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जजन खोजा जतन पाइयाां

ओशो
(कां डजिनी—योग पर साधना—जशजिर, नारगोि में ध्यान—प्रयोगोां के साथ प्रिचन एिां मांबई में
प्रश्नोत्तर चचाओ ओ ां सजहत उ्‍नीस ओशो—प्रिचनोां का अपूिओ सां किन।)

भू जमका:

(मनष्य का जिज्ञान)

सु नता हूं कि मनुष्य िा मार्ग खो र्या है। यह सत्य है। मनुष्य िा मार्ग उसी कदन खो र्या, कजस कदन
उसने स्वयूं िो खोजने से भी ज्यादा मूल्यवान किन्ी ूं और खोजोूं िो मान किया।

मनुष्य िे किए सवाग कधि महत्वपूणग और साथग ि वस्तु मनुष्य िे अकतररक्त और िुछ भी नही ूं है । उसिी
पहिी खोज वह स्वयूं ही हो सिता है । खु द िो जाने किना उसिा सारा जानना अूंतत: घाति ही होर्ा। अज्ञान
िे हाथोूं में िोई भी शान सृ जनात्मि नही ूं हो सिता, और जान िे हाथोूं में अज्ञान भी सृ जनात्मि हो जाता है ।

मनुष्य यकद स्वयूं िो जाने और जीते , तो उसिी शे ष सि जीते उसिी और उसिे जीवन िी सहयोर्ी
होूंर्ी। अन्यथा वह अपने ही हाथोूं अपनी िब्र िे किए र्ड्डा खोदे र्ा।

हम ऐसा ही र्ड्डा खोदने में िर्े हैं । हमारा ही श्रम हमारी मृत्यु िन िर खड़ा हो र्या है । कपछिी
सभ्यताएूं िाहर िे आक्रमणोूं और सूं िटोूं से नष्ट हुई थी ूं। हमारी सभ्यता पर िाहर से नही ,ूं भीतर से सूं िट है ।
िीसवी ूं सदी िा यह समाज यकद नष्ट हुआ तो उसे आत्मघात िहना होर्ा; और यह हमें ही िहना होर्ा, क्ोूंकि
िाद में िहने िो िोई भी िचने िो नही ूं है । सूं भाव्य युद्ध इकतहास में िभी नही ूं किखा जाएर्ा। यह घटना
इकतहास िे िाहर घटे र्ी, क्ोूंकि उसमें तो समस्त मानवता िा अूंत होर्ा।

पहिे िे िोर्ोूं ने इकतहास िनाया, हम इकतहास कमटाने िो तै यार हैं । और इस आत्मघाती सूं भावना िा
िारण एि ही है । वह है , मनुष्य िा मनुष्य िो ठीि से न जानना। पदाथग िी अनूंत शक्तक्त से हम पररकचत हैं —
पररकचत ही नही,ूं उसिे हम कवजेता भी हैं । पर मानवीय हृदय िी र्हराइयोूं िा हमें िोई पता नही ूं। उन
र्हराइयोूं में कछपे कवष और अमृत िा भी िोई शान नही ूं है । पदाथाग णु िो हम जानते हैं , पर आत्माणु िो नही ूं।
यही हमारी कवडूं िना है । ऐसे शक्तक्त तो आ र्ई है , पर शाूं कत नही ूं। अशाूं त और अप्रिु द्ध हाथोूं में आई हुई शक्तक्त
से ही यह सारा उपद्रव है । अशाूं त और अप्रिुद्ध िा शक्तक्तहीन होना ही शु भ होता है । शक्तक्त सदा शु भ नही ूं। वह
तो शु भ हाथोूं में ही शु भ होती है ।
हम शक्तक्त िो खोजते रहे, यही हमारी भू ि हुई। अि अपनी ही उपिक्ति से खतरा है । सारे कवश्व िे
कवचारिोूं और वैज्ञाकनिोूं िो आर्े स्भरण रखना चाकहए कि उनिी खोज मात्र शक्तक्त िे किए न हो। उस तरह िी
अूंधी खोज ने ही हमें इस अूंत पर िािर खड़ा किया है ।

शक्तक्त नही,ूं शाूं कत िक्ष्य िने। स्वभावत: यकद शाूं कत िक्ष्य होर्ी, तो खोज िा िेंद्र प्रिृकत नही ,ूं मनुष्य
होर्ा। जड़ िी िहुत खोज और शोध हुई, अि मनु ष्य िा और मन िा अन्रे षण िरना होर्ा। कवजय िी पतािाएूं
पदाथग पर नही,ूं स्वयूं पर र्ाड़नी होूंर्ी। भकवष्य िा कवज्ञान पदाथग िा नही,ूं मूित: मनुष्य िा कवज्ञान होर्ा। समय
आ र्या है कि यह पररवतग न हो। अि इस कदशा में और दे र िरनी ठीि नही ूं है । िही ूं ऐसा न हो कि किर िुछ
िरने िो समय भी शे ष न िचे।

जड़ िी खोज में जो वैज्ञाकनि आज भी िर्े हैं , वे दकियानूसी हैं , और उनिे मक्तस्तष्क कवज्ञान िे
आिोि से नही,ूं परूं परा और रूकढ़ िे अूंधिार में ही डूिे िहे जावेंर्े। कजन्ें थोड़ा भी िोध है और जार्रूिता
है , उनिे अन्रे षण िी कदशा आमूि िदि जानी चाकहए। हमारी सारी शोध मनुष्य िो जानने में िर्े , तो िोई भी
िारण नही ूं है कि जो शक्तक्त पदाथग और प्रिृकत िो जानने और जीतने में इतने अभूतपूवग रूप से सिि हुई
है , वह मनुष्य िो जानने में सिि न हो सिे।

मनुष्य भी कनश्चय ही जाना, जीता और पररवकतग त किया जा सिता है । मैं कनराश होने िा िोई भी िारण
नही ूं दे खता। हम स्वयूं िो जान सिते हैं और स्वयूं िे ज्ञान पर हमारे जीवन और अूंतःिरण िे किििुि ही नये
आधार रखे जा सिते हैं । एि किििुि ही अकभनव मनुष्य िो जन्म कदया जा सिता है ।

अतीत में कवकभन्न धमों ने इस कदशा में िहुत िाम किया है , िेकिन वह िायग अपनी पूणगता और समग्रता
िे किए कवज्ञान िी प्रतीक्षा िर रहा है । धमों ने कजसिा प्रारूं भ किया है , कवज्ञान उसे पूणगता ति िे जा सिता है ।
धमों ने कजसिे िीज िोए हैं ,कवज्ञान उसिी िसि िाट सिता है ।

पदाथग िे सूं िूंध में कवतान और धमग िे रास्ते कवरोध में पड़ र्ए थे , उसिा िारण दकियानूसी धाकमग ि
िोर् थे। वस्तु त: धमग पदाथग िे सूं िूंध में िुछ भी िहने िा हिदार नही ूं था। वह उसिी खोज िी कदशा ही नही ूं
थी। कवज्ञान उस सूं घषग में कवजय हो र्या, यह अच्छा हुआ। िेकिन इस कवजय से यह न समझा जाए कि धमग िे
पास िुछ िहने िो नही ूं है । धमग िे पास िुछ िहने िो है , और िहुत मूल्यवान सूं पकि है । यकद उस सूं पकि से
िाभ नही ूं उठाया र्या तो उसिा िारण रूकढ़ग्रस्त पुराणपूंथी वैज्ञाकनि होूंर्े। एि कदन एि कदशा में धमग कवज्ञान
िे समक्ष हार र्या था, अि समय है कि उसे दू सरी कदशा में कवजय कमिे और धमग और कवज्ञान सक्तिकित होूं।
उनिी सूं युक्त साधना ही मनुष्य िो उसिे स्वयूं िे हाथोूं से िचाने में समथग हो सिती है ।

पदाथग िो जान िर जो कमिा है , आत्मज्ञान से जो कमिेर्ा, उसिे समक्ष वह िुछ भी नही ूं है । धमों ने वह
सूं भावना िहुत थोड़े िोर्ोूं िे किए खोिी है । वैशाकनि होिर वह द्वार सििे किए खु ि सिेर्ा। धमग कवज्ञान िने
और कवज्ञान धमग िने , इसमें ही मनुष्य िा भकवष्य और कहत है ।

मानवीय कचि में अनूंत शक्तक्तयाूं हैं , और कजतना उनिा कविास हुआ है , उससे िहुत ज्यादा कविास िी
प्रसु प्त सूं भावनाएूं हैं । इन शक्तक्तयोूं िी अव्यवस्था और अराजिता ही हमारे दु ख िा िारण है । और जि व्यक्तक्त
िा कचि अव्यवक्तस्थत और अराजि होता है तो वह अराजिता समकष्ट कचि ति पहुूं चते ही अनूंत र्ुना हो जाती
है ।

समाज व्यक्तक्तयोूं िे र्ुणनिि िे अकतररक्त और िुछ भी नही ूं है । वह हमारे अूंतसं िूंधोूं िा ही िैिाव
है । व्यक्तक्त ही िैि िर समाज िन जाता है । इसकिए स्भरण रहे कि जो व्यक्तक्त में घकटत होता है , उसिा ही वृहत
रूप समाज में प्रकतध्वकनत होर्ा। सारे युद्ध मनुष्य िे मन में िड़े र्ए हैं और सारी कविृकतयोूं िी मूि जड़ें मन में
ही हैं ।

समाज िो िदिना है तो मनुष्य िो िदिना होर्ा; और समकष्ट िे नये आधार रखने हैं तो व्यक्तक्त िो
नया जीवन दे ना होर्ा। मनुष्य िे भीतर कवष और अमृत दोनोूं हैं । शक्तक्तयोूं िी अराजिता ही कवष है और
शक्तक्तयोूं िा सूं यम, सामूंजस्य और सूं र्ीत ही अमृत है ।

जीवन कजस कवकध से स द


ूं यग और सूं र्ीत िन जाता है , उसे ही मैं योर् िहता हूं ।

जो कवचार, जो भाव और जो िमग मेरे अूंतसूं र्ीत िे कवपरीत जाते होूं, वे ही पाप हैं ; और जो उसे पैदा
और समृद्ध िरते होूं, उन्ें ही मैंने पुण्य जाना है । कचि िी वह अवस्था जहाूं सूं र्ीत शू न्य हो जाए और सभी स्वर
पूणग अराजि होूं, निग है ; और वह अवस्था स्वर्ग है , जहा सूं र्ीत पूणग हो।

भीतर जि सूं र्ीत पूणग होता है तो ऊपर से पूणग िा सूं र्ीत अवतररत होने िर्ता है । व्यक्तक्त जि सूं र्ीत
हो जाता है , तो समस्त कवश्व िा सूं र्ीत उसिी ओर प्रवाकहत होने िर्ता है ।

सूं र्ीत से भर जाओ तो सूं र्ीत आिृष्ट होता है ; कवसूं र्कत कवसूं र्कत िो आमूंकत्रत िरे र्ा। हम में जो होता
है , वही हम में आने भी िर्ता है , उसिी ही सूं ग्राहिता और सूं वेदनशीिता हम में होती है ।

उस कवज्ञान िो हमें कनकमगत िरना है जो व्यक्तक्त िे अूंतर—जीवन िो स्वास्थ्य और सूं र्ीत दे सिे। यह
किसी और प्रभु िे राज्य िे किए नही,ूं वरन इसी जर्त और पृथ्वी िे किए है । यह जीवन ठीि हो तो किसी और
जीवन िी कचूंता अनावश्यि है । इसिे ठीि न होने से ही परिोि िी कचूंता पिड़ती है । जो इस जीवन िो
सम्यि रूप दे ने में सिि हो जाता है , वह अनायास ही समस्त भावी जीवनोूं िो सु दृढ़ और शु भ आधार दे ने में
भी समथग हो जाता है । वास्तकवि धमग िा िोई सूं िूंध परिोि से नही ूं है । परिोि तो इस िोि िा पररणाम है ।

धमों िा परिोि िी कचूंता में होना िहुत घाति और हाकनिारि हुआ है । उसिे ही िारण हम जीवन
िो शु भ और सुूं दर नही ूं िना सिे। धमग परिोि िे किए रहे और कवज्ञान पदाथग िे किए—इस भाूं कत मनुष्य और
उसिा जीवन उपेकक्षत हो र्या। परिोि पर शास्त्र और दशग न कनकमगत हुए और पदाथग िी शक्तक्तयोूं पर कवजय
पाई र्ई। किूंतु कजस मनुष्य िे किए यह सि हुआ,उसे हम भूि र्ए।

अि मनुष्य िो सवगप्रथम रखना होर्ा। कवज्ञान और धमग दोनोूं िा िेंद्र मनुष्य िनना चाकहए। इसिे किए
जरूरी है कि कवज्ञान पदाथग िा मोह छोड़े और धमग परिोि िा। उन दोनोूं िा यह मोह—त्यार् ही उनिे
सक्तििन िी भूकम िन सिेर्ा।

धमग और कवतान िा कमिन और सहयोर् मनुष्य िे इकतहास में सिसे िड़ी घटना होर्ी। इससे िहुत
सृ जनात्मि ऊजाग िा जन्म होर्ा। वह समन्रय ही अि सु रक्षा दे र्ा। उसिे अकतररक्त और िोई मार्ग नही ूं है ।
उनिे कमिन से पहिी िार मनुष्य िे कवज्ञान िी उत्पकि होर्ी और कवज्ञान में ही अि मनुष्य िा जीवन और
भकवष्य है ।

ओशो
प्रिचन 1 - यात्रा कां डजिनी की (साधना जशजिर)

मेरे जप्रय आत्मन् ,

मु झे पता नही ूं कि आप किस किए यहाूं आए हैं। शायद आपिो भी ठीि से पता न हो, क्ोूंकि हम
सारे िोर् कजूंदर्ी में इस भाूं कत ही जीते हैं कि हमें यह भी पता नही ूं होता कि क्ोूं जी रहे हैं , यह भी पता नही ूं होता
कि िहाूं जा रहे हैं , और यह भी पता नही ूं होता कि क्ोूं जा रहे हैं ।

मूर्च्ाओ और जागरण:

कजूंदर्ी ही जि किना पूछे िीत जाती हो तो आश्चयग नही ूं होर्ा कि आपमें से िहुत िोर् किना पूछे यहाूं आ
र्ए होूं कि क्ोूं जा रहे हैं । शायद िुछ िोर् जानिर आए होूं, सूं भावना िहुत िम है । हम सि ऐसी मू च्छाग में
चिते हैं , ऐसी मूच्छाग में सु नते हैं , ऐसी मूच्छाग में दे खते हैं कि न तो हमें वह कदखाई पड़ता जो है , न वह सु नाई
पड़ता जो िहा जाता है , और न उसिा स्पशग अनु भव हो पाता जो सि ओर से िाहर और भीतर हमें घेरे हुए है ।

मूच्छाग में ही यहाूं भी आ र्ए होूंर्े। शात भी नही ूं है ; हमारे िदमोूं िा भी हमें िुछ पता नही ूं है ; हमारी
श्वासोूं िा भी हमें िुछ पता नही ूं है । िेकिन मैं क्ोूं आया हूं यह मुझे जरूर पता है ; वह मैं आपसे िहना चाहूं र्ा।

िहुत जन्मोूं से खोज चिती है आदमी िी। न मािूम कितने जन्मोूं िी खोज िे िाद उसिी झिि
कमिती है — कजसे हम आनूंद िहें , शाूं कत िहें , सत्य िहें , परमात्मा िहें , मोक्ष िहें , कनवाग ण िहें —जो भी शब्द
ठीि मािूम पड़े , िहें । ऐसे िोई भी शब्द उसे िहने में ठीि नही ूं हैं , समथग नही ूं हैं । जन्मोूं—जन्मोूं िे िाद
उसिा कमिना होता है ।

और जो िोर् भी उसे खोजते हैं , वे सोचते हैं , पािर कवश्राम कमि जाएर्ा। िेकिन कजन्ें भी वह कमिता
है , कमििर पता चिता है कि एि नये श्रम िी शु रुआत है , कवश्राम नही ूं। िि ति पाने िे किए द ड़ थी और
किर िाूं टने िे किए द ड़ शु रू हो जाती है । अन्यथा िुद्ध हमारे द्वार पर आिर खड़े न होूं, और न महावीर हमारी
साूं िि िो खटखटाए, और न जीसस हमें पुिारें । उसे पा िेने िे िाद एि नया श्रम।

सच यह है कि जीवन में जो भी महत्वपूणग है , उसे पाने में कजतना आनूंद है , उससे अनूंत र्ुना आनूंद उसे िाूं टने
में है । जो उसे पा िेता है , किर वह उसे िाूं टने िो वैसे ही व्यािुि हो जाता है , जैसे िोई िूि क्तखिता है और
सु र्ूंध िुटती है , िोई िादि आता है और िरसता है , या सार्र िी िोई िहर आती है और तटोूं से टिराती है ।
ठीि ऐसे ही, जि िुछ कमिता है तो िूंटने िे किए, किखरने िे किए, िैिने िे किए प्राण आतु र हो जाते हैं ।
मेरा मुझे पता है कि मैं यहाूं क्ोूं आया हूं । और अर्र मेरा और आपिा िही ूं कमिन हो जाए, और कजस
किए मैं आया हूं अर्र उस किए ही आपिा भी आना हुआ हो, तो हमारी यह म जू दर्ी साथग ि हो सिती है ।
अन्यथा अक्सर ऐसा होता है , हम पास से र्ुजरते हैं , िेकिन कमि नही ूं पाते । अि मैं कजस किए आया हूं अर्र उसी
किए आप नही ूं आए हैं , तो हम पास होूंर्े,कनिट रहें र्े, िेकिन कमि नही ूं पाएूं र्े।

सत्य को दे खने की आां ख

िुछ जो मुझे कदखाई पडता है , चाहता हूं आपिो भी कदखाई पड़े । और मजा यह है कि वह इतने कनिट
है कि आश्चयग ही होता है कि वह आपिो कदखाई क्ोूं नही ूं पड़ता! और िई िार तो सूं देह होता है कि जैसे
जानिर ही आप आूं ख िूंद किए िैठे हैं ;दे खना ही नही ूं चाहते हैं , अन्यथा इतने जो कनिट है वह आपिे दे खने से
िैसे चूि जाता! जीसस ने िहुत िार िहा है कि िोर्ोूं िे पास आूं खें हैं , िेकिन वे दे खते नही;ूं िान हैं , िेकिन वे
सु नते नही ूं। िहरे ही िहरे नही ूं हैं और अूंधे ही अूंधे नही ूं हैं । कजनिे पास आूं ख और िान हैं वे भी अूं धे और िहरे
हैं । इतने कनिट है , कदखाई नही ूं पड़ता! इतने पास है , सु नाई नही ूं पड़ता! चारोूं तरि घेरे हुए है , स्पशग नही ूं होता!
क्ा िात है ? िही ूं िुछ िोई छोटा सा अटिाव होर्ा, िड़ा अटिाव नही ूं है ।

ऐसा ही है , जैसे आूं ख में एि कतनिा पड़ जाए और पहाड़ कदखाई न पड़े किर, आूं ख िूंद हो जाए। तिग
तो यही िहे र्ा कि पहाड़ िो कजसने ढाूं ि किया, वह कतनिा िहुत िड़ा होर्ा। तिग तो ठीि ही िहता है । र्कणत
तो यही िहे र्ा, इतने िड़े पहाड़ िो कजसने ढाूं ि किया, वह कतनिा पहाड़ से िड़ा होना चाकहए। िेकिन कतनिा
िहुत छोटा है , आूं ख िड़ी छोटी है । कतनिा आूं ख िो ढूं ि िेता है , पहाड़ ढूं ि जाता है ।

हमारी भीतर िी आूं ख पर भी िोई िहुत िड़े पहाड़ नही ूं हैं , छोटे कतनिे हैं । उनसे जीवन िे सारे सत्य
कछपे रह जाते हैं । और वह आूं ख......कनकश्चत ही, कजन आूं खोूं से हम दे खते हैं उस आूं ख िी मैं िात नही ूं िर रहा
हूं । इससे िड़ी भ्ाूं कत पैदा होती है । यह ठीि से खयाि में आ जाना चाकहए कि इस जर्त में हमारे किए वही सत्य
साथगि होता है , कजसे पिड़ने िी, कजसे ग्रहण िरने िी, कजसे स्वीिार िर िेने िी, भोर् िेने िी
ररसे किकवटी, ग्राहिता हममें पैदा हो जाती है ।

सार्र िा इतना जोर िा र्जगन है , िेकिन मेरे पास िान नही ूं हैं तो सार्र अनूंत—अनूंत िाि ति भी
कचल्राता रहे ,पुिारता रहे , मुझे िुछ सु नाई नही ूं पड़े र्ा। जरा से मेरे िान न होूं कि सार्र िा इतना िड़ा र्जग न
व्यथग हो र्या; आूं खें न होूं,सू यग द्वार पर खड़ा रहे, िेिार हो र्या, हाथ न होूं और मैं किसी िो स्पशग िरना चाहूं तो
िैसे िरू
ूं ?

परमात्मा िी इतनी िात है , आनूंद िी इतनी चचाग है , इतने शास्त्र हैं , इतने िोर् प्राथगनाएूं िर रहे , मूंकदरोूं
में भजन—िीतग न िर रहे , िेकिन िर्ता नही ूं कि परमात्मा िो हम स्पशग िर पाते हैं ; िर्ता नही ूं कि वह हमें
कदखाई पड़ता है ; िर्ता नही ूं कि हम उसे सु नते हैं, िर्ता नही ूं कि हमारे प्राणोूं िे पास उसिी िोई धड़िन हमें
सु नाई पड़ती है । ऐसा िर्ता है , सि िातचीत है , सि िातचीत है । ईश्वर िी हम िात किए चिे जाते हैं । और
शायद इतनी िात हम इसीकिए िरते हैं कि शायद हम सोचते हैं िातचीत िरिे अनुभव िो झुठिा
दें र्े; िातचीत िरिे ही पा िेंर्े। अि िहरे जन्मोूं—जन्मोूं ति िातें िरें स्वरोूं िी, सूं र्ीत िी,और अूंधे िातें िरें
प्रिाश िी, तो जन्मोूं ति िरें िातें तो भी िुछ होर्ा नही ूं। ही, एि भ्ाूं कत हो सिती है कि अूंधे प्रिाश िी िात
िरते — िरते यह भूि जाएूं कि हम अूंधे हैं , क्ोूंकि प्रिाश िी िहुत िात िरने से उन्ें िर्ने िर्े कि हम
प्रिाश िो जानते हैं ।
जमीन पर िने हुए परमात्मा िे मूं कदर और मक्तिद इस तरह िा ही धोखा दे ने में सिि हो पाए हैं ।
उनिे आसपास उनिे भीतर िै ठे हुए िोर्ोूं िो भ्म िे अकतररक्त िुछ और पैदा नही ूं होता। ज्यादा से ज्यादा
हम परमात्मा िो मान पाते हैं ,जान नही ूं पाते । और मान िेना िातचीत से ज्यादा नही ूं है ; िनकवनकसूं र् िातचीत है
तो मान िेते हैं ; िोई जोर से तिग िरता है और कसद्ध िरता है तो मान िेते हैं , हार जाते हैं , नही ूं कसद्ध िर पाते हैं
कि नही ूं है , तो मान िेते हैं । िेकिन मान िेना जान िेना नही ूं है । अूंधे िो हम कितना ही मना दें कि प्रिाश है , तो
भी प्रिाश िो जानना नही ूं होता है ।

मैं तो यहाूं इसी खयाि से आया हूं कि जानना हो सिता है । कनकश्चत ही हमारे भीतर िुछ और भी िेंद्र है
जो कनक्तष्कि्रय पड़ा है —कजसे िभी िोई िृष्ण जान िेता है और नाचता है , और िभी िोई जीसस जान िेता है
और सू िी पर िटि िर भी िह पाता है िोर्ोूं से कि माि िर दे ना इन्ें , क्ोूंकि इन्ें पता नही ूं कि ये क्ा िर
रहे हैं । कनकश्चत ही िोई महावीर पहचान िेता है , और किसी िुद्ध िे भीतर वह िूि क्तखि जाता है । िोई िेंद्र है
हमारे भीतर—िोई आूं ख, िोई िान—जो िूंद पड़ा है । मैं तो इसीकिए आया हूं कि वह जो िूं द पड़ा हुआ िेंद्र
है , िैसे सकक्रय हो जाए।

यह िल्व िटिा हुआ है । तो उससे रोशनी कनिि रही है । तार िाट दें हम, तो िल्व िुछ भी नही ूं
िदिा, िेकिन रोशनी िूंद हो जाएर्ी। कवदि् युत िी धारा न कमिे , िल्व ति न आए, तो िल्व अूंधेरा हो जाएर्ा और
जहाूं प्रिाश कर्र रहा है वहाूं कसिग अूंधेरा कर्रे र्ा। िल्व वही है , िेकिन कनक्त्क्रय हो र्या; वह जो धारा शक्तक्त िी
द ड़ती थी, अि नही ूं शडु श है । और शक्तक्त िी धारा न द डती हो तो िल्व क्ा िरे ?

जदव्य—दृजि के जागरण का केंद्र

हमारे भीतर भी िोई िेंद्र है कजससे वह जाना जाता है , कजसे हम परमात्मा िहें । िेकिन उस ति हमारी
जीवन— धारा नही ूं द ड़ती तो वह िेंद्र कनक्त्क्रय पड़ रह जाता है । आूं खें होूं ठीि किििुि, और आूं खोूं ति
जीवन िी धारा न द ड़े , तो आूं खें िेिार हो जाएूं ।

एि िड़िी िो मेरे पास िाए थे िुछ कमत्र। उस युवती िा किसी से प्रेम था और घर िे िोर्ोूं िो पता
चिा और प्रेम िे िीच दीवाि उन्ोूंने खड़ी िी। अि ति हम इतनी अच्छी दु कनया नही ूं िना पाए जहाूं प्रेम िे
किए दीवािें न िनानी पड़े । उन्ोूंने दीवाि खड़ी िर दी, उस युवती िो और उस युवि िो कमिने िा द्वार िूंद
िर कदया। िड़े घर िी युवती थी, िीच से छत से दीवाि उठा दी, आर—पार दे खना न हो सिे। कजस कदन वह
दीवाि उठी, उसी कदन वह िड़िी अचानि अूंधी हो र्ई। उसे डाक्ङरोूं िे पास िे र्ए। उन्ोूंने िहा, आूं ख तो
किििुि ठीि है , िेकिन िड़िी िो कदखाई िुछ भी नही ूं पड़ता है ! पहिे तो शि हुआ,माूं —िाप ने डाूं टा—
डपटा, मारने —पीटने िी धमिी दी। िेकिन डाूं टने—डपटने से अूंधेपन तो ठीि नही ूं होते । डाक्ङरोूं िो
कदखाया। डाक्ङरोूं ने िहा, आूं ख किििुि ठीि है । िेकिन किर भी डाक्ङरोूं ने िहा कि िड़िी झूठ नही ूं िोिती
है , उसे कदखाई नही ूं पड़ रहा है । साइिोिाकजिि ब्लाइूं डनेस , उन्ोूंने िहा कि मानकसि अूंधापन आ र्या। तो
उन्ोूंने िहा, हम िुछ न िर सिेंर्े। िड़िी िी जीवन— धारा आूं ख ति जानी िूंद हो र्ई है ; वह जो ऊजाग
आूं ख ति जाती है , वह िूंद हो र्ई है , वह धारा अवरुद्ध हो र्ई है । आूं ख ठीि है , िेकिन जीवन— धारा आूं ख
ति नही ूं पहुूं चती है ।

उस िड़िी िो मेरे पास िाए, मैंने सारी िात समझी। मैंने उस िड़िी िो पूछा कि क्ा हुआ? ते रे मन
में क्ा हुआ है ?उसने िहा कि मेरे मन में यह हुआ है कि कजसे दे खने िे किए मेरे पास आूं खें हैं , अर्र उसे न
दे ख सिूूं तो आूं खोूं िी क्ा जरूरत है ? िेहतर है कि अूंधी हो जाऊूं। िि रात भर मेरे मन में एि ही खयाि
चिता रहा। रात मैंने सपना भी दे खा कि मैं अूंधी हो र्ई हूं । और यह जानिर मेरा मन प्रसन्न हुआ कि अूंधी हो
र्ई हूं । क्ोूंकि कजसे दे खने िे किए आूं ख आनूंकदत होती,अि उसे दे ख नही ूं सिूूंर्ी तो आूं ख िी क्ा जरूरत
है , अूंधा ही हो जाना अच्छा है ।

उसिा मन अूंधा होने िे किए राजी हो र्या, जीवन— धारा आूं ख ति जानी िूंद हो र्ई है । आूं ख ठीि
है , आूं ख दे ख सिती है , िेकिन कजस शक्तक्त से दे ख सिती थी वह आूं ख ति नही ूं आती है ।

हमारे व्यक्तक्तत्व में कछपा हुआ िोई िेंद्र है जहाूं से परमात्मा पहचाना, जाना जाता है ; जहाूं से सत्य िी
झिि कमिती है ;जहाूं से जीवन िी मूि ऊजाग से हम सूं िूंकधत होते हैं ; जहाूं से पहिी िार सूं र्ीत उठता है वह जो
किसी वाद्य से नही ूं उठ सिता जहाूं से पहिी िार वे सु र्ूंधें उपिि होती हैं जो अकनवगचनीय हैं ; और जहाूं से उस
सििा द्वार खु िता है कजसे हम मुक्तक्त िहें ;जहाूं िोई िूंधन नही,ूं जहाूं परम स्वतूं त्रता है; जहाूं िोई सीमा नही ूं
और असीम िा कवस्तार है , जहाूं िोई दु ख नही ूं और जहाूं आनूंद, और आनूंद, और आनूंद, और आनूंद िे
अकतररक्त और िुछ भी नही ूं है । िेकिन उस िेंद्र ति हमारी जीवन— धारा नही ूं जाती, एनजी नही ूं जाती, ऊजाग
नही ूं जाती, िही ूं नीचे ही अटििर रह जाती है ।

इस िात िो थोड़ा ठीि से समझ िें। क्ोूंकि तीन कदन कजसे मैं ध्यान िह रहा हूं इस ऊजाग िो, इस
शक्तक्त िो उस िेंद्र ति पहुूं चाने िा ही प्रयास िरना है , जहाूं वह िूि क्तखि जाए, वह दीया जि जाए, वह आूं ख
कमि जाए—वह तीसरी आूं ख , वह सु पर सें स, वह अती ूंकद्रय इूं कद्रय खु ि जाए—जहाूं से िुछ िोर्ोूं ने दे खा है , और
जहाूं से सारे िोर् दे खने िे अकधिारी हैं । िेकिन िीज होने से ही जरूरी नही ूं कि िोई वृ क्ष हो जाए। हर िीज
अकधिारी है वृ क्ष होने िा, िेकिन सभी िीज वृक्ष नही ूं हो पाते । क्ोूंकि िीज िी सूं भावना तो है , पोटे कशयकिटी तो
है कि वृ क्ष हो जाए, िेकिन खाद भी जुटानी पड़ती है , जमीन में िीज िो दिना भी पड़ता, मरना भी पड़ता, टू टना
पड़ता, किखरना पड़ता। जो िीज टू टने , किखरने िो, कमटने िो राजी हो जाता है वह वृ क्ष हो जाता है । और अर्र
वृक्ष िे पास हम िीज िो रखिर दे खें तो पहचानना िहुत मुक्तिि होर्ा कि यह िीज इतना िड़ा वृक्ष िन
सिता है ! असूं भव! असूं भव मािूम पड़े र्ा। इतना सा िीज इतना िड़ा वृक्ष िैसे िनेर्ा!

ऐसा ही िर्ा है सदा। जि िृष्ण िे पास हम खड़े हुए हैं , तो ऐसा ही िर्ा है कि हम िहाूं िन सिेंर्े! तो
हमने िहा तु म भर्वान हो, हम साधारणजन, हम िहाूं िन सिेंर्े। तु म अवतार हो, हम साधारणजन, हम तो
जमीन पर ही रें र्ते रहें र्े; हमारी यह सामर्थ्ग नही ूं। जि िोई िु द्ध और िोई महावीर हमारे पास से र्ुजरा है , तो
हमने उसिे चरणोूं में नमस्कार िर किए हैं — और िहा कि तीथंिर हो, अवतार हो, ईश्वर िे पुत्र हो, हम
साधारणजन!

अर्र िीज िह सिता, तो वृक्ष िे पास वह भी िहता कि भर्वान हो, तीथंिर हो, अवतार हो; हम
साधारण िीज, हम िहा ऐसे हो सिेंर्े! िीज िो िैसे भरोसा आएर्ा कि इतना िड़ा वृ क्ष उसमें कछपा हो सिता
है ? िेकिन यह िड़ा वृ क्ष िभी िीज था, और जो आज िीज है वह िभी िड़ा वृ क्ष हो सिता है ।

अनांत सां भािनाओां का जागरण

हम सििे भीतर अनूंत सूं भावना कछपी है । िेकिन उन अनूंत सूं भावनाओूं िा िोध जि ति हमें भीतर
से न होने िर्े ति ति िोई शास्त्र प्रमाण नही ूं िनेर्ा। और िोई भी कचल्रािर िहे कि पा किया, तो भी प्रमाण
नही ूं िनेर्ा। क्ोूंकि कजसे हम नही ूं जान िेते हैं , उस पर हम िभी कवश्वास नही ूं िर पाते हैं । और ठीि भी
है , क्ोूंकि कजसे हम नही ूं जानते उस पर कवश्वास िरना प्रवूंचना है , कडसे पान है । अच्छा है कि हम िहें कि हमें
पता नही ूं कि ईश्वर है । िेकिन किन्ी ूं िो पता हुआ है , और किन्ी ूं िो िेवि पता ही नही ूं हुआ है , िक्तम्ऻ उनिी
सारी कजूंदर्ी िदि र्ई, उनिे चारोूं तरि हमने िूि क्तखिते दे खे हैं अि किि। िे किन उनिी पूजा िरने से वह
हमारे भीतर नही ूं हो जाएर्ा।

सारा धमग पूजा पर रुि र्या है । िूि िी पूजा िरने से नये िीज िैसे िूि िन जाएूं र्े ? और नदी
कितनी ही सार्र िी पूजा िरे तो सार्र न हो जाएर्ी। और अूं डा पकक्षयोूं िी कितनी ही पू जा िरे तो भी आिाश
में पूंख नही ूं िैिा सिता। अूंडे िो टू टना पड़े र्ा। और पहिी िार जि िोई पक्षी अूंडे िे िाहर टू टिर कनििता
है तो उसे भरोसा नही ूं आता; उड़ते हुए पकक्षयोूं िो दे खिर वह कवश्वास भी नही ूं िर सिता कि यह मैं भी िर
सिूूंर्ा। वृक्षोूं िे किनारोूं पर िैठिर वह कहित जुटाता है । उसिी माूं उड़ती है , उसिा िाप उड़ता है , वे उसे
धक्के भी दे ते हैं , किर भी उसिे हाथ—पैर िूंपते हैं । वह जो िभी नही ूं उड़ा, िैसे कवश्वास िरे कि ये पूंख
उड़ें र्े? आिाश में खु ि जाएूं र्े , अनूंत िी, दू र िी यात्रा पर कनिि जाएर्ा।

मैं जानता हूं कि इन तीन कदनोूं में आप भी वृ क्ष िे किनारे पर िैठेंर्े , मैं कितना ही कचल्राऊूंर्ा कि
छिाूं र् िर्ाएूं , िूद जाएूं , उड़ जाएूं —कवश्वास नही ूं पड़े र्ा, भरोसा नही ूं होर्ा। जो पूंख उड़े नही,ूं वे िैसे मानें कि
उड़ना हो सिता है ? िेकिन िोई उपाय भी तो नही ूं है , एि िार तो किना जाने छिाूं र् िेनी ही पड़ती है ।

िोई पानी में तै रना सीखने जाता है । अर्र वह िहे कि जि ति मैं तै रना न सीख िूूं ति ति उतरू
ूं र्ा
नही,ूं तो र्ित नही ूं िहता है , ठीि िहता है , उकचत िहता है , एिदम िानूनी िात िहता है । क्ोूंकि जि ति
तै रना न सीखूूं तो पानी में िैसे उतरू
ूं ! िेकिन कसखानेवािा िहे र्ा कि जि ति उतरोर्े नही ,ूं सीख नही ूं पाओर्े।
और ति तट पर खड़े होिर कववाद अूंतहीन चि सिता है । हि क्ा है ? कसखानेवािा िहे र्ा, उतरो! िूदो!
क्ोूंकि किना उतरे सीख न पाओर्े।

असि में, सीखना उतर जाने से ही शु रू होता है । सि िोर् तै रना जानते हैं , सीखना नही ूं पड़ता है
तै रना। अर्र आप तै रना सीखे हैं तो आपिो पता होर्ा, तै रना सीखना नही ूं पड़ता। सारे िोर् तै रना जानते हैं , ढूं र्
से नही ूं जानते हैं —कर्र जाते हैं पानी में तो ढूं र् आ जाता है ; हाथ—पैर िेढूंर्े िेंिते हैं , किर ढूं र् से िेंिने िर्ते
हैं । हाथ—पैर िेंिना सभी िो मािूम है । एि िार पानी में उतरे तो ढूं र् से िेंिना आ जाता है । इसकिए जो
जानते हैं , वे िहें र्े कि तै रना सीखना नही ूं है , ररमेंिररर् है —एि याद है ,पुनस्भगरण है ।

इसकिए परमात्मा िी जो अनु भूकत है , जाननेवािे िहते हैं , वह स्भरण है । वह िोई ऐसी अनु भूकत नही ूं है
कजसे हम आज सीख िेंर्े। कजस कदन हम जानेंर्े, हम िहें र्े, अरे ! यही था तै रना! ये हाथ—पैर तो हम िभी भी
िेंि सिते थे। िेकिन इन हाथ— पैर िे िेंिने िा इस नदी से , इस सार्र से िभी कमिन नही ूं हुआ। कहित
नही ूं जुटाई, किनारे पर खड़े रहे । उतरना पड़े , िूदना पड़े । िे किन िूदते ही िाम शु रू हो जाता है ।

वह कजस िेंद्र िी मैं िात िर रहा हूं वह हमारे मक्तस्तष्क में कछपा हुआ पड़ा है । अर्र आप जािर
मक्तस्तष्ककवदोूं से पूछें,तो वे िहें र्े, मक्तस्तष्क िा िहुत थोड़ा सा कहस्सा िाम िर रहा है ; िड़ा कहस्सा कनक्त्क्रय
है , इनएक्तक्ङव है । उस िड़े कहस्से में क्ा— क्ा कछपा है , िहना िकठन है । िड़े से िड़ी प्रकतभा और जीकनयस िा
भी िहुत थोड़ा सा मक्तस्तष्क िाम िरता है । इसी मक्तस्तष्क में वह िेंद्र है कजसे हम सु पर—सें स, अती ूंकद्रय—इूं कद्रय
िहें , कजसे हम छठवी ूं इूं कद्रय िहें , या कजसे हम तीसरी आूं ख, थडग आई िहें । वह िेंद्र कछपा है जो खु ि जाए तो
हम जीवन िो िहुत नये अथों में दे खेंर्े—पदाथग कविीन हो जाएर्ा और परमात्मा प्रिट होर्ा; आिार खो जाएर्ा
और कनरािार प्रिट होर्ा; रूप कमट जाएर्ा और अरूप आ जाएर्ा; मृत्यु नही ूं हो जाएर्ी और अमृत िे द्वार
खु ि जाएूं र्े। िेकिन वह दे खने िा िेंद्र हमारा कनक्त्क्रय है । वह िेंद्र िैसे सकक्रय हो?
मैंने िहा, जैसे िल्व ति अर्र कवदि् युत िी धारा न पहुूं चे , तो िल्व कनक्त्क्रय पडा रहे र्ा; धारा पहुूं चाएूं
और िल्व जार् उठे र्ा। िल्व सदा प्रतीक्षा िर रहा है कि िि धारा आए। िेकिन अिेिी धारा भी प्रिट न हो
सिेर्ी। िहती रहे , िेकिन प्रिट न हो सिेर्ी; प्रिट होने िे किए िल्व चाकहए। और प्रिट होने िे किए धारा भी
चाकहए।

हमारे भीतर जीवन— धारा है , िेकिन वह प्रिट नही ूं हो पाती; क्ोूंकि जि ति वह वहाूं न पहुूं च
जाए, उस िेंद्र पर जहाूं से प्रिट होने िी सूं भावना है , ति ति अप्रिट रह जाती है ।

हम जीकवत हैं नाम मात्र िो। साूं स िेने िा नाम जीवन है ? भोजन पचा िेने िा नाम जीवन है ? रात सो
जाने िा नाम,सु िह जर् जाने िा नाम जीवन है ? िच्चे से जवान, जवान से िे हो जाने िा नाम जीवन है ? जन्मने
और मर जाने िा नाम जीवन है ? और अपने पीछे िच्चे छोड जाने िा नाम जीवन है ?

नही,ूं यह तो यूंत्र भी िर सिता है । और आज नही ूं िि िर िे र्ा, िच्चे टे स्ट—टधू ि में पैदा हो जाएूं र्े।
और िचपन,जवानी और िुढ़ापा िड़ी मै िेकनिि, िड़ी याूं कत्रि कक्रयाएूं हैं । जि िोई भी यूंत्र थिता है , तो जवानी
भी आती है यूंत्र िी, िुढ़ापा भी आता है । सभी यूंत्र िचपन में होते हैं , जवान होते हैं , िे होते हैं । घड़ी भी खरीदते
हैं तो र्ारूं टी होती है कि दस साि चिेर्ी। वह जवान भी होर्ी घड़ी, िी भी होर्ी, मरे र्ी भी। सभी यूंत्र जन्मते
हैं , जीते हैं , मरते हैं । कजसे हम जीवन िहते हैं , वह याूं कत्रिता, मैिेकनिि होने से िुछ और ज्यादा नही ूं है । जीवन
िुछ और है ।

उपिब्धि अजनिओचनीय है

अर्र इस िल्व िो पता न चिे कवदि् युत िी धारा िा तो िल्व जैसा है उसी िो जीवन समझ िेर्ा। हवा
िे धक्के उसे धक्के दें र्े तो िल्व िहे र्ा मैं जीकवत हूं क्ोूंकि धक्के मुझे िर्ते हैं । िल्व उसी िो जीवन समझ
िेर्ा। और कजस कदन कवदि् युत िी धारा पहिी दिा िल्व में आती होर्ी, और अर्र िल्व िह सिे तो क्ा
िहे र्ा? िहे र्ा, अकनवगचनीय है ! नही ूं िह सिता क्ा हो र्या! अि ति अूंधेरे से भरा था, अि अचानि—
अचानि सि प्रिाश हो र्या है । और किरणें िही जाती हैं , सि तरि िैिी चिी जाती हैं ।

िीज क्ा िहे र्ा कजस कदन वृक्ष हो जाएर्ा? िहे र्ा, पता नही ूं यह क्ा हुआ? िहने जैसा नही ूं है ! मैं तो
छोटा सा िीज था, यह क्ा हो र्या? यह मुझसे हुआ है , यह भी िहना िकठन है ।

इसकिए कजनिो भी परमात्मा कमिता है , वे यह नही ूं िह पाते कि हमने पा किया है । वे तो यही िहते हैं
कि हम.. .हम सोचते हैं कि जो हम थे , उससे, जो हमें कमि र्या है िोई भी सूं िूंध नही ूं कदखाई पड़ता। िहाूं हम
अूंधिार थे , िहाूं प्रिाश हो र्या है ! िहाूं हम िाूं टे थे , िहाूं िूि हो र्ए हैं ! िहाूं हम मृत्यु थे ठोस, िहाूं हम
तरि जीवन हो र्ए हैं ! नही—
ूं नही ूं, हमें नही ूं कमि र्या है । वे िहें र्े, हमें नही ूं कमि र्या है । जो जानेंर्े, वे
िहें र्े, नही,ूं उसिी िृपा से हो र्या है —उसिी ग्रेस से, उसिे प्रसाद से —प्रयास से नही ूं।

िेकिन इसिा मतिि यह नही ूं है कि प्रयास नही ूं है । जि उपिि होता है तो ऐसा ही िर्ता है , उसिे
प्रसाद से कमिा है ,ग्रेस से । िेकिन उसिे प्रसाद ति पहुूं चने िे किए िड़े प्रयास िी यात्रा है । और वह प्रयास क्ा
है ? वह एि छोटा सा प्रयास है एि अथों में , िड़ा भी है दू सरे अथों में। इस अथों में छोटा है कि वे िेंद्र िहुत दू र
नही ूं हैं । जहाूं शक्तक्त िी ऊजाग , जहाूं ऊजाग सूं र्ृहीत है , वह स्थान, ररजवाग यर, और वह जर्ह जहा से जीवन िो
दे खने िी आूं ख खु िेर्ी, उनमें िासिा िहुत नही ूं है । मुक्तिि से दो िीट िा िासिा है , तीन िीट िा िासिा
है , इससे ज्यादा िासिा नही ूं है । क्ोूंकि हम आदमी ही पाूं च —छह िीट िे हैं ,हमारी पूरी जीवन—व्यवस्था
पाूं च—छह िीट िी है । उस पाूं च—छह िीट में सारा इूं तजाम है ।

जीिन—ऊजाओ का कां ड

कजस जर्ह जीवन िी ऊजाग इिट्ठी है , वह जननेंकद्रय िे पास िुूंड िी भाूं कत है । इसकिए उस ऊजाग िा
नाम िुूंडकिनी पड़ र्या, जैसे िोई पानी िा छोटा सा िुूंड। और इसकिए भी उस ऊजाग िा नाम िुूंडकिनी पड़
र्या कि जैसे िोई साूं प िुूंडि मारिर सो र्या हो। सोए हुए साूं प िो िभी दे खा हो, िुूंडि पर िुूंडि मारिर
िन िो रखिर सोया हुआ है । िेकिन सोए हुए साूं प िो जरा छे ड़ दो, िन ऊपर उठ जाता है , िुूंडि टू ट जाते
हैं । इसकिए भी उसे िुूंडकिनी नाम कमि र्या कि हमारे ठीि से क्स सें टर िे पास हमारे जीवन िी ऊजाग िा िुूंड
है —िीज, सीड है , जहाूं से सि िैिता है ।

यह उपयुक्त होर्ा खयाि में िे िे ना कि य न से , िाम से , से क्स से जो थोड़ा सा सु ख कमिता है , वह सु ख


भी य न िा सु ख नही ूं है , वह सु ख भी य न िे साथ वह जो िुूंड है हमारी जीवन—ऊजाग िा, उसमें आए हुए
िूंपन िा सु ख है । थोड़ा सा वहाूं सोया साूं प कहि जाता है । और उसी सु ख िो हम सारे जीवन िा सु ख मान िेते
हैं । जि वह पूरा साूं प जार्ता है और उसिा िन पूरे व्यक्तक्तत्व िो पार िरिे मक्तस्तष्क ति पहुूं च जाता है , ति
जो हमें कमिता है , उसिा हमें िुछ भी पता नही ूं।

हम जीवन िी पहिी ही सीढी पर जीते हैं । िड़ी सीढ़ी है जो परमात्मा ति जाती है । वह जो हमारे भीतर
तीन िीट या दो िीट िा िासिा है , वह िासिा एि अथग में िहुत िड़ा है ; वह प्रिृकत से परमात्मा ति िा
िासिा है , वह पदाथग से आत्मा ति िा िासिा है ; वह कनद्रा से जार्रण ति िा िासिा है , वह मृ त्यु से अमृत
ति िा िासिा है । वह िडा िासिा भी है । ऐसे छोटा िासिा भी है । हमारे भीतर हम यात्रा िर सिते हैं ।

ऊजाओ जागरण से आत्मक्ाां जत

यह जो ऊजाग हमारे भीतर सोई पडी है , अर्र इसे जर्ाना हो, तो साूं प िो छे ड़ने से िम खतरनाि िाम
नही ूं है । िक्तम्ऻ साूं प िो छे ड़ना िहुत खतरनाि नही ूं है । इसकिए खतरनाि नही ूं है कि एि तो स में से सिानिे
साूं पोूं में िोई जहर नही ूं होता। तो स में से सिानिे साूं प तो आप मजे से छे ड़ सिते हैं , उनमें िुछ होता ही
नही ूं। और अर्र िभी उनिे िाटने से िोई मरता है तो साूं प िे िाटने से नही ूं मरता, साूं प ने िाटा है , इस
खयाि से मरता है; क्ोूंकि उनमें तो जहर होता नही ूं। सिानिे प्रकतशत साूं प तो किसी िो मारते नही ूं। हािाूं कि
िहुत िोर् मरते हैं , उनिे िाटने से भी मरते हैं ; वे कसिग खयाि से मरते हैं कि साूं प ने िाटा, अि मरना ही
पड़े र्ा। और जि खयाि पिड़ िेता है तो घटना घट जाती है ।

किर कजन साूं पोूं में जहर है उनिो छे ड़ना भी िहुत खतरनाि नही ूं है , क्ोूंकि ज्यादा से ज्यादा वे आपिे
शरीर िो छीन सिते हैं । िेकिन कजस िुूंडकिनी शक्तक्त िी मैं िात िर रहा हूं उसिो छे ड़ना िहुत खतरनाि
है ; उससे ज्यादा खतरनाि िोई िात ही नही ूं है , उससे िड़ा िोई डें जर ही नही ूं है । खतरा क्ा है ? वह भी एि
तरह िी मृत्यु है । जि आपिे भीतर िी ऊजाग जर्ती है तो आप तो मर जाएूं र्े जो आप जर्ने िे पहिे थे और
आपिे भीतर एि किििुि नये व्यक्तक्त िा जन्म होर्ा जो आप िभी भी नही ूं थे। यही भय िोर्ोूं िो धाकमगि
िनने से रोिता है । वही भय—जो िीज अर्र डर जाए तो िीज रह जाए। अि िीज िे किए सिसे िडा खतरा है
जमीन में कर्रना, खाद पाना, पानी पाना। सिसे िड़ा खतरा है , क्ोूंकि िीज मरे र्ा। अूंडे िे किए सिसे िड़ा
खतरा यही है कि पक्षी िड़ा हो भीतर और उड़े , तोड़ दे अूंडे िो। अूंडा तो मरे र्ा।

हम भी किसी िे जन्म िी पूवग अवस्था हैं । हम भी एि अूं डे िी तरह हैं , कजससे किसी िा जन्म हो
सिता है । िेकिन हमने अूं डे िो ही सि िुछ मान रखा है । अि हम अूंडे िो सम्हािे िै ठे हैं ।

यह शक्तक्त उठे र्ी तो आप तो जाएूं र्े , आप िे िचने िा िोई उपाय नही ूं। और अर्र आप डरे , तो जैसा
ििीर ने िहा है ,ििीर िे िड़े .. .दो पूंक्तक्तयोूं में उन्ोूंने िड़ी िकढ़या िात िही है । ििीर ने िहा है

जजन खोजा जतन पाइयाां , गहरे पानी पैठ।

मैं बौरी खोजन गई, रही जकनारे बैठ।।

िोई पास िैठा था, उसने ििीर से िहा, आप किनारे क्ोूं िैठे रहे ? ििीर िहते हैं , मैं पार्ि खोजने
र्या, किनारे ही िैठ र्या। किसी ने पूछा, आप िैठ क्ोूं र्ए किनारे ? तो ििीर ने िहा

जजन खोजा जतन पाइया, गहरे पानी पैठ।

मैं बौरी डूबन डरी, रही जकनारे बैठ।।

मैं डर र्ई डूिने से , इसकिए किनारे िैठ र्ई। और कजन्ोूंने खोजा उन्ोूंने तो र्हरे जािर खोजा।

डूिने िी तै यारी चाकहए, कमटने िी तै यारी चाकहए। एि शब्द में िहें —शब्द िहुत अच्छा नही—
ूं मरने
िी हयात चाकहए। और जो डर जाएर्ा डूिने से वह िच तो जाएर्ा, िेकिन अूंडा ही िचे र्ा, पक्षी नही,ूं जो
आिाश में उड़ सिे। जो डूिने से डरे र्ा वह िच तो जाएर्ा, िेकिन िीज ही िचे र्ा, वृक्ष नही,ूं कजसिे नीचे
हजारोूं िोर् छाया में कवश्राम िर सिें। और िीज िी तरह िचना िोई िचना है ? िीज िी तरह िचने से ज्यादा
मरना और क्ा होर्ा!

इसकिए िहुत खतरा है । खतरा यह है कि हमारा जो व्यक्तक्तत्व िि ति था वह अि नही ूं होर्ा; अर्र


ऊजाग जर्ेर्ी तो हम पूरे िदि जाएूं र्े —नये िेंद्र जाग्रत होूंर्े, नया व्यक्तक्तत्व उठे र्ा, नया अनु भव होर्ा, नया सि
हो जाएर्ा। नये होने िी तै यारी हो तो पुराने िो जरा छोड़ने िी कहित िरना। और पुराना हमें इतने जोर से
पिड़े हुए है , चारोूं तरि से िसे हुए है , जूंजीरोूं िी तरह िाूं धे हुए है कि वह ऊजाग नही ूं उठ पाती।

परमात्मा िी यात्रा पर जाना कनकश्चत ही असु रक्षा िी यात्रा है , इनकसक्ोररटी िी। िे किन जीवन
िे, स द
ूं यग िे सभी िूि असु रक्षा में ही क्तखिते हैं ।

बाजी पूरी िगानी होगी

तो इस यात्रा िे किए दो—चार खास िातें आपसे िह दू ूं और दो—चार र्ैर—खास िातें भी।

पहिी िात तो यह कि िि सु िह जि हम यहाूं कमिेंर्े , और िि इस ऊजाग िो जर्ाने िी कदशा में


चिेंर्े, तो मैं आपसे आशा रखूूं कि आप अपने भीतर िुछ भी नही ूं छोड़ रखें र्े जो आपने दाूं व पर न िर्ा कदया
हो। यह िोई छोटा जुआ नही ूं है । यहाूं जो िर्ाएर्ा पूरा, वही पा सिेर्ा। इूं च भर भी िचाया तो चू ि सिते हैं ।
क्ोूंकि ऐसा नही ूं हो सिता कि िीज िहे कि थोड़ा सा मैं िच जाऊूं और िािी वृक्ष हो जाए। ऐसा नही ूं हो
सिता। िीज मरे र्ा तो पूरा मरे र्ा और िचेर्ा तो पूरा िचेर्ा। पाकशग यि डे थ जैसी िोई चीज नही ूं होती, आकशि
मृत्यु नही ूं होती। तो आपने अर्र अपने िो थोड़ा भी िचाया तो व्यथग मेहनत हो जाएर्ी। पूरा ही छोड़ दे ना। िई
िार, थोड़े से िचाव से सि खो जाता है ।

मैंने सु ना है कि िोिरे डो में जि सिसे पहिी दिा सोने िी खदानें कमिी ,ूं तो सारा अमेररिा द ड़ पड़ा
िोिरे डो िी तरि। खिरें आईूं कि जरा सा खे त खरीद िो और सोना कमि जाए। िोर्ोूं ने जमीनें खरीद डािी ूं।
एि िरोड़पकत ने अपनी सारी सूं पकि िर्ािर एि पूरी पहाड़ी ही खरीद िी। िड़े यूंत्र िर्ाए। छोटे —छोटे िोर्
छोटे —छोटे खे तोूं में सोना खोद रहे थे , तो पहाड़ी खरीदी थी, िड़े यूंत्र िाया था, िड़ी खु दाई िी, िड़ी खु दाई िी।
िेकिन सोने िा िोई पता न चिा। किर घिड़ाहट िैिनी शु रू हो र्ई। सारा दाूं व पर िर्ा कदया था। किर वह
िहुत घिड़ा र्या। किर उसने घर िे िोर्ोूं से िहा कि यह तो हम मर र्ए, सारी सूं पकि दाूं व पर िर्ा दी है और
सोने िी िोई खिर नही ूं है ! किर उसने इश्तहार कनिािा कि मैं पूरी पहाड़ी िेचना चाहता हूं मय यूं त्रोूं िे ,खु दाई
िा सारा सामान साथ है ।

घर िे िोर्ोूं ने िहा, ि न खरीदे र्ा? सिमें खिर हो र्ई है कि वह पहाड़ किििुि खािी है , और उसमें
िाखोूं रुपए खराि हो र्ए हैं , अि ि न पार्ि होर्ा?

िेकिन उस आदमी ने िहा कि िोई न िोई हो भी सिता है ।

एि खरीददार कमि र्या। िेचनेवािे िो िेचते वक्त भी मन में हुआ कि उससे िह दें कि पार्िपन मत
िरो; क्ोूंकि मैं मर र्या हूं । िेकिन कहित भी न जुटा पाया िहने िी, क्ोूंकि अर्र वह चूि जाए, न खरीदे , तो
किर क्ा होर्ा? िेच कदया। िे चने िे िाद िहा कि आप भी अजीि पार्ि मािूम होते हैं ; हम िरिाद होिर िे च
रहे हैं ! पर उस आदमी ने िहा, कजूंदर्ी िा िोई भरोसा नही;ूं जहाूं ति तु मने खोदा है वहाूं ति सोना न
हो, िेकिन आर्े हो सिता है । और जहाूं तु मने नही ूं खोदा है , वहाूं नही ूं होर्ा, यह तो तु म भी नही ूं िह सिते ।
उसने िहा, यह तो मैं भी नही ूं िह सिता।

और आश्चयग —िभी—िभी ऐसे आश्चयग घटते हैं — पहिे कदन ही, कसिग एि िीट िी र्हराई पर सोने
िी खदान शु रू हो र्ई। वह आदमी कजसने पहिे खरीदी थी पहाड़ी, छाती पीटिर पहिे भी रोता रहा और किर
िाद में तो और भी ज्यादा छाती पीटिर रोया, क्ोूंकि पूरे पहाड़ पर सोना ही सोना था। वह उस आदमी से
कमिने भी र्या। और उसने िहा, दे खो भाग्य! उस आदमी ने िहा, भाग्य नही,ूं तु मने दाूं व पूरा न िर्ाया, तु म पूरा
खोदने िे पहिे ही ि ट र्ए। एि िीट और खोद िेते!

हमारी कजूंदर्ी में ऐसा रोज होता है । न मािूम कितने िोर् हैं कजन्ें मैं जानता हूं कि जो खोदते हैं
परमात्मा िो, िेकिन पूरा नही ूं खोदते , अधू रा खोदते हैं ; ऊपर—ऊपर खोदते हैं और ि टे जाते हैं । िई िार तो
इूं च भर पहिे से ि ट जाते हैं , िस इूं च भर िा िासिा रह जाता है और वे वापस ि टने िर्ते हैं । और िई िार
तो मुझे साि कदखाई पड़ता है कि यह आदमी वापस ि ट चिा, यह तो अि िरीि पहुूं चा था, अभी िात घट
जाती; यह तो वापस ि ट पड़ा!

तो अपने भीतर एि िात खयाि में िे िें कि आप िुछ भी िचा न रखें , अपना पूरा िर्ा दें । और
परमात्मा िो खरीदने चिे होूं तो हमारे पास िर्ाने िो ज्यादा है भी क्ा! उसमें भी िूंजूसी िर जाते हैं । िूंजूसी
नही ूं चिे र्ी। िम से िम परमात्मा िे दरवाजे पर िूंजूसोूं िे किए िोई जर्ह नही ूं। वहा पूरा ही िर्ाना पड़े र्ा।

नही,ूं ऐसा नही ूं है कि िहुत िुछ है हमारे पास िर्ाने िो। यह सवाि नही ूं है कि क्ा है , सवाि यह है
कि पूरा िर्ाया या नही ूं! क्ोूंकि पूरा िर्ाते ही हम उस किूंदु पर पहुूं च जाते हैं जहाूं ऊजाग िा कनवास है , और
जहाूं से ऊजाग उठनी शु रू होती है । असि में , क्ोूं पूरे िा जोर है ? जि हम अपनी पूरी ताित िर्ा दे ते हैं , तभी
उस ताित िो उठने िी जरूरत पड़ती है , जो ररजवाग यर है ; ति ति उसिी जरूरत नही ूं पड़ती। जि ति
हमारे पास ताित िची रहती है ति ति उससे ही िाम चिता है । तो जो ररजवग िोसे ज हैं हमारे भीतर, उनिी
जरूरत तो ति पड़ती है जि हमारे पास िोई ताित नही ूं होती। ति उनिी जरूरत पड़ती है । तो जि हम पूरी
ताित िर्ा दे ते हैं ति वह िेंद्र सकक्रय होता है । अि वहाूं से शक्तक्त िेने िी जरूरत आ जाती है । अन्यथा नही ूं
पड़ती जरूरत।

अि मैं आपसे द ड़ने िो िहूं आप द ड़े । िहूं पूरी ताित से द ड़े , आप पूरी ताित से द ड़े । आप


समझते हैं कि पूरी ताित से द ड़ रहे हैं , िेकिन आप पूरी ताित से नही ूं द ड़ रहे । िि आपिो किसी से
प्रकतयोकर्ता िरनी है , िाक्तिटीशन में द ड़ रहे हैं ,ति आप पाते हैं कि आपिी द ड़ िढ़ र्ई है । क्ा हुआ? यह
शक्तक्त िहाूं से आई? िि तो आप िहते थे, मैं पूरी ताित से द ड़ रहा हूं । आज प्रकतस्पधाग में आप ज्यादा द ड़
रहे हैं —पूरी ताित िर्ा रहे हैं ।

िेकिन यह भी पूरी ताित नही ूं है । िि एि आदमी आपिे पीछे िूंदूि िे िर िर् र्या है । अि आप
कजतनी ताित से द ड़ रहे हैं यह ताित से आप िभी भी नही ूं द ड़े थे। आपिो भी पता नही ूं था कि इतना मैं
द ड़ सिता हूं । यह ताित िहाूं से आ र्ई है ? यह भी ताित आपिे भीतर सोई पड़ी थी। िेकिन इतने से भी
िाम नही ूं होर्ा। जि िोई आदमी िूंदूि िेिर आपिे पीछे पड़ता है ति भी आप कजतना द ड़ते हैं , वह भी पूरा
द ड़ना नही ूं है । ध्यान में तो उसने भी ज्यादा दाूं व पर िर्ा दे ना पड़े र्ा। जहाूं ति, जहाूं ति आपिो हो, पूरा िर्ा
दे ना है । और कजस क्षण आप उस किूंदु पर पहुूं चेंर्े जहा आपिी पूरी ताित िर् र्ई,उसी क्षण आप पाएूं र्े कि
िोई दू सरी ताित से आपिा सूं िूंध हो र्या, िोई ताित आपिे भीतर से िानी शु रू हो र्ई।

कनकश्चत ही उसिे जार्ने िा पूरा अनु भव होर्ा। जै से िभी किजिी छु ई हो तो अनु भव हुआ होर्ा, वै सा
ही अनु भव होर्ा कि जैसे भीतर से , नीचे से , य न—िेंद्र से िोई शक्तक्त ऊपर िी तरि द ड़नी शु रू हो र्ई।
र्रम उििती हुई आर्, िेकिन शीति भी। जैसे िाूं टे चुभने िर्े चारोूं तरि, िेकिन िूि जैसी िोमि भी। और
िोई चीज ऊपर जाने िर्ी। और जि िोई चीज ऊपर जाती है तो िहुत िुछ होर्ा। उस सि में किसी भी किूं दु
पर आपिो रोिना नही ूं है , अपने िो पूरा छोड़ दे ना है , जो भी हो। जैसे िोई आदमी नदी में िहता है , ऐसा अपने
िो छोड़ दें ।

नये जन्म के जिए साहस और धैयओ

तो दू सरी िात—पहिा, अपने िो पूरा दाूं व पर िर्ा दे ना है —दू सरी िात, जि दाूं व पर िर् िर आपिे
भीतर िुछ होना शु रू हो जाए, तो आपिो पूरी तरह अपने िो छोड़ दे ना है —जस्ट फ्लोकटूं र्, अि जहाूं िे जाए
यह धारा, हम जाने िो राजी हैं । एि सीमा ति हमें पुिारना पड़ता है ; और जि शक्तक्त जार्ती है तो किर हमें
अपने िो छोड़ दे ना पड़ता है । िड़े हाथोूं ने हमें सम्हाि किया, अि हमें कचूंता िी जरूरत नही ूं है , अि हमें िह
जाना पड़े र्ा।

और तीसरी िात यह जो शक्तक्त िा उठना होर्ा भीतर, इसिे साथ िहुत िुछ घटनाएूं घट जाएूं र्ी तो
घिडाइएर्ा नही,ूं क्ोूंकि नये अनुभव घिडानेवािे होते हैं । िच्चा जि माूं िे पेट से जन्मता है तो िहुत घिड़ा
जाता है । मनोवैज्ञाकनि तो िहते हैं कि वह टर ामैकटि एक्सपीररएूं स है , उससे किर िभी मुक्त ही नही ूं हो पाता।
नये िी घिड़ाहट िच्चे में माूं िे पेट से जन्म िे साथ ही शु रू हो जाती है । क्ोूंकि माूं िे पेट में वह किििुि
सु रकक्षत दु कनया में था न महीने ति—न िोई कचूंता, न िोई किक्र,न श्वास िेनी, न खाना खाना, न रोना, न
र्ाना, न दु कनया, न िुछ— एिदम कवश्राम में था। माूं िे पेट िे िाहर कनिि िर एिदम नई दु कनया आती है ।
तो पहिा धक्का जीवन िा और घिड़ाहट वही ूं से पिड़ जाती है ।

इसकिए सारे िोर् नई चीज से डरे रहते हैं ; पुराने िो पिड़ने िा मन रहता है , नये से डरे रहते हैं । वह
हमारे िचपन िा पहिा अनुभव है कि नये ने िड़ी मुक्तिि में डाि कदया; वह अच्छा था माूं िा पेट। इसकिए
हमने िहुत से इूं तजाम ऐसे किए हैं जो असि में माूं िे पेट जैसे ही हैं —हमारी र्कियाूं , हमारे सोिे, हमारी
िारें , हमारे िमरे , वे हमने सि माूं िे र्भग िी शक्ल में ढािे हैं । उतने ही आरामदायि िनाने िी िोकशश िरते
हैं , िेकिन वह िन नही ूं पाता।

माूं िे पेट से जो पहिा अनुभव होता है वह नये िी घिड़ाहट िा। उससे भी िड़ा नया अनुभव है
यह, क्ोूंकि माूं िे पेट से कसिग शरीर िे किए नया अनुभव होता है , यहाूं तो आत्मा िे ति पर नया अनुभव
होर्ा। इसकिए वह किििुि ही नया जन्म है । इसकिए उस तरह िे िोर्ोूं िो हम ब्राह्मण िहते थे। ब्राह्मण उसे
िहते थे कजसिा दू सरा जन्म हो र्या—ट्वाइस िॉनग। इसकिए उसे कद्वज िहते थे —दु िारा कजसिा जन्म हो र्या।

तो जि वह शक्तक्त पूरी तरह उठे र्ी तो एि दू सरा ही जन्म होर्ा। उस जन्म में आप दोनोूं हैं —माूं भी हैं
और िेटे भी हैं ;आप अिेिे ही दोनोूं हैं । इसकिए प्रसव िी पीडा भी होर्ी और नये िी, असु रकक्षत िी अनुभूकत
भी होर्ी। इसकिए िहुत घिडानेवािा, डरानेवािा अनु भव हो सिता है । माूं िो जैसे प्रसव िी पीड़ा होती
है , उतनी पीड़ा भी आपिो होर्ी, क्ोूंकि यहाूं माूं और िेटे दोनोूं ही आप हैं । यहाूं िोई दू सरी माूं नही ूं है , और
यहाूं िोई दू सरा िेटा नही ूं है , आपिा ही जन्म हो रहा है और आपसे ही हो रहा है । इसकिए प्रसव िी िहुत तीव्र
वेदना भी हो सिती है ।

अि मुझे कितने ही िोर्ोूं ने आिर िहा कि िोई दहाड़ मारिर रोता है , कचल्राता है , आप रोिते क्ोूं
नही?ूं

रोएर्ा, कचल्राएर्ा। उसे रोने दें , कचल्राने दें । उसिे भीतर जो हो रहा है , वह वही जानता है । अि एि
माूं रो रही हो और उसिो िच्चा पैदा हो रहा हो, और कजस स्त्री िो िभी िच्चा पैदा न हुआ हो, वह जािर
उसिो िहे , क्ोूं किजूि परे शान होती हो? क्ोूं रोती हो? क्ोूं कचल्राती हो? िच्चा हो रहा है तो होने दो, रोने िी
क्ा जरूरत है ?

ठीि है , कजसिो िच्चा नही ूं हुआ वह िह सिती है , किििुि िह सिती है । पुरुषोूं िो िभी पता नही ूं
चि सिता न कि िैसे , जन्म में क्ा तििीि स्त्री िो झेिनी पड़ती होर्ी! सोच भी नही ूं सिते , िोई उपाय भी
नही ूं है कि िैसे उसिो पिड़े , िैसे उसिो सोचें कि क्ा होता होर्ा।

साधना के अनभिोां की गोपनीयता

िेकिन ध्यान में तो स्त्री और पुरुष सि िरािर हैं —स्ब माूं िन जाते हैं एि अथग में , क्ोूंकि नया उनिे
भीतर जन्म होर्ा। तो पीड़ा िो भी रोिने िी जरूरत नही ूं है , रोने िो रोिने िी जरूरत नही ूं है ; िोई कर्र पडे
और िोटने िर्े और कचल्राने िर्े ,तो रोिने िी जरूरत नही ूं है । जो कजसिो हो रहा हो उसे पूरा होने दे ना
है ; िह जाना है , उसे रोिना नही ूं है ।
और भीतर िहुत तरह िे अनुभव हो सिते हैं —किसी िो िर् सिता है कि जमीन से ऊपर उठ र्ए
हैं , किसी िो िर् सिता है कि िहुत िड़े हो र्ए हैं , किसी िो िर् सिता है कि िहुत छोटे हो र्ए हैं । नये
अनुभव िहुत तरह िे हो सिते हैं , मैं उन सििे नाम नही ूं कर्नाऊूंर्ा। पर िहुत िुछ हो सिता है । िुछ भी
नया हो— और हर एि िो अिर् हो सिता है —तो उसमें िोई कचूंता नही ूं िे र्ा, भयभीत नही ूं होर्ा। और अर्र
किसी िो िहना भी हो तो मु झे आिर दोपहर में िह दे र्ा। आपस में उसिी िात मत िररएर्ा। न िरने िा
िारण है । िारण यही है कि जो आपिो हो रहा है , जरूरी नही ूं है कि दू सरे िो भी हो। और जि दू सरे िो नही ूं
हो रहा होर्ा तो या तो वह हूं सेर्ा, वह िहे र्ा—क्ा पार्िपन िी िात है ! मुझे तो ऐसा नही ूं हो रहा है । और हर
आदमी िे किए खु द ही आदमी मापदूं ड होता है । ठीि यानी वह, और र्ित यानी दू सरा। तो वह या तो आप पर
हूं सेर्ा। नही ूं हूं सेर्ा तो िहुत अकवश्वासपूणग ढूं र् से िहे र्ा कि भई हमें तो नही ूं हो रहा है ।

यह अनुभूकत इतनी कनजी और वै यक्तक्ति है कि इसे दू सरे से िात न िरें तो अच्छा है । पकत भी पत्नी से न
िहे , क्ोूंकि इस मामिे में िोई कनिट नही ूं है । और इस मामिे में िोई एि—दू सरे िो इतनी आसानी से नही ूं
समझ सिता। इस सूं िूंध में समझ िहुत मुक्तिि है । इसकिए िोई भी आपिो पार्ि िह दे र्ा। िोर् जीसस
िो भी पार्ि िहें र्े और महावीर िो भी पार्ि िहें र्े। कजस कदन महावीर नग्न खड़े हो र्ए होूंर्े रास्तोूं पर, िोर्ोूं
ने पार्ि िहा होर्ा। अि महावीर जानते हैं कि नग्न होने िा उनिे किए क्ा मतिि है । वे पार्ि हो जाएूं र्े। तो
आप किसी और से न िहें तो अच्छा।

किर जैसे ही आप किसी से िुछ िहते हैं तो इतनी समझदारी तो नही ूं है कि दू सरा चुप रह जाए, िुछ
न िुछ तो िहे र्ा ही। और वह जो िुछ भी िहे र्ा, वह आपिी अनु भूकत में िाधि हो सिता है । उसिे सजेशूंस
िाम िर सिते हैं । वह आपिो िुछ भी िह दे तो नई अनुभूकत में िड़ी िाधा पड़ जाती है ।

इसकिए मैं यह च थी िात िहना चाहता हूं कि जो भी आपिो हो, उसिी आपस में िात ितई नही ूं
िरनी है । इसीकिए मैं यहाूं हूं कि आप मु झसे सीधे आिर िात िर िेंर्े।

ध्यान में प्रिेश के पूिओ

सु िह जि हम ध्यान िे किए यहाूं आएूं र्े , तो िुछ भी किकिड, िुछ भी तरि िे िर आना है , ठोस िोई
चीज भोजन में सु िह न िे िें। िोई नाश्ता न िरें , चाय—दू ध िुछ भी तरि िे िें। जो किना चाय—दू ध िे आ
सिते होूं, और अच्छा। क्ोूंकि उतनी ही सरिता से , शीघ्रता से िाम हो सिेर्ा।

साढ़े सात िजे आने िा मतिि है कि पाूं च कमनट पहिे यहाूं आ जाएूं । तो साढ़े सात से साढ़े आठ ति
तो आपिी िुछ भी िात होर्ी िरने िी तो िर िेंर्े। इसकिए मैंने यह िात िरने िा रखा है , क्ोूंकि प्रवचन
िहुत इिसग नि है , अवैयक्तक्ति है । उसमें किसी से नही ूं िोिना पड़ता, हवाओूं से िोिना पड़ता है । तो आप पास
िैठेंर्े मेरे, सु िह; दू र नही ूं िैठेंर्े , पास ही िैठेंर्े। और िुछ भी, आज जो मैंने िहा है , उस सूं िूंध में, िुछ और
पूछना हो तो पूछ िेंर्े। वह घूंटे भर सु िह हम िात िरें र्े। किर साढ़े आठ से साढे न ध्यान पर िैठेंर्े।

तो सु िह एि तो िोई ठोस चीज िेिर न आएूं । दू सरा, भूखे आ सिें किििुि तो और अच्छा। िे किन
जिरदस्ती भूखे भी न आएूं । किसी िो न आना अच्छा िर्ता हो तो िुछ िेिर आए। िेकिन चाय या दू ध, ऐसा
िुछ िेिर आए।
वस्त्र ढीिे से ढीिे पहनिर आएूं । स्नान िरिे तो आना ही है । किना स्नान किए िोई न आए। स्नान तो
िरिे आएूं ही। और वस्त्र ढीिे से ढीिे पहनिर आएूं , कजतने ढीिे वस्त्र होूं, शरीर पर िही ूं िूंधे न होूं। तो जो भी
िाूं धनेवािे वस्त्र होूं, िम पहनें। कजतना ढीिा वस्त्र पहन सिें उतना अच्छा। िमर पर तो िम से िम िाूं धने िा
दिाव हो। वह आप ध्यान रखिर आएूं । और जि यहाूं िैठें तो ढीिा िरिे िैठें।

शरीर िे भीतर हमारे वस्त्रोूं ने भी िहुत उपद्रव किया हुआ है , िहुत तरह िी िाधाएूं उन्ोूंने खड़ी िी
हुई हैं । और अर्र िोई ऊजाग उठनी शु रू हो तो अनेि तिोूं पर रुिावट पड़नी शु रू हो जाती है ।

मौन का महत्व

यहाूं आने िे आधा घूंटे पहिे से ही चुप हो जाएूं । िुछ कमत्र जो तीनोूं कदन म न रख सिें , िहुत अच्छा
है , वे किििुि ही चुप हो जाएूं । और िोई भी चुप होता हो, म न रखता हो, तो दू सरे िोर् उसे िाधा न
दें , सहयोर्ी िनें। कजतने िोर् म न रहें ,उतना अच्छा। िोई तीन कदन पूरा म न रखे , सिसे िेहतर। उससे िेहतर
िुछ भी नही ूं होर्ा। अर्र इतना न िर सिते होूं तो िम से िम िोिें —इतना िम, कजतना जरूरी हो—
टे िीग्रैकिि। जैसे तारघर में टे िीग्राम िरने जाते हैं तो दे ख िेते हैं कि अि दस अक्षर से ज्यादा नही ूं। अि तो
आठ से भी ज्यादा नही ूं। तो एि दो अक्षर और िाट दे ते हैं , आठ पर किठा दे ते हैं । तो टे िीग्रैकिि! खयाि रखें
कि एि—एि शब्द िी िीमत चुिानी पड़ रही है । इसकिए एि—एि शब्द िहुत महूं र्ा है ; सच में महूं र्ा है ।
इसकिए िम से िम शब्द िा उपयोर् िरें ; जो किििुि म न न रह सिें वे िम से िम शब्द िा उपयोर् िरें ।

और इूं कद्रयोूं िा भी िम से िम उपयोर् िरें । जै से आूं ख िा िम उपयोर् िरें , नीचे दे खें। सार्र िो
दे खें, आिाश िो दे खें, िोर्ोूं िो िम दे खें। क्ोूंकि हमारे मन में सारे सूं िूंध, एसोकसएशस िोर्ोूं िे चेहरोूं से होते
हैं —वृक्षोूं, िादिोूं, समुद्रोूं से नही ूं। वहाूं दे खें, वहाूं से िोई कवचार नही ूं उठता। िोर्ोूं िे चेहरे तत्काि कवचार
उठाना शु रू िर दे ते हैं । नीचे दे खें, चार िीट पर नजर रखें — चिते , घूमते , किरते । आधी आूं ख खुिी रहे , नाि
िा अर्िा कहस्सा कदखाई पड़े , इतना दे खें। और दू सरोूं िो भी सहयोर् दें कि िोर् िम दे खें , िम सु नें।
रे कडयो, टर ाूं कजस्टर सि िूंद िरिे रख दें , उनिा िोई उपयोर् न िरें । अखिार किििुि िैंपस में मत आने दें ।

कजतना ज्यादा से ज्यादा इूं कद्रयोूं िो कवश्राम दें , उतना शु भ है , उतनी शक्तक्त इिट्ठी होर्ी; और उतनी
शक्तक्त ध्यान में िर्ाई जा सिेर्ी। अन्यथा हम एग्झास्ट हो जाते हैं । हम िरीि—िरीि एग्झास्ट हुए िोर् हैं , जो
चुि र्ए हैं किििुि, चिी हुई िारतू स जैसे हो र्ए हैं । िुछ िचता नही ,ूं च िीस घूंटे में सि खचग िर डािते हैं ।
रात भर में सोिर थोड़ा—िहुत िचता है , तो सु िह उठिर ही अखिार पढना, रे कडयो, और शु रू हो र्या उसे
खचग िरना। िूंजरवेशन ऑि एनजी िा हमें िोई खयाि ही नही ूं है कि कितनी शक्तक्त िचाई जा सिती है ।
और ध्यान में िड़ी शक्तक्त िर्ानी पड़े र्ी। अर्र आप िचाएूं र्े नही ूं तो आप थि जाएूं र्े।

शब्धि का सां चय ध्यान में सहयोगी

िुछ िोर् मुझे िहते हैं कि घूंटे भर ध्यान िरने िे िाद हम थि जाते हैं । उसिे थिने िा िारण ध्यान
नही ूं है , उसिे थिने िा िारण यह है कि आप एग्झास्ट प्याइूं ट पर जीते हैं , सि खचग किए रहते हैं । हमें खयाि
में नही ूं है कि जि आप आूं ख उठािर भी दे खते हैं , ति भी शक्तक्त खचग होती है , जि आप िान उठािर सु नते
हैं , ति भी शक्तक्त खचग होती है ; जि आप भीतर कवचार िरते हैं , ति भी शक्तक्त खचग होती है , जि िोिते हैं, ति भी
शक्तक्त खचग होती है । हम जो भी िर रहे हैं उसमें शक्तक्त खचग हो रही है । रात में इसीकिए थोड़ी सी िच जाती है
कि िािी िाम िूंद हो र्ए, इसकिए थोड़ी िच जाती है । सपने वर्ैरह में कजतना खचग िरते हैं वह दू सरी िात, वैसे
थोड़ी—िहुत िच जाती है । इसीकिए सु िह ताजा िर्ता है ।

तो शक्तक्त िो तीन कदन िचाएूं , ताकि पूरी शक्तक्त िर्ाई जा सिे। दोपहर िे —ये सारी सू चनाएूं इसकिए
दे दे रहा हूं ताकि किर तीन कदन मु झे आपिो िोई सू चना न दे नी पड़े —दोपहर जो घूंटे भर िा म न है , उसमें
िोई िात नही ूं होर्ी। िातचीत से आपसे िात िरता हूं उस घूंटे भर म न से ही िात िरू
ूं र्ा—तीन से चार। तो
तीन िजे सारे िोर् यहाूं उपक्तस्थत हो जाएूं । तीन िे िाद िोई न आए। क्ोूंकि उसिा आना किर नुिसान
पहुूं चाता है । यहाूं मैं िैठा रहूं र्ा। तीन से चार आप क्ा िरें र्े ?

दो िाम तीन से चार आप खयाि में रख िें। एि तो सारे िोर् ऐसी जर्ह िै ठें जहाूं से मैं कदखाई पड़ता
रहूं । दे खना नही ूं है मुझे, िेकिन कदखाई पड़ता रहूं ऐसी जर्ह िैठ जाएूं । किर आूं ख िूंद िर िेनी है । खोिना
चाहें , खोि रख सिते हैं; िूंद िरना चाहें , िूंद रख सिते हैं । िूंद रखें , अच्छा।

मौन सां िाद का रहस्य

और एि घूंटे चुपचाप किसी अनजान प्रतीक्षा में िै ठना है —वेकटूं र् िॉर कद अननोन। िुछ पता नही ूं कि
िोई आनेवािा है ,िेकिन िोई आने वािा है ; िुछ पता नही ूं कि िुछ सु नाई पड़े र्ा, िेकिन िुछ सु नाई
पड़े र्ा; िुछ पता नही ूं कि िोई कदखाई पड़े र्ा,िेकिन िोई कदखाई पड़े र्ा। ऐसा चुपचाप जस्ट अवेकटूं र्! िोई
अनजान, अपररकचत अकतकथ िो, कजससे िभी कमिे नही,ूं दे खा नही,ूं सु ना नही,ूं उसिी प्रतीक्षा में घूंटे भर िैठे रहें ।
िेटना हो, िेट जाएूं ; िैठना हो, िैठे रहें । उस एि घूंटे में कसिग ररसे किकवटी हो जाएूं , आप एि ग्रहण
िरनेवािे , पैकसव व्यक्तक्त हैं , जो िुछ होर्ा, आ जाए! िस िेकिन अिटग होिर प्रतीक्षा िरते रहें । उस घूंटे भर में
जो म न से मुझे आपसे िहना है वह मैं िहने िी िोकशश िरू
ूं । शब्दोूं से समझ में न आ सिे तो शायद
कनःशब्द में समझ आ जाए।

राकत्र िो किर घूंटे भर िुछ पूछना होर्ा वह िात हो जाएर्ी। किर घूंटे भर राकत्र हम ध्यान िरें र्े। ऐसा
तीन कदन में न िैठि। और िि सु िह से ही आपिो पूरी ताित िर्ा दे नी है , ताकि न वी ूं िैठि ति सच में पूरी
ताित िर् जाए।

िािी समय में आप क्ा िरें र्े ?

म न रहना है , िात नही ूं िरनी, तो िड़ा उपद्रव तो िट जाता है । समुद्र िा तट है , उसिे पास जािर
िेट जाएूं , िहरोूं िो सु नें। और रात भी अच्छा होर्ा कि जो िोर् भी सो सिें , चुपचाप अपने किस्तर िो िेिर
समुद्र—तट चिे जाएूं ; वहाूं सो जाएूं । सार्र िे पास सोए; रे त में सो जाएूं ; वृक्षोूं में सो जाएूं । अिेिे रहें , कमत्र और
मूंडकियाूं न िनाएूं । नही ूं तो यहाूं भी मूंडकियाूं िन जाएूं र्ी, दोूं—चार िोर् इिट्ठे घूमने िर्ें र्े, दो—चार कमत्र िन
जाएूं र्े। अिर् रहें , अिेिे रहें , आप अिेिे हैं तीन कदन यहाूं , क्ोूंकि परमात्मा से कमिना हो तो िोई साथ नही ूं
जा सिता, किििुि अिेिे ही, िोनिी। आपिो अिेिे ही जाना पड़े । तो अिेिे रहें —ज्यादा से ज्यादा अिेिे।

स्वीकार से शाां जत
और ध्यान रखें , अूंकतम सू चना. किसी तरह िी कशिायत न िरें । तीन कदन कशिायत छोड़ दें । खाना
ठीि न कमिे , न कमिे ; रात मच्छर िाट जाएूं , िाट जाएूं । तीन कदन जो भी हो, उसिी टोटि एक्से िकिकिटी।
मच्छरोूं िो तो थोड़ा—िहुत िायदा होर्ा, आपिो िहुत हो सिता है । भोजन थोड़ा अच्छा नही ूं कमिेर्ा तो
थोड़ा—िहुत नुिसान शरीर िो होर्ा, िेकिन आपिो उसिी कशिायत से िहुत नु िसान हो सिता है । उसिे
िारण हैं । क्ोूंकि कशिायत िरनेवािा मन शाूं त नही ूं हो पाता। कशिायतें िहुत छोटी होती हैं , जो हम र्वाूं दे ते
हैं वह िहुत ज्यादा होता है । कशिायत ही मत िरें , तीन कदन िे किए मन में साि िर िें कि िोई कशिायत
नही—
ूं जो है , वह है ; जैसा है , वैसा है । उसे किििुि स्वीिार िर िें।

ये तीन कदन अदभुत हो जाएूं र्े। अर्र तीन कदन कशिायत िे िाहर रहे आप और सि स्वीिार िर किया
जैसा है , और उसमें ही आनूंकदत हुए, तो आप तीन कदन िे िाद िभी कशिायत न िर सिेंर्े। क्ोूंकि आपिो
पता चिेर्ा कि किना कशिायत िे िैसी शाूं कत, िैसा आनूंद!

तीन कदन सि छोड़ दें ! और किर जो भी पूछना हो, वह आप िि सु िह से पूछेंर्े। ध्यान रखें र्े पूछते
समय कि सििे िाम िी िात हो, ऐसी िोई िात पूछेंर्े। और जो भी हृदय में हो, मन में हो और जरूरी
िर्े , वह पूछ िे सिते हैं ।

खािी झोिी पसार

मैं किसकिए आया हूं वह मैंने आपसे िहा। मुझे पता नही,ूं आप किसकिए आए हैं । िेकिन िि सु िह मैं
इसी आशा से आपिो कमिूूंर्ा कि कजस किए मैं आया हूं उस किए आप भी आए हैं । वैसे हमारी आदतें किर्ड़ र्ई
हैं , अर्र िुद्ध भी हमारे द्वार पर खड़े होूं तो हमारा मन होता है कि आर्े जाओ! हम सोचते हैं , सभी माूं र्ने आते
हैं । इसकिए हम भूि जाते हैं , जि िोई दे ने आता है तो हम उससे भी िहते हैं , आर्े जाओ! और ति िडी भू ि
हो जाती है , िड़ी भू ि हो जाती है । ऐसी भू ि नही ूं होर्ी,ऐसी आशा िरता हूं ।

तीन कदन में यहाूं िी पूरी हवा िो ऐसा िरें कि िुछ हो सिे। हो सिता है । और प्रत्येि व्यक्तक्त पर
कनभगर है यहाूं िी हवा, यहाूं िे वातावरण िो िनाना। तीन कदन में यह पूरा िा पूरा सरू—वन चाब्दग हो सिता
है —िहुत अनजानी शक्तक्तयोूं से ,अनजानी ऊजाग ओूं से । ये सारे वृक्ष, ये सारे रे त िे िण, ये हवाएूं , यह सार्र—यह
सि िा सि एि नई प्राण—ऊजाग से भर सिता है ; हम सि उसे पैदा िरने में सहयोर्ी हो सिते हैं । िोई
उसमें िाधा न िने , यह ध्यान रखे । िोई दशग ि न रहे यहाूं । िोई दशग ि िी तरह िै ठा न रहे । और किसी तरह
िा सूं िोच, भय, िोई क्ा िहे र्ा, िोई क्ा सोचे र्ा, सि छोड़ दें ! तो ही उस ति पहुूं चना हो सिता है ।

ििीर िी तरह आपिो न िहना पड़े । आप िह सिें कि नही,ूं हम डरे नही ूं और िूद र्ए।

मेरी बातें इतनी शाां जत और प्रेम से सनी ,ां उससे अनगृहीत हां । और आप सबके भीतर बैठे
परमात्मा को प्रणाम करता हां मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।
हमारी रात की बैठक पू री हुई।

प्रिचन 2 - बांद समानी समांद में

(कां डजिनी—योग साधना जशजिर)

नारगोि

मेरे जप्रय आत्मन्!

ऊजाग िा कवस्तार है जर्त और ऊजाग िा सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदाथग िी भाूंकत
कदखाई पड़ता है , जो पत्थर िी भाूं कत भी कदखाई पड़ता है , वह भी ऊजाग , शक्तक्त है । जो हमें जीवन िी भाूं कत
कदखाई पड़ता है , जो कवचार िी भाूं कत अनु भव होता है , जो चेतना िी भाूं कत प्रतीत होता है , वह भी उसी
ऊजाग , उसी शक्तक्त िा रूपाूं तरण है । सारा जर्त—चाहे सार्र िी िहरें , और चाहे सरू िे वृक्ष, और चाहे रे त िे
िण, और चाहे आिाश िे तारे , और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सि एि ही शक्तक्त िा अनूंत—अनूंत
रूपोूं में प्रर्टन है ।

ऊजाओ मय जिराट जीिन:

हम िहाूं शु रू होते हैं और िहाूं समाप्त होते हैं , िहना मु क्तिि है ।

हमारा शरीर भी िहाूं समाप्त होता है , यह भी िहना मुक्तिि है । कजस शरीर िो हम अपनी सीमा मान
िेते हैं , वह भी हमारे शरीर िी सीमा नही ूं है ।

दस िरोड़ मीि दू र सू रज है , अर्र ठूं डा हो जाए, तो हम यहाूं अभी ठूं डे हो जाएूं र्े। इसिा मतिि यह
हुआ कि हमारे होने में सू रज पूरे समय म जूद है , और हमारे शरीर िा कहस्सा है ; सू रज ठूं डा हुआ कि हम ठूं डे
हुए; सू रज िी र्मी हमारे शरीर िी र्मी है ।

चारोूं तरि िैिी हुई हवाओूं िा सार्र है , वहाूं से प्राण हमें उपिि होता है । वह न उपिि हो, हम
अभी मृत हो जाएूं । तो जो श्वास हम िे रहे हैं , वह श्वास हमें भीतर से भी जोड़े है , हमें िाहर से भी जोड़े है ।

िहाूं हमारे शरीर िा अूंत है ?


यकद पूरी खोज िरें तो पूरा जर्त ही हमारा शरीर है । अनूंत , असीम हमारा शरीर है । और ठीि से खोज
िरें तो सि जर्ह हमारे जीवन िा िेंद्र है , और सि जर्ह कवस्तार है । िेकिन इसिी प्रतीकत और इसिे अनुभव
िे किए हमें स्वयूं भी अत्यूंत जीवूंत ऊजाग , किकवूं र् एनजी िन जाना जरूरी है ।

बांद समानी समांद में:

कजसे मैं ध्यान िह रहा हूं वह हमारे भीतर ठहर र्ई, अवरुद्ध हो र्ई धाराओूं िो सि भाूं कत मुक्त िर
दे ने िा नाम है । जि आप ध्यान में प्रकवष्ट होूंर्े , तो आपिे भीतर जो ऊजाग कछपी है , जो एनजी कछपी है , वह इतने
जोर से जार्े कि िाहर िी ऊजाग से उसिा सूं िूंध स्थाकपत हो जाए। और जैसे ही िाहर िी शक्तक्तयोूं से उसिा
सूं िूंध स्थाकपत होता है , वैसे ही हम एि छोटे से पिे रह जाते हैं अनूंत हवाओूं में िूंपते हुए; हमारा अपना होना
खो जाता है ; हम कवराट िे साथ एि हो जाते हैं ।

उस कवराट िे साथ एि होने पर क्ा जाना जाता है , अि ति मनुष्य ने िहने िी िहुत िोकशश िी
है , िेकिन नही ूं िहा जा सिा। ििीर िहते हैं , मैं खोजने र्या था। खोजा िहुत, खोजते —खोजते मैं खु द ही खो
र्या। और कमिा वह जरूर, िेकिन ति कमिा जि मैं खो र्या। और इसकिए अि ि न िताए कि क्ा
कमिा? िैसे िताए?

पहिी िार जि ििीर िो अनुभूकत हुई तो उन्ोूंने जो िहा था, किर पीछे उसे िदि कदया। पहिी िार
जि उन्ें अनुभव हुआ तो उन्ोूंने िहा, ऐसा िर्ा कि जैसे िूूंद सार्र में कर्र र्ई है । उनिे वचन हैं

हे रत—हे रत हे सखी, रह्या कबीर जहराई।

बांद समानी समांद में, सो कत हे री जाई।।

खोजते —खोजते ििीर खो र्या, िूूंद सार्र में कर्र र्ई, अि उसे िैसे वापस ि टाएूं ?

समांद समाना बांद में:

िेकिन किर िाद में उन्ोूंने िदि कदया। और िदिाहट िड़ी मूल्यवान है । िाद में उन्ोूंने िहा कि
नही—
ूं नही,ूं िुछ र्िती हो र्ई; िूूंद समुद्र में नही ूं कर्री, समुद्र ही िूूंद में कर्र र्या। और िूूंद समुद्र में कर्री हो तो
वापस भी ि टा िे िोई, िेकिन अर्र समुद्र ही िूूं द में कर्रा हो ति तो िड़ी िकठनाई है । और िूूंद अर्र समुद्र में
कर्रे तो िूूंद िुछ िता भी सिे , िेकिन अर्र िूूं द में ही समुद्र कर्रे ति तो िहुत िकठनाई है । तो िाद में उन्ोूंने
िहा

हे रत—हे रत हे सखी, रह्या कबीर जहराई।

समांद समाना बांद में, सो कत हे री जाई।।

भूि हो र्ई थी पहिी दिा कि िहा कि िूूंद कर्र र्ई सार्र में।
ऊजाओ के सागर से जमिन:

और जि हम ऊजाग िे स्पूं दन मात्र रह जाते हैं , ति ऐसा नही ूं होता कि हम सार्र में कर्रते हैं , जि हम
िूंपते हुए जीवूंत स्पूं दन मात्र रह जाते हैं , तो अनूंत ऊजाग िा सार्र हममें कर्र पड़ता है । कनकश्चत ही, किर िहना
मुक्तिि है कि क्ा होता है । िेकिन इसिा यह अथग नही ूं कि जो होता है वह हमें पता नही ूं चिता। ध्यान
रहे , िहने और पता चिने में सदा सामूंजस्य नही ूं है । जो हम जान पाते हैं , वह िह नही ूं पाते । जानने िी क्षमता
असीम है और शब्दोूं िी क्षमता िहुत सीकमत है । िड़े अनु भव दू र,छोटे अनुभव भी हम नही ूं िह पाते । अर्र मेरे
कसर में ददग है , तो वह भी मैं नही ूं िह पाता। और अर्र मेरे हृदय में प्रेम िी पीड़ा है , तो वह भी नही ूं िह पाता
हूं । पर ये तो िड़े छोटे अनुभव हैं । और जि परमात्मा हम पर कर्र पड़ता है , ति जो होता है उसे तो िहना
किििुि ही िकठन है । िेकिन जान हम जरूर पाते हैं ।

पर उस जानने िे किए हमें सि भाूं कत शक्तक्त िा एि स्पूं दन मात्र रह जाना जरूरी है । जैसे एि
आधी, एि तू िान, ऐसा शक्तक्त िा एि उििता हुआ झरना भर हम हो जाएूं । हम इतने जोर से स्पूं कदत होूं—
हमारा रोआूं —रोआूं , हृदय िी धड़िन— धड़िन, श्वास—श्वास उसिी प्यास, उसिी प्राथगना, उसिी प्रतीक्षा से
इस भाूं कत भर जाए कि हम प्यास ही रह जाएूं , प्रतीक्षा ही रह जाएूं ; हमारा होना ही कमट जाए। उस क्षण में ही
उससे कमिन है । और वह कमिन िही ूं िाहर घकटत नही ूं होता। जैसा मैंने रात िहा, वह कमिन हमारे भीतर ही
घकटत होता है । हमारे भीतर ही सोए हुए िेंद्र हैं । हमारे सोए िेंद्र से ही शक्तक्त उठे र्ी और ऊपर िैि जाएर्ी।

एि िीज पड़ा है । किर एि िूि क्तखिता है । िूि और िीज िो जोडि् ने िे किए वृ क्ष िो तना िनाना
पड़ता है , शाखाएूं िैिानी पड़ती हैं । िूि कछपा था िीज में ही, िही ूं िाहर से नही ूं आता। िेकिन प्रिट होने िे
किए िीज और िूि ति िे िीच में जोड़ने वािा एि तना चाकहए। वह तना भी िीज से कनििेर्ा, वह िूि भी
िीज से कनििेर्ा।

हमारे भीतर भी िीज—ऊजाग , सीड—िोसग पड़ी हुई है । उठे र्ी। तने िी जरूरत है । वह तना भी हमारे
भीतर उपिि है । कजसे हम रीढ़ िी तरह जानते हैं िाहर से , ठीि उसिे कनिट ही वह यात्रा—पथ है जहाूं से
िीज—ऊजाग उठे र्ी और िूि ति पहुूं च जाएर्ी। वह िूि िहुत नामोूं से पुिारा र्या है । हजार पूंखुकड़योूं वािे
िमि िी तरह कजन्ें उसिा अनुभव हुआ है , उन्ोूंने िहा है , हजार पूंखुकड़योूं वािे िमि िी तरह। जैसे
हजार पूंखुकड़योूं वािा िमि क्तखि जाए, ऐसा हमारे मक्तस्तष्क में िुछ क्तखिता है ,िुछ फ्लावर होता है । िेकिन
उसिे क्तखिने िे किए नीचे से शक्तक्त िा ऊपर ति पहुूं च जाना जरूरी है ।

शब्धि जागरण का साहसपूिओक स्वीकार:

और जि यह शक्तक्त ऊपर िी तरि उठना शु रू होर्ी, तो जैसे भूिूंप आ जाएर्ा, जैसे अथगिेक्क हो
र्या हो, ऐसा पूरा व्यक्तक्तत्व िैप उठे र्ा। उस िूंपन िो रोिना नही ूं है , उस िूंपन में सहयोर्ी होना
है , िोआपरे ट िरना है । साधारणत: हम रोिना चाहें र्े। अि मुझे िई िोर् आिर िहते हैं कि डर िर्ता है कि
पता नही ूं क्ा हो जाए!
अर्र डरें र्े तो र्कत न हो पाएर्ी। भय से ज्यादा अधाकमगि और िोई वृकि नही ूं है । भय से िड़ा और
िोई पाप नही ूं है ।कियर जो है , शायद वह सिसे र्हरा है । नीचे रखने में हमें , सिसे िड़ा पत्थर वही है । और भय
िड़े अजीि हैं , और िड़े क्षुद्र हैं । िोई मुझे आिर िहता है कि ऐसा िर्ता है पास—पड़ोस िे िै ठे िोर् क्ा
िहें र्े कि यह मुझे क्ा हो रहा है !

पास—पड़ोस िे िोर्ोूं िा भय हमें परमात्मा से रोि िे सिता है । कशष्ट और सभ्य मनुष्य ने पूरी तरह
हूं सना िूंद िर कदया, पूरी तरह रोना िूं द िर कदया; ऐसी िोई वृ कि, ऐसा िोई भाव नही ूं कजसमें वह पू रा डूिे। वह
हर चीज िे िाहर खड़ा रह जाता है । कत्रशूं िु िी तरह िटिा रह जाता है । हूं सते हैं तो हम डरे हुए, रोते हैं तो
हम डरे हुए। पुरुषोूं ने तो जैसे रोना छोड़ ही कदया। उनिो खयाि ही नही ूं है कि रोना भी िुछ आयाम है , वह भी
िोई कदशा है ।

हमारे खयाि में नही ूं है कि जो नही ूं रो सिता, उस व्यक्तक्तत्व में िुछ िुकनयादी िमी हो र्ई; उस
व्यक्तक्तत्व िा िोई एि कहस्सा सदा िे किए िुूंकठत हो र्या; और वह कहस्सा सदा पत्थर िे िोझ िी तरह उसिे
ऊपर अटिा रहे र्ा।

कजन्ें ऊजाग िे जर्त में प्रवेश िरना है , उस सु प्रीम एनजी िी यात्रा िरनी है , उन्ें सि भय छोड़ दे ने
पड़ें र्े। और सरि होिर, अर्र शरीर िूंपता हो, िूंकपत होता हो, कर्रता हो, नाचने िर्ता हो........

आां तररक रूपाां तरण की ध्यान—प्रजक्या : योगजिद्या का स्रोत:

यह जानिर आपिो आश्चयग होर्ा, िेकिन जान िे ना जरूरी है कि कजतने भी योर्ासन हैं , वे सि ध्यान
िी क्तस्थकतयोूं में आिक्तस्भि रूप से ही उपिि हुए हैं । उन्ें किसी ने िैठिर, सोचिर कनकमगत नही ूं किया। उन्ें
किसी ने िै ठिर तै यार नही ूं किया है । वह तो ध्यान िी क्तस्थकत में शरीर ने वैसी क्तस्थकतयाूं िे िी हैं और ति पता
चिा कि ये क्तस्थकतयाूं हैं । और ति धीरे — धीरे एसोकसएशन भी पता चिा कि जि मन एि दशा में जाता है तो
शरीर इस दशा में चिा जाता है । ति किर यह खयाि में आ र्या कि अर्र शरीर िो इस दशा में िे जाया जाए
तो मन उस दशा में चिा जाएर्ा।

जैसे हमें पता है कि अर्र भीतर रोना भर जाए तो आूं ख से आूं सू आ जाते हैं । अर्र आूं ख से आूं सू आ
जाएूं तो भीतर रोना भर जाएर्ा। ये एि ही चीज िे दो छोर हो र्ए। जैसे हमें क्रोध आता है तो किसी िे कसर िे
ऊपर हमारा हाथ उसे मारने िो उठ जाता है । जैसे हमें क्रोध आता है तो मुकट्ठयाूं िूंध जाती हैं ; जैसे हमें क्रोध
आता है तो दाूं त कभूं च जाते हैं ; जैसे हमें क्रोध आता है तो आूं खें िाि हो जाती हैं । और जि प्रेम आता है ति
तो मुकट्ठयाूं नही ूं कभचती,ूं ति तो दाूं त नही ूं कभूंचते , ति तो आूं खें िाि नही ूं हो जाती ूं। जि प्रेम आता है तो िुछ और
होता है — अर्र मुकट्ठयाूं कभूंची भी होूं तो खु ि जाती हैं , अर्र दाूं त कभूंचे भी होूं तो खु ि जाते हैं , अर्र आूं ख िाि
भी हो तो शाूं त हो जाती है । प्रेम िी अपनी व्यवस्था है । ऐसे ही ध्यान िी प्रत्ये ि क्तस्थकत में भी शरीर िी अपनी
व्यवस्था है ।

इसिो ऐसा समझें कि अर्र शरीर िी उस व्यवस्था में आपने िाधा डािी तो भीतर कचि िी व्यवस्था में
िाधा पड़ जाएर्ी। जैसे अर्र िोई आपसे िहे कि क्रोध िररए, िेकिन आूं खें िाि न होूं; क्रोध िररए, िेकिन
मुट्ठी न कभूंचे; क्रोध िररए,िेकिन दाूं त न कभूंचे। तो आप क्रोध न िर पाएूं र्े ; क्ोूंकि शरीर िा यह जो आनुषाूं कर्ि
कहस्सा है , इसिे किना आप िैसे क्रोध िर पाएूं र्े ? अर्र िोई िहे कि कसिग क्रोध िररए, और शरीर पर िोई
पररणाम न हो, तो आप क्रोध न िर पाएूं र्े। अर्र िोई िहे कि कसिग प्रे म िररए, िेकिन आपिी आूं खोूं से अमृत
न िरसे , और आपिे हाथोूं में प्रेम िी िहरें न द ड़े , और आपिा हृदय न धड़िने िर्े , और आपिी श्वास और
तरह से न चिने िर्े — आप कसिग प्रेम िररए, शरीर पर िुछ प्रिट मत होने दीकजए; तो आप िहें र्े, िहुत
मुक्तिि है , यह नही ूं हो सिता।

योगासनोां का जन्म:

तो जि ध्यान िी क्तस्थकतयोूं में शरीर कवशे ष —कवशे ष रूप से मुड़ने िर्े, घूमने िर्े , ति अर्र आप उसे
रोिते होूं, तो भीतर िी क्तस्थकत िो भी उर्प पूंर्ु िर दें र्े। वह क्तस्थकत किर आर्े नही ूं िढ़े र्ी।

कजतने योर्ासन हैं वे सि ध्यान िी क्तस्थकतयोूं में ही उपिि हुए; मुद्राओूं िा िहुत कवस्तार हुआ। अने ि
प्रिार िी... आपने िु द्ध िी मूकतग याूं दे खी होूंर्ी िहुत मुद्राओूं में। वे मुद्राएूं भी मन िी किन्ी ूं कवशे ष अवस्थाओूं में
पैदा हुईूं। किर तो मुद्राओूं िा एि शास्त्र िन र्या। किर तो िाहर से दे खिर िहा जा सिता है , अर्र आप झूठ
न िर रहे होूं और ध्यान में सीधे िह जाएूं , तो आपिी जो मुद्रा िनेर्ी उसे दे खिर भी िाहर से िहा जा सिता है
कि भीतर आपिे क्ा हो रहा है ।

उसिो भी रोि नही ूं िेना है ।

नृत्य का जन्म ध्यान में:

मेरी अपनी समझ में तो नृत्य भी पहिी िार ध्यान में ही जन्मा है । मेरी समझ में तो जीवन में जो भी
महत्वपूणग है उसिे िही ूं मूि स्रोत ध्यान से सूं िूंकधत हैं । मीरा िही ूं नाचना सीखने नही ूं र्ई। और िोर् सोचते
होूंर्े कि मीरा ने नाच—नाचिर भर्वान िो पा किया, तो र्ित सोचते हैं । मीरा ने भर्वान िो पा किया इसकिए
नाच उठी। िात किििुि दू सरी है । नाच—नाचिर िोई भर्वान िो नही ूं पाता। िे किन िोई भर्वान िो पा िे
तो नाच सिता है । और जि समुद्र कर्रे िूूंद में , और िूूंद नाचने न िर्े तो क्ा िरे ? और जि किसी कभखारी िे
द्वार पर अनूंत खजाना टू ट पडे , और कभखारी न नाचे तो क्ा िरे ?

ध्यान से दजमत व्यब्धित्व का जिसजओन:

िेकिन सभ्यता ने मनुष्य िो ऐसा जिड़ा है कि वह नाच भी नही ूं सिता। मेरी समझ में , दु कनया िो
अर्र वापस धाकमग ि िनाना हो तो हमें जीवन िी सहजता िो वापस ि टाना पडे ।

तो यह हो सिता है कि जि ध्यान िी ऊजाग जर्े आपिे भीतर तो सारे प्राण नाचने िर्ें , उस वक्त आप
शरीर िो मत रोि िेना। अन्यथा िात वही ूं ठहर जाएर्ी, रुि जाएर्ी; और िुछ होनेवािा था, वह नही ूं हो
पाएर्ा। िेकिन हम िड़े डरे हुए िोर् हैं । हम िहें र्े कि अर्र मैं नाचने िर्ू मेरी पत्नी पास िैठी है , मेरा िेटा पास
िैठा है , वे क्ा सोचेंर्े, कि कपता जी और नाचते हैं ! अर्र मैं नाचने िर्ै तो पकत पास िैठे हैं , वे क्ा सोचेंर्े, कि
मेरी पत्नी पार्ि तो नही ूं हो र्ई।

अर्र ये भय रहे तो उस भीतर िी यात्रा पर र्कत नही ूं हो पाएर्ी।

और शरीर िी मु द्राओूं, आसनोूं िे साथ—साथ और िहुत िुछ भी प्रिट होता है ।

एि िड़े कवचारि हैं । न मािूम कितने सूं न्यासी, साधु ओ,ूं आश्रमोूं, न मािूम िहाूं —िहाूं र्ए। इधर िोई
छह महीने पहिे मेरे पास आए। तो उन्ोूंने िहा, सि समझ में आता है , िेकिन मुझे िुछ होता नही ूं।

किर, मैंने उनसे िहा, आप होने न दे ते होूंर्े।

वे िुछ कवचार में पड़ र्ए। उन्ोूंने िहा, यह मेरे खयाि में नही ूं आया। शायद आप ठीि िहते हैं ।
िेकिन, एि िार आपिे ध्यान में आया था, वहाूं मैंने किसी िो रोते दे खा, तो मैं तो िहुत सम्हििर िैठ र्या कि
िही ूं भू ि—चूि से ऐसा मुझे न हो जाए, अन्यथा िोर् क्ा िहें र्े!

िोर्ोूं से प्रयोजन क्ा है ? ये िोर् ि न हैं जो सििे पीछे पड़े हुए हैं ? और िोर्, जि मरें र्े तो िचाने न
आएूं र्े ; और िोर्, जि आप दु ख में होूंर्े तो दु ख छीनने न आएूं र्े ; और िोर्, जि आप भटिेंर्े अूंधेरे में तो दीया
न जिाएूं र्े। िेकिन जि आपिा दीया जिने िो हो, ति अचानि िोर् आपिो रोि िेंर्े। ये िोर् ि न हैं ? ि न
आपिो रोिने आता है ? आप ही अपने भय िो िोर् िना िेते हैं , आप ही अपने भय िो िैिा िेते हैं चारोूं
तरि।

वे मुझसे िहने िर्े , हो सिता है ; मैं तो डर र्या जि मैंने किसी िो रोते दे खा और मैं सम्हििर िैठ
र्या कि िही ूं िुछ ऐसा मुझसे न हो जाए। मैंने उनसे िहा, आप एि महीने एिाूं त में चिे जाएूं ; और जो होता
हो होने दें । उन्ोूंने िहा, क्ा मतिि? मैंने िहा कि अर्र र्ाकियाूं ििने िा मन होता हो तो ििे, कचल्राने िा
मन होता हो तो कचल्राएूं ; रोने िा होता हो,रोएूं ; नाचने िा होता हो, नाचे , द ड़ने िा होता हो, द ड़े ; पार्ि होने
िा मन होता हो तो महीने भर िे किए पार्ि हो जाएूं । उन्ोूंने िहा, मैं न जा सिूूंर्ा। मैं ने िहा, क्ोूं? उन्ोूंने
िहा कि आप जैसा िहते हैं , मुझे िई िार डर िर्ता है कि अर्र मैं अपने िो किििुि छोड़ दू ूं जैसा सहज
आप िहते हैं , तो ठीि है कि मुझमें पार्िपन प्रिट हो जाएर्ा।

तो मैंने उनसे िहा, आप दिाए रहें र्े, इससे िुछ ििग तो नही ूं पड़ता। प्रिट होर्ा तो कनिि
जाएर्ा, दिा रहे र्ा तो सदा आपिे साथ रह जाएर्ा।

हम सिने िहुत िुछ सप्रेस किया है , दिाया है । न हम रोए हैं , न हम हूं से हैं , न हम नाचे हैं , न हम खे िे
हैं , न हम द ड़े हैं । हमने सि दिा किया है , हमने अपने भीतर सि तरि से द्वार िूंद िर किए हैं । और हर द्वार
पर हम पहरे दार होिर िैठ र्ए हैं ।

अि अर्र हमें परमात्मा से कमिने जाना हो तो ये दरवाजे खोिने पड़ें र्े। तो डर िर्ेर्ा, क्ोूंकि जो—जो
हमने रोिा है वह प्रिट हो सिता है । अर्र आपने रोना रोिा है तो रोना िहे र्ा; हूं सना रोिा है , हूं सना िहे र्ा।

उस सििो िह जाने दें , उस सििो कनिि जाने दें ।

यहाूं तो हम आए ही इसकिए इस एिाूं त में हैं कि यहाूं िोर्ोूं िा भय न हो। और सरू िे वृक्ष, किििुि
ही उनिा सूं िोच न िरें , वे आपसे िुछ भी न िहें र्े, िक्तम्ऻ वे िडे प्रसन्न होूंर्े। और सार्र िी िहरें भी आपसे
िुछ न िहें र्ी। वे किसी से भयभीत नही ूं हैं । जि उन्ें शोर िरना होता है , वे शोर िरती हैं ; जि उन्ें सो जाना
होता है , वे सो जाती हैं । और आपिे नीचे पड़े हुए रे त िे िण भी िुछ न िहें र्े। यहाूं िोई िुछ न िहे र्ा।
ऊजाओ के साथ सहयोग करो:

आप अपने िो पूरी तरह छोड़ दें और जो आपिे भीतर होता है उसे होने दें —नाचना हो नाचे , कचल्राना
हो कचल्राएूं , द ड़ना हो द ड़े , कर्रना हो कर्रे —छोड़ दें सि भाूं कत। और जि आप सि भाूं कत छोड़ें र्े ति आप
अचानि पाएूं र्े कि आपिे भीतर वतुग ि िनाती हुई िोई ऊजाग उठने िर्ी; िोई शक्तक्त आपिे भीतर जर्ने
िर्ी, सि तरि द्वार टू टने िर्े। उस वक्त भय मत िरना। उस वक्त समग्र रूप से उस आूं दोिन में , उस मूवमेंट
में, जो आपिे भीतर पैदा होर्ा, वह जो शक्तक्त आपिे भीतर वतुग ि िनािर घूमने िर्ेर्ी, उसिे साथ एि हो
जाना, अपने िो उसमें छोड़ दे ना। तो घटना घट सिती है ।

घटना घटना िहुत आसान है । िेकिन हम अपने िो छोड़ने िो तै यार नही ूं होते । और िैसी छोटी चीजें
हमें रोिती हैं ,कजस कदन आप िही ूं पहुूं चेंर्े उस कदन पीछे ि टिर िहुत हूं सेंर्े कि िैसी चीजोूं ने मुझे रोिा
था! रोिनेवािी िड़ी चीजें होती ूं तो ठीि था, रोिने वािी िहुत छोटी चीजें हैं ।

िुछ पूछना हो, िुछ िात िरनी हो, तो थोड़ी दे र हम िात िर िें , और किर ध्यान िे किए िैठें। िुछ
भी पूछना हो तो पूछें।

जीना ही जीिन का उद्दे श्य है :

प्रश्न:

ओशो आपने कि बताया था जक जीिन में उद्दे श्य होना चाजहए। प्रकृजत में सब कछ जनष्प्रयोजन
है ? जनरुद्दे श्य है । तो जिर हम ही क्ोां उद्दे श्य या प्रयोजन िेकर चिें ?

कनकश्चत ही! वे कमत्र पूछते हैं कि प्रिृकत में सभी कनरुिे श्य है , तो हम ही क्ोूं उिे श्य िेिर चिें ?

अर्र सि उिे श्य छोड़ सिो तो इससे िड़ा िोई उिे श्य नही ूं हो सिता। अर्र प्रिृकत जैसे हो सिो तो
सि हो र्या। िेकिन आदमी अप्रािृकति हो र्या है , इसकिए वापस ि टने िे किए, उसे प्रिृकत ति जाने िे किए
भी उिे श्य िनाना पड़ता है । यह दु भाग ग्य है । वही तो मैं िह रहा हूं कि सि छोड़ दो। िेकिन अभी तो हमने इतना
पिड़ किया है कि छोड़ना भी हमें एि उिे श्य ही होर्ा। वह भी हमें छोड़ना पड़े र्ा। हमने इतने जोर से पिड़ा है
कि हमें छोड़ने में भी मेहनत िरनी पड़े र्ी। हािाूं कि छोड़ने में िोई मेहनत िी जरूरत नही ूं है । छोड़ने में क्ा
मेहनत िरनी होर्ी!

यह ठीि है कि िही ूं िोई उिे श्य नही ूं है । क्ोूं नही ूं है िेकिन? नही ूं होने िा िारण यह नही ूं है कि
कनरुिे श्य है प्रिृकत;नही ूं होने िा िारण यह है कि जो है , उसिे िाहर िोई उिे श्य नही ूं है ।

एि िूि क्तखिा। वह किसी िे किए नही ूं क्तखिा है ; और किसी िाजार में कििने िे किए भी नही ूं क्तखिा
है ; राह से िोई र्ुजरे और उसिी सु र्ूंध िे , इसकिए भी नही ूं क्तखिा है , िोई र्ोल्ड मेडि उसे कमिे, िोई महावीर
चक्र कमिे , िोई पद्यश्री कमिे ,इसकिए भी नही ूं क्तखिा है । िूि िस क्तखिा है , क्ोूंकि क्तखिना आनूं द है ; क्तखिना
ही क्तखिने िा उिे श्य है । इसकिए ऐसा भी िह सिते हैं कि िूि कनरुिे श्य क्तखिा है । और जि िोई कनरुिे श्य
क्तखिेर्ा तभी पूरा क्तखि सिता है , क्ोूंकि जहाूं उिे श्य है भीतर वहाूं थोड़ा अटिाव हो जाएर्ा। अर्र िूि
इसकिए क्तखिा है कि िोई कनििे , उसिे किए क्तखिा है , तो अर्र वह आदमी अभी रास्ते से नही ूं कनिि रहा तो
िूि अभी िूंद रहे र्ा; जि वह आदमी आएर्ा ति क्तखिेर्ा। िेकिन जो िूि िहुत दे र िूं द रहे र्ा, हो सिता है
उस आदमी िे पास आ जाने पर भी क्तखि न पाए, क्ोूंकि न क्तखिने िी आदत मजिूत हो जाएर्ी। नही,ूं िूि
इसीकिए पूरा क्तखि पाता है कि िोई उिे श्य नही ूं है ।

ठीि ऐसा ही आदमी भी होना चाकहए। िेकिन आदमी िे साथ िकठनाई यह है कि वह सहज नही ूं रहा
है , वह असहज हो र्या है । उसे सहज ति वापस ि टना है । और यह ि टना किर एि उिे श्य ही होर्ा।

तो मैं जि उिे श्य िी िात िरता हूं तो वह उसी अथों में जैसे पैर में िाूं टा िर् र्या हो, और दू सरे िाूं टे
से उसे कनिािना पड़े । अि िोई आिर िहे कि मुझे िाूं टा िर्ा ही नही ूं है तो मैं क्ोूं िाूं टे िो कनिािूूं ? उससे
मैं िहूं र्ा, कनिािने िा सवाि ही नही ूं है , तु म पूछने ही क्ोूं आए हो? िाूं टा नही ूं िर्ा है , ति िात ही नही ूं है ।
िेकिन िाूं टा िर्ा है , तो किर दू सरे िाूं टे से कनिािना पड़े र्ा।

वह कमत्र यह भी िह सिता है कि एि िाूं टा तो वै से ही मुझे परे शान िर रहा है , अि आप दू सरा िाूं टा


और पैर में डािने िो िहते हो!

पहिा िाूं टा परे शान िर रहा है , िेकिन एि िाूं टे िो दू सरे िाूं टे से ही कनिािना पड़े र्ा। हाूं , एि िात
ध्यान रखनी जरूरी है कि दू सरे िाूं टे िो घाव में वापस मत रख िेना—कि इस िाूं टे ने िड़ी िृपा िी, एि िाूं टे
िो कनिािा; तो अि इस िाूं टे िो हम अपने पैर में रख िें। ति नुिसान हो जाएर्ा। जि िाूं टा कनिि जाए तो
दोनोूं िाूं टे िेंि दे ना।

जि हमारा जो हमने अप्रािृकति जीवन िना किया है , जि वह सहज हो जाए, तो अप्रािृकति िो भी


िेंि दे ना और सहज िो भी िेंि दे ना; क्ोूंकि जि सहज पूरा होना हो, तो सहज होने िा खयाि भी िाधा दे ता
है । किर तो जो होर्ा, होर्ा। नही,ूं मैं नही ूं िहता हूं कि उिे श्य चाकहए। इसकिए िहना पड़ता है उिे श्य कि
आपने उिे श्य पिड़ रखे हैं , िाूं टे िर्ा रखे हैं , अि उन िाूं टोूं िो िीटोूं से ही कनिािना पड़े र्ा।

जड और चेतन:

प्रश्न:

ओशो मन बब्धि जचत्त और अहां कार ये पृथक— पृथक िस्तएां हैं, एन्टाइटीज है , या एक चीज
है ? और आत्मा इनसे जभत्र है या इनके समूह को ही आत्मा कहा जाता है ? और इनमें से जड़ कौन सी
चीज है और चेतन कौन सी चीज है ? और उनका जिजशि स्थान कौन सा है शरीर में ?
कमत्र पूछते हैं कि मन, िुक्तद्ध, कचि और अहूं िार, ये अिर्—अिर् हैं , अिर्—
अिर् एन्टाइटीज हैं , अिर्—अिर् वस्तु एूं हैं या एि ही हैं ? और वे यह भी पूछते हैं कि ये आत्मा से अिर् हैं या
आत्मा िे साथ ही एि हैं ? और वे यह भी पूछते हैं कि ये जड़ हैं या चेतन हैं , या क्ा जड़ है और क्ा चेतन
है ? और उनिा कवकशष्ट स्थान ि न सा है शरीर में ?

पहिी िात तो यह, इस जर्त में जड़ और चेतन जैसी दो वस्तु एूं नही ूं हैं । कजसे हम जड़ िहते हैं , वह
सोया हुआ चेतन है ; और कजसे हम चेतन िहते हैं , वह जार्ा हुआ जड़ है । असि में जड़ और चे तन जैसे दो
पृथि अक्तस्तत्व नही ूं हैं , अक्तस्तत्व तो एि िा ही है । उस एि िा नाम ही परमात्मा है , ब्रह्म है —िोई और नाम
दें — और वह एि ही, जि सोया हुआ है ति जड़ मािूम होता है , और जि जार्ा हुआ है ति चेतन मािूम होता
है ।

इसकिए जड़ और चेतन िे ऐसे दो भे द िरिे न चिें , िामचिाऊ शब्द हैं , िेकिन ऐसी िोई दो चीजें
नही ूं हैं । कवज्ञान भी इस नतीजे पर पहुूं च र्या है कि जड़ जैसी िोई चीज नही ूं है , मैटर जैसी िोई चीज नही ूं है ।

पदाथओ और परमात्मा:

यह िड़े मजे िी िात है कि आज से पचास—साठ साि पहिे नीत्शे ने यह घोषणा िी कि ईश्वर मर र्या
है । और पचास साि िाद कवज्ञान िो यह घोषणा िरनी पड़ी कि ईश्वर मरा हो या न मरा हो, िेकिन मैटर जरूर
मर र्या है , पदाथग अि नही ूं है । क्ोूंकि जैसे—जैसे पदाथग िे भीतर कवज्ञान उतरा तो पाया कि पदाथग िे र्हरे
उतरो, र्हरे उतरो— पदाथग खो जाता है और कसिग एनजी, ऊजाग रह जाती है ।

अणु िे कवस्फोट पर जो िचता है —परमाणु , वह कसिग ऊजाग —क्ा है । परमाणु िे कवस्फोट पर


जो इिेक्ङराूं स, पाकजटर ाूं स औरन्यूटराूं न िचते हैं , वे िेवि कवदि् युत—िण हैं । उन्ें िण िहना भी ठीि नही ,ूं क्ोूंकि
िण से पदाथग िा िोध होता है । इसकिए अूंग्रेजी में एि नया शब्द ही खोजना पड़ा है —क्ाूं टा। क्ाूं टा िा मतिि
ही िुछ और होता है । िाूं टा िा मतिि होता है जो दोनोूं है —िण भी और िहर भी—एि साथ। समझना ही
मुक्तिि पड़ जाता है कि िोई चीज िण और िहर एि साथ िैसे होर्ी? वह दोनोूं एि साथ है । ये दोनोूं
उसिे किहे कवयर हैं । वह िभी िण िी तरह कदखाई पड़ती है और िभी िहर िी तरह। अि िहर यानी ऊजाग
और िण यानी पदाथग। और वह दोनोूं एि ही है ।

कवज्ञान र्हरे र्या तो उसने पाया कि कसिग ऊजाग है , एनजी है । और अध्यात्म र्हरे र्या तो उसने पाया
कि कसिग आत्मा है । और आत्मा एनजी है , आत्मा ऊजाग है । इसकिए िहुत शीघ्र, िहुत जल्दी वह कसूं थीकसस, वह
समन्रय उपिि हो जाएर्ा जहाूं कवज्ञान और धमग िे िीच िासिा तोड़ दे ना पड़े र्ा। जि पदाथग और परमात्मा
िे िीच िा िासिा झूठा कसद्ध हुआ, तो कितने कदन िर्ेंर्े कि कवज्ञान और धमग िे िीच िे िासिे िो हम िचा
सिें? अर्र जड़ और चेतन दो नही ूं हैं , तो धमग और कवज्ञान भी दो नही ूं रह सिते । वे उसी भेद पर दो थे।

अब्धस्तत्व अद्वै त है :
मेरी दृकष्ट में , दो िा अक्तस्तत्व नही ूं है , एि ही है । ति किर यह सवाि नही ूं उठता कि ि न जड़ है , ि न
चेतन है । अर्र आपिो जड़ िी भाषा पसूं द है तो आप िकहए, सि जड़ है ; अर्र आपिो चेतन िी भाषा पसूं द
है तो िकहए, सि चेतन है । िेकिन मुझे चेतन िी भाषा पसूं द है । और क्ोूं पसूं द है ? क्ोूंकि भाषा सदा ऊपर िी
चुननी चाकहए, कजसमें सूं भावना ज्यादा हो,नीचे िी नही ूं चुननी चाकहए, उसमें सूं भावना िम हो जाती है ।

जैसे कि हम यह िह सिते हैं कि वृ क्ष हैं ही नही,ूं िस िीज हैं । र्ित नही ूं है यह िात, क्ोूंकि वृ क्ष कसिग
िीज िा ही रूपाूं तरण है । हम िह सिते हैं : िीज ही हैं , वृक्ष नही ूं हैं । िेकिन खतरा है इसमें । इसमें खतरा यह
है कि िुछ िीज िहें , जि िीज ही हैं तो हम वृक्ष क्ोूं िनें ? वे िीज ही रह जाएूं । नही,ूं ज्यादा अच्छा होर्ा कि हम
िहें : वृक्ष ही हैं , िीज नही ूं हैं । ति िीज िो वृक्ष िनने िी सूं भावना खु ि जाती है ।

चेतन िी भाषा' मुझे पसूं द है, वह इसकिए कि जो अभी सोया हुआ है वह जार् सिे, वह सूं भावना िा
द्वार खोिती है । पदाथगवादी और अध्यात्मवादी में एि समानता है कि वे एि िो ही स्वीिार िरते हैं । असमानता
एि है कि पदाथगवादी िहुत प्राथकमि चीज िो मान िेता है , और इसकिए अूं कतम से रुि सिता
है । अध्यात्मवादी अूंकतम िो स्वीिार िरता है , इसकिए पहिा तो उसमें आ ही जाता है , वह िही ूं जाता नही।ूं
मुझे अध्यात्म िी भाषा प्रीकतिर है , और इसकिए िहता हूं कि सि चेतन है — सोया हुआ चेतन जड़ है ; जार्ा
हुआ चेतन चेतन है । समस्त चेतना है ।

मन के जिजिध रूप : बब्धि, जचत्त, अहां कार:

दू सरी बात उन्ोांने पूछी है जक मन, बब्धि, जचत्त, अहां कार—यें क्ा अिग—अिग हैं ?

ये अिर्—अिर् नही ूं हैं , ये मन िे ही िहुत चेहरे हैं । जैसे िोई हमसे पूछे कि िाप अिर् है , िेटा अिर्
है , पकत अिर् है ? तो हम िहें कि नही,ूं वह आदमी तो एि ही है । िे किन किसी िे सामने वह िाप है , और
किसी िे सामने वह िेटा है , और किसी िे सामने वह पकत है , और किसी िे सामने कमत्र है और किसी िे सामने
शत्रु है; और किसी िे सामने सुूं दर है और किसी िे सामने असुूं दर है , और किसी िे सामने माकिि है और
किसी िे सामने न िर है । वह आदमी एि है । और अर्र हम उस घर में न र्ए होूं, और हमें िभी िोई आिर
खिर दे कि आज माकिि कमि र्या था, और िभी िोई आिर खिर दे कि आज न िर कमि र्या था, और
िभी िोई आिर िहे कि आज कपता से मुिािात हुई थी, और िभी िोई आिर िहे कि आज पकत घर में
िैठा हुआ था, तो हम शायद सोचें कि िहुत िोर् इस घर में रहते हैं —िोई माकिि, िोई कपता, िोई पकत।

हमारा मन िहुत तरह से व्यवहार िरता है । हमारा मन जि अिड़ जाता है और िहता है . मैं ही सि
िुछ हूं और िोई िुछ नही,ूं ति वह अहूं िार िी तरह प्रतीत होता है । वह मन िा एि ढूं र् है ; वह मन िे
व्यवहार िा एि रूप है । ति वह अहूं िार, जि वह िहता हैं —मैं ही सि िुछ! जि मन घोषणा िरता है कि
मेरे सामने और िोई िुछ भी नही,ूं ति मन अहूं िार है । और जि मन कवचार िरता है , सोचता है , ति वह िुक्तद्ध
है । और जि मन न सोचता, न कवचार िरता, कसिग तरूं र्ोूं में िहा चिा जाता है , अन—डायरे क्ङे ड.......। जि
मन डायरे क्ान िेिर सोचता है —एि वैज्ञाकनि िैठा है प्रयोर्शािा में और सोच रहा है कि अणु िा कवस्फोट
िैसे हो—डायरे क्ङे ड कथूंकिूंर्, ति मन िुक्तद्ध है । और जि मन कनरुिे श्य, कनिग क्ष्य, कसिग िहा जाता है — िभी
सपना दे खता है , िभी धन दे खता है , िभी राष्टरपकत हो जाता है —ति वह कचि है , ति वह कसिग तरूं र्ें मात्र है ।
और तरूं र्ें असूं र्त, असूं िद्ध, ति वह कचि है । और जि वह सु कनकश्चत एि मार्ग पर िहता है , ति वह िुक्तद्ध है ।
ये मन िे ढूं र् हैं िहुत, िेकिन मन ही है ।

मन और आत्मा : चेतना के दो रूप:

और िे पूछते हैं जक ये मन, बब्धि, अहां कार, जचत्त और आत्मा अिग हैं या एक हैं ?

सार्र में तू िान आ जाए, तो तू िान और सार्र एि होते हैं या अिर्? कवक्षुि जि हो जाता है सार्र तो
हम िहते हैं , तू िान है । आत्मा जि कवक्षुि हो जाती है तो हम िहते हैं , मन है , और मन जि शाूं त हो जाता है तो
हम िहते हैं , आत्मा है ।

मन जो है वह आत्मा िी कवक्षुि अवस्था है , और आत्मा जो है वह मन िी शाूं त अवस्था है । ऐसा समझें :


चेतना जि हमारे भीतर कवक्षुि है , कवकक्षप्त है , तूिान से कघरी है , ति हम इसे मन िहते हैं । इसकिए जि ति
आपिो मन िा पता चिता है ति ति आत्मा िा पता न चिे र्ा। और इसकिए ध्यान में मन खो जाता है । खो
जाता है इसिा मतिि? इसिा मतिि, वे जो िहरें उठ रही थी ूं आत्मा पर, सो जाती हैं , वापस शाूं कत हो जाती
है । ति आपिो पता चिता है कि मैं आत्मा हूं । जि ति कवक्षु ि हैं ति ति पता चिता है कि मन है । कवक्षु ि
मन िहुत रूपोूं में प्रिट होता है —िभी अहूं िार िी तरह, िभी िु क्तद्ध िी तरह, िभी कचि िी तरह— वे
कवक्षुि मन िे अनेि चेहरे हैं ।

आत्मा और मन अिर् नही,ूं आत्मा और शरीर भी अिर् नही;ूं क्ोूंकि तत्व तो एि है , और उस एि िे


सारे िे सारे रूपाूं तरण हैं। और उस एि िो जान िें तो किर िोई झर्ड़ा नही ूं है —शरीर से भी नही,ूं मन से भी
नही ूं। उस एि िो एि िार पहचान िें तो किर वही है —किर रावण में भी वही है , किर राम में भी वही है । किर
ऐसा नही ूं है कि राम िो नमस्कार िर आएूं र्े और रावण िो जिा आएूं र्े ; ऐसा नही ूं। किर नमस्कार दोनोूं िो ही
िर आएूं र्े , या दोनोूं िो ही जिा आएूं र्े ; क्ोूंकि दोनोूं में वही है ।

एि है तत्व, अनूंत हैं अकभव्यक्तक्तयाूं ; एि है सत्य, अनेि हैं रूप, एि है अक्तस्तत्व, िहुत हैं उसिे
चेहरे , मुद्राएूं ।

सत्य जिचारणा नही, अनभू जत है :

िेकिन, इसे कििासिी िी तरह समझेंर्े तो नही ूं समझ में आ सिेर्ा, इसे अनुभव िी तरह समझेंर्े तो
समझ में आ सिता है । तो यह तो मैं ने समझाने िे खयाि से िहा, िेकिन जि आप ही उतरें र्े उस एि में तभी
आप जानें र्े कि अरे । कजसे जाना था शरीर िी तरह, वह भी तू ही है ! और कजसे जाना था मन िी तरह, वह भी तू
ही है ! और कजसे जाना था आत्मा िी तरह, वह भी तू ही है । जि जानते हैं ति कसिग एि ही रह जाता है । इतना
ज्यादा एि रह जाता है कि जाननेवािा, और जो जानता है , और जो जाना जाता है , इनमें भी िोई िासिा नही ूं
रह जाता। वहाूं जानने वािा और जाना जानेवािा, दोनोूं एि ही रह जाते हैं ।
उपकनषद िा एि ऋकष पूछता है . ि न है वहाूं जानता? ि न है वहाूं जो जाना जाता? किसने वहाूं
दे खा? ि न है जो वहाूं दे खा र्या? ि न था कजसने अनुभव किया? ि न था कजसिा अनु भव हुआ? नही,ूं वहाूं
इतना भी दो नही ूं रह जाता। वहाूं अनु भव िरनेवािा भी नही ूं िचता है । सि िासिे कर्र जाते हैं ।

िेकिन कवचार तो िासिे िनाए किना नही ूं चि सिता। कवचार तो िासिे िनाएर्ा; वह िहे र्ा—यह
शरीर है , यह मन है ,यह आत्मा है , यह परमात्मा है । कवचार िासिे िनाएर्ा। क्ोूं? क्ोूंकि कवचार समग्र िो एि
साथ नही ूं िे सिता, कवचार िहुत छोटी क्तखड़िी है ; उससे हम टु िड़े —टु िड़े िो ही दे ख पाते हैं । जै से एि िड़ा
मिान हो और उसमें एि छोटा छे द हो। और उस छोटे छे द से मैं दे खूूं। तो िभी िुसी कदखाई पड़े , िभी टे िि
कदखाई पडे , िभी माकिि कदखाई पड़े , िभी िोटो कदखाई पड़े , िभी घड़ी कदखाई पड़े । छोटे छे द से सि
टु िड़े —टु िड़े कदखाई पड़े , पूरा िमरा िभी कदखाई न पडे ; क्ोूंकि वह छे द िहुत छोटा है । और किर दीवाि
कर्रािर मैं भीतर पहुूं च जाऊूं, तो पूरा िमरा एि साथ कदखाई पड़े ।

कवचार िहुत छोटा छे द है कजससे हम सत्य िो खोजते हैं । उसमें सत्य खूं ड—खूं ड होिर कदखाई पड़ता
है । िेकिन जि कवचार िो छोडि् िर हम कनकवगचार में पहुूं चते हैं , ध्यान में , ति समग्र, कद टोटि कदखाई पड़ता है ।
और कजस कदन वह पूरा कदखाई पड़ता है , उस कदन िड़ी है रानी होती है कि अरे ! एि ही था, अनूंत होिर कदखाई
पड़ता था! पर वह अनुभव से ही।

हाूं , िकहए!

प्रश्न: थोडा पसओ नि सिाि है ।

िकहए—िकहए!

प्रश्न : आपको ध्यान में प्रिेश करने में जकतने साि िगे ?

ध्यान समयातीत है ।

ये कमत्र पूछते हैं कि मुझे ध्यान में प्रवेश िरने में कितने साि िर्े ?

ध्यान में प्रवेश तो एि क्षण में हो जाता है । हाूं , दरवाजे िे िाहर कितने ही जन्म घूम सिते हैं । दरवाजे
में प्रवेश तो एि ही क्षण में हो जाता है । क्षण भी ठीि नही ,ूं क्ोूंकि क्षण भी िािी िड़ा है , क्षण िे
भी हजारवें कहस्से में हो जाता है । वह भी ठीि नही ूं है , क्ोूंकि क्षण िा हजारवा कहस्सा भी टाइम िा ही कहस्सा है ।
असि में, ध्यान तो प्रवेश होता है टाइमिेसनेस में ,समय रहता ही नही ूं और प्रवेश हो जाता है ।

इसकिए अर्र िोई िहे कि ध्यान में प्रवेश में मुझे घूंटा भर िर्ा, तो वह र्ित िहता है ; िहे कि साि
भर िर्ा, तो वह र्ित िहता है , क्ोूंकि जि ध्यान में प्रवेश होता है तो वहाूं समय नही ूं होता। समय होता ही
नही ूं। हाूं , ध्यान िा जो मूं कदर है , उसिे िाहर आप जन्मोूं ति चक्कर िाटते रहें । िेकिन वह प्रवेश नही ूं है ।
तो चक्कर तो मैं ने भी िहुत जन्म िाटे , िेकिन वह प्रवेश नही ूं है । िेकिन जि प्रवेश हुआ, तो वह प्रवे श
किना समय िे ही हो र्या, किना किसी समय िे हो र्या। इसकिए यह सवाि िड़ा िकठन पूछ किया आपने ।
अर्र उस सि िा कहसाि हम रखें जो मूंकदर िे िाहर घूमने में वक्त किताया, तो वह अूंतहीन कहसाि है , वह
अनूंत जन्मोूं िा कहसाि है । उसिो भी िताना मु क्तिि है , क्ोूंकि िहुत िूंिा है । उसिी भी िोई र्णना नही ूं िी
जा सिती। और अर्र प्रवेश िो ही ध्यान में रखें कसिग, तो उसे समय िी भाषा में नही ूं िहा जा सिता, क्ोूंकि
वह दो क्षणोूं िे िीच में घट जाती है घटना। एि क्षण र्या, दू सरा अभी आया नही,ूं और िीच में वह घटना घट
जाती है । आपिी घड़ी में एि िजा, और किर एि िजिर एि कमनट िजा, और िीच में जो र्ैप छूट र्या, उस
र्ैप में होती है वह घटना। वह सदा र्ैप में , इूं टरवि में , दो मोमेंट िे िीच में जो खािी जर्ह है , वहाूं होती है ।
और इसकिए उसिो नही ूं िताया जा सिता कि कितना समय िर्ा।

समय किििुि नही ूं िर्ता, समय िर् ही नही ूं सिता, क्ोूंकि समय िे द्वारा इटरनि में प्रवेश नही ूं हो
सिता। जो समय से िाहर है , उसमें समय िे द्वारा जाना नही ूं हो सिता।

तो आपिी िात मैं समझ र्या हूं । मूंकदर िे िाहर कजतना घूमना हो, घूम सिते हैं । वह चक्कर िर्ाना
है । जैसे एि आदमी चक्कर िर्ा रहा है । एि हमने र्ोि घेरा खी ूंच कदया है , एि सकिगि िना कदया है , और
सकिगि िे िीच में एि सें टर है ,और एि आदमी सकिगि पर चक्कर िर्ा रहा है । वह िर्ाता रहे , सकिगि पर
अनूंत जन्मोूं ति चक्कर िर्ाता रहे , तो भी सें टर पर पहुूं चने वािा नही ूं है । वह सोचे कि और जोर से द डूूं, तो
जोर से द ड़े ; वह सोचे कि हवाई जहाज िे आऊूं , तो हवाई जहाज िे आए; उसे जो भी िरना हो वह िरे , कजतनी
ताित िर्ानी हो िर्ाए, अर्र वह सकिगि पर ही द ड़ता है तो द ड़ता रहे , द ड़तारहे , द ड़ता रहे , वह सें टर पर
नही ूं पहुूं च सिता। और सकिगि पर वह िही ूं भी हो, सें टर से दू री िरािर होर्ी।

इसकिए वह कितना द डा, िेमानी है ; िही ूं भी खड़ा हो जाए, उसिी सें टर से दू री उतनी ही है कजतनी
द ड़ने िे पहिे थी। वह अनूंत जन्म द ड़ता रहे । और अर्र सें टर पर पहुूं चना है तो सकिगि पर द ड़ना छोड़ना
पड़े उसे , सकिगि ही छोड़ना पड़े ; सकिगि िो छोडि् िर छिाूं र् िर्ानी पड़े ।

अर्र किर वह आदमी सें टर पर पहुूं च जाए, तो आप उससे पूछें कि सकिगि पर कितनी यात्रा िरिे तु म
सें टर पर पहुूं चे?तो वह आदमी क्ा िहे ? वह आदमी िहे कि सकिगि पर तो िहुत यात्रा िी, िेकिन उससे पहुूं चे
नही;ूं वह तो सकिगि पर िहुत चिे , िेकिन उससे पहुूं चे ही नही ूं। तो आप उससे पूछें , कितने मीि चििर
पहुूं चे? वह िहे कि नही,ूं कितने ही मीि चिे , उससे पहुूं चे नही ूं; चिे तो िहुत, िेकिन उससे पहुूं चना न हुआ।
और जि पहुूं चे ति सकिगि से छिाूं र् िर्ािर पहुूं चे। और वहाूं मीि िा सवाि नही ूं है । ठीि ऐसी िात है । समय
में नही ूं घटना घटती है । और समय तो, हमने समय िहुत र्ूंवाया है । समय तो हम सिने िहुत र्ूंवाया है । कजस
कदन आपिो भी घटे र्ी उस कदन आप भी न िता सिेंर्े कि कितनी दे र में यह हुआ। नही ,ूं दे री िा सवाि ही
नही ूं।

जीसस से किसी ने पूछा है कि तु म्हारे उस स्वर्ग में कितनी दे र हम रुि सिेंर्े ? तो जीसस ने िहा, तु म
िडा िकठन सवाि पूछते हो। दे यर शै ि िी टाइम नो िाूं र्र। तु म पूछते हो, तु म्हारे उस स्वर्ग में कितनी दे र हम
रुि सिेंर्े ? िड़ी मुक्तिि िा सवाि पूछते हो, क्ोूंकि वहाूं तो समय न होर्ा। इसकिए दे री िा कहसाि िैसे
िर्ेर्ा?

समय मन की प्रतीजत है :
यह समझने जैसा है कि समय जो है वह हमारे दु ख से जुड़ा है । आनूं द में समय नही ूं होता। आप कजतने
दु ख में हैं , समय उतना िड़ा होता है । रात घर में िोई खाट पर पड़ा है मरने िे किए, तो रात िहुत िूंिी हो जाती
है । घड़ी में तो उतनी ही होर्ी,िैिेंडर में उतनी ही होर्ी, िेकिन वह जो खाट िे पास िै ठा है , कजसिा कप्रयजन
मर रहा है , उसिे किए रात इतनी िूंिी, इतनी िूंिी हो जाती है कि िर्ता है कि चु िेर्ी कि नही ूं चु िेर्ी? यह रात
खत्म होर्ी कि नही ूं होर्ी? सू रज उर्ेर्ा कि नही ूं उर्ेर्ा? यह रात कितनी िूं िी होती चिी जाती है ! और घड़ी
उतना ही िहती है । और ति दे खनेवािे िो िर्े र्ा कि घड़ी आज धीरे चिती है या रुि र्ई
है ! िैिेंडर िी पूंखुड़ी उखड़ने िे िरीि आ र्ई है , सु िह होने िर्ी है , िेकिन ऐसा िर्ता है कि िूंिा, िूंिा.......।

िटर े ड रसे ि ने िही ूं किखा है कि मैं ने अपनी कजूंदर्ी में कजतने पाप किए, अर्र सख्त से सख्त न्यायाधीश
िे सामने भी मुझे म जूद िर कदया जाए, तो मैंने जो पाप किए वे , और जो मैं िरना चाहता था और नही ूं िर
पाया, वे भी अर्र जोड़ किए जाएूं , तो भी मुझे चार—पाूं च साि से ज्यादा िी सजा नही ूं हो सिती। िे किन जीसस
िहते हैं कि नरि में अनूंत िाि ति सजाभोर्नी पड़े र्ी। तो यह न्याययुक्त नही ूं है । क्ोूंकि, मैंने जो पाप
किए, जो नही ूं किए वे भी जोड़ िें , क्ोूंकि मैं ने सोचे, तो भी सख्त से सख्त अदाित मुझे चार—पाूं च साि िी
सजा दे सिती है , और यह जीसस िी अदाित िहती है कि अनूंत िाि ति,इटरकनटी ति नरि
में सडु ना पड़े र्ा। यह जरा ज्यादती मािूम पड़ती है ।

रसे ि तो मर र्ए, अन्यथा उनसे िहना चाहता था कि आप समझे नही ,ूं जीसस िा मतिि खयाि में
नही ूं आया आपिे। जीसस यह िह रहे हैं कि नरि में अर्र एि क्षण भी रहना पड़ा तो वह इटरकनटी मािूम
पड़े र्ा; दु ख इतना ज्यादा है वहाूं कि उसिा अूंत ही नही ूं मािूम पड़े र्ा कि वह िभी समाप्त होर्ा, िभी समाप्त
होर्ा।

दु ख समय िो िूंिाता है , सु ख समय िो छोटा िरता है । इसकिए तो हम िहते हैं सु ख क्षकणि है ।


जरूरी नही ूं है कि सु ख क्षकणि है , सु ख िी प्रतीकत क्षकणि होती है —कि वह आया और र्या, क्ोूंकि टाइम छोटा
हो जाता है । सु ख क्षकणि है , ऐसा नही ूं है , कि मोमेटरी है । सुख िी भी िूंिाइयाूं हैं । िेकिन सु ख सदा क्षकणि
मािूम पड़ता है , क्ोूंकि सु ख में समय छोटा हो जाता है । कप्रयजन कमिा नही ूं कि कवदाई िा वक्त आ र्या; आए
नही ूं कि र्ए; इधर िूि क्तखिा नही ूं कि िुम्हिाया। वह सु ख िी प्रतीकत क्षकणि है , क्ोूंकि सु ख में समय छोटा हो
जाता है । घड़ी किर भी वैसे ही चिती है , िैिेंडर वही खिर दे ता है , िेकिन इधर हमारे मन में सु ख समय िो
छोटा िर दे ता है ।

आनूंद में समय कमट ही जाता है , छोटा—मोटा नही ूं होता। आनूंद में समय होता ही नही ूं। जि आप
आनूंद में होूंर्े ति आपिे पास समय नही ूं होर्ा। असि में , समय और दु ख एि ही चीज िे दो नाम हैं । टाइम
जो है वह दु ख िा ही नाम है , समय जो है वह दु ख िा ही नाम है । मानकसि अथों में समय ही दु ख है । और
इसीकिए हम िहते हैं — आनूंद समयातीत, िािातीत,कियाूं ड टाइम, समय िे िाहर है । तो जो समय िे िाहर
है , उसे समय िे द्वारा नही ूं पाया जा सिता।

मब्धि अकाि है :

चक्कर तो मैंने भी िर्ाए हैं — उतने ही, कजतने आपने। और मजा यह है कि इतना िूंिा है हमारा
चक्कर कि उसमें किसने िम िर्ाए, ज्यादा िर्ाए, िहुत मुक्तिि है । महावीर पच्चीस स साि पहिे पा र्ए
उसे, िुद्ध पा र्ए, जीसस दो हजार साि पहिे पा र्ए, शूं िर हजार साि पहिे उसे पा र्ए। िे किन अर्र िोई
िहे कि शूं िर ने हमसे हजार साि िम चक्कर िर्ाए, तो र्ित िह रहा है , क्ोूंकि चक्कर इतने अनूंत
हैं .....जैसे कि उदाहरण िे किए कि आप िूंिई थे , िूंिई से आप नारर्ोिआए, तो स मीि िी आपने यात्रा िी।
िेकिन जो तारा अूंतहीन दू री पर हमसे है , उस तारे िे खयाि से आपने िोई यात्रा ही नही ूं िी, आप वही ूं िे वही ूं
हैं । िोई ििग नही ूं पड़ता कि आप िूं िई से स मीि इधर आ र्ए। उस तारे िो खयाि में रखें तो आपने िोई
यात्रा ही नही ूं िी। उस तारे से आपिी दू री अि भी वही है , जो आपिी िूंिई में थी। तो आप पृथ्वी पर िही ूं भी
चिे जाएूं , उस तारे से आपिी दू री वही है ; क्ोूंकि वह तारा इतनी दू री पर है कि आपिे ये िासिे िोई अूंतर
नही ूं िाते ।

हमारे जन्मोूं िी यात्रा इतनी िूंिी है कि ि न पच्चीस स साि पहिे, ि न पाूं च स साि पहिे , िोई
पाूं च कदन पहिे ,िोई पाूं च घूंटे पहिे , िोई ििग नही ूं पड़ता। कजस कदन हम उस िेंद्र पर पहुूं चते हैं , हम दे खते
हैं , अरे ! अभी िु द्ध आ ही रहे हैं ,अभी महावीर घु स ही रहे हैं , अभी जीसस िा प्रवे श ही हुआ है , और हम भी
पहुूं च र्ए! मर्र वह जरा समझना िकठन है , क्ोूंकि हम कजस दु कनया में जीते हैं , वहाूं समय िहुत महत्वपूणग है ।
वहाूं समय िहुत महत्वपूणग है । और इसकिए स्वभावत: हमारे मन में सवाि उठता है कितनी दे र ?

बाहर चक्कर िगाना बांद करें :

िेकिन मत उठाएूं इस सवाि िो, दे री िी िात ही मत िरें ; चक्कर िर्ाना िूंद िरें , चक्कर में दे री िर्
जाएर्ी; मूंकदर िे िाहर मत घूमें, भीतर चिे जाएूं । िेकिन डर िर्ता है मूंकदर िे भीतर जाने में —पता नही,ूं क्ा
हो! मूंकदर िे िाहर सि पररकचत है — कमत्र हैं , कप्रयजन हैं , पत्नी है , िेटा है , घर है , द्वार है , दु िान है —मकदर िे
िाहर सि अपना है । और मूंकदर में एि शतग है कि वहाूं अिेिे ही भीतर प्रवेश होता है ; वहाूं दो आदमी दरवाजे
से एिदम जा नही ूं सिते । तो इस सि—मिान िो, पत्नी िो, िच्चे िो, धन िो, कतजोड़ी िो, यश िो, पद—
प्रकतष्ठा िो—इस सििो िेिर घुस नही ूं सिते भीतर, यह सि िाहर छोड़ना पड़ता है । इसकिए हम िहते हैं कि
ठीि है , अभी थोड़ा िाहर और चक्कर िर्ा िें। किर हम िाहर चक्कर िर्ाते रहें , हम उस क्षण िी प्रतीक्षा में हैं
कि जि दरवाजा जरा ज्यादा खु िा हो, ति हम सि िे सि एिदम से भीतर हो जाएूं र्े।

वह दरवाजा ज्यादा िभी नही ूं खु िता, वहाूं से एि ही प्रवेश िरता है । आप भी अपने पद िो िे िर भी


प्रकवष्ट नही ूं हो सिते , क्ोूंकि दो हो जाएूं र्े — आप और आपिा पद। अपने नाम िो िे िर भी प्रवेश नही ूं िर
सिते , क्ोूंकि दो हो जाएूं र्े — आप और आपिा नाम। वहाूं िुछ भी िे िर.. .वहाूं तो
किििुि टोटिी नैिेड, एिदम नग्न और अिेिे वहाूं प्रवेश िरना पड़ता है । इसकिए हम िाहर घूमते रहते
हैं , हम मूंकदर िे िाहर ही डे रा डाि दे ते हैं । हम िहते हैं कि भर्वान िे पास ही तो हैं , िोई ज्यादा दू र तो नही ूं।
िेकिन मूंकदर िे िाहर आप र्ज भर िी दू री पर हैं , कि हजार र्ज िी दू री पर हैं , कि हजार मीि िी दू री पर
हैं , िोई ििग नही ूं पड़ता; मूंकदर िे िाहर हैं तो िस िाहर हैं । और भीतर जाना हो, तो एि क्षण िे हजारवें कहस्से
में मैं िह रहा हूं ठीि नही ूं है वह िहना, किना क्षण िे भी भीतर प्रवेश हो सिता है ।

ज्ञान की उपिब्धि जनजिओचार में:

प्रश्न:
ओशो ज्ञान क्ा जनजिओचार अिस्था में ही रहता है मूत्र जिचार की अिस्था में ज्ञान रहता है जक नही ां
रहता है ?

इसिो अूंकतम प्रश्न मान िें , किर िोई और प्रश्न होूं तो रात िर िेंर्े। आप पूछते हैं कि जो ज्ञान है वह
कनकवग चार अवस्था में ही रहता है और कवचार में नही ूं रहता क्ा?

ज्ञान िी उपिक्ति कनकवगचार में होती है । और उपिक्ति हो जाए तो वह हर अवस्था में रहता है । किर तो
कवचार िी अवस्था में भी रहता है । किर तो उसे खोने िा िोई उपाय नही ूं है । िेकिन उपिक्ति कनकवग चार में होती
है । अकभव्यक्तक्त कवचार से भी हो सिती है , िेकिन उपिक्ति कनकवग चार में होती है । उसे पाना हो तो कनकवगचार होना
पड़े । क्ोूं कनकवगचार होना पड़े ? क्ोूंकि कवचार िी तरूं र्ें मन िो दपगण नही ूं िनने दे ती ूं।

जैसे समझें, एि कचत्र उतारना हो िैमरे से । तो उतारने में तो एि कवशे ष अवस्था िा ध्यान रखना पड़े
कि िैमरे में प्रिाश न चिा जाए, िैमरा न कहि जाए। िेकिन एि दिा कचत्र उतर र्या, तो किर
खू ि कहिाइए, और खू ि प्रिाश में रक्तखए। उससे िोई किर ििग नही ूं पड़ता। िे किन उतारने िे क्षण में तो
िैमरा कहि जाए तो सि खराि हो जाए। एि दिा उतर जाए तो िात खतम हो र्ई। किर
खू ि कहिाइए और नाकचए िेिर, तो िोई ििग नही ूं पड़ता।

ज्ञान िी उपिक्ति कचि िी उस अवस्था में होती है जि िुछ भी नही ूं कहिता, सि शाूं त और म न है ।
ति तो ज्ञान िा कचत्र पिड़ता है । िेकिन पिड़ जाए एि दिे, तो किर खू ि नाकचए, खू ि कहकिए, िुछ भी
िररए, किर िोई ििग नही ूं पड़ता। ज्ञान िी उपिक्ति कनकवगचार में है । और कवचार किर िोई िाधा नही ूं डािता।
िेकिन अर्र सोचते होूं कि कवचार से उपिक्ति िर िेंर्े,तो िभी न होर्ी, कवचार िहुत िाधा डािेर्ा। उपिक्ति में
िहुत िाधा डािे र्ा, उपिक्ति िे िाद कवचार किििुि नपुूंसि है । किर उसिी िोई ताित नही ूं है । किर वह
िुछ भी नही ूं िर सिता।

यह िहुत मजे िी िात है कि शाूं कत िी जरूरत प्राथकमि है , ज्ञान िो पाने में। ज्ञान पा िे ने िे िाद
किसी चीज िी िोई जरूरत नही ूं है । िेकिन वे िाद िी िातें हैं । और िाद िी िातें पहिे िभी नही ूं िरनी
चाकहए, नही ूं तो नुिसान होता है ।

नुिसान यह होता है कि हम सोचने िर्ते हैं कि जि िाद में िोई ििग नही ूं पड़े र्ा तो अभी भी क्ा
हजग है !

ति नुिसान हो जाएर्ा। किर हम िैमरा कहिा दें र्े, सि र्ड़िड़ हो जाएर्ा। कचत्र तो कहिा हुआ िैमरा
भी उतारता है ,िेकिन वह सत्य कचत्र नही ूं होता; वह टू नही ूं होता। वह भी उतारता है ; कवचार में भी ज्ञान िा ही
पता चिता है , िेकिन वह ठीि नही ूं होता, क्ोूंकि कहिता रहता है मन पूरे समय, िूंपता रहता है । इसकिए िुछ
िा िुछ िन जाता है ।

जैसे चाूं द कनििा हो और सार्र में िहरें होूं, तो चाूं द िा प्रकतकिूं ि तो िनेर्ा ही, िेकिन सार्र में हजार
चाूं द िे टु िड़े टू टिर िैि जाएूं र्े। और अर्र किसी ने आिाश िा चाूं द न दे खा हो तो सार्र में दे खिर पता न
िर्ा पाएर्ा कि चाूं द िैसा है । हजार टु िड़े होिर चाूं द िहरोूं पर िैि जाएर्ा; चाूं दी किखर जाएर्ी
उसिी, िेकिन चाूं द िा किूंि नही ूं पिड़ में आएर्ा। एि दिा किूंि पिड़ में आ जाए कि चाूं द िैसा है , किर तो
सार्र में किखरी हुई िहरोूं में भी हम पहचान िेते हैं कि तु म ही हो। िे किन एि िार हम उसे दे ख तो िें। एि
िार उसिी शक्ल हमारे खयाि में आ जाए, किर तो सभी शक्लोूं में वह कमि जाता है । िे किन एि दिा पहचान
ही न हो पाए, तो वह िही ूं भी हमें नही ूं कमिता है । कमिता है रोज, िेकिन हम ररिग्नाइज नही ूं िर पाते , हम
पहचान नही ूं पाते कि यही है ।

एि छोटी सी घटना से मैं िहूं किर हम ध्यान िे किए िैठें।

साईूं िािा िे पास एि कहूं दू सूं न्यासी िहुत कदन ति था। कहूं दू सूं न्यासी, और साईूं तो रहते थे मक्तिद में।
साईूं िािा िा िुछ पक्का नही ूं कि वे कहूं दू थे कि मुसिमान। ऐसे आदकमयोूं िा िभी िुछ पक्का नही ूं। िोर्
पूछते तो वे हूं सते थे। अि हूं सने से तो िुछ पता चिता नही ूं! एि ही िात पता चिती है कि पूछनेवािा नासमझ
है । कहूं दू सूं न्यासी था, िेकिन वह तो मक्तिद में िैसे रुिे साईूं िे पास! तो वह र्ाूं व िे िाहर एि मूंकदर में रुिता
था। िर्ाव उसिा था, प्रेम उसिा था, रोज खाना िनािर िाता था। साईूं िो खाना दे ता, किर जािर खाना
खाता। साईूं िािा ने उससे िहा कि तू इतनी दू र क्ोूं आता है ? हम तो िई िार वही ूं से कनििते हैं , ति तू वही ूं
क्तखिा कदया िर! उसने िहा, आप वहाूं से कनििते हैं ? िभी दे खा नही ूं! तो साईूं ने िहा कि जरा र् र से
दे खना; हम िई िार ते रे मूंकदर िे पास से कनििते हैं , वही ूं क्तखिा दे ना। िि हम आ जाएूं र्े , तू मत आना।

िि उस कहूं दू सूं न्यासी ने िनािर खाना रखा, अि दे खता है, दे खता है , दे खता है । वे आते नही ूं, आते
नही,ूं आते नही ूं! वह घिड़ा र्या, दो िज र्ए, तो उसने िहा कि िड़ी मुक्तिि हो र्ई, वे भी भूखे होूंर्े और मैं भी
भूखा िैठा हूं । किर वह थािी िे िर भार्ा। साईूं िे पास पहुूं चा, साईूं से उसने िहा कि हम राह दे खते रहे , आज
आप आए नही ूं। उन्ोूंने िहा कि आज भी आया था,रोज आता हूं िे किन तू ने तो दु त्कार कदया। उसने
िहा, िहाूं दु त्कारा? कसिग एि िुिा आया था। तो साईूं ने िहा कि वही मैं था। ति तो वह कहूं दू सूंन्यासी िहुत
रोया, िहुत दु खी हुआ। उसने िहा कि आप आए और मैं पहचान न पाया! िि जरूर पहचानजाऊूंर्ा।

अर्र िुिे िी ही शक्ल में िि भी आते तो पहचान जाता। िि भी वे आए, िेकिन एि िोढ़ी था रास्ते
पर कमिा। उस सूंन्यासी ने िहा कि जरा दू र से ! दू र से ! मैं भोजन किए हुए हूं साईूं िा, जरा दू र से कनििो!
वह िोढ़ी हूं सा भी। किर दो िज र्ए, किर भार्ा हुआ मक्तिद आया, उसने िहा कि आप आज आए नही,ूं आज
मैंने िहुत रास्ता दे खा। तो साईूं ने िहा कि मैं तो किर भी आया था। िेकिन ते रे कचि में इतनी तरूं र्ें हैं कि रोज मैं
वही तो कदखाई नही ूं पड़ सिता! तू ही िैप जाता है । आज वह एि िोढ़ी आया था, तो तू ने िहा, दू र हट। तो
मैंने िहा, हद हो र्ई! मैं आता हूं तो तू भर्ा दे ता है और यहाूं आिर िहता है कि आप आए नही ूं। तो वह
सूं न्यासी रोने िर्ा, उसने िहा कि मैं आपिो पहचान ही नही ूं पाया। तो साईूं ने उससे िहा था कि तू अभी मु झे
ही नही ूं पहचान पाया, इसकिए दू सरी शक्लोूं में मु झे िैसे पहचान पाएर्ा?

एि िार हम सत्य िी झिि पा िें , तो किर असत्य है ही नही ूं। एि िार हम परमात्मा िो झाूं ि िें , तो
परमात्मा िे अकतररक्त किर िुछ है ही नही ूं। िेकिन वह झाूं िना ति हो पाए जि हमारे भीतर सि शाूं त और
म न हो। किर इसिे िाद तो िोई सवाि नही ,ूं किर तो कवचार भी उसिे हैं , वृकियाूं भी उसिी हैं , वासनाएूं भी
उसिी हैं —किर तो सि उसिा है । िेकिन प्राथकमि चरण में उसे झाूं िने और पहचानने िे किए सि िा रुि
जाना जरूरी है ।

प्रयोग : कां डजिनी जागरण और ध्यान का:

अि हम ध्यान िे किए िैठें।


िासिे पर चिे जाएूं , दू र िैठ जाएूं , ताकि िेटना पड़े तो िेट भी सिें। और िोई िात नही ूं िरे र्ा।
चुपचाप हट जाएूं । कजसे जहाूं हटना हो, हट जाएूं ।.. ....िातचीत नही ूं। िातचीत किििुि नही ूं िरें र्े।..... .िोई
किसी िो छूता हुआ न िैठे, दू र हट जाएूं । और इधर तो इतनी जर्ह है , इसकिए िूंजूसी न िरें जर्ह िी। नाहि
िीच में िोई आपिे ऊपर कर्र जाए, िुछ हो, तो सि खराि होर्ा। हट जाएूं दू र—दू र...... .शीघ्रता से िैठ जाएूं
या िेट जाएूं , कजसे जैसा िरना हो वैसा िर िे। आूं ख िूंद िर िें और जैसा मैं िहूं वैसा िरें ।

पहिा चरण : तीव्र ि गहरी श्वास की चोट:

आूं ख िूंद िर िें , र्हरी श्वास िेना शु रू िरें । कजतनी र्हरी िे सिें िें और कजतनी र्हरी छोड़ सिें
छोड़े । सारी शक्तक्त श्वास िे िेने और छोड़ने में िर्ा दे नी है । र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े । कसिग श्वास ही
रह जाए। सारी शक्तक्त िर्ा दे नी है । कजतनी र्हरी श्वास िेंर्े —छोड़ें र्े, उतनी ही भीतर ऊजाग िे जर्ने िी
सूं भावना िढ़े र्ी। र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े .. ....र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े । र्हरी श्वास िें
और र्हरी श्वास छोड़े । दस कमनट पूरी शक्तक्त से र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े ।

िस आप श्वास िेनेवािे एि यूंत्र ही रह जाएूं , इससे ज्यादा िुछ भी नही ूं। कसिग श्वास िे रहे हैं , छोड़ रहे
हैं , दस कमनट ति। किर मैं दू सरा सू त्र िहूं र्ा, पहिे दस कमनट पूरा श्रम श्वास िे साथ िरें ।

र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े .. .पूरी शक्तक्त िर्ाएूं । कसिग श्वास िे ने िे एि यूंत्र मात्र रह जाए—
एि ध ि
ूं नी, जो श्वास िे रही, छोड़ रही।.... .एि—एि रोआूं िैपने िर्े..... .पूरी र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास
छोड़े ..... .र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े .. .र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोडे । िस श्वास िेने िा एि यूंत्र मात्र रह
जाएूं ..... .सारी शक्तक्त, सारा ध्यान श्वास िेने में ही िर्ा दें ..... .र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े । और भीतर दे खते
रहें .. .श्वास भीतर र्ई, श्वास िाहर र्ई..... .श्वास भीतर र्ई, श्वास िाहर र्ई। साक्षी रह जाएूं , दे खते रहें —श्वास भीतर
जा रही, श्वास िाहर जा रही..... .सारा ध्यान श्वास पर रखें और सारी शक्तक्त िर्ा दें ।

अि मैं दस कमनट िे किए चुप हो जाता हूं । आप र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े और भीतर ध्यानपू वगि
दे खते रहें—श्वास आई, श्वास र्ई। दू सरे िी जरा भी कििर न िरें , अपनी कििर िरें ...... .पूरी शक्तक्त िर्ा दें
और दू सरे पर िोई ध्यान न दें , दू सरे से िोई सूं िूंध नही ूं है । र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ...... और भीतर दे खते
रहें —श्वास भीतर र्ई, श्वास िाहर र्ई। श्वास स्पष्ट कदखाई पड़ने िर्ेर्ी—यह श्वास भीतर र्ई, यह श्वास िाहर
र्ई......पूरी शक्तक्त िर्ाएूं , ताकि कजसे मैं शक्तक्त िा िुूंड िह रहा हूं वहाूं से ऊजाग उठनी शु रू हो जाए..... .यह
पूरा वातावरण श्वास िेता हुआ मािूम पड़ने िर्े.. ....र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ...... और र्हरी, और
र्हरी, और र्हरी। सारा व्यक्तक्तत्व िैप जाए, तू िान िी तरह र्हरी श्वास िें , छोड़े । र्हरी श्वास िें और र्हरी
छोड़े । र्हरी श्वास िें और छोड़े । र्हरी श्वास.. ....र्हरी श्वास...

(साधको को अनेक प्रकार की शारीररक प्रजक्याएां होने िगी ां और उनके मांह से अनेक तरह की
आिाजें भी जनकिने िगी. कछ िोग ऊssss…. ऊsss….. ऊssss….. करने िगे।)

र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े । और भीतर दे खते रहें —श्वास आई, श्वास र्ई.. ....श्वास आई, श्वास
र्ई...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं .. ....यह एि ही िात पर सारी शक्तक्त िर्ा दें , र्हरी श्वास िें, र्हरी
श्वास छोड़े । और भीतर दे खते रहें —श्वास आई, श्वास र्ई.. ....श्वास आ रही, श्वास जा रही। अपने िो जरा भी
न िचाएूं , पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...

श्वास िे र्हरे िूंपन भीतर किसी शक्तक्त िो जर्ाने में शु रुआत िरें र्े। र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास
छोड़े ...... भीतर िोई सोई हुई ज्योकत र्हरी श्वास से र्ोर्ी..... र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ..... .र्हरी श्वास
िें, र्हरी श्वास छोड़े .....एि यूंत्र मात्र...... .श्वास भीतर जा रही है , श्वास िाहर जा रही है ...... पूरी शक्तक्त िर्ा दें ..
.....पूरी शक्तक्त िर्ा दें ......पूरी शक्तक्त िर्ा दें .. .दू सरे सू त्र पर जाने िे पहिे पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... र्हरी से र्हरी
श्वास िें और छोड़े .......सारा शरीर िैप जाए, सारी जड़ें िैप जाएूं , सारा व्यक्तक्तत्व िूंप जाए.....एि आधी िी तरह
हाित पैदा िर दें .......श्वास ही रह जाए। पूरी शक्तक्त िर्ा दें .. .दू सरे सू त्र पर प्रवेश िे पहिे पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..
आपिी चरम क्तस्थकत में ही दू सरे सू त्र पर प्रवेश होर्ा।

(चारोां ओर साधकोां को अनेक तरह की यौजगक प्रजक्याएां हो रही हैं ......तीव्रता के साथ उन्ें कत
से योगासन प्राणायाम अनेक तरह की मद्राएां और बांध आप ही आप हो रहे हैं . कई िोगोां के मांह से
जिजचत्र तरह की आिाजें जनकि रही हैं ....... आिाजें ऊांउठऽ..... ऊांऽऽठठऽऽ..... आजद। ओशो का
प्रोत्साजहत करना जारी रहता है ........)

र्हरी ताित िर्ाएूं ..... .र्हरी श्वास, र्हरी श्वास, र्हरी श्वास...... अपने िो िचाएूं मत, पूरा िर्ा है ..
...जरा भी निचाएूं । भीतर सोई हुई शक्तक्त िो जर्ाना है .. पूरी शक्तक्त िर्ा दें ..... .र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास
छोड़े ..... र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े

छोड़ दें ......पूरी ताित िर्ाएूं , अपने िो रोिें नही ूं। भीतर सोई हुई कवदि् युत िे जार्ने िे किए जरूरी है
र्हरी श्वास िें ,र्हरी श्वास छोड़े ......शरीर िा रोआूं —रोआूं जीवूंत हो जाए...... शरीर िा रोआूं —
रोआूं िैपने िर्े...... पूरी ताित िर्ाएूं — र्हरी श्वास. र्हरी श्वास......र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास.....र्हरी श्वास......
सारी ताित िर्ा दें ..... पूरी ताित िर्ाएूं । दो कमनट पूरी ताित िर्ाएूं तो हम दू सरे सू त्र में प्रवेश िरें

यह पूरा वातावरण चाब्दग हो जाए..... र्हरी श्वास िें और छोड़े । यह सारा वातावरण कवदि् युत िी िहरोूं से
भर जाएर्ा....... र्हरी श्वास िें और छोड़े ..... र्हरी श्वास िें और छोड़े .....र्हरी िें , र्हरी छोड़े ..... पूरी शक्तक्त
िर्ाएूं .......र्हरी श्वास....... और र्हरी

श्वास... और र्हरी श्वास.. और र्हरी श्वास...... और र्हरी श्वास..... और र्हरी श्वास... और र्हरी
श्वास.....और र्हरी र्हरी.. और र्हरी...... और र्हरी... और र्हरी...... और र्हरी....... और र्हरी...... और
र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी र्हरी.. और र्हरी....... और र्हरी

(अनेक तरह की आिाजें आ रही हैं िोग रो और चीख रहे हैं .......)
र्हरी से र्हरी श्वास िें.. .र्हरी से र्हरी श्वास िें..... .र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास..... .र्हरी
श्वास..... दू सरा सू त्र जोड़ना है । एि कमनट र्हरी श्वास िें — पूरी र्हरी श्वास......पूरी र्हरी श्वास..... पूरी र्हरी
श्वास....... और र्हरी र्हरी...... और र्हरी. किसी दू सरे पर ध्यान न दें , अपने भीतर सारी ताित िर्ाएूं — और
र्हरी...... और र्हरी... और र्हरी र्हरी...... और दू सरा सू त्र जोड़ दें ।

दू सरा चरण : तीव्र श्वास के साथ शारीररक जक्याएां

दू सरा सू त्र है, शरीर िो पूरी तरह छोड़ दे ना है —र्हरी श्वास िें और शरीर िो छोड़ दें ...... रोना
आए, आने दें ...... आूं सूकनििें , िहने दें .. .हाथ—पैर िैंपने िर्ें , िूंपने दें ...... .शरीर डोिने िर्े , घूमने िर्े , घूमने
दें ...... शरीर खड़ा हो जाए, नाचने िर्े ,नाचने दें । पू री र्हरी श्वास िें और शरीर िो छोड़ दें .......शरीर िो जो होता
हो, होने दें —र्हरी श्वास......र्हरी श्वास....... र्हरी श्वास...... अि दस कमनट ति र्हरी श्वास जारी रहे र्ी और शरीर
िो किििुि ढीिा छोड़ दें —जो मुद्राएूं िनती होूं, िनें , जो आसन िनते होूं, िनें— शरीर िोटता हो िोटे , नाचता
हो नाचे...... शरीर िो छोड़ दें , कसिग द्रष्टा रह जाएूं ..... .शरीर िो जरा भी रोिें नही —
ूं र्हरी श्वास.......र्हरी
श्वास......र्हरी श्वास...... और शरीर िो किििुि छोड़ दें .......जो भी होता हो, होने दें —शरीर िो जरा भी रोिें
नही ूं।

अि दस कमनट ति र्हरी श्वास जारी रहे र्ी और शरीर िो किििुि ढीिा छोड़ दें — शरीर िो जो होता
है , होने दें ......िोई सूं िोच न िें......र्हरी श्वास...... .र्हरी श्वास.. र्हरी श्वास...... आूं सू आएूं , आने दें ......रोना
कनििे , कनििे..... .जो भी होता हो,होने दें ।

(चारोां ओर साधकोां का नाचना कूदना जचल्लाना और अनेक तरह की आिाजें जनकािना। एक


व्यब्धि के मांह से िांबेसायरन की सी आिाज जनकिने िगी...... ओशो का सझाि दे ना जारी रहा......)

शरीर िो किििुि छोड़ दें । शरीर अपने आप डोिने िर्ेर्ा, चक्कर खाने िर्ेर्ा। शक्तक्त भीतर उठे र्ी
तो शरीर िूंपेर्ा,िूंकपत होर्ा, डोिे र्ा। भीतर से शक्तक्त उठे र्ी तो शरीर आूं दोकित होर्ा, उसे छोड़ दें ......शरीर
िो किििुि छोड़ दें ... र्हरी श्वास जारी रखें और शरीर िो छोड़ दें । शरीर िो जो होता हो, होने दें ......उसे जरा
भी नही ूं रोिें......र्हरी श्वास...... और र्हरी श्वास....... और र्हरी श्वास.. और र्हरी श्वास

(िोगोां का चीखना, जचल्लाना मांह से अनेक तरह की आिाजें जनकािना तथा शरीर में जिजिध
गजतयोां का होना.......)

र्हरी श्वास.......र्हरी श्वास.. ....र्हरी श्वास....... और शरीर िो छोड़ दें । ध्यान रहे , शरीर पर िही ूं िोई
रुिावट न रहे । जो शरीर िो होना है , होने दें । उससे शक्तक्त िे ऊपर पहुूं चने में मार्ग िनेर्ा। छोड़ दें ...... .शरीर
िो ढीिा छोड़ दें , र्हरी श्वास जारी रखें , उसे ढीिा न िरें .. ….श्वास र्हरी चिे , शरीर िो कशकथि छोड़ दें ......
.शरीर िो जो होता है , होने दें .. ....िैठता हो िै ठे,कर्रता हो कर्रे , खड़ा होता हो, हो जाए—जो होता है , होने दें ......
.र्हरी श्वास जारी रखें ......

(अनेक आिाजोां के साथ िोगोां का ते जी से उछिना कूदना......)

र्हरी....... और र्हरी....... और र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी.......


और र्हरी..... और र्हरी (िुछ िोर्ोूं िा तीव्र आवाज में हुूं िारना...... अनेि शारीररि प्रकतकक्रयाएूं चिती
रही.......)

िुछ िचाएूं न, सि दाूं व पर िर्ा दें ....... .पूरी शक्तक्त दाूं व पर िर्ा दें । दे खें , िचा रहे हैं । िहुत िुछ िचा
िेते हैं । पूरा दाूं व पर िर्ा दें । र्हरी श्वास, र्हरी श्वास...... शरीर िो छोड़े — जो होता है , होने दें ....... छोड़े ......
.हूं सना आ जाए, आ जाने दें .. .....रोना आए, आने दें ...... आवाज कनििे , कनिि जाने दें ...... .उसिी िोई कचूंता न
िें, जरा न रोिें — िस आप र्हरी श्वास िें और छोड़ दें .......

(िोगोां का चीखना जचल्लाना नाचना कूदना हुां कार और चीत्कार करना.......)

छोड़े .. .....शक्तक्त उठ रही है .. ....छोड़े शरीर िो...... .र्हरी श्वास िें...... .र्हरी श्वास िें..... .र्हरी श्वास िें
और शरीर िो छोड दें । शरीर में िुछ जार्ेर्ा तो शरीर िूंकपत होर्ा, घूमेर्ा, नाच सिता है , रो सिता है , कचल्रा
सिता है —छोड़ दें ...... .शरीर िो छोड़ दें ..... .शरीर िो किििुि छोड़ दें .. .....जरा सूं िोच न िें.. .....शरीर िो
किििुि छोड़ दें ...

(अनेक साधकोां के मांह से पशओां की आिाजें जनकिना...... से ना जचल्लाना नाचना...... मांह से


कत्ते की आिाज....... जसां ह की गजओना....... हाथ— पैर पीटना...... छटपटाना.......)

र्हरी श्वास...... और र्हरी...... अपनी शक्तक्त श्वास पर िर्ाएूं और छोड़ दें — शरीर िो जो होता है , होने
दें .. ....जरा भी सूं िोच नही ूं...... जरा भी न रोिें.. .दू सरे िी कििर न िरें ..... शरीर िो छोड़े । शक्तक्त जर्ेर्ी तो
िहुत िुछ होर्ा— रोना आ सिता है , शरीर िूंपेर्ा, अूंर् कहिेंर्े, मुद्राएूं िनेंर्ी, शरीर खड़ा हो सिता है ..... .छोड़
दें — जो होता है , होने दें ...... आप अिेिे हैं और िोई नही ूं... छोड़े .. ....र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी
श्वास..... .एि दो कमनट पूरी मेहनत िरें ...... तीसरे सू त्र पर जाने िे पहिे पूरी मेहनत िें —र्हरी श्वास िें... र्हरी
श्वास िें..... .र्हरी श्वास िें..... .र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें..... .र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें... और शरीर
िो छोड़ दें —जो होता है , होने दें ...... शरीर िो छोड़ दें ...... जो होता है , होने दें ...... जरा भी नही ूं रोिेंर्े। दे खें िुछ
कमत्र रोि िेते हैं , रोिें मत, छोड़े ...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं और छोड़े ...... छोड़े ...... रोना है ,पूरे मन से रोएूं , रोिें नही ूं।
आवाज कनििती है , दिाएूं नही ूं...... कनिि जाने दें । शरीर खड़ा होता है , सम्हािे न, हो जाने दें । नाचता है , नाचने
दें । शरीर िो पूरी तरह छोड़ दें , तभी सोई हुई शक्तक्त अपना मार्ग िना सिती है । छोड़े ...... र्हरी श्वास िें .
.....र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास.. ....र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास...... और र्हरी...... और र्हरी...... और
र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी......

(कछ िोगोां का तीव्र हुां कार करना.... अनेक िोगोां का से ना..... चीखना.. नाचना..... आजद....)

पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... श्वास र्हरी... और र्हरी...... और
र्हरी...... िैप जाने दें पूरे व्यक्तक्तत्व िो, कहि जाने दें ... जो होता है , होने दें ...... छोड दें । र्हरी शक्तक्त िर्ाएूं , र्हरी
शक्तक्त िर्ाएूं ....... और र्हरी श्वास िें...... और र्हरी श्वास िें। पूरे शरीर में कवदि् युत द ड़ने िर्ेर्ी...... पूरे शरीर में
कवदि् युत द डने िर्ेर्ी... छोड़े ... आक्तखरी एि कमनट, जोर से ताित िर्ाएूं , तीसरे सू त्र में जाने िे किए— र्हरी
श्वास... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास....... और र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी...... पूरी ताित
िर्ाएूं , तीसरे चरण में र्कत हो सिे....... और र्हरी श्वास िें....... पूरी शक्तक्त िर्ा दें ...... और र्हरी श्वास िें... ...और
र्हरी श्वास िें , और र्हरा....... और र्हरा...... और र्हरा...

तीसरा चरण : पूछें—मैं कौन हां ?

और अि तीसरा सू त्र जोड़ दें ! श्वास र्हरी जारी रहेर्ी, शरीर िी र्कत जारी रहे र्ी....... और तीसरा सू त्र—
भीतर पूरी शक्तक्त से पूछने िर्ें.... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?...... भीतर पूछें..... .श्वास—श्वास में एि ही
प्रश्न भर जाए—मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?..... .श्वास ते जी से जारी रहे और भीतर पूछें—मैं ि न हूं ? शरीर िी िूंपन
और र्कत जारी रहे और भीतर पूछें—मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?..... .दो ' मैं ि न हूं ?' िे िीच में जर्ह न रहे । पूरी
शक्तक्त िर्ाएूं ..... .मैं ि न हूं ?.. ….मैं ि न हूं ?.. ….एि दस कमनट सारी शक्तक्त िर्ा दें — मैं ि न हूं ?..... .मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? पूरी ताित िर्ाएूं । प्राण भीतर एि ही र्ूंज से भर
जाएूं —मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? ताित से पूछें। भीतर सारे प्राणोूं में एि र्ज उठने िर्े —
मैं ि न हूं ? र्हरी श्वास जारी रहे , शरीर िो जो होना है होने दें । और पूछें, मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?एि दस कमनट
पूरी शक्तक्त िर्ा िें , किर दस कमनट िे िाद हम कवश्राम िरें र्े। िर्ाएूं पूरी शक्तक्त.. .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं
ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?

(अनेक आिाजोां के साथ साधकोां की तीव्र प्रजतजक्याएां ......)

पूरी शक्तक्त िर्ाएूं । जरा भी रोिें नही ूं। जोर से भीतर पूछें —मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ?एि आूं धी उठा दें भीतर..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं . .श्वास र्हरी रहे , सवाि र्हरा
रहे —मैं ि न हूं ? शरीर िो जो होना है , होने दें ..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं
ि न हूं ? मैं ि न हूं ? यह पूरा वातावरण पूछने िर्े , ये रे त िे िण—िण पूछने िर्ें , यह आिाश, ये वृक्ष, ये सि
पूछने िर्ें —मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?..... .पूरा वातावरण मैं ि न हूं से भर जाए..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ?......

(चारोां ओर से रोने की आिाजें...... तीव्र शारीररक हिचि..... अनेक तरह की आिाजें......)

पूरी शक्तक्त िर्ाएूं , किर कवश्राम िरना है ....... और कजतनी शक्तक्त िर्ाएूं र्े , उतने ही कवश्राम में प्रवे श
होर्ा। कजतनी ऊूंचाई पर आधी उठे र्ी, उतनी ही र्हरे ध्यान में र्कत होर्ी। च था सू त्र ध्यान िा होर्ा। आप पूरी
शक्तक्त िर्ाएूं , क्लाइमेक्स पर,कजतना आप िर सिते होूं, िर्ा दें —िहने िो न िचे कि मेरे पास िोई ताित
शे ष रह र्ई थी...... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? र्हरी श्वास...... .र्हरी श्वास...... भीतर पूछें—
मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? पूरी ताित से पू छें, िाहर भी
कनिि जाए कििर न िरें । पूछें भीतर—मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? पूरी ताित िर्ाएूं ...... .पूरी ताित िर्ाएूं ...... .पूरी ताित िर्ाएूं ....... शरीर िो जो होता है , होने
दें ...... .शरीर कर्रे , कर्र जाए...... .रोना कनििे , कनििे...... .पूरी ताित िर्ाएूं —मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?

(रोने — जचल्लाने की अनेक आिाजें.......)

पूरी िर्ाएूं ..... .जरा भी रोिें नही ूं..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? पूरी िर्ाएूं , पूरी
ताित िर्ाएूं —मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? रोिें नही ूं..... .रोिें नही ूं...... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? पूरी शक्तक्त िर्ा दें ...

(कछ िोगोां का रुक— रुककर हुां कार करना..... अनेक आिाजें..... रोना चीखना जचल्लाना
पशओां की आिाजें मांह से जनकािना.....)

मैं ि न हूं ? पूरी शक्तक्त िर्ाएूं । पाूं च कमनट ही िचे हैं , पूरी शक्तक्त िर्ा दें ..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं
ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? शरीर िा रोआूं —रोआूं पूछने िर्े —मैं ि न हूं ? हृदय िी धड़िन— धड़िन
पूछने िर्े —मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? पूरे क्लाइमेक्स पर, चरम पर अपने िो पहुूं चा दें ...... आक्तखरी
सीमा पर पहुूं चा दें ..... .किििुि पार्ि हो जाएूं ..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं
ि न हूं ? किििुि पार्ि हो जाएूं पूछने में..... .सारी शक्तक्त िर्ा दें ..... .पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... आक्तखरी, पूरी शक्तक्त
िर्ाएूं ..... .किर तो कवश्राम िरना है ..... .पूरी शक्तक्त िर्ाएूं — मैं ि न हूं ?मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं
ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?...... थिा डािें अपने िो.. ....मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं
ि न हूं ? आधी उठा दें ....... अि दो कमनट ही िचे हैं ..... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..... .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? शरीर िो जो
होता है , होने दें ...... .शक्तक्त पूरी िर्ा दें । दो कमनट तू िान उठा दें —मैं ि न हूं ? मै ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? एि ही कमनट िचा है , पूरी शक्तक्त
िर्ाएूं ,किर कवश्राम िरना है . .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? शरीर िो जो होता है , होने दें । र्हरी श्वास...... .र्हरी
श्वास...... .र्हरी श्वास....... र्हरी श्वास...... .र्हरी श्वास...... .र्हरी र्हरी श्वास....... र्हरी श्वास........

(अनेक िोगोां का तीव्र चीत्कार करना...... उछिना कूदना आजद......)

मैं ि न हूं ?...... मैं ि न हूं ?...... .शरीर िूंपता है , शरीर नाचता है —छोड़ दें ...... .मैं ि न हूं ?...... .मैं ि न
हूं ? (साधिोपर चि रही प्रकतकक्रयाएूं िड़ी ते जी पर हैं .....)

च थे सू त्र पर जाने िे किए पूरी शक्तक्त िर्ा दें ..... .मैं ि न हूं ?...... .मैं ि न हूं ?..... .िर्ाएूं पूरी
शक्तक्त……. .िर्ाएूं पूरी जि ति आप पूरी न िर्ािे च थे सू त्र पर नही ूं चिेंर्े.. .मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं.... ि न हूं ? मैं...... ि न ह.....'' मैं ि न हूं ..... . मैं ि न हूं ... ि न ह..... ' ि न ह..... ' छ ह..... 'ि न
ह..... 'ि न ह? ' ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? पूरी
शक्तक्त िर्ा दें ....... मैं ि न हूं ? किर हम च थे पर चिें... मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न
हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?

(अनेक िोगोां का हुां कार चीत्कार आजद करना.......)

पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ... छोड़े मत...... जरा भी न िचाएूं , पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास......
र्हरी श्वास र्हरी श्वास... र्हरी श्वास..... मैं ि न हूं —..... मैं ि न हूं —...... मैं ि न हूं — मैं ि न हूं ?.... मैं ि न हूं
—.... मैं ि न हूं ......

चौथा चरण : पूणओ जिश्राम—शाां त, शू न्य, जाग्रत, मौन, प्रतीक्षारत:

और अि सि छोड़ है . .च थे सू त्र पर चिे जाएूं —कवश्राम में। न पूछें, न र्हरी श्वास िें —सि छोड़ दें । दस
कमनट िे किए कसिग पड़े रह जाएूं — जैसे मर र्ए; जैसे हैं ही नही,ूं सि छोड़ दें । दस कमनट कसिग छोडि् िर पड़े
रह जाएूं , उसिी प्रतीक्षा में। छोड़ दें —न पूछें, न श्वास र्हरी िें , िस पड़े रह जाएूं । सार्र िा र्जगन सु नाई
पड़े , सु नते रहें , हवाएूं वृक्षोूं में आवाज िरें , सु नते रहें , िोई पक्षी शोर िरे , सु नते रहें — दस कमनट मर र्ए...... .हैं
ही नही ूं..... .दस कमनट मर र्ए...... .हैं ही नही ूं।

(समद्र का गजओन है ..... पजक्षयोां की आिाजें. हिा की सरसराहट...... कही—


ां कही ां जकसी का
कभी— कभी सबकना...... जहचकी िेना.. ....कराहना.. शे ष सब शाां त है ...... साधकोां का क्मश: शाां त
तथा जनिःशब्द होते चिे जाना...... जकसी का बीच में दो— चार तीव्र श्वास—प्रश्वास िेना और शाां त हो
जाना..... जकसी साधक का शरीर की ब्धस्थजत में कछ पररितओ न करना..... जिर गहरी शाां जत तथा ब्धस्थरता
में चिे जाना......)

धीरे — धीरे अि आूं ख खोि िें। आूं ख न खु िती हो तो दोनोूं आूं खोूं पर हाथ रख िें। जो िोर् कर्र र्ए
हैं , उनसे उठते न िने तो धीरे — धीरे र्हरी श्वास िें और किर उठें । जल्दी िोई न उठे । झटिे से न उठे । िहुत
आकहस्ता से उठ आएूं । किर भी किसी से उठते न िने तो थोड़ी दे र िेटा रहे । धीरे — धीरे उठिर िैठ जाएूं ।
आूं ख खोि िें। कजससे उठते न िने वह थोड़ी र्हरी श्वास िे , किर आकहस्ता से उठे ।

दो एि छोटी सी सू चनाएूं हैं । दोपहर तीन से चार म न में िैठेंर्े। मैं यहाूं िैठूूंर्ा। तीन िे पाूं च कमनट
पहिे ही आप सि आ जाएूं । मैं ठीि तीन िजे आ जाऊूंर्ा। किििुि भी िात यहाूं न िरें । एि शब्द भी प्रयोर्
न िरें । चुपचाप आिर िैठ जाएूं । एि घूंटे मैं चु पचाप यहाूं िैठूूंर्ा। उस िीच किसी िे भी मन में िर्े कि मेरे
पास आना है , तो वह दो कमनट िे किए आिर चुपचाप िैठ जाए और किर अपनी जर्ह चिा जाए। दो कमनट िे
िाद न रुिे, ताकि दू सरे िोर्ोूं िो आना हो तो वे आ सिें। एि घूंटे चुपचाप िै ठिर प्रतीक्षा िरें ।

इस िीच अर्र आप िही ूं भी घूमने जाते हैं — सार्र िे तट पर या िही ूं भी एिाूं त में — तो िही ूं भी
अिेिे में िै ठिर ध्यान मैं ही रहें । ये तीन कदन सतत ध्यान में ही किताने िी िोकशश िरें ।

हमारी सबह की बैठक पूरी हुई।

प्रिचन 3 - ध्यान है महामृत्य

(कां डजिनी—योग साधना जशजिर)

नारगोि

महामृत्य : द्वार अमृत का:

प्रश्न:

एक जमत्र पूछ रहे हैं जक ओशो कां डजिनी जागरण में खतरा है तो कौन सा खतरा है ? और यजद
खतरा है तो जिर उसे जाग्रत ही क्ोां जकया जाए?
खतरा तो िहुत है। असि में, कजसे हमने जीवन समझ रखा है, उस पूरे जीवन िो ही खोने िा
खतरा है । जैसे हम हैं ,वैसे ही हम िुूंडकिनी जाग्रत होने पर न रह जाएूं र्े ; सि िुछ िदिेर्ा—सि िुछ—हमारे
सूं िूंध, हमारी वृकियाूं , हमारा सूं सार; हमने िि ति जो जाना था वह सि िदिेर्ा। उस सििे िदिने िा ही
खतरा है ।

िेकिन अर्र िोयिे िो हीरा िनना हो, तो िोयिे िो िोयिा होना तो कमटना ही पड़ता है । खतरा
िहुत है । िोयिे िे किए खतरा है । अर्र हीरा िनेर्ा तो िोयिा कमटे र्ा तो ही हीरा िनेर्ा। शायद यह आपिो
खयाि में न हो कि हीरे और िोयिे में जाकतर्त िोई ििग नही ूं है ; िोयिा और हीरा एि ही तत्व हैं ।

िोयिा ही िूंिे अरसे में हीरा िन जाता है । हीरे और िोयिे में िेकमििी िोई िहुत िुकनयादी ििग
नही ूं है । िेकिन िोयिा अर्र हीरा िनना चाहे तो िोयिा न रह सिेर्ा। िोयिे िो िहुत खतरा है । और ऐसे ही
मनुष्य िो भी खतरा है —परमात्मा होने िे रास्ते पर िोई जाए, तो मनुष्य तो कमटे र्ा।

नदी सार्र िी तरि द ड़ती है । सार्र से कमिने में िड़ा खतरा है । नदी कमटे र्ी; नदी िचे र्ी नही ूं। और
खतरे िा मतिि क्ा होता है ? खतरे िा मतिि होता है , कमटना।

तो कजनिी कमटने िी तै यारी है , वे ही िेवि परमात्मा िी तरि यात्रा िर सिते हैं । म त इस िुरी तरह
नही ूं कमटाती कजस िुरी तरह ध्यान कमटा दे ता है । क्ोूंकि म त तो कसिग एि शरीर से छु डाती है और दू सरे शरीर
से जुड़ा दे ती है । आप नही ूं िदिते म त में। आप वही िे वही होते हैं जो थे , कसिग वस्त्र िदि जाते हैं । इसकिए
म त िहुत िड़ा खतरा नही ूं है । और हम सारे िोर् तो म त िो िड़ा खतरा समझते हैं । तो ध्यान तो मृत्यु से भी
ज्यादा िड़ा खतरा है ; क्ोूंकि मृत्यु िेवि वस्त्र छीनती है ,ध्यान आपिो ही छीन िेर्ा। ध्यान महामृत्यु है ।

पुराने कदनोूं में जो जानते थे , वे िहते ही यही थे ध्यान मृत्यु है ; टोटि डे थ। िपड़े ही नही ूं िदिते , सि िदि
जाता है । िेकिन कजसे सार्र होना हो कजस सररता िो, उसे खतरा उठाना पड़ता है । खोती िुछ भी नही ूं
है , सररता जि सार्र में कर्रती है तो खोती िुछ भी नही ूं है , सार्र हो जाती है । और िोयिा जि हीरा िनता है तो
खोता िुछ भी नही ूं है , हीरा हो जाता है । िे किन िोयिा जि ति िोयिा है ति ति तो उसे डर है कि िही ूं खो
न जाऊूं, और नदी जि ति नदी है ति ति भयभीत है कि िही ूं खो न जाऊूं। उसे क्ा पता कि सार्र से
कमििर खोएर्ी नही,ूं सार्र हो जाएर्ी। वही खतरा आदमी िो भी है ।

और वे कमत्र पूछते हैं कि किर खतरा हो तो खतरा उठाया ही क्ोूं जाए?

यह भी थोड़ा समझ िेना जरूरी है । कजतना खतरा उठाते हैं हम, उतने ही जीकवत हैं ; और कजतना खतरे
से भयभीत होते हैं , उतने ही मरे हुए हैं । असि में , मरे हुए िो िोई खतरा नही ूं होता। एि तो िड़ा खतरा यह
नही ूं होता कि मरा हुआ मर नही ूं सिता है अि। जीकवत जो है वह मर सिता है । और कजतना ज्यादा जीकवत
है , उतनी ही तीव्रता से मर सिता है ।

एि पत्थर पड़ा है और पास में एि िूि क्तखिा है । पत्थर िह सिता है िूि से कि तू नासमझ है ! क्ोूं
खतरा उठाता है िूि िनने िा? क्ोूंकि साूं झ न हो पाएर्ी और मुरझा जाएर्ा। िूि होने में िड़ा खतरा है , पत्थर
होने में खतरा नही ूं है । पत्थर सु िह भी पड़ा था, साूं झ जि िूि कर्र जाएर्ा ति भी वही ूं होर्ा। पत्थर िो ज्यादा
खतरा नही ूं है , क्ोूंकि पत्थर िो ज्यादा जीवन नही ूं है । कजतना जीवन, उतना खतरा है ।

इसकिए जो व्यक्तक्त कजतना जीवूंत होर्ा, कजतना किकवूंर् होर्ा, उतना खतरे में है ।

ध्यान सिसे िड़ा खतरा है , क्ोूंकि ध्यान सिसे र्हरे जीवन िी उपिक्ति में िे जाने िा द्वार है ।
नही,ूं वे कमत्र पूछते हैं कि खतरा है तो जाएूं ही क्ोूं? मैं िहता हूं र खतरा है इसकिए ही जाएूं । खतरा न
होता तो जाने िी िहुत जरूरत न थी। जहाूं खतरा न हो वहाूं जाना ही मत, क्ोूंकि वहाूं कसवाय म त िे और िुछ
भी नही ूं है । जहाूं खतरा हो वहाूं जरूर जाना, क्ोूंकि वहाूं जीवन िी सूं भावना है ।

िेकिन हम सि सु रक्षा िे प्रेमी हैं , कसक्ोररटी िे प्रे मी हैं ।

इनकसक्ोररटी, असु रक्षा है , खतरा है , तो भार्ते हैं भयभीत होिर, डरते हैं , कछप जाते हैं । ऐसे —ऐसे हम
जीवन खो दे ते हैं । जीवन िो िचाने में िहुत िोर् जीवन खो दे ते हैं । जीवन िो तो वे ही जी पाते हैं जो जीवन िो
िचाते नही,ूं िक्तम्ऻ उछािते हुए चिते हैं । खतरा तो है । इसीकिए जाना, क्ोूंकि खतरा है । और िड़े से िड़ा
खतरा है । और र् रीशूं िर िी चोटी पर चढ़ने में इतना खतरा नही ूं है । और न चाूं द पर जाने में इतना खतरा है ।
अभी यात्री भटि र्ए थे , तो िड़ा खतरा है । िेकिन खतरा वस्त्रोूं िो ही था। शरीर ही िदि सिते थे। िेकिन
ध्यान में खतरा िड़ा है , चाूं द पर जाने से िड़ा है ।

पर खतरे से हम डरते क्ोूं हैं ? यह िभी सोचा कि खतरे से हम इतने डरते क्ोूं हैं ? सि तरह िे खतरे
से डरने िे पीछे अज्ञान है । डर िर्ता है कि िही ूं कमट न जाएूं । डर िर्ता है िही ूं खो न जाएूं । डर िर्ता है
िही ूं समाप्त न हो जाएूं । तो िचाओ, सु रक्षा िरो, दीवाि उठाओ, कििा िनाओ, कछप जाओ। अपने िो िचा िो
सि खतरोूं से ।

मैंने सु नी है एि घटना। मैंने सु ना है कि एि सम्राट ने एि महि िना किया। और उसमें कसिग एि ही


द्वार रखा था कि िही ूं िोई खतरा न हो। िोई क्तखड़िी—दरवाजे से आ न जाए दु श्मन। एि ही दरवाजा रखा
था, सि द्वार—दरवाजे िूंद िर कदए थे। मिान तो क्ा था, िि िन र्ई थी। एि थोड़ी सीि
ूं मी थी कि एि
दरवाजा था। उससे भीतर जािर उससे िाहर कनिि सिता था। उस दरवाजे पर भी उसने हजार सै कनि रख
छोड़े थे।

पड़ोस िा सम्राट उसे दे खने आया, उसिे महि िो। सु ना उसने कि सु रक्षा िा िोई इूं तजाम िर किया
है कमत्र ने, और ऐसी सु रक्षा िा इूं तजाम किया है जैसा पहिे िभी किसी ने भी नही ूं किया होर्ा। तो वह सम्राट
दे खने आया। दे खिर प्रसन्न हुआ। उसने िहा कि दु श्मन आ नही ूं सिता, खतरा िोई हो नही ूं सिता। ऐसा
भवन मैं भी िना िूूं र्ा।

किर वे िाहर कनििे। भवन िे माकिि ने िड़ी खु शी कवदा दी। और जि कमत्र सम्राट अपने रथ पर
िैठता था तो उसने किर दु िारा—दु िारा िहा िहुत सुूं दर िनाया है , िहुत सु रकक्षत िनाया है ; मैं भी ऐसा ही िना
िूूंर्ा; िहुत—िहुत धन्यवाद। िेकिन सड़ि िे किनारे िैठा एि कभखारी जोर से हूं सने िर्ा। तो उस भवनपकत ने
पूछा कि पार्ि, तू क्ोूं हूं स रहा है ?

तो उस कभखारी ने िहा कि मुझे आपिे भवन में एि भूि कदखाई पड रही है । मैं यहाूं िैठा रहता हूं यह
भवन िन रहा था ति से । ति से मैं सोचता हूं कि िभी म िा कमि जाए आपसे िहने िा तो िता दू ूं : एि भू ि
है । तो सम्राट ने िहा, ि न सी भूि? उसने िहा, यह जो एि दरवाजा है , यह खतरा है । इससे और िोई भिा न
जा सिे, किसी कदन म त भीतर चिी जाएर्ी। तु म ऐसा िरो कि भीतर हो जाओ और यह दरवाजा भी िूंद िरवा
िो, ईटूं जुड़वा दो। तु म किििुि सु रकक्षत हो जाओर्े। किर म त भी भीतर न आ सिेर्ी।

उस सम्राट ने िहा, पार्ि, आने िी जरूरत ही न रहे र्ी। क्ोूंकि अर्र यह दरवाजा िूं द हुआ तो मैं मर
ही र्या; वह तो िि िन जाएर्ी। उस कभखारी ने िहा, िि तो िन ही र्ई है , कसिग एि दरवाजे िी िमी रह
र्ई है । तो तु म भी मानते हो, उस कभखारी ने िहा कि एि दरवाजा िूं द हो जाएर्ा तो यह मिान िि हो
जाएर्ा? उस सम्राट ने िहा, मानता हूं । तो उसने िहा कि कजतने दरवाजे िूंद हो र्ए, उतनी ही िब्र हो र्ई
है ; एि ही दरवाजा और रह र्या है ।

उस कभखारी ने िहा, िभी हम भी मिान में कछपिर रहते थे। किर हमने दे खा कि कछपिर रहना
यानी मरना। और जैसा तु म िहते हो कि अर्र एि दरवाजा और िूंद िरें र्े तो िि हो जाएर्ी, तो मैंने अपनी
सि दीवािें भी कर्रवा दी,ूं अि मैं खु िे आिाश िे नीचे रह रहा हूं । अि—जैसा तु म िहते हो, सि िूंद होने से
म त हो जाएर्ी—सि खु िे होने से जीवन हो र्या है । मैं तु मसे िहता हूं कि सि खु िे होने से जीवन हो र्या है ।
खतरा िहुत है , िेकिन सि जीवन हो र्या है ।

खतरा है , इसीकिए कनमूंत्रण है ; इसीकिए जाएूं । और खतरा िोयिे िो है , हीरे िो नही,ूं खतरा नदी िो
है , सार्र िो नही,ूं खतरा आपिो है , आपिे भीतर जो परमात्मा है उसिो नही ूं। अि सोच िें अपने िो िचाना है
तो परमात्मा खोना पड़ता है , और परमात्मा िो पाना है तो अपने िो खोना पड़ता है ।

जीसस से किसी ने एि रात जािर पूछा था कि मैं क्ा िरू


ूं कि उस ईश्वर िो पा सिूूं कजसिी तु म
िात िरते हो? तो जीसस ने िहा, तु म िुछ और मत िरो, कसिग अपने िो खो दो, अपने िो िचाओ मत। उसने
िहा, िैसी िातें िर रहे हैं आप! खोने से मुझे क्ा कमिेर्ा? तो जीसस ने िहा, जो खोता है , वह अपने िो पा
िेता है ; और जो अपने िो िचाता है , वह सदा िे किए खो दे ता है ।

िोई और सवाि होूं तो हम िात िर िें।

सां कल्प की कमी से जिकास अिल्ल:

पूछा जा रहा है जक ओशो कां डजिनी जाग्रत हो तो कभी— कभी जकन्ी ां केंद्रोां पर अिरोध हो
जाता है ? रुक जाती है । तो उसके रुक जाने का कारण क्ा है ? और गजत दे ने का उपाय क्ा है ?

िारण िुछ और नही ूं कसिग एि है कि हम पूरी शक्तक्त से नही ूं पु िारते और पूरी शक्तक्त से नही ूं जर्ाते ।
हम सदा ही अधू रे हैं और आकशि हैं । हम िुछ भी िरते हैं तो आधा—आधा, हाि हाटें डिी िरते हैं । हम िुछ
भी पूरा नही ूं िर पाते । िस इसिे अकतररक्त और िोई िाधा नही ूं है । अर्र हम पूरा िर पाएूं तो िोई िाधा नही ूं
है ।

िेकिन हमारी पूरे जीवन में सि िुछ आधा िरने िी आदत है । हम प्रेम भी िरते हैं तो आधा िरते हैं ।
और कजसे प्रेम िरते हैं उसे घृणा भी िरते हैं । िहुत अजीि सा मािूम पड़ता है कि कजसे हम प्रेम िरते हैं , उसे
घृणा भी िरते हैं । और कजसे हम प्रेम िरते हैं और कजसिे किए जीते हैं , उसे हम िभी मार डािना भी चाहते हैं ।
ऐसा प्रेमी खोजना िकठन है कजसने अपनी प्रेयसी िे मरने िा कवचार न किया हो। ऐसा हमारा मन है , आधा—
आधा। और कवपरीत आधा चि रहा है । जैसे हमारे शरीर में िायाूं और दायाूं पैर है , वे दोनोूं एि ही तरि चिते
हैं , िेकिन हमारे मन िे िाएूं —दाएूं पैर उिटे चिते हैं । वही हमारा तनाव है । हमारे जीवन िी अशाूं कत क्ा
है ? कि हम हर जर्ह आधे हैं ।

अि एि युवि मेरे पास आया, और उसने मुझे िहा कि मुझे िीस साि से आत्महत्या िरने िा कवचार
चि रहा है । तो मैंने िहा, पार्ि, िर क्ोूं नही ूं िे ते हो? िीस साि िहुत िूंिा वक्त है । िीस साि से आत्महत्या
िा कवचार िर रहे हो तो िि िरोर्े ? मर जाओर्े पहिे ही, किर िरोर्े ? वह िहुत च ि
ूं ा। उसने िहा, आप क्ा
िहते हैं ? मैं तो आया था कि आप मु झे समझाएूं र्े कि आत्महत्या मत िरो। मैंने िहा, मुझे समझाने िी जरूरत
है ? िीस साि से तु म िर ही नही ूं रहे हो! और उसने िहा कि कजसिे पास भी मैं र्या वही मु झे समझाता है कि
ऐसा िभी मत िरना। मैं ने िहा, उन समझाने वािोूं िी वजह से ही न तो तु म जी पा रहे हो और न तु म मर पा
रहे हो; आधे —आधे हो र्ए हो। या तो मरो या जीओ। जीना हो तो किर आत्महत्या िा खयाि छोड़ो, और जी
िो। और मरना हो तो मर जाओ, जीने िा खयाि छोड़ दो।

वह दो—तीन कदन मेरे पास था। रोज मैं उससे यही िहता रहा कि अि तू जीवन िा खयाि मत
िर, िीस साि से सोचा है मरने िा तो मर ही जा। तीसरे कदन उसने मुझसे िहा, आप िैसी िातें िर रहे हैं ? मैं
जीना चाहता हूं । तो मैंने िहा, मैं िि िहता हूं कि तु म मरो। तु म ही पूछते थे कि मैं िीस साि से मरना चाहता
हूं ।

अि यह थोडा सोचने जैसा मामिा है . िोई आदमी िीस साि ति मरने िा सोचे , तो यह आदमी मरा
तो है ही नही,ूं जी भी नही ूं पाया है । क्ोूंकि जो मरने िा सोच रहा है , वह जीएर्ा िैसे ? हम आधे —आधे हैं । और
हमारे पूरे जीवन में आधे —आधे होने िी आदत है । न हम कमत्र िनते किसी िे , न हम शत्रु िनते , हम िुछ भी
पूरे नही ूं हो पाते ।

और आश्चयग है कि अर्र हम पूरे भी शत्रु होूं तो आधे कमत्र होने से ज्यादा आनूं ददायी है ।

असि में, पूरा होना िुछ भी आनूंददायी है । क्ोूंकि जि भी व्यक्तक्तत्व पूरा िा पूरा उतरता है , तो
व्यक्तक्तत्व में सोई हुई सारी शक्तक्तयाूं साथ हो जाती हैं । और जि व्यक्तक्तत्व आपस में िूं ट जाता है , क्तिट हो जाता
है , दो टु िड़े हो जाता है , ति हम आपस में भीतर ही िड़ते रहते हैं । अि जैसे िुूंडकिनी जाग्रत न हो, िीच में
अटि जाए, तो उसिा िेवि एि मतिि है कि आपिे भीतर जर्ाने िा भी खयाि है , और जर् जाए, इसिा
डर भी।

आप चिे भी जा रहे हैं मूंकदर िी तरि, और मूंकदर में प्रवेश िी कहित भी नही ूं है । दोनोूं िाम िर रहे
हैं । आप ध्यान िी तै यारी भी िर रहे हैं और ध्यान में उतरने िा, ध्यान में छिाूं र् िर्ाने िा साहस भी नही ूं जुटा
पाते हैं । तै रने िा मन है ,नदी िे किनारे पहुूं च र्ए हैं , और तट पर खड़े होिर सोच रहे हैं । तै रना भी चाहते
हैं , पानी में भी नही ूं उतरना चाहते ! इरादा िुछ ऐसा है कि िही ूं िमरे में र्िा—तकिया िर्ािर, उस पर िेटिर
हाथ—पैर िड़िड़ािर तै रने िा मजा कमि जाए तो िे िें।

नही,ूं पर र्िे —तकिए पर तै रने िा मजा नही ूं कमि सिता। तै रने िा मजा तो खतरे िे साथ जुड़ा है ।

आधापन अर्र है तो िुूंडकिनी में िहुत िाधा पड़े र्ी। इसकिए अने ि कमत्रोूं िो अनुभव होर्ा कि िही ूं
चीज जािर रुि जाती है । रुि जाती है तो एि ही िात ध्यान में रखना, और िोई िहाने मत खोजना। िहुत
तरह िे िहाने हम खोजते है —कि कपछिे जन्म िा िमग िाधा पड़ रहा होर्ा, भाग्य िाधा पड़ रहा होर्ा, अभी
समय नही ूं आया होर्ा। ये हम सि िातें सोचते हैं ये सि िातें िोई भी सच नही ूं हैं । सच कसिग एि िात है कि
आप पूरी तरह जर्ाने में नही ूं िर्े हैं । अर्र िही ूं भी िोई अवरोध आता हो, तो समझना कि छिाूं र् पूरी नही ूं िे
रहे हैं । और ताित से िूदना, अपने िो पूरा िर्ा दे ना, अपने िो समग्रीभूत छोड़ दे ना। तो किसी िेंद्र पर, किसी
चक्र पर िुूंडकिनी रुिेर्ी नही ूं। वह तो एि क्षण में भी पार िर सिती है पूरी यात्रा, और वषों भी िर् सिते हैं ।
हमारे अधू रेपन िी िात है । अर्र हमारा मन पूरा हो तो अभी एि क्षण में भी सि हो सिता है ।

िही ूं भी रुिे तो समझना कि हम पूरे नही ूं हैं , तो पूरा साथ दे ना, और शक्तक्त िर्ा दे ना। और शक्तक्त िी
अनूंत—अनूंत सामर्थ्ग हमारे भीतर है । हमने िभी किसी िाम में िोई िड़ी शक्तक्त नही ूं िर्ाई है । हम सि
ऊपर—ऊपर जीते हैं । हमने अपनी जड़ोूं िो िभी पुिारा ही नही ूं। इसीकिए िाधा पड़ सिती है । और ध्यान
रहे , और िोई िाधा नही ूं है ।

िोई और सवाि हो तो पूछें।

प्रभ की प्यास का अभाि:

एक जमत्र पूछते हैं जक ओशो जन्म के साथ ही भू ख होती है नीदां होती है प्यास होती है िेजकन प्रभ
की प्यास भी होती है?

इस िात िो थोड़ा समझ िेना उपयोर्ी है। प्यास तो प्रभु िी भी जन्म िे साथ ही होती है , िेकिन
पहचानने में िड़ा समय िर् जाता है । जैसे उदाहरण िे किए िच्चे सभी से क्स िे साथ पै दा होते हैं , िेकिन
पहचानने में च दह साि िर् जाते हैं । िाम िी, सेक्स िी भूख तो जन्म िे साथ ही होती है , िेकिन च दह—पूंद्रह
साि िर् जाते हैं उसिी पहचान आने में। और पहचान आने में च दह—पूंद्रह साि क्ोूं िर् जाते हैं ? प्यास तो
भीतर होती है , िेकिन शरीर तै यार नही ूं होता। च दह साि में शरीर तै यार होता है , ति प्यास जर् पाती है ।
अन्यथा सोई पड़ी रहती है ।

परमात्मा िी प्यास भी जन्म िे साथ ही होती है , िेकिन शरीर तै यार नही ूं हो पाता। और जि भी शरीर
तै यार हो जाता है ति तत्काि जर् जाती है । तो िुूंडकिनी शरीर िी तै यारी है । िे किन आप िहें र्े कि यह अपने
आप क्ोूं नही ूं होता?

िभी—िभी अपने आप होता है । िेकिन—इसे समझ िें— मनुष्य िे कविास में िुछ चीजें पहिे
व्यक्तक्तयोूं िो होती हैं , किर समूह िो होती हैं । जै से उदाहरण िे किए, ऐसा प्रतीत होता है कि पूरे वेद िो पढ़
जाएूं , ऋग्वेद िो पूरा दे ख जाएूं , तो ऐसा नही ूं िर्ता कि ऋग्वेद में सु र्ूंध िा िोई िोध है । ऋग्वेद िे समय िे
कजतने शास्त्र हैं सारी दु कनया में , उनमें िही ूं भी सु र्ूंध िा िोई भाव नही ूं है । िूिोूं िी िात है , िेकिन सु र्ूंध िी
िात नही ूं है । तो जो जानते हैं , वे िहते हैं कि ऋग्वेद िे समय ति आदमी िी सु र्ूंध िी जो प्यास है वह जार्
नही ूं पाई थी। किर िुछ िोर्ोूं िो जार्ी।

अभी भी सु र्ूंध मनुष्योूं में िहुत िम िोर्ोूं िो ही अथग रखती है , िहुत िम िोर्ोूं िो। अभी सारे िोर्ोूं में
सु र्ूंध िी इूं कद्रय पूरी तरह जार् नही ूं पाई है । और कजतनी कविकसत ि म
ूं ें हैं , उतनी ज्यादा जार् र्ई है , कजतनी
अकविकसत ि में हैं , उतनी िम जार्ी है । िुछ तो ििीिे अभी भी दु कनया में ऐसे हैं कजनिे पास सु र्ूंध िे किए
िोई शब्द नही ूं है । पहिे िुछ िोर्ोूं िो सु र्ूंध िा भाव जार्ा, किर वह धीरे — धीरे र्कत िी और वह ििेक्तक्ङव
माइूं ड, सामूकहि मन िा कहस्सा िना।

और भी िहुत सी चीजें धीरे — धीरे जार्ी हैं , जो िभी नही ूं थी,ूं एि कदन था कि नही ूं थी ूं। रूं र् िा िोध भी
िहुत है रान िरनेवािा है । अरस्तू ने अपनी कितािोूं में तीन रूं र्ोूं िी िात िी है । अरस्तू िे जमाने ति यूनान में
िोर्ोूं िो तीन रूं र्ोूं िा ही िोध होता था। िािी रूं र्ोूं िा िोई िोध नही ूं होता था। किर धीरे — धीरे िािी रूं र्
कदखाई पड़ने शु रू हुए। और अभी भी कजतने रूं र् हमें कदखाई पड़ते हैं , उतने ही रूं र् हैं , ऐसा मत समझ िेना। रूं र्
और भी हैं , िेकिन अभी िोध नही ूं जर्ा। इसकिए िभी एि एस डी, या मेस्किीन, या भाूं र्, या र्ाूं जा िे प्रभाव में
िहुत से और रूं र् कदखाई पड़ने शु रू हो जाते हैं , जो हमने िभी भी नही ूं दे खे हैं । और रूं र् हैं अनूंत। उन रूं र्ोूं िा
िोध भी धीरे — धीरे जार् रहा है ।

अभी भी िहुत िोर् हैं जो ििर ब्लाइूं ड हैं । यहाूं अर्र हजार कमत्र आए होूं, तो िम से िम पचास
आदमी ऐसे कनिि आएूं र्े जो किसी रूं र् िे प्रकत अूंधे हैं । उनिो खु द पता नही ूं होर्ा। उनिो खयाि भी नही ूं
होर्ा। िुछ िोर्ोूं िो हरे और पीिे रूं र् में िोई ििग नही ूं कदखाई पड़ता। साधारण िोर्ोूं िो नही ,ूं िभी—िभी
िड़े असाधारण िोर्ोूं िो, िनाग डग शॉ िो खु द िोई ििग पता नही ूं चिता था हरे और पीिे रूं र् में । और साठ साि
िी उम्र ति पता नही ूं चिा कि उसिो पता नही ूं चिता है । वह तो पता चिा साठवी ूं वषगर्ाूं ठ पर किसी ने एि
सू ट भेंट किया। वह हरे रूं र् िा था। कसिग टाई दे ना भूि र्या था, कजसने भेंट किया था। तो िनाग डग शॉ िाजार टाई
खरीदने र्या। वह पीिे रूं र् िी टाई खरीदने िर्ा। तो उस दु िानदार ने िहा कि अच्छा न मािूम पड़े र्ा इस हरे
रूं र् में यह पीिा। उसने िहा कि क्ा िह रहे हैं ? किििुि दोनोूं एि से हैं । उस दु िानदार ने िहा, एि से !
आप मजाि तो नही ूं िर रहे ? क्ोूंकि िनाग डग शॉ आमत र से मजाि िरता था। सर, आप मजाि तो नही ूं िर
रहे ? इन दोनोूं िो एि रूं र् िह रहे हैं आप! यह पीिा है , यह हरा है । उसने िहा, दोनोूं हरे हैं । पीिा यानी? ति
िनाग डग शॉ ने आूं ख िी जाूं च िरवाई तो पता चिा पीिा रूं र् उसे कदखाई नही ूं पड़ता; पीिे रूं र् िे प्रकत वह अूंधा
है ।

एि जमाना था कि पीिा रूं र् किसी िो कदखाई नही ूं पड़ता था। पीिा रूं र् मनुष्य िी चेतना में नया रूं र्
है । तो िहुत से रूं र् नये आए हैं मनुष्य िी चेतना में । सूं र्ीत सभी िो अथगपूणग नही ूं है , िुछ िो अथगपूणग है । उसिी
िारीकियोूं में िुछ िोर्ोूं िो िड़ी र्हराइयाूं हैं । िुछ िे किए कसिग कसर पीटना है । अभी उनिे किए स्वर िा िोध
र्हरा नही ूं हुआ है । अभी मनु ष्य—जाकत िे किए सूं र्ीत सामूकहि अनुभव नही ूं िना। और परमात्मा तो िहुत ही
दू र, आक्तखरी, अती ूंकद्रय अनुभव है । इसकिए िहुत थोड़े से िोर् जार् पाते हैं । िेकिन सििे भीतर जार्ने िी
क्षमता जन्म िे साथ है ।

िेकिन जि भी हमारे िीच िोई एि आदमी जार् जाता है , तो उसिे जार्ने िे िारण भी हममें िहुतोूं
िी प्यास जो सोई हो वह जार्ना शु रू हो जाती है । जि िभी िोई एि िृष्ण हमारे िीच उठ आता है , तो उसे
दे खिर भी, उसिी म जूदर्ी में भी हमारे भीतर जो सोया है वह जार्ना शु रू हो जाता है ।

धमओ जिरोधी मूब्धर्च्ओ त समाज:

हम सििे भीतर है जन्म िे साथ ही वह प्यास भी, वह भूख भी, िेकिन वह जार् नही ूं पाती। िहुत
िारण हैं । सिसे िड़ा िारण तो यही है .......सिसे िडा िारण तो यही है कि जो िड़ी भीड़ है हमारे चारोूं
तरि, उस भीड़ में वह प्यास िही ूं भी नही ूं है । और अर्र किसी व्यक्तक्त में उठती भी है तो वह उसे दिा िेता
है , क्ोूंकि वह उसे पार्िपन मािूम होती है । चारोूं तरि जहाूं सारे िोर् धन िी प्यास से भरे होूं, यश िी प्यास
से भरे होूं, वहाूं धमग िी प्यास पार्िपन मािूम पड़ती है । और चारोूं तरि िे िोर् सूं कदग्ध हो जाते हैं कि िुछ
कदमार् तो नही ूं खराि हो रहा है ! आदमी अपने िो दिा दे ता है । उठ नही ूं पाती, जर् नही ूं पाती सि तरि से
दमन हो जाता है । और जो हमने दु कनया िनाई है , उस दु कनया में हमने परमात्मा िो जर्ह नही ूं छोड़ी,क्ोूंकि
जैसा मैंने िहा िड़ा खतरनाि है परमात्मा िो जर्ह छोड़ना, हमने वह जर्ह नही ूं छोड़ी है ।
पत्नी डरती है कि िही ूं पकत िे जीवन में परमात्मा न आ जाए। क्ोूंकि परमात्मा िे आने से पत्नी
कतरोकहत भी हो सिती है । पकत डरता है , िही ूं पत्नी िे जीवन में परमात्मा न आ जाए। क्ोूंकि अर्र परमात्मा आ
र्या तो पकत परमात्मा िा क्ा होर्ा? यह सक्तसस्टयूट परमात्मा िहाूं जाएर्ा? इसिी जर्ह िहाूं होर्ी?

हमने जो दु कनया िनाई है , उसमें परमात्मा िो जर्ह नही ूं रखी है । और परमात्मा वहाूं कडस्टरकिूंर् साकित
होर्ा। वह अर्र वहाूं आता है तो वहाूं र्ड़िड़ होर्ी। र्ड़िड़ सु कनकश्चत है । वहाूं िुछ न िुछ अस्तव्यस्त होर्ा।
वहाूं नी ूंद टू टे र्ी, िही ूं िुछ होर्ा िही ूं िुछ चीजें िदिनी पड़े र्ी। हम ठीि वही तो नही ूं रह जाएूं र्े जो हम थे। तो
इसकिए हमने उसे घर िे िाहर छोड़ा है । िेकिन िही ूं वह जर् ही न जाए उसिी प्यास, इसकिए हमने झूठे
परमात्मा अपने घरोूं में िना किए—कि अर्र किसी िो जर्े भी, तो यह रहे भर्वान। एि पत्थर िी मूकतग खड़ी
है , उसिी पूजा िरो। ताकि असिी भर्वान िी तरि प्यास न चिी जाए। तो सक्तसस्टयूट र्ॉडि् स हमने पैदा किए
हुए हैं । यह आदमी िी सिसे िड़ी िकनूंर्नेस , सिसे िड़ी चािािी, सिसे िड़ा षड्यूं त्र है । परमात्मा िे क्तखिाि
जो िड़े से िड़ा षड्यूं त्र है , वह आदमी िे िनाए हुए परमात्मा हैं ।

इनिी वजह से जो प्यास उसिी खोज में जाती, वह उसिी खोज में न जािर मूंकदरोूं और मक्तिदोूं िे
आसपास भटिने िर्ती है , जहाूं िुछ भी नही ूं है । और जि वहाूं िुछ भी नही ूं कमिता तो आदमी िो िर्ता है
कि इससे तो अपना वह घर ही िेहतर; इस मूंकदर और मक्तिद में क्ा रखा हुआ है ! तो मूंकदर—मक्तिद हो आता
है , घर ि ट आता है । उसे पता नही ूं कि मूंकदर— मक्तिद िहुत धोखे िी ईजाद हैं ।

मैंने तो सु ना है कि एि कदन शै तान ने ि टिर अपनी पत्नी िो िहा कि अि मैं किििुि िेिार हो र्या
हूं अि मुझे िोई िाम ही न रहा। उसिी पत्नी िहुत है रान हुई, जैसे कि पक्तत्नया है रान होती हैं अर्र िोई िे िार
हो जाए। उसिी पत्नी ने िहा, आप और िेिार! िेकिन आप िैसे िेिार हो र्ए? आपिा िाम तो शाश्वत है !
िोर्ोूं िो किर्ाड़ने िा िाम तो सदा चिेर्ा;यह िूंद तो होनेवािा नही ूं। यह िैसे िूंद हो र्या? आप िैसे िेिार
हो र्ए? उस शै तान ने िहा, मैं िेिार िड़ी मुक्तिि से हो र्या, िड़े अजीि ढूं र् से हो र्या। अि मेरा जो िाम था
वह मूंकदर और मक्तिद, पूंकडत और पुजारी िर दे ते हैं ; मेरी िोई जरूरत नही ूं है । आक्तखर भर्वान से ही िोर्ोूं
िो भटिाता था। अि भर्वान िी तरि िोई जाता ही नही ूं! िीच में मूं कदर खड़े हैं , वही ूं भटि जाता है । हम ति
िोई आता ही नही ूं म िा कि हम भर्वान से भटिाएूं ।

परमात्मा िी प्यास तो है । और िचपन से ही हम परमात्मा िे सूं िूंध में िुछ कसखाना शु रू िर दे ते


हैं , उससे नुिसान होता है ; जानने िे पहिे यह भ्म पैदा होता है कि जान किया। हर आदमी परमात्मा िो
जानता है ! प्यास पैदा ही नही ूं हो पाती और हम पानी कपिा दे ते हैं । उससे ऊि पैदा हो जाती है और घिड़ाहट
पैदा हो जाती है । परमात्मा अरुकचिर हो जाता है हमारी कशक्षाओूं िे िारण; िोई रुकच नही ूं रह जाती। और
इतना ठूूंस दे ते हैं , कदमार् िो ऐसा स्टि िर दे ते हैं —र्ीता, िुरान, िाइकिि से ,महात्माओूं से , साधु ओ—
ूं सूं तोूं
से , वाकणयोूं से इस िुरी तरह कसर भर दे ते हैं कि मन यह होता है कि िि इससे छु टिारा हो। तो परमात्मा ति
जाने िा सवाि नही ूं उठता।

हमने जो व्यवस्था िी है वह ईश्वर—कवरोधी है , इसकिए प्यास िड़ी मुक्तिि हो र्ई। और अर्र िभी
उठती है तो आदमी ि रन पार्ि मािूम होने िर्ता है । तत्काि पता चिता है कि यह आदमी पार्ि हो र्या
है , क्ोूंकि वह हम सिसे कभन्न हो जाता है । वह और ढूं र् से जीने िर्ता है ; वह और ढूं र् से श्वास िेने िर्ता
है ; सि उसिा त र—तरीिा िदि जाता है । वह हमारे िीच िा आदमी नही ूं रह जाता, वह स्टर े जर हो जाता
है , वह अजनिी हो जाता है ।

हमने जो दु कनया िनाई है , वह ईश्वर—कवरोधी है । िड़ा पक्का षड्यूं त्र है । और अभी ति हम सिि ही
रहे हैं । अभी ति हम सिि ही हुए चिे जा रहे हैं । हम ईश्वर िो किििुि िाहर िर कदए हैं । उसिी ही दु कनया
से हमने उसे किििुि िाहर किया हुआ है । और हमने एि जाि िनाया है कजसिे भीतर उसिे घु सने िे किए
हमने िोई दरवाजा नही ूं छोड़ा है । तो प्यास िैसे जर्े ? िेकिन, प्यास भिा न जर्े , प्यास िा भिा पता न
चिे, िेकिन तड़पन भीतर और र्हरी घूमती रहती है कजूंदर्ी भर। यश कमि जाता है , किर भी िर्ता है िुछ
खािी रह र्या; धन कमि जाता है और िर्ता है कि िुछ अनकमिा रह र्या; प्रेम कमि जाता है और िर्ता है कि
िुछ छूट र्या जो नही ूं कमिा, नही ूं पाया जा सिा।

वह क्ा है जो हर िार छूट र्या मािूम पड़ता है ?

