणाम होगा।

िसर झुकाने का भी िव ान तो है ही। ोंिक जै से ही आप िसर झुकाते ह, उस पिव की तरं ग आप म वे श


करने के िलए सु िवधा पाती ह, आप रसे ि व होते ह। िकसी के चरणों म िसर रखने का कुल कारण इतना था िक आप
अपने को पूरा का पूरा सरडर करते ह उसकी िकरणों के िलए, उसके रे िडएशन के िलए, वह आप म वेश कर जाए।
एक ण का भी वै सा श, एक आं त रक ान करा जाता है ।

तो शु थान के िलए कृ कह रहे ह। शु थान हो, ऐसी व ु एं आस-पास मौजू द हों, जो ान म या ा करवाती
ह। इस तरह की ब त-सी चीज खोज ली जा सकीं। ऐसी सु गंध खोज ली गईं, जो ान म सहयोगी हो जाती ह। ऐसी
व ु एं खोज ली गईं, जो ान म सहयोगी हो जाती ह। ऐसे चा आ े ् स खोज िलए गए, जो ान म सहयोगी हो
जाते ह।

आज भी, आज भी बचाने की कोिशश चलती है , ले िकन पता नहीं रहता। पता नहीं है , इसिलए बचाना ब त मु ल
होता जा रहा है । आज भी कोिशश चलती है अंधेरे म टटोलती ई, ले िकन उसके साइं िटिफक, उसके वै ािनक
कारण खो जाने की वजह से जो बचाने की कोिशश म लगा है , वह बु हीन मालू म पड़ता है । जो तोड़ने की कोिशश
म लगा है , बु मान मालू म पड़ता है ।

और उस को ब त किठनाई हो जाती है , जो जानता है िक ब त-सी चीज तोड़ दे ने जै सी ह, ोंिक उनके पीछे


कोई वै ािनक कारण नहीं, वे िसफ समय की धारा म जु ड़ गई ह। और ब त-सी चीज बचा लेने जै सी ह, ोंिक
उनके पीछे कोई वै ािनक कारण ह। य िप समय की धारा म वै ािनक कारण भू ल गए ह और खो गए ह।

यह बा प र थित का िनमाण करना है एक मनः थित के ज ाने के िलए। और िनि त ही बाहर की प र थित म
सहारे खोजे जा सकते ह, ोंिक बाहर की प र थित म िवरोध और अड़चन भी होती है ।

समं कायिशरो ीवं धारय चलं थरः।


सं े नािसका ं ं िदश ानवलोकयन्।। 13।।
शा ा ा िवगतभी चा र ते थतः।
मनः संय म ो यु आसीत म रः।। 14।।
104

उसकी िविध इस कार है िक काया, िसर और ीवा को समान और अचल धारण िकए ए ढ़ होकर, अपने नािसका
के अ भाग को दे खकर, अ िदशाओं को न दे खता आ और चय के त म थत रहता आ, भयरिहत तथा
अ ी कार शां त अंतःकरण वाला और सावधान होकर मन को वश म करके, मेरे म लगे ए िच वाला और मेरे
परायण आ थत होवे।

उस िविध के और अगले कदम।

एक, शरीर िबलकुल सीधा हो, े ट, जमीन से न े का कोण बनाए। वह जो आपकी रीढ़ है , वह जमीन से न े का
कोण बनाए, तो िसर सीध म आ जाएगा। और जब आपकी बै क बोन, आपकी रीढ़ जमीन से न े का कोण बनाती है
और िबलकुल े ट होती है , तो आप करीब-करीब पृ ी के गु ाकषण के बाहर हो जाते ह–करीब-करीब,
ए ो मेटली। और पृ ी के गु ाकषण के बाहर हो जाना ऊ गमन के िलए माग बन जाता है, एक।

दू सरी बात, ि नासा हो। पलक झुक जाएगी, अगर नासा ि करनी है । नाक का अ भाग दे खना है , तो पूरी
आं ख खोले रखने की ज रत न रह जाएगी। आं ख झुक जाएगी। अगर आप बै ठे ह, तो मु ल से दो फीट जमीन
आपको िदखाई पड़े गी। अगर खड़े ह, तो चार फीट िदखाई पड़े गी। ले िकन वह भी ठीक से िदखाई नहीं पड़े गी और
धुं धली हो जाएगी, धीमी हो जाएगी। दो कारण ह।

एक, अगर ब त दे र तक नासा ि रखी जाए, तो पूरा सं सार आपको, आपके चारों तरफ फैला आ सं सार,
वा िवक कम, वत ादा तीत होगा। जो िक ब त गहरा उपयोग है । अगर आप ऐसी अधखुली आं ख रखकर
नासा दे खगे, तो चारों तरफ जो जगत आपको ब त वा िवक, ठोस मालू म पड़ता है , वह वत तीत होगा।

इस जगत के ठोसवत तीत होने म आपके दे खने का ढं ग ही कारण है । इसिलए िजसे ान म जाना है, उसे जगत
वा िवक न मालू म पड़े , तो अंतया ा आसान होगी। जगत धुं धला और डीमलड मालू म पड़ने लगे गा।

कभी दे खना आप, बै ठकर िसफ नासा ि रखकर, तो बाहर की चीज धीरे -धीरे धुं धली होकर वत हो जाएं गी।
उनका ठोसपन कम हो जाएगा, उनकी वा िवकता ीण हो जाएगी। उनका यथाथ िछन जाएगा, और ऐसा लगे गा
जै से कोई एक बड़ा चारों तरफ चल रहा है ।

यह एक कारण, बाहरी। ब त कीमती है । ोंिक सं सार मालू म पड़ने लगे, तो ही परमा ा स मालू म पड़
सकता है । जब तक सं सार स मालू म पड़ता है, तब तक परमा ा स मालू म नहीं पड़ सकता। इस जगत म दो
स ों के होने का उपाय नहीं है । इसम एक तरफ से स टू टे , तो दू सरी तरफ स का बोध होगा।

आपसे आं ख बं द कर ले ने को कहा जा सकता था। ले िकन आं ख बं द कर ले ने से सं सार वत मालू म नहीं पड़े गा।
ब डर यह है िक आं ख बं द हो जाए, तो आप भीतर सपने दे खने लगगे, जो िक स मालू म पड़। अगर आं ख पूरी
बं द है , तो डर यह है िक आप रे वरी म चले जाएं गे, आप िदवा म चले जाएं गे ।

पि म म एक िवचारक है , रान बाड। वह ान को भू ल से िदवा से एक समझ बै ठा। आं ख बं द करके म


खो जाने को ान समझ बै ठा। जानकर भारत म–आं ख न तो पूरी खुली रहे , ोंिक पूरी खुली रही तो बाहर की
दु िनया ब त यथाथ है ; न पूरी बं द हो जाए, नहीं तो भीतर के ों की दु िनया ब त यथाथ हो जाएगी। दोनों के बीच म
छोड़ दे ना है । वह भी एक सं तुलन है , वह भी एक समता है , वह भी दो ं ों के बीच म एक ठहराव है । न खुली पूरी, न
बं द पूरी–अधखुली, नीमखुली, आधी खुली।

वह जो आधी खुली आं ख है , उसका बड़ा राज है । भीतर आधी खुली आं ख से सपने पैदा करना मु ल है और बाहर
की दु िनया को यथाथ मानना मु ल है । जै से कोई अपने मकान की दे हलीज पर खड़ा हो गया; न अभी भीतर गया,
न अभी बाहर गया, बीच म ठहर गया।
105

और जब आं ख नासा होती है , जब ि नासा होती है, तो आपको एक और अदभुत अनुभव होगा, जो उसका
दू सरा िह ा है । जब ि नासा होगी, तो आपको आ ा च पर जोर पड़ता आ मालू म पड़े गा। दोनों आं खों के
म म, दोनों आं खों के म िबं दु पर, इ फेिटकली, आपको जोर पड़ता आ मालू म पड़े गा। जब आं ख आधी खुली
होगी और आप नासा दे ख रहे होंगे, तो नासा तो आप दे खगे, ले िकन नासां त पर जोर पड़े गा। दे खगे नाक के अ
भाग को और नाक के अंितम भाग, पीछे के भाग पर जोर पड़ना शु होगा। वह जोर बड़े कीमत का है । ोंिक वहीं
वह िबं दु है , वह ार है, जो खुले तो ऊ गमन शु होता है ।

आ ा च के नीचे सं सार है, अगर हम च ों की भाषा म समझ। आ ा च के ऊपर परमा ा है , आ ा च के नीचे


सं सार है । अगर हम च ों से िवभाजन कर, तो आ ा च के नीचे, दोनों आं खों के म िबं दु के नीचे जो शरीर की
दु िनया है , वह सं सार से जु ड़ी है । और आ ा च के ऊपर का जो म का भाग है , वह परमा ा से जु ड़ा है । उस
पर जोर पड़ने से–वह जोर पड़ना एक तरह की चाबी है , िजससे बं द ार खोलने के िलए चे ा की जा रही है । वह
सी े ट लाक है । कह िक उसको खोलने की कुंजी यह है । जै सा िक आपने कई ताले दे खे होंगे, िजनकी चाबी नहीं
होती, नंबर होते ह। नंबर का एक खास जोड़ िबठा द, तो ताला खुल जाएगा। नंबर का खास जोड़ न िबठा पाएं , तो
ताला नहीं खुलेगा।

यह जो आ ा च है, इसके खोलने की एक सी े ट की है , एक गु कुंजी है । और वह गु कुंजी यह है िक जो


श , जो िवद् यु त हमारी आं खों से बाहर जाती है , उसी िवद् युत को एक िवशे ष कोण पर रोक दे ने से उस िवद् युत का
िपछला िह ा आ ा च पर चोट करने लगता है । वह चोट उस दरवाजे को धीरे -धीरे खोल दे ती है । वह दरवाजा खुल
जाए, तो आप एक दू सरी दु िनया म, ठीक दू सरी दु िनया म छलां ग लगा जाते ह। नीचे की दु िनया बं द हो गई।

इसम तीसरी बात कृ ने कही है , चय त म ठहरा आ।

ान के इस ण म जब आधी आं ख खुली हो, नासा हो ि और आ ा च पर चोट पड़ रही हो, अगर आपके


िच म जरा भी कामवासना का िवचार आ गया, तो वह जो ार खोलने की कोिशश चल रही थी, वह समा हो गई;
और आपकी सम जीवन ऊजा नीचे की तरफ बह जाएगी। ोंिक जीवन ऊजा उसी क की तरफ बहती है ,
िजसका रण आ जाता है ।

कभी आपने सोचा है िक जै से ही कामवासना का िवचार आता है , जननि य के पास का क फौरन सि य हो जाता
है । िवचार तो खोपड़ी म चलता है , ले िकन क जननि य के पास, से सटर के पास सि य हो जाता है । ब कई
दफा तो ऐसा होता है िक आपको भीतर कामवासना का िवचार चल रहा है, इसका पता ही तब चलता है , जब से
सटर सि य हो जाता है । वह पीछे धीरे -धीरे सरकता रहता है । ले िकन िवचार तो म म चलता है और क ब त
दू र है, वह सि य हो जाता है ! उसकी भी कुंजी है वही। अगर िवचार कामवासना का चले गा, तो आपकी जीवन ऊजा
कामवासना के क की तरफ वािहत हो जाएगी।

ान के ण म अगर कामवासना का िवचार चला, तो आप ऊपर तो या ा कम करगे, ब इतनी नीचे की या ा


कर जाएं गे, िजतनी आपने कभी भी न की होगी। इसिलए सचे त िकया है । साधारणतः भी आप कामवासना म इतने
नीचे नहीं जा सकते, िजतना आधी आं ख खुली हो, नासा हो ि और उस व अगर काम-िवचार चल जाए, तो
आप इतनी ती ता से कामवासना म िगरगे, िजसका िहसाब नहीं।

इसिलए ब त लोगों को ान की ि या शु करने पर कामवासना के बढ़ने का अनुभव होता है । उसका कारण है ।


ब त लोगों को…न मालू म िकतने लोग मुझे आकर कहते ह िक यह ा उलटा आ? हमने ान शु िकया है , तो
कामवासना और ादा मालू म पड़ती है ! उसके ादा मालू म पड़ने का कारण है ।

अगर ान के ण म कामवासना पकड़ गई, तो कामवासना को ान की जो ऊजा पैदा हो रही है , वह भी िमल


जाएगी। इसिलए चय त म िथर होकर। उस ण तो कम से कम कोई काम-िवचार न चलता हो।
106

तो अगर आपको चलाना ही हो, तो एक सरल तरकीब आपको कहता ं । ान करने के पहले घं टेभर काम-िचंतन
कर ल। प ा ही कर ल िक परमा ा को रण करने के पहले घं टेभर बैठकर काम का िचं तन करगे, यौन-िचं तन
करगे ।

और यह बड़े मजे की बात है िक अगर कां शसली यौन-िचंतन कर, तो घं टाभर ब त दू र है, पांच िमनट करना मु ल
हो जाएगा–चे तन होकर अगर कर, सावधानी से अगर कर।

काम-िचं तन की एक दू सरी कुंजी है िक वह अचे तन चलता है , चेतन नहीं। अगर आप होशपू वक करगे, तो आप खुद
ही अपने पर हं सगे िक यह म ा- ा मूढ़ता की बात सोच रहा ं! वह तो बे होशी म सोच, तभी ठीक है । होश म
सोचगे, तो कहगे, ा मूढ़ता की बात सोच रहा ं !

इसिलए कामुक को शराब बड़ी सहयोगी हो जाती है । उन यों को, िजनकी काम-श ीण हो गई हो,
उनको भी शराब बड़ी सहयोगी हो जाती है । ोंिक वे िफर बे होशी से इतने भर जाते ह िक िफर काम-िचं तन म लीन
हो पाते ह।

तो ान करने के पहले अगर आप घं टेभर आं ख बं द कर ल। आधी आं ख नहीं, आं ख बं द कर ल। और सचे त प से


मेिडटे ट आन से –सचे त प से, अचेत प से नहीं–जानकर ही िक अब म कामवासना पर िचं तन शु करता ं ।
और शु कर। पां च िमनट से ादा आप न कर पाएं गे । और जै से ही आप पाएं िक अब करना मु ल आ जा रहा
है , अब कर ही नहीं सकता, तब ान म वेश कर। तो शायद पं ह िमनट, आधा घं टा आपके िच म कोई काम का
िवचार नहीं होगा। ोंिक अजुन कोई चारी नहीं है । पूण चारी हो, तब तो यह कोई सवाल नहीं उठता। तब तो
चय की याद िदलाने की भी ज रत नहीं है ।

एक ब त मजे की घटना आपसे क ं ।

महावीर के पहले जै नों के ते ईस तीथकरों ने चय की कभी बात नहीं की, नेवर। महावीर के पहले ते ईस तीथकरों ने
जै नों के कभी नहीं कहा, चय। वे चार धम की बात करते थे–अिहं सा, स , अप र ह, अचौय। इसिलए पा नाथ
तक के धम का नाम चतु याम धम है ।

महावीर को चय जोड़ना पड़ा, पां च महा त बनाने पड़े ; एक और जोड़ना पड़ा। जो लोग खोज-बीन करते ह
इितहास की, उ बड़ी है रानी होती है िक ा महावीर को चय का खयाल आया! बाकी ते ईस तीथकरों ने ों
चय की बात नहीं की?

ये ते ईस तीथकर िजन लोगों से बात कर रहे थे, वे िन ात चारी थे । ये उपदे श िजनको िदए गए थे, उनके िलए
चय सहज था। यह लोक-चचा नहीं थी। यह आम जनता से कही गई बात नहीं थी, जो िक चारी नहीं ह।

महावीर ने पहली दफा तीथकरों के आक मैसेज को, जो ब त गु मैसेज थी, ब त िछपी मैसेज थी, जो िक ब त
गु राज था और केवल िन ात साधकों को िदया जाता था, उसको मासेस का बनाया। और इसीिलए दू सरी घटना
घटी िक ते ईस तीथकर फीके पड़ गए और ऐसा लगने लगा िक महावीर जै न धम के थापक ह। ोंिक वे पहले,
पहले पापुलाइजर ह, पापुलाइज करने वाले ह, लोकि य करने वाले पहले ह। पहली दफा जनता म उ ोंने वह
बात कही, जो िक सदा थोड़े साधकों के बीच, थोड़े गहन साधकों के बीच कही गई थी। इसिलए ते ईस तीथकरों को
चय की कोई बात नहीं करनी पड़ी। महावीर को ब त जोर से करनी पड़ी। सबसे ादा जोर चय पर दे ना
पड़ा, ोंिक अ चा रयों के बीच चचा की जा रही थी।

कृ जब अजु न से कह रहे ह िक चय त म ठहरा आ! इसका यह मतलब नहीं है िक चारी, इसका इतना


ही मतलब है िक ान के ण म चय त म ठहरा आ।
107

हां, यह बड़े मजे की बात है िक अगर कोई ान के ण म चय म ठहर जाए, णभर को भी ठहर जाए, तो िफर
अ चय म जाना रोज-रोज मु ल हो जाएगा। ोंिक जब एक दफे ऊजा ऊपर चढ़ जाए, तो इतना आनंद लाती
है , िजतना नीचे से म िगराई गई ऊजा म सपने म भी नहीं िमल सकता है । सोचने म भी नहीं िमल सकता है । उससे
कोई तु लना ही नहीं की जा सकती है । एक बार यह ऊपर का अनुभव हो जाए, तो ऊजा नीचे जाने की या ा बं द कर
दे गी।

इसिलए तीन बात कहीं। िथर आसन म, सीधी रीढ़ के साथ बै ठा आ, अधखुली आं ख, नासा ि , आ ा च पर
पड़ती रहे चोट, चय त म ठहरा आ, तो ऐसा , कृ कहते ह, मुझे उपल हो जाता है , मुझम वेश कर
जाता है, मुझसे एक हो जाता है। और जब भी कृ कहते ह मुझसे, तब वे कहते ह परमा ा से ।

अजु न से वे कह सके सीधी-सीधी बात, मुझसे । ोंिक िजसने जाना परमा ा को, वह परमा ा हो गया। इसम कोई
अ ता की घोषणा नहीं है िक कृ कह रहे ह, म परमा ा ं । इसम सीधे त का उदघोषण है । वे ह; ह ही। और
जो भी जान ले ता है परमा ा को, वह परमा ा ही है । वह कहने का हकदार है िक कहे िक मुझम। ले िकन वहां म
जै सी कोई चीज बची नहीं है , तभी वह हकदार है । िजसका म समा आ, वह कह सकता है, म परमा ा ं ।

कृ कहते ह, वह मुझे जान लेता है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


अप र ही िच —(अ ाय—6) वचन—सातवां

यु ेवं सदा ानं योगी िनयतमानसः।


शा ं िनवाणपरमां म ं थामिधग ित।। 15।।
इस कार आ ा को िनरं तर परमे र के प म लगाता आ, ाधीन मन वाला योगी मेरे म थत प परमानंद
पराका ा वाली शां ित को ा होता है ।

िनरं तर परमा ा म चे तना को लगाता आ योगी!

सु बह िजन सू ों पर हमने बात की है, उ ीं सू ों की िन ि के प म यह सू है । समझने जै सी बात इसम िनरं तर


है । िनरं तर श को समझ ले ने जै सा है । िनरं तर का अथ है , एक भी ण वधान न हो।

िनरं तर का अथ है, एक भी ण िव रण न हो। जागते ही नहीं, िन ा म भी भीतर एक अंतर-धारा भु की ओर बहती


ही रहे–सतत, कंिट ूड, जरा भी वधान न हो–तो िनरं तर ान आ, तो िनरं तर रण आ।

जै से ास चलती है । चाहे काम करते हों, तो चलती है ; चाहे िव ाम करते हों, तो चलती है । याद रख, तो चलती है ; न
याद रख, तो भी चलती है । जागते रह, तो चलती है; सो जाएं , तो भी चलती रहती है । ास की भां ित ही जब भु की
ओर रण, भु की ास, भु की लगन भीतर चलने लगे, तो अथ होगा पूरा िनरं तर का; तो िनरं तर का अथ खयाल
म आएगा।

ले िकन हम तो एक ण भी भु को रण करना किठन है । िनरं तर तो असंभव मालू म होगा। एक ण भी जब रण


करते ह, तब भी ाणों की कोई अकुलाहट भीतर नहीं होती। एक ण भी जब रण करते ह, तब भी ाणों की
प रपूणता उसम सं ल नहीं होती। एक ण भी जब पुकारते ह, तो ऐसे ही ऊपर से, सतह से पुकारते ह। वह ाणों
की अंतर-गहराइयों तक उसका कोई भाव, कोई सं श नहीं होता।
108

और कृ तो कहते ह िक ऐसा िनरं तर भु की ओर बहता आ ही मुझे उपल होता है , भु को उपल


होता है , भु म ित ा पाता है । तो इसका तो यह अथ आ िक शे ष सब जन िनराश हो जाएं । एक ण भी नहीं हो
पाती है पुकार, तो िनरं तर तो कैसे हो पाएगी! साफ है, सीधी बात है िक सब िनराश हो जाएं । और जो भी िनरं तर के
इस अथ को समझगे , ाथिमक प से िनराशा अनुभव होगी, िक िफर हमारे िलए कोई ार नहीं, माग नहीं।

नहीं; ले िकन िनराश होने का कोई भी कारण नहीं है । इससे केवल इतना ही िस होता है िक हम रण की ि या
ही ात नहीं है । इससे कुछ और िस नहीं होता। और यह आपसे क ं िक जो एक ण भी ठीक से रण
कर ले, उसकी िनरं तर की रण- व था अपने आप िनयत और िनि त हो जाती है । ों? ोंिक हमारे हाथ म
एक ण से ादा कभी भी होता नहीं। कोई उपाय नहीं िक दो ण हमारे हाथ म एक साथ हो जाएं । एक ही ण
होता है हमारे हाथ म। जब भी होता है , एक ही ण होता है । एक जब र हो जाता है , तब दू सरा हाथ म आता है ।
एक जब जा चुका होता है , तब दू सरे का आगमन होता है । ले िकन हमारे हाथ म जब भी होता है , एक ही ण होता है ।
इससे ादा ण हमारे पास नहीं होते।

इसिलए अगर एक ण म भी भु- रण की ि या म वेश हो जाए, तो िनरं तर म वेश होने म कोई भी बाधा नहीं
है । ोंिक एक ण म जो वेश को जान गया, वह हर ण म उस वे श को उपल हो सकेगा। और एक ही ण
हमारे पास होता है । इसिलए ब त अड़चन नहीं है । कुंजी पास नहीं है , यही अड़चन है ।

िनरं तर रण करने का एक ही अथ है िक िजसे ण म भी रण करने की मता आ गई, वह िनरं तर रण करने


की पा ता पा ही जाता है । ले िकन ण म भी रण की पा ता नहीं है ।

और ई र को हम अ र उधार ले कर जीते ह। यह श भी हमने िकसी से सु न िलया होता है । यह ितमा भी हमने


िकसी से सीख ली होती है । यह परमा ा का प, ल ण भी हमने िकसी से सीख िलया होता है । सब उधार है । यह
हमारे ाणों का आथिटक, ामािणक कोई अनुभव नहीं होता है पीछे । यह कहीं हमारे ाणों की अपनी तीित और
सा ात नहीं होता है । इसीिलए ण म भी पूरा नहीं हो पाता, सतत और िनरं तर तो पूरे होने का कोई सवाल नहीं है ।

इसिलए पहले सू म कृ ने कहा है िक जो अंतर-गुफा म वे श कर जाए, एकांत को उपल हो जाए। और उसम


एक श छूट गया, मुझे अभी याद िदलाया िक जो अप र ह िच का हो। उसकी म कल बात नहीं कर पाया, उसकी
भी थोड़ी आपसे बात कर लूं ।

एकां त का मने अथ आपको कहा। िजसके भीतर भीड़ न रह जाए। िजसके भीतर दू सरे के ितिबं बों का आकषण न
रह जाए। िजसके भीतर दू सरों के ितिबं ब जै से आईने से हमने धू ल साफ कर दी हो, ऐसे साफ कर िदए गए हों। ऐसा
एकां त िजसके मन म हो, वह अंतर-गु हा म वे श कर जाता है ।

एक श और कृ ने कहा है, अप र ही िच वाला, अप र ही िच ।

ा अथ होता है अप र ह का? सीधा-सादा अथ श कोश म जो िलखा होता है , वह यह है िक जो व ु ओ ं का सं ह


न करे । ले िकन कृ का यह अथ नहीं हो सकता। नहीं हो सकता इसिलए िक कृ , जीवन और सं सार को
छोड़ जाए, इसके प म नहीं ह। अगर सारी व ुओं को छोड़ दे , तो सं सार और जीवन छूट ही जाता है । कृ इस
प म भी नहीं ह िक कम को छोड़कर चला जाए। अगर सारी व ु ओं को कोई छोड़कर चला जाए, तो कम भी अपने
आप छूट जाता है । तो कृ का अथ अप र ह से कुछ और होगा।

कृ का अथ है अप र ही िच से, ऐसा िच जो व ु ओं का उपयोग तो करता है , ले िकन व ु ओ ं को अपनी


मालिकयत नहीं दे दे ता है । जो व ुओं का उपयोग तो करता है , ले िकन व ु ओं का मािलक ही बना रहता है । कोई
व ु उसकी मािलक नहीं हो जाती। व ु ओं का उपयोग करता है , ले िकन व ु ओ ं के साथ कोई राग का, कोई
आस का सं बंध िनिमत नहीं करता।
109

ऐसा समझ िक जै से आपका नौकर आपके घर म व ु ओं का उपयोग करता है । स ालकर रखता है चीजों को,
स ालकर उठाता है । उनका उपयोग भी करता है , काम म भी लाता है । ले िकन आपकी कोई ब मू चीज खो
जाए, तो उसे कोई पीड़ा नहीं होती। य िप आपसे ादा उस व ु के सं पक म नौकर को आने का मौका िमला था।
शायद आपको इतना मौका भी न िमला हो। आपसे ादा उसने उपयोग िकया था। ले िकन खो जाए, टू ट जाए, न हो
जाए, चोरी चली जाए, तो नौकर को जरा भी िचंता पैदा नहीं होती। वह रात शां ित से घर जाकर सो जाता है । ा, बात
ा है ?

व ु का उपयोग तो कर रहा था, ले िकन व ु से िकसी तरह का रागा क कोई सं बंध न था। ले िकन अगर चीज टू ट
गई हो–समझ िक एक घड़ी फूट गई हो, िजसे वह रोज साफ करता था और चाबी दे ता था, वह आज िगरकर टू ट गई
हो। नौकर को कुछ भी भीतर नहीं टू टे गा, ोंिक घड़ी ने भीतर कोई थान नहीं बनाया था।

ले िकन टू टी ई घड़ी के बाद अगर आप नौकर से कह िक यह तो ब त बु रा हो गया। आज तो म सोच रहा था िक


सं ा जाते समय घड़ी तु भट कर दू ं गा। तो उस िदन उसकी नींद हराम हो जाएगी। घड़ी से एक रागा क सं बंध
िनिमत आ। नहीं थी घड़ी, उससे हो गया! इतने िदन तक घड़ी थी, घड़ी का उपयोग िकया था, कोई रागा क सं बंध
न था। आज घड़ी टू टकर चू र-चू र हो गई है । ले िकन मािलक ने कहा िक दु ख, दु भा तु ारा, ोंिक सोचता था म
िक आज सं ा यह घड़ी तु भट कर दू ं गा। अब घड़ी है नहीं, जो भट की जा सके। ले िकन नौकर अब िचं ितत और
दु खी और पीिड़त होने वाला है । होगा इसिलए पीिड़त और दु खी िक अब जो घड़ी नहीं है , उससे भी एक रागा क
सं बंध थािपत आ। वह िमल सकती थी, मेरी हो सकती थी। अब भीतर उसने जगह बनाई। अब तक वह बाहर
दीवाल पर लटकी थी, अब वह दय के िकसी कोने म लटकी है ।

जब व ु एं बाहर होती ह और भीतर नहीं, जब उनका उपयोग चलता हो, ले िकन आस िनिमत न होती हो, तब
कृ का अप र ह फिलत होता है । जीवन को जीना है उसकी सम ता म, ले िकन ऐसे, जै से िक जीवन छू न पाए।
गु जरना है व ुओं के बीच से, यों के बीच से, ले िकन अ िशत।

इसिलए और जो अप र ह की ा ाएं ह, वे सरल ह। कृ की ा ा किठन है । और जो ा ाएं ह, साधारण


ह। ठीक है , िजन व ुओं से मोह िनिमत हो जाता है , उनको छोड़कर चले जाओ, थोड़े िदन म मन भू ल जाता है । बड़ी
से बड़ी चीज को मन भू ल जाता है । छोड़ दो, हट जाओ, तो मन की ृित कमजोर है, िकतने िदन तक याद रखेगा!
भू ल जाएगा, िव रण हो जाएगा। नए राग बना ले गा, पुराने राग िव ृत हो जाएं गे ।

आदमी मर भी जाए िजसे हमने ब त ेम िकया था, तो िकतने िदन, िकतने िदन रण रह जाता है? रोते ह, दु खी-
पीिड़त होते ह। िफर सब िव रण हो जाता है , िफर सब घाव भर जाते ह। िफर नए राग, नए सं बंध िनिमत हो जाते ह।
या ा पुनः शु हो जाती है ।

िकसके मरने से या ा कती है! िकस चीज के खोने से या ा कती है ! कुछ कता नहीं; सब िफर चलने लगता है
पुनः। जै से थोड़ा-सा बीच म भटकाव आ जाता है; रा े से जै से गाड़ी का चाक उतर गया; िफर उठाते ह चाक को,
वापस रख ले ते ह; गाड़ी िफर चलने लगती है ।

तो अगर कोई व ुओं को छोड़कर भाग जाए, तो थोड़े िदन म उ भू ल जाता है । ले िकन भू ल जाना, मु हो जाना
नहीं है । भाग जाना, मु हो जाना नहीं है । सच तो यह है , भागता वही है, जो जानता है िक म साथ रहकर मु न हो
सकूंगा। अ था भागने का कोई योजन नहीं है । भागता वही है, जो अपने को कमजोर पाता है ।

हीरे -जवाहरात का ढे र लगा हो। म आं ख बं द कर ले ता ं , इसिलए िक अगर िदखाई पड़े गा, तो ब त मु ल है िक म


अपने पर काबू रख पाऊं। आं ख बं द करके म यह नहीं बताता ं िक म हीरे -जवाहरात के ित अनास ं; केवल
इतना ही बताता ं िक ब त दीन ं , ब त कमजोर ं । आं ख खुली िक आस िनिमत हो जानी सु िनि त है । इसिलए
आं ख बं द करके बै ठा ं । ले िकन आं ख बं द करने से आस यां अगर िमटती होतीं, तो हम सब अपनी आं ख फोड़
डालते और मु हो जाते । तब तो अंधे परम गित को उपल हो जाते!
110

इतना सरल नहीं है । ऐसे अपने को धोखा तो िदया जा सकता है, ले िकन मु का ण करीब नहीं आता है । भाग
जाऊं छोड़कर; यहां हीरे -जवाहरात रखे ह; दू र िनकल जाऊं। ठीक है , दू र िनकल जाऊंगा। मौजू द नहीं होगी चीज,
मन कहीं और उलझ जाएगा। िकसी वृ के नीचे बै ठकर िकसी अर म कंकड़-प र बीनने लगूं गा, उ ीं का ढे र
स ालकर रख लूं गा। ले िकन इससे छु टकारा नहीं है ।

कृ का अप र ह एक डीपर मीिनंग, एक गहरे अथ को सू िचत करता है । वह अथ है , व ु एं जहां ह, वही ं रहने दो;


तु म जहां हो, वहीं रहो; दोनों के बीच से तु िनिमत मत होने दो। दोनों के बीच कोई से तु न बन जाए, दोनों के बीच
आवागमन न हो। तु म तु म रहो; व ुओं को व ु एं रहने दो। न तु म व ुओं के हो जाओ, न व ु ओ ं को समझो िक वे
तु ारी हो गई ह।

और ये दोनों एक ही चीज के दो पहलू ह। िजस िदन आपने समझा, व ु मेरी हो गई; आप व ु के हो गए। िजस िदन
आपने कहा िक यह व ु मेरी है, उस िदन आप प ा जानना िक आप भी व ु के हो गए।

मालिकयत ूचुअल होती है , पार रक होती है । आप िकसी को गु लाम नहीं बना सकते िबना उसके गु लाम बने।
यह असंभव है । जब भी आप िकसी को गु लाम बनाते ह, तो आपको पता हो, न पता हो, आप उसके गु लाम बन जाते
ह। गु लामी पार रक है ।

हां, यह दू सरी बात है िक एक गु लाम कुस पर ऊपर बै ठा है , दू सरा गु लाम कुस के नीचे बै ठा है । इससे कोई फक
नहीं पड़ता। कई बार तो नीचे बै ठा आ ादा मु होता है, ऊपर बै ठे ए से । ोंिक वह जो नीचे बै ठा है , उसका
काम शायद कुस पर ऊपर बैठने वाले आदमी के िबना भी चल जाए। ले िकन वह जो कुस के ऊपर बै ठा है , उसका
काम नीचे बै ठे वाले के िबना नहीं चलने वाला है । उसकी िडपडस गहरी है , उसकी पराधीनता भारी है ।

अगर हम एक स ाट के सब गुलामों को मु कर द, तो गु लाम स ाट की कोई खास याद न करगे । कहगे, ब त


अ ा आ। ले िकन स ाट! स ाट िदन-रात बेचैन और िचं ितत होगा; ोंिक गु लामों के िबना वह ना-कुछ हो जाता
है । कुछ भी नहीं है! और गु लाम तो स ाट के िबना कुछ ादा हो जाएं गे; ले िकन स ाट गु लामों के िबना ब त कम
हो जाएगा। उसकी गु लामी भारी है । िदखाई नहीं पड़ती। िदखाई न पड़ने का उसने इं तजाम कर रखा है । वह गु लामों
की गदन दबाए ए है ऊपर से, िबना इस बात को समझे ए िक उसकी गदन भी गु लामों के हाथ म है ।

सब गु लािमयां पार रक होती ह। सब बं धन पार रक होते ह।

दे खा है, रा े से एक िसपाही एक आदमी को हथकिड़यां डालकर ले जा रहा है । तो िदखाई तो ऐसा ही पड़ता है िक


िसपाही मािलक है, हथकिड़यों म बं धा आ गु लाम गु लाम है , कैदी है । ले िकन अगर िसपाही उस कैदी को छोड़कर
भाग खड़ा हो, तो कैदी उसका पीछा नहीं करे गा। ले िकन अगर कैदी भाग खड़ा हो, तो िसपाही उसका पीछा करे गा;
जान की आ जाएगी उसके ऊपर। हथकड़ी तो पड़ी थी कैदी के हाथ म, ले िकन साथ ही वह िसपाही के हाथ म भी
पड़ी थी। महं गा पड़ जाएगा कैदी का भागना। दोनों बं धे ह पार रक। हां, एक जरा कुस पर बै ठा है , एक जरा कुस
के नीचे बै ठा है । दोनों बं धे ह।

िजस चीज से भी हम सं बंध िनिमत करते ह, से तु बन जाता है , और से तु बनाने के िलए दो की ज रत पड़ती है । जै से


नदी पर हम से तु बनाते ह, ि ज बनाते ह। एक िकनारे पर पाया रखकर ि ज न बनेगा। दू सरे िकनारे पर भी रखना ही
होगा। दोनों िकनारों पर पाए रखे जाएं गे, तो से तु बनेगा। तो जब भी हम िकसी व ु या िकसी से सं बंध िनिमत
करते ह, तो एक से तु िनिमत होता है । एक िकनारा हम होते ह, एक िकनारा वह होता है ।

कृ ने एक से तु तोड़ने के िलए एकां त का योग िकया, वह से तु है और के बीच। दू सरा से तु तोड़ने के


िलए वह अप र ह का योग करते ह, वह से तु है और व ु के बीच।

और ान रहे, और के बीच से तु रोज-रोज कम होते चले जाते ह। अपने आप ही कम होते चले जाते
ह। और और व ु के बीच से तु बढ़ते चले जाते ह। उसका कुछ कारण है , वह म आपको खयाल िदला दू ं ।
111

यह बात थोड़ी-सी अजीब लगे गी, ले िकन ऐसा आ है ; ऐसा हो रहा है । उसके होने के बु िनयादी कारण ह।
और के बीच से तु रोज कम होते चले जाते ह, ोंिक यों के साथ से तु बनाने म बड़ी झंझट और
कां े टीज ह, बड़ा उप व है ।

सबसे बड़ा उप व तो यही है िक दू सरा भी जीिवत है । जब आप उसको गु लाम बनाने की कोिशश करते ह,
तब वह भी बै ठा नहीं रहता। वह भी जोर से अपना जाल फकता है । पित अपने को िकतना ही कहता हो िक म ामी
ं , मािलक ं , ब त गहरे म जानता है िक िजस िदन मािलक बना है िकसी ी का, उसी िदन वह ी मािलक बन
गई है , या उसी िदन से चे ा म लगी है । सतत सं घष चल रहा है मालिकयत की घोषणा का िक कौन मािलक है ! वह
लड़ाई िजंदगीभर जारी रहे गी।

यों के साथ सं घष ाभािवक है , ोंिक सभी ाधीन होना चाहते ह। ले िकन नासमझी के कारण िकसी को
पराधीन करके ाधीन होना चाहते ह, जो िक कभी नहीं हो सकता। िजसने दू सरे को पराधीन िकया, वह यं भी
पराधीन हो जाएगा। ाधीन तो केवल वही हो सकता है , िजसने िकसी को पराधीन करने की योजना ही नहीं बनाई।

के साथ जिटलताएं बढ़ती चली जाती ह, व ु के साथ जिटल मामला नहीं है । आपने एक कुस घर म लाकर
रख दी है एक कोने म, तो वहीं रखी रहे गी। आप ताला लगाकर वष बाद भी लौट, तो कुस वहीं िमले गी। ब त
आ ाकारी है ! ले िकन एक प ी को उस तरह िबठा जाएं गे, या पित को या बे टे को या बे टी को, तो यह असंभव है । जब
तक आप लौटगे, तब तक सब दु िनया बदल चुकी होगी। वहीं तो नहीं िमलने वाला है कोई भी।

जीिवत की अपनी आं त रक तं ता है, वह काम करे गी। चे तना है , वह काम करे गी। व ु से हम अपे ा
कर सकते ह; से अपे ा करनी ब त किठन है । ोंिक कल ा करे गा, नहीं कहा जा सकता।
अन ेिड े बल है । व ुओं की भिव वाणी हो सकती है; यों की भिव वाणी नहीं हो सकती।

इसिलए िजतना मरा आ आदमी होता है , उतना ोितषी उसके बाबत सफल हो जाता है बताने म। िजं दा आदमी
हो, तो ब त मु ल होती है । और मुद के िसवाय ोितिषयों के पास कोई जाता आ िदखाई भी नहीं पड़ता है !
िजं दा आदमी अन ेिड े बल है । कल ा होगा, नहीं कहा जा सकता। िजं दा आदमी एक तं ता है ।

तो यों के साथ तो बड़ी किठनाई हो जाती है , इसिलए आदमी धीरे -धीरे यों की मालिकयत छोड़कर
व ुओं की मालिकयत पर हटता चला जाता है । ितजोड़ी म एक करोड़ पया बं द है, तो उनकी मालिकयत ादा
सु रि त मालू म होती है । और आप एक करोड़ लोगों का वोट ले कर धान मं ी बन गए ह, तो प ा मत समझना िक
अगले इले न म वे साथ दे ने वाले ह! अन ेिड े बल ह। वह एक करोड़ लोगों की मालिकयत भरोसे की नहीं है । वह
एक करोड़ पए जो ितजोड़ी म बं द ह, भरोसे के ह। इस अथ म भरोसे के ह िक मुदा जड़ चीज है; मालिकयत
आपकी है ।

यों के ऊपर मालिकयत खतरे का सौदा है । इसिलए जै से-जै से आदमी के पास समझ बढ़ती जाती है –नासमझी
से भरी समझ–वै से-वै से वह यों से सं बंध कम और व ुओं से सं बंध बढ़ाए चला जाता है।

इसिलए बड़े प रवार टू ट गए। ोंिक बड़े प रवारों म बड़े यों का जाल था। लोगों ने कहा, इतने बड़े प रवार म
नहीं चलेगा। गत प रवार िनिमत ए। पित-प ी, एक-दो ब े–पया । ले िकन अब वे भी िबखर रहे ह। वे भी
बच नहीं सकते । ोंिक पित और प ी के बीच भी सं बंध ब त जिटल होता चला जाता है । आने वाले भिव म शादी
बचेगी, यह कहना ब त मु ल है । िसफ वे ही लोग कह सकते ह, िज भिव का कोई भी बोध नहीं होता। बच
नहीं सकती है । खतरे भारी पैदा हो गए ह। डर यही है िक वह िबखर जाएगी।

ले िकन इसकी जगह व ु ओ ं का प र ह बढ़ता चला जाता है । एक आदमी दो मकान बना ले ता है , दस गािड़यां रख
ले ता है , हजार रं ग-ढं ग के कपड़े पहन ले ता है । घर म समा ले ता है । चीज इक ी करता चला जाता है । चीजों पर
मालिकयत सु गम मालू म पड़ती है । कोई झगड़ा नहीं, कोई झंझट नहीं। चीज जै सी ह, वै सी रहती ह। जो कहो, वै सा
मानती ह।
112

तो धीरे -धीरे आदमी चीजों की मालिकयत पर ादा उतरता चला जाता है । िजतनी पुरानी दु िनया म जाएं गे, उतना ही
यों के सं बंध ादा मालूम पड़गे । िजतनी आज की दु िनया म आएं गे, उतने यों के सं बंध कम, और
यों और व ु ओ ं के सं बंध ादा हो जाएं गे। इसिलए भिव के िलए अप र ह का सू ब त सोचने जै सा है ।
भिव म प र ह भारी होता जाएगा, होता जा रहा है , रोज बढ़ता जा रहा है ।

आज योरोप म तो लोग, आम चिलत कहावत हो गई है िक पित-प ी एक ब े को पैदा कर या न कर, तो सोचते ह


िक एक ब ा पैदा कर िक एक ि ज खरीद ल? एक ब ा पैदा कर िक एक और नया माडल कार का िनकला है ,
वह खरीद ल? एक ब ा पैदा कर िक टी.वी. का एक से ट खरीद ल? यह िवक है ! ोंिक एक ब ा इतना खचा
लाएगा, उससे तो कार का नया माडल खरीदा जा सकता है । और कार ादा भरोसे की है । ादा भरोसे की है ।
जहां चाहो, वहां खड़ा करो; जहां चाहो, मत खड़ा करो। जो वहार करना चाहो, करो। रटे िलएट नहीं करती, उ र
भी नहीं दे ती, झंझट भी नहीं करती। गु ा आ आए, गाली दो, लात मार दो; चु पचाप सह ले ती है ।

तो व ु ओ ं पर हमारा आ ह बढ़ता चला जाता है । आदमी अपने चारों तरफ व ुओं का एक जाल इक ा करके
स ाट होकर बै ठ जाता है बीच म िक म मािलक ं । यों को इक ा करके ऐसी मालिकयत बड़ी किठन है! ौढ़
यों को इक ा करके, तो ब त किठन है । ाइमरी ू ल के िश क से पूछो िक तीस छोटे -से ब े इक े हो
जाते ह चारों तरफ, तो कैसी मुसीबत पैदा हो जाती है । जरा-जरा से ब े, ले िकन िश क की जान ऐसी अटकी रहती
है िक वह घं टे की राह दे खता रहता है िक कब घं टा बजे और वह भागे! ोंिक तीस जीिवत ब े! जरा िसर मोड़कर
त े पर कुछ िलखना शु करता है िक यहां बगावत फैल जाती है ।

वै से मनोवै ािनक कहते ह िक त े को इसीिलए ऐसा बनाया है िक िश क बीच-बीच म पीठ कर पाए। ोंिक अगर
छः-सात घं टे वह पीठ ही न करे , तो ब ों को इतना स ेस करना पड़े अपने आपको िक वे बीमार पड़ जाएं । तो
रलीफ के िलए मौका िमल जाता है । पीठ करके त े पर िलखता है, तब तक कोई मजाक म कुछ कह दे ता है , कोई
प र उछाल दे ता है , कोई चोट कर दे ता है , कोई आं ख िमचका दे ता है , ब े रलै हो जाते ह। तब तक िश क
वापस लौटता है; िफर पढ़ाई शु हो जाती है । वह ब ों के िलए बड़ा सहयोगी है त ा, िजसकी वजह से िश क
को बीच-बीच म मुड़ना पड़ता है। ले िकन ये िजं दा ब े ह, इन पर मालिकयत!

छोटे -से ब े पर भी मालिकयत करनी ब त मु ल बात है । मां -बाप भी छोटे -छोटे ब ों को फुसलाते ह और र त
खलाते ह। हां, र त ब ों जै सी होती है , चाकले ट है , टाफी है । बाप घर लौटता है , तो सोच ले ता है िक आज ा
र त ले चलनी है । ोंिक ब ा दरवाजे पर खड़ा होगा। छोटा-सा ब ा, िजसकी अभी जीवन की कोई ताकत नहीं,
कुछ नहीं। उससे भी बाप डरता है घर लौटते व । छोटे -छोटे ब ों से भी बाप और मां को झूठ बोलना पड़ता है ।
िप र दे खने जाते ह, तो कहते ह, गीता ान स म जा रहे ह!

के साथ सं बंध बनाना जिटल बात है । छोटा-सा जीिवत और जिटलताएं शु हो जाती ह। तो हम िफर
यों को हटाना शु कर दे ते ह। हटा दो को, व ुओं से सं बंध बना लो। घर म जाओ, जहां भी नजर
डालो, आप ही मािलक हो। कुिसयां रखी ह, फन चर रखा है , ि ज रखा है , कार रखी है , रे िडओ रखे ह। आप
िबलकुल मािलक की तरह ह। जहां भी नजर डालो, मािलक ह। तो व ुएं बढ़ती जाती ह, से सं बंध ीण होते
चले जाते ह। स ता जब िवकिसत होती है , तो व ुओं से सं बंध रह जाते ह आदिमयों के और आदिमयों से खो जाते
ह।

इसिलए दू सरे सू को जानकर मने िफर से कह दे ना चाहा, वह छूट गया था, िक अप र ह।

अप र ही िच वह है , जो व ुओं की मालिकयत म िकसी तरह का रस नहीं ले ता। उपयोिगता अलग बात है , रस


अलग बात है । व ुओं म जो रस नहीं ले ता, व ु ओ ं के साथ जो िकसी तरह की गु लामी के सं बंध िनिमत नहीं करता,
व ुओं के साथ िजसका कोई इनफैचु एशन, व ुओं के साथ िजसका कोई रोमां स नहीं चलता।

रोमां स चलता है व ुओं के साथ। जब आप कभी नई कार खरीदने का सोचते ह, तो ब त फक नहीं पड़ता। थित
करीब-करीब वै से हो जाती है , जै से कोई नया िकसी नई लड़की के ेम म पड़ जाता है और रात सपने दे खता
113

है । कार उसी तरह सपनों म आने लगती है ! व ु ओं का भी इनफैचु एशन है । उनके साथ भी रोमां स चल पड़ता है ।
यह व ु ओ ं म रस न हो, व ुओं का उपयोग हो।

और ान रहे, व ुओं म िजतना ादा रस होगा, आप उतना ही कम उपयोग कर पाएं गे । िजतना कम रस होगा
व ु का, उतना पूरा उपयोग कर पाएं गे । ोंिक उपयोग के िलए एक िडटै चमट, एक अनास दू री ज री है ।

म एक िम को जानता ं । दस साल से म उनके बरांडे म एक ू टर को रखा आ दे खता ं । दो-चार बार पहले


पहल मने पूछा िक ा ू टर िबगड़ गया है ? उ ोंने कहा, ऐसा दु न का न िबगड़े ! ू टर िबगड़ा नहीं है । िफर म
चु प रह गया। कई बार उनको दे खा िक बरां डे म ही खड़े ू टर को ाट करके, िफर बं द करके, भीतर चले जाते ह!
मने पूछा िक बात ा है ? कभी िनकालते नहीं!

इनफैचु एशन है भारी उनका। ू टर ा है, उनकी ेयसी है। उसको ऐसा स ालकर, पोंछ ांछकर रख दे ते ह,
िनकालते नहीं। िनकलते तो अपनी फटी साइिकल पर ही ह। जब िनकलते ह, उसी पर! मने कई दफा दे खा। मने
कहा, यह ू टर िकसिलए है? वे बोले िक कभी समय-बे समय! ले िकन आज तो वषा हो रही है , तो नाहक रं ग खराब
हो जाएगा। कभी धू प ते जी होती है , तो नाहक रं ग खराब हो जाएगा। मने उनका ू टर िनकलते नहीं दे खा है ।

सभी के पास ऐसी ू टर जै सी थोड़ी-ब त चीज होंगी। सभी के पास। वह आप रखे ए ह स ालकर। यों के पास
ब त ह। उसका कारण है । ोंिक पु ष तो बाहर के जगत म यों से ब त तरह के सं बंध बना ले ते ह। यों
के हमने पु षों से सब तरह के सं बंध तु ड़वा िदए ह। उनको घर के भीतर बं द कर िदया है ।

तो पु षों के जगत म तो ब त तरह के सं बंध हो पाते ह–दल है , ब है , पाट है, सं घ है , िम है , फलां ह, िढकां ह,
हजार उपाय ह। और पु ष बाहर की दु िनया म घू मकर ब त तरह के सं बंध िनिमत करता रहता है । ले िकन ी को
हमने घर म बं द कर िदया। तो उसके हम िकसी तरह के बाहर जगत से सं बंध िनिमत नहीं होने दे ते। तो उसकी जो
सं बंध बनाने की जो ास है, अतृ है , वह व ुओं पर िनकलती है । इसिलए यां व ु ओ ं के िलए िबलकुल
इनफैचु एटे ड हो जाती ह।

मेरे पास कई यां आती ह, वे कहती ह, सं ास हम ले ना है, ले िकन िद त िसफ एक है िक तीन सौ सािड़यां!
और कोई िद त नहीं है ; और हम कोई क ही नहीं है सं ास म। िसफ किठनाई यह है िक इन तीन सौ सािड़यों
का ा होगा! एक का मामला नहीं है , न मालू म िकतनी यों ने मुझे आकर कहा िक सं ास की बात िबलकुल
जमती है मन को, सब ठीक है , ले िकन…! तब उनका कमजोर िह ा आ जाता है , सा -कानर, वे सािड़यां! वह
इनफैचु एशन है ।

उसका कारण है िक पु षों ने जो जगत बनाया है , उसम यों को यों से सं बंध बनाने के सब दरवाजे बं द कर
िदए, तो उसने व ु ओ ं से अपना सं बंध बना िलया। वह व ुओं के िलए दीवानी है । पित को सजा हो जाए, उनको हीरे
की अंगूठी चािहए। चले गा, पित तो सालभर बाद वापस आ जाएगा; ऐसी ा अड़चन है! ले िकन हीरे की अंगूठी!
व ुओं से इतना गहरा सं बंध, उसका कारण भी वही है । यों से सं बंध बनाने का उपाय न होने से सारी की सारी
चे तना व ुओं से सं बंध िनिमत करने म लग गई है ।

अप र ह का अथ है , व ु ओ ं म रस नहीं है , इनफैचु एशन नहीं है । व ु एं ह, उनका उपयोग ठीक है । हीरे की अंगूठी


है , तो पहन ल; और नहीं है , तो नहीं। हीरे की अंगूठी है, तो ठीक; नहीं है , तो न होना ठीक। िजस िदन ये दोनों बात
एक-सी हो जाएं और खलवाड़ हो जाए िक हीरे की अंगूठी हो, तो खेल है ; और न हो, तो घास की अंगूठी भी बनाकर
पहनी जा सकती है ; और िबलकुल न हो, तो नंगी अंगुली का अपना सौंदय है । इतनी सरलता से िच चलता हो
व ुओं के बीच म, तो अप र ही िच है । भागा आ नहीं, व ु ओं के बीच जीता आ। ले िकन रसमु । उपयोग
करता है , ले िकन आस नहीं, िवि नहीं, पागल नहीं है ।

और वही उपयोग कर पाता है , जो िवि नहीं है । जो िवि है , वह तो उपयोग कर ही नहीं पाता। उसका
उपयोग तो व ु कर ले ती है । व ु को स ालकर रखता है , से वा करता है , झाड़ता-पोंछता है । और सपने दे खता
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रहता है िक कभी पहनूंगा, कभी पहनूंगा। वह कभी कभी नहीं आता। और वह व ु हं सती होगी, अगर हं स सकती
होगी।

अप र ही िच , एकां त म जीने वाला िच ही भु के सतत रण म उतर सकता है । और सतत रण म उतरने का


अथ है , एक ण भी अगर पूण रण म उतर जाए, तो सतत रण बन जाता है । भू ला नहीं जा सकता; भू लने का
उपाय नहीं है ।

भु की एक झलक िमल जाए, तो भू लने का उपाय नहीं है । एक ण भी ार खुल जाए और हम दे ख ल िक वह है,


िफर कोई हज नहीं है । हम कभी न दे ख पाएं , तो भी भीतर उसकी धु न बजती ही रहे गी। ास- ास जानती ही रहे गी,
रोआं -रोआं पहचानता ही रहे गा िक वही है, वही है , वही है । पूरे जीवन की यह धु न बन जाएगी िक वही है । ले िकन एक
ण भी!

कृ कहते ह, सतत, ित ण, िनरं तर, वधान न हो जरा भी, तब मुझम ित ा है ।

एक ण भी हो जाए, तो िनरं तर हो जाएगा। एक ण कैसे हो जाए? कहां जाएं हम उस ण को पाने के िलए? वह


मोमट, वह ण कहां िमले िक एक बार दरस-परस हो जाए, एक बार आं ख के सामने आ जाए उसकी छिव? एक
बार हम ाद ले ल उसके आिलं गन का, एक ण के िलए–कहां जाएं ? कहां खोज?

यं के ही अंदर। उसके अित र कहीं कोई और उससे िमलन न होगा। अपने ही भीतर। और अपने भीतर जाना
हो, तो जो-जो बाहर है, उसके इलीिमनेशन के अित र और कोई िविध नहीं है । जो-जो बाहर है , यह म नहीं ं , यह
म नहीं ं , इस बोध के अित र भीतर जाने का कोई उपाय नहीं है ।

सु नी है मने एक छोटी-सी कहानी, वह म आपसे क ं, िफर म दू सरा सू लूं ।

एक झेन फकीर आ। उसके पास, उसके मंिदर म जहां वह ठहरता है , उसके वृ के नीचे जहां वह िव ाम करता
है , दू र-दू र से साधक आते ह। दू र-दू र से साधक आते ह, उससे पूछते ह, ान की कोई िविध। वह उ ान की
िविधयां बताता है । वह उ कोई सू दे ता है िक जाकर इस पर ान करो।

एक छोटा-सा ब ा भी कभी-कभी उस वृ के नीचे आकर बै ठ जाता है । कभी उसके मंिदर म आ जाता है । बारह
साल उसकी उ होगी। वह भी सु नता है बड़े ान से बैठकर। बड़ी बात! उसकी समझ म नहीं भी पड़ती ह, पड़ती
भी ह। ोंिक कुछ नहीं कहा जा सकता।

कई बार िजनको लगता है िक समझ म पड़ रहा है, उ कुछ भी समझ नहीं पड़ता। और कई बार िज लगता है िक
कुछ समझ म नहीं पड़ रहा है, उ भी कुछ समझ म पड़ जाता है । ब त बार ऐसा ही होता है िक िजसे लगता है,
कुछ समझ म नहीं पड़ रहा है–इतना भी समझ म पड़ जाना कोई छोटी समझ नहीं है ।

वह छोटा ब ा आकर बै ठता है । कोई साधक, कोई सं ासी, कोई योगी आकर झेन फकीर से ान के िलए कोई
िवषय, कोई आ े मां गता है । वह दे खता रहता है । उसने दे खा िक जब भी कोई साधक आता है, तो मंिदर का घं टा
बजाता है , झुककर तीन बार नम ार करता है, झुककर िवन भाव से बै ठता है ; आदर से पूछता है, मं ले ता है,
िवदा होता है । िफर साधना करके, वापस लौटकर खबर दे ता है।

एक िदन सु बह वह ब ा भी उठा, ान िकया, फूल िलए हाथ म, आकर जोर से मंिदर का घं टा बजाया। झेन फकीर
ने ऊपर आं ख उठाकर दे खा िक शायद कोई साधक आया। ले िकन दे खा, वह छोटा ब ा है, जो कभी-कभी आ जाता
है । आकर तीन बार झुककर नम ार िकया। फूल चरणों म रखे। हाथ जोड़कर कहा िक मुझे भी वह माग बताएं ,
िजससे म ान को उपल हो सकूं।
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उस गु ने ब त बड़े -बड़े साधकों को माग बताया था, इस छोटे ब े को ा माग बताए! ले िकन िविध उसने पूरी कर
दी थी, इनकार िकया नहीं जा सकता था। ठीक व था से घं टा बजाया था। हाथ जोड़कर नम ार िकया था। चरणों
म फूल रखे थे । िवन भाव से बै ठकर ाथना की थी िक आ ा द, म ा क ं िक ान को उपल हो जाऊं, भु
का रण आ जाए। उस छोटे -से ब े के िलए कौन-सी िविध बताई जाए!

उस गु ने कहा, तू एक काम कर, दोनों हाथ जोर से बजा। लड़के ने दोनों हाथ की ताली बजाई। गु ने कहा िक
ठीक। आवाज िबलकुल ठीक बजी। ताली तू बजा ले ता है । अब एक हाथ नीचे रख ले । अब एक ही हाथ से ताली
बजा। उस ब े ने कहा, ब त किठन मालू म पड़ता है । एक हाथ से ताली कैसे बजाऊं? तो उस गु ने कहा, यही ते रे
िलए मं आ। अब इस पर तू ान कर। और जब तु झे पता चल जाए िक एक हाथ से ताली कैसे बजेगी, तब तू
आकर मुझे बता दे ना।

ब ा गया। उस िदन उसने खाना भी नहीं खाया। वह वृ के नीचे बै ठकर सोचने लगा, एक हाथ की ताली कैसे
बजे गी? ब त सोचा, ब त सोचा।

आप कहगे, कहां के पागलपन के सवाल को उसे दे िदया। सभी सवाल पागलपन के ह। कोई भी सवाल कभी सोचा
होगा, इससे कम पागलपन का नहीं रहा होगा।

कोई सोच रहा है , जगत को िकसने बनाया? ा एक हाथ से ताली बजाने वाले सवाल से कोई ब त बे हतर सवाल है !
कोई सोच रहा है िक आ ा कहां से आई? एक हाथ से ताली बजाने के सवाल से कोई ादा अथपूण सवाल है!

ले िकन उस ब े ने बड़े सदभाव से सोचा। सोचा, रात उसे खयाल आया िक ठीक। मढक आवाज करते थे । उसने भी
मढक की आवाज मुंह से की। और उसने कहा िक ठीक। यही आवाज होनी चािहए एक हाथ की।

आकर सु बह घं टा बजाया। िवन भाव से बै ठकर उसने आवाज की मुंह से, जै से मढक टराते हों। और गु से कहा,
दे खए, यही है न आवाज, िजसकी आप बात करते थे? गु ने कहा िक नहीं, यह तो पागल मढक की आवाज है । एक
हाथ की ताली की आवाज!

दू सरे िदन िफर सोचकर आया; तीसरे िदन िफर सोचकर आया। कुछ-कुछ लाया, रोज-रोज लाया। यह है आवाज, यह
है आवाज। गु रोज कहता गया, यह भी नहीं, यह भी नहीं, यह भी नहीं। वष बीतने को पूरा हो गया। वह रोज
खोजकर लाता रहा। कभी कहता िक झींगुर की आवाज, कभी कहता िक वृ ों के बीच से गु जरती ई हवा की
आवाज। कभी कहता िक वृ ों से िगरते ए प ों की आवाज। कभी कहता िक वषा म पानी की आवाज छ र पर।
ब त आवाज लाया, ले िकन सब आवाज गु इनकार करता गया। कहा िक नहीं, यह भी नहीं, यह भी नहीं।

िफर उसने आना बं द कर िदया। िफर ब त िदन गए वापस लौटा। घं टा बजाया। पैरों म िफर फूल रखे। हाथ जोड़कर
चु पचाप पास बैठ गया। गु ने कहा, लाए कोई उ र? आवाज खोजी कोई? उसने िसफ आं ख उठाकर गु की तरफ
दे खा–मौन, चु प। गु ने कहा, ठीक है । यही है आवाज–मौन, चु प। गु ने कहा, यही है आवाज। तु झे पता चल गया,
एक हाथ की आवाज कैसी होती है । अब तु झे और भी कुछ आगे खोज करना है ?

उसने कहा, ले िकन अब आगे खोज करने को कुछ भी न बचा। एक-एक आवाज को, खोज को, आप इनकार करते
गए, इनकार करते गए, इनकार करते गए। सब आवाज िगरती गईं। िफर िसवाय मौन के कुछ भी न बचा। िपछले
महीनेभर से म िबलकुल मौन ही बै ठा ं । कोई आवाज ही नहीं सू झती; कोई श ही नहीं आता; मौन ही मौन! और
अब मुझे कुछ भी नहीं चािहए। एक हाथ की आवाज जान पाया, नहीं जान पाया, मुझे पता नहीं। ले िकन इस मौन म
मने जो दे खा, जो जाना, शायद लोग उसी को परमा ा कहते ह।

एक-एक चीज को इनकार करते चले जाना पड़े गा। िकसी से भी शु कर। शरीर से शु कर, तो जानना पड़े गा िक
शरीर नहीं है । भीतर जाएं , ास िमले गी। जानना पड़े गा, ास भी वह नहीं है । और भीतर जाएं , िवचार िमलगे । जानना
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पड़े गा, िवचार भी वह नहीं है । और भीतर जाएं , वृ ि यां िमलगी। जानना पड़े गा, वृ ि यां भी वह नहीं है । और उतरते
जाएं , और उतरते जाएं । भाव िमलगे, जान िक भाव भी वह नहीं है । उतरते जाएं गहरे -गहरे कुएं म!

एक घड़ी ऐसी आ जाएगी िक इनकार करने को कुछ भी न बचेगा, स ाटा और शू रह जाएगा। आ गई अंतर-गु फा,
जहां अब यह भी कहने को नहीं बचा िक यह भी नहीं है । वही ं, उसी ण, उसी ण वह िव ोट हो जाता है, िजसम
भु का अनुभव होता है । बस, वह अनुभव एक ण को हो जाए, िफर िनरं तर ास- ास, रोएं -रोएं , उठते-बै ठते, सोते-
जागते वह गूं जने लगता है । तब है रण िनरं तर।

और कृ कहते ह, ऐसे िनरं तर रण को उपल ही मुझम िति त होता है , भु म िति त होता है । या


उलटा कह तो भी ठीक िक ऐसे म, ऐसे िनराकार, शू हो गए म, ऐसे सतत सु रित से भर गए म
भु िति त हो जाता है ।

:
भगवान ी, िपछले दो ोकों म एक छोटी-सी पर िवशे ष बात रह गई है । उसम कहा गया है ान के साधक के िलए–
िवशे ष आसन, शु भू िम, सीधा शरीर, और नािसका ि और चय त। उसके बाद कहा गया है, भयरिहत और
अ ी कार शां त अंतःकरण वाला। भयरिहत का साधक के िलए ा अथ होगा, कृपया इसे कर।
भयरिहत और अ ी कार शांत िच वाला!

मह पूण है यह, काफी मह पूण है । ोंिक भय िजसे है , वह परमा ा म वेश न कर पाएगा। ों? तो भय को
थोड़ा समझ ले ना पड़े गा। भय है ा? व ुतः भय का मूल आधार ा है ? भयभीत ों ह हम? ा है मूल कारण
िजससे सारे भय का ज होता है ?

बीमारी का भय है । िदवािलया हो जाने का भय है । इ त िमट जाने का भय है । हजार-हजार भय ह। ले िकन भय तो


गहरे म एक ही है , वह मृ ु का भय है । बीमारी भी भयभीत करती है, ोंिक बीमारी म मृ ु का आं िशक दशन शु
हो जाता है । गरीबी भयभीत करती है , ोंिक गरीबी म भी मृ ु का आं िशक दशन शु हो जाता है । अ ित ा
भयभीत करती है , ोंिक अ ित ा म भी मृ ु का आं िशक अंश िदखाई पड़ने लगता है ।

जहां-जहां भय है, वहां-वहां मृ ु का कोई अंश िदखाई पड़ता है । न भी िदखाई पड़े , थोड़ा खोज करगे, तो
िदखाई पड़ जाएगा िक म भयभीत ों ं । कहीं न कहीं कुछ मुझम मरता है, तो म भयभीत होता ं । चाहे मेरा धन
छूटता हो, तो धन के कारण जो सु र ा थी भिव म िक कल भी भोजन िमलेगा, मकान िमले गा, मर नहीं जाऊंगा।
धन िछनता है, तो कल खतरा खड़ा हो जाता है िक कल अगर भोजन न िमला तो? ित ा है ; धन न हो पास म, तो भी
आशा कर सकता ं िक कल कोई साथ दे गा, कल कोई सहयोग दे गा। ले िकन ित ा भी खो जाए, तो डर लगता है
िक कल इस बड़े जगत म कोई साथी-सं गी न होगा, तो ा होगा?

जहां भी भय है , वहां थोड़ी-सी भी खोज करगे, थोड़ा-सा खोजगे , तो न डीप कुछ और कारण भला हो, ले िकन
जरा-सी खरोंच के बाद गहरे म मृ ु खड़ी ई िदखाई पड़े गी। मृ ु ही भय है । और सब भय उसके ही हलके डोज ह।
उसकी ही हलकी मा ाएं ह। मृ ु का भय एकमा भय है ।

कृ कहते ह िक अभय को उपल हो कोई, भयरिहत हो कोई, तो ही ान म गित है, तो ही समािध म चरण
पड़गे । तो ा बात है? यहां समािध और ान म भय को लाने की ा ज रत? यहां मौत का सवाल कहां है ?

यहां है । मौत का सवाल है , महामृ ु का सवाल है । ोंिक साधारण मृ ु म तो िसफ शरीर िमटता है, आप नहीं
िमटते । िसफ व बदलते ह, आप नहीं बदलते । आप तो िफर, पुनः, पुनः-पुनः नए शरीर, नए व धारण करते चले
जाते ह।
117

तो साधारण मृ ु , जो जानते ह, उनकी ि म मृ ु नहीं, केवल शरीर का प रवतन है । गृ ह प रवतन है , नए घर म


वे श है , पुराने घर का ाग है । ले िकन ान म महामृ ु घिटत होती है । आप भी मरते ह, शरीर ही नहीं मरता। आप
भी मरते ह, म भी मरता है । वह अहं कार और ईगो भी मरती है , मन मरता है ।

भावतः, जब शरीर के ही मरने म इतना भय लगता है , तो मन के मरने म िकतना भय न लगता होगा! और इसिलए
अभय ए िबना कोई ान म वे श न कर सकेगा।

जै सा कृ ने कहा भयरिहत, ऐसा ही महावीर ने अभय को पहला सू कहा है । अभय ए िबना कोई ान म न जा
सकेगा। ोंिक थोड़ी ही दे र, थोड़ी ही भीतर गित होगी और पता चले गा, यह तो मृ ु घटने लगी।

ान के अनुभव म मृ ु का अनुभव आता ही है , अिनवाय है । उससे कोई बचकर नहीं िनकल सकता। जब आप
ान म गहरे उतरगे, तो वह घड़ी आ जाएगी जहां लगे गा, कहीं ऐसा तो न होगा िक म मर जाऊं। लौट चलूं वापस,
यह िकस उप व म पड़ गया! वापस लौटो।

ान से न मालू म िकतने लोग वापस लौट आते ह। िसफ भीतर वह जो मृ ु का भय पकड़ता है , उसकी वजह से
वापस लौट आते ह। और मजा यह है िक वही ण है पार होने का। उसी ण म अगर आप िनभय वे श कर गए, तो
आप समािध म प ंच जाएं गे । और अगर उससे आप वापस लौट आए, तो जहां आप थे, वहीं आ जाएं गे। और एक
खतरा और ले आएं गे । वह यह िक अब ान म जाने की िह त भी न कर सकगे, ोंिक वह मृ ु का डर अब और
गहरा और साफ हो जाएगा।

जब ान म मृ ु की तीित होती है, तब आप अमृत के ार पर खड़े ह। अगर भयभीत हो गए, तो ार से वापस


लौट आए। और अगर वेश कर गए, तो अमृत म वेश कर गए। िफर कोई मृ ु नहीं है ।

मृ ु म वेश करके ही अमृत का अनुभव होता है । िमटकर ही जानना पड़ता है उसे, जो है । यं को खोकर ही पाना
पड़ता है उसे, जो सव है ।

इसिलए ठीक है कृ अगर कह िक भयरिहत िच से ही वेश सं भव है ।

इधर मेरा रोज का अनुभव है । सै कड़ों िकतनी आतु रता और िकतनी ास से ान म वे श करते ह, ले िकन
शी ही…। जो ादा म नहीं करते, उनको तो अड़चन नहीं आती, ोंिक वे उस िबं दु तक भी नहीं प ंचते, जहां
मृ ु का अनुभव हो। ले िकन जो जरा ादा म करते ह, वे उस िबं दु पर प ं च जाते ह, जहां मृ ु िदखाई पड़ने
लगती है िक म मरा, म गया। अब अगर एक कदम आगे बढ़ता ं भीतर, तो अब म नहीं बचूं गा। सब टू ट-फूटकर
िबखर जाएगा। िफर लौट नहीं सकूंगा। यह तीित इतनी गाढ़ होती है , यह पूरे ाणों को इस भां ित पकड़ ले ती है िक
साधक भागकर बाहर आ जाता है । यह रोज घटता है ।

इसिलए ान म जाने वाले साधक को, जो उसे ान म जाने का माग-िनदश कर रहा है, उिचत है िक कहता रहे िक
भय को छोड़ दे ना; मृ ु घिटत होगी। वह ण आएगा, जब भय पकड़े गा। वह ण आएगा, जब सब भीतर ऐसा
लगे गा िक खो गया; सब खो रहा है । डूब रहा ं सागर म, अतल गहराई म; लौटने का अब शायद कोई उपाय न
होगा।

वह ण आएगा ही। यह अगर पूव-सू चना दे दी गई हो, तो साधक जब प ंचता है उस ण म, तो िनभय हो, साहस
बां ध, छलां ग लगा पता है । अगर यह पूव-सू चना न दी गई हो, तो ब त सं भावना यही है िक साधक वापस लौट आए,
घबड़ा जाए।

लौट आए साधक को बड़ी तकलीफ हो जाती है । तकलीफ तो यह हो जाती है बड़ी िक अब वह ान की तरफ जाने
की िह त अब न जु टा पाएगा। अब यह रण उसका सदा पीछा करे गा। अब वह ान की बात न सोच पाएगा।
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और भी एक खतरा है , वह भी म आपसे कह दू ं , िक जो साधक इस भां ित मृ ु से भयभीत होकर लौट आता है, ब त


सं भावना है , सौ म कम से कम तीस ितशत लोगों को, िक वे थोड़े -से िवि हो जाएं । ोंिक जो उ ोंने दे खा है ,
िमटने का जो अनुभव उनके िनकट आया, वह उनके सारे ायु ओं को कंपा जाता है ; उनके हाथ-पैर कंपने लगगे,
उनका िच भय से सदा घबड़ाया आ रहने लगे गा। वे नींद लेने तक म डरने लगगे। उनका डर बढ़ जाएगा।

इसिलए ान म कोई भी जाए, तो यह जानकर जाए, ठीक से प रिचत होकर जाए िक मृ ु की तीित होगी। भय
कुछ भी नहीं है । ोंिक वह मृ ु की तीित सौभा है । वह उसको ही होती है , जो ान के िबलकुल मंिदर के ार
पर चढ़कर प ंच जाता है –उसको ही, उसके पहले नहीं होती। वह आ खरी तीित है मन की।

मन मरने के पहले आ खरी बार आपको घबड़ाता है िक मर जाओगे, लौट चलो। अगर आप न घबड़ाए, तो मन मर
जाता है, आप बच जाते ह। आपके मरने का कोई उपाय नहीं है । आप नहीं मर सकते ।

ले िकन अभी तक आपने समझा है िक म मन ं । इसिलए जब मन कहता है , मर जाऊंगा! तो आप समझते ह, म मर


जाऊंगा। वह आपकी ां ित ाभािवक है । ाभािवक, ले िकन सही नहीं। ाभािवक, ले िकन स नहीं। इसिलए जो
भी ान का िनदश करे गा, जै सा कृ अजु न को िनदश कर रहे ह, तो वे उन सारी बातों का िनदश करगे ही, िजन-
िजन की ज रत पड़े गी।

तो एक, िनभय। और ठीक प से शांत ए मन वाला। ठीक प से शां त ए मन वाले का ा अथ है? इस ठीक से
शां त मन वाला, इस श से, इन श ों के समू ह से ब त-सी गलत ा ाएं चिलत ई ह।

एक तो, जब कृ कहते ह, ठीक से शां त ए मन वाला, तो इसके दो मतलब साफ हो गए िक ऐसी शां ित भी हो
सकती है , जो ठीक से शां ित न हो। गलत िक की शां ित भी हो सकती है । इसका मतलब साफ है । अशां ित तो गलत
होती ही है; ऐसी शां ितयां भी ह, जो गलत होती ह। इसिलए तो ठीक से शां त, इस शत को लगाना पड़ा है ।

इसिलए आप सब तरह के शांत ए लोग ान म वेश कर जाएं गे, इस ां ित म मत पड़ना। गलत ढं ग से शांत ए
लोग भी हो सकते ह। कौन से ढं ग से आदमी गलत प से शांत हो जाता है ?

ऐसी ब त-सी िविधयां चिलत ह, िजनसे आपको शां ित का म पैदा हो सकता है । वह गलत प की शां ित है । जै से
इस तरह की िह ोिट , स ोहन की िविधयां ह, िजनसे आपको तीित हो सकती है िक आप शां त ह।

अगर आप कुवे से पूछ, एमाइल कुवे से । वे पि म के एक बड़े िह ोिट िवचारक ह। तो वे कहते ह, शां त होने के
िलए और कुछ करना ज री नहीं है । िसफ अपने मन म यह दोहराते रह िक म शां त हो रहा ं, म शां त हो रहा ं , म
शां त हो रहा ं , म शां त हो रहा ं । इसे दोहराते रह। गो आन रपीिटं ग इट। रात सोते व दोहराते रह, म शांत हो
रहा ं , म शां त हो रहा ं , शांत हो रहा ं । दोहराते-दोहराते सो जाएं । कब नींद आ जाए, पता न चले; आप दोहराते
रह, म शां त हो रहा ं । आप मत क। नींद आ जाए, रोक दे , बात अलग। आप दोहराते चले जाएं ।

अगर रात सोते व आप दोहराते रह, म शां त हो रहा ं , म शांत हो रहा ं , तो नींद का ण जब आएगा, तो आपका
चे तन मन तो सो जाएगा, वह जो दोहरा रहा था, म शां त हो रहा ं , म शांत हो रहा ं । ले िकन म शां त हो रहा ं,
इसकी ित िन अचे तन म गूं जती रह जाएगी। वह रातभर आपके भीतर गूं जती रहे गी–म शां त हो रहा ं , म शांत हो
रहा ं ।

कुवे कहते ह, सु बह जब नींद खुले, तो पहली बात मन म दोहराना, म शां त हो रहा ं, म शां त हो रहा ं, म शां त हो
रहा ं । जब भी रण आ जाए, दोहराना, म शां त हो रहा ं ।
119

इस भां ित अगर आप दोहराते रह, तो आप अपने को आटो-िह ोटाइज कर लगे । आपको अशां ित रहे गी, ले िकन पता
नहीं चलेगी। आपको लगेगा, म शां त हो गया ं । यह यं को िदया गया धोखा है । यह शां ित झूठी है । यह शां ित केवल
म है ।

ले िकन यह हो जाता है । मन की यह मता है िक मन अपने को धोखा दे सकता है । मन की बड़ी मता से


िडसे शन है । खुद को धोखा दे ना मन की बड़ी मता है । अगर आप दोहराए चले जाएं , तो यह हो जाता है ।

अब तो मनोवै ािनक इसको ब त ठीक से ीकार करते ह िक यह हो जाता है । िजन ब ों को ू ल का िश क


कहता चला जाता है , तु म गधे हो, तु म गधे हो। और एक िश क ने कहा, तो दू सरा िश क दू सरी ास म िफर धारा
को पकड़ ले ता है िक तु म गधे हो। और एक ब ा सु नता है । वह भी मन म दोहराता है , म गधा ं । दू सरे लड़के भी
उसकी तरफ दे खते ह िक तु म गधे हो। घर जाता है , बाप भी कहता है िक तु म गधे हो। जहां जाता है, वहां पता चलता
है िक िसफ कान की कमी है, बाकी म गधा ं ! और जब इतने सब लोग कहते ह, तो इन सबको गलत करना भी ठीक
नहीं मालू म पड़ता। मन िफर इनको सही करने के उपाय खोजने लगता है िक सब लोग सही ही कहते होंगे। इतने
लोग जब कहते ह, तो इनको गलत कहना भी तो ठीक नहीं है ।

मनोवै ािनक कहते ह िक आज दु िनया म िजतने अ ौढ़ िच िदखाई पड़ते ह, उनका िज ेवार िश क, िश ा की


व था है , जहां इनको िह ोटाइज िकया जा रहा है िक तु म ऐसे हो, तु म ऐसे हो, तु म ऐसे हो। कहा जा रहा है ;
सिटिफकेट िदए जा रहे ह; अखबारों म नाम िदए जा रहे ह; िस हो जाता है िक वह आदमी ऐसा है ।

आपने कभी खयाल िकया है, बीमार पड़े हों िब र पर–सभी कभी न कभी पड़ते ह–आपने कभी खयाल िकया है िक
बीमार पड़े हों, बड़ी तकलीफ मालू म पड़ती है , बड़ी बेचैनी है, बड़ी भारी बीमारी है । डा र आया। डा र के बू ट
बजे, उसकी श िदखाई दी। उसका े थ ोप! थोड़ी बीमारी एकदम उसको दे खकर कम हो गई! अभी उसने
दवा नहीं दी है । डा र ने थोड़ा ठकठकाया, इधर-उधर ठोंका-पीटा। उसने अपना ेशलाइजेशन िदखाया िक हां!
िफर उसने कहा िक कोई बात नहीं, ब त साधारण है , कुछ खास नहीं है । दो िदन की दवा म ठीक हो जाएं गे । िफर
उसने िजतनी बड़ी फीस ली, उतना ही अथ मालू म पड़ा िक यह बात ठीक होगी ही।

आपने खयाल िकया है , डा र की दवा और उसका ि शन आने म तो थोड़ी दे र लगती है, ले िकन मरीज ठीक
होना शु हो जाता है । मन ने अपने को सु झाव िदया िक जब इतना बड़ा डा र कहता है, तो ठीक ह ही। अगर आप
बीमार पड़े ह और आपको पता चला िक डा र ने ऐसा कहा है िक िबलकुल ठीक ह, कोई खास बीमारी नहीं है, तो
त ाल आपके भीतर बीमारी ीण होने का अनुभव आपको आ होगा–त ाल! एक ताजगी आ गई है । बु खार कम
हो गया है । बीमारी ठीक होती मालू म पड़ती है । अभी कोई दवा नहीं दी गई है , तो यह प रणाम कैसे आ है?

पि म म डा र एक नई दवा पर काम करते ह, उस दवा को कहते ह, धोखे की दवा, ेसबो। बड़े है रान ए ह।
दस मरीज ह, दसों एक बीमारी के मरीज ह। पांच को दवा दी है और पां च को िसफ पानी िदया है । बड़ी मु ल है ।
दवा वाले भी तीन ठीक हो गए, पानी वाले भी तीन ठीक हो गए! अब दवा को ा कह? यह दवा थी नहीं; यह िसफ
पानी था। ले िकन दवा वाले भी, पां च म से तीन ठीक हो गए ह और ये भी पां च म से तीन ठीक हो गए ह, पानी वाले!
अब ा कह?

मनोिव ान तो कहता है िक अब तक की िजतनी दवाएं ह दु िनया म, वे िसफ सजे शन का काम करती ह। असली
प रणाम सजे शन का है , सु झाव का है । असली प रणाम दवा के त का नहीं है । इसीिलए तो इतनी पैथी चलती ह।
इतनी पैथी चल सकती ह? पागलपन की बात है । बीमारी अगर होगी, तो इतनी पैथी चल सकती ह वै ािनक अथ म?

हो ोपैथी भी चलती है ! और हो ोपैथी के नाम पर करीब-करीब श र की गोिलयां चलती ह। कम से कम


िहं दु ान म बनी तो िबलकुल श र की गोली ही होती ह। श र भी शु होगी, इसम सं देह है । बायो-केिम ी
चलती है । आठ तरह की दवाओं से सब बीमा रयां ठीक हो जाती ह! नेचरोपैथी चलती है ; दवा वगै रह की कोई
ज रत नहीं है! पेट पर पानी की प ी या िम ी की प ी से भी बीमार ठीक होते ह! जं , मं , तं –सब चलता है ।
जादू -टोना चलता है । सब चलता है । ा, मामला ा है ? और आदमी सबसे ठीक होता है !
120

आदमी के ठीक होने के ढं ग बड़े अजीब ह। शक इस बात का है िक आदमी की अिधक बीमा रयां भी उसके सु झाव
होती ह, िक उसने माना है िक वह बीमार आ है । और आदमी का अिधकतर ा भी उसका सु झाव होता है िक
उसने माना है िक वह ठीक आ है । बीमा रयां भी ब त मायनों म झूठी होती ह, मन का खेल। और उसके ा के
प रणाम भी झूठे होते ह, मन का खेल। ले िकन मन आटो-सजे बल है, अपने को सु झाव दे सकता है ।

उस तरह की शां ित झूठी है , जो कुवे की प ित से आती है । जो कहती है िक तु म शां त हो रहे हो। इसको माने चले
जाओ, कहे चले जाओ, दोहराए चले जाओ–शांत हो जाओगे ।

ज र शां त हो जाएं गे। ले िकन वै सी शांित िसफ सतह पर िदया गया धोखा है । वह शां ित वै सी है , जै से नाली के ऊपर
हमने फूलों को िबछा िदया हो, तो णभर को धोखा हो जाए। हां, िकसी नेता की पालकी िनकलती हो सड़क से, तो
काफी है । चले गा। णभर को धोखा हो जाए, कोई नाली नहीं है , फूल िबछे ह। ले िकन घड़ीभर बाद फूल कु ला
जाएं गे, नाली की दु गध फूलों के पार आकर फैलने लगे गी। थोड़ी दे र म नाली फूलों को डु बा लेगी।

झूठी शां ित हो सकती है –सु झाव से, स ोहन से । और स ोहन की हजार तरह की िविधयां दु िनया म चिलत ह,
िजनसे आदमी अपने को मान ले सकता है िक म शां त ं । और भी रा े ह। और भी रा े ह, िजनसे आदमी अपने
को शांत करने के खयाल म डाल सकता है । ले िकन उन रा ों से शां त आ आदमी भीतर नहीं जा सकेगा। जबद ी
भी अपने को शां त कर सकते ह। जबद ी भी अपने को शां त कर सकते ह! अगर अपने से लड़े ही चले जाएं , और
जबद ी अपने ऊपर िकए चले जाएं सब तरह की, तो अपने को शांत कर सकते ह।

ले िकन वह शां ित होगी बस, जबद ी की शां ित। भीतर उबलता आ तू फान होगा। भीतर जलती ई आग होगी।
ठीक ालामुखी भीतर उबलता रहे गा और ऊपर सब शां त मालू म पड़े गा।

ऐसे शां त ब त लोग ह, जो ऊपर से शां त िदखाई पड़ते ह। ले िकन इनके भीतर ब त ालामुखी है , उबलते रहते ह।
हां, ऊपर से उ ोंने एक व था कर ली है । जबद ी की एक िडिस न, एक आउटर िडिस न, एक बा
अनुशासन अपने ऊपर थोप िलया है । ठीक समय पर सोकर उठते ह। ठीक भोजन ले ते ह। ठीक बात जो बोलनी
चािहए, बोलते ह। ठीक श जो पढ़ने चािहए, पढ़ते ह। ठीक समय सो जाते ह। यं वत घू मते ह। गलत का भाव न
पड़ जाए, उससे बचते ह। िजस भाव म उनको जीना है , शां ित म जीना है, उसका धु आं अपने चारों तरफ पैदा रखते
ह। तो िफर एक-एक सतह ऊपर की पत शां त िदखाई पड़ने लगती है और भीतर सब अशांत बना रहता है ।

कृ कहते ह सशत बात, ठीक प से हो गया है मन शां त िजसका।

िकसका होता है ठीक प से िफर शां त मन? ठीक प से शांत उसका होता है , जो शां ित की चे ा ही नहीं करता,
वरन ठीक इसके िवपरीत अशां ित को समझने की चे ा करता है। इसको फक समझ ल आप। झूठे ढं ग से शां त होता
है वह मन, जो अशांित के कारणों की तो िफ ही नहीं करता िक म अशांत ों ं, शां त करने की िफ करता चला
जाता है । भीतर अशांित के कारण बने रहते ह पूववत, भीतर अशां ित का सब कुछ जाल, व था मौजू द रहती है
पूववत, और वह ऊपर से शां त करने का इं तजाम करता चला जाता है ।

जो अपने भीतर की अशां ित के ऊपर शां ित को आरोिपत करता है, वह गलत ढं ग की शां ित को उपल होता
है । वह ान म नहीं ले जाने वाली है । िफर ठीक ढं ग की शां ित का अथ आ, जो अपने भीतर के अशां ित के
कारणों को समझता है ।

ान रहे, ठीक ढं ग की शां ित शां ित लाने से आती ही नहीं। ठीक ढं ग की शां ित अशां ित के कारणों को समझकर,
अशां ित को िनमं ण दे ने के हमने जो इं तजाम िकए ह, उनको समझकर आती है ।

आप अशां त ों ह, इसे समझ। यही बु िनयादी बात है । शां त कैसे हों, इसे मत समझ। यह बु िनयादी बात नहीं है ।
अशां त ों ह?
121

अशां ित के कारण िदखाई पड़गे; ह ही। हम ही अपने को अशांत करते ह। कारण ह भीतर हमारे । अशांित के कारणों
को समझ। और जब अशांित के कारण ब त िदखाई पड़गे , तो आपके हाथ म है । अब आप अशां त होना चाह,
तो मजे से हों, कुशलता से हों, ढं ग से हों, पूरी व था से हों; न होना चाह, तो कोई दू सरा आपको कह नहीं रहा है
िक आप अशां त हों।

अशां ित के कारण ह। ले िकन हम ऐसे लोग ह िक एक तरफ शां त होने की व था करते ह, दू सरी तरफ अशांित के
बीजों को पानी डालते चले जाते ह!

अब एक आदमी कहता है िक मुझे शां त होना है , ले िकन अहं कार का पोषण िकए चला जाता है । अब उसको कोई
कहे िक वह शांत होगा कैसे! एक तरफ कहता है, शां त होना है , दू सरी तरफ प र ह के िलए पागल आ चला जाता
है िक एक चीज और बढ़ जाए घर म तो ग उतर आएगा! अब वह एक तरफ शां त होना चाहता है ! शायद वह
इसीिलए शांत होना चाहता है िक जो फन चर अभी नहीं उपल कर पाता है, शायद शां त होकर उपल कर ले । जो
दु कान अभी ठीक से नहीं चलती, शायद शांत होने से ठीक चलने लगे । शांत भी वह इसीिलए शायद होना चाहता है
िक अशांित का जो इं तजाम कर रहा है, उसम जरा और कुशलता और व था आ जाए।

अभी एक यु वक मेरे पास आया। उसने कहा िक मन ब त अशां त है , परी ा पास है । मेिडकल काले ज का िव ाथ
है । परी ा पास है, मन ब त अशां त है । कोई रा ा बताएं िक मेरा मन शां त हो जाए। मने कहा, शां त करना िकसिलए
चाहते हो? करोगे ा शांत करके? उसने कहा, करना िकसिलए चाहता ं ? आप भी ा बात पूछते ह! मुझे गो
मेडल लाना है परी ा म। तो शां त ए िबना ब त मु ल है ।

मने कहा िक तू मुझे माफ कर, नहीं पीछे मुझे बदनाम करे गा िक मुझसे पूछा, मने रा ा बताया और तू शां त नहीं हो
पाया! ोंिक गो मेडल िजसे लाना है, वह अशां ित का तो सब आरोपण िकए चला जा रहा है ; अशां ित का कारण
थोपता चला जा रहा है । मेरा अहं कार दू सरों के अहं कार के सामने ण-मंिडत िदखाई पड़े । म सबके आगे खड़ा हो
जाऊं। यही तो अशांित की जड़ है । और तू शांत होना चाहता है इसीिलए, तािक सबके पहले खड़ा हो जाए! तू उलटी
बात कर रहा है । अगर तु झे शांत होना है , तो पहले तो तू यह समझ, अशांत तू कब से आ है !

उसने कहा िक आप ठीक ही कहते ह, जब से यह गो मेडल मेरे िदमाग म चढ़ा है , तभी से म अशांत ं । पहले म
ऐसा अशांत नहीं था। िपछले वष बड़ी मु ल हो गई िक म फ ास आ गया। उसके पहले तो म कभी फ
ास आया नहीं था। गो मेडल कभी मेरे िसर ने न पकड़ा था। िपछले साल गड़बड़ हो गई। तब से म िबलकुल
अशां त ं । न नींद है, न चै न है । गो मेडल िदखाई पड़ता है । वह नहीं आया, तो ा होगा! कोई शां ित की तरकीब
बता द िक म शांत हो जाऊं, तो यह गो मेडल–कम से कम इस सालभर शां त रह जाऊं, बस!

अब यह आदमी जो पूछ रहा है , यह हम सब का यही पूछना है । हम शां त इसीिलए होना चाहते ह, तािक अशां ित की
बिगया को ठीक से प िवत कर सक। ब त मजे दार है आदमी का मन। तो िफर शांित झूठी ही होगी। िफर ऊपर से
िछड़कने वाली शां ित होगी। भीतर तो कुछ होने वाला नहीं है ।

इसिलए कृ जब कहते ह, ठीक प से शांत हो गया मन िजसका, तो वे कहते ह िक िजसने अशां त होने के कारण
छोड़ िदए ह।

और अशांत होने के कारण आपने छोड़े िक मन ऐसे ही शां त हो जाता है, जै से कोई वृ की शाखा को खींचकर खड़ा
हो जाए हाथ से, और रा े से आप गु जर और आपसे पूछे िक मुझे इस वृ की शाखा को इसकी जगह वापस
प ं चाना है , ा क ं ? तो आप कह िक कृपा करके वृ की शाखा को उसकी जगह प ंचाने का आप कोई इं तजाम
न कर, िसफ इसे पकड़कर मत खड़े रह, इसे छोड़ द। यह अपने से अपनी जगह प ंच जाएगी। वृ काफी समथ है ।
आप कृपा करके इसे छोड़। आप प ं चाने का कोई उपाय न कर। वृ को आपकी सहायता की कोई भी ज रत नहीं
है । आप िसफ छोड़। ले िकन वह आदमी कहे िक अगर म छोड़ दू ं और यह अपनी जगह न प ं च पाए, तो बड़ी
किठनाई होगी। म इसीिलए पकड़े खड़ा ं िक जब मुझे ठीक िविध िमल जाए, तो इसकी जगह इसको प ं चाकर
अपने घर जाऊं!
122

वह आदमी ठीक कहता मालू म पड़ता है । वह कहता है िक म इसीिलए पकड़े खड़ा ं िक कहीं शाखा भटक न जाए
इधर-उधर। तो जब मुझे कोई ठीक िविध बताने वाला आदमी िमल जाएगा, कोई सदगु , तो म इसे इसकी जगह
प ं चाकर अपने घर चला जाऊंगा!

कृपा कर, उससे कह िक तू हाथ छोड़ दे इस शाखा का, यह अपनी जगह प ंच जाएगी। यह ते री वजह से परे शानी म
है और अटकी है । तू छोड़! यह अपने आप चली जाएगी।

आपने कभी दे खा है, शाखा जब छोड़ द आप हाथ से, तो एकदम अपनी जगह पर नहीं चली जाती। कई बार डोलती
है । पहले लं बा डोल ले ती है , िफर छोटा, िफर और छोटा, िफर और छोटा, िफर और छोटा। िफर कंपती रहती है ।
िफर कंपते-कंपते शां त हो जाती है । ों? ोंिक आपने खींचकर उसके साथ जो कशमकश की, और आपने जो
इतनी श खींचकर लगाई, उसको उसे फकना पड़ता है , ोइं ग आउट। उस श को वह बाहर फकती है ,
िछड़कती है । नहीं तो वह अपनी जगह नहीं प ं च पाएगी, जब तक आपके हाथ से दी गई श को फक न दे । उसे
फकने के िलए वह कंपती है , डोलती है , उसे बाहर िनकालती है , िफर अपनी जगह वापस प ंच जाती है ।

ठीक ऐसे ही िच अशांित के कारणों से अटका है । आप कहते ह, शां त कैसे हो जाएं ? तो गलत पूछते ह। आप इतना
ही पूछ िक अशां त कैसे हो गए? और कृपा करके जहां-जहां अशां ित िदखाई पड़े , उस-उस कारण को छोड़ द। िच
अपने आप थोड़ा कंपेगा, डोले गा। कम डोले गा, कम डोले गा, वापस अपनी जगह शां त हो जाएगा। और जब िच सब
अशां ित के कारणों से छूटकर अपनी जगह प ंच जाता है , तो अपनी जगह प ंच गए िच का नाम ही शां ित है । -
थान पर प ंच गया िच शां ित है ।

कहां-कहां आपने अटकाया है िच को, वहां-वहां से हटा द। हटा द, अथात न अटकाएं , बस। हटाने के िलए कुछ
और आपको अलग से करने की ज रत नहीं है, िसफ न अटकाएं । यों से अटकाया है , व ु ओ ं से अटकाया है,
अहं कार से बां धा है , यश, स ान–िकससे बां धा है ? कहां से अशां ित पकड़ रही है ? उसे वहां से हट जाने द। िच
शां त हो जाएगा। और तब कृ जो कहते ह, वह समझ म आएगा–ठीक प से शां त आ िच ।

ठीक प से शां त आ िच वह है , िजसके भीतर अशां ित के कोई कारण न रहे–तब। अ था आप जो भी करगे, वह


सब गै र-ठीक प से ई शां ित होगी। और उस शां ित से कोई ार समािध का नहीं खुलता। वह अंतर-गु हा के ार
ठीक शां ित से ही गु जरते ह।

ये दो बात खयाल म रखगे, तो अंतर-गु हा के पास प ं चने म िनरं तर आसानी होती चली जाती है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


योगा ास–गलत को काटने के िलए (अ ाय-6) वचन—आठवां

ना त ु योगोऽ न चैका मन तः।


न चाित शील जा तो नैव चाजु न।। 16।।
यु ाहारिवहार यु चे कमसु ।
यु ावबोध योगो भवित दु ःखहा।। 17।।

परं तु हे अजु न, यह योग न तो ब त खाने वाले का िस होता है और न िबलकुल न खाने वाले का तथा न अित शयन
करने के भाव वाले का और न अ ं त जागने वाले का ही िस होता है ।
123

यह दु खों का नाश करने वाला योग तो यथायो आहार और िवहार करने वाले का तथा कम म यथायो चे ा करने
वाले का और यथायो शयन करने तथा जागने वाले का ही िस होता है ।

सम -योग की और एक िदशा का िववेचन कृ करते ह। कहते ह वे, अित–चाहे िन ा म, चाहे भोजन म, चाहे
जागरण म–समता लाने म बाधा है । िकसी भी बात की अित, को असंतुिलत कर जाती है , अनबै ल ड कर
जाती है ।

े क व ु का एक अनुपात है; उस अनुपात से कम या ादा हो, तो को नुकसान प ं चने शु हो जाते ह।


दो ीन बात खयाल म ले ले नी चािहए।

एक, आधारभूत। एक ब त जिटल व था है, ब त कां े यु िनटी है । का िकतना जिटल


है , इसका हम खयाल भी नहीं होता। इसीिलए कृित खयाल भी नहीं दे ती, ोंिक उतनी जिटलता को जानकर जीना
किठन हो जाएगा।

एक छोटा-सा उतना ही जिटल है, िजतना यह पूरा ांड। उसकी जिटलता म कोई कमी नहीं है । और एक
िलहाज से ां ड से भी ादा जिटल हो जाता है , ोंिक िव ार ब त कम है का और जिटलता ां ड जै सी
है । एक साधारण से शरीर म सात करोड़ जीवाणु ह। आप एक बड़ी ब ी ह, िजतनी बड़ी कोई ब ी पृ ी पर नहीं
है । टोिकयो की आबादी एक करोड़ है । अगर टोिकयो सात गु ना हो जाए, तो िजतने मनु टोिकयो म होंगे, उतने
जीवकोश एक-एक म ह।

सात करोड़ जीवकोशों की एक बड़ी ब ी ह आप। इसीिलए सां ने, योग ने आपको जो नाम िदया है, वह िदया है ,
पु ष। पु ष का अथ है , एक ब त बड़ी पुरी के बीच रहते ह आप, एक ब त बड़े नगर के बीच। आप खुद एक बड़े
नगर ह, एक बड़ा पुर। उसके बीच आप जो ह, उसको पु ष कहा है । इसीिलए कहा है पु ष िक आप छोटी-मोटी
घटना नहीं ह; एक महानगरी आपके भीतर जी रही है ।

एक छोटे -से म म कोई तीन अरब ायु तं तु ह। एक छोटा-सा जीवकोश भी कोई सरल घटना नहीं है; अित
जिटल घटना है । ये जो सात करोड़ जीवकोश शरीर म ह, उनम एक जीवकोश भी अित किठन घटना है । अभी तक
वै ािनक–अभी तक–उसे समझने म समथ नहीं थे । अब जाकर उसकी मौिलक रचना को समझने म समथ हो पाए
ह। अब जाकर पता चला है िक उस छोटे से जीवकोश, िजसके सात करोड़ सं बंिधयों से आप िनिमत होते ह, उसकी
रासायिनक ि या ा है ।

यह सारा का सारा जो इतना बड़ा व था का जाल है आपका, इस व था म एक सं गीत, एक लयब ता,


एकतानता, एक हामनी अगर न हो, तो आप भीतर वेश न कर पाएं गे । अगर यह पूरा का पूरा आपका जो पुर है ,
आपकी जो महानगरी है शरीर की, मन की, अगर यह अ व थत, केआिटक, अराजक है , अगर यह पूरी की पूरी
नगरी िवि है , तो आप भीतर वे श न कर पाएं गे ।

आपके भीतर वे श के िलए ज री है िक यह पूरा नगर सं गीतब , लयब , शां त, मौन, फु त, आनंिदत हो, तो
आप इसम भीतर आसानी से वे श कर पाएं गे । अ था ब त छोटी-सी चीज आपको बाहर अटका दे गी–ब त छोटी-
सी चीज। और अटका दे ती है इसिलए भी िक चे तना का भाव ही यही है िक वह आपके शरीर म कहां कोई दु घटना
हो रही है , उसकी खबर दे ती रहे ।

तो अगर आपके शरीर म कहीं भी कोई दु घटना हो रही है, तो चे तना उस दु घटना म उलझी रहे गी। वह इमरजसी,
ता ािलक ज रत है उसकी, आपातकालीन ज रत है िक सारे शरीर को भू ल जाएगी और जहां पीड़ा है ,
अराजकता है , लय टू ट गई है, वहां ान अटक जाएगा।

छोटा-सा कां टा पैर म गड़ गया, तो सारी चे तना कां टे की तरफ दौड़ने लगती है । छोटा-सा कां टा! बड़ी ताकत उसकी
नहीं है , ले िकन उस छोटे -से कांटे की ब त छोटी-सी नोक भी आपके भीतर सै कड़ों जीवकोशों को पीड़ा म डाल दे ती
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है और तब चे तना उस तरफ दौड़ने लगती है । शरीर का कोई भी िह ा अगर जरा-सा भी है, तो चे तना का
अंतगमन किठन हो जाएगा। चेतना उस िह े पर अटक जाएगी।

अगर ठीक से समझ, तो हम ऐसा कह सकते ह िक ा का अथ ही यही होता है िक आपकी चेतना को शरीर म
कहीं भी अटकने की ज रत न हो।

आपको िसर का तभी पता चलता है, जब िसर म भार हो, पीड़ा हो, दद हो। अ था पता नहीं चलता। आप िबना िसर
के जीते ह, जब तक दद न हो। अगर ठीक से समझ, तो हे डेक ही हे ड है । उसके िबना आपको पता नहीं चलता िसर
का। िसरदद हो, तो ही पता चलता है । पेट म तकलीफ हो, तो पेट का पता चलता है । हाथ म पीड़ा हो, तो हाथ का
पता चलता है ।

अगर आपका शरीर पूण थ है , तो आपको शरीर का पता नहीं चलता; आप िवदे ह हो जाते ह। आपको दे ह का
रण रखने की ज रत नहीं रह जाती। ज रत ही रण रखने की तब पड़ती है , जब दे ह िकसी आपातकालीन
व था से गु जर रही हो, तकलीफ म पड़ी हो, तो िफर ान रखना पड़ता है । और उस समय सारे शरीर का ान
छोड़कर, आ ा का ान छोड़कर उस छोटे -से अंग पर सारी चे तना दौड़ने लगती है , जहां पीड़ा है!

कृ का यह सम -योग शरीर के सं बंध म यह सू चना आपको दे ता है । अजु न को कृ कहते ह िक यिद ादा


आहार िलया, तो भी योग म वेश न हो सकेगा। ोंिक ादा आहार ले ते ही सारी चेतना पेट की तरफ दौड़नी शु
हो जाती है ।

इसिलए आपको खयाल होगा, भोजन के बाद नींद मालू म होने लगती है । नींद का और कोई वै ािनक कारण नहीं है ।
नींद का वै ािनक कारण यही है िक जै से ही आपने भोजन िलया, चेतना पेट की तरफ वािहत हो जाती है । और
म चेतना से खाली होने लगता है । इसिलए म धुंधला, िनि त, तं ा से भरने लगता है। ादा भोजन ले
िलया, तो ादा नींद मालू म होने लगे गी, ोंिक पेट को इतनी चे तना की ज रत है िक अब म काम नहीं कर
सकता। इसिलए भोजन के बाद म का कोई काम करना किठन है । और अगर आप जबद ी कर, तो पेट को
पचने म तकलीफ पड़ जाएगी, ोंिक उतनी चेतना िजतनी पचाने के िलए ज री है, पेट को उपल नहीं होगी।

तो अगर अित भोजन िकया, तो चे तना पेट की तरफ जाएगी; और अगर कम भोजन िकया या भू खे रहे , तो भी चेतना
पेट की तरफ जाएगी। दो थितयों म चेतना पेट की तरफ दौड़े गी। ज रत से कम भोजन िकया, तो भी भू ख की
खबर पेट दे ता रहे गा िक और, और; और ज रत है । और अगर ादा ले िलया, तो पेट कहे गा, ादा ले िलया; इतने
की ज रत न थी। और पेट पीड़ा का थल बन जाएगा। और तब आपकी चे तना पेट से अटक जाएगी। गहरे नहीं जा
सकेगी।

कृ कहते ह, भोजन ऐसा िक न कम, न ादा।

तो एक ऐसा िबं दु है भोजन का, जहां न कम है , न ादा है । िजस िदन आप उस अनुपात म भोजन करना सीख
जाएं गे, उस िदन पेट को चे तना मां गने की कोई ज रत नहीं पड़ती। उस िदन चेतना कहीं भी या ा कर सकती है ।

अगर आप कम सोए, तो शरीर का रोआं -रोआं , अणु-अणु पुकार करता रहे गा िक िव ाम नहीं िमला, थकान हो गई
है । शरीर का अणु-अणु आपसे पूरे िदन कहता रहे गा िक सो जाओ, सो जाओ; थकान मालू म होती ह; ज ाई आती
रहे गी। चे तना आपकी शरीर के िव ाम के िलए आतु र रहे गी।

अगर आप ादा सोने की आदत बना िलए ह, तो शरीर ज रत से ादा अगर सो जाए या ज रत से ादा उसे
सु ला िदया जाए, तो सु हो जाएगा; आल से, माद से भर जाएगा। और चे तना िदनभर उसके माद से पीिड़त
रहे गी। नींद का भी एक अनुपात है , गिणत है । और उतनी ही नींद, जहां न तो शरीर कहे िक कम सोए, न शरीर कहे
ादा सोए, ानी के िलए सहयोगी है ।
125

इसिलए कृ एक ब त वै ािनक त की बात कर रहे ह। सानुपात चािहए, अनुपातहीन नहीं। अनुपातहीन


अराजक, केआिटक हो जाएगा। उसके भीतर की जो लयब ता है , वह िव ंखल हो जाएगी, टू ट जाएगी।
और टू टी ई िव ंखल थित म, ान म वेश आसान नहीं होगा। आपने अपने ही हाथ से उप व पैदा कर िलए ह
और उन उप वों के कारण आप भीतर न जा सकगे । और हम सब ऐसे उप व पैदा करते ह, अनेक कारणों से; वे
कारण खयाल म ले ले ने चािहए।

पहला तो इसिलए उप व पैदा हो जाता है िक हम इस स को अब तक भी ठीक से नहीं समझ पाए ह िक अनुपात


ेक के िलए िभ होगा। इसिलए हो सकता है िक िपता की नींद खुल जाती है चार बजे , तो घर के सारे ब ों
को उठा दे िक मु त हो गया, उठो। नहीं उठते हो, तो आलसी हो।

ले िकन िपता को पता होना चािहए, उ बढ़ते -बढ़ते नींद की ज रत शरीर के िलए रोज कम होती चली जाती है । तो
बाप जब ब त ान िदखला रहा है बे टे को, तब उसे पता नहीं िक बे टे की और उसकी उ म िकतना फासला है ! बे टे
को ादा नींद की ज रत है ।

मां के पेट म ब ा नौ महीने तक चौबीस घं टे सोता है ; जरा भी नहीं जगता। ोंिक शरीर िनिमत हो रहा होता है , ब े
का जगना खतरनाक है । ब े को चौबीस घं टे िन ा रहती है । इतना कृित भीतर काम कर रही है िक ब े की चेतना
उसम बाधा बन जाएगी; उसे िबलकुल बे होश रखती है । डा रों ने तो ब त बाद म आपरे शन करने के िलए बे होशी,
अने थे िसया खोजा; कृित सदा से अने थे िसया का योग कर रही है । जब भी कोई बड़ा आपरे शन चल रहा है , कोई
बड़ी घटना घट रही है , तब कृित बे होश रखती है ।

चौबीस घं टे ब ा सोया रहता है । मां स बन रहा है, म ा बन रही है, तं तु बन रहे ह। उसका चेतन होना बाधा डाल
सकता है । िफर ब ा पैदा होने के बाद ते ईस घं टे सोता है , बाईस घं टे सोता है , बीस घं टे सोता है , अठारह घं टे सोता
है । उ जै से-जै से बड़ी होती है , नींद कम होती चली जाती है ।

इसिलए बू ढ़े कभी भू लकर ब ों को अपनी नींद से िश ा न द। अ था उनको नुकसान प ंचाएं गे, उनके अनुपात को
तोड़गे । ले िकन बू ढ़ों को िश ा दे ने का शौक होता है । बु ढ़ापे का खास शौक िश ा दे ना है , िबना इस बात की समझ
के।

इसिलए हम ब ों के अनुपात को पहले से ही िबगाड़ना शु कर दे ते ह। और अनुपात जब िबगड़ता है , तो खतरा


ा है ?

अगर आपने ब े को कम सोने िदया, जबद ी उठा िलया, तो इसकी िति या म वह िकसी िदन ादा सोने का
बदला ले गा। और तब उसके सब अनुपात असंतुिलत हो जाएं गे। अगर आप जीते, तो वह कम सोने वाला बन जाएगा।
और अगर खुद जीत गया, तो ादा सोने वाला बन जाएगा। ले िकन अनुपात खो जाएगा।

अगर मां -बाप बलशाली ए, पुराने ढां चे और ढर के ए, तो उसकी नींद को कम करवा दगे । और अगर ब ा नए
ढं ग का, नई पीढ़ी का आ, उप वी आ, बगावती आ, तो ादा सोना शु कर दे गा। ले िकन एक बात प ी है
िक दो म से कोई भी जीते, कृित हार जाएगी; और वह जो बीच का अनुपात है , वह सदा के िलए अ हो
जाएगा।

बू ढ़े आदमी को जब मौत करीब आने लगती है , तो तीन-चार घं टे से ादा की नींद की कोई ज रत नहीं रहती।
उसका कारण है िक शरीर म अब कोई िनमाण नहीं होता, शरीर अब िनिमत नहीं होता। अब शरीर िवसिजत होने की
तै यारी कर रहा है । नींद की कोई ज रत नहीं है । नींद िनमाणकारी त है । उसकी ज रत तभी तक है, जब तक
शरीर म कुछ नया बनता है । जब शरीर म सब नया बनना बं द हो गया, तो बू ढ़े आदमी को ठीक से कह तो नींद नहीं
आती; वह िसफ िव ाम करता है ; वह थकान है । ब े ही सोते ह ठीक से; बू ढ़े तो िसफ थककर िव ाम करते ह।
ोंिक अब मौत करीब आ रही है । अब शरीर को कोई नया िनमाण नहीं करना है ।
126

ले िकन दु िनया के सभी िश क– भावतः, बू ढ़े आदमी िश क होते ह–वे खबर दे जाते ह, चार बजे उठो, तीन बजे
उठो। किठनाई खड़ी होती है । बू ढ़े िश क होते ह; ब ों को मानकर चलना पड़ता है । अनुपात टू ट जाते ह।

भोजन के सं बंध म भी वै सा ही होता है । बचपन से ही, ब ों को िकतना भोजन चािहए, यह ब े की कृित को हम


तय नहीं करने दे ते। यह मां अपने आ ह से िनणय ले ती है िक िकतना भोजन। ब े अ र इनकार करते दे खे जाते ह
घर-घर म िक नहीं खाना है । और मां -बाप मोहवश ादा खलाने की कोिशश म सं ल ह! और एक बार कृित ने
सं तुलन छोड़ िदया, तो िवपरीत अित पर जा सकती है , ले िकन सं तुलन पर लौटना मु ल हो जाता है ।

हम सब ब ों की सोने की, खाने की सारी आदत न करते ह। और िफर िजं दगीभर परे शान रहते ह। वह िजंदगीभर
के िलए परे शानी हो जाती है ।

इजरायल म एक िचिक क ने एक ब त अनूठा योग िकया है । योग यह है , है रान करने वाला योग है । उसे यह
खयाल पकड़ा ब ों का इलाज करते-करते िक ब ों की अिधकतम बीमा रयां मां -बाप की भोजन खलाने की
आ हपूण वृ ि से पैदा होती ह। ब ों का िचिक क है, तो उसने कुछ ब ों पर योग करना शु िकया। और िसफ
भोजन रख िदया टे बल पर सब तरह का और ब ों को छोड़ िदया। उ जो खाना है , वे खा ल। नहीं खाना है , न
खाएं । िजतना खाना है, खा ल। नहीं खाना है, िबलकुल न खाएं । फकना है , फक द। खेलना है , खेल ल। जो करना है!
और िवदा हो जाएं ।

वह इस योग से एक अजीब िन ष पर प ं चा। वह िन ष यह था िक ब े को अगर कोई खास बीमारी है, तो उस


बीमारी म जो भोजन नहीं िकया जा सकता, वह ब ा छोड़ दे गा टे बल पर, चाहे िकतना ही ािद उसे बनाया गया
हो। उस बीमारी म उस ब े को जो भोजन नहीं करना चािहए, वह नहीं ही करे गा। और एक ब े पर नहीं, ऐसा
सै कड़ों ब ों पर योग करके उसने नतीजे िलए ह। और उस ब े को उस समय िजस भोजन की ज रत है, वह
उसको चु न ले गा, उस टे बल पर। इसको वह कहता है, यह इं ं व है; यह ब े की कृित का ही िह ा है ।

यह े क पशु की कृित का िह ा है । िसफ आदमी ने अपनी कृित को िवकृत िकया आ है । सं ृ ित के नाम पर


िवकृित ही हाथ लगती है । कृित भी खो जाती मालू म पड़ती है। कोई जानवर गलत भोजन करने को राजी नहीं होता,
जब तक िक आदमी उसको मजबू र न कर दे । जो उसका भोजन है , वह वही भोजन करता है ।

और बड़े मजे की बात है िक कोई भी जानवर अगर जरा ही बीमार हो जाए, तो भोजन बं द कर दे ता है । ब अिधक
जानवर जै से ही बीमार हो जाएं , भोजन ही बं द नहीं करते, ब सब जानवरों की अपनी व था है , वॉिमट करने
की। वह जो पेट म भोजन है, उसे भी बाहर फक दे ते ह। अगर आपके कु े को जरा पेट म तकलीफ मालू म ई, वह
जाकर घास चबा ले गा और उ ी करके सारे पेट को खाली कर ले गा। और तब तक भोजन न ले गा, जब तक पेट
वापस सु व थत न हो जाए।

िसफ आदमी एक ऐसा जानवर है , जो कृित की कोई आवाज नहीं सु नता। ले िकन हम बचपन से िबगाड़ना शु
करते ह। इसिलए इस िचिक क का कहना है िक सब ब े इं ं वली जो ठीक है , वही करते ह। ले िकन बड़े उ
िबगाड़ने म इस बु री तरह से लगे रहते ह िक िजसका कोई िहसाब नहीं है ! जब उ भू ख नहीं है , तब उनको मां दू ध
िपलाए जा रही है ! जब उनको भू ख लगी है , तब मां ंगार म लगी है; उनको दू ध नहीं िपला सकती! सब अ हो
जाता है ।

इसिलए भी हमारा भोजन, हमारी िन ा, हमारा जागरण, हमारे जीवन की सारी चया अितयों म डोल जाती है , सम य
को खो दे ती है ।

दू सरी बात, ेक की ज रत अलग है । उ की ही नहीं, एक ही उ के दस ब ों की ज रत भी अलग है ।


एक ही उ के दस वृ ों की भी ज रत अलग है । एक ही उ के दस यु वाओं की भी ज रत अलग है । जो भी
िनयम बनाए जाते ह, वे एवरे ज पर बनते ह–जो भी िनयम बनाए जाते ह।
127

जै से िक कहा जाता है िक हर आदमी को कम से कम सात घं टे की नींद ज री है । ले िकन िकस आदमी को? यह


िकसी आदमी के िलए नहीं कहा गया है । यह सारी दु िनया के आदिमयों की अगर हम सं ा िगन ल और सारे
आदिमयों के नींद के घं टे िगनकर उसम भाग दे द, तो सात आता है ; यह एवरे ज है । एवरे ज से ादा अस कोई
चीज नहीं होती।

जै से अहमदाबाद म एवरे ज हाइट ा है आदिमयों की? ऊंचाई ा है औसत? तो सब आदिमयों की ऊंचाई नाप ल।
उसम छोटे ब े भी होंगे, जवान भी होंगे, बू ढ़े भी होंगे, यां भी होंगी, पु ष भी होंगे। सबकी ऊंचाई नापकर, िफर
सबकी सं ा का भाग दे द। तो जो ऊंचाई आएगी, उस ऊंचाई का शायद ही एकाध आदमी अहमदाबाद म खोजने
से िमले –उस ऊंचाई का! वह औसत ऊंचाई है । उस ऊंचाई का आदमी खोजने आप मत जाना। वह नहीं िमले गा।

सब िनयम औसत से िनिमत होते ह। औसत कामचलाऊ है, स नहीं है । िकसी को पां च घं टे सोना ज री है । िकसी
को छः घं टे, िकसी को सात घं टे। कोई दू सरा आदमी तय नहीं कर सकता िक िकतना ज री है । आपको ही अपना
तय करना पड़ता है । योग से ही तय करना पड़ता है । और किठन नहीं है ।

अगर आप ईमानदारी से योग कर, तो आप तय कर लगे, आपको िकतनी नींद ज री है । िजतनी नींद के बाद
आपको पुनः नींद का खयाल न आता हो, और िजतनी नींद के बाद आल न पकड़ता हो, ताजगी आ जाती हो, वह
िबं दु आपकी नींद का िबं दु है ।

समय भी तय नहीं िकया जा सकता िक छः बजे शाम सो जाएं , िक आठ बजे, िक बारह बजे रात; िक सु बह छः बजे
उठ, िक चार बजे, िक सात बजे! वह भी तय नहीं िकया जा सकता। वह भी ेक के शरीर की आं त रक
ज रत िभ है । और उस िभ ज रत के अनुसार ेक को अपना तय करना चािहए।

ले िकन हमारी व था गड़बड़ है । हमारी व था ऐसी है िक सबको एक व पर भोजन करना है । सबको एक


व पर द र जाना है । सबको एक समय ू ल प ं चना है । सबको एक समय घर लौटना है । हमारी पूरी की पूरी
व था यों को ान म रखकर नहीं है । हमारी पूरी व था िनयमों को ान म रखकर है । हालां िक इससे
कोई फायदा नहीं होता, भयं कर नुकसान होता है । और अगर हम फायदे और नुकसान का िहसाब लगाएं , तो
नुकसान भारी होता है ।

अभी अमे रका के एक िवचारक बक िमलर ने एक ब त कीमती सु झाव िदया है जीवनभर के िवचार और अनुसंधान
के बाद। और वह यह है िक सभी ू ल एक समय नहीं खुलने चािहए। यह तो ू ल म भत होने वाले ब ों पर िनभर
करना चािहए िक वे िकतने बजे उठते ह; उस िहसाब से उनके ू ल म भत हो जाए। कई तरह के ू ल गांव म होने
चािहए। सभी होटलों म एक ही समय, खाने के समय पर लोग प ं च जाएं , यह उिचत नहीं है । सब लोगों के खाने का
समय उनकी आं त रक ज रत से तय होना चािहए।

और इससे फायदे भी ब त होंगे।

सभी द र एक समय खोलने की कोई भी तो ज रत नहीं है । सभी दू कान भी एक समय खोलने की कोई ज रत
नहीं है । इसके बड़े फायदे तो ये होंगे िक अभी हम एक ही रा े पर ारह बजे टै िफक जाम कर दे ते ह; वह जाम
नहीं होगा। अभी िजतनी बसों की ज रत है , उससे तीन गु नी कम बसों की ज रत होगी। अभी एक मकान म एक
ही द र चलता है छः घं टे और बाकी व पूरा मकान बे कार पड़ा रहता है । तब एक ही मकान म िदनभर म चार
द र चल सकगे । दु िनया की चौगु नी आबादी इतनी ही व था म िनयोिजत हो सकती है , चौगु नी आबादी! अभी
िजतनी आबादी है उससे। यही रा ा अहमदाबाद का इससे चार गु ने लोगों को चला सकता है ।

ले िकन गड़बड़ ा है? ारह बजे सभी द र जा रहे ह! इसिलए रा े पर तकलीफ मालू म हो रही है । रा ा भी
परे शानी म है और आप भी परे शानी म ह, ोंिक ारह बजे सबको द र जाना है , तो ारह बजे सबको खाना भी
ले ले ना है । िफर सबको समय पर उठ भी आना है । ऐसा लगता है िक िनयम के िलए आदमी है , आदमी के िलए
िनयम नहीं है ।
128

हम एक ब े को कहते ह िक उठो, ू ल जाने का व हो गया। ू ल को कहना चािहए िक ब ा हमारा नहीं


उठता, यह आने का व नहीं है । ू ल थोड़ी दे र से खोलो! िजस िदन हम वै ािनक िचं तन करगे, यही होगा। और
उससे हािन नहीं होगी, अनंत गुने लाभ होंगे।

यह जो कृ कह रहे ह, यह आप अपने-अपने, एक-एक अपने िलए खोज ले िक उसके िलए िकतनी नींद
आव क है । और यह भी रोज बदलता रहे गा। आज का खोजा आ सदा काम नहीं पड़े गा। पां च साल बाद बदल
जाएगा, पां च साल बाद ज रत बदल जाएगी।

सारी तकलीफ पतीस साल के बाद शु होती ह आदमी के शरीर म–बीमा रयां, तकलीफ, परे शािनयां । अगर
साधारण थ आदमी है, तो पतीस साल के बाद उप व शु होते ह। और उप व का कुल कारण इतना है–यह
नहीं िक आप बू ढ़े हो रहे ह, इसिलए उप व शु होते ह–उप व का कुल कारण इतना है िक आपकी सब आदत
पतीस साल के पहले के आदमी की ह और उ ीं आदतों को आप पतीस साल के बाद भी जारी रखना चाहते ह, जब
िक सब ज रत बदल गई ह।

आप उतना ही खाते ह, िजतना पतीस साल के पहले खाते थे । उतना कतई नहीं खाया जा सकता। शरीर को उतने
भोजन की ज रत नहीं है । उतना ही सोने की कोिशश करते ह, िजतना पतीस साल के पहले सोते थे । अगर नींद नहीं
आती, तो परे शान होते ह िक मेरी नींद खराब हो गई। अिन ा आ रही है । कोई गड़बड़ हो रही है । तो ट े लाइजर
चािहए, िक कोई दवाई चािहए, िक थोड़ी शराब पी लूं , िक ा क ं ! ले िकन यह भू ल जाते ह िक अब आपकी
ज रत बदल गई है । अब आप उतना नहीं सो सकगे ।

रोज ज रत बदलती है , इसिलए रोज सजग होकर आदमी को तय करना चािहए, मेरे िलए सु खद ा है ।

और ान रख, दु ख सू चना दे ता है िक आप कुछ गलत कर रहे ह। िसफ दु ख सू चक है । और सु ख सू चना दे ता है िक


आप कुछ ठीक कर रहे ह। समायोिजत ह, सं तुिलत ह, तो भीतर एक सु ख की भावना बनी रहती है । यह सु ख ब त
और तरह का सु ख है । यह वह सु ख नहीं है , जो ादा भोजन कर ले ने से िमल जाता है । ादा भोजन करने से िसफ
दु ख िमल सकता है । यह वह सु ख नहीं है , जो रात दे र तक जागकर िसनेमा दे खने से िमल जाता है । ादा जागकर
िसफ दु ख ही िमल सकता है । यह सु ख सं तुलन का है ।

ठीक समय पर अपनी ज रत के अनुकूल भोजन; ठीक समय पर अपनी ज रत के अनुकूल िन ा; ठीक समय पर
अपनी ज रत के अनुकूल ान। ठीक चया, स क चया से एक आं त रक सु ख की भाव-दशा बनती है ।

वह ब त अलग बात है । वह सु ख है ब त और अथ म। वह उ े जना की अव था नहीं है । वह िसफ भीतर की शां ित


की अव था है । उस शांित की अव था म ान म सरलता से वेश कर सकता है । और योग के िलए अिनवाय
है वह।

तो अपनी चया की सब तरफ से जां च-परख कर ले नी चािहए। िकसी िनयम के अनुसार नहीं, अपनी ज रत के िनयम
के अनुसार। िकसी शा के अनुसार नहीं, अपनी यं की कृित के अनुसार। और दु िनया म कोई कुछ भी कहे,
उसकी िफ नहीं करना चािहए। एक ही बात की िफ करनी चािहए िक आपका शरीर सु ख की खबर दे ता है, तो
आप ठीक जी रहे ह। और आपका शरीर दु ख की खबर दे ता है, तो आप गलत जी रहे ह। ये सु ख और दु ख मापदं ड
बना ले ने चािहए।

अित म कोई कर ले , तो भी नुकसान होता है । म िबलकुल न करे , तो भी नुकसान हो जाता है । िफर उ के साथ
बदलाहट होती है । ब े को िजतना म ज री है, बू ढ़े को उतना ज री नहीं है । बु से जो काम कर रहा है और
शरीर से जो काम कर रहा है, उनकी ज रत बदल जाएं गी। बु से जो काम कर रहा है , उसे ादा भोजन ज री
नहीं है । शरीर से जो काम कर रहा है , उसे थोड़ा ादा भोजन ज री होगा। वह ादा, जो बु से काम कर रहा
है , उसको मालू म पड़े गा। उसके िलए वह ठीक है ।
129

जो शरीर से काम कर रहा है, उसे और िकसी म की अब ज रत नहीं है , िक वह शाम को जाकर टे िनस खेले। वह
पागल है । ले िकन जो बु से काम कर रहा है , उसके िलए शरीर के िकसी म की ज रत है । उसे िकसी खेल का,
तै रने का, दौड़ने का, कुछ न कुछ उपाय करना पड़े गा।

कृित सं तुलन मां गती है ।

हे नरी फोड ने अपने सं रण म िलखवाया है िक म भी एक पागल ं । ोंिक जब एयरकंडीशिनंग आई, तो मने


अपने सब भवन एयरकंडीशन कर िदए। कार भी एयरकंडीशन हो गई। अपने एयरकंडीशन भवन से िनकलकर म
अपनी पोच म अपनी एयरकंडीशन कार म बैठ जाता ं । िफर तो बाद म उसने अपना पोच भी एयरकंडीशन करवा
िलया। कार िनकलेगी, तब आटोमेिटक दरवाजा खुल जाएगा। कार जाएगी, दरवाजा बं द हो जाएगा। िफर इसी तरह
वह अपने एयरकंडीशंड पोच म द र के प ं च जाएगा। िफर उतरकर एयरकंडीशं ड द र म चला जाएगा।

िफर उसको तकलीफ शु ई। तो डा रों से उसने पूछा िक ा कर? तो उ ोंने कहा िक आप रोज सु बह एक
घं टा और रोज शाम एक घं टा काफी गरम पानी के टब म पड़े रह।

गरम पानी के टब म पड़े रहने से हे नरी फोड ने िलखा है िक मेरा ा िबलकुल ठीक हो गया। ोंिक एक घं टे
सु बह मुझे पसीना-पसीना हो जाता, शाम को भी पसीना-पसीना हो जाता। ले िकन तब मुझे पता चला िक म यह कर
ा रहा ं ! िदनभर पसीना बचाता ं , तो िफर दो घं टे म इं टसली पसीने को िनकालना पड़ता है , तब सं तुलन हो पाता
है ।

कृित पूरे व सं तुलन मां गेगी। तो जो लोग ब त िव ाम म ह, उ म करना पड़े गा। जो लोग ब त म म ह, उ
िव ाम करना पड़े गा। और जो भी इस सं तुलन से चू क जाएगा, ान तो ब त दू र की बात है , वह जीवन के
साधारण सु ख से भी चू क जाएगा। ान का आनंद तो ब त दू र है , वह जीवन के साधारण जो सु ख िमल सकते ह,
उनसे भी वं िचत रह जाएगा।

ान और योग के वेश के िलए एक सं तुिलत शरीर, अित सं तुिलत शरीर चािहए। एक ही अित माफ की जा सकती
है , सं तुलन की अित, बस। और कोई ए टीम माफ नहीं की जा सकती। अित सं तुिलत! बस, यह एक श माफ
िकया जा सकता है । बाकी और कोई अित, कोई ए टीम, कोई ए ेस माफ नहीं की जा सकती। अित म ,
ए टीम िमिडल, माफ िकया जा सकता है, और कुछ माफ नहीं िकया जा सकता।

बु ऐसा कहते थे । बु कहते थे, अित से बचो। म म चलो। सदा म म चलो। हमेशा म म रहो, बीच म। खोज
लो हर चीज का बीच िबं दु, वहीं रहो।

एक िदन सा रपु ने बु को कहा िक भगवन! आप इतना ादा जोर दे ते ह म पर िक मुझे लगता है िक यह भी


एक अित हो गई! हर चीज म म , म ! यह तो एक अित हो गई!

बु ने कहा, एक अित माफ करता ं । म की अित, िद ए ेस आफ बीइं ग इन िद िमिडल, उसको माफ करता ं ।
बाकी कोई अित नहीं चलेगी। एक अित को चलाए रहना–म , म , म –सब चीजों म म । तो ान म बड़ी
सु गमता हो जाए।

मेरे पास लोग आते ह। वे कहते ह, ान म बड़ी किठनाई है । ान म बड़ी किठनाई नहीं है । आप उप व म ह और
आपके उप व की सारी की सारी व था आप ही कर रहे ह, कोई नहीं करवा रहा है ! जो नहीं खाना चािहए, वह खा
रहे ह! जो नहीं पहनना चािहए, वह पहन रहे ह! जै से नहीं बै ठना चािहए, वै से बै ठ रहे ह। जै से नहीं चलना चािहए, वै से
चल रहे ह! जै से नहीं सोना चािहए, वै से सो रहे ह। सब अ व थत िकया आ है । िफर पूछते ह एक िदन िक ान म
कोई गित नहीं होती है , बड़ी तकलीफ होती है । ा मेरे िपछले ज ों का कोई कम बाधा बन रहा है ? ान म कोई
गित नहीं होती। ब त मेहनत करता ं , कुछ सार हाथ नहीं आता है ।
130

कभी नहीं आएगा, ोंिक मेहनत करने वाला इस थित म नहीं है िक भीतर वे श हो सके। आपको अपनी पूरी
थित बदल ले नी पड़े गी।

ान एक महान घटना है, एक ब त बड़ी है पिनं ग है । उसकी पूव ैयारी चािहए। उसकी पूव ैयारी के िलए यह सू
ब त कीमती है । और इसीिलए कृ कोई सीधे, डायरे सु झाव नहीं दे रहे ह। िसफ िनयम बता रहे ह। न अित
भोजन, न अित अ भोजन। न अित िन ा, न अित जागरण। न अित म, न अित िव ाम। कोई सीधा नहीं कह रहे
ह, िकतना। वह िकतना आप पर छोड़ िदया गया है । वह अजु न पर छोड़ िदया गया है । वह आपकी ज रत और
आपकी बु खोजे । और ेक अपने जीवन का िनयं ता बन जाए। कोई िकसी दू सरे से मयादा न ले , नहीं तो
किठनाई म पड़े गा।

जै से आमतौर से घरों म पित पहले उठ आते ह। थोड़ा चाय-वाय बनाकर तै यार करते ह। मगर बड़ा सं कोच अनुभव
करते ह िक कोई दे ख न ले िक प ी अभी उठी नहीं है और वे चाय वगै रह बना रहे ह! ले िकन यह िबलकुल उिचत है ,
वै ािनक है ।

यों के सोने की िजतनी जांच-पड़ताल ई है , वह पु षों से दो घं टा पीछे है –सारी जां च-पड़ताल से । आज अमे रका
म कोई दस ीप ले बोरे टरीज ह, जो िसफ नींद पर काम करती ह। वे कहती ह िक पु षों और यों के बीच नींद
का दो घं टे का फासला है । अगर पु ष पां च बजे सु बह थ उठ सकता है , तो ी सात बजे के पहले थ नहीं उठ
सकती है । ले िकन अगर ी ने शा पढ़े ह, तो पित के पहले उठना चािहए! पित अगर पांच बजे उठे , तो ी को
कम से कम साढ़े चार बजे तो उठ आना चािहए। तब नुकसान होगा!

िन ा का जो अ यन आ है वै ािनक, उससे पता चला है िक रात म दो घं टे के िलए, चौबीस घं टे म, ेक


के शरीर का तापमान नीचे िगर जाता है । सु बह जो आपको ठं ड लगती है , वह इसिलए नहीं लगती िक बाहर ठं डक है !
उसका असली कारण आपके शरीर के तापमान का दो िड ी नीचे िगर जाना है । बाहर की ठं डक असली कारण नहीं
है ।

हर का चौबीस घं टे म दो घं टे के िलए तापमान दो िड ी नीचे िगर जाता है । वै ािनक इस नतीजे पर प ं चे ह िक


वे ही दो घं टे उस के िलए गहरी िन ा के घं टे ह। अगर उन दो घं टों म वह ठीक से सो ले , तो वह
िदनभर ताजा रहे गा। और अगर उन दो घं टों म वह ठीक से न सो पाए, तो वह चाहे आठ घं टे सो िलया हो, तो भी
ताजगी न िमले गी।

और वे दो घं टे ेक के थोड़े -थोड़े अलग होते ह। िकसी का रात दो बजे और चार बजे के बीच म
तापमान िगर जाता है । तो वह चार बजे उठ आएगा िबलकुल ताजा। उसे िदनभर कोई अड़चन न होगी। िकसी
का सु बह पां च और सात के बीच म तापमान िगरता है । तब वह अगर सात बजे के पहले उठ आएगा, तो
अड़चन म पड़े गा।

पु षों और यों के बीच अनेक योग के बाद दो घं टे का फासला खयाल म आया है । तो अिधक पु ष पांच बजे
उठ सकते ह, ले िकन अिधक यां पां च बजे नहीं उठ सकती ह। वे शरीर के फक ह, वे बायोलािजकल फक ह।

जै से-जै से समझ बढ़ती है , ले िकन एक बात साफ होती जाती है िक शरीर की अपनी िनयमावली है । और शरीर के
िनयम, िसफ आपके शरीर के िनयम नहीं ह, ब बड़े का ास से जु ड़े ए ह। दे खा है हमने, चां द के साथ समु म
अंतर पड़ते ह। कभी आपने खयाल िकया िक यों का मािसक-धम भी चां द के साथ सं बंिधत है और जु ड़ा आ है !
अ ाइस िदन इसीिलए ह, चां द के चार स ाह। ठीक चां द के साथ जै से समु म अंतर पड़ता है , ऐसे ी के शरीर म
अंतर पड़ता है ।

ले िकन अभी जै से-जै से स ता िवकिसत होती है, यों का मािसक-धम अ होता चला जाता है स ता के
साथ। ा हो गया? कहीं कोई सं तुलन टू ट रहा है । वह जो िवराट के साथ हमारे शरीर के तं तु जु ड़े ह, उनम कहीं-
कहीं िवकृितयां हम अपने हाथ से पैदा कर रहे ह। कहीं कोई गड़बड़ हो रही है ।
131

आज जमीन पर, म मानता ं, करीब-करीब पचास ितशत से ादा यां मािसक-धम से अित परे शान ह। अनेक
तरह की परे शािनयां उनके मसे स से पैदा होती ह। और वह मसे स इसिलए परे शानी म पड़ा है िक ी के म
जो कृित के साथ अनुकूलता होनी चािहए, जो सं तुलन होना चािहए, वह खो गया है । वह कोई सं बंध नहीं रह गया है ।

हमने अपने ढं ग से जीना शु कर िदया है , िबना इसकी िफ िकए िक हम बड़ी कृित के एक िह े ह। और हम


उस बड़ी कृित को समझकर उसके सहयोग म ही जीने के अित र शांत होने का कोई उपाय नहीं है ।

ले िकन आदमी ने अपने को कुछ ादा समझदार समझकर ब त-सी नासमिझयां कर ली ह। ादा समझदारी
आदमी के खयाल म आ गई है और वह सारे सं तुलन भीतर से तोड़ता चला जा रहा है ।

जब तक हमारे पास रोशनी नहीं थी, तब तक पृ ी पर नींद की बीमारी िकसी आदमी को भी न थी। अभी भी
आिदवािसयों को नींद की कोई बीमारी नहीं है । आिदवासी भरोसा ही नहीं कर सकता िक इ ोमिनया ा होता है !
आिदवासी से किहए िक ऐसे लोग भी ह, िजनको नींद नहीं आती, तो वह ब त है रान हो जाता है िक कैसे? ा हो
गया? आिदवासी से पूिछए िक तु म कैसे सो जाते हो? वह कहता है, सोने के िलए कुछ करना पड़ता है ! बस, हम िसर
रखते ह और सो जाते ह।

जानकर आप है रान होंगे िक जो आिदवासी स ता के और भी कम सं पक म आए ह, उनको भी न के बराबर


आते ह–न के बराबर! इसिलए िजस आिदवासी को आ जाता है, वह िवशे ष हो जाता है –िवशे ष! वह साधारण
आदमी नहीं समझा जाता, िवजनरी, िम क, कुछ खास आदमी! बड़ी घटना घट रही है !