एक जदशाहीन प्यास:

वह हमारे भीतर िी एि प्यास है, कजसिो हमने पूरा होने से, िढ़ने से, जर्ने से सि तरह से रोिा है।
वह प्यास जर्ह— जर्ह खड़ी हो जाती है , हमारे हर रास्ते पर प्रश्नकचह्न िन जाती है । और वह िहती है इतना
धन पा किया, िेकिन िुछ कमिा नही;ूं इतना यश पा किया, िेकिन िुछ कमिा नही,ूं सि पा किया, िेकिन खािी
हो तु म। वह प्यास जर्ह—जर्ह से हमें िोूंचती है , िुरे दती है , जर्ह—जर्ह से छे दती है । िेकिन हम उसिो
झुठिािर किर अपने िाम में और जोर से िर् जाते हैं ,ताकि यह आवाज सु नाई न पड़े । इसकिए धन
िमाने वािा और जोर से िमाने िर्ता है , और जोर से िमाने िर्ता है । यश िी द डवािा और ते जी से द ड़ने
िर्ता है । वह अपने िान िूंद िर िेता है कि सु नाई न पड़े कि िुछ भी नही ूं कमिा।

हमारा सारा िा सारा इूं तजाम प्यास िो जर्ने से रोिता है । अन्यथा..... .एि कदन जरूर पृथ्वी पर ऐसा
होर्ा कि जैसे िच्चे भूख और प्यास िे िर, और से क्स और य न िेिर पैदा होते हैं , ऐसे ही वे कडवाइन
थस्टग , परमात्मा िी प्यास िेिर भी पैदा होते हुए मािूम पड़ें र्े। वह दु कनया िभी िन सिती है , िनाने जैसी है ।
ि न िनाए उसे ?

िहुत प्यासे िोर् जो परमात्मा िो खोजते हैं , उस दु कनया िो िना सिते हैं । िेकिन जैसा अि ति
है , उस सारे षड्यूं त्र िो तोड़ दे ने िी जरूरत है , ति ऐसा हो सिता है ।

प्यास तो है । िेकिन आदमी िृकत्रम उपाय िर िे सिता है । अि चीन में हजारोूं साि ति क्तस्त्रयोूं िे पैर
में िोहे िा जूता पहनाया जाता था, कि पैर छोटा रहे । छोटा पैर स द
ूं यग िा कचह्न था। कजतना छोटा पैर हो, उतने
िड़े घर िी िड़िी थी। तो क्तस्त्रयाूं चि ही नही ूं सिती थी ,ूं पैर इतने छोटे रह जाते थे। शरीर तो िड़े हो जाते , पैर
छोटे रह जाते । वे चि ही न पाती ूं। जो स्त्री किििुि न चि पाती, वह उतने शाही खानदान िी स्त्री! क्ोूंक ि
र्रीि िी स्त्री तो अिोडग नही ूं िर सिती थी, उसिो तो पैर िड़े ही रखना पड़ता था, उसिो तो चिना पड़ता
था, िाम िरना पड़ता था। कसिग शाही क्तस्त्रयाूं चिने से िच सिती थी ूं। तो िूंधोूं पर हाथ िा सहारा िेिर चिती
थी ूं। अपूंर् हो जाती थी,ूं िेकिन समझा जाता था कि स द
ूं यग है । अपूंर् होना था वह।

आज चीन िी िोई िड़िी तै यार न होर्ी, िहे र्ी पार्ि थे वे िोर्। िे किन हजारोूं साि ति यह चिा।
जि िोई चीज चिती है तो पता नही ूं चिता। जि हजारोूं िोर्, इिट्ठी भीड़ िरती है तो पता नही ूं चिता। जि
सारी भीड़ पैरोूं में जूते पहना रही हो िोहे िे, तो सारी िड़कियाूं पहनती थी ूं। जो नही ूं पहनती, उसिो िोर् िहते
कि तू पार्ि है । उसे अच्छा, सुूं दर पकत न कमिता, सूं पन्न पररवार न कमिता, वह दीन और दररद्र समझी जाती।
और जहाूं भी उसिा पैर कदख जाता वही ूं र्ूंवार समझी जाती— अकशकक्षत, असूं स्कृत। क्ोूंकि ते रा पैर इतना
िड़ा! पैर कसिग िड़े र्ूंवार िे ही चीन में होते थे , सुसूंस्कृत िा पैर तो छोटा होता था।
तो हजारोूं साि ति इस खयाि ने वहाूं िी क्तस्त्रयोूं िो पूंर्ु िनाए रखा। खयाि भी नही ूं आया कि हम
यह क्ा पार्िपन िर रहे हैं ! िेकिन वह चिा। जि टू टा ति पता चिा कि यह तो पार्िपन था।

ऐसे ही सारी मनुष्यता िा मक्तस्तष्क पूं र्ु िनाया र्या है , ईश्वर िी दृकष्ट से । ईश्वर िी तरि जाने िी जो
प्यास है , उसे सि तरि से िाट कदया जाता है ; उसिो पनपने िे म िे नही ूं कदए जाते । और अर्र िभी उठती
भी हो, तो झूठे सक्तसस्टयूट खड़े िर कदए जाते हैं और िता कदया जाता है — परमात्मा चाकहए? चिे जाओ मूंकदर में!
परमात्मा चाकहए? पढ़ िो र्ीता, पढ़ो िुरान,पढ़ो वे द— कमि जाएर्ा।

वहाूं िुछ भी नही ूं कमिता, शब्द कमिते हैं । मूंकदर में पत्थर कमिते हैं । ति आदमी सोचता है कि िुछ भी
नही ूं है , तो शायद अपनी प्यास ही झूठी रही होर्ी। और किर प्यास ऐसी चीज है कि आई और र्ई। जि ति
आप मूंकदर र्ए ति ति प्यास चिी र्ई। जि ति आपने र्ीता पढ़ी ति ति प्यास चिी र्ई। किर धीरे — धीरे
प्यास िुूंकठत हो जाती है । और जि किसी प्यास िो तृ प्त होने िा म िा न कमिे तो वह मर जाती है । वह धीरे —
धीरे मर जाती है ।

अर्र आप तीन कदन भूखे रहें , तो िहुत जोर से भूख िर्ेर्ी पहिे कदन; दू सरे कदन और जोर से
िर्ेर्ी, तीसरे कदन और जोर से िर्ेर्ी, च थे कदन िम हो जाएर्ी, पाूं चवें कदन और िम हो जाएर्ी, छठवें कदन
और िम हो जाएर्ी; पूंद्रह कदन िे िाद भूख िर्नी िूंद हो जाएर्ी। महीने भर भूखे रह जाएूं , किर पता ही नही ूं
चिेर्ा कि भूख क्ा है । िमजोर होते चिे जाएूं र्े , क्षीण होते चिे जाएूं र्े , रोज वजन िम होता चिा
जाएर्ा, अपना माूं स पचा जाएूं र्े , िेकिन भूख िर्नी िूंद हो जाएर्ी; क्ोूंकि अर्र महीने भर ति भू ख िो म िा
न कदया िढ़ने िा, तो मर जाएर्ी।

मैंने सु ना है , िाफ्िा ने एि छोटी सी िहानी किखी है । उसने एि िहानी किखी है कि एि िड़ा सिगस
है , और उस िड़े सिगस में िहुत तरह िे िोर् हैं , और िहुत तरह िे खे ि तमाशे हैं । उस सिगसवािे ने एि
िास्ट िरनेवािे िो, उपवास िरनेवािे िो भी इिट्ठा िर किया है । वह उपवास िरने िा प्रदशग न िरता है ।
उसिा भी एि झोपड़ा है । सिगस में और िहुत चीजोूं िो िोर् दे खने आते हैं — जूंर्िी जानवरोूं िो दे खते
हैं , अजीि—अजीि जानवर हैं । इस अजीि आदमी िो भी दे खते हैं । यह महीनोूं किना खाने िे रह जाता है । वह
तीन—तीन महीने ति किना खाने िे रहिर उसने कदखिाया है । कनकश्चत ही, उसिो भी िोर् दे खने आते हैं ।
िेकिन कितनी िार दे खने आएूं ? एि र्ाूं व में सिगस छह—सात महीने रुिा। महीने —पूंद्रह कदन िोर् उसिो
दे खने आए। किर ठीि है , अि भूखा रहता है तो रहता है । िि ति िोर् दे खने आएूं र्े ?

सिगस है , साधु—सूं न्यासी हैं , इसकिए इनिो र्ाूं व िदिते रहना चाकहए। एि ही र्ाूं व में ज्यादा कदन रहे
तो िहुत मुक्तिि हो। वे कितने कदन ति िोर् आएूं र्े ? इसकिए दोूं—तीन कदन में र्ाूं व िदि िेने से ठीि रहता
है । दू सरे र्ाूं व में किर िोर् आ जाते हैं । दू सरे र्ाूं व में किर िोर् आ जाते हैं ।

उस र्ाूं व में सिगस ज्यादा कदन रुि र्या। िोर् उसिो दे खने आना िूंद िर कदए। उसिी झोपड़ी िी
कििर ही भू ि र्ए। वह इतना िमजोर हो र्या था कि मैनेजर िो जािर खिर भी नही ूं िर पाया, उठ भी नही ूं
सिता था, पड़ा रहा, पड़ा रहा, पड़ा रहा—िड़ा सिगस था, िोर् भूि ही र्ए। चार महीने , पाूं च महीने हो र्ए, ति
अचानि एि कदन पता चिा कि भई, उस आदमी िा क्ा हुआ जो उपवास किया िरता था?

तो मैनेजर भार्ा कि वह आदमी मर न र्या हो। उसिा तो पता ही नही ूं है ! जािर दे खा तो वह कजस
घास िी र्ठरी में पड़ा रहता था वहाूं घास ही घास था, आदमी तो था नही ूं। आवाज दी! उसिी तो आवाज नही ूं
कनििती थी। घास िो अिर् किया तो वह किििुि हड्डी—हड्डी रह र्या था। आूं खें उसिी जरूर थी।ूं
मैनेजर ने पूछा कि भई, हम भूि ही र्ए, क्षमा िरो! िेकिन तु म िैसे पार्ि हो, अर्र िोर् नही ूं आते
थे, तो तु म्हें खाना िेना शु रू िर दे ना चाकहए था! उसने िहा कि िेकिन अि खाना िेने िी आदत ही छूट र्ई
है ; भूख ही नही ूं िर्ती। अि मैं िोई खे ि नही ूं िर रहा हूं अि तो खे ि िरने में िूंस र्या हूं । िोई खे ि नही ूं िर
रहा, िेकिन अि भूख ही नही ूं है । अि मैं जानता ही नही ूं कि भूख क्ा है । भूख िैसी चीज है वह मेरे भीतर होती
ही नही ूं।

क्ा हो र्या इस आदमी िो? िूंिी भूख व्यवस्था से िी जाए तो भूख मर जाती है । परमात्मा िी भू ख
िो हम जर्ने नही ूं दे ते। क्ोूंकि परमात्मा से ज्यादा कडस्टरकिर् िैक्ङर िुछ और नही ूं हो सिता है । इसकिए
हमने इूं तजाम किया हुआ है । हम िड़ी व्यवस्था से , प्लान से रोिे हुए हैं सि तरि से कि वह िही ूं से भीतर न
आ जाए। अन्यथा हर आदमी प्यास िेिर पैदा होता है । और अर्र उसे जर्ाने िी सु कवधा दी जाए, तो धन िी
प्यास, यश िी प्यास कतरोकहत हो जाएूं , वही प्यास रह जाए।

आब्धत्मक प्यास से क्ाां जत:

और भी एि िारण है कि या तो परमात्मा िी प्यास रहे और या किर दू सरी प्यासे रहें, सि साथ


नही ूं रह सिती ूं। इसकिए इन प्यासोूं िो— धन िी, यश िी, िाम िी—इन प्यासोूं िो िचाने िे किए परमात्मा
िी प्यास िो रोिना पड़ा है । अर्र उसिी प्यास जर्ेर्ी, तो वह सभी िो कतरोकहत िर िे र्ी, अपने में समाकहत
िर िेर्ी। वह अिेिी ही रह जाएर्ी।

परमात्मा िहुत ईष्याग िु है । वह जि आता है तो िस अिेिा ही रह जाता है , किर वह किसी िो कटिने


नही ूं दे ता वहाूं । जि वह आपिो अपना मूंकदर िनाएर्ा तो वहाूं छोटे —मोटे दे वी—दे वता और न कटिेंर्े , कि िई
रखे हुए हैं हनुमान जी भी वही ूं कवराजमान हैं , और दे वी—दे वता भी कवराजमान हैं , ऐसा परमात्मा न कटिने दे र्ा।
जि वह आएर्ा तो सि दे वी—दे वताओूं िो िाहर िर दे र्ा। वह अिेिा ही कवराजमान हो जाता है । िहुत ईष्याग िु
है ।

कताओ होने का भ्रम:

प्रश्न : ओशो व्यब्धि जो कायओ करता है ? िह परमात्मा ही द्वारा नही ां होता है क्ा?

यह सवाि ठीि पूछा है कि व्यक्तक्त जो िायग िरता है, वह परमात्मा ही द्वारा नही ूं होता है क्ा?
जि ति िरता है , ति ति नही ूं होता। जि ति व्यक्तक्त िो िर्ता है —मैं िर रहा हूं ति ति नही ूं
होता। कजस कदन व्यक्तक्त िो िर्ता है —मैं हूं ही नही,ूं हो रहा है —उस कदन परमात्मा िा हो जाता है । जि ति
डूइूं र् िा खयाि है कि िर रहा हूं ति ति नही ूं। कजस कदन है पकनूंर् हो जाती है —कि हो रहा है । हवाओूं से पूछें
कि िह रही हो? हवाएूं िहें र्ी, नही,ूं िहाई जा रही हैं । वृक्षोूं से पूछो, िड़े हो रहे हो? वे िहें र्े, नही ूं, िड़े किए जा
रहे हैं । सार्र िी िहरोूं से पूछो, तु म्ही ूं तट से टिरा रही हो? वे िहें र्ी, नही,ूं िस टिराना हो रहा है । ति तो
परमात्मा िा हो र्या। आदमी िहता है , मैं िर रहा हूं ! िस वही ूं से द्वार अिर् हो जाता है ; वही ूं से आदमी िा
अहूं िार घेर िेता है ; वही ूं से आदमी अपने िो अिर् मानिर खड़ा हो जाता है ।

कजस कदन आदमी िो भी पता चिता है कि जैसे हवाएूं िह रही हैं , और जैसे सार्र िी िहरें चि रही
हैं , और वृक्ष िड़े हो रहे हैं , और िूि क्तखि रहे हैं , और आिाश में तारे चि रहे हैं , ऐसा ही मैं चिाया जा रहा
हूं ; िोई है जो मेरे भीतर चिता है ,और िोई है जो मेरे भीतर िोिता है ; मैं अिर् से िुछ भी नही ूं हूं ; िस उस
कदन परमात्मा ही है ।

िताग होने िा हमारा भ्म है । वही भ्म हमें दु ख दे ता है , वही भ्म दीवाि िन जाता है । कजस कदन हम
िताग नही ूं हैं , उस कदन िोई भ्म शे ष नही ूं रह जाता; उस कदन वही रह जाता है ।

अभी भी वही है । ऐसा नही ूं है कि आप िताग हैं तो आप िताग हो र्ए हैं । ऐसा मैं नही ूं िह रहा हूं । जि
आप समझ रहे हैं कि मैं िताग हूं तो कसिग आपिो भ्म है । अभी भी वही है । िेकिन आपिो उसिा िोई पता
नही ूं है । हाित किििुि ऐसी है जैसे आप रात सो जाएूं आज नारर्ोि में और रात सपना दे खें कि ििििा पहुूं च
र्ए हैं । ििििा पहुूं च नही ूं र्ए हैं , कितना ही सपना दे खें , हैं नारर्ोि में ही, िेकिन सपने में ििििा पहुूं च र्ए
हैं । और अि आप ििििे में पूछ रहे हैं कि मुझे नारर्ोि वापस जाना है , अि मैं ि न सी टर े न पिडूूं? अि मैं
हवाई जहाज से जाऊूं, कि रे िर्ाड़ी से जाऊूं, कि पैदि चिा जाऊूं ? मैं िैसे पहुूं च पाऊूंर्ा? रास्ता िहाूं है ? मार्ग
िहाूं है ? ि न मुझे पहुूं चाएर्ा? र्ाइड ि न है ? नक्शे दे ख रहे हैं , पता िर्ा रहे हैं । और तभी आपिी नी ूंद टू ट र्ई
है । और नी ूंद टू टिर आपिो पता िर्ता है कि मैं िही ूं र्या नही ,ूं मैं वही ूं था। किर आप नक्शे वर्ैरह नही ूं
खोजते । किर आप र्ाइड नही ूं खोजते । किर अर्र िोई आपसे िहे भी कि क्ा इरादा है , ििििे से वापस न
ि कटएर्ा? तो आप हूं सते हैं , आप िहते हैं , िभी र्या ही नही;ूं ििििा िभी र्या नही,ूं कसिग जाने िा खयाि
हुआ था।

आदमी जि अपने िो िताग समझ रहा है ति भी िताग है नही ,ूं ति भी खयाि ही है , सपना ही है कि मैं
िर रहा हूं । सि हो रहा है । यह सपना ही टू ट जाए, तो कजसे ज्ञान िहें , कजसे जार्रण िहें , वह घकटत हो जाए।
और जि हम ऐसा िहते हैं कि वह मुझसे िरवा रहा है , ति भी भ्म जारी है , क्ोूंकि ति भी मैं िासिा मान रहा
हूं —मैं मान रहा हूं कि मैं भी हूं वह भी है ; वह िरवाने वािा है , मैं िरनेवािा हूं । नही,ूं जि आपिो सच में ही
आप जार्ेंर्े, तो आप ऐसा नही ूं िहें र्े कि ही, मैं अभी—अभी ििििे से ि ट आया हूं । ऐसा नही ूं िहें र्े , आप
िहें र्े, मैं र्या ही नही ूं था। कजस कदन आप इस नी ूंद से जार्ेंर्े जो िताग होने िी है , अहूं ता िी, ईर्ो िी नीद
ूं
है , उस कदन आप ऐसा नही ूं िहें र्े कि वह िरवा रहा है और मैं िरनेवािा हूं । उस कदन आप िहें र्े. वही है , मैं हूं
िहाूं ! मैं िभी था ही नही;ूं एि स्वप्न दे खा था जो टू ट र्या है ।

और स्वप्न हम जीवन—जीवन ति दे ख सिते हैं ; अनूंत जन्मोूं ति दे ख सिते हैं । स्वप्न िे दे खने िा
िोई अूंत नही ूं है । कितने ही स्वप्न दे ख सिते हैं । और स्वप्नोूं िा िड़े से िड़ा मजा तो यह है कि जि आप स्वप्न
दे खते हैं ति वह किििुि सत्य मािूम होता है । आपने िहुत िार सपने दे खे हैं । रोज रात दे खते हैं । और रोज
सु िह जानते हैं कि सपना था, झूठा था। किर आज रात दे खेंर्े जि, ति खयाि न आएर्ा कि सपना है , झूठा है ।
ति किर जूंचेर्ा कि किििुि ठीि है । किर सु िह िि जार्िर िहें र्े कि झूठा था। कितनी िमजोर है स्भृकत!
सु िह उठिर िहते हैं , सि सपने झूठे थे! रात किर सपने दे खते हैं । और सपने में वे किर सच हो जाते हैं । वह
सारा िोध जो सु िह हुआ था, किर खो र्या। कनकश्चत ही वह िोई र्हरा िोध न था, ऊपर—ऊपर हुआ था। र्हरे
में किर वही भाूं कत चि रही है ।
ऐसे ऊपर—ऊपर हमें िोध हो जाते हैं । िोई किताि पढ़ िेता है , और उसमें पढ़ िेता है कि सि
परमात्मा िरवा रहा है । तो एि क्षण िो ऊपर से एि िोध हो जाता है कि मैं िरने वािा नही ूं हूं परमात्मा िरवा
रहा है । िेकिन अभी भी वह िहता है —मैं िरनेवािा नही,ूं परमात्मा िरवा रहा है । िे किन वह मैं अभी जारी है ।
वह अभी िह रहा है कि मैं िरने वािा नही ूं। वह एि क्षण में खो जाएर्ा। एि जोर से धक्का दे दें उसे , और वह
क्रोध से भर जाएर्ा और िहे र्ा कि जानते नही ूं मैं ि न हूं ? वह भूि जाएर्ा कि अभी वह िह रहा था कि मैं
िरनेवािा नही,ूं मैं नही ूं हूं मैं िोई नही ूं हूं परमात्मा ही है । एि जोर से धक्का दे दें , सि भूि जाएर्ा; एि क्षण में
सि खो जाएर्ा। वह िहे र्ा, मुझे धक्का कदया, जानते नही ूं मैं ि न हूं ? वह परमात्मा वर्ैरह एिदम कवदा हो
जाएर्ा! मैं वापस ि ट आएर्ा।

मैंने सु ना है , एि सूं न्यासी कहमािय रहा तीस वषों ति। शाूं कत में था, स्वात में था। भूि र्या, अहूं िार न
रहा। अहूं िार िे किए दू सरे िा होना जरूरी है । क्ोूंकि वह कद अदर अर्र न हो तो अहूं िार खड़ा िहाूं
िरो? तो दू सरे िा होना जरूरी है । दू सरे िी आूं ख में जि अिड़ से झाूं िो, ति वह खड़ा होता है । अि दू सरा ही
न हो तो किस िी अिड़ से झाूं िोर्े ? िहाूं िहो कि मैं हूं ! क्ोूंकि तू चाकहए। मैं िो खड़ा िरने िे किए एि और
झूठ चाकहए, वह तू है । उसिे किना वह खड़ा नही ूं होता। झूठ िे किए एि कसस्टम चाकहए पड़ती है िहुत से खो
िी, ति एि झूठ खड़ा होता है । सत्य अिेिा खड़ा हो जाता है , झूठ िभी अिेिा खड़ा नही ूं होता। झूठ िे किए
और शो िी िक्तल्रयाूं िर्ानी पड़ती हैं । मैं िा झूठ खड़ा िरना हो तो तू वह, वे , इन सििे झूठ खड़े िरने पडते
हैं , ति मैं िीच में खड़ा हो पाता है ।

वह आदमी अिेिा था जूंर्ि में , पहाड़ पर था, िोई तू न था, िोई वह न था, िोई वे न थे , िोई हम न
था, भूि र्या मैं। तीस साि िूं िा वक्त था, शाूं त हो र्या। नीचे से िोर् आने िर्े। किर िोर्ोूं ने प्राथगना िी कि
एि मेिा भर रहा है , पहाड़ ऊूंचा है , िहुत िोर् यहाूं ति न आ सिेंर्े , और प्राथगना हम िरते हैं कि आप नीचे
चििर दशग न दे दें ।

सोचा कि अि तो मेरा मैं रहा नही,ूं अि चिने में हजग क्ा है !

ऐसा िहुत िार मन धोखा दे ता है । अि तो मेरा मैं न रहा, अि चिने में हजग क्ा है ! आ र्या। नीचे िहुत
भीड़ थी,िाखोूं िोर्ोूं िा मेिा था। अपररकचत िोर् थे , उसे िोई जानता न था। तीस साि पहिे वह आदमी र्या
था। उसिो िोर् भूि भी चुिे थे। जि वह भीड़ में चिा, किसी िा जूता उसिे पैर पर पड़ र्या। जूता पैर पर
पड़ा, उसने उसिी र्रदन पिड़ िी और िहा कि जानता नही ूं मैं ि न हूं ? वे तीस साि एिदम खो र्ए, जैसे
एि सपना कवदा हो र्या। वे तीस साि—वह पहाड़, वह शाूं कत, वह शू न्यता, वह मैं िा न होना, वह परमात्मा
होना—सि कवदा हो र्या। एि से िेंड में , वह था ही नही ूं िभी, ऐसा कवदा हो र्या। र्रदन पर हाथ िस र्ए और
िहा कि जानता नही ूं मैं ि न हूं ?

ति अचानि उसे खयाि आया कि यह मैं क्ा िह रहा हूं ! मैं तो भूि र्या था कि मैं हूं । यह वापस िैसे
ि ट आया?ति उसने िोर्ोूं से क्षमा माूं र्ी, और उसने िहा कि अि मुझे जाने दो। िोर्ोूं ने िहा, िहाूं जा रहे
हैं ? उसने िहा, अि पहाड़ न जाऊूंर्ा, अि मैदान िी तरि जा रहा हूं । उन्ोूंने िहा, िेकिन यह क्ा हो
र्या? उसने िहा कि जो तीस साि पहाड़ िे एिाूं त में मुझे पता न चिा, वह एि आदमी िे सूं पिग में पता चि
र्या। अि मैं मै दान िी तरि जा रहा हूं वही ूं रहूं र्ा; वही ूं पहचानूूंर्ा कि मैं है या नही ूं है । सपना हो र्या तीस
साि; समझता था सि खो र्या; सि वही ूं िे वही ूं है , िही ूं िुछ खोया नही ूं है ।

तो भ्ाूं कतयाूं पै दा हो जाती हैं । िेकिन भ्ाूं कतयोूं से िाम नही ूं चि सिता है ।

अि हम ध्यान िे किए िैठें, क्ोूंकि िि से तो ििग हो जाएर्ा। िि से सु िह कसिग ध्यान िरें र्े और
रात कसिग चचाग िरें र्े। िेकिन आज तो आज िे कहसाि से । थोड़े — थोड़े िासिे पर हो जाएूं , िे किन िहुत
िासिे पर न जाएूं ; क्ोूंकि मैंने सु िह अनुभव किया कि जो िोर् िहुत दू र चिे र्ए, वह जो यहाूं एि साइकिि
एटमॉसकिअर होता है , उसिे िायदे से वूंकचत रह र्ए। इसकिए िहुत दू र न जाएूं । िासिे पर हो जाएूं , िेकिन
िहुत दू र न जाएूं , िीच में िहुत जर्ह न छोड़े । अन्यथा यहाूं जो एि वातावरण कनकमगत होता है , आप उसिे िाहर
पड़ जाते हैं और उसिा िायदा नही ूं उठा पाते । तो िहुत दू र से पास आ जाएूं । िस िासिा इतना िर िें।
कजनिो िेटना हो वे अपनी जर्ह िना िें , िेट जाएूं ; कजनिो िै ठना हो वे िैठें; िेकिन िहुत दू र भी न जाएूं । और
िातचीत किििुि न िरें ।

िातचीत जरा भी न िरें । किना िातचीत िे जो िाम हो सिे , उसमें िातचीत क्ोूं िरें !

क्ा िात है ?

पत्थर मारा र्या है ।

पत्थर था वह? चिो िोई िात नही,ूं सम्हाििर रखो, किसी ने प्रेम से िेंिा होर्ा।

हाूं , जो िोर् इधर पीछे िुछ िोर् िात िर रहे हैं , वे िात न िरें , या तो िैठते होूं तो चुपचाप िैठ जाएूं या
किर चिे जाएूं । िोई भी दशग ि िी है कसयत से न िैठे। और दशग ि िी है कसयत से ही िैठे तो िम से िम चुप
िैठे। किसी िो किसी िे द्वारा िाधा न हो। और िोई कमत्र, मािूम होता है , पत्थर िेंिते हैं । दोूं—तीन पत्थर
िेंिे हैं । तो पत्थर िेंिने होूं तो मेरी तरि िेंिने चाकहए, िािी किसी िी तरि नही ूं िेंिने चाकहए।

ठीक है , बैठ जाएां । जो जहाां है िही ां बैठ जाए। आां ख बांद कर िें।

पहिा चरण :

एि घूंटे पूरी ताित िर्ानी है । आूं ख िूं द िर िें , आूं ख िूंद िर िें। र्हरी श्वास िेना शु रू िरें ।
दे खें, सार्र इतने जोर से ,इतने जोर से श्वास िेता है , सरूवन इतने जोर से श्वास िेता है । जोर से श्वास िें। पूरी
श्वास भीतर िे जाएूं , पूरी श्वास िाहर कनिािें। एि ही िाम रह जाए दस कमनट ति— श्वास िे रहे , छोड़
रहे , श्वास िे रहे , छोड़ रहे । और भीतर साक्षी िन जाएूं ,भीतर दे खते रहें — श्वास भीतर आई, िाहर र्ई। दस कमनट
श्वास िेने िी प्रकक्रया में र्हरे उतरें । शु रू िरें ! र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े .. र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ..
.र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े .. .र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े । पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ।

यह रात हमें कमिी, यह म िा हमें कमिा— किर कमिे, न कमिे। पूरी शक्तक्त िर्ाएूं । िुछ हो सिता है तो
पूरी शक्तक्त से होर्ा। एि इूं च भी िचाएूं र्े , नही ूं होर्ा।..... .पूरी र्हरी श्वास िें..... .िस एि यूंत्र रह जाए शरीर, श्वास
िे रहा है । यूंत्र िी भाूं कत श्वास िे रहा है । एि यूंत्र मात्र रह र्ए हैं । और दे खें, सूं िोच न िरें और दू सरे िी कििर
न िरें , अपनी कििर िरें ..... र्हरी श्वास िें..... .एि यूंत्र मात्र रह जाएूं । शरीर एि यूंत्र है ।

एि दस कमनट ति र्हरी से र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े , िस श्वास िेनेवािे ही रह जाएूं .. .श्वास
िे रहे हैं ,छोड़ रहे हैं ......िे रहे हैं , छोड़ रहे हैं । और दे खते रहें भीतर— साक्षी मात्र। दे ख रहे हैं — श्वास भीतर
आई, श्वास िाहर र्ई..... श्वास भीतर आई, श्वास िाहर र्ई। िर्ाएूं ..... .शक्तक्त िर्ाएूं ।

दस कमनट मैं चुप होता हूं आप पूरी शक्तक्त िर्ाएूं । ऐसा नही ूं कि मैं िहूं ति आप एि—दो श्वास र्हरी
िें और किर धीमी िेने िर्ें। दस कमनट पूरी ताित िर्ाएूं . श्वास में पूरी शक्तक्त िर्ा दें —र्हरी श्वास िें, र्हरी
श्वास छोड़े । सारा शरीर िैप जाए,रोआूं —रोआूं िैप जाए। सारे शरीर में कवदि् युत जर् जाएर्ी, भीतर िोई शक्तक्त
उठने िर्ेर्ी, रोएूं —रोएूं में िैिने िर्े र्ी...... छोड़े ,पूरी ताित िर्ाएूं — र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ...... र्हरी
श्वास िे रहे , छोड़ रहे ...... र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ..... र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ...... र्हरी श्वास िे रहे , छोड़
रहे ...... र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ...... र्हरी से र्हरी िें..... र्हरी श्वास िे रहे , र्हरी श्वास छोड़ रहे ...... र्हरी
श्वास िे रहे , र्हरी श्वास छोड़ रहे ...... पूरा एि यूंत्र रह जाए शरीर, कसिग श्वास िेने िा एि यूंत्र रह जाए...... सार्र
िे र्जग न में एि हो जाएूं , हवाओूं िी िहरोूं में एि हो जाएूं ..... कसिग श्वास िे रहे हैं ...... और िुछ भी नही ूं िरना
है — र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ....... र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ...... र्हरी श्वास िे रहे , छोड़ रहे ...... र्हरी श्वास
िे रहे , छोड़ रहे ... और भीतर साक्षी िने रहें

शक्तक्त पूरी िर्ाएूं । स्भरणपूवगि र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ...... र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े .....
र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ... स्भरणपूवगि र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ..... भीतर जार्िर दे खते रहें —
श्वास भीतर आई, श्वास िाहर र्ई... श्वास भीतर आई, श्वास िाहर र्ई. अपने िो जरा भी िचाएूं न...... अपने िो
िचाएूं न, पूरा िर्ा दें — र्हरी श्वास,और र्हरी, और र्हरी, और र्हरी। श्वास िेने और छोड़ने िे अकतररक्त और
िुछ भी न िचे...... श्वास िेने—छोड़ने िे अकतररक्त और िुछ भी न िचे...... र्हरी श्वास, और र्हरी..... और
र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी.....

दे खें, िहने िो न िचे कि हमने िम किया, मुझसे िहने िो न रहे कि हम पूरा नही ूं किए। िही ूं िात
रुिे न, पूरी शक्तक्त िर्ाएूं । दू सरे सू त्र पर जाने िे पहिे अपने िो थिा डािें...... पूरी ताित िर्ाएूं ...... र्हरी
श्वास, र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास.. ....र्हरी श्वास.. श्वास ही रह र्ई है , िस श्वास ही
हो र्ए हम, श्वास ही हैं कसिग.. र्हरी श्वास.. .र्हरी श्वास... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...
र्हरी श्वास... र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास.. .र्हरी श्वास...... और भीतर दे खते रहें — श्वास आई, श्वास
र्ई— साक्षी िने रहें । श्वास आती कदखाई पड़े र्ी, श्वास जाती कदखाई पड़े र्ी। भीतर दे खते रहें , दे खते रहें ...... तीव्र..
और तीव्र...... और तीव्र......

(िोगोां का नाचना कांपना आिाजें जनकािना......)

दू सरे सू त्र पर जाने िे किए और तीव्र! जि आप पूरी तीव्रता में होूंर्े, ति ही मैं दू सरे सूत्र पर िे
जाऊूंर्ा...... .पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... सि तरह से अपनी सारी शक्तक्त
िर्ा दें ...... र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास. श्वास...... र्हरी श्वास...... िस श्वास ही रह र्ई, श्वास ही है , और िुछ भी नही ूं
— सारी शक्तक्त िर्ा दें ... और र्हरा और र्हरा... और र्हरा... और र्हरा......

(रोने जचल्लाने की आिाजें...... )

और र्हरा िर्ा सिते हैं , रोिें मत। और र्हरा..... और र्हरा....., और र्हरा...... और र्हरा िर्ा
सिते हैं िूंपने दें शरीर...... डोिता है , डोिने दें .. घूमता है , घूमने दें ...... र्हरी श्वास िें..... र्हरी से र्हरी श्वास
िें.... .र्हरी श्वास.... .र्हरी श्वास। दू सरे सू त्र में प्रवेश िरना है . .....र्हरी श्वास... एि आक्तखरी कमनट, र्हरी
श्वास.......
(अनेक तरह की आिाजें......)

र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... आक्तखरी कमनट, पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ...... र्हरी श्वास, र्हरी श्वास...... पूरे
क्लाइमेक्स पर ही िदिाहट ठीि होती है ...... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं एि कमनट...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास......
र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास.. र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... और र्हरी..... और र्हरी...... और र्हरी...... और
र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी...... श्वास ही रह जाए, श्वास ही रह जाए। सारी शक्तक्त श्वास में डोिने िर्े......
श्वास ही रह र्ई...... श्वास ही रह र्ई.....

दू सरा चरण :

अि दू सरे सू त्र में प्रवेश िरना है । श्वास र्हरी रखें और शरीर िो जो िरना हो—छोड़ दें , िरने दें ।
शरीर मुद्राएूं िनाए,आसन िनाए, शरीर िूंपने िर्े , घूमने िर्े , रोने िर्े —छोड़ दें शरीर िो। शरीर िो पूरी तरह
छोड़ दे ना है —श्वास र्हरी रहे र्ी और शरीर िो छोड़ दे ना है .. .....शरीर कर्रे , कर्र जाए..... .उठे , उठ जाए.. नाचने
िर्े , कचूंता न िरें —शरीर िो छोड़ दें । शरीर िो पू री तरह छोड़ दें ..... .श्वास र्हरी रहे र्ी और शरीर िो पूरी तरह
छोड़ दें .. ....शरीर िो जो िरना हो, िरने दें ...... .जरा भी रोिेंर्े नही,ूं सहयोर् िरें । शरीर जो िरना चाहता
है , िोआपरे ट िरें , उसिे साथ सहयोर्ी हो जाएूं —शरीर घूमता है , घूमे..... .डोिता है ,डोिे..... .कर्रता है , कर्र
जाए.. .रोता है , रोए..... .हूं सता है , हूं से—छोड़ दें —जो भी होता है , होने दें ..... .श्वास र्हरी रहे और शरीर िो छोड़
दें । श्वास र्हरी रहे और शरीर िो छोड़ दें ।

(िोगोां का से ना चीखना जचल्लाना नाचना और शरीर की अनेक तीव्र जक्याएां करना जारी
रहा.....)

एि दस कमनट िे किए शरीर िो पूरी तरह छोड़ दें । र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास...... और शरीर िो
छोड़ दें — रोता हो रोए, कचल्राता हो कचल्राए...... आप िोई कनयूंत्रण न िरें और शरीर िो सहयोर् िरें —शरीर
जो भी िर रहा है , िरने दें ...... जो भी हो रहा है , होने दें — मुद्राएूं िनेंर्ी, शरीर चक्कर िेर्ा...... भीतर शक्तक्त
जर्ेर्ी तो शरीर में िहुत िुछ होर्ा— आवाज कनिि सिती है , रोना कनिि सिता है ...... िोई कचूंता न िरें ......
छोड़े ...... शरीर िो छोड़ दें ...

आज पूरा थिा डािना है । सोने िे पहिे पूरा श्रम िे िेना है । शरीर िो छोड़े , सहयोर् िरें ... र्हरी
श्वास... र्हरी श्वास.. .र्हरी श्वास.. .र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास... ...र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... र्हरी
श्वास..... .र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास....... र्हरी श्वास.......
(इसके बाद टे प रे कॉडओ र पर धक्का िगने से िह बांद हो गया िेजकन ओशो का सझाि दे ना और
ध्यान—प्रयोग जारी रहा। दू सरे दस जमनट साधक गहरी श्वास िेते रहे ...... तथा शरीर में हो रही
प्रजतजक्याओां को सहयोग दे कर उसकी तीव्रता बढाते रहे ।)

किर तीसरे चरण में दस कमनट ति ते ज श्वास जारी रही शरीर नाचता— कचल्राता— र्ाता रहा इसिे
साथ ही साधिोूं िो तीव्रता से मन में ' मैं ि न हूं ? : ' मैं ि न हूं ?' िर्ातार पूछते रहने िा सु झाव कदया र्या
साधिोूं िो सहज ही हो रही अने ि य कर्ि कक्रयाओूं में तीव्रता आती चिी र्ई। उसिा चरम किूं दु आ र्या।

च थे दस कमनट में सि छोडि् िर िेवि कवश्राम िरने िो िहा र्या न र्हरी श्वास न ' मैं ि न
हूं ?' पूछना। िस कवश्राम शाूं कत म न शू न्यता— जैसे मर र्ए हैं ही नही ूं। सै िड़ोूं साधिोूं िा र्हरे ध्यान में प्रवेश हो
र्या पूरा सरूवन ध्यान िी तरूं र्ोूं से भर र्या सारे साधि जैसे कवराट प्रिृकत से एि हो र्ए हो ऐसा िर्ने िर्ा।

(चािीस जमनट पूरे होते ही ध्यान की बै ठक जिसजजओत कर दी गई जिर भी अनेक साधक बहुत
दे र तक अपने अांदर ही डूबे हुए पड़े रहे — जकसी अज्ञात अांतजओगत में उनकी गजत होती रही। धीरे — धीरे
िोग अपने जनिास स्थान की ओर िौट पड़े — कई साधक आधे घांटे एक घांटे दो घांटे तक ध्यान में ही पड़े
रहे ....... बाद में उठकर धीरे — धीरे प्रस्थान जकया।)

प्रिचन 4 - ध्यान पांथ ोसो कजठन

प्रभ—कृपा और साधक का प्रयास

मेरे जप्रय आत्मन्!

एक जमत्र ने पूछा है जक ओशो क्ा ध्यान प्रभ की कृपा से उपिि होता है ?

इस िात िो थोड़ा समझना उपयोर्ी है। इस िात से िहुत भूि भी हुई है। न मािूम कितने िोर् यह
सोचिर िैठ र्ए हैं कि प्रभु िी िृपा से उपिि होर्ा तो हमें िुछ भी नही ूं िरना है । यकद प्रभु —िृपा िा ऐसा
अथग िेते हैं कि आपिो िुछ भी नही ूं िरना है , तो आप िड़ी भ्ाूं कत में हैं । दू सरी और भी इसमें भाूं कत है कि प्रभु
िी िृपा सििे ऊपर समान नही ूं है ।

िेकिन प्रभु —िृपा किसी पर िम और ज्यादा नही ूं हो सिती। प्रभु िे चहे ते , चूज़न िोई भी नही ूं हैं ।
और अर्र प्रभु िे भी चहे ते होूं तो किर इस जर्त में न्याय िा िोई उपाय न रह जाएर्ा।

प्रभु िी िृपा िा तो यह अथग हुआ कि किसी पर िृपा िरता है और किसी पर अिृपा भी रखता है ।
ऐसा अथग किया हो तो वैसा अथग र्ित है । िेकिन किसी और अथग में सही है । प्रभु िी िृपा से उपिि होता
है , यह उनिा िथन नही ूं है कजन्ें अभी नही ूं कमिा, यह उनिा िथन है

कजन्ें कमि र्या है । और उनिा िथन इसकिए है कि जि वह कमिता है , तो अपने किए र्ए प्रयास
किििुि ही इररे िेवेंट, असूं र्त मािूम पड़ते हैं । जि वह कमिता है , तो जो हमने किया था वह इतना क्षुद्र और जो
कमिता है वह इतना कवराट कि हम िैसे िहें कि जो हमने किया था उसिे िारण यह कमिा है ?

जि कमिता है ति ऐसा िर्ता है हमसे िैसे कमिेर्ा? हमने किया ही क्ा था? हमने कदया ही क्ा
था? हमने स दे में दाूं व क्ा िर्ाया था? हमारे पास था भी क्ा जो हम िरते ? था भी क्ा जो हम दे ते? जि
उसिी अनूंत—अनूंत आनूंद िी वषाग होती है तो उस वषाग िे क्षण में ऐसा ही िर्ता है कि ते री िृपा से ही, ते रे
प्रसाद से ही, ते री ग्रेस से ही उपिि हुआ। हमारी क्ा सामर्थ्ग , हमारा क्ा वश!

िेकिन यह िात उनिी है कजनिो कमिा। यह िात अर्र उन्ोूंने पिड़ िी कजनिो नही ूं कमिा, तो वे
सदा िे किए भटि जाएूं र्े। प्रयास िरना ही होर्ा। कनकश्चत ही, प्रयास िरने पर कमिने िी जो घटना घटती है वह
ऐसी है , जैसे किसी िा द्वार िूंद है , सू रज कनििा है , और घर में अूंधेरा है । वे द्वार खोििर प्रतीक्षा िरें , सू रज
भीतर आ जाएर्ा। सू रज िो र्ठररयोूं में िाूं धिर भीतर नही ूं िाया जा सिता, वह अपनी ही िृपा से भीतर आता
है ।

यह मजे िी िात है , सू रज िो हम भीतर नही ूं िा सिते अपने प्रयास से , िेकिन अपने प्रयास से भीतर
आने से रोि जरूर सिते हैं । द्वार िूंद िरिे , आूं ख िूंद िरिे िै ठ सिते हैं । तो सू रज िी मकहमा भी हमारी
िूंद आूं खोूं िो पार न िर पाएर्ी। सू रज िी किरणोूं िो हम द्वार िे िाहर रोि सिते हैं । रोि सिने में समथग
हैं , िा सिने में समथग नही ूं। द्वार खु ि जाए, सू रज भीतर आ जाता है । सू रज जि भीतर आ जाए तो हम यह नही ूं
िह सिते कि हम िाए; हम इतना ही िह सिते हैं , उसिी िृपा, वह आया। और हम इतना ही िह सिते हैं
कि हमारी अपने पर िृपा कि हमने द्वार िूं द न किए।

आदमी कसिग एि ओपकनूंर् िन सिता है उसिे आर्मन िे किए। हमारे प्रयास कसिग द्वार खोिते
हैं , आना तो उसिी िृपा से ही होता है । िेकिन उसिी िृपा हर द्वार पर प्रिट होती है । िेकिन िुछ द्वार िूं द
हैं , वह क्ा िरे ? िहुत द्वारोूं पर ईश्वर खटखटाता है और ि ट जाता है ; वे द्वार िूंद हैं । मजिूती से हमने िूंद किए
हैं । और जि वह खटखटाता है , ति हम न मािूम कितनी व्याख्याएूं िरिे अपने िो समझा िेते हैं ।

एि छोटी सी िहानी मुझे प्रीकतिर है , वह मैं िहूं ।

एि िड़ा मूंकदर, उस िड़े मूं कदर में स पुजारी, िड़े पुजारी ने एि रात स्वप्न दे खा है कि प्रभु ने खिर िी
है स्वप्न में कि िि मैं आ रहा हूं । कवश्वास तो न हुआ पुजारी िो, क्ोूंकि पु जाररयोूं से ज्यादा अकवश्वासी आदमी
खोजना सदा ही िकठन है । कवश्वास इसकिए भी न हुआ कि जो दु िान िरते हैं धमग िी, उन्ें धमग पर िभी कवश्वास
नही ूं होता। धमग से वे शोषण िरते हैं ,धमग उनिी श्रद्धा नही ूं है । और कजसने श्रद्धा िो शोषण िनाया, उससे ज्यादा
अश्रद्धािु िोई भी नही ूं होता।
पुजारी िो भरोसा तो न आया कि भर्वान आएर्ा, िभी नही ूं आया। वषों से पुजारी है , वषों से पूजा िी
है , भर्वान िभी नही ूं आया। भर्वान िो भोर् भी िर्ाया है , वह भी अपने िो ही िर् र्या है । भर्वान िे किए
प्राथगनाएूं भी िी हैं , वे भी खािी आिाश में — जानते हुए कि िोई नही ूं सु नता— िी हैं । सपना मािूम होता है ।
समझाया अपने मन िो कि सपने िही ूं सच होते हैं ! िेकिन किर डरा भी, भयभीत भी हुआ कि िही ूं सच ही न
हो जाए। िभी—िभी सपने भी सच हो जाते हैं ; िभी—िभी कजसे हम सच िहते हैं , वह भी सपना हो जाता
है , िभी—िभी कजसे हम सपना िहते हैं , वह सच हो जाता है ।

तो अपने कनिट िे पुजाररयोूं िो उसने िहा कि सु नो, िड़ी मजाि मािूम पड़ती है , िेकिन िता दू ूं ।
रात सपना दे खा कि भर्वान िहते हैं कि िि आता हूं । दू सरे पुजारी भी हूं से ; उन्ोूंने िहा, पार्ि हो र्ए! सपने
िी िात किसी और से मत िहना,नही ूं तो िोर् पार्ि समझेंर्े। पर उस िड़े पुजारी ने िहा कि िही ूं अर्र वह
आ ही र्या! तो िम से िम हम तै यारी तो िर िें! नही ूं आया तो िोई हजग नही ,ूं आया तो हम तै यार तो कमिेंर्े।

तो मूंकदर धोया र्या, पोूंछा र्या, साि किया र्या, िूि िर्ाए र्ए, दीये जिाए र्ए; सु र्ूंध कछडिी र्ई,
धू प—दीप सि;भोर् िना, भोजन िने। कदन भर में पुजारी थि र्ए; िई िार दे खा सड़ि िी तरि, तो िोई
आता हुआ कदखाई न पड़ा। और हर िार जि दे खा ति ि टिर िहा, सपना सपना है , ि न आता है ! नाहि हम
पार्ि िने। अच्छा हुआ, र्ाूं व में खिर न िी,अन्यथा िोर् हूं सते ।

साूं झ हो र्ई। किर उन्ोूंने िहा, अि भोर् हम अपने िो िर्ा िें। जैसे सदा भर्वान िे किए िर्ा भोर्
हमिो कमिा,यह भी हम ही िो िेना पड़े र्ा। िभी िोई आता है ! सपने िे चक्कर में पड़े हम, पार्ि िने हम—
जानते हुए पार्ि िने। दू सरे पार्ि िनते हैं न जानते हुए, हम.......हम जो जानते हैं भिीभाूं कत िभी िोई भर्वान
नही ूं आता। भर्वान है िहाूं ? िस यह मूंकदर िी मूकतग है , ये हम पुजारी हैं , यह हमारी पूजा है , यह व्यवसाय है ।
किर साूं झ उन्ोूंने भोर् िर्ा किया, कदन भर िे थिे हुए वे जल्दी ही सो र्ए।

आधी रात र्ए िोई रथ मूं कदर िे द्वार पर रुिा। रथ िे पकहयोूं िी आवाज सु नाई पड़ी। किसी पुजारी
िो नी ूंद में िर्ा कि मािूम होता है उसिा रथ आ र्या। उसने जोर से िहा, सु नते हो, जार्ो! मािूम होता है
कजसिी हमने कदन भर प्रतीक्षा िी,वह आ र्या! रथ िे पकहयोूं िी जोर—जोर िी आवाज सु नाई पड़ती है !

दू सरे पुजाररयोूं ने िहा, पार्ि, अि चुप भी रहो; कदन भर पार्ि िनाया, अि रात ठीि से सो िे ने दो।
यह पकहयोूं िी आवाज नही,ूं िादिोूं िी र्ड़र्ड़ाहट है । और वे सो र्ए, उन्ोूंने व्याख्या िर िी।

किर िोई मूं कदर िी सीकढ़योूं पर चढ़ा, रथ द्वार पर रुिा, किर किसी ने द्वार खटखटाया, किर किसी
पुजारी िी नी ूंद खु िी, किर उसने िहा कि मािूम होता है वह आ र्या मे हमान कजसिी हमने प्रतीक्षा िी! िोई
द्वार खटखटाता है !

िेकिन दू सरोूं ने िहा कि िैसे पार्ि हो, रात भर सोने दोर्े या नही?ूं हवा िे थपेडे हैं , िोई द्वार नही ूं
थपथपाता है । उन्ोूंने किर व्याख्या िर िी, किर वे सो र्ए।

किर सु िह वे उठे , किर वे द्वार पर र्ए। किसी िे पद—कचह्न थे , िोई सीकढ़याूं चढ़ा था, और ऐसे पद—
कचह्न थे जो किििुि अशात थे। और किसी ने द्वार जरूर खटखटाया था। और राह ति िोई रथ भी आया था।
रथ िे चािो िे कचह्न थे। वे छाती पीटिर रोने िर्े। वे द्वार पर कर्रने िर्े। र्ाूं व िी भीड़ इिट्ठी हो र्ई। वह
उनसे पूछने िर्ी, क्ा हो र्या है तु म्हें?वे पुजारी िहने िर्े , मत पूछो। हमने व्याख्या िर िी और हम मर र्ए।
उसने द्वार खटखटाया, हमने समझा हवा िे थपेडे हैं । उसिा रथ आया, हमने समझी िादिोूं िी र्ड़र्ड़ाहट है ।
और सच यह है कि हम िुछ भी न समझे थे , हम िेवि सोना चाहते थे , और इसकिए हम व्याख्या िर िेते थे।
तो वह तो सभी िे द्वार खटखटाता है । उसिी िृपा तो सि द्वारोूं पर आती है । िेकिन हमारे द्वार हैं िूं द।
और िभी हमारे द्वार पर दस्ति भी दे तो हम िोई व्याख्या िर िेते हैं ।

पुराने कदनोूं िे िोर् िहते थे , अकतकथ दे वता है । थोड़ा र्ित िहते थे। दे वता अकतकथ है । दे वता रोज ही
अकतकथ िी तरह खड़ा है । िे किन द्वार तो खु िा हो! उसिी िृपा सि पर है ।

इसकिए ऐसा मत पूछें कि उसिी िृपा से कमिता है । िेकिन उसिी िृपा से ही कमिता है , हमारे .प्रयास
कसिग द्वार खोि पाते हैं , कसिग मार्ग िी िाधाएूं अिर् िर पाते हैं , जि वह आता है , अपने से आता है ।

प्रथम तीन चरणोां में ध्यान की तै यारी:

एक दू सरे जमत्र ने पूछा है ? उन्ोांने पून है : ओशो ध्यान की चार सीजियोां की बात की है ; उन चारोां
का पूरा— पूरा अथओ बताएां ।

पहिी िात तो यह समझ िें कि तीन कसिग सीकढ़याूं हैं , ध्यान नही,ूं ध्यान तो च था ही है। द्वार तो च था
ही है , तीन तो कसिग सीकढ़याूं हैं । सीकढ़याूं द्वार नही ूं हैं , सीकढ़याूं द्वार ति पहुूं चाती हैं । च था ही द्वार है — कवश्राम,
कवराम, शू न्य, समपगण, मर जाना, कमट जाना, द्वार तो वही है । और तीन जो सीकढ़याूं हैं वे उस द्वार ति पहुूं चाती
हैं । वे तीन सीकढ़योूं िा म किि आधार एि है कि यकद कवश्राम में जाना हो तो पूरे तनाव में जाने िे िाद िहुत
आसान हो जाता है ।

जैसे िोई आदमी कदन भर श्रम िरता है तो रात सो पाता है । कजतना श्रम, उतनी र्हरी नी ूंद। अि िोई
पूछ सिता है कि श्रम िरने से नी ूंद तो उिटी चीज है । तो कजसने कदन भर श्रम किया है उसे तो नीद
ूं आनी ही
नही ूं चाकहए, क्ोूंकि श्रम और कवश्राम उिटी चीजें हैं । कवश्राम तो उसे आना चाकहए जो कदन भर किस्तर पर पड़ा
रहा और कवश्राम िरता रहा!

िेकिन कदन भर जो किस्तर पर पड़ा रहा, वह रात सो ही न सिेर्ा। इसकिए दु कनया में कजतनी सु कवधा
िढ़ती है , कजतनािम्िटग िढ़ता है , उतनी नी ूंद कवदा होती जाती है । दु कनया में कजतना आराम िढ़े र्ा, उतनी नीद
ूं
मुक्तिि हो जाएर्ी। और मजा यह है कि आराम हम इसीकिए िढ़ा रहे हैं कि चै न से सो सिें। न, आराम िढ़ा
कि नी ूंद र्ई। क्ोूंकि नी ूंद िे किए श्रम जरूरी है । कजतना श्रम, उतनी र्हरी नी ूंद।

चरम तनाि से चरम जिश्राम:

ठीि ऐसे ही, कजतना तनाव, अर्र चरम हो सिे, क्लाइमेक्स हो सिे, उतना र्हरा कवश्राम!
तो वे जो तीन सीकढ़याूं हैं , किििुि उिटी हैं । ऊपर से तो कदखाई पड़े र्ा कि इन तीन में तो हम िहुत
श्रम में पड़ रहे हैं —शक्तक्त िर्ा रहे , िहुत तनाव पैदा िर रहे , अपने िो थिा रहे , तू िान में डाि रहे , कवकक्षप्त
हुए जा रहे — और किर इनसे िैसे कवश्राम आएर्ा?

इनसे ही आएर्ा। कजतने ऊूंचे पहाड़ से कर्रें र्े , उतनी र्हरी खाई में चिे जाएूं र्े। ध्यान रहे , सि पहाड़ोूं
िे पास र्हरी खाइयाूं होती हैं । असि में , पहाड िनता ही नही ूं किना र्हरी खाई िो िनाए। जि पहाड़ उठता है
तो नीचे र्हरी खाई िन जाती है । जि आप तनाव में जाते हैं तो उसी िे किनारे कवश्राम िी शक्तक्त इिट्ठी होने
िर्ती है । कजतने ऊूंचे उठते हैं आप तनाव में.. .इसकिए मैं िहता हूं कि पूरी ताित िर्ा दें , िुछ िचे न, पूरे चुि
जाएूं , सि भाूं कत सि िर्ा दें , सि हार जाएूं , तो जि कर्रें र्ेउस ऊूंचाई से तो र्हरी अति खाई में डूि जाएूं र्े। वह
कवराम और कवश्राम होर्ा। उसी कवश्राम िे क्षण में ध्यान िकित होता है । मूि आधार तो आपिो पूरे तनाव में िे
जाना और किर तनाव िो एिदम से छोड़ दे ना है ।

मेरे पास िोर् आते हैं , वे िहते हैं कि अर्र हम यह तनाव िा िायग न िरें , तो सीधा कवश्राम नही ूं हो
सिता?

नही ूं होर्ा। नही ूं होर्ा; और अर्र होर्ा तो िहुत शै िो, िहुत उथिा होर्ा। र्हरे िूदना हो पानी में , तो
ऊूंचे चढ़ जाना चाकहए। कजतने ऊूंचे तट से िूदें र्े , उतने पानी में र्हरे चिे जाएूं र्े।

ये वृक्ष हैं सरू िे, चािीस िीट ऊूंचे होूंर्े। इतनी ही इनिी जड़ें नीचे चिी र्ईूं। कजतना ऊपर जाना हो
वृक्ष िो उतनी जड़ें नीचे चिी जाती हैं । कजतनी जड़ें नीचे जाती हैं , उतना ही वृ क्ष ऊपर चिा जाता है । अि
यह सरू िा वृ क्ष पूछ सिता है कि छह ही इूं च जड़ें भेजें तो िोई हजाग तो नही ूं है ? हजाग िुछ भी नही ूं है , छह ही
इूं च ऊूंचे भी जाएूं र्े। मजे से भेजें, छह इूं च भी क्ोूं भेजते हैं , भेजें ही मत, तो किििुि ही ऊूंचे नही ूं जाएूं र्े।

नीत्शे ने िही ूं किखा है और िहुत अूंतदृग कष्ट िा वाक् किखा है कि कजन्ें स्वर्ग िी ऊूंचाई छूनी हो, उन्ें
नरि िी र्हराई भी छूनी पडती है ।

िहुत अूंतदृग कष्ट िी िात है : कजन्ें स्वर्ग िी ऊूंचाई छूनी हो, उन्ें नरि िी र्हराई भी छूनी पड़ती है ।
इसकिए साधारण आदमी िभी भी धमग िी ऊूंचाई नही ूं छू पाता, पापी अक्सर छू िेते हैं। क्ोूंकि जो पाप िी
र्हराई में उतरता है , वह पुण्य िी ऊूंचाई में भी चिा जाता है ।

यह जो कवकध है , एक्सटर ीम्स, अकतयोूं से पररवतग न िी है । सि पररवतग न अकत पर होते हैं । एि अकत, और
ति पररवतग न होता है । घड़ी िा पेंडुिम दे खा आपने? वह जाता है , जाता है —िाएूं , िाएूं , िाएूं ! और किर कर्रता है
और दाएूं जाने िर्ता है । आपने िभी खयाि न किया होर्ा, जि घड़ी िा पेंडुिम िाईूं तरि जाता है , ति वह
दाईूं तरि जाने िी शक्तक्त अकजगत िर रहा है । जा रहा है िाईूं तरि और ताित इिट्ठी िर रहा है दाईूं तरि
जाने िी। कजतना िाईूं तरि जाएर्ा ऊूंचा, उतना ही दाईूं तरि डोि सिेर्ा। तो आपिे कचि िे पेंडुिम िो
कजतने तनाव में िे जाया जा सिे, किर जि कवराम िा क्षण आएर्ा, उतने ही र्हरे कवराम में उतर जाएर्ा। अर्र
आप तनाव में न िे र्ए तो कवराम में भी नही ूं जाएर्ा।

और िोर् िहुत अजीि—अजीि िातें पूछते हैं । ऐसा िर्ता है कि वे वृक्ष नही ूं िर्ाना चाहते , कसिग िूि
तोड़ना चाहते हैं । ऐसा िर्ता है , िसि नही ूं िोना चाहते , कसिग िि िाटना चाहते हैं ।

अि एि कमत्र आए, वे िोिे कि अर्र शरीर न कहिाएूं , न िूंपन हो शरीर में , तो िोई िकठनाई तो नही ूं
है ?
िकठनाई िुछ भी नही ूं है । िकठनाई तो िुछ भी न िरें तो िोई िकठनाई नही ूं है । िेकिन शरीर िे
िूंपन से इतने भयभीत हो रहे हैं , तो जि भीतर िे िूंपन उठें र्े तो क्ा होर्ा? शरीर िे िूंपने िो रोिना चाहते
हैं , तो जि भीतर शक्तक्त िी ऊजाग िूंपे र्ी ति क्ा होर्ा?

नही,ूं वे चाहते हैं कि भीतर िुछ हो जाए, और िाहर सभ्य, सु सूंस्कृत, कशष्ट, जैसी शक्ल उन्ोूंने िनाई
है , जो मूकतग खड़ी िर िी है अपनी, वे वैसे ही मोम िे िने खड़े रहें और भीतर िुछ हो जाए। वह नही ूं होर्ा। वह
जि भीतर ऊजाग उठे र्ी तो यह सि मोम िा पुतिा िह जाएर्ा किििुि। यह हटे र्ा, इसिो जर्ह दे नी पड़े र्ी।

तनाव अकत पर पहुूं च जाए, इसिी चेष्टा िरें , ताकि किर कवश्राूं कत अकत पर हो सिे। कवश्राूं कत किर अपने
आप हो जाएर्ी। तनाव आप िर िें , कवश्राूं कत प्रभु िी िृपा से हो जाएर्ी। तनाव आप उठा िें , किर तो िहर
कर्रे र्ी और शाूं कत छा जाएर्ी। तू िान िे िाद जैसी शाूं कत होती है वैसी िभी नही ूं होती। तू िान उठना जरूरी है ।
और तू िान िे िाद जो शाूं कत होती है वह कजूंदा होती है , क्ोूंकि वह तू िान से पैदा होती है । तो एि कजूंदा शाूं कत
िे किए जरूरी है , जो मैं िह रहा हूं उसमें िोई चरण छोड़ा नही ूं जा सिता। इसकिए मुझसे िोई आिर िार—
िार न पूछे कि यह हम छोड़ दें , यह हम छोड़ दें ; शरीर िो न कहिाएूं , कसिग श्वास िें ;श्वास न चिाएूं , कसिग ‘मैं ि न
हूं ?’ यह पूछें। नही,ूं वे तीनोूं चरण िहुत व्यवक्तस्थत रूप से , वैज्ञाकनि ढूं र् से तनाव िी एि अकत से दू सरी अकत पर
िे जाने िे किए हैं ।

और इसीकिए मैं िहता हूं एि चरण जि पूरी अकत पर पहुूं चे ति दू सरे में िदिा जा सिता है । जैसे
िार िे र्ेयर आप िदिते हैं । अर्र पहिे र्ेयर में र्ाड़ी आपने चिाई है तो र्कत में िानी पडती है । जि
पहिे र्ेयर पर र्ाड़ी पूरी र्कत में आती है ,ति आप उसे दू सरे र्ेयर में डािते हैं । दू सरे र्ेयर पर वह मूंदी र्कत में
हो तो आप तीसरे र्ेयर में नही ूं डाि सिते हैं र्ाड़ी िो। सि पररवतग न तीव्रता में होते हैं । कचि िा पररवतग न भी
तीव्रता में होता है ।

तीव्र श्वास की चोट का रहस्य:

और तीनोूं िा क्ा अथग है, वह भी समझ िेना चाकहए। पहिा चरण, जो कि पूरे समय जारी
रहे र्ा, श्वास िो र्हरी और तीव्रता से िेने िा है । र्हरी भी िे ना है , डीप भी, और तीव्रता से भी, िास्ट भी। कजतनी
र्हरी जा सिे उतनी र्हरी िेनी है और कजतनी ते जी से यह िेने और छोड़ने िा िाम हो सिे , यह िरना है ।
क्ोूं? श्वास से क्ा होर्ा?

श्वास मनुष्य िे जीवन में सवाग कधि रहस्यपूणग तत्व है । श्वास िे ही माध्यम से , से तु से आत्मा और शरीर
जुड़े हैं । इसकिए जि ति श्वास चिती है , हम िहते हैं , आदमी जीकवत है । श्वास र्ई और आदमी र्या।

अभी मैं एि घर में र्या जहाूं न महीने से एि स्त्री िेहोश पड़ी है । वह िोमा में आ र्ई है । और
कचकित्सि िहते हैं कि अि वह िभी होश में नही ूं आएर्ी। िे किन िम से िम तीन साि कजूंदा रह सिती है
अभी और। अि उसिो िेहोशी में ही दवा और इूं जेक्शन और ्ू िोज दे —दे िर किसी तरह से कजूं दा रखे हुए
हैं । वह िेहोश पड़ी है । न महीने से उसे िभी होश नही ूं आया। मैं उनिे घर र्या, उस स्त्री िी माूं िो मैं ने पूछा
कि अि यह तो िरीि—िरीि मर र्ई। उन्ोूंने िहा कि नही,ूं जि ति श्वास ति ति आस। उस िी औरत ने
िहा, जि ति श्वास है ति ति आशा है । अि कचकित्सि िहते हैं , िेकिन ि न जाने! कचकित्सि किसी िो
िहते हैं कि नही ूं मरे र्ा और वह मर जाता है । ि न जाने , एि दिा होश आ जाए, अभी श्वास तो है । श्वास तो
है , अभी से तु कर्रा नही,ूं अभी कब्रज है । अभी वापसी ि टना हो सिता है ।
शरीर और श्वास से तादात्म्य जिर्च्े द:

श्वास हमारी आत्मा और शरीर िे िीच जोड़नेवािा सेतु है। श्वास िो जि आप िहुत तीव्रता में िेते हैं
और िहुत र्हराई में िेते हैं , तो शरीर ही नही ूं िूंपता, भीतर िे आत्म—तूं तु भी िैप जाते हैं । जैसे एि िोति
रखी है । और उसमें िहुत कदनोूं से िोई चीज भरी रखी है , िभी किसी ने कहिाई नही ूं। तो ऐसा पता नही ूं चिता
कि िोति और भीतर भरी चीजें दो हैं । िहुत कदनोूं से रखी है , मािूम होता है एि ही है । िोति कहिा दें जोर से !
िोति कहिती है , भीतर िी चीज कहिती है , िोति और भीतर िी चीज िे पृथि होने िा स्पष्टीिरण होता है ।

तो जि श्वास िो आप समग्र र्कत से िेते हैं , तो एि झूंझावात पैदा होता है , जो शरीर िो भी िूंपा जाता
है और भीतर आत्मा िे तूं तुओूं िो भी िूंपा जाता है । उस िूंपन िे क्षण में ही अहसास होता है दोनोूं िे पृथि
होने िा।

अि आप मुझसे आिर िहते हैं कि न िें र्हरी श्वास तो िोई हजग तो नही ?ूं

हजग िुछ भी नही ूं। हजग इतना ही है कि आप िभी न जान पाएूं र्े कि शरीर से पृथि हैं । इसीकिए उसमें
एि सू त्र और जोड़ा हुआ है कि र्हरी श्वास िें और भीतर दे खते रहें कि श्वास आई और श्वास र्ई। जि आप श्वास
िो दे खेंर्े कि श्वास आई और श्वास र्ई, तो न िेवि शरीर अिर् है , यह पता चिे र्ा, िक्तम्ऻ यह भी पता चिेर्ा
कि श्वास भी अिर् है ; मैं दे खनेवािा हूं अिर् हूं । शरीर िी पृथिता िा पता तो र्हरी श्वास िे िे ने से भी चि
जाएर्ा, िेकिन श्वास से भी कभन्न हूं मैं , इसिा पता श्वास िे प्रकत साक्षी होने से चिेर्ा। इसकिए पहिे चरण में ये
दो िातें हैं । ये दोनोूं अूं कतम चरण ति जारी रहें र्ी तीसरे चरण ति।

दू सरे चरण में मनोग्रजथयोां का जिसजओन:

दू सरे चरण में शरीर िो छोड़ दे ने िे किए मैं िहता हूं। श्वास र्हरी ही रहेर्ी। शरीर िो इसकिए छोड़
दे ने िो िहता हूं कि उसिे तो िहुत से इूं प्लीिेशूं स हैं , दो—तीन िी िात आपसे िरू
ूं र्ा।

पहिी तो िात यह है कि शरीर में हजारोूं तनाव इिट्ठे आपने िर रखे हैं , कजनिा आपिो पता ही नही ूं
है । सभ्यता ने हमें इतना असहज किया है कि जि आपिो किसी पर क्रोध आता है ति भी आप मु स्कुराते रहते
हैं । शरीर िो िुछ पता नही ूं है ;शरीर तो िहता है कि र्दग न दिा दो इसिी, मुकट्ठयाूं िूंधती हैं । िेकिन आप
मुस्कुराते रहते हैं , मुट्ठी नही ूं िाूं धते । तो शरीर िे जो स्नायु मुट्ठी िाूं धने िे किए तै यार हो र्ए थे , वे िड़ी मुक्तिि में
पड़ जाते हैं । उन्ें पता ही नही ूं चिता कि क्ा हो रहा है । एि िहुत ही िेचैन क्तस्थकत शरीर में पैदा हो जाती है ।
मुट्ठी िूंधनी चाकहए थी। अभी जो िोर् क्रोध िे सूं िूंध िो िहुत र्हराई से समझते हैं , वे िहें र्े, मैं आपसे
िहूं र्ा, अर्र आपिो क्रोध आए, तो िजाय इसिे कि आप झूठे मुस्कुराते रहें , टे िि िे नीचे जोर से पाूं च
कमनट मुकट्ठयाूं िाूं धें और छोड़े । और ति आपिो जो हूं सी आएर्ी, वह िहुत और तरह िी होर्ी।
शरीर िो िुछ भी पता नही ूं कि आदमी सभ्य हो र्या है । शरीर िा सारा िाम तो किििुि यूंत्रवत है ।
िेकिन आदमी ने सि पर रोि िर्ा दी है । उस रोि िे िारण शरीर में हजारोूं तनाव इिट्ठे हो र्ए हैं । और जि
िहुत तनाव इिट्ठे हो जाते हैं ,तो िाूं प्लेक्स पैदा होते हैं , ग्रूंकथयाूं पैदा होती हैं । तो जि मैं आपसे िहता हूं शरीर
िो पूरी तरह छोड़ दें , तो आपिी हजारोूं ग्रूंकथयाूं जो आपने िचपन से इिट्ठी िी हैं , वे सि किखरनी शु रू होती
हैं , कपघिनी शु रू होती हैं । उनिा कपघि जाना जरूरी है । अन्यथा आप िभी भी िॉडीिेसनेस , दे हातीत न हो
पाएूं र्े। दे ह जि िूि िी तरह हििी हो जाएर्ी, सि ग्रूंकथयोूं से मुक्त...।

महावीर िा एि नाम शायद आपने सु ना हो। महावीर िा एि नाम है , कनग्रं थ। नाम िड़ा अदभुत है ।
उसिा मतिि है ,िाूं प्लेक्स—िेस। कनग्रंथ िा मतिि है , कजसिी सारी ग्रूंकथयाूं और र्ाूं ठें खो र्ईूं, कजसमें अि
िोई र्ाूं ठ नही ूं भीतर; जो किििुि सरि हो र्या, कनदोष हो र्या।

तो यह शरीर िी जो ग्रूंकथयोूं िा जाि है हमारे भीतर, वह मुक्त होना चाहे तो आप छोड़ते नही ूं। आपिी
सभ्यता,कशष्टता, सूं स्कार, सूं िोच, किसी िा स्त्री होना, किसी िा िड़े पद पर होना, किसी िा िुछ, किसी िा
िुछ होना, वह इस िुरी तरह से पिड़े हुए है कि वह छोड़ता नही ूं।

अि आज एि मकहिा ने मुझे आिर िहा कि उसे यही डर िर्ा रहता है कि िोई िा हाथ उसिो न
िर् जाए! तो वह िेचारी दू र जािर िैठी होर्ी आज। मर्र िोई दो—चार िरवट िे िर उसिे पास पहुूं च र्या।
तो उसिा किर र्ड़िड़ हो र्या। वह मुझे पूछने आई थी कि क्ा मैं और िहुत दू र जािर िै ठूूं ?

मैंने िहा, भेजने वािा वहाूं भी भेज दे सिता है किसी िो। वह अच्छा ही है कि िोई आता ही है । वहाूं
भी आ जाएर्ा िोई। तु म जहाूं िैठती हो, वही ूं िैठो। किसी िा हाथ िर् जाएर्ा तो क्ा हो जाएर्ा?

क्तस्त्रयोूं िी हाित तो ऐसी है कि अर्र परमात्मा भी कमिे तो वे ऐसी साड़ी िचािर कनिि जाएूं र्ी। वह
भी िही ूं छू न जाए। उनिा सारा िा सारा िॉडी, क्तस्त्रयोूं िा तो पूरा शरीर ग्रूंकथ—ग्रस्त है । िचपन से उसिा सारा
प्रकशक्षण ऐसा है कि शरीर उनिा एि रोर् है । शरीर क्तस्त्रयाूं ढो रही हैं , शरीर में जी नही ूं रही ूं। वह एि खोि है
कजसिो पूरे वक्त सु रकक्षत िरिे और ढोए चिी जा रही हैं । और िुछ भी िचाने जैसा नही ूं है उसमें। तो यह
छोटा—छोटा आग्रह हमारा िहुत िुछ रोि...

अि िोई िहुत पढ़े —किखे हैं तो अि उनिो ऐसा िर्ता है .. .िोई आज मुझसे एि सज्जन िह रहे थे
कि यह इमोशनििोर्ोूं िो हो जाता होर्ा, भावु ि िोर्ोूं िो। इूं टेिेक्गुअि िो िैसे होर्ा?

अि िोई दो—चार क्लास पढ़ र्या तो वह इूं टेिेक्गुअि हो र्या! उसिी माूं मरे र्ी तो रोिा कि नही ूं
वह? उसिा किसी से प्रेम होर्ा कि नही ूं होर्ा? वह इूं टेिेक्गुअि हो र्या! वह चार क्लास पढ़ र्या, उसने
युकनवकसग टी से सकटग कििेट िे किया है । तो अि वह प्रेम िरे र्ा तो वह सोचिर िरे र्ा कि चुूंिन िेना कि
नही,ूं कितने िीटाणु टर ाूं सिर हो जाते हैं ! वह किताि पढ़े र्ा, वह जािर कहसाि—किताि िर्ाएर्ा
कि इमोशनि होना कि नही ूं होना।

इूं टेिेक्ङ भी िीमारी िी तरह हो र्ई है । इूं टेिेक्ङ िुछ हमारा स रभ नही ूं िन पाई है । िुक्तद्ध हमारी िोई
र्ररमा नही ूं िनी है , रोर् िन र्ई है । िोई सोचता है कि हम इूं टेिेक्ूअि हैं , हम िुक्तद्धवादी हैं ; यह हमिो नही ूं हो
सिता। यह तो उनिो हो रहा है जो जरा भावु ि हैं ।

भाि की पहुां च बब्धि से गहरी:


िे किन भावुि होना िुछ िुरा है? जीवन में जो भी श्रेष्ठ है वह भाव से आता है। िुक्तद्ध से किसी श्रेष्ठता
िा िोई जन्म न िभी हुआ और न िभी हो सिता है । हाूं , र्कणत िा कहसाि िर्ता है , खाते—िही जोड़े जाते
हैं , यह सि होता है । िे किन जो भी श्रे ष्ठ है , और आश्चयग िी िात यह है कि कवज्ञान, कजसिो हम समझते हैं सिसे
िड़ी ि क्तद्धि प्रकक्रया है , उसमें भी जो श्रे ष्ठतम आकवष्कार हैं , वे भी भाव से होते हैं , वे भी िु क्तद्ध से नही ूं होते ।

अर्र आइूं स्टीन से िोई जािर पूछे कि िैसे तु मने ररिेकटकवटी खोजी? वह िहे र्ा, मुझे पता नही;ूं आ
र्ई। यह िड़ी धाकमग ि भाषा है कि आ र्ई। इट है पेंड।

अर्र क्ूरी से िोई पूछे कि िैसे तु मने यह रे कडयम खोज कनिािा? तो वह िहे र्ी, मुझे िुछ पता
नही,ूं ऐसा हुआ है ; हो र्या है ; मेरे वश िी िात नही ूं है । अर्र िड़े वैज्ञाकनि से जािर पूछें तो वह भी
िहे र्ा, हमारे वश िे िाहर हुआ है िुछ; हमारी खोज से नही ूं हुआ, हमसे िही ूं ऊपर से िुछ हुआ है ; हम कसिग
माध्यम थे , इूं स्टरमेंट थे। िड़ी धमग िी भाषा है ।

भाव िहुत र्हरे में है , िुक्तद्ध िहुत ऊपर है । िु क्तद्ध िहुत िामचिाऊ है । िुक्तद्ध वैसे ही है , जैसे कि र्वनगर
िी र्ाड़ी कनििती है और आर्े एि पायिट कनििता है । उस पायिट िो र्वनगर मत समझ िेना। िु क्तद्ध
पायिट से ज्यादा नही ूं है । वह रास्ता साि िरती है , िोर्ोूं िो हटाती है , कहसाि रखती है कि रास्ते पर िोई
टक्कर न हो जाए। िेकिन माकिि िहुत पीछे है वह इमोशन है । जीवन में जो भी सुूं दर है , श्रे ष्ठ है, वह भाव से
जन्मता और पैदा होता है ।

िेकिन िुछ िोर् पायिट िो नमस्कार िर रहे हैं । वे िहते हैं , हम इूं टेिेक्गुअि हैं , हम िुक्तद्धवादी
हैं ; हम पायिट िो ही र्वनगर मानते हैं । मानते रहें , पायिट भी खड़ा होिर हूं स रहा है ।

बब्धििाजदयोां की आत्मिांचना:

िुछ िोर्ोूं िो खयाि है कि िमजोर िोर्ोूं िो हो जाता है। हम शक्तक्तशािी हैं , हमिो िहुत
मुक्तिि है ।

उनिो पता नही,ूं उन्ें िुछ भी पता नही ूं। शक्तक्तशाकियो िो होता है , िमजोर खड़े रह जाते हैं । क्ोूंकि
एि घूंटे ति सूं िल्पपूवगि किसी भी क्तस्थकत में होना, िहुत स्टर ाूं र् कवल्ड िे किए सूं भव है , िमजोरोूं िे किए नही ूं।
िमजोर तो दो कमनट र्हरी श्वास िेते हैं , किर िैठ जाते हैं । अि वे दू सरे जो उनिो हो रहा है , वे िहते
हैं , िमजोरोूं िो हो रहा है । वे घूंटे भर र्हरी श्वास भी नही ूं िे सिते , वे दस कमनट 'मैं ि न हूं ?' यह भी नही ूं पूछ
सिते । इस खयाि में आप मत पड़ना।

िेकिन ये हमारे रे शनिाइजेशस हैं । ये हमारी ि क्तद्धि तरिीिें हैं , कजनसे हम अपने िो िचाते हैं । हम
िहते हैं , जो िमजोर हैं , उनिो हो रहा है । हम िहुत ताितवर हैं ; हमिो िैसे होर्ा?

िड़े आश्चयग िी िात है । इस दु कनया में सि चीजें ताितवरोूं से होती हैं , िमजोरोूं से िुछ भी नही ूं होता।
और ध्यान?ध्यान तो अूंकतम ताित माूं र्ता है । वे िहें र्े यह कि िमजोर िो हो रहा है ; और उनिो इसकिए नही ूं
हो रहा है कि यहिर्िवािा आदमी जोर से रो रहा है , इसकिए उनिो नही ूं हो पा रहा। और कजसिो हो रहा
है , वह रोने िा उसे पता नही,ूं ि न दे ख रहा है उसे पता नही,ूं ि न सोच रहा है , क्ा सोच रहा है , पता नही ूं। वह
अपनी धु न में पूरा िर्ा है । उतनी धु न िा सातत्य िड़ी शक्तक्त है । िमजोरोूं िो नही ूं होता।

इसकिए अपने अहूं िार िो व्यथग िचाने िी िोकशश में मत िर्ना कि हम ताितवर हैं , स्टर ाूं र् कवल्ड हैं ,
हम इूं टेिेक्ुअिहैं , हमिो नही ूं होर्ा। नही ूं होर्ा, इतना ही जानें। नही ूं होने िे किए यह और शक्कर क्ोूं चढ़ा रहे
हैं ऊपर से ? इससे न होना भी मीठा िर्ने िर्ेर्ा। और किर होना हमेशा िे किए असूं भव हो जाएर्ा। इतना ही
जानें कि मुझे नही ूं हो रहा। नही ूं हो रहा, तो िही ूं िोई िमजोरी है । उस िमजोरी िो पहचानें , समझें और हि
िरें । उसिो िहादु री न समझें कि हमिो नही ूं हो रहा तो हम ताितवर हैं ।

अि एि कमत्र आए, उन्ोूंने िहा कि यह तो कहस्टे ररि है । किसी िो कहस्टीररया जैसा हो जाता है ।

उन्ें पता नही ूं कि जीवन में , जीवन िे भीतर क्ा—क्ा कछपा है ! कहस्टे ररि िहिर वे अपने िो िचा
िेंर्े। अि वे समझ किए कि यह तो ये िुछ कवकक्षप्त िोर् हैं , कजनिो होर्ा। हम, हम तो कवकक्षप्त नही ूं हैं । हमिो
नही ूं होर्ा। तो किर िुद्ध भी कवकक्षप्त थे , और महावीर भी, और जीसस, और सु िरात, और रूमी, और मूंसूर—
सि कवकक्षप्त थे। तो इन कवकक्षप्तोूं िी जात में शाकमि होना, आप स्वस्थोूं िी जात में शाकमि होने से िे हतर है । इन
पार्िोूं िी जमात में ही शाकमि हो जाइए। क्ोूंकि इन पार्िोूं िो जो कमिा वह िुक्तद्धमानोूं िो नही ूं कमिा।

जि शक्तक्त िहुत तीव्रता से भीतर उठे र्ी, तो सारे व्यक्तक्तत्व में तू िान आ जाएर्ा। वह कवकक्षप्तता नही ूं
है , क्ोूंकि कवकक्षप्तता हो, तो किर शाूं त नही ूं हो सिती। और जि तीनोूं चरण िे िाद एि क्षण में हम शाूं त हो
जाते हैं , तो कहस्टे ररि नही ूं है । क्ोूंकि कहस्टीररयावािे से िहो कि शाूं त हो जाओ, अि कवश्राम िरो, वह उसिे
वश िे िाहर है । जो भी हो रहा है , वह हमारे वश िे भीतर हो रहा है ; हम िोआपरे ट िर रहे हैं , सहयोर् िर
रहे हैं , इसकिए हो रहा है । इसकिए कजस क्षण अपने सहयोर् िो अिर् िर िेते हैं , वह कवदा हो जाता है ।

सभ्य िोगोां की आां तररक जिजक्षप्तता:

कवकक्षप्तता और स्वास्थ्य िा एि ही िक्षण है कजसिी मािकियत हाथ में हो उसिो स्वास्थ्य


समझना, और कजसिी मािकियत हाथ में न हो उसिो कवकक्षप्तता समझना। अि यह िड़े मजे
िा क्राइटे ररयन है । अि जो हो रहा है कजनिो, जि मैं िहता हूं शाूं त हो जाएूं , वे तत्काि शाूं त हो र्ए हैं । और वे
जो स्वस्थ िैठे हैं , उनसे मैं िहूं कि अपने कवचारोूं िो शाूं त िर दो, वे िहते हैं , होता ही नही;ूं हम कितना ही
िरें , वे नही ूं होते । कवकक्षप्त हैं आप, पार्ि हैं आप। कजस पर आपिा वश नही ूं है , वह पार्िपन है ; कजस पर
आपिा वश है , वह स्वास्थ्य है । कजस कदन आपिे कवचार ऑन—ऑि िर सिेंर्े आप—कि िह दें मन िो कि
िस, तो मन वही ूं ठहर जाए—ति आप समझना कि स्वस्थ हुए। और आप िह रहे हैं िस, और मन िहता
है , िहते रहो; हम जा रहे हैं जहाूं जाना है , जो िर रहे हैं , िर रहे हैं । कसर पटि रहे हैं , िेकिन वह मन जो िरना
है , िर रहा है । आप भर्वान िा भजन िर रहे हैं और मन कसनेमार्ृह में िैठा है तो वह िहता है —िैठेंर्े , यही
दे खेंर्े, िरो भजन कितना ही!

िेकिन आदमी िहुत चािाि है और वह अपनी िमजोररयोूं िो भी अच्छे शब्दोूं में कछपा िेता है और
दू सरे िी श्रे ष्ठताओूंिो भी िहुत िुरे शब्द दे िर कनकश्चूंत हो जाता है । इससे िचना। सच तो यह है कि दू सरे िे
सूं िूंध में सोचना ही मत। किस िो क्ा हो रहा है , िहना िहुत मुक्तिि है । जीवन इतना रहस्यपूणग है कि दू सरे
िे सूं िूंध में सोचना ही मत। अपने ही सूं िूंध में सोच िेना, वही िािी है —कि मैं तो पार्ि नही ूं हूं इतना सोच
िेना। मैं िमजोर हूं ताितवर हूं क्ा हूं अपने िाित सोचना। िेकिन हम सि सदा दू सरोूं िे िाित सोच रहे हैं
कि किस िो क्ा हो रहा है ? र्ित है वह िात।

शरीर िो पूरी तरह छोड़ दे ने में , एि तो मैंने िहा, ग्रूंकथ—रे चन, वे जो रुिे हुए अवरोध हैं , वे सि िह
जाते हैं । दू सरा, जि शरीर अपनी र्कत से चिता है — आप नही ूं चिाते , अपनी र्कत से चिता है —ति शरीर िी
पृथिता िहुत स्पष्ट होती है । क्ोूंकि आप दे ख रहे हैं , और शरीर घूम रहा है ; आप दे ख रहे हैं , और शरीर खड़ा
हो र्या है , आप दे ख रहे हैं , और हाथ िैप रहा है , आप दे ख रहे हैं कि मैं नही ूं िूंपा रहा हूं और हाथ िैप रहा
है ; ति आपिो पहिी दिा पता चिता है कि मेरा होना और शरीर िा होना िुछ अिर् मामिा है । ति आपिो
यह भी पता चि जाएर्ा कि जवान भी मैं नही ूं हुआ, शरीर हुआ है , िूढ़ा भी शरीर होर्ा,मैं नही ूं होऊूंर्ा। और
अर्र यह र्हरा आपिो पता चिा तो पता चिेर्ा मरे र्ा भी शरीर, मैं नही ूं मरू
ूं र्ा। इसकिए शरीर िी पृथिता
िहुत र्हरे में कदखाई पड़े र्ी जि शरीर यूंत्रवत घूमने िर्ेर्ा। उसे पूरी तरह छोड़ दे ना, तभी पता चिे र्ा।

'मैं कौन हां ?' का तीर:

और तीसरा सवाि जो हम पूछते हैं, 'मैं ि न हूं?' क्ोूंकि यह पता चि जाए कि शरीर नही ूं हूं यह
भी पता चि जाए कि श्वास नही ूं हूं ति भी यह पता नही ूं चिता कि मैं ि न हूं । यह कनर्े कटव हुआ—शरीर नही ूं हूं
श्वास नही ूं हूं । यह तो कनर्ेकटव हुआ। िेकिन पाकजकटव? यह अभी पता नही ूं चिता कि मैं ि न हूं । इसकिए तीसरा
िदम है , कजसमें हम पूछते हैं कि मैं ि न हूं । किस से पूछते हैं ? किसी से पूछने िो नही ूं है । खु द से ही पूछ रहे
हैं । अपने िो ही पूरी तरह से सवाि से भर रहे हैं कि मैं ि न हूं । कजस कदन यह सवाि पू री तरह आपिे भीतर
भर जाएर्ा, उस कदन आप पाएूं र्े — उिर आ र्या, आपिे ही भीतर से । क्ोूंकि यह नही ूं हो सिता कि र्हरे
ति पर आपिो पता न हो कि आप ि न हैं । जि हैं , तो यह भी पता होर्ा कि ि न हैं । िेकिन वहाूं ति सवाि
िो िे जाना जरूरी है ।

जैसे कि जमीन में पानी है । ऊपर हम खड़े हैं प्यासे , और जमीन में पानी है , िेकिन िीच में तीस िीट
िी खु दाई िरनी जरूरी है । वह तीस िीट खु द जाए तो पानी कनिि आए। हमें प्रश्न है कि मैं ि न हूं ? जवाि भी
िही ूं तीस िीट र्हरे हममें है ,िेकिन िीच में िहुत सी पतें हैं जो िट जाएूं तो उिर कमि जाए। तो वह जो 'मैं
ि न हूं ?' वह िुदािी िा िाम िरता है । 'मैं ि न हूं ?' उसे कजतनी र्कत से पूछते हैं , खु दाई होती है ।

िेकिन पूछ नही ूं पाते । िई दिे िड़ी अदभुत घटना.. .एि कमत्र िो सु िह एि अदभुत घटना दो कदन से
घटती है । वह िहुत समझने जैसी है । वे िड़ी ताित से पूछते हैं , वे पूरा श्रम िर्ाते हैं । उनिे श्रम में िोई िमी
नही ूं है । उनिे सूं िल्प में िोई िमी नही ूं है , िेकिन मन िी कितनी पतें हैं ! ऊपर से पूछते जाते हैं , ‘मैं ि न
हूं ?’ इतने जोर से पूछते हैं कि उनिा ऊपर भी कनििने िर्ता है कि ' मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ? मैं ि न हूं ?' और
इसमें िीच—िीच में एि—एि दिा यह भी आवाज आती है —इससे क्ा होर्ा, इससे क्ा होर्ा। ‘मैं ि न
हूं ?’ यह भी पूछते चिे जाते हैं , और िीच में िभी—िभी यह भी मुूंह से कनििता है , ' इससे क्ा होर्ा। ' यह
ि न िह रहा है ? ‘मैं ि न हूं ?’ पूछ रहे हैं ; 'इससे क्ा होर्ा', यह ि न िह रहा है ? यह मन िी दू सरी पतग िह
रही है । वह िह रही है िुछ भी न होर्ा। क्ोूं पू छ रहे हो? चुप हो जाओ। मन िी एि पतग पूछ रही है , मैं ि न
हूं ?दू सरी पतग िह रही है , िुछ भी न होर्ा, चुप हो जाओ, क्ा पूछ रहे हो!
अर्र मन में खूं ड—खूं ड रह र्ए तो किर भीतर न घुस पाएूं र्े। इसकिए मैं िहता हूं —पूरी ताित
िर्ािर पूछना है । ताकि पूरा मन धीरे — धीरे इनवाल्वड हो जाए, और पूरा मन ही पूछने िर्े कि मैं ि न
हूं ? कजस क्षण प्रश्न ही रह जाएर्ा—कसिग प्रश्न,तीर िी तरह भीतर उतरता—उस कदन उिर आने में दे र न िर्ेर्ी।
उिर आ जाएर्ा। उिर भीतर है ।

तीन चरण आप करें गे , चौथा होगा:

जान भीतर है। हमने िभी पूछा नही,ूं हमने िभी जर्ाया नही,ूं वह जर्ने िो तैयार है। इसकिए ये
तीन चरण। िेकिन ये तीन दरवाजे िे िाहर िी िातें हैं ; दरवाजे ति छोड़ दे ती हैं । दरवाजे िे भीतर तो प्रवेश
च थे चरण में होर्ा। िेकिन जो तीनसीकढ़याूं नही ूं चढ़ा वह दरवाजे में प्रवेश भी नही ूं िर सिेर्ा।

इसकिए ध्यान रखें , िि तो अूंकतम कदन है हमारा, िि पूरी ताित िर्ानी जरूरी है । इन तीन चरणोूं में
पूरी ताित िर्ाएूं , तो च था चरण घकटत हो जाएर्ा। वह च था आप िरें र्े नही ,ूं वह होर्ा, तीन आप िरें र्े , च था
होर्ा।

प्रश्न: चौथा चरण हो जाने के बाद पहिे तीन चरण छूट जाएां गे ?

किर िोई सवाि नही ूं है। च था हो जाए, किर िोई सवाि नही ूं है। किर जैसा जरूरी िर्ेर्ा वह
कदखाई पड़े र्ा। िरने जैसा िर्ेर्ा तो जारी रहे र्ा, नही ूं िरने जैसा िर्ेर्ा तो छूट जाएर्ा। िे किन वह भी पहिे से
नही ूं िहा जा सिता। और इसकिए नही ूं िहा जा सिता है कि पहिे से यह सवाि जि हम पूछते हैं कि जि
च था हो जाएर्ा तो वे तीन छूट जाएूं र्े न? तो अभी भी हमारा मन उन तीन िो नही ूं िरना चाह रहा, इसकिए
पूछता है । उन तीन से छूटने िी िड़ी इच्छा है !

तो मैं नही ूं िहूं र्ा कि छूट जाएूं र्े। क्ोूंकि अर्र मैं यह िह दू ूं कि छूट जाएूं र्े , तो अभी ही नही ूं पिड़
पाएूं र्े उनिो आप। छूट जाएूं र्े , िेकिन वह च थे िे िाद िी िात है , पहिे िात नही ूं उठानी चाकहए।

हमारा मन िहुत तरह से कडसीव िरता है , वूंचना िरता है । जि पूछ रही हो तो तु म्हें खयाि नही ूं है कि
तु म क्ोूं पूछ रही हो। किििुि इसकिए पूछ रही हो कि ये तीन से किस तरह छु टिारा हो। इन तीन से छु टिारा
अर्र होर्ा तो च था पैदा ही नही ूं होनेवािा! और इन तीन िा भय क्ोूं है ? इनिा भय है । और वही भय कमटाने
िे किए तो वे तीन हैं ।

दजमत िृजत्तयोां के रे चन का साहस:


इनिा भय है कि शरीर िुछ भी िर सिता है। शरीर िुछ भी िर सिता है। तो िही ूं ऐसा िुछ न
िर दे । पर क्ा िरे र्ा शरीर? नाच सिती हो, रो सिती हो, कचल्रा सिती हो, कर्रोर्ी।

असि िकठनाई यह है कि पहिे चरण पर श्वास जारी िरो। दू सरे चरण पर श्वास जारी रखो और शरीर
िो ढीिा छोड़ दो। श्वास से और शरीर िे ढीिे छोड़ने में िोई िाधा नही ूं है , किसी तरह िी िाधा नही ूं है । श्वास
र्हरी रहे र्ी, शरीर.. .तु म्हें िरना थोड़े ही है कि तु म नाचो। अर्र तु म नाचो तो किर श्वास में िाधा पड़े र्ी। िेकिन
अर्र नाचना हो जाए तो श्वास में िोई िाधा नही ूं पड़े र्ी। तु म्हें नही ूं नाचना है । नाचना हो जाए तो हो जाए। वह जो
होता हो, हो जाए।

हमारी िकठनाई यह है कि या तो हम रोिेंर्े या हम िरें र्े , होने हम न दें र्े। दो में से हम िुछ भी िरने
िो राजी हैं . या तो हम नाचने िो रोि िेंर्े या किर हम नाच सिते हैं । िेकिन हम होने न दें र्े। इसिा भी डर
है , िहुत डर है । आदमी िी पूरी सभ्यता सप्रेकसव है । हमने िहुत चीजें दिाई हुई हैं और हमें डर है कि वे सि
कनिि न आएूं । हम िहुत भयभीत हैं । हम ज्रािामुखी पर िै ठे हैं । िहुत डर है हमें। नाचने िा ही सवाि नही ूं
है । डर िहुत र्हरे हैं ।

हमने खु द िो इतना दिाया है कि हमें िहुत पता है कि क्ा—क्ा कनिि सिता है उसमें। िेटे ने िाप
िी हत्या िरनी चाही है । डरा हुआ है कि िही ूं यह खयाि न कनिि आए। पकत ने पत्नी िी र्दग न दिा दे नी चाही
है । हािाूं कि र्दग न जि दिाना चाह रहा था, ति भी वह िहता रहा कि ते रे किना मैं एि क्षण नही ूं जी सिता।
और उसिी र्दग न भी दिा दे नी चाही थी। वह उसने दिाया हुआ है भीतर, उसे डर िर्ता है कि किसी क्षण में
यह कनिि न आए।

र्ुरकजएि एि ििीर था, और इस जमाने में िुछ िीमती िोर्ोूं में से एि था। उसिे पास आप
जाते , तो पहिा िाम वह यह िरता कि पूंद्रह कदन तो आपिो शराि कपिाता, रात—रात आपिो शराि कपिाता।
और जि ति पूंद्रह कदन आपिो वह शराि कपिा—कपिािर आपिी स्टडी न िर िेता, ति ति वह आपिो
साधना में न िे जाता। क्ोूंकि पूंद्रह कदन वह शराि कपिा—कपिा िर आपिे सि दकमत रोर्ोूं िो कनििवा
िेता, और पहचान िेता कि आदमी िैसे हो, क्ा—क्ा दिाया है , ति वह इसिे िाद साधना में िर्ाता। और
अर्र िोई िहता कि नही,ूं यह पूंद्रह कदन हम शराि पीने िो राजी नही,ूं तो वह िहता दरवाजा खु िा है , एिदम
िाहर हो जाओ।

शायद ही दु कनया में किसी ििीर ने शराि कपिाई हो। िेकिन वह समझदार था, उसिी समझ िीमती
थी; और वह ठीि िर रहा था। क्ोूंकि हमने िहुत दिाया है ; हमारे दमन िा िोई कहसाि नही ूं है ; िोई अूंत नही ूं
है हमारे दमन िा।

उस दमन िी वजह से हम डरते हैं कि िही ूं िुछ प्रिट न हो जाए, िही ूं मुूंह से िोई िात न कनिि
जाए; िही ूं ऐसा न हो जाए कि जो िात नही ूं िहनी थी, नही ूं ितानी थी, वह आ जाए।

अि किसी ने चोरी िी है , तो वह पूछने से डरे र्ा कि मैं ि न हूं । क्ोूंकि मन िहे र्ा कि तु म चोर हो।
यह जोर से कनिि सिता है कि चोर हो, िेईमान हो, िािा—िाजारी हो। यह िही ूं न कनिि जाए। तो वह तो
िहे र्ा कि पूछना कि नही?ूं जरा धीरे — धीरे पूछो कि मैं ि न हूं ! क्ोूंकि पता तो है कि मैं ि न हूं ! मैं चोर हूं । तो
वह दिा रहा है उसे । तो वह डर रहा है , वह धीरे — धीरे पूछ रहा है कि यह िर्िवािे िो िही ूं सु नाई न पड़
जाए! िही ूं यह मुूंह से कनिि जाए कि मैंने चोरी िी है ! यह कनिि सिता है , इसमें िोई िकठनाई नही ूं है िहुत।
तो हमारे िारण हैं , हमारे पूछने िे िारण हैं कि हम क्ोूं पूछते हैं कि ये जल्दी छूट जाएूं , न िरने पड़े ।
िेकिन नही,ूं छूटने से नही ूं। िरने ही पड़ें र्े। छूट सिते हैं , िरने से छूटें र्े। और भीतर से जो आता है उसे आने
दें । वहाूं िहुत र्ूंदर्ी कछपी है ,वह िाहर आएर्ी। हमने एि चेहरा ऊपर िनाया है , वह हमारा असिी चेहरा नही ूं
है । तो हम डरते हैं ।

नकिी चेहरोां का प्रकटीकरण:

अि एि आदमी अपना चेहरा िीप—पोत िर किसी तरह िनािर िैठा हुआ है। अि वह डरता है
कि अर्र छोड़ा तो चेहरा िुरूप हो जाता है । तो वह डरता है कि यह िुरूप चेहरा िोई दे ख न िे। क्ोूंकि वह
तो कितना आईने में तै यार होिर आया है घर से । अि वह डरता है कि िही ूं मैंने चेहरा किििुि छोड़ कदया तो
चेहरा िुरूप भी हो सिता है । और जि छोडूूंर्ा तो पाउडर और किकपक्तस्टि उस पर िाम नही ूं पड़ें र्े, वे एिदम
र्ड़िड़ हो जाएूं र्े। असिी चेहरा कनिि सिता है । तो वह डरे र्ा वह िहे र्ा कि नही ,ूं और सि छोड़ा जा सिता
है , िेकिन चेहरे िो नही ूं छोड़ा जा सिता। उसिो किसी तरह िनािर... और हमारे सि चेहरे मे िअप िे चेहरे
हैं , असिी चेहरे नही ूं हैं । और ऐसा मत सोचना कि जो पाउडर नही ूं िर्ाते , उनिे मेिअप िे नही ूं हैं । मेिअप
िहुत र्हरा है , किना पाउडर िे भी चिता है ।

तो असिी चेहरा कनिि आएर्ा। अि असिी चेहरा कनिि आए तो घिड़ाहट हो सिती है , िोई दे ख
न िे। इसकिए हमारे डर हैं । िेकिन ये डर खतरनाि हैं । इन डरो िो िेिर भीतर नही ूं जाया जा सिता है । ये
डर छोडने पडें र्े।

शब्धिपात और अहां शून्य माध्यम:

एक अांजतम सिाि एक जमत्र पूछते हैं जक ओशो शब्धिपात है ? क्ा कोई शब्धिपात कर सकता
है ?

िोई िर नही ूं सिता, िेकिन किसी से हो सिता है। िोई िर नही ूं सिता। और अर्र िोई
िहता हो कि मैं शक्तक्तपात िरता हूं तो किर सि धोखे िी िातें हैं । िोई िर नही ूं सिता, िेकिन किसी क्षण में
किसी से हो सिता है । अर्र िोई िहुत शू न्य व्यक्तक्त है , सि भाूं कत समकपगत, सि भाूं कत शू न्य , तो उसिे साकन्नध्य
में शक्तक्तपात हो सिता है । वह िूंडक्ङर िा िाम िर सिता है —जानिर नही ूं। परमात्मा िी कवराट शक्तक्त
उसिे माध्यम से किसी दू सरे में प्रवेश िर सिती है ।

िेकिन िोई जानिर िूंडक्ङर नही ूं िन सिता, क्ोूंकि िूंडक्ङर िनने िी पहिी शतग यह है कि
आपिो पता न हो; ईर्ो न हो। नही ूं तो नॉन—िूंडक्ङर हो जाते हैं ि रन। जहाूं ईर्ो है िीच में , वहाूं आदमी
नॉन—िूंडक्ङर हो र्या, किर वहाूं से शक्तक्त प्रवाकहत नही ूं होती। तो अर्र ऐसे व्यक्तक्त िे पास जो समग्र भाूं कत
भीतर से शू न्य है, और जो िुछ नही ूं िरना चाहता आपिे किए— िुछ िरता ही नही ूं वह—उसिे वैक्ूम
से , उसिे शू न्य से, उसिे द्वार से , उसिे मार्ग से परमात्मा िी शक्तक्त आप ति पहुूं च सिती है ; और र्कत िहुत
तीव्र हो सिती है । िि दोपहर िे म न में इसिो खयाि में िें।

तो िि िे किए दो सू चनाएूं भी मैं इसिे साथ दे दू ूं ।

शक्तक्तपात िा अथग है कि परमात्मा िी शक्तक्त आप पर उतर र्ई। शक्तक्त दो तरह से सूं भव है —या तो
आपसे शक्तक्त उठे और परमात्मा ति कमि जाए, या परमात्मा से शक्तक्त आए और आप ति कमि जाए। िात एि
ही है , दो तरि से दे खने िे ढूं र् हैं । वह वैसे ही, जैसे िोई कर्िास में आधा कर्िास पानी भरा रखा हो, और िोई
िहे कि आधा कर्िास खािी, और िोई िहे आधा कर्िास भरा। और अर्र पूंकडत होूं तो कववाद िरें , और तय न
हो पाए िभी भी कि क्ा मामिा है ! क्ोूंकि दोनोूं ही िातें सही हैं ।

ऊपर से भी शक्तक्त उतरती है और नीचे से भी शक्तक्त जाती है । और जि उनिा कमिन होता है , जहाूं
आपिे भीतर सोई हुई ऊजाग कवराट िी ऊजाग से कमिती है , ति एक्सप्लोजन, कवस्फोट हो जाता है । उस कवस्फोट
िे किए िोई भकवष्यवाणी नही ूं िी जा सिती। उस कवस्फोट से क्ा होर्ा, यह भी नही ूं िहा जा सिता। उस
कवस्फोट िे िाद क्ा होर्ा, यह भी नही ूं िहा जा सिता। वैसे उस कवस्फोट िे िाद, दु कनया में कजन िोर्ोूं िो भी
वह कवस्फोट हुआ है , वे कजूंदर्ी भर यही कचल्राते रहे कि आओ और तु म भी उस कवस्फोट से र्ुजर जाओ। िुछ
हुआ है जो अकनवग चनीय है ।

शक्तक्तपात िा अथग है , ऊपर से शक्तक्त आ जाए। आ सिती है । रोज आती है । और किसी ऐसे व्यक्तक्त िे
माध्यम िो िे सिती है वह शक्तक्त जो सि भाूं कत शू न्य हो। तो वह िूंडक्ङर हो जाता है , और िुछ भी नही।ूं
िेकिन अर्र अहूं िार थोड़ा भी है इतना भी कि मैं िर दू ूं र्ा शक्तक्तपात, तो नॉन—िूंडक्ङर हो र्या वह
आदमी, उससे शक्तक्त नही ूं प्रवाकहत होर्ी।

खड़े होकर प्रयोग करने से गजत तीव्रतम:

सु िह िे किए और साूंझ िे किए दो सूचनाएूं खयाि में िे िें। िि आक्तखरी कदन है , और िहुत िुछ
सूं भव हो सिता है । और िहुत सूं भावनाओूं से भरिर ही िि सु िह प्रयोर् िरना है ।

एि तो, कजन िोर्ोूं िो िुछ भी हो रहा है , िि सु िह वे खड़े होिर प्रयोर् िरें र्े। कजनिो िुछ भी हो
रहा है , कजनिो थोड़ा भी शरीर में िही ूं भी िुछ हो रहा है , िि वे सु िह खड़े होिर प्रयोर् िरें र्े , क्ोूंकि खड़े
होिर तीव्रतम र्कत सूं भव होती है । यह आपिो पता न होर्ा कि महावीर ने सारा ध्यान खड़े होिर किया। खड़ी
हाित में तीव्रतम प्रवाह होता है । मैं आपिो इसकिए अि ति खड़े होने िे किए नही ूं िहा कि आप िैठे िी ही
कहित नही ूं जुटा पाते तो खड़े िी कहित िैसे जु टा पाएूं र्े। खड़े होने पर िहुत जोर से शक्तक्त िा आघात होता
है । तो वह जो मैं िह रहा हूं कि नाच उठ सिते हैं , किििुि पार्ि होिर नाच सिते हैं , वह खड़े होने में सूं भव
हो जाता है ।
तो िि चूूंकि आक्तखरी कदन है , और िुछ दस—पच्चीस कमत्रोूं िो तो िहुत र्हराई हुई है , तो वे तो िि
खड़े हो जाएूं । मैं नाम नही ूं िूूंर्ा, अपने आप आप खड़े हो जाएूं । और शु रू से ही खड़े होिर िरना है । िुछ
िोर्, कजनिो िीच में िर्ेर्ा, वे भी खड़े हो जाएूं र्े। और खड़े होिर जो भी होता हो, होने दे ना है ।

और दोपहर िे किए, िि दोपहर िे म न में जि हम िैठेंर्े , तो मेरे पास थोड़ी ज्यादा जर्ह छोड़ना।
और मेरे पास जो िोर् भी आएूं र्े , जि मैं उनिे कसर पर हाथ रखूूं ति उनिो जो भी हो, ति उन्ें उसमें भी होने
दे ना है । अर्र उनिे मुूंह से चीख कनिि जाए, हाथ—पैर कहिने िर्ें , वे कर्र पड़े , खड़े हो जाएूं ; उन्ें जो भी हो
वह होने दे ना है । जो हम सु िह ध्यान में िर रहे हैं ,वह दोपहर िे म न में , जो मुझसे कमिने आएूं र्े , मेरे हाथ रखने
पर उनिो जो िुछ भी हो, उन्ें हो जाने दे ना है । इसकिए मेरे पास थोड़ी िि दोपहर ज्यादा जर्ह छोडि् िर
िैठेंर्े।

और सु िह, कजनिो भी कहित हो उनिो खड़े होिर ही सु िह िा प्रयोर् िरना है । मेरे आने िे पहिे
ही आप चुपचाप खड़े रहें । िोई सहारा िे िर खड़ा नही ूं होर्ा, कि आप िोई वृ क्ष से कटििर खड़े हो जाएूं , िोई
सहारा िेिर खड़ा नही ूं होर्ा, सीधे आप खड़े रहें र्े।

शक्तक्तपात िी िात आपने पूछी है । खड़ी हाित में िहुत िोर्ोूं िो शक्तक्तपात िी क्तस्थकत हो सिती है ।
और वातावरण िना है , उसिा पूरा उपयोर् किया जा सिता है । तो िि, चूूंकि आक्तखरी कदन होर्ा कशकवर
िा, िि पूरी शक्तक्त िर्ा दे नी है ।

इस प्रयोग का शारीररक ि मानजसक पररणाम:

प्रश्न: ओशो जो तीन चरण अभी आपने कहे उनका बॉडी के ऊपर हाटओ के ऊपर निओस जसस्टम
और ब्रेन के ऊपर जिजजकि और मेटि क्ा असर होता है ?

िहुत से असर पड़ते हैं।

प्रश्न: हाटओ िेि तो नही ां हो जाएगा?

हाटगिेि हो जाए तो मजा ही आ जाए, किर क्ा है! वही तो िेि नही ूं होता, उसे हो जाने दें । हो जाने
दें , हाटग िेि हो जाए, किर तो मजा ही है , किर क्ा है । उसिो िचाए किररिा, किर होर्ा तो िेि।
मत िचाइए, हो जाने दीकजए। और इतना तो आनूं द रहे र्ा कि भर्वान िे रास्ते पर हुआ। उतना िािी है ।
िे जमत्र पूछते हैं जक क्ा—क्ा पररणाम होांगे?

िहुत, पररणाम तो िहुत होूंर्े। ध्यान िे, कजस प्रयोर् िो मैं िह रहा हूं ध्यान, उससे शरीर पर
िहुत किकजयोिाकजिि पररणाम होूंर्े। शरीर िी िहुत सी िीमाररयाूं कवदा हो सिती हैं , शरीर िी उम्र िढ़
सिती है , िेकमिि िहुत पररवतग न होूंर्े। शरीर में िहुत सी ग्रूंकथयाूं हैं जो िरीि—िरीि मृतप्राय पड़ी रहती
हैं , वे सि सकक्रय हो सिती हैं ।

जैसे हमें खयाि नही ूं है , अभी मनोवैज्ञाकनि िहते हैं , किकजयोिाकजस्ट भी िहते हैं , कि क्रोध में शरीर में
कवशे ष तरह िे कवष छूट जाते हैं । िेकिन अभी ति मनोवैज्ञाकनि और किकजयोिाकजस्ट यह नही ूं िता पाते कि
प्रेम में क्ा होता है । क्रोध में तो कवशे ष प्रिार िे िेकमिि शरीर में छूट जाते हैं , कवष छूट जाते हैं । सारा शरीर
कवषाक्त हो जाता है । प्रेम में भी अमृत छूटता है । िेकिन चूूंकि मुक्तिि से िभी छूटता है , इसकिए
किकजयोिाकजस्ट िी िेिोरे टरी में अभी वह आदमी नही ूं पहुूं चा, इसकिए उसे पता नही ूं चि पाता।

अर्र ध्यान िा पूरा पररणाम हो, तो शरीर में जैसे क्रोध में कवष छूटता है , ऐसे प्रेम िे अमृत रस छूटने
शु रू हो जाते हैं । िेकमिि पररणाम और भी र्हरे होते हैं । जैसे कि जो िोर् भी ध्यान में थोड़े र्हरे उतरते हैं
उन्ें अदभुत रूं र् कदखाई पड़ते हैं अदभुत सु र्ूंधें मािूम पड़ने िर्ती हैं , अदभुत ध्वकनयाूं सु नाई पड़ने िर्ती
हैं , प्रिाश िी धाराएूं िहने िर्ती हैं , नाद सु नाई पड़ने िर्ते हैं । ये सििे सि िेकमिि पररणाम हैं । ऐसे रूं र् जो
आपने िभी नही ूं दे खे , कदखाई पड़ने िर्ते हैं । शरीर िी पूरी िेकमस्टर ी िदिती है । शरीर और ढूं र् से
दे खना, सोचना, पहचानना शु रू िर दे ता है । शरीर िे भीतर िहनेवािी कवदि् युत— धारा िी सारी धाराएूं िदि
जाती हैं । उन कवदि् युत— धाराओूं िे सारे सकिगट िदि जाते हैं ।

िहुत िुछ होता है शरीर िे भीतर। मानकसि ति पर भी िहुत िुछ होता है । िे किन वह कवस्तार िी
िात है । वे जो कमत्र पूछते हैं , उनसे िभी अिर् से िात िर िूूंर्ा। िहुत िुछ सूं भावनाएूं हैं ।

गहरी श्वास का रासायजनक प्रभाि:

प्रश्न: ओशो डीप ब्रीजदां ग का ब्रेन के ऊपर और निओस जसस्टम के ऊपर क्ा असर पडता है ?

जैसे ही शरीर में डीप ब्रीकदूं र् शुरू िरें र्े तो िािगन डाइआक्साइड और आक्सीजन िी मात्राओूं िा
जो अनुपात है , वह िदि जाएर्ा। जो मात्रा हमारे भीतर िािगन डाइआक्साइड िी है और आक्सीजन िी
है , उसिा अनुपात िदिेर्ा सिसे पहिे। और जैसे ही िािगन डाइआक्साइड िा अनु पात िदिता है वैसे ही सारे
मक्तस्तष्क और सारे शरीर और खू न और स्नायुओूं में, सि में पररवतग न शु रू हो जाएर्ा। क्ोूंकि हमारे व्यक्तक्तत्व
िा सारा आधार आक्सीजन और िािग न डाइआक्साइड िे कवशे ष अनुपात हैं । उनिे अनुपात में पररवतग न सारा
पररवतग न िे आएर्ा।
तो इसीकिए मैंने िहा कि वह अिर् से आप आ जाएूं , वह तो टे क्तक्िि िात है , उस सििो उसमें िोई
रस नही ूं भी हो सिता, तो आपसे िात िर िूूंर्ा।

ध्यान का प्रयोग और आत्म—सम्मोहन:

और एि कमत्र ने इधर पूछा है कि ओशो यह जो ध्यान िी िात है? यह िही ूं आटो—


कहमोकसस आत्म— सिोहन तो नही?ूं आत्म—सिोहन से िहुत दू र ति मेि है , आक्तखरी किूंदु पर रास्ता अिर्
हो जाता है । कहप्नोकसस से िहुत दू र ति सूं िूंध है । सारे तीनोूं चरण कहप्नोकसस िे हैं , कसिग साक्षी— भाव कहप्नोकसस
िा नही ूं है । वह जो पीछे पूरे समय कवटनेकसूं र् चाकहए—कि मैं जान रहा हूं दे ख रहा हूं कि श्वास आई और र्ई; मैं
जान रहा हूं दे ख रहा हूं कि शरीर िूंकपत हो रहा है , घूम रहा है । मैं जान रहा हूं दे ख रहा हूं —यह जो भाव है , वह
सिोहन िा नही ूं है । वही ििग है । और वह िहुत िुकनयादी ििग है । िािी तो सारा सिोहन िी प्रकक्रया है ।

सिोहन िी प्रकक्रया िड़ी िीमती है , अर्र वह साक्षी— भाव से जु ड़ जाए तो ध्यान िन जाती है ; और
अर्र साक्षी— भाव से अिर् हो जाए तो मूच्छाग िन जाती है । अर्र कसिग कहिोकसस िा उपयोर् िरें तो िेहोश
हो जाएूं र्े ; अर्र साक्षी— भाव िा भी साथ में उपयोर् िरें , तो जाग्रत हो जाएूं र्े। ििग दोनोूं में िहुत है , िेकिन
रास्ता िहुत दू र ति एि सा है , आक्तखरी किूंदु पर अिर् हो जाता है ।

और कछ प्रश्न रह गए, िह कि रात हम बात कर िेंगे।

प्रिचन 5 - कां डजिनी, शब्धिपात ि प्रभ प्रसाद

अांजतम ध्यान प्रयोग

मेरे जप्रय आत्मन्!

िहुत आशा और सूंिल्प से भर िर आज िा प्रयोर् िरें । जानें कि होर्ा ही। जैसे सूयग कनििा है , ऐसे
ही भीतर भी प्रिाश िैिे र्ा। जैसे सु िह िूि क्तखिे हैं , ऐसे ही आनूंद िे िूि भीतर भी क्तखिेंर्े। पूरी आशा से जो
चिता है वह पहुूं च जाता है ,और जो पूरी प्यास से पुिारता है उसे कमि जाता है ।
जो कमत्र खड़े हो सिते होूं, वे खड़े होिर ही प्रयोर् िो िरें र्े। जो कमत्र खड़े हैं , उनिे आसपास जो िोर्
िैठे हैं , वे थोड़ा हट जाएूं र्े.. .िोई कर्रे तो किसी िे ऊपर न कर्र जाए। खड़े होने पर िहुत जोर से कक्रया होर्ी—
शरीर पूरा नाचने िर्ेर्ा आनूंदमग्न होिर। इसकिए पास िोई िैठा हो, वह हट जाए। जो कमत्र खड़े हैं , उनिे
आसपास थोड़ी जर्ह छोड़ दें —शीघ्रता से । और पूरा साहस िरना है , जरा भी अपने भीतर िोई िमी नही ूं छोड
दे नी है ।

पहिा चरण:

आूं ख िूंद िर िें......र्हरी श्वास िेना शु रू िरें —र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े ...... और भीतर
दे खते रहें— श्वास आई, श्वास र्ई। र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ।

(प्रयोग शरू करते ही चारोां तरि अनेक स्त्री और परुष साधक रोने जचल्लाने और चीखने िगे।
कत िोगोां का शरीर कांपने िगा और अनेक तरह की जक्याएां होने िगी ां।)

......र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े .......

(बहुत से साधक अनेक तरह से नाचने कूदने उछिने रोने चीखने और जचल्लाने िगे साथ ही
अनेक मांह से अनेक प्रकार की आिाजें जनकिने िगी ां। ओशो का सझाि दे ना चिता रहा.......)

र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े .......र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े . .शक्तक्त पूरी िर्ाएूं । दस कमनट िे
किए र्हरी श्वास िें और र्हरी श्वास छोड़े ।.......र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ...... .र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास
छोड़े । पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..;;;.र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े — और भीतर दे खते रहें .......

(चीत्कार...... चीख...... इत्याजद)

र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ... र्हरी श्वास िें , र्हरी श्वास छोड़े ....... और भीतर दे खते रहें — श्वास आ
रही, श्वास जा रही।....... शक्तक्त पूरी िर्ा दें ....... और र्हरी...... और र्हरी...... और र्हरी...... श्वास में पूरी शक्तक्त
िर्ा दें । एि दस कमनट पूरी शक्तक्त िर्ा दें ।.. ....र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...

(िोगोां का चीखना जचल्लाना हां सना......)


र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास....... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास...... भीतर दे खते
रहें — श्वास आई, श्वास र्ई....... शक्तक्त पूरी िर्ा दें । िुछ भी िचाएूं नही ,ूं शक्तक्त पूरी िर्ा दें । र्हरी श्वास... र्हरी
श्वास....... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास। शरीर एि ऊजाग िा पुूंज मात्र रह जाएर्ा। श्वास ही श्वास रह
जाएर्ी। शरीर एि कवदि् युत िन जाएर्ा। र्हरी श्वास

(िोगोां का चीखना इत्याजद.....)

र्हरी श्वास.. र्हरी श्वास.. .र्हरी श्वास... र्हरी श्वास.. .....र्हरी श्वास.. .िोई पीछे न रहे , पूरी शक्तक्त िर्ा
दें । र्हरी र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास

(साधको का हां सना, बड़बड़ाना, हुां कार करना, चीखना नाचना कूदना.......)

र्हरी श्वास... ...र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... पाूं च कमनट िचे हैं , पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..... किर हम दू सरे सू त्र
में प्रवेश र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास....... र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास......

(बीच— बीच में अनेक साधकोां का चीखना उछिना और मांह से अनेक तरह की आिाजें
जनकािना......)

शरीर कसिग एि यूंत्र रह जाए, श्वास िेने िा यूंत्र मात्र रह जाए...... कसिग श्वास ही रह जाएूं ..... .र्हरी
श्वास...... र्हरी..... . र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... पूरी शक्तक्त िर्ा दें ...... र्हरी श्वास..... .पूरी शक्तक्त िर्ा दें ......
र्हरी श्वास... र्हरी.... . कसिग श्वास ही रह र्ई है , कसिग श्वास ही रह र्ई है ...... िमजोरी न िरें , रुिे न, ताित पूरी
िर्ा दें ....... िुछ िचाएूं न, ताित पूरी िर्ा दें ..... शक्तक्त पूरी िर्ा दें .. .....शक्तक्त पूरी िर्ा दें . .शक्तक्त पूरी िर्ा
दें ......

(साधको का तीव्र आिाजें जनकािना और हाां िना...... जचल्लाना उछिना कूदना.......)

शक्तक्त पूरी िर्ा दें ...... .पीछे न रुिे..... .पीछे न रुिे...... .यह पूरा वातावरण चार्जडग हो जाएर्ा। शक्तक्त
पूरी िर्ा दें ..... .घटना घटे र्ी ही। शक्तक्त पूरी िर्ा दें ..... र्हरी श्वास...... और र्हरी श्वास... और र्हरी श्वास... और
र्हरी श्वास...... और र्हरी श्वास..... और र्हरी श्वास..... .शक्तक्त पूरी िर्ाएूं .... .दे खें , रुिे न। मैं आपिे पास ही
आिर िह रहा हूं —शक्तक्त पूरी िर्ा दें । पीछे िहने िो न हो कि नही ूं हुआ.......
पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ... पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ....... र्हरी श्वास... और
र्हरी....... और र्हरी...... कजतनी र्हरी श्वास होर्ी, सोई हुई शक्तक्त िे जर्ने में सहायता कमिेर्ी....... िुूंडकिनी
ऊपर िी ओर उठने िर्ेर्ी। र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें...

(कछ िोगोां का जोर से से ना चीखना......)

िुूंडकिनी ऊपर िी ओर उठनी शु रू होर्ी...... .र्हरी श्वास िें...... .शक्तक्त ऊपर उठने िर्ेर्ी..... .र्हरी
श्वास िें...... .र्हरी श्वास (एि साधि िा तीव्रतम आवाज में चीत्कार िरना— िाऽऽऽऽ:.. िाऽऽऽऽऽ.. चारोूं ओर
साधि अनेि प्रिार िी प्रकक्रयाओूं में सूं िग्न हैं किसी िो योर्ासन हो रहे है , किसी िो अने ि प्रिार िे
प्राणायाम हो रहे है ? किसी िो अनेि मुद्राएूं हो रही हैं िई हूं स रहे है , िई रो रहे हैं । चारोूं ओर एि अजीि सा
दृश्य उपक्तस्थत हो र्या है ओशो िुछ दे र चुप रहिर किर साधिोूं िो प्रोत्साहन दे ने िर्ते हैं ......)

दो कमनट िचे हैं , पूरी ताित िर्ाएूं ..... .र्हरी श्वास... र्हरी श्वास..... िुूंडकिनी उठने िर्ेर्ी... र्हरी श्वास
िें...... र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें...... र्हरी श्वास िें...... कजतनी र्हरी िे सिें िें । दो कमनट
िचे हैं , पूरी ताित िर्ाएूं । किर हम दू सरे सू त्र में प्रवेश िरें र्े.. .र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास...... भीतर िुछ उठ
रहा है , उसे उठने दें ... र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास..... .र्हरी श्वास...

(कछ साधकोां का चीखना अनेक तरह की आिाजें जनकािना और नाचना.....)

एि कमनट िचा है , पूरी शक्तक्त िर्ाएूं , किर हम दू सरे सू त्र में जाएूं र्े...... र्हरी श्वास....... ताित पूरी िर्ा
दें ...... ताित पूरी िर्ा दें ... ताित पूरी िर्ा दें ....... भीतर शक्तक्त उठ रही है , छोड़े नही ूं अपने िो... ताित पूरी
िर्ा दें …. .र्हरी... और र्हरी...... और र्हरी... और र्हरी...... िूद पड़े , पूरी ताित िर्ा दें ..... .सारी शक्तक्त िर्ा
दें ... र्हरी... र्हरी... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास... र्हरी श्वास.. .श्वास िी चोट होने दें भीतर, सोई हुई
शक्तक्त उठे र्ी...... र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास.. र्हरी श्वास...... र्हरी श्वास..... र्हरी श्वास.. अि दू सरे सू त्र में जाना
है ..... र्हरी श्वास..... और र्हरी— आपसे ही िह रहा हूं ..... ताित पूरी िर्ा दें ...... और र्हरी...... और र्हरी......
और र्हरी...... और र्हरी......

दू सरा चरण:

दू सरे सू त्र में प्रवेश िर जाएूं । श्वास र्हरी रहे र्ी। शरीर िो छोड़ दें । शरीर िो जो भी होता है , होने दें ।
शरीर रोए, रोने दें ...... .हूं से, हूं सने दें ..... .कचल्राए, कचल्राने दें ..... .शरीर नाचने िर्े , नाचने दें —शरीर िो जो होता
है , होने दें । शरीर िो छोड दें अि..... .शरीर िो जो होता है , होने दें
(अनेक तरह की आिाजें जनकिना और शरीर की प्रजक्याओां में जिजिध गजतयोां में तीव्रता का
आना।)

शरीर िो छोड़ दें किििुि— जो होता है , होने दें । शरीर िे अूंर्ोूं में जो होता है , होने दें ..... .शरीर िो
छोड़ दें ..... .दस कमनट िे किए शरीर िो होने दें जो होता है ।

(शरीर की गजतयाां और चीखना— जचल्लाना चिता रहा. और ओशो सझाि दे ते रहे —......)

शरीर िो छोड़ दें , पूरी तरह छोड़ दें शरीर नाचेर्ा, िूदे र्ा, छोड़ दें भीतर शक्तक्त भीतर शक्तक्त उठे र्ी.
शरीर नाचेर्ा,िूदे र्ा...छोड़ दें —शरीर िो किििुि छोड़ दें ...जो होता है , होने दें ...

(कछ िोग अट्टहास कर रहे हैं कछ तािी बजा रहे हैं कई रो रहे हैं कई हां स ि नाच रहे हैं ..एक
मजहिा तीव्रआिाज से चीत्कार करने िगती है ..अनेक िोगोां के मांह से जिजचत्र आिाजें जनकि रही हैं ..एक
व्यब्धि का तीव्रता से जचल्लाना आऽऽऽsssss—..आऽऽऽsssss……)

शरीर िो छोड़ दें ...... .श्वास र्हरी रहे ..... .शरीर िो छोड़ दें ... भीतर शक्तक्त जार्ेर्ी..... .शरीर नाचने
िर्ेर्ा, िूदने िर्ेर्ा, िैपने िर्ेर्ा—जो भी होता है , होने दें । शरीर िोटने िर्े , चीखने िर्े , हूं सने िर्े —छोड़
दें ..... .शरीर िो पूरी तरह छोड़ दें ... ताकि अिर् कदखाई पड़ने िर्े —मैं अिर् हूं शरीर अिर् है । शरीर िो
छोड़े ..... .शरीर िो छोड़े .. .शरीर िो किििुि छोड़ दें । छोड़े ...... .शरीर िो छोड़ दें । शरीर एि कवदि् युत िा यूंत्र
भर रह र्या है । शरीर नाच रहा है , शरीर िूद रहा है , शरीर िैप रहा है ..... .शरीर िो छोड़ दें । शरीर रो रहा
है , शरीर हूं स रहा हैं —शरीर िो छोड़ दें । आप शरीर से अिर् हैं , शरीर िो छोड़ दें , शरीर िो जो होता है , होने
दें ...

(आिाजें..... चीखे .... रुदन..... जहचजकयाां .....)

छोड़े ....... छोड़े ...... शरीर िो किििुि छोड़ दें । रोिें नही ूं...... िुछ कमत्र रोि रहे हैं , रोिें नही ूं.. .छोड़
दें । जरा भी न रोिें, जो होता है , होने दें ...... शरीर िो किििुि थिा डािना है , सहयोर् िरें । शरीर िो छोड़
दें , सहयोर् िरें , जो होता है , होने दें .......
(अनेक तरह की आिाजें.. चीखना जचल्लाना िूट— िटकर रोना। रे चन की प्रजक्या अजत तीव्र
हो गई। से ना हां सना आिाजें करना चीखना जचल्लाना खू ब जोरोां से होने िगा; ओशो का सझाि दे ना
जारी रहा......)

शरीर िो थिा डािना है , छोड़ दें ...... किििुि छोड़ दें — जो होता है , होने दें । छोड़े ..... .छोड़े ... रोिें
नही ूं। दे खें, िोई रोिे नही,ूं छोड़ दें , किििुि छोड़ दें । शरीर िो जो होता है , होने दें ...... होने दें .. ....होने दें .....
छोड़ दें ......

(चारोां तरि अनेक तरह की धीमी और तीव्र आिाजोां का सां योग एक शोरगि सा पैदा कर रहा
है ......)

छोड़ दें ...... पाूं च कमनट िचे हैं , शरीर िो पूरी तरह छोड़ दें — सहयोर् िरें ...... शरीर िो जो हो रहा
है , िोआपरे ट िरें ...... शरीर जो िर रहा है , उसे िरने दें — रोना है रोए, हूं सना है हूं से। रोिें नही ूं। शरीर नाचने
िर्ेर्ा, नाचने दें । शरीर उछिने िर्े ,उछिने दें ......

(अनेक तीव्र आिाजें कराहना चीखना जचल्लाना रोना हां सना भागना— दौड़ना......)

छोड़े . .पूरी तरह छोड़े .. .सहयोर् िरें ... भीतर शक्तक्त उठ रही है , उसे छोड़ दें .. .पाूं च कमनट िचे हैं , पूरी
तरह छोड़े । शरीर िो पूरी तरह छोड़े ......

(कई चीखे चीत्कार और शरीर की तीव्र प्रजतजक्याएां ...... अचानक माइक काम करना बांद कर
दे ता है । व्यिस्था करनेिािे व्यब्धि सब ध्यान में हैं । िाउडस्पीकर का आपरे टर भी ध्यान कर रहा है ।
कछ दे र बाद उसे जकसी के द्वारा झकझोर कर सामान्य अिस्था में िाया गया शाां त जकया गया तब उसने
माइक की खराबी खोजनी शरू की...... ओशो जबना माइक के ही बोिते रहे .......)

छोड़े ...... .पूरी तरह छोड़े ...... .छोड़े ...... .पूरी तरह से छोड़े ....... शरीर िो जो हो रहा है होने दें । पू री
शक्तक्त से छोड़े ..... छोड़े ....... दो कमनट िचे हैं , पूरी तरह छोड़ दें .. .दो कमनट िचे हैं , शरीर िो पूरी तरह छोड़ दें ।
शरीर अिर् है , आप अिर् हैं । शरीर िो जो होना है , होने दें ...... आप अिर् हैं ...... दो कमनट िे किए पूरी तरह
छोड़े ; किर हम दू सरे सू त्र में चिेंर्े.. .....छोड़े .. .छोड़े ..... .किििुि छोड़ दें ....... शरीर िो थिा डािें....... छोड़े ...
छोड़े ... छोड़े ... र्हरी श्वास िें...... शरीर िो छोड़ दें ... शरीर नाचता है , नाचने दें । किििुि छोड़ दें ...... आप अिर्
हैं ... तीसरे सू त्र में चिने िे पहिे पूरी शक्तक्त िर्ा दें ... शरीर िो छोड़े ...... .छोड़े ...... एि कमनट िचा है , पूरी तरह
छोड़े ...... पूरी तरह छोड़े ... पूरी तरह छोड़े ......
(एक साधक का तीव्रता से जचल्लाना........ आऽऽऽऽऽऽ.......)

जो होता है , होने दें .......एि कमनट िचा है , पूरी तरह छोड़े .......पूरी तरह छोड़ दें ..... .जो होता है , होने
दें .......एि कमनट िे किए सि छोड़ दें ......

(िूंिी रें िने िी सी आवाज..... रुदन.. ....अट्टहास..... हूं सी.....)

छोड़े , किििुि छोड़ दें । शरीर िो किििुि नाचने दें , छोड़ दें ...... कचल्राने दें ... रोने दें ...... हूं सने दें —
छोड़ दें ..... शरीर जो िर रहा है , िरने दें ... साि कदखाई पड़े र्ा — आप अिर् हैं , शरीर अिर् है । पूरी तरह
छोड़े ..... किर तीसरे सू त्र में प्रवेश िरें र्े...... छोडे ...... छोडे ... छोडे ...... सहयोर् िरें ...... शरीर िो छोड़ दें ......

तीसरा चरण:

और अि तीसरे सू त्र में प्रवेश िर जाएूं ! भीतर पूछें —मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. …..मैं ि न हूं ?. .मैं ि न
हूं ?.. …..मैं ि न हूं ….. .दस कमनट ति शरीर नाचता रहे , श्वास र्हरी रहे और भीतर पूछें— मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न
हूं ?.. .मैं ि न हूं ?...

(िोगोां का अनेक जक्याओां को करते हुए से ना..... जचल्लाना..... कराहना..... जहचजकयाां िेना.....
हाां िना..... एक साधक का जोर से िगातार जचल्लाना— कौन हां ?... कौन हां ?... ओशो सझाि दे ते रहे .....)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .पूरी ताित िर्ा दें .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न
हूं ?.......

(अनेक तरह की आिाजें िोगोां के मांह से जनकिना..... जहचजकयोां के साथ रोना...... जचल्लाना..
नाचना. एक व्यब्धि का असाधारण तीव्रता से जचल्लाना— क्ाऽठठऽऽ.. क्ाऽठऽठठऽऽ..
क्ाऽऽऽऽठऽठऽ.. )

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न
हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?..
(आिाजें..... जचांघाड़ना..... अट्टहास करना.... एक साधक का कराहपूिओक जचल्लाना—
आउठऽऽऽ आऽऽऽऽऽ आठऽऽठठू.. ओशो सझाि दे ते रहे .....)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?. .मैं ि न हूं ? पूरी तरह..
.पूरी ताित से पूछें—मैं ि न हूं —. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.......

(रोना चीखना तड़िना नाचना आजद.. ...मैं कौन हां ? मैं कौन हां ? की अनेक आिाजें......)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?. .मैं ि न हूं ?.. .शक्तक्त
पूरी िर्ा शक्तक्त पूरी िर्ा दें .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?. .मैं ि न हूं ?. .शक्तक्त पूरी िर्ाएूं ..... .मैं ि न
हूं ?

(अनेक िोगोां की चीत्कार...... जचांघाड़...... पछाड़ खाकर से ना..... जगरना...... रे त पर िोटना..


उछिना..... कूदना.....)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?... मैं ि न हूं ?...

(एक व्यब्धि की कराह के साथ आिाज— आऽऽऽऽऽऽ:. आऽऽऽठऽउर..)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ? पाूं च कमनट िचे हैं , पूरी शक्तक्त िर्ाएूं , किर हम कवश्राम िरें र्े..
.शरीर िो छोड़ दें .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .पूरी शक्तक्त िर्ाएूं ..... .पूरी शक्तक्त
िर्ाएूं .......

(एक िांबी चीत्कार. .....और अनेकोां का से ना चीखना जचल्लाना......)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .पूरी शक्तक्त िर्ाएूं .. .पू री शक्तक्त िर्ाएूं .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न
हूं ?... तीन कमनट िचे हैं , किर हम कवश्राम िरें र्े... अपने िो थिा डािें... भीतर शक्तक्त उठ रही है ..
(रोना चीखना उछिना कूदना भागना— दौडना......)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?... मैं ि न हूं ?. .शक्तक्त पूरी िर्ाएूं .. .मैं ि न हूं ?.. .दो कमनट िचे
हैं , शक्तक्त पूरी िर्ाएूं .. .मैं ि न हूं ?... मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?

(शरीर की जक्याएां ...... शोरगि...... आिाजें...... एक तीव्र आिाज— काउऽऽऽऽ..


काऽऽठऽऽऽर..)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. मैं ि न हूं ?.. आक्तखरी दो कमनट िचे हैं , शक्तक्त पूरी िर्ाएूं ..
.किर हम कवश्राम िरें र्े.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .शक्तक्त भीतर जार् रही है , शरीर िो नाच जाने दें .. .मैं ि न
हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. मैं ि न हूं ?. .शक्तक्त भीतर पूरी जर् जाने दें . .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न
हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .किििुि पार्ि हो जाएूं .. मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?

(एक व्यब्धि का जोर से जचल्लाना— बाऽठऽऽ:...... बाठऽऽऽऽ.. ...बाठठठऽठू.......)

मैं ि न हूं ?. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .थिा डािें अपने िो, किर कवश्राम िरना है .. .मैं ि न हूं ?... .मैं
ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?...... .एि कमनट और—मैं ि न हूं ?... .शरीर नाचता है , नाच जाने दें .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न
हूं ?...

( साधकोां की तीव्रतम गजतयाां ...... तीव्र चीत्कार रुदन......)

मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ? पूरी ताित िर्ा दें .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं
ि न हूं ?हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?

…..किर कवश्राम में जाना है , पूरी ताित िर्ा दें ... आक्तखरी क्षण में मैं ि न हूं ?... अवसर न खोए, पूरी ताित िर्ा
दें .. .

मैं ि न मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न '?.. .मैं ि न हूं ?.. .आक्तखरी ताित, किर कवश्राम
में जाना है .. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं ि न हूं ?.. .मैं
ि न हूं ?

चौथा चरण:
िस.. .....सि छोड़ दें ...... सि छोड़ दें ..... .पूछना छोड़ दें ..... .श्वास िेना छोड़ दें —जो जहाूं पड़ा है , पड़ा
रह जाए.. जो जहाूं खड़ा है , खड़ा रह जाए। कर्रना हो कर्र जाएूं .. िेटना हो िेट जाएूं .. .िै ठना हो िैठे रह जाएूं .....
.सि शाूं त, सि शू न्य हो जाने दें । न िुछ पूछें, न िुछ िरें , िस पड़े रह जाएूं , जैसे मर र्ए, जैसे हैं ही नही ूं।
तू िान चिा र्या, भीतर शाूं कत छूट जाएर्ी..... .सि कमट र्या.. .सि शाूं त हो र्या। तू िान र्या.. .पड़े रह जाएूं , दस
कमनट किििुि पड़े रह जाएूं ।

इस शाूं कत में, इस शू न्य में ही उसिा आर्मन होता है , कजसिी खोज है .. .पड़े रह जाएूं .. .सि छोड़ दें ......
.सि छोड़ दें ..... .न श्वास जोर से िेनी है , न प्रश्न पूछना है , न िुछ िरना है । शरीर िो भी छोड़ दें । खड़े हैं , खड़े
रह जाएूं ; कर्र र्ए हैं ,कर्रे रह जाएूं ; पड़े हैं , पड़े रह जाएूं । दस कमनट िे किए मर जाएूं — हैं ही नही ूं.. .तू िान र्या..
.सि शाूं त हो र्या.. .सि म न हो र्या

(चारोां ओर सब साधक शाां त और ब्धस्थर हो गए हैं । बीच— बीच में कोई कराह उठता है ? कोई
जहचजकयाां िेने िगता है ?कोई सबकने िगता है और जिर शाां त ि चप हो जाता है ।)

इस शू न्य में ही िुछ घकटत होर्ा— िोई िूि क्तखिेंर्े.. .िोई प्रिाश िैि जाएर्ा. .िोई शाूं कत िी धारा
िूट पड़े र्ी... िोई आनूंद िा सूं र्ीत सु नाई पड़े र्ा। इस शू न्य में ही प्रभु कनिट आता है । प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा
िरें , प्रतीक्षा िरें .. .पड़े रह जाएूं , खड़े रह जाएूं । प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा िरें । िस प्रतीक्षा िरें । सि थि र्या......
.सि शू न्य हो र्या.....

(कराह की कछ आिाजें।)

प्रतीक्षा िरें ...... .प्रतीक्षा िरें ....... अि मैं चुप हो जाता हूं । दस कमनट चुपचाप.......

(पजक्षयोां की सरीिी आिाजें.. जकसी का जहिना—डिना जकसी का सबकना श्वास िेना। एक


साधक का जोर से जचल्लाना— प्रभऽठऽठऽ मने माि कर..... प्रत्येक गनाह बदि मने जशक्षा कर..... हे
प्रभ.. जकसी— जकसी का हां ऽठठठऽर हां ऽऽऽऽऽर हां ऽठऽऽऽ करना। कराहने की आिाजें । एक व्यब्धि
का जोर से चीखना— पाऽऽऽऽ पी.. कछ दे र बाद दू र कोने से एक साधक के मांह से आिाज जनकिती
है — ' कौन कहता है पापी हां ?'…... पन: जकसी का कराहना— ऊां... ऊां—.. ऊां—.. करना। कौिोां का
काि— काि करना सरूिन में हिा की सरसराहट.. सागर का गजओन.. सब तरि सन्नाटा जैसे सरूिन
जबिकि जनजओन हो। एक मजहिा का से ना जहचजकयाां िेना......)

जैसे मर ही र्ए। जैसे कमट ही र्ए। एि शू न्य मात्र रह र्ए। सि कमट र्या। सि शाूं त हो र्या। सि म न
हो र्या। इस म न में ही उसिा आर्मन है ...... .इस शू न्य में ही उसिा द्वार है । प्रतीक्षा िरें ...... .प्रतीक्षा िरें ...
(एक मजहिा का सबक— सबककर से ना..... एक व्यब्धि का हां —..... हां—..... हां :..... की आिाज
करना। दू र कोने से एक साधक का तीव्रता से श्वास िेना— छोड़ना करना। कछ िोगोां का कराहना..
िसिसाना...... एक व्यब्धि का पन: चीख उठना— पाऽऽऽऽऽ पीऽऽठऽऽ.. ...जकसी का बड़बड़ाना..
माइक अब सधर पाया.. ...माइक पर ओशो बोिते हैं .....)

जैसे मर ही र्ए। जैसे कमट ही र्ए। तू िान र्या, शाूं कत छूट र्ई। प्रतीक्षा िरें .. .प्रतीक्षा िरें .. .इसी क्षण में
िुछ घकटत होता है । म न प्रतीक्षा िरें , म न प्रतीक्षा िरें । शू न्य हो र्या...... .सि शू न्य हो र्या. .प्रतीक्षा िरें .
.प्रतीक्षा िरें ...... .प्रतीक्षा िरें ...। जैसे मर ही र्ए, िेकिन भीतर िोई जार्ा हुआ है । सि शू न्य हो र्या, िेकिन
भीतर िोई ज्योकत जार्ी हुई है —जो जानती है , दे खती है , पहचानती है । आप तो कमट र्ए, िेकिन िोई और
जार्ा हुआ है । भीतर सि प्रिाकशत है । भीतर आनूंद िी धारा िहने िर्ी है । परमात्मा िहुत कनिट है । प्रतीक्षा
िरें .. .प्रतीक्षा िरें .. .प्रतीक्षा िरें ...

(एक व्यब्धि कािसिसाना—पापीचारा पापीचारा पापीचारा...... एक साधक का सोए—सोए ही


कह उठना—यह साधना चािू रखें यह साधना चािू रखें .. ....कही ां से दोनोां हथेजियोां को ते जी से पीटने
की आिाज—पट पट पट...... एक साधक की तीव्र चीत्कार—बचाऽऽ...ठऽऽ ओउऽऽऽऽठ.....)

जैसे मर र्ए। जैसे कमट र्ए। जैसे मर ही र्ए। जैसे कमट र्ए। जैसे िूूंद सार्र में कर्रिर खो जाती
है , ऐसे खो र्ए...... .प्रतीक्षा िरें ...... .इस खो जाने में ही उसिा कमि जाना है । प्रतीक्षा िरें .. .....प्रतीक्षा िरें ......
भीतर शाूं त—म न प्रिाश िैि र्या है । र्हरा आनूंद झििना शु रू होर्ा। र्हरा आनूंद उठना शु रू होर्ा।
भीतर आनूंद िी धारा िहने िर्ेर्ी। प्रतीक्षा िरें ....... प्रतीक्षा िरें ..... .प्रतीक्षा िरें ...

(प्रभ प्रभ हे प्रभ की आिाज.......)

भीतर आनूंद िहने िर्ेर्ा। भीतर उसिा प्रिाश उतरने िर्ेर्ा..... प्रतीक्षा, प्रतीक्षा, प्रतीक्षा.. .जैसे मर
ही र्ए, जैसे कमट ही र्ए, सि शू न्य हो र्या...... .इसी शू न्य में उसिा दशग न है । इसी शू न्य में उसिी झिि है ।
इसी शू न्य में उसिी उपिक्ति है । प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा िरें .. .दे खें , भीतर िोई प्रवेश िर रहा है ......
.दे खें, भीतर िोई जार् र्या है ....... दे खें, भीतर िोई आनूंद प्रिट हो र्या है । आनूंद, जो िभी नही ूं जाना।
आनूंद, जो अपररकचत है । आनूंद, जो अज्ञात है । प्राण िे पोर—पोर में िुछ भर र्या है । प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा िरें

(पजक्षयोां की आिाजें.... शरू िृक्षोां की सरसराहट...... सब शाां त है .......)


आनूंद ही आनूंद शे ष रह जाता है । प्रिाश ही प्रिाश शे ष रह जाता है । शाूं कत ही शाूं कत शे ष रह जाती
है । प्रतीक्षा िरें ,प्रतीक्षा िरें । इन्ी ूं म न क्षणोूं में आर्मन है उसिा। इन्ी ूं म न क्षणोूं में कमिन है उससे । प्रतीक्षा
िरें , प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा िरें .......

(एक साधक का तीव्र श्वास—प्रश्वास िेना. एक व्यब्धि का कराहना......)

कजसिी खोज है , वह िहुत पास है । कजसिी तिाश है , इस समय िहुत कनिट है । कजसिी खोज है , वह
िहुत पास है । कजसिी तिाश है , वह िहुत कनिट है । प्रतीक्षा िरें , प्रतीक्षा िरें .......

अि धीरे — धीरे आनूंद िे इस जर्त से वापस ि ट आएूं । धीरे — धीरे प्रिाश िे इस जर्त से वापस
ि ट आएूं । धीरे — धीरे भीतर िे इस जर्त से वापस ि ट आएूं । िहुत आकहस्ता—आकहस्ता आूं ख खोिें। आूं ख न
खु िती हो तो दोनोूं हाथ आूं ख पर रख िें , किर धीरे — धीरे खोिें। और जल्दी िोई भी नही ूं िरे । जो कर्र र्ए
हैं , उठ न सिें, वे धीरे — धीरे दोूं—चार र्हरी श्वास िें, किर आकहस्ता—आकहस्ता उठें । किना िोिे , किना आवाज
किए चु पचाप उठ आएूं । जो खड़े हैं , वे चुपचाप िैठ जाएूं । धीरे — धीरे आूं ख खोि िें, वापस ि ट आएूं ।

(एक मजहिा का जहचकी िे — िेकर से ना......)

हमारी सबह की बैठक पूरी हुई।

प्रिचन 6 - गहरे पानी पै ठ

(समापन प्रिचन)

मेरे जप्रय आत्मन्!

तीन जदनोां में बहुत से प्रश्न इकट्ठे हो गए हैं और इसजिए आज बहुत सां जक्षप्त में जजतने ज्यादा प्रश्नोां
पर बात हो सके,मैं करना चाहां गा।

जकतनी प्यास?
एक जमत्र ने पूछा है जक ओशो जििेकानांद ने रामकृष्ण से पूछा जक क्ा आपने ईश्वर दे खा है ? तो
रामकृष्ण ने कहा िूां जैसा मैं तम्हें दे ख रहा हां ोसा ही मैने परमात्मा को भी दे खा है । तो िे जमत्र पूछते हैं
जक जैसा जििेकानांद ने रामकृष्ण से पूछा क्ा हम भी िैसा आपसे पूछ सकते हैं ?

पहिी तो िात यह, कववेिानूंद ने रामिृष्ण से पूछते समय यह नही ूं पूछा कि हम आपसे पूछ सिते
हैं या नही ूं पूछ सिते हैं । कववेिानूंद ने पूछ ही किया। और आप पूछ नही ूं रहे हैं , पूछ सिते हैं या नही ूं पूछ सिते
हैं , यह पूछ रहे हैं । कववेिानूंद चाकहए वैसा प्रश्न पूछनेवािा। और वैसा उिर रामिृष्ण किसी दू सरे िो न दे ते। यह
ध्यान रहे , रामिृष्ण ने जो उिर कदया है वह कववे िानूंद िो कदया है , वह किसी दू सरे िो न कदया जाता।

अध्यात्म िे जर्त में सि उिर कनताूं त वैयक्तक्ति हैं , पसग नि हैं । उसमें दे नेवािा तो महत्वपूणग है
ही, उससे िम महत्वपूणग नही ूं है कजसिो कि कदया र्या है , उसमें समझनेवािा उतना ही महत्वपूणग है । न मािू म
कितने िोर् मुझसे आिर पूछते हैं कि कववेिानूं द िो रामिृष्ण िे छूने से अनु भूकत हो र्ई, तो आप हमें छू
दें , और हमें अनुभूकत हो जाए! वे यह नही ूं पूछते कि कववेिानूंद िे कसवाय रामिृष्ण ने हजारोूं िोर्ोूं िो छु आ
है , उनिो अनुभूत नही ूं हुई। उस छूने में जो अनुभूकत हुई है उसमें रामिृष्ण पचास प्रकतशत महत्वपू णग हैं , पचास
प्रकतशत कववेिानूंद हैं । वह अनुभुकत आधी—आधी है । और ऐसा भी जरूरी नही ूं है कि कववेिानूंद िो भी किसी
दू सरे कदन छु आ होता तो िात हो जाती। एि खास क्षण में वह घटना घटी।

आप च िीस घूंटे भी वही आदमी नही ूं होते हैं ; च िीस घूंटे में आप न मािूम कितने आदमी होते हैं ।
किसी खास क्षण में अि कववे िानूं द पूछ रहे हैं , ' ईश्वर िो दे खा है ?' ये शब्द िड़े सरि हैं । हमें भी िर्ता है कि
हमारी समझ में आ रहे हैं कि कववे िानूं द क्ा पूछ रहे हैं ।

नही ूं समझ में आ रहे हैं । ईश्वर िो दे खा है ? ये शब्द इतने सरि नही ूं हैं । ऐसे तो पहिी िक्षा भी जो नही ूं
पढ़ा, वह भी समझ िे र्ा। सरि शब्द हैं ' ईश्वर िो दे खा है ?' िहुत िकठन हैं शब्द! और कववेिानूंद िे प्रश्न िा
उिर नही ूं दे रहे हैं रामिृष्ण,कववेिानूंद िी प्यास िा उिर दे रहे हैं । उिर प्रश्नोूं िे नही ूं होते , प्यास िे होते हैं ।
इस प्रश्न िे पीछे वह जो आदमी खड़ा है प्रश्न िनिर, उसिा उिर कदया जा रहा है ।

िुद्ध एि र्ाूं व में र्ए हैं । और एि आदमी ने पूछा, ईश्वर है ? िुद्ध ने िहा, नही ूं। और दोपहर दू सरे
आदमी ने पूछा कि मैं समझता हूं ईश्वर नही ूं है , आपिा क्ा खयाि है ? िुद्ध ने िहा, है । और साूं झ एि तीसरे
आदमी ने पूछा कि मुझे िुछ पता नही,ूं ईश्वर है या नही?ूं िुद्ध ने िहा कि चुप ही रहो तो अच्छा है — न हाूं , न ना।

जो साथ में था कभक्षु वह िहुत घिड़ा र्या, उसने तीनोूं उिर सु न किए। रात उसने िु द्ध से िहा, मैं पार्ि
हो जाऊूंर्ा! सु िह आपने िहा, हाूं ; दोपहर आपने िहा, नही;ूं साूं झ आपने िहा, न ही, न नही ूं, मैं क्ा
समझूूं? िुद्ध ने िहा, तु झे तो मैंने एि भी उिर नही ूं कदया, कजनिो कदए थे उनसे िात है ; तु झसे िोई सूं िूंध नही ूं।
तू ने सु ना क्ोूं? तू ने जि पूछा ही नही ूं था, तो तु झे उिर िैसे कदया जा सिता है ? कजस कदन तू पूछेर्ा उस कदन
तु झे उिर कमि जाएर्ा। पर उस आदमी ने िहा, मैंने सु न तो किया! िुद्ध ने िहा, वे उिर दू सरोूं िो कदए र्ए
थे, और दू सरोूं िी जरूरतोूं िे अनुसार कदए र्ए थे । सु िह कजस आदमी ने िहा था कि ईश्वर है ? वह आक्तस्ति था
और चाहता था कि मैं भी उसिी ही में हाूं भर दू ूं । उसे िुछ पता नही ूं ईश्वर िे होने िा,िेकिन कसिग अपने
अहूं िार िो तृ प्त िरने आया था कि िुद्ध भी वही मानते हैं जो मैं मानता हूं । वह िु द्ध से भी अपनी स्वीिृकत
िेने, िनिमेंशन िेने आया था। तो मैंने उससे िहा, नही ूं। मैंने उसिी जड़ोूं िो कहिा कदया। और उसे िुछ पता
नही ूं था, अन्यथा मुझसे पूछने क्ोूं आता? कजसे पता हो र्या है वह िनिमेंशन नही ूं खोजता। सारी दु कनया भी
इनिार िरे तो वह िहता है , इनिार िरो, वह है ; इनिार िा िोई सवाि नही ूं है । अभी वह पूछ रहा है , अभी
वह पता िर्ा रहा है कि है ? तो मुझे िहना पड़ा कि नही ूं है । उसिी खोज रुि र्ई थी, वह मुझे शु रू िर दे नी
पड़ी। दोपहर जो आदमी आया था, वह नाक्तस्ति था। वह मानता था कि नही ूं है , उसे मुझे िहना पड़ा कि है ।
उसिी भी खोज रुि र्ई थी; वह भी मुझसे स्वीिृकत िेने आया था अपनी नाक्तस्तिता में। साूं झ जो आदमी आया
था, वह न आक्तस्ति था, न नाक्तस्ति, उसे किसी भी िूंधन में डािना ठीि न था,क्ोूंकि हाूं भी िाूं ध िेता है , नही ूं भी
िाूं ध िेता है । तो उससे िहा कि तू चुप रह जाना— न हाूं , न ना; तो पहुूं च जाएर्ा। और ते रा तो सवाि ही नही ूं
है , उस कभक्षु से िहा, क्ोूंकि तू ने अभी पूछा नही ूं है ।

धमग िड़ी कनजी िात है — जैसे प्रेम। और प्रेम में अर्र िोई अपनी प्रेयसी िो िुछ िहता है तो वह
िाजार में कचल्राने िी िात नही ूं है , वह कनताूं त वैयक्तक्ति है ; और िाजार में िहते ही अथग उसिा िेिार हो
जाएर्ा। ठीि, धमग िे सूं िूंध में िहे र्ए सत्य भी इतने ही पसग नि, एि व्यक्तक्त िे द्वारा दू सरे व्यक्तक्त से िहे र्ए
हैं , हवा में िेंिे र्ए नही ूं हैं ।

इसकिए कववे िानूंद िन जाएूं तो जरूर पूछने आ जाना। िेकिन कववे िानूं द पूछने नही ूं आते कि पूछें या
न पूछें।

मैं अभी एि र्ाूं व में र्या, एि यु वि आया और उसने िहा कि मैं आपसे पूछने आया हूं मैं सूं न्यास िे
िूूं? तो मैंने उससे िहा, जि ति तु झे पूछने जैसा िर्े ति ति मत िेना, नही ूं तो पछताएर्ा। और मुझे क्ोूं
झूंझट में डािता है ? तु झे िेना हो िे , न िेना हो न िे। कजस कदन तु झे ऐसा िर्े कि अि सारी दु कनया रोिेर्ी तो
भी तू नही ूं रुि सिता, उस कदन िे िे ना,उसी कदन सूं न्यास आनूंद िन सिता है , उसिे पहिे नही ूं।

तो उसने िहा, और आप?

मैंने िहा, मैं किसी से िभी पूछने नही ूं र्या। अपनी इस कजूंदर्ी में तो किसी से पूछने नही ूं र्या। क्ोूंकि
पूछना ही है तो अपने ही भीतर पूछ िेंर्े , किसी से पूछने क्ोूं जाएूं र्े ? और िोई िुछ भी िहे , उस पर भरोसा
िैसे आएर्ा? दू सरे पर िभी भरोसा नही ूं आ सिता। िाख उपाय िरें , दू सरे पर भरोसा नही ूं आ सिता।

अर्र मैं िह भी दू ूं कि हाूं , ईश्वर है , क्ा ििग पड़े र्ा? जैसा आपने किताि में पढ़ किया कि रामिृष्ण ने
िहा कि हाूं , है ! और जैसा मैं तु झे दे खता हूं उससे भी ज्यादा साि उसे दे खता हूं। क्ा ििग पड़ र्या
आपिो? एि किताि और किख िे ना आप कि आपने पूछा था और मैं ने िहा, हाूं है ! और जैसा मैं आपिो
दे खता हूं उससे भी ज्यादा साि उसे दे खता हूं । क्ा ििग पड़े र्ा?एि किताि, दो किताि, हजार किताि में
किखा हो कि है , िेिार है , जि ति कि भीतर से न उठे कि है , ति ति िोई उिर दू सरे िा िाम नही ूं दे
सिता। ईश्वर िे सूं िूंध में उधारी न चिेर्ी। और सि सूं िूंध में उधारी चि सिती है , ईश्वर िे सूं िूंध में उधारी
नही ूं चि सिती।

इसकिए मुझसे क्ोूं पूछते हैं ? और मेरे हाूं और न िा क्ा मूल्य ? अपने से ही पूछें। और अर्र िोई
उिर न आए तो समझ िें कि यही भाग्य है कि िोई उिर नही;ूं किर चुप होिर प्रतीक्षा िरें , उसिे साथ
ही जीएूं ; अनुिर िे साथ जीएूं । किसी कदन आ जाएर्ा; किसी कदन उतर आएर्ा। और अर्र पूछना ही आ जाए—
ठीि पूछना आ जाए, राइट क्रेश्चकनूं र् आ जाए—तो सि उिर हमारे भीतर हैं ; और ठीि पूछना न आए, तो हम
सारे जर्त में पूछते किरे , िोई उिर िाम िा नही ूं है ।
और जि कववेिानूंद जैसा आदमी रामिृष्ण से पूछता है , तो रामिृष्ण जो उिर दे ते हैं , वह रामिृष्ण िा
उिर थोडे ही कववेिानूंद िे िाम पड़ता है । कववे िानूंद इतनी प्यास से पूछते हैं कि जि वह रामिृष्ण िा उिर
आता है तो वह रामिृष्ण िा नही ूं मािूम पड़ता, वह अपने ही भीतर से आया हुआ मािू म पड़ता है । इसीकिए
िाम पड़ता है , नही ूं तो िाम नही ूं पड़ सिता। जि हम िहुत र्हरे में किसी से पूछते हैं , इतने र्हरे में कि हमारा
पूरा प्राण िर् जाए दाूं व पर, तो जो उिर आता है , किर वह हमारा अपना ही हो जाता है , वह दू सरे िा नही ूं
होता; दू सरा किर कसिग एि दपगण हो जाता है । अर्र रामिृष्ण ने यह िहा कि हाूं है , तो यह उिर रामिृ्ण िा
नही ूं है । यह आथेंकटि िन र्या, कववे िानूंद िो प्रामाकणि िर्ा, क्ोूंकि रामिृष्ण एि दपगण से ज्यादा न मािूम
पड़े ; अपनी ही प्रकतध्वकन, िहुत र्हरे अपने ही प्राणोूं िा स्वर वहाूं सु नाई पड़ा।

कववेिानूंद ने रामिृष्ण से पूछने िे पहिे एि आदमी से और पूछा था। रवी ूंद्रनाथ िे दादा थे दे वेंद्रनाथ।
वे महकषगदेवेंद्रनाथ िहे जाते थे। वे िजरे पर रहते थे रात। िजरे पर एिाूं त में साधना िरते थे। आधी रात
अमावस िी, कववेिानूंद पानी में िूदिर, र्ूंर्ा पार िरिे िजरे पर चढ़ र्ए। िजरा िूंप र्या। अूं दर र्ए, धक्का
दे िर दरवाजा खोि कदया। अटिा था दरवाजा। भीतर घुस र्ए। अूंधेरा है । दे वेंद्रनाथ आूं ख िूंद किए िुछ मनन
में िैठे हैं । जािर झिझोर कदया उनिा िािर पिड़िर िोट िा। आूं खें खु िी ूं तो वे घिड़ा र्ए कि इतनी
रात, पानी से तरितर, ि न नदी में तै रिर आ र्या है ! सारा िजरा िैप र्या है । जैसे ही उन्ोूंने
आूं ख खोिी ूं, कववे िानूं द ने िहा, मैं पूछने आया हूं —ईश्वर है ? दे वेंद्रनाथ ने िहा, जरा िै ठो भी। कझझिे। ऐसी
आधी रात,अूंधेरे में र्ूंर्ा पार िरिे, िोई ऐसा छाती पर छु रा िर्ािर पूछे, ईश्वर है ? तो उन्ोूंने िहा, जरा रुिो
भी, िैठो भी, ि न हो भाई? क्ा िात है ? िैसे आए? िस कववे िानूं द ने िािर छोड़ कदया, वापस नदी में िूद
पड़े । उन्ोूंने कचल्राया कि युवि, रुिो! कववे िानूंद ने िहा, कझझि ने सि िुछ िह कदया, अि मैं जाता हूं ।

कझझि ने सि िुछ िह कदया! इतने कझझि र्ए कि असिी सवाि ही छोड़ कदया! िहते , है या नही ूं।

किर दे वेंद्रनाथ िाद में िहे कि मैं सच में ही घिड़ा र्या था, क्ोूंकि मुझसे िभी ऐसा आउट ऑि कद
वे, आउटिैंकडश,ऐसा िोई अचानि र्दग न पिड़िर िभी पूछा नही ूं था। सभा में , मीकटूं र् में , मूंकदर में, मक्तिद
में दे वेंद्रनाथ से िोर् पूछते थे,ईश्वर है ? तो वे समझाते थे उपकनषद, र्ीता, वेद। ऐसा किसी ने पूछा ही न था। तो
जरूर घिड़ा र्ए। उन्ोूंने िहा, मैं जरूर घिड़ा र्या था और मुझे िुछ भी नही ूं सू झा था। और वह युवि
िूदिर चिा र्या था और मुझे भी मेरी कझझि से पहिी दिा पता चिा— अभी मुझे भी मािूम नही ूं है ।

पूछें जरूर। कजस कदन पूछने िी तै यारी हो उस कदन जरूर पूछें। पर पूछने िी तै यारी िे िर आ जाएूं ।
क्ोूंकि किर उिर पर िात खतम न हो र्ई। रामिृष्ण िा उिर, किर वह कववेिानूंद नही ूं था जो पूछने आया
था, वह था नरें द्रनाथ, रामिृष्ण िे उिर िे िाद हो र्या कववेिानूंद। पूछें जरूर, िेकिन किर कजूंदर्ी पूरी िदिने
िी तै यारी चाकहए। उिर तो कमि सिता है । किर वह नरें द्रनाथ नरें द्रनाथ िी तरह घर वापस नही ूं ि टा। क्ोूंकि
वह जो रामिृष्ण ने िहा—है , और तु झसे ज्यादा मु झे कदखाई पड़ता है कि वह है ! एि दिा मैं िह सिता हूं कि
तू झूठ, िेकिन उसे नही ूं िह सिता झूठ! तो किर कववेिानूंद ऐसा नही ूं कि ठीि महाराज, उिर िहुत अच्छा
िर्ा, परीक्षा में दे दें र्े जािर। किर वापस नही ूं ि ट र्या था। किर कववेिानूंद िे किए उिर िे डूिा। किर वह
िड़िा वापस ि टा ही नही ूं।

उिर तो कमि सिता है ; मुझे िोई िकठनाई नही ूं है उिर दे ने में ; आप कदक्कत में पड़ जाएूं र्े। तो कजस
कदन पूछने िा मन हो, आ जाना। और आउटिैंकडश ही ठीि रहे र्ा, किसी अूंधेरी रात में आिर मेरी
र्दग न पिड़िर पूछ िेना। िेकिन ध्यान रखना र्दग न मेरी पिड़ें र्े, पिड़ा जाएर्ी आपिी, किर भार् न सिेंर्े।

स्कॉिरिी िातें नही ूं हैं ये , ये िोई शास्त्रीय और पाूं कडत्य िी िातें नही ूं हैं कि पूछ किया, समझ
किया, चिे र्ए, िुछ भी न हुआ। सारी कजूंदर्ी िो दाूं व पर िर्ाने िी िात है ।
परमात्मा एक छिाां ग है :

एक दू सरे जमत्र पूछते हैं जक ओशो बीज बोते हैं तो अांकर आने में समय िगता है । और आप तो
कहते हैं जक इसी क्षण हो सकती है सब बात और आदमी को परमात्मा का बीज कहते हैं ।

जरूर िहता हूं। िीज िोते हैं, समय िर्ता है। समय िीज िे टू टने में िर्ता है , अूंिुर िे कनििने
में नही ूं। अूंिुर तो एि क्षण में ही कनिि आता है , कवस्फोट होता है अूंिुर िा तो। िेकिन िीज िे टू टने में वक्त
िर् जाता है । आपिे टू टने में वक्त िर् सिता है , वह मैं नही ूं िहता। िेकिन परमात्मा िे आने में वक्त नही ूं
िर्ता, वह एि क्षण में ही आ जाता है ।

जैसे हम पानी िो र्रम िरते हैं । तो र्रम िरने में वक्त िर् सिता है । स कडग्री ति र्रम होर्ा तो
वक्त िर्ेर्ा। िेकिन भाप िनने में वक्त नही ूं िर्ता— छिाूं र्! पानी स कडग्री र्रम हुआ—कद जूंप—िूद
र्या, भाप हो र्या। ऐसा नही ूं है कि भाप िनने में वक्त िर्े —कि पानी थोड़ा अभी भाप िना आधा, अभी आधा
भाप नही ूं िना; अभी िूूं द थोड़ी सी भाप िन र्ई एि िोने से , दू सरे िोने से भाप नही ूं िनी— ऐसा नही ूं, भाप तो
िनेर्ी तो छिाूं र् में। हाूं , िेकिन भाप ति पहुूं चने में वक्त िर्ता है । िेकिन जि ति भाप नही ूं िनी ति ति वह
पानी ही है —चाहे स कडग्री र्रम हो, चाहे कनन्यानिे कडग्री र्रम हो, चाहे अट्ठानिेकडग्री र्रम हो।

परमात्मा एि कवस्फोट है , एि छिाूं र् है । उसिे पहिे आप आदमी ही हैं , चाहे अट्ठानिे कडग्री पर र्रम
होूं, चाहे कनन्यानिे कडग्री पर र्रम होूं। स कडग्री पर र्रम होूंर्े कि भाप िन जाएूं र्े —परमात्मा शु रू होर्ा, आप
कमट जाएूं र्े।

तो मैं िहता हूं वह इसी क्षण भी हो सिता है । इसी क्षण होने िा मतिि? इसी क्षण होने िा मतिि
यह है कि अर्र हम उिप्त होने िो तै यार होूं... और क्ा िािी समय नही ूं िीत र्या उिप्त होने िे
किए? िढ़ाई िि से चढ़ी है चूल्हे पर,कितने जन्मोूं से ! कितने जन्मोूं से र्रम हो रहे हैं , और स कडग्री ति नही ूं
पहुूं च पाए अभी ति! जनम—जनम जनम—जनम र्रम होते रहे हैं , और स कडग्री पर नही ूं पहुूं च पाए अि ति!
और कितना समय चाकहए? इतना समय िम है ?

नही,ूं समय तो िहुत िर् र्या है , र्रम होने िी ििा ही हमें नही ूं आती। तो हम अर्र कनन्यानिे पर भी
पहुूं च जाएूं तो जल्दी से वापस हो जाते हैं , िूिडाउन हो जाते हैं , किर ठूं डे होिर वापस ि ट आते हैं , स कडग्री से
िहुत डरते हैं । अि इधर मैं दे खता था, ध्यान में कितने िोर् कनन्यानिे कडग्री से वापस ि ट जाते हैं । और िैसी—
िैसी व्यथग िी िातें उनिो वापस ि टा िेती हैं कि ऐसी है रानी होती है कि वे जरूर वापस ि टना ही चाहते
होूंर्े। अन्यथा यह िारण िोई वापस ि टने िा था?

एि आदमी िो िूंिई जाना हो, वह टर े न पर िै ठे, और रास्ते में दो िोर् जोर से िात िरते कमि
जाएूं , और वह घर वापस ि ट आए कि दो आदकमयोूं ने हमें कडस्टिग िर कदया, वे रास्ते में जोर से िातें िर रहे
थे, तो हम िूंिई नही ूं जा पाए। तो आप िहें र्े, िूंिई जाना ही न होर्ा, अन्यथा रास्ते पर तो कडस्टरिेंस है ही। ि न
ि टता है ? कजसिो िूंिई जाना है वह चिा जाता है । िक्तम्ऻ रास्ते पर कडस्टरिेंस है तो जरा ते जी से चिा जाता है
कि िीच में व्यथग िी िातें न सु ननी पड़े ।
िेकिन ध्यान से िड़े —िड़े आसान िारणोूं से आदमी वापस ि टता है । वह ि ट आता है कि हमें किसी
िा धक्का िर् र्या, किसी िा हाथ िर् र्या, िोई पड़ोस में कर्र पड़ा, िोई रोने िर्ा, तो हम वापस ि ट आए।
नही,ूं ऐसा िर्ता है कि वापस ि टना चाहते थे , कसिग प्रतीक्षा िर रहे थे कि िोई िारण कमि जाए और
हम िूिडाउन हो जाएूं । िस िहाना भर कमि जाए कि ििाूं आदमी जोर से कचल्राने िर्ा इसकिए हमिो वापस
ि टना पड़ा।

आपिो ििाूं आदमी िे जोर से कचल्राने से आपिा सूं िूंध ? आपिो प्रयोजन? और आप क्ा खो रहे हैं
इस िहाने ,आपिो पता ही नही ूं है , आप क्ा िह रहे हैं , आपिो पता ही नही ूं है ।

अि अभी एि कमत्र कमिे रास्ते में , उन्ोूंने िहा कि जरा िोर्ोूं िो समझा दें , थोड़ा उनिो ठूं डा िर
दें , िूिडाउन िरें ,क्ोूंकि दो िोर् नग्न खड़े हो र्ए हैं , उससे िड़ी एक्सप्लोकसव क्तस्थकत िन र्ई है । उन्ोूंने िड़े
प्रेम से िहा कि जरा िोर्ोूं िो समझा दें ; िुछ िोर् िड़े िेचैन हो र्ए हैं कि दो िोर् नग्न हो र्ए।

ध्यान में िस्त्रोां का जगर जाना:

सि िोर् िपड़ोूं िे भीतर नग्न हैं और िोई िेचैन नही ूं होता! िपड़ोूं िे भीतर सभी िोर् नग्न हैं , िोई
िेचैन नही ूं है । दो आदकमयोूं ने िपड़े छोड़ कदए, सि िेचैन हो र्ए! िड़ा मजा है , आपिे िपड़े भी किसी
ने छु डाए होते तो िेचैन होते तो भी समझ में आता। अपने ही िपड़े िोई छोड़ रहा है और िेचैन आप हो रहे हैं !
अर्र िोई आपिे िपड़े छीनता, तो िेचैनी िुछ समझ में भी आ सिती थी। हािाूं कि वह भी िेमानी थी। जीसस
ने िहा है कि िोई तु म्हारा िोट छीने तो अपनी िमीज भी उसिो दे दे ना, िही ूं िेचारा सूं िोचवश िम न छीन
रहा हो। िोई आपिा िोट छीनता तो समझ में भी आता। िोई अपना ही िोट उतारिर रख रहा है , आप िेचैन
हो र्ए हैं । ऐसा िर्ता है कि आप प्रतीक्षा ही िर रहे थे कि िोई िोट उतारे और हमिूिडाउन हो जाएूं , और
हम िहें , हमारा सारा ध्यान खराि िर कदया।

अि िड़े आश्चयग िी िात है कि िोई आदमी नग्न हो र्या है , इससे आपिे ध्यान िे खराि होने िा क्ा
सूं िूंध है ? और आप किसी िे नग्न होने िो िैठिर दे ख रहे थे ? तो आप ध्यान िर रहे थे या क्ा िर रहे
थे? आपिो तो पता ही नही ूं होना चाकहए था कि ि न ने िपड़े छोड़ कदए, ि न ने क्ा किया। आप अपने में होने
चाकहए थे। ि न क्ा िर रहा है ........ आप िोई धोिी हैं , िोई टे िर हैं , ि न हैं ? आप िपड़ोूं िे किए कचूंकतत क्ोूं
हैं ? आपिी परे शानी िेवजूद है , अथगहीन है ।

और कजसने िपड़े छोड़े हैं ... थोड़ा सोचते नही ूं हैं , आपसे िोई िहे कि आप िपड़े छोड़ दें , ति आपिो
पता चिेर्ा कि कजसने िपड़े छोड़े हैं उसिे भीतर िोई िड़ा िारण ही उपक्तस्थत हो र्या होर्ा इसकिए उसने
िपड़े छोड़े हैं । आपसे िोई िहे कि िाख रुपया दे ते हैं । आप िहें र्े , छोड़ते हैं िाख रुपया, िेकिन िपड़े
न छोड़ें र्े। उस िेचारे िो किसी ने िुछ भी नही ूं कदया है और उसने िपड़े छोड़े ! आप क्ोूं परे शान हैं ? उसिे
भीतर िोई िारण उपक्तस्थत हो र्या होर्ा।

िेकिन कजूंदर्ी िो समझने िी, सहानुभूकत से दे खने िी हमारी आदत ही नही ूं है ।

जि महावीर पहिी दिे नग्न हुए तो पत्थर पड़े । अि पूजा हो रही है ! और कजतने िोर् पू जा िर रहे हैं वे
सि िपड़े िेच रहे हैं । महावीर िे मानने वािे सि िपड़े िेचनेवािे हैं । यह िड़ा आश्चयगजनि है ! और इस
आदमी िो इन्ी ूं िोर्ोूं ने पत्थर मारे होूंर्े। और उसी िे िदिे में िपड़ा िेच रहे हैं कि िोई नूंर्ा न हो
जाए, िपड़े िेचते चिे जा रहे हैं । महावीर नग्न हुए तो िोर्ोूं ने र्ाूं व—र्ाूं व से कनिािा। एि र्ाूं व में न कटिने
कदया। कजस र्ाूं व में ठहर जाते , िोर् उनिो र्ाूं व िे िाहर िरते कि यह आदमी नग्न हो र्या। अि पूजा चि रही
है , िेकिन महावीर िो तो हमने कटिने नही ूं कदया र्ाूं व में , धमगशािा में न रुिने कदया, र्ाूं व िे िाहर मरघट में न
ठहरने कदया। िही ूं र्ाूं व िे आसपास न आ जाएूं तो िोर् जूंर्िी िुिे उनिे पीछे िर्ा दे ते जो उनिो दू र र्ाूं व िे
िाहर कनिाि आएूं । क्ा तििीि हो र्ई थी महावीर से िोर्ोूं िो? एि तििीि हो र्ई थी कि उस आदमी ने
िपड़े छोड़ कदए थे। िे किन िड़े आश्चयग िी िात है ! किसी िे िपड़े छोड़ दे ने से ... क्ा, िारण क्ा है ?

डर िुछ दू सरे हैं , डर िुछ िहुत भयूंिर हैं । हम इतने नूंर्े हैं भीतर कि नग्न आदमी िो दे खिर हम
घिड़ा जाते हैं कि िडी मु क्तिि हो र्ई; हमें अपने नूंर्ेपन िा खयाि आ जाता है । और िोई िारण नही ूं है ।

और ध्यान रहे , नग्नता और िात है , नूंर्ापन किििुि दू सरी िात है । महावीर िो दे खिर िोई िह नही ूं
सिता कि वे नूंर्े खड़े हैं , और हमिो िपड़ोूं में भी दे खिर िोई िहे र्ा कि कितने ही िपड़े पहनें, हैं तो नूंर्े
ही, ििग नही ूं पड़ता है ।

र् र से दे खा है ? जो िोर् नग्न खड़े हो र्ए उनिो र् र से दे खा है ? कहित ही न पड़ी होर्ी उस तरि


दे खने िी। हािाूं कि िीच—िीच में आूं ख िचािर दे खते रहे होूंर्े , नही ूं तो िे चैन िैसे होते ? एक्सप्लोकसव क्तस्थकत
िैसे पैदा होती?

अि उन कमत्र ने किखा है कि क्तस्त्रयाूं िहुत परे शान हो र्ईूं।

क्तस्त्रयोूं िो मतिि? क्तस्त्रयाूं इसकिए आई हैं कि िोई नग्न हो तो उसिो दे खती रहें ? उनिो अपना ध्यान
िरना था।

नही ूं िेकिन, दे खते रहे होूंर्े आूं ख िचािर। किर सि छोडि् िर, वह आत्म— ध्यान वर्ैरह छोडि् िर,
अपने िो दे खना वर्ैरहछोडि् िर वही दे खते रहे होूंर्े। तो एक्सप्लोकसव हो ही जाएर्ा। आपसे ि न िह रहा था
कि आप दे खें? आप आूं ख िूंद किए हुए थे , िोई नग्न खड़ा था वह खड़ा रहता। वह आपिो किििुि नही ूं दे ख
रहा था। वह नग्न आदमी आिर मुझसे िहता कि क्तस्त्रयोूं िी वजह से मेरे किए िड़ी एक्सप्लोकसव क्तस्थकत हो र्ई,
तो िुछ समझ में आता। और क्तस्त्रयोूं िी एक्सप्लोकसव क्तस्थकत हो र्ई उस आदमी िी वजह से !

उसिो जरा र् र से दे खते तो मन प्रसन्न होता। उसिो नग्न खड़ा दे खते तो िर्ता कि कितना
सादा, सीधा, कनदोष। हििा होता मन—ििग होता, िाभ होता। िेकिन िाभ िो तो हम खोने िी कजि किए िै ठे
हैं । हम तो हाकन िो पिड़ने िे किए िड़े आतु र हैं । और हमने ऐसी कवकक्षप्त धारणाएूं िना रखी हैं कजनिा िोई
कहसाि नही ूं।

नग्नता : एक जनदोष जचत्त—दशा:

एि क्तस्थकत आती है ध्यान िी— िुछ िोर्ोूं िो अकनवायग रूप से आती है—कि वस्त्र छोड़ दे ने िी
हाित हो जाती है । वे मुझसे पूछिर नग्न हुए हैं । इसकिए उन पर एक्सप्लोकसव मत होना, होना हो तो मुझ पर
होना। जो िोर् भी यहाूं नग्न हुए हैं वे मुझसे आज्ञा िेिर नग्न हुए हैं । मैंने उनसे िह कदया कि ठीि है । वे मुझसे
पूछ र्ए हैं आिर कि हमारी हाित ऐसी है कि हमें ऐसा िर्ता है एि क्षण में कि अर्र हमने वस्त्र न छोड़े तो
िोई चीज अटि जाएर्ी। तो मैं ने उनिो िहा है कि छोड़ दें ।

यह उनिी िात है , आप क्ोूं परे शान हो रहे हैं ? इसकिए उनसे किसी ने भी िुछ िहा हो तो िहुत र्ित
किया है । आपिो हि नही ूं है वह, किसी िो िुछ िहने िा। थोड़ा समझना चाकहए कि एि कनदोष कचि.......
.एि घड़ी है जि िई चीजें िाधाएूं िन सिती हैं । िपड़े आदमी िा र्हरा से र्हरा इनकहकिशन है । िपड़ा जो है
वह आदमी िा सिसे र्हरा टै िू है , वह सिसे र्हरी रूकढ़ है जो आदमी िो पिड़े हुए है । और एि क्षण आता है
कि िपड़े िरीि—िरीि प्रतीि हो जाते हैं हमारी सारी सभ्यता िे। और एि क्षण आता है मन िा िभी..
.किसी िो आता है , सििो जरूरी नही ूं..।

िुद्ध िपड़े पहने हुए जीए, जीसस िपड़े पहने हुए जीए, महावीर ने िपड़े छोड़े । एि औरत ने भी
कहित िी। महावीर िे वक्त में औरतें कहित न िर सिी। महावीर िी कशष्याएूं िम न थी,ूं ज्यादा थी ूं कशष्योूं
से । दस हजार कशष्य थे और चािीस हजार कशष्याएूं थी ूं। िेकिन कशष्याएूं कहित न जुटा सिी िपड़े छोड़ने िी।
तो महावीर िो तो इसी वजह से यह िहना पड़ा कि इन क्तस्त्रयोूं िो दु िारा जन्म िे ना पड़े र्ा। जि ति ये एि
िार पुरुष न होूं ति ति इनिी िोई मु क्तक्त नही ूं। क्ोूंकि जो िपडा छोड़ने से डरती हैं , वे शरीर छोड़ने से िैसे
न डरें र्ी। तो महावीर िो इसकिए एि कनयम िनाना पड़ा कि स्त्री—योकन से मुक्तक्त नही ूं हो सिती, उसे एि दिे
पुरुष—योकन में आना पड़े र्ा। और िोई िारण न था।

िेकिन कहितवर औरतें हुईूं। अर्र िश्मीर िी िल्रा महावीर िो कमि जाती, तो उनिो यह कसद्धाूं त न
िनाना पड़ता। महावीर िी तरह एि औरत हुई िश्मीर में —िल्रा। और अर्र िश्मीरी से जािर पूछेंर्े तो वह
िहे र्ा हम दो ही शब्द जानते हैं — अल्रा और िल्रा। दो ही शब्द जानते हैं । एि औरत हुई जो नग्न रही। और
सारे िश्मीर ने उसिो आदर कदया। क्ोूंकि उसिी नग्नता में उन्ें पहिी दिा कदखाई पड़ा— और तरह िा
सद
ूं यग, और तरह िी कनदोषता, और तरह िा आनूंद, एि िच्चे जैसा भाव। अर्र िल्रा महावीर िो कमि
जाती, तो महावीर िे ऊपर एि ििूं ि िर् र्या, वह िच जाता। महावीर िे ऊपर एि ििूंि है , और वह
ििूंि यह है कि स्त्री—योकन से मुक्तक्त न हो सिेर्ी। और उसिा िारण महावीर नही ूं हैं , उसिा िारण जो
क्तस्त्रयाूं उनिे आसपास इिट्ठी हुई होूंर्ी वे हैं । क्ोूंकि उन्ोूंने िहा, यह तो असूं भव है । तो किर महावीर ने
िहा, वस्त्र न छोड़सिोर्ी तो शरीर िैसे छूटे र्ा? इतनी ऊपरी पिड़ है , तो भीतर िी पिड़ िैसे जाएर्ी?

जशजिर साधकोां के जिए है , दशओ कोां के जिए नही ां:

नही ूं मैं िहता हूं कि आप नग्न हो जाएूं , िेकिन िोई होता हो तो उसे रोिने िी तो िोई िात नही ूं है।
और एि साधना— कशकवर में भी हम इतनी स्वतूं त्रता न दे पाएूं कि िोई अर्र इतना मुक्त होना चाहे तो हो
सिे, तो किर यह स्वतूं त्रता िहाूं कमि पाएर्ी? साधना—कशकवर साधिोूं िे किए है , दशग िोूं िे किए नही ूं। वहाूं
जि ति िोई दू सरे िो िोई छे ड़खानी नही ूं िर रहा है ति ति उसिी परम स्वतूंत्रता है । दू सरे पर जि
िोई टर े सपास िरता है ति िाधा शु रू होती है । अर्र िोई नूंर्ा होिर आपिो धक्का दे ने िर्े , तो िात ठीि
है ; िोई अर्र आपिो आिर चोट पहुूं चाने िर्े , तो िात ठीि है कि रोिा जाए। िेकिन जि ति एि आदमी
अपने साथ िुछ िर रहा है , आप िुछ भी नही ूं हैं िीच में , आपिो िोई िारण नही ूं है ।
अि अजीि िातें हमें िाधा िनती हैं । िोई नग्न हो र्या है इसकिए िई िोर्ोूं िा ध्यान खराि हो र्या।
ऐसा सस्ता ध्यान िच भी जाता तो किसी िाम िा नही ूं है । उसिा मूल्य कितना है ? इतना ही था कि िोई आदमी
नग्न नही ूं हुआ, इसकिए आपिो ध्यान हो र्या। िैसे हो जाएर्ा?

नही,ूं ये छोटी िातें , अत्यूंत ओछी िातें छोड़नी पड़े र्ी। साधना िड़ी कहित िी िात है ; वहाूं पतग —पतग
अपने िो उखाड़नापड़ता है । साधना िहुत र्हरे में आूं तररि नग्नता है । जरूरी नही ूं है कि िपड़े िोई
छोड़े , िेकिन किसी मोमेंट में किसी िी क्तस्थकत यह हो सिती है कि वह िपड़ा छोड़े । और इस िात िो ध्यान
रखें सदा कि जि किसी िो होती है तो आप िाहर से सोच नही ूं सिते , न आपिो िोई हि है कि आप सोचें कि
ठीि हुआ कि र्ित हुआ, कि क्ोूं छोड़ा कि नही ूं छोड़ा। आप ि न हैं ? आप िहाूं आते हैं ? और आपिो िैसे
पता चिेर्ा? नही ूं तो महावीर िो कजन्ोूंने र्ाूं व िे िाहर कनिािा वे िोई र्ित िोर् रहे होूंर्े ?आप ही जैसे
कशष्ट, समझदार, र्ाूं व िे सि सज्जनोूं ने उनिो िाहर किया कि यह आदमी नग्न खड़ा है , हम न कटिने दें र्े इसे ।
िेकिन हम िार—िार वही भूिें दोहराते हैं ।

तो मेरे कमत्र अभी रास्ते में कमिे , उन्ोूंने िड़े प्रेम से िहा, समझपूवगि िहा, उन्ोूंने िहा कि आप ठीि
से समझा दें ,नही ूं तो िूंिई में ध्यान में आनेवािी सूं ख्या िम हो जाएर्ी।

किििुि िम हो जाए, एि आदमी न आए। िे किन र्ित आदकमयोूं िी िोई जरूरत नही ूं। एि
आदमी न आए, इससे क्ा प्रयोजन है ?

उन्ोूंने िहा कि मकहिाएूं किििुि अि कशकवर में न आएूं र्ी।

किििुि न आएूं । किसने िहा कि वे आएूं ? उनिो िर्ा तो आएूं । आएूं तो मेरी शतग पर आना होर्ा।
उनिी शतग पर कशकवर नही ूं हो सिता। और कजस कदन मैं आपिी शतग पर कशकवर िरू
ूं , उस कदन आप आना ही
मत; उस कदन मैं आदमी दोि ड़ी िा हूं उस कदन किर मुझसे िोई मतिि नही ूं।

मेरी शतग पर ही होर्ा। मैं आपिे किए नही ूं आता हूं । और आपिे कहसाि से नही ूं आऊूंर्ा। और आपिे
कहसाि से नही ूं चिूूंर्ा। इसीकिए तो मुदाग र्ुरु िहुत प्रीकतिर होते हैं , क्ोूंकि वह आपिे कहसाि से उनिो आप
चिा िेते हैं । कजूंदा िो तो िहुत मुक्तिि हो जाता है । इसकिए महावीर मर जाएूं तो पूजे जा सिते हैं , कजूंदा िो
पत्थर मारने पड़ते हैं । किििुि स्वाभाकवि है । इसकिए दु कनया भर में मुदों िो पूजा जाता है । कजूंदा से िड़ी
तििीि है , क्ोूंकि कजूंदे िो आप िाूं ध नही ूं सिते । और िोई दू सरे िारण मेरे किए मूल्य िे नही ूं हैं । ि न
आता है , ि न नही ूं आता है — यह किििुि िेमूल्य है । जो आता है अर्र वह आता है तोसमझपूवगि आए
कि किसकिए आ रहा है और क्ा िरने आ रहा है ।

सहज योग कजठनतम:

एक जमत्र पूछ रहे हैं जक ओशो सहज योग के जिषय में कछ खिा करके समझाइए।

सहज योर् सिसे िकठन योर् है, क्ोूंकि सहज होने से ज्यादा िकठन और िोई िात नही ूं। सहज िा
मतिि क्ा होता है ? सहज िा मतिि होता है जो हो रहा है उसे होने दें , आप िाधा न िनें। अि एि आदमी
नग्न हो र्या, वह उसिे किए सहज हो सिता है , िे किन िड़ा िकठन हो र्या। सहज िा अथग होता है हवा—पानी
िी तरह हो जाएूं , िीच में िुक्तद्ध से िाधा न डािें , जो हो रहा है उसे होने दें ।

िुक्तद्ध िाधा डािती है , असहज होना शु रू हो जाता है । जैसे ही हम तय िरते हैं , क्ा होना चाकहए और
क्ा नही ूं होना चाकहए, िस हम असहज होना शु रू हो जाते हैं । जि हम उसी िे किए राजी हैं जो होता है , उसिे
किए राजी हैं , तभी हम सहज हो पाते हैं ।

तो इसकिए पहिी िात समझ िें कि सहज योर् सिसे ज्यादा िकठन है । ऐसा मत सोचना कि सहज योर्
िहुत सरि है । ऐसी भ्ाूं कत है कि सहज योर् िड़ी सरि साधना है । तो ििीर िा िोर् वचन दोहराते रहते हैं .
साधो, सहज समाकध भिी। भिी तो है , पर िड़ी िकठन है । क्ोूंकि सहज होने से ज्यादा िकठन आदमी िे किए
िोई दू सरी िात ही नही ूं है । क्ोूंकि आदमी इतना असहज हो चुिा है , इतना दू र जा चु िा है सहज होने से कि
उसे असहज होना ही आसान, सहज होना मुक्तिि हो र्या है । पर किर िुछ िातें समझ िेनी चाकहए, क्ोूंकि जो
मैं िह रहा हूं वह सहज योर् ही है ।

जीवन में कसद्धात थोपना जीवन िो कविृत िरना है । िेकिन हम सारे िोर् कसद्धात थोपते हैं । िोई
कहूं सि है और अकहूं सि होने िी िोकशश िर रहा है ; िोई क्रोधी है , शाूं त होने िी िोकशश िर रहा है , िोई दु ष्ट
है , वह दयािु होने िी िोकशश िर रहा है , िोई चोर है , वह दानी होने िी िोकशश िर रहा है । यह हमारे सारे
जीवन िी व्यवस्था है जो हम हैं , उस पर हम िुछ थोपने िी िोकशश में िर्े हैं । हम सिि होूं तो भी
असिि, हम असिि होूं तो भी असिि। क्ोूंकि चोर िाख उपाय िरे तो दानी नही ूं हो सिता। ही, दान िर
सिता है । दानी नही ूं हो सिता। दान िरने से भ्म पैदा हो सिता है कि चोर दानी हो र्या। िेकिन चोर िा
कचि दान में भी चोरी िी तरिीिें कनिाि िेर्ा।

मैंने सु ना है कि एिनाथ यात्रा पर जा रहे थे। तो र्ाूं व में एि चोर था, उसने एिनाथ से िहा कि मैं भी
चिूूं तीथगयात्रा पर आपिे साथ? िहुत पाप हो र्ए, र्ूंर्ा—स्नान मैं भी िर आऊूं। एिनाथ ने िहा, चिने में तो
िोई हजग नही,ूं िािी भी सि तरह— तरह िे चोर जा रहे हैं , तू भी चि सिता है । िेकिन एि िात है िािी जो
चोर मेरे साथ जा रहे हैं , वे िहते हैं कि उस चोर िो मत िे चिना, नही ूं तो हमारी सि चीजें रास्ते में र्ड़िड़
िरे र्ा। तो तू एि पक्की शतग िाूं ध िे कि रास्ते में तीथगयाकत्रयोूंिे साथ चोरी नही ूं िरना। उसने िहा, िसम खाता
हूं ! जाने से िेिर आने ति चोरी नही ूं िरू
ूं र्ा।

किर तीथगयात्रा शु रू हुई, वह चोर भी साथ हो र्या। िािी भी चोर थे , कभन्न—कभन्न तरह िे चोर हैं । िोई
एि तरह िे चोर हैं ? िई तरह िे चोर हैं । िोई चोर मकजस्टर े ट िनिर िैठा है , िोई चोर िुछ और िनिर िैठा
है । सि तरह िे चोर र्ए, वह चोर भी साथ र्या। िेकिन चोरी िी आदत! कदन भर तो र्ुजार दे , रात िड़ी
मुक्तिि में पड़ जाए; सि यात्री तो सो जाएूं , उसिी िड़ी िेचैनी हो जाए, उसिे धूं धे िा वक्त आ जाए। एि
कदन, दो कदन.. .उसने िहा, मर जाएूं र्े , न मािूम तीन—चार महीने िी यात्रा है , ऐसे िैसे चिेर्ा? और सिसे िड़ा
खतरा यह है कि किसी तरह यात्रा भी र्ुजार दी और िही ूं चोरी िरना भू ि र्ए तो और मुसीित, ि टिर क्ा
िरें र्े ? िोई तीथग कजूंदर्ी भर होता है ?

तीसरी रात र्ड़िड़ शु रू हो र्ई। पर र्ड़िड़ व्यवक्तस्थत हुई, धाकमगि ढूं र् िी हुई। चोरी तो उसने
िी, िेकिन तरिीि से िी। एि किस्तर में से सामान कनिािा और दू सरे में डाि कदया, अपने पास न रखा।
सु िह यात्री िड़े परे शान होने िर्े किसी िा सामान किसी िी सूं दूि में कमिे , और किसी िा सामान किसी िे
किस्तर में। स —पचास यात्री थे , िड़ी खोजिीन में मुक्तिि हो र्ई। सिने िहा, यह मामिा क्ा है ? यह हो क्ा
रहा है ? चीजें जाती तो नही ूं हैं , िेकिन इधर—उधर चिी जाती हैं ।
किर एिनाथ िो शि हुआ कि वही चोर होना चाकहए जो तीथगयात्री िन र्या है । तो वे रात जर्ते रहे ।
दे खा िोई दो िजे रात वह चोर उठा और उसने एि िी चीज दू सरे िे पास िरनी शु रू िर दी। एिनाथ ने
उसे पिड़ा और िहा, यह क्ा िर रहा है ? उसने िहा कि मैं ने िसम खा िी है कि चोरी न िरू
ूं र्ा। चोरी मैं
किििुि नही ूं िर रहा। िे किन िम से िम चीजें इधर— उधर तो िरने दें ! मैं िोई चीज रखता नही,ूं अपने किए
छूता नही ूं, िस इधर से उधर िर दे ता हूं । यह तो मैंने आपसे िहा भी नही ूं था कि ऐसा मैं नही ूं िरू
ूं र्ा।

एिनाथ िाद में िहते थे , चोर अर्र िदिने िी भी िोकशश िरे तो भी ििग नही ूं पड़ता।

जो हैं , उसी को जीएां :

हमारे सारे जीवन में जो हमारी असहजता है, वह इसमें है कि जो हम हैं, उससे हम कभन्न होने िी पूरे
समय िोकशश में िर्े हैं । नही ,ूं सहज योर् िहे र्ा जो हैं , उससे कभन्न होने िी िोकशश मत िरें , जो हैं , उसी िो
जानें और उसी िो जीएूं । अर्र चोर हैं तो जानें कि मैं चोर हूं और अर्र चोर हैं तो पूरी तरह से चोर होिर जीएूं ।

िड़ी िकठन िात है । क्ोूंकि चोर िो भी इससे तृ क्तप्त कमिती है कि मैं चोरी छोड़ने िी िोकशश िर रहा
हूं । छूटती नही,ूं िेकिन एि राहत रहती है कि मैं चोर हूं आज भिा, िेकिन िि न रह जाऊूंर्ा। तो चोर िे
अहूं िार िो भी एि तृ क्तप्त है कि िोई िात नही ूं आज चोरी िरनी पड़ी, िेकिन जल्द ही वह वक्त आएर्ा जि
हम भी दानी हो जानेवािे हैं , िोई चोर न रहें र्े। तो िि िी आशा में चोर आज सु कवधा से चोरी िर पाता है ।

सहज योर् िहता है ' अर्र तु म चोर हो तो तु म जानो कि तु म चोर हो—जानते हुए चोरी िरो, िेकिन
इस आशा में नही ूं कि िि अचोर हो जाओर्े।

और जो हम हैं , अर्र हम उसिो ठीि से जान िें और उसी िे साथ जीने िो राजी हो जाएूं , तो क्राूं कत
आज ही घकटत हो सिती है । चोर अर्र यह जान िे कि मैं चोर हूं तो ज्यादा कदन चोर नही ूं रह सिता। यह
तरिीि है उसिी चोर िने रहने िे किए कि वह िहता है , भिा चोर हूं मुक्तिि है आज इसकिए चोरी िर रहा
हूं िि सु कवधा हो जाएर्ी किर चोरी नही ूं िरू
ूं र्ा। असि में मैं चोर नही ूं हूं पररक्तस्थकतयोूं ने मुझे चोर िना कदया है ।
इसकिए वह चोरी िरने में उसिो सु कवधा िन जाती है , वहअचोर िना रहता है । वह िहता है मैं कहूं सि नही ूं हूं
पररक्तस्थकतयोूं ने मुझे कहूं सि िना कदया है , मैं क्रोधी नही ूं हूं वह तो दू सरे आदमी ने मुझे र्ािी दी इसकिए क्रोध आ
र्या। और किर क्रोधी जािर क्षमा माूं र् आता है ; वह िहता है , माि िर दे ना भाई! न मािूम िैसे मेरे मुूं ह से
वह र्ािी कनिि र्ई, मैं तो क्रोधी आदमी नही ूं हूं । उसने अहूं िार िो वापस रख किया अपनी जर्ह। सि
पश्चािाप अहूं िार िो पुनस्थाग कपत िरने िा उपाय है । उसने रख किया, क्षमा माूं र् िी।

नही,ूं सहज योर् यह िहता है कि तु म जो हो, जानना कि वही हो, और इूं च भर यहाूं —वहाूं हटने िी
िोकशश मत िरना,िचने िी िोकशश मत िरना। तो उस पीड़ा से , उस दूं श से, उस दु ख से, उस पाप से , उस
आर् से , उस नरि से—जो तु म हो— अर्र उसिा पूरा तु म्हें िोध हो जाए, तो तु म छिाूं र् िर्ािर तत्काि िाहर
हो जाओर्े , िाहर होना नही ूं पड़े र्ा।

अर्र िोई चोर है और पूरी तरह चोर होने िो जान िे , और अपने मन में िही ूं भी र्ुूंजाइश न रखे कि
िभी मैं चोर नही ूं रहूं र्ा; मैं चोर हूं तो मैं चोर ही रहूं र्ा, और अर्र आज चोर हूं तो िि और िड़ा चोर
हो जाऊूंर्ा, क्ोूंकि च िीस घूंटे िा अभ्यास और िढ़ जाएर्ा। अर्र िोई अपनी इस चोरी िे भाव िो पूरी तरह
पिड िे और ग्रहण िर िे , और समझे कि ठीि है , यही मेरा होना है , तो आप समझते हैं कि आप चोर रह
सिेंर्े? यह इतने जोर से छाती में तिवार िी तरह चुभ जाएर्ी कि मैं चोर हूं कि इसमें जीना असूं भव हो जाएर्ा
एि क्षण भी। क्राूं कत अभी हो जाएर्ी, यही ूं हो जाएर्ी।

जसिाां तोां के शॉक—एज्जाबओर:

नही ूं, िेकिन हम होकशयार हैं, हमने तरिीिें िना िी हैं—चोर हम हैं, और अचोर होने िे सपने दे खते
रहते हैं । वे सपने हमें चोर िनाए रखने में सहयोर्ी होते हैं , ििर िा िाम िरते हैं । जैसे टर े न है , रे िर्ाड़ी िे
डब्ोूं िे िीच में ििर िर्े हैं । धक्के िर्ते हैं , ििर पी जाते हैं धक्के। डब्े िे भीतर िे यात्री िो पता नही ूं
चिता। िार में कसर् िर्े हुए हैं , शॉि—एसजावगर िर्े हुए हैं । िार चिती है , रास्ते पर र्ड्डे हैं , शॉि—
एज्जािगर पी जाता है । भीतर िे सज्जन िो पता नही ूं चिता कि धक्का िर्ा। ऐसे हमने कसद्धाूं तोूं िे ििर और
शॉि—एज्जािगर िर्ाए हुए हैं ।

चोर हूं मैं , और कसद्धाूं त है मेरा अच यग , कहूं सि हूं मैं , अकहूं सा परम धमग िी तख्ती िर्ाए हुए हूं —
यह ििर है ; यह मुझे कहूं सि रहने में सहयोर्ी िनेर्ा। क्ोूंकि जि भी मु झे खयाि आएर्ा कि मैं कहूं सि हूं मैं
िहूं र्ा कि क्ा कहूं सि! अकहूं सा परम धमग! मैं अकहूं सा िो धमग मानता हूं । आज नही ूं सध रहा, िमजोर हूं िि
सध जाएर्ा; इस जनम में नही ूं सधता, अर्िे जनम में सध जाएर्ा; िेकिन कसद्धाूं त मेरा अकहूं सा है । तो मैं झूंडा
िेिर अकहूं सा िा कसद्धाूं त सारी दु कनया में र्ाड़ता किरू
ूं र्ा, और भीतर कहूं सि रहूं र्ा। वह झूंडा सहयोर्ी हो
जाएर्ा। जहाूं अकहूं सा परम धमग किखा हुआ कदखाई पड़े , समझ िेना आसपास कहूं सि कनवास िरते होूंर्े। और
िोई िारण नही ूं है । आसपास कहूं सि िैठे होूंर्े , कजन्ोूंने वह तख्ती िर्ाई है अकहूं सा परम धमग! वह कहूं सि िी
तरिीि है । और आदमी ने इतनी तरिीिें ईजाद िी हैं कि तरिीिें —तरिीिें ही रह र्ई हैं , आदमी खो र्या है ।

सहज होने िा मतिि है जो है , दै ट क्तिच इज इज; जो है , वह है । अि उस होने िे िाहर िोई उपाय


नही ूं है । उस होने में रहना है । उसमें ही रहूं र्ा। िेकिन वह होना इतना दु खद है कि उसमें रहा नही ूं जा सिता।
नरि में आपिो डाि कदया जाए तो आप है रान होूंर्े कि नरि में रहने में आपिे सपने ही सहयोर्ी िनेंर्े। तो
आप आूं ख िूंद िरिे सपना दे खते रहें र्े। उपवास किया है किसी कदन आपने ? तो आप आूं ख िूंद िरिे भोजन
िे सपने दे खते रहें र्े। उपवास िे कदन भी भोजन िा सपना ही सहयोर्ी िनता है उपवास पार िरने में ; भोजन
िा सपना चिता रहता है भीतर। अर्र भोजन िा सपना िूंद िर दें तो उपवास उसी वक्त टू ट जाए। िेकिन
िि िर िेंर्े सु िह।

एि प्रोिेसर मेरे साथ थे यूकनवकसग टी में। िहुत कदन साथ रहने पर मैंने.. .पहिे तो मुझे पता नही ूं
चिा, िभी—िभी अचानि एिदम वे कमठाइयोूं और इन सि िी िात िरने िर्ते । मैं ने िहा कि िात क्ा
है ? िभी—िभी िरते हैं ! किर मैंने पिड़ा तो अूं दाज िर्ाया तो पता चिा कि हर शकनवार िो िरते हैं । तो मैंने
उनसे पूछा एि कदन— शकनवार था और वे आए— और मैं ने िहा कि अि तो आप जरूर कमठाई िी िात
िरें र्े। उन्ोूंने िहा, क्ोूं, आप क्ोूं यह िात िहते हैं ? तो मैंने िहा कि मैं इधर दो महीने से ररिाडग रख रहा हूं
आपिा, शकनवार िो जरूर कमठाई िी िात िरते हैं । आप शकनवार िो उपवास तो नही ूं िरते ? उन्ोूंने
िहा, आपिो किसने िहा? मैंने िहा, िोई िहने िा सवाि ही नही ूं है , मैंने कहसाि िर्ाया है । उन्ोूंने
िहा,िरता हूं । आपने िैसे पिड़ा? मैंने िहा, पिड़ा क्ा, मैं दे खता हूं कि िोई भी स्वस्थ आदमी जो ठीि से
खाता—पीता हो, कमठाई िी क्ोूं िात िरे ? पर आप ठीि खाते —पीते आदमी हैं ।
शकनवार िो जरूर वे िात िरते , िोई न िोई िहाना ि रन वे िोई िहाने से भी कनिाि िेते और वे
कमठाई िी िात शु रू िरते । उन्ोूंने िहा कि मैं शकनवार— आपने अच्छा पिड़ा— िेकिन शकनवार िो मैं कदन
भर सोचता रहता हूं कि िि यह खाऊूंवह खाऊूं, यह िरू
ूं , वह िरू
ूं । उसी िे सहारे तो र्ुजार पाता
हूं ; शकनवार मैं उपवास िरता हूं । तो मैं ने उनसे िहा कि एि कदन ऐसा िरो कि ये सपने मत दे खो, उपवास
िरो। उन्ोूंने िहा, किर उपवास टू ट जाएर्ा; इसी िे सहारे मैं कदन भर खी ूंच पाता हूं । िि िी आशा आज िो
र्ुजार दे ती है । िि िी आशा आज िो किता दे ती है ।

कहूं सि अपनी कहूं सा र्ुजार रहा है , अकहूं सा िी आशा में, क्रोधी अपने क्रोध िो र्ुजार रहा है , दया िी
आशा में ; चोर अपनी चोरी िो र्ु जार रहा है , दान िी आशा में ; पापी अपने पाप िो र्ुजार रहा है , पुण्यात्मा होने
िी आशा में। ये आशाएूं िड़ी अधाकमगि हैं । नही ,ूं तोड़ दें इनिो। जो हैं , हैं — उसे जान िें और उसिे साथ जीएूं ।
वह जो िैक्ङ है , उसिे साथ जीएूं । वह िकठन है , िठोर है , िहुत दु खद है , िहुत मन िो पीड़ा दे र्ा कि मैं ऐसा
आदमी हूं !

अि एि आदमी है से क्सुअकिटी से भरा है , ब्रह्मचयग िी किताि पढ़िर र्ुजार रहा है ! िाम से भरा
है , किताि ब्रह्मचयग िी पढ़ता है , तो वह सोचता है कि हम िड़े ब्रह्मचयग िे साधि हैं । िाम से भरा है । अि वह
किताि ब्रह्मचयग िी िड़ा सहारा िन रही है उसिो िामु ि रहने में ; वह िह रहा है , आज िोई हजग नही,ूं आज
तो र्ुजर जाए, आज और भोर् िो, िि से तो पक्का ही िर िेना।

मैं एि घर में मे हमान था। एि िे ने मुझसे िहा कि एि सूं न्यासी ने मुझे तीन दिे ब्रह्मचयग िा व्रत
कदिवाया!

तीन दिा? मैंने िहा। ब्रह्मचयग िा व्रत एि दिा िािी है । दू सरी दिे िैसे किया? क्ोूंकि ब्रह्मचयग िा
व्रत तीन दिे िैसे िेना पड़े र्ा? तो उन्ोूंने िहा, मैं तो िई िोर्ोूं से िह चु िा, िेकिन किसी ने मुझे पिड़ा नही ूं।
वे िहते हैं , अच्छा, आपने तीन दिे व्रत किया! और िोई िहता नही ूं। आप...। मैंने िहा कि ब्रह्मचयग िा व्रत तो
एि ही दिे हो सिता है ; दु िारा िैसे किया? उन्ोूंने िहा, वह टू ट र्या। किर कतिारा किया। तो किर मैंने
िहा, च थी िार नही ूं किया? तो उन्ोूंने िहा कि नही,ूं किर मेरी कहित ही टू ट र्ई िेने िी। िेकिन तीन दिे
िेते—िेते वे साठ साि िे हो र्ए। र्ुजार दी िामु िता— ब्रह्मचयग िा व्रत िे — िेिर र्ुजार दी िामु िता।

हम िड़े अदभुत हैं । यह हमारा असहज योर् है जो चि रहा है । असहज योर्! रहें र्े
िामुि, पढ़ें र्े ब्रह्मचयग िी किताि। वह ब्रह्मचयग िी किताि हमारी से क्सुअकिटी िे किए िड़ा ििर िा िाम
िर रही है । उसे पढ़े जाएूं र्े , तो मन में समझाए जाएूं र्े कि ि न िहता है मैं िामु ि हूं ! किताि ब्रह्मचयग िी
पढ़ता हूं । अभी जरा िमजोर हूं कपछिे जन्मोूं िे िमग िाधा दे रहे हैं ; अभी समय नही ूं आया है , इसकिए थोड़ा
चि रहा है , िेकिन िािी हूं मैं ब्रह्मचारी। ब्रह्मचारी िी ही धारणा मेरी है ।

इधर से क्स चिेर्ा, इधर ब्रह्मचयग— दोनोूं साथ। ब्रह्मचयग ििर िन जाएर्ा, शॉि—एज्जािगर िन जाएर्ा।
से क्स िी र्िी िर्ी रहे र्ी भीतर, वहाूं िोई धक्के न पहुूं चेंर्े, यात्रा ठीि से हो जाएर्ी। यह असहज क्तस्थकत है ।

सहज क्तस्थकत िा मतिि है कि ििर हटा दो, सड़ि पर र्ड्डे हैं तो जानो; र्ाड़ी किना ििर िी, किना
शॉि—एज्जािगर िी चिाओ। पहिे ही र्ड्डे पर प्राण कनिि जाएूं र्े , िमर टू ट जाएर्ी, र्ाड़ी िे िाहर कनिि
आओर्े कि नमस्कार, इस र्ाड़ी में अि नही ूं चिते । र्ाड़ी िे कसर् कनिाििर चिेंर्े रास्ते पर, पहिे ही र्ड्डे में
प्राण कनिि जाएूं र्े , हड्डी टू ट जाएूं र्ी; र्ाड़ी िे िाहर हो जाएूं र्े , िहें र्े, नमस्कार! अि इस र्ाड़ी में हम िदम न
रखें र्े। िेकिन वे नीचे िर्े शॉि—एज्जािगर र्ड्डोूं िो पी जाते हैं ।
सहज योर् िा मतिि है . जो है , वह है । असहज होने िी चेष्टा न िरें ; जो है उसे जानें, स्वीिार
िरें , पहचानें और उसिे साथ रहने िो राजी हो जाएूं । और किर क्राूं कत सु कनकश्चत है । जो है , उसिे साथ जो भी
रहे र्ा, िदिेर्ा। क्ोूंकि साठ साि किर उपाय नही ूं है िामुिता में र्ुजारने िा। कितने दिे व्रत िेंर्े? व्रत िें र्े
तो उपाय हो जाएर्ा।

अर्र मैंने आप पर क्रोध किया और क्षमा माूं र्ने न जाऊूं, और जािर िि िह आऊूं कि मैं आदमी
र्ित हूं और अि मुझसे दोस्ती रखनी हो तो ध्यान रखना, मैं किर—किर क्रोध िरू
ूं र्ा, क्षमा मैं क्ा माूं र्! मैं
आदमी ऐसा हूं कि मैं क्रोध िरता हूं । सि दोस्त टू ट जाएूं र्े। सि सूं िूंध कछन्न—कभन्न हो जाएूं र्े। अिेिे क्रोध िो
िेिर जीना पड़े र्ा किर। किर क्रोध ही कमत्र रह जाएर्ा। क्रोध िरनेवािा भी िोई, क्रोध सहनेवािा भी
िोई, क्रोध उठानेवािा भी िोई पास न होर्ा। ति उस क्रोध िे साथ जीना पड़े र्ा। जी सिेंर्े उस क्रोध िे
साथ? छिाूं र् िर्ािर िाहर हो जाएूं र्े। िहें र्े, यह क्ा पार्िपन है ?

नही,ूं िेकिन तरिीि हमने कनिाि िी है । सु िह पत्नी पर नाराज हो रहा है पकत, घूंटे भर िाद मना—
समझा रहा है , साड़ीखरीदिर िे आ रहा है । वह पत्नी समझ रही है कि िड़े प्रेम से भर र्या है । वह िे चारा अपने
क्रोध िा पश्चािाप िरिे किर पुनस्थाग कपत, पुराने स्थान पर पहुूं च रहा है —पुरानी सीमा पर जहाूं से झर्ड़ा शु रू
हुआ था, उस िाइन पर किर पहुूं च रहा है । साड़ी—वाड़ी आ जाएर्ी, पत्नी वापस ि ट आएर्ी, पुरानी रे खा किर
खड़ी हो जाएर्ी। साूं झ किर वही होना है । उसी रे खा पर सु िह हुआ था, वही रे खा किर स्थाकपत हो र्ई। किर
साूं झ वही होना है । किर रात वही समझाना है , किर सु िह वही होना है । पूरी कजूंदर्ी वही दोहरना है । िेकिन
दोनोूं में से िोई भी इस सत्य िो न समझेर्ा कि सत्य क्ा है ? यह हो क्ा रहा है ? यह क्ा जाि है ?िेईमानी क्ा
है यह? दोनोूं एि—दू सरे िो धोखा कदए चिे जाएूं र्े। हम सि एि—दू सरे िो धोखा कदए चिे जाते हैं । और दू सरे
िो धोखा दे ना तो ठीि, अपने िो ही धोखा कदए चिे जाते हैं ।

सहज योर् िा मतिि है अपने िो धोखा मत दे ना। जो हैं , जान िे ना, यही हूं ऐसा ही हूं । और अर्र
ऐसा जान िेंर्े तो िदिाहट तत्काि हो जाएर्ी—युर्पत, उसिे किए रुिना न पड़े र्ा िि िे किए। किसी िे घर
में आर् िर्ी हो और उसे पता चि जाए कि घर में आर् िर्ी है , तो रुिेर्ा िि ति? अभी छिाूं र् िर्ािर
िाहर हो जाएर्ा। कजस कदन कजूंदर्ी जैसी हमारी है हम उसे पूरा दे ख िेते हैं , उसी कदन छिाूं र् िी न ित आ
जाती है ।

िेकिन घर में आर् िर्ी है , हमने अूंदर िूि सजा रखे हैं । हम आर् िो दे खते ही नही ,ूं हम िूि िो
दे खते हैं । जूंजीरें हाथ में िूंधी हैं , हमने सोने िा पाकिश चढ़ा रखा है । हम जूंजीरें दे खते ही नही ,ूं हम आभू षण
दे खते हैं । िीमाररयोूं से सि घाव हो र्ए हैं , हमने पकट्टयाूं िाूं ध रखी हैं , पकट्टयोूं पर रूं र् पोत कदए हैं । हम रूं र्ोूं िो
दे खते हैं , भीतर िे घावोूं िो नही ूं दे खते ।

असत्य बाां धता है , सत्य मि करता है :

धोखा िूंिा है और पूरी कजूंदर्ी िीत जाती है और पररवतगन िा क्षण नही ूं आ पाता है। उसे
हम पोस्टपोन िरते चिे जाते हैं । म त पहिे आ जाती है , वह पोस्टपोनमेंट किया हुआ क्षण नही ूं आता। मर पहिे
जाते हैं , िदि नही ूं पाते हैं ।
िदिाहट िभी भी हो सिती है । सहज योर् िदिाहट िी िहुत अदभुत प्रकक्रया है । सहज योर् िा
मतिि यह है कि जो है उसिे साथ जीओ, िदि जाओर्े। िदिने िी िोकशश िरने िी िोई जरूरत नही ूं है ।
सत्य िदि दे ता है ।

जीसस िा वचन है टु थ कििरे टि् स। वह जो सत्य है वह मुक्त िरता है ।

िेकिन सत्य िो हम जानते ही नही ूं। हम असत्य िो िीप—पोत िर खड़ा िर िेते हैं ।
असत्य िाूं धता है , सत्य मुक्त िरता है । दु खद से दु खद सत्य भी सुखद से सु खद असत्य से िेहतर है , क्ोूंकि
सु खद असत्य िहुत खतरनाि है , वह िाूं धेर्ा। दु खद सत्य भी मुक्त िरे र्ा। उसिा दु ख भी मुक्तक्तदायी है ।
इसकिए दु खद सत्य िे साथ जीना, सु खद असत्य िो मत पािना। सहज योर् इतना ही है । और किर तो समाकध
आ जाएर्ी। किर समाकध िो खोजने न जाना पड़े र्ा, वह आ जाएर्ी।

जि रोना आए तो रोना, रोिना मत, और जि हूं सना आए तो हूं सना, रोिना मत। जि जो हो उसे होने
दे ना और िहना,यह हो रहा है ।

मैंने सु ना है , जापान में एि ििीर मरा। उसिे मरते समय िाखोूं िोर् इिट्ठे हुए। उसिी िड़ी िीकतग
थी। िेकिन उससे भी ज्यादा िीकतग उसिे एि कशष्य िी थी। उस कशष्य िे िारण ही र्ुरु प्रकसद्ध हो र्या था।
िेकिन जि िोर् आए तो उन्ोूंने दे खा वह जो कशष्य है , वह िाहर िैठिर छाती पीटिर रो रहा है । तो िोर्ोूं ने
िहा कि आप और रो रहे हैं ? हम तो समझते थे आप ज्ञान िो उपिि हो र्ए! और आप रोते हैं ? तो उस कशष्य
ने िहा कि पार्िो, तु म्हारे ज्ञान िे पीछे मैं रोना न छोडूूंर्ा। रोने िी िात ही और। रखो अपने ज्ञान
िो, सम्हािो, मुझे नही ूं चाकहए। पर उन्ोूंने िहा कि अरे , िोर् क्ा िहें र्े? अूंदर जाओ! िदनामी िैि जाएर्ी।
हम तो समझे तु म क्तस्थतप्रज्ञ हो र्ए; हम तो समझे थे कि तु म परम तानी हो र्ए; और हम तो समझे थे कि अि
तु म्हें िुछ भी नही ूं छु एर्ा। उसने िहा, तु म र्ित समझे थे। िक्तम्ऻ पहिे मुझे िहुत िम छूता था, सूंवेदनशीिता
मेरी िम थी, मैं िठोर था। अि तो सि मुझे छूता है और आर—पार कनिि जाता है । मैं तो रोऊूंर्ा, मैं तो कदि
भरिर रोऊूंर्ा। तु म्हारे ज्ञान िो िेंिो। पर वे िोर्, जैसा कि भक्तर्ण होते हैं , उन्ोूंने िहा कि सि में िदनामी
िैि जाएर्ी। भीड़ िरिे, घेरा िरिे रोिो, किसी िो दे खने मत दो। िदनामी हो जाएर्ी कि परम शानी. .किसी
एि ने िहा कि तु म तो सदा समझाते थे कि आत्मा अमर है , अि क्ोूं रो रहे हो? तो उस ििीर ने िहा, आत्मा
िे किए ि न रो रहा है ? मैं तो उस शरीर िे किए रो रहा हूं । वह शरीर भी िहुत प्यारा था, और वह शरीर अि
दु िारा इस पृथ्वी पर िभी नही ूं होर्ा। आत्मा िे किए ि न रो रहा है ! वह तो सदा रहे र्ी। उसिे किए रो ि न
रहा है ? िेकिन वह शरीर भी िहुत प्यारा था जो टू ट र्या। और वह मूं कदर भी िहुत प्यारा था कजसमें उस आत्मा ने
वास किया। अि वह दु िारा नही ूं होर्ा। मैं उसिे किए रो रहा हूं । अरे , उन्ोूंने िहा, पार्ि शरीर िे किए रोते
हो? उस ििीर ने िहा कि रोने में भी शतें िर्ाओर्े क्ा? मुझे रोने भी नही ूं दोर्े ?

प्रामाजणकता से रूपाां तरण:

मु क्त कचि वही हो सिता है जो सत्यकचि हो र्या। सत्यकचि िा मतिि, जो हो रहा है—रोना है
तो रोएूं , हूं सना है तो हूं से , क्रोध िरना है तो िी आथेंकटि, क्रोध में भी पूरे प्रामाकणि होूं। और जि क्रोध िरें तो
पूरे क्रोध ही हो जाएूं —कि आपिो भी पता चि जाए कि क्रोध क्ा है और आपिे आसपास िो भी पता चि
जाए कि क्रोध क्ा है । वह मुक्तक्तदायी होर्ा। िजाय इूं च—इूं च क्रोध कजूंदर्ी भर िरने िे, पूरा क्रोध एि ही दिे
िर िें और जान िें। तो उससे आप भी झुिस जाएूं और आपिे आसपास भी झुिस जाए और पता चि जाए कि
क्रोध क्ा है ।

क्रोध िा पता ही नही ूं चिता। आधा—आधा चि रहा है । वह भी अनआथें कटि चि रहा है । इूं च भर
िरते हैं और इूं च भर....... हमारी यात्रा ऐसी है , एि िदम चिते हैं , एि िदम वापस ि टते हैं , न िही ूं जाते , न
िही ूं ि टते , िस जर्ह पर खड़े नाचते रहते हैं । िही ूं जाना—आना नही ूं है ।

सहज योर् िा इतना ही मतिि है कि जो है जीवन में , उसिो स्वीिार िर िें , उसे जानें और जीएूं ।
और इस जीने ,जानने और स्वीिृकत से आएर्ा पररवतग न, म्यू टेशन, िदिाहट। और वह िदिाहट आपिो वहाूं
पहुूं चा दे र्ी जहाूं परमात्मा है ।

यह कजसे मैं ध्यान िह रहा हूं यह सहज योर् िी ही प्रकक्रया है । इसमें आप स्वीिार िर रहे हैं जो हो
रहा है ; अपने िो छोड़ रहे हैं पूरा और स्वीिार िर रहे हैं जो हो रहा है । नही ूं तो आप सोच सिते हैं , पढ़े —किखे
आदमी, सु कशकक्षत, सूं पन्न,सोकिक्तस्टिेटे ड, सु सूंस्कृत—से रहे हैं खड़े होिर, कचल्रा रहे हैं , हाथ—पैर पटि रहे
हैं , कवकक्षप्त िी तरह नाच रहे हैं ! यह सामान्य नही ूं है । िीमती है िेकिन, असामान्य है । इसकिए जो दे ख रहा है
उसिी समझ में नही ूं आ रहा है कि यह क्ा हो रहा है । उसे हूं सी आ रही है कि यह क्ा हो रहा है ! उसे पता
नही ूं कि वह भी इस जर्ह खड़े होिर प्रामाकणि रूप से जो िहा जा रहा है ,िरे र्ा, तो उसे भी यही होर्ा। और
हो सिता है उसिी हूं सी कसिग कडिेंस—मेजर हो, वह कसिग हूं सिर अपनी रक्षा िर रहा है । वह िह रहा
है , हम ऐसा नही ूं िर सिते । वह हूं सिर यह िता रहा है , हम ऐसा नही ूं िर सिते । िे किन उसिी हूं सी िह
रही है कि उसिा िुछ सूं िूंध है । उसिी हूं सी िह रही है कि वह इस मामिे से िुछ न िुछ सूं िूंध उसिा है ।
अर्र वह भी इस जर्ह इसी तरह खड़ा होर्ा, यही िरे र्ा। उसने भी अपने िो रोिा है , दिाया है ; रोया
नही,ूं हूं सा नही,ूं नाचा नही ूं।

िटर े ड रसे ि ने पीछे एि िार िहा कि मनुष्य िी सभ्यता ने आदमी से िुछ िीमती चीजें छीन िी —
ूं
उसमें नाचना एि है ।िटर े ड रसे ि ने िहा, आज मैं टर ै ििर्र स्कायर पर खड़े होिर िूंदन में नाच नही ूं सिता।
िहते हैं हम स्वतूं त्र हो र्ए हैं , िहते हैं कि दु कनया में स्वतूं त्रता आ र्ई है , िेकिन मैं च रस्ते पर खड़े होिर नाच
नही ूं सिता। टर ै किि िा आदमी ि रन मुझे पिड़िरथाने भेज दे र्ा कि आप टर ै किि में िाधा डाि रहे हैं । और
आप आदमी पार्ि मािूम होते हैं , च रस्ता नाचने िी जर्ह नही ूं। िटर ें ड रसे ि ने िहा कि िई दिे आकदवाकसयोूं
में जािर दे खता हूं और जि उन्ें नाचते दे खता हूं रात, आिाश िे तारोूं िी छाया में ,ति मुझे ऐसा िर्ता है
सभ्यता ने िुछ पाया या खोया?