आज भी जमीन पर ऐसी आिदवासी कौम ह; जै से ए ीमो ह, जो िक दू र ु व पर रहते ह। उनको अब भी भरोसा नहीं


आता िक सब लोगों को सपने आते ह। ले िकन अमे रका के वै ािनक कहते ह िक ऐसा आदमी ही नहीं है, िजसको
सपना न आता हो! वे अमे रका के आदमी के बाबत िबलकुल ठीक कह रहे ह। उनके अनुभव म िजतने आदमी आते
ह, सबको सपने आते ह। वे तो कहते ह, जो आदमी कहता है, मुझे सपना नहीं आता, उसकी िसफ मेमोरी कमजोर
है । और कोई मामला नहीं है । उसको याद नहीं रहता। आता तो है ही।

और अब तो उ ोंने यं बना िलए ह, जो बता दे ते ह िक सपना आ रहा है िक नहीं आ रहा है । इसिलए अब आप


धोखा भी नहीं दे सकते । सु बह यह भी नहीं कह सकते िक मुझे याद ही नहीं, तो कैसे आया? अब तो यं है , जो
आपकी खोपड़ी पर लगा रहता है और रातभर ाफ बनाता रहता है, कब सपना चल रहा है, कब नहीं चल रहा है ।
और अब तो धीरे -धीरे ाफ इतना िवकिसत आ है िक आपके भीतर से ुअल डीम चल रहा है , तो भी ाफ खबर
दे गा। रं ग बदल जाएगा ाही का। ोंिक आपके म म जब तं तु कामो े जना से भर जाते ह, तो उनके कंपन,
उनकी वे स बदल जाती ह। वह ाफ पकड़ ले गा।

अब आपके तथाकिथत चा रयों को बड़ी किठनाई होगी। ोंिक िदनभर चय साधना ब त आसान है, सवाल
रात का है , नींद का है, सपने का है । वह भी पकड़ िलया जाएगा। वह पकड़ा जाएगा, उसम कोई अड़चन नहीं है ।
ोंिक की ािलटी अलग-अलग होती है । और ेक की जो कंपन िविध है, वह अलग-अलग होती है ।
जब आपके भीतर कोई कामो ेजक चलता है , तो िबलकुल िवि हो जाता है और ाफ िबलकुल पागल
की तरह लकीर खींचने लगता है । जब आपके भीतर गहरी नींद होती है, तो िबलकुल बं द हो जाता है ; ाफ सीधी
लकीर खींचने लगता है ; उसम कंपन खो जाते ह।

ले िकन बड़ी है रानी की बात है िक स आदमी, सु िशि त आदमी रातभर म मु ल से दस िमनट गहरी नींद म
होता है , जब नहीं होता। िसफ दस िमनट! पूरी रात चलता रहता है ।

ले िकन आिदवासी अभी भी ह, िजनको सपना नहीं चलता; िजनकी नींद गाढ़ है । भावतः, सु बह उनकी आं खों म
जो िनद ष भाव िदखाई पड़ता है , वह उस आदमी की आं ख म नहीं िदखाई पड़ सकता िजसको रातभर सपना चला
है । सु बह आिदवासी की आं ख वै से ही होती है, जै से गाय की। उतनी ही सरल, उतनी ही भोली, उतनी ही िन पट।
रात वह इतनी गहराई म गया है िक हम कह सकते ह िक बे होशी म ठीक परमा ा म उतर गया है ।
132

सु षु समािध ही है । िसफ बे होश समािध है, इतना ही फक है । उपिनषद तो कहते ह, सु षु जै सी ही है समािध।


एक ही उदाहरण उपिनषद दे ते ह। समािध कैसी? सु षु जै सी। फक? फक इतना, िक समािध म आपको होश
रहता है और सु षु म आपको होश नहीं रहता।

आप परमा ा की गोद म सु षु म भी प ं च जाते ह, ले िकन आपको पता नहीं रहता। समािध म भी प ंचते ह,
ले िकन जागते ए प ंचते ह। ले िकन फायदा दोनों म बराबर िमल जाता है ।

ले िकन स आदमी की नींद ही खो गई है, सु षु ब त दू र की बात है । ही हमारा कुल जमा हाथ म रह गया
है । जै से िक लहरों म सागर के ऊपर ही ऊपर रहते हों, गहरे कभी न जा पाते हों, ऐसे ही नींद म भी गहरे नहीं जा
पाते ।

यं के भीतर प ं चने के िलए कम से कम गहरी नींद तो ज री ही है । ले िकन गहरी नींद उसे ही आएगी िजसका
म और िव ाम सं तुिलत है ; िजसका भोजन और भू ख सं तुिलत है ; िजसकी वाणी और मौन सं तुिलत है ; उसके िलए ही
गहरी नींद उपल होगी। वह गहरी नींद का फल और पुर ार उसको िमलता है , िजसका जीवन सं तुिलत है ।

नींद म ही जाना मु ल हो गया है , ान म जाना तो ब त मु ल है । ोंिक ान तो और आगे की बात हो गई,


जागते ए जाने की बात हो गई।

कृ ठीक कहते ह, अपने-अपने आहार को, िवहार को सं तुिलत कर ले ना ज री है ; िकसी िनयम से नहीं, यं की
ज रत से ।

:
भगवान ी, इस ोक म अंत म, कम म स क चे ा, ऐसा कहा गया है । कृपया कम म स क चे ा, इसका अथ भी
कर।
कम म स क चे ा। वही बात है , कम के िलए। कम म अस क चे ा का ा अथ है , खयाल म आ जाए, तो
स क चे ा का खयाल आ जाएगा।

कभी िकसी ू ल म परी ा चल रही हो, तब आप भीतर चले जाएं । दे ख ब ों को। कलम पकड़कर वे िलख रहे ह।
ाभािवक है िक अंगुली पर जोर पड़े । ले िकन उनके पैर दे ख, तो पैर भी अकड़े ए ह। उनकी गदन दे ख, तो गदन
भी अकड़ी ई है । उनकी आं ख दे ख, तो आं ख भी तनाव से भरी ह। िलख रहे ह हाथ से, ले िकन जै से पूरा शरीर कलम
पकड़े ए है !

अस क चे ा हो गई; ज रत से ादा चे ा हो गई। यह तो िसफ अंगुली चलाने से काम हो जाता, इसके िलए इतने
शरीर को लगाना, िबलकुल थ हो गया। यह तो ऐसा आ िक जहां सु ई की ज रत थी, वहां तलवार लगा दी। और
सु ई जो काम कर सकती है, वह तलवार नहीं कर सकती, ान रखना आप। इतना तना आ ब ा जो उ र दे गा, वे
गलत हो जाएं गे । ोंिक चे ा अस क है , अित र म ले रही है , थ तनाव दे रही है ।

आप भी खयाल करना, जब आप िलखते ह, तो िसफ अंगुली पर भार हो, इससे ादा भार अस क है । एक आदमी
साइिकल चला रहा है, तो पैर की अंगुिलयां पैिडल को चलाने के िलए पया ह। ले िकन छाती भी लगी है ; आं ख भी
लगी ह; हाथ भी अकड़े ह। सब अकड़ा आ है ! अस क चे ा हो रही है । अननेसेसरी, थ ही अपने को परे शान
कर रहा है । ले िकन आदत की वजह से परे शान है ।

हमारी सारी चे ाएं अस क ह। या तो हम ज रत से कम करते ह; और या हम ज रत से ादा कर दे ते ह। ान


रखना ज री है, िकस कम के िलए िकतना म; िकस कम के िलए िकतनी श ।
133

और नहीं तो कई दफे ऐसा हो जाता है िक मने सु ना है , एक आदमी एक सां झ–रात उतर रही है एक गां व के ऊपर–
सड़क पर ते जी से कुछ खोज रहा है । और लोग भी खड़े हो गए और कहा िक हम भी सहायता दे द, ा खोज रहे
हो? तब तक वह आदमी थक गया था, तो हाथ जोड़कर परमा ा से ाथना कर रहा है िक म एक ना रयल चढ़ा दू ं गा;
मेरी खोई चीज िमल जाए। तो लोगों ने कहा, भई, ते री चीज ा है , वह तो तू बता दे !

उसका एक पैसा खो गया है । पां च आने का ना रयल! पुराने जमाने की कहानी है । पांच आने का ना रयल, एक पैसा
खो गया है , उसको चढ़ाने के िलए सोच रहा है ! उन लोगों ने कहा, तू बड़ा पागल है । एक पैसा खो गया, उसके िलए
पां च आने का ना रयल चढ़ाने की सोच रहा है ! उस आदमी ने कहा, पहले पैसा तो िमल जाए, िफर सोचगे िक चढ़ाना
है िक नहीं। नहीं िमला तो अपना िनणय प ा है ! िमल गया तो पुनिवचार के िलए कौन रोक रहा है!

हमारे पूरे जीवन की व था ऐसी ही है, िजसम हम कभी भी यह नहीं दे ख रहे ह िक जो हम पाने चले ह, उस पर हम
िकतना दां व लगा रहे ह! वह इतना लगाने यो है? जो िमले गा, उसके िलए िकया गया म यो है ? इज़ इट वथ?
कभी कोई नहीं सोचता। कभी कोई नहीं सोचता िक िजतना हम लगा रहे ह, उतना उससे जो िमल भी जाएगा–अगर
सफल भी हो जाएं , तो जो िमलेगा–वह इसके यो है ? एक पैसे पर कहीं हम पां च आने का ना रयल तो चढ़ाने नहीं
चल पड़े !

और िफर इस तरह की जो आदत बढ़ती चली जाए, तो इसकी दू सरी अित, इसका दू सरा रए न और िति या भी
होती है िक कभी-कभी जब िक सचमुच लगाने का व आता है दां व, तब हमारे पास लगाने को ताकत ही नहीं होती।

सं यत म, कम म स क चे ा। जीवन को एक िवचार दे ने की ज रत है ; एक अिवचार म, िवचारहीनता म जीने की


ज रत नहीं है ।

एक आदमी धन कमाने चल पड़ा है । चले तो सोच ले िक धन िमलकर जो िमलेगा, उसके िलए इतना सब गं वा दे ने की
ज रत है? इतना सब, आ ा भी बेच डालने की ज रत है ? सब कुछ गं वा दे ने की ज रत है धन पाने के िलए?
अस क चे ा हो रही है ।

कृ मना नहीं करते िक धन मत कमाओ। कहते ह, स क चे ा करो। थोड़ा सोचो भी िक गं वाओगे ा? कमाओगे
ा? थोड़ा िहसाब भी रखो। थोड़ी वहार बु का भी उपयोग करो।

नहीं है िबलकुल वै सी बु । वै सी सं यत बु का हमारे पास कोई खयाल नहीं है । कारण इतना ही है िक हमने कभी
उस तरह सोचा नहीं।

सोचना शु कर। एक-एक कम म सोचना शु कर िक िकतनी श लगा रहा ं ; इतना उिचत है ? त ाल आप


पाएं गे िक थ लगा रहे ह। थोड़े कम म हो जाएगा, थोड़े और कम म हो जाएगा।

सु ना है मने िक अकबर ने एक दफा चार लोगों को सजाएं दीं। चारों का एक ही कसू र था। चारों ने िमलकर रा के
खजाने से गबन िकया था। और बराबर गबन िकया था। असल म चारों साझीदार थे । सबने बराबर अशिफयां ले ली
थीं।

चारों को बु लाया अकबर ने। और पहले को कहा, तु मसे ऐसी आशा न थी! जाओ। वह आदमी चला गया। दू सरे
आदमी से कहा िक तु िसफ इतनी सजा दे ता ं िक झुककर सारे दरबा रयों के पैर छू लो, और जाओ। तीसरे को
कहा िक तु एक वष के िलए रा -िन ासन दे ता ं । रा के बाहर चले जाओ। चौथे को कहा िक तु आजीवन
कैदखाने म भे ज दे ता ं ।
134

कैदी जा चुके, दरबा रयों ने पूछा िक बड़ा अजीब-सा ाय िकया है आपने! दं ड इतने िभ , जु म इतना एक समान;
यह कुछ ाय नहीं मालू म पड़ता है! एक आदमी को िसफ इतना ही कहा िक तु मसे ऐसी आशा न थी और एक
आदमी को आजीवन कैद म भेज िदया!

अकबर हं सा और उसने कहा िक म उनको जानता ं । अगर तु भरोसा न हो, तो जाओ, पता लगाओ, वे चारों ा
कर रहे ह! गए। सबसे पहले तो उस आदमी के पास गए, िजस आदमी से कहा था िक तु मसे ऐसी आशा न थी। उसके
घर प ं चे। पता चला, वह फां सी लगाकर मर गया। है रान हो गए। लौटकर अकबर से कहा।

अकबर ने कहा, दे खते ह, वहां सू ई भी काफी थी। उतना कहना भी ादा पड़ गया। उतना कहना भी ादा पड़
गया; वह आदमी ऐसा था। इतना काफी सजा थी, िक तु मसे ऐसी आशा न थी। ब त सजा हो गई! िजसको थोड़ा भी
अपने का बोध है , उसके िलए ब त सजा हो गई। अब जाकर दे खो उस आदमी को िजसको िक सजा दी है
जीवनभर की।

वे वहां गए, तो जे लर ने बताया िक वह आदमी जे लखाने म र त का इं तजाम फैलाकर भागने की योजना बना रहा है ।
उससे िमले, तो वह कोई उदास न था। कहा िक उदास नहीं हो! आजीवन सजा हो गई। उसने कहा िक छोड़ो भी।
िजस दु िनया म सब कुछ हो रहा है , उसम हम कोई सदा जे ल म रहगे! िनकल जाएं गे । जहां सब कुछ सं भव हो रहा है,
वहां कोई हम सदा जे ल म रहगे! तु म दो-चार िदन म दे खना िक हम बाहर ह। और तु म पं ह-बीस िदन के बाद दे खोगे
िक हम दरबार म ह। तु म िचंता मत करो; हम ज ी लौट आएं गे । और वै से भी ब त थक गए थे, पं ह-बीस िदन का
िव ाम िमल गया! है रान ए िक उसको जीवनभर की सजा िमली है, वह आदमी यह कह रहा है । और िजससे िसफ
इतना कहा है िक तु झसे इतनी अपे ा, ऐसी आशा न थी, वह फां सी लगाकर मर गया!

अकबर ने ठीक–िजसको कह कम म स क चे ा, िकतना कहां ज री है–उतना ही; उससे र ीभर ादा नहीं।

योगी को तो ान म रखना ही पड़े गा िक कम म स क चे ा हो। बु ने तो स क चे ा पर ब त बड़ी व था दी


है । सारी चीजों पर स क होने की व था दी है । बु िजसे अ ां िगक माग कहते ह, सब स क पर आधा रत है ।
उसम स क ायाम, स क म, स क ृित, स क दशन, स क ान–सब चीज स क हों। कोई भी चीज
असम न हो जाए। उसी स क की तरफ कृ इशारा कर रहे ह। वे कह रहे ह, तु ारे कम म तु म सदा ही सं यत
रहना। उतनी ही चे ा करना, िजतनी ज री है ; न कम, न ादा। और िफर तु म पाओगे िक कम तु नहीं बां ध
पाएं गे ।

स क िजसने चे ा की है , वह कम के बाहर हो जाता है । जो ादा करता है, वह भी पछताता है, ोंिक अंत म
फल ब त कम आता है । जो कम करता है , वह भी पछताता है , ोंिक फल आता ही नहीं। ले िकन जो स क कर
ले ता है , वह कभी भी नहीं पछताता। फल आए, या न आए। जो स क कर ले ता है , वह कभी नहीं पछताता। ोंिक
वह जानता है , िजतना ज री था, वह िकया गया। जो ज री था, वह िमल गया है । जो नहीं िमलना था, वह नहीं िमला
है । जो िमलना था, वह िमल गया है । मने अपनी तरफ से िजतना ज री था, वह िकया था; बात समा हो गई।

एक िम अभी मेरे पास आए। उनकी प ी चल बसी है । ब त रो रहे थे, ब त परे शान थे । मने उनसे कहा िक प ी के
साथ तु कभी इतना खुश नहीं दे खा था िक सोचूं िक मरने पर इतना रोओगे! मने कहा, अस क चे ा कर रहे हो।
उस व थोड़ा ादा खुश हो िलए होते, तो इस व थोड़ा कम रोना पड़ता।

वे थोड़े है रान ए। उ ोंने कहा, ा मतलब? मने कहा, थोड़ा बै लिसंग हो जाता। मने उनसे पूछा, सच बताओ मुझे,
प ी के मरने से रो रहे हो या बात कुछ और है? ोंिक बात अ र और होती ह, बहाने और होते ह। आदमी की
बे ईमानी का कोई अंत नहीं है । उ ोंने कहा, ा मतलब आपका? मेरी प ी मर गई और आप कहते ह, बहाने और
बे ईमानी। यहां बहाने! मेरी प ी मर गई है , म दु खी ं । मने कहा, म मानता ं िक तु म दु खी हो। ले िकन म िफर से
तु मसे पूछता ं िक तु म सोचकर मुझे दो-चार िदन बाद बताना िक सच म रोने का यही कारण है िक प ी मर गई है ?
135

चार िदन बाद वे लौटे और उ ोंने कहा िक शायद आप ठीक कहते ह। भीतर झां का, तो मुझे खयाल आया िक िजतनी
मुझे उसकी से वा करनी चािहए थी, वह मने नहीं की। िजतना मुझे उस पर ान दे ना चािहए था, वह भी मने नहीं
िदया। सच तो यह है िक िजतना ेम सहज उसके ित मुझम होना चािहए था, वह भी म नहीं दे पाया। उस सब की
पीड़ा है िक अब! अब माफी मां गने का भी कोई उपाय नहीं रहा।

ान रहे, अगर आपने िकसी को पूरा ेम कर िलया है , िजतना सं भव था, जो स क था; पूरी से वा कर ली है ,
जो स क थी; सब ान िदया, जो स क था; तो मृ ु के बाद जो दु ख होगा, वह दु ख ब त िभ कार का होगा।
और वह दु ख आपको तोड़े गा नहीं, मां जेगा। वह पीड़ा आपको िनखारे गी, न नहीं करे गी। वह पीड़ा आपके जीवन म
कुछ अनुभव और ान दे जाएगी, िसफ जं ग नहीं लगा जाएगी। ोंिक जो हो सकता था, स क था, जो ठीक था, वह
कर िलया गया था। जो मेरे हाथ म था, वह हो गया था। िफर शे ष तो सदा परमा ा के हाथ म है ।

ले िकन हमम से कोई भी स क कभी नहीं कर पाता। न पित प ी के िलए, न प ी पित के िलए। न बे टे बाप के िलए,
न बाप बे टे के िलए। सब अस क होता है । िजस िदन छूट जाता है कोई, उस िदन भारी पीड़ा का व ाघात होता है ।
उस िदन लगता है िक अब! अब तो कोई उपाय न रहा। अब तो कोई उपाय न रहा।

इसिलए जो बे टे बाप के मरने की ती ा करते ह, वे भी बाप के मरने पर छाती पीटकर रोते ह। जो बे टे न मालू म
िकतनी दफे सोच ले ते ह िक अब यह बू ढ़ा चला ही जाए, तो बेहतर। न मालू म िकतनी दफे! मन ऐसा है । मन ऐसा
सोचता रहता है । हालां िक आप िझड़क दे ते ह अपने मन को, िक कैसी गलत बात सोचते हो! ठीक नहीं है यह। ले िकन
मन िफर भी सोचता रहता है । िफर यह बे टा छाती पीटकर रो रहा है । यह असंतुलन है जीवन का।

अगर इसने िपता की स क से वा कर ली होती! यह तो प ा ही है िक िपता जाएगा। मौत से कोई बचेगा? वह जाने
वाला है । अगर इसने थोड़ा खयाल रखा होता िक िपता जाने ही वाला है, जाएगा ही; थोड़ी से वा कर ली होती, थोड़ा
ेम िदया होता, थोड़ा स ान िकया होता–यह तो पता ही है िक वह जाएगा ही–इसने अगर स क चे ा कर ली होती
जो जाने वाले के साथ कर ले नी है, तो शायद पीछे यह घाव इस भां ित का न लगता। यह घाव दू सरे अथ म लग
रहा है । यह न िकया आ जो छूट गया है , और िजसके करने का अब कोई उपाय नहीं रह गया, यह उसकी पीड़ा है ,
जो िजंदगीभर साले गी, कां टे की तरह चु भती रहे गी।

स क कम म! कम म स क चे ा का अथ है , सम कम म जो िकया जाने यो है, वह ज र करना चािहए।


िजतनी श से िकया जाने यो है , उतनी श लगानी चािहए; न कम, न ादा।

िनणय कौन करे गा िक िकतनी लगाई जानी चािहए? आपके अित र कोई िनणय नहीं कर सकता है । आप ही सोच।
और बड़ा अनुभव होगा, अदभुत अनुभव होगा। िजस काम म आप सं यत चे ा कर पाएं गे, उस काम के बाद आप
िबलकुल िनभार हो जाएं गे, मु हो जाएं गे । काम कर िलया, बात समा हो गई।

अगर आप द र म पूरे पांच घं टे ठीक म कर िलए ह, स क, तो द र आपकी खोपड़ी म घर नहीं आएगा। नहीं
तो घर आएगा; आएगा ही; स डे ड; लटका रहे गा खोपड़ी पर। ोंिक द र म तो बै ठकर िव ाम िकया!

मने सु ना है िक एक िदन द र के मैनेजर को उसके मािलक ने…। अचानक मािलक अंदर आ गया। आने का व
नहीं था, नहीं तो मैनेजर तै यार रहता। वह अपने पैर फैलाए ए कुस पर सो रहा था! घबड़ाकर चौंका। मायाचना
की और कहा िक माफ कर, कल रात घर नहीं सो पाया। तो मािलक ने कहा, अ ा, तो तु म घर भी सोते हो! यह हम
सोच भी नहीं सकते थे । घर भी सोते हो? यह हम सोच ही नहीं सकते थे, ोंिक िदनभर तो यहां सोते हो। तो घर सोते
होगे, इसका हम खयाल ही नहीं आया!

अब यह आदमी जो द र म बेईमानी कर रहा है, द र इसके साथ बदला ले गा। वह घर चला जाएगा। यह घर से
बे ईमानी करके द र चला आया है , घर द र चला आएगा।
136

िजस कम को आपने पूरा नहीं कर िलया है , स क नहीं कर िलया है , वह आपके भीतर अटका रहे गा, वह आपका
पीछा करे गा। इसिलए हम बड़ी अजीब हालत म ह। जब आप चौके म बै ठकर भोजन करते ह, तब द र म होते ह।
जब द र म बै ठे होते ह, तो अ र भोजन कर रहे होते ह। यह सब चलता रहता है !

यह सब इतना ादा कन ूजन म म इसिलए पैदा होता है िक जब भोजन कर रहे ह, तब स क प से


भोजन कर ल। सब छोड़ उस व । िजतनी ज री चे ा है भोजन करने की, िजतना ान दे ना ज री है भोजन को,
उतना ान दे द। िजतना चबाना है , उतना चबा ल। िजतना ाद ले ना है, उतना ाद ले ल। िजतना भोजन करना है ,
स क चे ा पूरी भोजन की थाली पर करके कृपा करके उठ, तो भोजन आपका पीछा नहीं करे गा; और तृ भी
आएगी।

जो भी काम करना है , उसे पूरा कर ल। पूरा िकया गया काम, सं यत िकया गया काम, स डे ड, लटका आ नहीं रह
जाता, और ितपल बाहर हो जाता है– े क कम के बाहर हो जाता है । और तब वै सा कभी भी भार,
बडन नहीं अनुभव करता म पर। िनभार होता है, वे टले स होता है , ह ा होता है । सब पूरा है ।

सु करात मर रहा है , तो िकसी िम ने पूछा िक कोई काम बाकी तो नहीं रह गया? सु करात ने कहा, मेरी कोई आदत
कभी िकसी काम को बाकी रखने की नहीं थी। म हमेशा ही तै यार था मरने को। कभी भी मौत आ जाए, मेरा काम
पूरा, साफ था। सब जो करने यो था, मने कर िलया था। जो नहीं करने यो था, नहीं िकया था। मेरा िहसाब सदा ही
साफ रहा है । मेरे खाते-बही, कभी भी मौत का इं े र आ जाए, दे ख ले , तो म वै सा नहीं ड ं गा, जै सा इनकम टै
के इं े र को दे खकर कोई भी दु कानदार डरता है , ऐसा सु करात ने कहा होगा। िसफ एक छोटी-सी बात रह गई,
वह भी मुझे पता नहीं था, नहीं तो म सु बह उस आदमी को कहता।

एचीिलयस नाम के आदमी ने एक मुग मुझे उधार दी थी, छः आने उसके बाकी रह गए ह। बस इतना ही स डे ड
है । बस, और कुछ भी नहीं है । वह भी म चु का दे ता, ले िकन जेल म पड़ा ं और छः आने कमाने का भी कोई उपाय
मेरे पास नहीं है । अचानक मुझे जे ल म ले आए, अ था म उसके छः आने चु का दे ता। एक काम भर इस पृ ी पर
मेरा अधू रा पड़ा है , वे छः आने एचीिलयस को दे ने ह। मेरे मरने के बाद तु म मेरे िम , एक-एक, दो-दो पैसा इक ा
करके उसे दे दे ना, तािक ब त भार मुझ पर न रह जाए। छः आने का इक ा ब त पड़े गा। एक-एक पैसे का तु म सब
का रह जाएगा। िकसी रा े पर, िकसी माग पर अगर अनंत म कभी िमलना हो गया, तो म चुका दू ं गा। बस, इतना ही
बोझ है, बाकी सब िनपटा आ है ।

आप मरते व िकतने आने के बोझ से भरे होंगे? कोई िहसाब लगाना मु ल हो जाएगा। न मालू म िकतना अटका
रह जाएगा सब तरफ! िकसी को गाली दी थी, माफी नहीं मां ग पाए। िकसी पर ोध िकया था, मा नहीं कर पाए।
िकसी को ेम करने के िलए कहा था, ले िकन कर नहीं पाए। िकसी को से वा का भरोसा िदया था, ले िकन हो नहीं पाई।
सब तरफ सब अधू रा अटका रह जाएगा।

यह अटका, अधू रा ही आपको वापस नए ज ों म ले ता चला जाएगा। ये अस क कम आपको वापस नए कम म


ले ते चले जाएं गे । और िपछला कम भी पूरा नहीं होता, इस ज का पूरा नहीं होता, और एडीशन, और भार बढ़ता
चला जाता है । ह े न हो पाएं गे िफर।

कम का िवचार, कम के िस ां त के पीछे जो मूल आधार है, वह यही है िक वही कम से मु हो जाता है, जो


सब कम को सं यत प से कर ले ता है और उनके बाहर हो जाता है । िफर उसकी कोई मृ ु नहीं है , उसका मो है ;
ोंिक लौटने का कोई कारण नहीं है ।

यदा िविनयतं िच मा ेवावित ते।


िनः ृहः सवकामे ो यु इ ु ते तदा।। 18।।
इस कार योग के अ ास से अ ं त वश म िकया आ िच िजस काल म परमा ा म ही भली कार थत हो जाता
है , उस काल म सं पूण कामनाओं से ृहारिहत आ पु ष योगयु है , ऐसा कहा जाता है ।
137

योग के अ ास से सं यत, शां त, शु आ िच । इस बात को ठीक से समझ ल।

योग के अ ास से!

हमारा अशु होने का अ ास गहन है । हमारे जिटल होने की कुशलता अदभु त है । यं को उलझाव म डालने म
हम कुशल कारीगर ह। हमने अपने कारागृ ह की एक-एक ईंट काफी मजबूत बनाकर रखी है । और हमने अपनी
एक-एक हथकड़ी की जं जीर को ब त ही मजबूत फौलाद से ढाला है । हमने सब तरह का इं तजाम िकया है िक
िजं दगी म आनंद का कोई आगमन न हो सके। हमने सब ार-दरवाजे बं द कर रखे ह िक रोशनी कहीं भू ल-चू क से
वे श न कर जाए। हमने सब तरफ से अपने नरक का आयोजन कर िलया है । इस आयोजन को काटने के िलए इतने
ही आयोजन की िवपरीत िदशा म ज रत पड़ती है । उसी का नाम योग-अ ास है ।

योगा ास की कोई ज रत नहीं है । जै सा िक कृ मूित कहते ह, कोई ज रत नहीं है योगा ास की। जै सा िक झेन
फकीर कहते ह जापान म िक िकसी अ ास की कोई ज रत नहीं है । अगर आपने नरक की तरफ कोई या ा न की
हो, तो कोई भी ज रत नहीं है । ले िकन अगर आपने नरक की तरफ तो भारी अ ास िकया हो, और सोचते हों
कृ मूित को सु नकर िक ग की तरफ जाने के िलए िकसी अ ास की कोई ज रत नहीं है , तो आप अपने नरक
को मजबूत करने के िलए आ खरी सील लगा रहे ह।

अशां त होने के िलए िकतना अ ास करते ह, कुछ पता है आपको? एक आदमी को गाली दे नी होती है , तो िकतना
रहसल करना पड़ता है , कुछ पता है आपको? िकतनी दफे मन म दे ते ह पहले! िकस-िकस रस से दे ते ह! िकस-िकस
कोने से, िकस-िकस एं गल से सोचकर दे ते ह! िकस-िकस भां ित जहर भरकर गाली को तै यार करके दे ते ह!

एक आदमी को गाली दे ने के िलए िकतने बड़े रहसल से, पूव-अ ास से गु जरना पड़ता है । उस पूव-अ ास के िबना
गाली भी नहीं िनकल सकती है ।

अशां त होने के िलए िकतना म उठाते ह, कभी िहसाब रखा है ? सु बह से शाम तक िकतनी तरकीब खोजते ह िक
अशां त हो जाएं ! अगर िकसी िदन तरकीब न िमल, तो खुद भी ईजाद करते ह।

मेरे एक िम ह। उनके बे टे ने मुझे कहा िक म बड़ी मुसीबत म ं । म कोई रा ा ही नहीं खोज पाता िक िपता को
अशां त करने से कैसे बचूं! मने कहा िक वे िजन बातों से अशां त होते हों, वह मत करो। उसने कहा, यही तो मजा है
िक अगर म ठीक कपड़े पहनकर द र प ंच जाऊं, तो वे कहते ह, अ ा! तो कोई िफ ार हो गए आप? अगर
ठीक कपड़े पहनकर न प ंचूं, तो वे कहते ह, ा म मर गया? जब म मर जाऊं, तब इस श म घू मना! अभी मेरे
रहते तो मजा कर लो।

वह बे टा मुझसे पूछने आया िक म ा क ं , िजससे िपता अशांत न हों? ोंिक म कुछ भी क ं , वे तरकीब खोज
ही ले ते ह। ऐसा कोई काम म नहीं कर पाया, िजसम उ ोंने तरकीब न खोज ली हो। वह सोचकर िवपरीत करता ं,
उसम भी िनकाल ले ते ह। अ े कपड़े पहनता ं, तो कहते ह, अ ा, िफ ार हो गए! ा इरादे ह? हीरो बन
गए? न पहनकर ठीक कपड़ा प ं चूं, तो कहते ह, यह तो म जब मर जाऊं, तब इस श म घू मना। अभी तो म िजं दा
ं ; अभी तो मजे करो, गु लछर कर लो! तो म ा क ं ?

मने कहा, एकाध दफा िदगं बर प ं चकर दे खा िक नहीं दे खा! और तो कोई तीसरा रा ा ही नहीं बचता! िदगं बर
प ं चकर दे ख। उसने कहा िक आप भी ा कह रहे ह! िबलकुल मेरी गदन काट दगे!

हम सब ऐसा खोजते रहते ह, खूंिटयां खोजते रहते ह। खूंिटयां खोजते रहते ह! खूंिटयां न िमल, तो अपनी कील भी
गाड़ ले ते ह।
138

अशां त होने के िलए भारी अ ास चल रहा है । बड़ी योग-साधना करते ह हम अशां त होने के िलए, ोिधत होने के
िलए, परे शान होने के िलए! कुछ ऐसा लगता है िक अगर आज परे शान न ए, तो जै से िदन बे कार गया। कई दफे
ऐसा होता भी है । ोंिक परे शानी से हमको पता चलता है िक हम भी ह। नहीं तो और तो कोई पता चलने का कारण
नहीं है ।

तो बड़ी-बड़ी परे शािनयां करके िदखलाते रहते ह। भारी परे शािनयां ह। उससे पता चलता है िक हम भी कोई ह,
समबडी! ोंिक िजतना बड़ा आदमी हो, उतनी बड़ी परे शािनयां होती ह! तो हर छोटा-मोटा आदमी भी छोटी-मोटी
परे शािनयों को मै ीफाई करता रहता है । बड़ी करके खड़ा कर ले ता है । उनके बीच म खड़ा रहता है । यह सब
अ ास चलता है । िबना अ ास के यह भी नहीं हो सकता। यह भी सब अ ास का फल है ।

तो कृ जब अजु न से कहते ह िक योगा ास से शांत आ िच , तो इससे िवपरीत अ ास करना पड़े गा। िवपरीत
अ ास का ा अथ है? िवपरीत अ ास का अथ है िक अब तक हम िनगे िटव इमोशं स के िलए, नकारा क
भावनाओं के िलए कारण खोज रहे ह चौबीस घं टे; योगा ास का अथ है , पािजिटव इमोशं स के िलए चौबीस घं टे
कारण खोजने म जो लगा है ।

और िजंदगी म दोनों मौजू द ह। खड़े हो जाएं गु लाब के फूल के िकनारे । वह जो अ ासी है अशां ित का, वह कहे गा,
थ है , बे कार है सब। कां टे ही कां टे ह, एकाध फूल खलता है कभी। वह जो योगा ासी है, वह जो पािजिटव को,
िवधायक को खोजने िनकला है , वह कहे गा, भु ते रा ध वाद! आ य है , जहां इतने कां टे ह, वहां भी इतना कोमल
फूल खल सकता है! यह उनके दे खने के ढं ग का फक होगा।

जब आप िकसी आदमी से िमलते ह, तो उसम बु रा अगर आप खोजते ह त ाल, तो आप अ ासी ह अशां ित के।
उस आदमी म कुछ तो भला होगा ही, नहीं तो जीना मु ल था। बु रे से बु रे आदमी का भी जीना असंभव है , अगर
वह ए ो ूट बु रा हो जाए। चोर भी िक ीं के साथ तो ईमानदार होते ह। और डाकू भी िक ीं के साथ वचन िनभाते
ह। बे ईमान भी बे ईमान नहीं हो सकता सदा, चौबीस घं टे, िक ीं के साथ ईमानदारी से जीता है । जो आपका दु न है,
वह भी िकसी का िम है ; वह भी िम ता जानता है । जो आपकी छाती म छु रा भोंकने को तै यार है , वह िकसी िदन
िकसी के िलए अपनी छाती म भी छु रा भोंकने की तै यारी रखता है ।

इस जमीन पर, इस अ म कोई िबलकुल बु रा है, ऐसा नहीं है । और कोई िबलकुल भला है , ऐसा भी नहीं है ।
ले िकन आपके चु नाव पर िनभर है िक आप ा चु नते ह। आपके अ ास पर िनभर है िक आप ा चु नते ह। अगर
आपने तय कर रखा है िक बु रा ही चु नगे, तो आपको बु रा िमलता चला जाएगा। िजं दगी म भरपूर बु रा है । अगर आपने
तय कर िलया है िक अंधेरा ही चु नगे, तो िदनभर िव ाम करना आप आं ख बं द करके, रात को िनकल जाना खोजने;
िमल जाएगा। िमले गा वही-वही।

बु रे को खोजना है, बु रा िमल जाएगा। दु ख को खोजना है , दु ख िमल जाएगा। पीड़ा खोजनी है, पीड़ा िमल जाएगी।
शै तान खोजना है, शै तान िमल जाएगा। परमा ा खोजना है , तो वह भी मौजू द है , ज बाई िद कानर। वहीं, जहां
शै तान खड़ा है । शायद इतना भी दू र नहीं है । शायद शै तान भी परमा ा के चे हरे को गलत प से दे खने के कारण
है ।

िजस आदमी को कां टों के बीच फूल खला आ मालू म पड़ता है और जो कहता है , ध है! लीला है , रह है भु
का! इतने कां टों के बीच फूल खलता है ! उस आदमी को ब त िदन कां टे िदखाई नहीं पड़गे । जो इतने कां टों के बीच
फूल को दे ख ले ता है, वह थोड़े ही िदनों म कां टों को फूल के िम की तरह दे ख ही पाएगा। वह, कां टे फूल की र ा के
िलए ह, यह भी दे ख पाएगा। अंततः वह यह भी दे ख पाएगा िक कां टों के िबना फूल नहीं हो सकता है , इसिलए कां टे
ह। और आ खर म कां टों का जो कां टापन है , खो जाएगा; और कां टे भी धीरे -धीरे फूल ही मालूम पड़ने लगगे।

और िजस आदमी ने दे खा िक कां टे ही कां टे ह; कहीं एकाध फूल खल जाता है भू ल-चू क से, यह ए डट मालू म
होता है । यह फूल ए डट है , कां टे असिलयत ह। बात भी ठीक लगती है । कां टे ब त, फूल एक। वह आदमी ब त
िदन तक फूल म भी फूल को नहीं दे ख पाएगा। ब त ज ी उसको फूल म भी कां टे िदखाई पड़ने लगगे ।
139

हमारी ि धीरे -धीरे फैलकर िनरपे पूण हो जाती है । ले िकन अ ?अ ं है; वहां दोनों मौजू द ह।

योगा ासी का अथ है , ऐसा , जो जीवन म शां ित की खूंिटयां खोजता है , आनंद की खूंिटयां खोजता है । फूल
खोजता है । आशा खोजता है । सौंदय खोजता है । आनंद खोजता है । जो जीवन म नृ खोजता है , उ व खोजता है ।
जीवन म उदासी बटोरने का िजसने ठे का नहीं िलया है । जो जगह-जगह जाकर कां टे और कंकड़ नहीं खोजता रहता
है । और िजनको इक ा करके छाती पर रखकर िच ाता नहीं है िक िजं दगी बे कार है , अथहीन है ।

योगा ास का अथ है , जीवन को िवधायक ि से दे खने का ढं ग। योग जीवन की िवधायक कीिमया है , पािजिटव


केमे ी है । और उसका अ ास करना पड़े गा। ोंिक आपने अ ास िकया आ है । अगर आप पुराने अ ास को
ऐसे ही, िबना अ ास के छोड़ने म समथ हों, तो छोड़ द। तो िफर नए अ ास की कोई भी ज रत नहीं है ।

ले िकन वह पुराना अ ास जकड़ा आ है , भारी है; वह छूटे गा नहीं। उसे इं च-इं च जै से बनाया, वै से ही काटना भी
पड़े गा। जै से घर बनाया, वै से अब एक-एक ईंट उसकी िगरानी भी पड़े गी। भला वह ताश का ही घर ों न हो, ले िकन
ताश के प े भी उतारकर रखने पड़गे । भला ही वह िकतनी ही झूठी व था ों न हो, ले िकन झूठ की भी अपनी
व था है ; उसको भी काटना और िमटाना पड़े गा।

योगा ास गलत अ ासों को काटने का अ ास है । ठीक िवपरीत या ा करनी पड़े गी। िजस म कल तक दे खा
था बु रा आदमी, उसम दे खना पड़े गा भला आदमी। िजसम दे खा था श ु, उसम खोजना पड़े गा िम । जहां दे खा था
जहर, वहां अमृत की भी तलाश करनी पड़े गी। यह तो ई एक बिह व था।

और िफर अपने म भी यही करना पड़े गा। अपने भीतर भी िजन-िजन चीजों को बु रा दे खा था, उन-उन म शु भ को
खोजना पड़े गा। कामवासना म दे खा था नरक का माग, अब कामवासना म ग का माग भी दे खना पड़े गा। ग का
माग कामवासना म दे खते से ही, काम की वासना ऊ गामी होकर ग के माग को भी लगा दे ती है । कल तक ोध
म दे खा था िसफ ोध, अब ोध म उस श को भी दे खना पड़े गा, जो मा बन जाती है । ोध की श ही मा
बनती है । काम की श ही चय बनती है । लोभ की श ही दान बन जाती है ।

दे खना पड़े गा; खोजना पड़े गा। अब तक एक तरह से दे खा था जीवन को, अब ठीक िवपरीत तरह से दे खना पड़े गा।
उस िवपरीत तरह के दे खने की ा िविधयां ह, उनकी बात म सं ा क ं गा। इस सू पर भी पूरी बात सं ा करगे ।
अभी इतना ही खयाल म ल िक अगर गलत का अ ास िकया है , तो गलत को काटने का भी अ ास करना पड़े गा।

िनि त ही, जब गलत कट जाता है , तो जो शे ष रह जाता है वह शु भ है । इसिलए एक अथ म कृ मूित या झेन फकीर


जो कहते ह, ठीक कहते ह। ोंिक शु भ के पाने के िलए िकसी अ ास की ज रत नहीं है । ले िकन अशु भ को
काटने के िलए अ ास की ज रत है । इसिलए एक ि से वे िबलकुल गलत कहते ह।

फक समझ आप। शु भ को पाने के िलए िकसी अ ास की ज रत नहीं है । शु भ भाव है । ले िकन अशु भ को काटने
के िलए…।

ऐसा समझ ल, तो ठीक होगा। मेरे हाथों म आपने जं जीर डाल दी ह, तो ा म क ं िक तं ता पाने के िलए जं जीर
तोड़ने की ज रत है? तं ता पाने के िलए तो िकसी जं जीर को तोड़ने की ा ज रत है ! तं ता पर कोई जं जीर
नहीं ह। ले िकन िफर भी जं जीर तोड़नी पड़े गी। परतं ता को तोड़ने के िलए जं जीर तोड़नी पड़े गी। और जब जं जीर टू ट
जाएगी और परतं ता टू ट जाएगी, तो जो शे ष रह जाएगी, वह तं ता है ।

तं ता के िलए जं जीर नहीं तोड़नी पड़ती है । ले िकन परतं ता के िलए, परतं ता को तोड़ने के िलए जं जीर तोड़नी
पड़ती है ।
140

शु भ तो भाव है । स तो भाव है । धम तो भाव है । परमा ा तो भाव है । परमा ा को पाने के िलए कोई


ज रत नहीं है । ले िकन परमा ा को खोने के िलए जो-जो उपाय आपने िकए ह, उन उपायों को काटने के िलए
अ ास करना पड़ता है । वही अ ास योगा ास है ।

उस सं बंध म हम रात बात करगे । अभी तो पांच िमनट थोड़ा-सा योगा ास कर। थोड़ा कीतन। थोड़ा कीतन म डूब।

ले िकन कीतन म भी कोई दे खेगा िक अरे , इसम ा रखा है ! कोई दे खेगा िक िच ाने-नाचने से ा होगा!

कां टे दे ख रहे ह आप। फूल दे खने की कोिशश कर, तो फूल िदखाई पड़ने शु हो जाएं गे। और िसफ िदखाई पड़ने
से नहीं िदखाई पड़गे; थोड़ा स िलत हों, तो ज ी खलने शु हो जाएं गे ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


योग का अंतिव ान (अ ाय—6) वचन—नौवां

: भगवान ी, योग के अ ास और उसकी आव कता पर बात चल रही थी। आपने समझाया था िक धम और


आ ा तो हमारा भाव ही है । उसे उपल नहीं करना है, वह िमला ही आ है । ले िकन योग का अ ास अशु को
काटने के िलए करना पड़ता है । कृपया योगा ास से अशु कैसे कटती है , इस पर कुछ कह।
भाव कहते ह उसे, जो हम िमला ही आ है । िजसे हम चाह तो भी खो नहीं सकते । िजसे खोने का कोई उपाय नहीं
है । भाव का अथ है , जो मेरा होना ही है , जो हमारा अ ही है ।

जो जानते ह, वे कहते ह िक हमारा भाव यं परमा ा होना है । ऐसा कोई एक नहीं कहता; इस पृ ी पर कोने-
कोने म, अलग-अलग सिदयों म, अलग-अलग थानों पर जब भी िकसी ने जाना है , उसने यही कहा है । यह िनरपवाद
घोषणा है । ऐसा एक भी नहीं आ है मनु के इितहास म िजसने कहा हो िक मने जान िलया भीतर जाकर
और मनु के भीतर परमा ा नहीं है ।

िज ोंने कहा है , परमा ा नहीं है , वे कभी भीतर नहीं गए। और जो भीतर गए ह, उ ोंने सदा कहा है िक परमा ा
है । अगर कोई स िनरपवाद स हो सकता है, तो वह एक स यही है िक मनु का भाव परमा ा ही है ।

लोग परमा ा को खोजते ह। कभी खोज न पाएं गे, ोंिक खोजा उसे जा सकता है िजसे खोया हो। असल म जो
खोजने िनकला है, वह यं ही परमा ा है , इसिलए खोज कैसे पाएगा? हम अगर परमा ा से अलग होते, तो कहीं न
कहीं उसे खोज ही ले ते, कहीं न कहीं मुठभेड़ हो ही जाती, कहीं न कहीं आमने-सामने पड़ ही जाते । ले िकन हम यं
ही परमा ा ह। इसिलए जो परमा ा को खोजने िनकला है , उसे अभी पता ही नहीं िक वह िजसे खोज रहा है , वह
उसका यं का ही होना है ।

यह तो हमारा भाव है , िजसे हम कभी खो नहीं सकते, ले िकन आ य िक इसे भी हम खोए ए मालू म पड़ते ह,
अ था खोजते ही ों! खो तो नहीं सकते, िफर कुछ और हो सकता है , जो खोने से िमलता-जु लता है । वह है
िव रण, वह है फारगे टफुलनेस।

भाव को खोया नहीं जा सकता, ले िकन भाव को भू ला जा सकता है । िव रण िकया जा सकता है । य िप


िव रण के समय म भी कुछ बदलाहट नहीं होगी; हम जो थे, वही होंगे। ले िकन िफर भी हम जो ह, वह हम अपने
को समझ नहीं पाएं गे।
141

परमा ा िसफ िव ृत है ।

योग की ा ज रत है जब परमा ा भाव है? योग की ज रत है इस िव रण को तोड़कर रण को


पुन थािपत करने के िलए। यह जो फारगे टफुलनेस है , यह जो भू ल जाना है , इस भू ल जाने की व था को तोड़ दे ने
के िलए योग का योग है ।

ठीक से समझ, तो योग का सम योग िनगे िटव है , नकारा क है । वह िकसी चीज को पाने के िलए नहीं, कोई
चीज बीच म अटकाव बन गई है , उसे तोड़ने के िलए है । योग से कोई नई चीज िनिमत नहीं होगी; योग से कोई नई
उपल नहीं होगी; योग से तो जो सदा-सदा से िमला ही आ है , वही पुन रण होगा।

बु को जब ान आ, तो िकसी ने बु से पूछा है िक आपने पाया ा? तो बु ब त हं सने लगे और उ ोंने कहा


िक मत पूछो। ऐसा मत पूछो। ोंिक मने पाया कुछ भी नहीं। तो उस आदमी ने कहा िक िफर इतनी मेहनत थ
गई? िफर लोग कहते ह िक आपको िमल गया। तो िमला ा है ? आप कहते ह, पाया नहीं! बु ने कहा, अगर ठीक
से क ं , तो यही कह सकता ं, मने कुछ खोया है, मने कुछ पाया नहीं।

तब तो भावतः पूछने वाला और भी चिकत आ। और उसने कहा, खोने के िलए इतनी मेहनत! तो फल ा है?
अिभ ाय ा है ? और अब आप उपदे श ों दे ते ह?

बु ने कहा, इसीिलए िक तु म भी कुछ खो सको। जो मने पाया है , अब म कह सकता ं िक वह सदा ही मेरे भीतर
था, िसफ मुझे पता नहीं था। इसिलए कैसे क ं िक मने पाया! था ही। इतना ही कह सकता ं िक वह जो मेरे भीतर
था, उसको भी जानने म कुछ बाधाएं मेरे भीतर थीं, उन बाधाओं को मने खोया। अ ान मने खोया है । और ान पाया
है , ऐसा म नहीं कह सकूंगा, ोंिक वह था ही। यं को मने खोया है । ले िकन परमा ा को मने पाया, ऐसा म न कह
सकूंगा, ोंिक वह था ही। ले िकन मेरी वजह से िदखाई नहीं पड़ता था। मेरे म की वजह से िदखाई नहीं पड़ता था।
मेरी िव ृित गहरी थी और िदखाई नहीं पड़ता था।

योग है िव रण को काटने की िविध।

िव रण ों है? िव रण के होने का भी कारण है । अकारण तो नहीं िव रण हो सकता। िव रण के होने का


कारण है । तीन बात खयाल म ल, तो रण की ि या समझ म आ सकेगी।

िव रण का पहला बु िनयादी कारण तो यह है िक जो भी हम ह, उसे िबना एक बार भू ले, हम कभी पता नहीं चले गा।
जो भी हम ह, उसे एक बार िबना करीब-करीब खोए, हम पता नहीं चलेगा। असल म पता चलने के िलए िवरोधी
घटना घटनी चािहए। पता चलने का िनयम है ।

अगर आप कभी बीमार नहीं पड़े , तो आप थ ह, ऐसा आपको कभी पता नहीं चलेगा। कभी भी आपको यह पता
नहीं चलेगा िक आप थ ह। बीमार पड़गे, तो पता चले गा िक थ थे । बीमार पड़गे, तो पता चले गा िक अब थ
हो गए। ले िकन बीमारी के कंटा के िबना, बीमारी के िवरोध के िबना, आपको अपने ा का कोई रण नहीं
हो सकता है ।

अगर इस पृ ी पर अंधेरा न हो, तो काश का िकसी को भी पता नहीं चले गा। काश होगा, पता नहीं चले गा। पता
चलने के िलए िवपरीत का होना ज री है । वह जो िवपरीत है , वही पता चलवाता है । अगर बु ढ़ापा न हो, तो जवानी तो
होगी, ले िकन पता नहीं चले गा। अगर मौत न हो, तो िजं दगी तो होगी, ले िकन पता न चले गा। िजं दगी का पता चलता है
मौत के िकनारे से । वह जो मौत की पृ भू िम है , उस पर ही जीवन उभरकर िदखाई पड़ता है । अगर मौत कभी न हो,
तो आपको जीवन का कभी भी पता नहीं चलेगा। यह ब त उलटी बात लगेगी, ले िकन ऐसा ही है ।
142

ू ल म िश क िलखता है, काले ैकबोड पर सफेद खिड़या से । सफेद ैकबोड पर भी िलख सकता है । िलखावट
तो बन जाएगी, ले िकन िदखाई नहीं पड़े गी। िलखता है काले ैकबोड पर और तब सफेद खिड़या उभरकर िदखाई
पड़ने लगती है ।

िजं दगी के गहरे से गहरे िनयमों म एक है िक उसी बात का पता चलता है िजसका िवरोधी मौजू द हो; अ था पता नहीं
चलता।

अगर हमारे भीतर परमा ा है , सदा से है , तो भी उसका पता तभी चले गा, जब एक बार िव रण हो। उसके िबना
पता नहीं चल सकता।

इसिलए िव रण रण की ि या का अिनवाय अंग है । ई र से िबछु ड़ना, ई र से िमलन का ाथिमक अंग है ।


ई र से दू र होना, उसके पास आने की या ा का पहला कदम है । केवल वे ही जान पाएं गे उसे, जो उससे दू र ए ह।
जो उससे दू र नहीं ए ह, वे उसे कभी भी नहीं जान पाएं गे ।

अगर आपको अपनी मां की गोद से कभी िसर हटाने का मौका न िमले, तो आपको मां की गोद का भर पता नहीं
चलेगा, और सब पता चलता रहेगा। मां की गोद छूट जाती है , तब ही पता चलता है िक वह गोद थी। उसका अथ और
अिभ ाय है ।

जीवन का यह स यं के भाव को भू लने के िलए भी लागू होता है । भू लना ही पड़ता है , तो ही हम बोध होता है ।
बोध के ज की यह अिनवाय ि या है ।

और भू लने का ढं ग ा होता है? भू लने का एक ही ढं ग है । भू लने का एक ही ढं ग है, अगर यं को भू लना हो, तो


यं को गलत समझना पड़े गा, तभी भू ल सकते ह; नहीं तो भू ल नहीं सकते । यं को कुछ और समझना पड़े गा, तभी
जो ह, उसे भू ल सकते ह, अ था भू लगे कैसे? इसिलए चेतना अपने को शरीर समझ ले ती है , पदाथ समझ ले ती है ,
मन समझ ले ती है, िवचार समझ ले ती है , भाव समझ ले ती है , वृ ि -वासना समझ ले ती है–िसफ आ ा नहीं समझती।
दू सरे के साथ तादा हो जाता है । यह भू लने का ढं ग है ।

योग इस भू लने के ढं ग से िवपरीत या ा है , पुनः घर की ओर वापसी; रटघनग होम। ब त दू र िनकल गए ह; िफर


वापस पुनया ा। िनि त ही, पुनः उसी जगह प ं चगे, जहां से चले थे । ले िकन आप वही नहीं होंगे। ोंिक जब आप
चले थे, तब आपको उस जगह का कोई भी पता नहीं था। अब जब आप प ंचगे, तो आपको पूरा पता होगा। वहीं
प ं चगे, जहां से चले थे । वहीं भु के मंिदर म वे श हो जाएगा, जहां से बाहर िनकले थे । ले िकन जब दु बारा प ं चगे,
इस बीच के ण म भु को भू लकर, तो भु के िमलन के आनंद और ए टै सी का, समािध का, भु के िमलन के
उ व का, भु के िमलन की वह जो अपूव घटना घटे गी, वह ाणों म अमृत बरसा जाएगी।

वहीं प ं चगे, ले िकन वही नहीं होंगे, ोंिक बीच म िव रण घट चु का। और अब जब रण आएगा, तो यह काले
त े पर सफेद रे खाओं की तरह उभरकर आएगा। पहली दफे, जो िलखा है , वह पढ़ा जा सकेगा। पहली दफे, जो
भाव है, वह कट होगा। पहली दफे, जो िछपा है , वह उघड़े गा। पहली दफे, जो दबा है , वह अनावृ त होगा। यह
जीवन का अिनवाय िह ा है ।

कोई पूछे, ऐसा ों है? तो वह ब ों का सवाल पूछ रहा है । वै ािनक से पूछ िक पृ ी गोल ों है ? वह कहे गा, है ।
हम त बता सकते ह, ों नहीं बता सकते । पूछ िक सू रज म रोशनी ों है ? वह कहे गा, है । या और अगर थोड़ी
खोजबीन की, तो कहे गा, हीिलयम गै स की वजह से है , इसकी वजह से है , उसकी वजह से है ; िक उदजन का अणु-
िव ोट हो रहा है , इस वजह से है । ले िकन पूछ िक ों हो रहा है सू रज पर, जमीन पर ों नहीं हो रहा है ? तो
वै ािनक कहे गा, इसको मत पूछ। ऐसा हो रहा है, वह हम कह सकते ह। ाई मत पूछ, ों मत पूछ। हाउ, कैसे;
कैसे हो रहा है , वह हम बता सकते ह।

धम भी िव ान है । वह भी यह नहीं कहे गा, नहीं कह सकता है , िक ों। इतना ही कह सकता है , कैसे!


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आदमी िव रण करता है । कैसे िव रण करता है ? पर के साथ तादा करके िव रण करता है । कैसे रण


करे गा? पर के साथ तादा तोड़े गा, तो पुनः रण हो जाएगा। बस, इस ि या की बात की जा सकती है । ों इस
ि या की म आपसे चचा कर रहा ं ? ोंिक योग शु िव ान है । इसिलए ब त मजे की घटना घटी है ।

िहं दु ान म तीन बड़े धम पैदा ए–जै न, िहंदू, बौ । उनम िकतने ही झगड़े हों और उनम िकतने ही सै ां ितक
िववाद हों, ले िकन योग के सं बंध म उनम कोई भी िववाद नहीं उठा। योग के सं बंध म कोई िववाद नहीं है । ा बात
है ?

योग है साइं स, िस ां त नहीं। दाशिनक िस ां त नहीं, मेटािफिज नहीं, योग तो एक ि या है , एक योग है , एक


ए पे रमट है । उसे कोई भी करे , अनुभव फिलत होगा।

इसिलए योग एक अथ म सम धम का सार है । भारत म तो तीन धम पैदा ए, वे ठीक ही ह। भारत के बाहर भी


जो धम पैदा ए–चाहे इ ाम, और चाहे ईसाइयत, और चाहे य दी धम, चाहे पारसी धम–भारत के बाहर भी जो धम
पैदा ए, उनका भी योग से कभी भी कोई िवरोध खड़ा नहीं होता है ।

अगर ठीक से समझ, तो योग सम धम की ि या है –सम धम की–वे कहीं पैदा ए हों। अगर भिव म कभी
िकसी दु िनया म िकसी समय म धम का िव ान थािपत होगा, तो उसकी आधारिशला योग बनने वाली है । ोंिक योग
िसफ ि या है ।

योग यह नहीं कहता िक परमा ा ा है । योग कहता है , परमा ा को कैसे पाया जा सकता है । योग यह नहीं कहता
िक आ ा ा है । योग कहता है , आ ा को कैसे जाना जा सकता है । हाउ! योग यह नहीं कहता िक िकसने कृित
बनाई और नहीं बनाई। योग कहता है , अ म उतरने की सीिढ़यां ये रहीं, उतरो और जानो। योग कहता है, हम न
बताएं गे, तु ीं आं ख खोलो और दे ख लो। आं ख खोलने का ढं ग हम बताए दे ते ह।

योग िबलकुल शु साइं स है, सीधा िव ान है । हां , फक है । साइं स आ े व है , पदाथगत है । योग स े व है,
आ गत है । िव ान खोजता है पदाथ, योग खोजता है परमा ा।

यह पुन रण, यह पुनवापसी की या ा योग कैसे करता है , उस सं बंध म भी कुछ बात खयाल म ले ले नी चािहए।
ोंिक कृ ने कहा, उसके ही सतत अ ास से परमा ा म ित ा उपल होती है । म क ं गा, पुन ित ा उपल
होती है ।

है ा योग? योग करता ा है? योग की कीिमया, केमे ी ा है ? योग का सार-सू , राज, मा र-की ा है ?
उसकी कुंजी ा है ? तो तीन चरण खयाल म ल।

एक, मनु के शरीर म िजतनी श का हम उपयोग करते ह, इससे अनंत गु नी श को पैदा करने की सु िवधा
और व था है । उदाहरण के िलए, आपको अभी िलटा िदया जाए जमीन पर, तो आपकी छाती पर से कार नहीं
िनकाली जा सकती, समा हो जाएं गे । ले िकन राममूित की छाती पर से कार िनकाली जा सकती है । य िप राममूित
की छाती म और आपकी छाती म कोई बु िनयादी भे द नहीं है । और राममूित की छाती की हि यों म जरा-सी भी
िकसी त की ादा थित नहीं है, िजतनी आपकी हि यों म है । राममूित का शरीर उ ीं त ों से बना है, िजन त ों
से आपका। राममूित ा कर रहा है िफर?

राममूित, िजस श का आप कभी उपयोग नहीं करते–आप अपनी छाती का इतना ही उपयोग करते ह, ास को
ले ने-छोड़ने का। यह एक ब त अ -सा काय है। इसके लायक छाती िनिमत हो जाती है । राममूित एक बड़ा काम
इसी छाती से ले ता है, कारों को छाती पर से िनकालने का, हाथी को छाती पर खड़ा करने का।
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और जब राममूित से िकसी ने पूछा िक खूबी ा है ? राज ा है ? उसने कहा, राज कुछ भी नहीं है । राज वही है जो
िक कार के टायर और टयू ब म होता है । साधारण सी रबर का टयू ब होता है , ले िकन हवा भर जाए एक िवशे ष
अनुपात म, तो बड़े से बड़े टक को वह िलए चला जाता है । राममूित ने कहा िक म अपने फेफड़े से वही काम ले रहा
ं , जो आप टायर और टयू ब से ले ते ह। हवा को एक िवशे ष अनुपात म रोक ले ता ं , िफर छाती से हाथी गु जर जाए,
वह मेरे ऊपर नहीं पड़ता, भरी ई हवा के ऊपर पड़ता है । पर एक ि या होगी िफर उस अ ास की, िजससे छाती
हाथी को खड़ा कर ले ती है ।

हमारे शरीर की ब त मताएं ह, िजनका हम िहसाब नहीं लगा सकते । वे सारी की सारी मताएं अनुपयु ,
अनयू िटलाइ रह जाती ह। ोंिक जीवन के काम के िलए उनकी कोई ज रत ही नहीं है। जीवन के िलए िजतनी
ज रत है, उतना शरीर काम करता है ।

अगर हम वै ािनकों से पूछ, तो वै ािनकों का खयाल है िक दस ितशत से ादा हम अपने शरीर का उपयोग नहीं
करते । न े ितशत शरीर की श यां अनुपयोगी रहकर ही समा हो जाती ह। जीते ह, ज ते ह, मर जाते ह। वह
न े ितशत शरीर जो कर सकता था, पड़ा रह जाता है ।

योग का पहला काम तो यह है िक उन न े ितशत श यों म से जो सोई पड़ी ह, उन श यों को जगाना, िजनके
मा म से अंतया ा हो सके। ोंिक िबना श के कोई या ा नहीं हो सकती है । एनज , ऊजा के िबना कोई या ा
नहीं हो सकती है । अगर आप सोचते ह िक हवाई जहाज िकसी िदन िबना ऊजा के चल सकगे, तो आप गलत सोचते
ह। कभी नहीं चल सकगे ।

हां, यह हो सकता है , हम सू तम ऊजा को खोजते चले जाएं । बै लगाड़ी चलती है, तो ऊजा से । पैदल आदमी चलता
है , तो ऊजा से । सां स चलती है , तो ऊजा से । सब मूवमट, सब गित ऊजा की गित है , श की गित है ।

अगर आप सोचते हों िक परमा ा तक िबना ऊजा के सहारे आप प ंच जाएं गे, तो आप गलती म ह। परमा ा की
या ा भी बड़ी गहन या ा है । उस या ा म भी आपके पास श चािहए। और िजस श का आप उपयोग करते ह
साधारणतः, वह श आपके जीवन के दै िनक काम म चु क जाती है, उसम से कुछ बचता नहीं है । और अगर थोड़ा-
ब त बचता है –अगर थोड़ा-ब त बचता है –तो भी आपने उसको थ फक दे ने के उपाय और व था कर रखी है ।
कुछ बचता नहीं। आदमी करीब-करीब ब , िदवािलया जीता है । जो श उसे िमलती है , दै नंिदन काय म चु क
जाती है । और जो श िछपी पड़ी है , उसे वह कभी जगा नहीं पाता।

तो योग का पहला तो आधार है, िछपी ई पोटिशयल ऊजा को जगाना। सब तरह के उपाय योग ने खोजे ह िक वह
कैसे जगाई जाए। इसिलए ाणायाम खोजा। ाणायाम आपके भीतर सोई ई श यों को है मर करने की, चोट करने
की एक िविध है । िफर योग ने आसन खोजे । आसन आपके शरीर म िछपे ए जो ऊजा के ोत- े ह, उन पर दबाव
डालने की ि या है , तािक उनम िछपी ई श सि य हो जाए।

आपने टे न को चलते दे खा है । श तो ब त साधारण-सी उपयोग म आती है , पानी और आग की, और दोनों से बनी


ई भाप की। ले िकन भाप के ध े से इं जन का िसलडर ध ा खाकर चलना शु हो जाता है । िफर टे न चल पड़ती
है । इतनी बड़ी श , इतने बड़े वजन की टे न िसफ पानी की भाप, ीम चलाती है ।

आपके शरीर म भी ब त-सी श यां ह, िजन श यों को दबाकर सि य िकया जाए, तो आपके भीतर न मालू म
िकतने िसलडर चलने शु हो जाते ह, जो िक अभी िबलकुल वै से ही पड़े ह। इन श यों के िबं दुओं को, जहां श
िछपी है, योग च कहता है । े क च पर िछपी ई श यां ह। और े क च को दबाने के, गितमान करने
के, डायनेिमक करने के आसन ह, ाणायाम की िविधयां ह।

हम भी साधारणतः उपयोग करते ह, हमारे खयाल म नहीं होता है । आपने कभी खयाल िकया है िक रात आप िसर के
नीचे तिकया रखकर ों सो जाते ह? कभी खयाल नहीं िकया होगा। कहते ह िक नींद नहीं आती है, इसिलए सो जाते
ह। तिकया रखकर आप न सोएं , तो नींद ों नहीं आती?
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जब आप तिकया नहीं रखते, तो शरीर के खून की गित िसर की तरफ ादा होती है । ोंिक िसर भी शरीर की
सतह म, ब शरीर से थोड़ा नीचे ढल जाता है । तो सारे शरीर का खून िसर की तरफ बहता है । और जब खून िसर
की तरफ बहता है , तो िसर के जो तं तु ह, म के, वे खून की गित से सजग बने रहते ह। िफर नींद नहीं आ
सकती। खून बहता रहता है , तो म के तं तु सजग रहते ह। तो िफर नींद नहीं आ सकती। तो आप तिकया रख
ले ते ह।

और जै से-जै से आदमी स होता जाता है ; तिकए बढ़ते चले जाते ह–एक, दो, तीन! ों? ोंिक उतना िसर ऊंचा
चािहए, तािक खून जरा भी भीतर न जाए। नहीं तो म की िदनभर इतनी चलने की आदत है िक जरा-सा खून
का ध ा और िसलडर चालू हो जाएगा; आपका म काम करना शु कर दे गा।

योगी शीषासन लगाकर खड़ा होता है । आप समझ िक दोनों का िनयम एक ही है , तिकया रखने का और शीषासन का
आधारभूत िनयम एक ही है । उलटा काम कर रहा है वह। वह सारे शरीर के खून को िसर म भे ज रहा है । योगी जब
शीषासन लगाकर खड़ा हो रहा है , तो वह कर ा रहा है ? वह इतना ही कर रहा है िक वह सारे शरीर के खून की
गित को िसर की तरफ भे ज रहा है ।

अभी िजतना आपका म काम कर रहा है, वै ािनक कहते ह िक िसफ एक चौथाई म काम करता है ,
तीन चौथाई बं द पड़ा आ है , ै गनट, वह कभी कोई काम नहीं करता। खून की ती चोट से वह जो नहीं काम करने
वाला म का िह ा है , सि य िकया जा सकता है । ोंिक यह िह ा भी खून की चोट से ही सि य होता है ।
खून का ध ा आपके म के बं द िसलडर को गितमान कर दे ता है ।

म के वे िह े सि य हो जाएं , जो मौन चु पचाप पड़े ह, तो आपकी समझ और आपके िववेक म आमूल अंतर
पड? जाते ह–आमूल अंतर पड़ जाते ह। आप नए ढं ग से सोचना और नए ढं ग से दे खना शु कर दे ते ह। नए ढं ग से,
एक नई ि , और एक नया ार, ू परसे शन, डोस आफ ू परसे शन, ीकरण के नए ार आपके भीतर
खुलने शु हो जाते ह।

मने उदाहरण के िलए कहा। इस तरह के शरीर म ब त-से च ह। इन ेक च म िछपी ई अपनी िवशे ष ऊजा
है , िजसका िवशे ष उपयोग िकया जा सकता है । योगासन उन सब च ों म सोई ई श को जगाने का योग है ।

योग के ारा शरीर एक डायनेिमक फोस, एक ब त जीवंत ऊजा की जीती-जागती, साकार ितमा बन जाता है । इस
श के पंखों पर चढ़कर अंतया ा हो सकती है । अ था अंतया ा अ ं त किठन है । वह भु का जो रण है, तभी
हो सकता है ।

तो पहला तो योग का िवशे ष अ ास है , वह है , श के सोए ए ोतों को सजीव करना, जा त करना, पुनज िवत
करना।

ब त ोत ह। कभी-कभी अचानक घटनाएं घटती ह, तब लोगों को पता चलता है । अभी टजरलड म एक आदमी
एक टे न से िगर पड़ा था। चोट लगी ब त जोर से उसके कानों को। जब वह अ ताल म भत िकया गया, तो पाया
गया िक दस मील के भीतर जो भी रे िडयो े शन ह, उसके कान ने , उन रे िडयो े शंस को पकड़ना शु कर िदया।
बड़ी है रानी ई। कभी सोचा न था िक कान के पास यह मता हो सकती है िक रे िडयो े शन को सीधा पकड़ ले,
बीच म रे िडयो की ज रत न रहे !

ले िकन योग सदा से कहता है िक कान के पास ऐसी मता िछपी पड़ी है , िसफ उसे सजग करने की बात है । यह
भू ल-चू क से हो गया, ए डटल, िक आदमी टे न से िगरा और उस क पर चोट लग गई और श सि य हो गई।
योग इसे व थत प से सि य करना जानता है ।

उसके कुछ िदन पहले ीडन म एक आदमी को आं ख का कुछ आपरे शन िकया, और अचानक उसे िदन म
आकाश के तारे िदखाई पड़ने शु हो गए। िदन म! आकाश म तारे तो िदन म भी होते ह, िसफ सू रज की रोशनी की
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वजह से आपको िदखाई नहीं पड़ते । अगर आप एक गहरे कुएं म चले जाएं , गहरे अंधेरे कुएं म, तो िदन म भी आपको
गहरे कुएं म से आकाश म थोड़े -से तारे िदखाई पड़ सकते ह। ले िकन उस आदमी को तो सू रज की रोशनी म खड़े
होकर तारे िदखाई पड़ने लगे । ा हो गया?

योग ब त िदन से कहता है िक आं ख की मता ब त है । िजतनी आप जानते ह, उससे ब त ादा। ले िकन उसके
सोए ए श क ह, उनको सजग करना ज री है । शरीर म ऐसे ब त ऊजा- ोत ह, और योग ने सबको सि य
करने की ि याएं खोजी ह। उनका ही अ ास, उनका ही सतत अ ास को परमा ा की िदशा म सि य
कर पाता है, एक।

दू सरी बात, जै सा हमारा मन है , साधारणतः हम सोचते ह, साधारणतः हमारा खयाल है िक यह जो हमारा मन है , जै सा


यह मन है , इसी मन को ले कर हम परमा ा की तरफ चले जाएं गे, तो हम गलत सोचते ह। इस मन को ले कर जाना
असंभव है । इसी मन के कारण तो हम पदाथ की तरफ आए ह। यह मन हमारा पदाथ से सं बंध जोड़ने का इं तजाम है ;
यह परमा ा से तोड़ने का कारण है ; यह जोड़ने का कारण नहीं बन सकता है ।

यह जो मन है हमारे पास, यह मन पदाथ से जोड़ने की व था है । इसी मन को आप परमा ा की तरफ नहीं ले जा


सकते । आपको एक नए मन को पैदा करने की ज रत है ।

और योग कहता है , वै सा नया मन पैदा िकया जा सकता है । और उस नए मन को पैदा करने की भी पूरी कीिमया योग
ने खोजी है िक वह नया मन कैसे पैदा हो। जै से मने कहा िक शरीर की श जगाने के िलए आसन, ाणायाम, मु ाएं
और इस तरह की सारी व था है । हठयोग ने उस पर अपूव चे ा की है, और ऐसे राज खोज िलए ह, िजनम से
ब त-से राजों से अभी िव ान भी अप रिचत है ।

जै से िव ान को अभी तक खयाल नहीं था िक शरीर म खून या खून की गित वालटरी हो सकती है , े ा से हो


सकती है । िव ान समझता है िक खून की गित नान-वालटरी है , े ा के बाहर है , आप कुछ कर नहीं सकते।
ले िकन हठयोग ब त हजारों साल से कह रहा है िक शरीर की कोई भी गित े ा से चािलत हो सकती है । खून भी
हमारी इ ा से चले और बं द हो सकता है । शरीर का बु ढ़ापा, यु वाव था भी हमारी इ ा के अनुकूल िनधा रत हो
सकती है । शरीर की उ भी हम िवशे ष ि याओं से लं बी और कम कर सकते ह।

एक आदमी इिज म, एक सू फी योगी, अठारह सौ अ ी म समािध थ आ, जीिवत। और चालीस साल बाद


उखाड़ा जाए, इसकी घोषणा करके समािध म, क म चला गया, अठारह सौ अ ी म। चालीस साल बाद उ ीस सौ
बीस म क खुदेगी। जो बू ढ़े उसको दफनाने आए थे उस चालीस साल के िव ाम के िलए, उनम से करीब-करीब
सभी मर गए। उ ीस सौ बीस म एक भी नहीं था। जो जवान थे, उनम से भी अनेक बू ढ़े होकर मर चु के थे । जो ब े
थे, वे ही कुछ बचे थे । जो उस भीड़ म छोटे ब े खड़े थे, वे ही बचे थे ।

उ ीस सौ बीस तक करीब-करीब बात भू ली जा चुकी थी। वह तो सरकारी द रों के कागजातों म बात थी और िकसी
के हाथ पड़ गई। िकसी को भरोसा नहीं था िक वह आदमी अब िजं दा िमलेगा उ ीस सौ बीस म। ले िकन कुतू हलवश–
िकसी को भरोसा नहीं था िक वह िजं दा िमलने वाला है । चालीस साल! कुतू हलवश क खोदी गई। वह आदमी िजं दा
था। और बड़ा आ य जो घिटत आ वह यह िक इस चालीस साल म उसकी उ म कोई भी फेर-बदल नहीं आ
था। उसके जो िच छोड़े गए थे अठारह सौ अ ी म फाइलों के साथ, उससे उसके चे हरे म चालीस साल का कोई भी
फक नहीं था।

उ ीस सौ बीस म क के बाहर आकर वह आदमी नौ महीने और िजंदा रहा। और नौ महीने म उतना फक पड़ गया,
िजतना चालीस साल म नहीं पड़ा था। और उस आदमी से पूछा गया िक तु मने िकया ा? उसने कहा िक म कुछ
ादा नहीं जानता ं । िसफ ाणायाम का एक छोटा-सा योग जानता ं । ास पर काबू करने का एक छोटा-सा
योग जानता ं, और कुछ भी नहीं जानता।
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तो एक िह ा तो शरीर है ऊजा का, िजसके योग ने सू खोजे । दू सरा िह ा नया मन, ए ू माइं ड पैदा करने की
ि याएं ह, जो योग ने खोजी ं। पहले योग के िलए योगासन ह, ाणायाम ह, मु ाएं ह। दू सरे योग के िलए िन,
श और मं ों का योग है । तो मं योग की पूरी लं बी व था है ।

हम खयाल म भी नहीं है िक हमारा िच जो है, वह िनयों से चलता है । िनयों से!

ओंकारनाथ ठाकुर इटली म मुसोिलनी के मेहमान थे–भारत के एक बड़े सं गीत । मुसोिलनी ने ऐसे ही मजाक म–
भोजन पर िनमंि त िकया था ठाकुर को–मजाक म, भोजन करते व मुसोिलनी ने कहा िक म सु नता ं िक कृ
बां सुरी बजाते थे, तो जं गली जानवर आ जाते; गउएं नाचने लगतीं; मोर पंख फैला दे ते। यह कुछ मुझे समझ म नहीं
आता िक सं गीत से यह कैसे हो सकता है ! ओंकारनाथ ठाकुर ने कहा िक कृ जै सी मेरी साम नहीं। सं गीत के
सं बंध म उतनी मेरी समझ नहीं। सच तो यह है िक सं गीत के सं बंध म कृ जै सी समझ पृ ी पर िफर दू सरे आदमी
की नहीं रही है । ले िकन थोड़ा-ब त क ख ग, जो म जानता ं, वह म आपको करके िदखा दू ं िक समझाऊं! मुसोिलनी
ने कहा, समझाने म तो कोई सार नहीं है । तु म कुछ करके ही िदखा दो।

कुछ न था हाथ म। खाना ले रहे थे, तो कां टा-च च हाथ म थे । सामने चीनी के बतन, ािलयां थीं। ओंकारनाथ ठाकुर
ने वे ािलयां और बतन च च-कां टे से बजाना शु कर िदया। पां च िमनट, सात िमनट और मुसोिलनी की आं ख
झप गई और जै से वह नशे म आ गया। और उसका िसर टे बल से टकराने लगा। जोर से बजने लगे बतन और
मुसोिलनी का िसर और जोर से टकराने लगा। और जोर से बजने लगे बतन! और िफर मुसोिलनी िच ाया िक रोको,
ोंिक म िसर को नहीं रोक पा रहा ं! रोका, तो िसर ल लुहान हो गया था।

मुसोिलनी ने अपनी आ कथा म िलखवाया है िक मने जो व िदया था, उसके िलए म मा चाहता ं । ज र
कृ की बां सुरी से जं गली जानवर आ गए होंगे। जब िक एक स आदमी का िसर सारी कोिशश करके भी नहीं क
सकता है । और िसफ कां टे-च च बतन पर बजाए जा रहे ह, कोई बड़ा वा नहीं!

िच की सू तम तरं ग िन की तरं ग ह। िन से हम जीते ह।

अभी पि म म इस पर ब त काम शु आ है , साउं ड इले ािन पर, िनशा पर। ोंिक पि म म पागलपन
रोज बढ़ता जा रहा है । और अब साउं ड इले ािन के समझने वाले लोग कहते ह िक उसके बढ़ने का कारण
टै िफक की िनयां ह। सड़क पर जो िनयां हो रही ह, हान बज रहे ह, कार िनकल रही ह, भोंपू बज रहे ह, टक
िनकल रहे ह, हवाई जहाज उड़ रहे ह, सु परसोिनक उड़ रहे ह, जं बो जे ट उड़ रहे ह, वे सब जो आवाज पैदा कर रहे
ह, उन िनयों को यह मन नहीं सह पा रहा है; िवि हो रहा है ।

अगर िक ीं िनयों को सु नकर आदमी पागल हो सकता है, तो ा यह मानने म ब त किठनाई है िक िक ीं


िनयों को सु नकर आदमी शां त हो जाए? अगर िक ीं िनयों को सु नकर आदमी का मन िवि हो सकता है , तो
ा यह मानने म ब त अड़चन होगी िक िक ीं और िनयों को, िवपरीत िनयों को सु नकर मनु का मन
समािध थ हो जाए?

मं योग उसकी चे ा है । और इस तरह की िनयां मं योग ने खोजी ं, िजन िनयों का उ ार, आं त रक उ ार,
दयगत उ ार, ाणगत उ ार मन को नई श दे ना शु कर दे ता है, नया पैटन।

े क िन का अपना पैटन है , अपना ढां चा है । आप कभी ऐसा कर िक एक पतले, झीने कागज पर रे त के दाने
िबछा द। िफर नीचे से जोर से कह, राम! और रे त के दाने िहलगे और कागज पर एक पैटन बन जाएगा। आप िकतनी
ही बार राम कह, वही पैटन रे त के कणों पर बनेगा। कह, अ ाह! दू सरा पैटन बनेगा। िफर िकतनी ही बार अ ाह
कह, उस कागज के ऊपर वही दू सरा पैटन दोहरे गा। िफर एकाध कोई गं दी गाली दे कर भी दे ख, उसका भी अपना
पैटन बनेगा।
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और एक और मजे की बात है िक गं दी गाली का जो पैटन बनेगा उसके ऊपर, वह ब त कु प होगा। और राम का


जो पैटन बनेगा, ब त समायोिजत, सं तुिलत, सुं दर, अनुपात म होगा। अ ाह का जो पैटन बनेगा, ब त सुं दर, ब त
समायोिजत होगा।

आप एक-एक श को उस कागज के नीचे दोहराकर दे ख िक उसका पैटन कैसा बनता है । जो पैटन रे त के दानों
पर बन रहा है , वही आपके िच म भी बनता है ।

आपका िच एक ब त–रे त के दाने तो कुछ भी नहीं– आपका िच तो सबसे ादा सं वेदनशील व ु है इस पृ ी


पर। छोटी-सी िन तरं ग उसको प दे ती है । हम जो श सु न रहे ह, जो बात सु न रहे ह, जो गीत सु न रहे ह, रा े
पर आवाज सु न रहे ह, वे हमारे एक तरह के मन को िनिमत करते ह।

योग कहता है , एक नए तरह का मन चािहए पड़े गा, अगर परमा ा की तरफ जाना है । तो उन िनयों का उपयोग
करो, िजन िनयों से परमा ा की तरफ जाने वाला लयब मन िनिमत हो जाए। और इसीिलए एक श को ही
िनरं तर दोहराने की ि याएं ईजाद की गईं। उसका कारण है । तािक वह पैटन, उस श से बनने वाला पैटन िथर हो
जाए मन पर, मन पर बै ठ जाए; मन उसको इं बाइब कर ले, पी ले ; मन उसके साथ एकाकार हो जाए। तो नया मन
िनिमत होना शु हो जाएगा।

िनशा िच के पांतरण की बड़ी अदभुत–बड़ी अदभु त–कुंिजयां खोज िलया है । हजारों साल उस तरफ मेहनत
की गई है ।

तो दू सरा त योग का है , िन। पहला त है, ऊजा। दू सरा त है, िन। और तीसरा त है , ान, अटशन,
िदशा।

चे तना उसी िदशा म बहती है , िजस तरफ चेतना को हम उ ुख करते ह। जहां उ ुख करते ह, वहीं चे तना बहती है ।
और िजस तरफ चे तना बहती है, उस तरफ बहती है और शे ष तरफ बहना उसका बं द हो जाता है । परमा ा की
तरफ कैसे बहे? ोंिक परमा ा की कोई िदशा नहीं है, खयाल रखना।

म यहां बोल रहा ं , तो आपका ान मेरी तरफ बहेगा। ले िकन शे ष सब तरफ बं द हो जाएगा। अगर कोई पीछे से
आवाज कर दे , तो आपका ान चौंककर उस तरफ बहे गा, लेिकन तब तक आपके सं बंध मुझसे टू ट जाएं गे । ले िकन
परमा ा की तो कोई िदशा नहीं है , सब िदशाओं म वह ा है –िदशाहीन, िदशातीत। तो परमा ा को हम िकस
िदशा म खोज? कहां ान ले जाएं ? इस जगत म और कुछ भी खोजना हो, तो िदशा है । परमा ा की तो कोई िदशा
नहीं, उसे हम कैसे खोज?

तो ऐसी िनयां पैदा की ह योग ने, जो िदशाहीन ह। जै से ओम, यह िदशाहीन िन है । अगर आप ओम का पाठ कर,
तो यह िन सकुलर है । इसिलए ओम का जो तीक बनाया है, वह भी सकुलर है , वतु लाकार है । अगर आप भीतर
ओम की िन कर, तो आपको ऐसा अनुभव होगा, जै से मंिदर के ऊपर गुं बज होती है गोल। वह गोल गुं बज ओम की
िन से जु ड़कर बनाई गई है, वह जो मंिदर के ऊपर अध गोलाकार छ र है । जब आप भीतर जोर से ओम का पाठ
करगे, तो आपको अपने िसर और चारों तरफ एक वतुलाकार थित का बोध होगा, िदशाहीन। यह ओम कहीं से
आता आ नहीं मालू म पड़े गा। सब कहीं से आता आ और सब कहीं जाता आ मालू म पड़े गा।

यह एक अदभु त िन है , जो योग ने खोजी है । इस िन के मुकाबले जगत म कोई दू सरी िन नहीं खोजी जा सकी।
इसे इसिलए मूल िन, बीज िन…।

इस वतुलाकार थित म आप परमा ा की तरफ उ ुख होंगे, अ था आप उ ुख न हो सकगे । कोई न कोई चीज


आपको खींचती रहे गी अपनी तरफ; कोई न कोई िदशा आपको पुकारती रहे गी। िदशामु होंगे, तो भीतर की तरफ
या ा शु होगी।
149

योग के सतत अ ास से, कृ कहते ह अजु न को, परमा ा म ित ा िमलती है ।

िफर अभी योग पर और ब त बात होगी, तो हम धीरे -धीरे उसकी और बात करगे ।

यथा दीपो िनवात थो ने ते सोपमा ृता।

योिगनो यतिच यु तो योगमा नः।। 19।।

और िजस कार वायु रिहत थान म थत दीपक नहीं चलायमान होता है , वै सी ही उपमा परमा ा के ान म लगे
ए योगी के जीते ए िच की कही गई है ।

जै से वायु रिहत थान म दीए की ोित िथर हो, अकंप, िन ं प, जरा भी कंिपत न हो, ऐसे ही योगी का िच , चे तना
िथर हो जाती है । यही उपमा योगी की चे तना के िलए कही गई है ।

ान रहे, जब तक िकसी िदशा म ान जाएगा, तब तक चे तना की लौ कंिपत होगी। राह पर बजता है एक कार का
हान, चे तना कंिपत होगी। कोई स न पीछे ही ा ान िदए जा रहे ह, चेतना कंिपत होगी। सब िनयां चे तना को
कंिपत करगी। तो िन ं प चे तना कब हो पाएगी?

जब इन सम िनयों के पार हम अपने भीतर कोई मंिदर खोज पाएं , जहां ये कोई िनयां वे श न कर। हम अपने
भीतर ऊजा का एक ऐसा वतु ल बना पाएं , जहां चे तना अकंप ठहर जाए, जै से वायु रिहत थान म दीया ठहर जाए।
िच के िलए िन ही वायु है ।

तो िन का एक िवशे ष आयोजन भीतर करना पड़े , तभी लौ ठहर पाएगी। योग उसका अ ास है । और िनि त ही
ऐसी सं भावनाएं ह। आपको भी उपल हो सकती ह। कोई िवशे षता नहीं है िक िकसी िवशे ष को उपल हों। जो भी
म करे उस िदशा म सतत, उसे उपल हो जाएं ; तो िच मंडलाकार अपने भीतर ही बं द हो जाता है ।

बौ ों ने उसे मंडल कहा है । ऐसा मंडल बन जाता है िक आप अपने भीतर ही घू मते ह, बाहर से कुछ आता नहीं,
बाहर आप जाते नहीं। न आपकी चेतना बाहर जाती है , न बाहर से कोई िन रं ग आपके भीतर वे श करती है । इस
मंडल म ठहरी ई चे तना वायुरिहत थान म दीए की लौ जै सी हो जाती है । इतनी अकंप चे तना ही भु म ित ा पाती
है , ोंिक िन ं प होना ही भु म िति त हो जाना है–िन ं प होना ही।

कंपना ही सं सार म जाना है । िन ं प हो जाना, भु म प ंच जाना है । कंपे, कंिपत ए, सं सार म गए। अगर ठीक से
समझ, तो सं सार एक कंपन, अनंत कंपन का समू ह है । जै से हवा म एक प ा कंप रहा हो वृ का। बाएं हवा आती है ,
बाएं कंप जाता है । दाएं आती है , दाएं कंप जाता है । िहलता-डु लता, कंपता रहता है ; कभी िथर नहीं हो पाता। ठीक
ऐसे ही वासना म, वृ ि म, िवचार म, सब म िच कंपता रहता है , कंिपत होता रहता है , डोलता रहता है ।

इस डोलते ए िच को अवसर नहीं है िक यह जान सके उस जगह को, जहां यह है । इस डोलती ई लौ को पता भी
नहीं चलेगा िक िकस दीए के तेल से, िकस ोत से इसे रोशनी िमल रही है , ाण िमल रहे ह। यह तो हवा के झोंकों म
हवा को ही जान पाएगी ोित, उस ोत को न जान पाएगी। उस ोत को जानने के िलए ठहर जाना, िथर हो जाना,
क जाना ज री है ।

यह क जाना कैसे फिलत हो? यह योगी की उपमा तो ठीक है , ले िकन यह योगी आदमी हो कैसे? ठहरे कैसे? के
कैसे?
150

कभी-कभी ब त किठन िदखाई पड़ने वाली बात ब त छोटे -से योगों से हल हो जाती ह। किठन तभी तक िदखाई
पड़ती ह, जब तक हम कुछ करते नहीं ह और िसफ सोचते चले जाते ह। सरल हो जाती ह उसी ण, जब हम कुछ
करते ह! कोई अनुभव, बड़ी से बड़ी किठनाई को कोई छोटा-सा अनुभव तोड़ जाता है ।

सु ना है मने, आज जहां स का ब त बड़ा महानगर है, ै िलन ाद, पुराना नाम था उस गांव का पै ो ाद। पीटर
महान ने उसको बसाया था, स के एक स ाट ने। और पीटर महान जब उसे बसा रहा था, तो उसने एक पहाड़ी के
कोने को चु ना था अपने िलए िक इस जगह म अपना भवन बनाऊं। ले िकन उस पहाड़ी को हटाना बड़ा भारी था।
और पीटर महान चाहता था, समतल भू िम हो जाए। ब त इं जीिनयरों को कहा, लाखों पए दे ने की बात कही।
इं जीिनयर कहते थे, ब त खच है । कई लाख खच होंगे, तो यह प र हटे गा।

एक िदन पीटर महान खुद गया दे खने। सच म इतना बड़ा प र था िक उसे काट-काटकर हटाने के िसवाय कोई
उपाय उस समय नहीं था। एक बै लगाड़ी वाला िकसान पास से गु जरता था, वह हं सने लगा। उसने कहा, लाखों पए!
हम स े म जमीन सपाट कर दे सकते ह। इं जीिनयर हं से, स ाट हं सा, कहा िक भोला िकसान है , ों पागलपन म
पड़ता है ! उसने कहा िक हम कर ही दगे स े म, इसम कोई लाखों का सवाल नहीं है । और उसने कर िदया। तो उस
महल के नीचे एक प र लगाया था पीटर महान ने उस िकसान की ृित म–उस िकसान की ृित म।

उस िकसान ने ब त कम, कुछ ही हजार पयों म वह प र सपाट कर िदया। ले िकन उसने और ढं ग से सोचा। सोचा
कम, और िकया कुछ ादा। उसने प र को काट-काटकर फकने का खयाल ही नहीं लाया। उसने तो प र के
चारों तरफ गङ् ढा खोदना शु करवाया। चारों तरफ गङ् ढा खोदा और उस प र को गङ् ढे म नीचे िगरा िदया,
ऊपर से िम ी डलवा दी। जमीन सपाट हो गई।

पीटर जब दे खने आया, तो उसने कहा, वह प र कहां गया? उस िकसान ने कहा, प र से आपको ा योजन!
जमीन सपाट चािहए, जमीन सपाट हो गई। ले िकन पीटर महान बोला िक म यह जानना चाहता ं, वह प र गया
कहां? उसको हटाना ब त मु ल था! उस िकसान ने कहा िक आप सदा उसको दू र हटाने की भाषा म सोचते थे,
हमने उसको और गहराई म प ं चा िदया।

तो उसके नाम पर एक रण का प र पीटर ने लगवाया था िक बड़े इं जीिनयर िजसे महीनों सोचते रहे और हल न
कर पाए, एक छोटे -से ामीण िकसान ने उसे हल कर िदया।

कई बार बड़े बु मान िजसे हल नहीं कर पाते, छोटे -से योगकता उसे हल कर ले ते ह। और योग के सं बंध म तो
ऐसा ही मामला है –िबलकुल ऐसा ही मामला है ।

आप अगर सोच-सोचकर हल करना चाह, तो िजं दगी म कोई हल नहीं होगा। अगर आप चाहते हों िक शांत हो
जाएं और िवचार कर-करके शांत होना चाह, आप कभी शांत न हो पाएं गे । ोंिक िवचार करना िसफ एक और तरह
की अशांित है , और कुछ भी नहीं। आप सोचते हों, िवचार कर-करके शां त होंगे, तो आप और अशां त हो जाएं गे;
ोंिक िवचार करना एक अशांित से ादा नहीं है ।

इसिलए जो लोग शांत होना चाहते ह, वे उन लोगों से भी ादा अशां त हो जाते ह, जो शांत होने की िफ नहीं करते।
उनकी अशां ित दोहरी हो जाती है । एक तो अशां ित होती ही है और एक अशां ित और पकड़ लेती है िक शां त कैसे हों!

ले िकन कोई छोटी-सी ि या िच को एकदम शांत कर जाती है । कोई ब त छोटी-सी ि या, कोई मेथड िच को
ऐसे शां त कर जाता है, जै से वह कभी अशां त ही न था।

करीब-करीब ऐसा है िक जै से कोई िकसी वृ के प े काटता रहे और सोचे िक वृ को समा करना है । वह प े


काट न पाए और नए प े आ जाएं । और वृ की आदत ऐसी ह िक एक प ा काटो, तो चार आ जाते ह। वृ समझता
है , कलम की जा रही है । जब तक जड़ न काटी जाए, तब तक वृ के प े काटने से वृ का अंत नहीं होता।
151

हम सब एक-एक िवचार से लड़ते रहते ह। कोई कहता है िक मुझे ोध ब त आता है , तो मेरा ोध कैसे ठीक हो
जाए? मेरे पास लोग आते ह। कोई कहता है , ोध कैसे ठीक हो जाए? ोध, बस ोध ठीक हो जाए। वह समझता
है िक ोध कोई अलग चीज है लोभ से । वह समझता है , लोभ कोई अलग चीज है मान से । वह समझता है , मान कोई
अलग चीज है काम से । वह समझता है, ये सब अलग चीज ह। अलग चीज नहीं ह, सब प े ह। और एक को
कािटएगा, तो चार िनकल आएं गे ।

योग कहता है , जड़ को कािटए, प ों को मत कािटए। जड़ कट गई, तो पूरा वृ िगर जाएगा।

ोध नहीं िगर सकता उस आदमी का, िजसका काम बाकी है । उस आदमी का लोभ नहीं िगर सकता, िजसका काम
बाकी है । उस आदमी का मान नहीं िगर सकता, अहं कार नहीं िगर सकता, िजसका काम बाकी है । और मजा यह है
िक चार म से कोई एक भी बच जाए, तो बाकी तीन अिनवाय प से मौजू द रहगे । वे जा नहीं सकते ।

हां, यह हो सकता है िक आपम एक की मा ा थोड़ी ादा हो, दू सरे की थोड़ी कम हो। ले िकन अगर चारों का िहसाब
जोड़ा जाए, तो सब आदिमयों म बराबर मा ा िमले गी–चारों को जोड़ िलया जाए, तो।

ले िकन हम सब उस सकस के बं दरों जै से ह! मने सु ना है िक एक सकस के मािलक के पास बंदर थे । वह सु बह


उनको चार रोटी दे ता, शाम को तीन रोटी। एक िदन उसने बं दरों से कहा िक कल से हम व था बदल रहे ह। तु
सु बह तीन रोटी िमलगी, शाम चार रोटी। बं दर एकदम नाराज हो गए। रोज सु बह चार रोटी िमलती थीं, शाम तीन
रोटी। उसने कहा, कल से हम व था बदलते ह। कल सु बह से तु तीन रोटी सु बह िमलगी, चार रोटी शाम। बं दर
ब त नाराज हो गए। चीखने-िच ाने लगे, िक हम बरदा नहीं कर सकते यह बात। बं दरों ने तीन रोटी ले ने से
इनकार कर िदया। वह मािलक बड़ा है रान आ। उसने कहा िक पागलो, जोड़ो भी तो!

तो मने सु ना है िक बं दरों ने कहा, जोड़ करता ही कौन है ! हम सु बह चार चािहए, जै सी हम सदा िमलती रही ह! कोई
रा ा न दे खकर उ चार रोिटयां दी गईं, बं दर राजी हो गए। शाम उनको तीन रोटी िमलतीं, सु बह चार िमलतीं। वे
तृ । सु बह तीन िमलतीं, शाम चार िमलतीं, सात ही होती थीं, ले िकन जोड़ कौन करता है ! आदमी नहीं करते, तो
बं दर ों कर?

मने सु ना है, उन बं दरों ने कहा, आदमी नहीं करते! हम बं दर ों जोड़ की झंझट म पड़! हम चार सु बह िमलती थीं,
चार चािहए। शाम तीन िमलती थीं, तीन चािहए। हम झंझट म नहीं पड़ते ।

एक आदमी म थोड़ा ोध ादा होता है, थोड़ा लोभ कम होता है, दोनों का जोड़ बराबर सात होता है । इन चारों का
जोड़ सब आदिमयों म बराबर है । ले िकन जोड़ कोई करता नहीं। और एक-एक को, िजसको ोध ादा लगता है ,
वह कहता है , ोध से िकस तरह छूट जाऊं? लोभ की तो मुझे झंझट नहीं है ; ोध ही की झंझट है । उसे पता नहीं है
िक अगर ोध काट िदया जाए, तो ोध की िजतनी रोिटयां ह, कहीं और जु ड़ जाएं गी। ोध कट नहीं सकता
अकेला। चारों साथ रहते ह, या चारों साथ जाते ह।

योग कहता है , ऊपर से मत लड़ो। जड़ पकड़ो।

जड़ कहां है? जड़ कहां है ? न तो ोध जड़ है , न लोभ जड़ है, न काम जड़ है, न अहं कार जड़ है । जड़ कहां है ?

योग कहता है , जड़ आपके मन की िस म, मन की जो व था है आपकी, उसम जड़ है । ऐसे मन म लोभ, ोध


होगा ही; काम, अहं कार होगा ही। यह मन का, जो आपके पास मन है, उसका भाव है । इस मन को ही बदलो।
इस मन की जगह नए मन को थािपत करो। यह मन रहा और इस मन का यं रहा, तो सब जारी रहे गा। इस यं को
नया करो, नया यं थािपत करो। तो तु ारे पास नया मन होगा, िजसम ोध नहीं होगा, काम नहीं होगा, मोह नहीं
होगा, लोभ नहीं होगा।
152

ले िकन इस मन को बदलने का राज ा है ?

योग उसी राज का िव ार है । और योग ने तीन कार के राज कहे, तीन तरह के लोगों के िलए। ोंिक तीन तरह के
लोग ह। वे लोग ह, जो िवचार धान ह िजनके भीतर, बु धान है िजनके भीतर, उनके िलए अलग राज कहा।
िजनके पीछे भाव धान है, उनके िलए अलग राज कहा। िजनके पीछे कम धान है , उनके िलए अलग राज कहा।

योग की तीन शाखाएं ह मुख–िफर तो अनंत शाखाएं हो गईं–कम, भ और ान। और उन तीनों की तीन कुंिजयां
ह। और एक-एक आदमी का जो टाइप है, उस आदमी को वह कुंजी लागू होती है । ताला खुलने पर एक ही मकान म
वे श होता है । ले िकन अलग-अलग आदमी, अलग-अलग दरवाजों पर, अलग-अलग ताले डालकर खड़े ह।

अब जो आदमी िवचार से ही जीता है, उसके िलए ाथना, कीतन, भजन िबलकुल अथपूण नहीं मालू म पड़गे। उसम
उसका कसू र नहीं है, वै सा मन उसके पास है । वह सोचे गा, िवचार करे गा। िवचार करे गा, तो सोचे गा िक ा होगा!
ोंिक िवचार उठाता है । और जहां उठते ह िवचार म, वहां भाव म नहीं उठते ह। भाव कभी नहीं
उठाते । भाव िन ह। भाव ीकार है , ए ेि िबिलटी है । भाव राजी हो जाता है , िवचार सं घष करता है । तो िवचार
के िलए तो अलग ही रा ा खोजना पड़े । योग ने उसके िलए रा ा खोजा।

ानयोग का अथ है , उस जगह प ं च जाओ, जहां न ेय रह जाए और न ाता रह जाए, िसफ ान रह जाए। उसकी
पूरी ि या है । ेय को छोड़ो, आ े ् स को छोड़ो। िजसे जानना हो, उसे छोड़ो; और जो जानने वाला है , उसे भी
छोड़ो। वह जो जानने की मता है , उसम ही ठहरो, उसी म रमो। वह जो ान की मता है , नोइं ग फैक ी जो है,
जानने की मता, उसी म रमो।

जै से म फूल दे ख रहा ं । तो तीन ह वहां । एक म ं , जो दे ख रहा है । एक फूल है , िजसे दे ख रहा ं । और हम दोनों के


बीच दौड़ती ान की धारा है । ानयोग कहता है, फूल को भी भू ल जाओ, यं को भी भू ल जाओ, यह जो दोनों के
बीच म ान की धारा बह रही है, इसी म ठहर जाओ, इसी म खड़े हो जाओ– ान की धारा म।

भाव वाले आदमी को यह बात समझ म न पड़े गी िक ान की धारा म कैसे खड़े हो जाएं ! नहीं पड़े गी समझ म, ोंिक
भाव वाला आदमी समझ से जीता नहीं। भाव वाला आदमी भावना से जीता है, समझ से नहीं। भाव वाले आदमी से
कहो िक नाचो, आनंदम होकर नाचो, भु-समिपत होकर नाचो। वह नाचने लगे गा। वह यह नहीं पूछेगा, नाचने से
ा होगा? वह नाचने लगेगा। और नाचने से सब हो जाएगा।

नाचने म वह ण आता है , िक नाचने वाला भी िमट जाता है, नाचने का खयाल भी िमट जाता है , नृ ही रह जाता है –
नृ ही। परमा ा भी भू ल जाता है , िजसके िलए नाच रहे ह; जो नाचता था, वह भी भू ल जाता है; िसफ नाचना ही रह
जाता है–िसफ नृ , ज डां िसंग। ज नोइं ग की तरह घटना घट जाती है । जै से िसफ जानना रह जाता है, बस ार
खुल जाता है । िसफ नृ रह जाता है, तो भी ार खुल जाता है ।

मीरा अगर गाएगी, तो गाने म कृ भी खो जाएं गे, मीरा भी खो जाएगी, गीत ही रह जाएगा। ान रहे, जब मीरा गाती
है , मेरे तो िगरधर गोपाल, तो न तो गोपाल रह जाते, न मेरा कोई रह जाता। मेरे तो िगरधर गोपाल, यह गीत ही रह
जाता है–िसफ यह गीत। िगरधर भी भू ल जाते ह, गायक भी भू ल जाता है ; मीरा भी खो जाती है, कृ भी खो जाते ह;
बस, गीत रह जाता है । िसफ गीत जहां रह जाता है, वहां वही घटना घट जाती है , जो िसफ ान रह जाता है ।

ले िकन महावीर गीत को पसं द नहीं कर पाएं गे । महावीर कहगे, केवल ान, ज नोइं ग, िसफ ान रह जाए, बस।
वहीं ार खुलेगा। वह महावीर का टाइप है । मीरा कहे गी, ान का ा करगे! गीत रह जाए। ान बड़ा खा-सू खा
है । ान का करगे भी ा! गीत बड़ा आ , बड़ा गीला, नहा जाता है आदमी। ान तो रे िग ान जै सा मालू म पड़े गा
मीरा को। उसके चारों तरफ रे िग ान था भी। वह प रिचत भी थी अ ी तरह। रे िग ान जै सा मालू म पड़े गा, खा-
सू खा, जहां कभी कोई वषा नहीं होती। और गीत तो बड़ी ह रयाली से भरा है । अमृत बरस जाता है । गीत बड़ा गीला
है – ान से । ाणों के कोने-कोने तक गीत ान करा जाता है । मीरा कहे गी, ान का ा क रएगा? गीत काफी है ।
153

ले िकन और लोग भी ह, िजनको न गीत म कोई अथ होगा और न ान म कोई अथ होगा। िजनका अथ और िजनके
जीवन का अिभ ाय तो कम से खुलेगा। कम ही!

आिकिमडीज के बाबत आपने सु नी होगी कहानी िक आिकिमडीज अपने ानगृ ह म टब म ले टा आ है । वै ािनक


है । कमठ है । कुछ करना ही उसकी िजंदगी है । कुछ करके खोजना ही उसकी िजं दगी है । एक पहे ली पर हल कर
रहा है योगशाला म। ब त मु ल म पड़ा है । कोई हल सू झता नहीं है । हजार तरह के योग कर िलए ह। कोई
रा ा िनकलता नहीं है ।

स ाट ने आिकिमडीज को कहा है …। स ाट को िकसी ने एक ब त ब मू मुकुट भट िकया है सोने का। ले िकन


स ाट को शक है िक उस ब मू सोने के मुकुट म भीतर तांबा िमलाया गया है । ले िकन तोड़कर मुकुट को दे खे
िबना कोई उपाय नहीं है । और तोड़ो तो इतना ब मू मुकुट है िक शायद दु बारा िफर न बन सके।

तो स ाट ने आिकिमडीज को कहा है िक तू िबना तोड़े पता लगा। इसको छूना भी नहीं; इसको जरा भी खरोंच भी
नहीं लगनी चािहए। और पता लगाना है िक भीतर कहीं कोई और धातु तो नहीं डाल दी गई है ।

वह आिकिमडीज बड़े योग कर रहा है । िफर वह उस िदन अपने बाथ म म जाकर अपने टब म बै ठा है । टब पूरा
भरा था। वह उसके अंदर बै ठा है , तो ब त-सा पानी टब के बाहर िनकल गया है उसके बै ठने से । अचानक उसे, टब
म बै ठने से और पानी के िनकलने से, एक अंतः ा, एक इनसाइट उसके मन म कौंध गई िक म जरा इस पानी को
तो तौल लूं िक यह िकतना पानी िनकल गया बाहर! यह पानी उतना ही तो नहीं है , िजतना मेरा वजन है ! अगर यह मेरे
वजन के बराबर पानी बाहर िनकल गया है , तो िफर कोई रा ा खोज िलया जाएगा।

बस, उसको बात सू झ गई। वह िच ाया। नंगा था, दरवाजा खोलकर सड़क पर भागा। िच ाया, यू रेका! िमल गया!
सड़क के लोगों ने कहा िक ा कर रहे हो यह? कहां भागे जा रहे हो? वह नंगा भाग रहा है महल की तरफ िक िमल
गया! स ाट ने भी कहा िक को। कुछ होश तो लाओ! नंगे भाग रहे हो सड़क पर, लोग ा कहगे!

आिकिमडीज वापस लौट आया। वह कम की एक समािध म वे श कर गया था। कमठ आदमी था। वह भू ल गया
यं को, वह भू ल गया स ाट को, वह भू ल गया सवाल को। रह गया िसफ एक बोध, िमल जाने का, एक उपल
का। बस, वही रह गया शे ष।

आिकिमडीज कहता था िक िजंदगी म जो आनंद उस ण म जाना, कभी नहीं जाना। जो रह उस िदन खुल गया,
वह िमला सो िमला, वह तो कोई बड़ी कीमत की बात न थी। ले िकन न सड़क पर दौड़ना, और मुझे पता ही नहीं िक
म ं । मुझे यह भी पता न रहा, जब सड़क पर लोगों ने पूछा, ा िमल गया? तो मुझे एकदम से यह भी पता न रहा
िक ा िमल गया? वह सवाल ा था, जो िमल गया है ? िसफ िमल गया! बस, एक धु न रह गई मन म िक िमल गया।

वह जो िमलने का ण है , कमठ को भी िमलता है, ले िकन उसे कम से ही िमलता है । अब जै से अजु न जै सा


आदमी है , जब तलवार चमकगी और जब कम का पूण ण होगा, जब अजु न भी नहीं बचे गा, दु न भी नहीं बचेगा,
िसफ कम रह जाएगा। तलवार म चला रहा ं , ऐसा नहीं रहे गा; तलवार चल रही है , ऐसे ण की थित आ जाएगी,
तब अजु न जै से आदमी को समािध का अनुभव होगा।

ये तीन खास कार के लोग ह। और योग ने इन तीनों पर, वै से िफर इन तीनों के ब त िवभाजन ह और योग ने ब त-
सी िविधयां खोजी ह, ले िकन इन तीन िविधयों के ारा साधारणतः कोई भी चे तना को उस िथर थान म ले आ
सकता है ।

ान रह जाए केवल; भाव रह जाए केवल; कम रह जाए केवल। तीन की जगह एक बचे, दो कोने िमट जाएं । ा िमट
जाए, िमट जाए, दशन रह जाए। ाता िमट जाए, ेय िमट जाए, ान रह जाए। तीन की जगह एक रह जाए।
बीच का रह जाए, दोनों छोर िमट जाएं , तो की चे तना िथर हो जाती है, ऐसी जै से िक जहां वायु न बहती हो,
पवन न बहता हो, वहां दीए की ोित िथर हो जाती है ।
154

उस दीए की ोित के िथर होने को ही, कृ कहते ह, योगी को उपमा दी गई है । योगी भी ऐसा ही ठहर जाता है ।

आज के िलए इतना ही।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


िच वृ ि िनरोध (अ ाय—6) वचन—दसवां

य ोपरमते िच ं िन ं योगसेवया।
य चैवा ना ानं प ा िन तु ित।। 20।।
और हे अजु न, िजस अव था म योग के अ ास से िन आ िच उपराम हो जाता है और िजस अव था म परमे र
के ान से शु ई सू बु ारा परमा ा को सा ात करता आ स दानं दघन परमा ा म ही सं तु होता है ।

योग से उपराम आ िच !

इस सू म, कैसे योग से िच उपराम हो जाता है और जब िच उपराम को उपल होता है , तो भु म कैसी ित ा


होती है , उसकी बात कही गई है ।

िच के सं बंध म दो ीन बात रणीय ह।

एक, िच तब तक उपराम नहीं होता, जब तक िच का िवषयों की ओर दौड़ना सु खद है , ऐसी ां ित हम बनी रहती


है । तब तक िच उपराम, तब तक िच िव ां ित को नहीं प ंच सकता है । जब तक हम यह खयाल बना आ है िक
िवषयों की ओर दौड़ता आ िच सु खद तीितयों म ले जाएगा, तब तक ाभािवक है िक िच दौड़ता रहे ।

िच के दौड़ने का िनयम है । जहां सु ख मालू म होता है , िच वहां दौड़ता है । जहां दु ख मालू म होता है , िच वहां नहीं
दौड़ता है । जहां भी सु ख मालू म हो, चाहे ां त ही सही, िच वहां दौड़ता है । जै से पानी गङ् ढों की तरफ दौड़ता है ,
ऐसा िच सु ख की तरफ दौड़ता है । दु ख के पहाड़ों पर िच नहीं चढ़ता, सु ख की झीलों की तरफ भागता है । चाहे वे
झील िकतनी ही मृग-मरीिचकाएं ों न हों; चाहे प ंचकर झील पर पता चले िक वहां कुछ भी नहीं है –न झील है , न
गङ् ढा है, न पानी है । ले िकन जहां भी िच को िदखाई पड़ता है सु ख, िच वहीं दौड़ता है । िच की दौड़ सु खो ुख
है ।

और दौड़ जब तक है , तब तक िच िव ाम को उपल नहीं होता, तब तक तो वह म म ही लगा रहता है । एक


सु ख से जै से ही मु हो पाता है –मु होने का अथ? अथ यह नहीं िक एक सु ख को जान ले ता है । जै से ही पता चलता
है िक यह सु ख सु ख िस नहीं आ, मन त ाल दू सरे सु खों की ओर दौड़ना शु कर दे ता है । दौड़ जारी रहती है ।
मन अगर जी सकता है, तो दौड़ने म ही जी सकता है । अगर गहरी बात कहनी हो, तो कह सकते ह िक दौड़ का नाम
ही मन है । चे तना की दौड़ती ई थित का नाम मन है और चेतना की उपराम थित का नाम आ ा है ।

करीब-करीब िच की थित वैसी है , जै से साइिकल आप चलाते ह रा े पर। जब तक पैडल चलाते ह, साइिकल


चलती है ; पैडल बं द कर ले ते ह, थोड़ी ही दे र म साइिकल क जाती है । साइिकल को चलाना जारी रखना हो, तो पैरों
का चलते रहना ज री है । िच का चलना जारी रखना हो, तो सु खों की खोज जारी रखना ज री है । अगर एक ण
को भी ऐसा लगा िक सु ख कहीं भी नहीं है, तो िच िव ाम म आना शु हो जाता है ।
155

इसिलए बु ने िच के िव ाम और िच के उपराम अव था के िलए चार आय-स कहे ह। वह म आपको क ं । वे


योग की ब त बु िनयादी साधना म सहयोगी ह।

बु ने कहा है, जीवन दु ख है, इसकी तीित पहला आय-स है । जो भी हम चाहते ह, सु ख िदखाई पड़ता है , िनकट
प ं चते ही दु ख िस होता है । जो भी हम खोजते ह, दू र से सु हावना, ीितकर लगता है ; िनकट आते ही कु प,
अ ीितकर हो जाता है ।

जीवन दु ख है , ऐसा सा ा ार न हो, तो िच उपराम म नहीं जा सकेगा। ऐसा सा ा ार आ, िक िच की दौड़


अपने से ही खो जाती है । उसको पैडल िमलने बं द हो जाते ह। िफर आपके पैर उसे गित नहीं दे ते, ठहर जाते ह। और
िच चल नहीं सकता आपके िबना सहयोग के। आपके िबना कोआपरे शन के िच दौड़ नहीं सकता।

इसिलए आप ऐसा कभी मत कहना िक म ा क ं ! यह िच भटका रहा है । ऐसा कभी भू लकर मत कहना। ोंिक
आपके सहयोग के िबना िच भटका नहीं सकता। आपका सहयोग अिनवाय है । आपका सहयोग टू टा िक िच की
गित टू टी।

हां, थोड़ी दे र मोमटम चल सकता है । साइिकल के पैडल बं द कर िदए, तो भी दस-बीस गज साइिकल चल सकती है ।
ले िकन बं द करते ही पैर साइिकल के ाण छूटने शु हो जाएं गे। पुरानी गित से दस-बीस कदम चल सकती है ;
ले िकन वह चलना िसफ मरना ही होगा। साइिकल की गित मरती चली जाएगी।

जीवन दु ख है , इसकी तीित। पूछगे हम िक कैसे इसकी तीित हो? बड़ा गलत सवाल पूछते ह। इसकी तीित
ितपल हो रही है । ले िकन उस तीित से आप कभी कोई िनणय नहीं ले ते। तीित की कोई कमी नहीं है । पूरा जीवन
इसका ही अनुभव है िक जीवन दु ख है, ले िकन िन ष नहीं ले ते। और िन ष न ले ने की तरकीब यह है िक अगर
एक सु ख दु ख िस होता है , तो आप कभी ऐसा नहीं सोचते िक दू सरा सु ख भी दु ख िस होगा।

नहीं; दू सरे का मोह कायम रहता है । वह भी दु ख िस हो जाता है, तो तीसरे पर मन सरक जाता है; और तीसरे का
मोह कायम रहता है । हजार बार अनुभव हो, िफर भी िन ि हम नहीं ले पाते िक जीवन दु ख है । हां, ऐसा लगता है
िक एक सु ख दु ख िस आ, ले िकन सम सु ख दु ख िस हो गया है, ऐसी िन ि हम नहीं ले पाते ।

यह िन ि कब लगे? हर ज म वही अनुभव होता है । पीछे ज ों को छोड़ भी द, तो एक ही ज म लाख बार


अनुभव होता है । ऐसा मालू म पड़ता है िक मनु िन ि यां ले ने वाला ाणी नहीं है ; वह कन ूजन ले ता ही नहीं है !
और िनरं तर वही भू ल करता है , जो उसने कल की थीं। ब कल की थीं, इसिलए आज और सु गमता से करता है ।
भू ल से एक ही बात सीखता है, भू ल को करने की कुशलता! भू ल से कोई िन ि नहीं ले ता, िसफ भू ल को करने म
और कुशल हो जाता है ।

एक बार ोध िकया; पीड़ा पाई, दु ख पाया, नक िनिमत आ; उससे यह िन ष नहीं ले ता िक ोध दु ख है । न,


उससे िसफ अ ास मजबू त होता है । कल ोध करने की कुशलता और बढ़ जाती है । कल िफर दु ख, पीड़ा। तब
एक नतीजा िफर ले सकता है िक ोध दु ख है । वह नहीं ले ता, ब दु बारा ोध करने से दु ख का जो आघात है, मन
उसके िलए तै यार हो जाता है , और कम दु ख मालू म पड़ता है । तीसरी बार और कम, चौथी बार और कम। धीरे -धीरे
दु ख का अ ासी हो जाता है । और यह अ ास इतना गहरा हो सकता है िक दु ख की तीित ही ीण हो जाए; मन
की सं वेदना ही ीण हो जाए।

अगर आप दु गध के पास बै ठे रहते ह, बै ठे रहते ह–एक दफा, दो दफा, तीन दफा–धीरे -धीरे नाक की सं वेदना ीण
हो जाएगी, दु गध की खबर दे नी बं द हो जाएगी। अगर आप शोरगु ल म जीते ह, तो पहले खबर दे गा मन िक ब त
शोरगु ल है , ब त उप व है । िफर धीरे -धीरे -धीरे खबर दे ना बं द कर दे गा, सं वेदनशीलता कुंिठत हो जाएगी। ऐसा भी
हो सकता है िक िफर िबना शोरगु ल के बै ठना आपको मु ल हो जाए।
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जो लोग िदन-रात टे न म सफर करते ह, जब कभी िव ाम के िदन घर पर कते ह, तो उनको नींद ठीक से नहीं
आती! इतनी अिधक शांित की आदत नहीं रह जाती। उतना शोरगु ल चािहए। उसके बीच एट होम मालू म होता है ; घर
म ही ह!

हम अपने मन से दो ही थितयां पैदा कर पाते ह–अ ास गलत का। ोंिक हम गलत करते ह, उसका अ ास
होता है । और दू सरा, कुशलता। और भी कुशल हो जाते ह वही करने म। ले िकन जो िन ि लेनी चािहए, वह हम
कभी नहीं ले ते।

बु को िदखाई पड़ा है एक मुदा। और बु ने पूछा िक यह ा हो गया? बु के सारथी ने कहा िक यह आदमी मर


गया है । तो बु ने त ाल पूछा िक ा म भी मर जाऊंगा! अगर आप होते बु की जगह, तो आप कहते, बे चारा!
बड़ा बु रा आ। इसके ब ों का ा होगा? इसकी प ी का ा होगा? अभी तो कोई उ भी न थी मरने की। ले िकन
एक बात प ी है िक बु ने जो पूछा, वह आप न पूछते ।

बु ने न तो यह कहा िक बेचारा; न कहा यह िक इसकी प ी का ा होगा; िक इसके ब ों का ा होगा; अभी तो


कोई उ न थी, अभी तो मरने का कोई समय न था। बु ने दू सरा सवाल सीधा जो पूछा, वह यह िक ा म भी मर
जाऊंगा?

यह आपने, कभी कोई रा े पर मरे ए आदमी की अथ िनकली, तब पूछा है िक ा म भी मर जाऊंगा? जब िकसी


को बू ढ़ा आ दे खा है , तो पूछा है िक ा म भी बू ढ़ा हो जाऊंगा? जब िकसी को अपमािनत होते दे खा है, तो पूछा है
िक ा म भी अपमािनत हो जाऊंगा? जब कोई ण-िसं हासन से उतरकर और धू ल म िगर गया है , तब कभी पूछा
है िक ा म भी िगर जाऊंगा?

नहीं पूछा, तो िफर बु जै से योग की ित ा को आप उपल होने वाले नहीं। आपने बु िनयादी सवाल ही नहीं पूछा है
िक जो या ा शु करे ।

बु ने पूछा, ा म भी मर जाऊंगा? सारथी भयभीत आ। कैसे कहे! पर बु की आं खों म दे खा, तो और भी डरा।


ोंिक झूठ बोले, तो भी ठीक नहीं है । उसने कहा, मा कर। कैसे अपने मुंह से क ं िक आप भी मर जाएं गे! ले िकन
कोई भी अपवाद नहीं। मृ ु तो होगी।

तो बु ने यह नहीं पूछा िक कोई उपाय है िक म अपवाद हो जाऊं? यह नहीं पूछा िक मृ ु आने ही वाली है , तो
ज ी से जीवन म जो भी भोगा जा सकता है, उसको भोग लूं । यह नहीं पूछा िक िफर समय खोना ठीक नहीं; िफर
समय खोना ठीक नहीं। मौत करीब आती है , तो जीवन िजतनी दे र है, उसका पूरा रस िनचोड़ लूं ।

बु ने कहा, कोई अपवाद नहीं है , तो िफर घर वापस लौट चलो। म मर ही गया। सारथी ने कहा, अभी आप नहीं मर
गए ह। मने यह नहीं कहा। अभी तो आप िजं दा ह! बु ने कहा, इससे ा फक पड़ता है िक कल मौत होगी िक
परसों मौत होगी। जब मौत िनि त है, तो जीवन थ हो गया। अब िजतना भी समय मेरे पास है , म मौत की खोज म
लगा दू ं िक मौत ा है ! ोंिक जो िनि त है, उसी की खोज उिचत है । जीवन तो अिनि त हो गया िक समा हो
जाएगा। मौत, एक तु म कहते हो, िनरपवाद है; होगी ही। िनि त एक त िदखाई पड़ा है, मौत। अब म इसकी खोज
कर लूं िक मौत ा है ! ोंिक िनि त की ही खोज करने म कोई अथ है । अिनि त की, खो जाने वाले की खोज
करना थ है ।

है रानी होगी हम। हम सु ख की खोज करते ह, बु दु ख की खोज करते ह। हम जीवन की खोज करते ह, बु मृ ु
की खोज करते ह। और बु मृ ु की खोज करके परम जीवन को पा ले ते ह। और हम जीवन को खोजते-खोजते
िसवाय मृ ु के और कुछ भी नहीं पाते! और बु दु ख की खोज करते ह और परम आनंद को उपल हो जाते ह।
और हम सु ख को खोजते-खोजते िसवाय कचरे के हाथ म ढे र लग जाने के और छाती पर थ का भार इक ा हो जाने
के, कहीं भी नहीं प ं चते ह।
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उलटा िदखाई पड़े गा, ले िकन यही स है । जो मृ ु को खोजता है , वह अमृत को खोज ले ता है । जो दु ख के ित


सजग होकर दु ख की खोज करता है, वह आनंद को उपल हो जाता है ।

इसिलए बु ने जब अपने िभ ुओं को पहला उपदे श िदया, तो कहा िक तु म पहला आय-स कहता ं । पहला
महान स , वह यह है िक जीवन दु ख है । तु म इसकी खोज करो।

योग का आधारभूत वही है िक जीवन दु ख है । तभी िच उपराम होगा। यह तो पहली तीित है िक जीवन दु ख है ।

दू सरी बात आपसे क ं । जै से ही आपको यह हो जाएगा िक जीवन दु ख है, आप जीवन के अित मण की चे ा म


सं ल हो जाएं गे । ोंिक दु ख के बीच कोई भी िव ाम को उपल नहीं हो सकता। अगर यह तीत हो जाए िक पूरा
जीवन दु ख है , तो आप इस जीवन से छलां ग लगाने की कोिशश म लग जाएं गे । ोंिक दु ख के साथ ठहर जाना
असंभव है ।

सु ख के साथ हम ठहर सकते ह, चाहे ां त ही ों न हो। चाहे चे हरे पर ही ों न िसफ सु ख मालू म पड़ता हो और
भीतर सब दु ख िछपा हो, ले िकन िफर भी हम रात ठहर सकते ह, इस सु ख को हम िब र म सु ला सकते ह अपने
साथ। चाहे चेहरा ही सु ख का ों न हो, भीतर सब दु ख ही ों न भरा हो, रात हम इस सु ख के साथ सो सकते ह।
ले िकन अगर चौंककर रात म पता चल जाए िक दु ख है , तो हम छलां ग लगाकर िब र के बाहर हो जाएं गे । दु ख के
साथ जीना असंभव है ।

तो पहला आय-स , बु कहते ह, जीवन दु ख है । दू सरा आय-स , बु कहते ह िक दु ख से मु का उपाय है ।


जै से ही तीत हो, वै से ही उपाय की खोज शु हो जाती है िक दु ख से मु का उपाय ा!

ान रख, हम सु ख खोजते ह, बु दु ख से मु खोजते ह। इन दोनों की िदशाएं िबलकुल अलग ह।

सु ख की खोज सं सार है । दु ख से मु की खोज योग है । सु ख की खोज सं सार है । दु ख से मु की खोज, ब त


िनगे िटव खोज है योग की। और सं सारी की खोज बड़ी पािजिटव मालू म पड़ती है । लगता है , हम सु ख को खोज रहे ह।
योग कहता है , दु ख से मु खोजी जा सकती है । और जब दु ख से मु हो जाती है , तो जो शे ष रह जाता है , वही
आनंद है । ोंिक वह भाव है। िसफ थ को हटा दे ना है , जो भाव है, वह कट हो जाएगा।

तो बु कहते ह, दू सरा आय-स िभ ुओ, दु ख से मु का उपाय है । ले िकन वह उपाय तु ारी समझ म तभी
आएगा, जब दु ख तु ारी तीित, सा ा ार बन जाए।

सच तो यह है, तीित से ही उपाय िनकलता है । आपके घर म आग लग गई है , तो आप उपाय खोजते ह घर के बाहर


िनकलने का? आप शा पढ़ते ह, िक कोई िकताब दे ख, िजसम घर म आग लगती हो, तो िनकलने की िविधयां
िलखी हों? िक िकसी गु के चरणों म जाएं और उससे पूछ िक घर म आग लगी है , िनकलने का उपाय ा है ? िक
भगवान से ाथना कर िक घर म आग लगी है, घु टने टे ककर भगवान से कह िक हे भु, रा ा बता, घर म आग लगी
है !

घर म अगर आग लगी है और इसकी तीित हो गई। हां, तीित न हो, तो बात अलग है । तब, लगी न लगी बराबर है ।
घर म आग लगी है , इसकी तीित उपाय बन जाती है । आप छलां ग लगाकर बाहर हो जाएं गे । खड़की से कूद सकते
ह, दरवाजे से िनकल सकते ह, छत से कूद सकते ह। यह तीित उपाय खोज ले गी। जै से ही यह तीित ई िक घर म
आग लगी है, आपकी पूरी चे तना सं ल हो जाएगी और उपाय खोज ले गी।

अगर ठीक समझा जाए, तो इस बात का सा ा ार िक घर जल रहा है , आपके िनकलने का माग बन जाता है ।
ले िकन हम लगता ही नहीं िक घर जल रहा है । हां, कोई बु , कोई कृ कहते ह, घर जल रहा है । तो हम कहते ह
िक महाराज, आप ठीक कहते ह! ोंिक हम म इतनी भी िह त नहीं िक हम बु और कृ से कह सक िक आप
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गलत कहते ह। िकस मुंह से कह िक गलत कहते ह? कहीं गहरे म तो हम भी जानते ह िक ठीक ही कहते ह। जीवन
म िसवाय दु ख के कुछ हाथ तो लगा नहीं; िसवाय आग और राख के कुछ हाथ तो लगा नहीं। िसवाय लपटों म झुलसने
के और कुछ हाथ तो लगा नहीं।

इसिलए गहरे मन म हम जानते तो ह िक ठीक कहते ह। इसिलए िह त भी नहीं होती िक बु को कह द िक गलत


कहते ह। जीवन सु ख है । िकस चे हरे से कह? चे हरे पर एक भी रे खा नहीं बताती िक जीवन सु ख है । अनुभव का एक
टु कड़ा नहीं बताता िक जीवन सु ख है । और बु से िकस मुंह से कह, ोंिक बु के रोएं -रोएं से आनंद झलक रहा
है । तो बु से िकस मुंह से कह िक जीवन सु ख है !

अगर जीवन सु ख है , तो बु ही कहते, तो कह सकते थे । ले िकन बु तो कहते ह िक जीवन दु ख है । और हम, जो िक


दु ख म डूबे खड़े ह सराबोर, हम िकस मुंह से कह िक जीवन सु ख है ! तो बु को इनकार भी नहीं कर सकते िक आप
गलत कहते ह। ले िकन हमारी तीित भी नहीं होती िक जीवन दु ख है ।

तो हम कहते ह िक आप ठीक कहते ह। समय पर, अनुकूल समय पर म भी इस घर को छोड़ दू ं गा। कृपा करके, जब
तक अभी इस घर म ं , मुझे इतना बताएं िक कैसे इस घर म शां ित से र ं ! और वह रा ा भी बता द, ोंिक िफर
दु बारा आप िमल न िमल, जब मुझे तीित हो िक घर म आग लगी है , तो मुझे वह मेथड, वह िविध भी बता द िक घर
के बाहर कैसे िनकलूं!

बु कहा करते थे िक जो आदमी पूछता है िक घर म आग लगी हो, तो मुझे रा ा बता द िक कैसे िनकलूं, वह िसफ
इतनी ही खबर दे ता है िक उसे पता नहीं है िक घर म आग लगी है । और कुछ पता नहीं दे ता। ोंिक िजसके घर म
आग लगी है, वह िविध की बात नहीं पूछता। वह छलां ग लगाकर बाहर िनकल जाता है । बताने वाला पीछे रह जाए;
िजसको पता चला, घर म आग लगी है , वह मकान के बाहर हो जाएगा।

दू सरा स बु कहते ह, उपाय है । योग उपाय है ।

इसिलए कृ कहते ह, योग से उपराम को उपल आ िच । योग उपाय है , िविध है , मेथड है । योग नाव है , साधन
है , िजससे दु ख-मु हो सकती है । सु ख नहीं िमले गा।

इसिलए जो योग के पास सु ख की खोज म आए हों, वे गलत जगह आ गए ह। योग से सु ख नहीं िमले गा। जब म
ऐसा कहता ं, तो इसिलए कह रहा ं िक आप सु ख की तलाश म योग के पास न जाएं । योग से दु ख-मु िमलेगी।
इसिलए अगर आपको जीवन दु ख तीत हो गया हो, तो योग आपके काम का हो सकता है ।

ले िकन हमम से अिधक लोग योग के पास सु ख की तलाश म जाते ह। हम योग को भी अपने सां सा रक िच की दौड़
के िलए एक साधन बनाना चाहते ह! हम योग से भी िच की साइिकल को पैडल दे ना चाहते ह! तब हम बड़ा
कंटािड री, बड़ा थ का, बड़ा िवरोधी काम कर रहे ह। हम चाहते ह, योग से धन िमल जाए। और ऐसे लोग
िमल जाते ह, जो कहगे, हां िमल जाएगा! हम चाहते ह, योग से शां ित िमल जाए, तािक शां ित के ारा हम धन और
यश और कामनाओं की दौड़ को ादा आसानी से पूरा कर सक!

हम योग को भी सं सार का एक वाहन बनाना चाहते ह। यह नहीं होगा। ोंिक योग दू सरा सू है । पहला सू तो है ,
दु ख का अिनवाय बोध, तभी उपाय का बोध पैदा होता है ।

बु तीसरा आय-स भी कहते ह। यह दू सरे आय-स को म और समझाना चा ं गा। तीसरा आय-स भी बु


कहते ह। कहते ह, दु ख है । कहते ह, दु ख से मु का उपाय है । कहते ह, दु ख की मु के बाद की अव था है ।
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यह बु अपने अनुभव से कहते ह िक दु ख-मु के बाद की अव था है । दु ख-मु को उपल ए लोग ह। बु


खुद माण ह। कोई पूछे, ा है माण? तो योग का माण बिह माण नहीं हो सकता है । योग का माण तो
अंतसा हो सकता है । बु कह सकते ह, म ं माण।

जब जीसस से कोई पूछता है िक ा है माग? तो जीसस कहते ह, आई एम िद वे –म ं माग। दे खो मेरी तरफ; वेश
कर जाओ मेरी आं खों म। जब बु से कोई पूछता है, ा है माण? तो बु कहते ह, म ं माण। दे खो मुझे। दु ख
से उपराम पाया आ िच है , म ं ।

यह तीसरा स तो केवल वे ही लोग उदघोिषत कर सकते ह, जो माण ह। दो तक, पहला और दू सरा स तो हम


समझ सकते ह बु से, ले िकन तीसरा स बु का सवाल नहीं रह जाता, माण का सवाल है । ले िकन एक बात
हम तीसरे स के सं बंध म भी समझ सकते ह। और वह यह िक जब अशां त िच होता है जगत म, तो शांत हो सके,
इसकी असंभावना नहीं है । जब कोई आदमी बीमार हो सकता है जगत म, तो थ हो सके, इसकी असंभावना ों
कर है? जब दु खी हो सकता है कोई, तो दु ख के पार हो सके, इसकी असंभावना ा है ?

और अगर बु से ही केवल सोच, तो भी यह साफ होता है िक दु ख का बोध ही यह बताता है िक हम दु ख के बोध के


पार ह। अ था बोध िकसे होगा? और बोध भी तभी होता है, जब िवपरीत हो, नहीं तो बोध नहीं होता है । अगर आपके
भीतर आनंद जै सी कोई चीज न हो, तो आपको दु ख का कभी भी पता नहीं चल सकता। कैसे चलेगा? िकसको
चलेगा? कौन जाने गा िक यह दु ख है ?

जो जानता है, उसे दु ख की चोट पड़नी चािहए, उसे दु ख म अपने से िवपरीत कुछ िदखाई पड़ना चािहए। इसीिलए तो
दु ख अ ीितकर है । एक अनुभव तो हमारा है िक जीवन अशांित से भरा आ है । दू सरा अनुभव हमारा नहीं है िक
जीवन एक शां ित का झरना भी हो सकता है ; िक जीवन के रोएं -रोएं म एक शां ित की गूं ज भी हो सकती है ; िक ाण
एक झील बन सकते ह, जहां एक भी तरं ग न उठती हो अशांित की।

बु कहते ह, वह भी सं भव है । उसका माण म ं ।

और बु चौथी बात भी कहते ह िक ऐसा नहीं है िक वह मुझे ही घट गया है, म कोई अपवाद नहीं ं । सब को घट
सकता है । ोंिक ेक गहरे म वही है । हमारे सब भे द, सब फासले ऊपरी ह। भीतर अंतस म कोई
फासला, कोई भे द नहीं है । भीतर वही है , एक ही। ले िकन उस भीतर तक कोई प ंचे, तभी उसका पता चले, अ था
उसका पता चलना किठन है । योग उसका माग है ।

यह योग ा है , िजससे िच उपराम को प ं च जाए? तो तीन बात आपसे क ं, िजनसे योग की ि या का आप


उपयोग भी कर सक और िच उपराम को प ंच सके।

एक, जब भी मन िकसी चीज म कहे , सु ख है, तो मन से एक बार और पूछना िक सच? पुराना अनुभव ऐसा कहता है ?
िकसी और का अनुभव ऐसा कहता है? पृ ी पर कभी िकसी ने कहा है िक इस बात से सु ख िमल सकेगा?
अनंत-अनंत लोगों का अनुभव ा कहता है? खुद के जीवन का अनुभव ा कहता है? बार-बार अनुभव िकया है,
उसका ा िन ष है? एक बार ज र पूछ ले ना। जब मन कहे , इसम सु ख है । िठठककर, खड़े होकर पूछ
ले ना, सच सु ख है ?

और ज ी न करना; ोंिक मन कहे गा िक कहां की बातों म पड़े हो; सु ख का ण चू क जाएगा! िकन बातों म पड़े
हो; अवसर खो जाएगा! ज ी न करना। मन इसीिलए ज ी करता है िक अगर आप थोड़ी दे र, एक ण के िलए भी
सजग होकर क गए, तो सु ख िदखाई नहीं पड़े गा, दु ख का दशन हो जाएगा।

जब िकसी हाथ म सु ख मालू म पड़े और हाथ हाथ को ले ने को उ ुक हो जाए हाथ म, तक एक ण को सोचना िक


ब त हाथ हाथ म िलए, सु ख पाया है ? जब राह चलता कोई सुं दर मालू म पड़े , तो एक ण ककर अपने मन
से पूछना िक सच म सौंदय पास आ जाए, तो कोई सु ख पाया है ? जब िकसी फूल को तोड़ ले ने का मन हो जाए, तो
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पूछना िक ब त बार फूल तोड़े , िफर उनका िकया ा? थोड़ी दे र म मसलकर रा ों पर फक िदए! जब भी नई कोई
गित मन म पैदा हो, तब एक ण िठठककर खड़े होना।

वह ण अवे यरनेस का, जाग कता का, सा ी का, जीवन दु ख है , इसकी तीित को गहरा करे गा। और जै से-जै से
यह तीित गहरी होगी, वै से-वै से उपराम अव था आएगी।

दू सरा सू , जब भी कोई दु ख आए, तब गौर से खोजना िक पहले जब इसे सोचा था, तो यह दु ख था? जब भी कोई
दु ख आए, तो सोचना लौटकर पीछे िक जब पहली दफा इसे चाहा था, तो यह दु ख था? नहीं; तब यह सु ख था। अगर
यह दु ख होता, तो हम चाहते ही न। जब पहली दफे आिलं गन को हाथ फैलाए थे, तो यह दु ख था? अगर दु ख होता, तो
हम भाग गए होते; आिलं गन के िलए हाथ न फैलाए होते । यह तो अब आिलं गन म बं धकर पता चलता है िक दु ख है ।
तो जब भी दु ख आए, तो लौटकर दे खना िक जब इसे चाहा था, तब यह दु ख था?

और तब पता चलेगा इस ण म, िफर जाग कता के ण म पता चले गा िक सब दु ख सु खों की तरह तीत होते ह,
सु खों की तरह िनमं ण दे ते ह; बाद म दु ख की तरह िस होते ह। और यह भी तीत होगा िक सब दु ख अपने बु लाए
आते ह, हम खुद ही उनको बु लाकर आते ह। कोई दु ख िबना बुलाए नहीं आता। और हम बु लाकर इसीिलए आते ह
िक हमने सोचा था, सु ख है । एक ण जब दु ख के साथ ऐसा खड़े होकर दे खगे, तो िफर पुनः मालू म पड़े गा, जीवन
सब दु ख है ।

और तीसरी बात–सु ख के साथ सोचना, दु ख के साथ सोचना और अनुभव होगा दु ख है –तब तीसरा सू ! जब भी
अनुभव हो िक जीवन दु ख है–और ऐसे अनुभव कई बार होते ह, हम िफर उ खो दे ते ह, कई बार सू हाथ म आता
है और छूट जाता है–जब ऐसा अनुभव हो गहरा िक सच म जीवन दु ख है और कोई सु ख नहीं, तब पीछे लौटकर एक
बार दे खना िक यह कौन है, िजसे पता चलता है िक जीवन दु ख है , सु ख नहीं? यह कौन है? इज़ िदस? यह कौन है,
जो सु ख चाहता है और दु ख पाता है? यह कौन है , जो दु खों म झां कता है तो पाता है , अपना ही िनमं ण है सु ख को
िदया गया? यह कौन है, जो सु ख की कामना होती है , तो उठाता है िक ा सच म ही सु ख िमले गा?

जब िकसी भी ण म, ए ूट इं टिसटी के िकसी ण म, ती ता के िकसी ण म चेतना जागकर जाने िक सब दु ख है ,


तब पीछे लौटकर पूछना िक यह कौन है, जो जानता है िक सब दु ख है? तब एक नया जानना शु होगा। तब एक
नया अनुभव शु होगा; एक नया सं बंध बनेगा, एक नई पहचान, एक नया प रचय–उससे, जो भीतर है , जो सब
जानता है और सबके पीछे खड़ा रहता है । उससे प रचय हो जाए, तो त ाल उपराम हो जाता है ; िच एकदम
िव ाम को उपल हो जाता है ।

इसिलए कृ कहते ह, योग से शां त आ िच भु को, परमा ा को, परम स को पा ले ता है ।

यह तो मने योग की आं त रक िविध आपसे कही। शायद यह एकदम किठन मालू म पड़े । शायद थोड़ी जिटल मालू म
पड़े िक कैसे हो पाएगा? यह कब हो पाएगा? िजं दगी की धारा म इतनी ता है, चौबीस घं टे इतने उलझे ह िक
कहां ककर सोचगे? कहां ककर खड़े होंगे? िजं दगी तो बहाए िलए जाती है , भीड़ चारों तरफ ध ा िदए चली
जाती है । कहां है वह ण, जहां हम सोच िक दु ख ा है? सु ख ा है ? म कौन ं ? इसकी फुरसत नहीं है ।

जब ऐसा लगे, तो िफर फुरसत खोजनी पड़े । िफर आप जीवन की धारा म खड़े न हो पाएं , तो घर के एक कोने म
घड़ीभर के िलए अलग ही व िनकाल ल। बाजार म न जाग पाएं , दु कान म न जाग पाएं , तो घर म एक कोना खोज
ल और घड़ीभर का व िनकाल ल। तय ही कर ल िक चौबीस घं टे म एक घं टा इस िच के उपराम होने के िलए दे
दगे ।

और एक घं टा कुछ न कर। इन तीन बातों का िचं तन गहरे म ले जाएं । जीवन दु ख है । सब सु ख दु खों को िनमं ण ह
और वह कौन है, जो इ जानता है! एक घं टा रोज। और जीवन के अंत म आप पाएं गे िक बाकी कई घं टे बे कार गए,
यही एक घं टा काम पड़ा है ।
161

ले िकन लोग मुझे आकर कहते ह िक नहीं, इतना समय कहां? और ब त है रानी मालू म पड़ती है िक जो लोग यह
कहते ह िक इतना समय कहां, वे ही लोग दू सरी दफे कहते ए सु ने जाते ह िक समय नहीं कटता है! वे ही लोग!
समय नहीं कटता है , तो ताश खेलना पड़ता है । समय नहीं कटता है , तो शतरं ज िबछानी पड़ती है । समय नहीं कटता
है , तो उसी अखबार को, िजसे िदन म छः दफे पढ़ चुके ह, िफर सातवीं दफे पढ़ना पड़ता है । समय नहीं कटता है , तो
वे ही बात, जो हजार दफे कर चु के लोगों से, िफर-िफर करनी पड़ती ह। समय नहीं कटता है , तो उसी आदमी के
पास चले जाना पड़ता है , िजससे आ खर म यह कहते लौटते ह िक ब त बोर करता है । िफर उसी के पास चले जाना
पड़ता है ! िफर वही िफ दे ख ले ते ह। िफर वही सब कर ले ते ह और कहते ह, समय नहीं कटता! और जब भु-
रण की कोई बात कहे , तो त ाल कहते ह, समय कहां!

ये दोनों बात एक साथ चलती ह। तो ऐसा मालू म होता है िक मन धोखा दे रहा है । मन धोखा दे रहा है । जब भी भु-
रण की बात चलती है , तो मन कहता है , समय कहां है! और जब भु- रण की बात नहीं कहता, तो मन कहता है
िक इतना समय है, कुछ काटने का उपाय करो।

तो अपने मन को थोड़ा समझने की कोिशश करना िक मन वंचक है , िडसेि व है । कोई दू सरा आपको न समझा
सकेगा; आप ही अपने मन को दे खना िक िकस तरह के धोखे दे ता है ।

सच म ही समय नहीं है ? इतना द र आदमी पृ ी पर नहीं है, िजसके पास एक घं टा न हो, जो भु को िदया जा
सके। है ही नहीं ऐसा कोई आदमी। आठ घं टे हम नींद को दे दे ते ह िबना किठनाई के, िबना अड़चन के। अगर सारा
िहसाब लगाने जाएं , तो अगर साठ साल आदमी जीए, तो बीस साल सोता है । और अगर िहसाब लगाएं , तो बाकी बीस
साल द र जाना, घर आना, दाढ़ी बनाना, ान करना, भोजन करना, इनम खो दे ता है । बाकी जो बीस साल बचते
ह, उनको समय काटने म लगाता है । समय काटने म, िक समय कैसे कटे !

तो आप कोई िजं दगी काटने के िलए आए ए ह, िक िकस तरह काट द! तो एकदम से ही काट डािलए। छलां ग लगा
जाइए िकसी पहाड़ से, समय एकदम कट जाएगा। तो ये े जुअल ुसाइड, ये धीरे -धीरे आ ह ा को आप कहते ह
जीवन? यह रोज-रोज धीरे -धीरे काटने को?

समय काटने का अथ है, जीवन को काट रहे ह। ोंिक समय जीवन है , और एक गया आ ण वापस नहीं लौटता।
और आप कहते ह, समय काटना है ! होटल म बै ठकर काटगे । िम ों से गपशप करके काटगे। और एक ण गया
आ वापस नहीं लौटता। एक ण कटा आ पुनः नहीं िमले गा। और एक ण कटा िक एक ण जीवन की रे त
खसक गई, जीवन कम आ।

बड़ा मजे दार है आदमी। एक तरफ कहता है िक उ कैसे बढ़ जाए! सारे पि म म िचिक क लगे ह खोजने म, उ
कैसे बढ़ जाए! उ बढ़ जाए, तो पूछता है, समय कैसे कटे ! ा, कर ा रहे ह? िचिक क उ बढ़ाते चले जाते ह
और आदमी मनोरं जन के साधन खोजता है िक समय कैसे कटे !

अब अमे रका म ब त िचंता है इस बात की। ोंिक एक तरफ लोग मां ग करते ह िक काम के घं टे कम करो। घं टे
कम हो गए ह। कभी बारह घं टे थे; आठ घं टे ए, छः घं टे ए, पां च घं टे ए। पां च घं टे काम के हो गए ह। आदमी
कहता है, और घं टे कम करो। काम कम। सं भावना है िक जै से ही सब आटोमैिटक हो जाए, यं चािलत हो जाए, तो
समय और भी कम हो जाए। शायद आधा घं टा, घं टाभर एक आदमी काम कर आए, तो ब त हो।

अब उस थित म हम आ गए िक जब हमारी हजारों साल की आकां ा पूरी होती है िक हम काम से मु होते ह।


करीब-करीब उस अव था म, िजसम दे वता अगर ग म रहते होंगे, तो आदमी प ं च गया। काम नहीं करना पड़े गा।
तो अब अमे रका के सभी िचंतक परे शान ह िक समय कैसे कटे ! समय को कैसे कािटएगा? काम तो काट िदया, अब
समय को कािटए!

और डर इस बात का है िक काम से इतना नुकसान कभी नहीं आ था, िजतना खाली समय बच जाएगा, तो हो जाने
वाला है । ोंिक खाली आदमी ा करे गा? वह खाली आदमी उप व करे गा। वह उप व कर रहा है । इसिलए
162

िजतना समृ समाज, उतना उप वी, उतने ह ारे , उतने डकैत, उतने चोर, उतने बे ईमान पैदा कर दे ता है । उसका
कारण है िक वे ा कर? समय कहां काट? खाली बै ठे रह?

ले िकन उन आदिमयों से भी अगर कहो िक भु- रण एक घं टा, तो वे भी त ाल उ र दे ते ह–िबना सोचे यह उ र


आता है –समय कहां है !

नहीं; ऐसा लगता है िक मन आ वंचक है । इस आ वंचना को समझने की ज रत है । और जब मन कहे, समय


कहां है , तो सच म चौबीस घं टे का ौरा लगाकर दे खना िक सच म समय नहीं है ? समय ब त है ।

और एक मजे की बात है समय के सं बंध म िक सबके पास बराबर है । कोई गरीब-अमीर नहीं है । सबके पास बराबर
है । य िप सभी समय का बराबर उपयोग नहीं करते ह।

इमसन से कोई पूछता था, तु ारी उ िकतनी है? तो इमसन ने कहा िक तीन सौ साठ वष! अब इमसन, ईमानदार
और स ा आदमी झूठ बोले गा नहीं। िजसने पूछा, उसने समझा िक लगता है , मेरे सु नने म कोई भू ल हो गई। उसने
कहा, माफ कर। म ठीक से सु न नहीं पाया। कान पास लाया। इमसन ने जोर से कहा िक तीन सौ साठ वष! उस
आदमी ने कहा िक आप मजाक तो नहीं कर रहे! ोंिक झूठ तो आप नहीं बोल सकते । मजाक तो नहीं कर रहे! तीन
सौ साठ! ादा से ादा आप साठ साल के मालू म पड़ते ह।

इमसन ने कहा िक अ ा, तो तु म दू सरे िहसाब से नाप रहे हो। हमारा िहसाब और है । साठ साल म आदमी िजतना
जीता है, हम उससे छः गु ना ादा जी चु के ह। एक-एक ण का हमने छः गु ना ादा उपयोग िकया है । हम उस
िहसाब से कहते ह, तीन सौ साठ साल। अगर तु म भी साठ साल के हो, तो हम तीन सौ साठ साल के ह। ोंिक तु मने
िकया ा है? जीए कहां हो?

तो वह आदमी पूछने लगा िक समझ ल िक आप छः गु ना जी िलए। पा ा िलया? और हम छः गु ना कम जीए, तो


ा खो िदया? तो इमसन ने कहा, मेरी आं ख म दे खो, मुझे दे खो, दो िदन मेरे पास क जाओ।

वह आदमी दो िदन इमसन के पास था। िफर उसके पैर छूकर, माफी मां गकर गया िक भू ल हो गई िक मने आपसे
पूछा िक ा पा िलया। आज म पहली दफा जीवन म जानकर जा रहा ं िक मने साठ साल िसफ गं वाए ह; कुछ पाया
नहीं।

दो िदन उसने दे खी इमसन की शां ित, दे खी वह झील, जहां कोई एक रपल, एक छोटी-सी तरं ग भी नहीं उठती। दे खा
दो िदन इमसन के पास बै ठकर िक उसके आस-पास शीतल िविकरण हो रहा है ; उसके पास भी बै ठकर जै से ान हो
जाता है । दे खा इमसन के कमरे म सोकर और पाया िक िसफ इमसन के कमरे म सोने से भी उसके सपनों का
गु णा क प बदल गया है; उसकी नींद की ािलटी बदल गई है । इमसन के साथ जं गल म चलकर दे खा िक जं गल
वही नहीं मालू म होता है । इस जं गल म वह पहले भी िनकला था, ले िकन वृ इतने हरे न मालू म पड़े थे । और फूल
इतने ताजे न मालू म पड़े थे । और फूल इतने खले न िदखाई पड़े थे । और पि यों का गीत इस तरह सु नाई नहीं पड़ा
था, जै सा इमसन के साथ सु नाई पड़ने लगा।

एक शांत आदमी पास है, तो वह दू सरे को भी शां त करने की व था जु टा दे ता है । दो िदन बाद वह मा मां गकर
लौटा। उसने कहा, मेरे साठ साल तो बे कार चले गए। अब जो थोड़े -ब त िदन बचे ह, ा म कुछ पा सकता ं ?

इमसन ने कहा िक अगर छः ण भी बचे हों, और तु म अपने साथ ईमानदार हो, तो उतना पा सकते हो, िजतना तीन
सौ साठ साल म मने पाया। ले िकन अपने साथ ईमानदार, टु बी आने िवद वनसे ।

दू सरे के साथ ईमानदार होना ब त किठन नहीं है । ों? उसी वजह से दू कानों पर िलखा आ है , आने ी इज़ िद
बे पािलसी। दू सरे के साथ ईमानदार होने म ब त किठनाई नहीं है । होिशयार आदमी दू सरे के साथ ईमानदार होते
163

ह, ोंिक दै ट इज़ िद बे पािलसी। वही सबसे अ ी तरकीब है । ले िकन अपने साथ ईमानदार होना आडु अस है ,
वह िसफ योगी ही हो पाता है । ले िकन म आपसे कहता ं , जो अपने साथ ईमानदार हो सके, वह िच उपराम को पा
सकता है ।

:
भगवान ी, इस ोक म कहे गए िच वृ ि िनरोध के ब त-से अथ लोगों ने िकए ह। इसका आप ा अथ करते ह?
कृपया इसे भी कर।
िच वृ ि िनरोध। साधारणतः लोग िच वृ ि िनरोध का अथ करते रहे ह, िच वृ ि यों का दमन। वह उसका अथ
नहीं है । िनरोध श दमन का सू चक नहीं है । अगर दमन ही कहना होता, तो कहते, िच वृ ि िवरोध। िच वृ ि
िवरोध!

िनरोध ब त अदभु त श है । िच वृ ि िनरोध का अथ है , िच की इतनी गहरी समझ िक वृ ि यां िनरोध को उपल


हो जाएं । दमन नासमझी है और दमन िसवाय अ ानी के कोई भी करता नहीं। और दमन िजसने िकया वृ ि यों का,
वह मु ल म पड़ता है ।

ोध को दबाया िक ोध और बड़ा होगा। ोध को दबाना ऐसे ही है , जै से बीज को जमीन के भीतर दबाना। उससे
तो जमीन के ऊपर ही रहता, तो बे हतर था। जमीन के भीतर बीज अब फूटे गा और वृ बनेगा। जड़ फैलगी; आकाश
को छू जाएगा। करोड़-करोड़ बीज लगगे । ोध को दबाया, तो ोध के बीज को िच की अंतभूिम म डाल िदया।
अब वह और बड़ा होगा।

नहीं; दमन नहीं है िनरोध। िच वृ ि का िनरोध, िच वृ ि की समझ है । जै से ही कोई िच की िकसी वृ ि को


समझता है, वह वृ ि िन हो जाती है । समझ िनरोध है ।

अगर कोई ोध को समझ ले िक ोध ा है , तो िसवाय दु ख और आग के पाएगा ा? अगर कोई ोध को पूरा


दे ख ले, तो िसवाय जहर के और िमले गा ा? और अगर िदखाई पड़े िक जहर और आग, और अपने ही हाथ से
अपने ऊपर, तो ऐसा पागल खोजना मु ल है , जो ोध की वृि को सि य रख सके। वृ ि िन हो जाएगी।
जहर को जहर जानते ही जहर से छु टकारा हो जाता है ।

ले िकन हम सबको ां ित है िक हम सबको पता ही है िक ोध बु रा है । िफर छु टकारा ों नहीं होता? हम सबको


मालू म है िक ोध बु रा है । ऐसा आदमी पा सकते ह आप, िजसको मालू म न हो िक ोध बु रा है ? सबको मालू म है िक
ोध बु रा है । तो िफर मेरी बात तो बड़ी उलटी मालू म पड़ती है । सबको मालू म है , तो िफर इतने लोग सु बह से सां झ
तक ोध म जीए चले जाते ह!

नहीं; म आपसे कहता ं, आपको जरा भी मालू म नहीं है िक ोध बु रा है । आपको भीतर से तो यही मालू म है िक
ोध ब त अ ा है । ऊपर से सु ना आ है िक ोध बु रा है । यह आपका अनुभव, आपकी तीित, आपका अपना
सा ा ार नहीं है िक ोध बु रा है ।

गु रिजएफ, अभी ां स म एक फकीर था। शायद इस सदी म थोड़े -से लोग थे, िजनकी इतनी गहरी समझ है । अगर
उसके पास कोई जाता और कहता िक म ोध से ब त परे शान ं , ोध इतना बु रा है , िफर भी म छूट नहीं पाता, तो
गु रिजएफ कहता िक को। पहली तो बात यह छोड़ दो िक ोध बु रा है । पहली बात यह छोड़ दो, ोंिक यह बात
तु कभी समझने न दे गी। ोंिक यह बात समझदारी का झूठा म पैदा करती है िक तु मको पता है । तु मको पता ही
है िक ोध बु रा है !

तु िबलकुल पता नहीं है । पहले तु म यह छोड़ दो। ोध नहीं छूटता। ोध को रहने दो। कृपा करके यह छोड़ दो
िक ोध बु रा है ।
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वह आदमी कहता िक ोध बु रा है , यह जानकर म इतना ोध कर रहा ं ! और अगर यह छोड़ दू ं िक ोध बु रा है,


तब तो ब त मुसीबत हो जाएगी!

गु रिजएफ कहता िक तु म को। हम मुसीबत को ले ने को तै यार ह। मुसीबत होने दो। और गु रिजएफ ऐसे उपाय
करता िक उस आदमी के ोध को जगाए। ऐसी िसचु एशं स, ऐसी थितयां पैदा करता िक उस आदमी का ोध
भभककर जले । और उस आदमी से कहता िक पूरा करो। थोड़ा भी छोड़ना मत। पूरा ही कर डालो। उबल जाओ।
रोआं -रोआं जल उठे । आग बन जाओ। पूरा कर लो। और वह ऐसी थितयां पैदा करता–अपमान कर दे ता, गाली दे
दे ता या िकसी और से उस आदमी को फंसवा दे ता–उस आदमी के घाव को छू दे ता िक वह एकदम िकसी ण म
होश खो दे ता और उबल पड़ता। और भयंकर प से । और वह उसको बढ़ावा िदए जाता, उसके ोध को, और घी
डालता।

और जब वह पूरी आग म जल रहा होता, तब वह िच ाकर कहता िक िम ! इस व दे ख लो िक ोध ा है । यह


है मौका। अभी दे ख लो िक ोध ा है । पहचान लो िक ोध ा है । यह है । आं ख बं द करो, एं ड मेिडटे ट आन इट।
आं ख बं द कर लो, और अब ान करो इस ोध पर। रोआं -रोआं जल रहा है । खून का कण-कण आग हो गया है ।
दय फूट पड़ने को है । म की िशरा-िशरा खून से भर गई है और पागल है । को भीतर। अब तु म जरा ठीक से
दे ख लो, ोध पूरा मौजू द है । और यह आ य की बात है िक गु रिजएफ िजसको भी ऐसा ोध िदखा दे ता, वह आदमी
दु बारा ोध करने म असमथ हो जाता–असमथ!

ले िकन हमारी पूरी व था उलटी है । छोटे -से ब े को हम दमन शु करवा दे ते ह, ोध मत करना। ोध दबाना;
ोध ब त बु रा है । और ब ा दे खता है िक बाप ोध करता है ; मां ोध करती है । सब जारी है ! वह बाप ब े को
समझा रहा है िक ोध मत करना; ोध बु रा है । और ब ा अगर न माने, तो बाप ोध म आ जाता है उसी व ! वह
ब ा दे खता है िक बड़ा मजा चल रहा है , बड़ा खेल चल रहा है !

और ब े ब त ए ूट आ वस ह, बड़े गौर से दे खते ह। ोंिक अभी उनकी िनरी ण की मता ब त शु है । वे


िबलकुल ठीक दे खते ह िक हद बे ईमानी चल रही है ! बाप कह रहा है , ोध मत करना, और अगर हम ोध करते ह,
तो वह खुद ही ोध कर रहा है!

दमन हम करवा रहे ह। कभी ब ा ोध को जान नहीं पाएगा िक ोध ा है । बस, इतना ही जान पाएगा, ोध बु रा
है । और कुनकुने ोध को जान पाएगा, जो बीच-बीच म फूटता रहे गा।

कुनकुने ोध से कभी पहचान नहीं हो सकती। कुनकुने पानी म हाथ डालने से कभी वह थित न आएगी िक गरम
पानी जलाता है , इसका पता चले । एक बार उबलते पानी म हाथ जाना ज री है । िफर हाथ बाहर रहने लगे गा। िफर
कोई कहे गा िक ारे आओ, ब त अमृत उबल रहा है । हाथ डालो! कहोगे िक ारे िबलकुल नहीं आएं गे । अनुभव है !

वृ ि यों का सा ा ार–उनकी शु तम थित म–िनरोध बनता है ; कोई भी वृ ि का शु तम सा ा ार। ले िकन


मनु की सं ृ ित ने इतने जाल खड़े कर िदए ह िक कोई भी आदमी िकसी वृ ि का शु सा ा ार नहीं कर पाता।
न तो कामवासना का शु सा ा ार कर पाता है ; न ोध का, न लोभ का, न भय का। िकसी चीज का शु
सा ा ार नहीं होता है । इसिलए िकसी से छु टकारा नहीं होता; कोई चीज िन नहीं होती।

भय है । कोई भय का शु सा ा ार नहीं कर पाता। ोंिक हर ब े को िसखाया जा रहा है िक िनभ क रहो, डरना


मत। डरे ए आदमी से कह रहे हो, डरना मत! जिटलता और बढ़ गई। भीतर डरे गा; ऊपर एक खोल तै यार कर ले गा
िक म डरता नहीं ं । अंधेरी गली म से िनकलेगा, सीटी बजाएगा, और सोचे गा, म डरता नहीं ं । सीटी इसीिलए बजा
रहा है िक डर लग रहा है । अपनी ही सीटी सु नकर ऐसा म पैदा होता है िक अकेला नहीं ं । कहे गा यही िक म तो
सीटी बजाकर िनकल जाता ं अंधेरे म से । ले िकन इसको उजाले म कभी िकसी ने सीटी बजाते नहीं दे खा! अंधेरे म
सीटी बजाता है , तािक भू ल जाए िक डर है ।
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दोहरा हमारा हो जाता है , डबल बाइं ड। ऊपर एक थोथी खोल चढ़ जाती है िसखाई ई, िसखावन की,
कंडीशिनंग की, और भीतर असली आदमी रहता है वृ ि यों का। वह वृ ि यों वाले आदमी को हम ऊपर के झूठे
आदमी से दबाए चले जाते ह। हां, जब ज रत नहीं रहती, तब वह दबा रहता है । जब ज रत आती है , वह इसको
ध ा दे कर बाहर आ जाता है । जब ज रत िनकल जाती है , वह िफर भीतर चला जाता है ।

हमारे भीतर दो आदमी ह। एक आदमी वह, जो साधारण थितयों म काम करता है । रा े पर आप जा रहे ह, बड़े
भले आदमी मालू म पड़ रहे ह। वह आपका एक आदमी है । िकसी आदमी ने एक ध ा दे िदया; वह जो बाहर
आदमी था, भीतर चला गया; जो भीतर आदमी था, वह बाहर आ गया। यह दू सरा आदमी है । यह असली आदमी है ।
यही असली आदमी है । वह जो नकली आदमी सड़क पर चला जा रहा था िबलकुल मु ु राता आ, एकदम स न
मालू म पड़ रहा था, वह असली आदमी नहीं है । वह तो बे काम है । वह तो िसफ एक चे हरा है, िजसका उपयोग हम
करते रहते ह, एक मा , एक मुखौटा। असली आदमी भीतर बै ठा है ।

वह असली आदमी तभी िनकलता है, जब कोई ज रत होती है , नहीं तो वह भीतर रहा आता है । जब ज रत चली
जाती है, वह पुनः भीतर चला जाता है । यह नकली आदमी िफर ऊपर आकर बै ठ जाता है । असली आदमी ोध
करता है , नकली आदमी माफी मां ग ले ता है । असली आदमी ोध करता है , नकली आदमी कसम खाता है िक ोध
नहीं क ं गा। असली आदमी ोध करता चला जाता है , नकली आदमी गीता पढ़ता चला जाता है; सोचता रहता है ,
ोध का िनरोध कैसे कर! असली आदमी गीता नहीं पढ़ता, वह जो भीतर बै ठा है । यह नकली आदमी ोध नहीं
करता। और नकली आदमी कसम खाता है ।

ऐसे दोहरे तल पर, समानां तर रे खाओं की तरह दो आदमी हमारे भीतर हो जाते ह। वे कहीं िमलते ए मालू म नहीं
पड़ते । रे ल की पट रयों की तरह िदखाई पड़ते ह िक आगे िमलते ह, िमलते कहीं भी नहीं–पैरेलल। बस, चलते चले
जाते ह। पूरी िजं दगी ऐसे ही बीत जाती है । काम जब पड़ता है , असली आदमी िनकल आता है । जब कोई काम नहीं
रहता, नकली आदमी अपने बै ठकखाने म बै ठा रहता है ।

इस थित को तोड़ना पड़े गा। इस थित को तोड़ने का एक ही उपाय है , वृ ि यों का शु सा ा ार। यह बड़े मजे
की बात है िक िकसी भी वृ ि का शु सा ा ार आपको त ाल िनरोध म ले जाता है ; ोंिक शु वृ ि का
सा ा ार नरक का सा ा ार है । कोई उपाय ही नहीं है; उसको जाना िक आप बाहर ए। नहीं जाना, तो भीतर
रहगे । और हमारी सारी व था, उसको न जानने की व था है , िन े करने की।

मां जानती है , बाप जानता है िक बे टे की उ हो गई है ; अब उसम कामवासना जग रही है । लेिकन मां-बाप ऐसे चलते
रहते ह, जै से उ कुछ भी पता नहीं िक बे टे म कामवासना जग रही है । वे ऐसा मानकर चलते रहते ह िक नहीं,
सबके बे टों म जग रही होगी; अपने बे टे म नहीं जग रही है । अपना बे टा िबलकुल सा क!

एक यु वक ने सं ास िलया है । उसने मुझे आकर बड़ी मजे दार बात कही। वह लौटकर अपने िपता के पास गया, तो
िपता ने कहा, सं ास िलया, यह तो ब त ठीक है । िववािहत यु वक है । िपता ने उपदे श िदया िक अब सं ास िलया है,
यह तो ब त ठीक है । ले िकन असली चीज चय है । चय की साधना करना।

वह बे टा मुझसे आकर कह रहा था िक मेरे मन म आ िक िपताजी, अगर आप भी चय की साधना करते, तो म


सं ास ले ने को नहीं हो पाता! ले िकन डर के मारे नहीं कहा। ले िकन भीतर के मन ने तो कह ही िदया। अब यह िपता
कह रहा है , िबना इस बात को समझे िक सं ास ा है ! चय ा है! कामवासना ा है! कुछ िबना समझे! उड़ते
ए श पकड़ गए ह िदमाग म– चय!

अगर बाप समझदार हो, तो बे टे से कहेगा, कामवासना का इतना सा ात कर लो, इतना सा ात िक तु म उसे पूरा
पहचान जाओ। िजस िदन तु म पूरा पहचान जाओगे, चय के कहने की ज रत नहीं; वह फिलत होगा। ले िकन
कोई बाप यह नहीं कहे गा। बाप कहे गा, चय साधो। न उसने साधा है; न उसके बाप ने साधा है ; न उसके बाप ने
साधा है । ोंिक साधा होता, तो यह मौका नहीं आता कहने का।
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कामवासना से भी तीित नहीं है , सा ा ार नहीं है । कामवासना भी आपके भीतर का आदमी आपकी छाती पर
चढ़कर पकड़ ले ता है । णभर बाद लौट जाता है भीतर। वह जो ऊपरी आदमी था, सतही आदमी, वह िफर पछताता
है । वह कहता है , िफर वही गलती, िफर वही भू ल! ा नासमझी!

वह करते रहो भू ल, चौबीस घं टे तु म सोचते रहो, चौबीस घं टे बाद वह भीतर वाला आदमी िफर गदन दबाकर सवार
हो जाएगा। उस भीतर वाले आदमी को ही समझना िक म ं । इस थोथे चे हरे को मत समझना िक म ं । वह जो भीतर
बै ठा है , वही म ं । इसको समझना। और वह जो भीतर है, उसकी एक-एक वृ ि के पूरे के पूरे शु ीकरण म
उतर जाना। और एक बार भी एक वृ ि का शु सा ा ार हो जाए, तो िनरोध उपल होता है ।

कृ जब कहते ह, िच वृ ि िनरोध, या पतं जिल जब कहते ह, िच वृ ि िनरोध, तो पतं जिल कोई ायड से कम
समझदार आदमी नहीं ह; ादा ही समझदार ह। और जब कृ कहते ह, िच वृ ि िनरोध, तो ायड से ब त
गहरा जानते ह।

जो भी इसका अथ करता है दमन, वह नहीं समझता। उ ीं अथ करने वालों ने यह हमारा समाज पैदा िकया है, जो
िनपट बे ईमान है, िहपो े ट है , पाखंडी है ; िबलकुल झूठ है । और सबको पता है िक िबलकुल झूठ है । ले िकन ऐसे जीए
चले जाते ह िक जै से िबलकुल सच है । बस चे हरों से ही सं बंध बनाते ह। और भीतर एक दू सरी दु िनया हमारे नीचे
अंडर करट की तरह सरकती रहती है । अगर कोई आदमी चां द से उतर आए, मंगल ह से आकर हम दे खे, तो उसे
कुछ बातों का पता ही नहीं चलेगा। हमारे चे हरों का ही पता चले गा। उसे पता ही नहीं चले गा िक भीतर एक और
असली दु िनया है , वा िवक, जो चल रही है ।

पित-प ी सड़क पर चलते ह, तब वे एक दू सरी दु िनया म ह, चेहरे वाली दु िनया म। जब उनको घर उनके मुखौटे
उतारकर और लड़ते-झगड़ते दे खो, तब एक दू सरा चे हरा है । यह तो आईने-वाईने म तै यार होकर जब सड़क पर
िनकलते ह, तो दू सरे दं पितयों कोर् ई ा का कारण हो जाते ह िक दां प तो यह है ! कैसा सु ख है ! हालां िक वे भी यही
सोच रहे ह उनके चे हरे और मुखौटों को दे खकर िक दां प तो यह है! कैसा सु ख है !

असली आदमी जो भीतर बै ठे ह, िहं सा से भरे , ोध से भरे , वासना से भरे , लोभ से भरे , ू रता से भरे , उस असली
आदमी को पहचानना पड़े ; उस असली आदमी को जीना भी पड़े । उस असली आदमी से भागने का सीधा कोई उपाय
नहीं है ; जीकर ही उससे छु टकारा है । उसको जीना पड़े , उसकी पीड़ा को अनुभव करना पड़े , उसके पूरे सं ताप से
गु जरना पड़े । और जो आदमी भी उसके पूरे सं ताप से गु जरने को राजी है, वह ण म बाहर हो सकता है ।

भाग मत। ए े प से कुछ होने वाला नहीं। अपने से भागकर कहीं जा नहीं सकते ह। जो भी अपने भीतर है , उसे पूरी
तरह जीएं । और साधक मुखौटे को तोड़ डाले, हटा दे । कह दे िक जै सा ं , बु रा-भला ऐसा ं । आदमी बु रा ं , बु रा ं ।
इस बु रेपन के ऊपर म कोई मुल ा नहीं क ं गा, कोई मलहम-प ी नहीं क ं गा। बु रा ं , तो बु रा ं, उसम ा
िकया जा सकता है ! इसे जािहर क ं गा िक म बु रा ं ।

उसे कह दे ना चािहए अपनी प ी को िक जब सड़क पर कोई सुं दर ी िदखाई पड़ती है , तो मेरा मन डोलता है । उसे
कह दे ना चािहए, ऐसा होता है । और जै से ही वह इस मुखौटे को तोड़ना शु करे गा…उसे कह दे ना चािहए अपनी
प ी को या अपने पित को या अपने बे टे को िक जब तु म मेरे अहं कार को चोट प ं चाते हो, तो मन होता है , तु ारी
गदन दबा दू ं । ऐसा होता है । इसम कुछ िछपाने जै सा नहीं है । इतना ही भीतर होता है । इसे कट करने जै सा है ।

िम तो म उ ही कहता ं, िजनके सामने हमारे मुखौटे न हों। प रवार म उसे ही कहता ं , िजनके सामने हमारे
मुखौटे न हों। समाज म उसे ही कहता ं, जो हम तं ता दे ता हो िक हम अपने मुखौटे उतारकर, जो सीधे -स े ह,
हो सक। वही सु सं ृ ित है , जहां हमारे भीतर जो है , हम वही होने के िलए तं ह।

और अगर यह हो सके, अगर यह आप कर पाएं , तो आपको अपने भीतर के असली प म जीने का अवसर िमले गा।
और तब आप पाएं गे, वह असली प नरक है । और वह असली प दु ख है । वह असली प बु के पहले आय-
स को कट कर जाएगा।
167

और वह पहला आय-स कट हो जाए, तो उपाय त ाल िमल जाता है । मकान म आग लगी है और छलां ग


लगाकर कोई बाहर िनकल जाए, ऐसे ही आप अपनी तथाकिथत वृ ि यों के जाल से छलां ग लगाकर बाहर हो जाएं गे ।
दु बारा लौटने का मन न रह जाएगा। इतना जहर है वहां! इतनी पीड़ा है वहां!

ले िकन हम उसकी तीित नहीं होती। ोंिक हम अपने को मानते ह िक नहीं, ये सब बात हम म नहीं ह। कभी-कभी
ोध हो जाता है, वह दू सरी बात है , प र थितवश। ले िकन हम म कोई ोध है नहीं।

ले िकन नहीं है , तो हो नहीं सकता। थित िबलकुल उलटी है; चौबीस घं टे भीतर ोध चल रहा है । िबलकुल जै से
िबजली दौड़ रही है तार म। जब हाथ लगाओ, तब शॉक मारती है । इसका मतलब यह नहीं िक जब हाथ लगाते ह,
तब दौड़ती है । दौड़ती तो चौबीस घं टे रहती है; हाथ लगाओ, तब पता चलता है ।

तो ोध तो आपम चौबीस घं टे दौड़ रहा है, कोई जरा हाथ लगाए, तब शॉक िनकलता है । िबजली का तार भी ऐसा ही
सोचता होगा, जै सा आप सोचते ह िक हमम कोई िबजली नहीं दौड़ती। यह तो जब कोई हाथ लगाता है , तब शॉक
पैदा होता है । हाथ लगाने वाले से शॉक पैदा नहीं होता। जब कोई मुझे गाली दे ता है, उससे ोध नहीं पैदा होता; वह
तो िसफ हाथ लगा रहा है । ोध की अंतधारा मुझम बहती रहती है । गाली से जरा सं बंध जु ड़ा िक शॉक! म िवकराल
हो उठता ं , पागल हो उठता ं । वह पागलपन हमारे भीतर है, वह िवि ता हमारे भीतर है ।

वृ ि िनरोध का अथ है, वृ ि की इतनी गहरी समझ िक वृ ि का होना असंभव हो जाए। इतनी गहरी अंडर िडं ग,
इतना गहरा अनुभव, ऐसी गहरी अनुभूित िक वृ ि असंभव हो जाए। और ान के अित र और कोई मु नहीं है ।
और ान के अित र और कोई िनरोध नहीं है ।

इसिलए कृ कहते ह, उपराम, शांत आ िच , िच वृ ि िनरोध को उपल आ िच , उस िनरोध के ण म भु


को जानता है ।

सुखमा कं य द् बु ा मती यम्।


वेि य न चैवायं थत लित त तः।। 21।।
तथा इं ि यों से अतीत केवल शु ई सू बु ारा हण करने यो जो अनंत आनंद है , उसको िजस अव था म
अनुभव करता है और िजस अव था म थत आ यह योगी भगव प से नहीं चलायमान होता है ।

उसी सू का और भी गहरा प। भगव प से नहीं चलायमान होता है । वह िच , वह , वह योगी, जो


इं ि यों के पार ं म, ऐसा जानता है , भगव प से चलायमान नहीं होता है ।

भगव प से चलायमान हम होते इसीिलए ह िक मानते ह िक इं ि यां ं म। इं ि यां ं म, तो या ा शु हो गई।


हमने यं से दू र जाना शु कर िदया। और िफर इं ि यां और दू र ले जाएं गी, ोंिक ेक इं ि य कहे गी िक मुझे
मेरा िवषय चािहए। तो उसकी िवषय की खोज होगी। और ेक िवषय के बाद अनुभव होगा िक इससे तृ नहीं
होती, दू सरा िवषय चािहए, तो दू सरे की खोज होगी। और िफर जीवन एक या ा बन जाएगा।

या ा के दो चरण ह। पहला चरण, म इं ि यां ं , ऐसा तादा बनाना ज री है । अगर सं सार म जाना है, तो जानना
ज री है िक म इं ि यां ं । और यह तादा बन जाता है । यह बन जाता है इसी तरह िक चे तना इतनी िनमल और
इतनी शु है िक िजस चीज के भी पास जाती है , उसका ितिबंब पकड़ ले ती है ।

पुराने योग के ं थ उदाहरण दे ते ह नीलमिण का। ीितकर है उदाहरण। पुराने योग के ं थ कहते ह िक नीलमिण को
अगर शु जल, एक बतन म, एक कटोरे म शु जल रखा हो, नीलमिण को उस जल म डाल द, तो पूरा जल नीला
मालू म होने लगता है । वह जो नीलमिण की आभा है , वह पूरे जल को घे र ले ती है ।
168

अगर नीलमिण को होश आ जाए, तो नीलमिण ा कहे गी िक म मिण ं , जल से अलग? नहीं। ोंिक जल भी तो
नीला हो गया है । नीलमिण कैसे जान पाएगी िक कहां मिण समा होती है और कहां जल शु होता है! ोंिक जल
ने भी नीलापन ले िलया है । अगर नीलमिण को होश आ जाए, तो नीलमिण जल की प रिध को ही अपनी प रिध
मानेगी, ोंिक वहां तक नील का िव ार है ।

ठीक ऐसे ही, वह जो भीतर शु आ ा है , वह जो चे तना है , उसकी आभा इं ि यों को घे र लेती है; शरीर के कोने-कोने
म ा हो जाती है । मेरी आ ा मेरी अंगुिलयों के पोरों तक समा गई है । मेरी आ ा मेरे रोएं -रोएं के कोने-कोने तक
वे श कर गई है । मेरी आ ा ने मेरी पूरी इं ि यों को, मेरे पूरे शरीर को आवृ त कर िलया है । मेरी चे तना की आभा म
सब समा गया है । और यह आभा अनंत है । इसिलए चीट ं ी के छोटे -से शरीर को भी घे र ले ती है , हाथी के बड़े शरीर को
भी घे र ले ती है । अगर म पूरे ां ड जै सा शरीर भी पा जाऊं, तो भी मेरी आभा इतने को घे र ले गी। यह आ ा की
आभा अनंत है । और यह आभा जहां पड़ती है , िजस सीमा को घे रती है, उस सीमा के साथ लगता है िक म एक हो
गया।

इसिलए पहला कदम उठ जाता है िक म इं ि यां ं , िफर दू सरा कदम उठना अिनवाय हो जाता है । ोंिक इं ि यां
कहती ह, कामि य कहती है िक काम-िवषय खोजो। तो िफर काम-िवषय की खोज म जाना पड़ता है । ऐसे हम अपने
से बाहर जाते ह, या चलायमान होते ह, गितमान होते ह। ऐसे हमारे भीतर वह जो अचलायमान है सदा, वह
चलायमान होने की ां ित म पड़ता है । िफर वह खोजता िनकलता चला जाता है –दू र, और दू र, और दू र। और िजतना
खोजता है , उतना ही पाता है , नहीं िमलता, तो और दू र जाता है ! ऐसे ज ों की लं बी या ा होती है ।

कृ कह रहे ह, िजसने जाना िक म इं ि यों के अतीत और पार ं , िफर चलायमान नहीं होता भगव प से, िफर
भगवान से चलायमान नहीं होता। िफर वह भगवान म एक हो जाता है, िफर वह भगवान ही हो जाता है । ले िकन सू
है , इं ि यों के पार ं म, इसे जानना; टां सडटल ं , अतीत ं , इं ि यां नहीं ं म, इसे जानना।

एक ब त अजीब-सी घटना मुझे याद आती है । एक फकीर आ है , िलं ची, जापान म एक ब त ानी फकीर आ।
िलं ची की सदा आदत थी िक जब भी वह कुछ समझाता, तो एक अंगुली ऊपर उठाकर समझाता। जब भी कुछ
कहता, तो उसकी एक अंगुली ऊपर उठ जाती। अ ै त की खबर वह अंगुली से दे ने लगता। जो बोलने से नहीं कह
पाता था, वह अंगुली से कहता। वह जब तक बोलता रहता, उसकी अंगुली कंिपत होती रहती, ऊपर उठी रहती।

फकीरों म मजाक चलता था। उसके िश ों म भी कभी-कभी मजाक चलता था; वे भी अंगुली उठाकर बात करते थे ।
उसके सामने तो िह त नहीं पड़ती थी; ले िकन पीठ पीछे उसके िश कभी-कभी मजाक म अंगुली उठा ले ते।

एक िदन एक िश अंगुली उठाकर कुछ गपशप कर रहा था। अचानक िलं ची मंिदर के भीतर आ गया। वह घबड़ा
गया। उसने अंगुली अपनी बं द की। िलं ची ने कहा िक नहीं, उठी रहने दो। िलं ची ने खीसे से चाकू िनकाला और अंगुली
काटकर फक दी। तड़फड़ा गया। ल लुहान हो गया हाथ। िलं ची ने कहा, सावधान! दे ख, अंगुली कटी है , तू तो नहीं
कटा। बी अवे यर। मौका मत चूक। अंगुली कटी है , तू नहीं कटा। गौर से दे ख!

चौंक गया। िलं ची की आवाज! अंगुली के कटने म एक तो िवचार वै से ही बं द हो गए। एकदम घबड़ा गया। िवचार का
कंपन चला गया। अंगुली कट जाएगी, अनए पे े ड, कभी सोचा भी नहीं था। और िलं ची जै सा दयावान आदमी, जो
प ा न तोड़े , वह अंगुली काट दे गा, यह कोई सोच ही नहीं सकता था। और िफर िलं ची की आवाज; और िलं ची का
खड़ा आ प; और िलं ची की उठी ई अंगुली! दे ख, तू नहीं कटा है , अंगुली कटी है । उस आदमी की आं ख बं द हो
गई, उसने भीतर दे खा। वह िलं ची के चरणों म िगर पड़ा और उसने कहा िक ध वाद! पहली दफा मुझे पता चला िक
म अंगुली नहीं ं ।

एक-एक इं ि य के ित ऐसे ही जागना पड़ता है िक यह म नहीं ं , यह म नहीं ं , यह म नहीं ं । और किठन नहीं है ।


ज री नहीं है िक अंगुली काटकर ही जाग। ज री नहीं है िक अंगुली काटकर ही जाग, कभी बै ठकर शां ित से िवचार
ही कर अंगुली को उठाकर िक ा यह अंगुली म ं? उठाए रह अंगुली को; भीतर सोच, ा यह अंगुली म ं? ब त
दे र न लगे गी, अंगुली से कोई चीज भीतर वापस िगर जाएगी। अंगुली अलग, आप अलग हो जाएं गे ।
169

कभी आं ख बं द करके सोच, यह शरीर म ं ? ान रहे, पूछ, उ र न द! हम उ र दे ने म बड़े होिशयार ह। हम


सबको मालू म है िक म शरीर नहीं ं! पूछा भी नहीं िक उ र तै यार है , रे डीमेड। कह िदया िक म शरीर नहीं ं । बस,
थ हो गया। नहीं; िसफ पूछ। उ र को आने द। आप ज ी न कर। आपके उ र दो कौड़ी के ह। ोंिक आपको
उ र ही मालू म होता, तो पूछने की ज रत ा थी? उ र आपको मालू म नहीं है ।

ले िकन शा दु न हो गए ह। पढ़ िलया है उनको। उनम िलखा है िक म शरीर नहीं ं! जो िम हो सकते थे, उनको
हमने दु न कर िलया है । कंठ थ कर िलया, म शरीर नहीं ं । बै ठे, पूछते ह, म शरीर ं ? पूछ भी नहीं पाते, हमको
उ र पहले से ही पता है । वह कहता है, ा बे कार म! म शरीर नहीं ं । उठकर वापस वही के वही आदमी वापस हो
गए।

नहीं; पूछ, ा म शरीर ं ? और चु प रह जाएं । जाने द को गहरा। उ र न द ृित से । उतरने द को गहरा।


अनुभव कर, ा म शरीर ं?

शरीर के ित जाग, शरीर को भीतर से दे ख िक यह रहा शरीर। जै से िक कोई आदमी अपने मकान के भीतर बै ठा है
और दे खता है िक चारों तरफ दीवाल है, ठीक ऐसे ही अपने शरीर के भीतर बै ठकर दे ख, चारों तरफ शरीर की
दीवाल है , हाथ ह, पैर ह। यह शरीर रहा। ा म शरीर ं? उ र न द। कृपा कर उ र से बच। म शरीर ं? –
और को तीर की तरह भीतर उतर जाने द।

और ज ी ही कोई चीज भीतर िगर जाएगी पद की तरह, और अचानक तीत होगा, कहां! शरीर तो वह रहा; म यह
अलग ं । ले िकन यह उ र आप मत दे ना; यह उ र आने दे ना। और जब यह आएगा, तो आपके जीवन को बदल
जाएगा। और जब आप दगे, तो जीवन वही का वही बना रहे गा। यही कसौटी है ।

अगर इस उ र के बाद जीवन दू सरा हो जाए, तो जानना िक उ र आया। और अगर जीवन वही रहे िक पूछ-पां छकर
उठे और िसगरे ट मुंह म लगाकर जला ली और िफर धु आं उड़ाने लगे ! और जीवन वही का वही रहा, कोई अंतर न
पड़ा, कोई टां सफामशन न आ, तो जानना िक उ र आथिटक नहीं था; हमने ही दे िदया था।

और मन की चालाकी अनंत है । वह उ र तै यार रखे है , तािक आपको नाहक भीतर न जाना पड़े । वह कहता है , कहां
जा रहे हो? पहरे दार ं , म ही बताए दे ता ं । मािलक से िमलने की ज रत ा है ? दरवाजे पर पहरे दार की तरह
खड़ा है । आपसे कहता है, हम ही बताए दे ते ह, आप कहां जाते हो? बै ठो यहीं। सब उ र हम मालू म ह; नाहक भीतर
जाने का क ों उठाते हो!

तो मन से कहना िक मा करो। तु ारे उ र अपने पास रखो। तु ारे उ र नहीं चािहए। तु ारे शा , तु ारे
िस ां त तु ीं स ालो। मुझे कृपा कर भीतर जाने दो। म ही जानना चाहता ं िक ा है । मुझे कुछ भी पता नहीं है ।

पूछ! और तब भीतर एक पदा िगर जाएगा। एक झीना-सा पदा आभा का, िसफ आभा का पदा है , वह िसकुड़ जाएगा।
शरीर अलग, आप अलग हो जाएं गे ।

और िजस ण यह अनुभव होता है िक शरीर अलग, म अलग; इं ि यां अलग, म अलग; िफर चेतना चलायमान नहीं
होती है । िफर भु म रम जाती है । िफर भु से एक हो जाती है । िफर कभी भु के घर को छोड़कर जाती नहीं। िफर
कहीं भी जाए, भु के घर म ही रहती ई जाती है । िफर मंिदर से चली जाए दु कान पर, तो मंिदर दु कान पर प ंच
जाता है । रा े से गु जरे , तो भी जानता है िक म भु म ठहरा आ ं । चले गा शरीर, म ठहरा आ ं । कटे गा
शरीर, म अनकटा ं । िछदे गा शरीर, म अनिछदा ं । मरे गा शरीर, म अमृत ं । वह जानता ही रहता है ; वह जानता ही
रहता है ।

ऐसी तीित भु म िथर कर जाती है । और भु म िथरता आनंद है ।


170

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


दु खों म अचलायमान—(अ ाय-6) वचन— ारहवां

यं ल ा चापरं लाभं म ते नािधकं ततः।


य थतो न दु ःखेन गु णािप िवचा ते।। 22।।
और परमे र की ा प िजस लाभ को ा होकर, उससे अिधक दू सरा कुछ भी लाभ नहीं मानता है , और
भगव ा प िजस अव था म थत आ योगी बड़े भारी दु ख से भी चलायमान नहीं होता है ।

भु को पाने की कामना पूरी हो जाए, तो िफर और कोई कामना पूरी करने को शे ष नहीं रह जाती है । भु म ित ा
िमल जाए, तो िफर िकसी और ित ा का कोई नहीं है । िमल जाए भु, तो िफर न िमलने को कुछ बचता है , न
पाने को कुछ बचता है ।

कृ इस सू म कहते ह िक िजसने भु को उपल करने का लाभ पा िलया, उसे परम लाभ िमल गया। वै सा परम
लाभ को उपल , महान से महान दु ख से अिवचिलत गु जर जाता है ।

इसे थोड़ा समझ। असल म हम दु ख से िवचिलत ही इसीिलए होते ह िक हम आनंद का कोई अनुभव नहीं है । हम दु ख
से िवचिलत ही इसीिलए होते ह िक हम आनंद का कोई अनुभव नहीं है । यिद हम आनंद का अनुभव हो, तो दु ख से
हम िवचिलत होंगे ही नहीं। असल म जै से हम जीते ह, हम दु ख म ही जीते ह।

ले िकन एक तो साधारण दु ख है , िजसके हम आदी हो गए ह। जब हम पर कोई असाधारण दु ख आता है , िजसके हम


आदी नहीं ह, तो हम िवचिलत होते ह।

ान रहे, हम साधारणतः दु ख म ही जीते ह। ले िकन साधारण दु ख म जीते ह, इसिलए कोई िवचिलत होने का कारण
नहीं आता। जब असाधारण दु ख आता है , तो िच कंिपत होता है और हम िवचिलत हो जाते ह।

ायड ने कहा है अपने अंितम िदनों के सं रणों म, िक जै सा म समझता ं, उससे ऐसा तीत होता है िक आदमी
को हम कभी दु ख से मु न कर सकगे । ादा से ादा हम इतना ही कर सकते ह िक अित दु ख आदमी पर न
आएं ; साधारण दु ख आते रह।

अगर िव ान पूरी तरह सफल हो गया–जो िक सं भव नहीं िदखाई पड़ता–मान ल, अगर िव ान िकसी िदन पूरी तरह
सफल हो गया, तो भी आपको दु ख से छु टकारा नहीं िदला पाएगा। हां , इतना ही कर पाएगा िक आपके ऊपर अित
दु ख न आने पाएं । दु ख सामा रह जाएं ; कुनकुने रह जाएं , उबलते ए न हों।

कुनकुने दु ख धीरे -धीरे हमारी आदत बन जाते ह। इसिलए उनसे हम कोई ादा पीड़ा और परे शानी नहीं होती।
िवशे ष दु ख आते ह, तो हम पीिड़त होते ह। इसिलए म कहता ं िक भीतर हम आनंद का कोई अनुभव नहीं है ,
इसिलए िवशे ष दु ख हम पीिड़त करते ह।

िफर अगर िवशे ष दु ख रोज-रोज आने लग, तो वे भी हम पीिड़त नहीं करते। हम उनके भी आदी हो जाते ह। और
िजसे िवशे ष दु ख नहीं आए ह, उसे साधारण दु ख भी आ जाए, तो भी पीिड़त करता है । दु ख के ित हमारी
सं वेदनशीलता, दु ख के आने पर धीमी होती चली जाती है ।

यु के मैदान पर जाता है सै िनक, तो जब तक नहीं प ं चा है यु के मैदान पर, तब तक ब त पीिड़त, िचं ितत और


परे शान रहता है । ले िकन मनोवै ािनक है रान ह िक यु के मैदान पर प ं चने के एक-दो िदन के बाद उसकी सब
पीड़ा, सब िचं ता िवदा हो जाती है ! ा, हो ा जाता है ?
171

जब रोज िगरते दे खता है बम को अपने िकनारे , रोज अपने िम ों को दफनाए जाते दे खता है, रोज आदिमयों को मरते
दे खता है , सड़क पर लाशों से गुजरता है –दो-चार िदन म सं वेदनशीलता ीण हो जाती है । िफर वह जो यु पर जाने
से डर रहा था, वह वहीं बै ठकर–पास म हवाई जहाज दु न के उड़ते रहते ह, बमबारी करते रहते ह–वह नीचे
बै ठकर ताश खेलता रहता है ।

अगर आपको िनरं तर दु ख म रखा जाए, तो आप उस दु ख के िलए आदी हो जाते ह; िफर उसका आपको पता नहीं
चलता। हम एक खास र पर दु ख के आदी हो गए ह, और इसीिलए ब त अड़चन होती है ।

जब पहली दफा पि म के लोगों को पता चलता है हमारी गरीबी का, तो उ भरोसा नहीं आता िक इतनी गरीबी को
हम सह कैसे ले ते होंगे! बगावत ों नहीं कर दे ते! आग ों नहीं लगा डालते! दु िनया को िमटा ों नहीं डालते! उ
खयाल भी नहीं िक हम गरीबी के लं बे आदी ह! गरीबी से हम कोई िवशे ष पीड़ा नहीं होती। सच तो यह है िक गरीब
को गरीबी से कभी पीड़ा नहीं होती, पड़ोस म कोई अमीर हो जाता है , तो पीड़ा शु होती है । गरीबी की तो आदत
होती है । लाखों वष तक हमारा शू िबलकुल ही पशु के तल पर जीया है । आदी हो गया था। सपने भी छोड़ िदए थे
उसने; वह दु ख के िलए राजी हो गया था।

हम सब दु खी ह, ले िकन सब एक-एक दु ख की सीमा तक राजी हो गए ह। तो वहां तक तो हम कोई दु ख चलायमान


नहीं करता। ले िकन िवशे ष दु ख आ जाता है, िजसके िलए हम आदी नहीं ह, तो हम कंिपत हो जाते ह, तो हम पीिड़त
हो जाते ह; तो हमारे भीतर कुछ टू टता है , िबखरता है ।

ले िकन जो आनंद के अनुभव को उपल हो जाए, उसे िफर बड़े से बड़ा दु ख िवचिलत नहीं करता, ोंिक
भीतर गहरे म वह आनंद म जीता ही है । दु ख बाहर ही आते ह िफर, भीतर तक वेश नहीं कर पाते । दु ख बाहर घू मते
ह और चले जाते ह, जै से हवा के झोंके आए हों। या आप रा े से गु जरते हों और वषा पड़ गई हो, तो आप कोई िम ी
के पुतले नहीं ह, आप उस वषा को झेलकर घर आ जाते ह। आप भीतर जानते ह, कुछ गल नहीं जाएगा। ले िकन
उसी रा े पर अगर िम ी के पुतले भी चल रहे हों, तो बड़ी मु ल म पड़ जाएं गे ।

भीतर आनंद की वषा हो रही हो सतत, तो बाहर िकतना ही बड़ा दु ख आ जाए, बाहर ही रहता है , भीतर वे श नहीं
कर पाता। ान रख, दु ख भीतर तभी वे श करता है , जब भीतर दु ख मौजू द हो। और समान समान को आकिषत
करता है । भीतर दु ख मौजू द हो, तो बाहर के दु ख को भीतर खींचता है । भीतर आनंद मौजू द हो, तो बाहर के दु ख को
वापस लौटा दे ता है , उसे िनमं ण भी नहीं दे ता।

कृ कहते ह, िजसने पा िलया परम लाभ, भु को अनुभव िकया िजसने, िफर बड़े से बड़ा दु ख उसे चलायमान नहीं
करता है ।

िफर चलायमान होने की कोई वजह नहीं रह गई। िफर हालत ऐसी ही हो गई िक िजसे यह पता चल गया िक मेरे पास
अनंत खजाना है , उसकी अगर एक कौड़ी िगर जाए, तो ा दु ख, ा पीड़ा! िजसे पता चल जाए, अनंत खजाना मेरे
पास है, उसके करोड़ पए भी खो जाएं , तो कौन-सी पीड़ा है , कौन-सा दु ख है ! अनंत म कुछ कम नहीं होगा।

िजसे पता चल जाए िक मेरे भीतर जो है , वह कभी नहीं मरता, तो छोटी-मोटी बीमारी की तो बात अलग, मौत खुद भी
ार पर आकर खड़ी हो जाए, तो िवचिलत होने का कोई कारण नहीं है । मौत से हम िवचिलत होते ह, ोंिक हम
जानते ह, म म ं गा। मौत से हम िवचिलत होते ह, ोंिक हम जानते ह िक बीमारी इतनी तकलीफ दे गई; मौत
िकतनी तकलीफ न दे जाएगी! मौत से हम िवचिलत होते ह, ोंिक भीतर अमृत का हम कोई अनुभव नहीं है ।

यिद अमृत का अनुभव है, तो मौत श भी नहीं कर पाएगी। वह बाहर ही बाहर घू म सकती है , भीतर वेश नहीं कर
सकती।

हमारे भीतर वही वेश करता है , जो हमारे भीतर पहले से मौजू द है । जीवन के इस िनयम को ब त गौर से समझ
ले ना ज री है । हमारे भीतर वही वेश करता है, जो हमारे भीतर मौजू द है, अ था हमारे भीतर वेश नहीं हो
172

सकता। अगर आप दु खी ह, तो दु ख वेश कर सकता है । अगर आनंिदत ह, तो आनंद वे श कर सकता है । अगर


अ ानी ह, तो अ ान वेश कर सकता है । अगर ानी ह, तो ान वे श कर सकता है । समान ही समान को खींचता
है , असमान को हटाता है ।

तो अगर आपको बार-बार दु ख वे श कर जाता हो, तो समझ ले ना िक आपके भीतर दु ख की गहरी पत है, जो उसे
बु ला ले ती है , िनमं ण दे दे ती है। अगर आप उदास आदमी ह, तो आपको चारों तरफ से उदासी पकड़े गी और
आपकी तरफ दौड़े गी। आप गङ् ढा बन जाएं गे, और उदासी आपकी तरफ निदयां बनकर या ा करने लगेगी। अगर
आप आनंिदत ह, तो चारों तरफ से आनंद की धाराएं आपके भीतर वेश करने लगगी।

जो आपके भीतर वेश करता है , वह खबर दे ता है िक कौन आपके भीतर बै ठा है , जो उसे आकिषत कर रहा है ।
िजसने आनंद को जाना भु को पा ले ने के, उसे कोई दु ख िवचिलत नहीं करे गा।

िकतने दु ख ह जीवन म? िकतने दु ख ह? हम उनकी थोड़ी-सी मोटी िगनती कर ल, तो खयाल म आ जाए।

ि य के िबछु ड़ने का दु ख है । ि यजन के िबछु ड़ने का दु ख है । ले िकन जो भु को िमल गया, वह ि यतम को िमल
गया। अब कोई ि यजन के िबछु ड़ने का दु ख नहीं रह जाता। अब िमलन शा त है । अब तो हम उस ारे को िमल
गए, िजसकी झलक हमने सब ि यजनों म दे खी थी, ले िकन िजसे हम िकसी म पा न सके थे । िजसे हमने सब ि यजनों
म खोजना चाहा था, और खाली और र हाथ वापस लौट आए थे । िजसे हमने जब भी िकसी को ेम िकया था, तो
उसम ब त गहरे म हमने परमा ा को ही तलाशा था।

और इसीिलए तो सभी ेमी े ट होते ह, ोंिक अंत म िमलता है आदमी, परमा ा तो िमलता नहीं। खोजते
परमा ा को ही ह। इसिलए जब भी कोई िकसी के ेम म िगरता है, तो वह उसके भीतर िकसी िद ता की खोज है ।
ले िकन िफर हाथ म तो ह ी, मां स, चमड़ी के कुछ और आता नहीं, कोई िद ता तो हाथ म आती नहीं। िफर िवषाद
घे र ले ता है ।

जो भु को पा िलया, उसके िलए अब िमलन का कोई न रहा, परम िमलन हो गया। अब उसके हाथ िकसी के
आिलं गन को नहीं फैलगे, और या फैलगे भी, तो सभी के आिलं गन म उसे परमा ा का ही आिलं गन होगा। और कोई
अगर उससे िबछु ड़कर जा रहा है , तो उसका कुछ भी नहीं िबछु ड़े गा। ोंिक जो परम िमलन हो गया है , उस परम
िमलन के आगे अब िकसी िबछु ड़न का कोई अथ नहीं है ।

अपयश का दु ख है जीवन म, अपमान का दु ख है जीवन म। ले िकन िजसे भु ने स ािनत कर िदया, अब उसे


अपमान छू सकेगा? िजसे यं भु ने अपने मंिदर म वेश िदया और िजसे यं भु ने अपने िनकट िबठा िलया–यह
िसफ म का की भाषा म बोल रहा ं, भु कोई नहीं है–जो भु के अनुभव को उपल आ, अब कौन-सा
अपमान उसके िलए अथपूण रह जाएगा? जो बड़े से बड़ा मान सं भव था, वह हो गया।

तो जीसस जै सा आदमी सू ली पर भी शां ित से लटक सकता है । मंसूर को जब लोगों ने सू ली दी, तो मंसूर िसर उठाकर
ऊपर आकाश की तरफ दे खकर हं सने लगा।

मंसूर एक अदभुत फकीर था, जीसस की है िसयत का। मुसलमान फकीर था, सू फी था। जब मंसूर को लोग काटने
लगे और सू ली दे ने लगे, तो मंसूर ने आकाश की तरफ दे खा और मु ु राया। तो एक लाख लोगों की भीड़ थी, जो
प र फक रहे थे उस पर, गािलयां दे रहे थे उसको। कोई उसका पैर काट रहा था, कोई उसका हाथ काट रहा था।
कोई उसकी आं ख फोड़ने के िलए छु रे िलए ए खड़ा था।

और जब मंसूर को लोगों ने हं सते दे खा, तो िकसी ने भीड़ म से पूछा िक मंसूर, िकसको दे खकर हं स रहे हो? मरने के
करीब हो! तो मंसूर ने कहा िक तु मौत िदखाई पड़ती है, मुझे महािमलन िदखाई पड़ रहा है । यहां से िवदा हो
जाऊंगा, वहां भु से महािमलन हो जाएगा। उसकी बां ह मुझे आकाश म फैली ई िदखाई पड़ रही ह। तु म मुझे ज ी
िवदा कर दो, तािक उसे और ती ा न करनी पड़े !
173

अब यह जो आदमी है, इसको हम काट-काटकर भी दु ख नहीं दे सकते । ोंिक इसको हम काट ही नहीं सकते । यह
िजस तल पर जी रहा है, वहां कोई हमारे अ -श काम न करगे । िजस जगह यह जी रहा है, उस तल पर, उस
आयाम म, हम इसे दु ख न प ंचा पाएं गे ।

जब मंसूर के हाथ काटे , तो उसके हाथ से ल बहने लगा। उसने दू सरे हाथ से ल ले कर, जै से िक मुसलमान नमाज
के पहले वजू करते ह, उस ल को पानी की तरह हाथ पर फेरा। िकसी ने पूछा, मंसूर! यह तु म ा कर रहे हो? तो
मंसूर ने कहा िक म भु से िमलने के पहले, आ खरी िमलन आ जा रहा है , वजू कर रहा ं । तो लोगों ने कहा िक
खून से कहीं वजू की जाती है? मंसूर ने कहा, पानी से भी कोई वजू हो सकती है ? पानी से भी कहीं कोई वजू हो
सकती है , मंसूर ने कहा। अब तक तो धोखा िदया वजू करने का िक पानी से हाथ धो ले ते थे, आज मौका िमला िक
अपने जीवन से हाथ धो रहे ह। जीवन से हाथ धोकर भु की या ा पर जा रहा ं ।

िजसे भु की जरा-सी भी झलक िमल जाए, उसके जीवन म चलायमान होने का कोई भी कारण नहीं है । ले िकन हम
कोई झलक नहीं है , इसिलए छोटी-सी चीज चलायमान कर जाती है । सच तो यह है िक हम चलायमान ही रहते ह।
जै सा मने कहा, हम दु खी ही रहते ह। सामा ध े हम झेलते रहते ह, आदी हो जाते ह। असामा ध े आते ह,
हम िद त म पड़ जाते ह।

और इसीिलए हम असामा ध ों को अपने से रोके रखते ह, भु लाए रखते ह। भु लाए रखते ह िक मौत है । भु लाए
रखते ह िक ि य िबछु ड़ जाएगा। भु लाए रखते ह िक सब सफलताएं अंत म असफलताओं की राख िस होती ह।
भु लाए रखते ह िक सब िसं हासन आ खर म क ों की सीिढ़यां बन जाते ह। सबको भु लाए रखते ह। और इस तरह
जीते ह भु लावे म िक जै से कहीं कोई दु ख नहीं है ।

ले िकन हम िकतनी दे र अपने को भु लावा दे सकते ह! दु ख आएगा ही। दु ख जीवन का प है । अगर आप आनंद
को नहीं उपल कर ले ते ह, तो दु ख आपको कंपाता ही रहे गा।

कृ ठीक कहते ह, परम लाभ हो जाता है उसे । िफर बड़े से बड़ा दु ख चलायमान नहीं कर सकता है ।

वही कसौटी है । वही कसौटी है िक जब बड़े से बड़ा दु ख कंपन न लाए, तो ही जानना िक वह आदमी भु के दशन
को उपल आ।

बु के आ खरी छः महीने ब त पीड़ा म बीते । पीड़ा म उनकी तरफ से, िज ोंने दे खा; बु की तरफ से नहीं। बु
एक गां व म ठहरे ह। और उस गां व के एक शू ने, एक गरीब आदमी ने बु को िनमं ण िदया िक मेरे घर भोजन
कर ल। तो वह पहला िनमं ण दे ने वाला था, सु बह-सु बह ज ी आ गया था पां च बजे, तािक गां व का कोई धनपित,
गां व का स ाट िनमं ण न दे दे । ब त बार आया था, ले िकन कोई िनमं ण दे चु का था।

वह िनमं ण दे ही रहा था िक तभी गां व के एक बड़े धनपित ने आकर बु को कहा िक आज मेरे घर िनमं ण
ीकार कर। बु ने कहा, िनमं ण आ गया। उस अमीर ने उस आदमी की तरफ दे खा और कहा, इस आदमी का
िनमं ण! इसके पास खलाने को भी कुछ होगा? बु ने कहा, वह दू सरी बात है । बाकी िनमं ण उसका ही ीकार
िकया। उसके घर ही जाता ं ।

बु गए। उस आदमी को भरोसा भी न था िक बु कभी उसके घर भोजन करने आएं गे । उसके पास कुछ भी न था
खलाने को व ुतः। खी रोिटयां थीं। स ी के नाम पर िबहार म गरीब िकसान, वह जो बरसात के िदनों म
कुकुरमु ा पैदा हो जाता है –लकिड़यों पर, गं दी जगह म–उस कुकुरमु े को इक ा कर ले ते ह, सु खाकर रख ले ते ह
और उसी की स ी बनाकर खाते ह। कभी-कभी ऐसा होता है िक कुकुरमु ा पायजनस हो जाता है । कहीं ऐसी जगह
पैदा हो गया, जहां जहर िमल गया, तो कुकुरमु े म जहर फैल जाता है ।

बु के िलए उसने कुकुरमु े बनाए थे, वे जहरीले थे । जहर थे, स कड़वे जहर थे । मुंह म रखना मु ल था।
ले िकन उसके पास एक ही स ी थी। तो बु ने यह सोचकर िक अगर म क ं िक यह स ी कड़वी है , तो वह
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किठनाई म पड़े गा; उसके पास कोई दू सरी स ी नहीं है । वे उस जहरीली स ी को खा गए। उसे मुंह म रखना
किठन था। और बड़े आनंद से खा गए, और उससे कहते रहे िक ब त आनंिदत आ ं ।

जै से ही बु वहां से िनकले, उस आदमी ने जब स ी चखी, तो वह तो है रान हो गया। वह भागा आ आया और


उसने कहा िक आप ा कहते ह? वह तो जहर है ! वह छाती पीटकर रोने लगा। ले िकन बु ने कहा, तू जरा भी
िचंता मत कर। ोंिक जहर मेरा अब कुछ भी न िबगाड़ सकेगा, ोंिक म उसे जानता ं , जो अमृत है । तू जरा भी
िचंता मत कर।

ले िकन िफर भी उस आदमी की िचं ता तो हम समझ सकते ह। बु ने उसे कहा िक तू ध भागी है । तु झे पता नहीं। तू
खुश हो। तू सौभा वान। ोंिक कभी हजारों वष म बु जै सा पैदा होता है । दो ही यों को उसका
सौभा िमलता है , पहला भोजन कराने का अवसर उसकी मां को िमलता है और अंितम भोजन कराने का अवसर
तु झे िमला है । तू सौभा शाली है ; तू आनंिदत हो। ऐसा िफर सै कड़ों-हजारों वष म कभी कोई बु पैदा होगा और
ऐसा अवसर िफर िकसी को िमले गा। उस आदमी को िकसी तरह समझाकर-बु झाकर लौटा िदया।

बु के िश कहने लगे, आप यह ा बात कह रहे ह! यह आदमी ह ारा है । बु ने कहा, भू लकर ऐसी बात मत
कहना, अ था उस आदमी को नाहक लोग परे शान करगे! तु म जाओ; गांव म डु ं डी पीटकर खबर करो िक यह
आदमी सौभा शाली है, ोंिक इसने बु को अंितम भोजन का दान िदया है ।

मरने के व लोग उनसे कहते थे िक आप एक दफे भी तो क जाते! कह दे ते िक कड़वा है , तो हम पर यह व पात


न िगरता! ले िकन बु कहते थे िक यह व पात कने वाला नहीं था। िकस बहाने िगरे गा, इससे कोई फक नहीं पड़ता
है । और जहां तक मेरा सं बंध है , मुझ पर कोई व पात नहीं िगरा है , नहीं िगर सकता है । ोंिक मने उसे जान िलया
है , िजसकी कोई मृ ु नहीं है ।

यह अनुभव हो, तो िफर कोई कंपन जीवन के िकसी भी दु ख का नहीं होता है ।

हम तो सब चीज िहला जाती ह। हमारे पीछे तो कोई ऐसी चीज नहीं है , िजस पर हम िबना िहले खड़े हो जाएं । कोई
ऐसा ं भ नहीं है , िजस पर हम िबना िहले खड़े हो जाएं ।

कबीर ने एक छोटा-सा दोहा िलखा है । िजसका अथ है िक कबीर ब त रोने लगा यह दे खकर िक दो च यों के पाट
के बीच जो भी पड़ गया, वह िपस गया। कबीर घर लौटा। कबीर के घर एक बे टा पैदा आ था। कबीर का बे टा था,
तो कबीर की है िसयत का बे टा था। उसका नाम था कमाल। कबीर ने घर जाकर यह दोहा पढ़ा और कहा िक कमाल,
आज रा े पर चलती च ी दे खकर म रोने लगा, ोंिक मुझे खयाल आया िक जगत की च ी के दो पाटों के बीच
जो भी पड़ गया, वह बचा नहीं।

कमाल ने दू सरा दोहा कहा और उसने कहा िक नहीं, यह मत कहो। म भी चलती च ी दे खा ं । चलती च ी
दे खकर कमाल हं सने लगा, ोंिक मने दे खा िक दो पाटों के बीच म एक छोटी-सी कील भी है । िजसने उस कील का
सहारा ले िलया, दो पाट उसको पीस नहीं पाए। पाट चलते रहे । वह जो छोटी-सी कील है च ी के बीच म, उसके
सहारे जो गे ं का दाना चढ़ गया, उसके सहारे जो रह गया, दो चाक चलते रहे , चलते रहे, पीसते रहे, ले िकन वह
अनिपसा बच गया!

जो परमा ा की बीच म कील है, उसके िनकट िजतना सरक जाए, सटर के, क के, उतना ही इस जगत की कोई
चीज िफर पीस नहीं पाती है । अ था तो दो पाट पीसते ही रहगे। दु ख पीसता ही रहे गा। मृ ु पीसती ही रहे गी। और
हम कंपते ही रहगे, भावतः।

यह िबलकुल ाभािवक है िक मौत को दे खकर हम कंप जाएं । यह िबलकुल ाभािवक है िक चारों तरफ दु ख ही
दु ख हो और हम कंप जाएं । यह ाभािवक तभी तक है, जब तक बीच की कील का सहारा नहीं िमला।
175

कृ उसी कील की बात कर रहे ह िक पा ले ता है जो भु के परम लाभ को, िफर बड़े से बड़े दु ख उसे चलायमान
नहीं करते ह।

तं िव ाद् दु ःखसंयोगिवयोगं योगसंि तम्।

स िन ये न यो ो योगोऽिनिव चेतसा।। 23।।

और जो दु ख प सं सार के सं योग से रिहत है तथा िजसका नाम योग है , उसको जानना चािहए। वह योग न उकताए
ए िच से अथात त र ए िच से िन यपूवक करना कत है ।

सं सार के सं योग से जो तोड़ दे , दु ख के सं योग से जो पृथक कर दे , अ ान से जो दू र हटा दे , ऐसे योग को अथक प


से साधना कत है , ऐसा कृ कहते ह। अथक प से! िबना थके, िबना ऊबे ।

इस बात को ठीक से समझ ल।

मनु का मन ऊबने म बड़ी ज ी करता है । शायद मनु के बु िनयादी गु णों म ऊब जाना एक गु ण है । ऐसे भी
पशु ओ ं म कोई पशु ऊबता नहीं। बोडम, ऊब, मनु का ल ण है । कोई पशु ऊबता नहीं। आपने कभी िकसी भस
को, िकसी कु े को, िकसी गधे को ऊबते नहीं दे खा होगा, िक बोड हो गया है ! नहीं; कभी ऊब पैदा नहीं होती। अगर
हम आदमी और जानवरों को अलग करने वाले गु णों की खोज कर, तो शायद ऊब एक बु िनयादी गु ण है , जो आदमी
को अलग करता है ।

आदमी बड़ी ज ी ऊब जाता है , बड़ी ज ी बोड हो जाता है । िकसी भी चीज से ऊब जाता है। ऐसा नहीं िक दु ख से
ऊब जाता है , सु ख से भी ऊब जाता है । अगर सु ख ही सु ख िमलता जाए, तो तिबयत होती है िक थोड़ा दु ख कहीं से
जु टाओ। और आदमी जु टा ले ता है ! अगर सु ख ही सु ख िमले , तो ित मालू म पड़ने लगता है ; मुंह म ाद नहीं आता
िफर। िफर थोड़ी-सी कड़वी नीम मुंह पर रखनी अ ी होती है । थोड़ा-सा ाद आ जाता है ।

आदमी ऊबता है, सभी चीजों से ऊबता है । बड़े से बड़े महल म जाए, उनसे ऊब जाता है । सुं दर से सुं दर ी िमले ,
सुं दर से सुं दर पु ष िमले, उससे ऊब जाता है । धन िमले, अपार धन िमले, उससे ऊब जाता है । यश िमले, कीित
िमले, उससे ऊब जाता है । जो चीज िमल जाए, उससे ऊब जाता है । हां , जब तक न िमले, तब तक बड़ी सजगता
िदखलाता है , बड़ी लगन िदखलाता है ; िमलते ही ऊब जाता है ।

इस बात को ऐसा समझ, सं सार म िजतनी चीज ह, उनको पाने की चे ा म आदमी कभी नहीं ऊबता, पाकर ऊब
जाता है । पाने की चे ा म कभी नहीं ऊबता, पाकर ऊब जाता है । इं तजार म कभी नहीं ऊबता, िमलन म ऊब जाता
है । इं तजार िजं दगीभर चल सकता है; िमलन घड़ीभर चलाना मु ल पड़ जाता है ।

सं सार की े क व ु को पाने के िलए तो हम नहीं ऊबते, ले िकन पाकर ऊब जाते ह। और परमा ा की तरफ ठीक
उलटा िनयम लागू होता है । सं सार की तरफ य करने म आदमी नहीं ऊबता, ा म ऊबता है । परमा ा की
तरफ ा म कभी नहीं ऊबता, ले िकन य म ब त ऊबता है । ठीक उलटा िनयम लागू होगा भी।

जै से िक हम झील के िकनारे खड़े हों, तो झील म हमारी त ीर बनती है, वह उलटी बनेगी। जै से आप खड़े ह,
आपका िसर ऊपर है , झील म नीचे होगा। आपके पैर नीचे ह, झील म पैर ऊपर होंगे। त ीर झील म उलटी बनेगी।

सं सार के िकनारे हमारी त ीर उलटी बनती है । सं सार म जो हमारा ोजे न होता है, वह उलटा बनता है । इसिलए
सं सार म गित करने के जो िनयम ह, परमा ा म गित करने के वे िनयम िबलकुल नहीं ह। ठीक उनसे उलटे िनयम
काम आते ह। मगर यहीं बड़ी मु ल हो जाती है ।
176

सं सार म तो ऊबना आता है बाद म, य म तो ऊब नहीं आती। इसिलए सं सार म लोग गित करते चले जाते ह।
परमा ा म य म ही ऊब आती है । और ा तो आएगी बाद म, और य पहले ही उबा दे गा, तो आप क
जाएं गे ।

िकतने लोग नहीं ह जो भु की या ा शु करते ह! शु भर करते ह, कभी पूरी नहीं कर पाते । िकतनी बार आपने
तय िकया िक रोज ाथना कर लगे! िफर िकतनी बार छूट गया वह। िकतनी बार तय िकया िक रण कर लगे भु
का घड़ीभर! एकाध िदन, दो िदन, काफी! िफर ऊब गए। िफर छूट गया। िकतने सं क , िकतने िनणय, धू ल होकर
पड़े ह आपके चारों तरफ!

मेरे पास लोग आते ह, वे कहते ह िक ान से कुछ हो सकेगा? म उनको कहता ं िक ज र हो सकेगा। ले िकन कर
सकोगे? वे कहते ह, ब त किठन तो नहीं है ? म कहता ं, ब त किठन जरा भी नहीं। किठनाई िसफ एक है , सात !
ान तो ब त सरल है । ले िकन रोज कर सकोगे? िकतने िदन कर सकोगे? तीन महीने, लोगों को कहता ं िक िसफ
तीन महीने सतत कर लो। मु ल से कभी कोई िमलता है , जो तीन महीने भी सतत कर पाता है । उब जाता है, दस-
पां च िदन बाद ऊब जाता है!

बड़े आ य की बात है िक रोज अखबार पढ़कर नहीं ऊबता िजंदगीभर। रोज रे िडयो सु नकर नहीं ऊबता िजं दगीभर।
रोज िफ दे खकर नहीं ऊबता िजं दगीभर। रोज वे ही बात करके नहीं ऊबता िजं दगीभर। ान करके ों ऊब
जाता है? आ खर ान म ऐसी ा किठनाई है !

किठनाई एक ही है िक सं सार की या ा पर य नहीं उबाता, ा उबाती है । और परमा ा की या ा पर य


उबाता है , ा कभी नहीं उबाती। जो पा ले ता है, वह तो िफर कभी नहीं ऊबता।

इसिलए बु को िमला ान, उसके बाद वे चालीस साल िजंदा थे । चालीस साल िकसी आदमी ने एक बार उ अपने
ान से ऊबते ए नहीं दे खा। कोहनूर हीरा िमल जाता चालीस साल, तो ऊब जाते । सं सार का रा िमल जाता, तो
ऊब जाते ।

महावीर भी चालीस साल िजं दा रहे ान के बाद, िफर िकसी आदमी ने कभी उनके चे हरे पर ऊब की िशकन नहीं
दे खी। चालीस साल िनरं तर उसी ान म रमे रहे , कभी ऊबे नहीं! कभी चाहा नहीं िक अब कुछ और िमल जाए!

नहीं; परमा ा की या ा पर ा के बाद कोई ऊब नहीं है । ले िकन ा तक प ंचने के रा े पर अथक…।

इसिलए कृ कहते ह, िबना ऊबे म करना कत है , करने यो है ।

यहां एक बात और खयाल म ले ले नी ज री है िक कृ ऐसा कहते ह, अजु न कैसे माने और ों माने? कृ कहते
ह, करने यो है । अजु न कैसे माने और ों माने? अजु न को तो पता नहीं है । अजु न तो जब यास करे गा, तो
ऊबे गा, थकेगा। कृ कहते ह।

इसिलए धम म ट का, भरोसे का एक कीमती मू है । ा का अथ होता है , ट । उसका अथ होता है , भरोसा।


उसका अथ होता है , कोई कह रहा है , अगर उसके से वे िकरण िदखाई पड़ती ह, जो वह कह रहा है ,
उसका माण दे ती ह; वह जो कह रहा है , िजस ा की बात, वहां खड़ा आ मालू म पड़ता है …।

अजु न भलीभां ित कृ को जानता है । कृ को कभी िवचिलत नहीं दे खा है । कृ को कभी उदास नहीं दे खा है ।


कृ की बां सुरी से कभी दु ख का र िनकलते नहीं दे खा है । कृ सदा ताजे ह।

इसीिलए तो आप, और िवशे षकर आधुिनक यु ग के िचं तक और िवचारक बड़ी मु ल म पड़ते ह। वे कहते ह, कृ
की बु ढ़ापे की कोई त ीर ों नहीं है ! ऐसा तो नहीं हो सकता िक कृ बू ढ़े न ए हों। ज री ही ए होंगे। कोई
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िनयम तो कृ को छोड़े गा नहीं। बु की भी बु ढ़ापे की कोई त ीर नहीं है । अ ी साल के होकर मरे । महावीर की
भी बु ढ़ापे की कोई त ीर नहीं है । ज र कहीं कोई भू ल-चूक हो रही है ।

ले िकन जो लोग ऐसा सोचते ह, उ इस मु के िचंतन के ढं ग का पता नहीं है । यह मु त ीर शरीरों की नहीं


बनाता, मनोभावों की बनाता है । कृ कभी भी बू ढ़े नहीं होते, कभी बासे नहीं होते; सदा ताजे ह। बू ढ़े तो होते ही ह,
शरीर तो बू ढ़ा होता ही है । शरीर तो जराजीण होगा, िमटे गा। शरीर तो अपने िनयम से चलेगा। पर कृ की चे तना
अिवचिलत भाव से आनंदम बनी रहती है , युवा बनी रहती है । वह कृ की चे तना सदा नाचती ही रहती है ।

कृ की हमने इतनी त ीर दे खी ह। कई दफे शक होने लगता है िक कृ ऐसा एक पैर पर पैर रखे और बां सुरी
पकड़े िकतनी दे र खड़े रहते होंगे! यह ादा िदन नहीं चल सकता। यह कभी-कभी त ीर उतरवाने को, फोटो ाफर
आ गया हो, बात अलग है । बाकी ऐसे ही कृ खड़े रहते ह?

नहीं, ऐसे ही नहीं खड़े रहते ह। ले िकन यह आं त रक िबं ब है , यह भीतरी त ीर है। यह खबर दे ती है िक भीतर एक
नाचती ई, फु चे तना है , एक नृ करती ई चे तना है , जो सदा नाच रही है । भीतर एक गीत गाता मन है , जो
सदा बां सुरी पर र भरे ए है ।

यह बां सुरी सदा ऐसी होंठ पर रखे बै ठे रहते होंगे, ऐसा नहीं है । यह बां सुरी तो िसफ खबर दे ती है भीतर की। ये तो
तीक ह, िसं बािलक ह। ये गोिपयां चारों व , चारों पहर, चौबीस घं टे आस-पास नाचती रहती होंगी, ऐसा नहीं है ।
ऐसा नहीं है िक कृ इसी गोरखधं धे म लगे रहे । नहीं; ये तीक ह, ब त आं त रक तीक ह।

असल म इस मु की िमथ, इस मु के िमिथक, इस मु के पुराण तीका क ह। गोिपयों से मतलब व ु तः


यों से नहीं है । यां भी कभी कृ के आस-पास नाची होंगी। कोई भी इतना ारा पु ष पैदा हो जाए, यां न
नाच, ऐसा मौका चू कना सं भव नहीं है । यां नाची होंगी। ले िकन यह तीक कुछ और है । यह तीक गहरा है ।

यह तीक यह कह रहा है िक जै से िकसी पु ष के आस-पास चारों तरफ सुं दर, ेम से भरी ई, ेम करने वाली
यां नाचती रह और वह जै सा फु त रहे , वै से कृ सदा ह। वह उनका सदा होना है । वह उनका ढं ग है होने
का। जै से चारों तरफ सौंदय नाचता हो, चारों तरफ गीत चलते हों, चारों तरफ सं गीत हो, और घूं घर बजते हों, और
चारों तरफ ि यजन उप थत हों, और ेम की वषा होती हो, ऐसे कृ चौबीस घं टे ऐसी हालत म जीते ह। ऐसा चारों
तरफ उनके हो रहा हो, ऐसे वे भीतर होते ह।

अजु न जानता है कृ को भलीभां ित। उदासी कभी उस चे हरे पर िनवास नहीं बना पाई। आं खों ने उस चेहरे पर कभी
हताशा नहीं दे खी। उस म कहीं कोई पड़ाव नहीं बन सका दु ख का कभी। ले िकन अजु न को तो अभी भरोसा
करना पड़े गा, ट करना पड़े गा िक कृ कहते ह, तो या ा की जाए।

इसिलए कृ कहते ह, कत । इसिलए कहते ह, करने यो है अजु न!

करोगे, तो जान लोगे । नहीं करोगे , तो नहीं जान पाओगे । कुछ जानने ऐसे ह, जो करने से ही िमलते ह। और हम सब
ऐसे लोग ह िक हम सोचते ह, जानने से ही जानना हो जाए। हम सोचते ह, कुछ बात जान ल और ान हो जाए। कृ
कहते ह, कत है अजु न! करोगे , तो जान पाओगे । करने से ही जानना आएगा। और करने की सबसे बड़ी किठनाई
वे िगना दे ते ह साधक को, ऊब। ऊब जाओगे; दो िदन करोगे और ऊब जाओगे ।

हे रगेल एक जमन िवचारक जापान म था तीन वष तक। एक फकीर के पास एक अजीब-सी बात सीख रहा था।
सीखने गया था ान, और उस फकीर ने सीखना शु करवाया धनुिव ा का। हे रगे ल ने एक-दो दफे कहा भी िक म
ान सीखने जमनी से आया ं और मुझे धनुिव ा से कोई योजन नहीं है । ले िकन उस फकीर ने कहा िक चुप!
ादा बातचीत नहीं। हम ान ही िसखाते ह। हम ान ही िसखाते ह।
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दो-चार िदन, आठ िदन, हे रगेल का पा ा मन सोचने लगा, भाग जाऊं। िकस तरह के आदमी के च र म पड़
गया! ले िकन एक आकषण रोकता भी था। उस आदमी की आं खों म कुछ कहता था िक वह कुछ जानता ज र है ।
उसके उठने-बै ठने म भनक िमलती थी िक वह कुछ जानता ज र है । रात सोया भी पड़ा रहता और हे रगे ल उसे
दे खता, तो उसे लगता िक यह आदमी और लोगों जै सा नहीं सो रहा है । इसके सोने म भी कुछ भे द है! तो भाग भी न
सके, और कभी पूछने की िह त जु टाए, तो वह फकीर होंठ पर अंगुली रख दे ता िक पूछना नहीं। धनुिव ा सीखो।

एक साल बीत गया। सोचा हे रगे ल ने िक ठीक है ; अब कोई उपाय नहीं है । इस आदमी से जाया भी नहीं जा सकता;
इससे भागा भी नहीं जा सकता। नहीं तो यह िफर िजं दगीभर पीछा करे गा, इसका रण रहे गा िक उस आदमी के
पास था ज र कुछ, कोई हीरा भीतर था, िजसकी आभा उसके शरीर से भी चमकती थी। मगर कैसा पागल आदमी
है िक म ान सीखने आया ं , वह धनुिव ा िसखा रहा है ! तो सोचा िक सीख ही लो, तो झंझट िमटे ।

सालभर उसने अथक मेहनत की और वह कुशल धनुधर हो गया। उसके िनशान सौ ितशत ठीक लगने लगे । उसने
एक िदन कहा िक अब तो मेरे िनशान भी िबलकुल ठीक लगने लगे । अब म धनुिव ा भी सीख गया। अब वह ान के
सं बंध म कुछ पूछ सकता ं ?

उसके गु ने कहा िक अभी धनु िव ा कहां सीखे? िनशान ठीक लगने लगा, ले िकन असली बात नहीं आई। उसने
कहा िक िनशान ही तो असली बात है ! अब म सौ ितशत ठीक िनशाना मारता ं । एक भी चू क नहीं होती। अब और
ा सीखने को बचा? उसके गु ने कहा िक नहीं महाशय! िनशाने से कुछ ले ना-दे ना नहीं है । जब तक तु म तीर
चलाते व मौजू द रहते हो, तब तक म न मानूंगा िक तु म धनुिव ा सीख गए। ऐसे चलाओ तीर, जै से िक तु म नहीं हो।

उसने कहा िक अब ब त किठन हो गया। अभी तो हम आशा रखते थे िक साल छः महीने म सीख जाएं गे, अब यह
ब त किठन हो गया। यह कैसे हो सकता है िक म न र ं ! तो तीर चलाएगा कौन? और आप कहते हो िक तु म न रहो
और तीर चले! ए ड है । तकयु नहीं है । कोई भी गिणत को थोड़ा समझने वाला, तक को थोड़ा समझने वाला
कहे गा िक पागल के पास प ंच गए। अभी भी भाग जाना चािहए।

ले िकन सालभर उस आदमी के पास रहकर भागना िनि त और मु ल हो गया, ोंिक आठ िदन बाद ही भागना
मु ल था। सालभर म तो उस आदमी की न मालू म िकतनी ितमाएं हे रगेल के दय म अंिकत हो गईं। सालभर म
तो वह आदमी उसके ाणों के पोर-पोर तक वे श कर गया। भरोसा करना ही पड़े गा, और आदमी िबलकुल पागल
मालू म होता है ।

उस फकीर ने कहा, तू ज ी मत कर। ज र वह व आ जाएगा, जब तू मौजू द नहीं रहे गा और तीर चलेगा। और


िजस िदन तू मौजू द नहीं है और तीर चलता है , उसी िदन ान आ जाएगा। ोंिक यं को पूरी तरह अनुप थत कर
ले ने की कला ही ान है , टु बी ए ट टोटली।

और िजस ण कोई यं को पूरी तरह अनुप थत कर ले ता है , परमा ा वेश कर जाता है । परमा ा के िलए भी
जगह तो खाली क रएगा अपने घर के भीतर! आप इतने भरे ए ह िक परमा ा आना भी चाहे, तो कहां से आए?
उसको ठहरने लायक जगह भी भीतर चािहए; उतनी जगह भी भीतर नहीं है ! हम इतने ादा अपने भीतर ह, टू मच,
िक वहां कोई र ीभर भी थान नहीं है , ेस नहीं है ।

उस फकीर ने कहा, तू ज ी मत कर। तू कुछ व लगा और यह तीर िनशान पर लगाने की बात न कर। िनशान न
भी लगा, तो चले गा। उस तरफ िनशान चूक जाए, चू क जाए; इस तरफ िनशान न चू के। उसने कहा, इस तरफ के
िनशान का मतलब? िक इस तरफ करने वाला मौजू द न रहे , खाली हो जाए। तीर उठे और चले , और तू न रहे ।

एक साल और उसने मेहनत की। पागलपन साफ मालू म होने लगा। रोज उठाता धनुष और रोज गु कहता िक नहीं;
अभी वह बात नहीं आई। िनशान ठीक लगते जाते, और वह बात न आती। एक साल बीत गया। भागना चाहा, ले िकन
भागना और मु ल हो गया। वह आदमी और भरोसे के यो मालू म होने लगा। इन दो सालों म कभी उस आदमी
की आं ख म रं चमा िचंता न दे खी। कभी उसे िवचिलत होते न दे खा। सु ख म, दु ख म, सब थितयों म उस आदमी को
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समान पाया। वषा हो िक धू प, रात हो िक िदन, पाया िक वह आदमी कोई अिडग थान पर खड़ा है, जहां कोई कंपन
नहीं आता।

भागना मु ल है । ले िकन बात पागलपन की ई जाती है । दो साल खराब हो गए! गु से िफर एक िदन कहा िक दो
साल बीत गए! उसके गु ने कहा िक समय का खयाल जब तक तू रखेगा, तब तक खुद को भू लना ब त मु ल है ।
समय का जरा खयाल छोड़। समय बाधा है ान म।

असल म समय ा है? हमारा अधै य समय है । जो टाइम कां शसनेस है, वह समय का जो बोध है , वह अधै य के
कारण है । इसिलए जो समाज िजतना अधै यवान हो जाता है , उतना टाइम कां शस हो जाता है । जो समाज िजतना
धीरज से बहता है , उतना समय का बोध नहीं होता।

अभी पि म ब त टाइम कां शस हो गया है । एक-एक से कड, एक-एक से कड आदमी बचा रहा है ; िबना यह जाने िक
बचाकर क रएगा ा? बचाकर क रएगा ा? माना िक एक से कड आपने बचा िलया और कार एक सौ बीस मील
की र ार से चलाई और जान जोखम म डाली और दो-चार से कड आपने बचा िलए, िफर क रएगा ा? िफर उन
दो-चार से कड से और कार दौड़ाइएगा! और क रएगा ा?

ले िकन समय का बोध आता है भीतर के तनाव िच से । इसिलए बड़े मजे की बात है िक आप िजतने ादा दु खी
होंगे, समय उतना बड़ा मालू म पड़े गा। घर म कोई मर रहा है और खाट के पास आप बै ठे ह, तब आपको पता चले गा
िक रात िकतनी लं बी होती है । बारह घं टे की नहीं होती, बारह साल की हो जाती है । दु ख का ण एकदम लं बा मालू म
पड़ने लगता है , ोंिक िच ब त तनाव से भर जाता है । सु ख का ण िबलकुल छोटा मालू म पड़ने लगता है ।
ि यजन से िमले ह और िवदा का व आ गया, और लगता है , अभी तो घड़ी भी नहीं बीती थी और जाने का समय आ
गया! समय ब त छोटा हो जाता है ।

हे रगेल का वह गु कहने लगा िक समय की बात बं द कर, नहीं तो ान म कभी नहीं प ं च पाएगा।

ान का अथ ही है , समय के बाहर िनकल जाना।

क गया। अब इस आदमी से भाग भी नहीं सकता। यही ट , ा का म अथ कह रहा ं आपसे । ा का अथ है


िक आदमी की बात भरोसे यो नहीं मालू म पड़ती, पर आदमी भरोसे यो मालू म पड़ता है । ा का अथ है , बात
भरोसे यो नहीं मालू म पड़ती, ले िकन आदमी भरोसे यो मालू म पड़ता है । बात तो ऐसी लगती है िक कुछ गड़बड़
है । ले िकन आदमी ऐसा लगता है िक इससे ठीक आदमी कहां िमले गा! तब ा पैदा होती है ।

अब कृ जो कह रहे ह अजु न से, वह बात तो िबलकुल ऐसी लगती है िक जब कोई दु ख िवचिलत न कर सकेगा,
सं सार से सब सं सग टू ट जाएगा; पीड़ा-दु ख, सबके पार उठ जाएगा मन। ऐसा मालू म तो नहीं पड़ता। जरा-सा कां टा
चु भता है , तो भी सं सग टू टता नहीं मालू म पड़ता। इस िवराट सं सार से सं सग कैसे टू ट जाएगा? कैसे इसके पार हो
जाएं गे दु ख के? दु ख के पार होना असंभव मालू म पड़ता है । ले िकन कृ आदमी भरोसे के मालू म पड़ते ह। वे जो
कह रहे ह, जानकर ही कह रहे होंगे।

हे रगेल और क गया, एक साल और। ले िकन तीन साल! उसके ब े, उसकी प ी वहां से पुकार करने लगे िक अब
ब त हो गया, तीन साल ब त हो गए ान के िलए! वह भी जमन प ी थी, तीन साल की। िहं दु ानी होती, तो तीन
िदन मु ल था। तीन साल ब त व होता है । वह िच ाने लगी िक अब आ जाओ। अब यह कब तक और! अभी
वह िलखता जा रहा है िक अभी तो शु आत भी नहीं ई। गु कहता है िक नाट ईवे न िद िबगिनंग, अभी तो शु आत
भी नहीं ई। और तू बु लाने के पीछे पड़ी है !

आ खर जाना पड़ा। तो उसने एक िदन गु को कहा िक अब म लौट जाता ं , यह जानते ए िक आप जो कहते ह,


ठीक ही कहते होंगे, ोंिक आप इतने ठीक ह। यह जानते ए िक इन तीन वष म िबना जाने भी मेरे भीतर ां ित
घिटत हो गई है । और अभी आप कहते ह िक िदस इज़ नाट ईवे न िद िबगिनंग, यह अभी शु आत भी नहीं है । और म
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तो इतने आनंद से भर गया ं । अभी शु आत भी नहीं है , तो म सोचता ं िक जब अंत होता होगा, तो िकस परम
आनंद को उपल होते होंगे! ले िकन दु खी ं िक म आपको तृ न कर पाया; म असफल जा रहा ं । म इस तरह
तीर न चला पाया िक म न मौजू द र ं और तीर चल जाए। तो म कल चला जाता ं ।

गु ने कहा िक तु म चले जाओ। जाने के पहले कल सु बह मुझसे िमलते जाना।

दोपहर उसका हवाई जहाज जाएगा, वह सु बह गु के पास पुनः गया। आज कोई उसे तीर चलाना नहीं है । वह अपनी
ंचा, अपने तीर, सब घर पर ही फक गया है । आज चलाना नहीं है ; आज तो िसफ गु से िवदा ले ले नी है । वह
जाकर बै ठ गया है ।

गु िकसी दू सरे िश को तीर चलाना िसखा रहा है । बच पर वह बै ठ गया है । गु ने तीर उठाया है , ंचा पर
चढ़ाया है , तीर चला। और हे रगे ल ने पहली दफा दे खा िक गु मौजू द नहीं है , तीर चल रहा है । मौजू द नहीं है का
मतलब यह नहीं िक वहां नहीं है, वहां है । ले िकन उसके हाव-भाव म कहीं भी कोई एफट, कहीं कोई यास, ऐसा नहीं
लगता िक हाथ तीर को उठा रहे ह, ब ऐसा लगता है िक तीर हाथ को उठवा रहा है । ऐसा नहीं लगता िक ं चा
को हाथ खींच रहे ह, ब ऐसा लगता है, चूं िक ंचा खंच रही है, इसिलए हाथ खंच रहे ह। तीर चल गया, ऐसा
नहीं लगता िक उसने िकसी िनशाने के िलए भे जा है , ब ऐसा लगता है िक िनशाने ने तीर को अपनी तरफ खींच
िलया है ।

उठा। दौड़कर गु के चरणों म िगर पड़ा। हाथ से ंचा ले ली; तीर उठाया और चलाया। गु ने उसकी पीठ
थपथपाई और कहा िक आज! आज तू जीत गया। आज तू ने इस तरह तीर चलाया िक तू मौजू द नहीं है । यही ान का
ण है ।

हे रगेल ने कहा, ले िकन आज तक यह ों न हो पाया? तो उसके गु ने कहा, ोंिक तू ज ी म था। आज तू कोई


ज ी म नहीं था। ोंिक तू करना चाहता था। आज करने का कोई सवाल न था। ोंिक अब तक तू चाहता था,
सफल हो जाऊं। आज सफलता-असफलता की कोई बात न थी। तू बै ठा आ था, ज वे िटं ग, िसफ ती ा कर रहा
था।

अथक म का अथ है , ती ा की अनंत मता। कब घटना घटे गी, नहीं कहा जा सकता। कब घटे गी? ण म घट
सकती है ; और अनंत ज ों म न घटे । कोई ेिड े बल नहीं है मामला। कोई घोषणा नहीं कर सकता िक इतने िदन
म घट जाएगी। और िजस बात की घोषणा की जा सके, जानना िक वह ु है और आदमी की घोषणाओं के भीतर है ।
परमा ा आदमी की घोषणाओं के बाहर है ।

हम िसफ ती ा कर सकते ह। य कर सकते ह और ती ा कर सकते ह। और ऊब गए, तो खो जाएं गे । और


ऊब पकड़े गी। ऊब बु री तरह पकड़ती है । सच तो यह है िक िजतने लोग मंिदरों और म दों म आपको ऊबे ए
िदखाई पड़गे, उतने कहीं न िदखाई पड़गे । मधुशालाओं म भी उनके चे हरों पर थोड़ी रौनक िदखेगी, मंिदरों म वह भी
नहीं िदखे गी। होटलों म बै ठकर वे िजतने ताजे िदखाई पड़ते ह, उतने भी म दों और गु ारों म िदखाई नहीं पड़ते ।
ऊबे ए ह! ज ाइयां ले रहे ह! सो रहे ह!

मने सु ना है िक एक चच म एक पादरी बोल रहा है । एक आदमी जोर से घु राटे ले ने लगा, सो गया है । पादरी उसके
पास आया और कहा िक भाई जान, थोड़ा धीरे से घु राटे ल, ोंिक दू सरे लोगों की नींद न टू ट जाए! पूरा चच ही सो
रहा है ।

मंिदरों म लोग सो रहे ह। धमसभाओं म लोग सो रहे ह। ऊबे ए ह; ज ाइयां ले रहे ह। कैसे, िफर कैसे होगा?

कृ कहते ह, अथक! िबना ऊबे म करना पड़े योग का।


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हां, एक ही भरोसे की बात कही जा सकती है िक वे जो कह रहे ह, ा पर जीवन की सारी खोज पूरी हो जाती है ।
और ा पर िफर कभी ऊब नहीं आती।

और ान रहे, य म ऊब आ जाए तो हजा नहीं, ा म ऊब नहीं आनी चािहए। अ था जीवनभर का म थ


गया। और इस सं सार म य म तो बड़ा रस रहता है और पा ले ने पर कुछ हाथ नहीं लगता, और ऊब आ जाती है ।

ले िकन यह बात ट पर ही ली जा सकती है, भरोसे पर ही। यह ा का ही सू है ।

पर कृ िकसी को धोखा िकसिलए दगे ? कोई योजन तो नहीं है । बु िकसिलए लोगों को धोखा दगे? महावीर
िकसिलए लोगों को धोखा दगे? ाइ या मोह द िकसिलए लोगों को धोखा दगे? कोई भी तो योजन नहीं है । िफर
एकाध आदमी धोखा दे ता, तो भी ठीक था। इस पृ ी पर न मालू म िकतने लोग! िकसिलए धोखा दगे?

और िफर मजे की बात यह है िक ये लोग अगर धोखा दे ने वाले लोग होते, तो इतनी शां ित और इतने आनंद और
इतनी मौज और इतने रस म नहीं जी सकते थे । कोई धोखा दे ने वाला जीता आ िदखाई नहीं पड़ता। ये जो कह रहे
ह, कुछ जानकर कह रहे ह। लेिकन इस जानने के िलए आपको कुछ करना पड़े गा। अगर आप सोचते ह िक सु नकर,
पढ़कर, ृित से, समझ से काम हो जाएगा, तो कुछ भी काम नहीं होगा। कुछ करना पड़े गा।

और ान रहे, म का एक कदम भी उतने दू र ले जाता है , िजतने िवचार के हजार कदम भी नहीं ले जाते । िवचार म
आप वही ं खड़े रहते ह। िसफ हवा म पैर उठाते रहते ह; कहीं जाते नहीं। म का एक कदम भी दू र ले जाता है । और
एक-एक कदम कोई चले, तो लंबी से लं बी या ा पूरी हो जाती है ।

ले िकन इस बड़ी या ा म सबसे बड़ी बाधा आपकी ऊब से पड़े गी, आपके घबड़ा जाने से पड़े गी, िक पता नहीं, पता
नहीं कुछ होगा िक नहीं होगा! आपकी ती ा ज ी ही थक जाएगी। उससे सबसे बड़ी किठनाई पड़े गी। साधक के
िलए ऊब सबसे बड़ी बाधा है ।

यह अगर रण रहे , तो जब भी आप ऊब जाएं , तब थोड़े सजग होकर दे खना िक ऊब मन को पकड़ रही है, तु ड़वा
दे गी सारी व था को। तो ऊब से बचना। और जब ऊब पकड़े तो और जोर से म करना, तो ऊब की जो ताकत है ,
वह भी म म कनवट होती है, वह भी म म लग जाती है ।

ऊबने म भी ताकत खच होती है । ऊबने म भी ताकत खच होती है; उस ताकत को भी म म लगा दे ना। जब ऊब
पकड़े मन को, तो और ते जी से म करना। अगर ऊब पकड़े मन को, तो बै ठकर ान मत करना, दौड़कर ान
करना।

बु दो तरह का ान करवाते थे िभ ुओं को। कहते थे, एक घं टा बै ठकर करो; और जै से ही तु लगे िक ऊब


पकड़ी, िक दौड़कर करो। जानते थे िक ऊब तो पकड़े गी ही। तो पहले बै ठकर करो, िफर चलकर करो।

अगर आप कभी बु गया गए हों, तो आज भी वे प र लगे ए ह, जहां बु घं टों चलते रहते थे । बोिधवृ के नीचे
बै ठते, िफर चलते । िफर बै ठते, िफर चलते । िफर बैठते, िफर चलते ।

आज भी बमा, थाईलड जै से मु ों म, जहां बु के ान-क अभी भी थोड़ा-ब त काम करते ह, वहां िभ ु एक घं टा


बै ठकर ान करे गा, िफर दू सरे घं टे चले गा। िफर बै ठकर ान करे गा, िफर तीसरे घं टे चलेगा। िफर बै ठकर ान
करे गा। जब भी बै ठकर दे खेगा िक जरा-सी ऊब का ण आया, फौरन उठकर चलने लगे गा। ऊबे गा नहीं। ऊब नहीं
आने दे गा!

और अगर आपने तय कर िलया है िक ऊब को नहीं आने दगे, तो आप थोड़े ही िदन म पाएं गे िक आप ऊब का


अित मण कर गए। अब आप अथक योग म वेश कर सकते ह।
182

संक भवा ामां ा सवानशे षतः।


मनसैवे य ामं िविनय सम तः।। 24।।
शनैः शनै परमेद्बु या धृ ितगृहीतया।
आ सं थं मनः कृ ा न िकंिचदिप िच येत्।। 25।।

इसिलए मनु को चािहए िक सं क से उ होने वाली सं पूण कामनाओं को िनःशे षता से अथात वासना और
आस सिहत ागकर और मन के ारा इं ि यों के समु दाय को सब ओर से ही अ ी कार वश म करके, म-
म से अ ास करता आ उपरामता को ा होवे तथा धैययु बु ारा मन को परमा ा म थत करके
परमा ा के िसवाय और कुछ भी िचंतन न करे ।

परमा ा के िसवाय और कुछ भी िचंतन न करे , यही इस सू का सार है । शे ष सब कृ ने पुनः दोहराया है ।


कामनाओं को वश म करके, मन के पार होकर, इं ि यों के अतीत उठकर, सं क -िवक से दू र होकर–सब जो
उ ोंने पहले कहा है, पुनः दोहराया है । और अंत म, सदा परमा ा के िचंतन म लीन रहे ।

दो बात। एक, कृ ों बार-बार वही-वही बात दोहराते ह? इतना रपीटीशन, इतनी पुन ों है ? बु ने तो
इतने वचन दोहराए ह िक बु के जो नए वचनों के सं ह कािशत ए ह, उनको सं पािदत करने वाले लोगों को बड़ी
किठनाई पड़ी। ोंिक अगर बु के ही िहसाब से पूरे वचन कहे जाएं , तो सं ह कम से कम दस गु ना बड़ा होगा।
इतनी बार वचन दोहराए ह िक िफर सं पािदत करने वाले लोग वचन िलख दे ते ह और बाद म िड ो िनशान लगाते जाते
ह िक वही, जो ऊपर कहा है , िफर कहा। वही, जो ऊपर कहा है , िफर कहा। दस गु ना छं टाव करना पड़ता है ।

ले िकन सं पादन करने वाले लोगों से बु ादा बु मान थे । इतने दोहराने की बात ा हो सकती है ? इस दोहराने
का…कृ भी ा गीता म कुछ सू दोहराए चले जा रहे ह। िफर, और िफर, और िफर। बात ा है ? अजु न बहरा
है ?

होना चािहए। सभी ोता होते ह। सु नता आ मालू म पड़ता है, शायद सु न नहीं पाता। िबलकुल िदखाई पड़ता है िक
सु न रहा है , ले िकन कृ को िदखाई पड़ता होगा उसके चे हरे पर िक नहीं सु ना। िफर दोहराना पड़ता है ।

ये िकताब िलखी गई नहीं ह, बोली गई ह। दु िनया म जो भी े तम स ह, वे िलखे ए नहीं ह, बोले ए ह। वह चाहे


कुरान हो, िक चाहे बाइिबल, िक चाहे गीता, चाहे ध पद। जो भी े तम स इस जगत म कहे गए ह, वे बोले गए
स ह। वे िकसी के िलए एडे ड ह। कोई सामने मौजू द है , िजसकी आं खों म कृ दे ख रहे ह िक कहा मने ज र,
ले िकन सु ना नहीं।

जीसस तो ब त जगह बाइिबल म कहते ह–ब त जगह कहते ह–कान ह तु ारे पास, ले िकन सु न सकोगे ा? आं ख
है तु ारे पास, ले िकन दे ख सकोगे ा? बार-बार कहते ह िक िजनके पास कान हों, वे सु न ल। िजनके पास आं ख हो,
वे दे ख ल। तो ा अंधों और बहरों के बीच बोलते होंगे?

नहीं; इतने अंधे और बहरे तो कहीं भी नहीं खोजे जा सकते िक सारी बाइिबल उ ीं के िलए उपदे श दी जाए। हमारे
जै से ही लोगों के बीच बोल रहे होंगे, िजनके कान भी ठीक मालू म पड़ते ह, आं ख भी ठीक मालू म पड़ती है, िफर भी
कहीं कोई बात चूक जाती है । तो कृ और बु जै से आदमी को दोहराना पड़ता है । बार-बार वही बात दोहरानी
पड़ती है । िफर नए कोण से वही बात कहनी पड़ती है । शायद सु न ली जाए।

और एक कारण है । सु नने के भी ण ह, मोमट् स। नहीं कहा जा सकता िक िकस ण आपकी चे तना ार दे दे गी।
िकस ण आप उस थित म होंगे िक आपके भीतर श वेश कर जाए, नहीं कहा जा सकता।

अमे रका म एक ब त बड़ा करोड़पित, अरबपित था, रथचाइ । उससे िकसी नए यु वक ने, सं पि के तलाशी ने
पूछा िक आपकी सफलता का रह ा है? तो रथचाइ ने कहा िक मेरी सफलता का एक ही रह है िक म
िकसी अवसर को चू कता नहीं, छलां ग मारकर अवसर को पकड़ ले ता ं । पर, उस आदमी ने कहा िक यह पता कैसे
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चलता है िक यह अवसर है? और जब तक पता चलता है , तब तक तो अवसर हाथ से िनकल जाता है । तो छलां ग
मारने का मौका कैसे िमलता है ? रथचाइ ने कहा िक म खड़ा रहता ही नहीं; म तो छलां ग लगाता ही रहता ं । जब
अवसर आता है , उस पर सवार हो जाता ं । म छलां ग लगाता ही रहता ं । अवसर के िलए का नहीं रहता िक जब
आएगा, तब छलां ग लगाऊंगा। एक से कड चू के, िक गए। हम तो छलां ग लगाते रहते ह। अवसर आया, हम सवार हो
जाते ह।

ठीक ऐसे ही की चे तना म कोई ण होते ह, जब ार खुलता है ।

तो कृ जै से तो कहे चले जाते ह स को। अजु न के चारों तरफ गुं जाते चले जाते ह स को। पता नहीं कब,
िकस ण म अजु न की चे तना उस िबं दु पर आ जाए, उस टयू िनं ग पर, जहां आवाज सु नाई पड़ जाए और स भीतर
वे श कर जाए! इसिलए इतना दोहराना पड़ता है ।

पर दोहराने म भी हर बार वे कोई एक नई बात साथ म जोड़ते चले जाते ह। हर बार कोई एक नया स , कोई एक
नया इं िगत। नहीं तो अजु न भी उनसे कहे गा िक आप ा वही-वही बात दोहराते ह!

मजा यह है िक जो िबलकुल नहीं सु नते , वे भी इतना तो समझ ही ले ते ह िक बात दोहराई जा रही है । िजनकी समझ म
कुछ भी नहीं आता, वे भी श तो सु न ही ले ते ह। उनको यह तो पता चल ही जाता है िक आपने यही बात पहले कही
थी, वही बात आप अब भी कह रहे ह। श पुन हो रहे ह, यह जानने के िलए समझ आव क नहीं है , केवल
ृित काफी है ।

तो इसिलए कृ या बु िफर वही श दोहराते ह, ले िकन िफर कुछ नया इशारा जोड़ते ह। शायद उस नए इशारे
से कुंजी पकड़ म आ जाए और अजु न का ताला खुल जाए। इसम नया श जोड़ते ह, भु का सतत िचं तन।

इसम दो बात समझने जै सी ह। एक तो, भु का।

िजसे हम नहीं जानते, उसका िचं तन कैसे करगे? िजसे हम जानते ही नहीं, उसका हम िचं तन कैसे करगे? ा करगे
िचंतन?

दू सरी बात, िचंतन का अथ?

िचंतन का अथ िवचार नहीं है । ोंिक िवचार तो उसका ही होता है, जो ात है , नोन है । अ ात का कोई िवचार नहीं
होता।

िचंतन का कुछ और अथ है । वह समझ म आ जाए तो भु का िचंतन खयाल म आ जाए। समझ, आपको ास लगी
है । आप प ीस काम म लगे रह, तो भी ास का िचं तन भीतर चलता रहे गा। िवचार नहीं। िवचार तो आप दू सरा कर
रहे ह। हो सकता है , िहसाब लगा रहे ह, खाता-बही कर रहे ह, िकसी से बात कर रहे ह। ले िकन भीतर एक अनुधारा,
एक अनुिचंतन, एक बारीक अंडर करट, भीतर ास की चलती रहे गी। कोई भीतर बार-बार कहता रहे गा, ास लगी
है , ास लगी है, ास लगी है ।

यह म आपसे कह रहा ं , इसिलए श का उपयोग कर रहा ं । वह जो आपके भीतर है , वह श का उपयोग नहीं


करे गा। वह तो ास की ही चोट करता रहे गा िक ास लगी है । श का उपयोग नहीं करे गा, वह यह नहीं कहे गा
िक ास लगी है । ास ही लगती रहे गी। फक आप समझ रहे ह?

अगर आप कह िक ास लगी है , ास लगी है, ास लगी है , तो यह िवचार आ। और अगर ास ही लगती रहे;


सब काम जारी रहे , िवचार जारी रहे और भीतर एक खटक, एक चोट, ार पर कोई कुंडी खटखटाता रहे, श म
नहीं, अनुभव म; ास, ास भीतर उठती रहे, तो िचंतन आ।
184

भु का िवचार तो हम कर ही नहीं सकते । ले िकन भु की ास हम सबके भीतर है । हालां िक हमम से ब त कम


लोगों ने पहचाना है िक भु की ास हमारे भीतर है । ले िकन हम सबके भीतर है । कोई आदमी भु- ास के िबना
पैदा ही नहीं होता, हो नहीं सकता।

हां, यह हो सकता है िक वह अपनी भु- ास की ा ा कुछ और कर ले । और वह भु- ास की ा ा करके


कुछ और खोजने िनकल जाए। िमस-इं टरि टे शन हो सकता है; ले िकन ास सदा मौजू द रहती है ।

अगर एक आदमी धन की तलाश म जाता है, तो ब त ठीक से समझ तो भी वह भु की तलाश म ही जाता है , गलत
िदशा म। ोंिक धन से लगता है , भु ता िमल जाएगी। धन से लगता है, भु ता िमल जाएगी। ब त होगा धन, तो
दीनता न रह जाएगी; भु हो जाएं गे; मालिकयत हो जाएगी।

एक आदमी पद की तलाश करता है िक रा पित हो जाऊं; रा पित के िसं हासन पर बै ठ जाऊं। गलत ा ा कर
रहा है वह। मन म तो परम पद पर प ंचने की आकां ा है िक उस पद पर प ं च जाऊं, िजसके ऊपर कोई प ं चने
की जगह न रह जाए। ले िकन वह यहीं की छोटी-बड़ी कुिसयां चढ़ रहा है ! बड़ी से बड़ी कुस पर खड़े होकर भी
पाएगा, कहीं नहीं प ं चा। िसफ एक जगह प ंचा है , जहां से अब कोई िगराएगा–िसफ एक जगह प ंचा है । ोंिक
नीचे दू सरे चढ़ रहे ह। वे टां ग खींच रहे ह।

उसको वे पािलिट कहते ह; या और कुछ नाम द। एक-दू सरे की टां ग को खींचने का नाम पािलिट ! और िजतने
ऊपर आप गए, उतने ादा लोग आपकी टां ग खींचगे । ोंिक आप अकेले रह जाएं गे और चढ़ने वाले ब त हो
जाएं गे ।

लाओ े ने कहा है िक हमको कोई नीचे कभी न उतार पाया, ोंिक हमने कहीं चढ़ने की कोिशश ही नहीं की।

अगर ऐसा कर, तो ठीक है । नहीं तो कोई न कोई खींचेगा। ले िकन वह जो पद की आकां ा है, वह जो पावर की,
श की आकां ा है , वह भी व ुतः भु ता की आकां ा है ।

नेपोिलयन से कोई पूछ रहा था िक कानून की ा ा ा है ? ाट इज़ िद ला? तो नेपोिलयन ने कहा, आई एम िद


ला, म ं कानून।

अब ऐसा िसफ भु कह सकता है , परमा ा, िक म ं कानून। नेपोिलयन कह रहा है! और उसे पता नहीं िक दय
की धड़कन अभी बं द हो जाए, तो आई एम िद ला कुछ काम न करे ; म कानून ं , कुछ काम न करे । और िजस िदन
उसने यह बात कही, उसके थोड़े ही िदन बाद वह हार गया। और बड़ी छोटी-सी चीज से हारा, िब यों से!

नेपोिलयन छोटा ब ा था, तो एक छः महीने का ब ा था जब नेपोिलयन, तो एक िबलाव ने जं गली िबलाव ने उसकी


छाती पर पंजा मार िदया था। नौकरानी इधर-उधर हट गई थी, जै सा िक नौकरािनयां हट जाती ह। िब ी ने पंजा मार
िदया। भागी नौकरानी आई। िब ी तो हट गई। ले िकन छः महीने के ब े पर िब ी का पंजा बै ठ गया। वह जो बाद
म कहता था, आई एम िद ला, वह िसफ िब ी का पंजा था उसकी छाती म, कोई कानून नहीं था। िफर वह बहादु र
आदमी िस आ। शे र से लड़ सकता था, ले िकन िब ी से डरता था। वह छः महीने म जो कानून बनकर बै ठ गई
थी िब ी! िब ी को दे खता था तो छः महीने के ब े की है िसयत हो जाती थी उसकी, र े स कर जाता। कभी हारा
नहीं था।

ले िकन उसके दु न ने, ने न ने, जो उसके खलाफ लड़ने आया था, पता लगा िलया िक उसकी कमजोरी िब ी
है । तो स र िब यां ने न अपनी यु की फौज के सामने बांधकर लाया। और जब नेपोिलयन ने िब यां दे खीं, तो
जै सा अजु न ने कृ से कहा िक हे कृ , मेरा गां डीव धनुष िशिथल हो गया; मेरे गात िशिथल ए जाते ह, पसीना छूट
रहा है । अब मेरी िह त नहीं होती। ऐसा ही नेपोिलयन ने अपने से नापित से कहा िक तू स ाल। िब यों को
दे खकर मेरे गात िशिथल ए जाते ह! हार गया उसी सां झ।
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और िजसने पं ह िदन पहले कहा था, आई एम िद ला, वह पं ह िदन बाद हे लेना के ीप पर कैद था कारागृ ह म।
सु बह घू मने िनकला था। छोटा-सा ीप। ीप पर उसको मु रखा गया था, ोंिक छोटे ीप के बाहर भाग नहीं
सकता था। ीप पर कारागृ ह था, पूरा ीप ही उसके िलए कारागृ ह था। सु बह घू मने िनकला था। छोटी-सी पगडं डी है
जं गल की और एक घास वाली औरत एक बड़ा घास का ग र िलए उस तरफ से आती थी। नेपोिलयन के साथ एक
िचिक क रखा गया था, ोंिक नेपोिलयन जो िक कभी भी बीमार नहीं पड़ा था, हारते ही इस बु री तरह बीमार पड़
गया, िजसका कोई िहसाब नहीं।

सभी राजनीित पड़ जाते ह, हारते ही! ादा िदन िजं दगी नहीं रहती िफर। िफर मौत बड़ी ज ी करीब आ जाती है ।

तो िचिक क साथ था। दोनों चल रहे थे । िचिक क तो भू ल गया, िच ाकर जोर से कहा िक ओ घिसया रन! रा ा
छोड़। ले िकन घिसया रन ों रा ा छोड़े ? हो कौन तु म, िजसके िलए रा ा छोड़े ! घिसया रन तो बढ़ी चली आई। तब
नेपोिलयन को खयाल आया। नेपोिलयन रा े से नीचे उतर गया, डा र को भी नीचे उतार िलया और उसने कहा िक
वे िदन चले गए, जब हम पहाड़ों से कहते थे, रा ा छोड़ दो और पहाड़ रा ा छोड़ दे ते थे । अब घास वाली औरत
रा ा नहीं छोड़े गी। नीचे उतरकर िकनारे खड़ा हो गया। पं ह िदन पहले उस आदमी ने कहा था, आई एम िद ला, म
ं कानून, म ं िनयम।

असल म नेपोिलयन की या िसकंदर की या ा भी इसी आशा म है िक एक जगह िमल जाए, जहां जाकर म कह सकूं,
म ं भु । पद की हो, िक धन की हो, िक यश की हो, सारी या ा िमस-इं टरि टे शन है , उस ास की गलत ा ा
है , जो हमारे भीतर भु के िलए है । वह सबके भीतर है ।

बस, इस गलत ा ा को तोड़ दे ने की ज रत है और आपके भीतर िचंतन चलने लगे गा चौबीस घं टे। चाहे दु कान
पर बै ठे होंगे, तो भीतर कोई भु की ास सरकने लगेगी। चाहे घर पर होंगे, चाहे काम करते होंगे, चाहे िव ाम करते
होंगे, चाहे जागते होंगे, चाहे सो गए होंगे, भीतर एक खटक चलती ही रहे गी।

उस खटक का नाम िचं तन है । उस खटक का, िक भु ए िबना कोई उपाय नहीं, िक भु से एक ए िबना कोई
उपाय नहीं, िक भु की गोद म पड़े िबना कोई उपाय नहीं, िक भु की शरण म गए िबना कोई उपाय नहीं, िक भु
के साथ लीन ए िबना कोई उपाय नहीं।

ऐसी जब ास–श नहीं, ऐसी ास–जब भीतर सरकने लगती है , तो उसका नाम भु का सतत िचं तन है ।

कृ कहते ह, ऐसे सतत िचंतन को जो उपल होता है , सम वासनाओं को ीण करके और सम इं ि यों के


पार उठकर, परम है सौभा उसका, वह योगीजन उस सबको पा ले ता है , जो पा ले ने यो है ।

आज इतना ही। िफर कल सु बह।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


मन साधन बन जाए—(अ ाय-6) वचन—बारहवां

यतो यतो िन रित मन ंचलम थरम्।


तत तो िनय ैतदा ेव वशं नये त्।। 26।।
परं तु िजसका मन वश म नहीं आ हो, उसको चािहए िक यह थर न रहने वाला और चंचल मन िजस-िजस कारण
से सां सा रक पदाथ म िवचरता है , उसे उससे रोककर बारं बार परमा ा म ही िनरोध करे ।

मन चं चल है । वही उसकी उपयोिगता भी है, वही उसका खतरा भी। मन चंचल होगा ही, ोंिक मन का योजन ही
ऐसा है िक उसे चंचल होना पड़े । मन की चंचलता ठीक वै सी है , जै से िक हवा का ख दे खने के िलए कोई घर के
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ऊपर प ी का पंख लगा दे । अगर पंख चंचल न हो, तो हवा का ख न बता पाए। हवा िजस तरफ बहे , पंख को उसी
तरफ घू म जाना चािहए, तो ही वह खबर दे पाएगा िक हवा का ख ा है ।

मन, मनु के म चारों तरफ जो अंतर हो रहे ह, उनकी खबर दे ने का यं है । इसिलए वह चंचल होगा ही।
चंचल होगा, तो ही अथपूण है , अ था उसका कोई अथ नहीं है । आपके बाहर सद बदलकर गम हो गई है । मन
अगर खबर न दे , तो जीवन असंभव है । रा े पर कां टा पड़ा है, मन अगर खबर न दे ; पैर म चोट लग गई है , मन
अगर खबर न दे ; िम श ु हो गया है , मन अगर खबर न दे ; भू ख लगी है , मन अगर खबर न दे –तो जीवन असंभव है ।

तो मन को तो ितपल खबर दे नी पड़े गी, हजार तरह की। और वह हजार तरह की खबर तभी दे सकता है , जब
े क छोटी-सी घटना से चंचल हो, िवचिलत हो–तभी खबर दे पाएगा।

तो मन का योजन ही यही है िक वह आपके जीवन को अ म रखने का यं है । और अ ितपल बदल रहा


है । एक ण भी वही नहीं है , जो एक ण पहले था। सब कुछ बदलता जा रहा है । हर घड़ी, हर ण, चारों तरफ
वाह है प रवतन का।

इस प रवतन की आपको खबर होनी चािहए, अ था आप जी न सकगे । और इस प रवतन की जो खबर दे गा,


उसको हवा का ख बताने वाले पंख की तरह कंपते रहना पड़े गा, तैयार रहना पड़े गा िक हवा कब बदल जाए, पंख
उसके साथ ही बदल जाए। णभर की दे री, िक जीवन खतरे म पड़ सकता है ।

तो मन की उपादे यता, यू िटिलटी ही यही है । मन है ही इसिलए िक वह जीवन म हो रहे प रवतन की सू चना आपको
ितपल दे ता रहे । यह उसका योजन है । ले िकन यहीं उसका खतरा भी शु होता है । ोंिक हम इसी मन से
परमा ा को भी जानना चाहते ह, िजस मन से सं सार जाना जाता है । तब भू ल हो जाती है । ोंिक सं सार है ितपल
प रवतन, और परमा ा है सनातन, शा त। वह कभी बदलता नहीं। वह सदा वही है , जो है । और सं सार कभी वही
नहीं है , जो णभर पहले था। सं सार तो बहती ई गं गा है , जहां एक ण भी कुछ ठहरा आ नहीं है । है,
वाह है । और परमा ा सदा वही है, जहां कभी कुछ कणभर भी नहीं बदला है ।

तो मन सं सार को जानने म तो िबलकुल ही समथ और सहयोगी है , परमा ा को जानने म िबलकुल थ और बाधा


है । अगर इसी मन से परमा ा को जानना चाहा, तो आप कभी न जान पाएं गे । कभी कोई उपाय इससे परमा ा को
जानने का नहीं है ।

इस बात को ठीक से समझ ल। मन के दु न हो जाने की कोई ज रत नहीं है, िसफ मन का योजन समझ ले ने की
ज रत है ।

मन का योजन ही जो चंचल है उसको जानना है , इसिलए मन चंचल है । मन का योजन ही नहीं है उसको जानना,
जो शा त है , िन है । इसिलए शा त और िन की तरफ मन का उपयोग करना पागलपन है । गलत, असंगत
आयाम है परमा ा मन के िलए। या परमा ा के िलए मन असंगत िविध है ।

इसिलए जो भी परमा ा की तरफ, स की तरफ, िन की तरफ, अप रवतनीय की तरफ, शा त की तरफ,


इटरनल की तरफ या ा करना चाहता है , उसे मन की चं चलता को छोड़कर, मन को ठहराकर ही गित करनी पड़े गी।

इसका यह भी मतलब नहीं है िक आप िबलकुल जड़ हो जाएं । इसका यह भी मतलब नहीं है िक मन आपका प र


हो जाए। इसका इतना ही मतलब है िक मन को आन और आफ करने की कला आपके पास होनी चािहए। जब आप
चाह, तो मन की गित शू की जा सके; और जब आप चाह, तो मन की गित पूरी की जा सके। इसकी गु लामी न रह
जाए, इसकी परवशता न रह जाए; इसके आप मािलक हो जाएं िक आप बटन दबाएं और मन काम बं द कर दे , तािक
आप शा त को जान सक। आप बटन दबाएं और मन सि य हो जाए, तािक आप सं सार म जी सक।
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और अ दोहरा है । बाहर की तरफ सं सार है , भीतर की तरफ परमा ा है । इसिलए अ र एक भू ल हो जाने का


डर है िक जो लोग परमा ा की तरफ जाते ह, वे मन को इस भां ित बं द कर दे ते ह िक सं सार से टू ट जाते ह। वह वही
की वही भू ल हो गई, जो पहले हो रही थी, िक इस मन को इतना गितमान कर ले ते ह िक उस पर काबू नहीं रह जाता
और परमा ा से टू ट जाते ह।

स क! स क वह है , कृ कह रहे ह, जो मन का मािलक हो जाए। मालिकयत का मतलब, मन को मार


डालना नहीं है । मरी ई चीज के मािलक होने का कोई मतलब नहीं होता। मरी ई चीज के मािलक होने का ा
मतलब होता है? दु न को मार डाला और उसकी छाती पर बै ठ गए, उसका ा मतलब? मृत चीज की मालिकयत
का कोई मतलब नहीं होता है ; जीिवत चीज की मालिकयत का कुछ मतलब होता है ।

मालिकयत का इसिलए अथ, मन को मार डालना नहीं है । मालिकयत का अथ, मन को े ा से गितमान करना या
गितहीन कर दे ने की मता है – े ा से, जब चाह। जै से कोई आदमी अपने घर के बाहर आ जाता है । जब चाहता
है , घर के भीतर चला जाता है । बाहर आ जाता है, तो बाहर ऐसा नहीं अटक जाता िक अब कहे िक म घर के भीतर
कैसे जाऊं! भीतर चला जाता है , तो अटक नहीं जाता। यह नहीं कहता िक अब भीतर आ गया, तो घर के बाहर कैसे
जाऊं!