िहुत िुछ खोया है । िहुत िुछ खोया है । िुछ पाया है , िहुत िुछ खोया है । सरिता खोई है , सहजता
खोई है , प्रिृकत खोई है , और िहुत तरह िी कविृकत पिड़ िी है । ध्यान आपिो सहज अवस्था में िे जाने िी
प्रकक्रया है ।

साधक के जिए पाथेय:

इसकिए अूंकतम िात जो आपसे िहना चाहूंर्ा वह यह कि यहाूं तीन कदन में जो हुआ, वह महत्वपूणग
है । िुछ िोर्ोूं ने िड़ी अदभुत प्रतीकत पाई, िुछ िोर् प्रतीकत िी झिि ति पहुूं चे , िुछ िोर् प्रयास तो किए
िेकिन पूरा नही ूं िर पाए, किर भी प्रयास किए और कनिट थे, प्रवेश हो सिता था। िेकिन सभी ने िुछ
किया, कसिग दो—चार—दस कमत्रोूं िो छोडि् िर। उनिो, कजन्ें िुक्तद्धमान होने िा भ्म है , उनिो छोडि् िर।
कजनिे पास िुक्तद्ध िम, कितािें ज्यादा हैं , उनिो छोडि् िर िािी सारे िोर् सूं िग्न हुए। और सारा
वातावरण, िहुत सी िाधाओूं िे िावजूद भी, एि कवशे ष प्रिार िी शक्तक्त से कनकमगत हुआ। और िहुत िुछ घटा।
िेकिन वह कसिग प्रारूं भ है ।

घर जाकर ध्यान का प्रयोग जारी रखें :

आप घर जािर घूंटे भर इस प्रयोर् िो च िीस घूंटे में से दे ते रहना, तो आपिी कजूंदर्ी में िोई द्वार
खु ि सिता है । और घर िे किए—िमरा िूंद िर िें, और घर िे िोर्ोूं िो िह दें कि घूंटे भर इस िमरे में
िुछ भी हो, इस सूं िूंध में कचूंकतत होने िा िारण नही ूं है । िमरे िे भीतर नग्न हो जाएूं , सि वस्त्र िेंि दें । और
खड़े होिर प्रयोर् िरें । र्िी किछा िें , ताकि कर्र जाएूं तो िोई चोट न िर् जाए। खड़े होिर प्रयोर् िरें । और
घर िे िोर्ोूं िो पहिे जता दें कि िहुत िुछ हो सिता है — आवाजें आ सिती हैं , रोना कनिि सिता है —िुछ
भी हो सिता है भीतर, िेकिन घर िे िोर्ोूं िो िाधा नही ूं दे नी है । यह पहिे िता दें ।

और इस प्रयोर् िो घूंटे भर दोहराते रहें , दु िारा कशकवर में कमिने िे पहिे। और अर्र जो कमत्र यहाूं
प्रयोर् किए हैं वे अर्र सारे कमत्र घर जािर दोहराते हैं , तो उनिे किए मैं किर अिर् कशकवर िे सिूूंर्ा। ति उन्ें
और र्कत दी जा सिती है ।

िहुत सूं भावना है , अनूंत सूं भावनाएूं हैं , िेकिन आप िुछ िरें । आप एि िदम चिें तो परमात्मा
आपिी तरि स िदम चिने िो सदा तै यार है । िेकिन आप एि िदम भी न चिें , ति किर िोई उपाय नही ूं
है ।

जािर इस प्रयोर् िो जारी रखें । सूं िोच िहुत घेरेंर्े। क्ोूंकि घर में छोटे िच्चे क्ा िहें र्े कि कपता िो
क्ा हो र्या! वे तो िभी ऐसे न थे , सदा र्ुरु—र्ूंभीर थे। ऐसा नाचते हैं , िूदते हैं , कचल्राते हैं ! हम नाचते —िूदते
थे िच्चे घर में तो वे डाूं टते — डपटते थे कि र्ित है यह, अि खु द िो क्ा हो र्या है ? जरूर िच्चे हूंसेंर्े। िेकिन
उन िच्चोूं से मािी माूं र् िे ना, और उन िच्चोूं से िह दे ना कि भूि हो र्ई। तु म अभी भी नाचो और िूदो और
आर्े भी नाचने —िूदने िी क्षमता िो िचाए रखना, वह िाम पड़े र्ी।

िच्चोूं िो जल्दी हम िा िना दे ते हैं ।

घर में सििो जता दे ना कि यह घूंटे भर िुछ भी हो, उसिे सूं िूंध में िोई व्याख्या नही ूं िरनी है , िोई
पूछताछ नही ूं िरनी है । एि कदन िह दे ने से िात हि हो जाती है , दो या तीन कदन चिने पर घर िे िोर् समझ
िेते हैं कि ठीि है , ऐसा होता है । और न िेवि आप िक्तम्ऻ आपिे पूरे घर में पररणाम होने शु रू हो जाएूं र्े।

ऊजाओ िान ध्यान कक्ष:


कजस िमरे में आप िरें इस प्रयोर् िो, अर्र उस िमरे िो सूंभव हो सिे आपिे किए, तो किर
इसी प्रयोर् िे किए रखें , उसमें िुछ दू सरा िाम न िरें । छोटी िोठरी हो, तािा िूं द िर दें , उसमें कसिग यही
प्रयोर् िरें । और अर्र घर िे दू सरे िोर् भी उसमें आना चाहें तो वह प्रयोर् िरने िे किए आएूं तो ही आ
सिें, अन्यथा उसे िूंद िर दें । नही ूं सूं भव हो सिे तो िात अिर् है । सूं भव हो सिे तो इसिे िहुत िायदे होूंर्े।
वह िमरा चाब्दग हो जाएर्ा।

वह रोज आप जि उसिे भीतर जाएूं र्े तो आपिो पता चिेर्ा कि साधारण िमरा नही ूं है । क्ोूंकि हम
पूरे समय अपने चारोूं तरि रे कडएशन िैिा रहे हैं । हमारे चारोूं तरि हमारी कचि—दशा िी किरणें किूंि रही
हैं । और िमरे और जर्हें भी किरणोूं िो पी जाती हैं ।

और इसीकिए हजारोूं—हजारोूं साि ति भी िोई जर्ह पकवत्र िनी रहती है । उसिे िारण हैं । अर्र
वहाूं िभी िोई महावीर या िु द्ध या िृष्ण जैसा व्यक्तक्त िैठा हो, तो वह जर्ह हजारोूं साि िे किए और तरह
िा इिै क्ङ िे िेती है , उस जर्ह पर खड़े होिर आपिो दू सरी दु कनया में प्रवेश िरना िहुत आसान हो जाता
है ।

तो जो सूं पन्न हैं ....... और सूं पन्न िा मैं तो एि ही िक्षण मानता हूं कि उसिे घर में मूं कदर हो सिे , िस
वही सूं पन्न है , िािी सि दररद्र ही हैं । घर में एि िमरा तो मूंकदर िा हो सिे , जो एि दू सरी दु कनया िी यात्रा िा
द्वार हो। वहाूं िुछ और न िरें । वहाूं जि जाएूं , म न जाएूं ; और वहाूं ध्यान िो ही िरें । और घर िे िोर्ोूं िो भी
धीरे — धीरे उत्सु िता िढ़ जाएर्ी,क्ोूंकि आप में जो ििग होने शु रू होूंर्े वे कदखाई पड़ने िर्ेंर्े।

अि यहाूं कजन दो—चार िोर्ोूं िो िीमती ििग हुए हैं , दू सरे िोर्ोूं ने उनसे जािर पूछना शु रू िर
कदया कि आपिो क्ा हो र्या है ! उन्ोूंने मुझसे भी आिर िहा कि हम क्ा जवाि दें ? हमसे िोर् पूछ रहे हैं
कि क्ा हो र्या है !

तो वे आपिे घर िे िच्चे , आपिी पत्नी, पकत, कपता, िेटे, वे सि पूछने िर्ें र्े, कमत्र पूछने िर्ेंर्े कि क्ा
हो रहा है ! वे भी उत्सु ि होूंर्े। और अर्र इस प्रयोर् िो जारी रखते हैं तो दू र नही ूं वह क्षण जि आपिे जीवन में
घटना घट सिती है —कजस घटना िे किए अनूंत जन्मोूं िी यात्रा िरनी होती है , और कजस घटना िे किए अनूंत
जन्मोूं ति हम चूि सिते हैं ।

जिराट ध्यान आां दोिन की आिश्यकता:

मनुष्य—जाकत िे इकतहास में आनेवािे िुछ वषग िहुत महत्वपूणग हैं। और अर्र एि िहुत
िड़ी क्तस्प्रचुएकिटी िा जन्म नही ूं हो सिता— अि आध्याक्तत्मि िोर्ोूं से िाम नही ूं चिेर्ा— अर्र आध्याक्तत्मि
आूं दोिन नही ूं हो सिता, कि िाखोूं—िरोड़ोूं िोर् उससे प्रभाकवत हो जाएूं , तो दु कनया िो भ कतिवाद िे र्तग से
िचाना असूं भव है । और िहुत मोमेंटस क्षण हैं कि पचास साि में भाग्य िा कनपटारा होर्ा—या तो धमग िचेर्ा, या
कनपट अधमग िचेर्ा। इन पचास साि में िुद्ध, महावीर, िृष्ण, मोहिद, राम,जीसस, सििा कनपटारा होने िो है ।
इन पचास सािोूं में एि तराजू पर ये सारे िोर् हैं और दू सरे तराजू पर सारी दु कनया िे कवकक्षप्त राजनीकतज्ञ, सारी
दु कनया िे कवकक्षप्त भ कतिवादी, सारी दु कनया िे भ्ाूं त और अज्ञान में स्वयूं और दू सरोूं िो भी धक्का दे नेवािे
िोर्ोूं िी िड़ी भीड़ है । और एि तरि तराजू पर िहुत थोड़े से िोर् हैं । पचास सािोूं में कनपटारा होर्ा। वह जो
सूं घषग चि रहा है सदा से , वह िहुत कनपटारे िे म िे पर आ र्या है । और अभी तो जैसी क्तस्थकत है उसे दे खिर
आशा नही ूं िूंधती। िेकिन मैं कनराश नही ूं हूं क्ोूंकि मुझे िर्ता है कि िहुत शीघ्र िहुत सरि—सहज मार्ग खोजा
जा सिता है जो िरोड़ोूं िोर्ोूं िे जीवन में क्राूं कत िी किरण िन जाए।

और अि इक्का—दु क्का आदकमयोूं से नही ूं चिेर्ा। जैसा पुराने जमाने में चि जाता था कि एि आदमी
ज्ञान िो उपिि हो र्या। अि ऐसा नही ूं चिे र्ा। ऐसा नही ूं हो सिता। अि एि आदमी इतना िमजोर
है , क्ोूंकि इतनी िड़ी भीड़ पैदा हुई है ,इतना िड़ा एक्सप्लोजन हुआ है जनसूं ख्या िा कि अि इक्का—दु क्का
आदकमयोूं से चिनेवािी िात नही ूं है । अि तो उतने ही िड़े व्यापि पैमाने पर िाखोूं िोर् अर्र प्रभाकवत होूं, तो
ही िुछ किया जा सिता है ।

िेकिन मुझे कदखाई पड़ता है कि िाखोूं िोर् प्रभाकवत हो सिते हैं । और थोड़े से िोर्
अर्र न्यु क्तक्लयस िनिर िाम िरना शु रू िरें तो यह कहूं दुस्तान उस मोमेंटस िाइट में, उस कनणाग यि युद्ध में
िहुत िीमती कहस्सा अदा िर सिता है । कितना ही दीन हो, कितना ही दररद्र हो, कितना ही र्ुिाम रहा
हो, कितना ही भटिा हो, िेकिन इस भूकम िे पास िुछ सूं रकक्षतसूं पकियाूं हैं । इस जमीन पर िुछ ऐसे िोर् चिे
हैं , उनिी किरणें हैं , हवा में उनिी ज्योकत, उनिी आिाूं क्षाएूं सि पिोूं—पिोूं पर खु द र्ई हैं । आदमी र्ित हो
र्या है , िेकिन अभी जमीन िे िणोूं िो िु द्ध िे चरणोूं िा स्भरण है । आदमी र्ित हो र्या है ,िेकिन वृक्ष
पहचानते हैं कि िभी महावीर उनिे नीचे खड़े थे । आदमी र्ित हो र्या है , िेकिन सार्र ने सु नी हैं और तरह
िी आवाजें भी। आदमी र्ित हो र्या है , िेकिन आिाश अभी भी आशा िाूं धे है । आदमी भर वापस ि टे तो
िािी सारा इूं तजाम है ।

तो इधर मैं इस आशा में कनरूं तर प्राथगना िरता रहता हूं कि िैसे िाखोूं िोर्ोूं िै जीवन में एि साथ
कवस्फोट हो सिे। आप उसमें सहयोर्ी िन सिते हैं । आपिा अपना कवस्फोट िहुत िीमती हो सिता है —
आपिे किए भी, पूरी मनुष्य—जाकत िे किए भी। इस आशा और प्राथगना से ही इस कशकवर से आपिो कवदा दे ता हूं
कि आप अपनी ज्योकत तो जिाएूं र्े ही, आपिी ज्योकत दू सरे िुझे दीयोूं िे किए भी ज्योकत िन सिेर्ी।

मेरी बातोां को इतनी शाां जत और प्रेम से सना है , उससे बहुत अनगृहीत हां और अांत में सबके भीतर बैठे
परमात्मा को प्रणाम करता हां मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।
प्रिचन 7 - कां डजिनी जागरण ि शब्धिपात

पहिी प्रश्नोत्तर चचाओ :

ताओ—मूि स्वभाि:

प्रश्न:

ओशो ताओ को आज तक सही तौर से समझाया नही ां गया है । या तो जिनोबा भािे ने टर ाई जकया
या िारे नसओ ने टर ाई जकया या हमारे एक बहुत बड़े जिद्वान मनोहरिाि जी ने टर ाई जकया िेजकन ताओ को
या तो िे समझा नही ां पाए या मैं नही ां समझ पाया। क्ोांजक यह एक बहुत बड़ा गांभीर जिषय है ।

ताओ िा पहिे तो अथग समझ िेना चाकहए। ताओ िा मूि रूप से यही अथग होता है, जो धमग िा
होता है । धमग िा मतिि है स्वभाव। जैसे आर् जिाती है , यह उसिा धमग हुआ। हवा कदखाई नही ूं पड़ती
है , अदृश्य है , यह उसिा स्वभाव है , यह उसिा धमग है । मनुष्य िो छोडि् िर सारा जर्त धमग िे भीतर है । अपने
स्वभाव िे िाहर नही ूं जाता। मनुष्य िो छोडि् िर जर्त में , सभी िुछ स्वभाव िे भीतर र्कत िरता है । स्वभाव िे
िाहर िुछ भी र्कत नही ूं िरता। अर्र हम मनुष्य िो हटा दें तो स्वभाव ही शे ष रह जाता है । पानी िरसे र्ा, धू प
पड़े र्ी, पानी भाप िने र्ा, िादि िनेंर्े, ठूं डि होर्ी, कर्रें र्े। आर् जिाती रहे र्ी,हवाएूं उड़ती रहें र्ी, िीज
टू टें र्े, वृक्ष िनेंर्े। पक्षी अूंडे दे ते रहें र्े। सि स्वभाव से होता रहे र्ा। स्वभाव में िही ूं िोई कवपरीतता पै दा न होर्ी।

स्वतां त्रता—मनष्य की गररमा भी, दभाओ ग्य भी:

मनुष्य िे आने िे साथ ही एि अदभुत घटना जीवन में घटी। सिसे िड़ी घटना है जो इस जर्त में
घटी। और वह यह है कि मनुष्य िे पास शक्तक्त और क्षमता है कि वह स्वभाव िे प्रकतिूि जा सिे , स्वभाव से
उिटा जा सिे। यह मनुष्य िी र्ररमा भी है और दु भाग ग्य भी। यह उसिा र् रव भी है , इसीकिए वह श्रे ष्ठतम प्राणी
भी है । इसीकिए कि वह चाहे तो स्वभाव में जीए और चाहे तो स्वभाव िे प्रकतिूि चिा जाए। यानी स्वभाव िी जो
अकनवायग परतूं त्रता थी, वह मनुष्य पर नही ूं है । मनु ष्य स्वतूं त्र प्राणी है ।
इस ज्ञात जर्त में मनुष्य अिेिा स्वतूं त्र है । स्वतूं त्र िा मतिि यह कि वह वह भी िर सिता है जो कि
प्रिृकत में नही ूं होता। वह आर् िो ठूं डी िर सिता है । हवा िो दृश्य िना सिता है । वह पानी िो नीचे न
िहािर ऊपर िी तरि िहाए। और इस सििा िारण यह है कि मनुष्य सोच सिता है । उसिे पास िुक्तद्ध है ।
तो िुक्तद्ध कनणाग यि है उसिी—क्ा िरें , क्ा न िरें ! ऐसा िरें या वैसा िरें ! यह िरना ठीि होर्ा कि नही ूं ठीि
होर्ा! तो िु क्तद्ध जो है वह मनुष्य िे भीतर स्वतूं त्रता िा सू त्र है । और प्रिृकत िे ऊपर उठने िी सूं भावना है । वह
टर ाूं सेनडें स है उसमें।

स्वतां त्रता स्वर्च्ां दता नही ां है :

िेकिन मनुष्य स्वभाव िे प्रकतिूि तो जा सिता है , िेकिन स्वभाव िे प्रकतिूि जाने से जो दु ख होते हैं
वे उसे झेिने ही पडें र्े।

प्रश्न: झे िने ही पड़ते हैं ?

वे झेिने ही पड़ते हैं। तो उसिी स्वतूंत्रता स्वच्छूं दता नही ूं है। उस पर एि र्हरी रुिावट है। स्वतूंत्र
है वह कि वह प्रिृकत से प्रकतिूि िाम िरे । िेकिन प्रकतिूि िाम िरने से जो भी पररणाम होूंर्े दु खद, वे उसे
झेिने ही पड़ें र्े।

अधमग िा मतिि इतना ही है । अधमग िा मतिि यह है कि जो स्वभाव में नही ूं है वैसा िरना। जो नही ूं
िरना चाकहए था वैसा िरना। कजसे िरने से दु ख उत्पन्न होता है ऐसा िरना। यह सि एि ही िात हुई। कजसे भी
िरने से दु खद पररणाम आते हैं वह अधमग है । क्ोूंकि स्वभाव में दु ख िी र्ुूंजाइश ही नही ूं है । इसकिए मनुष्य िो
छोडि् िर इस जर्त में और िोई दु खी भी नही ूं है , कचूंकतत भी नही ूं है , तनावग्रस्त भी नही ूं है । मनुष्य िो छोडि् िर
और िोई प्राणी पार्ि होने िी क्षमता नही ूं रखता, कवकक्षप्त नही ूं हो सिता, क्ोूंकि वह अपने स्वभाव में ही जीता
है । स्वभाव में सु ख है , स्वभाव िे प्रकतिूि जाने में दु ख है ।

िेकिन और िोई प्राणी जा ही नही ूं सिता। स्वभाव में जीना उसिा चुनाव नही ूं है । स्वभाव में जीना
उसिी मजिूरी है । इसकिए र् रवपूणग नही ूं है वह िात। मनुष्य स्वभाव िे प्रकतिूि जा सिता है । यह र् रवपूणग
है । िेकिन यह जरूरी नही ूं है कि इससे स भाग्य आए, इससे दु भाग ग्य आ सिता है । अर्र वह प्रकतिूि जाएर्ा तो
दु ख उठाएर्ा।

सख + स्वतां त्रता = आनांद:


यही ूं एि िात और समझ िे नी जरूरी है स्वभाव में रहने िी अर्र मजिूरी हो तो सु ख तो होता
है , िेकिन आनूंद िभी नही ूं होता। मनु ष्य िे जीवन में एि नया सू त्र खु िता है आनूंद िा। आनूं द िा मतिि यह
है : स्वभाव िे प्रकतिूि जा सिता था और नही ूं र्या। जाता तो दु ख उठाता; अर्र जा ही न सिता और स्वभाव
में रहता तो सु ख पाता; िेकिन जा सिता था, नही ूं र्या, ति जो सु ख उपिि होता है वह आनूंद है । सु ख िे साथ
स्वतूं त्रता जि जुड़ जाती है तो आनूं द िन जाता है । सु ख फ़ स्वतूंत्रता आनूंद िन जाता है ।

ताओ िा अथग है जैसा सारा जर्त जीता है मजिूरी में , वैसे हम अपनी स्वतूं त्रता में जीएूं । स्वतूं त्रतापूवगि
हम अपने स्वभाव में जीएूं , तो ताओ उपिि हो जाता है । तो ताओ िे किए या तो धमग शब्द िहुत अदभुत है ।
िेकिन धमग चूकि हमारे िीच िहुत कपट र्या, इसकिए हमारे खयाि में नही ूं पड़ता। और धमग िे हमने िड़े र्ित
उपयोर् किए, इसकिए भी िही ूं कहूं दू और मुसिमान िो धमग िना कदया इससे भी िकठनाई हो र्ई। नही ूं तो एि
दू सरा वैकदि शब्द है : ऋत। ऋत िा अथग होता है कद िी। कनयम। तो ताओ िा भी मतिि ऋत है जो कनयम है ।

िेकिन कनयम दो तरह से हो सिता है , जैसा मैंने िहा। मजिूरी! ति किर प्रिृकत रह जाती है । जहाूं सि
सु खद है, िेकिन जहाूं चुनाव नही ूं है । और कनयम िो तोडि् ने िी सूं भावना मनुष्य िे साथ शु रू होती है । यानी
मनुष्य जो है वह प्रिृकत िो पार िर र्या और परमात्मा में प्रकवष्ट नही ूं हुआ ऐसा प्राणी है । वह द्वार पर खड़ा है
परमात्मा िे, चाहे तो प्रवेश िरे , चाहे तो ि ट जाए। इस पर िोई मजिूरी नही ूं है । ि टने से जो दु ख होर्ा वह
झेिना पड़े र्ा। प्रवेश से जो आनूंद होर्ा वह कमिे र्ा। चुनावपूवगि ,स्वतूंत्रतापूवगि जो व्यक्तक्त स्वभाव में जीने िो
राजी हो जाता है , वह ताओ िो उपिि होता है ।

प्रकृजत में न कछ शभ है , न कछ अशभ:

इसकिए अि ताओ में और भी िुछ िातें इस आधार पर समझनी जरूरी हैं । जैसे स्वभाव में िुछ अच्छा
और िुरा नही ूं होता। जो होता है होता है । हम यह नही ूं िह सिते कि पानी नीचे िी तरि िहता है तो पाप
िरता है । हम ऐसा नही ूं िह सिते । पानी नीचे िी तरि िहता ही है , उसिा स्वभाव है । इसमें पाप—पुण्य िुछ
भी नही ूं है । अच्छा—िुरा भी िुछ नही ूं है । आर् जिाती है तो हम यह नही ूं िह सिते कि आर् िहुत पाप िरती
है । जिने से िोई कितना ही दु ख पाता हो, िेकिन आर् िी तरि से िोई पाप नही ूं है , यह उसिा स्वभाव है ।
यह उसिी मजिूरी है । वह आर् है इसकिए जिाती है । इसमें िोई....... आर् होना और जिाना, एि ही चीज िो
िहने िे दो ढूं र् हैं । इसकिए प्रिृकत में िोई पाप—पुण्य नही ूं हैं ।

आदमी थोपने िी िोकशश िरता है । जैसे कि हम शे र िो पापी समझते हैं, क्ोूंकि वह र्ाय िो खा
जाता है । इसकिए पुण्यात्मा िोर् ऐसी तस्वीरें िनाते हैं कि र्ाय और शे र एि ही साथ पानी पी रहे हैं । इसमें र्ाय
िे साथ तो िहुत भिा हो र्या,िेकिन शे र िा क्ा होर्ा? इन पुण्यात्माओूं ने भी िभी र्ाय िो और घास िो एि
साथ खड़े नही ूं िताया। नही ूं तो र्ाय िे साथ भी वही हो जाएर्ा जो शे र िे साथ हो रहा है । क्ोूंकि घास भी तो
मरा जा रहा है र्ाय िे हाथ में। र्ाय मजे से घास चर रही है और शे र िो र्ाय िे िर्ि में किठा कदया और वह
र्ाय िो नही ूं चर रहा है ।

हम अपनी धारणाएूं थोपते हैं । प्रिृकत में न िुछ शु भ है , न िुछ अशु भ है । िोई अच्छे और िुरे िी िात
प्रिृकत में नही ूं है ,क्ोूंकि वहाूं कविल्प नही ूं है , वहाूं चुनाव ही नही ूं है । ऐसा शे र िोई जानिर र्ाय िो नही ूं खाता
और र्ाय िोई जानिर घास िो नही ूं खाती। किसी िा किसी िो दु ख पहुूं चाने िा िोई इरादा नही ूं है । िस ऐसा
होता है ।
आदमी के साथ अनांत सां भािनाएां :

आदमी िे साथ पहिी दिा सवाि उठता है —क्ा अच्छा और क्ा िुरा। क्ोूंकि आदमी चुन सिता
है । ऐसा िुछ भी नही ूं है आदमी िे साथ जो होता ही है । िुछ भी हो सिता है , अनूंत सूं भावनाएूं हैं । आदमी र्ाय
भी खा सिता है , घास भी खा सिता है । र्ाय िो भी छोड़ सिता है , घास िो भी छोड़ सिता है । किना खाए
उपवासा भी मर सिता है । आदमी िे साथ अनूं त सूं भावनाएूं खु ि जाती हैं । इसकिए सवाि उठता है कि क्ा
ठीि है और क्ा र्ित है ।

िहानी है कि िनफ्यू कशयस िाओत्से िे पास र्या। और िाओत्से से उसने िहा कि िोर्ोूं िो िताना
पड़े र्ा क्ा ठीि है ,क्ा र्ित है । तो िाओत्से ने िहा कि यह तभी िताना पड़ता है जि ठीि खो जाता है । जि
ठीि खो जाता है तभी िताना पड़ता है कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है । जि ठीि खो जाता है , तभी िताना
पड़ता है कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है । तो िनफ्यू कशयस ने िहा, िोर्ोूं िो धमग तो समझाना ही पड़े र्ा। तो
िाओत्से ने िहा, तभी समझाना पड़ता है जि धमग िा िुछ पता नही ूं चिता कि क्ा धमग है । जि धमग खो जाता
है ।

आदमी िे साथ खो ही र्या है । उसिे पास िोई साि सू त्र जन्म िे साथ नही ूं हैं कजन पर वह चिे। उसे
अपने चिने िे सू त्र भी खोजने पड़ते हैं —जीने िे साथ ही साथ।

इससे स्वतूंत्रता तो िहुत है , िेकिन स्वभाव िे प्रकतिूि चिे जाने िी भी सूं भावना उतनी ही है । तो हम ऐसा भी
िर सिते हैं जो िरना हमें दु ख में िे जाए। और ऐसा हम रोज िर रहे हैं ।

ताओ िा मतिि है कि किर उस जर्ह खड़े हो जाना, उस किूंदु पर, जहाूं से चीजें साि कदखाई पड़नी
शु रू हो जाती हैं । जहाूं हमें तय नही ूं िरना पड़ता कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है , िक्तम्ऻ जहाूं से हमें कदखाई
ही पड़ता है कि यह ठीि है और वह र्ित है । जहाूं हमें कवचार नही ूं िरना पड़ता, िक्तम्ऻ कदखाई पड़ता है ।

ताओ की साधना—जनजिओचार दृजि:

तो पहिी तो मैंने ताओ िी पररभाषा िी कि ताओ िा मतिि क्ा है । अि दू सरी िात मैं िह रहा हूं
कि ताओ िी साधना क्ा है । ताओ िी साधना, यह ऐसे किूं दु पर खड़े हो जाने िा उपाय है जहाूं से हमें कदखाई
पड़े कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है । जहाूं हमें सोचना न पड़े कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है ।

क्ोूंकि सोचेर्ा ि न? सोचूूंर्ा मैं। और अर्र मैं सोच ही सिता, ति तो िहना ही क्ा था। मुझे पता
नही ूं है इसकिए तो मैं सोच रहा हूं । और जो मुझे पता नही ूं है उसे मैं सोचिर पता िर्ा नही ूं सिता हूं । यानी सोच
हम उसी िो सिते हैं जो हम जानते ही होूं। अनजान िो, अननोन िो हम सोच नही ूं सिते ।

इतना तो साि है कि मुझे पता नही ूं कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है । क्ा स्वभाव है , क्ा कवभाव
है , मुझे िुछ पता नही ूं। अि हम िहते हैं हम सोचेंर्े। जहाूं से सोचना शु रू होता है वहाूं से कििॉसिी शु रू
होती है । और इसकिए िहूं र्ा कि ताओ िी िोई कििॉसिी नही ूं है । ताओ िोई कििॉसिी नही ूं है । जहाूं से
सोचना शु रू होता है कि क्ा ठीि है और क्ा र्ित है ; क्ा िरें , क्ा न िरें , क्ा िरना पुण्य है , क्ा िरना
पाप है , क्ा िरें र्े तो सु ख होर्ा, क्ा िरें र्े तो दु ख होर्ा—जहाूं यह सोचना है वहाूं कििॉसिी है । न, ताओ
किििुि एूं टी—कििॉसिी है । वह किििुि अदशग न है । ताओ यह िह रहा है , सोचिर तु म पाओर्े िैसे ? अर्र
तु म्हें पता ही होता तो तु म सोचते ही न। और अर्र तु म्हें पता नही ूं है तो तु म सोचोर्े िैसे ? सोचिर तु म वही
जुर्ािी िर िोर्े जो तु म जानते हो। सोचने से नया िभी उपिि नही ूं होता। न िभी उपिि हुआ है , न हो
सिता है । सोचने से कसिग पुराने िे नये सूं योर् िनते हैं । िभी िोई नया उपिि नही ूं होता।

चाहे कवज्ञान िी िोई नई प्रतीकत हो, चाहे धमग िी िोई नई अनुभूकत हो, सि सोचने िे िाहर घटती
है , सोचने िे भीतर नही ूं घटती। कवतान िी भी नही ूं घटती। जि भी िुछ नया आता है , वह ति आता है जि आप
सोचने िे िाहर होते हैं । भिा यह हो सिता है कि आप सोच—सोचिर थििर िाहर हो र्ए होूं। यह हो
सिता है कि एि आदमी अपनी प्रयोर्शािा में सोच— सोचिर थि र्या है कदन भर। और कदन भर सि तरह
िे प्रयोर् किए हैं और िोई िि नही ूं पाया। थि र्या, थि र्या, थि र्या। वह रात सो र्या है । और अचानि
उसे सपने में खयाि आ र्या या सु िह उठा है और उसे खयाि आया। तो वह यही िहे र्ा कि मैंने जो सोचा था
उससे ही यह आया।

यह उससे नही ूं आया। यह तो जि सोचना थि र्या, ठहर र्या, ति वह ताओ में पहुूं च र्या। जि िोई
सोचने से छूट जाता है , तत्काि स्वभाव में आ जाता है । क्ोूंकि और िही ूं जाने िा उपाय नही ूं है । कवचार एिमात्र
व्यवस्था है कजसमें हम स्वभाव िे िाहर चिे जाते हैं ।

जैसे मैं इस िमरे में सोऊ और रात सपना दे खूूं तो मैं इस िमरे िे िाहर जा सिता हूं सपने में। िेकिन
सपना टू ट जाए तो मैं इसी िमरे में खड़ा हो जाऊूं। किर मैं यह नही ूं पूछूूंर्ा कि मैं इस िमरे में आया
िैसे ? क्ोूंकि मैं तो सपने में िाहर चिा र्या था! ति मैं तत्काि जानूूं र्ा कि सपने में िाहर र्या था अथाग त मैं
िाहर र्या नही ूं था कसिग खयाि था मुझे कि मैं िाहर र्या हूं । था मैं यही,ूं जि मैं िाहर र्या था ऐसा दे ख रहा था
ति भी मैं यही ूं था।

तो ताओ यह िहता है कि तु म कितना ही सोच रहे हो कि यहाूं चिे र्ए, वहाूं चिे र्ए, तु म ताओ से जा
नही ूं सिते । रहोर्े तो तु म वही,ूं क्ोूंकि स्वभाव िे िाहर जाओर्े िैसे ? स्वभाव िा मतिि ही यह है कि कजसिे
िाहर न जा सिोर्े। जो तु म्हारा होना है , जो तु म्हारी िीइूं र् है , उससे िाहर जाओर्े िैसे ? िेकिन सोच सिते हो
िाहर जाने िी िात।

इसकिए यह दू सरी िात खयाि में िे िेने जैसी है कि मनुष्य िी जो स्वतूं त्रता है वह भी सोचने िी
स्वतूं त्रता है । सोचने में वह िाहर चिा र्या है । कवचार में वह भटि रहा है । अर्र सारा कवचार ठहर जाए तो वह
ताओ पर खड़ा हो जाएर्ा। कजसिो हम ध्यान िहते हैं , या कजसिो जापान में वे झे न िहते हैं , उसिो िाओत्से
ताओ िहता है । उस जर्ह खड़े हो जाना है जहाूं िोई कवचार नही ूं है । वहाूं से तु म्हें वह कदखाई पड़े र्ा जो है ।
जैसा होना चाकहए, जैसा होना सु ख दे र्ा, आनूंद दे र्ा, वह कदखाई पड़े र्ा। और यह अि चुनना नही ूं पड़े र्ा कि
इसिो मैं िरू
ूं । िस यह होना शु रू हो जाएर्ा।

तो ताओ िी क्तस्थकत िो जहाूं कि पशु है ही, जहाूं प धे हैं ही, जहाूं हम भी हैं , िेकिन हम कवचार में भटि
र्ए हैं । और ताओ हमारी वास्तकवि क्तस्थकत िा हमें पता नही,ूं और सि िुछ हमें पता होता है ।

जिचार है स्वभाि के बाहर छिाां ग:


तो ताओ िी जो म किि प्रकक्रया है साधना, वह तो ध्यान ही है । वहाूं आ जाना है जहाूं िोई सोच—
कवचार नही ूं है । और िाओत्से िहता है , तु मने सोचा, रिी भर कवचार, और स्वर्ग और नरि अिर्, इतना िड़ा
िासिा हो जाएर्ा।

िाओत्से िे पास िोई आया है और उससे िुछ पूछता है और िाओत्से उसे जवाि दे ता है । और जि
वह जवाि दे ता है तो वह आदमी सोचने िर्ता है । अि िाओत्से िहता है कि िस, िस! सोचना मत। क्ोूंकि
सोचा, कि जो मैंने िहा उसे तु म िभी न समझ पाओर्े। सोचना ही मत। जो मैंने िहा उसे सु नो। सोचो मत।
अर्र सु न सिे तो िात हो जाएर्ी और अर्र सोचे तो र्ए। सोचना ही था तो मुझसे पूछा क्ोूं? तु म्ही ूं सोच िेते!
तु म सोच ही िेते, ि न तु म्हें मना िरता है !

सोचते ही हम तत्काि स्वभाव िे िाहर हो जाते हैं । तो कवचार जो है वह स्वभाव िे िाहर छिाूं र् है —
िेकिन कवचार में ही! इसकिए मूित: हम िही ूं नही ूं र्ए होते , र्ए हुए मािूम पड़ते हैं ।

तो ताओ िी साधना िा अथग हुआ सोच—कवचार छोडि् िर खड़े हो जाना। जहाूं िोई कवचार न हो, कसिग
चेतना रह जाए,कसिग होश रह जाए। तो वहाूं से जो ठीि है वह न िेवि कदखाई पड़े र्ा िक्तम्ऻ होना शु रू हो
जाएर्ा।

इसकिए ताओ िो जीनेवािा आदमी न नैकति होता, न अनै कति होता; न पापी होता, न पुण्यात्मा होता।
क्ोूंकि वह िहता है कि जो हो सिता है वही हो रहा है । मैं िुछ िरता नही ूं।

एि ताओ ििीर से िोई जािर पूछता है कि आपिी साधना क्ा है ? तो वह िहता है , जि मेरी नीद
ूं
टू टती है ति मैं उठ जाता हूं ; और जि नी ूंद आ जाती है तो मैं सो जाता हूं ; और जि भूख िर्ती है तो खाना खा
िेता हूं ।

तो वह िहता है , यह तो हम सभी िरते हैं ।

तो वह िहता है , यह तु म सि नही ूं िरते । जि नी ूंद आई ति तु म िि सोए? तु मने और हजार िाम


किए। और जि नी ूंद नही ूं आ रही थी ति तु मने नीद
ूं िाने िी िोकशश भी िी। और तु म िि उठे जि नी ूंद टू टी
हो? तु मने सदा नी ूंद तोड़िर तु म उठ आए हो। या नी ूंद टू ट र्ई है और तु म नही ूं उठे हो। तु मने िि खाना खाया
जि भूख िर्ी हो?

एि एस्कीमो साइिे ररया िा पहिी दिा इूं ्ैंड आया। तो वह िहुत है रान हुआ। और सिसे िड़ी
है रानी उसे यह हुई कि िोर् घड़ी दे खिर िैसे सो जाते हैं ! और िोर् घड़ी दे खिर खाना िैसे खा िेते हैं ! और
कजस घर में वह मेहमान था वह इतना परे शान हुआ कि सारे िोर् एि साथ खाना िैसे खा िेते हैं घर भर िे!
क्ोूंकि उसने िहा यह हो ही नही ूं सिता कि सििो एि साथ भूख िर्ती हो। क्ोूंकि हमें तो....... जि हमारे
यहाूं कजसिो भूख िर्ती है वह खाता है । किसी िो िभी िर्ती है , किसी िो िभी िर्ती है , किसी िो िभी
िर्ती है । यह िड़ा कमरे िि है कि घर भर िे िोर् एि साथ टे िि पर िैठिर खाना खाते हैं ! क्ोूंकि सििो
एि साथ भूख िर्ना िड़ी असूं भव घटना है । और िोर् िहते हैं कि िारह िज र्ए और सो जाते हैं । उसने िहा
कि.. .उसिी यह किििुि समझ िे िाहर पड़ा उसे । स्वाभाकवि, क्ोूंकि साइिे ररया से आनेवािा आदमी अभी
भी ताओ िे ज्यादा िरीि है । अभी भी जि भूख िर्ती है ति खाता है , जि नही ूं िर्ती तो नही ूं खाता है । जि
नी ूंद आती है तो सोता है , जि नी ूंद टू टती है तो उठता है ।

ब्रह्ममुहतग में उठना चाकहए, ऐसा ताओ नही ूं िहे र्ा। ताओ िहे र्ा कि जि तु म उठ जाते हो वही
ब्रह्ममुहतग है । ऐसा नही ूं िहे र्ा ताओ......। वह ििीर ठीि िह रहा है कि जो होता है हम वह होने दे ते हैं । हम
िुछ भी नही ूं िरते , जो होता है हम होने दे ते हैं । तो मनुष्य एििारर्ी किर से अर्र प्रिृकत िी तरह जीने िर्े तो
ताओ िो उपिि होता है । जि उसे जो होता है होने दे ता है । और यह िहुत र्हरे ति ति! यह खाने और पीने
िी िात ही नही ूं है । अर्र उसे क्रोध आता है तो वह क्रोध िो भी आने दे ता है । अर्र उसे िाम उठता है तो वह
िाम िो भी उठने दे ता है । क्ोूंकि वह िहता है , मैं ि न हूं जो िीच में आऊूं?असि में जो होता है, ताओ िहता
है , उसे होने दे ना है । तु म ि न हो जो तु म िीच में आते हो? हर चीज पर तु म ि न हो जो िीच में आते हो?

ताओ की अांजतम घटना—साक्षी:

और अर्र िोई व्यक्तक्त सि होने दे जो होता है , तो साक्षी ही रह जाएर्ा, और तो िुछ िचेर्ा नही ूं उसिे
भीतर। दे खेर्ा कि क्रोध आया। दे खेर्ा कि भूख आई। दे खेर्ा कि नी ूंद आई। वह साक्षी हो जाएर्ा। तो ताओ िी
जो र्हरी से र्हरी पिड़ है वह साक्षी में है । वह साक्षी रह जाएर्ा। वह दे खता रहे र्ा, दे खता रहे र्ा, एि कदन वह
यह भी दे खेर्ा कि म त आई और दे खता रहे र्ा। क्ोूंकि कजसने सि दे खा हो जीवन, वह किर म त िो भी दे ख
पाता है । क्ोूंकि हम जीवन िो ही नही ूं दे ख पाते , हम सदा िीच में आ जाते हैं , तो म त िे वक्त भी हम िीच में
आ जाते हैं और नही ूं दे ख पाते कि क्ा हो रहा है ।

वह म त िो भी दे खेर्ा। कजसने नी ूंद िो आते दे खा और जाते दे खा, कजसने िीमारी िो आते दे खा और


जाते दे खा, क्रोध िो आते दे खा जाते दे खा, वह एि कदन म त िो भी आते दे खेर्ा। वह जन्म िो भी आते दे खेर्ा।
वह सि िा दे खने वािा हो जाएर्ा। और कजस कदन हम सििे दे खनेवािे हो जाते हैं उसी क्षण हम पर िोई भी
िमग िा िोई िूंधन नही ूं रह जाता। क्ोूंकि िमग िा सारा िूंधन हमारे िताग होने में है कि मैं िर रहा हूं । चाहे
क्रोध िर रहे होूं और चाहे ब्रह्मचयग साध रहे होूं, िेकिन मैं िरनेवािा हूं म जूद है । चाहे पूजा िर रहे होूं और
चाहे भोजन िर रहे होूं, मैं िरनेवािा म जूद है ।

तो ताओ िी जो अूं कतम घटना है उसमें मैं तो खो जाएर्ा, िताग खो जाएर्ा, साक्षी रह जाएर्ा। अि जो
होता है होता है । अि इसमें िुछ भी िरनेवािा नही ूं है । डु अर जो है वह अि नही ूं है । तो ऐसी जो चेतना िी
अवस्था है —जहाूं न िोई शु भ है , न िोई अशु भ है ; न अच्छा है , न िुरा है ; जहाूं कसिग स्वभाव है ; और स्वभाव िे
साथ पूरे भाव से रहने िा राजीपन है ; जहाूं िोई सूं घषग नही,ूं िोई झर्ड़ा नही;ूं ऐसा हो, वैसा हो, ऐसा िोई
कविल्प नही;ूं जो होता है उसे होने दे ने िी तै यारी है —तो कवस्फोट,एक्सप्लोज़न कजसिो मैं िहता हूं वह तत्काि
घकटत हो जाएर्ा।

ताओ में समस्त अध्यात्म समाजहत है :

और इसकिए ताओ जैसे छोटे शब्द में सि आ र्या है । सि जो भी श्रे ष्ठतम है साधना में। और जो भी
महानतम है मनुष्य िी अध्यात्म िी खोज में। ध्यान में , समाकध में जो भी पाया र्या है , वह सि इस छोटे से शब्द
में सि समाया हुआ है । यह शब्द िहुत िीमती है । और इसीकिए अनटर ाूं सिेटेिि है । इसकिए ताओ िा अनुवाद
नही ूं हो सिता। धमग से हो सिता था। िे किन धमग कविृत हुआ, उसिे एसोकसएशस र्ित हो र्ए। ऋत से हो
सिता था। िेकिन वह अव्यवहत है , उसिा िभी प्रयोर् नही ूं हुआ। व्यापि मन ति र्या नही ूं। िेकिन अथग
वही है । अथग वही है । मूि स्वभाव में जीने िी सामर्थ्ग सिसे िड़ी सामर्थ्ग है । क्ोूंकि ति न कनूंदा िा उपाय है , न
प्रशूं सा िा उपाय है । ति िोई उपाय ही नही ूं है ।
िाओत्से ने कछ भी होना बांद कर जदया है :

िाओत्से एि नदी िे किनारे िैठा हुआ है । सम्राट ने किसी िो भेजा है कि िाओत्से िो खोज िाओ!
सु नते हैं िहुत िु क्तद्धमान आदमी है । तो हम उसे अपना वजीर िना िें। वह आदमी र्या है । िामुक्ति ि तो
िाओत्से िो खोज पाया। क्ोूंकि जहाूं —जहाूं िोर्ोूं से पूछा, उन्ोूंने िहा कि िाओत्से िो खु द ही पता नही ूं होता
कि िहाूं जा रहा है । जहाूं पैर िे जाते हैं चिा जाता है । तो पहिे से तो वह खु द भी नही ूं िता सिता कि िहाूं
जाएर्ा। इसकिए िताना मुक्तिि है । िेकिन किर भी खोजो, िही ूं न िही ूं होर्ा। क्ोूंकि सु िह यहाूं कदखाई पड़ा
है । इस र्ाूं व में वह था। िही ूं िहुत दू र नही ूं कनिि र्या होर्ा। दू र इसकिए भी नही ूं कनिि र्या होर्ा, क्ोूंकि
ते जी से वह चिता ही नही ूं है । क्ोूंकि जाना ही नही ूं है िही ,ूं पहुूं चना ही नही ूं है िही ूं। तो िही ूं दू र नही ूं र्या
होर्ा, कमिेर्ा आसपास।

खोजा है तो वह नदी िे किनारे िैठा हुआ है । तो उन्ोूंने जािर उसिो िहा कि कमि र्ए, हम िडी
मुक्तिि र्ाूं व—र्ाूं व खोजते किर रहे हैं । सम्राट ने िुिाया है । िहा है कि वजीर िा पद िाओत्से सम्हाि िे। तो
िाओत्से चुपचाप िैठा रहा। किर उसने िहा, दे खते हो उस िछु ए िो! एि िछु आ वहाूं िीचड़ में मजा िर
रहा है । उन्ोूंने िहा, दे खते हैं । तो िाओत्से ने िहा,हमने सु ना है कि तु म्हारे सम्राट िे घर एि सोने िा िछु आ
है । उसिी पूजा होती है । िभी िोई िछु आ िई पीकढ़योूं पहिे किसी िारणवश उस पररवार में पूज्य हो र्या
था। उस पर सोने िी खोि चढ़ािर उसिो िड़े उससे रखा र्या है । क्ा यह सच है ? तो उन्ोूंने िहा, यह सच
है । सोने िी खोि मढ़ा हुआ वह िछु आ परम आदरणीय है । सम्राट स्वयूं उसिे सामने कसर झुिाते हैं । तो
िाओत्से ने िहा, िस मैं यह तु मसे पूछता हूं — अर्र तु म इस िछु ए से िहो कि हम तु झे सोने से मढ़िर और
सुूं दर िहुमूल्य पेटी में िूं द िरिे पूजा िरें र्े , तो यह िछु आ सोने से मढ़ा जाना पसूं द िरे र्ा कि यही ूं िीचड़ में
िोटना पसूं द िरे र्ा? उन्ोूंने िहा, िछु आ तो िीचड में िोटना ही पसूं द िरे र्ा। तो िाओत्से ने िहा, हम भी
पसूं द िरें र्े। नमस्कार! तु म जाओ। जि िछु आ ति इतना िुक्तद्धमान है , तो तु म िाओत्से िो ज्यादा िुक्तद्धहीन
समझे हो िछु ए से ! तु म जाओ। तु म्हारा वजीर होना हमारे िाम िा नही ूं है । असि में , िाओत्से ने िुछ भी होना
िूंद िर कदया अि। िाओत्से जो है वह है ।

यह जो आदमी है , यह साधारणत: कजनिो हम साधि िहते हैं , वैसा आदमी नही ूं है । हम कजसे साधि
िहते हैं वह आमत र से , हम कजसे साधारण आदमी िहते हैं , उससे कवपरीत होता है । अर्र यह आदमी दु िान
िरता है तो वह आदमी दु िान नही ूं िरता। अर्र यह आदमी धन िमाता है तो वह आदमी धन छोड़ दे ता है ।
अर्र यह आदमी कववाह िरता है तो वह आदमी कववाह नही ूं िरता। िेकिन उसिे िरने िा कजतना भी कनयम
है वह इसी र्ृहस्थ से कमिता है । वह कसिग इसिा ररएक्शन होता है ।

िाओत्से िहता है कि हम किसी िे ररएक्शन नही ूं हैं , हम किसी िी प्रकतकक्रया नही ूं हैं । ि न क्ा िरता
है , इससे प्रयोजन नही ूं है । न हम किसी िे पीछे जाते कि वैसा िरें जैसा वह िरता है , न हम किसी िे प्रकतिूि
जाते हैं कि वैसा िरें जैसा वह नही ूं िरता है । हम तो वही होने दे ते हैं जो हमारे भीतर से होता है ।

स्वभाव िो होने दे ने िा मतिि यह है कि हम किसी िा अनु िरण न िरें , किसी िी निि न


िरें , किसी िे कवरोध में आयोजन न िरें अपने व्यक्तक्तत्व िा। जो हो सिता है भीतर से , जो होना चाहता है , वह
हम होने दें । उस पर िही ूं िोई रुिावट न हो, िोई कनूंदा न हो, िोई कवरोध न हो, िोई सूं घषग न हो, िोई द्वूं द्व न
हो, जो होता है उसे होने दें । ति उसिा मतिि यह कि िुरे —भिे िा खयाि तत्काि छोड़ दे ना पड़े र्ा। क्ोूंक ि
िुरा—भिा ही हमें कनूंदा िरवाता है , रुिवाता है —यह िरो और यह मत िरो। यह सारे िुरे— भिे िा, शु भ—
अशु भ िा खयाि छोडि् िर और उस किूंदु पर हमें खड़े होिर दे खना पड़े कि जीवन अि िहाूं जाए, कजस किूंदु
पर िोई कवचार नही ूं है ।
सोच—जिचार से श्वास में िकओ:

अर्र आपिे मक्तस्तष्क से सोचने िी सारी शक्तक्त छीन िी जाए, किर भी आप श्वास िोर्े। अभी भी श्वास
िे रहे हो। िेकिन श्वास ति िे िे ने में ििग पड़ जाएर्ा। रात िो आप दू सरी तरह से श्वास िेते हो कदन िी
िजाय। श्वास पर हम आमत र से िोई खयाि नही ूं कदए हैं । िे किन किर भी हमारी कवचार िी प्रकक्रया श्वास पर
िोई तरह िी िाधा डािती रहती है । रात में हम दू सरी तरह िी श्वास िेते हैं । अर्र िोई िीमार रात सोना िूं द
िर दे तो उसिी िीमारी ठीि होना मुक्तिि हो जाती है ; क्ोूंकि जार्ते में िीमारी िा खयाि िीमारी िो िढ़ावा
दे ने िर्ता है । तो पहिे जरूरी होता है कि िोई िीमार हो तो पहिे उसिो नी ूंद आए। इिाज नूं िर दो िाद
है , पहिे तो नीद
ूं आए। क्ोूंकि नी ूंद में वह िीमारी िा खयाि छोड़ पाए और उसिा स्वभाव जो िर सिता है
वह िर सिे। यह आदमी िाधा न दे ।

ताओ का सौांदयओ :

इसकिए िच्चे हमें इतने प्रीकतिर िर्ते हैं । िहुत मजे िी िात है ! आमत र से िुरूप िच्चा खोजना िहुत
मुक्तिि है । सभी िच्चे सुूं दर होते हैं असि में , िच्चा िुरूप होता ही नही ूं। यानी िभी खयाि में नही ूं आया होर्ा
किसी िच्चे िो दे खिर कि यह िुरूप है । िेकिन यही िच्चे िड़े होिर इनमें िहुत से िोर् िुरूप हो जाते हैं
अकधि िोर् िुरूप हो जाते हैं , सुूं दर आदमी खोजना मुक्तिि हो जाता है । िात क्ा हो जाती है ? यह िच्चे िा
सद
ूं यग िहाूं से आता है ?

ताओ से । वह वैसा ही जी रहा है जैसा है । यानी िड़े से िड़ी जो िुरूपता है , िड़े से िड़ी अ्ीनेस जो है
वह सुूं दर होने िी चेष्टा से पैदा होती है । वह सुूं दर होने िी चेष्टा से पै दा होती है । ति जो हम हैं वह नही ूं रह जाता
महत्वपूणग। जो हम कदखना चाकहए उसिो हम थोपना शु रू िर दे ते हैं । इसकिए क्तस्त्रयाूं मु क्तिि से ही सुूं दर हो
पाती हैं । सुूं दर होने िा जो अकत कवचार है वह िहुत र्हरी और कछपी िुरूपताएूं भीतर भरता है । इसकिए िहुत
िम क्तस्त्रयाूं हैं कजनमें िोई र्हराई होती है स द
ूं यग िी। इसकिए एि या दो कदन िे िाद अर्र एि स्त्री आपिे
साथ रह जाए, कितनी ही सुूं दर हो, दो कदन िे िाद उसिा स द
ूं यग कदखाई पड़ना िूं द हो जाता है । क्ोूंकि िहुत
सिेंस पर था, िहुत ऊपर था, र्या। वह र्हरे कदखाई नही ूं पड़ता।

िच्चे सभी सुूं दर मािूम होते हैं , क्ोूंकि वे जैसे हैं वै से हैं । िुरूप हैं तो िुरूप होने िो भी राजी हैं , उसमें
भी िोई िाधा नही ूं है । और ति एि और तरह िा स द
ूं यग उनमें प्रिट होता है कजसिो ताओ िा स द
ूं यग िहें र्े।

ताओ की अपनी एक बब्धिमत्ता है :

इसी तरह जीवन िे सारे पहिुओूं पर। एि िहुत िुक्तद्धमान आदमी है । वह सि प्रश्नोूं िे उिर जानता
है । िेकिन जरूर ऐसे प्रश्न होूंर्े कजनिे उिर उसिो पता नही ूं हैं । जि ति उसिे जाने हुए प्रश्न आप पूछते हैं
ति ति वह उिर दे ता है । और एि प्रश्न आप ऐसा खड़ा िर दें जो उसे पता नही ,ूं वह तत्काि अज्ञानी हो जाता
है । क्ोूंकि जो िुक्तद्धमिा थी वह साधी र्ई थी। वह साधी र्ई िुक्तद्धमिा थी। इसकिए िुक्तद्धमान आदमी नये प्रश्नोूं
िो स्वीिार नही ूं िरना चाहता, नये सवाि नही ूं उठाना चाहता। वह िहता है , पुराने सवाि ठीि हैं । इसकिए
वह िहता है , पुराने जवाि ठीि हैं । क्ोूंकि पुराने जवाि तभी ति ठीि हैं जि ति कि नया सवाि नही ूं उठता।
नया सवाि उठता है तो िुक्तद्धमान आदमी र्या।

नही ूं िेकिन, ताओ िे पास िोई जवाि नही ूं है । इसकिए ताओ िी िुक्तद्धमिा कजसिो उपिि हो
जाए, उसिे किए िोई सवाि न नया है , न िोई पुराना है । इधर सवाि खड़ा होता है , इधर वह उस सवाि से
जूझ जाता है । उसिे पास िुछ रे डीमे ड नही ूं है । उसिे पास िुछ तै यार नही ूं है ।

िनफ्यू कशयस जि िाओत्से से कमिा है .. तो िनफ्यूकशयस िहुत से िोर्ोूं से कमिने र्या था। और जि
ि टिर उसिे कमत्रोूं ने पूछा कि क्ा हुआ? तो उसने िहा, आदमी िी जर्ह तु मने मुझे अजर्र िे पास भेज
कदया। वह आदमी ही नही ूं है , वह तो खा जाएर्ा। मेरी सारी िुक्तद्धमिा चिनाचूर हो र्ई। िक्तम्ऻ उस आदमी िे
सामने मुझे पता चिा कि मेरी िु क्तद्धमिा एि तरह िी िकनर्नेस है , और िुछ भी नही,ूं कसिग एि चािािी
है , कजसमें मैंने िुछ सवािोूं िे जवाि तय िर रखे हैं कजनिे मैं जवाि दे दे ता हूं । िेकिन उस आदमी ने ऐसे
सवाि पूछे कजनिे जवाि मुझे पता ही नही ूं थे। मु झे यह भी पता नही ूं था कि यह भी सवाि है । और ति वह िहुत
हूं सने िर्ा। और अि उस आदमी िे सामने मैं दु िारा न जा सिूूंर्ा। क्ोूंकि उस आदमी िे पास मेरी सारी
िुक्तद्धमिा चािािी से ज्यादा साकित नही ूं हुई जो मैं ने तै यार िर रखी थी।

ताओ िी अपनी एि िुक्तद्धमिा है । कजस िुक्तद्धमिा में िुछ तै यार नही ूं है । चीजें आती हैं और स्वीिार
िर िी जाती हैं । पर जो भी होता है उसे होने कदया जाता है ।

ताओ का व्यिहार तय करना कजठन है :

इसकिए िहुत, ताओ िा व्यवहार तय िरना िहुत िकठन है । हो सिता है कि आप किसी ताओ में
क्तस्थर आदमी से िोई सवाि पूछें और वह जवाि न दे िर आपिो चाूं टा मार दे । क्ोूंकि वह यह िहे र्ा, यही
हुआ! वह यह नही ूं िहता कि आप न मारें , आप जवाि में मार सिते हैं और जो िरना हो िर सिते हैं । िेकिन
वह यह िहे र्ा, जो हो सिता था वह हुआ। और अर्र उसिे चाूं टे िो समझा जाए तो शायद आपिे किए वही
जवाि था।

सभी प्रश्न ऐसे नही ूं कि उनिे उिर कदए जाएूं । िहुत प्रश्न ऐसे ही हैं कजनिा चाूं टा ही अच्छा होर्ा। हमारे
खयाि में नही ूं आएर्ा एिदम से कि चाूं टा िैसे अच्छा हो सिता है ।

एि ताओ ििीर िे पास एि युवि पूछने र्या है । वह उससे पूछता है कि ईश्वर क्ा है ? धमग क्ा है ?

तो वह उसे उठािर एि चाूं टा िर्ाता है और दरवाजा िूं द िरिे िाहर िर दे ता है । तो वह िहुत


परे शान होता है । वह िड़ी दू र से िड़ी पहाड़ी चढ़िर इसिे पास आया। तो सामने ही एि दू सरे ििीर िा
झोपड़ा है , वह उसमें जाता है । और वह िहता है कि किस तरह िा आदमी है यह! तो वह डूं डा उठाता है वह
ििीर। वह िहता है , यह आप क्ा िर रहे हैं ? तो उसने िहा कि तू िहुत दयािु आदमी िे पास र्या था।
अर्र हमारे पास तू आता तो हम डूं डा ही मारते । वह आदमी सदा िा दयािु है । तू वापस वही ूं जा! उसिी िड़ी
िरुणा है । उसने इतना भी किया, यह िुछ िम नही ूं है ।
वह आदमी वापस ि टता है । वह िुछ समझ नही ूं पाता कि क्ा मामिा है । दरवाजा खटखटाता है । वह
आदमी किर भीतर िुिािर िड़े प्रेम से किठा िेता है । उससे िहता है , पूछ! वह िहता है कि अभी मैं आया था
तो आपने मुझे मारा और आप अि इतने प्रेम से किठा रहे हैं ! तो वह उससे िहता है , जो मार न सह सिे, वह
प्रेम तो सह ही न सिेर्ा। वह िहता है , जो मार न सह सिे, वह प्रेम तो सह ही न सिेर्ा। क्ोूंकि प्रेम िी मार
तो िहुत िकठन है । मर्र तू ि ट आया, तो अि आर्े िात चि सिती है । तो उसने िहा कि मैं तो डरिर भार्
भी जा सिता था, वह तो सामनेवािे िी िरुणा है । तो उसने िहा, वह िड़ा िृपािु है । वह मुझसे ज्यादा िृपािु
है । अर्र तू उसिे पास र्या होता तो वह डूं डा ही मार दे ता।

अि यह जो, यह जि िात सारी िी सारी सारे जर्त में पहुूं ची तो समझना िहुत मुक्तिि हो र्या कि
यह सारा मामिा क्ा है ! िेकिन चीजोूं िे अपने आूं तररि कनयम हैं , आूं तररि ताओ है चीजोूं िा।

अि यह जरूरी नही ूं है कि आप जि मुझसे प्रश्न पूछने आए हैं तो सच में प्रश्न ही पूछने आए होूं। यह
जरूरी नही ूं है । और यह भी जरूरी नही ूं है कि आपिो उिर िी ही जरूरत है । यह भी जरूरी नही ूं है । और यह
भी जरूरी नही ूं है कि जो आपने पूछा है वही आप पूछने आए थे। यह भी जरूरी नही ूं है । और यह भी जरूरी
नही ूं है कि जो आपने पूछा है यह आप पूछना ही चाहते हैं । यह भी जरूरी नही ूं है । क्ोूंकि आपिे पास भी िहुत
चेहरे हैं । आप िुछ पूछना तय िरिे चिते हैं , िुछ रास्ते में हो जाता है , िुछ आप आिर पूछते हैं ।

अि मेरे पास िई िोर् आते हैं कि अर्र मैं उनिा दो कमनट प्रश्न छोड़ जाऊूं, दू सरी िात िरू
ूं , किर
दु िारा वे घूंटे भर िै ठे रहें र्े, वे िभी वह नही ूं पूछेंर्े। जो आदमी एि प्रश्न पूछने आया था—मैंने उससे इतना ही
पूछा. िैसे हो? ठीि हो? अच्छे हो? किर मैंने पूछा कि िहो क्ा है ? वह र्या। तो यह प्रश्न कितना र्हरा हो
सिता है ? इसिी कितनी रूटि् स हो सिती हैं ? इस आदमी िे व्यक्तक्तत्व िो कितनी इसिी जरूरत हो सिती
है ? उसिो िोई जरूरत नही ूं है । िेकिन आया यह ऐसे ही था जैसे कि िहुत जरूरी था इसिो पूछना। जैसे
इसिे किना पूछे यह जी न सिेर्ा।

ताओ की बब्धिमत्ता—दपओण की तरह:

तो ताओ िी अपनी एि िुक्तद्धमिा है जो सीधा डायरे क्ङ एक्शन में है । िुछ िहा नही ूं जा सिता कि
ताओ में कथर आदमी क्ा िरे र्ा। हो सिता है चुप रह जाए।

िाओत्से रोज घूमने जाता है । एि कमत्र उसिे साथ जाता है । वे दो घूंटे ति घूमते हैं पहाड़ोूं पर, किर
ि ट आते हैं । किर एि मेहमान आया हुआ है । तो वह कमत्र उसे िाता है और िहता है कि हमारे मेहमान
हैं , आज ये भी चिें र्े। वे दोनोूं चु प हैं । िाओत्से चु प है , साथी चुप है , वह मेहमान भी चुप है । रास्ते में जि सू रज
ऊर्ा ति वह इतना ही िहता है मे हमान कि कितनी अच्छी सु िह है ! ति िाओत्से िहुत र्ुस्से से उस अपने कमत्र
िी तरि दे खता है जो इस मेहमान िो िे आया है । वह कमत्र भी घिड़ा जाता है , वह मेहमान तो और भी घिड़ा
जाता है कि ऐसी भी िोई मैं ने िुरी िात भी नही ूं िह दी। और घूंटा भर हो र्या चुप रहते , कसिग इतना ही िहा है
कि कितनी अच्छी सु िह है ।

किर वे ि ट आते हैं , घूंटा और िीत जाता है , दरवाजे पर िाओत्से उस कमत्र से िहता है , इस आदमी िो
दु िारा मत िाना। यह िहुत ििवासी मािूम होता है । वह मेहमान िहता है कि मैं ने िोई ििवास नही ूं िी, दो
घूंटे में कसिग इतना िहा कि कितनी अच्छी सु िह है । िाओत्से िहता है , वह हमिो भी कदखाई पड़ रही थी। वह
कनपट ििवास थी। सु िह हमिो भी कदखाई पड़ रही थी। जो िात सभी िो कदखाई पड़ रही थी, उसिो िहने
िी क्ा जरूरत है ! और जो िात नही ूं िहनी, तु म वह िह सिते हो, तु म आदमी ठीि नही ूं हो। तु म िि से मत
आना।

अि यह िात जरा सोचने जैसी है । असि में , जि आप सु िह दे खिर िहते हैं कि कितनी अच्छी सु िह
है , ति सच में आपिो सु िह से िोई मतिि नही ूं होता। आप कसिग एि चचाग शु रू िरना चाहते हैं । सु िह तो
हम सििो कदखाई पड़ रही है । सु िह सुूं दर है तो चुप रकहए। नही ,ूं कसिग आदमी खूूं टी खोजता है । तो वह जो पूरा
िाकसिेंस है , िाओत्से पूरा पिड़ िेता है । वह िहता है , यह आदमी ििवासी है । इसने शु रुआत िी थी, वह तो
हम जरा ठीि आदमी नही ूं थे , नही ूं तो यह शु रू हो र्या था। इसने टर े न तो चिा दी थी। वह तो दो आदकमयोूं ने
सहयोर् नही ूं कदया इसकिए यह िेचारा चुप रह र्या। इसने शु रुआत तो िर दी थी,इसने खूूंटी र्ाड़ दी थी, अभी
यह और सामान भी र्ाड़ता उसिे ऊपर। यह आदमी ििवासी है ।

अि यह इतनी सी िात कि सु िह सुूं दर है , एि ििवासी आदमी िे कचि िी सिूत हो सिती है । इससे


ज्यादा उसने िुछ िहा ही नही ूं। हमिो भी िर्ता है कि िाओत्से ज्यादती िर रहा है । िेकिन मुझे नही ूं िर्ता।
वह ठीि ही िह रहा है । वह आदमी पिड़ किया उसने। क्ोूंकि ताओ जो है उसिी अपनी िुक्तद्धमिा है , वह
दपगण िी तरह है । वह चीजें जैसी हैं वैसी कदख जाती हैं । उसने पिड़ िी इस आदमी िी तरिीि कि यह
आदमी घूंटे भर से िेचैन था, इसने िई तरिीिें िर्ाई होूंर्ी, िेकिन दो आदमी किििुि चुप थे , वे िुछ िोि ही
नही ूं रहे थे! इसने िहा, क्ा िरें , क्ा न िरें ! इसने िहा सु िह हो र्ई, अि इसने िहा कि सु िह िहुत सुूं दर है ।
अि इसने चाहा था कि इनमें से िोई िुछ तो िहे र्ा कि ही, सुूं दर है । अि इसमें तो िोई इनिार नही ूं िरे र्ा।
तो िात शु रू हो जाएर्ी। किर जो िात शु रू हो जाती है उसिा िोई अूंत नही ूं है । तो िाओत्से ने िहा, यह है
ििवासी,इसिो तु म िि से िाना ही मत। इसने िीज तो िो कदया था, िसि तो हमने िचाई।

तो ताओ िा एि अपना दपगण है । कजसमें चीजें िैसी कदखाई पड़े र्ी, यह सीधी चीजोूं िो दे खिर हम
नही ूं जानते । और चूूंकि उसिे पास अपना िोई िूंधा हुआ उिर नही ूं है , इसकिए िड़ी मुक्तक्त है । चूूंकि िोई
रे डीमेड िात नही ूं है , इसकिए चीजें सरि और सीधी हैं और जाि िुछ भी नही ूं है । िेकिन यह क्तस्थकत पर खड़े
होने िी सारी िात है ।

िाओत्से मेरे जनकटतम है :

तो कजसे मैं ध्यान िह रहा हूं उसे ताओ िहें तो िोई ििग नही ूं पड़ता। हाूं , ताओ से मेरे िड़े कनिट
िेन—दे न हैं । और अर्र किसी भी व्यक्तक्त िे कनिट मैं मािूम अपने िो िरता हूं तो वह िाओत्से िे। वह
शु द्धतम! उसने िभी कजूंदर्ी में किताि नही ूं किखी। कितने िोर्ोूं ने िहा कि किखें , किखें , किखें । किर आक्तखरी
उम्र में वह दे श छोडि् िर जा रहा है । और ति उसे च िी पर, चुूंर्ी च िी पर पिड़वा किया है राजा ने। और
उसने िहा कि िजग चुिा जाओ, ऐसे न जाने दू ूं र्ा। उसने िहा कि मेरे पास तो िुछ भी नही ूं है । चुूंर्ी दे ने िे
किए तो मेरे पास िुछ है ही नही ूं। टै क्स मैं किस िात िा दू ूं ! तो वह जो टै क्स ििेक्ङर है ,उसने िहा कि तु म्हारे
कसर में जो है वह हम जाने न दें र्े। उसे किख जाओ। तु म भार्े जा रहे हो, तु म्हारे पास िहुत सूं पदा है । तो उसने
एि छोटी सी किताि किखी है । यह ताओ ते ह किूंर्। और यह भी अदभुत किताि है । क्ोूंकि िम ही ऐसे िोर् हैं
जो किखते वक्त यह िहें कि जो मैं िहने जा रहा हूं वह िहा न जा सिेर्ा; और जो मैं िहूं र्ा वह सत्य हो ही
नही ूं सिता, क्ोूंकि िहते ही असत्य हो जाता है । सत्य न िहा जा सिेर्ा और जो मैं िहूं र्ा वह असत्य हो
जाएर्ा, क्ोूंकि िहते ही चीजें असत्य हो जाती हैं ।
तो इस आदमी िे पास िुछ है , और इस आदमी ने िुछ जाना है , और यह आदमी िही ूं पहुूं चा है ।

ध्यान + ताओ = झे न:

झेन िी जो पैदाइश है , झेन जो है , वह ताओ और िुद्ध, िाओत्से और िु द्ध दोनोूं िी क्रासब्रीड है , झेन
जो है । इसकिए झे न िा िोई मुिाििा नही ूं है । झे न अिेिा िुक्तद्धज्य नही ूं है । कहूं दुस्तान से ि द्ध कभक्षु िेिर र्ए
ध्यान िी प्रकक्रया िो। िेकिन कहूं दुस्तान िे पास ताओ िी पूरी दृकष्ट न थी, पूरा िैिाव न था। ध्यान िी प्रकक्रया
थी, जो स्वभाव में कघर िर दे ती है । िेकिन स्वभाव में कथर होने िी पूरी िी पूरी व्यापि िल्पना कहूं दुस्तान िे
पास नही ूं थी। वह िाओत्से िे पास थी। और जि कहूं दुस्तान से ि द्ध कभक्षु ध्यान िो िे िर चीन र्ए, और वहाूं
जािर ताओ िी पूरी कििॉसिी और पूरी दृकष्ट उनिे खयाि में आई, तो ध्यान और ताओ एि हो र्ए। इनसे जो
पैदाइश हुई वह झेन है । इसकिए झेन न तो िु द्ध है , न झेन िाओत्से है । झेन िहुत ही अिर् िात है । और इसकिए
आज झेन िी जो खू िी है जर्त में वह किसी और िात िी नही ूं है । उसिा िारण है कि दु कनया िी दो अदभुत
िीमती िातें —िुद्ध और िाओत्से —दोनोूं से पैदा हुई िात है । इतनी िड़ी दो हक्तस्तयोूं िे कमिन से िोई दू सरी
िात पैदा नही ूं हुई। तो उसमें ताओ िा पूरा िैिाव है और ध्यान िी पूरी र्हराई है ।

िकठन तो है जैसा आप िहते हैं , और सरि भी है । िकठन इसीकिए है कि हमारे सोचने िे जो ढाूं चे हैं
उनसे किििुि प्रकतिूि है । और सरि इसीकिए है कि स्वभाव सरि ही हो सिता है । उसमें िुछ िकठन होने
िी िात नही ूं है ।

तीव्र श्वास और कां डजिनी का सां बांध:

प्रश्न : ओशो तीव्र श्वास—प्रश्वास िेना और ' मैं कौन हां ' पूछना इसका कां डजिनी जागरण और
चक्— भे दन की प्रजक्या से जकस प्रकार का सांबांध है ?

सूं िूंध है और िहुत र्हरा सूंिूंध है। असि में, श्वास से ही हमारी आत्मा और शरीर िा जोड़ है, श्वास
से तु है । इसकिए श्वास र्ई कि प्राण र्ए। मक्तस्तष्क चिा जाए तो चिे र्ा, आूं खें चिी जाएूं तो चिेर्ा, हाथ—पैर िट
जाएूं तो चिेर्ा। श्वास िट र्ई कि र्ए; श्वास से जोड़ है हमारी आत्मा और शरीर िा। और आत्मा और शरीर िे
कमिन िा जो किूंदु है , वही ूं िुूंडकिनी है —उसी किूंदु पर! वही ूं वह शक्तक्त है कजसिो िुूंडकिनी िहते हैं । नाम िुछ
भी कदया जा सिता है । वह ऊजाग वही ूं है ।

कां डजिनी ऊजाओ के दो रूप:


और इसकिए उस ऊजाग िे दो रूप हैं । अर्र वह िुूंडकिनी िी ऊजाग शरीर िी तरि िहे , तो िाम—
शक्तक्त िन जाती है ,से क्स िन जाती है , और अर्र वह ऊजाग आत्मा िी तरि िहे , तो वह िुूंडकिनी िन जाती
है , या िोई और नाम दें । शरीर िी तरि िहने से वह अधोर्ामी हो जाती है और आत्मा िी तरि िहने से
ऊध्वगर्ामी हो जाती है । पर कजस जर्ह वह है , उस जर्ह पर चोट श्वास से पड़ती है ।

इसकिए तु म है रान होओर्े सूं भोर् िरते समय शाूं त श्वास िो नही ूं रखा जा सिता, सूं भोर् िरते वक्त
श्वास िी र्कत में तत्काि अूंतर पड़ जाएर्ा। इसकिए िामातु र होते ही कचि श्वास िो ते ज िर िेर्ा, क्ोूंकि उस
किूंदु पर चोट श्वास िरे र्ी तभी वहाूं से िाम—शक्तक्त िहनी शु रू होर्ी। श्वास िी चोट िे किना सूं भोर् भी असूं भव
है और श्वास िी चोट िे किना समाकध भी असूं भव है । समाकध उसिे ऊध्वगर्ामी किूंदु िा नाम है और सूं भोर्
उसिे अधोर्ामी किूंदु िा नाम है । पर श्वास िी चोट तो दोनोूं पर पडे र्ी।

श्वास और िासना का घजनष्ठ सां बांध:

तो अर्र कचि िाम से भरा हो, ति श्वास िो धीमा िरना, श्वास िो कशकथि िरना। जि कचि में
िामवासना घेरे, या क्रोध घेरे, या और िोई वासना घेरे, तो श्वास िो कशकथि िरना और िम िरना और धीमी
िेना। तो िाम और क्रोध दोनोूं कवदा हो जाएूं र्े , कटि नही ूं सिते ; क्ोूंकि जो ऊजाग उनिो चाकहए वह श्वास िी
किना चोट पड़े नही ूं कमि सिती।

इसकिए िोई आदमी क्रोध नही ूं िर सिता, श्वास िो धीमे िे िर। और िरे तो वह चमत्कार है । िरे तो
किििुि चमत्कार है , साधारण घटना नही ूं है । हो नही ूं सिता, श्वास धीमी हुई कि क्रोध र्या। िामोिे कजत भी
नही ूं हो सिता श्वास िो शाूं त रखिर, क्ोूंकि श्वास शाूं त हुई कि िामोिे जना र्ई।

तो जि िामोिे कजत हो मन, क्रोध से भरे मन, ति श्वास िो धीमी रखना, और जि ध्यान िी अभीप्सा से
भरे मन, तो श्वास िी तीव्र चोट िरना। क्ोूंकि जि ध्यान िी अभीप्सा भीतर हो और श्वास िी चोट पड़े , तो जो
ऊजाग है वह ध्यान िी यात्रा पर कनििनी शु रू हो जाती है ।

तीव्र श्वास की चोट से शब्धि जागरण:

तो िुूंडकिनी पर र्हरी श्वास िा िहुत पररणाम है । प्राणायाम अिारण ही नही ूं खोज किया र्या था। वह
िहुत िूंिे प्रयोर् और अनु भवोूं से शात होना शु रू हुआ कि श्वास िी चोट से िहुत िुछ किया जा सिता है ; श्वास
िा आघात िहुत िुछ िर सिता है । और यह आघात कजतना तीव्र हो, उतनी त्वररत र्कत होर्ी। और हम सि
साधारणजनोूं में , कजनिी िुूंडकिनी जन्मोूं—जन्मोूं से सोई है , उसिो िड़े तीव्र आघात िी जरूरत है ; घने आघात
िी जरूरत है ; सारी शक्तक्त इिट्ठी िरिे आघात िरने िी जरूरत है ।

तो श्वास से तो िुूंडकिनी पर चोट पड़नी शु रू होती है , मूि िेंद्र पर चोट पड़नी शु रू होती है । और
जैसे—जैसे तु म्हें अनुभव होना शु रू होर्ा, तु म किििुि आख िूंद िरिे दे ख पाओर्े कि श्वास िी चोट िहाूं पड़
रही है । इसकिए अक्सर ऐसा हो जाएर्ा कि जि श्वास िी ते ज चोट पड़े र्ी तो िहुत िार िामोिे जना भी हो
सिती है । वह इसकिए हो सिती है कि तु म्हारे शरीर िा एि ही अनुभव है , श्वास ते ज पड़ने िा और उस ऊजाग
पर चोट पड़ने िा एि ही अनु भव है — से क्स िा। तो जो अनुभव है उस िीि पर शरीर ि रन िाम िरना
शु रू िर दे ता है । इसकिए िहुत साधिोूं िो, साकधिाओूं िो एिदम तत्काि य न िेंद्र पर चोट पड़नी शु रू हो
जाती है ।

र्ुरकजएि िे पास अने ि िोर्ोूं िो ऐसा खयाि हुआ— और होना किििुि स्वाभाकवि है — अनेि
क्तस्त्रयोूं िो ऐसा खयाि हुआ कि उसिे पास जाते ही से उनिे य न िेंद्र पर चोट होती है । अि यह किििुि
स्वाभाकवि है । इसिी वजह से र्ुरकजएि िो िहुत िदनामी कमिी। इसमें उसिा िोई िसू र न था। इसमें
उसिा िोई िसू र न था। असि में , ऐसे व्यक्तक्त िे पास, कजसिी अपनी िुूंडकिनी जाग्रत हो, तु म्हारी िुूंडकिनी
पर चोट होनी शु रू होती है , उसिी चारोूं तरि िी तरूं र्ोूं से । िेकिन तु म्हारी िुूंडकिनी तो अभी किििुि से क्स
सें टर िे पास सोई हुई होती है , इसकिए चोट वही ूं पड़ती है , पहिी चोट वही ूं पडती है ।

जागी हुई कां डजिनी से चक् सजक्य:

श्वास तो र्हरा पररणाम िाने वािी है , िुूंडकिनी िे किए।

और सारे चक्र कजन्ें तु म िहते हो, वे सि िुूंडकिनी िे यात्रा—पथ िे स्टे शन समझो; जहाूं —जहाूं से
िुूंडकिनी होिर र्ुजरे र्ी, वे स्थान। ऐसे तो िहुत स्थान हैं , इसकिए िोई कितने ही चक्र कर्न सिता है , िेकिन
िहुत मोटे कवभाजन िरें तो जहाूं िुूंडकिनी थोड़ी दे र ठहरे र्ी, कवश्राम िरे र्ी, वे स्थान हैं ।

तो सि चक्रोूं पर पररणाम होर्ा। और कजस व्यक्तक्त िा जो चक्र सवाग कधि सकक्रय है , उस पर सिसे पहिे
पररणाम होर्ा। जैसे कि अर्र िोई व्यक्तक्त मक्तस्तष्क से ही कदन—रात िाम िरता है , तो ते ज श्वास िे िाद
उसिा कसर एिदम भारी हो जाएर्ा। क्ोूंकि उसिा जो मक्तस्तष्क िा चक्र है , वह सकक्रय चक्र है । श्वास िा
पहिा आघात सकक्रय चक्र पर पड़े र्ा। उसिा कसर एिदम भारी हो जाएर्ा। िामु ि व्यक्तक्त है तो उसिी
िामोिे जना िढ़ जाएर्ी; िहुत प्रेमी व्यक्तक्त है तो उसिा प्रेम िढ़ जाएर्ा; भावुि व्यक्तक्त है तो भावना िढ़
जाएर्ी। उसिा जो अपने व्यक्तक्तत्व िा िेंद्र िहुत सकक्रय है , पहिे उस पर चोट होनी शु रू हो जाएर्ी।

िेकिन तत्काि दू सरे िेंद्रोूं पर भी चोट शु रू होर्ी। और इसकिए व्यक्तक्तत्व में रूपाूं तरण भी तत्काि
अनुभव होना शु रू हो जाएर्ा कि मैं िदि रहा हूं यह मैं वही आदमी नही ूं हूं जो िि ति था। क्ोूंकि हमें
आदमी िा पता ही नही ूं है कि हम कितने हैं ; हमें तो पता है उसी चक्र िा कजस पर हम जीते हैं । जि दू सरा चक्र
हमारे भीतर खु िता है तो हमें िर्ता है कि हमारा व्यक्तक्तत्व र्या, यह तो हम दू सरे आदमी हुए; यह हम अि वह
आदमी नही ूं हैं जो िि ति थे। यह ऐसे ही है , जैसे कि इस मिान में हमें इसी िमरे िा पता हो, यही िमरे िा
नक्शा हो हमारे कदमार् में। अचानि एि दरवाजा खु िे और एि और िमरा हमें कदखाई पड़े , तो हमारा पूरा
नक्शा िदिेर्ा। अि कजसिो हमने अपना मिान समझा था, अि वह दू सरा हो र्या। अि एि नई व्यवस्था
उसमें हमें दे नी पडे ।

सजक्य केंद्रोां से नये व्यब्धित्व का आजिभाओ ि:


तो तु म्हारे कजन—कजन िेंद्रोूं पर चोट होर्ी, वहाूं —वहाूं से व्यक्तक्तत्व िा नया आकवभाग व होर्ा। और जि
सारे िेंद्र सकक्रय होते हैं एि साथ, उसिा मतिि है कि जि सििे भीतर से ऊजाग एि सी प्रवाकहत होती है , ति
पहिी दिे तु म अपने पूरे व्यक्तक्तत्व में जीते हो। हममें से िोई भी अपने पूर व्यक्तक्तत्व में साधारणत: नही ूं जीता।
और हमारे ऊपर िे िेंद्र तो अछूते रह जाते हैं । तो श्वास से इन िेंद्रोूं पर भी चोट पड़े र्ी।

और ' मैं ि न हूं ' िा जो प्रश्न है , वह भी चोट िरनेवािा है , वह दू सरी कदशा से चोट िरनेवािा है । इसे
थोड़ा समझो। श्वास से तो खयाि में आया। अि ' मैं ि न हूं ', इससे िुूंडकिनी पर िैसे चोट होर्ी?

यह िभी हमारे खयाि में नही ूं है । तु म आख िूं द िर िो, और एि नग्न स्त्री िा कचत्र सोचो। तु म्हारा
से क्स सें टर ि रन सकक्रय हो जाएर्ा। क्ोूं? तु म कसिग एि िल्पना िर रहे हो, तु म्हारा से क्स सें टर क्ोूं सकक्रय
हो र्या?

असि में, प्रत्येि सें टर िी अपनी िल्पना है । समझे न? प्रत्येि सें टर िी अपनी इमेकजनेशन है । और
अर्र उसिी इमेकजनेशन िे िरीि तु मने इमेकजने शन िरनी शु रू िी तो वह सें टर तत्काि सकक्रय हो जाएर्ा।
इसकिए िामवासना िा कवचार िरते ही तु म्हारा से क्स सें टर विग िरना शु रू िर दे र्ा।

और तु म है रान होओर्े नग्न स्त्री हो सिता है इतनी प्रभावी न हो, कजतना नग्न स्त्री िा कवचार प्रभावी
होर्ा। उसिा िारण है कि नग्न स्त्री िा कवचार तो तु म्हें िल्पना में िे जाएर्ा और िल्पना चोट िरे र्ी। और नग्न
स्त्री तु म्हें िल्पना में नही ूं िे जाएर्ी, वह तो प्रत्यक्ष खड़ी है । इसकिए प्रत्यक्ष कजतनी चोट िर सिती है , िरे र्ी।
िल्पना भीतर से चोट िरती है तु म्हारे सें टर पर, प्रत्यक्ष स्त्री सामने से चोट िरती है । सामने िी चोट उतनी
र्हरी नही ूं है , कजतनी भीतर िी चोट र्हरी है ।

इसकिए िहुत से ऐसे िोर् हैं जो कि स्त्री िे सामने तो इूं पोटें ट कसद्ध होूंर्े , िेकिन िल्पना में िहुत पोटे ट
हैं वे। िल्पना में उनिी पोटें सी िा िोई कहसाि नही ूं है । क्ोूंकि िल्पना िी जो चोट है वह तु म्हारे भीतर से
जािर सें टर िो छूती है । प्रत्यक्ष िी जो चोट है वह भीतर से जािर नही ूं छूती, िाहर से तु म्हें सीधा छूती है । और
मनुष्य चूकि मन में जीता है , इसकिए मन से ही र्हरी चोटें िर पाता है ।

'मैं कौन हां ?' एक अब्धस्तत्वगत सिाि:

तो जि तु म पूछते हो ' मैं ि न हूं ?' तो तु म एि कजज्ञासा िर रहे हो, एि जानने िी िल्पना िर रहे
हो; एि प्रश्न उठा रहे हो। यह प्रश्न तु म्हारे किस सें टर िो छु एर्ा? यह प्रश्न तु म्हारे किसी सें टर िो छु एर्ा। जि तु म
यह प्रश्न पूछते हो, जि तु म इसिी कजज्ञासा िरते हो, इसिी अभीप्सा से भरते हो, और तु म्हारा रोआूं —रोआूं
पूछने िर्ता है ' मैं ि न हूं ?' ति तु म भीतर जा रहे हो, और भीतर किसी िेंद्र पर चोट होनी शु रू होर्ी। ' मैं
ि न हूं ', ऐसा प्रश्न जो पूछा ही नही ूं तु मने िभी। इसकिए तु म्हारे किसी ज्ञात सकक्रय िेंद्र पर उसिी चोट नही ूं
होनेवािी है । समझे न? तु मने िभी पूछा ही नही ूं है उसे , उसिी अभीप्सा ही िभी तु मने नही ूं िी। तु मने अक्सर
पूछा है वह ि न है ? यह ि न है ? तु मने ये सारे प्रश्न पूछे हैं । िेकिन ' मैं ि न हूं ', यह अनपूछा प्रश्न है । यह तु म्हारे
किििुि अज्ञात िेंद्र िो चोट िरे र्ा, कजस पर तु मने िभी चोट नही ूं िी है । और वह अज्ञात िेंद्र, जहाूं ' मैं ि न
हूं ', चोट िरे र्ा, िहुत िेकसि है , क्ोूंकि यह प्रश्न िहुत िेकसि है , िहुत आधारभूत प्रश्न है कि ' मैं ि न हूं ?' िहुत
एक्तक्सस्टें कशयि है यह सवाि। यह पूरे अक्तस्तत्व िी र्हराई िा सवाि है कि मैं हूं ि न?
यह मुझे वहाूं िे जाएर्ा जहाूं मैं जन्मोूं िे पहिे था; यह मुझे वहाूं िे जाएर्ा जहाूं जन्मोूं—जन्मोूं िे पहिे
था। यह मुझे वहाूं िे जा सिता है जहाूं कि मैं आकद में था। इस प्रश्न िी र्हराई िा िोई कहसाि नही ूं है । इसिी
यात्रा िहुत र्हरी है । इसकिए तु म्हारा जो मूि, र्हरे से र्हरा िेंद्र है िुूंडकिनी िा, वहा इसिी तत्काि चोट होनी
शु रू होर्ी।

चोट करने के जिजभन्न उपाय:

श्वास किकजयोिाकजिि चोट है , और ' मैं ि न हूं यह मेंटि चोट है । यह तु म्हारी माइूं ड एनजी से चोट
पहुूं चाना है , और वह तु म्हारी िॉडी एनजी से चोट पहुूं चाना है । और अर्र ये दोनोूं चोट पूरे जोर से पड़ जाएूं .. तो
दो ही रास्ते हैं वहाूं ति चोट पहुूं चाने िे तु म्हारे पास सामान्यतया। और तरिीिें भी हैं , िेकिन वे जरा उिझी हुई
हैं । दू सरा आदमी तु म्हें सहयोर्ी हो सिता है । इसकिए तु म अर्र मेरे सामने िरोर्े तो तु म्हें चोट जल्दी पहुूं च
जाती है , क्ोूंकि तीसरी कदशा से भी चोट पहुूं चनी शु रू होती है , कजसिा तु म्हें खयाि नही ूं है , वह एस्टर ि है । यह
िॉकडिी है , जि तु म श्वास र्हरी िेते हो; और जि तु म पूछते हो, ' मैं ि न हूं ?' ति यह मेंटि है । और अर्र तु म
एि ऐसे व्यक्तक्त िे पास िै ठे हो, कजससे कि तु म्हारे एस्टर ि िो चोट पहुूं च सिे, तु म्हारे सू क्ष्म शरीर िो चोट पहुूं च
सिे, तो एि तीसरी यात्रा शु रू हो जाती है । इसकिए अर्र यहाूं पचास िोर् ध्यान िरें र्े तो तीव्रता से होर्ा िजाय
एि िे, क्ोूंकि पचास िोर्ोूं िी तीव्र आिाूं क्षाएूं और पचास िोर्ोूं िी तीव्र श्वासोूं िा सूं वेदन इस िमरे िो
एस्टर ि एटमाक्तस्फयर से भर दे र्ा; यहाूं नई तरह िी कवदि् युत किरणें चारोूं तरि घूमने िर्ेंर्ी। और वे भी तु म्हें चोट
पहुूं चाने िर्ेंर्ी।

पर तु म्हारे पास साधारणत: दो सीधे उपाय हैं शरीर िा और मन िा। तो ' मैं ि न हूं ' र्हरी चोट
िरे र्ा, श्वास से भी र्हरी िरे र्ा। श्वास से इसकिए हम शु रू िरते हैं कि वह शरीर िी है ; उसे िरने में ज्यादा
िकठनाई नही ूं है । समझे न? 'मैं ि न हूं ' थोड़ा िकठन है , क्ोूंकि मन िा है । शरीर से शु रू िरते हैं । और जि
शरीर पूरी तरह से वाइब्रेट होने िर्ता है , ति तुम्हारा मन भी इस योग्य हो जाता है कि पूछने िर्े । किर पूछने
िी एि ठीि कसचुएशन चाकहए।

हर िभी तु म ' मैं ि न हूं , पूछोर्े तो नही ूं िने र्ा िाम। सि सवािोूं िे किए भी ठीि क्तस्थकतयाूं
चाकहए, जि वे पूछे जा सिते हैं । जैसे कि जि तु म्हारा पूरा शरीर िूंपने िर्ता है और डोिने िर्ता है , ति तु म्हें
खु द ही सवाि उठता है कि यह हो क्ा रहा है ? यह मैं िर रहा हूं? यह मैं तो नही ूं िर रहा हूं —यह कसर मैं नही ूं
घुमा रहा हूं ; यह पैर मैं नही ूं उठा रहा हूं यह नाचना मैं नही ूं िर रहा हूं — िेकिन यह हो रहा है । और अर्र यह
हो रहा है तो तु म्हारी जो आइडें कटटी है सदा िी कि यह शरीर मैं हूं वह ढीिी पड़ र्ई। अि तु म्हारे सामने एि
नया सवाि उठ रहा है कि किर मैं ि न हूं ? अर्र यह शरीर िर रहा है और मैं नही ूं िर रहा, तो अि एि नया
सवाि है कि िर ि न रहा है ? किर तु म ि न हो अि?

तो यह ठीि कसचुएशन है जि इस छे द में से तु म्हारा ' मैं ि न हूं ' िा प्रश्न र्हरा उतर सिता है। तो उस
ठीि म िे पर उसे पूछना जरूरी है । असि में , हर प्रश्न िा भी ठीि वक्त है । और ठीि वक्त खोजना िड़ी
िीमती िात है । हर िभी पूछ िेने िा सवाि नही ूं है उतना िड़ा। तु म अर्र अभी िै ठिर पूछ िो कि मैं ि न
हूं ? तो यह हवा में घूम जाएर्ा, इसिी चोट िही ूं नही ूं होर्ी। क्ोूंकि तु म्हारे भीतर जर्ह चाकहए न जहाूं से यह
प्रवेश िर जाए! रूं ध्र चाकहए!
कां डजिनी जागरण पर अती ांजद्रय अनभि:

इन दोनोूं िी चोट से िुूंडकिनी जर्ेंर्ी। और उसिा जार्रण जि होर्ा तो अनूठे अनु भव शु रू हो


जाएूं र्े। क्ोूंकि उस िुूंडकिनी िे साथ तु म्हारे समस्त जन्मोूं िे अनुभव जुड़े हुए हैं — जि तु म वृक्ष थे, ति िे
भी, और जि तु म मछिी थे, ति िे भी, और जि तु म पक्षी थे, ति िे भी। तु म्हारे अनूंत—अनूंत योकनयोूं िे
अनुभव उस पूरे यात्रा—पथ पर पड़े हैं । तु म्हारी उस िुूंडि शक्तक्त ने उन सि िो आत्मसात किया है ।

इसकिए िहुत तरह िी घटनाएूं घट सिती हैं । उन अनु भवोूं िे साथ तादात्म्य जुड़ सिता है । और
किसी भी तरह िी घटना घट सिती है । और इतने सू क्ष्म अनुभव तु ममें जुड़े हैं ..... .क्ोूंकि तु म्हें खयाि नही ूं है .
एि वृ क्ष खड़ा हुआ है िाहर। अभी हवा चिी जोर से , वषाग हुई। वृक्ष ने जैसा वषाग िो जाना, वैसा हम िभी न
जान सिेंर्े। िैसे जान सिेंर्े ? वृक्ष ने जैसा जाना वषाग िो, वैसा हम िभी न जान सिेंर्े! हम वृक्ष िे पास भी
खड़े हो जाएूं तो हम न जान सिेंर्े। हम वैसा ही जानेंर्े जैसा हम जान सिते हैं । िेकिन िभी तु म वृ क्ष भी रहे हो
अपनी किसी जीवन—यात्रा में। और अर्र िुूंडकिनी उस जर्ह पहुूं चेर्ी, उस अनुभूकत िे पास जहाूं वह सूं र्ृहीत
है वृक्ष िी अनु भूकत, तो तु म अचानि पाओर्े कि वषाग हो रही है और तु म वह जान रहे हो जो वृक्ष जान रहा है ।
ति तु म िहुत घिड़ा जाओर्े। ति तु म िहुत घिड़ा जाओर्े कि यह क्ा हो रहा है ! ति तु म समझ पाओर्े कि
जो सार्र अनुभव िर रहा है वह तु म अनु भव िर पाओर्े , जो हवाएूं अनुभव िर रही हैं वह तु म अनुभव िर
पाओर्े। इसकिए तु म्हारी एस्थे कटि न मािूम कितनी सूं भावनाएूं खु ि जाएूं र्ी जो तु म्हें िभी भी नही ूं थी ूं खयाि में।

जैसे कि र्ोर्ा िा एि कचत्र है : एि वृक्ष है और आिाश िो छू रहा है ! तारे नीचे रह र्ए हैं और वृ क्ष
िढ़ता ही चिा जा रहा है ! चाूं द नीचे पड़ र्या है , सू रज नीचे पड़ र्या है , छोटे —छोटे रह र्ए हैं, और वृक्ष ऊपर
चिता जा रहा है । तो किसी ने िहा कि तु म पार्ि हो र्ए हो! वृक्ष िही ूं ऐसे होते हैं ? चाूं द—तारे नीचे पड़ र्ए हैं
और वृक्ष ऊपर चिा जा रहा है ! तो र्ोर्ा ने िहा कि तु मने िभी वृ क्ष िो जाना ही नही ,ूं तु मने िभी वृक्ष िे भीतर
नही ूं दे खा। मैं उसिो भीतर से जानता हूं । नही ूं िढ़ पाता चाूं द —तारोूं िे पार, यह िात दू सरी है , िढ़ना तो चाहता
है । नही ूं िढ़ पाता, यह िात दू सरी है , अभीप्सा तो यही है । उसने िहा, मैं तो िभी सोच ही नही ूं सिता। मजिूरी
है , नही ूं िह पाता, िेकिन भीतर प्राण तो सि चाूं द—तारे पार िरते चिे जाते हैं ।

तो र्ोर्ा िहता था कि वृक्ष जो है वह पृथ्वी िी आिाूं क्षा है आिाश िो छूने िी; पृथ्वी िी कडजायर
है , पृथ्वी अपने हाथ—पैर िढ़ा रही है आिाश िो छूने िे किए। पर वैसा जि दे ख पाएूं र्े । मर्र वह वृक्ष.. .किर
भी वृ क्ष जैसा दे खेर्ा, वैसा किर भी हम नही ूं दे ख पाएूं र्े।

पर ये सि हम रहे हैं , इसकिए िुछ भी होर्ा। और जो हम हो सिते हैं , उसिी भी सूं भावनाएूं अनुभव में
आनी शु रू हो जाएूं र्ी। जो हम रहे हैं , वह तो अनु भव में आएर्ा; जो हम हो सिते हैं िि, उसिी सूं भावनाएूं भी
आनी शु रू हो जाएूं र्ी।

और ति िुूंडकिनी िे यात्रा—पथ पर प्रवेश िरने िे िाद हमारी िहानी व्यक्तक्त िी िहानी नही ूं
है , समस्त चेतना िी िहानी हो जाती है । अरकवूं द इसी भाषा में िोिते थे , इसकिए िहुत साि नही ूं हो पाया
मामिा। ति किर एि व्यक्तक्त िी िहानी नही ूं है वह, ति किर िाूं शसनेस िी िहानी है । ति तु म अिेिे नही ूं
हो। तु ममें अनूंत हैं भीतर जो िीत र्ए, और तु ममें अनूंत हैं आर्े जो प्रिट होूंर्े। एि िीज जो खु िता ही जा रहा
है और मेकनिेस्ट होता चिा जा रहा है , और कजसिा िोई अूंत नही ूं कदखाई पड़ता। और जि इस तरह ओर—
छोर हीन तु म अपने कवस्तार िो दे खोर्े —पीछे अनूं त और आर्े अनूंत—ति क्तस्थकत और हो जाएर्ी;ति सि िदि
जाता है । और वे सि िे सि िुूंडकिनी पर कछपे हैं ।
िहुत से रूं र् खु ि जाएूं र्े जो तु मने िभी नही ूं दे खे। असि में , इतने रूं र् िाहर नही ूं हैं कजतने रूं र् तु म्हारे
भीतर तु म्हें अनुभव में आ सिते हैं । क्ोूंकि वे रूं र् तु मने िभी जाने हैं , और—और तरह से जाने हैं । जि एि
चीि आिाश िे ऊपर मूंडराती है तो रूं र्ोूं िो और ढूं र् से दे खती है ; हम और ढूं र् से दे खते हैं । अभी तु म जाओर्े
वृक्षोूं िे पास से तो तु म्हें कसिग हरा रूं र् कदखाई पड़ता है ; िेकिन जि एि कचत्रिार जाता है तो उसे हजार तरह िे
हरे रूं र् कदखाई पड़ते हैं । हरा रूं र् एि रूं र् नही ूं है , उसमें हजार शे ड हैं ; और िोई दो शे ड एि से नही ूं हैं , उनिा
अपना—अपना व्यक्तक्तत्व है । हमिो तो कसिग हरा रूं र् कदखाई पड़ता है । हरा रूं र्,िात खतम हो र्ई। एि मोटी
धारणा है हमारी, िात खतम हो र्ई। हरा रूं र् एि रूं र् नही ूं है , हरा रूं र् हजार रूं र् हैं —हर रूं र् में हजार रूं र् हैं ।
और कजतनी उसिी िारीि से .. ....जि तु म भीतर प्रवेश िरोर्े तो वहाूं तु मने हजारोूं िारीि अनु भव किए हैं ।

सू क्ष्म अनभिोां का िोक:

मनुष्य जो है , इूं कद्रयोूं िी दृकष्ट से िहुत िमजोर प्राणी है , सारे पशु —पक्षी िहुत शक्तक्तशािी हैं ; उनिी
अनुभूकत और उनिे अनु भव िी र्हराइयाूं —ऊूंचाइयाूं िहुत हैं । िमी है कि उनिो सििो पिड़िर वे चेतन में
कवचार नही ूं िर पाते । िेकिन उनिी अनु भूकतयाूं िहुत र्हरी हैं ; उनिे सूं वेदन िहुत र्हरे हैं ।

अि जापान में एि कचकड़या है — आम कचकड़या— जो भूिूंप िे च िीस घूंटे पहिे र्ाूं व छोड़ दे र्ी। िस
वह कचकड़या नही ूं कदखाई पड़े र्ी र्ाूं व में , समझो कि च िीस घूंटे िे भीतर भूिूंप आया। अभी हमारे पास जो यूंत्र
हैं , वे भी छह घूंटे िे पहिे नही ूं खिर दे पाते । और किर भी िहुत सु कनकश्चत नही ूं है वह खिर। िेकिन उस
कचकड़या िा मामिा तो सु कनकश्चत है । और इतनी आम कचकड़या है कि र्ाूं व भर िो पता चि जाए कि कचकड़या आज
कदखाई नही ूं पड़ रही, तो च िीस घूंटे िे भीतर भू िूंप पड़ने वािा है । उसिा मतिि है कि भू िूंप से पै दा होनेवािे
अकतसू क्ष्म वाइब्रेशूंस उस कचकड़या िो किसी न किसी ति पर अनुभव होते हैं ; वह र्ाूं व छोड़ दे ती है ।

अि तु म िभी अर्र यह कचकड़या रहे हो, तो तु म्हारी िुूंडकिनी िे यात्रा—पथ पर तु म्हें ऐसे वाइब्रेशूंस
होने िर्ें र्े जो तु म्हें िभी नही ूं हुए। मर्र तु म्हें िभी हुए हैं , तु म्हें पता नही ूं, खयाि में नही ूं। तभी हो सिते हैं ।

तु म्हें ऐसे रूं र् कदखाई पड़ने िर्ें र्े जो तु मने िभी नही ूं दे खे हैं ; तु म्हें ऐसी ध्वकनयाूं सु नाई पड़ने
िर्ेंर्ी, कजसिो ििीर िहते हैं नाद। ििीर िहते हैं , अमृत िरस रहा है , साधु ओ,ूं नाचो! तो वे साधु पूछते
हैं , िहाूं अमृत िरस रहा है ? और वह अमृत िही ूं िाहर नही ूं िरस रहा है । और ििीर िहते हैं , सु ना? नाद िज
रहे हैं , िड़े नर्ाड़े िज रहे हैं । पर साधु पूछते हैं , िहाूं िज रहे हैं ? और ििीर िहते हैं , तु म्हें सु नाई नही ूं पड़ रहे ?

अि वह ििीर िो जो सु नाई पड़ रहा है , वे नाद तु म्हें सु नाई पड़ें र्े, ध्वकनयाूं सु नाई पड़े र्ी। ऐसे स्वाद
आने शु रू होूंर्े जो तु म्हें िभी िल्पना में नही ूं कि ये स्वाद हो सिते हैं ।

तो सू क्ष्म अनु भूकतयोूं िा िड़ा िोि िुूंडकिनी िे साथ जुड़ा है , वह सि जर् जाएर्ा, और सि तरि से
तु म पर हमिा िोि दे र्ा। और इसकिए अक्सर ऐसी क्तस्थकत में आदमी पार्ि मािूम पड़ने िर्ता है । क्ोूंकि जि
हम सि िैठे थे र्ूं भीर ति वह हूं सने िर्ता है , क्ोूंकि उसे िुछ कदखाई पड़ रहा है जो हमें कदखाई नही ूं पड़
रहा; कि जि हम सि हूं स रहे थे ति वह रोने िर्ता है , क्ोूंकि िुछ उसे हो रहा है जो हमें नही ूं हो रहा।

शब्धिपात से ऊजाओ का जनयां जत्रत अितरण:


इन सििी सामान्य मनुष्य िे पास चोट िरने िे दो उपाय हैं , और असामान्य रूप से कजसिो
शक्तक्तपात िहें , वह तीसरा उपाय है ; वह एस्टर ि है । उसमें िोई माध्यम चाकहए। उसमें दू सरा व्यक्तक्त सहयोर्ी
हो, तो तु म्हारे भीतर तीव्रता िढ़ जा सिती है । और उस क्तस्थकत में दू सरा व्यक्तक्त िुछ िरता नही ,ूं कसिग उसिी
म जूदर्ी िािी है । वह कसिग एि मीकडयम िन जाता है । अनूंत शक्तक्त चारोूं तरि पड़ी हुई है । अि जैसे कि हम
घर िे ऊपर िोहे िी सिाख िर्ाए हुए हैं कि किजिी कर्रे तो घर िे नीचे चिी जाए। सिाख न हो ति भी
किजिी कर्र सिती है , ति पूरे घर िो तोड़ जाएर्ी। सिाख से पार हो जाएर्ी। िेकिन सिाख अभी हमिो
खयाि में आई है , किजिी िहुत पहिे से कर्रती रही है ; किजिी िा शक्तक्तपात िहुत कदनोूं से हो रहा है , सिाख
हमें अि खयाि आई है ।

तो अनूंत शक्तक्तयाूं हैं चारोूं तरि मनुष्य िे , उनिा भी उपयोर् किया जा सिता है उसिे आध्याक्तत्मि
कविास में। उन सििा उपयोर् किया जा सिता है । िे किन िोई माध्यम हो। तु म खु द भी माध्यम िन सिते
हो। िेकिन प्राथकमि रूप से माध्यम िनना खतरनाि हो सिता है । क्ोूंकि इतना िड़ा शक्तक्तपात हो सिता है
कि तु म उसे न झेि पाओ, िक्तम्ऻ तु म्हारे िुछ तूं तु जाम हो जाएूं या टू ट ही जाएूं । क्ोूंकि शक्तक्त िा एि वोल्टे ज
है , और वह तु म्हारे सहने िी क्षमता िे अनु िूि होना चाकहए। तो दू सरे व्यक्तक्त िे माध्यम से तु म्हारे अनु िूि
िनाने िी सु कवधा हो जाती है कि अर्र एि दू सरा व्यक्तक्त उन शक्तक्तयोूं िा तु म्हारे ऊपर अवतरण िराना चाहता
है , तो उस पर अवतरण हो चु िा है , तभी। ति वह उतनी धारा में तु म ति पहुूं चा सिता है कजतनी धारा में तु म्हें
जरूरत है ।

और इसिे किए िुछ भी नही ूं िरना होता है ; इसिे किए कसिग म जूदर्ी जरूरी है िस। ति वह एि
िैटे िेकटि एजेंट िी तरह िाम िरता है । वह िुछ िरता नही ूं है । इसकिए िोई अर्र िहता हो कि मैं
शक्तक्तपात िरता हूं तो वह र्ित िहता है ,िोई शक्तक्तपात िरता नही ूं। िेकिन हाूं , किसी िी म जूदर्ी में
शक्तक्तपात हो सिता है ।

शब्धि जागरण और शब्धिपात में अांतर:

और इधर मैं सोचता हूं जरा इधर साधि थोड़ी र्हराई िें , तो वह यहाूं होने िर्े र्ा िड़े जोर से । इसमें
िोई िकठनाई नही ूं है । इसमें िोई िकठनाई नही ूं है । किसी िो िरने िी िोई जरूरत नही ूं है , वह होने िर्े र्ा।
िस तु म अचानि पाओर्े कि तु म्हारे भीतर िुछ और तरह िी शक्तक्त प्रवेश िर र्ई है जो िही ूं िाहर से आ र्ई
है , कजसिा कि तु म.. .तु म्हारे भीतर से नही ूं आई।

तु म्हें िुूंडकिनी िा जि भी अनुभव होर्ा, तो तु म्हारे भीतर से उठता हुआ मािूम होर्ा; और जि तुम्हें
शक्तक्तपात िा अनु भव होर्ा, तो तु म्हारे िाहर से , ऊपर से आता हुआ मािूम होर्ा। यह इतना ही साि
होर्ा, जैसा कि ऊपर से आपिे पानी कर्रे और नीचे से पानी िढ़े —नदी में खड़े हैं और पानी िढ़ता जा रहा
है , और नीचे से पानी ऊपर िी तरि आता जा रहा है , और आप डूि रहे हो।

तो िुूंडकिनी िा अनु भव सदा डूिने िा होर्ा—नीचे से िुछ िढ़ रहा है और तु म उसमें डूिे जा रहे
हो, िुछ तु म्हें घेरे िे रहा है । िे किन शक्तक्तपात िा जि भी तु म्हें अनुभव होर्ा तो वषाग िा होर्ा। वह जो ििीर
िह रहे हैं कि अमृत िरस रहा है ,साधु ओ! पर वे साधु पूछते हैं , िहाूं िरस रहा है ? वह ऊपर से कर्रने िा होर्ा।
और तु म उसमें भीर्े जा रहे हो। और ये दोनोूं अर्र एि साथ हो सिें तो र्कत िहुत तीव्र हो जाती है— ऊपर से
वषाग हो रही है और नीचे से नदी िढ़ी जा रही है । इधर नदी िा पूर आता है , इधर वषाग िढ़ती जा रही है — और
दोनोूं तरि से तु म डूिे जा रहे हो और कमटे जा रहे हो। यह दोनोूं तरि से हो सिता है , इसमें िोई िकठनाई नही ूं
है ।

शब्धिपात जनजी सां पदा नही ां है :

प्रश्न: ओशो शब्धिपात का प्रभाि अल्पकािीन होता है या दीघओकािीन होता है ? िह अांजतम यात्रा
तक िे जाता है या अनेक बार शब्धिपात की आिश्यकता होती है ?

असि िात यह है कि दीघगिािीन तो तुम्हारे भीतर जो उठ रहा है उसिा ही होर्ा; शक्तक्तपात जो


है , वह कसिग सहयोर्ी हो सिता है , मूि नही ूं िन सिता िभी भी। मू ि नही ूं िन सिता। तु म्हारे भीतर जो रहा है
वही मू ि िनेर्ा। सूं पकि तो तु म्हारी वही है । असिी सूं पकि तु म्हारी वही है । शक्तक्तपात से तु म्हारी सूं पकि नही ूं
िढ़े र्ी, शक्तक्तपात से तु म्हारी सूं पकि िे िढ़ने िी क्षमता िढ़े र्ी। इस ििग िो ठीि से समझ िेना। शक्तक्तपात से
तु म्हारी सूं पदा नही ूं िढ़े र्ी, िेकिन तु म्हारी सूं पदा िे िढ़ने िी जो र्कत है , तु म्हारी सूं पदा िे िैिाव िी जो र्कत
है , वह तीव्र हो जाएर्ी।

इसकिए शक्तक्तपात तु म्हारी सूं पदा नही ूं है । यानी ऐसे ही जैसे तु म द ड़ रहे हो, और मैं एि िूंदूि िे िर
तु म्हारे पीछे िर् र्या। िूंदूि िेिर िर्ने से मेरी िूंदूि तु म्हारे द ड़ने िी सूं पकि नही ूं िननेवािी, िेकिन मेरी
िूंदूि िी वजह से तु म ते जी से द ड़ोर्े। द ड़ोर्े तु म ही, शक्तक्त तु म्हारी ही िर्े र्ी, िेकिन जो नही ूं िर् रही थी
तु म्हारे भीतर वह भी अि िर् जाएर्ी। िूंदूि िा इसमें िोई भी हाथ नही ूं है । िूंदूि में से इूं च भर शक्तक्त नही ूं
खोएर्ी इसमें। िूंदूि िी नाप—त ि पीछे िरोर्े तो वह उतनी िी उतनी ही रहे र्ी। उसमें से िुछ जाने —
आनेवािा नही ूं है । िेकिन तु म उस िूंदूि िे प्रभाव में तीव्र हो जाओर्े , जहाूं चि रहे थे धीमे , वहाूं द डने िर्ोर्े।

शब्धिपात से अांतयाओ त्रा में प्रोत्साहन:

तो शक्तक्तपात से तु म्हारी सूं पकि नही ूं िढ़ती, िेकिन तु म्हारी सूं पकि िी िढ़ने िी क्षमता एिदम र्कतमान
हो जाती है । क्ोूंकि एि दिा तु म्हें.. .एि दिा तु म्हें अनुभव हो जाए, किजिी चमि जाए एि.. .किजिी चमिने
से तु म्हें िोई रास्ता प्रिाकशत नही ूं हो जाता; हाथ में दीया नही ूं िन जाता है किजिी िा चमिना, कसिग एि
झिि। िेकिन झिि िड़ी िीमत िी हो जाती है —तु म्हारे पैर मजिूत हो जाते हैं , इच्छा प्रिि हो जाती
है , पहुूं चने िी िामना तय हो जाती है , रास्ता कदखाई पड़ जाता हैं —रास्ता है , तु म यूूं ही अूंधेरे में नही ूं भटि रहे
हो। यह सि साि एि किजिी िी झिि में तु म्हें रास्ता कदख जाता है , दू र तु म्हें मूंकदर कदख जाता है तु म्हारी
मूंकजि िा।

किर किजिी खो र्ई, किर घुप्प अूंधेरा हो र्या, िेकिन अि तु म दू सरे आदमी हो। वही ूं खड़े हो जहाूं
थे, िेकिन द ड़ तु म्हारी िढ़ जाएर्ी। मूंकजि पास है , रास्ता साि है —न भी कदखाई पड़ता हो अूंधेरे में , तो भी है ।
अि तु म आश्वस्त हो। तु म्हारा आश्वासन िढ़ जाता है । और तु म्हारे आश्वासन िा िढ़ना तु म्हारे सूं िल्प िो िढ़ा
दे ता है ।

तो इनडायरे क्ङ पररणाम हैं । और इसकिए िार—िार जरूरत पड़ती है , एि िार से हि नही ूं होता।
किजिी दु िारा चमि जाए तो और िायदा होर्ा, कतिारा चमि जाए तो और िायदा होर्ा। पहिी िार िुछ चूि
र्या होर्ा, न कदखाई पड़ा होर्ा, दू सरी िार कदख जाए, तीसरी िार कदख जाए! और इतना तो है कि आश्वासन
र्हरा होता जाएर्ा।

तो शक्तक्तपात से अूंकतम पररणाम हि नही ूं होता, अूंकतम पररणाम ति तु म्हें पहुूं चना है । और शक्तक्तपात
िे किना भी पहुूं च सिोर्े। थोड़ी दे र —अिेर होर्ी, इससे ज्यादा िुछ होना नही ूं है । थोड़ी दे र —अिेर होर्ी, अूंधेरे
में आश्वासन िम होर्ा, चिने में ज्यादा कहित जुटानी पड़े र्ी, ज्यादा िि िर्ाना पड़े र्ा— भय
पिड़े र्ा, सूं िल्प—कविल्प पिड़ें र्े; पता नही,ूं रास्ता है या नही—
ूं यह सि होर्ा, िेकिन किर भी पहुूं च जाओर्े।

िेकिन शक्तक्तपात सहयोर्ी िन सिता है ।

सामूजहक शब्धिपात भी सां भि:

तो इधर मैं चाहता ही हूं तु म्हारी जरा र्कत िढ़े , तो एिाध—दो पर क्ा, इिट्ठा, सामूकहि! एि—दो पर
क्ा िरने िा िाम िरना, इिट्ठा दस हजार िोर्ोूं िो खड़ा िरिे शक्तक्तपात हो, इसमें िोई िकठनाई नही ूं है ।
क्ोूंकि कजतना एि पर होने में वक्त िर्ता है , उतना ही दस हजार पर। उससे िोई ििग नही ूं पड़ता।

शब्धिपात स्थायी नही ां है :

प्रश्न: ओशो यजद सां बांध न रहे मीजडयम से तो इसका प्रभाि धीरे — धीरे घटते — घटते जमट भी
जाता होगा?

िम तो होर्ा ही। सि प्रभाव क्षीण होनेवािे होते हैं। असि में, प्रभाव िा मतिि ही यह है जो िाहर
से आया है , वह क्षीण हो जाएर्ा। जो भीतर से आया, वह क्षीण नही ूं होर्ा; वह तु म्हारा अपना है । प्रभाव तो सि
घटनेवािे हैं , वे घट जाते हैं ;िेकिन जो तु म्हारे भीतर से आता है वह नही ूं घटता। उस प्रभाव में भी जो आ जाता है
वह भी नही ूं घटता; वह तो िना रह जाता है । तु म्हारी मूि सूं पकि नही ूं घटती, प्रभाव तो घट जाता है ।

जिकास—क्म में पीछे िौटना असां भि:


प्रश्न: ओशो क्ा दू सरोां के असर से जो थोड़ा— बहुत ऊपर उठा हो िह नीचे भी जगर सकता है ?

नही,ूं नीचे िी तरि जाने िा उपाय नही ूं है । असि में , इस िात िो भी ठीि से समझ िेना चाकहए।
यह िड़े मजे िी िात है , यह िहुत मजे िी िात है कि नीचे िी तरि जाने िा उपाय नही ूं है । तु म जहाूं ति र्ई
हो, तु म्हें उससे ऊूंचा िे जाने में तो सहायता पहुूं चाई जा सिती है ; तु म्हें वही ूं ति ठहराने में भी िाधा डािी जा
सिती है ; तु म्हें उससे नीचे नही ूं िे जाया जा सिता। उसिा िारण है कि उसिे ऊूंचे जाने में तु म िदि र्ई हो
तत्काि।

(प्रश्न का ध्वजन— मद्रण स्पि नही ां।)

न, न, न। िोई सवाि ही नही ूं उठता है । एि इूं च भी िोई व्यक्तक्तत्व में ऊपर र्या, तो पीछे नही ूं ि ट
सिता; पीछे ि टना असूं भव है । यह मामिा ऐसा ही है कि किसी िच्चे िो हम पहिी िक्षा से दू सरी में प्रवेश
िरवा सिते हैं । एि टयूटर रख सिते हैं जो उसिो पहिी में पढ़ाने में सहायता दे दे और दू सरी में पहुूं चा दे ।
िेकिन ऐसा टयूटर खोजना िहुत मुक्तिि है कि उसने पहिी में जो पढ़ा है , उसिो भुिा दे —कि भई अि किर
इसिो हमिो पहिी भुिा दे ना है । और एि िच्चा दू सरी क्लास में जािर नासमझ िड़िोूं िी सोहित िरे , तो
इतना ही हो सिता है कि दू सरी में िेि होता रहे । िािी पहिी में उतार दें र्े नासमझ िड़िे , ऐसा नही ूं है
उपाय। मेरा मतिि समझी न तु म ? यह हो सिता है कि वह दू सरी ही में रुि जाए, और जनम भर दू सरी में
रुिा रहे , और तीसरी में न जा सिे। िेकिन दू सरी से नीचे उतारने िा िोई उपाय नही ूं है । वह वहाूं अटि
जाएर्ा।

तो आध्याक्तत्मि जीवन में िोई पीछे ि टना नही ूं है ; सदा आर्े जाना है या रुि जाना है । िस रुि जाना
ही पीछे ि ट जाने िा मतिि रखता है । तो रोि तो सिते हैं साथी, हटा नही ूं सिते पीछे । हटाने िा िोई उपाय
नही ूं है ।

शब्धिपात ि प्रसाद में िकओ है :

प्रश्न: ओशो क्ा शब्धिपात और ग्रेस में िकओ है ?

िहुत ििग है; िहुत ििग है। शक्तक्तपात और प्रसाद में िहुत ििग है। शक्तक्तपात जो है वह एि
टे क्नीि है , और आयोकजत है । उसिी आयोजना िरनी पड़े र्ी। हर िभी हर िही ूं नही ूं हो जाएर्ा। समझे
न? साधि इस क्तस्थकत में होना चाकहए कि उस पर हो सिे , मीकडयम इस क्तस्थकत में होना चाकहए कि वह माध्यम
िन सिे। जि ये दोनोूं िातें व्यवक्तस्थत होूं, तािमेि खा जाएूं , एि क्षण िे किूं दु पर दोनोूं िा मेि हो जाए, तो हो
जाएर्ा। यह टे क्नीि िी िात है । ग्रेस जो है वह अनिाल्ड िाि है ;उसिे किए िभी िु िावा नही ूं है , उसिे किए
िभी िोई इूं तजाम नही ूं है । वह िभी होती है ।

यानी ििग उतना ही है जैसा कि हम िटन दिािर किजिी जिाते हैं और आिाश िी किजिी चमिती
है , वैसा ही ििग है । समझे न? यह टे क्नीि है । यह वही किजिी है जो आिाश में चमिती है , िेकिन यह
टे क्नीि से िूंधी हुई है । हम िटन दिाते हैं , जिती है ; िुझाते हैं , िुझती है । आिाश िी किजिी हमारे हाथ में नही ूं
है ।

तो ग्रेस जो है वह आिाश िी किजिी है , िभी किसी क्षण में चमिती है । और तु म भी अर्र उस म िे


पर उस हाित में हुए, तो घटना घट जाती है । िेकिन वह शक्तक्तपात नही ूं है किर। है वही घटना, िेकिन वह ग्रेस
है । उसमें मीकडयम भी नही ूं होता। उसमें िोई मीकडएटर भी नही ूं है िीच में ; वह सीधी तु म पर होती है । और
आिक्तस्भि है ; और सदा सडन है , आयोजना नही ूं िी जा सिती। शक्तक्तपात तो आयोकजत किया जा सिता है
कि िि पाूं च िजे आ जाओ, इतनी तै यारी िरिे आना, इतनी व्यवस्था िरिे आ जाना, हो जाएर्ा। िेकिन ग्रेस
िे किए पाूं च िजे आिर िैठने से िुछ मतिि नही ूं है । हो जाए हो जाए, न हो जाए न हो जाए; उसे िोई हम
अपने हाथ में नही ूं िे सिते । घटना वही है , िेकिन इतना ििग है । इतना ििग है ।

अहां शून्य ब्धस्थजत में ही शब्धिपात सां भि:

प्रश्न : ओशो आपने कहा था जक शब्धिपात ईगोिेस ब्धस्थजत में होता है तो आयोजना कैसे हो
सकती है ?

ईर्ोिेस क्तस्थकत में आयोजना हो सिती है। ईर्ो िा आयोजना से िोई सूंिूंध नही ूं है, उससे िोई
सूं िूंध नही ूं है ।

प्रश्न. ओशो ईगोिेस आयोजना हो सकती है ?

हाूं , किििुि हो सिती है, उससे िोई सूंिूंध ही नही ूं है। ईर्ो तो िात ही और है। ईर्ो तो िात ही
और है । जैसे हमने तय किया कि पाूं च िजे इस—इस तै यारी में िैठेंर्े हम सि। इसमें साधि िी तरि ईर्ोिेस
होने िा सवाि नही ूं है , इसमें कसिग मीकडयम जो िननेवािा है उसिे ईर्ोिेस होने िा सवाि है । और ईर्ोिेस
मामिा ऐसा नही ूं है कि तु म िभी हो सिते हो और िभी न हो जाओ। हो र्ए तो हो र्ए, नही ूं हुए तो नही ूं हुए—
ऐसा मामिा नही ूं है न! अर्र मैं ईर्ोिेस हूं तो हूं और नही ूं हूं तो नही ूं हूं । ऐसा नही ूं है कि िि सु िह पाूं च िजे
ईर्ोिेस हो जाऊूंर्ा। मेरी िात समझ रहे हो न तुम? िैसे हो जाऊूंर्ा? िोई उपाय नही ूं है । अर्र मैं अभी हूं तो
पाूं च िजे भी रहूं र्ा—चाहे िोई आयोजन िरू
ूं और चाहे न िरू
ूं ; चाहे तु म पाूं च िजे आओ तो और न आओ
तो; मैं जार् तो और सोऊ तो—अर्र हूं तो हूं नही ूं हूं तो नही ूं हूं ।

अहां शून्यता क्जमक नही ां होती:

प्रश्न: ओशो ईगो की जो जनरि भािना है न उससे ोसा िगता है जक ईगोइस्ट है जक ईगोिेस है ।
एक क्षण िगता है जक ईगो है : दू सरे क्षण में िगता है जक ईगोिेस है ।

हाूं —हाूं, ऐसा ही चि रहा है। ऐसा ही चि रहा है। असि में, हमारा तो सारा जो सोचना—कवचारना
है , वह कडग्रीज िा होता है । वह ऐसा होता है : अट्ठानिे कडग्री पर िुखार है तो हम िहते हैं , किििुि ठीि है यह
आदमी; और कनन्यानिे कडग्री पर िुखार होता है तो हम िहते हैं , िुखार है । अट्ठानिे कडग्री भी िुखार है , िेकिन
वह नॉमग ि िुखार है । कनन्यानिे कडग्री में वह एिनॉमगि हो जाता है । किर अट्ठानिे हो जाता है तो हम िहते
हैं , किििुि ठीि है , नॉमगि हो र्या। अभी भी िु खार है , मतिि उतना िुखार है कजतना सििो है । सिसे जरा
इधर—उधर होता है तो र्ड़िड़ हो जाता है । वैसा ही हमारा ईर्ो िो मामिा है । वह हमारा िुखार है , उतनी ही
कडग्री में कजतना हम सििो है , ति ति हम िहते हैं आदमी किििुि कवनम्र है , अच्छा आदमी है । जरा हमसे
कडग्री उसिी कनन्यानिे हुई और हमने िहा कि िहुत ईर्ोइस्ट आदमी मािूम होता है । जरा सिानिे हुआ कि
हमने िहा कि किििुि महात्मा, कवनम्र हो र्या है । इसिे पैर छू िो।

िािी ईर्ो और नो—ईर्ो किििुि ही अिर् िातें हैं ; उनिा िोई कडग्री से सूं िूंध नही ूं है । िुखार और
िुखार िा न होना,यह अट्ठानिे और कनन्यानिे कडग्री िा मामिा नही ूं है । कसिग मरे हुए आदमी िो हम िह
सिते हैं कि इसिो िुखार नही ूं है । क्ोूंकि जि ति भी र्मी है , िुखार है ही; नॉमगि और एिनॉमग ि िा ििग है ।
इसकिए तििीि हमें होती है । इसकिए तििीि हमें होती है ।

और किर ऐसा है न कि अर्र किसी आदमी िी ईर्ो हमारी ईर्ो िो चोट पहुूं चाती है तो वह ईर्ोइस्ट
है , अर्र किसी िी ईर्ो हमारी ईर्ो िो रस पहुूं चाती है तो वह आदमी ईर्ोिेस है । हम नापे िैसे ? पता िैसे
चिे? एि आदमी मेरे पास आए और वह अिड़ मेरे ऊपर कदखिाए, हम िहते हैं , ईर्ोइस्ट है । आए और मेरे
पैर छु ए, हम िहते हैं , िहुत कवनम्र है । और क्ा, उपाय क्ा है जाूं च िा? हमारी ईर्ो जाूं च िा उपाय है , उससे
हम जाूं चते हैं कि यह आदमी हमारी ईर्ो िो र्ड़िड़ तो नही ूं िर रहा है ?र्ड़िड़ िर रहा है तो ईर्ोइस्ट है । और
अर्र िुसिा रहा है और िह रहा है , आप िहुत िड़े महात्मा हैं , तो यह आदमी कवनम्र है ,इसमें अहूं िार
किििुि भी नही ूं है । मर्र यह सि अहूं िार है या नही ,ूं यह हमारा अहूं िार ही इन सििा त ि है । इनिे पीछे
जो मेजरमेंट है हमारा, वह हमारा अहूं िार है ।

इसकिए जो नॉन—ईर्ो िी क्तस्थकत है उसिो तो हम पहचान ही नही ूं पाते । क्ोूंकि हम उसे िैसे
पहचानें ? हम कडग्री ति पहचान पाते हैं कि भई कितनी कडग्री है , इतना िहो। वे िहते हैं कि है ही नही,ूं ति हमें
िहुत िकठनाई हो जाती है । मर्र वह जो घटना है शक्तक्तपात िी, वह मीकडयम तो ईर्ोिेस चाकहए ही। ईर्ोिे स
िहना ठीि नही ूं है , नो—ईर्ोवािा मीकडयम चाकहए।
अहां शून्य व्यब्धि पर प्रसाद की सतत िषाओ :

और ऐसे आदमी पर च िीस घूंटे ग्रेस िरसती रहती है, यह खयाि में रख िेना। वह तो तुम्हारे किए
आयोजन िर दे र्ा, िेकिन उस पर तो च िीस घूंटा अमृत िरस रहा है । इसीकिए तु म्हारे किए भी आयोजन िर
दे र्ा कि तु म जरा एि क्षण िे किए द्वार खोििर खड़े रह जाना। उस पर तो िरसता ही है , शायद दो—चार िूूंद
तु म्हारे द्वार िे भीतर भी पड़ जाएूं ।

प्रश्न : ओशो, यह जो डायरे क्ट ग्रेस जमिता है इसका प्रभाि क्ा स्थायी होता है ? और क्ा
उपिब्धि तक िे जाता है ?

डायरे क्ङ ग्रेस तो कमिता ही उपिक्ति पर है न! इसिे पहिे तो कमिता नही ूं! इसिे पहिे नही ूं
कमिता। इसिे पहिे नही ूं कमिता। वह तो जि तु म्हारा अहूं िार जाएर्ा तभी ग्रेस उतर पाएर्ी। अहूं िार ही िाधा
है ।

प्रश्न: तो उपिब्धि की ब्धस्थजत कौन सी है ?

कजसिे आर्े किर उपिि िरने िो िुछ शेष न रह जाए।

प्रश्न: ग्रेस अांजतम है ?

हाूं , अूंकतम चीज है।

कां डजिनी है मनोगत ऊजाओ :

प्रश्न: ओशो अर्च्ा यह कां डजिनी साधना जो है ? िह साइजकक है जक ब्धिचअि है?


तु म यह जानते हो कि खाना शारीररि है, िेकिन न खाने पर आत्मा िा िहुत जल्दी कविोप हो
जाएर्ा। यद्यकप खाना शरीर िो जाता है , िेकिन शरीर एि क्तस्थकत में हो तो आत्मा उसमें िनी रहती है ।

तो िुूंडकिनी जो है वह मानकसि है । िेकिन िुूंडकिनी एि क्तस्थकत में हो तो आत्मा ति र्कत होती


है , िुूंडकिनी एि दू सरी क्तस्थकत में हो तो आत्मा ति र्कत नही ूं होती। तो साइकिि है , िेकिन स्टे प िनती है
क्तस्भचुअि िे किए। क्तस्भचुअि नही ूं है खु द। अर्र िोई िहता हो कि िुूंडकिनी क्तिचुअि है , तो र्ित िहता है ।

िोई अर्र िहे कि खाना क्तस्त्रचुअि है , तो र्ित िहता है । खाना तो किकजिि ही है । िेकिन किर भी
आधार िनता है आध्याक्तत्मि िे किए। श्वास भी भ कति है और कवचार भी भ कति है , सि भ कति है । इनिा जो
सू क्ष्मतम रूप है वह साइकिि हम उसे िह रहे हैं। वह भूत िा सू क्ष्मतम रूप है । िेकिन ये सि आधार िनते हैं
उस अभ कति में छिाूं र् िर्ाने िे किए। ये ,कजसिो िहना चाकहए, जूंकपूंर् िोडि्ग स िनते हैं ।

जैसे िोई आदमी नदी में छिाूं र् िर्ा रहा है , तो किनारे पर एि िोडग पर खड़े होिर छिाूं र् िर्ा रहा
है । िोडग नदी नही ूं है । और िोई तिग िर सिता है कि क्ोूं िोडग पर खड़े हो? जि िोडग तो नदी है ही नही,ूं और
तु म्हें नदी में छिाूं र् िर्ानी है , तो िोडग पर किसकिए खड़े हो? नदी में छिाूं र् िर्ानी है तो नदी में खड़े हो जाओ!
िेकिन नदी में िही ूं िोई खड़ा हुआ है ? खड़ा तो िोडग पर ही होना पड़ता है , छिाूं र् नदी में िर्ती है । समझे
न? और िोडग किििुि अिर् चीज है , वह नदी नही ूं है ।

तो तु म्हें जो छिाूं र् िर्ानी है वह शरीर से िर्ानी है , मन से िर्ानी है । िर्ानी है कजसमें वह आत्मा है ।


वह तो जि िर् जाएर्ी जि कमिे र्ी। अभी तो तु म जहाूं खड़े हो वही ूं से तै यारी िरनी पड़े र्ी। तो शरीर से और
मन से ही िूदना पड़े र्ा। और इसकिए यही ूं िाम िरना पड़े र्ा। हाूं , जि छिाूं र् िर् जाएर्ी, ति तु म जहाूं
पहुूं चोर्े , वह होर्ा क्तस्प्रचु अि, वह होर्ा आध्याक्तत्मि।

प्रश्न: ओशो आपने दो प्रकार की जिजध बताई हैं । पहिे आप जजस साधना की बातें करते थे उसमें
आप साधक को शाां त जशजथि मौन सजग और साक्षी होने के जिए कहते थे। अब आप तीव्र श्वास और ' मैं
कौन हां ' पूछने के अांतगओत साधक को पूरी शब्धि िगाकर प्रयत्न करने के जिए कहते हैं । पहिी साधना
करनेिािा साधक जब दू सरे ढां ग के प्रयोग में जाता है तो थोड़ी दे र के बाद उससे प्रयास करना छूट जाता
है ? कांटर ोि छूट जाता है । तो अर्च्ी व्यिस्था िह थी जक यह है ?

अच्छे और िुरे िा सवाि नही ूं है यहाूं।

प्रश्न: ओशो मेरा मतिब कांटर ोि छूट जाता है । तो अर्च्ी व्यिस्था िह थी जक यह है ?


मैं समझ र्या, मैं समझ र्या। अच्छे —िुरे िा सवाि नही ूं है। तुम्हें कजससे ज्यादा शाूंकत और र्कत
कमिती हो, उसिी कििर िरो; क्ोूंकि सििे किए अिर्—अिर् होर्ा। सििे किए अिर्—अिर् होर्ा। िुछ
िोर् हैं जो द ड़िर कर्र जाएूं तो ही कवश्राम िर सिते हैं । िुछ िोर् हैं जो कि अभी कवश्राम िर सिते हैं ।
िेकिन िहुत िम िोर् हैं । िहुत िम िोर् हैं । एिदम सीधा म न में जाना, िकठन है मामिा, थोड़े से िोर्ोूं िे
किए सूं भव है । अकधि िोर्ोूं िे किए तो पहिे द ड़ जरूरी है , तनाव जरूरी है । मतिि एि ही है अूंत
में, प्रयोजन एि ही है ।

शब्धि साधना से तनाि:

प्रश्न: ओशो आपने यह भी कहा था जक यह अजतयोां से पररितओ न की जिजध है । तो तनाि की चरम


सीमा में िे जाता हां ताजक जिश्राम की चरम सीमा उपिि हो सके। तो क्ा कां डजिनी साधना तनाि की
साधना है ?

किििुि तनाव िी साधना है। किििुि तनाव िी साधना है। असि में, शक्तक्त िी िोई भी साधना
तनाव िी ही साधना होर्ी। शक्तक्त िा मतिि ही तनाव है । जहाूं तनाव है वही ूं शक्तक्त पैदा होती है । जैसे हमने
एटम से इतनी िड़ी शक्तक्त पैदा िर िी, क्ोूंकि हमने सू क्ष्मतम अणु िो भी तनाव में डाि कदया; दो कहस्से तोड़
कदए और दोनोूं िो टें शन में डाि कदया। तो शक्तक्त िी तो समस्त साधना जो है वह तनाव िी है । अर्र ठीि से
समझो तो तनाव ही शक्तक्त है ; टें शन जो है वही शक्तक्त है ।

प्रश्न : ओशो साधना की दो पिजतयाां आप कहते हैं : पाजजजटि और जनगेजटि तो िांजिनी साधना
जनगेजटि है जक पाजजजटि?

पाकजकटव है। किििुि पाकजकटव है।

प्रश्न: बहुत तनािग्रस्त होते हैं तो जल्दी शाां त हो जाता है न।

हाूं , जल्दी।
प्रश्न: तो मैं जो बोिती थी न आपको जक जबना श्वास—प्रश्वास के भी शाां त हो जाती हां ।

नही ूं, तू तो डरती है। तू अपनी िात न िता। ये शाूंत होने से डरती है कि िही ूं शाूंत हो र्ए तो किर
क्ा होर्ा! यह डर है , इसकिए ये ऐसी तरिीिें कनिािती है कजसमें जरा िम ही शाूं कत रहे , ज्यादा शाूं कत न हो
जाए। न, ते रा मामिा अिर् है ।

प्रश्न: ओशो बि ने चक् और कां डजिनी की बात क्ोां नही ां की?

ये पूछते हैं कि िुद्ध ने चक्र और िुूंडकिनी िी िात क्ोूं नही ूं िी?


असि में, िुद्ध ने कजतनी िातें िी हैं , वे सि ररिाडे ड नही ूं हैं । समझ रहे हो न? िड़ा प्राब्लम जो है वह
यह है । और िुद्ध ने जो भी िहा है , उसमें से िहुत सा जानिर ररिाडे ड नही ूं है । और िुद्ध ने जो िहा है , उनिे
मरने िे पाूं च स वषग िाद ररिाडग हुआ, उस वक्त तो ररिाडग नही ूं हुआ। पाूं च स वषग ति तो कजन कभक्षु ओूं िे
पास वह ज्ञान था, उन्ोूंने उसे ररिाडग िरने से इनिार किया। पाूं च स वषग िाद एि ऐसी घड़ी आ र्ई कि वे
कभक्षु िोप होने िर्े कजनिो िातें पता थी ूं। और ति एि िड़ा सूं घ िुिाया र्या और उसने यह तय किया कि अि
तो यह मु क्तिि है , अर्र ये दस—पाूं च कभक्षु हमारे और खो र्ए, तो वह जान िी सारी सूं पदा खो जाएर्ी।
इसकिए उसे ररिाडग िर िे ना चाकहए। जि ति वह स्भरण रखा जा सिता था ति ति कजिपूवगि उसे नही ूं
किखा र्या।

ऐसा जीसस िे साथ भी हुआ, महावीर िे साथ भी हुआ। और जरूरी था। उसिे िारण हैं िहुत।
क्ोूंकि ये िोर् िोि रहे थे कसिग। इस िोिने में िहुत सी िातें थी,ूं जो िहुत ति िे साधिोूं िे किए िही र्ई थी ूं।
और पहिे ति िे साधि िे किए वे सारी िातें जरूरी रूप से सहयोर्ी नही ूं हैं , नुिसान भी पहुूं चा दें । अक्सर
ऐसा होता है कि कजस सीढ़ी पर हम खड़े नही ूं हैं उसिी िातचीत हमें उस सीढ़ी पर भी ठीि से खड़ा नही ूं रहने
दे ती जहाूं हमें खड़े होना है , जहाूं हम खड़े हैं । आर्े िी सीकढ़याूं अक्सर हमें आर्े िी सीकढ़योूं पर जाने िा खयाि
दे दे ती हैं , और हम पहिी सीडी पर खड़े ही नही ूं हैं ।

और भी िकठनाई यह है कि पहिी सीडी पर िहुत सी ऐसी िातें हैं जो दू सरी सीढ़ी पर जािर र्ित हो
जाती हैं । अर्र आपिो दू सरी सीढ़ी िी िात पहिे ही पता चि जाए तो आपिो पहिी सीढ़ी पर ही वे र्ित
मािूम होने िर्ें र्ी। ति आप पहिी सीढ़ी से िभी पार न हो सिेंर्े। पहिी सीढ़ी पर तो उनिा सही होना
जरूरी है , तभी आप पहिी सीढी पार िर सिेंर्े।

हम छोटे िच्चे िो पढ़ाते हैं र् र्णे श िा। अि इसिा िोई मतिि नही ूं है । र् र्धे िा भी होता है । और
र्धा और र्णे श में िोई सूं िूंध नही ूं है ; िोई भाईचारा नही ूं है ; िोई जोड़ नही ूं है , िुछ भी नही ूं है । र् िा िोई
सूं िूंध ही नही ूं है किसी से । िे किन यह पहिी क्लास िे िड़िे िो िताना खतरनाि होर्ा। जि वह पढ़ रहा है र्
र्णे श िा, ति उससे उसिा िाप िहे , नािायि,र् से र्णे श िा क्ा सूं िूंध? िोई सूं िूंध नही ूं है । र् तो और
हजार चीजोूं िा भी है , र्णे श से क्ा िेना—दे ना है ? तो यह िड़िा र् िो ही नही ूं पिड़ पाएर्ा।

अभी इसिो र् र्णे श िा, इतना ही पिड़ िे ना उकचत है । अभी और हजार चीजें भी र् में सक्तिकित
हैं , यह शान रहने ही दो। अभी तो इसिो र्णे श भी र् में आ जाए तो िािी है । िि और हजार चीजें भी आ
जाएूं र्ी। जि हजार आएूं र्ी ति यह खु द भी जान िेर्ा कि ठीि है , र् िी र्णे श से िोई अकनवायगता नही ूं थी, वह
भी एि सूं िूंध था, और भी िहुत सूं िूंध हैं । और किर जि यह र् पड़े र्ा हमेशा तो र् र्णे श िा, ऐसा नही ूं
पड़े र्ा; वह र्णे श छूट जाएूं र्े , र् रह जाएर्ा।

गह्य साधनोां की गोपनीयता:

तो हजार िातें हैं, हजार ति िी हैं। और किर िुछ िातें तो किििुि कनजी और सीक्रेट हैं। जैसे मैं
भी कजस ध्यान िी िात िर रहा हूं यह किििुि ऐसी िात है जो सकग्रहि िी जा सिती है । िहुत िातें हैं जो मैं
समूह में नही ूं िर सिता हूं नही ूं िरू
ूं र्ा। वह तो तभी िरू
ूं र्ा जि मुझे समूह में से िुछ िोर् कमि जाएूं र्े
कजनिो कि वे िातें िही जा सिती हैं ।

तो िुद्ध ने तो िहा है िहुत, वह सि ररिाडे ड नही ूं है । मैं भी जो िहूं र्ा वह सि ररिाडे ड नही ूं हो
सिता। वह सि ररिाडे ड नही ूं हो सिता, क्ोूंकि मैं वही िहूं र्ा जो ररिाडग हो सिता है । सामने तो वही
िहूं र्ा। जो ररिाडग नही ूं हो सिता, वह सामने नही ूं िहूं र्ा; उसे तो स्भृकत में ही रखना पड़े र्ा।

प्रश्न: ओशो तो क्ा कां डजिनी और चक्ोां की बात को ररकाडओ नही ां करना चाजहए? क्ा उन्ें गप्त
रखना चाजहए?

नही ूं, नही,ूं नही ूं। न, इसमें और िहुत सी िातें हैं न! जो मैंने िहा है , इसमें तो िोई िकठनाई नही ूं है।
इसमें िोई िकठनाई नही ूं है । पर इसमें और िहुत िातें हैं ।

िेकिन िकठनाई यह है न कि िुद्ध और आज में पच्चीस स साि िा ििग पड़ा है , मनुष्य िी चेतना में
िहुत ििग पड़ा है । कजस चीज िो िु द्ध समझते थे कि न िताया जाए; मैं समझता हूं िताया जा सिता है ।
पच्चीस स साि में िहुत िुकनयादी ििग पड़ र्ए हैं । िुद्ध ने कजतनी चीजोूं िो िहा कि नही ूं िताया जाए, उनिो
मैं िहता हूं कि उनमें से िहुत िुछ िताया जा सिता है आज। और जो मैं िहता हूं कि नही ूं िताया
जाए, पच्चीस स साि िाद िताया जा सिेर्ा। िताया जा सिना चाकहए,कविास अर्र होता है तो। समझ रहे हैं
न मेरी िात िो?

तो िुद्ध भी ि ट आएूं तो िहुत सी िातें .. .िुद्ध तो िहुत ही समझ िा िाम किए थे। उन्ोूंने ग्यारह तो
प्रश्न तय िर रखे थे , िोई पूछ न सिेर्ा। क्ोूंकि पूछो तो उनिो िुछ न िुछ तो उिर दे ना पड़े । र्ित दें उिर
तो उकचत नही ूं मािूम होता,ठीि उिर दें तो दे ना नही ूं चाकहए। तो ग्यारह प्रश्न उन्ोूंने अव्याख्य िरिे तय िर
रखे थे। वह जाकहर घोषणा थी सारे र्ाूं व में कि िोई िुद्ध से ये ग्यारह प्रश्नोूं में से न पूछे ; क्ोूंकि िु द्ध िो अड़चन
में नही ूं डािना है , क्ोूंकि वे इनिा उिर नही ूं दें र्े। न दे ने िा िारण है : अर्र दें तो नु िसान होर्ा और न दें तो
उन्ें ऐसा िर्ता है कि मैं सत्य िो कछपाता हूं । यह पूछना ही मत। इसकिए र्ाूं व —र्ाूं व में कभक्षु कढूं ढोरा पीट दे ते
थे कि िुद्ध आते हैं , ये ग्यारह प्रश्न मत पूछना। उससे उनिो िहुत परे शानी होती है । तो वे अव्याख्य मान किए
र्ए, वे प्रश्न नही ूं पूछे जाते थे। वे नही ूं पूछे जाते थे।

िभी िोई कवरोधी आ जाता और पूछ िेता था, तो िुद्ध उससे िहते कि रुिो, िुछ कदन ठहरो। िुछ
कदन ठहरो, िुछ कदन साधना िरो; जि इस योग्य हो जाओर्े , मैं उिर दू ूं र्ा। िेकिन िभी उनिे उिर कदए नही ूं।

इसकिए उन पर िड़ा आरोप तो यही था—जैनोूं िा, कहूं दुओूं िा यही आरोप था कि उनिो पता नही ूं है ।
उन पर िड़ा आरोप यही था कि ये ग्यारह प्रश्नोूं िे उिर नही ूं दे ते , हमारे शास्त्रोूं में तो हम सि उिर दे ते हैं ।
इनिो मािूम होता है पता नही ूं है । िेकिन उनिे शास्त्रोूं में जो किखा हुआ है , उतना उिर तो वे भी दे सिते थे!
असि में, असिी उिर शास्त्र में भी नही ूं किखा हुआ है । और असिी कदया नही ूं जा सिता था।

तो इसजिए, इसजिए नही ां यह सिाि है , यह सिाि नही ां है जक क्ा हो जाए।

प्रिचन 8 - यात्रा: दृश्य से अदृश्य की और

दू सरी प्रश्नोत्तर चचाओ :

प्रश्न : ओशो आपने नारगोि जशजिर में कहा है जक कां डजिनी साधना शरीर की तै यारी है । कृपया
इसका अथओ स्पि समझाएां ।

पहिी िात तो यह शरीर और आत्मा िहुत र्हरे में दो नही ूं हैं; उनिा भेद भी िहुत ऊपर है। और
कजस कदन कदखाई पड़ता है पूरा सत्य, उस कदन ऐसा कदखाई नही ूं पड़ता कि शरीर और आत्मा अिर्—अिर्
हैं , उस कदन ऐसा ही कदखाई पड़ता है कि शरीर आत्मा िा वह कहस्सा है जो इूं कद्रयोूं िी पिड़ में आ जाता है और
आत्मा शरीर िा वह कहस्सा है जो इूं कद्रयोूं िी पिड़ िे िाहर रह जाता है ।

शरीर और आत्मा—एक ही सत्य के दो छोर:


शरीर िा ही अदृश्य छोर आत्मा है और आत्मा िा ही दृश्य छोर शरीर है , यह तो िहुत आक्तखरी अनु भव
में शात होर्ा। अि यह िड़े मजे िी िात है . साधारणत: हम सि यही मानिर चिते हैं कि शरीर और आत्मा
एि ही हैं । िे किन यह भ्ाूं कत है ,हमें आत्मा िा िोई पता ही नही ूं है ; हम शरीर िो ही आत्मा मानिर चिते हैं ।
िेकिन इस भ्ाूं कत िे पीछे भी वही सत्य िाम िर रहा है । इस भ्ाूं कत िे पीछे भी िही ूं अदृश्य हमारे प्राणोूं िे
िोने में वही प्रतीकत है कि एि है ।

उस एि िी प्रतीकत ने दो तरह िी भूिें पैदा िी हैं । एि अध्यात्मवादी है , वह िहता है : शरीर है ही


नही,ूं आत्मा ही है । एि भ कतिवादी है , चावाग ि है , एपीिुरस है , वह िहता है कि शरीर ही है , आत्मा है ही नही ूं।
यह उसी र्हरी प्रतीकत िी भ्ाूं कतयाूं हैं ; और प्रत्ये ि साधारणजन भी, कजसिो हम अज्ञानी िहते हैं , वह भी यह
एहसास िरता है कि शरीर ही मैं हूं । िे किन जैसे ही भीतर िी यात्रा शु रू होर्ी, पहिे तो यह टू टे र्ी िात और
पता चिेर्ा कि शरीर अिर् है और आत्मा अिर् है । क्ोूंकि जैसे ही पता चिेर्ा आत्मा है , वैसे ही पता चिेर्ा
कि शरीर अिर् है और आत्मा अिर् है । िेकिन यह मध्य िी िात है । और र्हरे जि उतरोर्े, और र्हरे जि
उतरोर्े, और चरम अनुभूकत जि होर्ी, ति पता चिेर्ा कि िहाूं ! दू सरा तो िोई है नही ूं! किर आत्मा और शरीर
दो नही ूं हैं ; किर एि ही है ; उसिे ही दो रूप हैं ।

जैसे मैं एि हूं और मेरा िायाूं हाथ है और दायाूं हाथ है । िाहर से जो दे खने आएर्ा, अर्र वह िहे कि
िायाूं और दायाूं हाथ एि ही हैं , तो र्ित िहता है ; क्ोूंकि िायाूं किििुि अिर् है , दायाूं किििुि अिर् है ।
जि मेरे िरीि आिर समझेर्ा तो पाएर्ा िायाूं अिर् है , दायाूं अिर् है ; दायाूं दु खता है , िायाूं नही ूं दु खता; दायाूं
िट जाए तो िायाूं िच जाता है ; एि तो नही ूं हैं । िे किन मेरे भीतर और प्रवेश िरे तो पाएर्ा कि मैं तो एि ही हूं
कजसिा िायाूं है और कजसिा दायाूं है । और जि िायाूं टू टता है ति भी मैं ही दु खता हूं और जि दायाूं टू टता है
ति भी मैं ही दु खता हूं ; और जि िायाूं उठता है ति मैं ही उठता हूं और जि दायाूं उठता है ति मैं ही उठता हूं ।

तो िहुत अूंकतम अनुभूकत में तो शरीर और आत्मा दो नही ूं हैं , वे एि ही सत्य िे दो पहिू हैं , दो हाथ हैं ।
इसिा यह मतिि है इसकिए मैंने यह िात िही कि इससे यह तु म्हें समझ में आ सिे कि ति यात्रा िही ूं से भी
शु रू हो सिती है ।

अर्र िोई शरीर से यात्रा शु रू िरे , और र्हरा, और र्हरा, और र्हरा उतरता चिा जाए, तो आत्मा पर
पहुूं च जाएर्ा। अर्र िोई मेरा िायाूं हाथ पिड़ना शु रू िरे , और पिड़ता जाए, पिड़ता जाए, और िढ़ता
जाए, िढ़ता जाए, तो आज नही ूं िि मेरा दायाूं हाथ उसिी पिड़ में आ जाएर्ा। या िोई चाहे तो दू सरी तरि
से भी यात्रा शु रू िर सिता है कि सीधी आत्मा से यात्रा शु रू िरे , तो शरीर पिड़ में आ जाएर्ा।

िेकिन आत्मा से यात्रा शु रू िरनी िहुत िकठन है । िकठन इसकिए है कि उसिा हमें पता ही नही ूं है ।
हम खड़े हैं शरीर पर, तो हमारी यात्रा तो शरीर से शु रू होर्ी। ऐसी कवकधयाूं भी हैं कजनमें यात्रा सीधी आत्मा से ही
शु रू होती है । िे किन साधारणत: वैसी कवकधयाूं िहुत थोड़े से िोर्ोूं िे िाम िी हैं । िभी िाख में एि आदमी
कमिेर्ा जो उस यात्रा िो िर सिे। अकधितम िोर्ोूं िो तो यात्रा शरीर से ही शु रू िरनी पड़े र्ी, क्ोूंकि वहाूं
हम खड़े हैं । जहाूं हम खड़े हैं , वही ूं से यात्रा शु रू होर्ी। और शरीर िी जो यात्रा है उसिी तै यारी िुूंडकिनी है ।
शरीर िे भीतर में जो र्हरे से र्हरे अनुभव हैं , उन र्हरे अनु भवोूं िा जो मू ि िेंद्र है वह िुूंडकिनी है । असि
में, जैसा हम शरीर िो जानते हैं और जैसा शरीर—शास्त्री जानता है , शरीर उतना ही नही ूं है , शरीर उससे िहुत
ज्यादा है ।

यह पूंखा चि रहा है । इस पूंखे िो हम उतार िें और तोड़िर सारा जाूं च िर डािें , तो भी किजिी हमें
िही ूं भी नही ूं कमिेर्ी। और यह हो सिता है कि एि िहुत िुक्तद्धमान आदमी भी यह िहे कि पूं खे में किजिी
जैसी िोई भी चीज नही ूं है । एि— एि अूंर् िो िाट डािे , िभी किजिी नही ूं कमिे। किर भी पूंखा किजिी से
चि रहा था। और पूंखा उसी क्षण िूंद हो जाएर्ा कजस क्षण किजिी िी धारा िूंद होर्ी।

तो शरीर—शास्त्री ने एि तरह शरीर िा अध्ययन किया है , िाट—िाट िर, तो उसे िुूंडकिनी िही ूं
भी नही ूं कमिती। कमिेर्ी भी नही ूं। किर भी िुूंडकिनी िी ही कवदि् युत शक्तक्त से सारा शरीर चि रहा है । यह जो
िुूंडकिनी िी कवदि् युत शक्तक्त है , इसिो िाहर से शरीर िे कवश्लेषण से िभी नही ूं जाना जा सिता। क्ोूंकि
कवश्लेषण में वह तत्काि कछन्न—कभन्न होिर कवदा हो जाती है ,कविीन हो जाती है । उसे तो जानना हो तो भीतरी
अनुभव से जाना जा सिता है । यानी शरीर िो भी जानने िे दो ढूं र् हैं । िाहर से शरीर िो जानना, जैसा कि एि
किकजयोिाकजस्ट, शरीर—शास्त्री, डाक्ङर टे िि पर आदमी िे शरीर िो रखिर िाट रहा है ,पीट रहा है , जाूं च
रहा है । और एि शरीर िो भीतर से जानना है । जो व्यक्तक्त शरीर िे भीतर िैठा है , वह अपने शरीर िो भीतर से
जान रहा है ।

तो स्वयूं िे शरीर िो जि िोई भीतर से जानना शु रू िरता है ....... और यह खयाि रखना कि हम


अपने शरीर िो भी िाहर से ही जानते हैं — अपने शरीर िो भी! अर्र मुझे मेरे िाएूं हाथ िा पता है , तो वह भी
मेरी आूं खें जो मेरे हाथ िो दे ख रही हैं उसिा पता है । यह िाएूं हाथ िा जो अनुभव है , यह शरीर—शास्त्री िा
अनुभव है । िेकिन आख िूंद िरिे इस िाएूं हाथ िी आूं तररि जो प्रतीकत है , भीतर से जो इसिा अनुभव है , वह
मेरा अनुभव है ।

तो अपने ही शरीर िो भीतर से जानने अर्र िोई जाएर्ा, तो िहुत शीघ्र वह उस िुूंड पर पहुूं च जाएर्ा
जहाूं से शरीर िी सारी शक्तक्तयाूं उठ रही हैं । उस िुूंड में सोई हुई शक्तक्त िा नाम ही िुूंडकिनी है । और ति वह
अनुभव िरे र्ा कि सि िुछ वही ूं से िैि रहा है पूरे शरीर में। जैसे कि एि दीया जि रहा हो, पूरे िमरे में
प्रिाश हो, िेकिन हम खोजिीन िरते , िरते , िरते दीये पर पहुूं च जाएूं और पाएूं कि इस ज्योकत से ही सारी
प्रिाश िी किरणें िैि रही हैं । वे दू र ति िैि र्ई हैं , िेकिन वे जा रही हैं यहाूं से ।

जीिन—ऊजाओ का कां ड:

तो िुूंड से मतिि है शरीर िे भीतर उस किूंदु िी खोज, जहाूं से जीवन िी ऊजाग पूरे शरीर में िैि रही
है । कनकश्चत ही,उसिा िोई सें टर होर्ा। असि में , ऐसी िोई ऊजाग नही ूं होती कजसिा िोई िेंद्र न हो। चाहे
दस िरोड़ मीि दू र हो सू रज, िेकिन किरण है हमारे हाथ में तो हम िह सिते हैं कि िही ूं िेंद्र होर्ा, जहाूं से
वह यात्रा िर रही है और जहाूं से वह चि रही है । असि में , िोई भी शक्तक्त िेंद्र—शू न्य नही ूं हो सिती। शक्तक्त
होर्ी तो िेंद्र होर्ा। ऐसे ही, जैसे पररकध होर्ी तो िेंद्र होर्ा; िोई पररकध किना िेंद्र िे नही ूं हो सिती।

तो तु म्हारा शरीर एि शक्तक्त िा पुूंज है , इसे तो कसद्ध िरने िी िोई जरूरत नही ूं। वह शक्तक्त िा पुूंज
है —उठ रहा है ,िैठ रहा है , चि रहा है , सो रहा है । किर ऐसा भी नही ूं है कि उसिी शक्तक्त हमेशा एि सी ही
िाम िरती हो! िभी ज्यादा भी शक्तक्त उसमें होती है , िभी िम भी होती है । जि तु म क्रोध में होते हो तो इतना
िड़ा पत्थर उठािर िेंि दे ते हो, जो तु म क्रोध में नही ूं हो तो कहिा भी न सिोर्े। जि तु म भय में होते हो तो
इतनी ते जी से द ड़ िेते हो, कजतना कि तु म किसी ओिूंकपि िे खे ि में भी द ड़ रहे हो तो भी नही ूं द ड़ सिोर्े।

तो ऐसा भी नही ूं है कि शक्तक्त तु म्हारे भीतर एि सी है , उसमें तारतम्यताएूं है —वह िभी ज्यादा हो रही
है , िभी िम हो रही है । इससे यह भी साि होता है कि तु म्हारे पास िुछ ररजवाग यर भी है , कजसमें से िभी शक्तक्त
आ जाती है , िभी नही ूं आती,जरूरत होती है तो आ जाती है , नही ूं जरूरत होती तो कछपी रहती है । तु म्हारे पास
एि िेंद्र है , कजससे शक्तक्त तु म्हें कमिती हैं —सामान्यतया भी, असामान्यतया भी; रोजमराग िे िाम िे किए भी
तु म्हें शक्तक्त कमिती है और असाधारण िाम िे किए भी शक्तक्त कमिती है । किर भी उस िेंद्र िो िभी तु म ररक्त
नही ूं िर पाते हो। वह िेंद्र िभी ररक्त नही ूं होता। और िभी तु म उस िेंद्र िा पूरा उपयोर् भी नही ूं िर पाते
हो।

यानी इस सूं िूंध में कजन्ोूंने खोज िी है उनिा खयाि है कि पूंद्रह प्रकतशत से ज्यादा अपनी ऊजाग िा
असाधारण से असाधारण आदमी भी उपयोर् नही ूं िरता है । यानी हमारा महापुरुष भी कजसिो हम िहते हैं , वह
भी पूं द्रह प्रकतशत से ऊपर नही ूं जाता है । और कजसिो हम साधारणजन िहते हैं वह तो दो—ढाई प्रकतशत से
िाम चिाता है । उसिी अट्ठानिे प्रकतशत शक्तक्त योूं ही पड़ी—पड़ी कवदा हो जाती है । और इसकिए िड़े आदमी
में और छोटे आदमी में िोई पोटें कशयि भेद नही ूं होता, िीज शक्तक्त िा िोई भेद नही ूं होता; उपयोर् िा ही भेद
होता है । महान से महान प्रकतभा िा व्यक्तक्त भी कजस शक्तक्त िा उपयोर् िर रहा है , वह साधारण से साधारण
िुक्तद्ध िे आदमी िे पास भी है —िस अनुपयोर् में है , उसे िभी पुिारा नही ूं र्या, उसे िभी चु न ती नही ूं दी
र्ई; उसे िभी जर्ाया नही ूं र्या, वह पड़ी रह र्ई है ; और वह राजी हो र्या है कजतना है उससे ही, और उसिो
अपना उसनेमैक्तक्मम समझ किया है जो उसिा कमकनमम है ।

हमारी जो न्यू नतम सीमा रे खा है उसिो हम अपनी परम सीमा रे खा मानिर जी रहे हैं । और इसकिए
िई क्षणोूं में , जि कि सूं िट िा क्षण हो, साधारण से साधारण आदमी भी असाधारण क्षमता प्रिट िर पाता है ।
तो िई िार क्राइकसस और सूं िट में अचानि हमें ही पता चिता है कि हमारे भीतर क्ा था।

एि िेंद्र है , कजस पर यह सारी शक्तक्त ठहरी हुई है , कछपी हुई है , सोई हुई है —िहना चाकहए एि िीज
िी तरह, कजसमें सि िुछ अभी िूंद है ; मेकनिेस्ट हो सिती है , प्रिट हो सिती है । इसिो िुूंड........

अचेतन में सोई शब्धि:

िुूंड शब्द िहुत महत्वपूणग है , उसिे िई अथग हैं । उसिे िई अथग हैं । पहिा तो अथग यह है कि जहाूं
जरा सी िहर भी नही ूं उठ रही; क्ोूंकि जरा सी भी िहर उठे तो सकक्रय हो र्ई शक्तक्त। िुूंड िा मतिि है जहाूं
जरा सी भी िहर नही ूं उठ रही—सि सोया हुआ, जरा सा िूंपन नही,ूं सि प्रसु प्त है ।

दू सरा अथग यह है कि प्रसु प्त तो है , िेकिन किसी भी क्षण सकक्रय हो सिता है ; मृत नही ूं है । सू खा नही ूं है
िुूंड, भरा है । किसी भी क्षण सकक्रय हो सिता है , िेकिन सि सोया हुआ है ।

और इसकिए हो सिता है कि हमें पता भी न चिे कि हमारे भीतर क्ा सोया हुआ था। क्ोूंकि हमें
उतना ही पता चिेर्ा कजतना हम जर्ाएूं र्े। इसे समझ िेना! क्ोूंकि जर्ाने िे पहिे हमें पता ही नही ूं चि सिता
कि हमारे भीतर क्ा सोया हुआ है । उतना ही पता चिेर्ा कजतना जर्े र्ा। कजतना जर्ेर्ा उतना ही पता चिेर्ा।
यानी तु म्हारे भीतर कजतनी शक्तक्त सकक्रय होर्ी उतनी ही तु म्हारे चेतन में आएर्ी। और जो कनक्तष्कि्रय शक्तक्त है वह
तु म्हारे अचेतन और अनिाूं शस में सोई रहे र्ी।

इसकिए महान से महान व्यक्तक्त िो भी, जि ति वह महान हो नही ूं जाता, पता नही ूं चिता। न महावीर
िो पता है , न िुद्ध िो पता है , न जीसस िो, न िृष्ण िो; वे कजस कदन हो जाते हैं उसी कदन पता चिता है । और
इसकिए अनायास कजस कदन यह घटना घटती है उनिे भीतर, उस कदन उनिो अनुिूंपा मािूम पड़ती है कि पता
नही ूं िहाूं से यह दान कमिा! पता नही ूं िहाूं से यह आया! ि न दे र्या!
तो जो भी कनिटतम होता है — अर्र र्ुरु हो, तो वे सोचेंर्े कि र्ुरु से कमि र्या; अर्र र्ुरु न हो, मूकतग हो
भर्वान िी तो वे सोचेंर्े उससे कमि र्या। जो भी पूवगर्ामी होर्ा। आया उनिे ही भीतर से है सदा—तीथंिर
होर्ा, आसमान में िै ठा हुआ भर्वान होर्ा— िुछ भी होर्ा; जो पूवगर्ामी होर्ा, उसे वे िारण समझ िेंर्े।

असि में, हम तो उसी िो िारण समझ िेते हैं जो पहिे र्या।

अभी मैं एि िहानी पढ़ रहा था कि दो किसान पहिी दिा टर े न में सवार हुए। उन दोनोूं िा जन्मकदन
था और पहाड़ी र्ाूं व में वे रहते थे। और दोनोूं िा एि ही जन्मकदन था, और र्ाूं व िे िोर्ोूं ने उनिो िुछ भेंट
िरना चाही, नई—नई टर े न चिी थी, तो उन्ोूंने िहा कि हम तु म्हें कटिट भेंट िरते हैं , तु म टर े न में घूम आओ
दोनोूं। और इससे िकढ़या क्ा हो सिता था उनिो!

तो वे दोनोूं टर े न में र्ए। अि वे हर चीज िे किए उत्सु ि थे कि क्ा हो रहा है , क्ा नही ूं हो रहा है । तो
िोई शिगत िी िोति िेचता हुआ आदमी आया, तो उन्ोूंने सोचा कि हमें भी चखनी चाकहए। तो उन्ोूंने
िहा, एि िोति िे िें और आधी— आधी चख िें। और किर अच्छी िर्े तो दू सरी भी िे सिते हैं । तो पहिे
आदमी ने आधी िोति चखी, जि वह आधी िोति चख रहा था तभी एि टनि में , एि िोर्दे में र्ाड़ी प्रवेश िर
र्ई। दू सरे आदमी ने उसिे हाथ से िोति छीनी कि भई, तु म पूरी मत पी जाना, आधी मु झे भी दो। उसने
िहा, छूना ही मत! आई है व िीन स्टर ि ब्लाइूं ड! इसिो तु म छूना ही मत; क्ोूंकि इसने मुझे अूंधा िर कदया है ।
टनि में र्ाड़ी चिी र्ई थी। जो पूवगर्ामी था, तो उसने उस िोति िो पीया था, तो उसने उसिो िहा छूना ही
मत; भूि िे मत छूना, मैं अूंधा हो र्या हूं ।

स्वाभाकवि है , जो पूवगर्ामी है वह हमें िारण मािू म पड़ता है । िेकिन शक्तक्त जहाूं से आ रही है , उसिा
हमें पता ही नही;ूं और जि ति न आ जाए ति ति पता नही ूं। और भी आ सिती है वहाूं से , उसिा भी हमें पता
नही;ूं और कितनी आ सिती है , इसिा भी हमें पता नही ूं।

कां ड में उठी एक िहर:

यह जो सोया हुआ िुूंड है , अचेतन, इसमें से कजतनी शक्तक्त जर् जाती है , वह िुूंडकिनी है । िुूंड तो
अचेतन है , िुूंडकिनी चेतन है । िुूंड तो सोई हुई शक्तक्त िा नाम है , िुूंडकिनी जार्ी हुई शक्तक्त िा नाम है । उसमें
से कजतना कहस्सा जार्िर ऊपर आ र्या, उस िुूंड से कजतना िाहर आ र्या, उतनी िुूंडकिनी है । िुूंडकिनी पूरा
िुूंड नही ूं है , िुूंडकिनी उसमें से िहुत छोटी सी एि िहर है जो उठ र्ई है । इसिी दोहरी खोज है इस यात्रा में।
तु म्हारे भीतर जो िुूंडकिनी जर्ी है वह तो कसिग खिर है तुम्हारे भीतर एि स्रोत िी, जहाूं और भी िहुत िुछ
सोया होर्ा। जि एि किरण आई है , तो अनूंत किरणोूं िी वहाूं सूं भावना है ।

तो एि रास्ता तो िुूंडकिनी िो जर्ाने िा है , कजसमें से तु म्हारी शक्तक्त.. .शरीर िी शक्तक्त िा तु म्हें पूरा
िोध हो सिेर्ा। और इस शक्तक्त िो जर्ािर तुम शरीर िे उन किूंदुओूं पर पहुूं च जाओर्े , जहाूं से शरीर िे
अदृश्य रूपोूं में— आत्मा में —प्रवेश आसान है ; उन द्वारोूं पर पहुूं च जाओर्े इस शक्तक्त िो जर्ािर, जहाूं से
अदृश्य द्वार पर तु म जा सिते हो।

और इसिो भी समझ िेना जरूरी है , क्ोूंकि हम जो िुछ भी िर रहे हैं , वह हमारी शक्तक्त किन्ी ूं द्वारोूं
िे द्वारा िर रही है । अर्र तु म्हारे िान खराि हो जाएूं , तो शक्तक्त वहाूं ति आिर ि ट जाएर्ी, िेकिन तु म सु न
न सिोर्े। किर धीरे — धीरे शक्तक्त वहाूं आनी िूं द हो जाएर्ी; क्ोूंकि शक्तक्त वही ूं आती है जहाूं उसिो सकक्रय
होने िा िोई म िा हो। वह वहाूं नही ूं आएर्ी। इससे उिटा भी हो सिता है । इससे उिटा भी हो सिता है कि
िोई आदमी िहरा है , और अर्र वह अपनी अूं र्ुिी से िहुत ज्यादा सूं िल्प िरे सु नने िा, तो अूंर्ुिी भी सु न
सिती है । ऐसे िोर् हैं जमीन पर आज भी जो शरीर िे दू सरे कहस्सोूं से सु नने िर्े हैं , ऐसे िोर् भी हैं जो शरीर िे
दू सरे कहस्सोूं से दे खने िर्े हैं ।

असि में, कजसिो तु म आख िहते हो, वह है क्ा? तु म्हारी चमड़ी िा ही कहस्सा है । िे किन अनूंत िाि
से मनुष्य उस कहस्से से दे खता रहा है , इतना ही। िेकिन पहिे कदन कजस कदन मनुष्य िे पहिे प्राणी ने उस अूंर्
से दे खा होर्ा, वह किििुि ही सूं योर् िी िात थी, वह िही ूं और से भी दे ख सिता था। दू सरे प्राकणयोूं ने और
कहस्सोूं से दे खा है । तो दू सरी तरि उनिी आूं खें आ र्ई हैं । ऐसे भी पशु —पक्षी हैं , िीड़े —मिोड़े हैं , कजनिे पास
असिी आख भी है और िाल्स आख भी है । असिी आख, कजससे वे दे खते हैं ; और झूठी आख, कजससे वे दू सरोूं
िो धोखा दे ते हैं , कि अर्र िोई हमिा िरे तो झूठी आख पर हमिा िरे , असिी आख पर हमिा न िरे ।
साधारण सी मक्खी तु म्हारे घर में जो है , उसिी हजार आख हैं ; उसिी एि आख हजार आूं खोूं िा जोड़ है ।
उसिी दे खने िी क्षमता िहुत ज्यादा है उसिे पास। मछकियाूं हैं जो पूूंछ से दे खती हैं , क्ोूंकि उनिो पीछे से
दु श्मन िा डर होता है ।

अर्र हम सारी दु कनया िे प्राकणयोूं िी आूं खोूं िा अध्ययन िरें तो हमिो पता चिेर्ा कि आख िा िोई
इसी जर्ह होना िोई मतिि नही ूं है । िान िा इसी जर्ह होना िोई मतिि नही ूं है । ये िही ूं भी हो सिते हैं ।
इस जर्ह हैं , क्ोूंकि अनूंत िार मनुष्य—जाकत ने वही—
ूं वही ूं उन्ें पुनरुक्त किया है , वे वहाूं क्तस्थर हो र्ए हैं । और
हमारे भीतर उनिी जो स्भृ कत है , वह र्हरी हो र्ई है हमारी चेतना में , इसकिए वहाूं पु नरुक्त हो जाते हैं ।

यहाूं जो—जो अूं र् हमारे पास हैं , उन अूंर्ोूं में से एि अूंर् भी खो जाए, तो उस दु कनया िा दरवाजा िूंद
हो जाएर्ा। जैसे आख खो जाए, तो किर हमें प्रिाश िा िोई अनु भव न हो सिेर्ा। किर कितने ही अच्छे िान
होूं हमारे पास, और कितने ही अच्छे हाथ होूं, प्रिाश िा अनु भव नही ूं हो सिेर्ा।

नये द्वारोां पर दस्तक:

तो जि िुूंडकिनी तु म्हारी जार्नी शु रू होती है तो वह िुछ ऐसे नये द्वारोूं पर भी चोट िरती है जो
सामान्य नही ूं हैं ;कजनसे तु म्हें िुछ और चीजोूं िा पता चिना शु रू होता है —जो कि इन आूं खोूं से पता नही ूं चिता
था; इन हाथोूं से पता नही ूं चिता था। अर्र ठीि से िहें तो ऐसा िह सिते हैं कि तु म्हारी अूंतर—इूं कद्रयोूं पर
चोट होनी शु रू हो जाती है । अभी भी तु म्हारी िुूंडकिनी िी शक्तक्त ही इन आूं खोूं िो और िानोूं िो चिा रही
है , िेकिन ये िकहर—इूं कद्रया हैं । और िहुत छोटी सी मात्रा िुूंडकिनी िी इनिो चिा िेती है । अर्र तु म उस मात्रा
में थोड़ी सी भी िढ़ती िर दो, तो तु म्हारे पास अकतररक्त शक्तक्त होर्ी जो नये द्वारोूं पर चोट िर सिे।

जैसे कि हम यहाूं से पानी िहा दें । अर्र पानी िी एि छोटी सी मात्रा हो, तो पानी िी एि िीि िन
जाएर्ी और किर पानी उसी में से िहता हुआ चिा जाएर्ा। िेकिन पानी िी मात्रा एिदम से िढ़ जाए तो
तत्काि नई धाराएूं शु रू हो जाएूं र्ी;क्ोूंकि उतने पानी िो पुरानी धारा न िे जा सिेर्ी।

तो िुूंडकिनी िो जर्ाने िा जो र्हरा शारीररि अथग है , वह यह है कि इतनी ऊजाग तु म्हारे पास हो कि


तु म्हारे पुराने द्वार उसिो िहाने में समथग न रह जाएूं । ति अकनवायगरूपेण उस ऊजाग िो नये द्वारोूं पर चोट िरनी
पड़े र्ी और तु म्हारी नई इूं कद्रयाूं िानी शु रू हो जाएूं र्ी। उन इूं कद्रयोूं में िहुत तरह िी इूं कद्रयाूं हैं —उनसे टे िीपैथी
होर्ी, क्लेअरवायन्ऱ होर्ा। तु म्हें िुछ चीजें कदखाई पड़ने िर्ेंर्ी, िुछ सु नाई पड़ने िर्ेंर्ी, जो कि िान िी नही ूं
हैं , आख िी नही ूं हैं । तु म िुछ चीजें अनु भव िरने िर्ोर्े कजनमें तु म्हारी किसी इूं कद्रय िा िोई योर्दान नही ूं है ।
तु म्हारे भीतर नई इूं कद्रयाूं सकक्रय हो जाएूं र्ी। और इन्ी ूं इूं कद्रयोूं िी सकक्रयता िा जो र्हरे से र्हरा िि होर्ा, वह
तु म्हारे शरीर िे भीतर जो अदृश्य िोि है —कजसिो आत्मा हम िह रहे हैं —तु म्हारे शरीर िा जो सू क्ष्मतम
अदृश्य छोर है , उसिी प्रतीकत उसे पिड़नी शु रू हो जाएर्ी। तो यह िुूंडकिनी िे जार्ने से तु म्हारे भीतर
सूं भावनाएूं िढ़े र्ी। शरीर से िाम शु रू होर्ा।

चेतना को कां ड में डबोने का अनूठा प्रयोग:

दू सरी िात मैं ने छोड़ दी। यह साधारणत: प्रयोर् हुआ है —िुूंडकिनी िो जर्ाने िा। पर किर भी
िुूंडकिनी पूरा िुूंड नही ूं है । एि दू सरा प्रयोर् भी है कजस पर मैं किर िभी तु मसे उसिी अिर् ही पूरी िात
िरनी पड़े । िहुत थोड़े से िोर्ोूं ने पृथ्वी पर उस पर िाम किया है । वह िुूंडकिनी जर्ाने िा नही ूं है , िक्तम्ऻ िुूंड
में डूि जाने िा है । उसमें से िोई एि छोटी—मोटी शक्तक्त िो उठािर िाम िर िेना नही,ूं िक्तम्ऻ समग्र चेतना
िो अपने उस िुूंड में डु िा दे ना। ति िोई इूं कद्रय नही ूं जार्ेर्ी नई, िोई अती ूंकद्रय अनु भव नही ूं होूंर्े, और आत्मा
िा अनु भव एिदम खो जाएर्ा, और सीधा परमात्मा िा अनु भव होर्ा।

िुूंडकिनी िी शक्तक्त जर्ािर जो अनु भव होूंर्े, वह तु म्हें पहिे आत्मा िा अनुभव होर्ा; और उसिे साथ
एि प्रतीकत होर्ी कि दू सरे िी आत्मा अिर् है , मेरी आत्मा अिर् है । कजन िोर्ोूं ने िुूंडकिनी िी
शक्तक्त जर्ािर अनुभव किए हैं , वे अनेि— आत्मवादी हैं ; वे िहें र्े कि अने ि आत्माएूं हैं , हर एि िे भीतर
अिर् आत्मा है । िेकिन कजन िोर्ोूं ने िुूंड में डु ििी िर्ाई है ,वे िहें र्े आत्मा है ही नही,ूं परमात्मा ही है ; अनेि
नही ूं हैं , एि ही है । क्ोूंकि उस िुूंड में डु ििी िर्ाते से ही तु म अपने ही िुूंड में डु ििी नही ूं िर्ाते —
तु म, सििा जो सक्तिकित िुूंड है , उसमें प्रवेश िर जाते हो तत्काि।

तु म्हारा िुूंड और मेरा िुूंड और उनिा िुूंड अिर्—अिर् नही ूं हैं । इसीकिए तो िुूंड अनूंत शक्तक्तवान
है । तु म उसमें से कितना ही उठाओ, तो भी िुछ नही ूं उठता। तु म उसमें से कितनी िािटी पानी भर िाए हो
अपने घर िे िाम िे किए, उससे िुछ वहाूं ििग नही ूं पड़ता। िे किन तु म अपना मटिा भर िाए हो, मैं अपना
मटिा भर िाया हूं ; मेरे मटिे िा पानी अिर् है ,तुम्हारे मटिे िा पानी अिर् है । हम सार्र से िुछ िे आए हैं ।
िेकिन एि आदमी सार्र में डूि र्या! ति वह िहता है कि मटिे — वटिे िी िोई िात नही ूं है , और किसी
िा पानी अिर् नही ूं है , सार्र एि है , वह कजसे तु म घर िे र्ए हो, वह भी इसी िा कहस्सा है , और िुछ दू र नही ूं
हो र्या है , और तु म दू र रख न पाओर्े , वह ि ट आएर्ा। अभी धू प पड़े र्ी और भाप िनेर्ी और िादि िनेंर्े , वह
सि ि ट आएर्ा। वह िही ूं दू र नही ूं र्या है , वह दू र जा नही ूं सिता, वह सि यही ूं ि ट आएर्ा।

तो कजन िोर्ोूं ने िुूंडकिनी िो जर्ाने िे प्रयोर् किए, उन िोर्ोूं िो अती ूंकद्रय अनुभव हुए। जो कि
साइकिि, जो कि मनस िी िड़ी अदभुत अनु भूकतयाूं हैं । और उन्ें आत्म—अनुभव हुआ। जो कि परमात्मा िा
कसिग एि अूंश है ; जहाूं से तु म परमात्मा िो पिड़ रहे हो।

जैसे एि सार्र िे किनारे से मैं सार्र िो छू रहा हूं । मैं उसी सार्र िो छू रहा हूं जो कि िरोड़ोूं मीि
दू र तु म भी छू रहे होओर्े। िेकिन मैं िैसे मानूूं कि तु म भी उसी सार्र िो छू रहे हो? तु म अपने किनारे छू रहे
हो, मैं अपने किनारे छू रहा हूं । तो मेरा सार्र अिर् होर्ा। मेरा सार्र कहूं द महासार्र होर्ा, तुम्हारा सार्र
अटिाूं कटि महासार्र होर्ा, उनिा सार्र पैकसकिि महासार्र होर्ा। महासार्र नही ूं छु ने हम, अपने —अपने
सार्र भी हो जाएूं र्े , अपना—अपना तट भी हो जाएर्ा, हम िही ूं कवभाजन रे खा खी ूंच िेंर्े— जो मैंने छु आ।
तो आत्मा जो है वह परमात्मा िो एि िोने से छूना है । और िोने से छूने िा रास्ता है कि एि छोटी सी
शक्तक्त जर् जाए तो तु म छू िोर्े। और इसकिए इस मार्ग से चिने पर एि कदन आत्मा िो भी खोना पड़ता है , नही ूं
तो रुिावट हो जाती है ,वह पूरा नही ूं है मामिा। किर आत्मा िो भी खोना पड़ता है , किर छिाूं र् िर्ानी पड़ती है
िुूंड में। िेकिन यह आसान है । यह आसान है । िई िार ऐसा होता है कि िूंिा रास्ता आसान रास्ता होता है , और
कनिटतम रास्ता िकठन रास्ता होता है । उसिे िारण हैं । उसिे िारण हैं । िूंिा रास्ता सदा आसान रास्ता होता
है ।

अि जैसे, मुझे अर्र मेरे ही पास आना हो, तो भी मुझे दू सरे िे माध्यम से आना पड़े । और अर्र मु झे
अपनी ही शक्ल दे खनी हो, तो भी मुझे एि आईना रखना पड़े । अि यह किजूि िी िूं िी यात्रा है कि आईने में
मेरी शक्ल जाएर्ी और आईने से वापस ि टे र्ी, ति मैं दे ख पाऊूंर्ा। यह इतनी यात्रा िरनी पड़े र्ी। िेकिन
अपनी शक्ल िो सीधा दे खना, कनिटतम तो है , िेकिन िकठनतम भी है । मेरा मतिि समझे न तु म ?

स्वयां को जानने ि खोने का आनांद:

तो यह जो िुूंडकिनी िी छोटी सी शक्तक्त िो उठािर थोड़ी िूंिी यात्रा तो होती है , क्ोूंकि इूं कद्रयोूं िा
सारा िा सारा, अूंतर—इूं कद्रयोूं िा जर्त खु िता है और आत्मा पर पहुूं चते हैं , और किर वहाूं से छिाूं र् तो िेनी ही
है , िेकिन िड़ी सरि हो जाती है । क्ोूंकि कजसिो आत्म—अनुभव हुआ, कजसने अपने िो जाना और आनूं द
पाया, वह आनूंद उसे पुिारने िर्ता है कि अि अपने िो भी खो दो तो और परम आनूंद पा िोर्े।

अपने िो जानने िा एि आनूंद है , अपने िो पाने िा एि आनूं द है , और अपने िो खोने िा एि परम


आनूंद है । क्ोूंकि जि तु म अपने िो जान िोर्े ति तु म्हें कसिग एि ही पीड़ा रह जाएर्ी कि मैं हूं ; िस इतनी
पीड़ा और रह जाएर्ी; सिपीड़ाएूं कमट जाएूं र्ी, एि ही पीड़ा रह जाएर्ी कि मेरा होना भी क्ोूं है । यह भी
अनावश्यि है । यह मेरा होना भी व्यथग ,अनावश्यि है । इसकिए इससे भी तु म छिाूं र् िर्ाओर्े ही। एि कदन तु म
िहोर्े कि अि मैं ने होना जान किया, अि मैं न होना भी जानना चाहता हूं ; मैंने िीइूं र् भी जान किया, अि मैं
नॉन—िीइूं र् भी जानना चाहता हूं ; मैंने जान किया प्रिाश, अि मैं अूंधिार भी जानना चाहता हूं । और प्रिाश
कितना ही िड़ा हो, उसिी सीमा है ; और अूंधिार असीम है । और िीइूं र् कितना ही महत्वपूणग हो, किर भी सीमा
है । अक्तस्तत्व िी सीमा होर्ी, अनक्तस्तत्व िी िोई सीमा नही ूं।

इसकिए िुद्ध िो िोर् नही ूं समझ पाए। क्ोूंकि िु द्ध से जि िोर्ोूं ने जािर पूछा कि हम िचेंर्े कि नही ूं
वहाूं ? तो उन्ोूंने िहा कि तु म िैसे िचोर्े ? तु मसे ही तो छूटना है ! तो उन्ोूंने पूछा कि मोक्ष में किर िम से िम
हम तो होूंर्े? और सि कमट जाए— वासना कमटे , दु ख कमटे , पाप कमटे —हम तो िचेंर्े? िुद्ध ने िहा कि तु म िैसे
िचोर्े ? जि वासना कमट जाएर्ी, पाप कमट जाएर्ा, दु ख कमट जाएर्ा, तो एि दु ख िचेर्ा तु म्हारा—होने िा दु ख।
होना भी खिने िर्ेर्ा।

यह िड़े मजे िी िात है । क्ोूंकि जि ति वासना है ति ति होना नही ूं खिता तु म्हें , क्ोूंकि तु म होने
िो िाम में िर्ाए रखते हो। धन िमाना है , तो होने िो तु मने धन िमाने में िर्ाया है ; यश िमाना है , तो यश
िमाने में िर्ाया है । जि यश िी िामना न होर्ी, धन िी िामना न होर्ी, िाम िी वासना न होर्ी, जि िुछ
भी न होर्ा िरने िो, जि डूइूं र् किििुि न िचे र्ी, तो िीइूं र् िा िरोर्े क्ा? ति िीइूं र् सीधा र्ड़ने िर्ेर्ा,
होना ही घिराने िर्े र्ा कि अि यह होना भी नही ूं चाकहए।
तो िुद्ध िहते हैं कि नही,ूं वहाूं िुछ भी नही ूं होर्ा। जैसे दीया िुझ जाता है , किर तु म पूछते हो िहाूं
र्या?

मरते समय ति िुद्ध से िोर् पूछ रहे हैं कि तथार्त िा मरने िे िाद क्ा होता है ? जि आप मर जाएूं र्े
तो किर क्ा होर्ा? तो िुद्ध िहते हैं , जि मर ही र्ए तो किर होने िो िचा क्ा? किर िुछ िचेर्ा ही नही,ूं जैसे
दीया िुझ र्या ऐसे सि िुझ जाएर्ा। तु म िि पूछते हो कि दीया िुझ र्या, अि क्ा हुआ? िुझ र्या, िुझ र्या।

तो आत्मा िी उपिक्ति चरण ही है एि आत्मा िो खोने िी तै यारी िा। िे किन ऐसे ही आसान है ।
क्ोूंकि जो अभी वासना ही नही ूं खो सिा, उससे अर्र सीधा िहो कि िुूंड में डूि जाओ, अपने िो ही खो दो।
असूं भव है ! क्ोूंकि वह िहे र्ा,अभी मुझे िहुत िाम हैं ।

आक्तखर हम अपने िो खोने से डरते क्ोूं हैं ? हम अपने िो खोने से इसकिए डरते हैं कि िाम तो िहुत
िरने िो हैं , मैं खो दू ूं र्ा तो किर ये िाम ि न िरे र्ा? एि मिान िनाया, वह अधू रा है । तो उसे मैं पूरा िना िूूं
किर तै यार हो जाऊूंर्ा। िेकिन ति ति दू सरे िाम अधू रे रह जाएूं र्े।

असि में, िाम िी वासना, िुछ पूरा िरना है , उसिी वजह से ही तो मैं अपने िो चिा रहा हूं । तो जि
ति वासना है ति ति अर्र िोई िहे कि आत्मा िो खो दो, तो ति ति किििुि सूं भव नही ूं है । यह कनिट िा
तो है , िेकिन सूं भव नही ूं है । क्ोूंकि वह आदमी कजसिी अभी वासना नही ूं खोई, वह आत्मा िो
िैसे खोएर्ा? हाूं , वासना खो जाए तो किर एि कदन वह आत्मा िो खोने िो राजी हो सिता है , क्ोूंकि अि
आत्मा िा भी िरना क्ा है !

मेरा मतिि समझ रहे हो? मेरा मतिि यह है कि कजसने अभी दु ख नही ूं खोया, उससे िहो कि आनूंद
िो खो दो! वह िहे र्ा, पार्ि हैं आप? िेकिन कजस कदन दु ख खो जाए, आनूंद ही रह जाए, किर आनूंद िा भी
क्ा िरोर्े ? किर आनूं द िो भी खोने िे किए तु म तै यार हो जाओर्े। और कजस कदन िोई आनूंद िो भी खोने
िो तै यार है , उसी कदन िोई घटना घटती है । दु ख खोने िो तो िोई भी तै यार हो जाता है , िेकिन एि घड़ी आती
है जि हम आनूंद िो भी खोने िो तै यार हो जाते हैं । वह परम अक्तस्तत्व में िीनता उपिि उससे होती है ।

यह सीधा भी हो सिता है ; सीधा िुूंड में जाया जा सिता है । िेकिन राजी होना मुक्तिि होता है ।
धीरे — धीरे राजी होना आसान हो जाता है । वासना खोती है , वृकियाूं खोती हैं , कक्रया खोती है , वह सि खो जाता है
कजनिे सहारे तु म हो; किर आक्तखर में तु म्ही ूं िचते हो कजसमें न नी ूंव िची, न सहारे िचे। अि तु म िहते
हो, इसिो भी क्ा िचाना! अि इसिो भी जाने दे सिते हैं । ति तु म िुूंड में डूि जाते हो। िुूंड में डूिना कनवाग ण
है ।

अर्र सीधा िोई डूिना चाहे तो िुूंडकिनी नही ूं मार्ग में आती। इसकिए िुछ मार्ों ने उसिी िात नही ूं
िी, कजन्ोूंने सीधे ही डूिने िी िात िी, उन्ोूंने उसिी िात नही ूं िी; उसिी िोई जरूरत नही ूं थी। िेकिन मेरा
अपना अनु भव यह है कि वह नही ूं सूं भव हो सिा। वह िभी एिाध—दोूं िोर्ोूं िे किए सूं भव हो सिता
है , िेकिन एिाध—दोूं िोर्ोूं से िुछ हि नही ूं होता। िूंिे रास्ते ही जाना पड़े र्ा। िहुत िार अपने घर पहुूं चने िे
किए दू सरोूं िे घर िे द्वार खटखटाने ही पड़ते हैं — अपने ही घर पहुूं चने िे किए! और अपनी ही शक्ल पहचानने
िे किए न मािूम कितनी शक्लोूं िो पहचानना पड़ता है । और खु द िो प्रेम िरने िे किए न मािूम कितने िोर्ोूं
िो प्रेम िरना पड़ता है । सीधा तो यही था कि अपने िो प्रेम िर िेते। इसमें ि न िकठनाई थी? इसमें ि न
िाधा डािता था? उकचत तो यही था कि अपने घर में सीधे आ जाते । िेकिन ऐसा नही ूं है ।
असि में, जि ति हम दू सरोूं िे घरोूं में न भटि िें , ति ति अपने घर िो पहचानना ही मुक्तिि होता
है । और जि ति हम दू सरोूं से प्रेम न माूं र् िें और दू सरोूं िो प्रेम न िर िें , ति ति यह पता ही नही ूं चिता कि
असिी सवाि अपने िो प्रेम िरने िा है । यह पता ही नही ूं चिता। इसिा पता चिता है तभी।

तो यह िुूंडकिनी िो मैंने जो िहा कि शरीर िी तै यारी है ; तै यारी है अशरीर में प्रवेश िी, आत्मा में
प्रवेश िी। और तु म्हारी कजतनी ऊजाग अभी जर्ी है उससे तु म आत्मा में प्रवेश न िर सिोर्े। क्ोूंकि तु म्हारी वह
ऊजाग तु म्हारे रोजमराग िे िाम में पूरी चुि जाती है । िक्तम्ऻ िरीि—िरीि उसमें भी पूरी नही ूं पड़ती, उसमें भी
हम थि जाते हैं । वह उसमें भी पूरी नही ूं पड़ रही है । िहुत मूंदी—मूंदी जि रही है ि । इतने से इसिो नही ूं िे
जाया जा सिता।

ऊजाओ अनांत है , उसे जगाओ:

और इसीकिए सूं न्यास िी वृकि पैदा हुई, ताकि रोजमराग िा िाम िूं द िर कदया जाए। क्ोूंकि शक्तक्त तो
इतनी सी ही है हमारे पास, अि इसिो िर्ाना है किसी और यात्रा पर, तो किर यह िाम िूंद िर दो, दु िान मत
िरो, िाजार मत जाओ, न िरी मत िरो।

िेकिन मेरा मानना है कि वे भाूं कत में हैं । क्ोूंकि यह जो दो पैसे िी शक्तक्त उसिी इस िाम में िर् रही
है , यह अर्र वह किसी तरह िचा भी िे , तो िचाने में यह उतनी व्यय हो जाएर्ी। क्ोूंकि िचाने में भी िड़ी
ताित िर् जाती है । िचाने में िड़ी ताित िर्ती है ; िहुत िार तो क्रोध िरने में उतनी ताित व्यय नही ूं होती
कजतना क्रोध रोिने में व्यय हो जाती है ; िहुत िार िड़ने में उतनी व्यय नही ूं होती कजतना िड़ने से िचने में व्यय
हो जाती है ।

तो मैं इसिो उकचत नही ूं मानता, यह िूंजूस िा रास्ता है । यह जो सूं न्यास है , यह िूंजूस िा रास्ता है ।
वह यह िह रहा है कि इतने में ही हम उधर से िचा िेते हैं , इधर से िचा िेते हैं । मेरा मानना है कि िूंजूस िे
रास्ते से नही ूं चिे र्ा। और जर्ा िो! िहुत है , अनूंत है ; िचाते क्ोूं हो, और जर्ा िो! और खचग िरनी है ? और
जर्ा िो! और तु म खचग िर नही ूं सिते इतनी तु म्हारे पास है , तो तु म उसे िचाने िी किक्र क्ोूं िरते हो!

अि वह आदमी डर रहा है कि अर्र मैंने अपनी पत्नी िो प्रेम किया तो मैं परमात्मा िो िैसे प्रे म
िरू
ूं र्ा? क्ोूंकि उसिे पास प्रेम िी इतनी छोटी सी तो ऊजाग है कि इसी में चुि जाएर्ी। तो वह िह रहा
है , इससे िचा िें। िेकिन अर्र इसिो िचा भी किया, तो इस िचाने में उसिो िड़ना पड़े र्ा; िड़ने में व्यय
होर्ी। और इतनी छोटी सी ऊजाग से , कजससे तु मने पत्नी िो प्रेम किया था, उससे तु म परमात्मा िो प्रेम िर
पाओर्े ? उतनी सी ऊजाग से पत्नी ति नही ूं पहुूं च पाए पूरी तरह, परमात्मा ति िैसे पहुूं च पाओर्े ? यानी उतना
छोटा सा जो कब्रज तु मने िनाया था, वह पत्नी ति भी तो पूरा नही ूं पहुूं चता था। उसमें भी िीच में हीसीकढ़याूं चुि
जाती थी ूं। वह वहाूं ति भी से तु पूरा नही ूं िनता था कि तु म उसिे हृदय ति भी पहुूं च र्ए होओ ठीि; वह भी
नही ूं हो पाता था। उतनी सी ऊजाग िचािर तु म अनूंत ति से तु िनाने िी सोचने िैठे हो, तो पार्िपन में पड़ र्ए
हो।

उसे िचाने िा सवाि नही ूं है ; और ऊजाग है , उसे जर्ाने िा सवाि है । और इतनी अनूंत ऊजाग है कि
कजसिा िोई कहसाि नही ूं। और एि िार वह िानी शु रू हो जाए, तो वह कजतनी जर्ती है , उतनी ही और जर्ने
िी सूं भावना प्रिट होने िर्ती है । उसिा झरना िूटना शु रू हो जाए तो अनूंत है । उसे तु म चुिता नही ूं िर
सिते िभी। यानी ऐसा िोई क्षण नही ूं आ सिता जि तु म िह दो कि अि मेरे भीतर जर्ने िो और िुछ भी
शे ष नही ूं रहा।
जर्ने िी, अवेिकनूंर् िी अनूंत सूं भावना है , कितना भी तु म जर्ा सिते हो। और कजतना तु म जर्ाते
हो, उतना और जर्ाने िे किए तु म शक्तक्तशािी होते चिे जाते हो। और जि तु म्हारे पास अकतररक्त होती
है , एफ्लुएूंस होता है तु म्हारे पास अूंतर— ऊजाग िा, तभी तु म उसे उन रास्तोूं पर खचग िर सिते हो जो अनजान
हैं । समझ रहे हो न मेरा मतिि?

िाहर िी दु कनया में भी एफ्लुएूंस होता है । एि आदमी िे पास अकतररक्त धन है , अि वह सोचता है कि


चिो, चाूं द िी यात्रा िर आएूं । हािाूं कि िेमानी है , और चाूं द पर िुछ कमिने िो नही ूं है । िेकिन हजग भी िुछ
नही ूं है , क्ोूंकि उसिा खोने िो भी क्ा है ! उसिे पास अकतररक्त है , वह खो सिता है । जि ति तु म्हारे पास
अकतररक्त नही ूं है , उतना ही है कजतनी तु म्हें जरूरत है — उससे भी िम है —ति ति तु म इूं च—इूं च जाूं च—
पड़ताि िरिे खचग िरोर्े। इसकिए तु म ज्ञात िी दु कनया से िभी िाहर न हटोर्े। अज्ञात में जाने िे किए तु म्हारे
पास अकतरे ि चाकहए।

तो िुूंडकिनी िी शक्तक्त तु म्हें अकतरे ि से भर दे ती है । और तु म्हारे पास इतनी शक्तक्त होती है कि तु म्हारे
सामने सवाि होता है कि इसिो िहाूं खचग िरें ? और ध्यान रहे , कजनिे पास अकतररक्त शक्तक्त होती है , अचानि
वे पाते हैं कि उनिे जो पुराने द्वार थे , वे एिदम िूं द हो र्ए; क्ोूंकि उस अकतररक्त शक्तक्त िो िहाने में वे समथग
नही ूं होते । जैसे एि छोटी नदी हो और उसमें पूरा सार्र आ र्या है । वह नदी कमट जाएर्ी ि रन। उसिा िही ूं
पता ही नही ूं चिेर्ा कि वह िहाूं र्ई।

तो तु म्हारा क्रोध िा एि मार्ग था, तु म्हारे से क्स िा एि मार्ग था, वे अचानि खो जाएूं र्े। कजस कदन
अकतररक्त ऊजाग आएर्ी, वह सि घाट, तट, सि तोड़—िोड़ िर उनिो खतम िर दे र्ी। तु म अचानि पाओर्े
कि िुछ और ही हो र्या! वह सि िहाूं र्या जो िि मैं छोटा—छोटा िचा—िचा िर िूंजूस िी तरह चि रहा
था, और ब्रह्मचयग साध रहा था, और क्रोध दिा रहा था, और यह िर रहा था, और वह िर रहा था; वह सि अि
िहाूं है ? क्ोूंकि वे नकदयाूं न रही,ूं वे नहरें न रही;ूं अि तो यह पूरा सार्र आ र्या है ! अि इसिो खचग िरने िा
तु म्हारे पास जि उपाय नही ूं है , ति अनायास तु म पाते हो कि इसिी दू सरी यात्रा शु रू हो र्ई। यात्रा तो होर्ी
ही, वह तो रुि सिती नही ूं। ऊजाग िहे र्ी ही, वह रुि सिती नही ूं। होनी चाकहए।

तो एि िार जर्ा िे ने िी िात है । और ति तु म्हारे दै नूंकदन िे द्वार िेमानी हो जाते हैं , और अनजान—
अपररकचत द्वार,जो िूंद पड़े हैं , उनमें पहिी दिे दरारें पड़ती हैं और उनसे ऊजाग धक्के दे िर िहने िर्ती है । तो
वहाूं तु म्हें अती ूंकद्रय अनुभव शु रू हो जाते हैं । और जैसे ही अतीकूं द्रय द्वार खु िते हैं वैसे ही तु म्हें अपने शरीर िा
अशरीरी छोर, कजसिो आत्मा िहें , उसिी तु म्हें प्रतीकत शु रू हो जाती है ।

तो िुूंडकिनी तु म्हारे शरीर िी तै यारी है अशरीर में प्रवेश िे किए। उस अथग में मैंने वह िात िही।

कां डजिनी का आरोहण— अिरोहण:

प्रश्न: ओशो कां डजिनी साधना में कां डजिनी के एसे डां और जडसे डां की बात आती है — आरोहण
और उसके बाद अिरोहण। तो यह जो जडसे डां है ? िह क्ा कां ड में डूबना है या और कोई दू सरी बात है ?
असि में, िुूंड में डूिना जो है, वह न तो उतरना है, न वह चढ़ना है। िुूंड में डूिने में तो ये दोनोूं
िातें ही नही ूं हैं । वह उतरना—चढ़ना नही ूं है , कमट जाना है , समाप्त हो जाना है । िूूंद जि सार्र में कर्रती है , न तो
उतरती, न चढ़ती। हाूं , िूूंद जि सू रज िी किरणोूं में सू खती है , ति चढ़ती है आिाश िी तरि; और जि िादि
में ठूं डि पािर कर्रती है जमीन िी तरि, ति उतरती है । िेकिन जि सार्र में जाती है तो किर उतरना—
चढ़ना नही ूं है —डूिना है , कमटना है , मरना है ।

तो यह जो उतरने—चढ़ने िी जो िात है , अवरोहण िी, अवतरण िी, यह िहुत दू सरे अथों में है । यह
इस अथग में है कि िुूंड से कजस शक्तक्त िो हम उठाते हैं , इसे िहुत िार वापस िुूंड में भी भेज दे ना पड़ता है । इस
शक्तक्त िो हम उठाते भी हैं , इसे हमें वापस भी भे ज दे ना पड़ता है िहुत िार। िई िारण हो सिते हैं । सिसे
िड़ा िारण तो यह होता है कि िहुत िार ऐसा होता है कि कजतनी शक्तक्त िे किए तु म तै यार नही ूं होते , उतनी
शक्तक्त जर् जाती है ; उसे वापस ि टाना पड़ता है , अन्यथा खतरे हो सिते हैं । तो िुछ शक्तक्त कजतनी तु म झे ि
सिो. हमारे झेिने िी भी क्षमताएूं हैं न! हमारे झेिने िी भी क्षमताएूं हैं —सु ख झेिने िी भी क्षमता है , दु ख
झेिने िी भी क्षमता है , शक्तक्त झेिने िी भी क्षमता है । अर्र हमारी क्षमता से िहुत िड़ा आघात हमारे ऊपर हो
जाए, तो हमारा जो सूं स्थान है व्यक्तक्तत्व िा वह टू ट सिता है । वह कहतिर नही ूं होर्ा। इसकिए िहुत िार ऐसी
शक्तक्त उठ आती है कजसिो वापस भेज दे ना पड़ता है ।

िेकिन कजस प्रयोर् िी मैं िात िर रहा हूं उस प्रयोर् में इसिी िोई जरूरत िभी नही ूं पड़े र्ी। यह
प्रयोर् पर कनभगर िात है । ऐसे प्रयोर् हैं जो तु म्हारे भीतर आिक्तस्भि रूप से , कजनिो सडन एनिाइटे नमेंट िे
प्रयोर् िहते हैं , जो तात्काकिि, इूं स्टैंटशक्तक्त िो जर्ा सिते हैं । ऐसे प्रयोर् में सदा खतरा है , क्ोूंकि शक्तक्त
इतनी आ सिती है कजतनी कि तु म तै यार न थे। वोल्टे ज इतना हो सिता है कि तु म्हारा िल्व िुझ जाए, फ्यूज उड़
जाए, तु म्हारा पूंखा जि जाए, तु म्हारी मोटर में आर् िर् जाए। कजस प्रयोर् िी मैं िात िर रहा हूं वह प्रयोर्
तु म्हारे भीतर पहिे पात्रता पैदा िरता है , पहिे शक्तक्त िो नही ूं जर्ाता। पहिे पात्रता पैदा िरता है ।

साधना में दू सरोां की सहायता:

इसे ऐसे भी समझें कि यकद एि िड़ा िाूं ध अचानि टू ट जाए तो उसिे पानी से िड़ा भारी नुिसान हो
जाएर्ा, िेकिन उससे नहरें कनिाििर उसी पानी िो सु कवधानुसार कनयूंकत्रत रूप से प्रवाकहत किया जा सिता
है ।

एि अदभुत घटना है कि किशोरावस्था में िृष्णमूकतग िो कथयोसािी िे िुछ कवशे ष िोर्ोूं द्वारा
िुूंडकिनी िी सारीसाधनाओूं से र्ुजारा र्या। उन पर अनेि प्रयोर् किए र्ए, कजनिी स्पष्ट स्भृकत उन्ें न
रही; उन्ें िोध नही ूं है कि क्ा हुआ। उनिो तो िोध तभी आया जि उस नहर में सार्र उतर आया। इसकिए
उन्ें तै यारी िा िोई भी पता नही ूं है । इसकिए किसीकप्रप्रेशन िो वे स्वीिार नही ूं िरें र्े कि किसी तै यारी िी
जरूरत है । िेकिन उन पर िड़ी तै यारी िी र्ई, जैसा कि सूं भवत: पृथ्वी पर पहिे किसी आदमी िे साथ नही ूं िी
र्ई। तै याररयाूं तो िहुत िोर्ोूं ने िी, िेकिन अपने साथ िी। यह पहिी दिा िुछ दू सरे िोर्ोूं ने उनिे साथ
तै यारी िी।
प्रश्न: दू सरे भी कर सकते हैं ?

किििुि िर सिते हैं। क्ोूंकि दू सरे िहुत र्हरे में दू सरे नही ूं हैं। इधर से जो हमें दू सरे कदखाई पड़
रहे हैं वे इतने दू सरे नही ूं हैं ।

तो वह तै यारी दू सरोूं ने िी और किसी एि िहुत िड़ी घटना िे किए िी थी। वह घटना भी चू ि र्ई।
वह घटना थी किसी और िड़ी आत्मा िो प्रवेश िराने िे किए। िृ्णमूकतग िो तो कसिग एि वीकहिि िी तरह
उपयोर् िरना था, इसकिए उन्ें तै यार किया था; इसकिए नहर खोदी थी, इसकिए शक्तक्त िो, ऊजाग िो जर्ाया
था। िेकिन यह प्रारूं कभि िाम था। िृष्णमू कतग जो थे वे खु द िक्ष्य नही ूं थे उसमें। एि िड़े िक्ष्य िे किए साधन िी
तरह प्रयोर् िरना था उनिा। किसी और आत्मा िो उनिे भीतर जर्ह दे ने िी िात थी। वह नही ूं हो सिा। वह
नही ूं हो सिा इसकिए कि जि पानी आ र्या तो िृष्णमूकतग ने साधन िनने से इनिार िर कदया; वह किसी और
िे किए साधन िनने से इनिार िर कदया।

इसिा डर था, इसिा डर सदा है । इसकिए इसिा प्रयोर् नही ूं किया र्या था। इसिा डर सदा है ।
क्ोूंकि जि व्यक्तक्त उस हाित में आ जाए जि कि वह खु द ही साध्य िन सिे तो वह दू सरे िे किए क्ोूं साधन
िनेर्ा? वह इनिार िर दे ऐन वक्त पर। यानी मैं तु म्हें अपने मिान िी चािी दू ूं इसकिए कि िि िोई मेहमान
आ रहा है , उसिे किए तु म मिान तै यार िरिे रखना। िेकिन जि मैं चािी तु म्हें दे िर जाऊूं और तु म माकिि
हो जाओ, तो िि जि मेहमान आने िी िात हो तो तु म इनिार ही िर दो, कि माकिि तो मैं हूं चािी मेरे पास
है । और यह चािी किन्ी ूं और ने तै यार िी थी और यह मिान भी किन्ी ूं और ने िनाया था। इसकिए न तु म्हें
िनाने िा पता है , न तु म्हें यह चािी िि ढािी र्ई, िैसे ढािी र्ई, इसिा पता है । िेकिन इस चािी िे तु म
माकिि हो और मिान तु म खोिना जानते हो, िात खत्म हो र्ई।

पहिे तै यारी, पीछे उपिब्धि:

ऐसी घटना घटी है । िुछ िोर्ोूं िो तै यार किया जा सिता है । िुछ िोर् कपछिे जन्मोूं में तै यार होिर
आते हैं । िेकिन यह साधारण मामिा नही ूं है । साधारणत: तो प्रत्येि िो अपने िो तै यार िरना होता है । और
उकचत यही है कि ऐसा प्रयोर् हो,कजसमें तै यारी पहिे चिती हो और घटना पीछे घटती हो। तु म्हारी कजतनी क्षमता
िनती जाती हो उतना जि आता जाता हो। तु म्हारी क्षमता से ज्यादा शक्तक्त िभी न जर् पाए। ऐसे िहुत से प्रयोर्
थे कजनमें ऐसा हुआ। इसकिए िहुत से िोर् उन्मादग्रस्त होूंर्े, पार्ि हो जाएूं र्े। धमग से िहुत िड़ा भय पैदा हो
र्या था। इस तरह िे प्रयोर्ोूं िी वजह से पैदा हुआ था।

तो प्रयोर् दो तरह िे हो सिते हैं , इसमें िोई िहुत िकठनाई नही ूं है ।

अमेररिा में उन्ोूंने किजिी िी जो व्यवस्था िी है , उसमें उन्ोूंने एि जो िाम किया है , उसिे िई
दिे क्ा पररणाम हो सिते हैं , वह मैं िहता हूं । इस तरह िी क्तस्थकत भीतर भी हो सिती है । उन्ोूंने जो व्यवस्था
िी है वह यह व्यवस्था िी है कि इस र्ाूं व िो कजतनी किजिी िी जरूरत है उससे अर्र ज्यादा िोटा इसिे
पास है आज, और आज रात र्ाूं व में िम किजिी िा उपयोर् किया जा रहा है , तो कजतनी किजिी िचे वह दू सरे
र्ाूं वोूं िी तरि आटोमेकटििी प्रवाकहत हो जाए; यानी इस र्ाूं व िे पास िुछ भी अकतररक्त किजिी न पड़ी रह
जाए व्यथग , वह दू सरे र्ाूं व िे िाम आ जाए। आज एि िैक्ङरी िूंद है जो िि शाम ति चि रही थी, आज िूं द
है , उसिी हड़ताि हो र्ई। तो कजतनी किजिी उसिो चाकहए थी वह आज इस र्ाूं व में िेिार पड़ी रहे र्ी, जि कि
दू सरे र्ाूं व में हो सिता है किजिी िी जरूरत हो और एि िैक्ङरी िो किजिी न दी जा सिे। तो
पूरा आटोमेकटिइूं तजाम किया है कि सारे जोन िी किजिी पूरे वक्त प्रवाकहत होती रहे र्ी दू सरी तरि—जहाूं भी
अकतररक्त है वह तत्काि दू सरी तरि िह जाएर्ी।

पीछे तीन—चार वषग पहिे िोई आठ—दस—िारह घूंटे िे किए पूरी किजिी चिी र्ई अमे ररिा िी।
वह इस इूं तजाम में चिी र्ई। एि र्ाूं व िी किजिी र्ई तो उिटा प्रवाह शु रू हो र्या। वह जो प्रवाह अकतररक्त
किजिी िो िे जाता था, जि एि र्ाूं व िी किजिी चिी र्ई तो सारी किजिी उस तरि द ड़ी, वहाूं वैक्ूम हो
र्या। उसिी िैपेकसटी थी उस र्ाूं व िी, उतनी किजिी उसिो कमिनी चाकहए थी; और वे सारे िे सारे र्ाूं व
सूं िूंकधत थे, वह सारी किजिी उस तरि द डी। वह इतने जोर से द ड़ी कि उस र्ाूं व िे सारे फ्यूज चिे र्ए और
दू सरे र्ाूं व िी मुसीित हो र्ई। और पू रा िा पूरा कजतना जोन िा इूं तजाम था, वह सि िा सि एिदम से खत्म
हो र्या। एि िारह घूंटे िे किए अमेररिा किििुि िोई दो हजार साि पहिे ि ट र्या; एिदम अूं धेरा हो र्या।
जो जहाूं था वहाूं अूंधिार में हो र्या और सि िाम ठप्प हो र्या। और उस वक्त पहिी दिा उनिो पता चिा
कि हम कजस किए इूं तजाम िरते हैं , उससे उिटा भी हो सिता है । हमारा इूं तजाम जो हम िरते हैं , उससे
उिटा हुआ। अर्र एि—एि र्ाूं व िा अिर्—अिर् इूं तजाम था तो ऐसा िभी नही ूं हो सिता था। कहूं दुस्तान में
ऐसा िभी नही ूं हो सिता कि पूरे कहूं दुस्तान िी किजिी चिी जाए। अमेररिा में हो सिता है , क्ोूंकि वह
सि इूं टरिनेक्ङेड है पूरा िा पूरा। और पूरे वक्त धाराएूं एि र्ाूं व से दू सरे र्ाूं व कशफ्ट होती रहें र्ी। और िभी भी
खतरा हो सिता है ।

मनुष्य िे भीतर भी ठीि कवदि् युतधारा िी तरह इूं तजाम हैं । और ये कवदि् युतधाराएूं जो हैं , ये अर्र तु म्हारी
क्षमता से ज्यादा तु म्हारी तरि प्रवाकहत हो जाएूं ....... और ऐसे इूं तजाम हैं कजनसे प्रवाकहत हो सिती हैं । यानी तु म
यहाूं िै ठे हुए हो, और यहाूं पचास िोर् िै ठे हुए हैं , तो ऐसे मेथडि् स हैं कि तु म चाहो तो इन पचास िोर्ोूं िी सारी
कवदि् युतधारा तु म्हारी तरि प्रवाकहत हो जाए; ये सि पचास िोर् यहाूं किििुि ही िेंट हाित में हो जाएूं और तु म
एिदम ऊजाग िे िेंद्र िन जाओ। िेकिन खतरे भी हैं उसमें। उसमें खतरे हैं ; क्ोूंकि वह इतनी ज्यादा भी हो
सिती है कि तु म उसे न झेि पाओ। और इससे उिटा भी हो सिता है कि कजस मार्ग से कवदि् युतधारा तु म ति
आई, उसी मार्ग से तु म्हारी भी सारी कवदि् युत िो िे िर दू सरी तरि िह जाए। इन सििे प्रयोर् हुए हैं ।

तो वह जो उतरना है , वह तु म्हारे भीतर अर्र िभी िोई अकतररक्त मात्रा में शक्तक्त —तु म्हारी ही
शक्तक्त—ऊपर चिी जाए,तो उसे वापस ि टाने िी कवकधयाूं हैं । िे किन कजस कवकध िी मैं िात िर रहा हूं उसमें
उनिी भी िोई जरूरत नही ूं है ; उसमें िोई प्रयोजन ही नही ूं है । तु म्हारे भीतर कजतनी पात्रता िनती जाएर्ी
उतनी ही तु म्हारे भीतर शक्तक्त जर्ती जाएर्ी। पहिे जर्ह िनेर्ी,किर शक्तक्त आएर्ी। और इसकिए िभी तु म्हारे
पास ऐसा नही ूं होर्ा कि तु म्हें िुछ भी वापस ि टाना पड़े । हाूं , एि कदन तु म खु द ही वापस ि टोर्े , वह दू सरी
िात है । एि कदन तु म खु द ही सि जानिर छिाूं र् िर्ा जाओर्े िुूंड में , वह दू सरी िात है ।

और इन शब्दोूं िा और अथों में भी प्रयोर् हुआ है । जैसे कि श्री अरकवूंद कजस अथग में प्रयोर् िरते हैं , वह
िहुत दू सरा है । दो तरह से हम परमात्म शक्तक्त िो सोच सिते हैं . या तो अपने से ऊपर, या तो अपने से ऊपर
िही ूं आिाश में —किसी भी ऊपर िे भाव में ; या अपने से र्हरे , पाताि िे भाव में। और जहाूं ति जर्त िी
व्यवस्था िा सूं िूंध है , ऊपर और नीचे शब्द िे मानी हैं , इनिा िोई अथग नही ूं है ; ये कसिग हमारे सोचने िी
धारणाएूं हैं कि हम िैसा सोचते हैं । इस छत िो तुम ऊपर िह रहे हो,िुछ ऊपर नही ूं है , क्ोूंकि हम यहाूं एि
छे द िरें और वह जािर अमे ररिा में कनिि जाएर्ा छे द जमीन में। और वहाूं से अर्र िोई झाूं ििर दे खे तो
यह छत हमारे नीचे मािूम पड़े र्ी—हमारे कसर िे नीचे —उस छे द से झाूं िने पर। हम उिटे मािूम पड़ें र्े, सि
शीषाग सन िरते हुए, और यह छत हमारे कसर िे नीचे मािूम पड़े र्ी। अभी भी वही ूं है वह—हम िहाूं से दे खते
हैं , इस पर सि कनभगर िरता है ।

जैसे हमारा पूरि—पकश्चम सि झूठा है । क्ा पूरि? क्ा पकश्चम? और पूरि चिते जाओ, चिते जाओ, तो
पकश्चम पहुूं च जाओर्े। और पकश्चम चिते जाओ, चिते जाओ, तो पूरि पहुूं च जाओर्े। कजस पकश्चम में चिते —
चिते पूरि पहुूं च जाते हैं उसिो पकश्चम िहने िा क्ा मतिि है ? िोई मतिि नही ूं है ; ररिेकटव है । ररिेकटव िा
मतिि यह कि िेमानी है । इसिा मतिि यह है कि िोई मतिि नही ूं है उसिा; हमारी िामचिाऊ सीमा—
रे खा है कि यह रहा पूरि, यह रहा पकश्चम, नही ूं तो हम िैसे कहसाि िाूं टेंर्े! िेकिन िहाूं पूरि है ? किस जर्ह से
शु रू होता है ? ििििे से ? रूं र्ून से ? टोकियो से ? िहाूं से पूरि शु रू होता है ? पकश्चम िहाूं से शु रू होता है और
िहाूं खतम होता है ? न िही ूं शु रू होता है , न िही ूं खत्म होता है । वे िामचिाऊ खयाि हैं कजनसे हमें सु कवधा
िनती है कि हम एि—दू सरे िो िाूं ट िेते हैं ।

ठीि ऐसे ही, ऊपर—नीचे दू सरे डायमेंशन में िामचिाऊ हैं । पूरि—पकश्चम हॉररजेंटि िामचिाऊ
िातें हैं और ऊपर— नीचे वकटग िि िामचिाऊ िातें हैं । न िुछ ऊपर है , न िुछ नीचे है ; क्ोूंकि इस जर्त िी
िोई छत नही ूं है और इस जर्त िा िोईिाटम नही ूं है । इसकिए ऊपर—नीचे िी सि िातें िेमानी हैं । िे किन
हमारी ये िामचिाऊ धारणाएूं हमारे धमग िी धारणाओूं में भी घुस जाती हैं ।

तो िुछ िोर् ईश्वर िो अनुभव िरते हैं अिव, ऊपर। तो जि शक्तक्त उतरे र्ी तो उतरे र्ी, कडसें ड िरे र्ी,
हम ति आएर्ी। िुछ िोर् अनु भव िरते हैं ईश्वर िो नीचे , रूटि् स में। तो जि शक्तक्त आएर्ी तो चढे र्ी, उठे र्ी,
हम ति आएर्ी। िेकिन िोई मतिि नही ूं है । िहाूं हम रखते हैं ईश्वर िो, यह कसिग िामचिाऊ िात है ।
िेकिन इस िामचिाऊ िात में भी अर्र चुनाव िरना हो, तो मैं मानता हूं िजाय उतरने िे , उठना ही ज्यादा
सहयोर्ी होर्ा; िजाय उतरने िे, शक्तक्त िा तु म्हारे भीतर से उठना ही ज्यादा सहयोर्ी होर्ा। उसिे िारण हैं ।
क्ोूंकि जि शक्तक्त िे उठने िी धारणा तु म पिड़ोर्े , तो उठाने िा सवाि उठे र्ा। ति तु म्हें िुछ िरना पड़े र्ा।
और जि उतरने िी िात है तो कसिग प्राथगना रह जाएर्ी, और तु म िुछ भी न िर सिोर्े। जि ऊपर से नीचे
आना है तो हम हाथ जोडिर प्राथगना िर सिते हैं ।

धमओ के दो आयाम— ध्यान और प्राथओना:

इसकिए दो तरह िे धमग दु कनया में िने — ध्यान िरनेवािे और प्राथग ना िरनेवािे। प्राथगना िरने वािे वे
धमग हैं कजन्ोूंने ईश्वर िो ऊपर अनुभव किया िही ूं। अि हम िर भी क्ा सिते हैं ? उसिो िा तो सिते नही ूं!
क्ोूंकि अर्र िाएूं तो उतने ऊपर हमिो जाना पड़े ! और उतने ऊपर हम जाएूं र्े िैसे ? उतने ऊपर जाएूं र्े तो
परमात्मा ही हो जाएूं र्े हम। वहाूं हम जा नही ूं सिते ,जहाूं हम खड़े हैं वहाूं हम खड़े रहें र्े। हम कचल्रािर प्राथगना
िर सिते हैं कि हे परमात्मा, उतर!

िेकिन कजन धमों ने और कजन धारणाओूं ने इस तरह सोचा कि उठाना है नीचे से , िही ूं हमारी ही जड़ोूं
में सोया हुआ है िुछ और हम ही िुछ िरें र्े तो वह उठे र्ा, तो वे प्राथगना िे धमग न िनिर किर ध्यान िे धमग
िने। तो मेकडटे शन और प्रेयर में इस ऊपर—नीचे िी धारणा िा ििग है । प्राथग ना िरनेवािा धमग ईश्वर िो ऊपर
मानता है , ध्यान िरनेवािा धमग ईश्वर िो जड़ोूं में मानता है , और वहाूं से उसिो उठा िेता है ।
और ध्यान रहे , प्राथगना िरने वािे धमग धीरे — धीरे हारते जा रहे हैं , खत्म होते जा रहे हैं ; उनिा िोई
भकवष्य नही ूं है । उनिा िोई भकवष्य नही ूं है । ध्यान िरने वािे धमग िी सूं भावना रोज प्रर्ाढ़ होती जा रही है ।
उसिा िहुत भकवष्य है ।

तो मैं पसूं द िरू


ूं र्ा कि हम समझें कि नीचे से ऊपर...। इसिे और भी अथग होूंर्े। धारणा तो सापेक्ष
है , इसकिए मुझे िोई कदक्कत नही ूं है , किसी िो ऊपर मानना हो तो मु झे िोई अड़चन नही ूं आती। िेकिन मैं
मानता हूं कि आपिो अड़चन आएर्ी िाम िरने में। जैसे मैंने िहा कि अर्र हम पूरि चिते जाएूं तो पकश्चम
पहुूं च जाते हैं । किर भी हमें पकश्चम जाना हो तो हम पूरि िी तरि नही ूं चिते , हम पकश्चम िी तरि ही चिते हैं ।
धारणा िेमानी है , िेकिन किर भी हमें पकश्चम जाना हो तो हम पकश्चम िी तरि चिना शु रू िरते हैं । हािाूं कि
पूरि िी तरि चिें तो चिते —चिते पकश्चम पहुूं च जाएूं र्े , िेकिन वह नाहि िूंिा रास्ता हो जाएर्ा। मेरा मतिि
समझ रहे हो न तु म?

तो साधि िे किए और भक्त िे किए ििग पड़े र्ा। भक्त ऊपर मानेर्ा, इसकिए हाथ जोड़िर प्रतीक्षा
िरे र्ा, साधि नीचे मानेर्ा, इसकिए िमर िसिर जर्ाने िी िोकशश िरे र्ा।

और भी अथग हैं , जो खयाि में आ जाने चाकहए। असि में , जि हम नीचे मानते हैं परमात्मा िो, तो हमारी
कजनिो हम कनम्न वृकियाूं िहते हैं , उनमें भी वह म जूद हो जाता है । इसकिए हमारे कचि में िुछ कनम्न नही ूं रह
जाता। क्ोूंकि जि परमात्मा ही नीचे है , तो कजसिो हम कनम्नतम िहते हैं , वहाूं भी वह म जू द है । और वहाूं से भी
जर्ेर्ा; अर्र से क्स है , तो वहाूं से भी जर्े र्ा। यानी ऐसी िोई जर्ह ही नही ूं हो सिती जहाूं वह न हो। नीचे से
नीचे , नीचे से नीचे नरि में भी िही ूं अर्र िुछ है िोई, तो वहाूं भी वह म जू द है ।

िेकिन जैसे ही हम उसे ऊपर मानते हैं , तो िडे मनेशन शु रू हो जाता है , कि जो नीचे है वह िूंडे म्ड हो
जाता है , उसिी कनूंदा शु रू हो जाती है , क्ोूंकि वहाूं परमात्मा नही ूं है । वहाूं परमात्मा नही ूं है । और अनजाने स्वयूं
िी भी हीनता शु रू हो जाती है कि हम नीचे हैं और वह ऊपर है । तो उसिे घाति पररणाम हैं , मनोवैज्ञाकनि
घाति पररणाम हैं ।

ध्यान—केंजद्रत धमओ अजधक प्रभािकारी:

और किर कजतनी शक्तक्त से खड़े होना हो, उतना उकचत है कि शक्तक्त नीचे से आए। क्ोूंकि तु म्हारे पैरोूं
िो मजिूत िरे र्ी। शक्तक्त ऊपर से आए तो तु म्हारे कसर िो स्पशग िरे र्ी। और तु म्हारी जड़ोूं ति जाना चाकहए
मामिा। और जि ऊपर से आएर्ी तो तु म्हें हमेशा कवजातीय और िारे न मािूम पड़े र्ी।

इसकिए कजन िोर्ोूं ने प्राथगना िी, वे िभी नही ूं मान पाते कि भर्वान और हम एि हैं । वे िभी नही ूं मान
पाते । इसकिए मुसिमानोूं िा कनरूं तर सख्त कवरोध रहा कि िोई िहे कि मैं भर्वान हूं । क्ोूंकि िहाूं वह ऊपर
और िहाूं हम नीचे! इसकिए वे मूंसूर िा र्िा िाट दें र्े, सरमद िो मार डािें र्े। क्ोूंकि यह सिसे िड़ा िुफ्र
एि ही है उनिी नजर में न कि तु म िह रहे हो कि हम भर्वान! इससे िड़ा िुफ्र नही ूं हो सिता। क्ोूंकि िहाूं
वह ऊपर और िहाूं तु म नीचे जमीन पर सरिते िीड़े —मिोड़े ! और िहाूं वह परम, तु म उसिे साथ अपनी
आइडें कटटी नही ूं जोड़ सिते ।
तो उसिा िारण था; क्ोूंकि जि हम उसे ऊपर मानेंर्े और अपने िो नीचे मानें र्े , तो हम दो हो जाएूं र्े
तत्काि। इसकिए सू िी िभी पसूं द नही ूं पड़ सिे इस्लाम िो, क्ोूंकि सू िी दावा िर रहे हैं इस िात िा कि हम
और वह एि हैं ।

िेकिन हम और वह एि तभी हो सिते हैं जि वह नीचे से आता हो, क्ोूंकि हम नीचे हैं । जि वह
जमीन से ही आता हो, आिाश से नही,ूं तभी हम और वह एि हो सिते हैं । जैसे ही हम परमात्मा िो ऊपर
रखें र्े, पृथ्वी िा जीवन कनूंकदत हो जाएर्ा, पाप हो जाएर्ा; और जन्म िेना पाप िा िि हो जाएर्ा। जैसे ही हम
उसे नीचे रखें र्े, वैसे ही पृथ्वी िा जीवन एि आनूं द हो जाएर्ा; वह पाप िा िि नही,ूं वह परमात्मा िी अनुिूंपा
हो जाएर्ा। और प्रत्ये ि चीज, चाहे वह कितनी ही अूंधेरी हो,उसमें भी उसिी प्रिाश िी किरण म जूद अनु भव
होर्ी। और िैसा ही िुरा से िुरा आदमी हो, कितना ही शै तान हो, किर भी उसिे अूंतरतम िोर पर वह म जू द
रहे र्ा।

इसकिए मैं पसूं द िरू


ूं र्ा कि हम उसे नीचे से ऊपर िी तरि उठना मानें। ििग नही ूं है , ििग नही ूं है
धारणाओूं में। जो जानता है उसिे किए िोई ििग नही ूं है , वह िहे र्ा, ऊपर—नीचे दोनोूं िेिार िी िातें हैं ।
िेकिन जि हम नही ूं जानते हैं और यात्रा िरनी है , तो उकचत होर्ा कि हम वही मानें कजससे यात्रा आसान हो
सिे।

तो इसकिए मेरे मन में तो साधि िे किए उकचत यही है कि वह समझे कि नीचे से शक्तक्त उठे र्ी और
ऊपर िी तरि जाएर्ी; ऊपर िी तरि यात्रा है । इसकिए कजन्ोूंने ऊपर िी तरि िी यात्रा िो स्वीिार किया
उन्ोूंने अकग्न िो प्रतीि माना,क्ोूंकि वह कनरूं तर ऊपर िी तरि जा रही है । दीया है , आर् है , वे कनरूं तर ऊपर
िी तरि जा रहे हैं , तो उन्ोूंने इसिो प्रतीि माना परमात्मा िा। इसकिए अकग्न जो है वह िहुत र्हनतम मन में
हमारे परमात्मा िा प्रतीि िन र्ई। उसिा िुि िारण इतना था कि िुछ भी िरो, वह ऊपर िी तरि ही
जाती है । और कजतना ऊपर िढ़ती है , उतनी ही थोड़ी दे र में खो जाती है ,थोड़ी दू र ति कदखाई पड़ती है , किर
अदृश्य हो जाती है । ऐसा ही साधि भी ऊपर िी तरि जाएर्ा, थोड़ी दे र ति कदखाई पड़े र्ा और अदृश्य हो
जाएर्ा। इसकिए मैं आरोहण— अवतरण नही ूं—उस पर जोर दे ना पसूं द िरू
ूं र्ा।

िस एि और पूछ िो, िस किर उठें र्े।

शब्धि का जागरण:

प्रश्न : ओशो नारगोि जशजिर में आपने कहा है जक तीव्र श्वास—प्रश्वास और 'मैं कौन हां' पूछने के
प्रयत्न से अपने को पू री तरह से थका डािना है ताजक गहरे ध्यान में प्रिेश सां भि हो सके िेजकन ध्यान में
प्रिेश के जिए अजतररि ऊजाओ चाजहए तो थकान की ऊजाओ — क्षीणता से ध्यान में प्रिेश कैसे सां भि होगा?

नही ूं—नही,ूं थिान िा मतिि ऊजागहीनता नही ूं है। असि में, जि तुम अपने िो थिा डािते
हो...'अपने' से मतिि क्ा? 'अपने ' से मतिि तुम्हारे वे द्वार—दरवाजे , तु म्हारी वे इूं कद्रयाूं , कजनसे तु म्हारी ऊजाग
िे िहने िा दै कनि क्रम है —तु म्हारा जो सूं स्थान है , तु म अभी जो हो। उस तु म िी िात नही ूं िर रहा जो तु म हो
सिते हो। जो तु म हो।
तो जि तु म अपने िो थिा डािते हो, तो दोहरी घटनाएूं घटती हैं । इधर तु म अपने िो थिा डािते
हो, तो तु म्हारी सारी इूं कद्रयाूं , तु म्हारा मन, तु म्हारा शरीर थि जाता है । और किसी तरह िी ऊजाग िो वहन िरने
िे किए तै यार नही ूं होता, इनिार िर दे ता है । थिान में तु म किसी तरह िी ऊजाग िो वहन िरने िी तै यारी
नही ूं कदखिाते , तु म िहते हो, अभी मैं थिा हूं ।

तो एि तरि तो यह प्रयोर् तु म्हारे शरीर िो, तु म्हारे मन िो, तु म्हारी इूं कद्रयोूं िो थिाता है , और दू सरी
तरि तु म्हारी िुूंडकिनी पर चोट िरता है ; वहाूं से ऊजाग जर्ती है और यहाूं से तु म थिते हो—यह दोनोूं एि
साथ चिता है । समझे न! यह एि साथ चिता है —इधर तु म थिते हो, उधर से शक्तक्त जर्ती है । और उस शक्तक्त
िो वहन िरने िे योग्य भी तु म नही ूं रहते , कि तु म्हारी आख दे खना चाहे तो िहती है — थिी हूं दे खने िा मन
नही,ूं तु म्हारा मन सोचना चाहे तो मन िहता है — थिा हूं सोचने िा मेरा मन नही,ूं तु म्हारे पैर चिना चाहें तो पैर
िहते हैं —हम थिे हैं , हम चि नही ूं सिते । तो अि अर्र चिना है तो किना पैरोूं िी िोई यात्रा तु म्हारे भीतर
िरनी पड़े र्ी; और अर्र दे खना है तो किना आूं खोूं िे दे खना पड़े र्ा; क्ोूंकि आख थिी है । समझ रहे हैं मेरा
मतिि?

तो तु म्हारा सूं स्थान, तु म्हारा व्यक्तक्तत्व थि जाता है , तो वह इनिार िरता है कि हमें अभी िुछ िरना
नही ूं है । और शक्तक्त जर् र्ई है , जो िुछ िरना चाहती है । तो तत्काि वह उन दरवाजोूं पर चोट िरे र्ी
जो अनथिे पड़े हैं , जो थिे हुए नही ूं हैं , जो तु म्हारे भीतर सदा वहन िरने िे किए तै यार हैं , िेकिन िभी उनिो
म िा ही नही ूं कमिा था कि तु म उनिो भी म िा दे ते, तु म ही खु द इतने सशक्त थे कि तु म सारी शक्तक्त िो िर्ा
डािते थे। वह इधर से शक्तक्त तु म्हारी...

ये दरवाजे इनिार िरें र्े कि क्षमा िरो, इधर नही ूं। वह जो शक्तक्त जर् रही है , ये दरवाजे िहें र्े कि
नही,ूं हमारी िोई इच्छा दे खने िी नही ूं है । तो जि दे खने िे किए आख इनिार िर दे और मन दे खने िी इच्छा
से इनिार िर दे , ति भी जो शक्तक्त जर् र्ई है दे खने िी, उसिा क्ा होर्ा? तो तु म किसी और आयाम में
दे खना शु रू िर दोर्े , वह तु म्हारा किििुि नया कहस्सा होर्ा। वही साइकिि सें टर तु म्हारे दे खने िे खु िने शु रू
हो जाएूं र्े। तु म िुछ ऐसी चीजें दे खने िर्ोर्े जो तु मने िभी नही ूं दे खी ,ूं और ऐसी जर्ह से दे खने िर्ोर्े जहाूं से
तु मने िभी नही ूं दे खी ूं। िेकिन उसिो तो िभी म िा नही ूं कमिा था। उसिो िभी म िा ही नही ूं कमिा था तु म्हारे
भीतर से । तो उसिे किए म िा िनेर्ा।

अती ांजद्रय केंद्रोां का सजक्य होना:

तो थिाने िा मेरा जोर है । इधर शरीर िो थिा डािना है , मन िो थिा डािना है —तु म जो हो, उसिो
थिा डािना है —ताकि तु म जो अभी हो, िेकिन तु म्हें पता नही,ूं वह सकक्रय हो सिे तु म्हारे भीतर। और
ऊजाग जर्ेंर्ी, वह तो ि रन िहे र्ी हमें...... .ऊजाग जर्ेंर्ी तो वह िहे र्ी िाम चाकहए। और िाम तु म्हारे अक्तस्तत्व
िो दे ना पड़े र्ा उसे । वह खु द िाम खोज िेर्ी। तु म्हारे िान थिे हैं , तो भी वह ऊजाग जर् र्ई है , तो वह सु नना
चाहे र्ी तो नाद सु नेर्ी। उन नादोूं िे किए तु म्हारे िान िी िोई जरूरत नही ूं है । तु म्हारी आूं खोूं िी िोई जरूरत
नही ूं है , ऐसा प्रिाश दे खेर्ी। ऐसी सु र्ूंध आने िर्ेर्ी कजसिे किए तु म्हारी नाि िी िोई जरूरत नही ूं है ।

तो तु म्हारे भीतर सू क्ष्मतर इूं कद्रयाूं , या अती ूंकद्रया, जो भी हम नाम दे ना पसूं द िरें , वे सकक्रय हो जाएूं र्ी।
और हमारी सि इूं कद्रयोूं िे साथ एि—एि अती ूंकद्रय िा जोड़ है । यानी एि िान तो वह है जो िाहर से सु नता
है , और एि िान और है तु म्हारे भीतर जो भीतर सु नता है । िेकिन उसिो तो िभी म िा नही ूं कमिा। तो जि
तु म्हारा िाहर िा िान थिा है और ऊजाग जर्िरिान िे पास आ र्ई है , और िान िहता है , मुझे सु नना
नही,ूं सु नने िी िोई इच्छा ही नही,ूं ति वह ऊजाग क्ा िरे र्ी? वह तु म्हारे उस दू सरे िान िो सकक्रय िर दे र्ी
जो सु न सिेर्ा, कजसने िभी नही ूं सु ना।

इसकिए ऐसी चीजें तु म सु नोर्े , ऐसी चीजें दे खोर्े, कि तु म किसी से िहोर्े तो वह िहे र्ा, पार्ि हो! ऐसा
िही ूं होता है ! किसी वहम में पड़ र्ए होओर्े , िोई सपना दे ख किया होर्ा! िेकिन तु म्हें तो वह इतना स्पष्ट
मािूम पडे र्ा कजतना कि िाहर िी वीणा िभी मािूम नही ूं पड़ी। वह भीतर िी वीणा इतनी स्पष्ट होर्ी कि तु म
िहोर्े , हम िैसे मानें ? अर्र यह झूठ है तो किर िाहर िी वीणा िा क्ा होर्ा, वह तो किििुि ही झूठ हो
जाएर्ी!

तो तु म्हारी इूं कद्रयोूं िा थिना तु म्हारे अक्तस्तत्व िे नये द्वारोूं िे खु िने िे किए प्रारूं कभि रूप से जरूरी है ।
एि दिा खु ि जाए, किर तो िोई िात नही ूं। क्ोूंकि किर तो तु म्हारे पास तु िना भी होती है कि अर्र दे खना ही
है तो किर भीतर ही दे खो,क्ोूंकि इतना आनदपूणग है कि क्ोूं किजूि िाहर दे खता रहूं ! िेकिन अभी तु िना नही ूं
है तु म्हारे पास; अभी तो दे खना है तो िाहर ही दे खना है । एि ही कविल्प है । एि िार तु म्हारी भीतर िी आख भी
दे खने िर्े, ति तु म्हारे सामने कविल्प साि है । तो जि भी दे खने िा मन होर्ा, तु म भीतर दे खना चाहोर्े। क्ोूं
म िा चू िना! िाहर दे खने से क्ा मतिि है !

राकिया िे जीवन में उल्रे ख है कि साूं झ िो सू रज ढि रहा है और वह अूंदर अपने झोपड़े में िैठी है ।
हसन नाम िा ििीर उससे कमिने आया है । सू रज ढि रहा है और िड़ी सुूं दर साूं झ है । तो हसन उससे
कचल्रािर िहता है कि राकिया, तू क्ा िर रही है भीतर? िहुत सुूं दर साूं झ है , इतना सुूं दर सू याग स्त मैंने िभी
दे खा नही,ूं ऐसा सू यग दोिारा दे खने नही ूं कमिे र्ा, िाहर आ! तो राकिया उससे िहती है कि पार्ि, िि ति िाहर
िे सू यग िो दे खता रहे र्ा! मैं तु झसे िहती हूं तू भीतर आ! क्ोूंकि हम उसे दे ख रहे हैं कजसने सू यग िो
िनाया; और हम ऐसे सू यग दे ख रहे हैं जो अभी अनिने हैं और िभी िनें र्े। तो अच्छा हो कि तू भीतर आ!

अि वह हसन नही ूं समझ पाया कि वह क्ा िह रही है । पर यह औरत िहुत अदभुत हुई। दु कनया में
कजन क्तस्त्रयोूं ने िुछ किया है , उन दोूं—चार क्तस्त्रयोूं में एि है वह राकिया। पर वह हसन नही ूं समझ पाया। वह
उससे किर िह रहा है कि दे ख, साूं झचूिी जा रही है ! और वह राकिया िह रही है कि पार्ि, तू साूं झ में ही चूि
जाएर्ा; इधर भीतर िहुत िुछ चूिा जा रहा है । वह किििुि दो ति पर िात हो रही है , क्ोूंकि वह दो अिर्
इूं कद्रयोूं िी िात हो रही है । िेकिन अर्र दू सरी इूं कद्रय िा तु म्हें पता नही,ूं तो भीतर िा िोई मतिि ही नही ूं
होता, िाहर िा ही सि मतिि होता है । इस अथग में मैंने िहा कि वे थि जाएूं तो शु भ है ।

थकाने का अथओ ऊजाओ हीनता नही ां है :

प्रश्न: ओशो तो इस प्रयोग में थकाने का अथओ ऊजाओ हीनता नही ां है ।

नही ूं, किििुि नही ूं। ऊजाग तो जर् रही है, ऊजाग तो जर् रही है; ऊजाग िो जर्ाने िे किए ही सारा
िाम चि रहा है । हाूं , इूं कद्रयाूं थि रही हैं । इूं कद्रयाूं ऊजाग नही ूं हैं , कसिग ऊजाग िे िहने िे द्वार हैं । यह दरवाजा मैं
नही ूं हूं मैं तो और हूं । इस दरवाजे से िाहर— भीतर आता—जाता हूं । दरवाजा थि रहा है , और दरवाजा िह
रहा है —िृपा िरिे हमसे िाहर मत जाओ, िहुत थिे हुए हैं । िेकिन िहाूं जाओर्े , किर रहना तो भीतर
पड़े र्ा। दरवाजा िह रहा है — हम िहुत थिे हुए हैं , अि िृपा िरो कि मत जाओ िाहर; क्ोूंकि जाओर्े तो हमें
किर िाम में िर्ना पड़े र्ा। आख िह रही है कि हम थि र्ए हैं , अि इधर से यात्रा मत िरो। इूं कद्रयाूं थि रही
हैं । और इनिा थिना प्राथकमि रूप से िडा सहयोर्ी है । उस अथग में।

तादास्थ्य के कारण थकान:

प्रश्न: ओशो यह ऊजाओ यजद अजधक है तो टायडओ नेस नही ां िगनी चाजहए फ्रेशनेस िगनी चाजहए।

नही ूं, शुरू में िर्ेर्ी। धीरे — धीरे तो तुम्हें िहुत ताजर्ी िर्ेर्ी, जैसी ताजर्ी तुमने िभी नही ूं जानी।
िेकिन शु रू में थिान िर्ेर्ी। शु रू में थिान इसकिए िर्ेर्ी कि तु म्हारी आइडें कटटी इन इूं कद्रयोूं से है । इन्ी ूं िो
तु म समझते हो ' मैं'। तो जि इूं कद्रयाूं थिती हैं , तु म िहते हो, मैं थि र्या। इससे तु म्हारी आइडें कटटी टू टनी
चाकहए न! कजस कदन.......

ऐसा मामिा है कि तु म्हारा घोड़ा थि र्या, तु म घोड़े पर िैठे हो। िेकिन तु म सदा से समझते थे कि मैं
घोड़ा हूं । अि घोड़ा थि र्या, अि तु मने िहा, हम मरे , हम थि र्ए। वह हमारे थिने िा जो मतिि है , हमारी
आइडें कटटी कजससे है , वही हम िहते हैं । मैं घोड़ा हूं तो मैं थि र्या।

कजस कदन तु म जानोर्े कि मैं घोड़ा नही ूं हूं उस कदन तु म्हारी फ्रेशनेस िहुत और तरह से आनी शु रू
होर्ी। और ति तु मजानोर्े कि इूं कद्रयाूं थि र्ई हैं , िेकिन मैं िहाूं थिा! िक्तम्ऻ इूं कद्रयाूं चूूंकि थि र्ई हैं और
िाम नही ूं िर रही हैं , इसकिए िहुत सी ऊजाग जो उनसे कविीणग होिर व्यथग हो जाती थी, वह तु म्हारे भीतर
सूं रकक्षत हो र्ई है और पुूंज िन र्ई है । और तु म ज्यादा,कजसिो िहना चाकहए िूंजवेशन ऑि एनजी अनु भव
िरोर्े कि तु मने िहुत ऊजाग िचाई जो तु म्हारी सूं पकि िन र्ई है । और चूूंकि िाहर नही ूं र्ई, इसकिए
तु म्हारे रोएूं —रोएूं पोर—पोर में भीतर िैि र्ई है । िेकिन इससे तु म एि हो, यह तु म्हें जि खयाि आना शु रू
होर्ा, तभी तु म्हें ििग िर्े र्ा।

ध्यान से ताजगी:

तो धीरे — धीरे तो ध्यान िे िाद िहुत ही ताजर्ी मािूम होर्ी। ताजर्ी िहना ही र्ित है , तु म ताजर्ी हो
जाओर्े। यानी ऐसा नही ूं कि ऐसा िर्ेर्ा कि ताजर्ी मािूम हो रही है । तु म ताजर्ी हो जाओर्े —यू कवि िी
कद फ्रेशनेस। िेकिन वह तो आइडें कटटी िदिे र्ी ति। अभी तो घोड़े पर िै ठे हो, िहुत मुक्तिि से , कजूंदर्ी भर
यही समझा है कि मैं घोड़ा हूं । सवार हूं इसिो समझने में वक्त िर्ेर्ा। और शायद घोड़ा थििर कर्र पड़े , तो
आसानी हो जाए तु म्हें। अपने पैर से चिना पड़े थोड़ा, तो पता चिे कि मैं तो अिर् हूं ।

िेकिन घोड़े पर ही चिते —चिते यह खयाि ही भू ि र्या है कि मैं भी चि सिता हूं ।


ोसा है ! इसजिए थकेगा घोडा तो अर्च्ा होगा।

आज इतना ही।

प्रिचन 9 - श्वास की कीजमया

तीसरी प्रश्नोत्तर चचाओ

प्रश्न : ओशो रूस के बहुत बड़े अध्यात्मजिद् और जमब्धस्टक जॉजओ गरजजएि ने अपनी आध्याब्धत्मक
खोज— यात्रा के सां स्मरण 'मीजटां ग्स जिद जद ररमाकेबि मेन ' नामक पस्तक में जिखे हैं । एक दरिेश
िकीर से उनकी कािी चचाओ भोजन को चबाने के सां बांध में तथा योग के प्राणायाम ि आसनोां के सां बांध में
हुई जजससे िे बड़े प्रभाजित भी हुए। दरिेश ने उन्ें कहा जक भोजन को कम चबाना चाजहए कभी— कभी
थी सजहत भी जनगि जाना चाजहए; इससे पेट शब्धिशािी होता है । इसके साथ ही दरिेश ने उन्ें जकसी
भी प्रकार के श्वास के अभ्यास को न करने का सझाि जदया। दरिेश का कहना था जक प्राकृजतक श्वास—
प्रणािी में कछ भी पररितओ न करने से सारा व्यब्धित्व अस्तव्यस्त हो जाता है और उसके घातक पररणाम
होते हैं इस सां बांध में आपका क्ा मत है ?

इसमें पहिी िात तो यह है कि यह तो ठीि है कि अर्र भोजन चिाया न जाए, तो पेट शक्तक्तशािी
हो जाएर्ा। और जो िाम मुूंह से िर रहे हैं वह िाम भी पेट िरने िर्े र्ा। िेकिन इसिे पररणाम िहुत घाति
होूंर्े।

पहिी तो िात यह है कि मुूंह जो है वह पेट िा कहस्सा है । वह पेट से अिर् चीज नही ूं है । वह पेट िी
शु रुआत है । पेट और मुूंह दो चीजें नही ूं हैं , दो अिर् चीजें नही ूं हैं ; मुूंह पेट िी शु रुआत है । तो िहाूं से पेट शु रू
होता है , यह कजस आदमी से र्ुरकजएि िी िात हुई उस दरवे श िो िुछ पता नही ूं है । पेट िहाूं से शु रू होता
है ? पेट मुूंह से शु रू होता है । और अर्र मुूंह िा िाम आपने नही ूं किया.. .उसिा िाम है और अकनवायग िाम
है । अर्र उसे आप छोड़ दें तो पेट उस िाम िो िरने िर्े र्ा। िेकिन उस िरने में दोहरे नुिसान होूंर्े।

मांह के साथ मब्धस्तष्क के आां तररक सां बांध:


एि नु िसान तो यह होर्ा कि शरीर िा सारा िाम िूंटा हुआ है । एि तरह िा कडवीजन ऑि िे िर
है , श्रम कवभाकजत है शरीर में। अर्र हम इस श्रम—कवभाजन िो तोड़ दें और एि ही अूंर् से और िाम भी िे ने
िर्ें , तो वह अूंर् तो शक्तक्तशािी हो जाएर्ा, िेकिन कजस अूंर् से हम िाम िेना िूं द िर दें र्े वह एिदम
शक्तक्तहीन हो जाएर्ा। और पेट अर्र िहुत शक्तक्तशािी हो तो आप एि पशु तो हो जाएूं र्े िड़े
शक्तक्तशािी, िेकिन अर्र मुूंह िमजोर हो जाए तो आप मनुष्य नही ूं रह जाएूं र्े। क्ोूंकि मुूंह िी िमजोरी िे
िहुत घाति पररणाम हैं । क्ोूंकि मुूंह िे साथ हमारे मक्तस्तष्क िे िहुत आूं तररि सूं िूंध हैं, जैसे पेट िे सूं िूंध
हैं ,वैसे मक्तस्तष्क िे सूं िूंध हैं । और हमारे मुूंह िे शक्तक्तशािी होने पर कनभगर िरता है कि हमारे मक्तस्तष्क िे स्नायु
शक्तक्तशािी होूं।

तो जैसे एि आदमी अर्र र्ूूंर्ा है , िोि नही ूं सिता, तो उसिे मक्तस्तष्क िे िहुत से कहस्से सदा िे किए
िेिार रह जाएूं र्े। र्ूूंर्ा आदमी िु क्तद्धमान नही ूं हो सिता। अूंधा आदमी िहुत िु क्तद्धमान हो जाएर्ा। र्ूूंर्ा आदमी
ईकडयट हो जाएर्ा, उसमें िुक्तद्ध कविकसत नही ूं होर्ी। क्ोूंकि उसिे मुूं ह िे साथ िहुत से उसिे मक्तस्तष्क िे
जोड़ हैं । और मुूंह िे चिाने िे साथ आपिे पेट िा चिना शु रू हो जाता है । अर्र आप मुूंह न चिाएूं , तो पेट
िा जो चिना शु रू होना है वह भी िहुत िकठन िात है । और हमारे मुूंह िे पास िुछ चीजें हैं , जो पेट िे पास
नही ूं हैं ।

प्रश्न: सिाइिा?

हाूं , सिाइवा; जो कि नही ूं है पेट िे पास और उसिे किए उसे अकतररक्त श्रम िरना पड़े। और यह
िात सच है कि िोई अूंर् अर्र िाम िरे तो शक्तक्तशािी होता है । िेकिन अर्र उसे ऐसा िाम िरना पड़े जो
कि उसिा नही ूं है , तो क्षीण होता है ; क्ोूंकि उस पर अकतररक्त भार है ।

और भी िड़े मजे िी िात है कि पेट िे िहुत से िाम िो जि हम कवभाकजत िर दे ते हैं — िुछ मुूंह
िर िेता है , िुछ पेट िर िेता है —तो हमारी जो ऊजाग है , हमारी जो एनजी है , वह पेट पर िेंकद्रत नही ूं हो पाती।
वह पेट से मुक्त होना शु रू होती है । इसकिए जैसे ही आप खाना खाते हैं , नी ूंद आनी शु रू हो जाती है । क्ोूंकि
आपिे मक्तस्तष्क में जो शक्तक्त थी वह भी पेट अपने भीतर िु िा िेता है । वह िहता है कि अि उसे भी िाम में
िर्ा दे ना है । क्ोूंकि खाना िहुत िुकनयादी तत्व है जीवन िे किए। सोचना वर्ैरह र् ण िातें हैं , इनमें पीछे
िर्ेंर्े, अभी पेट िो पचा िेने दें । तो जैसे ही आप खाना खाते हैं , वैसे ही मन सोने िा होने िर्ता है । उसिा
िारण यह है कि मक्तस्तष्क से सारी ऊजाग वापस िु िा िी र्ई।

पेट पर कजतना िाम िढ़े र्ा, मक्तस्तष्क उतना िमजोर होता चिा जाएर्ा। क्ोूंकि उसिो उतनी ऊजाग
िी जरूरत पड़े र्ी। और जो नॉन—एसें कशयि कहस्से हैं जीवन में , वह उनसे खी ूंच िेर्ा। मक्तस्तष्क जो है वह
िग्जूररयस कहस्सा है । उसिे किना जानवर िाम चिा रहे हैं । वह िोई जीकवत होने िे किए जरूरी कहस्सा नही ूं
है । िेकिन पेट जीकवत होने िे किए जरूरी कहस्सा है । उसिे किना िोई िाम नही ूं चिा रहा, वृक्ष भी िाम नही ूं
चिा सिता उसिे किना। तो वह िहुत एसें कशयि िेंद्रीय तत्व है ।

तो हमारे मक्तस्तष्क वर्ैरह िो शक्तक्त तभी कमिती है , जि वह पेट से िचती है । अर्र वह पेट में िर् जाए
तो वह मक्तस्तष्क िो नही ूं कमिती। इसकिए र्रीि ि म िे पास मक्तस्तष्क धीरे — धीरे क्षीण होने िर्ता
है , कविकसत नही ूं होता। क्ोूंकि उसिी पेट पर सारी िी सारी शक्तक्त िर् जाती है । और उसिे पेट से ही िुछ
नही ूं िचता कि वह िही ूं और जा सिे, शरीर िे और कहस्सोूं में िैिाव हो सिे।

ररिाइां ड िूड से मब्धस्तष्क का जिकास:

तो कजतना हम पेट िा िाम िम िर दें , उतना ही मक्तस्तष्क कविकसत होता है। इसकिए कजतना
ररिाइूं ड िूड है ,कजसिो कि पेट िो पचाने में िम से िम ताित िर्ती है , उतना मक्तस्तष्क कविकसत होता चिा
जाता है । इसकिए कजस कदन हम कसूं थेकटि िूड िे सिेंर्े , कसिग र्ोिी आपने िी और आपिा िाम पूरा हो
र्या, उस कदन मक्तस्तष्क िो इतनी ऊजाग कमिेर्ी कजतनी िभी भी नही ूं कमिी। और उस ऊजाग िे अनूंत पररणाम
होूंर्े।

असि में, पेट िा िाम नही ूं िढ़ाना है , पेट िा िाम रोज िम िरना है । अर्र र् र से दे खें तो जैसे —
जैसे नीचे उतरें र्े उतना पेट िा िाम ज्यादा पाएूं र्े पशु में। जैसे एि भैंस है , वह च िीस घूंटे ही चिा रही
है , च िीस घूंटे ही खा रही है । उसिा पेट िा ही िाम पूरा नही ूं हो पाता। इसकिए मक्तस्तष्क जैसी चीज िी उसमें
झिि नही ूं कमि पाती। मनुष्य उतना ही कविकसत होता चेिा जाएर्ा कजतनी पेट से ऊजाग उसिी मुक्त होने
िर्ेर्ी। अर्र िहुत ठीि से समझें तो कजस कदन मनुष्य पेट से मुक्त होर्ा उसी कदन पशु ता से मुक्त हो जाएर्ा।
उस कदन िे िाद उसिो पशु होने िा िोई अथग नही ूं है । और इसकिए पेट िा िाम िढ़ाना नही ूं है , पेट िा िाम
कनरूं तर िम िरना है ।

उपवास िा यही प्रयोजन है । क्ोूंकि पेट िा िाम िुछ दे र िे किए किििुि िूंद हो जाए, तो मक्तस्तष्क
िे किए पूरी शक्तक्त कमि जाती है । इसकिए उपवास िे क्षण में मक्तस्तष्क में शक्तक्त िा िड़ा तीव्र प्रवाह होता है ।
ज्यादा खाना खा िें तो मक्तस्तष्क िी शक्तक्त सि पेट में चिी जाती है तत्काि। इसकिए िहुत खाना खा िें तो किर
तो मक्तस्तष्क िाम िर ही नही ूं सिता। तो इसकिए पेट िा िाम कनरूं तर िम िरना है । मुूंह उसमें हाथ िूंटाता
है । इसकिए कजतना आप चिा िें उतना कहतिर है । यानी इतना चिा िें कि पेट िो िाम ही न िचे तो और भी
ज्यादा कहतिर है । और िड़े मजे िी िात यह है , िड़े मजे िी िात यह है , इसिो थोड़ा सा दे खने जैसा है , क्ोूंकि
आदमी िा सारा कविास पेट से मुक्त होने िा कविास है । वह धीरे — धीरे पेट से मुक्त होने िी िोकशश में िर्ा
हुआ है । ठीि से ठीि भोजन खोज रहा है कि उसिो डाइजेशन िा उपद्रव िम हो जाए।

तो एि तो मैं तो इसमें र्वाही नही ूं दू ूं र्ा।

अच्छा दू सरी िात यह है कि हमारे मक्तस्तष्क िा जो कहस्सा है .. .मुूंह दो चीजोूं से जुड़ा है —इधर पेट से
और इधर मक्तस्तष्क से । मुूंह दोनोूं िे िीच में पड़ता है । अर्र हम आदमी िा सारा कविास दे खें तो वह, ठीि
समझें हम तो, मुूंह िा ही कविास है । िािी सारा शरीर इस छोटे से कसर िा ही िाम िर रहा है । िािी सि जो
है वह िैक्ङर ी इस छोटे से कसर िे किए चि रही है । चाहे हमारा प्रेम हो, चाहे हमारी िुक्तद्ध हो, चाहे हमारी प्रकतभा
हो, वह िहुत र्हरे में हमारे मुूंह से सूं िूंकधत है । और इसिा हम िैसे उपयोर् िरते हैं , कितना ज्यादा उपयोर्
िरते हैं , यह कितना मजिूत होता है , उतनी ही ऊजाग नीचे िी तरि जाने िी िजाय ऊपर िी तरि जानी शु रू
होती है । तो इसिा तो ज्यादा से ज्यादा उपयोर् होना चाकहए।
और अर्र ठीि से चिाया हो किसी ने तो उसिे दाूं त ही नही ूं कर्रें र्े। अर्र ठीि से चिाया हो, तो वह
जो िात िह रहा है दरवेश, वह िभी नही ूं घटे र्ी। अर्र किसी ने कजूंदर्ी भर ठीि से चिाया तो दाूं त तो कर्रें र्े
ही नही ूं। वह मरते दम ति अपने ठीि वही दाूं त िेिर जाएर्ा जो दाूं त िेिर आया था। शायद उससे भी ज्यादा
मजिूत, क्ोूंकि वे इतना िाम िर चु िे होूंर्े। और कजतना उसिा मुूंह मजिूत हो, उतना ही उसिा पेट मजिूत
होर्ा। क्ोूंकि मुूंह शु रुआत है उसिे पेट िी। यानी मुूंह जो है वह पेट िा द्वार ही है । वह पेट से अिर् िोई
चीज नही ूं। उसिो अिर् मानिर चिना र्ित है । और अर्र हड्डी, जैसा वह िह रहा है कि हड्डी भी ऐसे ही
र्टि जाओ, र्टि सिते हैं आप, और पेट उसिी भी चेष्टा िरे र्ा, िेकिन वह इनझूमन चेष्टा होर्ी। और ति
पेट िो इतनी शक्तक्त िी जरूरत पड़े र्ी कि आप िुछ और िाम ही नही ूं िर पाएूं र्े , िस हड्डी पचा िी तो िहुत
िाम हो र्या। और आप पेट िेंकद्रत हो जाएूं र्े। आपिा व्यक्तक्तत्व जो है वह पेट पर िेंकद्रत हो जाएर्ा।

जीिन के महत्वपूणओ काम— अांधेरे में:

और दू सरी और जो िात है वह यह है कि पेट कजतने अचेतन में हो उतना अच्छा। आपिो उसिा पता
न चिे , उतना उसिी वकिंर् जो है , स्भूथ और अच्छी होर्ी। अर्र आपिो पेट िा पता चिे तो आप रूग्ण हो
जाएूं र्े। असि में , हमारे व्यक्तक्तत्व में िुछ चीजें हैं , जो हमारी चेतना में नही ूं होनी चाकहए। चे तना में होूंर्ी तो आप
नुिसान पाएूं र्े। तो पेट िा िाम कजतना हििा हो, उतना ही अचेतन होर्ा, अनिाूं शस होर्ा। आपिो पता नही ूं
चिेर्ा पेट िा।

और कजतना पेट िा िम पता चिेर्ा उतने आप स्वस्थ और वेि िीइूं र् अनुभव िरें र्े। अर्र ठीि से
समझें तो आपिी जो इिनेस िा जो िोध है िीमारी िा वह पेट िे िोध से शु रू होता है । जैसे ही आपिो पता
चिा कि पेट भी है शरीर में कि आप िीमार हुए। अर्र आपिो पता न चिे कि पेट है तो आप स्वस्थ हैं । और
पेट िा जो िाम है वह जो है आपिी अचेतना िा िाम है । जीवन िे कजतने महत्वपूणग िाम हैं , वे अूंधेरे में होते
हैं और उनिे किए चेतना िी जरूरत नही ूं है । जड़ें अूंधेरे में ,जमीन में िड़ी होती हैं । िच्चा माूं िे पे ट में अूंधेरे में
िड़ा होता है । हमारे पेट िा सारा िा सारा िाम हमारे ज्ञान िे िाहर होता है । आपिे ज्ञान िे भीतर उसिो
िाने िी जरूरत नही ूं है । िेकिन अर्र पेट पर िहुत िाम आपने डािा तो वह आपिे ज्ञान िे भीतर आ जाएर्ा
तत्काि, क्ोूंकि उस पर अकतररक्त श्रम पड़े र्ा। और पेट शान में आया तो आप च िीस घूंटे रुग्ण हैं ।

तो र्ुरकजएि िो िुछ तो िहुत अदभुत िातोूं िा खयाि था। िेकिन एि खतरा उसिे साथ हुआ और
वह यह कि वह िहुत सी परूं पराओूं से सूं िूंकधत था। इसकिए िई अथों में वह भानुमकत िा कपटारा है । और वह
िभी भी तय नही ूं िर पाया कि इनिे िीच तािमे ि क्ा है । अि यह िात जूं चती है , दरवेश ने जि िही तो उसे
यह िात जूंच र्ई। अर्र उसे जो मैं िह रहा हूं यह भी िहता, यह िात भी जूं च सिती थी। और इन दोनोूं िा
तािमेि किठािना िहुत मुक्तिि हो जाता।

प्राणायाम और कृजत्रम श्वास से हाजन का खतरा:

दू सरी जो िात िह रहा है वह प्राणायाम और िृकत्रम श्वास िे किए, उसमें भी िुछ िातें सच हैं । असि
में, ऐसा िोई असत्य नही ूं होता कजसमें कि िुछ सत्य न हो; होता ही नही;ूं होता ही नही ूं। अच्छा वह जो उसमें
सत्य होता है वही प्रभाव िाता है ; और उसिे साथ वह जो असत्य है वह भी सरि जाता है , हमें िभी पता नही ूं
चिता कि क्ा हो र्या। अि इसमें िहुत सच्चाई है कि जहाूं ति िने , साधारणत:, जीवन िा जो सहज क्रम
है , उसमें िाधा नही ूं डािनी चाकहए। उपद्रव होने िा डर है । तो जो व्यवस्था चि रही है सहज— आपिी श्वास
िी, उठने िी, िैठने िी, चिने िी—जहा ति िने उसमें िाधा नही ूं डािना उकचत है । क्ोूंकि िाधा डािने से ही
पररवतग न शु रू होूंर्े।

यह ध्यान रहे कि हाकन भी एि पररवतग न है और िाभ भी एि पररवतग न है ; दोनोूं ही पररवतग न हैं । तो आप


जैसे हैं , अर्र ऐसे ही रहना है , ति तो िुछ भी छे ड़छाड़ िरनी उकचत नही ूं है ; िेकिन अर्र िुछ भी इससे जाना
है िही ूं भी, िोई भी पररवतग न िरना है , िोई भी टर ाूं सिामेंशन, तो हाकन िा खतरा िेना पड़े र्ा। वह जो.. .हाकन
िा खतरा तो है ही, कि आपिी जो श्वास चि रही है अभी, अर्र इसिो और व्यवस्था दी जाए तो आपिे पू रे
व्यक्तक्तत्व में अूंतर पड़ें र्े। िेकिन अर्र आप अपने व्यक्तक्तत्व से राजी हैं , और सोचते हैं कि जैसा है ठीि है , ति
तो उकचत है । िेकिन अर्र आप सोचते हैं कि यह व्यक्तक्तत्व पयाग प्त नही ूं मािू म होता, तो अूंतर िरने पड़ें र्े।

श्वास पररितओ न से व्यब्धित्व में रूपाां तरण:

और ति श्वास पर अूंतर सिसे िीमती िात है । और ये जो.......जैसे ही श्वास पर आप अूंतर िरें र्े वैसे ही
आपिे भीतर िहुत सी चीजें टू टनी और िहुत सी नई चीजें िननी शु रू हो जाएूं र्ी। अि हजारोूं प्रयोर् िे िाद यह
तय किया र्या है कि वह श्वास िे किस प्रयोर् से ि न सी चीजें िनें र्ी, ि न सी टू टें र्ी। और अि िरीि—िरीि
सु कनकश्चत िात हो र्ई है ।

जैसे िुछ तो हम सििे भी अनु भव में होता है । जैसे जि आप क्रोध में होते हैं तो श्वास िदि जाती
है ; वह वैसी नही ूं रहती जैसी थी। अर्र िभी िहुत ही साइिेंस अनु भव होर्ी तो भी श्वास िदि जाएर्ी; वह वैसी
नही ूं रहे र्ी जैसी थी। अर्र आपिो पता चि र्या है कि साइिेंस में श्वास िैसी हो जाती है , तो आप अर्र वैसी
श्वास िर सिें तो साइिेंस पैदा हो जाएर्ी। ये जो दोनोूं हैं , ये दोनोूं इूं टर—िनेक्ङेड हैं । जि मन िामातु र होर्ा
तो श्वास िदि जाएर्ी। अर्र मन िामातु र हो और आप श्वास िो न िदिने दें , तो आप ि रन पाएूं र्े कि
िामातु रता कवदा हो र्ई। वह िाम कविीन हो जाएर्ा, वह कटि नही ूं सिता;क्ोूंकि िॉडी िे मेिेकनज्य में सारी
चीजोूं में तारतम्य होना चाकहए तभी िुछ हो सिता है । अर्र क्रोध जोर से आ रहा है और उस वक्त आप श्वास
धीमी िेने िर्ें , तो क्रोध कटि नही ूं सिता; क्ोूंकि श्वास में उसिो कटिने िी जर्ह नही ूं कमिे र्ी।

श्वास और मन के िैज्ञाजनक जनयम:

तो श्वास िे जो अूंतर हैं , वे िड़े िीमती हैं । और श्वास िे अूंतर से आपिे मन िा अूंतर पड़ना शु रू
होर्ा। और जि साि हो चु िा है और िहुत वैज्ञाकनि रूप से साि हो चु िा है श्वास िी ि न सी र्कत पर मन
िी क्ा र्कत होर्ी, ति खतरे नही ूं हैं । खतरे थे उनिो कजन्ोूंने प्रारूं कभि प्रयोर् किए हैं ; खतरा आज भी है उसिो
जो जीवन िी किसी भी कदशा में प्रारूं कभि प्रयोर् िरता है । िेकिन जि प्रयोर् साि हो जाते हैं तो वे िहुत
साइूं कटकिि हैं । यानी यह असूं भव है कि एि आदमी श्वास िो शाूं त रखे और क्रोध िर िे। यह असूं भव है , ये
दोनोूं िातें एि साथ नही ूं घट सिती ूं। इससे उिटा भी सूं भव है कि अर्र आप उसी तरह िी श्वास िेने िर्ें जैसी
आप क्रोध में िेते हैं , तो आप थोड़ी दे र में पाएूं कि आपिे भीतर क्रोध जर् र्या। तो प्राणायाम ने आपिे कचि िे
पररवतग न िे किए िहुत से उपाय खोजे हैं ।

प्राकृजतक और अप्राकृजतक श्वास:

और दू सरी िात यह है कि कजसिो हम िह रहे हैं आकटग िीकशयि ब्रीकदूं र् और कजसिो हम नेचरि िह
रहे हैं , यह िासिा भी समझने जैसा है । कजसिो आप नेचरि िह रहे हैं , वह भी नेचरि नही ूं है ; वह ब्रीकदूं र्
नेचरि नही ूं है । िक्तम्ऻ िहुत ठीि से समझा जाए तो वह ऐसी आकटग िीकशयि ब्रीकदूं र् है कजसिे आप आदी हो
र्ए हैं , कजसिो आप िहुत कदन से िर रहे हैं इसकिए आदी हो र्ए हैं ; िचपन से िर रहे हैं इसकिए आदी हो र्ए
हैं । आपिो पता नही ूं है कि नेचरि ब्रीकदूं र् क्ा है । इसकिए कदन भर आप एि तरह से िेते हैं श्वास, रात में आप
दू सरी तरह से िेते हैं । क्ोूंकि कदन में जो िी थी वह आकटग िीकशयि थी, और इसकिए रात में नेचरि शु रू होती है
जो कि आपिी है किट िे िाहर है ।

तो रात िी ही श्वास िी प्रकक्रया ज्यादा स्वाभाकवि है िजाय कदन िे। कदन में तो हमने आदत डािी है
ब्रीकदूं र् िी, और आदत िे हमारे िई िारण हैं । जि आप भीड़ में चिते हैं ति आप एहसास िरें , जि आप
अिेिे में िैठते हैं ति एहसास िरें ,तो आप पाएूं र्े आपिी ब्रीकदूं र् िदि र्ई। भीड़ में आप और तरह से श्वास
िेते हैं , अिेिे में और तरह से । क्ोूंकि भीड में आप टें स होते हैं । चारोूं तरि िोर् हैं , तो आपिी ब्रीकदूं र् छोटी हो
जाएर्ी; ऊपर से ही जल्दी ि ट जाएर्ी; पूरी र्हरी नही ूं होर्ी। जि आप आराम से िैठे हैं , अिेिे हैं , तो वह पूरी
र्हरी होर्ी। इसकिए जि रात आप सो र्ए हैं तो वह पूरी र्हरी होर्ी।.......वह आपने कदन में िभी नही ूं िी
है , क्ोूंकि वह इतनी िभी र्हरी नही ूं र्ई कि आवाज भी िर सिे।

पेट से श्वास िेना जनदोषता का िक्षण:

तो कजसिो हम िह रहे हैं ने चरि वह नेचरि नही ूं है , कसिग िूंडीशूं ड आकटग िीकशयि है ; कनकश्चत हो र्ई
है , आदत हो र्ई है । इसकिए िच्चे एि तरह से ब्रीकदूं र् िे रहे हैं । अर्र िच्चे िो सु िाएूं , तो आप पाएूं र्े उसिा
पेट कहि रहा है , और आप ब्रीकदूं र् िे रहे हैं तो छाती कहि रही है ।

िच्चा नेचरि ब्रीकदूं र् िे रहा है । अर्र िच्चा कजस ढूं र् से श्वास िे रहा है , आप िें , तो आपिे मन में वही
क्तस्थकतयाूं पैदा होनी शु रू हो जाएूं र्ी जो िच्चे िी हैं । उतनी इनोसें स आनी शु रू हो जाएर्ी कजतनी िच्चे िी है । या
अर्र आप इनोसें ट हो जाएूं र्े तो आपिी ब्रीकदूं र् पे ट से शु रू हो जाएर्ी।

इसकिए जापान में और चीन में िु द्ध िी जो मू कतग याूं हैं , वे उन्ोूंने कभन्न िनाई हैं ; वे कहूं दुस्तानी शइतग योूं से
कभन्न हैं । कहूं दुस्तान में िु द्ध िा पेट छोटा है ; जापानी और चीनी मुम्ऻोूं में िु द्ध िा पेट िड़ा है , छाती छोटी है । हमें
िेहदी िर्ती है । हमें िेहदी िर्ती है कि यह िे ड ि िर कदया। िेकिन वही ठीि है । क्ोूंकि िु द्ध जैसा शाूं त
आदमी जि श्वास िे र्ा तो वह पेट से ही िेर्ा। उतना इनोसें ट आदमी छाती से श्वास नही ूं िे सिता, इसकिए पेट
िड़ा हो जाएर्ा। वह पेट जो िड़ा है , वह प्रतीि है ।
प्रश्न झे न सां त का?

हाूं , वह प्रतीि है। सि झेन मास्टसग िा पेट िड़ा है। वह प्रतीि है। उतना िड़ा न भी रहा हो, िेकिन
वह िड़ा ही कडकपक्ङ किया जाएर्ा। उसिा िारण है कि वह श्वास जो है , वह पेट से िे रहा है ; वह छोटे िच्चे िी
तरह हो र्या है ।

तो जि हमें यह खयाि में साि हो र्या हो, तो नेचरि ब्रीकदूं र् िी तरि हमें िदम उठाने चाकहए।
हमारी ब्रीकदूं र् आकटग िीकशयि है । वह दरवेश र्ित िह रहा है कि आप आकटग िीकशयि ब्रीकदूं र् मत िरो।
आकटग िीकशयि ब्रीकदूं र् हम िर रहे हैं । तो जैसे ही हमें समझ िढ़े र्ी, हम नेचरि ब्रीकदूं र् िी तरि िदम
उठाएूं र्े। और कजतनी ने चरि ब्रीकदूं र् हो जाएर्ी, उतने ही जीवन िी अकधितम सूं भावना हमारे भीतर से प्रिट
होनी शु रू होर्ी।

और यह भी समझने जैसा है कि िभी—िभी एिदम आिक्तस्भि रूप से अप्रािृकति ब्रीकदूं र् िरने िे


भी िहुत िायदे हैं । और एि िात तो साि ही है कि जहाूं िहुत िायदे हैं वही ूं िहुत हाकनयाूं हैं । एि आदमी
दु िानदारी िर रहा है , तो कजतनी हाकनयाूं हैं उतने िायदे हैं । एि आदमी जुआ खे ि रहा है , तो कजतने िायदे हैं
उतनी हाकनयाूं हैं । क्ोूंकि िायदा और हाकन िा अनुपात तो वही होनेवािा है । तो वह िात तो ठीि िह रहा है
कि िहुत खतरे हैं , िेकिन आधी िात िह रहा है । िहुत सूं भावनाएूं भी हैं वहाूं । वह जुआरी िा दाूं व है ।

तो अर्र हम िभी किसी क्षण में थोड़ी दे र िे किए किििुि ही अस्वाभाकवि— अस्वाभाकवि इस अथों
में कि कजसिो हमने नही ूं िी है अभी ति—इस तरह िी ब्रीकदूं र् िरें , तो हमें अपने ही भीतर नई क्तस्थकतयोूं िा
पता चिना शु रू होता है । उन क्तस्थकतयोूं में हम पार्ि भी हो सिते हैं और उन क्तस्थकतयोूं में हम मुक्त भी हो
सिते हैं —कवकक्षप्त भी हो सिते हैं , कवमुक्त भी हो सिते हैं । और चूूंकि उस क्तस्थकत िो हम ही पैदा िर रहे
हैं , इसकिए किसी भी क्षण उसे रोिा जा सिता है । इसकिए खतरा नही ूं है । खतरे िा डर ति है , जि कि आप
रोि न सिें। जि आपने ही पैदा किया है तो आप तत्काि रोि सिते हैं । और आपिो प्रकतपि अनु भव होता है
कि आप किस तरि जा रहे हैं । आप आनूंद िी तरि जा रहे हैं , कि दु ख िी तरि जा रहे हैं ,कि खतरे में जा रहे
हैं , कि शाूं कत में जा रहे हैं , वह आपिो िहुत साि एि—एि िदम पर मािूम होने िर्ता है ।

अजनबी ब्धस्थजत के कारण मूर्च्ाओ पर चोट:

और जि किििुि ही आिक्तस्भि रूप से , ते जी से ब्रीकदूं र् िदिी जाए, तो आपिे भीतर िी पूरी िी पू री


क्तस्थकत िदिती है एिदम से । जो हमारी सु कनकश्चत आदत हो र्ई है श्वास िेने िी, उसमें हमें िभी पता नही ूं चि
सिता कि मैं शरीर से अिर् हूं । उसमें से तु िन र्या है , कब्रज िन र्या है । शरीर और आत्मा िे िीच श्वास िी
एि कनकश्चत आदत ने एि कब्रज िना कदया है । उसिे हम आदी हो र्ए हैं ।

यानी वह मामिा ऐसा ही है कि जैसे आप रोज अपने घर जाते हैं और िार िा आप िीि घुमा िेते हैं
और आपिो िभी न सोचना पड़ता है , न कवचार िरना पड़ता है , आप अपने घर पर जािर खड़े हो जाते हैं ।
िेकिन अचानि ऐसा हो कि िीि आप दाएूं मु डाएूं और िीि िाएूं मुड़ जाए, कि जो रास्ता रोज आपिा
था, अचानि आप पाएूं कि वह रास्ता आज पूरा िा पूरा घूम र्या है और दू सरा रास्ता उसिी जर्ह आ र्या
है , ति एि स्टर े जनेस िी हाित में आप पहुूं चेंर्े , और पहिी दिा आप होश से भर जाएूं र्े। वह जो होश से भर
जाएूं र्े आप...... स्टर े जनेस जो है न, किसी भी चीज िा अजनिीपन, वह आपिी मूच्छाग िो तोड़ दे ता है तत्काि।
व्यवक्तस्थत दु कनया, जहाूं सि रोज वही हुआ है , वहाूं आपिी मूच्छाग िभी नही ूं टू टती; आपिी मूच्छाग टू टती है
वहाूं , जहाूं अचानि िुछ हो जाता है ।

जैसे कि मैं िोि रहा हूं इसमें आपिी मूच्छाग न टू टे र्ी। अचानि आप पाएूं कि यह टे िि िोिने िर्ी, तो
यहाूं एि आदमी भी िेहोश नही ूं रह जाएर्ा। उपाय नही ूं है िेहोश रहने िा। यह टे ि ि अचानि िोि उठे , एि
शब्द िोिे—मैं हजार शब्द िोि रहा हूं तो भी आप मूक्तच्छगत सु नेंर्े—िेकिन यह टे िि एि शब्द िोि दे तो आप
सि इतनी अवेयरनेस में पहुूं च जाएूं र्े कजसमें आप िभी नही ूं र्ए; क्ोूंकि वह स्टर े ज है , और स्टर ें ज आपिे भीतर
िी सि क्तस्थकत तोड़ दे ता है ।

तो श्वास िे अनूठे अनुभव जि स्टर े जनेस में िे जाते हैं , तो आपिे भीतर िड़ी नई सूं भावनाएूं होती हैं और
आप होश उपिि िर पाते हैं और िुछ दे ख पाते हैं । और अर्र िोई आदमी होशपूवगि पार्ि हो सिे , तो
इससे िड़ा िीमती अनुभव नही ूं है —होशपूवगि अर्र पार्ि हो सिे।

प्रश्न: इां पाजसबि है !

हाूं , यह इूंपाकसिि है, इसीकिए तो इससे िीमती अनुभव नही ूं है।

ध्यान—प्रयोग में अजनबी, अज्ञात ब्धस्थजतयोां का बनना:

तो यह जो मैं प्रयोर् िह रहा हूं यह प्रयोर् जो है ऐसा है कि भीतर आपिा पूरा होश है और िाहर
आप किििुि पार्ि हो र्ए हैं । जो कि आप िोई भी आदमी अर्र िर रहा होता तो आप िहते , पार्ि है ।
भीतर तो आपिो पूरा होश है और आप दे ख रहे हैं कि मैं नाच रहा हूं । और आप जानते हैं कि अर्र यह िोई
भी दू सरा आदमी िर रहा होता तो मैं िहता कि यह पार्ि है । अि आप अपने िो पार्ि िह सिते हैं । िेकिन
दोनोूं िातें एि साथ हो रही हैं — आप यह जान भी रहे हैं कि यह हो रहा है । इसकिए आप पार्ि भी नही ूं
हैं ; क्ोूंकि आप होश में पूरे हैं और किर भी वही हो रहा है जो पार्ि िो होता है ।

इस हाित में आपिे भीतर एि ऐसा स्टर े ज मोमेंट आता है कि आप अपने िो अपने शरीर से अिर् िर
पाते हैं । िर नही ूं पाते , हो ही जाता है । अचानि आप पाते हैं कि सि तािमेि टू ट र्या। जहाूं िि रास्ता जुड़ता
था वहाूं नही ूं जु ड़ता और जहाूं िि आपिा कब्रज जोड़ता था वहाूं नही ूं जु ड़ता; जहाूं िीि घूमता था वहाूं नही ूं
घूमता। सि कवसूं र्त हो र्या है । वह जो रे िेवेंसी थी रोज—रोज िी, वह टू ट र्ई है; िही ूं िुछ और हो रहा है ।
आप हाथ िो नही ूं घुमाना चाह रहे हैं , और वह घूम रहा है ; आप नही ूं रोना चाह रहे हैं , और आूं सू िहे जा रहे
हैं ; आप चाहते हैं कि यह हूं सी रुि जाए, िेकिन यह नही ूं रुि रही है ।
तो ऐसे स्टर ें ज मोमेंटि्स पैदा िरना अवेयरनेस िे किए िड़े अदभुत हैं । और श्वास से कजतने जल्दी ये हो
जाते हैं , और किसी प्रयोर् से नही ूं होते । और प्रयोर् में वषों िर्ाने पड़े , श्वास में दस कमनट में भी हो सिता है ।
क्ोूंकि श्वास िा इतना र्हरा सूं िूंध है हमारे व्यक्तक्तत्व में कि उस पर जरा सी िर्ी चोट सि तरि प्रकतध्वकनत हो
जाती है ।

अव्यिब्धस्थत श्वास का प्रयोग कीमती:

तो श्वास िे जो प्रयोर् थे , वे िड़े िीमती थे। िेकिन प्राणायाम िे जो व्यवक्तस्थत प्रयोर् हैं उन पर मे रा
िहुत आग्रह नही ूं है । क्ोूंकि जैसे ही वे व्यवक्तस्थत हो जाते हैं , वैसे ही उनिी स्टर े जनेस चिी जाती है । जैसे एि
आदमी एि—दो श्वास इस नाि से िेता है , किर दो इससे िेता है । किर इतनी दे र रोिता है , किर इतनी दे र
कनिािता है । इसिा अभ्यास िर िेता है । तो यह भी उसिा अभ्यास िा कहस्सा हो जाने िे िारण से तु िन
जाता है । एमेथॉकडिि हो जाता है ।

तो मैं कजस श्वास िो िह रहा हूं वह किििुि नॉन—मेथॉकडिि है , एब्सडग है । उसमें न िोई रोिने िा
सवाि है , न छोड़ने िा सवाि है । वह एिदम से स्टर ें ज िीकिूंर् पै दा िरने िी िात है कि आप एिदम से ऐसी
झूंझट में पड़ जाएूं कि इस झूंझट िो आप व्यवस्था न दे पाएूं । अर्र व्यवस्था दे दी, तो आपिा मन िहुत
होकशयार है , वह उसमें भी राजी हो जाएर्ा कि ठीि है । वह इस नाि िो दिा रहा है , इसिो खोि रहा है ; इतनी
कनिाि रहा है , उतनी िूंद िर रहा है ; तो उसिा िोई मतिि नही ूं है , वह एि नया कसस्टम हो जाएर्ा, िेकिन
स्टर े जनेस, अजनिीपन उसमें नही ूं आएर्ा।

और आपिो मैं चाहता हूं कि किसी क्षण में आपिी जो भी रूटि् स हैं , कजतनी भी जड़ें हैं और कजतना भी
आपिा अपना पररचय है , वह सि िा सि किसी क्षण में एिदम उखड़ जाए। एि कदन आप अचानि पाएूं कि
न िोई जड़ है मेरी, न मेरी िोई पहचान है , न मेरी िोई माूं है , न मेरा िोई कपता है , न िोई भाई है , न यह शरीर
मेरा है । आप एिदम ऐसी एब्सडग हाित में पहुूं च जाएूं जहाूं कि आदमी पार्ि होता है । िेकिन अर्र आप इस
हाित में अचानि पहुूं च जाएूं आपिी किना किसी िोकशश िे ,तो आप पार्ि हो जाएूं र्े। और अर्र आप अपनी
ही िोकशश से इसमें पहुूं चें तो आप िभी पार्ि नही ूं हो सिते , क्ोूंकि यह आपिे हाथ में है , अभी आप इसी
से िेंड वापस ि ट सिते हैं ।

ध्यान प्रयोग द्वारा पागिपन से मब्धि:

तो मेरा तो मानना है कि अर्र हम पार्ि िो भी इतनी श्वास— और मैं यहाूं चाहूं र्ा कि यह प्रयोर् िरने
जैसा है — अर्र हम पार्ि िो भी यह श्वास िा प्रयोर् िरवाएूं तो उसिे स्वस्थ हो जाने िी पूरी सूं भावना है ।
क्ोूंकि अर्र वह पार्िपन िो भी दे ख सिे कि मैं पैदा िर िेता हूं तो वह यह भी जान पाएर्ा कि मैं कमटा भी
सिता हूं । अभी पार्िपन उसिे ऊपर उतर आया है , वह उसिे हाथ िी िात नही ूं है ।

इसकिए यह जो प्रयोर् है , इसिे खतरे हैं , िेकिन खतरे िे भीतर उतनी ही सूं भावनाएूं हैं । और पार्ि भी
अर्र इसिो िरे तो ठीि हो सिता है । और इधर मेरा खयाि है पीछे कि इसिो पार्ि िे किए भी इस प्रयोर्
िो िरवाने जैसा है । और जो आदमी इस प्रयोर् िो िरता है उसिी र्ारूं टी है कि वह िभी पार्ि नही ूं हो
सिता। वह इसकिए पार्ि नही ूं हो सिता कि पार्िपन िो पैदा िरने िी उसिे पास खु द ही ििा है । कजस
चीज िो वह ऑन िरता है उसिो ऑि भी िर िेता है । इसकिए आप उसिो िभी पार्ि नही ूं िना सिते ।
यानी किसी कदन ऐसा नही ूं हो सिता कि वह अपने वश िे िाहर हो जाए। क्ोूंकि उसने , जो वश िे िाहर
था, उसिो भी वश में िरिे दे ख किया है ।

कजस श्वास िी िात मैं िह रहा हूं वह श्वास किििुि ही नॉन—ररदकमि नॉन—मेथॉकडिि है । और िि
जैसा किया था,वैसा भी आज नही ूं िर सिते आप, क्ोूंकि उसिा िोई मेथड ही नही ूं है । िि जैसा किया
था, वैसा भी आज नही ूं िर सिते ;अभी शु रू जैसा किया था, अूंत िरते ति भी वैसा नही ूं िर सिते । वह जैसी
होर्ी! और खयाि कसिग इतना है कि आपिी सि जो िूंडीशकनूं र् है माइूं ड िी वह ढीिी पड़ जाए।

वह जो दरवेश िह रहा है , वह ठीि िह रहा है कि िई नट और िई िोल्ट ढीिे पड जाएूं र्े। वे िरने


हैं ढीिे। वे नट— िोल्ट िहुत सख्ती से पिड़े हुए हैं और आत्मा और शरीर िे िीच िासिा नही ूं हो पाता
उनिी वजह से । वे एिदम से ढीिे पड़ जाएूं तो ही आपिो पता चिे कि िुछ और भी है भीतर, जो जुड़ा था
और अिर् हो र्या है । िे किन चूूंकि वे श्वास िी चोट से ही ढीिे हुए हैं , वे श्वास िी चोट जाते ही से अपने आप
िस जाते हैं ; उनिो अिर् से िसने िे किए िोई इूं तजाम नही ूं िरना पड़ता। उनिो इूं तजाम िरने िी िोई
जरूरत नही ूं है ।

हाूं , अर्र श्वास पार्िपन िी हो जाए आपिे भीतर, कि आपिे वश िे िाहर हो, आब्से शन िन जाए
और च िीस घूंटे उस ढूं र् से चिने िर्े , तो किर वह क्तस्थकत खराि हो जा सिती है । िेकिन िोई घूंटे भर िे किए
अर्र यह प्रयोर् िर रहा है ,और प्रयोर् शु रू िरता है और प्रयोर् िूंद िर दे ता है , तो जैसे ही वह प्रयोर् िूंद
िरता है , वैसे ही वे सि िे सि अपनी जर्ह वापस से ट हो जाते हैं । आपिो अनुभव भर रह जाता है पीछे कि
एि अनु भव हुआ था जि मैं अिर् था और अि सि चीजें किर अपनी जर्ह से ट हो र्ई हैं । िेकिन अि से ट हो
जाने िे िाद भी आप जानते हैं कि मैं अिर् हूं —जुड़ र्या हूं सूं युक्त हूं िे किन किर भी अिर् हूं ।

श्वास िे किना तो िाम ही नही ूं हो सिता है । ही, यह िात वह ठीि िह रहा है कि खतरे हैं । तो खतरे
तो हैं ही, और कजतने िड़े जीवन िी हमारी खोज है उतने िड़े खतरे िे िेने िी हमें तै यारी होनी चाकहए। ििग मैं
इतना ही िरता हूं कि एि तो वह खतरा है जो हम पर अचानि आ जाता है , उससे हम िच नही ूं सिते ; और
एि वह खतरा है जो हम पैदा िरते हैं , उससे हम िभी भी िच सिते हैं । यानी अि इतना मू वमेंट होता है शरीर
िा—इतना—रो रहा है िोई, कचल्रा रहा है , नाच रहा है , और एि से िेंड उसिो कि नही,ूं तो वह सि र्या।
चूकि यह कक्रएटे ड है , यह उसने ही पैदा किया है सि, यह एि िात है । और यह अपने आप हो जाता है जि—
कि एि आदमी सड़ि पर खड़े होिर नाच रहा है —खु द नही ूं उसने िुछ किया है , अि वह रोि भी नही ूं
सिता, क्ोूंकि िहाूं से यह आया, िैसे यह हुआ, उसे िुछ पता नही ूं।

तो मेरी तो अपनी समझ यह है कि यह आज नही ूं िि, जो मैं िह रहा हूं यह एि िहुत िड़ी थैरेपी
कसद्ध होर्ी। और आज नही ूं िि, पार्ि िो स्वस्थ िरने िे किए यह अकनवायग रास्ता िन जाएर्ा। और अर्र हम
प्रत्येि िच्चे िो स्कूि में इसे िरा सिें तो हम उस िच्चे िे पार्ि नही ूं होने िी व्यवस्था किए दे रहे हैं , वह िभी
पार्ि नही ूं हो सिता। वह इम्यू न हो जाएर्ा—स्प। और वह माकिि हो जाएर्ा—इन सारी क्तस्थकतयोूं िा माकिि
हो जाएर्ा।

जिजभन्न सू िी जिजधयाां :
िेकिन कजस दरवेश से उसिी िात हुई है , र्ुरकजएि िी, वे दू सरे पथ िे राही हैं । उन्ोूंने श्वास िा िोई
प्रयोर् नही ूं किया। उन्ोूंने स्टर े जनेस दू सरी तरह से पैदा िी। और यही तििीि है । तििीि क्ा है कि एि
रास्ते िो जाननेवािा आदमी तत्काि दू सरे रास्ते िो र्ित िह दे र्ा। िेकिन िोई भी चीज किसी रास्ते िे सूं दभग
में र्ित और सही होती है ।

एि िैिर्ाड़ी में चिे में एि डूं डी िर्ी हुई है , िीि िर्ी हुई है । एि िारवािा िह सिता है कि
किििुि िेिार! िेकिन िार िे सूं दभग में िे िार होर्ी, वह िैिर्ाड़ी में उतनी ही साथगि है कजतनी िार में िोई
चीज साथगि हो।

तो किसी चीज िा र्ित और सही होना एब्लोल्यु ट अथग नही ूं रखता। िेकिन हमेशा यह भूि होती है ।

राजत्र—जागरण:

अि जैसे कि सू िी दरवेश है , वह दू सरे ढूं र् से इस तरि पहुूं चा है ; उसिे ढूं र् और हैं । जैसे सू िी जो
है , वह कनद्रा पर चोट िरे र्ा, श्वास पर नही ूं। तो नाइट कवकजल्स िी िड़ी िीमत है दरवेश िे किए। महीनोूं जार्ता
रहे र्ा! िेकिन जार्ने से भी वही स्टर े जनेस पैदा हो जाती है जो श्वास से पैदा होती है । अर्र महीने भर जार् जाएूं तो
आप उसी तरह पार्ि हाित में पहुूं च जाते हैं कजस हाित में श्वास से पहुूं चेंर्े।

तो एि तो नी ूंद पर वह चोट िरे र्ा, क्ोूंकि नी ूंद िड़ी स्वाभाकवि व्यवस्था है । उस पर चोट िरने से
ि रन आपिे भीतर कवकचत्रताए शु रू हो जाती हैं । िेकिन उसमें भी खतरे इतने ही हैं , िक्तम्ऻ इससे ज्यादा
हैं , क्ोूंकि िूंिा प्रयोर् िरना पड़े । एि कदन िी नी ूंद िे तोडि् ने से नही ूं होता वह। महीने भर, दो महीने िी नी द
ूं
तोड दे नी पड़े ।

िेकिन दो महीने िी नी ूंद तोड़िर अर्र िुछ हो जाए तो एि से िेंड में आप िूंद नही ूं िर सिते
उसिो। िेकिन दस कमनट िी श्वास से िुछ भी हो जाए तो एि से िेंड में िूं द हो जाता है । दो महीने िी नीद
ूं
अर्र नही ूं िी है , तो आप अर्र आज सो भी जाओ तो भी दो महीने िी नी ूंद आज पूरी नही ूं होनेवािी। और दो
महीने जो नही ूं सोया है , वह आज शायद सो भी न पाए; क्ोूंकि वह जरा खतरनाि जर्ह से उसने िाम शु रू
किया है ।

तो नाइट कवकजि िा िड़ा उपयोर् है , ििीर रात—रात भर जार्िर प्रतीक्षा िरें र्े कि क्ा होता है । तो
उन्ोूंने उससे शु रू किया है । दू सरा उन्ोूंने नृ त्य से भी शु रू किया है ।

नृत्य का उपयोग:

नृत्य िो भी उपयोर् किया जा सिता है शरीर से अिर् होने िे किए। िेकिन वे भी उनिे प्रयोर् ऐसे ही
हैं कि अर्र नृत्य सीखिर किया आपने तो नही ूं हो सिेर्ा। जैसा कि मैंने िहा कि प्राणायाम से नही ूं
होर्ा, क्ोूंकि वह व्यवक्तस्थत है । अि एि आदमी ने अर्र नृत्य सीख किया, तो वह शरीर िे साथ एि हो जाता
है । नही ूं, आप—जो कि नाच जानते नही—
ूं आप से मैं िहूं—नाकचए! और आप एिदम नाचना शु रू िर
दें , िूदना—िाूं दना, तो हो जाएर्ा। हो जाएर्ा इसकिए कि यह इतना स्टर े ज मामिा है कि आप इसिे साथ अपने
िो एि न िर पाएूं र्े कि यह मैं नाच रहा हूं ! यह आप एि न िर पाएूं र्े। तो नाच से उन्ोूंने प्रयोर् शु रू किए
हैं , रात िी नी ूंद से शु रू किए हैं ।

ऊन के िस्त्र, उपिास, काां टे की शय्या:

और तरह िी उपद्रव िी चीजें , जैसे कि ऊन िे वस्त्र हैं । अि ठे ठ रे कर्स्तान िी र्रम हाित में ऊन
पहने हुए हैं ! तो शरीर िे कवपरीत चि रहे हैं । िोई उपवास िर रहा है , वह भी शरीर िे कवपरीत चि रहा है ।
िोई िाूं टे पर पैर रखे िैठा है , िोई िाूं टे िी शम्ऺा किछािर उस पर िेट र्या है , वे सि स्टर े जनेस पैदा िरने िी
तरिीिें हैं ।

िेकिन एि पथ िे राही िो िभी खयाि में नही ूं आता, और स्वभावत: नही ूं भी आता है , कि दू सरे पथ
से भी ठीि यही क्तस्थकत पैदा हो सिती है ।

तो वह दरवेश िो तो िुछ पता नही ूं प्राणायाम िे िाित। हाूं , अर्र वह िुछ िरे र्ा तो नु िसान उठा
सिता है । वह िुछ िरे र्ा तो नुिसान उठा सिता है और खतरे ज्यादा हो सिते हैं । खतरे ऐसे हो सिते
हैं , जैसे कि एि िै िर्ाड़ी िी िीि िो आपने िार िे चाि में िर्ा कदया हो। तो वह िहे र्ा कि भई, यह िीि
िड़ी खतरनाि है , िभी मत िर्ाना, क्ोूंकि इससे तो हमारी र्ाड़ी खराि हो र्ई।

अि जो आदमी रात भर जर् रहा है , अर्र वह प्राणायाम िा प्रयोर् िरे तो पार्ि हो जाएर्ा—ि रन
पार्ि हो जाएर्ा। उसिे िारण हैं ; क्ोूंकि ये दोनोूं चोटें एि साथ व्यक्तक्तत्व नही ूं सह सिता।

िांबे उपिास में आसन और प्राणायाम हाजनप्रद:

इसकिए जैनोूं ने प्राणायाम िा प्रयोर् नही ूं किया, क्ोूंकि उपवास से वे स्टर े जनेस पैदा िर रहे हैं । अर्र
उपवास िे साथ प्राणायाम िरें तो िहुत खतरे में पड़ जाएूं र्े। एिदम खतरे में पड़ जाएूं र्े। इसकिए जैन िे किए
िोई प्राणायाम िा उपयोर् नही ूं रहा; िक्तम्ऻ वह जैन साधु िहे र्ा कि िोई जरूरत नही ूं है । मर्र उसे पता नही ूं
है कि वह प्राणायाम िो इनिार नही ूं िर रहा है ,वह कसिग इतना ही िह रहा है कि उसिी व्यवस्था में उसिे
किए िोई जर्ह नही ूं है , वह दू सरी चीज से वही िाम पैदा िर िे रहा है ।

इसकिए जैनोूं ने िोई योर्ासन वर्ैरह िे किए कििर नही ूं िी। क्ोूंकि उपवास िी हाित में , िूंिे
उपवास िी हाित में ,योर्ासन वर्ैरह िहुत खतरनाि कसद्ध हो सिते हैं । तो उनिे किए िहुत मृदु आहार
चाकहए, घी चाकहए, दू ध चाकहए, अत्यूंत तृ क्तप्तदायी आहार चाकहए। उपवास िर दे ता है रूखा भीतर किििुि, और
जठराकग्न इतनी िढ़ जाती है , क्ोूंकि उपवास से किििुि पेट आर् हो जाता है । इस आर् िी हाित में िोई भी
आसन खतरनाि हो सिते हैं । यह आर् मक्तस्तष्क ति चढ़ सिती है और पार्ि िर सिती है । तो जैन
सूं न्यासी िह दे र्ा कि नही—
ूं नही ूं, आसन वर्ैरह में िुछ सार नही ूं है , सि िेिार है ।
िेकिन कजस रास्ते पर उनिा उपयोर् है , उस रास्ते पर उनिी िीमत िड़ी अदभुत है । अर्र ठीि
आहार किया जाए, तो आसन अदभुत िाम िर सिते हैं । िेकिन उसिे किए शरीर िा िड़ा कस्नग्ध होना जरूरी
है । किििुि ऐसा ही मामिा है जैसे कि िुब्रीिेकटूं र् हाित होनी चाकहए िॉडी िी, क्ोूंकि एि—एि हड्डी और
एि—एि नस और एि—एि स्नायु िो किसिना है , िदिना है । उसमें जरा भी रूखापन हुआ तो टू ट जाएर्ी।
अत्यूंत िोचपूणग चाकहए। और उस िोचपूणग हाित में अर्र शरीर िो ये सारी िी सारी जो........

आसन : अनोखी दे ह—ब्धस्थजतयाां :

अि ये जो आसन हैं , ये भी स्टर ें ज पोजीशस हैं , कजनमें आप िभी नही ूं होते । और हमें खयाि नही ूं है कि
हमारी सि पोजीशन हमारे कचि से िूंधी हुई है । अि एि आदमी कचूंकतत होता है और कसर खु जाने िर्ता है ।
िोई पूछे कि तु म कसर किसकिए खु जा रहे हो? कचूं ता से कसर खु जाने िा क्ा सूं िूंध है ? िेकिन अर्र आप उसिा
हाथ पिड़ िें तो आप पाएर्े —वह कचूंकतत नही ूं हो सिता। उसिे कचूंकतत होने िे किए अकनवायग है कि वह अपने
कसर पर हाथ िे जाए। अर्र उसिा हाथ पिड़ किया जाए तो वह कचूंता नही ूं िर सिता। क्ोूंकि उस कचूंता िे
किए उतना एसोकसएशन जरूरी है कि वह हाथ िी मसल्स इस जर्ह पहुूं चें, अूंर्ुकियाूं इस स्थान िो छु ए, इस
स्नायु िो छु ए, इस पोजीशन में जि वह हो जाएर्ा तो िस तत्काि उसिी कचूंता सकक्रय हो जाएर्ी। अि इसी
तरह िी सारी िी सारी मुद्राएूं हैं , आसन हैं ।

तो वे िहुत अनुभव से ...... .जैसा मैं अभी सु िह ही िह रहा था कि अि यह ध्यान िा जो प्रयोर् हुआ
इसमें अपने —आप आसन िनेंर्े, अपने —आप मु द्राएूं आएूं र्ी। कनरूं तर हजारोूं प्रयोर् िे िाद यह पता चि र्या
कि कचि िी ि न सी दशा में ि न सी मुद्रा िन जाती है । ति किर उिटा िाम भी शु रू हो सिा—वह मुद्रा
िनाओ तो कचि िी वैसी दशा िे िनने िी सूं भावना िढ़ जाती है । जैसे कि िुद्ध िैठे हुए हैं , अर्र आप ठीि
उसी हाित में िैठें, तो आपिो िुद्ध िी कचि—दशा में जाने में आसानी होर्ी। क्ोूंकि कचि—दशा भी शरीर िी
दशाओूं से िूंधी हुई है । िुद्ध जैसे चिते हैं , अर्र आप वैसे ही चिो, िुद्ध जैसी श्वास िेते हैं , अर्र वैसी श्वास
िो, िुद्ध जैसे िेटते हैं , वैसे िेटो; तो िुद्ध िी जो कचि िी दशा है उसिो पाना आपिे किए सु र्मतर होर्ा। और
या आप िुद्ध िी कचि—दशा िो पा िो तो आप पाओर्े कि आपिे चिने , उठने, िैठने में िुद्ध से तािमेि होने
िर्ा। ये दोनोूं चीजें पैरिि हैं ।

गरजजएि की अधू री जानकारी:

अि जैसे कि र्ुरकजएि जैसे िोर्ोूं िो, जो कि एि अथग में अपरूटे ड हैं , इनिे पीछे िोई हजारोूं वषग
िा िाम नही ूं है , तो इनिो पता नही ूं है । इनिो पता नही ूं है , हजारोूं वषग िा िाम नही ूं है । और किर इस आदमी
ने दस—पच्चीस अिर्—अिर् तरह िे िोर्ोूं से कमििर िुछ इिट्ठा किया है । उसमें िई यूंत्रोूं िे सामान यह
िे आया है । वे सि अपनी—अपनी जर्ह ठीि थे , िेकिन सि इिट्ठे होिर िड़े अजीि हो र्ए हैं । उनमें से िभी
िोई किसी पर िाम िर जाता है , िेकिन पूरा किसी पर िाम नही ूं िर पाता। इसकिए र्ुरकजएि िे पास कजतने
िोर्ोूं ने िाम किया, पूणगता पर उनमें से िोई भी नही ूं पहुूं च सिा। वह पहुूं च नही ूं सिता। क्ोूंकि जि वह आता
है तो िोई चीज एि िाम िर जाती है उस पर, तो वह उत्सु ि तो हो जाता है और प्रवेश िर जाता है , िेकिन
दू सरी चीजें उिटा िाम िरने िर्ती हैं । क्ोूंकि कसस्टम जो है , पूरी िी पूरी कसस्टम नही ूं है एि। िहना चाकहए
कि मल्टी—कसस्टम्स िा िहुत िुछ उसमें िे किया है उसने।

अच्छा और िुछ कसस्टम्स िा उसे किििुि पता नही ूं है । उसिे पास उनिी जानिारी नही ूं है । उसिी
ज्यादा जानिारी सू िी दरवेशोूं से है । उसे कतिेतन योर् िा िोई कवशे ष पता नही ूं है ; उसे हठयोर् िा भी िोई
िहुत कवशे ष पता नही ूं है । जो उसने सु ना है , वह भी कवरोकधयोूं िे मुूंह से सु ना है ; वह भी दरवेशोूं से सु ना है । वह
हठयोर्ी नही ूं है । तो उसिी जो जानिारी हठयोर् िे िाित या िुूंडकिनी िे िाित जो भी जानिारी है , वह
दु श्मन िे मुूंह से सु नी र्ई जानिारी है , कवपरीत पथर्ाकमयोूं िे द्वारा सु नी र्ई जानिारी है । उस जानिारी िे
आधार पर वह जो िह रहा है वह िहुत अथों में तो िभी असूं र्त ही हो जाता है ।

जैसे िुूंडकिनी िे िाित तो उसने कनपट नासमझी िी िात िही; उसिा उसे िुछ पता ही नही ूं है । वह
उसिो िुूंडा—ििर ही िहे चिा जा रहा है । और ििर अच्छा शब्द नही ूं है । वह यह िह रहा है कि िुूंडकिनी
एि ऐसी चीज है , कजसिे िारण आप ज्ञान िो उपिि नही ूं हो पाते , वह ििर िी तरह िाम िर रही है । और
उसिो पार िरना जरूरी है । उसे कमटािर पार िर जाना जरूरी है । इसकिए उसिो जर्ाने िी तो कचूंता में ही
मत पड़ना।

अि उसे पता ही नही ूं है कि वह क्ा िह रहा है । ििसग हैं व्यक्तक्तत्व में , ऐसी चीजें हैं कजनिी वजह से
हम िई तरह िे शॉक्स झे ि जाते हैं । िुूंडकिनी वह नही ूं है ; िुूंडकिनी तो शॉि है । मर्र उसे पता नही ूं है ।
िुूंडकिनी तो खु द िड़े से िड़ा शॉि है । जि िुूंडकिनी जर्ती है तो आपिो िड़े से िड़ा शॉि िर्ता है आपिे
व्यक्तक्तत्व में। ििर और हैं दू सरे आपिे भीतर, कजनसे वह शॉि एज्जािगसग िी तरह वे िाम िरते हैं , वे पी जाते
हैं उसे । उन ििसग िो तोडि् ने िी जरूरत है । िेकिन वह उसिो ही ििर समझ रहा है । और उसिा िारण है
कि उसे िुछ पता नही ूं है । अनु भव तो है ही नही ूं उसे उसिा, कजनिो अनु भव है उनिे पास िै ठिर उसने िोई
िात भी नही ूं सु नी।

और इसकिए िई दिे िड़ी अजीि हाितें हो जाती हैं । र्ुरकजएि, िृष्णमूकतग , इन सि िे साथ िहुत
अजीि हाित हो र्ई है । इनिे साथ अजीि हाित यह है कि वे जो सीक्रेटि् स हैं उन शब्दोूं िे पीछे और उन
शक्तक्तयोूं िे पीछे , उनिा िभी भी उन्ें िोई व्यवक्तस्थत ज्ञान नही ूं हो सिा। और िकठन भी िहुत है । असि
में, एि जन्म में सूं भव भी नही ूं है । अर्र एि आदमी दस— िीस जन्मोूं में दस—िीस व्यवस्थाओूं िे िीच िड़ा
हो, तभी सूं भव है , नही ूं तो सूं भव नही ूं है । दस—िीस जन्मोूं में दस—िीस व्यवस्थाओूं िे िीच िड़ा हो, ति िही ूं
किसी अूंकतम जन्म में वह उन सि िे िीच िोई कसूं थीकसस खोज सिता है , नही ूं तो नही ूं खोज सिता।

िेकिन आमत र से ऐसा होता है कि एि आदमी एि व्यवस्था से पहुूं च जाता है तो दू सरा जन्म ही क्ोूं
िे? िात ही खत्म हो र्ई। इसकिए कसूं थीकसस नही ूं हो पाती। और इधर मैं सोचता हूं इस पर, इस पर िभी िाम
िरने जैसा है कि सारी दु कनया िी व्यवस्थाओूं िे िीच एि कसूं थीकसस सूं भव है । अिर्—अिर् छोर से पिड़ना
पड़े र्ा; घटनाएूं वही घटती हैं , िेकिन अिर्— अिर् तरिीिें हैं उनिो घटाने िी।

झे न िकीरोां के अनोखे उपाय:

अि जैसे झेन ििीर है , वह एि आदमी िो क्तखड़िी से उठािर िेंि दे र्ा। कसिग स्टर े जनेस पैदा होती
है , और िुछ नही ूं। िेकिन वह िह दे र्ा, प्राणायाम िी िोई जरूरत नही ूं है ; यह भक्तस्त्रिा से क्ा होर्ा? उसिा
िारण है । िेकिन भक्तस्त्रिा से नही ूं होर्ा तो एि आदमी िो क्तखड़िी से िेंिने से क्ा होर्ा? िुद्ध से , महावीर से
जािर िहो, किसी िो क्तखड़िी से िेंिने से ज्ञान हो र्या। तो वे िहें र्े , पार्ि! आदमी रोज कर्र जाते हैं मिानोूं
से , िही ूं ज्ञान होता है !

िेकिन कर्रना एि िात है , िेंिा जाना किििुि दू सरी िात है । जि एि आदमी मिान से कर्रता है तो
यह वैसा ही है जैसे एि आदमी पार्ि हो र्या। िे किन जि हम चार आदमी उठािर िािू भाई िो िाहर िेंि
दें क्तखड़िी िे, और िािू भाई जानते हैं कि ये िेंिे जा रहे हैं , तो एि स्टर े जनेस अनुभव होर्ी। जि वे कर्रते हैं
जमीन पर और जाते हैं किूंिे हुए, ति पूरे वक्त अवेयर होते हैं कि यह क्ा हो रहा है । उस वक्त ि रन वे अिर्
हो जाते हैं , िॉडी से अिर् हो जाते हैं ।

अि एि झे न र्ुरु िे पास र्ए, उसने एि डूं डा उठािर खोपड़ी पर मार कदया आपिे। स्टर ें ज है ! आप
र्ए थे कि भाई, मुझे आत्म—शाूं कत चाकहए, उसने एि डूं डा मार कदया। एिदम स्टर े जनेस पैदा हो र्ई। िेकिन
कहूं दुस्तान में नही ूं पै दा होर्ी। अर्र आप यहाूं डूं डा मारें र्े तो वह आदमी भी आपिो डूं डा मार दे र्ा; वह िड़ने िे
किए तै यार हो जाएर्ा। जापान में कसिग होर्ी, क्ोूंकि जापान में उसिी व्यवस्था खयाि में आ र्ई िोर्ोूं िो कि
झेन ििीर डूं डा मारिर भी िुछ िर सिता है ।

अि एि ििीर है , और आप र्ए हैं और वह आपिो माूं —िहन िी र्ािी दे ने िर्ा! वह स्टर े जनेस पैदा
िर दे र्ा उससे । िहाूं आप र्ए थे ब्रह्मज्ञानी िे पास, और वह माूं —िहन िी र्ािी दे रहा है खु िे आम आपिो।
िेकिन आपिो पता हो तो। पता न हो तो आपिो कदक्कत पड़ जाएर्ी। आप दोिारा जाएूं र्े नही ,ूं कि यह आदमी
र्ित है , र्ािी ििता है । िेकिन उस व्यवस्था िे भीतर उसिा भी उपयोर् किया र्या है । वह र्ािी िििर भी
स्टर े जनेस पैदा िर दे र्ा।

एि ििीर थे , र्ाडरवाड़ा िे पास एि जर्ह है साईखे ड़ा। तो वे िुछ भी िर सिते थे। वे र्ािी भी
ििते थे , और आप सि िैठे हैं , खड़े होिर सि िे सामने पेशाि िरने िर्ें! मर्र िड़ा स्टर ें ज हो जाता। एिदम
स्टर ें ज हो जाता था कि वे खड़े होिर यही ूं पेशाि िरने िर्ें — और आप एिदम च ि
ूं िर खड़े हो जाएूं । एिदम
स्टर ें ज हो जाएर्ी इस िमरे िी हाित—यह क्ा हो र्या! वे र्ािी तो दे ते ही थे , मारने भी द ड़ते थे। और मारें र्े
तो मीिोूं ति द ड़ते चिे जाएूं र्े उस आदमी िे पीछे । िेकिन जो उनिे पास जाते थे और जो समझने िर्े
थे, उनिो िहुत िाभ हो र्या। जो नही ूं समझते थे, वे समझे पार्ि आदमी है । पर नही ूं जो समझते उनसे िोई
िेना—दे ना भी क्ा है ! जो समझते थे उनिो िायदा हो र्या। क्ोूंकि कजस आदमी िे पीछे वे दो मीि द ड़ते
चिे र्ए, उसिो िहुत स्टर ें ज हाित में खड़ा िर कदया। और हजारोूं िी भीड़ द ड़ रही है , और वे उसिो मारने
द ड़ रहे हैं , और वह आदमी भार्ा जा रहा है । अि यह पूरा स्टर ें ज एटमाक्तस्फयर हो र्या!

िहुत सी व्यवस्थाओूं से वही किया जा सिता है । दू सरी व्यवस्थावािे िो िभी पता नही ूं चिता। और
िकठनाई एि और है अर्र पता भी हो, िई िार पता भी हो, जैसे मेरे िो िुछ पता है अर्र, ति भी जि मैं एि
व्यवस्था िी िात िर रहा हूं तो मुझे एक्सटर ीम पर िात िरनी पड़ती है , नही ूं तो उसिा पररणाम नही ूं होर्ा।
अर्र मुझे पता भी है कि दू सरी िात से भी हो सिता है , िेकिन जि मैं एि िात िह रहा हूं तो मैं िहूं र्ा कि
किसी से नही ूं हो सिता, इसी से होर्ा। िारण है वह भी। िारण है , क्ोूंकि आपिे पास कदमार् नही ूं कि आप
इतना सि.. .सिसे होर्ा, ऐसा समझिर आपिो ऐसा ही िर्ेर्ा कि किसी से नही ूं होर्ा। और वे सि इतनी
कवपरीत व्यवस्थाएूं हैं कि सिसे िैसे होर्ा, आप इसी झूंझट में पड़ जाएूं र्े। इसकिए िहुत िार तो ज्ञाकनयोूं िो
भी, जो जानते भी हैं , उनिो भी अज्ञानी िी भाषा िोिनी पड़ती है । उनिो िहना पड़ता है . कसिग इसी से
होर्ा, और किसी से नही ूं हो सिता!

इसकिए मैं तो िहुत मुक्तिि में पड़ र्या हूं । मैं िहुत मुक्तिि में पड़ र्या हूं क्ोूंकि मैं जानता हूं :
उससे भी हो सिता है । उससे भी यह हो सिता है ।
आज इतना ही।

प्रिचन 10 - आां तररक रूपाां तरण के तथ्य

चौथी प्रश्नोत्तर चचाओ

प्रश्न : ओशो कि की चचाओ में आपने कहा जक शब्धि का कां ड प्रत्येक व्यब्धि का अिग— अिग
नही ां है िेजकन कां डजिनी जागरण में तो साधक के शरीर में ब्धस्थत कां ड से ही शब्धि ऊपर उठती है । तो
क्ा कां ड अिग— अिग हैं या कां ड एक ही है इस इस ब्धस्थजत को कृपया समझाएां ।

ऐसा है, जैसे एि िुएूं से तुम पानी भरो। तो तुम्हारे घर िा िुआूं अिर् है , मेरे घर िा िुआूं अिर्
है , िेकिन किर भी िुएूं िे भीतर िे जो झरने हैं वे सि एि ही सार्र से जुड़े हैं । तो अर्र तु म अपने िुएूं िे ही
झरने िी धारा िो पिड़िरखोदते ही चिे जाओ, तो उस मार्ग में मेरे घर िा िुआूं भी पड़े र्ा, औरोूं िे घर िे
िुएूं भी पड़ें र्े, और एि कदन तु म वहाूं पहुूं च जाओर्े जहाूं िुआूं नही ,ूं सार्र ही होर्ा। जहाूं से शु रू होती है यात्रा
वहाूं तो व्यक्तक्त है, और जहाूं समाप्त होती है यात्रा वहाूं व्यक्तक्त किििुि नही ूं है , वहाूं समकष्ट है ; इूं कडकवजुअि से
शु रू होती है और एिोल्यु ट पर खतम होती है ।

तो अर्र यात्रा िा प्रारूं कभि किूंदु पिड़ोर्े , ति तो तु म अिर् हो, मैं अिर् हूं ; और अर्र इस यात्रा िा
चरम किूंदुपिड़ोर्े , तो न तु म हो, न मैं हूं । और जो है , हम दोनोूं उसिे ही कहस्से और टु िड़े हैं । तो जि तु म्हारे
भीतर िुूंडकिनी िा आकवभाग व होर्ा तो वह पहिे तो तु म्हें व्यक्तक्त िी ही मािूम पड़े र्ी, तु म्हारी अपनी मािूम
पड़े र्ी। स्वभावत:, िुएूं पर तु म खड़े हो र्ए हो। िे किन जि िुूंडकिनी िा आकवभाग व िढ़ता चिा जाएर्ा, ति तु म
धीरे — धीरे पाओर्े कि तु म्हारा िुआूं तु म्हारा ही नही ूं है ,वह औरोूं से भी जुड़ा है । और कजतनी तु म्हारी यह र्हराई
िढ़ती जाएर्ी उतना ही तु म्हारा िुआूं कमटता जाएर्ा और सार्र होता जाएर्ा। अूं कतम अनु भव में तु म िह सिोर्े
कि यह िुूंड सििा था। तो इसी अथग में मैं ने िहा कि...... .इसी भाूं कत हम व्यक्तक्त िी तरह अिर्—अिर् मािू म
हो रहे हैं ।

आत्मा से परमात्मा में छिाां ग:


ऐसा समझो कि एि वृक्ष िा एि पिा होश में आ जाए, तो उसे पडोस िा जो पिा िटिा हुआ कदखाई
पड़ रहा है , वह दू सरा मािूम पड़े र्ा। उसी वृ क्ष िी दू सरी शाखा पर िटिा हुआ पिा उसे स्वयूं िैसे मािूम पड़
सिता है कि यह मैं ही हूं ! दू सरी शाखा भी छोड़ दें , उसी शाखा पर िर्ा हुआ दू सरा पिा भी उस वृक्ष िे पिे
िो िैसे िर् सिता है कि मैं ही हूं ! उतनी दू री भी छोड़ दें , उसी िे िर्ि में , पड़ोस में िटिा हुआ जो पता
है , वह भी दू सरा ही मािूम पड़े र्ा; क्ोूंकि पिे िा भी जो होश है , वह व्यक्तक्त िा है ।

किर पिा अपने भीतर प्रवेश िरे , तो िहुत शीघ्र वह पाएर्ा कि मैं कजस डूं ठि से िर्ा हूं उसी डूं ठि से
मेरे पड़ोस िा पिा भी िर्ा है , और हम दोनोूं िी प्राणधारा एि ही डूं ठि से आ रही है । वह और थोड़ा प्रवे श
िरे , तो वह पाएर्ा कि मेरी शाखा ही नही,ूं पड़ोस िी शाखा भी एि ही वृक्ष िे दो कहस्से हैं और
हमारी जीवनधारा एि है । वह और थोड़ा नीचे प्रवे श िरे और वृक्ष िी रूटि् स पर पहुूं च जाए, तो उसे िर्ेर्ा कि
सारी शाखाएूं और सारे पिे और मैं , एि ही िे कहस्से हैं । वह और वृक्ष िे नीचे प्रवेश िरे और उस भूकम में पहुूं च
जाए कजस भू कम से पड़ोस िा वृ क्ष भी कनििा हुआ है , तो वह अनु भव िरे र्ा कि मैं , मेरा यह वृक्ष,मेरे ये पिे , और
यह पडोस िा वृक्ष, ये हम एि ही भूकम िे पुत्र हैं , और एि ही भूकम िी शाखाएूं हैं । और अर्र वह प्रवेश िरता
ही जाए, तो यह पूरा जर्त अूं ततः उस छोटे से पिे िे अक्तस्तत्व िा अूं कतम छोर होर्ा। वह पिा इस िड़े अक्तस्तत्व
िा एि छोर था! िेकिन छोर िी तरह होश में आ र्या था तो व्यक्तक्त था, और समग्र िी तरह होश में आ जाए
तो व्यक्तक्त नही ूं है ।

तो िुूंडकिनी िे पहिे जार्रण िा अनुभव तु म्हें आत्मा िी तरह होर्ा और अूं कतम अनु भव तु म्हें
परमात्मा िी तरह होर्ा। अर्र तु म पहिे जार्रण पर ही रुि र्ए, और तु मने घेरािूं दी िर िी अपने िुएूं
िी, और तु मने भीतर खोज न िी, तो तु म आत्मा पर ही रुि जाओर्े।

इसकिए िहुत से धमग आत्मा पर ही रुि र्ए हैं । वह परम अनुभव नही ूं है ; वह अनु भव िी आधी ही यात्रा
है । और थोड़ा आर्े जाएूं र्े तो आत्मा भी कविीन हो जाएर्ी और ति परमात्मा ही शे ष रह जाएर्ा। और जैसा मैंने
तु मसे िहा कि और अर्र आर्े र्ए तो परमात्मा भी कविीन हो जाएर्ा, और ति कनवाग ण और शू न्य ही शे ष रह
जाएर्ा—या िहना चाकहए, िुछ भी शे ष नही ूं रह जाएर्ा।

तो परमात्मा से भी जो एि िदम आर्े जाने िी कजनिी सूं भावना थी, वे कनवाग ण पर पहुूं च र्ए हैं ; वे परम
शू न्य िी िात िहें र्े। वे िहें र्े वहाूं जहाूं िुछ भी नही ूं रह जाता। असि में , सि िुछ िा अनु भव जि तु म्हें
होर्ा, तो साथ ही िुछ नही ूं िा अनुभव भी होर्ा। जो एिसोल्यु ट है , वह नकथूंर्नेस भी है ।

शू न्य और पूणओ : एक के ही दो नाम:

इसे ऐसा हम समझें....... .शू न्य और पूणग एि ही चीज िे दो नाम हैं , इसकिए दोनोूं िनवटें िि हैं । शू न्य
पूणग है । तु मने अधू रा शू न्य न दे खा होर्ा। आधा शू न्य तु म नही ूं िर सिते हो। अर्र तु मसे हम िहें कि शू न्य िो
आधा िर दो, दो टु िड़े िर दो! तो तु म िहोर्े , यह िैसे हो सिता है ? एि िे दो टु िड़े हो सिते हैं , दो िे दो
टु िड़े हो सिते हैं , शू न्य िे दो टु िड़े नही ूं हो सिते । शू न्य िे टु िड़े ही नही ूं हो सिते । और जि तु म िार्ज पर
एि शू न्य िनाते हो तो वह कसिग प्रतीि है ; वह तु म्हारे िनाते ही शू न्य नही ूं रह जाता, क्ोूंकि तु म रे खा िाूं ध दे ते
हो।

इसकिए यू क्तक्लड से पूछोर्े तो वह िहे र्ा कि शू न्य हम उसे िहते हैं , कजसमें न िूंिाई है , न च ड़ाई है ।
िेकिन तु म तो कितना ही छोटा सा किूंदु भी िनाओर्े , तो उसमें भी िूंिाई—च ड़ाई होर्ी। इसकिए वह
कसिग कसिाकिि है , वह असिी किूंदु नही ूं है ,क्ोूंकि असिी किूंदु में तो िूंिाई—च ड़ाई नही ूं हो सिती। िूंिाई—
च ड़ाई होर्ी तो किर किूं दु नही ूं रह जाएर्ा।

इसकिए उपकनषद िह सिे कि शू न्य से तु म कनिाि िो शू न्य भी, तो भी पीछे शू न्य ही शे ष रह जाता है ।
उसिा मतिि यह है कि तु म कनिाि नही ूं सिते उसमें से िुछ। तु म अर्र पूरे शून्य िो भी िेिर भार् जाओ
ति भी पीछे पूरा शू न्य ही शे ष रह जाएर्ा। तु म आक्तखर में पाओर्े , चोरी िेिार र्ई; तु म उसे िेिर भार् नही ूं
सिे, वह वही ूं शे ष रह र्या। िेकिन जो शू न्य िे सूं िूंध में सही है , वही पूणग िे सूं िूंध में भी सही है । असि में , पूणग
िी िोई िल्पना कसवाय शू न्य िे और नही ूं हो सिती।

पूणग िा मतिि है कजसमें अि और आर्े कविास नही ूं हो सिता। शू न्य िा मतिि है कजसमें अि और
नीचे पतन नही ूं हो सिता। शू न्य िे और नीचे उतरने िा उपाय नही ,ूं पूणग िे और आर्े जाने िा उपाय नही ूं। तु म
पूणग िे भी खूं ड नही ूं िर सिते ; तु म शू न्य िे भी खूं ड नही ूं िर सिते । पूणग िी भी िोई सीमा नही ूं हो
सिती; क्ोूंकि जि भी किसी चीज िी सीमा होर्ी ति वह पूणग नही ूं हो सिेर्ा। क्ोूंकि उसिा मतिि हुआ कि
सीमा िे िाहर किर िुछ शे ष रह जाएर्ा। और अर्र िुछ िाहर शे ष रह र्या तो पूणगता िैसी? किर यह
अपूणगता हो जाएर्ी।

जहाूं मेरा घर खतम होता है , तु म्हारा घर शु रू हो जाता है । मेरे घर िी सीमा पर मेरा घर समाप्त होता है
और तु म्हारा शु रू होता है । अर्र मेरा घर पूणग है , तो तु म्हारा घर मेरे घर िे िाहर नही ूं हो सिता। तो पूणग िी
िोई सीमा नही ूं हो सिती,क्ोूंकि ि न उसिी सीमा िनाएर्ा? सीमा िनाने िे किए हमेशा नेिर चाकहए; सीमा
िनाने िे किए िोई पड़ोसी चाकहए। और पूणग है अिेिा, उसिा िोई पड़ोसी नही ूं है , कजससे उसिी सीमा इूं कर्त
हो सिे।

सीमा दो िनाते हैं , एि नही—


ूं यह खयाि रखना; सीमा िनाने िे किए दो चाकहए। जहाूं मैं समाप्त होऊूं
और िोई शु रू हो,वहाूं सीमा िने र्ी। अर्र िोई शु रू ही न हो तो मैं समाप्त भी न हो सिूूंर्ा। और अर्र मैं
समाप्त ही न हो सिूूं, हो ही न सिूूं समाप्त, तो किर मेरी िोई सीमा न िनेर्ी। पूणग िी िोई सीमा नही ूं
है , क्ोूंकि ि न उसिी सीमा िनाए? शू न्य िी िोई सीमा नही ूं है , क्ोूंकि कजसिी सीमा हो जाती है , वह िुछ हो
र्या, वह शू न्य िैसे रहा? तो अर्र इसे िहुत ठीि से समझोर्े तो शू न्य और पूणग जो हैं , वे एि ही चीज िो िहने
िे दो ढूं र् हैं ।

ब्रह्म और शू न्य : दो ओर से यात्रा:

तो धमग भी दो तरि से यात्रा िर सिता है या तो तु म पूणग हो जाओ, या तु म शू न्य हो जाओ। दोनोूं


क्तस्थकतयोूं में तु म वही हो जाओर्े जो होने िी िात है । तो जो पूणग िी यात्रा िरनेवािा है , या पूणग शब्द िो प्रेम
िरता है , पाकजकटव िो प्रेम िरता है , वह िहे र्ा—अहूं ब्रह्माक्तस्भ! मैं ब्रह्म हूं ! वह यह िह रहा है कि मैं ही ब्रह्म हूं ।
यह सि जो है , यह मैं ही हूं । और मेरे अकतररक्त िोई तू नही ूं है ; सि तू मैंने अपने मैं में घेर किए हैं । अर्र यह हो
सिे तो यह िात हो जाएर्ी।

िेकिन अूंकतम चरण में मैं िो भी खोना पड़े र्ा, क्ोूंकि जि िोई तू नही ूं है तो तु म िैसे िहोर्े कि मैं ही
ब्रह्म हूं ?क्ोूंकि मैं िी उदघोषणा तू िी म जूदर्ी पर ही साथगि है । और जि तु म ही ब्रह्म हो, तो यह िहना भी
िहुत अथग िा नही ूं रह जाएर्ा कि मैं ब्रह्म हूं । क्ोूंकि इसमें भी दो िी स्वीिृकत है —ब्रह्म िी और मेरी। तो अूंत में
मैं भी व्यथग हो जाएर्ा, ब्रह्म भी व्यथग हो जाएर्ा और चुप हो जाना पड़े र्ा।
दू सरा एि मार्ग है कि तु म िहो...... .इतने कमट जाओ तु म कि तु म िह सिो, मैं हूं ही नही ूं। एि जर्ह
तु म िह सिे,मैं ब्रह्म हूं अथाग त मैं सि हूं । दू सरी यात्रा है कजसमें तु म िह सिो कि मैं हूं ही नही ,ूं िुछ भी नही ूं
है ; सि परम शू न्य है । िेकिन इससे भी तु म वही ूं पहुूं च जाओर्े। और पहुूं चिर तु म यह भी न िह सिोर्े कि मैं
नही ूं हूं । क्ोूंकि मैं नही ूं हूं यह िहने िे किए भी मैं िा होना जरूरी है । तो मैं खो जाएर्ा। तु म यह भी न िह
सिोर्े कि सि शू न्य है ; क्ोूंकि यह िहने िे किए भी सि भी होना चाकहए और शू न्य भी होना चाकहए। ति तु म
किर चुप हो जाओर्े।

तो यात्रा चाहे िही ूं से हो—चाहे वह पूणगता िी तरि से हो, चाहे शू न्यता िी तरि से होूं—िेकिन वह
परम म न में िे जाएर्ी, जहाूं िोिने िो िुछ भी नही ूं िचेर्ा। इसकिए िहाूं से िोई जाता है , यह िड़ा सवाि नही ूं
है ; िहाूं पहुूं चता है , यह जाूं चनेिी िात है । उसिी अूंकतम मूंकजि पिड़ी जा सिती है , पहचानी जा सिती है ।
अर्र वह यहाूं पहुूं च र्या तो वह जहाूं से भी र्या हो, ठीि ही रास्ते से र्या है । िोई रास्ता र्ित नही ूं है , िोई
रास्ता ठीि नही ूं है —इस अथग में कि जो पहुूं चा दे वह ठीि है । और पहुूं चना यहाूं है । िेकिन प्राथकमि अनुभव
िही ूं से भी मैं से ही शु रू होर्ा, क्ोूंकि हमारी वह क्तस्थकत है ; वह कर्वे न कसचुएशन है ,जहाूं से हमिो चिना है ।

तो चाहे हम िुूंडकिनी िो जर्ाए, तो भी वह व्यक्तक्तर्त मािूम पड़े र्ी; चाहे ध्यान में जाएूं , तो भी वह
व्यक्तक्त—र्त मािूम पड़े र्ा; चाहे शाूं त होूं तो व्यक्तक्तर्त होर्ा, जो िुछ भी होर्ा वह व्यक्तक्तर्त होर्ा, क्ोूंकि
अभी हम व्यक्तक्त हैं । िेकिन जैसे—जैसे इसमें प्रवे श िरोर्े , भीतर कजतने र्हरे उतरोर्े , व्यक्तक्त कमटता जाएर्ा।
और अर्र िाहर र्ए, तो व्यक्तक्त िढ़ता चिा जाएर्ा।

व्यब्धि का अांजतम छोर:

जैसे समझ िो कि एि आदमी िुएूं पर खड़ा है । अर्र वह िुएूं में भीतर जाए, तो एि कदन सार्र में
पहुूं च जाएर्ा। और अनु भव िरे कि िुआूं तो नही ूं था... असि में िुआूं है क्ा? जस्ट ए होि सार्र िो झाूं िने िे
किए। और क्ा है ? िुएूं िा और अथग क्ा है ? एि छे द है कजससे तु म सार्र िो झाूं ि िेते हो। अर्र तु म पानी
िो िुआूं समझते हो तो र्िती समझते हो, पानी तो सार्र ही है । हाूं , वह छे द कजससे तु मने झाूं िा है , वह है
िुआूं । तो वह जो छे द है , वह कजतना िड़ा होता जाए, सार्र उतना िड़ा कदखाई पड़ने िर्ेर्ा।

िेकिन अर्र तु म िुएूं िे भीतर प्रवेश न किए और िुएूं से दू र हटते चिे र्ए, तो तु म्हें िुएूं िा पानी भी
कदखाई पड़नाथोड़ी दे र में िूंद हो जाएर्ा। किर तो वह जो िुएूं िा छे द है और पाट है , वही कदखाई पड़े र्ा। और
उसिा सार्र से िभी तु म तािमेि न िर पाओर्े । एिदम तु म सार्र िे किनारे भी पहुूं च जाओ, तो भी तु म यह
तािमेि न किठा पाओर्े कि वह जो िुएूं में झाूं िा था वह और यह सार्र एि हो सिता है ।

अूंतयाग त्रा तो तु म्हें एिता पर िे जाएर्ी, िकहयाग त्रा तु म्हें अनेिता पर िे जाएर्ी। िेकिन सभी अनु भव िा
प्रारूं कभि छोर व्यक्तक्त होर्ा, िुआूं होर्ा; अूंकतम छोर अव्यक्तक्त होर्ा—या परमेश्वर िहो— सार्र होर्ा। इस अथग
में मैंने िहा अर्र तु म र्हरे जाओर्े तो िुूंड जो है तु म्हारा नही ूं रह जाएर्ा; िुछ भी तु म्हारा नही ूं रह जाएर्ा।
िुछ भी नही ूं रह जा सिता है ।

पीड़ा कएां की, आनांद सागर का:


प्रश्न: ओशो अगर शू न्य को ही उपिि होना है तो कड़ां जिनी जगाने की जरूरत क्ा है ? और
साधना की जरूरत क्ा है ?

यह जो िात है न, क्ोूंकि तुम्हें समझ में आ रहा है कि शून्य यानी िुछ भी नही,ूं इसकिए साधना िी
क्ा जरूरत?िुछ हो तो जरूरत है । तु म्हें खयाि में आ रहा है कि शू न्य यानी ना—िुछ हो र्ए। तो साधना िी
क्ा जरूरत? साधना िी जरूरत तो ति िर्ती है , जि िुछ हम हो जाएूं । िे किन तु म्हें यह पता नही ूं कि शू न्य
िा मतिि है पूणग; शू न्य िा मतिि है सि िुछ। शू न्य िा मतिि िुछ नही ूं नही ,ूं सि िुछ।

िेकिन अभी तु म्हारे खयाि में नही ूं आ सिता कि शू न्य यानी सि िुछ िा क्ा मतिि होता है । एि
िुआूं भी िह सिता है कि अर्र सार्र िी तरि जाने िा मतिि इसी िात िा पता चिना है कि मैं हूं ही
नही,ूं तो मैं जाऊूं ही क्ोूं? यह ठीि िह रहा है िुआूं । यह िहे कि अर्र मैं सार्र िी तरि जाऊूं और आक्तखर
में यही पता चिना है कि मैं हूं ही नही,ूं तो मैं जाऊूं क्ोूं? िेकिन तु म्हारे न जाने से ििग नही ूं पड़ता है । तु म नही ूं
हो, एि िात; तु म्हारे जाने, न जाने िा सवाि नही।ूं न जाओ, िुएूं पर ही रुिे रहो, िुएूं ही िने रहो, िेकिन तु म
हो नही ूं िुआूं । यह झूठ है सरासर। यह झूठ तु म्हें दु ख दे ता रहे र्ा। यह झूठ तु म्हें पीड़ा दे ता रहे र्ा। यह झूठ तु म्हें
िाूं धे रहे र्ा। इस झूठ में आनूंद िी िोई सूं भावना नही ूं है ।

िुआूं कमटे र्ा जरूर सार्र ति जािर, िेकिन कमटते ही उसिी सारी कचूंता, दु ख, सि कमट
जाएर्ा; क्ोूंकि वह उसिे िुएूं और व्यक्तक्त होने से िूंधा था, उसिी ईर्ो और अहूं िार से िूंधा था। और हमें तो
ऐसा िर्े र्ा कि िुआूं जािर सार्र में कमट र्या, िुछ भी नही ूं हुआ। िेकिन िुएूं िो थोड़े ही ऐसा िर्ेर्ा। िुआूं
तो िहे र्ा कि मैं सार्र हो र्या। ि न िहता है , मैं कमट र्या! यह तो जो नही ूं र्या िुआूं , पड़ोस िा जो िुआूं
नही ूं र्या वह उससे िहे र्ा, पार्ि! िहाूं जाता है ? वहाूं तो कमट ही जाना है , तो जाना क्ोूं? िेकिन जो र्या
है , वह िहे र्ा : ि न िहता है , कमट जाना है ! मैं तो कमटू र्ा एि अथग में—िुएूं िे अथग में ,िेकिन सार्र िे अथग में
हो भी जाऊूंर्ा।

इसकिए चुनाव िुआूं िने रहने िा या सार्र होने िा है सदा, क्षुद्र से िूंधे रहने िा या कवराट िे साथ
एि हो जाने िा है । िेकिन वह अनुभव िी िात है । और अर्र िुएूं ने िहा कि मैं कमटने से डरता हूं तो किर तो
उसिो सार्र से सि सूं िूंध छोड़ िेने पड़ें र्े; क्ोूंकि उन सूं िूंधोूं में सदा भय है कि िभी भी पता न चि जाए कि
मैं सार्र हूं । तो उसिो सि अपने झरने तोड़ िेने पड़ें र्े , क्ोूंकि वे झरने सि सार्र ति जाते हैं । या उसे झरने
िी तरि से आख मोड़ िेनी पड़े र्ी। वह सदा िाहर दे खता रहे ,भीतर न दे खे भूििर; क्ोूंकि भीतर दे खने से
िभी भी सूं भावना है कि उसे पता चि जाए कि अरे , मैं नही ूं हूं सार्र ही है । तो किर वह िाहर दे खे। और झरने
कजतने छोटे होूं, उतने अच्छे ; क्ोूंकि उनसे भीतर जाना िम आसान रह जाएर्ा। कजतने सू खे होूं,उतने
अच्छे ; किििुि सू ख जाएूं तो और भी अच्छे ।

िेकिन ति िुआूं मरे र्ा। समझेर्ा कि मैं िचा रहा हूं अपने िो, िेकिन मरे र्ा।

जमटना बहुत आनदपूणओ है :

जीसस िा वचन है कि जो अपने िो िचाएर्ा, वह कमटे र्ा, और जो कमटाएर्ा, वही िेवि िच सिता है ।
तो यह तो हमारे मन में सवाि उठता ही है कि कमट जाएूं र्े , वहाूं जाएूं क्ोूं? वहाूं जाएूं क्ोूं, कमट जाएूं र्े!
तो अर्र यह... अर्र कमटना ही हमारा सत्य है , तो ठीि है । और िचाने से िैसे िचेंर्े ? अर्र सार्र में पहुूं चिर
कमटना होता है तो िुएूं िने रहिर कितने कदन िच सिोर्े ? इतना िड़ा सार्र होिर भी कमटना हो जाता है तो
इतने से िुएूं िो िैसे िचाओर्े ? कितने कदनिचाओर्े ? जल्दी इसिी ईटूं कर्र जाएूं र्ी, जल्दी इस पर कमट्टी
कर्रे र्ी, जल्दी इसिा पानी सू ख जाएर्ा। जि सार्र में भी न िच सिोर्े , तो िुएूं में िैसे िचोर्े ? और कितनी दे र
िचोर्े ?

इसी से मृत्यु िा भय पैदा होता है । वह िुएूं िा भय है । सार्र से कमिना नही ूं चाहता, क्ोूंकि उसमें डर
है कमटने िा,इसकिए सार्र से अपने िो दू र िर िेता है और िुआूं िन जाता है । और किर म त िा
भय सताने िर्ता है , क्ोूंकि सार्र से जैसे ही टू टा कि मरने िी क्तस्थकत िरीि आने िर्ी, क्ोूंकि सार्र
से जुड़िर जीवन है ।

तो इसकिए हम सि मृत्यु से भयभीत हैं , डरे हुए हैं कि िही ूं मर न जाएूं । मरना पड़े र्ा। और दो ही तरह
िे मरने हैं या तो तु म सार्र में िूदिर मर जाओ। वह मरना िहुत आनूंदपूणग है ; क्ोूंकि मरोर्े नही ूं, सार्र हो
जाओर्े। और एि यह कि तु म िुएूं िो जोर से पिड़े िैठे रहो—सू खोर्े, सडोर्े , कमट जाओर्े। हमारा मन
िहता है िोई प्रिोभन चाकहए—क्ा, कमिेर्ा क्ा कजसिी वजह से हम सार्र में जाएूं ? क्ा कमिेर्ा कजससे हम
समाकध िो खोजें , शू न्य िो खोजें? कमिेर्ा क्ा? हम पहिे पूछते हैं , कमिेर्ा क्ा? हम इसिो पूछते ही नही ूं कि
इस कमिने िी द ड़ में हमने अपने िो खो कदया है । सि तो कमि र्या है —मिान कमि र्या है , धन कमि र्या
है —वह सि कमि र्या है और हम खो र्ए हैं ; हम किििुि नही ूं हैं वहाूं ।

तो अर्र कमिने िी भाषा में पूछते हो तो मैं िहूं र्ा कि अर्र खोने िो तै यार हो जाओ तो तु म तु मिो
कमि जाओर्े। अर्र खोने िो तै यार नही ूं हो, िचाने िी िोकशश िी, तो तु म खो जाओर्े और सि िच
जाएर्ा; और िहुत सी चीजें िच जाएूं र्ी,िस तु म खो जाओर्े।

तीव्र श्वास से प्राण—ऊजाओ में िृब्धि:

प्रश्न: ओशो आपने कहा था जक डीप ब्रीजदां ग िेने से आक्सीजन और काबओन डाइआक्साइड का
अनपात बदि जाता है तो इस अनपात के बदिने का कां डजिनी जागरण के साथ कैसे सां बांध है ?

िहुत सूंिूंध है। एि तो हमारे भीतर जीवन और मृत्यु दोनोूं िी सूंभावनाएूं हैं। उसमें जो आक्सीजन है
वह हमारे जीवन िी सूं भावना है , और जो िािग न है वह हमारी मृत्यु िी सूं भावना है । जि आक्सीजन क्षीण
होते —होते —होते —होते समाप्त हो जाएर्ी और कसिग िािगन रह जाएर्ी तु म्हारे भीतर, तो तु म िाश हो जाओर्े।
ऐसे ही, जैसे कि हम एि ििड़ी िो जिाते हैं । जि ति आक्सीजन कमिती है , जिती चिी जाती है । आर् होती
है , जीवन होता है । किर आक्सीजन चु ि र्ई, आर् चुि र्ई, किर िोयिा, िािग न पड़ा रह जाता है पीछे । वह
मरी हुई आर् है । वह जो िोयिा पड़ा है पीछे , वह मरी हुई आर् है ।

तो हमारे भीतर दोनोूं िा िाम चि रहा है पूरे समय। भीतर हमारे कजतनी ज्यादा िािगन होर्ी, उतनी
ही किथाजी होर्ी,उतनी सु स्ती होर्ी। इसकिए कदन में नी ूंद िेना मुक्तिि पड़ता है , रात में आसान पड़ता
है ; क्ोूंकि रात में आक्सीजन िी मात्रा िम हो र्ई है और िािग न िी मात्रा िढ़ र्ई है । इसकिए रात में हम
सरिता से सो जाते हैं और कदन में सोना इतना सरि नही ूं पड़ता, क्ोूंकि आक्सीजन िहुत मात्रा में है । आक्सीजन
हवा में िहुत मात्रा में है । सू रज िे आ जाने िे िाद आक्सीजन िा अनुपात पूरी हवा में िदि जाता है । सू रज िे
हटते ही से आक्सीजन िा अनुपात नीचे कर्र जाता है ।

इसकिए अूंधेरा जो है , राकत्र जो है , वह प्रतीि िन र्या है सु स्ती िा, आिस्य िा, तमस िा। सू यग जो है
वह ते जस िा प्रतीि िन र्या है , क्ोूंकि उसिे साथ ही जीवन आता है । रात सि िुम्हिा जाता है —िूि िूंद हो
जाते , पिे झुि जाते , आदमी सो जाता—सारी पृथ्वी एि अथों में टे िेरी डे थ में चिी जाती है , एि अस्थायी मृ त्यु
में समा जाती है । सु िह होते ही से किर िूिक्तखिने िर्ते , किर पिे जीकवत हो जाते , किर वृक्ष कहिने िर्ते , किर
आदमी जर्ता, पक्षी र्ीत र्ाते — सि तरि किर पृ थ्वी जार्ती है , वह जो टे िेरी डे थ थी, वह जो अस्थायी मृ त्यु थी
रात िे आठ—दस घूंटे िी, वह र्ई; अि जीवन किर ि ट आया है ।

तो तु म्हारे भीतर भी ऐसी घटना घटती है कि जि तु म्हारे भीतर आक्सीजन िी मात्रा तीव्रता से िढ़ती
है , तो तु म्हारे भीतर जो सोई हुई शक्तक्तयाूं हैं वे जर्ती हैं , क्ोूंकि सोई हुई शक्तक्तयाूं िो जर्ने िे किए सदा ही
आक्सीजन चाकहए—किसी भी तरह िी सोई हुई शक्तक्तयोूं िो जर्ने िे किए। अि एि आदमी मर रहा है , मरने
िे किििुि िरीि है , हम उसिी नाि में आक्सीजन िा कसकिूंडर िर्ाए हुए हैं । उसे हम दस—िीस घूंटे कजूंदा
रख िेंर्े। उसिी मृत्यु घट र्ई होती दस—िीस घूं टे पहिे,िेकिन हम उसे दस—िीस घूंटे खी ूंच िेंर्े। वषग , दो वषग
भी खी ूंच सिते हैं , क्ोूंकि उसिी किििुि क्षीण होती शक्तक्तयोूं िो भी हम आक्सीजन दे रहे हैं तो वे सो नही ूं पा
रही ूं। उसिी सि शक्तक्तयाूं म त िे िरीि जा रही हैं , डूि रही हैं , डूि रही हैं , िेकिन हम किर भी आक्सीजन कदए
जा रहे हैं ।

तो आज यूरोप और अमेररिा में तो हजारोूं आदमी आक्सीजन पर अटिे हुए हैं । और सारे अमेररिा
और यूरोप में एि िड़े से िड़ा सवाि है अथनाकसया िा—कि आदमी िो स्वे च्छा—मरण िा हि होना चाकहए।
क्ोूंकि डाक्ङर अि उसिो िटिा सिता है िहुत कदन ति। िड़ा भारी सवाि है , क्ोूंकि अि डाक्ङर चाहे तो
कितने ही कदन ति एि आदमी िो न मरने दे । अच्छा, डाक्ङर िी तििीि यह है कि अर्र वह उसे जानिर
मरने दे तो वह हत्या िा आरोपण उस पर हो सिता है ; वह मडग र हो र्या। यानी वह अभी आक्सीजन दे िर इस
अस्सी साि िे मरते हुए िूढ़े िो िचा सिता है । अर्र न दे , तो यह हत्या िे िरािर जुमग है । तो वह तो इसे
दे र्ा; वह इसे आक्सीजन दे िर िटिा दे र्ा। अि उसिी जो सोती हुई शक्तक्तयाूं हैं वे िािग न िी िमी िे िारण
नही ूं सो पाएूं र्ी। समझ रहे हो न मेरा मतिि?

अजधक प्राण से अजधक जागृजत:

ठीि इससे उिटा प्राणायाम और भक्तस्त्रिा और कजसे मैं श्वास िी तीव्र प्रकक्रया िह रहा हूं उसमें होता
है । तु म्हारे भीतर तु म इतनी ज्यादा जीवनवायु िे जाते हो, प्राणवायु िे जाते हो कि तु म्हारे भीतर जो सोए हुए तत्व
हैं वह तो जर्ने िी क्षमता उनिी िढ़ जाती है , तत्काि वे जर्ने शु रू हो जाते हैं ; और तु म्हारे भीतर जो सोने िी
प्रवृकि है , भीतर वह भी टू टती है ।

तु म तो है रान होओर्े , अभी मेरे पास िोई चार वषग पहिे सीिोन से एि ि द्ध कभक्षु आया। वह तीन
साि से सो नही ूं सिा। सि तरह िे इिाज किए, वे िाम नही ूं किए। वे िाम िर नही ूं सिते थे , क्ोूंकि वह
एि अनापानसती योर् िा प्रयोर् िर रहा था श्वास िा—च िीस घूंटे र्हरी श्वास पर ध्यान रख रहा था। अि
कजसने उसे िता कदया था उसे िुछ पता नही ूं होर्ा कि च िीस घूंटे र्हरी श्वास पर अर्र ध्यान रखा जाएर्ा तो
नी ूंद किििुि कवदा हो जाएर्ी; नी ूंद िो िाया ही नही ूं जा सिता।

तो इधर तो वह च िीस घूंटे श्वास पर ध्यान रख रहा है और उधर उसिो दवाइयाूं कदिवाए जा रहे हैं । तो
उसिी िड़ी तििीि खड़ी हो र्ई; क्ोूंकि उसिे शरीर में िाूं क्तफ्लक्ङ पैदा हो र्ई। दवाइयाूं उसिो सु िा रही
हैं , और वह र्हरी श्वास िा जो प्रयोर् च िीस घूंटे जारी रखे हुए है , वह उसिी शक्तक्तयोूं िो जर्ा रहा है । तो
उसिे भीतर ऐसी कजच पैदा हो र्ई, जैसे कि िोई िार में एक्सीिरे टर और ब्रेि दोनोूं एि साथ दिाता हो।
समझे न? तो वह तो िहुत परे शानी में था। किसी ने मेरा उसिो िहा तो वह मेरे पास आया।

मैं उसिो दे खिर समझा कि वह तो पार्िपन में पड़ा है , यह तो िभी हो ही नही ूं सिता। तो मैंने
उससे िहा किअनापानसती योर् िूं द िरो। तो उसने िहा, इससे क्ा सूं िूंध है ? तो उसे खयाि ही नही ूं है कि
अर्र श्वास िा इतना ज्यादा प्रयोर् िरोर्े कि आक्सीजन इतनी मात्रा में हो जाए कि शरीर सो ही न सिे, तो किर
िैसे सोओर्े! और या किर, मैंने उससे िहा कि सोने िा खयाि छोड़ दो और ये दवाइयाूं िेना िूं द िर दो। और
तु म्हें िोई जरूरत नही ूं है नी ूंद िी। नी ूंद नही ूं आएर्ी तो हजग नही ूं है । अर्र यह प्रयोर् जारी रखते हो तो नीद
ूं
नही ूं आने से िोई हजग नही ूं होर्ा।

एि आठ कदन उसने प्रयोर् िूंद किया है कि उसे नी ूंद आनी शु रू हो र्ई, िोई दवा िी जरूरत न रही।

अजधक काबओन से अजधक मूर्च्ाओ :

तो हमारे भीतर सोने िी सूं भावना िढ़ती है िािग न िे िढ़ने से । इसकिए कजन—कजन चीजोूं से हमारे
भीतर िािगन िढ़ती है ,वे सभी चीजें हमारे भीतर सोई हुई शक्तक्तयोूं िो और सु िाती हैं । उतनी हमारी मूच्छाग
िढ़ती चिी जाती है ।

जैसे दु कनया में कजतनी सूं ख्या आदमी िी िढ़ रही है उतनी मूच्छाग िा तत्व ज्यादा होता चिा
जाएर्ा; क्ोूंकि जमीन पर आक्सीजन िम और आदमी ज्यादा होते चिे जाएूं र्े। िि एि ऐसी हाित हो सिती
है कि हमारे भीतर जार्ने िी क्षमता िम से िम रह जाए। इसकिए तु म सु िह ताजा अनु भव िरते हो; एि
जूंर्ि में जाते हो, ताजा अनुभव िरते हो, समुद्र िे तट पर तु म ताजा अनुभव िरते हो। िाजार िी भीड़ में
सु स्ती छा जाती है , सि तमस हो जाता है ; वहाूं िहुत िािगन है ।

प्रश्न: क्ा नया आक्सीजन नही ां बनता है ?

कनरूं तर िन रहा है। िेकिन हमारी भीड़, हमारी भीड़ में रहने िी आदतें, वे सारी आक्सीजन िो पीए
चिी जाती हैं । तो इसकिए जहाूं भी आक्सीजन ज्यादा है वहाूं तु म प्रिुल्र अनुभव िरोर्े —वह चाहे िर्ीचा
हो, चाहे नदी िा किनारा हो, चाहे पहाड़ हो—जहाूं भी आक्सीजन ज्यादा है , वहाूं तु म एिदम प्रिुक्तल्रत हो
जाओर्े , स्वस्थ हो जाओर्े। जहाूं भीड़ है , भड़क्का है , कसनेमार्ृहहैं —चाहे मूंकदर हो— वहाूं तु म एिदम से सु स्त
हो जाओर्े ; वहाूं मूच्छाग पिड़े र्ी।
तीव्र पररितओ न से दे खना सगम:

तो तु म्हारे भीतर आक्सीजन िो िढाने िा प्रयोजन है । उससे तु म्हारे भीतर िा सूं तुिन िदिता है —तु म
सोने िी तरि उन्मु ख न रहिर जार्ने िी तरि उन्मु ख होते हो। और अर्र यह मात्रा ते जी से और एिदम
िढ़ाई जा सिे, तो तु म्हारे भीतर सूं तुिन में एिदम से इतना ििग होता है जैसे तराजू िा एि पल्रा जो नीचे
िर्ा था, एिदम ऊपर चिा र्या; ऊपर िा तराजू िा पल्रा किििुि नीचे आ र्या। अर्र झटिे िे साथ
तु म्हारे भीतर िा सूं तुिन िदिा जा सिे, तो उसिा तु म्हें अनु भव भी जल्दी होर्ा। अर्र पल्रा िहुत धीरे —
धीरे — धीरे — धीरे आए, तु म्हें पता नही ूं चिेर्ा कि िि िदिाहट हो र्ई। इसकिए मैं तीव्र श्वास िे प्रयोर् िे किए
िह रहा हूं —कि इतने जोर से पररवतग न िरो कि दस कमनट में तु म एि क्तस्थकत से ठीि दू सरी क्तस्थकत में प्रवे श
िर जाओ, और तु म साि दे ख सिो। क्ोूंकि कजतने जल्दी चीज िदिती है , तभी दे खी जा सिती है ।

जैसे कि हम सि जवान से िे होते हैं , िच्चे से जवान होते हैं , िेकिन हम िभी पता नही ूं िर्ा पाते कि
िि हम िच्चे थे और िि जवान हो र्ए; और िि हम जवान थे और िि हम िूढ़े हो र्ए। अर्र िोई तारीख
हमसे पूछे कि किस तारीख िो आप जवानी से िे हुए हैं , तो हम तारीख न िता सिेंर्े। िक्तम्ऻ िड़ी भ्ाूं कत चिती
रहती है : िा मन में समझ ही नही ूं पाता कि िू ढ़ा हो र्या; क्ोूंकि उसिी जवानी और उसिे िु ढ़ापे िे िीच िोई
र्ैप नही ूं है , िोई तीव्रता नही ूं है ।

िच्चा िभी नही ूं समझ पाता कि अि वह जवान हो र्या, वह अपने िचपन िे ही ढूं र् अक्तख्तयार किए
चिा जाता है । दू सरोूं िो वह जवान कदखने िर्ता है , उसिो पता नही ूं चिा कि वह जवान हो र्या है । माूं —िाप
समझते हैं कजिेवार होना चाकहए, यह होना चाकहए, वह होना चाकहए। वह अपने िो िच्चा समझे जा रहा है !
क्ोूंकि िभी ऐसी तीव्रता से िोई घटना नही ूं घटी कजसमें उसिो पता चिे कि अि वह िच्चा नही ूं रहा, अि
जवान हो र्या है ।

िा आदमी जवान िी तरह व्यवहार किए चिा जाता है । उसे पता नही ूं चि पा रहा है कि वह िा हो
र्या। पता िैसे चिे ? क्ोूंकि पता चिने िे किए तीव्र सूं क्रमण चाकहए।

अर्र ऐसा हो कि एि आदमी ििाूं तारीख िो घूं टे भर में जवान से िूढ़ा हो जाए, तो किसी िो िहने
िी जरूरत न होर्ी कि तु म िूढ़े हो र्ए हो। एि िच्चा एि घूंटे में ििाूं तारीख िो िीस साि िा पूरा हो और
एिदम जवान हो जाए, तो किसी िो, िाप िो िहना न पड़े र्ा कि अि तु म्हारी उम्र िड़ी हो र्ई है , अि जरा यह
िचपना छोड़ो। यह किसी िो िहने िी जरूरत नही ,ूं वह खु द ही जान िेर्ा कि िात घट र्ई है ; अि मैं दू सरा
आदमी हूं ।

तो मैं इतना ही तीव्र सूं क्रमण चाहता हूं कि तु म पहचान सिो इन दो क्तस्थकतयोूं िा ििग कि तु म्हारा सोया
हुआ कचि,तु म्हारा सोया हुआ व्यक्तक्तत्व, वह तु म्हारी स्लीकपूंर् िाूं शसनेस ; और यह तु म्हारी अवेिूंड, जार्ी
हुई, प्रिुद्ध चेतना। यह इतनी तीव्रता से , झटिे से होना चाकहए—जूंप िी तरह, छिाूं र् िी तरह—कि तु म
पहचान पाओ कि ििग हो र्या। यह पहचान िाम पड़े र्ी। यह पहचान िहुत िीमत िी है ।

इसकिए मैं ऐसे प्रयोर्ोूं िा पक्षपाती हूं जो तु म्हें तीव्रता से रूपाूं तररत िरते होूं। अर्र िहुत वक्त िे
िें, तो तु म िभी समझ न पाओर्े कि क्ा हो रहा है । और खतरा क्ा है कि अर्र तु म समझ न पाओ, तो हो
सिता है थोड़ा—िहुत रूपाूं तरण भी हो जाए, िेकिन उससे तु म्हारी समझ र्हरी न हो पाए। िई िार ऐसा हो
जाता है ; िई म िोूं पर ऐसा होता है कि एि आदमी िहुत िार ऐसा होता है कि आक्तत्मि अनुभव िे िहुत
कनिट पहुूं च जाता है अनायास, चिते —चिते िही ूं से , िेकिन झटिे से नही,ूं तीव्रता से नही,ूं तो वह पिड़ नही ूं
पाता कि क्ा हुआ। और उसिी वह जो व्याख्या िरता है वह िभी भी ठीि नही ूं होती;क्ोूंकि उसिी व्याख्या
िे किए उतना िासिा नही ूं होता। िहुत म िोूं पर ऐसी घटना घटती है जि कि तु म िरीि होते हो एि नये
अनुभव िे, िेकिन तु म उसिो टाि जाओर्े ; तु म उसिी व्याख्या अपने पुराने कहसाि में ही िर िोर्े , क्ोूंकि वह
इतने धीरे — धीरे हुआ है कि उसिा िभी पता नही ूं चिेर्ा।

एि आदमी िो मैं जानता हूं कि वह भैंस िो उठा िेता है । उसिे घर भैंसें हैं । और वह िचपन से , जि
भैंस उसिे घर में पैदा हुई होर्ी ति से उसे उठाता रहा है रोज; उसे उठािर घूमता रहा है । भैंस रोज धीरे —
धीरे िड़ी होती र्ई है और रोज उसिा भी उठाने िा िि थोड़ा— थोड़ा िढ़ता चिा र्या। अि वह पूरी भैंस िो
उठा िेता है । अि वह चमत्कार मािूम होता है । हािाूं कि उसिो भी नही ूं िर्ता कि यह िोई चमत्कार है । दू सरोूं
िो िर्ता है कि िड़ा मु क्तिि िा मामिा है , भैंस िो उठा िे एि आदमी! मर्र वह इतना क्रकमि हुआ है कि
उसे भी पता नही ूं है । और हमें यह चमत्कार कदखता है , क्ोूंकि हमारे किए िड़ा िासिा मािूम हो रहा है दोनोूं
में, उसमें िही ूं तािमेि नही ूं कदखता है —हम उठा नही ूं सिते , वह उठा रहा है !

कां डजिनी का ईांधन है प्राण—ऊजाओ :

तो तीव्रता िा प्रयोर् इसकिए िहता हूं । और प्राणवायु िा तो िहुत मूल्य है । उसिा तो िहुत मूल्य है ।
असि में , कजतनी मात्रा में तु म अपने शरीर िो प्राणवायु से , आक्सीजन से भर िोर्े , उतनी ही त्वरा से , स्पीड से
तु म शरीर िे अनु भव से आत्म— अनुभव िी तरि झुि जाओर्े। क्ोूंकि अर्र िहुत ठीि से समझो तो शरीर
तु म्हारा डे ड एूं ड हैं —यानी तु म्हारा वह कहस्सा, जो मर चुिा है । इसकिए वह कदखाई पड़ रहा है । तु म्हारा वह
कहस्सा जो सख्त हो चुिा है । इसकिए कदखाई पड रहा है । तु म्हारा वह कहस्सा जो अि तरि नही ूं है , ठोस हो र्या
है । और आत्मा तु म्हारा वह कहस्सा है जो तरि है , ठोस नही ूं है ; हवाई है , पिड़ में नही ूं आता है ।

तो कजतनी ज्यादा तु म्हारे भीतर ऊजाग होर्ी प्राण िी, और जार्रण और जीवन होर्ा, उतना ही तु म इन
दोनोूं िे िीच साि िासिा िर पाओर्े। ये दो िहुत कभन्नतम तु म्हें मािूम पड़ें र्े, तु म्हारे ही—एि कहस्सा
यह, एि कहस्सा वह— किििुि अिर् मािूम पड़ें र्े। इसकिए िहुत र्हरा उपयोर् है ।

प्रश्न: कां डजिनी जागरण के जिए?

हाूं , िुूंडकिनी जार्रण िे किए। इसकिए कि िुूंडकिनी जो है , वह तुम्हारी सोई हुई शक्तक्त है। उसिो
तु म िािगन िे साथ न जर्ा सिोर्े ; िािगन उसे और सु िा दे र्ी। उसिो जर्ाने िे किए आक्सीजन िहुत सहयोर्ी
है । इसकिए कजस तरह से भी हो सिे. .इसकिए सु िह िा ध्यान कनरूं तर समझा र्या है कि सु िह िा ध्यान
उपयोर्ी है । उसिा िोई और ज्यादा मूल्य नही ूं है । उसिा मूल्य इतना ही है कि सु िह तु म थोड़ी भी श्वास िो तो
भी ज्यादा आक्सीजन तु म्हारे भीतर पहुूं च जाती है । तो उधर सू यग उर्ने िे साथ घूंटे भर पृथ्वी िहुत ही अनोखी
क्तस्थकत में होती है । तो उस क्तस्थकत िा उपयोर् िरने िे किए सु िह सारी दु कनया में ध्यान िा वक्त चु न किया र्या।
तु म्हारे भीतर जो सोई हुई शक्तक्त है उस पर कजतने जोर से प्राणवायु िी चोट होर्ी, उतनी ही शीघ्रता से
हमें कदखाई नही ूं पड़ता न! एि दीया जि रहा है , तो हमें तो ते ि कदखाई पड़ता है , िाती कदखाई पड़ती
है , माकचस से आर् िर्ाई, वह कदखाई पड़ती है ; िेकिन जो जि रही है आक्सीजन, वह भर नही ूं कदखाई पड़ती।
न ते ि मूल्य िा है उतना, न िाती उतने मूल्य िी है , न माकचस उतने मूल्य िी है । िेकिन यह दृश्य कहस्सा है ; यह
शरीर है उसिा; यह कदखाई पड़ता है । और आक्सीजन जो जि रही है , वह कदखाई नही ूं पड़ती।

मैंने सु ना है कि एि घर में िच्चे िो छोड़ र्ए हैं , और भर्वान िा मूंकदर है उस घर में , और दीया
जिािर रख र्ए हैं ,और जोर िी तू िान िी हवा आई है , तो उस िच्चे ने सोचा िाप िह र्या है , दीया िुझ न
जाए। उसे च िीस घूंटे घर में वे जिाते हैं । अि जोर िी हवा है , िच्चा क्ा िरे ? तो उसने िािर एि िाूं च िा
िड़ा ितग न उस दीये पर ढाूं ि कदया। जोर िी हवा से तो सु रक्षा हो र्ई, िेकिन थोड़ी दे र में दीया िुझ र्या। अि
वह िड़ी मुक्तिि में पड़ र्या। शायद उतनी ते ज हवा िो भी दीया झे ि जाता, िेकिन हवा िे न होने िो
िैसे झेिेर्ा? वह मर ही र्या। पर वह कदखाई नही ूं पड़ता न!

हमारे भीतर भी कजसिो हम जीवन िह रहे हैं , वह आक्सीडाइजेशन ही है —उसी तरह, जैसे दीये िे।
असि में , अर्र जीवन िो हम वै ज्ञाकनि अथों में िें , तो वह प्राणवायु िे जिने िा नाम है । चाहे वह वृ क्ष में
हो, चाहे आदमी में , चाहे दीये में ,चाहे सू रज में—िही ूं भी हो— जहाूं भी प्राणवायु जि रही है , वहाूं जीवन है । तो
कजतना तु म प्राणवायु िो जिा सिो, उतनी तु म्हारी जीवन िी ज्योकत प्रर्ाढ़ हो जाएर्ी। और तु म्हारी जीवन िी
ज्योकत ही है िुूंडकिनी। वह उतनी ही प्रर्ाढ़ होिर िहने िर्ेर्ी,उतनी ही तीव्र हो जाएर्ी। तो उस पर प्राणवायु
िा तीव्र आघात पररणामिारी है ।

गिा में साधना करने के सू क्ष्म कारण:

प्रश्न : ओशो समाजध के प्रयोग के जिए गिाओां का उपयोग जकया जाता था। िहाां तो प्राणिाय
कम रहती है ।

असि में, िहुत सी िातोूं िा आधार है समाकध में—िहुत सी िातोूं िा। और जो िोर् भी र्ुिाओूं िा
प्रयोर् िरते हैं समाकध िे किए, उसमें अर्र और िातें नही ूं हैं , तो समाकध में न जािर वे मूच्छाग में चिे जाएूं र्े ।
और कजसे वे समाकध समझेंर्े,वह िेवि प्रर्ाढ़ तूं द्रा होर्ी और मूच्छाग िी अवस्था होर्ी।

र्ुिा िा उपयोर् कसिग वही िर सिता है , कजसने िहुत प्राणायाम िे द्वारा अपने िो आक्सीडाइज
किया हुआ है कि र्ुिा उसिे किए िेमानी है । इसकिए एि आदमी अर्र िहुत र्हरा प्राणायाम किया है , और
उसिे खू न िा िण—िण, रोआूं —रोआूं , रे शा—रे शा आक्सीडाइज हो र्या है , तो वह आठ कदन जमीन िे नीचे
भी दि जाए तो मर नही ूं जाएर्ा। और िोई िारण नही ूं है । उसिे शरीर िो कजतनी आक्सीजन िी जरूरत है ,
उसिे पास उतना अकतररक्त सूं चय है । हमारे पास िोई अकतररक्त सूं चय नही ूं है । तो अर्र तु म किना प्राणायाम
िो समझे और उस आदमी िी िर्ि में सो र्ए, तो तु म मरे हुए कनििोर्े , वह आदमी आठ कदन िे िाद कजूं दा
कनिि आएर्ा। असि में, आठ कदन िे किए जो न्यू नतम, कमकनमम आक्सीजन िी जरूरत है , उतना उसिे पास
सूं चय है , उतना वह पी र्या है ।
तो र्ुिा में जा सिता है एि आदमी, और ति र्ुिा में उसिो िायदे हो जाएूं र्े। आक्सीजन िो तो
इस तरह पूरा िर िेर्ा, उसिा उसे डर नही ूं है ज्यादा। और र्ुिा जो सु रक्षा दे ती है और िहुत सी चीजोूं से , वह
उसिे किए र्ुिा िा उपयोर् िर रहा है । र्ु िा िहुत तरह िी सु रक्षा दे ती है । िाहर िे शोरर्ुि से ही
नही,ूं िाहर िी िहुत सी तरूं र्ोूं से , िाहर िी िहुत सी वेब्ससे । और पत्थर िी, और खास तरह िे पत्थर िी र्ु िा
िे खास अथग हैं ।

िुछ पत्थर, िुछ कवशे ष पत्थर, जैसे सूं र्मरमर, िुछ तरूं र्ोूं िो भीतर प्रकवष्ट नही ूं होने दे ता। इसकिए
सूं र्मरमर िा मूंकदरोूं में कवशे ष प्रयोर् किया र्या। िुछ तरूं र्ें उस मूंकदर िे भीतर प्रवेश नही ूं िर सिती ूं उस
पत्थर िी वजह से । वह िारीर्री िा उतना नही ूं है मामिा, उसिे पीछे िहुत र्हरे अनु भव हैं कि िुछ पत्थर
किसी खास तरह िी तरूं र्ोूं िो पी जाते हैं , भीतर नही ूं जाने दे ते हैं । िुछ पत्थरोूं पर से िुछ खास तरह िी तरूं र्ें
वापस ि ट जाती हैं ; िुछ पत्थर िुछ खास तरह िी तरूं र्ोूं िो आिकषगत िरते हैं । तो कवशे ष तरह
िी र्ुिाएूं कवशे ष आिार में िाटी र्ईूं; क्ोूंकि आिार िा भी िड़ा मूल्य है । और वह आिार भी कवशे ष तरूं र्ोूं
िो हटाने में सहयोर्ी होता है ।

पर हमें खयाि में नही ूं होता है । जि एि साइूं स खो जाती है तो िड़ी मुक्तिि हो जाती है ।

हम एि िार िनाते हैं । िार िो हम एि खास आिार में िनाते हैं । अर्र खास आिार में न िनाएूं तो
उसिी र्कत िम हो जाएर्ी। िार िा आिार ऐसा होना चाकहए कि वह हवा िो चीर सिे, हवा से िड़ने न िर्े ।
अर्र आिार उसिा चपटा हो सामने से और हवा से िड़ने िर्े तो वह र्कत िो तोड़े र्ा। अर्र हवा िो चीर
सिे— िड़े न, कसिग तीर िी तरह चीरे , तो वह हवा िे रे कसस्टें स से जो उसिी र्कत िो िाधा पड़ती है , वह तो
पड़े र्ी नही,ूं िक्तम्ऻ चीरने िी वजह से पीछे जो वै क्ूम पैदा होर्ा, वह भी उसिी र्कत िो िढ़ाने में सहयोर्ी हो
जाएर्ा।

तु म इिाहािाद िा कब्रज अर्र िभी दे खोर्े , तो इिाहािाद िा कब्रज िहुत मुक्तिि से िना। क्ोूंकि वह
र्ूंर्ा उसिे कपिसग िो खड़ा न होने दे ; वे कपिसग कर्रते ही चिे र्ए। और एि कपिर तो िनाना असूं भव ही हो
र्या! सारे कपिसग िन र्ए, िेकिन एि कपिर नही ूं िना। तो तु म वहाूं दे खोर्े कि एि जूते िे आिार िा कपिर है ।
िेकिन कजसने िनाया, उसे िड़ी मुक्तिि हुई। उसने जूते िे आिार िा कपिर िनाया। तो वह र्ूंर्ा िा जो
धक्का है , पी जाता है । जूते िा आिार भी तु म्हें चिने में सहयोर्ी है ; वह हवा िो िाटता है , रोिता नही ूं। तो
उस खयाि से जूते िे आिार िा कपिर है । वह र्ूंर्ा िा जो धक्का था जो दु श्मनी िा, वह उसिो एज्जािग िर
र्या।

गिाओां के जिशे ष आकार, आयतन ि पत्थरोां का रहस्य:

तो र्ुिाओूं िे कवशे ष आिार हैं , कवशे ष आयतन हैं । तो कवशे ष आिार, कवशे ष पत्थर और कवशे ष
आयतन। एि व्यक्तक्त एि खास सीमा ति अपने व्यक्तक्तत्व िो आरोकपत िर सिता है । और वे अनुभव में आ
जाते हैं ; उसिे सारे रास्ते हैं कि वे खयाि में आ जाते हैं ; कि अर्र मैं आठ िीट च ड़े और आठ िीट िूं िे
च िोर िमरे िो अपने से आपूररत िर सिता हूं यानी मैं तो एि ही जर्ह िै ठा रहूं र्ा िे किन मे रे व्यक्तक्तत्व
से कनििनेवािी सारी किरणें इतने कहस्से िो घेरा िाूं धिर भर सिती हैं , तो यह जर्ह िड़ी सु रकक्षत हो जाती है ।
इसकिए इसमें िम से िम रूं ध्र होने चाकहए, िम से िम द्वार—प्ल ही द्वार होर्ा। और इसिे अपने आिार
होूंर्े, और उन आिारोूं िी अपनी कवशे षता होर्ी। तो िाहर िे सूं वेदनोूं िो भीतर न आने दें र्े , और भीतर जो
पैदा हो रहा है उसिो िाहर न जाने दें र्े। किर अर्र एि ही र्ुिा पर िहुत साधिोूं ने प्रयोर् किया हो ति तो
अदभुत िायदा होता है ; उसिा मूल्य ही िहुत िढ़ जाता है । वह कवशे ष तरह िी सारी िी सारी तरूं र्ें वह र्ुिा
पी जाती है और नये साधि िे किए सहयोर्ी हो जाती है । इसकिए हजारोूं—हजार साि ति एि—एि र्ुिा
िा प्रयोर् चिा है ।

अि अजूंता जि पहिी दिा खोजा र्या, तो वे सि कमट्टी से िूंद िर दी र्ई थी ूं र्ुिाएूं । उसिे कमट्टी से
िूंद िरने िे किए िारण था। खयाि में नही ूं है कि क्ोूं िूं द िर दी र्ईूं। पर सि र्ुिाएूं कमट्टी में ढूं िी हुई कमिी ूं।
सि कमट्टी से िूंद थी ूं पूरी िी पूरी। सै िड़ोूं साि ति उनिा िोई पता नही ूं रहा था, वह पहाड़ ही रह र्या
था, क्ोूंकि कमट्टी भर दी र्ई थी और उस कमट्टी पर वृक्ष पै दा हो र्ए थे। और वे इसकिए भर दी र्ई थी ूं कि जि
साधि उपिि नही ूं हो सिे, तो उन र्ुिाओूं में जो कवशे षता थी, उसिो िचाने िे किए और िोई रास्ता नही ूं
रहा, तो उसे िूंद िर कदया र्या। िभी भी िोई साधि खोजेर्ा तो किर िाम में िाई जा सिती हैं । िेकिन
वे कवकजटसग िे किए नही ूं थी;ूं वे दशग िोूं िे किए नही ूं हैं । दशग िोूं ने सि नष्ट िर कदया, अि वहाूं िुछ भी नही ूं
है , दशग िोूं ने सि नष्ट िर कदया।

तो इन र्ु िाओूं में आक्सीजन िा तो िायदा नही ूं कमिेर्ा तु म्हें। िायदे दू सरे हैं । िेकिन साधना तो िहुत
जकटि मामिा है । उसिे िहुत कहस्से हैं । पर उनिे किए र्ुिा िायदे िी हो सिती है , कजन्ोूंने िािी प्रयोर्
किया है ।

किर जो र्ु िा में िै ठता था, वह र्ुिा में ही नही ूं िै ठा रहता था। समय—समय पर र्ुिा में था, समय—
समय र्ुिा िे िाहर था। जो िाहर िरने योग्य था वह िाहर िर रहा था, जो भीतर िरने योग्य था वह भीतर िर
रहा था।

मूंकदर हैं , मक्तिद हैं , वे िभी इसी अथग में खोजे र्ए थे कि वहाूं एि कवशे ष तरह िी तरूं र्ोूं और िूंपनोूं
िा सूं ग्रह है ; और उन तरूं र्ोूं और िूंपनोूं िा उपयोर् किया जा सिता है । िही ूं अचानि किसी स्थान पर तु म
पाओर्े कि तु म्हारे कवचार एिदम से िदि र्ए। हािाूं कि तु म पहचान न पाओर्े ; तु म यही समझोर्े कि अपने
भीतर ही िोई ििग हो र्या। तु म अचानि किसी आदमी िे पास जािर पाओर्े कि तु म दू सरे आदमी हो र्ए
हो थोड़ी दे र िे किए; तु म्हारा िोई दू सरा पहिू ही ऊपर आ र्या। तु म यही समझोर्े कि अपने भीतर ही िुछ हो
र्या है , मूड िी िात है । ऐसा नही ूं है ; इतना आसान नही ूं है ।

महापरुषोां के मृत शरीर भी मूल्यिान:

और उसिे किए िड़ी अदभुत....... अि जैसे कि कपराकमडि् स हैं । अि कितनी खोजिीन चिती है ! उससे
िोई सूं िूंध नही ूं है । अभी खोजिीन चिती है कि कपराकमडि् स किसकिए िनाए र्ए? क्ा है ? इतने—इतने
िड़े कपराकमडि् स उस रे कर्स्तान में िनाने िा क्ा प्रयोजन है ? कितना श्रम व्यय हुआ है ! कितनी शक्तक्त िर्ी है !
और कसिग आदकमयोूं िी िाशें र्ड़ाने िे किए इतनी िड़ी िब्रें िनाना किििुि िेिार है ।

वे सि िे सि साधना िे किए कवशे ष अथग में िनाए र्ए स्थान हैं । और साधना िे उपयोर् िे किए ही
कवशे ष िोर्ोूं िी िाशें भी वहाूं रखी र्ईूं।

अभी कतब्त में हजार—हजार, दो—दो हजार साि पुराने साधिोूं िी ममीज़ हैं , कजनिो िहुत र्हरे में
सु रकक्षत रखा हुआ है । जो शरीर िुद्ध िे पास रहा हो, वह शरीर साधारण नही ूं रह जाता। कजस शरीर िे साथ
अस्सी साि ति िु द्ध जैसी आत्मा सूं िूंकधत रही हो, वह शरीर भी साधारण नही ूं रह जाता; वह िाया भी िुछ ऐसी
चीजें पी जाती है और ऐसी तरूं र्ें पिड़ िे ती है जो कि अनू ठी हैं —कजनिा कि अि दोिारा शायद जर्त में वैसा
होर्ा कि नही ूं होर्ा, िहना िकठन हो जाता है ।

जीसस िे मरने िे िाद उनिी िाश िो एि र्ु िा में रख कदया र्या था कि सु िह दिना कदया जाएर्ा।
िेकिन वह िाश किर कमिी नही ूं। और यह िड़ी कमस्टर ी है ईसाई िे किए कि वह क्ा हुआ? वह िहाूं र्ई? किर
िहानी है कि वे िही ूं दे खे र्ए,कदखाई पड़े । तो ररसरे क्ान हुआ; वे पुनरुज्जीकवत हो र्ए। िेकिन किर िि
मरे ? पुनरुज्जीकवत होिर किर उनिा जीवन क्ा है ?ईसाइयोूं िे पास उनिी िोई िथा नही ूं है । असि
में, जीसस िी िाश इतनी िीमती है कि उसे तत्काि उन जर्होूं में पहुूं चा कदया र्या जहाूं वह सु रकक्षत िी जा
सिे िहुत िूंिे समय िे किए। और इसिी िोई खिर सामान्य नही ूं िनाई जा सिती थी। क्ोूंकि इस िाश िो
िचाना िहुत जरूरी था। ऐसा आदमी मु क्तिि से िभी होता है ।

तो जो ममीज़ हैं कपराकमडि् स में, और ये जो कपराकमडि् स हैं , इनिा जो आिार है , इनिे जो िोण हैं ...

प्रश्न. िह िाश कौन िे गया?

वह अिर् िात िरनी पड़े। वह तो अिर् िात है न! जि जीसस पर पूरी िात िभी िरें र्े , ति पूरी
िात होर्ी तो खयाि में आएर्ा।

गहरे ध्यान में कम श्वास की जरूरत

प्रश्न: ओशो जब हमारा गहरे ध्यान में प्रिेश होता है तब शरीर क्मश: जड़ होता जाता है और
श्वास जबिकि क्षीण होने िगती है जमटने िगती है श्वास के इस धीमे होने के कारण शरीर में आक्सीजन
तो घटता है । तो आक्सीजन की इस कमी का और शरीर के जड़ होने का ध्यान ि समाजध से क्ा सां बांध
है ?

हाूं , हाूं। असि में... असि में, जि श्वास पूरी तीव्रता से जर् जाएर्ी, और तुम्हारे और तुम्हारे शरीर िे
िीच एि र्ैप पै दा हो जाएर्ा उसिी तीव्रता िे िारण, तु म्हारा सोया कहस्सा और तु म्हारा जार्ा कहस्सा कभन्न
मािूम होने िर्ेर्ा, तो जैसे ही तु म इस जार्े हुए कहस्से िी तरि यात्रा शु रू िरोर्े , शरीर िो किर आक्सीजन
िी िोई जरूरत नही ूं है —शरीर िो। अि तो उकचत है कि किििुि सो जाए वह, अि तो उकचत है कि वह
किििुि जड़ हो जाए, मुदे िी तरह पड़ा रह जाए। क्ोूंकि तु म्हारी जीवन— ऊजाग अि शरीर िी तरि नही ूं िह
रही है , अि तु म्हारी जीवन—ऊजाग तो आत्मा िी तरि िहनी शु रू हो र्ई है ।
आक्सीजन िी जो जरूरत है वह है शरीर िी; वह जरूरत आत्मा िी नही ूं है । समझ रहे हो न तु म ? वह
है जरूरत शरीर िी। इसकिए जि तु म्हारी आत्मा िी तरि तु म्हारी जीवन—ऊजाग िहने िर्ी, तो अि शरीर िे
किए िहुत कमकनमम आक्सीजन िी जरूरत है , कजतने से कि वह कसिग जीकवत रह पाए िस। इससे ज्यादा िी
िोई जरूरत नही ूं है । इससे ज्यादा अर्र उसिो कमिेर्ी, तो वह िाधा िने र्ा। इसकिए क्षीण होती जाएर्ी श्वास
पीछे तु म्हारी। उसिा जर्ाने िे किए उपयोर् है कि तु म्हारे भीतर िोई चीज जर् र्ई; जि वह जर् र्ई, ति
उसिा िोई उपयोर् नही ूं है । अि तु म्हारे शरीर िो िहुत िम से िम श्वास िी जरूरत है । िुछ क्षण तो ऐसे आ
जाएूं र्े जि श्वास किििुि िूंद हो जाएर्ी। होर्ी ही नही ूं।

समाजध में श्वास का खो जाना:

असि में , जि तु म ठीि सूं तुिन पर पहुूं चोर्े , िैिेंस पर पहुूं चोर्े —कजसिो हम समाकध िहें , उस
पर पहुचोर्े —तो श्वास िूंद हो जाएर्ी। िेकिन हमें श्वास िूंद होने िा िोई खयाि नही ूं है कि उसिा मतिि क्ा
होता है ? अर्र अभी हम अनुभव भी िरें तो हम िूं द िरें र्े। वह अनु भव वह नही ूं है । श्वास चि रही है , हमने रोि
िी, यह एि िात है । श्वास िाहर जा रही है , श्वास भीतर आ रही है , ये दो अनुभव हमारे हैं —िाहर जाना, भीतर
आना; िाहर जाना, भीतर आना। िेकिन एि किूंदु ऐसा आता है कि श्वास आधी िाहर है और आधी भीतर है और
सि ठहर र्या है ।

तो िुछ क्षण ऐसे आएूं र्े ध्यान में जि कि तु म्हें िर्ेर्ा कि श्वास ठहर तो नही ूं र्ई! िही ूं िूंद तो नही ूं हो
र्ई! िही ूं मर तो नही ूं जाऊूंर्ा! किििुि ऐसे क्षण आएूं र्े। कजतना तु म र्हरे जाओर्े , उतना इधर श्वास िे िूंपन
िम होते चिे जाएूं र्े ; क्ोूंकि उस र्हराई पर तु म्हें आक्सीजन िी िोई जरूरत नही ूं है , उसिी जरूरत थी
किििुि पहिी चोट पर।

यह ऐसा ही है , जैसे कि मैंने चािी िर्ाई तािे में। िेकिन तािा खु ि र्या; अि मैं चािी िर्ाए ही थोड़ा
चिा जाऊूंर्ा। चािी िेिार हो र्ई; वह तािे में अटिी रह र्ई, मैं भीतर चिा र्या। तु म िहोर्े कि आपने पहिे
चािी िर्ाई थी, अि आप भीतर चािी क्ोूं नही ूं िर्ा रहे हैं ? वह चािी िर्ाई ही इसकिए थी कि वह द्वार पर ही
उसिी जरूरत थी।

जि ति तु म्हारे भीतर जर्ी नही ूं है िुूंडकिनी, ति ति तो तु म्हें श्वास िी चािी िा जोर से प्रयोर् िरना
पड़े र्ा। िेकिन जैसे ही वह जर् र्ई, यह िात िेिार हो र्ई, अि तु म भीतर िी यात्रा पर चि पड़े हो। और अि
तु म्हारा शरीर िहुत िम श्वासमाूं र्ेर्ा। यह तु म्हें िूंद नही ूं िरनी है , यह अपने से होने िर्ेर्ी
धीमी, धीमी, धीमी, धीमी... और ऐसे क्षण आएूं र्े िीच—िीच में ,झिि आएर्ी ऐसी कि जैसे सि िूं द हो र्या, सि
ठहर र्या।

समाजध जीिन का नही ां, अब्धस्तत्व का अनभि:

असि में, वह जो क्षण है जि श्वास किििुि ठहरी हुई है —न िाहर जाती; न भीतर जाती—वह परम
सूं तुिन िे जो क्षण हैं , वही समाकध िा क्षण है । उस क्षण में तु म अक्तस्तत्व िो जानोर्े , जीवन िो नही।ूं इस ििग
िो ठीि से समझ िेना! िाइि िो नही,ूं एक्तब्सस्टें स िो। जीवन िी जानिारी तो श्वास से ही िूंधी है ; जीवन
तो आक्सीडाइजेशन ही है ; वह तो श्वास िा ही कहस्सा है । िेकिन उस क्षण तु म उस अक्तस्तत्व िो जानोर्े जहाूं
श्वास भी अनावश्यि है , जहाूं कसिग होना है ; जहाूं पत्थर हैं , पहाड़ हैं ,चाूं द हैं , तारे हैं —जहाूं सि ठहरा हुआ
है , जहाूं िोई िूंपन भी नही ूं है । उस क्षण तु म्हारे श्वास िा िूंपन भी रुि जाएर्ा। वहाूं श्वास िा भी प्रवेश नही ूं
है , क्ोूंकि वहाूं जीवन िा भी प्रवेश नही ूं है । वह जो है —कियाूं ड! जीवन िे भी पार!

और ध्यान रहे , जो चीज मृत्यु िे पार है वह जीवन िे भी पार होर्ी।

इसकिए परमात्मा िो हम जीकवत नही ूं िह सिते ; क्ोूंकि कजसिे मरने िी िोई सूं भावना नही ूं है उसे
जीकवत िहना किजू ि है ; िोई अथग नही ूं है । परमात्मा िा िोई जीवन नही ूं है , अक्तस्तत्व है । हमारा जीवन
है , अक्तस्तत्व िे िाहर जि हम आते हैं तो हमारा जीवन है ; जि हम अक्तस्तत्व में वापस ि टते हैं तो हमारी म त है ।
जैसे एि िहर उठी सार्र में , यह इसिा जीवन है — िहर िा। इसिे पहिे िहर तो नही ूं थी, सार्र था। उसमें
िोई िूंपन न था, उसमें िहर थी नही ूं। िहर उठी, यह जीवन शु रू हुआ; किर िहर कर्री, यह िहर िी म त
हुई। उठना िहर िा जीवन है ; कर्रना मर जाना है । िेकिन सार्र िा जो अक्तस्तत्व है ,िहरहीन; जि िहर नही ूं
उठी थी जो ति भी था, और जि िहर कर्र जाएर्ी ति भी होर्ा, उस अक्तस्तत्व िा, उस टर ै किकिटी िा जो अनु भव
है वह समाकध है ।

तो समाकध जीवन िा अनुभव नही ूं है , अक्तस्तत्व िा अनुभव है ; एक्तक्सस्टें कशयि है वह। वहाूं श्वास िी िोई
जरूरत नही ूं है । वहाूं श्वास िा िोई अथग नही ूं है । वहाूं नही ूं श्वास िा िोई सवाि नही ूं है , श्वास िा िोई सवाि
नही ूं है । वहाूं िभी—िभी सि ठहर जाएर्ा।

समाजधस्थ व्यब्धि के िापस िौटने की समस्या:

इसकिए जि र्हरी साधि िी क्तस्थकत हो, तो अनेि िार उसे जीकवत रखने िे किए और िोर्ोूं िी
जरूरत पड़ती है ,अन्यथा वह खो जा सिता है । अन्यथा वह खो जा सिता है ; वह अक्तस्तत्व से वापस ही न ि टे ।

रामिृष्ण िहुत िार ऐसी हाित में पहुूं च जाते । तो छह—छह कदन िर् जाते , वे नही ूं ि टने िी हाित में
हो जाते । रामिृ्ण िो इतना सिान है , िेकिन कजस आदमी ने रामिृष्ण िो दु कनया िो कदया, उसिा हमें पता
भी नही ूं है । उनिा एि भतीजा उनिे पास था। उसने उनिो िचाया कनरूं तर। वह रात—रात भर
जार्ता, जिरदस्ती मुूंह में पानी डािता, जिरदस्ती दू ध कपिाता; श्वास घुटने िर्ती तो वह माकिश िरता। वह
उनिो वापस िाता रहा। रामिृष्ण िो, कववे िानूं द ने तो उनिी चचाग िी दु कनया से , िेकिन कजस आदमी ने
िचाया, उसिा तो हमें पता भी नही ूं चिता। उस आदमी ने सारी मेहनत िी। वषों िी मेहनत थी उसिी। और
रामिृष्ण तो िभी भी जा सिते थे, क्ोूंकि वह इतना आनूंदपूणग है कि ि टना िहाूं ?

तो अक्तस्तत्व िे उस क्षण में खोना सूं भव है किििुि। वह िहुत िारीि रे खा है जहाूं से तु म उस पार चिे
जा सिते हो। तो उसिे िचाने िे किए स्कूि पै दा हुए, उसिो िचाने िे किए आश्रम पैदा हुए। इसकिए कजन
सूं न्याकसयोूं ने आश्रम नही ूं िनाए,वे सूं न्यासी समाकध में िहुत र्हरे नही ूं जा सिे। कजनिा सूं न्यास पररव्राजि िा
है , कसिग घूमते रहने िा, वे ज्यादा र्हरे नही ूं जा सिे, क्ोूंकि उस र्हरे जाने िे किए ग्रुप चाकहए, स्कूि
चाकहए; उस र्हरे जाने िे किए और िचाव िे किए और िोर् भी चाकहए जो जानते होूं, नही ूं तो आदमी िभी भी
खो जा सिता है ।
तो उन्ोूंने छोटी सी व्यवस्था िर िी कि भई, िही ूं ज्यादा दे र रुिेंर्े तो मोह हो जाएर्ा। िेकिन कजसिो
ज्यादा दे र रुिने से मोह पैदा हो जाता है , उसिो िम दे र से भी होता होर्ा— थोड़ा िम होता होर्ा, और क्ा
ििग पड़े र्ा! तीन महीने से ज्यादा होता होर्ा, तीन कदन में जरा िम होता होर्ा। मात्रा िा ही ििग पड़े र्ा, और
तो िोई ििग पड़नेवािा नही ूं है ।

तो कजन—कजन िोर्ोूं िे सूं न्यासी कसिग घूम रहे हैं , उनमें योर् खो जाएर्ा, उनमें समाकध खो
जाएर्ी, उनमें समाकध नही ूं िच सिती, क्ोूंकि समाकध िे किए ग्रुप चाकहए। व्यक्तक्त तो समाकध में जा सिता
है , िेकिन उसिा ि टना िहुत मामिा और है । तो ध्यान ति तो व्यक्तक्त िो िोई िकठनाई नही ूं है , समाकध िे
क्षणोूं िे िाद िहुत सु रक्षा िी जरूरत है । और वही क्षण है जि वह िचाया जा सिे तो उस िोि िी खिरें िा
सिता है —जहाूं उसने पीप किया, जहाूं उसने झाूं ि किया जरा सा। उसिो अर्र हम ि टा सिें तो वहाूं िी
थोड़ी खिरें िा सिता है । कजतनी खिरें हमें कमिी हैं , वे उन थोड़े से िोर्ोूं िी वजह से कमिी हैं जो वहाूं से थोड़ा
सा ि ट आए। नही ूं तो उस िोि िी हमें िोई खिर नही ूं कमि सिती। उसिे िाित सोचा तो जा ही नही ूं
सिता; उसिे सोचने िा तो िोई उपाय नही ूं है । और अक्सर यह है कि वहाूं जो जाए उसिे ि टने िी िकठनाई
हो जाती है , वह वहाूं से खो सिता है । वह प्याइूं ट ऑि नो ररटनग है । वह वह जर्ह है जहाूं से छिाूं र् हो जाती है
और खड्ड कमि जाता है , जहाूं से रास्ता टू ट जाता है और पीछे ि टने िे किए रास्ता नही ूं कदखाई पड़ता। उस वक्त
िड़े िाम िी जरूरत है ।

इधर मैं कनरूं तर चाहता हूं कि कजस कदन भी तु म्हें मैं समाकध िी तरि उन्मु ख िरू
ूं , उस कदन व्यक्तक्त
िीमती नही ूं रह जाता उस कदन ि रन स्कूि चाकहए जो तु म्हारी कििर िे सिे — अन्यथा तु म तो र्ए— और
तु म्हें ि टा सिे, और तु म्हें जो अनुभव कमिा है वह सु रकक्षत िरवा सिे। नही ूं तो वह अनुभव खो जाएर्ा।

सहज समाजधस्थ व्यब्धि की ियबि श्वास:

प्रश्न: ओशो सहज समाजध की अिस्था में जो व्यब्धि जीता है ? उसकी श्वास की अिस्था कैसी
होती है ?

िहुत ही ररदकमि हो जाती है, िहुत ियिद्ध हो जाती है, सूंर्ीतपूणग हो जाती है। और िहुत सी िातें
होती हैं । जो आदमी च िीस घूंटे ही सहज समाकध में है , वह कजसिा मन डोिता नही,ूं इधर—उधर नही ूं
होता, जैसा है वैसा ही िना रहता है ,जो जीता नही ूं अक्तस्तत्व में होता है , ऐसा जो आदमी है , उसिी श्वास एि िहुत
ही अपने तरह िी ियिद्धता िे िेती है । और जि वह िुछ भी नही ूं िर रहा है — िोि नही ूं रहा है , खाना नही ूं
खा रहा है , चि नही ूं रहा है — ति श्वास उसिे किए िड़ीआनदपूणग क्तस्थकत हो जाती है ; ति कसिग होना, कसिग श्वास
िा चिना इतना रस दे ता है कजतनी और िोई चीज नही ूं दे ती। और िहुत सूं र्ीतपूणग हो जाती है , िहुत नादपूणग
हो जाती है ।

उस अनुभव िो थोड़ा—िहुत श्वास िी व्यवस्था से भी अनु भव किया जा सिता है । इसकिए श्वास िी


व्यवस्थाएूं पैदा हुईूं कि जैसा सहज समाकधस्थ व्यक्तक्त िी श्वास होती है , कजस ररदम, कजस छूं द में चिती है , उसी
छूं द में दू सरा आदमी भी अपनी श्वास चिाए, तो उसे शाूं कत िा अनुभव होर्ा। इसकिए सि प्राणायाम इत्याकद िी
अनेि व्यवस्थाएूं पैदा हुईूं। ये अने ि समाकधस्थ िोर्ोूं िे पास उनिी श्वास िी ियिद्धता िो दे खिर पैदा िी
र्ई हैं । थोड़ा पररणाम होर्ा, और सहायता कमिे र्ी। और यह जो श्वास है , सहज समाकधस्थ व्यक्तक्त िी, यह
अत्यूंत कमकनमम हो जाती है , न्यू नतम हो जाती है । क्ोूंकि जीवन अि जो है उतना अथगपूणग नही ूं रह जाता, कजतना
अक्तस्तत्व अथगपूणग हो जाता है । यानी इस व्यक्तक्त िे भीतर एि और कदशा खु ि र्ई है जो अक्तस्तत्व िी है , जहाूं
श्वास वर्ैरह िी िोई जरूरत नही ूं है । वह जीता तो वही ूं है , वह रहता तो वही ूं है , वह हमसे जि सूं िूंकधत होता है
तभी वह शरीर िा उपयोर् िर रहा है , अन्यथा वह शरीर िा उपयोर् नही ूं िर रहा है । और हमसे सूं िूंकधत होने
िे किए उसे जो—जो िरना पड़ता है — वह खाना खा रहा है , िपड़े पहन रहा है , सो रहा है , स्थान िर रहा
है , वह हमसे सूं िूंकधत होने िी व्यवस्था है ; अि उसिे किए िोई अथग नही ूं है । और इस सििे किए कजतनी
जीवन—ऊजाग चाकहए, उतनी उसिी श्वास चि रही है । वह िहुत न्यू न हो जाती है ।

इसकिए वह िहुत िम आक्सीजन िी जर्ह में भी जी सिता है । िहुत िम आक्सीजन िी जर्ह में जी
सिता है ।

जनिाओ त स्थानोां में साधकोां का रहना:

इसकिए पुराने मूंकदरोूं या पुरानी र्ु िाओूं में द्वार—दरवाजे नही ूं हैं । कजसिो हम आज िी दु कनया में िहें
तो िहुत है रानी िी िात है । क्ोूंकि वे सि िे सि हमें किििुि ही स्वास्थ्य कवतान िे कवपरीत मािूम पड़ें र्े —
सारे पुराने मूंकदर। न क्तखड़िी है , न दरवाजा है , न िुछ है । र्ुिाएूं हैं , िुछ उपाय नही ूं है , वायु िे आने—जाने िा
िोई खास उपाय नही ूं कदखाई पड़ता।

जो उनिे भीतर रह रहा था, उसे िहुत उपयोर् नही ूं था। और वायु िो, वह चाहता नही ूं था कि वह
ज्यादा भीतर आए— जाए। क्ोूंकि वायु िे जो िूंपन भीतर आते हैं , वह भीतर िे जो और एस्टर ि िूंपन हैं , जो
सू क्ष्म िूंपन हैं , उनिो सििो नष्ट िर डािते हैं , उनिे धक्के से उनिो जिा जाते हैं । इसकिए वह उनिी सु रक्षा
िर रहा था। वह आने दे ने िे किए उत्सु ि नही ूं था उनिो िहुत। िेकिन आज नही ूं हो सिता, क्ोूंकि आज..
.उसिे किए पहिे पूरी श्वास िी िूंिी साधना चाकहए, ति! या समाकधस्थ क्तस्थकत चाकहए, ति।

अनापानसती : कीमती प्रयोग है :

प्रश्न: ओशो बब्धिस्ट साधना में जो अनापानसती है उसमें श्वास पर ध्यान करने से आक्सीजन की
मात्रा पर क्ा असर पड़ता है ?

िहुत असर पड़ता है । असि में—यह िहुत मजे िी िात है और समझने जैसी है —जीवन िी जो भी
कक्रयाएूं हैं , इन में किसी पर भी अर्र तु म ध्यान िे जाओ, तो उनिी र्कत िढ़ जाती है । जीवन िी जो कक्रयाएूं हैं वे
ध्यान िे िाहर चि रही हैं । जैसे तु म्हारी नाड़ी चि रही है । तो जि तुम्हारा डाक्ङर तु म्हारी नाड़ी जाूं चता है , तो
वह उतनी ही नही ूं होती कजतनी जाूं चने िे पहिे थी, थोड़ी सी िढ़ जाती है , क्ोूंकि तु म्हारा ध्यान और डाक्ङर—
दोनोूं िा ध्यान उस पर चिा जाता है । और अर्र िेडी डाक्ङर जाूं च रही है तो और ज्यादा िढ़ जाएर्ी; क्ोूंकि
ध्यान और ज्यादा चिा जाएर्ा। समझ रहे हैं न? उतनी ही नही ूं होती,कजतनी थी; थोड़ा सा अूंतर पड़ जाता है ।
इसिो तु म ऐसा भी प्रयोर् िरो अपनी नाड़ी ही जाूं चो पहिे ; और किर दस कमनट नाड़ी पर ध्यान रखो कि
वह ख्वा चि रही है , और इसिे िाद जाूं चो; तो तु म पाओर्े उसिे िूंपन िढ़ र्ए।

असि में, शरीर िे भीतर जो भी कक्रयाएूं चि रही हैं , वे हमारे ध्यान िे िाहर चि रही हैं । ध्यान िे जाते
ही उनिी र्कत िढ़ जाएर्ी। ध्यान िी म जूदर्ी उनिी र्कत िो िढ़ाने िे किए िैटे किकटि एजेंट िा िाम िरती
है ।

तो अनापानसती जो है , वह जो प्रयोर् है , वह िहुत िीमती प्रयोर् है । वह श्वास पर ध्यान दे ने िा प्रयोर्


है । श्वास िो घटाना—िढ़ाना नही ूं है , श्वास जैसी चि रही है , उसे तुम्हें दे खना है । िेकिन तु म्हारे दे खते से ही वह
िढ़ जाती है । तु मने दे खा,तु म आब्जवगर हुए कि श्वास िी र्कत िढ़ी। वह अकनवायग है उसिा िढ़ना। तो उसिे िढ़
जाने से पररणाम होूंर्े। और उसिो दे खने िे भी पररणाम होूंर्े। िे किन अनापानसती िा मूि िक्ष्य उसिो
िढ़ाना नही ूं है , उसिा मूि िक्ष्य तो उसे दे खना है । क्ोूंकि जि तु म अपनी श्वास िो दे ख पाते हो, धीरे — धीरे —
धीरे , कनरूं तर—कनरूं तर दे खने से श्वास तु मसे अिर् होती जाती है । क्ोूंकि कजस चीज िो भी तु म दृश्य िना िेते
हो, तु म िहुत र्हरे में उससे कभन्न हो जाते हो।

असि में, दृश्य से द्रष्टा एि हो ही नही ूं सिता; उससे वह तत्काि कभन्न होने िर्ता है । कजस चीज िो भी
तु म दृश्य िना िोर्े , उससे तु म कभन्न होने िर्ोर्े। तो श्वास िो अर्र तु मने दृश्य िना किया अपना, और च िीस
घूंटे, चिते , उठते , िैठते ,तु म उसिो दे खने िर्े —जा रही, आ रही; जा रही, आ रही— तो तु म दे खते रहे , दे खते
रहे , तु म्हारा िासिा अिर् होता जाएर्ा। एि कदन तु म अचानि पाओर्े कि तु म अिर् खड़े हो और श्वास वह
चि रही है ; िहुत दू र तु मसे उसिा आना—जाना हो रहा है । तो इससे वह घटना घट जाएर्ी, तु म्हारे शरीर से
पृथि होने िा अनुभव उससे हो जाएर्ा।

इसकिए किसी भी चीज िो...... अर्र तु म शरीर िी र्कतयोूं िो दे खने िर्ो—रास्ते पर चिते वक्त
खयाि रखो कि िायाूं पैर उठा, दायाूं पैर उठा। िस तु म अपने दोनोूं पैर ही दे खते रहो एि पूं द्रह कदन, तु म
अचानि पाओर्े कि तु म पैर से अिर् हो र्ए; अि तु म्हें पैर अिर् से उठते हुए मािूम पड़ने िर्ें र्े और तु म
किििुि दे खनेवािे रह जाओर्े। तु म्हारे ही पैर तु म्हें किििुि ही मैिेकनिि मािूम होने िर्ेंर्े कि उठ रहे
हैं , चि रहे हैं , और तु म किििुि अिर् हो र्ए।

इसकिए ऐसा आदमी िह सिता है कि चिता हुआ चिता नही ,ूं िोिता हुआ िोिता नही,ूं सोता हुआ
सोता नही ूं, खाता हुआ खाता नही ूं, ऐसा आदमी िह सिता है । उसिा दावा र्ित नही ूं है , मर्र उसिा दावा
समझना िहुत मुक्तिि है । अर्र वह खाने में साक्षी है तो वह खाते हुए खाता नही ूं, ऐसा उसे पता चिता है ; अर्र
वह चिने में साक्षी है तो वह चिते हुए चिता नही,ूं क्ोूंकि वह उसिा साक्षी है ।

तो अनापानसती िा तो उपयोर् है , पर दू सरी कदशा से वह यात्रा है ।

पूणओ श्वास से पूणओ जीिन:

प्रश्न : ओशो तीव्र ि गहरी श्वास से क्ा आिश्यकता से अजधक आक्सीजन िेिड़े में नही ां चिी
जाएगी और उससे क्ा कोई हाजन नही ां होगी?
असि में, िोई भी आदमी ऐसा नही ूं है कजसिे पूरे िेिड़े में आक्सीजन जाती हो। िोई छह हजार
कछद्र अर्र हैं िेिड़े में , तो हजार, डे ढ़ हजार कछद्रोूं ति स्वस्थ आदमी िी जाती है , कजसिो पूणग स्वस्थ िहें ।

प्रश्न: बाकी में क्ा होता है ?

िािी में िािगन डाइआक्साइड भरी रहती है। वे सि र्ूंदी हवा से भरे रहते हैं। तो इसकिए ऐसा तो
आदमी कमिना मु क्तिि है जो जरूरत से ज्यादा िे िे। जरूरत में ही िे नेवािा आदमी कमिना मुक्तिि है । िहुत
िड़ा कहस्सा िेिार पड़ा रहता है । उस ति, पूरे ति आप पहुूं चा दें तो िड़े पररणाम होूंर्े। िड़े अदभुत पररणाम
होूंर्े। आप िी िाूं शसनेस िा एक्सपैंशन एिदम से हो जाएर्ा। क्ोूंकि कजतनी मात्रा में आपिे िेिड़े में
आक्सीजन पहुूं चती है , उतना ही जीवन िा आपिो कवस्तार मािूम पड़ता है ,उतनी ही आपिे जीवन िी सीमा
होती है । जैसे—जैसे िेिड़े में ज्यादा पहुूं चती है , आपिे जीवन िा कवस्तार िड़ा होता है । तो अर्र हम
पूरे िेिडे ति आक्सीजन पहुूं चा सिें, तो मैक्घमम कजूंदर्ी िा हमें अनुभव होर्ा।

और स्वस्थ और िीमार आदमी में वही ििग है कि िीमार आदमी और भी िम पहुूं चा पाता है , और भी
िम पहुूं चा पाता है । िहुत िीमार िो हमें आक्सीजन ऊपर से दे नी पड़ती है , वह पहुूं चा ही नही ूं पाता। उस पर
ही छोड़ दें र्े तो वह मर जाएर्ा। िीमार और स्वस्थ िो भी हम अर्र चाहें तो आक्सीजन िी मात्रा से भी नाप
सिते हैं कि उसिे भीतर कितनी आक्सीजन जा रही है । इसकिए आप द ड़ें र्े तो स्वस्थ हो जाएूं र्े , क्ोूंकि
आक्सीजन िी मात्रा िढ़ जाएर्ी; व्यायाम िरें र्े तो स्वस्थ हो जाएूं र्े ,क्ोूंकि आक्सीजन िी मात्रा िढ़ जाएर्ी।
आप िुछ भी ऐसा िरें र्े कजससे आक्सीजन िी मात्रा िढ़ती हो, वह आपिे स्वास्थ्य में वद्धग ि हो जाएर्ी। और
आप िुछ भी ऐसा िरें र्े कजससे आक्सीजन िी मात्रा िम होती है , वह आपिी िीमारी िे िाने में सहयोर्ी हो
जाएर्ी।

िेकिन कजतनी आप िे सिते हैं उतनी ही िभी नही ूं िे रहे हैं ; और कजतनी आप पूरी िे सिते हैं उससे
ज्यादा िे ने िा सवाि ही नही ूं उठता, आप िे नही ूं सिते । आपिा पूरा िेिड़ा भर जाए, उससे ज्यादा आप िे
नही ूं सिते । उतनी भी नही ूं िे पाएूं र्े , उतना भी िहुत मुक्तिि मामिा है । उतनी भी नही ूं िे पाएूं र्े।

प्रश्न. ओशो हम श्वास में जो िाय िेते हैं उसमें केिि आक्सीजन ही नही ां होती उसमें नाइटर ोजन
हाइडर ोजन आजद अनेक प्रकार की हिाएां भी हैं । क्ा उन सब का ध्यान के जिए सहयोग हैं ?

किििुि ही ध्यान िे किए सहयोर्ी होर्ी। क्ोूंकि हवा में जो िुछ भी है — और िहुत िुछ
है , आक्सीजन ही नही ूं है , और िहुत िुछ है —वह सि िा सि आपिे किए, जीवन िे किए साथगि है , इसीकिए
आप कजूंदा हैं । कजस ग्रह पर, कजस उपग्रह पर हवा में उतनी मात्रा में वे सि चीजें नही ूं हैं , वहाूं जीवन नही ूं हो
सिेर्ा। वह जीवन िी पाकसकिकिटी है सि िा सि। इसकिए उसमें कचूंता िेने िी जरूरत नही ूं है । उसमें कचूंता
िेने िी जरूरत नही ूं है । और कजतनी तीव्रता से आप िें र्े उतना कहतिर है , क्ोूंकि उतनी तीव्रता में आक्सीजन
ही ज्यादा से ज्यादा प्रवेश िर पाएर्ी और आपिा कहस्सा िन पाएर्ी। िािी चीजें िेंि दी जाएूं र्ी। और वह
कजस अनुपात में जो चीजें हैं , वे सि िी सि आपिे जीवन िे किए उपयोर्ी हैं ; उससे िोई हाकन नही ूं है । उससे
िोई हाकन नही ूं है ।

हिकेपन का अनभि और उसकी अजभव्यब्धि:

प्रश्न. इससे शरीर हिका सा महसू स होता है !

हाूं , हििा महसूस होर्ा। हििा महसूस होर्ा, क्ोूंकि हमारे शरीर िा जो िोध है, शरीर िा िोध
ही हमारा भारीपन है । कजसिो हम भारीपन िहते हैं , वह हमारे शरीर िा िोध है । इसकिए िीमार दु ििा—
पतिा हो तो भी उसिो िोझ मािू म पड़ता है और स्वस्थ आदमी कितना ही वजनी हो तो भी उसे हििा मािूम
पड़े र्ा। शरीर िी जो िाूं शसनेस है हमारी, वही हमारा िोझ है । और शरीर िी िाूं शसनेस , शरीर िा जो िोध है
उसी मात्रा में होता है कजस मात्रा में शरीर में तििीि हो। अर्र पैर में ददग है तो पैर िा पता चिता है , कसर में
ददग है तो कसर िा पता चिता है ; अर्र िही ूं िोई तििीि नही ूं है , तो शरीर िा पता ही नही ूं चिता।

इसकिए स्वस्थ आदमी िी पररभाषा ही है जो कवदे ह अनुभव िरे , कजसिो ऐसा न िर्े कि मैं शरीर हूं ।
तो समझना चाकहए वह आदमी स्वस्थ है । अर्र उसिो िोई भी कहस्सा िर्ता हो कि यह मैं हूं तो समझ िेना
चाकहए वह कहस्सा िीमार है । तो कजस मात्रा में आक्सीजन िढ़े र्ी और िुूंडकिनी जर्े र्ी, तो िुूंडकिनी िे र्ाते ही
आपिो आक्तत्मि प्रतीकतयाूं शु रू हो जाएूं र्ी जो कि शरीर िी नही ूं हैं । और सि िोझ शरीर िा है । तो उनिी
वजह से तत्काि हििापन िर्ना शु रू हो जाएर्ा। िहुत हििापन िर्ेर्ा। यानी िहुत िोर्ोूं िो िर्ेर्ा कि जैसे
हम जमीन से ऊपर उठ र्ए हैं । सभी उठ नही ूं जाते , िभी ऐसी घटती है स में एिाध दिे घटना कि िभी
शरीर थोड़ा ऊपर उठता है , आमत र से उठता नही ूं है , िेकिन अनुभव िहुत िोर्ोूं िो होर्ा। जि आख खोििर
दे खेंर्े तो पाएूं र्े , िैठे तो वही ूं हैं ।

िेकिन यह क्ोूं अनुभव हुआ था कि उठ र्ए?

असि में , इतनी वेटिेसनेस मािूम हुई, इतना हििापन मािूम हुआ कि हििेपन िो जि हम कचत्रोूं
िी भाषा में िहें र्े तो िैसे िहें र्े? और हमारा जो र्हरा मन है वह भाषा नही ूं जानता, वह कचत्र जानता है । तो वह
यह नही ूं िह सिता कि हििे हो र्ए, वह कचत्र िना िेता है कि जमीन से उठ र्ए।

अचेतन मन की जचत्रमय भाषा:

हमारा जो र्हरा मन है अचेतन, वह कचत्र ही जानता है । इसकिए रात सपने में भाषा नही ूं होती
आपिे, कचत्र ही कचत्र होते हैं । और सपने िो सारी िातोूं िो कचत्रोूं में िदिना पड़ता है । इसकिए हमारे सपने
समझ में नही ूं आते सु िह; क्ोूंकि हम जो सु िहजार्िर भाषा िोिते हैं , वह सपने में नही ूं होती; और जो भाषा
हम सपने में अनुभव िरते हैं , वह सु िह नही ूं होती। तो इतना िड़ा टर ाूं सिेशन है सपने से कजूं दर्ी में कि उसिे
किए िड़े भारी व्याख्यािार चाकहए, नही ूं तो वह टर ाूंसिेट नही ूं होता।

अि एि आदमी िहुत महत्वािाूं क्षी है , िहुत एूं िीशस है , तो सपने में अि वह एूं िीशन िो िैसे अनु भव
िरे ? वह पक्षी हो जाएर्ा। वह आिाश में ऊपर से ऊपर उड़ता जाएर्ा; सि उसिे नीचे आ जाएूं र्े। अि
महत्वािाूं क्षा सपने में जि प्रिट होर्ी तोउड़ान िी तरह प्रिट होर्ी—उड़ रहा है एि आदमी। िुछ
आदमी उड़ने —उड़ने िे ही सपने दे खेंर्े। वह महत्वािाूं क्षा िा सपना है । िे किन महत्वािाूं क्षा शब्द वहाूं होर्ा
ही नही ूं। सु िह वह आदमी िहे र्ा, क्ा िात है कि मुझे उडने —उड़ने िे सपने आते हैं ! पर उसिी जो
महत्वािाूं क्षा है वह सपने में उड़ना िन जाती है ।

ऐसे ही ध्यान िी र्हराई में कपक्ङोररअि िैंग्वेज होर्ी। हििापन अनुभव होर्ा तो ऐसा िर्ेर्ा शरीर
उठ र्या। क्ोूंकि शरीर उठ र्या है , यही हििेपन िा कपक्गर िन सिता है , और तो िोई कपक्गर िन नही ूं
सिता। और िभी िहुत ही हििेपनिी हाित में शरीर उठ भी जाता है ।

शारीररक रूपाां तरण की प्रजक्या:

प्रश्न: कभी— कभी टू टने का डर िगता है जक जैसे कछ भी टू ट जाएगा।

हाूं , िर् सिता है, किििुि िर् सिता है।..... .किििुि िर् सिता है।

प्रश्न: िह डर नही ां रखना चाजहए जबिकि?

रखने िी तो िोई जरूरत नही ूं है, िेकिन वह िर्ता है; वह स्वाभाकवि है।

प्रश्न: गरमी भी बहुत पैदा होती है !

वह भी हो सिता है; क्ोूंकि हमारे भीतर सारी िी सारी व्यवस्था िदिती है। यानी जो—जो हमारा
इूं तजाम है , वह सि िदिता है ; जहाूं —जहाूं से हम शरीर से जुड़े हैं वहाूं —वहाूं कढिाई होनी शु रू होती है ; जहाूं
हम नही ूं जुड़े हैं वहाूं नये जोड़ िनने शु रू होते हैं ; पुराने कब्रज कर्रते हैं , नये कब्रज िनते हैं , पुराने दरवाजे िूंद होते
हैं , नये दरवाजे खु िते हैं । वह पूरा मिान आिटर े शन में होता है , तो इसकिए िहुत सी चीजें टू टती मािूम पड़ती
हैं , िहुत से डर मािूम पड़ते हैं , सि व्यवस्था अव्यवस्था हो जाती है । तोटर ाूं जीशन िे वक्त में यह चिे र्ा। िेकिन
जैसे ही नई व्यवस्था आ जाएर्ी, वह पुरानी व्यवस्था से अदभुत है , उसिा किर िोई मुिाििा नही।ूं किर िभी
खयाि भी नही ूं आएर्ा कि पुरानी व्यवस्था टू ट र्ई, या थी! िक्तम्ऻ ऐसा िर्े र्ा कि इतने कदनोूं उसिो िैसे
खी ूंचा? तो वह होर्ा।

अांत तक प्रयत्न जारी रखो:

प्रश्न: ओशो शब्धिपात के बाद भी क्ा तीव्र श्वास और ' मैं कौन हां ' पूछने का प्रयत्न करना पड़े गा
या िह सहज ही होने िगता है ?

जि सहज होने िर्े ति तो सवाि नही ूं है। ति तो सवाि नही ूं है ; ति िोई सवाि नही ूं है। ति तो
सवाि भी असहज है । होने िर्े वह, ति तो िोई िात ही नही ूं है ।

िेकिन जि ति नही ूं हुआ है , ति ति िई िार मन मानने िा होता है कि अि छोड़ो, अि तो हो र्या!


अि क्ा िार— िार पूछते चिे जा रहे हैं ! अि कितने कदन से तो पूछ रहे हैं ! जि ति मन तु मसे िहे
कि छोड़ो, अि क्ा िायदा है , ति ति तो िरते ही चिे जाना; क्ोूंकि मन अभी है । कजस कदन अचानि तु म
पाओ कि अि तो िरने िा िोई सवाि ही नही ,ूं िरना भी चाहो तो नही ूं िर सिते ; क्ोूंकि 'मैं ि न हूं तु म तभी
ति पूछ सिते हो जि ति पता नही ूं है ; कजस कदन पता चि जाएर्ा उस कदन तु म पूछोर्े िैसे ? वह
तो एिकडग टी है , उसिो तु म पूछ ही िैसे सिते हो जि तु म्हें पता ही चि र्या?

मैं पूछता हूं कि दरवाजा िहाूं है ? दरवाजा िहाूं है ? अि मुझे पता चि र्या कि यह रहा दरवाजा। अि
मैं पूछूूंर्ा दरवाजा िहाूं है ? यह भी नही ूं पूछूूंर्ा कि क्ा मैं पूछूूं अि कि दरवाजा िहाूं है । इसिा िोई मतिि
नही ूं है । जो हमें पता नही ूं है , वही ूं ति हम पूछ सिते हैं ; जैसे ही हमें पता हुआ वैसे ही िात खत्म हो र्ई।

तो जैसे ही 'मैं ि न हूं ' इसिी अनु भूकत तु म पर िरस जाए, वैसे ही तु म्हारे प्रश्न िी दु कनया र्ई। और जै से
ही तु म छिाूं र् िर्ा जाओ उस िोि में , किर िरने िा िोई सवाि नही ूं है ; किर तो तु म जो िरोर्े , वह सभी वही
होर्ा। तु म चिोर्े तो ध्यान होर्ा, तु म िैठोर्े तो ध्यान होर्ा, तु म चुप रहोर्े तो ध्यान होर्ा, तु म िोिोर्े तो ध्यान
रहे र्ा। ऐसा भी कि तु म िड़ने भी चिे जाओर्े तो भी ध्यान होर्ा। यानी, तु म्हारा क्ा िरना है , इससे किर िोई
ििग नही ूं पड़ता। इससे िोई ििग नही ूं पड़ता।

दाां ि पूरा ही िगाना:

प्रश्न: ओशो शब्धिपात का प्रभाि जब जक्याशीि होता है तो श्वास तो ते ज होती है आप ही आप


िेजकन बीच— बीच में श्वास की गजत जबिकि रुक जाती है । तो क्ा उस ब्धस्थजत में प्रयास करना चाजहए
श्वास का?
िरोर्े तो िायदा होर्ा। सवाि यह नही ूं है कि श्वास चिे कि नही;ूं वह न चिे तो िोई हजाग नही ूं।
तु मने प्रयास किया कि नही ूं! यह सवाि नही ूं है ; वह नही ूं चिे र्ी तो नही ूं चिे र्ी, तु म क्ा िरोर्े ? िेकिन तु म मत
छोड़ दे ना प्रयास। तु म्हारा प्रयास ही साथग ि है । िड़ा सवाि इतना नही ूं है कि वह हुआ कि नही ूं हुआ। तु मने
किया! तु मने अपने िो पूरा दाूं व पर िर्ाया; तु मने िही ूं िचा नही ूं किया अपने िो। नही ूं तो मन िहुत िचाव
िरता है । वह िहता है : अि तो हो ही नही ूं रहा, अि छोड़ो। हमारे मन िे साथ िकठनाई ऐसी है कि वह रोज
हजार रास्ते खोजता है कि अि तो यह हो ही नही ूं रहा, अि किििुि दम घुटी जा रही है अि किििुि मर ही
जाओर्े , अि छोड़ो।

तो तु म यह मत सु नना। तु म िहना, घुट जाए तो िड़ा आनूंद! नही ूं आ सिेर्ी तो वह दू सरी िात
है , उसमें तु म्हारा िोई वश नही ूं है । िेकिन अपनी तरि से तु म पूरी िोकशश िरना; तु म अपने िो पू रा दाूं व पर
िर्ाना। उसमें रिी भर अपने िो िचाना मत। क्ोूंकि िभी—िभी रिी भर िचाना ही सि रोि दे ता है —रिी
भर िचाना! िोई नही ूं जानता कि ऊूंट आक्तखरी कतनिे से िैठ जाए। तु मने िहुत वजन िादा है ऊूंट पर, िेकिन
अभी इतना वजन नही ूं हुआ है कि ऊूंट िैठे। और हो सिता है कसिग आक्तखरी कतनिा—घास िा एि छोटा सा
टु िड़ा— और ऊूंट िैठ जाए। क्ोूंकि सूं तुिन तो एि छोटे से कतनिे से ही आक्तखर में तय होता है ।

प्रश्न: पहिे नही ां होता।

पहिे नही ूं होता तय। पहिे तुमने दो मन िादा और उससे िुछ नही ूं हुआ, ऊूंट चिता ही चिा र्या।
तु मने एि हथ ड़े से तािा तोड़ा। तु म पचास हथ ड़े मार चुिे पूरी ताित से — और इक्ावनवाूं तु मने िहुत धीमी
ताित से मारा और टू ट र्या।

सूं तुिन तो अूंत में िड़ी छोटी िात से तय होता है , िभी—िभी इूं च भर से तय होता है , कतनिे से तय
होता है । इसकिए ऐसा न हो कि तु म सारी मेहनत िरो और एि कतनिे से चूि जाओ। और चूि र्ए तो तु म पूरे
चूि र्ए।

अभी ऐसा हुआ एि कमत्र अमृतसर में तीन कदन से ध्यान िर रहे थे। पढ़े —किखे डाक्ङर हैं । पर नही ूं
िुछ हो रहा था। आक्तखरी कदन—मुझे तो पता ही नही ूं था कि वे क्ा िर रहे हैं , क्ा नही ूं िर रहे हैं , जानता भी
नही ूं था उनिो— आक्तखरी कदन मैंने यह िहा कि हम पानी िो र्रम िरते हैं , तो वह स कडग्री पर भाप िनता है ।
और अर्र कनन्यानिे कडग्री से भी वापस ि ट र्ए, तो यह मत सोचना कि हमने कनन्यानिे ति िनाया था तो एि
कडग्री िी क्ा िात थी! वह पानी रह जाएर्ा। साढ़े कनन्यानिे ति भी पानी रह जाएर्ा; रिी भर िासिा रह
जाएर्ा तो भी पानी रह जाएर्ा। वह तो आक्तखरी रिी भी, जि स िो पार िरे र्ा, क्रास िरे र्ा, तभी भाप िनेर्ा।
और इसमें िोई कशिायत नही ूं िी जा सिती है ।

तो वे उसी कदन साूं झ िो मेरे पास आए कि आपने यह अच्छा िहा, मैं तो िर रहा था कि भई, चिो
धीरे — धीरे िर रहे हैं , िहुत नही ूं होर्ा तो थोड़ा तो होर्ा! हमारे क्ा खयाि में होते हैं ! तो आपने जि िहा ति
मुझे खयाि में आया कि यह िात तो ठीि है । अट्ठानिे कडग्री पर र्मग किया तो ऐसा नही ूं कि थोड़ा पानी भाप
िनेर्ा और थोड़ा नही ूं िनेर्ा; िनेर्ा ही नही ूं। िनना तो शु रू होर्ा, एि भी किूंदु अर्र िना हो तो वह स कडग्री
पर ही उड़े र्ा; उसिी उड़ान तो स कडग्री पर ही होर्ी। उसिे पहिे वह पानी होना नही ूं छोड़ सिता। पानी
होना छोड़ने िे किए उतनी यात्रा उसे िरनी ही पड़े र्ी, आक्तखरी इूं च ति।

तो उन्ोूंने मुझसे िहा कि आपने अच्छा िह कदया यह; आज मैं ने पूरी ताित िर्ाई। तो मैं तो है रान हूं
कि मैं तीन कदन से मेहनत किजूि िर रहा था; थि भी जाता था, िुछ होता भी नही ूं था, आज थिा भी नही ूं हूं
और िुछ हो भी र्या। पर उन्ोूंने िहा कि मुझे स कडग्री िी िात खयाि रही पूरे वक्त, और मैंने इूं च भर भी
नही ूं छोड़ा, मैंने िहा कि अपनी तरि से नही ूं छोड़ना है , पूरी ताित िर्ा दे नी है ।

कजनिो नही ूं हो रहा है और कजनिो हो रहा है , उनमें और िोई ििग नही ूं है , कसिग इतना ही ििग है ।
कसिग इतना ही ििग है । और एि िात और ध्यान रखना कि िई दिे ऐसा िर्ता है कि तु म्हारा पड़ोसी तु मसे
ज्यादा ताित िर्ा रहा है और उसिो नही ूं हो रहा। िेकिन उसिी स कडग्री और तु म्हारी स कडग्री में ििग है ।
अर्र उसिे पास ताित ज्यादा है .......

एि आदमी िे पास पाूं च स रुपए हैं और वह तीन स रुपए िर्ा रहा है दाूं व पर, और तु म्हारे पास पाूं च
रुपए हैं और तु म चार रुपए दाूं व पर िर्ा रहे हो—तु म आर्े कनिि जाओर्े। यह तीन स और चार से तय नही ूं
होर्ा, पूरे अनुपात से तय होर्ा। तु मने अपना पूरा िर्ाया तो स कडग्री पर हो। और सििी स कडग्री अिर् होूंर्ी।
उसिा कितना पूरा िर्ाने िा सवाि है । अर्र तुमने पाूं च रुपए िर्ा कदए तो तु म जीत जाओर्े , और वह तीन स
और चार स भी िर्ा दे तो नही ूं जीते र्ा। उसिे पास पाूं च स थे ; जि ति वह पाूं च स न िर्ा दे , ति ति
वह जीतनेवािा नही ूं है ।

चरम—जबांद पर ही सािधानी:

इसकिए अूंकतम अथों में एि िात ध्यान रखना सदा जरूरी है कि तु म अपने िो िचाना मत; िही ूं भी
यह मत सोचना कि अि ठीि है , इतने से हो जाएर्ा। ऐसा तु मने सोचा कि तु म ि टना शु रू हो जाओर्े।

और अक्सर ऐसा होर्ा कि कजस किूंदु से घटना घटती है उसी किूंदु से ऐसा होर्ा; क्ोूंकि मन उसी किूंदु
पर घिडाना शु रू होता है कि अि तो भाप िनी, अि भाप िनी। अि वह िहता है कि अि िस िािी हो
र्या, उिि चुिे, पानी आर् हुआ जा रहा है , अि क्ा िायदा; अि ि ट आओ।

वही क्षण िहुत िीमती है जि तु म्हारा मन िहे कि अि ि ट चिो। अि मन िो िर्ने िर्ा कि अि


मामिा खतरे िा है , अि टू टने िा वक्त िरीि आता है , अि कमटे , अि मरे । तो जैसे ही उसिो िर्ा कि अि
खतरा आता है .......जि ति खतरा नही ूं है , ति ति वह िहे र्ा कि खू ि मजे से िरो, जैसे ही खतरे िे िरीि
पहुूं चोर्े , ब्ाइकिूंर् प्वाइूं ट िे पहिे ही वह तु मसे िहे र्ा कि अि िस, अि तो सारी ताित िर्ा दी, अि तो होता
ही नही ूं है । उसी वक्त सावधान रहना। वही क्षण है जि तु म्हें पूरा िर्ा दे ना है । उस एि क्षण में चू िने से िभी
वषग चूिना हो जाता है । और कनन्यानिे कडग्री ति पहुूं चने में भी वषों िर् जाते हैं िभी तो। और िभी पहुूं च पाते
हैं और तत्काि चूि जाते हैं । जरा सी िात और चुिा सिती है । इसकिए तु म मत िचाव िरना। वह नही ूं
होर्ा, नही ूं होर्ा।

प्रश्न : जोर से करने से नाजडयोां पर कछ असर नही ां हो सकता?


ये सारी िी सारी जो िातें हैं, सारी िी सारी जो िातें हैं, हमारे सारे भय जो हैं... असर तो होर्ा
ही, असर क्ोूं नही ूं होर्ा? असर तो होर्ा ही। असर होने िे किए ही तो सारी िात है ।

प्रश्न: टू ट जाएां नाड़ी तो?

हाूं , तो दे खो भी न! टू ट जाने दो, िचािर भी क्ा िरना है! टू ट ही जाएर्ी, िचािर भी क्ा िरोर्ी।

प्रश्न : इग्नोरें स में तो मरना नही ां चाहते ।

तो मरोर्ी इग्नोरें स में अर्र नाड़ी िचाओर्ी। िरोर्ी क्ा? हमारी तििीि यह है कि हम कजन
चीजोूं िो िचाने िे किए कचूंकतत रहते हैं उनिो िचाने से होना क्ा है ?

प्रश्न : हमारे पास इतना ही अल्प सा तो है ; उसे भी खो दें ?

हाूं , अर्र वह भी होता ति भी िुछ था; ति तुम्हें डर न होता उसिे खोने िा। वह भी नही ूं है।
अक्सर नूंर्े आदमी िपड़े चोरी जाने िे डर से भयभीत रहते हैं , क्ोूंकि इससे एि मजा आता है कि अपने पास
भी िपड़े हैं । उसिा जो रस है भीतर वह यह रहता है कि अरे , अपन िोई नूंर्े थोड़े ही हैं , िपड़े चोरी न चिे
जाएूं । िपड़े हैं तो चोरी जाने िी इतनी कििर नही ूं रहती है । िपड़े ही हैं न, चोरी चिे जाएूं र्े तो चिे जाएूं र्े। यह
भय छोड़ना।

इसिा यह मतिि नही ूं है कि तु म्हारी नाकडया टू ट जाएूं र्ी। भय से टू ट सिती हैं , ध्यान से नही ूं टू ट
सिती ूं। भय से टू ट ही जाती हैं । िेकिन भय से हम भयभीत नही ूं होते । भय से टू ट जाएूं र्ी, कचूंता से टू ट
जाएूं र्ी, उससे हम भयभीत नही ूं हैं । तनाव से टू ट जाएूं र्ी, उससे हम भयभीत नही ूं हैं । ध्यान से हम भयभीत
हैं , जहाूं कि टू टने िा िोई सवाि नही ूं है , जहाूं टू टी भी होूंर्ी तो जुड़ सिती हैं ।

िेकिन हम अपने भय पािते हैं । और वे भय हमें सु कवधा िना दे ते हैं कि ऐसा न हो जाए, ऐसा न हो
जाए, ऐसा न हो जाए। ि ट आने िा हम सारा इूं तजाम िर िेते हैं ।
तो मैं यह िहता हूं जाओ ही क्ोूं? यह दु कवधा खतरनाि है । मैं िहता हूं जाओ ही मत; िात
ही छोड़ो; उसिी कचूंता ही मत िो।

दजिधा साधक की एकमात्र शत्र:

िेकिन हम दोनोूं िाम िरना चाहते हैं । हम जाना भी चाहते हैं और नही ूं भी जाना चाहते हैं । ति दु कवधा
हमारे प्राण िे िेती है । और ति हम अिारण परे शान होते हैं । सै िड़ोूं—िाखोूं िोर् अिारण परे शान होते हैं ।
उनिो परमात्मा िो खोजना भी है और िचना भी है कि िही ूं कमि न जाए।

अि ये दोहरी कदक्कतें हैं । हमारी सारी तििीि जो है न वह ऐसी है कि हम जो िरना चाहते हैं उसिो
किसी दू सरे ति पर मन िे नही ूं भी िरना चाहते । दु कवधा हमारा प्राण है । हम ऐसा िर ही नही ूं पाते कि िुछ
हम िरना चाहते हैं तो िरना चाहते हैं । कजस कदन ऐसा हो उस कदन तु म्हें िोई रुिावट नही ूं होर्ी। उस कदन
कजूंदर्ी र्कत िन जाती है । िेकिन हमारी हाितें ऐसी हैं कि एि पैर उठाते हैं और एि वापस ि टा िेते हैं ; एि
ईूंट मिान िी रखते हैं और दू सरी उतार िेते हैं । रखने िा भी मजा िेते रहते हैं और रोने िा भी मजा िेते रहते
हैं कि मिान िन नही ूं रहा। कदन भर मिान जमाते हैं , रात भर उतार दे ते हैं । दू सरे कदन किर दीवािें वही ूं िी
वही ूं हो जाती हैं , किर हम रोने िर्ते हैं कि िड़ी मु क्तिि है कि मिान िन नही ूं रहा।

यह जो िकठनाई है , यह समझनी चाकहए अपने भीतर। और इसिो ऐसे ही समझ सिोर्ी जि तु म यह


समझो कि ठीि है , टू टें र्ी न, तो टू ट ही जाएूं र्ी। तीस—चािीस साि नही ूं भी टू टी तो िरोर्ी क्ा? एि दफ्तर में
न िरी िरोर्ी, रोज खानाखाओर्ी, दोूं—चार िच्चे पैदा िरोर्ी, नही ूं पैदा िरोर्ी, पकत होर्ा; यह होर्ा, वह
होर्ा; यही सि होर्ा। और इनिो छोड़ जाओर्ी तो ये िेचारे अपनी नाकडया न टू ट जाएूं उसिे किए डरते रहें र्े।
यही िरती रहोर्ी। िरोर्ी क्ा?

अर्र हमिो थोड़ा सा भी यह खयाि में आ जाए कि कजूंदर्ी कजसिो हम िचाने िी िोकशश में
हैं , इसमें िचाने योग्य भी क्ा है ! तो दाूं व पर िर्ा सिते हैं , नही ूं तो नही ूं िर्ा सिते । और यह िहुत ही कजसिो
िहना चाकहए स्पष्ट, हमारे मन में साि हो जाना चाकहए कि कजस—कजस चीज िो हम िचाना चाहते हैं , उसमें
िचाने जैसा भी क्ा है ? क्ा है िचाने जैसा? और िचािर भी िहाूं िचता है ? यह स्पष्ट हो तो किर तु म्हें िकठनाई
नही ूं होर्ी। टू टे र्ी तो टू ट जाएर्ी। टू टती नही ूं है , अभी ति टू टी नही ूं है । अर्र तोड़ दो तो तु म एि नई घटना
होर्ी।

प्रश्न. ररकॉडओ टू ट जाएगा?

हाूं , ररिॉडग टू ट जाएर्ा।


प्रिचन 11 - मब्धि सोपान की सीजढयाां

पाां चिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ :

शब्धिपात और प्रसाद:

प्रश्न: ओशो आपने नारगोि जशजिर में कहा जक शब्धिपात का अथओ है— परमात्मा की शब्धि आप
में उतर गई। बाद की चचाओ में आपने कहा जक शब्धिपात और ग्रेस में िकओ है । इन दोनोां बातोां में
जिरोधाभास सा िगता है । कृपया इसे समझाएां ।

दोनोूं में थोड़ा ििग है, और दोनोूं में थोड़ी समानता भी है। असि में, दोनोूं िे क्षेत्र एि—दू सरे पर
प्रवेश िर जाते हैं । शक्तक्तपात परमात्मा िी ही शक्तक्त है । असि िात तो यह है कि उसिे अिावा और किसी िी
शक्तक्त ही नही ूं है । िे किन शक्तक्तपात में िोई व्यक्तक्त माध्यम िी तरह िाम िरता है । अूंततः तो वह भी परमात्मा
है । िेकिन प्रारूं कभि रूप से िोई व्यक्तक्त माध्यम िी तरह िाम िरता है ।

जैसे आिाश में किजिी ि ध


ूं ी; घर में भी किजिी जि रही है ; वे दोनोूं एि ही चीज हैं । िे किन घर में जो
किजिी जि रही है , वह एि माध्यम से प्रवेश िी है घर में —कनयोकजत है । आदमी िा हाथ उसमें साि और
सीधा है । वह भी परमात्मा िी है । वषाग में जो किजिी ि ध
ूं रही है वह भी परमात्मा िी है । िेकिन इसमें िीच में
आदमी भी है , उसमें िीच में आदमी नही ूं है । अर्र दु कनया से आदमी कमट जाए तो आिाश िी किजिी तो
िध
ूं ती रहे र्ी, िेकिन घर िी किजिी िु झ जाएर्ी।

शक्तक्तपात घर िी किजिी जैसा है , कजसमें आदमी माध्यम है ; और प्रसाद, ग्रेस आिाश िी किजिी जै सा
है , कजसमें आदमी माध्यम नही ूं है ।

व्यब्धि : परमात्म शब्धि का माध्यम:

तो कजस व्यक्तक्त िो ऐसी शक्तक्त उपिि हुई है, जो परमात्मा से किसी अथों में सूंयुक्त हुआ है, वह
तु म्हारे किए माध्यम िन सिता है ; क्ोूंकि वह ज्यादा अच्छा वीकहिि है , तु मसे ज्यादा अच्छा वाहन है । उस
शक्तक्त िे किए वह आदमी पररकचत है , उसिे रास्ते पररकचत हैं , वह शक्तक्त उस आदमी से िहुत शीघ्रता से प्रवेश
िर सिती है । तु म किििुि अपररकचत हो,अनर्ढ़ हो।

वह आदमी र्ढ़ा हुआ है । और उसिे माध्यम से तु म में प्रवेश िरे , तो एि तो वह र्ढ़ा हुआ वाहन
है , इसकिए िड़ी सरिता है , और दू सरा वह तु म्हारे किए िहुत सूं िीणग द्वार है जहाूं से तु म्हारी पात्रता िे योग्य
शक्तक्त तु म्हें कमि जाएर्ी। तो घर िी किजिी में िै ठिर तु म पढ़ सिते हो, आिाश िी किजिी िे नीचे िैठिर
पढ़ नही ूं सिते । घर िी किजिी एि कनयूंत्रण में है ,आिाश िी किजिी किसी कनयूंत्रण में नही ूं है ।

तो िभी अर्र किसी व्यक्तक्त िे ऊपर आिक्तस्भि प्रसाद िी क्तस्थकत िन जाए, अनायास ऐसे सूं योर्
इिट्ठे हो जाएूं कि उसिे ऊपर शक्तक्तपात हो जाए, तो िहुत सूं भावना है वह व्यक्तक्त पार्ि हो जाए, कवकक्षप्त हो
जाए, उन्मादग्रस्त हो जाए। क्ोूंकि वह शक्तक्त इतनी िड़ी हो और उसिी पात्रता सि अस्तव्यस्त हो जाए।

किर अनजान, अपररकचत सु खद अनुभव भी दु खद हो जाते हैं । जो आदमी वषों ति अूंधेरे में रहा
हो, उसिे सामने अचानि सू रज आ जाए, तो उसे प्रिाश कदखाई नही ूं पड़े र्ा। और भी ज्यादा अूं धेरा कदखाई
पड़े र्ा—कजतना अूंधेरे में भी कदखाई नही ूं पड़ता था। अूंधेरे में तो वह थोड़ा दे खने िा आदी हो र्या था; रोशनी में
तो उसिी आूं ख ही िूंद हो जाएर्ी।

तो िभी ऐसा हो जाता है कि ऐसी क्तस्थकतयाूं िन सिती हैं भीतर कि अनायास तु म पर कवराट शक्तक्त िा
आर्मन हो जाए। िे किन उससे तु म्हें साूं घाकति नुिसान पहुूं च सिते हैं , क्ोूंकि तु म तो तै यार नही ूं हो; तु म तो
चि
ूं िर पिड़ किए र्ए हो। तो दु घगटना हो जाए। ग्रेस भी दु घगटना िन सिती है ।

शब्धि का जनयां जत्रत सां चार:

दू सरी जो शक्तक्तपात िी क्तस्थकत है , उसमें दु घगटना िी सूं भावना िहुत िम है —नही ूं िे िरािर है ; क्ोूंकि
िोई व्यक्तक्त माध्यम है । और सूं िीणग माध्यम से एि तो शक्तक्त िा मार्ग िहुत सूं िरा हो जाता है , किर वह व्यक्तक्त
कनयूंत्रण भी िर सिता है ,वह तु म ति उतना ही पहुूं चने दे सिता है , कजतना तु म झे ि सिो। िे किन ध्यान रहे
कि किर भी वह व्यक्तक्त स्वयूं शक्तक्त िा माकिि नही ूं है , कसिग वाहि है । इसकिए िोई िहता हो मैं ने शक्तक्तपात
किया, तो वह र्ित िहता है ।

वह ऐसे ही होर्ा, जैसे िल्व िहने िर्े कि मैं प्रिाश दे रहा हूं । तो वह र्ित िहता है । हािाूं कि िल्व
िो यह भाूं कत हो सिती है । इतने कदन से रोज—रोज प्रिाश दे ता है , यह भ्ाूं कत हो सिती है कि प्रिाश मैं दे रहा
हूं । िल्व से प्रिाश प्रिट तो हो रहा है , िेकिन िल्व से प्रिाश पैदा नही ूं हो रहा; वह उदर्म िा स्रोत नही ूं
है , अकभव्यक्तक्त िा माध्यम है । तो जो िोई दावा िरता हो कि मैं शक्तक्तपात िरता हूं वह भ्ाूं कत में पड़ र्या है , वह
िल्व िी भ्ाूं कत में पड़ र्या है ।

शक्तक्तपात तो सदा परमात्मा िा ही है । िे किन िोई व्यक्तक्त माध्यम िने तो उसिो शक्तक्तपात
िहें र्े, िोई व्यक्तक्त माध्यम न हो, तो यह आिक्तस्भि हो सिता है िभी, तो नुिसान पहुूं च सिता है । िेकिन
किसी व्यक्तक्त ने िड़ी अनूंत प्रतीक्षा िी हो, और किसी व्यक्तक्त ने अनूंत धै यग से ध्यान किया हो, तो भी प्रसाद िे
रूप में शक्तक्तपात हो जाएर्ा। ति िोई माध्यम भी नही ूं होर्ा, िेकिन ति दु घगटना नही ूं होर्ी। क्ोूंकि उसिी
अनूंत प्रतीक्षा, उसिा अनूंत धै यग, उसिी अनूंत िर्न, उसिा अनूंत सूं िल्प, उसमें अनूंतता िो झेिने िी
सामर्थ्ग पैदा िरता है । तो दु घगटना नही ूं होर्ी।
इसकिए दोनोूं तरह से घटना घटती है । िेकिन ति उसे शक्तक्तपात मािूम नही ूं पड़े र्ा, उसिो प्रसाद ही
मािूम पड़े र्ा;क्ोूंकि िोई माध्यम तो नही ूं है ; िोई िीच में दू सरा व्यक्तक्त नही ूं है ।

अहां शून्य व्यब्धि ही माध्यम:

तो दोनोूं िातोूं में समानता है , दोनोूं िातोूं में भेद है । मैं इसी पक्ष में हूं कि जहाूं ति हो सिे प्रसाद
उपिि हो, जहाूं ति हो सिे ग्रेस उपिि हो, जहाूं ति हो सिे िोई व्यक्तक्त िीच में माध्यम न िने। िेकिन
िई क्तस्थकतयोूं में यह असूं भव है ; िई िोर्ोूं िे किए असूं भव है । तो िजाय इसिे कि वे अनूंत िाि ति भटिते
रहें , किसी व्यक्तक्त िो माध्यम भी िनाया जा सिता है । िेकिन वही व्यक्तक्त माध्यम िन सिता है जो व्यक्तक्त न
रह र्या हो। ति खतरा िहुत िम हो जाता है । वही व्यक्तक्त माध्यम िन सिता है कजसमें अि िोई
अक्तस्भता, िोई ईर्ो शे ष न रह र्ई हो। ति खतरा न िे िरािर हो जाता है । खतरा इसकिए न िे िरािर हो जाता
है कि ऐसा व्यक्तक्त माध्यम भी िन जाएर्ा और किर भी र्ुरु नही ूं िनेर्ा; क्ोूंकि र्ुरु िननेवािा तो अि िोई नही ूं
रहा।

सदगरु िही, जो गरु नही ां बनता:

इस ििग िो ठीि से समझ िेना। जि िोई व्यक्तक्त र्ुरु िनता है तो तु म्हारे सूं िूंध में िनता है , और जि
माध्यम िनता है ति परमात्मा िे सूं िूंध में िनता है ; तु मसे िुछ िेना—दे ना किर नही ूं रह जाता। समझ रहे हो न
मेरा ििग? और परमात्मा िे सूं िूंध में िोई भी क्तस्थकत िने , वहाूं अहूं िार नही ूं कटि सिता। िेकिन तु म्हारे सूं िूंध
में िोई भी क्तस्थकत िने , तो अहूं िार कटि जाएर्ा। तो कजसिो ठीि र्ु रु िहें वह वही है जो र्ुरु नही ूं िनता है ।
सदर्ुरु िी पररभाषा अर्र िरनी हो तो यही है सदर्ु रु िी पररभाषा कि जो र्ुरु नही ूं िनता है । इसिा मतिि
हुआ कि समस्त र्ु रु िनने वािे िोर् र्ुरु नही ूं होने िी योग्यता रखते हैं । र्ुरु िनने िे दावे से िड़ी अयोग्यता और
िोई नही ूं है । यानी वही कडसिाकिकििेशन है ; क्ोूंकि तु म्हारे सूं िूंध में वह एि अहूं िार िी क्तस्थकत िे रहा है ।
और खतरनाि हो जाएर्ा।

अर्र अनायास िोई व्यक्तक्त शू न्य हो र्या है , अहूं िार कविीन हो र्या है , और वाहन िन सिता है —िन
सिता है , िहना भी शायद र्ित है ; िहना चाकहए, वाहन िन र्या है —तो उसिे कनिट भी शक्तक्तपात िी
घटना घट सिती है । िे किन ति उसमें दु घगटना िी िोई सूं भावना नही ूं रहती। न तो तु म्हारे व्यक्तक्तत्व िो दु घगटना
िी सूं भावना है , और न कजस वाहन से शक्तक्त तु म ति आई है उसिे व्यक्तक्तत्व िो दु घगटना िी सूं भावना है ।

किर भी म किि रूप से मैं ग्रेस िे पक्ष में हूं । और जि इतनी शतें पूरी हो जाएूं कि व्यक्तक्त न
हो, अहूं िार न हो, तो किर शक्तक्तपात ग्रेस िे िरीि पहुूं च र्या, िहुत िरीि पहुूं च र्या। और अर्र उस व्यक्तक्त
िो िोई पता ही नही ूं हो, ति किर वह िहुत ही िरीि पहुूं च र्या। ति उसिे पास होने से घटना घट जाए। तो
अि यह जो व्यक्तक्त है , तु म्हें व्यक्तक्त िी तरह कदखाई पड़ रहा है , िेकिन अि यह परमात्मा िे साथ एिािार ही
हो र्या। िहना चाकहए, परमात्मा िा िैिा हुआ हाथ हो र्या जो तु म्हारे िरीि है । अि यह किििुि इूं स्टूमेंटि
है , साधन मात्र है । और ऐसी क्तस्थकत में अर्र यह व्यक्तक्त मैं िी भाषा भी िोिे , तो भूि हमें हो जाती है िहुत
िार; क्ोूंकि ऐसी अवस्था में जि यह व्यक्तक्त मैं िोिता है , तो उसिा मतिि होता है परमात्मा। िेकिन हमें िड़ी
िकठनाई.. .क्ोूंकि हम तो......

इसकिए िृष्ण िह सिते हैं अजुगन से —मामेि शरणूं ब्रज। मेरी शरण में आ जा तू । और हजारोूं साि
ति हम सोचेंर्े कि यह आदमी िैसा रहा होर्ा, जो िहता है मेरी शरण में आ जा। ति तो अहूं िार पक्का है ।

िेकिन यह आदमी िह ही इसकिए पाया है कि यह किििुि नही ूं है । अि यह तो किसी िा िैिा हुआ


हाथ है , और वही िोि रहा है मेरी शरण आ जा—मुझ एि िी शरण आ जा। यह शब्द िड़ा िीमती है , मामेिूं!
मुझ एि िी शरण आ जा। 'मैं' तो एि िभी नही ूं होता, ' मैं' तो अनेि है । यह किसी ऐसी जर्ह से िोि रहा है
जहाूं ' मैं ' एि ही होता है । िेकिन अि यह िोई अहूं िार िी भाषा नही ूं है ।

िेकिन हम तो अहूं िार िी भाषा ही समझते हैं । इसकिए हम समझेंर्े कि िृष्ण अजुग न से िह रहे हैं
मेरी शरण में आ जा। ति भूि हो जाएर्ी। इसकिए हमारे प्रत्येि शब्द िो दे खने िे दो मार्ग हैं : एि हमारी
तरि से , जहाूं से भ्ाूं कत सदा होर्ी;और एि परमात्मा िी तरि से , जहाूं िोई भ्ाूं कत िा सवाि नही ूं है । तो िृष्ण
जैसे व्यक्तक्त से घटना घट सिती है ; और उसमें िृष्ण िे व्यक्तक्तत्व िा िोई िेना—दे ना नही ूं है ।

इतने िरीि आ जाना चाकहए शक्तक्तपात प्रसाद िे कि तु म जो िहते हो कि आपिी दोनोूं िातोूं में
कवरोध कदखाई पड़ता है ...... .दोनोूं घटनाएूं अपनी अकत पर िहुत कवरुद्ध हैं , िेकिन दोनोूं घटनाएूं अपने िेंद्र पर
अकत कनिट हैं । और मैं उसी पक्ष में हूं जहाूं कि प्रसाद में और शक्तक्तपात में किूंकचत ििग िरना मुक्तिि हो
जाए। वही ूं साथग ि है िात, वही ूं िीमती है ।

चीन में एि सूं न्यासी िड़ा समारोह मना रहा है । वह अपने र्ु रु िा जन्मकदन मना रहा है । और उस तरह
िा त्योहार र्ुरु िे जन्मकदन पर ही मनाया जाता है । िेकिन िोर् उससे पूछते हैं कि तु म तो िहते थे कि मेरा
िोई र्ुरु नही ूं है , तो तु म जन्मकदन किसिा मना रहे हो? और तु म तो सदा िहते थे कि र्ुरु िी िोई जरूरत ही
नही ूं है , तो तु म आज यह उत्सव किसिा मना रहे हो? तो वह आदमी िहता है कि मुझे मुक्तिि में मत
डािो; अच्छा हो कि मैं चुप रहूं । िेकिन कजतना वह चुप रहता है उतना िोर् और पूछते हैं कि िात क्ा है , तु म
यह मना क्ा रहे हो? क्ोूंकि यह कदन तो र्ुरु पवग है ; इस कदन तो र्ुरु िा उत्सव ही मनाया जाता है । तो तु म्हारा
िोई र्ुरु है क्ा? तो वह आदमी िहता है , तु म नही ूं मानोर्े तो मु झे िहना पड़े र्ा। मैं आज उस आदमी िा
स्भरण िर रहा हूं कजसने मेरा र्ुरु िनने से इनिार िर कदया था; क्ोूंकि अर्र वह मेरा र्ुरु िन जाता तो मैं सदा
िे किए भटि जाता। उस कदन तो मैं िहुत नाराज हुआ था, आज िे किन उसे धन्यवाद दे ने िा मन होता है .. .कि
वह चाहता तो र्ुरु तत्काि िन सिता था, मैं तो खु द र्या था उसिो मनाने , िेकिन वह र्ुरु िनने िो राजी नही ूं
हुआ था।

तो वे िोर् पूछते हैं कि किर धन्यवाद क्ा दे रहे हो, जि वह र्ु रु िनने िो राजी नही ूं हुआ?

तो वह सूं न्यासी िहता है , तु म मुझे ज्यादा मुक्तिि में मत डािो; अि इतना मैंने िह कदया, यह िािी
है । क्ोूंकि वह आदमी र्ुरु तो नही ूं िना था, िेकिन जो िोई र्ुरु नही ूं िर सिता है , वह आदमी िर र्या है ।
इसकिए ऋण दोहरा हो र्या। एि तो वह आदमी र्ुरु भी िन जाता तो भी िे न —दे न हो जाता न दोनोूं तरि से !
िुछ उसने भी हमें कदया था, हमने भी िुछ उसे कदया था— आदर कदया था, श्रद्धा दी थी, पैर छू किए थे —
कनपटारा हो र्या था, िुछ हमने भी िर किया था। िेकिन वह आदमी र्ुरु भी नही ूं िना, उसने आदर भी नही ूं
माूं र्ा, श्रद्धा भी नही ूं माूं र्ी, तो ऋण दोहरा हो र्या— किििुि इितरिा हो र्या, वह दे र्या और हम िुछ
धन्यवाद भी नही ूं दे पाए; क्ोूंकि धन्यवाद दे ने िा भी उसने स्थान नही ूं छोड़ा था।
शितम शब्धिपात प्रसाद के जनकट:

तो यहाूं शक्तक्तपात—ऐसी क्तस्थकत में — और प्रसाद में िोई ििग नही ूं रह जाएर्ा। और कजतना ििग हो
उतना ही शक्तक्तपात से िचना, और कजतना ििग िम हो उतना ही ठीि है । इसकिए मैं जोर दे ता हूं प्रसाद
पर, ग्रेस पर। और कजस कदन शक्तक्तपात भी प्रसाद िे िरीि आ जाए— इतने िरीि आ जाए कि तु म कडक्तस्टक्तग्वश
न िर सिो, ििग न िर सिो कि दोनोूं में क्ा ििग है —उस कदन समझ िेना कि िात ठीि हो र्ई।

तु म्हारे घर िी किजिी कजस कदन आिाश िी किजिी िी तरह स्वच्छूं द, सहज और कवराट शक्तक्त िा
कहस्सा हो जाए,और कजस कदन तु म्हारे घर िा िल्व दावा िरना छोड़ दे कि मैं हूं शक्तक्त िा स्रोत, उस कदन तु म
समझना कि अि शक्तक्तपात भी हो तो वह प्रसाद ही है । मेरी िात खयाि किए!

जिस्फोट : दो शब्धियोां का जमिन:

प्रश्न: ओशो आपने समझाया जक आप से शब्धि उठे और परमात्मा से जमि जाए या परमात्मा की
शब्धि आए और आप में जमि जाए। प्रथम तो कां डजिनी का उठना है और दू सरी बात ईश्वर की ग्रेस
जमिने की है आगे आपने कहा है जक आपके भीतर सोई हुई ऊजाओ जब जिराट की ऊजाओ से जमिती है तब
एक्सप्लोजन जिस्फोट होता है । तो एक्सप्लोजन या समाजध के जिए कां डजिनी जागरण और ग्रेस का
जमिन आिश्यक है या कां डजिनी का सहस्रार तक जिकास और ग्रेस की उपिब्धि एक बात है ?