घर के भीतर और बाहर जै सी सहज गित आप करते ह, ऐसे ही यं के बाहर और भीतर सहज गित े ा से सं भव
हो जाए, तो मन की मालिकयत है । तो कहा जाएगा, मन िन आ। ले िकन मन पूरी तरह जीिवत है । और जब
उसकी ज रत हो, तब उसको ु रणा दी जा सकती है । और उसकी ज रत चौबीस घं टे पड़े गी। अ सं सार म
है । मन की ज रत पड़े गी। ले िकन मन आपके हाथ म एक साधन हो जाए, तो आप मािलक हो गए।

अभी तो हम मन के हाथ म एक साधन ह। मन चलता है ; हम उससे कहते ह, कृपा करो, मत चलो! वह सु नता ही
नहीं। वह चलता ही चला जाता है ! हमारे मन की हालत ऐसी है , जै से िकसी आदमी के पैरों की हालत हो जाए। उसको
चलना नहीं है, ले िकन पैर उसको कह िक हम तो चलगे! उसको कहीं जाना नहीं है , उसे कुस पर बै ठकर आराम
करना है, ले िकन पैर ह िक चले जा रहे ह। तो उस आदमी को हम िवि कहगे । हम कहगे, इस आदमी के पैर
इसके मािलक हो गए। यह कहता है, को। ले िकन पैर नहीं कते । जब यह कभी कहता है , चलो! तब पैर कहते ह,
नहीं चलते; कगे ।

नहीं, ले िकन पैर के आप मािलक ह। जब आप चलना चाहते ह, पैर चलते ह। जब आप कना चाहते ह, पैर िथर हो
जाते ह। ठीक ऐसी ही मालिकयत मन की भी होनी चािहए। मन भी एक उपकरण है, जै से पैर एक उपकरण है । मन
भी एक इं मट है ।

ले िकन आप रात सोने को िब र पर पड़े ह। आप मन से कहते ह िक अब चुप हो जाओ; अब बं द हो जाओ; मुझे सो


जाने दो। ले िकन वह चले चला जा रहा है ! वह आपकी सु नता ही नहीं। इसम मन का कोई कसू र नहीं है , ान रखना।
नहीं तो आप सोच िक अरे , यह मन ही ऐसी चीज है । मन का इसम कोई कसू र नहीं है । इसम मन का कोई भी कसू र
नहीं है , इसिलए जो मन को गािलयां दे ते रहते ह, वे िनपट नासमझ ह।

आपने ही मन की ऐसी व था कर रखी है । आपने ही मन को जीवनभर इस तरह का िश ण िदया है । आपने ही


कभी मन पर अपनी मालिकयत की घोषणा नहीं की। आपने कभी मन को बं द करने का कोई उपाय नहीं िकया।
आप अपने मन को चलाते ही रहे ह। आप चलाते ही रहे ह अकारण-कारण। मन को चलाते ही रहे ह। मन का टै क
तै यार हो गया है ।

मन ज ों-ज ों से चलने का आदी हो गया है । ठहरने की उसे कोई खबर ही नहीं रही। उसे पता ही नहीं है िक
ठहरना भी होता है । और इसिलए जब आप अचानक एक िदन मन से कहते ह, ठहर जाओ, तब वह नहीं ठहरता, तो
इसम उसका कसू र नहीं है । और आपके कहने से नहीं ठहरे गा।
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सच तो यह है िक आप िजतने घबड़ाकर कहते ह िक ठहर जाओ, वह भी मन की ही गित है । आपका घबड़ाकर


कहना िक ठहर जाओ, मन की ही गित है । और आपके कहने से नहीं ठहरे गा, आपको कला आनी चािहए ठहराने
की।

कार चलाते हों और े क लगाना न आता हो, और िच ाते हों िक ठहर जाओ; वै सा ही पागलपन है । िच ाते रह,
कार नहीं ठहरे गी। और ए ेलरे टर पर पैर दबाए चले जा रहे ह! और िच ा रहे ह, ठहर जाओ! और े क लगाना
आता नहीं। और े क कभी लगाया नहीं। े क जाम हो गए ह। आज अचानक पैर भी रखगे, तो जं ग खा गए ह। उनको
ते ल की ज रत पड़े गी; े क आयल की ज रत पड़े गी। उनको िफर से गित दे ने के िलए सु गम, सरल और ढीला
होना पड़े गा। उनको कभी नहीं लगाया, सदा ए ेलरे टर दबाया और सदा िच ाते रहे । िफर धीरे -धीरे आपको पता
चलने लगा िक िकतना ही िच ाओ, यह कार बड़ी खराब है ; यह कती नहीं है ।

कार का कोई भी कसू र नहीं है । कोई भी कसू र नहीं है । और मजा यह है िक जब आप िच ा रहे ह, तब भी आपका
पैर ए ेलरे टर को दबाए चला जा रहा है –तब भी! ठीक हम मन के साथ ऐसा ही कर रहे ह। और इसिलए मन को
दोष दे ते ह जीवनभर, ले िकन हल नहीं होता कुछ।

कृ कहते ह, मन चंचल है । भाव है मन का चंचल होना। होना ही चािहए मन चं चल, नहीं तो मन का कोई अथ
नहीं है । मन का योजन ही वही है । ले िकन मन के यं म मन को रोकने की भी व था है । उस व था को, उस
े क िस म को ठीक से समझ ले ना चािहए िक वह ा व था है, जो मन को रोकती भी है ।

दो बातों का ान रखना ज री है , एक तो जब मन को रोकना हो, तो ए ेलरे टर पर पैर न रहे । इसिलए कार म


एक ही पैर से दो काम ले ते ह हम, तािक भू ल न हो जाए। नहीं तो एक पैर से े क लगा सकते ह, एक से ए ेलरे टर
चला सकते ह। ले िकन एक ही पैर से दोनों काम ले ते ह, तािक कभी भू ल न हो जाए। जब े क दबाएं , तो ए ेलरे टर
न दब जाए साथ म। अगर दोनों पैर से काम ल, तो खतरे का पूरा डर है । एक पैर से ए ेलरे टर दबा द और एक से
े क दबा द, तो उप व हो ही जाने वाला है । इसिलए एक ही पैर से दो काम ले ते ह। उसी पैर को े क पर रखते ह,
तािक ए ेलरे टर अिनवायतः छूट जाए।

मन म भी वै सी ही व था है । ठीक वै सी ही व था है । िजस ढं ग से हम दबाते ह मन को काम ले ने के िलए, उसी


ढं ग से मन की कावट के िलए भी उसी व था का उपयोग करना पड़ता है । थोड़ा-सा थान हटना पड़ता है । थोड़ा-
सा थान भर पैर को हटाना पड़ता है । उसे समझ ल िक वह व था ा है ।

जब आपको मन को दौड़ना होता है, तो ा व था है ? ए ेलरे टर ा है मन का? उसको ग ा क करने का


ा ढां चा है ? हम सब दौड़ाते ह; इसिलए दौड़ाने से ही शु करना ठीक होगा। जब आपको मन को दौड़ाना होता है ,
तब आप ा करते ह?

शायद आपने खयाल न िकया हो, जब मन को दौड़ाना हो, तो मन के साथ तादा थािपत करना पड़ता है । िजतना
तादा थािपत हो जाए, मन उतना ही दौड़ता है । तादा ए ेलरे टर है । तादा का मतलब है िक मन की िजस
वृ ि को दौड़ाना हो, उसके साथ एका हो जाना पड़ता है ।

अगर आपको कामवासना के साथ मन को दौड़ाना है, तो आप दू र खड़े रहगे, तो मन नहीं दौड़े गा। ऐसे ही होगा िक
कार ाट कर दी और ए ेलरे टर नहीं दबाया। भड़भड़, भड़भड़ होगी, ले िकन गाड़ी चलेगी नहीं; और थोड़ी दे र म
इं जन बं द पड़ जाएगा। अगर कामवासना के साथ दौड़ाना है , तो ऐसा मत सोच िक म कामवासना का िवचार करता
ं ; ऐसा सोचगे, तो ए ेलरे टर पर पैर नहीं पड़े गा। ऐसा सोच िक म कामवासना ं । बस, मन दौड़ना शु कर दे गा।
थोड़ी दे र म कामवासना आपकी पूरी आ ा को घे र ले गी। आप उसके साथ एक हो जाएं गे । और िजतना एक हो
जाएं गे, उतनी मन की गित ते ज हो जाएगी।

े क की व था ठीक उलटी है ; तादा तोड़ना पड़े गा। िजतना मन की िकसी भी वृ ि से दू र हो जाएं गे, पार हो
जाएं गे, अलग हो जाएं गे, अनुभव कर पाएं गे, म िभ ं, उतना ही े क लग जाएगा।
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एक ही पैर का उपयोग करना है –तादा । अगर दबाया तादा को, एक ए, तो गित पकड़े गा; मन और चंचल हो
जाएगा। अगर दू र हटाया तादा को, मन अचं चल हो जाएगा। और आपके सहयोग के िबना न तो चंचल हो सकता
है , न आपके असहयोग के िबना अचंचल हो सकता है । टु कोआपरे ट एं ड नाट टु कोआपरे ट।

सहयोग गित दे ता है , असहयोग गित तोड़ दे ता है ।

तो िजस वृ ि को चलाना हो, उसके साथ सहयोग कर ल; इतना सहयोग कर ल िक आप उसी वृ ि के रं ग म रं ग


जाएं । इसका जो टे कल, तकनीकी श है, वह है, राग। राग का मतलब रं ग ही होता है । राग का मतलब रं ग ही
होता है । िकसी भी वृ ि के राग म पड़ जाएं , अथात वृ ि म ऐसे रं ग जाएं िक रं ग आपके ऊपर पूरा फैल जाए, तो मन
की गित ती हो जाती है ।

अनेक ह ारे अदालतों म कहते ह िक ह ा हमने नहीं की। वे ठीक ही कहते ह। पहले तो लोग सोचते थे िक ह ारे
िसफ इसिलए कहते ह िक हमने ह ा नहीं की, ोंिक वे अदालत को धोखा दे ना चाहते ह। ले िकन अब मनसिवद
कहते ह िक ब त अथ म वे ठीक ही कहते ह, धोखा दे ने के िलए नहीं कहते ।

असल म ह ारा जब ह ा करता है, तो ह ारा मौजू द ही नहीं रहता; ह ा के साथ इतना रं ग जाता है, िजसका कोई
िहसाब नहीं। सोचने वाला, िववेक का जरा-सा भी िबं दु बाहर नहीं रह जाता, जो कहे िक मने ह ा की। ह ा ई। म
इतना भी अलग नहीं बचता िक वह कह सके, मने ह ा की। ह ारा इतना ही कह सकता है िक ह ा के भाव ने मुझे
इस बु री तरह पकड़ िलया िक म तो था ही नहीं। ह ा मुझसे ई है , मने की नहीं है । और मनसिवद कहते ह िक वह
ठीक ही कह रहा है ।

सच तो यह है िक ब त-से ह ारे ह ा करने के बाद भू ल ही जाते ह िक उ ोंने ह ा की। भू ल ही जाते ह! और ब त


जांच-पड़ताल करके पता चला है िक उनके भीतर कोई भी ृित नहीं रह जाती िक उ ोंने ह ा की है । ों नहीं रह
जाती?

ृित बनने के िलए भी थोड़ा-सा फासला चािहए; थोड़ा-सा फासला, अ था ृित नहीं बनेगी। अगर आप वृ ि के
साथ पूरे रं ग गए, तो घटना हो जाएगी, ले िकन ृित नहीं बनेगी। ृित बनेगी िकसको? म तो बचता ही नहीं, जो नोट
कर ले िक ह ा की जा रही है । म इतना डूब जाता ं, इतना बे होश हो जाता ं, इतना एक हो जाता ं िक मेरे ारा
ह ा हो जाती है, ले िकन मेरे ारा उसकी कोई ृित नहीं बन पाती। मेरा कांशस माइं ड इतना लीन हो जाता है िक
वह कोई ृित नहीं बनाता। अनकां शस मेमोरी बनती है ।

इसिलए ह ारा कहता है होश म िक मने ह ा नहीं की। ले िकन उसे िह ोटाइज करके बे होश करते ह, तो वह कह
दे ता है , मने ह ा की। शराब िपला दे ते ह, उसे बे होश कर दे ते ह, तो वह कह दे ता है , मने ह ा की। होश म रहता है ,
तो कहता है , मने ह ा नहीं की। होश वाले मन को कोई खबर ही नहीं है । खबर के िलए दू री चािहए। वह दू री मौजू द
नहीं है ।

आपने ह ा तो नहीं की है, सोचा ब त बार होगा। ोंिक ऐसा आदमी खोजना मु ल है , िजसने िकसी न िकसी की
ह ा करने का कभी न कभी न सोचा हो। अगर िकसी और की नहीं, तो अपनी करने का सोचा होगा। फक नहीं है ।
िकसी न िकसी की–उसम यं भी स िलत ह–ह ा करने का न सोचा हो, ऐसा आदमी खोजना ब त मु ल है ,
रे यर।

जो जानते ह, वे कहते ह िक े क आदमी स र साल की उ म औसतन दस बार अपनी या िकसी की ह ा करने


का िवचार करता है । कम से कम, यह िमिनमम है । करता नहीं है , यह दू सरी बात है । ले िकन िवचार करता है । ों
नहीं कर पाता? कारण वही है । ए ेलरे टर पूरा नहीं दब पाता, नहीं तो हो जाए। थोड़ा फासला बना रहता है । थोड़ा
सोच-िवचार भीतर कायम रहता है िक यह म ा सोच रहा ं ! यह म ा सोच रहा ं ! या भय के कारण ए ेलरे टर
पूरा नहीं दबा पाता िक कहीं ीड ब त ते ज न हो जाए, कोई ए डट न हो जाए; तो धीरे चलाता है ।
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फासला रह जाए, तो वृ ि नहीं काय कर पाती; फासला छूट जाए, तो वृ ि काय कर जाती है । वृ ि के साथ तादा
मन को गित, मन को ाण दे ना है , खून दे ना है । और वृ ि के साथ तादा तोड़ ले ना मन को कावट डालनी है ,
ठहराना है ।

इसको योग करके दे ख, तो खयाल म आ जाएगा। िजस वृ ि के साथ मन दौड़ रहा हो, यह मत कह िक क जाओ।
क जाओ कहने का कोई मतलब नहीं है । उस वृ ि के साथ तादा तोड़। मन म ोध आ रहा है , तब ऐसा न
समझ िक म ोध कर रहा ं । ऐसा ही समझ िक मन म ोध आ रहा है , म दू र खड़े होकर दे ख रहा ं, ज ए
िवटनेस, एक सा ी। म दे ख रहा ं िक मन कह रहा है िक ोध करो; मन कह रहा है िक गदन दबा दो; मन कह रहा
है िक आग लगा दो–म दे ख रहा ं ।

और जै से ही दे खने का खयाल आएगा, आप अचानक पाएं गे िक ए ेलरे टर से पैर हट गया, मन की गित धीमी हो
गई। और यह अनुभव इतना सहज और सरल है िक े क को ही होगा, इसम कोई अड़चन नहीं है । िसफ खड़े
होकर दे खने की ि या का अ ास ज री है ।

और कर सकते ह अ ास। रोज मौके िमलते ह। रात िवचार चल रहे ह मन म, यह मत कह, करवट न बदल परे शानी
से िक मन बं द हो जाए, तो म सो जाऊं। न; जब िवचार चल रहे ह मन म, तो दे खना शु कर। यह मत कह िक बं द
हो जाएं । िवचारों को दे ख िक िवचार चल रहे ह, म दू र खड़ा दे ख रहा ं । म एक सा ी ं । म िसफ दे खूंगा; तु म चलो।

और आप पाएं गे, जै से ही आपने िनणय िलया िक म दे खूंगा, तु म चलो, उनकी चलने की ताकत कम होने लगी, उनके
पैर िशिथल होने लगे, उनकी गित नीचे िगरने लगी। और िजस ण आप पूरे दे खने वाले की तरह खड़े हो जाएं गे, मन
एकदम शां त हो जाएगा। इधर आया सा ी, उधर गया मन। इस ार से सा ी ने वे श िकया, उस ार से मन िवदा
आ। यह एक साथ, यु गपत घटना घटती है ।

मन से लड़ने की ज रत नहीं है । लड़ने वाला तो पागल है । मन के ित जागने की ज रत है । जागने से िनरोध


फिलत होता है ।

और जब तक मन का िनरोध न हो जाए, तब तक भु की तरफ या ा नहीं होती। ोंिक मन सं सार के िलए साधन,


भु के िलए बाधा। मन सं सार के िलए सहयोगी, भु के िलए िवरोधी।

इसम कोई कसू र नहीं है । यह मैकेिन की बात है िसफ। यह अिनवायता है । ोंिक ऐसा मैकेिन नहीं हो सकता,
जो दोनों तरफ काम दे सके। ोंिक सं सार के िलए िबलकुल और तरह की ज रत है । वहां सब बदल रहा है ,
इसिलए बदलने वाला सचे तन िच चािहए, जो पूरे समय बदलता रहे ।

और ान रख, जो िच िजतनी गित से बदल सकता है सं सार म, सं सार म उसका सरवाइवल उतना ही सु िनि त है ;
उसका अ उतना ही सु रि त है ।

जमीन पर आदमी जीत गया, और पशु हार गए। उसका और कोई कारण नहीं था। पशु ओ ं के पास इतना चंचल मन
नहीं है ; और कोई कारण नहीं है । आदमी के पास चं चल मन है , वह जीत गया।

इस पृ ी पर बड़े श शाली पशु न हो गए ह, पूरी की पूरी जाितयां न हो गईं। उनके पास शरीर महा श शाली
था। आज से कोई दस लाख साल पहले वै ािनक कहते ह–अब तो अ थपंजर भी िमलते ह–हाथी हमारा छोटा-सा
जानवर है उस जमाने का, ब त छोटा-सा; उस जमाने का ब त िमिनएचर, ब त छोटा-सा तीक। हाथी से दस-दस
गु ने, पं ह-पं ह गु ने बड़े जानवर इस पृ ी पर थे । ले िकन सबके सब न हो गए। बात ा है?

शरीर तो उनके पास ब त बड़े थे, श उनके पास महान थी। छोटे -मोटे पहाड़ी को ध ा दे द, तो खसक जाए,
िगर जाए। ले िकन उनके पास ब त चंचल िच नहीं था, जो िक थितयों के साथ बदल सके। थितयां बदलीं, उनका
191

मन नहीं बदला। थितयां बदल गईं, मन नहीं बदला; मर गए। ोंिक थित के साथ िजसका मन नहीं बदलेगा, वह
मर जाएगा।

थित के साथ बदलने से ही एडज मट होता है । नहीं तो आप मैलएडज े ड हो जाएं गे । आपकी उ तो ादा हो
गई, ले िकन पायजामा बचपन का पहने चले गए, वै सी मुसीबत हो जाएगी। पायजामा बदलना पड़े गा। जवानी आ गई
और बु बचपन की रही आई, मन नहीं बदला, िथर मन आ आपके पास, तो आप मु ल म पड़ जाएं गे। वही
काम ब ा करे गा, तो हम खुश होंगे। वही जवान करे गा, तो जे लखाने म डाल दगे । ों? ब ा कर रहा है , तो कोई
परे शान नहीं हो रहा है ! ोंिक हम मानते ह िक ब ा अभी िजस प र थित म है , उसके साथ उसका मन िबलकुल
एडज े ड है । ले िकन आदमी जवान हो गया है और वही काम कर रहा है , तो बदा के बाहर हो जाएगा। उसका
मतलब यह है िक उसका मन रटाडड है । उसका मन ब ा था, तभी वहीं क गया। और वह तो बड़ा हो गया, और
मन पीछे छूट गया। हमारी िजंदगी की अिधक तकलीफ यही ह।

िपछले महायु म अमे रका म िजन सै िनकों को भत िकया गया, उनके आई ू, उनकी बु के माप की जां च की
गई पहली दफा बड़े पैमाने पर, तो बड़ी है रानी ई। िकसी आदमी की बु ते रह साल से ादा नहीं िनकली। ते रह
साल पर बु की ई मालू म पड़ी।

औसत बु ते रह साल पर क जाती है । बड़ी घबड़ाहट की बात है । आदमी स र साल का हो जाता है , ले िकन बु
का अंक उसका ते रह साल के पास ठहरा रहता है । इसी से सब िद त खड़ी होती ह। जै से बू ढ़ा भी ोध म आ
जाए, तो ब ों की तरह पैर पटकने लगता है । वह ते रह साल की बु भीतर काम करने लगती है । र े स करना
आसान हो जाता है ।

आपके घर म आग लग जाए, आप एकदम पैर पटककर छाती पीटकर रोने लगते ह, वै से ही जै से छोटा तीन साल का
ब ा, उसका खलौना टू ट जाए, तो रोता और छाती पीटता है । फक ा है ? फक इतना ही है िक साधारण हालतों म
आप गं भीरता बनाए रखते ह, असाधारण हालतों म आपका बचकानापन कट हो जाता है । वह जु वेनाइल भीतर जो
िछपा है, वह असाधारण हालत म कट हो जाता है । साधारणतः अपने को स ाल-स लकर चलाते रहते ह। जरा-सी
कोई िवशे ष घटना घट जाए, पता चल जाता है िक भीतर का ब ा जािहर हो गया।

ते रह साल पर क जाती है बु ! हां, िजसकी नहीं कती, वह जीिनयस है । ले िकन नहीं कने का मतलब है िक गित
जारी रहे । बु इतनी गितमान रहे िक कहीं ठहरे न; हर थित के साथ बदलती चली जाए; हर नई थित म नई हो
जाए।

तो मन को तो बदलना ही पड़े गा। बदले मन, यही शु भ है । ले िकन यह साम के भीतर हो िक हम जब चाह, तब
कह, बस। और मन शांत होकर बै ठ जाए। और हम उस िदशा म भी चे हरा फेर पाएं , जहां अप रवतनीय का वास है ,
जहां िन का िनवास है । हम उस मंिदर की तरफ भी आं ख उठा पाएं , जहां वह रहता है , जो कभी नहीं बदलता।

और उसको दे खते ही ऐसी अपूव शां ित ाणों को घे र ले ती है । ोंिक प रवतन के साथ शांित कभी नहीं हो सकती।
प रवतन के साथ अशां ित ही होगी। प रवतन के साथ तनाव और टशन ही होगा। प रवतन के साथ तो बे चैनी और
िचंता ही होगी। अप रवतनीय के साथ ही शा त शांित उतर आती है ।

और एक बार आदमी इस कला म िन ात हो जाए िक जब चाहे मन को रोक दे , जब चाहे मन को गितमान कर दे ,


तो वै सा सं सार म भी और परमा ा म भी, दोनों म समान प से जीने लगता है । और वै सा िफर कह
पाता है िक सं सार भी परमा ा का प है । िफर वै से को सं सार और परमा ा म कोई श ुता नहीं िदखाई
पड़ती।

श ुता हम िदखाई पड़ती है , ोंिक हमारा मन दोनों तरफ नहीं मुड़ पाता। हमारी चे तना एक ही तरफ िफ ,
फोक ड हो जाती है । हमारी हालत ऐसी है , जै से िकसी आदमी की गदन को लकवा लग जाए और वह एक ही तरफ
192

दे ख पाए; िसर न घु मा पाए। हमारी वै सी मन की हालत है–लकवा खा गई, पैरेलाइ । बस, सं सार को ही दे ख पाते
ह। जब इधर दे खना चाहते ह, तो कुछ मुड़ नहीं पाता। पर इसम कसू र मन का नहीं है । कसू र आपका है ।

ले िकन इधर म दे खता ं िक अिधक धािमक लोग मन का कसू र समझकर गािलयां दे ते रहते ह। वह जो गािलयां दे
रहा है , वह भी मन है । वह जो कह रहा है , मन चंचल है , वह भी मन है । ोंिक वह जो मन नहीं है , वह तो बोला ही
नहीं कभी; वह तो अबोल है । वह जो मन नहीं है, उसने तो गाली ा, कभी शं सा भी नहीं की। उससे तो श भी
नहीं िनकला है । वह जो धािमक आदमी बे चैनी जािहर कर रहा है िक बड़ा खराब है यह मन, बड़ा दु है , इससे कैसे
छु टकारा पाऊं! वह मन ही कह रहा है ये सब बात। ोंिक मन के बाहर जो है वहां तो मौन है, सतत मौन है । वहां तो
कभी कोई श की झंकार पैदा नहीं ई। वहां तो िनःश का िनवास है ।

वह मन ही कह रहा है । और मन की यह खूबी है िक वह अपने िवपरीत भी व दे ता है । दे ना ही पड़ता है । िजसे


ितिदन बदलना पड़े गा, उसे अपने ही व के खलाफ बोलना पड़े गा। एक ण पहले उसने कहा था िक म
तु ारे िलए जान दे दू ं गा। और एक ण बाद सोचता है िक तु ारी जान ले लूं! एक ण पहले कहा था, तु ारे िबना
एक ण न जी सकूंगा; और एक ण बाद सोचता है िक इससे छु टकारा कैसे हो!

थित बदलती है , मन बदल जाता है । मन कभी कंिस ट नहीं हो सकता। कोई उपाय नहीं है । उसको इनकंिस ट
होना ही पड़े गा, असंगत होना ही पड़े गा। हर बार बदलना पड़े गा; हर बार प नया ले ना पड़े गा। तो मन अपने ही
खलाफ बोलता चला जाएगा। अशां त होगा, और कहे गा िक शां ित चािहए मुझे। मन ही कहे गा। मन ही कहेगा, मुझे
शां ित दो। और आप मन को ही मन के खलाफ लड़ाने लगगे । एक मन का िह ा कहे गा, शांित चािहए। और एक
मन का िह ा अशांित को बु नता चला जाएगा। िफर आप दोनों पर एक साथ पैर रख रहे ह, ए ेलरे टर पर भी और
े क पर भी। अब ए डट सु िनि त है ।

और हम म से अिधक लोग ए डट ह। आदमी नहीं, दु घटनाएं ह। हम म से अिधक लोग दु घटनाएं ह। ले िकन चूं िक
सभी दु घटनाएं ह, इसिलए पता लगाना मु ल होता है । हम सब दु घटनाएं ह, ोंिक जो हम हो सकते थे, वह हम
नहीं हो पाए ह; और जो हम नही ं होना चािहए था, वह हम हो गए ह।

इसिलए तो इतनी पीड़ा है , इतना दु ख है , इतनी परे शानी है । हमारी पूरी िजं दगी एक लं बी दु घटना है । हर चीज दु घटना
है । ेम करने जाओ, घृ णा हाथ लग जाती है । िम ता बनाओ, श ु ता बन जाती है । िकसी को सु ख दे ने जाओ, दु ख के
िसवा कुछ भी नहीं िदया जाता। िकसी से अ ी बात बोलो, वह न मालू म ा समझ ले ता है । वह कुछ अ ी बात
बोलता है , हम न मालू म ा समझ ले ते ह। न कोई िकसी को समझता, न कोई िकसी से सहानुभूित कर पाता, न
कोई िकसी पर क णा कर पाता। सब िवि की तरह दौड़ते चले जाते ह। और हर चीज उलझती चली जाती है ।

इसीिलए तो बू ढ़े आदमी कहते ह िक बचपन बड़ा सु खद था। बचपन म था ा आपके िजसकी वजह से सु खद था?
हां, ये बु ढ़ापे म िजतनी आपने जिटलताएं पैदा कर लीं, ये भर नहीं थीं। और कोई खास बात नहीं थी। ये िजतने उप व
आपने इक े कर िलए बू ढ़े होते-होते, ये नहीं थे । कोई पािजिटव, खास बात नहीं थी बचपन म। अगर होती, तो बु ढ़ापा
इतना उलझा आ नहीं हो सकता था। आपके पास कोई हीरे नहीं थे । अगर होते तो और बड़े हो गए होते; उनकी
और ोथ हो गई होती। कुछ नहीं था। बचपन िसफ कोरी े ट थी।

हां, बु ढ़ापे म दु ख होता है । कुछ िलखा नहीं था उस पर, कोई अमृ त वचन नहीं िलखे थे, कोई वेद नहीं िलखा था उस
पर; िसफ कोरी ेट थी। ले िकन बु ढ़ापे म पाते ह, तो ऐसा लगता है िक जै से काबन का ब त उपयोग िकया गया हो,
तो जो उसकी गित हो जाती है , ऐसी सब िच की थित हो जाती है ।

कुछ समझ म नहीं आता िक ा िलखा है । और िफर भी िलखते चले जाते ह, उसके ऊपर ही िलखते चले जाते ह!
और जिटल होता चला जाता है , आ खर म िसफ एक पागलपन के अित र कुछ नहीं बचता। खुद नहीं पढ़ सकते,
दू सरे की तो बात अलग है । िजंदगी के बाद म िजं दगी ने ा पाया, िजंदगी ने ा िन ष िलया, िजं दगी कहां प ंची,
खुद नहीं बता सकते; दू सरे की तो बात अलग है ।
193

सु ना है मने, एक ब त अदभुत फकीर आ, मु ा नस ीन। गां व म अकेला आदमी था, जो िलख-पढ़ सकता था।
तो गांव के लोग उससे िचि यां िलखवाते थे । तो दो घटनाएं उसकी म कहना चाहता ं । वह ब त कीमती आदमी था।
उसने आदमी पर गहरे मजाक िकए ह। उसकी सब घटनाएं आदिमयों पर मजाक ह।

एक बू ढ़ी औरत उससे िच ी िलखवाने आई। नस ीन ने कहा िक माफ कर। आज िच ी नहीं िलख सकूंगा। ोंिक
मेरे अंगूठे म ब त दद है, पैर के अंगूठे म ब त दद है । उस ी ने कहा, ले िकन मने कभी सु ना नहीं िक पैर के अंगूठे
से कोई िच ी िलखता है! पैर के अंगूठे म दद है, तो रहने दो। मेरी िच ी तो िलख दो। उसने कहा िक माई, तू समझती
नहीं। मुझे झंझट म मत डाल। तो उसने कहा, इसम झंझट ा है ! तु ारा हाथ तो ठीक है । उसने कहा, हाथ
िबलकुल ठीक है । सब ठीक है । ले िकन पैर के अंगूठे म बड़ी तकलीफ है । बू ढ़ी औरत ने कहा िक म पढ़ी-िलखी नहीं,
ले िकन इतना तो म भी समझती ं िक पैर के अंगूठे से िलखने का कोई सं बंध नहीं।

नस ीन ने कहा, अब तू नहीं मानती, तो हम बताए दे ते ह। िच ी तो हम िलख दगे, ले िकन उसको पढ़े गा कौन दू सरे
गां व म? िच ी िलखकर िफर हमीं को पढ़ने भी जाना पड़ता है ! और कई बार तो ऐसा हो जाता है , नस ीन ने कहा
िक तू िकसी को बताना मत, िक हम खुद भी नहीं पढ़ पाते िक ा िलखा है ! पैर म मेरे ब त तकलीफ है , अभी मुझे
तू झंझट म मत डाल।

एक बार ऐसा आ िक एक दू सरा आदमी नस ीन से िच ी िलखवाने आया। नस ीन ने पूरी िच ी िलख दी। िच ी


िलखने के बाद उस आदमी ने कहा िक अब जरा मुझे पढ़कर तो सु ना दो, कहीं म कुछ भू ल तो नहीं गया िलखवाने
को। नस ीन मु ल म पड़ा। उसने कहा िक दे ख भाई, यह गै रकानूनी है । उसने कहा िक इसम ा गै रकानू नी
बात है ! नस ीन ने कहा, यह िच ी तू बता िकसके नाम िलखी गई है ? वही इसके पढ़ने का हकदार है । म नहीं पढ़
सकता। उस आदमी ने कहा िक बात तो ठीक है । िजस आदमी के नाम िलखी गई है, वही पढ़े । म नहीं पढ़ सकता।
जब वह आदमी जाने लगा िक बात ठीक है , तो नस ीन ने कहा िक सु न, असली बात यह है िक िलखना आसान है ,
पढ़ना ब त किठन है । हम खुद ही नहीं पढ़ पाते िक ा िलखा है !

ये िजंदगी के बाबत उसके मजाक ह। िजंदगी के आ खर म जब आप अपनी िजं दगी को उठाकर दे खगे, तो पाएं गे िक
कुछ समझ म नहीं आता, यह ा िलखा है मने! इस सारी कथा की न कोई शु आत है , न कोई अंत है । न इस कथा
म कोई तु क है, न इस कथा म कोई सं गित है । यह मने िकया ा? यह करीब-करीब ऐसा है, जै सा एक पागल
आदमी िलखता और जो प रणाम होता, वह मेरा हो गया है ।

यह होगा; यह होने वाला है । इसीिलए हम बु ढ़ापे म बचपन की याद करते ह िक बड़े सु खद िदन थे! सु खद वगै रह कुछ
भी न था। ब ों से पूछो। सब ब े ज ी बड़े होना चाहते ह। बचपन बड़ी तकलीफ म गु जरता है । ोंिक बचपन से
ादा गु लामी और कभी नहीं होती िजं दगी म। मां कहती है , इधर बैठो। बाप कहता है , उधर बै ठो। इसी म व
जाया होता है ।

एक ब े से उसके ू ल म उसके िश क ने पूछा िक तू बनना ा चाहता है ? उसने कहा, म ब त कन ू ं।


ों? ोंिक मेरी मां मुझे गिणत बनाना चाहती है । मेरा बाप मुझे किव बनाना चाहता है । मेरी चाची मुझे सं गीत
बनाना चाहती है । मेरा बड़ा भाई मुझे नेता बनाना चाहता है । और भी ब त र ेदार ह, वे सब बनाना चाहते ह। और
मुझे तो कुछ पता नहीं है िक मुझे ा बनना है । बस, इस सबके बीच डोल रहा ं ।

बचपन, ब ों से पूछो, सु खद नहीं है! ब े ब त पीड़ा से गु जरते ह। और एक ब त बड़े मनोवै ािनक


जी.एन.िपयागे ट ने, िजसने ब ों के साथ कोई पचास वष मेहनत की है , उसका कहना है िक पां च साल के पहले की
ृित इसीिलए भू ल जाती है , ोंिक ब त दु खद है । आपको याद नहीं आती, पांच साल की उ के पहले की कोई
ृित याद नहीं आती। ों भू ल जाती है ? कारण ा है ? जी.एन.िपयागेट कहता है िक िसफ इसिलए भू ल जाती है
िक वह इतनी दु खद है िक मन उसे याद नहीं करना चाहता। ले िकन बु ढ़ापे म हम कहते ह िक बचपन बड़ा सु खद था,
ग था!

वह बु ढ़ापे के नक की वजह से कह रहे ह; और कोई कारण नहीं है । नक हम अपने हाथ से बना ले ते ह।


194

इस मन की िवि अव था को जब तक कोई सं यम म न ले आए, िनरोध को न उपल हो जाए, तब तक भु की


या ा नहीं हो सकती है । और िनरोध को उपल होने की िविध सा ी भाव है, िवटनेिसंग है, तादा को तोड़ दे ना है ।
तादा को तोड़ना ही योग है । योग का अथ है , जु ड़ जाना।

सं सार से जो टू टने की कला सीख ले ता है , वह भु से जु ड़ने की कला सीख ले ता है । वह एक ही चीज के दो नाम ह।


इसिलए जै न-शा ों ने योग का बड़ा दू सरा उपयोग िकया है । इसिलए कई दफे बड़ी ां ित होती है ।

जो लोग िहं दू-शा को पढ़ते ह और िहं दू योग की प रभाषा से प रिचत ह, वे अगर जै न-शा पढ़गे, तो बड़ी है रानी
म पड़गे । ोंिक जै न-शा कहते ह, तीथकर अयोग को उपल हो जाता है –अयोग को, योग को नहीं!

ले िकन जै न-शा योग का अथ करते ह, सं सार से जु ड़ना। तो तीथकर अयोग को उपल हो जाता है; सं सार से टू ट
जाता है । िहं दू-शा योग का अथ करते ह, परमा ा से जु ड़ना। इसिलए परम ानी योग को उपल हो जाता है ,
ोंिक परमा ा से जु ड़ जाता है ।

अगर आप जै न-शा पढ़गे , तो बड़ी बे चैनी म पड़गे िक ये जै न-शा कहते ह, योग से छूटो, अयोग को उपल हो
जाओ। िहं दू-शा कहते ह, योग को उपल होओ।

दोनों उपयोग हो सकते ह। ोंिक एक जगह से छूटना, दू सरी जगह जु ड़ना है । सं सार से छूटो, अयोग हो जाए, तो
परमा ा से योग हो जाता है । सं सार से योग हो जाए, जु ड़ जाओ, तो परमा ा से अयोग हो जाता है ।

कला, जो आट है जीवन का, जीवन की जो कला है , वह इतनी ही है िक तु म मािलक हो जाओ। जब चाहो जु ड़ सको,
जब चाहो टू ट सको। मालिकयत इतनी हो िक ण का इशारा और बात बदल जाए, हवा का ख बदल जाए, चे तना
दू सरी तरफ बहने लगे । ऐसे, ऐसे तं चेता को ही भु की उपल होती है ।

शा मनसं ेनं योिगनं सुखमु मम्।


उपैित शा रजसं भूतमक षम्।। 27।।
ोंिक िजसका मन अ ी कार शां त है और जो पाप से रिहत है और िजसका रजोगु ण शां त हो गया है, ऐसे इस
स दानंदघन के साथ एकीभाव ए योगी को अित उ म आनंद ा होता है ।

पाप से रिहत है जो, रजोगु ण िजसका शांत हो गया–इन दो बातों को इस सू म समझ ले ना चािहए।

पाप से मु है जो! पाप ा है ? चोरी पाप है । िहं सा पाप है । अस पाप है । ऐसा हम मोटा िहसाब रखते ह। ले िकन
व ुतः ये पाप के प ह, पाप नहीं। जब म कहता ं , पाप के प ह, पाप नहीं, तो मेरा मतलब ऐसा है िक जब हम
कहते ह, यह हार है गले का, यह हाथ की चू ड़ी है , यह पैर की पां जेब है, तो ये प ह सोने के, आभू षण ह सोने के,
आकार ह सोने के।

सोने को हम समझ ल, तो सब पों को हम समझ लगे । और अगर पों को हमने समझा, तो हम धोखे म पड़गे।
धोखे म इसिलए पड़गे िक अगर नए प का सोना सामने आ गया, तो हम न समझ पाएं गे िक यह सोना है । ोंिक
अनंत प हो सकते ह सोने के। आपने अगर समझा िक चू ड़ी सोना है , और आपने गले का हार दे खा, तो आप न
समझ पाएं गे िक यह सोना है ।

अगर आपने एक चीज को पाप समझा और दू सरी चीज का आपको पता नहीं है , पहचान नहीं है , और वह िजं दगी म
आई, तो आप न समझ पाएं गे िक पाप है । आकार से बां धकर पाप को समझा िक भू ल होगी। िनराकार से समझना
ज री है । ण से समझ, आभूषण से नहीं।
195

पाप तो एक ही है , पाप के प अनेक हो जाते ह। सोना तो एक ही है , आभू षण अनेक हो जाते ह। मूल को ठीक से
समझ ल, तो सब जगह पहचान लगे िक पाप ा है । और अगर आपने आकार को पकड़ा–आकार को पकड़ने की
ही वजह से दु िनया म अलग-अलग समाज अलग-अलग चीजों को पाप कहता है । आकार को पकड़ने की वजह से
अलग-अलग समाज अलग-अलग चीज को पाप कहते ह।

जो चीज एक समाज म पाप है , वह दू सरे म पाप नहीं है । ऐसा भी हो सकता है िक जो चीज एक समाज म पु है,
वह दू सरे म पाप है । और जो चीज एक समाज म पाप है, वह दू सरे म पु है । और ऐसा भी हो जाता है िक जो एक
यु ग म पाप है , वह दू सरे यु ग म पु हो जाता मालू म पड़ता है । इसिलए बड़ा ही िव म पैदा आ है । बड़ा िव म पैदा
आ है ।

आकार को अगर पकड़गे, तो िव म पैदा होगा। ोंिक आकार बदलते रहते ह। पाप की भी फैशन बदलती है ,
आभू षण की ही नहीं। तो अगर आप पुराने पाप की प रभाषा पकड़े बै ठे रहे, तो पाप जो नए प ले गा–वह भी फैशन
बदलता है ; पुराने पाप करते-करते भी मन ऊब जाता है , नए पाप खोजता है–तो नए पाप आपकी पुरानी ा ा म
पकड़ म नहीं आते ह, तो आप मजे से करते चले जाते ह। मजे से करते चले जाते ह। थोड़ा दे ख िक कैसे यह हो जाता
है !

और इसिलए हर यु ग िद त म पड़ता है । प रभाषा होती है पुरानी और पाप होते ह नए। पुरानी प रभाषा म कहीं
उनके िलए सू चना नहीं होती। जब तक प रभाषा बनती है, तब तक पाप की फैशन बदल जाती है । प रभाषा बनने म
तो समय लगता है , डे िफनीशन बनने म समय लगता है, व लगता है । अनुभव से प रभाषा बनती है , तब तक फैशन
बदल जाती है । और अब तो इतने जोर से पाप की फैशन बदल रही है िक ब त मु ल है िक कोई प रभाषा काम
करे गी।

हालत करीब-करीब वै सी है , जै सा मने सु ना है िक एक आदमी पे रस की सड़क पर जोर से भागा जा रहा है । एक िम


रा े म िमला, नम ार की और कहा िक इतनी ज ी म कहां जा रहे हो? उसने कहा, मेरी प ी के कपड़े ह हाथ
म। इतनी दौड़ने की ा ज रत है ? प ी कोई मुसीबत म है ? उसने कहा, मुसीबत म नहीं। वैसे ही दज ने दे र कर
दी है । और अगर मेरे प ं चने म दे र हो जाए, तब तक तो फैशन बदल जाएगी। काफी खच उठाया है । कहीं प ंचने के
पहले फैशन न बदल जाए। इसिलए मा करो। िफर कभी िमलना। अभी म जरा ज ी म ं ।

वह ठीक कह रहा है । पे रस म इतने ही जोर से बदल रही है फैशन। सारी दु िनया म ऐसे ही बदल रही है । और
कपड़ों की फैशन बदले, तो ब त िद त नहीं आती, ोंिक ा िद त आने वाली है ! ले िकन पाप भी फैशन
बदलता है । और जब पाप फैशन बदलता है, तो बड़ी मु ल हो जाती है, ोंिक एकदम पकड़ म नहीं आता है िक
यह पाप है । एकदम पकड़ म नहीं आता िक यह पाप है ।

तो पाप के हम अगर मूल को समझ ल, तो ही हम पाप से बच सकगे, अ था पाप से बचना किठन है ।

अब जै से, कोई भी व था को हम ले ल। कोई भी व था को हम ले ल; जो कल पाप थी, आज पाप नहीं मालू म


पड़ती। कल पु थी, आज पाप हो गई। व था एक, दान पु था; दानी पु ा ा था। आज जो भी दान करता है,
हर एक समझता है िक िबना पाप िकए दान नहीं हो सकता। पहले पाप करो, तब धन इक ा करो, तभी दान कर
पाओगे । तो आज जो दान करता है , वह िसफ पापी होने की खबर दे ता है; या ादा से ादा पाप का ायि करने
की खबर दे ता है ; और कोई खबर नहीं दे ता।

धनी के घर पैदा होना पु था। धन पु से िमलता था कभी। वह पुरानी प रभाषा थी। अब धनी के घर पैदा होना
जै से भीतर एक प ा ाप लाता है िक कहीं कोई पाप, कहीं कोई अपराध, कहीं कोई िग हो रही है ।

ूधो, पि म का एक ब त बड़ा िवचारक िलखता है िक सब धन चोरी है । पुराने िवचारक कहते थे, धन पु से िमलता
है । ूधो कहता है, सब धन चोरी है । तो चोरों के घर म पु से कोई पैदा नहीं हो सकता, पाप से ही पैदा हो सकता
196

है । भावतः, चोरों के घर–अगर सब धन चोरी है–तो चोरों के घर कोई पु से कैसे पैदा होगा! पाप से ही पैदा हो
सकता है । अगर ूधो की बात सच है, तो गरीब के घर पैदा होना बड़ा पु कम है ।

यु ग बदलते ह, प रभाषाएं बदल जाती ह, ले िकन पाप नहीं बदलता। प रभाषाएं बदलती ह। आभू षण बदलते ह। सोना
नया आभू षण बन जाता है । आकार बदल जाते ह। बदलने से भू ल होती है ।

इसिलए कृ ने उसम दू सरी बात त ाल जोड़ी है , वह मूल की है । पहले कहा िक पाप से जो मु है और िफर
पीछे कहा, रजोगु ण के जो बाहर है । ोंिक रजोगु ण ही पाप का आधार है ।

अगर आपके भीतर रजोगु ण है , तो वह नए-नए पाप खोज ले गा; पुराने छोड़े गा, नए खोज ले गा। ले िकन अगर भीतर
रजोगु ण खो गया, तो पाप को खोजने का उपाय खो गया। आपके भीतर पाप िनिमत हो सके, उसकी ऊजा खो गई।
इसिलए ब त गहरे म रजोगु ण की मता ही पाप है ।

रजोगु ण का मतलब है –रजोगु ण का मतलब ा है? तीन गु ण इस दे श के मनसिवद ने खोजे ह। गहरे ह वे गु ण। मन


के तीन गु ण इस दे श की बड़ी गहरी खोज है । इस दे श ने जो गहरे से गहरे अनुदान जगत को िदए ह, उसम ि गु ण
कृित की खोज बड़ी गहरी है । बड़ी गहरी है । वे तीन गु ण ह–स , रज, तम। िच भी इन तीन गु णों से काम करता
है ।

तम का अथ है , वह श , जो चीजों म अवरोध डालती है । तम का अथ है, वह श , जो चीजों म अवरोध डालती


है , ै सी पैदा करती है , चीजों को रोकती है । ै िटक फोस है । और अगर कोई ै िटक फोस न हो आपके भीतर,
तो आप कहीं क न पाएं गे; कहीं भी न क पाएं गे । कहीं भी न क पाएं गे, परमा ा म भी न क पाएं गे, अगर
ै िटक फोस आपके भीतर न हो।

तम िसफ रोकने वाली श है। जै से जमीन से आप एक प र फक ऊपर की तरफ, थोड़ी दे र म जमीन पर िगर
जाएगा, ोंिक जमीन म एक किशश है , जो रोकती है । नहीं तो फका गया प र िफर कभी नहीं केगा; अनंत काल
तक चलता ही रहे गा, चलता ही रहे गा। िफर कहीं िगर नहीं सकता। कोई अवरोध श चािहए। नहीं तो आप चल
पड़े घर से, तो िफर घर दु बारा वापस न आ सकगे । हां, घर म कोई तमस भी बै ठा है, जो वापस खींच लाएगा। प ी है ,
ब े ह, वह ै सी फोस है ।

जो लोग स ता का अ यन करते ह, वे कहते ह, घर पु ष ने नहीं बनाया, ी ने बनाया। इसीिलए उसको घरवाली


कहते ह। आपको कोई घरवाला नहीं कहता। घर उसी का है । अगर ी न हो, तो पु ष ज जात खानाबदोश है ।
भटकता रहे गा; ठहर नहीं सकता। वह ी की खूंटी बन जाती है , िफर उसके आस-पास वह र ी बां धकर घू मने
लगता है को के बै ल की तरह।

पु ष को अगर हम ठीक से समझ, तो वह रज है , गित है । ी को ठीक से समझ, तो वह तम है , अगित है । इसिलए


इस जगत म िजतनी चीजों को ठहरना है , उ ी का सहारा ले ना पड़ता है । और िजन चीजों को चलना है , उ
पु ष का सहारा ले ना पड़ता है ।

बड़े मजे की बात है िक सब चीजों को चलाने वाले पु ष होते ह और ठहराने वाली यां होती ह। दु िनया म इतने धम
पैदा ए, एक भी ी ने पैदा नहीं िकया; सब पु षों ने पैदा िकए। ले िकन दु िनया म िजतने धम िटके ह, यों की
वजह से; पु षों की वजह से कोई भी नहीं।

सब धम पु ष पैदा करते ह–चाहे जै न धम हो, चाहे िहंदू, चाहे बौ , चाहे इ ाम, चाहे ईसाई, चाहे जोरो यन, चाहे
कोई भी–दु िनया के सब धम पु ष पैदा करता है। मगर उसकी सु र ा ी करती है । मंिदर म जाकर दे ख। पु ष
िदखाई नहीं पड़ता। हां , कोई पु ष अपनी ी के पीछे चला गया हो, बात अलग है! कोई िदखाई नहीं पड़ता। यां
िदखाई पड़ती ह।
197

एक बार िकसी चीज को गित िमल जाए, तो उसको ठहराने के िलए जगह ी म है , पु ष के पास नहीं है । वह तो
गित दे कर दू सरी चीज को गित दे ने म लग जाएगा। वह केगा नहीं।

रोकने की श , मन के पास भी ऐसी ही श है एक, जो रोकती है ; और एक श है , जो दौड़ाती है । तमस


अवरोध श है, रज गित श है ।

ान रहे, जै सा मने पहले सू म समझाया, मन गित है । अगर आपम रज की श ब त ादा है, तो मन को आप


रोक न पाएं गे । मन गित करता ही रहे गा।

मने आपको कहा िक ए ेलरे टर दबाना पड़े , तो गाड़ी चलती है । ले िकन गाड़ी म पेटोल होना चािहए। िबना पेटोल के
ए ेलरे टर मत दबाते रह, नहीं तो गाड़ी नहीं चले गी। नहीं तो आप कहगे िक गलत बात कही। हम तो ए ेलरे टर
दबा रहे ह, वह चलती नहीं! पेटोल भी चािहए, वह ऊजा भी चािहए, जो गित ले सके। उस ऊजा का नाम रज है । रज
कह, मूवमट है । तम ठहराव है , रे है । दोनों, आदमी को चलाने और ठहराने का कारण ह।

स थित है । वह न गित है , न ठहराव है; भाव है । अगर आपके भीतर रज ब त है, तो आप स म ठहर न
सकगे । आप ठहर न सकगे स म, रज दौड़ाता ही रहे गा। रज कम होना चािहए। ले िकन अगर रज िबलकुल शू हो
जाए, तो आप स म ठहर तो जाएं गे, ले िकन बे होश हो जाएं गे; होश म नहीं रहगे।

सु षु म ऐसा ही होता है । रज िबलकुल शू हो जाता है , िबलकुल नहीं रह जाता, गित िबलकुल नहीं रह जाती, और
ठहराव की श पूरा आपको पकड़ ले ती है । ले िकन तब आपम इतनी भी गित नहीं रह जाती िक आप जान सक िक
म कहां ं । ोंिक यह जानना भी एक मूवमट है । नोइं ग इज़ ए मूवमट, ान एक गित है । इसिलए सु षु म कुछ भी
नहीं रह जाता, आप जड़वत हो जाते ह।

समािध का अथ है, रज और तम उस थित म आ जाएं िक एक-दू सरे को सं तुिलत कर द, एक-दू सरे को िनगे ट कर
द, काट द। रज और तम ऐसे सं तुलन म आ जाएं िक एक-दू सरे को काट द। ऋण और धन बराबर श के हो जाएं ,
तो शू हो जाएं गे । उस शू म स का उदभावन होता है । उस शू म स का फूल खलता है । उस शू म आप
स म ठहर भी जाते ह और जान भी ले ते ह। इतना रज रहता है िक जान सकते ह; इतना तम रहता है िक ठहर
सकते ह। खड़े हो सकते ह, जान सकते ह। और स म थित हो जाती है ; भाव हो जाता है ।

सब पाप रज की अिधकता से होते ह। सब पाप रज की अिधकता से होते ह। रजािध पाप करवा दे ता है । और


कभी-कभी अकारण पाप भी करवा दे ता है ।

सा की एक कथा है , िजसम एक आदमी पर अदालत म मुकदमा चलता है । ोंिक उसने समु के तट पर, िकसी
को, जो धू प ले रहा था सु बह की, उसकी पीठ पर जाकर छु रा भोंक िदया। मुकदमा इसिलए मह पूण हो
जाता है िक उस आदमी ने , छु रा भोंकने वाले ने, िजसकी पीठ म छु रा भोंका, उसका चे हरा कभी नहीं दे खा था। झगड़े
का तो कोई सवाल नहीं; दु नी का कोई सवाल नहीं। पहचान ही नहीं थी। दु नी के िलए कम से कम पहचान तो
अिनवाय शत है । दु नी के िलए पहले तो िम ता बनानी ही पड़ती है । िबना िम ता बनाए, तो दु नी नहीं बन
सकती।

कोई िम ता ही नहीं थी, कोई पहचान नहीं थी। कोई ए े नटस भी नहीं था, प रचय भी नहीं था। वह यह भी नहीं
जानता था, इस आदमी का नाम ा है । िसफ पीठ दे खी थी! पीठ तो फेसले स होती है । उसका तो कोई चे हरा नहीं
होता। उसने छु रा भोंक िदया!

अदालत उससे पूछती है िक तू ने छु रा ों भोंका इस आदमी की पीठ म? ोंिक न तू इसे पहचानता है , न तू इसे
जानता है । न तो ते री कोई दु नी है , न कोई ते रा सं बंध है!
198

वह आदमी कहता है िक म िसफ कुछ करने को बे चैन था। कुछ करने को बे चैन! और कुछ िदन से ऐसा बे चैन था िक
कुछ सू झ ही नहीं रहा था, ा क ं ! और कुछ ऐसा करना चाहता था, िजसको कहा जा सके ईवट, घटना! मन बड़ा
बे चैन था। म फु ं , स ं । अखबार म फोटो भी छप गई है ; चचा भी हो रही है । आई है व डन समिथंग, कुछ
मने िकया। और जब आदमी कुछ करता है , ही िबक समबडी, वह कुछ हो जाता है । म स ं , आप कारण
वगै रह मत पूछ मुझसे ।

वह मिज े ट कहता है िक कैसा मामला है ! कुछ तो कारण होना चािहए?

वह आदमी कहता है , मुझे बताइए िक मेरे ज का कारण ा है ? और जब म मर जाऊंगा, तो कोई कारण होगा?
कुछ कारण नहीं है । मेरे जवान होने का कारण ा है? और म एक ी के ेम म िगर गया था, तो अदालत बता
सकती है िक कारण ा है ? कोई कारण जब िकसी चीज के िलए नहीं है, तो इस नाहक छोटी-सी घटना को इतना
तू ल ों दे रहे ह िक मने इसकी पीठ म छु रा भोंक िदया!

मिज े ट िनणय करने म बड़ी मु ल म पड़ा आ है िक ा िनणय करे , ा सजा दे !

यह शु पाप है! शु पाप की सजा िकसी कानून म नहीं िलखी है । आभू षणों की सजा िलखी ई है! यह िबलकुल
शु पाप है , जो िसफ श की गित की वजह से हो गया है ।

ले िकन मिज े ट कहता है िक फां सी तो मुझे तु झे दे नी ही होगी। वह आदमी कहता है , आप फां सी दे द। कारण न
बताएं । कारण बताने की कोई ज रत नहीं है । हम राजी ह। म िबलकुल राजी ं । आप फां सी दे द। कारण बताने की
कोई ज रत नहीं है । ले िकन मिज े ट कहता है , जजमट मुझे िलखना पड़े , तो कारण तो चािहए ही। वह कैदी कहता
है , तो सारी िजरह आप इसीिलए कर रहे ह, तािक फां सी लगाने का कारण िमल जाए! और म कहता ं , मने अकारण
छु रा भोंका है । छु रा भोंकने के आनंद के िलए छु रा भोंका है । और जब उसकी पीठ म छु रा भुंका और खून का
फ ारा फैला, तो मने िजं दगी म पहली दफा, िजसको कह, ि ल, पुलक अनुभव की। म स ं ।

आप सोच, ा सारे पाप ऐसी ही पुलक से पैदा नहीं होते? नहीं, आप सब कारण खोज ले ते ह। और कारण खोजकर
आप रे शनलाइज कर ले ते ह। आप कहते ह, मने इसिलए िकया। ले िकन अगर गहरे म जाएं गे, तो पाप करने के िलए
ही िकया जाता है ; कोई और कारण नहीं होता। आपके भीतर ऊजा होती है , रज होता है , जो कुछ करना चाहता है ।
कुछ ध े दे ना चाहता है । कुछ करना चाहता है । उस करने से ही सारे पाप प ले ते ह।

कृ कहते ह, वह जो रजोगु ण है , उस रजोगु ण के पार जाना ज री है ।

ले िकन पार जाने का अथ? रजोगु ण और तमोगु ण इस सं तुलन म आ जाएं िक शू हो जाएं । अगर आप रजोगु ण को
िबलकुल काट डाल, जो िक सं भव नहीं है । ोंिक काटे गा कौन? काटने का काम रजोगु ण ही करता है , गित। काटे गा
कौन? अगर एक आदमी कहता है िक म क ं गा साधना और रजोगु ण को काट दू ं गा, तो साधना रजोगु ण करता है ,
एफट रजोगु ण से आता है । काटे गा कौन? काटने वाला बच जाएगा पीछे । काटने म मत पड़, िसफ सं तुलन काफी है ।
रज और तम बराबर अनुपात म आ जाएं जीवन म, तो आपकी ित ा स म हो जाती है ।

और वै से स को उपल आ , कृ कहते ह, अित उ , अित े आनंद को उपल होता है । अित उ म


आनंद को उपल होता है , वै से स म खल गया । स म खल जाना फूल की भां ित। उस खलने का राज
तम और रज का सं तुिलत हो जाना है ।

यह टाएं गल है जीवन की श यों का, एक ि भुज। दो भु जाएं , दो कोणों को नीचे बनाती ह। वे जो नीचे के दो कोण
ह, वे रज और तम ह। अगर वे िबलकुल सं तुिलत हो जाएं , साठ-साठ िड ी के हो जाएं , तो स का सं तुिलत कोण
ऊपर कट हो जाता है ।
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वह जो तीसरा कोण कट होता है स का, वही कोण ाव रं ग है , वही फूल का खलना है । यह जो स के फूल
का खलना है , यह अित उ े तम आनंद का िशखर छू ले ता है । वह िशखर है ।

इस िशखर को छूने के िलए ा कर? गित को और अगित को सं तुलन म लाएं । कैसे लाएं गे? ा रा ा है , ा िविध
है , ा माग है िक इनम से एक चीज िवि होकर ओवर ो न करने लगे, बाहर न दौड़ने लगे ?

एक ही रा ा है । और वह रा ा, जै सा मने पहले सू म कहा, यिद आपका मन आपके काबू म आ जाए और आप


जब चाह तब मन को ठहरा सक, और जब चाह तब मन को चला सक, तो चलना और ठहरना सं तुिलत हो जाएगा।
ोंिक आपके हाथ म हो जाएगा। जब तक आपके हाथ म नहीं है, तब तक सं तुलन असंभव है । तब तक हम सभी
असंतुिलत रहते ह। कोई एक चीज पर ठहर जाता है ।

एक आदमी को हम कहते ह, एकदम तामसी है, आलसी है , मादी है । उठता ही नहीं, पड़ा ही रहता है ; िब र पर
ही पड़ा आ है । वह एक तम भारी पड़ गया है उसके ऊपर; रज िबलकुल नहीं है । उठने का भी मन होता है , तो एक
करवट ही ले पाता है , ादा से ादा। करवट ले कर िफर सो जाता है ।

एक दू सरा आदमी है िक दौड़ता ही रहता है । रात सोने भी िब र पर जाता है , तो िसवाय करवट ले ने के सो नहीं
पाता। एक तामसी है , जो करवट ले कर िफर सो जाता है । और एक रजोगु ण से भरा आ आदमी है , िजसका मन
इतना दौड़ता है िक रात सोना भी चाहता है , तो िसफ करवट ही ले पाता है और कुछ नहीं कर पाता। करवट बदलता
रहता है ! रात भी मन ठहरता नहीं, दौड़ता ही रहता है ।

सारा मनु का ऐसा ही असंतुिलत है । और इन दो के बीच असंतुलन है । और अगर यह सं तुलन ठीक न हो


पाए, तो जीवन की सारी जिटलताएं पैदा होती ह–सारी जिटलताएं !

सारी जिटलताएं असंतुलन, इ ैलस का फल ह। सारे पाप इ ैलस का फल ह। और पाप दो तरह के ह। एक ऐसा
पाप, जो रजोगु ण से पैदा होता है , पािजिटव। रजोगु ण से वह पाप पैदा होता है , जै सा इस आदमी ने पीठ म छु रा भोंक
िदया। एक ऐसा पाप भी है , जो तमोगु ण से पैदा होता है । उसको उदाहरण के िलए समझ ल िक आप भी इस पीठ म
छु रा जब भोंका जा रहा था, तब आप भी बै ठे ए थे । ले िकन आप बै ठे ही रहे । आपने उठकर यह भी न कहा िक ा
कर रहे हो? यह ा हो रहा है ? ब आपने और आं ख बं द कर ली और ान करने लगे।

आप भी पाप म भागीदार हो रहे ह, ले िकन िनगे िटवली। यह तमोगु ण का पाप है । आप भी िज ेवार ह। यह घटना
आपके भी नकारा क सहयोग से फिलत हो रही है ।

दु िनया म दो तरह के पापी ह, पािजिटव और िनगे िटव, िवधायक और नकारा क। िवधायक वे , जो कुछ करते ह;
और नकारा क वे, जो खड़े होकर दे खते रहते ह।

अब बं गाल है । एक गां व म पां च आदमी न लाइट हो जाते ह। पां च हजार का गां व है । पांच आदमी रोज ह ा करते
ह, पां च हजार का गां व बै ठा दे खता रहता है । वे िनगे िटव न लाइट ह, वे जो बै ठकर दे ख रहे ह। पां च आदमी ह ा
कर रहे ह, और वे कहते ह िक बड़ा मु ल हो गया। पां च आदमी ह ा कर रहे ह रोज, पांच हजार आदमी रोज
दे ख रहे ह! कलक ा म जाता ं , तो दे खकर है रान होता ं । टाम म सौ आदमी सवार ह, लटके ह दरवाजों से । दो
लड़के आ जाते ह, टे न म आग लगा दे ते ह। बाकी लोग खड़े होकर दे खते ह, िफर अपने घर चले जाते ह िक
न लाइट ब त उप व कर रहे ह।

यह िनगे िटव पाप है । यह तमस के आिध से पैदा आ पाप है । यह करता कुछ नहीं, ले िकन ब त-सा करना इसके
ही सहयोग से फिलत होते ह। यह करता कुछ नहीं; यह दे खता रहता है । हम पािजिटव पापी को तो पकड़ ले ते ह,
जे ल म डाल दे ते ह। ले िकन िनगे िटव पापी के िलए अभी तक कोई जे ल नहीं है । ले िकन िनगे िटव पापी भी छोटा-मोटा
पापी नहीं है ।
200

इसिलए मने कहा िक पाप के आभू षणों को मत पकड़। पाप की जड़ को पहचानने की कोिशश कर।

अगर आपका िच तमस की तरफ ादा झुका, तो आप नकारा क पापों म लग जाएं गे । अगर आपका िच रज
की तरफ ादा झुका, तो आप िवधायक पापों म लग जाएं गे । और पाप के बाहर होने का उपाय है िक रज और तम
दोनों सं तुिलत हो जाएं , तो आपकी ाव रं ग स म हो जाएगी। और स ही पु है ।

ले िकन िज हम पु कहते ह, वे पु नहीं ह। अगर हम ठीक से समझ, तो िज हम पु कहते ह, वे भी दो तरह


के ही होते ह, जै से दो तरह के पाप होते ह। कुछ लोग इसिलए पु ा ा मालू म पड़ते ह िक तमस इतना ादा है िक
पाप नहीं कर पाते, नकारा क ह।

एक आदमी कहता है िक मने कभी चोरी नहीं की। इसका यह मतलब नहीं िक वह चोर नहीं है । अचोर होना ब त
मु ल बात है । इतना ही हो सकता है िक इतना तामसी है िक चोरी करने भी नहीं जा सका। इतना तामसी है िक
चोरी करने म भी कुछ तो करना पड़े गा।

जनरल मौंटगोमरी ने अपने सं रणों म िलखा है िक दु िनया म चार तरह के लोग ह। एक वे , जो ानी ह, ले िकन
िन य ह। उनके ान से जगत को कोई लाभ नहीं होता; उनको भी होता हो, सं िद है । एक वे , जो अ ानी ह,
ले िकन बड़े सि य ह। वे सारे जगत को हजारों तरह के नुकसान प ं चाते ह। जगत को तो प ं चाते ही ह, खुद को भी
प ं चाते ह। एक वे, जो ानी ह और सि य ह। ले िकन ऐसे लोग िवल ण ह; मु ल से कभी पैदा होते ह। एक वे ,
जो अ ानी ह और िन य ह। ये भी िवल ण ह; ये भी मु ल से कभी पैदा होते ह। ये दोनों छोर वाले लोग ब त
मु ल से पैदा होते ह।

े तम तो वह है , जो ानी है और सि य है । नंबर दो पर वह है , जो अ ानी है और िन य है ; कम से कम िकसी


उप व म िवधायक प से नहीं जाएगा। नंबर तीन पर वे ह, जो ानी ह और िन य ह। और नंबर चार पर वे ह, जो
अ ानी ह और सि य ह। और ये नंबर चार के लोग िन ानबे ितशत ह पृ ी पर।

यह िवभाजन भी अगर ठीक से दे ख ल, तो तम और रज का ही िवभाजन है । वह जो स वाला है , वह वही है,


जो ानी है और सि य है । ले िकन ान और सि य, ि एिटव नाले ज, सजना क ान तभी फिलत होता है , जब तम
और रज दोनों सं तुिलत हो जाते ह, जै से तराजू के पलड़े ।

और ऐसी थित म, कृ कहते ह, परम आनंद को उपल होता है योगी।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


पदाथ से ित मण–परमा ा पर—(अ ाय-6) वचन—ते रहवां

यु ेवं सदा ानं योगी िवगतक षः।


सुखेन सं शम ं सुखम ुते।। 28।।
और वह पापरिहत योगी इस कार िनरं तर आ ा को परमा ा म लगाता आ सु खपूवक पर परमा ा की
ा प अनंत आनंद को अनुभव करता है ।

पाप से रिहत आ आ ा को सदा परमा ा म लगाता आ परम आनंद को उपल होता है ।

पाप से रिहत आ पु ष ही आ ा को परमा ा की ओर सतत लगा सकता है । पाप से रिहत आ जो नहीं है , पाप म
जो सं ल है , वह आ ा को सतत प से पदाथ म लगाए रखता है ।
201

अगर पाप की हम ऐसी ा ा कर, तो भी ठीक होगा, आ ा को पदाथ म लगाए रखना पाप है । आ ा को पदाथ म
लगाए रखना पाप है और आ ा को परमा ा म लगाए रखना पु है । पाप का फल दु ख है , पु का फल आनंद है ।

पदाथ का उपयोग एक बात है, और पदाथ म आ ा को लगाए रखना िबलकुल दू सरी बात है । पदाथ का उपयोग
िकया जा सकता है िबना पदाथ म आ ा को लगाए। वही योग की कला है । उस कुशलता का नाम ही योग है ।

पदाथ का उपयोग िकया जा सकता है िबना आ ा को पदाथ म लगाए। उपयोग तो करना पड़ता है शरीर से । जै से
आप भोजन कर रहे ह। भोजन तो करना पड़ता है शरीर से । जाता भी शरीर म है , पचता भी शरीर म है । ज रत भी,
भोजन, शरीर की है । ले िकन भोजन म आ ा को भी लगाए रखा जा सकता है । और मजा यह है िबना भोजन िकए भी
आ ा को भोजन म लगाए रखा जा सकता है । उपवास अगर आपने िकया हो, तो आपको पता होगा। भोजन नहीं
करते ह, ले िकन आ ा भोजन म लगी रहती है ।

आ ा को लगाने के िलए भोजन करना ज री नहीं है; और भोजन करने के िलए आ ा को लगाना ज री नहीं है । ये
अिनवाय नहीं ह बात। जै से िबना भोजन िकए भी हम आ ा को भोजन म लगाए रख सकते ह, वै से ही हम भोजन
करते ए भी आ ा को भोजन म न लगाएं , इसकी सं भावना है ।

एक तो हमारा अनुभव है िक िबना भोजन िकए आ ा शरीर म लग सकती है । वह हमारा सब का अनुभव है । दू सरा
अनुभव हमारा नहीं है । ले िकन दू सरा अनुभव इसी अनुभव का दू सरा अिनवाय छोर है । अगर यह सं भव है िक आ ा
भोजन म लगी रहे िबना भोजन के, तो यह सं भव ों नहीं है िक भोजन चलता रहे और आ ा भोजन म न लगे?

यह भी सं भव है । ोंिक पदाथ का सारा सं बंध, सारा सं सग शरीर से होता है । पदाथ का कोई सं सग आ ा से होता
नहीं। आ ा तो िसफ खयाल करती है िक सं सग आ, और खयाल से ही बं धती है । आ ा पदाथ से नहीं बं धती,
िवचार से बंधती है ।

आ ा तो िसफ िवचार करती है , और िवचार करके बं ध जाती है । िवचार ही छोड़ दे , तो मु हो जाती है । आ ा के


ऊपर पदाथ का कोई बं धन नहीं है , रस का बं धन है । और हम सब पदाथ म रस ले ते ह। और जहां हम रस ले ते ह,
वहीं ान वािहत होने लगता है । जहां हम रस ले ते ह, वहीं ान की धारा बहने लगती है ।

परमा ा म हमने कोई रस िलया नहीं। उस तरफ कभी ान की कोई धारा बहती नहीं। पदाथ म हम रस ले ते ह,
उस तरफ धारा बहती है ।

ा कर? इस पाप से कैसे छु टकारा हो? यह जो पदाथ को पकड़ने का पागलपन है , इससे कैसे छु टकारा हो?

एक आधारभूत बात इस छु टकारे के िलए ज री है , और वह यह िक पदाथ म जब हम रस ले ते ह, तो यह बड़ी मजे


की बात है िक िजतना ादा आप रस ले ने की कोिशश करते ह, उतना कम रस िमलता है । िजतना ादा रस ले ने
की कोिशश करते ह, उतना कम रस िमलता है ।

अगर आप कभी खेल खेलने गए ह और आपने सोचा िक आज खेल म ब त आनंद ल, ब त सु ख ल, तो आपको पता
चलेगा िक आप कोिशश करते रहना सु ख ले ने की और आप पाएं गे िक सु ख िबलकुल हाथ नहीं लगा। कोिशश से सु ख
हाथ लगता नहीं। कोई डायरे , सीधा सु ख पाया जा सकता नहीं। िजस चीज से भी आप सीधा सु ख पाने की कोिशश
करगे, पाएं गे िक चू क गए।

आज तय करके जाएं घर िक आज घर जाकर सु ख लगे । भोजन म सु ख लगे। ब ों से िमलकर सु ख लगे । ि यजनों से


ेम करके सु ख लगे । और पूरी, सतत कोिशश करना िक ेम कर रहे, और सु ख लगे; भोजन कर रहे, और सु ख लगे;
खेल रहे, और सु ख लगे । और आप अचानक पाएं गे िक सु ख तो ितरोिहत हो गया, वह कहीं है नहीं।
202

सु ख बाइ- ोड है । सु ख सीधी चीज नहीं है । सु ख ऐसा है जै से िक गे ं के साथ भू सा पैदा होता है । गे ं बो दे ते ह,


बािलयां लग जाती ह, गे ं फल जाता है और साथ म भू सा पैदा हो जाता है । कभी भू लकर भू से को सीधा मत बो दे ना।
ऐसा मत सोचना िक भू सा बो दगे , तो पौधा पैदा होगा; पौधे म और भी ादा भू सा लगे गा। ोंिक गे ं म इतना भू सा
लग गया, तो भू से म िकतना भूसा नहीं लगे गा!

कुछ भी हाथ नहीं लगे गा। हाथ का भू सा भी सड़ जाएगा। भू सा बाइ- ोड है ; गे ं के साथ पैदा होता है , सीधा पैदा
नहीं होता। सु ख बाइ- ोड है ।

दु ख सीधा पैदा होता है । दु ख गे ं की तरह है । अब म आपको क ं, दु ख गे ं की तरह है । सु ख उसके भू से की तरह


है । आस-पास िदखाई पड़ता है ; स नहीं होता सु ख म कुछ। बीज म दु ख िछपा होता है ।

ान रहे, जब हम जमीन म बोते ह, तो गे ं बोते ह। गे ं भीतर होता है , भू सा बाहर होता है । ले िकन जो बाहर से
दे खता है , उसे भू सा पहले िदखाई पड़ता है । भू से को खोले, तब गे ं िमलता है । कृित म गे ं पहले आता है, भू सा
पीछे आता है । ि म भू सा पहले आता है , गे ं पीछे आता है ।

दु ख तो बीज है । उसके चारों तरफ सु ख का भू सा छाया रहता है । दे खने वाले को सु ख पहले िदखाई पड़ता है , और
जब सु ख को छीलता है , तब दु ख हाथ लगता है । ले िकन बोने वाले को दु ख ही बोना पड़ता है । और अगर आपने सीधा
सु ख बोने की कोिशश की, तो कुछ हाथ नहीं लगने वाला है । कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है ।

पदाथ म जो आदमी िजतना ादा सीधा रस ले गा, उतना ही कम रस उपल कर पाएगा। अगर पदाथ म कोई सीधा
रस न ले, िसफ पदाथ का उपयोग करे –उपयोग सीधी बात है –तो बड़े है रानी की बात है िक पदाथ का उपयोग करने
वाला पदाथ से ब त रस ले पाता है । और पदाथ म रस ले ने वाला उपयोग तो कर ही नहीं पाता, ब त तरह के दु खों म
पड़ जाता है ।

ले िकन हम पदाथ का उपयोग नहीं करते ह, हम पदाथ म रस ले ने की कोिशश करते ह। इसका फक समझ। थोड़ा
बारीक है, इसिलए एकदम से शायद खयाल म न आए।

जो आदमी भोजन म रस ले ने की कोिशश करे गा, उसे भोजन से नुकसान प ंचेगा, रस नहीं िमलने वाला है । इसिलए
अ र ादा भोजन से लोग पीिड़त और परे शान ह। िचिक क कहते ह, कम भोजन से ब त कम लोग मरते ह,
ादा भोजन से ादा लोग मरते ह। कम भोजन से ब त कम लोग बीमार पड़ते ह, ादा भोजन से ादा लोग
बीमार पड़ते ह।

अगर आज अमे रका सबसे ादा बीमार कौम है , तो उसका कारण कुछ और नहीं है, अ िधक भोजन उपल है ।
पहली दफा ओवरफेड मु है, िजसके पास खाने को ज रत से ादा है । और खाए चला जा रहा है सु बह से शाम
तक, पांच बार! सारी बीमारी घे र रही है । सारी तकलीफ, सारी पीड़ा घे र रही है ।

खयाल है िक भोजन ादा कर लगे, तो सु ख िमले गा। जब थोड़े भोजन से थोड़ा िमलता है , ादा भोजन से ादा
िमल जाएगा, तो भोजन करते चले जाओ। सु ख तो नहीं िमलता, िसफ दु ख हाथ लगता है ।

भोजन से िसफ उसे ही सु ख िमलता है , जो भोजन म रस ले ने नहीं जाता, िसफ भोजन का उपयोग करता है; भोजन
करता है । और जो ठीक से भोजन करता है , रस की िफ छोड़कर, वह भोजन से ब त रस उपल करता है ।
ोंिक वह चबाकर खाएगा। ाद से खाने वाला कभी चबाकर खाने वाला नहीं होगा। ाद से खाने वाला गटकेगा,
ोंिक इतनी फुसत कहां! िजतना ादा गटक जाए। पेट का उपयोग ाद वाला ऐसे करता है , जै से कोई ितजोरी म
पए डाल रहा हो।
203

ले िकन जो भोजन का उपयोग करता है , वह गटकता नहीं; वह चबाता है । और जो चबाता है , उसको रस िमल जाता
है । म आपसे कह रहा ं, बाइ- ोड है । और जो रस पाना चाहता है , गटक जाता है , उसे रस तो नहीं िमलता, िसफ
बीमारी हाथ लगती है ।

जीवन म जो भी रसपूण है , वह उपयोग से िमलता है –स क उपयोग। स क उपयोग तब सं भव हो पाता है , जब


पदाथ से हमारी आ ा का कोई आस , कोई राग, कोई लगाव न हो। हम िसफ उपयोग कर रहे हों।

आस ब त और बात है । आस का मतलब है , हम सीधा रस ले ने की कोिशश कर रहे ह। आस का अथ है


िक हम सोचते ह िक िजतना ादा पदाथ हमारे पास होगा, हम उतने सु खी हो जाएं गे । ऐसा होता नहीं। अ र इतना
ही होता है िक िजतनी ादा व ु एं होती ह, उतने हम िचं ितत हो जाते ह। और हर व ु की र ा के िलए और व ुएं
चािहए, और व ु ओ ं की र ा के िलए और व ु एं चािहए। और अंत म हम पाते ह िक आदमी खो गया और व ुओं
का ढे र रह गया।

आदमी खो ही जाता है । व ु एं धीरे -धीरे इतने जोर से चारों तरफ इक ी हो जाती ह िक उनके बीच म हम कहां
समा हो गए, हम पता भी नहीं चलता। व ुओं म िजसने भी सीधा रस ले ने की कोिशश की, वह व ु ओ ं से दब
जाएगा और यं को खो दे गा। और िजस ने यं को बचाने की कोिशश की और व ुओं से अपने को पार
रखा; जाना सदा िक व ुओं का उपयोग है; व ु एं साधन ह, सा नहीं; मी ह, एं ड नहीं; उनका उपयोग कर ले ना
है ; ज रत है उनकी, ले िकन जीवन का परम सौभा उनसे फिलत नहीं होता है ।

जीसस का वचन है –िवचारणीय है –जीसस ने कहा है, मैन कैन नाट िलव बाइ े ड अलोन, आदमी अकेली रोटी से नहीं
जी सकता।

इसका यह मतलब नहीं है िक आदमी िबना रोटी के जी सकता है । इसका यह मतलब नहीं है । ोंिक िबना रोटी के
कोई नहीं जी सकता। ले िकन जब जीसस कहते ह िक आदमी अकेली रोटी से नहीं जी सकता, तो उनका कहना यह
है िक रोटी ज रत तो है , ल नहीं है ।

अगर आपकी सब ज रत भी पूरी कर दी जाएं , तो भी आपको िजं दगी न िमले गी। तो भी जीवन का फूल नहीं
खले गा। तो भी जीवन की सु गंध नहीं कट होगी। तो भी जीवन की वीणा नहीं बजेगी। सब िमल जाए, तो भी अचानक
पाया जाता है िक कुछ शे ष रह गया।

वह शे ष वही रह गया, जो हमारे भीतर था और िजसे हम व ुओं से पार करके कभी न दे ख पाए, और कभी न जान
पाए। वही शे ष रह गया। वही खाली जगह रह जाएगी।

इसिलए अ र ऐसा होता है, िजनके पास सब होता है , वे बड़ी एं ीनेस, बड़ा खालीपन अनुभव करते ह। सब र
हो जाता है भीतर। ऐसा लगता है िक सब तो है , ले िकन अब! जब तक सब नहीं होता, तब तक एक भरोसा भी रहता
है िक एक कार और पोच म खड़ी हो जाएगी, तो शायद सब कुछ िमल जाएगा। िफर कारों की कतार पोच म लग
जाती है और कुछ भी नहीं िमलता है । और आदमी को भीतर अचानक पता चलता है िक मेरा सारा म, सारी दौड़-
धू प थ गई। कार तो खड़ी हो गईं, पर म कहां ं ? मुझे तो कुछ िमला नहीं। इसिलए िजसको ठीक व ु एं उपल
हो जाती ह, उसे ही पहली दफे पता चलता है िक आ ा खो गई है ।

कृ कह रहे ह, पाप से रिहत पु ष!

पापरिहत का अथ है, व ुओं की तरफ लगा आ रस िजसके मन म नहीं है । व ु ओ ं का रस ही सभी तरह के पाप
करवा दे ता है िफर। िफर व ुओं की दौड़ म कौन से पाप करने, कौन से नहीं करने, इसका िवचार करना मु ल
हो जाता है । व ु एं सब पाप करवा ले ती ह। आ खर बड़े स ाट अगर इतनी ह ाएं कर जाते ह–नािदर या िसकंदर या
िहटलर या ै िलन–अगर बड़े राजनीित सब तरह के पाप कर जाते ह, तो िकसिलए? खयाल है िक स ा हाथ म
होगी, तो व ुओं की मालिकयत हाथ म होगी। खयाल है िक धन हाथ म होगा, तो सारी व ुएं खरीदी जा सकती ह।
204

ले िकन सारी व ु एं खरीद ली जाएं और मुझे यह पता न चले िक म व ु ओ ं से अलग भी कुछ ं, तो मेरे जीवन म पाप
िघर जाएगा, अंधकार भी िघर जाएगा, पदाथ भी भारी प र की तरह मेरी छाती पर पड़ जाएं गे, ले िकन म खो
जाऊंगा।

ामी राम टोिकयो म मेहमान थे । और तब की बात है, जब टोिकयो म नए ढं ग के मकान ब त कम थे, सभी लकड़ी
के मकान थे । एक सां झ िनकलते थे, और एक मकान म आग लग गई है ; लोग सामान बाहर िनकाल रहे ह। िजसका
मकान है, वह छाती पीटकर रो रहा है । राम भी उस आदमी के पास खड़े होकर उस आदमी को गौर से दे खने लगे ।

वह छाती पीट रहा है , रो रहा है और िच ा रहा है , कह रहा है , म मर गया! राम थोड़े िचं ितत ए, ोंिक वह आदमी
िबलकुल नहीं मरा है । िबलकुल सािबत, पूरा का पूरा है । चारों तरफ उसके घू मकर भी दे खा। उस आदमी ने कहा भी
िक ा दे खते हो! म मर गया ं , लु ट गया, सब खो गया।

राम बड़े िचं ितत ए, ोंिक उसका कुछ भी नहीं खोया है । वह आदमी पूरा का पूरा है । ले िकन हां , मकान म तो आग
लगी है , और लोग ला रहे ह सामान। ितजोिड़यां िनकाली जा रही ह। कीमती व िनकाले जा रहे ह। हीरे -जवाहरात
िनकाले जा रहे ह। िफर आ खरी बार आदिमयों ने आकर कहा िक अब एक बार और हम भीतर जा सकते ह। अंितम
ण है । एक बार और, इसके बाद मकान म जाना असंभव होगा। लपट ब त भयं कर हो गई ह। अगर कोई ज री
चीज रह गई हो, तो बता द।

उस आदमी ने कहा, मुझे कुछ याद नहीं आता। मुझे कुछ भी याद नहीं आता िक ा रह गया और ा आ गया। म
होश म नहीं ं । म िबलकुल बे होश ं । तु म मुझसे मत पूछो। तुम भीतर जाओ। तु म जो बचा सको, वह ले आओ।

हर बार वे आदमी बाहर आते थे, तो ब त खुश। कुछ बचाकर लाते थे । आ खरी बार छाती पीटते रोते ए बाहर
िनकले और एक लाश ले कर बाहर िनकले । उस आदमी का इकलौता बे टा अंदर रह गया था और जलकर समा हो
गया था।

ामी राम ने अपनी डायरी म िलखा िक उस िदन उस मकान से चीज तो सब बचा ली गईं, ले िकन मकान का
मािलक, होने वाला मािलक, जलकर समा हो गया। उ ोंने अपनी डायरी म िलखा है िक करीब-करीब हर आदमी
की िजंदगी म ऐसी ही घटना घटती है । चीज तो बच जाती ह, मािलक मर जाता है! चीज सब बच जाती ह। आ खर म
सब मकान, सब धन, ितजोड़ी, सब व थत हो जाता है । और वह िजसके िलए िकया था, वह मािलक मर जाता है!

हमारी सारी सफलता िसवाय हमारी क के और कुछ नहीं बनती। और हमारे सारे य हम िसवाय मरघट के और
कहीं नहीं ले जाते । और िजं दगी का पूरा अवसर, िजन चीजों को जोड़ने म, इक ा करने म हम गं वाते ह, कृ जै से
लोग कहते ह िक उस अवसर म हम परमा ा को भी पा सकते थे, िजसे पाकर परम आनंद भी िमलता है और मृ ु
के अतीत भी आदमी हो जाता है ; मरता भी नहीं।

ले िकन पाप से भरा िच यह न कर पाएगा। पाप से भरा िच , अथात पदाथ की ओर दौड़ता आ िच । हम सबका
दौड़ रहा है पदाथ की ओर। इधर पदाथ िदखा नहीं िक िच दौड़ा नहीं! रा े पर दे खते ह एक सुं दर को
गु जरते ए, िच दौड़ गया। दे खा एक मकान खूबसूरत, िच दौड़ गया। एक चमकती ई कार गु जरी, िच दौड़
गया।

इस िच को समझना पड़े गा, अ था पाप म ही जीवन बीत जाता है । यह दौड़ ही रहा है पूरे व , यह तलाश ही कर
रहा है । और अगर सड़क से कोई कार न गु जरे , और सड़क से कोई ी न िनकले, और कोई सुं दर भवन न िदखाई
पड़े , कोई सुं दर पु ष न िदखाई पड़े , कुछ भी न िदखाई पड़े , तो हम आं ख बं द करके िदवा दे खने लगते ह।
उसम कार गु जरने लगती ह; ी-पु ष गु जरने लगते ह; धन, शान-शौकत गु जरने लगती है । सब भीतर चलाने लगते
ह। ले िकन िच पदाथ की तरफ ही दौड़ता रहता है । जागते ह तो, सोते ह तो, सपना दे खते ह तो–िच पदाथ की
तरफ ही दौड़ता रहता है ।
205

यह पदाथ की तरफ दौड़ता आ िच परमा ा की तरफ नहीं दौड़ पाएगा। इन दो म से एक ही चु नना पड़ता है । वह
गली ब त सं करी है, उसम दो नहीं समाते ।

और उसकी िदशा बड़ी िवपरीत है । वह डायमशन अलग है । वह डायमशन िबलकुल िभ है , वह आयाम िभ है ।


अगर पदाथ की तरफ िच दौड़ता है , तो उसकी तरफ कभी नहीं दौड़ पाएगा। ोंिक पदाथ साकार है , और वह
िनराकार है । ोंिक पदाथ जड़ है , और वह चेतन है । ोंिक पदाथ बाहर है , और वह भीतर है। ोंिक पदाथ नीचे
है , और वह ऊपर है । ोंिक पदाथ मृ ु म ले जाता, और वह अमृत म। वह िबलकुल उलटा है , िबलकुल िवपरीत।
तो पदाथ की तरफ दौड़ता आ िच वहां न जा सकेगा।

सु ना है मने, एक आदमी भागा आ जा रहा है एक रा े से । तेजी म है । सां झ ढलने के करीब है । राह के िकनारे बै ठे
ए एक आदमी से उसने पूछा िक िद ी िकतनी दू र है ? उस बू ढ़े आदमी ने कहा, दो बातों का जवाब पहले दे दो,
िफर म बताऊं िक िद ी िकतनी दू र है । उसने कहा, अजीब आदमी िमले तु म भी! इतना सीधा बता दो िक िद ी
िकतनी दू र है । दो बातों के सवाल और जवाब का ा सवाल है ? उस बू ढ़े आदमी ने कहा, िफर मुझसे मत पूछो।
ोंिक म गलत जवाब दे ना कभी पसं द नहीं करता।

कोई और नहीं था, इसिलए मजबू री म उस ज ी जाने वाले आदमी को भी उस बू ढ़े से कहना पड़ा, अ ा भाई, पूछ
लो तु ारे सवाल। ले िकन मेरी समझ म नहीं आता; कोई सं गित नहीं है । म पूछता ं , िद ी िकतनी दू र है , इसम
मुझसे पूछने का कोई सवाल ही नहीं है ।

पर उस बू ढ़े ने कहा, तो तु म जाओ। नहीं तो मेरे दो सवाल! पहला तो यह िक तु म िजस तरफ जा रहे हो, इसी तरफ
जाने का इरादा है ? तो िद ी ब त दू र है । ोंिक िद ी आठ मील पीछे छूट गई है । अगर ऐसे ही जाने का है , तो
िद ी प ंचोगे ज र, यह म नहीं कहता िक गलत जा रहे हो, ले िकन पूरी जमीन का च र लगाकर। और वह भी
िबलकुल सीधी, नाक की रे खा म चलना। जरा चू के, िक च र चू क गया, तो िद ी से िफर बचकर िनकल जा सकते
हो। िसर मत िहलाना जरा भी। िबलकुल नाक की सीध म जाना। िफर भी म प ा नहीं कहता िक िद ी प ंचोगे।
सारी जमीन घू मकर भी जरा भी चू क गए, इरछे -ितरछे हो गए, तो िफर चूक जाओगे । इसिलए म पूछता ं िक इरादा
ा है ? इसी तरफ जाने का है ? और अगर लौटने की तै यारी हो, तो िद ी ब त पास है ; पीठ के पीछे है । आठ ही
मील का फासला है ।

उस आदमी ने कहा, यह मेरी समझ म आया। माफ करो िक मने तु मसे कहा िक असंगत बात पूछते हो। सं गत बात
थी। ले िकन दू सरा ा सवाल है ?

उस आदमी ने कहा िक जरा चलकर भी मुझे बताओ िक िकतनी चाल से चलते हो। ोंिक दू री चाल पर िनभर करती
है , मीलों पर नहीं। आठ मील, ते ज चलने वाले के िलए चार मील हो जाएं गे; धीरे चलने वाले के िलए सोलह मील हो
जाएं गे । और एक कदम चलकर बै ठ गए, तो आठ मील अनंत हो जाएं गे । इसिलए जरा चलकर बताओ! चाल ा है?
ोंिक सब रले िटव है । िद ी की दू री या सभी दू रयां रलेिटव ह, सापे ह। िकतना चलते हो?

उस आदमी ने कहा िक माफ करना। यह भी मेरे खयाल म नहीं था। तु म ठीक ही पूछते हो।

परमा ा भी, िजस िदशा म हम जाते ह, पदाथ की िदशा म, वहां हम कभी नहीं िमले गा। िद ी तो शायद िमल जाए,
िद ी के उलटे चलकर भी, ोंिक जमीन का घे रा ब त बड़ा नहीं है । ले िकन पदाथ का घे रा अनंत है । अगर हम
पदाथ की तरफ खोजते ए चलते ह, तो हम अनंत तक भटक जाएं , तो भी परमा ा तक नहीं लौटगे।

तो एक तो पदाथ का घे रा अनंत है , जमीन का घे रा तो ब त छोटा है । यह जमीन तो ब त मीिडयाकर ेनेट है; ब त


ही गरीब, छोटा-मोटा, ु । इसकी कोई िगनती नहीं है । यह हमारा सू रज इस पृ ी से साठ हजार गु ना बड़ा है ।
ले िकन हमारा सू रज भी ब त मीिडयाकर है । वह भी ब त म मवग य ाणी है, िमिडल ास! उससे हजार-हजार,
दस-दस हजार गु ने बड़े सू य ह, महासूय ह। इस पृ ी की तो कोई िगनती नहीं है । यह तो बड़ी छोटी जगह है । वह तो
हम ब त छोटे ह, इसिलए पृ ी बड़ी मालू म पड़ती है । इसकी थित ब त बड़ी नहीं है । चले जाएं , तो प ंच ही जाएं गे
206

िद ी। ले िकन पदाथ तो अनंत है । उसके फैलाव का तो कोई अंत नहीं। वह तो हम िकतना ही चलते जाएं गे, वह
आगे-आगे-आगे मौजू द रहे गा।

तो एक फक तो यह करना चाहता ं िक पदाथ अनंत है , इसिलए उस िदशा से कभी परमा ा तक नहीं आ पाएं गे,
लौटना ही पड़े गा।

जै नों के पास एक ब त अ ा श है, वह है, ित मण। ित मण का अथ है, रटघनग बै क, वापस लौटना।


आ मण का अथ है, जाना, हमला करना; और ित मण का अथ है , वापस लौटना। हम सब आ ामक ह पदाथ
की तरफ, वही पाप है । ित मण पु है । वापस लौट आएं ।

तो एक तो यह आपसे कहना चाहता ं िक पदाथ अनंत है , इसिलए िकतना ही आ मण करो, कभी भी पा न सकोगे
भु को। और जब तक भु न िमल जाए, तब तक शां ित नहीं, सं तोष नहीं, चै न नहीं। और दू सरी बात यह कहना
चाहता ं िक उस बू ढ़े ने कहा िक पीछे लौटो, िद ी आठ मील दू र है । म आपसे कहना चाहता ं, पीछे लौटो,
परमा ा आठ इं च भी दू र नहीं है । आठ मील ब त ादा है । असल म पीछे लौटो, तो आप ही परमा ा हो। अगर
ठीक से कह, तो ऐसा कहना पड़े गा। जरा-सा भी फासला नहीं है ।

मोह द ने कहा है–कोई पूछता है मोह द से िक भु िकतने दू र है–तो वे कहते ह िक यह जो गले की धड़कती ई
नस है , इससे भी ादा िनकट। इसे काट दो, तो आदमी मर जाता है । यह जीवन के ब त िकनारे है । मोह द कहते
ह, यह जो गले की धड़कती नस है , इससे भी िनकट, इससे भी पास, जीवन से भी पास।

लौटने भर की दे री है । लौटकर चलना भी नहीं पड़ता, ोंिक चलने लायक फासला भी नहीं है । िसफ लौटना, ज
रटघनग इज़ इनफ। पर अबाउट टन, पूरा का पूरा लौटना पड़े , एकदम पूरा। मुख जहां है , उससे उलटा कर ले ना
पड़े ।

पदाथ की तरफ जो उ ुखता है , वह पाप है । और पदाथ की तरफ पीठ कर ले ना पु है । इसिलए दान पु बन


गया, और कोई कारण न था। ोंिक िजसने धन िदया, उसने ित मण शु िकया। िजसने धन िलया, उसने
आ मण िकया। इसिलए ाग पु बन गया, ोंिक ाग का अथ है , पदाथ की तरफ पीठ कर ली।

बु घर छोड़कर गए ह, तो जो सारथी उ छोड?ने गया है , रा े म ब त रोने लगा। और उसने कहा िक म कैसे


लौटू ं आपको छोड़कर! इतना धन, इतना अपार धन छोड़कर जा रहे ह आप, पागल तो नहीं ह? म छोटा ं , छोटे मुंह
बड़ी बात मुझे नहीं कहनी चािहए। ले िकन इस अंितम ण म न क ं , यह भी ठीक नहीं। आप पागल ह! इतना धन
छोड़कर जा रहे ह!

बु ने कहा, कहां है धन? तु म मुझे िदखाओ, तो म वापस लौट जाऊं। उन महलों म, तु म तो बाहर ही थे, म भीतर
था। उन ितजोिड़यों को तु मने दू र से दे खा है ; उनकी चािबयां मेरे हाथ म थीं। उस रा के रथ के तु म िसफ चालक थे,
म उसका मािलक था। म तु मसे कहता ं िक मने वहां धन कहीं नहीं पाया। ोंिक धन तो वही है , िजससे आनंद िमल
जाए।

बु ने जो श उपयोग िकया है , वह है, सं पि । वह ब त बिढ़या श है । बु ने कहा, सं पि तो वही है, िजससे


सं तोष िमल जाए। वहां तो मने िसफ िवपि पाई, ोंिक िसवाय दु ख के कुछ भी न पाया। िवपि पाई। िजसे तु म
सं पि कहते हो, वह िवपि है । म उसे छोड़कर जा रहा ं । िवपि को छोड़कर जा रहा ं सं पि की तलाश म।

पदाथ की तरफ से मुंह मोड़ना पड़े । ज री नहीं िक बु की तरह छोड़कर जं गल जाएं । बु जै सा छोड़ने को भी तो
नहीं है हमारे पास। बु जै सा हो, तो छोड़ने का मजा भी है थोड़ा। कुछ भी तो नहीं है, पदाथ भी नहीं है । परमा ा
नहीं है , वह तो ठीक है । पदाथ भी ा है! कुछ भी नहीं है ।
207

मगर बड़े मजे की बात है िक बु को इतनी सं पि िवपि िदखाई पड़ी। और हम वह जो छोटा-सा मनीबे ग खीसे म
रखे ह, वह सं पि मालू म पड़ती है ! बु को सा ा थ मालूम पड़ा। हमने जो अपने मकान के आस-पास थोड़ी-
सी फिसं ग कर रखी है , वह सा ा मालू म पड़ता है! इसे थोड़ा दे खना ज री है ; समझना ज री है िक िजसे हम
सं पि कह रहे ह, वह सं पि है ?

छोड़ने को नहीं कह रहा ं, समझने को कह रहा ं । समझ से त ाल रस छूट जाता है । िफर आप कहीं भी रह; िफर
आप कहीं भी रह–मकान म रह िक मकान के बाहर–इससे फक नहीं पड़ता। िफर मकान के भीतर भी आप जानते
ह िक मकान म नहीं ह। िफर आपके हाथ म धन रहे या न रहे , ले िकन भरा आ हाथ भी जानता है िक गहरे अथ म
सब कुछ खाली है । और िजस िदन वह समझ पैदा हो जाती है , उस िदन ित मण शु हो जाता है ।

पाप है , आ मण पदाथ पर; पु है , ित मण पदाथ से । और समझ के अित र कोई माग नहीं है । ोंिक
नासमझी के अित र पदाथ से कोई जोड़ नहीं है हमारा। नासमझी ही हमारा जोड़ है । नासमझ ह, इसीिलए जु ड़े ह।
सोचते ह, सं पि है , इसिलए पकड़े ह। जान लगे िक सं पि नहीं है, हाथ खुल जाएं गे, पकड़ छूट जाएगी।

ान रहे, पकड़ छूट जाने का अथ भाग जाना नहीं है , ए े प नहीं है ; ंिगंग छूट जाना है , पकड़ छूट जाना है ।
ठीक है , व ु एं ह, उनका उपयोग िकया जा सकता है । बराबर िकया जाना चािहए। वह परमा ा की अनुकंपा है िक
इतनी व ु एं ह और उनका उपयोग िकया जाए। जीवन के िलए उनकी ज रत है । ले िकन भु को पाने के िलए उन
पर जो हमारी पकड़ है…।

पकड़ बड़ी अजीब चीज है । पकड़ िसफ खयाल है । एक छोटी-सी कहानी से समझाने की कोिशश क ं , मुझे ब त
ीितकर रही है ।

सु ना है मने िक एक सां झ, रात उतरने के करीब है , अंधेरा िघर रहा है , और एक वनपथ से दो सं ासी भागे चले जा
रहे ह। बू ढ़े सं ासी ने पीछे यु वा सं ासी से कई बार, बार-बार पूछा, कोई खतरा तो नहीं है ? वह यु वा सं ासी थोड़ा
है रान आ िक सं ासी को खतरा कैसा! और िजसको खतरा है, उसी को तो गृ ह थ कहते ह। खतरा होता ही है कुछ
चीज हो पास, तो खतरा होता है ! न हो कुछ, तो खतरा होता है ? और कभी इस बू ढ़े ने नहीं पूछा िक कोई खतरा है ;
आज ा हो गया!

िफर एक कुएं पर पानी पीने के। बू ढ़े ने अपना झोला जवान सं ासी के, अपने िश के कंधे पर िदया और कहा,
स ालकर रखना! तभी उसे लगा िक खतरा झोले के भीतर ही होना चािहए। बू ढ़ा पानी भरने लगा, उसने हाथ
डालकर खतरे को टटोला। दे खा िक सोने की ईंट अंदर है । खतरा काफी है ! उसने ईंट को िनकालकर तो फक िदया
कुएं के नीचे, और एक प र करीब-करीब उसी वजन का झोले के भीतर रखकर कंधे पर टां गकर खड़ा हो गया।

बू ढ़े ने ज ी-ज ी पानी पीया।

िजसके पास खतरा है , वह पानी भी तो ज ी-ज ी पीता है ! आप सभी जानते ह उसको! सबके भीतर वह बै ठा आ
है , जो ज ी-ज ी पानी पीता है , ज ी-ज ी खाना खाता है, ज ी- ज ी चलता है, ज ी-ज ी पूजा- ाथना
करता है । ज ी-ज ी बे टे-ब ों को ेम की थपकी लगाता है । ज ी-ज ी सब चल रहा है , ोंिक खतरा भारी है ।

नहीं, पानी पीया भी िक नहीं पीया! ास बु झी िक नहीं बु झी! ज ी से झोला कंधे पर िलया; टटोलकर दे खा, खतरा
सािबत है ; चल पड़े । िफर रा े म पूछने लगा िक अंधेरा िघरता जाता है । रा ा सू झता नहीं। कोई दू र गां व का दीया
भी िदखाई नहीं पड़ता। बात ा है ! हम भटक तो नहीं गए? कुछ खतरा तो नहीं है ?

वह यु वक खल खलाकर हं सने लगा। और उस अंधेरी रात म उसकी खल खलाहट वृ ों म गूं जने लगी। उस बू ढ़े ने
कहा, हं सते हो पागल! कोई सु न ले गा, खतरा हो जाएगा! उस युवक ने कहा, अब आप बे िफ हो जाएं । खतरे को म
कुएं पर ही फक आया ं ।
208

बू ढ़े ने घबड़ाकर झोले के भीतर हाथ डाला। िनकाला, तो सोने की ईंट तो नहीं है, प र का टु कड़ा है । ले िकन दो मील
तक प र का टु कड़ा भी खतरा दे ता रहा! दय धड़कता रहा जोरों से! ंिगं ग! सोना तो था नहीं, इसिलए सोने को
आप दोष नहीं दे सकते । सोना तो था नहीं झोले म, इसिलए सोने को कसू रवार नहीं ठहरा सकते । प र का टु कड़ा
था, ले िकन मन म सोना था। मन म तो पकड़ थी सोने की।

एक ण तो बू ढ़े के दय की धड़कन जै से बं द ई- ई हो गई। िफर उसे भी हं सी आ गई यह सोचकर िक दो मील


प र को ढोया, नाहक डरे । युवक खल खलाकर हं स ही रहा था, वह भी खल खलाकर हं सा। झोले को वहीं पटक
िदया। और कहा िक अब हम यहीं सो जाएं , अब तो कोई खतरा नहीं है ।

अगर प र का टु कड़ा मन म सोना हो, तो खतरा हो जाता है । और अगर सोने का टु कड़ा मन म प र हो, तो आदमी
बे खतरा हो जाता है । आप पर िनभर है ।

और मजे की बात है िक सोने और प र म कोई बु िनयादी फक है नहीं। सब आदमी के बनाए ए िडसिटं न ह;


सब आदमी के बनाए ए भे द ह; िबलकुल ह्यूमन, िबलकुल मानवीय।

आदमी न हो जमीन पर, तो ा आप सोचते ह, सोना िसं हासन पर बै ठेगा और प र पैरों म? इस भू ल म न पड़ना।
कोई सोने को नहीं पूछेगा। कोई प र को छोटा नहीं मानेगा। हीरे -जवाहरात कंकड़ों के पास कंकड़ों जै से ही पड़े
रहगे ।

आदमी को हटा ल पृ ी से, िफर एक कंकड़ म और एक हीरे म कोई फक है? कोई फक नहीं है ! सब फक आदमी
के मन के िदए ए ह। सब फक आदमी के मन के िदए ए ह। सब ह्यूमन इनवे नशं स ह, आदमी के झूठे आिव ार
ह। आदमी ने ही आरोिपत िकए मू , और िफर उ ीं मू ों म बं धता और सोचता और मु ी बां धकर जीता है ।

कृ कहते ह, पाप से जो मु हो, वह भु की तरफ गित कर पाता है , भु की तरफ उ ुख हो जाता है । पदाथ से


मु हो मन, तो भु की तरफ त ाल लीन हो जाता है ।

उस रात िफर वह साधु आधी रात तक भु के भजन गाता रहा। उस जवान ने कहा भी िक अब सो जाएं ! पर उस बू ढ़े
साधु ने कहा िक आज मुझे जीवन म जो िदखाई पड़ा है , वह कभी िदखाई नहीं पड़ा था। मुझे जरा भु को ध वाद दे
ले ने दे । एक प र सोने का धोखा दे गया! और म धोखा खाता रहा। तो मेरे मन म ही कहीं खोट है । और अब अगर
मेरे झोले म कोई सोना लटका दे , तो भी म प र ही समझूंगा। और अब मुझे कभी खतरा होने वाला नहीं है । अब म
कभी भयभीत न होऊंगा। ोंिक भय मेरे मन म था, ोंिक मू भी मेरे मन म था। कीमत भी मेरी, भय भी मेरा,
दोनों मेरी ईजाद, और म परे शान था! मुझे भु को ध वाद दे ले ने दे ।

जीवन म थोड़ा तलाश कर। पदाथ को िदए गए मू हमारे मू ह। थोड़ा खोज कर। पदाथ की पकड़ हमारा दु ख,
हमारी िचं ता, हमारा सं ताप, हमारी एं श है । थोड़ा खोज कर। पदाथ को पकड़-पकड़कर हम पागल हो गए ह।
इसको थोड़ा समझ। और आपके मन की पकड़ ढीली हो जाएगी। और वह िदन आ सकता है कभी भी, जब उस बू ढ़े
की तरह रात आप दे र तक भजन गाते रह और भु को ध वाद द िक पदाथ से पकड़ छूट गई।

उसी ण ित मण हो जाता है। इधर छूटा पदाथ से हाथ, उधर भु म वे श आ। यह यु गपत, साइमलटे िनयस,
एक साथ घट जाते ह। भु को खोजने जाने की ज रत नहीं है , िसफ पदाथ से छूटने की ज रत है । यहां जला दीया,
वहां अंधेरा गया। ऐसे ही यहां जला ित मण, या ा लौटी पीछे की तरफ, वहां भु से िमलन आ।

तो कृ कहते ह, ऐसा सतत आ ा को परमा ा म लगाए रखता है ।

िजसका पदाथ से सं बंध छूट जाता है, उसका सतत सं बंध परमा ा से बन जाता है । िबना सं बंध के तो हम रह नहीं
सकते । अगर ठीक से समझ, तो वी ए झ इन रलेशनिश , हम सं बंधों म ही जीते ह। अभी पदाथ के सं बंध म
209

जीते ह, जब पदाथ का सं बंध छूट जाता है , तो नए सं बंधों का जगत शु होता है; हम भु के सं बंध म जीने लगते ह।
और आ ा िनरं तर भु म लगी रहती है । ोंिक िफर तो इतना आनंद है उस तरफ िक एक ण को भी भू लना
मु ल है भु को। िफर कुछ भी काम करते रह–िफर दु कान चलाते रह, द र म काम करते रह, िम ी खोदते रह,
पहाड़ तोड़ते रह–जो भी करना हो, करते रह।

कबीर कहते थे िक िफर ऐसा हो जाता है …। कबीर से लोग पूछते होंगे। कबीर तो उन लोगों म से थे, जो पाप के
बाहर ए और िज ोंने भु का दशन जाना। तो कबीर से लोग पूछते होंगे िक आप कपड़ा बु नते रहते िदनभर, िफर
भु का रण कब करते ह?

कबीर तो जु लाहे थे और जु लाहे ही बने रहे । वे छोड़कर नहीं गए। जान िलया भु को, िफर भी कपड़ा ही बु नते रहे ,
झीनी-झीनी चद रया बु नते रहे । रोज सां झ बे चने चले जाते बाजार म। लोग पूछते िक आप कभी कपड़ा बु नते, कभी
बाजार म बे चते, भु का रण कब करते ह?

तो कबीर, कोई पूछ रहा था, उसे उठाकर अपने झोपड़े के बाहर ले गए और कहा, यहां आ! ोंिक शायद म कह न
सकूं, ले िकन बता तो सकता ं ।

िवट् िगं ीन ने अपनी एक अदभु त िकताब म, टे े टस म एक वा िलखा है िक कुछ चीज ह, जो कही नहीं जा
सकतीं, ले िकन बताई जा सकती ह। दे अर आर िथं च कैन नाट बी से ड, बट च कैन बी शोड। कही नहीं जा
सकतीं, बताई जा सकती ह। ब त-सी चीज ह। जो भी मह पूण चीज ह, कही नहीं जा सकतीं। ले िकन इशारा तो
िकया ही जा सकता है ।

िवट् िगं ीन तो बड़ा तक-िन ात था। शायद इस सदी म उससे बड़ा कोई तािकक नहीं था। पर उसने भी यह
अनुभव िकया िक कुछ चीज ह, जो नहीं कही जा सकतीं, िसफ बताई जा सकती ह।

तो कबीर ने कहा िक बाहर आओ, शायद कोई चीज से म तु बता दू ं । कबीर उस आदमी को ले कर चले । थोड़ी दे र
बाद उस आदमी ने कहा, अब बताइए भी! कबीर ने कहा, जरा कोई मौका तो आ जाने दो। मुझे कुछ िदखाई नहीं
पड़ रहा है िक कैसे तु बताऊं। वही म खोज रहा ं । जरा और चल। थोड़ी दे र म वह आदमी थक गया। उसने
कहा, म घर जाऊं, मुझे दू सरे काम करने ह। कब बताइएगा? कबीर ने कहा िक ठहरो-ठहरो, आ गया मौका।

नदी से एक ी पानी की गागर भरकर िसर पर रखकर चल पड़ी है । शायद उसका ि यजन उसके घर आया होगा–
कोई अितिथ, कोई मेहमान। उसके चे हरे पर बड़ी स ता है । उसकी चाल म ते ज गित है । वह उमंग से भरी और
नाचती जै सी चलती है , और ऐसी चल रही है । गागर उसने िबलकुल छोड़ रखी है , िसर पर गागर सं भली है ।

कबीर ने कहा, इस ी को दे खो। यह कुछ गु नगु ना रही है गीत। शायद उसका ि यजन आया होगा, उसका ेमी
आया होगा। ेमी ासा होगा, उसके िलए पानी ले कर जाती है। दौड़ती जाती है ! हाथ दोनों छूटे ए ह, गागर िसर पर
है । म तु मसे पूछता ं , इसको गागर की याद होगी या नहीं होगी? गीत गाती है , चलती है रा े पर; काम म लगी है
पूरा; गागर का रण होगा िक नहीं होगा?

उस आदमी ने कहा, रण नही ं होगा, तो गागर नीचे िगर जाएगी!

तो कबीर ने कहा, यह साधारण-सी औरत रा ा पार करती है, गीत गाती है , िफर भी गागर का रण इसके भीतर
बना है । तो तु म मुझे इससे भी गया-बीता समझते हो िक म कपड़ा बु नता ं और परमा ा का खयाल करने के िलए
मुझे अलग से समय िनकालना पड़े गा? मेरी आ ा उसम िनरं तर लगी ही है । इधर कपड़ा बु नता रहता है , कपड़े के
बु नने का काम शरीर करता है , आ ा उधर भु के गु णों म लीन बनी रहती है , डूबी रहती है । और ये हाथ भी, आ ा
भु म डूबी रहती है , इसिलए आनंद से म होकर कपड़ा बु नते ह।
210

कपड़ा भी िफर कबीर का साधारण नहीं बु ना जाता। और कबीर जब ाहक को बे चते थे कपड़ा, तो कहते थे, राम,
ब त स लकर वापरना। साधारण कपड़ा नहीं है; भु की ृित भी इसम बु नी है । वे ाहक से कहते थे, राम, जरा
स लकर वापरना।

कोई ाहक कभी-कभी पूछ भी ले ता िक मेरा नाम राम नहीं है ! तो कबीर कहते िक म तु ारे उस नाम की बात कर
रहा ं , जो इस नाम के भी पहले तु ारा था और इस नाम के बाद भी तु ारा होगा। म तु ारे असली नाम की बात
कर रहा ं । यह बीच म तु मने कौन से नाम रखे, तु म िहसाब-िकताब रखो। बाकी जब आ खर म सब नाम िगर जाएं गे,
तो जो बच रहे गा, म उसकी बात कर रहा ं ।

भु का रण, आ ा का उसम सतत लगा रहना, तभी सं भव है , जब िच पाप से मु हो जाए। िच पाप से मु


हो जाए, पार हो जाए, अतीत हो जाए, उठ जाए ऊपर, पदाथ की दौड़ छूट जाए, तो िफर लगा ही रहता है । यह ऐसा
लग जाता है , िजसका कोई िहसाब नहीं। सब करते ए भी लगा रहता है ।

और िजस िदन सब करता आ लगा रहे , उसी िदन योग पूण आ। अगर कोई कहे िक म काम करता ं , तो मुझे भु
की ृित भू ल जाती है , तो उसका भु बड़ा बचकाना है, बड़ा छोटा है । काम से हार जाता है! ु -सा काम और भु
की ृित को तोड़ दे , तो अभी भु की ृित नहीं है , कोई नकली ृित होगी। ऐसा जबद ी थोप-थापकर बै ठ गए
होंगे अपने को िक भु का रण कर रहे ह। ले िकन होगा नहीं। हो नहीं सकता। अगर भु की ृित आ गई है,
पदाथ से मन छूट गया है और भु की याद आ गई है, तो अब कुछ भी क रए और कहीं भी चले जाइए, और जािगए
िक सोइए, ृित जारी रहे गी।

राम एक रात सो रहे ह अपने कमरे म। एक िम सरदार पूणिसं ह उनके कमरे पर मेहमान थे ामी राम के। आधी
रात कुछ गम थी, नींद खुल गई; बड़े चौंककर है रान ए। जोर-जोर से राम की आवाज आ रही है , राम! सोचा िक
कहीं रामतीथ उठकर भु- रण तो नहीं करने लगे! ले िकन अभी आधी रात मालू म पड़ती है । अंधेरा है ।

उठे । दे खा िक राम तो िब र पर मजे से सो रहे ह। पर आवाज आ रही है! ब त है रान ए िक कोई और तो आस-
पास नहीं है । एक च र झोपड़े का लगा आए। कोई भी नहीं है । िफर पास आए। ले िकन जै से राम के पास आते,
आवाज बढ़ जाती; दू र जाते, आवाज कम हो जाती। तो ब त पास आकर, पैर के पास कान रखकर सु ना। भरोसा नहीं
आ; िव ास नहीं आया। हाथ के पास जाकर कान रखकर सु ना; भरोसा नहीं आया। पूरे शरीर के रोएं -रोएं से जै से
राम की आवाज उठ रही है । घबड़ा गए िक म कोई सपना तो नहीं दे ख रहा ं ! जाकर आं ख धोईं। म िकसी ां ित,
िकसी हे ू िसनेशन म तो नहीं ं ! ोंिक यह कैसे हो सकता है िक शरीर से आवाज आए! रातभर जगे बै ठे रहे, िक
जब राम उठ सु बह, तो उनसे पूछ ल।

सु बह उठकर राम से पूछा, तो राम ने कहा, आ सकती है । ोंिक जब से रण आ उसका, तब से िदन हो या रात,
भीतर तो सतत उसकी अनुगूंज चलती रहती है । हो सकता है , शरीर भी कंिपत हो रहा हो और आवाज आ गई हो। हो
सकता है , राम ने कहा, ोंिक मने तो कभी सोते म उठकर–अपने शरीर को सु नने का उपाय भी नहीं है । हो सकता
है । ले िकन भीतर मेरे चलता रहता है । भीतर चलता रहता है ।

किठन नहीं है यह। ोंिक शरीर भी तो िवद् युत की तरं गों का जाल है ; िन भी तो िवद् युत की तरं ग है । दोनों म कोई
भे द तो नहीं है । और अगर भीतर ब त गहरी अनुगूंज हो, तो कोई कारण नहीं है िक शरीर के तं तु ों न िनत होने
लग! कोई कारण तो नहीं।

जो सं गीत की गहरी पकड़ जानते ह, उ पता होगा िक अगर एक सू ने कमरे म बं द ार करके, खाली कमरे म एक
वीणा बजाई जाए और दू सरी वीणा को दू सरे कोने म खाली िटका िदया जाए, तो थोड़ी दे र म उसके तार रजोनस
करने लगते ह। एक वीणा बजे, दू सरी वीणा जो खाली रखी है , कोई बजाता नहीं, उसके तार भी कंपकर जवाब दे ने
लगते ह। रजोनस पैदा हो जाता है । िनयां टकराती ह उस वीणा से, उसके तार भी कंिपत होकर उ र दे ने लगते
ह।
211

पूरा शरीर है तो िवद् यु त की तरं ग। िन भी िवद् युत का एक प है । कोई आ य तो नहीं है िक भीतर िन ब त


गहरे , दय की अंतर-गु हा तक गूं जने लगे, तो शरीर रजोनस करने लगे, रोआं -रोआं शरीर का कंपने लगे ।

ऐसे भी, अगर म ब त ेम से भरा आ हाथ आपके हाथ पर रखूं, तो मेरे हाथ की तरं गों म भे द होगा। और म ोध से
भरकर और घृ णा से भरकर यही हाथ आपके हाथ पर रखूं, तो मेरी हाथ की तरं गों म भे द होगा। मेरे दय के भाव मेरे
हाथ की तरं ग बनते तो ह। इसिलए ेम से छु आ गया हाथ कुछ और ही श लाता है । घृ णा से छु आ गया हाथ कोई
और ही श लाता है । अिभशाप से भरे हाथ म जहर आ जाता है । वरदान से भरे हाथ म अमृत बरस जाता है ।

तो भाव दौड़ते तो ह शरीर के कोने-कोने तक। कोई कारण नहीं है िक भु का रण इतने गहरे म उतर जाए िक
शरीर के कोने-कोने तक उसकी िन पैदा हो जाए। ले िकन जीवन के ब त-से रह अ ात ह; उनके िनयम अ ात
ह। इसिलए वे हम रह पूण मालू म होते ह, ोंिक उनका िव ान हम ात नहीं है ।

सतत रण आ ा को परमा ा का बना रहता है –एक बार पदाथ से िच हट जाए, पाप से िच हट जाए।

कृ कहते ह, वै सा परम आनंद को उपल होता है ।

कृ हर सू के बाद यही कहते ह िक ऐसा परम आनंद को उपल होता है , ऐसा परम आनंद को
उपल होता है , ऐसा परम आनंद को उपल होता है । यह परम आनंद ा है? कुछ हमारी समझ म आता
नहीं है सीधा। आनंद हमने जाना ही नहीं। परम आनंद ा है? कोरा श । कान पर गूं जता है , खो जाता है ।

हमने सु ख जाना है थोड़ा-सा। थोड़ा-सा! जब ती ा करते ह तब, अपे ा करते ह तब, इं तजार करते ह तब। और
हमने दु ख जाना है ब त–जब िमलता है तब, जब पा ले ते ह तब, जब प ं च जाते ह तब। जब ती ा का होता है अंत
और उपल आती है हाथ म, तो दु ख। रा े पर जानी ह सु ख की क नाएं , सु ख के सपने; और मंिजल पर
प ं चकर झेली है पीड़ा दु ख की। ये हम जानते ह, सु ख और दु ख हम जानते ह। परम आनंद ा है ?

तो आमतौर से हम समझ ले ते ह, सु ख का ही कोई ब त बड़ा प होगा। नहीं, इस ां ित म न पड़ जाना आप। ऐसा


मत सोचना िक महा सु ख होगा। श कोश म यही िलखा ह। श कोशों म यही िलखा है , आनंद–महा सु ख, महान
सु ख, अनंत सु ख। हमारे पास सु ख के अलावा तौलने का कोई उपाय नहीं है ।

ले िकन एक च च से भी िहंद महासागर तौला जा सके, ले िकन सु ख से आनंद नहीं तौला जा सकता। एक च च से
भी िहं द महासागर को नाप ले ना इनकंसीवेबल नहीं है । इसको हम सोच सकते ह िक हो सकता है । ब त व लगे गा,
ले िकन िफर भी हो जाएगा। ऐसी कोई किठनाई नहीं है । ोंिक आ खर िकतने ही अनंत च चों से भरा होगा, ले िकन
एक च च कुछ तो सागर को खाली कर ही ले ती है । दू सरी और कर ले गी, तीसरी और कर ले गी। हो सकता है , पूरी
मनु जाित अनंत ज ों तक भी एक-एक च च िनकालती रहे, खाली करती रहे, ले िकन कभी न कभी खाली हो
जाएगा। इसकी क ना की जा सकती है । यह असंभव नहीं है ।

ले िकन सु ख की च च से हम आनंद को जरा भी नहीं तौल पाएं गे; वह असंभव है । ों? कारण है उसका। च च म
सागर बं ध जाए, तो ां िटटी का भर फक रहता है , ािलटी का फक नहीं रहता। एक च च म आपने सागर भर
िलया, और नीचे िहं द महासागर है , और च च म थोड़ा-सा सागर आ गया। दोनों म ां िटटी का फक है, प रमाण
का; गु ण का कोई भे द नहीं है, ािलटी का कोई भे द नहीं है । च च का सागर चखो िक नीचे का महासागर चखो;
एक-सा ाद है, एक-सा पानी है । च च के कणों का िव ेषण करो, सागर के कणों का िव ेषण करो, एक-सा
हाइडोजन, आ ीजन है । च च सागर के बाबत पूरी खबर दे दे गी। च च सागर का िमिनएचर प है ।

ले िकन सु ख और आनंद म गु णा क, ािलटे िटव अंतर है , ां िटटी का नहीं। इसिलए कोई क ना सु ख से नहीं
बनेगी। पर जब भी हम सु नते ह, अजु न, इससे परम आनंद उपल होगा, तो हमारे मन म होता है , ज र बड़ा सु ख
िमले गा। िबलकुल भू ल जाना, सु ख की बात ही भू ल जाना। सु ख से आनंद का कोई भी सं बंध नही ं है ।
212

तो िफर हम तो दो ही चीज जानते ह, सु ख और दु ख; तीसरी कोई चीज जानते नहीं। तो या तो सु ख से सं बंध होगा,
अगर सु ख से नहीं है , तो िफर ों हम उलझाते ह! ोंिक िफर दु ख ही बच रहता है । उसके अलावा तीसरी चीज हम
कुछ पता नहीं है ।

दु ख से भी आनंद का कोई सं बंध नहीं है । अगर ठीक से समझ, तो जहां दु ख और सु ख दोनों शे ष नहीं रह जाते, वहां
आनंद फिलत होता है । ले िकन वह अप रिचत है , वह अननोन है ।

इसिलए आप अगर सु ख की खोज म हों, तो कृ की बातों म मत पड़ना। अगर सु ख की खोज म हों, तो भू लकर
कृ की बात मानना ही मत। गीता बं द कर दे ना, सु ख को खोज ले ना। कृ सु ख तक जाने का कोई रा ा नहीं बता
सकते । कृ जो रा ा बता रहे ह, वह सु ख के पार जाने का है । ले िकन जो सु ख के पार जाएगा, वही दु ख के पार
जाएगा।

इसिलए बु ने तो आनंद श का उपयोग ही बं द कर िदया था इसी ां ित की वजह से । ोंिक सु ख और आनंद म


हम कुछ समानता मालू म पड़ती है । तो बु ने अपने जीवन म कभी आनंद का उपयोग नहीं िकया। जब भी कोई
पूछता था िक ा होगा िनवाण म? तो वे कहते थे, दु ख य हो जाएगा, बस। यह नहीं कहते थे िक आनंद िमल
जाएगा। अगर कोई ब त ही िज करता और कहता िक िवधायक प से कुछ बताओ, तो बु कहते, शां ित। आनंद
का उपयोग नहीं करते थे । ोंिक आनंद से सु ख का हमारा खयाल बना आ है । कहीं ऐसा लगता है िक सु ख ही
बढ़ते-बढ़ते-बढ़ते आनंद हो जाएगा।

सु ख आनंद नहीं होगा। सु ख भी पदाथ से जु ड़ाव है , दु ख भी पदाथ से जु ड़ाव है । सु ख भी पाप है , दु ख भी पाप है । दोनों
ही पदाथ से जु ड़े ह।

आपने कोई ऐसा सु ख जाना है, जो पदाथ से न जु ड़ा हो? आपने कोई ऐसा दु ख जाना है, जो पदाथ से न जु ड़ा हो?
अगर जाना हो, तो वह आनंद है । ले िकन हम तो जो भी जाने ह, वह पदाथ से जु ड़ा है । दु ख जाना है तो; धन खो गया,
दु ख आ गया। सु ख जाना है तो; धन िमल गया, सु ख आ गया। दु ख जाना है तो; ि यजन िबछु ड़ गया, तो दु ख आ गया।
सु ख जाना है तो; ि यजन िमल गया, तो सु ख आ गया। ले िकन सब पदाथ से है ।

आमतौर से हमारे मु के लोग पि म के लोगों को मैटी रयिल कहते ह। ले िकन इस जमीन पर सभी मैटी रयिल
ह, सभी लोग पदाथवादी ह। पि म के लोग ह, ऐसी बात कहनी उिचत नहीं है । सभी लोग पदाथवादी ह। अपदाथवादी
तो वह है , िजसकी कृ बात कर रहे ह। वै से लोग न पूरब म ह, न पि म म ह। कभी-कभी कोई एकाध आदमी होता
है । बाकी सब पदाथवादी ह। चाहे सु ख, चाहे दु ख, हम पदाथ की ही तलाश करते ह।

हां, एक फक हो सकता है िक पि म के लोग िसं िसयर मैटी रयिल ह, और हम इनिसंिसयर मैटी रयिल ह। वे
ईमानदार पदाथवादी ह। वे कहते ह िक ठीक है , हम तो सु ख और दु ख ही सब कुछ है ; आनंद हम मालू म ही नहीं िक
है । हम मानते भी नहीं िक है, हम तो सु ख और दु ख म जीते ह।

हम बे ईमान पदाथवादी ह। हम कहते ह, आनंद! हम आनंद के िलए ही जीते ह। और जीवनभर सु ख और दु ख की ही


चे ा करते ह।

और ान रहे, बे ईमान पदाथवादी से ईमानदार पदाथवादी बे हतर है, कम से कम ईमानदार है । और ान रहे,


ईमानदार पदाथवाद कभी भी आ ा क हो सकता है । बे ईमान पदाथवाद कभी भी आ ा क नहीं हो सकता।
ोंिक बे ईमान है ! दोहरी बीमा रयां जु ड़ी ह। पदाथ तो बीमारी है ही, बे ईमानी और भारी बीमारी है ।

हमारे मु म एक बड़ी ां ित छा गई है िक हम सब आ ा क ह। इससे बड़ा दु भा घिटत नहीं हो सकता। यह


ऐसा ही है िक िकसी अ ताल के सब मरीजों को खयाल आ जाए िक हम परम थ ह; हम गामा ह! वह अ ताल
गया! मरीज मरगे । ोंिक डा र की अब सु न नहीं सकते वे। डा र अगर कहे गा, इलाज; वे कहगे, बाहर हो
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जाओ। तु ारा िदमाग खराब है! हम परम थ ह! इलाज करना है , पि म चले जाओ। उधर लोग बीमार ह। इस
अ ताल म सब थ ह। यहां तो कोई बीमार कभी पड़ता ही नहीं।

बीमार को ां ित पैदा हो जाए िक म थ ं, तो उसका इलाज भी नहीं हो सकता। बीमार को तो ठीक से जानना
चािहए िक म बीमार ं । बीमारी की पीड़ा िजतनी साफ हो, उतना इलाज हो सकता है ।

इस मु के अ ा वाद का जो खयाल हमारे िदमाग म बै ठ गया भारी होकर, उसके कारण ह। इस मु म ऐसे
लोग पैदा ए, जो आ ा क थे । ले िकन यह मु आ ा क नहीं हो जाता इसिलए िक इस मु म लोग पैदा ए
जो आ ा क थे । िकसी घर म आइं ीन पैदा हो जाए, तो पूरा घर कोई नोबल ाइज िवनर नहीं हो जाता। िक सब
कह द िक हमारे घर म आइं ीन पैदा ए, तो नोबल ाइज तो हमारे घर के हर ब े का ज िस अिधकार है!

बु पैदा हो जाएं , कृ पैदा हो जाएं , इससे हम अ ा वादी नहीं हो जाते । ब इससे हमारे ऊपर एक और बड़ा
दािय , एक और बड़ी र ां िसिबिलटी िगर जाती है िक िज ोंने बु पैदा िकया, उनका भौितकवाद होना अ ं त
दु खद और पीड़ादायी हो जाता है । इससे हम आ ा क नहीं हो जाते, ब इससे हमारा भौितकवाद और भी
पीड़ादायी हो जाना चािहए। िक िज ोंने बु , और महावीर, और कृ , और ऋषभ पैदा िकए, उनकी हालत! उनकी
हालत दो-दो कौड़ी को पकड़ने की हो, उनकी हालत चौबीस घं टे पदाथ के िचंतन की हो!

हां, इसको अगर अ ा वाद हम समझते हों िक रोज उठकर हम सु बह गीता पढ़ ले ते ह। िकतनी बार पिढ़एगा?
और जब पहली बार आपकी बु म नहीं आई, तो आप समझते ह, दू सरी बार आपकी बु थोड़ी ादा हो जाएगी?
िडटे रयोरे ट हो रही है बु रोज। कल िजतनी थी, कल और कम हो जाने वाली है । दू सरी बार और कम समझ म
आएगी। और तीसरी बार समझने की ज रत ही नहीं रह जाएगी, तोते की तरह दोहराए चले जाएं गे । िफर िजं दगीभर
आदमी गीता पढ़ता रहता है और सोचता है । कुछ नहीं समझता; श दोहराता है ।

आ ा क होना हो, तो जीवंत योग की ज रत है । कृ योग की ही बात कर रहे ह। वे कह रहे ह, पदाथ से


हटाओ।

सोचगे, कभी न हटा पाएं गे । हटाना शु कर। अभी थोड़ी ही दे र म पदाथ पकड़े गा, तब पदाथ से दू र रहकर–अभी
ास लगे गी और पानी पीएं गे, तब थोड़ा ास से दू र खड़े होकर ास को भी दे खना, पानी को भी दे खना। पानी
ास को बु झा रहा है , यह भी दे खना। और आप दे खने वाले रहना। आप न ासे बनना और न पानी बनना। जब
ास िमट जाए, तब भी आप जानने वाले रहना िक अब ास िमट गई। आप ास मत बन जाना, अ था पानी पर
पागलपन शु हो जाएगा। आप जरा दू र खड़े होकर दे खते रहना।

यह दू र खड़े होने की कला, यह ितपल दू र खड़े होने की कला, ठीक व ु ओं के बीच म अनास होने की कला ही
िकसी ण उस िव ोट म ले आती है जीवन को, जहां हम परमा ा से एक हो जाते ह।

अभी इतना ही। पर बै ठ। पां च िमनट थोड़ा योग कर ल। दो ीन बात आपसे कह दू ं , तो आपको आसानी होगी।

कई िम मुझे पूछ रहे ह िक सं कीतन ा है ?

तो दो ीन बात आप समझ ल। िफर आप दे ख भी ल। ोंिक कुछ चीज ह, जो कही नहीं जा सकतीं और बताई जा
सकती ह। तो कुछ म आपको बताऊं िक सं कीतन ा है । कुछ थोड़ा-सा कह दू ं , तो आपको खयाल म आ जाए।

एक, सं कीतन छलां ग है–ए जं प–बु के बाहर। ान रखना, बु के बाहर। वह जो सोच-िवचार का जगत है हमारे
मन का, उसके बाहर भाव के जगत म एक छलां ग है । सोचगे-िवचारगे, तो नाच न सकगे । सोचगे-िवचारगे, तो गा न
सकगे । सोचगे- िवचारगे, तो सब पागलपन लगे गा िक ये तो पागल हो गए।
214

ले िकन सोच-िवचारकर िजं दगीभर दे ख िलया, कहीं प ंचे नहीं ह। काफी गिणत कर िलया, काफी दशनशा पढ़
िलया, काफी तक कर िलया–हाथ म राख भी नहीं है ।

तो थोड़ी दे र के िलए, एक सात िमनट के िलए सोचने के बाहर की दु िनया म भी झां ककर दे ख ल। और िबना झां के
कोई उपाय नहीं है । म आपसे क ं िक जरा खड़की पर आ जाएं । आकाश है बाहर, तारे िनकले ह, फूल खले ह। तो
आप खड़की पर आने के पहले नहीं जान सकगे िक तारे खले ह। खड़की पर आ जाएं , तो आकाश िदखाई पड़
सकता है ।

एक छोटा-सा आकाश यहां सं कीतन का सं ासी पैदा करगे । सं ािसयों से क ं गा, वे लोगों को भू ल जाएं । लोग ह या
नहीं, इसकी िफ छोड़ द। वे तो अपने रस म पूरे डूब जाएं । अपने हाथों को परमा ा की तरफ फैला द और नाच म
म हो जाएं ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


अहं कार खोने के दो ढं ग— (अ ाय-6) वचन—चौदहवां

सवभूत थमा ानं सवभूतािन चा िन।


ई ते योगयु ा ा सव समदशनः।। 29।।
यो मां प ित सव सव च मिय प ित।
त ाहं न ण ािम स च मे न ण ित।। 30।।

और हे अजु न, सव ापी अनंत चे तन म एकीभाव से थित प योग से यु ए आ ा वाला तथा सबम समभाव से
दे खने वाला योगी आ ा को सं पूण भू तों म बफ म जल के स श ापक दे खता है और सं पूण भू तों को आ ा म
दे खता है ।

और जो पु ष सं पूण भू तों म सबके आ प मुझ वासुदेव को ही ापक दे खता है और सं पूण भू तों को मुझ वासुदेव
के अंतगत दे खता है, उसके िलए म अ नहीं होता ं और वह मेरे िलए अ नहीं होता है ।

परमा ा अ है , ऐसी हमारी मा ता है । ले िकन यह मा ता बड़ी भू ल भरी है । परमा ा अ नहीं है, हम ही


अंधे ह; खोजगे, तो ऐसा पाएं गे । अंधा अगर कहे िक काश अ है , तो जो अथ होगा, वही अथ हमारे कहने का
होता है िक परमा ा अ है ।

आदमी ब त अदभु त है । यं का अंधापन ीकार करना पीड़ादायी है ; परमा ा को ही अ मान ले ना सु खद है ।


अंधे को भी आसान पड़े गा यह मान ले ना िक काश कुछ ऐसी चीज है जो िदखाई नहीं पड़ती; बजाय यह मानने के
िक म अंधा ं । अहं कार को चोट लगती है िक म अंधा ं । और िफर भी आं ख के अंधेपन से इतनी चोट नहीं लगती,
िजतनी मेरी चेतना अंधी है , तो चोट लगती है ।

इसिलए आपसे कहता ं , जो-जो लोग कहे चले जाते ह िक परमा ा अ है, परमा ा अ है , वे िसफ अपने
अंधेपन को ढां के चले जाते ह। आं ख खुली हो, तो परमा ा ही है । या ऐसा समझ िक जो भी है, वही
परमा ा है । न िदखाई पड़ना, अ होने का सबू त नहीं है अिनवाय प से; अंधेपन का सबूत भी हो सकता है ।

कृ इस सू म यही कहते ह। वे कहते ह िक िजसने अनुभव िकया सम भू तों म एक को, और िजसने एक म


अनुभव िकया सम भू तों को, उसके िलए न तो म अ ं और न वह मेरे िलए अ है ।

इसम दू सरी और अदभुत बात कही है । उसके िलए म अ नहीं ं , यह पहले समझ ल। िफर इससे भी अदभुत
बात कृ ने कही है, वह मेरे िलए अ नहीं है । ोंिक हम, परमा ा अ है, इस बात को तो अपने अंधेपन से
समझा लगे । ले िकन परमा ा के िलए हम अ ह, इसे हम कैसे समझाएं गे!
215

सम भू तों म दे ख पाए जो एक को…।

आकार ेक व ु का अलग है । ेक का आकार अलग है । े क व ु का गु ण अलग है । ेक व ु


िभ -िभ है । ले िकन िभ ता के भीतर जो अिभ ता दे ख पाए। यू िनटी इन डायविसटी। वह जो इतना अनेक-अनेक
होकर िदखाई पड़ रहा है , वह कहीं गहरे म एक है–ऐसा जो दे ख पाए! सोच पाए नहीं। सोचना तो ब त किठन नहीं
है ।

सोच तो िव ान भी पाता है िक सम पदाथ के बीच कोई एक ही है । ले िकन सोचने से कुछ हल नहीं होता। सोच तो
हम भी सकते ह िक सम सोने के आभू षणों के बीच सोना ही है ; और सम सागरों म एक ही जल है । सोचने का
सवाल नहीं है । सोचने से आं ख नहीं खुलती। अंधा भी काश के सं बंध म सोच-िवचार करता रह सकता है । इससे
अनुभव उपल नहीं होता।

दे ख पाए!

इसिलए दु िनया म सम भाषाओं म, चाहे वे िकसी कोने म पैदा ई हों, हम भु-सा ात करने वाले के िलए जो
उपयोग करते ह, उसम आं ख का उपयोग ज र करते ह। भारत म हम कहते ह, ा। उसका अथ है , दे खने वाला।
िवचारक नहीं, सोचने वाला नहीं। त अनुभव को हम कहते ह, दशन; िचंतन नहीं, मनन नहीं, आं ख। पि म म भी
दे खने वाले को सीअर ही कहते ह, दे खने वाला ही कहते ह, िजसने दे खा–सोचा-िवचारा नहीं–दे खा, अनुभव िकया।

कैसे अनुभव होगा? सम पों म वह अ प कैसे िदखाई पड़े गा?