असि में, कवस्फोट एि शक्तक्त से िभी नही ूं होता, कवस्फोट सदा दो शक्तक्तयोूं िा कमिन है।
एक्सप्लोजन जो है , वह एि शक्तक्त से िभी नही ूं होता। अर्र एि शक्तक्त से होता होता तो िभी िा हो जाता।

तु म्हारी माकचस भी रखी है , तु म्हारी माकचस िी िाड़ी भी रखी है , वह रखी रहे अनूंत जन्मोूं ति— एि
इूं च िे िासिे पर,आधा इूं च िे िासिे पर वह रखी है , रखी रहे , तो आर् पैदा नही ूं होर्ी। उस कवस्फोट िे किए
उन दोनोूं िी रर्ड़ जरूरी है , तो आर् पैदा होर्ी। वह कछपी है दोनोूं में , िेकिन किसी एि में भी अिेिे पैदा होने
िा उपाय नही ूं है । जो कवस्फोट है , वह दो शक्तक्तयोूं िे कमिने पर पैदा हुई सूं भावना है ।

तो व्यक्तक्त िे भीतर जो सोई हुई है शक्तक्त, वह उठे और उस किूंदु ति आ जाए। सहस्रार वह किूंदु है
कजसिे पहिे कमिन िहुत असूं भव है । जैसे कि तु म्हारे दरवाजे िूंद हैं और सू रज िाहर खड़ा है । रोशनी तु म्हारे
दरवाजे पर आिर रुि र्ई है । तु म अपने घर से चिो, चिो; भीतर से िाहर िी तरि आओ, आओ, दरवाजे
ति आिर भी खड़े हो जाओ, तो भी तु म्हारा सू रज िी रोशनी से कमिन न हो। दरवाजा खु िे और कमिन हो
जाए।

सहस्रार पर प्रतीक्षारत परमात्मा:


तो जो हमारा अूंकतम चरम किूंदु है िुूंडकिनी िा, सहस्रार, वह हमारा द्वार है , जहाूं ग्रेस सदा ही खड़ी हुई
है , कजस द्वार पर परमात्मा कनरूं तर तु म्हारी प्रतीक्षा िर रहा है । िे किन तु म ही अपने द्वार पर नही ूं हो, तु म ही अपने
द्वार से िहुत भीतर िही ूं और हो। तो तु म्हें अपने द्वार ति आना है , वहाूं कमिन हो जाएर्ा। और वह कमिन
कवस्फोट होर्ा।

कवस्फोट इसकिए िह रहे हैं उसे कि उस कमिन में तु म तत्काि कविीन हो जाओर्े , एक्सप्लोजन
इसकिए है कि उस कमिन िे िाद तु म िचोर्े नही।ूं वह जो िाड़ी है वह िचेर्ी नही ूं माकचस िी उस कवस्फोट िे
िाद। माकचस तो िचेर्ी, िाड़ी नही ूं िचेर्ी। िाड़ी तो जििर राख हो जाएर्ी, िाड़ी तो कनरािार में कविीन हो
जाएर्ी। तो उस घटना में तु म चूूंकि कमट जाओर्े, टू ट जाओर्े, किखर जाओर्े , खो जाओर्े, तु म िचोर्े नही,ूं तु म
जैसे थे द्वार ति आने िे पहिे , वैसे तु म नही ूं िचोर्े। तु म्हारा सि खो जाएर्ा, तु म कमट जाओर्े। जो द्वार पर खड़ा
था वही िचेर्ा, तु म उसी िे कहस्से हो जाओर्े।

यह घटना तु मसे अिेिे नही ूं हो सिती। इस कवस्फोट िे किए उस कवराट शक्तक्त िे पास तु म्हारा जाना
जरूरी है । उस शक्तक्त िे पास जाने िे किए, तुम्हारी शक्तक्त जहाूं सोई है वहाूं से उसे उठिर वहाूं ति जाना
पड़े र्ा जहाूं वह शक्तक्त तु म्हारी प्रतीक्षा िर रही है । तो िुूंडकिनी िी जो यात्रा है , वह तु म्हारे सोए हुए िेंद्र से उस
स्थान ति है , उस सीमाूं त ति, जहाूं तु म समाप्त होते हो, तु म्हारी जो सीमा है ।

मनष्य की दो सीमाएां :

तो एि सीमा तो हमारे शरीर िी है जो हमने मान रखी है । यह िड़ी सीमा नही ूं है ; क्ोूंकि मेरा हाथ िट
जाए, तो भी िुछ खास ििग नही ूं पड़ता; मेरे पैर िट जाएूं , तो भी िुछ खास ििग नही ूं पड़ता; किर भी मैं रहता
हूं । यानी इन सीमाओूं िे घटने —िढ़ने से मैं कमटता नही ूं। मेरी आूं खें चिी जाएूं , मेरे िान चिे जाएूं , तो भी मैं हूं ।
तु म्हारी असिी सीमा तु म्हारे शरीर िी सीमा नही ूं है , तु म्हारी असिी सीमा सहस्रार िा किूंदु है , कजसिे िाद तु म
नही ूं िच सिते । उस सीमा पर एनक्रोचमेंट हुआ कि तु म र्ए, किर तु म नही ूं िच सिते ।

तु म्हारी िुूंडकिनी तु म्हारी सोई हुई शक्तक्त है । तो वह तु म्हारे य न िे िेंद्र िे कनिट और तु म्हारे मक्तस्तष्क
िे िेंद्र िे कनिट तु म्हारी सीमा है । इसीकिए हमें कनरूं तर यह खयाि होता है कि हम अपने पू रे शरीर से चाहे
अपनी आइडें कटटी छोड़ दें ,िेकिन अपने कसर से , अपने चेहरे से आइडें कटटी नही ूं छोड़ पाते । यानी मु झे यह मानने
में िहुत िकठनाई नही ूं िर्ती कि हो सिता है यह हाथ मैं न होऊूं, िेकिन अर्र दपगण में अपना चेहरा दे खिर
यह सोचूूं कि यह चेहरा मैं नही ूं हूं तो िहुत मु क्तिि हो जाती है ; वह सीमाूं त है । इसकिए आदमी सि खोने िो
तै यार हो सिता है , िुक्तद्ध खोने िो तै यार नही ूं होता।

सु िरात से किसी ने पूछा है कि तु म एि असूं तुष्ट सु िरात होना पसूं द िरोर्े कि एि सूं तुष्ट सु अर होना
पसूं द िरोर्े ?क्ोूंकि सु िरात सूं तोष िी िात िर रहा था, वह िह रहा था सूं तोष परम धन है । तो िोई उससे
पूछ रहा है कि तु म एि सूं तुष्ट सु अर होना पसूं द िरोर्े कि एि असूं तुष्ट सु िरात होना? तो वह सु िरात िहता है
कि सूं तुष्ट सु अर होने से तो मैं एि असूं तुष्ट सु िरात होना ही पसूं द िरू
ूं र्ा, क्ोूंकि सूं तुष्ट सु अर िो सूं तोष िा
पता भी तो नही ूं हो सिता, असूं तुष्ट सु िरात िो िम से िम असूं तोष िा पता तो होर्ा।

अि यह जो िह रहा है असूं तुष्ट सु िरात, वह हम यह िह रहे हैं कि हम सि खोने िो तै यार हैं िेकिन
िुक्तद्ध िो न खोिे, चाहे िुक्तद्ध असूं तुष्ट ही क्ोूं न हो। िुक्तद्ध भी हमारे उस िेंद्र िे िहुत कनिट है ।
अर्र हम ठीि से समझें तो हमारे सीमाूं त दो हैं । एि य न हमारी सीमा रे खा है , कजसिे पार प्रिृकत
शु रू होती है ; कजसिे नीचे , कििो दै ट प्रिृकत िी दु कनया शु रू होती है । तो जहाूं हम से क्स िे किूंदु पर होते हैं , वहाूं
हम में , पशु में, प धे में िोई ििग नही ूं होता; क्ोूंकि पशु िी, प धे िी वह अूंकतम सीमा है जो हमारी प्रथम सीमा
है ; वहाूं उनिी सीमा खतम होती है । इसकिए से क्स िे किूं दु पर पशु में और हम में िोई ििग नही ूं होता। वह पशु
िी अूंकतम सीमा है और हमारी पहिी सीमा है । उस किूंदु पर जि हम खड़े होते हैं तो हम पशु ही होते हैं ।

हमारी दू सरी सीमा है िुक्तद्ध; वह हमारे दू सरे सीमाूं त िे कनिट है , कजसिे पार परमात्मा है । उस किूंदु पर
होिर भी किर हम नही ूं होते , किर हम परमात्मा ही होते हैं । और ये हमारी दो सीमा रे खाएूं हैं , और इनिे िीच
हमारी शक्तक्त िा आूं दोिन है । अभी हमारी सारी शक्तक्त कजस िुूंड पर सोई है , वह य न िे पास है । इसकिए
आदमी िा कनन्यानिे प्रकतशत कचूंतन, कनन्यानिे प्रकतशत स्वप्न, कनन्यानिे प्रकतशत कक्रया—ििाप, कनन्यानिे
प्रकतशत जीवन उसी िुूंड िे आसपास व्यतीत होता है । सभ्यता कितना ही झुठिाए, समाज कितना ही और िुछ
िहे , आदमी जीता वही ूं है , वह िाम िे पास ही जीता है । वह धन िमाता है तो इसकिए, मिान िनाता है तो
इसकिए, यश िमाता है तो इसकिए—वह जो भी िर रहा है , उसिे िहुत मूि में खोजने पर उसिा िाम कमि
जाएर्ा।

दो िश, दो साधन:

इसकिए कजनिो समझ थी, उन्ोूंने दो ही िक्ष्य िताए िाम और मोक्ष। ये दो िक्ष्य हैं । और अथग और
धमग, दो साधन हैं । अथग यानी धन, वह िाम िा साधन है । इसकिए कजतना िामु ि युर् होर्ा, उतना धनकपपासु
होर्ा; कजतना मोक्ष िी आिाूं क्षा िरनेवािा युर् होर्ा, उतना धमगकपपासु होर्ा। धमग साधन है , जैसे धन साधन है ।
अर्र मोक्ष पाना है तो धमग साधन िन जाता है , और अर्र िाम—तृ क्तप्त पानी है तो धन साधन िन जाता है ।

तो दो हैं िक्ष्य और दो हैं साधन, क्ोूंकि दो हमारी सीमाएूं हैं । और उन सीमाओूं पर हम...... और यह
िड़े मजे िी िात है कि उन दो सीमाओूं िे िीच में तु म िही ूं भी नही ूं कटि सिते ; उनिे िीच में तु म िही ूं नही ूं
ठहर सिते , क्ोूंकि उनिे िीच में तु म ऐसे मािू म पड़ोर्े कि जैसा र्धा घर िा न घाट िा हो जाता है । िुछ
िोर् उस हाित में पड़िर िड़ी मुसीित में पड जाते हैं । िहुत िोर् पड़ जाते हैं उस मुसीित में तो िहुत
मुक्तिि में पड जाते हैं । उनिो मोक्ष िी अभीप्सा नही ूं होती और िाम िा कवरोध अर्र किसी वजह से पैदा हो
र्या, तो वे िकठनाई में पड़ जाएूं र्े ; वे िाम िे किूंदु से दू र हटने िर्ेंर्े और मोक्ष िे किूंदु िे पास नही ूं जाएूं र्े। ति
वे एि ऐसी दु कवधा में पड़ जाएूं र्े जो िहुत ही िकठन है , िहुत दु खद है, िहुत नारिीय है । और उनिा जीवन
सारा िा सारा अूंतद्वं द्व से भर जाएर्ा।

िीच िे किूंदु पर कटिना न उकचत है , न स्वाभाकवि है , न अथगपूणग है । इसे हम ऐसा समझ िें कि जैसे
िोई सीढ़ी पर चढ़े और िीच में रुि जाए। तो हम उससे िहें र्े िुछ भी िरो, या तो वापस ि ट आओ या ऊपर
चिे जाओ! क्ोूंकि सीढ़ी िोई मिान नही ूं है , सीढ़ी िोई कनवास नही ूं है ; उसमें िीच में रुि जाना किसी भी अथग
िा नही ूं है । यानी एि आदमी अर्र सीडी पर रुि जाए तो समझो उससे ज्यादा व्यथग आदमी खोजना िहुत
मुक्तिि होर्ा; क्ोूंकि उसे िुछ भी िरना है तो उसे सीडी िे या तो नीचे िे किूंदु पर आना पड़े या ऊपर िे
किूंदु पर जाना पड़े ।

तो हमारी जो रीढ़ है , समझ िो कि सीडी है । है भी सीढ़ी। और रीढ़ िा एि—एि र्ुररया समझो कि


एि—एि स्टे प है । और वह जो हमारी िुूंडकिनी है , वह नीचे िे िेंद्र से यात्रा शु रू िरती है और ऊपर िे
अूंकतम िेंद्र ति जाती है । ऊपर िे िेंद्र पर वह पहुूं च जाए तो कवस्फोट कनकश्चत है ; वहाूं किर कवस्फोट नही ूं िच
सिता। और नीचे िे िेंद्र पर पहुूं च जाए तो स्खिन कनकश्चत है , वहाूं स्खिन नही ूं िच सिता।

इन दोनोूं िातोूं िो ठीि से समझ िे ना।

जनम्न जबांद पर स्खिन और उच्चतम पर जिस्फोट:

िुूंडकिनी नीचे िे किूंदु पर है तो स्खिन कनकश्चत है , ऊपर िे किूंदु पर पहुूं च जाए तो कवस्फोट कनकश्चत है ।
दोनोूं ही कवस्फोट हैं , और दोनोूं िे किए ही दू सरे िी जरूरत है । वह जो य न िा स्खिन है , उसमें भी दू सरा
अपेकक्षत है —चाहे िल्पना में ही सही, िेकिन दू सरा अपेकक्षत है । तो उस जर्ह से भी तु म्हारी ऊजाग कविीणग
होर्ी।

पर उस जर्ह से तु म्हारी पूरी ऊजाग कविीणग नही ूं हो सिती। नही ूं हो सिती इसकिए कि वह किूंदु
तु म्हारा प्राथकमि किूं दु है ; तु म उससे िहुत ज्यादा हो; उस किूंदु से तु म आर्े जा चुिे हो। पशु तो वहाूं पूरा तृ प्त हो
जाता है । इसकिए पशु मोक्ष नही ूं खोजता। अर्र पशु िोई शास्त्र किखे तो वहाूं दो ही पुरुषाथग होूंर्े —िाम और
धन, अथग और िाम।

धन भी पशु िी दु कनया िा धन होर्ा। अि कजस पशु िे पास ज्यादा माूं स है , ज्यादा शक्तक्त है , उसिे
पास ज्यादा धन है ,वह दू सरे पशु ओूं से िाम िी प्रकतयोकर्ता में जीत जाएर्ा; वह अपने आसपास दस मादाएूं
इिट्ठी िर िेर्ा। वह भी एि तरह िा धन इिट्ठा किया है । उसिे पास चिी ज्यादा है , वह धन है । एि िे पास
कतजोरी ज्यादा है , वह भी चिी है , जो िभी भी चिी में िनवटग हो सिती है ।

तो एि राजा है , वह हजार राकनयाूं इिट्ठी िर िेर्ा। एि जमाना था कि आदमी िे पास कितनी सूं पदा
है , वह उसिी क्तस्त्रयोूं से नापा जाता था कि उसिे पास कितनी क्तस्त्रयाूं हैं । र्रीि आदमी है तो वह िैसे चार स्त्री
रख सिता है ! तो जैसे आज हम कशक्षा से नापते हैं कि ि न आदमी कितना कशकक्षत है , या ि न आदमी िे पास
कितना िैंि िैिेंस है । ये सि िहुत िाद िे मेजरमेंट हैं , पहिा मे जरमेंट तो एि ही था कि उसिे पास कितनी
क्तस्त्रयाूं हैं ।

इसकिए िहुत िार हमें अपने महापुरुषोूं िो िड़ा िताने िे किए िहुत क्तस्त्रयाूं कर्नानी पड़ी, जो झूठी हैं ।
जैसे िृष्ण िी सोिह हजार! अि यह िृष्ण िो िड़ा िताने िा उस वक्त और िोई उपाय नही ूं था—कि अर्र
िृष्ण िड़े आदमी हैं तो औरतें कितनी हैं ? वह एिमात्र मेजरमेंट होने िी वजह से हमिो किर कर्नती िरानी
पड़ी कि भई िहुत हैं । और सोिह हजार अि िहुत िम मािूम पड़ती हैं , क्ोूंकि अि हमारे पास िहुत िडी
सूं ख्याएूं हैं । उन कदनोूं सूं ख्याएूं िहुत िड़ी नही ूं थी ूं।

अर्र अफ्रीिा में जाएूं तो अि भी ऐसी ि में हैं कि कजनिी िुि सूं ख्या तीन पर खतम हो जाती है । तो
अर्र किसी िे पास चार औरतें हैं तो वह यह िहे र्ा, िहुत! क्ोूंकि तीन िे िाद सूं ख्या खतम हो जाती है । तो
वह िहे र्ा, मेरे पास िहुत,असूं ख्य औरतें हैं । असूं ख्य! क्ोूंकि तीन िे िाद तो सूं ख्या खतम हो जाती है
उसिी, तो तीन िे िाद कजतनी हैं उनिो वह कर्न तो सिता नही,ूं तो वह िहता है , असूं ख्य औरतें हैं ।

दोनोां के जिए दू सरा अपेजक्षत:


उस ति पर भी दू सरा अपेकक्षत है । अर्र दू सरा वस्तु त: म जूद न हो, तो भी िल्पना में अपेकक्षत है ।
िािी दू सरा अपेकक्षत है । दू सरे िे किना स्खिन भी नही ूं हो सिता ऊजाग िा। िे किन िल्पना में भी दू सरा
उपक्तस्थत हो तो स्खिन हो सिता है । इसी वजह से यह खयाि पैदा हुआ कि अर्र िल्पना में भी परमात्मा
उपक्तस्थत हो तो कवस्फोट हो सिता है । इसकिए भक्तक्त िी िूंिी धारा चिी कजसने कि िल्पना िो ही कवस्फोट िा
आधार िनाने िी िोकशश िी। क्ोूंकि जि िल्पना में वीयग —स्खिन हो सिता है , तो सहस्रार से ऊजाग िा
कवस्फोट क्ोूं नही ूं हो सिता? इस खयाि ने िाल्पकनि ईश्वर िो भी जोर से मन में किठा िेने िी सूं भावनाओूं िो
प्रर्ाढ़ िर कदया। उसिा िारण यही था।

िेकिन यह नही ूं हो सिता। स्खिन इसकिए हो सिता है िल्पना में , क्ोूंकि वस्तु त: स्खिन हुआ
है , इसकिए उसिी िल्पना िी जा सिती है । िेकिन परमात्मा से तो िभी कमिन नही ूं हुआ, इसकिए िोई
िल्पना नही ूं िी जा सिती उसिी। िल्पना हम उसिी ही िर सिते हैं जो हुआ है । तो किर उसिी िल्पना
से भी िाम किया जा सिता है । यानी एि आदमी ने िोई एि तरह िा सु ख किया है तो किर वह आूं ख िूंद
िरिे उसिा सपना भी दे ख सिता है , िेकिन अर्र किया ही नही ूं है तो किर सपना नही ूं दे ख सिता।

जैसे िहरा आदमी िाख िोकशश िरे , सपने में भी शब्द नही ूं सु न सिता, उसिी िल्पना भी नही ूं िर
सिता। अूंधा आदमी हजार उपाय िरे तो भी सपने में भी प्रिाश नही ूं दे ख सिता। ही, यह हो सिता है कि
एि आदमी िी आूं खें चिी र्ईूं,अि वह सपने में िरािर प्रिाश दे ख सिता है । िक्तम्ऻ अि सपने में ही दे ख
सिता है ! क्ोूंकि अि तो आूं ख तो नही ूं है , इसकिए असकियत में तो नही ूं दे ख सिता।

तो जो हमारा अनु भव हुआ है , उसिी हम िल्पना भी िर सिते हैं ; िेकिन जो अनुभव नही ूं हुआ
है , उसिी तो िल्पना िा भी उपाय नही ूं। और कवस्फोट हमारा अनु भव नही ूं है , इसकिए वहाूं िल्पना िाम नही ूं
िर सिती है । वहाूं वस्तु त: जाना होर्ा और वस्तु त: ही घटना घट सिती है ।

मनष्य : पश और परमात्मा के बीच का से त:

तो जो सहस्र चक्र है , वह तु म्हारी अूंकतम सीमा है , जहाूं से तु म समाप्त होते हो। जैसा मैं ने िहा कि
सीढ़ी। और आदमी एि सीढ़ी ही है । इसकिए नीत्शे िे वचन िहुत िीमती हैं । वह िहता है कि आदमी कसिग
एि से तु है —मैन इज ए कब्रज किट्वीन टू इटरकनटीज— दो अनूंतताओूं िे िीच में एि से तु।

एि अनूंतता है प्रिृकत िी, उसिी भी िोई सीमा नही ूं है , और एि अनूंतता है परमात्मा िी, उसिी भी
िोई सीमा नही ूं है । और आदमी दोनोूं िे िीच में झूिता हुआ एि से तु है । इसकिए आदमी पडाव नही ूं है । या तो
पीछे जाओ या आर्े जाओ, इस से तु पर मिान िनाने िी जर्ह नही ूं है । और जो भी इस पर मिान िनाएर्ा वह
पछताएर्ा; क्ोूंकि से तु िोई मिान िनाने िी जर्ह नही ूं है , कसिग पार होने िे किए है ।

िते हपुर सीिरी में अििर ने जो एि सवग धमग मूं कदर िनाने िी िल्पना िी थी, उसमें जो एि दीन—
ए—इिाही िा खयाि था कि सि धमों िा सारभूत हो, तो उसने उस दरवाजे पर जो वचन खु दवाया है वह
जीसस िा वचन है । जीसस िा वचन उसने खु दवाया है उस दरवाजे पर, वह वचन यह है कि यह जर्त मुिाम
नही,ूं कसिग पड़ाव है । यहाूं थोड़ी दे र ठहर सिते हो, िेकिन रुि ही मत जाना; यह िोई यात्रा िा अूंत नही ूं
है , यह कसिग थिान कमटाने िे किए एि पड़ाव है , एि सराय है —जहाूं हम रात भर रुिते हैं और सु िह किर
चि पड़ते हैं । और रुिते कसिग इसीकिए हैं कि सु िह चि सिें , और रुिने िा िोई प्रयोजन नही ूं है ;रुिने िे
किए नही ूं रुिते ।

पश—िृजत्तयोां का सख हमेशा क्षजणक:

तो आदमी एि सीढ़ी है कजस पर यात्रा है । इसकिए आदमी सदा तनावग्रस्त है । अर्र हम ठीि से िहें
तो तनावग्रस्त है आदमी, यह िहना शायद ठीि नही;ूं यही िहना ठीि है कि मनुष्य एि तनाव है । क्ोूंकि कब्रज
जो है तनाव ही है , तना हुआ है ;तना हुआ होिर ही कब्रज हो सिता है । वह दो छोरोूं पर— और िीच में
िेसहारा— तना हुआ है । इसकिए मनुष्य एि अकनवायग तनाव है । इसकिए मनुष्य िभी शाूं त नही ूं हो सिता। या
तो वह पशु होता है तो थोड़ी सी शाूं कत कमिती है , और या किर वह परमात्मा होता है तो किर पूरी शाूं कत कमिती
है । पशु होिर भी तनाव उतर जाता है , क्ोूंकि वह वापस ि ट आया सीढ़ी से , नीचे जमीन पर खड़ा हो र्या—
पररकचत जमीन पर, पहचानी हुई जमीन पर, कजसमें वह अनूंत—अनूंत जन्मोूं रहा है , वहाूं वापस आ र्या; झूंझट
िे िाहर हो र्या। अभी िोई तनाव नही ूं है । इसकिए या तो आदमी से क्स में खोजता है तनाव िी मुक्तक्त, या से क्स
से सूं िूंकधत और अनुभवोूं में खोजता है — शराि में, नशे में —जहाूं भी मूच्छाग है , वहाूं वह खोज िेता है ।

िेकिन वहाूं तु म थोड़ी दे र ही रुि सिते हो; क्ोूंकि तु म अि िुछ भी चाहो तो स्थायी रूप से पशु नही ूं
हो सिते । िुरे से िुरा आदमी भी क्षण िाि िो ही पशु हो सिता है । वह जो आदमी किसी िी हत्या िर दे ता
है , वह भी क्षण भर में ही िर पाता है । अर्र क्षण भर और रुि र्या होता तो शायद नही ूं िर पाता। यानी हमारा
पशु होना िरीि—िरीि ऐसा है जैसे एि आदमी जमीन पर छिाूं र् िर्ाता है , तो एि से िेंड िो हवा में रह
पाता है , किर वापस जमीन पर ि ट आता है । तो िुरे से िुरा आदमी भी स्थायी िुरा नही ूं होता, न हो सिता है ।
िुरे से िुरा आदमी भी किन्ी ूं क्षणोूं में िुरा होता है । और उन क्षणोूं िे िाहर वह ऐसा ही आदमी होता है जैसे सारे
आदमी हैं । पर उस एि क्षण िो उसे राहत कमि सिती है , क्ोूंकि वह पररकचत भूकम पर पहुूं च र्या, जहाूं िोई
तनाव नही ूं था।

इसकिए पशु िे मन में तु म्हें िोई तनाव नही ूं कदखे र्ा, उसिी आूं ख में झािोर्े तो िोई तनाव नही ूं
कदखे र्ा। पशु पार्ि नही ूं होता, आत्महत्या नही ूं िरता, उसे हृदय िा द रा नही ूं पड़ता। उसे ये सि िातें नही ूं
होती ूं। हाूं , आदमी िे चक्कर में पड़ जाए तो हो सिती हैं ; आदमी िी िैिर्ाड़ी में जुट जाए तो हृदय िा द रा हो
सिता है , आदमी िा घोड़ा िन जाए तो मुक्तिि में पड़ सिता है , आदमी िा िुिा हो तो पार्ि भी हो सिता
है । वह दू सरी िात है । वह भी इसीकिए है कि वह आदमी अपने कब्रज पर उसिो खी ूंच िेता है , इसकिए वह
झूंझट में डाि दे ता है उसे ।

अि जैसे एि िुिा इस िमरे में आए तो अपनी म ज से घूमेर्ा। िे किन अर्र किसी आदमी िा पािा
हुआ िुिा हो तो वह उससे िहे र्ा—िैठ जाओ उस िोने में! तो वह िुिा उस िोने में िै ठेर्ा। वह आदमी िी
दु कनया में प्रवेश िर र्या। वह पशु िी दु कनया िे िाहर हो र्या। अि वह झूंझट में पड़ने वािा है िुिा। वह िै ठा
है । है तो वह िुिा, िेकिन िैठा है आदमी िी तरह। अि तु मने उसिो तनाव में डाि कदया है । अि वह िड़ी
झूंझट में है कि िि आशा हटे और वह यहाूं से िाहर हो जाए।

आदमी िुछ दे र िे किए, क्षण, दो क्षण िे किए वहाूं पहुूं च सिता है । इसीकिए जो हम कनरूं तर िहते हैं
कि हमारे सि सु ख क्षकणि हैं , उसिा और िोई िारण नही ूं है । सु ख शाश्वत हो सिता है । िेकिन जहाूं हम सु ख
खोजते हैं वह क्तस्थकत क्षकणि है , सु ख क्षकणि नही ूं है । हम खोजते हैं पशु होने में , तो वह क्षकणि ही हो सिता
है , क्ोूंकि हम पशु क्षण भर िो मुक्तिि से हो पाते हैं । वह ऐसा ही है कि जैसे हम...... किसी क्तस्थकत में वापस
ि टना सदा मु क्तिि है । अर्र तु म िि में वापस ि टना चाहो,िीते िि में , तो तु म आूं ख िूंद िरिे एिाध क्षण
िो ऐसी िल्पना में हो सिते हो कि ि ट र्ए। िे किन कितनी दे र? आूं ख खोिोर्े और पाओर्े कि नही,ूं वापस
खड़े हो—जहाूं थे वही ूं आ र्ए हो।

पीछे ि टा नही ूं जा सिता; क्षण भर िी िोई जिरदस्ती िी जा सिती है । किर पछतावा होर्ा।
इसकिए कजतने भी क्षकणि सु ख हैं , सििे पीछे पछतावा है , सििे पीछे ररपेंटेंस है , सििे पीछे एि दु ख—िोध
है —कि िेिार मेहनत िी, वह सि व्यथग र्या। िे किन किर चार कदन िाद तु म भू ि जाओर्े और किर छिाूं र्
िर्ा िोर्े।

पशु िे ति पर जािर क्षण भर िो सु ख पाया जा सिता है , प्रभु िे ति पर जािर शाश्वत सु ख में डूिा जा
सिता है । िेकिन यह यात्रा तु म्हारे भीतर पहिे पूरी होर्ी; तु म्हें अपने से तु िे एि िोने से दू सरे िोने पर
पहुूं चना होर्ा, ति दू सरी घटना घटे र्ी।

सां भोग और समाजध में समानता:

इसकिए मैं सूं भोर् और समाकध िो िड़ी समतु ि िातें मानता हूं । समतु ि मानने िा िारण है । असि
में, वे ही दो समतु ि घटनाएूं हैं , और िोई घटना समतु ि नही ूं है । सूं भोर् िी क्तस्थकत में हम कब्रज िे इस छोर पर
होते हैं , सीढ़ी िे नीचेवािे कहस्से पर होते हैं , जहाूं से हम प्रिृकत से कमिते हैं । और समाकध में हम सीढ़ी िे दू सरे
छोर पर होते हैं , जहाूं हम परमात्मा से कमिते हैं । दोनोूं कमिन हैं , दोनोूं कवस्फोट हैं एि अथों में , दोनोूं में किसी
खास अथग में तु म खोते हो। ही, किसी में क्षण भर िे किए, से क्स में और सूं भोर् में क्षण भर िे किए और समाकध में
सदा िे किए। वह दू सरी िात है । िेकिन दोनोूं क्तस्थकतयोूं में तु म कमटते हो। यह िड़ा क्षकणि कवस्फोट है जो वापस
ि ट आता है ; तु म ररकक्रस्टिाइज हो जाते हो; क्ोूंकि तु म जहाूं र्ए थे वह तु मसे पीछे िी अवस्था थी, उसमें तु म
ि ट नही ूं सिते । िेकिन परमात्मा में जािर तु म ररकक्रस्टिाइज नही ूं हो सिते , वापस तु म सु सूंर्कठत नही ूं हो
सिते । क्ोूंकि कजसमें तु म र्ए हो, उसमें जाते ही, किर तु म्हारा वापस ि टना उतना ही असूं भव है जै से कि पहिे
तु म पीछे वापस ि टने में असूं भव थे। अि तो और भी असूं भव है । अि तो इतना असूं भव है , ऐसे ही जै से कि एि
आदमी िड़ा हो र्या और उसिे िचपन िे पाजामे में उसे वापस ि ट आना पड़े । पर वह भी सूं भव है ; यह सूं भव
नही ूं है । क्ोूंकि तु म कवराट िे साथ एि हो र्ए, अि तु म व्यक्तक्त में नही ूं ि ट सिते । अि वह व्यक्तक्त इतनी
क्षुद्र, सूं िीणग जर्ह है कि जहाूं तु म्हारे प्रवेश िा िोई उपाय नही ूं है । अि तु म सोच ही नही ूं सिते कि इसमें जाना
िैसे हो सिता है ! तु म यह भी नही ूं सोच सिते कि मैं इसमें िभी था तो िैसे था, इतने छोटे होने में िैसे हो
सिता हूं । वह िात खत्म हो जाती है ।

उस कवस्फोट िे किए दोनोूं िातें जरूरी हैं ; तु म्हारे भीतर िी यात्रा तु म्हारे अूंकतम किूं दु सहस्रार ति आनी
चाकहए।

सहस—दि कमि का ब्धखिना:


और क्ोूं उसे हम सहस्र िहते हैं , वह भी थोड़ा खयाि में िेना जरूरी है । ये सारे शब्द आिक्तस्भि नही ूं
हैं ।

हमारी भाषा आमत र से आिक्तस्भि है , उपयोर् से पैदा हुई है । जैसे किसी चीज िो हम दरवाजा िहते
हैं । दरवाजा न िहें , िुछ और िहें , तो िुछ हजग नही ूं होता। दु कनया में हजार भाषाएूं हैं तो हजार शब्द होूंर्े
दरवाजे िे किए, और सभी शब्द िाम िर जाते हैं । िेकिन किर भी िोई एि िात जो साूं योकर्ि नही ूं है , वह
शायद सभी में मेि खाएर्ी। तो दरवाजा या डोर या द्वार िा जो भाव है कजसिे द्वारा हम िाहर— भीतर जाते
हैं , वह सभी भाषाओूं में मे ि खाएर्ा; क्ोूंकि वह अनुभव िा कहस्सा है , वह साूं योकर्ि नही ूं है । कजससे हम
िाहर— भीतर आते —जाते हैं ; कजससे जर्ह कमिती है िाहर— भीतर आने —जाने िी; स्पे स िा एि खयाि जो
उसमें है , वह सिमें होर्ा।

तो सहस्र शब्द िड़ा अनुभव िा है , साूं योकर्ि नही ूं है । जैसे ही तु म उस अनुभूकत िो उपिि होते
हो, तु म्हें िर्ता है कि तु म्हारे भीतर जैसे हजार—हजार िूि एिदम से क्तखि र्ए—सि िूंद हजार िूि एिदम
से क्तखि र्ए। हजार भी इसी अथग में कि सूं ख्या िे िाहर जैसी घटना घटती है । और िूि इस अथग में कि
फ्लावररर् होती है , िोई चीज जो िूंद थी ििी िी तरह वह खु िती है । िूि िा मतिि है क्तखिना। िूि िा
मतिि वही होता है जो प्रिुल्र होने िा होता है —खु ि जाना। फ्लावररर् िा भी वही मतिि होता है —खु ि
जाना। िोई चीज जो िूंद थी वह खु ि र्ई है । तो ििी िी तरह िोई चीज थी वह िूि िी तरह हो र्ई है । और
किर एिाध चीज नही ूं खु ि र्ई, अनूंत चीजें जैसे पूरे तरि से खु ि र्ई हैं ।

तो इसकिए इसिो सहस्र िमि, हजार िमि क्तखि र्ए हैं , यह खयाि आना किििुि स्वाभाकवि था।
अर्र तु मने िभी सु िह िमि िो क्तखिते दे खा है —नही ूं दे खा तो र् र से दे खना चाकहए, िहुत कनिटता से, िहुत
चुपचाप िैठिर उसिे पूरे , धीरे — धीरे पूरे क्तखिने िो दे खना चाकहए—तो तु म्हें खयाि आ सिेर्ा कि अर्र
हजार मक्तस्तष्क िे िमि एिदम से क्तखि जाएूं र्े तो िैसी प्रतीकत, उसिी तु म थोड़ी सी रूप—रे खा िल्पना में
िे सिोर्े।

और भी एि अदभुत अनुभव हुआ है । कजन िोर्ोूं िो सूं भोर् िा िहुत र्हरा अनु भव होर्ा, उन्ें भी
क्तखिने िा एि अनुभव होता है क्षण भर िो; उनिे भीतर भी िोई चीज क्तखिती है — िस क्षण भर िो, किर िूंद
हो जाती है । िेकिन उस क्तखिने में और इस क्तखिने में एि और अनुभव होर्ा कि जैसे कि िूि नीचे िी तरि
िटिा हुआ क्तखिे और िूि ऊपर िी तरि क्तखिे। पर वह तु िना तभी हो सिती है जि दू सरा अनुभव तु म्हारे
खयाि में आ जाए; ति तु म्हें पता चिेर्ा कि नीचे िी तरि िूि क्तखि रहे थे और अि ऊपर िी तरि िूि
क्तखि रहे हैं । नीचे िी तरि जो िूि क्तखिते थे , स्वभावत: वे नीचे िे जर्त से जोड़ दे ते थे , ऊपर िी तरि जो
िूि क्तखिते हैं , स्वभावत: वे ऊपर िे जर्त से जोड़ दे ते हैं । असि में , उनिा क्तखिना और उनिी ओपकनूं र् तु म्हें
विनरे िि िना दे ती है , तु म्हें खोि दे ती है ; दू सरी दु कनया िे किए दरवाजा िन जाते हो, वहाूं से िुछ तु ममें प्रवेश
िरता है । और उस प्रवेश से तु म्हारे भीतर कवस्फोट घकटत होता है ।

इसकिए दोनोूं िातें जरूरी हैं तु म जाओर्े वहाूं ति और वहाूं िोई प्रतीक्षा ही िर रहा है । आना िहना
ठीि नही ूं है कि वहाूं से िोई आएर्ा; तु म जाओर्े वहाूं ति, िोई वहाूं प्रतीक्षा िर रहा है , घटना घट जाएर्ी।

शब्धिपात दोहरी घटना:


प्रश्न: ओशो क्ा केिि शब्धिपात के माध्यम से कां डजिनी सहकार तक जिकजसत हो सकती
है ? उसके सहस्रार पर छां चने पर क्ा समाजध का एक्सप्लोजन हो जाता है ? यजद शब्धिपात के माध्यम से
कां डजिनी सहस्रार तक जिकजसत हो सकती है ? तो इसका अथओ यह हो जाएगा जक दू सरे से समाजध
उपिि हो सकती है ।

इसे थोड़ा समझना पड़े। असि िात यह है , इस जर्त में, इस जीवन में िोई भी घटना इतनी सरि
नही ूं है कजसिो तु म एि ही तरि से दे खो और समझ िो, उसे िहुत तरि से दे खना पड़े । अि जैसे मैं इस
दरवाजे पर आऊूं और जोर से एि हथ ड़ा मारू
ूं और दरवाजा खु ि जाए, तो मैं यह िह सिता हूं कि मेरे हथ ड़े
से दरवाजा खु िा। और यह िहना एि अथग में सच भी है , क्ोूंकि मैं अर्र हथ ड़ा नही ूं मारता तो दरवाजा अभी
खु िता नही ूं था। िेकिन इसी हथ ड़े िो मैं दू सरे दरवाजे पर मारू
ूं और दरवाजा न खु िे , हथ ड़ा ही टू ट जाए—
ति? ति तु म्हें दू सरा पहिू भी खयाि में आएर्ा कि जि एि दरवाजे पर मैंने हथ ड़ा मारा और दरवाजा
खु िा, तो कसिग हथ ड़े िे मारने से नही ूं खु िा, दरवाजा भी खु िने िे किए पूरी तरह तै यार था; क्ोूंकि दू सरा
दरवाजा नही ूं खु िा। किसी भी िारण से तै यार था—िमजोर था, जराजीणग था, पर उसिी तै यारी थी। यानी खु िने
में कसिग हथ ड़ा ही नही ूं खोि कदया है उसे , दरवाजा भी खु िा; क्ोूंकि और दू सरे दरवाजोूं पर हथ ड़े िी चोट
िरिे दे खी है तो हथ ड़ा ही टू ट र्या है िही ;ूं िही ूं हथ ड़ा नही ूं टू टा, न दरवाजा खु िा; िही ूं हम थि र्ए चोट
िर—िर िे, वह नही ूं खु िा।

तो इस घटना में जहाूं शक्तक्तपात से िुछ घटना घटती है , वहाूं शक्तक्तपात से ही घटती है , इस भ्ाूं कत में
नही ूं पड़ने िी जरूरत है । वहाूं वह दू सरा व्यक्तक्त भी किसी िहुत आतररि तै यारी िे एि छोर पर पहुूं च र्या
है , जहाूं जरा सी चोट सहयोर्ी हो जाती है । नही ूं यह चोट िर्ती तो शायद थोड़ी दे र िर् सिती थी। तो इस
शक्तक्तपात से जो हो रहा है वह िुूंडकिनी सहस्रार ति नही ूं पहुूं च रही, इस शक्तक्तपात से इतना ही हो रहा है कि
टाइम एकिमेंट जो है , समय िा जो थोड़ा व्यवधान था, वह िम हो रहा है ; और िुछ भी नही ूं हो रहा। यह आदमी
पहुूं च तो जाता ही।

समझ िो कि मैं इस हथ ड़े से चोट नही ूं मारता इस दरवाजे पर, और यह जराजीणग दरवाजा, यह


किििुि कर्रने िो हो रहा है ; िि हवा िे थपे ड़े से कर्र जाता। हवा िा थपेड़ा भी न आता, क्ोूंकि दरवाजे िा
भाग्य— न आए, हवा िा थपेड़ा ही न आए उस तरि—तो क्ा तु म सोचते हो, यह दरवाजा खड़ा ही रहता? यह
दरवाजा जो एि ही चोट से कर्र र्या, जो हवा िे थपेड़े से डरता था कि कर्र जाएर्ा, यह किना हवा िे थपेड़े िे
भी एि कदन कर्र जाएर्ा। जि तु म्हें िारण भी िताना मुक्तिि हो जाएर्ा कि किसने कर्राया, ति यह अपने से
भी कर्र जाएर्ा, यह कर्रने िी तै यारी इिट्ठी िरता जा रहा है ।

तो ज्यादा से ज्यादा जो ििग िाया जा सिता है , वह कसिग समय िी पररकध िा, टाइम र्ैप िा। जो
घटना रामिृष्ण िे पास अर्र कववे िानूं द िो घटी, उसमें अर्र अिेिे रामिृष्ण ही कजिेवार हैं , तो किर और
किसी िो भी घट जाती, िहुत िोर् उनिे िरीि र्ए। सै िड़ोूं उनिे कशष्य हैं । तो और किसी िो नही ूं घट र्ई
है । और अर्र कववे िानूंद ही कजिे वार थे अिेिे , तो वे रामिृष्ण िे पहिे और िहुत िोर्ोूं िे पास र्ए थे , उनिे
पास वह नही ूं घटी थी।

समझ रहे हो न? तो कववेिानूंद िी अपनी एि तै यारी थी, रामिृष्ण िी अपनी एि सामर्थ्ग थी, यह
तै यारी और यह सामर्थ्ग किसी किूं दु पर अर्र कमि जाएूं , तो टाइम र्ैप िम हो सिता है । कववे िानूं द , हो सिता
है अर्िे जन्म में यह घटना घटती—वषग भर िाद घटती, दो वषग िाद घटती, दस जन्मोूं िाद घटती—यह सवाि
नही ूं है ; इस व्यक्तक्त िी अपनी भीतरी तै यारी अर्र हो रही थी तो घटना घटती।

टाइम र्ैप िम हो सिता है । और समझने िी िात यह है कि टाइम िड़ी ही किक्ङीशस, िड़ी माकयि
घटना है , इसकिए उसिा िोई िहुत मूल्य नही ूं है । असि में , समय इतनी ज्यादा स्वकप्नि घटना है कि उसिा
िोई िड़ा मूल्य नही ूं है । अभी तु म एि झपिी िो और हो सिता है कि घड़ी में एि ही कमनट र्ुजरे और तु म
जार्िर िहो कि मैं ने इतना िूंिा स्वप्न दे खा कि मैं िच्चा था, जवान था, िा हुआ, मेरे िड़िे थे , शादी हुई, धन
िमाया, सट्टे में हार र्या—यह सि हो र्या! और यहाूं िाहर हम िहें कि यह तु म िैसी िातें िर रहे हो, इतना
िूंिा सपना दे खने िे किए भी वक्त िर्े र्ा। क्ोूंकि अभी तु म एि से िेंड तु म्हारी आूं ख िूंद हुई है कसिग , तु मने
झपिी भर िी है ।

असि में डरीम टाइम जो है , स्वप्न िा जो समय है , उसिी यात्रा िहुत अिर् है । वह िहुत छोटे से समय
में िहुत घटनाएूं घटाने िी उसिी सूं भावना है , इसकिए हमें िड़ी भाूं कत होती है ।

अि ये िुछ िीड़े हैं जो कि पैदा होते हैं सु िह और साूं झ मर जाते हैं । हम िहते हैं , िेचारे ! िेकिन हमें
यह पता नही ूं कि उनिा टाइम िा जो अनुभव है , वह उतना ही है कजतना हमें सिर साि में होता है । िोई ििग
नही ूं पड़ता। वे इस िारह घूंटे में वह सि िाम िर िेते हैं —घर िना िेते हैं , पत्नी खोज िेते हैं , शादी—कववाह
रचा िेते हैं , िड़ाई—झर्डा िर िेते हैं —जो भी िरना है , सि िर—िरा िे साूं झ मर जाते हैं । इसमें िुछ िमी
नही ूं छोड़ते ; इसमें सि हो जाता है । इसमें शादी—कववाह, तिाि, िड़ाई— झर्ड़ा, सि घटना घट—घटा िर वे
सूं न्यास वर्ैरह भी सि िर डािते हैं —सु िह से साूं झ ति! पर वह जो समय िा उनिा जो िोध है , उसमें ििग
है । इसकिए हमें िर्ता है , िेचारे ! और वे अर्र सोचते होूंर्े तो हमारे िाित सोचते होूंर्े कि जो हम िारह घूंटे में
िर िेते हैं , तु मिो सिर साि िर् जाते हैं —िेचारे ! इतना िाम तो हम िहुत जल्दी कनपटा िेते हैं , इन िोर्ोूं िो
क्ा हो र्या! िैसी मूंद िु क्तद्ध िे हैं , सिर साि िर्ा दे ते हैं !

समय जो है , वह किििुि ही मनोकनभगर , मेंटि एनटाइटी है । इसकिए हम भी हमारे मन िे अनुसार


समय िा अनुपात छोटा—िड़ा होता रहता है । जि तु म सु ख में होते हो, समय एिदम छोटा हो जाता है ; जि
तु म दु ख में होते हो, समय एिदम िूंिा हो जाता है । घर में िोई मर रहा है और तु म उसिी खाट िे पास िैठे
हो, ति रात िहुत िूंिी हो जाती है , िटती ही नही ूं। ऐसा िर्ता है कि अि यह रात िभी खत्म होर्ी कि नही ूं
होर्ी! सू रज उर्े र्ा कि नही ूं उर्े र्ा! रात इतनी िूंिी होती जाती है कि िर्ता है कि अि नही ,ूं यह आक्तखरी रात है !
अि यह िभी होर्ा नही,ूं सू रज उर्ेर्ा नही ूं! दु ख समय िो िहुत िूंिा िर दे ता है ;क्ोूंकि दु ख में तु म जल्दी से
समय िो किताना चाहते हो; तु म्हारी अपेक्षा जल्दी िी हो जाती है । तु म्हारा एक्सपेक्ङेशन है —जल्दी िीत जाए।
कजतनी तु म्हारी अपेक्षा तीव्र हो जाती है , समय उतना मूंदा मािूम पड़ने िर्ता है , क्ोूंकि उसिा अनु भव ररिेकटव
है । जि तु म्हारी अपेक्षा िहुत तीव्र होती है , वह तो अपनी र्कत से चिा जा रहा है , पर तु म्हें ऐसा िर्ता है कि िहुत
धीमे जा रहा है । जैसे िोई प्रेमी अपनी प्रेयसी से कमिने िै ठा है और वह चिी आ रही है । वह तो चाहता है कि
किििुि द ड़ती हुई जेट िी रफ्तार से आओ, िेकिन वह आदमी िी रफ्तार से आ रही है । तो उसे िर्ता
है , िैसी मूंद र्कत चि रही है !

तो दु ख में तु म्हारा समय िा िोध एिदम िूंिा हो जाता है । सु ख आता है , तु म्हारा कमत्र कमिता
है , कप्रयजन कमिता है ,रात भर जार्िर तु म र्पशप िरते रहते हो, सु िह कवदा होने िा वक्त आता है ; तु म िहते
हो, रात िैसे िीत र्ई क्षण भर में! यह तो आई न आई िरािर हो र्ई! ऐसा िर्ता ही नही ूं कि आई भी।

सु ख में तु म्हारे समय िा िोध एिदम कभन्न हो जाता है , दु ख में कभन्न हो जाता है ।
तो तु म्हारी मनोकनभगर इिाई है समय। इसकिए इसमें तो ििग पैदा ही किए जा सिते हैं , क्ोूंकि तु म्हारे
मन ति तो चोट िी जा सिती है । इसमें िोई िकठनाई नही ूं है । अर्र मैं तु म्हारे कसर पर िट्ठ मार दू ूं तो तु म्हारा
कसर खु ि जाता है । तो अि तु म क्ा िहोर्े कि तु म्हारा कसर एि आदमी ने खोि कदया, उस पर कनभगर हो र्ए
तु म! हो ही र्ए कनभगर। तु म्हारे शरीर िो चोट िी जा सिती है ; तु म्हारे मन िो भी चोट िी जा सिती है ।
हाूं , तु मिो चोट नही ूं िी जा सिती; क्ोूंकि तु म न शरीर हो, न तु म मन हो। िेकिन अभी तु म मन पर ठहरे हुए
अपने िो मन मान रहे हो, या अपने िो शरीर मान रहे हो, तो इन सििो तो चोट िी जा सिती है । और इनिी
चोट से तु म्हारे समय िे अूंतर िो िहुत िम किया जा सिता है —िल्पोूं िो क्षणोूं में िदिा जा सिता है ; क्षणोूं
िो िल्पोूं में िदिा जा सिता है ।

मब्धि समयातीत है :

िेकिन कजस कदन तु म जार्ोर्े , यह िहुत मजे िी िात है कि िुद्ध कजस कदन जार्े , उनिो तो पच्चीस स
साि हो र्ए,जीसस िो दो हजार साि हो र्ए, िृष्ण िो शायद पाूं च हजार साि हो र्ए, जरथुस्त्र िो िहुत समय
हुआ, मूसा िो िहुत समय हुआ—िेकिन कजस कदन तु म जार्ोर्े , तु म अचानि पाओर्े कि अरे , वे भी अभी ही
जार्े हैं ! क्ोूंकि वह जो टाइम र्ैप है , एिदम खतम हो जाएर्ा। ये पच्चीस स साि, और दो हजार, और पाूं च
हजार साि एिदम सपने िे मािूम पड़ें र्े।

इसकिए जि िोई जार्ता है , तो एि ही क्षण में सि जार्ते हैं , िोई क्षण में ििग नही ूं पड़ता। िेकिन यह
िड़ा िकठन है खयाि में िे ना। यह िड़ा िकठन है कि कजस कदन तु म जाओर्े , उस कदन तु म एिदम िूंटे मेरी हो
जाओर्े —िुद्ध िे, महावीर िे,िृष्ण िे। वे सि तु म्हें चारोूं तरि खड़े हुए मािूम पड़ें र्े ; सि अभी—अभी जार्े —
अभी! तु म्हारे साथ ही! एि क्षण िा भी िासिा वहाूं नही ूं है । वहाूं नही ूं हो सिता।

असि में, ऐसा समझो कि हम एि िड़ा वृि खी ूंचें, एि िड़ा सकिगि िनाएूं ; और सकिगि िे सें टर पर
हम वृि से िहुत सी रे खाएूं खी ूंचें , हजार रे खाएूं पररकध से खी ूंचें और िेंद्र पर जोड़ दें । पररकध पर तो िहुत िासिा
होर्ा दो रे खाओूं िे िीच में। किर तु म िेंद्र िी तरि िढ़ने िर्े , िासिा िम होने िर्ा। किर तु म जि िेंद्र पर
पहुूं चोर्े , तु म पाओर्े —िासिा खतम हो र्या, दोनोूं रे खाएूं एि हो र्ईूं।

तो कजस कदन अनुभुकत िी उस प्रर्ाढ़ता िे िेंद्र पर िोई पहुूं चता है , तो वे जो पररकध पर िासिे थे , ढाई
हजार साि िा,दो हजार साि िा, वे सि खत्म हो जाते हैं । इसकिए िहुत कदक्कत होती है , िड़ी िकठनाई होती
है , क्ोूंकि उस जर्ह से िोिने से िई िार भू ि हो जाती है । क्ोूंकि कजनसे हम िोि रहे हैं , वे पररकध िी भाषा
समझते हैं । इसकिए िहुत भूि िी सूं भावना है वहाूं ।

एि आदमी मेरे पास आया। भक्त है , जीसस िा भक्त। तो उसने मुझसे पूछा कि आपिा जीसस िे
िाित क्ा खयाि है ? तो मैंने उससे िहा कि अपने ही िाित खयाि िनाना अच्छा नही ूं होता। मुझे थोड़ा उसने
चि
ूं िर दे खा, उसने िहा कि नही,ूं शायद आप सु ने नही;ूं मैं पूछ रहा हूं : जीसस िे िाित आपिा क्ा खयाि
है ? तो मैंने उससे िहा कि मैं भी समझता हूं कि तु मने शायद सु ना नही ूं! मैं िहता हूं कि अपने ही िाित खयाि
िनाना ठीि नही ूं होता। उसने िुछ परे शानी से मुझे दे खा। मैंने उससे िहा कि जीसस िे िाित खयाि तभी
ति िनाया जा सिता है जि ति जीसस िो नही ूं जानते । कजस कदन जानोर्े उस कदन तु ममें और जीसस में क्ा
ििग है ? िैसे खयाि िनाओर्े ?

ऐसा हुआ कि रामिृष्ण िे पास िभी िोई कचत्रिार आया और उनिा एि कचत्र िनािर िाया। और
वह रामिृष्ण िो िािर उसने िताया कि दे क्तखए, आपिा कचत्र िनाया है , िैसा िना है ? रामिृष्ण उस कचत्र िे
पैरोूं में कसर िर्ािर नमस्कार िरने िर्े। तो वहाूं कजतने िोर् िै ठे थे उन सिने सोचा कि िुछ भूि हो
र्ई, क्ोूंकि अपने ही कचत्र िे पैर पड़ रहे हैं ! क्ा, र्ड़िड़ क्ा है ? शायद समझे नही,ूं कचत्र उन्ी ूं िा है ।

तो उस कचत्रिार ने िहा, माि िररए, यह कचत्र आपिा ही है और आप ही इसिे......

तो उन्ोूंने िहा कि अरे , मैं भूि र्या। असि में , उन्ोूंने िहा कि यह कचत्र इतना समाकधस्थ है कि मेरा
िैसे हो सिता है ! रामिृष्ण ने िहा, यह कचत्र इतना समाकध िा है कि मेरा िैसे हो सिता है ! क्ोूंकि समाकध में
िहाूं मैं और िहाूं तू । तो मैं तो समाकध िे पैर पड़ने िर्ा; तु मने ठीि याद कदिा दी, और वक्त पर याद कदिा
दी, नही ूं तो िोर् िहुत हूं सते ।...... .पर िोर् तो हूं स ही चुिे थे।

पररकध िी और िेंद्र िी भाषाएूं अिर् हैं । इसकिए अर्र िृष्ण िहते हैं कि मैं ही था राम, और अर्र
जीसस िहते हैं कि मैं ही पहिे भी आया था और तु म्हें िह र्या था, और अर्र िु द्ध िहते हैं कि मैं किर
आऊूंर्ा, तो इस सि में वे सि िेंद्र िी भाषा िोि रहे हैं कजससे हमिो िड़ी िकठनाई होती है । अि ि द्ध कभक्षु
प्रतीक्षा िर रहे हैं कि वे िि आएूं र्े!

वे िहुत िार आ चुिे। वे रोज खड़े होूंर्े तो भी नही ूं पहचान में आएूं र्े , क्ोूंकि अि उसी शक्ल में तो
आने िा िोई उपाय नही ूं है , वह शक्ल तो सपने िी शक्ल थी, वह खो र्ई।

तो वहाूं िोई समय िा अूंतराि नही ूं है । और इसीकिए तु म्हारे समय िी क्तस्थकत में तो तीव्रता और िमी
िी जा सिती है ,िहुत िमी िी जा सिती है । उतना शक्तक्तपात से हो सिता है ।

कोई दू सरा नही ां है :

और दू सरी िात जो तु म उसमें पूछते हो कि इसमें तो दू सरा......

वह दू सरा भी तभी ति कदखाई पड़ रहा है न! वह दू सरे िा जो दू सरा होना है , वह भी हमारी अपनी


सीमा िो जोर से पिड़े होने िी वजह से मािूम पड़ रहा है । तो कववे िानूं द िो िर्ेर्ा कि रामिृष्ण िी वजह से
मुझे हो र्या। रामिृष्ण िो िर्े तो िड़ी नासमझी हो जाएर्ी। रामिृष्ण िे किए तो ऐसे ही घटना घटी है , जैसे
कि मेरे हाथ पर िोई चोट िर्ी हो और मैंने मिहम िर्ा दी। तो मेरा यह हाथ, िायाूं हाथ समझेर्ा कि िोई और
मेरी से वा िर रहा है । दाएूं हाथ से मैं िर्ाऊूंर्ा न! तो िोई और िर रहा है । हो सिता है धन्यवाद भी दे , हो
सिता है इनिार भी िर दे कि भई, रहने दो, मैं स्वाविूंिी हूं मैं दू सरे िी सहायता नही ूं िेता। िेकिन उसे पता
नही ूं कि जो उसमें प्रवेश किया हुआ है , िाएूं में , वही दाएूं में भी प्रवेश किया हुआ है ; वह एि ही है ।

तो जि िभी िोई किसी दू सरे िे किए दू सरे िी तरि से सहायता पहुूं चती है , तो सच में िोई दू सरा
नही ूं है ; तु म्हारी तै यारी ही उस सहायता िो तु म्हारे ही दू सरे कहस्से से िुिाती और पुिारती है ।

इकजप्त में एि िहुत पुरानी किताि है जो यह िहती है कि तु म र्ुरु िो िभी मत खोजना, क्ोूंकि कजस
कदन तु म तै यार हो, र्ुरु तु म्हारे दरवाजे पर हाकजर हो जाएर्ा। तु म खोजने जाना ही मत। और वह यह भी िहती
है कि अर्र तु म खोजने भी जाओर्े तो खोज िैसे सिोर्े ? तु म पहचानोर्े िैसे ? क्ोूंकि अर्र तु म इस योग्य ही
हो र्ए कि र्ुरु िो भी पहचान िो, ति किर और क्ा िमी रह र्ई! इसकिए सदा ही र्ु रु कशष्य िो पहचानता
है , कशष्य िभी र्ुरु िो नही ूं पहचान सिता। उसिा िोई उपाय नही ूं है । मेरा मतिि समझे न? उसिा उपाय
िहाूं है ? अभी तु म अपने िो नही ूं पहचानोर्े तो तु म र्ुरु िो िैसे पहचानोर्े कि यह आदमी है ! तु म नही ूं पहचान
सिते । हाूं , िेकिन कजस कदन तु म तै यार हो, उस कदन तु म्हारा ही िोई हाथ तु म्हारी सहायता िे किए म जू द हो
जाता है । वह दू सरे िा हाथ तभी ति है जि ति तु म्हें पता नही ूं चिा है । कजस कदन तु म्हें पता चिे र्ा उस कदन
तु म धन्यवाद दे ने िो भी नही ूं रुिोर्े।

जापान में झेन मॉनेस्टरी िा एि कहसाि है कि जि िोई मॉनेस्टरी में , आश्रम में आता है ध्यान सीखने , तो
अपनी चटाई आिर किछाता है । चटाई दिािर िाता है , किछा दे ता है , िैठ जाता है , समझ िेता है, ध्यान िरिे
चिा जाता है , चटाई वही ूं छोड़ जाता है । किर वह रोज आता रहता है और अपनी चटाई पर िैठता है , चिा जाता
है । कजस कदन हो जाता है उस कदन अपनी चटाई र्ोि िरिे चिा जाता है , र्ुरु समझ जाता है , हो र्या। इसमें
धन्यवाद दे ने िी भी क्ा जरूरत है ? वह कजस कदन चटाई र्ोि िरता है , उस कदन र्ुरु िहता है कि अच्छा, जा
रहे हो! क्ोूंकि किसिो धन्यवाद दे ना है । वह यह भी नही ूं िहता कि हो र्या, वह अपनी चटाई िपेटने िर्ता
है , तो र्ुरु समझता है कि चिो ठीि है , िस चटाई िपेटने िा वक्त आ र्या, अच्छी िात है । इतनी औपचाररिता
िी भी िहाूं जरूरत है कि धन्यवाद दो। और किसिो धन्यवाद दो! और अर्र िोई धन्यवाद दे ने जाएर्ा तो र्ु रु
डूं डा भी मार सिता है उसिो—कि खोि चटाई वापस, अभी ते रा नही ूं हुआ! किसिो धन्यवाद दोर्े ?

तो वह जो दू सरे िा खयाि है वह हमारे अज्ञान िी ही धारणा है , अन्यथा ि न है दू सरा! हम ही हैं िहुत


रूपोूं में, हम ही हैं िहुत यात्राओूं पर, हम ही हैं िहुत दपगणोूं में। कनकश्चत ही, सभी दपगणोूं में िेकिन कदखाई तो िोई
और ही पड़ रहा है ।

एि सू िी िहानी है कि एि िुिा एि राजमहि में घुस र्या। और उस राजमहि में सारी दीवािें
दपगण िी िनाई र्ई थी ूं। वह िुिा िहुत मुक्तिि में पड़ र्या, क्ोूंकि उसे चारोूं तरि िुिे ही िुिे कदखाई पड़ने
िर्े। वह िहुत घिड़ाया। इतने िुिे चारोूं तरि! अिेिा कघर र्या इतने िुिोूं में! कनििने िा भी रास्ता नही ूं
रहा। द्वार—दरवाजोूं पर भी आईने थे। सि तरि आईने ही आईने थे। किर वह भ ि
ूं ा। िे किन उसिे भ ि
ूं ने िे
साथ सारे िुिे भ ि
ूं े और उसिी आवाज सारी दीवािोूं से टिरािर वापस ि टी, ति तो किििुि पक्का हो र्या
कि खतरे में जान है और िहुत दू सरे िुिे म जूद हैं। और वह कचल्राता रहा! और कजतना कचल्राया, उतने जोर से
िािी िुिे भी कचल्राए; और कजतना वह िड़ा और भ ि
ूं ा और द ड़ा, उतने ही सारे िुिे भी द ड़े और भ ि
ूं े ।
और उस िमरे में वह अिेिा िुिा था। रात भर वह भ ि
ूं ता रहा, भ ि
ूं ता रहा। सु िह जि पहरे दार आया तो
वह िुिा मरा हुआ पाया र्या, क्ोूंकि वह दीवािोूं से िड़िर और भ ि
ूं िर थि र्या और मर र्या। हािाूं कि
वहाूं िोई भी नही ूं था। जि वह मर र्या तो वे दीवािें भी शाूं त हो र्ईूं, वे दपगण चुप हो र्ए।

िहुत दपगण हैं , और हम सि एि—दू सरे िो जो दे ख रहे हैं , वे िहुत तरह िे कमरसग, िहुत तरह िे
दपगणोूं में अपनी ही तस्वीरें हैं । इसकिए दू सरा िोई है , यह भ्ाूं कत है , इसकिए दू सरे िी हम सहायता िर रहे
हैं , यह भी भ्ाूं कत है , और दू सरे से हमें सहायता कमि रही है , यह भी भ्ाूं कत है । असि में , दू सरा ही भ्ाूं कत है । और
ति जीवन में एि सरिता आती है , जहाूं तु म दू सरे िो दू सरा मानिर िुछ नही ूं िरते हो— िुछ भी नही ूं िरते
हो, न दू सरे िो दू सरा मानिर अपने किए िुछ िरवाते हो; ति तु म ही रह जाते हो। और अर्र रास्ते पर किसी
कर्रते आदमी िो तु मने सहारा कदया है तो वह तु मने अपने िो ही कदया है ; और अर्र रास्ते पर किसी और ने
तु म्हें सहारा कदया है तो वह भी उसने अपने िो ही कदया है । मर्र यह परम अनु भव िे िाद खयाि में आना शु रू
होर्ा, उसिे पहिे तो कनकश्चत ही दू सरा है ।

अनभू जत और अजभव्यब्धि:
प्रश्न : ओशो जििेकानांद को शब्धिपात से नकसान हुआ श ोसा आपने एक बार कहा है ।

असि में, कववेिानूंद िो शक्तक्तपात से तो नुिसान नही ूं हुआ, िेकिन शक्तक्तपात िे पीछे जो हुआ
उससे नुिसान हुआ;जो और चीजें चिी ूं। पर नुिसान और हाकन िी िात भी सपने िे भीतर िी िात है , िाहर
िी नही ूं। तो कजस भाूं कत रामिृ्ण िी सहायता से उनिो एि झिि कमिी—जो झिि शायद उनिो अपने ही
पैरोूं पर िभी कमिती, वक्त िर् जाता—िेकिन उस झिि िे िाद, चूूंकि वह झिि दू सरे से कमिी थी, दू सरे िे
द्वारा कमिी थी...। जैसे मैंने हथ ड़ा मारा दरवाजे पर, दरवाजा टू ट र्या। िेकिन मैं दरवाजे िो किर खड़ा िर
र्या, उसी हथ ड़े से खीिें ठोूंि र्या और वापस ठीि िर र्या। जो हथ ड़ा दरवाजा कर्रा सिता है , वह िीिें
भी ठोूंि सिता है । हािाूं कि दोनोूं हाित में एि ही िात हो रही है , पहिे भी समय ही थोड़ा िम हुआ था,अि
समय ही किर थोड़ा हो जाएर्ा।

रामिृष्ण िी िुछ िकठनाइयाूं थी ूं कजनिे किए उन्ें कववेिानूंद िा उपयोर् िरना पड़ा। रामिृष्ण
कनपट दे हाती, अपढ़,अकशकक्षत आदमी थे, अनुभव उनिो र्हरा हुआ था, िेकिन अकभव्यक्तक्त उनिे पास नही ूं
थी। और जरूरी था कि वे अपनी अकभव्यक्तक्त िे किए किसी आदमी िो साधन िनाएूं , वाहन िनाएूं । नही ूं तो
रामिृष्ण िा आपिो पता ही न चिता। और रामिृष्ण िो जो कमिा था, यह उनिी िरुणा िा कहस्सा ही है कि
वह किसी आदमी िे द्वारा आप ति पहुूं चा दें ।

मेरे घर में खजाना कमि जाए मुझे , और मेरे पैर टू टे होूं, और मैं किसी आदमी िे िूंधे पर खजाना
रखिर आपिे घर ति पहुूं चा दू ूं । तो उस आदमी िे िूंधे िा तो मैं ने उपयोर् किया, उसे थोड़ी तििीि भी
दी; क्ोूंकि इतनी दू र वजन तो उसे ढोना ही पड़े र्ा। िेकिन उस आदमी िो तििीि दे ने िा इरादा नही ूं
है , इरादा वह जो खजाना मुझे कमिा है , आप ति पहुूं चाने िा है । क्ोूंकि मैं हूं िूंर्ड़ा, और यह खजाना यही ूं पड़ा
रह जाएर्ा, और मैं घर िे िाहर खिर भी नही ूं िे जा सिूूंर्ा।

तो रामिृष्ण िो एि िकठनाई थी। िुद्ध िो ऐसी िकठनाई नही ूं थी। िुद्ध िे व्यक्तक्तत्व में रामिृष्ण और
कववेिानूंद एि साथ म जूद थे। तो िुद्ध जो जानते थे , वह िह भी सिते थे ; रामिृष्ण जो जानते थे , वह िह नही ूं
सिते थे। िहने िे किए उन्ें एि आदमी चाकहए था जो उनिा मुूंह िन जाए। तो कववे िानूंद िो उन्ोूंने झिि
तो कदखा दी, िेकिन तत्काि कववेिानूंद से िहा कि अि चािी मैं रखे िेता हूं अपने हाथ, अि मरने िे तीन कदन
पहिे ि टा दू ूं र्ा। अि कववे िानूं द िहुत कचल्राने िर्े कि आप यह क्ा िर रहे हैं ! अि जो मुझे कमिा है , छीकनए
मत! रामिृष्ण ने िहा, िेकिन अभी तु झे और दू सरा िाम िरना है ;अर्र यह तू इसमें डूिा, तो र्या। तो अभी मैं
ते री चािी रखे िेता हूं इतनी तू िृपा िर। और मरने िे तीन कदन पहिे तु झे ि टा दू ूं र्ा। और अि मरने िे तीन
कदन पहिे ति तु झे समाकध उपिि न हो, क्ोूंकि तु झे िुछ और िाम िरना है जो समाकध िे पहिे ही तू िर
पाएर्ा।

और इसिा भी िारण यही था कि रामिृष्ण िो पता नही ूं था कि समाकध िे िाद भी िोर्ोूं ने यह िाम
किया है । िेकिन रामिृष्ण िो पता हो भी नही ूं सिता था, क्ोूंकि वे समाकध िे िाद िुछ भी नही ूं िर पाए थे।
स्वभावत: हम अपनी ही अनु भूकत से चिते हैं । रामिृष्ण िी अनुभूकत िे िाद रामिृष्ण िुछ भी नही ूं िह पाते
थे, िोि नही ूं पाते थे। िोिना तो िहुत मुक्तिि था,वे तो इतने.. .िोई िह दे ता राम— और वे िेहोश हो जाते ।
यह तो दू सरा िह दे ! िोई चिा आया है और उसने िहा कि जय राम जी— और वे िेहोश होिर कर्र र्ए!
उनिे किए तो राम शब्द भी सु नाई पड़ जाए तो मु क्तिि मामिा था—उनिो याद आ र्ई उसी जर्त िी। किसी
ने िह कदया अल्राह, तो वे र्ए। मक्तिद कदखाई पड़ र्ई, तो वे वही ूं खड़े होिर िेहोश हो र्ए। िही ूं भजन—
िीतग न हो रहा है , वे चिे जा रहे हैं अपने रास्ते से —वे र्ए, वही ूं सड़ि पर कर्र र्ए। उनिी िकठनाई यह हो र्ई
थी : िही ूं से भी जरा सी स्भृकत आ जाए उनिो उस रस िी, कि वे र्ए। तो अि उनिो तो िहुत िकठनाई थी।
और उनिा अनुभव उनिे किहाज से ठीि ही था कि कववेिानूंद िो अर्र यह अनुभूकत हो र्ई तो किर क्ा
होर्ा! तो उन्ोूंने कववे िानूंद से िहा कि तु झे तो मैं िुछ, एि िड़ा िाम है , वह तू िर िे , उसिे िाद...

इसकिए कववे िानूंद िी पूरी कजूंदर्ी समाकध—रकहत िीती, और इसकिए िहुत तििीि में िीती।
तििीि िे किन सपने िी! इस िात िो खयाि में रखना कि तििीि सपने िी है ; एि आदमी सोया है और
िड़ी तििीि िा सपना दे ख रहा है । मरने िे तीन कदन पहिे चािी वापस कमि र्ई, िेकिन मरने ति िहुत
पीड़ा थी। मरने िे पाूं च—सात कदन पहिे ति भी जो पत्र उन्ोूंने किखे , वे िहुत दु ख िे है —कि मेरा क्ा
होर्ा, मैं तड़प रहा हूं । और तड़प और भी िढ़ र्ई, क्ोूंकि जो दे ख किया है एि दिा,उसिी दु िारा झिि नही ूं
कमिी।

अभी उतनी तड़प नही ूं है आपिो, क्ोूंकि िुछ पता ही नही ूं है कि क्ा हो सिता है । उसिी एि
झिि कमि जाए....... आप खड़े थे अूंधेरे में, िोई तििीि न थी, हाथ में िूंिड़—पत्थर थे , तो भी िड़ा आनूं द
था, क्ोूंकि सूं पकि थी। किर चमि र्ई किजिी और कदखाई पड़ा कि हाथ में िूंिड़—पत्थर हैं — और सामने
कदखाई पड़ा कि रास्ता भी है , और सामने कदखाई पड़ा कि हीरोूं िी खदान भी है । िेकिन किजिी खो र्ई। और
किजिी िह र्ई कि अभी दू सरा िाम तु म्हें िरना है वे जो और पत्थर िीन रहे हैं उनसे िहना है कि यहाूं आर्े
खदान है । इसकिए अभी तु म्हारे किए वापस किजिी नही ूं चमिेर्ी। अि तु म ये जो िािी पत्थर इिट्ठे िर रहे हैं
इनिो समझाओ।

तो कववेिानूंद से एि िाम किया र्या है जो रामिृष्ण िे किए सप्लीमेंटरी था, जरूरी था, जो उनिे
व्यक्तक्तत्व में नही ूं था वह दू सरे व्यक्तक्त से िेना पड़ा। ऐसा िहुत िार हो र्या है , िहुत िार हो जाता है , िुछ िात
जो नही ूं सूं भव हो पाए एि व्यक्तक्त से , उसिे किए दो—चार व्यक्तक्त भी खोजने पड़ते हैं । िई िार तो एि ही िाम
िे किए दस—पाूं च व्यक्तक्त भी खोजने पडते हैं । उन सििे सहारे से वह िात पहुूं चाई जा सिती है । उसमें है तो
िरुणा, िेकिन कववे िानूं द िे साथ तो...

इसकिए मेरा िहना यह है कि जहाूं ति िने शक्तक्तपात से िचना, जहाूं ति िने वहाूं ति प्रसाद िी
किक्र िरना। और शक्तक्तपात भी वही उपयोर्ी है जो प्रसाद जैसा हो। कजसिी िोई िूंडीशकनूंर् न हो, कजसिे
साथ िोई शतग न हो, जो यह न िहे कि अि हम चािी रखे िेते हैं । मेरा मतिि समझे न? जो यह न िहे कि अि
िोई शतग है इसिे साथ, जो िेशतग , अनिडीशनि हो; जो आपिो हो जाए और वह आदमी िभी आपसे पूछने
भी न आए कि क्ा हुआ; जो र्या तो आपिो अर्र धन्यवाद भी दे ना हो तो उसिो खोजना मु क्तिि हो जाए कि
उसे िहाूं जािर धन्यवाद दें । उतना ही आपिे किए आसान पड़े र्ा। िेकिन िभी रामिृष्ण जैसे व्यक्तक्त िो
जरूरत पड़ती है । तो उसिे कसवाय िोई रास्ता नही ूं था। नही ूं तो रामिृष्ण िा जानना खो जाता; वे िह नही ूं
पाते । उनिे किए जिान चाकहए थी जो उनिे पास नही ूं थी। वह जिान उन्ें कववे िानूंद से कमि र्ई।

इसकिए कववेिानूंद कनरूं तर िहते थे कि जो भी मैं िह रहा हूं वह मेरा नही ूं है । और अमेररिा में जि
उन्ें िहुत सिान कमिा, तो उन्ोूंने िहा कि मुझे िड़ा दु ख हो रहा है और मुझे िड़ी मुक्तिि पड़ती है , क्ोूंकि
जो सिान मुझे कदया जा रहा है वह उस एि और दू सरे ही आदमी िो कमिना चाकहए था कजसिा आपिो पता
ही नही ूं। और जि उन्ें िोई महापु रुष िहता, तो वे िहते कि कजस महापु रुष िे पास मैं िैठिर आया हूं मैं
उसिे चरणोूं िी धू ि भी नही ूं हूं ।

िेकिन रामिृष्ण अर्र अमेररिा में जाते , तो वे किसी पार्िखाने में भती किए जाते , और उनिी
कचकित्सा िी जाती। उनिी िोई नही ूं सु नता; वे किििुि पार्ि कसद्ध होते । वे पार्ि थे। अभी ति हम यह नही ूं
साि िर पाए कि एि से क्ुिर पार्िपन होता है और एि नॉन—से क्ुिर पार्िपन भी होता है । अभी हम
ििग नही ूं िर पाए कि एि पार्िपन साूं साररि पार्िपन, और एि और पार्िपन भी है —कडवाइन भी है । वह
हमें ििग तो नही ूं हो पाया।

तो अमेररिा में िभी दोनोूं पार्ि एि साथ एि से पार्िखाने में िूंद िर कदए जाते हैं ; दोनोूं िी एि
कचकित्सा हो जाती है । रामिृष्ण िी कचकित्सा हो जाती, कववे िानूंद िो सिान कमिा। क्ोूंकि कववेिानूंद जो िह
रहे हैं , वह िहने िी िात है , वे खु द िोई दीवाने नही ूं हैं ; वे एि सूं देशवाहि हैं , एि डाकिया। कचट्ठी िे र्ए हैं
किसी िी, वह जािर पढ़िर सु ना दी है । िेकिन वे अच्छी तरह पढ़िर सु ना सिते हैं ।

नसरुिीन िे जीवन में एि िहुत अदभुत घटना है । नसरुिीन अपने र्ाूं व में अिेिा पढ़ा—किखा
आदमी है । और कजस र्ाूं व में एि ही अिेिा पढा—किखा हो, वह भी िहुत पढ़ा—किखा तो होता नही ूं! तो कचट्ठी
किसी िो किखवानी हो, तो उसी से किखवानी पड़ती है । तो एि आदमी उससे कचट्ठी किखवाने आया है । और वह
नसरुिीन उससे िहता है कि मैं न किखूूं र्ा, मेरे पैर में िड़ी तििीि है ।

उस आदमी ने िहा, भई पैर से कचट्ठी किखने िो िहता ि न है ! आप हाथ से कचट्ठी किक्तखए।

नसरुिीन ने िहा कि तु म समझे नही,ूं असि में हम कचट्ठी किखते हैं तो हम ही पढ़ते हैं ; हमें दू सरे र्ाूं व
में जािर पढ़नी भी पड़ती है । पैर में िहुत तििीि है , अभी हमें कचट्ठी किखने िी झूंझट में नही ूं पड़ना। किख तो
दें र्े, पड़े र्ा ि न? वह दू सरे र्ाूं व में हमीूं िो जाना पड़ता है न! तो अभी जि ति पैर में तििीि है , हम कचट्ठी
किखना िूंद ही रखें र्े।

तो रामिृ्ण जैसे जो िोर् हैं , ये जो कचट्ठी भी किखें र्े, ये खु द ही पढ़ सिते हैं । ये आपिी भाषा भू ि ही
र्ए; आपिी भाषा िा इनिो िोई पता ही नही ूं है । और ये एि और ही तरह िी भाषा िोि रहे हैं जो आपिे
किए किििुि मीकनूं र्िेस,अथगहीन हो र्ई है । हम इनिो पार्ि िहें र्े कि यह आदमी पार्ि है । तो हमारे िीच में
से इन्ें िोई डाकिया पिड़ना पड़े जो हमारी भाषा में किख सिे। कनकश्चत ही, वह डाकिया ही होर्ा। इसकिए
कववेिानूंद से जरा सावधान रहना। उनिा िोई अपना अनु भव िहुत र्हरा नही ूं है । जो वे िह रहे हैं , वह किसी
और िा है । हाूं , िहने में वे िुशि हैं , होकशयार हैं । कजसिा था, वह इतनी िुशिता से नही ूं िह सिता था।
िेकिन किर भी वह कववे िानूं द िा अपना नही ूं है ।

ज्ञाजनयोां की जझझक और अज्ञाजनयोां का अजत आत्मजिश्वास:

इसकिए कववेिानूंद िी िातचीत में ओवरिाकिडें स मािूम पड़े र्ा। जरूरत से ज्यादा वे िि दे रहे हैं ।
वह िि िमी िी पूकतग िे किए है । उन्ें खु द भी पता है कि वे जो िह रहे हैं , वह उनिा अपना अनु भव नही ूं है ।
इसकिए ज्ञानी तो थोड़ा—िहुत हे कज़टे ट िरता है ; वह थोड़ा—िहुत डरता है । उसिे मन में पचास िातें होती हैं
कि यह िहूं ऐसा िहूं वैसा िहूं र्ित न हो जाए। कजसिो िुछ पता नही ूं है वह िेधड़ि जो उसे िहना है , िह
दे ता है ; क्ोूंकि उसे िोई िकठनाई नही ूं होती, हे कज़टे शन िभी नही ूं होता; वह िह दे ता है कि ठीि है ।

िुद्ध जैसे ज्ञानी िो तो िड़ी िकठनाई थी। तो वे तो िहुत सी िातोूं िा जवाि ही नही ूं दे ते थे। वे िहते थे
कि मैं जवाि ही नही ूं दू ूं र्ा, क्ोूंकि िहने में िड़ी िकठनाई है । िुछ िोर् तो िहते , इससे तो हमारे र्ाूं व में अच्छे
आदमी हैं , वे जवाि तो दे ते हैं , वे ज्यादा ज्ञानी हैं आपसे ! िोई भी चीज पूछो, जवाि दे दे ते हैं । भर्वान है कि
नही?ूं तो वे िहते तो हैं कि है या नही ूं। उनिो पता तो है । आपिो पता नही ूं है क्ा? आप क्ोूं नही ूं िहते कि है
या नही?ूं
अि िुद्ध िी िड़ी मुक्तिि है । है िहें तो मुक्तिि है , नही ूं िहें तो मु क्तिि है । तो वे हे कज़टे ट िरें र्े , वे
िहें र्े कि नही ूं भई, इस सूं िूंध में िात ही मत िरो, िुछ और िातें िरते हैं । स्वभावत: हम िहें र्े कि किर पता
नही ूं है आपिो, यही िह दो। यह भी िु द्ध नही ूं िह सिते , क्ोूंकि पता तो है । और हमारी िोई भाषा िाम नही ूं
िरती।

इसकिए िहुत िार ऐसा हुआ है कि रामिृष्ण जैसे िहुत िोर् पृथ्वी पर अपनी िात िो किना िहे खो र्ए
हैं । वे नही ूं िह पाते , क्ोूंकि यह िहुत रे अर िाूं किनेशन है कि एि आदमी जाने भी और िह भी सिे। और जि
यह घटना घटती है तो ऐसे ही व्यक्तक्त िो हम तीथंिर, अवतार, पैर्ूंिर, इस तरह िे शब्दोूं िा उपयोर् िरने
िर्ते हैं । उसिा िारण यह नही ूं है कि इस तरह िे और िोर् नही ूं होते , इस तरह िे और भी िोर् हुए
हैं , िेकिन िह नही ूं सिे।

िुद्ध से किसी ने पूछा कि आपिे पास ये दस हजार कभक्षु हैं , चािीस साि से आप िोर्ोूं िो समझा रहे
हैं , इनमें से कितने िोर् आपिी क्तस्थकत िो उपिि हुए? िुद्ध ने िहा, िहुत िोर् हैं इनमें। तो उस आदमी ने
िहा, आप जैसा िोई पता तो नही ूं चिता हमें। िु द्ध ने िहा, ििग इतना ही है कि मैं िह सिता हूं वे िह नही ूं
सिते , और िोई ििग नही ूं है । मैं भी न िहूं तो तु म मुझिो भी नही ूं पहचान सिोर्े , िुद्ध ने िहा, क्ोूंकि तु म
िोिना पहचानते हो, तु म जानना थोड़े ही पहचानते हो। यह सूं योर् िी िात है कि मैं िोि भी सिता हूं जानता
भी हूं ; यह किििुि सूं योर् िी िात है ।

तो इसकिए वह थोड़ी सी िकठनाई कववेिानूंद िे किए हुई जो उनिो अर्िे जन्मोूं में पूरी िरनी
पड़े , िेकिन वह िकठनाई जरूरी थी। इसकिए रामिृ्ण िो िेनी मजिूरी थी। िेनी पड़ी। और नु िसान िेकिन
सपने िा है । किर भी मैं िहता हूं सपने में भी क्ोूं नु िसान उठाना? सपना ही दे खना है तो अच्छा क्ोूं नही ूं
दे खना, क्ोूं िुरा दे खना?

मैंने सु ना है कि— ईसप िी एि िेिि है —कि एि किल्री एि वृ क्ष िे नीचे िै ठी है और सपना दे ख


रही है । एि िुिा भी उधर आिर कवश्राम िर रहा है । और किल्री िड़ा आनूंद िे रही है , िहुत ही आनूंद िे रही
है सपने में। उसिी प्रसन्नता दे खिर िुिा भी िहुत है रान है कि क्ा दे ख रही है ! क्ा िर रही है ! जि उसिी
आूं ख खु िी तो उसने पूछा कि जाने से पहिे जरा िता दे कि क्ा मामिा था कि इतनी प्रसन्न हो रही थी? उसने
िहा कि िड़ा ही आनूं द आ रहा था, एिदम चूहे िरस रहे थे आिाश से । तो उस िुिे ने िहा, नासमझ! चूहे
िभी िरसते ही नही ूं। हम भी सपने दे खते हैं , हमेशा हकड्डयाूं िरसती हैं । और हमारे शास्त्रोूं में भी किखा हुआ है
कि चूहे िभी नही ूं िरसते , जि िरसती हैं , हकड्डयाूं िरसती हैं । मूरख किल्री, अर्र सपना ही दे खना था तो हड्डी
िरसने िा दे खना था।

िुिे िे किए हड्डी अथगपूणग है । िुिे िाहे िे किए चूहे िरसाए। िेकिन किल्री िे किए हड्डी किििुि
िेिार है । तो वह िुिा उससे िहता है , सपना ही दे खना था तो िम से िम हड्डी िा दे खती। यानी एि तो
सपना दे ख रही है , यही िेिार िी िात है , किर वह भी चूहे िा दे ख रही है , और भी िेिार िात है ।

तो मैं आपसे िहता हूं सपना ही दे खना हो तो दु ख िा क्ोूं दे खना? और जार्ना ही है , तो जहाूं ति
िने —जहाूं ति िने— अपनी सामर्थ्ग , अपनी शक्तक्त, अपने सूं िल्प िा पूरे से पूरा कजतना प्रयोर् आप िर
सिें, वह िरें , और रिी भर दू सरे िी प्रतीक्षा न िरें कि वह सहायता पहुूं चाएर्ा। सहायता कमिेर्ी, वह दू सरी
िात है ; आप प्रतीक्षा न िरें कि सहायता कमिेर्ी। क्ोूंकि कजतनी आप प्रतीक्षा िरें र्े उतना ही आपिा सूं िल्प
क्षीण हो जाएर्ा। आप तो कििर ही छोड़ दें कि िोई सहायता िरनेवािा है , आप तो अपनी पूरी ताित अिेिा
समझिर िर्ाएूं कि मैं अिेिा हूं । हाूं , सहायता िहुत तरह से कमि जाएर्ी, िेकिन वह किििुि दू सरी िात है ।
साधना में स्वाििांबी बनना सदा उपादे य:

इसकिए मेरा जोर जो है वह कनरूं तर आपिी पूरी सूं िल्प शक्तक्त पर है , ताकि िोई और जरा सी भी िाधा
आपिे किए न हो। और जि दू सरे से कमिे तो वह आपिी माूं र्ी हुई न हो, और न आपिी अपेक्षा हो, वह ऐसे ही
आ जाए जैसे हवा आती है और चिी जाए।

इस वजह से मैंने िहा कि नुिसान पहुूं चा। और कजतने कदन वे कजूंदा रहे , उतने कदन िहुत तििीि में
रहे ; क्ोूंकि जो वे िह रहे थे , उस िही हुई िात िी दू सरे िी आूं खोूं में तो झिि मािूम पड़ती थी, क्ोूंकि वह
चि
ूं र्या है , खु श हुआ है , िेकिन खु द उन्ें पता था कि यह मुझे नही ूं हो रहा है । अि यह िड़ी िकठनाई िी
िात है न कि मैं आपिो कमठाई िी खिर िे िर आऊूं और मुझे स्वाद भी न हो! िस एि दिे सपने में थोड़ा सा
कदखाई पड़ा हो, किर सपना टू ट र्या हो, और उसने िहा कि अि सपना ही नही ूं आएर्ा दु िारा तु म्हें। िस अि
तु म िोर्ोूं ति खिर िे जाओ।

तो कववे िानूं द िा अपना िष्ट है । िे किन वे सिि व्यक्तक्त थे , इस िष्ट िो उन्ोूंने झे िा। यह भी िरुणा
िा कहस्सा है । िेकिन इसकिए आपिो झे िना चाकहए, यह प्रयोजन नही ूं है ।

जििेकानांद को समाजध की मानजसक झिक:

प्रश्न : ओशो जििेकानांद को जो समाजध का अनभि हुआ था रामकृष्ण के सां पकओ मे िह प्रामाजणक
अनभि था समाजध का?

प्राथकमि िहो। प्रामाकणि तो उतना िड़ा सवाि नही ूं है —प्राथकमि, अत्यूंत प्राथकमि, कजसमें एि
झिि उपिि हो जाती है । और वह झिि, कनकश्चत ही, िहुत र्हरी नही ूं हो सिती और आक्तत्मि भी नही ूं हो
सिती; िहुत र्हरी नही ूं हो सिती। किििुि ही जहाूं हमारा मन समाप्त होता है और आत्मा शु रू होती है , उस
पररकध पर घटे र्ी वह घटना। साइकिि ही होर्ी र्हरे में , और इसकिए खो र्ई। और उसिो उससे र्हरा होने
नही ूं कदया र्या। उससे र्हरा हो जाए तो रामिृष्ण डरे हुए थे। उससे र्हरा हो जाए तो यह आदमी िाम िा न
रह जाए। और उनिो इतनी कचूंता थी िाम िी कि उन्ें यह खयाि ही नही ूं था कि यह िोई जरूरी नही ूं है कि
यह आदमी िाम िा न रह जाए! िुद्ध चािीस साि ति िोिते रहे हैं , जीसस िोिते रहे हैं , महावीर िोिते रहे
हैं , िोई इससे िकठनाई नही ूं आ जाती। मर्र रामिृ्ण िा भय स्वाभाकवि था, उनिो िकठनाई थी। तो कजसिो
जो िकठनाई होती है , वही उनिे खयाि में थी। इसकिए िहुत ही छोटी सी झिि उनिो कमिी। प्रामाकणि तो
है ; कजतने दू र ति जाती है उतने दू र ति प्रामाकणि है । िे किन प्राथकमि है , िहुत र्हरी नही ूं है । नही ूं तो ि टना
मुक्तिि हो जाए।

प्रश्न: ओशो समाजध का आां जशक अनभि भी हो सकता है ?


आूं कशि नही ूं है, प्राथकमि है। इन दोनोूं में ििग है। आूंकशि अनुभव नही ूं है यह। और समाकध िा
अनुभव आूं कशि हो ही नही ूं सिता। िेकिन समाकध िी मानकसि झिि हो सिती है । अनुभव तो आध्याक्तत्मि
होर्ा, झिि मानकसि हो सिती है । जैसे , मैं एि पहाड पर चढ़िर सार्र िो दे ख िूूं। कनकश्चत ही मैंने सार्र
दे खा, िेकिन सार्र िहुत िासिे पर है । मैं सार्र िे तट पर नही ूं पहुूं चा; मैंने सार्र िो छु आ भी नही,ूं मैंने सार्र
िा जि चखा भी नही;ूं मैं सार्र में उतरा भी नही;ूं मैं नहाया भी नही,ूं डूिा भी नही,ूं मैंने एि पहाड़ िी चोटी पर
से सार्र दे खा और वापस चोटी से खी ूंच किया र्या।

तो मेरे अनुभव िो सार्र िा आूं कशि अनुभव िहोर्े ?

नही,ूं आूं कशि भी नही ूं िह सिते , क्ोूंकि मैंने छु आ भी नही—


ूं जरा भी नही ूं छु आ, एि इूं च भी नही ूं
छु आ, एि िूूंद भी नही ूं छु ई, एि िूूंद चखी भी नही।ूं

िेकिन किर भी क्ा मेरे अनुभव िो अप्रामाकणि िहोर्े ?

नही,ूं दे खा तो है ! मेरे दे खने में तो िोई िमी नही ूं है , सार्र मैंने दे खा। सार्र होिर नही ूं दे खा, डूििर
नही ूं दे खा, दू र किसी पीि से , किसी दू र कशखर से कदखाई पड़ र्या!

तो तु म अपनी आत्मा िो िभी अपने शरीर िी ऊूंचाई पर खड़े होिर भी दे ख िेते हो। शरीर िी भी
ऊूंचाइयाूं हैं , शरीर िे भी पीि एक्सपीररएूं से स हैं । शरीर िी भी िोई अनु भुकत अर्र िहुत र्हरी हो तो तु म्हें
आत्मा िी झिि कमिती है । जैसे अर्र िहुत वे ि —िीइूं र् िा अनु भव हो शरीर में , तु म पररपूणग स्वस्थ हो, और
तु म्हारा शरीर स्वास्थ्य से ििािि भरा है , तो तु म शरीर िी एि ऐसी ऊूंचाई पर पहुूं चते हो जहाूं से तु म्हें आत्मा
िी झिि कदखाई पड़े र्ी। और ति तु म अनुभव िर पाओर्े कि नही ,ूं मैं शरीर नही ूं हूं मैं िुछ और भी हूं ।
िेकिन तु म आत्मा िो जान नही ूं किए। िेकिन शरीर िी एि ऊूंचाई पर चढ़ र्ए।

मन िी भी ऊूंचाइयाूं हैं । जैसे कि िोई िहुत र्हरे प्रेम में —से क्स में नही ूं, से क्स शरीर िी ही सूं भावना
है । और सेक्स भी अर्र िहुत र्हरा और पीि पर हो, तो वहाूं से भी तु म्हें आत्मा िी एि झिि कमि सिेर्ी।
िेकिन िहुत दू र िी झिि,किििुि दू सरे छोर से ।

िेकिन प्रेम िी अर्र िहुत र्हराई िा अनु भव हो तु म्हें, और किसी िो कजसे तु म प्रेम िरते हो उसिे
पास तु म क्षण भर िो चुप िैठे हो, सि सन्नाटा है , कसिग प्रेम रह र्या है तु म्हारे दोनोूं िे िीच डोिता हुआ, और
िुछ शब्द नही,ूं िोई भाषा नही,ूं िुछ िेन—दे न नही,ूं िुछ आिाूं क्षा नही,ूं कसिग प्रेम िी तरूं र्ें यहाूं से वहाूं पार
होने िर्ी हैं , तो उस प्रेम िे क्षण में भी तु म एि ऐसे कशखर पर चढ़ जाओर्े जहाूं से तु म्हें आत्मा िी झिि कमि
जाए। प्रेकमयोूं िो भी आत्मा िी झिि कमिी है ।

एि कचत्रिार एि कचत्र िना रहा है , और इतना डूि जाए उस कचत्र िो िनाने में कि एि क्षण में
परमात्मा हो जाए, स्रष्टा हो जाए। जि एि कचत्रिार कचत्र िो िनाता है तो वह उसी अनु भूकत िो पहुूं च जाता है कि
अर्र भर्वान ने िभी दु कनया िनाई होर्ी तो पहुूं चा होर्ा, उस क्षण में। तो उस पीि पर...... .िेकिन वह मन िी
है ऊूंचाई। उस जर्ह से वह एि क्षण िो स्रष्टा है ,कक्रएटर है ; एि झिि कमिती है उसिो आत्मा िी। इसकिए
िई िार वह उसे समझ िेता है कि पयाग प्त हो र्ई। वह भूि हो जाती है ।
सूं र्ीत में कमि सिती है िभी, िाव्य में कमि सिती है िभी, प्रिृकत िे स द
ूं यग में कमि सिती है
िभी, और िहुत जर्ह से कमि सिती है , िेकिन हैं सि दू र िी चोकटयाूं । समाकध में डूििर कमिती है । िाहर से
तो िहुत कशखर हैं कजन पर चढ़िर तु म झाूं ि िे सिते हो।

तो यह जो अनुभुकत है कववेिानूंद िी, यह भी मन िे ही ति िी है ; क्ोूंकि मैंने तु मसे िहा कि दू सरा


तु म्हारे मन ति आूं दोिन िर सिता है । तो एि पीि पर चढ़ा कदया है !

समाजध की मानजसक झिक भी बहुत महत्वपू णओ:

यानी ऐसा समझो कि एि छोटा िच्चा है , मैंने उसे िूंधे पर किठा किया, और उसने दे खा, और मैंने उसे
िूंधे से नीचे उतार कदया। क्ोूंकि मेरा शरीर उसिा शरीर नही ूं हो सिता। उसिे पैर तो कजतने िड़े हैं उतने ही
िड़े हैं । अपने पैर से तो जि वह खु द िड़ा होर्ा, ति दे खेर्ा। िे किन मैंने िूंधे पर किठािर उसिो िुछ कदखा
कदया। वह िह सिता है जािर कि मैंने दे खा। किर भी शायद िोर् उसिा भरोसा भी न िरें । वे िहें , तू ने दे खा
िैसे होर्ा? क्ोूंकि ते री तो ऊूंचाई नही ूं है इतनी कि तू दे ख सिे! िेकिन किसी िे िूंधे पर क्षण भर िैठिर दे खा
जा सिता है ।

पर वह है सूं भावना सि मन िी, इसकिए वह आध्याक्तत्मि नही ूं है । इसकिए अप्रामाकणि नही ूं िहता हूं
िेकिन प्राथकमि िहता हूं । और प्राथकमि अनु भूकत शरीर पर भी हो सिती है , मन पर भी हो सिती है ।
आूं कशि नही ूं है वह, है तो पूरी, पर मन िी पूरी अनुभुकत है वह। आत्मा िी पूरी अनु भूकत नही ूं है । आत्मा िी पूरी
होर्ी तो वहाूं से ि टना नही ूं है , वहाूं से िोई चािी नही ूं रख सिता तु म्हारी। और वहाूं से िोई यह नही ूं िह
सिता कि जि हम चािी ि टाएूं र्े ति होर्ा। वहाूं से किर िोई वश नही ूं है । इसकिए वहाूं अर्र किसी िो िाम
िेना हो तो उसिे पहिे ही उसे रोि िे ना पड़ता है । उसे उस ति नही ूं जाने दे ना पड़ता है ,नही ूं तो किर
िकठनाई हो जाएर्ी।

है तो प्रामाकणि, िेकिन प्रामाकणिता जो है वह साइकिि है , क्तिचुअि नही ूं है । वह भी छोटी घटना


नही ूं है , क्ोूंकि सभी िो वह नही ूं हो सिती, उसिे किए भी मन िा िड़ा प्रिि होना जरूरी है । वह भी सििो
नही ूं हो सिती।

प्रश्न: ओशो जििेकानांद का शोषण जकया उन्ोांने ोसा कहा जा सकता है ?

िहने में िोई िकठनाई नही ूं है । िेकिन शब्द जो है वह िहुत ज्यादा, कजसिो िहें कसिग शब्द सू चि
नही ूं है वह, उसमें कनूंदा भी है । इसकिए नही ूं िहना चाकहए। शोषण शब्द में कनूंदा है , र्हरे में उसमें िडे मनेशन
है । शोषण नही ूं किया; क्ोूंकि रामिृ्ण िो िुछ भी नही ूं िेना—दे ना है कववेिानूंद से । िे किन कववेिानूंद िे
द्वारा किसी िो िुछ कमि सिेर्ा, यह खयाि है । इस अथग में शोषण किया कि उपयोर् तो किया, उपयोर् तो
किया ही। िेकिन उपयोर् और शोषण में िहुत ििग है । और शोषण शब्द, जहाूं मैं अहूं िेंकद्रत, अपने अहूं िार िे
किए िुछ खी ूंच रहा हूं और उपयोर् िर रहा हूं वहाूं तो शोषण हो जाता है ; िेकिन जहाूं मैं जर्त, कवश्व, सििे
किए िुछ िर रहा हूं वहाूं शोषण िा िोई िारण नही ूं है ।

और किर यह भी तो खयाि में नही ूं है तु म्हें कि अर्र रामिृष्ण वह झिि न कदखाते तो कववेिानूंद िो
वह भी हो जाती,यह भी थोड़े ही पक्का है । इसी जन्म में हो जाती, यह भी थोड़े ही पक्का है । और इस िात िो जो
जानते हैं , वे तय िर सिते हैं । जैसे , हो सिता है — जैसी मेरी समझ है , यही है ! िेकिन अि इसिे किए िोई
प्रमाण नही ूं जुटाए जा सिते हैं । रामिृष्ण िा यह िहना कि मृत्यु िे तीन कदन पहिे तु झे चािी वापस ि टा
दू ूं र्ा, िुि इसिा िारण इतना भी हो सिता है कि रामिृष्ण िी समझ में कववेिानूंद अपने ही आप प्रयास
िरते तो मरने िे तीन कदन पहिे समाकध िो उपिि हो सिते थे। रामिृष्ण िा ऐसा खयाि है कि अर्र यह
आदमी अपने आप ही चिता है तो मरने िे तीन कदन पहिे इस जर्ह पहुूं च जाता। तो उस कदन चािी ि टा दें र्े।
वे भी चािी िैसे ि टाएूं र्े , क्ोूंकि रामिृष्ण तो मर र्ए! रामिृ्ण तो मर र्ए, चािी ि टानेवािा भी मर
र्या, िेकिन चािी ि ट र्ई तीन कदन पहिे। तो इसिी िहुत सूं भावना है । क्ोूंकि तु म्हारे व्यक्तक्तत्व िो कजतना
तु म नही ूं जानते , उतना जो कजतनी र्हराइयोूं में र्या है उतनी र्हराइयोूं में तु म्हें जान सिता है ; और यह भी जान
सिता है कि तु म अर्र अपने ही मार्ग से चिते रहो...।

स्वभावत:, अर्र मैं एि यात्रा पर र्या और एि पहाड़ चढ़ र्या। पहाड़ िा रास्ता मुझे मािूम
है , सीकढ़याूं मुझे मािूम हैं ,समय कितना िर्ता है वह मुझे मािूम है , िकठनाइयाूं कितनी हैं वे मुझे मािूम हैं । मैं
तु म्हें पहाड़ चढ़ते दे ख रहा हूं ; मैं जानता हूं कि तीन महीने िर् जाएूं र्े ; समझ रहे हो न? मैं जानता हूं कि तु म कजस
रफ्तार से चि रहे हो, कजस ढूं र् से चि रहे हो,कजस ढूं र् से भटि रहे हो, डोि रहे हो, उसमें इतना समय िर्
जाएर्ा। तो िहुत र्हरे में तो इतना भी शोषण नही ूं है । पर मैं ने तु म्हें वही ूं िीच में आिर, ऊपर उठािर, पहाड़
िे ऊपर जो है उसिी झिि कदखा दी है और तु म्हें उसी जर्ह छोड़ कदया और िहा कि तीन महीने िाद रास्ता
कमि जाएर्ा; अभी तीन महीने ति रास्ता नही ूं कमिे र्ा।

तो इतना, भीतर इतना सू क्ष्म है िहुत सा और इतना िाूं प्लेक्स है कि तु म्हें एिदम से ऊपर से नही ूं
कदखाई पड़ता, खयाि में नही ूं आता। अि जैसे अभी िि कनमग ि र्ई वहाूं वापस, तो उसिो किसी ने िहा हुआ
है कि त्रे पन वषग िी उम्र में मर जाएर्ी;तो मैंने उसिी र्ारूं टी िे िी कि त्रे पन वषग में नही ूं मरे र्ी। अि यह र्ारूं टी
पूरी मैं नही ूं िरू
ूं र्ा, पर यह र्ारूं टी पूरी हो जाएर्ी। िेकिन अर्र वह िच र्ई त्रे पन वषग िे िाद, तो वह िहे र्ी
कि मैंने र्ारूं टी पूरी िी।

कववेिानूंद िहें र्े कि चािी तीन कदन पहिे ि टा दी। िािी किसिो चािी ि टानी है !

प्रश्न: ओशो ोसा भी हो सकता है जक रामकृष्ण जानते रहे होां जक जििेकानांद को साधना की िां बी
यात्रा जबना सििता के करनी है जजसमें उन्ें बहुत दख भी होगा। इसजिए उन्ोांने दख दू र करने के जिए
पहिे ही जििेकानांद को समाजध की एक झिक बता दी?

' ऐसा भी हो सिता है', ऐसा िरिे िभी सोचना ही मत, क्ोूंकि इसिा िोई अूंत नही ूं है। ' ऐसा भी
हो सिता है ',ऐसा िरिे सोचने िा िोई मतिि नही ूं होता। इसकिए मतिि नही ूं होता कि किर तु म िुछ भी
सोचती रहोर्ी, और उसिा िोई अथग नही ूं है । इसकिए ऐसा िभी मत सोचना कि ऐसा भी हो सिता है , ऐसा भी
हो सिता है , ऐसा भी हो सिता है । कजतना हो सिता है पता हो, उतना ही सोचना। ऐज इि िरिे नही ूं सोचा
चाकहए। जहाूं ति िने नही ूं सोचना चाकहए। उससे िोई मतिि नही ूं है , क्ोूंकि वे किििुि ही अथगहीन रास्ते
हैं , कजन पर हम िुछ भी सोचते रहें , उससे िुछ होर्ा नही ूं। और उससे एि नुिसान होर्ा। वह नुिसान यह
होर्ा कि ' जैसा है ', उसिा पता चिने में िहुत दे र िर् जाएर्ी।
इसकिए हमेशा इसिी किक्र िरना कि िैसा है ? और जैसा है , उसिो जानना हो, तो ऐसा हो सिता
है , ऐसा हो सिता है ,ऐसा हो सिता है , यह अपने मन से िाट डािना किििुि। इनिो जर्ह ही मत दे ना। न
मािूम हो तो समझना कि मुझे मािूम नही ूं कि िैसा है । िेकिन यह अज्ञान िी जो क्तस्थकत है कि मुझे मािूम नही ूं
है , इसे इस ज्ञान से मत ढाूं ि िे ना कि ऐसा भी हो सिता है । क्ोूंकि हम ऐसे ढाूं िे हुए हैं िहुत सी िातें । हम सि
िोर् इस तरह सोचते रहते हैं । इससे िची तो कहतिर है ।

अब कि बात करें गे ।

प्रिचन 12 - सतत साधना : न कही ां रुकना, न कही ां बांधना

छठिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ :

प्रश्न: ओशो आपने जपछिी एक चचाओ में कहा जक सीधे अचानक प्रसाद के उपिि होने पर
कभी— कभी दघओटना भी घजटत हो सकती है और व्यब्धि क्षजतग्रस्त तथा पागि भी हो सकता है या
उसकी मृत्य भी हो सकती है । तो सहज ही प्रश्न उठता है जक क्ा प्रसाद हमेशा ही कल्याणकारी नही ां
होता है ? और क्ा िह स्व— सां तिन नही ां रखता है ? दघओटना का यह भी अथओ होता है जक व्यब्धि अपात्र
था। तो अपात्र पर कृपा कैसे हो सकती है ?

दो—तीन िातें समझ िेनी जरूरी हैं। एि तो प्रभु िोई व्यक्तक्त नही ूं है , शक्तक्त है। और शक्तक्त िा
अथग हुआ कि एि—एि व्यक्तक्त िा कवचार िरिे िोई घटना वहाूं से नही ूं घटती है । जैसे नदी िह रही है ।
किनारे जो दरख्त होूंर्े, उनिी जड़ें मजिूत हो जाएूं र्ी; उनमें िूि िर्ेंर्े, िि आएूं र्े। नदी िी धार में जो पड़
जाएूं र्े , उनिी जड़ें उखड़ जाएूं र्ी, िह जाएूं र्े , टू ट जाएूं र्े। नदी िो न तो प्रयोजन है कि किसी वृक्ष िी जड़ें
मजिूत होूं, और न प्रयोजन है कि िोई वृक्ष उखाड़ दे । नदी िह रही है । नदी एि शक्तक्त है , नदी एि व्यक्तक्त नही ूं
है ।

परमात्मा कोई व्यब्धि नही ां, शब्धि है :


िेकिन कनरूं तर यह भूि हुई है कि हमने परमात्मा िो एि व्यक्तक्त समझ रखा है । इसकिए हम सोचते
हैं , जैसे हम व्यक्तक्त िे सूं िूंध में सोचते हैं । हम िहते हैं , वह िड़ा दयािु है , हम िहते हैं , वह िड़ा िृपािु है ; हम
िहते हैं , वह सदा िल्याण ही िरता है । ये हमारी आिाूं क्षाएूं हैं जो हम उस पर थोप रहे हैं ।

व्यक्तक्त पर तो ये आिाूं क्षाएूं थोपी जा सिती हैं ; और अर्र वह इनिो पूरा न िरे तो उसिो उिरदायी
ठहराया जा सिता है । शक्तक्त पर ये आिाूं क्षाएूं नही ूं थोपी जा सिती ूं। और शक्तक्त िे साथ जि भी हम व्यक्तक्त
मानिर व्यवहार िरते हैं ति हम िड़े नु िसान में पड़ते हैं ; क्ोूंकि हम िड़े सपनोूं में खो जाते हैं । शक्तक्त िे साथ
शक्तक्त मानिर व्यवहार िरें र्े तो िहुत दू सरे पररणाम होूंर्े।

जैसे कि जमीन में ग्रे कवटे शन है , िकशश है , र्ुरुत्वािषगण है । आप जमीन पर चिते हैं तो उसी िी वजह
से चिते हैं । िे किन वह इसकिए नही ूं है कि आप चि सिें। आप न चिेंर्े तो र्ु रुत्वािषगण नही ूं रहे र्ा, इस भू ि
में मत पड़ जाना। आप नही ूं थे जमीन पर, तो भी था, एि कदन हम नही ूं भी होूंर्े, तो भी होर्ा। और अर्र आप
र्ित ढूं र् से चिेंर्े, तो कर्र पड़ें र्े, टाूं र् भी टू ट जाएर्ी; वह भी र्ुरुत्वािषगण िे िारण ही होर्ा। िेकिन आप
किसी अदाित में मुिदमा न चिा सिेंर्े , क्ोूंकि वहाूं िोई व्यक्तक्त नही ूं है । र्ुरुत्वािषगण एि शक्तक्त िी धारा
है । अर्र उसिे साथ व्यवहार िरना है तो आपिो सोच—समझिर िरना होर्ा। वह आपिे साथ सोच—
समझिर व्यवहार नही ूं िर रही है ।

परमात्मा िी शक्तक्त आपिे साथ सोच—समझिर व्यवहार नही ूं िरती है । परमात्मा िी शक्तक्त िहना
ठीि नही ूं है ,परमात्मा शक्तक्त ही है । वह आपिे साथ सोच—समझिर व्यवहार नही ूं है उसिा, उसिा अपना
शाश्वत कनयम है । उस शाश्वत कनयम िा नाम ही धमग है । धमग िा अथग है , उस परमात्मा नाम िी शक्तक्त िे व्यवहार
िा कनयम। अर्र आप उसिे अनुिूि िरते हैं , समझपूवगि िरते हैं , कववेिपू वगि िरते हैं , तो वह शक्तक्त आपिे
किए िृपा िन जाएर्ी— उसिी तरि से नही,ूं आपिे ही िारण। अर्र आप उिटा िरते हैं , कनयम िे प्रकतिूि
िरते हैं , तो वह शक्तक्त आपिे किए अिृपा िन जाएर्ी। परमात्मा अिृपा नही ूं है , आपिे ही िारण।

तो परमात्मा िो व्यक्तक्त मानेंर्े तो भूि होर्ी। परमात्मा व्यक्तक्त नही ूं है , शक्तक्त है । और इसकिए परमात्मा
िे साथ न प्राथगना िा िोई अथग है , न पूजा िा िोई अथग है ; परमात्मा िे साथ अपेक्षाओूं िा िोई भी अथग नही ूं
है । यकद चाहते हैं कि परमात्मा, वह शक्तक्त आपिे किए िृपा िन जाए, तो आपिो जो भी िरना है वह अपने
साथ िरना है । इसकिए साधना िा अथग है , प्राथगना िा िोई अथग नही ूं है । ध्यान िा अथग है , पूजा िा िोई अथग
नही ूं है ।

इस ििग िो ठीि से समझ िें।

प्राथगना में आप परमात्मा िे साथ िुछ िर रहे हैं — अपेक्षा, आग्रह, कनवेदन, माूं र्, ध्यान में आप अपने
साथ िुछ िर रहे हैं । पू जा में आप परमात्मा से िुछ िर रहे हैं ; साधना में आप अपने से िुछ िर रहे हैं ।
साधना िा अथग है , अपने िो ऐसा िना िेना कि धमग िे प्रकतिूि आप न रह जाएूं ; और जि नदी िी धारा िहे तो
आप िीच में न पड़ जाएूं —तट पर होूं कि नदी िी धारा िा पानी आपिी जड़ोूं िो मजिूत िर जाए, उखाड़ न
जाए। जैसे ही हम परमात्मा िो शक्तक्त िे रूप में समझेंर्े, हमारे धमग िी पूरी व्यवस्था िदि जाती है ।

तो जो मैंने िहा कि यकद आिक्तस्भि घटना घट जाए, तो दु घगटना िन सिती है ।

प्रसाद से दघओटना भी हो सकती है :


दू सरी िात पूछी है कि क्ा अपात्र िो भी वह घटना घट सिती है ?

न, अपात्र िो िभी नही ूं घटती, घटती तो है पात्र िो ही, िेकिन अपात्र िभी आिक्तस्भि रूप से पात्र
िन जाता है ,कजसिा उसे खु द भी पता नही ूं चिता। घटना तो सदा ही पात्र िो घटती है । जैसे प्रिाश आूं ख िो
ही कदखाई पड़ता है , आूं खवािे िो ही कदखाई पड़ता है , अूंधे िो नही ूं कदखाई पड़ता; न कदखाई पड़ सिता है ।
िेकिन अर्र अूंधे िी आूं ख िा इिाज किया र्या हो, और वह आज ही अस्पताि से िाहर कनिििर सू रज िो
दे ख िे, तो दु घगटना घट जाएर्ी। उसे महीने , दो महीने हरा चश्मा िर्ािर प्रतीक्षा िरनी चाकहए। अपात्र एिदम
से पात्र िन जाए तो दु घगटना ही घटे र्ी, इसमें सू रज िसू रवार नही ूं होर्ा। उसिो दो महीने आूं खोूं िो सू यग िे
प्रिाश िे झेिने िी क्षमता भी कविकसत िरने दे नी चाकहए। नही ूं तो वह पहिे कजतना अूंधा था उससे भी ज्यादा
खतरनाि अूंधा हो जाएर्ा; क्ोूंकि पहिे वािे अूं धेपन िा इिाज भी हो सिता था, अि इिाज भी मुक्तिि
होर्ा;क्ोूंकि यह दु िारा अूंधा हुआ है वह।

तो इसिो ठीि से समझ िे ना : पात्र िो ही अनु भूकत आती है , िेकिन अपात्र िभी शीघ्रता से पात्र िन
सिता है ; िभी ऐसे िारणोूं से पात्र िन सिता है कजसिा उसे पता भी न चिे। और ति.. .ति दु घगटना िे सदा
डर हैं ; क्ोूंकि शक्तक्त अनायास उतर आए तो आप झेिने िी क्तस्थकत में नही ूं होते ।

ऐसा समझ िें , एि आदमी िो अनायास िुछ भी कमि जाए— धन कमि जाए। तो धन िे कमिने से
दु घगटना नही ूं होनी चाकहए, िेकिन अनायास कमिने से दु घगटना हो जाएर्ी। अनायास िहुत िड़ा सु ख भी कमि जाए
तो भी दु घगटना हो जाएर्ी; क्ोूंकि उस सु ख िो भी झेिने िे किए क्षमता चाकहए। सु ख भी धीरे — धीरे ही कमिे तो
हम तै यार हो पाते हैं ; आनूंद भी धीरे — धीरे ही कमिे तो हम तै यार हो पाते हैं । क्ोूंकि तै यारी िहुत सी िातोूं पर
कनभगर है ; और हमारे भीतर झेिने िी क्षमता भी िहुत सी िातोूं पर कनभगर है । हमारे मक्तस्तष्क िे स्नायु, हमारे
शरीर िी क्षमता, हमारे मन िी क्षमता, सि िी सीमा है । और कजस शक्तक्त िी हम िात िर रहे हैं , वह असीम
है । वह ऐसा ही है , जैसे िूूंद िे ऊपर सार्र कर्र जाए। तो िूूंद िे पास िुछ पात्रता चाकहए सार्र िो पी जाने
िी, नही ूं तो अनायास तो कसिग िूूंद मरे र्ी ही, कमटे र्ी ही, पा नही ूं सिेर्ी िुछ।

इसकिए, अर्र इसे ठीि से समझें तो साधना में दोहरा िाम है . उस शक्तक्त िे मार्ग पर अपने िो िाना
है , उसिे अनुिूि िाना है , और अनुिूि िाने िे पहिे अपने िो सहने िी क्षमता भी िढ़ानी है । ये दोहरे िाम
साधना िे हैं । एि तरि से द्वार खोिना है , आूं ख ठीि िरनी है ; और दू सरी तरि से आूं ख ठीि हो जाए, तो भी
प्रतीक्षा िरनी है और आूं ख िो भी इस योग्य िनाना है कि वह प्रिाश िो दे ख सिे। अन्यथा िहुत प्रिाश अूंधेरे
से भी ज्यादा अूंधेरा कसद्ध होता है । इसमें प्रिाश िा िोई भी िसू र नही ूं है , इसमें प्रिाश िा िोई िेना—दे ना
नही ूं है , यह किििुि एितरिा मामिा है ; यह हमारे ऊपर ही कनभगर है । इसमें हम कजिेवारी िभी दू सरे पर न
दे पाएूं र्े।

अि जैसे, आदमी िी तो जन्मोूं—जन्मोूं िी यात्रा है । उस जन्मोूं—जन्मोूं िी यात्रा में उसने िहुत िुछ
किया है । और िई िार ऐसा होता है कि वह किििुि पात्र होने िे इूं च भर पहिे छूट र्या। वे कपछिे जन्मोूं िी
सारी स्भृकतयाूं उसिी खो र्ईूं; उसे िुछ पता नही ूं है । यकद आप कपछिे जन्म में किसी साधना में िर्े थे और
कनन्यानिे कडग्री ति पहुूं च र्ए थे , स वी ूं कडग्री ति नही ूं पहुूं चे थे , अि वह साधना भूि र्ई, वह जीवन भू ि
र्या, वह सारी िात भूि र्ई, िेकिन कनन्यानिे कडग्री ति िी जो आपिी क्तस्थकत थी, वह आपिे साथ है । एि
दू सरा आदमी आपिे पास में िैठा हुआ है , वह एि ही कडग्री पर रुि र्या है ; उसिो भी िोई पता नही ूं है । आप
दोनोूं एि ही कदन ध्यान िरने िैठे हैं , तो भी आप दोनोूं अिर्—अिर् तरह िे आदमी हैं । उसिी एि कडग्री
िढ़े र्ी तो अभी िोई घटना घटनेवािी नही ूं है , वह दो ही कडग्री पर पहुूं चेर्ा। आपिी एि कडग्री िढ़े र्ी तो घटना
घट जानेवािी है । यह आिक्तस्भि ही होर्ी आपिे किए घटना, क्ोूंकि आपिो िोई अूंदाज भी नही ूं है कि
कनन्यानिे कडग्री पर आप थे। आप िहाूं हैं , इसिा अूंदाज नही ूं है । और इसकिए एिदम से पहाड़ टू ट पड़ सिता
है । उसिी तै यारी चाकहए।

और जि मैं िहता हूं दु घगटना, तो मेरा मतिि इतना ही है कि कजसिी हमारे किए तै यारी नही ूं थी।
अकनवायग रूप से दु घगटना िा मतिि दु ख नही ूं होता; दु घगटना िा इतना ही मतिि होता है कि कजसिे घटने िे
किए हम अभी तै यार न थे। दु घगटना िा मतिि अकनवायग रूप से िुरा नही ूं होता। अि एि आदमी िो एि िाख
रुपये िी िाटरी कमि र्ई हो, तो िुछ िुरा नही ूं हो र्या है , िेकिन मृत्यु घकटत हो जाएर्ी; वह मर सिता है । एि
िाख! ये उसिे हृदय िी र्कत िो िूंद िर जा सिते हैं । दु घगटना िा मतिि इतना है कि कजस घटना िे किए
हम अभी तै यार न थे।

और इससे उिटा भी हो सिता है कि अर्र िोई आदमी तै यार हो और उसिी मृत्यु आ जाए, तो
जरूरी नही ूं है कि मृत्यु दु घगटना ही हो। अर्र िोई आदमी तै यार हो, सु िरात जैसी हाित में हो, तो वह मृत्यु िो
भी आकिूंर्न िरिे स्वार्त िर िेर्ा,और उसिे किए मृत्यु तत्काि समाकध िन जाएर्ी, दु घगटना नही;ूं क्ोूंकि
उस मरते क्षण िो वह इतने प्रेम और आनूं द से स्वीिार िरे र्ा कि वह उस तत्व िो भी दे ख िेर्ा जो नही ूं मरता
है ।

हम तो मरने िो इतनी घिड़ाहट से स्वीिार िरते हैं कि मरने िे पहिे िेहोश हो जाते हैं ; मरने िी प्रकक्रया हम
होशपूवगि नही ूं अनुभव िर पाते , मरने िे पहिे िेहोश हो जाते हैं । इसकिए हम िहुत िार मरे हैं , िेकिन मरने
िी प्रकक्रया िा हमें िोई पता नही ूं। एि िार भी हमें पता चि जाए कि मरना क्ा है , तो किर हमें िभी भी यह
खयाि नही ूं उठे र्ा कि मैं और मर सिता हूं ; क्ोूंकि म त िी घटना घट जाएर्ी और आप पार खड़े रह जाएूं र्े।
िेकिन यह होश में होना चाकहए।

तो मृत्यु भी किसी िे किए स भाग्य हो सिती है ; और प्रसाद, ग्रेस भी किसी िे किए दु भाग ग्य हो सिती
है । इसकिए साधना दोहरी है पुिारना है , िुिाना है , खोजना है , जाना है ; और साथ—साथ तै यार भी होते चिना है
कि जि आ जाए द्वार पर प्रिाश, तो ऐसा न हो कि प्रिाश भी हमें अूंधेरा ही कसद्ध हो, और अूंधा िर जाए। इसमें
एि िात अर्र खयाि रखें र्े जो मैंने पहिे िही, तो अड़चन न होर्ी। अर्र परमात्मा िो व्यक्तक्त मान िेंर्े तो
किर िहुत अड़चन हो जाती है , अर्र शक्तक्त मानेंर्े ति िोई अड़चन नही ूं।

व्यक्तक्त मानिर िहुत िकठनाई हो र्ई। और हमारे मन िी इच्छा ऐसी होती है कि व्यक्तक्त हो; क्ोूंकि
व्यक्तक्त िनािर हम उसिो ररस्पाकसिि िना दे ते हैं ; तो कजिेवारी अपनी पूरी नही ूं रह जाती, उसिी भी िुछ हो
जाती है ।

और हम तो छोटी—छोटी चीजोूं िे किए उसिी उिरदायी िनाते हैं , िड़ी चीजोूं िी तो िात अिर् है ।
एि आदमी िो न िरी कमि जाए तो परमात्मा िो धन्यवाद दे ता है , न िरी छूट जाए तो परमात्मा पर नाराज
होता है ; किसी िो िोड़ा—िुसी हो जाए तो परमात्मा िो िहता है उसने िर कदया; किसी िा िोड़ा—िुसी
ठीि हो जाए तो वह िहता है , भर्वान िी िृपा से ठीि हो र्या। िेकिन हम िभी खयाि नही ूं िरते कि हम
िैसे िाम भर्वान से िे रहे हैं ! और िभी यह खयाि नही ूं िरते कि िड़ी ईर्ोसें कटर ि धारणा है यह कि मे रे
िोड़े —िुसी िी कििर भी भर्वान िर रहा है ! कि हमारा एि रुपया कर्र र्या और सड़ि पर ि टिर कमि
र्या तो हम िहते हैं , भर्वान िी िृपा से !

मेरे एि रुपये िा भी कहसाि—किताि जो है वह भर्वान रख रहा है , यह सोचिर भी मन िो िड़ी


तृ क्तप्त कमिती है ,क्ोूंकि मैं ति इस सारे जर्त िे िेंद्र पर खड़ा हो र्या। और परमात्मा से भी जो मैं व्यवहार िर
रहा हूं वह एि न िर िा व्यवहार है । उससे भी हम एि पुकिसवािे िा उपयोर् िे रहे है —कि वह तै यार खड़ा
है , हमारे रुपये िो िचा रहा है ।
व्यक्तक्त िनाने से यह सु कवधा है कि कजिेवारी उस पर टाि सिते हैं । िेकिन साधि कजिेवारी अपने
ऊपर िेता है । असि में , साधि होने िा एि ही अथग है कि अि इस जर्त में वह किसी िात िे किए किसी और
िो कजिेवार ठहराने नही ूं जाएर्ा। अि दु ख है तो अपना है , सु ख है तो अपना है , शाूं कत है तो अपनी है , अशाूं कत है
तो अपनी है —िोई उिरदायी नही,ूं िोई ररस्पाकसिि नही,ूं मैं ही उिरदायी हूं । अर्र टाूं र् टू ट जाती है
कर्रिर, तो ग्रेकवटे शन कजिे वार नही,ूं मैं ही कजिे वार हूं । ऐसी मनोदशा हो तो किर िात समझ में आ जाएर्ी।
और ति, ति दु घगटना िा अथग और होर्ा। और इसकिए मैंने िहा कि प्रसाद भी तै यार व्यक्तक्तत्व िो उपिि
होता है , तो िल्याणिारी, मूंर्िदायी हो जाता है । असि में , हर चीज िी एि घड़ी है , हर चीज िा एि ठीि
क्षण है , और ठीि क्षण और ठीि घड़ी िो चूि जाना िड़ी दु घगटना है । इस खयाि से ।

गरु और जशष्य का गित सां बांध:

प्रश्न: ओशो आपने जपछिी एक चचाओ में कहा जक शब्धिपात का प्रभाि धीरे — धीरे कम हो जाता
है इसजिए माध्यम से बार— बार सां बांध होना चाजहए तो यह क्ा गरुरूपी जकसी व्यब्धि पर पराििांबन
नही ां हुआ?

यह हो सिता है पराविूंिन। अर्र िोई र्ुरु िनने िो उत्सुि हो, िोई िनाने िो उत्सुि हो, तो यह
पराविूंिन हो जाएर्ा। इसकिए भू ििर भी कशष्य मत िनना और भूििर भी र्ुरु मत िनना, यह पराविूंिन हो
जाएर्ा। िे किन, यकद कशष्य और र्ुरु िनने िा िोई सवाि नही ूं है , ति िोई पराविूं िन नही ूं है ; ति कजससे आप
सहायता िे रहे हैं , वह अपना ही आर्े र्या रूप है । अपना ही आर्े र्या रूप है —ि न िने र्ु रु, ि न िने
कशष्य?

मैं कनरूं तर िहता रहा हूं कि िुद्ध ने अपने कपछिे जन्मोूं िे स्भरण में एि िात िही है । िहा है कि मैं
ति अज्ञानी था और एि िु द्ध पुरुष परमात्मा िो उपिि हो र्ए थे, तो मैं उनिे दशग न िरने र्या था। िुद्ध
कपछिे जन्म में , जि वे िु द्ध नही ूं हुए थे , किसी िु द्ध पुरुष िे दशग न िरने र्ए थे। झुििर उन्ोूंने प्रणाम किया
था, और वे प्रणाम िरिे खड़े भी नही ूं हो पाए थे कि िहुत मुक्तिि में पड़ र्ए, क्ोूंकि वह िुद्ध पुरुष उनिे
चरणोूं में झुिे और उन्ें प्रणाम किया। तो उन्ोूंने िहा, आप यह क्ा िर रहे हैं ? मैं आपिे पैर छु ऊूं, यह ठीि।
आप मेरे पैर छूते हैं! तो उन्ोूंने िहा था कि तू मेरे पैर छु ए और मैं ते रे पैर न छु ऊूं तो िड़ी र्िती हो
जाएर्ी; र्िती इसकिए हो जाएर्ी कि मैं ते रा ही दो िदम आर्े र्या एि रूप हूं । और जि मैं ते रे पैर में झुि
रहा हूं तो तु झे याद कदिा रहा हूं कि तू मेरे पैरोूं पर झुिा, वह ठीि किया, िेकिन इस भू ि में मत पड़ जाना कि
तू अिर् और मैं अिर्, और इस भू ि में मत पड़ जाना कि तू अज्ञानी और मैं जानी। घड़ी भर िी िात है कि तू
भी शानी हो जाएर्ा। यानी ऐसे ही कि जि मेरा दायाूं पैर आर्े जाता है तो िायाूं पीछे छूट जाता है । असि
में, दायाूं आर्े जाए, इसिे किए भी िाएूं िो पीछे थोड़ी दे र छूटना पड़ता है ।

र्ुरु और कशष्य िा सूं िूंध घाति है । र्ुरु और कशष्य िा असूं िूंकधत रूप िड़ा साथगि है । असूं िूंकधत रूप
िा मतिि ही यह होता है कि जहाूं अि दो नही ूं हैं । जहाूं दो हैं , वही ूं सूं िूंध हो सिता है । तो यह तो समझ में भी
आ सिता है कि कशष्य िो यह खयाि हो कि र्ुरु है , क्ोूंकि कशष्य अज्ञानी है , िेकिन जि र्ुरु िो भी यह खयाि
होता है कि र्ुरु है , ति किर हद हो जाती है ;ति उसिा मतिि हुआ कि अूंधा अूं धे िो मार्गदशग न िर रहा है !
और इसमें आर्े जानेवािा अूंधा ही ज्यादा खतरनाि है । क्ोूंकि वह एि दू सरे अूंधे िो यह भरोसा कदिवा रहा
है कि िे कििर रहो।

र्ुरु और कशष्य िे सूं िूंध िा िोई आध्याक्तत्मि अथग नही ूं है । असि में , इस जर्त में हमारे सारे सूं िूंध
शक्तक्त िे सूं िूंध हैं ,पावर पाकिकटक्स िे सूं िूंध हैं । िोई िाप है , िोई िेटा है । िाप और िेटा, अर्र प्रे म िा सूं िूंध
हो तो िात और होर्ी। ति िाप िो िाप होने िा पता नही ूं होर्ा, िेटे िो िेटे होने िा पता नही ूं होर्ा। ति िेटा
िाप िा ही िाद में आया हुआ रूप होर्ा, और िाप िेटे िा पहिे आ र्या रूप होर्ा। स्वभावत: िात भी यही है ।

एि िीज हमने िोया है और वृक्ष आया, और किर उस वृक्ष में हजार िीज िर् र्ए। वह पहिा िीज और
इन िीजोूं िे िीच क्ा सूं िूंध है ? वे पहिे आ र्ए थे , ये पीछे आए हैं , उसी िी यात्रा हैं —उसी िीज िी यात्रा है जो
वृक्ष िे नीचे टू टिर किखर र्या है । िाप पहिी िड़ी थी, यह दू सरी िड़ी है उसी श्रृूं खिा में।

िेकिन ति श्रृूं खिा है और दो व्यक्तक्त नही ूं हैं । ति अर्र िेटा अपने िाप िे पैर दिा रहा है तो कसिग
िीती हुई िड़ी िो—स्वभावत िीती हुई िड़ी िो वह सिान दे रहा है , िीती हुई िड़ी िी से वा िर रहा है , जो
जा रहा है उसिो वह आदर दे रहा है । क्ोूंकि उसिे किना वह आ भी नही ूं सिता था; वह उससे आया है । और
अर्र िाप अपने िेटे िो िड़ा िर रहा है , पाि रहा है ,पोस रहा है , भोजन—िपड़े िी कचूंता िर रहा है , तो यह
किसी दू सरे िी कचूंता नही ूं है , वह अपने ही एि रूप िो सम्हाि रहा है । और अपने जाने िे पहिे उसे .. अर्र
इसे हम ऐसा िहें कि िाप अपने िेटे में किर से जवान हो रहा है , तो िकठनाई नही ूं है । ति सूं िूंध िी िात नही ूं
है , ति एि और िात है । ति एि प्रेम है जहाूं सूं िूंध नही ूं है ।

िेकिन आमत र से जो िाप और िेटे िे िीच सूं िूंध है , वह राजनीकत िा सूं िूंध है । िाप ताितवर है , िेटा
िमजोर है ; िाप िेटे िो दिा रहा है ; िाप िेटे िो िह रहा है कि तू अभी िुछ भी नही ,ूं मैं सि िुछ हूं । तो उसे
पता नही ूं कि आज नही ूं िि िेटा ताितवर हो जाएर्ा, िाप िमजोर हो जाएर्ा; और ति िेटा उसे दिाना शु रू
िरे र्ा कि मैं सि िुछ हूं और तू िुछ भी नही ूं है ।

यह जो र्ुरु और कशष्य िे िीच जो सूं िूंध है , पकत और पत्नी िे िीच जो सूं िूंध है , ये सि परवरशूं स
हैं , कविृकतयाूं हैं । नही ूं तो पकत और पत्नी िे िीच सूं िूंध िी क्ा िात है ! दो व्यक्तक्तयोूं ने ऐसा अनु भव किया है कि
वे एि हैं , इसकिए वे साथ हैं । िेकिन नही,ूं ऐसा मामिा नही ूं है । पकत पत्नी िो दिा रहा है — अपने ढूं र्ोूं से , पत्नी
पकत िो दिा रही है — अपने ढूं र्ोूं से , और वे एि—दू सरे िे ऊपर पूरी िी पूरी ताित और पावर पाकिकटक्स
िा पूरा प्रयोर् िर रहे हैं ।

र्ुरु—कशष्य घूमिर किर ऐसी िी ऐसी िात है । र्ुरु कशष्य िो दिा रहा है , और कशष्य र्ुरु िे मरने िी
प्रतीक्षा िर रहे हैं कि वे िि र्ुरु िन जाएूं । या अर्र र्ुरु ज्यादा दे र कटि जाए तो िर्ावत शु रू हो जाएर्ी।
इसकिए ऐसा र्ुरु खोजना िहुत मुक्तिि है कजसिे कशष्य उससे िर्ावत न िरते होूं। ऐसा र्ुरु खोजना मुक्तिि
है कजसिे कशष्य उसिे दु श्मन न हो जाते होूं। जो भी चीि कडसाइपि है वह दु श्मन होनेवािा है । तो चीि
कडसाइपि जरा सोचिर िनाना चाकहए। िही ूं भी, वह अकनवायग है ; क्ोूंकि वह जो शक्तक्त िा दिाव है , उसिी
िर्ावत, ररिेकियन भी होती है । अध्यात्म िा इससे िोई िे ना—दे ना नही ूं।

तो मेरी समझ में आता है कि िाप िेटे िो दिाए, क्ोूंकि दो अज्ञाकनयोूं िी िात है , माि िी जा सिती
है , अच्छी तो नही ूं है , सही जा सिती है । पकत पत्नी िो दिाए, पत्नी पकत िो दिाए, चि सिता है ; शु भ तो नही ूं
है , चिना तो नही ूं चाकहए,िेकिन किर भी छोड़ा जा सिता है । िेकिन र्ुरु भी कशष्य िो दिा रहा है , ति किर
िड़ा मु क्तिि हो जाता है । िम से िम यह तो जर्ह ऐसी है जहाूं िोई दावे दार नही ूं होना चाकहए—कि मैं जानता
हूं और तु म नही ूं जानते ।
अि र्ुरु और कशष्य िे िीच क्ा सूं िूंध है ? दावेदार है एि, वह िहता है , मैं जानता हूं और तु म नही ूं
जानते ; तु म अज्ञानी हो और मैं ज्ञानी हूं इसकिए अज्ञानी िो ज्ञानी िे चरणोूं में झुिना चाकहए।

मर्र हमें यह पता ही नही ूं है कि यह िैसा ज्ञानी है जो किसी से िह रहा है कि चरणोूं में झुिना चाकहए!
यह महाअज्ञानी हो र्या। हाूं , इसे िुछ थोड़ी िातें पता चि र्ई हैं , शायद उसने िुछ कितािें पढ़ िी हैं , शायद
परूं परा से िुछ सू त्र उसिो उपिि हो र्ए हैं , वह उनिो दोहराना जान र्या है । इससे ज्यादा िुछ और मामिा
नही ूं है ।

दािेदार गरु अज्ञानी:

शायद तु मने एि िहानी न सु नी हो। मैंने सु ना है कि एि किल्री थी जो सवग ज्ञ हो र्ई थी। किक्तल्रयोूं में
उसिी िड़ी ख्याकत हो र्ई, क्ोूंकि वह तीथं िर िी है कसयत पा र्ई थी। और उसिे सवग ज्ञ होने िा, आिनोइूं र्
होने िा िारण यह था कि वह एि पुस्तिािय में प्रवेश िर जाती थी, और उस पुस्तिािय िे िाित सभी िुछ
जानती थी। सभी िुछ िा मतिि—िहाूं से प्रवेश िरना, िहाूं से कनििना, किस किताि िी आडू में िैठने से
ज्यादा आराम होता है , और ि न सी किताि ठूं ड में भी र्मी दे ती है । तो किक्तल्रयोूं में यह खिर हो र्ई थी कि
अर्र पुस्तिािय िे सूं िूंध में िुछ भी जानना हो, तो वह किल्री आिनोइूं र् है , वह सवगज्ञ है ।

और कनकश्चत ही, जो किल्री पुस्तिािय िे िाित सि जानती है — जो भी पुस्तिािय में है , सि जानती


है —उसिे ज्ञानी होने में क्ा िमी थी! उस किल्री िो कशष्य भी कमि र्ए थे। िेकिन उसिो िुछ भी पता नही ूं
था; किताि िा पता उसे इतना ही था कि उसिी आडू में िैठिर कछपने िी सु कवधा है । उस किताि िे िाित
उसे इतना ही पता था कि उसिी कजल्द जो है वह ऊनी िपड़े िी है , उसमें ठूं ड में भी र्मी कमिती है । यही
जानिारी थी उसिी किताि िे िाित, और उसे िुछ भी पता नही ूं था कि भीतर क्ा है । और भीतर िा किल्री
िो पता हो भी िैसे सिता था!

आदकमयोूं में भी ऐसी आिनोइूं र् किक्तल्रयाूं हैं , कजनिो कितािोूं िी आड़ में कछपने िा पता है , कजन पर
आप हमिा िरो तो ि रन रामायण िीच में िर िें र्े— और िहें र्े रामायण में ऐसा किखा है ! और आपिी र्दग न
िो रामायण से दिा दें र्े। र्ीता में ऐसा किखा है ! अि र्ीता से ि न झर्ड़ा िरे र्ा? अर्र मैं सीधा िहूं कि मैं
ऐसा िहता हूं तो मुझसे झर्ड़ा हो सिता है ।

िेकिन मैं िहता हूं र्ीता ऐसा िहती है ! मैं र्ीता िो िीच में िे िेता हूं र्ीता िी आडू में मुझे सु रक्षा है ।
र्ीता र्मी भी दे ती है ठूं ड में , व्यवसाय भी दे ती है , दु श्मन से िचाव िे किए शस्त्र भी िन जाती है ; आभूषण भी
िन जाती है ; और र्ीता िे साथ खे ि खे िा जा सिता है ।

िेकिन र्ीता में जो है , ऐसे आदमी िो उतना ही पता है , कजतना कि उस किल्री िो जो पुस्तिािय में
आराम िरती थी;उससे कभन्न िुछ पता नही ूं है । और यह तो हो सिता है कि उस पुस्तिािय में रहते —रहते
किल्री किसी कदन जान जाए कि किताि में क्ा है , िेकिन ये किताि जाननेवािे र्ु रु किििुि भी नही ूं जान
पाएूं र्े। क्ोूंकि कजतनी इनिो किताि िूंठस्थ हो जाएर्ी, उतना ही इनिो जानने िी िोई जरूरत न रह
जाएर्ी; इनिो भ्म पै दा होर्ा कि हमने जान किया है ।

जि भी िोई आदमी दावा िरे कि जान किया है , ति समझना कि अज्ञान मुखर हो र्या। दावे दार
अज्ञान है । िेकिन जि िोई आदमी जानने िे दावे से भी कझझि जाए, ति समझना कि िही ूं िोई झिि और
किरण कमिनी शु रू हुई। िेकिन ऐसा आदमी र्ु रु न िन सिेर्ा। ऐसा आदमी र्ुरु िनने िी िल्पना भी नही ूं
िर सिता, क्ोूंकि र्ुरु िे साथ अथॉररटी है ; र्ु रु िे साथ दावा जरूरी है । र्ु रु िा मतिि ही यह है कि मैं
जानता हूं पक्का जानता हूं तु म्हें अि जानने िी िोई जरूरत नही ,ूं मुझसे जान िो।

तो जहाूं अथॉररटी है , जहाूं आप्तता है और जहाूं दावा है कि मैं जानता हूं वहाूं दू सरे िी अन्रे षण और
खोज िी वृ कि िी हत्या भी है , क्ोूंकि अथॉररटी किना हत्या किए नही ूं रह सिती; दावेदार दू सरे िी र्दग न िाटे
किना नही ूं रह सिता; क्ोूंकि यह भी डर है कि िही ूं तु म पता न िर्ा िो, अन्यथा मेरे अकधिार िा क्ा
होर्ा, मेरी अथॉररटी िा क्ा होर्ा! तो मैं तु म्हें रोिूूंर्ा। अनुयायी िनाऊूंर्ा, कशष्य िनाऊूंर्ा। कशष्योूं में भी
हायरे रिी िनाई जाएर्ी— ि न प्रधान है , ि न िम प्रधान है । और सि वही जाि खड़ा हो जाएर्ा जो राजनीकत
िा जाि है , कजससे अध्यात्म िा िोई भी सूं िूंध नही ूं है ।

शब्धिपात प्रोत्साहन बने , गिामी नही ां:

तो जि मैं िहता हूं कि शक्तक्तपात जैसी घटना, परमात्मा िे प्रिाश और उसिी कवदि् युत िो, ऊजाग िो
उपिि िरने िी घटना किन्ी ूं व्यक्तक्तयोूं िे िरीि सु र्मता से घट सिती है , तो मैं यह नही ूं िह रहा हूं कि तु म
उन व्यक्तक्तयोूं िो पिड़िर रुि जाना, न यह िह रहा हूं कि तु म परतूं त्र हो जाना, न यह िह रहा हूं कि तु म
उन्ें र्ुरु िना िेना, न यह िह रहा हूं कि तु म अपनी खोज िूंद िर दे ना। िक्तम्ऻ सच तो यह है कि जि भी तु म्हें
किसी व्यक्तक्त िे िरीि वह घटना घटे र्ी, तो तु म्हें तत्काि ऐसा िर्े र्ा कि जि दू सरे व्यक्तक्त िे माध्यम से आिर
भी इस घटना ने इतना आनूंद कदया तो जि सीधी अपने माध्यम से आती होर्ी तो िात ही और हो जाएर्ी।
आक्तखर दू सरे से आिर थोडी तो जू ठी हो ही जाती है , थोड़ी तो िासी हो ही जाती है । मैं िर्ीचे में र्या और वहाूं
िे िूिोूं िी सु र्ूंध से भर र्या, और किर तु म मेरे पास आए, और मेरे पास से तु म्हें िूिोूं िी सु र्ूंध आई; िेकिन
मेरे पसीने िी िदिू भी उसमें थोड़ी कमि ही जाएर्ी; और ति ति िीिी भी िहुत हो जाएर्ी।

तो जि मैं िह रहा हूं कि यह प्राथकमि रूप से िड़ी उपयोर्ी है कि तु म्हें खिर तो िर् जाए कि िर्ीचा
भी है , िूि भी हैं , ति तु म अपनी यात्रा पर जा सिोर्े। अर्र र्ुरु िनाओर्े तो रुिोर्े।

मीि िे पत्थरोूं िे पास हम रुिते नही ूं हैं । हािाूं कि मीि िे पत्थर, कजनिो हम र्ुरु िहते हैं , उनसे
िहुत ज्यादा िताते हैं , पक्की खिर दे ते हैं . कितने मीि चि चुिे और कितने मीि मूंकजि िी यात्रा िािी है ।
अभी िोई र्ुरु इतनी पक्की खिर नही ूं दे ता। िे किन किर भी मीि िे पत्थर िी न हम पूजा िरते हैं , न उसिे
पास िैठ जाते हैं । और अर्र मीि िे पत्थर िे पास हम िैठ जाएूं र्े तो हम पत्थर से िदतर कसद्ध होूंर्े। क्ोूंकि
वह पत्थर कसिग िताने िो था कि आर्े! वह रोिनेवािा नही ूं है , न रोिने वािे िा िोई अथग है । िे किन अर्र
पत्थर िोि सिता होता तो वह िहता, िहाूं जा रहे हो? मैंने तु म्हें इतना िताया और तु म मुझे छोडि् िर जा रहे
हो! िैठो, तु म मेरे कशष्य हो र्ए, क्ोूंकि मैं ने ही तु म्हें िताया कि दस मीि चि चुिे और िीस मीि अभी िािी है ।
अि तु म्हें िही ूं जाने िी जरूरत नही ूं है , मेरे पीछे रहो।

तो पत्थर िोि नही ूं सिता, इसकिए र्ुरु नही ूं िनता है ; आदमी िोि सिता है , इसकिए र्ुरु िन जाता
है , क्ोूंकि वह िहता है मेरे प्रकत िृतज्ञ रहो, अनु र्ृहीत रहो, ग्रेकटटयूड प्रिट िरो, मैंने तु म्हें इतना िताया। और
ध्यान रहे , जो ऐसा आग्रह िरता हो, अनुग्रह माूं र्ता हो, समझना कि उसिे पास िताने िो िुछ भी न था, िोई
सू चना थी। जैसे मीि िे पत्थर िे पास सू चना है । उसे िुछ पता थोड़े ही है कि कितनी मूंकजि है और कितनी
नही ूं है , उसे िुछ पता नही ूं है , कसिग एि सू चना उसिे ऊपर खु दी है । वह उस सू चना िो दोहराए चिा जा रहा
है —िोई भी कनििता है , उसी िो दोहराए चिा जा रहा है ।

ऐसे ही, अनुग्रह जि तु मसे माूं र्ा जाए तो सावधान हो जाना। और व्यक्तक्तयोूं िे पास नही ूं रुिना है , जाना
तो है अव्यक्तक्त िे पास, जाना तो है उसिे पास जहाूं िोई आिार और सीमा नही ूं। िेकिन व्यक्तक्तयोूं से भी
उसिी झिि कमि सिती है , क्ोूंकि अूंततः व्यक्तक्त हैं तो उसी िे। जैसा मैंने िि िहा कि िुएूं से भी सार्र
िा पता चिता है , ऐसे ही किसी व्यक्तक्त से भी उस अनूंत िा पता चिता है , अर्र तु म झाूं ि सिो, तो तु म्हें पता
चि सिता है । िेकिन िही ूं कनभगर नही ूं होना है , और किसी चीज िो परतूं त्रता नही ूं िना िेना है । िेकिन सभी
तरह िे सूं िूंध परतूंत्रता िनते हैं—चाहे वह पकत—पत्नी िा हो, चाहे िाप—िेटे िा हो,चाहे र्ुरु—कशष्य िा
हो; जहाूं सूं िूंध है वहाूं परतूं त्रता शु रू हो जाएर्ी।

तो आध्याक्तत्मि खोजी िो सूं िूंध ही नही ूं िनाने हैं । और पकत—पत्नी िे िनाए रखे तो िोई िहुत हजाग
नही ूं है , क्ोूंकि उनसे िोई िाधा नही ूं है , वे इररे िेवेंट हैं । िेकिन मजा यह है कि वह पकत—पत्नी िे, िाप—िेटे
िे सूं िूंध तोड़िर एि नया सूं िूंध िनाता है जो िहुत खतरनाि है , वह र्ुरु—कशष्य िा सूं िूंध िनाता है ।
आध्याक्तत्मि सूं िूंध िा िोई मतिि ही नही ूं होता। सि सूं िूंध साूं साररि हैं । सूं िूंध मात्र साूं साररि हैं । अर्र हम
ऐसा िहें कि सूं िूंध ही सूं सार है , तो िोई िकठनाई नही ूं होर्ी। असूं र्,अिेिे हो तु म!

िेकिन इसिा यह मतिि नही ूं कि अहूं िार। क्ोूंकि तु म्ही ूं अिेिे हो, ऐसा नही ूं है , और भी अिेिे हैं ।
और तु मसे िोई दो िदम आर्े है । उसिी अर्र तु म्हें पैरोूं िी ध्वकन भी कमि जाती है कि िोई दो िदम आर्े
है , तो दो िदम आर्े िे रास्ते िी भी खिर कमि जाती है । िोई तु मसे दो िदम पीछे है , िोई तु म्हारे साथ
है , िोई दू र है —ये सि चारोूं तरि हजार—हजार, अनूंत— अनूंत आत्माएूं यात्रा िर रही हैं । इस यात्रा में सि
सूं र्ी—साथी हैं , िासिा आर्े —पीछे िा है । इससे कजतना िायदा िे सिो वह िे ना, िेकिन इसिो र्ुिामी मत
िनाना। यह र्ुिामी सूं िूंध िनाने से शु रू हो जाती है ।

इसकिए परतूं त्रता से िचना, सूं िूंध से िचना; आध्याक्तत्मि सूं िूंध से सदा िचना। साूं साररि सूं िूंध उतना
खतरनाि नही ूं है ,क्ोूंकि सूं सार िा मतिि ही सूं िूंध है ; वहाूं िोई इतनी अड़चन िी िात नही ूं है । और जहाूं से
तु म्हें खिर कमिे, वहाूं से खिर िे िे ना। और यह नही ूं िह रहा हूं मैं कि तु म धन्यवाद मत दे ना। यह नही ूं िह
रहा हूं । इसकिए िकठनाई होती है ; इसकिए जकटिता हो जाती है । िोई अनु ग्रह माूं र्े , यह र्ित है , िेकिन तु म
धन्यवाद न दो तो उतना ही र्ित है । मीि िे पत्थर िो भी धन्यवाद तो दे ही दे ना जाते वक्त— कि ते री िड़ी
िृपा! वह सु ने या न सु ने।

तो इससे िड़ी भाूं कत होती है । जि हम िहते हैं कि र्ुरु अनुग्रह न माूं र्े , तो आमत र से आदमी िे
अहूं िार िो एि रस कमिता है , वह सोचता है . किििुि ठीि है , किसी िो धन्यवाद भी दे ने िी जरूरत नही ूं।
ति भूि हो रही है , यह किििुि दू सरे पहिू से िात िो पिड़ा जा रहा है । यह मैं नही ूं िह रहा हूं कि तु म
धन्यवाद मत दे दे ना। मैं यह िह रहा हूं कि िोई अनुग्रह माूं र्े , यह र्ित है । िेकिन तु म अनुर्ृहीत न होओ तो
उतना ही र्ित हो जाएर्ा। तु म तो अनुर्ृहीत होना ही। िेकिन वह अनुग्रह िाूं धे र्ा नही,ूं क्ोूंकि जो माूं र्ा नही ूं
जाता, वह िभी नही ूं िाूं धता है , जो दान है , वह िभी नही ूं िाूं धता है । अर्र मैंने तु म्हें धन्यवाद कदया है , तो वह
िभी नही ूं िाूं धता; और अर्र तु मने माूं र्ा है , किर मैं दू ूं या न दू ूं उपद्रव शु रू हो जाता है ।

और जहाूं से तु म्हें झिि कमिे उसिी, वहाूं से झिि िो िे िे ना। और वह झिि चूूंकि दू सरे से आई
है , इसकिए िहुत स्थायी नही ूं होर्ी, वह खोएर्ी िार—िार। स्थायी तो वही होर्ी जो तु म्हारी है । इसकिए उसे तु म्हें
िार—िार, िार—िार िे ना पड़े र्ा। और अर्र डरते हो परतूं त्रता से तो अपनी खोजना।
परतूं त्रता से डरने से िुछ भी न होर्ा, दू सरे पर कनभगर होने िा भय भी िे ने िी जरूरत नही ूं है । क्ोूंकि
इससे िोई ििग नही ूं पड़ता मैं तु म पर परतूं त्र हो जाऊूं तो भी सूं िूंकधत हो र्या, और तु मसे डरिर भार् जाऊूं तो
भी सूं िूंकधत हो र्या और परतूं त्र हो र्या। इसकिए चुपचाप िे ना, धन्यवाद दे ना, िढ़ जाना।

और अर्र िर्े कि िुछ है जो आता है और खो जाता है , तो किर अपना स्रोत खोजना, जहाूं से वह िभी
न खोए, जहाूं से खोने िा िोई उपाय न रह जाए। अपनी सूं पदा ही अनूंत हो सिती है । दू सरे से कमिा हुआ दान
चुि ही जाता है । कभखारी मत िन जाना कि दू सरे से ही माूं र्ते चिे जाओ। वह दू सरे से कमिा हुआ भी तु म्हें
अपनी ही खोज पर िे जाए। और यह तभी होर्ा जि तु म दू सरे से िोई सूं िूंध नही ूं िनाते हो, धन्यवाद दे िर आर्े
िढ़ जाते हो।

शब्धि है जनष्पक्ष:

प्रश्न : ओशो आपने कहा जक परमात्मा एक शब्धि है और उसको मनष्य के जीिन में कोई
जदिचस्पी नही ां है ? कोई सरोकार नही ां है । कठोपजनषद में एक श्लोक है जजसका मतिब है जक िह
परमात्मा जजसको पसां द करता है उसको ही जमिता है । तो उसकी पसां दगी का कारण ि आधार क्ा है ?

असि में, मैंने यह नही ूं िहा कि उसिी आपमें िोई रुकच नही ूं है। यह मैंने नही ूं िहा। मैंने यह नही ूं
िहा कि परमात्मा िी आपमें िोई रुकच नही ूं है । उसिी रुकच न हो तो आप हो ही नही ूं सिते हैं । यह मैंने नही ूं
िहा। यह मैं ने नही ूं िहा। और यह भी मैंने नही ूं िहा कि वह आपिे प्रकत तटस्थ है ; यह भी मैंने नही ूं िहा। और
हो भी नही ूं सिता तटस्थ, क्ोूंकि आप उससे िुछ अिर् नही ूं हो; आप उसिे ही िैिे हुए कवस्तार हो।

जो िहा, वह मैंने यह िहा कि आपमें उसिी िोई कवशे ष रुकच नही ूं है । यह दोनोूं िातोूं में ििग है ।
आपमें उसिी िोई कवशे ष रुकच नही ूं है । आपिे किए वह कनयम से िाहर नही ूं जाएर्ी शक्तक्त। और अर्र आप
अपने कसर पर पत्थर मारें र्े , तो िह िहे र्ा, और प्रिृकत आपमें कवशे ष रुकच न िे र्ी। रुकच तो पूरी िे रही
है , क्ोूंकि खू न जि िह रहा है , वह भी रुकच है , वह भी उसिे ही द्वारा िह रहा है । आपने जो किया है , उसमें पूरी
रुकच िी र्ई है । आप अर्र नदी में िहिर डूि रहे हैं , ति भी प्रिृकत पूरी रुकच िे रही है —डु िाने में िे रही है ।
िेकिन कवशे ष रुकच नही ूं है । िोई स्पे शि, िोई अकतररक्त, आपमें िोई रुकच नही ूं है कि कनयम तो था डु िाने िा
और िचाया जाए; कनयम तो था कि आप जि छत पर से कर्रे तो कसर टू ट जाए, िेकिन छत पर से कर्रे और कसर
न टू टे , ऐसी कवशे ष रुकच नही ूं है ।

कजन्ोूंने ईश्वर िो व्यक्तक्त माना, उन्ोूंने इस तरह िी कवशे ष रुकचयोूं िा किक्शन खड़ा किया है कि
प्रह्लाद िो वह जिाएर्ा नही ूं आर् में , पहाड़ से कर्राओ तो चोट नही ूं िर्ेर्ी। ये जो िहाकनयाूं हैं , ये हमारी
आिाूं क्षाएूं हैं —ऐसा हम चाहते हैं कि ऐसा हो, इतनी कवशे ष रुकच हममें हो, हम उसिे िेंद्र िन जाएूं ।

यह मैं नही ूं िह रहा हूं कि रुकच नही ूं है , मैं यह िह रहा हूं कि उसिी रुकच कनयम में है । शक्तक्त िी रुकच
सदा कनयम में होती है । व्यक्तक्त िी रुकच कवशे ष िन सिती है । व्यक्तक्त पक्षपाती हो सिता है । शक्तक्त सदा कनष्पक्ष
है । कनष्पक्षता ही उसिी रुकच है । इसकिए जो कनयम में होर्ा, वह होर्ा, जो कनयम में नही ूं होर्ा, वह नही ूं होर्ा।
परमात्मा िी तरि से कमरे िि नही ूं हो सिते , चमत्कार नही ूं हो सिते ।
जाननेिािोां की जिनम्रता:

और वह जो दू सरा सूत्र आप िह रहे हैं, िठोपकनषद िा, उसिे मतिि िहुत और हैं। उसमें िहा
र्या है उसिी कजसिे प्रकत पसूं द होती, वह कजस पर प्रसन्न होता, वह कजस पर आनूंकदत होता, उसे ही कमिता है ।
स्वभावत:, आप िहें र्े, यह तो वही िात हो र्ई कि उसिी कवशे ष रुकच कजसमें होती है ।

नही,ूं यह िात नही ूं है । असि में , आदमी िी िड़ी तििीि है । और जि हमें किसी सत्य िो िहना
होता है तो उसिे िहुत पहिू हैं । असि में , कजनिो वह कमिा है , उनिा यह िहना है । कजनिो वह कमिा
है , उनिा यह िहना है कि हमारे प्रयास से क्ा हो सिता था! हम क्ा थे! हम तो ना—िुछ थे, हम तो धू ि िे
िण भी न थे , किर भी हमें वह कमि र्या! और अर्र हमने दो घड़ी ध्यान किया था, तो उसिा भी क्ा मूल्य था
कि हम दो घड़ी चुप िैठ र्ए थे! जो कमिा है , वह अमूल्य है । तो जो हमने किया था और जो कमिा है , इसमें िोई
तािमेि ही नही ूं है । तो कजनिो कमिा है , वे िहते हैं कि नही,ूं यह अपने प्रयास िा िि नही ूं है , यह उसिी िृपा
है । उसने पसूं द किया तो कमि र्या, अन्यथा हम क्ा खोज पाते ! यह कनरहूं िार व्यक्तक्त िा िहना है , कजसिो
पािर पता चिा है कि अपने से क्ा हो सिता था!

िेकिन, यह कजनिो नही ूं कमिा है , अर्र उनिी धारणा िन जाए तो िहुत खतरनाि है । कजनिो कमिा
है , उनिी तरि से तो यह िहना िडा सु रुकचपूणग है , और िहुत, इसमें िड़ा ही सु सूंस्कृत भाव है । यानी वे यह
िह रहे हैं कि हम ि न थे कि वह हमें कमिता! हमारी क्ा ताित थी, हमारी क्ा सामर्थ्ग थी, हमारा क्ा
अकधिार था, हम िहाूं दावेदार थे! हम तो िुछ भी न थे ,किर भी वह हमें कमि र्या; उसिी ही िृपा है , हमारा
िोई प्रयास नही ूं है । यह उनिा िहना तो उकचत है । उनिे िहने िा मतिि कसिग यह है कि यह किसी प्रयास
भर से नही ूं कमि र्या; यह िोई हमारी अहूं िार िी उपिक्ति नही ूं है ; यह िोई अचीवमेंट नही ूं है ; यह प्रसाद है ।

यह उनिा िहना तो किििुि ठीि है , िेकिन िठोपकनषद पढ़िर आप कदक्कत में पड़ जाओर्े। सभी
शास्त्रोूं िो पढ़िर आदमी कदक्कत में पड़ा है । क्ोूंकि वह िहना है जाननेवािोूं िा और पढ़ रहे हैं न
जानने वािे — और वे उसिो अपना िहना िना रहे हैं । तो न जाननेवािा िहता है कि ठीि है , किर हमें क्ा
िरना है ! जि वह उसिी पसूं द से ही कमिता है , तो हम परे शान क्ोूं होूं! कजस पर उसिी इच्छा होती है , उसी
िो कमिता है , तो जि उसिी इच्छा होर्ी ति कमि जाएर्ा। तो हम क्ोूं परे शान होूं? हम क्ोूं िुछ िरें ?

तो जो कनरहूं िार िा दावा था, वह हमारे किए आिस्य िी रक्षा िन जाता है । यह इतना िड़ा पररवतग न है
इन दोनोूं में कि जमीन—आसमान िा ििग है । जो शू न्यता िा भाव था, वह हमारे किए प्रमाद िन जाता है । हम
िहते हैं , वह तो कजसिो कमिना है उसिो कमिेर्ा; कजसिो नही ूं कमिना है , नही ूं कमिेर्ा।

ज्ञाजनयोां के शास्त्र, अज्ञाजनयोां के हाथ:


अि आस्तीन िा एि वचन है इससे कमिता—जुिता, कजसमें वह िहता है कि कजसिो उसने
चाहा, अच्छा िनाना,कजसिो उसने चाहा, िुरा िनाया।

िड़ा खतरनाि मािूम होता है ! क्ोूंकि अर्र यह उसिी चाह से हो र्या कि कजसिो उसने अच्छा
िनाया था, अच्छा िनाया; और कजसिो िुरा िनाना था, उसिो िुरा िनाया; तो िात खत्म हो र्ई। और हइ पार्ि
परमात्मा है कि किसी िो िुरा िनाना चाहता है और किसी िो अच्छा िनाना चाहता है ! न जाननेवािा जि
इसिो पड़े र्ा, तो इसिे अथग िड़े खतरनाि हैं । िेकिन अर्स्तीन जो िह रहा है , वह िुछ और ही िात िह रहा
है । वह अच्छे आदमी से िह रहा है कि तू अहूं िार मत िर कि तू अच्छा है ; क्ोूंकि कजसिो उसने चाहा, अच्छा
िनाया। वह िुरे आदमी से िह रहा है . परे शान मत हो, कचूंता से मत कघर; उसने कजसिो िुरा िनाया, िुरा
िनाया। वह िुरे आदमी िा भी दूं श खी ूंच रहा है , वह अच्छे आदमी िा भी दूं श खी ूंच रहा है । िेकिन वह
जानने वािे िी तरि से है ।

िेकिन िुरा आदमी सु न रहा है , वह िह रहा है तो किर ठीि है , तो किर मैं िुराई िरू
ूं । क्ोूंकि अपना
तो िोई सवाि ही नही ूं है ; कजससे उसने िुरा िरवाया, वह िुरा िर रहा है । और अच्छे आदमी िी भी यात्रा
कशकथि पड़ र्ई, क्ोूंकि वह िह रहा है कि अि क्ा होना है ! वह कजसिो अच्छा िनाता है , िना दे ता है , कजसिो
नही ूं िनाता, नही ूं िनाता। ति कजूंदर्ी िड़ी िेमानी हो जाती है ।

सारी दु कनया में शास्त्रोूं से ऐसा हुआ। क्ोूंकि शास्त्र हैं उनिे िहे हुए वचन जो जानते हैं । और कनकश्चत
ही, जो जानता है वह शास्त्र—वास्त्र पढने िाहे िे किए जाएर्ा! जो नही ूं जानता वह शास्त्र पढ़ने चिा जाता है ।
किर दोनोूं िे िीच उतना ही ििग है कजतना जमीन और आसमान िे िीच ििग है ; और जो व्याख्या हम िरते हैं
वह हमारी है ।

वह (शास्त्र) हमारी व्याख्या नही ूं है । इसकिए मेरे इधर खयाि में आता है कि दो तरह िे शास्त्र रचे जाने
चाकहए— ज्ञाकनयोूं िे िहे हुए अिर्, अज्ञाकनयोूं िे पढ़ने िे किए अिर्। ज्ञाकनयोूं िे िहे हुए किििुि कछपा दे ने
चाकहए; अज्ञाकनयोूं िे हाथ में नही ूं पड़ने चाकहए। क्ोूंकि अशानी उनसे अथग तो अपना ही कनिािे र्ा। और ति
सि कविृत हो जाता है , सि कविृत हो र्या है । मेरी िात खयाि में आती है ?

आध्याब्धत्मक अनभिोां के नकिी प्रजतरूप:

प्रश्न: ओशो आपने कहा है जक शब्धिपात अहांशन्य व्यब्धि के माध्यम से होता है ; और जो कहता
है जक मैं तम पर शब्धिपात करू ां गा तो जानना जक िह शब्धिपात नही ां कर सकता। िेजकन इस प्रकार
शब्धिपात दे नेिािे कत से व्यब्धियोां से मैं पररजचत हां । उनके शब्धिपात से िोगोां को ठीक शास्त्रोि ढां ग
से कां डजिनी की प्रजक्याएां होती हैं । क्ा िे प्रामाजणक नही ां हैं ? क्ा िे झठ
ू ी स्यडो प्रजक्याएां हैं ?....... क्ोां
और कैसे ?
हाूं , यह भी समझने िी िात है। असि में, दुकनया में ऐसी िोई भी चीज नही ूं है कजसिा नििी
कसक्का न हो सिे दु कनया में ऐसी िोई भी चीज नही ूं है कजसिा िाल्स िॉइन न िनाया जा सिे। सभी चीजोूं िे
नििी कहस्से भी हैं और नििी पहिू भी हैं । और अक्सर ऐसा होता है कि नििी कसक्का ज्यादा चमिदार होता
है — उसे होना पड़ता है ; क्ोूंकि चमि से ही वह चिेर्ा; असिीपन से तो चिता नही ूं। असिी कसक्का िेचमि
िा हो, तो भी चिता है । नििी कसक्का दावेदार भी होता है ;क्ोूंकि असिीपन िी जो िमी है , वह दावे से पूरी
िरनी पड़ती है । और नििी कसक्का एिदम आसान होता है , क्ोूंकि उसिा िोई मूल्य तो होता नही।ूं

तो कजतनी आध्याक्तत्मि उपिक्तियाूं हैं , सििा िाउूं टर पाटग भी है । ऐसी िोई आध्याक्तत्मि उपिक्ति नही ूं
है , कजसिा िाल्स, झूठा िाउूं टर पाटग नही ूं है । अर्र असिी िुूंडकिनी है , तो नििी िुूंडकिनी भी है । नििी
िुूंडकिनी िा क्ा मतिि है ?और अर्र असिी चक्र हैं , तो नििी चक्र भी हैं । और अर्र असिी योर् िी
प्रकक्रयाएूं हैं , तो नििी प्रकक्रयाएूं भी हैं । ििग एि ही है , और वह ििग यह है कि सि असिी आध्याक्तत्मि ति में
घकटत होता है , और सि नििी साइकिि, मनस िे ति में घकटत होता है ।

अि जैसे, उदाहरण िे किए, एि व्यक्तक्त िो कचि िी र्हराइयोूं में प्रवेश कमिे , तो उसे िहुत से अनुभव
होने शु रू होूंर्े। जैसे उसे सु र्ूंध आ सिती हैं , िहुत अनूठी, जो उसने िभी नही ूं जानी, सूं र्ीत सु नाई पड़ सिता
है , िहुत अि किि, जो उसने िभी नही ूं सु ना; रूं र् कदखाई पड़ सिते हैं , ऐसे , जैसे कि पृथ्वी पर होते ही नही ूं।

िेकिन ये सि िी सि िातें कहप्नोकसस से तत्काि पैदा िी जा सिती हैं किना िकठनाई िे —रूं र् पैदा
किए जा सिते हैं ,ध्वकनयाूं पैदा िी जा सिती हैं , स्वाद पैदा किया जा सिता है , सु र्ूंध पैदा िी जा सिती है ।
और इसिे किए किसी साधना से र्ुजरने िी जरूरत नही ूं है , इसिे किए कसिग िेहोश होने िी जरूरत है । और
ति जो भी सजेस्ट किया जाए िाहर से , वह भीतर घकटत हो जाएर्ा।

अि यह िाल्स िॉइन है । ध्यान में जो—जो घकटत होता है , वह सि िा सि कहप्नोकसस से भी घकटत हो


सिता है । िेकिन वह आध्याक्तत्मि नही ूं है , वह कसिग डािा र्या है , और डरीम है , स्वप्न जैसा है । अि जैसे, तु म
एि स्त्री िो प्रेम िर सिते हो जार्ते हुए भी, स्वप्न में भी िर सिते हो। और आवश्यि नही ूं है कि स्वप्न िी जो
स्त्री है , वह जार्नेवािी स्त्री से िम सुूं दर हो। अक्सर ज्यादा होर्ी। और समझ िो कि एि आदमी अर्र सोए
और किर उठे न, सपना ही दे खता रहे , तो उसे िभी भी पता नही ूं चिे र्ा कि जो वह दे ख रहा है वह असिी स्त्री
है , कि जो वह दे ख रहा है वह सपना है । िैसे पता चिेर्ा? वह तो नी ूंद टू टे तभी वह जाूं च िर सिता है कि
अरे , जो मैं दे ख रहा था वह सपना था!

तो इस तरह िी प्रकक्रयाएूं हैं कजनसे तु म्हारे भीतर सभी तरह िे सपने पैदा किए जा सिते हैं —िुूंडकिनी
िा सपना पै दा किया जा सिता है , चक्रोूं िे सपने पैदा किए जा सिते हैं , अनुभूकतयोूं िे सपने पै दा किए जा
सिते हैं । और अर्र तु म उन सपनोूं में िीन रहो— और वे इतने सु खद हैं कि तोडि् ने िा मन न होर्ा; और ऐसे
सपने हैं कजनिो कि सपना िहना मु क्तिि है ,क्ोूंकि वे जार्ते में चिते हैं , कदवा—स्वप्न हैं , डे —डरीम्स हैं , और
उनिो साधा जा सिता है — तो तु म उनिो कजूंदर्ी भर साधिर र्ुजार सिते हो। और तु म आक्तखर में पाओर्े
तु म िही ूं भी नही ूं पहुूं चे हो; तु म कसिग एि िूं िा सपना दे खे हो।

इन सपनोूं िो पैदा िरने िी भी तरिीिें हैं , व्यवस्थाएूं हैं । और दू सरा व्यक्तक्त तु ममें इनिो पैदा िर
सिता है । और तु म्हें तय िरना मुक्तिि हो जाएर्ा कि इन दोनोूं में ििग क्ा है , क्ोूंकि दू सरे िा तु म्हें पता नही ूं
है । अर्र एि आदमी िो िभी असिी कसक्का न कमिा हो और नििी कसक्का ही हाथ में कमिा हो, तो वह िैसे
तय िरे र्ा कि यह नििी है ? नििी िे किए असिी भी कमि जाना जरूरी है । तो कजस कदन व्यक्तक्त िो
िुूंडकिनी िा आकवभाग व होर्ा, उस कदन वह ििग िर पाएर्ा कि इन दोनोूं में तो जमीन—आसमान िा ििग है !
यह तो िात ही और है !

अनभिोां की जाां च का रहस्य—सू त्र:

और ध्यान रहे, शास्त्रोक्त िुूंडकिनी जो है, वह िाल्स होर्ी। उसिे िारण हैं। अि यह तुम्हें मैं एि
सीक्रेट िी िात िहता हूं । उसिे िारण हैं और िड़ा राज है । असि में , जो भी िुक्तद्धमान िोर् इस पृथ्वी पर हुए
हैं , उन सिने प्रत्येि शास्त्र में िुछ िुकनयादी भूि छोड़ दी है , जो कि पहचान िे किए है । िुछ िुकनयादी भू ि
छोड़ दी है । जैसे मैंने तु मसे िहा कि इस मिान में —मैंने तु म्हें खिर दी इस मिान िे िाहर—कि इस मिान में
पाूं च िमरे हैं । छह िमरे हैं , यह मैं जानता हूं मैंने तु मसे िहा,पाूं च िमरे हैं । एि कदन तु म आए और तु मने िहा
कि वह मैं मिान दे ख आया, आपने किििुि ठीि िहा था, किििुि पाूं च ही िमरे हैं । तो मैं जानता हूं कि तु म
किसी झूठे मिान में हो आए, तु मने िोई सपना दे खा, क्ोूंकि िमरे तो वहाूं छह हैं ।

वह एि िमरा िचाया र्या है हमेशा िे किए। वह तु म्हें खिर दे ता है कि तु म्हें हुआ कि नही ूं हुआ।
अर्र किििुि शास्त्रोक्त हो, तो समझना कि नही ूं हुआ, िाल्स िॉइन है , क्ोूंकि शास्त्र में एि िमरा सदा
िचाया र्या है । उसे िचाना िहुत जरूरी है । उसे िचाना िहुत जरूरी है । तो अर्र तु मिो किििुि किताि में
किखे ढूं र् से सि हो रहा हो, तो समझना कि किताि प्रोजेक्ङ हो रही है । िेकिन कजस कदन तु मिो किताि में किखे
हुए ढूं र् से नही ूं, किसी और ढूं र् से िुछ हो, कजसमें कि िही ूं किताि से मेि भी खाता हो और िही ूं नही ूं भी मेि
खाता हो उस कदन तु म जानना कि तु म किसी असिी टर ै ि पर चि रहे हो,जहाूं चीजें अि तु म्हें साि हो रही
हैं ; जहाूं तु म शास्त्र िो ही कसिग िल्पना में कपरोए—कपरोए नही ूं चिे जा रहे हो।

तो जि िुूंडकिनी तु म्हें ठीि से जर्े र्ी, ति तु म जाूं च पाओर्े कि अरे , शास्त्र में िहाूं —िहाूं , िुछ—
िुछ तरिीि है । िेकिन वह तु म्हें उसिे पहिे पता नही ूं चि सिती। और प्रत्ये ि शास्त्र िो अकनवायग रूप से
िुछ चीजें छोड़ दे नी पड़ी हैं , नही ूं तो िभी भी तय िरना मुक्तिि हो जाए।

मेरे एि कशक्षि थे ; यूकनवकसग टी िे प्रोिेसर थे। िभी भी मैं किसी किताि िा नाम िूूं तो वे िहें , हाूं , मैंने
पढ़ी है । एि कदन मैं ने झूठी ही किताि िा नाम किया, जो है ही नही,ूं न वह िेखि है , न वह किताि है । मैंने
उनसे िहा, आपने ििाूं िेखि िी किताि पढ़ी है ? िड़ी अदभुत किताि है ! उन्ोूंने िहा, हाूं , मैंने पढ़ी है । तो
मैंने उनसे िहा कि अि जो पहिे पढ़े हुए दावे थे ,वे भी र्ड़िड़ हो र्ए; क्ोूंकि न यह िोई िेखि है और न यह
िोई किताि है । मैंने िहा, अि इस किताि िो आप मुझे म जूद िरवािर िता दें , तो िािी दावोूं िे सूं िूंध में
िात होर्ी, िािी अि खत्म हो र्ई िात। वे िहने िर्े , क्ा मतिि, यह किताि नही ूं है ? तो मैंने िहा, आपिी
जाूं च िे किए अि इसिे कसवाय िोई और रास्ता नही ूं था।

जो जानते हैं , वे तु म्हें ि रन पिड़ िें र्े। अर्र तु म्हें किििुि शास्त्रोक्त हो रहा है , तु म िूंस जाओर्े।
क्ोूंकि वहाूं िुछ र्ैप छोड़ा र्या है ; िुछ र्ित जोड़ा र्या है , िुछ सही छोड़ कदया र्या है । जो कि अकनवायग
था; नही ूं तो पहचान िहुत मुक्तिि है कि किसिो क्ा हो रहा है ।
पर यह जो शास्त्रोक्त है , यह पैदा किया जा सिता है । सभी चीजें पैदा िी जा सिती हैं । आदमी िे मन
िी क्षमता िम नही ूं है । और इसिे पहिे कि वह आत्मा में प्रवेश िरे , मन िहुत तरह िे धोखे दे सिता है । और
धोखा अर्र वह खु द दे ना चाहे ,ति तो िहुत ही आसान है ।

तो मैं यह िहता हूं कि व्यवस्था से , दावे से , शास्त्र से , कनयम से , उतना नही ूं है सवाि। और सवाि िहुत
दू सरा है । किर इसिे पहचान िे और भी रास्ते हैं । इसिे पहचान िे और भी रास्ते हैं कि तु म्हें जो हो रहा है , वह
असिी है या झूठ।

प्रामाजणक अनभिोां से आमूि रूपाां तरण:

एि आदमी कदन में पानी पीता है तो उसिी प्यास िुझती है , सपने में भी पानी पीता है , िेकिन प्यास
नही ूं िुझती और सु िह जार्िर वह पाता है कि ओूंठ सू ख रहे हैं और र्िा तड़प रहा है । क्ोूंकि सपने िा पानी
प्यास नही ूं िुझा सिता, असिी पानी प्यास िुझा सिता है । तो तु मने पानी जो पीया था, वह असिी था या
नििी, यह तु म्हारी प्यास िताएर्ी कि प्यास िुझी कि नही ूं िुझी।

तो कजन िुूंडकिनी जार्रण िरनेवािोूं िी—या कजनिी जाग्रत हो र्ई—तु म िात िर रहे हो, वे अभी भी
तिाश िर रहे हैं ,अभी भी खोज रहे हैं । वे यह भी िह रहे हैं कि हमें यह हो र्या, और वह खोज भी उनिी जारी
है । वे िहते हैं , हमें पानी भी कमि र्या। और अभी भी िह रहे हैं , सरोवर िा पता क्ा है ?

परसोूं ही एि कमत्र आए थे। और वे िहते हैं , मुझे कनकवग चार क्तस्थकत उपिि हो र्ई; और मुझसे पूछने
आए हैं कि ध्यान िैसे िरें ! तो अि क्ा किया जाए? अि मैं िैसे िहूं उनसे कि यह क्ा.. तु म्हारे साथ क्ा..
.किया क्ा जाए! तु म िह रहे हो,कनकवगचार क्तस्थकत उपिि हो र्ई है ; कवचार शाूं त हो र्ए हैं ; और ध्यान िा रास्ता
िता दें । क्ा मतिि होता है इसिा?

एि आदमी िह रहा है , िुूंडकिनी जर् र्ई है , और िहता है , मन शाूं त नही ूं होता! एि आदमी िहता
है , िुूंडकिनी तो जर् र्ई, िेकिन यह से क्स से िैसे छु टिारा कमिे!

तो अवाूं तर उपाय भी हैं — कि जो हुआ है , वह सच में हुआ है ?

अर्र सच में हुआ है तो खोज खत्म हो र्ई। अर्र भर्वान भी उससे आिर िहे कि थोड़ी शाूं कत हम
दे ने आए हैं , तो वह िहे र्ा अपने पास रखो, हमें िोई जरूरत नही ूं है । अर्र भर्वान भी आए और िहे कि हम
िुछ आनूंद तु म्हें दे ना चाहते हैं , िड़े प्रसन्न हैं , तो वह िहे र्ा. आप उसिो िचा िो, और थोड़े ज्यादा प्रसन्न हो
जाओ, और हमसे िुछ िेना हो तो िे जाओ। तो उसिो जाूं चने िे किए तु म उस व्यक्तक्तत्व में भी दे खना कि और
क्ा हुआ है ?

झठ
ू ी समाजध का धोखा:
अि एि आदमी िहता है कि उसे समाकध िर् जाती है , वह छह कदन कमट्टी िे नीचे पड़ा रह जाता
है । और वह किििुि ठीि पड़ा रह जाता है , र्ड्डे से वह कजूंदा कनिि आता है । िेकिन घर में अर्र रुपये छोड़
दो तो वह चोरी िर सिता है ; म िा कमि जाए तो शराि पी सिता है । और उस आदमी िा अर्र तु म्हें पता न
हो कि इसिो समाकध िर् र्ई है , तो तु म उसमें िुछ भी न पाओर्े ; उसमें िुछ भी नही ूं है —िोई सु र्ूंध नही ूं
है , िोई व्यक्तक्तत्व नही ूं है , िोई चमि नही ूं है —िुछ भी नही ूं है ;एि साधारण आदमी है ।

नही,ूं तो उसिो समाकध नही ूं िर् र्ई है , वह समाकध िी कटर ि सीख र्या है ; वह छह कदन जमीन िे
अूंदर जो रह रहा है ,वह समाकध नही ूं है । वह समाकध नही ूं है , वह छह कदन जमीन िे नीचे रहने िी अपनी कटर ि
है , अपनी व्यवस्था है । वह उतना सीख र्या है । वह प्राणायाम सीख र्या है , वह श्वास िो कशकथि िरना सीख
र्या है ; वह छह कदन, कजतनी छोटी सी जमीन िा घेरा उसने अूंदर िनाया है , कजस आयतन िा, वह जानता है
कि उतनी आक्सीजन से वह छह कदन िाम चिा िेता है । वह इतनी धीमी श्वास िेता है कि जो कमकनमम, कजससे
ज्यादा िेने में ज्यादा आक्सीजन खचग होर्ी, उतनी श्वास िेिर वह छह कदन र्ुजार दे ता है । वह िरीि—िरीि
उस हाित में होता है , कजस हाित में साइिेररया िा भािू छह महीने िे किए ििग में दिा पड़ा रह जाता है ।
उसिो िोई समाकध नही ूं िर् र्ई है । िरसात िे िाद में ढि जमीन में पड़ा रह जाता है । आठ महीने पड़ा रहता
है । उसे िोई समाकध नही ूं िर् र्ई है । वही इसने सीख किया है ; और िुछ भी नही ूं हो र्या।

िेकिन कजसिो समाकध उपिि हो र्ई है , उसिो अर्र तु म छह कदन िे किए िूंद िर दो, तो वह हो
सिता है मर जाए और यह कनिि आए। क्ोूंकि समाकध से छह कदन जमीन िे नीचे रहने िा िोई सूं िूंध नही ूं
है । महावीर स्वामी या िु द्ध िही ूं कमि जाएूं , और उनिो जमीन िे भीतर छह कदन रख दो, िचिर ि टने िी
आशा नही ूं है । यह िचिर ि ट आएर्ा। क्ोूंकि इससे िोई सूं िूंध ही नही ूं है । उससे िोई वास्ता ही नही ूं है ; वह
िात ही और है । िेकिन यह जूंचेर्ा। और अर्र महावीर न कनिि पाएूं और यह कनिि पाए, तो तीथंिर यह
असिी मािूम पड़े र्ा, वे नििी कसद्ध हो जाएूं र्े।

तो ये सारे िे सारे जो साइकिि िाल्स िॉइन्ऱ पैदा किए र्ए हैं , जो मनस ने झूठे—झूठे कसक्के पैदा
किए हैं , उन्ोूंने अपने झूठे दावे भी पैदा किए हैं , उन दावोूं िो कसद्ध िरने िी पूरी व्यवस्था भी पैदा िी है । और
उन्ोूंने एि अिर् ही दु कनया खड़ी िर रखी है । कजसिा िोई िेना—दे ना नही ूं है , कजससे िोई सूं िूंध नही ूं है ।
और असिी चीजें उन्ोूंने छोड दी हैं ; जो असिी रूपाूं तरण थे, उनिे छह कदन जमीन िे नीचे रहने या छह
महीने रहने से िोई सूं िूंध नही ूं है । िेकिन इस व्यक्तक्त िा चररत्र क्ा है ? इस व्यक्तक्त िे मनस िी शाूं कत कितनी
है ? इसिे आनूंद िा क्ा हुआ? इसिा एि पैसा खो जाता है तो यह रात भर सो नही ूं पाता, और छह कदन
जमीन िे भीतर रह जाता है ! यह सोचना पड़े र्ा कि इसिे असिी सूं िूंध क्ा हैं ?

झठ
ू े शब्धिपात के जिए सम्मोहन का उपयोग:

तो जो भी दावेदार हैं कि हम शक्तक्तपात िरते हैं, वे िर सिते हैं, िेकिन वह शक्तक्तपात नही ूं है, वह
िहुत र्हरे में किसी तरह िा सिोहन है , कहप्नोकसस है ; िहुत र्हरे में िुछ मैग्नेकटि िोसे स िा उपयोर्
है , कजनिो वे सीख र्ए हैं । और जरूरी नही ूं है कि वे भी जानते होूं। उसिे पूरे कवज्ञान िो जानते होूं, यह भी
जरूरी नही ूं है । और यह भी जरूरी नही ूं है कि वह दावा जो है जानिर िर रहे होूं कि झूठा है । इतने जाि हैं !
अि एि मदारी िो तु म सड़ि पर दे खते हो कि वह एि िड़िे िो किटाए हुए है , चादर किछा दी
है , उसिी छाती पर एि तािीज रख दी है । अि उस िड़िे से वह पूछ रहा है कि ििाूं आदमी िे नोट िा
नूंिर क्ा है ? वह नोट िा नूंिर िता रहा है । ििाूं आदमी िी घड़ी में कितना िजा है ? वह घड़ी िता रहा है ।
पूछ रहा है िान में, इस आदमी िा नाम क्ा है ? वह िड़िा नाम िता रहा है । और वह सि दे खनेवािोूं िो
कसद्ध हुआ जा रहा है कि तािीज में िुछ खू िी है । वह तािीज उठा िेता है और पूछता है , इस आदमी िी घड़ी में
क्ा है ? वह िड़िा पड़ा रह जाता है , वह जवाि नही ूं दे पाता। तािीज वह िेच िेता है —छह आने , आठ आने में
वह तािीज िेच िेता है । तु म तािीज घर पर िे जािर छाती पर रखिर कजूंदर्ी भर िैठे रहो, उससे िुछ नही ूं
होर्ा। अच्छा ऐसा नही ूं है .. .नही,ूं ऐसा नही ूं है कि वह िड़िे िो कसखाया हुआ है उसने ; ऐसा नही ूं है कि वह
िहता है कि जि तािीज उठा िूूं तो मत िोिना। नही,ूं ऐसा नही ूं है । और ऐसा भी नही ूं है कि तािीज में िुछ र्ुण
है । िेकिन तरिीि और र्हरी है । और वह खयाि में आए तो िहुत है रानी होती है ।

इसिो िहते हैं पोस्ट कहप्नोकटि सजेशन। अर्र एि व्यक्तक्त िो हम िेहोश िरें , और िेहोश िरिे
उसिो िहें कि आूं ख खोििर इस तािीज िो ठीि से दे ख िो! और जि भी यह तािीज मैं तु म्हारी छाती पर
रखूूं र्ा और िहूं र्ा—एि...... दो..... तीन..... .तु म तत्काि किर से िे होश हो जाओर्े। यह िेहोशी में िहा र्या
सजेशन— जि भी इस तािीज िो मैं तु म्हारी छाती पर रखूूं र्ा, तु म पुन: िेहोश हो जाओर्े। और उस िेहोशी िी
हाित में इसिी िहुत सूं भावना है कि वह नोट िा नूंिर पढ़ा जा सिता है , घड़ी दे खी जा सिती है । इसमें िुछ
झूठ नही ूं है । जैसे ही वह चादर रखता है और िड़िे िे ऊपर तािीज रखता है , वह िड़िा कहप्नोकटि टर ाूं स में
चिा र्या, वह सिोकहत क्तस्थकत में चिा र्या। अि वह तु म्हारे नोट िा नूं िर िता पाता है । यह िुछ कसखाया हुआ
नही ूं है वह। उस िड़िे िो भी पता नही ूं है कि क्ा हो रहा है ।

इस आदमी िो भी पता नही ूं है कि भीतर क्ा हो रहा है । इस आदमी िो एि कटर ि मािूम है कि एि


आदमी िो िेहोश िरिे अर्र िोई भी चीज ितािर िह कदया जाए कि पुन: जि भी यह चीज तु म्हारे ऊपर
रखी जाएर्ी, तु म िेहोश हो जाओर्े ,तो वह िेहोश हो जाता है , इतना इसिो भी पता है । इसिे क्ा भीतर
मैिेकनज्म है , इसिा डाइनाकमक्स क्ा है , इन दोनोूं िो किसी िो िोई पता नही ूं है । क्ोूंकि कजसिो उतना
डाइनाकमक्स पता हो, वह सड़ि पर मदारी िा िाम नही ूं िरता है । उतना डाइनाकमक्स िहुत िड़ी िात है । मन
िा ही है , िेकिन वह भी िहुत िड़ी िात है । उतना डाइनाकमक्स किसी फ्रायड िो भी पूरा पता नही ूं है , उतना
डाइनाकमक्स किसी िूं िो भी पूरा पता नही ूं है , उतना डाइनाकमक्स िड़े से िड़े मनोवैज्ञाकनि िो भी अभी पूरा
पता नही ूं है कि हो क्ा रहा है । िे किन इसिो एि कटर ि पता है , उतनी कटर ि से यह िाम िर िेता है ।

तु म्हें िटन दिाने िे किए यह जानना थोड़े ही जरूरी है कि किजिी क्ा है ! और िटन दिाने िे किए
यह भी जानना जरूरी नही ूं है कि किजिी िैसे पैदा होती है । और यह भी जानना जरूरी नही ूं है कि किजिी िी
पूरी इूं जीकनयररर् क्ा है । तु म िटन दिाते हो, किजिी जि जाती है । तु म्हें एि कटर ि पता है , हर आदमी दिािर
किजिी जिा िेता है ।

ऐसे ही कटर ि उसिो पता है कि यह तािीज रखने से और यह—यह िरने से यह हो जाता है , वह उतना
िर िे रहा है । आप तािीज खरीदिर िे जाओर्े , वह तािीज किििुि िेमानी है । क्ोूंकि वह कसिग उसी िे
किए साथग ि है कजसिे ऊपर पहिे उसिा प्रयोर् किया र्या हो सिोकहत अवस्था में। आप अपनी छाती पर
रखिर िैठे रहो, िुछ भी नही ूं होर्ा। ति िर्ेर्ा कि हम ही िुछ र्ित हैं , तािीज तो ठीि; क्ोूंकि तािीज िो
तो िाम िरते दे खा है ।

तो िहुत तरह िी कमर्थ्ा, झूठी.......कमर्थ्ा और झूठी इस अथों में नही ूं कि वे िुछ भी नही ूं हैं । कमर्थ्ा और
झूठी इस अथों में कि वे क्तस्प्रचुअि नही ूं हैं , आध्याक्तत्मि नही ूं हैं , कसिग मानकसि घटनाएूं हैं । और सि चीजोूं िी
मानकसि पैरेिि घटनाएूं सूं भव हैं —सभी चीजोूं िी। तो वे पैदा िी जा सिती हैं ; दू सरा आदमी पैदा िर सिता
है । और दावेदार उतना ही िर सिता है । हाूं , र्ैर—दावेदार ज्यादा िर सिता है ।

मात्र उपब्धस्थजत से घटनेिािा शब्धिपात:

पर र्ैर—दावेदार िा मतिि है . वह िहिर नही ूं जाता कि मैं शक्तक्तपात िर रहा हूं ! मैं तु ममें ऐसा िर
दू ूं र्ा, मैं तु ममें ऐसा िर दू ूं र्ा! यह हो जाएर्ा तु ममें , मैं िरनेवािा हूं ! और जि हो जाएर्ा तो तु म मुझसे िूंधे रह
जाओर्े! वह इस सििा िोई सवाि नही ूं है । वह एि शू न्य िी भाूं कत हो र्या है वैसा आदमी। तु म उसिे पास
भी जाते हो तो िुछ होना शु रू हो जाता है । यह उसिो खयाि ही नही ूं है कि यह हो रहा है ।

एि िहुत पुरानी रोमन िहानी है कि एि िड़ा सूं त हुआ। और उसिे चररत्र िी सु र्ूंध और उसिे ज्ञान
िी किरणें दे वताओूं ति पहुूं च र्ईूं। और दे वताओूं ने आिर उससे िहा कि तु म िुछ वरदान माूं र् िो, तु म जो
िहो, हम िरने िो तै यार हैं । िेकिन उस ििीर ने िहा कि जो होना था वह हो चुिा है , और तु म मुझे मुक्तिि
में मत डािो। क्ोूंकि तु म िहते हो, माूं र्ो! अर्र मैं न माूं र्ूूं तो अकशष्टता होती है । और माूं र्ने िो मु झे िुछ िचा
नही ूं है ; िक्तम्ऻ जो मैं ने िभी नही ूं माूं र्ा था, वह सि हो र्या है । तो तु म मुझे क्षमा िरो, इस झूंझट में मुझे मत
डािोूं, इस माूं र्ने िी िकठनाई मुझ पर पै दा मत िरो। िेकिन वे दे वता तो और भी....... क्ोूंकि अि तो यह सु र्ूंध
और भी जोर से उठी इस आदमी िी, कि जो माूं र्ने िे ही िाहर हो र्या है । उन्ोूंने िहा कि ति तो तु म िुछ
माूं र् ही िो, और हम किना कदए अि न जाएूं र्े।

उस आदमी ने िहा कि िड़ी मुक्तिि हो र्ई! तो तु म्ही ूं िुछ दे दो; क्ोूंकि मैं क्ा माूं र्ूूं मुझे सू झता
नही;ूं क्ोूंकि मेरी िोई माूं र् न रही, तु म्ही ूं िुछ दे दो, मैं िे िूूंर्ा। तो उन दे वताओूं ने िहा कि हम तु म्हें ऐसी
शक्तक्त कदए दे ते हैं कि तु म कजसे छु ओर्े , वह मुदाग भी होर्ा तो कजूं दा हो जाएर्ा; िीमार होर्ा तो िीमारी ठीि हो
जाएर्ी। उसने िहा कि यह तो िड़ा िाम हो जाएर्ा। यह िड़ा िाम हो जाएर्ा। और इससे जो ठीि होर्ा वह
तो ठीि है , मेरा क्ा होर्ा? मैं िड़ी मुक्तिि में पड़ जाऊूंर्ा। क्ोूंकि मुझिो यह िर्ने िर्ेर्ा—मैं ठीि िर रहा
हूं । तो यह जो िीमार ठीि हो जाएर्ा, वह तो ठीि है , िेकिन मैं िीमार हो जाऊूंर्ा। उसने िहा कि मेरे िाित
क्ा खयाि है ? क्ोूंकि एि मुदे िो मैं छु ऊूंर्ा, वह कजूंदा हो जाएर्ा, तो मुझे िर्े र्ा—मैं कजूंदा िर रहा हूं । तो
वह तो कजूंदा हो जाएर्ा, मैं मर जाऊूंर्ा। मुझे मत मारो, मुझ पर िृपा िरो! ऐसा िुछ िरो कि मुझे पता न चिे।

तो उन दे वताओूं ने िहा, अच्छा हम ऐसा िुछ िरते हैं तु म्हारी छाया जहाूं पड़े र्ी, वहाूं िोई िीमार
होर्ा तो ठीि हो जाएर्ा, िोई मुदाग होर्ा तो कजूंदा हो जाएर्ा। उसने िहा, यह ठीि है । और इतनी और िृपा
िरो कि मेरी र्दग न पीछे िी तरि न मु ड़ सिे। नही ूं तो छाया से भी कदक्कत हो जाएर्ी— अपनी छाया! तो मेरी
र्दग न अि पीछे न मुड़े।

वह वरदान पूरा हो र्या, उस ििीर िी र्दग न मुड़नी िूंद हो र्ई। वह र्ाूं व —र्ाूं व चिता रहता। अर्र
िुम्हिाए हुए िूि पर उसिी छाया पड़ जाती तो वह क्तखि जाता, िेकिन ति ति वह जा चु िा होता। क्ोूंकि
उसिी र्दग न पीछे मुड़ सिती नही ूं थी; उसे िभी पता नही ूं चिा। और जि वह मरा तो उसने दे वताओूं से पूछा
कि तु मने जो कदया था, वह हुआ भी कि नही?ूं क्ोूंकि हमिो पता नही ूं चि पाया।

तो मुझे िर्ता है —यह िहानी प्रीकतिर है —तो घटना तो घटती है , ऐसी ही घटती है , पर वह छाया से
घटती है और र्दग न भी नही ूं मुड़ती। पर शू न्य होना चाकहए उसिी शतग , नही ूं तो र्दग न मु ड़ जाएर्ी। अर्र जरा सा
भी अहूं िार शे ष रहा तो पीछे ि टिर दे खने िा मन होर्ा, कि हुआ कि नही ूं हुआ! और अर्र हो र्या तो किर
मैंने किया है । उसे िचाना िहुत मुक्तिि हो जाएर्ा। तो शू न्य जहाूं घटता है वहाूं आसपास शक्तक्तपात जैसी िहुत
साधारण िातें हैं , िहुत िड़ी िातें नही ूं हैं , वे ऐसे ही घटने िर्ती हैं जैसे सू रज कनििता है , िूि क्तखिने िर्ते है —
िस ऐसे ही; नदी िहती है , जड़ोूं िो पानी कमि जाता है —िस ऐसे ही। न नदी दावा िरती है , न िड़े िोडग िर्ाती
है रास्ते पर कि मैंने इतने झाड़ोूं िो पानी दे कदया, इतनो में िूि क्तखि रहे हैं । यह सि िुछ.. .िोई सवाि नही ूं
है । यह नदी िो इसिा पता ही नही ूं चिता। जि ति िूि क्तखिते हैं , ति ति नदी सार्र पहुूं च र्ई होती है । तो
िहाूं िुसग त? रुििर दे खने िी भी सु कवधा िहाूं ? पीछे ि टिर मुड़ने िा उपाय िहाूं ?

तो ऐसी क्तस्थकत में जो घटता है , उसिा तो आध्याक्तत्मि मूल्य है । िेकिन जहाूं अहूं िार है , िताग है ; जहाूं
िोई िह रहा है मैं िर रहा हूं ; वहाूं किर साइकिि किनाकमनन है , किर मनस िी घटनाएूं हैं , और वह सिोहन
से ज्यादा नही ूं है ।

मेरे ध्यान में सम्मोहन का प्रयोग:

प्रश्न: ओशो आपकी जो ध्यान की नयी जिजध है ? उसमें भी क्ा सम्मोहन ि भ्रम की सां भािना नही ां
है ? कत से िोगोां को कछ भी नही ां हो रहा है ? तो क्ा ोसा है जक िे सच्चे रास्ते पर नही ां हैं ? और जजनको
कत सी प्रजक्याएां चि रही है ? क्ा िे सच्चे रास्ते पर ही हैं ? या उनमें भी कोई जान— बूझकर ही कर रहे
है ?ंां ोसी बात नही ां है क्ा?

इसमें दो—तीन िातें समझनी चाकहए। असि में, सिोहन एि कवज्ञान है। और अर्र सिोहन िा
तु म्हें धोखा दे ने िे किए उपयोर् किया जाए, तो किया जा सिता है । िेकिन सिोहन िा उपयोर् तु म्हारी
सहायता िे किए भी किया जा सिता है । और सभी कवज्ञान दोधारी तिवार हैं । अणु िी शक्तक्त है , वह खे त में र्ेहूं
भी पैदा िर सिती है , और र्ेहूं खाने वािे िो भी दु कनया से कमटा सिती है —वे दोनोूं िाम हो सिते हैं , दोनोूं ही
अणु िी शक्तक्त हैं । यह किजिी घर में हवा भी दे रही है , और इसिा तु म्हें शॉि िर्े तो तु म्हारे प्राण भी िे सिती
है । िेकिन इससे तु म किजिी िो िभी कजिेवार न ठहरा पाओर्े।

तो सिोहन, अर्र िोई अहूं िार सिोहन िा उपयोर् िरे — और दू सरे िो दिाने , और दू सरे िो
कमटाने , और दू सरे में िुछ इल्यू जूंस और सपने पैदा िरने िे किए—तो किया जा सिता है । िेकिन इससे उिटा
भी किया जा सिता है । सिोहन तो कसिग तटस्थ शक्तक्त है , वह तो एि साइूं स है । उससे तु म्हारे भीतर जो सपने
चि रहे हैं , उनिो तोडि् ने िा भी िाम किया जा सिता है ; और तु म्हारे जो इल्यूजूंस डीप रूटे ड हैं , उनिो भी
उखाड़ा जा सिता है ।

तो मेरी जो प्रकक्रया है , उसिे प्राथकमि चरण सिोहन िे ही हैं । िे किन उसिे साथ एि िु कनयादी तत्व
और जुड़ा हुआ है जो तु म्हारी रक्षा िरे र्ा और जो तु म्हें सिोकहत न होने दे र्ा— और वह है साक्षी— भाव। िस
सिोहन में और ध्यान में उतना ही ििग है । िेकिन वह िहुत िड़ा ििग है । जि तु म्हें िोई सिोकहत िरता है
तो वह तु म्हें मूक्तच्छगत िरना चाहता है , क्ोूंकि तु म मूक्तच्छगत हो जाओ तो ही किर तु म्हारे साथ िुछ किया जा
सिता है । जि मैं िह रहा हूं कि ध्यान में सिोहन िा उपयोर् है िेकिन तु म साक्षी रहो पीछे , तु म पूरे समय
जार्े रहो, जो हो रहा है उसे जानते रहो, ति तु म्हारे साथ िुछ भी तु म्हारे कवपरीत नही ूं किया जा सिता; तु म सदा
म जूद हो। सिोहन िे वही सु झाव तु म्हें िेहोश िरने िे िाम में िाए जा सिते हैं , वही सु झाव तु म्हारी िेहोशी
तोडि् ने िे भी िाम में िाए जा सिते हैं ।

तो कजसे मैं ध्यान िहता हूं उसिे प्राथकमि चरण सि िे सि सिोहन िे हैं । और होूंर्े ही, क्ोूंकि
तु म्हारी िोई भी यात्रा आत्मा िी तरि तु म्हारे मन से ही शु रू होर्ी। क्ोूंकि तु म मन में हो, वह तु म्हारी जर्ह है
जहाूं तु म हो। वही ूं से तो यात्रा शु रू होर्ी। िे किन वह यात्रा दो तरह िी हो सिती है या तो तु म्हें मन िे भीतर
एि चिरीिे पथ पर डाि दे कि तु म मन िे भीतर चक्कर िर्ाने िर्ो, िोल्ह िे िैि िी तरह चिने िर्ो। ति
यात्रा तो िहुत होर्ी, िेकिन मन िे िाहर तु म न कनिि पाओर्े। वह यात्रा ऐसी भी हो सिती है . तु म्हें मन िे
किनारे पर िे जाए और मन िे िाहर छिाूं र् िर्ाने िी जर्ह पर पहुूं चा दे । दोनोूं हाित में तु म्हारे प्राथकमि
चरण मन िे भीतर ही पड़ें र्े।

तो सिोहन िा भी प्राथकमि रूप वही है जो ध्यान िा है , िेकिन अूंकतम रूप कभन्न है , और दोनोूं िा
िक्ष्य कभन्न है । और दोनोूं िी प्रकक्रया में एि िु कनयादी तत्व कभन्न है । सिोहन चाहता है तत्काि मूच्छाग —नी ूंद, सो
जाओ। इसकिए सिोहन िा सारा सु झाव नी ूंद से शु रू होर्ा, तूं द्रा से शु रू होर्ा—सोओ, स्लीप, किर िािी िुछ
होर्ा। ध्यान िा सारा सु झाव— जार्ो, अवेि,वहाूं से होर्ा और पीछे साक्षी पर जोर रहे र्ा। क्ोूंकि तु म्हारा साक्षी
जर्ा हुआ है तो तु म पर िोई भी िाहरी प्रभाव नही ूं डािे जा सिते । और अर्र तु म्हारे भीतर जो भी हो रहा
है , वह भी तु म्हारे जानते हुए हो रहा है .......तो एि तो यह खयाि में िे ना जरूरी है ।

ध्यान—प्रयोग से बचने की तरकीबें:

और दू सरी िात यह खयाि में िेना जरूरी है कि कजनिो हो रहा है और कजनिो नही ूं हो रहा, उनमें जो
ििग है , वह इतना ही है कि कजनिो नही ूं हो रहा है उनिा सूं िल्प थोड़ा क्षीण है — भयभीत, डरे हुए; िही ूं हो न
जाए, इससे भी डरे हुए। अि यह आदमी कितना अजीि है ! िरने आए हैं , आए इसीकिए हैं कि ध्यान हो जाए।
िेकिन अि डर भी रहे हैं कि िही ूं हो न जाए! और कजनिो हो रहा है उनिो दे खिर, कजनिो नही ूं हो रहा है
उनिे मन में ऐसा िर्े र्ा िही ूं ये ऐसे ही तो नही ूं िर रहे हैं ! िही ूं िनावटी तो नही ूं िर रहे हैं !

ये कडिेंस मेजर हैं ; ये उनिे सु रक्षा िे उपाय हैं । इस भाूं कत वे िह रहे हैं कि अरे , हम िोई इतने
िमजोर नही ूं कि हमिो हो जाए! ये िमजोर िोर् हैं कजनिो हो रहा है । इससे वे अपने अहूं िार िो तृ क्तप्त भी दे
रहे हैं । और यह नही ूं जान पा रहे हैं कि यह िमजोरोूं िो नही ूं होता, यह शक्तक्तशािी िो होता है ; और यह भी
नही ूं जान पा रहे हैं कि यह िुक्तद्धहीनोूं िो नही ूं होता िुक्तद्धमानोूं िो होता है । एि ईकडयट िो न तो सिोकहत
किया जा सिता है , न ध्यान में िे जाया जा सिता है , दोनोूं ही नही ूं किया जा सिता। एि जड़िुक्तद्ध आदमी िो
सिोकहत भी नही ूं किया जा सिता। एि पार्ि आदमी िो िोई सिोकहत िर दे ति तु म्हें पता चिेर्ा कि नही ूं
िर सिता। कजतनी प्रकतभा िा आदमी हो, उतनी जल्दी सिोकहत हो जाएर्ा; और कजतना प्रकतभाहीन हो, उतनी
दे र िर् जाएर्ी। िेकिन वह प्रकतभाहीन अपनी सु रक्षा क्ा िरे ? वह सूं िल्पहीन अपनी सु रक्षा क्ा िरे ?वह
िहे र्ा कि अरे , ऐसा मािूम होता है कि इसमें िुछ िोर् तो िनिर िर रहे हैं , और िुछ कजनिो हो रहा है , ये
िमजोर शक्तक्त िे िोर् हैं , तो इनिी िोई अपनी शक्तक्त नही ूं है ; इन पर प्रभाव दू सरे िा पड़ र्या है ; ये िरने
िर्े हैं ।

अभी एि आदमी अमृतसर में मुझे कमिने आए। डाक्ङर हैं , पढ़े —किखे आदमी हैं , िे आदमी
हैं , ररटायडग हैं । वे मुझसे तीसरे कदन मािी माूं र्ने आए। उन्ोूंने मुझसे िहा, मैं कसिग आपसे मािी माूं र्ने आया हूं
क्ोूंकि मेरे मन में एि पाप उठा था उसिी मुझे क्षमा चाकहए। क्ा हुआ, मैंने उनसे पूछा। उन्ोूंने िहा, पहिे
कदन जि मैं ध्यान िरने आया तो मुझे िर्ा कि आपने दस—पाूं च आदमी अपने खड़े िर कदए हैं , जो िन—
ठनिर िुछ भी िर रहे हैं । और िुछ िमजोर िोर् हैं , वह उनिी दे खा—दे खी वे भी िरने िर्े हैं । तो ऐसा मुझे
पहिे कदन िर्ा। पर मैं ने िहा, दू सरे कदन भी मैं दे खूूं तो जािर कि अि क्ा हुआ! िे किन दू सरे कदन मैंने अपने
दो—चार कमत्र दे खे, कजनिो हो रहा था, वे सि डाक्ङर हैं । तो मैं उनिे घर र्या। मैंने िहा कि भई, अि मैं यह
नही ूं मान सिता कि तु मिो िोई उन्ोूंने तै यार किया होर्ा, िेकिन तु म िनिर िर रहे थे कि तु मिो हो रहा
था? तो उन्ोूंने िहा कि िनिर िरने िा क्ा िारण है ? िि तो हमिो भी शि था कि िुछ िोर् िनिर तो
नही ूं िर रहे ! िे किन आज तो हमें हुआ।

तो वह डाक्ङर, तीसरे कदन उसिो हुआ, तो वह तीसरे कदन मुझसे क्षमा माूं र्ने आया। उसने िहा, जि
आज मुझे हुआ तभी मेरी पूरी भ्ाूं कत र्ई। नही ूं तो मैं मान ही नही ूं सिता था, मुझे यह भी शि हुआ कि पता
नही,ूं ये डाक्ङर भी कमि र्ए होूं! आजिि िुछ पक्का तो है ही नही ूं कि ि न क्ा िरने िर्े! पता नही ,ूं ये भी
कमि र्ए होूं! अपने पहचान िे तो हैं , िेकिन क्ा िहा जा सिता है ? या किसी प्रभाव में आ र्ए होूं, कहिोटाइब्द
हो र्ए होूं, या िुछ हो र्या हो! िेकिन आज मुझे हुआ है ; और आज जि मैं घर र्या—तो उसिा छोटा भाई भी
डाक्ङर है —तो उसने िहा कि दे ख आए आप वह खे ि, वहाूं आपिो िुछ हुआ कि नही?ूं तो मैंने उससे िहा कि
माि िर भाई, अि मैं न िह सिूूंर्ा खे ि; दो कदन मैंने भी मजाि उड़ाई, िेकिन आज मुझे भी हुआ है । िे किन
मैं तु झ पर नाराज भी नही ूं होऊूंर्ा; क्ोूंकि यही तो मैं भी सोच रहा था, जो तू सोच रहा है । और उस आदमी ने
िहा कि मैं मािी माूं र्ने आया हूं क्ोूंकि मेरे मन में ऐसा खयाि उठा।

ये हमारे सु रक्षा िे उपाय हैं । कजनिो नही ूं होर्ा वे सु रक्षा िा इूं तजाम िरें र्े। िेकिन कजनिो नही ूं हो
रहा है उनमें और होनेवािोूं में िहुत इूं च भर िा ही िासिा है , कसिग सूं िल्प िी थोड़ी सी िमी है । अर्र वे
थोड़ी सी कहित जुटाएूं और सूं िल्प िरें और सूं िोच थोड़ा छोड़ सिें

अि आज ही एि मकहिा ने मुझे आिर िहा कि किसी मकहिा ने उनिो िोन किया है कि रजनीश जी
िे इस प्रयोर् में तो िोई नूंर्ा हो जाता है , िुछ हो जाता है । तो भिे घर िी मकहिाएूं तो किर आ नही ूं सिेर्ी! तो
भिे घर िी मकहिाओूं िा क्ा होर्ा?

अि किसी िो यह भी वहम होता है कि हम भिे घर िी मकहिा हैं , और िोई िुरे घर िी मकहिा है ! तो


िुरे घर िी मकहिा तो जा सिेर्ी, भिे घर िी मकहिा िा क्ा होर्ा? अि ये सि कडिेंस मे जर हैं । और वह भिे
घर िी मकहिा अपने िो भिा मानिर घर रोि िे र्ी। और भिे घर िी मकहिा िैसी है ? अर्र एि आदमी नग्न
हो रहा है तो कजस मकहिा िो भी अड़चन हो रही है , वह िुरे घर िी मकहिा है । उसे प्रयोजन क्ा है ?

जबना जकए जनणओय मत िो:

तो हमारा मन िहुत अजीि—अजीि इूं तजाम िरता है , वह िहता है कि ये सि र्ड़िड़ िातें हो रही
हैं , यह अपने िो नही ूं होनेवािा, हम िोई िमजोर थोड़े ही हैं , हम ताितवर हैं । िेकिन ताितवर होते तो हो
र्या होता; िुक्तद्धमान होते तो हो र्या होता। क्ोूंकि िुक्तद्धमान आदमी िा पहिा िक्षण तो यह है कि जि ति वह
खु द न िर िे ति ति वह िोई कनणग य न िेर्ा। वह यह भी न िहे र्ा कि दू सरा झूठा िर रहा है । क्ोूंकि मैं
ि न हूं यह कनणग य िेनेवािा? और दू सरे िे सूं िूंध में झूठे होने िा कनणग य िहुत ्ाकनपूणग है । दू सरे िे सूं िूंध में
कि वह झूठा िर रहा है ...... .हम ि न हैं ? और मैं िैसे कनणग य िरू
ूं कि दू सरा झूठा िर रहा है ? ये इसी तरह िे
र्ित कनणग य ने तो िड़ी कदक्कत डािी है ।

जीसस िो िोर्ोूं ने थोड़े ही माना कि इसिो िुछ हुआ है , नही ूं तो सू िी पर न िटिाएूं । वे समझे कि
सि...... आदमी र्ड़िड़ है , और िुछ भी िह रहा है । महावीर िो पत्थर न मारें िोर्। उनिो िर् रहा है कि यह
र्ड़िड़ आदमी है , नूंर्ा खड़ा हो र्या है , इसिो िुछ हुआ थोड़े ही है ।

दू सरे आदमी िो भीतर क्ा हो रहा है , हम कनणाग यि िहाूं हैं ? िैसे हैं ? तो जि ति मैं न िरिे दे ख िूूं
ति ति कनणग य न िे ना िु क्तद्धमिा िा िक्षण है । और अर्र मुझे नही ूं हो रहा है , तो जो प्रयोर् िहा जा रहा
है , उसिो मैं पूरा िर रहा हूं न,इसिी थोड़ी जाूं च िर िू—कि मैं उसे पूरा िर रहा हूं ? अर्र मैं पूरा नही ूं िर
रहा हूं तो होर्ा िैसे ?

इधर पोरिूंदर..... .मैं िह रहा था तो एि... आक्तखरी कदन मैंने िहा कि अर्र किसी ने स कडग्री ताित
नही ूं िर्ाई कनन्यानिे कडग्री िर्ाई, तो भी चू ि जाएर्ा। तो एि कमत्र ने आिर मुझे िहा कि मैं तो धीरे — धीरे िर
रहा था, मैंने िहा थोड़ी दे र में होर्ा। िेकिन मुझे खयाि में आया कि वह तो िभी नही ूं होर्ा, स कडग्री होनी ही
चाकहए। तो आज मैंने पूरी ताित िर्ाई तो हो र्या है । मैं तो सोचता था कि मैं धीरे — धीरे िरता रहूं र्ा, होर्ा।

धीरे — धीरे क्ोूं िर रहे थे ? नही ूं िरो, ठीि है । धीरे — धीरे क्ोूं िर रहे हो?

वह धीरे — धीरे िरने में हम दोनोूं नाव पर सवार रहना चाहते हैं । और दो नावोूं पर सवार यात्री िहुत
िकठनाई में पड़ जाता है । एि ही नाव अच्छी—नरि जाए तो भी एि तो हो। िेकिन स्वर्ग िी नाव पर भी एि
पैर रखे हैं , नरि िी नाव पर भी एि पैर रखे हैं । असि में , सूं कदग्ध है मन कि िहाूं जाना है । और डर है कि पता
नही ूं नरि में सु ख कमिेर्ा कि स्वर्ग में सु ख कमिे र्ा। दोनोूं पर पैर रखे खड़े हैं । इसमें दोनोूं जर्ह चूि सिती
हैं , और नदी में प्राणाूं त हो सिते हैं । ऐसा हमारा मन है पूरे वक्त—जाएूं र्े भी, किर वहाूं रोि भी िेंर्े। और
नुिसान होता है ।

पूरा प्रयोर् िरो! और दू सरे िे िाित कनणग य मत िो। और पूरा प्रयोर् जो भी िरे र्ा उसे होना सु कनकश्चत
है , क्ोूंकि यह कवज्ञान िी िात िह रहा हूं मैं , अि मैं िोई धमग िी िात नही ूं िह रहा हूं । और यह किििुि ही
साइूं स िा मामिा है कि अर्र इसमें पूरा हुआ तो होना कनकश्चत है , इसमें िोई और उपाय नही ूं है । क्ोूंकि
परमात्मा िो मैं शक्तक्त िह रहा हूं । उधर िोई पक्षपात, और िोई प्राथगना—व्राथगना िरने से , कि अच्छे िुि में
पैदा हुए हैं , और ििाूं घर में पैदा हुए हैं , यह सि िुछ चिेर्ा नही,ूं कि भारत भूकम में पैदा हो र्ए हैं तो ऐसे ही
पार हो जाएूं र्े , ऐसे नही ूं चिे र्ा।

किििुि कवज्ञान िी िात है । उसिो जो पूरा िरे र्ा, उसिो परमात्मा भी अर्र क्तखिाि हो जाए, तो
रोि नही ूं सिता। और न भी हो परमात्मा, तो िोई सवाि नही ूं है । पूरा िर रहे हो कि नही,ूं इसिी कििर िरो।
और सदा कनणग य भीतर िे अनुभव से िो, िाहर से मत िो। अन्यथा भूि हो सिती है ।
प्रिचन 13 - सात शरीरोां से गजरती कां डजिनी

सातिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ :

मनष्य के सात शरीर:

प्रश्न: ओशो कि की चचाओ में आपने कहा जक कां डजिनी के झठ ू े अनभि भी प्रोजेक्ट जकए जा
सकते हैं — जजन्ें आप आध्याब्धत्मक अनभि नही ां मानते हैं मानजसक मानते हैं । िेजकन प्रारां जभक चचाओ में
आपने कहा था जक कां डजिनी मात्र साइजकक है । इसका ोसा अथओ हुआ जक आप कां डजिनी की दो प्रकार
की ब्धस्थजतयाां मानते हैं — मानजसक और आध्याब्धत्मक। कृपया इस ब्धस्थजत को स्पष्ट करें ।

असि में, आदमी िे पास सात प्रिार िे शरीर हैं। एि शरीर तो जो हमें कदखाई पड़ता है—
किकजिि िॉडी, भ कति शरीर। दू सरा शरीर जो उसिे पीछे है और कजसे ईथररि िॉडी िहें — आिाश शरीर।
और तीसरा शरीर जो उसिे भी पीछे है , कजसे एस्टर ि िॉडी िहें —सू क्ष्म शरीर। और च था शरीर जो उसिे भी
पीछे है , कजसे मेंटि िॉडी िहें — मनस शरीर। और पाूं चवाूं शरीर जो उसिे भी पीछे है , कजसे क्तिचुअि िॉडी
िहें — आक्तत्मि शरीर। छठवाूं शरीर जो उसिे भी पीछे है , कजसे हम िाक्तस्भि िॉडी िहें —ब्रह्म शरीर। और
सातवाूं शरीर जो उसिे भी पीछे है , कजसे हम कनवाग ण शरीर, िॉडीिेस िॉडी िहें — अूंकतम।

इन सात शरीरोूं िे सूं िूंध में थोड़ा समझेंर्े तो किर िुूंडकिनी िी िात पूरी तरह समझ में आ सिेर्ी।

भौजतक शरीर, भाि शरीर और सू क्ष्म शरीर:

पहिे सात वषग में भ कति शरीर ही कनकमगत होता है । जीवन िे पहिे सात वषग में भ कति शरीर ही
कनकमगत होता है , िािी सारे शरीर िीजरूप होते हैं ; उनिे कविास िी सूं भावना होती है , िेकिन वे कविकसत
उपिि नही ूं होते । पहिे सात वषग , इसकिए इकमटे शन, अनुिरण िे ही वषग हैं । पहिे सात वषों में िोई
िुक्तद्ध, िोई भावना, िोई िामना कविकसत नही ूं होती, कविकसत होता है कसिग भ कति शरीर।

िुछ िोर् सात वषग से ज्यादा िभी आर्े नही ूं िढ़ पाते ; िुछ िोर् कसिग भ कति शरीर ही रह जाते हैं ।
ऐसे व्यक्तक्तयोूं में और पशु में िोई अूंतर नही ूं होर्ा। पशु िे पास भी कसिग भ कति शरीर ही होता है , दू सरे शरीर
अकविकसत होते हैं ।

दू सरे सात वषग में भाव शरीर िा कविास होता है , या आिाश शरीर िा। इसकिए दू सरे सात वषग व्यक्तक्त
िे भाव जर्त िे कविास िे वषग हैं । च दह वषग िी उम्र में इसीकिए से क्स मै्ोररटी उपिि होती है ; वह भाव
िा िहुत प्रर्ाढ़ रूप है । िुछ िोर् च दह वषग िे होिर ही रह जाते हैं , शरीर िी उम्र िढ़ती जाती है , िेकिन
उनिे पास दो ही शरीर होते हैं ।

तीसरे सात वषों में सू क्ष्म शरीर कविकसत होता है — इक्कीस वषग िी उम्र ति। दू सरे शरीर में भाव िा
कविास होता है ;तीसरे शरीर में तिग, कवचार और िु क्तद्ध िा कविास होता है ।

इसकिए सात वषग िे पहिे दु कनया िी िोई अदाित किसी िच्चे िो सजा नही ूं दे र्ी, क्ोूंकि उसिे पास
कसिग भ कति शरीर है ; और िच्चे िे साथ वही व्यवहार किया जाएर्ा जो एि पशु िे साथ किया जाता है ।
उसिो कजिेवार नही ूं ठहराया जा सिता। और अर्र िच्चे ने िोई पाप भी किया है , अपराध भी किया है , तो
यही माना जाएर्ा कि किसी िे अनुिरण में किया है , मूि अपराधी िोई और होर्ा।

तीसरे शरीर में जिचार का जिकास:

दू सरे शरीर िे कविास िे िाद— च दह वषग —एि तरह िी प्र ढ़ता कमिती है ; िेकिन वह प्र ढ़ता
य न—प्र ढ़ता है । प्रिृकत िा िाम उतने से पूरा हो जाता है । इसकिए पहिे शरीर और दू सरे शरीर िे कविास में
प्रिृकत पूरी सहायता दे ती है , िेकिन दू सरे शरीर िे कविास से मनुष्य मनुष्य नही ूं िन पाता। तीसरा शरीर—जहाूं
कवचार, तिग और िुक्तद्ध कविकसत होती है —वह कशक्षा,सूं स्कृकत, सभ्यता िा िि है । इसकिए दु कनया िे सभी मुम्ऻ
इक्कीस वषग िे व्यक्तक्त िो मताकधिार दे ते हैं ।

अभी िुछ मुम्ऻोूं में सूं घषग है अठारह वषग िे िच्चोूं िो मताकधिार कमिने िा। वह सूं घषग स्वाभाकवि
है ; क्ोूंकि जैसे— जैसे मनुष्य कविकसत हो रहा है , सात वषग िी सीमा िम होती जा रही है । अि ति ते रह और
च दह वषग में दु कनया में िड़कियाूं माकसि धमग िो उपिि होती थी ूं। अमेररिा में कपछिे तीस वषों में यह उम्र
िम होती चिी र्ई है ; ग्यारह वषग िी िड़िी भी माकसि धमग िो उपिि हो जाती है । अठारह वषग िा
मताकधिार इसी िात िी सू चना है कि मनु ष्य, जो िाम इक्कीस वषग में पूरा हो रहा था, उसे अि और जल्दी पूरा
िरने िर्ा है , वह अठारह वषग में भी पूरा िर िे रहा है ।

िेकिन साधारणत: इक्कीस वषग िर्ते हैं तीसरे शरीर िे कविास िे किए। और अकधितम िोर् तीसरे
शरीर पर रुि जाते हैं ; मरते दम ति उसी पर रुिे रहते हैं ; च था शरीर, मनस शरीर भी कविकसत नही ूं हो
पाता।

कजसिो मैं साइकिि िह रहा हूं वह च थे शरीर िी दु कनया िी िात है —मनस शरीर िी। उसिे िड़े
अदभुत और अनूठे अनु भव हैं । जैसे कजस व्यक्तक्त िी िु क्तद्ध कविकसत न हुई हो, वह र्कणत में िोई आनूंद नही ूं िे
सिता। वैसे र्कणत िा अपना आनूंद है । िोई आइूं स्टीन उसमें उतना ही रसमुग्ध होता है , कजतना िोई सूं र्ीतज्ञ
वीणा में होता हो, िोई कचत्रिार रूं र् में होता हो। आइूं स्टीन िे किए र्कणत िोई िाम नही ूं है , खे ि है । पर उसिे
किए िु क्तद्ध िा उतना कविास चाकहए कि वह र्कणत िो खे ि िना सिे।

प्रत्येक शरीर के अनांत आयाम:


जो शरीर हमारा कविकसत होता है , उस शरीर िे अनूंत—अनूंत आयाम हमारे किए खु ि जाते हैं ।
कजसिा भाव शरीर कविकसत नही ूं हुआ, जो सात वषग पर ही रुि र्या है , उसिे जीवन िा रस खाने —पीने पर
समाप्त हो जाएर्ा। कजस ि म में पहिे शरीर िे िोर् ज्यादा मात्रा में हैं , उसिी जीभ िे अकतररक्त िोई सूं स्कृकत
नही ूं होर्ी।

कजस ि म में अकधि िोर् दू सरे शरीर िे हैं , वह ि म से क्स सेंटडग हो जाएर्ी; उसिा सारा व्यक्तक्तत्व—
उसिी िकवता,उसिा सूं र्ीत, उसिी किल्म, उसिा नाटि, उसिे कचत्र, उसिे मिान, उसिी र्ाकडया—सि
किसी अथों में से क्स सें कटर ि हो जाएूं र्ी; वे सि वासना से भर जाएूं र्ी।

कजस सभ्यता में तीसरे शरीर िा कविास हो पाएर्ा ठीि से , वह सभ्यता अत्यूंत ि क्तद्धि कचूंतन और
कवचार से भर जाएर्ी। जि भी किसी ि म या समाज िी कजूंदर्ी में तीसरे शरीर िा कविास महत्वपू णग हो जाता
है , तो िड़ी वैचाररि क्राूं कतयाूं घकटत होती हैं । िुद्ध और महावीर िे वक्त में किहार ऐसी ही हाित में था कि उसिे
पास तीसरी क्षमता िो उपिि िहुत िड़ा समूह था। इसकिए िुद्ध और महावीर िी है कसयत िे आठ आदमी
किहार िे छोटे से दे श में पैदा हुए, छोटे से इिािे में। और हजारोूं प्रकतभाशािी िोर् पैदा हुए।

सु िरात और प्ले टो िे वक्त यूनान िी ऐसी ही हाित थी। िनफ्यूकशयस और िाओत्से िे समय चीन
िी ऐसी ही हाित थी। और िड़े मजे िी िात है कि ये सारे महान व्यक्तक्त पाूं च स साि िे भीतर सारी दु कनया में
हुए। उस पाूं च स साि में मनुष्य िे तीसरे शरीर ने िड़ी ऊूंचाइयाूं छु ई।

िेकिन आमत र से तीसरे शरीर पर मनुष्य रुि जाता है , अकधि िोर् इक्कीस वषग िे िाद िोई कविास
नही ूं िरते ।

चौथे मनस शरीर की अती ांजद्रय जक्याएां :

िेकिन ध्यान रहे , च था जो शरीर है उसिे अपने अनूठे अनु भव हैं —जैसे तीसरे शरीर िे हैं , दू सरे शरीर
िे हैं , पहिे शरीर िे हैं । च थे शरीर िे िड़े अनू ठे अनुभव हैं । जैसे सिोहन, टे िीपैथी, क्लेअरवायूं स— ये सि
च थे शरीर िी सूं भावनाएूं हैं । आदमी किना समय और स्थान िी िाधा िे दू सरे से सूं िूंकधत हो सिता है ; किना
िोिे दू सरे िे कवचार पढ़ सिता है या अपने कवचार दू सरे ति पहुूं चा सिता है ; किना िहे , किना समझाए, िोई
िात दू सरे में प्रवेश िर सिता है और उसिा िीज िना सिता है ,शरीर िे िाहर यात्रा िर सिता है —एस्टर ि
प्रोजेक्शन—शरीर िे िाहर घूम सिता है , अपने इस शरीर से अपने िो अिर् जान सिता है ।

इस च थे शरीर िी, मनस शरीर िी, साइकिि िॉडी िी िड़ी सूं भावनाएूं हैं , जो हम किििुि ही
कविकसत नही ूं िर पाते हैं ,क्ोूंकि इस कदशा में खतरे िहुत हैं —एि; और इस कदशा में कमर्थ्ा िी िहुत सूं भावना
है — दो। क्ोूंकि कजतनी चीजें सू क्ष्म होती चिी जाती हैं , उतनी ही कमर्थ्ा और िाल्स सूं भावनाएूं िढ़ती चिी जाती
हैं ।

अि एि आदमी अपने शरीर िे िाहर र्या या नही —


ूं वह सपना भी दे ख सिता है अपने शरीर िे
िाहर जाने िा, जा भी सिता है । और उसिे अकतररक्त, स्वयूं िे अकतररक्त और िोई र्वाह नही ूं होर्ा। इसकिए
धोखे में पड़ जाने िी िहुत र्ुूंजाइश है ;क्ोूंकि दु कनया जो शु रू होती है इस शरीर से , वह सब्जे क्तक्ङव है ; इसिे
पहिे िी दु कनया ऑब्जे क्तक्ङव है ।
अर्र मेरे हाथ में रुपया है , तो आप भी दे ख सिते हैं , मैं भी दे ख सिता हूं पचास िोर् दे ख सिते हैं ।
यह िॉमन ररयकिटी है , कजसमें हम सि सहभार्ी हो सिते हैं और जाूं च हो सिती है —रुपया है या नही?ूं िेकिन
मेरे कवचारोूं िी दु कनया में आप सहभार्ी नही ूं हो सिते , मैं आपिे कवचारोूं िी दु कनया में सहभार्ी नही ूं हो
सिता, वह कनजी दु कनया शु रू हो र्ई। जहाूं से कनजी दु कनया शु रू होती है , वहाूं से खतरा शु रू होता है ; क्ोूंकि
किसी चीज िी वैकिकडटी, किसी चीज िी सच्चाई िे सारे िाह्य कनयम खतम हो जाते हैं ।

इसकिए असिी कडसे पान िा जो जर्त है , वह च थे शरीर से शु रू होता है । उसिे पहिे िे सि


कडसे पान पिड़े जा सिते हैं , उसिे पहिे िे सि धोखे पिड़े जा सिते हैं । और ऐसा नही ूं है कि च थे शरीर में
जो धोखा दे रहा है , वह जरूरी रूप से जानिर दे रहा हो। िड़ा खतरा यह है ! वह अनजाने दे सिता है ; खु द िो
दे सिता है , दू सरोूं िो दे सिता है । उसे िुछ पता ही न हो, क्ोूंकि चीजें इतनी िारीि और कनजी हो र्ई हैं कि
उसिे खु द िे पास भी िोई िस टी नही ूं है कि वह जािर जाूं च िरे कि सच में जो हो रहा है वह हो रहा है ? कि
वह िल्पना िर रहा है ?