जब तक आप प दे खगे, तब तक िदखाई नहीं पड़े गा। थोड़ा अ प की तरफ साधना करनी पड़े गी। ले िकन हम जो
भी दे खते ह, सब पवान है । हम जो भी दे खते ह, साकार है । हम जहां भी जाते ह, साकार से मुलाकात होती है ।
िनराकार से मुलाकात नहीं होती। और मजा यह है िक सब जगह िनराकार मौजू द है, ले िकन हम साकार से ही
मुलाकात होती है । और सब जगह िनगु ण मौजू द है , और हम सगु ण से ही मुलाकात होती है । और सब जगह असीम
मौजू द है , और हम सीमा से ही मुलाकात होती है । बात ा है ?

बात करीब-करीब ऐसी है, जै से कोई आदमी अपने घर के बाहर कभी न गया हो और जब भी आकाश को दे खा हो,
तो अपनी खड़की से दे खा हो। आकाश तो असीम है , ले िकन खड़की से दे खा गया आकाश े म म हो जाता है ।
खड़की का े म आकाश से लग जाता है । आकाश म कोई े म नहीं होता, कोई ढां चा नहीं होता। आकाश का कोई
चौखटा नहीं होता। आकाश चौखटे से िबलकुल मु है । ले िकन खड़की के पीछे से खड़े होने पर खड़की का
चौखटा आकाश पर जड़ जाता है ।

और िजसने कभी खुले आकाश को जाकर न दे खा हो, सदा खड़की से ही दे खा हो, वह यह न मान सकेगा िक
आकाश असीम है , िनराकार है । वह यही मान पाएगा िक आकाश की सीमा है । य िप िजसे वह आकाश की सीमा
कह रहा है , वह उसकी खड़की की सीमा है । ले िकन खड़की आकाश पर जड़ जाती है । और आकाश जरा भी बाधा
नहीं दे ता। ोंिक जो असीम है , वह िकसी चीज को बाधा नहीं दे ता; िसफ सीिमत बाधा दे ता है।

ान रखना, सीिमत हमेशा बाधा दे ता है । उसकी सीमा के आगे आप खींचोगे, इनकार कर दे गा। असीम बाधा नहीं
दे ता। असीम का अथ ही यह है िक आप कुछ भी करो, कोई बाधा नहीं पड़ती।

तो एक छोटी-सी खड़की आकाश पर जड़ जाती है , आकाश इनकार भी नहीं करता। आकाश कहता भी नहीं िक
ादती हो रही है, अ ाय हो रहा है । आकाश चु पचाप अपनी जगह बना रहता है । आकाश को पता भी नहीं चलता
िक िकसी की खड़की उसके ऊपर बै ठ गई है । ले िकन आप जो भीतर खड़े होकर दे खते ह, आपकी खड़की की
सीमा आकाश की सीमा बन जाती है । एक।
216

िफर अगर आपके घर म ब त खड़िकयां ह, तो आप ब त-से आकाशों को जानने वाले हो जाएं गे । एक खड़की से
दे खगे, एक आकाश िदखाई पड़े गा, जहां से सू रज िनकलता है । दू सरी खड़की से दे खगे, वहां अभी कोई सू रज नहीं
है ; आकाश म बदिलयां तै र रही ह। तीसरी खड़की से दे खगे , वहां बदिलयां भी नहीं ह, सू रज भी नहीं है ; आकाश म
प ी उड़ रहे ह।

जो आदमी घर के बाहर कभी नहीं गया, ा वह िकसी भी तरह सोच पाएगा िक ये तीनों आकाश एक ही आकाश
ह? नहीं सोच पाएगा। सीधा गिणत यही होगा िक तीन आकाश ह मेरे घर के आस-पास। पांच खड़िकयां होंगी, तो
पां च आकाश हो जाएं गे । दस खड़िकयां होंगी, तो दस आकाश हो जाएं गे । उस घर के भीतर रहने वाले को ा कभी
म भी यह सू झ पाएगा िक एक ही आकाश होगा? यह असंभव मालू म पड़ता है । और आकाश एक ही है ।

इं ि यों से दे खते ह हम जगत को, इसिलए आकार िदखाई पड़ता है । इं ि यां िवं डोज ह, खड़िकयां ह। और ेक
इं ि य का ढां चा िवराट के ऊपर बै ठ जाता है । कान से सु नते ह, आं ख से दे खते ह, हाथ से छूते ह। हर इं ि य अपने
ढां चे को दे दे ती है िनराकार को।

जब भी छूते ह, िनराकार छूते ह। ले िकन हाथ श को आकार दे दे ता है । हाथ की सीमा है । हाथ असीम को नहीं छू
सकता। िजसको भी छु एगा, उसे ही सीिमत बना ले गा।

जब भी दे खते ह, िनराकार को दे खते ह। ले िकन आं ख की सीमा है । आं ख िनराकार को नहीं दे ख सकती। तो जब भी


दे खते ह, आं ख अपनी खड़की िबठा दे ती है िनराकार पर, और आकार िनिमत हो जाता है । जब भी सु नते ह, तब
िफर…।

सभी इं ि यां िनराकार को आकार दे ती ह। और िफर जै सा मने कहा, उस मकान म पां च खड़िकयां हों। या हम ऐसा
समझ िक वह मकान ठहरा आ मकान न हो, आन िद ी हो, उस पर च े लगे हों और मकान िदन-रात चलता
रहे, तो पांच खड़िकयां करोड़ों आकाश बना दगी।

हम चलते ए मकान ह, िजसके नीचे पैर लगे ह। घू मती ई आं ख ह हमारे पास। हमारी सारी इं ि यां, पां च इं ि यां
पां च अरब इं ि यों का काम करती ह। ोंिक चलते व पूरे समय आकाश बदलता रहता है और हमारी इं ि य हर
बार नई-नई चीज को दे खती रहती है । इसिलए हमने यह अनंत-अनंत पों का जगत अनुभव िकया है ।

कृ इस सू तक आने के पहले बार-बार दोहराते ह िक वही जान पाएगा मुझे, जो इं ि यों के पार है । तब इतने सू ों
के बाद वे कहते ह िक जो मुझे सब भू तों म दे ख ले गा एक को, और एक म दे ख ले गा सब भू तों को…।

यह एक साथ ही घिटत हो जाता है । कहीं से भी शु कर ल। चाहे सबम दे ख ल एक को, तो दू सरी बात, एक म सब


िदखाई पड़ने लगता है । या एक म दे ख ल सबको, तो सबम एक िदखाई पड़ने लगता है । ये दो बात नहीं ह। ये दो छोर
ह एक ही घटना के, एक ही है पिनं ग के। कहीं से भी शु हो सकता है । और हर आदमी को अलग-अलग शु
होगा।

इसे भी थोड़ा खयाल म ले ल। अ था गलत छोर से आपने शु िकया, तो आप कभी भी ठीक थित म नहीं प ं च
पाएं गे ।

ये दो ढं ग ह। ैण िच – ैण िच कहता ं, ी का िच नहीं। ोंिक कुछ यों के पास पु ष का िच होता है ।


और पु ष िच का उपयोग क ं गा, तब भी मेरा मतलब िच पर आ ह है । ोंिक कुछ पु षों के पास यों का
िच होता है । ैण िच एक म सबको दे ख सकता है आसानी से ।
217

इसिलए ी मोनोगे मस है ; एक को ही पकड़ना चाहती है । यह दु िनया म जो प रवार है , पित त धम है , एक पित है ,


यह ी की पकड़ है । ी एक से ही शु कर सकती है । हां, बढ़ती चली जाए, तो ऐसी घटना आ सकती है िक एक
म सबको दे ख ले ।

ले िकन पु ष अनेक से शु कर सकता है । और ऐसी घटना आ सकती है िक अनेक म एक को दे ख ले । पु ष जो है


वह पोलीगे मस। पु ष िच और ी िच का यह फासला, इन दो चीजों का फासला िनिमत करता है ।

इसिलए पु ष ब पर दौड़ता रहता है , अनेक पर दौड़ता रहता है । एक से उसे तृ नहीं होती। होती ही नहीं। सब-
सब पों म, जीवन की सब िवधाओं म, सब िदशाओं म पु ष अनेक पर दौड़ता रहता है । ी को एक से तृ हो
जाती है । और अगर ी भी अनेक पर दौड़ती है , तो उसके भीतर पु ष िच की धानता है, ी िच की कमी है ।

पि म की ी ने अनेक पर दौड़ना शु िकया है, ोंिक पि म की ी धीरे -धीरे पु ष जै सी होती जा रही है ।


उसकी साइक म, उसके िच म बु िनयादी प रवतन हो रहे ह। और ब त आ य न होगा िक थोड़े िदनों म पि म का
पु ष एक पर ठहरने की कोिशश म लग जाए! ोंिक कृित सं तुलन कभी भी नहीं खोती है ।

िजन समाजों म ब प ी था थी, उन समाजों म िच का एक ढं ग आ। और िजन समाजों म ब पित था रही है , िक


एक ी ब त-से पित कर सके, उन समाजों के पूरे िच की व था बदल जाती है । िजस समाज म एक ी ब त
पित कर ले ती है , उस समाज म पु ष कमजोर हो जाता है और ी बलवान हो जाती है । पु ष ैण हो जाता है , ी
पु ष-चे तना को पकड़ ले ती है ।

ऐसे समाज ह जमीन पर, जहां एक ी ब पित कर सकती है । ले िकन बड़े मजे की बात है , उनकी पूरी सामािजक
व था बदल जाती है । पूरी साइकोलाजी, पूरा मनस बदल जाता है । जहां एक ी ब पित कर सकती है , वहां ी
कमाने लगती है और पु ष घर बै ठकर खाने लगता है । वहां पु ष कमाने नहीं जाता। से कडरी हो जाता है , ि तीय
है िसयत का हो जाता है । ी थम है िसयत की हो जाती है ।

अगर ठीक समझ, तो उस समाज म पु ष यों जै सा वहार कर रहे ह, यां पु ष जै सा वहार कर रही ह।
पु ष अना ामक हो जाते ह, यां आ ामक हो जाती ह।

िच को समझ ले ना आप। जब म ैण और पु ष कह रहा ं , तो ी और पु ष के शरीर से मेरा मतलब नहीं है ,


िच के ढं ग से मतलब है ।

ैण िच एक पर कना चाहता है । इसिलए ी िजतना गाढ़ ेम कर सकती है , पु ष नहीं कर पाता। पु ष का


ेम िबखर जाता है । ी का ेम एक पर, एक टू ट, एक धारा म िगरता रहता है । और इसीिलए सारी दु िनया म अब
तक ी और पु ष के बीच हम कभी सु लह पैदा नहीं करवा पाए। ोंिक उनके िच के ढं ग इतने िभ ह िक कभी
सु लह हो पाएगी, यह किठन िदखाई पड़ता है । जब तक िक हम िच के ढं ग को बदल न ल, कलह जारी रहे गी।

ोंिक ी एक को चाहती है, पु ष अनेक को चाहता है । यह कलह का बु िनयादी कारण है । और इसिलए ीर्
ई ालु हो जाती है , सदा भयभीत रहती है िक पु ष कहीं िकसी और ी को न चाहने लगे ।र् ई ालु होने के कारण
उसकी सारी कृित कु प हो जाती है । और पु ष झूठा हो जाता है, अस बोलने लगता है । ोंिक उसे भय रहता
है िक कहीं दू सरे की तरफ जो ेम से दे खी गई आं ख, उसकी ी की पकड़ म न आ जाए। तो थ की कहािनयां
गढ़ता रहता है , झूठी बात करता रहता है ।

यह मजबू री है िच की। और इस िच को अगर हम ठीक से समझ ल, तो ही हम समझ पाएं गे िक ये जो दो छोर


कृ ने कहे ह, ये ों कहे ह।
218

पु ष अगर जाएगा, तो अनेक म एक की खोज उसके िलए अ ा म भी आसान होगी। य िप आ ा क उपल


पर पु ष भी िमट जाता है , ी भी िमट जाती है । ले िकन जब तक यह नहीं आ, तब तक हमारी ेक साधना म,
हमारे े क कम म हमारा िच मौजू द रहता है ।

यही वजह है िक यां ै िटक सोसायटी का आधार बन जाती ह, ठहरे ए समाज का। यां बदलाहट िबलकुल
पसं द नहीं करतीं, या ब त ु ढं ग की बदलाहट पसं द करती ह। कपड़े , जे वर, िजनकी बदलाहट से कोई बदलाहट
दु िनया म नहीं होती। कोई बु िनयादी बदलाहट यां पसं द नहीं करतीं। यां ब त रे िस ट, ब त ितरोधी श
की तरह बदलाहट के खलाफ खड़ी रहती ह। कोई बदलाहट!

ले िकन पु ष बदलाहट के िलए ब त आतु र रहता है । ऊपरी बदलाहट के िलए ब त आतु र नहीं रहता। कपड़े वह
िजं दगीभर एक से पहने रह सकता है , इससे अड़चन नहीं आती। उसकी समझ के बाहर है िक ब त कपड़े बदलने
की ा ज रत है ! वह एक ही ढं ग के कपड़े िजं दगीभर पहने रह सकता है , कोई अड़चन नहीं आती। ले िकन िकसी
गहरी बु िनयादी बदलाहट के िलए वह आतुर रहता है िक चीजों का कोई गहरा प बदल जाए। ोंिक गहरा प
बदले, तो वह अनेक जीवन एक जीवन म जी सके।

ी गहरी बदलाहट नहीं चाहे गी, वह एक ही जीवन की एक तारत ता को पसं द करे गी। एक सु र उसके
का है । यह साइक, िच का भेद है । इस िच के भे द के अनुसार अ ा म भी गित करते व खयाल रखना
ज री है ।

हां, अगर कोई ी ए े िसव हो, आ ामक हो, जै सा िक कुछ यां होती ह, तो उनके िलए अनेक म एक को दे खना
आसान पड़े गा। कोई पु ष रसेि व हो, जै सा िक कुछ पु ष होते ह, ाहक हो, ए े िसव न हो, आ ामक न हो, तो
उसके िलए एक म अनेक को दे खना आसान होगा। कैसे दे खगे?

चाहे दो म से कुछ भी कर, एक काम तो दोनों को करना पड़े गा िक इं ि यों के पार उठने की चे ा करनी पड़े गी। आं ख
से ब त दे खा, कभी आं ख बं द करके दे ख। एक खयाल रख, आं ख से तो ब त दे खा, प के अित र कुछ न पाया।
खड़की से ब त दे खा, अब खड़की से हटकर दे ख।

ले िकन डर यह है िक हमारी आदत ऐसी कंडीशंड, ऐसी सं ा रत हो जाती ह िक जब हम आं ख बं द करते ह, तब


भी हम आं ख से ही दे खते रहते ह। बं द आं ख म भी आं ख से ही दे खते रहते ह।

आं ख ने हजार-हजार सं ार इक े कर रखे ह खड़की से दे खने के। वही सं ार आं ख री- े करती है , िफर से


िफ को चढ़ा दे ती है । और हमारे म का ढं ग ठीक टे प रकाडर जै सा है ; उसम कुछ भे द नहीं है । हमारे
म म ेक चीज अंिकत है , वह अंिकत चीज हम िफर से खोलकर दे खने लगते ह।

आं ख बं द करके हम वही दे खने लगते ह, जो हमने खुली आं ख से कभी दे खा। हां, कभी-कभी नए कां िबनेशन बना
ले ते ह। उससे कोई फक नहीं पड़ता। ले िकन सब पुराना ही रहता है । उस पुराने को हम िफर जु गाली करने लगते ह,
जै से जानवर जु गाली करते ह न!

ले िकन जानवर की जु गाली िसफ भोजन के िलए होती है । और हमारी जु गाली भोजन के िलए तो नहीं होती, िवचारों के
िलए होती है । जानवर खाना खा ले ता है , िफर िनकाल-िनकालकर चबाता रहता है बै ठकर। भस को कभी दे ख, तो
समझ म आएगा। खाए ए खाने को िफर-िफर से खाती रहती है । हम भी गृ हीत िकए गए, हण िकए गए सं ारों
को िफर-िफर दोहराते रहते ह।

आं ख बं द करके बै ठ जाएं , िदवा शु हो जाएगा। िफ चढ़ गई पद पर। वह जो हमने दे खा है , जाना है, वह


िफर-िफर दोहरने लगे गा।
219

न; इससे भी हटना पड़े गा। अ था आं ख की खड़की से आप न हटे । यह जो भीतर िवचार की दु िनया जारी हो जाती
है , इसके भी समझना िक म पार ं , इससे भी पार ं, इससे भी िभ ं । इससे भी दू र खड़े होकर दे खना िक ये िवचार
चल रहे ह, म दे खने वाला ं । और अगर तीन महीने कोई इस रण म ठहर जाए, िक ये जो िवचार चल रहे ह, ये दू र
ह, और म दे खने वाला ं …।

और िनि त ही आप दे खने वाले ह, आप िवचार नहीं ह। आप िवचार होते, तो आपको कभी पता ही न चलता िक
िवचार चल रहे ह। ोंिक यह उसे ही पता चल सकता है , जो दू र खड़ा है ।

आपने रात जाकर िफ दे खी है िसनेमागृ ह म। अगर आप िफ ही होते, तो दे खता कौन? आप िफ नहीं ह।


आप कुस पर बै ठे ए ह। िबलकुल अलग। ले िकन अंधेरा है कमरे म। खुद िदखाई नहीं पड़ते, िफ ही िदखाई
पड़ती है । और िफ ऐसी ि प बां ध ले ती है मन पर िक कभी-कभी दशक भू ल ही जाता है िक वह है भी। वह करीब-
करीब अिभनय का पा हो जाता है । लोगों के माल गीले िनकलते ह िसनेमागृ ह से ; आं सू पोंछ-पोंछ कर आ गए ह!

कभी पीछे लौटकर सोचा है िक पद पर कुछ भी न था, िजसके िलए आप रोते थे । िसफ छाया और धू प का खेल था।
तब मन म बड़ी बे चैनी होगी िक म भी कैसा नासमझ ं ! वहां कुछ था नहीं। िसफ िवद् यु त के दौड़ते ए प थे । कोई
जीवन भी न था वहां, ले िकन म जीवन का हो जाता है । म जीवन का हो जाता है । भू ल जाते ह अपने को, िफ
सब कुछ हो जाती है , खुद खो जाते ह।

और िसनेमागृह म तो तीन घं टे बै ठते ह, उसम इतनी गड़बड़ हो जाती है –आं सू आ जाते ह, माल भीग जाता है,
छाती धड़कने लगती है , दय भारी हो जाता है, दु खी हो जाते ह, सु खी हो जाते ह–ले िकन िच की िजस िफ को
आप अनंत ज ों से दे ख रहे ह, अगर उसम ऐसा तादा गहन हो गया हो, तो आ य नहीं है। वहां वह पूरे व चल
रहा है । सोते -जागते, मन के पद पर िफ जारी है । इसम कभी अंतराल नहीं आया, गै प नहीं पड़ा। इसिलए भयंकर
तादा हो गया है । जै से कोई आदमी िजं दगीभर िसनेमा म ही बै ठा रहे और भू ल जाए िक म ं । िसनेमा ही हो जाए!
ऐसी हमारी थित है ।

इसे तोड़ना पड़े । इसे तोड़ने के िलए ज री है जानना िक म दशक ं । बस, यह रण िक म ा ं।

कृ की सारी साधना प ित ा की है । म दशक ं , म ा ं । इसका रण िक म दे ख रहा ं । िवचारो, म तु ारे


साथ एक नहीं ं ; तु म से दू र खड़ा दे ख रहा ं ।

यह रण गहरा हो जाए, तो िवचार भी बं द हो जाएं गे। आं ख भी बं द हो गई, बाहर का आकाश िदखाई पड़ना बं द हो
गया। िवचार भी बं द हो गए, बाहर के आकाश के बने ितिबं ब भी बं द हो गए। और िजस िदन यह होगा, उसी िदन
आप अंतर के लोक से पुनः उस िवराट आकाश म प ंच जाएं गे, िजस पर कोई खड़की नहीं है । और िजस िदन आप
उस िवराट आकाश को जान लगे –चौखटे से रिहत, े मले स–उसी िदन आपको अनेक म एक और एक म अनेक
िदखाई पड़ने लगेगा।

िज एक म अनेक दे खना है , उनके िलए भ सु गम माग है । मने कहा, ैण िच का वह ल ण है । भ का


माग मूलतः ैण है । महावीर से भ नहीं करवा सकते आप, मीरा से ही करवा सकते ह। महावीर जै से िक पु ष
िच के तीक ह। अगर पु ष िच शु हो, तो महावीर जै सा होगा। अगर ी िच शु हो, तो मीरा जै सा होगा।
एक तीक की तरह ले रहा ं इन दो को।

ी िच शु हो, तो मीरा जै सा होगा। तो मीरा गई है वृं दावन और मंिदर के पुजारी ने कहा िक अंदर न आने दू ं गा,
ोंिक म ी का चे हरा नहीं दे खता। तो मीरा ने खबर िभजवाई िक म तो सोचती थी, कृ के िसवाय और कोई
पु ष नहीं है । आप भी पु ष ह, इसका मुझे कुछ पता न था! म एक दशन आपका करना ही चाहती ं । म दू सरे पु ष
को भी दे ख लूं !
220

यह एक म अनेक को खोजने वाला िच है , जो कहता है िक िसफ एक ही पु ष है , कृ । सब उसी म लीन हो गए।


दू सरा तो कोई पु ष है नहीं; बाकी तो सब यां ह।

पुजारी ने िच ी पढ़ी, घबड़ाया िक पता नहीं कौन आ गया! उस पुजारी को पता भी न होगा िक कभी कोई शु ी
आ सकती है , िजसे िसफ एक ही पु ष है । माफी मां गी और कहा, भीतर आ जाओ, ोंिक मुझसे ादती हो गई िक
मने भी पु ष होने का दावा िकया। कृ के मंिदर म पु ष होने का दावा करने वाला पुजारी गलत पुजारी है ।

भ का माग ैण िच का माग है–समपण का, िकसी के चरणों म सब रख दे ने का, और एक ही चरण म पूरे


जगत के चरणों को उपल कर ले ने का। मूितयां यों ने िवकिसत की ह, भला पु षों ने बनाई हों। मूित ैण िच
के िनकट है ।

महावीर शु पु ष िच ह। वे कहते ह, कोई परमा ा नहीं है । महावीर का यह कहना िक कोई परमा ा नहीं है ,
आ ा ही परमा ा है , पु ष की शु तम घोषणा है । पु ष िकसी परमा ा को मान नहीं सकता। ोंिक मानेगा, तो
समपण करना पड़े गा। पु ष समपण नहीं कर सकता। पु ष सं क कर सकता है , साधना कर सकता है, गौरीशं कर
पर चढ़ सकता है । महावीर कहते ह, कोई परमा ा नहीं है । े क परमा ा है । यं को जान िलया, तो परमा ा को
जान िलया। िकसी दू सरे को नहीं जानना है ।

पु ष यं म जीता है; ी सदा दू सरे म जीती है । कभी वह बे टे म जीती है , कभी पित म जीती है , पर सदा दू सरे म
जीती है । दू सरे के िबना उसका होना न होने के बराबर हो जाता है । ी का सारा रस, सारा जीवन दू सरे से ित िनत
होता है । उसका बे टा स है , और वह स है । पु ष दू सरे म नहीं जीता, अपने म जीता है , -कि त जीता है । ी
पर-कि त जीती है ।

परमा ा पर है । इसिलए जै से-जै से दु िनया म पु ष ारा िनिमत िव ान िवजयी आ, वै से-वै से भ के प खंिडत


ए। ोंिक िव ान पु ष की खोज है, ी की खोज नहीं है । कोई एक मैडम ूरी नोबल ाइज पा ले ती हो; अपवाद
है । और मैडम ूरी के पास पु ष जै सा िच था, ी जै सा नहीं।

िव ान पु ष की खोज है । इसिलए जै से-जै से िव ान जीतता गया, वै से-वै से धम की ब त बु िनयादी िशलाएं आदमी


तोड़ता चला गया। ोंिक उसके माग ही अलग ह।

अगर आपके पास समपण करने की मता है , तो आपके िलए कोई भी चरण परमा ा के चरण बन सकते ह।
इसिलए अगर यां कह पाईं िक उ पित ही परमा ा है , और अगर कोई ी पित म परमा ा दे ख पाए, तो पित
इतना िवराट हो जाएगा धीरे -धीरे िक सब, एक म अनेक समा जाएगा। अगर दे ख पाए। वही उसकी साधना बन
सकती है । न दे ख पाए, तो भी वह िकसी को खोजे गी।

अब महावीर जै सा , जो कहता है, कोई परमा ा नहीं है, उसके पास भी…। महावीर के पास पचास हजार
सं ासी थे, तो केवल आठ हजार सं ासी पु ष थे, बयालीस हजार सं ािसिनयां यां थीं। महावीर कहते ह, कोई
परमा ा नहीं है । ले िकन बयालीस हजार यां कहती ह, तु म हमारे िलए परमा ा हो, भगवान हो! महावीर के चरण
म भी उ ोंने परमा ा को खोज िलया। महावीर िकतना ही कह, वह महावीर के चरण म भी परमा ा को खोज
िलया।

बु ने इनकार िकया, कोई परमा ा नहीं है । और इसिलए बु ने ब त िदन तक िज की िक म यों को दी ा न


दू ं गा। ब त मजे दार घटना है । बु ने ब त िदन िज की िक म यों को दी ा नहीं दू ं गा। एक अथ म िज ठीक थी,
ोंिक बु का पथ िबलकुल पु ष का पथ है । और मजा यह है िक पु ष के पथ पर ी को लाओ, तो ी न
बदलेगी, पथ को बदल ले गी। इसिलए बु ब त इनकार िकए िक मा करो। ब त मजबू री म, ब त दबाव म, और
बड़ी एक तािकक घटना के कारण बु को दी ा दे ने के िलए राजी होना पड़ा।
221

बु की वृ एक र ेदार है , गौतमी। बु से उ म बड़ी है । र े म चाची लगती है । गौतमी बु के पास आई।


जब सै कड़ों यों को बु इनकार कर चु के, तो गौतमी बु के पास आई। उसने यह नहीं कहा, मुझे दी ा दो।
उसने यह कहा िक ा यां स को नहीं पा सकगी? बु ने कहा, ज र पा सकगी। ा यों के िलए स का
ार बं द है? बु ने कहा, नहीं, ार बं द नहीं है । ा यां ऐसी अपिव ह िक स के िनकट न प ं च सक? बु ने
कहा िक नहीं-नहीं, यां उतनी ही पिव ह, िजतने पु ष। तो गौतमी ने कहा िक िफर बु हम दी ा ों नहीं दे ते
ह? ा हम वं िचत रह जाएं बु की मौजू दगी से? िफर हम कब दू सरा बु िमले गा? उसका कोई वचन है ? उसका
कोई आ ासन है? और अगर हम नहीं प ं च पाए स तक, तो िज ेवार आप भी होंगे।

बु किठनाई म पड़ गए। बु ने कहा, म दी ा दे ता ं । ले िकन साथ ही यह भी घोषणा करता ं िक मेरा जो धम


पां च हजार वष तक लोगों के काम आता, अब पां च सौ साल से ादा काम नहीं आ सकेगा। और जब िकसी ने बु
से पूछा िक ऐसा आप ों कहते ह? तो उ ोंने कहा, म यों को दी ा िदया ं । पां च साल भी ब त है िक मेरी
प ित शु रह जाए, यां उसको बदल दगी। ोंिक ैण िच !

और बदल डाला, िबलकुल बदल डाला!

िच हमारा दो कार का है । लेिकन िकसी भी िच के पार जाना हो, तो इं ि यों के पार जाना ज री है । ले िकन जाने
की िविध म थोड़े फक होंगे। ी िच समपण से जाएगा। समपण कर िदया अपना भु के िलए, तो सब इं ि यां
समिपत हो गईं, यं भी समिपत हो गए। खुला आकाश, िवराट आकाश उपल हो गया।

पु ष समपण से नहीं, सं क से जाएगा। सं क पूवक एक-एक इं ि य के ऊपर उठे गा।

भे द ऐसा है , रामकृ के पास एक आदमी आया। एक हजार ण-मु ाएं जाकर उसने रामकृ के पैर म जोर से
पटकीं। जोर से, तािक घाट पर इक े लोगों को सोने की खनखनाहट का पता चल जाए िक िकसी ने आकर सोना दान
िकया! दानी जब करता है, तो घोषणा से ही करता है! उसी म दान बे कार हो जाता है य िप।

रामकृ ने कहा, इतने जोर से भाई ों पटकता है? दान चु पचाप भी कर सकता है ! उस आदमी को कुछ होश
आया। उसने कहा, मा कर, भू ल हो गई। अनजाने हो गया। ीकार करके मुझे कृताथ कर। रामकृ ने कहा,
ीकार कर ले ता ं । ोंिक कोई मुझे गािलयां दे ने आए, तो वह भी ीकार कर ले ता ं , तू तो ण की मु ाएं लाया!
मने ीकार कर लीं। अब मेरी तरफ से जाकर इनको गं गा म फक आ।

तो वह आदमी मु ल म पड़ा। एक हजार ण-मु ाएं ! गया गं गा के िकनारे । बड़ी दे र लगा दी। लौटा नहीं।
रामकृ ने कहा, भाई, जरा दे खो, वह आदमी कहां है ? बड़ी दे र लग गई। फकने को कहा था! एक से कड का काम
था। फककर चलकर आ गया होता।

लोग दे खने गए। और उ ोंने आकर बताया िक वह एक-एक अशफ को बजाकर दे ख रहा है । और बजाकर फकता
है और कहता है , आठ सौ दस, आठ सौ ारह, आठ सौ बारह…! वह िगन-िगनकर फक रहा है ! भीड़ इक ी है वहां
भारी।

जब वह आदमी लौटा, पसीना-पसीना, घं टों की मेहनत के बाद। रामकृ ने कहा, तू बड़ा पागल है । जो काम एक ही
कदम म िकया जा सकता था, वह तू ने हजार कदम म िकया! फकनी ही थीं, जोड़नी तो नहीं थीं। जोड़ते व िगनती
की कोई साथकता भी है । फकते व तो िगनती की कोई साथकता नहीं है । आदमी ितजोड़ी म जोड़ता है, तो एक-
एक िगनकर जोड़ता है । जोड़ने के व तो िगनती की साथकता है । ोंिक जोड़ने वाला िच अगर िगनेगा नहीं, तो
पता कैसे चलेगा िक िकतना जोड़ा? ले िकन छोड़ते व िगनती की कौन-सी आव कता है ? तू इक ा ही झोला फक
दे ता!

एक-एक करके फका उसने। सं क एक-एक करके ही फक पाता है । समपण इक ा फक दे ता है । समपण का


मतलब है िक तु ीं स ालो ये इं ि यां; तु ीं स ालो ये सब कुछ। तु ारे चरणों म रख िदया िसर, तु म जानो। इक ा
222

फक दे ता है । सं क एक-एक इं ि य से लड़े गा। एक-एक इं ि य से लड़े गा, एक-एक इं ि य को छोड़े गा। प रणाम वही
होता है । पु ष का रा ा थोड़ा लं बा है । ी का रा ा शाटकट है । ले िकन पु ष के िलए शाटकट नहीं है , ब त लं बा
हो जाएगा। ी का रा ा ब त िनकटतम है –छलां ग का।

अपने िच की तलाश कर ले नी चािहए। ज री नहीं है िक आप पु ष ह, तो आपके पास पु ष िच हो। इस म म


मत पड़ना िक पु ष होने से पु ष िच होता है । ी हों, तो ी िच हो, इस म म मत पड़ना।

इसकी तलाश कर ले ना िक आपके िच का ढं ग ा है? समपण का ढं ग है या सं क का ढं ग है ? आपकी साम


अपने को िकसी के हाथ म छोड़ दे ने की है ? नदी से अगर सागर तक प ं चना हो, तो आप तैरकर प ं िचएगा िक
बहकर प ं िचएगा? इसकी जरा ठीक से खोज कर ले ना।

अगर बहकर प ं च सकते हों, तो समपण माग है । िफर नदी के हाथ म छोड़ िदया िक ले चल। नदी तो सागर जा ही
रही है , ले जाएगी। ले िकन अगर आप तै रने वाले आदमी ह, तो तै रगे सागर की तरफ। नदी तो मेहनत कर ही रही है ,
आप भी मेहनत करगे । ज री नहीं है िक तै रकर आप थोड़ी ज ी प ंच जाएं गे । हो सकता है , थोड़ी दे र से ही प ं च,
ोंिक तै रने म नाहक श य होगी। नदी सागर की तरफ बह ही रही है , आप िसफ बह गए होते, तो भी प ंच
गए होते । ले िकन आप पर िनभर है ।

पु ष िच को बहने म रस न आएगा। वह कहे गा, यह भी ा हो रहा है ! तै रने का कोई मौका ही नहीं! तो पु ष िच


अ र नदी से उलटा तै रने लगता है, ोंिक उलटा नदी म तै रने म ादा सं क को मौका िमलता है ,
ि लाइजेशन। पु ष का माग है , ि लाइजे शन। स हीरे की तरह भीतर कोई चीज मजबू त होती चली जाएगी।
इसिलए पु ष के सब माग आ ा की घोषणा करगे।

ी का माग है , िवसजन। कोई चीज पानी की तरह तरल होकर बह जाएगी। इसिलए ी के माग परमा ा की
घोषणा करगे ।

एक म दे ख ल सबको या सबम दे ख ल एक को। थोड़े िविधयों के भे द होंगे। ले िकन इं ि यों से पार उठना पड़े गा। या
तो एक-एक इं ि य के सा ी बनकर पार उठ, या सम इं ि यों को एक बार ही भु के चरणों म सौंप द।

आप सोचते होंगे, बड़ा सरल है; एक बार जाकर भु के चरणों म सौंप द; झंझट से छूटे । अगर आपके मन म ऐसा
खयाल आया हो िक एक बार जाकर भु के चरणों म सौंप द, झंझट से छूटे , तो आप सौंप न पाएं गे । आप सौंप न
पाएं गे, ोंिक आप झंझट से छूटने को सौंप रहे ह। झंझट आप ही ह।

ले िकन अगर आपको ऐसा खयाल आया िक यह तो बात िबलकुल ठीक है ; छोड़ िदया। छोड़ दगे नहीं; कल छोड़ दगे
नहीं। वह पु ष िच का ल ण है –जाऊंगा, क ं गा, छोडूंगा। वह छोड़ने म भी करना करे गा। समपण भी उसके िलए
एक सं क ही होगा। वह कहेगा, म तै यारी कर रहा ं, सं क कर रहा ं िक समपण कर दू ं ! अगर समपण भी
आएगा, तो सं क के ही ार से आएगा। अगर वह भु के चरणों म अपने को झुकाएगा भी, तो यह बड़े ायाम और
कसरत का फल होगा। भारी कसरत करे गा! और कसरत से कोई झुका है ? अकड़ना हो, तो कसरत ठीक है । झुकना
हो, तो नहीं। ले िकन अकड़ना हो, तो पूरे अकड़ जाएं ।

बड़े मजे की बात है िक अगर पूरे अकड़ जाएं , तो एक िदन अचानक पाएं गे िक सब िबखर गया। यह मु ी है मेरी,
इसको म बां धता चला जाऊं और इतना बां धूं, इतना िजतना िक मेरी ताकत है । िफर एक ण आ जाएगा िक यह मु ी
खुल जाएगी–िजस ण मेरी ताकत चु क जाएगी बां धने की। और ताकत चुक जाएगी; ताकत सीिमत है ।

आप करके दे खना। बां धते जाना, बां धते जाना, पूरी ताकत लगा दे ना। एक ण आप अचानक पाएं गे िक अब आप
और नहीं बां ध सकते ह, और दे खगे िक अंगुिलयां खुल रही ह! हां, कुनकुना बां धे रह, धीरे -धीरे , तो िजं दगीभर बां धे रह
सकते ह।
223

अकड़ना ही हो, तो पूरे अकड़ जाना। कहना, कोई नहीं है , म ही ं । ले िकन िफर इसको इस घोषणा से
कहना िक पूरा जीवन इस पर लगा दे ना। एक ण आएगा िक यह िबखराव उपल हो जाएगा। ले िकन तनाव से
िव ाम आएगा पु ष को। ू टशन इज़ रलै ेशन।

पु ष के िलए गहरे तनाव से िव ाम आएगा। जै से िक तीर को खींचा है ंचा पर। खींचते गए, खींचते गए, पूरा खींच
िलया। िफर कभी आपने खयाल िकया है िक बड़ी उलटी घटना घटती है ! तीर की ंचा को खींचते ह पीछे की
तरफ, और तीर जाता है आगे की तरफ। िफर एक ण आता है िक और नहीं खींच सकते और ंचा छूट जाती है ,
और तीर आगे की या ा पर िनकल जाता है ।

आप तो पीछे की तरफ खींच रहे थे, या ा तो उलटी हो गई। आप तो खींच रहे थे–म, म, म। पूरा खींचते चले जाएं ,
एक िदन आप अचानक पाएं गे, िबखराव आ गया; तीर छूट गया, ंचा टू ट गई; ना म की तरफ या ा शु हो गई;
परमा ा म उपल हो गई। ले िकन म को खींचकर होगी पु ष की उपल । ी म को ऐसे ही समिपत कर सकती
है । इसिलए ी और पु ष के बीच कभी अंडर िडं ग नहीं हो पाती।

एक ी ने आकर मुझे कहा िक मुझे सं ास ले ना है , ले िकन मेरे पित कहते ह, ा होगा सं ास ले ने से! म उनको
कैसे समझाऊं? मुझे तो लग रहा है , सब कुछ होगा। ले िकन वे कहते ह, बताओ ा होगा? कैसे होगा? मुझे तो लग
रहा है िक यह खयाल ही िक सं ास ले ना है , मेरे भीतर कुछ होना शु हो गया। जब लूं गी, तब तो होगा। अभी तो
खयाल से कुछ मेरे भीतर हो रहा है । और वे कहते ह, ा होगा? कैसे होगा? मुझे बताओ। मुझे भी तो िस करो।

वह ी िस न कर पाएगी। िस करने म पड़े गी, तो किठनाई म पड़े गी। जो हो रहा है , वह भी बं द हो जाएगा। िस


करना पु ष िच का ल ण है । ीकार कर ले ना ी िच का ल ण है । और िस करके भी ीकार ही तो
उपल होता है ! मगर जरा लं बी या ा है । ी िबना िस िकए भी ीकार कर सकती है । और ीकार करते ही
िस हो जाता है । बस, इतना ही फक होगा, आगे-पीछे का। पु ष पहले िस करे गा, िफर ीकार करे गा। ी
पहले ीकार ले गी, और िफर िस कर ले गी। पर इतना फक होगा।

और वे पु ष ठीक पूछ रहे ह। उनका पूछना िबलकुल दु है । ले िकन वह अपने िलए ही पूछ, तो ठीक है ; ी के
िलए न पूछ। उसे अपने माग से जाने द। उसे अपने माग से जाने द। हां, जब उनका सवाल हो खुद का, तो पूरा िस
करके िफर सं ास ल। ले िकन ी को जाने द। िजसे िबना िस िकए सं ास का भाव आता हो, उसे िस करने की
कोई ज रत नहीं रही, ोंिक िस करने की ज रत इतनी ही है िक भाव आ जाए।

ले िकन पु ष सोचे गा, िवचारे गा, गिणत लगाएगा, िहसाब लगाएगा, हर चीज की जां च करे गा, िक होगा िक नहीं होगा?
िकतना होगा? िजतना छोड़गे, िजतना क पाएं गे, उससे सु ख ादा होगा िक कम होगा? वह यह सब सोचे गा।

और अगर कोई ी पु ष से ब त भािवत हो जाए, तो नुकसान म पड़े गी। और अगर कोई पु ष ी से ब त


भािवत हो जाए, तो नुकसान म पड़े गा। और दु भा यह है िक पु ष यों से भािवत होते ह, और यां पु षों से
भािवत होती ह। ऐसा होता है । और दोनों का ख जीवन के ित ब त िभ है ।

करीब-करीब ऐसा िक जै से हम जमीन पर एक वतु ल, एक सिकल खींच द। उस वतुल के एक िबं दु पर पु ष खड़ा हो,
बाईं तरफ मुंह िकए; उसी िबं दु पर ी खड़ी हो, दाईं तरफ मुंह िकए। दोनों की पीठ िमलती हों। पु ष और यां
ब त कोिशश करते ह िक दोनों आमने-सामने से आिलं गन म िमल जाएं । वह घटना घटती नहीं। धोखा ही िस होती
है । ोंिक उनके ख बड़े िवपरीत ह। उनकी दोनों की पीठ ही िमल सकती ह।

ले िकन अगर वे दोनों अपनी-अपनी या ा पर िनकल जाएं , तो वतुल पर एक िबं दु ऐसा भी आएगा, जहां उन दोनों के
चे हरे िमल जाएं गे ।
224

दोनों चले जाएं अपनी या ा पर; पु ष बाएं चला जाए, ी दाएं चली जाए। और पु ष न कहे िक दाएं जाने से कुछ न
होगा, ोंिक म बाएं जा रहा ं । और ी न कहे िक बाएं जाने से ा होने वाला है , मुझे तो दाएं जाने से ब त कुछ
हो रहा है ।

मत लड़ो। दाएं -बाएं ही चले जाओ। ज र वह िबं दु एक िदन आ जाएगा तु ारी ही या ा से, जहां तु म आमने-सामने
िमल जाओगे । ले िकन वह िबं दु अंितम िबं दु है । पड़ाव का ारं भ िबं दु नहीं है या ा का; मंिजल का अंितम िबं दु है । और
इतनी समझ हो, तो ी-पु ष एक-दू सरे के सहयोगी हो जाते ह। इतनी समझ न हो, तो एक-दू सरे के िवरोधी हो जाते
ह और जीवनभर बाधा डालते ह।

कृ कहते ह, ऐसा जो इं ि यों के पार गया आ है, उसके िलए परमा ा हो जाता है । िनि त ही हो
जाता है । ोंिक िनराकार तब आकारों म खंिडत नहीं होता, तब िनराकार अपनी सम ता म कट होता है ।

ान रहे, आकार को दे खना हो, तो आपके भीतर अहं कार ज री है । िनराकार को दे खना हो, तो आपके भीतर
अहं कार बाधा है । ोंिक अहंकार आकार दे ता रहे गा। अहं कार बड़ी छोटी-सी चीज है , ले िकन बड़े -बड़े आकार
उससे पैदा होते ह। ठीक ऐसे जैसे कोई शां त झील म एक प र का छोटा-सा कंकड़ डाल दे । कंकड़ तो बड़ा छोटा-
सा होता है , ब त ज ी जाकर जमीन म बै ठ जाता है । ले िकन कंकड़ से जो लहर पैदा होती ह, वे िवराट होती चली
जाती ह, फैलती चली जाती ह।

अहं कार तो ब त छोटी-सी चीज है, ले िकन वह बड़े -बड़े आकार पैदा करता है , िनराकार कभी नहीं। बड़े से बड़ा
आकार पैदा कर सकता है , िनराकार कभी नहीं। िनराकार तो तब पैदा होगा, जब कंकड़ ही न हो, लहर ही न उठे ,
तब िनराकार की िन रं ग थित होगी।

अहं कार खो जाए! या तो अहं कार इतना मजबू त होता चला जाए िक अपने आप अपनी ही ताकत से टू ट जाए, जै सा
पु ष के जीवन म घिटत होता है । जै सा महावीर के जीवन म घिटत होता है । अहं कार स , स और मजबू त होता
चला जाता है । छोटा होता चला जाता है–छोटा, छोटा, छोटा–एटािमक, अणु जै सा हो जाता है , परमाणु जै सा हो जाता
है । और िफर आ खर इतना छोटा हो जाता है िक उसके आगे जाने का कोई उपाय नहीं रहता। इतना कंड ड िक अब
आ खरी कोई गित नहीं रहती। टू टकर िबखर जाता है , ए ोजन हो जाता है ।

ी का अहं कार बड़ा होता चला जाता है ; इतना बड़ा िक परमा ा से एक हो जाता है । अगर मीरा से कृ की बात
सु नी ह, तो खयाल म आएगा। इधर पैर पर िसर भी रखती है , उधर कृ से नाराज भी हो जाती है । डां ट-डपट भी कर
दे ती है । इधर िसर रख दे ती है पैर पर, उधर कृ पर नाराज भी हो जाती है ! उधर कृ से कभी ठ भी जाती है ।
बड़ा होता जाता है । इतना बड़ा, इतना बड़ा िक परमा ा से ठने की साम भी आ जाती है । और जब इतना बड़ा
हो जाता है िक परमा ा के बराबर हो जाए, तो खो जाता है ।

दो खोने के ढं ग ह। या तो म इतना बड़ा हो जाए िक परमा ा जैसा। और या म इतना छोटा हो जाए, िजतना हो
सकता है । दोनों थितयों म छूट जाएगा, िवदा हो जाएगा।

कृ कहते ह, ऐसी थित को उपल के िलए म साकार जै सा, हो जाता ं , िनराकार होते ए। और
दू सरी बात तो और भी अदभु त कहते ह िक और ऐसा मुझे हो जाता है ।

यह दू सरी बात का ा राज है?

परमा ा को तो हम सब होने ही चािहए, चाहे हम कैसे भी हों। चाहे हम कैसे भी हों–बुरे हों, भले हों, अ ानी हों,
पापी हों–कैसे भी हों; बाकी उसकी आं ख म तो हम िदखाई पड़ने ही चािहए। उसकी आं ख म हम िदखाई नहीं पड़ते!
कृ का यह व ब त अदभु त है । शायद दु िनया के िकसी शा म ऐसा व नहीं है ।
225

सभी शा ऐसा कहते ह िक वह तो हम दे ख ही रहा है । सब तरफ से दे ख रहा है । सब जगह से दे ख रहा है । ऐसी


कोई जगह नहीं है , जहां वह हम न दे ख रहा हो; उसकी आं ख हम पर न लगी हो।

कृ का यह व तो ब त िभ है । िभ ही नहीं, ब त डायमेिटकली अपोिजट है । इस व का दू सरा मतलब


यह आ िक जब तक हम इस थित म नहीं ह, तब तक परमा ा हम नहीं दे ख रहा है ? हम उसके िलए न होने के
बराबर ह? अ ह? हम उसी िदन होंगे, िजस िदन वह हमारे िलए हो जाएगा? इसका ा मतलब हो
सकता है ?

इसके दो ीन मतलब खयाल म ले ले ने जै से ह, गहरे ह, सू । और यह व ब त कीमती है ।

पहला मतलब तो यह है िक परमा ा ही नहीं, कहीं भी, हम िसफ वही दे ख पाते ह जो हम ह। परमा ा भी वही दे ख
पाता है , जो वह है । जब तक हम परमा ा जै से नहीं हो जाते, हम उसे िदखाई नहीं पड़ सकते।

हम उसे िदखाई नहीं पड़ सकते, ोंिक वह इतना शु तम, और हम अभी इतने अशु िक उस शु म हमारी
अशु का कोई ितफलन नहीं हो सकता। उस शु तम म हमारी अशु का कोई ितफलन नहीं हो सकता। वह
अशु हमसे कटे , हटे , तो ही हम शु होकर उसम ितफिलत हो सकते ह।

इसम कसू र परमा ा का नहीं है , इसम हमारी अशु बाधा है । वह इतना िवराट, इतना िनराकार, इतना असीम!
और हम इतने आकार से भरे ए िक उस िनराकार की आं ख म हमारा आकार पकड़ म नहीं आ सकता।

ान रहे, िजस तरह आकार वाली आं ख म िनराकार पकड़ म नहीं आ सकता, उसी तरह िनराकार की आं ख म
आकार पकड़ म नहीं आ सकता। आकार इतनी ु घटना है िक उस िनराकार की आं ख म कैसे पकड़ म आएगा?
असल म िनराकार और आकार का कोई सं बंध नहीं बन सकता। असंभव है । िनराकार आकार से िमले गा कैसे!

इसे थोड़ा ऐसा समझ िक अगर िनराकार आकार से िमल सके, तो िनराकार भी आकार वाला हो जाएगा। ोंिक
िनराकार अगर आकार से िमले , तो उसका अथ है िक आकार तो िनराकार के बाहर होगा, समिथंग आउट साइड।
और अगर िनराकार के बाहर कोई चीज है , तो जो चीज बाहर है , वह िनराकार का आकार बना दे गी।

सब आकार दू सरे से बनते ह। आपके घर की जो बाउं डी है , वह आपके घर से नहीं बनती, आपके पड़ोसी के घर से
बनती है । अगर इस पृ ी पर आपका ही अकेला घर हो, तो आपके घर की कोई बाउं डी न होगी।

सब सीमाएं दू सरे से बनती ह। इसिलए जो असीम है , उसके िलए दू सरा तो हो ही नहीं सकता, ोंिक वह सीिमत हो
जाएगा।

हम तो उसी िदन उसके िलए हो सकते ह, िजस िदन हम भी असीम हों। असीम का असीम से िमलन हो सकता है;
असीम का सीिमत से िमलन नही ं हो सकता। सीिमत का सीिमत से िमलन हो सकता है । असीम का असीम से िमलन
हो सकता है । सीिमत का असीिमत से िमलन नहीं हो सकता। असीिमत का सीिमत से भी िमलन नहीं हो सकता। यह
असंभव है । इसका कोई उपाय नहीं है ।

इसिलए कृ ठीक कहते ह। वे कहते ह, हम उ तब तक िदखाई नहीं पड़गे, उनकी ि म नहीं पड़गे, जब तक
िक हम ऐसे न हो जाएं िक या तो हम एक म सब िदखाई पड़ने लगे, और या सब म एक िदखाई पड़ने लगे ।

उसी ण हम परमा ा के सा ा ार म हो जाएं गे। सा ा ार म कहना ठीक नहीं, भाषा की गलती है । हम परमा ा
के साथ एका हो जाएं गे, एकाकार हो जाएं गे । उस ण हम भी िनराकार होंगे। या ऐसा कह िक उस ण हम भी
परमा ा होंगे।
226

परमा ा ही परमा ा से िमल सकता है , उससे नीचे िमलने का उपाय नहीं है । िमलना हमेशा समान का होता है ।
असमान का कोई िमलना नहीं होता। स ाट से िमलना हो, तो स ाट हो जाना ज री है; चपरासी होकर िमलना ब त
किठन है । परमा ा से िमलना हो, तो परमा ा हो जाना ज री है । वही यो ता है िमलने की, अ था कोई यो ता
नहीं है ।

इसी चेहरे को, इसी थित को ले कर परमा ा के सामने हम न जा सकगे । आग से िकसी को िमलना हो, तो जलना
सीखना चािहए; बस, िमल जाएगा। जल जाए, तो आग से एक हो जाएगा। ले िकन कोई सोचता हो िक िबना जले आग
से मुलाकात हो जाए, तो न होगी; मुलाकात ही न होगी। मुलाकात ही तब होगी, जब जलने की तै यारी हो।

जब कोई परमा ा के साथ खोने को राजी है , िमटने को राजी है , एकाकार होने को राजी है …। और एकाकार होने
को वही राजी होता है, िजसको अपने िनराकार का बोध हो जाता है । नहीं तो आप अपने आकार को बचाते िफरते ह
िक कहीं न न हो जाए। ोंिक म आकार ं , अगर आकार िमट गया, तो म िमट गया। िजस िदन आप जानते ह, म
िनराकार ं, उस िदन इस शरीर को आप कपड़े की तरह उतारकर रख दे ने को राजी हो सकते ह। उस िदन इन
इं ि यों को आप च े की तरह उतारकर रख दे ने को राजी हो सकते ह। उस िदन आप िनराकार ह। िफर िनराकार
और िनराकार के बीच कोई वधान नहीं है । कोई वधान नहीं है । दोनों के बीच िफर कोई सीमा नहीं है । दोनों एक
हो गए ह।

जै से कोई बूं द कहे िक म बूं द रहकर सागर से िमल जाऊं, तो न िमल सकेगी। सागर भी चाहे–बूं द तो समझ ल िक
असमथ है बेचारी, कमजोर है –अगर सागर भी चाहे िक म बूं द को बूं द रहने दू ं और िमल जाऊं, तो सागर भी न िमल
सकेगा। अगर बूं द को सागर से िमलना है , तो सागर म खो जाना पड़े गा। और अगर सागर को बूं द म अपने को
िमलाना है , तो बूं द को खो दे ने के िसवाय कोई रा ा नहीं है ।

हम परमा ा के िलए तभी होते ह, जब परमा ा हमारे िलए हो जाता है । जब तक परमा ा हमारे िलए
अ है, हम भी उसके िलए अ ह। जब तक परमा ा हम ऐसा है , जै से नहीं है , तब तक हम भी परमा ा के
िलए ऐसे ह, जै से नहीं ह।

एक कैथोिलक नन के जीवन को म पढ़ता था। एक कैथोिलक सं ािसनी का जीवन म पढ़ता था। कैथोिलक मा ता है
िक परमा ा हर व दे ख रहा है सब जगह। आ म म थी वह सं ािसनी। वह अपने बाथ म म भी कपड़े पहनकर
ही ान करती थी! जब लोगों को पता चला, िम ों को, साथी-सं िगिनयों को पता चला, तो उ ोंने कहा िक तू पागल तो
नहीं है ! बाथ म बं द करके, कपड़े उतारकर ान कर सकती है ! कपड़े पहनकर ान करने की ा ज रत है ?
वहां तो कोई भी दे खने वाला नहीं है । उस ी ने कहा–गिणत उसका साफ था–उसने कहा िक मने पढ़ा है िकताब म
िक परमा ा सब जगह दे खता है ।

मगर उसकी नासमझी भी गहरी है , ोंिक जो बाथ म म घु सकर दे ख ले गा, वह कपड़े के भीतर घु सकर नहीं दे ख
ले गा! इससे अ ा तो यह होता िक वह सड़क पर न खड़ी हो जाती; ोंिक जब वह सभी जगह दे ख ही रहा है!
कपड़े के पार भी उसकी आं ख चली ही जाती होगी, जब ईंट-प र के पार चली जाती है । और ह ी के पार भी चली
जाती होगी!

सभी जगह वह दे ख रहा है, िफर भी हम उसकी पकड़ म आने वाले नहीं ह। उसकी आं ख ब त बड़ी है और हम
ब त छोटे ह। वह ब त िनराकार है , हम ब त साकार ह। वह िबलकुल िनगु ण है , हम िबलकुल सगु ण ह। वह
िबलकुल शू वत है और हम अहं कार ह। इसिलए पकड़ म हम न आएं गे । हम गु जरते रहगे आर-पार उसके। उसके
ही आर-पार गु जरते रहगे–उसम ही जीएं गे, उसम ही जगगे, उसम ही सोएं गे, उसम ही पैदा होंगे, उसम ही मरगे–
और िफर भी वह हम नहीं दे ख पाएगा।

अभी हमारी पा ता भी नहीं िक वह हम दे खे। हमारी पा ता की घोषणा उसी ण होती है , िजस ण हम उसे दे ख
ले ते ह।
227

कृ का यह सू कीमती है , समझने जै सा है ।

:
भगवान ी, इस ोक म कृ कहते ह, मुझ वासुदेव को दे खता है । यह वासुदेव श का उपयोग यहां िकस अथ म
है ?
जब कृ कहते ह, मुझ वासुदेव को दे खता है , मुझ कृ को दे खता है , मुझे दे खता है, तो कृ जब अपने िलए
वासुदेव या म या कृ , मामेकं–इस तरह के श ों का योग करते ह, तब ान रखना िक इन सब श ों का योग
अजु न के िनिम है । इन सब श ों का योग अजु न के िनिम है ।

अजु न समझ ही नहीं पाएगा, अगर कृ कह िक मुझ िनराकार को दे खता है । या कह िक मुझ म शू को दे खता है ।
या कह िक उसे दे खता है, जो मेरे भीतर है ही नहीं!

अगर कृ िनगे िटव श ों का उपयोग कर, जो िक ादा सही होंगे, तो अजु न िबलकुल समझ न पाएगा। बात ठीक
होगी, ले िकन अजु न की समझ के बाहर पड़ जाएगी।

अजु न तो कृ को ही समझता है , वासुदेव को समझता है , अजुन तो अभी कृ के प को समझता है, आकार को


समझता है । अभी तो आकार की भाषा म ही अजु न से बात की जा सकती है । नहीं तो डायलाग, सं वाद नहीं होगा।

हां, जब कृ धीरे -धीरे तै यार कर लगे अजु न को, तो अपना िनराकार प भी िदखा दगे। तब वे वासुदेव नहीं रह
जाएं गे, तब वे परा र हो जाएं गे । तब वे कृ नहीं रह जाएं गे, यं जगत की स ा हो जाएं गे । तब वे अपने सब
आकारों को उतारकर नीचे रख दगे और िवराट को खुला छोड़ दगे ।

ले िकन तब भी अजु न कहां पूरा तै यार हो पाया था? कैसा घबड़ा गया! और कहा िक बं द करो यह प। बं द करो।
घबड़ाते ह ाण। घबड़ाएगा ही।

कृ को तो अजु न के पास आना है , तो सागर की भाषा नहीं बोलनी पड़े गी, बूं द की ही भाषा बोलनी पड़े गी। नहीं तो
अजु न तो समझेगा ही नहीं। और अगर योजन यही है िक अजु न समझे, तो अजु न की ही भाषा का उपयोग करना
उिचत है ।

ान रहे, इस पृ ी पर जो िश क अपनी भाषा का उपयोग करते ह, वे िकसी के काम नहीं पड़ते । जो िश क


आपकी भाषा का उपयोग करते ह, वे ही काम पड़ते ह। मगर दु भा ऐसा है िक जो िश क अपनी भाषा का उपयोग
करते ह, वे आपको खूब जं चते ह। और जो िश क आपकी भाषा का उपयोग करते ह, वे आपको ब त जंचते नहीं।
ोंिक आपकी भाषा का उपयोग करने के साथ ही गलितयां शु हो जाती ह। आपम गलितयां ह, आपकी भाषा म
गलितयां ह।

हां, अगर िश क अपनी ही भाषा का उपयोग करे , तो गलितयां कभी न होंगी; ले िकन बात इतनी सही होगी िक
आपकी बु म न पड़े गी। आपकी बु म पड़ने के िलए बात को थोड़ा गै र-सही होना ज री है ।

कृ जो कह रहे ह, उसम गलती है । गलती अजु न के कारण है , कृ उसके िलए दोषी नहीं ह। हां, कृ की क णा
भर दोषी हो सकती है । ोंिक वह अजु न को चाहते ह, वह समझ ले । इसिलए उसकी भाषा का उपयोग कर रहे ह।

आप एक छोटे ब े को िसखाते ह। िसखाते ह, ग गणेश का; या अभी िसखाते ह, ग गधे का! से कुलर, धम-िनरपे
रा होने की वजह से गणेश का ग तो कह नहीं सकते, तो ग गधे का! गणेश को लाने म से कुलर बु को ादा
तकलीफ होती है ; गधा आ जाए, तो ादा तकलीफ नहीं होती! धम-िनरपे रा है, कोई गधा एम.पी. होना चाहे,
अ र होना चाहते ह; हो जाते ह। गणेश होना चाह, दरवाजा बं द कर दगे वे िक धम-िनरपे ! तु म यहां कहां आ रहे
हो! दे वी-दे वताओं की यहां कोई ज रत नहीं, यहां िसफ गधों के िलए ार खुला है !
228

तो ब े को िसखाना पड़ता है , ग गणेश का, या ग गधे का। ग का गधे से या गणेश से कोई ले ना-दे ना है? ग तो गं वार
का भी होता है । ग तो अनेकों का होता है । ग का गधे से या गणेश से ा ठे का? ले िकन ब े को कहीं से तो शु
करना पड़े गा। वन है ज टु िबिगन सम े यर।

अगर हम कह िक ग सब का, तो ब े की कुछ समझ म न आएगा। ब े को तो कहीं से शु करना पड़े गा। िफर
धीरे -धीरे हम कहगे, ग गणेश का भी और ग गधे का भी और ग गं वार का भी। और तब ब े को धीरे -धीरे समझ म
आएगा िक ग का िकसी से कोई ले ना-दे ना नहीं। ग सबका हो सकता है । िफर वह गधे को भी भू ल जाएगा, गणेश को
भी भू ल जाएगा। ग रह जाएगा।

ठीक वै से ही कृ को भी ब े के साथ बात करनी पड़ रही है । इस पृ ी पर बु को, महावीर को, या कृ को, या


ाइ को, या मोह द को ब ों के साथ बात करनी पड़ रही है । उ से भला बू ढ़े हों; ान से तो ब े ही ह, िजनसे
बात करनी पड़ रही है ।

और ब ों के साथ बात करनी इतनी किठन नहीं होती, ोंिक ब ों को खयाल होता है िक वे ब े ह। बू ढ़ों के साथ
और किठनाई हो जाती है, ोंिक वे समझते ह, वे बू ढ़े ह। होते ब े ही ह।

इसिलए दु िनया के सारे शा ब ों के िलए ह। जो जानने की या ा पर थोड़ा आगे जाएगा, जै सा ग गधे से छूट जाता
है , ऐसे ही बु शा से छूट जाती है । सब शा क ख ग ह। उनम िसफ या ा का ारं भ है, अंत नहीं है । हां , अंत
की झलक दे ने की जगह-जगह कोिशश होती है िक शायद थोड़ी-सी झलक खयाल म आ जाए, तो आदमी या ा पर
िनकल जाए।

तो कृ जो कह रहे ह, मुझ वासुदेव को। अजु न यही समझ सकता है । अगर कृ कह िक मुझ परा र को, तो
अजु न कहे गा, महाराज, आप मेरे सारथी। परा र !

एक-एक इं च उसको सरकाना पड़े गा। एक-एक इं च। एक-एक इं च कृ अपने को कट करगे –वाणी से,
से, जीवन से । एक-एक इं च कट करगे और उस जगह लाएं गे, जहां अजु न के सामने वे भगवान की तरह कट हो
सक। वही उनका होना स होना है । कृ होना तो िसफ श है । भगवान होना ही उनका स होना है । आपका
भी नाम तो केवल श है । आपका भी भगवान होना ही स होना है । ले िकन उसका रण िदलाने के िलए ि या
से गु जरना पड़े गा।

इसिलए कृ कह रहे ह, मुझ वासुदेव को।

अजु न इसको समझ पाएगा िक ठीक है । और अजु न इसको इसिलए भी समझ पाएगा िक इन वासु देव से उसका बड़ा
ेम है ; परा र से कोई ेम भी नहीं है । सु खद होगा उसे िक म तु सबम दे ख पाऊं। सु ख होगा उसे िक म तु
सबम पा पाऊं। सु ख होगा उसे िक तु म भी मुझे दे ख पाओगे; तु म वासुदेव कृ , तु म मुझे दे ख पाओगे, म तु दे ख
पाऊंगा! यह उसकी समझ म पड़े गी बात।

ले िकन यह िसफ लोभन है । यह िसफ िश क के ारा िदया गया लोभन है । इस लोभन के आसरे उसको कृ
इं च-इं च सरकाएं गे ।

कभी-कभी कोई िश क ऊबकर, परे शान होकर इस तरह की ि या छोड़ दे ता है । कभी-कभी कोई िश क ऐसी
ि या छोड़ दे ता है । जै से िक नागाजु न एक बौ िश क आ, अदभुत। ठीक उतना ही जानने वाला, उतनी ही
गहराई म, जै से कृ । ले िकन वह यह ि या उपयोग न करे गा। वह िश क की भाषा बोलेगा। वह िव ाथ की भाषा
बोलेगा ही नहीं। तो एक आदमी के काम नहीं पड़ सका।
229

जै से कृ मूित। वे िश क की भाषा बोल रहे ह, िव ािथयों की नहीं। और आ ा क िश कों का कोई टीचस टे िनंग
काले ज तो है नहीं िक जहां आ ा क िश कों के सामने भाषण िकया जा सके। कोई कबीर और नानक तो सु नने
आते नहीं। अगर कबीर सु नने आते हों कृ मूित को, तो ठीक है ! ले िकन वे समझकर चल रहे ह िक कबीर सु नने
आते ह! और क ख ग सु न रहे ह! उनकी पकड़ म कुछ नहीं आ रहा! ले िकन िफर भी सु नते-सु नते म पैदा हो जाएगा
िक पकड़ म आ गया, िफर मौत ई।

नहीं; िव ाथ की भाषा बोलनी पड़े गी। िश ाशा कहता है िक ठीक िश क वही है , िजसकी ास के िव ाथ , जो
अंितम वग है िव ाथ का या जो अंितम िव ाथ है, जो उसे समझ पाए, अंितम िव ाथ िजस िश क को समझ पाए,
वही यो िश क है । अगर आप िसफ थम िव ाथ के िलए बोल रहे ह, तो बाकी उनतीस को छु ी कर द!

मगर यहां तो कुछ िश क ऐसे भी हो जाते ह पृ ी पर, जो िसफ अपने िलए बोल रहे ह, मोनोलाग। डायलाग नहीं है ।
कृ मूित जो बोल रहे ह, वह मोनोलाग है, एकालाप। दू सरे से बात नहीं चल रही है ; उसम दू सरे का कोई सवाल ही
नहीं है । आप न हों, तो भी चलेगा।

मेरे एक िश क थे, मेरे एक ोफेसर थे, ब त अदभुत आदमी थे । जब म उनके पास दशनशा पढ़ने गया िव ाथ
की है िसयत से, तो म उनका अकेला िव ाथ था, ोंिक उनके पास िव ाथ िटकते नहीं थे । कई साल से उनके पास
कोई िव ाथ नहीं िटकता था। कोई पां च-सात साल से वे खाली थे । िटकते इसिलए भी नहीं थे िक उनका िव ाथ
कभी एम.ए. पास नहीं आ। जो भी उनके पास आया, फेल होकर गया। िफर आना लोगों ने बंद कर िदया। उनका
िवषय ही कोई नहीं ले ता था। कौन झंझट म पड़े ! उसम फेल होना प ा ही था।

उनसे कई बार पूछा गया िक आप सभी को फेल कर दे ते ह? वे बोले िक म दो म से एक ही कर सकता ं । अगर


ईमानदारी से जांचूं, तो वे फेल होते ह। और अगर बे ईमानी से जांचूं, तो पास हो सकते ह। ले िकन बे ईमानी से म जांच
नहीं सकता। फेल होंगे।

छः-सात साल से कोई नहीं गया था। मुझे भी िम ों ने समझाया िक वहां मत जाओ। पर मने कहा िक उस आदमी म
कुछ खूबी तो होनी ही चािहए, जो कहता है , ईमानदारी से जां चगे, तो ही पास करगे । तो, ऐसे आदमी के पास पास
होने का कोई मतलब है । म जाता ं । ऐसे आदमी के पास फेल होने का भी कुछ मतलब है ।

उ ोंने मुझे आते ही से समझाया िक दो ीन बात साफ समझ लो। ोंिक तु म अकेले हो, पांच-सात साल बाद आए
हो, और मेरी आदत डायलाग की नहीं है , मेरी आदत मोनोलाग की है । ा मतलब आपका? उ ोंने कहा, म बोलूं गा,
तु म से नहीं। म बोलूंगा, तु म सु नना, यह दू सरी बात है । तु ारा म ान नहीं रखूंगा, नहीं तो मेरे बोलने म गड़बड़ होती
है । मुझे जो बोलना है, वह म बोलूं गा; तु म सु न लोगे, यह दू सरी बात। ए डटल है यह िक तु मने सु न िलया,
सां योिगक है । म तु ारे िलए नहीं बोल सकता ं , ोंिक तु ारे िलए बोलूं गा, तो मुझे कुछ गलत, नीचे तल पर
उतरकर बोलना पड़े गा।

मने कहा िक म भी आपसे कह दू ं िक आप भू लकर मत समझना िक म यहां मौजू द ं । और अगर बीच-बीच म म


उठकर चला जाऊं, तो आप बोलना बं द मत करना। आप जारी रखना बोलना। म िफर लौट आऊंगा। मेरी मौजू दगी
आप मानना ही मत। और रिज र आप बं द कर दो; मेरी अटडस नहीं भरी जाएगी। जब आप कहते ह िक म तु ारे
िबना बोलूं गा, तो मुझे भी सु नाई पड़ जाएगा, तो ए डट है । म भी आता-जाता र ं गा। म भी कोई सु नने के िलए
उ ुक नहीं ं!

ब त चौंके। कहने लगे, तु म आदमी कैसे हो? मने कहा िक आदमी ऐसा न होता, तो म आपके पास आता नहीं। छः
साल से कोई आया नहीं! िफर यह एकालाप चला दो साल तक। कभी-कभी म दस-दस, पं ह-पं ह िमनट के िलए
बाहर चला जाता। लौटकर आता। मगर उ ोंने िनभाया। वे पं ह िमनट बोलते रहते थे खाली कमरे म! पर ऐसे
िश क ब त कम िव ािथयों के काम पड़ सकते ह, नहीं के बराबर।
230

अगर िश क अपने आनंद म बोले, तो ऐसा ही हो जाएगा। वह आपको भू ल जाएगा। आपको याद रखे, तो नीचे
उतरना ही पड़े गा। और आपको याद न रखे, तो बोलना थ हो जाता है ; बोलने का कोई मतलब नहीं रह जाता। िफर
चु प ही हो जाना बे हतर है ।

इसिलए ब त-से िश क इस पृ ी पर चु प भी रहे । और कोई कारण नहीं था। कुल कारण इतना ही था िक वे बोलते,
तो एकालाप होता। और अगर सं वाद करना चाहते, तो उनको कहीं उस जगह से बात शु करनी पड़ती, जहां वे
जानते थे, बात बे कार है ।

ले िकन कृ ब त क णावान ह। वे अजु न की तरफ दे खकर ही बोल रहे ह। एक-एक श उनका एडे ड है , वह
डायलाग है । गीता एक महानतम सं वाद है , िजसम िश क िव ाथ को पूरे समय रण रखे ए है । इसिलए वह पूरी
दफे उतार-चढ़ाव ले ते ह। जब वे अजु न को दे खते ह िक नहीं, यह समझ म नहीं आएगा, और नीचे उतर आते ह। जब
वे समझते ह िक अजु न की समझ थोड़ी चमक रही है , तब वे त ाल ऊपर चले जाते ह।

कृ की गीता म ब त उतार-चढ़ाव है । कृ की गीता सपाट नहीं है । उसम कई बार वह अजु न के ब त िनकट


उ आना पड़ता है । ब त छोटी बात कहनी पड़ती है , जो िक उ नहीं कहनी चािहए थी, जो िक उ ोंने नहीं कहनी
चाही होगी। ले िकन अजु न पर यह भरोसा रखकर िक इस तरह धीरे -धीरे उसे आगे ले जाकर कहीं वह चीज कट
कर दगे, जो कहनी है । और जब एक दफा वह उस चीज को समझ ले गा, तो वह यह भी जान जाएगा िक पहले जो
बात कही थीं, वे मुझे ान म रखकर कही थीं; वे कृ की तरफ से नहीं थीं, मेरी तरफ से थीं। अजु न िनिम है ।
इसिलए वै सी बात कही है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


सव भू तों म भु का रण—(अ ाय—6) वचन—पं हवां

सवभूत थतं यो मां भज ेक मा थतः।


सवथा वतमानोऽिप स योगी मिय वतते।। 31।।
इस कार जो पु ष एकीभाव म थत आ सं पूण भू तों म आ प से थत मुझ स दानंदघन वासुदेव को भजता
है , वह योगी सब कार से बतता आ भी मेरे म बतता है ।

कृ इस सू म अजु न को सब भू तों म भु को भजने के सं बंध म कुछ कह रहे ह। भजन का एक अथ तो हम जानते


ह, एकां त म बै ठकर भु के चरणों म समिपत गीत; एकां त म बै ठकर भु के नाम का रण; या मंिदर म ितमा के
सम भावपूण िनवे दन। ले िकन कृ एक और ही प का, और ादा गहरे प का, और ादा ापक आयाम
का सू चन कर रहे ह। वे कहते ह िक जो सम भू तों म मुझ स दानं द को भजता है! ा होगा इसका अथ?

इसका अथ होगा, जब भी कुछ आपको िदखाई पड़े , तब रण कर िक वह परमा ा है । राह पर पड़ा आ प र हो,
िक आकाश से गु जरता आ बादल हो, िक सु बह उगता आ सू रज हो, िक आपके ब े की आं ख हों, िक आपका
िम हो, िक आपका श ु हो, जो भी आपको िमले, उसके िमलन के साथ ही जो पहला रण आपके ाणों म वेश
करे , वह यह हो, यह भी भु है । तब स दानं द प को हम सम भू तों म भज रहे ह, ऐसा कहा जा सकेगा।

रा े पर वृ िमल जाए, िक गाय िमल जाए, िक नदी बहती हो–जो भी–जो भी आकार िमले कहीं जीवन म, उन
सम आकारों म उस िनराकार का रण। इसके पहले िक हम पता चले िक प र है, पता चल जाए िक परमा ा
है । तो भजन आ, कृ के अथ म।

इसके पहले िक म आपको दे खूं और समझूं िक आप आदमी ह, उसके पहले मुझे पता चल जाए िक आप परमा ा
ह। आदमी का होना पीछे कट हो। िनराकार की ृित पहले आ जाए, आकार पीछे िनिमत हो। म पीछे पहचानूं िक
आप कौन ह; पहले तो यही पहचानूं िक परमा ा है । तो सम भू तों म भु को भजा गया, ऐसा कहा जा सके।
231

एकां त म भजन ब त आसान है, ोंिक आप अकेले ह। ितमा के सामने भी भजन ब त आसान है , ोंिक ब त
ठीक से समझ, तो िफर भी आप अकेले ह। ले िकन जीवन के सतत वाह म, जहां न मालू म िकतने पों म लोग
िमलगे; जहां कोई छु रा िलए ए छाती पर खड़ा हो सकता है , वहां भी पहले रण आ जाए िक भु छु रा िलए ए
खड़ा है, तो िफर भु का भजन आ।

जीवन म जहां घना सं घष है, जहां तनाव है , अशां ित है, जहां श ु ता भी फिलत होती है , वहां पहला रण यही आए
िक भु है । पीछे पहचान प को, पहले अ प की पहचान हो जाए। ऐसे अ प को ितपल दे खने की जो साधना है ,
उसका नाम कृ इस सू म कह रहे ह, भु को भजना।

जीवंत साधना तो ऐसी ही होगी। जीवं त साधना कोनों म बं द होकर नहीं होती, जीवन के िवराट घनेपन म होती है ।
जीवंत साधना ार बं द करके नहीं होती, जीवंत साधना तो मु आकाश के नीचे होती है । ार तो हम इसीिलए बं द
करते ह िक बाहर जो है , वह परमा ा नहीं है; वह कहीं भीतर न आ जाए! मंिदर म तो हम इसीिलए जाते ह िक
मकान म परमा ा को दे खना किठन पड़े गा। ले िकन वह साधना सं कुिचत है, ब त सीिमत है ; उसके भी योजन और
अथ ह। ले िकन कृ इस सू म िजस िवराट साधना की खबर दे रहे ह, वह ब त और है ।

सु ना है मने, एक आदमी था महारा म। घोर ना क था। साधु-सं तों के पास जाता, तो साधु-सं त बड़ी मु ल म पड़
जाते । ोंिक यह दु भा की घटना है िक ना क भी हमारे तथाकिथत साधु -सं तों से ादा समझदार होते ह।

साधु-सं त मु ल म पड़ जाते । उस ना क को जवाब दे ते उनसे न बन पड़ता। वह जो भी पूछता, उन साधु-सं तों


को बेचैन कर जाता। साधु-सं त होना चािहए ऐसा िक िजसे कोई बे चैन न कर जाए; ब बेचैनी से भरा कोई पास
आए, तो चै न ले कर जा सके। लेिकन वह ना क ब त-से साधु-सं तों के िलए तकलीफ और परे शानी का कारण बन
गया था। बड़े -बड़े साधु ओ ं के पास जाकर भी उसने पाया िक उसके ों का उ र नहीं है ।

तब एक साधु ने उससे कहा िक तू इधर-उधर मत भटक। ते रे लायक िसफ एक ही आदमी है , एकनाथ नाम का। तू
उसके पास चला जा। अगर उससे उ र िमल जाए, तो ठीक। नहीं तो िफर परमा ा से ही उ र ले ना। िफर बीच म
दू सरा आदमी काम नहीं पड़े गा। उस आदमी ने कहा, ले िकन परमा ा तो है ही नहीं! तो उस साधु ने कहा, िफर
एकनाथ आ खरी आदमी है । उ र िमल जाए, ठीक; न िमले, तो तू जान।

ब त आशा से भरा आ वह ना क एकनाथ के पास प ं चा। सु बह थी। कोई सु बह के आठ, साढ़े आठ, नौ बज रहे
थे । धू प घनी थी, सू रज ऊपर िनकल आया था। गां व म पूछता आ गया, तो लोगों ने कहा िक एकनाथ के बाबत पूछते
हो! नदी के िकनारे मंिदरों म दे खना, अभी कहीं सोता होगा! उसके मन म थोड़ी-सी िचं ता ई। साधु तो मु त म
उठ आते ह। नौ बज रहे ह; कहीं सोता होगा!

गया जब मंिदर म, तो दे खकर और मु ल म पड़ गया। ोंिक एकनाथ शं कर के मंिदर म सोए ह, पैर दोनों शं कर
की िपंडी से िटके ह; आराम कर रहे ह! सोचा िक ना क ं म, अगर इतना महाना क म भी नहीं ं । शं कर को
पैर लगाते मेरी भी छाती कंप जाएगी। कहीं हो ही अगर! कहता ं िक नहीं है । ले िकन प ा भरोसा नहीं है नहीं होने
का। कहीं हो ही अगर? और पैर लग जाए, तो कोई झंझट खड़ी हो जाए। िकसके पास मुझे भे ज िदया! ले िकन जब
अब आ ही गया ं , तो इससे दो बात कर ही ले नी चािहए। वै से बे कार है । यह मुझसे भी गया-बीता मालू म पड़ता है!

और जो आदमी शं कर की िपंडी पर पैर रखकर सो रहा है, उसको उठाने की िह त न हो सकी। पता नहीं नाराज
हो, ा करे ! ऐसे आदमी का भरोसा नहीं। बै ठकर ती ा की। कोई दस बजे एकनाथ उठे ।

उस आदमी ने कहा िक महाराज, आया था पूछने कुछ ान; अब तो कोई ज रत न रही पूछने की। ोंिक आप
मुझसे भी आगे गए ए मालू म पड़ते ह! पूछने कुछ और आया था, अभी पहले तो म यह पूछना चाहता ं , यह कोई
उठने का समय है ? साधु -सं त मु त म उठते ह!
232

एकनाथ ने कहा िक मु त ही है । असल म जब साधु-सं त उठते ह, तभी मु त! न हम अपनी तरफ से सोते ह,


न अपनी तरफ से उठते ह। जब वह सो जाता है, सो जाता है ; जब वह उठता है , तब उठ जाता है । तो हमने तो एक
ही जाना िक जब नींद खुल गई की, तो मु त है! हम अपनी तरफ से सोते भी नहीं, अपनी तरफ से जागते भी
नहीं। को जब सोना है, सो जाता है; को जब जगना है , जग जाता है । यह मु त है , ोंिक उठ रहे
ह!

उसने कहा, गजब की बात कह रहे ह आप भी। और मु ल म डाल िदया। हम तो पूछने आए थे, है या नहीं?
अब हम और मु ल म पड़ गए! ोंिक आप तो कह रहे ह, आप ही ह! एकनाथ ने कहा िक यह ही नहीं कह
रहा ं िक म ही ं , यह भी कह रहा ं िक तू भी है । फक इतना ही है िक तु झे अपने होने का पता नहीं, मुझे
अपने होने का पता है ।

उसने कहा, छोिड़ए इस बात को। यह भी आपसे पूछ लूं कृपा करके िक शं कर की िपंडी पर पैर रखकर सोना कौन-
सा तु क है ! एकनाथ कहने लगे, मने सब जगह पैर रखकर दे खा, शं कर को ही पाया। कहीं भी पैर रखूं, फक ा
पड़ता है ! जहां भी पैर रखूं, वही है । शं कर की िपंडी पर रखूं, तो वही है , अगर ऐसा होता, तो एक बात थी। जहां भी
पैर रखूं, वही है । तो िफर मने िफ छोड़ दी।

उस आदमी ने कहा, तो म जाऊं! ोंिक अभी हम भी इस हालत पर नहीं प ं चे िक शं कर की िपंडी पर पैर रख सक!
हम तो कुछ ान ले ने आए थे । आ क होने आए थे । आप महाना क मालू म पड़ते हो। एकनाथ ने कहा, अब
इतनी धू प चढ़ गई, जाओगे कहां । भोजन बनाता ं , भोजन कर लो, िफर जाना।

और एकनाथ गां व म जाकर आटा मां ग लाए। िफर उ ोंने बािटयां बनाईं। और जब वे बािटयां बनाकर रख रहे थे, तो
एक कु ा आकर एक बाटी लेकर भाग गया। तो एकनाथ हं डी ले कर घी की उसके पीछे भागे।

उस आदमी ने समझा िक यह दु , कु े से भी बाटी छु ड़ाकर लाएगा। अजीब सं ासी िमल गया! ले गया कु ा एक
बाटी, तो ले जाने दो।

यह भी उसके पीछे दौड़ा िक दे ख, यह करता ा है ? एक मील दौड़ते-दौड़ते एकनाथ बामु ल उस कु े को


पकड़ पाए और पकड़कर कहा िक राम, हजार दफे समझाया िक िबना घी की बाटी हमको पसं द नहीं है खानी;
तु मको भी नहीं होगी। नाहक एक मील दौड़वाते हो। हम घी लगाकर थोड़ी दे र म रखते; िफर उठाकर ले जा सकते
थे! छु ड़ाकर बाटी, घी की हं डी म डालकर–कु े के मुंह की जूठी बाटी वापस डालकर–घी म पूरा सराबोर करके मुंह
म लगा दी और कहा िक आइं दा खयाल रखना, नहीं तो ह ी-पसली तोड़ दगे । न इस राम को पसं द है , न उस राम
को पसं द है ! जब हम बाटी म घी लगा ल, तभी ले जाया कर। नाहक एक मील दौड़वाया!

उस आदमी ने सोचा िक बड़े मजे का आदमी है ! शं कर की िपंडी पर पैर रखकर सोता है , कु े को राम कहता है !

अगर ठीक से समझ, तो यह भजन चल रहा है । ये दोनों ही भजन के प ह। अगर भु सब जगह है , ऐसा रण आ
जाए, तो शं कर की िपंडी को अलग कैसे क रएगा! और अगर सब जगह भु है, तो कु े को िबना घी की बाटी कैसे
खाने दीिजएगा!

ये दोनों िवरोधी बात नहीं ह, ये एक ही भु के भजन म लीन िच के दो प ह। और सं गितपूण ह; इनम कोई िवरोध
नहीं है । असल म जो शं कर की िपंडी पर पैर रख सकता है , वही कु े को राम कह सकता है । और जो कु े को राम
कह सकता है, वही शं कर की िपंडी पर पैर रख सकता है । यह शं कर की िपंडी पर पैर रखने का साहस, साम ,
उसी का है , जो कु े के सामने िसर झुका सके। और कु े के सामने िसर झुकाने की, समपण की थित उसी म हो
सकती है , जो शं कर की िपंडी पर पैर रख सके।

ले िकन हमारी कुछ उलटी थित है । हम जहां भी कुछ िदखाई पड़ता है , पहले सं सार रण आता है , पहले । अगर
रा े म आप अकेले चले जा रहे ह, और अंधेरे म एक आदमी िनकल आता है, तो आपको पहले भला आदमी नहीं
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िदखाई पड़ता है । पहले कोई चोर, बदमाश, लु ा! आपका रण ऐसा है , आपका भजन ऐसा चल रहा है! और
भगवान न करे िक आपके भजन की वजह से वह कहीं आदमी लु ा हो जाए। ोंिक भजन भाव तो करता ही है ।

आप जब दू सरे के ित एक ि ले ते ह, तो आप दू सरे को वै सा होने का मौका दे ते ह। जब आप दू सरे के ित ख


ले ते ह, तो आप दू सरे को वै सा होने का अवसर दे ते ह। इस जमीन पर हजारों लोग इसिलए बुरे ह, ोंिक उनके
आस-पास हर आदमी उ बु रा सोचने का मौका दे रहा है ।

आपको खयाल न होगा िक अगर आपको दस ऐसे आदिमयों के बीच म रख िदया जाए, जो आपको भगवान मानते
हों, तो आप चोरी करना ब त मु ल पाएं गे–िक अगर पकड़ा गए भगवान चोरी करते, तो ा हालत होगी! अगर
दस लोग आप पर भगवान जै सा भरोसा भी करते हों, आपको दे खकर भगवान जै सा णाम करते हों, तो अचानक
आप पाएं गे िक आपकी सं भावनाएं पांत रत होने लगीं।

एक भी आदमी भरोसा कर ले , तो भी आपके भीतर कुछ नए का ज होता है । और एक भी आदमी अिव ास कर


दे , तो आपके भीतर शै तान की तीित शु हो जाती है । जो दू सरे हमसे अपे ा करते ह, हम उसे िस करने म लग
जाते ह। जाने-अनजाने जो हम दू सरे सोचते ह, हम वै से ही हो जाते ह।

ले िकन हम जब भी कोई िदखाई पड़ता है, तो हम भु का रण नहीं आता, हम सं सार का ही रण आता है । और


सं सार म भी जो ब त ु है , अंधकारपूण है , अशु भ है , उसका ही रण आता है ।

भु का इस अथ म भजन गहरी बात है , आडु अस, किठन, तप यापूण है । इसका अथ यह है िक जहां भी प कट


हो, वहां त ाल रण करना िक भु है । और अगर ऐसा रण बै ठता चला जाए, तो धीरे -धीरे आप पाएं गे िक सच
म सभी जगह भु है । और धीरे -धीरे आप पाएं गे िक भु के अित र और कोई िदखाई पड़ना असंभव हो गया है ।

कृ ब त-सी िविधयों की बात कर रहे ह। यह भी एक िविध है । यह भी एक िविध है ।

एक सू फी फकीर आ है , हसन। सं रण िलखा है हसन ने अपना िक जब मंसूर को फां सी दी जाती थी, और लोग
मंसूर पर नुकीले प र फक रहे थे, और मंसूर के शरीर से ल लु हान धाराएं खून की बह रही थीं, तब हसन भी उस
भीड़ म खड़ा था। मंसूर हं स रहा था, और हसन भीड़ म खड़ा था, और सारे लोग प र फक रहे थे ।

हसन का इरादा नहीं था िक मंसूर पर प र फके। ले िकन िजस भीड़ म खड़ा था, वह दु नों की थी। और हसन की
इतनी िह त न थी–तब तक इतनी िह त न थी–िक उस भीड़ म खड़ा रहे , जो दु नों की है । कहीं कोई पहचान न
ले िक यह आदमी प र नहीं फक रहा है! तो उसके हाथ म एक फूल था, उसने वह फूल फककर मंसूर को मारा।
िसफ इस खयाल से िक लोग समझगे, म भी कुछ फककर मार रहा ं ।

ले िकन मंसूर दू सरों के प र खाकर तो स था, हसन का फूल खाकर रोने लगा। हसन ब त घबड़ाया। और हसन
ने पूछा िक मेरी समझ म नहीं आता! ल लु हान कर रहे ह जो प र, घाव कर रहे ह जो प र, उनकी चोट खाकर
तु म हं से चले जाते हो, और मने एक फूल मारा और तु म रोने लगे?

मंसूर ने कहा िक म एक साधना म लगा रहा ं सदा। वह साधना मेरी यह रही है िक जब भी मुझे कोई िदखाई पड़े ,
तो म उसम पहले परमा ा दे खूं। तो ये जो लोग मुझे प र मार रहे ह, इनम तो म परमा ा दे ख रहा था। ले िकन तु झे
तो म समझता था िक तू परमा ा है ही, इसिलए मने दे खने की कोिशश न की। तु झे तो म समझता था, तू ान को
उपल है ही, इसिलए तु झे परमा ा दे खने की ा कोिशश! इनके साथ तो म भजन म रत था। ये प र फक रहे थे
और म परमा ा दे ख रहा था। ले िकन तू ने जब फूल फका, तो म चू क गया। ते रे से मने कभी सोचा भी नहीं था िक ते रे
बाबत भी परमा ा होना म पहले सोचूं! तु झे तो म परमा ा मानता ही था, जानता ही था। ले िकन चू क गया भजन एक
ण को। म परमा ा तु झ म नहीं दे ख पाया, ते रा फकना ही मुझे पहले िदखाई पड़ गया, य िप फूल था। म ते रे फूल
की वजह से नहीं रो रहा ं ; मेरा भजन चू क गया, उसकी वजह से रो रहा ं । तु झसे अपे ा न थी कुछ फकने की।
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कभी सोचा भी नहीं था, इसिलए चू क गया। ले िकन भु को ध वाद िक उसने आ खरी ण म तु झसे एक फूल
िफंकवा िदया, तो मुझे पता चल गया िक मुझम भी अभी कमी है । मेरा भजन पूरा नहीं है ।

इसिलए कोई कभी ऐसा न समझ ले अपने को िक भजन पूरा हो गया। सतत जारी रखना ही पड़े गा। जब तक दू सरा
िदखाई पड़ता है, तब तक उसम परमा ा को खोजने की कोिशश जारी रखनी ही पड़े गी। एक घड़ी ऐसी आती है
ज र, जब दू सरा ही िदखाई नहीं पड़ता। तब िफर भजन की कोई ज रत नहीं रह जाती। जब परमा ा ही िदखाई
पड़ने लगता है , तब िफर परमा ा को भजने की कोई ज रत नहीं रह जाती। ले िकन जब तक वह नहीं िदखाई
पड़ता, तब तक उसका आिव ार करना है, पत तोड़नी ह, उघाड़ना है ।

और आदमी के ऊपर प की पत-पत जमी ह, जै से ाज पर जमी होती ह–पत, और पत, और पत। एक पत


उघाड़ो, दू सरी पत आ जाती है । दू सरी उघाड़ो, तीसरी आ जाती है । ले िकन अगर हम ाज को उघाड़ते ही चले जाएं ,
तो एक घड़ी ऐसी आती है , जब शू रह जाता है , कोई पत नहीं रहती। ाज बचती ही नहीं, शू रह जाता है । ठीक
ऐसे ही एक-एक पत आदमी की उघाड़गे, उघाड़गे, और जब आदमी के भीतर िसफ शू रह जाएगा, तब भागवत
चै त का, तब भगवान का अनुभव होगा।

ले िकन लं बी या ा है । जै से िक कोई कुआं खोदता है । कुआं खोदता है, तो पानी एकदम से हाथ नहीं लग जाता। पहले
तो कंकड़-प र हाथ लगते ह। ले िकन वह पानी का ान रखकर कुआं खोदता चला जाता है । िम ी हाथ लगती है ,
प रों की च ान हाथ लगती ह। अभी पानी िबलकुल िदखाई नहीं पड़ता, ले िकन पानी का रण रखकर खोदता चला
जाता है । भरोसा ही है िक पानी होगा।

और भरोसा सच है । ोंिक िकतनी ही गहरी जमीन ों न हो, पानी होगा ही। दू री िकतनी ही हो सकती है , पानी
होगा ही। भरोसा झूठा भी नहीं है । हां, आपकी ताकत कम पड़ जाए और जमीन ादा हो, तो बात अलग है । वह भी
आपकी ताकत की कमी है । और थोड़ा खोदते, और थोड़ा खोदते , तो एक जगह आ जाती, जहां पानी है ही। ले िकन
पहले पानी हाथ नहीं लगता। पहले तो कंकड़-प र हाथ लगते ह। अब कंकड़-प र से कोई भरोसा नहीं िमलता है
िक आगे पानी होगा। कंकड़-प र से ा सं बंध है पानी का?

ले िकन आदमी खोदता है । िफर थोड़ी-सी जमीन तर िमलती है ; थोड़ी-सी पानी की झलक िदखाई पड़नी शु होती है ।
लगता है िक अब जमीन गीली होने लगी। आशा बढ़ जाती है, साम बढ़ जाती है , िह त बढ़ जाती है , और ं कार
करके आदमी खोदने म लग जाता है । िफर धीरे -धीरे गं दा पानी झलकने लगता है । आशा और घनी होने लगती है ।
और एक िदन आदमी उस जल- ोत पर प ंच जाता है , जो शु है ।

ठीक ऐसे ही प म अ प को खोदना पड़ता है । और जब हम खोदने चलते ह, तब प ही हाथ म िमलता है;


अ प तो िसफ रण रखना पड़ता है । जब रा े पर कोई आदमी िमलता है , तो िसफ रण ही हम रख सकते ह
िक भु होगा गहरे म भीतर; अभी कुछ पता तो नहीं। जब छु एं गे , तो आदमी की ह ी-पसली हाथ म आएगी। जब
िमलगे, तो दो ी-दु नी हाथ म आएगी; घृ णा, ोध, ेम हाथ म आएगा। ये सब कंकड़-प र ह। इन पर क नहीं
जाना है , और इनको अंितम नहीं मान ले ना है । जो इनको अंितम मान ले ता है , वह भु की खोज म क जाता है ।

आप मुझे िमले और आपने मुझे एक गाली दे दी। बस, मने समझ िलया िक अंितम बात हो गई। यह आदमी बु रा है ।
यह अ मेट हो गया मेरे िलए। यह गाली मेरे िलए चरम हो गई। मने पहली पत को, कंकड़-प र को कुएं की
आ खरी थित मान ली।

िजससे गाली िमली है, उसके भीतर भी परमा ा है । थोड़ा खोदना पड़े गा। हो सकता है, थोड़ा ादा खोदना पड़े ।
िजससे ेम िमला है, उसके भीतर थोड़े ज ी परमा ा िमल जाए। िजससे घृ णा िमली है , दो पत और ादा आगे
िमले । ले िकन इससे कोई फक नहीं पड़ता। पत िकतनी ही हो, भीतर परमा ा सदा मौजू द है ।

परमा ा यानी अ , वह जो है । इसिलए वह सब जगह मौजू द है । हम कहीं भी खोजगे, वह िमल जाएगा। कहीं भी
खोजगे, वह िमल जाएगा। और अगर हमने खोज न की, तो वह कहीं भी न िमलेगा।
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यह बड़े मजे की बात है िक परमा ा, जो सदा और सवदा मौजू द है , हमारी िबना खोज के नहीं िमलेगा। े क चीज
के िलए कीमत चु कानी पड़ती है । िबना कीमत कुछ भी नहीं िमलता, न िमलना चािहए। ोंिक िबना कीमत कुछ िमल
जाए, तो खतरा यही है िक आप पहचान भी न पाएं िक आपको ा िमला है ।

एक छोटी-सी घटना मुझे रण आती है । नंदलाल बं गाल के एक ब त अदभुत िच कार ए। रवी ं नाथ ने एक
सं रण िलखा है नंदबाबू के सं बंध म िक जब नंदलाल बड़े िच कार नहीं थे, िसफ िव ाथ थे और अवनी ं नाथ ठाकुर
के पास पढ़ते थे । अवनी ं नाथ एक दू सरे बड़े िच कार थे । अवनीं नाथ के पास पढ़ते थे ।

एक िदन रवी ं नाथ अवनी ं नाथ के पास बै ठे ह। नंदलाल कृ की एक त ीर बनाकर लाए। रवीं नाथ ने िलखा है
िक मने अपने जीवन म कृ की इतनी सुं दर त ीर नहीं दे खी। बड़े से बड़े िच कारों ने बनाई है, ले िकन नंदलाल ने
जो बनाई थी, वह बात ही कुछ और थी। म तो एकदम िवमु हो गया। मेरे मन म खयाल उठा िक अवनी ं नाथ
िकतने स न होंगे, उनके िव ाथ ने कैसी अदभुत त ीर बनाई है!

ले िकन अवनी ं नाथ ने वह त ीर हाथ म उठाकर दरवाजे के बाहर फक दी और नंदलाल से कहा िक इसको िच
कहते हो? इसको कला कहते हो? शम नहीं आती? बं गाल म जो पिटए होते ह, जो दो-दो पैसे का कृ -पट बनाकर
ज ा मी के समय बे चते ह, अवनी ं नाथ ने कहा िक तु मसे अ ा तो बं गाल के पिटए बना ले ते ह!

रवी ं नाथ ने िलखा है िक मुझे जै से िकसी ने छाती म छु रा भोंक िदया हो। यह तो अपेि त ही न था। मुझे खयाल आया
िक अवनी ं नाथ के भी मने िच दे खे ह, इतना सुं दर कृ का िच उनका भी कोई नहीं है । यह ा हो रहा है !
ले िकन बोलना ठीक न था। िश और गु के बीच बोलना उिचत भी न था।

नंदलाल पैर छूकर िवदा हो गए। वह त ीर साथ म उठाकर बाहर ले गए। चले जाने पर रवी ं नाथ ने कहा िक ा
िकया आपने? दे खा–मन था िक अवनी ं नाथ से लड़गे, जू झ पड़गे ; ले िकन जू झने की िह त टू ट गई–आं ख उठाकर
दे खा, तो दे खा, अवनी ं नाथ की आं खों से आं सुओं की धारा बह रही है । और मु ल म पड़ गए। कहा िक आप रो
रहे ह! बात ा है ? अवनी ं नाथ ने कहा िक बड़ा क होता है , इतना सुं दर िच म भी बना नहीं सकता! तो रवी ं नाथ
ने कहा िक यही म सोचता था। िफर फका ों है ?

अवनी ं नाथ ने कहा िक िबना मू के कुछ भी िमल जाए, तो रक ीशन, िभ ा नहीं होती। उसे थोड़ा क दे ना
ही पड़े गा। इसिलए भी क दे ना पड़े गा, तािक उसे पता हो, जो उसे उपल हो रहा है , वह आसान नहीं है , तप या
है । और इसिलए भी क दे ना होगा िक अभी उसकी और भी सं भावना है । यह िच आ खरी नहीं है । अभी इससे
बे हतर भी िनकल सकता है । अगर वह मेरी आं खों म जरा-सा भी शं सा का भाव दे ख ले ता, तो यह अंितम हो जाता।
इसके आगे िफर नहीं िनकल सकता था।

परमा ा भी हमसे बड़ी सं भावनाओं और अपे ाओं म है –बड़ी सं भावनाओं म। इसिलए ज ी कट नहीं हो जाता।
तप या है , मू चु काना पड़ता है । और हम पर उसकी आ था इतनी है , िजतनी हमम से िकसी की भी उस पर
आ था नहीं है । इसिलए तो हजार दफे भू ल करते ह, िफर भी माफ ए चले जाते ह। हजार ज ले ते ह, थ गं वा दे ते
ह, िफर ज िमल जाता है । ले िकन खोजे िबना नहीं िमले गा। और खोज जब भी शु होती है, तो िजसे हम खोजने
जाते ह, उससे उलटी चीज पहले हाथ आती ह।

अगर म आपके पास परमा ा खोजने गया, तो पहले आप िमलगे, जो िक परमा ा नहीं ह। पहले आपका शरीर
िमले गा, जो िक िनराकार नहीं है । िफर आपका मन िमले गा, जो िक हजार गं दिगयों से भरा है । और अगर म इनको
पार करने की साम नहीं रखता ं, तो म आपके बाहर से ही लौट आऊंगा और आपके उस मंिदर के अंतक से
वं िचत ही रह जाऊंगा, जहां भु िवराजमान है । म कां टों से ही लौट आया, फूलों तक प ंच ही न पाया, य िप सभी
फूलों की सु र ा के िलए कां टे होते ह।
236

भु को भजना सम भू तों म, इसका अथ है , चाहे िकतना ही िवपरीत कुछ ों न हो, चाहे िबलकुल शै तान ों न
खड़ा हो; जहां शै तान खड़ा हो, समझना िक साधना का और भी शु भ अवसर उपल आ है; वहां भी भु को
भजना, वहां रण करना िक भु है ।

िजस रात जीसस को पकड़ा गया, तो िजस ने जीसस को पकड़वाया, जु दास ने , य दा ने, तो जीसस ने जाने के
पहले उसके पैर अपने हाथों से धोए। उसी आदमी ने पकड़वाया जीसस को; उसी ने दु न को खबर दी। उसी ने
तीस पए की र त म जीसस की खबर दी िक जीसस कहां ह। और िवदा होने के पहले आ खरी रात सबसे पहले
जीसस ने य दा के पैर अपने हाथ से धोए। िफर बाकी िश ों के भी पैर अपने हाथ से धोए।

एक िश ने पूछा भी िक आप यह ा करते ह? हम तो आपके िश ह। आप हमारे पैर धोते ह! तो जीसस ने कहा


िक म भु का रण करता ं ।

और जब दू सरे िदन लोगों को पता चला िक य दा ने ही उनको पकड़वाया है , तो ब त है रान ए। अब तक वह बात


गु ी की तरह उलझी रह गई िक य दा के पैर धोना जीसस ने ों िकया होगा?

कृ के इस सू म ा ा है । ई र को भजने का यह अवसर छोड़ना उिचत न था। जो आदमी फां सी पर लटकवाने


ले जा रहा है , उस आदमी म भी परमा ा को दे खने की आ खरी कोिशश जीसस ने की।

भु को इस अथ म जो भजना शु कर दे , उसे िफर िकसी और भजन की कोई भी ज रत नहीं है । भु को जो इस


प म दे खना शु कर दे , उसे िफर िकसी मंिदर और तीथ की ज रत नहीं है । भु को जो इस प म सोचना,
समझना और जीना शु कर दे , उसके िलए पूरी पृ ी मंिदर हो गई, उसके िलए सब प ितमाएं हो गए भु के,
उसके िलए सब आकार िनराकार का िनवास हो गए।

कृ से अजु न को िमला यह सू ब त कीमती है िक जो सब भू तों म मुझ वासुदेव को, मुझ परमा ा को, परमा ा
को, भु को दे खना शु कर दे ता है, भजना शु कर दे ता है , वह योगी परम िस को उपल होता है ।

आ ौप ेन सव समं प ित योऽजु न।
सुखं वा यिद वा दु ःखं स योगी परमो मतः।। 32।।
और हे अजु न, जो योगी अपनी सा ता से सं पूण भू तों म सम दे खता है और सु ख अथवा दु ख को भी सब म सम
दे खता है , वह योगी परम े माना गया है ।

सम योग है । समता का बोध े तम योग है । सु ख म, दु ख म, अनुकूल म, ितकूल म, सब थितयों म, सब


प र थितयों म जो सम बना रहता है, समता को दे खता है –एक। इस सं बंध म काफी बात कृ ने कही है । इसम एक
दू सरी छोटी-सी बात वे कह रहे ह, जो कीमती है । वह है , जो अपने सा से सब म ही सम थित दे खता है । इसे
थोड़ा समझना ज री है ।

अपने सा से! किठनतम बात है यह। इसका अथ यह है िक जब भी हम दू सरे के सं बंध म कोई िनणय ल, तब
सदा अपने सा से ल। हम इससे उलटा ही करते ह। जब भी हम दू सरे के सं बंध म कोई िनणय ले ते ह, तो कभी
अपने सा से नहीं ले ते।

अगर दू सरा बु राई करता है, बु रा काम करता है , तो हम कहते ह, वह बु रा आदमी है । और अगर हम बु राई करते ह,
तो हम कहते ह, वह मजबू री है । अगर दू सरा आदमी चोरी करता है, तो वह चोर है । और अगर हम चोरी करते ह, तो
वह आपदधम है! ले िकन कभी अपने सा से नहीं सोचते । अगर हम ोध करते ह, तो वह दू सरे के सु धार के िलए
है । और अगर दू सरा ोध करता है, तो वह िहं सक है , ह ारा है ! अगर हम िकसी को मारते भी ह, तो िजलाने के
िलए। और अगर दू सरा िजलाता भी है , तो मारने के िलए।
237

दू सरे को हम कभी भी उस भां ित नहीं सोचते, जै सा हम यं को सोचते ह। यं म जो े तम है , उसे हम भाव


मानते ह; और दू सरे म जो िनकृ तम है, उसे उसका भाव मानते ह!

ान रहे, यं का जो िशखर है, वह हमारा भाव है ; और दू सरे की जो खाई है , वह उसका भाव है! उसका भी
िशखर है , और हमारी भी खाई है ।

सा का अथ यह है िक जब म दू सरे की खाई के सं बंध म सोचूं, तो पहले अपनी खाई को दे ख लूं । तो म पाऊंगा


िक शायद मुझसे बड़ी खाई िकसी दू सरे की नहीं है । जब म अपने िशखर के सं बंध म सोचूं, तो म दू सरों के िशखर भी
सोच लूं , तो शायद म पाऊंगा िक मुझसे छोटा िशखर िकसी का भी नहीं है ।

ले िकन हमारे सोचने की िविध, प ित यह है िक दू सरे का जो बु रा है , िनकृ तम है, वही उसका सार त है ; और
हमारा जो े तम है , वह हमारा सार त है । इसिलए हमसे िनरं तर अ ाय आ चला जाता है । समता होगी कैसे?

ान रहे, एक समता तो यह है िक म दो आदिमयों को समान समझूं, अ और ब समान ह। यह समता ब त गहरी


नहीं है । असली समता यह है िक म, म और तू को समान समझूं, जो ब त गहरी है । दो आदिमयों को समान समझने
म ब त किठनाई नहीं है, ोंिक दो आदिमयों को समान समझने म ही म ऊपर उठ जाता ं । म पैटोनाइिजं ग हो
जाता ं । म दो को समान समझने वाला। म ऊपर उठ जाता ं । म करीब-करीब मिज े ट की कुस पर बै ठ जाता ं ।
दो को समान समझने म ब त किठनाई नहीं है । दू सरे के साथ यं को समान समझने म सबसे बड़ी किठनाई है ।

सु ना है मने, सोरोिकन ने कहीं एक छोटा-सा मजाक िलखा है । िलखा है िक सोरोिकन एक समाजवादी से बात कर
रहा था, जो कहता था, सब चीज बां ट दी जानी चािहए समान। सोरोिकन ने उससे कहा िक िजन आदिमयों के पास दो
मकान ह, ा आपका खयाल है , एक उसको दे िदया जाए, िजसके पास एक भी नहीं? उस आदमी ने कहा, िनि त।
िबलकुल ठीक। यही चाहता ं । िजन आदिमयों के पास दो कार ह, सोरोिकन ने कहा, एक उसको दे दी जाए, िजसके
पास एक भी नहीं? उस आदमी ने कहा िक िबलकुल दु । यही तो मेरी िफलासफी है, यही तो मेरा दशन है ।
सोरोिकन ने कहा िक ा आपका यह मतलब है िक िजस आदमी के पास दो मुिगयां ह, एक उसको दे दी जाए,
िजसके पास एक भी नहीं? उस आदमी ने कहा, िबलकुल गलत। कभी नहीं! सोरोिकन ने कहा िक कैसा समाजवाद
है ! अभी तक तो आप कहते थे, िबलकुल ठीक! उसने कहा, न मेरे पास दो मकान ह और न दो कार ह, मेरे पास दो
मुिगयां ह। यह िबलकुल गलत। यहां तक समाजवाद लाने की कोई ज रत नहीं है ।

दू सरों को समान कर िदया जाए, यह ब त किठन मामला नहीं है । कृ और गहरी समानता की बात कर रहे ह। वे
कह रहे ह, यं के सा से समता, यं को दू सरे के समान समझना।

यह बड़ी जिटल बात है । ोंिक अहं कार भयं कर बाधा डालता है । वह कहता है , कुछ भी कहो, सब कहो, इं चभर भी
जरा मुझे ऊंची जगह दे दो, बस, िफर ठीक है । सबके साथ!

अभी भीतर मन म सोचगे, तब पता चले गा िक सबके साथ म समान! यह नहीं हो सकता। सब समान हो सकते ह,
सबके बीच मुझे जरा बचाओ। भीतर गहरे म मन कहे गा, मुझे बचाओ। म सबको समान करने को राजी ं । और
सबको समान करने म ही म िवशे ष हो जाऊंगा, म अलग हो जाऊंगा, म ऊपर उठ जाऊंगा।

इसिलए समाजवादी नेता ह सारी दु िनया म, सा वादी नेता ह सारी दु िनया म, वे सबको समान करने के िलए ब त
पागल ह, ब त िवि ह। ले िकन आ खर म कुल फल इतना होता है िक सब समान हो जाते ह, वे सबके ऊपर हो
जाते ह! कोई इस बात के िलए राजी नहीं है िक मुझसे कोई समान हो।

कृ कहते ह, यं के सा से!
238

जब भी दू सरे के सं बंध म सोचो, तो यं के सा से सोचना। और तब एक अदभुत घटना घटे गी। तीन घटनाएं
घटगी। एक तो घटना यह घटे गी, जो यं के सा से सोचे गा, वह दू सरे का िनणय ले ना बं द कर दे गा। नहीं; िनणय
नहीं ले गा। ोंिक वह पाएगा, म कौन ं िनणय ले ने वाला! म भी तो वहीं खड़ा ं , जहां सारे लोग खड़े ह।

इसिलए हमारे जो तथाकिथत साधु-सं त होते ह, जो यं को कुछ पिव , ऊपर, और शे ष सबको नारकीय जीव
मानकर दे खते ह, इ कृ के सू का कोई पता नहीं।

तथाकिथत साधु-सं ािसयों के पास जाओ, तो वे ऐसे दे खते ह िक कहां है , पासपोट ले आए नक जाने का िक नहीं!
नीचे से ऊपर तक जां च करके उनकी आं ख का भाव यह होता है िक वे कहीं ऊपर, आप कहीं नीचे!

ठीक सं त तो वह है , जो यह जान ले ता है िक सभी सम ह। ोंिक वह जो भीतर बै ठा है , वह जरा भी ऊपर-नीचे नहीं


हो सकता। एक ही बै ठा आ है, तो असमानता का सवाल कहां है !

बु ने अपने िपछले ज की कथा कही है । और कहा है िक अपने िपछले ज म, जब म ान को उपल नहीं था,
तब उस समय एक बु पु ष थे, कोई ान को उपल हो गए थे, तो म उनके दशन करने गया। मने झुककर उनके
पैर छु ए। ाभािवक! उ ोंने जान िलया था, म अ ानी था। म पैर छूकर खड़ा भी न हो पाया था िक म बड़ी मु ल
म पड़ गया। मने ा दे खा, अनपेि त, िक वे बु पु ष मेरे चरणों म िसर रखे ह, झुक गए ह। घबड़ाकर मने उ
ऊपर उठाया और कहा िक आप यह ा करते ह! यह तो मेरे साथ…मुझे पाप लगेगा। म आपके पैर छु ऊं, यह तो
ठीक, ोंिक आप जानते ह और म नहीं जानता। और आप मेरे पैर छु एं !

तो उन बु पु ष ने हं सकर कहा था िक जो ते रे भीतर बै ठा है, म भलीभांित जानता ं , वह वही है जो मेरे भीतर बै ठा


है । तु झे पता नहीं है, कभी पता चल जाएगा। जब तु झे पता चल जाएगा, तब ते री समझ म आ जाएगा यह राज िक मने
ते रे पैर ों छु ए थे! मने ते रे पैर ों छु ए थे, यह राज तु झे कभी समझ म आ जाएगा। आज तु झे पता नहीं िक ते रे
भीतर वही हीरा िछपा है , जो मेरे भीतर। तू तो नहीं जानता है , इसिलए अगर म ते रे पैर न भी छु ऊं, तो तु झे पता नहीं
चलेगा। ले िकन म तो जानता ं ; अगर म ते रे पैर न छु ऊं, तो मेरे सामने ही म िग ी और अपराधी हो जाऊंगा। म
जानता ं िक वही ते रे भीतर भी िछपा है , जो मेरे भीतर िछपा है।

यह सा है ।

तो कृ कहते ह, यह े तम थित है योग की। पर यह समता और है । यह अ और ब के बीच म नहीं; यह मेरे और


ते रे के बीच, म और तू के बीच समता है ।

म को तू के सम लाना महायोग है । ोंिक म की सारी चे ा ही यही है िक तू को नीचे कर दे । हम िजं दगीभर यही


करते ह। तू को नीचे करने की कोिशश ही हमारी िजं दगी का रस है । और अगर व ु तः न कर पाएं , तो हम दू सरी
तरकीबों से करते ह।

अगर एक आदमी को धन िमल जाए, तो िजनके पास धन नहीं है , वह उनके ऊपर खड़ा हो जाता है । एक को
िमिन ी िमल जाए, तो िजनको नहीं िमली, वह उनके ऊपर खड़ा हो जाता है । उसकी चाल बदल जाती है । उसका
ढं ग बदल जाता है । उसकी आं ख बदल जाती ह। ले िकन िजसको नहीं िमली, वह ा करे ? जो हार गया, वह ा
करे ?

वह दू सरी तरकीबों से नीचा िदखाने की कोिशश करता है । वह कहता है , तु म जीते नहीं हो, पैसा बां टकर जीत गए
हो। मोरारजी भाई से पूछ! जो जीत गया, वह पैसा बां टकर जीत गया। जै से जो हार गया, उसने पैसे नहीं बां टे थे! हार
जाना, कोई पैसे न बां टने की ामािणकता है ? ले िकन जो जीत गया, उसे अब िकस तरह नीचे िदखाएं ? वह तो िदखा
रहा है नीचे , छाती पर चढ़ गया। अब जो हार गया है , वह ा करे ? वह दू सरे रा े खोजेगा नीचे िदखाने के। इसीिलए
हम िनंदा म इतना रस ले ते ह। हम एक-दू सरे की िनंदा म इतना रस ले ते ह।
239

ब त मजे की बात है । अगर म आपसे आकर क ं िक आपका पड़ोसी ब त अ ा आदमी है , तो आप एकदम से


मान न लगे। आप कहगे, अ ा! भरोसा तो नहीं आता। पड़ोसी और अ ा आदमी! मेरे रहते और मेरा पड़ोसी अ ा
आदमी! ा कह रहे ह आप! भला आप ऊपर से कह या न कह, भीतर बे चैनी शु हो जाएगी। और आप कहगे,
मान नहीं सकता। आपको पता नहीं है शायद। जरा पुिलस की िकताब म जाकर दे ख ैक िल म नाम है उसका।
इसको आप अ ा आदमी कहते ह! यह आदमी महा दु है । प ी को पीटते मने सु ना है ।

आप प ीस बात िनकालकर दलील दगे िक यह आदमी अ ा नहीं है । ों? ोंिक अगर वह अ ा है , तो आपके
म का ा होगा! आप प ीस दलील खोजकर, उसे नीचे करके, अपने िसं हासन पर पुनः िवराजमान हो जाएं गे ।

ले िकन अगर कोई आपसे आकर कहे िक सु ना, पड़ोस का आदमी फलाने की ी को ले कर भाग गया! आप कहगे,
म पहले से ही जानता था िक वह भागे गा।

अब आप िबलकुल खोजबीन न करगे । िबलकुल खोजबीन ही न करगे । जरा सं देह-शं का न उठाएं गे । कोई माण न
पूछगे । िबलकुल राजी हो जाएं गे िक दु । यह तो हम पहले जानते थे िक यह होने वाला है । हम पहले ही कह चु के
थे िक वह आदमी भाग जाएगा। वह आदमी ही ऐसा था।

बड़े मजे की बात है िक जब कोई आपसे िकसी की िनंदा करता है , तो आप माण नहीं पूछते। और जब कोई िकसी
की शं सा करता है, तब बड़े माण पूछते ह! बात ा है ? िनंदा मान ले ने म िदल को बड़ी राहत िमलती है , ोंिक म
ऊपर हो जाता ं । शं सा मानने म बड़ी पीड़ा होती है , बड़ी चोट लगती है ।

सु ना है मने, एक िव ाथ नंबर तीन पास आ। उसके बाप ने उसे डां टा िक हमारे कुल म कभी न चला ऐसा। ऐसा
कभी नहीं आ हमारे कुल म िक कोई नंबर तीन आया हो। हालां िक न होने का कुल कारण इतना था िक कुल म
कोई पढ़ा ही नहीं था! नंबर तीन आएगा कैसे? लड़के ने बड़ी मेहनत की। वह सालभर मेहनत करके नंबर दो आया।
बाप ने कहा िक ा रखा है ! कौन-सी बड़ी उ ित कर ली! एक ही लड़के को पीछे हटा पाए! लड़के ने और मेहनत
की और तीसरे साल वह नंबर एक आ गया। तो बाप ने कहा िक इसम कुछ नहीं है । इससे पता चलता है िक तु ारी
ास म गधों के िसवाय कोई भी नहीं है!

बाप को भी अड़चन होती है िक बे टा कुछ है । हालां िक सब बाप कोिशश करते ह िक मेरा बे टा कुछ हो, दू सरों के
सामने । ोंिक मेरा बे टा कुछ है , ऐसा दू सरों को बताकर वे भी कुछ होते ह। ले िकन अगर बे टा सच म कुछ है , तो
बाप अड़चन म पड़ जाता है बे टे के साथ। दू सरों के साथ चचा करता है , मेरा बे टा कुछ है । ोंिक मेरा बे टा! ले िकन
बे टा सामने पड़ता है , तो बे चैनी शु होती है । बाप के मन को तक बे टे के मन से बेचैनी शु होती है !

अगर लड़की सुं दर हो, तो मां तक िचंितत हो जाती है । और रा े पर जब गु जरती है , तो दे खती रहती है िक लोग
लड़की को दे ख रहे ह िक उसको दे ख रहे ह। अगर लड़की को दे ख रहे ह, तो ब त बे चैनी होती है । उसका बदला
वह घर लौटकर लड़की से ले गी!

आदमी का मन इतने िनकट सं बंधों म भी म को ऊपर रखता है । मां और बे टी के सं बंध म भी, बाप और बे टे के सं बंध
म भी, वह म को ऊपर रखता है । िनकटतम के साथ भी हमारी दु नी चलती है म और तू की।

महायोग है , कृ कहते ह िक यं के सा से सब के साथ समता समझ ले ना।

जरा भी फासला न रह जाए, िक दू सरा ठीक वै सा ही है , जै सा म ं । बु राई म भी, भलाई म भी, पाप म भी, पु म भी,
दू सरे और मुझम कोई फासला नहीं है । ऐसी तीित की जो गहराई है , वह ब त बड़ा िव ोट लाती है ।

पर इसको चाहने के िलए, इस िदशा म या ा करने के िलए, जब भी दू सरे के सं बंध म सोच, तो एक बार पुनः उसी
बात को ले कर अपने सं बंध म पहले सोचना। और अपने मन के धोखों म मत पड़ जाना, ोंिक मन कहे गा, ये तो
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मजबू रयां थीं। ऐसा तो उसका मन भी कहता है , यह भी जानना। ऐसा मत कहना िक यह मेरा भाव नहीं है । उसका
मन भी यही कहता है िक यह मेरा भाव नहीं है । जै सा हम लगता है , वै सा ही ेक को लगता है ।

महावीर ने तो इसे अिहं सा कहा, इस सू को। यह यं के सा सब को मान ले ने को महावीर ने अिहं सा कहा।


महावीर ने कहा िक जै सा हम लगता है, वै सा सब को लगता है, इसिलए तु म जो वहार अपने साथ करो, वही दू सरे
के साथ करो।

जीसस ने भी यही कहा। अगर जीसस के पूरे जीवन के उपदे श का सार-िनचोड़ हम रख, तो एक ही वा है जीसस
का, जो परम है , महावा है , डू नाट डू अनटु अदस, दै ट यू वु ड नाट लाइक टु बी डन िवद यू–मत करो दू सरों के
साथ वह, जो तु म न चाहोगे िक दू सरे तु ारे साथ कर।

ले िकन हम वही कर रहे ह। और तब अगर हम योग को उपल नहीं होते, तो आ य नहीं। और अगर हम े शां ित
को और आनंद को उपल नहीं होते, तो आ य नहीं। यह हमारे ही कम का सु िनि त फल है । जो हम कर रहे ह,
उसकी यह िनयित है । यही होगा।

ले िकन ब त किठन है दू सरे के साथ अपने को सम भाव म रखना। सबसे बड़ी किठनाई उस ईगो और अहं कार की
है , जो कहता है, म! मेरे जै सा कोई भी नहीं।

अरब म एक कहावत है, एक मजाक है िक परमा ा जब लोगों को बनाता है, तो सबके साथ एक मजाक कर दे ता
है । ध ा दे ते व दु िनया म, उनके कान म कह दे ता है , तु म जै सा िकसी को भी नहीं बनाया। सभी से कह दे ता है ,
िद त तो यह है । अगर एकाध से कहे, तो चले । झंझट न हो कुछ। सभी से कह दे ता है!

यह मजाक, यह कहावत बड़ी ीितकर है , बड़े अनुभव की है । हर एक से कह दे ता है िक गजब, तु म जै सा तो


लाजवाब, तु म जै सा दू सरा कभी बनाया ही नहीं। और अब बना सकूंगा, इसकी भी कोई आशा नहीं। और हर आदमी
इसको िदल म िलए घू मता है िजंदगीभर। कह भी नहीं पाता, ोंिक कहे तो झंझट आ जाए, ोंिक दू सरे भी यही
िलए घू म रहे ह! कह भी नहीं पाता साफ-साफ। िछपा-िछपाकर कहता है । गोल-मोल बात करके कहता है । परो -
परो प से घोषणा करता है । न मालू म िकतनी तरकीब खोजता है िक तु पता चल जाए िक मुझ जै सा कोई नहीं।
ले िकन िबलकुल पागल हो, ोंिक दू सरा भी इसी कोिशश म लगा है िक मुझ जै सा कोई भी नहीं! हम सब इसी खेल
म रत ह।

परमा ा यह मजाक करता है या नहीं, मुझे पता नहीं। ले िकन आदमी का मन ज र यह मजाक कर रहा है । और
गहरी मजाक है । और पूरी िजं दगी इस मजाक म तीत हो जाती है; थ ही तीत हो जाती है ।

माक े न के सं रणों म मने कहीं दे खा है । वह च नहीं जानता था, और ां स आया। तो एक ब त मजे दार घटना
हो गई। ां स म उसका लड़का िशि त हो रहा था, यू िनविसटी म पढ़ रहा था। तो उसका ागत िकया पे रस के
सािह कारों ने। तो उसने अपने लड़के से कहा िक तू जरा मेरे साथ बै ठे रहना, ोंिक लोग जब हं सगे, अगर म न
हं सूं, तो वे समझगे, च नहीं जानता।

और च न जाने कोई उन िदनों, तो अिशि त, थोड़ा अनाड़ी, थोड़ा अ े । च तो जाननी ही चािहए, सं ृ ित की


भाषा! तो म यह चाहता ं , माक े न ने कहा िक पता न चले िक म नहीं जानता ं । तो तू मेरे पास बै ठ रहना। तू मुझे
इशारा कर दे ना। तो तू जो करे गा, वही म करने लगूं गा। जब तू हं सेगा, म हं स दू ं गा। जब तू गं भीर हो जाएगा, म गं भीर
हो जाऊंगा। तु झ पर ान रखूंगा। तू खयाल रखना। तािक िकसी को यह पता न चल पाए।

ले िकन बड़ी गड़बड़ हो गई। ोंिक जब माक े न की तारीफ की जाती थी, तो सारा हाल ताली बजाता; लड़का भी
बजाता और माक े न भी बजाते, ोंिक वे समझ नहीं पाते । लड़का बड़ा बे चैन आ िक यह तो बड़ी मुसीबत है !
ले िकन अब बीच मंच पर कुछ कहना भी ठीक नहीं है काय म चलते व । यह भू ल कई दफे ई। लोग
241

खल खलाकर हं सते । लड़का भी हं सता। माक े न भी हं सता। और उसे पता ही नहीं चलता िक माक े न के सं बंध म
कोई मजाक कही गई है ।

बाद म लड़का तो पसीने से तरबतर हो गया। जब रात लौटने लगे, लड़के ने कहा, आपने तो मुझे िद त म डाल
िदया। लोग सब मेरी तरफ भी दे खते थे िक ते रा बाप ा कर रहा है ! माक े न ने पूछा, ा गलती हो गई? उसने
कहा िक जब लोग ताली बजाते थे, म ताली बजाता था, तो वह तो आपकी शं सा की जा रही थी िक आप ब त महान
ह। और आप भी ताली बजा दे ते थे, उससे ब त गड़बड़ हो जाती थी।

माक े न ने कहा, घबड़ा मत। िजं दगी म पहली दफा, जो म सदा करना चाहता था, वह अपने आप हो गया है । माक
े न ने कहा, घबड़ा मत, िजंदगी म जो सदा करना चाहता था िक जब लोग मेरी शं सा कर, तो म भी ताली बजाऊं!
बजाता नहीं था, ोंिक म समझता था भाषा। आज तो गलती म हो गया। ले िकन आ वही, जो मेरे िदल म सदा से
है ।

हम सब के िदल म यही है िक दे खो, कैसे मूढ़ हम भी, िक सब तो हमारे िलए ताली बजा रहे ह, और हम बै ठे ह! यही
तो मौका था, जब हम भी ताली बजाते । ले िकन भाषा समझ म आती है , इसिलए चु प रह जाते ह। वह तो भू ल से हो
गई घटना। ले िकन मन म हमारे यही होता है । मन हमारा यही करता है ।

वह जो हमारा म है , वह सदा इसी तलाश म है िक कोई कह दे िक तु म महान, तु म यह, तु म वह–और हम फूलकर


कु ा हो जाएं । िफर सा नहीं सधे गा।

इसिलए बु कहते थे िक िजसे सा -योग साधना हो, वह पहले तो तीन महीने मरघट पर जाकर िनवास करे ।
सा -योग साधना हो, तो पहले तीन महीने मरघट पर िनवास करे । जब कोई िभ ु आता, बु कहते, जा तीन महीने
मरघट पर रह। वह कहता, इससे ा होगा? म योग साधने आया! बु कहते, पहले जरा मरघट पर तीन महीने
रहकर आ। वह कहता, वहां ा क ं गा?

तो बु कहते, जब भी कोई मुदा आए, तो जानना िक ऐसा ही एक िदन म भी आऊंगा। जब उसको जलाया जाए, तो
जानना िक ऐसा ही एक िदन म भी जलाया जाऊंगा। जब उसका बे टा खोपड़ी तोड़े , तो जानना िक मेरा बे टा एक िदन
खोपड़ी तोड़े गा। जब सब लोग उसको जला-बु झाकर जाने लग, तो जानना िक एक िदन लोग मुझे इसी तरह जला-
बु झाकर चले जाएं गे।

पर वह आदमी पूछता, इससे होगा ा? बु कहते, मौत से सा शु कर, बाद म िजं दगी म आसान हो जाएगा।

और बात ठीक कहते ह। िजंदगी म सा बनाना जरा मु ल पड़े गा, ोंिक िकसी के पास बड़ा मकान है और
िकसी के पास छोटा मकान है । सा बनाओ कैसे! और िकसी के पास नाक जरा लं बी है, और लोग कहते ह,
खूबसूरत है । और िकसी के पास थोड़ी चपटी है , और लोग कहते ह, िबलकुल न होती तो अ ी। करो ा? कोई है
िक गिणत के बड़े सवाल हल कर दे ता है , और कोई है िक सोलह आने िगनने म दस दफे भू ल कर जाता है । करो
ा? यहां जीवन म सा को बनाने म जरा किठनाई पड़े गी, ोंिक ब त-सा असा कट है ।

तो बु कहते, पहले मौत से शु करो, ले ट अस िबिगन ाम िद एं ड, चलो पीछे से शु कर। ोंिक मौत म तो
बड़ी अटारी वाला भी वहीं प ंच जाता है , जहां छोटा झोपड़े वाला। िजसका गिणत बड़ा कुशल था और जो गिणत म
सदा फेल आ, वे भी वहीं प ं च जाते ह। िजसकी श पर लोग मरे जाते थे और िजसकी श से लोग ऐसे बचते थे
िक कहीं िमल न जाए, वह भी वहीं प ंच गया। सब वहीं चले आ रहे ह। नेता और अनुयायी, गु और िश , साधु
और असाधु, स ािनत और अपमािनत, सं त और चोर–सब चले आ रहे ह। एक जगह जाकर–मौत। मौत जो है , ब त
क ुिन है ; एकदम समान कर दे ती है ! इस बु री तरह समान करती है िक राख ही रह जाती है । सब समान हो जाता
है ।
242

तो बु कहते, वहीं से शु करो और जब यह साफ िदखाई पड़ जाए िक अंत म इतना सब सा हो जाने वाला है,
तो बीच की झंझट म ों पड़ते हो। उसम कुछ ब त सार नहीं है । आ खरी तो यह है ।

और जो भी िभ ु तीन महीने मौत पर रण करके आता, िजंदगी म सा को उपल हो जाता। अगर उससे कोई
कभी कहता भी िक तु म तो ब त ही ानी हो, तो वह कहता, मा करो। अब मुझे धोखा न दे पाओगे । म दे ख आया
मरघट। वहां मने ािनयों को धूल म िमलते दे खा। और अगर कोई उससे कहता िक आपकी आं ख तो बड़ी सुं दर, तो
वह कहता, मा करो। अब तु म धोखा न दे पाओगे । म दे ख आया मरघट। सब आं ख राख से ादा िस नहीं होती।ं

कृ कहते ह, यह सा -योग उ तम योग की थित को प ं चा दे ता है ।

शु कर कहीं से । मौत से शु कर, आसान पड़े गा। ले िकन िह त न जु टेगी मरघट जाने की। डर लगता है मरघट
जाने म। इसीिलए डर लगता है , ोंिक मरघट कुछ बु िनयादी खबर दे ता है ।

एक अं े ज किव ने एक छोटा-सा गीत िलखा है, िजसम कहा है –पुराने ईसाई आथ डा ढं ग से, गां व म जब कोई
मरता है , तो चच की घं टी बजती है –उस किव ने एक छोटा-सा गीत िलखा है और कहा है िक जब चच की घं टी बजे,
तो िकसी को पूछने मत भे जना िक िकसके िलए बजती है । तु ारे िलए ही बजती है , तु ारे िलए ही बजती है ।

जब चच की घं टी बजे, तो गांव म कोई मर गया। तो भावतः गां व के लोग िकसी को बाहर पूछने भे जते ह, िकसके
िलए बजती है ? उस गीतकार ने ठीक िलखा है, मत भे जना िकसी को पूछने िक िकसके िलए बजती है । तु ारे िलए ही
बजती है, तु ारे िलए ही बजती है –इट टा फार दी, इट टा फार दी।

जब रा े से कोई मुदा िनकले, तो मत पूछना िक कौन मर गया? जानना िक म ही मर गया ं , म ही मर गया ं । जब


कोई अपमािनत हो, जब कोई हारे और धू ल-धू स रत हो जाए, तो मत सोचना िक कोई और िगर गया है । जानना िक म
ही िगर गया ं । और तब जीवन म भी धीरे -धीरे -धीरे सा फैलता चला जाएगा।

सा के आते ही बड़ी क णा पैदा होती है; बड़ी क णा, महाक णा पैदा होती है । अं े जी म श ब त अ ा है
क णा के िलए, कंपै शन। उसम अगर आधे कम को हम अलग कर द, तो पीछे पैशन रह जाता है । दो तरह के लोग
ह, पैसोनेट और कंपै सोनेट। पैशन यानी वासना, और कंपैशन यानी क णा। जब तक कोई आदमी कहता है िक म
दू सरों से िभ ं , तब तक वासना म जीएगा, पैशन म। और जब जाने गा िक म दू सरों के ही समान ं , तो कंपै शन म
वे श कर जाएगा, क णा म।

दो ही तरह के लोग ह, वासना से जीने वाले और क णा से जीने वाले । वासना म वे जीते ह, जो अहं कार को क
बनाते ह। क णा म वे जीते ह, जो दू सरे के साथ सा को उपल हो जाते ह।

सा अहं कार की मृ ु है । और सा क णा का ज है । सा यह खबर दे ता है िक दू सरा भी उतना ही


कमजोर है, िजतना कमजोर म। सा कहता है, दू सरा भी उतनी ही सीमाओं म बं धा है , िजतनी सीमाओं म म। मुझे
भी िकसी ने गाली दी है , तो ोध आ गया है । और अगर िकसी दू सरे को भी गाली दी गई है , तो ोध आ गया है , तो
म कठोर न हो जाऊं। क णा अपेि त है, अगर सा का थोड़ा बोध है ।

ले िकन सा का बोध हम नहीं है । और इस बोध को समझने से नहीं समझा जा सकता; इस बोध को ज ाने से
समझा जा सकता है । इसका योग करना शु कर।

जब आप एक छोटे -से ब े को डां ट रहे ह बू ढ़े होकर, तब आपको कभी भी खयाल नहीं आता िक एक िदन आप भी
छोटे -से ब े थे । इसी तरह डां टे गए थे । और आपको यह भी खयाल नहीं आता िक यह ब ा कल इसी तरह बू ढ़ा हो
जाएगा। अगर बू ढ़े को ब े म यह सा िदखाई पड़ जाए, तो इस दु िनया म बू ढ़ों और ब ों के बीच जो कलह है ,
वह िवदा हो जाए। वह कलह िवदा हो जाए। उस कलह की कोई जगह न रह जाए।
243

ले िकन यह िदखाई नहीं पड़ता है । हम इसके िलए िबलकुल अंधे ह। इसिलए हमारे जीवन म महा दु ख फिलत होता
है । ले िकन वह अित उ म योग और उससे उपल होने वाली शां ित फिलत नहीं होती।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


मन का पां तरण—(अ ाय-6) वचन—सोलहवां

अजु न उवाच

योऽयं योग या ो ः सा ेन मधुसूदन।


एत ाहं न प ािम चंचल ा थितं थराम्।। 33।।
चंचलं िह मनः कृ मािथ बलवद् ढम् ।
त ाहं िन हं म े वायो रव सु दु रम्।। 34।।

हे मधु सूदन, जो यह ानयोग आपने सम भाव से कहा है , इसकी म मन के चंचल होने से ब त काल तक ठहरने
वाली थित को नहीं दे खता ं । ोंिक हे कृ , यह मन बड़ा चंचल और मथन भाव वाला है , तथा बड़ा ढ़ और
बलवान है, इसिलए उसका वश म करना म वायु की भां ित अित दु र मानता ं ।

योग की आधारभूत िशलाओं के सं बंध म कृ के ारा बात िकए जाने पर अजु न ने वही पूछा है , जो आप भी पूछना
चाहगे । अजु न कह रहा है , बात होंगी ठीक आपकी, िमलता होगा परम आनंद। आकषण भी बनता है िक उस आयाम
म या ा कर। ले िकन मन बड़ा चंचल है । और समझ म नहीं पड़ता है िक इस चंचल मन के साथ कैसे उस िथर थित
को पाया जा सकेगा! णभर भी ठहरे गी वह थित, इसका भी भरोसा नहीं आता है ।

िफर चंचल ही नहीं है यह मन, ब त श शाली, ब त िज ी भी है । ब त अिडग, अपने भाव को कायम भी रखता
है । ऐसा लगता है िक हे मधु सूदन, जै से वायु को वश म करना किठन हो, वै सा ही किठन इस मन को वश म करना
है ।

वायु के साथ खूबी है एक। वायु पर मु ी बां ध, तो पकड़ म नहीं आती है । िजतने जोर से मु ी बांध, उतनी ही मु ी के
बाहर हो जाती है । न तो िदखाई पड़ती है वायु िक हम उसका पीछा कर सक। ऐसा ही मन भी िदखाई नहीं पड़ता है ।
और न ही वायु जरा ही दे र िथर रहती है । जो अिथर है ितपल, यहां से वहां डांवाडोल है , दौड़ती िफरती है , ऐसा ही
यह मन है – ितपल दौड़ता आ; अ ; न िदखाई पड़ता, न पकड़ म आता; िसफ अनुभव होता है इसके कंपन
का।

वायु का आपको अनुभव ा है? वायु का कोई अनुभव नहीं है । वायु की दौड़ती, भागती धारा के थपेड़ों का अनुभव
है । वायु अगर िथर हो, तो वायु का कोई भी अनुभव न होगा। उसकी अिथरता का ही अनुभव है , उसके वाह का ही
अनुभव है । दौड़ती है वायु आपको छूकर, तो उसका श होता है । दौड़ता आ ही श होता है । और तो कोई
अनुभव नहीं है।

मन का भी, उसके प रवतन का ही अनुभव होता है ; मन का तो कोई अनुभव नहीं है । उसकी चंचलता ही तीित म
आती है , और तो कुछ तीित म आता नहीं है ।

जै से वायु की गित तीित म आती है, वायु नहीं; ऐसे ही मन की भी चंचलता तीित म आती है , मन नहीं। ऐसा जो
अ , जो पकड़ के बाहर और सदा ही भागता आ मन है ।

तो अजु न की शं का उिचत ही है । वह पूछता है कृ को, सं भावी नहीं मालू म पड़ता, इं ोबे बल है , असंभव िदखता है ।
आप कहते ह, सदा के िलए िथर हो जाए; ण के िलए भी िथर होना असंभव मालू म पड़ता है । मन का यह भाव ही
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नहीं है िक िथर हो जाए। मन तो चं चल ही है । या कह िक चंचलता ही मन है । दु ह मालू म होती है बात। आकषण


भारी। मन को दे खकर, कमजोरी को दे खकर, मन की थित को दे खकर असंभव मालू म होती है बात।

यह अजु न का ही सवाल नहीं है , यह पूरे मनु के मन का सवाल है । इसम दो ीन बात ान म ले ले नी ज री ह।

एक, िक मन के सं बंध म जो भी हम जानते ह, भावतः उसी जानने के भीतर सोचते ह। हमने मन को कभी िथर नहीं
जाना। तो उिचत ही लगता है, ाभािवक ही तकयु लगता है िक मन की िथरता असंभव है। हमने कभी मन को
िथर नहीं जाना। इसिलए ाभािवक ही लगता है िक यह शं का उठे िक यह मन िथर नहीं हो सकेगा।

ले िकन यह हमारी धारणा नकारा क है । यह हमारी धारणा िनगे िटव है । हम िथरता का कोई अनुभव नहीं है , चंचलता
का ही अनुभव है । इसिलए हमारा यह सोचना िक िथरता असंभव है, थोड़ा ज रत से ादा सोचना है । हम इतना ही
कह िक चंचल ह हम, िथरता का हम कोई पता नहीं। वहां तक बात त की है । ले िकन त ाल हमारा मन एक
कदम आगे बढ़कर नतीजा ले ता है , िजसके िलए कोई कारण नहीं है । हमारा मन कहता है िक नहीं, िथरता असंभव
है ।

चंचलता हमने जानी है , वह हमारे अतीत का अनुभव है । िथरता हमारा अनुभव नहीं है । ले िकन जो हमारा अनुभव नहीं
है , वह असंभव है , ऐसा कहने का कोई कारण नहीं है । अगर बहरे को कोई कहे, बहरे को कोई समझाए िलखकर िक
वाणी सं भव है; बहरा कहे गा, असंभव है । अंधे को कोई समझाने की कोिशश करे िक काश सं भव है; अंधा कहे गा,
असंभव है । अंधा कहे गा, हे मधुसूदन, अंधकार के िसवाय कभी कुछ जाना नहीं। मान नहीं सकता िक आं ख काश
भी दे ख सकती ह, ोंिक अंधकार ही दे खती रही ह। एक ण को भी दे ख सकती ह, यह अक नीय मालू म पड़ता
है , ोंिक सदा से अंधकार ही जाना है ।

िफर भी हम जानते ह िक वह अंधे की धारणा नकारा क है । ले िकन अंधे की बात गलत न कह सकगे हम। अंधा
अपने अनुभव से कहता है । और अनुभव के िसवाय कहने का उपाय भी ा है!

हम जब मन के सं बंध म कह रहे ह, तब भी हम अपने अनुभव से कहते ह। ले िकन अनुभव अंधे जै सा है । मन के


अित र हमने कभी कुछ जाना ही नहीं। जो हमने नहीं जाना है , उसके बाबत पािजिटव कन ूजन ले ना उिचत नहीं
है ।

अजु न का यह कहना तो ठीक है िक मन चंचल है , ब त किठन मालू म पड़ता है । ले िकन यह कहना उिचत नहीं है िक
अक नीय मालू म पड़ता है, कृ । यह हम अपनी अनुभूित के बाहर का नतीजा ले रहे ह, जो खतरनाक हो सकता
है । ोंिक वै सा नतीजा, रोकने वाला िस होगा। वै सा नतीजा अवरोध बन जाएगा।

एक बार िकसी ने सोच िलया िक ऐसी बात असंभव है , तो करने की धारणा ही छूट जाती है । असंभव को कोई करने
नहीं िनकलता। जब कोई असंभव को भी करने िनकलता है , तो मानकर चलता है िक सं भव है । अगर सं भव को भी
कोई मान ले िक असंभव है , तो करने ही नहीं िनकलता। और मा ता िफर असंभव ही बना दे गी; ोंिक जब करने
ही नहीं जाएं गे, तो िस ही हो जाएगा िक दे खो, असंभव है ; ोंिक फिलत नहीं होगा। और इस तरह तक का अपना
एक दु च , एक िविशयस सिकल है । अगर आप मानते ह िक असंभव है , तो आप करगे नहीं; करगे नहीं, तो सं भव
नहीं हो पाएगा। आपकी मा ता और ढ़ हो जाएगी िक असंभव है । दे खो, कहा था पहले ही िक असंभव है !

अगर आप असंभव को भी सं भव मानकर चलते ह, तो करने की साम , श बढ़ती है । और कुछ आ य नहीं िक


असंभव भी सं भव हो जाए। ोंिक ब त असंभव सं भव होते दे खे गए ह। असल म हम असंभव उसे कहते ह, िजसे
हम नहीं कर पा रहे ह। ले िकन िजसे हम नहीं कर पा रहे ह, उसे नहीं ही कर पाएं गे, ऐसा िन ष ले ने की तो कोई भी
ज रत नहीं है ।

पर अ र हम अतीत से िन ष ले ते ह भिव का। अतीत भिव का िनधारक नहीं है; और अतीत से कोई नतीजा
भिव के िलए नहीं िलया जा सकता। म अभी तक नहीं मरा ं, इसिलए म अगर क ं िक मृ ु असंभव है , तो गलती
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है कुछ? इतने िदन का अनुभव है , इतने िदन जीकर जाना है िक नहीं मरता ं । अगर म क ं िक इतने वष का
अनुभव!

एक आदमी कहे िक अ ी वष का मेरा अनुभव िक नहीं मरता ं , नतीजा दे ता है िक मृ ु असंभव है । अ ी वष तक


जो सं भव नहीं हो पाया, वह अचानक एक ण म सं भव हो जाएगा, यह तकयु नहीं मालू म होता। जो अ ी वष
तक नहीं आ सकी मौत, अ ी वष तक म ती ा करता रहा ं, वह एक ण म कैसे आ जाएगी? िजसको अ ी वष
मने हराया, वह एक ण म मुझे कैसे हराएगी? जो अ ी वष तक मेरी तीित नहीं बनी, वह एक ण म मेरा अनुभव
नहीं बन सकता है –ऐसा अगर कोई कहे, तो गलत कह रहा है? ठीक ही मालू म पड़ता है , तकयु मालू म पड़ता है ।

ले िकन सभी तकयु बात स नहीं होतीं। सच तो यह है िक सभी अस तकयु प ले ते ह। सभी अस अपने
आस-पास तक का जाल बु न ले ते ह।

अजु न कहता है, असंभव मालू म पड़ता है –अक नीय, इनकंसीवे बल–कोई धारणा नहीं बनती िक यह हो सकता है ,
एक ण को भी ठहरे गा मन। ले िकन यह अजु न िबना जाने कह रहा है ।

अजु न एक अथ म ठीक कह रहा है, ोंिक हम सब का अनुभव यही है । एक अथ म गलत कह रहा है , ोंिक जो
हमारा अनुभव नहीं है , उसके सं बंध म कोई भी िवधायक व ठीक नहीं है ।

एक आदमी कहता है िक मेरा जीवन हो गया, मने ई र का कहीं दशन नहीं िकया, इसिलए ई र नहीं है । उसे इतना
ही कहना चािहए िक ई र है या नहीं, मुझे पता नहीं। इतना ही मुझे पता है िक मने उसका अभी तक दशन नहीं िकया
है । तो बात िबलकुल ही त की है ।

ले िकन मने दशन नहीं िकया है, इसिलए ई र नहीं है, तो िफर तक अपनी सीमा के बाहर गया। और अ र तक कब
अपनी सीमा के बाहर चला जाता है, हम पता नहीं चलता। एक छोटी-सी छलां ग तक ले ता है , और खतरनाक थितयों
म प ं चा दे ता है ।

एक िबलकुल छोटी-सी छलां ग; मने ई र को नहीं जाना अब तक; ब त खोजा, नहीं पाया। सब तरह खोजा, नहीं
दशन आ, तो ई र नहीं है । इन दोनों के बीच म गै प है , जो आपको िदखाई नहीं पड़ रहा है। इस िन ि तक
प ं चने के िलए उतने आधार काफी नहीं ह। इस िन ि पर तो वही प ं च सकता है , जो यह भी कह सके िक जो भी
सं भव था, वह सब मने दे ख िलया; जो भी अ था, वह मने पूरा छान डाला; कोना-कोना जहां तक असीम का
िव ार था, मने सब पा िलया, दे ख िलया। अब एक र ीभर अ नहीं बचा है छानने को, इसिलए म कहता ं िक
ई र नहीं है । तब उसकी बात म कोई तकयु ता हो सकती है । ले िकन सदा शे ष है ।

तो अजु न के इस सं देह म वा िवकता है । िफर भी कहीं कोई गहरी भू ल है ।

दू सरी बात वह कहता है िक वायु की तरह है । और ठीक उसने उपमा ली है । ठीक उसने उपमा ली है । ले िकन िफर
भी उपमा म कुछ बु िनयादी भू ल ह, वह खयाल म ले ल, तो कृ का उ र समझना आसान हो जाएगा।

एक तो बु िनयादी भू ल यह है िक वायु पदाथ है , मन पदाथ नहीं है । वायु पदाथ है, मन पदाथ नहीं है । अजु न के व म
तो वायु को पकड़ना मु ल था, अब मु ल नहीं है । अगर आज अजु न सवाल पूछता, तो वायु की उपमा नहीं ले
सकता था। आज तो िव ान ने सु लभ कर िदया है । हम चाह तो वायु को ठं डा करके पानी बना ले सकते ह। और
ादा ठं डा कर सक, तो ठोस प र की तरह वायु जम जाएगी।

ोंिक िव ान कहता है , ेक पदाथ की तीन अव थाएं ह। जै से बफ, पानी, भाप। इसी तरह े क पदाथ की तीन
अव थाएं ह। और े क पदाथ एक अव था से दू सरी अव था म वे श कर सकता है । वायु भी एक िवशे ष ठं डक पर
जल की तरह हो जाती है; और एक िवशे ष ठं डक पर प र की तरह जम जाएगी। पदाथ की तीन अव थाएं ह।
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खैर, अजु न को उसका कोई पता नहीं था। अगर आज कोई अजु न की तरफ से पूछता, तो वायु का उदाहरण नहीं ले
सकता था। ोंिक वायु अब िबलकुल मु ी म पकड़ी जा सकती है ; ठं डी करके पानी बनाई जा सकती है ; बफ की
तरह जमाई जा सकती है । उसे कोई आदमी हाथ म ले कर चल सकता है ।

पदाथ की तु लना मन से दे ने म एक बु िनयादी भू ल हो गई। मन तो िसफ िवचार है । मन है ा, इसे हम थोड़ा ठीक से


समझ ल, तो ब त साफ हो जाएगी बात।

दो चीजों के बाबत हम बड़ी सफाई है । एक तो शरीर के बाबत ब त साफ थित है िक शरीर है । वह पदाथ का समू ह
है । वह पंचभूत कह, या िजतने भू त हों उतने कह, उन सब का समू ह है । उसके बाबत ब त थित साफ है । आ ा है ,
उसके बाबत भी थित साफ है िक वह पदाथ नहीं है । इतना तो साफ है नकारा क, िक वह पदाथ नहीं है । वह
चै त है, वह कां शसनेस है । यह मन ा है दोनों के बीच म?

यह मन दोनों के िमलन से उ ई एक बाइ- ोड है । यह मन पदाथ और चे तना के िमलन से पैदा ई एक


उ ि है । व ु तः दे खा जाए, तो शरीर का भी ब त गहन अ है और आ ा का भी। मन का गहन अ नहीं
है ।

मन ऐसा है , जै से िक म आपको एक जं गल म िमल जाऊं। और हम दोनों के बीच मै ी का ज हो। आप भी ब त ह,


म भी ब त ं , ले िकन यह मै ी हम दोनों के बीच एक सं बंध है । यह मै ी पदाथ भी नहीं है, और यह मै ी आ ा भी
नहीं है । ोंिक अकेले दो पदाथ के बीच यह घिटत नहीं हो सकती, इसिलए पदाथ तो नहीं है । और अकेली दो
आ ाओं के बीच भी घिटत नहीं हो सकती िबना शरीरों को बीच म मा म बनाए, तो यह िसफ आ ा भी नहीं है ।
ले िकन शरीर और आ ा मौजू द हों, तो मै ी नाम का एक सं बंध, एक रलेशनिशप घिटत हो सकती है ।

मन व ु नहीं है , सं बंध है । मन पदाथ नहीं है , सं बंध है । इसे थोड़ा ठीक से समझ ल; ोंिक सं बंध को पदाथ से तु लना
दे ने म बड़ी भू ल हो जाएगी। पदाथ को कभी तोड़ा नहीं जा सकता। आप कहगे, तोड़ा जा सकता है; हम एक प र के
दस टु कड़े कर सकते ह। आपने पदाथ नहीं तोड़ा, िसफ प र तोड़ा है । पदाथ तोड़ने का मतलब यह है िक प र को
आप इतना तोड़, इतना तोड़ िक प र शू म िवलीन हो जाए। आप नहीं तोड़ सकते । िव ान कहता है , कोई पदाथ
तोड़ा नहीं जा सकता इस अथ म। न नहीं िकया जा सकता।

ले िकन सं बंध न िकया जा सकता है । मेरे और आपके बीच की मै ी के न होने म कौन-सी किठनाई है ! मै ी न हो
सकती है ; िबलकुल न हो सकती है । अ म िफर वह कहीं ढूंढ़े से न िमले गी।

सं बंध न हो सकते ह, पदाथ न नहीं होता। वायु पदाथ है , मन सं बंध है । मन सं बंध है शरीर और आ ा के बीच।
शरीर और आ ा के बीच जो दो ी है , उसका नाम मन है । शरीर और आ ा के बीच जो मै ी हो गई है , उसका नाम
मन है । शरीर और आ ा के बीच जो राग है , उसका नाम मन है । शरीर और आ ा के बीच जो ले ा है , उसका
नाम मन है । शरीर और आ ा के बीच जो सं बंध है , रलेशनिशप है , उसका नाम मन है ।

िनि त ही, यह सं बंध शरीर की तरफ से आ ा की तरफ नहीं हो सकता, ोंिक शरीर जड़ है । अगर म अपनी कार
को ेम करने लगता ं , तो भी म यह नहीं कह सकता िक मेरी कार मुझे ेम करती है । कार की तरफ से मेरी तरफ
कोई ेम नहीं हो सकता। इकतरफा है ; वन वे टै िफक है ।

तो सं बंध म भी एक बात खयाल रख ले ना िक जब दो यों के बीच मै ी होती है, तो टू वे टै िफक, डबल टै िफक
है । यहां से भी कुछ जाता है , वहां से भी कुछ आता है । ले िकन जब एक और एक व ु के बीच सं बंध होता है ,
तो वन वे टै िफक है । एक ही तरफ से जाता है; दू सरी तरफ से कुछ आता नहीं।

तो सं बंध भी यह इस तरह का है , जै सा िक एक और व ु के बीच होता है ; दो यों के बीच नहीं। एक


तरफ चे तना है भीतर, और दू सरी तरफ पदाथ है शरीर। चेतना की तरफ से ही यह सं बंध है ।
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और ान रहे, इकतरफा सं बंध म एक सु िवधा है , उसे तोड़ने म सदा ही इकतरफा िनणय काफी होता है । दो तरफा
सं बंध तोड़ने म किठनाई है । अगर म िकसी को ेम क ं , तो झंझट है तोड़ते व ; ोंिक दू सरी तरफ से भी
कुछ ले न-दे न आ है । और जब तक दोनों राजी न हो जाएं तोड़ने को, तब तक तोड़ने म किठनाई है, अड़चन है ।

व ु के साथ सं बंध तोड़ने म कोई भी अड़चन नहीं है , ोंिक इकतरफा है । मेरा ही िनणय था िक सं बंिधत ं । मेरा ही
िनणय है िक सं बंिधत नहीं ं, बात समा हो गई। व ु जाकर िकसी अदालत म मुकदमा नहीं करे गी िक यह आदमी
मुझे डायवोस कर रहा है, िक यह तलाक मां गता है । व ु को कोई योजन नहीं है । जब मेरा सं बंध था, तब भी व ु
का कोई सं बंध मुझसे नहीं था।

इसिलए ान रख िक मन एक सं बंध है , पहली बात, व ु नहीं। दू सरी बात, मन इकतरफा सं बंध है –चेतना का शरीर
की तरफ; शरीर से चे तना की तरफ नहीं। शरीर की तरफ से चेतना की तरफ कोई सं बंध की धारा ही नहीं है । सारी
धारा चे तना से शरीर की तरफ है ।

इसिलए अजु न जब कहता है , वायु जै सा है , तो कई भू ल करता है । उपमा म भू ल अ र हो जाती ह। मन पदाथ नहीं


है , इसिलए वायु जै सा नहीं है । इसिलए वायु तो िकसी िदन पकड़ ली जाएगी, पकड़ ली गई; मन को िकसी भी िदन
नहीं पकड़ा जा सकेगा। सं बंध को पकड़ने का कोई उपाय नहीं है । इसीिलए िव ान मन को मानने तक को राजी नहीं
है । उसका कारण है िक उसकी ले बोरे टरी म, उसकी योगशाला म कहीं भी मन पकड़ा नहीं जा सकता।

एक आदमी को काटकर, िव ान सब तरफ से िडसे करके खोज ले ता है । ह ी िमलती है, मां स िमलता है, म ा
िमलती है, खून िमलता है , पानी िमलता है, लोहा, तां बा सब िमलता है । एक चीज नहीं िमलती, मन। इसिलए िव ान
कहता है, हमने खोज करके दे ख िलया, मन नहीं िमलता। और जो नहीं िमलता है , वह नहीं है । वही भू ल तक की िफर
हो रही है । ोंिक जो नहीं िमलता, ज री नहीं है िक नहीं हो। हो सकता है , खोजने का ढं ग ऐसा है िक वह नहीं िमल
सकता।

अगर आपके दय की काट-पीट करके हम खोज िक ेम है या नहीं; और न िमले–नहीं िमले गा; अब तक नहीं िमला।
कभी नहीं िमले गा। फेफड़ा खोलकर पूरा दे ख लगे । फु ु स िमले गा, हवा को फकने का यं िमले गा। ेम- े म नहीं
िमले गा।

इसिलए वै ािनक कहते ह िक फेफड़ा है , दय है ही नहीं। नाहक दय- दय की लोग बात िकए जा रहे ह! एक
किवता है दय, यह है नहीं।

ले िकन ा आप मानने को राजी होंगे िक ेम नहीं है ? सबका अनुभव है िक है । मां जानती है िक है । बे टा जानता है
िक है । िम जानते ह िक है । ेमी जानते ह िक है ।

अनुभव म सबके है ेम, ले िकन िफर भी योगशाला म िस नहीं होगा। और अगर योगशाला के वै ािनक से
आपने िज की, तो आप ही गलत िस होंगे। असल म योगशाला िजन साधनों का उपयोग कर रही है , वे व ु ओ ं
के पकड़ने के साधन ह, उनसे सं बंध पकड़ म नहीं आते। सं बंध छूट जाते ह।

सं बंध व ु नहीं है । और इसिलए सं बंध की एक खूबी है िक सं बंध बन सकता है और िवन हो सकता है । सं बंध शू
से पैदा होता है और शू म िवलीन हो जाता है ।

इस बात को ठीक से समझ ल।

व ु कभी भी पैदा नहीं होती; व ु सदा है । और कभी न नहीं होती; सदा है । न तो व ु का कोई सृ जन होता है और
न कोई िवनाश होता है ; िसफ पांतरण होता है । जो अभी पानी था, वह बफ बन जाता है । जो बफ था, वह पानी बन
जाता है । जो पानी था, वह भाप बन जाता है । जो अभी पहाड़ पर जमा था, वह समु म िपघलकर बह जाता है । जो
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अभी शरीर था, वह कल खाद बन जाता है । जो अभी खाद है , वह कल शरीर बन जाता है । जो अभी पौधे म बीज की
तरह कट आ है , वह कल आपका खून बन जाता है । जो अभी आपके भीतर खून है , कल जमीन म समाकर िफर
िकसी बीज म वेश कर जाएगा। सब पांतरण ह; ले िकन मूल नहीं खोता है । मूल िथर है ।

आइं ीन का खयाल ीकृत आ है , और वह यह िक इस जगत म िजतनी व ु है , िजतना मैटर है , वह सीिमत है ।


ोंिक उसम नया नहीं जु ड़ सकता और पुराना घट भी नहीं सकता। वह िकतना ही िवराट हो, ले िकन पदाथ सीिमत
है । हम नाप पाएं िक न नाप पाएं ; हमारे नापने के साधन छोटे पड़ जाएं , ले िकन पदाथ सीिमत है , ोंिक उसम नया
एडीशन नहीं हो सकता। एक पानी की बूं द ादा नहीं जोड़ी जा सकती इस जगत म!

आप कहगे, हम हाइडोजन और आ ीजन को िमलाकर पानी बना सकते ह। िबलकुल बना सकते ह। ले िकन
हाइडोजन आ ीजन को ही िमलाकर बना सकते ह। वह हाइडोजन आ ीजन का एक प है । वह कोई नई घटना
नहीं है । आज तक एक रे त का टु कड़ा भी हम नया नहीं बना सकते ह। न बना सके ह और न बना सकगे ।

पदाथ जै सा है, है । िजतना है, है । उतना ही है , उतना ही रहे गा। ले िकन सं बंध रोज नए बन सकते ह, और रोज खो जा
सकते ह।

इस जमीन पर िजतने लोग रहे ह, उनके शरीरों म िजतना था, वह सब अभी इस जमीन म मौजू द है ; जमीन का वजन
कम- ादा नहीं होता। हम िकतने ही लोग पैदा हों, मर जाएं , जमीन का वजन उतना ही रहता है । हम जब िजं दा रहते
ह, तब भी उतना रहता है ; जब मर जाते ह, तब भी जमीन का वजन उतना ही रहता है । हमारे शरीर म से कुछ खोता
नहीं। हां, जमीन म िगर जाता है, प बदल जाते ह।

ले िकन हमारे सं बंधों का ा होता है? कोई ेम िकया था। कोई फ रहाद िकसी शीरी को ेम िकया था। उस ेम का
ा आ? जब वह ेम चल रहा था, तब भी जमीन पर कोई चीज बढ़ी नहीं थी, और जब वह ेम नहीं है , तब भी
जमीन पर कोई चीज घटी नहीं है । वह ेम ा था? वह चला है , यह िनि त है । ोंिक वह ेम इतना बड़ा भी हो
जाता है कभी िक कोई अपने पदाथगत शरीर की गदन काट दे । ेमी अपने को मार डाल सकता है । ेम इतना हो
सकता है गहन िक शरीर को तोड़ दे , जीवन को न कर दे । तो वह ेम नहीं है , ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह है तो
है ही। और कभी-कभी तो जीवन से भी ादा वजनी हो जाता है । ले िकन वह है ा?

वह सं बंध है, रले शनिशप है । सं बंध की एक खूबी है िक वह खो सकता है ; बन भी सकता है, िमट भी सकता है ।

इसिलए अजु न का यह खयाल िक वायु की तरह है यह मन, ठीक नहीं है । उदाहरण करीब-करीब सू चक है , ले िकन
ठीक नहीं है । ामािणक नहीं है । जमता है , िफर भी ब त गहरे म नहीं जमता है । मन एक सं बंध है ।

और यह भी बात अजु न की ठीक नहीं है–हम सबके मन म ह ये बात, इसिलए म कह रहा ं –यह भी बात अजु न की
ठीक नहीं है िक इस मन को िथर नहीं िकया जा सकता। ोंिक एक और गहरे िनयम की आपको म बात कर दू ं , जो
भी चीज चं चल हो सकती है, वह िथर हो सकती है । और जो चीज िथर नहीं हो सकती, वह चंचल भी नहीं हो सकती।
जो भी दौड़ सकता है, वह खड़ा हो सकता है । और जो खड़ा भी नहीं हो सकता, वह दौड़ भी नहीं सकता। अगर आप
दौड़ सकते ह, तो आप खड़े हो सकते ह। दौड़ने की मता साथ म ही खड़े होने की मता भी है । भला आप कभी
खड़े न ए हों, दौड़ते ही रहे हों, और अब ऐसी आदत बन गई हो िक आपको खयाल ही न आता हो िक खड़े कैसे
होंगे! बन जाता है ।

मने सु ना है िक एक आदमी प ाघात से, पैरािलिसस से परे शान है दस साल से । घर के भीतर बंद पड़ा है ; उठ नहीं
सकता। ले िकन एक िदन रात, आधी रात अंधेरे म आग लग गई। सारे घर के लोग बाहर िनकल गए। वह पैरािलिसस
से करीब-करीब मरा आ आदमी, वह भी दौड़कर बाहर आ गया। जब वह दौड़कर बाहर आया, तो लोग चिकत
ए। वे तो है रान थे िक अब ा होगा, उसको िनकाला नहीं जा सकता। ले िकन जब उसको लोगों ने दौड़ते दे खा, तो
मकान की आग तो भू ल गए लोग। दस साल से वह आदमी िहला नहीं था, वह दौड़ रहा है!
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लोगों ने कहा, यह ा हो रहा है । चम ार, िमरे कल! आप, और दौड़ रहे ह! उस आदमी ने नीचे झां ककर अपने पैर
दे खे। उसने कहा, म दौड़ कैसे सकता ं ! वापस िगर गया। म दौड़ ही कैसे सकता ं ? दस साल से…!

ले िकन अब वह िकतना ही कहे िक दौड़ नहीं सकता, ले िकन वह खाट से मकान के बाहर आया है । िफर नहीं उठ
सका वह आदमी। पर ा आ ा? इस बीच आ कैसे गया?

वह जो एक कंडीशिनंग थी, एक खयाल था िक म उठ नहीं सकता, चल नहीं सकता, आग के सदमे म भू ल गया।


बस, इतना ही आ। एक शॉक। और वह भू ल गया पुरानी आदत। दौड़ पड़ा।

सौ म से न े प ाघात के बीमार मानिसक आदत से बीमार ह। सौ म से न े! शरीर म कहीं कोई खराबी नहीं है । सौ
म से न े, म कह रहा ं । ले िकन एक आदत है ।

और मन के मामले म तो सौ म से सौ दौड़ने के बीमार ह। प ाघात से उलटा। इतने ज ों से मन को दौड़ा रहे ह िक


अब यह सोच म भी नहीं आता िक मन खड़ा हो सकता है? नहीं हो सकता। कौन कहता है, नहीं हो सकता? यह मन
ही कह रहा है ।

तो अजु न जो सवाल पूछ रहा है, वह अगर ठीक से हम समझ, तो अजु न नहीं पूछ रहा है । अजुन अभी है भी नहीं,
पूछेगा कैसे! मन ही पूछ रहा है। मन ही कह रहा है िक म कभी खड़ा नहीं हो सकता। म कभी खड़ा आ ही नहीं। म
सदा चलता ही रहा। दौड़ना मेरी कृित है । चंचलता मेरा भाव है । म चंचलता ही ं ; म खड़ा नहीं हो सकता।

ले िकन ान रहे , इस जगत म ेक श अपनी िवपरीत श से जु ड़ी होती है । जो जीएगा, वह मरे गा। जीने के
साथ मरना जु ड़ा रहता है । यहां कोई भी श अकेली पैदा नहीं होती, पोले रटी म पैदा होती है । अ पोलर है ,
ु वीय है । यहां हर चीज अपने िवपरीत से जु ड़ी है , िवपरीत के िबना अ म नहीं हो सकती।

अगर हम दु िनया से काश समा कर द, तो आप सोचते होंगे, अंधेरा ही अंधेरा रह जाएगा। आप गलत सोचते ह।
अगर हम दु िनया से काश समा कर द, अंधेरा त ाल समा हो जाएगा। आप कहगे, िफर ा होगा? कुछ भी
हो, अंधेरा नहीं हो सकता। हां, बात असल यह है िक काश आप समा न कर पाएं गे । इसिलए पता करना मु ल
है । काश और अंधेरा सं यु अ ह।

और आसान होगा समझना, अगर दु िनया से हम गम समा कर द, तो ा आप सोचते ह, सद बच रहे गी? ऊपर
से तो ऐसे ही िदखाई पड़ता है िक गम िबलकुल समा हो जाएगी, तो एकदम ठं डक हो जाएगी दु िनया म। ले िकन
ठं डक गम का एक प है , गम के साथ ही समा हो जाएगी। वह दू सरा पोल है ।

अगर आप सोचते हों िक हम सब पु षों को समा कर द, तो दु िनया म यां ही यां रह जाएं गी, तो आप गलत
सोचते ह। अगर सब पु षों को समा कर द, यां त ाल समा हो जाएं गी। या सब यों को समा कर द,
तो पु ष त ाल समा हो जाएं गे । वे पोलर ह। वे एक-दू सरे के छोर ह। एक ही साथ हो सकते ह, अ था नहीं हो
सकते ।

ा आप सोचते ह, इस दु िनया म हम श ुता समा कर द, तो िम ता ही बचे गी? तो आप गलत सोचते ह। हालां िक


ब त लोग इसी तरह सोचते ह िक दु िनया से श ुता समा कर दो, तो िम ता ही िम ता बच जाएगी! उ कोई पता
नहीं है अ के िनयमों का। िजस िदन दु िनया से श ु ता समा होगी, उसी िदन िम ता समा हो जाएगी। िम ता
जीती है श ुता के साथ।

दु िनयाभर के शां ितवादी ह, वे कहते ह िक दु िनया से यु बं द कर दो, तो शां ित ही शांित हो जाएगी। वे गलत कहते
ह। उ जीवन के िनयम का कोई पता नहीं है । अगर आप यु समा करते ह, उसी िदन शां ित भी समा हो
जाएगी। पोलर है । अ एक-दू सरे से बं धा है , िवपरीत से बंधा है ।
250

ऊपर से सोचने म ऐसा लगता है िक ठीक है, पु ष को समा करने से…हम सब पु षों की छाती म छु रा भोंक द।
तो यों की छाती म तो छु रा भोंक ही नहीं रहे, तो वे तो बचगी ही! पर आपको पता ही नहीं है । वे त ाल िवन हो
जाएं गी। इधर पु ष समा होंगे, उधर यां कु लाएं गी, सू खगी और िवदा हो जाएं गी। िजस िदन आ खरी पु ष
समा होगा, उस िदन आ खरी ी मर जाएगी।

अ पोलर है , ु वीय है । हर चीज अपने िवपरीत के साथ जुड़ी है ।

इसिलए अजु न का यह कहना िक मन चं चल है , इसिलए ठहर नहीं सकता, गलत है । चंचल है , इसीिलए ठहर सकता
है । चंचल है , इसीिलए ठहर सकता है । अगर जीवन के िनयम का बोध हो, तो कहना था ऐसा िक मन का भाव चूंिक
चंचल है , हे मधु सूदन, इसिलए मेरी बात समझ म आ गई। मन ठहर सकता है ।

यह ठीक िनयमयु बात होती, ले िकन बड़ी ए ड। अगर अजु न ऐसा कहता िक मन चंचल है , इसिलए म समझ
गया िक ठहर सकता है , तो हम भी बड़ी िद त पड़ती गीता समझने म। हम कहते, यह अजुन कैसा पागल है ! जब
मन चं चल है, तो ठहरे गा कैसे?

तो यह तो हम, यह िसलोिज , यह तक-वा तो ठीक मालू म पड़ता है िक मन चं चल है , मधुसूदन, इसिलए, दे अर


फोर, ठहर नहीं सकता। यह तो िबलकुल तकयु मालू म पड़ता है ।

ले िकन म आपसे कहता ं , यह तकयु है, ले िकन स नहीं है। स वचन तो यह होगा िक चूंिक मन चंचल है ,
मधु सूदन, इसिलए, दे अरफोर, ठहर सकता है । यह स होगा। ोंिक आदमी जीिवत है, इसिलए मर सकता है ।
अगर आपने कहा, चूं िक आदमी जीिवत है , इसिलए नहीं मर सकता, तो गलत होगा। अगर आपने कहा िक आदमी
थ है, इसिलए बीमार नहीं पड़ सकता, तो गलत है । अगर आप कह िक आदमी थ है , इसिलए बीमार पड़
सकता है , तो ठीक है ।

असल म थ आदमी ही बीमार पड़ता है । अगर आप इतने बीमार हो जाएं िक डा र कह दे , ा र ीभर नहीं
बचा, तो िफर आप बीमार न पड़ सकगे, ान रखना। मरा आ आदमी कभी बीमार पड़ते दे खा है आपने? आप कह
सकते ह िक यह मुदा बीमार पड़ गया? मुदा बीमार पड़ता ही नहीं। पड़ ही नहीं सकता। िजं दा ही बीमार पड़ सकता
है । ा हो, तो ही आप बीमार पड़ सकते ह। असल म बीमारी का पता ही इसिलए चलता है िक ा का भी
पता चलता है । यह पोलर है, यह ु वीय है ।

पर अजु न को इस स का कोई बोध नहीं है । हम जै सा ही उसका मन है । िजस तक-िविध से हम चलते ह, उसी तक-
िविध से वह चलता है । हम कहते ह िक फलां से मेरा इतना ेम है िक कभी झगड़ा नहीं होगा। बस, हम गलत
बातों म पड़ गए। िजससे ेम है, उससे झगड़ा होगा। पोलर ह। जब आपका िकसी से ेम हो, तो आप समझ ले ना िक
आप झगड़े का एक नाता थािपत कर रहे ह।

ले िकन हमारा तक नहीं है ऐसा। हम कहते ह, मेरा इतना ेम है िक झगड़ा कभी नहीं होगा। बस, मूढ़ता म पड़े आप।
आपको िजंदगी की पोले रटी का कोई पता नहीं है । िजससे िजतना ादा ेम है , उससे उतनी ही कलह की सं भावना
है । अगर कलह से बचना हो, तो कृपा करके ेम से बच जाना। और आप सोचते हों िक ेम- ेम हम स ाल लगे,
और कलह-कलह से बच जाएं गे, तो आप िनपट अंधकार म हो। आपको िजं दगी म यह कभी भी रा े पर नहीं लाएगी
बात।

िजसको श ुता से बचना हो, उसको िम ता से बच जाना चािहए। ले िकन हम करते ह कोिशश िक िम बना ल, तािक
श ुता से बच जाएं । ेम फैला द, तािक सं घष न हो। अपना बना ल, तािक कोई पराया न रहे । जो िजतना गहरा
आपका अपना है , उससे आपको उतने ही पराएपन के ण उपल होंगे। जो आपके िजतना िनकट है, िक ीं णों
म वह आपको इस पृ ी पर सवािधक दू र मालू म पड़े गा।
251

मगर यह जीवन का गहरा िनयम है , जो हमारे सामा िहसाब म नहीं आता। और इसिलए हम िजं दगीभर गलती िकए
चले जाते ह। िजं दगीभर गलती िकए चले जाते ह। मेरे पास लोग आते ह, वे कहते ह िक मेरा तो मेरी प ी से इतना ेम
है , िफर कलह ों होती है ? म कहता ं, इसीिलए। और तो कोई कारण नहीं है ।

अभी एक मौका आया। कोई आठ साल पहले एक मिहला ने मुझे आकर कहा था िक मेरे पित से ब त कलह होती
है । और मेरा ेम इतना है ! मेरा यह ेम-िववाह है, और हमने जी-जान लगाकर यह शादी की है। न मेरे घर के लोग
प म थे, न उस घर के लोग प म थे । और जब तक हम घर के लोगों से लड़ रहे थे, तब तक ही हमारा ेम रहा।
और जब से हमने शादी की, तब से हम दोनों लड़ रहे ह! इतना ेम था िक हम जीवन दे ने को तै यार थे, और अब
हालत ऐसी है िक एक साथ बै ठना मु ल हो गया है । बात ा है ? मने कहा, यही बात है । इतना ेम होगा, तो यही
फल होगा।

िफर आठ साल बाद वह मिहला मुझे िमली। मने उससे पूछा, कहो, कलह कैसी चल रही है ? उसने कहा, कलह!
कलह अब िबलकुल नहीं चलती, ोंिक ेम ही नहीं रहा। अब कलह भी नहीं चलती। उसने जो श मुझे कहे, वे
ब त ठीक थे । उसने कहा, अब कलह भी नहीं चलती है । अब तो कोई सं बंध ही नहीं रहा। बात ही शांत हो गई। ेम
ही नहीं बचा; अब कलह भी नहीं बची!

िजतना हम मन के भीतर जाएं गे या जीवन के भीतर जाएं गे, उतना इस िवरोधी त को पाएं गे । रप शन और
अटै न, िवकषण और आकषण एक साथ ह। राग और िवराग एक साथ ह। िवरोध साथ म खड़े ह।

इसिलए अजु न लगता है िक ठीक पूछ रहा है; ठीक नहीं पूछ रहा है । और अजु न को यह भी खयाल नहीं है िक कृ
जो कह रहे ह, वह कोई िस ां त नहीं कह रहे ह। अगर कृ कोई िस ां त कह रहे ह, तो अजु न कृ को हरा दे गा।
अगर कृ कोई िस ां त कह रहे ह, तो अजु न कृ को हरा दे गा। ोंिक िस ां त के मा म से मन को हल करने
का कोई उपाय नहीं है । ोंिक सब िस ां त मन की सं तितयां ह। िस ां त के ारा मन को हराने का कोई उपाय नहीं
है , ोंिक सब िस ां त मन ही पैदा करता है और िनिमत करता है ।

अभी म एक महानगर म था। एक पंिडत, बड़े स न, भले आदमी। एक ही बु राई, िक पंिडत। वे मुझे िमलने आए।
मने उनसे पूछा, ा कर रहे ह आप िजंदगीभर से? उ ोंने कहा िक मेरा तो एक ही काम है िक म जै न साधु-सा यों
को िस ां त की िश ा दे ता ं । मने कहा, िकतनों को िदया? उ ोंने कहा, सै कड़ों जै न साधु-सा यों को मने िन ात
िकया है । शा का बोध िदया है । मने कहा, इतने सै कड़ों जै न साधु-सा ी आपने बना िदए, ले िकन आप अब तक
साधु नहीं ए? उ ोंने कहा, म तो नौकरी बजाता ं । मने कहा, तो कभी सोचा िक नौकरी बजाने वाला पंिडत िजन
साधु-सा यों को पैदा िकया होगा, वे िकस हालत के होंगे? नौकर से भी गए-बीते होंगे! िकतनी महीने की तन ाह
िमलती है! वे कहने लगे, ादा नहीं दे ते। पैसा तो जै िनयों पर ब त है, ले िकन डे ढ़ सौ पए महीने से ादा नहीं दे ते!
मने कहा, तु मने जो साधु -सा ी पैदा िकए, उनकी कीमत िकतनी होगी? डे ढ़ सौ पए महीने का मा र साधु-सा ी
पैदा कर रहा है ! िस ां त की िश ा दे रहा है !

मने कहा, िजन िस ां तों को तु म लोगों को समझाते हो, उनके स का तु खुद कोई अनुभव नहीं आ? उसने कहा
िक िबलकुल नहीं। म तो अपने डे ढ़ सौ पए के िलए करता ं ।

अगर अजु न िकसी पंिडत के पास होता, तो पंिडत को हरा दे ता। ोंिक अजु न जो कह रहा है, वे जीवन की गहराइयां
ह। हमारी ऐसी उलझन है । ले िकन कृ के साथ किठनाई है , ोंिक कृ कोई िस ां त की बात नहीं कर रहे, स
की बात कर रहे ह। इसिलए अजु न िकतनी ही किठनाइयां उठाए, वे स के सामने एक-एक जड़ सिहत उखड़कर
िगरती चली जाएं गी। उसने उिचत किठनाई उठाई है । मनु की वह किठनाई है । मनु के मन की किठनाई है ।
ले िकन िजस आदमी के सामने उठाई है, उसे िस ां तों म कोई रस नहीं है ।

इसीिलए गीता म एक अभूतपू व घटना घटी है िक गीता म कृ ने इतने िस ां तों का उपयोग िकया है िक दु िनया म
िजतने िस ां त हो सकते ह, करीब-करीब सबका। और इसिलए सभी िस ां तवादी पंिडतों को गीता बड़े काम की
252

मालू म पड़ी है, ोंिक सब अपने मतलब की बात गीता से िनकाल सकते ह। इसीिलए तो गीता पर इतनी टीकाएं हो
सकी ह। एकदम एक-दू सरे से िवरोधी!

ले िकन उन टीकाओं म एक भी कृ को समझने की साम की टीका नहीं है । उसका कारण है । ोंिक जो भी


टीका िनकाल रहा है , उसका िस ां त पहले से तय है , गीता को जानने के पहले से तय है । और अपने िस ां त को वह
गीता पर थोप दे ता है । जब िक कृ का कोई िस ां त नहीं है । कृ का कुछ स ज र है । और वह उस स तक
प ं चाने के िलए िकसी भी िस ां त का उपयोग कर सकते ह। इसिलए वे भ की भी बात करते ह, ान की भी, कम
की भी, ान की भी, योग की भी। वे सारी बात करते चले जाते ह। ये सब िस ां त िस ां त की तरह िवरोधी ह, स
की तरह अिवरोधी ह। स की तरह कोई िवरोध नहीं है, ले िकन िस ां त की तरह भारी िवरोध है ।

इसिलए गीता पर िजतना अनाचार आ है , ऐसा अनाचार िकसी पु क पर पृ ी पर नहीं आ है । ोंिक एक


िस ां त को मानने वाला जब गीता की ा ा करता है, तो वह अपने िस ां त को सब िस ां तों की गदन काटकर
गीता पर थोप दे ता है । एक गदन बचा ले ता है । जो उसके िस ां त से कहीं िमलता है , उसको बचा ले ता है । बाकी सब
की गदन कलम कर दे ता है । गीता की ह ा हो जाती है ।

गीता िस ां तवादी शा नहीं है , गीता एक स की उदघोषणा है । िस ां त का मोह नहीं है । इसिलए िवपरीत िस ां तों
की एक साथ चचा है–एक साथ। गीता तक का शा नहीं है । अगर तक का शा होता, तो कंिस ट होता, एक
सं गित होती उसम।

गीता जीवन का शा है । िजतना िवरोधी जीवन है, उतनी ही िवरोधी गीता है । िजतना जीवन पोलर है , िवरोधी है ,
उतने ही गीता के व िवरोधी ह।

और कृ से ादा तरल आदमी, िल ड आदमी खोजना किठन है । वे कहीं भी बह सकते ह। प र की तरह नहीं
ह िक बै ठ गए एक जगह। पानी की तरह बह सकते ह। या और भी उिचत होगा िक भाप की तरह ह। बादल की तरह
कोई भी प ले सकते ह। कोई ढां चा नहीं है ।

इसिलए अजु न िद त म पड़ता जाता है । अपनी ही शं काएं उठाकर िद त म पड़ता जाता है । ोंिक उसकी
े क शं का उसके मन की सू चना दे ती है िक वह कहां खड़ा है । इस ने अजु न की थित को ब त साफ िकया
है ।

अजु न को मन के ऊपर िकसी चीज का उसे कोई अनुभव नहीं है । तक-बु उसके पास गहरी है । सोचता-समझता
है , ले िकन भाव के जगत म उसका कोई वेश नहीं है । िनयम की बात करता है, ले िकन गहरे , अ मेट िनयम का
उसे कोई भी अहसास नहीं है ।

इस व ने अजु न के अजु न की थित ब त साफ की है । और कृ के िलए अब उसकी थित को हल करना


ितपल आसान होता चला जाएगा। सबसे बड़ी किठनाई यह है , वह किठनाई है, डाय ोिसस की, िनदान की। और
जहां तक शरीर की डाय ोिसस, बीमा रयों का पता लगाने का सवाल है , हम उपाय कर सकते ह। ले िकन जहां तक
मन की बीमा रयों का सवाल है , उनको क े स करवाना पड़ता है । और कोई उपाय नहीं है । उनको बीमार से ही
ीकृित िदलवानी पड़ती है ।

ायड एक काम करता रहा है –करीब-करीब कृ वही काम कर रहे ह– ायड एक काम करता रहा है , और
ायड के पीछे चलने वाले मनसिवदों का जो समू ह है, साइकोएनािल ् स का, वे भी एक काम करते रहे ह। वे मरीज
को पद के पीछे एक कोच पर िलटा दे ते ह। और उससे कहते ह, जो तु झे बोलना है बोल। कुछ भी िछपाना मत, जो
ते रे मन म आए, बोलते जाना। कभी वह गीत गाता है । कभी गािलयां बकता है । कभी भजन बोलने लगता है । जो ते रे
मन आए, बस मन म आए, उसको तू श दे ते जाना। तू यह भी मत िफ करना िक वह ठीक है िक गलत।
253

पद के पीछे िछपा आ मनोवै ािनक बै ठा रहता है । वह आदमी पद के पार अनगल–हम अनगल िदखाई पड़ता है
बाहर से, उसके भीतर तो उसकी भी सं गित है–वह बोलता चला जाता है । जै सा हम सब अंदर बोलते रहते ह, अगर
जोर से बोल द, बस वै से ही। वह बोलता चला जाता है ।

एक-दो िदन, तीन िदन तो थोड़ा रोकता है , कोई-कोई बात िछपा जाता है । लगता है िक नहीं बोलनी चािहए, तो िछपा
ले ता है । ले िकन तीन-चार िदन म वह धीरे -धीरे राजी हो जाता है , ह ा हो जाता है , बहने लगता है, और बोलने लगता
है । िफर मनोवै ािनक पीछे बै ठकर खोज करता रहता है िक उसके मन का सार िमल जाए।

कृ भी अजु न से ऐसी बात कह रहे ह िक अजु न के मन का सार िमल जाए। अजु न का मन साफ कट हो जाए।
इस व म अजु न के मन का सार साफ आ है, अजु न के मन का िनदान आ है । अब कृ िचिक ा म ादा
व था से लग सकते ह।

ीभगवानुवाच

असंशयं महाबाहो मनो दु िन हं चलम्।


अ ासेन तु कौ ेय वैरा ेण च गृ ते।। 35।।
हे महाबाहो, िनःसंदेह मन चंचल और किठनता से वश म होने वाला है , परं तु हे कुंतीपु अजु न, अ ास अथात थित
के िलए बारं बार य करने से और वै रा से वश म होता है ।

कृ ने अजु न की मनोदशा को दे खकर कहा, िन य ही अजु न, मन बड़ी मु ल से वश म होने वाला है ।

यह जो कहा, िन य ही, यह मनु के मन की थित के िलए कहा है । िन य ही, जै सा मनु है, ऐज वी आर, जै से
हम ह; हम दे खकर, िन य ही मन बड़ी मु ल से वश म होने वाला है । जै सा आदमी है, अगर हम उसे वै सा ही
ीकार कर, तो शायद मन वश म होने वाला ही नहीं है ।

ले िकन–और उस ले िकन म गीता का सारा सार िछपा है – ले िकन अजु न, अ ास और वै रा से मन वश म हो जाता


है ।

जै सा मनु है, अगर हम उसे अनछु आ, वै सा ही रहने द, और चाह िक मन वश म हो जाए, तो मन वश म नहीं होता
है । ोंिक जै सा मनु है, वह िसफ मन ही है । मन के पार उसम कुछ भी नहीं है । मन के पार उसका कोई भी
अनुभव नहीं है। मन को वश म करने की कोई भी कीिमया, कोई भी तरकीब उसके हाथ म नहीं है । ले िकन–और
ले िकन ब त मह पूण है ; और ये दो श , अ ास और वै रा गीता के ाण ह–ले िकन अ ास और वै रा से मन
वश म हो जाता है । अ ास और वै रा का आधार आपको समझा दू ं , िफर हम अ ास और वै रा को समझगे ।

अ ास और वै रा का पहला आधार तो यह है िक मनु जै सा है , उससे अ था हो सकता है ।

मन की बात ही नहीं कर रहे वे । वे कह रहे ह, मन को छोड़ो। तु म जै से हो, ऐसे म मन वश म नहीं होगा। पहले हम
तु ही थोड़ा बदल ल। पहले हम तु ही थोड़ा बदल ल, िफर मन वश म हो जाएगा। अ ास और वै रा इस बात
की घोषणा है िक मनु जै सा है , उससे अ था भी हो सकता है । मनु जै सा है , उससे िभ भी हो सकता है । मनु
जै सा है, वै सा होना एकमा िवक नहीं है , और िवक भी ह। हम जै से ह, यह हमारी एकमा थित नहीं है , और
थितयां भी हमारी हो सकती ह।

अगर हम एक ब े को जं गल म छोड़ द पैदा हो तब, तो ा आप सोचते ह, वह ब ा कभी भी मनु की कोई भी


भाषा बोल पाएगा! कोई भाषा नहीं बोल पाएगा। ऐसा नहीं िक वह आपके घर म पैदा आ था, तो गु जराती बोले गा
जं गल म! िक िहं दु ान की जमीन पर पैदा आ था, तो िहं दी बोले गा। िक अं े ज के घर म पैदा आ था, तो अं ेजी
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बोलेगा। नहीं, वह कोई भाषा नहीं बोले गा। शायद आप सोचते होंगे, वह कोई नई भाषा बोलेगा। वह नई भाषा भी नहीं
बोलेगा। वह भाषा ही नहीं बोलेगा।

उ ीस सौ बीस म बं गाल म दो ब यां पकड़ी गईं, िजनको भे िड़ए उठाकर ले गए थे और उ ोंने उनको बड़ा कर
िलया। भे िड़ए शौकीन ह। और कई दफे दु िनया म कई जगह उ ोंने यह काम िकया है । ब ों को उठा ले जाते ह,
िफर उनको पाल ले ते ह। एक ब ी ारह साल की थी और एक ते रह साल की थी, जब वे पकड़ी गईं। और पहली
दफा है रानी ई, वे कोई भाषा नहीं बोलती थीं। भाषा की तो बात दू सरी है , वे दो पैर से खड़ी भी नहीं हो सकती थीं। वे
चारों हाथ-पैर से ही चलती थीं।

अभी कुछ िदन पहले, पांच-सात वष पहले यू.पी. म एक ब ा पकड़ा गया जं गल म, वह भी भेिड़यों ने पाल िलया था।
वह कोई चौदह साल का था, वह भी कोई भाषा नहीं बोल सकता था। उसका नाम रख िलया था राम, पकड़ने के
बाद। छः महीने कोिशश करके बामु ल उससे राम िनकलवाया जा सका िक वह राम कह सके। ले िकन छः महीने
म वह मर गया। और िचिक क कहते ह िक वह राम कहलवाने की कोिशश ही उसकी जान ले ने वाली िस ई।

चौदह साल का ब ा एक श नहीं बोलता था। ा आ? चारों हाथ-पैर से चलता था। छः महीने मसाज कर-करके
उसको बामु ल खड़ा कर पाए। नहीं तो रीढ़ उसकी सीधी नहीं होती थी, िफ हो गई थी। चार हाथ-पैर से वह
भे िड़यों की ते जी से दौड़ता था! ले िकन खड़ा करके वह ऐसा चलता था िक र ी-र ी मु ल हो गया। ा हो गया?

आदमी वही हो जाता है, िजस आयाम म उसका अ ास करवा िदया जाता है ; वही हो जाता है । वह भे िड़ए के साथ
रहा, भे िड़ए का अ ास हो गया। अ ास कर िलया, वही हो गया।

आदमी एक अनंत सं भावना है, इनिफिनट पािसिबिलटी। हम जो हो गए ह, वह हमारी एक पािसिबिलटी है िसफ। वह


हमारी एक सं भावना है , जो हम हो गए ह। अगर हम दु िनया की मनु जाितयों को भी दे ख, तो हमको पता चले गा िक
अनंत सं भावनाएं ह।

ऐसे कबीले ह आज भी, जो ोध करना नहीं जानते ह। आप हैरान होंगे! आप कहगे, ोध! ोध तो हर मनु करता
है । आपको सब मनु ों का पता नहीं है ।

ऐसे कबीले ह आज भी आिदवािसयों के, जो ोध करना नहीं जानते । ोंिक ोध भी अ ास से आता है ; अचानक
नहीं आ जाता। बाप कर रहा है, मां कर रही है , घर भर ोध कर रहा है, और त ी भी लगी है िक ोध करना पाप
है घर म। और सब चल रहा है । वह ब ा सीख रहा है, वह कंडीशन हो रहा है । वह जवान होकर ब ा कहे गा िक
ऐसा हो ही कैसे सकता है िक आदमी ोध न करे ! तो यह िसखावन है । ब ा तो एक तरल चीज थी। आपने उसे एक
िदशा म ढाल िदया। किठनाई हो गई। वह अड़चन हो गई।

ऐसे कबीले ह, िजनम सं पि का कोई मोह नहीं है; कोई मोह नहीं है । सं पि का मोह ही नहीं है । अभी एक छोटे -से
कबीले की खोज ई, तो बड़े चिकत हो गए लोग, उस कबीले म सं पि की मालिकयत का खयाल ही नहीं है । िकसी
आदमी को यह खयाल नहीं है िक यह मेरी जमीन है । िकसी को खयाल नहीं है िक यह मेरा मकान है ।

ले िकन कबीले का पूरा ढं ग और है कंडीशिनंग का। कोई अपना मकान नहीं बनाता, सारा गांव िमलकर उसका
मकान बनाता है । जब भी गांव म एक नए मकान की ज रत पड़ती है , पूरा गांव िमलकर एक मकान बनाता है । गां व
म कोई नया आदमी रहने आ जाता है , तो पूरा गांव एक मकान बना दे ता है । वह आदमी उसम रहने लगता है । पूरा
गां व घर-घर से चीज दे कर उसके घर को जमा दे ता है पूरा। वह घर का उपयोग करने लगता है ।

उस कबीले म खयाल ही नहीं है ाइवेट ओनरिशप का, िक गत सं पि भी कोई चीज होती है । आप उस


कबीले म क ुिन न फैला सकगे । ोंिक क ुिन पोले रटी है । गत सं पि हो, तो क ुिन का खयाल
पैदा हो सकता है ; नहीं तो पैदा नहीं हो सकता। उस कबीले म आप िकसी को न लाइट नहीं बना सकते ह। कोई
उपाय नहीं है । उस कबीले म िकसी को खयाल ही नहीं है िक व ु और म कोई सं बंध मालिकयत का होता है ।
255

और हम मरे जाते ह अप र ह का िस ां त दोहरा-दोहराकर। वह कुछ हल होता नहीं। अप र ही से अप र ही


भी…अब िदगं बर जै न मुिन न रहते ह।

दो िदगं बर जै न मुिन िशखरजी के पास के वन म झगड़ पड़े । अब झगड़ा लोग कहते ह िक या तो ी के कारण होता
है या धन के कारण। न उनके पास ी है, न धन है , जहां तक जानकारी है । झगड़ा हो गया, तो जो िप ी वगै रह
रखते ह साथ म, उससे एक-दू सरे की खोपड़ी पर हमला बोल िदया! लोगों ने, गांव वालों ने आकर छु ड़ाया। पुिलस भी
आ गई। और तब बड़ी है रानी ई िक वह जो िप ी का डं डा था, उसम सौ-सौ के नोट अंदर भरे ए थे । उसी पर
झगड़ा हो गया था। वह बं टवारे म झगड़ा हो गया था। गए थे शौच को जं गल म, ले िकन वह बं टवारे म झगड़ा हो गया!

पुिलस थाने ले गई। आस-पास के गां व के जै नी हाथ-पैर जोड़कर उनको छु ड़वाए, िक हमारी इ त का खयाल करो।
कोई ा कहे गा! िदगं बर मुिन ह! चचा बं द करो। र त खलाई मुिन को छु ड़ाने के िलए।

बड़े आ य की बात है , एक आदमी न खड़ा होने की िह त जु टा पाया, तो िप ी म पए के बं डल रखे ए है!


कंडीशिनंग है । कंडीशिनंग भारी है । मगर यह एक प ही है । यह अिनवाय नहीं है । ऐसे प आदमी के ह, जहां
उनको पता भी नहीं है ।

अब यहां हम सोचते ह। िजस ढं ग से हम सोचते ह, वह एक िवक है । यह मने इसिलए उदाहरण के िलए आपको
कहा िक अ िवक सदा ह।

अ ास का मूल आधार यह है िक आप जै से ह, उससे अ था हो सकते ह। अ ास का अथ है , ऐसी िविध, जो


आपको अ था कर दे गी। अब जै से एक आदमी है, वह कहता है िक मेरे हाथ म ब त तकलीफ है, आपरे शन
करवाना है । आपरे शन आप क रएगा, तो म न करवा पाऊंगा, म हाथ को खींच लूं गा। इतनी तकलीफ होगी। हम
कहते ह, कोई िफ नहीं। हम तु अन थे िसया दे दगे, पहले बे होशी की दवा दे दगे, िफर आपरे शन कर लगे । िफर
तु तकलीफ न होगी।

अजु न कहता है, मन बड़ा चं चल है । कृ कहते ह, िबलकुल ठीक कहते हो। हम पहले अ ास करवा दगे । िफर मन
चंचल न रहे गा। हम पहले तु बदल दगे । हम सारी थित बदल दगे ।

अ ास का अथ है, सारी बा और आं त रक थित की बदलाहट। अ ास का अथ है , वे जो सं ार ह, कंडीशिनंग


है , वह जो हमारे भीतर पुराना जमा आ वाह है , उसको जगह-जगह से तोड़कर नई िदशा दे दे ना।

और दू सरा श कृ उपयोग करते ह, वै रा । उनका अथ तो म सां झ आपसे क ं गा। अभी म िसफ मूल आधार
आपको कह दू ं ।

अ ास का अथ है, आप जै से ह, उससे अ था करने की िविधयां, मेथड् स। और आप जै से ह, वह भी िक ीं िविधयों


के कारण ह, अपने कारण नहीं। अगर आप गु जराती बोलते ह, तो िसफ इसिलए िक गु जराती का अ ास करवा िदया
गया है । और कोई कारण नहीं है । आप अं े जी बोल सकगे, अगर अं ेजी का अ ास करवा िदया जा सके। कोई
अड़चन नहीं है ।

जो भी आप ह, वह अ ास का फल है । ले िकन अभी जो अ ास करवाया है , वह समाज ने करवाया है । और समाज


बीमारों का समू ह है । अभी जो अ ास करवाया है , वह भीड़ ने करवाया है । और भीड़ मनु की िन तम अव था है ।
इसिलए आप उस भीड़ के एक िह े ह। अभी आप ह नहीं। अभी आप जो भी ह, वह भीड़ का ही िह ा ह। और
भीड़ ने जो करवा िदया है , वह आप ह।

अ ास का अथ है, गत चे ा उस िदशा म, जहां आप नए हो सक, जहां आप िभ हो सक।


256

यह मन की धारा, जो ब त चं चल िदखाई पड़ती है, वह चं चल इसीिलए है िक पूरी व था उसे चं चल कर रही है ।

हमारी हालत करीब-करीब ऐसी है िक मने सु ना है, एक कु े के मन म खयाल आ गया िक वह िद ी चला जाए।
सारी दु िनया िद ी जा रही थी। उसने सोचा िक कु े ों पीछे रह जाएं ! और जब सभी िद ी प ं च जाएं गे, तो कु ों
के अिधकारों का ा होगा? िफर वह कु ा कोई छोटा-मोटा कु ा भी नहीं था, एक एम.पी. का कु ा था। नेता का
कु ा था। िदन-रात िद ी जाओ, िद ी आओ की बात सु नाई पड़ती थी। िद ी जाने की िविधयां और उपाय और
सीिढ़यां ईजाद िकए जाते थे; आदिमयों के कंधों पर कैसे चढ़ो, लोगों की आं खों म धू ल कैसे झोंको, सब उसने सु न
िलया था। वह ठीक टड हो गया था।

एक िदन उसने अपने गु को कहा–गु , मािलक जो उसका एम.पी. था–कहा िक अब ब त दे र ई जा रही है । अब


मुझे आशीवाद द, म भी िद ी जाऊं! उसने कहा िक तू ा करे गा िद ी जाकर? कु ा होकर और ते री ऐसी
िह त?

समझ गया था। वह कु ा तो ब त िदन से रहता था; वह सब राज समझ गया था। उसने कहा िक आप दे खते नहीं िक
आपका वह जो िवरोधी प ंच गया है इस बार, वह कु ों से बे हतर है? बदतर है । नेता ने कहा िक िबलकुल ठीक। यह
बात तो िबलकुल ठीक है । तू जा। तू िद ी जा। उसने कहा, रा ा कुछ बता द। म कैसे िद ी जाऊं!

तो रा ा, नेता ने कहा िक सू सरल है । िजस तरकीब से म जाता रहा, वही तरकीब तू भी उपयोग कर। ोंिक वह
अनुभव म लाई गई तरकीब है । तरकीब उसने बता दी िक जब अमीर कोई िदखाई पड़े , अमीर कु ा…!

कु ों म भी अमीर और गरीब होते ह। अमीर कु ा आपने दे खा होगा; कार म भी चलता है ; सुं दरतम यों की गोद
म भी बै ठता है; शानदार गलीचों पर िव ाम भी करता है! आदमी को रोटी न िमले , उसको तो िवशे ष भोजन िमलता
है । वह अमीर कु ा है ।

तो उसने कहा, जब अमीर कोई कु ा िदखे, तो कहना िक सावधान। गरीब कु े इक े हो रहे ह; तु ारे िलए खतरा
है । म तु ारी र ा कर सकता ं । और जब कोई गरीब कु ा िदखे, तो फौरन कहना िक मर जाओगे । लू टे जा रहे हो।
शोषण िकया जा रहा है । लाल झंडा हाथ म लो। म तु ारा नेता ं । इन अमीरों को ठीक करना ज री है । और जब
तक–जै सा िक अहमदाबाद की सड़कों पर मने दो-चार जगह िलखा दे खा: जनता जागे, से िठया भागे–उसने कहा
होगा, कु े जागे, से िठया भागे । तै यार हो जाओ!

पर उस कु े ने कहा िक महाराज, यह तो ठीक है । ले िकन अमीर और गरीब कु े दोनों साथ िमल जाएं , तो म ा
क ं ? तो कहना, म सव दयी ं! म सबके उदय म िव ास करता ं । गरीब का भी उदय हो, अमीर का भी उदय हो।
सू रज पूरब से भी िनकले, पि म से भी साथ िनकले । हम सव दयी ह।

सू पूरा हो गया। कु े ने चार शु कर िदया। और नेता ने कहा, ान रखना, जोर से बोले चले जाना। कु े ने
कहा, यह तो अ ास है हमारा। इसम कोई िचं ता न कर। इसम हम नेताओं को मात दे दे ते ह। इसम कोई िद त
नहीं है । हम िच ाते रहगे । नेता ने कहा, अगर िच ाते रहे, तो िद ी प ं च जाओगे । बस, िच ाने म कुशलता
चािहए। इसकी िफ मत करना िक ा िच ा रहे हो। जोर से िच ा रहे हो, इसका खयाल रखना। दू सरे को दबा
दे ना िच ाने म, बस!

कु े ने शु कर िदया काम। महीने पं ह िदन म उसने काशी के कु ों को राजी कर िलया। नेता से कहा िक अब म
जाता ं । आप वहां खबर करवा द िद ी म िक म आ रहा ं । ठहरने का इं तजाम, सब व था करवा द। िकतनी
दे र लगेगी, नेता ने पूछा, ते रे प ंचने म? कु े ने कहा िक कु े की चाल से जाऊंगा; और सव दयी कहकर फंस गया
ं । तो वे कु े कह रहे ह, पैदल जाओ। झंझट हो गई। वे कहते ह, सव दयी, पैदल जाओ, पदया ा करो! फंस गया
झंझट म; नहीं तो टे न म िनकल जाता। अब तो पैदल ही जाना पड़े गा। कम से कम महीनाभर लग जाएगा।
257

खबर कर दी गई। िद ी के कु े बड़े स ए। काशी का कु ा आता है; धमतीथ से आता है । ज र कुछ ान


ले कर आता होगा! काम पड़े गा। ले िकन बड़ी मु ल तो यह ई िक एक महीने के बाद उ ोंने ागत का इं तजाम
िकया, ार-दरवाजे बनाए। ले िकन कु ा सात ही िदन म प ं च गया। वे तो इं तजाम कर रहे थे एक महीने बाद का,
कु ा सात िदन म िद ी प ं च गया। बड़े चिकत ए।

उ ोंने कहा, िबलकुल समझ नहीं तु । बे व आ गए। हम सब इं तजाम िकए थे । मेयर को राजी िकए थे । फूलमाला
पहनवाते । यह तु मने ा िकया! सब िवरोधी पाट के नेताओं को इक ा कर रहे थे िक फूलमाला पहनाते । तु म यह
ा िकए? इतनी ज ी आ गए बे व । कोई तै यारी नहीं है ।

उस कु े ने कहा िक म ा कर सकता ं ? काशी से िनकला; एक िमनट क नहीं सका कहीं। िजस गांव म प ं चा,
उसी गांव के कु े इस बु री तरह पीछे लग जाते िक म जान बचाकर गांव के बाहर होता। वे दू सरे गां व के बाहर तक
जब तक मुझे छोड़ते, तब तक दू सरे गांव के कु े मेरे पीछे लग जाते । म ठहरा ही नहीं, का ही नहीं, िव ाम नहीं
िकया। बस, भागता ही चला आ रहा ं! और कहते ह, इतना ही कहकर वह कु ा मर गया, ोंिक इतना थक गया
था।

िद ी आमतौर से क बनती है प ं चने वालों की। बड़ी क है । दौड़-दौड़कर िकसी तरह प ं चते ह वहां; िगरकर
मर जाते ह। शायद मरने के िलए प ं चते ह या िकसिलए प ंचते ह, कुछ कहना किठन है । मर गया वह कु ा। पर
एक राज की बात बता गया िक ठहर नहीं पाया कहीं; दौड़ाते ही रहे लोग।

हम भी एक-एक आदमी के मन को बचपन से दौड़ा रहे ह। सब िमलकर दौड़ा रहे ह। सब िमलकर दौड़ा रहे ह। बाप
दौड़ा रहा है िक नंबर एक आओ। मां दौड़ा रही है िक ा कर रहे हो, बगल के पड़ोसी का लड़का दे ख रहे हो?
ोट् स म नंबर एक आ गया। मां -बाप िकसी तरह पीछा छोड़गे , तो एक प ी उपल होगी। वह कहे गी, दौड़ो।
दे खते हो, बगल का मकान बड़ा हो गया। बगल की प ी के पास हीरों की चू िड़यां आ गईं। तु म दे खते रहोगे ऐसे ही
बै ठे! दौड़ो। िकसी तरह दौड़-दाड़कर और थोड़ी उ गु जारता है , तो ब े पैदा हो जाते ह। वे कहते ह िक ा बाप
िमले तु म भी! न घर म कार है, न टे लीिवजन से ट है । कुछ भी नहीं है । बड़ी दीनता मालू म होती है । इनफी रआ रटी
कां े पैदा हो रहा है हमम, ू ल जाते ह तो। दौड़ो।

पूरी िश ा, पूरा समाज, पूरी व था दौड़ने के एक ढां चे म ढली ई है । िद ी प ं चो। दौड़ो, चाहे जान चली जाए,
कोई िफ नहीं। दौड़ते रहो। ठहरना भर मत।

अगर इतने सारे अ ास म आदमी का मन ठहरने का थान नहीं पाता, िकसी िव ामगृह म नहीं क पाता, भागता ही
चला जाता है; तो अगर अजु न एक िदन कह रहा है कृ से िक यह मन बड़ा भागने वाला है, यह कता नहीं णभर
को, तो ठीक ही कह रहा है । हम सब का मन ऐसा है ।

ले िकन कृ कहते ह, यह मन का ढं ग िसफ एक सं ा रत व था है । अ ास से इसे तोड़ा जा सकता है । अ ास


से नई व था दी जा सकती है । और वै रा से! ों? वै रा को ों जोड़ िदया? ा अ ास काफी न था?
अ ास की िविध बता दे ते िक इससे बदल जाओ।

वै रा इसिलए जोड़ िदया िक अगर वै रा न हो, तो आप िविधयों का उपयोग न करगे । ोंिक राग दौड़ाने की
व था है । राग के िबना कोई दौड़ता नहीं है । िद ी कोई ऐसे ही वै रा भाव से नहीं दौड़ता। राग, कुछ उपल
की आकां ा, कुछ पाने का खयाल दौड़ाता है । कोई ल , कोई राग दौड़ाता है ।

तो राग चंचल होने का आधार है , तो वै रा िव ाम का आधार बनेगा। अभी हम सब राग म जीते ह। हमारा पूरा
समाज राग से भरा है । हमारी पूरी िश ा, समाज की व था, प रवार, सं बंध–सब राग पर खड़े ह। इसिलए हम सब
दौड़ते ह। राग िबना दौड़े नहीं फिलत हो सकता। राग यानी दौड़।

चंचलता का बु िनयादी आधार राग है । इसिलए ठहराव का बु िनयादी आधार वै रा होगा।


258

तो वै रा की शत ज री है , नहीं तो आप ठहरने को राजी नहीं होंगे। आप कहगे, ठहरकर मर जाएं गे । पड़ोसी तो


ठहरे गा नहीं, वह तो दौड़ता रहे गा। आप मुझसे ही ों कहते ह िक ठहर जाओ? अगर म ठहर गया, तो दू सरा तो
ठहरे गा नहीं; वह प ं च जाएगा!

जब तक आपको कहीं प ंचने का राग है , जब तक कुछ पाने का राग है , तब तक मन अचं चल नहीं हो सकता, चंचल
रहे गा। इसम मन का ा कसू र है ! आप राग कर रहे ह, मन दौड़ रहा है । मन आपकी आ ा मान रहा है ।

इसिलए वै रा की शत पीछे जोड़ दी िक वै रा की भावना हो, तो िफर ऐसी िविधयां ह, िजनके अ ास से आदमी
मन को िव ाम को प ंचा सकता है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


वै रा और अ ास—(अ ाय—6) वचन—स हवां

: भगवान ी, सु बह के ोक म चं चल मन को शां त करने के िलए अ ास और वै रा पर गहन चचा चल रही थी,


ले िकन समय आ खरी हो गया था, इसिलए पूरी बात नहीं हो सकी। तो कृपया अ ास और वै रा से कृ ा गहन
अथ ले ते ह, इसकी ा ा करने की कृपा कर।
राग है सं सार की या ा का माग, सं सार म या ा का माग। वै रा है सं सार की तरफ पीठ करके यं के घर की ओर
वापसी। राग यिद सु बह है, जब प ी घोंसलों को छोड़कर बाहर की या ा पर िनकल जाते ह, तो वै रा सां झ है , जब
प ी अपने नीड़ म वापस लौट आते ह।

वै रा को पहले समझ ल, ोंिक िजसे वै रा नहीं, वह अ ास म नहीं जाएगा। वै रा होगा, तो ही अ ास होगा।


वै रा होगा, तो हम िविध खोजगे –माग, प ित, राह, टे ीक–िक कैसे हम यं के घर वापस प ं च जाएं ? कैसे हम
लौट सक? िजससे हम िबछु ड़ गए, उससे हम कैसे िमल सक? िजसके िबछु ड़ जाने से हमारे जीवन का सब सं गीत
िछन गया, िजसके िबछु ड़ जाने से जीवन की सारी शां ित खो गई, िजसके िबछु ड़ जाने से, खोजते ह ब त, ले िकन उसे
पाते नहीं; उस आनंद को िकस िविध से, िकस मेथड से हम पाएं ? यह तो तभी सवाल उठे गा, जब वै रा की तरफ
ि उठनी शु हो जाए। तो पहली तो बात, वै रा को समझ, िफर हम अ ास को समझगे ।

वै रा का अथ है, राग के जगत से िवतृ ा, े शन। जहां-जहां राग है , जहां-जहां आकषण है , वहां-वहां िवकषण
पैदा हो जाए। जो चीज खींचती है , वह खींचे नहीं, ब िवपरीत हटाने लगे । जो चीज बु लाती है , बु लाए नहीं, ब
ार बं द कर ले । मालू म पड़े िक ार बं द कर िलया, और ार म वे श से इनकार कर िदया।

िवकषण हम सभी को होता है । अगर ऐसा म क ं, तो आप थोड़े है रान होंगे िक हम सभी रोज वै रा को उपल होते
ह। ले िकन वै रा को उपल होकर हम अ ास की तरफ नहीं जाते । वै रा को उपल होकर, पुराने राग तो िगर
जाते ह, हम नए राग के िनमाण म लग जाते ह।

हम सभी वै रा को उपल होते ह, रोज, ितिदन। ऐसा कोई राग नहीं है , िजसके ित हम रोज िवकषण से नहीं भर
जाते । ेक राग के पीछे खाई छूट जाती है िवषाद की; ेक राग के पीछे प ा ाप गहन हो जाता है । ले िकन तब
ऐसा नहीं िक हम िवराग की तरफ चले जाते हों, तब िसफ इतना ही होता है िक हम नए राग की खोज म िनकल जाते
ह।

वै रा कोई नई घटना नहीं है । एक ी से िवर हो जाना सामा घटना है । ले िकन ी से िवर हो जाना ब त
असामा घटना है । एक सु ख की थता को जान ले ना सामा घटना है , ले िकन सु ख मा की थता को जान ले ना
ब त असामा घटना है । और असामा इसीिलए है िक हमारे हाथ म एक ही सु ख होता है एक बार म। एक सु ख
थ हो जाता है, तो त ाल मन कहता है िक नए सु ख का िनमाण कर लो; दू सरे सु ख की खोज म िनकल जाओ।
ठहरो मत; या ा जारी रखो। यह सु ख थ आ, तो ज री नहीं िक सभी सु ख थ हों!
259

ययाित की ब त पुरानी कथा है, िजसम ययाित सौ वष का हो गया। ब त मीठी, ब त मधु र कथा है । त न भी हो,
तो भी सच है । और ब त बार जो त नहीं होते, वे भी स होते ह। और ब त बार जो त होते ह, वे भी स नहीं
होते ।

यह ययाित की कथा त नहीं है , ले िकन स है । स इसिलए कहता ं िक उसका इं िगत स की ओर है । त


नहीं है इसिलए कहता ं िक ऐसा कभी आ नहीं होगा। य िप आदमी का मन ऐसा है िक ऐसा रोज ही होना चािहए।

ययाित सौ वष का हो गया, उसकी मृ ु आ गई। स ाट था। सुं दर पि यां थीं, धन था, यश था, कीित थी, श थी,
ित ा थी। मौत ार पर आकर द क दी। ययाित ने कहा, अभी आ गई? अभी तो म कुछ भोग नहीं पाया। अभी तो
कुछ शु भी नहीं आ था! यह तो थोड़ी ज ी हो गई। सौ वष मुझे और चािहए। मृ ु ने कहा, म मजबू र ं । मुझे तो
ले जाना ही पड़े गा। ययाित ने कहा, कोई भी माग खोज। मुझे सौ वष और दे । ोंिक मने तो अभी तक कोई सु ख
जाना ही नहीं।

मृ ु ने कहा, सौ वष आप ा करते थे? ययाित ने कहा, िजस सु ख को जानता था, वही थ हो जाता था। तब दू सरे
सु ख की खोज करता था। खोजा ब त, पाया अब तक नहीं। सोचता था, कल की योजना बना रहा था। ते रे आगमन से
तो कल का ार बं द हो जाएगा। अभी मुझे आशा है । मृ ु ने कहा, सौ वष म समझ नहीं आई। आशा अभी कायम है?
अनुभव नहीं आया? ययाित ने कहा, कौन कह सकता है िक ऐसा कोई सु ख न हो, िजससे म अप रिचत होऊं, िजसे
पा लूं तो सु खी हो जाऊं! कौन कह सकता है?

मृ ु ने कहा, तो िफर एक उपाय है िक तु ारे बे टे ह दस। एक बे टा अपना जीवन दे दे तु ारी जगह, तो उसकी उ
तु म ले लो। म लौट जाऊं। पर मुझे एक को ले जाना ही पड़े गा।

बाप थोड़ा डरा। डर ाभािवक था। ोंिक बाप सौ वष का होकर मरने को राजी न हो, तो कोई बे टा अभी बीस का
था, कोई अभी पं ह का था, कोई अभी दस का था। अभी तो उ ोंने और भी कुछ भी नहीं जाना था। ले िकन बाप ने
सोचा, शायद कोई उनम राजी हो जाए। शायद कोई राजी हो जाए। पूछा, बड़े बे टे तो राजी न ए। उ ोंने कहा, आप
कैसी बात करते ह! आप सौ वष के होकर जाने को तै यार नहीं। मेरी उ तो अभी चालीस ही वष है । अभी तो मने
िजं दगी कुछ भी नहीं दे खी। आप िकस मुंह से मुझसे कहते ह?

सबसे छोटा बे टा राजी हो गया। राजी इसिलए हो गया–जब बाप से उसने कहा िक म राजी ं , तो बाप भी है रान आ।
ययाित ने कहा, सब नौ बे टों ने इनकार कर िदया, तू राजी होता है । ा तु झे यह खयाल नहीं आता िक म सौ वष का
होकर भी मरने को राजी नहीं, ते री उ तो अभी बारह ही वष है !

उस बे टे ने कहा, यह सोचकर राजी होता ं िक जब सौ वष म भी तु मने कुछ न पाया, तो थ की दौड़ म म ों पडूं!


जब मरना ही है और सौ वष के समय म भी मरकर ऐसी पीड़ा होती है , जै सी तु मको हो रही है , तो म बारह वष म ही
मर जाऊं। अभी कम से कम िवषाद से तो बचा ं । अभी मने दु ख तो नहीं जाना। सु ख नहीं जाना, दु ख भी नहीं जाना।
म जाता ं ।

िफर भी ययाित को बु न आई। मन का रस ऐसा है िक उसने कल की योजनाएं बना रखी थीं। बे टे को जाने िदया।
ययाित और सौ वष जीया। िफर मौत आ गई। ये सौ वष कब बीत गए, पता नहीं। ययाित िफर भू ल गया िक मौत आ
रही है । िकतनी ही बार मौत आ जाए, हम सदा भू ल जाते ह िक मौत आ रही है । हम सब ब त बार मर चु के ह। हम
सब के ारों पर ब त बार मौत द क दे गई है ।

ययाित के ार पर द क ई। ययाित ने कहा, अभी! इतने ज ी! ा सौ वष बीत गए? मौत ने कहा, इसे भी ज ी
कहते ह आप! अब तो आपकी योजनाएं पूरी हो गई होंगी?
260

ययाित ने कहा, म वहीं का वहीं खड़ा ं । मौत ने कहा, कहते थे िक कल और िमल जाए, तो म सु ख पा लूं ! ययाित ने
कहा, िमला कल भी, ले िकन िजन सु खों को खोजा उनसे दु ख ही पाया। और अभी िफर योजनाएं मन म ह। मा कर,
एक और मौका! पर मौत ने कहा, िफर वही करना पड़े गा।

इन सौ वष म ययाित के नए बे टे पैदा हो गए; पुराने बे टे तो मर चु के थे । िफर छोटा बे टा राजी हो गया। ऐसे दस बार
घटना घटती है । मौत आती है , लौटती है । एक हजार साल ययाित िजंदा रहता है ।

म कहता ं , यह त नहीं है , ले िकन स है । अगर हमको भी यह मौका िमले, तो हम इससे िभ न करगे । सोच
थोड़ा मन म िक मौत दरवाजे पर आए और कहे िक सौ वष का मौका दे ते ह, घर म कोई राजी है ? तो आप िकसी को
राजी करने की कोिशश करगे िक नहीं करगे! ज र करगे । ा दु बारा मौत आए, तो आप तब तक समझदार हो
चु के होंगे? नहीं, ज ी से मत कह ले ना िक हम समझदार ह। ोंिक ययाित कम समझदार नहीं था।

हजार वष के बाद भी जब मौत ने द क दी, तो ययाित वहीं था, जहां पहले सौ वष के बाद था। मौत ने कहा, अब
मा करो! िकसी चीज की सीमा भी होती है । अब मुझसे मत कहना। ब त हो गया! ययाित ने कहा, िकतना ही आ
हो, ले िकन मन मेरा वहीं है । कल अभी बाकी है , और सोचता ं िक कोई सु ख शायद अनजाना बचा हो, िजसे पा लूं तो
सु खी हो जाऊं!

अनंत काल तक भी ऐसा ही होता रहता है । तो िफर वै रा पैदा नहीं होगा। अगर एक राग थ होता है और आप
त ाल दू सरे राग की कामना करने लगते ह, तो राग की धारा जारी रहे गी। एक राग का िवषय टू टे गा, दू सरा राग का
िनिमत हो जाएगा। दू सरा टू टे गा, तीसरा िनिमत हो जाएगा। ऐसा अनंत तक चल सकता है । ऐसा अनंत तक चलता है ।
वै रा कब होगा?

वै रा उसे होता है , जो एक राग की थता म सम रागों की थता को दे खने म समथ हो जाता है । जो एक सु ख


के िगरने म सम सु खों के िगरने को दे ख पाता है । िजसके िलए कोई भी े शन, कोई भी िवषाद अ मेट,
आ ं ितक हो जाता है । जो मन के इस राज को पकड़ ले ता है ज ी ही िक यह धोखा है । ों? ोंिक कल मने िजसे
सु ख कहा था, वह आज दु ख हो गया। आज िजसे सु ख कह रहा ं , वह कल दु ख हो जाएगा। कल िजसे सु ख क ं गा,
वह परसों दु ख हो जाएगा। जो इस स को पहचानने म समथ हो जाता है , जो इतना इं टस दे खने म समथ है, जो
इतना गहरा दे ख पाता है जीवन म…।

अब दु बारा जब मन कोई राग का िवषय बनाए, तो मन से पूछना िक ते रा अतीत अनुभव ा है ! और मन से पूछना


िक िफर तू एक नया उप व िनिमत कर रहा है !

एक मनोवै ािनक के पास एक गया था। ऐसे ही एक िम , यहां म आया, उस पहले िदन ही मुझसे िमलने आ
गए। उस मनोवै ािनक के पास जो गया था, उसने कहा िक मेरी पहली प ी मर गई। मनोवै ािनक भलीभां ित
जानता था िक पहली प ी और उसके बीच ा घटा था। ले िकन पित भू ल चु का था मरते ही। तो म दू सरा िववाह कर
लूं या न कर लूं ?

उस मनोवै ािनक ने कहा, ा ते रे मन म दू सरे िववाह का खयाल आता है? उसने कहा, आता है । आप इससे ा
नतीजा ले ते ह? उस मनोवै ािनक ने कहा, इससे म नतीजा ले ता ं , अनुभव के ऊपर आशा की िवजय।

अनुभव के ऊपर आशा की िवजय! एक प ी की कलह और उप व और सं घष और दु ख और पीड़ा से बाहर नहीं


आ है िक वह नई प ी की तलाश म िच िनकल गया। ले िकन मन कहता है िक इस ी के साथ सु ख नहीं बन
सका, तो ज री तो नहीं है िक िकसी ी के साथ न बन सके। पृ ी पर ब त यां ह। कोई दू सरी ी सु ख दे
पाएगी; कोई दू सरा पु ष सु ख दे पाएगा। कोई दू सरी कार, कोई दू सरा बं गला, कोई दू सरा पद, कोई दू सरा गां व, कोई
कहीं और जगह सु ख होगा। यहां नहीं, कोई बात नहीं। य िप इस जगह आने के पहले भी यही सोचा था। और िजस
गां व म आप जाने की सोच रहे ह, उस गां व के लोग भी यही सोच रहे ह िक कहीं चले जाएं , तो उ सु ख िमल जाए!
261

सु ना है मने िक एक िदन सु बह-सु बह एक आदमी भागा आ पागलखाने प ं चा। जोर से दरवाजा खटखटाया।
पागलखाने के धान ने दरवाजा खोला। उस आदमी ने पूछा िक म यह पूछने आया ं िक आपके पागलखाने से कोई
िनकलकर तो नहीं भाग गया? नहीं; कोई िनकलकर भागा नहीं। आपको इसका शक ों पैदा आ? उसने कहा,
और कोई कारण नहीं है । मेरी प ी को कोई ले कर भाग गया है ! तो म अपने होश म नहीं मान सकता िक िजसम
थोड़ी भी बु होगी, वह मेरी प ी को ले कर भाग जाएगा! तो मने सोचा, पागलखाने म जाकर दे ख लूं िक कोई िनकल
तो नहीं गया।

पर उस धान ने कहा िक माफ कर मेरे भाई। ते री प ी के साथ मने तु झे कई बार रा े पर घू मते दे खा है । मेरा तक
मन ब त बार आ िक ते री प ी को ले कर भाग जाऊं। वह दे खने म ब त सुं दर है । उस आदमी ने कहा, उसी दे खने
की सुं दरता के पीछे तो म फंसा। िफर पीछे नरक ही िनकला है!

जीवन के जो चेहरे हम िदखाई पड़ते ह, वे असिलयत नहीं ह। इसिलए बु अपने िभ ुओं से कहते थे, जब तु कोई
चे हरा सुं दर िदखाई पड़े , तो आं ख बं द करके रण करना, ान करना, चमड़ी के नीचे ा है ? मां स। मां स के नीचे
ा है ? हि यां । हि यों के नीचे ा है ? उस सब को तु म जरा गौर से दे ख ले ना। ए रे मेिडटे शन, कहना चािहए
उसका नाम। बु ने ऐसा नाम नहीं िदया। म कहता ं , ए रे मेिडटे शन! ए रे कर ले ना, जब मन म कोई चमड़ी
ब त ीितकर लगे, तो दू र भीतर तक। तो भीतर जो िदखाई पड़े गा, वह ब त घबड़ाने वाला है ।

म एक गां व म ठहरा आ था। वहां गोली चली। चार लोगों को गोली लग गई, तो उनका पो माटम होता था। मेरे एक
िम , जो चमड़ी के बड़े ेमी ह…।

अिधक लोग होते ह। उपिनषद कहते ह इस तरह के लोगों को चमार–चमड़ी के ेिमयों को। चमड़े के जू ते बनाने वाले
को नहीं; ज री नहीं िक वह चमार हो। ले िकन चमड़ी के ेमी को!

तो एक चमड़ी के ेमी मेरे िम थे । मुझे मौका िमला, मने उनसे कहा िक चलो, डा र प रिचत है , म तु
पो माटम िदखा दू ं । उ ोंने कहा, उससे ा होगा? मने कहा, थोड़ा दे खो भी, आदमी के भीतर ा है , उसे थोड़ा
दे खो।

पो माटम के गृ ह म भीतर वेश िकए, तो भयं कर बदबू थी, ोंिक लाश तीन िदन से की थीं। वे नाक पर माल
रखने लगे । मने कहा, मत घबड़ाओ। िजन चमिड़यों को तु म ेम करते हो, उनकी यही गित है । थोड़ा और भीतर
चलो। उ ोंने कहा, ब त उबकाई आती है । वॉिमट न हो जाए! मने कहा, हो जाए तो कुछ हजा नहीं है । और भीतर
आओ।

जब हम गए, तो डा र ने एक आदमी, िजसके पेट म गोली लगी थी, उसके पूरे पेट को फाड़ा आ था। तो सारी मल
की ं िथयां ऊपर फूटकर फैल गई थीं। वे मेरे िम भागने लगे। म उ पकड़ रहा ं , खींच रहा ं ; वे भागते ह! कहते
ह, मुझे मत िदखाओ! उ ोंने आं ख बं द कर लीं। मने कहा, आं ख खोलो। ठीक से दे ख लो। उ ोंने कहा, मुझे मत
िदखाओ, नहीं तो मेरी िजं दगी खराब हो जाएगी! तु ारी िजंदगी ों खराब हो जाएगी? उ ोंने कहा, िफर म िकसी
शरीर को ेम न कर पाऊंगा। जब भी शरीर को दे खूंगा, तो यह सब िदखाई पड़े गा।

बु कहते थे, जब शरीर आकषक मालू म पड़े , तो थोड़ा भीतर गौर करना िक है ा वहां? तो शायद शरीर का जो
राग है , वह टू ट जाए और वै रा उ हो।

बु को वै रा उ होने की जो बड़ी कीमती घटना है, वह म आपसे क ं ।

बु के िपता ने बु के महल म उस रा की सब सुं दर यां इक ी कर दी थीं। रात दे र तक गीत चलता, गान


चलता, मिदरा बहती, सं गीत होता और बु को सु लाकर ही वे सुं द रयां नाचते-नाचते सो जातीं। एक रात बु की नींद
चार बजे टू ट गई। एना ने अपने लाइट आफ एिशया म बड़ा ीितकर, पूरा वणन िकया है ।
262

चार बजे नींद खुल गई। पूरे चां द की रात थी। कमरे म चां द की िकरण भरी थीं। िजन यों को बु ेम करते थे, जो
उनके आस-पास नाचती थीं और ग का बना दे ती थीं, उनम से कोई अधन पड़ी थी; िकसी का व उलट
गया था; िकसी के मुंह से घु राटे की आवाज आ रही थी; िकसी की नाक बह रही थी; िकसी की आं ख से आं सू टपक
रहे थे; िकसी की आं ख पर कीचड़ इक ा हो गया था।

बु एक-एक चे हरे के पास गए और वही रात बु के िलए घर से भागने की रात हो गई। ोंिक इन चे हरों को
उ ोंने दे खा था; ऐसा नहीं दे खा था। ले िकन ये चे हरे असिलयत के ादा करीब थे । िजन चे हरों को दे खा था, वे
मेकअप से तै यार िकए गए चे हरे थे, तै यार चे हरे थे । ये चे हरे असिलयत के ादा करीब थे । यह शरीर की असिलयत
है ।

ले िकन जै सी शरीर की असिलयत है , वै से ही सभी सु खों की असिलयत है । और एक-एक सु ख को जो ए रे


मेिडटे शन करे , एक-एक सु ख पर ए रे की िकरण लगा दे , ान की, और एक-एक सु ख को गौर से दे खे, तो
आ खर म पाएगा िक हाथ म िसवाय दु ख के कुछ बच नहीं रहता। और जब आपको एक सु ख की थता म सम
सु खों की थता िदखाई पड़ जाए, और जब एक सु ख के िडसइलू जनमट म आपके िलए सम सु खों की कामना
ीण हो जाए, तो आपकी जो थित बनती है, उसका नाम वै रा है ।

वै रा का अथ है, अब मुझे कुछ भी आकिषत नहीं करता। वैरा का अथ है , अब ऐसा कुछ भी नहीं है , िजसके िलए
म कल जीना चा ं। वै रा का अथ है , ऐसा कुछ भी नहीं है , िजसके िलए म कल जीना चा ं । ऐसा कुछ भी नहीं है,
िजसे पाए िबना मेरा जीवन थ है ।

वै रा का अथ है, व ुओं के िलए नहीं, पर के िलए नहीं, दू सरे के िलए नहीं, अब मेरा आकषण अगर है, तो यं के
िलए है । अब म उसे जान ले ना चाहता ं , जो सु ख पाना चाहता है । ोंिक िजन-िजन से सु ख पाना चाहा, उनसे तो
दु ख ही िमला। अब एक िदशा और बाकी रह गई िक म उसको ही खोज लूं , जो सु ख पाना चाहता है । पता नहीं, वहां
शायद सु ख िमल जाए। मने ब त खोजा, कहीं नहीं िमला; अब म उसे खोज लूं, जो खोजता था। उसे और पहचान लूं,
उसे और दे ख लूं ।

वै रा का अथ है, िवषय से मु और यं की तरफ या ा।

िच दो या ाएं कर सकता है । या तो आपसे पदाथ की तरफ, और या िफर पदाथ से आपकी तरफ। आपसे पदाथ की
तरफ जाती ई जो िच की धारा है, उसका नाम राग है । पदाथ से आपकी तरफ लौटती ई जो चेतना है , उसका
नाम वै रा है ।

कभी आपने ऐसा अनुभव िकया, जब पदाथ से आपकी चे तना आपकी तरफ लौटती हो? सबको छोटा-छोटा अनुभव
आता है वै रा का। ले िकन िथर नहीं हो पाता। िथर इसिलए नहीं हो पाता िक वै रा का हम कोई अ ास नहीं करते
ह। राग का तो अ ास करते ह। वै रा का ण भी आता है, तो चूं िक अ ास नहीं होता, इसिलए खो जाता है ।

करीब-करीब ऐसे जै से आपने कबू तर पालने वाले लोगों को दे खा होगा, अपने घर पर एक छतरी लगाकर रखते ह।
कबू तर आता है, तो छतरी पर बै ठ पाता है । हमारे ऊपर भी वैरा का कबू तर कई बार आता है , ले िकन कोई छतरी
नहीं होती, िजस पर बैठ पाए। िफर उड़ जाता है । अ ास, छतरी का बनाना है िक जब वै रा का कबूतर आए, जब
वै रा का प ी आए अपनी तरफ उड़कर, तो हमारे पास उसके बै ठने की, िबठाने की, िनवास की जगह हो।

अ ास वै रा को िथर करने का उपाय है । वै रा तो सबके भीतर पैदा होता है , अ ास िथर करने का उपाय है ।
वै रा तो सबके ऊपर आता है , अ ास उसे रोक ले ने का उपाय है, उसे ाणों म आ सात कर ले ने का उपाय है ।

अभी हमारी जै सी थित है , वह ऐसी है िक राग का तो हम अ ास करते ह। राग का हम अ ास करते है । हर राग


थ होता है , ले िकन अ ास जारी रहता है । और वै रा कभी-कभी आता है राग की असफलता म से, ले िकन
उसका कोई अ ास न होने से वह कहीं भी ठहर नहीं पाता; हमारे ऊपर क नहीं पाता; वह बह जाता है ।
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इसिलए कृ कहते ह, वै रा और अ ास।

अ ास ा है ? वै रा तो इस तीित का नाम है िक इस जगत म बाहर कोई भी सु ख सं भव नहीं है । सु ख असंभावना


है । दू सरे से िकसी तरह की शां ित सं भव नहीं है । दू सरे से सब अपे ाएं थ ह। इस तीित को उपल हो जाना
वै रा है ।

ले िकन इस तीित को हम सब उपल होते ह, म आपसे कह रहा ं । इससे आपको थोड़ी है रानी होती होगी। हम
सभी वै रा को उपल होते ह रोज।

कामवासना मन को पकड़ती है । ले िकन आपने दे खा है िक कामवासना के बाद आदमी ा करता है ? िसफ करवट
ले कर िनढाल पड़ जाता है । वै रा पकड़ता है ।

हर कामवासना के बाद एक िवषाद मन को पकड़ ले ता है, एक े शन। िफर वही! कुछ भी नहीं, िफर वही। कुछ
भी नहीं, िफर वही। और िच ािन अनुभव करता है । िच को लगता है , यह म ा कर रहा ं! ले िकन तब आप
चु पचाप करवट ले कर सो जाते ह। चौबीस घं टे म िफर राग पैदा हो जाता है ।

वै रा को थर करने का आपने कोई उपाय नहीं िकया। जब कामवासना थ होती है, तब आपने उठकर ान
िकया कुछ? तब आपने उठकर कोई अ ास िकया िक यह वै रा का ण गहरा हो जाए! नहीं; तब आप चुपचाप सो
गए।

ले िकन कामवासना के िलए आप ब त अ ास करते ह। राह चलते अ ास चलता है । िफ दे खते अ ास चलता


है । रे िडयो सु नते अ ास चलता है । िकताब पढ़ते अ ास चलता है । िम ों से बात करते अ ास चलता है । मजाक
करते अ ास चलता है । अगर कोई आदमी ठीक से जां च करे अपने चौबीस घं टे की, तो चौबीस घं टे म िकतने समय
वह कामवासना का अ ास कर रहा है, दे खकर दं ग हो जाएगा। अगर मजाक भी करता है िकसी से, तो भीतर
कामवासना का कोई प िछपा रहता है ।

दु िनया की सब मजाक से ुअल ह, िन ानबे परसट। िन ानबे ितशत मजाक से से सं बंिधत ह, कामवासना से
सं बंिधत ह। हं सता है, घू रकर दे खता है, रा े पर चलता है ; चलने का ढं ग, कपड़े पहनने का ढं ग, उठने का ढं ग,
बोलने का ढं ग, अगर थोड़ा गौर करगे तो कामवासना से सं बंिधत पाएं गे ।

कभी आपने खयाल िकया, अगर एक कमरे म दस पु ष बै ठकर बात कर रहे हों और एक ी आ जाए, तो उनके
बोलने की सबकी टोन फौरन बदल जाती है ; वही नहीं रह जाती। बड़े मृदुभाषी, मधु र, िश , स न हो जाते ह! ा
हो गया? ा, हो ा गया एक ी के वे श से? उनको भी खयाल नहीं आएगा िक यह अ ास चल रहा है । यह
अ ास है , ब त अनकां शस हो गया, अचेतन हो गया। इतना कर डाला है िक अब हम पता ही नहीं चलता।

इसकी हालत करीब-करीब ऐसी हो गई है , जै से साइिकल पर आदमी चलता है , तो उसको घर की तरफ मोड़ना नहीं
पड़ता हिडल, मुड़ जाता है । चलता रहता है , साइिकल चलती रहती है , जहां-जहां से मुड़ना है, हिडल मुड़ता रहता है ।
अपने घर के सामने आकर गाड़ी खड़ी हो जाती है । उसे सोचना नहीं पड़ता िक अब बाएं मुड़ िक अब दाएं । अ ास
इतना गहरा है िक अचेतन हो गया है । साइिकल होश से नहीं चलानी पड़ती। िबलकुल मजे से वह गाना गाते, प ीस
बात सोचते, द र का िहसाब लगाते…चलता रहता है । पैर पैिडल मारते रहते ह, हाथ साइिकल मोड़ता रहता है ।
यह िबलकुल अचेतन हो गया है । इतना अ ास हो गया िक अचे तन हो गया।

कामवासना का अ ास इतना अचेतन है िक हम पता ही नहीं होता िक जब हम कपड़ा पहनते ह, तब भी कामवासना


का अ ास चल रहा है । जब आप आईने के सामने खड़े होकर कपड़े पहनकर दे खते ह, तो सच म आप यह दे खते ह
िक आपको आप कैसे लग रहे ह? या आप यह दे खते ह िक दू सरों को आप कैसे लगगे? और अगर दू सरों का थोड़ा
खयाल करगे, तो अगर पु ष दे ख रहा है आईने म, तो दू सरे हमेशा यां होंगी। अगर यां दे ख रही ह, तो दोनों हो
सकते ह, पु ष और यां भी। ोंिक यों की कामवासनार् ई ा से इतनी सं यु हो गई है , िजसका कोई िहसाब
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नहीं है । पु ष होंगे िक कोई दे खकर स हो जाए, इसिलए; और यों की याद आएगी िक कोई ी जल जाए,
राख हो जाए, इसिलए। मगर दोनों कामवासना के ही प ह। दोनों के भीतर गहरे म तो वासना ही चल रही है ।

यह अ ास चौबीस घं टे चल रहा है । तो िफर वै रा का जो प ी आता है आपके पास, कोई जगह नहीं पाता जहां बै ठ
सके; थ हो जाता है । आपने जो मकान बनाया है , वह वासना के प ी के िलए बनाया है । इसिलए सब तरफ से
उसको िनमं ण है , िनवास के िलए मौका है ।

जीवन दोनों दे ता है आपको, वै रा भी और राग भी। ले िकन राग का अ ास है, इसिलए राग िटक जाता है । वै रा
का अ ास नहीं है, इसिलए वै रा नहीं िटकता है । जीवन म अंधेरा भी है , उजे ला भी। राग भी, िवराग भी। यहां ोध
भी आता है , प ा ाप भी। ले िकन ोध के िलए पूरा इं तजाम है , पूरी मशीनरी है आपके पास। प ा ाप की कोई
मशीनरी नहीं है । आ जाता है , चला जाता है । उसकी कोई गहरी आप पर पकड़ नहीं छूट जाती।

जीवन आपको पूरे अवसर दे ता है । ले िकन िजस चीज का अ ास है , आप उसी का उपयोग कर सकते ह। करीब-
करीब ऐसा समिझए िक आप पैदल चल रहे ह और रा े म आपको पड़ी ई कार िमल जाए, िबलकुल ठीक। जरा
च आन करना है िक कार चल पड़े । ले िकन अगर आपका कोई अ ास नहीं है , तो आप पैदल ही चलते रहगे।
और खतरा एक है िक कहीं कार का मोह पकड़ जाए, तो गले म र ी बां धकर, कार से बांधकर उसको खींचने की
कोिशश करगे, उसम और झंझट म पड़गे । उससे तो पैदल ही ते जी से चल ले ते।

अ ास जो है, वही आप कर पाएं गे । िजसका अ ास नहीं है , वह आप नहीं कर पाएं गे । इसिलए कृ ने वै रा को


नंबर दो पर कहा। मने जानकर नंबर एक पर वै रा आपको समझाया। कृ के सू म अ ास पहले और वै रा
बाद म उ ोंने कहा है । उ ोंने कहा, िजसे अ ास और वै रा …।

वै रा को नंबर दो पर कृ ने ों रखा? वै रा है तो थम। ोंिक वै रा न हो, तो अ ास नहीं हो सकता।


ले िकन नंबर दो पर रखने का कारण है । और वह कारण यह है िक वै रा तो रोज आता है, ले िकन अ ास न हो तो
िटक नहीं सकता। अ ास ा हो वै रा का?

जै से आपने कामवासना का अ ास िकया है , वै से ही वै रा का भी अ ास करना पड़े । जै से आपने राग का अ ास


िकया है, वै से ही वै रा का अ ास करना पड़े । िजस तरह आप काम का िचंतन करते ह, उसी तरह िन ाम का
िचंतन करना पड़े । ठीक वही करना पड़े , उलटे माग पर। जै से िक आप यहां तक आए अपने घर से, तो िजस रा े से
आए ह, उसी से वापस लौिटएगा न! और तो कोई उपाय नहीं है । मुझ तक िजस रा े से आप आए ह, लौटते व
उसी रा े से वापस लौिटएगा। एक ही फक होगा, रा ा वही होगा, आप वही होंगे, एक ही फक होगा िक आपका
चे हरा उलटी तरफ होगा। और तो कोई फक होने वाला नहीं है ।

राग का रा ा वही है , जो वै रा का। िसफ आपका चे हरा उलटी तरफ होगा। िजन-िजन चीजों म आपने रस िलया
था, उन-उन चीजों म िवरस। िजन-िजन चीजों के िलए दीवाने ए थे, उन-उन चीजों की थता। जै से-जै से दौड़े थे,
वै से-वै से िवपरीत या ा।

िकस-िकस चीज म रस िलया है ? िकस-िकस चीज म रस िलया है ? उस-उस चीज के यथाथ को दे खना ज री है ।
ोंिक यथाथ उसके िवरस को भी उ कर दे ता है । िकस चीज का आकषण है? िकसी ि यजन का हाथ ब त
ीितकर लगता है , हाथ म ले ने जै सा लगता है । तो ले कर बै ठ जाएं , ले िकन ले कर भू ल न। हाथ हाथ म ले ल और अब
थोड़ा ान कर िक ा रस िमल रहा है ? िसवाय पसीने के कुछ भी िमलता नहीं है । थोड़ी ही दे र म मन होगा िक अब
यह हाथ छोड़ना चािहए। वै रा अपने आप ही आता है!

ले िकन खुद के ही राग म िकए गए वायदे िद त दे ते ह। राग म हम कहते ह िक ते रा हाथ हाथ म आ जाए, तो
दु िनया की कोई ताकत छु ड़ा नहीं सकती। दु िनया की ताकत की बात दू र है , पांच-सात िमनट के बाद दु िनया की कोई
ताकत दोनों के हाथ साथ नहीं रख सकती, इक ा नहीं रख सकती। पां च-सात िमनट के बाद पसीना-पसीना ही रह
जाता है! बदबू-बदबू ही छूट जाती है । पां च-सात िमनट के बाद कोई बहाना खोजकर हाथ अलग करना पड़ता है ।
265

जरा गौर से दे खना िक जब हाथ अलग करते ह, तब मन म वै रा का एक ण है । उस ण को थोड़ा गहरा करने


की ज रत है , पहचानने की ज रत है । ोंिक नहीं तो कल िफर हाथ हाथ म ले ने की आकां ा पैदा होगी। अभी
वै रा का ण है, अ ास कर ल। थोड़ा गौर से दे ख। और दो िमनट ादा िलए रह हाथ को, और थोड़ा गौर से सोच
िक ा दु बारा िफर हाथ को हाथ म ले ने की आकां ा पैदा करे गा मन? अगर करता हो, तो अब इस हाथ को
िजं दगीभर हाथ म ही िलए रह! अब ज ी ा है? हाथ हाथ म है , हम क जाएं । मन को थोड़ा मौका द िक वह
वै रा को भी पहचाने। ज ी न कर। ोंिक ज ी खतरनाक है । ज ी के बाद वै रा िथर न हो पाएगा।

भोजन ब त अ ा लग रहा है , तो खा ल जरा; खाते चले जाएं । िफर क मत, जब तक िक ाण सं कट म न पड़


जाएं । क मत। और जरा दे ख ल िक इस सब ाद का ा फल हो सकता है ! और जब ाद पूरा ले चु क, तो जब
मुंह म िकसी चीज को, िजसकी लोग क ना करते ह…। खाने वाले ेमी ह…।

टाइप ह लोगों के अलग-अलग। कुछ ह, िजनको सब चीज छूट जाए, ले िकन भोजन का रस किठनाई दे जाए। कुछ
ह, िज सब छूट जाए, ले िकन काम का रस किठनाई दे जाए। कुछ ह, िज काम, भोजन िकसी चीज की िचं ता
नहीं। िसफ अहं कार का रस है, यश का। वे भू खे रह सकते ह, जे ल जा सकते ह, ले िकन कोई पद पर िबठा दो! तो वे
सब कर सकते ह। प ी छोड़ सकते ह, ब े छोड़ सकते ह। सब जीवन भारी तप या म गु जार सकते ह। बस इतना
ही प ा कर दो िक कोई कुस पर…। और ऐसा भी ज री नहीं है िक वे पहले ही से कह, कुस पर िबठा दो। हो
सकता है , उनको भी प ा पता न हो िक कुस पर बै ठने के िलए जे ल जा रहे ह। िच बड़ा अचेतन काम करता है ।
ले िकन जब जे ल से छूटगे, तब सबको पता चल जाएगा िक वे जे ल िकसिलए गए थे ।

जो ागी िदखाई पड़ते ह, उनम भी सौ म से मु ल से एकाध आदमी होता है, जो वै रा को उपल होता है ।
ाग भी इनवे मट की तरह काम करता है । इधर ाग करते ह, उधर कुछ उनकी भोग की इ ा है । ले िकन हम
पहचान नहीं पाते। यह हो सकता है िक म गोली खाने को राजी हो जाऊं, अगर फूलमाला मेरे ऊपर पड़ने को हो। यह
हम िदखाई नहीं पड़े गा, िक कौन फूलमाला पड़ने के िलए गोली अपने ऊपर डलवाएगा! यह वह आदमी कह रहा है ,
िजसको यश की आकां ा और पकड़ नहीं है । िजसको है, वह पूरा जीवन इस पर दां व पर लगा सकता है ।

ले िकन यह जो िच की व था है , इसम जब वै रा का ण आता है , उस व ठहरने की ज रत है । उस अंतराल


म कने की ज रत है । तो अ ास की शु आत हो जाएगी। जै से समु म पानी बढ़ता है, िफर िगरता है , ठीक वै से
ही िच म राग आता है , िफर िगरता है । जब राग आता है, तब आप बड़ा इं तजाम करते ह। और जब वै रा आता है ,
जब िगरता है राग, तब आप कुछ नहीं करते । तब आप कोई व था नहीं करते िक वह िवराग िथर हो जाए। उस
िवराग को िथर करने के िलए वैरा के णों का उपयोग क रए।

और िजंदगी म िजतने ण राग के ह, उतने ही िवराग के ह। िजतने िदन ह, उतनी ही रात ह। उसम कोई अंतर नहीं
है । वह अनुपात बराबर है । हर राग के साथ िवराग आएगा ही, इसिलए अनुपात बराबर है । पर उस उतरते ए ण
का आप उपयोग नहीं करते ह। उसका कैसे उपयोग कर? जै सा आपने चढ़ते ए ण का उपयोग िकया था। िकतना
रस िलया था!

अगर कोई ेमी अपनी ेयसी से िमलने जा रहा है , या कोई धनी कोई सौदा करने जा रहा है िजसम लाभ होने वाला
है , या कोई नेता वोटर से वोट मां गने जा रहा है, तब उनकी टपकती ई लार दे ख! तब उनके चे हरे से जो झलक रहा
है , वह दे ख! वह हम सबके ऊपर उतरता है वै सा ही। ले िकन जब िवर का ण पीछे आता है , तब? तब हम
िवर के ण को ज ी से गुजारने की कोिशश करते ह।

अभी एक मिहला मुझे िमलने आईं; उनके पित चल बसे। तो मुझसे वे कहने लगीं, हमने ब त सु ख पाया। साथ रहे ।
ब त सु ख पाया। अब मुझे ब त पीड़ा है , ब त दु ख है । मुझे कुछ सां ना चािहए। मने कहा, तु म गलत जगह आ गई
हो। म सां ना नहीं दू ं गा। सु ख तु मने पाया, सां ना म दू ं ? मेरा ा कसू र है? मेरा इसम कोई हाथ ही नहीं है । उसने
कहा, नहीं-नहीं; आपका तो कोई हाथ नहीं है । ले िकन कई सं तों-महा ाओं के पास इसीिलए जा रही ं िक सां ना
िमल जाए। मने कहा, िक ीं ने दी? उ ोंने कहा, ब तों ने दी। तो मने कहा, िफर मेरे पास िकसिलए आईं? अगर
िमल गई, तो खतम करो अब यह बात! उसने कहा, नहीं, िमलती नहीं। मने कहा, िमले गी भी नहीं। सु ख तु म पाओगी,
266

तो जब दु ख का ण आएगा, उसे कौन पाएगा? राग तु म भोगोगी, जब िवराग का ण आएगा, उसे कौन भोगे गा?
अब तु म इस तरकीब म लगी हो िक तु मने राग तो भोग िलया, अब यह जो िवराग की उतरती धारा है , इसको कोई
भु लाने की तरकीब दे दे । यह नहीं होगा।

मने कहा, म तो तु मसे ाथना क ं गा िक तु म एक काम करो; यह कीमती होगा। िजतना पित का साथ रहना कीमती
नहीं आ, उससे ादा पित की मृ ु कीमती हो सकती है । ोंिक पित के साथ से कुछ िमल गया हो, ऐसा म नहीं
मानता। तु म िफर ईमानदारी से मुझसे कहो िक सच म सु ख था?

वह मिहला थोड़ी बे चैन ई। उसने कहा िक नहीं; कहने को कहते ह। सु ख तो ा था; ठीक था, सो-सो; ऐसा ही ऐसा
था! मने कहा, और थोड़ा गौर से सोचो। ोंिक पहले तो तु म िबलकुल आ थीं िक ब त सु ख पाया। अब तु म
कहती हो, सो-सो, ऐसा-ऐसा। थोड़ा और जरा भीतर जाओ। उसने कहा, ले िकन आप ों दबे ए घाव उघाड़ना
चाहते ह? म नहीं उघाड़ना चाहता। म तु िदखाना चाहता ं िक थित सच म ा है । कहीं ऐसा तो नहीं िक अब
तु म क ना कर रही हो िक तुमने सु ख भोगा। यह क ना, अतीत म सु ख भोगने की, वै रा के ण को गं वा दोगी।
ठीक से दे खो िक तु मने सु ख भोगा?

वह ी थोड़ी डर गई। उसने आं ख बं द कर ली। िफर उसने कहा िक नहीं, सु ख तो नहीं भोगा। मने कहा, कभी
तु ारे मन म ऐसा खयाल आया था िक इस पित के साथ िववाह न होता, तो अ ा था? ोंिक ऐसी प ी जरा खोजना
मु ल है । उसने कहा, आप भी कैसी बात करते ह! मने कहा, म तु एक कहानी कहता ं।

एक चच म एक पादरी ने एक सां झ कहा िक िजन दं पितयों म कभी झगड़ा न आ हो, वे आगे आ जाएं । कोई पांच सौ
लोग थे । पां च-सात जोड़े आगे आए। उस पादरी ने भगवान से कहा, हे परमा ा, इन प े झूठों को आशीवाद दे ,
ेस दीज डै म लायस! उ ोंने कहा, आप हम झूठा कह रहे ह?

कहने की कोई ज रत नहीं है । मने यही जानने के िलए तु बाहर बु लाया था िक िकतने झूठे आज यहां इक े ह।
उनम से एक ने पूछा, ले िकन आपको पता कैसे चला? उसने कहा िक म भी दं पित ं । मुझे भी ब त कुछ पता है ।
और तु म सब अलग-अलग आकर मुझसे चचा कर गए हो। तु म भू ल गए हो।

वे पित भी आकर चचा कर चु के ह। वे उसी के सु नने वाले ह। और ईसाइयों म क े शन होता है । पादरी के पास
जाकर पित भी बता आता है , िकस मुसीबत म गु जर रहा है; प ी भी बता आती है । तु म अलग-अलग सब बता गए हो
मुझे। और अब तु म जोड़े की तरह खड़े हो िक हमम कोई कलह नहीं है !

मने उस मिहला को कहा िक ठीक से दे ख ले । कहीं अब यह सु ख का खयाल झूठा न हो।

हम भिव म भी झूठे सु ख िनिमत करते ह और अतीत म भी। हम अदभु त ह। जो सु ख हमने कभी नहीं पाए, हम
सोचते ह, हमने अतीत म पाए। यह तरकीब है मन की। ोंिक अतीत म सु ख िनिमत कर, तो ही भिव म आशा
करना आसान है । अ था भिव म आशा करना दु ह हो जाएगा। यह अ ास है काम का।

वै रा का अ ास करना है , तो अतीत के सु खों को ठीक से दे खना, तािक साफ हो जाए िक वे दु ख थे । अगर पूरा
अतीत दु ख िस हो जाए, तो भिव म सु ख की आशा ीण हो जाएगी, िगर जाएगी; ोंिक भिव अतीत के
ोजे न, अतीत के फैलाव के अित र और कुछ भी नहीं है । क नाएं हमारी ृितयों के ही नए प ह। भिव
की योजनाएं , हमारे अतीत की ही िवफल योजनाओं को िफर से स ालना है ।

काम का अ ास चलता है । तो अतीत म हम सोचते ह, कैसा सु ख िमला! उस िदन भोजन िकया था उस होटल म,
कैसा सु ख पाया था! हालां िक उस िदन िबलकुल नहीं पाया था; ले िकन आज सोच रहे ह। आज सोच रहे ह, तािक कल
िफर उस होटल की तरफ पैर जा सक।
267

तो म आपसे क ं गा िक अतीत का भी स साफ है । उस मिहला को मने कहा, ठीक से दे खो। उसने िह त जु टाकर
कहा िक नहीं, कोई सु ख तो नहीं पाया। मने कहा, िजसके जीवन से तु मने सु ख नहीं पाया, और िजसको तु म कहती हो
खुद िक मने कई बार सोचा िक इस आदमी से िमलना न होता, तो अ ा; िववाह न िकया होता, तो अ ा…। ा
कभी तु ारे मन म ऐसा भी खयाल आया था िक यह आदमी मर जाए या म मर जाऊं?

उस ी ने कहा, अब आप जरा ादा बात कर रहे ह! म धीरे -धीरे आपसे कुछ बातों पर राजी होती जाती ं , तो आप
ादा बात कर रहे ह! मने कहा िक म कुछ ादा नहीं कर रहा। ऐसा मनोवै ािनक कहते ह िक ब त मु ल है
िक िज हम ेम करते ह, उनकी ह ा का या उनके मर जाने का खयाल हम न आता हो। ीकार करना किठन
पड़ता है । खुद भी ीकार करना किठन पड़ता है िक ऐसा कैसे! कई दफे जब मन म आता है , तो हम कहते ह, नहीं-
नहीं, यह ठीक नहीं है । इस तरह की बात बड़ी गलत है । यह मन बड़ा खराब है । जै से िक मन दोषी है और हम
िनद ष, अलग खड़े ह!

वह मिहला ईमानदार थी और उसने कहा िक ऐसा खयाल आया। ले िकन जै से ही उसने कहा िक ऐसा खयाल आया,
जै से उसके ऊपर से एक भार उतर गया। और उसने कहा, सच म ही म है रान ं । िजस के साथ रहकर म
सु ख न पा सकी, िजस के साथ रहकर मने कई बार सोचा िक दो म से एक समा ही हो जाए तो अ ा, आज
उसकी मृ ु पर म दु ख ों पा रही ं ?

और मने कहा िक जो दु ख पा रही हो, उससे बचने की भी कोिशश चल रही है । इस दु ख को पूरा पाओ। छाती पीटो,
रोओ, िच ाओ। िजस तरह नाची थीं शादी के व , उसी तरह अब मृ ु के व छाती पीटो, तड़पो, जमीन पर
लोटो। दु ख भोगो। और दे खो इस दु ख को गौर से, तािक यह वैरा का ण ठहर जाए, और कल िफर पुरानी आशाएं
और िफर पुराने जाल िफर खड़े न हों।

लाओ े ने िलखा है िक एक आदमी मरने के करीब था। लाओ े गांव का बू ढ़ा आदमी था, फकीर था। तो उसकी
प ी उसे कई बार कहने आई िक मेरे पित को बचा लो। उसके िबना म िबलकुल न रह सकूंगी। लाओ े ने कहा,
बचाना तो मेरे हाथ म नहीं है । ले िकन तु म िबलकुल िबना उसके न रह सकोगी, इस पर भरोसा मत करना। ोंिक
मने कई लोगों को–म बू ढ़ा आदमी ं –मने कई लोगों को मरते और कई लोगों को यही बात करते सु ना। और सब
िबना उसके रह ले ते ह।

नहीं; वह नहीं मानी। उसने कहा, वे और और होंगे; म और ं । हर आदमी को यही खयाल है िक म ए े शन ं । वे


और और होंगे, म और ं । म मर जाऊंगी, एक ण न जी सकूंगी। लाओ े ने कहा, अब तक िकसी को मरते नहीं
दे खा। इस गां व म म ब त िदन से ं । हालां िक यही बात ब तों को कहते सु ना। और िजतने जोर से तु म कहती हो,
इतने ही जोर से कहते सु ना। ले िकन उस ी ने कहा, आप औरों की बात कर रहे ह। मेरी बात क रए। लाओ े ने
कहा, व आएगा; तो तु झसे मुलाकात क ं गा।

पित मर गया। तो उन िदनों चीन म एक था थी िक पित की क पर गीली िम ी लगाते थे और उस पर थोड़ी दू ब


उगाते थे । और रवाज यह था िक जब तक पित की क की गीली िम ी सू खकर कड़ी न हो जाए और उस पर दू ब
पूरी छा न जाए, तब तक उस ी को दू सरा िववाह–कम से कम तब तक–नहीं करना चािहए।

लाओ े ने दे खा िक वह मर गया आदमी। पां च-सात िदन के बाद वह कि ान के पास से गु जरता था, तो दे खा िक
वह औरत क पर पंखा कर रही है! उसने सोचा िक यह औरत ठीक ही कहती थी िक यह ए े शनल है , यह
िवशे ष। हद! मरे ए पित को हवा कर रही है! आ य! लाओ े ने कहा, मुझसे गलती हो गई। िनि त गलती हो गई।
िजं दा आदिमयों को पि यां हवा नहीं करतीं, मरे ए आदमी को प ी हवा कर रही है ! मुझसे गलती हो गई। यह
औरत िनि त ही िवशे ष है ।

लाओ े पास गया और कहा िक दे वी, म णाम करता ं । मुझे भरोसा नहीं आया िक कोई मुदा पित को हवा करे गा।
268

उसने कहा िक भरोसे की ज रत नहीं है । हवा पित को नहीं कर रही ं , क ज ी सू ख जाए! वह एक आदमी मेरे
पीछे पड़ा है , उसके म ेम म पड़ गई ं । और यह क सू खने म दे र ले रही है । आकाश म बादल िघरे ह; कहीं बरसा
न हो जाए!

ऐसा है आदमी का मन! मत सोचना िकसी और का! अगर िकसी और का सोचा, तो राग का अ ास होगा। अगर
जाना िक मेरा भी, तो िवराग का अ ास होगा। िफर से दोहरा दू ं । अगर सोचा िक और का होगा ऐसा, तो राग का
अ ास कर रहे ह आप। अगर सोचा िक मेरा भी ऐसा ही है, तो वै रा का अ ास होता है ।

अ ास के सं बंध म कुछ दो ीन बात और आपसे क ं ।

एक तो यह िक कुछ लोगों का खयाल है िक परमा ा को पाने के िलए िकसी अ ास की कोई भी ज रत नहीं है ।


जै सा िक जापान म कुछ झेन फकीर कहते ह िक परमा ा को पाने के िलए कोई भी अ ास की ज रत नहीं। य िप
वे ऐसा कहते ही ह, अ ास पूरी तरह करते ह। पर वे उसको नाम दे ते ह, अ ासरिहत अ ास, एफटले स एफट,
य रिहत य ।

ठीक है । उनके कहने म कुछ अथ है । अगर गीता का यह वचन उ बताया जाए, तो वे कहगे, अ ास से नहीं
िमले गा परमा ा। ोंिक भाव अ ास से नहीं िमलता। अ ास से आदत िमलती ह।

इसको थोड़ा समझना पड़े गा। भाव अ ास से नहीं िमलता; अ ास से आदत िमलती ह। भाव तो िमला ही आ
है । और परमा ा को पाना कोई आदत नहीं है िक आप अ ास कर ल।

जै से िकसी को धनुिव ा सीखनी हो, तो अ ास करना पड़े गा। ोंिक धनुिव ा एक आदत है , भाव नहीं। अगर न
िसखाया जाए, तो आदमी कभी भी धनुिवद न हो सकेगा। जै सा मने सु बह कहा, िकसी को भाषा सीखनी हो, तो
अ ास करना पड़े गा। ोंिक भाषा एक आदत है , एक है िबट है , भाव नहीं है । ले िकन ास तो चलेगी आदमी की
िबना अ ास के, िक उसका भी अ ास करना पड़े गा! खून तो बहे गा िबना अ ास के, िक उसका भी अ ास करना
पड़े गा! हि यां तो बड़ी होती रहगी िबना अ ास के, िक उनका भी अ ास करना पड़े गा!

तो झेन फकीर कहते ह, परमा ा को पाना तो भाव को पाना है , इसिलए अ ास की कोई भी ज रत नहीं। तो
हम कह सकते ह, हम तो कोई अ ास कर ही नहीं रहे , तो िफर हमको परमा ा ों नहीं िमलता? झेन फकीर
कहगे, आप नहीं कर रहे , ऐसा मत किहए। आप परमा ा को खोने का अ ास कर रहे ह। अ ास आप कर रहे ह
परमा ा को खोने का। तो झेन फकीर कहते ह, िसफ परमा ा को खोने का अ ास मत क रए, और आप परमा ा
को पा लगे ।

मगर परमा ा को खोने का अ ास न करना, ब त बड़ा अ ास है । उसम सारा वै रा साधना पड़े गा। और सारी
िविधयां साधनी पड़गी।

ले िकन झेन फकीर सं गत ह। उनकी बात का अथ है । वे यह जोर दे ना चाहते ह िक जब परमा ा आपको िमल जाए,
तो आप ऐसा मत समझना िक आपके अ ास से िमल गया। कोई नहीं समझता ऐसा। जब परमा ा िमलता है , तो
ऐसा ही पता चलता है िक वह तो िमला ही आ था। मेरे गलत अ ासों के कारण बाधा पड़ती थी। ऐसा समझ ल िक
एक झरना है, उसके ऊपर एक प र रखा है । प र को हटा द, तो झरना फूट पड़ता है । झरने को फूटने के िलए
कोई अ ास नहीं करना पड़ता। ले िकन प र अगर अटा रहे ऊपर, तो बाधा बनी रहती है ।

तो झेन फकीर कहते ह, आदमी की आदत बाधाओं का काम कर रही ह, कावटों का।
269

ऐसा समझ िक आप मकान के भीतर बै ठे ह, दरवाजा बं द करके। अगर म आपसे क ं िक अगर आपको सू रज
चािहए, तो सू रज को भीतर लाने का अ ास करना पड़े गा! तो आप कहगे, यह कहीं हो सकता है ? सू रज को हम
भीतर लाने का अ ास कैसे करगे?

झेन फकीर कहते ह, भीतर लाने का कोई अ ास नहीं करने की ज रत है ; िसफ दरवाजा बंद करने का जो अ ास
िकया आ है , उसको छोिड़ए। दरवाजा खुला क रए, सू रज भीतर आ जाएगा। सू रज भीतर लाना नहीं पड़े गा, सू रज
आ जाएगा। आप िसफ दरवाजा बं द मत क रए।

इसका यह मतलब आ िक हम चाह तो अ ास से परमा ा से वं िचत हो सकते ह। और चाह तो अन ास से, नो


एफट से, अ ास छोड़ दे कर परमा ा को पा सकते ह। ले िकन अ ास को छोड़ना अ ास करने से कम किठन
बात नहीं है । इसिलए झेन फकीर अ ास की िविधयां उपयोग करते ह।

ले िकन कृ मूित ने एक कदम और हटकर बात कही है । वे कहते ह, अ ास छोड़ने के भी अ ास की ज रत नहीं


है । अगर गीता के इस व के खलाफ इस सदी म कोई व है , तो वह कृ मूित का है । कृ मूित कहते ह,
इतने भी अ ास की ज रत नहीं है–अ ास छोड़ने के िलए भी। कोई मेथड, िकसी िविध की ज रत नहीं है ।

ले िकन जो कृ मूित को थोड़ा भी समझगे, वे पाएं गे, वे िजं दगीभर से एक िविध की बात कर रहे ह। उस िविध का
नाम है , अवे यरनेस। उस िविध का नाम है, जाग कता। वह मेथड है । िसफ इतना ही है िक वे उसको मेथड नहीं
कहते ह। कोई हजा नहीं, उसको नो-मेथड किहए। किहए िक यह अिविध है । इससे कोई फक नहीं पड़ता। मगर
जाग कता का अ ास करना ही पड़े गा। जागना पड़े गा ही। और अगर जाग कता का कोई अ ास नहीं करना है ,
तो कहना ही िफजू ल है िकसी से िक जागो।

अगर म आपसे कहता ं , जागो, तो इसका मतलब यह आ िक म आपसे कह रहा ं िक कुछ करो। वह करना
िकतना ही सू हो, ले िकन करना ही पड़े गा। अगर म यह भी कहता ं, नींद तोड़ो, तो ा फक पड़ता है । गीता
कहती है, राग तोड़ो। कोई कहता है, नींद तोड़ो। कोई कहता है , मू ा तोड़ो। कोई कहता है , होश लाओ। कोई
कहता है, जागो। उससे कोई फक नहीं पड़ता। एक बात तय है िक कुछ करना पड़े गा, समिथंग इज़ टु बी डन। या
यह भी अगर हम कहना चाह, तो हम कह सकते ह, समिथंग इज़ टु बी अनडन। ले िकन वह भी एक काम है । अगर
हम यह कह िक कुछ करना ही पड़े गा, या अगर हम यह कह िक कुछ नहीं ही करना पड़े गा, तो भी कुछ करने की
ज रत है । जै से हम ह, वै से ही हम ीकृत नहीं हो सकते ।

अ ास का इतना ही अथ है िक आदमी जै सा है , ठीक वै सा परमा ा म वे श नहीं कर सकता; उसे पांत रत


होकर ही वेश होना पड़े गा। वह पांतरण कैसे करता है , इससे ब त फक नहीं पड़ता। हजार िविधयां हो सकती
ह। हजार िविधयां हो सकती ह। हजार िविधयां ह।

जै से पवत पर चढ़ने के िलए हजार माग हो सकते ह। और ज री नहीं िक आप बने-बनाए माग से ही चढ़। आप चाह,
थोड़ी तकलीफ ादा ले नी हो, तो िबना माग के चढ़। जहां पगडं डी नहीं है , वहां से चढ़। पगडं डी बचाकर चढ़।
आपकी मज । ले िकन पगडं डी बचाकर भी आप जब चढ़ रहे ह, तब िफर एक पगडं डी का ही उपयोग कर रहे ह;
िसफ आप पहले आदमी ह उसका उपयोग करने वाले; इससे कोई फक नहीं पड़ता है । कहीं से भी चढ़, पहाड़ पर
हजार तरफ से चढ़ा जा सकता है , ले िकन चढ़कर एक ही पवत पर प ं च जाना हो जाता है ।

हजार िविधयां ह, अनंत िविधयां ह। दु िनया के सब धम ने अलग-अलग िविधयों का उपयोग िकया है । और इन िविधयों
के कारण ब त वै मन पैदा आ है –ब त वै मन पैदा आ है । ोंिक े क िविध की एक शत है; वह म आपसे
क ं, तो ब त उपयोगी होगी।

े क िविध की यह शत है िक िजस आदमी को उस िविध का उपयोग करना हो, उसे उस िविध को ए ो ूट


मानना चािहए। े क िविध की यह शत है िक िजस आदमी को उस िविध पर जाना हो, उसे इस भाव से जाना चािहए
िक यही िविध स है ।
270

ों? ोंिक हम इतने कमजोर लोग ह िक अगर हम जरा भी पता चल जाए िक बगल का रा ा भी जाता है , उससे
बगल का भी रा ा जाता है , तो ब त सं भावना यह है िक दो कदम हम इस रा े पर चल, दो कदम बगल के रा े
पर चल, दो कदम तीसरे रा े पर चल। और िजं दगीभर रा े बदलते रह, और मंिजल पर कभी न प ं च!