चौथे शरीर के िाभ और खतरे :

तो यह जो च था शरीर है , इससे हमने मनु ष्यता िो िचाने िी िोकशश िी। और अक्सर ऐसा हुआ कि
इस शरीर िा जो िोर् उपयोर् िरने वािे थे , उनिी िहुत तरह िी िदनामी और िडे मनेशन हुई। योरोप में
हजारोूं क्तस्त्रयोूं िो जिा डािा र्या कवचेज़ िहिर, डाकिनी िहिर; क्ोूंकि उनिे पास यह च थे शरीर िा िाम
था। कहूं दुस्तान में सै िड़ोूं ताूं कत्रि मार डािे र्ए इस च थे शरीर िी वजह से , क्ोूंकि वे िुछ सीक्रेटि् स जानते थे जो
कि हमें खतरनाि मािूम पड़े । आपिे मन में क्ा चि रहा है , वे जान सिते हैं ; आपिे घर में िहाूं क्ा रखा
है , यह उन्ें घर िे िाहर से पता हो सिता है । तो सारी दु कनया में इस च थे शरीर िो एि तरह िा ब्लैि आटग
समझ किया र्या कि एि िािे जादू िी दु कनया है जहाूं कि िोई भरोसा नही ूं कि क्ा हो जाए! और एििारर्ी
हमने मनुष्य िो तीसरे शरीर पर रोिने िी भरसि चेष्टा िी कि च थे शरीर पर खतरे हैं ।

खतरे थे, िेकिन खतरोूं िे साथ उतने ही अदभुत िाभ भी थे। तो िजाय इसिे कि रोिते , जाूं च—
पड़ताि जरूरी थी कि वहाूं भी हम रास्ते खोज सिते हैं जाूं चने िे। और अि कवज्ञाकनि उपिरण भी हैं और
समझ भी िढ़ी है , रास्ते खोजे जा सिते हैं । जैसे िुछ चीजोूं िे रास्ते अभी खोजे र्ए। िि ही मैं दे ख रहा था।

अभी ति यह पक्का नही ूं हो पाता था कि जानवर सपने दे खते हैं कि नही ूं दे खते । क्ोूंकि जि ति
जानवर िहे न, ति ति िैसे पता चिे ? हमारा भी पता इसीकिए चिता है कि हम सु िह िह सिते हैं कि हमने
सपना दे खा। चूूंकि जानवर नही ूं िह सिता, तो िैसे पता चिे कि जानवर सपना दे खता है या नही ूं दे खता! िहुत
तििीि से िेकिन रास्ता खोज किया र्या। एि आदमी ने िूंदरोूं पर वषों मेहनत िी यह िात जाूं चने िे किए
कि वे सपने दे खते हैं कि नही ूं।

अि अपना िहुत कनजी, च थी िॉडी िी िात है ; िहुत कनजी िात है । पर उसिी जाूं च िी उसने जो
व्यवस्था िी, वह समझने िसा है । उसने िूंदरोूं िो किल्म कदखानी शु रू िी—पदें पर किल्म कदखानी शु रू िी।
और जैसे ही किल्म चिनी शु रू हो,नीचे से िूंदर िो शॉि दे ने शु रू किए किजिी िे। और उसिी िुसी पर एि
िटन िर्ा रखी, जो उसिो कसखा दी कि जि भी उसिो शॉि िर्े तो वह िटन िूंद िर दे , तो शॉि िर्ना िूंद
हो जाए। किल्म शु रू हो और शॉि िर्े और वह िटन िूंद िरे ,ऐसा उसिा अभ्यास िराया। किर उस िुसी पर
उसिो सो जाने कदया। जि उसिा सपना चिा, तो उसिो घिराहट हुई कि शॉि न िर् जाए—नी ूंद में उसिो
घिराहट हुई; क्ोूंकि वह सपना और पदे पर किल्म एि ही चीज है उसिे किए—उसने तत्काि िटन दिाई।
इस िटन िे दिाने िा िार—िार प्रयोर् िरने पर खयाि में आया कि उसिो जि भी सपना चिता, ति वह
िटन दिा दे ता ि रन। अि सपने जैसी र्हरी भीतर िी दु कनया िे , वह भी िूंदर िी, जो िह न सिे, िाहर से
जाूं च िा िोई उपाय खोजा जा सिा।

साधिोूं ने च थे शरीर िे भी िाहर से जाूं चने िे उपाय खोज किए हैं । और अि तय किया जा सिता है
कि जो हुआ, वह सच है या र्ित, वह कमर्थ्ा है या सही; कजस िुूंडकिनी िा तु मने च थे शरीर पर अनुभव
किया, वह वास्तकवि है या झूठ। कसिग साइकिि होने से झूठ नही ूं होती, िाल्स साइकिि क्तस्थकतयाूं भी हैं और टू
साइकिि क्तस्थकतयाूं भी हैं । यानी जि मैं िहता हूं कि वह मनस िी है िात, तो इसिा मतिि यह नही ूं होता कि
झूठ हो र्ई; मनस में भी झूठ हो सिती है और मनस में भी सही हो सिती है ।

तु मने एि सपना दे खा रात। यह सपना एि सत्य है , क्ोूंकि यह घटा। िेकिन सु िह उठिर तु म ऐसे
सपने िो भी याद िर सिते हो जो तु मने दे खा नही,ूं िेकिन तु म िह रहे हो कि मैंने दे खा; ति यह झूठ है । एि
आदमी सु िह उठिर िहता है कि मैं सपना दे खता ही नही ूं। हजारोूं िोर् हैं कजनिो खयाि है कि वे सपने नही ूं
दे खते । वे सपने दे खते हैं ; क्ोूंकि सपने जाूं चने िे अि िहुत उपाय हैं कजनसे पता चिता है कि वे रात भर सपने
दे खते हैं ; िेकिन सु िह वे िहते हैं कि हमने सपने दे खे ही नही ूं। तो वे जो िह रहे हैं , किििुि झूठ िह रहे
हैं , हािाूं कि उन्ें पता नही ूं है । असि में , उनिो स्भृ कत नही ूं िचती सपने िी। इससे उिटा भी हो रहा है जो सपना
तु मने िभी नही ूं दे खा, उसिी भी तु म सु िह िल्पना िर सिते हो कि तु मने दे खा। वह झूठ होर्ा।

सपना िहने से ही िुछ झूठ नही ूं हो जाता, सपने िे अपने यथाथग हैं । झूठा सपना भी हो सिता
है , सच्चा सपना भी। मेरा मतिि समझे ? सच्चे िा मतिि यह है कि जो— हुआ है , सच में हुआ है । और ठीि—
ठीि तो सपने िो तु म िता ही नही ूं पाते सु िह। मुक्तिि से िोई आदमी है जो सपने िी ठीि ररपोटग िर सिे।

इसकिए पुरानी दु कनया में जो आदमी अपने सपने िी ठीि—ठीि ररपोटग िर सिता था, उसिी िड़ी
िीमत हो जाती थी। उसिी िड़ी िकठनाइयाूं हैं , सपने िी ररपोटग ठीि से दे ने िी। िड़ी िकठनाई तो यह है कि
जि तु म सपना दे खते हो ति उसिा सीिेंस अिर् होता है और जि याद िरते हो ति उिटा होता है , किल्म
िी तरह। जि हम किल्म दे खते हैं तो शु रू से दे खते हैं ,पीछे िी तरि। सपना जि आप दे खते हैं नी ूंद में तो जो
घटना पहिे घटी, वह स्भृकत में सिसे िाद में घटे र्ी, क्ोूंकि वह सिसे पीछे दिी रह र्ई। जि तु म सु िह उठते हो
तो सपने िा आक्तखरी कहस्सा तु म्हारे हाथ में होता है और उससे तु म पीछे िी तरि याद िरना शु रू िरते हो।
यह ऐसे उपद्रव िा िाम है , जैसे िोई किताि िो उिटी तरि से पढ़ना शु रू िरे , और सि शब्द उिटे हो
जाएूं , और वह डर्मर्ा जाए। इसकिए थोड़ी दू र ति ही जा पाते हो सपने में , िािी सि र्ड़िड़ हो जाता है । उसे
याद रखना और उसिो ठीि से ररपोटग िर दे ना िड़ी ििा िी िात है । इसकिए हम आमत र से र्ित ररपोटग
िरते हैं ; जो हमें नही ूं हुआ होता, वह ररपोटग िरते हैं । उसमें िहुत िुछ खो जाता है , िहुत िुछ िदि जाता
है , िहुत िुछ जुड़ जाता है ।

यह जो च था शरीर है , सपना इसिी ही घटना है ।

योग—जसब्धियाां, कां डजिनी, चक् इत्याजद:

इस च थे शरीर िी िड़ी सूं भावनाएूं हैं । कजतनी भी योर् में कसक्तद्धयोूं िा वणग न है , वह इस सारे च थे शरीर
िी ही व्यवस्था है । और कनरूं तर योर् ने सचेत किया है कि उनमें मत जाना। और सिसे िड़ा डर यही है कि
उसमें कमर्थ्ा में जाने िे िहुत उपाय हैं और भटि जाने िी िड़ी सूं भावनाएूं हैं । और अर्र वास्तकवि में भी चिे
जाओ तो भी उसिा आध्याक्तत्मि मूल्य नही ूं है ।

तो जि मैंने िहा कि िुूंडकिनी साइकिि है , तो मेरा मतिि यह था कि वह इस च थे शरीर िी घटना


है , वस्तु त:। इसकिए किकजयोिाकजस्ट तु म्हारे इस शरीर िो जि खोजने जाएर्ा तो उसमें िोई िुूंडकिनी नही ूं
पाएर्ा। तो तु म, सारी दु कनया िे सजगन, डाक्ङर िहें र्े कि िहाूं िी किजू ि िी िातें िर रहे हो! िुूंडकिनी जैसी
िोई चीज इस शरीर में नही ूं है ; तु म्हारे चक्र इस शरीर में िही ूं भी नही ूं हैं ।

वह च थे शरीर िी व्यवस्था है । वह च था शरीर िेकिन सू क्ष्म है , उसे पिड़ा नही ूं जा सिता, पिड़ में
तो यही शरीर आता है । िेकिन उस शरीर और इस शरीर िे तािमेि पडते हुए स्थान हैं । जैसे कि हम सात
िार्ज रख िें, और एि आिपीन सातोूं िार्ज में डाि दें , और एि छे द सातोूं िार्ज में एि जर्ह पर हो
जाए। अि समझ िो कि पहिे िार्ज पर छे द कवदा हो र्या,नही ूं है । किर भी, दू सरे िार्ज पर, तीसरे िार्ज
पर जहाूं छे द है उससे िॉरस्पाूं ड िरनेवािा स्थान पहिे िार्ज पर भी है ; छे द तो नही ूं है , इसकिए पहिे िार्ज
िी जाूं च पर वह छे द नही ूं कमिे र्ा, िेकिन पहिे िार्ज पर भी िॉरस्पाकडूं र् िोई किूं दु है ,कजसिो अर्र हाथ रखा
जाए तो वह तीसरे —च थे िार्ज पर जो किूंदु है , उसी जर्ह पर होर्ा।

तो इस शरीर में जो चक्र हैं , िुूंडकिनी है , जो िात है , वह इस शरीर िी नही ूं है , वह इस शरीर में कसिग
िॉरस्पाकडूं र् किूंदुओूं िी है । और इसकिए िोई शरीर—शास्त्री इनिार िरे तो र्ित नही ूं िह रहा है — वहाूं
िोई िुूंडकिनी नही ूं कमिती, िोई चक्र नही ूं कमिता। वह किसी और शरीर पर है । िेकिन इस शरीर से सूं िूंकधत
किूंदुओूं िा पता िर्ाया जा सिता है ।

कां डजिनी : मनस शरीर की घटना:

तो िुूंडकिनी च थे शरीर िी घटना है ; इसकिए मैंने िहा, साइकिि है । और जि मैं िह रहा हूं कि यह
साइकिि होना यह मानकसि होना भी दो तरह िा हो सिता है — र्ित और सही, तो मेरी िात तु म्हारे खयाि
में जा आएर्ी। र्ित ति होर्ा जि तु मने िल्पना िी; क्ोूंकि िल्पना भी च थे शरीर िी ही क्तस्थकत है ।

जानवर िल्पना नही ूं िर पाते । तो जानवर िा अतीत थोड़ा—िहुत होता है , भकवष्य किििुि नही ूं
होता। इसकिए जानवर कनकश्चूंत हैं , क्ोूंकि कचूंता सि भकवष्य िे िोध से पैदा होती है । जानवर रोज अपने आसपास
किसी िो मरते दे खते हैं, िेकिन यह िल्पना नही ूं िर पाते कि मैं मरू
ूं र्ा। इसकिए मृत्यु िा िोई भय जानवर
िो नही ूं है । आदमी में भी िहुत आदमी हैं कजनिो यह खयाि नही ूं आता है कि मैं मरू
ूं र्ा; उनिो भी खयाि
आता है — िोई और मरता है , िोई और मरता है , िोई और मरता है । मैं मरू
ूं र्ा, इसिा खयाि नही ूं आता।
उसिा िारण कसिग यह है कि च थे शरीर में िल्पना कजतनी कवस्तीणग होनी चाकहए कि दू र ति दे ख पाए, वह
नही ूं हो रहा।

अि इसिा मतिि यह हुआ कि िल्पना भी सही होती है और कमर्थ्ा होती है । सही िा मतिि कसिग
यह है कि हमारी सूं भावना दू र ति दे खने िी है । जो अभी नही ूं है , उसिो दे खने िी सूं भावना िल्पना िी िात
है । िेकिन जो होर्ा ही नही,ूं जो है ही नही,ूं उसिो भी मान िेना कि हो र्या है और है , वह कमर्थ्ा िल्पना होर्ी।

तो िल्पना िा अर्र ठीि उपयोर् हो तो कवज्ञान पैदा हो जाता है , क्ोूंकि कवज्ञान कसिग एि िल्पना
है —प्राथकमि रूप से । हजारोूं साि से आदमी सोचता है कि आिाश में उड़ें र्े। कजस आदमी ने यह सोचा है
आिाश में उड़ें र्े, िड़ा िल्पनाशीि रहा होर्ा। िे किन अर्र किसी आदमी ने यह न सोचा होता तो राइट ब्रदसग
हवाई जहाज नही ूं िना सिते थे। हजारोूं िोर्ोूं ने िल्पना िी है और सोचा है कि हवाई जहाज में उड़ें र्े , इसिी
सूं भावना िो जाकहर किया है । किर धीरे — धीरे , धीरे — धीरे सूं भावना प्रिट होती चिी र्ई—खोज हो र्ई और
िात हो र्ई। किर हम सोच रहे हैं हजारोूं वषों से कि चाूं द पर पहुूं चेंर्े। वह िल्पना थी उस िल्पना िो जर्ह
कमि र्ई। िेकिन वह िल्पना आथेंकटि थी। यानी वह िल्पना कमर्थ्ा िे मार्ग पर नही ूं थी। वह िल्पना भी उस
सत्य िे मार्ग पर थी जो िि आकवष्कृत हो सिता है ।

तो वैज्ञाकनि भी िल्पना िर रहा है , एि पार्ि भी िल्पना िर रहा है । तो अर्र मैं िहूं कि पार्िपन
भी िल्पना है और कवज्ञान भी िल्पना है , तो तु म यह मत समझ िेना कि दोनोूं एि ही चीज हैं । पार्ि भी
िल्पना िर रहा है , िेकिन वह ऐसी िल्पनाएूं िर रहा है कजनिा वस्तु जर्त से िभी िोई तािमे ि न है , न हो
सिता है । वैज्ञाकनि भी िल्पना िर रहा है ,िेकिन ऐसी िल्पना िर रहा है जो वस्तु जर्त से तािमेि रखती है ।
और अर्र िही ूं तािमेि नही ूं रखती है तो तािमेि होने िी सूं भावना है पूरी िी पूरी।

तो इस च थे शरीर िी जो भी सूं भावनाएूं हैं उनमें सदा डर है कि हम िही ूं भी चूि जाएूं और कमर्थ्ा िा
जर्त शु रू हो जाता है । तो इसकिए इस च थे शरीर में जाने िे पहिे सदा अच्छा है कि हम िोई अपेक्षाएूं िे िर
न जाएूं , एक्सपेक्ङेशूंस न होूं। क्ोूंकि यह च था शरीर मनस शरीर है ।

जैसे कि मुझे अर्र इस मिान से नीचे उतरना है —वस्तु त, तो मुझे सीकढ़याूं खोजनी पड़े र्ी, किफ्ट
खोजनी पड़े र्ी। िेकिन मुझे अर्र कवचार में उतरना है , तो किफ्ट और सीढ़ी िी िोई जरूरत नही,ूं मैं यही ूं
िैठिर उतर जाऊूंर्ा।

तो कवचार और िल्पना में खतरा यह है कि चूूंकि िुछ नही ूं िरना पड़ता, कसिग कवचार िरना पड़ता
है , िोई भी उतर सिता है । और अर्र अपेक्षाएूं िेिर िोई र्या, तो जो अपेक्षाएूं िेिर जाता है उन्ी ूं में उतर
जाएर्ा। क्ोूंकि मन िहे र्ा कि ठीि है , िुूंडकिनी जर्ानी है ? यह जार् र्ई! और तु म िल्पना िरने िर्ोर्े कि
जार् रही, जार् रही, जार् रही। और तु म्हारा मन िहे र्ा कि किििुि जार् र्ई और िात खत्म हो र्ई, िुूंडकिनी
उपिि हो र्ई है ; चक्र खु ि र्ए हैं ; ऐसा हो र्या।

िेकिन इसिो जाूं चने िी िोई िस टी है । और वह िस टी यह है कि प्रत्येि चक्र िे साथ तु म्हारे


व्यक्तक्तत्व में आमूि पररवतग न होर्ा। उस पररवतग न िी तु म िल्पना नही ूं िर सिते , क्ोूंकि वह पररवतग न वस्तु
जर्त िा कहस्सा है ।

कां डजिनी जागरण से व्यब्धित्व में आमूि रूपाां तरण:

जैसे, िुूंडकिनी जार्े तो शराि नही ूं पी जा सिती है । असूं भव है ! क्ोूंकि वह जो मनस शरीर है , वह
सिसे पहिे शराि से प्रभाकवत होता है ; वह िहुत डे कििेट है । इसकिए िड़ी है रानी िी िात जानिर होर्ी कि
अर्र स्त्री शराि पी िे और पुरुष शराि पी िे , तो पुरुष शराि पीिर इतना खतरनाि िभी नही ूं होता, कजतनी
स्त्री शराि पीिर खतरनाि हो जाती है । उसिा मनस शरीर और भी डे कििेट है । अर्र एि पुरुष और एि
स्त्री िो शराि कपिाई जाए, तो पुरुष शराि पीिर इतना खतरनाि िभी नही ूं होता, कजतना स्त्री हो जाए। स्त्री तो
इतनी खतरनाि कसद्ध होर्ी शराि पीिर कजसिा िोई कहसाि िर्ाना मुक्तिि है । उसिे पास और भी
डे कििेट मेंटि िॉडी है , जो इतनी शीघ्रता से प्रभाकवत होती है कि किर उसिे वश िे िाहर हो जाती है ।

इसकिए क्तस्त्रयोूं ने आमत र से नशे से िचने िी व्यवस्था िर रखी है , पुरुषोूं िी िजाय ज्यादा। इस
मामिे में उन्ोूंने समानता िा दावा अि ति नही ूं किया था। िेकिन अि वे िर रही हैं , वह खतरनाि होर्ा।
कजस कदन भी वे इस मामिे में समानता िा दावा िरें र्ी, उस कदन पुरुष िे नशे िरने से जो नु िसान नही ूं
हुआ, वह स्त्री िे नशे िरने से होर्ा।

यह जो च था शरीर है , इसमें सच में ही िुूंडकिनी जर्ी है , यह तु म्हारे िहने और अनुभव िरने से कसद्ध
नही ूं होर्ा क्ोूंकि वह तो झूठ में भी तु म्हें अनुभव होर्ा और तु म िहोर्े। नही,ूं वह तो तु म्हारा जो वस्तु जर्त िा
व्यक्तक्तत्व है , उससे तय हो जाएर्ा कि वह घटना घटी है या नही ूं घटी है ; क्ोूंकि उसमें तत्काि ििग पड़ने शु रू
हो जाएूं र्े।

इसकिए मैं कनरूं तर िहता हूं कि आचरण जो है वह िस टी है —साधन नही ूं है , भीतर िुछ घटा
है , उसिी िस टी है । और प्रत्येि प्रयोर् िे साथ िुछ िातें अकनवायग रूप से घटना शु रू होूंर्ी। जैसे च थे शरीर
िी शक्तक्त िे जर्ने िे िाद किसी भी तरह िा मादि द्रव्य नही ूं किया जा सिता। अर्र किया जाता है , और
उसमें रस है, तो जानना चाकहए कि किसी कमर्थ्ा िुूंडकिनी िे खयाि में पड़ र्ए हो। वह नही ूं सूं भव है ।

जैसे िुूंडकिनी जार्ने िे िाद कहूं सा िरने िी वृ कि सि तरि से कवदा हो जाएर्ी—कहूं सा िरना ही
नही,ूं कहूं सा िरने िी वृकि! क्ोूंकि कहूं सा िरने िी जो वृ कि है , कहूं सा िरने िा जो भाव है , दू सरे िो नुिसान
पहुूं चाने िी जो भावना और िामना है वह तभी ति हो सिती है जि ति कि तु म्हारी िुूंडकिनी शक्तक्त नही ूं
जर्ी है । कजस कदन वह जर्ती है , उसी कदन से तु म्हें दू सरा दू सरा नही ूं कदखाई पड़ता, कि उसिो तु म नुिसान
पहुूं चा सिो, उसिो तु म नुिसान नही ूं पहुूं चा सिते । और ति तु म्हें कहूं सा रोिनी नही ूं पड़े र्ी, तु म कहूं सा नही ूं िर
पाओर्े। और अर्र ति भी रोिनी पड़ रही हो, तो जानना चाकहए कि अभी वह जर्ी नही ूं है । अर्र तु म्हें अि भी
सूं यम रखना पड़ता हो कहूं सा पर, तो समझना चाकहए कि अभी िुूंडकिनी नही ूं जर्ी है ।

अर्र आूं ख खु ि जाने पर भी तु म ििड़ी से टटोि—टटोििर चिते हो, तो समझ िेना चाकहए आूं ख
नही ूं खु िी है — भिा तु म कितना ही िहते हो कि आूं ख खु ि र्ई है । क्ोूंकि तु म अभी ििड़ी नही ूं छोड़ते और
तु म टटोिना अभी जारी रखे हुए हो,टटोिना भी िूं द नही ूं िरते । तो साि समझा जा सिता है । हमें पता नही ूं है
कि तु म्हारी आूं ख खु िी है कि नही ूं खु िी िेकिन तु म्हारी ििड़ी और तु म्हारा टटोिना और डर—डरिर तु म्हारा
चिना िताता है कि आूं ख नही ूं खु िी है ।

चररत्र में आमूि पररवतग न होर्ा। और सारे कनयम, जो िहे र्ए हैं महाव्रत, वे सहज हो जाएूं र्े। तो
समझना कि सच में ही आथेंकटि है —साइकिि ही है , िेकिन आथें कटि है । और अि आर्े जा सिते हो, क्ोूंकि
आथेंकटि से आर्े जा सिते हो; अर्र झूठी है तो आर्े नही ूं जा सिते । और च था शरीर मुिाम नही ूं है , अभी
और शरीर हैं ।

चौथे शरीर में चमत्कारोां का प्रारां भ:

तो मैंने िहा कि च था शरीर िम िोर्ोूं िा कविकसत होता है । इसीकिए दु कनया में कमरे िल्स हो रहे हैं ।
अर्र च था शरीर हम सििा कविकसत हो तो दु कनया में चमत्कार तत्काि िूंद हो जाएूं र्े। यह ऐसे ही है , जैसे कि
च दह साि ति हमारा शरीर कविकसत हो, और हमारी िु क्तद्ध कविकसत न हो पाए, तो एि आदमी जो कहसाि—
किताि िर्ा सिता हो िुक्तद्ध से , र्कणत िा कहसाि िर सिता हो, वह चमत्कार मािूम हो।

ऐसा था। आज से हजार साि पहिे जि िोई िह दे ता था कि ििाूं कदन सू यग—ग्रहण पड़े र्ा, तो वह
िड़ी चमत्कार िी िात थी, वह परम ज्ञानी ही िता सिता था। अि आज हम जानते हैं कि यह मशीन िता
सिती है , यह कसिग र्कणत िा कहसाि है । इसमें िोई ज्योकतष और िोई प्रोिेसी और िोई िड़े भारी ज्ञानी िी
जरूरत नही ूं है , एि िूंप्यू टर िता सिता है — और एि साि िा नही,ूं आनेवािे िरोड़ोूं साि िा िता सिता है
कि िि—िि सू यग—ग्रहण पड़े र्ा। और अि तो िूंप्यू टर यह भी िता सिता है कि सू रज िि ठूं डा हो जाएर्ा।
क्ोूंकि अि तो सारा कहसाि है ! वह कजतनी र्मी िेंि रहा है , उससे उसिी कितनी र्मी रोज िम होती जा रही
है , उसमें कितना र्मी िा भूं डार है , वह इतने हजार वषग में ठूं डा हो जाएर्ा, एि मशीन िता दे र्ी। िेकिन यह
अि हमिो चमत्कार नही ूं मािूम पड़े र्ा, क्ोूंकि हम सि तीसरे शरीर िो कविकसत िर किए हैं । आज से हजार
साि पहिे यह िात चमत्कार िी थी कि िोई आदमी िता दे कि अर्िे साि, ििाूं रात िो, ऐसा होर्ा कि चाूं द
पर ग्रहण हो जाएर्ा। तो जि साि भर िाद ग्रहण हो जाता, तो हमें मानना पड़ता कि यह आदमी अि किि है ।

अभी जो चमत्कार घट रहे हैं , कि िोई आदमी तािीज कनिाि दे ता है , किसी आदमी िी तस्वीर से राख
कर्र जाती है , ये सि च थे शरीर िे किए िड़ी साधारण सी िातें हैं । िेकिन वह हमारे पास नही ूं है , तो हमारे किए
िड़ा भारी चमत्कार है ।

यह सारी िात ऐसी है जैसे कि एि झाड़ िे नीचे तु म खड़े हो और मैं झाड़ िे ऊपर िैठा हूं । मैं तुमसे
िहता हूं कि घूंटे भर िाद एि िै िर्ाड़ी इस रास्ते पर आएर्ी। वह मुझे कदखाई पड़ रही है —मैं झाडू िे ऊपर
िैठा हूं तु म झाडू िे नीचे िैठे हो, हम दोनोूं में िातें हो रही हैं । मैं िहता हूं एि घूंटे िाद एि िैिर्ाड़ी इस झाड़
िे नीचे आएर्ी।

तु म िहते हो, िड़े चमत्कार िी िातें िर रहे हो! िैिर्ाड़ी िही ूं कदखाई नही ूं पड़ती। क्ा आप िोई
भकवष्यवक्ता हैं ? मैं नही ूं मान सिता।

िेकिन घूंटे भर िाद िैिर्ाड़ी आ जाती है , और ति आपिो मेरे चरण छूने पड़ते हैं कि र्ुरुदे व, मैं
नमस्कार िरता हूं आप िड़े भकवष्यवक्ता हैं । िेकिन ििग िुि इतना है कि मैं थोड़ी ऊूंचाई पर एि झाड़ पर
िैठा हूं जहाूं से मुझे िै िर्ाड़ी घूंटे भर पहिे वतग मान हो र्ई थी। भकवष्य िी िात मैं नही ूं िह रहा हूं मैं भी वतग मान
िी ही िात िह रहा हूं । िेकिन आपिे वतग मान में , मेरे वतग मान में घूंटे भर िा िासिा है , क्ोूंकि मैं एि ऊूंचाई
पर िैठा हूं । आपिे किए घूंटे भर िाद वह वतग मान िनेर्ा, मेरे किए अभी वतग मान हो र्या है ।

तो कजतने र्हरे शरीर पर व्यक्तक्त खड़ा हो जाएर्ा, उतना ही पीछे िे शरीर िे िोर्ोूं िे किए चमत्कार हो
जाएर्ा। और उसिी सि चीजें कमरे िुिस मािूम पड़ने िर्ें र्ी कि यह हो रहा है , यह हो रहा है , यह हो रहा है ।
और हमारे पास िोई उपाय न होर्ा कि िैसे हो रहा है ; क्ोूंकि उस च थे शरीर िे कनयम िा हमें िोई पता नही ूं
है । इसकिए दु कनया में जादू चिता है ,चमत्कार घकटत होते हैं ; वे सि च थे शरीर िे थोड़े से कविास से हैं ।

इसकिए दु कनया से अर्र चमत्कार खतम िरने होूं, तो िोर्ोूं िो समझाने से खतम नही ूं होूंर्े; चमत्कार
खतम िरने होूं तो जैसे हम तीसरे शरीर िी कशक्षा दे िर प्रत्येि व्यक्तक्त िो र्कणत और भाषा समझने िे योग्य
िना दे ते हैं , उसी तरह हमें च थे शरीर िी कशक्षा भी दे नी पड़े र्ी और प्रत्येि व्यक्तक्त िो इस तरह िी चीजोूं िे
योग्य िना दे ना होर्ा। ति दु कनया से चमत्कार कमटें र्े, उसिे पहिे नही ूं कमट सिते । िोई न िोई आदमी इसिा
िायदा िेता रहे र्ा।

च था शरीर अट्ठाइस वषग ति कविकसत होता है —यानी सात वषग किर और। िेकिन मैंने िहा कि िम
ही िोर् इसिो कविकसत िरते हैं ।

पाां चिाां आत्म शरीर:


पाूं चवाूं शरीर िहुत िीमती है , कजसिो अध्यात्म शरीर या स्वकपचुअि िॉडी िहें । वह पैंतीस वषग िी उम्र
ति, अर्र ठीि से जीवन िा कविास हो, तो उसिो कविकसत हो जाना चाकहए।

िेकिन वह तो िहुत दू र िी िात है , च था शरीर ही नही ूं कविकसत हो पाता। इसकिए आत्मा वर्ैरह हमारे
किए िातचीत है , कसिग चचाग है ; उस शब्द िे पीछे िोई िूंटें ट नही ूं है । जि हम िहते हैं ' आत्मा ', तो उसिे
पीछे िुछ नही ूं होता, कसिग शब्द होता है , जि हम िहते हैं ' दीवाि', तो कसिग शब्द नही ूं होता, पीछे िूंटें ट होता
है । हम जानते हैं , दीवाि यानी क्ा। ' आत्मा' िे पीछे िोई अथग नही ूं है , क्ोूंकि आत्मा हमारा अनु भव नही ूं है ।
वह पाूं चवाूं शरीर है । और च थे शरीर में िुूंडकिनी जर्े तो ही पाूं चवें शरीर में प्रवेश हो सिता है , अन्यथा पाूं चवें
शरीर में प्रवेश नही ूं हो सिता। च थे िा पता नही ूं है , इसकिए पाूं चवें िा पता नही ूं हो पाता। और पाूं चवाूं भी िहुत
थोड़े से िोर्ोूं िो पता हो पाता है । कजसिो हम आत्मवादी िहते हैं , िुछ िोर् उस पर रुि जाते हैं ,और वे िहते
हैं िस यात्रा पूरी हो र्ई; आत्मा पा िी और सि पा किया।

यात्रा अभी भी पूरी नही ूं हो र्ई।

इसकिए जो िोर् इस पाूं चवें शरोर पर रुिेंर्े , वे परमात्मा िो इनिार िर दें र्े, वे िहें र्े, िोई ब्रह्म, िोई
परमात्मा वर्ैरह नही ूं है । जैसे जो पहिे शरीर पर रुिेर्ा, वह िह दे र्ा कि िोई आत्मा वर्ैरह नही ूं है । तो एि
शरीरवादी है , एि मैटीररयकिस्ट है ,वह िहता है . शरीर सि िुछ है ; शरीर मर जाता है , सि मर जाता है । ऐसा
ही आत्मवादी है , वह िहता है . आत्मा ही सि िुछ है , इसिे आर्े िुछ भी नही;ूं िस परम क्तस्थकत आत्मा है ।
िेकिन वह पाूं चवाूं शरीर ही है ।

छठिाां ब्रह्म शरीर और सातिाां जनिाओ ण काया:

छठवाूं शरीर ब्रह्म शरीर है , वह िाक्तस्भि िॉडी है । जि िोई आत्मा िो कविकसत िर िे और उसिो
खोने िो राजी हो,ति वह छठवें शरीर में प्रवेश िरता है । वह ियािीस वषग िी उम्र ति सहज हो जाना
चाकहए— अर्र दु कनया में मनुष्य—जाकत वैज्ञाकनि ढूं र् से कविास िरे , तो ियािीस वषग ति हो जाना चाकहए।

और सातवाूं शरीर उनचास वषग ति हो जाना चाकहए। वह सातवाूं शरीर कनवाग ण िाया है , वह िोई शरीर
नही ूं है , वह िॉडीिेसनेस िी हाित है । वह परम है । वहाूं शू न्य ही शे ष रह जाएर्ा। वहाूं ब्रह्म भी शे ष नही ूं है ।
वहाूं िुछ भी शे ष नही ूं है । वहाूं सि समाप्त हो र्या है ।

इसकिए िुद्ध से जि भी िोई पूछता है , वहाूं क्ा होर्ा? तो वे िहते हैं जैसे दीया िुझ जाता है , किर क्ा
होता है ? खो जाती है ज्योकत, किर तु म नही ूं पूछते , िहाूं र्ई? किर तु म नही ूं पूछते , अि िहाूं रहती होर्ी? िस खो
र्ई।

कनवाग ण शब्द िा मतिि होता है , दीये िा िुझ जाना। इसकिए िु द्ध िहते हैं , कनवाग ण हो जाता है । पाूं चवें
शरीर ति मोक्ष िी प्रतीकत होर्ी, क्ोूंकि परम मुक्तक्त हो जाएर्ी; ये चार शरीरोूं िे िूंधन कर्र जाएूं र्े और आत्मा
परम मुक्त होर्ी।

तो मोक्ष जो है , वह पाूं चवें शरीर िी अवस्था िा अनुभव है ।


अर्र च थे शरीर पर िोई रुि जाए, तो स्वर्ग िा या नरि िा अनुभव होर्ा; वे च थे शरीर िी
सूं भावनाएूं हैं ।

अर्र पहिे , दू सरे और तीसरे शरीर पर िोई रुि जाए, तो यही जीवन सि िुछ है —जन्म और मृत्यु िे
िीच; इसिे िाद िोई जीवन नही ूं है ।

अर्र च थे शरीर पर चिा जाए, तो इस जीवन िे िाद नरि और स्वर्ग िा जीवन है , दु ख और सु ख िी


अनूंत सूं भावनाएूं हैं वहाूं ।

अर्र पाूं चवें शरीर पर पहुूं च जाए, तो मोक्ष िा द्वार है ।

अर्र छठवें पर पहुूं च जाए, तो मोक्ष िे भी पार ब्रह्म िी सूं भावना है ; वहाूं न मुक्त है , न अमुक्त है , वहाूं
जो भी है उसिे साथ वह एि हो र्या। अहूं ब्रह्माक्तस्भ िी घोषणा इस छठवें शरीर िी सूं भावना है ।

िेकिन अभी एि िदम और, जो िास्ट जूंप है —जहाूं न अहूं है , न ब्रह्म है, जहाूं मैं और तू दोनोूं नही ूं
हैं ; जहाूं िुछ है ही नही,ूं जहाूं परम शू न्य है — टोटि, एब्सोल्यु ट वॉयड—वह कनवाग ण है ।

हर सात साि में एक शरीर का जिकास:

ये सात शरीर हैं । इसकिए पचास वषग िी....... .उनचास वषग में यह पूरा होता है , इसकिए औसतन पचास
वषग िो क्राूं कत िा किूंदु समझा जाता था। पच्चीस वषग ति एि जीवन—व्यवस्था थी। इस पच्चीस वषग में िोकशश
िी जाती थी कि हमारे जो भी जरूरी शरीर हैं वे कविकसत हो जाएूं —यानी च थे शरीर ति आदमी पहुूं च
जाए; मनस शरीर ति आदमी पहुूं च जाए, तो उसिी कशक्षा पूरी हुई। किर वह पाूं चवें शरीर िो जीवन में खोजे।
और पचास वषग ति—शे ष पच्चीस वषों में —वह सातवें शरीर िो उपिि हो जाए। इसकिए पचास वषग में दू सरा
क्राूं कत िा किूंदु आएर्ा कि अि वह वानप्रस्थ हो जाए। वानप्रस्थ िा मतिि िेवि इतना ही है कि उसिा मुख
अि जूंर्ि िी तरि हो जाए; अि आदमी िी तरि से , समाज िी तरि से, भीड़ िी तरि से वह मुूंह िो िेर
िे। और पचहिर वषग किर एि क्राूं कत िा किूंदु है जहाूं से वह सूं न्यस्त हो जाए। वन िी तरि मुूंह िेर िे — यह
भीड़ और आदमी से िचे। और सूं न्यस्त िा मतिि है — अपने से भी िचे , अि अपने से भी मुूंह िेर िे। मतिि
समझ रहे हो न तु म?यानी जूंर्ि में अि मैं तो िच ही जाऊूंर्ा! किर इसिो भी छोड़ने िा वक्त है कि पचहिर
वषग में किर इसिो भी छोड़ दे ।

िेकिन र्ृ हस्थ जीवन में उसिे सातोूं शरीर िा अनुभव और कविास हो जाना चाकहए, तो यह सि आर्े
िड़ा सहज और आनूंदपूणग हो जाएर्ा; और अर्र यह न हो पाए, तो यह िड़ा िकठन हो जाएर्ा। क्ोूंकि प्रत्येि
उम्र िे साथ कविास िी एि क्तस्थकत जु ड़ी है । अर्र एि िच्चे िा शरीर सात वषग में स्वस्थ न हो पाए, तो किर
कजूंदर्ी भर वह किसी न किसी अथों में िीमार रहे र्ा। ज्यादा से ज्यादा हम इतना ही इूं तजाम िर सिते हैं कि
वह िीमार न रहे , िेकिन स्वस्थ िभी न हो सिेर्ा। क्ोूंकि उसिी िे कसि िाउूं डेशन जो सात साि में पड़नी
थी, वह डर्मर्ा र्ई; वह उसी वक्त पड़नी थी। जैसे कि हमने मिान िी नीवूं भरी, अर्र नी ूंव िमजोर रह
र्ई, तो कशखर पर पहुूं चिर उसिो ठीि िरना िहुत मुक्तिि मामिा है ; वह जि नी ूंव भरी थी तभी मजिूत हो
जानी चाकहए थी।

तो वे जो पहिे सात वषग हैं , वह अर्र भ कति शरीर िे किए पूरी व्यवस्था कमि जाए, तो िात िने र्ी।
दू सरे सात वषग में अर्र भाव शरीर िा ठीि कविास न हो पाए, तो पच्चीस से क्सुअि परवशगन पैदा हो
जाएूं र्े ; किर उनिो सु धारना िहुत मुक्तिि हो जाएर्ा। वह वही वक्त है , जि कि तै यारी उसिी हो जानी चाकहए।
यानी जीवन िी प्रत्येि सीडी पर प्रत्येि शरीर िी साधना िा सु कनकश्चत समय है । उसमें इूं च, दो इूं च िा िेर—
िासिा और िात है । िेकिन एि सु कनकश्चत समय है ।

हर शरीर का समय पर जिकजसत हो जाना जरूरी:

अर्र किसी िच्चे में च दह साि ति से क्स िा कविास न हो पाए, तो अि उसिी पूरी कजूंदर्ी किसी
तरह िी मुसीित में िीते र्ी। अर्र इक्कीस वषग ति उसिी िु क्तद्ध कविकसत न हो पाए, तो किर अि िहुत िम
उपाय हैं कि इक्कीस वषग िे िाद हम उसिी िुक्तद्ध िो कविकसत िरवा पाएूं ।

िेकिन इस सूं िूंध में हम सि राजी हो जाते हैं कि यह ठीि िात है । इसकिए हम पहिे शरीर िी भी
कििर िर िेते हैं ,स्कूि में भी पढ़ा दे ते हैं , सि िर दे ते हैं । िेकिन िाद िे शरीरोूं िा कविास भी उस सु कनकश्चत
उम्र से िूंधा हुआ है , और वह चू ि जाने िी वजह से िहुत िकठनाई होती है । एि आदमी पचास साि िी उम्र में
उस शरीर िो कविकसत िरने में िर्ता है जो उसे इक्कीस वषग में िर्ना चाकहए था। तो इक्कीस वषग में कजतनी
ताित उसिे पास थी उतनी पचास वषग में उसिे पास नही ूं है । इसकिए अिारण िकठनाई पड़ती है और उसे
िहुत ज्यादा श्रम उठाना पड़ता है जो कि इक्कीस वषग में आसान हुआ होता। वह अि एि िूं िा पथ और िकठन
पथ हो जाता है । और एि िकठनाई हो जाती है कि इक्कीस वषग में उस द्वार पर खड़ा था, और इक्कीस वषग और
पचास वषग िे िीच तीस वषग में वह इतने िाजारोूं में भटिा है कि वह दरवाजे पर भी नही ूं है अि, जहाूं इक्कीस
वषग में अपने आप खड़ा हो र्या था, जहाूं से जरा सी चोट और दरवाजा खु िता, अि उसिो वह दरवाजा किर से
खोजना है । और वह इस िीच इतना भटि चु िा है और इतने दरवाजे दे ख चुिा है कि उसे पता िर्ाना भी
मुक्तिि है कि वह दरवाजा ि न सा है , कजस पर मैं इक्कीस वषग में खड़ा हो र्या था।

इसकिए पच्चीस वषग ति िड़ी सु कनयोकजत व्यवस्था िी जरूरत है िच्चोूं िे किए। वह इतनी सु कनयोकजत
होनी चाकहए कि उनिो च थे पर तो पहुूं चा दे । च थे िे िाद िहुत आसान है मामिा। िाउूं डेशन सि भर दी र्ई
हैं , अि तो कसिग िि आने िी िात है । पाूं चवें से िि आने शु रू हो जाते हैं । च थे ति वृक्ष कनकमगत होता
है , पाूं चवें से िि आने शु रू होते हैं , सातवें पर पूरे हो जाते हैं । इसमें थोड़ी दे र —अिेर हो सिती है , िेकिन यह
िुकनयाद पूरी िी पूरी मजिूत हो जाए।

इस सूं िूंध में एि—दो िातें और खयाि में िे िेनी चाकहए।

स्त्री और परुष के चार जिद् यतीय शरीर:

चार शरीर ति स्त्री और पु रुष िा िासिा है । जै से िोई व्यक्तक्त पुरुष है , तो उसिी किकजिि िॉडी
मेि िॉडी होती है , वह पुरुष शरीर होता है उसिा भ कति शरीर। िे किन उसिे पीछे िी, नूंिर दो िी ईथररि
िॉडी, भाव शरीर स्त्रैण होती है ; वह िीमेि िॉडी होती है । क्ोूंकि िोई कनर्ेकटव या िोई पाकजकटव अिेिा नही ूं
रह सिता। स्त्री िा शरीर और पु रुष िा शरीर, इसिो अर्र हम कवदि् युत िी भाषा में िहें , तो कनर्ेकटव और
पाकजकटव िॉडीज़ हैं ।

स्त्री िे पास कनर्ेकटव िॉडी है — स्थूि। इसीकिए स्त्री िभी भी से क्स िे सूं िूंध में आक्रामि नही ूं हो
सिती, वह पुरुष पर ििात्कार नही ूं िर सिती; उसिे पास कनर्ेकटव िॉडी है । वह ििात्कार झेि सिती
है , िर नही ूं सिती। पुरुष िी किना इच्छा िे स्त्री उसिे साथ िुछ भी नही ूं िर सिती। िेकिन पु रुष िे पास
पाकजकटव िॉडी है , वह स्त्री िी किना इच्छा िे भी िुछ िर सिता है , आक्रामि शरीर है उसिे पास। कनर्ेकटव
िा मतिि ऐसा नही ूं कि शू न्य , और ऐसा नही ूं कि ऋणात्मि। कनर्ेकटव िा मतिि कवदि् युत िी भाषा में इतना ही
होता है —ररजवाग यर। स्त्री िे पास एि ऐसा शरीर है कजसमें शक्तक्त सूं रकक्षत है —िडी शक्तक्त सूं रकक्षत है । िे किन
सकक्रय नही ूं है , है वह कनक्तष्कय शक्तक्त।

इसकिए क्तस्त्रयाूं िुछ सृ जन नही ूं िर पाती ूं— न िोई िड़ी िकवता िा जन्म िर पाती हैं , न िोई िड़ी
पेंकटूं र् िना पाती हैं ,न िोई कवज्ञान िी खोज िर पाती हैं । उनिे ऊपर िोई िड़ी खोज नही ूं है , उनिे ऊपर िोई
सृ जन नही ूं है । क्ोूंकि सृ जन िे किए आक्रामि होना जरूरी है , वे कसिग प्रतीक्षा िरती रहती हैं । इसकिए कसिग
िच्चे पैदा िर पाती हैं ।

पुरुष िे पास एि पाकजकटव िॉडी है — भ कति शरीर। िेकिन जहाूं भी पाकजकटव है , उसिे पीछे
कनर्ेकटव िो होना चाकहए,नही ूं तो वह कटि नही ूं सिता। वे दोनोूं इिट्ठे ही म जू द होते हैं , ति उनिा पूरा सकिगि
िनता है । तो पुरुष िा जो नूंिर दो िा शरीर है , वह स्त्रैण है ; स्त्री िे पास जो नूंिर दो िा शरीर है , वह पुरुष िा
है ।

इसकिए एि और मजे िी िात है कि पु रुष कदखता िहुत ताितवर है —जहाूं ति उसिे भ कति शरीर
िा सूं िूंध है , वह िहुत ताितवर है ; िेकिन उसिे पीछे एि िमजोर शरीर खड़ा हुआ है , स्त्रैण। इसकिए उसिी
ताित क्षणोूं में प्रिट होर्ी, िूंिे अरसे में वह स्त्री से हार जाएर्ा; क्ोूंकि स्त्री िे पीछे जो शरीर है , वह पाकजकटव
है ।

इसकिए रे कसस्टें स िी, सहने िी क्षमता पुरुष से स्त्री में सदा ज्यादा होर्ी। अर्र एि िीमारी पुरुष और
स्त्री पर हो, तो स्त्री उसे िूंिे समय ति झेि सिती है , पुरुष उतने िूंिे समय ति नही ूं झेि सिता। िच्चे क्तस्त्रयाूं
पैदा िरती हैं , अर्र पुरुष िो पैदा िरना पड़े ति उसे पता चिे। शायद दु कनया में किर सूं तकत—कनयमन िी
िोई जरूरत न रह जाए, वह िूंद ही िर दे । वह इतना िष्ट नही ूं झेि सिता— और इतना िूंिा! क्षण, दो क्षण
िो क्रोध में वह पत्थर िेंि सिता है , िेकिन न महीने एि िच्चे िो पेट में नही ूं झे ि सिता और वषों ति उसे
िड़ा नही ूं िर सिता। और रात भर वह रोए तो उसिी र्दग न दिा दे र्ा, उसिो झेि नही ूं सिता। ताित तो
उसिे पास ज्यादा है , िेकिन पीछे उसिे पास एि डे कििेट और िमजोर शरीर है कजसिी वजह से वह उसिो
झेि नही ूं पाता। इसकिए क्तस्त्रयाूं िम िीमार पडती हैं ।

क्तस्त्रयोूं िी उम्र पुरुष से ज्यादा है । इसकिए हम पाूं च साि िा िासिा रखते हैं शादी िरते वक्त। नही ूं
तो दु कनया कवधवाओूं से भर जाए। इसकिए हम िड़िा िीस साि िा चु नते हैं तो िडिी पूंद्रह साि िी चु नते
हैं , सोिह साि िी चु नते हैं । क्ोूंकि चार और पाूं च साि िा िासिा है , नही ूं तो सारी दु कनया कवधवाओूं से भर
जाए। क्ोूंकि पु रुष िी उम्र चार—पाूं च साि िम है । वह जि सिर साि में मरे र्ा तो िकठनाई खड़ी हो जाएर्ी।
तो उसिा, दोनोूं िे िीच तािमेि िैठ जाए और वे िरािर जर्ह आ जाएूं ।

एि स सोिह िड़िे पैदा होते हैं और एि स िड़कियाूं पैदा होती हैं ; पैदा होते वक्त सोिह िा ििग
होता है , सोिह िड़िे ज्यादा पैदा होते हैं । िेकिन दु कनया में स्त्री—पुरुष िी सूं ख्या िरािर हो जाती है पीछे ।
सोिह िड़िे च दह साि िे होने िे पहिे मर जाते हैं और िरीि—िरीि िरािर अनु पात हो जाता है । िड़िे
ज्यादा मरते हैं , िड़कियाूं िम मरती हैं , उनिे पास रे कसस्टें स िी क्षमता, प्रकतरोध िी क्षमता प्रिि है । वह उनिे
पीछे िे शरीर से आती है ।

दू सरी िात : तीसरा शरीर जो है पुरुष िा, वह किर पुरुष िा होर्ा—यानी सू क्ष्म शरीर। और च था
शरीर, मनस शरीर किर स्त्री िा होर्ा। और ठीि इससे उिटा स्त्री में होर्ा।
चार शरीरोूं ति स्त्री—पुरुष िा कवभाजन है , पाूं चवाूं शरीर कियाूं ड से क्स है ।

इसकिए आत्म—उपिक्ति होते ही इस जर्त में किर िोई स्त्री और पुरुष नही ूं है । िेकिन ति ति
स्त्री—पुरुष है ।

और इस सूं िूंध में एि िात और खयाि आती है , वह मैं आपसे िहूं कि चूूंकि प्रत्येि पु रुष िे पास स्त्री
िा शरीर है भीतर और प्रत्येि स्त्री िे पास पुरुष िा शरीर है , अर्र सूं योर् से स्त्री िो ऐसा पकत कमि जाए जो
उसिे भीतर िे पु रुष शरीर से मेि खाता हो, तभी कववाह सिि होता है , नही ूं तो नही ूं हो पाता; या पुरुष िो
ऐसी स्त्री कमि जाए तो उसिे भीतर िी स्त्री से मे ि खाती है , तो ही सिि होता है , नही ूं तो नही ूं हो पाता।

प्रथम चार शरीरोां के जिकास के जबना जििाह असिि:

इसकिए सारी दु कनया में स में कनन्यानिे कववाह असिि होते हैं , क्ोूंकि उनिी र्हरी सििता िा सू त्र
अभी ति साि नही ूं हो सिा है । और उसिो हम िैसे खोजिीन िरें कि उनिे भीतरी शरीरोूं से मेि खा
जाए, ति ति दु कनया में कववाह असिि ही होता रहे र्ा। उसिे किए हम िुछ भी इूं तजाम िर िें , वह सिि
नही ूं हो सिता। और उसिो हम तभी खोज पाएूं र्े जि यह सारी िी सारी शरीरोूं िी पूरी वैज्ञाकनि व्यवस्था
अत्यूंत स्पष्ट हो जाए।

और इसकिए अर्र एि युवि कववाह िे पहिे , एि युवती कववाह िे पहिे , अपनी िुूंडकिनी जार्रण
ति पहुूं च र्ए होूं, तो उन्ें ठीि साथी चुनना सदा आसान है । उसिे पहिे ठीि साथी चु नना िभी भी आसान
नही ूं है । क्ोूंकि वे अपने भीतर िे शरीरोूं िी पहचान से िाहर िे ठीि शरीर िो चुन पा सिते हैं ।

इसकिए हमारी िोकशश थी, जो िोर् जानते थे, वे पच्चीस वषग ति ब्रह्मचयग वास में और इन चार शरीरोूं
िे कविास ति िे जाने िे िाद...... .तभी कववाह, उसिे पहिे कववाह नही ूं! क्ोूंकि किससे कववाह िरना
है ? किसिे साथ तु म्हें रहना है ? खोज किसिी है ? हम किसिो खोज रहे हैं ? एि पुरुष एि स्त्री िो....... .ि न
सी स्त्री िो खोज रहा है कजससे वह तृ प्त हो सिेर्ा?

वह अपने ही भीतर िी स्त्री िो खोज रहा है ; एि स्त्री अपने ही भीतर िे पुरुष िो खोज रही है । अर्र
िही ूं तािमेि िैठ जाता है सूं योर् से , ति तो वह तृप्त हो जाता है , अन्यथा वह अतृ क्तप्त िनी रहती है । किर हजार
तरह िी कविृकत पैदा होती है —कि वह वेश्या िो खोज रहा है , वह पड़ोस िी स्त्री िो खोज रहा है , वह यहाूं जा
रहा है , वह वहाूं जा रहा है । वह परे शानी िढ़ती चिी जाती है ।

और कजतनी मनुष्य िी िुक्तद्ध कविकसत होर्ी उतनी यह परे शानी िढ़े र्ी। अर्र च दह वषग ति ही
आदमी रुि जाए तो यह परे शानी नही ूं होर्ी। क्ोूंकि यह सारी परे शानी तीसरे शरीर िे कविास से शु रू
होर्ी, िुक्तद्ध िे। अर्र कसिग दू सरा शरीर कविकसत हो, भाव शरीर, तो वह से क्स से तृ प्त हो जाएर्ा।

इसकिए दो रास्ते थे या तो हम पच्चीस वषग ति ब्रह्मचयग िे िाि में उसिो चार शरीरोूं ति पहुूं चा
दें , और या किर िाि—कववाह िर दें । क्ोूंकि िाि—कववाह िा मतिि है कि िु क्तद्ध िा शरीर कविकसत होने िे
पहिे। ताकि वह से क्स पर ही रुि जाए और िभी झूंझट में न पड़े । ति उसिा जो सूं िूंध है स्त्री—पुरुष िा, वह
किििुि पाशकवि सूं िूंध है । िाि—कववाह िा जो सूं िूंध है,वह कसिग से क्स िा सूं िूंध है ; प्रेम जैसी सूं भावना वहाूं
नही ूं है ।
इसकिए अमेररिा जैसे मुम्ऻोूं में , जहाूं कशक्षा िहुत िढ़ र्ई, और जहाूं तीसरा शरीर पूरी तरह कविकसत
हो र्या, वहाूं कववाह टू टे र्ा, वह नही ूं िच सिता। क्ोूंकि तीसरा शरीर िहता है मेि नही ूं खाता। इसकिए तिाि
ि रन तै यार हो जाएर्ा,क्ोूंकि मेि नही ूं खाता तो इसिो खी ूंचना िैसे सूं भव है ।

सम्यक जशक्षा में चार शरीरोां का जिकास:

ये चार शरीर अर्र कविकसत होूं, तो ही मैं िहता हूं कशक्षा ठीि है , सम्यि है । राइट एजुिेशन िा
मतिि है . चार शरीर ति तु म्हें िे जाए। क्ोूंकि पाूं चवें शरीर ति िोई कशक्षा नही ूं िे जा सिती, वहाूं तो तु म्हें
जाना पड़े र्ा। िे किन चार शरीर ति कशक्षा िे जा सिती है । इसमें िोई िकठनाई नही ूं है ।

पाूं चवाूं िीमती शरीर है , उसिे िाद यात्रा कनजी शु रू हो जाती है । किर छठवाूं और सातवाूं तु म्हारी
कनजी यात्रा है ।

िुूंडकिनी जो है वह च थे शरीर िी सूं भावना है । मे री िात खयाि में आई न?

प्रश्न : ओशो शब्धिपात में कांडक्टर का काम करनेिािे व्यब्धि के साथ क्ा साधक की
साइजकक बाइां जडां ग हो जाती है ?उससे क्ा— क्ा हाजनयाां साधक को हो सकती हैं ? क्ा उसके अर्च्े
उपयोग भी हैं ?

िूं धन िा तो िोई अच्छा उपयोर् नही ूं है, क्ोूंकि िूंधन ही िुरी िात है; और कजतना र्हरा िूंधन हो
उतनी ही िुरी िात है । तो साइकिि िाइूं कडूं र् तो िहुत िुरी िात है । अर्र मेरे हाथ में िोई जूंजीर डाि दे तो
चिेर्ा; क्ोूंकि वह मेरे भ कति शरीर िो ही पिड़ पाती है । िेकिन िोई मेरे ऊपर प्रेम िी जूंजीर डाि दे तो
ज्यादा झूंझट शु रू हुई; क्ोूंकि वह जूंजीर र्हरे चिी र्ई। वह जूंजीर र्हरे चिी र्ई और उसिो तोड़ना उतना
आसान नही ूं रह र्या। िोई श्रद्धा िी जूंजीर डाि दे तो और र्हरी चिी र्ई, उसिो तोड़ना और अनहोिी िाम
हो र्या न! अपकवत्र िाम हो र्या। वह और मुक्तिि िात हो र्ई।

तो िूंधन तो सभी िुरे हैं , और मनस िूंधन तो और भी िुरे हैं ।

शब्धिपात का सही माध्यम:

जो व्यक्तक्त शक्तक्तपात में वाहन िा िाम िरे , वह व्यक्तक्त तो तु म्हें िाूं धना ही न चाहे र्ा। अर्र शक्तक्तपात
हो रहा है , तो वह व्यक्तक्त तो तु म्हें िाूं धना न चाहे र्ा; क्ोूंकि अर्र वह िाूं धना चाहता हो तो वह पात्र ही नही ूं है कि
वह वाहन िन सिे। हाूं ,िेकिन तु म िूंध सिते हो। तु म िूंध सिते हो, तु म उसिे पैर पिड़ िे सिते हो कि मैं
अि आपिो न छोडूूंर्ा, आपने मेरे ऊपर इतना उपिार किया। उस समय सजर् होने िी जरूरत है । उस समय
िहुत सजर् होने िी जरूरत है कि साधि, कजस पर शक्तक्तपात हो, वह अपने िो िूंधन से िचा सिे।

िेकिन अर्र यह खयाि हो, और अर्र यह िात साि हो कि िूंधन मात्र आध्याक्तत्मि यात्रा में भारी पड़
जाते हैं , तो अनुग्रह िाूं धेर्ा नही,ूं िक्तम्ऻ अनुग्रह भी खोिेर्ा। यानी मैं तु म्हारे प्रकत िृतज्ञ हो जाऊूं , तो यह िूंधन
क्ोूं िने ? इसमें िूंधन होने िी क्ा िात है ? िक्तम्ऻ अर्र मैं िृतशता शापन न िर पाऊूं तो शायद भीतर एि
िूंधन रह जाए कि मैं धन्यवाद भी नही ूं दे पाया। िेकिन धन्यवाद दे ने िा मतिि यह है कि िात समाप्त हो र्ई।

सरक्षा— भयभीत की खोज:

अनुग्रह िूंधन नही ूं है , िक्तम्ऻ अनुग्रह िा भाव परम स्वतूं त्रता िा भाव है । िेकिन हम िोकशश िरते हैं
िूंधने िी क्ोूंकि हमारे भीतर भय है । और हम सोचते हैं अिेिे खड़े रह पाएूं र्े , नही ूं खड़े रह पाएूं र्े ? किसी से
िूंध जाएूं । दू सरे िी तो िात छोड़ दें , अूंधेरी र्िी में से आदमी कनििता है तो खु द ही जोर—जोर से र्ाना र्ाने
िर्ता है ; अपनी ही आवाज जोर से सु निर भी भय िम होता है । अपनी ही आवाज! दू सरे िी आवाज भी होती
ति भी ठीि था कि िोई दू सरा भी म जूद है ! िे किन अपनी ही आवाज जोर से सु निर िाकिडें स िढ़ता मािूम
पड़ता है कि िोई डर नही ूं।

तो आदमी भयभीत है और वह िुछ भी पिड़ने िर्ता है । और अर्र डूिते िो कतनिा भी कमि


जाए, तो वह आूं ख िूं द िरिे उसिो भी पिड़ िेता है । हािाूं कि इस कतनिे से डूिने से नही ूं िचता, कसिग
डूिनेवािे िे साथ कतनिा भी डूि जाता है । िेकिन भय में हमारा कचि पिड़ िेना चाहता है । सारी िाइूं कडूं र्
कियर िी है । तो र्ुरु हो—यह हो, वह हो—िोई भी, उसिो पिड़ िेंर्े हम। पिड़िर हम सु रकक्षत होना चाहते
हैं । एि तरह िी कसक्ोररटी है ।

असरक्षा में ही आत्मा का जिकास:

और साधि िो सु रक्षा से िचना चाकहए। साधि िे किए सु रक्षा सिसे िड़ा मोहजाि है । अर्र उसने
एि कदन भी सु रक्षा चाही, और उसने िहा कि अि मैं किसी िी शरण में सु रकक्षत हो जाऊूंर्ा, और किसी िी
आडू में अि िोई भय नही ूं है अि मैं भटि नही ूं सिता, अि मैंने ठीि मुिाम पा किया, अि मैं िही ूं जाऊूंर्ा
नही,ूं अि मैं यही ूं िैठा रहूं र्ा, तो वह भटि र्या; क्ोूंकि साधि िे किए सु रक्षा नही ूं है । साधि िे किए असु रक्षा
वरदान है ; क्ोूंकि कजतनी असु रक्षा है , उतना ही साधि िी आत्मा िो िैिने , ििवान होने , अभय होने िा म िा
है ; कजतनी सु रक्षा है , उतना साधि िे कनिग ि होने िी व्यवस्था है ; वह उतना कनिग ि हो जाएर्ा।

बेसहारा होने के जिए ही सहारे का उपयोग:


सहारा िेना एि िात है , सहारा किए ही चिे जाना किििुि दू सरी िात है । सहारा कदया ही इसकिए र्या
है कि तु म िेसहारे हो सिो; सहारा कदया ही इसकिए र्या है कि अि तु म्हें सहारे िी जरूरत न रहे ।

एि िाप अपने िेटे िो चिना कसखा रहा है । िभी खयाि किया है कि जि िाप अपने िेटे िो चिना
कसखाता है , तो िाप िेटे िा हाथ पिड़ता है ; िेटा नही ूं पिड़ता। िेकिन थोड़े कदन िाद जि िेटा थोड़ा चिना
सीख जाता है , तो िाप िा हाथ िाप तो छोड़ दे ता है , िेकिन िेटा पिड़ िेता है । िभी िाप िो चिाते दे खें , तो
अर्र िेटा हाथ पिड़े हो तो समझो कि वह चिना सीख र्या है , िेकिन किर भी हाथ नही ूं छोड़ रहा है ; और
अर्र िाप हाथ पिड़े हो तो समझना कि अभी चिना कसखाया जा रहा है ,अभी छोड़ने में खतरा है , अभी छोड़ा
नही ूं जा सिता। और िाप तो चाहे र्ा ही यह कि कितनी जल्दी हाथ छूट जाए; क्ोूंकि इसीकिए तो कसखा रहा है ।

और अर्र िोई िाप इस मोह से भर जाए कि उसे मजा आने िर्े कि िेटा उसिा हाथ पिड़े ही
रहे , तो वह िाप दु श्मन हो र्या। िहुत िाप हो जाते हैं । िहुत र्ुरु हो जाते हैं । िेकिन चू ि र्ए वे। कजस िात िे
किए उन्ोूंने सहारा कदया था, वही खत्म हो र्ई। वह तो उन्ोूंने कक्रकपल्ड पै दा िर कदए जो अि उनिी िैसाखी
िेिर चिें र्े। हािाूं कि उनिो मजा आता है कि मेरी िैसाखी िे किना तु म नही ूं चि सिते । अहूं िार िी तृ क्तप्त
कमिती है । िेकिन कजस र्ुरु िो अहूं िार िी तृ क्तप्त कमि रही हो, वह तो र्ुरु ही नही ूं है ।

िेकिन िेटा पिड़े रह सिता है पीछे भी, क्ोूंकि िेटा डर जाए कि िही ूं कर्र न जाऊूं! क्ोूंकि किना
िाप िे मैं िैसे चि सिूूंर्ा? तो र्ुरु िा िाम है कि उसिे हाथ िो कझडि् िे और िहे कि अि तु म चिो। और
िोई कििर नही,ूं दोूं—चार िार कर्रो तो ठीि है , उठ आना। आक्तखर उठने िे किए कर्रना जरूरी है ।
और, कर्रने िा डर कमटाने िे किए भी िुछ िार कर्रना जरूरी है कि अि नही ूं कर्रें र्े।

हमारे मन में यह हो सिता है कि किसी िा सहारा पिड़ िें , तो किर िाइूं कडूं र् पै दा हो जाती है । वह
पैदा नही ूं िरना है । किसी साधि िो ध्यान िे िर चिना है कि वह िोई सु रक्षा िी तिाश में नही ूं है ; वह सत्य
िी खोज में है , सु रक्षा िी खोज में नही ूं है । और अर्र सत्य िी खोज िरनी है तो सु रक्षा िा खयाि छोड़ना
पड़े र्ा। नही ूं तो असत्य िहुत िार िड़ी सु रक्षा दे ता है — और जल्दी से दे दे ता है । तो किर सु रक्षा िा खोजी
असत्य िो पिड़ िेता है । िनवीकनएूं स िा खोजी सत्य ति नही ूं पहुूं चता,क्ोूंकि िूं िी यात्रा है । किर वह यही ूं
असत्य िो र्ढ़ िेता है और यही ूं िै ठे हुए पा िेता है । और िात समाप्त हो जाती है ।

अांधश्रिा क्ोां:

इसकिए किसी भी तरह िा िूंधन...... और र्ु रु िा िूंधन तो िहुत ही खतरनाि है , क्ोूंकि वह


आध्याक्तत्मि िूंधन है । और आध्याक्तत्मि िूंधन शब्द ही िटर ाकडक्ङरी है ; क्ोूंकि आध्याक्तत्मि स्वतूं त्रता तो अथग
रखती है, आध्याक्तत्मि र्ुिामी िा िोई अथग नही ूं होता। िेकिन इस दु कनया में आध्याक्तत्मि रूप से कजतने िोर्
र्ुिाम हैं , उतने िोर् और किसी रूप से र्ुिाम नही ूं हैं । उसिा िारण है ; क्ोूंकि कजस च थे शरीर िे कविास से
आध्याक्तत्मि स्वतूं त्रता िी सूं भावना पै दा होर्ी, वह च था शरीर नही ूं है । उसिे िारण हैं —वें तीसरे शरीर ति
कविकसत हैं ।

इसकिए अक्सर दे खा जाएर्ा कि एि आदमी हाईिोटग िा चीि जक्तस्टस है , किसी युकनवकसग टी िा


वाइसचाूं सिर है , और किसी कनपट र्ूंवार आदमी िे पैर पिड़े िै ठा हुआ है । और उसिो दे खिर हजार र्ूंवार
उसिे पीछे िैठे हुए है —कि जि हाईिोटग िा जक्तस्टस िैठा है , वाइसचाूं सिर िैठा है यु कनवकसग टी िा, तो हम क्ा
हैं ! िेकिन उसे पता नही ूं कि यह जो आदमी है , इसिा तीसरा शरीर तो िहुत कविकसत हुआ है , इसने िुक्तद्ध िा
तो िहुत कविास किया था, िेकिन च थे शरीर िे मामिे में यह किििुि र्ूंवार है ; उसिे पास वह शरीर नही ूं है ।
और इसिे पास चूूंकि तीसरा शरीर है िेवि, िुक्तद्ध और तिग िा कवचार िरते —िरते यह थि र्या और अि
कवश्राम िर रहा है । और जि िु क्तद्ध थििर कवश्राम िरती है तो िड़े अिुक्तद्धपूणग िाम िरती है । िोई भी चीज
जि थििर कवश्राम िरती है तो उिटी हो जाती है । इसकिए यह िड़ा खतरा है ।

इसकिए आश्रमोूं में आपिो कमि जाएूं र्े , हाईिोटग िे जजेज़ वहाूं कनकश्चत कमिेंर्े। वे थि र्ए हैं , वे िुक्तद्ध
से परे शान हो र्ए हैं , वे इससे छु टिारा चाहते हैं । वे िोई भी अिुक्तद्धपूणग , इररे शनि, किसी भी चीज में कवश्वास
िरिे आूं ख िूंद िरिे िैठ जाते हैं । वे िहते हैं सोच किया िहुत, कववाद िर किया िहुत, तिग िर किया
िहुत, िुछ नही ूं कमिा; अि इसिो हम छोड़ते हैं । तो वे किसी िो भी पिड़ िेते हैं । और उनिो दे खिर, पीछे
जो िुक्तद्धहीन वर्ग है , वह िहता है जि इतने िुक्तद्धमान िोर् हैं , तो किर हमिो भी पिड़ िेना चाकहए। िेकिन वे
जहाूं ति च थे शरीर िा सूं िूंध है , कनपट ना—िुछ हैं ।

इसकिए च थे शरीर िा किसी व्यक्तक्तत्व में थोड़ा सा भी कविास हुआ हो, तो िडे से िड़ा िुक्तद्धमान
उसिे चरणोूं िो पिड़िर िैठ जाएर्ा; क्ोूंकि उसिे पास िुछ है , कजसिे मामिे में यह किििुि कनधग न है ।

तो चूूंकि च था शरीर कविकसत नही ूं है , इसकिए िाइूं कडूं र् पैदा होती है । ऐसा मन होता है कि किसी िो
पिड़ िो; कजसिा कविकसत है , उसिो पिड़ िो। िेकिन उसिो पिड़ने से कविकसत नही ूं हो जाएर्ा; उसिो
समझने से कविकसत हो सिता है । और पिड़ना समझने से िचने िा उपाय है —कि समझने िी क्ा जरूरत
है ? समझने िी क्ा जरूरत है , हम आपिे ही चरण पिड़े रहते हैं ! तो जि आप वैतरणी पार होओर्े , हम भी हो
जाएूं र्े। हम आपिो ही नाव िनाए िेते हैं ; हम उसी में सवार रहें र्े जि आप पहुूं चोर्े , हम भी पहुूं च जाएूं र्े।

साधना के श्रम से बचने के जिए अांधानकरण:

समझने में िष्ट है । समझने में अपने िो िदिना पड़े र्ा। समझना एि प्रयास, एि साधना है । समझना
एि श्रम है ,समझना एि क्राूं कत है । समझने में एि रूपाूं तरण होर्ा, सि िदिेर्ा पुराना; नया िरना पड़े र्ा।
इतनी झूंझट क्ोूं िरनी! जो आदमी जानता है , हम उसिो पिड़ िेते हैं ; हम उसिे पीछे चिे जाएूं र्े।

िेकिन इस जर्त में सत्य ति िोई किसी िे पीछे नही ूं जा सिता, वहाूं अिेिे ही पहुूं चना पड़ता है ।
वह रास्ता ही कनजग न है । वह रास्ता ही अिेिे िा है । इसकिए किसी तरह िा िूंधन वहाूं िाधा है ।

तो सीखना, समझना, जहाूं से जो झिि कमिे उसे िेना, िेकिन रुिना िही ूं भी मत, किसी भी जर्ह िो
तु म मुिाम मत िना िे ना और उसिा हाथ पिड़ मत िेना कि िस अि ठीि, आ र्ए। हािाूं कि िहुत िोर्
कमिेंर्े, जो िहें र्े. िहाूं जाते हो? रुि जाओ मेरे पास! िहुत िोर् कमिेंर्े कजनिो

यह दू सरा कहस्सा है । जैसा कि मैंने िहा, भयभीत आदमी िूंधना चाहता है किसी से , तो िुछ भयभीत
आदमी िाूं धना भी चाहते हैं किसी िो; उनिो उससे भी अभय हो जाता है । कजस आदमी िो िर्ता है , मेरे साथ
हजार अनुयायी हैं , उसिो िर्ता है — मैं ज्ञानी हो र्या, नही ूं तो हजार अनुयायी िैसे होते ! जि हजार आदमी
मुझे मानने वािे हैं , तो जरूर मैं िुछ जानता हूं नही ूं तो मानेंर्े िैसे !

यह िड़े मजे िी िात है कि र्ुरु िनना िई िार तो कसिग इसी मानकसि हीनता िे िारण होता है — कि
दस हजार मेरे कशष्य हैं , िीस हजार! तो र्ु रु िर्े हैं कशष्य िढ़ाने में — कि मेरे सात स सूं न्यासी हैं , मेरे हजार
सूं न्यासी हैं , मेरे इतने कशष्य हैं —वे िैिाने में िर्े हैं । क्ोूंकि कजतना यह कवस्तार िैिता है , वे आश्वस्त होते हैं कि
जरूर मैं जानता हूं नही ूं तो हजार आदमी मुझे क्ोूं मानते ! यह तिग ि टिर उनिो कवश्वास कदिाता है कि मैं
जानता हूं । अर्र ये हजार कशष्य खो जाएूं , तो उनिो िर्ेर्ा कि र्या। इसिा मतिि कि मैं नही ूं जानता।

जहाां बांधन है , िहाां सां बांध नही ां है :

िड़े मानकसि खे ि चिते हैं । िड़े मानकसि खे ि चिते हैं । उन मानकसि खे िोूं से सावधान होने िी
जरूरत है—दोनोूं तरि से , क्ोूंकि दोनोूं तरि से खे ि हो सिता है । कशष्य भी िाूं ध सिता है , और जो कशष्य
आज किसी से िूंधेिा, वह िि किसी िो िाूं धेर्ा, क्ोूंकि यह सि श्रृूं खिािद्ध िाम है । वह आज कशष्य िनेर्ा तो
िि र्ुरु भी िनेर्ा। क्ोूंकि कशष्य िि ति िना रहे र्ा! अभी एि िो पिड़े र्ा, तो िि किर किसी िो खु द िो
भी पिड़ाएर्ा। श्रृूं खिािद्ध र्ुिाकमया हैं ।

मर्र उसिा िहुत र्हरे में िारण वह च थे शरीर िा कविकसत न होना है । उसिो कविकसत िरने िी
कचूंता चिे तो तु म स्वतूं त्र हो सिोर्े। किर िूंधन नही ूं होर्ा।

इसिा यह मतिि नही ूं है कि तु म अमानवीय हो जाओर्े , कि तु म्हारा मनुष्योूं से िोई सूं िूंध न रह
जाएर्ा; िक्तम्ऻ इसिा मतिि ही उिटा है । असि में , जहाूं िूंधन है , वहाूं सूं िूंध होता ही नही ूं। अर्र एि पकत
और पत्नी िे िीच िूंधन है .. .हम िहते हैं न कि कववाह—िूंधन में िूंध रहे हैं ! कनमूंत्रण पकत्रिाएूं भेजते हैं कि मेरा
िेटा और मेरी िेटी प्रणय—सू त्र िे िूंधन में िूंध रहे हैं ! जहाूं िूंधन है , वहाूं सूं िूंध नही ूं हो सिता। क्ोूंकि र्ु िामी
में िैसा सूं िूंध?

िभी भकवष्य में जरूर िोई िाप कनमूंत्रण पत्र भेजेर्ा कि मेरी िेटी किसी िे प्रेम में स्वतूं त्र हो रही है ।
वह तो समझ में आती है िात कि अि किसी िा प्रे म उसिो स्वतूं त्र िर रहा है जीवन में ; अि उसिे ऊपर िोई
िूंधन नही ूं रहे र्ा, वह मुक्त हो रही है प्रेम में। और प्रेम मुक्त िरना चाकहए। अर्र प्रेम भी िाूं ध िेता है तो किर
इस जर्त में मुक्त क्ा िरे र्ा? ि न िरे र्ा?

सां बांध िही, जो मि करे :

और जहाूं िूंधन है , वहाूं सि िष्ट हो जाता है , सि नरि हो जाता है । ऊपर से चे हरे और रह जाते
हैं , भीतर सि र्ूंदर्ी हो जाती है । वह चाहे र्ुरु—कशष्य िा हो, चाहे िाप—िेटे िा हो, चाहे पकत—पत्नी िा
हो, चाहे दो कमत्रोूं िा हो—जहाूं िूंधन है , वहाूं सूं िूंध नही ूं होता। और अर्र सूं िूंध है तो िूंधन िेमानी है । िर्ता तो
ऐसा ही है कि कजससे हम िूंधे हैं , उसी से सूं िूंध है ; िेकिन कसिग उसी से हमारा सूं िूंध होता है, कजससे हमारा
िोई भी िूंधन नही ूं।

इसकिए िई िार ऐसा हो जाता है कि आप अपने िेटे से वह िात नही ूं िह सिते जो एि अजनिी से
िह सिते हैं । मैं इधर है रान हुआ हूं जानिर कि पत्नी अपने पकत से नही ूं िह सिती और टर े न में एि अजनिी
आदमी से िह सिती है , कजसिो वह किििुि नही ूं जानती, घूंटे भर पहिे कमिा है ।
असि में, िोई िूंधन नही ूं है , तो सूं िूंध िे किए सरिता कमि जाती है । इसकिए तु म एि अजनिी से
कजतने भिे ढूं र् से पेश आते हो, उतना पररकचत से नही ूं आते । वहाूं िोई भी तो िूंधन नही ूं है , तो कसिग सूं िूंध ही
हो सिता है । िेकिन पररकचत िे साथ तु म उतने भिे ढूं र् से िभी पेश नही ूं आते , क्ोूंकि वहाूं तो िूं धन है । वहाूं
नमस्कार भी िरते हो तो ऐसा मािूम पड़ता है ,एि िाम है ।

इसकिए र्ुरु—कशष्य िा एि सूं िूंध तो हो सिता है । और सूं िूंध सि मधु र हैं । िेकिन िूंधन नही ूं हो
सिता। और सूं िूंध िा मतिि ही है कि वह मुक्त िरता है ।

न बाधनेिािे अदभत हे न िकीर:

झेन ििीरोूं िी एि िात िड़ी िीमती है कि अर्र किसी भी झेन ििीर िे पास िोई सीखने
आएर्ा, तो जि वह सीख चुिा होर्ा, ति वह उससे िहे र्ा कि अि मेरे कवरोधी िे पास चिे जाओ, अि िुछ
कदन वहाूं सीखो। क्ोूंकि एि पहिू तु मने जाना, अि तु म दू सरे पहिू िो समझो।

और किर साधि अिर्—अिर् आश्रमोूं में वषों घू मता रहे र्ा। उनिे पास जािर िैठेर्ा जो उसिे र्ु रु
िे कवरोधी हैं ; उनिे चरणोूं में िैठेर्ा और उनसे भी सीखे र्ा। क्ोूंकि उसिा र्ुरु िहे र्ा कि हो सिता है वह
ठीि हो; तु म उधर भी जािर सारी िात समझ िो। और ि न ठीि है , इसिा क्ा पता? हो सिता है , हम दोनोूं
से कमििर जो िनता हो, वही ठीि हो; या यह भी हो सिता है कि हम दोनोूं िो िाटिर जो िचता हो, वही
ठीि हो। इसकिए जाओ, उसे खोजो।

जि िोई दे श में आध्याक्तत्मि प्रकतभा कविकसत होती है , तो ऐसा होता है , ति िूंधन नही ूं िनती ूं चीजें।

अि यह मैं चाहता हूं ऐसा इस मुम्ऻ में कजस कदन हो सिेर्ा, उस कदन िहुत पररणाम होूंर्े—कि िोई
किसी िो िाूं धता न हो, भेजता हो िूंिी यात्रा पर, कि वह जाए। और ि न जानता है कि क्ा होर्ा अूं कतम! िेकिन
जो इस भाूं कत भेज दे र्ा, अर्र िि तु म्हें उसिी सि िातें भी र्ित मािूम पड़े , ति भी वह आदमी र्ित मािूम
नही ूं पड़े र्ा। जो इस भाूं कत तु म्हें भेज दे र्ा कि जाओ िही ूं और खोजो—हो सिता है मैं र्ित होऊूं। तो यह हो भी
सिता है कि किसी कदन उसिी सारी िातें भी तु म्हें र्ित मािूम पड़े , ति भी तु म अनुर्ृहीत रहोर्े ; वह आदमी
िभी र्ित नही ूं हो पाएर्ा। क्ोूंकि उस आदमी ने ही तो भेजा था तु म्हें । अभी हाितें ऐसी हैं कि सि रोि रहे हैं ।
एि र्ुरु रोिता है , किसी दू सरे िी िात मत सु न िेना! शास्त्रोूं में किखता है कि दू सरे िे मूंकदर में मत चिे जाना!
चाहे पार्ि हाथी िे पैर िे नीचे दििर मर जाना, मर्र दू सरे िे मूंकदर में शरण भी मत िेना; िही ूं ऐसा न हो
कि वहाूं िोई चीज िान में पड़ जाए!

तो भिा ऐसे आदमी िी सि िातें भी सही होूं, ति भी यह आदमी तो र्ित ही है । और इसिे प्रकत
अनुग्रह िभी नही ूं हो सिता, क्ोूंकि इसने तु म्हें र्ु िाम िनाया, िुचि डािा और मार डािा है ।

यह अर्र खयाि में आ जाए तो िूंधन िा िोई सवाि नही ूं है ।

प्रश्न: आपने कहा जक अगर शब्धिपात प्रामाजणक ि शितम हो तो बांधन नही ां होगा।
हाूं , नही ूं होर्ा।

शब्धिपात के नाम पर शोषण:

प्रश्न : ओशो शब्धिपात के नाम पर साइजकक एक्सप्लायटे शन सां भि है क्ा? कैसे सां भि है और
उससे साधक बचे कैसे ?

सूं भव है, शक्तक्तपात िे नाम पर िहुत आध्याक्तत्मि शोषण सूंभव है। असि में, जहाूं भी दावा है, वहाूं
शोषण होर्ा। और जहाूं िोई िहता है , मैं िुछ दू ूं र्ा, वह िेर्ा भी िुछ। क्ोूंकि दे ना जो है , वह किना िेने िे नही ूं
हो सिता। जहाूं िोई िहे र्ा, मैं िुछ दे ता हूं वह तु मसे वापस भी िुछ िेर्ा। िॉइन िोई भी हो—वह धन िे
रूप में िे, आदर िे रूप में िे, श्रद्धा िे रूप में िे—किसी भी रूप में िे, वह िेर्ा जरूर। जहाूं दे ना है —
आग्रहपूवगि, दावेपूवगि—वहाूं िेना है । और जो दे ने िा दावा िर रहा है , वह जो दे र्ा, उससे ज्यादा िेर्ा। नही ूं
तो िाजार में कचल्राने िी उसे िोई जरूरत न थी।

असि में, वह दे इसी तरह रहा है, जैसे िोई मछिी मारनेवािा िाूं टे पर आटा िर्ाता है ; क्ोूंकि
मछिी िाूं टे नही ूं खाती। हो सिता है , किसी कदन मछकियोूं िो समझाया—िुझाया जा सिे, वे सीधा िाूं टा खा
िें। अभी ति िोई मछिी सीधा िाूं टा नही ूं खाती। उसिे ऊपर आटा िर्ाना पड़ता है । हाूं , मछिी आटा खा
िेती है । और आटे िे दावे िी वजह से िाूं टे िे पास आ जाती है । आटा कमिेर्ा, इस आशय में िाूं टे िो भी
र्टि जाती है । र्टिने पर पता चिता है कि आटा तो व्यथग था िाूं टा असिी था। िेकिन ति ति िाूं टा कछद
र्या होता है ।

दािेदार गञ्ोां से बचो:

तो जहाूं दावा है —िोई िहे कि मैं शक्तक्तपात िरू


ूं र्ा, मैं ज्ञान कदिवा दू ूं र्ा, मैं समाकध में पहुूं चा दू ूं र्ा, मैं
ऐसा िरू
ूं र्ा, मैं वैसा िरू
ूं र्ा—जहाूं ये दावे होूं, वहाूं सावधान हो जाना। क्ोूंकि उस जर्त िा आदमी दावेदार
नही ूं होता। उस जर्त िे आदमी से अर्र तु म िहोर्े भी जािर कि आपिी वजह से मुझ पर शक्तक्तपात हो
र्या, तो वह िहे र्ा, तु म किसी भूि में पड़ र्ए; मुझे तो पता ही नही,ूं मेरी वजह से िैसे हो सिता है ! उस
परमात्मा िी वजह से ही हुआ होर्ा। वहाूं तो तु म धन्यवाद दे ने जाओर्े तो भी स्वीिृकत नही ूं होर्ी कि मेरी वजह
से हुआ है । वह तो िहे र्ा, तु म्हारी अपनी ही वजह से हो र्या होर्ा। तु म किस भूि में पड़ र्ए हो, वह परमात्मा
िी िृपा से हो र्या होर्ा। मैं िहाूं हूं ! मैं किस िीमत में हूं ! मैं िहाूं आता हूं !

जीसस कनिि रहे हैं एि र्ाूं व से , और एि िीमार आदमी िो िोर् उनिे पास िाए हैं । उन्ोूंने उसे
र्िे से िर्ा किया और वह ठीि हो र्या। और वह आदमी िहता है कि मैं आपिो िैसे धन्यवाद दू ूं क्ोूंकि
आपने मुझे ठीि िर कदया है । जीसस ने िहा कि ऐसी िातें मत िर; कजसे धन्यवाद दे ना है उसे धन्यवाद दे ! मैं
ि न हूं ? मैं िहाूं आता हूं ?

उस आदमी ने िहा, आपिे कसवाय तो यहाूं िोई भी नही ूं है ।

तो जीसस ने िहा, हम—तु म दोनोूं नही ूं हैं ; जो है , वह तु झे कदखाई ही नही ूं पड़ रहा; उससे ही सि हो
रहा है । ही है ज हील्ड यू! उसी ने तु झे स्वस्थ िर कदया है !

अि यह जो आदमी है , यह िैसे शोषण िरे र्ा? शोषण िरने िे किए आटा िर्ाना पड़ता है िाूं टे पर।
यह तो, िाूं टा तो दू र, आटा भी मेरा है , यह भी मानने िो राजी नही ूं है । इसिा िोई उपाय नही ूं है ।

तो जहाूं तु म्हें दावा कदखे —साधि िो—वही ूं सम्हि जाना। जहाूं िोई िहे कि ऐसा मैं िर दू ूं र्ा, ऐसा हो
जाएर्ा, वहाूं वह तु म्हारे किए तै यार िर रहा है ; वह तु म्हारी माूं र् िो जर्ा रहा है ; वह तु म्हारी अपेक्षा िो उिसा
रहा है ; वह तु म्हारी वासना िो त्वररत िर रहा है । और जि तु म वासनाग्रस्त हो जाओर्े , िहोर्े कि दो महाराज!
ति वह तु मसे माूं र्ना शु रू िर दे र्ा। िहुत शीघ्र तु म्हें पता चिेर्ा कि आटा ऊपर था, िाूं टा भीतर है ।

इसकिए जहाूं दावा हो, वहाूं सम्हििर िदम रखना, वह खतरनाि जमीन है । जहाूं िोई र्ुरु िनने िो
िैठा हो, उस रास्ते से मत कनििना; क्ोूंकि वहाूं उिझ जाने िा डर है । इसकिए साधि िैसे िचे ? िस वह दावे
से िचे तो सिसे िच जाएर्ा। वह दावे िो न खोजे , वह उस आदमी िी तिाश न िरे जो दे सिता है । नही ूं तो
झूंझट में पड़े र्ा। क्ोूंकि वह आदमी भी तु म्हारी तिाश िर रहा है —जो िूंस सिता है । वे सि घूम रहे हैं । वह
भी घूम रहा है कि ि न आदमी िो चाकहए। तु म माूं र्ना ही मत,तु म दावे िो स्वीिार ही मत िरना। और ति..

पात्र बनो, गरु मत खोजो:

तु म्हें जो िरना है , वह और िात है । तु म्हें जो तै यारी िरनी है , वह तु म्हारे भीतर तु म्हें िरनी है । और
कजस कदन तु म तै यार होओर्े , उस कदन वह घटना घट जाएर्ी; उस कदन किसी भी माध्यम से घट जाएर्ी। माध्यम
र् ण है ; खूूं टी िी तरह है । कजस कदन तु म्हारे पास िोट होर्ा, क्ा तििीि पड़े र्ी खूूं टी खोजने में ? िही ूं भी टि
दोर्े। नही ूं भी खूूं टी होर्ी तो दरवाजे पर टाूं र् दोर्े । दरवाजा नही ूं होर्ा, झाड़ िी शाखा पर टाूं र् दोर्े। िोई भी
खूूं टी िा िाम िर दे र्ा। असिी सवाि िोट िा है ।

िेकिन िोट नही ूं है हमारे पास, खूूं टी दावा िर रही है कि इधर आओ, मैं खूूं टी यहाूं हूं ! तु म िूंसोर्े।
िोट तो तु म्हारे पास नही ूं है , खूूं टी िे पास जािर भी क्ा िरोर्े ? खतरा यही है कि खूूं टी में तु म्ही ूं न टै र् जाओ।
क्ोूंकि िोट तो नही ूं है तु म्हारे पास। इसकिए अपनी पात्रता खोजनी है , अपनी योग्यता खोजनी है , अपने िो उस
योग्य िनाना है कि मैं किसी कदन प्रसाद िो ग्रहण िरने योग्य िन सिूूं। किर तु म्हें कचूंता नही ूं िेनी है , वह तु म्हारी
कचूंता नही ूं है ।

इसकिए िृष्ण जो िहते हैं अजुग न िो, वह ठीि ही िहते हैं । उसिा मतिि ही इतना है । वे िहते हैं तू
िमग िर और िि परमात्मा पर छोड़ दे ; उसिी तु झे कििर नही ूं िरनी है । उसिी तू ने कििर िी तो िमग में
िाधा पड़ती है । क्ोूंकि उसिी कििर िी वजह से ऐसा िर्ता है िमग क्ा िरना, िि िी पहिे कचूंता िरो!
उसिी वजह से ऐसा िर्ता है कि क्ा िरना है मुझे! िि क्ा होर्ा, इसिो दे खूूं! और ति र्िती सु कनकश्चत हो
जानेवािी है । इसकिए िमग िी कििर ही अिेिी कििर है हमारी; हम अपने िो पात्र िनाने योग्य िरते रहें ।
कजस कदन क्षमता हमारी पूरी होर्ी—ऐसे ही, जैसे कजस कदन िीज िी क्षमता िूटने िी पूरी होती है , उस कदन सि
कमि जाता है । कजस कदन िूि क्तखिने िो पूरा तै यार होता है , ििी टू टने िो तै यार होती है ,सू रज तो कनिि ही
आता है । उसमें िोई अड़चन नही ूं है । सू रज सदा तै यार है । िेकिन हमारे पास ििी नही ूं है क्तखिने िो, सू रज
कनिि र्या है , होर्ा क्ा? इसकिए सू रज िी तिाश मत िरो, अपनी ििी िो र्हरा िरने िी कििर
िरो, सू रज सदा कनििा हुआ है , वह तत्काि उपिि हो जाता है ।

खािी पात्र भर जदया जाता है :

इस जर्त में पात्र एि क्षण िो भी खािी नही ूं रह जाता है ; कजस तरह िी भी पात्रता हो, वह तत्काि भर
दी जाती है । असि में , पात्रता िा हो जाना और भर जाना दो घटनाएूं नही,ूं एि ही घटना िे दो पहिू हैं । जैसे
हम इस िमरे िी हवा िाहर कनिाि दें , दू सरी हवा इस िमरे िी खािी जर्ह िो तत्काि भर दे र्ी। ये दो कहस्से
नही ूं हैं । इधर हम कनिाि नही ूं पाए कि उधर नई हवा ने द ड़ना शु रू िर कदया। ऐसे ही अूंतर—जर्त िे कनयम
हैं हम इधर तै यार नही ूं हुए कि वहाूं से जो हमारी तै यारी िी माूं र् है , वह उतरनी शु रू हो जाती है ।

िेकिन िकठनाई हमारी है कि हम तै यार नही ूं होते और माूं र् हमारी शु रू हो जाती है ; ति झूठी माूं र् िे
किए झूठी सप्लाई भी हो जाती है । अि इधर मैं िहुत है रान होता हूं ऐसे िोर् है रानी में डािते हैं । एि आदमी
आता है , वह िहता है , मेरा मन िड़ा अशाूं त है , मुझे शाूं कत चाकहए। उससे आधा घूंटा मैं िात िरता हूं मैं िहता
हूं कि सच में ही तु म्हें शाूं कत चाकहए? तो वह िहता है ,शाूं कत तो अभी क्ा है कि मेरे िड़िे िो पहिे न िरी
चाकहए, उसी िी वजह से अशाूं कत है , न िरी कमि जाए तो सि ठीि हो जाए। तो अि यह आदमी िहता हुआ
आया था कि मुझे शाूं कत चाकहए, वह इसिी जरूरत नही ूं है , इसिी असिी जरूरत दू सरी है ,कजसिा शाूं कत से
िुछ िेना—दे ना नही ूं है ; इसिी जरूरत है कि इसिे िड़िे िो न िरी चाकहए। अि यह मेरे पास, र्ित आदमी
िे पास आ र्या।

धमओ के दकानदारोां का रहस्य:

अि वह जो िाजार में दु िान िे िर िै ठा है , वह िहता है , न िरी चाकहए? इधर आओ! हम न िरी भी


कदिवा दें र्े और शाूं कत भी कमि जाएर्ी। इधर जो भी आते हैं , उनिो न िरी कमि जाती है ; इधर जो आते
हैं , उनिा धन िढ़ जाता है ; इधर जो आते हैं , उनिी दु िान चिने िर्ती है । और उस दु िान िे आसपास
दस—पाूं च आदमी आपिो कमि जाएूं र्े , जो िहें र्े, मेरे िड़िे िो न िरी कमि र्ई, मेरी पत्नी मरते से िच
र्ई, मेरा मुिदमा हारते से जीत र्या, धन िे अूं िार िर् र्ए; वे दस आदमी उस दु िान िे आसपास कमि
जाएूं र्े।

ऐसा नही ूं कि वे झूठ िोि रहे हैं ! ऐसा नही ूं कि वे झूठ िोि रहे हैं , ऐसा भी नही ूं कि वे किराए िे आदमी
हैं , ऐसा भी नही ूं कि वे दु िान िे दिाि हैं । नही ,ूं ऐसा िुछ भी नही ूं है । जि हजार आदमी किसी दु िान पर
न िरी खोजने आते हैं , दस िो कमि ही जाती है । कजनिो कमि जाती है वे रुि जाते हैं , न स कनन्यानिे चिे जाते
हैं । वे जो रुि जाते हैं , वे खिर िरते रहते हैं ; धीरे — धीरे उनिी भीड़ िड़ी होती जाती है ।

इसकिए हर दु िान िे पास आथें कटि हैं वे दावे दार। वे जो िह रहे हैं कि मेरे िड़िे िो न िरी
कमिी, इसमें झूठ नही ूं है िोई; यह िोई खरीदा हुआ आदमी नही ूं है । यह भी आया था, इसिे िड़िे िो कमिी
है ; कजनिो नही ूं कमिी है , वे जा चुिे हैं , वे दू सरे र्ुरु िो खोज रहे हैं कि िहाूं कमिे ; जहाूं कमिे वहाूं चिे र्ए हैं ।
यहाूं वे ही रह र्ए हैं कजनिो कमि र्ई है । वे हर साि ि ट आते हैं , हर त्योहार पर ि ट आते हैं ; उनिी भीड़
िढ़ती चिी जाती है । और इस आदमी िे आसपास एि वर्ग खड़ा हो जाता है ,जो सु कनकश्चत प्रमाण िन जाता है
कि भई कमिी है इतने िोर्ोूं िो, तो मुझे क्ोूं न कमिेर्ी! यह आटा िन जाता है , और िाूं टा िीच में है । और ये
सारे िोर् आटे िन जाते हैं । और आदमी िूंस जाता है ।

माूं र्ना ही मत; नही ूं तो िूंसना कनकश्चत है । माूं र्ना ही मत; अपने िो तै यार िरना। और भर्वान पर
छोड़ दे ना कि कजस कदन होता होर्ा, होर्ा; नही ूं होर्ा तो हम समझेंर्े हम पात्र नही ूं थे।

प्रामाजणक शब्धिपात के बाद भटकना समाप्त:

प्रश्न: ओशो एक साधक का कई व्यब्धियोां के माध्यम से शब्धिपात िेना उजचत है या हाजनप्रद


है ? कांडक्टर बदिने में क्ा— क्ा हाजनयाां सां भि हैं और क्ोां?

असि िात तो यह है कि िहुत िार िेने िी जरूरत तभी पड़ेर्ी जि कि शक्तक्तपात न हुआ हो।
िहुत िोर्ोूं से िेने िी भी जरूरत तभी पड़े र्ी जि कि पहिे कजनसे किया हो वह िेिार र्या हो, न हुआ हो।
अर्र हो र्या, तो िात खतम है । िहुत िार िेने िी जरूरत इसीकिए पड़ती है कि दवा िाम नही ूं िर
पाई, िीमारी अपनी जर्ह खड़ी है । स्वभावत:, किर डाक्ङर िदिने पड़ते हैं । िेकिन जो िीमार ठीि हो र्या, वह
नही ूं पूछता कि डाक्ङर िदिू या न िदिू। वह जो ठीि नही ूं हुआ है , वह िहता है कि मैं दू सरे डाक्ङर से दवा िूूं
या क्ा िरू
ूं ! दस—िीस डाक्ङर िदि िेता है ।

तो एि तो अर्र शक्तक्तपात िी किरण उपिि हुई जरा भी, तो िदिने िी िोई जरूरत नही ूं पड़ती
है । वह प्रश्न ही नही ूं है किर उसिा। नही ूं उपिि हुई, तो िदिना ही पड़ता है , और िदिते ही रहते हैं आदमी।
और अर्र उपिि हुई है िभी एि से , तो किर किसी से भी उपिि होती रहे , िोई ििग नही ूं पड़ता। वे सि
एि ही स्रोत से आनेवािे माध्यम ही अिर् हैं , इससे िोई अूंतर नही ूं पड़ता। रोशनी सू रज से आती, कि दीये से
आती, कि किजिी िे िल्व से आती, इससे िोई ििग नही ूं पड़ता;प्रिाश एि िा ही है । उससे िोई अूंतर नही ूं
पड़ता। अर्र घटना घटी है तो िोई अूंतर नही ूं पड़ता, और िोई हाकन नही ूं है ।

िेकिन इसिो खोजते मत किरना, वही मैं िह रहा हूं इसे खोजते मत किरना। यह कमि जाए रास्ते पर
चिते , तो धन्यवाद दे दे ना और आर्े िढ़ जाना। इसे खोजना मत। खोजोर्े तो खतरा है । क्ोूंकि किर वे जो
दावेदार हैं , वे ही तो तु म्हें कमिेंर्े न! वह नही ूं कमिे र्ा जो दे सिता था; वह कमिेर्ा, जो िहता है , दे ते हैं । जो दे
सिता है वह तो तु म्हें उसी कदन कमिे र्ा,कजस कदन तु म खोज ही नही ूं रहे हो, िेकिन तै यार हो र्ए हो। वह उसी
कदन कमिेर्ा।

इसकिए खोजना र्ित है , माूं र्ना र्ित है । होती रहे घटना, होती रहे । और हजार रास्तोूं से प्रिाश कमिे
तो हजग नही ूं है । सि रास्ते एि ही प्रिाश िे मूि स्रोत िो प्रमाकणत िरते चिे जाएूं र्े। सि तरि से कमििर
वही.......
मूि स्रोत परमात्मा है :

िि मुझसे िोई िह रहा था.. .किसी साधु िे पास जािर िहा होर्ा कि ज्ञान अपना होना चाकहए। तो
उन साधु ने िहा,ऐसा िैसे हो सिता है ! ज्ञान तो सदा पराए िा होता है —ििाूं मुकन ने ििाूं मुकन िो कदया, उन
मुकन ने उन मुकन िो कदया। खु द िृष्ण र्ीता में िहते हैं कि उससे उसिो कमिा, उससे उसिो कमिा, उससे
उसिो कमिा। तो िृष्ण िे पास भी अपना नही ूं है ।

तो मैंने उसिो िहा कि िृष्ण िे पास अपना है । िेकिन जि वे िह रहे हैं कि उससे उसिो
कमिा, उससे उसिो कमिा,तो वे यह िह रहे हैं कि यह जो ज्ञान मेरा है , यह जो मुझे घकटत हुआ है , यह मुझे ही
घकटत नही ूं हुआ है , यह पहिे ििाूं आदमी िो भी घकटत हुआ था; और प्रमाण है कि उसिो घकटत हुआ
था, उसने ििाूं आदमी िो िताया भी था; और ििाूं आदमी िो भी घकटत हुआ था, उसने उसिो भी िताया
था। िेकिन िताने से घकटत नही ूं हुआ था, घटने से िताया था। तो मुझिो भी घकटत हुआ है , और अि मैं तु म्हें िता
रहा हूं —वे अजुगन से िह रहे हैं । िेकिन मेरे िताने से तु म्हें घकटत हो जाएर्ा, ऐसा नही ूं है ;तु म्हें घकटत होर्ा तो तु म
भी किसी िो िता सिोर्े , ऐसा है ।

उसे दू सरे से माूं र्ते ही मत किरना, वह दू सरे से कमिनेवािी िात नही ूं है । उसिी तो तै यारी िरना। किर
वह िहुत जर्ह से कमिेर्ी, सि जर्ह से कमिे र्ी। और एि कदन कजस कदन घटना घटती है , उस कदन ऐसा िर्ता
है कि मैं िैसा अूंधा हूं जो चीज सि तरि से कमि रही थी, वह मुझे कदखाई क्ोूं नही ूं पड़ती थी!

एि अूंधा आदमी है , वह दीये िे पास से भी कनििता है , वह सू रज िे पास से भी कनििता है , किजिी


िे पास से भी कनििता है , िेकिन प्रिाश नही ूं कमिता। और एि कदन, जि उसिी आूं ख खु िती है , ति वह
िहता है मैं िैसा अूंधा था, कितनी जर्ह से कनििा, सि जर्ह प्रिाश था और मुझे कदखाई नही ूं पड़ा! और अि
मुझे सि जर्ह कदखाई पड़ रहा है ।

तो कजस कदन घटना घटे र्ी, उस कदन तो तु म्हें सि तरि वही कदखाई पड़े र्ा; और जि ति नही ूं घटी
है , ति ति जहाूं भी कदखाई पड़े , वहाूं उसिो प्रणाम िर िेना; जहाूं भी कदखाई पड़े , वहाूं उसे पी िेना। िेकिन
माूं र्ते मत जाना, कभखारी िी तरह मत जाना; क्ोूंकि सत्य कभखारी िो नही ूं कमि सिता। उसे माूं र्ना मत। नही ूं
तो िोई दु िानदार िीच में कमि जाएर्ा, जो िहे र्ा,हम दे ते हैं । और ति एि आध्याक्तत्मि शोषण शु रू हो
जाएर्ा। तु म चिना अपनी राह— अपने िो तै यार िरते , अपने िो तै यार िरते — जहाूं कमि जाए, िे
िेना, धन्यवाद दे िर आर्े िढ जाना।

किर कजस कदन तु म्हें पूरा उपिि होर्ा, उस कदन तु म ऐसा न िह पाओर्े. मुझे ििाने से कमिा। उस
कदन तु म यही िहोर्े कि आश्चयग है ! मुझे सिसे कमिा; कजनिे िरीि मैं र्या, सभी से कमिा! और ति अूंकतम
धन्यवाद जो है वह समस्त िे प्रकत हो जाता है , वह किसी एि िे प्रकत नही ूं रह जाता।

दू सरे से आए प्रभाि की सीमा:


प्रश्न: ओशो यह प्रश्न इसजिए आया था जक शब्धिपात का प्रभाि धीरे — धीरे कम भी तो हो सकता
है ।

हाूं —हाूं, वह िम होर्ा ही। असि में, दू सरे से िुछ भी कमिेर्ा तो वह िम होता चिा जाएर्ा; वह
कसिग झिि है । उस पर तु म्हें कनभगर भी नही ूं होना है । उसे तो तु म्हें अपने भीतर ही जर्ाना है किसी कदन, तभी
वह िम नही ूं होर्ा। असि में , सि प्रभाव क्षीण हो जाएूं र्े , क्ोूंकि प्रभाव जो हैं वे िारे न हैं , वे कवजातीय हैं , वे
िाहरी हैं ।

मैंने एि पत्थर िेंिा। तो पत्थर िी िोई अपनी ताित नही ूं है । मैंने िेंिा, मेरे हाथ िी ताित है । तो
मेरे हाथ िी ताित कजतनी िर्ी है , पत्थर उतनी दू र जािर कर्र जाएर्ा। िेकिन िीच में जि पत्थर हवा
चीरे र्ा, तो पत्थर िो खयाि हो सिता है कि अि तो मैं हवा चीरने िर्ा, अि तो मुझे कर्रानेवािा िोई भी नही ूं
है । िेकिन उसे पता नही ूं कि वह प्रभाव से र्या है , किसी िे धक्के से र्या है , दू सरे िा हाथ पीछे है । वह एि
पचास िीट दू र जािर कर्र जाएर्ा। कर्रे र्ा ही! असि में , दू सरे से आए प्रभाव िी सदा सीमा होर्ी। वह कर्र
जाएर्ा।

दू सरे से आए प्रभाव िा एि ही िायदा हो सिता है , और वह यह है कि उस प्रभाव िी क्षीण झिि में


तु म अपने मूि स्रोत िो खोज सिो, ति तो ठीि। यानी मैंने एि माकचस जिाई, प्रिाश हुआ। पर मेरी माकचस
कितनी दे र जिे र्ी? अि तु म दो िाम िर सिते हो. तु म यही ूं अूंधेरे में खड़े रहो और मेरी माकचस पर कनभगर हो
जाओ— कि हम इस रोशनी में जीएूं र्े अि। एि घड़ी, क्षण भर भी नही ूं िीते र्ा, माकचस िुझ जाएर्ी, किर घु प्प
अूंधेरा हो जाएर्ा। यह एि िात हुई। मैंने माकचस जिाई, घुप्प अूंधेरे में थोड़ी सी रोशनी हुई, तु म एिदम
दरवाजा कदखाई पड़ा और िाहर भार् र्ए। तु म मे री माकचस पर कनभगर न रहे , तु म िाहर कनिि र्ए; मेरी माकचस
िुझे या जिे , अि तु म्हें िोई मतिि न रहा; िेकिन तु म वहाूं पहुूं च र्ए जहाूं सू रज है । अि िोई चीज कथर हो
पाएर्ी।

तो ये कजतनी घटनाएूं हैं , इनिा एि ही उपयोर् है कि इससे तु म समझिर िुछ िर िेना अपने
भीतर, इसिे किए मत रुि जाना। इसिी प्रतीक्षा िरते रहोर्े तो यह तो िार—िार माकचस जिेर्ी, िुझेर्ी। किर
धीरे — धीरे िूंडीशकनूंर् हो जाएर्ी। किर तु म इसी माकचस िे मोहताज हो जाओर्े। किर तु म अूंधेरे में प्रतीक्षा
िरते रहोर्े — िि जिे! किर जिे र्ी तो तु म प्रतीक्षा िरोर्े — अि िुझनेवािी है , अि िुझने वािी है , अि
र्ए, अि र्ए, अि किर अूंधेरा हो जाएर्ा। िस यह एि चक्कर पैदा हो जाएर्ा। नही,ूं जि माकचस जिे, ति
माकचस पर मत रुिना; क्ोूंकि माकचस इसकिए जिी है कि तु म रास्ता दे खो और भार्ो—कनिि जाओ,कजतने दू र
अूंधेरे िे िाहर जा सिते हो।

झिक पाकर अपनी राह चि दे ना:

दू सरे से हम इतना ही िाभ िे सिते हैं । िेकिन दू सरे से हम स्थायी िाभ नही ूं िे सिते । पर यह िोई
िम िाभ नही ूं है । यह िोई थोड़ा िाभ नही ूं है , िहुत िड़ा िाभ है ; दू सरे से इतना भी कमि जाता है , यह भी
आश्चयग है । इसकिए जो दू सरा अर्र समझदार होर्ा तो तु मसे नही ूं िहे र्ा कि रुिो। तु मसे िहे र्ा—माकचस चि
र्ई, अि तु म भार्ो! अि तु म यहाूं ठहरना मत, नही ूं तो माकचस तो अभी िुझ जाएर्ी।

िेकिन अर्र दू सरा तु मसे िहे कि अि रुिो, दे खो मैंने माकचस जिाई अूंधेरे में! और किसी ने तो नही ूं
जिाई न, मैंने जिाई! अि तु म मुझसे दीक्षा िो; अि तु म यही ूं ठहरो, अि तु म िही ूं छोडि् िर मत जाना, खाओ
िसम! अि यह सूं िूंध रहे र्ा, अि यह टू ट नही ूं सिता। मैंने ही माकचस जिाई! मैंने ही तु म्हें अूंधेरे में कदखाया!
अि तु म किसी और िी माकचस िे पास तो न जाओर्े ? अि तु म िोई और प्रिाश तो न खोजोर्े ? अि तु म किसी
और र्ुरु िे पास मत रुिना, सु नना भी मत, अि तु म मेरे हुए! तो किर, तो किर खतरा हो र्या।

झिक जदखाकर बाधनेिािे तथाकजथत गरु:

इससे अच्छा था यह आदमी माकचस न जिाता। इसने िड़ा नु िसान किया। अूंधेरे में तु म खोज भी
िेते; किसी तरह टिराते , धक्के खाते , किसी कदन प्रिाश में पहुूं च जाते ; अि इस माकचस िो पिडने िी वजह
से िड़ी मुक्तिि हो र्ई, अि िहाूं जाओर्े ?

और ति इतना भी पक्का है कि यह माकचस इस आदमी िी अपनी नही ूं है , यह किसी से चुरा िाया है ।


यह िही ूं से चुराई र्ई माकचस है । नही ूं तो इसिो अि ति पता होता कि िाहर भेजने िे किए है यह, किसी िो
रोिने िे किए नही ूं है , यहाूं किठा रखने िे किए नही ूं है । यह चोरी िी र्ई माकचस है । इसकिए अि यह माकचस
िी दु िान िर रहा है ; अि यह िह रहा है : कजन— कजनिो हम झिि कदखा दें र्े, उनिो यही ूं रुिा रहना
पड़े र्ा; अि वे िही ूं जा नही ूं सिते ।

ति तो हइ हो र्ई! अूंधेरा रोिता था, अि यह र्ु रु रोिने िर्ा। इससे अूंधेरा अच्छा था कि िम से िम
अूंधेरा हाथ िैिािर तो नही ूं रोि सिता था। अूंधेरे िा जो रोिना था वह किििुि ही पै कसव था। िेकिन यह
र्ुरु तो एक्तक्ङव रोिेर्ा; यह तो हाथ पिड़िर रोिेर्ा, छाती अड़ा दे र्ा िीच में , और िहे र्ा कि धोखा दे रहे हो!
दर्ा िर रहे हो!

अभी एि िड़िी ने मुझे आिर िहा कि उसिे र्ुरु ने उससे िहा कि तु म उनिे पास क्ोूं र्ई? यह
तो ऐसे ही है , जैसे िोई पत्नी अपने पकत िो छोडि् िर चिी जाए! र्ु रु िह रहा है उससे कि यह तो जैसे पत्नीव्रत
और पकतव्रत एि िे साथ होता है ,ऐसा र्ुरु िो छोडि् िर चिा जाए िोई दू सरे िे पास, तो यह महान पाप है !

यह चुराई हुई माकचसवािा अि माकचस से िाम चिाएर्ा। और चुराई जा सिती हैं माकचसें , इसमें िोई
िकठनाई नही ूं है ,शास्त्रोूं में िहुत माकचसें उपिि हैं , उनिो िोई चुरा सिता है ।

प्रश्न: ओशो क्ा चराई हुई माजचस जि सकती है ?

जि सिने िा मतिि यह है कि....... असि में, अूंधेरे में मजा ऐसा है...... अूंधेरे में मजा ऐसा
है , कजसने प्रिाश दे खा ही नही,ूं उसिो ि न सी चीज जिती हुई िताई जा रही है , यह भी तय िरना मुक्तिि
है । समझे न? कजसने प्रिाश दे खा ही नही,ूं उसे ि न सी चीज जिी हुई िताई जा रही है , यह पक्का िरना िहुत
मुक्तिि है । यह तो प्रिाश िे िाद उसिो पता चिेर्ा कि तु म क्ा जिा रहे थे , क्ा नही ूं जिा रहे थे! वह जि
भी रही थी कि नही ूं जि रही थी! कि आूं ख िूं द िरिे समझा रहे थे कि जि र्ई! वह सि तो तु म्हें प्रिाश कदखाई
पड़े र्ा, ति तु म्हें पता चिेर्ा। कजस कदन प्रिाश कदखाई पड़े र्ा, उस कदन स में से कनन्यानिे र्ुरु अूं धेरे िे साथी
और प्रिाश िे दु श्मन कसद्ध होते हैं ! पता चिता है कि ये तो िहुत दु श्मन थे , ये सि शै तान िे एजेंसीज थे।

आज इतना ही।

प्रिचन 14 - सात शरीर और सात चक्

आठिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ :

साधक की बाधाएां :

प्रश्न: ओशो कि की चचाओ में आपने कहा जक साधक को पात्र बनने की पहिे जिकर करनी
चाजहए जगह— जगह माां गने नही ां जाना चाजहए। िेजकन साधक अथाओ त खोजी का अथओ ही है जक उसे
साधना में बाधाएां हैं । उसे पता नही ां है जक कैसे पात्र बने कैसे तै यारी करे । तो िह माां गने न जाए तो क्ा
करे ? सही मागओदशओ क से जमिना जकतना मब्धिि से हो पाता है ।

िेकिन खोजना और माूं र्ना दो अिर् िातें हैं । असि में , जो खोजना नही ूं चाहता वही माूं र्ता है ।
खोजना और माूं र्ना एि तो हैं ही नही,ूं कवपरीत िातें हैं । खोजने से जो िचना चाहता है वह माूं र्ता है , खोजी िभी
नही ूं माूं र्ता। और खोज और माूं र्ने िी प्रकक्रया किििुि अिर् है । माूं र्ने में दू सरे पर ध्यान रखना पड़े र्ा—
कजससे कमिेर्ा। और खोजने में अपने पर ध्यान रखना पड़े र्ा—कजसिो कमिे र्ा।

यह तो ठीि है कि साधि िे मार्ग पर िाधाएूं हैं । िेकिन साधि िे मार्ग पर िाधाएूं हैं , अर्र हम ठीि
से समझें तो इसिा मतिि होता है कि साधि िे भीतर िाधाएूं हैं ; मार्ग भी भीतर है । और अपनी िाधाओूं िो
समझ िेना िहुत िकठन नही ूं है । तो इस सूं िूंध में थोड़ी सी कवस्तीणग िात िरनी पड़े र्ी कि िाधाएूं क्ा हैं और
साधि उन्ें िैसे दू र िर सिेर्ा।

जैसे मैंने िि सात शरीरोूं िी िात िही, उस सूं िूंध में िुछ और िात समझेंर्े तो यह भी समझ में आ
सिेर्ा।
मूिाधार चक् की सां भािनाएां :

जैसे सात शरीर हैं , ऐसे ही सात चक्र भी हैं । और प्रत्येि एि चक्र मनुष्य िे एि शरीर से कवशे ष रूप से
जुड़ा हुआ है । जैसे सात शरीर में जो हमने िहे — भ कति शरीर, किकजिि िॉडी, इस शरीर िा जो चक्र है , वह
मूिाधार है ; वह पहिा चक्र है । इस मूिाधार चक्र िा भ कति शरीर से िेंद्रीय सूं िूंध है ; यह भ कति शरीर िा
िेंद्र है । इस मूिाधार चक्र िी दो सूं भावनाएूं हैं एि इसिी प्रािृकति सूं भावना है , जो हमें जन्म से कमिती
है ; और एि साधना िी सूं भावना है , जो साधना से उपिि होती है ।

मूिाधार चक्र िी प्राथकमि प्रािृकति सूं भावना िामवासना है , जो हमें प्रिृकत से कमिती है ; वह भ कति
शरीर िी िेंद्रीय वासना है । अि साधि िे सामने पहिा ही सवाि यह उठे र्ा कि यह जो िेंद्रीय तत्व है उसिे
भ कति शरीर िा, इसिे किए क्ा िरे ? और इस चक्र िी एि दू सरी सूं भावना है , जो साधना से उपिि
होर्ी, वह ब्रह्मचयग है । से क्स इसिी प्रािृकति सूं भावना है और ब्रह्मचयग इसिा टर ाूं सिामेंशन है , इसिा रूपाूं तरण
है । कजतनी मात्रा में कचि िामवासना से िेंकद्रत और ग्रकसत होर्ा, उतना ही मूिाधार अपनी अूंकतम सूं भावनाओूं
िो उपिि नही ूं िर सिेर्ा। उसिी अूंकतम सूं भावना ब्रह्मचयग है । उस चक्र िी दो सूं भावनाएूं हैं एि जो हमें
प्रिृकत से कमिी, और एि जो हमें साधना से कमिेर्ी।

न भोग, न दमन—िरन जागरण:

अि इसिा मतिि यह हुआ कि जो हमें प्रिृकत से कमिी है उसिे साथ हम दो िाम िर सिते हैं या
तो जो प्रिृकत से कमिा है हम उसमें जीते रहें , ति जीवन में साधना शु रू नही ूं हो पाएर्ी; दू सरा िाम जो सूं भव है
वह यह कि हम इसे रूपाूं तररत िरें । रूपाूं तरण िे पथ पर जो िड़ा खतरा है , वह खतरा यही है कि िही ूं हम
प्रािृकति िेंद्र से िड़ने न िर्ें। साधि िे मार्ग में खतरा क्ा है ? या तो जो प्रािृकति व्यवस्था है वह उसिो
भार्े , ति वह उठ नही ूं पाता उस ति जो चरम सूं भावना है —जहाूं ति उठा जा सिता था; भ कति शरीर जहाूं
ति उसे पहुूं चा सिता था वहाूं ति वह नही ूं पहुूं च पाता; जहाूं से शु रू होता है वही ूं अटि जाता है । तो एि तो
भोर् है । दू सरा दमन है , कि उससे िड़े । दमन िाधा है साधि िे मार्ग पर— पहिे िेंद्र िी जो िाधा है । क्ोूंकि
दमन िे द्वारा िभी टर ाूं सिामेंशन, रूपाूं तरण नही ूं होता।

दमन िाधा है तो किर साधि क्ा िनेर्ा? साधन क्ा होर्ा?

समझ साधन िनेर्ी, अूंडरस्टैं कडूं र् साधन िनेर्ी। िामवासना िो जो कजतना समझ पाएर्ा उतना ही
उसिे भीतर रूपाूं तरण होने िर्ेर्ा। उसिा िारण है . प्रिृकत िे सभी तत्व हमारे भीतर अूंधे और मूक्तच्छगत हैं ।
अर्र हम उन तत्वोूं िे प्रकत होशपूणग हो जाएूं तो उनमें रूपाूं तरण होना शु रू हो जाता है । जैसे ही हमारे भीतर
िोई चीज जार्नी शु रू होती है वैसे ही प्रिृकत िे तत्व िदिने शु रू हो जाते हैं । जार्रण िीकमया है , अवेयरनेस
िेकमस्टर ी है उनिे िदिने िी, रूपाूं तरण िी।

तो अर्र िोई अपनी िामवासना िे प्रकत पूरे भाव और पूरे कचि, पूरी समझ से जार्े , तो उसिे भीतर
िामवासना िी जर्ह ब्रह्मचयग िा जन्म शु रू हो जाएर्ा। और जि ति िोई पहिे शरीर पर ब्रह्मचयग पर न पहुूं च
जाए ति ति दू सरे शरीर िी सूं भावनाओूं िे साथ िाम िरना िहुत िकठन है ।
स्वाजधष्ठान चक् की सां भािनाएां :

दू सरा शरीर मैंने िहा था भाव शरीर या आिाश शरीर— ईथररि िॉडी। दू सरा शरीर हमारे दू सरे चक्र
से सूं िूंकधत है ,स्वाकधष्ठान चक्र से । स्वाकधष्ठान चक्र िी भी दो सूं भावनाएूं हैं । मू ित: प्रिृकत से जो सूं भावना कमिती
है , वह है भय, घृणा, क्रोध,कहूं सा। ये सि स्वाकधष्ठान चक्र िी प्रिृकत से कमिी हुई क्तस्थकत है । अर्र इन पर ही िोई
अटि जाता है , तो इसिी जो दू सरी,इससे किििुि प्रकतिूि टर ाूं सिामेंशन िी क्तस्थकत है —
प्रेम, िरुणा, अभय, मैत्री, वह सूं भव नही ूं हो पाता।

साधि िे मार्ग पर, दू सरे चक्र पर जो िाधा है , वह घृणा, क्रोध, कहूं सा, इनिे रूपाूं तरण िा सवाि है ।
यहाूं भी वही भूि होर्ी जो सि तत्वोूं पर होर्ी। िोई चाहे तो क्रोध िर सिता है और िोई चाहे तो क्रोध िो
दिा सिता है । हम दो ही िाम िरते हैं िोई भयभीत हो सिता है और िोई भय िो दिािर व्यथग ही िहादु री
कदखा सिता है । दोनोूं ही िातोूं से रूपाूं तरण नही ूं होर्ा। भय है , इसे स्वीिार िरना पड़े र्ा; इसे दिाने, कछपाने से
िोई प्रयोजन नही ूं है । कहूं सा है , इसे अकहूं सा िे िाने पहना िेने से िोई ििग पड़नेवािा नही ूं है ; अकहूं सा परम धमग
है , ऐसा कचल्राने से इसमें िोई ििग पड़नेवािा नही ूं है । कहूं सा है , वह हमारे दू सरे शरीर िी प्रिृकत से कमिी हुई
सूं भावना है । उसिा भी उपयोर् है , जैसे कि से क्स िा उपयोर् है । वह प्रिृकत से कमिी हुई सूं भावना है ,क्ोूंकि
से क्स िे द्वारा ही दू सरे भ कति शरीर िो जन्म कदया जा सिेर्ा। यह भ कति शरीर कमटे , इसिे पहिे दू सरे
भ कति शरीरोूं िो जन्म कमि सिे, इसकिए वह प्रिृकत से दी हुई सूं भावना है । भय, कहूं सा, क्रोध, ये सि भी दू सरे
ति पर अकनवायग हैं ,अन्यथा मनुष्य िच नही ूं सिता, सु रकक्षत नही ूं रह सिता। भय उसे िचाता है ; क्रोध उसे
सूं घषग में उतारता है ; कहूं सा उसे साधन दे ती है दू सरे िी कहूं सा से िचने िा। वे उसिे दू सरे शरीर िी सूं भावनाएूं
हैं ।

िेकिन साधारणत: हम वही ूं रुि जाते हैं । इन्ें अर्र समझा जा सिे— अर्र िोई भय िो समझे , तो
अभय िो उपिि हो जाता है , और अर्र िोई कहूं सा िो समझे, तो अकहूं सा िो उपिि हो जाता है , और अर्र
िोई क्रोध िो समझे , तो क्षमा िो उपिि हो जाता है । असि में, क्रोध एि पहिू है और दू सरा पहिू क्षमा
है , वह उसी िे पीछे कछपा हुआ पहिू है , वह कसक्के िा दू सरा कहस्सा है । िेकिन कसक्का उिटे ति। िेकिन
कसक्का उिट जाता है । अर्र हम कसक्के िे एि पहिू िो पूरा समझ िें , तो अपने आप हमारी
कजज्ञासा उिटािर दे खने िी हो जाती है दू सरी तरि।

िेकिन हम उसे कछपा िें और िहें , हमारे पास है ही नही!ूं भय तो हममें है ही नही ूं! तो हम अभय िो
िभी भी न दे ख पाएूं र्े। कजसने भय िो स्वीिार िर किया और िहा, भय है ; और कजसने भय िो पूरा जाूं चा—
पड़तािा, खोजा, वह जल्दी ही उस जर्ह पहुूं च जाएर्ा जहाूं वह जानना चाहे र्ा भय िे पीछे क्ा है ? कजज्ञासा
उसे उिटाने िो िहे र्ी कि कसक्के िो उिटािर भी दे ख िो। और कजस कदन वह उिटाएर्ा उस कदन वह
अभय िो उपिि हो जाएर्ा। ऐसे ही कहूं सा िरुणा में िदि जाएर्ी। वे दू सरे शरीर िी साधि िे किए
सूं भावनाएूं हैं ।

इसकिए साधि िो जो कमिा है प्रिृकत से , उसिो रूपाूं तरण िरना है । और इसिे किए किसी से िहुत
पूछने जाने िी जरूरत नही ूं है , अपने ही भीतर कनरूं तर खोजने और पूछने िी जरूरत है । हम सि जानते हैं कि
क्रोध िाधा है , हम सि जानते हैं ,भय िाधा है । क्ोूंकि जो भयभीत है वह सत्य िो खोजने िैसे जाएर्ा? भयभीत
माूं र्ने चिा जाएर्ा। वह चाहे र्ा कि किना किसीअतात, अनजान रास्ते पर जाए, िोई दे दे तो अच्छा।
मजणपर चक् की सां भािनाएां :

तीसरा शरीर मैंने िहा, एस्टर ि िॉडी है , सू क्ष्म शरीर है । उस सू क्ष्म शरीर िे भी दो कहस्से हैं । प्राथकमि
रूप से सू क्ष्म शरीर सूं देह, कवचार, इनिे आसपास रुिा रहता है । और अर्र ये रूपाूं तररत हो जाएूं —सूं देह अर्र
रूपाूं तररत हो तो श्रद्धा िन जाता है ;और कवचार अर्र रूपाूं तररत हो तो कववे ि िन जाता है ।

सूं देह िो किसी ने दिाया तो वह िभी श्रद्धा िो उपिि नही ूं होर्ा। हािाूं कि सभी तरि ऐसा समझाया
जाता है कि सूं देह िो दिा डािो, कवश्वास िर िो। कजसने सूं देह िो दिाया और कवश्वास किया, वह िभी श्रद्धा
िो उपिि नही ूं होर्ा; उसिे भीतर सूं देह म जूद ही रहे र्ा— दिा हुआ; भीतर िीड़े िी तरह सरिता रहे र्ा
और िाम िरता रहे र्ा। उसिा कवश्वास सूं देह िे भय से ही थोपा हुआ होर्ा।

न, सूं देह िो समझना पड़े र्ा, सूं देह िो जीना पड़े र्ा, सूं देह िे साथ चिना पड़े र्ा। और सूं देह एि कदन
उस जर्ह पहुूं चा दे ता है , जहाूं सूं देह पर भी सूं देह हो जाता है । और कजस कदन सूं देह पर सूं देह होता है उसी कदन
श्रद्धा िी शु रुआत हो जाती है । कवचार िो छोडि् िर भी िोई कववे ि िो उपिि नही ूं हो सिता। कवचार
िो छोड़नेवािे िोर् हैं , छु ड़ानेवािे िोर् हैं ; वे िहते हैं —कवचार मत िरो, कवचार छोड़ ही दो। अर्र िोई कवचार
छोड़े र्ा, तो कवश्वास और अूंधे कवश्वास िो उपिि होर्ा। वह कववेि नही ूं है । कवचार िी सू क्ष्मतम प्रकक्रया से
र्ुजरिर ही िोई कववे ि िो उपिि होता है ।

कववेि िा क्ा मतिि है ?

कवचार में सदा ही सूं देह म जूद है । कवचार सदा इनकडसीकसव है । इसकिए िहुत कवचार िरने वािे िोर्
िभी िुछ तय नही ूं िर पाते । और जि भी िोई िुछ तय िरता है , वह तभी तय िर पाता है जि कवचार िे
चक्कर िे िाहर होता है । कडसीजन जो है वह हमे शा कवचार िे िाहर से आता है । अर्र िोई कवचार में पड़ा रहे
तो वह िभी कनश्चय नही ूं िर पाता। कवचार िे साथ कनश्चय िा िोई सूं िूंध नही ूं है ।

इसकिए अक्सर ऐसा होता है कि कवचारहीन िड़े कनश्चयात्मि होते हैं , और कवचारवान िड़े कनश्चयहीन
होते हैं । दोनोूं से खतरा होता है । क्ोूंकि कवचारहीन िहुत कडसीकसव होते हैं । वे जो िरते हैं , पूरी ताित से िरते
हैं । क्ोूंकि उनमें कवचार होता ही नही ूं जो जरा भी सूं देह पैदा िर दे । दु कनया भर िे डाग्मे कटि, अूंधे कजतने िोर्
हैं , िेनेकटि कजतने िोर् हैं , ये िड़े िमग ठ होते हैं ;क्ोूंकि इनमें शि िा तो सवाि ही नही ूं है , ये िभी कवचार तो
िरते नही ूं। अर्र इनिो ऐसा िर्ता है कि एि हजार आदमी मारने से स्वर्ग कमिे र्ा, तो एि हजार एि मारिर
ही किर रुिते हैं , उसिे पहिे वे नही ूं रुिते । एि दिा उनिो खयाि नही ूं आता कि यह ऐसा— ऐसा
होर्ा? उनमें िोई इनकडसीजन नही ूं है । कवचारवान तो सोचता ही चिा जाता है , सोचता ही चिा जाता है ।

तो कवचार िे भय से अर्र िोई कवचार िा द्वार ही िूंद िर दे , तो कसिग अूंधे कवश्वास िो उपिि होर्ा।
अूंधा कवश्वास खतरनाि है और साधि िे मार्ग में िड़ी िाधा है । चाकहए आूं खवािा कववे ि, चाकहए ऐसा कवचार
कजसमें कडसीजन हो। कववे ि िा मतिि इतना ही होता है । कववेि िा मतिि है कि कवचार पूरा है , िेकिन कवचार
से हम इतने र्ुजरे हैं कि अि कवचार िी जो भी सूं देह िी, शि िी िातें थी,ूं वे कवदा हो र्ई हैं ; अि धीरे — धीरे
कनष्कषग में शु द्ध कनश्चय साथ रह र्या है ।

तो तीसरे शरीर िा िेंद्र है मकणपुर, चक्र है मकणपुर। उस मकणपुर चक्र िे ये दो रूप हैं . सूं देह और
श्रद्धा। सूं देह रूपाूं तररत होर्ा तो श्रद्धा िने र्ी।
िेकिन ध्यान रखें श्रद्धा सूं देह िे कवपरीत नही ूं है , शत्रु नही ूं है , श्रद्धा सूं देह िा ही शु द्धतम कविास
है , चरम कविास है ;वह आक्तखरी छोर है जहाूं सूं देह िा सि खो जाता है , क्ोूंकि सूं देह स्वयूं पर सूं देह िन जाता है
और स्युसाइडि हो जाता है ,आत्मघात िर िेता है और श्रद्धा उपिि होती है ।

अनाहत चक् की सां भािनाएां :

च था शरीर है हमारा, मेंटि िॉडी, मनस शरीर, साइि। इस च थे शरीर िे साथ हमारे च थे चक्र िा
सूं िूंध है , अनाहत िा। च था जो शरीर है , मनस, इस शरीर िा जो प्रािृकति रूप है , वह है िल्पना—
इमेकजनेशन, स्वप्न— और डरीकमूंर्। हमारा मन स्वभावत: यह िाम िरता रहता हैं —िल्पना िरता है और सपने
दे खता है । रात में भी सपने दे खता है , कदन में भी सपने दे खता है और िल्पना िरता रहता है ।

इसिा जो चरम कविकसत रूप है , अर्र िल्पना पूरी तरह से, चरम रूप से कविकसत हो, तो सूं िल्प
िन जाती है , कवि िन जाती है ; और अर्र डरीकमूं र् पूरी तरह से कविकसत हो, तो कवजन िन जाती है , ति वह
साइकिि कवजन हो जाती है ।

अर्र किसी व्यक्तक्त िी स्वप्न दे खने िी क्षमता पूरी तरह से कविकसत होिर रूपाूं तररत हो, तो वह आूं ख
िूंद िरिे भी चीजोूं िो दे खना शु रू िर दे ता है । सपना नही ूं दे खता ति वह, ति वह चीजोूं िो ही दे खना शु रू
िर दे ता है । वह दीवाि िे पार भी दे ख िेता है । अभी तो दीवाि िे पार िा सपना ही दे ख सिता है , िेकिन ति
दीवाि िे पार भी दे ख सिता है । अभी तो आप क्ा सोच रहे होूंर्े , यह सोच सिता है ; िेकिन ति आप क्ा
सोच रहे हैं, यह दे ख सिता है । कवजन िा मतिि यह है कि इूं कद्रयोूं िे किना अि उसे चीजें कदखाई पड़नी और
सु नाई पड़नी शु रू हो जाती हैं । टाइम और स्पे स िे, िाि और स्थान िे जो िासिे हैं , उसिे किए कमट जाते हैं ।

सपने में भी आप जाते हैं । सपने में आप िूं िई में हैं , ििििा जा सिते हैं । और कवजन में भी जा
सिते हैं । िेकिन दोनोूं में ििग होर्ा। सपने में कसिग खयाि है कि आप ििििा र्ए, कवजन में आप चिे ही
जाएूं र्े। वह जो च थी साइकिि िॉडी है , वह म जूद हो सिती है ।

इसकिए पुराने जर्त में जो सपनोूं िे सूं िूंध में खयाि था—वह धीरे — धीरे छूट र्या और नये समझदार
िोर्ोूं ने उसे इनिार िर कदया; क्ोूंकि हमें च थे शरीर िी चरम सूं भावना िा िोई पता नही ूं रहा—सपने िे
सूं िूंध में पुराना अनु भव यही था कि सपने में आदमी िा िोई शरीर कनिििर िाहर चिा जाता है यात्रा पर।

स्वीडनिर्ग एि आदमी था। उसे िोर् सपना दे खनेवािा आदमी ही समझते थे। क्ोूंकि वह स्वर्ग —
नरि िी िातें भी िहता था, और स्वर्ग—नरि िी िातें सपना ही हो सिती हैं ! िेकिन एि कदन दोपहर वह
सोया था, और उसने दोपहर एिदम उठिर िहा कि िचाओ, आर् िर् र्ई है ! िचाओ, आर् िर् र्ई है ! घर िे
िोर् आ र्ए, वहाूं िोई आर् नही ूं िर्ी थी। तो उसिो उन्ोूंने जर्ाया और िहा कि तु म नी ूंद में हो या सपना दे ख
रहे हो? आर् िही ूं भी नही ूं िर्ी है ! उसने िहा, नही,ूं मेरे घर में आर् िर् र्ई है । तीन स मीि दू र था उसिा
घर, िेकिन उसिे घर में उस वक्त आर् िर् र्ई थी। दू सरे —तीसरे कदन ति खिर आई कि उसिा घर जििर
किििुि राख हो र्या। और जि वह सपने में कचल्राया था तभी आर् िर्ी थी।

अि यह सपना न रहा, यह कवजन हो र्या। अि तीन स मीि िा जो िासिा था वह कर्र र्या और इस


आदमी ने तीन स मीि दू र जो हो रहा था वह दे खा।
जिज्ञान के समक्ष अती ांजद्रय घटनाएां :

अि तो वैज्ञाकनि भी इस िात िे किए राजी हो र्ए हैं कि च थे शरीर िी िड़ी साइकिि सूं भावनाएूं हैं ।
और चूूंकि स्पे सटर े वेि िी वजह से उन्ें िहुत समझिर िाम िरना पड़ रहा है ; क्ोूंकि आज नही ूं िि यह
िकठनाई खड़ी हो जाने ही वािी है कि कजन याकत्रयोूं िो हम अूंतररक्ष िी यात्रा पर भेजेंर्े — मशीन कितने ही
भरोसे िी हो, किर भी भरोसे िी नही ूं है — अर्र उनिे यूंत्र जरा भी किर्ड़ र्ए, उनिे रे कडयो यूं त्र, तो हमसे
उनिा सूं िूंध सदा िे किए टू ट जाएर्ा; किर वे हमें खिर भी न दे पाएूं र्े कि वे िहाूं र्ए और उनिा क्ा हुआ।
इसकिए वैज्ञाकनि इस समय िहुत उत्सु ि हैं कि यह साइकिि, च थे शरीर िा अर्र कवजन िा मामिा सूं भव हो
सिे और टे िीपैथी िा मामिा सूं भव हो सिे— वह भी च थे शरीर िी आक्तखरी सूं भावनाओूं िा एि कहस्सा है —
कि अर्र वे यात्री किना रे कडयो यूंत्रोूं िे हमें सीधी टे किपैथि खिर दे सिें, तो िुछ िचाव हो सिता है ।

इस पर िािी िाम हुआ है । आज से िोई तीस साि पहिे एि यात्री उिर ध्रु व िी खोज पर र्या था।
तो रे कडयो यूंत्रोूं िी व्यवस्था थी कजनसे वह खिर दे ता, िेकिन एि और व्यवस्था थी जो अभी— अभी प्रिट हुई
है । और वह व्यवस्था यह थी कि एि साइकिि आदमी िो, एि ऐसे आदमी िो कजसिे च थे शरीर िी दू सरी
सूं भावनाएूं िाम िरती थी,ूं उसिो भी कनयत किया र्या था कि वह उसिो भी खिरें दे ।

और िड़े मजे िी िात यह है कि कजस कदन पानी, हवा, म सम खराि होता और रे कडयो में खिरें न
कमिती, उस कदन भी उसे तो खिरें कमिती। और जि पीछे सि डायरी कमिाई र्ईूं, तो िम से िम अस्सी
से पूंचानिे प्रकतशत िे िीच उसने जो साइकिि आदमी ने जो माध्यम िी तरह ग्रहण िी थी ,ूं वे सही थी ूं। और
मजा यह है कि रे कडयो ने जो खिर िी थी,ूं वह भी िहिर प्रकतशत से ज्यादा ऊपर नही ूं र्ई थी ूं, क्ोूंकि इस िीच
िभी िुछ र्ड़िड़ हुई, िभी िुछ हुई, तो िहुत सी चीजें छूट र्ई थी ूं।

और अभी तो रूस और अमेररिा दोनोूं अकत उत्सु ि हैं उस सूं िूंध में। इसकिए टे िीपै थी
और क्लेअरवायूंस और थॉट रीकडूं र् और थॉट प्रोजे क्शन , इन पर िहुत िाम चिता है । वे हमारे च थे शरीर िी
सूं भावनाएूं हैं । स्वप्न दे खना उसिी प्रािृकति सूं भावना है ; सत्य दे खना, यथाथग दे खना उसिी चरम सूं भावना है ।
यह अनाहत हमारा च था चक्र है ।

जिशि चक् की सां भािनाएां :

पाूं चवाूं चक्र है कवशु द्ध; वह िूंठ िे पास है । और पाूं चवाूं शरीर है क्तस्प्रचुयूि िॉडी, आत्म शरीर। वह
उसिा चक्र है , वह उस शरीर से सूं िूंकधत है । अि ति जो चार शरीर िी मैंने िात िी और चार चक्रोूं िी, वे द्वै त
में िूंटे हुए थे। पाूं चवें शरीर से द्वै त समाप्त हो जाता है । जैसा मैंने िि िहा था कि चार शरीर ति मेि और
िीमेि िा ििग होता है िॉडी में ; पाूं चवें शरीर से मेि और िीमेि िा, स्त्री और पुरुष िा ििग समाप्त हो जाता
है । अर्र िहुत र् र से दे खें तो सि द्वै त स्त्री और पुरुष िा है ;द्वै त मात्र, डु आकिटी मात्र स्त्री—पुरुष िी है । और
कजस जर्ह से स्त्री—पुरुष िा िासिा खत्म होता है , उसी जर्ह से सि द्वै त खत्म हो जाता है । पाूं चवाूं शरीर
अद्वै त है । उसिी दो सूं भावनाएूं नही ूं हैं , उसिी एि ही सूं भावना है ।

इसकिए च थे िे िाद साधि िे किए िड़ा िाम नही ूं है , सारा िाम च थे ति है । च थे िे िाद िड़ा
िाम नही ूं है । िड़ा इस अथों में कि कवपरीत िुछ भी नही ूं है वहाूं । वहाूं प्रवेश ही िरना है । और च थे ति
पहुूं चते —पहुूं चते इतनी सामर्थ्ग इिट्ठी हो जाती है कि पाूं चवें में सहज प्रवेश हो जाता है ।
िेकिन प्रवेश न हो और हो, तो क्ा ििग होर्ा? पाूं चवें शरीर में िोई द्वै त नही ूं है । िेकिन िोई साधि
जो...... .एि व्यक्तक्त अभी प्रवेश नही ूं किया है , उसमें क्ा ििग है ? और जो प्रवेश िर र्या है , उसमें क्ा ििग
है ?

इनमें ििग होर्ा। वह ििग इतना होर्ा कि जो पाूं चवें शरीर में प्रवेश िरे र्ा उसिी समस्त तरह िी
मूच्छाग टू ट जाएर्ी; वह रात भी नही ूं सो सिेर्ा। सोएर्ा, शरीर ही सोया रहे र्ा; भीतर उसिे िोई सतत जार्ता
रहे र्ा। अर्र उसने िरवट भी िदिी है तो वह जानता है , नही ूं िदिी है तो जानता है , अर्र उसने
िूंिि ओढ़ा है तो जानता है , नही ूं ओढ़ा है तो जानता है । उसिा जानना कनद्रा में भी कशकथि नही ूं होर्ा; वह
च िीस घूंटे जार्रूि होर्ा।

कजनिा नही ूं पाूं चवें शरीर में प्रवेश हुआ, उनिी क्तस्थकत किििुि उिटी होर्ी. वे नी ूंद में तो सोए हुए होूंर्े
ही, कजसिो हम जार्ना िहते हैं , उसमें भी एि पतग उनिी सोई ही रहे र्ी।

आदमी की मूर्च्ाओ और याां जत्रकता:

िाम िरते हुए कदखाई पड़ते हैं िोर्। आप अपने घर आते हैं , िार िा घूमना िाएूं और आपिे घर िे
सामने आिर ब्रे ि िा िर् जाना, तो आप यह मत समझ िेना कि आप सि होश में िर रहे हैं ! यह सि
किििुि आदतन, िेहोशी में होता रहता है । िभी—िभी किन्ी ूं क्षणोूं में हम होश में आते हैं , िहुत खतरे िे
क्षणोूं में! जि खतरा इतना होता है कि नी ूंद से नही ूं चि सिता—कि एि आदमी आपिी छाती पर छु रा रख
दे —ति आप एि से िेंड िो होश में आते हैं । एि से िेंड िो वह छु रे िी धार आपिो पाूं चवें शरीर ति पहुूं चा
दे ती है । िेकिन िस, ऐसे दो—चार क्षण कजूं दर्ी में होते हैं , अन्यथा साधारणत: हम सोए—सोए ही जीते हैं ।

न तो पकत अपनी पत्नी िा चेहरा दे खा है ठीि से , कि अर्र अभी आूं ख िूंद िरिे सोचे तो खयाि िर
पाए। नही ूं िर पाएर्ा। रे खाएूं थोड़ी दे र में ही इधर—उधर हट जाएूं र्ी और पक्का नही ूं हो पाएर्ा कि यह मेरी
पत्नी िा चेहरा है कजसिो तीस साि से मैं दे खा हूं । दे खा ही नही ूं है िभी। क्ोूंकि दे खने िे किए भीतर िोई
जार्ा हुआ आदमी चाकहए।

सोया हुआ आदमी, कदखाई पड रहा है कि दे ख रहा है , िेकिन वह दे ख नही ूं रहा है । उसिे भीतर तो
नी ूंद चि रही है , और सपने भी चि रहे हैं । उस नी ूंद में सि चि रहा है । आप क्रोध िरते हैं और पीछे िहते हैं
कि पता नही ूं िैसे हो र्या! मैं तो नही ूं िरना चाहता था। जैसे कि िोई और िर र्या हो। आप िहते हैं , यह मुूंह
से मेरे र्ािी कनिि र्ई, माि िरना, मैं तो नही ूं दे ना चाहता था, िोई जिान क्तखसि र्ई होर्ी। आपने ही र्ािी
दी, आप ही िहते हैं कि मैं नही ूं दे ना चाहता था। हत्यारे हैं , जो िहते हैं कि पता नही,ूं इूं सपाइट ऑि अस, हमारे
िावजूद हत्या हो र्ई; हम तो िरना ही नही ूं चाहते थे, िस ऐसा हो र्या।

तो हम िोई आटोमेटा हैं ? यूंत्रवत चि रहे हैं ? जो नही ूं िोिना है वह िोिते हैं , जो नही ूं िरना है वह
िरते हैं । साूं झ िो तय िरते हैं : सु िह चार िजे उठें र्े! िसम खा िेते हैं । सु िह चार िजे हम खु द ही िहते हैं
कि क्ा रखा है ! अभी सोओ, िि दे खेंर्े। सु िह छह िजे उठिर किर पछताते हैं और हम ही िहते हैं कि िड़ी
र्िती हो र्ई। ऐसा िभी नही ूं िरें र्े , अि िि तो उठना ही है , जो िसम खाई थी उसिो कनभाना था।
आश्चयग िी िात है , शाम िो कजस आदमी ने तय किया था, सु िह चार िजे वही आदमी िदि िैसे
र्या? किर सु िह चार िजे तय किया था तो किर छह िजे िैसे िदि र्या? किर सु िह छह िजे जो तय किया
है , किर साूं झ ति िदि जाता है । साूं झ िहुत दू र है , उस िीच पच्चीस दिे िदि जाता है ।

न, ये कनणग य, ये खयाि, हमारी नी ूंद में आए हुए खयाि हैं , सपनोूं िी तरह। िहुत ििूिोूं िी तरह िनते
हैं और टू ट जाते हैं । िोई जार्ा हुआ आदमी पीछे नही ूं है , िोई होश से भरा हुआ आदमी पीछे नही ूं है ।

तो नी ूंद आक्तत्मि शरीर में प्रवेश िे पहिे िी सहज अवस्था है —नी ूंद, सोया हुआ होना। और आत्म
शरीर में प्रवेश िे िाद िी सहज अवस्था है जार्ृ कत। इसकिए च थे शरीर िे िाद हम व्यक्तक्त िो िु द्ध िह सिते
हैं । च थे शरीर िे िाद जार्ना आ र्या। अि आदमी जार्ा हुआ है । िुद्ध , र् तम कसद्धाथग िा नाम नही ूं है , पाूं चवें
शरीर िी उपिक्ति िे िाद कदया र्या कवशे षण है —र् तम कद िुद्धा! र् तम जो जार् र्या, यह मतिि है उसिा।
नाम तो र् तम ही है , िेकिन वह र् तम सोए हुए आदमी िा नाम था। इसकिए किर धीरे — धीरे उसिो कर्रा
कदया और िुद्ध ही रह र्या।

सोए हुए आदजमयोां की दजनया:

यह हमारे पाूं चवें शरीर िा ििग, उसमें प्रवेश िे पहिे आदमी सोया—सोया है , वह स्लीपी है । वह जो
भी िर रहा है , वे नी ूंद में किए र्ए िृत्य हैं । उसिी िातोूं िा िोई भरोसा नही ,ूं वह जो िह रहा है , वह कवश्वास
िे योग्य नही,ूं उसिी प्राकमस िा िोई मूल्य नही,ूं उसिे कदए र्ए वचन िो मानने िा िोई अथग नही।ूं वह िहता
है कि मैं जीवन भर प्रेम िरू
ूं र्ा! और अभी दो क्षण िाद हो सिता है कि वह र्िा घोूंट दे । वह िहता है , यह
सूं िूंध जन्मोूं—जन्मोूं ति रहे र्ा! यह दो क्षण न कटिे। उसिा िोई िसू र भी नही ूं है , नी ूंद में कदए र्ए वचन िा
क्ा मूल्य है ? रात सपने में मैं किसी िो वचन दे दू ूं कि जीवन भर यह सूं िूंध रहे र्ा, इसिा क्ा मूल्य है ? सु िह मैं
िहता हूं सपना था।

सोए हुए आदमी िा िोई भी भरोसा नही ूं है । और हमारी पूरी दु कनया सोए हुए आदकमयोूं िी दु कनया है ।
इसकिए इतनािनक्ूजन, इतनी िाूं क्तफ्लक्ङ, इतना द्वूं द्व, इतना झर्ड़ा, इतना उपद्रव, ये सोए हुए आदमी पैदा िर
रहे हैं ।

सोए हुए आदमी और जार्े हुए आदमी में एि और ििग पड़े र्ा, वह भी हमें खयाि में िे िेना चाकहए।
चूकि सोए हुए आदमी िो यह िभी पता नही ूं चिता कि मैं ि न हूं इसकिए वह पूरे वक्त इस िोकशश में िर्ा
रहता है कि मैं किसी िो िता दू ूं कि मैं यह हूं ! पूरे वक्त िर्ा रहता है । उसे खु द ही पता नही ूं कि मैं ि न हूं
इसकिए पूरे वक्त वह हजार—हजार रास्तोूं से ...... िभी राजनीकत िे किसी पद पर सवार होिर िोर्ोूं िो
कदखाता है कि मैं यह हूं िभी एि िड़ा मिान िनािर कदखाता है कि मैं यह हूं िभी पहाड़ पर चढ़िर कदखाता
है कि मैं यह हूं वह सि तरि से िोकशश िर रहा है कि िोर्ोूं िो िता दे कि मैं यह हूं । और इस सि िोकशश से
वह घूमिर अपने िो जानने िी िोकशश िर रहा है कि मैं हूं ि न? मैं हूं ि न, यह उसे पता नही ूं है ।

'मैं कौन हां ' का उत्तर:


च थे शरीर िे पहिे इसिा िोई पता नही ूं चिे र्ा। पाूं चवें शरीर िो आत्म शरीर इसीकिए िह रहे हैं कि
वहाूं तु म्हें पता चिेर्ा कि तु म ि न हो। इसकिए पाूं चवें शरीर िे िाद 'मैं' िी आवाजें एिदम िूंद हो जाएूं र्ी।
पाूं चवें शरीर िे िाद वह समिडीहोने िा दावा एिदम समाप्त हो जाएर्ा। उसिे िाद अर्र तु म उससे िहोर्े
कि तु म यह हो, तो वह हूं सेर्ा। और अपनी तरि से उसिे दावे खत्म हो जाएूं र्े ; क्ोूंकि अि वह जानता है , अि
दावे िरने िी िोई जरूरत नही ूं। अि किसी िे सामने कसद्ध िरने िी िोई जरूरत नही ;ूं अपने ही सामने कसद्ध
हो र्या है कि मैं ि न हूं ।

इसकिए पाूं चवें शरीर िे भीतर िोई द्वूं द्व नही ूं है ; िेकिन पाूं चवें शरीर िे िाहर और भीतर र्ए आदमी में
िुकनयादी ििग है ; द्वूं द्व अर्र है तो इस भाूं कत है —िाहर और भीतर में। भीतर, पाूं चवें शरीर में र्ए आदमी में िोई
द्वूं द्व नही ूं है ।

पाां चिाां शरीर बहुत ही तृ ब्धप्तदायी:

िेकिन पाूं चवें शरीर िा अपना खतरा है कि चाहो तो तु म वहाूं रुि सिते हो; क्ोूंकि तु मने अपने िो
जान किया। और यह इतनी तृ क्तप्तदायी क्तस्थकत है और इतनी आनूंदपूणग, कि शायद तु म आर्े िी र्कत न िरो। अि
ति जो खतरे थे वे दु ख िे थे,अि जो खतरा शु रू होता है वह आनूंद िा है । पाूं चवें शरीर िे पहिे कजतने खतरे
थे वे सि दु ख िे थे , अि जो खतरा शु रू होता है वह आनूंद िा है । यह इतना आनूंदपूणग है कि अि शायद तु म
आर्े खोजो ही न।

इसकिए पाूं चवें शरीर में र्ए व्यक्तक्त िे किए अत्यूंत सजर्ता जो रखनी है वह यह कि आनूं द िही ूं पिड़
न िे , रोिने वािा न िन जाए। और आनूंद परम है । यहाूं आनूं द अपनी पूरी ऊूंचाई पर प्रिट होर्ा; अपनी पूरी
र्हराई में प्रिट होर्ा। एि िड़ी क्राूं कत घकटत हो र्ई है तु म अपने िो जान किए हो। िेकिन अपने िो ही जाने
हो। और तु म ही नही ूं हो, और भी सि हैं । िेकिन िहुत िार ऐसा होता है कि दु ख रोिनेवािे कसद्ध नही ूं
होते , सु ख रोिने वािे कसद्ध हो जाते हैं ; और आनूं द तो िहुत रोिने वािा कसद्ध हो जाता है । िाजार िी भीड़—
भाड़ ति िो छोड़ने में िकठनाई थी, अि इस मूंकदर में िजती वीणा िो छोड़ने में तो िहुत िकठनाई हो जाएर्ी।
इसकिए िहुत से साधि आत्मज्ञान पर रुि जाते हैं और ब्रह्मज्ञान िो उपिि नही ूं हो पाते ।

आनांद में िीन मत हो जाना:

तो इस आनूंद िे प्रकत भी सजर् होना पडे र्ा। यहाूं भी िाम वही है कि आनूंद में िीन मत हो जाना।
आनूंद िीन िरता है , तल्रीन िरता है , डु िा िेता है । आनूंद में िीन मत हो जाना। आनूंद िे अनु भव िो भी
जानना कि वह भी एि अनु भव है —जैसे सु ख िे अनुभव थे , दु ख िे अनुभव थे , वैसा आनूंद िा भी अनुभव है ।
िेकिन तु म अभी भी िाहर खड़े रहना, तु म इसिे भी साक्षी िन जाना। क्ोूंकि जि ति अनु भव है , ति ति
उपाकध है ; और जि ति अनु भव है , ति ति अूंकतम छोर नही ूं आया। अूंकतम छोर पर सि अनु भव समाप्त हो
जाएूं र्े। सु ख और दु ख तो समाप्त होते ही हैं , आनूंद भी समाप्त हो जाता है । िेकिन हमारी भाषा इसिे आर्े
किर नही ूं जा पाती। इसकिए हमने परमात्मा िा रूप सक्तच्चदानूंद िहा है । यह परमात्मा िा रूप नही ूं है ,यह जहाूं
ति भाषा जाती है वहाूं ति। आनूंद हमारी आक्तखरी भाषा है ।
असि में, पाूं चवें शरीर िे आर्े किर भाषा नही ूं जाती। तो पाूं चवें शरीर िे सूं िूंध में िुछ िहा जा सिता
है — आनूंद है वहाूं , पूणग जार्ृकत है वहाूं , स्विोध है वहाूं ; यह सि िहा जा सिता है , इसमें िोई िकठनाई नही ूं है ।

आत्मिाद के बाद रहस्यिाद:

इसकिए जो आत्मवाद पर रुि जाते हैं उनिी िातोूं में कमक्तस्टकसज्म नही ूं होर्ा। इसकिए आत्मवाद पर
रुि र्ए िोर्ोूं में िोई रहस्य नही ूं होर्ा; उनिी िातें किििुि साइूं स जैसी मािूम पड़े र्ी; क्ोूंकि कमस्टर ी िी
दु कनया तो इसिे आर्े है , रहस्य तो इसिे आर्े है । यहाूं ति तो चीजें साि हो सिती हैं। और मेरी समझ है कि
जो िोर् आत्मवाद पर रुि जाते हैं , आज नही ूं िि,उनिे धमग िो कवज्ञान आत्मसात िर िेर्ा; क्ोूंकि आत्म ति
कवज्ञान भी पहुूं च सिेर्ा।

सत्य का खोजी आत्मा पर नही ां रूकेगा:

और आमत र से साधि जि खोज पर कनििता है तो उसिी खोज सत्य िी नही ूं होती, आमत र से
आनूंद िी होती है । वह िहता है सत्य िी खोज पर कनििा हूं िेकिन खोज उसिी आनूंद िी होती है । दु ख से
परे शान है , अशाूं कत से परे शान है , वह आनूंद खोज रहा है । इसकिए जो आनूंद खोजने कनििा है , वह तो कनकश्चत
ही इस पाूं चवें शरीर पर रुि जाएर्ा। इसकिए एि िात और िहता हूं कि खोज आनूंद िी नही ,ूं सत्य िी
िरना। ति किर रुिना नही ूं होर्ा।

ति एि सवाि नया उठे र्ा कि आनूंद है , यह ठीि, मैं अपने िो जान रहा हूं यह भी ठीि; िेकिन ये
वृक्ष िे िूि हैं ,वृक्ष िे पिे हैं , जड़ें िहाूं हैं ? मैं अपने िो जान रहा हूं यह भी ठीि; मैं आनूंकदत हूं यह भी
ठीि, िेकिन मैं िहाूं से हूं ? फ्रॉम िे यर? मेरी जड़ें िहाूं हैं ? मैं आया िहाूं से ? मेरे अक्तस्तत्व िी र्हराई िहाूं
है ? िहाूं से मैं आ रहा हूं । यह जो मेरी िहर है , यह किस सार्र से उठी है ?

सत्य िी अर्र कजज्ञासा है , तो पाूं चवें शरीर से आर्े जा सिोर्े। इसकिए िहुत प्राथकमि रूप से
ही, प्रारूं भ से ही कजज्ञासा सत्य िी चाकहए, आनूंद िी नही ूं। नही ूं तो पाूं चवें ति तो िड़ी अच्छी यात्रा होर्ी, पाूं चवें
पर एिदम रुि जाएर्ी िात। सत्य िी अर्र खोज है तो यहाूं रुिने िा सवाि नही ूं है ।

तो पाूं चवें शरीर में जो सिसे िड़ी िाधा है , वह उसिा अपूवग आनूंद है । और हम एि ऐसी दु कनया से
आते हैं , जहाूं दु ख और पीड़ा और कचूंता और तनाव िे कसवाय िुछ भी नही ूं जाना। और जि इस आनूं द िे मूं कदर
में प्रकवष्ट होते हैं तो मन होता है कि अि किििुि डूि जाओ, अि खो ही जाओ, इस आनूंद में नाचो और खो
जाओ।

खो जाने िी यह जर्ह नही ूं है । खो जाने िी जर्ह भी आएर्ी, िेकिन ति खोना न पड़े र्ा, खो ही
जाओर्े। वह िहुत और है —खोना और खो ही जाना। यानी वह जर्ह आएर्ी जहाूं िचाना भी चाहोर्े तो नही ूं िच
सिोर्े। दे खोर्े खोते हुए अपने िो,िोई उपाय न रह जाएर्ा। िेकिन यहाूं खोना हो सिता है , यहाूं भी खो सिते
हैं हम। िेकिन वह उसमें भी हमारा प्रयास, हमारी चेष्टा... और िहुत र्हरे में— अहूं िार तो कमट जाएर्ा पाूं चवें
शरीर में— अक्तस्भता नही ूं कमटे र्ी। इसकिए अहूं िार और अक्तस्भता िा थोड़ा सा ििग समझ िेना जरूरी है ।
आत्म शरीर में अहां कार नही ,ां अब्धस्मता रह जाएगी:

अहूं िार तो कमट जाएर्ा, ' मैं ' िा भाव तो कमट जाएर्ा। िे किन ' हूं ? िा भाव नही ूं कमटे र्ा। मैं हूं इसमें
दो चीजें हैं — 'मैं' तो अहूं िार है , और ' हूं अक्तस्भता है —होने िा िोध। ' मैं' तो कमट जाएर्ा पाूं चवें शरीर में , कसिग
होना रह जाएर्ा, ' हूं ' रह जाएर्ा; अक्तस्भता रह जाएर्ी।

इसकिए इस जर्ह पर खड़े होिर अर्र िोई दु कनया िे िाित िुछ िहे र्ा तो वह िहे र्ा, अनूंत
आत्माएूं हैं , सििी आत्माएूं अिर् हैं ; आत्मा एि नही ूं है , प्रत्येि िी आत्मा अिर् है । इस जर्ह से आत्मवादी
अनेि आत्माओूं िो अनुभव िरे र्ा;क्ोूंकि अपने िो वह अक्तस्भता में दे ख रहा है , अभी भी अिर् है ।

अर्र सत्य िी खोज मन में हो और आनूंद में डूिने िी िाधा से िचा जा सिे.. .िचा जा सिता
है ; क्ोूंकि जि सतत आनूंद रहता है तो उिानेवािा हो जाता है । आनूंद भी उिानेवािा हो जाता है ; एि ही स्वर
िजता रहे आनूं द िा तो वह भीउिाने वािा हो जाता है ।

िटर े ड रसे ि ने िही ूं मजाि में यह िहा है कि मैं मोक्ष जाना पसूं द नही ूं िरू
ूं र्ा, क्ोूंकि मैं सु नता हूं कि
वहाूं कसिग आनूं द है , और िुछ भी नही ूं। तो वह तो िहुत मोनोटोनस होर्ा, कि आनूंद ही आनूंद है , उसमें एि
दु ख िी रे खा भी िीच में न होर्ी,उसमें िोई कचूंता और तनाव न होर्ा। तो कितनी दे र ति ऐसे आनूंद िो झे ि
पाएूं र्े ?

आनूंद िी िीनता िाधा है पाूं चवें शरीर में। किर, अर्र आनूंद िी िीनता से िच सिते हो— जो कि
िकठन है , और िई िार जन्म—जन्म िर् जाते हैं । पहिी चार सीकढ़याूं पार िरना इतना िकठन
नही,ूं पाूं चवी ूं सीढ़ी पार िरना िहुत िकठन हो जाता है ; िहुत जन्म िर् सिते हैं — आनूंद से ऊिने िे किए, और
स्वयूं से ऊिने िे किए, आत्म से ऊिने िे किए, वह जो से ल्फ है उससे ऊिने िे किए।

तो अभी पाूं चवें शरीर ति जो खोज है , वह दु ख से छूटने िी हैं —घृणा से छूटने िी, कहूं सा से छूटने
िी, वासना से छूटने िी। पाूं चवें िे िाद जो खोज है , वह स्वयूं से छूटने िी है । तो दो िातें हैं । फ्रीडम फ्रॉम
समकथूंर्—किसी चीज से मुक्तक्त , यह एि िात है ; यह पाूं चवें ति पूरी होर्ी। किर दू सरी िात है —किसी से मुक्तक्त
नही,ूं अपने से ही मुक्तक्त। और इसकिए पाूं चवें शरीर से एि नया ही जर्त शु रू होता है ।

आज्ञा चक् की सां भािना:

छठवाूं शरीर ब्रह्म शरीर है , िाक्तस्भि िॉडी है ; और छठवाूं िेंद्र आज्ञा है । अि यहाूं से िोई द्वै त नही ूं है ।
आनूंद िा अनु भव पाूं चवें शरीर पर प्रर्ाढ़ होर्ा, अक्तस्तत्व िा अनु भव छठवें शरीर पर प्रर्ाढ़ होर्ा—
एक्तक्सस्टें स िा, िीइूं र् िा। अक्तस्भता खो जाएर्ी छठवें शरीर पर। ' हूं ', यह भी चिा जाएर्ा— है ! मैं हूं —
तो ' मैं ' चिा जाएर्ा पाूं चवें शरीर पर, ' हूं ' चिा जाएर्ा पाूं चवें िो पार िरते ही। है ! इज़नेस िा िोध
होर्ा, तथाता िा िोध होर्ा— ऐसा है । उसमें मैं िही ूं भी नही ूं आऊूंर्ा, उसमें अक्तस्भता िही ूं नही ूं आएर्ी। जो
है , दै ट क्तिच इज, िस वही हो जाएर्ा।
तो यहाूं सति् िा िोध होर्ा, िीइूं र् िा होर्ा, कचति् िा िोध होर्ा, िाूं शसनेस िा िोध होर्ा। िेकिन यहाूं
कचति् मुझसे मुक्त हो र्या। ऐसा नही ूं कि मेरी चेतना। चेतना! मेरा अक्तस्तत्व—ऐसा नही ूं। अक्तस्तत्व!

ब्रह्म का भी अजतक्मण करने पर जनिाओ ण काया में प्रिेश:

और िुछ िोर् छठवें पर रुि जाएूं र्े। क्ोूंकि िाक्तस्भि िॉडी आ र्ई, ब्रह्म हो र्या मैं , अहूं ब्रह्माक्तस्भ िी
हाित आ र्ई। अि मैं नही ूं रहा, ब्रह्म ही रह र्या है । अि और िहाूं खोज? अि िैसी खोज? अि किसिो
खोजना है ? अि तो खोजने िो भी िुछ नही ूं िचा, अि तो सि पा किया; क्ोूंकि ब्रह्म िा मतिि है —कद
टोटि; सि।

इस जर्ह से खड़े होिर कजन्ोूंने िहा है , वे िहें र्े कि ब्रह्म अूंकतम सत्य है , वह एब्लोल्यु ट है , उसिे
आर्े किर िुछ भी नही ूं। और इसकिए इस पर तो अनूंत जन्म रुि सिता है िोई आदमी। आमत र से रुि
जाता है ; क्ोूंकि इसिे आर्े तो सू झ में ही नही ूं आता कि इसिे आर्े भी िुछ हो सिता है ।

तो ब्रह्मज्ञानी इस पर अटि जाएर्ा, इसिे आर्े वह नही ूं जाएर्ा। और यह इतना िकठन है इसिो पार
िरना—इस जर्ह िो पार िरना—क्ोूंकि अि िचती ही नही ूं िोई जर्ह जहाूं इसिो पार िरो। सि तो घेर
किया, जर्ह भी चाकहए न! अर्र मैं इस िमरे िे िाहर जाऊूं, तो िाहर जर्ह भी तो चाकहए! अि यह िमरा
इतना कवराट हो र्या— अूंतहीन, अनूंत हो र्या; असीम,अनाकद हो र्या; अि जाने िो भी िोई जर्ह नही,ूं नो
िे यर टु र्ो। तो अि खोजने भी िहाूं जाओर्े ? अि खोजने िो भी िुछ नही ूं िचा, सि आ र्या। तो यहाूं अनूंत
जन्म ति रुिना हो सिता है ।

परम खोज में आब्धखरी बाधा ब्रह्म:

तो ब्रह्म आक्तखरी िाधा है —कद िास्ट िैररयर। साधि िी परम खोज में ब्रह्म आक्तखरी िाधा है । िीइूं र् रह
र्या है अि,िेकिन अभी भी नॉन—िीइूं र् भी है शे ष; ' अक्तस्त' तो जान िी, ' है ' तो जान किया, िेकिन ' नही ूं
है ', अभी वह जानने िो शे ष रह र्या। इसकिए सातवाूं शरीर है कनवाग ण िाया। उसिा चक्र है सहस्रार। और
उसिे सूं िूंध में िोई िात नही ूं हो सिती। ब्रह्म ति िात जा सिती है — खी ूंच—तानिर; र्ित हो जाएर्ी
िहुत।

छठिें शरीर में तीसरी आां ख का खिना:

पाूं चवें शरीर ति िात िड़ी वै ज्ञाकनि ढूं र् से चिती है ; सारी िात साि हो सिती है । छठवें शरीर पर
िात िी सीमाएूं खोने िर्ती हैं , शब्द अथगहीन होने िर्ता है , िेकिन किर भी इशारे किए जा सिते हैं । िेकिन
अि अूंर्ुिी भी टू ट जाती है , अि इशारे कर्र जाते हैं ; क्ोूंकि अि खु द िा होना ही कर्र जाता है ।
तो एिोल्यु ट िीइूं र् िो छठवें शरीर ति और छठवें िेंद्र से जाना जा सिता है ।

इसकिए जो िोर् ब्रह्म िी तिाश में हैं , आशा चक्र पर ध्यान िरें र्े। वह उसिा चक्र है । इसकिए
भृिुटी—मध्य में आशा चक्र पर वे ध्यान िरें र्े ; वह उससे सूं िूंकधत चक्र है उस शरीर िा। और वहाूं जो उस चक्र
पर पूरा िाम िरें र्े , तो वहाूं से उन्ें जो कदखाई पड़ना शु रू होर्ा कवस्तार अनूंत िा, उसिो वे तृ तीय नेत्र और
थडग आई िहना शु रू िर दें र्े। वहाूं से वह तीसरी आूं ख उनिे पास आई, जहाूं से वे अनूंत िो, िाक्तस्भि िो
दे खना शु रू िर दे ते हैं ।

सहस्रार चक् की सां भािना:

िेकिन अभी एि और शे ष रह र्या—न होना, नॉन—िीइूं र्, नाक्तस्त। अक्तस्तत्व जो है वह आधी िात
है , अनक्तस्तत्व भी है ;प्रिाश जो है वह आधी िात है , अूंधिार भी है , जीवन जो है वह आधी िात है , मृत्यु भी है ।
इसकिए आक्तखरी अनक्तस्तत्व िो,शू न्य िो भी जानने िी.....क्ोूंकि परम सत्य तभी पता चिेर्ा जि दोनोूं जान
किए— अक्तस्त भी और नाक्तस्त भी; आक्तस्तिता भी जानी उसिी सूं पूणगता में और नाक्तस्तिता भी जानी उसिी
सूं पूणगता में; होना भी जाना उसिी सूं पूणगता में और न होना भी जाना उसिी सूं पूणगता में , तभी हम पूरे िो जान
पाए, अन्यथा यह भी अधू रा है । ब्रह्मज्ञान में एि अधू रापन है कि वह ' न होने ' िो नही ूं जान पाएर्ा। इसकिए
ब्रह्मज्ञानी ' न होने ' िो इनिार ही िर दे ता है ; वह िहता है वह माया है , वह है ही नही ूं। वह िहता है होना सत्य
है , न होना झूठ है , कमर्थ्ा है ; वह है ही नही,ूं उसिो जानने िा सवाि िहाूं है !

कनवाग ण िाया िा मतिि है शू न्य िाया, जहाूं हम ' होने ' से ' न होने ' में छिाूं र् िर्ा जाते हैं । क्ोूंकि
वह और जानने िो शे ष रह र्या, उसे भी जान िे ना जरूरी है कि न होना क्ा है ? कमट जाना क्ा है ? इसकिए
सातवाूं शरीर जो है , वह एि अथग में महामृत्यु है । और कनवाग ण िा, जैसा मैंने िि अथग िहा, वह दीये िा िुझ
जाना है । वह जो हमारा होना था, वह जो हमारा ' मैं' था, कमट र्या; वह जो हमारी अक्तस्भता थी, कमट र्ई। िेकिन
अि हम सवग िे साथ एि होिर किर हो र्ए हैं , अि हम ब्रह्म हो र्ए हैं , अि इसे भी छोड़ दे ना पड़े र्ा। और
इतनी कजसिी छिाूं र् िी तै यारी है , वह जो है , उसे तो जान ही िेता,जो नही ूं है , उसे भी जान िेता है ।

और ये सात शरीर और सात चक्र हैं हमारे । और इन सात चक्रोूं िे भीतर ही हमारी सारी िाधाएूं और
साधन हैं । िही ूं किसी िाहरी रास्ते पर िोई िाधा नही ूं है । इसकिए किसी से पूछने जाने िा उतना सवाि नही ूं है ।

खोजने जनकिो, माां गने नही ां:

और अर्र किसी से पूछने भी र्ए हो, और किसी िे पास समझने भी र्ए हो, तो माूं र्ने मत जाना।
माूं र्ना और िात है ;समझना और िात है , पूछना और िात है । खोज अपनी जारी रखना। और जो समझिर आए
हो, उसिो भी अपनी खोज ही िनाना, उसिो अपना कवश्वास मत िनाना। नही ूं तो वह माूं र्ना हो जाएर्ा।

मुझसे एि िात तु मने िी, और मैंने तु म्हें िुछ िहा। अर्र तु म माूं र्ने आए थे , तो तु मिो जो मैंने
िहा, तु म इसे अपनी थैिी में िूंद िरिे सम्हाििर रख िोर्े , इसिी सूं पकि िना िोर्े। ति तु म साधि
नही,ूं कभखारी ही रह जाते हो। नही,ूं मैंने तु मसे िुछ िहा, यह तु म्हारी खोज िना, इसने तु म्हारी खोज िो र्कतमान
किया, इसने तु म्हारी कजज्ञासा िो द ड़ाया और जर्ाया, इससे तुम्हें और मुक्तिि और िेचैनी हुई, इसने तु म्हें और
नये सवाि खड़े किए, और नई कदशाएूं खोिी,ूं और तु म नई खोज पर कनििे ,ति तु मने मुझसे माूंर्ा नही,ूं ति
तु मने मुझसे समझा। और मुझसे तु मने जो समझा, वह अर्र तु म्हें स्वयूं िो समझने में सहयोर्ी हो र्या, ति
माूं र्ना नही ूं है ।

तो समझने कनििो, खोजने कनििो। तु म अिेिे नही ूं खोज रहे , और िहुत िोर् खोज रहे हैं । िहुत
िोर्ोूं ने खोजा है ,िहुत िोर्ोूं ने पाया है । उन सििो क्ा हुआ है , क्ा नही ूं हुआ है , उस सििो समझो। िेकिन
उस सििो समझिर तु म अपने िो समझना िूं द मत िर दे ना; उसिो समझिर तु म यह मत समझ िेना कि
यह मेरा जान िन र्या। उसिो तु म कवश्वास मत िनाना, उस पर तु म भरोसा मत िरना, उस सिसे तु म प्रश्न
िनाना, उस सििो तु म समस्या िनाना, उसिो समाधान मत िनाना, तो किर तु म्हारी यात्रा जारी रहे र्ी। और ति
किर माूं र्ना नही ूं है , ति तु म्हारी खोज है । और तु म्हारी खोज ही तु म्हें अूंत ति िे जा सिती है । और जैसे —जैसे
तु म भीतर खोजोर्े, तो जो मैंने तु मसे िातें िही हैं , प्रत्येि िेंद्र पर दो तत्व तु मिो कदखाई पड़ें र्े — एि जो तु म्हें
कमिा है , और एि जो तु म्हें खोजना है । क्रोध तु म्हें कमिा है , क्षमा तु म्हें खोजनी है ; से क्स तु म्हें कमिा है ,ब्रह्मचयग तु म्हें
खोजना है , स्वप्न तु म्हें कमिा है , कवजन तु म्हें खोजना है , दशग न तु म्हें खोजना है ।

चार शरीरोूं ति तु म्हारी द्वै त िी खोज चिे र्ी, पाूं चवें शरीर से तु म्हारी अद्वै त िी खोज शु रू होर्ी।

पाूं चवें शरीर में तु म्हें जो कमि जाए, उससे कभन्न िो खोजना जारी रखना। आनूंद कमि जाए तो तु म
खोजना कि और आनूंद िे अकतररक्त क्ा है ? छठवें शरीर पर तु म्हें ब्रह्म कमि जाए तो तु म खोज जारी रखना कि
ब्रह्म िे अकतररक्त क्ा है?ति एि कदन तु म उस सातवें शरीर पर पहुूं चोर्े , जहाूं होना और न होना, प्रिाश और
अूंधिार, जीवन और मृत्यु, दोनोूं एि साथ ही घकटत हो जाते हैं । और ति परम, कद अक्तल्टमेट...... और उसिे
िाित किर िोई उपाय नही ूं िहने िा।

पाां चिें शरीर के बाद रहस्य ही रहस्य है :

इसकिए हमारे सि शास्त्र या तो पाूं चवें पर पूरे हो जाते हैं । जो िहुत वैज्ञाकनि िुक्तद्ध िे िोर् हैं , वे पाूं चवें
िे आर्े िात नही ूं िरते , क्ोूंकि उसिे िाद िाक्तस्भि शु रू होता है , कजसिा िोई अूंत नही ूं है कवस्तार िा।

पर जो कमक्तस्टि किस्भ िे िोर् हैं —जो रहस्यवादी हैं , सू िी हैं , इस तरह िे िोर् हैं —वे उसिी भी िात
िरते हैं । हािाूं कि उसिी िात िरने में उन्ें िड़ी िकठनाई होती है , और उन्ें अपने िो ही हर
िार िूंटर ाकडक्ङ िरना पड़ता है , खु द िो ही कवरोध िरना पड़ता है । और अर्र एि सू िी ििीर िी या एि
कमक्तस्टि िी पूरी िातें सु नो, तो तु म िहोर्े कि यह आदमी पार्ि है ! क्ोूंकि िभी यह यह िहता है , िभी यह
यह िहता है ! यह िहता है : ईश्वर है भी; और यह िहता है ईश्वर नही ूं भी है । और यह यह िहता है कि मैंने उसे
दे खा। और दू सरे ही वाक् में िहता है कि उसे तु म दे ख िैसे सिते हो! क्ोूंकि वह िोई आूं खोूं िा कवषय
है ? यह ऐसे सवाि उठाता है कि तु म्हें है रानी होर्ी कि किसी दू सरे से सवाि उठा रहा है कि अपने से उठा रहा
है ! छठवें शरीर से कमक्तस्टकसज्म

इसकिए कजस धमग में कमक्तस्टकसज्म नही ूं है , समझना वह पाूं चवें पर रुि र्या। िेकिन कमक्तस्टकसज्य भी
आक्तखरी िात नही ूं है , रहस्य आक्तखरी िात नही ूं है । आक्तखरी िात शू न्य है , कनकहकिज्म है आक्तखरी िात।
तो जो धमग रहस्य पर रुि र्या, समझना वह छठवें पर रुि र्या। आक्तखरी िात तो आक्तखरी है । और
उस शू न्य िे अकतररक्त आक्तखरी िोई िात हो नही ूं सिती।

राह के पत्थर को भी सीढी बना िेना:

तो पाूं चवें शरीर से अद्वै त िी खोज शु रू होती है , च थे शरीर ति द्वै त िी खोज खत्म हो जाती है । और
सि िाधाएूं तु म्हारे भीतर हैं । और िाधाएूं िड़ी अच्छी िात है कि तु म्हें उपिि हैं । और प्रत्ये ि िाधा िा
रूपाूं तरण होिर वही तु म्हारा साधन िन जाती है । रास्ते पर एि पत्थर पड़ा है , वह, जि ति तु मने समझा नही ूं
है उसे , ति ति तु म्हें रोि रहा है । कजस कदन तु मने समझा उसी कदन तु म्हारी सीढ़ी िन जाता है । पत्थर वही ूं पड़ा
रहता है । जि ति तु म नही ूं समझे थे, तु म कचल्रा रहे थे कि यह पत्थर मुझे रोि रहा है , मैं आर्े िैसे जाऊूं! जि
तु म इस पत्थर िो समझ किए, तु म इस पर चढ़ र्ए और आर्े चिे र्ए। और अि तु म उस पत्थर िो धन्यवाद दे
रहे हो कि ते री िड़ी िृपा है , क्ोूंकि कजस ति पर मैं चि रहा था, तु झ पर चढ़िर मेरा ति िदि र्या, अि मैं
दू सरे ति पर चि रहा हूं । तू साधन था, िेकिन मैं समझ रहा था िाधा है , मैं सोचता था रास्ता रुि र्या,यह पत्थर
िीच में आ र्या, अि क्ा होर्ा!

क्रोध िीच में आ र्या। अर्र क्रोध पर चढ़ र्ए तो क्षमा िो उपिि हो जाएूं र्े , जो कि िहुत दू सरा ति
है । से क्स िीच में आ र्या। अर्र से क्स पर चढ़ र्ए तो ब्रह्मचयग उपिि हो जाएर्ा, जो कि किििुि ही दू सरा
ति है । और ति से क्स िो धन्यवाद दे सिोर्े , और ति क्रोध िो भी धन्यवाद दे सिोर्े।

जजस िृजत्त से िड़ें गे, उससे ही बांध जाएां गे:

प्रत्येि राह िा पत्थर िाधा िन सिता है और साधन िन सिता है । वह तु म पर कनभगर है कि उस पत्थर


िे साथ क्ा िरते हो। हाूं , भूििर भी पत्थर से िड़ना मत, नही ूं तो कसर िूट सिता है और वह साधन नही ूं
िनेर्ा। और अर्र िोई पत्थर से िड़ने िर्ा तो वह पत्थर रोि िेर्ा; क्ोूंकि जहाूं हम िड़ते हैं वही ूं हम रुि
जाते हैं । क्ोूंकि कजससे िड़ना है उसिे पास रुिना पड़ता है ; कजससे हम िड़ते हैं उससे दू र नही ूं जा सिते हम
िभी भी।

इसकिए अर्र िोई से क्स से िड़ने िर्ा, तो वह से क्स िे आसपास ही घूमता रहे र्ा। उतना ही आसपास
घूमेर्ा कजतना से क्स में डूिनेवािा घूमता है । िक्तम्ऻ िई िार उससे भी ज्यादा घूमेर्ा। क्ोूंकि डूिने वािा ऊि भी
जाता है , िाहर भी होता है , यह ऊि भी नही ूं पाता, यह आसपास ही घूमता रहता है ।

अर्र तु म क्रोध से िड़े तो तु म क्रोध ही हो जाओर्े , तु म्हारा सारा व्यक्तक्तत्व क्रोध से भर जाएर्ा; और
तु म्हारे रर्—रर्,रे शे —रे शे से क्रोध िी ध्वकनयाूं कनििने िर्ेंर्ी; और तु म्हारे चारोूं तरि क्रोध िी तरूं र्ें प्रवाकहत
होने िर्ेंर्ी। इसकिए ऋकष—मुकनयोूं िी जो हम िहाकनयाूं पढ़ते हैं —महाक्रोधी, उसिा िारण है ; उसिा िारण
है वे क्रोध से िड़ने वािे िोर् हैं । िोई दु वाग सा है , िोई िोई है । उनिो कसवाय अकभशाप िे िुछ सू झता ही नही ूं
है । उनिा सारा व्यक्तक्तत्व आर् हो र्या है । वे पत्थर से िड़ र्ए हैं , वे मुक्तिि में पड़ र्ए हैं ; वे कजससे िड़े
हैं , वही हो र्ए हैं ।
तु म ऐसे ऋकष—मुकनयोूं िी िहाकनयाूं पढ़ोर्े कजन्ें कि स्वर्ग से िोई अप्सरा आिर िड़े तत्काि भ्ष्ट िर
दे ती है । आश्चयग िी िात है ! यह तभी सूं भव है जि वे से क्स से िड़े होूं, नही ूं तो सूं भव नही ूं है । वे इतना िड़े
हैं , इतना िड़े हैं , इतना िड़े हैं ,इतना िड़े हैं कि िड़—िड़िर खु द ही िमजोर हो र्ए हैं । और से क्स अपनी
जर्ह खड़ा है ; अि वह प्रतीक्षा िर रहा है ; वह किसी भी द्वार से िूट पड़े र्ा। और िम सूं भावना है कि अप्सरा
आई हो, सूं भावना तो यही है कि िोई साधारण स्त्री कनििी हो, िेकिन इसिो अप्सरा कदखाई पडी हो।
क्ोूंकि अप्सराओूं ने िोई ठे िा िे रखा है कि ऋकष—मुकनयोूं िो सताने िे किए आती रहें । िे किन अर्र से क्स
िो िहुत सप्रेस किया र्या हो, तो साधारण स्त्री भी अप्सरा हो जाती है ; क्ोूंकि हमारा कचि प्रोजेक्ङ िरने िर्ता
है । रात वही सपने दे खता है , कदन वही कवचार िरता है , किर हमारा कचि पूरा िा पूरा उसी से भर जाता है । किर
िोई भी चीज..... .िोई भी चीज अकतमोहि हो जाती है , जो कि नही ूं थी।

िड़ना नही ां, समझना:

तो साधि िे किए िड़ने भर से सावधान रहना है , और समझने िी िोकशश िरनी है । और समझने िी


िोकशश िा मतिि ही यह है कि तु म्हें जो कमिा है प्रिृकत से उसिो समझना। तो तु म्हें जो नही ूं कमिा है , उसी
कमिे हुए िे मार्ग से तु म्हें वह भी कमि जाएर्ा जो नही ूं कमिा है ; वह पहिा छोर है । अर्र तु म उसी से भार् र्ए तो
तु म दू सरे छोर पर िभी न पहुूं च पाओर्े। अर्र से क्स से ही घिरािर भार् र्ए तो ब्रह्मचयग ति िैसे
पहुूं चोर्े ? से क्स तो द्वार था जो प्रिृकत से कमिा था। ब्रह्मचयग उसी द्वार से खोज थी जो अूंत में तु म खोद पाओर्े।

तो ऐसा अर्र दे खोर्े तो माूं र्ने जाने िी िोई जरूरत नही,ूं समझने जाने िी तो िहुत जरूरत है; और
पूरी कजूंदर्ी समझने िे किए है —किसी से भी समझो, सि तरि से समझो और अूंततः अपने भीतर समझो।

व्यब्धियोां को तौिने से बचना:

प्रश्न : ओशो अभी आप सात शरीरोां की चचाओ करते हैं तो उसमें सातिें या छठिें या पाां चिें
शरीर— जनिाओ ण बॉडी काब्धस्मक बॉडी और ब्धस्त्रचअि बॉडी को क्मश: उपिि हुए कछ प्राचीन और
अिाओ चीन अथाओ त एां जशएां ट और माडनओ व्यब्धियोां के नाम िेने की कृपा करें ।

इस झूंझट में न पड़ो तो अच्छा है। इसिा िोई सार नही ूं है। इसिा िोई अथग नही ूं है। और अर्र मैं
िहूं भी, तो तु म्हारे पास उसिी जाूं च िे किए िोई प्रमाण नही ूं होर्ा। और जहाूं ति िने व्यक्तक्तयोूं िो त िने से
िचना अच्छा है । उनसे िोई प्रयोजन भी नही ूं है । उनसे िोई प्रयोजन नही ूं है । उसिा िोई अथग ही नही ूं है ।
उनिो जाने दो।

पाां चिें या छठिें शरीर में मृ त्य के बाद दे ि योजनयोां में जन्म:
प्रश्न: ओशो पाां चिें शरीर को या उसके बाद के शरीर को उपिि हुए व्यब्धि को अगिे जन्म में
भी क्ा स्थूि शरीर ग्रहण करना पडता है ?

हाूं , यह िात ठीि है, पाूंचवें शरीर िो उपिि िरने िे िाद व्यक्तक्त िा इस शरीर में जन्म नही ूं
होर्ा। पर और शरीर हैं । और शरीर हैं । असि में , कजनिो हम दे वता िहते रहे हैं , उस तरह िे शरीर हैं । वे
पाूं चवें िे िाद उस तरह िे शरीर उपिि हो सिते हैं ।

छठवें िे िाद तो उस तरह िे शरीर भी उपिि नही ूं होूंर्े। र्ॉडि् स िे नही,ूं िक्तम्ऻ कजसिो हम र्ॉड
िहते रहे हैं , ईश्वर िहते रहे हैं , उस तरह िा शरीर उपिि हो जाएर्ा।

िेकिन शरीर उपिि होते रहें र्े; वे किस तरह िे हैं , यह िहुत र् ण िात है । सातवें िे िाद ही शरीर
उपिि नही ूं होूंर्े। सातवें िे िाद ही अशरीरी क्तस्थकत होर्ी। उसिे पहिे सू क्ष्म से सू क्ष्म शरीर उपिि होते
रहें र्े।

शब्धिपात से प्रसाद श्रेष्ठतर:

प्रश्न : ओशो जपछिी एक चचाओ में कहा था आपने जक आप पसां द करते हैं
जक शब्धिपात जजतना ग्रेस के जनकट हो सके उतना ही अर्च्ा है इसका क्ा यह अथओ न हुआ
जक शब्धिपात की पिजत में क्जमक सधार और जिकास की सांभािना है ? अथाओ त क्ा शब्धिपात की
प्रजक्या में काजिटे जटि प्रोग्रेस भी सां भि है ?

िहुत सूं भव है , िहुत सी िातें सूं भव हैं । असि में, शक्तक्तपात िी और प्रसाद िी, ग्रेस िी जो कभन्नता
है , वह कभन्नता िड़ी है । मूि रूप से तो प्रसाद ही िाम िा है ; किना माध्यम िे कमिे , तो शु द्धतम होर्ा, क्ोूंकि
उसिो अशु द्ध िरने वािा िीच में िोई भी नही ूं होता। जैसे कि मैं तु म्हें अपनी खु िी आूं खोूं से दे खु तो जो मैं
दे खूूंर्ा वह शु द्धतम होर्ा। किर मैं एि चश्मा िर्ा िूूं तो जो होर्ा वह उतना शु द्धतम नही ूं होर्ा, एि माध्यम
िीच में आ र्या। िेकिन किर इस माध्यम में भी शु द्ध और अशु द्ध िे िहुत रूप हो सिते हैं । एि रूं र्ीन चश्मा
हो सिता है , एि साि—सिेद चश्मा हो सिता है । और इस िाूं च िी भीिाकिटी में िहुत ििग हो सिते हैं ।
समझ रहे हैं न?

तो जि हम माध्यम से िेंर्े ति िुछ न िुछ अशु क्तद्ध तो आने ही वािी है । वह माध्यम िी होर्ी। और
इसीकिए शु द्धतम प्रसाद तो सीधा ही कमिता है , शु द्धतम ग्रेस तो सीधी ही कमिती है , ति िोई माध्यम नही ूं होता।

अि समझ िो कि अर्र हम किना आूं ख िे भी दे ख सिें तो और भी शु द्धतम होर्ा, क्ोूंकि आूं ख भी


माध्यम है । अर्र आूं ख िे किना भी दे ख सिें तो और भी शु द्धतम होर्ा, क्ोूंकि किर आूं ख भी उसमें िाधा नही ूं
डाि पाएर्ी। अि किसी िी आूं ख में पीकिया है , और किसी िी आूं ख िमजोर है , और किसी िी िुछ है , तो
िकठनाइयाूं हैं ।
िेकिन अि कजसिी आूं ख में िमजोरी है , उसिो एि चश्मे िा माध्यम सहयोर्ी हो सिता है । यानी हो
सिता है कि खािी आूं ख से वह कजतना शु द्ध न दे ख पाए, उतना एि चश्मा िर्ाने से शु द्ध दे ख िे। ऐसे तो
चश्मा एि और माध्यम हो र्या, दो माध्यम हो र्ए, िेकिन कपछिे माध्यम िी िमी यह माध्यम पूरा िर सिता
है ।

ठीि ऐसी ही िात है । कजस व्यक्तक्त िे माध्यम से प्रसाद किसी दू सरे ति पहुूं चेर्ा, उस व्यक्तक्त िा
माध्यम िुछ तो अशु क्तद्ध िरे र्ा ही। िेकिन, अर्र यह अशु क्तद्ध ऐसी हो कि उस दू सरे व्यक्तक्त िी आूं ख िी
अशु क्तद्ध िे प्रकतिूि पड़ती हो और दोनोूं िट जाती होूं, तो प्रसाद िे कनिटतम पहुूं च जाएर्ी िात। िेकिन यह
एि—एि क्तस्थकत में अिर्—अिर् तय िरना होर्ा।

मेरी जो समझ है वह यह है कि इसकिए सीधा प्रसाद खोज जाए, व्यक्तक्त िे माध्यम िी कििर ही छोड़
दी जाए। हाूं ,िभी—िभी अर्र जीवनधारा िे किए जरूरत पड़े र्ी तो व्यक्तक्त िे माध्यम से भी झिि कदखिा
दे ती है , उसिी तु म्हें कचूंता,साधि िो उसिी कचूंता िरने िी जरूरत नही ूं है ।

िेने नही ूं जाना! क्ोूंकि िे ने जाओर्े , तो मैंने िि तु मसे जैसा िहा, दे नेवािा िोई कमि जाएर्ा। और
दे नेवािा कजतना सघन है , उतनी ही अशु द्ध हो जाएर्ी िात। तो दे नेवािा ऐसा चाकहए कजसे दे ने िा पता ही न
चिता हो, ति शक्तक्तपात शु द्ध हो सिता है । किर भी वह प्रसाद नही ूं िन जाएर्ा। किर भी एि कदन तो वह
चाकहए जो हमें इमीकजएट कमिता हो, मीकडयम िे किना कमिता हो, सीधा कमिता हो; परमात्मा और हमारे िीच
िोई भी न हो, शक्तक्त और हमारे िीच िोई भी न हो। ध्यान में वही रहे , नजर में वही रहे , खोज उसिी रहे । िीच
िे मार्ग पर िहुत सी घटनाएूं घट सिती हैं , िेकिन उन पर किसी पर रुिना नही ूं है , इतना ही िािी है । और
ििग तो पड़ें र्े। िाकिटी िे भी ििग पड़ें र्े, िाकटटी िे भी ििग पड़ें र्े। और िई िारणोूं से पड़ें र्े। वह िहुत
कवस्तार िी िात होर्ी, िई िारणोूं से पड़ें र्े।

शब्धिपात का शितम माध्यम:

असि में, पाूं चवाूं शरीर कजसिो कमि र्या है , किसी िो भी शक्तक्तपात उसिे द्वारा हो सिता है —
पाूं चवें शरीर से । िेकिन पाूं चवें शरीरवािे िा जो शक्तक्तपात है वह उतना शु द्ध नही ूं होर्ा, कजतना छठवेंवािे िा
होर्ा, क्ोूंकि उसिी अक्तस्भता िायम है । अहूं िार तो कमट र्या, अक्तस्भता िायम है ; 'मैं' तो कमट र्या,
' हूं ' िायम है । वह ' हूं ? थोड़ा सा रस िेर्ा।

छठवें शरीरवािे से भी शक्तक्तपात हो जाएर्ा। वहाूं ' हूं भी नही ूं है अि, वहाूं ब्रह्म ही है । वह और शु द्ध हो
जाएर्ा। िे किन अभी भी ब्रह्म है । अभी ' नही ूं है ' िी क्तस्थकत नही ूं आ र्ई है , ' है ' िी क्तस्थकत है । यह ' है ' भी िहुत
िारीि पदाग है —िहुत िारीि, िहुत नाजुि, पारदशी, टर ाूं सपैरूंट—िेकिन है । यह पदाग है । तो छठवें शरीरवािे से
भी शक्तक्तपात हो जाएर्ा। पाूं चवें से तो श्रे ष्ठ होर्ा। प्रसाद िे किििु ि िरीि पहुूं च जाएर्ा। िेकिन कितने ही
िरीि हो, जरा सी भी दू री दू री है । और कजतनी िीमती चीजें होूं, उतनी छोटी सी दू री िड़ी हो जाती है ; कजतनी
िीमती चीजें होूं, उतनी छोटी सी दू री िड़ी हो जाती है । इतनी िहुमूल्य दु कनया है प्रसाद िी कि वहाूं इतना सा
पदाग , कि उसिो पता है कि है , िाधा िने र्ा।

सातवें शरीर िो उपिि व्यक्तक्त से शक्तक्तपात शु द्धतम हो जाएर्ा। शु द्धतम हो जाएर्ा। ग्रेस किर भी
नही ूं होर्ा।शक्तक्तपात िी शु द्धतम क्तस्थकत सातवें शरीर पर पहुूं च जाएर्ी— शु द्धतम। जो, शक्तक्तपात जहाूं ति
पहुूं च सिता है , वहाूं ति पहुूं च जाएर्ी। िेकिन उस तरि से तो िोई पदाग नही ूं है अि, सातवें शरीर िो उपिि
व्यक्तक्त िी तरि से िोई पदाग नही ूं है ,उसिी तरि से तो अि वह शू न्य िे साथ एि हो र्या, िेकिन तु म्हारी
तरि से पदाग है । तु म तो उसिो व्यक्तक्त ही मानिर जीओर्े। अि तु म्हारा पदाग आक्तखरी िाधा डािेर्ा। अि
उसिी तरि से िोई पदाग नही ूं है , िेकिन तु म्हारे किए तो वह व्यक्तक्त है ।

माध्यम के प्रजत व्यब्धि— भाि भी बाधा:

समझो कि मैं अर्र सातवी ूं क्तस्थकत िो उपिि हो जाऊूं , तो यह मेरी िात है कि मैं जानूूं कि मैं शू न्य हूं
िेकिन तु म?तु म तो मुझे जानोर्े कि एि व्यक्तक्त हूं । और तु म्हारा यह खयाि कि मैं एि व्यक्तक्त हूं आक्तखरी पदाग
हो जाएर्ा। यह पदाग तो तु म्हारा तभी कर्रे र्ा जि कनव्यग क्तक्त से तु म पर घटना घटे । यानी तु म िही ूं खोजिर पिड़
ही न पाओ कि किससे घटी, िैसे घटी! िोई सोसग न कमिे तु म्हें , तभी तु म्हारा यह खयाि कर्र
पाएर्ा; सोसग िेस हो। अर्र सू रज िी किरण आ रही है तो तु म सू रज िो पिड़ िोर्े कि वह व्यक्तक्त है । िेकिन
ऐसी किरण आए जो िही ूं से नही ूं आ रही और आ र्ई, और ऐसी वषाग हो जो किसी िादि से नही ूं हुई और हो
र्ई, तभी तु म्हारे मन से वह आक्तखरी पदाग जो दू सरे िे व्यक्तक्त होने से पैदा होता है कर्रे र्ा।

तो िारीि से िारीि िासिे होते चिे जाएूं र्े। अूंकतम घटना तो प्रसाद िी तभी घटे र्ी जि िोई भी िीच
में नही ूं है । तु म्हारा यह खयाि भी कि िोई है , िािी िाधा है — आक्तखरी। दो हैं , ति ति तो िहुत ज्यादा है —
तु म भी हो और दू सरा भी है । हाूं , दू सरा कमट र्या, िेकिन तु म हो। और तु म्हारे होने िी वजह से दू सरा भी तु म्हें
मािूम हो रहा है । सोसग िेस प्रसाद जि घकटत होर्ा, ग्रेस जि उतरे र्ी, कजसिा िही ूं िोई उदर्म नही ूं है , उस
कदन वह शु द्धतम होर्ी। उस उदर्म—शू न्य िी वजह से तु म्हारा व्यक्तक्त उसमें िह जाएर्ा, िच नही ूं सिेर्ा।
अर्र दू सरा व्यक्तक्त म जूद है तो वह तु म्हारे व्यक्तक्त िो िचाने िा िाम िरता है ,तु म्हारे किए ही कसिग म जूद है
तो भी िाम िरता है ।

'मैं ' और 'तू ' से तनाि का जन्म:

असि में तु मिो, अर्र तु म समुद्र िे किनारे चिे जाते हो, तु म्हें ज्यादा शाूं कत कमिती है , जूंर्ि में चिे
जाते हो, ज्यादा शाूं कत कमिती है , क्ोूंकि सामने दू सरा व्यक्तक्त नही ूं है —कद अदर म जू द नही ूं है । इसकिए तु म्हारा
खु द िा भी मैं जो है , वह क्षीण हो जाता है । जि ति दू सरा म जूद है , तु म्हारा मैं भी मजिूत होता है । जि ति
दू सरा म जूद है .. .एि िमरे में दो आदमी िैठे हैं , तो उस िमरे में तनाव िी धाराएूं िहती रहती हैं । िुछ नही ूं
िर रहे — िड़ नही ूं रहे , झर्ड़ नही ूं रहे , चुपचाप िैठे हैं —मर्र उस िमरे में तनाव िी धाराएूं िहती रहती हैं ।
क्ोूंकि दो मैं म जूद हैं और पूरे वक्त िायग चि रहा है —सु रक्षा भी चि रही है ,आक्रमण भी चि रहा है । चुप भी
चिता है , िोई ऐसा नही ूं है कि झर्ड़ने िी सीधी जरूरत है , या िुछ िहने िी जरूरत है —दो िी
म जूदर्ी, िमरा टें स है । और अर्र.. .िभी मैं िात िरू
ूं र्ा कि अर्र तु म्हें , सारी जो तरूं र्ें हमारे व्यक्तक्तत्व से
कनििती हैं ,उनिा िोध हो जाए, तो उस िमरे में तु म िरािर दे ख सिते हो कि वह िमरा दो कहस्सोूं में
कवभाकजत हो र्या, और प्रत्येि व्यक्तक्त एि सें टर िन र्या, और दोनोूं िी कवदि् युतधाराए और तरूं र्ें आपस में
दु श्मन िी तरह खड़ी हुई हैं ।
दू सरे िी म जूदर्ी तु म्हारे मैं िो मजिूत िरती है । दू सरा चिा जाए तो िमरा िदि जाता है , तु म
ररिैक्स हो जाते हो;तु म्हारा मैं जो तै यार था कि िि क्ा हो जाए, वह ढीिा हो जाता है ; वह तकिए से कटििर
आराम िरने िर्ता है ; वह श्वास िेता है कि अभी दू सरा म जूद नही ूं है ।

इसीकिए एिाूं त िा उपयोर् है कि तु म्हारा मैं कशकथि हो सिे वहाूं । एि वृ क्ष िे पास तु म ज्यादा
आसानी से खड़े हो पाते हो िजाय एि आदमी िे। इसकिए कजन मुम्ऻोूं में आदमी—आदमी िे िीच तनाव िहुत
र्हरे हो जाते हैं , वहाूं आदमी िुिे और किक्तल्रयोूं िो भी पाििर उनिे साथ जीने िर्ता है । उनिे साथ ज्यादा
आसानी है , उनिे पास िोई मैं नही ूं है । एि िुिे िे र्िे में पट्टा िाूं धे हम मजे से चिे जा रहे हैं । ऐसा हम किसी
आदमी िे र्िे में पट्टा िाूं धिर नही ूं चि सिते ।

हािाूं कि िोकशश िरते हैं ! पकत पत्नी िे िाूं धे हुए है , पत्नी पकत िे पट्टा िाूं धे हुए है र्िे में , और चिे जा
रहे हैं ! िेकिन जरा सू क्ष्म पट्टे हैं , कदखाई नही ूं पड़ते । िेकिन दू सरा उसमें र्ड़िड़ िरता रहता है , पूरे वक्त र्दग न
कहिाता रहता है कि अिर् िरो, यह पट्टा नही ूं चिेर्ा। िेकिन एि िुिे िो िाूं धे हुए हैं , वह किििुि चिा जा
रहा है ; वह पूूंछ कहिाता हमारे पीछे आ रहा है । तो िुिा कजतना सु ख दे पाता है किर, उतना आदमी नही ूं दे
पाता; क्ोूंकि वह जो आदमी है , वह हमारे मैं िो ि रन खड़ा िर दे ता है और मु क्तिि में डाि दे ता है ।

धीरे — धीरे व्यक्तक्तयोूं से सूं िूंध तोड़िर आदमी वस्तु ओूं से सूं िूंध िनाने िर्ता है , क्ोूंकि वस्तु ओूं िे
साथ सरिता है । तो वस्तु ओूं िे ढे र िढ़ते जाते हैं । घरोूं में वस्तु एूं िढ़ती जाती हैं , आदमी िम होते चिे जाते हैं ।
आदमी घिड़ाहट िाते हैं , वस्तु एूं झूंझट नही ूं दे ती हैं । िुसी जहाूं रखी है , वहाूं रखी है , मैं िैठा हूं तो िोई र्ड़िड़
नही ूं िरती।

वृक्ष है , नदी है , पहाड़ है , इनसे िोई झूंझट नही ूं आती, इसकिए हमिो िड़ी शाूं कत कमिती है इनिे पास
जािर। िारण िुि इतना है कि दू सरी तरि मैं मजिूती से खड़ा नही ूं है , इसकिए हम भी ररिैक्स हो पाते हैं ।
हम िहते हैं —ठीि है , यहाूं िोई तू नही ूं है तो मेरे होने िी क्ा जरूरत है ! ठीि है , मैं भी नही ूं हूं । िेकिन जरा
सा भी इशारा दू सरे आदमी िा कमि जाए कि वह है , कि हमारा मैं तत्काि तत्पर हो जाता है , वह कसक्ोररटी िी
कििर िरने िर्ता है कि पता नही ूं क्ा हो जाए, इसकिए तै यार होना जरूरी है ।

शू न्य व्यब्धि के सामने अहां कार की बेचैनी:

यह तै यारी आक्तखरी क्षण ति िनी रहती है । सातवें शरीरवािा व्यक्तक्त भी तु म्हें कमि जाए तो भी तु म्हारी
तै यारी रहे र्ी। िक्तम्ऻ िई िार ऐसे व्यक्तक्त से तु म्हारी तै यारी ज्यादा हो जाएर्ी। साधारण आदमी से तु म इतने
भयभीत नही ूं होते , क्ोूंकि वह तु म्हें चोट भी अर्र पहुूं चा सिता है तो िहुत र्हरी नही ूं पहुूं चा सिता। िेकिन
ऐसा व्यक्तक्त जो पाूं चवें शरीर िे पार चिा र्या है , तु म्हें चोट भी र्हरी पहुूं चा सिता है —उसी शरीर ति पहुूं चा
सिता है , जहाूं ति वह पहुूं च र्या है । उससे भय भी तु म्हारा िढ़ जाता है ; उससे डर भी तु म्हारा िढ़ जाता है कि
पता नही ूं क्ा हो जाए! उसिे भीतर से तु म्हें िहुत ही अज्ञात और अनजान शक्तक्त झाूं िती मािूम पड़ने िर्ती है ।
इसकिए तु म िहुत सम्हििर खड़े हो जाते हो। उसिे आसपास तु म्हें एकिस कदखाई पड़ने िर्ती है ; अनुभव होने
िर्ता है कि िोई र्ेंहु है इसिे भीतर, अर्र र्ए तो किसी र्ड्डे में न कर्र जाएूं ।

इसकिए दु कनया में जीसस, िृष्ण या सु िरात जैसे आदमी जि भी पैदा होते हैं , तो हम उनिी हत्या िर
दे ते हैं । उनिी वजह से हम में िहुत र्ड़िड़ पैदा हो जाती है । उनिे पास जाना, खतरे िे पास जाना है । किर
मर जाते हैं , ति हम उनिी पूजा िरते हैं । अि हमारे किए िोई डर नही ूं रहा। अि हम उनिी मूकतग िनािर
सोने िी और हाथ—पैर जोड़िर खड़े हो जाते हैं ; हम िहते हैं . तु म भर्वान हो। िे किन जि ये िोर् होते हैं ति
हम इनिे साथ ऐसा व्यवहार नही ूं िरते , ति हम इनसे िहुत डरे रहते हैं। और डर अनजान रहता है , क्ोूंकि
हमें पक्का पता तो नही ूं रहता कि िात क्ा है । िेकिन एि आदमी कजतना र्हरा होता जाता है , उतना ही हमारे
किए एकिस िन जाता है , खाई िन जाता है । और जैसे खाई िे नीचे झाूं िने से डर िर्ता है और कसर घूमता
है , ऐसा ही ऐसे व्यक्तक्त िी आूं खोूं में झाूं िने से डर िर्ने िर्ेर्ा और कसर घूमने िर्ेर्ा।

मूसा िे सूं िूंध में िड़ी अदभुत िथा है कि हजरत मूसा िो जि परमात्मा िा दशग न हुआ, तो इसिे िाद
उन्ोूंने किर िभी अपना मुूं ह नही ूं उघाड़ा; वे एि घूूंघट डािे रखते थे। वे किर घूूंघट डाििर ही जीए, क्ोूंकि
उनिे चेहरे में झाूं िना खतरनाि हो र्या। जो आदमी झाूं िे वह भार् खड़ा हो; किर वहाूं रुिेर्ा नही ूं। उसमें से
एकिस कदखाई पड़ने िर्ी। उनिी आूं खोूं में अनूंत खड्ड हो र्या। तो मूसा िोर्ोूं िे िीच जाते तो चे हरे पर एि
घूूंघट डािे रखते । वह घूूंघट डाििर ही िात िर सिते किर। क्ोूंकि िोर् उनसे घिराने िर्े और डरने िर्े।
ऐसा िर्े कि िोई चीज चुूंिि िी तरह खी ूंचती है किसी र्डु में! और पता नही ूं िहाूं िे जाएर्ी, क्ा होर्ा! िुछ
पता नही ूं!

तो यह जो आक्तखरी, सातवी ूं क्तस्थकत में पहुूं चा हुआ आदमी है , वह भी है —तु म्हारे किए। इसकिए तु म
उससे अपनी सु रक्षा िरोर्े और एि पदाग िना रह जाएर्ा; इसकिए ग्रेस शु द्ध नही ूं हो सिती। ऐसे आदमी िे
पास हो सिती है शु द्ध, अर्र तु म्हें यह खयाि कमट जाए कि वह है । िेकिन यह खयाि तु म्हें तभी कमट सिता
है , जि कि तु म्हें यह खयाि कमट जाए कि मैं हूं । अर्र तु म इस हाित में पहुूं च जाओ कि तु म्हें खयाि न रहे कि मैं
हूं तो किर तु म्हें शु द्ध वहाूं से भी कमि सिती है । िेकिन किर िोई मतिि ही न रहा उससे कमिने , न कमिने
िा; वह सोसग िेस हो र्ई; वह प्रसाद ही हो र्या।

कजतनी िड़ी भीड़ में हम हैं , उतना ज्यादा मैं हमारा सख्त, सघन और िूंडे स्ट हो जाता है । इसकिए भीड़
िे िाहर, दू सरे से हटिर अपने मैं िो कर्राने िी सदा िोकशश िी र्ई है । िेकिन िही ूं भी जाओ, अर्र िहुत
दे र तु म एि वृक्ष िे पास रहोर्े , तु म उस वृक्ष से िातें िरने िर्ोर्े और वृक्ष िो तू िना िोर्े। अर्र तु म िहुत दे र
सार्र िे पास रह जाओर्े , दस—पाूं च वषग , तो तु म सार्र से िोिने िर्ोर्े और सार्र िो तू िना िोर्े। वह
हमारा मैं जो है , आक्तखरी उपाय िरे र्ा, वह तू पै दा िर िेर्ा, अर्र तु म िाहर भी भार् र्ए िही ूं तो, और वह
उनसे भी रार् िा सूं िूंध िना िेर्ा, और उनिो भी ऐसे दे खने िर्ेर्ा जैसे कि आिार में।

भि और भगिान के द्वै त में अहां कार की सरक्षा:

अर्र िोई किििुि ही आक्तखरी क्तस्थकत में भी पहुूं च जाता है , तो किर वह ईश्वर िो तू िनािर खड़ा िर
िेता है , ताकि अपने मैं िो िचा सिे। और भक्त कनरूं तर िहता रहता है कि हम परमात्मा िे साथ एि िैसे हो
सिते हैं ? वह वह है , हम हम हैं ! िहाूं हम उसिे चरणोूं में और िहाूं वह भर्वान! वह िुछ और नही ूं िह
रहा, वह यह िह रहा है कि अर्र उससे एि होना है तो इधर मैं खोना पड़े र्ा। तो उसे वह दू र िनािर रखता है
कि वह तू है । और िातें वह रे शनिाइज िरता है , वह िहता है कि हम उसिे साथ एि िैसे हो सिते हैं ! वह
महान है , वह परम है ; हम क्षुद्र हैं , हम पकतत हैं; हम िहाूं एि हो सिते हैं ! िेकिन वह उसिे तू िो िचाता है
कि इधर मैं उसिा िच जाए।

इसकिए भक्त जो है , वह च थे शरीर िे ऊपर नही ूं जा पाता। वह पाूं चवें शरीर ति भी नही ूं जा पाता, वह
च थे शरीर पर अटि जाता है । हाूं , च थे शरीर िी िल्पना िी जर्ह कवजन आ जाता है उसिा। च थे शरीर में
जो श्रे ष्ठतम सूं भावना है , वह खोज िेता है । तो भक्त िे जीवन में ऐसी िहुत सी घटनाएूं होने िर्ती हैं जो
कमरे िुिस हैं ; िेकिन रह जाता है च थे पर। व्यक्तक्त िे नाम नही ूं िे रहा, इसकिए मैं इस तरह िह रहा हूं । च थे
पर रह जाता है भक्त।

भि, हठयोगी और राजयोगी की यात्रा:

आत्मसाधि, हठयोर्ी, और िहुत तरह िे योर् िी प्रकक्रयाओूं में िर्नेवािा आदमी ज्यादा से ज्यादा
पाूं चवें शरीर ति पहुूं च पाता है ; क्ोूंकि िहुत र्हरे में वह यह िह रहा है कि मुझे आनूं द चाकहए; िहुत र्हरे में
वह यह िह रहा है कि मुझे मुक्तक्त चाकहए; िहुत र्हरे में वह यह िह रहा है कि मुझे दु ख—कनरोध चाकहए—
िेकिन सि चाकहए िे पीछे मैं म जूद है । मुझे मु क्तक्त चाकहए! मैं से मुक्तक्त नही,ूं मैं िी मुक्तक्त! मुझे मुक्त होना
है , मुझे मोक्ष चाकहए। वह मैं उसिा सघन खड़ा रह जाता है । वह पाूं चवें शरीर ति पहुूं च पाता है ।

राजयोर्ी छठवें ति पहुूं च जाता है । वह िहता है — मैं िा क्ा रखा है ! मैं िुछ भी नही,ूं वही है ! मैं
नही,ूं वही है , ब्रह्म ही सि िुछ है । वह मैं िो खोने िी तै यारी कदखिाता है , िेकिन अक्तस्भता िो खोने िी तै यारी
नही ूं कदखिाता। वह िहता है —रहूं र्ा मैं , ब्रह्म िे साथ एि उसिा अूंश होिर। रहूं र्ा मैं , ब्रह्म िे साथ एि
होिर; उसी िे साथ मैं एि हूं ; मैं ब्रह्म ही हूं ; मैं तो छोड़ दू ूं र्ा, िेकिन जो असिी है मेरे भीतर वह उसिे साथ
एि होिर रहे र्ा। वह छठवें ति पहुूं च पाता है ।

सातवें ति िुद्ध जैसा साधि पहुूं च पाता है , क्ोूंकि वह खोने िो तै यार है — ब्रह्म िो भी खोने िो तै यार
है ; अपने िो भी खोने िो तै यार है ; वह सि खोने िो तै यार है । वह यह िहता है कि जो है , वही रह जाए; मेरी
िोई अपे क्षा नही ूं कि यह िचे यह िचे , यह िचे —मेरी िोई अपेक्षा ही नही ूं। सि खोने िो तै यार है । और जो सि
खोने िो तै यार है , वह सि पाने िा हिदार हो जाता है । तो कनवाग ण शरीर तो ऐसी हाित में ही कमि सिता है
जि शू न्य और न हो जाने िी भी हमारी तै यारी है , मृत्यु िो भी जानने िी तै यारी है । जीवन िो जानने
िी तै याररयाूं तो िहुत हैं । इसकिए जीवन िो जाननेवािा छठवें शरीर पर रुि जाएर्ा। मृत्यु िो भी जानने िी
कजसिी तै यारी है , वह सातवें िो जान पाएर्ा।

तु म चाहोर्े तो नाम तु म खोज सिोर्े , उसमें िहुत िकठनाई नही ूं होर्ी।

चौथे शरीर की िैज्ञाजनक सां भािनाएां :

प्रश्न: ओशो आपने कहा जक चौथे शरीर में कल्पना और स्वप्न की क्षमता का जब रूपाां तरण होता
है तो आदमी को जदव्य— दृजि ि दू र— दृजि उपिि होती है । अभी तक पता नही ां जकतने िोग इस चौथे
शरीर तक पहुां च चके हैं । जैसा आपने कहा जक चौथी स्टे ज तक जिज्ञान जिकजसत हो चका है अगर ोसी
बात होती तो आज जिज्ञान जजन चीजोां की खोज कर रहा है उन चीजोां के सां बांध में उन िोगोां ने जो चौथे
शरीर तक गए है ? क्ोां उनकी प्राब्धप्त की सू चना नही ां दी? क्ोां उनकी अजभव्यब्धि नही ां की?एक छोटी सी
बात। आज चाां द पर पहुां चा हुआ आदमी िहाां की अजभव्यब्धि कर सकता है ? िेजकन चौथी स्टे ज पर
पहुां चा हुआ कोई भी व्यब्धि जकसी दे श में कही ां भी उसकी सही— सही ब्धस्थजत का िणओन नही ां कर सका।
चाां द तो कत दू र है हमारी पृथ्वी के बारे में भी यह नही ां बता सका जक पृथ्वी चक्कर िगा रही है या सू यओ
इसका चक्कर िगा रहा है ।
समझा! यह किििुि ठीि सवाि है। इसमें तीन—चार िातें समझने जैसी हैं। पहिी िात तो
समझने जैसी यह है कि िहुत सी िातें इस च थे शरीर िो उपिि िोर्ोूं ने िताई हैं । िहुत सी िातें इस च थे
शरीर िो उपिि िोर्ोूं ने िताई हैं । और उनिो कर्ना जा सिता है कि कितनी िातें उन्ोूंने िताई हैं । अि
जैसे, पृथ्वी िि िनी, इसिे सूं िूंध में जो पृथ्वी िी उम्र च थे शरीर िे िोर्ोूं ने िताई है , उसमें और कवज्ञान िी
उम्र में थोड़ा सा ही िासिा है । और अभी भी यह नही ूं िहा जा सिता कि कवज्ञान जो िह रहा है वह सही
है ; अभी भी यह नही ूं िहा जा सिता। अभी कवज्ञान भी यह दावा नही ूं िर सिता। िासिा िहुत थोड़ा
है , िासिा िहुत ज्यादा नही ूं है ।

दू सरी िात, पृथ्वी िे सूं िूंध में , पृथ्वी िी र्ोिाई और पृथ्वी िी र्ोिाई िे माप िे सूं िूंध में जो च थे शरीर
िे िोर्ोूं ने खिर दी है , उसमें और कवज्ञान िी खिर में और भी िम िासिा है । और यह जो िासिा है , जरूरी
नही ूं है कि वह जो च थे शरीर िो उपिि िोर्ोूं ने िताई है , वह र्ित ही हो; क्ोूंकि पृथ्वी िी र्ोिाई में कनरूं तर
अूंतर पड़ता रहा है । आज पृथ्वी कजतनी सू रज से दू र है , उतनी दू र सदा नही ूं थी; और आज पृथ्वी से चाूं द कजतना
दू र है , उतना सदा नही ूं था। आज जहाूं अफ्रीिा है , वहाूं पहिे नही ूं था। एि कदन अफ्रीिा कहूं दुस्तान से जुड़ा
हुआ था। हजार घटनाएूं िदि र्ई हैं , वे रोज िदि रही हैं । उन िदिती हुई सारी िातोूं िो अर्र खयाि में रखा
जाए तो िड़ी आश्चयग जनि िात मािूम पड़े र्ी कि कवज्ञान िी िहुत सी खोजें च थे शरीर िे िोर्ोूं ने िहुत पहिे
खिर दी हैं ।

अती ांजद्रय अनभिोां की अजभव्यब्धि में कजठनाई:

यह भी समझने जैसा मामिा है कि कवज्ञान िे और च थे शरीर ति पहुूं चे हुए िोर्ोूं िी भाषा में
िुकनयादी ििग है , इस वजह से िड़ी िकठनाई होती है । क्ोूंकि च थे शरीर िो जो उपिि है , उसिे पास
िोई मैथेमेकटिि िैंग्वेज नही ूं होती। उसिे पास तो कवजन और कपक्गर और कसूं िि िी िैंग्वेज होती है , उसिे
पास तो प्रतीि िी िैंग्वेज होती है ।

सपने में िोई भाषा होती भी नही,ूं कवजन में भी िोई भाषा नही ूं होती। अर्र हम र् र से समझें , तो हम
कदन में जो िुछ सोचते हैं , अर्र रात हमें उसिा ही सपना दे खना पड़े , तो हमें प्रतीि भाषा चुननी पड़ती
है , प्रतीि चु नना पड़ता है ; क्ोूंकि भाषा तो होती नही ूं। अर्र मैं महत्वािाूं क्षी आदमी हूं और कदन भर आशा
िरता हूं कि सििे ऊपर कनिि जाऊूं , तो रात में जो सपना दे खूूंर्ा उसमें मैं पक्षी हो जाऊूंर्ा और आिाश में
उड़ जाऊूंर्ा, और सििे ऊपर हो जाऊूंर्ा। िेकिन सपने में मैं यह नही ूं िह सिता कि मैं महत्वािाूं क्षी हूं । मैं
इतना ही िर सिता हूं कि—सपने में सारी भाषा िदि जाएर्ी—मैं एि पक्षी िनिर आिाश मेंउडूूंर्ा, सििे
ऊपर उडूर्ा।

तो कवजन िी भी जो भाषा है , वह शब्दोूं िी नही ूं है , कपक्गर िी है । और कजस तरह अभी डरीम


इूं टरकप्रटे शन फ्रायड और िै और एडिर िे िाद कविकसत हुआ कि स्वप्न िी हम व्याख्या िरें , तभी हम पता
िर्ा पाएूं र्े कि मतिि क्ा है ; इसी तरह च थे शरीर िे िोर्ोूं ने जो िुछ िहा है , उसिा इूं टरकप्रटे शन, व्याख्या
अभी भी होने िो है , वह अभी हो नही ूं र्ई है । अभी तो डरीम िी व्याख्या भी पूरी नही ूं हो पा रही है , अभी कवजन
िी व्याख्या तो िहुत दू सरी िात है —कि कवजन में कजन िोर्ोूं ने जो दे खा है ,उनिा मतिि क्ा है ? वे क्ा िह
रहे हैं ?