इसिलए दु िनया के ेक धम को डा े िटक असस करने पड़े । कुरान को कहना पड़ा, यही सही है ; और मोह द
के िसवाय उस परमा ा का रसूल कोई और नहीं है । एक ही परमा ा और एक ही उसका पैगंबर है । इसका कारण
यह नहीं है िक मोह द डा े िटक ह। इसका यह कारण नहीं है िक मोह द पागल ह और कहते ह िक मेरा ही मत
ठीक है ।

ले िकन असिलयत यह है िक यह मोह द उन लोगों के िलए कहते ह, जो सु न रहे ह। ोंिक उनको अगर यह कहा
जाए, सब मत ठीक ह, मुझसे िवपरीत कहने वाले भी ठीक ह, उलटा जाने वाले भी ठीक ह; इस तरफ जाने वाले, उस
तरफ जाने वाले भी ठीक ह; तो वह जो कन ू आदमी है , जो िमत आदमी है , जो वै से ही िमत खड़ा है , वह
कहे गा, जब सभी ठीक ह, तो शक होता है िक कोई भी ठीक नहीं है । ब त सं भावना यह है िक जब हम कह, सभी
ठीक ह, तो आदमी को शक हो।

महावीर के साथ ऐसा ही आ! इसिलए दु िनया म महावीर के मानने वालों की सं ा बढ़ नहीं सकी; और कभी नहीं
बढ़ सकेगी। उसका कारण है । उसके कारण महावीर ह। आज भी महावीर के मानने वालों की सं ा–मानने वालों
की, सच म जानने वालों की नहीं; मानने वालों की सं ा–पैदाइशी मानने वालों की सं ा; अब पैदाइश से मानने का
कोई भी सं बंध नहीं है , ले िकन पैदाइशी मानने वालों की सं ा तीस लाख से ादा नहीं है । महावीर को ए प ीस
सौ वष हो गए ह। अगर महावीर तीस दं पितयों को कनवट कर ले ते, तो तीस लाख आदमी पैदा हो जाते प ीस सौ
साल म।

महावीर की बात कीमती है ब त, ले िकन फैल नहीं सकी, ोंिक महावीर ने नान-डा ेिटक अससन िकया। महावीर
ने कहा, यह भी ठीक, वह भी ठीक; उसके िवपरीत जो है , वह भी ठीक। महावीर ने स भं गी का उपयोग िकया।
अगर महावीर से आप एक वा का उ र पूछ, तो वे सात वा ों म जवाब दे ते।

आप पूछ, यह घड़ा है ? तो महावीर कहते ह, हां, यह घड़ा है । कहते ह, को, दू सरी भी बात सु न लो। यह घड़ा नहीं
भी है; ोंिक िम ी है । को, चले मत जाना, तीसरी बात भी सु न लो। यह घड़ा भी है , घड़ा नहीं भी है । आप भागने
लगे, तो महावीर कहगे िक जरा को, चौथी बात और सु न लो। यह घड़ा है भी, यह घड़ा नहीं भी है , और यह घड़ा
ऐसा है िक व म कहा नहीं जा सकता, रह है । आप कहने लगे िक बस, अब म जाऊं! तो वे कहगे, एक
व और सु न लो, यह घड़ा है ; अव है । नहीं है ; अव है । है भी, नहीं भी है; अव है ।

अब आप घड़ा को थोड़ा-ब त समझते भी रहे होंगे, वह भी गया! अब आप घड़े म पानी भी मु ल से भर पाएं गे ।


ोंिक सोचगे, घड़ा है भी, घड़ा नहीं भी है । पानी भरना िक नही ं भरना! पानी बचे गा िक िनकल जाएगा! आप िद त
म पड़गे ।

य िप महावीर ने स को िजतनी पूणता से कहा जा सकता है, कहने की कोिशश की है । इतनी पूणता से कहने की
कोिशश िकसी की भी नहीं है, िजतनी महावीर की है । ले िकन इतनी पूणता से कहकर वह िकसी के काम का नहीं रह
जाता। िकसी के काम नहीं रह जाता। अगर वे चु प रह जाते, तो भी बे हतर था; शायद आप कुछ समझ जाते । उनकी
इतनी बातों से, जो समझते थे, वह भी गड़बड़ हो गया। इसिलए महावीर को अनुगमन नहीं िमल सका।

कोई भी िविध, अगर चाहते ह िक आपके काम पड़ जाए, तो उसे कहना पड़े गा िक यही िविध ठीक है ; कोई और िविध
ठीक नहीं है । जानते ए िक और िविधयां भी ठीक ह। इसिलए दु िनया का े क धम अपनी िविध को आ हपूवक
कहता है िक यह ठीक है । वह आ ह आपके ऊपर क णा है । आपके ऊपर क णा है , इसिलए।

वह करीब-करीब हालत वै सी है िक डा र आपके पास आए। आप उसका ि शन ले कर कह िक डा र


साहब, यही दवा ठीक है िक और दवाएं भी ठीक ह? वह कहे िक और भी दवाएं ठीक ह। हकीम के पास जाओ, तो
271

भी ठीक हो जाओगे । एलोपैथ के पास जाओ, तो भी ठीक हो जाओगे । आयु वद के पास जाओ, तो भी ठीक हो
जाओगे । िकसी के पास न जाओ, साईं बाबा के पास जाओ, तो भी ठीक हो जाओगे । कहीं भी जाओ, ठीक हो
जाओगे । तो आप उस डा र से कहगे, फीस के बाबत ा खयाल है ! आपको दू ं िक न दू ं ? नहीं, आपको दे ने का
कोई कारण नहीं है ।

और ान रखना, वह डा र िकतनी ही मह पूण दवा दे जाए, वह कचरे की टोकरी म िगर जाएगी; आपके पेट म
जाने वाली नहीं है । ोंिक यह डा र भरोसे का नहीं रहा। यह डा र आपके भीतर वह जो एक कनिव न, वह
जो एक आ था, एक िन ा ज ाता, इसने नहीं ज ायी। हालां िक बे चारा ठीक कह रहा था। लेिकन िन ा आपके
भीतर नहीं आई। यह डा र की दवा िकतनी ही ठीक हो, यह डा र थोड़ा-सा गलत सािबत आ। यह डा र
डा र जै सा लगा ही नहीं। यह भरोसा पैदा नहीं करवा पाया। तब िफर दवा काम नहीं करे गी। दवा को िलया भी न
जा सकेगा। उपयोग भी सं िद होगा। सं िद उपयोग खतरों म ले जाएगा।

इसिलए े क धम अपनी िविध के बाबत आ हपूण है । वह कहता है , यही िविध ठीक है । और जो इस आ हपूण
िविध का उपयोग करे गा, वह एक िदन ज र उस जगह प ंच जाता है, जहां वह जानता है, और िविधयों के लोग भी
प ं च गए। ले िकन यह अंितम अनुभव है ; यह अंितम अनुभव है ।

तो म पसं द नहीं करता िक कोई पढ़े , अ ाह-ई र ते रे नाम। यह ब त कन ूिजं ग है । कोई ऐसा बै ठकर याद करे ,
अ ाह-ई र ते रे नाम, तो गलत है । अ ाह का अपना उपयोग है , राम का अपना उपयोग है। राम का करना हो, तो
राम का करना। अ ाह का करना हो, तो अ ाह का करना। ोंिक दोनों के र िव ान ह, और दोनों की अपनी
गहरी चोट है । राम की चोट अलग है , अ ाह की चोट अलग है ।

जो आदमी कह रहा है, अ ाह-ई र ते रे नाम, वह पािलिट म कह रहा हो, तो ठीक है । धम की दु िनया म बात न
करे , ोंिक राम का पूरा का पूरा वै ािनक प िभ है; राम की चोट िभ है । अलग क पर, अलग च ों पर
उसकी चोट है । और अगर इन दोनों का एक साथ उपयोग िकया, तो खतरा है िक आप पागल हो जाएं । ले िकन वे जो
लोग उपयोग करते ह, वे ऊपर-ऊपर उपयोग करते ह। पागल भी नहीं होते, चखा चलाते रहते ह, अ ाह-ई र ते रा
नाम कहते रहते ह!

अगर भीतर उपयोग कर, तो पागल हो जाएं गे । दोनों श ों का एक साथ उपयोग नहीं िकया जा सकता। यह ठीक
वै सा ही, जै से आयु वद की दवा ले ल, ठीक है । एलोपैथी की ले ल, ठीक है । ले िकन कृपा करके दोनों का िम चर न
बनाएं । यह िम चर है । और ये नासमझों के ारा चिलत बात ह। िजनको धम की साइं स का कोई भी बोध नहीं है ।
तो कुरान भी ठीक, गीता भी ठीक! दोनों म से खचड़ी इक ी तै यार करो। वह िकसी के काम की नहीं है । वह जहर
है ।

गीता अपने म पूरी ठीक है, कुरान अपने म पूरा ठीक है । गीता के ठीक होने से कुरान गलत नहीं होता। कुरान के
ठीक होने से गीता गलत नहीं होती। स इतना बड़ा है िक अपने िवरोधी स को भी आ सात कर ले ता है । स
इतना महान है िक अपने से िवपरीत को भी पी जाता है । और स के इतने ार ह। ले िकन कृपा करके ऐसा मत कहो
िक दोनों ार एक ह। नहीं तो वह आदमी िद त म पड़े गा। न इससे िनकल पाएगा, न उससे िनकल पाएगा। ार से
तो एक से ही िनकलना पड़े गा।

अगर म िकसी मंिदर म वे श करता ं , उसके हजार ार ह, तो भी दो ार से वे श नहीं हो सकता। वे श एक ही


ार से करना पड़े गा। हां, भीतर जाकर म जानूं गा िक सब ार भीतर ले आते ह। ले िकन िफर भी म आने वालों से
क ं गा िक तु म िकसी एक से ही वे श करना। दो से वे श करने की कोिशश म डर यह है िक दोनों दरवाजों के बीच
म जो दीवाल है , उससे िसर टकरा जाए, और कुछ न हो। दो नावों पर या ा नहीं होती, दो धम म भी या ा नहीं होती,
दो िविधयों म भी या ा नहीं होती।

ले िकन िविध का उपयोग अिनवाय है । ों अिनवाय है ? अिनवाय इसिलए है िक हमने जो कर रखा है अब तक,
उसको काटना ज री है । हमने जो कर रखा है अब तक, उसे काटना ज री है ।
272

एक छोटी-सी कहानी क ं, उससे मेरी बात खयाल म आ जाए, िफर हम सु बह बात करगे।

रामकृ ब त िदन तक साकार उपासना म थे; सगु ण साकार की उपासना म लीन थे । काली के भ थे । मां की
उ ोंने पूजा-अचना की थी। और मां की साकार ितमा को भीतर अनुभव कर िलया था। मनु के मन की इतनी
साम है िक वह िजस पर भी अपने ान को पूरा लगा दे , उसकी जीवं त ितमा भीतर उ हो जाती है । ले िकन
िफर भी रामकृ को तृ नहीं थी। ोंिक मन से कभी तृ नहीं िमल सकती। मन के ऊपर ही सं तृ का लोक
है । तो ब त बे चैन थे । अब बड़ी मु ल म पड़ गए थे । जहां तक साकार ितमा ले जा सकती थी, प ं च गए थे ।
ले िकन कोई तृ न थी, तो तलाश करते थे िक कोई िमल जाए, जो िनराकार म ध ा दे दे ।

तो एक सं ासी गु जरता था। गुजरता था कहना शायद ठीक नहीं है, रामकृ की पुकार के कारण िनकला वहां से ।
इस जगत म जब आप िकसी ऐसे को खोज ले ते ह, जो आपको िकसी िविध के जीवन म वे श करा दे , तो आप
यह मत सोचना िक आपने उसे खोजा। आप न खोज पाएं गे। वही आपको खोजता है ।

तोतापुरी िनकले । तोतापुरी दो िदन से एहसास कर रहे थे िक िकसी को मेरी ब त ज रत है । दि णे र के मंिदर के


पास से िनकलते थे, क गए। िकसी से पूछा िक मंिदर के भीतर कौन है ? तो उ ोंने कहा िक रामकृ मंिदर के
भीतर साधना करते ह। तोतापुरी भीतर गए, दे खा िक रामकृ को उनकी ज रत है; कोई िनराकार की या ा पर
ध ा दे दे ।

अ का जगत इतना ही बड़ा है । जो हम िदखाई पड़ता है , वह ब त कम है । जो नहीं िदखाई पड़ता है, वह ब त


बड़ा है । न तो हम आक क िकसी से िमलते ह, न िमल सकते ह। आक क हम िकसी को सु न भी नहीं सकते ।
आक क िकसी का श भी हमारे कान म नहीं पड़ सकता। ब त काय-कारणों का जाल है।

तोतापुरी ने जाकर रामकृ को िहलाया। आं ख खोली रामकृ ने। रामकृ को लगा, आ गया वह आदमी। उ ोंने
नम ार िकया और कहा िक म ती ा कर रहा ं । दो िदन से िच ा रहा ं िक भे जो िकसी को जो मुझे आकार से
मु कर दे । आ गए आप! तोतापु री ने कहा, आ गया म। ले िकन किठनाई पड़े गी, ोंिक तु मने इतनी मेहनत से जो
साकार िनिमत िकया है , उसे तोड़ना भी पड़े गा। रामकृ ने कहा, मेरी काली को बचने दो। मेरी ितमा को बचने दो,
और मुझे िनराकार म जाने दो। तोतापुरी ने कहा, तो म लौट जाऊं। यह दोनों बात एक साथ न हो सकेगी। तु इस
ितमा को भीतर से तोड़ना पड़े गा, जै से तु मने बनाया। रामकृ ने कहा, म तोड़ ही नहीं सकता। और तोडूंगा कैसे!
भीतर कोई औजार भी तो नहीं है ।

तोतापुरी ने कहा, आं ख बं द करो और तोड़ने की कोिशश करो। रामकृ आं ख बं द करते। आनंदम हो जाते । नाचने
लगते। तोतापु री रोकते और कहते, मने इसिलए आं ख बं द करने को नहीं कहा। रामकृ कहते , ले िकन जब ितमा
िदखाई पड़ती है, तोड़ने की बात कहां, म बचता ही नहीं। आनंदम हो जाता ं । तो तोतापुरी ने कहा, िफर इस
आनंद म तृ हो जाओ। तृ भी नहीं हो पाता, िकसी और महाआनंद की तलाश है । तो तोतापु री ने कहा, िफर इस
ितमा को तोड़ो। रामकृ कहने लगे, कैसे तोडूं? न कोई हथौड़ी, न कोई छे नी, कुछ भी तो नहीं है ! तोतापुरी ने जो
कहा, वह म आपसे कहता ं ।

उसने कहा, बनाई कैसे थी? छे नी थी भीतर? िकस छे नी से बनाई थी ितमा? उसी छे नी से तोड़ दो। रामकृ ने कहा
िक िकस छे नी से बनाई थी! मन के ही भाव से बनाई थी। तो तोतापुरी ने कहा, एक काम करो। आं ख बं द करो, और
म एक कांच का टु कड़ा उठाकर लाता ं बाहर से, और म तु ारे माथे पर कां च के टु कड़े से काटू ं गा, और जब तु
भीतर मालू म पड़े िक ल लु हान तु ारा माथा हो गया तब िह त करके, तलवार उठाकर दो टु कड़े कर दे ना ितमा
के। रामकृ ने कहा, तलवार!

तोतापुरी ने कहा, जब ितमा तक तु म अपने मन से बना सके, तो तलवार न बना सकोगे? बना ले ना। रामकृ बड़े
रोते ए, मा मां गते ए िक बड़ी मु ल की बात है , भीतर गए। िफर तोतापुरी ने माथे पर कांच से काट िदया।
काटते व उ ोंने िह त की, तलवार उठाई, ितमा दो टु कड़े होकर िगर गई। रामकृ छः िदन के िलए गहन
273

समािध म खो गए। छः िदन के बाद जब वापस लौटे , तो उ ोंने कहा, अंितम बाधा िगर गई–िद ला बै रयर है ज
फाले न अवे । आ खरी! वह ितमा भी आ खरी बाधा बन गई थी।

जो हम िनिमत करते ह, उसे िमटाना भी पड़ता है िफर। हमने राग की ितमाएं िनिमत की ह, तो हम िवराग की
तलवार उठानी पड़गी। नहीं तो कृ मूित ठीक कहते ह। अगर राग िनमाण न िकया हो, तो िवराग की तलवार उठाने
की कोई ज रत नहीं। ले िकन िजसने राग िनमाण नहीं िकया है, वह कृ मूित को सु नने कहां जाता है! पूछने कहां
जाता है! वह जाता नहीं। और िजसने राग िनमाण िकया है , वह सु नने -पूछने जाता है । वह उससे कह रहे ह िक कुछ न
करना। कुछ करने की ज रत नहीं है । अ ास थ है ।

तो वह जो रागी है, अपने अ ास को तो जारी रखता है राग के। बड़ा मजा यह है हमारे मन का। अगर वह यह भी
मान ले िक अ ास थ है , तो राग का अ ास भी बं द कर दे । वह तो बं द नहीं करता। उसको जारी रखता है । िसफ
वै रा का अ ास बं द कर दे ता है । बं द कर दे ता है , कहना ठीक नहीं; शु नहीं करता। बं द कहां! उसने शु ही
नहीं िकया है ।

ले िकन कृ साधक की ि से बोल रहे ह। वे कह रहे ह, अ ास से तोड़ना पड़े गा। राग, अ ास से तोड़ना पड़े गा!
अ ास की िविधयों के सं बंध म आगे वे बात करगे, तो धीरे -धीरे हम उनको उघाड़गे और समझने की कोिशश करगे ।
समझ पूरी तो तभी आएगी, जब कोई एकाध िविध पकड़कर आप योग म लग जाएं गे। योग के अित र और कोई
समझ नहीं है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


तं और योग (अ ाय—6) वचन—अठारहवां

असंयता ना योगो दु ाप इित मे मितः।


व ा ना तु यतता श ोऽवा ुमुपायतः।।36 ।।
मन को वश म न करने वाले पु ष ारा योग दु ा है अथात ा होना किठन है और ाधीन मन वाले य शील
पु ष ारा साधन करने से ा होना सहज है , यह मेरा मत है ।

कृ ने दो ीन बात इस सू म कही ह, जो समझने जै सी ह।

एक, मन को वश म न करने वाले पु ष ारा योग की उपल अित किठन है ; असंभव नहीं कहा। ब त मु ल है;
असंभव नहीं कहा। नहीं ही होगी, ऐसा नहीं कहा। होनी अित किठन है, ऐसा कहा है । तो एक तो इस बात को समझ
ले ना ज री है ।

दू सरी बात कृ ने कही, मन को वश म कर ले ने वाले के िलए सरल है , सहज है उपल योग की।

और तीसरी बात कही, ऐसा मेरा मत है । ऐसा नहीं कहा, ऐसा स है । ऐसा कहा, िदस इज़ माइ ओपीिनयन, ऐसा
मेरा मत है । ये तीन बात इस ोक म खयाल ले ले ने जै सी ह।

पहली बात तो यह, जो ब त अजीब मालू म पड़े गी िक कृ ऐसा कह। कहना था िक मन को जो वश म नहीं करता,
उसके िलए योग की उपल असंभव है , इं पािसबल है; नहीं होगी। ले िकन कृ कहते ह, किठन है , असंभव नहीं।
इसका अथ? इसका अथ यह आ िक किठन हो, ले िकन िकसी थित म, िकसी के िलए, मन को वश म िबना
िकए भी उपल सं भव हो सकती है । किठन है , ले िकन सं भव हो सकती है । अित किठन है , ले िकन िफर भी हो
सकती है ।
274

मन को वश म करने वाला कैसे उपल को ा होता है , उसकी हमने बात की। अब थोड़ा हम उस थोड़े -से
अ वग के सं बंध म बात कर ल, िजसकी वजह से कृ असंभव न कह सके।

ब त ही छोटा वग है । कभी करोड़ म एकाध आदमी ऐसा होता है , जो मन को िबना वश म िकए योग को उपल हो
जाता है । ब त रे यर िफनािमनन है ; ब त करीब-करीब न घटने वाली घटना है; ले िकन घटती है । खुद कृ भी उ ीं
लोगों म से एक ह।

इसिलए कृ ने जानकर कहा है यह, ब त समझकर कहा है । खुद कृ भी उ ीं लोगों म से एक ह। ोंिक अजु न
ज र ही पूछ ले ता िक हे मधु सूदन, आपको कभी आसन लगाए नहीं दे खा! आपको कभी ाणायाम करते नहीं दे खा।
आपको कभी भु- रण करते नहीं दे खा। आपको िकसी तप या म से गु जरते नहीं दे खा। िजस योग-साधना की आप
बात कर रहे ह, िजस अ ास की आप बात कर रहे ह, वह कभी आपके आस-पास िदखाई नहीं पड़ा। और िजस
वै रा की आप बात कर रहे ह, उसका तो आपके आस-पास कोई भी अंदाज नहीं िमलता, अनुमान नहीं लगता। मोर
पंख बां धकर, बां सुरी बजाकर आप नाचते ह। सुं दरतम बृ ज की गोिपयां आपके चारों तरफ रास करती ह। वै रा कहीं
िदखाई नहीं पड़ता, मधु सूदन!

अजु न िनि त ही ऐसा पूछता। ले िकन अजु न को पूछने का उपाय कृ ने नहीं छोड़ा। इसिलए अजु न ने नहीं पूछा।
ोंिक कृ ने कहा, ब त किठन है अजु न, असंभव नहीं है ।

तो उस थोड़े -से वग, िजसम कृ भी आते ह और कभी एकाध-दो आदमी आ पाते ह सिदयों म, उस छोटे -से वग की
भी हम बात कर ल, ोंिक उसका भी खतरा बड़ा है । ोंिक जो उस वग म नहीं आता, वह अगर सोच ले िक यह
होगा किठन, ले िकन हम किठन माग से ही जाएं गे, तो ब त डर यह है िक वह कभी नहीं प ं चेगा, भटकेगा, थ
समय और जीवन को कर ले गा।

ऐसा आ इस दे श म। इस दे श ने बड़े गहरे योग िकए ह। तं उन योगों म से है , जो उनके िलए है व ुतः, जो मन


को वश म न कर। इसिलए तं जब इसोटे रक था, कुछ थोड़े -से लोग उस पर योग करते थे, तब वह बड़ी अदभु त
ि या थी। ले िकन और लोगों को भी लगा िक यह तो ब त अ ा है । मन को वश म भी न करना पड़े और योग
उपल हो जाए!

तं के तो सभी सू उलटे ह।

यह जो थोड़ी-सी जगह छोड़ी है कृ ने, वह तं के िलए छोड़ी है । उसकी बात करनी उ ोंने उिचत नहीं समझी है ,
ोंिक उसकी बात करनी सदा ही खतरे से भरी है । ोंिक हम सबका मन ऐसा होगा िक अपने को अपवाद मान
ल। और हम सबका मन ऐसा होगा िक जब मन को िबना वश म िकए हो सकता है, तो होगा लं बा माग, ले िकन यही
ादा आनंदपूण रहे गा। मन को वश म भी न करगे और प ंच भी जाएं गे योग को। दू सरे न प ं चते होंगे, हम तो प ं च
ही जाएं गे!

इसिलए तं जब ापक फैला, तो अित किठनाई उसने पैदा की। हजारों लोग यह सोचकर िक ठीक है , ोंिक तं
कहता है…। तं के पंच मकार िस ह। वह कहता है, पां च म का जो से वन करे गा–से वन, ाग नहीं–वही योग को
उपल होगा। मिदरा का ाग नहीं, से वन। मैथुन का ाग नहीं, से वन। मां स का ाग नहीं, से वन। जो उसको
भोगे गा, वही योग को उपल होगा। यह ब त ही छोटा-सा अ वग है , िजसके िलए यह बात िबलकुल सही है ।

और ान रहे, वह अ वग अित किठन माग से गु जरता है । िदखता सरल पड़ता है िक शराब पीने से ादा सरल
और ा हो सकता है ! शराबी सड़कों पर पीकर रा ों पर पड़े ह। शराब पीने से ादा सरल ा होगा? ले िकन तं
की ि या ब त किठन है , अित दू भर है ।
275

तं कहता है , शराब पीना, ले िकन बे होश मत होना। यह साधना है । शराब पीए जाना और बे होश होना मत। अगर
बे होश हो गए, तो साधना का सू टू ट गया। तो शराब पीना और बे होश मत होना, शराब पीना और होश को कायम
रखना।

हम तो होश िबना शराब पीए कायम नहीं रख पाते । शराब पीकर कायम रख पाएं गे? िबना ही पीए पीए-सी हालत
रहती है िदन-रात! जरा म होश खो जाता है । तं कहता है, शराब पीना, उसकी मनाही नहीं है । ले िकन होश कायम
रखना।

तो तं की अपनी िविध है, िक जब शराब पीयो, िकतनी मा ा म पीयो, कहां क जाओ; होश को कायम रखो। िफर
धीरे -धीरे मा ा बढ़ाते जाओ। वष की लं बी या ा म वह घड़ी आती है िक िकतनी ही शराब कोई पी जाए, होश कायम
रहता है । िफर तो तं को यहां तक करना पड़ा िक कोई शराब काम नहीं करती, तो सां प पालने पड़ते थे । अभी भी
आसाम म कुछ तां ि क सां प पालते ह और जीभ पर सां प से कटाएं गे । और साधना की आ खरी कसौटी यह होगी िक
सां प काट ले , और होश कायम रहे ।

है ि या अदभु त, पर बड़ी दू भर है । शराब छोड़ने को तं नहीं कहता। तं ब त साहिसयों का माग है । वे कहते ह,


हम छोड़गे नहीं। अगर कीचड़ म से कमल हो सकता है, तो हम शराब म से होश पैदा करगे । और बे होशी म अगर
होश न रह सका, तो होश की कीमत िकतनी है ! और अगर शराब पीकर सारी बु न हो जाए, तो ऐसी बु को
बचाने म भी िकतना सार है!

तं कहता है , मैथुन का हम ाग न करगे; चय हम न साधगे । हम तो मैथुन म वेश करगे, और वीय को


अ िलत रखगे ।

ब त किठन है मामला। पर तं ने इसके योग िकए। पर इसोटे रक थे, गु थे । साधारणतः वे समू ह म नहीं िकए जा
सकते थे । पर धीरे -धीरे खबर तो फैलनी शु ई। और उनको भी पता चल गया, जो शराब पीकर नािलयों म पड़े
रहते थे । उ ोंने सोचा िक हम भी तं की साधना ों न कर? यह तो ब त ही उिचत है । िफर कोई यह भी नहीं कह
सकता िक शराब पीना पाप है । िफर तो शराब पीना पु हो गया।

तो नाली म शराब पीकर जो पड़ा था, उसने जब शराब पीकर तं की साधना शु की, तो मंिदर म नहीं प ंचा, वह
और नाली म, और नाली म चला गया। और मैथुन तो सारा जगत कर रहा है । तं ने जब कहा िक मैथुन म ही
उपल हो जाएगी परमा ा की, कहीं भागने की ज रत नहीं, ागने की ज रत नहीं। तो लोगों ने कहा, िफर
ठीक ही है । कहीं कुछ करने की ज रत नहीं। मैथुन तो हम कर ही रहे ह। ले िकन तं की शत है ।

एक घटना मुझे याद आती है । एक तां ि क के पास एक ागी साधु गया। वहां बड़ी-बड़ी मटिकयों म भरी ई शराब
रखी थी और एक यु वा तां ि क बै ठकर ान कर रहा था। साधु ब त घबड़ाया। शराब की बास चारों तरफ थी। उस
साधु ने कहा िक मटके-मटके भरकर शराब कौन पीता है यहां? उस तां ि क गु ने कहा िक यह जो यु वक बै ठा है,
इसके िलए रखी है । एक मटका तो यह एक ही गटक म पी जाता है, एक सां स म। उस आदमी ने कहा िक मुझे
भरोसा नहीं आता। िफर इसकी हालत ा होती है ? उसके गु ने कहा िक हालत वही रहती है , जो थी। शराब
अछूती गु जर जाती है । आर-पार िनकल जाती है , बीच म नहीं प ं चती है , क को नहीं छूती है । उसने कहा, म मानूंगा
नहीं, म दे खना चा ंगा। एक सां स म पानी की एक मटकी पीना मु ल है , और शराब…!

उस तां ि क गु ने यु वक को कहा िक एक मटकी शराब पी जा। उसने कहा िक एक िमनट का मुझे मौका द, म
अभी आया। गु थोड़ा है रान आ िक एक िमनट का मौका उसने ों मां गा? एक िमनट बाद वह आया और एक
मटकी उठाकर पी गया। वह साधु भी चिकत आ। एक सां स म!

साधु के जाने पर गु ने उससे पूछा िक एक िमनट का समय तू ने ों मां गा था? उसने कहा िक मने कभी एक दफे म
पीया नहीं था, तो म अंदर जाकर अ ास करके आया, एक मटकी अंदर पीकर, िक म पी पाऊंगा िक नहीं पी
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पाऊंगा। कभी मने एकदम से ऐसा िकया नहीं था, इसिलए जरा अ ास के िलए अंदर गया। एक मटकी पीकर दे खी,
िक ठीक है; हो जाएगा।

यह जो वग था साधकों का, यह ब त किठन वग है । मैथुन हो, लन नहीं। और मैथुन की या ा पर आदमी िनकलता


ही इसिलए है िक लन हो। तो आप यह मत सोचना िक तं मैथुन के प म है । तं तो मैथुन के अित मण की
बात है ।

मैथुन के िलए जाता ही आदमी इसिलए है िक लन हो। जो बोझ उसके िच पर और शरीर पर है , वह िफंक जाए।
और तं कहता है, मैथुन सही, लन नहीं। और अगर कोई मैथुन की थित म अ लन को उपल हो
जाए, तो इससे बड़ा चय और ा होगा? उन चा रयों से, जो िक ी को दे खने म डरते ह, इस आदमी के
चय की बात ही और है ।

मगर यह माग है अित सं कीण, इसिलए कृ ने उसकी िसफ िनगे िटव खबर दे कर सू छोड़ िदया।

कुछ लोग ह, जो मन को िबना िकसी तरह वश म िकए, मन को पूरी छूट दे दे ते ह। पूरी छूट! मन से कहते ह, जो तु झे
करना है कर, ले िकन उस करने म वे पार खड़े हो जाते ह। मन को नहीं रोकते, लगाम नहीं पकड़ते मन की। घोड़ों
को कह दे ते ह, दौड़ो, जहां दौड़ना है । ले िकन दौड़ते ए घोड़ों म, भागते ए रथ म, गङ् ढों म, खाई म, ख म, वह
जो ऊपर रथ पर बै ठा है वह, वह अकंप बै ठा रहता है ।

तं कहता है िक लगाम स ालकर और आप अकंप बै ठे रहे , तो कुछ मजा नहीं है । छोड़ दो लगाम; घोड़ों को दौड़ने
दो; रथ को ख ों म, खाइयों म िगरने दो; और तु म अकंप रथ पर बै ठे रहो, तो ही असली मालिकयत है ।

पर वह मालिकयत ब त थोड़े -से लोगों का माग है । भू लकर आप लगाम छोड़कर मत बै ठ जाना, नहीं तो पहले ही
गङ् ढे म ाणां त हो जाएगा! दू सरे सं तुलन के िलए नहीं बचगे आप।

इसिलए कृ ने असंभव नहीं कहा। असंभव नहीं है , कृ भलीभांित जानते ह। और कृ से बे हतर कोई भी नहीं
जानता। यह असंभव नहीं है , िबलकुल सं भव है । ले िकन ब त ही थोड़े -से लोगों के िलए है, अ , न के बराबर; उ
िगनती के बाहर छोड़ा जा सकता है । और उनकी िगनती करनी ठीक भी नहीं है, ोंिक िगनती करने का कोई
फायदा नहीं है । अपवाद को बाहर छोड़ा जा सकता है ।

िनयम की बात कर रहे ह वे अजु न से । और अजु न उन लोगों म से नहीं है , जो िक तं के माग पर जा सके। इसीिलए
कहा, दु ा है । बड़ी किठनाई से िमलने वाला है; िमल सकता है । यह वै ािनक िचंतक का ल ण है । वै ािनक
िचंतक अ भी शे ष हो कुछ माग की सु िवधा, उसे छोड़कर चलता है । उसे छोड़कर चलता है ।

दू सरी बात कृ ने कही, सरल है उसके िलए, जो मन को वश म कर ले । किठन है उसके िलए, जो मन को िबना
वश म िकए या ा करे । सरल है उसके िलए, जो मन को वश म कर ले ।

सरल इसिलए है मन को वश म कर ले ने के बाद, िक मन ही वधान डालता है । वह वधान डालने वाला अब


आपके काबू म है । आप सरलता से उसका अित मण कर सकते ह, बाधाएं आपके काबू म ह।

करीब-करीब ऐसा समझ िक कोई चाहे तो मकान की सीिढ़यों से नीचे उतर सकता है , कोई चाहे तो छलां ग भी
लगाकर मकान से नीचे उतर सकता है । छलां ग लगाने म खतरा है । हाथ-पैर टू ट जाने का खतरा है । जब तक िक
हाथ-पैरों की ऐसी कुशलता न हो, जै सी िक होती नहीं है , हाथ-पैर टू टने को सदा तै यार रहते ह। और जब आप मकान
पर से कूदते ह और आपके हाथ-पैर टू टते ह, तो न तो मकान की लं बाई तु ड़वाती है हाथ-पैर, न जमीन तु ड़वाती है ;
आपके ही हाथ-पैर का ढं ग हाथ-पैर को तु ड़वा दे ता है ।
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कभी आपने खयाल िकया होगा िक एक बै लगाड़ी म अगर आप बै ठकर जा रहे हों, साथ म एक शराबी धु त बै ठा हो,
और आप होश म बैठे हों। और गाड़ी उलट जाए, तो आपको चोट लगे, धु त शराबी को न लगे । आप समझते ह! कोई
आसान बात है ! शराबी रोज नािलयों म िगरता है , ले िकन न कहीं चोट है , न ह ी टू टती, न ै र होता! बात ा है?
आप जरा िगरकर दे ख! शराबी के पास कौन-सी तरकीब है, िजससे िक िगरता है और चोट नहीं खाता?

तरकीब शराबी के पास नहीं है । असल म शरीर जब भी िगरने के करीब होता है, तो रे िस ट हो जाता है, अकड़
जाता है । अकड़ी ई ह ी टू ट जाती है । वह शराबी बे होश है , वह रे िस नहीं करता। उसको पता ही नहीं िक कब
गाड़ी उलट गई। जब उलट गई, तब भी वे गाड़ी म ही बै ठे ए ह! तब भी वे हां क रहे ह नाली म पड़े ए। उनको पता
ही नहीं, गाड़ी कब उलट गई। शरीर को मौका नहीं िमलता है िक अकड़ जाए। अकड़ न पाए, तो जमीन चोट नहीं
प ं चा पाती। चोट प ं चती है अकड़ी चीज पर।

इसिलए ब े इतने िगरते ह और चोट नहीं खाते । आप जरा ब ों की तरह िगरकर दे ख, तब आपको पता चलेगा।
एक दफे िगर गए, तो फैसला आ! और ब ा िदनभर िगर रहा है और उठकर िफर चल पड़ा है । बात ा है ? ब े
के पास सी े ट ा है ?

सी े ट इतना ही है िक जब वह िगरता है, तब शरीर को इस बात का कोई प ा पता ही नहीं चलता िक िगर रहे ह,
स ल जाएं । स लता नहीं, इसिलए चोट नहीं खाता है । स ले गा, तो चोट खा जाएगा। स लने म ही चोट खा जाता
है आदमी।

मकान से उतरना हो, तो सीिढ़यां ही ठीक ह। स लता है जो आदमी, उसको सीिढ़यां ही ठीक ह। ोंिक सीिढ़यों
पर स लकर उतर सकते ह। स लकर छलां ग लगाई तो खतरा है ।

छलां ग तो वह लगा सकता है, जो गै र-स ले लगाता है । जो िगरता हो मकान से जमीन की तरफ, ले िकन इतना भी न
अकड़े िक िगर रहा ं । शरीर पर िजसके पता ही न चले । जो ऐसा ही िगरे मकान से, जै सा छत पर खड़ा था, ठीक
वै सा ही िगरे , जरा फक न पड़े । शराब पी जाए, और वै सा ही रहे , जै सा शराब पीने के पहले था। मैथुन कर जाए, और
िच वै सा ही रहे, जै सा मैथुन करने के पहले था। ोध कर जाए, और ोध के बीच वै सा ही रहे , जै सा ोध करने के
पहले था। जरा अंतर न पड़े । तो िफर वह जो छोटा-सा सं कीण माग है, या ा की जा सकती है ।

ले िकन वह कभी जनपथ नहीं बन सकता; वह प क हाई-वे नहीं है । वह ब त, अित सं कीण है । जनपथ पर, जहां
सबको चलना है , वहां सीिढ़यां ह।

कभी आपने खयाल िकया है िक सीिढ़यों पर भी आप छलां ग ही लगाते ह, उतरते नहीं ह। उतर तो कोई सकता ही
नहीं। चाहे पूरे मकान की छलांग लगाएं , चाहे सीढ़ी पर। सीढ़ी पर कोई आप उतर सकते ह? एक सीढ़ी से दू सरी पर
छलां ग लगाते ह। एक आदमी एक मंिजल से दू सरी मंिजल पर लगाता है । बड़ी सीढ़ी है , और कोई फक नहीं है ।
ले िकन छोटी सीढ़ी होने की वजह से आपको अड़चन नहीं आती, आप स लकर उतर आते ह। इतना ही फक पड़ता
है ।

मन को वश म करना सीिढ़यों वाला माग है । और मन को िनरं कुश छोड़कर छलां ग लगा जाना गै र-सीिढ़यों वाला माग
है ।

जापान म बौ धम की दो शाखाएं ह। एक शाखा को कहते ह, सोटो झेन। और एक शाखा का नाम है, रं झाई झेन।
एक शाखा है , जो मानती है िक सडे न एनलाइटे नमट, अचानक िनवाण की उपल । वह छलांग वाला रा ा है ।
दू सरी मानती है, े जुअल एनलाइटे नमट; वह मशः, एक-एक म, एक-एक सीढ़ी चलने वाला माग है ।

मोझट के पास एक आदमी गया। और उस आदमी ने मोझट से पूछा िक िजस भां ित तु मने सात वष की उ म सं गीत
की सम कला उपल कर ली थी, म भी िकस भां ित उसको उपल क ं , उसी तरह? मोझट ने कहा, तु ारी
उ िकतनी है ? उस आदमी ने कहा, मेरी उ तो पतालीस पार कर गई है । उसने कहा, तु मको सात वष म आना
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चािहए था, एक। और दू सरी बात ान रखना, यह तु मसे न हो सकेगा। उसने कहा, ले िकन ों न हो सकेगा? तु मसे
हो सका, मुझसे ों न हो सकेगा? मोझट ने कहा, इसिलए िक म िकसी से कभी पूछने नहीं गया। तु म पूछने आए हो!

पूछने वाला तो सीिढ़यां ही चढ़ सकता है । पूछने वाला सडे न नहीं हो सकता। पूछने का मतलब ही है िक सीिढ़यां
पूछने गया है िक स लकर कैसे चढ़ जाएं , उतर जाएं । न पूछने वाला छलां ग लगाता है ।

मोझट ने कहा, मुझम तु मम फक है । म िकसी से पूछने नहीं गया। तु म पूछने आए हो।

पूछने वाले को सीिढ़यां बतानी पड़गी। जो लोग छलां ग लगा सकते ह, वे िबना गु के या ा कर सकते ह। ले िकन
िजसको गु की ज रत हो, वह छलां ग नहीं लगा सकता।

िबना गु के वही आदमी चल सकता है , जो छलां ग लगा सकता हो। ोंिक गु की कोई ज रत नहीं है । हम न
कोई माग पूछ रहे ह, न हम कोई सीिढ़यां पूछ रहे ह। सीिढ़यां और माग पूछने का मतलब यह है िक कुशलता से,
िबना तकलीफ के, िबना अड़चन के, सरलता से, िबना िकसी झंझट के, िबना िकसी उप व म पड़े , िबना िकसी खतरे
म पड़े , म कैसे िनकल जाऊं? गु ढूंढ़ने का यही मतलब है ।

इसिलए छलां ग लगाने वाले के िलए माग बताने की कोई ज रत नहीं है । जो छलां ग लगाने वाला है, वह लगा जाता
है ।

यही तो झंझट होती है । कृ मूित के पास लोग जाते ह और पूछते ह, हाउ टु बी अवे यर? और कृ मूित कहते ह,
डोंट आ मी हाउ। मत पूछो, कैसे!

नहीं, कृ मूित को पता नहीं है िक जो पूछता नहीं है कैसे, वह आएगा काहे के िलए आपके पास! वह जो आया है,
वह कैसे पूछने वाला ही है । असल म कैसे पूछने के िलए ही तो कोई आता है । नहीं तो आने की कोई ज रत नहीं।
आप जहां ह, वहीं से छलां ग लगा जाएं , पूछने की ज रत ा है , िकस िदशा म लगाएं ? कैसे लगाएं ? िजसने पूछा,
िकस िदशा म, कैसे, िकस िविध से, वह आदमी सीिढ़यां उतरे गा।

मन को वश म करना सीिढ़यों वाला उपाय है । एक-एक कदम उठाया जा सकता है । धीरे -धीरे अ ास िकया जा
सकता है । छलां ग लगाने वाला मामला ब त उलटा है । कभी-कभी कोई आदमी छलां ग लगा पाता है ।

बु के जीवन म उ ेख है िक बु एक गांव से गु जरते ह। लोग कहते ह, मत जाओ, आगे एक डाकू है , वह ह ा


कर रहा है लोगों की। रा ा िनजन हो गया है । वह अंगुिलमाल िकसी को भी मार दे ता है । तु म मत जाओ इस रा े
से । बु कहते ह, अगर मुझे पता न होता, तो शायद म दू सरे रा े से भी चला जाता। ले िकन अब जब िक मुझे पता
है , इसी रा े से जाना होगा। लोग कहते ह, ले िकन िकसिलए? बु कहते ह, इसिलए िक वह बे चारा ती ा करता
होगा। लोग िमल न रहे होंगे; उसको बड़ी तकलीफ होती होगी। कोई गदन तो िमलनी चािहए गदन काटने वाले को!
और अपनी गदन का इतना भी उपयोग हो जाए िक िकसी को थोड़ी शां ित िमल जाए, तो बु रा ा है ! बु आगे बढ़
जाते ह।

अंगुिलमाल दे खता है , कोई आ रहा है दू र से, तो अपने प र पर, अपने फरसे पर धार रखने लगता है । ब त िदन हो
गए, जं ग खा गया फरसा। कोई िनकलता ही नहीं रा े से । उसने कसम खा ली है िक एक हजार लोगों की गदन
काटकर, उनकी अंगुिलयों का हार बनाना है , इसिलए वह अंगुिलमाल उसका नाम पड़ गया। उसने नौ सौ िन ानबे
आदमी मार िदए, एक की ही िद त है । उसी म वह अटका आ है । कोई िनकलता ही नहीं! रा ा करीब-करीब
बं द हो गया है ! िकसी को आते दे खकर, अित स होकर वह अपने फरसे पर धार रखता है ।
279

ले िकन जै से-जै से बु करीब आते ह, और जै से-जै से वह साफ दे ख पाता है , उसको थोड़ा लगता है िक िनरीह आदमी,
सीधा-सादा आदमी, शांत आदमी! इस बे चारे को शायद पता नहीं है िक यहां अंगुिलमाल है और रा ा िनजन हो गया
है । इसको एक चेतावनी दे दे नी चािहए। इसको एक दफा कह दे ना चािहए िक तू खतरनाक रा े पर आ रहा है ।

अंगुिलमाल के पास जब बु प ं च जाते ह, तो वह िच ाता है िक हे िभ ु! लौट जा वापस। शायद तु झे पता नहीं, तू


भू ल से आ गया है । इस माग पर कोई आता नहीं। और ते री शांत मु ा को दे खकर, ते री धीमी गित को दे खकर, ते रे
सं गीतपूण चलने को दे खकर मुझे लगता है िक तु झे माफ कर दू ं । तू लौट जा। एक शत, अगर तू लौट जाए, तो म
फरसा न उठाऊं। ले िकन अगर एक कदम भी आगे बढ़ाया, तो तू अपने हाथ से मरने जा रहा है । िफर मेरा कोई
िज ा नहीं है ।

ले िकन बु आगे बढ़े चले जाते ह। अंगुिलमाल और है रान होता है । िठठके भी नहीं वे । एक दफे उसकी बात के िलए
ककर सोचा भी नहीं िक िवचार कर ल। वे आगे ही बढ़ते चले आते ह। अंगुिलमाल कहता है िक दे खो, सु ना? समझे
िक नहीं? बहरे तो नहीं हो!

बु कहते ह, भलीभांित सु नता ं , समझता ं । अंगुिलमाल कहता है, क जाओ। मत बढ़ो! बु कहते ह,
अंगुिलमाल, म ब त पहले क गया। तब से म चल ही नहीं रहा ं । म तु झसे कहता ं, अंगुिलमाल, तू क जा, मत
चल। अंगुिलमाल बोला िक बहरे तो नहीं हो, ले िकन पागल मालूम होते हो। म खड़ा आ ं । मुझ खड़े ए को कहते
हो िक क जाओ! तु म चल रहे हो। चलते ए को कहते हो िक खड़े हो!

तो बु ने कहा, मने जब से जाना िक मन ही चलता है , और जब मन क जाता है , तो सब क जाता है । ते रा मन


ब त चल रहा है । इतनी दू र से तू मुझे दे ख रहा है , और ते रा मन चल रहा है । फरसे पर धार रख रहा है, ते रा मन चल
रहा है । अभी तू सोच रहा है , तेरा मन चल रहा है । मा ं , न मा ं । यह आदमी लौट जाए, आए। ते रा मन चल रहा है ।
ते रे मन के चलने को म कहता ं , अंगुिलमाल, तू क जा।

अंगुिलमाल ने कहा, मेरी िकसी की बात मानने की आदत नहीं है । तो ठीक है । तु म आगे बढ़ो, म भी फरसे पर धार
रखता ं । वह फरसे पर धार रखता है; बु आगे आ जाते ह। बु सामने खड़े हो जाते ह। वह अपना फरसा उठाता
है ।

बु कहते ह, ले िकन मरते ए आदमी की एक बात पूरी कर सकोगे? अंगुिलमाल ने कहा, बोलो। कोई बात पूरी
करने के िलए तो हजार आदमी मने काटे ! तु म बोलो; बात पूरी क ं गा। मेरे वचन का भरोसा कर सकते हो। बु ने
कहा, वह म जानता ं । कोई िदया गया वचन ही हजार आदमी मारने के िलए उसको मजबू र िकया है । तो बु ने
कहा, इसके पहले िक म म ं , एक छोटी-सी बात जानना चाहता ं । यह सामने जो वृ लगा है , इसके दो-चार प े
मुझे काटकर दे दो।

उसने फरसा वृ म मारा। दो-चार प े ा, दो-चार शाखाएं कटकर नीचे िगर गईं। बु ने कहा, यह आधी बात
तु मने पूरी कर दी। अब इनको वापस जोड़ दो! उस अंगुिलमाल ने कहा, तु म िनि त पागल हो। तोड़ना सं भव था,
जोड़ना सं भव नहीं है ।

तो बु ने कहा, अंगुिलमाल, तोड़ना तो ब े भी कर सकते ह। अगर जोड़ सको, तो कुछ हो, अ था कुछ भी नहीं।
तोड़ना तो ब े भी कर सकते ह। अगर जोड़ सको, तो कुछ हो। हजार गदन भी काट ली, तो म कहता ं , कुछ भी
नहीं हो। एक गदन जोड़ दो, तो म समझूंगा, कुछ हो।

अंगुिलमाल ने फरसा नीचे पटक िदया। वह बु के पैरों पर िगर गया। और बु ने कहा, अंगुिलमाल, तू आज से
उपल आ। तू आज से ा ण आ। तू आज से सं ासी आ।
280

बु के िभ ु पीछे खड़े थे । उ ोंने कहा िक हम वष से आपके साथ ह। हम से कभी आपने ऐसे वचन नहीं बोले िक
तु म ा ण ए, िक तु म उपल ए, िक तु म पा गए। और अंगुिलमाल ह ारे से, जो अभी णभर पहले गदन काटने
को तै यार था, और फरसा फककर िसफ पैर पर िगरा है, उससे आप ऐसे वचन बोल रहे ह!

बु ने कहा, यह उन थोड़े -से लोगों म से है , जो छलां ग लगा सकते ह। यह छलां ग लगा गया है । और जब अंगुिलमाल
को उठाकर खड़ा िकया, तो लोग उसका चे हरा भी न पहचान सके। वह ू र ह ारा न मालू म कहां िवदा हो गया था।
उन आं खों म जहां आग जलती थी, वहां फूल खल गए थे । वह , िजसके हाथ म फरसा था, कोई भरोसा न कर
सकता था िक इस हाथ म कभी फरसा रहा होगा। इस हाथ ने कभी फूल भी तोड़े होंगे, इतनी भी इस हाथ म कठोरता
नहीं है ।

ले िकन बु के िभ ुओं को तोर् ई ा होनी ाभािवक थी। आज का नया आदमी एकदम सीिनयर हो गया। एकदम
सीिनयर! सब छलां ग लगा गया! सब व था तोड़ दी! अंगुिलमाल बु के बगल म चलने लगा। गां व म वेश िकया।
िभ ुर् ई ा से भर गए। उ ोंने कहा, यह अंगुिलमाल ह ारा है।

बु ने कहा, थोड़ा ठहरो। उस आदमी को तु म नहीं जानते हो। वह उन थोड़े -से लोगों म से है , जो छलां ग लगा ले ते ह।
वह ह ा कर-करके ह ा से मु हो गया। और तु म ह ा िबना िकए ह ा से मु नहीं हो पाए हो। म तु मसे पूछता
ं िभ ुओ, तु ारे मन म अंगुिलमाल की ह ा का खयाल तो नहीं उठता?

एक िभ ु जो पीछे था, वह घबड़ाकर हट गया। उसने कहा, आपको कैसे पता चला? मेरे मन म यह खयाल आ रहा
था िक इसको तो खतम ही कर दे ना चािहए। नहीं तो मु , यह नंबर दो का आदमी हो गया! बु के बाद ऐसा लगता
है िक यही आदमी है! और अभी-अभी आया!

तो बु ने कहा िक म तु मसे कहता ं , तु म ह ा छोड़-छोड़कर भी नहीं छोड़ पाए। यह ह ा कर-करके भी मु हो


गया। इसके िलए मन को वश म करने की कोई ि या नहीं है । और जब गांव म गए, तो बु ने कहा, अब तु
अभी, ज ी ही माण िमल जाएगा। थोड़ी ती ा करो, ज ी माण िमल जाएगा।

गां व म जब सब िभ ु गए, तो बु ने कहा, अंगुिलमाल, िभ ा मां गने जा।

स ाट भी डरते थे । अंगुिलमाल का नाम कोई ले दे , तो उनको भी कंपन हो जाता था। सारे गां व म खबर फैल गई िक
अंगुिलमाल िभ ु हो गया। लोगों ने दरवाजे बं द कर िलए। ोंिक भरोसा ा, िक वह आदमी एकदम िकसी की
गदन दबा दे ! दरवाजे बं द हो गए। दु कान बं द हो गईं। गांव बं द हो गया। लोग अपनी छतों पर, छ रों पर चढ़ गए।

अंगुिलमाल जब नीचे िभ ा का पा ले कर िभ ा मां गने िनकला, तो कोई िभ ा दे ने वाला नहीं था। हां, लोगों ने ऊपर
से प र ज र फके। और इतने प र फके िक अंगुिलमाल सड़क पर ल लु हान होकर िगर पड़ा। और जब लोगों ने
प र फके, तो अंगुिलमाल ने िसफ अपने िभ ा-पा म प र झेलने की कोिशश की। न उसने एक दु वचन कहा, न
एक ोध से भरी आं ख उठाई।

और जब वह ल लु हान, प रों म दबा आ नीचे पड़ा था, बु उसके पास गए। और उ ोंने कहा, अंगुिलमाल, इन
लोगों के इतने प र खाकर ते रे मन म ा होता है ? तो अंगुिलमाल ने कहा, मेरे मन म यही होता है िक जै सा
नासमझ म कल तक था, वै से ही नासमझ ये ह। परमा ा, इनको मा कर। और मेरे मन म कुछ भी नहीं होता। तो
बु ने अपने िभ ुओं से कहा िक इसको दे खो, यह िबना िविध के छलां ग लगा गया है ।

कृ इसिलए उस छोटे -से िह े म छोड़ दे ते ह, दु ा कहते ह, असंभव नहीं कहते ह। सरल कहते ह उसको,
िजसने मन को वश म िकया, ोंिक मन को इं च-इं च वश म िकया जा सकता है । अगर हजार घोड़े ह आपके मन के
रथ म, तो आप एक-एक घोड़े को धीरे -धीरे लगाम पहना सकते ह। एक-एक घोड़े को धीरे -धीरे टे न कर सकते ह,
िशि त कर सकते ह। और एक िदन ऐसा आ सकता है िक रथ ऐसा चलने लगे िक आप समता को उपल हो
जाएं ।
281

िवपरीत के बीच समता को उपल होना किठन है , सानुकूल के बीच समता को उपल होना आसान है । अनुकूल
के बीच समता को उपल होना आसान है, ितकूल के बीच समता को उपल होना अित किठन है ।

इसिलए कृ कहते ह, मन को वश म करके, अनुकूल थित बनाकर, शां त हो जाना सरल है ।

अगर चारों तरफ ह रयाली भरे वृ हों, पि यों के मधु र गीत हों, सु बह की ताजी हवा हो, सू रज का उठता आ,
जागता आ नया प हो, तो उसके बीच बै ठकर ान करना आसान है । बाजार हो, चारों तरफ उप व चल रहा हो,
आग लगी हो, उसके बीच बै ठकर, ितकूल के बीच ान म उतरना किठन है ।

ले िकन असंभव नहीं है । ऐसे लोग ह, जो मकान म आग लगी हो, और ान म उतर सकते ह। ऐसे लोग ह, जो बीच
बाजार म बै ठकर ान म उतर सकते ह।

कृ उन लोगों म से ही ह। नहीं तो कृ यु के मैदान पर जाने को राजी न होते। राजी हो जाते ह, ोंिक कोई
अड़चन नहीं है । वहां भी िच वै सा ही रहे गा। यु होगा, लाश पट जाएं गी, खून की धाराएं बहगी–िच वै सा ही रहे गा।
इसीिलए तो वे अजु न को कह पाते ह िक अजु न, तू बे िफ ी से काट, कोई कटता ही नहीं। बस, तू एक खयाल छोड़ दे
िक तू काटने वाला है, बस। कटने वाला कोई भी नहीं है यहां । ते री ां ित भर तू छोड़ दे िक म िकसी को मार डालूं गा,
िक कोई मेरे ारा मार डाला जाएगा, िक मेरे ारा िकसी को दु ख प ं च जाएगा।

कृ कहते ह, दु ख सदा अपने ही ारा प ंचता है , िकसी और के ारा नहीं। तू भर यह खयाल छोड़ दे िक ते रे ारा!
अ था ते रा यह खयाल तु झे दु ख प ं चा जाएगा, और कुछ नही ं होगा। सब अपने ही कारण से मरते ह, िनिम कुछ
भी बन जाए। तू िनिम से ादा नहीं होगा, कता नहीं होगा। इसिलए तू मारने-काटने की िफ छोड़ दे । और िफर
कौन कब कटता है ! शरीर ही कटता है । वह जो भीतर है, अनकटा रह जाता है । उसे तो श भी नहीं छे द पाते; उसे
तो कोई काट नहीं पाता। आग जला नहीं पाती, पानी डु बा नहीं पाता।

यह जो कृ ऐसा कह सकते ह, ऐसा जानते ह इसिलए। इसिलए यु के मैदान पर खड़े हो सके ह। ये वे थोड़े -से जो
लोग ह करोड़ों म, उनम से एक आदमी यु के मैदान पर खड़ा हो सकता है । नहीं तो अिहं सावादी भागेगा यु के
मैदान से । िसफ वही अिहं सावादी यु के मैदान पर भी खड़ा होकर अिहं सक हो सकता है , िजसने मन को वश म
करने की िविध से पार नहीं पाया, मन को ं द छोड़कर पाया है । िजसने मन को वश म िकया है , वह अिहं सावादी
यु से दू र भागेगा। वह कहे गा, कहीं कोई मेरी लगाम टू ट जाए! यु का उप व, कोई घोड़ा छूट जाए! कोई झंझट हो
जाए! तो मेरी सारी व था बनी बनाई, कभी भी िव ंखल हो सकती है ।

इसिलए कृ कहते ह, सरल है । और सरल से ही जाना उिचत है । सरल का अथ ही यही है िक जो अिधकतम लोगों
के िलए सु गम पड़े गा, अनुकूल पड़े गा, भाव के साथ पड़े गा। सहज है ।

ले िकन तीसरी बात, और मह पूण, कृ कहते ह, यह मेरा मत है । ऐसा कहने की ा ज रत है कृ को िक यह


मेरा मत है? कह सकते थे, यह स है । स और मत का थोड़ा फक समझ ल।

थ का मतलब होता है , ऐसा है, म क ं या न क ं । कोई जाने न जाने; कोई माने न माने–ऐसा है । मत का अथ होता
है , जै सा है , उसके बाबत मेरा िवचार, ओपीिनयन अबाउट िद थ, स के सं बंध म मेरा िवचार। स नहीं, मेरा
िवचार। िवचार म भू ल-चूक हो सकती है । िवचार म कमी भी हो सकती है । िवचार म अिभ -दोष भी हो सकता
है । िवचार म भाषा के कारण, जो कहा गया, वह अ था भी समझा जा सकता है । श बोलते ही आपके हाथ म चला
जाता है । मने श बोला, तो आपके हाथ म चला जाता है । ा ा आप करगे ।

इसिलए कृ ब त ही ठीक बात कह रहे ह। वे कहते ह, यह मेरा मत है अजु न। मत का अथ है िक जै से ही स को


श िदया गया, वह मत हो जाता है, स नहीं रह जाता। स जब िनःश होता है , तभी स होता है ।
282

इसिलए जो लोग श ों म स का आ ह करते ह, उनको स का कोई भी पता नहीं है । श ों म जो स का


आ ह करता है , उसे स का कोई भी पता नहीं है । श ों म ादा से ादा, बस मत की बात कही जा सकती है,
िक मेरा ओपीिनयन है अजु न।

फक है ब त। अगर कह िक स है यह, तो मानने का आ ह वजनी हो जाता है । मत है यह, तो मानो न मानो,


तं ता कायम रहती है । स को तो मानना ही पड़े गा। मत को अ ीकार भी िकया जा सकता है ।

िफर और भी कारण ह। जै से ही स को हम कट करते ह, वह मत हो जाता है । इसिलए सभी शा मत ह,


ओपीिनयन का सं ह ह। कोई शा स का सं ह नहीं है , न हो सकता है ।

काश, दु िनया के सभी धम यह समझ पाएं िक उनका जो शा है , वह एक मत है, स नहीं है , तो झगड़ा न हो।
ोंिक स के सं बंध म हजार मत हो सकते ह। हजार स नहीं हो सकते । ले िकन चूं िक ेक शा दावा करता है
स का, इसिलए दो स ों म–दो स कैसे मान–कलह खड़ी हो जाती है ।

मत है! अजु न को कहा गया कृ का यह व बड़ा कीमती है , यह मेरा मत है । कृ जै सा आदमी कहे िक यह


मेरा मत है, अदभुत है । ोंिक कृ जै सा आदमी सहज ही कह पाता है , यह स है । िबना िफ िकए, िबना सोचे-
समझे उससे िनकलता है, यह स है, ोंिक वह स को जानता है । यह ब त कंसीडड व है , ब त सोचकर
कहा गया िक यह मत है अजु न। इसको तु म ऐसा मत समझ ले ना िक यही स है । अ था श ों पर गां ठ बन जाएगी
और श ों की ा ा तु म करोगे ।

अगर मत है , तो इसका अथ यह आ िक स तु पाना पड़े गा, इस मत से स नहीं िमलेगा। मत से िसफ सू चना


िमलती है िक मुझे स िमला। अगर तु भी स पाना है , तो तु भी चे ा और म और अ ास और साधना करनी
पड़े गी, तब तु म स पाओगे। अगर म क ं िक जो म कह रहा ं , यही स है , तो आपको श से ही स िमल
गया। अब साधना की और ा ज रत रह गई है ! साधना की सु िवधा बनी रहे । अजु न को पता रहे िक स अभी
पाना है । जो िमला है , वह मत है। भगवान भी बोले, तो जो िमले गा, वह मत होगा, स नहीं होगा। साधना के िलए
उपाय शे ष रहे गा ही।

िफर साथ म यह भी ज री है समझ ले ना िक मत को िवचारा जा सकता है । इसिलए जब तक जो आदमी िवचार म


पड़ा है , उससे मत की ही बात की जा सकती है , स की बात नहीं की जा सकती है । ोंिक वह इस पर सोचे गा।
अजु न जो सु नेगा, उस पर सोचे गा भी, उसका अथ भी िनकालेगा, ा ा भी करे गा। और अथ और ा ाएं ! अथ
और ा ाएं हमारी होती ह।

जब अजु न अथ िनकालेगा, तो वह कृ का नहीं होगा, वह अजु न का होगा। हां , अगर अजु न इस हालत म आ जाए
िक सोचना छोड़ दे , ा ा करना छोड़ दे , अथ िनकालना छोड़ दे , िसफ सु न सके; इतना शू और खाली हो जाए
िक अपने मन को िवदा कर दे –तो िफर मत स की तरह वेश कर सकता है । ले िकन ऐसा अित किठन है । ऐसा
अित किठन है ।

इसिलए कृ कहते ह, यह मत है ।

अजु न उवाच

अयितः योपेतो योगा िलतमानसः।


अ ा योगसंिस ं कां गितं कृ ग ित।। 37।।
क ोभयिव ा िमव न ित।
अ ित ो महाबाहो िवमू ढो णः पिथ।। 38।।
283

एत े सं शयं कृ छे ु मह शेषतः।
द ः सं शय ा छे ा न ह्युपप ते।। 39।।

इस पर अजु न बोला, हे कृ , योग से चलायमान हो गया है मन िजसका, ऐसा िशिथल य वाला ायु पु ष,
योग-िस को अथात भगवत-सा ा ार को न ा होकर, िकस गित को ा होता है ।

और हे महाबाहो, ा वह भगव ा के माग म मोिहत आ आ यरिहत पु ष िछ -िभ बादल की भां ित दोनों


ओर से अथात भगवत ा और सां सा रक भोगों से आ न तो नहीं हो जाता है ।

हे कृ , मेरे इस सं शय को सं पूणता से छे दन करने के िलए आप ही यो ह, ोंिक आपके िसवाय दू सरा इस सं शय


का छे दन करने वाला िमलना सं भव नहीं है ।

सु ना अजु न ने कृ की बात को; जो उठना चािहए था सं शय, वही उसके मन म उठा। अजु न ब त ेिड े बल है ।
अजु न के सं बंध म भिव वाणी की जा सकती है िक उसके मन म ा उठे गा। जो मनु के मन म उठता है सहज,
वह उठा उसके मन म।

उठा यह सवाल िक योग से चलायमान हो जाए िजसका िच , भु-िमलन से जो िवचिलत हो गया है , खो चु का है जो


उस िनिध को–य िप ायु है , चाहता भी है िक पा ले, कोिशश भी करता है िक पा ले , िफर भी मन िथर नहीं
होता–तो ऐसे की गित ा होगी?

यह डर ाभािवक है । त ाल पीछे पूछता है िक कहीं ऐसा तो न होगा िक जै से कभी आकाश म वायु के झोंकों म
बादल िछतर-िबतर होकर न हो जाता है । कहीं ऐसा तो न होगा िक दोनों ही छोरों को खो गया आदमी! यहां सं सार
को छोड़ने की चे ा करे िक परमा ा को पाना है , और वहां मन िथर न हो पाए और परमा ा िमले नहीं! तो कहीं ऐसा
तो न होगा िक राम और काम दोनों खो जाएं और वह आदमी एक बादल की तरह हवाओं के दोनों तरफ के झोंकों म
िछतर-िबतर होकर न हो जाए। कहीं ऐसा तो न होगा?

सं सार को छोड़ते समय मन म यह सवाल उठता ही है िक कहीं ऐसा तो न हो िक म सं सार की तरफ वै रा िनिमत
कर लूं, तो सं सार भी छूट जाए, और परमा ा को पा न सकूं, ोंिक मन बड़ा चंचल है । तो सं सार भी छूट जाए और
परमा ा भी न िमले; तो म घर का न घाट का; धोबी के गधे जैसा न हो जाऊं!

अभी कहीं तो ं , सं सार म सही। अभी कुछ तो मेरे पास है । माना िक ामक है , माना िक सपने जै सा है , िफर भी है
तो। सपना ही सही, झूठा ही सही, िफर भी भरोसा तो है िक मेरे पास कुछ है । कोई मेरा है । प ी है , पित है , बे टा है ,
बे टी है , िम ह, मकान है । माना िक झूठा है । कल मौत आएगी, सब छीन ले गी। ले िकन मौत जब तक नहीं आई है ,
तब तक तो है । और माना िक कल सब राख म िगर जाएगा। ले िकन जब तक नहीं िगरा, तब तक तो है ; तब तक तो
सां ना है ।

कहीं ऐसा तो न होगा, हे महाबाहो, िक इसे भी छोड़ दे आदमी, और िजसकी तु म बात करते हो, उस राम को पाने की
वासना से मोिहत हो जाए, तु ारा आकषण पकड़ ले । और तु म जै से आदमी खतरनाक भी ह। उनकी बात आकषण
म डाल दे ती ह। मोह पैदा हो जाता है िक पा ल इस को, पा ल इस आनंद को, िमले यह समािध, हो जाए िनवाण
हमारा भी, हम भी प ंच उस जगह, जहां सब शू है और सब मौन है , और जहां परम स का सा ा ार है । तु ारे
मोह म पड़ा, तु ारी बात के आकषण म पड़ा आदमी सं सार को छोड़ दे , खूंटी तोड़ ले यहां से, और नई खूंटी न गाड़
पाए। यह तट भी छूट जाए सं सार का, उस तट की कोई खबर नहीं। नाव कमजोर है , हवा के झोंके ते ज ह, कंपती है
ब त। पतवार कमजोर, हाथ चलते नहीं, और दू सरे िकनारे भी न प ं च पाएं , तो कहीं दोनों िकनारों से भटक गई
नौका की तरह, हवा के तू फानी थपेड़ों म नाव डूब तो न जाए! कहीं ऐसा तो न हो िक यह भी छूटे और वह भी न िमले!

धम की या ा पर िनकले ए आदमी को यह सवाल उठता ही है । उठे गा ही। यह िबलकुल ाभािवक है । जब भी हम


कुछ छोड़ते ह, तो यह सवाल उठता है िक यह छूटता है, दू सरा िमले गा या नहीं? एक सीढ़ी से पैर उठाते ह, तो
284

भरोसा प ा कर ले ते ह िक दू सरी सीढ़ी पर पैर पड़े गा या नही?ं दू सरी सीढ़ी प ी हो जाए, तो हम उस पर पैर रख
ल। िक जब भरोसा है पूरा, तब पहले से उठाते ह।

इसिलए अजु न कहता है, हे कृ , मेरे सं शय को पूण प से छे द डाल। मुझे प ा करवा द आ ासन, िक िमल ही
जाएगा दू सरा तट, तािक म िनःसंशय इस तट को छोड़ सकूं। छे द कर द, छे द डाल मेरे इस सं देह को। जरा भी बाकी
न रहे । यह अगर जरा भी बाकी रहा, तो तट छोड़ने म मुझे किठनाई होगी। एकाध जं जीर को म तट से बां धे ही र ं गा।
एकाध लं गर नाव का म डाले ही र ं गा। दू सरे तट पर जाने की मेरी िह त कमजोर होगी। डर लगे गा िक पता नहीं,
पता नहीं दू सरा िकनारा है भी या नहीं! होगा भी, तो िमले गा भी या नहीं! और जै सा मन मेरा है , उसे म भलीभांित
जानता ं । और जो शत तु मने कहीं, वे भी मने ठीक से सु न लीं िक मन िबलकुल िथर हो जाए। और म भलीभांित
जानता ं िक ण को मन िथर होता नहीं। सब घोड़े वश म आ जाएं ! और म भलीभां ित जानता ं िक एक भी घोड़ा
वश म आता नहीं। सब इं ि यों के म पार चला जाऊं! और भलीभां ित जानता ं िक इं ि यों के अित र मेरा कोई पार
का अनुभव नहीं है ।

तो कहीं ऐसा न हो िक तु ारी शत! और कल तु म तो कह दोगे िक शत तु मने पूरी नहीं कीं, तो तु िकनारा नहीं
िमला। ले िकन मेरा ा होगा? यह तट भी छूट जाए, वह तट भी न िमले, तो कहीं िबखर तो न जाऊंगा! टू ट ही तो न
जाऊंगा! गित ा होगी मेरी? इस सं शय को पूरा ही छे द डालो कृ ! पूरा ही।

और कृ से वह कहता है , तु म जै सा आदमी दू सरा िमलना मु ल है । सं भव नहीं िक तु म जैसा आदमी म िफर पा


सकूं, जो मेरे इस सं शय को छे द डाले ।

ऐसा अजु न ने ों कहा होगा?

सं शय को वही छे द सकता है , िजसकी आं खों म यं सं शय न हो। जो असंिद मना हो, जो िनःसंशय हो, जो अपने
ही भीतर इतने भरोसे से भरपूर हो िक उसका भरोसा ओवर ो करता हो, बाहर बहता हो। िजसके रोएं -रोएं से पता
चलता हो िक उस आदमी के मन म कोई सं शय, कोई नहीं ह।

कृ जै से आदमी नहीं पूछते कभी। कृ जै से आदमी कभी िकसी के पास शं का िनवारण के िलए नहीं जाते ।
अजु न भलीभां ित जानता है िक कृ कभी िकसी के पास शं का िनवारण को नहीं गए। भलीभां ित जानता है , इनके मन
म कभी नहीं उठा। भलीभांित जानता है िक ये िबलकुल िनःसंशय म जीते ह। ऐसा आदमी खोजना मु ल है ,
किठन है । सिदयां बीत जाती ह, तब कभी ऐसा आदमी उपल होता है ।

िजसके मन म कोई सं शय नहीं है , वही तो दू सरे के सं शय को काट पाएगा। िजसके मन म यं ही ब त तरह के


सं शय ह, वह दू सरे के सं शय को काटने भला जाए, और जड़ों को पानी सींचकर लौट आएगा।

हम सब यही करते ह। हम सब एक-दू सरे का सं शय काटते ह। बे टे का सं शय बाप काट रहा है ; और बाप खुद
सं िद है ! उसे खुद पता नहीं िक मामला ा है ! बे टा पूछता है , यह पृ ी िकसने बनाई? बाप कहता है, भगवान ने।
और भीतर-भीतर डरता है िक बे टा अब आगे न पूछे िक भगवान िकसने बनाए? और कहीं बे टा जोर से न पूछ ले िक
भगवान कहां है ? दे खा है ? ोंिक बे टे आमतौर से नहीं पूछते, इसिलए बाप अपने झूठ कहे चले जाते ह।

ले िकन थोड़े ही िदन म बे टा जवान होगा और जान ले गा िक बाप को भी पता नहीं है । ले िकन वह यह भी जान ले गा िक
बे टों के सामने जानने का मजा िलया जा सकता है । अपने बे टों के सामने वह भी ले गा। और ऐसा चलता है । गु
असंिद भाव से जवाब दे ता मालू म पड़ता है, ले िकन भीतर सं देह खड़ा होता है ।

कृ जै सा आदमी अजु न को िमले, तो ाभािवक है उसका कहना िक हे महाबाहो, तु म जै सा आदमी िफर नहीं
िमले गा। तु म काट ही डालो। अगर तु म न काट पाए मेरे सं देह को, तो िफर म आशा नहीं करता िक कुछ हो सकता
है । िफर म होपले स हालत म हो जाऊंगा, िबलकुल आशारिहत। िफर मेरी कोई आशा नहीं है । ोंिक जै सा म अपने
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को जानता ं, वै सा तो म इसी िकनारे से बं धा र ं गा। कम से कम कुछ तो मु ी म है । और जो तु म कह रहे हो, वह


बात जं चती है , ले िकन मेरे सं शय को काट डालो।

यहां दो ीन बात खयाल म ले ले नी ज री ह।

एक तो बात यह खयाल म ले लेनी ज री है िक सां सा रक मन का यह ल ण है िक वह िकसी चीज को छोड़ सकता


है िकसी चीज के पाने के भरोसे। सहज नहीं छोड़ सकता। पाने का भरोसा हो, तो छोड़ सकता है िकसी चीज को।
ाग करने म सां सा रक मन मु ल नहीं पाता, ले िकन ाग इनवे मट होना चािहए। ाग कुछ और पाने के िलए
िसफ व था बनाना चािहए।

और जब ाग िकसी और को पाने के िलए होता है , तो ाग नहीं होता, िसफ सौदा होता है । इसिलए सां सा रक मन
ाग को समझ ही नहीं पाता, िसफ बागिनंग समझता है, सौदा समझता है । वह कहता है िक ठीक है ; प ा है िक म
यहां कुछ दान क ं , तो ग म उ र िमल जाएगा? प ा है िक यहां एक मंिदर बना दू ं , तो भगवान के मकान के
पास ही ठहरने की जगह िमले गी? प ा है ? तो म कुछ ाग कर सकता ं ।

सां सा रक मन, पाने का प ा हो जाए, तो छोड़ सकता है । पाने के िलए ही छोड़ सकता है । बड़ा अदभु त है यह।
बड़ा कंटािड री है यह। यह हो नहीं सकता। अगर पाने के िलए ही छोड़ रहे ह, तो छोड़ना नहीं हो सकता। और
किठनाई यह है िक जो छोड़ता है , वही पाता है ।

अब इस व को, इस पैराडा को, इस उलटबां सी को ठीक से समझ ले ना चािहए।

कबीर के पास लोग जाते थे, तो वे उलटबां िसयां कहते थे । कोई उनसे पूछता था िक उलटी-सीधी बात आप कहते ह,
हमारी कुछ समझ म नहीं पड़तीं! तो वे कहते, तु म जाओ। ोंिक िफर आगे की िजस या ा पर मुझे तु ले जाना है ,
वे सब उलटबां िसयां ह। उलटबां सी का मतलब होता है , पैराडा ।

जै से कबीर के पास कोई जाएगा और पूछेगा, परमा ा है ? तो कबीर उसको इसका उ र न दगे । वे कहगे, समुं द
लागी आिग, निदयां जल भईं राख। वह आदमी कहेगा, आप ा कह रहे ह! समु म आग लग गई है और निदयां
जलकर राख हो गई ह? कबीर कहगे, तू जा। अगर राजी हो, तो क। ोंिक आगे िफर और उप व होगा।

कोई आकर पूछेगा, आ ा ा है ? और कबीर कहगे, जाग कबीरा जाग। माछी चढ़ गई ख! मछली जो है, वह
झाड़ पर चढ़ गई है ; कबीर जाग! वह आदमी कहेगा, म आ ा के सं बंध म समझने आया। कहां की मछिलयां! कहां
के ख! कभी मछिलयां झाड़ों पर चढ़ी ह? कबीर कहगे, तू जा। ोंिक आगे की बात और किठन ह।

यह जो कृ से अजु न पूछ रहा है , उसका उ र, उसकी दु िवधा असल म यही है । दु िवधा ाग की यही है िक ाग
िबना पाने की आशा के िकया जाए, तो होता है । और जो िबना पाने की आशा के ाग करता है , वह ब त पाता है ।
जो पाने की आशा से ाग करता है, वह पाने की आशा से करता है, इसिलए ाग नहीं हो पाता। और चूं िक ाग
नहीं हो पाता, इसिलए वह कुछ भी नहीं पाता है ।

िजसे पाना हो, उसे पाने की बात छोड़ दे नी चािहए। िजसे न पाना हो, उसे पाने की बात करते चले जाना चािहए।
सां सा रक मन नहीं समझ पाएगा यह, वह कहे गा िक पाने की बात छोड़ दू ं ! अ ा छोड़े दे ते ह। ले िकन पाना ा सच
म छोड़ने से हो जाएगा? उसका भीतरी, भीतरी जो सां सा रक मन की बनावट है , जो इनर र है , जो मेकेिन है,
वह यह है ।

मेरे पास लोग आते ह, वे कहते ह िक हम ान ब त करते ह, शां ित नहीं िमलती। तो म उनसे कहता ं, तु म शां ित
की िफ छोड़ दो। तु म शां ित चाहो ही मत। िफर तु म ान करो। और शां ित िमल जाएगी, बट दै ट िवल बी ए
कां िस स। वह प रणाम होगा सहज। तु म मत मां गो। डोंट मेक इट ए रज , इट िबल बी ए कां िस स। तु म फल
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मत बनाओ उसे, वह प रणाम होगा। वह हो ही जाएगा; उसकी तु म िफ न करो। वे कहते ह, तो िफर हम शां ित का
खयाल छोड़ द, िफर शां ित िमल जाएगी?

वे शां ित का खयाल भी छोड़ने को राजी ह, एक ही शत पर, िक शां त िमल जाएगी?

अब शां ित की तलाश अशां ित है । इसिलए शां ित का तलाशी कभी शां ित नहीं पा सकता। तलाश अशांित है । और शां ित
की तलाश महा अशांित है ।

ऐसा है । िदस इज़ िद फै िसटी, यह ऐसा त है , ऐसा अ है , इसम कोई उपाय नहीं है । इस अ की शत


को मान तो ठीक, न मान तो दु ख भोगना पड़ता है । इस अ की शत ही यह है । उस पार जाने की शत यह है िक
यह िकनारा छोड़ो। और यह भी शत है िक उस िकनारे की बात मत करो।

अजु न कहता है, मुझे िनःसंिद कर द। हे महाबाहो, तु ारी बांह बड़ी िवशाल ह। तु म दू र के तट छू ले ते हो। तु म
असीम को भी पा ले ते हो। तु म मुझे कह दो, भरोसा िदला दो।

ले िकन सच ही ा कृ का भरोसा अजु न के िलए भरोसा बन सकता है ? ा कृ यह कह द िक हां , िमले गा


दू सरा िकनारा, तो भी ा सं देह करने वाला मन चु प हो जाएगा? ा वह मन नया सं देह नहीं उठाएगा? िक अगर
कृ के कहने से नहीं िमला, तो? िफर कृ जो कहते ह, वह मान ही िलया जाए, ज री ा है ? िफर हम कृ की
मानकर चले भी गए और कल अगर खो गए, तो िकससे िशकायत करगे? कहीं बादल की तरह िबखर गए, तो िफर
िकससे कहगे? और अगर गित िबगड़ गई, तो कौन होगा िज ेवार? कृ होंगे िज ेवार?

अजीब है आदमी का मन। असल बात यह है िक सं देह करने वाला मन सं देह करता ही चला जाएगा। ऐसा नहीं है िक
एक सं देह का िनरसन हो जाए, तो िनरसन हो जाएगा। एक सं देह का िनरसन होते ही दू सरा सं देह खड़ा हो जाएगा।
दू सरे का िनरसन होते ही तीसरा सं देह खड़ा हो जाएगा। िफर कृ ों सं देहों को तृ करने की कोिशश कर रहे
ह? ा इस आशा म िक सं देह तृ हो जाएं गे?

नहीं, िसफ इस आशा म कृ अजु न के सं देह दू र करने की कोिशश करगे िक धीरे -धीरे हर सं देह के िनरसन के बाद
भी जब नया सं देह खड़ा होगा, तो अजु न जाग जाएगा, और समझ पाएगा िक सं देहों का कोई अंत नहीं है ।

खयाल र खए, सं देह के िनरसन से सं देह का िनरसन नहीं होता। ले िकन बार-बार सं देह के िनरसन करने से आपको
यह ृित आ सकती है िक िकतने सं देह तो िनरसन हो गए, मेरा सं देह तो वै सा का वै सा ही खड़ा हो जाता है ! यह तो
रावण का िसर है । काटते ह, िफर लग जाता है । काटते ह, िफर लग जाता है ! काटते ह, िफर लग जाता है ! कृ
अथक काटते चले जाएं गे ।

पूरी गीता सं देह के िसर काटने की व था है । एक-एक सं देह काटगे, जानते ए िक सं देह से सं देह होता है । सं देह
िकसी भी भरोसे, आ ासन से कटता नहीं है । ले िकन अजु न थक जाए कट-कटकर, और हर बार खड़ा हो-होकर िगरे ,
और िफर खड़ा हो जाए। सं देह िमटे , और िफर बन जाए; जवाब आए, और िफर बन जाए। ऐसा करते-करते
शायद अजु न को यह खयाल आ जाए िक नहीं, सं देह थ है; और आ ासन की तलाश भी बे कार है । िकसी ण यह
खयाल आ जाए, तो तट छूट सकता है ।

मगर अजु न की ास िबलकुल मानवीय है, टू ह्यूमन, ब त मानवीय है । इसिलए कृ नाराज न हो जाएं गे । जानते ह
िक मनु जै सा है , तट से बं धा, उसकी भी अपनी किठनाइयां ह।

िकसी का सपना हम तोड़ द। सु खद सपना कोई दे खता हो; माना िक सपना था, पर सु खद था; तोड़ द। तो वह
आदमी पूछे िक सपना तो आपने मेरा तोड़ िदया, ले िकन अब? अब मुझे कहां! अब म ा दे खूं? अभी जो दे ख रहा
था, सु खद था। आप कहते ह, सपना था, इसिलए तु ड़वा िदया। अब म ा दे खूं?
287

कुछ दे खने की उसकी ास ाभािवक है । मगर उस ास म बु िनयादी गलती है । आदमी के होने म ही बु िनयादी
गलती है । ास मानवीय है , ले िकन मानवीय होने म ही कुछ गलती है । वह गलती यह है िक सपना दे खने वाला
कहता है िक म सपना तभी तोडूंगा, जब मुझे कोई और सुं दर दे खने की चीज िवक म िमल जाए।

और कृ जै से लोगों की चे ा यह है िक हम सपना भी तोड़गे, िवक भी न दगे, तािक तु म उसको दे ख लो, जो


सबको दे खता है । दे खने को बं द करो। को छोड़ो। तु म एक की जगह दू सरा मां गते हो। अगर कृ
की भाषा म म आपसे क ं, तो कृ कहगे, दू सरा िकनारा है ही नहीं। यह िकनारा भी झूठ है; और झूठ के िवक म
दू सरा िकनारा नहीं होता। अगर यह िकनारा सच होता, तो दू सरा िकनारा सच हो सकता था। एक िकनारा झूठ और
एक सच नहीं हो सकता। दोनों ही िकनारे सच होंगे, या दोनों ही झूठ होंगे।

आप समझते ह! एक नदी का एक िकनारा सच और एक झूठ हो सकता है ? या तो दोनों ही झूठ होंगे, या दोनों ही


सच होंगे। अगर दोनों झूठ होंगे, तो नदी भी झूठ होगी। अगर दोनों ही सच होंगे, तो नदी भी सच होगी। अब ऐसा
समझ ल िक तीनों ही सच होंगे, या तीनों ही झूठ होंगे। तीसरा उपाय नहीं है, अ कोई उपाय नहीं है । ऐसा नहीं हो
सकता िक नदी सच हो और िकनारे झूठे हों। तो नदी बहेगी कैसे? और ऐसा भी नहीं हो सकता िक एक िकनारा सच
और दू सरा झूठा हो। नहीं तो दू सरे झूठे िकनारे का सहारा न िमले गा। तीनों सच होंगे, या तीनों झूठ होंगे।

अब अजु न कहता है , यह िकनारा तो झूठ है । कृ , म समझ गया, तु ारी बात कहती ह। तु म पर म भरोसा करता
ं । और मेरी िजं दगी का अनुभव भी कहता है , यह िकनारा झूठ है । दु ख ही पाया है इस िकनारे पर, कुछ और िमला
नहीं। इस वासना म, इस मोह म, इस राग म पीड़ा ही पाई, नक ही िनिमत िकए। मान िलया, समझ गया। ले िकन
दू सरा िकनारा सच है न!

कृ ा कहगे? अगर वे कह द, दू सरा िकनारा भी नहीं है , तो अजु न कहे गा, इसी को पकड़ लूं । कम से कम जो भी
है , सां ना तो है , आशा तो है िक कल कुछ िमले गा। तु म तो िबलकुल िनराश िकए दे ते हो।

बु जै से ने यही उ र िदया िक दू सरा िकनारा भी नहीं है , मो भी नहीं है । बड़ी किठन बात हो गई िफर।
मो भी नहीं है ! और सं सार छोड़ने को कहते हो, और मो भी नहीं है ! धन भी छोड़ने को कहते हो, और धम भी नहीं
है ! तो िफर कहते िकसिलए हो?

इसिलए बु िबलकुल सही कहे, ले िकन काम नहीं पड़ा वह स । दू सरा िकनारा भी नहीं है , तो लोगों ने कहा, िफर
हम पकड़े रहने दो।

दू सरा िकनारा नहीं है , जोर इस बात पर है िक मझधार म डूब जाना ही िकनारा है । ले िकन वह उलटबां सी की बात हो
गई। मझधार म डूब जाना ही िकनारा है । ले िकन वह उलटबां सी की बात हो गई, वह पैराडा हो गया। िकनारा तो
हम कहते ह, जो मझधार म कभी नहीं होता। िकनारा तो िकनारे पर होता है ।

ले िकन यह िकनारा भी छोड़ दो, वह िकनारा भी छोड़ दो, बीच म कौन रह जाएगा? दोनों िकनारे जहां छूट गए–सं सार
भी नहीं है, मो भी नहीं है –िफर वासना की धारा को बहने का उपाय नहीं रह जाएगा। वासना की नदी िफर बह न
सकेगी, और कामना की नाव िफर तै र न सकगी, और अहं कार के से तु िफर िनिमत न हो सकगे । तब एक तरह की
डूब, एक तरह का िवसजन, एक तरह की मु , एक तरह का मो , एक तरह की तं ता फिलत होती है । और
वही उपल है ।

ले िकन अजु न कैसे समझे उसे? कृ कोिशश करगे । वे अभी, दू सरा िकनारा है , सही है , प ंचेगा तू, आ ासन दे ता ं
म–इस तरह की बात करगे । यह िकनारा तो छूटे कम से कम; िफर वह िकनारा तो है ही नहीं। और िजसका यह छूट
जाता है, उसका वह भी छूट जाता है ।

कई बार एक झूठ छु ड़ाने के िलए दू सरा झूठ िनिमत करना पड़ता है, इस आशा म िक झूठ छोड़ने का अ ास तो हो
जाएगा कम से कम। िफर दू सरे को भी छु ड़ा लगे।
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और दो तरह के िश क ह पृ ी पर। एक, जो कहते ह, जो तु ारे हाथ म है , वह झूठ है । और हम तु ारे हाथ म


कुछ दे ने को राजी नहीं। ोंिक कुछ भी हाथ म होगा, झूठ होगा। ऐसे िश क सहयोगी नहीं हो पाते।

दू सरे िश क ादा क णावान ह। वे कहते ह, तु ारे हाथ म जो झूठ है , उसे छोड़ दो। हम तु ारे िलए स ा हीरा
दे ते ह। हालां िक कोई स ा हीरा नहीं है । हीरा िमलता है उस मु ी को, जो खुल जाती है और कुछ भी नहीं पकड़ती,
अन ंिगंग। खुली मु ी कुछ नहीं पकड़ती, उसको हीरा िमलता है । जो कुछ भी पकड़ती है , वह प र ही पकड़ती
है । पकड़ना ही–प र आता है पकड़ म। हीरा तो खुले हाथ से पकड़ म आता है । अब खुले हाथ की पकड़–
उलटबां सी हो जाती है । जाग कबीरा जाग, माछी चढ़ गई ख। समुं द लागी आग, निदयां जल भईं राख।

कृ कबीर की भाषा कभी-कभी बोलते ह बीच-बीच म, जां चने के िलए, िक शायद अजु न राजी हो। नहीं तो िफर वे
अजु न की भाषा बोलने लगते ह।

अभी इतना। िफर हम सां झ…।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


यह िकनारा छोड़ (अ ाय—6) वचन—उ ीसवां

ीभगवानुवाच

पाथ नैवेह नामु िवनाश िव ते।


न िह क ाणकृ ि द् दु गितं तात ग ित।। 40।।
हे पाथ, उस पु ष का न तो इस लोक म और न परलोक म ही नाश होता है, ोंिक हे ारे , कोई भी शु भ कम करने
वाला अथात भगवत-अथ कम करने वाला, दु गित को नहीं ा होता है ।

अजु न ने पूछा है कृ से िक यिद न प ं च पाऊं उस परलोक तक, उस भु तक, िजसकी ओर तु मने इशारा िकया है,
और छूट जाए यह सं सार भी मेरा; साधना न कर पाऊं पूरी, मन न हो पाए िथर, सं यम न सध पाए, और छूट जाए यह
सं सार भी मेरा; तो कहीं ऐसा तो न होगा िक म इसे भी खो दू ं और उसे भी खो दू ं ! तो कृ उसे उ र म कह रहे ह;
ब त कीमती दो बात इस उ र म उ ोंने कही ह।

एक तो उ ोंने यह कहा िक शुभ ह कम िजसके, वह कभी भी दु गित को उपल नहीं होता है । और चैत है जो,
भु की ओर उ ुख चैत है जो, इस लोक म या परलोक म, उसका कोई भी नाश नहीं है । इन दो बातों को ठीक से
समझ ल।

पहली बात, चे तना का इस लोक म या उस लोक म, कोई नाश नहीं है । ों?

चे तना िवन होती ही नहीं। चे तना के िवनाश का कोई उपाय नहीं है । िवनाश केवल उ ीं चीजों का होता है, जो सं योग
होती ह, कंपाउं ड होती ह। िसफ सं योग का िवनाश होता है , त का िवनाश नहीं होता।

इसे ऐसा समझ िक जो चीज िक ीं चीजों से जु ड़कर बनती है , वह िवन हो सकती है । ले िकन जो चीज िबना िकसी
के जु ड़े है , वह िवन नहीं होती। हम िसफ जोड़ तोड़ सकते ह और जोड़ बना सकते ह।

इसे ऐसा भी समझ ल िक त का कोई िनमाण नहीं होता; िनमाण केवल सं योगों का होता है । एक बै लगाड़ी हम
बनाते ह या एक मशीन बनाते ह, एक कार बनाते ह, एक साइिकल बनाते ह। साइिकल बनती है , साइिकल न हो
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जाएगी। जो भी बनेगा, वह न हो जाएगा। िजसका ारं भ है , उसका अंत भी िनि त है । ारं भ म ही अंत िनि त हो
जाता है । और ज म ही मृ ु की मुहर लग जाती है ।

ले िकन हम पदाथ को न नहीं कर सकते, ोंिक पदाथ को हम बना भी नहीं सकते ह। हम केवल सं योग बना सकते
ह। हम पानी को बना सकते ह। हाइडोजन और आ ीजन को िमला द, तो पानी बन जाएगा। िफर हाइडोजन
आ ीजन को अलग कर द, तो पानी िवन हो जाएगा। ले िकन आ ीजन? आ ीजन को हम न बना सकगे । या हो
सकता है , िकसी िदन हम बना सक। िकसी िदन यह हो सकता है –िजसकी सं भावना बढ़ती जाती है–िक हम
आ ीजन को भी बना सक। िजस िदन हम बना सकगे, उस िदन आ ीजन एिलमट नहीं रहेगी, कंपाउं ड हो
जाएगी। उस िदन आ ीजन त नहीं कही जा सकेगी, सं योग हो जाएगी। िकसी िदन हम आ ीजन को बना लगे
इले ा से, ूटा से, और भी जो अंितम िवघटन हो सकता है पदाथ का, उससे। ले िकन इले ान को िफर हम
न बना सकगे ।

त वह है , िजसे हम न बना सकगे । इस दे श ने त की प रभाषा की है , वह िजसे हम पैदा न कर सकगे और िजसे


हम न न कर सकगे । अगर िकसी त को हम न कर ले ते ह, तो िसफ इतना ही िस होता है िक हमने गलती से
उसे त समझा था; वह त था नहीं। अगर िकसी त को हम बना ले ते ह, तो उसका मतलब इतना ही आ िक
हम गलती से उसे त कह रहे ह; वह त है नहीं।

दो त ह जगत म। एक, जो हम चारों तरफ फैला आ जड़ का िव ार िदखाई पड़ता है, मैटर का। वह एक त है ।
और एक जीवन चैत , जो इस जगत म फैले िव ार को दे खता और जानता और अनुभव करता है । वह एक त है ,
चै त , चे तना। इन दो त ों का न कोई िनमाण है और न कोई िवनाश है । न तो चे तना न हो सकती है और न पदाथ
न हो सकता है ।

हां, सं योग न हो सकते ह। म मर जाऊंगा, ोंिक म िसफ एक सं योग ं ; आ ा और शरीर का एक जोड़ ं म। मेरे
नाम से जो जाना जाता है , वह सं योग है । एक िदन पैदा आ और एक िदन िवसिजत हो जाएगा। कोई छाती म छु रा
भोंक दे , तो म मर जाऊंगा। आ ा नहीं मरे गी, जो मेरे म के पीछे खड़ी है ; और शरीर भी नहीं मरे गा, जो मेरे म के
बाहर खड़ा है । शरीर पदाथ की तरह मौजू द रहे गा, आ ा चेतना की तरह मौजू द रहे गी, ले िकन दोनों के बीच का
सं बंध टू ट जाएगा। वह सं बंध म ं । वह सं बंध मेरा नाम- प है । वह सं बंध िवघिटत हो जाएगा। वह सं बंध िनिमत आ,
िवन हो जाएगा।

कृ कहते ह, चे तना का कोई िवनाश नहीं है, इसिलए तू िनभय हो। पापी चे तना का भी कोई िवनाश नहीं है, इसिलए
पु ा ा चे तना के िवनाश का तो कोई सवाल नहीं है । चे तना का ही िवनाश नहीं है ।

अजु न ने पूछा है , कहीं ऐसा तो न होगा िक हवाओं के झोंके म जै से कोई छोटी-सी बदली िबखर जाए और खो जाए
अनंत आकाश म, कहीं ऐसा तो न होगा िक इस कूल से छूटू ं और वह िकनारा न िमले , और म एक बदली की तरह
िबखरकर खो जाऊं!

तो कृ कह रहे ह, इस भां ित होना असंभव है , ोंिक चे तना अिवन र है , त है, वह न नहीं होती। तो पापी की
चे तना भी न नहीं होती। न होने का उपाय नहीं है । िवनाश की कोई सं भावना नहीं है । तो पहली बात तो वे यह
कहते ह िक चेतना ही न नहीं होती, न इस लोक म, न परलोक म, कहीं भी। चे तना का कोई िवनाश नहीं है ।

ले िकन हम शक पैदा होगा। हम एक आदमी को एने थे िसया का इं जे न दे दे ते ह, वह बे होश हो जाता है । एक


आदमी के िसर पर चोट लग जाती है, वह बे होश होकर िगर जाता है । लोग कहते ह, उसकी चेतना चली गई। चेतना
नहीं जाती। लोग कहते ह, अचेतन हो गया। अचेतन भी कोई नहीं होता है । जब बे होश होता है कोई, तब िफर, न तो
आ ा बे होश होती है और न शरीर बे होश होता है । ोंिक शरीर तो बे होश हो नहीं सकता, उसके पास कोई होश
नहीं है । आ ा बे होश नहीं हो सकती, ोंिक वह पूण होश है । िफर होता ा है ? जब एक आदमी के िसर पर चोट
लगती है और वह बे होश पड़ जाता है , तब होता ा है ? तब िफर वही बीच का सं बंध िशिथल होता है । शरीर तक
आ ा से जो चेतना आती थी, उसका वाह अव हो जाता है।
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समझ ल िक मने बटन दबा दी है और िबजली का ब बु झ गया। तो ा आप कहगे, िबजली बु झ गई? इतना ही
किहए िक िबजली के ब तक वह जो िबजली की धारा आती थी, अब नहीं आती है । िबजली नहीं बु झ गई, ब बु झ
गया। बटन िफर आप आन कर दे ते ह, ब िफर जल उठता है । अगर िबजली बु झ गई होती, तो िफर ब नहीं जल
सकता था। और अगर आपका मेन च भी ब ी का आफ हो गया हो, तब भी ब ही बु झते ह, िबजली नहीं
बु झती। और अगर आपका पूरा का पूरा िबजलीघर भी ठ होकर बं द हो गया हो, तब भी िबजलीघर ही बं द होता है ,
िबजली नहीं बु झती। िबजली तो ऊजा है । ऊजा न नहीं होती।

भीतर ऊजा है जीवन की, चे तना की। शरीर तक आने के रा े ह। मन उसका रा ा है , िजससे शरीर तक आती है ।
जब िसर पर कोई डं डा मारता है , तो आपका मन बु झ जाता है; बीच का से तु टू ट जाता है ; खबर आनी बं द हो जाती
है । भीतर आप उतने ही चे तन होते ह, िजतने थे; और शरीर उतना ही अचे तन होता है , िजतना सदा था। िसफ आ ा
से जो चे तना शरीर म ितिबं िबत होती थी, वह ितिबंिबत नहीं होती है ।

चे तना के बु झने का, न होने का कोई सवाल नहीं है । पापी की चे तना का भी सवाल नहीं है । पापी भी िकतना ही पाप
करे और िकतना ही बु रा कम करे और िकतना ही सं सार को पकड़े रहे , कुछ भी करे , चे तना नहीं िमटे गी। हां, चेतना
िवकृत, दु खद, सं तापों से िघर जाएगी; नक म जीएगी; पीड़ा म, क म, गहन से गहन सं ताप म िगरती चली जाएगी–
न नहीं होगी। न होने का कोई उपाय नहीं है । ठीक ऐसे ही, जै से आप एक रे त के टु कड़े को न नहीं कर सकते ।
कोई उपाय नहीं है ।

वै ािनक िकतना काम कर पा रहे ह! एटािमक एनज खोज ली है , चां द पर प ं च सकते ह, पांच मील गहरे शां त
महासागर म डु बकी ले सकते ह, सब कर सकते ह, ले िकन एक रे त का छोटा-सा कण नहीं बना सकते । नहीं बना
सकते, इसिलए नहीं िक वै ािनक कमजोर ह। नहीं बना सकते ह इसिलए िक पदाथ न तो िनमाण होता है , न िवन
होता है । वै ािनक िकसी िदन मनु की आ ा भी नहीं बना सकगे । य िप इस तरफ काफी काम चलता है । और
रोज खबर आती ह िक कुछ और खोज िलया गया, िजससे सं भावना बनती है िक इस सदी के पूरे होते-होते आदमी
की आ ा को वै ािनक पैदा कर ले गा।

अभी जो आदमी का जे नेिटक, जो उसका जनन का मूल को है , उसको भी तोड़ िलया गया। जै से अणु तोड़ िलया
गया और परमाणु की श उपल ई, वै से ही अब मनु के जीवको को भी तोड़ िलया गया है , और उस
जीवको का भी मूल रासायिनक रह समझ म आ गया है । और अब इस बात की पूरी सं भावना है िक हम आज
नहीं कल योगशाला म मनु के शरीर को ज दे सकगे ।

अभी एक वै ािनक पि का म, जो मनु के जीवन के सं बंध म ही सम शोध छापती है , एक ब त बड़ा काटू न


छापा है । वह काटू न मुझे ब त ीितकर लगा। इस सदी के पूरे होने के समय का काटू न है । दो हजारवां वष आ गया
है । एक लड़का एक योगशाला के पास से गु जर रहा है , उस योगशाला के पास से, िजसके टे -टयू ब म वह पैदा
आ था। टे -टयू ब योगशाला के दरवाजे से िदखाई पड़ रही है । वह लड़का रा े से कहता है , डै डी! नम ार! म
ू ल जा रहा ं ।

दो हजारव वष म इस बात की करीब-करीब सं भावना है– शायद दस साल और पहले यह घिटत हो जाएगा–िक हम
ब े के शरीर को योगशाला की परखनली म पैदा कर लगे । तब जो साधारण बु के आ वादी ह, बड़ी मु ल
म–अभी पड़ गए ह वे मु ल म–बड़ी मु ल म पड़ जाएं गे । अगर िकसी िदन योगशाला म आदमी का शरीर
पैदा हो गया, तो िफर आ ा का ा होगा? और अगर वह आदमी हमारे ही जै सा आदमी आ, और वै ािनक कहते
ह, हम से बे हतर होगा, ोंिक वह ठीक से क वे टेड होगा। हमारी पैदाइश तो िबलकुल ही अवै ािनक है । उसम
कोई िनयम और गिणत और कोई व था तो नहीं है । उसम सारी व था होगी।

वै ािनक कहते ह िक वह जो शरीर हम िनिमत करगे, हम जानगे िक इसे िकतने वष की िजं दगी दे नी है । सौ वष की?
तो वह ठीक सौ वष की गारं टी का सिटिफकेट ले कर पैदा होगा। ोंिक हम उतना रासायिनक त उसम डालगे, जो
सौ वष तक थ रह सके। अगर हम चाहते ह िक वह आइं ीन जै सा बु मान हो, तो बु के त की उतनी ही
291

मा ा उसम होगी। अगर हम चाहते ह िक वह मजदू र का काम करे , तो उस तरह की मस उसम होंगी। अगर हम
चाहते ह िक वह सं गीत का काम करे , तो उसके गले और उसकी आवाज का सारा रासायिनक म वै सा होगा।

और िफर वे यह भी कहते ह िक हम हर ब े को बनाते व उसकी एक डु ीकेट कापी भी बना लगे । ोंिक कभी
भी िजंदगी म िकसी की िकडनी खराब हो गई, तो उसको बदलने की िद त पड़ती है । तो उस डु ीकेट कापी से
उसकी िकडनी िनकालकर बदल दगे । िकसी की आं ख खराब हो गई! तो एक डु ीकेट कापी उस शरीर की िजं दा,
योगशाला म रखी रहे गी। डीप ीज, काफी गहरी ठं डक म रखी रहे गी, िक सड़ न जाए। और जब भी आपम कोई
गड़बड़ होगी, तो पाट् स बदले जा सकगे।

उनका कहना है िक जब एक दफे हम सू िमल गया, तो हम एक जै से हजार शरीर भी पैदा कर सकते ह, कोई
किठनाई नहीं है । िफर ा होगा! आ वािदयों का ा होगा?

िज आ ा का कोई पता नहीं है , ऐसे ब त-से आ वादी ह। सच तो यह है िक आ वािदयों म ब त-से ऐसे ह,


िज आ ा का कोई पता नहीं। वे ऐसी बात सु नकर बड़े बे चैन हो जाते ह। उनका एक ही उ र होता िक यह कभी
हो नहीं सकता। म उनसे कहता ं , वे समझ ल, यह होगा। और आपके कहने से िक यह कभी हो नहीं सकता, िसफ
इतना ही पता चलता है िक आपको कुछ पता नहीं है । यह होगा। पर बड़ी घबड़ाहट होती है िक अगर यह हो जाएगा,
तो िफर आ ा का ा आ?

म आपसे कहता ं, इससे आ ा पर कोई आं च नहीं आती है । इससे िसफ इतना ही िस होता है िक मां-बाप के
शरीर जो काम करते थे गभ म शरीर के िनमाण करने का, वह वै ािनक योगशाला म वै ािनक कर दगे । आ ा जै से
मां -बाप के गभ म वेश करती थी, वै से ही वै ािनक योगशाला के शरीर म वे श करे गी। इससे आ ा का कोई
सं बंध नहीं है । इससे कुछ भी िस नहीं होता।

आज से हजार साल पहले हम िबजली नहीं जला सकते थे; हमारे पास पंखे नहीं थे, ब नहीं थे । ले िकन आकाश म
तो िबजली चमकती थी। आकाश म िबजली चमकती थी। िबजली सदा से थी। आज हमने ब जला िलए, तो ा हम
सोचते ह, जो िबजली हमारे ब ों म चमक रही है , वह कोई दू सरी है ? वह वही है, जो आकाश म चमकती थी। हमने
अभी भी िबजली नहीं बनाई है! अभी भी हमने िबजली को कट करने के उपाय ही बनाए ह। िबजली हम कभी न
बना सकगे । िसफ जहां-जहां िबजली अ कट है , वहां से हम कट होने के उपाय खोज ले ते ह।

अगर िकसी िदन हमने आदमी का शरीर बना िलया, जो िक बना ही िलया जाएगा, तो उस िदन भी हम आदमी को
नहीं बना रहे ह, िसफ शरीर को बना रहे ह। और िजस तरह आ ाएं गभ के शरीर म वे श करती रही ह, वे आ ाएं
मनु ारा िनिमत शरीर म भी वे श कर पाएं गी। इसम कोई अड़चन नहीं है , इसम कोई किठनाई भी नहीं है । शरीर
िव ान से िनिमत आ िक कृित से िनिमत आ, कोई भे द नहीं पड़ता। आ ा अ कट चेतना है । कट होने का
मा म िमल जाए, आ ा कट हो जाती है ।

ले िकन न तो चे तना का कोई िनमाण हो सकता है और न कोई िवनाश हो सकता है । जब आप िकसी की छाती म छु रा
भोंकते ह, तब भी आ ा नहीं मरती। और िजस िदन योगशाला की ले बोरे टरी म हम परखनली म आदमी का शरीर
बना लगे, उस िदन भी आ ा नहीं बनती।

कृ को पता नहीं था, तो उ ोंने इतना ही कहा, नैनं िछं द श ािण। उ ोंने कहा िक श छे द दे ने से आ ा
नहीं मरती है । अब अगर गीता िफर से िलखनी पड़े , तो उसम यह भी जोड़ दे ना चािहए िक परखनली म शरीर बनाने
से आ ा नहीं बनती है । दोनों एक ही चीज के दो छोर ह। एक ही तक के दो छोर ह। न तो मारने से मरती है आ ा,
और न शरीर को बनाने से बनती है आ ा।

यह जो अिनिमत, अज ी, अजात, अमृत आ ा है , कृ कहते ह, इसका कभी कोई िवनाश नहीं है अजु न। यह तो
वे एक सामा स कहते ह। पापी की आ ा का भी कोई िवनाश नहीं है ।
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दू सरी बात वे कहते ह, ले िकन िजसने शु भ कम िकए!

ान रहे, अजु न ने पूछा है िक म कोिशश भी क ं और सफल न हो पाऊं, ायु कोिशश क ं और असफल


हो जाऊं, ोंिक म मेरे मन को जानता ं ; िकतनी ही ा से क ं , मन की चंचलता नहीं जाती है । ा से भरा
आ असफल हो जाए मेरा कम, तो म िबखर तो न जाऊंगा बादलों की भां ित! मेरी नाव डूब तो न जाएगी िकनारे को
खोकर, दू सरे िकनारे को िबना पाए!

कृ कहते ह, शु भ कम िजसने िकया!

ज री नहीं िक शु भ कम सफल आ हो। िकए की बात कर रहे ह, इसको ठीक से समझ लेना आप। शु भ कम
िजसने िकया–ज री नहीं िक सफल हो–ऐसे की कोई दु गित नहीं है । सफलता की बात नहीं है ।

एक आदमी ने शु भ कम करना चाहा, एक आदमी ने शु भ कम करने की कोिशश की, एक आदमी ने शु भ की कामना


की, एक आदमी के मन म शु भ का बीज अंकु रत आ, कोई हजा नहीं िक अंकुर न बना, कोई हजा नहीं िक वृ न
बना, कोई हजा नहीं िक फल कभी न आए, फूल कभी भी न लगे । ले िकन िजस आदमी ने शु भ का बीज भी बोया,
अनअंकु रत, अंकुर भी न उठा हो, उस आदमी के भी जीवन म कभी दु गित नहीं होती है ।

कृ ब त अदभुत बात कह रहे ह। शु भ कम सफल हो, तब तो दु गित होती ही नहीं अजु न, ले िकन तू जै सा कहता है ,
अगर ऐसा भी हो जाए, िक तू शु भ की या ा पर िनकले और ते रा मन साथ न दे ; ते री ा तो हो, ले िकन ते री श
साथ न दे ; ते रा भाव तो हो, ले िकन ते रे सं ार साथ न द; तू चाहता तो हो िक दू सरे िकनारे पर प ं च जाऊं, ले िकन
ते री पतवार कमजोर हो; ते री आकां ा तो ढ़ हो िक िनकल जाऊं उस पार, ले िकन ते री नाव ही िछ वाली हो और तू
बीच म डूब भी जाए; तो भी म तु झसे कहता ं िक शु भ कम िजसने िकया, उसकी दु गित कभी नहीं होती है ।

शु भ कम िजसका सफल हो जाए, उसकी तो दु गित का सवाल ही नहीं है । ले िकन शु भ कम िजसका सफल भी न हो
पाए, उसकी भी दु गित नहीं होती। इससे दू सरी बात भी आपको कह दू ं , तो ज ी खयाल म आ जाएगा।

अशु भ कम िजसने िकया, सफल न भी हो पाए, तो भी दु गित हो जाती है । मने आपकी ह ा करनी चाही, और नहीं
कर पाया, तो भी दु गित हो जाती है । नहीं कर पाया, इसका यह मतलब नहीं िक मने आपकी गदन दबाई और न दब
पाई। नहीं, आपकी गदन तक भी नहीं प ंच पाया, तो भी दु गित हो जाती है । नहीं कर पाया, इसका यह मतलब नहीं
िक मने आपसे कहा िक ह ा कर दू ं गा, और नहीं की। नहीं, म आपसे कह भी नहीं पाया, तो भी दु गित हो जाती है ।
भीतर उठा िवचार भी अशु भ का दु गित की या ा पर प ं चा दे ता है । बीज बो िदया गया।

गलत िवचार भी काफी है दु गित के िलए। सही िवचार भी काफी है दु गित से बचने के िलए। ों? ोंिक अंततः
हमारा िवचार ही हमारे जीवन का फल बन जाता है । फल कहीं बाहर से नहीं आते । हमारे ही भीतर उनकी ोथ,
उनका िवकास होता है ।

बु ने ध पद म कहा है िक तु म जो हो, वह तु ारे िवचारों का फल हो। अगर दु खी हो, तो अपने िवचारों म


तलाशना, तु वे बीज िमल जाएं गे, िज ोंने दु ख के फल लाए। अगर पीिड़त हो, तो खोजना; तु ीं अपने हाथों को
पाओगे, िज ोंने पीड़ा के बीज बोए। अगर अंधकार ही अंधकार है तु ारे जीवन म, तो तलाश करना; तु म पाओगे िक
तु ीं ने इस अंधकार का बड़ी मेहनत से िनमाण िकया। हम अपने नक का िनमाण बड़ी मेहनत से करते ह! दोनों ही
बात सोच ले ना।

बु रा कम असफल भी हो जाए, तो भी बु रा फल िमलता है । कहगे आप, िफर उसको असफल ों कहते ह?


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बु रा कम असफल भी हो जाए, पूरा न हो पाए, घिटत न हो पाए, व ु के जगत म न आ पाए, घटना के जगत म
उसकी कोई ित िन न हो पाए, िसफ आपम ही खो जाए, िसफ बनकर ही शू हो जाए, तो भी, तो भी फल
हाथ आता है–दु खों का, पीड़ाओं का, क ों का। दु गित हो जाती है । अ े कम का खयाल सफल न भी हो पाए…।

बु एक कथा कहा करते थे । एक आया। राजकुमार था। बु से उसने दी ा ली।

और बु के समय दी ा ने जो शान दे खी दु िनया म, वह िफर पृ ी पर दु बारा नहीं हो सकी। बु और महावीर के


व िबहार ने जो णयु ग दे खा सं ास का, वह पृ ी पर िफर कभी नहीं आ। उसके पहले भी कभी नहीं आ था।

अदभु त िदन रहे होंगे। बु चलते थे, तो पचास हजार सं ासी बु के साथ चलते थे । िजस गां व म बु ठहर जाते थे,
उस गां व की हवाओं का ख बदल जाता था! पचास हजार सं ासी िजस गां व म ठहर जाएं , उस गां व म बु रे कम होने
बं द हो जाते थे, किठन हो जाते थे, मु ल हो जाते थे । इतने शु भ धारणाओं से भरे ए लोग!

कथाएं कहती ह िक बु जहां से िनकल जाएं , वहां चो रयां बं द हो जातीं, वहां ह ाएं कम हो जातीं। आज तो कथा
लगती है बात, ले िकन म कहता ं िक ऐसा हो जाता है । ोंिक ह ाएं करता कौन है ? आदमी करता है । आदमी है
ा िसवाय िवचारों के जोड़ के! और बु जै सी कौंध िबजली की पास से गु जर जाए, तो आप वही के वही रह सकते
ह जो थे? आप नहीं रह सकते ह वही के वही। इतनी िबजली कौंध जाए अंधेरे म, तो िफर आप वही नहीं रह जाते, जो
आप थे ।

थोड़ी भी झलक िमल जाती है रा े की, तो आदमी स लकर चलता है । अंधेरी रात है अमावस की, और िबजली
चमक गई एक ण को, िफर घु अंधेरा हो गया, तो भी िफर आप उतनी ही भू ल-चू क से नहीं चलते, िजतना पहले
चल रहे थे । अंधेरा िफर उतना ही है, ले िकन एक झलक िमल गई माग की।

बु जै सा आदमी पास से गु जरे , तो िबजली कौंध जाती है । और िजस गांव म पचास हजार िभ ु और सं ासी…।
महावीर के साथ भी पचास हजार िभ ु और सं ासी चलते । और दोनों करीब-करीब समसामियक थे । पूरा िबहार
सं ास से भर गया। उसको नाम ही िबहार इसिलए िमल गया। िबहार का मतलब है , िभ ुओं का िवहार-पथ। जहां
सं ासी गु जरते ह, ऐसी जगह। जहां सं ासी गु जरते ह, ऐसे रा े । जहां सं ासी िवचरते ह, ऐसा थान। इसिलए तो
उसका नाम िबहार हो गया।

बु एक गांव म ठहरे ह। उस गां व के स ाट के बे टे ने आकर दी ा ली। उस स ाट के लड़के से कभी िकसी ने न


सोचा था िक वह दी ा ले गा। लंपट था, िनरा लं पट था। बु के िभ ु भी चिकत ए। बु के िभ ुओं ने कहा, इस िनरा
लं पट ने दी ा ले ली? इस आदमी से कोई आशा नहीं करता था। यह ह ा कर सकता है , मान सकते ह। यह डाका
डाल सकता है , मान सकते ह। यह िकसी की ी को उठाकर ले जा सकता है, मान सकते ह। यह सं ास ले गा, यह
कोई सपना नहीं दे ख सकता था! इसने ऐसा ों िकया? बु से लोग पूछने लगे ।

बु ने कहा, म तु इसके पुराने ज की कथा क ं । एक छोटी-सी घटना ने आज के इसके सं ास को िनिमत


िकया है–छोटी-सी घटना ने। उ ोंने पूछा, कौन-सी है वह कथा? तो बु ने कहा…।

और बु और महावीर ने उस साइं स का िवकास िकया पृ ी पर, िजससे लोगों के दू सरे ज ों म झां का जा सकता है ;
िकताब की तरह पढ़ा जा सकता है ।

तो बु ने कहा िक यह िपछले ज म हाथी था, आदमी नहीं था। और तब पहली दफा लोगों को खयाल आया
िक इसकी चाल-ढाल दे खकर कई दफा हम ऐसा लगता था िक जै से हाथी की चाल चलता है। अभी भी, इस ज म
भी उसकी चाल-ढाल, उसका ढं ग एक शानदार हाथी का, मदम हाथी का ढं ग था।
294

बु ने कहा, यह हाथी था िपछले ज म। और िजस जं गल म रहता था, हािथयों का राजा था। तो जं गल म आग लगी।
गम के िदन थे, भयं कर आग लगी आधी रात को। सारे जं गल के पशु-प ी भागने लगे, यह भी भागा। यह एक वृ के
नीचे िव ाम करने को एक ण को का। भागने के िलए एक पैर ऊपर उठाया, तभी एक छोटा-सा खरगोश वृ के
पीछे से िनकला और इसके पैर के नीचे की जमीन पर आकर बै ठ गया। एक ही पैर ऊपर उठा, हाथी ने नीचे दे खा,
और उसे लगा िक अगर म पैर नीचे रखूं, तो यह खरगोश मर जाएगा। यह हाथी खड़ा-खड़ा आग म जलकर मर गया।
बस, उस जीवन म इसने इतना-सा ही एक मह पूण काम िकया था, उसका फल आज इसका सं ास है ।

रात वह राजकुमार सोया। जहां पचास हजार िभ ु सोए हों, वहां अड़चन और किठनाई ाभािवक है । िफर वह ब त
पीछे से दी ा िलया था, उससे बु जुग सं ासी थे । जो ब त बु जुग थे, वे भवन के भीतर सोए। जो और कम बु जुग थे, वे
भवन के बाहर सोए। जो और कम बु जुग थे, वे रा े पर सोए। जो और कम बु जुग थे, वे और मैदान म सोए। उसको
तो िबलकुल आ खर म, जो गली राजपथ से जोड़ती थी बु के िवहार तक, उसम सोने को िमला। रात भर! कोई िभ ु
गु जरा, उसकी नींद टू ट गई। कोई कु ा भौंका, उसकी नींद टू ट गई। कोई म र काटा, उसकी नींद टू ट गई। रातभर
वह परे शान रहा। उसने सोचा िक सु बह म इस दी ा का ाग क ं । यह कोई अपने काम की बात नहीं।

सु बह वह बु के पास जाकर, हाथ जोड़कर खड़ा आ। बु ने कहा, मालू म है मुझे िक तु म िकसिलए आए हो।
उसने कहा िक आपको नहीं मालू म होगा िक म िकसिलए आया ं । म कोई साधना की प ित पूछने नहीं आया।
ोंिक कल मने दी ा ली, आज मुझे साधना की प ित पूछनी थी; उसके िलए म नहीं आया। बु ने कहा, वह म
तु झसे कुछ नहीं पूछता। मुझे मालू म है, तू िकसिलए आया। िसफ म तु झे इतनी याद िदलाना चाहता ं िक हाथी होकर
भी तू ने िजतना धै य िदखाया, ा आदमी होकर उतना धै य न िदखा सकेगा?

उस आदमी की आं ख बं द हो गईं। उसको कुछ समझ म न आया िक हाथी होकर इतना धै य िदखाया! यह बु ा
कहते ह, पागल जै सी बात! उसकी आं ख बं द हो गई।

ले िकन बु का यह कहना, जैसे उसके भीतर ृित का एक ार खुल गया। आं ख उसकी बं द हो गई। उसने दे खा िक
वह एक हाथी है । एक घने जं गल म आग लगी है। एक वृ के नीचे वह खड़ा है । एक खरगोश उसके पैर के नीचे
आकर बै ठ गया। इस डर से वह भागा नहीं िक मेरा पैर नीचे पड़े , तो खरगोश मर जाए। और जब म भागकर बचना
चाहता ं , तो जै सा म बचना चाहता ं , वै सा ही खरगोश भी बचना चाहता है । और खरगोश यह सोचकर मेरे पैर के
नीचे बै ठा है िक शरण िमल गई। तो इस भोले से खरगोश को धोखा दे कर भागना उिचत नहीं। तो म जल गया।

उसने आं ख खोली, उसने कहा िक माफ कर दे ना, भू ल हो गई। रात और भी कोई किठन जगह हो सोने की, तो मुझे
दे दे ना। अब म याद रख सकूंगा। उतना छोटा-सा, उतना छोटा-सा काम, ा मेरे जीवन म इतनी बड़ी घटना बन
सकता है ?

सब छोटे बीज बड़े वृ हो जाते ह। चाहे वे बु रे बीज हों, चाहे वे भले बीज हों, सब बड़े वृ हो जाते ह–सब बड़े वृ हो
जाते ह।

हम चूं िक कोई पता नहीं होता िक जीवन िकस ि या से चलता है , इसिलए किठनाई होती है । हम कोई पता नहीं
होता िक िकस ि या से चलता है ।

अभी यहां एक घटना घटी। एक िम और उनकी प ी सं ास ले ना चाहते थे । वे काफी सोच-िवचार म पड़े ह। घर म


बातचीत चलती थी, उनके दामाद ने सु न ली। वे अभी सोच ही रहे ह, दामाद आकर सं ास ले गया! उससे मने पूछा
िक तू ने कब सोचा? उसने कहा, मने सोचा नहीं। मेरे सास और ससुर बात करते ह तीन िदन से िक सं ास ले ना है ।
आपसे िमल भी गए ह। सोच-िवचार चलता है । म उनकी सु न-सु नकर, न मालू म ा आ मुझे िक म चलकर ले लूं ।
वह आकर सं ास ले भी गया! अभी सास-ससुर सोचते ही ह!
295

ा आ? और िफर इस का मुझसे कोई ादा सं बंध नहीं। िफर इस की मेरे िवचारों से ादा
पहचान नहीं। इसके सास-ससुर ही मुझसे ादा प रिचत और मेरे िवचारों के ादा िनकट ह। इसको ा आ? यह
सं ास का फूल इसकी िजं दगी म अचानक कैसे खल गया?

यह बीज िपछले ज ों का है । यह कहीं पड़ा रहता है, चु पचाप ती ा करता है । जै से बीज िगर जाता है , िफर वषा की
ती ा करता है । महीनों बीत जाते ह धू ल म, धं वास म उड़ते, हवाओं की ठोकर खाते, िफर वषा की ती ा चलती
है । िफर कभी वषा आती है । शायद इन आठ महीनों म बीज भी भू ल गया होगा िक म कौन ं । बीज को पता भी कैसे
होगा िक मेरे भीतर ा पैदा हो सकता है । िफर वषा आती है , बीज जमीन म दब जाता है और टू टकर अंकुर हो
जाता है, तभी बीज को पता चलता है । बीज भी चौंकता होगा; चौंककर कहता होगा िक म सू खा-साखा सा, मुझम
इतनी ह रयाली िछपी थी! म सू खा-साखा सा, कंकड़-प र मालू म पड़ता था दे खने पर, मुझम ऐसे-ऐसे फूल िछपे थे!
बीज को भी भरोसा न आता होगा।

हम भी सब बीज ह और लं बी या ाओं के बीज ह।

तो कृ कहते ह, शु भ का इरादा भी, शु भ कम की ा भी, दु गित म नहीं ले जाती है , कभी नहीं ले जाती है । िसफ
ा भी! ज री नहीं िक एक आदमी ने अ ा काम िकया हो; इतना भी काफी है िक सोचा हो; इतना भी काफी है
िक कोई सोचता हो, तो उसे सहयोग िदया हो। इतना भी काफी है िक कोई कर रहा हो, तो शं सा से उसकी तरफ
दे खा हो, तो भी वह आदमी दु गित को ा नहीं होता है ।

महावीर जब िकसी को दी ा दे ते थे, तो कुछ बात कहलवाते थे । वे कहते थे िक तु म आ ासन दो िक बु रा कम नहीं


करोगे । वे कहते थे, तु म आ ासन दो िक कोई बु रा कम करता होगा, तो तु म उसे ो ाहन नहीं दोगे । आ ासन दो
िक कोई बु रा कम करता होगा, तो तु म उसकी तरफ शं सा से दे खोगे भी नहीं।

वह आदमी पूछता, म बु रा कम नहीं क ं गा। ले िकन ये दू सरी बात ा ह, िक म ो ाहन भी न दू ं गा! िक म शं सा


से दे खूंगा भी नहीं!

एक आदमी रा े पर िकसी को पीट रहा है । आप नहीं पीट रहे; आपका कोई सं बंध नहीं। आप िसफ रा े से गु जरते
ह। ले िकन आपकी आं ख की एक झलक उस पीटने वाले को कह जाती है िक मेरी पीठ थपथपाई गई। बस, पाप हो
गया, बीज बो िदया गया।

ठीक महावीर ऐसे ही कहते थे, अ ा कम करना। कोई अ ा कम करता हो, तो ो ाहन दे ना। कोई अ ा कम
करता हो, कुछ न बन सके, तो अपनी आं ख से , अपने इशारे से सहारा दे ना।

ले िकन एक आदमी को सं ास ले ना हो, तो आप सब िमलकर ा करगे? आप कहगे, ा कर रहे हो! पागल हो गए


हो? बु िठकाने है ? आपको पता नहीं िक वह आदमी तो सं ास की भावना करके भी न भी ले पाए, तो भी सदगित
की व था कर रहा है । और आप अकारण, आप कोई न थे बीच म, आप कह रहे ह, पागल हो गए हो? िदमाग
खराब हो गया? बु खो दी? आपको पता भी नहीं है िक आप थ ही बीज बो रहे हो, जो आपको भटकाने का
कारण हो जाएं गे।

ले िकन हम खयाल ही नहीं होता िक हम ा कर रहे ह! हम खयाल ही नहीं होता।

एक िम सं ास ले ना चाहते ह। रातभर रोते रहे ह कल प ी के चरणों म बै ठकर। ले िकन प ी स है । वह कहती


है िक मर जाओ, वह बे हतर। सास कहती है , मर जाओ, वह बे हतर। शराब पीने लगो, जु आ खेलो, कुछ भी करो–
चलेगा; सं ास का नाम मत लेना। और इस सं ास म न वे घर छोड़कर जा रहे ह, न वे प ी को छोड़कर जा रहे ह,
न वे ब ों को छोड़कर जा रहे ह। िसफ सं ास के भाव को ही तो ले रहे ह, और ा कर रहे ह? कोई जं गल नहीं जा
रहे ह, कोई पहाड़ नहीं जा रहे ह। िकसी को छोड़ नहीं रहे , िकसी को नंगा नहीं छोड़ रहे , भू खा नहीं छोड़ रहे ; काम-
धं धा करगे ।
296

पुराने सं ास से नया सं ास किठन है । ोंिक सं ासी भी हो जाएं गे; पित भी होंगे, िपता भी होंगे, सारी िज ेवारी
होगी, सारा दािय होगा। कोई दािय तोड़ना नहीं है । ोंिक म मानता ं, वह भी िहं सा है । ोंिक म मानता ं ,
िकसी को बीच म छोड़कर जाना, वह भी दु ख दे ना है । उतना भी ों दे ना? उसको खेल समझकर पूरा कर दे ना िक
ठीक है । उसको नाटक समझकर पूरा कर दे ना। सं ास को भीतर साधते चले जाना, सं सार को बाहर पूरा कर दे ना।

ले िकन प ी कहती है , और कुछ भी कर लो, चले गा। यह नहीं चल सकता। ा, मामला ा है ? हम पता ही नहीं िक
वह तो रातभर रोकर उतना फायदा ले िलया, िजतना िक सं ासी को िमलना चािहए। ले िकन इस प ी ने ा
िकया? इसका तो कुछ ले ना-दे ना न था! इसने करीब-करीब एक सं ासी की ह ा से जो भी पु िमल सकता है–
पु कह रहा ं , तािक प ी नाराज न हो जाए। यहीं कहीं मौजू द होगी! उसने नाहक पु बटोर िलया। जमाने बदले ।
व ब त अदभु त थे कभी। महावीर का एक सं रण आपसे क ं ।

एक यु वक बै ठा है ानगृ ह म। उसकी प ी उबटन लगाती है । उबटन लगाते व , ान करवाते व , अपने पित को


वह कहती है िक मेरे भाई ने सं ास ले ने का िवचार िकया है । वह पित पूछता है , कब ले गा तु ारा भाई सं ास?
उसकी प ी कहती है , एक महीने बाद का तय िकया है । वह पित ऐसे ही मजाक म पूछता है िक एक महीना जीएगा,
प ा है ? प ी कहती है , िकस तरह की अपशकुन की बात बोलते हो अपने मुंह से! यह शोभा नहीं दे ता। ऐसा सोचते
ही ों हो? उसने कहा, सोचता नहीं ं , ले िकन एक महीना जीएगा, यह प ा है? ये ढं ग सं ास ले ने के नहीं ह।
ोंिक जो आदमी थिगत करता है, उसके भीतर वह जो सं ास-िवरोधी कम का भार है, भारी है ।

वह यु वक ऐसे ही कह रहा है । तो उसकी प ी ने िसफ मजाक म और ं म कहा िक अगर तु मको सं ास ले ना


हो, तो ा करोगे? आधी उबटन लगी थी शरीर पर, आधी धुल गई थी। वह यु वक न था, खड़ा हो गया। प ी ने
कहा, कहां जाते हो? उसने दरवाजा खोला। प ी ने कहा, कहां िनकलते हो? लोग ा कहगे? न हो तु म! वह
दरवाजे के बाहर हो गया। प ी ने कहा, तु ारा िदमाग तो ठीक है न! पर उसने कहा, मने सं ास ले िलया। बात
खतम हो गई।

महावीर उसकी कथा जगह-जगह कहते थे ।

उसने कहा िक सं ास भी कहीं पो पोन िकया जाता है ! कल लगे? अगर जो आदमी मौत को पो पोन कर सकता
हो, उसको सं ास पो पोन करने का हक है ; बाकी िकसी को हक नहीं है ।

कृ कहते ह, सदभाव भी! करने की कामना भी!

अभी बं बई म एक वृ मिहला को सं ास ले ना था। एक िदन पहले मरने के वह मुझसे िमलकर गई और उसने कहा
िक अगले ज िदन पर म ले लूं , तो हज तो नहीं? मने कहा, मुझे कोई हज नहीं। पर मेरा ा प ा िक म बचूंगा।
उससे मने नहीं कहा; वह नाराज हो जाए! उसने कहा िक नहीं-नहीं, ऐसी आप ों बात करते ह! आप तो ज र
बचगे । मने कहा, समझ लो िक म बच भी गया, ले िकन तु म बचोगी, इसका कोई प ा? उसने कहा, अभी आ ही
ा है ! अभी मेरी स र साल की ही तो उ है । स र की तो मेरी उ ही है, उसने कहा। अभी तो म सब तरह से
थ ं! मने कहा, मान लो यह भी आ िक तु म भी बच गईं, म भी बच गया, ले िकन तु म सं ास लोगी ही सालभर
बाद, तु ारा मन सं ास ले ने का रहे गा, इसका कुछ प ा? उसने कहा, ों नहीं रहे गा? मने कहा, मान लो तु ारा
भी रहा, मेरा दे ने का न रहा, तो तु म ा करोगी? उसने कहा, आप भी कहां की बात करते ह! अगले ज िदन का
प ा रहा। मने कहा, अगर अगला ज िदन प ा है , तो ठीक।

ले िकन दू सरे िदन सु बह ही, मेरी सभा म ही आते ए, सभा-भवन के सामने ही कार से टकराकर बे होश हो गई।
आठ-दस घं टे बाद होश म आई, तो म उसे दे खने अ ताल गया। मने कहा, होश म आ गईं, तो अ ा आ। ा
खयाल है सं ास के बाबत? उसने कहा, मुझे ठीक तो हो जाने दो। आप भी कैसे आदमी हो! यह भी नहीं पूछा िक
चोट कहां लगी! एकदम पूछते ह, सं ास! मने कहा, ा पता, जब तक म पूछूं, तु म चली जाओ। ोंिक कल तो
कोई प ा न था इस ए डट का। यह हो गया न आज! ज िदन अब उतना प ा है , िजतना कल था? उसने
कहा, सं िद मालू म होता है ! िफर मने कहा, िकतनी दे र करनी है ? उसने कहा िक कम से कम चौबीस घं टे। म जरा
297

ठीक हो जाऊं, तो िफर आपसे क ं । मने कहा, जै सी ते री मज । पर मने कहा िक एक काम करना, चौबीस घं टे
सोचती रहना िक सं ास ले ना है , सं ास ले ना है ।

वह तो मर गई छः घं टे बाद। चौबीस घं टे पूरे नहीं ए। उसकी ब मेरे पास दौड़ी आई िक अब ा होगा! वह तो मर


गई! तो मने कहा िक म उसे मरी ई हालत म सं ास दे ता ं । उसने कहा, यह कैसा सं ास है ? मने कहा िक उसके
मन म अगर जरा भी भाव रह गया होगा, जरा भी भाव मरते ण म िक सं ास ले ना है , सं ास ले ना है –तो भाव ही तो
सब कुछ है । तो बीज तो िनिमत हो गया। उसकी आगे की या ा पर उसके फल कभी भी आ सकते ह।

कृ कहते ह, सदकम की, शु भ कम की िदशा म िकया गया िवचार भी, शु भ कम की िदशा म उठाया गया एक
कदम भी; शु भ कम की िदशा, चाहे पूरी हो पाए या न हो पाए, तो भी कभी दु गित, कभी बु री गित नहीं होती है ।

ा पु कृतां लोकानुिष ा शा तीः समाः।


शुचीनां ीमतां गेहे योग ोऽिभजायते ।। 41।।
अथवा योिगनामेव कुले भवित धीमताम्।
एत दु लभतरं लोके ज यदी शम्।। 42।।

िकंतु वह योग पु ष पु वानों के लोकों को अथात गािदक उ म लोकों को ा होकर, उनम ब त वष तक


वास करके, शु आचरण वाले ीमान पु षों के घर म ज लेता है ।

अथवा वै रा वान पु ष उन लोकों म न जाकर ानवान योिगयों के ही कुल म ज ले ता है ; परं तु इस कार का जो


यह ज है सं सार म, िनःसंदेह अित दु लभ है ।

योग- पु ष! अजु न जो पूछ रहा है , वह योग- के िलए ही पूछ रहा है । वह कह रहा है िक सं सार को म छोड़ दू ं ,
भोग को म छोड़ दू ं और योग सध न पाए। या सधे भी, तो िबखर जाए; थोड़ा बने भी, तो हाथ छूट जाए। थोड़ा पकड़
भी पाऊं और खो जाए सहारा हाथ से, हो जाऊं बीच म। तो िफर म टू ट तो न जाऊंगा? खो तो न जाऊंगा? न तो
न हो जाऊंगा?

कृ कहते ह उसे, योग- ए पु ष की आगे की गित के सं बंध म दो ीन बात कहते ह। वे कीमती ह। और एक


ब त गहरे िव ान से सं बंिधत ह। थोड़ा-सा समझ।

एक, कृ कहते ह, वै सा , वै सी चे तना, जो थोड़ा साधती है योग की िदशा म, ले िकन पूणता को नहीं उपल
होती…। पूणता को उपल हो जाए, तो मु हो जाती है । पूणता को उपल न हो पाए, तो अप रसीम सु खों को
उपल होती है । इस अप रसीम सु खों की जो सं भावनाओं का जगत है , उसका नाम ग है । ब त सु खों को उपल
होती है ।

ले िकन ान रहे , सभी सु ख चु क जाने वाले ह। सभी सु ख चु क जाने वाले ह। सभी सु ख समा हो जाने वाले ह। और
िकतने ही बड़े सु ख हों, और िकतने ही लं बे मालू म पड़ते हों, जब वे चुक जाते ह, तो ण म बीत गए, ऐसे ही मालू म
पड़ते ह।

तो वै सी चे तना ब त सु खों को उपल होती है अजु न! ले िकन िफर वापस सं सार म लौट आती है , जब सु ख चु क जाते
ह।

एक िवक यह है िक ब त-से सु खों को पाए वै सी चे तना, और वापस लौट आए उस जगत म, जहां से गई थी। दू सरी
सं भावना यह है िक वै सी चेतना उन घरों म ज ले ले, जहां ान का वातावरण है । उन घरों म ज ले ले , जहां योग
की हवा है, िम ू, योग का िवचारावरण है । जहां तरं ग योग की ह, और जहां साधना के सोपान पर चढ़ने की
298

आकां ाएं बल ह। और जहां चारों ओर सं क की आग है, और जहां ऊ गमन के िलए िनरं तर सचे लोग ह, उन
प रवारों म, उन कुलों म ज ले ले । तो जहां से छूटा िपछले ज म योग, अगले ज म उसका से तु िफर जु ड़ जाए।

दो िवक कृ ने कहे । एक तो, ग म पैदा हो जाए। ग का अथ है , उन लोकों म, जहां सु ख ही सु ख है , दु ख


नहीं है । इन दोनों बातों म कई रह की बात ह। एक तो यह िक जहां सु ख ही सु ख होता है , वहां बड़ी बोडम, बड़ी
ऊब पैदा हो जाती है । इसिलए दे वताओं से ादा ऊबे ए लोग कहीं भी नहीं ह। जहां सु ख ही सु ख है , वहां ऊब पैदा
हो जाती है ।

इसिलए कथाएं ह िक दे वता भी जमीन पर आकर जमीन के दु खों को चखना चाहते ह, जमीन के सु खों को भोगना
चाहते ह, ोंिक यहां दु ख िमि त सु ख ह। अगर मीठा ही मीठा खाएं , तो थोड़ी-सी नमक की िडगली मुंह पर रखने
का मन हो आता है । बस, ऐसा ही। सु ख ही सु ख हों, तो थोड़ा-सा दु ख करीब-करीब चटनी जैसा ाद दे जाता है ।
ग एकदम िमठास से भरे ह, सु ख ही सु ख ह। ज ी ऊब जाता है । लौटकर सं सार म वापस आ जाना पड़ता है ।
दु गित तो नहीं होती, ले िकन समय थ तीत हो जाता है ।

सु खों म गया समय, थ गया समय है । उपयोग नहीं आ उसका, िसफ गं वाया गया समय है । हालां िक हम सब यही
समझते ह िक सु ख म बीता समय, बड़ा अ ा बीता। दु ख म बीता समय, बड़ा बु रा गया। ले िकन कभी आपने खयाल
िकया िक दु ख म बीता समय ि एिटव भी हो सकता है , सृ जना क भी हो सकता है; उससे जीवन म कोई ां ित भी
घिटत हो सकती है । ले िकन सु ख म बीता समय, िसफ नींद म बीता आ समय है , उससे कभी कोई ां ित घिटत नहीं
होती। सु ख म बीते समय से कभी कोई ि एिटव ए , कोई सृ जना क कृ पैदा नहीं होता।

दु ख तो मां ज भी दे ता है, और दु ख िनखार भी दे ता है , और दु ख भीतर साफ भी करता है , शु भी करता है; सु ख तो


िसफ जं ग लगा जाता है । इसिलए सु खी लोगों पर एकदम जं ग बै ठ जाती है । इसिलए सु खी आदमी, अगर ठीक से
दे ख, तो न तो बड़े कलाकार पैदा करता, न बड़े िच कार पैदा करता, न बड़े मूितकार पैदा करता। सु खी आदमी
िसफ िब रों पर सोने वाले लोग पैदा करता। कुछ नहीं, नींद! व काट दे ने वाले लोग पैदा करता है । शराब पीने
वाले, सं गीत सु नकर सो जाने वाले , नाच दे खकर सो जाने वाले–इस तरह के लोग पैदा करता है ।

अगर हम दु िनया के सौ बड़े िवचारक उठाएं , तो दो ीन ितशत से ादा सु खी प रवारों से नहीं आते । ा बात है ?
ा सु ख जं ग लगा दे ता है िच पर?