जहां दओां के अितार जैजिक—जिकास क्म के प्रतीकात्मक रूप:

अि जैसे , उदाहरण िे किए, डाकवगन ने जि िहा कि आदमी कविकसत हुआ है जानवरोूं से , तो उसने
एि कवज्ञाकनि भाषा में यह िात किखी। िे किन कहूं दुस्तान में कहूं दुओूं िे अवतारोूं िी अर्र हम िहानी पढ़ें , तो
हमें पता चिेर्ा कि वह अवतारोूं िी िहानी डाकवगन िे िहुत पहिे किििुि ठीि प्रतीि िहानी है । पहिा
अवतार आदमी नही ूं है , पहिा अवतार मछिी है । और डाकवग न िा भी पहिा जो रूप है मनुष्य िा, वह मछिी
है । अि यह कसिाकिि िैंग्वेज हुई कि हम िहते हैं जो पहिा अवतार पैदा हुआ,वह मछिी था—मत्सावतार।
िेकिन यह जो भाषा है , यह वैज्ञाकनि नही ूं है । अि िहाूं अवतार और िहाूं मत्स्य! हम इनिार िरते रहे
उसिो। िेकिन जि डाकवगन ने िहा कि मछिी जो है जीवन िा पहिा तत्व है , पृथ्वी पर पहिे मछिी ही आई
है , इसिे िाद ही जीवन िी दू सरी िातें आईूं! िेकिन उसिा जो ढूं र् है , उसिी जो खोज है , वह वैज्ञाकनि है ।
अि कजन्ोूंने कवजन में दे खा होर्ा,उन्ोूंने यह दे खा कि पहिा जो भर्वान है वह मछिी में ही पै दा हुआ है । अि
यह कवजन जि भाषा िोिे र्ा, तो वह इस तरह िी भाषा िोिे र्ा जो पैरेिि िी होर्ी।

किर िछु आ है । अि िछु आ जो है , वह जमीन और पानी दोनोूं िा प्राणी है । कनकश्चत ही, मछिी िे िाद
एिदम से िोई प्राणी पृथ्वी पर नही ूं आ सिता; जो भी प्राणी आया होर्ा, वह अधग जि और अधग थि िा रहा
होर्ा। तो दू सरा जो कविास हुआ होर्ा, वह िछु ए जैसे प्राणी िा ही हो सिता है , जो जमीन पर भी रहता हो
और पानी में भी रहता हो। और किर धीरे — धीरे िछु ओूं िे िुछ वूंशज जमीन पर ही रहने िर्े होूंर्े और िुछ
पानी में ही रहने िर्े होूंर्े, और ति कवभाजन हुआ होर्ा।

अर्र हम कहूं दुओूं िे च िीस अवतारोूं िी िहानी पढ़ें , तो हमें इतनी है रानी होर्ी इस िात िो जानिर
कि कजसिो डाकवग न हजारोूं साि िाद पिड़ पाया, ठीि वही कविास क्रम हमने पिड़ किया! किर जि मनु ष्य
अवतार पैदा हुआ उसिे पहिे आधा मनुष्य और आधा कसूं ह िा नरकसूं ह अवतार है । आक्तखर जानवर भी एिदम
से आदमी नही ूं िन सिते , जानवरोूं िो भी आदमी िनने में एि िीच िी िड़ी पार िरनी पड़ी होर्ी, जि कि
िोई आदमी आधा आदमी और आधा जानवर रहा होर्ा। यह असूं भव है कि छिाूं र् सीधी िर् र्ई हो—कि एि
जानवर िो एि िच्चा पैदा हुआ हो जो आदमी िा हो। जानवर से आदमी िे िीच िी एि िड़ी खो र्ई है , जो
नरकसूं ह िी ही होर्ी—कजसमें आधा जानवर होर्ा और आधा आदमी होर्ा।

पराणोां में जछपी िैज्ञाजनक सां भािनाएां :

अर्र हम यह सारी िात समझें तो हमें पता चिेर्ा कि कजसिो डाकवगन िहुत िाद में कवज्ञान िी भाषा में
िह सिा, च थे शरीर िो उपिि िोर्ोूं ने उसे पुराण िी भाषा में िहुत पहिे िहा है । िे किन आज भी, अभी
भी पुराण िी ठीि—ठीि व्याख्या नही ूं हो पाती है , उसिी वजह यह है कि पुराण किििुि नासमझ िोर्ोूं िे
हाथ में पड़ र्या है , वह वैज्ञाकनि िे हाथ में नही ूं है ।
पृथ्वी की आय की पराणोां में घोषणा:

अच्छा दू सरी िकठनाई यह हो र्ई है कि पु राण िो खोिने िे जो िोड हैं , वे सि खो र्ए हैं , वे नही ूं हैं
हमारे पास। इसकिए िड़ी अड़चन हो र्ई है । िहुत िाद में कवज्ञान यह िहता है कि आदमी ज्यादा से ज्यादा चार
हजार वषग ति पृथ्वी पर और जी सिता है । अि कवज्ञान ऐसा िहता है । िेकिन इसिी भकवष्यवाणी िहुत से
पुराणोूं में है । और यह वक्त िरीि—िरीि वही है जो पुराणोूं में है , कि चार हजार वषग से ज्यादा पृथ्वी नही ूं कटि
सिती।

हाूं , कवज्ञान और भाषा िोिता है । वह िोिता है कि सू यग ठूं डा होता जा रहा है , उसिी किरणें क्षीण होती
जा रही हैं , उसिी र्मी िी ऊजाग किखरती जा रही है , वह चार हजार वषग में ठूं डा हो जाएर्ा। उसिे ठूं डे होते से
ही पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएर्ा। पुराण और तरह िी भाषा िोिते हैं । िेकिन... और अभी भी यह पक्का
नही ूं है , क्ोूंकि ये चार हजार वषग और अर्र पुराण िहें पाूं च हजार वषग , तो अभी भी यह पक्का नही ूं है कि कवज्ञान
जो िहता है वह किििुि ठीि ही िह रहा है , पाूं च हजार भी हो सिते हैं । और मेरा मानना है कि पाूं च हजार
ही होूंर्े। क्ोूंकि कवज्ञान िे र्कणत में भूि —चूि हो सिती है , कवजन में भूि— चूि नही ूं होती। और इसीकिए
कवज्ञान रोज सु धरता है —िि िुछ िहता है , परसोूं िुछ िहता है , रोज हमें िदिना पड़ता है ;न्यू टन िुछ िहता
है , आइूं स्टीन िुछ िहता है । हर पाूं च वषग में कवज्ञान िो अपनी धारणा िदिनी पड़ती है , क्ोूंकि
और एग्जेक्ङउसिो पता िर्ता है कि और भी ज्यादा ठीि यह होर्ा। और िहुत मु क्तिि है यह िात तय िरनी
कि अूंकतम जो हम तय िरें र्े , वह च थे शरीर में दे खे र्ए िोर्ोूं से िहुत कभन्न होर्ा।

और अभी भी जो हम जानते हैं , उस जानने से अर्र मेि न खाए, तो िहुत जल्दी कनणग य िेने िी जरूरत
नही ूं है ; क्ोूंकि कजूंदर्ी इतनी र्हरी है कि जल्दी कनणग य कसिग अवैज्ञाकनि कचि ही िे सिता है ; कजूं दर्ी इतनी
र्हरी है ! अि अर्र हम वैज्ञाकनिोूं िे ही सारे सत्योूं िो दे खें , तो हम पाएूं र्े कि उनमें से स साि में सि कवज्ञान
िे सत्य पुराण—िथाएूं हो जाते हैं , उनिो किर िोई मानने िो तै यार नही ूं रह जाता, क्ोूंकि स साि में और
िातें खोज में आ जाती हैं ।

अि जैसे, पुराण िे जो सत्य थे , उनिा िोड खो र्या है ; उनिो खोिने िी जो िुूंजी है , वह खो र्ई है ।
उदाहरण िे किए, समझ िें कि िि तीसरा महायुद्ध हो जाए। और तीसरा महायुद्ध अर्र होर्ा, तो उसिे जो
पररणाम होूंर्े, पहिा पररणाम तो यह होर्ा कि कजतना कशकक्षत, सु सूंस्कृत जर्त है वह मर जाएर्ा। यह िड़े
आश्चयग िी िात है ! अकशकक्षत और असूं स्कृत जर्त िच जाएर्ा। िोई आकदवासी, िोई िोि, िोई भीि जूंर्ि—
पहाड़ पर िच जाएर्ा। िूंिई में नही ूं िच सिेंर्े आप, न्यू यािग

में नही ूं िच सिेंर्े। जि भी िोई महान युद्ध होता है , तो जो उस समाज िा श्रे ष्ठतम वर्ग है , वह सिसे पहिे मर
जाता है ,क्ोूंकि चोट उस पर होती है । िस्तर िी ररयासत िा एि िोि और भीि िच जाएर्ा। वह अपने िच्चोूं
से िह सिेर्ा कि आिाश में हवाई जहाज उड़ते थे। िेकिन िता नही ूं सिेर्ा, िैसे उड़ते थे। तो उसने उड़ते
दे खे हैं , वह झूठ नही ूं िोि रहा। िेकिन उसिे पास िोई िोड नही ूं है ; क्ोूंकि कजनिे पास िोड था वे िूंिई में
थे, वे मर र्ए हैं । और िच्चे एिाध—दो पीढ़ी ति तो भरोसा िरें र्े , इसिे िाद िच्चे िहें र्े कि आपने दे खा? तो
उनिे िाप िहें र्े—नही,ूं हमने सु ना; ऐसा हमारे कपता िहते थे। और उनिे कपता से उन्ोूंने सु ना था कि आिाश
में हवाई जहाज उड़ते थे , किर युद्ध हुआ और किर सि खत्म हो र्या। िच्चे धीरे — धीरे िहें र्े कि िहाूं हैं वे
हवाई जहाज? िहाूं हैं उनिे कनशान? िहाूं हैं वे चीजें ? दो हजार साि िाद वे िच्चे िहें र्े—सि िपोि—
िल्पना है , िभी िोई नही ूं उड़ा—िरा।
महाभारत यि तक जिकजसत श्रेष्ठ जिज्ञान नि हो गया:

ठीि ऐसी घटनाएूं घट र्ई हैं । महाभारत ने इस दे श िे पास साइकिि माइूं ड से जो—जो उपिि ज्ञान
था, वह सि नष्ट िर कदया, कसिग िहानी रह र्ई। कसिग िहानी रह र्ई। अि हमें शि आता है कि राम जो हैं वे
हवाई जहाज पर िैठिर िूं िा से आए होूं, हमें शि आता है । यह शि िी िात है , क्ोूंकि एि साइकिि भी तो
नही ूं छूट र्ई उस जमाने िी, हवाई जहाज तो िहुत दू र िी िात है । और किसी ग्रूंथ में िोई एि सू त्र भी तो नही ूं
छूट र्या।

असि में, महाभारत िे िाद उसिे पहिे िा समस्त ज्ञान नष्ट हो र्या, स्भृकत िे द्वारा जो याद रखा जा
सिा, वह रखा र्या। इसकिए पुराने ग्रूंथ िा नाम स्भृकत है , वह मेमोरी है । सु नी हुई िात है , वह दे खी हुई िात नही ूं
है । इसकिए पुराने ग्रूंथ िो हम िहते हैं —स्भृकत, श्रु कत—सु नी हुई और स्भरण रखी र्ई; वह दे खी हुई िात नही ूं है ।
किसी ने किसी िो िही थी, किसी ने किसी िो िही थी, किसी ने किसी िो िही थी, वह हम िचािर रख किए
हैं , ऐसा हुआ था। िे किन अि हम िुछ भी नही ूं िह सिते कि वह हुआ था, क्ोूंकि उस समाज िा जो श्रे ष्ठतम
िुक्तद्धमान वर्ग था... और ध्यान रहे , दु कनया िी जो िुक्तद्धमिा है , वह दस— पच्चीस िोर्ोूं िे पास होती है । अर्र
एि आइूं स्टीन मर जाए तो ररिे कटकवटी िी कथयरी िताने वािा दू सरा आदमी खोजना मुक्तिि हो जाता है ।
आइूं स्टीन खु द िहता था अपनी कजूं दर्ी में कि दस—िारह आदमी ही हैं िेवि जो मेरी िात समझ सिते हैं —
पूरी पृथ्वी पर। अर्र ये िारह आदमी मर जाएूं तो हमारे पास किताि तो होर्ी कजसमें किखा है कि ररिेकटकवटी
िी एि कथयरी होती है , िेकिन एि आदमी समझनेवािा, एि समझानेवािा नही ूं होर्ा।

तो महाभारत ने श्रे ष्ठतम व्यक्तक्तयोूं िो नष्ट िर कदया, उसिे िाद जो िातें रह र्ईूं वे िहानी िी रह र्ईूं।
िेकिन अि प्रमाण खोजे जा रहे हैं , और अि खोजा जा सिता है । िेकिन हम तो अभार्े हैं ; क्ोूंकि हम तो िुछ
भी नही ूं खोज सिते ।

जपराजमडोां के जनमाओ ण में मनस शब्धि का उपयोग:

ऐसी जर्हें खोजी र्ई हैं , जो इस िात िा सिूत दे ती हैं कि वे िम से िम तीन हजार या चार हजार या
पाूं च हजार वषग पुरानी हैं , और किसी वक्त उन्ोूंने वायुयान िो उतरने िे किए एयरपोटग िा िाम किया है । ऐसी
जर्ह खोजी र्ई हैं । अच्छा,उतने िड़े स्थान िो िनाने िी और िोई जरूरत नही ूं थी। ऐसी चीजें खोज िी र्ई हैं
जो कि िहुत िड़ी याूं कत्रि व्यवस्था िे किना नही ूं िन सिती थी ूं। जैसे कपराकमड पर चढ़ाए र्ए पत्थर हैं । ये
कपराकमड पर चढ़ाए र्ए पत्थर आज भी हमारे िड़े से िड़े क्रेन िी सामर्थ्ग िे िाहर पड़ते हैं । िेकिन ये
पत्थर चढ़ाए र्ए, यह तो साि है , ये पत्थर चढ़ािर और रखे र्ए, यह तो साि है । और ये आदमी ने चढ़ाए हैं ।
इन आदकमयोूं िे पास िुछ चाकहए। तो या तो मशीन रही हो; और या किर मैं िहता हूं च थे शरीर िी िोई
शक्तक्त रही हो। वह मैं आपसे िहता हूं उसिो आप िभी प्रयोर् िरिे दे खें।

एि आदमी िो आप किटा िें और चार आदमी चारोूं तरि खड़े हो जाएूं । दो आदमी उसिे पैर िे
घुटने िे नीचे दोअूंर्ुकियाूं िर्ाएूं दोनोूं तरि और दो आदमी उसिे दोनोूं िूंधोूं िे नीचे अूंर्ुकियाूं िर्ाएूं —एि—
एि अूंर्ुिी ही िर्ाएूं । और चारोूं सूं िल्प िरें कि हम एि—एि अूंर्ुिी से इसे उठा िेंर्े! और चारोूं श्वास िो िें
पाूं च कमनट ति जोर से , इसिे िाद श्वास रोि िें और उठा िें। वह एि—एि अूं र्ुिी से आदमी उठ जाएर्ा।
तो कपराकमड पर जो पत्थर चढ़ाए र्ए, या तो क्रेन से चढ़ाए र्ए और या किर साइकिि िोसग
से चढाए र्ए—कि चार आदकमयोूं ने एि िड़े पत्थर िो एि—एि अूंर्ुिी से उठा कदया। इसिे कसवाय िोई
उपाय नही ूं है । िेकिन वे पत्थर चढे हैं , वे सामने हैं , और उनिो इनिार नही ूं किया जा सिता, क्ोूंकि वे पत्थर
चढ़े हुए हैं ।

जीिन के अज्ञात रहस्योां की मनस शब्धि द्वारा खोज:

और दू सरी िात जो जानने िी है वह यह जानने िी है कि साइकिि िोसग िी इनकिकनट डायमेंशन हैं ।


एि आदमी कजसिो च था शरीर उपिि हुआ है , वह चाूं द िे सूं िूंध में ही जाने , यह जरूरी नही ूं है । वह जानना
ही न चाहे , चाूं द िे सूं िूंध में जानना ही न चाहे , जानने िी उसे िोई जरूरत भी नही ूं है । वे जो च थे शरीर िो
कविकसत िरनेवािे िोर् थे , वे िुछ और चीजें जानना चाहते थे , उनिी उत्सु िता किन्ी ूं और चीजोूं में थी, और
ज्यादा िीमती चीजोूं में थी। उन्ोूंने वे जानी।

वे प्रेत िो जानना चाहते थे कि प्रेतात्मा है या नही ?ूं वह उन्ोूंने जाना। और अि कवज्ञान खिर दे रहा है
कि प्रेतात्मा है । वे जानना चाहते थे कि िोर् मरने िे िाद िहाूं जाते हैं ? िैसे जाते हैं ? क्ोूंकि च थे शरीर में जो
पहुूं च र्या है उसिी पदाथग िे प्रकत उत्सु िता िम हो जाती है ; उसिी कचूंता िहुत िम रह जाती है कि जमीन
िी र्ोिाई कितनी है । उसिा िारण है कि वह कजस क्तस्थकत में खड़ा होता है ...

जैसे एि िड़ा आदमी है । छोटे िच्चे उससे िहें कि हम तु म्हें ज्ञानी नही ूं मानते , क्ोूंकि तु म िभी नही ूं
िताते कि यह र्ुड्डा िैसे िनता है । हम तु म्हें ज्ञानी िैसे मानें! एि िड़िा हमारे पड़ोस में है , वह िताता है कि
र्ुड्डा िैसे िनता है , वह ज्यादा ज्ञानी है । उनिा िहना ठीि है , उनिी उत्सु िता िा भेद है । एि िड़े आदमी
िो िोई उत्सु िता नही ूं है कि र्ुड्डे िे भीतर क्ा है , िेकिन छोटे िच्चे िो है ।

च थे शरीर में पहुूं चे हुए आदमी िी इूं क्ायरी िदि जाती है ; वह िुछ और जानना चाहता है । वह जानना
चाहता है कि मरने िे िाद आदमी िा यात्रापथ क्ा है ? वह िहाूं जाता है ? वह किस यात्रापथ से यात्रा िरता
है ? उसिी यात्रा िे कनयम क्ा हैं ? वह िैसे जन्मता है , वह िहाूं जन्मता है , िि जन्मता है ? उसिे जन्म िो क्ा
सु कनयोकजत किया जा सिता है ?

उसिी उत्सु िता इसमें नही ूं थी कि चाूं द पर आदमी पहुूं चे , क्ोूंकि यह िेमानी है , इसिा िोई मतिि
नही ूं है । उसिी उत्सु िता इसमें थी कि आदमी मुक्तक्त में िैसे पहुूं चे? और वह िहुत मीकनर्िुि है । उसिी
कििर थी कि जि एि िच्चा र्भग में आता है तो आत्मा िैसे प्रवेश िरती है ? क्ा हम र्भग चुनने में उसिे किए
सहयोर्ी हो सिते हैं ? कितनी दे र िर्ती है ?

जतब्बत में मृत आत्माओां पर प्रयोग:

अि कतब्त में एि किताि है : कतिेतन िुि ऑि कद डे ड। तो अि कतब्त िा जो भी च थे शरीर िो


उपिि आदमी था,उसने सारी मेहनत इस िात पर िी है कि मरने िे िाद हम किसी आदमी िो क्ा सहायता
पहुूं चा सिते हैं । आप मर र्ए, मैं आपिो प्रेम िरता हूं िेकिन मरने िे िाद मैं आपिो िोई सहायता नही ूं
पहुूं चा सिता। िेकिन कतब्त में पूरी व्यवस्था है सात सप्ताह िी, कि मरने िे िाद सात सप्ताह ति उस
आदमी िो िैसे सहायता पहुूं चाई जाए; और उसिो िैसे र्ाइड किया जाए;और उसिो िैसे कवशे ष जन्म िेने
िे किए उत्पेररत किया जाए; और उसे िैसे कवशे ष र्भग में प्रवेश िरवा कदया जाए।

अभी कवज्ञान िो वक्त िर्ेर्ा कि वह इन सि िातोूं िा पता िर्ाए; िेकिन यह िर् जाएर्ा पता, इसमें
अड़चन नही ूं है । और किर इसिी वैकिकडटी िे भी सि उन्ोूंने उपाय खोजे थे कि इसिी जाूं च िैसे हो।

प्रधान िामा के चनाि की जिजध:

अभी कििहाि जो िामा है .....कतब्त में िामा जो है , कपछिा िामा जो मरता है , वह ितािर जाता है कि
अर्िा मैं किस घर में जन्म िूूंर्ा; और तु म मुझे िैसे पहचान सिोर्े , उसिे कसूं िल्स दे जाता है । किर उसिी
खोज होती है पूरे मुम्ऻ में कि वह अि िच्चा िहाूं है । और जो िच्चा उस कसूं िि िा राज िता दे ता है , वह समझ
किया जाता है कि वह पुराना िामा है । और वह राज कसवाय उस आदमी िे िोई िता नही ूं सिता, जो िता र्या
था। तो यह जो िामा है , ऐसे ही खोजा र्या। कपछिा िामा िहिर र्या था। इस िच्चे िी खोज िहुत कदन िरनी
पड़ी। िेकिन आक्तखर वह िच्चा कमि र्या। क्ोूंकि एि खास सू त्र था जो कि हर र्ाूं व में जािर कचल्राया जाएर्ा
और जो िच्चा उसिा अथग िता दे , वह समझ किया जाएर्ा कि वह पुराने िामा िी आत्मा उसमें प्रवे श िर र्ई।
क्ोूंकि उसिा अथग तो किसी और िो पता ही नही ूं था, वह तो िहुत सीक्रेट मामिा है ।

तो वह च थे शरीर िे आदमी िी क्ूररआकसटी अिर् थी। वह अपनी उस कजज्ञासा... और अनूंत है यह


जर्त, और अनूंत हैं इसिे राज, और अनूंत हैं इसिे रहस्य। अि ये कजतनी साइूं स िो हमने जन्म कदया
है , भकवष्य में ये ही साइूं स रहें र्ी, यह मत सोकचए, और नई हजार साइूं स पै दा हो जाएूं र्ी, क्ोूंकि और हजार
आयाम हैं जानने िे। और जि वे नई साइूं सेस पै दा होूंर्ी, ति वे िहें र्ी कि पुराने िोर् कवज्ञाकनि न रहे , वे यह
क्ोूं नही ूं िता पाए?

नही,ूं हम िहें र्े. पुराने िोर् भी कवज्ञाकनि थे, उनिी कजज्ञासा और थी। कजज्ञासा िा इतना ििग है कि
कजसिा िोई कहसाि नही ूं।

िनस्पजतयोां से बात करनेिािा िैद्य िकमान:

अि जैसे कि हम िहें र्े कि आज िीमाररयोूं िा इिाज हो र्या है , पुराने िोर्ोूं ने इन िीमाररयोूं िे


इिाज क्ोूं न िता कदए! िे किन आप है रान होूंर्े जानिर कि आयुवेद में या यूनानी में इतनी जड़ी—िूकटयोूं िा
कहसाि है , और इतना है रानी िा है कि कजनिे पास िोई प्रयोर्शािाएूं न थी ूं वे िैसे जान सिे कि यह जड़ी—
िूटी ििाूं िीमारी पर इस मात्रा में िाम िरे र्ी?

तो िुिमान िे िाित िहानी है । क्ोूंकि िोई प्रयोर्शािा तो नही ूं थी, पर च थे शरीर से िाम हो
सिता था। िुिमान िे िाित िहानी है कि वह एि—एि प धे िे पास जािर पूछेर्ा कि तू किस िाम में आ
सिता है , यह िता दे । अि यह िहानी किििुि किजूि हो र्ई है आज। आज िोई प धे से .. .क्ा मतिि है
इस िात िा? िेकिन अभी पचास साि पहिे ति हम नही ूं मानते थे कि प धे में प्राण है । इधर पचास साि में
कवज्ञान ने स्वीिार किया कि प धे में प्राण है । इधर तीस साि पहिे ति हम नही ूं मानते थे कि प धा श्वास िेता है ।
इधर तीस साि में हमने स्वीिार किया कि प धा श्वास िेता है । अभी कपछिे पूंद्रह साि ति हम नही ूं मानते थे
कि प धा िीि िरता है । अभी पूंद्रह साि में हमने स्वीिार किया कि प धा अनु भूकत भी िरता है । और जि आप
क्रोध से प धे िे पास जाते हैं ति प धे िी मनोदशा िदि जाती है , और जि आप प्रेम से जाते हैं तो मनोदशा
िदि जाती है । िोई आश्चयग नही ूं कि आनेवािे पचास साि में हम िहें कि प धे से िोिा जा सिता है । यह तो
क्रकमि कविास है । और िु िमान कसद्ध हो सही कि उसने पूछा हो प धोूं से कि किस िाम में आएर्ा, यह िता
दे ।

िेकिन यह ऐसी िात नही ूं कि हम सामने िोि सिें, यह च थे शरीर पर सूं भव है । यह च थे शरीर पर
सूं भव है कि प धे िो आत्मसात किया जा सिे, उसी से पूछ किया जाए। और मैं भी मानता हूं क्ोूंकि िोई
िेिोरे टरी इतनी िडी नही ूं मािूम पड़ती कि िुिमान िाख—िाख जडी—िूकटयोूं िा पता िता सिे। यह इसिा
िोई उपाय नही ूं है ; क्ोूंकि एि—एि जड़ी—िूटी िी खोज िरने में एि—एि िु िमान िी कजूंदर्ी िर् जाती
है । वह एि िाख—िरोड़ जड़ी—िूकटयोूं िे िाित िह रहा है कि यह इस िाम में आएर्ी। और अि कवज्ञान
सही िहता है कि ही, वह इस िाम में आती है । वह आ रही है इस िाम में।

यह जो सारी िी सारी खोजिीन अतीत िी है , वह सारी िी सारी खोजिीन च थे शरीर में उपिि िोर्ोूं
िी ही है । और उन्ोूंने िहुत िातें खोजी थी,ूं कजनिा हमें खयाि ही नही ूं है ।

अि जैसे कि हम हजारोूं िीमाररयोूं िा इिाज िर रहे हैं जो किििुि अवैज्ञाकनि है । च थे शरीरवािा


आदमी िहे र्ा ये तो िीमाररयाूं ही नही ूं हैं , इनिा तु म इिाज क्ोूं िर रहे हो?

िेकिन अि कवज्ञान समझ रहा है । अभी एिोपैथी नये प्रयोर् िर रही है । अभी अमेररिा िे िुछ
हाक्तस्पटल्स में उन्ोूंने....... दस मरीज हैं एि ही िीमारी िे, तो पाूं च मरीज िो वे पानी िा इूं जेक्ान दे रहे हैं , पाूं च
िो दवा दे रहे हैं । िड़ी है रानी िी िात यह है कि दवावािे भी उसी अनुपात में ठीि होते हैं और पानीवािे भी
उसी अनुपात में ठीि होते हैं । इसिा अथग यह हुआ कि पानी से ठीि होने वािे रोकर्योूं िो वास्तव में िोई रोर्
नही ूं था, िक्तम्ऻ उन्ें िीमार होने िा भ्म भर था।

अर्र ऐसे िोर्ोूं िो, कजन्ें कि िीमार होने िा भ्म है , दवाइयाूं दी र्ईूं तो उसिा कवषाक्त और कवपरीत
पररणाम होर्ा। उनिा इिाज िरने िी िोई जरूरत नही ूं है । इिाज िरने से नुिसान हो रहा है , और िहुत सी
िीमाररयाूं इिाज िरने से पैदा हो रही हैं , कजनिो किर ठीि िरना मु क्तिि होता चिा जाता है । क्ोूंकि अर्र
आपिो िीमारी नही ूं है , और आपिो िेंटम िीमारी है ,और आपिो असिी दवाई दे दी र्ई, तो आप मुक्तिि में
पड़े । अि वह असिी दवाई िुछ तो िरे र्ी आपिे भीतर जािर; वहपायजन िरे र्ी, वह आपिो कदक्कत में
डािेर्ी। अि उसिा इिाज चिाना पड़े र्ा। आक्तखर में िेंटम िीमारी कमट जाएर्ी और असिी िीमारी पैदा हो
जाएर्ी।

और स में से, पुराना कवज्ञान तो िहता है , नब्े प्रकतशत िीमाररयाूं िेंटम हैं । अभी पचास साि पहिे
ति एिोपैथी नही ूं मानती थी कि िेंटम िीमारी होती है । िेकिन अि एिोपैथी िहती है , पचास परसेंट ति हम
राजी हैं । मैं िहता हूं नब्े परसें टति चािीस वषों में , पचास वषों में राजी होना पड़े र्ा; नब्े परसें ट ति राजी
होना पड़े र्ा। क्ोूंकि असकियत वही है ।

जिज्ञान की भाषा अिग और पराण की अिग:


यह जो......इस च थे शरीर में जो आदमी ने जाना है , उसिी व्याख्या िरनेवािा आदमी नही ूं है , उसिी
व्याख्याखोजनेवािा आदमी नही ूं है । उसिो ठीि जर्ह पर, ठीि आज िे पसग पेक्तक्ङव में और आज िे कवज्ञान
िी भाषा में रख दे नेवािा आदमी नही ूं है । वह तििीि हो र्ई है । और िोई तििीि नही ूं हो र्ई है । और जरा
भी तििीि नही ूं है । अि होता क्ा है ,जैसा मैंने िहा कि पैरेिि िी जो भाषा है वह अिर् है ।

सू रज के सात घोड़े :

आज कवज्ञान िहता है कि सू रज िी हर किरण कप्रज्म में से कनिििर सात कहस्सोूं में टू ट जाती है , सात
रूं र्ोूं में िूंट जाती है । वेद िा ऋकष िहता है कि सू रज िे सात घोड़े हैं , सात रूं र् िे घोड़े हैं । अि यह पैरेिि िी
भाषा है । सू रज िी किरण सात रूं र्ोूं में टू टती है , सूरज िे सात घोड़े हैं , सात रूं र् िे घोड़े हैं , उन पर सू रज सवार
है । अि यह िहानी िी भाषा है । इसिो किसी कदन हमें समझना पड़े कि यह पुराण िी भाषा है , यह कवज्ञान िी
भाषा है । िे किन इन दोनोूं में र्िती क्ा है ? इसमें िकठनाई क्ा है ? यह ऐसे भी समझी जा सिती है । इसमें
िोई अड़चन नही ूं है ।

कवज्ञान िहुत पीछे समझ पाता है िहुत सी िातोूं िो। असि में , साइकिि िोसग िे आदमी िहुत
पहिे प्रेकडक्ङ िर जाते हैं । िेकिन जि वे प्रेकडक्ङ िरते हैं ति भाषा नही ूं होती। भाषा तो िाद में जि कवज्ञान
खोजता है ति िनती है; पहिे भाषा नही ूं होती। अि जैसे कि आप है रान होूंर्े , िोई भी र्कणत है , िैं ग्वेज है , िोई
भी कदशा में अर्र आप खोजिीन िरें , तो आप पाएूं र्े —कवज्ञान तो आज आया है , भाषा तो िहुत पहिे
आई, र्कणत िहुत पहिे आया। कजन िोर्ोूं ने यह सारी खोजिीन िी, कजन्ोूंने यह सारा कहसाि िर्ाया, उन्ोूंने
किस कहसाि से िर्ाया होर्ा? उनिे पास क्ा माध्यम रहे होूंर्े, उन्ोूंने िैसे नापा होर्ा?उन्ोूंने िैसे पता िर्ाया
होर्ा कि एि वषग में पृथ्वी सू रज िा एि चक्कर िर्ा िेती है ? एि वषग में चक्कर िर्ाती है , उसी कहसाि से वषग
है । वषग तो िहुत पुराना है , कवज्ञान िे िहुत पहिे िा है । वषग में तीन स पैंसठ कदन होते हैं , यह तो कवज्ञान िे िहुत
पहिे हमें पता हैं । जि ति किन्ी ूं ने यह दे खा न हो.. .िे किन दे खने िा िोई वैज्ञाकनि साधन नही ूं था। तो
कसवाय साइकिि कवजन िे और िोई उपाय नही ूं था।

मनस शब्धि द्वारा पृथ्वी को अांतररक्ष से दे खना:

एि िहुत अदभुत चीज कमिी है। अरि में एि आदमी िे पास सात स वषग पुराना दु कनया िा नक्शा
कमिा है —सात स वषग पुराना दु कनया िा नक्शा है । और वह नक्शा ऐसा है कि किना हवाई जहाज िे ऊपर से
िनाया नही ूं जा सिता; क्ोूंकि वह नक्शा जमीन पर दे खिर िनाया हुआ नही ूं है । िन नही ूं सिता। आज भी
पृथ्वी हवाई जहाज पर से जैसी कदखाई पड़ती है , वह नक्शा वैसा है । और वह सात स वषग पुराना है ।

तो अि दो ही उपाय हैं . या तो सात स वषग पहिे हवाई जहाज हो, जो कि नही ूं था। दू सरा उपाय यही है
कि िोई आदमी अपने च थे शरीर से इतना ऊूंचा उठिर जमीन िो दे ख सिे और नक्शा खी ूंचे। सात स वषग
पहिे हवाई जहाज नही ूं था, यह तो पक्का है । इसिी िोई िकठनाई नही ूं है । यह तय है । सात स वषग पहिे
हवाई जहाज नही ूं था, िेकिन यह सात स वषग पुराना नक्शा इस तरह है जैसे कि ऊपर से दे खिर िनाया र्या
है । तो अि इसिा क्ा.......
शरीर की सू क्ष्मतम अांतस—रचना का ज्ञान:

अर्र हम चरि और सु श्रुत िो समझें तो हमें है रानी हो जाएर्ी। आज हम आदमी िे शरीर िो िाट—
पीटिर जो जान पाते हैं , उसिा वणग न तो है । तो दो ही उपाय हैं या तो सजगरी इतनी िारीि हो र्ई हो। जो कि
नही ूं कदखाई पड़ती; क्ोूंकि सजगरी िा एि इूं सूमेंट नही ूं कमिता, सजगरी िे कवज्ञान िी िोई किताि नही ूं कमिती
है । िेकिन आदमी िे भीतर िे िारीि से िारीि कहस्से िा वणग न है । और ऐसे कहस्सोूं िा भी वणग न है जो कवज्ञान
िहुत िाद में पिड़ पाया है ; जो अभी पचास साि पहिे इनिार िरता था, उनिा भी वणग न है कि वे वहाूं भीतर
हैं । तो एि ही उपाय है कि किसी व्यक्तक्त ने कवजन िी हाित में व्यक्तक्त िे भीतर प्रवेश िरिे दे खा हो।

असि में, आज हम जानते हैं कि एक्सरे िी किरण आदमी िे शरीर में पहुूं च जाती है । स साि पहिे
अर्र िोई आदमी िहता कि हम आपिे भीतर िी हकड्डयोूं िा कचत्र उतार सिते हैं , हम मानने िो राजी न
होते । आज हमें मानना पड़ता है ,क्ोूंकि वह उतार रहा है । िेकिन क्ा आपिो पता है कि च थे शरीर िी क्तस्थकत
में आदमी िी आूं ख एक्सरे से ज्यादा र्हरा दे ख पा सिती है , और आपिे शरीर िा पूरा—पूरा कचत्र िनाया जा
सिता है , जो कि िभी िाट—पीटिर नही ूं किया र्या। और कहूं दुस्तान जैसे मुम्ऻ में , जहाूं कि हम मुदे िो जिा
दे ते थे, िाटने —पीटने िा उपाय नही ूं था।

सजगरी पकश्चम में इसकिए कविकसत हुई कि मु दे र्ड़ाए जाते थे, नही ूं तो हो नही ूं सिती थी। और आप
जानिर यह है रान होूंर्े कि यह अच्छे आदकमयोूं िी वजह से कविकसत नही ूं हुई, यह िुछ चोरोूं िी वजह से
कविकसत हुई जो मु दों िो चुरा िाते थे। कहूं दुस्तान में तो कविकसत हो नही ूं सिती थी, क्ोूंकि हम जिा दे ते हैं ।
और जिाने िा हमारा खयाि था, िोई वजह थी,इसकिए जिाते थे।

यह साइकिि िोर्ोूं िा ही खयाि था कि अर्र शरीर िना रहे , तो आत्मा िो नया जन्म िेने में िाधा
पड़ती है ; वह उसी िे आसपास घूमती रहती है । उसिो जिा दो, ताकि इस झूंझट से उसिा छु टिारा हो
जाए; वह इसिे आसपास न घूमे ; वह िात ही खत्म हो र्ई। और यह अपने सामने ही उस शरीर िो जिता हुआ
दे ख िे , कजस शरीर िो इसने समझा था कि मैं हूं । ताकि दू सरे शरीर में भी इसिो शायद स्भृ कत रह जाए कि यह
शरीर तो जि जानेवािा है । तो हम उसिो जिाते थे। इसकिए सजगरी कविकसत न हो सिी; क्ोूंकि आदमी िो
िाटना पड़े , पीटना पड़े , टे िि पर रखना पड़े । यूरोप में भी चोरोूं ने िोर्ोूं िी िाशें चुरा—चुरािर वै शाकनिोूं िे
घर में पहुूं चाईूं, मुिदमे चिे , अदाितोूं में कदक्कतें हुईूं, क्ोूंकि वह िाश िो िाना र्ैर —िानूनी था, और मरे हुए
आदमी िो िाटना जुमग है । िेकिन वे िाट—िाटिर कजन िातोूं पर पहुूं चे हैं , उन्ें किना िाटे भी आज से तीन
हजार वषग पुरानी कितािें पहुूं च र्ईूं उन िातोूं पर।

तो इसिा मतिि कसिग इतना ही होता है कि किना प्रयोर् िे भी किन्ी ूं और कदशाओूं से भी चीजोूं िो
जाना जा सिा है । िभी इस पर पूरी ही आपसे िात िरना चाहूं र्ा। दस—पूंद्रह कदन िात िरनी पड़े , ति थोड़ा
खयाि में आ सिता है ।

आज इतना ही।
प्रिचन 15 - धमओ के असीम रहस्य सागर में

(नौिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ )

धमओ और जिज्ञान के जभन्न दृजिकोण:

प्रश्न : ओशो कि की चचाओ में आपने कहा जक जिज्ञान का प्रिेश पाां चिें शरीर स्पूचअि बॉडी तक
सां भि है । बाद में चौथे शरीर में जिज्ञान की सां भािनाओां पर चचाओ की। आज कृपया पाां चिें शरीर में हो
सकने िािी कछ िैज्ञाजनक सां भािनाओां पर सां जक्षप्त में प्रकाश डािें।

एि तो कजसे हम शरीर िहते हैं और कजसे हम आत्मा िहते हैं , ये ऐसी दो चीजें नही ूं हैं कि कजनिे
िीच से तु न िनता हो, कब्रज न िनता हो। इनिे िीच िोई खाई नही ूं है , इनिे िीच जोड़ है ।

तो सदा से एि खयाि था कि शरीर अिर् है , आत्मा अिर् है ; और ये दोनोूं इस भाूं कत अिर् हैं कि इन
दोनोूं िे िीच िोई से तु, िोई कब्रज नही ूं िन सिता। न िेवि अिर् हैं , िक्तम्ऻ कवपरीत हैं एि—दू सरे से । इस
खयाि ने धमग और कवज्ञान िो अिर् िर कदया था। धमग वह था, जो शरीर िे अकतररक्त जो है उसिी खोज
िरे , और कवज्ञान वह था, जो शरीर िी खोज िरे — आत्मा िे अकतररक्त जो है , उसिी खोज िरे ।

स्वभावत:, दोनोूं तरह िी खोज एि िो मानती और दू सरे िो इनिार िरती रही, क्ोूंकि कवज्ञान कजसे
खोजता था, उसे वह िहता था शरीर है , आत्मा िहाूं ! और धमग कजसे खोजता था, उसे वह मानता था : आत्मा
है , शरीर िहाूं !

तो धमग जि अपनी पूरी ऊूंचाइयोूं पर पहुूं चा तो उसने शरीर िो इल्यू जन और माया िह कदया, कि वह
है ही नही;ूं आत्मा ही सत्य है , शरीर भ्म है । और कवज्ञान जि अपनी ऊूंचाइयोूं पर पहुूं चा तो उसने िह कदया कि
आत्मा तो एि झूठ, एि असत्य है , शरीर ही सि िुछ है । यह भ्ाूं कत आत्मा और शरीर िो अकनवायग रूप से
कवरोधी तत्वोूं िी तरह मानने से हुई।

अि मैंने सात शरीरोूं िी िात िही। ये सात शरीर..... अर्र पहिा शरीर हम भ कति शरीर मान िें और
अूंकतम शरीर आक्तत्मि मान िें , और िीच िे पाूं च शरीरोूं िो छोड़ दें , तो इनिे िीच से तु नही ूं िन सिेर्ा। ऐसे ही
जैसे कजन सीकढ़योूं से चढ़िर आप आए हैं , ऊपर िी सीढ़ी िचा िें और पहिी सीढ़ी िचा िें नीचे िी, और िीच
िी सीकढ़योूं िो छोड़ दें , तो आपिो िर्ेर्ा कि पहिी सीढ़ी िहाूं और दू सरी सीढ़ी िहाूं ! िीच में खाई हो
जाएर्ी। अर्र आप सारी सीकढ़योूं िो दे खें तो पहिी सीढ़ी भी आक्तखरी सीढ़ी से जुड़ी है । और अर्र ठीि से दे खें
तो आक्तखरी सीढ़ी पहिी सीढ़ी िा ही आक्तखरी कहस्सा है ; और पहिी सीढ़ी आक्तखरी सीढी िा पहिा कहस्सा है ।

परमाण ऊजाओ से भी सू क्ष्म ईथररक ऊजाओ :

तो जि पूरे सात शरीरोूं िो हम समझेंर्े, ति पहिे और दू सरे शरीर में जोड़ िनता है । क्ोूंकि पहिा
शरीर है भ कति शरीर, किकजिि िॉडी, दू सरा शरीर है ईथररि िॉडी, ईथर, भाव शरीर। वह भ कति िा ही
सू क्ष्मतम रूप है । वह अभ कति नही ूं है ,वह भ कति िा ही सू क्ष्मतम रूप है —इतना सू क्ष्मतम कि भ कति उपाय
भी उसे पिड़ने में अभी ठीि से समथग नही ूं हो पाते । िेकिन अि भ कतिवादी इस िात िो इनिार नही ूं िरता
है कि भ कति िा सू क्ष्मतम रूप िरीि—िरीि अभ कति हो जाता है । अि जैसे आज कवज्ञान िहता है कि
अर्र हम पदाथग िो तोड़ते चिे जाएूं तो जो अूंकतम, पदाथग िे कवश्ले षण पर हमें कमिेंर्े—इिेक्ङरान, वे अभ कति
हो र्ए, वे इिैटीररयि हो र्ए हैं ; क्ोूंकि वे कसिग कवदि् युत िे िण हैं , उनमें पदाथग और सब्सटें स जैसा िुछ भी
नही ूं िचा, कसिग एनजी और ऊजाग िच रही है । इसकिए िड़ी अदभुत घटना घटी है कपछिे तीस वषों में कि जो
कवज्ञान यह िात स्वीिार िरिे चिा था कि पदाथग ही सत्य है , वह कवज्ञान इस नतीजे पर पहुूं चा है कि पदाथग तो
किििुि है ही नही,ूं एनजी और ऊजाग ही सत्य है , और पदाथग जो है वह एनजी िा, ऊजाग िा तीव्र घूमता हुआ
रूप है , इसकिए भ्म पै दा हो रहा है ।

एि पूंखा हमारे ऊपर चि रहा है । यह पूंखा इतने जोर से चिाया जा सिता है कि इसिी तीन
पूंखुकड़याूं हमें कदखाई पडनी िूंद हो जाएूं । और जि इसिी तीन पूंखुकड़याूं हमें कदखाई पड़नी िूंद हो जाएूं र्ी, तो
पूंखा पूंखुकड़याूं न मािूम होिर, टीन िा एि र्ोि चक्कर घूम रहा है , ऐसा मािूम होर्ा। और तीनोूं पूं खुकड़योूं िे
िीच िी जो खािी जर्ह है वह भर जाएर्ी, वह खािी नही ूं रह जाएर्ी; क्ोूंकि तीन पूंखुकड़याूं कदखाई नही ूं
पड़े र्ी।

असि में, पूंखुकड़याूं इतनी ते जी से घूम सिती हैं कि इसिे पहिे कि एि पूंखुड़ी हटे एि जर्ह से और
हमारी आूं ख से उसिा प्रकतकिूंि कमटे , उसिे पहिे दू सरी पूंखुड़ी उसिी जर्ह आ जाती है ; प्रकतकिूंि पहिा िना
रहता है और दू सरा उसिे ऊपर आ जाता है । इसकिए िीच िी जो खािी जर्ह है वह हमें कदखाई नही ूं पड़ती।
यह पूंखा इतनी ते जी से भी घुमाया जा सिता है कि आप इसिे ऊपर मजे से िैठ सिें और आपिो पता न चिे
कि नीचे िोई चीज िदि रही है । अर्र दो पूंखुकडयोूं िे िीच िी खािी जर्ह इतनी ते जी से भर जाए कि एि
पूंखुड़ी आपिे नीचे से हटे , आप इसिे पहिे कि खािी जर्ह में से कर्रे , दू सरी पूंखुड़ी आपिो सम्हाि िे , तो
आपिो दो पूंखुकड़योूं िे िीच िा अूंतर पता नही ूं चिेर्ा। यह र्कत िी िात है ।

अर्र ऊजाग तीव्र र्कत से घूमती है तो हमें पदाथग मािूम होती है । इसकिए वै ज्ञाकनि आज कजस एटाकमि
एनजी पर सारा िा सारा कवस्तार िर रहा है , उस एनजी िो किसी ने दे खा नही ूं है , कसिग उसिे इिेक्ङि् स, उसिे
पररणाम भर दे खे हैं । वह मू ि अणु िी शक्तक्त किसी ने दे खी नही ूं है , और िोई िभी दे खेर्ा भी, यह भी अि
सवाि नही ूं है । िेकिन उसिे पररणाम कदखाई पड़ते हैं ।

ईथररि िॉडी िो अर्र हम यह भी िहें कि वह मूि एटाकमि िॉडी है , तो िोई हजग नही ूं है । उसिे
पररणाम कदखाई पड़ते हैं । ईथररि िॉडी िो किसी ने दे खा नही ूं है , कसिग उसिे पररणाम कदखाई पड़ते हैं ।
िेकिन उन पररणामोूं िी वजह से वह है , यह स्वीिार िर िेने िी जरूरत पड़ जाती है । यह जो दू सरा शरीर
है , यह पहिे भ कति शरीर िा ही सू क्ष्मतम रूप है ; इसकिए इन दोनोूं िे िीच िोई सीढ़ी िनाने में िकठनाई नही ूं
है । ये दोनोूं एि तरह से जु ड़े ही हुए हैं —एि स्थूि है जो कदखाई पड जाता है ,दू सरा सू क्ष्म है इसकिए कदखाई नही ूं
पड़ता।

ईथररक ऊजाओ से भी सू क्ष्म एस्टर ि ऊजाओ :

ईथररि िॉडी िे िाद तीसरा शरीर है , कजसे हमने एस्टर ि िॉडी, सू क्ष्म शरीर िहा। वह ईथर िा भी
सू क्ष्मतम रूप है । अभी कवज्ञान उस पर नही ूं पहुूं चा है । अभी कवज्ञान इस खयाि पर तो पहुूं च र्या है कि अर्र
पदाथग िो हम कवश्लेषण िरें , एनाकिकसस िरें और तोड़ते चिे जाएूं , तो अूंत में ऊजाग िचती है । उस ऊजाग िो
हम ईथर िह रहे हैं । अर्र ईथर िो भी तोड़ा जा सिे और उसिे भी सू क्ष्मतम अूंश िनाए जा सिें , तो जो
िचेर्ा वह एस्टर ि है —सू क्ष्म शरीर है वह। वह सू क्ष्म िा भी सू क्ष्म रूप है ।

अभी कवज्ञान वहा नही ूं पहुूं चा, िेकिन पहुूं च जाएर्ा। क्ोूंकि िि वह भ कति िो स्वीिार िरता
था, आणकवि िो स्वीिार नही ूं िरता था। िि वह िहता था पदाथग ठोस चीज है ; आज वह िहता है . ठोस जैसी
िोई चीज ही नही ूं है ; जो भी है , सि र्ैर—ठोस है , नॉन—साकिड हो र्या सि। यह दीवाि भी जो हमें इतनी ठोस
कदखाई पड़ रही है , ठोस नही ूं है ; यह भी पोरस है , इसमें भी छे द हैं , और चीजें इसिे आर—पार जा रही हैं । किर
भी हम िहें र्े कि छे दोूं िे आसपास, कजनिे िीच छे द हैं , वे तो िम से िम ठोस अणु होूंर्े! वे भी ठोस अणु नही ूं
हैं । एि—एि अणु भी पोरस है । अर्र हम एि अणु िो िड़ा िर सिें तो जमीन और चाूं द और तारे और सू रज
िे िीच कजतना िासिा है , उतना अणु िे िणोूं िे िीच िासिा है । अर्र उसिो इतना िड़ा िर सिें तो
िासिा इतना ही हो जाएर्ा।

किर वे जो िासिे िो भी जोड़नेवािे अणु हैं , हम िहें र्े, िम से िम वे तो ठोस हैं ! िेकिन कवज्ञान
िहता है , वे भी ठोस नही ूं हैं , वे कसिग कवदि् युत िण हैं । िण भी अि कवज्ञान मानने िो राजी नही ूं है ; क्ोूंकि िण
िे साथ पदाथग िा पुराना खयाि जुड़ा हुआ है । िण िा मतिि होता है . पदाथग िा टु िड़ा। वे िण भी नही ूं
हैं , क्ोूंकि िण तो एि जैसा रहता है । वे पूरे वक्त िदिते रहते हैं । िहर िी तरह हैं , िण िी तरह नही ूं। जैसे
पानी में एि िहर उठी, जि ति आपने िहा कि िहर उठी, ति ति वह िुछ और हो र्ई। जि आपने
िहा, वह रही िहर! ति ति वह िुछ और हो र्ई। क्ोूंकि िहर िा मतिि ही यह है कि वह आ रही है , जा
रही है । िेकिन अर्र हम िहर भी िहें तो भी पानी िी िहर एि भ कति घटना है ।

इसकिए कवज्ञान ने एि नया शब्द खोजा है , जो कि िभी था नही ूं आज से तीस साि पहिे , वह है िाूं टा।
अभी कहूं दी में उस शब्द िे किए िहना मु क्तिि है । इसकिए िहना मुक्तिि है , जैसे कहूं दी िे पास शब्द है ब्रह्म
और अूंग्रेजी में िहना मुक्तिि है ; क्ोूंकि िभी जरूरत पड़ र्ई थी िुछ अनुभव िरनेवािे िोर्ोूं िो, ति यह
शब्द खोज किया र्या था। पकश्चम उस जर्ह नही ूं पहुूं चा िभी, इसकिए इस शब्द िी उन्ें िभी जरूरत नही ूं
पड़ी। इसकिए धमग िी िहुत सी भाषा िे शब्द पकश्चम िो सीधे िे ना पड़ते हैं —जैसे ओमि्। उसिा िोई अनुवाद
दु कनया िी किसी भाषा में नही ूं हो सिता। वह िभी किन्ी ूं आध्याक्तत्मि र्हराइयोूं में अनु भव िी र्ई िात है ।
उसिे किए हमने एि शब्द खोज किया था। िे किन पकश्चम िे पास उसिे किए िोई समाूं तर शब्द नही ूं है कि
उसिा अनुवाद किया जा सिे।

ऐसे ही 'िाूं टा' पकश्चम िे कवज्ञान िी िहुत ऊूंचाई पर पाया र्या शब्द है कजसिे किए दू सरी भाषा में
िोई शब्द नही ूं है । िाूं टा िा अर्र हम मतिि समझना चाहें , तो िाूं टा िा मतिि होता है . िण और तरूं र् एि
साथ। इसिो िसीव िरना मुक्तिि हो जाएर्ा। िोई चीज िण और तरूं र् एि साथ! िभी वह तरूं र् िी तरह
व्यवहार िरता है और िभी िण िी तरह व्यवहार िरता है — और िोई भरोसा नही ूं उसिा कि वह वैसा
व्यवहार िरे ।

पदाथओ के सू क्ष्मतम ऊजाओ कणोां में चेतना के िक्षण:

पदाथग हमेशा भरोसे योग्य था, पदाथग में एि सटें न्टी थी। िेकिन वे जो अणु ऊजाग िे आक्तखरी िण कमिे
हैं , वे अनसटें न हैं , उनिी िोई कनश्चयात्मिता नही ूं है ; उनिे व्यवहार िो पक्का तय नही ूं किया जा सिता।
इसकिए पहिे कवज्ञान िहुत सटें न्टी पर खड़ा था; वह िहता था, हर चीज कनकश्चत है । अि वैज्ञाकनि उतने दावे से
नही ूं िह सिता, हर चीज कनकश्चत है । क्ोूंकि वह जहाूं पहुूं चा है , वही ूं उसिो पता चिा है कि कनकश्चत होना िहुत
ऊपर—ऊपर है , भीतर िहुत र्हरा अकनश्चय है ।

और एि िड़े मजे िी िात है कि अकनश्चय िा मतिि क्ा होता है ?

जहाूं अकनश्चय है वहाूं चेतना होनी चाकहए, नही ूं तो अकनश्चय नही ूं हो सिता। अनसटें न्टी जो है वह
िाूं शसनेस िा कहस्सा है ; सटें न्टी जो है वह मैटर िा कहस्सा है । अर्र हम इस िमरे में एि िुसी िो छोड़
जाएूं , तो ि टिर हमिो वह वही ूं कमिेर्ी जहाूं थी। िेकिन एि िच्चे िो हम इस िमरे में छोड़ जाएूं , तो वह वही ूं
नही ूं कमिे र्ा जहाूं था। उसिे िाित अनसटें न्टी रहे र्ी कि अि वह िहाूं है और क्ा िर रहा है । िुसी िे िाित
हम सटें न हो सिते हैं कि वह वही ूं है जहाूं थी। पदाथग िे िाित कनकश्चत हुआ जा सिता है , चेतना िे िाित
कनकश्चत नही ूं हुआ जा सिता।

तो कवज्ञान ने कजस कदन यह स्वीिार िर किया कि अणु िा जो आक्तखरी कहस्सा है , उसिे िाित हम
कनकश्चत नही ूं हो सिते कि वह िैसा व्यवहार िरे र्ा, उसी कदन—कवज्ञान िो अभी पता नही ूं है साि—उसी कदन
यह िात स्वीिृत हो र्ई कि वह पदाथग िा जो आक्तखरी कहस्सा है , उसमें चेतना िी सूं भावना स्वीिृत हो र्ई है ।

अनसटें न्टी चेतना िा िक्षण है । जड़ पदाथग अकनकश्चत नही ूं हो सिता। ऐसा नही ूं है कि आर् िा मन हो
तो जिाए, और मन हो तो न जिाए। ऐसा नही ूं है कि पानी िी तिीयत हो तो नीचे िहे , और पानी िी तिीयत हो
तो ऊपर िहे । ऐसा नही ूं है कि पानी स कडग्री पर र्मग होना चाहे तो स पर हो, अस्सी पर होना चाहे तो अस्सी पर
हो। नही,ूं पदाथग िा व्यवहार सु कनकश्चत है । िेकिन जि हम इन सििे भीतर प्रवेश िरते हैं , तो वे जो आक्तखरी
कहस्से कमिते हैं पदाथग िे, वे अकनकश्चत हैं ।

इसे हम ऐसा भी समझ सिते हैं कि समझ िें कि हम िूं िई िे िाित अर्र तय िरना चाहें कि रोज
कितने आदमी मरते हैं , तो तय हो जाएर्ा, िरीि—िरीि तय हो जाएर्ा। अर्र एि िरोड़ आदमी हैं , तो साि
भर िा कहसाि िर्ाने से हमिो पता चि सिता है कि रोज कितने आदमी मरते हैं । और वह भकवष्यवाणी
िरीि—िरीि सही होर्ी। थोड़ी—िहुत भूि हो सिती है । अर्र हम पूरे पचास िरोड़ िे मुम्ऻ िे िाित
कवचार िरें तो भूि और िम हो जाएर्ी, सटें न्टी और िढ़ जाएर्ी। अर्र हम सारी दु कनया िे िाित तय िरें तो
सटें न्टी और िढ़ जाएर्ी, हम तय िर सिते हैं कि इतने आदमी रोज मरते हैं । िेकिन अर्र हम एि आदमी िे
िाित तय िरने जाएूं कि यह िि िरे र्ा, तो सटें न्टी िहुत िम हो जाएर्ी। कजतनी भीड़ िढ़ती है उतना
मैटीररयि हो जाती है चीज, कजतना इूं कडकवजुअि होता है उतनी िाूं शस हो जाती है ।

असि में, एि पत्थर िा टु िड़ा भीड़ है िरोड़ोूं अणु ओूं िी, इसकिए उसिे िाित हम तय हो सिते हैं ।
और जि हम नीचे प्रवेश िरते हैं और एि अणु िो पिड़ते हैं , तो वह इूं कडकवजुअि है । उसिे िाित तय होना
मुक्तिि हो जाता है , उसिा व्यवहार वह खु द ही तय िरता है । तो पूरे पत्थर िे िाित हम िह सिते हैं कि यह
यही ूं कमिे र्ा। िेकिन इस पत्थर िे भीतर जो अणु ओूं िा व्यक्तक्तत्व जो था, वह वही ूं नही ूं कमिे र्ा। जि हम
ि टिर आएूं र्े , वह सि िदि चु िा होर्ा। उसने सि जर्ह िदि िी होूंर्ी, वह यात्रा िर चुिा होर्ा।

परमाणओां के सू क्ष्मतर ति:

पदाथग िी र्हराई में उतरिर अकनश्चय शु रू हो र्या है । इसकिए अि कवज्ञान सटें न्टी िी िात न िरिे
प्रोिेकिकिटी िी िात िरने िर्ा है ; वह िहता है , इसिी सूं भावना ज्यादा है िजाय उसिे। अि वह ऐसा नही ूं
िहता कि ऐसा ही होर्ा। िड़े मजे िी िात है कि कवज्ञान िी तो सारी दावेदारी जो थी, वह उसिी कनश्चयात्मिता
पर थी—कि वह जो भी िहता है वह कनकश्चत है कि ऐसा होर्ा। अि कवज्ञान िी जो र्हरी खोज है , उसने पैर
डर्मर्ा कदए हैं । और उसिा िारण है । उसिा िारण यह है कि वह किकजिि से ईथररि पर चिे र्ए
हैं , कजसिा उनिो अूंदाज नही ूं है । असि में , वे इस भाषा िो स्वीिार नही ूं िरते , इसकिए उनिो ति ति
अूंदाज भी नही ूं हो सिता कि वे किकजिि से हटिर ईथररि पर पहुूं च र्ए हैं , वे पदाथग में भी दू सरे शरीर पर
पहुूं च र्ए हैं । और दू सरे शरीर िी अपनी सूं भावनाएूं हैं । िे किन पहिे शरीर और दू सरे शरीर िे िीच िोई खािी
जर्ह नही ूं है । तीसरा जो एस्टर ि शरीर है , वह और भी सू क्ष्म है , वह सू क्ष्म िा भी सू क्ष्म है । वह ईथर िे भी अर्र
हम अणु िना सिें, जो अभी िहुत मुक्तिि है , क्ोूंकि अभी—अभी तो हम मुक्तिि से किकजक्स में अणु पर
पहुूं च पाए हैं , अभी हम पदाथग िे अणु िना पाए हैं , परमाणु िना पाए हैं , अभी ईथर िे किए िहुत वक्त िर्
सिता है । िे किन कजस कदन हम ईथर िे अणु िना सिें , उस कदन हमें पता चिे र्ा कि वे अणु जो हैं , वे उसिे
कपछिे आर्ेवािे शरीर िे अणु कसद्ध होूंर्े—एस्टर ि िे।

असि में, किकजिि िो जि हमने तोड़ा तो उसिे अणु ईथररि कसद्ध हुए हैं , ईथर िो हम तोड़ें र्े तो
उसिे अणु एस्टर ि कसद्ध होूंर्े , सू क्ष्म िे कसद्ध होूंर्े। ति उनिे िीच एि जोड़ कमि जाएर्ा। ये तीन शरीर तो
िहुत स्पष्ट जुड़े हुए हैं । इसकिए प्रेतात्माओूं िे कचत्र किए जा सिे हैं ।

सू क्ष्म शरीरोां की शब्धियाां :

प्रेतात्मा िे पास भ कति शरीर नही ूं होता, ईथररि िॉडी से शु रू होता है उसिा पदाग जो है । प्रेतात्माओूं
िे कचत्र किए जा सिे हैं , कसिग इसी वजह से कि ईथर भी अर्र िहुत िूंडें स्ट हो जाए, तो िहुत सें कसकटव प्ले ट
उसे पिड़ सिती है । और ईथर िे साथ एि सु कवधा है कि वह इतनी सू क्ष्म है इसकिए िहुत मनस से प्रभाकवत
होती है । अर्र एि प्रेत यह चाहे कि मैं यहाूं प्रिट हो जाऊूं , तो वह अपनी ईथररि िॉडी िो िूंडें स्ट िर
िेर्ा, सघन िर िे र्ा। वे अणु जो दू र—दू र हैं , पास सरि आएूं र्े , और उसिी एि रूप—रे खा िन जाएर्ी। उस
रूप—रे खा िा कचत्र किया जा सिा है , उस रूप—रे खा िा कचत्र पिड़ा जा सिा है ।

यह जो दू सरा हमारा ईथर िा िना हुआ शरीर है , यह हमारे भ कति शरीर से िही ूं ज्यादा मन से
प्रभाकवत हो सिता है । भ कति शरीर भी हमारे मन से प्रभाकवत होता है , िेकिन उतना नही ूं। कजतना सू क्ष्म होर्ा
उतना मन से प्रभाकवत होने िर्ेर्ा,उतने मन िे िरीि हो जाएर्ा। एस्टर ि शरीर तो और भी ज्यादा मन से
प्रभाकवत होता है । इसकिए एस्टर ि टर े वेकिर् सूं भव हो जाती है । एि आदमी इस िमरे में सोिर भी अपनी एस्टर ि
िॉडी से दु कनया िे किसी भी कहस्से में हो सिता है । इसकिए ये जो िहाकनयाूं िहुत िार सु नी होूंर्ी कि एि
आदमी दो जर्ह कदखाई पड़ र्या, तीन जर्ह कदखाई पड़ र्या, इसमें िोई िकठनाई नही ूं है । उसिा भ कति
शरीर एि जर्ह होर्ा, उसिा एस्टर ि शरीर दू सरी जर्ह हो सिता है । इसमें अड़चन नही ूं है , यह कसिग थोड़े से
ही अभ्यास िी िात है और आपिा शरीर दू सरी जर्ह प्रिट हो सिता है ।

कजतने हम भीतर जाते हैं , उतनी मन िी शक्तक्त िढ़ती चिी जाती है ; कजतने हम िाहर आते हैं , उतनी
मन िी शक्तक्त िम होती चिी जाती है । ऐसा ही जै से कि हम एि दीया जिाए और उस दीये िे ऊपर िाूं च िा
एि ढक्कन ढाूं ि दें ; अि दीया उतना ते जस्वी नही ूं मािूम होर्ा। किर एि दू सरा ढक्कन और ढाूं ि दें ; अि
दीया और भी िम ते जस्वी मािूम होर्ा। किर हम एि ढक्कन और ढाूं ि दें , और हम सात ढक्कन ढाूं ि दें ; तो
सातवें ढक्कन िे िाद दीये िी िहुत ही िम रोशनी पहुूं च पाएर्ी। पहिे ढक्कन िे िाद ज्यादा पहुूं चती
थी, दू सरे िे िाद उससे िम, तीसरे पर और िम, सातवें पर िहुत धीमी और धू कमि हो जाएर्ी, क्ोूंकि सात
पदों िो पार िरिे आएर्ी।

भौजतक ऊजाओ का ही सू क्ष्मतम रूप मनोमय ऊजाओ :

तो हमारी जो जीवन—ऊजाग िी शक्तक्त है , वह शरीर ति आते —आते िहुत धू कमि हो जाती है । इसकिए
शरीर पर हमारा उतना िािू नही ूं मािूम होता। िेकिन, अर्र िोई भीतर प्रवेश िरना शु रू िरे , तो शरीर पर
उसिा िािू िढ़ता चिा जाएर्ा;कजस मात्रा में भीतर प्रवेश होर्ा, उस मात्रा में शरीर पर भी िािू िढ़ता चिा
जाएर्ा।

यह जो तीसरा शरीर है एस्टर ि, यह भी...... भ कति िा सू क्ष्मतम शरीर है ईथररि, ईथररि िा सू क्ष्मतम
कहस्सा है एस्टर ि। अि च था शरीर है मेंटि।

अि ति हम सििो यही खयाि था कि माइूं ड िुछ और िात है पदाथग से , माइूं ड और मैटर अिर् िात
है । असि में,ऐसी पररभाषा िरने िा उपाय ही नही ूं था। अर्र किसी से हम पूछें कि मैटर क्ा है ? तो िहा जा
सिता है : जो माइूं ड नही ूं है । और माइूं ड क्ा है ? तो िहा जा सिता है . जो मैटर नही ूं है । िािी और िोई
पररभाषा है भी नही ूं। इसी तरह हम सोचते रहे हैं इन दोनोूं िो अिर् िरिे। िेकिन अि हम जानते हैं कि
माइूं ड जो है , वह भी मैटर िा ही सू क्ष्मतम कहस्सा है —या इससे उिटा भी हम िह सिते हैं कि कजसे हम मैटर
िहते हैं , वह माइूं ड िा ही िूंडें स्त, सघन हो र्या कहस्सा है ।

अिग— अिग जिचारोां की अिग— अिग तरां ग रचना:

एस्टर ि िा भी अर्र अणु टू टे र्ा तो वे माइूं ड िे थॉट वेि िन जाएूं र्े। अि िाूं टा और थॉट वेि में िड़ी
कनिटता है । कवचार, अि ति नही ूं समझा जाता था कि कवचार भी िोई भ कति अक्तस्तत्व रखता है । िेकिन जि
आप एि कवचार िरते हैं , तो आपिे आसपास िी तरूं र्ें िदि जाती हैं ।

अि यह िहुत मजे िी िात है न िेवि कवचार िी, िक्तम्ऻ एि—एि शब्द िी भी अपनी वेविेंथ
है , अपनी तरूं र् है । अर्र आप एि िाूं च िे ऊपर रे त िे िण किछा दें , और िाूं च िे नीचे से जोर से एि शब्द
आवाज िरें , जोर से िहें — ओमि्! तो उस िाूं च िे ऊपर रे त पर अिर् तरह िी वेल्स िन जाएूं र्ी। और आप
िहें —राम! तो अिर् तरह िी वेब्स िनेंर्ी। और आप एि भिी र्ािी दें तो अिर् तरह िी वे ि िनें र्ी।

और आप एि िड़ी है रानी िी िात में पड़ जाएूं र्े कि कजतना भिा शब्द होर्ा, उतनी िुरूप ऊपर वेब्स
िनेंर्ी; और कजतना सुूं दर शब्द होर्ा, उतनी सुूंदर वेब्स होूंर्ी, उतना पैटनग होर्ा उनमें ; कजतना भिा शब्द
होर्ा, उतना पैटनग नही ूं होर्ा,अनाकिगि होर्ा। शब्द िा भी.. .इसकिए िहुत हजारोूं वषग ति शब्द िे किए िड़ी
खोजिीन हुई कि ि न सा शब्द सुूं दर तरूं र्ें पैदा िरता है , ि न सा शब्द कितना वजन रखता है दू सरे िे हृदय
ति चोट पहुूं चाने में।

िेकिन शब्द तो प्रिट हो र्या कवचार है , अप्रिट शब्द भी अपनी ध्वकनयाूं रखता है —कजसिो हम
कवचार िहते हैं , थॉट िहते हैं । जि आप सोच रहे हैं िुछ, ति भी आपिे चारोूं तरि कवशे ष प्रिार िी ध्वकनयाूं
िैिनी शु रू हो जाती हैं , कवशे ष प्रिार िी तरूं र्ें आपिो घेर िेती हैं ।

इसकिए िहुत िार आपिो ऐसा िर्ता है कि किसी आदमी िे पास जािर आप अचानि उदास हो
जाते हैं । अभी उसने िुछ िहा भी नही ;ूं हो सिता है वह ऐसे हूं स ही रहा हो आपिो कमििर; िेकिन किर भी
िोई उदासी आपिो भीतर से पिड़ िेती है । किसी आदमी िे पास जािर आप िहुत प्रिुक्तल्रत हो जाते हैं ।
किसी िमरे में प्रवेश िरते से ही आपिो िर्ता है कि आप िुछ भीतर िदि र्ए; िुछ पकवत्रता पिड़ िेती
है , अपकवत्रता पिड़ िेती है । किसी क्षण में िही ूं िोई शाूं कत पिड़ िेती है और िही ूं िोई अशाूं कत छू िेती
है , कजसिो आपिो समझना मुक्तिि हो जाता है कि मैं तो अभी अशाूं त नही ूं था, अचानि यह अशाूं कत मन में
क्ोूं उठ आई!

आपिे चारोूं तरि कवचारोूं िी तरूं र्ें हैं , और वे तरूं र्ें च िीस घूंटे आपमें प्रवेश िर रही हैं । अभी तो एि
फ्रेंच वैज्ञाकनि ने एि छोटा सा यूंत्र िनाया जो कवचार िी तरूं र्ोूं िो पिड़ने में सिि हुआ है । उस यूंत्र िे पास
जाते से ही वह िताना शु रू िर दे ता है कि यह आदमी किस तरह िे कवचार िर रहा है ; उस पर तरूं र्ें पिड़नी
शु रू हो जाती हैं । अर्र एि ईकडयट िो, जड़िुक्तद्ध आदमी िो िे जाया जाए तो उसमें िहुत िम तरूं र्ें पिडती
हैं , क्ोूंकि वह कवचार ही नही ूं िर रहा; अर्र एि िहुत प्रकतभाशािी आदमी िो िे जाया जाए तो वह पूरा िा
पूरा यूंत्र िूंपन िेने िर्ता है , उसमें इतनी तरूं र्ें पिड़ने िर्ती हैं ।

तो कजसिो हम मन िहते हैं , वह एस्टर ि िा सू क्ष्म िा भी सू क्ष्म है । कनरूं तर भीतर हम सू क्ष्म से सू क्ष्म होते
चिे जाते हैं । अभी कवज्ञान ईथररि ति पहुूं च पाया है । अभी भी उसने उसिो ईथररि नही ूं िहा है , उसिो
एटाकमि िह रहा है , पारमाकणि िह रहा है , ऊजाग , एनजी िह रहा है ; िेकिन वह दू सरे शरीर पर उतर र्या
है —सत्य िे दू सरे शरीर पर वह उतर र्या है । तीसरे शरीर पर उतरने में िहुत दे र नही ूं िर्ेर्ी, वह तीसरे शरीर
पर उतर जाएर्ा; उतरने िी जरूरतें पैदा हो र्ई हैं ।

च थे शरीर पर भी िहुत दू सरी कदशाओूं से िाम चि रहा है , क्ोूंकि मन िो अिर् ही समझा जाता
था, इसकिए िुछ वैज्ञाकनि मन पर अिर् से ही िाम िर रहे हैं , वे शरीर से िाम ही नही ूं िर रहे । उन्ोूंने च थे
शरीर िे सूं िूंध में िहुत सी िातोूं िा अनुभव िर किया है । अि जैसे, हम सि एि अथग में टर ाूं समीटसग हैं , और
हमारे कवचार हमारे चारोूं तरि कविीणग हो रहे हैं । मैं आपसे जि नही ूं भी िोि रहा हूं ति भी मेरा कवचार आप
ति जा रहा है ।

जिचार—सां प्रेषण पर खोजें:


अभी रूस में इस सूं िूंध में िािी दू र ति िाम हुआ है , और एि वैज्ञाकनि ियादे व ने एि हजार मीि
दू र ति कवचार िा सूं प्रेषण किया है । वह मास्को में िैठा है और एि हजार मीि दू र दू सरे आदमी िो कवचार िा
सूं प्रेषण िर रहा है । ठीि वैसे ही जैसे रे कडयो से टर ाूं सकमशन होता है , ऐसे ही अर्र हम सूं िल्पपूवगि एि कदशा में
अपने कचि िो िेंकद्रत िरिे किसी कवचार िो तीव्रता से सूं प्रेकषत िरें , तो वह उस कदशा में पहुूं च जाता है ; और
अर्र दू सरी तरि भी माइूं ड ररसीव िरने िो, ग्राहि होने िो तै यार हो—उसी क्षण में, उसी कदशा में अपने मन
िो िेंकद्रत िरिे खु िा हो और स्वीिार िरने िो राजी हो—तो कवचार सूं प्रेकषत हो जाता है ।

जिचार—सां प्रेषण का एक घरे िू प्रयोग:

इस पर िभी छोटा—मोटा प्रयोर् आप घर में िरिे दे खें तो अच्छा होर्ा। छोटे िच्चे जल्दी से पिड़
िेते हैं , क्ोूंकि अभी उनिी ग्राहिता तीव्र होती है । िमरा िूंद िर िें ; एि छोटे िच्चे िो, िमरे िो अूंधेरा
िरिे दू सरे िोने पर किठा दें ; आप दू सरे िोने पर िैठ जाएूं । और उस िच्चे से िहें कि एि पाूं च कमनट िे किए
तू ध्यान मेरी तरि रखना, मैं तु झसे चुपचाप िुछ िहूं र्ा, वह तू सु नने िी िोकशश िरना और अर्र तु झे सु नाई
पड़ जाए तो िोि दे ना। किर आप एि शब्द पिड़ िें िोई भी—जैसे राम या र्ुिाि— और इस शब्द िो उस
िच्चे िी तरि ध्यान रखिर जोर से अपने भीतर र्ुूंजाने िर्ें , िोिें नही,ूं राम—राम ही र्ुूंजाने िर्ें। एि दो—
तीन कदन में आप पाएूं र्े कि उस िच्चे ने आपिे शब्द िो पिड़ना शु रू िर कदया। ति इसिा क्ा मतिि
हुआ? किर इससे उिटा भी हो सिता है एि दिे ऐसा हो जाए तो आपिो आसानी हो जाएर्ी। किर आप िच्चे
िो किठा सिते हैं और उससे िह सिते हैं कि वह एि शब्द अपने भीतर सोचिर आपिी तरि िेंिे। िेकिन
ति आप ग्राहि हो सिेंर्े , क्ोूंकि आपिा डाउट, आपिा सूं देह कर्र र्या होर्ा। घटना घट सिती है , तो किर
ग्राहिता िढ़ जाती है ।

जनजओरा—कमओ—मि का झड़ जाना:

आपिे और आपिे िच्चे िे िीच तो भ कति जर्त िैिा हुआ है । यह कवचार किसी र्हरे अथों में
भ कति ही होना चाकहए,अन्यथा इस भ कति माध्यम िो पार न िर पाएर्ा।

यह जानिर आपिो है रानी होर्ी कि महावीर ने िमग ति िो भ कति िहा है —किकजिि िहा
है , मैटीररयि िहा है । जि आप क्रोध िरते हैं और किसी िी हत्या िर दे ते हैं , तो आपने एि िमग किया—क्रोध
िा और हत्या िरने िा। महावीर िहते हैं ,यह भी सू क्ष्म अणु ओूं में आपमें कचपि जाता है ; िमग—मि िन जाता
है । यह भी मैटीररयि है । यह भी िोई इिैटीररयि चीज नही ूं है , यह भी मैटर िी तरह पिड़ िेता है आपिो।
और इसकिए महावीर कनजगरा कजसिो िहते हैं , वे कनजगरा िहते हैं , इस िमग—मि से कजस कदन छु टिारा हो
जाए। यह सारा िा सारा जो िमग —अणु आपिे चारोूं तरि जुड़ र्ए हैं , ये कर्र जाएूं । कजस कदन ये कर्र
जाएूं र्े , उस कदन आप शु द्धतम शे ष रह जाएूं र्े ; वह कनजगरा होर्ी।

कनजगरा िा मतिि है िमग िे अणु ओूं िा झड़ जाना। िमग भी...जि आप क्रोध िरते हैं ति आप एि
िमग िर रहे हैं । वह क्रोध भी आणकवि होिर ही आपिे साथ चिता है । इसकिए जि आपिा यह शरीर कर्र
जाता है , ति भी उसिो कर्रने िी जरूरत नही ूं होती; वह दू सरे जन्म में भी आपिे साथ खड़ा हो जाता है , क्ोूंकि
वह अकत सू क्ष्म है ।

तो मेंटि िॉडी जो है , मनस शरीर जो है , वह एस्टर ि िॉडी िा सू क्ष्मतम कहस्सा है । और इसकिए इन चारोूं
में िही ूं भी िोई खािी जर्ह नही ूं है , ये सि एि—दू सरे िे सू क्ष्म होते र्ए कहस्से हैं । मेंटि िॉडी पर िािी िाम
हुआ है , क्ोूंकि अिर् से मनस—शास्त्र उस पर िाम िर रहा है — और कवशे षिर पैरा—साइिोिाजी उस पर
अिर् से िाम िर रही है , परा—मनोकवज्ञान अिर् से िाम िर रहा है । और मन िे इतने अदभुत खयाि
कवज्ञान िी पिड़ में आ र्ए हैं — धमग िी पिड़ में तो िहुत समय से थे —कवज्ञान िी पिड़ में भी िहुत सी िातें
साि हो र्ई हैं ।

जिचार तरां गोां का प्रभाि पदाथओ पर भी:

अि जैसे एि आदमी है और वह जुआ खे िता है । अि माटिािोूं में ऐसे ढे र आदमी हैं , कजनिो जुए में
हराना मुक्तिि है ;क्ोूंकि वे जो पाूं सा िेंिते हैं , वे जो नूंिर िेंिना चाहते हैं वही िेंि िेते हैं । उनिे पाूं से िदि
दे ने से िोई ििग नही ूं पड़ता। पहिे तो समझा जाता था कि वे पाूं से िुछ चाििाजी से िनाए र्ए हैं कि वे पाूं से
वही ूं कर्र जाते हैं जहाूं वे कर्राना चाहते हैं । िेकिन हर तरह िे पाूं से दे िर, वे जो नूंिर िाना चाहते हैं वही
आूं िड़ा िे आते हैं — आूं ख िूंद िरिे भी िे आते हैं । ति िड़ी मुक्तिि हो र्ई। ति इसिी जाूं च—पड़ताि
िरनी जरूरी हो र्ई कि िात क्ा है !

असि में, उनिा कवचार िा तीव्र सूं िल्प पाूं से िो प्रभाकवत िरता है । वे जो िाना चाहते हैं उसिे तीव्र
सूं िल्प िी धारा से पाूं सोूं िो िेंिते हैं । कवचार िी वे तरूं र्ें उन पाूं सोूं िो उसी आिड़े पर िे आती हैं । अि
इसिा मतिि क्ा हुआ? अर्र कवचार िी तरूं र् एि पाूं से िो िदिती है तो कवचार िी तरूं र् भी भ कति है , नही ूं
तो पाूं से िो नही ूं िदि सिती।

जिचार शब्धि की एक प्रयोगात्मक जाां च:

आप एि छोटा सा प्रयोर् िरें तो आपिे खयाि में आ जाए। चूूंइि कवज्ञान िी िात आप िरते
हैं , इसकिए मैं प्रयोर् िी िात िरता हूं । एि कर्िास में पानी भरिर रख िें और क्त्सरीन या िोई भी कचिना
पदाथग उस कर्िास िे पानी िे ऊपर थोड़ा सा डाि दें कि उसिी एि पतिी धीमी किल्म पानी िे कर्िास िे
ऊपर िैि जाए। एि छोटी आिपीन, किििुि पतिी कि उस किल्म पर तै र सिे , उसिो उसिे ऊपर छोड़
दें । किर िमरे िो सि तरि से िूं द िरिे दोनोूं हाथोूं िो जमीन पर टे ििर आूं खें उस छोटी सी आिपीन पर
र्ड़ा िें। एि पाूं च कमनट चुपचाप िै ठे रहें आूं खें र्ड़ाए हुए, किर उस आिपीन से िहें कि िाएूं घू म जाओ, तो
आिपीन िाएूं घूमेर्ी; किर िहें दाएूं घूम जाओ, तो दाएूं घूमेर्ी; िहें कि रुि जाओ, तो रुिेर्ी; िहें कि चिो, तो
चिेर्ी।

अर्र आपिा कवचार एि आिपीन िो िाएूं घुमा सिता है , दाएूं घुमा सिता है , तो किर एि पहाड़ िो
भी कहिा सिता है । वह जरा िूंिी िात है , िािी ििग नही ूं रह र्या, िुकनयादी ििग नही ूं रह र्या। आपिी
सामर्थ्ग अर्र एि आिपीन िो कहिाती है तो िुकनयादी िात पूरी हो र्ई है । अि यह दू सरी िात है कि पहाड़
िहुत िड़ा पड़ जाए, आप न कहिा पाएूं , िेकिन कहि सिता है पहाड।

िस्तओां द्वारा जिचार तरां गोां का अपशोषण:

हमारे कवचार िी तरूं र् पदाथग िो छूती और रूपाूं तररत िरती है । इसीकिए अर्र आपिे िपड़े िो कदया
जा सिे.....ऐसे िोर् हैं , कजनिो आपिे हाथ िा रूमाि कदया जा सिे, तो आपिे व्यक्तक्तत्व िे सूं िूंध में वे
िरीि—िरीि उतनी ही िातें िता दें र्े कजतना आपिो दे खिर िताया जा सिता था; क्ोूंकि आपिे हाथ िा
रूमाि आपिे कवचार िी तरूं र्ोूं िो अपशोकषत िर जाता है ,आपिा र्हना आपिी तरूं र्ोूं िो अपशोकषत िर
जाता है । और मजा यह है कि वे इतनी सू क्ष्म तरूं र्ें हैं कि एि रूमाि जो कसिूंदर िे हाथ में रहा हो, वह अभी
भी कसिूंदर िे व्यक्तक्तत्व िी खिर दे ता है । वे इतनी सू क्ष्म तरूं र्ें हैं कि उनिो किर िाहर कनििने में िरोड़ोूं वषग
िर् जाते हैं । इसीकिए िब्रें हमने िनानी शु रू िी थी,ूं समाकधयाूं िनानी शु रू िी थी ूं।

जदव्य व्यब्धियोां की तरां गें हजारोां िषों तक प्रभािशीि:

िि मैं ने आपसे िहा था कि इस मुम्ऻ में हम मरे हुए आदमी िो तत्काि जिा दे ते हैं । िे किन सूं न्यासी
िो नही ूं जिाते । मरे हुए आदमी िो इसकिए जिा दे ते हैं कि उसिी आत्मा उसिे आसपास न भटिे। सूं न्यासी
िो इसकिए नही ूं जिाते हैं कि उसिी तो कजूं दा में. ही आत्मा ने आसपास भटिना िूंद िर कदया था; अि उसिे
शरीर से उसिी आत्मा िो िोई खतरा नही ूं है कि वह भटिे। पर उसिे शरीर िो हम िचा िेना चाहते
हैं , क्ोूंकि जो आदमी अर्र तीस वषग ति पकवत्रता िे कवचारोूं में जीया हो, उसिा शरीर हजारोूं—िाखोूं वषग ति
उस तरह िी तरूं र्ोूं िो कविीणग िरता रहे र्ा। और उसिी समाकध अथगपूणग हो जाएर्ी; उसिी समाकध िे
आसपास पररणाम होूंर्े। वह शरीर तो मर र्या, िेकिन वह शरीर इतने कनिट रहा है उस आत्मा िे कि
अपशोकषत िर र्या है िहुत िुछ—जो भी कविीणग हो रहा था, उसे वह अपशोकषत िर र्या है ।

कवचार िी अनूंत सूं भावनाएूं हैं , िेकिन हैं वे सि भ कति। इसकिए जि आप एि कवचार सोचते हैं तो
िहुत ध्यान रखिर सोचना चाकहए। क्ोूंकि उसिी तरूं र्ें , आप नही ूं होूंर्े, ति भी शे ष रहें र्ी। यानी आपिा मर
जाना... आपिी उम्र िहुत िम है िेकिन कवचार इतना सू क्ष्म है कि उसिी उम्र िहुत ज्यादा है । इसकिए
वैज्ञाकनि तो अि इस खयाि पर पहुूं चे हैं कि अर्र जीसस िभी हुए हैं या िृ्ण िभी हुए हैं , तो आज नही ूं िि
हम उनिी कवचार—तरूं र्ोूं िो पिड़ने में समथग हो जाएूं र्े , और यह तय हो सिेर्ा कि िृ्ण ने र्ीता िभी िही
है कि नही ूं िही है । क्ोूंकि वे कवचार—तरूं र्ें जो िृष्ण से कनििी हैं , वे आज भी िोि— िोिातर में किसी
ग्रह, किसी उपग्रह िे पास टिरा रही होूंर्ी।

ऐसे ही, जैसे हम एि िूंिड़ समुद्र में िेंिे, तो जि िूंिड़ कर्रता है तो एि छोटा सा कछद्र, एि छोटा
सा वतुग ि समुद्र िे पानी पर िनेर्ा। किर िूंिड़ तो डूि जाएर्ा, िूंिड़ िी कजूंदर्ी पानी िी सतह पर िहुत
ज्यादा नही ूं है , िूंिड़ िी कजूंदर्ी तो पानी पर छु आ नही ूं कि र्या; िेकिन उस वतुग ि से िूंिड़ िी चोट से जो
तरूं र्ें पैदा हुईूं, वे िैिनी शु रू हो जाएूं र्ी; वे िढ़ती जाएूं र्ी; वह अूंतहीन है उनिा िढ़ाव। आपिी आूं ख से
ओझि हो जाएूं र्ी, िेकिन न मािूम किन दू र तटोूं पर वे अभी भी िढ़ रही होूंर्ी।
जो कवचार िभी भी पै दा हुए हैं — िोिे ही नही ूं र्ए, जो मन में भी पैदा हुए हैं —वे कवचार भी दू र इस
जर्त िे आिाश में ,किन्ी ूं किनारोूं पर अभी भी िढ़ते चिे जा रहे हैं । उनिो पिड़ा जा सिता है । किसी कदन
अर्र मनुष्य िी र्कत तीव्र हो सिी कवज्ञान िी, और उनसे आर्े कनिि सिे, तो उन्ें सु ना जा सिता है ।

अि जैसे समझ िें कि कदल्री से अर्र एि रे कडयो पर रे कडयो वेि िूंिई िे किए खिर भेजती हैं , तो
उसी वक्त थोड़े ही खिर यहाूं आ जाती है जि कदल्री से िी जाती है ! थोड़ा टाइम र्ैप है ; क्ोूंकि ध्वकन िी यात्रा
में समय िर्ता है । कदल्री में तो वह ध्वकन मर चुिी होती है जि िूं िई आती है । वहाूं से तरूं र्ें आर्े कनिि र्ई
होती हैं । कदल्री में वे नही ूं हैं अि। थोड़े ही क्षणोूं िा िासिा पड़ता है , िेकिन क्षण िीच में कर्रते हैं ।

अर्र समझ िें कि न्यू यािग से एि आदमी िो टे िीकवजन पर हम दे ख रहे हैं । तो जि उसिा कचत्र
न्यू यािग में िनता है ,तभी हमें कदखाई नही ूं पड़ता। उसिे कचत्र िनने में और हम ति पहुूं चने में समय िा िासिा
है । यह भी हो सिता है इस समय वह आदमी मर र्या हो, िेकिन हमें वह आदमी कजूंदा कदखाई पड़े र्ा।

हमारी पृथ्वी से भी कवचार िी, कचत्रोूं िी तरूं र्ें अनूंत िोिोूं ति जा रही हैं । अर्र हम उन तरूं र्ोूं िे आर्े
जािर िभी भी उनिो पिड़ सिें, तो वे अभी भी कजूंदा हैं उस अथों में। आदमी मर जाता है , कवचार इतने जल्दी
नही ूं मरता। आदमी िी उम्र िहुत िम है , कवचार िी उम्र िहुत ज्यादा है । और यह भी खयाि रहे कि जो कवचार
हम प्रिट नही ूं िरते , उसिी उम्र और ज्यादा है उस कवचार से जो हम प्रिट िर दे ते हैं ; क्ोूंकि वह और ज्यादा
सू क्ष्म है । जो अप्रिट है , वह और सू क्ष्म है ; उसिी उम्र और ज्यादा है । कजतना सू क्ष्म, उतनी ज्यादा उम्र; कजतना
स्थूि, उतनी िम उम्र।

जिजशि सां गीत— ध्वजनयोां के जिजशि प्रभाि:

ये जो कवचार हैं , ये िहुत तरह से , कजसिो हम भ कति जर्त िह रहे हैं , उसिो प्रभाकवत िर रहे हैं ।
हमें खयाि में नही ूं है । अभी तो वनस्पकत—शास्त्री इस अनुभव पर पहुूं च र्या कि अर्र एि प धे िे पास
प्रीकतपूणग सूं र्ीत िजाया जाए, तो प धा जल्दी िि दे ना शु रू िर दे ता है , जल्दी उसमें िूि आ जाते हैं , िेम सम।
अर्र उसिे पास िुरूप, भिा और नॉइजी सूं र्ीत िजाया जाए, तो म सम भी कनिि जाता है और उसिे िि
नही ूं आते और िूि नही ूं आते । वे तरूं र्ें उसिो छू रही हैं , उसिो स्पशग िर रही हैं । र्ाएूं ज्यादा दू ध दे दे ती हैं
खास सूं र्ीत िे प्रभाव में , खास सूं र्ीत िे प्रभाव में दू ध दे ना िूंद ही िर दे ती हैं । कवचार इससे भी सू क्ष्म हवा पैदा
िर रहा है , उसिे चारोूं तरि तरूं र्ोूं िी एि छाया है । और हर आदमी अपने कवचार िा एि जर्त अपने साथ
िेिर चि रहा है , कजससे पूरे वक्त चीजें कविीणग हो रही हैं ।

जनद्राकाि में मनोमय जगत की िैज्ञाजनक जाां च:

ये जो कविीणग होती हुई किरणें हैं , ये भी भ कति हैं । हमारा माइूं ड कजसे हम िहते हैं , वह मेंटि ही नही ूं
है ; हम कजसे मन िहते हैं , वह मनस ही नही ूं है , वह भ कति िा ही चार सीकढ़याूं छिाूं र् िर्ािर सू क्ष्म रूप है ।
इसकिए िकठनाई नही ूं है कि कवज्ञान वहाूं पहुूं च जाए। िकठनाई नही ूं है , क्ोूंकि उसिी तरूं र्ोूं िो पिड़ा—जाूं चा
जा सिता है ।

जैसे िि ति हमें पता नही ूं चिता था कि आदमी रात में कितना र्हरा सो रहा है , उसिा मनस
कितनी र्हराई में है । अि पता चि जाता है , अि हमारे पास यूंत्र हैं । जैसा कि हृदय िी धड़िन नापने िे यूंत्र
हैं , इसी तरह नी ूंद िी धड़िन नापने िे यूंत्र तै यार हो र्ए हैं । तो रात भर आपिी खोपड़ी पर एि यूंत्र िर्ा रहता
है , वह पूरे वक्त ग्राि िनाता रहता है कि कितनी र्हराई में हो। वह ग्राि िनता रहता है पूरे वक्त कि आदमी
इस वक्त ज्यादा र्हराई में है , इस वक्त िम र्हराई में है । वह पूरे वक्त रात भर िा ग्राि दे ता है कि यह आदमी
कितनी दे र सोया, कितनी दे र सपने दे खे , कितनी दे र अच्छे सपने दे खे, कितनी दे र िुरे सपने दे खे, कितनी दे र
इसिे सपने से क्सुअि थे, कितनी दे र से क्सुअि नही ूं थे , वह सि ग्राि पर दे दे ता है ।

अमेररिा में इस समय िोई दस िे िोरे टरी हैं , कजनमें हजारोूं िोर् रात में पैसा दे िर सु िाए जा रहे
हैं , कजनिी नी ूंद पर िड़ा परीक्षण चि रहा है । क्ोूंकि यह िड़ी है रानी िी िात है कि नी ूंद से हम अपररकचत रह
जाएूं । क्ोूंकि आदमी िी एि कतहाई कजूंदर्ी नी ूंद में खत्म होती है ; छोटी—मोटी घटना नही ूं है नी ूंद। साठ साि
आदमी जीता है , तो िीस साि तो सोता है । तो िीस साि िे इस िड़े कहस्से िो अनजाना छोड़ दे ना— आदमी
िा एि कतहाई अपररकचत रह जाएर्ा। और मजा यह है कि यह जो एि कतहाई, िीस वषग है , अर्र यह न सोए, तो
िािी चािीस वषग िच नही ूं सिता। इसकिए िहुत िेकसि है । अच्छा, किना जार्े सो सिता है आदमी साठ
वषग , िेकिन किना सोए जर् नही ूं सिता। तो ज्यादा र्हरे में और िुकनयादी तो नी ूंद है ।

तो नी ूंद में हम िही ूं और होते हैं , हमारा मनस िही ूं और होता है । िे किन उस मनस िो नापा जा
सिता है । अि उसिे पता िर्ने शु रू हो र्ए हैं कि वह कितनी र्हरी नी ूंद में है । ढे र िोर् हैं , जो िहते हैं कि
हमें सपना नही ूं आता। वे सरासर झूठ िहते हैं ; उनिो पता नही ूं है , इसकिए झूठ िहते हैं ; उन्ें पता नही ूं है ।
आदमी खोजना मुक्तिि है कजसिो सपना न आता हो। िहुत मुक्तिि मामिा है । रात भर सपना आता है । और
आपिो भी खयाि होर्ा कि िभी एि—आध आता है । वह र्ित खयाि है आपिा। मशीन िहती है रात भर
आता है । िेकिन स्भृकत नही ूं रह जाती, आप नी ूंद में होते हैं इसकिए याद नही ूं िनती उसिी। आपिो सपना जो
याद रहता है , वह आक्तखरी रहता है , जि नी ूंद टू टने िे िरीि होती है , ति आपिी स्भृ कत िन जाती है । ि टते हैं
नी ूंद से जि आप, तो आक्तखरी दरवाजे पर नी ूंद िे जो सपना रहता है , वह आपिे खयाि में रह जाता है ; क्ोूंकि
उसिी धीमी सी भनि आपिे जार्ने ति चिी आती है । िे किन र्हरी नी ूंद में जो सपना रहता है , उसिा
आपिो पता नही ूं रहता।

अि र्हरी नी ूंद में आदमी क्ा सपने दे खता है , यह जाूं च िरना जरूरी हो र्या है ; क्ोूंकि वह जो सपने
िहुत र्हराई में दे खता है , वे उसिा असिी व्यक्तक्तत्व होूंर्े। असि में , जार्िर तो हम नििी होते हैं । आमत र
से हम सोचते हैं कि सपने में क्ा रखा है ! िे किन सपना हमारी ज्यादा सच्चाई िो िताता है िजाय हमारे जार्रण
िे, क्ोूंकि जार्रण में हम झूठे आवरण ओढ़ िेते हैं ।

अर्र किसी कदन हम आदमी िी खोपड़ी में एि क्तखड़िी िना सिें , कवूंडो िना सिें, और उसिे सि
सपने दे ख सिें, तो आदमी िी आक्तखरी स्वतूं त्रता चिी जाएर्ी—सपना भी नही ूं दे ख सिेर्ा कहित िे साथ कि
जो दे खना हो वही दे खे। उसमें भी डरा रहे र्ा। वहाूं भी नैकतिता और कनयम और िानून और पुकिसवािा प्रकवष्ट
हो जाएर्ा। वह िहे र्ा सपना जरा.......यह सपना ठीि नही ूं दे ख रहे हो, यह सपना अनै कति है ।

अभी वह स्वतूं त्रता है । आदमी नी ूंद में अभी स्वतूं त्र है । िेकिन िहुत कदन नही ूं रह जाएर्ा; क्ोूंकि अि
नी ूंद पर एनक्रोचमेंट शु रू हो र्या है ।

जनद्रा में बच्चोां को जशजक्षत करना:


जैसे, नी ूंद में कशक्षा दे नी रूस में उन्ोूंने शु रू िी है । स्लीप टीकचूंर् पर िड़ा िाम चि रहा है । क्ोूंकि
जार्ने में िहुत मे हनत िरनी पड़ती है , िच्चा रे कसस्ट िरता है । एि िड़िे िो िुछ कसखाना िड़ा उपद्रव िा
िाम है , क्ोूंकि वह िुकनयादी रूप से इनिार िरता है सीखने से। असि में , हर आदमी सीखने से इनिार
िरता है , क्ोूंकि हर आदमी िु कनयादी रूप से यह मानिर चिता है कि मैं जानता ही हूं । िच्चा भी इनिार
िरता है —कि क्ा कसखा रहे हैं ! वह हजार तरह से इनिार िरता है । हमिो प्रिोभन दे ना पड़ते हैं , परीक्षाओूं
िे पुरस्कार दे ना पड़ते हैं , र्ोल्ड—मेडि िाूं टने पड़ते हैं , प्रकतयोकर्ता पै दा िरनी पड़ती है ,िुखार जर्ाना पड़ता
है , किसी तरह द ड़ा—द डूिर हम उसे कसखा पाते हैं । िेकिन इस िाूं क्तफ्तक्ङ में िहुत समय व्यय होता है । जो
िाम दो घूंटे में सीख सिता है , उसमें दो महीने िर् जाते हैं । तो वे स्लीप टीकचूंर् िी कििर पर चिे र्ए हैं । और
िात साि हो र्ई है कि नी ूंद में पढ़ाया जा सिता है , और िड़ी अच्छी तरह से , क्ोूंकि नी ूंद में िोई रे कसस्टें स
नही ूं है । एि टे प िर्ा रहता है ,और वह रात भर नीद
ूं में भीतर डािता रहता है जो भी िहना है —दो और दो चार
होते हैं , दो और दो चार होते हैं , वह दोहरता रहे र्ा। सु िह उस िच्चे से िकहए, दो और दो कितने होते हैं ? वह
िहे र्ा, चार होते हैं ।

अि यह जो नी ूंद में कवचार डािा जा सिा, यह कवचार तरूं र्ोूं से भी डािा जा सिता है , क्ोूंकि कवचार
िी तरूं र्ें हमारे खयाि में आ र्ई हैं । जैसे कि हमें िि ति खयाि नही ूं था, जैसा हम अि जानते हैं कि
ग्रामोिोन िा रे िॉडग है । उस रे िॉडग पर भाषा रे िॉडग नही ूं है , उस रे िॉडग पर कसिग तरूं र्ोूं िे आघात रे िॉडग हैं ।
और जि सू ई उन तरूं र्ोूं पर वापस दोहरती है तो उन्ी ूं तरूं र्ोूं िो किर पै दा िर दे ती है कजन तरूं र्ोूं से वे आघात
पड़े थे। वहाूं िोई भाषा नही ूं है उस पर, रे िॉडग पर।

जैसा मैंने िहा कि अर्र आप ओमि् िोिेंर्े, तो रे त में एि पैटनग िनता है । वह पैटनग ओमि् नही ूं है ।
िेकिन अर्र आपिो पता है कि ओमि् िोिने से यह पैटनग िनता है , तो किसी कदन इस पैटनग िो ओमि् में िनवटग
किया जा सिता है । यह पैटनग जि िना हो ऊपर, तो इसिे नीचे ओमि् िो पैदा किया जा सिेर्ा, क्ोूंकि यह
पैटनग उसी से िना है ; ये दोनोूं एि चीजें हैं ।

तो अि हमने ग्रामोिोन रे िॉडग िना किया, उसमें वाणी नही ूं है , उसमें कसिग वाणी से पड़े हुए आघात हैं ।
वे आघात किर से सू ई से टक्कर खा िर किर वाणी िन जाते हैं ।

हम आज नही ूं िि, कवचार िे रे िॉडग िना सिेंर्े। कवचार िे आघात पिड़े जाने िर्े हैं , तो रे िॉडग िनने
में िहुत दे र नही ूं िर्ेर्ी। और ति िड़ी अजीि िात हो जाएर्ी। ति यह सूं भव है कि आइूं स्टीन मर जाए, िेकिन
उसिे कवचार िरने िी पूरी प्रकक्रया मशीन में हो, तो आइूं स्टीन अर्र कजूंदा रहता तो आर्े जो सोचता, वह वह
मशीन सोचिर िता सिेर्ी; क्ोूंकि उसिे सारे िे सारे ......उसिे कवचार िे सारे आघात उस मशीन िे पास हैं ।

नी ूंद पिड़ी जा सिी है , स्वप्न पिड़े जा सिे हैं , िेहोशी पिड़ी जा सिी है — और इस मन िे साथ
वैज्ञाकनि रूप से क्ा किया जाए, वह भी पिड़ा जा सिा है । इसकिए वह भी समझ िेना चाकहए।

मनोमय जगत में िैज्ञाजनक हस्तक्षे प की सां भािनाएां :

जैसे कि एि आदमी क्रोध में होता है । तो पुराना हमारा कहसाि यही था कि हम उसिो समझाएूं कि
क्रोध मत िरो, इसिे कसवाय िोई उपाय नही ूं था; समझाएूं कि क्रोध िरोर्े तो नरि जाओर्े , इसिे कसवाय िोई
उपाय नही ूं था। िेकिन वह आदमी अर्र िहे कि हम नरि जाने िो राजी हैं , तो हम असमथग हो जाते थे , ति
उस आदमी िे साथ हम िुछ भी नही ूं िर सिते थे। और वह आदमी िहे , हमें नरि जाने में िहुत मजा आता
है , तो हमारी सारी नैकतिता एिदम व्यथग हो जाती थी, उस आदमी पर िोई वश ही नही ूं था। वह तो नरि से डरे
तभी ति वश था।

इसकिए दु कनया में जैसे ही नरि िा डर र्या, वैसे ही हमारी नैकतिता चिी र्ई; क्ोूंकि अि उससे िोई
डर ही नही ूं रहा है । वे िहते हैं , ठीि है , िहाूं है नरि? हम दे खना ही चाहते हैं एि दिा।

तो नैकतिता पूरी िी पूरी खत्म हो र्ई, क्ोूंकि वह कजस डर पर खड़ी थी वह चिा र्या।

िेकिन कवज्ञान िहता है , इसिी िोई जरूरत ही नही ूं है । कवज्ञान ने अि दू सरे सू त्र खोजे हैं । वे सू त्र ये हैं
कि क्रोध िे किए शरीर में एि कवशे ष रासायकनि प्रकक्रया होनी जरूरी है , क्ोूंकि क्रोध एि भ कति घटना है ।
और जि क्रोध होता है तो शरीर में खास तरह िे रस पैदा होने जरूरी हैं । वे रस रोिे जा सिते हैं , क्रोध िो
रोिने िी क्ा जरूरत है ? और अर्र वे रस रोिे जा सिते हैं तो आदमी क्रोध िरने में असमथग हो जाएर्ा।

अि हम च दह साि िे िड़िे िो समझा रहे हैं . ब्रह्मचयग धारण िरो! िड़िी िो समझा रहे हैं ब्रह्मचयग
धारण िरो! वे धारण नही ूं िरते । उन्ोूंने िभी नही ूं किया। कशक्षा, सि समझाना—िुझाना िोई पररणाम नही ूं
िाता।

कवज्ञान िहता है कि अि इसिी कििर न िरो, क्ोूंकि िुछ ्ैंडि्स हैं कजनसे से क्स पैदा होता है , हम
उन ्ैंडि्स िो ही पच्चीस साि ति रोिे दे ते हैं िढ़ने से । तो से क्स मै्ोररटी ही पच्चीस साि में आएर्ी, आप
ब्रह्मचयग िी कचूंता मत िरो।

खतरनाि है यह िात! क्ोूंकि मन कजस कदन पूरा िा पूरा वै ज्ञाकनि पिड़ में आ जाए, उस कदन हम
उसिा दु रुपयोर् भी िर सिते हैं । क्ोूंकि कवज्ञान िहता है कि जो आदमी ररिेकियस है , उस आदमी िा
रासायकनि िपोजीशन उस आदमी से अिर् होता है जो आथोडाक्स है । जो आदमी क्राूं कत और कवद्रोही कचि िा
है , उस आदमी िे रासायकनि िपोजीशन में और वह आदमी जो परूं परावादी और रूकढ़वादी है , उसिे
रासायकनि िपोजीशन में ििग होता है । ति तो िड़ा खतरनाि है , क्ोूंकि अर्र यह िपोजीशन हमें पता चि
र्या है तो हम कवद्रोही िो कवद्रोही होने से रोि सिते हैं , रूकढ़वादी िो रूकढ़वादी होने से रोि सिते हैं । जेि में
किसी आदमी िो मारने िी जरूरत नही ूं रह जाएर्ी, किसी िो िाूं सी िी सजा दे ने िी जरूरत नही—
ूं सजा ही
दे ने िी जरूरत नही ूं है । क्ोूंकि जि हमें पक्का हो र्या कि एि आदमी चोरी िरता है , और उस चोरी िे किए
ये रासायकनि तत्व अकनवायग हैं , अन्यथा वह चोरी नही ूं िर सिता, तो िोई जरूरत नही ूं उसिो जेि िे जाने
िी, उसिो अस्पताि िे जािर सजगरी िी जा सिती है ; उसिा कवशे ष रस िाहर किया जा सिता है ; या दू सरे
रस डाििर उसिे पहिे रस िो दिाया जा सिता है ; या एूं टीडोट कदया जा सिता है । यह सारा िाम चि रहा
है ।

यह िाम िताता है कि च थे शरीर पर तो प्रवेश में िोई िकठनाई नही ूं रह र्ई है । िकठनाई कसिग एि
रह र्ई है , िकठनाई कसिग एि रह र्ई है कि िहुत िड़े कवज्ञान िा कहस्सा युद्ध िे मामिे में उिझा हुआ
है , इसकिए उस पर पूरे िाम नही ूं हो पाते ,वह र् ण रह जाता है । िेकिन किर भी िहुत िाम चि रहा है , और
िहुत अनूठे िाम चि रहे हैं ।

आध्याब्धत्मक अनभिोां के रासायजनक प्रजतरूप:


अि जैसे कि अल्डु अस हक्सिे िा दावा यह है कि ििीर िो जो हुआ, या मीरा िो जो हुआ, वह
इूं जेक्ान से हो सिता है । इस दावे में थोड़ी सच्चाई है । यह िड़ा सूं घाति दावा है , िेकिन इसमें सच्चाई है ।

अर्र महावीर एि महीना उपवास िरते हैं , और एि महीना उपवास िरिे उनिा मन शाूं त हो जाता
है । उपवास भ कति घटना है , भ कति घटना से अर्र मन शाूं त होता है तो मन भी भ कति है ।

उपवास से होता क्ा है ? एि महीने िे उपवास से शरीर िी पूरी रासायकनि व्यवस्था िदि जाती
है , और तो िुछ होता नही ूं। जो भोजन कमिने चाकहए, वे नही ूं कमि पाते ; जो तत्व शरीर में इिट्ठे हो र्ए थे
ररजवाग यर में , वे सि खत्म हो जाते हैं ;चिी िम हो जाती है ; िुछ जरूरी तत्व िचा किए जाते हैं , र्ैर—जरूरी नष्ट
हो जाते हैं । तो शरीर िा पूरा िा पूरा जो रासायकनि इूं तजाम था महीने भर िे पहिे , वह िदि जाता है ।

कवज्ञान िहता है कि एि महीना परे शान होने िी क्ा जरूरत है ? यह रासायकनि इूं तजाम उसी
अनुपात में अभी िदिा जा सिता है —इसी वक्त! तो अर्र यह रासायकनि इूं तजाम अभी िदि जाएर्ा, तो
महीने भर िाद महावीर िो जो शाूं कत अनु भव हुई, वह आपिो अभी हो जाएर्ी। उसिी िुकनयाद तो वही है ।

अि जैसे मैं ध्यान में िहता हूं कि आप जोर से श्वास िें। मर्र एि घूंटा तीव्र श्वास िेने से होनेवािा क्ा
है ? कसिग आपिे आक्सीजन िा अनुपात िदि जाएर्ा। िेकिन यह आक्सीजन िा अनुपात तो िाहर से िदिा
जा सिता है , इसिो एि घूंटा आपसे मेहनत िरवाना जरूरी नही ूं है । यह तो इस िमरे िी आक्सीजन िा
अनुपात िदििर भी किया जा सिता है कि यहाूं िैठे हुए सारे िोर् शाूं त हो जाएूं , प्रिुक्तल्रत हो जाएूं ।

तो कवज्ञान च थे शरीर पर तो िई तरि से प्रवेश िर र्या है , और रोज प्रवेश िरता जा रहा है ।

अि जैसे कि तु म्हें ध्यान में अनुभूकतयाूं होूंर्ी—सु र्ूंध आएर्ी, रूं र् कदखाई पड़ें र्े—ये सि ध्यान में किना
जाए भी हो सिता है अि! क्ोूंकि कवज्ञान ने यह सि पता िर्ा किया है ठीि से कि जि तु म्हें भीतर रूं र् कदखाई
पड़ते हैं तो तु म्हारे मक्तस्तष्क िा ि न सा कहस्सा सकक्रय होता है ; उसिे सकक्रय होने िी तरूं र्ें कितनी होती हैं ।
समझ िें कि मेरे मक्तस्तष्क िा पीछे िा कहस्सा जि सकक्रय होता है , ति मुझे भीतर रूं र् कदखाई पड़ते हैं —सुूं दर
रूं र् कदखाई पड़ते हैं । यह जाूं च िता दे ती है कि इस वक्त जि तु म्हें रूं र् कदखाई पड़ रहे हैं , तु म्हारे मक्तस्तष्क िा
ि न सा कहस्सा तरूं कर्त है , और उसमें कितने वेविें थ िी तरूं र्ें उठ रही हैं ।

अि िोई जरूरत नही ूं है आपिो ध्यान में जाने िी; उस कहस्से पर उतनी तरूं र्ें किजिी से पै दा िर दी
जाएूं , आपिो रूं र् कदखाई पड़ने शु रू हो जाते हैं । ये सि पैरेिि हैं ; क्ोूंकि इस तरि िा छोर पिड़ किया
जाए, दू सरी तरि िा छोर तत्काि होना शु रू हो जाता है ।

स्वेर्च्ा मृत्य की भी एक समस्या:

इसिे खतरे हैं । िोई भी नई खोज, और मनुष्य िे कजतने भीतर जाती है , उतने खतरे िढ़ते चिे जाते हैं ।
अि जैसे कि हमें आदमी िी कितनी उम्र िढ़ानी है , हम अि िढ़ा सिते हैं । अि िोई उम्र प्रिृकत िी िात नही ूं
है , कवज्ञान िे हाथ में आ र्ई है । तो आज यूरोप और अमेररिा में हजारोूं ऐसे िे हैं जो यह माूं र् िर रहे हैं
अथनाकसया िी कि हमें स्व—मरण िा अकधिार चाकहए। क्ोूंकि उनिो िटिा कदया र्या है खाटोूं पर, वे िटिे
हैं और उनिो आक्सीजन दी जा रही है , और वह अूंतहीन िाि ति उनिो कजूंदा रखा जा सिता है । अि एि
नब्े साि िा िूढ़ा है , वह िहता है , हमें मरना है ! िेकिन डाक्ङर िहता है , हम मरने में सहयोर्ी नही ूं हो
सिते ; क्ोूंकि िानू न उसिो हत्या िहता है । अच्छा, उसिा िेटा भी मन में भी सोचता हो कि कपता तििीि
भोर् रहा है , ति भी खु िे नही ूं िह सिता कि कपता िो मार डािा जाए। और कपता िो अि कजिाया जा सिता
है । और एि मशीनरी पै दा हो र्ई है जो उसिो कजिाए रखे र्ी। अि वह किििुि मरा हुआ कजूंदा रहे र्ा।

अि यह एि किहाज से खतरनाि है । हमारा पुराना जो िानून है वह ति िा है जि हम आदमी िो


कजूंदा नही ूं रख सिते थे , कसिग मार सिते थे। अि िानू न िदिने िी जरूरत है , क्ोूंकि अि हम कजूंदा भी रख
सिते हैं । और इतनी सीमा ति कजूंदा रख सिते हैं कि वह आदमी कचल्रािर िहने िर्े कि मेरे साथ अत्याचार
हो रहा है , कहूं सा हो रही है ! कि अि मैं कजूंदा नही ूं रहना चाहता हूं ; यह क्ा मेरे साथ हो रहा है ? यानी िभी हम
एि आदमी िो सजा दे ते थे कि इस आदमी ने र्ु नाह किया है ,इसिी हत्या िर दो। िोई आश्चयग नही ूं कि पचास
साि िाद हम एि आदमी िो सजा दें कि इस आदमी ने र्ुनाह किया है ,इसिो मरने मत दे ना। इसमें िोई
िकठनाई नही ूं है । और यह पहिी सजा से ज्यादा िड़ी सजा कसद्ध होर्ी, क्ोूंकि मर जाना एि क्षण िा मामिा है
और कजूंदा रहना सकदयोूं िा हो सिता है ।

तो जि भी िोई नई खोज होती है , और मनुष्य िे भीतर होती है , तो उसिे दोहरे पररणाम होूंर्े इधर
नुिसान िा भी खतरा है , िायदा भी हो सिता है । ताित जि भी आती है तो दोतरिा होती है ।

बीसिी ां सदी के अांत तक जिज्ञान का मनस शरीर पर अजधकार:

अि मनुष्य िे च थे शरीर पर कवज्ञान चिा र्या, जा रहा है । और आनेवािे पचास वषों में —पचास वषग
नही ूं िहने चाकहए,आने वािे तीस वषों में.......क्ोूंकि यह िात तु म्हें शायद खयाि में न हो कि हर सदी िे अूं त
पर, उस सदी ने जो िुछ किया है वह क्लाइमेक्स पर पहुूं च जाता है —हर सदी िे अूंत पर, उस सदी में जो भी
पैदा होता है , सदी िे अूंत होते —होते वह अपनी चरम क्तस्थकत में आ जाता है । तो हर सदी अपने िाम िो अपने
अूंत ति पूरा िरती है । इस सदी ने िहुत से िाम उठा रखे हैं जो कि तीस साि में पूरे होूंर्े । उनमें मनुष्य िे
मनस शरीर पर प्रवेश िहुत िड़ा िाम है जो पूरा हो जाएर्ा।

आत्म शरीर में भाषागत बाधाओां का अजतक्मण:

पाूं चवाूं जो शरीर है , कजसिो मैं आत्म शरीर िह रहा हूं वह च थे िा भी सू क्ष्मतम रूप है । कवचार िी ही
तरूं र्ें नही ूं हैं , मेरे होने िी भी तरूं र्ें हैं । अर्र मैं किििुि भी चुप िैठा हूं और मेरे भीतर िोई कवचार नही ूं चि रहा
है , ति भी मेरा होना भी तरूं कर्त हो रहा है । तु म अर्र मेरे पास आओ, और मेरे पास िोई कवचार नही ूं है , ति भी
तु म मेरी तरूं र्ोूं िे क्षेत्र में आओर्े। और मजा यह है कि मेरे कवचार िी तरूं र्ें उतनी मजिूत नही ूं हैं और उतनी
पेकनटर े कटूं र् नही ूं हैं , कजतनी मेरे कसिग होने िी तरूं र्ें हैं ।

इसकिए कजस आदमी िी कनकवगचार क्तस्थकत िन जाती है , वह िहुत प्रभावी हो जाता है ; उसिे प्रभाव िा
िोई कहसाि िर्ाना मुक्तिि है । उसिे प्रभाव िा कहसाि ही िर्ाना मुक्तिि है ; क्ोूंकि उसिे भीतर से
अक्तस्तत्व िी तरूं र्ें उठनी शु रू हो जाती हैं । वे आदमी िी जानिारी में सि से सू क्ष्म तरूं र्ें हैं — आत्म शरीर िी।

इसकिए िहुत िार ऐसा हुआ है , जैसे महावीर िे सूं िूंध में जो िात है वह सही है कि वे िोिे नही ,ूं िहुत
िम िोिे शायद नही ूं ही िोिे। वे कसिग िैठे रहें र्े। िोर् उनिे पास आिर िैठ जाएूं र्े और समझ िेंर्े, चिे
जाएूं र्े। यह उस कदन सूं भव था, यह आज िहुत िकठन हो र्या है । आज इसकिए िकठन हो र्या है कि अक्तस्तत्व
िी कजतनी... आत्म शरीर िी जो र्हरी तरूं र्ें हैं , वे आप भी तभी अनु भव िर पाएूं र्े , जि आप भी कवचार िो खोने
िो तै यार होूं। नही ूं तो आप अनु भव....... आप अर्र िहुत नॉइज से भरे हैं अपने कवचारोूं िी, तो वे िहुत सू क्ष्म
तरूं र्ें चूि जाएूं र्ी; आपिे आर—पार कनिि जाएूं र्ी, आप उनिो पिड़ नही ूं पाएूं र्े।

तो अक्तस्तत्व िी तरूं र्ें अर्र पिड़ में आने िर्ें , और दोनोूं तरि अर्र कनकवगचार हो, तो िोिने िी िोई
जरूरत ही नही ूं है । ति हम ज्यादा र्हरे में िोई िात िह पाते हैं और वह सीधी चिी जाती है । उसमें तु म
व्याख्या भी नही ूं िरते , व्याख्या िा उपाय भी नही ूं होता, उसमें डाूं वाडोि भी नही ूं होते —ऐसा होर्ा कि नही ूं
होर्ा, यह भी नही ूं होता, वह तो सीधा तु म्हारा अक्तस्तत्व जानता है कि हो र्या।

इस पाूं चवें शरीर पर जो िात है , इस पाूं चवें शरीर िी तरूं र्ें जरूरी नही ूं है कि आदमी िो ही कमिें।
इसकिए महावीर िे जीवन में एि और अदभुत घटना है कि उनिी सभा में जानवर भी रहते हैं । इसिो जै न
साधु नही ूं समझा पाता अि ति कि क्ा मामिा है ! वह समझा भी नही ूं पाएर्ा। उनिी सभा में जानवर भी
रहते , यह तभी सूं भव है , क्ोूंकि जानवर आदमी िी भाषा तो नही ूं समझ सिता, िेकिन िीइूं र् िी, होने िी
भाषा तो उतनी ही समझता है । उसमें िोई ििग नही ूं है । अर्र मैं कनकवगचार होिर एि किल्री िे पास िैठा हूं तो
किल्री तो कनकवगचार है । तु मसे तो मुझे िात ही िरनी पड़े , क्ोूंकि तु म्हें किल्री िे कनकवग चार ति िे जाना भी एि
िूंिी यात्रा है । तो इसमें िोई िकठनाई नही ूं है । अर्र आत्म शरीर से तरूं र्ें कनिि रही होूं, तो उसिो पशु भी
समझ सिते हैं , प धे भी समझ सिते हैं , पत्थर भी समझ सिते हैं । इसमें िोई िकठनाई नही ूं है ।

इस शरीर ति भी प्रवेश हो जाएर्ा, पर च थे िे िाद ही हो सिेर्ा। और च थे में प्रवेश हो र्या


है , उसिे द्वार िई जर्ह से तोड़ किए र्ए हैं ।

आत्म शरीर तक जिज्ञान की पहुां च:

तो आत्म—क्तस्थकत िो तो कवज्ञान जल्दी स्वीिार िर िेर्ा, िाद में जरा िकठनाई है ।

इसकिए मैंने िहा कि पाूं चवें शरीर ति चीजें िड़ी वैज्ञाकनि ढूं र् से साि हो सिती हैं , िाद में िकठनाई
होनी शु रू हो जाती है । उसिे िारण हैं । क्ोूंकि कवज्ञान िो अर्र ठीि से हम समझें तो वह स्पे शिाइजेशन
है , वह किसी एि कदशा में कवशे षशता है , चुनाव है । इसकिए कवज्ञान उतना ही र्हरा होता जाता है कजतना वह
किसी चीज िे सूं िूंध में , िम से िम चीज िे सूं िूंध में ज्यादा से ज्यादा जानने िर्ता है —टु नो अिाउट कद
किकटि एूं ड टु नो मोर। तो दोहरा िाम है उसिा ज्यादा जानता है िे किन और छोटी चीज िे सूं िूंध में , और
छोटी चीज िे सूं िूंध में , और छोटी चीज िे सूं िूंध में। छोटी चीज िरता जाता है और ज्ञान िो िढ़ाता जाता है ।

जैसे पहिे एि डाक्ङर था, तो पूरे शरीर िे सूं िूंध में जानता था। अि िोई डाक्ङर पूरे शरीर िे सूं िूंध में
नही ूं जानता। और अर्र वैसा िोई पुराना डाक्ङर िच र्या है , तो वह कसिग रे किक्स है ; वे चिे जाएूं र्े , वे िच नही ूं
सिते । वे पुराने खूं डहर हैं कजनिो कवदा हो जाना पड़े र्ा। क्ोूंकि वह डाक्ङर अि भरोसे िे योग्य नही ूं रह
र्या, वह इतनी ज्यादा चीज िे सूं िूंध में जानता है कि ज्यादा नही ूं जान सिता, िम ही जान सिता है । अि
आूं ख िा डाक्ङर अिर् है , िान िा डाक्ङर अिर् है , वह ज्यादा भरोसे िे योग्य है ; क्ोूंकि वह इतनी छोटी चीज
िे सूं िूंध में जानता है कि ज्यादा जान सिता है । आज तो आूं ख पर ही इतना साकहत्य है कि एि आदमी अपनी
पूरी कजूंदर्ी भी जानने में िर्ाए तो पूरा साकहत्य नही ूं जान सिता।
इसकिए आज नही ूं िि, िाईूं आूं ख और दाईूं आूं ख िा डाक्ङर अिर् हो सिता है । िाूं टना पड़ सिता
है । िि हम आूं ख में भी कवभार् िर सिते हैं कि िोई सिेद कहस्से िे सूं िूंध में जानता है , िोई िािे कहस्से िे।
क्ोूंकि वे भी िहुत िड़ी घटनाएूं हैं । और उनमें भी अर्र कवस्तार में...... और कवज्ञान िा मतिि ही यह है कि वह
रोज छोटा िरता जाता है अपना िोिस। इसकिए कवज्ञान िहुत जान पाता है । उसिा िोिस होता है
िम, िनसनटर े टेड हो जाता है ।

ब्रह्म शरीर और जनिाओ ण शरीर के रहस्य में जिज्ञान का खो जाना:

तो पाूं चवें शरीर ति, मैं िहता हूं कवज्ञान िा प्रवे श हो सिेर्ा; क्ोूंकि पाूं चवें शरीर ति इूं कडकवजु अि
है । इसकिए िोिस में , पिड़ में आ जाता है । छठवें से िाक्तस्भि है ; िोिस में , पिड़ में नही ूं आता। छठवाूं जो
है वह िाक्तस्भि िॉडी है , ब्रह्म शरीर,है । ब्रह्म शरीर िा मतिि है —कद टोटि। वहाूं कवज्ञान प्रवे श नही ूं िर
पाएर्ा; क्ोूंकि कवज्ञान छोटे , और छोटे , और छोटे पर जा सिता है । तो वह व्यक्तक्त ति पिड़ िे र्ा। व्यक्तक्त िे
िाद उसिी कदक्कत है ; िाक्तस्भि िो पिड़ना उसिी कदक्कत है । िाक्तस्भि िो तो धमग ही पिड़े र्ा।

इसकिए आत्मा ति कवज्ञान िो िकठनाई नही ूं आएर्ी, िकठनाई आएर्ी परमात्मा पर। वहाूं मैं नही ूं
समझ पाता कि किसी कदन सूं भव हो पाएर्ा कि कवज्ञान पिड़े , क्ोूंकि वहाूं तभी पिड़ सिता है जि वह
स्पे शिाइजेशन छोड़े । और स्पे शिाइजेशन छोड़े कि वह कवज्ञान नही ूं रह र्या, वह वैसा ही वेर् और जनरिाइब्द
हो जाएर्ा जैसा धमग है ।

इसकिए मैंने िहा कि पाूं चवें ति कवज्ञान िे साथ सहारा और यात्रा हो सिेर्ी; छठवें पर वह खो
जाएर्ा; और सातवें पर तो किििुि ही नही ूं जा सिता। क्ोूंकि कवज्ञान िी सारी खोज जीवन िी खोज है ।
असि में, हमारी जो जीवन िी आिाूं क्षा है ,जो जीवेषणा है कि हम जीना चाहते हैं —िम िीमार, ज्यादा
स्वस्थ, ज्यादा दे र, ज्यादा सु ख से , ज्यादा सु कवधा से । कवज्ञान िी मू ि प्रेरणा ही जीवन िो
र्हरा, सु खद, सूं तुष्ट, शाूं त, स्वस्थ िनाने िी है । और सातवाूं शरीर जो है वह मृत्यु िा अूंर्ीिार है , वह महामृत्यु
है । वहाूं साधि जीवन िी खोज िे पार आ र्या; अि वह िहता है हम मृत्यु िो भी जानना चाहते हैं , हमने होना
जान किया, अि हम न होना भी जानना चाहते हैं , हमने िीइूं र् जान किया, अि हम नॉन—िीइूं र् भी जानना चाहते
हैं । वहाूं कवज्ञान िा िोई अथग नही ूं है ।

तो वैज्ञाकनि तो वहाूं िहे र्ा—जैसा फ्रायड िहता है —कि डे थ कवश, यह अच्छी िात नही ूं है , यह
स्युसाइडि है । फ्रायड िहता है , यह अच्छी िात नही ूं है ; कनवाग ण, मोक्ष, ये ठीि िातें नही ूं हैं ; ये आपिे मरने िी
इच्छा िे सिूत हैं ! आप मरना चाहते हैं , आप िीमार हैं । वह इसीकिए िह रहा है , क्ोूंकि वै ज्ञाकनि मरने िी
इच्छा िो इनिार ही िरे र्ा, क्ोूंकि कवज्ञान खड़ा ही जीवन िी इच्छा िे कवस्तार पर है । िेकिन जो आदमी जीना
चाहता है वह स्वस्थ हैं —िेकिन एि घड़ी ऐसी आती है , ति मरना चाहना भी इतना ही स्वस्थ हो जाता है ।
हाूं , िीच में िोई मरना चाहे तो अस्वस्थ है , िेकिन एि घड़ी जीवन िी ऐसी आ जाती है जि िोई मरना भी
चाहता है ।

िोई िहे कि जार्ना तो स्वस्थ है और सोना स्वस्थ नही ूं है । ऐसा हुआ जा रहा है , कि हम रात िा समय
कदन िो दे ते जा रहे हैं । पहिे छह िजे रात हो जाती थी, अि दो िजे होने िर्ी है । रात िा समय कदन िो कदए
जा रहे हैं । और िुछ कवचारि हैं जो िहते हैं कि किसी तरह से आदमी िो नी ूंद से िचाया जा सिे , तो उसिी
कजूंदर्ी में िहुत समय िच जाएर्ा। नी ूंद िी इच्छा ही क्ोूं? इसिो छोड़ ही कदया जाए किसी तरह से ।
िेकिन जैसे जार्ने िा एि आनूंद है , ऐसे ही सोने िा एि आनूंद है । और जैसे जार्ने िी इच्छा भी
स्वाभाकवि और स्वस्थ है , ऐसे ही एि घड़ी सो जाने िी इच्छा भी स्वस्थ और स्वाभाकवि है । अर्र िोई आदमी
मरते दम ति भी जीने िी आिाूं क्षा किए जाता है तो अस्वस्थ है ; और अर्र िोई आदमी जन्म से ही मरने िी
आिाूं क्षा िरने िर्ता है , वह भी अस्वस्थ है । एि िच्चा अर्र मरने िी आिाूं क्षा िरता है तो िीमार है , उसिा
इिाज होना चाकहए। और अर्र एि िा भी जीना चाहता है तो िीमार है , उसिा इिाज होना चाकहए।

महाशू न्य में परम जिसजओन परम स्वास्थ्य है :

जीवन और मृत्यु दो पैर हैं अक्तस्तत्व िे। आप एि िो स्वीिार िरते हैं तो िूंर्ड़े ही होूंर्े , दू सरे िो
स्वीिार नही ूं िरें र्े तो िूं र्ड़ापन िभी नही ूं कमटे र्ा। दोनोूं पैर हैं — होना भी और न होना भी। और वही आदमी
परम स्वस्थ है जो दोनोूं िो एि सा आकिूंर्न िर िेता हैं —होने िो भी, न होने िो भी। जो िहता है , होना भी
जाना, अि न होना भी जान िें , कजसे न होने में िोई भय नही ूं है ।

तो सातवाूं जो शरीर है , वह तो कसिग उन्ी ूं साहसी िोर्ोूं िे किए है , कजन्ोूंने जीवन जान किया और अि
जो मृत्यु भी जानना चाहते हैं । जो िहते हैं , इसे भी खोजेंर्े! जो िहते हैं , हम इसे भी जानेंर्े! जो िहते हैं , हम
कमट जाने िो भी जानना चाहते हैं ! यह कमट जाना क्ा है ? यह खो जाना क्ा है ? यह न हो जाना क्ा है ? जीने िा
रस दे खा, अि मृत्यु िा रस भी दे खना है । अि तु म्हें इस सूं िूंध में यह भी जान िेना उकचत होर्ा कि जो हमारी
मृत्यु है , वह सातवें शरीर से ही आती है । साधारण मृत्यु भी, वह हमारे सातवें शरीर से आती है ; और जो हमारा
जीवन है , वह हमारे पहिे शरीर से आता है । तो जन्म जो है , वह भ कति शरीर से शु रू होता है । जन्म िा मतिि
ही है भ कति शरीर िी शु रुआत। इसकिए माूं िे पेट में पहिे भ कति शरीर कनकमगत होता है , किर और शरीर
प्रवेश िरते हैं । पहिा शरीर हमारा जन्म िी शु रुआत है ; और अूंकतम शरीर, कजसिो कनवाग ण शरीर मैंने
िहा, वहाूं से हमारी मृत्यु आती है । और जो इस भ कति शरीर िो जोर से पिड़ िेता है , वह इसकिए म त से
िहुत डरता है । और जो म त से डरता है , वह सातवें शरीर िो नही ूं जान पाएर्ा िभी।

इसकिए धीरे — धीरे भ कति शरीर से पीछे हटते —हटते वह घड़ी आ जाती है , जि हम म त िो भी
अूंर्ीिार िर िेते हैं ;तभी हम जान पाते हैं । और जो म त िो जान िेता है , वह पररपूणग अथों में मुक्त हो जाता
है , क्ोूंकि ति जीवन और मृत्यु एि ही चीज िे दो पहिू हो जाते हैं , और वह दोनोूं िे िाहर हो जाता है ।

िैज्ञाजनक बब्धि और धाजमओक हृदय : एक दिओभ सां योग:

यह सातवें शरीर ति कवज्ञान िभी जाएर्ा, इसिी िोई आशा नही ूं है , छठवें शरीर ति जा
सिेर्ा, इसिी सूं भावना नही ूं है । पाूं चवें ति जा सिता है , क्ोूंकि च थे िे द्वार खु ि र्ए हैं और पाूं चवें पर जाने
में िोई िकठनाई नही ूं रह र्ई है वस्तु त:। कसिग ऐसे िोर्ोूं िी जरूरत है कजनिे पास वैज्ञाकनि िुक्तद्ध हो और
कजनिे पास धाकमग ि हृदय हो—वे अभी प्रवेश िर जाएूं । यह मुक्तिि िाूं किनेशन है थोड़ा; क्ोूंकि वै ज्ञाकनि िी
जो टर े कनूंर् है , वह उसे धाकमगि होने से िई कदशाओूं से रोि दे ती है ; और धाकमगि िी जो टर े कनूंर् है , वह उसे
वैज्ञाकनि होने से िई कदशाओूं से रोि दे ती है । तो इन दोनोूं टर े कनूंर् िा िही ूं ओवरिै कपूंर् नही ूं हो पाता, इससे
िड़ी िकठनाई है ।
िभी ऐसा होता है । जि भी ऐसा होता है , ति दु कनया में एि नई पीि ज्ञान िी, एि नया कशखर पैदा हो
जाता है — जि भी िभी ऐसा होता है । जैसे पतूं जकि! अि वह आदमी वैज्ञाकनि िुक्तद्ध िा है और धमग में प्रवेश
िर र्या। तो उसने योर् िो एि चोटी पर पहुूं चा कदया, कजसिे िाद किर उस चोटी िो पार िरना अि ति
सूं भव नही ूं हुआ है । एि ऊूंचाई पर िात चिी र्ई,पतूं जकि िो मरे िहुत वक्त हो र्या, िहुत िाम हो सिता
था; िेकिन पतूं जकि जैसा आदमी नही ूं कमि सिा, कजसिे पास एि वैज्ञाकनि िी िुक्तद्ध थी और कजसिे पास एि
धाकमगि साधना िा जर्त था। एि ऐसे कशखर पर िात पहुूं च र्ई कि उसिे िाद किर योर् िा िोई कशखर
दू सरा उससे ऊूंचा नही ूं उठा सिा।

अरकवूंद ने िहुत िोकशश िी, िेकिन सिि नही ूं हो सिे। अरकवूंद िे पास भी एि वै ज्ञाकनि िी िु क्तद्ध
थी, और शायद पतूं जकि से ज्यादा थी; क्ोूंकि सारा कशक्षण उनिा पकश्चम में हुआ। अरकवूंद िा कशक्षण िड़ा
महत्वपूणग है । िाप ने अरकवूं द िो कहूं दुस्तान से िहुत छोटी उम्र में , पाूं च—छह वषग िी उम्र में भेज कदया, और
सख्त मनाही िी कि अि इसे कहूं दुस्तान ति ति वापस नही ूं ि टाना है जि ति यह पूरा मै्ोर न हो जाए। यह
हाित आ र्ई कि िाप िे मरने िा वक्त आ र्या और िोर्ोूं ने चाहा कि अरकवूं द िो वापस भे ज दें । उन्ोूंने िहा
कि नही,ूं मैं मर जाऊूं, यह िेहतर; िेकिन िड़िा पूरी तरह पकश्चम िो पीिर ि टे ; पूरि िी छाया भी न पड जाए
उस पर, उसे खिर भी न दी जाए कि मैं मर र्या। कहितवर िाप था ऐसे ।

तो अरकवूंद पूरे पकश्चम िो पीिर ि टे । अर्र कहूं दुस्तान में िोई आदमी ठीि अथों में वेस्टनग था तो वह
अरकवूंद थे। वह अपनी भाषा उनिो ि टिर सीखनी पड़ी—मातृ भाषा। वे तो सि भूि— भाि र्ए थे । तो कवज्ञान
तो पूरा हो र्या इस आदमी में ,िेकिन धमग पीछे से आरोकपत था, वह िहुत र्हरा नही ूं जा सिा। धमग जो था वह
िहुत िाद में ऊपर से प्लाूं टेड था, वह िहुत र्हरा नही ूं जा सिा। नही ूं तो पतूं जकि से ऊूंचा कशखर अरकवूंद छू
सिते थे। वह नही ूं हो सिा। वह टर े कनूंर् जो थी पकश्चम िी, वह िहुत र्हरे अथों में िाधा िन र्ई। और िाधा इस
तरह से िन र्ई कि वे , जैसा वैज्ञाकनि सोचता है , उसी तरह से सोचने में िर् र्ए। तो डाकवगन िी सारी एवोल्यू शन
वे धमग में िे आए। पकश्चम से जो—जो खयाि िाए थे, उन सििो धमग में उन्ोूंने प्रकवष्ट िर कदया, िेकिन धमग िा
उनिे पास िोई खयाि नही ूं था, जो वे कवज्ञान में प्रवेश िर दें । इसकिए कवज्ञान िी िड़ी िाया, िड़ा वाल्यूकमनस
साकहत्य उन्ोूंने रच डािा, िेकिन उसमें धमग नही ूं है , धमग उसमें िहुत ऊपरी है ।

जि भी िभी ऐसा हुआ है कि वै ज्ञाकनि िुक्तद्ध और धाकमगि िुक्तद्ध िा िही ूं िोई तािमेि हो र्या है तो
िड़ा कशखर छु आ जा सिता है । ऐसा पूरि में हो सिेर्ा, इसिी सूं भावना िम होती जाती है ; क्ोूंकि पूरि िे
पास धमग भी खो र्या है और कवज्ञान तो है ही नही ूं। पकश्चम में ही हो सिे , इसिी सूं भावना ज्यादा है , क्ोूंकि
कवज्ञान अकतशय हो र्या है । और जि भी िोई अकतशय हो जाती है चीज, तो पेंडुिम दू सरी तरि झूिना शु रू हो
जाता है । तो पकश्चम िा जो िहुत िुक्तद्धमान वर्ग है , वह कजस रस से अि र्ीता िो पढ़ता है , उस रस से कहूं दुस्तान
में िोई नही ूं पढ़ता।

जि पहिी दिा शापे नहार ने र्ीता पढ़ी तो कसर पर रखिर वह नाचने िर्ा—नाचता हुआ घर िे िाहर
आ र्या। और िोर्ोूं ने िहा, क्ा हो र्या? पार्ि हो र्ए हो? उसने िहा कि यह ग्रूंथ पढ़ने योग्य नही,ूं कसर पर
रखिर नाचने योग्य है । मुझे पता ही नही ूं था कि ऐसी िात िहने वािे िोर् भी हो र्ए हैं । यह क्ा िह कदया! यह
भाषा में आ सिता है ? यह शब्द में िूंध सिता है ? मैं तो सोचता था िूंध ही नही ूं सिता। यह तो िूंध र्या! यह तो
िुछ िात िह दी र्ई!

अि कहूं दुस्तान में र्ीता कसर पर रखिर नाचनेवािा आदमी नही ूं कमिेर्ा। हाूं , िहुत िोर् कमिें र्े जो र्ीता
िी िै िर्ाड़ी िनािर और उस पर सवार होिर चि रहे हैं । वे िोर् कमिें र्े। वह उनसे िोई.. .उनसे िोई अथग
नही ूं होता है ।
पर इस सदी िे पूरे होते —होते एि िड़ा कशखर छू किया जा सिेर्ा, क्ोूंकि जि जरूरत होती है तो
हजार—हजार िारण सारे जर्त में सकक्रय हो जाते हैं । आइूं स्टीन मरते —मरते धाकमगि आदमी होिर मरा है ।
जीते जी तो वैज्ञाकनि था, मरते —मरते धाकमगि आदमी होिर मरा है ।

इसकिए जो दू सरे िहुत अकतशय वैज्ञाकनि हैं , वे िहते हैं , आइूं स्टीन िी आक्तखरी िातोूं िो र्ूंभीरता से
नही ूं िे ना चाकहए;उसिा कदमार् खराि हो र्या होर्ा। क्ोूंकि आक्तखर—आक्तखर में उसने जो िहा है , वह िहुत
अदभुत है ।

आइूं स्टीन आक्तखरी—आक्तखरी वक्त िहते मरा है कि मैं सोचता था—जर्त िो जान िूंर्ूा; िेकिन कजतना
जाना, उतना पाया कि जानना असूं भव है , जानने िो अनूंत शे ष है । और मैं सोचता था कि एि कदन कवज्ञान जर्त
िे रहस्य िो तोड़िर र्कणत िा सवाि िना दे र्ा, कमस्टर ी खतम हो जाएर्ी; िेकिन र्कणत िा सवाि िड़ा होता
चिा र्या, जर्त िी कमस्टर ी तो िम न हुई,र्कणत िा सवाि ही और िड़ी कमस्टर ी हो र्या; अि उसिो भी हि
िरना मुक्तिि है ।

आधजनक जिज्ञान धमओ की प्रजतध्वजन में:

पकश्चम में और भी चोटी िे दो—चार वैज्ञाकनि धमग िी पररकध िे िरीि घूम रहे हैं । कवज्ञान में ही वैसी
सूं भावनाएूं पै दा हो र्ई हैं , क्ोूंकि वह जैसे ही तीसरे शरीर िे िरीि पहुूं च रहा है —अरे िो वह पार िर र्या
है — जैसे ही वह तीसरे िे िरीि पहुूं च रहा है , धमग िी प्रकतध्वकन अकनवायग है , क्ोूंकि अि वह अनसटें न्टी
िे, प्रोिेकिकिटी िे, अकनश्चय िे, अननोन िे जर्त में खु द ही प्रवेश िर रहा है । अि उसिो िही ूं न िही ूं
स्वीिार िरना पड़े र्ा अज्ञात है ! अि उसिो स्वीिार िरना पड़े र्ा जो कदखाई पड़ता है , उससे अकतररक्त भी
है , जो नही ूं कदखाई पड़ता, वह भी है , जो नही ूं सु नाई पड़ता, वह भी है । क्ोूंकि आज से स ही साि पहिे हम
िह रहे थे — जो नही ूं सु नाई पड़ता, वह नही ूं है , जो नही ूं कदखाई पड़ता, वह नही ूं है , जो नही ूं स्पशग में आता, वह
नही ूं है । अि कवज्ञान िहता है — नही,ूं इतना है कि स्पशग में तो िहुत िम आता है ; स्पशग िी तो िड़ी सीमा
है , अस्पशग िा िड़ा कवस्तार है । इतना है कि सु नाई तो िहुत िम पड़ता है , न सु नाई पड़ने वािा अनूंत है । इतना है
कि कदखाई तो छोटा सा पड़ता है ,न कदखाई पड़ने वािा अदृश्य, अछोर है । असि में, अि हमारी आूं ख कजतना
पिड़ती है , वह िहुत छोटा सा पिड़ती है । एि खास वेविेंथ पर हमारी आूं ख पिड़ती है , और एि खास
वेविेंथ पर हमारा िान सु नता है , और उसिे नीचे िरोड़ोूं वेविेंथ हैं और उसिे ऊपर िरोड़ोूं वेविें थ हैं ।

िभी ऐसी भूि हो जाती है । एि आदमी कपछिी दिा आल्फ पर िही ूं किसी पहाड़ पर चढ़ता था और
कर्र पड़ा। कर्रने से उसिे िान िो चोट िर्ी, और वह कजस र्ाूं व िा रहनेवािा था, उसिे रे कडयो स्टे शन िो
उसने पिड़ना शु रू िर कदया— िान से ! जि वह अस्पताि में भती था तो वह िहुत मुक्तिि में पड़ र्या। वह
कदन भर......वहाूं िोई ऑन—ऑि िरने िा उपाय नही ूं है िान में अभी। पहिे तो वह समझा कि िुछ.... .क्ा
हो रहा है ? मेरा कदमार् खराि हो रहा है या क्ा हो रहा है ? िेकिन धीरे — धीरे चीजें साि होने िर्ी ूं। और उसने
डाक्ङर से िहा, यह क्ा हो रहा है ? आसपास िोई रे कडयो िजाता है या क्ा िात है अस्पताि में ? क्ोूंकि मु झे
सि सु नाई पड़ता है ।

उन्ोूंने िहा, रे कडयो अस्पताि में िहाूं िज रहा है ! आपिो वहम हो र्या होर्ा। उसने िहा कि
नही,ूं मुझे ये—ये समाचार सु नाई पड रहे हैं । डाक्ङर भार्ा, िाहर र्या, आकिस में जािर रे कडयो िजाया। उस
वक्त उसिे र्ाूं व िे स्टे शन पर समाचार सु नाई पड़ रहे थे ; जो उसने िताए थे, वह िताया जा रहा था। किर तो
तािमेि किठाया र्या; पाया र्या कि उसिा िान सकक्रय हो र्या है । उसिा िान जो है , वेविेंथ िदि र्ई चोट
िर्ने से ।

आज नही ूं िि—रे कडयो ऐसा अिर् हो, यह र्ित है — आज नही ूं िि, यह इूं तजाम हो जाएर्ा कि हम
िान िी वेविेंथ सीधे डाइवटग िर सिें, िान में एि मशीन ऊपर से िर्ा िें , उसिी वेविेंथ िदि सिें, तो वह
उस स्तर पर सु न सिे।

िरोड़ोूं आवाजें हमारे आसपास से र्ुजर रही हैं । छोटी—मोटी आवाजें नही,ूं क्ोूंकि हमें िुछ अपने
िान िे नीचे िी आवाज भी सु नाई नही ूं पड़ती, उससे िड़ी आवाज भी सु नाई नही ूं पड़ती। अर्र एि तारा टू टता
है तो उसिी भयूंिर र्जगना िी आवाज हमारे चारोूं तरि से कनििती है , िेकिन हम सु न नही ूं पाते , नही ूं तो हम
िहरे हो जाएूं । िड़ी—िड़ी आवाजें कनिि रही हैं , िड़ी छोटी आवाजें कनिि रही हैं । वे हमारी पिड़ में नही ूं हैं ।
िस एि छोटा सा दायरा है हमारा।

जैसे कि हमारे शरीर िी र्मी िा एि दायरा है कि अट्ठानिे कडग्री से एि स दस कडग्री िे िीच हम


जीते हैं । इधर अट्ठानिे से नीचे कर्रना शु रू हुए कि मरने िे िरीि पहुूं चे , उधर एि स दस िे पार र्ए कि मरे ।
यह दस—िारह कडग्री िी हमारी िुि दु कनया है । र्मी िहुत है — आर्े भी िहुत है , पीछे भी िम िहुत है । उससे
हमारा िोई सूं िूंध नही ूं है ।

इसी तरह हर चीज िी हमारी एि सीमा है । पर उस सीमा िे िाहर जो है उसिे िाित? वह भी है ।


कवज्ञान ने उसिी स्वीिृकत शु रू िर दी है । स्वीिृकत होती है , किर धीरे से खोज शु रू हो जाती है कि वह िहाूं
है ? िैसी है ? क्ा है ? उस सििो जाना जा सिेर्ा; उस सििो पहचानना जा सिेर्ा। और इसकिए मैंने िहा था
कि पाूं चवें ति सूं भव हो सिता है ।

प्रश्न : ओशो नॉन— बीइां ग को कौन जानता है और जकस आधार पर जानता है ?

न, यह सवाि नही ूं है, यह सवाि नही ूं उठे र्ा। यह सवाि न उठे र्ा, न िन सिता है। क्ोूंकि जि हम
िहते हैं कि न होने िो ि न जानता है , तो हमने मान किया कि अभी िोई िचा। किर न होना नही ूं हुआ।

जनिाओ ण शरीर के अनभि की कोई अजभव्यब्धि नही ां :

प्रश्न: ररपोजटओ ग कैसे होगी?

िोई ररपोकटंर् नही ूं होती; िोई ररपोकटंर् नही ूं होती। ऐसा होता है......ऐसा होता है, जैसे रात िो तुम
सोते हो; जि ति तु म जार्े होते हो तभी ति िा तु म्हें पता होता है , कजस वक्त तु म सो जाते हो उस वक्त तु म्हें
पता नही ूं होता; जार्ते ति िा पता होता है । तो ररपोकटं र् जार्ने िी िरते हो तु म। िेकिन आमत र से तु म िहते
उिटा हो—वह ररपोकटं र् र्ित है — तु म िहते हो, मैं आठ िजे सो र्या। तु म्हें िहना चाकहए, मैं आठ िजे ति
जार्ता था। क्ोूंकि सोने िी तु म ररपोटग नही ूं िर सिते । क्ोूंकि सो र्ए तो ररपोटग ि न िरे र्ा? उस तरि से
ररपोटग होती है कि मैं आठ िजे ति जार्ता था, यानी आठ िजे ति मुझे पता था कि अभी मैं जार् रहा हूं िेकिन
आठ िजे िे िाद मु झे पता नही ूं। किर मैं सु िह छह िजे उठ आया, ति मुझे पता है । िीच में एि र्ैप छूट
र्या— आठ िजे और छह िजे िे िीच िा; उस वक्त मैं सोया या, यह इनिरें स है ।

यह उदाहरण िे किए तु मसे िह रहा हूं । उदाहरण िे किए तु मसे िह रहा हूं कि तु म्हें छठवें शरीर ति
िा पता होर्ा। सातवें शरीर में तु म डु ििी िर्ािर छठवें में वापस आओर्े , ति तु म िहोर्े कि अरे , मैं िही ूं
और चिा र्या था, नॉन—िीइूं र् हो र्या था। यह जो ररपोकटं र् है , यह ररपोकटं र् छठवें शरीर ति है । इसकिए
सातवें शरीर िे िाित िुछ िोर्ोूं ने िात ही नही ूं िी। नही ूं िरने िा भी िारण था। क्ोूंकि कजसिो नही ूं िहा
जा सिता उसिो िहना ही क्ोूं!

अभी एि आदमी था कवटकर्स्टीन, उसने िड़ी िीमती िुछ िातें किखी ूं। उसमें एि िात उसिी यह भी
है , कि दै ट क्तिच िैन नाट िी से ड, मस्ट नाट िी से ड। जो नही ूं िही जा सिती, उसिो िहना ही नही ूं चाकहए।
क्ोूंकि िहुत िोर्ोूं ने उसिो िह कदया, और हमिो कदक्कत में डाि कदया। क्ोूंकि वह साथ उनिी शतग यह भी
है कि नही ूं िही ूं जा सिती और किर िहा भी है ,तो वह िहना जो है वह कनर्ेकटव ररपोकटं र् है । वह उस क्तस्थकत
िी नही,ूं उस क्तस्थकत िे पहिे ति िी, आक्तखरी पड़ाव ति िी खिर है , कि यहाूं ति मैं था, इसिे िाद मैं नही ूं
था; क्ोूंकि इसिे िाद मैं , न जाननेवािा था, न िुछ जानने िो िचा था; न िोई ररपोटग िानेवािा था, न िोई
ररपोटग िी जर्ह थी। मर्र एि सीमा िे िाद यह हुआ था, उस सीमा िे पहिे मैं था।

िस, तो वह सीमा—रे खा छठवें शरीर िी सीमा—रे खा है ।

अगम, अगोचर, अिणओनीय जनिाओ ण:

छठवें शरीर ति वेद, उपकनषद, र्ीता, िाइकिि जाते हैं । असि में, जो अर्ोचर और अवणग नीय जो
है , वह सातवाूं है । छठवें ति िोई अड़चन नही ूं है । पाूं चवें ति तो िड़ी सरिता है । िेकिन उसिी
िोई.....क्ोूंकि िचता नही ूं िोई जाननेवािा;जानने िो भी िुछ नही ूं िचता। असि में , कजसिो हम िचना
िहें , वही नही ूं िचता। तो यह जो खािी अूंतराि है , यह जो शू न्य है , इसिो हम िहें र्े तो हमारे सि शब्द
कनषेधात्मि होूंर्े। इसकिए वेद —उपकनषद िहें र्े—नेकत, नेकत। वे िहें र्े कि यह मत पूछो,वहाूं क्ा था; यह हम
िता सिते हैं , क्ा—क्ा नही ूं था—कदस इज नाट, दै ट इज नाट; यह भी नही ूं था, वह भी नही ूं था। और यह मत
पूछो कि क्ा था, वह हम न िहें र्े। हम इतना ही िता सिते हैं कि यह भी नही ूं था, यह भी नही ूं था—पत्नी भी
नही ूं थी, कपता भी नही ूं था, पदाथग भी नही ूं था, अनुभव भी नही ूं था, शान भी नही ूं था, मैं भी नही ूं था, अहूं िार भी
नही ूं था, जर्त भी नही ूं था, परमात्मा भी नही ूं था—नही ूं था, क्ोूंकि यह हमारे छठवें िी सीमा—रे खा िनती है ।
क्ा था? तो एिदम चुप हो जाएूं र्े ;उसिो नही ूं िहा जा सिेर्ा।

जनिाओ ण शरीर की अजभव्यब्धि के जिए बि का सिाओ जधक प्रयास:

इसकिए ब्रह्म ति खिरें दे दी र्ई हैं । इसकिए कजन िोर्ोूं ने ब्रह्म िे िाद िी खिरें दी ूं.. .खिर तो
कनषेधात्मि होर्ी,इसकिए वह हमिो कनर्ेकटव िर्े र्ी। जैसे िुद्ध ; िुद्ध ने िड़ी मेहनत िी है उसिे िाित खिर
दे ने िी। इसकिए सि निार है ,इसकिए सि कनषेध है । इसकिए कहूं दुस्तान िे मन िो िात नही ूं पिड़ी। ब्रह्मज्ञान
कहूं दुस्तान िो पिड़ता था, वहाूं ति पाकजकटव चिता है । ब्रह्म ऐसा है — आनूंद है , कचति् है , सति् है। यहाूं ति
चिता है । यहाूं ति पाकजकटव एसशग न हो जाता है ; हम िह सिते हैं —यह है , यह है , यह है । िुद्ध ने, जो—जो
नही ूं है , उसिी िात िही। वह सातवें िी िात िरने िी, शायद उस अिेिे आदमी ने सातवें िी िात िरने िी
िड़ी मेहनत िी।

इसकिए िु द्ध िी जड़ें उखड़ र्ईूं इस मुम्ऻ से , क्ोूंकि वे कजस जर्ह िी िात िर रहे थे वहाूं जड़ें नही ूं
हैं ; कजस जर्ह िी िात िर रहे थे वहाूं िे किए िोई आिार नही ूं है , रूप नही ूं है । हम सि सु नते थे, हमें िर्ा कि
िेिार है , वहाूं जािर भी क्ा िरें र्े जहाूं िुछ भी नही ूं है ! हमें तो िुछ ऐसी जर्ह िताइए जहाूं हम तो होूंर्े िम
से िम। िुद्ध ने िहा, तु म तो होओर्े ही नही ूं। तो हमें िर्ा कि किर इस खतरे में क्ोूं पड़ना! हम तो अपने िो
िचाना चाहते हैं आक्तखर ति।

इसकिए िुद्ध और महावीर दोनोूं म जूद थे , िेकिन महावीर िी िात िोर्ोूं िो ज्यादा समझ में
पड़ी, क्ोूंकि महावीर ने पाूं चवें िे आर्े िात ही नही ूं िी, छठवें िी भी िात नही ूं िी। क्ोूंकि महावीर िे पास
एि वैज्ञाकनि कचि था, और उनिो छठवाूं भी िर्ा कि वह भी, शब्द वहाूं डाूं वाडोि, सूं कदग्ध हो जाते हैं । पाूं चवें
ति शब्द किििुि कथर चिता है और एिदम वै ज्ञाकनि ररपोकटं र् सूं भव है , कि हम िह सिते हैं ऐसा है , ऐसा
है । क्ोूंकि पाूं चवें ति हमारा जो अनुभव है उससे तािमेि खाती हुई चीजें कमि जाती हैं ।

समझ िो कि एि आदमी......एि महासार्र में एि छोटा सा द्वीप है ; उस द्वीप पर एि ही तरह िे िूि


क्तखिते हैं । छोटा द्वीप है , एि ही तरह िे िूि क्तखिते हैं ; दस—पचास िोर् उस द्वीप पर रहते हैं । वे िभी िाहर
नही ूं र्ए। तो वहाूं से िोई यात्री जहाज कनिि रहा है और एि उनमें िोई िुक्तद्धमान आदमी है , वह उसिो अपने
जहाज पर िे आता है ; वह अपने दे श में उसे िे आता है ।

वह यहाूं हजारोूं तरह िे िूि दे खता है । िूि िा मतिि उसिे किए एि ही िूि था। िूि िा मतिि
वही िूि था जो उसिे द्वीप पर होता था। पहिी दिा िूि िे मतिि िा कवस्तार होना शु रू होता है । िूि िा
मतिि वही नही ूं था जो था। अि उसे पता चिता है कि िूि तो हजारोूं हैं । वह िमि दे खता है , वह र्ुिाि
दे खता है , वह चूंपा दे खता है , चमेिी दे खता है । अि वह िड़ी मुक्तिि में पड़ जाता है कि मैं जािर िोर्ोूं िो
िैसे समझाऊूंर्ा कि िूि िा मतिि यही िूि नही ूं होता, िूिोूं िे नाम होते हैं । उसिे द्वीप पर नाम नही ूं
होूंर्े; क्ोूंकि जहाूं एि होता है वहाूं नाम नही ूं होता। वहाूं िूि ही नाम होर्ा। वह िािी है । र्ुिाि िा िूि
िहने िी िोई जरूरत नही,ूं चूंपा िा िूि िहने िी िोई जरूरत नही ूं। अि वह िहे र्ा कि मैं उनिो िैसे
समझाऊूंर्ा कि चूंपा क्ा है । वे िहें र्े, िूि ही न! तो िूि तो उनिा एि साि है उनिे सामने।

अि वह आदमी ि टता है । अि वह िड़ी मुक्तिि में पड़ र्या है ।

किर भी िुछ उपाय है , क्ोूंकि एि िूि तो िम से िम उस द्वीप पर हैं —िूि तो है िम से िम। वह


िता सिता है कि यह िाि रूं र् है , सिेद रूं र् िा भी िूि होता है । उसिो यह नाम िहते हैं । यह छोटा िूि
है , िहुत िड़ा िूि होता है , उसिो िमि िहते हैं । किर भी उस द्वीप िे कनवाकसयोूं िो वह थोड़ा—िहुत
िम्यु कनिेट िर पाएर्ा, क्ोूंकि एि िूि उनिी भाषा में है । और दू सरे िूिोूं िो भी थोड़ा इशारा किया जा
सिता है ।

िेकिन समझ िें कि वह आदमी चाूं द पर चिा जाए—वह आदमी जहाज पर िैठिर किसी द्वीप पर न
आए, िक्तम्ऻ एि अूंतररक्ष यात्री उसिो चाूं द पर िे जाए—जहाूं िूि हैं ही नही,ूं जहाूं प धे नही ूं हैं , जहाूं हवा िा
आयतन अिर् है , दिाव अिर् है — और वह अपने द्वीप पर वापस ि टे , और उस द्वीप िे िोर् पूछें कि तु म क्ा
दे खिर आए? चाूं द पर क्ा पाया? तो खिर दे ना और मुक्तिि हो जाए, क्ोूंकि िोई तािमेि नही ूं िैठता कि
वह िैसे खिर दे ; क्ा िहे , वहाूं क्ा दे खा; उसिी भाषा में उसे िोई शब्द न कमिें।

ठीि ऐसी क्तस्थकत है । पाूं चवें ति हमारी जो भाषा है उसमें हमें शब्द कमि जाते हैं , पर वे शब्द ऐसे ही
होते हैं कि हजार िूि और एि िूि िा ििग होता है । छठवें से भाषा र्ड़िड़ होनी शु रू हो जाती है । छठवें से
हम ऐसी जर्ह पहुूं चते हैं जहाूं एि और अनेि िा भी ििग नही ूं है , और मुक्तिि होनी शु रू हो जाती है ।

किर भी, कनषेध से थोड़ा—िहुत िाम चिाया जा सिता है ; या टोटे किटी िी धारणा से थोड़ा—िहुत
िाम चिाया जा सिता है । हम िह सिते हैं कि वहाूं िोई सीमा नही ूं है , असीम है । सीमाएूं हम जानते
हैं , असीम हम नही ूं जानते । तो सीमा िे आधार पर हम िह सिते हैं कि वहाूं सीमाएूं नही ूं हैं , असीम है वहाूं । तो
भी थोड़ी धारणा कमिेर्ी। हािाूं कि पक्की नही ूं कमिे र्ी, हमें शि तो होर्ा कि हम समझ र्ए, हम समझेंर्े नही ूं।

इसकिए िड़ी र्ड़िड़ होती है । हमें िर्ता है कि हम समझ र्ए, ठीि तो िह रहे हैं कि सीमाएूं वहाूं
नही ूं हैं । िेकिन सीमाएूं नही ूं होने िा क्ा मतिि होता है ? हमारा सारा अनुभव सीमा िा है । यह वैसा ही
समझना है , जैसे उस द्वीप िे आदमी िहें कि अच्छा हम समझ र्ए, िूि ही न! तो वह आदमी िहे र्ा, नही ूं—
नही,ूं उस िूि िो मत समझ िेना, क्ोूंकि उससे िोई मामिा नही ूं है , यह हम िहुत दू सरी िात िर रहे हैं ।
ऐसा िूि तो वहाूं होता ही नही,ूं वह िहे र्ा। तो वे िोर् िहें र्े, किर उनिो िूि किसकिए िहते हो जि ऐसा
िूि नही ूं होता? िूि तो यही है ।

हमिो भी शि होता है कि हम समझ र्ए; िहते हैं असीम है परमात्मा। हम िहते हैं , समझ र्ए।
िेकिन हमारा सारा अनु भव सीमा िा है ; समझे हम िुछ भी नही ूं। कसिग सीमा शब्द िो समझने िी वजह से
उसमें अ िर्ाने से हमिो िर्ता है कि सीमा वहाूं नही ूं होर्ी, हम समझ र्ए। िेकिन सीमा नही ूं होर्ी, इसिो
जि िसीव िरने िैठेंर्े कि िहाूं होर्ा ऐसा जहाूं सीमा नही ूं होर्ी, ति आप घिड़ा जाएूं र्े। क्ोूंकि आप कितना
ही सोचें, सीमा रहे र्ी। आप और िढ़ जाएूं , और िढ़ जाएूं , अरि—खरि,सूं ख्या टू ट जाए, मीि और प्रिाश वषग
समाप्त हो जाएूं — जहाूं भी आप रुिेंर्े , ि रन सीमा खड़ी हो जाएर्ी।

असीम िा मतिि हमारे मन में इतना ही हो सिता है , कजसिी सीमा िहुत दू र है —ज्यादा से
ज्यादा; इतनी दू र है कि हमारी पिड़ में नही ूं आती, िेकिन होर्ी तो। चूि र्ए, वह नही ूं िात पिड़ में आई।

इसकिए छठवें ति िी िात िही जाएर्ी; िोर् समझेंर्े, समझ र्ए; समझेंर्े नही ूं।

सातवें िी िात तो इतनी भी नही ूं समझेंर्े कि समझ र्ए। सातवें िी िात िा तो िोई सवाि ही नही ूं है ।
वे तो साि ही िह दें र्े, क्ा एब्सडग िातें िर रहे हो? यह क्ा िह रहे हो?

शब्दातीत, अथाओ तीत सत्य का प्रतीक— ओम्:

इसकिए सातवें िे किए किर हमने एब्सडग शब्द खोजे , कजनिा िोई अथग नही ूं होता। जैसे ओमि्। इसिा
िोई अथग नही ूं होता। इसिा िोई अथग नही ूं होता, यह अथगहीन शब्द है । यह हमने सातवें िे किए प्रयोर् किया।
जि िोई कजद ही िरने िर्ा,छठवें ति हमने िात िही और जि वह कजद ही िरने िर्ा, हमने िहा— ओमि्।
इसकिए सारे शास्त्र सि किखने िे िाद आक्तखर में ओमि् शाूं कत! ओमि् शाूं कत िा मतिि आप समझते
हैं ? सातवाूं , समाप्त, अि इसिे आर्े नही ूं िात— कद से वेंथ, कद एूं ड। वे दोनोूं एि ही मतिि रखते हैं । इसकिए
हर शास्त्र िे पीछे हम इकत नही ूं किखते , ओमि् शाूं कत किख दे ते हैं । वह ओमि् सू चि है सातवें िा कि अि िृपा
िरो, इसिे आर्े िातचीत नही ूं चिे र्ी, अि शाूं त हो जाओ।

तो हमने एि एब्सडग शब्द खोजा, उसिा िोई अथग नही ूं है । उसिा िोई मतिि नही ूं होता, कि उसिा
िोई मतिि होता हो। मतिि हो तो वह िेिार हो र्या; क्ोूंकि हमने उस दु कनया िे किए खोजा जहाूं सि
मतिि खत्म हो जाते हैं ; वह र्ैर— मतिि शब्द है । इसकिए दु कनया िी िोई भाषा में वैसा शब्द नही ूं है । प्रयोर्
किए र्ए हैं —जैसे अमीन। पर वह शाूं कत िा मतिि है उसिा। प्रयोर् किए र्ए हैं , िेकिन ओमि् जैसा शब्द नही ूं
है । जैसे कि ईसाई प्राथगना िरे र्ा और आक्तखर में िहे र्ा— अमीन। वह यह िह रहा है — िस खत्म; शाूं कत इसिे
िाद; अि शब्द नही ूं। िेकिन ओमि् जैसा शब्द नही ूं है । उसिा िोई अनुवाद नही ूं है सूं भव। वह हमने सातवें िे
किए प्रतीि चुन किया था कजसिो।

इसकिए मूंकदरोूं में उसे खोदा था—सातवें िी खिर दे ने िे किए कि छठवें ति मत रुि जाना। वे ओमि्
िनाते हैं , राम और िृष्ण िो उसिे िीच में खड़ा िर दे ते हैं । ओमि् उनसे िहुत िड़ा है । िृष्ण उसमें से झाूं िते
हैं , िेकिन िृष्ण िुछ भी नही ूं हैं ओमि् िहुत िड़ा है । उसमें से सि झाूं िता है , और सि उसी में खो जाता है ।
इसकिए ओमि् से िीमत हमने किसी और चीज िो िभी ज्यादा नही ूं दी है । वह पकवत्रतम है । पकवत्रतम इस अथों
में है , होकिएस्ट इस अथों में है , कि वह अूंकतम है , उसिे पार कियाूं ड,जहाूं सि खो जाता है , वहाूं वह है ।

तो सातवें िी ररपोकटं र् िी िात नही ूं होती है । हाूं , इसी तरह निार िी खिरें दी जा सिती हैं — यह
नही ूं होर्ा, यह नही ूं होर्ा। िेकिन यह भी छठवें ति ही साथगि है । सातवें िे सूं िूंध में इसकिए िहुत िोर् चुप ही
रह र्ए। या कजन्ोूंने िहा, वे िहिर िड़ी झूंझट में पड़े । और िहते हुए, िार—िार िहते हुए उनिो िहना
पड़ा कि यह िहा नही ूं जा सिता; इसिो िार—िार दोहराना पड़ा कि हम िह तो जरूर रहे हैं , िेकिन यह
िहा नही ूं जा सिता। ति हम पूछते हैं उनसे कि भई िड़ी मुक्तिि है , जि नही ूं िहा जा सिता, आप िहें ही
मत। किर वे िहते हैं , वह है तो जरूर! और उस जैसी िोई चीज नही ूं है जो िहने योग्य हो;िेकिन उस जैसी
िोई चीज भी नही ूं है जो िहने में न आती हो। िहने योग्य तो िहुत है, खिर दे ने योग्य है िहुत, ररपोटें िि वही
है , कि उसिी िोई खिर दे । िे किन िकठनाई भी यही है कि उसिी िोई खिर नही ूं हो सिती; उसे जाना जा
सिता है , िहा नही ूं जा सिता।

और इसकिए उस तरि से आिर जो िोर् र्ूंर्ें , िी तरह खड़े हो जाते हैं हमारे िीच में —जो िड़े मु खर
थे, कजनिे पास िड़ी वाणी थी, कजनिे पास िड़े शब्द िी सामर्थ्ग थी, जो सि िह पाते थे, जि वे भी अचानि
र्ूूंर्े िी तरह खड़े हो जाते हैं —ति उनिा र्ुूंर्ापन िुछ िहता है ; उनिी र्ूूंर्ी आूं खें िुछ िहती हैं ।

जैसा तु म पूछते हो, ऐसा िुद्ध ने कनयम िना रखा था कि वे िहते , यह पूछो ही मत; यह पूछने योग्य ही
नही,ूं यह जानने योग्य है । तो वे िहते , यह अव्याख्य है , इसिी व्याख्या मत िरवाओ, मुझसे र्ित िाम मत
िरवाओ।

िाओत्से िहता है कि मु झसे िहो ही मत कि मैं किखूूं क्ोूंकि जो भी मैं किखूूं र्ा वह र्ित हो जाएर्ा।
जो मुझे किखना है वह मैं किख ही न पाऊूंर्ा; और जो मुझे नही ूं किखना है उसिो मैं किख सिता हूं िेकिन
उससे मतिि क्ा है ! तो कजूंदर्ी भर टािता रहा—नही ूं किखा, नही ूं किखा, नही ूं किखा। आक्तखर में मुम्ऻ ने
परे शान ही किया तो छोटी सी किताि किखी, पर उसमें पहिे ही किख कदया कि सत्य िो िहा कि वह झूठ हो
जाता है ।

पर यह से वेंथ, यह सातवें सत्य िी िात है , सभी सत्योूं िी िात नही ूं है । छठवें ति िहने से झूठ नही ूं हो
जाता। छठवें ति िहने से सूं कदग्ध होर्ा, पाूं चवें ति िहने से किििुि सु कनकश्चत होर्ा, सातवें पर िहने से झूठ
हो जाएर्ा। जहाूं हम ही समाप्त हो जाते हैं , वहाूं हमारी वाणी और हमारी भाषा िैसे िचेर्ी! वह भी समाप्त हो
जाती है ।

ओम् शब्द नही ां, जचत्र है :

प्रश्न: ओशो ओम् को प्रतीक क्ोां चना गया? उसकी क्ा— क्ा जिशे षताएां हैं ?

ओमि् िो चुनने िे दो िारण हैं। एि तो, एि ऐसे शब्द िी तिाश थी कजसिा अथग न हो, कजसिा
तु म अथग न िर्ा पाओ; क्ोूंकि अर्र तु म अथग िर्ा िो तो वह पाूं चवें िे इस तरि िा हो जाएर्ा। एि ऐसा शब्द
चाकहए था जो एि अथग में मीकनूं र्िेस हो।

हमारे सि शब्द मीकनर्िुि हैं । शब्द िनाते ही हम इसकिए हैं कि उसमें अथग होना चाकहए। अर्र अथग
न हो तो शब्द िी जरूरत क्ा है ? उसे हम िोिने िे किए िनाते हैं । और िोिने िा प्रयोजन ही यह है कि मैं
तु म्हें िुछ समझा पाऊूं; मैं जि शब्द िोिु तो तु म्हारे पास िोई अथग िा इशारा हो पाए। जि िोर् सातवें से ि टे
या सातवें िो जाना, तो उन्ें िर्ा कि इसिे किए िोई भी शब्द िनाएूं र्े , उसमें अर्र अथग होर्ा, तो वह पाूं चवें
शरीर िे पहिे िा जो जाएर्ा—तत्काि। उसिा भाषा—िोश में से अथग किख कदया जाएर्ा; िोर् पढ़ िेंर्े और
समझ िेंर्े। िेकिन सातवें िा तो िोई अथग नही ूं हो सिता। या तो िहो मीकनर्िेस ,अथगहीन; या िहो कियाूं ड
मीकनूंर्, अथाग तीत; दोनोूं एि ही िात है ।

तो उस अथाग तीत िे किए—जहा कि सि अथग खो र्ए हैं , िोई अथग ही नही ूं िचा है —िैसा शब्द
खोजें? और िैसे खोजें?और उस शब्द िो िैसे िनाएूं ? तो शब्द िो िनाने में िड़े कवज्ञान िा प्रयोर् किया र्या।
वह शब्द िनाया िहुत......िहुत ही िल्पनाशीि, और िड़े कवजन, और िड़े दू रदृकष्ट से वह शब्द िनाया
र्या; क्ोूंकि वह िनाया जा रहा था और एि रूट, एि म किि शब्द था जो मूि आधार पर खड़ा िरना था। तो
िैसे इस शब्द िो खोजें कजसमें कि िोई अथग न हो; और किस प्रिार से खोजें कि वह र्हरे अथग में मूि आधार
िा प्रतीि भी हो जाए?

तो हमारी भाषा िी जो मू ि ध्वकन हैं , वे तीन हैं ए, यू एम— अ, ऊ, म। हमारा सारा िा सारा शब्दोूं िा
कवस्तार इन तीन ध्वकनयोूं िा कवस्तार है । तो रूट ध्वकनयाूं तीन हैं — अ, ऊ, म। अच्छा अ, ऊ और म में िोई अथग
नही ूं है ; अथग तो इनिे सूं िूंधोूं से तय होर्ा। अ जि ' अि' िन जाएर्ा, तो अथगपूणग हो जाएर्ा; म जि िोई शब्द
िन जाएर्ा तो अथगपूणग हो जाएर्ा। अभी अथगहीन हैं । अ, ऊ, म, इनिा िोई अथग नही ूं है । और ये तीन मूि हैं ।
किर सारी हमारी वाणी िा कवस्तार इन तीन िा ही िैिाव है , इन तीन िा ही जोड़ है ।

तो ये तीन मूि ध्वकनयोूं िो पिड़ किया र्या— अ, ऊ, म, तीनोूं िे जोड़ से ओमि् िना कदया। तो ओमि्
किखा जा सिता था, िेकिन किखने से किर शि पैदा होता किसी िो कि इसिा िोई अथग होर्ा; क्ोूंकि किर
वह शब्द िन जाता। ' अि ', 'आज ', ऐसा ही ओमि् में भी एि शब्द िन जाता। और िोर् उसिा अथग कनिाि
िेते कि ओमि् यानी वह जो सातवें पर है । तो किर शब्द न िनाएूं इसकिए हमने कचत्र िनाया ओमि् िा, ताकि
शब्द, अक्षर िा भी उपयोर् मत िरो उसमें। अ, ऊ, म तो है वह,पर वह ध्वकन है —शब्द नही,ूं अक्षर नही ूं।
इसकिए किर हमने ओमि् िा कचत्र िनाया, उसिो कपक्ङोररअि िर कदया, ताकि उसमें सीधा िोई
भाषा—िोश में खोजने न चिा जाए उसे —कि ओमि् िा क्ा मतिि होता है । तो वह ओमि् जो है आपिी आखोूं
में र्ड़ जाए और प्रश्नवाचि िन जाए कि क्ा मतिि?

जि भी िोई आदमी सूं स्कृत पढ़ता है या पुराने ग्रूंथ पढ़ने दु कनया िे किसी िोने से आता है , तो इस
शब्द िो िताना मुक्तिि हो जाता है उसे । और शब्द तो सि समझ में आ जाते हैं , क्ोूंकि सििा अनुवाद हो
जाता है । वह िार—िार कदक्कत यह आती है कि ओमि् यानी क्ा? इसिा मतिि क्ा है ? और किर इसिो
अक्षरोूं में क्ोूं नही ूं किखते हो? इसिो ओमि् किखो न! यह कचत्र क्ोूं िनाया हुआ है ?

उस कचत्र िो भी अर्र तु म र् र से दे खोर्े , तो उसिे भी तीन कहस्से हैं , और वे अ, ऊ और म िे प्रतीि


हैं । वह कपक्गर भी िड़ी खोज है , वह कचत्र भी साधारण नही ूं है । और उस कचत्र िी खोज भी च थे शरीर में िी र्ई
है । उस कचत्र िी खोज भी भ कति शरीर से नही ूं िी र्ई है , वह च थे शरीर िी खोज है । असि में , जि च थे
शरीर में िोई जाता है और कनकवगचार हो जाता है , ति उसिे भीतर अ, ऊ, म, इनिी ध्वकनयाूं र्ूूंजने िर्ती हैं और
उन तीनोूं िा जोड़ ओमि् िनने िर्ता है । जि पूणग सन्नाटा हो जाता है कवचार िा, जि सि कवचार खो जाते हैं , ति
ध्वकनयाूं रह जाती हैं और ओमि् िी ध्वकन र्ूंजने िर्ती है । वह जो ओमि् िी ध्वकन र्ूूंजने िर्ती है , वहाूं च थे शरीर
से उसिो पिड़ा र्या है कि ये जहाूं कवचार खोते हैं , भाषा खोती है , वहाूं जो शे ष रह जाता है , वह ओमि् िी ध्वकन
रह जाती है ।

जनजिओचार चेतना में ओम् का आजिभाओ ि:

इधर से तो उस ध्वकन िो पिड़ा र्या। और जैसा मैंने तु मसे िहा कि कजस तरह हर शब्द िा एि पै टनग
है , हर शब्द िा एि पैटनग है ......जि हम एि शब्द िा प्रयोर् िरते हैं तो हमारे भीतर एि पैटनग िनना शु रू
होता है । तो जि यह ओमि् िी ध्वकन रह जाती है भीतर कसिग, ति अर्र इस ध्वकन पर एिाग्र किया जाए कचि, तो
ध्वकन— अर्र पूरी तरह से कचि एिाग्र हो, जो कि च थे पर हो जाना िकठन नही ूं है , और जि यह ओमि् सु नाई
पड़े र्ा तो हो ही जाएर्ा। उस च थे शरीर में ओमि् िी ध्वकन र्ूूं जती रहे र्ूूंजती रहे , र्ूूंजती रहे , और अर्र िोई
एिाग्र इसिो सु नता रहे , तो इसिा कचत्र भी उभरना शु रू हो जाता है ।

इस तरह िीज मूंत्र खोजे र्ए— सारे िीज मूंत्र इसकिए खोजे र्ए। एि—एि चक्र पर जो ध्वकन होती
है , उस ध्वकन पर जि एिाग्र कचि से साधि िैठता है , तो उस चक्र िा िीज शब्द उसिी पिड़ में आ जाता है ।
और वे िीज शब्द इस तरह कनकमगत किए र्ए। ओमि् जो है , वह परम िीज है ; वह किसी एि चक्र िा िीज नही ूं
है , वह परम िीज है ; वह सातवें िा प्रतीि है —या अनाकद िा प्रतीि है , या अनूंत िा प्रतीि है ।

ओम् —सािओभौजमक सत्य:

इस भाूं कत उस शब्द िो खोजा र्या। और िरोडोूं िोर्ोूं ने जि उसिो टै िी किया और स्वीिृकत दी, ति
वह स्वीिृत हुआ। एिदम से स्वीिृत नही ूं हो र्या; सहज स्वीिृत नही ूं िर किया कि एि आदमी ने िह कदया।
िरोड़ोूं साधिोूं िो जि वही प्रकत िार हो र्या, और जि वह सु कनकश्चत हो र्या।
इसकिए ओमि् शब्द जो है , वह किसी धमग िी, किसी सूं प्रदाय िी िप ती नही ूं है । इसकिए ि द्ध भी
उसिा उपयोर् िरें र्े ,किना कििर किए; जैन भी उसिा उपयोर् िरें र्े , किना कििर किए। कहूं दुओूं िी िप ती
नही ूं है वह। उसिा िारण है । उसिा िारण यह है कि वह तो साधिोूं िो— अनेि साधिोूं िो, अनेि मार्ों
से र्ए साधिोूं िो वह कमि र्या है । दू सरे मुम्ऻोूं में भी जो चीजें हैं , वे भी किसी अथग में उसिे कहस्से हैं ।

अि जैसे कि अर्र हम अरे किि या िैकटन या रोमन, इनमें जो खोजिीन साधि िी रही है , उसिो भी
पिड़ने जाएूं , तो एि िड़े मजे िी िात है कि म तो जरूर कमिेर्ा; किसी में अ और म कमिेर्ा, म तो अकनवायग
कमिेर्ा। उसिे िारण हैं कि वह इतना सू क्ष्म कहस्सा है कि अक्सर आर्े िा कहस्सा छूट जाता है , पिड़ में नही ूं
आता और पीछे िा कहस्सा सु नाई पड़ता है । तो ओऽऽऽमि् िी जि आवाज होनी शु रू होती है भीतर, तो म सिसे
ज्यादा सरिता से पिड़ में आता है । वह आर्े िा जो कहस्सा है वह दि जाता है कपछिे म से । ऐसे भी तु म अर्र
किसी िूं द भवन में िैठिर ओमि् िी आवाज िरो, तो म सििो दिा दे र्ा— अ और ऊ िो दिा दे र्ा और म
एिदम व्यापि हो जाएर्ा। इसकिए िहुत साधिोूं िो ऐसा िर्ा कि म तो है पक्का। आर्े िी िुछ भूि —चूि
हो र्ई, सु नने िे िुछ भे द हैं ।

और इसकिए दु कनया िे सभी, जहाूं भी......जैसे अमीन, तो उसमें म अकनवायग है । जहाूं —जहाूं साधिोूं ने
उस शरीर पर िाम किया है , वहाूं िुछ तो उनिो पिड़ में आया है । िेकिन कजतना ज्यादा प्रयोर् हो, जैसे कि
एि प्रयोर् िो हजार वैज्ञाकनि िरें ,तो उसिी वैकिकडटी िढ जाती है ।

िाखोां साधकोां की सब्धम्मजित खोज— ओम्:

तो यह मुम्ऻ एि किहाज से स भाग्यशािी है कि यहाूं हमने हजारोूं साि आक्तत्मि यात्रा पर व्यतीत किए
हैं । इतना किसी मुम्ऻ ने , इतने िड़े पैमाने पर, इतने अकधि िोर्ोूं ने िभी नही ूं किया। अि िु द्ध िे साथ दस—
दस हजार साधि िैठे हैं । महावीर िे साथ चािीस हजार कभक्षु और कभक्षुकणयाूं थी ूं। छोटा सा किहार, वहाूं चािीस
हजार आदमी एि साथ प्रयोर् िर रहे हैं । दु कनया में िही ूं ऐसा नही ूं हुआ। जीसस िेचारे िड़े अिेिे हैं । मोहिद
िा किजूि ही समय जाया हो रहा है नासमझोूं से िड़ने में। यहाूं एि क्तस्थकत िन र्ई थी कि यहाूं यह िात अि
िड़ने िी नही ूं रह र्ई थी, यह खत्म हो चुिा था वक्त, यहाूं चीजें साि हो र्ई थी ूं।

अि महावीर िैठे हैं और चािीस हजार िोर् एि साथ साधना िर रहे हैं । टै िी िरने िी िड़ी सु कवधा
थी। चािीस हजार िोर्ोूं में क्ा हो रहा है —च थे शरीर पर क्ा हो रहा है, तीसरे पर क्ा हो रहा है, दू सरे में क्ा
हो रहा है । एि भूि िरे र्ा, दो भूि िरें र्े , चािीस हजार तो भूि नही ूं िर सिते ! चािीस हजार अिर्—अिर्
प्रयोर् िर रहे हैं , किर वह सि सोचा जा रहा है ,पिड़ा जा रहा है ।

इसकिए इस मुम्ऻ ने िुछ िहुत िीज चीजें खोज िी ,ूं जो दू सरे मुम्ऻ नही ूं खोज पाए, क्ोूंकि वहाूं
साधि सदा अिेिा था। साधि इतने िड़े ३मा३ पर िही ूं भी नही ूं था। जैसे आज पकश्चम िड़े पैमाने पर कवज्ञान
िी खोज में िर्ा है , हजारोूं वैज्ञाकनि िर्े हैं , इस भाूं कत इस मुम्ऻ ने िभी अपने हजारोूं प्रकतभाशािी िोर् एि ही
कवज्ञान पर िर्ा कदए थे। तो वहाूं से वे जो िाए हैं ,वह िड़ा साथग ि तो है ।

और किर िभी उसिी खिरें जाते —जाते यात्रा में, दू सरे मुम्ऻोूं ति पहुूं चते —पहुूं चते िहुत िदि
र्ईूं—िहुत िदि र्ईूं, िहुत टू ट—िूट र्ईूं।
क्ास का स्वब्धस्तक और ओम् से सां बांध:

अि जैसे कि जीसस िा क्रास है , वह स्वक्तस्ति िा िचा हुआ कहस्सा है । िेकिन इतनी यात्रा िरते —
िरते वह इतना टू ट र्या है । स्वक्तस्ति िहुत वक्त से ओमि् जैसा एि प्रतीि था। ओमि् सातवें िा प्रतीि
था, स्वक्तस्ति प्रथम िा प्रतीि है । इसकिए स्वक्तस्ति िा जो कचत्र है , वह डाइनेकमि है , मूव िर रहा है । इसकिए
उसिी शाखा आर्े िैि जाती है और मू वमेंट िा खयाि दे ती है —घूम रहा है वह। सूं सार िा मतिि होता है जो
घूम रहा है , जो पूरे वक्त घूम रहा है ।

तो स्वक्तस्ति हमने प्रथम िा प्रतीि िना किया था और ओमि् अूंकतम िा प्रतीि था। इसकिए ओमि् में
मूवमेंट किििुि नही ूं है ; वह किििुि कथर है — डे ड साइिेंट, और सि रुि र्या है वहाूं , वहाूं िोई मूवमेंट नही ूं
है । उस कचत्र में िोई मूवमेंट नही ूं है । स्वक्तस्ति में मूवमेंट है । वह पहिा और वह अूंकतम है । स्वक्तस्ति यात्रा
िरते —िरते िटिर क्रास रह र्या, कक्रकश्चएकनटी ति पहुूं चते —पहुूं चते । वह जि जीसस िे वक्त में.....क्ोूंकि
जीसस िी िहुत सूं भावना है कि वे इकजप्त भी आए और भारत भी आए;वे नािूंदा में भी थे और वे इकजप्त में भी
थे, और वे िहुत सी खिरें िे र्ए; उन खिरोूं में स्वक्तस्ति भी एि खिर थी। िेकिन वह खिर वैसी ही हुई कसद्ध
जैसा कि वह आदमी जो िहुत िूिोूं िो दे खिर र्या, और उस जर्ह जािर उसने खिर दी जहाूं एि ही िूि
होता था। वह िट र्ई खिर, वह क्रास रह र्या।

ओम् (ओम) से उदभू त इस्लाम का अधओचांद्र:

ओमि् िा जो ऊपर िा कहस्सा है वह इस्लाम ति पहुूं च र्या। वह चाूं द िा जो आधा टु िड़ा वे िहुत
आदर िर रहे हैं , वह ओमि् िा टू टा हुआ कहस्सा है —ऊपर िा कहस्सा है ; वह यात्रा िरते में िट र्या। शब्द और
प्रतीि यात्रा िरते में िुरी तरह िटते हैं , और हजारोूं साि िाद वे इस तरह कघसकपस जाते हैं कि अिर् मािूम
होने िर्ते हैं । किर पहचानना ही मुक्तिि हो जाता है कि यह वही शब्द है । पिड़ना ही मुक्तिि हो जाता है कि
यह वही शब्द िैसे हो सिता है ! यात्रा में नई ध्वकनयाूं जुड़ती हैं , नये शब्द जुड़ते हैं , नये िोर् नई जिान से
उसिा उपयोर् िरते है —सि तरह िा अूंतर होता जाता है । और किर मूि स्रोत से अर्र कवक्तच्छन्न हो जाएूं , तो
किर िुछ तय िरने िी जर्ह नही ूं रह जाती कि वह ठीि क्ा था—िहाूं से आया? क्ा हुआ?

सारी दु कनया िे आध्याक्तत्मि प्रवाह र्हरे में इस मु म्ऻ से सूं िूंकधत हैं , क्ोूंकि उनिा म किि मू ि स्रोत
इसी मुम्ऻ से पैदा हुआ, और सारी खिरें इस मुम्ऻ से िैिनी शु रू हुईूं। िेकिन खिरें िे जानेवािे आदमी िे
पास दू सरी भाषा थी। कजनिो उसने खिर दी जािर, उनिो िुछ भी पता नही ूं था कि वह क्ा खिर दे रहा है ।
अि किसी ईसाई िो, पादरी िो यह खयाि नही ूं हो सिता कि वह र्िे में जो िटिाए हुए है , वह स्वक्तस्ति िा
टू टा हुआ कहस्सा है , वह क्रास िन र्या। किसी मुसिमान िो खयाि नही ूं हो सिता कि वह उस चाूं द िो, वह
जो अधग चूंद्र िो इतना आदर दे रहा है , वह ओमि् िा आधा कहस्सा है , ओमि् िा टू टा हुआ कहस्सा है ।

अब जिर कि बात करें गे ।


प्रिचन 16 - ओम् साध्य है , साधन नही ां

(दसिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ )

प्रश्न: ओशो कि सातिें शरीर के सां दभओ में ओम् पर कछ आपने बातें की। इसी सां बांध में एक
छोटा सा प्रश्न यह है जक अर ऊ और म के कांपन जकन चक्ोां को प्रभाजित करते हैं और उनका साधक के
जिए उपयोग क्ा हो सकता है ? इन चक्ोां के प्रभाि से सातिें चक् का क्ा सां बांध है ?

ओमि् िे सूं िूंध में थोड़ी सी िातें िि मैं ने आपसे िही ूं। उस सूं िूंध में थोड़ी सी और िातें जानने जै सी
हैं । एि तो यह कि ओमि् सातवी ूं अवस्था िा प्रतीि है , सू चि है , वह उसिी खिर दे नेवािा है । ओमि् प्रतीि है
सातवी ूं अवस्था िा। सातवी ूं अवस्था किसी भी शब्द से नही ूं िही जा सिती। िोई साथग ि शब्द उस सूं िूंध में
उपयोर् नही ूं किया जा सिता। इसकिए एि कनरथगि शब्द खोजा र्या, कजसमें िोई अथग नही ूं है । यह मैंने िि
आपसे िहा। इस शब्द िी खोज भी च थे शरीर िे अनुभव पर हुई है । यह शब्द भी साधारण खोज नही ूं है ।

असि में , जि कचि सि भाूं कत शू न्य हो जाता है —िोई कवचार नही ूं होते , िोई शब्द नही ूं होते —ति भी
शू न्य िी ध्वकन शे ष होती है । शू न्य भी िोिता है , शू न्य िा भी अपना सन्नाटा है । अर्र िभी किििुि सू नी जर्ह
में आप खड़े हो र्ए होूं—जहाूं िोई आवाज नही,ूं िोई ध्वकन नही—
ूं तोूं वहा शू न्य िी भी एि ध्वकन है , वहाूं शू न्य
िा भी एि सन्नाटा है । उस सन्नाटे में , जो मूि ध्वकनयाूं हैं , वे ही िेवि शे ष रह जाती हैं । अ, ऊ, म—ए, यू एम मू ि
ध्वकनयाूं हैं । हमारा सारा ध्वकन िा कवस्तार उन तीन ध्वकनयोूं िे ही नये —नये सूं िूंधोूं और जोड़ोूं से हुआ है । जि
सारे शब्द खो जाते हैं , ति ध्वकन शे ष रह जाती है ।

ओम् के जप से स्वप्न िोक में खोने की सां भािना:

तो ओमि् शब्द तो प्रतीि है सातवी ूं अवस्था िा, सातवें शरीर िा, िेकिन ओमि् शब्द िो पिड़ा र्या है
च थे शरीर में। च थे शरीर िी, मनस शरीर िी शू न्यता में— शू न्यता में जो ध्वकन होती है , शू न्य िी जो ध्वकन
है , वहाूं ओमि् पिड़ा र्या है । तो इस ओमि् िा यकद साधि प्रयोर् िरे , तो दो पररणाम हो सिते हैं । जैसा कि
आपिो याद होर्ा, मैंने िहा कि च थे शरीर िी दो सूं भावनाएूं हैं , सभी शरीरोूं िी दो सूं भावनाएूं हैं । यकद साधि
ओमि् िा ऐसा प्रयोर् िरे कि उस ओमि् िे द्वारा तूं द्रा पैदा हो जाए,कनद्रा पैदा हो जाए—किसी भी शब्द िी
पुनरुक्तक्त से पैदा हो जाती है ; किसी भी शब्द िो अर्र िार—िार दोहराया जाए, तो उसिा एि सा सूं घात, एि
सी चोट, ियिद्ध, जैसे कि कसर पर िोई तािी थपि रहा हो, ऐसा ही पररणाम िरती है और तूं द्रा पै दा िर दे ती
है ।
तो च थे मनस शरीर िी जो पहिी प्रािृकति क्तस्थकत है —िल्पना, स्वप्न। अर्र ओमि् िा इस भाूं कत प्रयोर्
किया जाए कि उससे तूं द्रा आ जाए तो आप एि स्वप्न में खो जाएूं र्े। वह स्वप्न सिोहन तूं द्रा जैसा
होर्ा, कहिोकटि स्लीप जैसा होर्ा। उस स्वप्न में जो भी आप दे खना चाहें , दे ख सिेंर्े। भर्वान िे दशग न िर
सिते हैं , स्वर्ग—नरिोूं िी यात्रा िर सिते हैं । िेकिन होर्ा वह सि स्वप्न; सत्य उसमें िुछ भी नही ूं होर्ा।
आनूंद िा अनु भव िर सिते हैं , शाूं कत िा अनुभव िर सिते हैं । िेकिन होर्ी सि िल्पना; यथाथग िुछ भी नही ूं
होर्ा।

तो एि तो ओमि् िा इस तरह िा प्रयोर् है जो अकधितर चिता है । यह सरि िात है ; इसमें िहुत


िकठनाई नही ूं है । ओमि् िी ध्वकन िो जोर से पैदा िरिे उसमें िीन हो जाना िहुत ही सरि है , उसिी िीनता
िड़ी रसपूणग है । जैसे सु खद स्वप्न होता है ,ऐसी रसपूणग है ; मनचाहा स्वप्न, ऐसी रसपूणग है। और मनस शरीर िे दो
ही रूप हैं —िल्पना िा, स्वप्न िा; और दू सरा रूप है सूं िल्प िा और कदव्य—दृकष्ट िा, कवजन िा।

तो अर्र ओमि् िा कसिग पु नरुक्तक्त से व्यवहार किया जाए मन िे ऊपर, तो उसिे सूं घात से तूं द्रा पैदा
होती है । कजसे योर्— तूं द्रा िहते हैं , वह ओमि् िे सूं घात से पैदा हो जाती है । िेकिन यकद ओमि् िा उच्चारण
किया जाए, और पीछे साक्षी िो भी िायम रखा जाए—दोहरे िाम किए जाएूं ओमि् िी ध्वकन पै दा िी जाए और
पीछे जार्िर इस ध्वकन िो सु ना भी जाए—इसमें िीन न हुआ जाए, इसमें डूिा न जाए— यह ध्वकन एि ति पर
चिती रहे और हम दू सरे ति पर खड़े होिर इसिो सु ननेवािे , साक्षी,द्रष्टा, श्रोता हो जाएूं ; िीन न होूं, िक्तम्ऻ जार्
जाएूं इस ध्वकन में ; तो च थे शरीर िी दू सरी सूं भावना पर िाम शु रू हो जाता है । ति स्वप्न में नही ूं जाएूं र्े
आप, योर्—तूं द्रा में नही ूं जाएूं र्े , योर्—जार्ृकत में चिे जाएूं र्े।

मैं कनरूं तर िोकशश िरता हूं कि आपिो शब्द िे प्रयोर् न िरने िो िहूं — कनरूं तर िहता हूं कि किसी
मूंत्र, किसी शब्द िा आप उपयोर् न िरें , क्ोूंकि स में कनन्यानिे म िे आपिे तूं द्रा में चिे जाने िे हैं । उसिे
िारण हैं । हमारा वह जो च था शरीर है , कनद्रा िा आदी है ; वह सोना ही जानता है । वह जो हमारा च था शरीर
है , डरीम टर ै ि उसिा िना ही हुआ है । वह रोज सपने दे खता ही है । तो ऐसे ही, जैसे इस िमरे में हम पानी िो
िहा दें , किर पानी सू ख जाए, पानी चिा जाए, सू खी रे खा रह जाए। किर हम दू सरा पानी ढािें , तो वह पुरानी रे खा
िो पिड़िर ही िह जाएर्ा।

ओम् और 'मैं कौन हां ' में मौजिक जभन्नता:

तो शब्द, मूंत्र िे उपयोर् से िहुत सूं भावना यही है कि आपिा वह जो स्वप्न दे खने िा आदी मन है , वह
अपनी याूं कत्रि प्रकक्रया से तत्काि स्वप्न में चिा जाएर्ा। िेकिन यकद साक्षी िो जर्ाया जा सिे और पीछे तु म
खड़े होिर दे खते भी रहो कि यह ओमि् िी ध्वकन हो रही है — इसमें िीन न होओ, इसमें डूिो मत—तो ओमि् से
भी वही िाम हो जाएर्ा जो मैं ' मैं ि न हूं 'िे प्रयोर् से तु म्हें िरने िो िह रहा हूं । और अर्र ' मैं ि न हूं ' िो
भी तु म कनद्रा िी भाूं कत पूछने िर्ो और पीछे साक्षी न रह जाओ, तो जो भूि ओमि् से स्वप्न पै दा होने िी होती
है , वह ' मैं ि न हूं ' से भी पैदा हो जाएर्ी।

िेकिन ‘मैं ि न हूं ? से पैदा होने िी सूं भावना थोड़ी िम है ओमि् िी िजाय। उसिा िारण है कि ओमि्
में िोई प्रश्न नही ूं है , कसिग थपिी है ; ' मैं ि न हूं ' में प्रश्न है , कसिग थपिी नही ूं है । और ' मैं ि न हूं ? िे पीछे क्रेश्चन
मािग खड़ा है जो आपिो जर्ाए रखे र्ा।
यह िड़े मजे िी िात है कि अर्र कचि में प्रश्न हो तो सोना मुक्तिि हो जाता है । अर्र कदन में भी
आपिे कचि में िोई िहुत र्हरा प्रश्न घूम रहा है , तो रात आपिी नी ूंद खराि हो जाएर्ी—प्रश्न आपिो सोने न
दे र्ा। वह जो क्ेश्चन मािग है अकनद्रा िा िड़ा सहयोर्ी है । अर्र कचि में िोई प्रश्न खड़ा है , कचूंता खड़ी है , िोई
सवाि खड़ा है , िोई कजज्ञासा खड़ी है , तो नी ूंद मुक्तिि हो जाएर्ी।

'मैं कौन हां में एक चोट है :

तो मैं ओमि् िी जर्ह ' मैं ि न हूं ' िे प्रयोर् िे किए इसकिए िह रहा हूं कि उसमें म किि रूप से एि
प्रश्न है । और चूूंकि प्रश्न है , इसकिए उिर िी िहुत र्हरी खोज है ; और उिर िे किए तु म्हें जार्ा ही रहना होर्ा।
वह ओमि् में िोई प्रश्न नही ूं है ; उसिी चोट नुिीिी नही ूं है , वह किििुि र्ोि है । उसमें िही ूं चोट नही ूं है , उसमें
िही ूं िोई प्रश्न नही ूं है । और उसिा कनरूं तर सूं घात, उसिी चोट, कनद्रा िे आएर्ी।

किर ' मैं ि न हूं ' में सूं र्ीत नही ूं है । ओमि् में िहुत सूं र्ीत है , वह िहुत सूं र्ीतपूणग है । और कजतना ज्यादा
सूं र्ीत है उतना स्वप्न में िे जाने में समथग है । ' मैं ि न हूं ' आड़ा—टे ढ़ा है , पुरुष शरीर जैसा है । ओमि् जो है , िहुत
सु ड ि, स्त्री शरीर जैसा है ;उसिी थपिी जल्दी सु िा दे र्ी।

शब्दोूं िे भी आिार हैं । शब्दोूं िी भी चोट िा भे द है । उनिा भी सूं र्ीत है । ' मैं ि न हूं ' में िोई सूं र्ीत
नही ूं है । वह सु िाना जरा मुक्तिि है । अर्र सोया आदमी भी पड़ा हो, और उसिे पास हम िैठिर िहने िर्ें —
' मैं ि न हूं ', ' मैं ि न हूं ',तो सोया हुआ आदमी भी जर् सिता है । िेकिन सोए हुए आदमी िे पास अर्र हम
िैठिर ओमि् , और ओमि् , और ओमि् िी िात दोहराने िर्ें , तो उसिी नी ूंद और र्हरी हो जाएर्ी।

सूं घात िे ििग हैं । िेकिन इसिा यह मतिि नही ूं है कि ओमि् से नही ूं किया जा सिता। सूं भावना तो है
ही। अर्र िोई ओमि् िे पीछे जार्िर खड़ा हो सिे तो उससे भी यही िाम हो जाएर्ा।

ओम् : शब्द और जनिःशब्द का सीमाां त:

िेकिन मैं ओमि् िो साधना िे ित र प्रयोर् नही ूं िरवाना चाहता। उसिे और भी िहुत िारण हैं ।
क्ोूंकि ओमि् िी अर्र साधना िरें र्े तो च थे शरीर से ओमि् िा अकनवायग एसोकसएशन हो जाएर्ा। ओमि् प्रतीि
तो है सातवें शरीर िा, िेकिन उसिा अनुभव होता है च थे शरीर में — ध्वकन िा। अर्र एि िार ओमि् से साधना
शु रू िी तो ओमि् और च थे शरीर में एि एसोकसएशन,अकनवायग सूं िूंध हो जाएर्ा; और वह रोिनेवािा कसद्ध
होर्ा; वह आर्े िे जाने में िाधा डाि सिता है ।

तो इस शब्द िे साथ िकठनाई है । इसिी प्रतीकत तो होती है च थे शरीर में , िेकिन इसिो प्रयोर् किया
र्या है सातवें शरीर िे किए। और सातवें शरीर िे किए िोई शब्द नही ूं है हमारे पास। और हम जहाूं ति शब्दोूं
िा अनु भव िरते हैं —च थे शरीर िे िाद किर शब्दोूं िा अनुभव िूंद हो जाता है —तो च थे शरीर िा जो
आक्तखरी शब्द है , उसिो हम अूंकतम अवस्था िे किए प्रयोर् िर रहे हैं । और िोई उपाय भी नही ूं है । क्ोूंकि
पाूं चवाूं शरीर किर कनःशब्द है ; छठवाूं किििुि कनःशब्द है ; सातवाूं तो किििुि ही शू न्य है । च थे शरीर िी जो
आक्तखरी शब्द िी सीमा है , जहाूं से हम शब्दोूं िो छोड़ें र्े, वहाूं आक्तखरी क्षण में , सीमाूं त पर ओमि् सु नाई पड़ता है ।
तो भाषा िी दु कनया िा वह आक्तखरी शब्द है , और अभाषा िी दु कनया िा वह पहिा; वह दोनोूं िी
िाउूं डरी पर है । है तो वह च थे शरीर िा, िेकिन हमारे पास उससे ज्यादा सातवें शरीर िे िोई कनिट शब्द नही ूं
है । किर और शब्द और दू र पड़ जाते हैं । इसकिए उसिो सातवें िे किए प्रयोर् किया है ।

तो मैं पसूं द िरता हूं कि उसिो च थे िे साथ िाूं धें न। वह अनुभव तो च थे में होर्ा, िेकिन उसिो कसूं िि सातवें
िा ही रहने दे ना उकचत है । इसकिए उसिा साधना िे किए उपयोर् िरने िी जरूरत नही ूं। उसिे किए किसी
ऐसी चीज िा उपयोर् िरना चाकहए जो च थे पर ही छूट भी जाए। जैसे , 'मैं ि न हूं ?' यह च थे में प्रयोर् भी
होर्ा, छूट भी जाएर्ा।

ओम् साध्य है , साधन नही ां:

और ओमि् िा कसिाकिि अथग ही रहना चाकहए। साधन िी तरह उसिा उपयोर् और भी एि िारण से
उकचत नही ूं है । क्ोूंकि कजसे हम अूंकतम िा प्रतीि िना रहे हैं , उसे हमें अपना साधन नही ूं िनाना
चाकहए; कजसिो हम परम, एब्लोल्यु ट िा प्रतीि िना रहे हैं , उसिा साधन नही ूं िनाना चाकहए; वह साध्य ही
रहना चाकहए। ओमि् वह है कजसे हमें पाना है ! इसकिए ओमि् िो किसी भी तरह िे मीन्ऱ िी तरह, साधन िी
तरह प्रयोर् िरने िे मैं पक्ष में नही ूं हूं ।

और उसिा प्रयोर् हुआ है , उससे िहुत नुिसान हुए हैं । उसिा प्रयोर् िरनेवािा साधि िहुत िार
च थे शरीर िो सातवाूं समझ िैठा; क्ोूंकि ओमि् सातवें िा प्रतीि था और च थे में अनु भव होता है । और जि
च थे में अनुभव होता है तो साधि िो िर्ता है कि ठीि है , अि हम ओमि् िो उपिि हो र्ए; अि और यात्रा न
रही, अि यात्रा खत्म हो र्ई। इसकिए साइकिि िॉडी पर िड़ा नुिसान होता है ; वह वही ूं रुि जाता है । िहुत से
साधि हैं , जो कवजन्ऱ िो, दृश्योूं िो, रूं र्ोूं िो, ध्वकनयोूं िो, नाद िो,इसिो उपिक्ति मान िेते हैं ।
स्वभावत:, क्ोूंकि कजसिो अूंकतम प्रतीि िहा है , वह इस सीमा—रे खा पर पता चिने िर्ता है । किर हमें िर्ता
है , आ र्ई सीमा।

इसकिए भी मैं च थे शरीर में इसिे प्रयोर् िे पक्ष में नही ूं हूं । और इसिा अर्र प्रयोर् िरें र्े तो
पहिे , दू सरे , तीसरे शरीर पर इसिा िोई पररणाम नही ूं होर्ा; इसिा पररणाम च थे शरीर पर होर्ा। इसकिए
पहिे , दू सरे , तीसरे शरीर िे किए दू सरे शब्द खोजे र्ए हैं , जो उन चोट िर सिते हैं ।

जगत और ब्रह्म के बीच ओम् का अनाहत नाद:

ये जो मूि ध्वकनयाूं हैं — अ, ऊ और म िी, इस सूं िूंध में एि िात और खयाि में िे िेनी उकचत है । जैसे
िाइकिि है ,िाइकिि यह नही ूं िहती कि परमात्मा ने जर्त िनाया, िनाने िा िोई िाम किया, ऐसा नही ूं िहती।
िहती ऐसा है कि परमात्मा ने िहा—प्रिाश हो! और प्रिाश हो र्या। िनाने िा िोई िाम नही ूं किया, िोिने
िा िोई िाम किया। जैसे िाइकिि िहती है कि सिसे पहिे शब्द था—कद वडग । सिसे पहिे शब्द था, किर सि
हुआ। पुराने और िहुत से शास्त्र इस िात िी खिर दे ते हैं कि सिसे पहिे शब्द था। जैसे कि भारत में िहते हैं
शब्द ब्रह्म है । हािाूं कि इससे िड़ी भ्ाूं कत होती है , इससे िई िोर् समझ िेते हैं कि शब्द से ही ब्रह्म कमि जाएर्ा।
ब्रह्म तो कमिेर्ा कनःशब्द से , िेकिन ' शब्द ब्रह्म है ' इसिा मतिि िेवि इतना ही है कि हम अपने अनुभव में
कजतनी ध्वकनयोूं िो जानते हैं , उसमें सिसे सू क्ष्मतम ध्वकन शब्द िी है ।

अर्र हम जर्त िो पीछे ि टाएूं , पीछे ि टाएूं , पीछे ि ट जाएूं , तो अूंततः जि हम शू न्य िी िल्पना
िरें , जहाूं से जर्त शु रू हुआ होर्ा, तो वहाूं भी ओमि् िी ध्वकन हो रही होर्ी—उस शू न्य में। क्ोूंकि जि हम च थे
शरीर पर शू न्य िे िरीि पहुूं चते हैं तो ओमि् िी ध्वकन सु नाई पड़ती है , और वहाूं से हम डूिने िर्ते हैं उस
दु कनया में जहाूं कि प्रारूं भ में दु कनया रही होर्ी। च थे िे िाद हम जाते हैं आत्म शरीर में , आत्म शरीर िे िाद जाते
हैं ब्रह्म शरीर में, ब्रह्म शरीर िे िाद जाते हैं कनवाग ण शरीर में, और आक्तखरी ध्वकन जो उन दोनोूं िे िीच में है , वह
ओमि् िी है ।

इस तरि हमारा व्यक्तक्तत्व है चार शरीरोूं वािा, कजसिो हम िह सिते हैं — जर्त; और उस तरि
हमारा अव्यक्तक्तत्व है ,कजसिो हम िह सिते हैं —ब्रह्म। ब्रह्म और जर्त िे िीच में जो ध्वकन सीमा—रे खा पर
र्ूूंजती है , वह ओमि् िी है । इस अनुभव से यह खयाि में आना शु रू हुआ कि जि जर्त िना होर्ा, तो उस ब्रह्म
िे शू न्य से इस पदाथग िे सािार ति आने में िीच में ओमि् िी ध्वकन र्ूूंजती रही होर्ी। और इसकिए ' शब्द था',
' वडग था ', ' उस शब्द से ही सि हुआ', यह खयाि है । और इस शब्द िो अर्र हम उसिे मूि तत्वोूं में तोड़ दें
तो वह ए, यू एम पर रह जाता है ; िस तीन ध्वकनयाूं म किि रह जाती हैं । उन तीनोूं िा जोड़ ओमि् है । तो इसकिए
ऐसा िहा जा सिता है ओमि् ही पहिे था, ओमि् ही अूंत में होर्ा। क्ोूंकि अूंत जो है वह पहिे में ही वापस ि ट
जाना है ; वह जो अूंत है वह सदा पहिे में वापस ि ट जाना है —सकिगि पूरा होता है ।

िेकिन किर भी मेरा यह कनरूं तर खयाि रहा है कि ओमि् िो प्रतीि िी तरह ही प्रयोर् िरना है , साधन
िी तरह नही ूं। साधन िे किए और चीजें खोजी जा सिती हैं । ओमि् जैसे पकवत्रतम शब्द िो साधन िी तरह
उपयोर् िरिे अपकवत्र नही ूं िरना है । इसकिए मु झे समझने में िई िोर्ोूं िो भूि हो जाती है । मेरे पास कितने
िोर् आते हैं , वे िहते हैं , आप ओमि्.. अर्र हम ओमि् जपते हैं तो आप मना क्ोूं िरते हैं ? शायद उन्ें िर्े कि मैं
ओमि् िा दु श्मन हूं । िे किन मैं जानता हूं कि वे ही दु श्मन हैं क्ोूंकि इतने पकवत्रतम शब्द िा साधन िी तरह
उपयोर् नही ूं होना चाकहए।

असि में, यह हमारी जीभ से िोिने योग्य नही ूं। असि में , यह हमारे शरीर से उच्चारण योग्य नही ूं। यह
तो उस जर्ह शु रू होता है जहाूं जीभ अथग खो दे ती है , शरीर व्यथग हो जाता है ; वहाूं इसिी र्ूूंज है । और वह र्ूं ज
हम नही ूं िरते , वह र्ूूंज होती है , वह जानी जाती है , वह िी नही ूं जाती।

इसकिए ओमि् िो जानना ही है , िरना नही ूं है ।

ओम् की साधना से उसकी अनभू जत में बाधा:

और भी एि खतरा है कि अर्र आपने ओमि् िा प्रयोर् किया, तो जो उसिा मूि उच्चार है , जो अक्तस्तत्व
से होता है उसिा आपिो िभी पता नही ूं चि पाएर्ा कि वह िैसा है , आपिा अपना उच्चारण उस पर
आरोकपत हो जाएर्ा। तो उसिी शु द्धतम जो अनुभूकत है , वह आपिो नही ूं हो सिेर्ी। तो जो िोर् भी ओमि् शब्द
िा साधना में प्रयोर् िरते हैं , उनिो वस्तु त: ओमि् िा िभी अनु भव नही ूं हो पाता। क्ोूंकि वे जो प्रयोर् िर रहे
हैं , उसिा ही अभ्यास होने से , जि वह मूि ध्वकन आनी शु रू होती है , तो उनिो अपनी ही ध्वकन सु नाई पड़ती है ।
वे ओमि् िो नही ूं सु न पाते ; शू न्य िा सीधा र्ुूंजन उनिे ऊपर नही ूं हो पाता अपना ही शब्द वे तत्काि पिड़ िेते
हैं । स्वभावत:, क्ोूंकि कजससे हम पररकचत हैं , वह आरोकपत हो जाता है ।
इसकिए मैं िहता हूं ओमि् से पररकचत न होना ही अच्छा, उसिा उपयोर् न िरना ही अच्छा। वह किसी
कदन प्रिट होर्ा,च थे शरीर पर प्रिट होर्ा। और ति वह िई अथग रखे र्ा। एि तो यह अथग रखेर्ा कि च थे
शरीर िी सीमा आ र्ई; और अि आप मनस िे िाहर जाते हैं , शब्द िे िाहर जाते हैं । आक्तखरी शब्द आ
र्या; जहाूं से शब्द शु रू हुए थे , वही ूं आप खड़े हो र्ए;जहाूं पूरा जर्त सृ कष्ट िे पहिे क्षण में खड़ा होर्ा, वहाूं आप
खड़े हो र्ए हैं , उस सीमाूं त पर खड़े हैं । और किर जि उसिी अपनी मूि ध्वकन पै दा होती है तो उसिा रस ही
और है । उसिो िुछ िहने िा उपाय नही ूं। हमारा श्रे ष्ठतम सूं र्ीत भी उसिी दू रतम ध्वकन नही ूं है । हम कितने
ही उपाय िरें , उस शू न्य िे सूं र्ीत िो हम िभी भी न सु न पाएूं र्े ; वह म्यू कजि ऑि साइिेंस िो हम िभी भी
न सु न पाएूं र्े। और इसकिए अच्छा हो कि हम उसिो िुछ मानिर न चिें , िोई रूप—रूं र् दे िर न चिें। नही ूं
तो वही रूप—रूं र् उसमें अूंततः पिड़ जाएर्ा, और वह हमें िाधा दे सिता है ।

स्त्री—परुष शरीरोां के मौजिक भे द:

प्रश्न : ओशो चौथे शरीर तक स्त्री और परुष का जिद् यतीय भे द रहता है । अत: चौथे शरीर िािे
स्त्री कांडक्टर या परुष कांडक्टर द्वारा मजहिा साधक को और परुष साधक को होनेिािे शब्धिपात का
प्रभाि क्ा जभत्र— जमत्र होता है ? और क्ोां?

इसमें भी िहुत सी िातें समझनी पड़े र्ी। जैसा मैंने िहा, च थे शरीर ति स्त्री और पुरुष िा भेद
है , च थे शरीर िे िाद िोई भेद नही ूं है । पाूं चवाूं शरीर किूंर् — भेद िे िाहर है । िे किन च थे शरीर ति िहुत
िुकनयादी भे द है । और वह िुकनयादी भेद िहुत तरह िे पररणाम िाएर्ा। तो पहिे पुरुष शरीर िो हम
समझें, किर स्त्री शरीर िो हम समझें।

पुरुष शरीर िा पहिा शरीर पुरुष है , दू सरा शरीर स्त्रैण है ; तीसरा शरीर किर पुरुष है , च था शरीर
किर स्त्रैण है । इससे उिटा स्त्री िा है उसिा पहिा शरीर स्त्री िा, दू सरा पुरुष िा, तीसरा स्त्री िा, च था पुरुष
िा। इसिी वजह से िड़े म किि भेद पड़ते हैं । और कजन्ोूंने मनुष्य —जाकत िे पूरे इकतहास और धमों िो िड़ी
र्हराई से प्रभाकवत किया, और मनुष्य िी पूरी सूं स्कृकत िो एि तरह िी व्यवस्था दी।

अधओनारीश्वर का िैज्ञाजनक रहस्य:

पुरुष शरीर िी िुछ खू कियाूं हैं ; स्त्री शरीर िी िुछ खू कियाूं और कवशे षताएूं हैं । और वे दोनोूं खू कियाूं
और कवशे षताएूं एि—दू सरे िी िाप्लीमेंटरी, पररपूरि हैं । असि में , स्त्री शरीर भी अधू रा शरीर है और पुरुष
शरीर भी अधू रा शरीर है ; इसकिए सृ जन िे क्रम में उन दोनोूं िो सूं युक्त होना पड़ता है । यह सूं युक्त होना दो
प्रिार िा है । अ नाम िे पुरुष िा शरीर अर्र ि नाम िी स्त्री से िाहर से सूं युक्त हो, तो प्रिृकत िा सृ जन होता
है । अ नाम िे पु रुष िा शरीर अपने ही पीछे कछपे ि नाम िे स्त्री शरीर से सूं युक्त हो, तो ब्रह्म िी तरि िा जन्म
शु रू होता है । वह परमात्मा िी तरि यात्रा शु रू होती है , यह प्रिृकत िी तरि यात्रा शु रू होती है । दोनोूं ही
क्तस्थकतयोूं में सूं भोर् घकटत होता है ।
पुरुष िा शरीर िाहर िी स्त्री से सूं िूंकधत हो तो भी सूं भोर् घकटत होता है , और पुरुष िा अपना ही
शरीर अपने ही पीछे कछपे स्त्री शरीर से सूं युक्त हो तो भी सूं भोर् घकटत होता है । पहिे सूं भोर् में ऊजाग िाहर
कविीणग होती है , दू सरे सूं भोर् में ऊजाग भीतर िी तरि प्रवेश िरना शु रू िर दे ती है । कजसिो वीयग िा
ऊध्वगर्मन िहा है , उसिा यात्रा—पथ यही है — भीतर िी स्त्री से सूं िूंकधत होना, और भीतर िी स्त्री से सूं िूंकधत
होना।

जो ऊजाग है , वह सदा पुरुष से स्त्री िी तरि िहती है —चाहे वह िाहर िी तरि िहे और चाहे वह
भीतर िी तरि िहे । अर्र पु रुष िे भ कति शरीर िी ऊजाग भीतर िे ईथररि स्त्री शरीर िे प्रकत िहे , तो किर
ऊजाग िाहर कविीणग नही ूं होती—ब्रह्मचयग िी साधना िा यही अथग है —ति वह कनरूं तर ऊपर चढ़ती जाती है ।
च थे शरीर ति उस ऊजाग िी यात्रा हो सिती है । च थे शरीर पर ब्रह्मचयग पूरा हो जाता है । च थे शरीर िे िाद
ब्रह्मचयग िा िोई अथग नही ूं है । च थे शरीर िे िाद ब्रह्मचयग जैसी िोई चीज नही ूं है ; क्ोूंकि च थे शरीर िे िाद
स्त्री और पुरुष जैसी िोई चीज नही ूं है । इसकिए च थे शरीर िो पार िरने िे िाद साधि न पुरुष है और न स्त्री
है ।

अि यह जो एि नूंिर िा शरीर और दो नूं िर िा शरीर है , इसी िो ध्यान में रखिर अधग नारीश्वर िी
िल्पना िभी हम ने कचकत्रत िी थी। िािी वह प्रतीि िनिर रह र्ई और हम उसे िभी समझ नही ूं पाए। शूं िर
अधू रे हैं , पावगती अधू री है —वे दोनोूं कमििर एि हैं । और ति हमने उन दोनोूं िा आधा—आधा कचत्र भी
िनाया— अधग नारीश्वर िा—कि आधा अूंर् पुरुष िा है , आधा स्त्री िा है । यह जो आधा दू सरा अूंर् है , यह िाहर
प्रिट नही ूं है , यह प्रत्येि िे भीतर कछपा है । तु म्हारा एि पहिू पुरुष िा है ,तु म्हारा दू सरा पहिू स्त्री िा है ।

इसकिए एि िहुत मजेदार घटना घटती है कितना ही दिूंर् पु रुष हो, कितना ही ििशािी पुरुष हो—
जो िाहर िी दु कनया में िड़ा प्रभावी हो—कसिूंदर हो चाहे , और चाहे नेपोकियन हो, और चाहे कहटिर हो, वह
कदन भर दफ्तर में , दु िान में , िाजार में,पद पर, पु रुष िी अिड़ से जीता है । िेकिन एि साधारण सी स्त्री घर में
िैठी है , उसिे सामने जािर उसिी अिड़ खत्म हो जाती है ! यह अजीि सी िात है । वह नेपोकियन िी भी हो
जाती है । वह क्ा िारण है ?

असि में, जि वह िारह घूंटे, दस घूंटे पुरुष िा उपयोर् िर िेता है , तो उसिा पहिा शरीर थि जाता
है । घर ि टते — ि टते वह पहिा शरीर कवश्राम चाहता है । भीतर िा स्त्री शरीर प्रमुख हो जाता है , पुरुष शरीर
र् ण हो जाता है । स्त्री कदन भर स्त्री रहते —रहते उसिा पहिा शरीर थि जाता है , उसिा दू सरा शरीर प्रमुख हो
जाता है । और इसकिए स्त्री पुरुष िा व्यवहार िरने िर्ती है और पुरुष स्त्री िा व्यवहार िरने िर्ता है —
ररवसग न हो जाता है ।

एि तो यह खयाि में िे िेना कि ऊजाग िा आूं तररि प्रवाह िा, ऊध्वगर्मन िा यह पथ है —कि भीतर
िी स्त्री से सूं भोर्। अि उसिे सारे िे सारे अिर् मार्ग हैं । उसिी तो िोई अभी िात नही ूं िरनी है ।

दू सरी िात, सदा ही शक्तक्त पुरुष शरीर से स्त्री शरीर िी तरि िहती है । पुरुष शरीर िे जो कवशे ष र्ुण
हैं , वह पहिा र्ुण यह है कि वह ग्राहि नही ूं है , ररसे किव नही ूं है ; आक्रामि है ; दे सिता है , िे नही ूं सिता। स्त्री
िी तरि से िोई प्रवाह पु रुष िी तरि नही ूं िह सिता। सि प्रवाह पुरुष से स्त्री िी तरि ही िहते हैं । स्त्री
ग्राहि है , ररसे किव है ; दाता नही ूं है ; दे नही ूं सिती, िे सिती है ।

स्त्री की शब्धिपात दे ने में कजठनाई, िेने में सरिता:


इसिे दो पररणाम होते हैं , और दोनोूं पररणाम समझने जैसे हैं । पहिा पररणाम तो यह होता है कि चूूंकि
स्त्री ग्राहि है ,इसकिए िभी भी शक्तक्तपात दे नेवािी नही ूं हो सिती, उसिे द्वारा शक्तक्तपात नही ूं हो सिता। यही
िारण है कि स्त्री कशक्षि जर्त में िड़ी तादाद में पैदा नही ूं हो सिे, िुद्ध या महावीर या िृष्ण िे मु िाििे स्त्री
र्ुरु पैदा नही ूं हो सिे। उसिा िारण यह है कि उसिे माध्यम से किसी िो िोई शक्तक्त कमि नही ूं सिती।
हाूं , क्तस्त्रयाूं िहुत िड़े पैमाने पर महावीर, िुद्ध और िृष्ण िे आसपास इिट्ठी हुईूं। िे किन ऐसी िृष्ण िी है कसयत
िी एि स्त्री पै दा नही ूं हो सिी कजसिे आसपास िाखोूं पुरुष इिट्ठे हो जाएूं । उसिे िारण हैं । उसिे िारण
इसी िात में कनकहत हैं . स्त्री ग्राहि हो पाती है ।

परुष हैं धमओ प्रसारक और ब्धस्त्रयाां धमओ सां ग्राहक:

और यह भी िड़े मजे िी िात है िृष्ण जैसा आदमी पैदा हो, तो उसिे पास पुरुष िम इिट्ठे
होूंर्े, क्तस्त्रयाूं ज्यादा इिट्ठी होूंर्ी। महावीर िे पास भी वही होर्ा। महावीर िे कभक्षु ओूं में दस हजार तो पुरुष हैं
और चािीस हजार क्तस्त्रयाूं हैं । यह अनुपात च र्ु ना है सदा। अर्र एि पु रुष इिट्ठा होर्ा, तो चार क्तस्त्रयाूं इिट्ठी
हो जाएूं र्ी। और क्तस्त्रयाूं कजतनी प्रभाकवत होूंर्ी महावीर से , उतने पुरुष प्रभाकवत नही ूं होूंर्े; क्ोूंकि दोनोूं पुरुष हैं ।
महावीर से जो कनिि रहा है , क्तस्त्रयाूं उसे अपशोकषत िर जाती हैं । िेकिन पुरुष अपशोषि नही ूं है , वह ग्रहण
नही ूं िर पाता; उसिी ग्रहण िरने िी क्षमता िहुत िम है । इसकिए पुरुषोूं ने धमग िो जन्म तो कदया, िेकिन
पुरुष धमग िे सूं ग्राहि नही ूं हैं । धमों िो पृ थ्वी पर िचाती हैं क्तस्त्रयाूं , चिाते हैं पुरुष। यह िड़े मजे िी िात है !
चिाते हैं पुरुष, जन्म दे ते हैं पुरुष, िचाती हैं क्तस्त्रयाूं , रक्षा िरती हैं क्तस्त्रयाूं ।

स्त्री सूं ग्राहि है । उसिे शरीर िा सूं ग्रह र्ुण है , िायोिॉकजिि वजह से उसिे शरीर में सूं ग्राहि िा
तत्व है । िच्चे िो उसे न महीने पेट में रखना है , िच्चे िो िड़ा िरना है । उसे ग्रहणशीि होना चाकहए। पुरुष िो
ऐसा िुछ भी प्रिृकत िी तरि से िाम नही ूं है । वह एि क्षण में कपता िनिर िाहर हो जाता है , कपता िे िाहर हो
जाता है ; उसिा इसिे िाद िोई सूं िध नही ूं है ; वह दे ता है और िाहर हो जाता है । स्त्री िेती है और किर भीतर
रह जाती है , वह िाहर नही ूं हो पाती।

यह तत्व शक्तक्तपात में भी िाम िरता है । इसकिए शक्तक्तपात में स्त्री िी तरि से पुरुष िो शक्तक्तपात
नही ूं कमि सिता। साधारणत: िह रहा हूं िभी रे यर िेसे स हो सिते हैं , उनिी मैं िात िरू
ूं र्ा। िभी ऐसी
घटनाएूं घट सिती हैं , पर उसिे और िारण होूंर्े।

परुष के जिए शब्धिपात दे ना सरि, िेना कजठन:

साधारणतया स्त्री शरीर से शक्तक्तपात नही ूं हो सिता; इसे उसिी िमजोरी िह सिते हैं । िेकिन
इसिो पूरा िरनेवािी िाप्लीमेंटरी उसिी एि ताित है कि वह शक्तक्तपात िो िहुत तीव्रता से िे िे ती है । पुरुष
शक्तक्तपात िर सिता है , िेकिन ग्रहण नही ूं िर पाता। तो इसकिए एि पुरुष से दू सरे पुरुष पर भी शक्तक्तपात
िहुत िकठन हो जाता है , िहुत िकठन मामिा हो जाता है । क्ोूंकि वह ग्राहि है ही नही ूं उसिा व्यक्तक्तत्व, जहाूं
से शु रू होना है, उसिा नूंिर एि पुरुष खड़ा हुआ है दरवाजे पर जो ग्राहि नही ूं है । इसिो ग्राहि िनाने िे भी
उपाय किए र्ए हैं । ऐसे पूंथ रहे हैं , कजनमें पु रुष भी अपने िो स्त्री मानिर ही साधना िरें र्े। वह पुरुष िो
ग्राहि िनाने िा उपाय किया जा रहा है । मर्र किर भी पुरुष ग्राहि िन नही ूं पाता। स्त्री किना िकठनाई िे
ग्राहि िन जाती है । है ही वह ग्राहि।
तो शक्तक्तपात में स्त्री िो सदा ही माध्यम िी जरूरत होर्ी, प्रसाद उसिो सीधा कमिना िहुत िकठन
है —दो तरह से । सीधा प्रसाद उसे इसकिए नही ूं कमि सिता.. अि इसिो समझ िे ना ठीि से !