लगा दे ता है । उबा दे ता है । और सु ख ही सु ख, तो कहीं गित नहीं रह जाती; ठहराव हो जाता है , े गनसी हो जाती है ।

ग एक े गनट थित है ।

बटड रसे ल ने तो कहीं मजाक म कहा है िक ग का जो वणन है , उसे दे खकर मुझे लगता है िक नक म जाना ही
बे हतर होगा। कोई पूछ रहा था रसे ल को िक ों? तो उसने कहा, नक म कुछ करने को तो होगा; ग म तो कहते
ह, क वृ ह; करने को भी कुछ नहीं है ! करना भी चाहगे, तो न कर सकगे । सोचगे, और हो जाएगा! तो वहां कुछ
अपने लायक नहीं िदखाई पड़ता है । नक म कुछ तो करने को होगा! दु ख से लड़ तो सकगे कम से कम। दु ख से
लड़गे, तो भी तो कुछ िनखार होगा। और वहां तो सु ख िसफ बरसता रहे गा ऊपर से, तो थोड़े िदन म सड़ जाएं गे ।

कृ कहते ह, ग चला जाता है वै सा , जो योग से होता है अजु न। सु खों की दु िनया म चला जाता है । शु भ
करना चाहा था, नहीं कर पाया, तो भी इतना तो उसे िमल जाता है िक सु ख िमल जाते ह। ले िकन वापस लौट आना
पड़ता है , वहीं चौराहे पर।

सं सार चौराहा है । अगर वहां से मो की या ा शु न ई, तो वापस-वापस लौटकर आ जाना पड़ता है । वह ास


रोड् स पर ह हम। जै से िक म एक रा े के चौराहे पर खड़ा होऊं। अगर बाएं चला जाऊं, तो िफर दाएं जाना हो, तो
िफर चौराहे पर वापस आ जाना पड़े । सं सार चौराहा है । अगर ग चला जाऊं, िफर मो की या ा करनी हो, तो
चौराहे पर वापस आ जाना पड़े ।
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तो वे लोग, िज ोंने योग की साधना भी सु ख पाने के िलए ही की हो, ग चले जाते ह। ले िकन िज ोंने योग की
साधना मु होने के िलए की हो, ले िकन असफल हो गए हों, हो गए हों, वे उन घरों म ज ले ले ते ह, जहां इस
जीवन म छूटा आ म अगले जीवन म पुनः सं ल हो जाए। वे उन योग के वातावरणों म पुनः पैदा हो जाते ह, जहां
से िपछली या ा िफर से शु हो सके।

इसिलए अजु न को कृ कहते ह, तू आ ासन रख। तू भयभीत न हो। यिद मो न भी िमला, तो ग िमल सकेगा।
अगर ग भी न िमला, तो कम से कम उस कुल म ज िमल सकेगा, जहां से तू ने छोड़ी थी िपछली या ा, तू पुनः
शु कर सके। भयभीत न हो। घबड़ा मत। इस िकनारे को छोड़ने की िह त कर। अगर वह िकनारा न भी िमला, तो
भी इस िकनारे से बु रा नहीं होगा। और कुछ भी हो जाए, यह िकनारा वापस िमल जाएगा, इसिलए घबड़ा मत। इसको
छोड़ने म भय मत कर।

मने कहा सु बह आपसे िक कृ जै सा िश क अजु न की बु को समझकर बात करता है । अगर अजु न ने बु से


पूछा होता िक अगर म हो जाऊं, तो कहां प ं चूंगा? तो पता है आपको, बु ा कहते? जहां तक सं भावना तो
यह है िक बु कुछ कहते ही नहीं, तू जान। ले िकन अगर हम ब त ही खोजबीन कर बु सािह म, तो िसफ एक
घटना िमलती है । बु की नहीं िमलती, बोिधधम की िमलती है, बु के एक िश की।

वह चीन गया। चीन के स ाट ने उसका ागत िकया। और चीन के स ाट ने उसका ागत करके कहा, बोिधधम,
हे महािभ ु, तु मसे म कुछ बात जानना चाहता ं । मने हजारों बु के मंिदर बनाए, लाखों ितमाएं थािपत कीं। मुझे
इसका ा फल िमले गा? बोिधधम ने कहा, कुछ भी नहीं। स ाट ने कहा, कुछ भी नहीं! आप समझे, मने ा कहा?
मने अरबों पए खच िकए, इसका फल मुझे ा िमले गा? बोिधधम ने कहा, कुछ भी नहीं। ोंिक तू ने फल की
आकां ा की, उसी म तू ने सब खो िदया। वह सब थ हो गया ते रा िकया आ। दो कौड़ी का हो गया ते रा िकया
आ। उसने कहा, ा बात कर रहे ह? मने इतना पिव काय िकया, सच होली वक, ऐसा पिव काय! बोिधधम ने
कहा, तू मूढ़ है । दे अर इज़ निथंग ऐज होली, एवरीिथंग इज़ ज एं ी–कोई पिव -अिव नहीं है ; सब खाली है, सब
शू है ।

स ाट ने कहा, आप कृपा करके िकसी और रा म पदापण कर। ोंिक या तो आप ऐसी बात कह रहे ह, जो
हमारी बु म नहीं पड़ती; और या िफर आपकी बु ही ठीक नहीं है । आप न मालू म ा कह रहे ह! बोिधधम ने
कहा, म लौट जाता ं । ले िकन ान रख, आ खर म म ही काम पडूंगा।

वह लौट गया। नौ-दस वष बाद जब स ाट वू की मृ ु हो रही थी, तब उसे बड़ी घबड़ाहट होने लगी। उसे लगा, अब
मेरा ा होगा? मने इतने मंिदर बनाए ज र; मने इतने िभ ुओं को भोजन कराया ज र; मने इतनी मूितयां बनाईं
ज र; मने इतने शा छपवाए ज र; ले िकन मेरी आकां ा तो यही थी िक लोग कह िक तू िकतना महान धम है!
मेरे अहं कार के िसवाय और तो मने कुछ न चाहा! ये सारे मंिदर, ये सारे तीथ, ये सारी मूितयां, मेरे अहं कार के
आभू षण से ादा कहां ह? तब वह घबड़ाया। मौत करीब आने लगी, तब वह घबड़ाया। तब वह िच ाया, हे
बोिधधम! अगर तु म कहीं हो, तो लौट आओ; ोंिक शायद तु ीं ठीक कहते थे । अगर म तु ारी सु न ले ता, तो
शायद म कुछ कर सकता, जो मुझे मु कर दे ता। ये तो मने नए बं धन ही िनिमत िकए ह।

अगर बु होते, तो अजु न को ऐसा न कहते । ले िकन बु और अजु न की मुलाकात नहीं हो सकती थी। वह इं पािसबल
है , वह असंभव है । ोंिक बु को यु के मैदान पर नहीं लाया जा सकता था। और अजु न बु के बोिधवृ के नीचे
हाथ जोड़कर, नम ार करके, िज ासा करने नहीं जा सकता था। वे टाइप अलग थे । अजु न जं गल म िकसी गु के
पास िज ासा करने जाता, इसकी सं भावना कम थी। अगर जाता भी कहीं बु के पास, तो वृ के ऊपर बै ठकर
पूछता, नीचे नहीं।

कृ को भी उसके अहं कार को बीच-बीच म तृ दे नी पड़ती है । कहते ह, हे महाबाहो, हे िवशाल बा ओं वाले


अजु न! तो अजु न बड़ा फूलता है । ठीक है । कृ से भी सु नने को राजी हो गया इसीिलए िक कृ सारथी ह उसके,
िम ह, सखा ह; कंधे पर हाथ रख सकता है ; चाहे तो कह सकता है िक सब थ की बात कर रहे हो! इसिलए सु नने
को राजी हो गया।
300

तो बु और अजु न की मुलाकात नहीं हो सकती थी, वह असंभव िदखती है । अजु न जाता न बु के पास, और बु
को यु के मैदान पर न लाया जा सकता था।

इसिलए कृ अजु न को जो कह रहे ह, पूरे व अजु न को दे खकर कह रहे ह। वे कह रहे ह, ब त सु ख िमलगे


अजु न, अगर तू अ े काम करते ए मर जाता है असफल, तो ग म पैदा हो जाएगा।

अगर बु से वह कहता िक ग म पैदा होऊंगा, तो वे कहगे, ग सपने ह। ग कहीं ह ही नहीं। भटकना मत।
िजसने ग चाहा, वह नरक म प ं च गया। ग की चाह नरक म ले जाने का माग है , बु कहते, यह बात ही मत
कर। अजु न का तालमेल नहीं बै ठ सकता था बु से ।

कृ एक-एक कदम अजु न को…इसको कहते ह, परसु एशन। अगर गीता म हम कह िक इस जगत म परसु एशन
की, फुसलाने की, एक को इं च-इं च ऊपर उठाने की जैसी मेहनत कृ ने की है, वै सी िकसी िश क ने कभी
नहीं की है । सभी िश क सीधे अटल होते ह। वे कहते ह, ठीक है , यह बात है । खरीदना है ? नहीं खरीदना, बाहर हो
जाओ।

िश क स होते ह। िश क को िम की तरह पाना बड़ा मु ल है । अजु न को िश क िम की तरह िमला है,


सखा की तरह िमला है । उसके कंधे पर हाथ रखकर बात चल रही है । इसिलए कई दफा वह भू ल म भी पड़ जाता है
और थ के सवाल भी उठाता है ।

एक फायदा होता, बु जै सा आदमी िमलता, अगर बोिधधम जै सा िमलता, तो बोिधधम तो हाथ म डं डा रखता था। वह
तो अजु न को एकाध डं डा मार दे ता खोपड़ी पर, िक तू कहां की िफजूल की बकवास कर रहा है !

ले िकन कृ उसकी बकवास को सु नते ह, और ेम से उसे फुसलाते ह, और एक-एक इं च उसे सरकाते ह। वे कहते
ह, कोई िफ न कर, अगर नहीं भी िमला वह िकनारा, तो बीच म टापू ह ग नाम के, उन पर तू प ं च जाएगा। वहां
बड़ा सु ख है । खूब सु ख भोगकर, नाव म बै ठकर वापस लौट आना। अगर तु झे सु ख न चािहए हो, तो बीच म गु जनों
के टापू ह, िजन पर गु जन िनवास करते ह; उनके गु कुल ह; तू उनम वेश कर जाना। वहां तू अपनी साधना को
आगे बढ़ा ले ना।

ले िकन एक आकां ा कृ की है िक तू यह िकनारा तो छोड़, िफर आगे दे ख लगे। नहीं कोई टापू ह, नहीं कोई बात
है । तू िकनारा तो छोड़। एक दफे तू िकनारा छोड़ दे , िकसी भी कारण को मानकर अभी जरा साहस जु ट जाए, तू
भरोसा कर पाए और या ा पर िनकल जाए–तो आगे की या ा तो भु स ाल ले ता है ।

रामकृ जगह-जगह कहे ह, तु म नाव तो खोलो, तु म पाल तो उड़ाओ। हवाएं तो ले जाने को खुद ही त र ह। ले िकन
तु म नाव ही नहीं खोलते हो, तु म पाल ही नहीं खोलते! तु म िकनारे से ही जं जीर बां धे ए, नाव को बां धे ए पड़े हो और
िच ा रहे हो, उस पार कैसे प ं चूंगा? उस पार कैसे प ंचूंगा? ा है िविध? ा है माग? जरा नाव तो खोलो, तु म
जरा पाल तो खोलो। हवाएं त र ह तु ले जाने को।

भु तो े क को मो तक ले जाने को त र है । ले िकन हम िकनारा इतने जोर से पकड़ते ह! लोग कहते ह िक भु


जो है, वह ओ ीपोटट है, सवश शाली है । मुझे नहीं जं चता। हम जै से छोटी-छोटी ताकत के लोग भी िकनारे को
पकड़कर पड़े रहते ह, हमको खींच नहीं पाता। हमारी पोटसी ादा ही मालू म पड़ती है ।

नहीं, ले िकन उसका कारण दू सरा है । असल म जो ओ ीपोटट है , जो सवश शाली है , वह श का उपयोग कभी
नहीं करता। श का उपयोग िसफ कमजोर ही करते ह। िसफ कमजोर ही श का उपयोग करते ह। जो पूण
श शाली है, वह उपयोग नहीं करता। वह ती ा करता है िक हज ा है ! आज नहीं कल; इस यु ग म नहीं अगले
यु ग म; इस ज म नहीं अगले ज म; कभी तो तु म नाव खोलोगे, कभी तो तु म पाल खोलोगे, तब हमारी हवाएं तु
उस पार ले चलगी। ज ी ा है ? ज ी भी तो कमजोरी का ल ण है । इतनी ज ी ा है? समय कोई चु का तो
नहीं जाता!
301

ले िकन परमा ा का समय भला न चुके, आपका चु कता है । वह अगर ज ी न करे , चले गा। उसके िलए कोई भी
ज ी नहीं है , ोंिक कोई टाइम की िलिमट नहीं है, कोई सीमा नहीं है । ले िकन हमारा तो समय सीिमत है और बं धा
है । हम तो चु कगे। वह ती ा कर सकता है अनंत तक, ले िकन हमारी तो सीमाएं ह, हम अनंत तक ती ा नहीं कर
सकते ह।

ले िकन बड़ा अदभु त है । हम भी अनंत तक ती ा करते ए मालू म पड़ते ह। हम भी कहते ह िक बै ठे रहगे । ठीक है ।
जब तू ही खोल दे गा नाव, जब तू ही पाल को उड़ा दे गा, जब तू ही झटका दे गा और खींचेगा…।

और कई दफे तो ऐसा होता है िक झटका भी आ जाए, तो हम और जोर से पकड़ ले ते ह, और चीख-पुकार मचाते ह


िक सब भाई-बं धु आ जाओ, स ालो मुझे। कोई ले जा रहा है ! कोई खींचे िलए जा रहा है !

कृ अजु न को दे खकर ये उ र िदए ह, यह ान म रखना। धीरे -धीरे वे ये उ र भी िपघला दगे, गला दगे । वह राजी
हो जाए छलां ग के िलए, बस इतना ही।

आज इतना। कल सु बह हम बात करगे ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


आं त रक सं पदा (अ ाय—6) वचन—बीसवां

त तं बु संयोगं लभते पौवदे िहकम्।


यतते च ततो भूयः संिस ौ कु न न।। 43।।
और वह पु ष वहां उस पहले शरीर म साधन िकए ए बु के सं योग को अथात सम बु योग के सं ारों को
अनायास ही ा हो जाता है । और हे कु नंदन, उसके भाव से िफर अ ी कार भगव ा के िनिम य
करता है ।

जीवन म कोई भी यास खोता नहीं है । जीवन सम यासों का जोड़ है, जो हमने कभी भी िकए ह। समय के
अंतराल से अंतर नहीं पड़ता है । े क िकया आ कम, ेक िकया आ िवचार, हमारे ाणों का िह ा बन जाता
है । हम जब कुछ सोचते ह, तभी पांत रत हो जाते ह; जब कुछ करते ह, तभी पां त रत हो जाते ह। वह पां तरण
हमारे साथ चलता है ।

हम जो भी ह आज, हमारे िवचारों, भावों और कम का जोड़ ह। हम जो भी ह आज, वह हमारे अतीत की पूरी ंखला
है । एक ण पहले तक, अनंत-अनंत जीवन म जो भी िकया है , वह सब मेरे भीतर मौजू द है ।

कृ कह रहे ह, इस जीवन म िजसने साधा हो योग, ले िकन िस न हो पाए अजु न, तो अगले जीवन म अनायास ही,
जो उसने साधा था, उसे उपल हो जाता है । अनायास ही! उसे पता भी नहीं चलता। उसे यह भी पता नहीं चलता िक
यह मुझे ों उपल हो रहा है। इसिलए कई बार बड़ी ां ित होती है । और इस जगत म स अनायास िमल सकता
है , इस तरह के जो िस ां त ितपािदत ए ह, उनके पीछे यही ां ित काम करती है ।

कोई अगर िपछले ज म उस जगह प ं च गया है , जहां पानी िन ानबे िड ी पर उबलने लगे , और एक िड ी
कम रह गया है, वह अचानक कोई छोटी-मोटी घटना से इस जीवन म परम ान को उपल हो सकता है । आ खरी
ितनका रह गया था ऊंट पर पड़ने को और ऊंट बै ठ जाता है । पर एक छोटा-सा ितनका, अगर आप कभी वजन
तौलते ह तराजू पर रखकर, तो आपको पता है , एक छोटा-सा ितनका कम हो, तो तराजू का पलड़ा ऊपर रहता है ।
एक ितनका बढ़ा, तो तराजू का पलड़ा नीचे बै ठ जाता है ; दू सरा ऊपर उठ जाता है । एक ितनके की भी ित ा होती
है । एक ितनके का ा मू है! इसे ऐसा समझने की कोिशश कर।
302

एक सा ी, झेन सा ी वष तक अपने गु के पास थी। सब तरह के वचन सु ने, सब तरह के शा समझे, सब


तरह के िस ां तों को जान िलया। ले िकन बस, कहीं कोई चीज अटकी थी और ार नहीं खुलते थे । ऐसा लगता था,
चाबी हाथ म है , िफर भी ताला अनखुला ही रह जाता था। ऐसा लगता था िक म जानती ं , िफर भी कुछ अंतराल था,
कोई बाधा थी, कुछ दीवाल थी। िकतनी ही बारीक और महीन पत थी, पर उस पार नहीं िनकल पाती थी।

गु से बार-बार पूछती है िक कौन-सी बाधा है ? कैसे टू टे गी?

गु कहता है , तू ती ा कर। ब त ही छोटी-सी बाधा है, अनायास ही टू ट जाएगी। और बाधा इतनी छोटी है िक तू
यास शायद न कर पाए। बाधा ब त छोटी है , अनायास ही टू ट जाएगी। थोड़ी ती ा कर; थोड़ी ती ा कर।

वष पर वष बीत गए। वह वृ भी हो गई। िफर एक िदन उसने कहा िक कब टू टे गी वह बाधा? गु ने आकाश की


तरफ दे खा और कहा िक इस पखवाड़े म शायद चां द के पूरे होने तक टू ट जाए। पांच-सात िदन बचे थे चां द की पूरी
रात आने को, पूिणमा आने को। और पूिणमा की रात बाधा टू टी। और ऐसी अनायास टू टी िक झेन फकीरों के
इितहास म वह कहानी बन गई।

सां झ सू रज डूब गया। चां द िनकल आया। रोशनी उसकी फैलने लगी। गु ने, कोई दस बजे होंगे रात, उस सा ी को
कहा, मुझे ास लगी है , तू जाकर कुएं से पानी ले आ। जै सा जापान म करते ह, यहां भी करते ह। एक बां स की डं डी
पर दोनों तरफ बतन लटका दे ते ह और कुएं से पानी लाते ह।

बां स की डं डी पर लटके ए िम ी के बतनों को ले कर कुएं पर पानी भरने गई। पानी भरकर लौटती थी। सोचती थी
िक पूिणमा भी आ गई। चां द भी पूरा हो गया। आधी रात भी ई जाती है । और गु ने कहा था िक शायद इस बार
चां द के पूरे होते-होते बात हो जाए। अभी तक ई नहीं। और कोई आशा भी नहीं िदखाई पड़ती! और अब तो सोने
का व भी आ गया। अब गु को पानी िपलाकर, और म सो जाऊंगी। कब घटे गी यह बात!

और तभी अचानक उसकी बां स की डं डी टू ट गई। उसके दोनों बतन जमीन पर िगरे ; फूट गए; पानी िबखर गया।
और घटना घट गई। उसने एक गीत िलखा है िक जब बतन नीचे िगरा, तब म बतन म दे खती थी िक चां द का ितिबंब
बन रहा है –पानी म। िफर िम ी का घड़ा था; िगरा, फूटा। घड़ा भी फूट गया। पानी िबखर गया। चां द का ितिबंब
कहां खो गया, कुछ पता न चला। और घड़े के फूटते ही कोई चीज मेरे भीतर फूट गई। और जैसे चां द का ितिबंब
खो गया, ऐसे ही म खो गई। घड़े के फूटते ही, कुछ मेरे भीतर भी फूट गया। और जै से चां द का ितिबं ब खो गया पानी
म, ऐसे ही म खो गई। ऊपर दे खा तो चां द था, भीतर दे खा तो परमा ा था। घड़े के बतन का ितिबं ब टू ट गया, चां द
नहीं टू ट गया।

हम परमा ा के ितिबं ब से ादा नहीं ह। और हमारे अहं कार का घड़ा है, और राग का पानी है , उसम सब ितिबं ब
बनता है वहां ।

दौड़ी ई गु के पास प ं ची, और कहा, कभी सोचा भी न था िक घड़े के फूटने से ान होगा! गु ने कहा, घड़े के
फूटने से ही होता है । घड़ा कैसे फूटे गा, यही सवाल है । और ते रा घड़ा तो ब त कमजोर था, फूटने को फूटने को ही
था। कभी भी फूट सकता था। कोई ऐसे िनिम की ज रत थी, िजसम िक वह जो ते रे भीतर आ खरी ितनका रखना
है , वह पड़ जाए। वजन तो पूरा था, पलड़ा नीचे बै ठने को था। बस, आ खरी ितनका, वह एक घड़े के फूटने से हो
गया।

ब त लोगों के जीवन म अनायास घटना घटती है ।

एक ब त अदभुत साधक और िम क, एडमंड बक ने एक िकताब िलखी है , का क कांशसनेस। वह बड़ा है रान


है । न उसने कभी कुछ साधा, न कभी कोई ाथना की, न कभी कोई पूजा की, न भु म िव ास करता है । अचानक
एक िदन रात, अंधेरी रात म जंगल से िनकल रहा है । एकां त है , झींगुरों की आवाज के िसवाय कोई आवाज नहीं है ।
धीमी सी चां दनी है । हवा के झोंके वृ ों म आवाज कर रहे ह।
303

अचानक, घड़ा भी नहीं फूटा–इस मिहला के मामले म तो घड़ा फूटा, इसिलए घटना घटी–अचानक, बक ने िलखा है
िक बस, न मालू म ा आ। मेरी समझ म न पड़ा िक ा आ, लगा िक जै से म मर रहा ं । बै ठ गया। एक ण को
ऐसा लगा, िसं िकंग, जै से कोई पानी म डूब रहा हो, ऐसा डूबता जा रहा ं । ब त घबड़ाहट ई। िच ाने की कोिशश
की। ले िकन जै सा कभी-कभी सपने म हम सबको हो जाता है । िच ाने की कोिशश करते ह, आवाज नहीं िनकलती।
हाथ उठाने की कोिशश करते ह, हाथ नहीं उठता। तो बक ने िलखा है , न हाथ उठे , न िच ाने की आवाज िनकले ।
िफर यह भी खयाल आया, कोई सु नने को भी झींगुरों के अित र वहां है नहीं। आवाज करने से भी ा होगा? कब
आं ख बं द हो गईं। कब म नीचे िगर पड़ा। लगा िक मर गया।

कब मुझे होश आया, कोई आधी रात हो गई, और मने दे खा िक म दू सरा आदमी ं । वह आदमी जा चुका जो कल
तक था। वह सं देह करने वाला, वह अ ालु, वह अिव ासी, वह ना क नहीं है । कोई और ही मेरे भीतर आ गया
है । वृ के प े-प े म परमा ा िदखाई पड़ रहा है । झींगुरों की आवाज नाद हो गई। और बक जीवनभर कहता
रहा िक मेरी समझ के बाहर है िक उस िदन ा आ! अनायास!

कृ कहते ह, िपछले ज ों की या ा, अगर थोड़ी-ब त अधू री रह गई हो, कहीं हम चूक गए हों, तो िकसी िदन
अनायास, िकसी ज म अनायास बीज फूट जाता है ; दीया जल जाता है; ार खुल जाता है । और कई बार ऐसा होता
है िक इं चभर से ही हम चू क जाते ह। और इं चभर से चू कने के िलए कभी-कभी ज ों की या ा करनी पड़ती है ।

कोले रेडो म अमे रका म जब पहली दफा सोने की खदान िमली ं, तो एक ब त अदभु त घटना घटी, मुझे ीितकर रही
है । जब पहली दफा सोना िमला अमे रका के कोले रेडो म–और आज सबसे ादा सोना कोले रेडो म है, सबसे ादा
सोने की खदान ह–तो िकसानों को ऐसे ही खेत म काम करते ए सोना िमलना शु हो गया। पहाड़ों पर लोग चढ़ते,
और सोना िमल जाता। लोगों ने जमीन खरीद लीं और अरबपित हो गए।

एक आदमी ने सोचा िक छोटी-मोटी जमीन ा खरीदनी है ; एक पूरा पहाड़ खरीद िलया। सब िजतना पैसा था, लगा
िदया। कारखाने थे, बे च िदए। पूरा पहाड़ खरीद िलया। खरबपित हो जाने की सु िनि त बात थी। जब छोटे -छोटे खेत
म से खोदकर लोग सोना िनकाल रहे थे, उसने पूरा पहाड़ खरीद िलया।

ले िकन आ य, पहाड़ पर खुदाई के बड़े -बड़े यं लगवाए, ले िकन सोने का कोई पता नहीं! वह पहाड़ जै से सोने से
िबलकुल खाली था। एक टु कड़ा भी सोने का नहीं िमला। कोई तीन करोड़ पया उसने लगाया था पहाड़ खरीदने म,
बड़ी मशीनरी ऊपर ले जाने म। लोग कुदािलयों से खोदकर सोना िनकाल रहे थे कोले रेडो म। सारी दु िनया कोले रेडो
की तरफ भाग रही थी। और वह आदमी बबाद हो गया कोले रेडो म जाकर। उसकी हालत ऐसी हो गई िक मशीनों
को पहाड़ से उतारकर नीचे लाने के पैसे पास म न बचे िक मशीन बेच सके। ठ हो गया।

अखबारों म खबर दी उसने िक म पूरा पहाड़ मय मशीनरी के बे चना चाहता ं । उसके िम ों ने कहा, कौन खरीदे गा!
सारे अमे रका म खबर हो गई है िक उस पहाड़ पर कुछ नहीं है । पर उसने कहा िक शायद कोई आदमी िमल जाए,
जो मुझसे ादा िह तवर हो। कोई इतना पागल नहीं है , लोगों ने कहा। ले िकन उसने कहा, एक कोिशश कर लूं ।
ोंिक म सोचता ं , कोई मुझसे िह तवर िमल सकता है ।

और एक आदमी िमल गया, िजसने तीन करोड़ पए िदए और पूरा पहाड़ और पूरी मशीनरी खरीदी। जब उसने
खरीदी, तो उसके घर के लोगों ने कहा िक तु म िबलकुल पागल हो गए हो। दू सरा आदमी बबाद हो गया; अब तु म
बबाद होने जा रहे हो! उस आदमी ने कहा, जहां तक पहाड़ खोदा गया है, वहां तक सोना नहीं है , यह साफ है ।
इसिलए मामला काफी हो चुका है । अब सोना नीचे हो सकता है । जहां तक खोदा गया है, वहां तक नहीं है । हम भी
इस झंझट से बचे । वह आदमी मेहनत कर चु का, जो बे कार मेहनत थी। अब आगे मेहनत करनी है । ब त-सा तो कट
चु का है पहाड़। कौन जाने नीचे सोना हो! लोगों ने कहा िक इस झंझट म मत पड़ो। और जमीन ब त ह, िजन पर
ऊपर ही सोना है । पर उस आदमी ने वह पहाड़ खरीद ही िलया।
304

और आ य की बात िक पहले िदन की खुदाई म ही कोले रेडो की सबसे बड़ी सोने की खदान िमली–िसफ एक फुट
िम ी की पत और। एक फुट िम ी की पत और! और कोले रेडो का सबसे बड़ा सोने का भं डार उस पहाड़ पर िमला।
और वह आदमी कोले रेडो का सबसे बड़ा खरबपित हो गया।

एक फुट! कभी-कभी एक इं च से भी चू क जाते ह। कभी-कभी आधा इं च से भी चू क जाते ह।

तो कृ कहते ह, भय न करना अजु न! िकतना ही चू क जाओ, जो तू ने िकया है , वह िन ल नहीं जाएगा। िजतना तू ने


िकया है, वह िन ल नहीं जाएगा। िजतना तू ने िकया है , वह अगले ज म पुनः वहीं से या ा शु होगी। समय का
वधान ज र पड़ जाएगा। शायद तू समझ भी न पाए, जब अनायास घटना घटे । शायद तु झे तीित भी न हो सके
िक यह ा हो रहा है । ले िकन जो ते रे साथ है , जो ते रा िकया आ है , वह ते रे साथ होगा।

योग की िदशा म िकया गया कोई भी य कभी खोता नहीं। भु की िदशा म उठाया गया कोई भी कदम थ नहीं
जाता है । उतनी या ा हो जाती है । हम दू सरे हो जाते ह। भु की िदशा म सोचा गया िवचार भी थ नहीं जाता है, हम
उतने तो आगे बढ़ ही जाते ह।

आ ासन दे रहे ह अजु न को िक तू इन बातों म मत पड़। तू इस भां ित मत सोच िक कहीं पूरा न हो सका, तो ा
होगा! िजतना भी होगा, उसकी भी अपनी अथव ा है । िजतना भी तू कर ले गा, उतना भी काफी है ।

एक िम मेरे पास आए। वे कहते ह िक उनका न े ितशत मन सं ास ले ने का है, दस ितशत मन सं ास ले ने का


नहीं है । तो मने कहा, िफर ा खयाल है ? उ ोंने कहा िक तो अभी नहीं ले ता ं । तो मने कहा िक थोड़ा सोच रहे ह,
िक न ले ना भी एक िनणय है । और दस ितशत के प म िनणय ले रहे ह, और न े ितशत के प म िनणय नहीं ले
रहे ह।

वे कहते ह िक न े ितशत सं ास ले ने का मन है, दस ितशत सं देह मन को पकड़ता है , तो अभी नहीं ले ता ं । पर


उनको पता नहीं है िक यह भी िनणय है । न ले ना भी िनि त िनणय है । यह िनणय दस ितशत मन के प म िलया जा
रहा है । और न े ितशत मन के प म जो िनणय है , वह नहीं िलया जा रहा है । यह न े ितशत मन, मालू म होता
है , उनका नहीं है; दस ितशत मन उनका है ।

मेरा मतलब समझे! यह न े ितशत मन, मालू म पड़ता है, उनका नहीं है , कम से कम इस ज का नहीं है । अ था
यह कैसे हो सकता था िक आदमी न े ितशत को छोड़े और दस ितशत को पकड़े ! दस ितशत उनका है , इस
ज का है । न े ितशत उनके िपछले ज ों की या ा का है । उससे उ कोई कां शस सं बंध नहीं मालू म पड़ता िक
वह मेरा है । वह ऐसा लगता है िक कोई मेरे भीतर न े ितशत कह रहा है िक ले लो। ले िकन म क रहा ं । म दस
ितशत के प म ं । वे ादा दे र न क पाएं गे, ोंिक वह न े ितशत ध े मारता ही रहेगा। और दस ितशत
िकतनी दे र जीत सकता है? कैसे जीते गा?

ले िकन समय का वधान पड़ जाएगा। ज भी खो सकते ह। और वह न े ितशत ती ा करे गा; और हर ज म


ध ा दे गा। हर िदन, हर रात, हर ण वह ध े मारे गा। ोंिक वह न े ितशत आपका बड़ा िह ा है , िजसे
आप नहीं पहचान पा रहे ह िक आपका है । और यह दस ितशत, िजसको आप कह रहे ह मेरा, यह िसफ इस ज
का सं ह है ।

ान रहे, िपछले ज ों और इस ज के बीच म जो सं घष है , उसी के कारण मनु के कां शस और अनकां शस म


फासला पड़ता है । ायड को अंदाज नहीं है, जुं ग को अंदाज नहीं है । ोंिक जुं ग और ायड की ब त गहरी पकड़
नहीं है । ब त ऊपर-ऊपर उनकी खोज है । ायड के पास जो उ र है, वह ब त साफ नहीं है, िक मनु के चे तन
और अचेतन म फक ों पड़ता है ? ाइ दे अर इज़ िड ं न? यह चेतन और अचे तन जै से दो िह े ों ह मनु
के मन के?
305

ायड इतना ही कह सकता है िक अचेतन वह िह ा है, िजसको हमने दबा िदया। ले िकन ों दबा िदया? और
ायड यह भी जानता है िक वह अचेतन िह ा नौ गु ना बड़ा है चे तन से । तो एक िह ा नौ गु ने को दबा सकेगा?
इसम बड़ी भू ल मालू म पड़ती है। ायड कहता है िक अचेतन नौ गु ना बड़ा है । अनकां शस नौ गु ना बड़ा है कां शस
से । जै से िक बफ का टु कड़ा पानी म तै रता हो, तो िजतना नीचे डूब जाता है , उतना अचेतन है , नौ गु ना ादा। जरा-
सा ऊपर िनकला रहता है , उतना चे तन है । अगर नौ गु ना अचेतन वही िह ा है जो आदमी ने दबा िदया है , तो बड़े
आ य की बात है िक चे तन छोटी-सी ताकत बड़ी ताकत को दबा पाती है?

नहीं; ायड की थोड़ी भू ल मालू म पड़ती है । यह बात सच है , यह दमन की बात म थोड़ी स ाई है । ले िकन अचेतन
असल म वह िह ा है मन का, जो हमारे अतीत ज ों से िनिमत होता है ; और चेतन वह िह ा है हमारे मन का, जो
हमारे इस ज से िनिमत होता है ।

इस ज के बाद हमने जो अपना मन बनाया है , िश ा पाई है , सं ार पाए ह, धम, िम , ि यजन, अनुभव, उनका
जो जोड़ है, वह हमारा मन है , कां शस माइं ड है । और उसके पीछे िछपी ई जो अंतधारा है हमारे अचेतन की,
अनकां शस माइं ड की, वह हमारा अतीत है । वह हमारे अतीत ज ों का सम सं ह है ।

िनि त ही, वह ादा ताकतवर है , ले िकन ादा सि य नहीं है । इन दोनों बातों म फक है । ादा ताकत से ज री
नहीं है िक सि यता ादा हो। कम ताकत भी ादा सि य हो सकती है । असल म जो हमने इस ज म बनाया है ,
वह ऊपर है; वह हमारे मन का ऊपरी िह ा है, जो हमने अभी बनाया है । और जो हमारे अतीत का है , वह उतना ही
गहरा है । जो हमने िजतने गहरे ज ों म बनाया है , उतना ही गहरा दबा है ।

जै से कोई आदमी के घर म धू ल की पत जमती चली जाए वष तक, तो आज सु बह जो धू ल उसके घर म आएगी, वह


ऊपर होगी, िदखाई पड़े गी। और अगर हवा का झोंका आएगा, तो वष की नीचे जो जमी धू ल है , उसको पता भी नहीं
चलेगा। ऊपर की हवा ही सि य होती िदखाई पड़े गी, ऊपर की ही धू ल उड़ने लगेगी। नीचे की धू ल तो िनि ंत िव ाम
करे गी। वह ब त गहरी बै ठ गई है ; ब त गहरी; अब वहां कोई झोंका नहीं प ं चता है । कभी-कभी कोई झोंका वहां
तक प ं च जाता है । जब हम कहते ह िक कोई िवचार हमारे जीवन म वे श करता है , कोई ेरणा, कोई इं सपे रेशन,
कोई घटना, कोई , कोई श , कोई िन, कोई चोट जब हमारे जीवन म गहरी वेश करती है और हमारी
पत को फाड़कर भीतर चली जाती है , तब उस भीतर की आवाज आती है ।

उन िम को न े ितशत की जो आवाज आ रही है , वह िकसी गहरी चोट के कारण से आ रही है । ले िकन वे चोट
को झुठलाने म लगे ह। वे बड़े दु ख म पड़ गए ह। दु ख भारी है । और मन म िवचार आता है िक आ ह ा कर ल।

ान रहे, जब िकसी आदमी के जीवन म आ ह ा का िवचार आता है , वही ण सं ास म पां त रत िकया जा


सकता है । त ाल! ोंिक सं ास का अथ है , आ पां तरण।

जब आदमी आ ह ा करना चाहता है , तो उसका मतलब यह है िक इस आ ा से ऊब गया है , इससे ऊब गया है ,


इसको खतम कर दू ं । इसके दो ढं ग ह। या तो शरीर को काट दो; इससे आ ा खतम नहीं होती, िसफ धोखा पैदा
होता है । वही आ ा नए शरीर म वे श करके या ा शु कर दे गी। दू सरा जो सही रा ा है , वह यह है िक इस आ ा
को टां सफाम करो, पांत रत करो, नया कर लो। शरीर को मारने से कुछ न होगा, आ ा को ही बदल डालो, वह
योग है ।

इसिलए एक ब त मजे की बात आपको क ं, िजस दे श म ादा सं ासी होते ह, उस दे श म आ ह ाएं कम होती
ह। और िजस दे श म सं ासी कम होते ह, उसम उतनी ही मा ा म आ ह ाएं बढ़ जाती ह।

आप जानकर यह है रान होंगे िक अगर अमे रका और भारत की आ ह ा और सं ािसयों का आं कड़ा िबठाया जाए,
तो बराबर अनुपात होगा, बराबर, ए े ! िजतने लोग यहां ादा मा ा म सं ास ले ते ह, उतने ादा लोग वहां
आ ह ा करते ह। ोंिक आ ह ा का ण दो तरफ जा सकता है । वह एक ाइिसस है , एक सं कट है । या तो
शरीर को िमटाओ, या यं को िमटाओ। और ये दो िदशाएं ह।
306

शरीर को िमटाने से कुछ भी नहीं होता। िसफ तीस-पतीस साल के बाद आप वहीं िफर खड़े हो जाएं गे । एक थ की
लं बी या ा होगी। गभाधारण होगा। िफर ब े बनगे । िफर िश ा होगी। िफर उप व सब चले गा। और िफर एक िदन
आप पाएं गे िक ठीक यही ण आ गया, आ ह ा का। हां , तीस-चालीस साल बाद आएगा। यह इतना समय थ
जाएगा।

सं ास का अथ है , आ गई वह घड़ी, जहां हम जै से ह, उससे हम तृ न रह। जै से हम ह, अब उसी को आगे खींचने


म कोई योजन न रहा। उसम बदलाहट ज री है । तो यं को बदल डालो।

ले िकन न े ितशत मन कहता है , बदल डालो। पर वह पत गहरी है , नीचे की है, उसको आप अपनी नहीं मान पाते ।
वह जो ऊपर की पत है , उससे आपकी पहचान है । अभी ताजी है । वह आपको अपनी लगती है । मन का ऐसा िनयम
है ।

मन का ऐसा िनयम है, जो ऊपर है , वह अपना मालू म पड़ता है। ोंिक मन ऊपर-ऊपर जीता है , सतह पर, लहरों
पर। जो गहरा है , वह अपना नहीं मालू म पड़ता है ।

इसिलए ब त दफे ां ित होती है । जब ब त गहरे से आवाज आती है –वह यं के ही भीतर से आती है –जब ब त
गहरे से आवाज आती है , तो साधक को लगता है, कोई ऊपर से बोल रहा है । परमा ा बोल रहा है ।

परमा ा कभी नहीं बोलता। परमा ा तो पूरा अ है , वह कभी नहीं बोलता, वह सदा मौन है । ले िकन यं के ही
इतने भीतर से आवाज आती है िक वह लगती है, िकसी और की आवाज है, इतने दू र से आती मालू म पड़ती है । हम
ही अपने से इतने दू र चले गए ह। अपने घर से हम इतने दू र चले गए ह िक अपने ही घर के भीतर से आई ई आवाज
कहीं दू र, िकसी और की आवाज मालू म पड़ती है । वह अपनी ही आवाज है , अपनी ही गहरे की आवाज है , अपनी ही
गहराइयों की आवाज है । पर हमारी आइडिटटी, हमारा तादा होता है ऊपर की पत से, उसको हम कहते ह, म।

कृ कहते ह, अजु न, तू भयभीत न हो। जो तू कर सकता है इस जीवन म, कर। अगले जीवन म वह तु झे अनायास
िमल जाएगा।

इसिलए भी कहते ह, यह भी म आपको याद िदला दू ं , िक अगर कृ जै सा आदमी यह बात कह दे , तो यह ब त


गहरे वे श कर जाती है । और सं भावना यह है–और इसका एक िनयम और एक सू और एक व था और एक
तकनीक है । कृ ों कहते ह यह बात? महावीर ों कहते ह? बु ों कहते ह? ों दोहराते ह ये सारे लोग िक
तु म िजतना करोगे, वह अगले ज म अनायास तु िमल जाएगा?

वे इसिलए कहते ह िक बु , महावीर या कृ जै से के सं पक म आपके मन की जो ऊपरी पत है , वह खुल


जाती है और भीतर तक आप सु न पाते ह। उनकी मौजू दगी कैटे िलिटक एजट का काम करती है । उनकी मौजू दगी म,
आपके भीतर जो दरवाजे आप नहीं खोल पाते, खुल जाते ह। उनकी मौजू दगी आपको बल दे जाती है, श दे जाती
है , साहस दे जाती है, भरोसा दे जाती है ।

तो कृ जब यह कह रहे ह िक इस ज का जो है अगले ज म अनायास िमल जाएगा, यह बात अगर अजु न के


मन म बै ठ जाए, तो अगले ज म जब अनायास िमले गा, तो उसे याद भी आ जाएगी। इसिलए भी यह बात कही
जाती है । तब अगले ज म वह याद कर सकेगा िक िनि त ही, आज अनायास यह घट रहा है , यह कृ ने कहा था।
वह पहचान पाएगा; ये श उसके भीतर बै ठ जाएं गे ।

श ों की भी गहराइयां ह। यों की गहराइयों के साथ श ों की गहराइयां बढ़ती ह। जब कोई आदमी कंठ से


बोलता है , तो आपके कान से गहरा कभी नहीं जाता है । जब कोई आदमी दय से बोलता है , तो आपके दय तक
जाता है । जब कोई आदमी ाण से बोलता है , तो आपके ाण तक जाता है । जब कोई आदमी आ ा से बोलता है, तो
आपकी आ ा तक जाता है । और जब कोई अपने परमा ा से बोलता है, तो आपके परमा ा तक जाता है ।
307

गहराई उतनी ही होती है आपके भीतर, िजतनी िक बोलने वाले की गहराई होती है । बोलने वाले की गहराई से ादा
आपके भीतर नहीं जा सकता। हां, बोलने वाले की गहराई तक भी न जाए, यह हो सकता है । यह हो सकता है िक
कोई आ ा से बोले, ले िकन आपके कानों तक जाए, ोंिक आपके कानों के आगे माग ही बं द है ।

तो ान रखना, बोलने वाले की गहराई से ादा गहरा आपके भीतर नहीं जा सकता, ले िकन बोलने वाले की गहराई
से कम गहरा आपके भीतर जा सकता है ।

इसिलए पुराने िदनों म एक व था थी िक गु के पास िश ब त िनकट म रहे । िनकट म रखने का और कोई


कारण न था; िसफ यही कारण था िक िकसी ण म, िकसी मोमट म िश जब इतने तालमेल म आ जाए गु से,
इतनी हामनी और टयू िनंग म आ जाए िक गु अपनी गहरी से गहरी बात उससे कह सके। वह ण कब आएगा,
कहा नहीं जा सकता।

आप चौबीस घं टे ेम के ण म नहीं होते । चौबीस घं टे म कोई ण होता है , जब आपको लगता है , आप ादा


ेमपूण ह। चौबीस घं टे म कई ण ऐसे होते ह, जब आपको लगता है िक आप ादा ोधपू ण ह।

िभखारी सु बह आपके दरवाजे पर भीख मां गते ह, वे जानते ह िक सु बह दया की ादा सं भावना है सां झ की बजाय।
सां झ को िभखारी भीख मां गने नहीं आता, ोंिक वह जानता है िक सां झ तक आप िदनभर भीख मां गकर खुद इतने
परे शान हो गए ह िक आपसे कोई आशा नहीं की जा सकती है। सु बह आप आ रहे ह एक दू सरे लोक से, यं के
भीतर की गहराइयों से, जहां मािलक का िनवास है , जहां भु रहता है । सु बह-सु बह के ण म आपम भी थोड़ी
मालिकयत होती है, थोड़ा ािम होता है । आप भी िभखारी नहीं होते । सां झ तक, बाजार के ध े , द र की दौड़,
सड़कों की चोट, सब उप व सहकर आप िभखारी की हालत म प ं च जाते ह। सां झ आपकी है िसयत नहीं होती िक दे
सक।

इसिलए सां झ, दु िनया म िकसी कोने म भीख नहीं मां गी जाती। िभखारी भी समझ गए ह लं बे अनुभव से मनसिव ान,
िक आदमी की बु कब काम कर सकती है दया के िलए।

ठीक ऐसे ही गहराई के ण भी होते ह। इसिलए गु , पुराना गु चाहता था िक िश िनकट रहे , ब त िनकट रहे ।
तािक िकसी ऐसे ण म, जब भी उसे लगे िक अभी ार खुला है , वह कुछ डाल दे । और वह भीतर की गहराई तक
प ं च जाए।

कृ को लगा है िक यह ण अजु न का गहरा है । ों? ोंिक अजु न पहली दफा उ ु क हो रहा है कुछ करने को।
भय उसका उ ुकता की वजह से ही है । अगर उ ुक न होता, तो वह यह भी न पूछता िक कहीं म िबखर तो न
जाऊंगा! कहीं ऐसा तो न होगा िक मेरी नाव रा े म ही डूब जाए! इसका प ा अथ यह है िक दू सरी तरफ जाने की
पुकार उसके मन म आ गई। दू सरे िकनारे की खोज का आ ान िमल गया। चु नौती कहीं ीकार कर ली गई है ।
इसीिलए तो भय उठा रहा है । इसीिलए भय उठा रहा है । नहीं तो भय भी नहीं उठाता। वह कहता िक ठीक है , आप
जो कहते ह, िबलकुल ठीक है ।

अ र जो लोग एकदम से कह दे ते ह िक िबलकुल ठीक है , वे वे ही लोग होते ह, िज कोई मतलब नहीं होता।
मतलब हो, तो एकदम से नहीं कह सकते िक ठीक है । ोंिक तब ाणों का सवाल है, किमटमट है । िफर तो एक
गहरा किमटमट है । आदमी कहता है , िबलकुल ठीक है । घर चला जाता है । अ र जो लोग कहते ह, िबलकुल ठीक
है िबना सोचे-समझे, िबना भयभीत ए–और यह मामला ऐसा है िक भयभीत होगा ही कोई। यह पूरी िजं दगी के
बदलने का सवाल है । यह िजं दगी और मौत का दां व है , और भारी दां व है ।

अजु न जब िचं ितत हो गया, यह िचं ितत होना शु भ ल ण है । यह िचं ता शु भ ल ण है । इसिलए कृ ने समझा िक अभी
वह ार खुला है , अब वे उससे कह द। कह द उससे िक घबड़ा मत। भरोसा रख। जो तू करे गा, वह अगले ज म
तु झे िमल जाएगा, अगर या ा पूरी भी न ई तो। कुछ खोता नहीं। अगले ज म सु गित िमल जाती है । वै सा वातावरण
िमल जाता है , जहां वह फूल अनायास खल जाए। वै से लोग िमल जाते ह।
308

ित त म एक ब त पुरानी योिगयों की कहावत है , डू नाट सीक िद मा र, गु को खोजो मत। े न िद िडसाइपल


इज़ रे डी, िद मा र एिपयस। जब िश तै यार है , तो गु मौजू द हो जाता है । ब त पुरानी, कोई छः हजार वष पुरानी
िकताब म यह सू है इिज की। खोजना मत गु को। जब िश तै यार है , तो गु मौजू द हो जाता है ।

ोंिक जीवन के ब त अंतिनयम ह, िजनका हम खयाल भी नहीं होता, िजनका हम पता भी नहीं होता। वे िनयम
काम करते रहते ह। आपकी िजतनी यो ता होती है , उस यो ता की व था के िलए परमा ा सदा ही साधन जु टा
दे ता है ।

हां, आप ही उनका उपयोग न कर, यह हो सकता है । यह हो सकता है िक आप कह िक नहीं, अभी नहीं। आपका ही
वह जो ऊपर का मन है , बाधा डाल दे । आपके भीतर के मन को दे खकर तो अ ने व था जु टा दी, ले िकन
आपका ऊपर का मन बाधा डाल सकता है । बु आपके गांव से गु जर और आप कह िक आज तो मु ल है । आज
तो दु कान पर ाहकों की भीड़ ादा है ।

कैसे आ य की बात है! ऐसा आ है । बु गां व से गु जरे ह। पूरा गां व सु नने नहीं आया है । आ खरी व ; बु के पास
एक आदमी भागता आ प ंचा, सु भ । बु अपने िभ ुओं से िवदा ले चु के थे । और उ ोंने कहा िक अब म शां त
होता ं , शू होता ं, िनवाण म वे श करता ं । अब म समािध म जाता ं । तु कुछ पूछना तो नहीं है ?

िभ ु इक े थे, कोई लाख िभ ु इक े थे । उ ोंने कहा, हमने इतना पाया, हम उसको ही नहीं पचा पाए। हमने इतना
समझा, हम उसको ही कहां कर पाए! अब हम िवदा होते आपको और क न दगे । हम कुछ पूछना नहीं है । आपने
सब िबना पूछे िदया है । िबना मां गे आपने बरसाया है । सलाह नहीं मां गी थी, तो भी सलाह दी है । आपके हम िसफ
ऋणी ह, अनुगृहीत ह। हम िसफ रो सकते ह, और कुछ कह नहीं सकते ।

बु ने तीन बार पूछा। बु का िनयम था, हर बात तीन बार पूछते थे । अनुकंपा अदभु त है बु लोगों की। वे तीन बार
पूछते थे । पूछना है कुछ? सामने वाला कहता, नहीं। तो भी बु कहते, पूछना है कुछ? सामने वाला कहता, नहीं। तो
भी बु कहते, पूछना है कुछ? सामने वाला कहता, नहीं। तब बु कहते, अब तू ही िज ेवार होगा अपनी नहीं का।
तीन बार ब त हो गया। तीन बार पूछकर बु वृ के पीछे चले गए। आं ख बं द करके वे अपने ाणों को िवसिजत
करने लगे ।

जो लोग भी यं को जान ले ते ह, उनके िलए मृ ु अपने ही हाथ का खेल है । वे मृ ु म ऐसे ही वे श करते ह, जै से


आप िकसी पुराने मकान को छोड़कर नए मकान म वे श करते ह। आप नहीं करते ऐसा। आपको तो एक मृ ु से
दू सरी मृ ु म घसीटकर ले जाना पड़ता है , बड़ी मु ल से । ोंिक आप पुराने मकान को ऐसा जोर से पकड़ते ह
िक छोड़ते ही नहीं। हालां िक वह मकान बे कार हो चु का है ; सड़ चु का है; अब उसम जीवन सं भव नहीं है । मृ ु आती
ही तभी है , जब जीवन एक मकान म असंभव हो जाता है ।

ले िकन आप कहते ह, चाहे असंभव हो जाए, चाहे मुझे अ ताल म उलटा-सीधा लटका दो; चाहे मेरी आं ख बं द रहे,
निलयां मेरी नाक म पड?◌ी रह आ ीजन की, ले िकन मुझे बचाओ। दे खा है अ ताल म! लटके ह लोग! िसर नीचा
है , पैर ऊपर ह। वजन बं धे ह, नाक म निलयां लगी ह। इं जे न िदए जा रहे ह। मगर वे कहते ह िक बचाओ। मकान
सड़ गया है िबलकुल; बचने के यो नहीं। मौत कृपा करती है िक चलो, ले चल। तु नया मकान दे द। वे कहते ह,
पुराना मकान। पता नहीं पुराना भी छूट जाए और नया न िमले! बे होश पड़े रहगे, ले िकन बचाओ। मरना नहीं है ।

जो आदमी जान ले ता है , वह अपने को सहज, सहज, मकान पूरा आ तो वह मौत को खुद कहता है , अब ले चल।
यह मकान बे कार हो गया।

तो बु अपने को िवसिजत करने लगे । नए मकान म अब वे जाने को नहीं ह, ोंिक अब नए मकान का कोई सवाल
नहीं रहा। मकानों की ज रत मन को रहती है । अब मन िवसिजत हो चु का है । अब बु प रिनवाण म वेश कर रहे
ह। महाशू म, अ म उनकी या ा हो रही है । स रता सागर म िगर रही है, सदा के िलए।
309

तब सु भ नाम का आदमी भागा आ प ंचा और उसने कहा िक बु कहां ह? वे िदखाई नहीं पड़ते? लोग रो रहे ह।
ा उनका अंत हो गया? एक िभ ु ने कहा, अंत तो नहीं आ है । ले िकन वे अंत म वेश कर रहे ह। पर, सु भ ने
कहा, मुझे कुछ पूछना है । उन लोगों ने कहा, तू ने बड़ी दे र कर दी सु भ ! और जहां तक हम याद है, बु ते रे गां व से
कम से कम तीन या चार बार गु जरे होंगे, तब तू नहीं आया!

उसने कहा, दु कान पर बड़ी भीड़ थी। बु आते थे ज र, ले िकन कभी ाहक होते; कभी प ी बीमार पड़ जाती;
कभी बे टे को कुछ काम आ जाता; कभी शादी हो जाती। कभी तो ऐसा भी होता िक ब त धू प होती, तो सोचता िक
कौन जाए इतनी धू प म; कभी शीतकाल म आएं गे, तब चला जाऊंगा। िफर कभी शीतकाल म भी आए, तो इतनी सद
होती िक घर म िब र म पड़े रहने का मन होता। सोचता िक कौन जाए। अब की दफा जब धू प म आएं गे, तब चला
जाऊंगा। ऐसे ही तीस साल बु मेरे गां व से िनकले ज र। मेरे गां व के पास से िनकले । म उन गां वों से िनकला िजनम
बु ठहरे ए थे । ले िकन नहीं; मने सोचा, िफर, िफर िमल लगे। आज मुझे खबर िमली िक बु तो िवसिजत हो रहे
ह। तो म भागा आ आया ं । मुझे पूछ ले ने द।

िभ ुओं ने कहा, सु भ , इसम िकसका कसू र है?

ले िकन बु की अनुकंपा, िक बु वृ के पास से उठकर बाहर आ गए। और उ ोंने कहा िक मेरे जीते जी कोई
आदमी खाली हाथ लौट जाए, पूछने आए और लौट जाए! अभी म सु न सकता था। तो मेरे ऊपर सदा के िलए एक
इ ाम रह जाएगा िक कोई जानने आया था, और मेरे पास था, जो म उसे कह दे ता। कोई हज नहीं सु भ , तीस साल
म भी आया, तो ज ी आ गया। कुछ लोग तीस ज ों म भी नहीं आते!

कृ एक शु भ ण दे खकर अजु न को कहते ह िक उसके भीतर चली जाए यह बात। नहीं; कुछ न नहीं होगा
अजु न! तू जो भी कमाएगा, वह ते री सं पि बन जाएगी।

और ान रहे, और सब तरह की सं पि यां इसी ज म छूट जाती ह, िसफ योग म कमाई गई सं पि अगले ज म
या ा करती है । और सब सं पि यां इसी ज म छूट जाती ह। कमाया आ धन छूट जाएगा। बनाए ए मकान छूट
जाएं गे । इ त, यश छूट जाएगा। ले िकन जो ब त गहरे तल पर िकए गए कम ह, शु भ या अशुभ; योग के प म या
योग के िवप म–प म, तो सं पि बन जाएगी; िवप म, तो िवपि बन जाएगी। अगर योग के िवप म जीए ह, तो
िदवािलया िनकलगे और अगले ज म अनायास पाएं गे िक िदवािलया ह। और योग के प म कुछ िकया है , तो एक
महासंपि के मािलक होकर गु जरगे और अगले ज म पाएं गे िक स ाट ह।

िभखारी के घर म भी योग की सं पि वाला आदमी पैदा हो, तो स ाट मालू म होता है । और स ाट के घर म भी योग


की सं पि से हीन आदमी पैदा हो, तो िभखारी मालू म होता है । एक आं त रक सं पदा, उसकी ही बात कृ ने कही है
और अजु न को भरोसा िदलाया है ।

पूवा ासेन तेनैव ि यते वशोऽिप सः।


िज ासुरिप योग श ाितवतते।। 44।।
और वह िवषयों के वश म आ भी उस पहले के अ ास से ही, िनःसंदेह भगवत की ओर आकिषत िकया जाता है ,
तथा सम बु प योग का िज ासु भी वे द म कहे ए सकाम कम के फल का उ ंघन कर जाता है ।

दो बात कृ और जोड़ते ह। वे कहते ह िक िपछले ज ों म िजसने थोड़ी-सी भी या ा भु की िदशा म की हो, वह


उसकी सं पदा बन गई है । अगले ज ों म िवषय और वासना म िल आ भी भु की कृपा का पा बन जाता है ।

अगले ज म िवषय-वासना म िल आ भी–वै सा िजसके िपछले ज ों की या ा म योग का थोड़ा-सा भी


सं चय है , िजसने थोड़ा भी धम का सं चय िकया, िजसका थोड़ा भी पु अजन है–वह िवषय-वासनाओं म डूबा आ
भी, भु की कृपा का पा बना रहता है । वह उतना-सा जो उसका िकया आ है , वह दरवाजा खुला रहता है । बाकी
उसके सब दरवाजे बं द होते ह। सब तरफ अंधकार होता है, ले िकन एक छोटे -से िछ से भु का काश उसके भीतर
उतरता है ।
310

और ान रहे, गहन अंधकार म अगर छ र के छे द से भी रोशनी की एक िकरण आती हो, तो भी भरोसा रहता है
िक सू रज बाहर है और म बाहर जा सकता ं ! अंधकार आ ं ितक नहीं है, अ मेट नहीं है । अंधकार के िवपरीत भी
कुछ है ।

एक छोटी-सी िकरण उतरती हो िछ से घने अंधकार म, तो वह छोटी-सी िकरण भी उस घने अंधकार से महान हो
जाती है । वह घना अंधकार उस छोटी-सी िकरण को भी िमटा नहीं पाता; वह छोटी-सी िकरण अंधकार को चीरकर
गु जर जाती है ।

िकतना ही िवषय-वासनाओं म डूबा हो वै सा आदमी अगले ज ों म, ले िकन अगर छोटे -से िछ से भी, जो उसने
िनिमत िकया है , भु की कृपा उसको उपल होती रहे , तो उसके पांतरण की सं भावना सदा ही बनी रहती है । वह
सदा ही भु-कृपा को पाता रहता है । जगह-जगह, थान- थान, थितयों- थितयों से भु की कृपा उस पर बरसती
रहती है । न मालू म िकतने पों म, न मालू म िकतने आकारों म, न मालू म िकतने अनजान माग और ारों से, और न
मालू म िकतनी अनजान या ाएं भु की कृपा से उसकी तरफ होती रहती ह। बाहर वह िकतना ही उलझा रहे, भीतर
कोई कोना भु का मंिदर बना रहता है । और वह ब त बड़ा आ ासन है ।

कृ कहते ह, अजु न, वह छोटा-सा िछ भी अगर िनिमत हो जाए, तो ते रे िलए बड़ा सहारा होगा।

और एक दू सरी बात, और भी ां ितकारी, ब त ां ितकारी बात कहते ह। कहते ह, योग का िज ासु भी, ज एन
इं ायरर; योग का िज ासु भी–मुमु ु भी नहीं, साधक भी नहीं, िस भी नहीं–मा िज ासु; िजसने िसफ योग के ित
िज ासा भी की हो, वह भी वे द म बताए गए सकाम कम का उ ंघन कर जाता है , उनसे पार िनकल जाता है ।

वे द म कहा है िक य करो, तो ये फल होंगे। ऐसा दान करो, तो ऐसा ग होगा। इस दे वता को ऐसा नैवे चढ़ाओ,
तो ग म यह फल िमलेगा। ऐसा करो, ऐसा करो, तो ऐसा-ऐसा फल होता है सु ख की तरफ। वे द म ब त-सी िविधयां
बताई ह, जो मनु को सु ख की िदशा म ले जा सकती ह। कारण है बताने का।

वे द अजु न जै से िज ासु के िलए िदए गए वचन नहीं ह। वे द इनसाइ ोपीिडया है , वे द िव कोश है । सम लोगों
के िलए, िजतने तरह के लोग पृ ी पर हो सकते ह, सब के िलए सू वे द म उपल ह। गीता तो ेिसिफक टीिचं ग
है , एक िवशे ष िश ा है । एक िवशे ष ारा दी गई; िवशे ष को दी गई। वे द िकसी एक के ारा दी
गई िश ा नहीं है ; अनेक यों के ारा दी गई िश ा है । एक को दी गई िश ा नहीं, अनेक यों को
दी गई िश ा है ।

और वे द िव कोश है । ु तम से े तम के िलए वे द म वचन ह। ु तम से! उस आदमी के


िलए भी वे द म वचन ह, जो कहता है िक हे भु, हे दे व, हे इं ! बगल का आदमी मेरा दु न हो गया है ; तू कृपा कर
और इसकी गाय के दू ध को नदारद कर दे । उसके िलए भी ाथना है ! कुछ ऐसा कर िक इस पड़ोसी की गाय दू ध
दे ना बं द कर दे ।

सोच भी न पाएं गे । दु िनया का कोई धम ं थ इतनी िह त न कर पाएगा िक इसको अपने म स िलत कर ले । ले िकन
वे द उतने ही इन ूिसव ह, िजतना इन ूिसव परमा ा है ।

जब परमा ा इस आदमी को अपने म जगह िदए ए है, तो वे द कहते ह, हम भी जगह दगे । जब परमा ा इनकार
नहीं करता िक इस आदमी को हटाओ, न करो; यह आदमी ा बात कर रहा है ! यह कह रहा है िक हे इं , म ते री
पूजा करता ं , ते री ाथना, ते री अचना, ते रे नैवे चढ़ाता ं , तेरे िलए य करता ं , तो कुछ ऐसा कर िक पड़ोसी के
खेत म इस बार फसल न आए। दु न के खेत जल जाएं , हमारे ही खेत म फसल पैदा हों। दु नों का नाश कर दे ।
जै से िबजली िगरे िकसी पर और व ाघात होकर वह न हो जाए, ऐसा उस दु न को न कर दे ।

धम ं थ, और ऐसी बात को अपने भीतर जगह दे ता है! शोभन नहीं मालू म पड़ता। कृ को भी शोभन नहीं मालू म
पड़ा होगा। इसिलए कृ ने कहा है िक वे दों म िजन सकाम कम की–सकाम कम का अथ है, िकसी वासना से िकया
311

गया पूजा-पाठ, हवन, िविध; िकसी वासना से, िकसी कामना से, कुछ पाने के िलए िकया गया–जो भी वे दों म दी गई
व था है , जो कमकां ड है , उसको कर-करके भी आदमी जहां प ंचता है , योग की िज ासा मा करने वाला, उसके
पार िनकल जाता है । िसफ िज ासा मा करने वाला! इसका ऐसा अथ आ, अकाम भाव से िज ासा मा करने
वाला, सकाम भाव से साधना करने वाले से आगे िनकल जाता है ।

अकाम का इतना अदभु त रह , िन ाम भाव की इतनी गहराई और िन ाम भाव का इतना श शाली होना, उसे
बताने के िलए कृ ने यह कहा है ।

कृ भी वेद से िचं ितत ए, ोंिक वे द इस तरह की बात बता दे ता है । वे द से बु भी िचं ितत ए। सच तो यह है िक


िहं दु ान म वे द की व थाओं के कारण ही जै न और बौ धम का भे द पैदा आ, अ था शायद कभी न पैदा
होता। ोंिक तीथकरों को, जै नों के तीथकरों को भी लगा िक ये वे द िकस तरह की बात करते ह!

महावीर कहते ह िक दू सरे के िलए भी वै सा ही सोचो, जै सा अपने िलए सोचते हो; और वे द ऐसी ाथना को भी जगह
दे ता है िक दु न को न कर दो! बु कहते ह, क णा करो उस पर भी, जो तु ारा ह ारा हो। और वे द कहते ह,
पड़ोसी के जीवन को न कर दे हे दे व! और इसको जगह दे ते ह। बु या कृ या महावीर, सभी वे द की इन
व थाओं से िचं ितत ए ह।

ले िकन म आपसे क ं, वे द का अपना ही रह है । और वह रह यह है िक वे द इनसाइ ोपीिडया है , वेद िव कोश


है । िव कोश का अथ होता है , जो भी धम की िदशा म सं भव है , वह सभी सं गृहीत है । माना िक यह आदमी दु न
को न करने के िलए ाथना कर रहा है, ले िकन ाथना कर रहा है । और ाथना सं किलत होनी चािहए। यह भी
आदमी है ; माना बु रा है , पर है । त है , त सं गृहीत होना चािहए। और जब परमा ा इसे ीकार करता है , सहता
है , इसके जीवन का अंत नहीं करता; ास चलाता है , जीवन दे ता है , ती ा करता है इसके बदलने की, तो वे द कहते
ह िक हम भी इतनी ज ी ों कर! हम भी इसे ीकार कर ल।

वे द जै सी िकताब नहीं है पृ ी पर, इतनी इन ूिसव। सब िकताब चोजे न ह। दु िनया की सारी िकताब चु नी ई ह।
उनम कुछ छोड़ा गया है, कुछ चु ना गया है । बु रे को हटाया गया है , अ े को रखा गया है । धम ं थ का मतलब ही
यही होता है । धम ं थ का मतलब ही होता है िक धम को चु नो, अधम को हटाओ। वे द िसफ धम ं थ नहीं है ; मा
धम ं थ नहीं है । वे द पूरे मनु की सम मताओं का सं ह है । सम मताएं !

जा न ने, डा र जा न ने अं े जी का एक िव कोश िनिमत िकया। िव कोश जब कोई िनिमत करता है, तो उसे
गं दी गािलयां भी उसम िलखनी पड़ती ह। िलखनी चािहए, ोंिक वे भी श तो ह ही और लोग उनका उपयोग तो
करते ही ह। उसम गं दी, अभ , मां -बहन की गािलयां, सब इक ी की थीं।

बड़ा कोश था। लाखों श थे । उसम गािलयां तो दस-प ीस ही थीं, ोंिक ादा गािलयों की ज रत नहीं होती,
एक ही गाली को िजं दगीभर रपीट करने से काम चल जाता है । गािलयों म कोई ादा इनवशन भी नहीं होते।
गािलयां करीब-करीब ाचीन, सनातन चलती ह। गाली, म नहीं दे खता, कोई नई गाली ईजाद होती हो। कभी-कभी
कोई छोटी-मोटी ईजाद होती है; वह िटकती नहीं। पुरानी गाली िटकती है , थर रहती है ।

एक मिहला भ वग य प ं च गई जा न के पास। खोला श कोश उसका और कहा िक आप जै सा भला आदमी


और इस तरह की गािलयां िलखता है! अंडरलाइन करके लाई थी! जा न ने कहा, इतने बड़े श कोश म तु झे इतनी
गािलयां ही दे खने को िमलीं! तू खोज कैसे पाई? म तो सोचता था, कोई खोज नहीं पाएगा। तू खोज कैसे पाई? जा न
ने कहा, मुझे गाली और पूजा और ाथना से योजन नहीं है । आदमी जो-जो श ों का उपयोग करता है, वे सं गृहीत
िकए ह।

वे द आल इन ूिसव है । इसिलए वे द म वह ु तम आदमी भी िमल जाएगा, जो परमा ा के पास न मालू म कौन-सी


ु आकां ा ले कर गया है । वह े तम आदमी भी िमल जाएगा, जो परमा ा के पास कोई आकां ा ले कर नहीं गया
है । वे द म वह आदमी भी िमल जाएगा, जो परमा ा के पास जाने की हर कोिशश करता है और नहीं प ं च पाता।
312

और वे द म वह आदमी भी िमल जाएगा, जो परमा ा की तरफ जाता नहीं, परमा ा खुद उसके पास आता है । सब
िमल जाएं गे ।

इसिलए वे द की िनंदा भी करनी ब त आसान है । कहीं भी प ा खोिलए वे द का, आपको उप व की चीज िमल
जाएं गी। कहीं भी। ों? ोंिक िन ानबे ितशत आदमी तो उप व है । और वे द इसिलए ब त र ेजटे िटव है , ब त
ितिनिध है । ऐसी ितिनिध कोई िकताब पृ ी पर नहीं है । सब िकताब ास र ेजट करती ह, िकसी वग का।
िकसी एक वग का ितिनिध करती ह सब िकताब। वे द ितिनिध है मनु का, िकसी वग का नहीं, सबका। ऐसा
आदमी खोजना मु ल है , िजसके अनुकूल व वे द म न िमल जाए।

इसीिलए उसे वे द नाम िदया गया है । वे द का अथ है, नाले ज। वेद का अथ और कुछ नहीं होता। वे द श का अथ है,
ान, ज नालेज। आदमी को जो-जो ान है , वह सब सं गृहीत है । चु नाव नहीं है । कौन आदमी को रख, िकसको
छोड़ द, वह नहीं है ।

कृ , बु , महावीर सबको इसम अड़चन रही है । अड़चन के भी अपने-अपने प ह। कृ ने वे द को िबलकुल


इनकार नहीं िकया, ले िकन तरकीब से वे द के पार जाने वाली बात कही। कृ ने कहा िक ठीक है वे द भी; सकाम
आदमी के िलए है । ले िकन िन ाम की िज ासा करने वाला भी, इन हवन और य करने वाले लोगों से पार चला
जाता है । महावीर और बु ने तो िबलकुल इनकार िकया, और उ ोंने कहा िक वे द की बात ही मत चलाना। वे द की
बात चलाई, िक नक म पड़ोगे । इसिलए वे द के िवरोध म अवै िदक धम भारत म पैदा ए, बु और महावीर के।

पर, मेरी समझ यह है िक वे द को ठीक से कभी भी नहीं समझा गया, ोंिक इतनी आल इन ूिसव िकताब को
ठीक से समझा जाना किठन है । ोंिक आपके टाइप के िवपरीत बात भी उसम होंगी, ोंिक आपका िवपरीत टाइप
भी दु िनया म है । इसिलए वे द को पूरी तरह ेम करने वाला आदमी ब त मु ल है । वह वही आदमी हो सकता है ,
जो परमा ा जै सा आल इन ूिसव हो, नहीं तो ब त मु ल है । उसको कोई न कोई खटकने वाली बात िमल
जाएगी िक यह बात गड़बड़ है । वह आपके प की नहीं होगी, तो गड़बड़ हो जाएगी।

वे द म कुरान भी िमल जाएगा। वे द म बाइिबल भी िमल जाएगी। वे द म ध पद भी िमल जाएगा। वे द म महावीर के


वचन भी िमल जाएं गे । वे द इनसाइ ोपीिडया है। वे द को योजन नहीं है ।

इसिलए महावीर को किठनाई पड़े गी, ोंिक महावीर के िवपरीत टाइप का भी सब सं ह वहां है । और वह िवपरीत
टाइप को भी किठनाई पड़े गी, ोंिक महावीर वाला सं ह भी वहां है । और अड़चन सभी को होगी।

इसिलए वे द के साथ कोई भी िबना अड़चन म नहीं रह पाता। और अड़चन िमटाने के जो उपाय ए ह, वे बड़े
खतरनाक ह। जै से दयानंद ने एक उपाय िकया अड़चन िमटाने का। वह अड़चन िमटाने का उपाय यह है िक वे द के
सब श ों के अथ ही बदल डालो। और इस तरह के अथ िनकालो उसम से िक वे द िव कोश न रह जाए, धमशा
हो जाए; एक सं गित आ जाए, बस।

यह ादती है ले िकन। वे द म सं गित नहीं लाई जा सकती। वेद असंगत है । वे द जानकर असंगत है , ोंिक वे द
सबको ीकार करता है, असंगत होगा ही।

श कोश सं गत नहीं हो सकता। िव कोश, इनसाइ ोपीिडया सं गत नहीं हो सकता। इनसाइ ोपीिडया को अपने
से िवरोधी व ों को भी जगह दे नी ही पड़े गी।

ले िकन कभी ऐसा आदमी ज र पैदा होगा एक िदन पृ ी पर, जो सम को इतनी सहनशीलता से समझ सकेगा,
सहनशीलता से, उस िदन वे द का पुनआिवभाव हो सकता है । उस िदन वे द म िदखाई पड़े गा, सब है । कंकड़-प र से
ले कर हीरे -जवाहरातों तक, बु झे ए दीयों से ले कर जलते ए महासूय तक, सब है ।
313

तो कृ अजु न से कहते ह–वह उनका अथ है कहने का और कारण है –वे कहते ह िक वे दों की सम साधना भी तू
कर डाल, सब य कर ले , हवन कर ले , िफर भी इतना न पाएगा, िजतना िसफ योग की िज ासा से पा सकता है ।
और योग को साधे, तब तो बात ही अलग है । तब तो ही नहीं उठता। अजु न को भरोसा िदलाने के िलए कृ की
चे ा सतत है ।

य ा तमान ु योगी संशु िक षः।


अनेकज संिस तो याित परां गितम्।। 45।।
अनेक ज ों से अंतःकरण की शु प िस को ा आ और अित य से अ ास करने वाला योगी, सं पूण
पापों से अ ी कार शु होकर उस साधन के भाव से परम गित को ा होता है अथात परमा ा को ा होता
है ।

इस सू म दो बात कृ और जोड़ते ह। जै से-जै से अजु न, उ तीत होता है िक समझ पाएगा, समझ पाएगा, वै से-
वै से वे कुछ और जोड़ दे ते ह। दो बात कहते ह। वे कहते ह, शु आ िच साधन के ारा परम गित को उपल
होता है ।

शु आ िच साधन के ारा परम गित को उपल होता है । ा शु होना काफी नहीं है ? किठन सवाल है ।
जिटल बात है । ा शु होना काफी नहीं है ? और साधन की भी ज रत पड़े गी? इतना ही उिचत न होता कहना िक
शु आ िजसका अंतःकरण, वह परम गित को उपल होता है ?

ले िकन कृ कहते ह, अनंत ज ों म भी शु आ अंतःकरण वाला साधन की सहायता से परम गित को


उपल होता है । मेथड, िविध की सहायता से । साधारणतः हम लगे गा, जो शु हो गया पूरा, अब और ा ज रत
रही साधन की? ा परमा ा उसे िबना िकसी साधन के न िमल जाएगा?

एक छोटी-सी बात समझ ल, तो खयाल म आ जाएगी। जो शु हो जाए सब भां ित और साधन का योग न िकया हो,
तो एक ही खतरा है , जो अंितम बाधा बन जाता है । पायस ईगोइ , एक पिव अहं कार भीतर िनिमत होता है ।

अपिव अहं कार तो होते ही ह। एक आदमी कहता है िक मुझसे ादा दु कोई भी नहीं। िक म छाती म छु रा भोंक
दू ं , तो हाथ नहीं धोता और खाना खा ले ता ं । अब इसके भी दावे करने वाले लोग ह! यह असा क अहं कार की
घोषणा है ।

ान रखना िक आमतौर से हम समझते ह िक सभी अहं कार असा क होते ह, तो गलत समझते ह। सा क
अहं कार भी होते ह। और सा क अहं कार सटल, सू हो जाता है ।

एक आदमी कहता है, मुझसे दु कोई भी नहीं; एक आदमी कहता है , म तो आपके चरणों की धू ल ं । अब जो
आदमी कहता है, म आपके चरणों की धू ल ं । म तो कुछ भी नहीं ं । इसका भी अहं कार है ; ब त सू । इसका भी
दावा है । ब त दावा शू मालूम पड़ता है , ले िकन दावा है । कोई दावा िदखाई नहीं पड़ता, ोंिक यह भी कोई दावा
आ िक म आपके चरणों की धूल ं !

ले िकन उस आदमी की आं खों म झां क। अगर आप उससे कह िक तु म तो कुछ भी नहीं हो, तु मसे भी ादा चरणों
की धू ल मने दे खी है एक आदमी म। एक आदमी मने दे खा, तु मसे भी ादा। तु म कुछ भी नहीं हो उसके सामने । तो
आप दे खना िक उसके भीतर अहं कार तड़पकर रह जाएगा; िबजली कौंध जाएगी। उसकी आं खों म झलक आ
जाएगी। वही झलक, जो आदमी कहता है िक मुझसे ादा दु कोई भी नहीं। म छाती म छु रा भोंक दे ता ं , और
िबना हाथ धोए पानी पीता ं । वही झलक!

अहं कार ब त चालाक है , िद मो किनंग फै र। ब त चालाक त है हमारे भीतर। वह हर चीज से अपने को जोड़
ले ता है , हर चीज से! वह कहता है , धन है तु ारे पास, तो अकड़कर खड़े हो जाओ, और कहो िक जानते हो, म कौन
314

ं ! मेरे पास धन है । अब तु मने अगर सोचा िक धन की वजह से अहं कार है । छोड़ दो धन। तो वह अहं कार कहे गा, ते रे
से बड़ा ागी कोई भी नहीं। घोषणा कर दे िक म ागी ं , महान!

आपको पता नहीं िक वही अहंकार, जो धन के पीछे िछपा था, अब ाग के पीछे िछप गया है ; ाग को ओढ़ िलया
है । और ान रहे , धन वाला अहं कार तो ब त थू ल होता है , सबको िदखाई पड़ता है । ाग वाला अहं कार सू हो
जाता है और िदखाई नहीं पड़ता।

इसिलए कृ कहते ह िक अजु न, सब भां ित शु आ भी, साधन की सहायता से भु को उपल होता है ।

अब ये साधन की इसिलए ज रत पड़ी। शु हो जाए, स आ जाए, सब अंतःकरण िबलकुल पिव मालू म होने
लगे, ले िकन यह तीित एक चीज को बचा रखेगी, वह है म। उस म को िबना साधन के काटना असंभव है । उस म को
साधन से काटना पड़े गा।

और योग की जो परम िविधयां ह, वे इस म को काटने की िविधयां ह, िजनसे यह म कटे गा। ब त तरह की िविधयां
योग उपयोग करता है , िजनसे िक यह म काटा जाए। अलग-अलग तरह के के िलए अलग-अलग िविध
उपयोगी होती है , िजससे यह म कट जाए। एक-दो घटनाएं म आपसे क ं, तो खयाल म आ जाए।

सू फी फकीर आ बायजीद। बायजीद के पास, िजस राजधानी म वह ठहरा था, उस राजधानी का जो सबसे बड़ा
धनपित था, नगर से ठ था, वह आया। उसने आकर लाखों पए बायजीद के चरणों म डाल िदए और कहा बायजीद,
म सब ाग करना चाहता ं । ीकार करो! बायजीद ने कहा िक अगर तू ाग को ाग करना चाहे, तो म ीकार
करता ं । ाग को ीकार नहीं क ं गा। ाग को भी ाग करना चाहे, तो ीकार करता ं । उस आदमी ने कहा,
मजे की बात कर रहे ह आप। धन तो ागा जा सकता है ; ाग को कैसे ागगे! ाग ा कोई चीज है ?

बायजीद ने कहा, साधन का उपयोग करगे; ाग को भी ाग करवा दगे । उस आदमी ने कहा, करो साधन का
उपयोग, ले िकन मेरी समझ म नहीं आता। यह ाग तो है ही नहीं! समिझए िक एक कमरे म म मौजू द ं , तो मुझे
बाहर िनकाला जा सकता है । ले िकन अगर म मौजू द नहीं ं , तो मेरी गै र-मौजू दगी को कैसे बाहर िनकाला जा सकेगा!

बायजीद ने कहा, ारे , िजसे तू गै र-मौजू दगी कह रहा है , वह गै र-मौजू दगी नहीं है । वह िसफ जो कट अहं कार था,
उसका अ कट हो जाना है । तू टे बल-कुस के नीचे िछप गया है; गै र-मौजू द नहीं है । हम िनकालगे । साधन का
उपयोग करगे ।

उसने कहा, अ ा भाई। म तो सोचता था िक सब धन छोड़कर–अंतःकरण इस धन की वजह से अशु होता है –


अशु के बाहर हो जाऊंगा। तु म कहते हो िक और! और ा चाहते हो तु म?

उस फकीर ने कहा िक तू कल से एक काम कर। रोज सु बह सड़क पर बु हारी लगा, कचरे को ढो। िफर जब ज रत
होगी, आगे साधन का उपयोग करगे ।

बड़ा क आ उस आदमी को। धन छोड़ दे ने म क न आ था। यह सड़क पर बु हारी लगाने म ब त क आ।


कई दफा मन म खयाल आता िक ा सड़क पर बु हारी लगाना, यह कोई योग है ? यह कोई साधन है? कई दफा
आता बायजीद के पास, पूछने का मन होता। बायजीद कहता िक क, क। अभी पूछ मत। थोड़ा और बु हारी लगा।

बु हारी लगाते-लगाते एक महीना बीत गया, तब बायजीद एक िदन सड़क के िकनारे से िनकल रहा था। वह धनपित
इतने आनंद से बु हारी लगा रहा था िक जै से भु का गीत गा रहा हो। उसने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने लौटकर
भी नहीं दे खा बायजीद को। वह अपनी बु हारी लगाता रहा। बायजीद ने कहा, मेरे भाई, सु नो भी! उसने कहा, थ मेरे
भजन म बाधा मत डालो। बायजीद ने कहा, चल, अब बु हारी लगाने की कोई ज रत न रही। बु हारी लगाना भजन
बन गया। एक साधन का उपयोग आ।
315

योग हजार िविधयों का योग करता है । योग ने जब पहली दफा सं ािसयों को कहा िक तु म िभ ा मां गो, तो उसका
कारण िसफ साधन था। िभखारी बनाने के िलए नहीं था। बु खुद सड़क पर िभ ा मां गने जाते ह। बु को िभ ा
मां गने की ा ज रत थी? और जब बु के पास बड़े से बड़ा स ाट भी दीि त होता है , तो वे कहते ह, िभ ा मां ग।
कई बार लोग कहते भी थे िक िभ ा की ा ज रत है, हमारे घर से इं तजाम हो जाएगा! बु कहते, िजस घर को
छोड़ िदया, उससे इं तजाम ले गा, तो साधन न हो पाएगा। उससे इं तजाम मत ले । तू तो सड़क पर भीख मां ग। वह
आदमी कहता िक कई दफा लोग ऐसा हाथ का इशारा कर दे ते ह, आगे जाओ, तो बड़ा दु ख होता है । बु कहते,
िजस िदन दु ख न हो, उस िदन ते री िभ ा छु ड़वा दगे । साधन हो गया।

इसिलए बु ने अपने सं ािसयों को िभ ु कहा; िभ ु, मां गने वाले । और अिधकतर बड़े प रवार के लोग थे बु के
िभ ुओं म, ोंिक स ाट वे खुद थे । उनके सारे सं बंधी, उनके सब िम , उनकी प ी के सं बंधी, वे सब दीि त ए थे ।
उन सबको भीख मंगवाई रा ों पर।

बु जब खुद अपने गां व म आए और भीख मां गने िनकले, तो उनके िपता ने उनको जाकर रोका और कहा िक अब
हद ई जाती है ! ा कमी है तेरे िलए? कम से कम इस गां व म तो भीख मत मां ग! मेरी इ त का तो कुछ खयाल
कर। बु ने कहा, म अपनी इ त तो गं वा चुका। तु ारी भी गं वा दू ं , तो साधन हो जाए। इसे कहां तक बचाए
रखोगे? इसको छोड़ो! बु के िपता ने िफर भी नहीं समझा। बु के िपता ने कहा िक नासमझ, तु झे पता नहीं है ।

उस बु को बु के िपता नासमझ कह रहे ह, िजससे समझदार आदमी इस जमीन पर मु ल से कभी कोई होता
है ! ले िकन बाप का अहं कार बे टे को समझदार कैसे माने! लाखों लोग उसको समझदार मान रहे ह। लाखों लोग उसके
चरणों म िसर रख रहे ह ले िकन बु के बाप अकड़कर खड़े ह।

कहा, नासमझ, हमारे प रवार म, हमारी कुल-परं परा म कभी िकसी ने भीख नहीं मां गी। बु ने कहा, आपकी कुल-
परं परा म न मां गी होगी। ले िकन जहां तक म याद करता ं अपने िपछले ज ों को, म सदा का िभखारी ं । म सदा ही
भीख मां गता रहा ं । उसी भीख मां गने की वजह से तु ारे घर म पैदा हो गया था; और कोई कारण न था। मगर
पुरानी आदत, मने िफर अपना िभ ा-पा उठा िलया।

जब बु अपने घर पहली बार गए बारह वष के बाद, तो उनकी प ी ने ब त ोध से अपने बे टे को कहा िक मां ग ले


बु से! ये ते रे िपता ह। दे ख ते रे बे शम िपता को, ये सब छोड़कर भाग गए ह। ये मुझे छोड़कर भाग गए ह। ये मुझसे
िबना पूछे भाग गए ह। तू एक िदन का था, तब ये भाग गए ह। ये ते रे िपता ह, इनसे अपनी वसीयत मां ग ले । गहरा
ं कर रही थी प ी। प ी को पता नहीं िक िकससे ं कर रही है । वह आदमी अब मौजू द ही नहीं है । शू म
यह ं खो जाएगा। ले िकन प ी को तो अभी भी पुराना प ी का भाव मौजू द था। उसे बु िदखाई नहीं पड़ रहे थे ।
वह जो सामने खड़ा था सू य की भां ित, वह उसकी अंधी आं खों म नहीं िदखाई पड़ सकता था।

राग अंधा कर दे ता है ; सू य भी नहीं िदखाई पड़ता है । बु भी बु की प ी को नहीं िदखाई पड़ रहे ह। प ी अपने


बे टे से ं करवा रही है िक मां ग। हाथ फैला। बु से मां ग ले िक सं पि ा है? मेरे िलए ा छोड़े जा रहे ह?
गहरा ं था। बु के पास तो कुछ भी न था।

ले िकन उसे पता नहीं। बु के बे टे ने, रा ल ने, हाथ फैला िदए। बु ने अपना िभ ा-पा उसके हाथ म रख िदया,
और कहा, म तु झे िभ ा मां गने की वसीयत दे ता ं , तू िभ ा मां ग।

प ी रोने-िच ाने लगी िक आप यह ा करते ह? बाप घबड़ा गए और कहा िक तू गया, अब घर का एक ही दीया


बचा, उसे भी बु झाए दे ता है ! बु ने कहा, म इसी के िलए आया ं इतनी दू र। इसकी सं भावनाओं का मुझे पता है ।
इसकी िपछली या ाओं का मुझे अनुभव है । तु म इसे जानते हो िक छोटा-सा ब ा है , म नहीं जानता। म जानता ं िक
इसकी अपनी या ा है , जो काफी आगे िनकल गई है । जरा-सी चोट की ज रत है।
316

बाप नहीं समझ पाए; प ी नहीं समझ पाई; पर बारह साल का रा ल िभ ा-पा ले कर िभ ुओं म स िलत हो गया।
ब त मां ने बु लाया; ब त िपता ने कहा िक बे टे, तू लौट आ। इस बात म मत पड़। पर रा ल ने कहा, बात पूरी हो गई।
मेरी दी ा हो गई।

साधन का अथ है , वह जो सा क होने का भी अहं कार बच रहेगा, उसे भी काटना पड़ता है ।

अगर कोई िसफ शु होने की कोिशश करे , िसफ नैितक होने की, तो उसको साधन की ज रत पड़े गी। ले िकन
अगर कोई योग के साथ शु होने की कोिशश करे , तो िफर साधन की ज रत नहीं पड़ती, ोंिक योग का साधन
साथ ही साथ िवकिसत होता चला जाता है ।

ओशो – गीता-दशन – भाग 3


ावान योगी े है (अ ाय—6) वचन—इ ीसवां

तप ोऽिधको योगी ािन ोऽिप मतोऽिधकः।


किम ािधको योगी त ा ोगी भवाजु न।। 46।।
योगी तप यों से े है , शा के ान वालों से भी े माना गया है , तथा सकाम कम करने वालों से भी योगी े
है , इससे हे अजु न, तू योगी हो।

तप यों से भी े है , शा के ाताओं से भी े है, सकाम कम करने वालों से भी े है , ऐसा योगी अजु न बने,
ऐसा कृ का आदे श है । तीन से े कहा है और चौथा बनने का आदे श िदया है । तीनों बातों को थोड़ा-थोड़ा दे ख
ले ना ज री है ।

तप यों से े कहा योगी को। साधारणतः किठनाई मालू म पड़े गी। तप ी से योगी े ? िदखाई तो ऐसा ही पड़ता
है साधारणतः िक तप ी े मालू म पड़ता है , ोंिक तप या कट चीज है और योग अ कट। तप या िदखाई
पड़ती है और योग िदखाई नहीं पड़ता है । योग है अंतसाधना, और तप या है बिहसाधना।

अगर कोई धू प म खड़ा है घनी, भू खा खड़ा है , ासा खड़ा है, उपवासा खड़ा है , शरीर को गलाता है , शरीर
को सताता है –सबको िदखाई पड़ता है । ोंिक तप ी मूलतः शरीर से बं धा आ है । जै से भोगी शरीर से बं धा होता
है ; िदखाई पड़ता है उसका इ -फुलेल; िदखाई पड़ता है उसके शरीरों की सजावट; िदखाई पड़ते ह गहने; िदखाई
पड़ते ह महल; िदखाई पड़ता है शरीर का सारा का सारा ंगार। ऐसे ही तप ी का भी सारा का सारा शरीर-िवरोध
कट िदखाई पड़ता है । ले िकन ओ रएं टे शन एक ही है ; दोनों का क एक ही है –भोगी का भी शरीर है और
तथाकिथत तप ी का भी शरीर है ।

हम चूं िक सभी शरीरवादी ह, इसिलए भोगी भी हम िदखाई पड़ जाता है और ागी भी िदखाई पड़ जाता है । योगी को
पहचानना मु ल है , ोंिक योगी शरीर से शु नहीं करता। योगी शु करता है अंतस से ।

योगी की या ा भीतरी है, और योगी की या ा वै ािनक है । वै ािनक इस अथ म है िक योगी साधनों का योग करता
है , िजनसे अंतस िच को पांत रत िकया जा सके।

ागी केवल शरीर से लड़ता है श ु की भां ित। तप ी केवल दमन करता आ मालू म पड़ता है । लड़ता है शरीर से,
ोंिक ऐसा उसे तीत होता है िक सब वासनाएं शरीर म ह। अगर ी को दे खकर मन मोिहत होता है , तो तप ी
आं ख फोड़ ले ता है । सोचता है िक शायद आं ख म वासना है । और अगर कोई आदमी अपनी आं ख फोड़ ले, तो हम
भी लगेगा िक चय की बड़ी साधना म लीन है ।
317

पर आं खों के फूटने से वासना नहीं फूटती है । आं खों के चले जाने से वासना नहीं जाती है । अंधे की भी कामवासना
उतनी ही होती है , िजतनी गै र-अंधे की होती है । अगर अंधों के पास कामवासना न होती, तो अंधे सौभा शाली थे;
पु का फल था उ । ज ांध जो है, उसकी भी कामवासना होती है ; तो आं ख फोड़ ले ने से कोई कैसे कामवासना से
मु हो जाएगा?

ले िकन योगी? योगी आं ख नहीं फोड़ता। आं ख के पीछे वह जो ान दे ने वाली श है , उसे आं ख से हटा ले ता है ।

रा े पर गु जरती है एक ी, और मेरी आं ख उससे बं धकर रह जाती ह। अब दो रा े ह। या तो म आं ख फोड़ लूं;


आं ख फोड़ लूं, तो आप सबको िदखाई पड़े गा िक आं ख फोड़ ली गई। या म आं ख मोड़ लूं; तो भी िदखाई पड़े गा िक
आं ख मोड़ ली गई। या म भाग खड़ा होऊं और क ं िक दशन न क ं गा, दे खूंगा नहीं, तो भी आपको िदखाई पड़
जाएगा। ले िकन मेरी आं ख के पीछे जो ान की ऊजा है , अगर म उसे आं ख से हटा लूं , तो दु िनया म िकसी को नहीं
िदखाई पड़े गा, िसफ मुझे ही िदखाई पड़े गा।

योग अंतर- पां तरण है ।

भोगी भोजन खाए चला जाता है ; िजतना उसका वश है, भोजन िकए चला जाता है । ागी भोजन छोड़ता चला जाता
है । ले िकन योगी ा करता है? योगी न तो भोजन िकए चला जाता है , न भोजन का ाग करता है ; योगी रस का ाग
कर दे ता है, ाद का ाग कर दे ता है । िजतना ज री भोजन है , कर ले ता है । जब ज री है , कर ले ता है । जो
आव क है, कर ले ता है । ले िकन ाद की वह जो िल ा है , वह जो िवि ता है , जो सोचती रहती है िदन-रात,
भोजन, भोजन, भोजन, उसे छोड़ दे ता है ।

ले िकन यह िदखाई न पड़े गा। यह तो योगी ही जाने गा, या जो ब त िनकट होंगे, वे धीरे -धीरे पहचान पाएं गे–योगी कैसे
उठता, कैसे बै ठता, कैसी भाषा बोलता। ले िकन ब त मु ल से पहचान म आएगा।

तप ी िदखाई पड़ जाएगा, ोंिक तप ी का सारा योग शरीर पर है । योगी का सारा योग अंतसचे तना पर है ।

तप िदखाई पड़ने से ा योजन है ? तप ी को बाजार म खड़ा होने की ज रत ही ा है? यह तो अपना और


परमा ा के बीच है ; यह मेरे और आपके बीच नहीं है । आप मेरे सं बंध म ा कहते ह, यह सवाल नहीं है । म आपके
सं बंध म ा कहता ं , यह सवाल नहीं है । मेरे सं बंध म परमा ा ा कहता है , वह सवाल है । मेरे सं बंध म म ा
जानता ं , वह सवाल है ।

योगी की सम साधना, अंतसाधना है ।

इसिलए कृ कहते ह, तप ी से महान है योगी, अजु न। ऐसा कहने की ज रत पड़ी होगी, ोंिक तप ी सदा ही
महान िदखाई पड़ता है । जो आदमी रा ों पर कां टे िबछाकर उन पर ले ट जाए, वह भावतः महान िदखाई पड़े गा
उस आदमी से, जो अपनी आरामकुस म ले टकर ान करता हो। महान िदखाई पड़े गा। आरामकुस म बै ठना कौन-
सी महानता है ?

ले िकन म आपसे कहता ं , कांटों पर ले टना बड़ी साधारण सकस की बात है, बड़ा काम नहीं है । कां टों पर, कोई भी
थोड़ा-सा अ ास करे , तो ले ट जाएगा। और अगर आपको ले टना हो, तो थोड़ी-सी बात समझने की ज रत है, ादा
नहीं!

आदमी की पीठ पर ऐसे िबं दु ह, िजनम पीड़ा नहीं होती। अगर आपकी पीठ पर कोई कां टा चुभाए, तो कई, प ीस
जगह ऐसी िनकल आएं गी, जब आपको कां टा चु भेगा, और आप न बता सकगे िक कां टा चु भ रहा है । आपकी पीठ पर
प ीस ीस ाइं ड ाट् स ह, हरे क आदमी की पीठ पर। आप घर जाकर ब े से कहना िक जरा पीठ म कां टा
चु भाओ! आपको पता चल जाएगा िक आपकी पीठ पर ाइं ड ाट् स ह, जहां कां टा चु भेगा, ले िकन आपको पता
318

नहीं चलेगा। बस, उ ीं ाइं ड ाट् स का थोड़ा-सा अ ास करना पड़ता है । व थत कांटे रखने पड़ते ह, जो
ाइं ड ाट् स म लग जाएं । िफर पीठ पर ले टे ए आदमी को कां टे का पता नहीं चलता है । यह तो िफिजयोलाजी की
सीधी-सी िटक है , इसम कुछ मामला नहीं है ।

ले िकन कां टे पर कोई आदमी ले टा हो, तो चम ार हो जाएगा, भीड़ इक ी हो जाएगी। ले िकन कोई आदमी अगर
आरामकुस पर बै ठकर ान को शांत कर रहा हो, तो कोई भीड़ इक ी नहीं होगी, िकसी को पता भी नहीं चले गा।
य िप ान को एका करना कां टों पर ले टने से ब त किठन काम है । ान को एका करना कां टों पर ले टने से
ब त किठन काम है, अित किठन काम है । ोंिक ान पारे की तरह हाथ से िछटक-िछटक जाता है । पकड़ा नहीं,
िक छूट जाता है । पकड़ भी नहीं पाए, िक छूट जाता है । एक ण भी नहीं कता एक जगह। इस ान को एक जगह
ठहरा ले ना योग है ।

तप ी िदखाई पड़ता है ; ब त गहरी बात नहीं है । इसका यह मतलब नहीं है िक जो आदमी योग को उपल हो,
उसके जीवन म तप या न होगी। जो आदमी योग को उपल हो, उसके जीवन म तप या होगी। ले िकन जो आदमी
तप या कर रहा है, उसके जीवन म योग होगा, यह जरा किठन मामला है । इसको खयाल म ले ल।

जो आदमी योग करता है , उसके जीवन म एक तरह की आ े रटी, एक तरह की तप या आ जाती है । वह तप या


भी सू होती है । वह तप या बड़ी सू होती है । वह आदमी एक गहरे अथ म सरल हो जाता है । वह आदमी गहरे
अथ म दु ख को झेलने के िलए सदा त र हो जाता है । वह आदमी सु ख की मां ग नहीं करता। उस आदमी पर दु ख
आ जाएं , तो वह चुपचाप उनको सं तोष से वहन करता है । उसके जीवन म तप या होती है । ले िकन तप या
क वेटेड नहीं होती, इतना फक होता है ।

दु ख आ जाए, तो योगी दु ख को ऐसे झेलता है , जै से वह दु ख न हो। सु ख आ जाए, तो ऐसे झेलता है, जै से वह सु ख न


हो। योगी सु ख और दु ख म सम होता है ।

तप ी? तप ी दु ख आ जाए, इसकी ती ा नहीं करता; अपनी तरफ से दु ख का इं तजाम करता है , आयोजन करता
है । अगर एक िदन भू ख लगी हो और खाना न िमले, तो योगी िव ु नहीं हो जाता; भू ख को शांित से दे खता है ; सम
रहता है । ले िकन तप ी? तप ी को भू ख भी लगी हो, भोजन भी मौजू द हो, शरीर की ज रत भी हो, भोजन भी
िमलता हो, तो भी रोककर, हठ बां धकर बै ठ जाता है िक भोजन नहीं क ं गा। यह आयोिजत दु ख है ।

ान रहे, भोगी सु ख की आयोजना करता है, तप ी दु ख की आयोजना करता है । अगर भोगी िसर सीधा करके खड़ा
है , तो तप ी शीषासन लगाकर खड़ा हो जाता है । ले िकन दोनों आयोजन करते ह।

योगी आयोजन नहीं करता। वह कहता है , भु जो दे ता है, उसे सम भाव से म ले ता ं । वह आयोजन नहीं करता। वह
अपनी तरफ से न सु ख का आयोजन करता, न दु ख का आयोजन करता। जो िमल जाता है , उस िमल गए म शां ित से
ऐसे गु जर जाता है , जै से कोई नदी से गु जरे और पानी न छु ए। ऐसे गु जर जाता है , जै से कमल के प े हों पानी पर
खले; ठीक पानी पर खले , और पानी उनका श न करता हो। ले िकन आयोजन नहीं है ।

ान रहे, िकसी भी चीज का आयोजन करके मन को राजी िकया जा सकता है–िकसी भी चीज का आयोजन करके।
दु ख का आयोजन करके भी दु ख म सु ख िलया जा सकता है ।

वै ािनक जानते ह, मनोवै ािनक जानते ह उन लोगों को, िजनका नाम मैसोिच है । दु िनया म एक ब त बड़ा वग है
ऐसे लोगों का, जो अपने को सताने म मजा ले ते ह। दू सरे को सताने म सभी मजा ले ते ह; करीब-करीब सभी। कुछ
लोग ह, जो अपने को सताने म भी मजा ले ते ह।

आप कहगे, ऐसा तो आदमी नहीं होगा, जो अपने को सताने म मजा ले ता हो! मनोवै ािनक कहते ह, ऐसा आदमी
बढ़ी गाढ़ मा ा म है , जो अपने को सताने म मजा ले ता है । अगर उसको खुद को सताने का मौका न िमले, तो वह
मौका खोजता है । वह ऐसी तरकीब ईजाद करता है िक दु ख आ जाए। जहां वह छाया म बै ठ सकता था, वहां धू प म
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बै ठता है । जहां उसे खाना िमल सकता है , वहां भू खा रह जाता है । जहां सो सकता था, वहां जगता है । जहां सपाट
रा ा था, वहां न चलकर कां टे-कबाड़ म चलता है ! ों?

ोंिक खुद को दु ख दे ने से भी अहं कार की बड़ी तृ होती है । खुद को दु ख दे कर भी पता चलता है िक म कुछ ं ।
तु म कुछ भी नहीं हो मेरे सामने! म दु ख झेल सकता ं ।

यह जो यं को दु ख दे ने की वृ ि है, यह दू सरे को दु ख दे ने की वृ ि का ही उलटा प है । चाहे दू सरे को दु ख द,


चाहे अपने को दु ख द, असली रस दु ख दे ने म है ।

इसिलए कृ कहते ह, तप ी से योगी ब त ऊपर है ।

ोंिक तप ी यं को दु ख दे ने की ि या म लगा रहता है । मनोिव ान की भाषा म वह मैसोिच है ।

मैसोच नाम का एक ले खक आ, जो अपने को ही कोड़े न मार ले, तब तक उसको नींद न आती थी। िब र म कां टे
न डाल ले, तब तक उसको नींद न आए। भोजन म जब तक थोड़ी-सी नीम न िमला ले, तब तक उससे भोजन न
िकया जाए। अगर हमारे मु म मैसोच पैदा आ होता, तो हम कहते, बड़ा महा ा है !

गां धीजी को भी नीम की चटनी भोजन के साथ खाने की आदत थी। जो भी लोग दे खते थे, कहते थे, बड़ी ऊंची बात है!
भावतः। लु ई िफशर गांधीजी को िमलने आया, तो उ ोंने लु ई िफशर की भी थाली म एक बड़ी मोटी िपंडी नीम की
चटनी की रखवा दी। जो भी मेहमान आता था, उसको खलाते थे, ोंिक खुद खाते थे । जो आदमी अपने को दु ख
दे ना सीख जाता है, वह दू सरे को भी दु ख दे ने की चे ाएं करता है ।

लु ई िफशर ने दे खा िक ा है ! और गांधीजी इतने रस से खा रहे ह! तो उसने भी चखकर दे खा, तो सब मुंह जहर हो


गया। उसने सोचा िक बड़ा मु ल हो गया। उसके साथ रोटी लगाकर खानी, मतलब रोटी भी खराब हो जाए; स ी
िमलाकर खाओ, स ी भी खराब हो जाए! पर उसने सोचा िक न खाएं गे , तो गां धीजी ा सोचगे , िक मने इतने ेम से
चटनी दी और न खाई। भला आदमी। उसने सोचा, इसको इक ा ही गटक जाना बे हतर है सब भोजन खराब करने
की बजाय। और अशु भ भी मालू म न पड़े , अिश ाचार भी मालू म न पड़े , इसिलए इसे एकदम एक दफा म गटक ले ना
अ ा है । िफर पूरा भोजन तो खराब न हो। तो वह पूरी की पूरी चटनी गटक गया। गां धीजी ने रसोइए को कहा िक
दे खो, चटनी िकतनी पसं द आई! और ले आओ!

लु ई िफशर पर जो गु जरी होगी, वह हम समझ सकते ह।

गां धीजी के आ म म एक स न थे, अभी भी ह, ोफेसर भं साली। अभी उनका ज िदन मनाया गया। महा सं त की
तरह, गांधीजी के मानने वाले, भं साली को मानते ह। प े तप ी ह। छः महीने तक गाय का गोबर खाकर ही रहे ।
तप ी प े ह, इसम कोई शक-शु बहा नहीं! ले िकन मैसोिच ह। इलाज होना चािहए िदमाग का। पागलखाने म
कहीं न कहीं इलाज होना चािहए। गाय का गोबर खाना! ऐसे तो मौज है आदमी की; जो उसे खाना हो, खाए। ले िकन
यह तप या बन जाती है । आस-पास के लोग कहते ह, ा महान तप ी! गाय का गोबर खाकर जीता है ! हम तो नहीं
जी सकते। नहीं जी सकते, तो िफर हम कुछ भी नहीं ह; यह ब त महान है । यह मैसोिच है ।

आज मनोिव ान िजसको पहचानता है िक खुद को सताने की वृि बीमार है , है । यह थ िच का ल ण नहीं


है । कृ हजारों साल पहले पहचानते थे । वे अजु न से, जो आज का मनोिव ान कह रहा है , वह कह रहे ह िक तप ी
से ऊंचा है योगी।

ों? ोंिक तप ी तो िसफ, िजसको हम कह, ऊपरी तरकीबों और ऊपरी थ की बातों म, और अपने को क
दे कर रस ले ता है । और चूं िक कोई आदमी खुद को क दे कर रस ले ता है , बाकी लोग भी उसको आदर दे ते ह। ों
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आदर दे ते ह? अगर एक आदमी सड़क पर खड़े होकर अपने को कोड़े मार रहा है , तो आपको आदर दे ने का ा
कारण है ?

अगर मनसिवद से पूछगे, गहरा जो गया है आदमी के मन म, उससे पूछगे, तो वे कहगे, इसका कारण है िक आप
सै िड ह, वह मैसोिच है । वह अपने को सताने म मजा ले रहा है, और आप दू सरे को सताने म मजा ले रहे ह।
आपने चाहा होता िक िकसी को कोड़े मार; उस तकलीफ से भी आपको बचा िदया। वह खुद ही कोड़े मार रहा है ।
आप भीड़ लगाकर दे ख रहे ह, और िच स हो रहा है । आप दु कृित के ह, इसिलए आप उसम रस ले रहे ह।

अब एक आदमी गोबर खा रहा है । जो दु कृित के लोग ह, वे कहे रहे ह, महा ा! आप बड़ा महान काय कर रहे
ह। उनका वश चले, तो दू सरों को भी गोबर खला द। ये अपने हाथ से खाने को राजी ह, तो उसके चरणों म िसर
रखकर कह रहे ह िक तु म बड़े अदभु त आदमी हो। और जब अहं कार को इस तरह तृ दी जाए, तो वह जो यं
को दु ख दे ना वाला आदमी है, वह और दु ख दे ने लगता है । िफर यह िविशयस सिकल है ; इसका कोई अंत नहीं है ।

इसिलए कृ कहते ह, योगी े है तप ी से । िफर कहते ह िक शा को जो जानता है , उससे योगी े है ।

ोंिक शा को जानने से िसवाय श ों के और ा िमल सकता है! स तो नहीं िमल सकता; श ही िमल सकते
ह, िस ां त िमल सकते ह, िफलासफी िमल सकती है । और सारे िस ां त िसर म घु स जाएं गे और म यों की तरह
गूं जने लगगे, ले िकन कोई अनुभूित उससे नहीं िमले गी। हजार शा ों को िनचोड़कर कोई पी जाए, तो भी र ीभर,
बूं दभर अनुभव उससे पैदा नहीं होगा।

कृ इतनी िह त की बात कह रहे ह। वे कह रहे ह, योगी े है शा को जानने वाले से ।

ों? योगी े ों है ? ऐसा योगी भी े है , जो शा को िबलकुल न जानता हो, तो भी े है । योग ही े है ।

कबीर िबलकुल नहीं जानता शा को। अगर कोई उससे पूछे, तो वह कहता है िक कागज म ा िलखा है , हम कुछ
पता नहीं। हम तो वही जानते ह, जो आं खन दे खी है । आं ख से जो दे खा है , वही जानते ह। कागज म ा िलखा है , वह
हम पता नहीं। हम बे पढ़े -िलखे गं वार ह। हम कुछ पता नहीं िक कागज म ा- ा िलखा है । तु ारे वे द, तु ारे
शा , तु ारे आगम, तु ारे पुराण, तु म स ालो। हम तो उसकी खबर दे ते ह, जो हमने आं ख से दे खा है । म तो
कहता आं खन दे खी, कबीर कहते ह, तू कहता है कागद ले खी। िकसी पंिडत से कह रहे होंगे, तू कहता है कागज की
िलखी ई, और म कहता ं, आं ख की दे खी ई।

शा - ान म और योगी म यही फक है । शा - ान का मतलब है , कागज म जो िलखा है , उसे जान िलया। उसे जान
ले ने से जानने का म पैदा होता है , ान पैदा नहीं होता। ान तो पैदा होता है , यं के दशन से । और दशन की िविध
योग है । शु तम चे तना शु होते -होते ू डायमशं स आफ परसे शन, दशन के नए आयाम को उपल होती है , जहां
दशन होता है , जहां सा ा ार होता है , जहां हम दे ख पाते ह, जहां हम जान पाते ह।

शा - ान माण बन सकता है , स नहीं। शा - ान िवटनेस हो सकता है , सा ी हो सकता है , ान नहीं। िजस


िदन कोई जान ले ता है, उस िदन अगर गीता को पढ़े , तो वह कह सकता है िक ठीक। गीता वही कह रही है , जो मने
जाना। वे द को पढ़े , तो कहे गा, ठीक। कुरान को पढ़े , तो कहे गा, ठीक। कुरान वही कहता है, जो मने जाना।

और ान रहे, जो हम नहीं जानते , उसे हम कभी भी गीता म न पढ़ पाएं गे । हम वही पढ़ सकते ह, जो हम जानते ह।
इसिलए गीता जब आप पढ़ते ह, तो उसका अथ दू सरा होता है । जब आपका पड़ोसी पढ़ता है , तो अथ दू सरा होता है ।
जब और दू सरा पढ़ता है, तो अथ दू सरा होता है । िजतने लोग पढ़ते ह, उतने अथ होते ह। होंगे ही, ोंिक ेक
वही पढ़ सकता है , जो उसकी मता है ।
321

हम जब कुछ समझते ह, तो वह ा ा है , वह हमारी ा ा है । और श ों से बड़ी ां ितयां पैदा हो जाती ह। कोई


कुछ समझता है, कोई कुछ समझता है । एक ही श से हजार अथ िनकलते ह।

अभी म िवनोद भ की एक कथा पढ़ रहा था चार-छः िदन पहले । पढ़ रहा था िक एक गां व के नेता ब त मु लम
पड़ गए, ोंिक कोई नया आं दोलन पकड़ म नहीं आ रहा था। और नेता का तो धंधा मर जाए, सीजन मर जाए, अगर
कोई नया आं दोलन हाथ म न आए। िफर उ ोंने ब त सोचा, िफर माथाप ी की और उनको खयाल आया िक पहले
भू िमदान आं दोलन चला, तो वह सफल नहीं आ। िफर भू िम-छीनो आं दोलन चला, वह भी सफल नहीं आ। हम
प ी-छीनो आं दोलन ों न चलाएं ! िजसके पास दो पि यां ह, उसकी एक छीनकर उसको दे दी जाए, िजसके पास
एक भी नहीं है ।

पूरा गां व राजी हो गया। कई लोगों के पास पि यां नहीं थीं। लोगों ने कहा, यह तो िबलकुल समाजवादी ो ाम है; यह
त ाल पूरा होना चािहए। और गां व म कई लोग थे, िजनके पास दो-दो पि यां थीं। गां व का जमींदार था, िजसके पास
दो पि यां थीं। सबकी नजर उन पि यों पर थीं। उ ोंने कहा, कुछ न हो, हमको न भी िमली तो कोई हजा नहीं;
जमींदार की तो छूट जाएगी। कोई िफ नहीं; आं दोलन चले ।

आं दोलन चल पड़ा। जमींदार गां व के बाहर गया था। वह एक प ी को उठाकर आं दोलनकारी ले गए।

चल रहा है जु लूस। नारे लग रहे ह। जमींदार भागा आ आया! नेता का पैर पकड़ िलया, और कहा िक बड़ा अ ाय
कर रहे हो मेरे ऊपर। नेता ने कहा, अ ाय कुछ भी नहीं। अ ाय तु मने िकया है । दो-दो पि यां रखे हो, जब िक गां व
म कई लोगों के पास एक भी प ी नहीं है , आधी भी प ी नहीं है । दो-दो रखे ए हो तु म? यह नहीं चलेगा। उसने कहा
िक नहीं, आप समझ नहीं रहे ह, ब त अ ाय कर रहे ह मेरे ऊपर। हाथ-पैर जोड़ता ं । मुझ पर थोड़ा ान धरो।
मेरा थोड़ा खयाल करो। रोने लगा, िगड़िगड़ाने लगा।

और िफर इस भीड़ म, जब प ी को उठाकर लाए थे, तब तक तो सोचा था िक दो पि यां ह जमींदार के पास। जब


लाए तो इस बीच म दे खा िक साधारण सी औरत है ; नाहक परे शान हो रहे ह। िफर जब वह इतना िगड़िगड़ाने लगा,
तो नेताओं ने कहा िक झंझट भी छु ड़ाओ। इस ी को कोई ले ने को भी राजी न होगा।

तो कहा, अ ा तू नहीं मानता है , तो ले जा अपनी प ी को; हम छोड़े दे ते ह।

जमींदार बोला िक आप िबलकुल गलत समझ रहे ह। मेरा मतलब यह नहीं िक इसको लौटा दो। मेरा मतलब, दू सरी
को ों छोड़ आए? बड़ा अ ाय कर रहे ह। उसको भी ले जाओ।

अब जब उसने कहा िक बड़ा अ ाय कर रहे ह, तो ब त किठन था िक नेता समझ पाता िक यह कह रहा है िक


दू सरी को भी ले जाओ। मु ल था मामला। वह यही समझा भावतः, िक इस प ी को छोड़ दो।

श का अपने आप म अथ नहीं है । श की ा ा िनिमत होती है । जब गीता म से कुछ आप पढ़ते ह, तो आप


यह मत समझना िक कृ जो कहते ह, वह आप समझते ह। आप वही समझते ह, जो आप समझ सकते ह। स का
अनुभव हो, तो गीता म स का उदघाटन होता है । स का अनुभव न हो और अ ानी के हाथ म गीता हो, तो िसवाय
अ ान के गीता म से कोई अथ नहीं िनकलता; िनकल सकता नहीं।

शा - ान दू सरी कोिट का ान है । थम कोिट का ान तो अनुभव है , ानुभव है । पहली कोिट का ान हो, तो


शा बड़े चमकदार ह। और पहली कोिट का ान न हो, तो शा िबलकुल र ी की टोकरी म, उनका कोई मू
नहीं है ।

गीता पढ़ने अगर योगी जाएगा, तो गीता म सागर है अमृत का। और गीता पढ़ने अगर िबना योग के कोई जाएगा, तो
िसवाय श ों के और कुछ भी नहीं है । कोरे खाली श ह, ऐसे जै से िक चली ई कारतू स होती है । चली ई
322

कारतू स! िकतना ही चलाओ, कुछ नहीं चलता। उठा लो सू ोक एक गीता का, कर लो कंठ थ! खाली कारतू स
िलए घू म रहे हो; कुछ होगा नहीं। ाण तो अपने ही अनुभव से आते ह।

और कृ खुद कहते ह अजु न को, शा - ान भी नहीं है उतना े । शा - ान से भी ादा े है योग।

और तीसरी बात कहते ह, सकाम कम से–िकसी आशा से की गई कोई भी ाथना, कोई भी पूजा, कोई भी य –
उससे योग े है । ों? ोंिक योग की साधना का आधारभूत िनयम, उसकी पहली कंडीशन यह है िक तु म
िन ाम हो जाओ। आशा छोड़ दो, अपे ा छोड़ दो, फल की आकां ा छोड़ दो, तभी योग म वे श है ।

तब य तो ब त छोटी-सी बात हो गई, सां सा रक बात हो गई। िकसी के घर म ब ा नहीं हो रहा है, िकसी के घर म
धन नहीं बरस रहा है , िकसी को पद नहीं िमल रहा है, िकसी को कुछ नहीं हो रहा है , तो य कर रहा है, हवन कर
रहा है ।

वासना और कामना से सं योिजत जो भी आयोजन ह, योग उनसे ब त े है । ोंिक योग की पहली शत है , िन ाम


हो जाओ।

इसिलए कृ कहते ह, अजु न, तू योगी बन। तू योग को उपल हो। योग से कुछ भी नीचे, इं चभर नीचे न चलेगा।
और उ ोंने अब तक योग की ही िशलाएं रखीं, आधारिशलाएं रखीं। योग की ही सीिढ़यां बनाईं। और अब वे अजु न से
कहते ह िक योग की या ा पर िनकल अजु न। ते रा मन चाहे गा िक सकाम कोई भ म लग जा, यु जीत जाए,
रा िमल जाए। ले िकन म कहता ं िक सकाम होना धम की िदशा म स क या ा-पथ नहीं है। ते रा मन करे गा िक
योग के इतने उप व म हम ों पड़! शा पढ़ लगे , स उसम िमल जाएगा। सरल, शाटकट; कोई चे ा नहीं, कोई
मेहनत नहीं। एक िकताब खरीद लाते ह। िकताब को पढ़ ले ते ह। भाषा ही जाननी काफी है । स िमल जाएगा। ते रा
मन तु झे कहे गा, शा पढ़ लो, स िमल जाएगा। कहां जाते हो योग की साधना को? पर तू सावधान रहना। शा से
श के अलावा कुछ भी न िमले गा। असली शा तो तभी िमले गा, जब स तु झे िमल चु का है । उसके पूव नहीं,
उससे अ था नहीं। और ते रा मन शायद करने लगे…।

जानकर अजु न से ऐसा कहा है । ोंिक अजु न कह रहा है िक दू सरों को म ों मा ं ? दू सरे मर जाएं गे, तो ब त दु ख
होगा जगत म। इससे बे हतर है, म अपने को ही ों न सता लूं! छोड़ दू ं रा , भाग जाऊं जं गल, बै ठ जाऊं झाड़ के
नीचे ।

अजु न ऐसे सै िड है । ि य िजसको भी होना हो, उसे दू सरे को सताने की वृ ि म िन ात होना चािहए, नहीं तो
ि य नहीं हो सकता। ि य िजसे होना हो, उसे दू सरे को सताने की वृ ि म साम होनी चािहए। तो ि य तो दू सरे
को सताएगा ही। पर अगर ि य दू सरे को सताने से िकसी कारण से भी बे चैन हो जाए, तो अपने को सताना शु
कर दे गा।

इसिलए ान रहे , ा णों ने इतने तप ी पैदा नहीं िकए, िजतने ि यों ने पैदा िकए इस भारत म। तप यों का
असली वग ि यों से आया, ा णों से नहीं। और बड़े मजे की बात है िक ा ण तो सदा दु ख म जीए, दीनता म,
द र ता म। ले िकन िफर भी ा णों ने कभी भी यं को दु ख दे ने के ब त आयोजन नहीं िकए। ि यों ने िकए यं
को दु ख दे ने के आयोजन। बड़े से बड़े तप ी ि यों ने पैदा िकए ह।

उसका कारण है । और वह कारण यह है िक ि य की तो पूरी की पूरी साधना ही होती है दू सरे को सताने की। अगर
वह िकसी िदन दू सरे को सताने से ऊब गया, तो वह करे गा ा? िजस तलवार की धार आपकी तरफ थी, वह अपनी
तरफ कर ले गा। अ ास उसका पुराना ही रहे गा। कल वह दू सरे को काटता, अब अपने को काटे गा। कल वह दू सरे
को मारता, अब वह अपने को मारे गा। ा ण ने कभी भी यं को सताने का ब त बड़ा आयोजन नहीं िकया है ।

इसिलए जब तक ा ण इस दे श म ब त ित ा म थे, तब तक इस दे श म तप ी नहीं थे, योगी थे । जब तक ा ण


इस दे श म ित ा म थे, तो तप यों की कोई ब त मह ा न थी, योिगयों की मह ा थी।
323

ले िकन तप यों ने योिगयों की मह ा को बु री तरह नीचे िगराया, ोंिक योग तो िदखाई नहीं पड़ता था। तप यों ने
कहना शु िकया िक ये ा ण? ये कहते तो ह िक हम गु कुल म रहते ह, ले िकन इनके पास हजार-हजार गाएं ह,
दस-दस हजार गाएं ह। इनके पास दू ध-घी की निदयां बहती ह। इनके पास स ाट चरणों म िसर रखते ह, हीरे -
जवाहरात भट करते ह। यह कैसा योग? यह तो भोग चल रहा है !

और बड़े आ य की बात है िक िजन गु कुलों म, िजन वान थ आ मों म ा णों के पास आती थी सं पि , िनि त
ही आती थी, ले िकन उस सं पि के कारण उनका योग नहीं चल रहा था, ऐसी कोई बात न थी। ब सच तो यह है
िक वह सं पि इसीिलए आती थी िक िजनको भी उनम योग की गं ध िमलती थी, वे उनकी से वा के िलए त र हो जाते
थे । ले िकन भीतर महायोग चल रहा था।

पर तप यों ने कहा, यह कोई योग है ? ये कैसे ऋिष? नहीं; ये नहीं। धू प म खड़ा आ, योगी होगा। भू खा, उपवास
करता, योगी होगा। शरीर को गलाता, सताता, योगी होगा। रात-िदन अिडग खड़ा रहने वाला योगी होगा।

ि य ऐसा कर सकते थे; ा ण ऐसा कर भी न सकते थे ।

ा णों के पास ब त डे िलकेट िस म थी, उनके पास शरीर तो ब त नाजु क था। उनका कभी कोई िश ण तलवार
चलाने का, और यु ों म लड़ने का, और घोड़ों पर चढ़कर दौड़ने का, उनका कोई िश ण न था। ि यों का था।
तप या म वे उतर सकते थे सरलता से । अगर उ खड़े रहना है चौबीस घं टे, तो वे खड़े रह सकते थे । ा ण तो
सु खासन बनाता है । वह तो ऐसा आसन खोजता है , िजसम सु ख से बै ठ जाए। वह तो नीचे आसन िबछाता है । वह तो
ऐसी जगह खोजता है , जहां म ड़ न सताएं उसे ।

ि य खड़ा हो सकता था अिधक म ड़ों के बीच म। ोंिक िजसका अ ास धनुष-बाणों को झेलने का हो, म ड़
उसको कुछ परे शान कर पाएं गे? और िजसको म ड़ परे शान कर द, वह यु की भू िम पर धनु ष-बाण, बाण िछदगे
जब छाती म, तो झेल पाएगा? सारी अ ास की बात थी।

इसिलए जब ि यों ने धम की साधना म गित शु की, तो उ ोंने त ाल तप ी को मुख कर िदया और योगी को


पीछे कर िदया।

ले िकन कृ कहते ह अजु न को, योग ही े है अजु न। ोंिक अजु न के िलए भी तप या सरल थी। अजु न भी
तप ी बन सकता था आसानी से । योगी बनना किठन था। इसिलए कृ ने तीनों बात कहीं; सकाम भी तू बन सकता
है सरलता से; यु तु झे जीतना, रा तु झे पाना। शा भी पढ़ सकता है तू आसानी से, िशि त है , सु सं ृ त है ।
शा पढ़ने म कोई अड़चन नहीं; स मु म िमलता आ मालू म पड़ता है । यं को सताने वाला तप ी भी बन
सकता है तू । तू ि य है ; तु झे कोई अड़चन न आएगी। ले िकन म कहता ं तु झसे िक योग े है इन तीनों म। अजु न,
तू योगी बन!

योिगनामिप सवषां म तेना रा ना।


ावा भजते यो मां स मे यु तमो मतः।। 47।।
और सं पूण योिगयों म भी, जो ावान योगी मेरे म लगे ए अंतरा ा से मेरे को िनरं तर भजता है , वह योगी मुझे परम
े मा है ।

अंितम ोक इस अ ाय का ा पर पूरा होता है । कृ कहते ह, और ा से मुझम लगा आ योगी परम


अव था को उपल होता है, वह मुझे सवािधक मा है ।

दो तरह के योगी हो सकते ह। एक िबना िकसी ा के योग म लगे ए। पूछगे आप, िबना िकसी ा के कोई योग
म ों लगे गा?
324

िबना ा के भी लग सकता है । िबना ा के लगने का अथ यह है िक जीवन के दु खों से जो पीड?ि◌त हो गया;


जीवन के दु खों से जो िछ -िभ हो गया िजसका अंतःकरण; जीवन के दु ख िजसके ाणों म कां टे से चु भ गए; जीवन
की पीड़ा से मु होने के िलए कोई चे ा कर सकता है योग की। यह िनगे िटव है । जीवन के दु ख से हटना है । ले िकन
जीवन के पार कोई परमा ा है , इसकी कोई पािजिटव ा, इसकी कोई िवधायक ा उसम नहीं है । इतना ही हो
जाए तो काफी है िक जीवन के दु ख से मु हो जाए। नहीं पाना है कोई परमा ा, नहीं कोई मो , नहीं कोई िनवाण।
कोई ा नहीं है िक ऐसी कोई चीज होगी। इतना ही हो जाए, तो काफी िक जीवन के दु ख से छु टकारा हो जाए।
जीवन के दु ख से छु टकारा िजसको चािहए, मा जीवन के दु ख से छु टकारा िजसे चािहए, जीवन की ऊब से भागा
आ, जो अपने को िकसी सु रि त अंतः थल म प ंचा दे ना चाहता है ; वह िबना परमा ा म ा के भी योग म सं ल
हो सकता है ।

ा वह परमा ा को नहीं पा सकेगा? पा सकेगा, ले िकन या ा ब त लं बी होगी। ोंिक परमा ा जो सहायता दे


सकता है , वह उसे न िमल सकेगी। यह फक समझ ल।

इसिलए कृ उसे कहते ह, जो मुझम ा से लीन है , मेरी आ ा से अपनी आ ा को िमलाए ए है , उसे म परम
े कहता ं । ों?

एक ब ा चल रहा है रा े पर। कई बार ब ा अपने बाप का हाथ पकड़ना पसं द नहीं करता। उसके अहं कार को
चोट लगती है । वह बाप से कहता है, छोड़ो हाथ। म चलूंगा। ब े को बड़ी पीड़ा होती है िक तुम मुझे चलने तक के
यो नहीं मानते ! म चल लूं गा; तु म छोड़ो मुझे। बाप छोड़ दे या बे टा झटका दे कर हाथ अलग कर ले, तो भी बे टा
चलना सीख जाएगा, ले िकन लं बी होगी या ा। भू ल-चू क ब त होगी। हाथ-पैर ब त टू टगे । और ज री नहीं है िक इसी
ज म चलना सीख पाए। ज -ज भी लग सकते ह।

तो बे टा चलना तो चाहता है , ले िकन अपने से अ म कोई ा का भाव नहीं है । खुद के अहं कार के अित र और
िकसी के ित कोई भाव नहीं है।

तो कृ कहते ह, जो मुझम ा से लगा है ।

ा फक पड़े गा? यह फक पड़े गा िक जो मुझम ा से लगा है , वह म तो करे गा, ले िकन अपने ही म को कभी
पया नहीं मानेगा, नाट इनफ। मेहनत पूरी करे गा, और िफर भी कहे गा िक भु ते री कृपा हो, तो ही पा सकूंगा।
इसम फक है । अहं कार िनिमत न हो पाएगा, ा म िजसका जीवन है । वह कहे गा, मेहनत म पूरी करता ं, ले िकन
िफर भी ते री कृपा के बगै र तो िमलना नहीं होगा। मेरी अकेले की मेहनत से ा होगा? चलूंगा म ज र, कोिशश म
ज र क ं गा, ले िकन म िगर जाऊंगा। ते रे हाथ का सहारा मुझे बना रहे । और आ य की बात यह है िक इस तरह
का जो िच है, उसका ार सदा ही परम श को पाने के िलए खुला रहे गा।

जो ावान नहीं है, उसका ार ो है, उसका मन बं द है । वह कहता है, म काफी ं ।

लीबिनज ने कहा है , कुछ लोग ऐसे ह, जै से िवं डोले स कोई मकान हो, खड़की रिहत कोई मकान हो; सब ार-दरवाजे
बं द, अंदर बै ठे ह।

ावान वह है , िजसके ार-दरवाजे खुले ह। सू रज को भीतर आने की आ ा है । हवाओं को भीतर वे श की


सु िवधा है । ताजगी को िनमं ण है िक आओ। ा का और कोई अथ नहीं होता। ा का अथ है , मुझसे भी िवराट
श मेरे चारों तरफ मौजू द है, म उसके सहारे के िलए िनरं तर िनवे दन कर रहा ं । बस, और कुछ अथ नहीं होता।

म अकेला काफी नहीं ं । ोंिक म ज ा नहीं था, तब भी वह िवराट श मौजू द थी। और आज भी मेरे दय की
धड़कन मेरे ारा नहीं चलती, उसके ही ारा चलती है । और आज भी मेरा खून म नहीं बहाता, वही बहाता है । और
आज भी मेरी ास म नहीं ले ता, वही ले ता है । और कल जब मौत आएगी, तो म कुछ न कर सकूंगा। शायद वही मुझे
अपने म वापस बु ला ले गा। तो जो मुझे ज दे ता, जो मुझे जीवन दे ता, जो मुझे मृ ु म ले जाता, िजसके हाथ म सारा
325

खेल है , म अकड़कर यह क ं िक म ही चल लूं गा, म ही स तक प ंच जाऊंगा, तो थोड़ी-सी भू ल होगी। ार बं द हो


जाएं गे थ ही। िवराट श िमल सकती थी सहयोग के िलए, वह न िमल पाएगी।

इसिलए अंितम सू कृ कहते ह, योग की इतनी लं बी चचा के बाद ा की बात!

योग का तो अथ है , म क ं गा कुछ; ा का अथ है, मुझसे अकेले से न होगा। योग और ा िवपरीत मालू म पड़गे ।
योग का अथ है , म क ं गा–िविध, साधन, योग, साधना। और ा का अथ है , क ं गा ज र; ले िकन म काफी नहीं
ं , ते री भी ज रत पड़ती रहे गी। और जहां म कमजोर पड़ जाऊं, ते री श मुझे िमले । और जहां मेरे पैर डगमगाएं ,
ते रा बल मुझे स ाले । और जहां म भटकने लगूं, तू मुझे पुकारना। और जहां म गलत होने लगूं, तू मुझे इशारा करना।

और मजे की बात यह है िक जो इस भाव से चलता है , उसे इशारे िमलते ह, सहारे िमलते ह; उसे बल भी िमलता है ,
उसे श भी िमलती है । और जो इस भरोसे नहीं चलता, उसे भी िमलता है इशारा, ले िकन उसके ार बं द ह,
इसिलए वह नहीं दे ख पाता। उसे भी िमलती है श , ले िकन श दरवाजे से ही वापस लौट जाती है । उसे भी
िमलता है सहारा, ले िकन वह हाथ नहीं बढ़ाता, और बढ़ा आ परमा ा का हाथ वै सा का वै सा रह जाता है ।

ऐसा मत समझना आप िक ा का यह अथ आ िक जो परमा ा म ा करते ह, उनको ही परमा ा सहायता


दे ता है । नहीं, परमा ा तो सहायता सभी को दे ता है । ले िकन जो ा करते ह, वे उस सहायता को ले पाते ह। और
जो ा नहीं करते, वे नहीं ले पाते ह।

ा का अथ है , ट । म एक बूं द से ादा नहीं ं इस िवराट जीवन के सागर म। इस अ म एक छोटा-सा कण


ं । इस िवराट अ म मेरी ा ह ी है ?

योग तो कहता है िक तू अपनी ह ी को इक ा कर और म कर। और ा कहती है, अपनी ह ी को पूरा मत


मान ले ना। नाव को खोलना ज र िकनारे से, ले िकन हवाएं तो उसकी ही ले जाएं गी ते री नाव को। नाव को खोलना
ज र िकनारे से, ले िकन नदी की धार तो उसी की है, वही ले जाएगी। नाव को खोलना ज र, ले िकन ते रे दय की
धड़कन भी उसी की है , वही पतवार चलाएगी। यह सदा रण रखना िक कर रहा ं म, ले िकन मेरे भीतर तू ही
करता है । चलता ं म, ले िकन मेरे भीतर तू ही चलता है ।

ऐसी ा बनी रहती है, तो छोटा-सा दीया भी सू रज की श का मािलक हो जाता है । ऐसी ा बनी रहती है, तो
छोटा-सा अणु भी परम ांड की श के साथ एक हो जाता है । ऐसी ा बनी रहती है, तो िफर हम अकेले नहीं
ह, िफर परमा ा सदा साथ है ।

एक छोटी-सी घटना, और म अपनी बात पूरी क ं ।

सं त थे रेसा, एक ईसाई फकीर औरत ई। वह एक ब त बड़ा चच बनाना चाहती थी; ब त बड़ा, िक जमीन पर इतना
बड़ा कोई चच न हो। उसके िशखर आकाश को छु एं , और उसके िशखर णमंिडत हों, और ण म हीरे जड़े हों।
वह िदन-रात उसी की क ना करती थी। िफर एक िदन उसने गां व म आकर कहा िक मुझे कोई कुछ दान कर दो।
म एक ब त बड़ा चच, मंिदर बनाना चाहती ं भु के िलए।

ले िकन जै से िक सब गांव के लोग होते ह, वै से ही उस गां व के लोग भी थे । उसने ब त, अगर उसके पास ड ा रहा
होगा, तो ब त बजाया। तीन नए पैसे लोगों ने िदए। ले िकन थे रेसा नाचने लगी, और लोगों से बोली िक अब चच बन
जाएगा। लोगों ने कहा, ड ा तो इतना छोटा है , चच ब त बड़ा। ा ड ा पूरा भर गया? तो भी ा होगा?

ड ा खोला। भरा तो ा था, कुल तीन पैसे थे! िफर भी सं त थे रेसा ने कहा िक नहीं, बन जाएगा चच। लोगों ने कहा,
तू पागल तो नहीं हो गई। तीन पैसे म उतना बड़ा चच बनाने का इरादा रखती है ! एक ईंट भी न आएगी! तू है दु बली-
पतली गरीब औरत, और ये तीन पैसे ह। तू + तीन पैसे! िकतना बड़ा चच बनाने का इरादा है ? िहसाब ा है ?
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सं त थे रेसा ने कहा, तु म एक और मौजू द है हम दोनों के बीच, उसे नहीं दे ख रहे हो। म, परमा ा, तीन पैसे–जोड़ो।
चच बन जाएगा। जोड़ो! मुझम तो कुछ भी नहीं है ; मुझसे ा होगा! तीन पैसे म ा रखा है , उससे ा होगा! ले िकन
हम दोनों की िजतनी ताकत थी, वह हमने पूरी लगा दी। अब परमा ा बीच म है, वह स ाल ले गा।

और िजस जगह पर सं त थे रेसा ने यह कहा था, उस जगह पर सं त थे रेसा का कैथेडल है–जमीन पर े तम मंिदरों म
से एक। वह अब भी खड़ा है । उस चच के नीचे प र पर यह िलखा है िक हम हार गए इस गां व के लोग इस गरीब
औरत से, िजसने कहा, तीन पैसे, म और धन एक और, जो तु नहीं िदखाई पड़ता, मुझे िदखाई पड़ता है ।

ा का इतना ही अथ है । म आपका, श आपकी, ले िकन काफी नहीं; तीन पैसे से ादा नहीं पड़े गी। योग
आपका, ले िकन तीन पैसे से ादा का नहीं हो पाएगा।

इसिलए योग की इतनी चचा करने के बाद कृ ने जो सबसे ादा मह पूण बात कही है , वह यह है िक ायु
जो मुझम है, उसे म परम े कहता ं ।

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