शक्तक्तपात होता है पहिे शरीर से । अर्र मैं शक्तक्तपात िरू


ूं तो तु म्हारे नूं िर एि िे शरीर पर िरू
ूं र्ा।
और मेरे नूंिर एि से जाएर्ी िात और तु म्हारे नूं िर एि पर चोट िरे र्ी। इसकिए अर्र तु म स्त्री हो तो यह
शीघ्रता से हो जाएर्ा, अर्र तु म पुरुष हो तो इसमें जिोजहद और सूं घषग होर्ा। इसमें िकठनाई होर्ी। इसमें
किसी तरह तु म्हें िहुत र्हरे समपगण िी क्तस्थकत में आना पड़े र्ा तो यह हो सिता है , नही ूं तो यह नही ूं हो सिेर्ा।

और पुरुष समपग ि नही ूं है । वह समपगण नही ूं िर पाता, वह कितनी ही िोकशश िरे । अर्र वह िहे भी
कि मैं समपगण िरता हूं तो भी उसिा यह समपग ण िरना आक्रमण जैसा होता है । यानी यह समपगण िी भी
घोषणा उसिा अहूं िार िरता है कि अच्छा मैंने किया समपगण! िेकिन समपगण.. .वह मैं जो है , पीछे खड़ा है ; वह
छूटता नही ूं उससे ।

स्त्री िो समपगण िरना नही ूं पड़ता, वह समकपगत है , समपगण उसिा स्वभाव है , उसिे पहिे शरीर िा
र्ुण है ; वह ररसे किव है । इसकिए शक्तक्तपात पु रुष से िहुत आसानी से स्त्री पर हो जाता है , पुरुष से पुरुष पर
िहुत मुक्तिि है ; और स्त्री से पुरुष पर तो िहुत ही मुक्तिि है । पुरुष से पुरुष पर मु क्तिि है , हो सिता
है ; अर्र िोई िहुत ििशािी पुरुष हो, तो वह दू सरे िो िरीि—िरीि स्त्री िी हाित में खड़ा िर सिता है ।
मुक्तिि है , िेकिन हो सिता है । िेकिन स्त्री िे द्वारा तो िहुत ही मुक्तिि है । क्ोूंकि वह शक्तक्तपात िरने िे
क्षण में भी उसिी शक्तक्त पी जाएर्ी, अपशोकषत िर िेर्ी, उसिा जो पहिा शरीर है , वह स्पूं ज िी भाूं कत है , वह
चीजोूं िो खी ूंच रहा है ।

परुष के चौथे शरीर से प्रसाद ग्रहण करना सरि:

यह तो शक्तक्तपात िे सूं िूंध में िात हुई; प्रसाद िे मामिे में भी ऐसी ही हाित है । प्रसाद जो है वह च थे
शरीर से कमिता है । और पुरुष िा च था शरीर स्त्री िा है , इसकिए उसे प्रसाद तो िड़ी सरिता से कमि जाता है ।
और स्त्री िा च था शरीर पुरुष िा है , वह प्रसाद में भी मुक्तिि में पड़ जाती है ; उसिो ग्रेस सीधी नही ूं कमि
पाती।

पुरुष िा जो च था शरीर है , स्त्रैण है । इसकिए मोहिद होूं, कि मूसा होूं, कि जीसस होूं, वे तत्काि
परमात्मा से सीधे सूं िूंकधत हो जाते हैं । उनिे पास च था शरीर स्त्री िा है , जहाूं से वे ररसीवर हैं । और प्रसाद
उनिे ऊपर उतरे तो वे उसिो पी जाएूं र्े। स्त्री िे पास च था शरीर पु रुष िा है , वह उस छोर पर पुरुष शरीर
खड़ा है उसिा; इसकिए वहाूं से वह िभी ररसीव नही ूं िर पाती। इसकिए स्त्री िे पास सीधी िोई भी मैसेज नही ूं
है । यानी एि स्त्री इस तरह िा दावा नही ूं िर सिी है कि मैंने ब्रह्म िो जाना! ऐसा दावा नही ूं है उसिा। उसिे
पास च थे शरीर पर पुरुष खड़ा है जो कि वहाूं अड़चन डाि दे ता है , उसिो वहाूं से प्रसाद नही ूं कमि सिता।

प्रसाद पुरुष िो कमि सिता है , शक्तक्तपात में उसे िहुत िकठनाई है किसी से िेने में ; उसमें वह िाधि
है । िेकिन स्त्री िे किए शक्तक्तपात िहुत सरि है , किसी भी माध्यम से उसे शक्तक्तपात कमि सिता है । िहुत
िमजोर माध्यम से भी स्त्री िो शक्तक्तपात कमि सिता है । इसकिए िड़े साधारण है कसयत िे िोर्ोूं से भी उसे
शक्तक्तपात कमि सिता है । शक्तक्तपात दे नेवािे पर िम, उसिी अपशोषि शक्तक्त पर िहुत कनभगर हो जाता है ।
िेकिन सदा उसे एि माध्यम चाकहए। वह माध्यम िे किना उसिी िड़ी िकठनाई है । किना माध्यम िे उसिो
िोई घटना नही ूं घट सिती।
यह साधारण क्तस्थकत िी िात मैंने िही। इसमें कवशे ष क्तस्थकतयाूं िी जा सिती हैं । इसी साधारण क्तस्थकत
िी वजह से स्त्री साकधिाए िम हुई हैं । िेकिन इसिा मतिि यह नही ूं है कि क्तस्त्रयोूं ने परमात्मा िो अनुभव
नही ूं किया। उन्ोूंने अनुभव किया। िे किन वह िभी इमीकजएट नही ूं था, उसमें िोई िीच में माध्यम था— थोड़ा
ही सही, िेकिन िोई माध्यम था; माध्यम से हुआ उनिो।

बढापे में जिपरीत जिां गी व्यब्धित्व का प्रकटीकरण:

दू सरी िात, असाधारण क्तस्थकतयोूं में भेद पड़ सिता है । अि जैसे, एि जवान स्त्री पर ज्यादा िकठनाई है
प्रसाद िी, एि वृद्ध स्त्री पर सरिता थोड़ी िढ़ जाती है । क्ोूंकि िड़े मजे िी िात है कि हम......पूरी कजूंदर्ी में
हमारा से क्स भी फ्लेक्तक्सकिकिटी में रहता है । हम पूरी कजूंदर्ी, एि ही अनुपात में, एि ही से क्स िे कहस्से नही ूं
होते —इसमें अूंतर होता रहता है पूरे वक्त, अनुपात िदिता रहता है ।

इसकिए अक्सर ऐसा होर्ा कि िूढ़ी होती स्त्री िो मूूंछ िे िाि कनििने िर्ें या दाढ़ी पर िाि आ
जाएूं ; िे होते —होते पैंतािीस और पचास साि िे िाद उसिी आवाज पुरुषोूं जैसी होने िर्े , स्त्रैण आवाज खो
जाए। उसिा अनुपात िदि रहा है ;उसमें पुरुष तत्व ऊपर आ रहे हैं , स्त्री तत्व पीछे जा रहे हैं । असि में , स्त्री
िा िाम पूरा हो चु िा। वह पैंतािीस वषग ति िायोिाकजिि एि िाइूं कडूं र् थी, वह खत्म हो र्ई है । अि वह
िाइूं कडूं र् िे िाहर हो रही है ।

तो िी स्त्री पर प्रसाद िी सूं भावना िढ़ सिती है ; क्ोूंकि जैसे ही उसिे नूंिर एि िे शरीर में पु रुष
तत्व िढ़ते हैं , उसिे नूंिर दो िे शरीर में स्त्रैण तत्व िढ़ जाते हैं ; और नूंिर चार िे पुरुष शरीर िे तत्व िम हो
जाते हैं , नूंिर तीन में िढ़ जाते हैं । तो िी स्त्री पर प्रसाद िी सूं भावना हो सिती है ।

अकत वृद्ध स्त्री, किसी क्तस्थकत में, किसी जवान स्त्री िो माध्यम भी िन सिती है । और भी अकत वृ द्ध
स्त्री, जो कि स िो पार िर र्ई हो, जहाूं कि उसिे मन में अि से क्स िा खयाि ही न रह र्या हो कि वह स्त्री
है , उससे पुरुष िे ऊपर भी शक्तक्तपात िे किए वह माध्यम िन सिती है । िेकिन यह ििग पड़े र्ा।

पुरुष में भी ऐसे ही ििग पड़ता है । जैसे —जैसे पुरुष िा होता जाता है , उसमें स्त्रैण तत्व िढ़ते चिे जाते
हैं । िे पुरुष अक्सर क्तस्त्रयोूं जैसा व्यवहार िरने िर्ते हैं । उनिे व्यक्तक्तत्व िी िहुत सी पुरुष िसा वृकियाूं क्षीण
हो जाती हैं और स्त्री जैसी वृकियाूं प्रिट होने िर्ती हैं ।

चौथे शरीर से प्रसाद ग्रहण करने के कारण व्यब्धित्व में स्त्रै णता:

इस सूं िूंध में यह भी समझ िेना जरूरी है कि जो िोर् भी च थे शरीर से प्रसाद िो ग्रहण िरते
हैं , उनिे व्यक्तक्तत्व में भी स्त्रैणता आ जाती है । जैसे अर्र हम िुद्ध या महावीर िे शरीर और व्यक्तक्तत्व िो
दे खें, तो वह पुरुष िा िम और स्त्री िा ज्यादा मािूम होर्ा। स्त्री िी िोमिता, स्त्री िी नमनीयता, स्त्री िी
ग्राहिता उनमें िढ़ जाएर्ी। आक्रमण उनसे चिा जाएर्ा,इसकिए अकहूं सा िढ़ जाएर्ी, िरुणा िढ़ जाएर्ी, प्रेम
िढ़ जाएर्ा; कहूं सा और क्रोध कविीन हो जाएूं र्े।
नीत्शे ने तो िुद्ध पर यह आरोप ही िर्ाया है कि िुद्ध और जीसस, ये दोनोूं िेकमकनन थे , ये दोनोूं स्त्रै ण
थे; इनिो पु रुषोूं िी कर्नती में नही ूं कर्नना चाकहए, क्ोूंकि इनमें पु रुष िा िोई भी र्ुण नही ूं है , और उन्ोूंने सारी
दु कनया िो स्त्रैण िना कदया है । उसिी इस कशिायत में अथग है ।

यह तु म जानिर है रान होओर्े कि हमने िु द्ध , महावीर, िृष्ण, राम, इनिी किसी िी दाढ़ी—मूूंछ नही ूं
िनाई, ये सि दाढ़ी— मूूंछ से हीन हैं । ऐसा नही ूं कि इनिो दाढ़ी—मूूंछ न रही हो, िेकिन जि हमने इनिे कचत्र
िनाए, ति ति यह िरीि—िरीि इनिा सारा व्यक्तक्तत्व स्त्रैण— भाव से भर र्या था। उसमें दाढ़ी—मूूंछ िेहदी
थी, वह हमने अिर् िर दी; उसिो हमने कचकत्रत नही ूं किया। उसिो कचकत्रत िरना उकचत नही ूं मािूम
पड़ा, क्ोूंकि उनिे व्यक्तक्तत्व िा सारा ढूं र् जो था, वह स्त्रैण हो र्या था।

रामकृष्ण परमहां स के शरीर का रूपाां तरण:

रामिृष्ण िे साथ ऐसी घटना घटी। रामिृष्ण िी हाित तो इतनी अजीि हो र्ई थी कि जो कि
िड़ी, मेकडिि साइूं स िे किए एि खोज िी िात है । िड़ी अदभुत घटना घटी। पीछे उसिो कछपा—छु पो िर
िदिने िी िोकशश िी, क्ोूंकि उसिी िैसे िात िरें ! उनिे स्तन िढ़ र्ए और उनिो माकसि धमग शु रू हो
र्या! यह तो इतनी अजीि घटना थी कि एि कमरे िि था! इतना व्यक्तक्तत्व स्त्रैण हो र्या था। वे चिते भी थे तो
क्तस्त्रयोूं जैसे चिने िर्े थे ; वे िोिते भी थे तो क्तस्त्रयोूं जैसे िोिने िर्े थे।

तो ऐसी कवशे ष क्तस्थकतयोूं में तो िहुत ििग पड़ सिता है । जैसे रामिृष्ण िी इस हाित में वे शक्तक्तपात
दे नही ूं सिते किसी िो, उनिो िे ना पड़े र्ा; इस हाित में िोई दे नही ूं सिते वे किसी िो शक्तक्तपात। उनिा
व्यक्तक्तत्व िाहर से स्त्रैण हो र्या।

जहां दस्तान के व्यब्धित्व में स्त्रै णता:

िुद्ध और महावीर ने कजस साधना और कजस प्रकक्रया िा उपयोर् किया, उससे इस मुम्ऻ में उस जमाने
में िाखोूं िोर् च थे शरीर में पहुूं च र्ए। च थे शरीर में पहुूं चते ही उनिा व्यक्तक्तत्व स्त्रैण हो र्या। स्त्रै ण व्यक्तक्तत्व
िा मतिि यह है कि उनमें जो स्त्रैण र्ुण हैं , िोमि, वे िढ़ र्ए; कहूं सा—क्रोध खत्म हो र्या, आक्रमण कवदा हो
र्या, ममता और प्रेम और िरुणा और अकहूं सा िढ़ र्ए। पूरे कहूं दुस्तान िे व्यक्तक्तत्व िे र्हरे में स्त्रै णता आ र्ई।
मेरी अपनी जानिारी यही है कि कहूं दुस्तान पर िाद िे सारे आक्रमणोूं िा िारण वही था। क्ोूंकि कहूं दुस्तान िे
आसपास िे सारे पुरुष कहूं दुस्तान िे स्त्रैण व्यक्तक्तत्व िो दिाने में सिि हो र्ए।

एि अथग में िड़ी िीमती घटना घटी कि च थे शरीर पर हमने िहुत अदभुत अनु भव किए, िेकिन पहिे
शरीर िी दु कनया में हमिो मुक्तिि हो र्ई। मैं ने िहा कि सि चीजें िूंपनसे ट होती हैं । जो िोर् च थे शरीर िा
धन छोड़ने िो राजी थे , उनिो पहिे शरीर िा धन और राज्य और साम्राज्य कमि सिा। और जो िोर् च थे
शरीर िा रस छोड़ने िो राजी नही ूं थे , उनिो यहाूं से िहुत िुछ छोड़ दे ना पड़ा।

िुद्ध और महावीर िे िाद कहूं दुस्तान िी आक्रामि वृ कि खो र्ई और वह ररसे किव हो र्या। तो जो भी
आया उसिो हम आत्मसात िरने िी किक्र में िर् र्ए; उसे अिर् िरने िा भी सवाि नही ूं उठा हमारे मन में
कि उसिो अिर् िर दें । और दू सरे पर जािर हम हमिा िर दें और दू सरे िो हम जीत िें , वह तो सवाि ही
खो र्या। स्त्रैण व्यक्तक्तत्व हो र्या। भारत जो है एि क्ूूं िन र्या, एि र्भग िन र्या—पूरा िा पूरा भारत, और
जो भी आया उसिो हम आत्मसात िरते चिे र्ए। हमने उसिो िभी इनिार नही ूं किया, हटाने िी हमने िोई
किक्र नही ूं िी। और िड़ भी नही ूं सिे, क्ोूंकि िड़ने िे किए जो िात चाकहए थी,वह खो र्ई थी; श्रे ष्ठतम िुक्तद्ध जो
थी मुम्ऻ िी, उससे वह िात खो र्ई थी। और जो साधारणजन है , वह श्रे ष्ठ िे पीछे चिता है ; वह िेचारा दििर
खड़ा था। वह यह िह रहा था कि िरुणा—अकहूं सा िी िातें सु न रहा था और उसे िर् रही थी ूं कि ये िातें ठीि
हैं । और श्रे ष्ठतम आदमी उनमें जी रहा था, वह छोटा साधारण आदमी उनिे पीछे खड़ा था। वह िड़ सिता
था, िेकिन उसिे पास नेता नही ूं था जो उसिो िड़ा सिता।

आध्याब्धत्मक मल्क में स्त्रै ण व्यब्धित्व की अजधकता:

यह िभी जि दु कनया िा इकतहास आध्याक्तत्मि ढूं र् से किखा जाएर्ा, और जि हम कसिग भ कति


घटनाओूं िो इकतहास नही ूं समझेंर्े , िक्तम्ऻ चेतना में घटी घटनाओूं िो इकतहास समझेंर्े— असिी इकतहास वही
है —ति हम इस िात िो समझ पाएूं र्े कि जि भी िोई मुम्ऻ आध्याक्तत्मि होर्ा, तो स्त्रैण हो जाएर्ा; और जि
भी स्त्रैण होर्ा, ति अपने से िहुत साधारण सभ्यताएूं उसिो हरा दें र्ी। अि यह िड़े मजे िी िात है कि
कहूं दुस्तान िो कजन िोर्ोूं ने हराया, वे कहूं दुस्तान से िहुत कपछड़ी हुई सभ्यताएूं थी ,ूं एि अथग में किििुि ही जूंर्िी
और ििगर सभ्यताएूं थी ूं। चाहे तु िग होूं, चाहे मुर्ि होूं और चाहे मूंर्ोि होूं—िोई भी होूं; उनिे पास िोई सभ्यता
ही न थी। िेकिन एि अथग में वे पुरुष थे , जूंर्िी पुरुष थे किििुि; और हम ररसे किव हो र्ए थे, हम उनिो
आत्मसात ही िर सिे, िड़ने िा िोई उपाय न था।

तो स्त्री शरीर आत्मसात िर सिता है , माध्यम चाकहए; पुरुष शरीर दे सिता है और सीधे प्रसाद भी
ग्रहण िर सिता है । इसी वजह से महावीर जैसे व्यक्तक्त िो तो यह भी िहना पड़ा कि स्त्री िो परम उपिक्ति
िे किए पहिे एि दिे पुरुष शरीर िे ना पड़े र्ा, पुरुष पयाग य में आना पड़े र्ा। और िहुत िारणोूं में एि िारण
यह भी था कि वह सीधा प्रसाद ग्रहण नही ूं िर सिती। जरूरी नही ूं है कि वह मरिर पुरुष हो। ऐसी प्रकक्रयाएूं हैं
कि इसी हाित में व्यक्तक्तत्व िा रूपाूं तरण किया जा सिता है —जो तु म्हारा नूंिर दो िा शरीर है , वह तु म्हारे
नूंिर एि िा शरीर हो सिता है ; और जो तु म्हारे नूंिर एि िा शरीर है , वह तु म्हारे नूंिर दो िा शरीर हो सिता
है । इसिे किए प्रर्ाढ़ सूं िल्प िी साधनाएूं हैं , कजनसे तु म्हारा इसी जीवन में भी शरीर रूपाूं तररत हो सिता है ।

गहन साधना से शारीररक पररितओ न:

अि जैनोूं िे एि तीथंिर िे िाित ऐसी ही मजेदार घटना घट र्ई है । जैनोूं िे एि तीथंिर स्त्री हैं —
मल्रीिाई। श्वेताूं िर उनिो मल्रीिाई ही िहते हैं , िेकिन कदर्ूं िर उनिो मल्रीनाथ िहते हैं ; वे उनिो पुरुष ही
मानते हैं । क्ोूंकि कदर्ूंिर जैनोूं िा खयाि है कि स्त्री िो तो मोक्ष हो नही ूं सिता; तो स्त्री तीथंिर तो हो ही नही ूं
सिती। इसकिए वे मल्रीनाथ हैं ; वे उनिो पुरुष ही मानते हैं । और श्वेताूं िर उनिो स्त्री ही माने जाते हैं ।

अि एि आदमी िे िाित इस तरह िा कववाद मनुष्य—जाकत िे पूरे इकतहास में दू सरी जर्ह नही ूं है ।
यानी और सि चीजोूं िे िाित कववाद हो सिता है कि भई, उसिी ऊूंचाई पाूं च िुट छह इूं च थी कि पाूं च इूं च
थी; कि वह आदमी िि पैदा हुआ। िेकिन इस िाित में कववाद कि वह स्त्री था कि पुरुष! िड़ा अदभुत कववाद
है । और एि वर्ग मानता है कि वह पु रुष था; एि वर्ग मानता है , वह स्त्री था।
मेरी अपनी समझ यह है कि मल्रीिाई ने जि साधना शु रू िी होर्ी तो वे स्त्री ही होूंर्ी। िेकिन ऐसी
प्रकक्रयाएूं हैं कजनसे पुरुष नूंिर एि िा शरीर िन सिता है । वह िन जाने िे िाद ही वे तीथंिर हुए। और जो
दू सरा वर्ग उनिो पुरुष मानता है , वह उनिी अूं कतम क्तस्थकत िो ही मान रहा है ; और जो पहिा वर्ग उनिो स्त्री
मानता है , वह उनिी पहिी क्तस्थकत िो मान रहा है । दोनोूं िातें मानी जा सिती हैं , िोई िकठनाई नही ूं है । वे स्त्री
थे, िेकिन वे पुरुष हो र्ए होूंर्े। और महावीर िी साधना ऐसी है कि उसमें िोई भी स्त्री र्ुजरे र्ी तो पुरुष हो
जाएर्ी। क्ोूंकि पूरी िी पूरी साधना जो है , वह भक्तक्त िी नही ूं है ; पूरी िी पूरी साधना जो है वह ज्ञान िी है ; पूरी
िी पूरी साधना जो है , वह आक्रामि है , एग्रेकसव है —साधना जो है ; वह ररसे किव नही ूं है साधना।

अर्र िोई पुरुष भी मीरा िी तरह भजन िरे और नाचे , और नाचता रहे वषों, और जि रात सोए तो
किस्तर पर िृष्ण िी मूकतग अपनी छाती से िर्ािर सोए, और िृष्ण िी अपने िो सखी माने — अर्र यह वषों
ति चिे , तो नाम मात्र िो ही वह पु रुष रह जाएर्ा; आमूि रूपाूं तरण हो जाएर्ा। उसिी चेतना में जो नूंिर एि
शरीर था, वह नूंिर दो हो जाएर्ा; नूंिर दो जो था,वह नूंिर एि हो जाएर्ा। अर्र यह िहुत र्हरा पररवतग न
हो, तो उससे शरीर पर िैंकर्ि अूंतर भी पड़ जाएर्ा। अर्र यह िहुत र्हरा न हो, तो शरीर पुराना रहा
आएर्ा, िेकिन मनस पुराना नही ूं रह जाएर्ा; कचि स्त्रैण हो जाएर्ा।

तो इन कवशे ष क्तस्थकतयोूं में तो िात हो सिती है , कवशे ष क्तस्थकत में यह घटना घट सिती है , इसमें िोई
िकठनाई नही ूं है । िेकिन सामान्य कनयम नही ूं यह हो सिता।

स्त्री और परुष एक—दू सरे के पररपूरक:

पुरुष से शक्तक्तपात हो सिता है , पुरुष िो प्रसाद कमि सिता है , स्त्री िो प्रसाद सीधा कमिना मुक्तिि
है , उसे शक्तक्तपात से ही प्रसाद िा द्वार खु ि सिता है । और यह तर्थ् िी िात है , इसमें िोई मू ल्याूं िन नही ूं
है ; इसमें िोई आर्े —पीछे , नीचा—ऊूंचा नही ूं है । ऐसा तर्थ् है । यह वैसे ही तर्थ् है , जैसा कि पुरुष वीयग िी ऊजाग
दे र्ा और स्त्री उसिो सूं र्ृहीत िरे र्ी। और अर्र िोई पूछे कि क्ा स्त्री भी वीयग िी ऊजाग पु रुष िो दे सिती
है ? तो हम िहें र्े कि नही,ूं नही ूं दे सिती। वह तर्थ् नही ूं है । इसमें वह नीचे है या ऊपर है , यह सवाि नही ूं है ।

िेकिन इस वजह से ही वैल्युएशन पैदा हुआ, और स्त्री नीचे मािूम होने िर्ी िोर्ोूं िो, क्ोूंकि वह
ग्राहि है ; और दाता िड़ा हो र्या। सारी दु कनया में स्त्री—पुरुष िी जो नीचाई—ऊूंचाई िी धारणा पै दा हुई, वह
इस वजह से पैदा हुई कि पुरुष िो िर्ता है —मैं दे नेवािा हूं और स्त्री िो िर्ता है —मैं िेनेवािी हूं । िेकिन
िेनेवािा अकनवायग रूप से नीचा है , यह किसने िहा? और अर्र िेनेवािा न कमिे तो दे नेवािा क्ा अथग रखता
है ? या दे नेवािा न कमिे तो िे नेवािे िा क्ा अथग है ? असि में, ये िाप्लीमेंटरी हैं , ये नीचे —ऊूंचे नही ूं हैं । असि
में, ये एि—दू सरे िे पररपूरि हैं ; और दोनोूं परस्परतूं त्रता में िूंधे हैं , इूं कडपेंडेंट नही ूं हैं । ये दो इिाइयाूं नही ूं हैं , ये
एि ही इिाई िे दो पहिू हैं । उसमें एि ग्राहि है और एि दाता है ।

िेकिन स्वभावत:, हमारे मन में अर्र हम दाता शब्दिा भी प्रयोर् िरें , तो भी खयाि आता है कि जो
दे नेवािा है वह िड़ा होना चाकहए। िोई वजह नही ूं है । जो िेनेवािा है वह छोटा होना चाकहए। िोई वजह नही ूं
है । िोई िारण नही ूं है । िेकिन इससे िहुत सी चीजें जुड़ी और स्त्री िा व्यक्तक्तत्व नूंिर दो िा व्यक्तक्तत्व स्वीिृत
हो र्या। स्त्री ने भी मान किया कि उसिा नूंिर दो िा व्यक्तक्तत्व है , पुरुष ने भी मान किया कि उसिा नूंिर दो
िा व्यक्तक्तत्व है ।
उन दोनोूं िा ही नूंिर एि िा व्यक्तक्तत्व है ; उसिा नूंिर एि िा स्त्री िी तरह है , इसिा नूं िर एि िा
पुरुष िी तरह है ;नूंिर दो इसमें िोई भी नही ूं है , और दोनोूं पररपूरि हैं ।

सभ्यता स्त्री के कारण पैदा हुई:

अि इसिे कितने व्यापि, छोटी से छोटी, िड़ी से िड़ी चीज में पररणाम हुए। सारी चीजोूं में इसिे—
पूरी सूं स्कृकत और पूरी सभ्यता में यह िात प्रवे श िर र्ई। इसकिए पुरुष कशिार िरने र्या, क्ोूंकि वह
आक्रामि था; स्त्री घर में िैठी प्रतीक्षा िरती रही। स्वभावत: उसने कशिार किया, वह खे त पर िाम िरने
र्या, उसने र्ेहूं िोया, उसने िसि िाटी, वह दु िान िरने र्या,वह दु कनया में उड़ा, वह चाूं द ति पहुूं चा, वह
सि िाम िरने र्या—वह आक्रामि है इसकिए जा सिा; स्त्री घर िैठिर प्रतीक्षा िरती है । घर में उसने भी
िहुत िुछ किया, िेकिन वह आक्रामि नही ूं था, वह ग्रहण िरने वािा था। उसने घर िसाया, सूं ग्रह किया, चीजोूं
िो जर्ह पर रखा।

सारी सभ्यता िा जो क्तस्थर तत्व है , वह स्त्री ने िनाया। अर्र स्त्री न हो तो पुरुष आवारा ही
होर्ा, घुमक्कड़ ही होर्ा घर नही ूं िसा सिता। यहाूं से वहाूं जाता रहे र्ा। अभी वह स्त्री एि खूूं टी िी तरह उस
पर िाम िरती है ; वह घूम—घामिर उस खूूं टी पर वापस ि टना पड़ता है उसे । अन्यथा वह चिा जाए एिदम।
नर्र न पैदा होते । नर्र जो हैं , वे स्त्री िी वजह से पैदा हुए। नर्र िी सभ्यता स्त्री िी वजह से पैदा हुई। क्ोूंकि
स्त्री एि जर्ह रुिना चाहती है , ठहरना चाहती है । वह आग्रह िरती है , िस यही ूं रुि जाओ, यही ूं ठहर
जाओ; थोड़ी मुसीित में र्ु जार िेंर्े, िेकिन यही;ूं िही ूं और नही ूं जाना। वह जमीन िो पिड़ती है , वह जमीन में
जड़ें र्ड़ा दे ती है , वह जमीन पर रुििर खड़ी हो जाती है । पुरुष िो उसिे आसपास किर दु कनया िसानी पड़ती
है ।

इसकिए नर्र िसे , इसकिए र्ाूं व िसे , इसकिए सभ्यता िसी, घर िना। और घर िो उसने
सजाया, िनाया; पुरुष ने जो िाहर िी दु कनया में िमाया, इिट्ठा किया, उसिो िचाया। नही ूं तो पुरुष िो िचाने
में उत्सु िता नही ूं है ; वह िमािर एि िार िे आया और िेिार हो र्या। उसिी उत्सु िता तभी ति थी जि ति
वह िमा रहा था, िड़ रहा था, जीत रहा था। अि उसिी इच्छा और दू सरी जर्ह जीतने पर चिी र्ई। अि वह
वहाूं जीतने चिा र्या है । िेकिन वह जो जीत िाया था, उसिो िोई िचा रहा है , सम्हाि रहा है । उसिा अपना
मूल्य है , अपनी जर्ह है , वह पररपूरि है सारी क्तस्थकत।

िेकिन स्वभावत:, इसिी वजह से — चूूंकि वह िाती नही,ूं जाती नही,ूं िमाती नही,ूं इिट्ठा नही ूं
िरती, कनमाग ण नही ूं िरती—उसिो िर्ा कि वह कपछड़ र्ई है । छोटी—छोटी चीज ति में वह िात प्रवेश िर
र्ई; और वह सि जर्ह उसिो एि हीनता िा िोध पिड़ र्या। िोई हीनता िा सवाि नही ूं है ।

अच्छा, अि उस हीनता से एि दू सरा दु ष्पररणाम होना शु रू हुआ कि जि ति स्त्री सु कशकक्षत नही ूं


थी, ति ति उसने हीनता िो िरदाश्त किया, अि हीनता तो उसिो िरदाश्त नही ूं होती, तो वह हीनता िो
तोडि् ने िी दृकष्ट से , पुरुष जो िर रहा है वही िरने में िर्ी है । उससे और घाति पररणाम होने वािे हैं , क्ोूंकि
वह अपने मूि व्यक्तक्तत्व िो तोड़ िे सिती है । और उसिो िहुत सूं घाति, उसिे कचि िी र्हराइयोूं ति
नुिसान पहुूं च सिते हैं । अि वह िरािर होने िी िोकशश में िर्ी है । और िरािर वह पु रुष िी तरह होिर
िरािर हो ही नही ूं सिती। ति तो वह नूंिर दो िी ही पुरुष होर्ी, नूंिर एि िी नही ूं हो सिती। हाूं , नूंिर एि
िी वह स्त्री िी तरह ही हो सिती है ।
तो यहाूं मेरा िोई वैल्युएशन नही ूं है ; िािी तर्थ् ऐसा है , इन चार शरीरोूं िा, वह मैं आपसे िहता हूं ।

स्त्री और पु रुष िी कचि—दशा में ििग

प्रश्न: ओशो तब तो स्त्री और परुष की साधना में भी िकओ होगा?

ििग होर्ा। ििग साधना में िम, कचि िी दशा में ज्यादा होर्ा। जैसे पुरुष िी वही साधना, एि ही
साधना पद्धकत हो तो भी पुरुष उस पर आक्रामि िी तरह जाएर्ा, और स्त्री उस पर ग्राहि िी तरह
जाएर्ी; पुरुष उस पर हमिा िरे र्ा, स्त्री उस पर समपगण िरे र्ी। एि ही साधना होर्ी, तो भी उनिे ढूं र्, उनिा
एकटटयूड अिर्—अिर् होर्ा। पुरुष जि जाएर्ा तो वह साधना िी र्दग न पिड़ िेर्ा; और स्त्री जि
जाएर्ी, उसिे चरणोूं पर कसर रख दे र्ी— साधना िे। वह उन दोनोूं िे ढूं र् में एकटटयूड में ििग होर्ा। और
उतना ििग स्वाभाकवि है । इससे ज्यादा ििग िा िोई सवाि नही ूं है । िस समपगण उसिा भाव होर्ा। और जि
अूंकतम उपिक्ति उसे होर्ी, तो उसे ऐसा नही ूं िर्ेर्ा कि ईश्वर मुझे कमि र्या, उसे ऐसा ही िर्ेर्ा कि मैं ईश्वर िो
कमि र्ई। और जि अूं कतम उपिक्ति पु रुष िो होर्ी, तो उसे ऐसा नही ूं िर्ेर्ा कि मैं ईश्वर िो कमि र्या, उसिो
ऐसा ही िर्े र्ा कि ईश्वर मुझे कमि र्या। वह उनिी पिड़ िे भेद होूंर्े। वह तो ििग रहे र्ा।

प्रश्न: यह चौथी भू जमका तक ही न!

िस च थे ति ही। इसिे िाद तो िोई प्रश्न नही ूं उठता, इसिे िाद तो िोई स्त्री—पुरुष िा प्रश्न नही ूं
है । च थे ति िी ही िात िर रहा हूं िस च थे शरीर ति ये िासिे होूंर्े।

सू क्ष्म अनुभवोूं िे साथ साक्षी िी सू क्ष्मता

प्रश्न : ओशो आपने कहा जक ओम् की साधना से नाद उपब्धस्थत होते हैं । क्ा आटोमेजटक भी नाद
उपब्धस्थत होते हैं ?

आटोमेकटि उपक्तस्थत होूं, वे ज्यादा िीमती हैं; अपने आप उपक्तस्थत होूं, वे ज्यादा िीमती हैं। ओमि्
िे प्रयोर् से उपक्तस्थत होूं तो वे िक्तल्पत भी हो सिते हैं । अपने आप ही होने चाकहए। वही िीमती हैं , वही सच्चे
हैं ।
प्रश्न: आटोमेजटक होने पर उनके साक्षी बनना चाजहए और साधना कांजटन्यू रखनी चाजहए?

हाूं , उनिे साक्षी िनना चाकहए। साक्षी िनना चाकहए, िीन नही ूं होना चाकहए। क्ोूंकि िीन होने िी
अवस्था तो सातवाूं ही शरीर है , उसिे पहिे िीन नही ूं होना है । उसिे पहिे जहाूं िीन हो जाएूं र्े , वही ूं रुि
जाएूं र्े ; वह ब्रेि हो जाएर्ा।

प्रश्न. िे सू क्ष्म से सू क्ष्म होते चिे जाते हैं ।

हाूं , वे सूक्ष्म हो रहे हैं, उसिा मतिि यह है कि वे खो रहे हैं। तो हमिो भी उतनी सूक्ष्मता में साक्षी
होना पड़े र्ा। कजतने वे सू क्ष्म होते जाएूं र्े , उतने हमिो भी सू क्ष्म साक्षी िनना पडे र्ा। हमें उन्ें आक्तखरी ति
दे खना है , जि ति कि वे खो ही न जाएूं ।

प्रथम तीन शरीर की तै यारी शब्धिपात के जिए सहयोगी:

प्रश्न: ओशो साधक के जकस शरीर में शब्धिपात की घटना और जकस शरीर में ग्रेस की घटना
घजटत होती है ? यजद साधक का पहिा दू सरा और तीसरा शरीर पूरा जिकजसत न हुआ हो तो उस पर
कां डजिनी जागरण और शब्धिपात का क्ा प्रभाि पड़े गा?

पहिी िात तो मैंने िह दी है कि शक्तक्तपात पहिे शरीर पर होता है और ग्रेस , प्रसाद च थे शरीर पर
होता है ।

अर्र पहिे शरीर पर शक्तक्तपात हो और िुूंडकिनी जाग्रत न हुई हो, तो िुूंडकिनी जाग्रत होर्ी। और
िड़ी तीव्रता से होर्ी,और िड़ी सम्हािने िी जरूरत पड़ जाएर्ी। क्ोूंकि शक्तक्तपात में , वह जो िाम महीनोूं में
होता है , वह क्षणोूं में हो जाएर्ा।

इसकिए शक्तक्तपात िरने िे पहिे उस साधि िे िम से िम तीन शरीरोूं िी थोड़ी सी तै यारी िी


जरूरत है । एिदम र्ैर — तै यार साधि पर, सड़ि चिते आदमी पर पिड़िर अर्र शक्तक्तपात हो, तो उसे
िाभ िी जर्ह नुिसान ही ज्यादा होूंर्े। इसकिए पहिे उसिी थोड़ी सी तै यारी जरूरी है । ही, िहुत ज्यादा
तै यारी िी जरूरत नही ूं है । थोडी सी तै यारी जरूरी है कि उसिे तीनोूं शरीर एि िोिस में आ जाएूं , पहिी
िात। तीनोूं शरीरोूं िे िीच एि सू त्रिद्धता आ जाए, कि जि शक्तक्तपात हो तो वह एि पर न अटि जाए
शक्तक्तपात। एि पर अटि र्या तो नुिसान होर्ा। वह तीनोूं पर िैि जाए तो िोई नु िसान नही ूं होर्ा। अर्र
एि पर रुि र्या तो िहुत नु िसान होर्ा।

वह नुिसान उसी तरह िा है , जैसे कि आप खड़े हैं और किजिी िा शॉि िर् जाए। अर्र किजिी िा
शॉि िर् जाए आपिो, और नीचे जमीन हो, और जमीन शॉि िो पी जाए पूरा, तो नुिसान पहुूं चेर्ा। िेकिन
अर्र आप ििड़ी िे च खटे पर खड़े हैं और किजिी िा शॉि िर्े , तो नुिसान नही ूं होर्ा, क्ोूंकि शॉि आपिे
पूरे शरीर में घूमिर वतुग ि िन जाएर्ा, सकिगि िन जाएर्ा। सकिगि िन र्या, किर िोई नु िसान नही ूं
होता; सकिगि टू ट जाए िही ूं से तो नुिसान होता है । समस्त ऊजाग िा कनयम यही है कि वह सकिगि में चिती है ।
और अर्र िही ूं से भी िीच से सकिगट टू ट जाए, तो ही धक्का और शॉि िर् सिता है । इसकिए अर्र ििड़ी
िी टे िि पर खड़े होूं, तो शॉि नही ूं िर्ेर्ा।

दे ह—जिद् यत के सां रक्षण के उपाय:

यह जानिर तु म्हें है रानी होर्ी कि ििड़ी िे तख्त पर िैठिर ध्यान िरने िा और िोई प्रयोजन नही ूं
था। और यह भी जानिर तु म्हें है रानी होर्ी कि मृ र्—चमग पर और शे र िी चमड़ी पर िैठिर ध्यान िरने िा
भी—वे सि नॉन—िूंडक्ङर हैं ; सि। मृर्—चमग िहुत नॉन—िूंडक्ङर है । अर्र उस वक्त शरीर में ऊजाग पैदा हो
तो वह नीचे जमीन में नही ूं जुड़ जाएर्ी। नही ूं तो शॉि िर् जाएर्ा; आदमी मर भी सिता है । या ििड़ी पर।
इसकिए खड़ाऊूं साधि पहनता रहा; ििड़ी िे तख्त पर सोता रहा। भिे उसे पता न हो कि वह किसकिए सो
रहा है , क्ा िर रहा है । किखा है शास्त्र में , वह सो रहा है ििड़ी िे तख्त पर। शायद सोच रहा है कि िष्ट दे ने
िे किए सो रहे हैं ; शरीर िो आराम न दें , इसकिए सो रहे हैं । वह िारण नही ूं है , खतरे दू सरे हैं । साधि पर किसी
भी क्षण घटना घट सिती है , किसी भी अनजान स्रोत से । उसिो तै यार होना चाकहए।

तो अर्र उसिे तीन शरीर िी तै यारी पूरी है — पहिे , दू सरे , तीसरे िी— तो वह जो शक्तक्त उसिो
कमिेर्ी, वह च थे ति जािर सकिगट िना िेर्ी, वतुग ि िना िेर्ी। अर्र यह तै यारी नही ूं हो और पहिे ही शरीर
पर उसिी शक्तक्त िा अवधान हो र्या,रुि र्ई, अवरुद्ध हो र्ई, तो िहुत नुिसान पहुूं च जाएूं र्े , िहुत तरह िे
नुिसान पहुूं च सिते हैं । इसकिए थोड़ी सी, इतनी भर तै यारी जरूरी है कि वह शक्तक्त िो वतुग ि िनाने में समथग
हो र्या हो। यह िहुत िड़ी तै यारी नही ूं है , यह िहुत आसानी से ,सरिता से हो जाती है । इसमें िोई िहुत
िकठनाई नही ूं है ।

मि में कछ भी नही ां जमिता:

िुूंडकिनी जार्े र्ी इस शक्तक्तपात से , वह तीव्रता से जार्े र्ी। िेकिन िस च थे िेंद्र ति ही जा


सिेर्ी, उसिे िाद िी यात्रा किर कनजी है । मर्र उतने ति पहुूं च जाने िी झिि भी िहुत अदभुत है । और
उतना रास्ता भी कदख जाए अूंधिार में , अमावस में—मुझे दो मीि िा रास्ता भी कदख जाए, किजिी चमि
जाए—तो भी िुछ िम नही ूं है । एि दिा रास्ता भी कदख जाए थोड़ा सा,तो भी सि िुछ िदि र्या। मैं वही
आदमी नही ूं रह जाऊूंर्ा जो िि ति था।

इसकिए शक्तक्तपात िा थोड़ी दू र ति दशग न िे किए उपयोर् किया जा सिता है , पर उसिी प्राथकमि
तै यारी हो जानी चाकहए। सीधे सामान्यजन पर नुिसानदायि है ही।
और मजा यह है कि सामान्यजन ही ज्यादा शक्तक्तपात इत्याकद पाने िे किए उत्सु ि रहता है ; वह चाहता
है , मुफ्त में िुछ कमि जाए। िे किन मुफ्त में िुछ भी नही ूं कमिता। और िई दिे मुफ्त िी चीज िहुत महूं र्ी
पड़ती है , िाद में पता चिता है । मुफ्त िी चीज से िचने िी िोकशश िरनी चाकहए। असि में , हमें सदा िीमत
चुिाने िो तै यार होना चाकहए। कजतनी हम िीमत चुिाने िी तै यारी कदखिाते हैं , उतना ही हम पात्र होते चिे
जाते हैं । और िड़ी िीमत हम अपनी साधना से ही चुिाते हैं ।

अि िहुत िकठन है न! अभी एि मकहिा आई दो कदन पहिे। उसने िहा, अि तो मैं मरने िे िरीि हूं
उम्र हो र्ई; अि मुझे िि होर्ा, अि जल्दी िरवा दें ! जल्दी िरवा दें , नही ूं तो मर जाऊूंर्ी, कमट जाऊूंर्ी, समाप्त
हो जाऊूंर्ी। तो मुझे जल्दी िरवा दें ! तो मैंने उससे िहा कि तु म ध्यान िे किए आ जाओ, दो—चार कदन ध्यान
िरो। किर दे खेंर्े ध्यान में तु म्हारी क्ा र्कत होती है , किर आर्े िी िात सोचेंर्े। उसने िहा कि नही,ूं ध्यान—
व्यान में मुझे मत उिझाइए, मुझे तो जल्दी हो जाए।

अि यह हमें..... .किििुि किना िीमत चु िाए िुछ चीज िी खोज चिती है । ऐसी खोज खतरनाि
कसद्ध होती है । इससे िुछ कमिता तो नही ,ूं िुछ टू ट सिता है । ऐसी आिाूं क्षा भी साधि में नही ूं होनी चाकहए।
कजतनी हमारी तै यारी है उतना हमें सदा कमि जाएर्ा, इसिा भरोसा होना चाकहए। यह कमि ही जाता है । असि
में, जो आदमी कजतनी चीज िा पात्र है उससे िम उसे िभी नही ूं कमिता; वह जर्त िा न्याय है , वह जर्त िा
धमग है । हम कजतनी दू र ति तै यार होते हैं उतनी दू र ति हमें कमि जाता है । और अर्र न कमिता हो तो हमें सदा
जानना चाकहए कि िोई अन्याय नही ूं हो रहा, हमारी तै यारी िम होर्ी। िेकिन हमारा मन सदा यह िहता है कि
िोई अन्याय हो रहा है ; मैं योग्य तो इतना हूं िेकिन मुझे यह नही ूं कमि रहा।

ऐसा होता ही नही,ूं हम कजतने योग्य होते हैं उतना हमें सदा ही कमिता है । योग्यता और कमिना एि ही
चीज िे दो नाम हैं । िेकिन मन हमारा आिाूं क्षा िहुत िी िरता है और श्रम िहुत िम िे किए िरता है ; हमारी
आिाूं क्षा और हमारे श्रम में िड़ा िासिा होता है । वह िासिा िहुत आत्मघाती है । वह िभी नु िसान पहुूं चा
सिता है । उसिी वजह से हम दीवाने िी तरह घूमते हैं कि िही ूं िुछ कमि जाए, िही ूं िुछ कमि जाए। और
किर जि िहुत िोर् इस तरह मुफ्त में खोजने घूमते हैं , ति कनकश्चत ही िुछ िोर् इनिा शोषण िर सिते हैं जो
इनिो मुफ्त में दे ने िी तै यारी कदखिाए। इनिे पास िहुत िुछ नही ूं हो सिता, िेकिन अर्र इन्ें िुछ सू त्र भी
िही ूं से पता चि र्ए होूं कजनसे ये थोड़ा—िहुत िुछ िर सिते होूं, जो िहुत र्हरा नही ूं होर्ा, िेकिन उतना
नुिसान तो ये पहुूं चा ही दें र्े। उतना नुिसान पहुूं चा सिते हैं ।

शब्धिपात का भिािा:

जैसे एि आदमी, कजसिो कि शक्तक्तपात िा िोई भी पता नही ूं है , वह भी अर्र चाहे तो कसिग िॉडी
मैग्नेकटज्य से थोड़ा— िहुत शक्तक्तपात िर सिता है —कजसे और भीतरी शरीरोूं िा, छह शरीरोूं िा िोई भी पता
नही ूं। शरीर िे पास अपनी मैग्नेकटि िोसग है , शरीर िे पास अपना चुूंििीय तत्व है । अर्र उसिी थोड़ी व्यवस्था
से इूं तजाम किया जाए तो तु म्हें शॉि पहुूं चाए जा सिते हैं , उसी से ।

इसकिए पुराना साधि जो है , वह कदशा दे खिर सोएर्ा—इस कदशा में कसर नही ूं िरे र्ा, उस कदशा में
पैर नही ूं िरे र्ा क्ोूंकि जमीन िा एि मैग्नेट है , और वह सदा उस मैग्नेट िी सीध में रहना चाहता है । उस मैग्नेट
से वह मैग्नेटाइज होता रहता है । अर्र तु म उससे आड़े सोते हो तो तु म्हारे िॉडी िा मैग्नेकटज्म िम होता चिा
जाता है । अर्र तु म उस मैग्नेट िी धारा में सोते हो, तो वह मै ग्नेट जो जमीन िा मैग्नेट है , कजस पर कि जमीन पूरी
िी पूरी धु री िनाए हुए है , वह मैग्नेट तु म्हारे मैग्नेट िो मैग्नेटाइज िरता है , वह तु म्हारे शरीर िो भर दे ता है । जैसे
कि एि मैग्नेट िे पास तु म िोहा रख दो, तो वह िोहा भी थोड़ा सा मैग्नेटाइज हो जाएर्ा और छोटी—मोटी सु ई
िो वह भी खी ूंच सिेर्ा। थोड़ी—िहुत दे र ति तो खी ूंच ही सिेर्ा।

चांबकीय शब्धि के जिजभन्न प्रयोग:

तो िॉडी िी अपनी चुूंििीय शक्तक्त है , उसिो अर्र पृथ्वी िी चुूंििीय शक्तक्त िे साथ रखा जा
सिे......। किर तारोूं िी चुूंििीय शक्तक्तयाूं हैं । कवशे ष तारे , कवशे ष मुहतग में , कवशे ष रूप से चुूं ििीय होते हैं । अर्र
उसिा किसी िो पता है — और उसिा पता होने में िोई िकठनाई नही ूं है , वह सारी िी सारी व्यवस्था है —तो
उन कवशे ष तारोूं से , कवशे ष घड़ी में , कवशे ष क्तस्थकत में ,कवशे ष आसन में खड़े होने से तु म्हारा शरीर िहुत चुूंििीय हो
जाता है । और ति तु म किसी भी आदमी िो चुूंििीय शॉि दे सिते हो, जो उसे शक्तक्तपात मािू म पड़े र्ा, जो
कि शक्तक्तपात नही ूं है ।

शरीर िी अपनी कवदि् युत है , शरीर िी अपनी इिेक्तक्ङरकसटी है । उस इिेक्तक्ङरकसटी िो अर्र ठीि से पैदा
किया जाए तो छोटा—मोटा पाूं च—दस िैंडि िा िल्व तो हाथ में रखिर जिाया जा सिता है । उसिे प्रयोर्
हुए हैं और सिि हुए हैं । िुछ िोर्ोूं ने वह िल्व जिािर हाथ से ...... .सीधा हाथ में िल्व िेिर जिा कदया।
पाूं च—दस िैंडि िा िल्व तो हाथ से ही जि सिता है । शक्तक्त तो उससे भी िहुत ज्यादा है । शक्तक्त तो उससे
भी िहुत ज्यादा है ।

एि स्त्री िेक्तल्वयम में , िोई िीस वषग पहिे , आिक्तस्भि रूप से इिेक्तक्ङरिाइड हो र्ई। उसिो िोई छू
नही ूं सिता था,क्ोूंकि जो भी छु ए उसे शॉि िर् जाए। उसिे पकत ने उसे तिाि कदया। उसिा िारण तिाि
िा यह था कि उसिो शॉि िर्ता उसिो छूिर। तिाि िी वजह से वह सारी दु कनया में पता चिा, और ति
उसिे शरीर िी जाूं च—पड़ताि हुई तो पता चिा कि उसिा शरीर कवदि् युत पैदा िर रहा है िहुत जोर से ।

शरीर िे पास िड़ी िैटरीज हैं । अर्र वे व्यवक्तस्थत िाम िर रही होूं तो हमें पता नही ूं चिता, अर्र वे
अव्यवक्तस्थत हो जाएूं तो उनसे िहुत शक्तक्त पैदा होती है । तु म पूरे वक्त िैिोरीज िे जािर भीतर उन सि
िैटरीज िो पूरा िर रहे हो। इसकिए िई दिे तु मिो ही िर्ता है कि जैसे चाजग खो र्या, रर—चाजग होने िी
जरूरत है । थिा हुआ आदमी, कडप्रेस्ट आदमी, साूं झ िो थिा—मादा, टू टा आदमी, ऐसा िर्ता है जैसे उसिी
िैटरी धीमी पड़ र्ई, उसने चाजग खो कदया, अि वह रर—चाजग होना चाहता है । रात सोिर वह रर—चाजग होता है ।
उसे पता नही ूं कि सोने में ि न सी िात है कजससे वह सु िह रर—चार्जडग होिर उठता है । उसिी िैटरी वापस
चाज्रि्ड हो र्ई है । नी ूंद में िुछ प्रभाव उस पर िाम िर रहे हैं । उनिा सि पता चि चुिा है कि वे ि न से
प्रभाव िाम िरते हैं । िोई आदमी चाहे तो उन प्रभावोूं िा जार्ते हुए अपने शरीर में िायदा िे सिता है । और
ति वह तु म्हारे शरीर िो शॉि दे सिता है , जो मैग्नेकटि िे भी नही ूं हैं , इिेक्तक्ङरि िे हैं — िॉडी इिेक्तक्ङरि िे हैं ।
िेकिन उससे तु मिो शक्तक्तपात िा भ्म हो सिता है ।

इसिे अिावा भी और रास्ते हैं जो सि िाल्स हैं , कजनसे िोई सूं िूंध नही ूं है असिी िात िा। अर्र उस
आदमी िो अपने शरीर िे मै ग्नेट िा भी िोई पता नही ूं है , अपने शरीर िी कवदि् युत िा भी िोई पता नही ूं
है , िेकिन तु म्हारे शरीर िे कवदि् युत िे सकिगट िो तोडि् ने िा उसे िोई रास्ता पता है , तो भी तु म्हें शॉि िर्
जाएर्ा। अि इसिो िई तरह से किया जा सिता है और िई तरह िे इूं तजाम किए जा सिते हैं कि तु म्हारा ही
जो वतुग ि है तु म्हारे भीतर कवदि् युत िा, वह अर्र तोड़ कदया जाए तो तु मिो शॉि िर्ेर्ा। उसमें दू सरे आदमी िा
िुछ भी नही ूं आ रहा है तु म्हारी तरि, िेकिन तु मिो ही शॉि िर् रहा है । वह तोड़ा जा सिता है । उसिो
तोडि् ने िी भी व्यवस्थाएूं हैं , उसिो तोडि् ने िे भी उपाय हैं ।

मात्र कतू हि से साधना में खतरे :

ये सारी िी सारी िातें तु म्हें मैं पूरी न िता सिूूं, क्ोूंकि वे पूरी ितानी िभी भी उकचत नही ूं। और कजतनी
िातें मैं िह रहा हूं उनमें से िुछ भी पूरी िात नही ूं है । यह जो िाल्स मेथडि् स िी जो मैं िात िर रहा हूं इसमें
िोई भी िात पूरी नही ूं है ;क्ोूंकि इसमें पूरी िहना सदा खतरनाि है । क्ोूंकि उसिो िोई भी िरने िा मन
होता है । हमारी क्ूररआकसटी ऐसी है कि एि िहुत अदभुत ििीर ने तो क्ूररआकसटी िो ही कसिग कसन िहा
है । पाप एि ही है आदमी में , वह है उसिा िुतू हि; और िािी िोई पाप नही ूं है । क्ोूंकि वह िुतू हिवश
कितने पाप िर िेता है , हमें पता नही ूं चिता। िुतू हि ही उसिो न मािूम कितने पाप िरा दे ता है ।

िाइकिि िी िथा कि अदम िो ईश्वर ने िहा है कि तू इस वृ क्ष िा िि मत चखना। िस यह िुतू हि


कदक्कत में डाि कदया उसे । ओररकजनि कसन जो है , वह क्ूइरआकसटी िा था। उसिो यह कदक्कत पड़ र्ई।
उसने िहा कि यह मामिा िड़ा र्ड़िड़ है ! इतने िड़े जूंर्ि में और इतने सुूं दर ििोूं में यह एि साधारण सा
वृक्ष, इसिा िि खाने िी मनाही है ! िात क्ा है ?

सारे वृक्ष िे िार हो र्ए, वह एि ही वृक्ष साथगि हो र्या। कचि वही ूं डोिने िर्ा उसिा। वह किना िि
चखे नही ूं रह सिा, वह िि उसे चखना पड़ा। िुतू हि उसे उस वृक्ष िे पास िे र्या, कजसे ईसाइयत िहती है
कि ओररकजनि कसन, मूि पाप हो र्या।

अि मूि पाप िि िे चखने में क्ा हो सिता है ? नही ूं िेकिन, मूि पाप उसिे िुतू हि िा हो र्या।
और हमारे मन में िड़ा िुतू हि होता है । शायद ही िभी हमारे मन में कजज्ञासा हो। कजज्ञासा कसिग उसी में होती
है कजसमें िुतू हि नही ूं होता। और ध्यान रखना, क्ूररआकसटी और इूं िायरी में िड़ा िुकनयादी ििग है । क्ूररअस
आदमी इूं िायररर् नही ूं होता। वह जो आदमी िुतू हि से भरा रहता है कि यह भी दे ख िें , यह भी दे ख िें, वह
किसी चीज िो िभी पूरी नही ूं दे खता; क्ोूंकि जि ति वह इसिो दे ख नही ूं पाता कि पच्चीस और चीजें उसे
िुिाने िर्ती हैं कि यह भी जान िें , यह भी दे ख िें । और ति वह िभी भी अन्रे षण नही ूं िर पाता है ।

तो ये िाल्स मेथडि् स िी जो मैं िात िह रहा हूं यह पूरी नही ूं है । इसमें िुछ खास िातें छोड़ दी र्ई हैं ।
उनिा छोड़ दे ना जरूरी है , क्ोूंकि हमारा मन होता है कि हम इनिो िरिे दे खें। िेकिन यह सि हो जाता
है , इसमें जरा भी िकठनाई नही ूं है ।

और इस सििी वजह से जो झूठे आिाूं क्षी खोजते किरते हैं कि हमें शक्तक्त कमि जाए, परमात्मा कमि
जाए, िोई दे दे ,इनिो िोई दे नेवािा भी कमि जाता है । और ति अूंधे अूंधोूं िा मार्गदशग न िरते हैं । और किर
अूंधे तो कर्रते ही हैं , उनिे पीछे अूंधोूं िी िड़ी ितार कर्रती है । और यह नुिसान साधारण नही ूं होता, िई िार
जन्मोूं िे किए हो जाता है ; क्ोूंकि किसी चीज िो तोड़ िेना िहुत आसान है , किर से िनाना िहुत मुक्तिि है ।

इसकिए िुतू हिवश िभी इस सूं िूंध में िुछ खोजिीन िरना ही नही ूं। इस सूं िूंध में अपनी तै यारी पहिे
िरना, किर जो जरूरी है वह अपने आप तु म्हारे पास आ जाएर्ा— आ जाता है ।
आज इतना ही।

प्रिचन 17 - मनस से महाशू न्य तक

(ग्यारहिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ )

कां डजिनी जागरण के जिए प्रथम तीन शरीरोां में सामांजस्य आिश्यक:

प्रश्न :

ओशो कि की चचाओ में आपने अजिकजसत प्रथम तीन शरीरोां के ऊपर होनेिािे शब्धिपात या
कां डजिनी जागरण के प्रभाि की बात की। दू सरे और तीसरे शरीर के अजिकजसत होने पर कैसा प्रभाि
होगा इस पर कछ और प्रकाश डािने की कृपा करें । और साथ ही यह भी बताएां जक प्रथम तीन शरीर—
जिजजकि ईथररक और एस्टर ि बॉडी को जिकजसत करने के जिए साधक क्ा करे ?

इस सूं िूंध में पहिी िात तो यह समझने िी है कि पहिे , दू सरे और तीसरे शरीरोूं में सामूंजस्य, हामगनी
होनी जरूरी है । ये तीनोूं शरीर अर्र आपस में एि मैत्रीपूणग सूं िूंध में नही ूं हैं , तो िुूंडकिनी जार्रण हाकनिर हो
सिता है । और इन तीनोूं िे सामूंजस्य में ,सूं र्ीत में होने िे किए दो—तीन िातें आवश्यि हैं ।

प्रथम शरीर के प्रजत बोधपूणओ होना:

पहिी िात तो यह कि हमारा पहिा शरीर, जि ति हम इस शरीर िे प्रकत मूक्तच्छगत हैं , ति ति यह


शरीर हमारे दू सरे शरीरोूं िे साथ सामूंजस्य स्थाकपत नही ूं िर पाता, हामोूंकनयस नही ूं हो पाता। मूक्तच्छगत िा मेरा
मतिि यह है कि हम अपने शरीर िे प्रकत िोधपूणग नही ूं हैं । चिते हैं तो हमें पता नही ूं होता कि हम चि रहे
हैं , उठते हैं तो हमें पता नही ूं होता कि हम उठ रहे हैं ,खाना खाते हैं तो हमें पता नही ूं होता कि हम खाना खा रहे
हैं । शरीर से हम जो िाम िेते हैं वह अत्यूंत मूच्छाग और कनद्रा में िेते हैं ।

अर्र इस शरीर िे प्रकत मूच्छाग है , तो दू सरे शरीरोूं िे प्रकत तो और भी मूच्छाग होर्ी, क्ोूंकि वे तो िहुत
सू क्ष्म हैं । अर्र इस स्थू ि कदखाई पड़नेवािे शरीर िे प्रकत भी हमारा िोई होश और अवे यरनेस नही ूं है , तो जो
शरीर नही ूं कदखाई पड़ते , अदृश्य हैं उनिा तो िोई सवाि नही ूं उठता, उनिे प्रकत तो हमें िभी होश नही ूं हो
सिता। और किना होश िे सामूंजस्य नही ूं है । सि सामूंजस्य होश में होता है । नी ूंद में सि सामूंजस्य टू ट जाता
है ।

तो पहिी िात तो इस शरीर िे प्रकत अवेयरनेस जर्ानी जरूरी है । यह शरीर छोटा सा भी िाम िरे तो
उसमें एि ररमेंिररर्, उसमें एि स्भरण होना आवश्यि है । जैसा िुद्ध िहते थे कि तु म राह पर चिो तो तु म
जानो कि चि रहे हो। और जि तु म्हारा िायाूं पैर उठे , तो तु म्हारे कचि िो पता हो कि िायाूं पैर उठा; और जि
तु म रात िरवट िो तो तु म जानो कि तु मने िरवट िी है ।

एि र्ाूं व से वे कनिि रहे हैं —यह उनिी साधि अवस्था िी घटना है — और एि साधि उनिे साथ
है । वे दोनोूं िात िर रहे हैं और एि मक्खी उनिे र्िे पर आिर िै ठ र्ई है । तो वे िात िरते रहे और हाथ से
उन्ोूंने मक्खी िो उड़ा कदया। मक्खी उड़ र्ई, ति अचानि वे रुििर खड़े हो र्ए और उन्ोूंने उस साधि से
िहा कि िड़ी भूि हो र्ई, और उन्ोूंने किर से मक्खी उड़ाई जो कि अि थी ही नही ;ूं किर उस जर्ह हाथ िे र्ए
जहाूं मक्खी थी ति िे र्ए थे। उस साधि ने िहा, साथी ने िहा,अि आप क्ा िर रहे हैं ? अि तो मक्खी नही ूं
है ! िुद्ध ने िहा, अि मैं वैसे उड़ा रहा हूं जैसे मुझे उड़ानी चाकहए थी। अि मैं होशपूवगि उड़ा रहा हूं अि यह हाथ
मेरा उठ रहा है तो मेरी चेतना में मैं जान रहा हूं कि यह हाथ जा रहा है मक्खी िो उड़ाने। उस वक्त मैं तु मसे
िात िरता रहा और यूंत्रवत मैंने मक्खी उड़ा दी। मेरे शरीर िे प्रकत एि पाप हो र्या।

प्रथम स्थूि शरीर के प्रजत जागने पर भाि शरीर का बोध प्रारां भ:

यकद हम अपने शरीर िे प्रत्ये ि िाम िो होश से िरने िर्ें , तो हमारा यह शरीर पारदशी हो
जाएर्ा, टर ाूं सपैरेंट हो जाएर्ा। िभी इस हाथ िो नीचे से ऊपर ति होशपूवगि उठाएूं । और ति आप एहसास
िरें र्े कि आप हाथ से अिर् हैं , क्ोूंकि उठानेवािा िहुत कभन्न है । वह जो कभन्नता िा िोध होर्ा, वह आपिी
ईथररि िॉडी िा िोध शु रू हो र्या।

किर जैसे मैंने िहा कि इस शरीर िे प्रकत िोध है — अि जैसे समझ िें कि यहाूं एि आिेस्टर ा िजता
हो, िहुत तरह िे वाद्य िजते होूं। कजस आदमी ने सूं र्ीत िभी नही ूं सु ना है उसे भी हम यहाूं िे आएूं । तो जो स्वर
सिसे ज्यादा िजते होूंर्े, जो ढोि सिसे ज्यादा पीटा जा रहा होर्ा, उसे वही सु नाई पड़े र्ा; िहुत धीमे
स्वरोूंवािे , मैदे स्वरवािे , पीछे से, पृष्ठभूकम से िजनेवािे वाद्य स्वर उसे सु नाई नही ूं पड़ें र्े। िेकिन उसिा होश
िढ़ता जाए तो किर उसे पीछे वािे स्वर भी सु नाई पड़ने शु रू होूंर्े। उसिा होश और िढ़ता चिा जाए, तो उसे
और पीछे वािे स्वर सु नाई पड़ने शु रू होूंर्े। और कजस कदन उसिा होश पूरा होर्ा, उस कदन वह िहुत ही िारीि
और नाजुि जो स्वर हैं , वे भी वह पिड़ने िर्ेर्ा। और कजस कदन उसिा होश और भी िढ़ जाएर्ा, उस कदन वह
िेवि स्वर ही नही ूं पिड़े र्ा, दो स्वरोूं िे िीच में जो अूंतराि है , जो र्ैप है , जो साइिेंस है , वह भी पिड़े र्ा। तभी
वह सूं र्ीत िो पूरा पिड़ पाया।

अूंकतम तो उसिो र्ैप पिड़ना है , ति समझेंर्े कि उसिी सूं र्ीत िी पिड़ पूरी हो पाई। जि दो स्वरोूं
िे िीच में जर्ह खािी छूट जाती है और िोई स्वर नही ूं होता, सन्नाटा होता है ; उस सन्नाटे िा भी अपना अथग है ।
असि में , सूं र्ीत िे सि स्वर उसी सन्नाटे िो उभारने िे किए हैं । वह कितना उभरता है और प्रिट होता है , यही
असिी िात है ।

अर्र आपने िभी िोई जापानी या चाइनीज पेंकटूं र् दे खी है , तो िहुत है रान होूंर्े यह िात दे खिर कि
पेंकटूं र् एि िोने पर होर्ी छोटी सी, और िैनवस िहुत िड़ा खािी ही होर्ा। ऐसा दु कनया में िही ूं नही ूं
होता, क्ोूंकि दु कनया में िही ूं भी कचत्रिार ने ध्यान िे साथ कचत्र नही ूं िनाए। असि में , ध्यानी ने दु कनया में िही ूं
भी पेंकटूं र् नही ूं िी है कसवाय चीन और जापान िो छोडि् िर। अर्र आप इस कचत्रिार से पूछेंर्े कि यह क्ा
मामिा है ? इतना िड़ा िैनवस किया है , उसमें इतना सा छोटा सा िोने में कचत्र िनाया है ! यह तो िैनवस िे
आठवें कहस्से में भी िन सिता था, िािी िैनवस िी क्ा जरूरत थी? तो वह िहे र्ा कि वह जो िािी पृष्ठ पर
जो खािी आिाश है , उसिो उभारने िे किए ही यह नीचे िोने पर थोड़ी सी मेहनत िी है , ताकि वह खािी
आिाश तु म्हें कदखाई पड़ सिे। क्ोूंकि अनुपात यही है , खािी आिाश अनूंत है ।

अि एि वृ क्ष खड़ा है खािी आिाश में। जि हम कचत्र िनाते हैं तो पूरे िैनवस पर वृक्ष हो जाता है ।
वस्तु त: तो आिाश होना चाकहए पूरे िैनवस पर, वृक्ष तो एि िहाूं िोने में , उसिा पता नही ूं चिता, उतना छोटा
है । अनुपात वास्तकवि यही है । और वृ क्ष अपने पूरे अनुपात में आिाश िी पृष्ठभुकम में जि खड़ा होर्ा, तभी
जीवूंत होर्ा। इसकिए हमारी सारी पेंकटूं र् अनुपातहीन है ।

अर्र ध्यानी िभी सूं र्ीत पैदा िरे र्ा तो उसमें स्वर िम होूंर्े , शू न्यता ज्यादा होर्ी, क्ोूंकि स्वर तो िड़ी
छोटी िात है शू न्य िहुत िड़ी िात है । और स्वर िी एि ही साथग िता है कि वह शू न्य िो इूं कर्त िर जाए और
कवदा हो जाए। िेकिन कजतना िोध िढ़े र्ा स्वर िा, उतना!

तो हमारा यह जो स्थूि शरीर है , इसिी साथगिता ही यही है कि यह हमें और सू क्ष्म शरीरोूं िा िोध िरा
जाए। िेकिन हम इसी िो पिड़िर िैठ जाते हैं । और पिड़िर िै ठने िी जो तरिीि है , वह यह है कि हम
इस शरीर िे प्रकत मूक्तच्छगत तादात्म्य िर िेते हैं , एि स्लीकपूंर् आइडें कटटी है , हम सो र्ए हैं और शरीर िो हम
किििुि मूच्छाग िी तरह जी रहे हैं । इस शरीर िी एि—एि कक्रया िे प्रकत जार्ोर्े तो तु म्हें ि रन दू सरे शरीर
िा िोध शु रू हो जाएर्ा।

किर दू सरे शरीर िी भी अपनी कक्रयाएूं हैं । िेकिन उनमें तु म ति ति नही ूं जार् सिोर्े जि ति इस
शरीर िी कक्रयाओूं िे प्रकत नही ूं जार्े , क्ोूंकि वे सू क्ष्म हैं । अर्र तु म इस शरीर िी कक्रयाओूं िे प्रकत जार् र्ए तो
तु म्हें दू सरे शरीर िी कक्रयाओूं िा भी हिन—चिन पता पड़ने िर्ेर्ा। अि दू सरे शरीर िी हिन—चिन पर
कजस कदन तु म जार्ोर्े , तु म िहुत है रान हो जाओर्े कि यह तो हमें पता ही नही ूं था कि हमारे भीतर ईथररि वेल्स
भी हैं , और वे पूरे वक्त िाम िर रही हैं ।

भाि शरीर में उठनेिािे भािोां के प्रजत होश:

एि आदमी ने क्रोध किया। क्रोध िा जन्म दू सरे शरीर में होता है , अकभव्यक्तक्त पहिे शरीर में होती है ।
क्रोध मूित: दू सरे शरीर िी किया है ; पहिे शरीर िा तो साधन िी तरह उपयोर् होता है । इसकिए तु म चाहो तो
पहिे शरीर ति क्रोध िो आने से रोि सिते हो। दमन में यही िरते हो। मेरा मन हुआ है , क्रोध से भर र्या हूं
और तु म्हें उठािर ििड़ी मार दू ूं । ििड़ी मारने से मैं रोि सिता हूं क्ोूंकि यह पहिे शरीर िी कक्रया है । यह
मूित: क्रोध नही ूं है , यह क्रोध िी अकभव्यक्तक्त भर है । ििड़ी मारने से रोि सिता हूं चाहूं तो तु म्हें दे खिर
मुस्कुराता भी रह सिता हूं िेकिन भीतर मेरे दू सरे शरीर पर क्रोध िैि जाएर्ा। तो दमन में इतना ही होता है
कि हम अकभव्यक्तक्त िे ति पर उसिो प्रिट नही ूं होने दे ते , िेकिन मूि स्रोत िे ति पर तो वह प्रिट हो जाता
है ।

जि तु म्हें पहिे शरीर िी कक्रयाओूं िा पता चिना शु रू होर्ा, ति तु म अपने भीतर उठने वािे
प्रेम, अपने भीतर उठनेवािे क्रोध, अपने भीतर उठनेवािी घृणा, अपने भीतर उठनेवािे भय िे मूवमेंटि्स िो भी
समझने िर्ोर्े। वे भी तु म्हें पता चिने िर्ेंर्े कि उनिी र्कतयाूं हैं । और जि ति तु म दू सरे शरीर पर उठनेवािे
इन सि भावोूं िी र्कत िो नही ूं पिड़ पाते हो, ति ति ज्यादा से ज्यादा दमन ही िर सिते हो, मुक्त नही ूं हो
सिते । क्ोूंकि तु मिो पता ही ति चिता है जि वह इस शरीर ति आ जाता है , तु मिो खु द भी तभी पता
चिता है । िई िार तो ति भी पता नही ूं चिता, पता चिता है जि ति दू सरे िे शरीर ति न पहुूं च जाए। हम
इतने मूक्तच्छगत होते हैं कि जि ति मेरा चाूं टा तु म्हारे ऊपर न पड़ जाए, ति ति भी मुझे पता नही ूं चिता कि मैं
चाूं टा मारने वािा था। जि चाूं टा िर् ही जाता है , ति मुझे पता चिता है कि िोई घटना घट र्ई।

िेकिन यह उठता है ईथररि िॉडी में , वहाूं से पैदा होता है — समस्त भाव। इसकिए मैंने दू सरे शरीर िो
भाव शरीर िहा। ईथररि िॉडी जो है , वह भाव शरीर है । उसिी अपनी र्कतयाूं हैं । क्रोध में , प्रेम में, घृणा
में, अशाूं कत में, भय में उसिे अपने मूवमेंट हो रहे हैं । उसिी र्कतयोूं िो तु म पहचानने िर्ोर्े।

भय के ईथररक कांपन का बाह्य व्यब्धित्व पर प्रभाि:

जि तु म भयभीत होओर्े ति तु म्हारी ईथररि िॉडी एिदम कसिुड़ जाती है । तो भय में जो सूं िोच
मािूम पड़ता है , वह पहिे शरीर िा नही ूं है ; क्ोूंकि पहिा शरीर तो उतना ही रहता है , उसमें िोई ििग नही ूं
पड़ता। पहिे शरीर िे आयतन में िोई ििग नही ूं पड़ता, िेकिन ईथररि िॉडी कसिुड़ जाती है भय में।

इसकिए जो आदमी भयभीत रहता है , उसिे पहिे शरीर पर भी सूं िोच िे प्रभाव कदखाई पड़ने िर्ते
हैं । उसिे चिने में ,उसिे िैठने में वह पूरे वक्त दिा—दिा मािूम पड़ता है , जैसे चारोूं तरि से िोई उसे दिाए
हुए है । वह खड़ा होर्ा तो सीधा खड़ा न होर्ा, झुििर खड़ा होर्ा; वह िोिेर्ा तो िड़खडाएर्ा; चिेर्ा तो उसिे
पैर में िूंपन होूंर्े; दस्तखत िरे र्ा तो उसिे अक्षर िूंपे हुए और कहिे हुए होूंर्े।

अि स्त्री और पु रुष िे हस्ताक्षर, किना किसी िकठनाई िे िोई भी पहचान सिता है कि ये पुरुष िे
हस्ताक्षर हैं कि स्त्री िे। स्त्री सीधे अक्षर िना ही नही ूं पाती। कितने ही सु ड ि िनाए ति भी उसिे अक्षरोूं में एि
िूंपन होता है जो स्त्रैण होता है । वह उसिे ईथररि शरीर से आता है । वह पूरे वक्त भयभीत है । उसिा
व्यक्तक्तत्व ही भयग्रस्त हो र्या है । इसकिए किििुि किना कििर िे दे खिर िहा जा सिता है कि यह स्त्री िा
किखा हुआ अक्षर है कि पुरुष िा किखा हुआ अक्षर है ।

किर पुरुष में भी ि न आदमी कितना भयभीत है , वह अक्षर से दे खिर जाना जा सिता है । हमारी
अूंर्ुकियोूं में और स्त्री िी अूंर्ुकियोूं में िोई ििग नही ूं है । हमारे ििम िे पिड़ने में , उसिे ििम िे पिड़ने
में ििग नही ूं है । जहाूं ति पहिे शरीर िा वास्ता है , किखने में िोई ििग नही ूं पड़ता। िेकिन जहाूं ति दू सरे
शरीर िा वास्ता है , स्त्री भयभीत है । आज ति भी वह भीतर से अभय िी क्तस्थकत नही ूं हो पाई— न समाज िी, न
सूं स्कृकत िी, न हमारे कचि िी—कि स्त्री िो हम अभय दे पाएूं । वह भयभीत है पूरे वक्त। और उसिे भय िा
िूंपन उसिे सारे व्यक्तक्तत्व में उतरे र्ा। पुरुषोूं में भी जाूं चा जा सिता है कि ि न भयभीत है ,ि न कनभगय है । वह
उनिे हस्ताक्षर िता सिेंर्े। िेकिन भय िी जो क्तस्थकत है , वह ईथररि है ।

भाि शरीर का भय में जसकड़ना और प्रेम में िैिना:


यह मैं तु म्हें पहचानने िे किए िह रहा हूं कि भीतर तु म जि इस शरीर िी कक्रयाओूं िो पहचान जाओ
तो तु म्हें ईथररि शरीर िी कक्रयाओूं िो भी पहचानना पड़े र्ा कि वहाूं क्ा हो रहा है । जि तु म प्रेम में होते हो तो
तु म्हें िर्ता है तु म िैि र्ए। असि में , प्रेम में इतनी मुक्तक्त इसीकिए मािूम होती है कि हम एिदम िैि जाते
हैं —िोई है कजससे अि भय िी िोई जरूरत नही ूं है । कजस व्यक्तक्त िो मैं प्रेम िरता हूं उसिे पास मुझे भय िा
िोई िारण नही ूं है । असि में , प्रेम िा मतिि ही यह है कि कजससे मुझे भय नही ूं है ; कजसिे सामने, मैं जैसा हूं
उतना पूरा क्तखि सिता हूं ; कजतना हूं उतना िैि सिता हूं । इसकिए प्रेम िे क्षण में एक्सपैंशन िा िोध होता है ।
तु म्हारा यह शरीर इतना ही रहता है , इसमें िोई ििग नही ूं पड़ता, िेकिन तु म्हारे भीतर िा शरीर क्तखि जाता है
और िूि जाता है , िैि जाता है ।

ध्यान में कनरूं तर िोर्ोूं िो अनुभव होता है .......किसी िो अनुभव होता है कि उसिा शरीर िहुत िड़ा हो
र्या! यह शरीर इतना ही रहता है । यह शरीर इतना ही रहता है । ध्यान में उसे िर्ता है कि यह क्ा हो रहा है !
मेरा शरीर िैिता जा रहा है ,पूरे िमरे िो भर किया! आूं ख जि वह खोिता है तो है रान होता है कि शरीर तो
उतना ही है , िेकिन वह िीकिूंर् भी उसिी पीछा िरती है कि वह भी झूठ नही ूं था जो मैंने जाना; अनुभव इतना
साि हुआ था कि मैं पूरे िमरे में भर र्या हूं ।

वह ईथररि शरीर है । उसिे आयतन िा िोई अूं त नही ूं है । वह भाव से िैिता और कसिुड़ता है । वह
इतना िैि सिता है कि सारे जर्त में भर जाए; वह इतना कसिुड़ सिता है कि एि छोटे अणु में भी उसिे
किए जर्ह कमि जाए। वह भाव शरीर है ।

िैिा हुआ होना भाि शरीर की स्वस्थता:

तो उसिी कक्रयाएूं तु म्हें कदखाई पड़नी शु रू होूंर्ी— उसिा िैिना, उसिा कसिुड़ना; वह किन
क्तस्थकतयोूं में िैिता है , किन में कसिुड़ता है । कजनमें वह िैिता है , अर्र साधि उन कक्रयाओूं में जीने िर्े तो
सामूंजस्य पैदा होर्ा; कजनमें वह कसिुड़ता है अर्र उनमें जीने िर्े तो इस शरीर में और दू सरे शरीर में सामूंजस्य
टू ट जाएर्ा। क्ोूंकि उसिा िैिाव ही उसिी सहजता है । जि वह पूरा िैिा होता है , पूरा प्रिुक्तल्रत होता
है , ति वह इस शरीर िे साथ एि से तु में िूंध जाता है , और जि वह भयभीत होता है , कसिुड़ा हुआ होता है , तो
इस शरीर से उसिे सूं िूंध कछन्न—कभन्न हो जाते हैं ; वह अिर् एि िोने में पड़ जाता है ।

तीव्र भािनात्मक आघात से भाि शरीर का स्पि बोध:

उस शरीर िी और भी तरह िी कक्रयाएूं हैं कजनिो कि और तरह से जाना जा सिता है । जैसे कि......
अर्र एि आदमी अभी कदखाई पड़ रहा था किििुि स्वस्थ, सि तरह से ठीि, और किसी ने आिर उसिो
खिर दी कि उसिो िाूं सी िी सजा हो र्ई है ; तो उसिे चेहरे िा रूं र् ि रन उड़ जाएर्ा। उसिे इस शरीर में
िोई ििग नही ूं पड़ रहा है , क्ोूंकि इस शरीर में कजतना खू न है उतना है । िेकिन उसिी ईथररि िॉडी में
एिदम ििग पड़ र्या। उसिी ईथररि िॉडी इस शरीर िो छोड़ने िो तै यार हो र्ई। उसिी ईथररि
िॉडी, उसिा भाव शरीर इस शरीर िो छोड़ने िो तै यार हो र्या। और हाित वैसी ही हो र्ई, जैसे कि इस घर
िे माकिि िो अचानि पता चिे कि अि यह मिान खािी िर दे ना है , तो सि र नि चिी जाए, सि
अस्तव्यस्त हो जाए। उस दू सरे शरीर ने इससे सूं िूंध एि अथग में तोड़ ही कदया। िाूं सी तो थोड़ी दे र िाद
होर्ी, नही ूं भी होर्ी, िेकिन उसिा इस शरीर से सूं िूंध टू ट र्या।

एि आदमी तु म्हारी छाती पर िूंदूि िेिर खड़ा हो र्या, एि शे र ने तु म्हारे ऊपर हमिा िर कदया, तो
तु म्हारे इस शरीर पर अभी िुछ भी नही ूं हुआ है , किसी ने छु आ भी नही ूं है , िेकिन तु म्हारा ईथररि शरीर तै यारी
िर किया है छोड़ने िी। उसिे िीच, इसिे िीच िासिा िड़ा हो र्या।

तो उसिी र्कतयोूं िो किर तु म्हें सू क्ष्मता से दे खना पड़े र्ा। वे भी दे खी जा सिती हैं , उनमें िोई
िकठनाई नही ूं है । िकठनाई है तो यही कि हम इसी शरीर िी र्कतयोूं िो नही ूं दे ख पाते । इस शरीर िी र्कतयोूं
िो हम दे खें तो हमें उसिी र्कतयाूं भी कदखाई पड़ने िर्ेंर्ी। और जैसे ही दोनोूं िी र्कतयोूं िा िोध तु म्हें स्पष्ट
होर्ा, तु म्हारा िोध ही दोनोूं िे िीच सामूंजस्य िन जाएर्ा।

भाि शरीर में जागने पर सू क्ष्म शरीर का बोध:

किर तीसरा शरीर है , कजसे सू क्ष्म शरीर मैंने िहा, एस्टर ि िॉडी िहा। उसिी र्कत कनकश्चत ही और भी
सू क्ष्म है । और तु म्हारे भय और क्रोध और प्रेम और घृणा, इनसे भी ज्यादा सू क्ष्म है । उसिी र्कत िो पिड़ने िे
किए तो दू सरे शरीर में जि ति पूरी सििता न कमि जाए ति ति िहुत िकठनाई है । समझना भी थोड़ी
िकठनाई है , क्ोूंकि अि र्ैप िहुत िड़ा हो र्या। हम पहिे शरीर पर मूक्तच्छगत हैं । इसकिए पहिे शरीर से दू सरा
शरीर कनिट है , थोड़ी—िहुत िात समझ में आती है । तीसरे शरीर िे साथ िहुत र्ैप हो र्या। यानी ऐसा ििग
पड़ र्या कि दू सरा शरीर तो हमारे िर्ि िा ने िर था, पड़ोसी था, िभी—िभी उसिी आवाज, उसिे च िे में
ितग न िे कर्रने िी आवाज, िभी उसिे िच्चे िे रोने िी आवाज सु नाई पड़ जाती थी। िे किन तीसरा शरीर
पड़ोसी िे िाद िा पड़ोसी है । उसिे च िे िी भी आवाज िभी नही ूं आती, उसिे िच्चे िे रोने िा भी िभी
पता नही ूं चिता।

तीसरे शरीर िी यात्रा और भी सू क्ष्म है । और उसे तभी पिड़ा जा सिता है जि हम दू सरे में भाव िो
पिड़ने िर्ें , ति तीसरे में हम तरूं र्ोूं िो पिड़ सिते हैं । तरूं र्ें भाव िे भी पूवग हैं । तरूं र्ोूं िा ही सघन रूप भाव
है । और भाव िा सघन रूप कक्रया है । तो मुझे तो पता नही ूं चिे र्ा कि तु म क्रोध में हो, जि ति तु म मेरे ऊपर
क्रोध प्रिट न िरो, क्ोूंकि जि वह कक्रया िन जाए, ति मैं दे ख पाऊूंर्ा। िेकिन तु म कक्रया िे पहिे ही उसिो
दे ख सिते हो— भाव शरीर में , कि क्रोध उठ आया। िेकिन जो क्रोध उठा है , उसिे भी अणु हैं जो सू क्ष्म शरीर
से आते हैं । और वे अणु अर्र न आएूं तो भाव शरीर में क्रोध नही ूं उठ सिता। अि वह जो सू क्ष्म शरीर है , एस्टर ि
जो िॉडी है , वह िहना चाकहए, कसिग तरूं र्ोूं िा समूह है । और हमारी सि क्तस्थकतयाूं .......

एि उदाहरण से हम समझने िी िोकशश िरें । िभी पानी अिर् कदखाई पड़ता है , हाइडरोजन अिर्
कदखाई पड़ती है ,आक्सीजन अिर् कदखाई पड़ती है । आक्सीजन में पानी िा िोई पता नही ूं चिता, पानी में
आक्सीजन िही ूं कदखाई नही ूं पड़ती। पानी िा िोई र्ुण आक्सीजन में नही ूं है , िोई र्ुण हाइडरोजन में नही ूं
है , िेकिन दोनोूं िे कमिने से पानी िन जाता है , दोनोूं में िुछ कछपे हुए र्ुण हैं जो कमििर प्रिट हो जाते हैं ।

एस्टर ि िॉडी में िभी क्रोध नही ूं कदखाई पड़ता, िभी प्रेम नही ूं कदखाई पड़ता, िभी घृणा नही ूं कदखाई
पड़ती, िभी भय नही ूं कदखाई पड़ता। िेकिन तरूं र्ें उसिे पास हैं , जो दू सरे शरीर, भाव शरीर से जुड़िर तत्काि
िुछ िन जाती हैं ।
तो जि तु म दू सरे शरीर में पूरी तरह जार्ोर्े , और जि तु म क्रोध िे प्रकत पूरी तरह जार्ोर्े , ति तु म
पाओर्े कि क्रोध िे पहिे भी िोई घटना घट रही है । यानी क्रोध जो है वह शु रुआत नही ूं है , वह भी िही ूं पहुूं च
र्ई िात है ।

ऐसा समझो कि पानी से एि ििू िा उठ रहा है , रे त से एि ििूिा उठा है और पानी में चि पड़ा है ।
जि वह रे त से छूटता है ति तो कदखाई नही ूं पड़ता, आधे पानी ति आ जाता है ति भी कदखाई नही ूं पड़ता, जि
किििुि पानी से िीता, दो िीता नीचे रह जाता है , जहाूं ति हमारी आूं ख जाती है , ति हमें कदखाई पड़ता है ।
िेकिन ति भी िहुत छोटा कदखाई पड़ता है । किर वह पानी िी सतह िे पास आने िर्ता है । जैसे पास आने
िर्ता है , वैसे िड़ा होने िर्ता है । क्ोूंकि हमें कदखाई पड़ने िर्ता है —एि; ज्यादा साि कदखाई पड़ने िर्ता
है —दो, और पानी िा जो दिाव और वजन है , वह उस पर िम होने िर्ता है ,इसकिए वह िड़ा होने िर्ता है ।
कजतना नीचे था उतना पानी िी सतह िा ज्यादा दिाव था, वह उसिो दिाए हुए थी। जैसे—जैसे सतह िा
दिाव िम होने िर्ा, वह ऊपर आने िर्ा, वह िड़ा होने िर्ा। और जि वह सतह पर आता है तो वह पूरा िड़ा
हो जाता है । िेकिन जहाूं वह पूरा िड़ा होता है , वही ूं वह िूट भी जाता है ।

तो उसने िड़ी यात्रा िी। उसने िड़ी यात्रा िी। िुछ कहस्से थे जहाूं वह हमें कदखाई नही ूं पड़ता था।
िेकिन वहाूं भी वह था;वह रे त में दिा था। किर वह वहाूं से कनििा, ति भी हमें कदखाई नही ूं पड़ता था, वह पानी
में दिा था। किर वह पानी िी सतह िे पास आया ति हमें कदखाई पड़ा, िेकिन िहुत छोटा मािूम पड़ रहा था।
किर वह पानी िी सतह पर आया और ति वह पूरा हुआ, और ति वह िूटा।

क्ोध की तरां ग की यात्रा:

तो हमारे शरीर ति आते —आते क्रोध िा ििू िा पूरी तरह िूटता है ; वह सतह पर आिर प्रिट होता
है । चाहो तो तु म इस शरीर पर आने िे पहिे उसिो भाव शरीर में रोि सिते हो; वह दमन होर्ा। िेकिन अर्र
तु म भाव शरीर में उसिो र् र से दे खो तो तु म िहुत है रान होओर्े कि उसिी यात्रा भाव शरीर िे और भी पहिे
से हो रही है —िेकिन वहाूं वह क्रोध नही ूं है , वहाूं वह कसिग तरूं र्ें है ।

जैसे मैंने िहा कि.......जर्त में , असि में, अिर्—अिर् पदाथग नही ूं हैं , अिर्—अिर् तरूं र्ोूं िे सूं घात
हैं । िोयिा भी वही है , हीरा भी वही है ; कसिग तरूं र्ोूं िे सूं घात में ििग पड़ र्या है । और अर्र हम किसी भी
पदाथग िो तोड़ते चिे जाएूं तो नीचे जािर कवदि् युत ही रह जाती है , और उसिे अिर्—अिर् सूं घात और
अिर्—अिर् सूं घट अिर्—अिर् तत्वोूं िो िना दे ते हैं । ऊपर वे सि कभन्न हैं , िेकिन िहुत र्हरे में जािर एि
हैं ।

तो अर्र तु म भाव शरीर िे प्रकत जार्िर उसिा पीछा िरोर्े , तो तु म अचानि सू क्ष्म शरीर में प्रवे श
िर जाओर्े। और वहाूं तु म पाओर्े —क्रोध क्रोध नही ूं है , क्षमा क्षमा नही ूं है , िक्तम्ऻ दोनोूं िी तरूं र्ें एि ही हैं ; प्रेम
और घृणा िी तरूं र्ें एि ही हैं ,कसिग सूं घात िा भेद है । और इसकिए तु म्हें िड़ी है रानी होती है कि तु म्हारा प्रेम
िभी घृणा में िदि जाता है , िभी घृणा प्रेम में िदि जाती है ! कजनिो हम किििुि कवपरीत चीजें समझते हैं , ये
िदि िैसे जाती हैं ! कजसिो मैं िि कमत्र िहता था, वह आज शत्रु हो र्या। तो मैं िहता हूं कि शायद मैं धोखा
खा र्या, वह कमत्र था ही नही ूं। क्ोूंकि हम मानते हैं कि कमत्र शत्रु िैसे हो सिता है !

कमत्रता और शत्रु ता िी तरूं र्ें एि ही हैं —सूं घात िा ििग है , सघनता िा ििग है , चोट िा ििग है —
तरूं र्ोूं में िोई ििग नही ूं है । कजसे हम प्रेम िहते हैं —सु िह प्रेम है , दोपहर िो घृणा हो जाता है ; दोपहर िो घृणा
है , साूं झ िो प्रेम हो जाता है । िड़ी िकठनाई होती है कि हम एि ही व्यक्तक्त िो प्रेम िरते हैं , उसी िो घृणा भी
िरते हैं क्ा?

घृणा और प्रे म का सां बांध:

फ्रायड िो यही खयाि था कि कजसिो हम घृणा िरते हैं उसी िो हम प्रेम भी िरते हैं , कजसिो हम
प्रेम िरते हैं उसिो घृणा भी िरते हैं । उसने जो िारण खोजा वह थोड़ी दू र ति सही था। िेकिन चूूंकि उसे
मनुष्य िे और शरीरोूं िा िोई िोध नही ूं है , इसकिए वह िहुत दू र ति खोज नही ूं सिा; उसने जो िारण खोजा
वह िहुत सतह पर था। उसने िारण यह खोजा कि िच्चा जि माूं िे पास िड़ा होता है तो एि ही आब्जे क्ङ
िो— माूं िो—वह िभी प्रेम भी िरता है , जि माूं उसिो प्रेम दे ती है ; और जि माूं उसिो डाटती—
डपटती, क्रोध िरती है , म िे होते हैं जि वह नाराज होती है , ति वह उसिो घृणा िरने िर्ता है । तो एि ही
आब्जे क्ङ िे प्रकत, एि ही माूं िे प्रकत दोनोूं िातें एि साथ उसिे मन में भर जाती हैं —घृणा भी िरता है , प्रेम भी
िरता है । िभी सोचता है मार डािूूं िभी सोचता है इसिे किना िैसे जी सिता हूं यही मेरा प्राण है —वह दोनोूं
िातें सोचने िर्ता है । इन दोनोूं िातोूं िो सोचने िी वजह से , माूं उसिे प्रेम िा पहिा आब्जे क्ङ है , इसकिए सदा
िे किए सि प्रेम िे आब्जे क्ङ , जि भी िोई प्रेम किसी से वह िरे र्ा, तो वह एसोकसएशन िे िारण उसिो घृणा
भी िरे र्ा और प्रेम भी िरे र्ा।

िेकिन यह िहुत सतह पर पिड़ी र्ई िात है । यह ििूिा वहाूं पिड़ा र्या है जहाूं िूटने िे िरीि है ।
यह िहुत र्हरे में नही ूं पिड़ी र्ई है िात। र्हरे में , अर्र एि माूं िो भी िच्चा अर्र घृणा और प्रे म दोनोूं िर
पाता है , तो इसिा मतिि यह है कि घृणा और प्रेम में जो अूंतर होर्ा वह िहुत र्हरे में िाकटटी िा
होर्ा, िाकिटी िा नही ूं हो सिता। वह जो अूंतर होर्ा वह पररमाण िा होर्ा, वह र्ुण िा नही ूं हो सिता।
क्ोूंकि प्रेम और घृणा एि ही कचि में एि साथ अक्तस्तत्व में नही ूं हो सिते । अर्र हो सिते हैं , तो एि ही आधार
पर हो सिते हैं कि वे िनवकटग िि होूं, उनिी तरूं र्ें यहाूं से वहाूं डोि जाती होूं।

जचत्त के समस्त द्वां द्वोां की जडें सू क्ष्म शरीर में:

तो यह तीसरे शरीर में ही साधि िो पता चिता है जािर कि हमारे सारे कचि में द्वूं द्व क्ोूं है । एि
आदमी जो सु िह मेरे पैर छू र्या और िह र्या कि आप भर्वान हो, वह शाम िो जािर र्ािी दे ता है और
िहता है , वह आदमी शै तान है । वह िि सु िह आिर किर पैर छूता है और िहता है , आप भर्वान हो। िोई
आिर मुझे िहता है कि उस आदमी िी िात पर भरोसा मत िरना, वह िभी आपिो भर्वान िहता है , िभी
शै तान िहता है ।

मैं िहता हूं उसी पर भरोसा िरने योग्य है ; क्ोूंकि वह जो आदमी िह रहा है , उसिा िोई िसू र नही ूं
है , वह िोई एि—दू सरे िे कवपरीत िातें नही ूं िह रहा है । ये एि ही स्पे क्ङरम िी िातें हैं ; ये एि ही सीढी िी
िातें हैं । और इन सीकढ़योूं में पररमाण िा अूंतर है ।

असि में, जैसे ही वह भर्वान िहता है , वैसे ही वह एि िात िो पिड़ िेता है । और कचि जो है , वह
द्वूं द्व है । दू सरा पहिू िहाूं जाएर्ा? वह उसिे नीचे दिा िैठा रहता है ; और प्रतीक्षा िरता है कि जि तु म्हारा
पहिा भाव थि जाए तो मुझे म िा दे ना। थि जाता है थोड़ी दे र में..... .कितनी दे र ति भर्वान िहता रहे र्ा!
थोड़ी दे र में थि जाता है , तो किर िहता है —शै तान है पक्का वह आदमी। और ये दोनोूं दो चीजें नही ूं हैं , ये दोनोूं
किििुि एि चीजें हैं ।

और जि ति मनुष्य—जाकत यह न समझ पाएर्ी ठीि से कि हमारे तीसरे शरीर मे हमारे सारे द्वूं द्व एि
ही तरूं र्ोूं िे रूप हैं, ति ति हम मनुष्य िी समस्याओूं िो हि न िर पाएूं र्े। क्ोूंकि सिसे िड़ी समस्या यही है
कि कजसे हम प्रेम िरते हैं ,उसे हम घृणा भी िरते हैं ; कजसिे किना हम नही ूं जी सिते , उसिी हम हत्या भी िर
सिते हैं ; जो हमारा कमत्र है , वह र्हरे में हमारा शत्रु भी है । यह िड़ी से िड़ी समस्या है ; क्ोूंकि जीवन िे किए
जहाूं सूं िूंध हैं हमारे , वहाूं यही सिसे िड़ा मामिा है । िेकिन अर्र एि िार समझ में आ जाए कि इनिे सूं घात
एि जैसे हैं , इनमें िोई ििग नही ूं है ...

आमत र से हम अूंधेरे और प्रिाश िो दो कवरोधी चीजें मानते हैं । जो र्ित है । वैज्ञाकनि अथों में तो
अूंधेरा जो है वह प्रिाश िी िम से िम, िम से िम, न्यू नतम अवस्था है । और अर्र हम खोज सिें तो अूंधेरे में
भी प्रिाश कमि जाएर्ा। ऐसा अूंधेरा नही ूं खोजा जा सिता जहाूं प्रिाश अनु पक्तस्थत हो। यह दू सरी िात है कि
हमारे खोज िे साधन थि जाएूं , हमारी आूं ख न दे ख पाती हो, हमारे यूंत्र न दे ख पाते होूं, िेकिन प्रिाश जो है —
वह, और अूंधिार जो है , वे एि ही यात्रा—पथ पर, एि ही चीज िे तरूं र्ोूं िे कवकभन्न आघात हैं ।

जैसे इसिो और दू सरी तरह से समझें तो ज्यादा आसान होर्ा, क्ोूंकि प्रिाश और अूंधिार में हमने
ज्यादा िड़ा,एससोल्यु ट कवरोध मान रखा है । िेकिन ठूं ड और र्मी िो हम समझें तो आसानी हो जाएर्ी; उसमें
हमने इतना एब्सोल्यु ट कवरोध नही ूं मान रखा है । और िभी एि छोटा सा प्रयोर् िरने जैसा मजेदार होता है —
कि एि हाथ िो थोड़ा कसर्ड़ी पर तपा िें और एि हाथ िो ििग पर रखिर ठूं डा िर िें , और किर दोनोूं हाथोूं
िो एि ही तापमान िे पानी में डाि दें । और ति आप िड़ी मु क्तिि में पड़ जाएूं र्े कि उस पानी िो ठूं डा िहें
कि र्मग िहें ! क्ोूंकि एि हाथ खिर दे र्ा कि वह र्मग है और एि हाथ खिर दे र्ा कि वह ठूं डा है । ति आप
िड़ी मुक्तिि में पड़ जाएूं र्े कि इस पानी िो हम क्ा िहें —ठूं डा िहें कि र्मग िहें ! क्ोूंकि आपिे दो हाथ दो
खिरें दे रहे हैं ।

असि में, ठूं ड और र्मग दो चीजें नही ूं हैं , एि सापेक्ष अनु भव है । कजस चीज िो हम ठूं डा िह रहे
हैं , उसिा मतिि िेवि इतना है कि हम उससे ज्यादा र्मग हैं ; कजस चीज िो हम र्मग िह रहे हैं , उसिा िुि
मतिि इतना है कि हम उससे ज्यादा ठूं डे हैं । हमारे और उसिे िीच हम पररमाण िा अूंतर िता रहे हैं , और
िुछ भी नही ूं िह रहे हैं । िोई चीज ठूं डी नही ूं है , िोई चीज र्मग नही ूं है । या जो भी चीज ठूं डी है वह साथ ही र्मग
है । असि में, र्मी और ठूं डि िड़े िेमानी शब्द हैं । िहना चाकहए. तापमान; वह ठीि शब्द है ।

इसकिए वैज्ञाकनि ठूं डे और र्मग िा प्रयोर् नही ूं िरता; वह िहता है , कितने कडग्री िा तापमान है ।
क्ोूंकि ठूं डे और र्मग िाव्य िे शब्द हैं , िकवता िे शब्द हैं ; खतरनाि हैं कवज्ञान में , उससे िुछ पता नही ूं चिता।
एि आदमी िहे कि यह िमरा ठूं डा है , उससे िुछ पता नही ूं चिता कि मतिि क्ा है उसिा। हो सिता है
उस आदमी िो िुखार चढ़ा हो और िमरा ठूं डा मािूम पड़ रहा हो, और िमरा ठूं डा किििुि न हो। इसकिए
जि ति इस आदमी िा पता न चि जाए कि इस आदमी िी िुखार िी क्ा क्तस्थकत है , ति ति िमरे िे िाित
इसिे वक्तव्य िा िोई मतिि नही ूं है । तो इसकिए इससे हम पूछते हैं . तु म यह मत िताओ कि िमरा ठूं डा है
या र्मग , तु म यह िताओ कडग्री कितनी है ? तो कडग्री जो है वह ठूं डि और र्मी िा पता नही ूं दे ती, कडग्री कसिग इस
िात िा पता दे ती है कि तापमान इतना है । अर्र उससे आपिी कडग्री ज्यादा है तो वह ठूं डा मािूम पड़े र्ा, अर्र
आपिी कडग्री िम है तो वह र्मग मािूम पड़े र्ा।
ठीि ऐसा ही प्रिाश और अूंधिार िे िाित सच है — कि हमारे दे खने िी क्षमता कितनी है । रात हमें
अूंधेरी मािूम पड़ती है , उल्रू िो नही ूं मािूम पड़ती होर्ी; उल्रू िो कदन िहुत अूंधिारपूणग है । और उल्रू जरूर
समझता होर्ा कि ये आदमी जो हैं ,िड़े अजीि िोर् हैं , रात में जार्ते हैं !

स्वभावत:, आदमी उल्रू िो िड़ा उल्रू इसीकिए समझता है न, उसिो नाम ही इसीकिए कदया हुआ है ।
िेकिन उल्रू क्ा सोचते हैं आदकमयोूं िे िाित, यह हमें िुछ पता नही ूं है । कनकश्चत ही, उसिे किए तो कदन जो है
वह रात है और रात जो है वह कदन है । और वह सोचता होर्ा, आदमी भी िैसा नासमझ है ! अि इसमें इतने —
इतने िड़े ज्ञानी होते हैं , िेकिन किर भी ये जार्ते हैं रात में ही! और जि कदन होता है ति सो जाते हैं ! जि असिी
वक्त आता है जार्ने िा, ति ये िेचारे सो जाते हैं ।

उल्रू िो रात में कदखाई पड़ता है ; उसिी आूं ख सक्षम है तो उसिे किए रात अूंधिार नही ूं है । अूंधिार
और प्रिाश, ऐसे ही प्रेम और घृणा िी तरूं र्ें हैं कजनमें अनुपात है ।

सू क्ष्म शरीर में जागने से द्वां द्व—मब्धि:

तो तीसरे ति पर जि तु म जार्ना शु रू होओर्े , तो तु म एि िहुत अजीि क्तस्थकत में पहुूं चोर्े। और वह


अजीि क्तस्थकत यह होर्ी कि तु म्हारे पास चु नाव न रह जाएर्ा कि हम प्रेम िो चुनें कि घृणा िो। क्ोूंकि ति तु म
जानते हो ये दोनोूं एि ही चीज िे नाम हैं ; और तुमने एि िो भी चुना तो दू सरा भी चुन किया र्या, दू सरे से तु म
िच नही ूं सिते ।

इसकिए तीसरे शरीर पर खड़े हुए आदमी से अर्र तु म िहोर्े कि हमें प्रेम िरो, तो वह पूछेर्ा कि घृ णा
िी भी तै यारी है ? घृणा सह सिोर्े ? नही,ूं तु म िहोर्े , हम तो प्रेम चाहते हैं , आप हमें प्रेम दें । तो वह िहे र्ा, यह
िहुत मुक्तिि है कि मैं तु म्हें प्रेम दे सिूूं , क्ोूंकि प्रेम जो है वह घृणा िे सूं घातोूं िा ही एि रूप है — असि
में, ऐसा रूप जो तु म्हारे प्रीकतिर िर्ता है । और घृणा ऐसा रूप है , उन्ी ूं किरणोूं िा, उन्ी ूं तरूं र्ोूं िा, जो तु म्हें
अप्रीकतिर िर्ता है ।

तो तीसरे ति पर खड़ा हुआ व्यक्तक्त द्वूं द्व से मुक्त होने िर्ेर्ा; क्ोूंकि पहिी दिा उसे पता चिेर्ा कि
द्वूं द्व, कजन दो चीजोूं िो उसने दो माना था, वे दो नही ूं थी,ूं वे एि ही थी;ूं जो दो शाखाएूं कदखाई पड़ती थी,ूं वे पीड़
पर आिर एि ही वृ क्ष िी शाखाएूं थी ूं। और िडा पार्ि था वह कि वह एि िो िचाने िे किए दू सरे िो िाटता
रहा था। िेकिन उससे िुछ िटना नही ूं हो सिता था, क्ोूंकि वृ क्ष र्हरे में एि ही था। पर दू सरे पर जार्िर ही
तु म्हें तीसरे िा िोध हो सिता है , क्ोूंकि तीसरे िी िड़ी सू क्ष्म तरूं र्ें हैं ; वहाूं भाव भी नही ूं िनता, सीधी तरूं र् होती
है ।

सू क्ष्म शरीर में जागने पर आभामांडि का दशओ न:

और अर्र तीसरे िी तरूं र् िा तु म्हें पता चिने िर्ा तो तु म्हें एि अनूठा अनु भव होना शु रू होर्ा. ति
तु म किसी व्यक्तक्त िो दे खिर ही िह सिोर्े कि वह किन तरूं र्ोूं से तरूं र्ाकयत है । क्ोूंकि तु म्हें अपनी तरूं र्ोूं िा
पता नही ूं है , इसकिए तु म दू सरे िो नही ूं पहचान पा रहे हो। नही ूं तो प्रत्येि व्यक्तक्त िे चेहरे िे पास उसिे तीसरे
शरीर से कनििने वािी तरूं र्ोूं िा पुूंज होता है । जो हम िुद्ध और महावीर, राम और िृष्ण िे आसपास जो ऑरा
िनाते रहे हैं , एि प्रकतभा—मूंडि िनाते रहे हैं कसर िे आसपास वह दे खा र्या मूंडि है । उसिे रूं र् पिड़े र्ए
हैं ; और उसिे कवशे ष रूं र् हैं । तीसरे शरीर िा ठीि अनुभव हो तो वे रूं र् तु म्हें कदखाई पड़ने शु रू हो जाते हैं ।
और वे रूं र् जि तु म्हें कदखाई पड़ने शु रू हो जाते हैं तो अपने ही नही ूं कदखाई पड़ते , दू सरे िे भी कदखाई पड़ने
शु रू हो जाते हैं ।

असि में, कजतने दू र ति हम अपने र्हरे शरीर िो दे खते हैं , उतने ही दू र ति हम दू सरे िे शरीर िो
भी दे खने िर्ते हैं । चूूं कि हम अपनी किकजिि िॉडी िो ही जानते हैं , इसकिए हम दू सरे िी भी किकजिि िॉडी
िो ही जानते हैं । कजस कदन हम अपने ईथररि शरीर िो जानें र्े , उसी कदन हमें दू सरे िे ईथररि शरीर िा पता
चिना शु रू हो जाएर्ा। इसिे पहिे कि तु म क्रोध िरो, जाना जा सिता है कि अि तु म क्रोध िरोर्े , इसिे
पहिे कि तु म प्रेम प्रिट िरो, िहा जा सिता है कि तु म अि प्रेम प्रिट िरने िी तै यारी िर रहे हो।

तो कजसिो हम दू सरे िे भाव िो समझ िेना िहते हैं , उसमें िुछ और िड़ी िात नही ूं है , अपने ही भाव
शरीर िे प्रकत जार्ने से दू सरे िे भाव िो पिड़ना एिदम आसान हो जाता है ; क्ोूंकि उसिी सारी क्तस्थकतयाूं
कदखाई पड़ने िर्ती हैं । और तीसरे शरीर पर जार्ने पर तो चीजें िड़ी साि हो जाती हैं , क्ोूंकि किर तो रूं र् भी
कदखाई पड़ने िर्ते हैं उसिे व्यक्तक्तत्व िे।

जिजभन्न शरीरोां के आभामांडि:

सूं न्याकसयोूं िे, साधु िे िपड़ोूं िा चु नाव, उनिे रूं र् िा चुनाव तीसरे शरीर िे रूं र्ोूं िो दे खिर किया
र्या। चुनाव अिर्—अिर् हुए, क्ोूंकि अिर्—अिर् शरीरोूं पर जोर था। जैसे िुद्ध ने पीिा रूं र् चुना, क्ोूंकि
सातवें शरीर पर जोर था उनिा। सातवें शरीर िो उपिि व्यक्तक्त िे आसपास जो ऑरा िनता है , वह पीिा है ।
इसकिए िु द्ध ने पीत वस्त्र चु ने अपने कभक्षुओूं िे किए।

िेकिन पीत वस्त्र चु ने तो जरूर, िेकिन पीत वस्त्र िे िारण ही ि द्ध कभक्षु िो कहूं दुस्तान में कटिना
मुक्तिि हुआ। क्ोूंकि पीिा रूं र् जो है , वह हमारे मन में मृ त्यु से सूं िूंकधत है । वह है भी, क्ोूंकि सातवाूं शरीर जो
है , वह मृत्यु—महामृत्यु है । तो पीिा रूं र् जो है , वह हमारे मन में िहुत र्हरे में मृत्यु िा िोध दे ता है ।

िाि रूं र् जीवन िा िोध दे ता है । इसकिए र्ेरुए वस्त्र वािा सूं न्यासी ज्यादा आिषग ि कसद्ध हुआ िजाय
पीत वस्त्र सूं न्याकसयोूं िे। वह जीवूंत मािूम पड़ा। वह खू न िा रूं र् है , और छठवें शरीर िा रूं र् है —ब्रह्म
िा, िाक्तस्भि िॉडी िा रूं र् है । तो जैसा सू योदय होता है सु िह, वैसा रूं र् है । छठवें शरीर पर वैसे रूं र् िा ऑरा
िनना शु रू होता है ।

जैनोूं ने सिेद वस्त्र चु ने, वह पाूं चवें शरीर िा रूं र् है ; वह आत्म शरीर से सूं िूंकधत है । जैनोूं िा आग्रह
ईश्वर िी कििर छोड़ दे ने िा है , कनवाग ण िी कििर छोड़ दे ने िा है ; क्ोूंकि आत्मा ति ही वैज्ञाकनि चचाग हो
सिती है । और महावीर िहुत ही वैज्ञाकनि िु क्तद्ध िे आदमी हैं ; वे उतनी ही दू र ति िात िरें र्े कजतनी दू र ति
र्कणत जाता है । उससे आर्े वे िहें र्े , अि हम िात नही ूं िरें र्े , अि तु म जािर दे खना, वह दू सरी िात है , हम
िात नही ूं िरें र्े। क्ोूंकि िोई भूि—चूि िी िात नही ूं िरना चाहते वे। िुछ कमक्तस्टि िात नही ूं िरना चाहते ।
तो कजसिो कमक्तस्टकसज्म से िचना है , वह पाूं चवें शरीर िे आर्े इूं च भर नही ूं िात िरे र्ा। तो महावीर ने सिेद रूं र्
चुन किया, वह पाूं चवें शरीर िा रूं र् था।

और भी मजे िी िात है तीसरे शरीर से यह िोध होना शु रू हो जाएर्ा; तीसरे शरीर से तु म्हें रूं र् कदखाई
पड़ने शु रू हो जाएूं र्े। ये रूं र् भी तु म्हारे भीतर होनेवािे सू क्ष्म तरूं र्ोूं िे स्पूं दन िा प्रभाव हैं । आज नही ूं
िि, इनिे कचत्र किए जा सिेंर्े। क्ोूंकि जि आूं ख से इन्ें दे खा जा सिता है तो िहुत कदन ति िैमरे िी आूं ख
नही ूं दे खेर्ी, ऐसा िहना मुक्तिि है । इनिे कचत्र आज नही ूं िि किए जा सिेंर्े। और ति हम व्यक्तक्तत्व िो
पहचानने िे किए एि िड़ी अदभुत क्षमता िो उपिि हो जाएूं र्े।

रां गोां का मनष्य के व्यब्धित्व से गहरा सां बांध:

वह तु म ब्लूशर िा टे स्ट दे खे? एि जमग न कवचारि है , कजसने िाखोूं िोर्ोूं पर रूं र्ोूं िा अध्ययन किया है ।
और अि तो यूरोप और अमेररिा में िहुत से अस्पताि भी उसिा प्रयोर् िर रहे हैं । क्ोूंकि आप ि न सा रूं र्
पसूं द िरते हैं , यह आपिे िहुत र्हरे व्यक्तक्तत्व िी खिर दे ता है । एि खास िीमारी िा मरीज एि खास तरह
िे रूं र् िो पसूं द िरता है , स्वस्थ आदमी दू सरे तरह िे रूं र् िो पसूं द िरता है । शाूं त आदमी दू सरे तरह िे रूं र्
िो पसूं द िरता है , महत्वािाूं क्षी आदमी दू सरे तरह िे रूं र्

िो पसूं द िरता है , महत्वािाूं क्षाहीन आदमी किििुि दू सरे तरह िे रूं र् िो पसूं द िरता है । और इन रूं र्ोूं िी
पसूं द से तु म अपने तीसरे शरीर पर तु म्हारे क्ा प्रिट हो रहा है , उसिी खिर दे ते हो। अि यह िडे मजे िी
िात है कि तु म्हारे तीसरे शरीर पर जो रूं र् प्रिट हो रहे हैं तु म्हारे चारोूं तरि, अर्र उनिो पिड़ा जाए, और
तु मसे रूं र्ोूं िी जाूं च िरवाई जाए, तो यह िड़े मजे िी िात है कि वे रूं र् दोनोूं िरािर एि से होते हैं — जो रूं र्
तु म्हारे चारोूं तरि िैिता है , वही रूं र् तु म पसूं द िरते हो।

रां गोां का मनोजिज्ञान:

रूं र् िा अदभुत अथग और उपयोर् है । अि जैसे , िभी यह खयाि में नही ूं था कि रूं र् इतना अथगपूणग हो
सिता है और व्यक्तक्तत्व िी िाहर ति खिर दे सिता है । और िाहर से भी रूं र् िे प्रभाव भीतर िे व्यक्तक्तत्व
ति छूते हैं , उनसे िचा नही ूं जा सिता। जैसे किसी रूं र् िो दे खिर तु म क्रोकधत हो जाओर्े। जैसे िाि रूं र्
है , वह सदा से क्राूं कत िा रूं र् इसीकिए समझा र्या। इसकिए क्राूं कतवादी जो है वह िाि झूं डा िना िेर्ा। इसमें
िचाव िहुत मुक्तिि है । क्ोूंकि वह क्रोध िा रूं र् है । और क्रोधी कचि िे आसपास र्हरे िाि रूं र् िा वतुग ि
िनता है —खू न िा रूं र् है वह, हत्या िा रूं र् है , क्रोध िा रूं र् है , कमटाने िा रूं र् है ।

अि यह िड़े मजे िी िात है कि अर्र इस िमरे िी सारी चीजोूं िो िाि रूं र् कदया जाए, तो आपिा
ब्लड—प्रेशर िढ़ जाएर्ा; कजतने िोर् यहाूं िै ठे हैं , सभी िा रक्तचाप िढ़ जाएर्ा। और अर्र िोई व्यक्तक्त कनरूं तर
िाि रूं र् में रहे , तो िोई भी हाित में उसिा रक्तचाप स्वस्थ नही ूं रह सिता, वह अस्वस्थ हो जाएर्ा। नीिा रूं र्
रक्तचाप िो नीचे कर्रा दे ता है , वह आिाश िा रूं र् है और परम शाूं कत िा रूं र् है । अर्र सि तरि नीिा िर
कदया जाए तो तु म्हारे रक्तचाप में िमी पड़ती है

रां ग जचजकत्सा:
आदमी िी िात हम छोड़ दें , अर्र एि नीिी िोति में पानी भरिर हम उसे सू रज िी किरणोूं में रख
दें , तो वह जो पानी है वह रक्तचाप िो िम िरता है । उस पानी िा िेकमिि िूंपोजीशन िदि जाता है । वह
नीिे रूं र् िो पीिर उसिी आूं तररि व्यवस्था िदि जाती है । अर्र उसिो हम पीिे रूं र् िी िोति में रख दें , तो
उसिा व्यक्तक्तत्व दू सरा हो जाता है । अर्र तु म पीिे रूं र् िी िोति में वही पानी रखो और नीिे रूं र् िी िोति में
वही पानी रखो, और दोनोूं िो धू प में रख दो, तो नीिे रूं र् िा पानी सड़ने में असमथग हो जाएर्ा और पीिे रूं र् िा
पानी तत्काि सड़ जाएर्ा। नीिी िोति िा पानी िहुत कदन ति शु द्ध िना रहे र्ा, सडे र्ा नही;ूं पीिे रूं र् िा पानी
एिदम सड़ जाएर्ा। वह पीिा रूं र् जो है मृत्यु िा रूं र् है , और चीजोूं िो एिदम किखरा दे ता है ।

इस सििे वतुग ि तु म्हारे व्यक्तक्तत्व िे आसपास तुम्हें खु द भी कदखाई पड़ने शु रू हो जाएूं र्े। यह तीसरे
शरीर पर होर्ा। और जि इन तीनोूं शरीरोूं पर तु म जार्िर दे ख पाओर्े , तो तु म्हारा वह जार्िर जो दे खना
है , वह हामग नी होर्ी। और ति तु म्हारे ऊपर किसी भी तरह िे शक्तक्तपात से िोई सूं घाति पररणाम नही ूं हो
सिता; क्ोूंकि यही तु म्हारा जो िोधपथ है , शक्तक्तपात िी ऊजाग इसी िोधपथ से तु म्हारे च थे शरीर में प्रवेश िर
जाएर्ी; यह रास्ता िन जाएर्ा। अर्र यह रास्ता नही ूं है तो खतरा पूरा है । इसकिए मैंने िहा कि हमारे तीन शरीर
सक्षम होने चाकहए तभी र्कत हो सिती है ।

जैजिक जिकास में प्रथम तीन शरीरोां की क्जमक सजक्यता:

प्रश्न. ओशो चौथे पाां चिें छठिें या सातिें चक्ोां में ब्धस्थत व्यब्धि मृ त्य के बाद पनजओन्म िे तो उसकी
क्मश: चक्ीय ब्धस्थजत क्ा होगी? अशरीरी उच्च योजनयाां जकन शरीर िािे व्यब्धियोां को जमिती हैं ? अांजतम
उपिब्धि के जिए क्ा अशरीरी योजन के प्राणी को पन: मनष्य शरीर िेना पड़ता है ?

अि इसमें िुछ और िातें दू र से समझनी शुरू िरना पड़ेर्ी। सात शरीर िी मैंने िात िही। सात
शरीरोूं िो ध्यान में रखिर हम पूरे अक्तस्तत्व िो भी सात कवभार्ोूं में िाूं ट दें । सभी अक्तस्तत्व में सातोूं शरीर सदा
म जूद हैं —जार्े हुए या सोए हुए;सकक्रय या कनक्तिय, कविृत या स्वरूप क्तस्थत—िेकिन म जू द हैं ।

एि धातु िा टु िड़ा पड़ा है , एि िोहे िा टु िड़ा पड़ा है , इसमें भी सातोूं शरीर म जूद हैं ; िेकिन सातोूं
ही सोए हुए हैं ;सातोूं ही कनक्तिय हैं । इसकिए िोहे िा टु िड़ा मरा हुआ मािूम पड़ता है । एि प धा है । उसिा
पहिा शरीर सकक्रय हो र्या है ;उसिा भ कति शरीर सकक्रय हो र्या है । इसकिए प धे में जीवन िी पहिी झिि
हमें कमिनी शु रू हो जाती है कि वह जीकवत है । एि पशु है , उसिा दू सरा शरीर सकक्रय हो र्या है । इसकिए पशु
में मूवमेंटि्स शु रू हो जाते हैं , जो प धे में नही ूं हैं । प धा एि जर्ह जड़ जमािर खड़ा है , र्कतमान नही ूं है ; क्ोूंकि
र्कत िे किए दू सरा शरीर जर्ना जरूरी है , ईथररि िॉडी जर्ना जरूरी है । सारी र्कत उससे आती है । अर्र
कसिग एि शरीर जर्ा हुआ है तो अर्कत में होर्ा, ठहरा हुआ होर्ा, खड़ा हुआ होर्ा।

प धा खड़ा हुआ पशु है । िुछ प धे हैं जो थोड़ी र्कत िरते हैं । वे पशु और प धे िे िीच िी अवस्था में
हैं ; उन्ोूंने यात्रा िी है थोड़ी। जैसे अफ्रीिा िे दिदिोूं में िुछ प धे हैं , कजनिी जड़ोूं से वे पिड़ने —छोड़ने िा
िाम िरते हैं , थोड़ा हटते हैं इधर— उधर। वह पशु और प धे िे िीच िी सूं क्रमण िड़ी है ।

पशु में दू सरा शरीर भी सकक्रय हो र्या है । सकक्रय िा मतिि सजर् नही ,ूं सकक्रय िा मतिि कक्रयाशीि
हो र्या है ; पशु िो िोई पता नही ूं है । उसिे दू सरे ईथररि शरीर िे सकक्रय हो जाने िी वजह से उसमें क्रोध भी
आता है , भय भी आता है , प्रेम भी प्रिट िरता है , भार्ता भी है , िचता भी है , डरता भी है , कछपता भी है , हमिा
भी िरता है — और र्कतमान है ।

आदमी में तीसरा शरीर सकक्रय हो र्या है —एस्टर ि िॉडी। इसकिए न िेवि वह शरीर से र्कत िरता
है , िक्तम्ऻ कचि से भी र्कत िरता है , मन से भी यात्रा िरता है — भकवष्य िी भी यात्रा िरता है , अतीत िी भी
यात्रा िरता है । पशु ओूं िे किए िोई भकवष्य नही ूं है । इसकिए पशु िभी कचूंकतत और तनावग्रस्त नही ूं कदखाई
पड़ते ; क्ोूंकि सि कचूंता भकवष्य िी कचूंता है —िि क्ा होर्ा, वही र्हरी कचूंता है । िेकिन पशु िे किए िि नही ूं
है , आज ही सि िुछ है । आज भी नही ूं है —उसिे अथों में तो; क्ोूंकि कजसिो िि नही ूं है , उसिो आज िा
क्ा मतिि है ? जो है , वह है ।

मनुष्य में और भी सू क्ष्म र्कत आई है । वह र्कत उसिे मन िी र्कत है । वह तीसरे एस्टर ि िॉडी से आई
है । वह अि मन से भकवष्य िी भी िल्पना िरता है । मृत्यु िे िाद भी क्ा होर्ा, इसिी भी कचूंता िरता है ; मरने
िे िाद िहाूं जाऊूंर्ा, नही ूं जाऊूंर्ा, उसिी भी कचूंता िरता है ; जन्म िे पहिे िहाूं था, नही ूं था, उसिी भी
कििर िरता है ।

अशरीरी उच्च योजनयाां :

च था शरीर थोड़े से मनुष्योूं में सकक्रय होता है , सभी मनुष्योूं में नही ूं। और कजन मनुष्योूं में च था शरीर
सकक्रय हो जाता है —मनस शरीर— अर्र वे मरे , तो वे दे वयोकन, कजसिो हम िोई भी नाम दे दें , उस तरह िी
योकन में प्रवेश िर जाते हैं , जहाूं च थे शरीर िी सकक्रयता िी िहुत सु कवधा है । तीन शरीरोूं ति आदमी आदमी
रहता है , सकक्रय रहे तो। च थे शरीर से आदमी िे ऊपर िी योकनयाूं शु रू होती हैं । िेकिन च थे शरीर से एि
ििग समझ िेना जरूरी होर्ा।

अर्र च था शरीर सकक्रय हो जाए, तो आदमी िो शरीर िेने िी सूं भावना िम और अशरीरी अक्तस्तत्व
िी सूं भावना िढ़ जाती है । िेकिन जैसा मैंने िहा कि सकक्रय और सचेतन िा ििग याद रखना। अर्र कसिग
सकक्रय हो और सचेतन न हो, तो उसे हम प्रेतयोकन िहें र्े; और अर्र सकक्रय हो और सचेतन भी हो, तो दे वयोकन
िहें र्े। प्रेत में और दे व में उतना ही ििग है । उन दोनोूं िा च था शरीर सकक्रय हो र्या है ; िेकिन प्रेत िे च थे
शरीर िी सकक्रयता िा उसे िोई िोध नही,ूं वह अवेयर नही ूं है उसिे प्रकत; और दे व िो उस च थे शरीर िी
सकक्रयता िा िोध है , वह अवेयर है । इसकिए प्रेत अपने च थे शरीर िी सकक्रयता से हजार तरह िे नु िसान
िरता रहे र्ा—खु द िो भी, दू सरोूं िो भी; क्ोूंकि मूच्छाग कसिग नुिसान ही िर सिती है । और दे व िहुत तरह िे
िाभ पहुूं चाता रहे र्ा— अपने िो भी और दू सरोूं िो भी, क्ोूंकि सजर्ता कसिग िाभ ही पहुूं चा सिती है ।

पाूं चवाूं शरीर कजसिा सकक्रय हो र्या, वह दे वयोकन िे भी पार चिा जाता है । पाूं चवाूं शरीर आत्म शरीर
है । और पाूं चवें शरीर पर सकक्रयता और सजर्ता एि ही अथग रखती हैं ; क्ोूंकि पाूं चवें शरीर पर किना सजर्ता
िे िोई भी नही ूं जा सिता। इसकिए वहाूं सकक्रयता और सजर्ता साइमल्टे कनयस, युर्पत घकटत होती हैं ।

च थे शरीर ति यात्रा हो सिती है किसी िी सोए—सोए भी। अर्र जार् जाए तो यात्रा िदि
जाएर्ी, दे वयोकन िी तरि हो जाएर्ी; और अर्र सोया रहे तो यात्रा प्रेतयोकन िी तरि हो जाएर्ी। पाूं चवें शरीर
िे साथ सकक्रयता और सजर्ता िा एि ही अथग है , क्ोूंकि वह आत्म शरीर है ; वहाूं िे होश होिर आत्मा िा तो
िुछ अथग ही नही ूं होता। आत्मा िा मतिि ही होश है । इसकिए आत्मा िा दू सरा नाम चेतना है , दू सरा नाम
िाूं शसनेस है । वहा िेहोशी िा िोई मतिि नही ूं होता। तो पाूं चवें शरीर से तो दोनोूं एि ही िात हैं , िेकिन
पाूं चवें शरीर िे पहिे दोनोूं रास्ते अिर् हैं ।

च थे शरीर ति ही स्त्री—पुरुष िा िासिा है , और च थे शरीर ति ही कनद्रा और जार्रण िा िासिा


है । असि में, च थे शरीर ति ही सि तरह िे द्वै त और द्वूं द्व िा िासिा है । पाूं चवें शरीर से सि तरह िा अद्वै त
और अद्वूं द्व शु रू होता है । पाूं चवें शरीर से यू कनटी शु रू होती है । उसिे पहिे एि डाइवकसग टी थी, एि भेद था।

मनष्य योजन एक चौराहा है :

पाूं चवें शरीर िी जो सूं भावना है , वह दे वयोकन से नही ूं है , न प्रेतयोकन से है । यह थोड़ी िात खयाि िे िेने
जैसी है । पाूं चवें शरीर िी सूं भावना प्रेतयोकन से इसकिए नही ूं है कि प्रेतयोकन मूक्त्छग त योकन है ; और सजर्ता िे
किए जो शरीर अकनवायग है , वह उसिे पास नही ूं है ; पहिा शरीर उसिे पास नही ूं है , किकजिि िॉडी उसिे पास
नही ूं है , कजससे सजर्ता शु रू होती है ; पहिी सीढ़ी उसिे पास नही ूं है , कजससे सजर्ता शु रू होती है । वह सीढ़ी
न होने िी वजह से प्रेत िो वापस ि टना पड़े मनु ष्य योकन में। इसकिए मनुष्य योकन एि तरह िे क्रास रोड पर
है ।

दे वयोकन ऊपर है , िेकिन आर्े नही ूं। इस ििग िो ठीि से समझ िेना! मनुष्य योकन से दे वयोकन ऊपर
है , िेकिन आर्े नही,ूं क्ोूंकि आर्े जाने िे किए तो मनुष्य योकन पर वापस ि ट आना पड़ता है । प्रेत िो इसकिए
ि टना पड़ता है कि वह मूक्तच्छगत है और मूच्छाग तोडि् ने िे किए भ कति शरीर एिदम जरूरी है ; दे व िो इसकिए
ि टना पड़ता है कि दे वयोकन में किसी तरह िा दु ख नही ूं है । असि में , जाग्रत योकन है , जार्ृकत में दु ख नही ूं हो
सिता। और जहाूं दु ख नही ूं है वहाूं साधना िी िोई तडु ि नही ूं पैदा होती; जहाूं दु ख नही ूं है वहाूं कमटाने िा
िोई खयाि नही ूं है ; जहाूं दु ख नही ूं है वहाूं पाने िा िोई खयाि नही ूं है ।

तो दे वयोकन एि स्टै कटि योकन है , कजसमें र्कत नही ूं है आर्े। और सु ख िी एि खू िी है कि अर्र सु ख


तु म्हें कमि जाए तो आर्े िोई र्कत नही ूं रह जाती। दु ख हो तो सदा र्कत होती है ; क्ोूंकि दु ख से हटने िो, दु ख से
मुक्त होने िो तु म िुछ खोजते हो। सु ख कमि जाए तो खोज िूं द हो जाती है । इसकिए एि िड़ी अजीि िात है
जो कि समझ में नही ूं आती िोर्ोूं िो।

महावीर और िु द्ध िे जीवन में इस उल्रे ख िा िडा मूल्य है कि दे वता उनसे कशक्षा िेने आते हैं । और
जि िोई िु द्ध िो, महावीर िो पूछता है कि क्ा मजा है कि मनुष्य िे पास और दे वता आएूं ! दे वयोकन तो ऊपर
है , तो मनुष्य िे पास वे आएूं ,यह अजीि मामिा मािूम होता है ।

िेकिन यह अजीि नही ूं है । योकन तो ऊपर है , िेकिन स्टै कटि योकन है ; मूवमेंट खत्म हो र्या वहाूं ; वहाूं से
आर्े िोई र्कत नही ूं है । और अर्र आर्े र्कत िरनी हो तो जैसे िूंिी छिाूं र् िर्ाने िे किए थोड़ा पीछे ि टना
पड़ता है , किर छिाूं र् िर्ानी पड़ती है , ऐसा दे वयोकन से वापस ि टिर मनुष्य योकन पर खड़े होिर ही छिाूं र्
िर्ती है ।

सखोां से ऊबकर ही दे ियोजन से िौटना सां भि:


सु ख िी एि खू िी यह है कि उसमें आर्े र्कत नही ूं है और दू सरी खू िी यह है कि सु ख उिानेवािा
है , िोकि है । सु ख से ज्यादा उिानेवािा तत्व दु कनया में दू सरा नही ूं है । दु ख भी इतना नही ूं उिाता; दु ख में िोडग म
िहुत िम है —है ही नही;ूं सु ख में िहुत िोडग म है । दु खी कचि िभी नही ूं ऊिता।

इसकिए दु खी समाज असूं तुष्ट समाज नही ूं होता और दु खी आदमी असूं तुष्ट आदमी नही ूं होता; कसिग
सु खी आदमी असूं तुष्ट होता है और सु खी आदमी िा समाज असूं तुष्ट समाज होता है । अमेररिा कजतना असूं तुष्ट
है , उतना भारत नही ूं है । उसिा िारण िुि इतना है कि हम दु खी हैं और वे सु खी हैं ; आर्े र्कत नही ूं रह
र्ई, और दु ख नही ूं है जो र्कत दे ता था, और सु ख िी पु नरुक्तक्त है —वही सु ख, वही सु ख रोज—रोज, रोज—रोज
दोहरिर िेमानी हो जाता है ।

तो दे वयोकन जो है वह एि..... िोडग म िी चरम कशखर है वह; उससे ज्यादा ऊिनेवािा िोई स्थान नही ूं
जर्त में। वहाूं जािर जैसी ऊि पैदा होती है ......।

िेकिन वक्त िर्ता है ऊि पैदा होने में। और किर सूं वेदना िे ऊपर कनभगर िरता है . कजतना
सूं वेदनशीि व्यक्तक्त होर्ा उतनी जल्दी ऊि जाएर्ा; कजतना सूं वेदनहीन व्यक्तक्त होर्ा उतनी दे र ति ऊिेर्ा। नही ूं
भी ऊिे! भैंस एि ही घास िो रोज चरती रहती है और कजूंदर्ी भर में नही ूं ऊिती। सूं वेदना जैसी चीज िहुत
िम है । कजतनी सूं वेदना होर्ी, कजतनी सें कसकटकवटी होर्ी,उतनी ऊि जल्दी पै दा हो जाएर्ी। क्ोूंकि
सूं वेदनशीिता जो है वह नये िी तिाश िरती है — और नया चाकहए। सूं वेदना एि तरह िी चूंचिता है , और
चूंचिता एि तरह िा जीवन है ।

तो दे वयोकन एि अथग में डे ड योकन है । प्रेतयोकन भी मरी योकन है , िेकिन किर भी दे वयोकन प्रेतोूं से भी
ज्यादा मरी योकन है , क्ोूंकि प्रेतोूं िी दु कनया में एि अथग में ऊि किििुि नही ूं है । क्ोूंकि दु ख िािी है और दु ख
दे ने िी सु कवधा िािी है , दू सरे िो सताने िा भी रस िहुत है , और खु द भी सताए जाने िी िहुत सु कवधा है ।
उपद्रव िी िहुत र्ुूंजाइश है । दे वयोकन किििुि शाूं त योकन है जहाूं उपद्रव किििुि नही ूं है ।

तो दे वयोकन से जो ि टना होता है , वह ि टना होता है ऊि िे िारण। अूंतत: जो ि टना है वहाूं से , वह


िोडग म िी वजह से । और ध्यान रहे , इस किहाज से वह मनुष्य योकन से ऊपर है कि वहाूं सूं वेदनशीिता िहुत िढ़
जाती है ; और हम कजन सु खोूं से वषों में नही ूं ऊिते , उन सु खोूं से उस योकन में एि िार भी भोर्ने से ऊि पैदा हो
जाती है ।

इसकिए तु मने पढ़ा होर्ा पुराणोूं में कि दे वता पृथ्वी पर जन्म िेने िो तरसते हैं । अि यह है रानी िी िात
है , उनिे तरसने िा िोई िारण नही ूं है । क्ोूंकि यहाूं पृथ्वी पर सि दे वयोकन में जाने िो तरस रहे हैं । और ऐसी
भी िथाएूं हैं कि िोई दे वता उतरे र्ा और पृथ्वी पर किसी स्त्री िो प्रेम िरने आएर्ा। ये िथाएूं सू चि हैं । िोई
अप्सरा उतरे र्ी पृथ्वी पर और किसी पु रुष से प्रेम िरे र्ी। ये िथाएूं सू चि हैं ; ये कचि िी सू चि हैं । ये यह िह
रही हैं कि उस योकन में सु ख तो िहुत है , िेकिन सु ख नीरस हो जाता है —सु ख, सु ख, सु ख! उसिे िीच में अर्र
दु ख िे क्षण न होूं, तो उिानेवािा हो जाता है । और अर्र िभी हमारे सामने दोनोूं कविल्प रखे जाएूं कि अनूंत
सु ख चुन िो— सु ख ही सुख रहे र्ा, िभी ऐसा क्षण न आएर्ा कि तु म्हें िर्े कि दु ख है ;और अनूंत दु ख चुन
िो, दु ख ही दु ख रहे र्ा; तो िुक्तद्धमान आदमी दु ख िो चुन िेर्ा।

तो यह जो दे वयोकन है , वहाूं से वापस ि टना पड़े ; प्रेतयोकन है , वहाूं से वापस ि टना पडे ।

पाां चिें शरीर में मृत व्यब्धि अयोजनज:


मनुष्य योकन च राहे पर है , वहाूं से सि यात्राएूं सूं भव हैं । मनुष्य योकन पर जो आदमी पाूं चवें शरीर िो
उपिि हो जाए,उसिो किर िही भी नही ूं जाना पड़ता, किर वह अयोकन में प्रवेश िरता है , वह योकन—मुक्त
होता है ।

योकन िा मतिि खयाि में है न?

किसी माूं िी योकन में प्रवेश से मतिि है योकन िा। वह किसी वर्ग िी माूं हो! र्भग —प्रवेश से मतिि है
योकन िा। तो वह िोई र्भग —प्रवेश नही ूं िरता। जो अपने िो उपिि हो र्या, उसिी यात्रा एि अथग में समाप्त
हो र्ई। यह जो पाूं चवें शरीर िा व्यक्तक्त है , इसी िो हम िहते हैं — मुक्तक्त, मोक्ष।

िेकिन अर्र यह अपने पर तृ प्त हो जाए, रुि जाए, तो रुि सिता है — अनूंतिाि ति रुि सिता
है ; क्ोूंकि यहाूं न दु ख है , न सु ख है ; न िूंधन है , न पीड़ा है ; यहाूं िुछ भी नही ूं है । िेकिन कसिग स्वयूं िा होना है
यहा, सवग िा होना नही ूं है । तो अनूंत समय ति भी िोई व्यक्तक्त इस क्तस्थकत में पड़ा रह सिता है , जि ति कि
उसमें सवग िो जानने िी कजशासा न उठ जाए। है वह कजशासा िा िीज हमारे भीतर, इसकिए वह उठ आती है ।

जजज्ञासा परम होनी चाजहए:

और इसकिए साधि अर्र पहिे से ही सवग िो जानने िी कजज्ञासा रखे , तो पाूं चवी योकन में रुिने िी
असु कवधा से िच जाता है । इसकिए अर्र पूरी िी पू री साइूं स िो तु म समझोर्े , तो पहिे से ही कजज्ञासा परम होनी
चाकहए। िही ूं िीच िे किसी ठहराव िो अर्र तु म मूंकजि समझिर चिे , तो जि वह तु म्हें कमि जाएर्ी मूंकजि
तो तु म्हारा मन होर्ा कि िात खत्म हो र्ई।

पाां चिें शरीर में अहां कार से मब्धि, अब्धस्मता से बांधन:

तो पाूं चवें शरीर िे व्यक्तक्त िो िोई योकन नही ूं िेनी पड़ती। िेकिन वह स्वयूं में िूंधा रह जाता है —
सिसे छूट जाता है ,स्वयूं में िूंधा रह जाता है , अक्तस्भता से नही ूं छूटता, अहूं िार से छूट जाता है । क्ोूंकि अहूं िार
जो था, वह सदा दू सरे िे क्तखिाि दावा था। इसिो ठीि से समझ िेना! जि मैं िहता हूं — ' मैं ', तो मैं
किसी ' तू ' िो दिाने िे किए िहता हूं । इसकिए जि मैं किसी ' तू ' िो दिा िेता हूं तो मेरा ' मैं ' िहुत
अिड़िर प्रिट होता है और जि िोई ' तू ' मुझे दिा दे ता है तो मेरा ' मैं 'िहुत ररररयाता, रोता हुआ प्रिट होता
है । वह ' मैं' जो है , वह ' तू' िो दिाने िा प्रयास है ।

तो अहूं िार जो है वह सदा दू सरे िी अपेक्षा में है । दू सरा तो खत्म हो र्या, दू सरे से अि िोई िेना—
दे ना नही ूं है , उससे िोई अपेक्षा न रही। अक्तस्भता जो है वह अपनी अपे क्षा में है । अहूं िार और अक्तस्भता में इतना
ही ििग है —तू से िोई मतिि नही ूं है मुझे , िेकिन किर भी मैं तो हूं । यह दावा नही ूं है मैं िा अि, िेकिन मेरा
होना तो है ही। अि मैं किसी तू िे क्तखिाि नही ूं िह रहा हूं ' मैं ', िेकिन मैं हूं किना किसी तू िी अपे क्षा िे।
इसकिए मैंने िहा— अहूं िार िहे र्ा ' मैं', और अक्तस्भता िहे र्ी ' हूं '। उतना ििग होर्ा। ' मैं हूं ' में
दोनोूं िातें हैं । ' मैं 'अहूं िार है और ' हूं ? अक्तस्भता है — कद िीकिूंर् ऑि आईनेस! तू िे क्तखिाि नही,ूं अपने पक्ष
में— ' मैं हूं !'

दु कनया में िोई भी आदमी न रह जाए—तीसरा महायुद्ध हो और सि िोर् मर जाएूं , और मैं रह जाऊूं।
तो मेरे भीतर अहूं िार नही ूं रह जाएर्ा, िेकिन अक्तस्भता होर्ी। मैं जानूूंर्ा कि मैं हूं । हािाूं कि मैं किसी से न िह
सिूूंर्ा कि ' मैं ', क्ोूंकि िोई' तू ' नही ूं िचा कजससे मैं िह सिूूं। तो जि किििुि तु म अिेिे हो और िोई भी
दू सरा नही ूं है , ति भी तु म हो— होने िे अथग में।

तो पाूं चवें शरीर पर अहूं िार तो कवदा हो जाता है , इसकिए सिसे िड़ी िड़ी जो िूंधन िी है वह कर्र
जाती है , िेकिन अक्तस्भता रह जाती है , हूं िा भाव रह जाता है —मुक्त, स्वतूं त्र, िोई िूंधन नही,ूं िोई सीमा नही ूं।
िेकिन अक्तस्भता िी अपनी सीमा है —अरे िी िोई सीमा नही ूं रही, िेकिन अक्तस्भता िी अपनी सीमा है ।

छठवें शरीर पर अक्तस्भता टू टती है , या छोड़ी जाती है । और छठवाूं शरीर जो है वह िाक्तस्भि िॉडी है ।

जद्वज अथाओ त ब्रह्मज्ञानी:

पाूं चवें शरीर िे िाद योकन िा सवाि समाप्त हो र्या, िेकिन जन्म अभी िािी हैं । इस ििग िो भी
खयाि में िे िेना! एि जन्म तो योकन से होता है , किसी िे र्भग से होता है , और एि जन्म अपने ही र्भग से होता
है । इसकिए इस मुम्ऻ में हम ब्राह्मण िो कद्वज िहते हैं । असि में , ब्रह्मज्ञानी िो िहते थे िभी; ब्राह्मण िो िहने
िी िोई जरूरत नही ूं है ; ब्रह्मज्ञानी िो कद्वज िहते थे। उसमें एि और तरह िा जन्म है —ट्वाइस िॉनग।

एि जन्म तो वह है जो र्भग से कमिता है , वह दू सरे से कमिता है ; और एि ऐसा जन्म भी है , जो किर


अपने से ही! क्ोूंकि जि आत्म शरीर उपिि हो र्या, अि तु म्हें दू सरे से जन्म िभी नही ूं कमिेर्ा; अि तो तु म्हें
अपने ही आत्म शरीर िो जन्माना होर्ा िाक्तस्भि िॉडी में। और यह तु म्हारी अूंतयाग त्रा है अि तु म्हारा अूंतर्गभग है
और अूंतर—योकन है । अि इसिा िाह्य योकन से और िाह्य र्भग से िोई सूं िूंध नही ूं है । अि तु म्हारे िोई माता—
कपता न होूंर्े, अि तु म्ही ूं कपता और तु म्ही ूं माता और तु म्ही ूं पुत्र िनोर्े। अि यह किििुि कनपट अिेिी यात्रा है ।

तो इस क्तस्थकत िो, पाूं चवें शरीर से छठवें शरीर में जि प्रवेश हो, ति िहना चाकहए िोई व्यक्तक्त कद्वज
हुआ, उसिे पहिे नही ूं। उसिा दू सरा जन्म हुआ जो अयोकनज है , कजसमें योकन नही ूं है , और कजसमें पर—र्भग
नही ूं है , जो आत्मर्भग है ।

उपकनषद िा ऋकष िहता है कि उस र्भग िे ढक्कन िो खोि, वह जो तू ने स्वणग—पात्रोूं से ढूं ि रखा है !


उस र्भग िे ढक्कन िो खोि, वह जो तू ने स्वणग िे पदों से ढूं ि रखा है !

पदे जरूर वहाूं स्वणग िे हैं । यानी पदे ऐसे हैं कि उन्ें तोडि् ने िा मन न होर्ा; पदे ऐसे हैं कि िचाने िी
तिीयत होर्ी। अक्तस्भता सिसे ज्यादा िीमती पदाग है जो हमारे ऊपर है , उसे हम ही न छोड़ना चाहें र्े। िोई
दू सरा िाधा दे नेवािा नही ूं होर्ा, िोई िहे र्ा नही ूं कि रोिो, िोई रोिनेवािा नही ूं होर्ा। िेकिन पदाग ही इतना
प्रीकतिर है अपने होने िा कि उसे छोड़ न पाओर्े ।

इसकिए ऋकष िहता है , स्वणग िे पदों िो हटा और उस र्भग िो खोि, कजससे व्यक्तक्त कद्वज हो सिे।
तो ब्रह्मज्ञानी िो कद्वज... ब्रह्मज्ञानी िा मतिि छठवें शरीर पानेवािे िो....... पाूं चवें शरीर से छठवें शरीर
िी यात्रा ट्वाइस िॉनग , कद्वज होने िी यात्रा है । और र्भग िदिा, योकन िदिी, अि सि अयोकनज हुआ, और र्भग
अपना हुआ आत्मर्भाग हुए हम।

पाूं चवें से छठवें में जन्म है , और छठवें से सातवें में मृत्यु है । इसकिए उसिो कद्वज नही ूं िहा; उसिो कद्वज
िहने िा िोई मतिि नही ूं है ; क्ोूंकि अि..... .मेरा मतिि समझे तु म? अि समझना आसान हो जाएर्ा।

पाूं चवें से छठवें िो हम िहते हैं —जन्म अपने से । छठवें से सातवें िो हम िहते हैं — मृत्यु अपने से ।
दू सरोूं से जन्म किए थे —दू सरोूं िी योकनयोूं से , दू सरोूं िे शरीरोूं से ; वह मृत्यु भी दू सरोूं िी थी।

पर—योजन से जन्मे व्यब्धि की मृ त्य भी परायी:

इसे थोड़ा समझना पड़े र्ा। जि जन्म दू सरे से था, तो मृत्यु तु म्हारी िैसे हो सिती है ? जन्म तो मैं िूूंर्ा
अपने माता—कपता से , और मरू
ूं र्ा मैं ? यह िैसे हो सिता है ? ये दोनोूं छोर असूं र्त हो जाएूं र्े। ये दोनोूं छोर
असूं र्त हो जाएूं र्े। जि जन्म पराया है , तो मृत्यु मेरी नही ूं हो सिती; जि जन्म दू सरे से कमिा है , तो मृत्यु भी दू सरे
िी है । ििग इसकिए है कि उस िार मैं एि योकन से प्रिट हुआ था, इस िार दू सरी योकन में प्रवेश
िरू
ूं र्ा, इसकिए पता नही ूं चि रहा। उस वक्त आया था तो कदखाई पड र्या था अि जा रहा हूं तो कदखाई नही ूं
पड़ रहा।

समझ रहे हो न तु म? जन्म जो है उसिे पहिे मृत्यु है । िही ूं तु म मरे थे , िही ूं तु म जन्मे हो। जन्म कदखाई
पड़ता है ,तु म्हारी मृत्यु िा हमें पता नही ूं।

अि तु म्हें एि जन्म कमिा एि माूं —िाप से —एि शरीर कमिा, एि दे ह कमिी, एि सिर साि, स साि
द ड़ने वािा एि यूंत्र कमिा। यह यूंत्र स साि िाद कर्रे र्ा। इसिा कर्रना उसी कदन से सु कनकश्चत हो र्या, कजस कदन
तु म जन्मे—कर्रना! िि कर्रे र्ा, नही ूं उतना महत्वपूणग है — कर्रना! जन्म िे साथ ही तय हो र्या है कि तु म
मरोर्े। कजस योकन से तु म जन्म िाए, उसी योकन से तु म मृत्यु भी िे आए—साथ ही िे आए।

असि में, जन्म दे नेवािी योकन में मृत्यु कछपी ही है , कसिग िासिा पड़े र्ा स साि िा। इस स साि में
तु म एि छोर से दू सरे छोर िी यात्रा पूरी िरोर्े। और कजस जर्ह से तु म आए थे , ठीि उसी जर्ह वापस ि ट
जाओर्े। तो जो जन्म दू सरे िी योकन से हुआ है , वह मृत्यु भी दू सरे िी ही योकन से जन्मे शरीर िी है , वह मृत्यु भी
परायी है । तो न तो तु म जन्मे हो अभी,और न तु म अभी मरे हो िभी; जन्म में भी दू सरा माध्यम था, मृत्यु में भी
दू सरा ही माध्यम होने िो है ।

पाूं चवें शरीर से जि तु म छठवें शरीर में , ब्रह्म शरीर में प्रवेश िरोर्े आत्म शरीर से , तो तु म पहिी दिा
जन्मोर्े आत्मर्भाग िनोर्े , अयोकनज तु म्हारा जन्म होर्ा। िे किन ति एि अयोकनज म त भी आर्े प्रतीक्षा िरे र्ी।
और यह जन्म जहाूं तु म्हें िे जाएर्ा, मृत्यु तु म्हें वहाूं से भी आर्े िे जाएर्ी; क्ोूंकि जन्म तु म्हें ब्रह्म में िे
जाएर्ा, मृत्यु तु म्हें कनवाग ण में िे जाएर्ी।

छठवें शरीर िी चेतनाएूं अवतार, ईश्वर—पुत्र व तीथंिर

यह जन्म िहुत िूंिा हो सिता है , यह जीवन अूंतहीन हो सिता है । कजनिो हम ईश्वर िहें , ऐसा व्यक्तक्त
अर्र कटिा रहे र्ा तो ईश्वर िन जाएर्ा; ऐसी चेतना अर्र िही ूं रुिी रह जाएर्ी तो अरिोूं िोर् उसे पूजेंर्े, उसिे
प्रकत प्राथगनाएूं प्रेकषत िी जाएूं र्ी। कजनिो हम अवतार िहते , ईश्वर िहते , ईश्वर—पुत्र िहते , वे पाूं चवें शरीर से
छठवें शरीर में र्ए हुए िोर् हैं ; तीथंिर िहते , वे सि छठवें शरीर में र्ए हुए िोर् हैं ।
यकद ये चाहें तो इस छठवें शरीर में ये अनूंत िाि ति रुि सिते हैं । इस जर्ह से ये िड़ा उपिार भी
िर सिते हैं । हाकन िा तो अि िोई उपाय नही ूं है , िोई सवाि भी नही ूं है । इस जर्ह से ये िड़े र्हरे सू चि िन
सिते हैं । और इस तरह िे िोर् हैं , इस छठवें शरीर में, जो कनरूं तर प्रयास िरते रहते हैं पीछे िे याकत्रयोूं िे
किए, िहुत तरह िे प्रयास िरते रहते हैं । इस छठवें शरीर से चेतनाएूं िहुत तरह िे सूं देश भी भेजती रहती हैं ।

और इस छठवें शरीर िे िोर्ोूं िो, कजनिो इनिा थोड़ा सा िोध हो जाएर्ा, वे इनिो भर्वान से नीचे
तो रखने िा िोई उपाय नही ूं है । भर्वान वे हैं ही। उनिे भर्वान होने में िोई िमी नही ूं रह र्ई, ब्रह्म शरीर
उन्ें उपिि है ।

जीते जी भी इसमें िोई प्रवेश िर जाता है ; जीते जी भी िोई पाूं चवें से छठवें में प्रवेश िर जाता है । यह
शरीर भी म जूद है । और जि जीते जी िोई पाूं चवें से छठवें में प्रवेश िर जाता है , तो हम उसे िुद्ध, महावीर, राम
और िृष्ण और क्राइस्ट िना िेते हैं । कजनिो कदखाई पड़ जाता है , वे ही िना िेते हैं ; कजनिो नही ूं कदखाई
पड़ता, उनिा तो िोई सवाि नही ूं है ।

िुद्ध िे किए, र्ाूं व में एि आदमी िो कदखाई पड़ता है कि वे ईश्वर हो र्ए, और दू सरे आदमी िो कदखाई
पड़ता है —िुछ भी नही,ूं साधारण तो आदमी हैं । हमारे जैसे उनिो सदी—जुिाम भी होता है ; हमारे जैसे वे
िीमार भी पड़ते हैं ; हमारे जैसे भोजन भी िरते हैं ; हमारे जैसे चिते —सोते भी हैं ; हमारे जैसे मरते भी हैं ; तो
हममें—उनमें ििग क्ा है ? किर कजनिो कदखाई पड़ता है ,कजनिो नही ूं कदखाई पड़ता—उनिी भीड़ सदा िड़ी
है कजनिो नही ूं कदखाई पड़ता। कजनिो कदखाई पड़ता है , वे पार्ि मािूम पड़ते हैं । और िेचारे पार्ि कदखते भी
हैं , क्ोूंकि उनिे पास िोई इकवडें स भी तो नही ूं।

असि में, कदखाई पड़ने िे किए िोई इकवडें स नही ूं होता। अि यह माइि मु झे कदखाई पड़ रहा है , और
अर्र आपिो यहाूं किसी िो कदखाई न पड़े , तो मैं और क्ा इकवडें स दू ूं र्ा कि यह कदखाई पड़ रहा है ! मैं
िहूं र्ा, कदखाई पड़ रहा है । और मैं पार्ि हो जाऊूंर्ा; क्ोूंकि जि सििो नही ूं कदखाई पड़ रहा है और आपिो
कदखाई पड़ रहा है , तो आपिा कदमार् खराि है ।

तीथंकर को पहचानना मब्धिि:

ज्ञान िो भी हम िहुत र्हरे अथग में र्णना से नापते हैं । उसिा भी मतदान है , वोकटूं र् है उसिा भी।

तो िुद्ध किसी िो कदखाई पड़ते हैं — भर्वान हैं , किसी िो कदखाई पड़ते हैं —नही ूं हैं । कजसिो कदखाई
पड़ते हैं —नही;ूं वह िहता है क्ा पार्िपन िर रहे हो! यह िुद्ध वही है जो शु द्धोधन िा िेटा है , ििाने िा
िड़िा है , ििानी इसिी माूं थी;ििानी इसिी िह है ; वही तो है , यह िोई और तो नही ूं है । िु द्ध िे िाप ति
िो नही ूं कदखाई पड़ता कि यह आदमी िुछ और हो र्या है । वे भी यही समझते हैं कि मेरा िेटा है , और वे भी
िहते हैं कि तू िहाूं िी नासमझी में पड़ा है , घर वापस ि ट आ! यह सि तू क्ा िर रहा है ? राज्य सि ििाग द हो
रहा है , मैं िूढ़ा हुआ जा रहा हूं अि तू वापस ि ट आ, अि सम्हाि िे सि। उनिो भी नही ूं कदखाई पड़ता कि
अि यह किस राज्य िा माकिि हो र्या।

पर कजसिो कदखाई पड़ता है उसिे किए यह तीथं िर हो जाएर्ा, भर्वान हो जाएर्ा, ईश्वर िा िेटा हो
जाएर्ा—िुछ भी हो जाएर्ा। वह िोई नाम चुनेर्ा, जो छठवें शरीर िे आदमी िे किए इस क्तस्थकत में भी कदखाई
पड़ने िर्ेर्ा।
छठिें शरीर के सीमाां त पर जनिाओ ण की झिक:

सातवाूं शरीर जो है , वह इस शरीर में िभी उपिि नही ूं होता। इस शरीर में सातवाूं शरीर िभी
उपिि नही ूं होता। इस शरीर में हम छठवें शरीर िे सीमाूं त पर भर खड़े हो सिते हैं —ज्यादा से ज्यादा, जहाूं
से सातवाूं शरीर कदखाई पड़ने िर्ता है ; वह छिाूं र्, वह र्डु , वह एकिस, वह इटरकनटी कदखाई पड़ने िर्ती
है , वहाूं हम खड़े हो सिते हैं ।

इसकिए िु द्ध िे जीवन में दो कनवाग ण िी िात िही जाती है जो िड़ी िीमत िी है । एि कनवाग ण तो
वह, जो उन्ें िोकधवृक्ष िे नीचे , कनरूं जना िे तीर पर हुआ—चािीस साि मरने िे पहिे। इसे िहा जाता है
कनवाग ण। इस कदन वे उस सीमाूं त पर खड़े हो र्ए। और इस सीमाूं त पर वे चािीस साि खड़े ही रहे —इसी सीमाूं त
पर। दू सरा, कजस कदन उनिी मृत्यु हुई, उस कदन िहा जाता है , वह हुआ महापररकनवाग ण! उस कदन वे उस सातवें
में प्रवेश िर र्ए।

इसकिए मरने िे पहिे उनसे िोई पूछता है कि तथार्त िा मृत्यु िे िाद क्ा होर्ा? तो िुद्ध िहते
हैं , तथार्त नही ूं होूंर्े। िेकिन यह मन िो भरता नही ूं हमारे । किर—किर उनिे भक्त उनसे पूछते हैं कि जि
महाकनवाग ण होता है िुद्ध िा, तो किर क्ा होता है ? तो िुद्ध िहते हैं , जहाूं सि होना िूं द हो जाता है उसी िा नाम
महापररकनवाग ण है । जि ति िुछ होता रहता है ,ति ति छठवाूं , जि ति िुछ होता रहता है , ति ति
छठवाूं , ति ति अक्तस्तत्व; किर अनक्तस्तत्व।

तो िुद्ध अि नही ूं होूंर्े। अि िुछ भी नही ूं िचे र्ा। अि तु म समझना कि वे िभी थे ही नही ूं। वे ऐसे ही
कवदा हो जाएूं र्े जैसे स्वप्न कवदा हो जाता है । वे ऐसे ही कवदा हो जाएूं र्े , जैसे रे त पर क्तखूंची रे खा हवा िे झोूंिे में
साि हो जाती है , जैसे पानी पर ििीर खी ूंचते हैं , और खी ूंच भी नही ूं पाते और कवदा हो जाती है ; ऐसे ही वे खो
जाएूं र्े ; अि िुछ भी नही ूं होर्ा।

मर्र यह मन िो भरता नही ूं। हमारा मन िरता है —िही ूं, िही,ूं िही ूं......किसी ति पर, िही ूं किसी
िोने में.. दू र, कितने ही दू र, िेकिन होूं— किसी रूप में होूं, अरूप हो जाएर्ा; आिार में होूं, कनरािार हो
जाएर्ा; शब्द में होूं, कनःशब्द हो जाएर्ा; सत्व में होूं, शू न्य हो जाएर्ा।

सातवें शरीर िे िाद िी किर िोई खिर दे ने िा उपाय नही ूं है । सीमाूं त पर खड़े हुए िोर् हैं जो सातवें
शरीर िो दे खते हैं ,उस र्ेंहु िो दे खते हैं , िेकिन उस र्ेंहु में जािर खिर दे ने िा िोई उपाय नही ूं है । इसकिए
सातवें शरीर िे सूं िूंध में सि खिरें सीमा िे किनारे खड़े हुए िोर्ोूं िी खिरें हैं ; र्ए हुए िी िोई खिर नही ूं
है , क्ोूंकि िोई उपाय नही ूं। जैसे कि हम पाकिस्तान िी सीमा पर खड़े होिर दे खें और िहें कि वहाूं एि
मिान है , और एि दु िान है , और एि आदमी खड़ा है , और एि वृक्ष है , और सू रज कनिि रहा है । िेकिन यह
खड़ा है आदमी कहूं दुस्तान िी सीमा में।

सातिें शरीर में महामृ त्य:


छठवें से सातवें में महामृत्यु है । और तु म िड़े है रान होओर्े जानिर कि िहुत प्राचीन समय में आचायग
िा मतिि यह होता था कि जो मृ त्यु कसखाए, जो महामृत्यु कसखाए। ऐसे सू त्र हैं , जो िहते हैं — आचायग यानी
मृत्यु। इसकिए नकचिेता जि पहुूं च र्या है यम िे पास, तो वह ठीि आचायग िे पास पहुूं च र्या है । वह मृत्यु ही
कसखा सिता है यम, और िुछ कसखा सिता नही ूं। जहाूं कमटना कसखाया जाए, जहाूं टू टना और समाप्त होना
कसखाया जाए।

पर इसिे पहिे एि जन्म आवश्यि है , क्ोूंकि अभी तो तु म हो ही नही ूं। और कजसे तु मने समझा है कि
तु म हो, वह तो किििुि उधार है , वह िारोड है , वह तु म्हारा अक्तस्तत्व नही ूं। इसे तु म अर्र खोओर्े भी तो तु म
इसिे माकिि न थे। यानी मामिा ऐसा है कि जै से मैं िोई चीज चुरा िूूं और किर मैं उसिा दान िर दू ूं । वह
चीज मेरी थी नही,ूं तो दान मेरा िैसे होर्ा?तो जो मे रा नही ूं है उसे तो मैं दे भी नही ूं सिता।

इसकिए यहाूं इस जर्त में कजसिो हम त्यार्ी िहते हैं वह त्यार्ी नही ूं है ; क्ोूंकि वह वह छोड़ रहा है जो
उसिा था नही ूं। और जो था नही ूं उसिे छोड़नेवािे तु म िैसे हो सिते हो? और जो तु म्हारा था नही,ूं उसिो
तु मने छोड़ा, यह दावा पार्िपन िा है ।

त्यार् घकटत होता है छठवें शरीर से सातवें में प्रवेश से ; ररनक्तन्ऱएशन वहाूं है , क्ोूंकि वहाूं तु म वही छोड़ते
हो जो तु म हो। और िुछ तो तु म्हारे पास िचता नही,ूं तु म्ही ूं हो, उसी िो तु म छोड़ते हो। इसकिए त्यार् िी घटना
तो कसिग एि ही है , वह है छठवें से सातवें शरीर में प्रवेश िी। उसिे पहिे तो हम िच्चोूं िी िातें िर रहे हैं । जो
आदमी िह रहा है मेरा है , वह पार्िपन िी िातें िर रहा है ; जो िह रहा है कि जो भी मेरा था वह मैंने छोड़
कदया है , वह भी पार्िपन िी िातें िर रहा है । क्ोूंकि दावेदार वह अि भी है कि वह मेरा था और मैं मानता था
कि मेरा था; और अि मैं ने किसी और िो दे कदया, और अि वह उसिा हो र्या है ।

हमारे तो कसिग हम हैं । िे किन उसिा हमें िोई पता नही ूं है । इसकिए पाूं चवें से छठवें में तु म्हें पता
चिेर्ा कि तु म ि न हो, और छठवें से सातवें में तु म त्यार् िर सिोर्े उसिा जो तु म हो।

और कजस कदन िोई उसिा त्यार् िर पाता है जो वह है , उसिे िाद किर िुछ पाने िो शे ष नही ूं रह
जाता, िुछ खोने िो शे ष नही ूं रह जाता। उसिे िाद तो िोई सवाि ही नही ूं है । उसिे िाद अनूंत सन्नाटा और
चुप्पी है । उसिे िाद हमारे पास यह भी हम नही ूं िह सिते कि आनूंद है , यह भी नही ूं िह सिते कि शाूं कत
है , यह भी नही ूं िह सिते कि सत्य है , असत्य है ,प्रिाश है —िुछ भी नही ूं िह सिते ।

यह सात शरीर िी क्तस्थकत होर्ी।

पाां चिें शरीर का जमिना और जागना एक ही बात:

प्रश्न: ओशो स्थूि शरीर के जीजित रहते अगर पाां चिाां शरीर उपिि हुआ तो मृ त्य के बाद िह
व्यब्धि जिर कौन से शरीर में जन्म िे गा?

पाूं चवें शरीर िे िाद, अर्र पाूं चवाूं शरीर मनुष्य शरीर में उपिि हुआ, और पाूं चवाूं शरीर किना जाग्रत
हुए उपिि नही ूं होता, अर्र तु म जार् र्ए पाूं चवें शरीर में , जार्े किना उपिि नही ूं होता, तो पाूं चवें शरीर िा
कमिना और जार्ना एि ही िात है । किर तु म्हें पहिे शरीरोूं िी िोई जरूरत नही ,ूं अि तो तु म पाूं चवें शरीर से
ही िाम िर सिते हो। तु म जार्े हुए आदमी हो अि िोई िकठनाई नही ूं है । अि तु म्हें पहिे शरीरोूं िी िोई
जरूरत नही ूं है । यह तो च थे शरीर ति सवाि िना रहे र्ा सदा।

अर्र च थे शरीर में दे वता हो र्या एि आदमी—च था शरीर सकक्रय हो र्या और जार् र्या। च था
शरीर कनक्तष्कय रहा,सोया रहा, तो प्रेत हो र्या। यह दोनोूं क्तस्थकतयोूं में तु म्हें वापस ि टना पड़े र्ा, क्ोूंकि तु म्हें अभी
अपने स्वरूप िा िोई पता नही ूं चिा, अभी तो तु म्हें स्वरूप िा पता िर्ाने िे किए भी पर िी जरूरत है । उस
पर िे ही आधार पर तु म अभी स्व िा पता िर्ा पाओर्े। अभी तो अपने िो पहचानने िे किए तु म्हें दू सरे िी
जरूरत है । अभी दू सरे िे किना तु म अपने िो भी न पहचान पाओर्े। अभी तो दू सरा ही तु म्हारी सीमा िनाएर्ा
और तु म्हें पहचानने िा िारण िनेर्ा।

तो इसकिए च थे शरीर ति तो िोई भी क्तस्थकत में जन्म िेना पड़े र्ा। पाूं चवें शरीर िे िाद जन्म िी िोई
जरूरत नही ूं है ;अथग भी नही ूं है । पाूं चवें शरीर िे िाद तु म्हारा होना इन सि चार शरीरोूं िे किना हो जाएर्ा।
िेकिन पाूं चवें शरीर से भी अभी एि और नये तरह िे जन्म िी िात शु रू होती है , वह छठवें शरीर में प्रवेश िी।
वह दू सरी िात है , उसिे किए इन शरीरोूं िी िोई भी जरूरत नही ूं है ।

प्रश्न: ओशो पाां चिें शरीर में जजसका प्रिेश हो गया िह अपनी मृ त्य के बाद स्थूि शरीर नही ां पा
सकता?

नही ूं।

तीथंकर को िासना बाां धनी पडती है :

प्रश्न: ओशो तीथओकांर यजद जन्म िेना चाहे तो स्थू ि शरीर में िें गे न?

अि यह जो मामिा है, यह िहुत दू सरी िात हुई। यह जो िात है न, यह किििुि दू सरी िात है।
थोडी सी िात िर िें। अर्र तीथंिर िो जन्म िे ना हो, जैसा कि तीथं िर जन्म िेता है , तो एि िड़ी मजे िी िात
है और वह यह है कि मरने िे पहिे उसे च थे शरीर िो छोड़ना नही ूं पड़ता। और न छोड़ने िा एि उपाय है
और उसिी कवकध है । और वह है तीथं िर होने िी वासना।

तो च था शरीर जि छूट रहा हो ति एि वासना िचा िेनी पड़ती है , ताकि च था न छूटे । च थे िे छूटने
िे िाद तो जन्म िे नही ूं सिते , किर तो तु म्हारा सेतु टू ट र्या कजससे तु म आ सिते थे। तो च थे शरीर िे पहिे
तीथंिर होने िी वासना िो िचाना पडता है ।
इसकिए सभी िोर्, तीथंिर होने िे योग्य िोर् तीथंिर नही ूं होते । िहुत से तीथंिर होने योग्य िोर् सीधे
यात्रा पर कनिि जाते हैं । थोड़े से िोर्...... और इसकिए उनिी सूं ख्या भी तय िर रखी है । वह सूंख्या तय िरने
िा िारण है कि उतने से िाम चि जाता है , उतने से ज्यादा िोर्ोूं िो वैसी वासना रखने िी िोई जरूरत नही ूं।
इसकिए सूं ख्या तय िर रखी है कि इतने यु र् िे किए इतने तीथंिर िािी हो जाएूं र्े ; इतने आदमी िे किए इतने
तीथंिर िािी पड़ें र्े।

तो तीथंिर िी वासना िाूं धनी पड़ती है । और उस वासना िो िड़ी तीव्रता से िाूं धना पड़ता है , क्ोूंकि
वह आक्तखरी वासना है , और जरा छूट जाए हाथ से तो िात र्ई। तो दू सरोूं िो मैं कसखाऊूंर्ा, दू सरोूं िो मैं
िताऊूंर्ा, दू सरोूं िो मैं समझाऊूंर्ा, दू सरोूं िे किए मुझे आना है —वह च थे शरीर में उतनी एि वासना िा िीज
प्रिि होना चाकहए। अर्र वह प्रिि है तो उतरना हो जाएर्ा।

पर उसिा मतिि यही हुआ कि अभी च थे शरीर िो छोड़ा नही ूं है ; पाूं चवें शरीर पर पैर रख किया
है , िेकिन च थे शरीर पर एि खूूं टी र्ाड़ रखी है । वह इतनी शीघ्रता से उखड़ती है कि अक्सर मु क्तिि मामिा है
िहुत।

तीथंकर बनाने की प्रजक्या:

इसकिए तीथंिर िनाने िी प्रोसे स है । और इसकिए तीथंिर स्कूल्स में िनते हैं , वे इूं कडकवजु अल्स नही ूं
हैं । जैसे कि एि स्कूि साधना िर रहा है , िुछ साधि िोर् साधना िर रहे हैं । और उनमें वे एि आदमी िो
पाते हैं कजसमें कि कशक्षि होने िी पूरी योग्यता है —जो, जो जानता है उसे िह सिता है , जो, जो जानता है उसे
िता सिता है ; जो, जो जानता है उसे दू सरे ति िम्यु कनिेट िर सिता है —तो वह स्कूि उसिे च थे शरीर पर
खूूं कटयाूं र्ाड़ना शु रू िर दे र्ा और उसिो िहे र्ा कि तु म च थे शरीर िी कििर िरो, यह च था शरीर खत्म न
हो जाए; क्ोूंकि तु म्हारा यह च था शरीर िाम पड़े र्ा, इसिो िचा िो। और इसिो िचाने िे उपाय कसखाए
जाएूं र्े।

तीथंकर का करुणािश पनजओन्म िेना:

और इसिो िचाने िे किए उतनी मेहनत िरनी पड़ती है , कजतनी छोड़ने िे किए नही ूं िरनी पड़ती।
क्ोूंकि छोड़ना तो एिदम सरिता से हो जाता है । और जि सि नावोूं िी खूूं कटयाूं उखड़ र्ई होूं, और पाि क्तखूंच
र्या हो और हवा भर र्ई हो, और दू र िा सार्र पुिार रहा हो, और आनूंद ही आनूंद हो, ति वह जो एि खूूं टी
है , उसिो रोिना कितना िकठन है , उसिा कहसाि िर्ाना मुक्तिि है ।

इसकिए तीथंिर िो हम िहते हैं —तु म महा िरुणावान हो। उसिा और िोई िारण नही ूं है , क्ोूंकि
उसिी िरुणा िा िड़ा कहस्सा तो यही है कि जि उसे जाना था, जि जाने िी सि तै यारी पूरी हो र्ई थी, ति
उनिे किए वह रुि र्या है जो तट पर अभी हैं और कजनिी नावें अभी तै यार नही ूं हैं । उसिी नाव किििुि
तै यार थी। अि वह उस तट िे िष्ट झेि रहा है , उस तट िी धू ि भी झेि रहा है , उस तट िी र्ाकियाूं भी झेि
रहा है , उस तट िे पत्थर भी झेि रहा है — और उसिी नाव किििुि तै यार थी, और वह िभी भी जा सिता
था। वह नाहि रुि र्या है इन सििे िीच। और ये सि उसे मार भी सिते हैं , हत्या भी िर सिते हैं । तो
उसिी िरुणा िा िोई अूंत नही ूं।

िेकिन उस िरुणा िी वासना स्कूि में पैदा होती है । इसकिए इूं कडकवजुअि साधि तो िभी तीथं िर
नही ूं हो पाते । वह तो िाद में...... .उनिो पता ही नही ूं चिता, िि खूूं टी उखड़ जाती है । जि नाव चि पड़ती है
ति उनिो पता चिता है कि यह तो र्या मामिा; वह तट दू र छूटा जा रहा है । इसकिए खूूंटी िे किए िहुत और
तरह िा......

तीथंकर के अितरण में अन्य जाग्रत िोगोां का योगदान:

और इस सििी सहायता िे किए, जैसा मैंने िहा कि छठवें शरीर िो जो िोर् उपिि हैं —कजनिो
हम ईश्वर िहें —छठवें शरीर िो जो िोर् उपिि हैं , वे भी िभी इसमें सहयोर्ी होते हैं । किसी व्यक्तक्त िो इस
योग्य पािर, कि इसिो अभी इस तट से नही ूं छूटने दे ना है , वे हजार तरह िे प्रयास िरते हैं । इसिे किए दे वता
भी सहयोर्ी होते हैं —जैसा मैंने िहा कि वे शु भ में सहयोर्ी होूंर्े —वे हजार प्रयास िरते हैं, इस आदमी िो
प्रेरणा दे ते हैं कि यह खूूं टी एि िचा िेना। यह खूूं टी हमें कदखाई पड़ती है ,तु म्हें कदखाई नही ूं पड़ती, िेकिन इसिो
तु म िचा िेना।

तो जर्त एिदम अनाकिगि नही ूं है , अव्यवस्था नही ूं है ; उसमें िड़ी र्हरी व्यवस्थाएूं हैं ; और व्यवस्थाओूं
िे भीतर व्यवस्थाएूं हैं । और िई दिा िहुत तरह िी िोकशश िी जाती है , किर भी र्ड़िड़ हो जाती है । जैसे
िृष्णमूकतग िे सूं िूंध में खूूं टी र्ाड़ने िी िहुत िोकशश िी र्ई, वह नही ूं हो सिा। एि पूरा स्कूि िहुत मेहनत
किया, वह खूूं टी र्ाड़ने िी िोकशश थी, वह नही ूं हो सिा। वह प्रयास असिि चिा र्या। उसमें पीछे से भी
िोर्ोूं िा हाथ था। उसमें दू रर्ामी आत्माओूं िा हाथ भी था। उसमें छठवें शरीर िे िोर्ोूं िा हाथ भी था, पाूं चवें
शरीर िे िोर्ोूं िा हाथ भी था, उसमें च थे शरीर िे जाग्रत िोर्ोूं िा भी हाथ था। और उसमें हजारोूं िोर्ोूं िा
हाथ था। और यह िोकशश थी...... और िृष्णमू कतग िो चुना र्या था, और दो—चार िच्चे चुने र्ए थे कजनसे
सूं भावना थी कि कजनिो तीथंिर िनाया जा सिे। चूि र्ई वह िात, नही ूं हो सिी; वह खूूं टी नही ूं र्ाड़ी जा
सिी। इसकिए िृष्णमूकतग से तीथं िर िा जो िायदा कमि सिता था जर्त िो, वह नही ूं कमि सिा। मर्र वह
दू सरी िात है , उससे िोई, उससे िोई यहाूं मतिि नही ूं है ।

जिर कि बात करें गे ।


प्रिचन 18 - तां त्र के गह्य आयामोां में

बारहिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ :

भीतर के परुष अथिा स्त्री से जमिन:

प्रश्न: ओशो कि की चचाओ के अांजतम जहस्से में आपने कहा जक बि सातिें शरीर में महापररजनिाओ ण
को उपिि हुए। िेजकन अपने एक प्रिचन में आपने कहा है जक बि का एक और पनजओन्म मनष्य शरीर
में मै त्रेय के नाम से होनेिािा है । तो जनिाओ ण काया में चिे जाने के बाद पन मनष्य शरीर िेना कैसे सां भि
होगा इसे सां जक्षप्त में स्पि करने की कृपा करें ।

इसिो छोड़ो, पीछे िेना, तुम्हारे पूरे नही ूं हो पाएूं र्े नही ूं तो।

प्रश्न: ओशो आपने कहा है जक पाां चिें शरीर में छां चने पर साधक के जिए स्त्री और परुष का भे द
समाप्त हो जाता है । यह उसके प्रथम चार शरीरोां के पाजजजटि और जनगेजटि जिद् यत के जकस समायोजन
से घजटत होता है ?

स्त्री और पुरुष िे शरीरोूं िे सूंिूंध में, पहिा शरीर स्त्री िा स्त्रैण है, िेकिन दू सरा उसिा शरीर
भी पु रुष िा ही है । और ठीि इससे उिटा पुरुष िे साथ है । तीसरा शरीर किर स्त्री िा है , च था शरीर किर
पुरुष िा है ।

मैंने पीछे िहा कि स्त्री िा शरीर भी आधा शरीर है और पु रुष िा शरीर भी आधा शरीर है , इन दोनोूं
िो कमििर ही पूरा शरीर िनता है ।

यह कमिन दो कदशाओूं में सूं भव है । पुरुष िा शरीर—पहिा शरीर— अपने से िाहर स्त्री िे पहिे
शरीर से कमिे तो एि यूकनट, एि इिाई पैदा होती है । इस इिाई से प्रिृकत िी सूं तकत िा, प्रिृकत िे जन्म िा
िाम चिता है । यकद अूंतमुगखी हो सिे पु रुष या स्त्री, तो उनिे भीतर िे पु रुष या स्त्री से कमिन होता है और एि
दू सरी यात्रा शु रू होती है जो परमात्मा िी कदशा में है । िाहर िे शरीर—कमिन से जो यात्रा होती है वह प्रिृकत
िी कदशा में है ; भीतर िे शरीर िे कमिन से जो यात्रा होती है , वह परमात्मा िी कदशा में है ।
पुरुष िा पहिा शरीर जि अपने ही भीतर िे ईथररि िॉडी िे स्त्री शरीर से कमिता है , तो एि यू कनट
िनता है ; स्त्री िा पहिा शरीर जि अपने ही ईथररि शरीर िे पु रुष तत्व से कमिता है , तो एि यूकनट िनता है ।
यह यूकनट िहुत अदभुत है , यह इिाई िहुत अदभुत है । क्ोूंकि अपने से िाहर िे स्त्री या पु रुष से कमिना क्षण
भर िे किए ही हो सिता है । सु ख क्षण भर िा होर्ा और किर छूटने िा दु ख िहुत िूं िा होर्ा। इसकिए उस
दु ख में से किर कमिने िी आिाूं क्षा पै दा होती है । िेकिन कमिना किर क्षण भर िा होता है और किर छूटना किर
िूंिे दु ख िा िारण िन जाता है ।

तो िाहर िे शरीर से जो कमिन है वह क्षण भर िो ही घकटत हो पाता है , िेकिन भीतर िे शरीर से जो


कमिन है वह कचरस्थायी हो जाता है — वह एि िार कमि र्या तो दू सरी िार टू टता नही ूं। इसकिए भीतर िे शरीर
पर जि ति कमिन नही ूं हुआ है तभी ति दु ख है । जैसे ही कमिन हुआ तो सु ख िी एि अूंतरधारा िहनी शु रू
हो जाती है । वह सु ख िी अूंतरधारा वैसे ही है ,जैसे क्षण भर िे किए िाहर िे शरीर से कमिने पर सूं भोर् में घकटत
होती है । िेकिन वह इतनी क्षकणि है कि वह आ भी नही ूं पाती कि चिी जाती है । िहुत िार तो उस सु ख िा भी
िोई अनुभव नही ूं हो पाता, क्ोूंकि वह इतनी त्वरा, इतनी ते जी में घटना घटती है कि उसिा िोई अनुभव भी
नही ूं हो पाता।

ध्यान : आत्मरजत की प्रजक्या:

योर् िी दृकष्ट से अर्र अूंतकमगिन सूं भव हो जाए, तो िाहर सूं भोर् िी वृकि तत्काि कविीन हो जाती
है ; क्ोूंकि कजस आिाूं क्षा िे किए वह िी जा रही थी, वह आिाूं क्षा तृ प्त हो र्ई। मैथुन िे जो कचत्र मूंकदरोूं िी
दीवािोूं पर खु दे हैं , वे अूंतमैंथुन िी ही कदशा में इूं कर्त िरनेवािे कचत्र हैं ।

अूंतमैंथुन ध्यान िी प्रकक्रया है । और इसकिए िकहमैं धुन और अूंतमैंथुन में एि कवरोध खयाि में आ र्या।
और वह कवरोध इसीकिए खयाि में आ र्या कि जो भी अूंतमैंथुन में प्रवेश िरे र्ा उसिा िाहर िे जर्त से य न
िा सारा सूं िूंध कवक्तच्छन्न हो जाएर्ा। स्त्री जि अपने पहिे शरीर से दू सरे शरीर से कमिेर्ी.. .तो यह भी समझ िेने
जैसा है कि जि स्त्री अपने पहिे शरीर से दू सरे शरीर से कमिेर्ी, तो जो यूकनट िनेर्ा दोनोूं िे कमिने पर वह
किर स्त्रैण होर्ा—पूरा यूकनट; और पुरुष िा पहिा शरीर जि दू सरे शरीर से कमिेर्ा तो जो इिाई िनेर्ी वह
किर पुरुष िी होर्ी—पूरा शरीर। क्ोूंकि जो प्रथम है वह कद्वतीय िो आत्मसात िर िेता है । जो प्रथम है वह
कद्वतीय िो आत्मसात िर िेता है ; दू सरा उसमें समाकवष्ट हो जाता है ।

िेकिन अि ये स्त्री और पुरुष भी िहुत दू सरे अथों में हैं ; उस अथों में नही ूं जैसा कि हम िाहर स्त्री—
पुरुष िो दे खते हैं । क्ोूंकि िाहर जो पुरुष है वह अधू रा है , इसकिए सदा अतृ प्त है ; िाहर जो स्त्री है वह अधू री
है , इसकिए सदा अतृ प्त है ।

अर्र हम जै कवि कविास िो खोजने जाएूं तो यह पता चिेर्ा कि जो प्राथकमि प्राणी हैं जर्त में , उनमें
स्त्री और पुरुष िे शरीर अिर्—अिर् नही ूं हैं । जैसे अमीिा है , जो कि प्राथकमि जीव है । अमीिा िे शरीर में
दोनोूं एि साथ म जूद हैं स्त्री और पुरुष। उसिा आधा कहस्सा पु रुष िा है , आधा स्त्री िा। इसकिए अमीिा से
तृ प्त प्राणी खोजना िहुत िकठन है । उसमें िोई अतृ क्तप्त नही ूं है । उसमें कडसिटें ट जैसी चीज पै दा नही ूं होती।
इसकिए वह कविास भी नही ूं िर पाया; वह अमीिा अमीिा ही िना हुआ है । तो किििुि जो प्राथकमि िकड़याूं हैं
िायोिाकजिि कविास िी, वहाूं भी शरीर दो नही ूं हैं , वहाूं एि ही शरीर है और दोनोूं कहस्से एि ही शरीर में
समाकवष्ट हैं ।
आत्मरजत से पूणओ स्त्रीत्व और पूणओ परुषत्व प्राप्त:

स्त्री िा पहिा शरीर जि दू सरे से कमिेर्ा तो किर एि नये अथों में स्त्री—कजसिो हम पूणग स्त्री िहें —
पैदा होर्ी। और पूणग स्त्री िे व्यक्तक्तत्व िा हमें िोई अूंदाज नही ,ूं क्ोूंकि हम कजस स्त्री िो भी जानते हैं वे सभी
अपूणग हैं ; पूणग पुरुष िा भी हमें िोई अूंदाज नही ूं है , क्ोूंकि कजतने पुरुष हम जानते हैं वे सि अपू णग हैं , वे सि
आधे —आधे हैं । जैसे ही यह इिाई पूरी होर्ी, एि परम तृ क्तप्त इसमें प्रवेश िर जाएर्ी—कजसमें असूं तोष जैसी
चीज क्षीण होर्ी, कवदा हो जाएर्ी।

यह जो पूणग पुरुष होर्ा या पूणग स्त्री होर्ी, पहिे और दू सरे शरीर िे कमिने से , अि इनिे किए िाहर से
तो िोई भी सूं िूंध जोड़ना मुक्तिि हो जाएर्ा। इनिे किए िाहर से सूं िूंध जोड़ना किििुि मुक्तिि हो
जाएर्ा, क्ोूंकि िाहर अधू रे पुरुष और अधू री क्तस्त्रयाूं होूंर्ी कजनसे इनिा िोई तािमेि नही ूं िैठ सिता। िेकिन
अर्र एि पूणग पुरुष, भीतर कजसिे दोनोूं शरीर कमि र्ए होूं, और एि स्त्री, कजसिे दोनोूं शरीर कमि र्ए हैं —
इनिे िीच सूं िूंध हो सिता है ।

पूणओ परुष और पूणओ स्त्री के बीच बजहसओ भोग का ताां जत्रक प्रयोग:

और तूं त्र ने इसी सूं िूंध िे किए िड़े प्रयोर् किए। इसकिए तूं त्र िहुत परे शानी में पड़ा और िहुत िदनाम
भी हुआ। क्ोूंकि हम नही ूं समझ सिे कि वे क्ा िर रहे हैं । हमारी समझ िे िाहर था। हमारी समझ िे िाहर
होना किििुि स्वाभाकवि था। क्ोूंकि अर्र एि स्त्री और एि पुरुष, तूं त्र िी दशा में, जि कि उनिे भीतर िे
दोनोूं शरीर एि हो र्ए हैं , सूं भोर् िर रहे हैं , तो हमारे किए वह सूं भोर् ही है । और हम सोच भी नही ूं सिते कि
यह क्ा हो रहा है ।

िेकिन यह िहुत ही और घटना थी। और यह घटना िड़ी सहयोर्ी थी साधि िे किए। इसिे िड़े
िीमती अथग थे। क्ोूंकि एि पूणग पुरुष, एि पूणग स्त्री िा िाहर जो कमिन था, वह एि नये कमिन िा सू त्रपात
था, एि नये कमिन िी यात्रा थी। क्ोूंकि अभी एि तरह से यात्रा खत्म हो र्ई— अधू रे पुरुष, अधू री स्त्री पूरे हो
र्ए; एि जर्ह पर जािर चीज खड़ी हो र्ई और पठार आ जाएर्ा। क्ोूंकि अि हमें और िोई आिाूं क्षा िा
खयाि नही ूं है ।

अर्र एि पूणग पुरुष और पूणग स्त्री इस अथों में कमिते , तो उनिे भीतर पहिी दिा अधू रे से िाहर एि
पूणग स्त्री और पूणग पुरुष िे कमिन िा क्ा रस और आनूंद हो सिता है , वह उनिे खयाि में आता। और उनिो
दू सरी िात भी खयाि में आती कि अर्र ऐसा ही पूणग कमिन भीतर घकटत हो सिे, ति तो अपार आनूंद िी वषाग
हो जाएर्ी! क्ोूंकि आधे पुरुष ने आधी स्त्री िो भोर्ा था। किर उसने अपने भीतर िी आधी स्त्री से अपने िो
जोड़ा, ति उसने पाया कि अपार आनूंद कमिा। किर पूरे पुरुष ने पूरी स्त्री िो भोर्ा और ति स्वभावत: किििुि
तिगसूं र्त उसिो खयाि आएर्ा कि अर्र मेरे भीतर भी एि पूणग स्त्री मुझे कमि सिे! तो अपने भीतर वह पूणग
स्त्री िी खोज में तीसरे और च थे शरीर िा कमिन घकटत होता है ।

उनके बीच सां भोग में ऊजाओ का स्खिन नही ां:


तीसरा शरीर पुरुष िा किर पुरुष है और च था स्त्री है ; स्त्री िा तीसरा शरीर स्त्री िा है और च था
शरीर पुरुष िा है । तूं त्र ने इस व्यवस्था िो कि िही ूं आदमी रुि न जाए एि शरीर िी पूणगता पर.. .क्ोूंकि
िहुत तरह िी पूणगताएूं हैं । अपूणगता िभी नही ूं रोिती, िेकिन िहुत तरह िी पूणगताएूं हैं जो किसी आर्े िी
पूणगता िी दृकष्ट से अपूणग होूंर्ी, िेकिन पीछे िी अपूणगता िी दृकष्ट से िड़ी पूरी मािूम पड़ती हैं । पीछे िी अपूणगता
कमट र्ई है , आर्े िी पूणगता िा हमें , और िड़ी पूणगता िा िोई पता नही ूं है —रुिाव हो सिता है । इसकिए तूं त्र
ने िहुत तरह िी प्रकक्रयाएूं कविकसत िी, जो िड़ी है रानी िी थी—
ूं और कजनिो हम समझ भी नही ूं सिते हैं
एिदम से । जैसे अर्र पूणग पुरुष और पूणग स्त्री िा सूं भोर् होर्ा, तो उसमें किसी िी ऊजाग िा पात नही ूं होर्ा।
वह हो नही ूं सिता; क्ोूंकि वे दोनोूं अपने भीतर िूंप्लीट सकिगि हैं ; उनसे िोई ऊजाग िा स्खिन नही ूं होनेवािा।
िेकिन किना ऊजाग —स्खिन िे पहिी दिा सु ख िा अनु भव होर्ा।

और मजे िी िात यह है कि जि भी ऊजाग —स्खिन से सु ख िा अनु भव होर्ा, तो पीछे दु ख िा अनु भव


अकनवायग है ;क्ोूंकि ऊजाग —स्खिन से जो कवषाद, और जो फ्रस्टर े शन, और जो दु ख, और जो पीड़ा, और जो सूं ताप
पैदा होर्ा, वह होर्ा। सु ख तो क्षण भर में चिा जाएर्ा, िेकिन जो ऊजाग खोई है , उसिो पूरा िरने में च िास
घूंटे, अड़तािीस घूंटे, और ज्यादा वक्त भी िर् सिता है । उतनी दे र ति कचि उस अभाव िे प्रकत दु खी रहे र्ा।

अर्र किना ऊजाग —स्खिन िे सूं भोर् हो सिे...... .इसिे किए तूं त्र ने िड़ी आश्चयगजनि कदशा में िाम
किया, और िड़ी कहितवर कदशा में िाम किया। उस पर तो पीछे िभी अिर् िात िरनी पड़े , क्ोूंकि उनिा
सारा प्रकक्रया िा जाि है पूरा िा पूरा। और वह जाि चूूंकि टू ट र्या, और वह पूरा िा पूरा कवज्ञान धीरे — धीरे
इसोटे ररि हो र्या, किर उसिो सामने िात िरना मुक्तिि हो र्ई, क्ोूंकि हमारी नै कति मान्यताओूं ने हमें िड़ी
िकठनाई में डाि कदया, और हमारे नासमझ समझदारोूं नें —कजनिो कि िुछ भी पता नही ूं होता, िेकिन जो िुछ
भी िहने में समथग होते हैं —उन्ोूंने िहुत सी िीमती िातोूं िो कजूंदा रहना मुक्तिि िर कदया। उनिो कवदा िर
दे ना पड़ा, या वे छु प र्ईूं और अूंडरग्राउूं ड हो र्ईूं, और भीतर छु पिर चिने िर्ी,ूं िेकिन उनिी धाराएूं जीवन में
स्पष्ट नही ूं रह र्ईूं।

दोनोां की जनकटता से दोनोां की शब्धि का बिना:

यह पूणग स्त्री और पुरुष िे सूं भोर् िी सूं भावना..... और यह सूं भोर् िहुत और तरह िा है , इसमें ऊजाग
िा स्खिन नही ूं है , िक्तम्ऻ एि नई घटना घटती है कजसिो कि इशारे में िहा जा सिता है ।

अधू री स्त्री और अधू रे पुरुष िा जि भी कमिन होर्ा, तो दोनोूं िी शक्तक्त क्षीण होर्ी, कमिने िे पहिे
उनिी कजतनी शक्तक्त थी, कमिने िे िाद उन दोनोूं िी शक्तक्त िम होर्ी। और पूरे पुरुष और पूरी स्त्री िे कमिन
में इससे उिटी घटना घटे र्ी कमिने िे पहिे कजतनी उनिी शक्तक्त थी, कमिने िे िाद दोनोूं िी ज्यादा होर्ी।
ठीि इससे उिटी घटना घटे र्ी दोनोूं िे पास ज्यादा शक्तक्त होर्ी। यह शक्तक्त उन्ी ूं िे भीतर पड़ी है जो कि दू सरे
िे कनिट आने से सजर् और जार्रूि और सकक्रय हो जाएर्ी। उनिी ही शक्तक्त है । पहिे में भी उनिी ही
शक्तक्त दू सरे िे कनिट आने से स्खकित होती थी; दू सरी घटना में उनिी ही शक्तक्त दू सरे िे कनिट आने से सकक्रय
और सजर् हो जाएर्ी, और जो उनिे भीतर कछपा है वह पूरा िा पूरा उनिो प्रिट होर्ा। इस घटना से इूं कर्त
कमिेर्ा कि भीतर भी क्ा पूणग पुरुष और पूणग स्त्री िा कमिन हो सिता है ? क्ोूंकि पहिा कमिन भीतर भी अधू रे
पुरुष और अधू री स्त्री िा कमिन है ।
तीसरे और चौथे शरीर के अांतमैभन से द्वां द्व—मब्धि:

इसकिए दू सरे यूकनट पर िाम शु रू होता है कि तीसरे और च थे शरीर िो..... .तीसरा और च था शरीर
जि कमिे र्ा, तो तीसरा शरीर पुरुष िा किर पुरुष है और च था शरीर किर स्त्री है , स्त्री िा तीसरा शरीर स्त्री
है , च था पुरुष है । इन दोनोूं िे कमिन पर पुरुष िे भीतर पुरुष ही िचेर्ा—किर तीसरा शरीर प्रमुख हो
जाएर्ा— और स्त्री िे भीतर किर स्त्री िचे र्ी। और ये दो पूणग क्तस्त्रयाूं किर िीन हो जाएूं र्ी एि में , क्ोूंकि इनिे
िीच अि िोई सीमा—रे खा नही ूं रह जाएर्ी जहाूं से ये अिर् हो सिें। इनिे अिर् होने िे किए िीच—िीच में
पुरुष िे शरीर िा होना जरूरी था—या पुरुष िे िीच—िीच में स्त्री िा शरीर होना जरूरी था, कजनसे यह
िासिा होता था। पहिे और दू सरे शरीर िी कमिी हुई स्त्री, और तीसरे —च थे शरीर िी कमिी हुई स्त्री—दोनोूं
िे कमिने िी घटना िे साथ ही एि हो जाएूं र्ी। और ति दोहरे चरण में स्त्री िे पास और भी पूणग स्त्रैणता पैदा
होर्ी। इससे िड़ी स्त्रैणता नही ूं सूं भव है , क्ोूंकि इसिे िाद किर िोई स्त्रैणता िी सीमा नही ूं। िस यह पूरी स्त्रैण
क्तस्थकत होर्ी, यह पूणग स्त्री होर्ी। यह पूणग स्त्री होर्ी कजसिो अि पूणग से भी कमिने िी िोई आिाूं क्षा नही ूं रह
जाएर्ी।

पहिी पूणगता में भी दू सरे पूणग से कमिने िा रस था और उसिे कमिने से शक्तक्त जर्ती थी, अि वह भी
िात समाप्त हो जाएर्ी। अि इसिो परमात्मा भी कमिता हो तो उस अथग में कमिने िा िोई अथग नही ूं रह
जाएर्ा। न पुरुष िो। पुरुष िे भीतर भी दो पुरुष कमििर पूणग हो जाएूं र्े। चार शरीरोूं िो कमििर पु रुष िे पास
पुरुष िचे र्ा, स्त्री िे पास स्त्री िचे र्ी। और इसिे िाद िोई पुरुष—स्त्री नही ूं है पाूं चवें शरीर से ।

इसकिए स्त्री और पुरुष िे इस च थे शरीर िे िाद जो घटना घटे र्ी, वह दोनोूं िी किर कभन्न होर्ी—कभन्न
होनेवािी है । घटना एि ही होर्ी, िेकिन दोनोूं िी समझ कभन्न होर्ी। पुरुष अि भी आक्रामि होर्ा, स्त्री अि भी
समपगि होर्ी। स्त्री सरें डर िर दे र्ी; स्त्री अपने िो, च थे शरीर िो पूरा पा िेने िे िाद सूं पूणग रूप से छोड़
सिेर्ी; अि उसिे छोड़ने में इूं च भर िी भी िमी नही ूं रहे र्ी। और यह जो छोड़ना है , यह जो िेट र्ो है , यह जो
समपगण है, यह उसे आर्े िी यात्रा पर पहुूं चा दे र्ा पाूं चवें शरीर में—जहाूं किर स्त्री स्त्री नही ूं रह जाती। क्ोूंकि
स्त्री होने िे किए भी अपने िो थोड़ा सा िचाना जरूरी था।

असि में हम जो हैं , वह अपने िो थोड़ा सा िचािर हैं । अर्र हम अपने िो पूरा छोड़ सिें तो हम
तत्काि और हो जाएूं र्े , जो हम िभी भी नही ूं थे। हमारे होने में हमारा िचाव है पूरे वक्त। अर्र एि स्त्री एि
साधारण पुरुष िे किए भी पूरा छोड़ सिे , तो उसिे भीतर एि कक्रस्टिाइजेशन घकटत हो जाएर्ा; वह च थे
शरीर िो पार िर जाएर्ी।

सती शब्द का गह्य अथओ:

इसकिए िई िार क्तस्त्रयोूं ने साधारण पुरुष िे प्रेम में भी च था शरीर पार िर किया। कजनिो हम सती
िहते हैं , उनिा िोई और दू सरा मतिि नही ूं है —इसोटे ररि अथों में। उनिा और िोई मतिि नही ूं। उनिा
यह मतिि नही ूं है कि कजनिी दृकष्ट दू सरे पुरुष पर नही ूं उठती। सती िा मतिि यह है कि कजनिे पास दू सरोूं
पर दृकष्ट उठाने िो िची नही ूं। सती िा मतिि यह नही ूं है कि कजनिी दृकष्ट दू सरे पुरुष पर नही ूं उठती है । सती
िा मतिि यह है कि कजनिे पास अि स्त्री ही नही ूं िची जो दू सरे पर दृकष्ट उठाए।
अर्र साधारण पुरुष िे प्रेम में भी िोई स्त्री इतनी समकपगत हो जाए, तो उसिो यह यात्रा िरने िी
जरूरत नही ूं, उसिे चार शरीर इिट्ठे होिर पाूं चवें िे द्वार पर वह खड़ी हो जाएर्ी।

इसी वजह से , कजन्ोूंने यह अनु भव किया था, उन्ोूंने िहा कि पकत परमात्मा है । उनिे पकत िो
परमात्मा िहने िा मतिि पुरुष िो िोई परमात्मा िनाने िा नही ूं था, िेकिन उनिे किए पकत िे माध्यम से ही
पाूं चवें िा दरवाजा खु ि र्या था। इसकिए उनिे िहने में िोई भूि न थी; उनिा िहना किििुि उकचत था।
क्ोूंकि जो साधि िो िड़ी मेहनत से उपिि होता है , वह उनिो प्रेम से ही उपिि हो र्या था; और एि
व्यक्तक्त िे प्रेम में ही वे उस जर्ह पहुूं च र्ई थी ूं।

सीता जैसी पूणओ स्त्री की ते जब्धस्वता:

अि जैसे सीता है । सीता िो हम उन क्तस्त्रयोूं में कर्नते हैं कजनिो कि सती िहा जा सिे। अि सीता िा
समपगण िहुत अनूठा है ; समपगण िी दृकष्ट से पूणग है ; और टोटि सरें डर है । रावण सीता िो िे जािर भी सीता िा
स्पशग भी नही ूं िर सिा। असि में , रावण अधू रा पु रुष है और सीता पूरी स्त्री है । पूरी स्त्री िी ते जक्तस्वता इतनी है
कि अधू रा पुरुष उसे छू भी नही ूं सिता उसिी तरि आूं ख उठािर भी जोर से नही ूं दे ख सिता।

वह तो अधू री स्त्री िो ही दे खा जा सिता है । और जि एि पुरुष एि स्त्री िो छूता है , तो कसिग पुरुष


कजिेवार नही ूं होता, स्त्री िा अधू रा होना अकनवायग रूप से भार्ीदार होता है । और जि िोई रास्ते पर किसी स्त्री
िो धक्का दे ता है , तो धक्का दे नेवािा आधा ही कजिेवार होता है , धक्का िुिानेवािी स्त्री भी आधी कजिेवार
होती है , वह धक्का िु िाती है , कनमूंत्रण दे ती है । चूूंकि वह पैकसव है , इसकिए उसिा हमिा हमें कदखाई नही ूं
पड़ता। पुरुष चूूंकि एक्तक्ङव है , इसकिए उसिा हमिा कदखाई पड़ता है । कदखाई पड़ता है कि इसने धक्का
मारा; यह हमें कदखाई नही ूं पड़ता कि किसी ने धक्का िुिाया।

रावण सीता िो आूं ख उठािर भी नही ूं दे ख सिा। और सीता िे किए रावण िा िोई अथग नही ूं था।
िेकिन, जीत जाने पर राम ने सीता िी परीक्षा िे नी चाही, अकग्न—परीक्षा िे नी चाही। सीता ने उसिो भी इनिार
नही ूं किया। अर्र वह इनिार भी िर दे ती तो सती िी है कसयत खो जाती। सीता िह सिती थी कि आप भी
अिेिे थे , और परीक्षा मेरी अिेिी ही क्ोूं हो, हम दोनोूं ही अकग्न—परीक्षा से र्ु जर जाएूं ! क्ोूंकि अर्र मैं अिेिी
थी किसी दू सरे पुरुष िे पास, तो आप भी अिेिे थे और मुझे पता नही ूं कि ि न क्तस्त्रयाूं आपिे पास रही होूं। तो
हम दोनोूं ही अकग्न—परीक्षा से र्ुजर जाएूं !

िेकिन सीता िे मन में यह सवाि ही नही ूं उठा; सीता अकग्न—परीक्षा से र्ुजर र्ई। अर्र उसने एि िार
भी सवाि उठाया होता तो सीता सती िी है कसयत से खो जाती—समपगण पूरा नही ूं था, इूं च भर िासिा उसने
रखा था। और अर्र सीता एि िार भी सवाि उठा िेती और किर अकग्न से र्ुजरती, तो जि जाती; किर नही ूं िच
सिती थी अकग्न से । िेकिन समपगण पूरा था, दू सरा िोई पुरुष नही ूं था सीता िे किए।

इसकिए यह हमें चमत्कार मािू म पड़ता है कि वह आर् से र्ुजरी और जिी नही ूं! िेकिन िोई भी
व्यक्तक्त, जो अूंतर— समाकहत है ...... साधारण व्यक्तक्त भी किसी अूंतर—समाकहत क्तस्थकत में आर् पर से कनििे तो
नही ूं जिेर्ा। कहप्नोकसस िी हाित में एि साधारण से आदमी िो िह कदया जाए कि अि तु म आर् पर नही ूं
जिोर्े , तो वह आर् पर से कनिि जाएर्ा और नही ूं जिेर्ा।
जबना जिे आग पर से गजर जाने का राज:

साधारण सा ििीर आर् पर से र्ुजर सिता है एि कवशे ष भावदशा में , जि वह भीतर उसिा सकिगि
पूरा होता है । सकिगि टू टता है सूं देह से । अर्र उसे एि िार भी यह खयाि आ जाए कि िही ूं मैं जि न जाऊूं , तो
भीतर िा वतुग ि टू ट र्या,अि यह जि जाएर्ा। अर्र भीतर िा वतुग ि न टू टे तो दो ििीर अर्र िूद रहे होूं िही ूं
आर् पर, और आप भी पीछे खड़े होूं,और दो िो िूदते दे खिर आपिो िर्े कि जि दो िूद रहे हैं और नही ूं
जिते तो मैं क्ोूं जिूूंर्ा, और आप भी िूद जाएूं , तो आप भी नही ूं जिें र्े। पूरी ितार, भीड़ र्ुजर जाए आर्
से , नही ूं जिेर्ी। और उसिा िारण है , क्ोूंकि कजसिो जरा भी शि होर्ा, वह उतरे र्ा नही ूं; वह िाहर खड़ा रह
जाएर्ा; वह िहे र्ा, पता नही ूं मैं न जि जाऊूं। िेकिन कजसिो खयाि आ र्या है , जो दे ख रहा है कि िोई नही ूं
जि रहा है तो मैं क्ोूं जिूूंर्ा, वह र्ुजर जाएर्ा, उसिो िोई आर् नही ूं छु एर्ी।

अर्र हमारे भीतर िा वतुग ि पूरा है तो हमारे भीतर आर् ति िे प्रवेश िी र्ुूंजाइश नही ूं है ।

तो सीता िो आर् न छु ई हो, इसमें िोई िकठनाई नही ूं। आर् से र्ुजरने िे िाद भी जि राम उसिो
छु डूवा कदए, ति भी वह यह नही ूं िह रही है कि मे री परीक्षा भी हो र्ई, अकग्न—परीक्षा में भी सही उतर र्ई, किर
भी मुझे छोडा जा रहा है ! नही,ूं उसिी तरि से समपगण पूरा है । इसकिए छोड़ने िी िोई िात ही नही ूं
उठती, इसकिए सवाि िा िोई सवाि नही ूं है ।

पूणओ समपओण से चारोां शरीरोां का अजतक्मण:

पूरी स्त्री अर्र एि व्यक्तक्त िे प्रेम में भी पूरी हो जाए, तो वे जो सीकढ़याूं हैं साधना िी उनमें चार िो तो
छिाूं र् िर्ा जाएर्ी। पुरुष िे किए यह सूं भावना िकठन है । पुरुष िे किए यह सूं भावना िहुत िकठन है , क्ोूंकि
समपगि कचि नही ूं है उसिे पास। यह िड़े मजे िी िात है कि आक्रमण भी पूरा हो सिता है , िेकिन आक्रमण
पूरा होने में सदा और िहुत सी चीजें कजिेवार होूंर्ी, आप अिेिे नही ूं। िे किन समपगण िे पूरे होने में आप
अिेिे कजिेवार होूंर्े, और िहुत सी चीजोूं िा िोई सवाि नही ूं है । अर्र मुझे समपगण िरना है किसी िे प्रकत
तो मैं उससे किना पूछे पूरा िर सिता हूं । िेकिन अर्र आक्रमण िरना है किसी िे प्रकत, ति तो आक्रमण िा
अूंकतम जो पररणाम होर्ा उसमें मैं अिेिा नही,ूं वह दू सरा व्यक्तक्त भी कजिे वार होर्ा।

इसकिए जहाूं शक्तक्तपात िी चचाग मैंने िी, तो वहाूं ऐसा प्रतीत हुआ होर्ा कि स्त्री में थोड़ी सी िमी
है , उसिो थोड़ी सी िकठनाई है । पर मैंने िहा था, िपनसे शन िे कनयम हैं जीवन में। वह िमी उसिे समपगण
िी शक्तक्त से पूरी हो जाती है । पुरुष िभी भी किसी िो कितना ही प्रेम िरे , पूरा नही ूं िर पाता। उसिे न िरने
िा िारण है । वह आक्रामि है , समपगि नही ूं है । और आक्रमण िा पूरा होना असूं भव मामिा है । आक्रमण भी
तभी पूरा हो सिता है जि िोई पूरा समपगण िर दे , तो उस पर पूरा आक्रमण हो सिता है , अन्यथा वह नही ूं हो
सिता।

तो स्त्री िे चार शरीर पूरे हो जाएूं , एि हो जाए इिाई, तो पाूं चवें पर िड़ी सरिता से वह समपगण िर
पाती है । और इस च थी अवस्था में , जि स्त्री इन दोहरी सीकढ़योूं िो पार िरिे पूरी होती है , ति दु कनया िी िोई
शक्तक्त उसिो रोि नही ूं सिती,और उसिे किए कसवाय परमात्मा िे किर िोई िचता नही ूं। असि में , चार
शरीरोूं में रहते हुए कजसिो उसने प्रेम किया था वह भी परमात्मा हो र्या था। और अि तो जो भी है वह परमात्मा
है ।

मीरा िे जीवन में िहुत मीठी घटना है कि वह र्ई है वृूंदावन। और वहाूं उस िड़े मूंकदर में िृष्ण िे जो
पुजारी है , वह क्तस्त्रयोूं िा दशग न नही ूं िरता है , क्तस्त्रयोूं िो दे खता नही ूं है । इसकिए उस मूंकदर में क्तस्त्रयोूं िे किए
प्रवेश कनकषद्ध है । िेकिन मीरा तो अपना मूंजीरा िजाती हुई भीतर प्रवेश ही िर र्ई है । उसे िोर्ोूं ने रोिा और
िहा कि स्त्री िा जाना भीतर मना है , क्ोूंकि वह जो पुरोकहत है मूंकदर िा, वह स्त्री नही ूं दे खता है । तो मीरा ने
िहा, िड़ी अदभुत घटना है ! मैं तो सोचती थी कि एि ही पु रुष है जर्त में , िृष्ण! दू सरा पुरुष ि न है , उसे मैं
जरूरी दे खना चाहती हूं । वह मुझे भिा दे खने में डरता हो, िेकिन मैं उसे दे खना चाहती हूं —दू सरा पुरुष ि न
है ? दू सरा पुरुष भी है ?

उस पुरोकहत िो खिर पहुूं चाई र्ई कि एि स्त्री दरवाजे पर प्रवेश िर र्ई है और वह िहती है कि मैं
उस दू सरे पुरुष िो दे खना चाहती हूं । क्ोूंकि मैं तो दे खती हूं कि एि ही पुरुष है , िृष्ण! वह दू सरा पु रुष िहाूं
है ? उसिे मैं दशग न िरना चाहती हूं । वह जो मूंकदर िा पुरोकहत था, पुजारी था, वह आया और भार्ा और मीरा िे
पैरोूं में कर्रा। और उसने िहा कि कजसिे किए एि ही पुरुष िचा है , अि उसिो स्त्री िहना िे मानी है ; अि
उसिा िोई मतिि ही नही ूं रहा; अि िात ही खत्म हो र्ई। और मैं ते रे पैर छूने आया हूं । और भूि हो र्ई
मुझसे , मैंने साधारण क्तस्त्रयोूं िो दे खिर अपने िो पुरुष समझ रखा था, िेकिन ते री जैसी स्त्री िे किए तो मेरे
पुरुष होने िा िोई अथग नही ूं है ।

समपओण भब्धि बन जाती है और आक्मण योग:

पुरुष अर्र च थे शरीर पर पहुूं चेर्ा, तो वह पूणग पुरुष हो जाएर्ा—दोहरी सीकढ़याूं पार िरिे पूणग पुरुष
हो जाएर्ा। उस कदन िे िाद उसिे किए िोई स्त्री नही ूं है ; उस कदन िे िाद उसिे किए स्त्री िा िोई अथग नही ूं
है । अि वह कसिग आक्रमण िी ऊजाग है । जैसे स्त्री च थे शरीर िो पार िरिे कसिग समपगण िी ऊजाग है , कसिग
शक्तक्त जो समकपगत हो सिती है , और पुरुष कसिग शक्तक्त है जो आक्रामि हो सिती है । अि कसिग शक्तक्तयाूं िच
र्ई हैं , अि इनिा स्त्री—पुरुष नाम नही ूं है , अि ये कसिग ऊजाग एूं हैं ।

पुरुष िा जो आक्रमण है , वही योर् िी िहुत सी प्रकक्रयाओूं में कविकसत हुआ; स्त्री िा जो समपगण
है , वही भक्तक्त िी िहुत सी प्रकक्रयाओूं में कविकसत हुआ। समपगण भक्तक्त िन जाता है , आक्रमण योर् िन जाता
है । िेकिन िात एि ही है ; उन दोनोूं में िुछ भेद नही ूं है अि। यह कसिग स्त्री और पु रुष िी तरि से भेद है । अि
िूूंद सार्र में कर्रती है कि सार्र िूूंद में कर्रता है ,इससे अूंकतम पररणाम में िोई भेद नही ूं है । पुरुष िी जो िूूं द
है , वह सार्र में कर्रे र्ी; वह छिाूं र् िर्ाएर्ा और सार्र में कर्र जाएर्ा। स्त्री िी िूूंद जो है , वह खाई िन जाएर्ी
और पूरे सार्र िो अपने में पुिार िे र्ी; वह समकपगत हो जाएर्ी और पूरा सार्र उसमें कर्रे र्ा। अि भी वह
कनर्ेकटव होर्ी, कनर्े कटकवटी होर्ी उसिी पूरी िी पूरी। वह र्भग रह जाएर्ी और सारे सार्र िो अपने में िे
िेर्ी; समस्त कवश्व िी ऊजाग उसमें प्रवेश िर जाएर्ी। पुरुष अि भी र्भग नही ूं िन सिता; पुरुष अि भी वीयग ही
होर्ा— और एि छिाूं र् िर्ाएर्ा और सार्र में डूि जाएर्ा।

पाां चिें शरीर से स्त्री—परुष का भे द समाप्त:


िहुत र्हरे में उनिे व्यक्तक्तत्व इस सीमा ति, आक्तखरी सीमा ति पीछा िरें र्े —च थे शरीर िे आक्तखरी
ति। पाूं चवें शरीर िी दु कनया अिर् हो जाएर्ी; ति आत्मा ही शे ष रह जाती है । और आत्मा िा िोई िैंकर्ि भेद
नही ूं है । इसकिए उसिे िाद यात्रा में िोई ििग नही ूं पड़ता। च थे ति ििग पड़े र्ा और ििग ऐसा ही होर्ा कि
िूूंद सार्र में कर्रे र्ी कि सार्र िूूंद में कर्रे र्ा। अूंकतम पररणाम एि ही हो जाएर्ा—िूूंद सार्र में कर्रे कि सार्र
िूूंद में कर्रे , िोई ििग पड़ने वािा नही ूं है । िे किन च थे शरीर िी आक्तखरी सीमा ति ििग रहे र्ा। अर्र स्त्री ने
छिाूं र् िर्ाना चाही तो वह मु क्तिि में पड़ जाएर्ी और अर्र पुरुष ने समपगण िरना चाहा तो वह मुक्तिि में
पड़ जाएर्ा। िहुत सी क्तस्त्रयाूं छिाूं र् िर्ाने िी मुक्तिि में पड़ती हैं , िहुत से पुरुष समपगण िरने िी मुक्तिि में
पड़ जाते हैं । उस भूि से सावधान रहना जरूरी है ।

िांबे सां भोग में स्त्री और परुष के बीच जिद् यत—ििय:

प्रश्न: ओशो आपने एक प्रिचन में कहा है जक िांबे सां भोग में स्त्री और परुष के बीच एक
प्रकाश— ििय जनजमओत होता है । यह क्ा है कैसे जनजमओत होता है ? और इसका क्ा उपयोग है? प्रथम चार
शरीरोां की जिद् यतीय जिजभन्नता के आधार पर इन प्रश्नोां का उत्तर दे ने की कृपा करें । अकेिे ध्यान में
उपरोि घटना का क्ा रूप होगा?

हाूं , जैसा मैंने िहा कि स्त्री आधी है, पुरुष आधा है; दोनोूं ऊजागएूं हैं, दोनोूं कवदि् युत हैं; स्त्री कनर्ेकटव
पोि है , पुरुष पाकजकटव पोि है । और जहाूं िही ूं भी कवदि् युत िी ऋणात्मि और धनात्मि ऊजाग एूं एि वतुग ि
िनाती हैं , वहाूं प्रिाश—पुूंज पैदा हो जाता है । प्रिाश—पुूंज ऐसा हो सिता है जो कदखाई न पड़े ; ऐसा हो सिता
है जो िभी कदखाई पड़ जाए; ऐसा हो सिता है जो किसी िो कदखाई पड़े , किसी िो कदखाई न पड़े । िेकिन
वतुग ि कनकमगत होता है । पर वतुग ि...... .पु रुष और स्त्री िा कमिन इतना क्षकणि है कि वतुग ि कनकमगत हो ही नही ूं पाता
और टू ट जाता है ।

इसकिए सूं भोर् िो िूंिाने िी कक्रयाएूं हैं , और सूं भोर् िो िूंिाने िी पद्धकतयाूं हैं । अर्र आधे घूंटे िे पार
सूं भोर् चिा जाए तो विय, वह कवदि् युत िा वतुग ि, प्रिाश—पुूंज, स्त्री और पुरुष िो घेरे हुए कदखाई पड़ सिता
है । उसिे कचत्र भी किए र्ए हैं । और िुछ आकदवासी ि में अि भी इतने िूं िे सूं भोर् में र्ुजर सिती हैं । और
इसकिए उनिे वतुग ि िन जाते हैं ।

तनािोां के बिने पर सां भोग की अिजध का घटना:

साधारणत: सभ्य समाज में वतुग ि खोजना िहुत मुक्तिि है ; क्ोूंकि कजतना तनावग्रस्त कचि होर्ा, सूंभोर्
उतना ही क्षकणि होर्ा। असि में , कजतना टें स माइूं ड होर्ा, उतना जल्दी स्खिन होर्ा उसिा; कजतना तनाव से
भरा कचि है , उतना स्खिन त्वररत होर्ा। क्ोूंकि तनाव से भरा कचि असि में सूं भोर् नही ूं खोज रहा है , ररिीज
खोज रहा है । पकश्चम में से क्स िा जो उपयोर् है , वह छी ूंि से ज्यादा नही ूं रह र्या—स्व तनाव है जो किि जाता
है ; एि िोझ है कसर पर जो कनिि जाता है । ऊजाग िम हो जाती है तो आप कशकथि हो जाते हैं । ररिैक्स होना
दू सरी िात है , कशकथि होना दू सरी िात है । ररिै क्स होने िा मतिि है , कवश्राम िा मतिि है ? ऊजाग भीतर है
और आप कवश्राम में हैं । और कशकथि होने िा मतिि है ऊजाग किि र्ई और अि आप कनढाि पड़े रह र्ए
हैं ; अि ऊजाग नही ूं है तो आप कशकथि हो र्ए हैं , इसकिए सोच रहे हैं कि कवश्राम हो रहा है ।

तो पकश्चम में कजतना तनाव िढ़ा है , उतना से क्स जो है वह एि ररिीज, एि तनाव से छु टिारा, एि
भीतरी शक्तक्त िे दिाव से मुक्तक्त , ऐसी हाित हो र्ई है । इसकिए पकश्चम में ऐसे कवचारि हैं जो से क्स िो छीि
ूं से
ज्यादा मूल्य दे ने िो तै यार नही ूं हैं । जैसे नाि में एि खु जिाहट हुई है और छी ूंि दी है तो मन हििा हो र्या
है , िस इससे ज्यादा मूल्य दे ने िो पकश्चम में िोर् राजी नही ूं हैं िुछ। और उनिा िहना ठीि भी है , क्ोूंकि वे जो
िर रहे हैं , वह इतना ही है , वह इससे ज्यादा मूल्य िा है भी नही ूं। और पूरि में भी िोर् उनसे धीरे — धीरे राजी
होते चिे जा रहे हैं, क्ोूंकि पूरि भी तनावग्रस्त होता चिा जा रहा है । िही ूं किसी दू र किसी पहाड़—पवगत िी
िूंदरा में िोई व्यक्तक्त कमि सिता है जो तनावग्रस्त न हो, कजसिो सभ्यता ने अभी न छु आ हो और जो वहाूं जी
रहा हो जहाूं वृक्ष और प धोूं और पकियोूं और पहाड़ोूं िी दु कनया है , तो वहाूं अभी भी सूं भोर् में वह वतुग ि िनता
है । और या किर तूं त्र िी प्रकक्रयाएूं हैं कजनसे िोई भी वतुग ि िना सिता है ।

िांबे सां भोग से दीघओकािीन तृ ब्धप्त:

उस वतुग ि िे अनुभव िड़े अदभुत हैं ; क्ोूंकि जि वह वतुग ि िनता है , तभी तु म्हें ठीि अथों में यह पता
चिता है कि तु म एि हुए। स्त्री और पुरुष एि हुए, इसिा अनुभव तु म्हें वतुग ि िनने िे पहिे पता नही ूं चिता।
उसिे िनते ही मैथुन में रत दो व्यक्तक्त दो नही ूं रह जाते , उस वतुग ि िे िनते ही वे एि ही ऊजाग िे , एि ही
शक्तक्त िे प्रवाह िन जाते हैं ; िोई चीज जाती और आती और घूमती हुई मािूम पड़ने िर्ती है और दो व्यक्तक्त
कमट जाते हैं । यह वतुग ि कजस मात्रा में िने र्ा, उसी मात्रा में सूं भोर् िी आिाूं क्षा िम और दू री पर हो जाएर्ी। यह
हो सिता है कि एि दिा वतुग ि िन जाए तो वषग भर िे किए भी किर िोई इच्छा न रह जाए, िोई िामना न
रह जाए; क्ोूंकि एि तृ क्तप्त िी घटना घट जाए।

इसे ऐसे ही समझ सिते हो कि एि आदमी खाना खाए और वॉकमट िर दे , खाना खाए और उिटी िर
दे , तो िोई तृ क्तप्त तो नही ूं होर्ी! खाना खाने से तृ क्तप्त नही ूं होती, खाना पचने से तृ क्तप्त होती है । आमत र से हम
सोचते हैं —खाना खाने से तृ क्तप्त होती है । खाना खाने से िोई तृ क्तप्त नही ूं होती, तृ क्तप्त तो पचने से होती है ।

सूं भोर् िे भी दो रूप हैं एि कसिग खाना खाने िा और एि पचने िा। तो कजसे हम आमत र से सूं भोर्
िह रहे हैं , वह कसिग खाना खाना और उिटी िर दे ने जैसा है , उसमें िही ूं िुछ पच नही ूं पाता। अर्र पच जाए
तो उसिी तृ क्तप्त िूंिी और र्हरी है । और जो पचना है वह इस कवदि् युत िे वतुग ि िनने पर ही होता है । यह कसिग
सू चि है उसिा कि दोनोूं िी कचि—वृकियाूं एि— दू सरे में समाकहत और िीन हो र्ईूं; दोनोूं अि दो न रहे , एि
हो र्ए; दोनोूं अि दो शरीर ही रहे , िेकिन भीतर िहती हुई ऊजाग एि ही हो र्ई और छिाूं र् िर्ािर एि—
दू सरे में प्रवाह िरने िर्ी।

गृहस्थ के जिए गहरी काम—तृ ब्धप्त ही काम—मब्धि है :


यह जो क्तस्थकत है , यह क्तस्थकत िड़ी र्हरी तृ क्तप्त दे जाती है । यह इस अथग में मैंने िहा था। इसिा योर् िे
किए तो िहुत उपयोर् है , साधि िे किए इसिा िहुत उपयोर् है । क्ोूंकि साधि िो अर्र ऐसा मैथुन उपिि
हो सिे, तो मैथुन िी जरूरत िहुत िम हो जाती है । और कजतने कदन मैथुन िी जरूरत नही ूं होती, उतने कदन
ति उसिी अूंतयाग त्रा आसान हो जाती है । और एि दिा अूंतयाग त्रा शु रू हो जाए और भीतर िी स्त्री से सूं भोर्
होने िर्े , ति तो िाहर िी स्त्री िे िार हो जाएर्ी, िाहर िा पुरुष िे िार हो जाएर्ा। र्ृ हस्थ िे किए ब्रह्मचयग िा
जो अथग है , वह यही हो सिता है ।

आप खयाि िेते हैं ? र्ृहस्थ िे किए जो ब्रह्मचयग िा अथग है , वह यही हो सिता है कि उसिा सूं भोर्
इतना तृ क्तप्तदायी हो कि वषों िे किए िीच में ब्रह्मचयग िा क्षण छूट जाए। और एि दिा यह क्षण छूट जाए और
भीतर िी यात्रा शु रू हो जाए तो किर िाहर िी आवश्यिता ही कविीन हो जाती है । र्ृहस्थ िे किए िह रहा हूं ।

सां न्यासी को ध्यान द्वारा अांतमैंबन की उपिब्धि:

सूं न्यस्त िे किए, कजसने र्ृहस्थी िो स्वीिार नही ूं किया, उसिे किए ब्रह्मचयग िा अथग.. .उसिे किए
ब्रह्मचयग िा अथग अूंतरग मण है , उसिे किए अूंतमैंथुन है । उसे सीधे ही अूंतमैंथुन िे प्रयोर् खोजने पड़ें र्े। अन्यथा
वह कसिग िाहर िी स्त्री से नाम— मात्र िो िचा हुआ कदखाई पड़े र्ा, उसिा कचि तो द ड़ता ही रहे र्ा, भार्ता ही
रहे र्ा। और कजतनी ऊजाग स्त्री से कमिने में व्यय नही ूं होती, उससे ज्यादा ऊजाग स्त्री से कमिने और रुिने िी चेष्टा
में व्यय हो जाती है ।

तो सूं न्यासी िे किए थोड़ा सा अिर् मार्ग है । और वह थोड़े से मार्ग में जो ििग है वह इतना ही है कि
र्ृहस्थ िे किए िाहर िी स्त्री से कमिना प्राथकमि होर्ा, कद्वतीय चरण पर अूंतर िी स्त्री से कमिना होर्ा; सूं न्यस्त
िे किए अूंतर िी स्त्री से सीधा कमिना होर्ा, पहिा चरण नही ूं है । इसकिए हर किसी िो सूं न्यासी िना दे ना
नासमझी िी हद है । असि में , सूं न्यास दे ने िा मतिि ही यह है कि हम उसिे अूंतर में झाूं ि सिें और समझ
सिें कि उसिा पहिा पु रुष उसिी अपनी ही स्त्री से कमिने िी क्षमता और पात्रता में है या नही।ूं अर्र है , तो
ही ब्रह्मचयग िी दीक्षा दी जा सिती है , अन्यथा पार्िपन पै दा िरें र्े और िुछ िायदा नही ूं हो सिता है । िेकिन
िोर् हैं कि दीक्षाएूं कदए चिे जा रहे हैं । िोई हजार सूं न्याकसयोूं िा र्ुरु है , िोई दो हजार सूं न्याकसयोूं िा र्ुरु है ।
उन्ें िुछ पता नही ूं कि वे क्ा िर रहे हैं ! वे कजस आदमी िो दीक्षा दे रहे हैं , वह अूंतमैंथुन िे योग्य है ?यह तो
दू र िी िात है , यह भी पता नही ूं कि अूंतमैंथुन भी िोई मैथुन है ।

इसकिए मुझे जि भी सूं न्यासी कमिता है तो उसिी र्हरी तििीि से क्स िी होती है । र्ृहस्थ तो मु झे
कमि जाते हैं कजनिी और तििीिें भी हैं , िेकिन सूं न्यासी मुझे नही ूं कमिता कजसिी और िोई तििीि
हो; उसिी तििीि से क्स ही है । र्ृहस्थ िी और तििीिें भी हैं , हजार तििीिें हैं , उनमें से क्स एि तििीि
है । िेकिन सूं न्यासी िी एि ही तििीि है । और इसकिए सारा िा सारा कचि उसिा इसी एि किूंदु पर अटिा
रह जाता है ।

तो िाहर िी स्त्री से िचने िे तो उपाय िता रहे हैं उसिे र्ुरु , िेकिन भीतर िी स्त्री से कमिने िा िोई
उपाय नही ूं है उनिे खयाि में। इसकिए िाहर िी स्त्री से िचा नही ूं जा सिता, कसिग कदखाया जा सिता है कि
िच रहे हैं । िचना िहुत मुक्तिि है । वह तो वैदि्युकति ऊजाग है , उसिे किए जर्ह चाकहए। अर्र वह भीतर जाए
तो िाहर जाने से रुिेर्ी, अर्र भीतर नही ूं जा रही है तो िाहर जाएर्ी। िोई कििर नही ूं कि स्त्री िल्पना िी
होर्ी, उससे भी िाम चिेर्ा; वह िल्पना िी स्त्री िे साथ भी िाहर िह जाएर्ी, वह भीतर नही ूं जा सिती।
ठीि स्त्री िे किए भी यही होर्ा।

कां िारी स्त्री के जिए अांतमैंभन सरि:

िेकिन स्त्री और पुरुष िे मामिे में यहाूं भी थोड़ा सा भेद है जो खयाि में िे िे ना चाकहए। इसकिए
अक्सर यह होर्ा कि साधु िे किए कजतना से क्स प्राब्लम िनेर्ा, उतना साध्वी िे किए नही ूं िनता। इधर मैं िहुत
सी साक्तध्वयोूं से पररकचत हूं । साध्वी िे किए से क्स इतना प्राब्लम नही ूं िनता। उसिा िारण है कि पैकसव है
उसिा से क्स। अर्र एि दिा उठाया जाए तो प्राब्लम िनता है , अर्र किििुि न उठाया र्या हो तो उसे पता
ही नही ूं चिता कि प्राब्लम है । स्त्री िो इनीकशएशन चाकहए से क्स में भी। िोई पुरुष एि दिा स्त्री िो िे जाए
से क्स में, इसिे िाद उसमें तीव्र ऊजाग उठनी शु रू होती है । िेकिन अर्र न िे जाई जाए, तो वह जीवन भर
िुूंवारी रह सिती है । उसिे िुूंवारे रहने िी िहुत सु कवधा है , क्ोूंकि पैकसव है । वह खु द तो आक्रामि नही ूं है
उसिा कचि, वह प्रतीक्षा िरती रहे र्ी, वह प्रतीक्षा िरती रहे र्ी।

इसकिए मेरा मानना है कि कववाकहत स्त्री िो दीक्षा दे ना खतरनाि है , जि ति कि उसिो अूंतपुगरुष से


कमिना न कसखाया जाए। िुूंवारी िड़िी दीक्षा िे सिती है , िुूंवारे िड़िे से वह ज्यादा ठीि हाित में है ।
उसिो जि ति एि दिा दीक्षा नही ूं कमिी िाम िी, य न िी, ति ति वह प्रतीक्षा िर सिती है। आक्रामि
नही ूं है , इसकिए। और अर्र आक्रमण न हो िाहर से , तो अपने आप धीरे — धीरे उसिे भीतर िा पु रुष उसिी
िाहर िी स्त्री से कमिना शु रू िर दे ता है ; क्ोूंकि उसिे नूंिर दो िा जो शरीर है ,वह पुरुष िा है , वह
आक्रामि है । तो अूंतमैंथुन स्त्री िे किए पु रुष िी िजाय िहुत सरि है ।

मेरा मतिि समझ रहे हो न तु म?

उसिा जो दू सरा पुरुष िा शरीर है , वह आक्रामि है । इसकिए अर्र िाहर से स्त्री िो पुरुष न कमिे , न
कमिे , न कमिे ;उसे पता ही न हो िाहर िे पु रुष िे द्वारा य न में जाने िा; तो उसिे भीतर िा पु रुष उस पर
हमिा िरना शु रू िर दे र्ा,उसिी ईथररि िॉडी उस पर हमिा िरने िर्े र्ी, और उसिा मुख भीतर िी
तरि मुड़ जाएर्ा, वह अूंतमैंथुन में िीन हो जाएर्ी।

पुरुष िे किए अूंतमैंथुन जरा िकठन िात है , क्ोूंकि पुरुष िा आक्रामि शरीर नूंिर एि िा है , नूंिर
दो िा शरीर उसिा स्त्री िा है । नूंिर दो िा शरीर उस पर आक्रमण िरिे नही ूं िुिा सिता; जि वह जाएर्ा
तभी नूंिर दो िा शरीर उसिो स्वीिार िरे र्ा।

ये सारे भेद हैं । और ये भेद अर्र खयाि में होूं तो सारी व्यवस्था इस सििे सूं िूंध में दू सरी होनी चाकहए।

यह जो सूं भोर् में कवदि् युत —वतुग ि पैदा हो सिे तो र्ृहस्थ िे किए िड़ा सहयोर्ी है । और ऐसा ही
वतुग ि, जि तु म्हारा अूंतमैंथुन होर्ा ति भी पैदा होर्ा। इसकिए जो साधारण व्यक्तक्त िो सूं भोर् में जो कवदि् युत िी
ऊजाग उसिो घेर िेर्ी, वैसी ऊजाग उस व्यक्तक्त िो जो भीतर िे शरीर से सूं िूंकधत हुआ है , च िीस घूंटे घेरे रहे र्ी।
इसकिए तु म्हारे प्रत्येि शरीर पर तु म्हारा वतुग ि िढ़ता चिा जाएर्ा।

बि—परुष : एक ऊजाओ पांज:


इसकिए िहुत िार ऐसा हो सिता है , जैसे कि िुद्ध िे मर जाने िे िाद िोई पाूं च स वषों ति िुद्ध िी
िोई प्रकतमा नही ूं िनाई र्ई और प्रकतमा िी जर्ह िोकधवृ क्ष िी पूजा चिी। प्रकतमा नही ूं थी, कसिग वृक्ष ही था।
मूंकदर भी िनाते थे तो उसमें एि वृ क्ष, पत्थर िा वृ क्ष िनाते थे —या पत्थर पर वृ क्ष िो खोद दे ते थे —और नीचे वह
जर्ह खािी रहती, जहाूं िु द्ध िे िैठने िी जर्ह थी। अि जो िोर् पुरातत्व या इकतहास िी खोज िरते हैं , वे िड़ी
मुक्तिि में हैं कि िुद्ध िी प्रकतमा क्ोूं न िनाई, िुद्ध िा वृ क्ष क्ोूं िनाया? किर पाूं च स साि िे िाद क्ोूं प्रकतमा
िनाई? और पाूं च स साि ति वृक्ष िे नीचे जर्ह क्ोूं खािी छोड़ी?

अि यह िड़े राज िी िात है और पुरातत्वकवद िो और इकतहासज्ञ िो िभी पता नही ूं चि


सिता, क्ोूंकि इकतहास और पुरातत्व से इसिा िोई िे ना—दे ना नही ूं है । असि में , कजन िोर्ोूं ने िुद्ध िो र् र
से दे खा था, उनिा िहना था कि जि र् र से दे खो तो िुद्ध कदखाई नही ूं पड़ते , कसिग वृक्ष ही रह जाता है , कसिग
कवदि् युत िी ऊजाग रह जाती है । र् र से अर्र दे खो तो िुद्ध कवदा हो जाते हैं , वहाूं कसिग कवदि् युत िी ऊजाग ही रह
जाती है , वहाूं आदमी समाप्त हो जाता है । जैसे मैं यहाूं िै ठा हूं और र् र से दे खा जाऊूं, कसिग िुसी कदखाई पड़े
और मैं कवदा हो जाऊूं।

तो िुद्ध िो कजन्ोूंने र् र से दे खा, वे िहते थे कि िुद्ध कदखाई नही ूं पड़ते थे , वृक्ष ही कदखाई पड़ता
था, और कजन्ोूंने र् र से नही ूं दे खा, वे िहते थे , िुद्ध कदखाई पड़ते थे। इसकिए आथेंकटि उनिा ही िहना था
कजन्ोूंने र् र से दे खा था। पाूं च स साि ति उनिी िात मानी र्ई। पाूं च स साि ति उनिी िात मानी र्ई
कजन्ोूंने िहा था कि नही,ूं िुद्ध िभी नही ूं कदखाई पड़े ; जि र् र से दे खा तो वे नही ूं थे , जर्ह खािी थी; वृक्ष ही रह
र्या था पीछे ।

िेकिन यह ति ति चि सिा जि ति कि र् र से दे खनेवािे िोर् थे , और र्ैर—र् र से दे खनेवािोूं ने


माना कि भई,हमने तो िभी र् र से दे खा नही,ूं इसकिए हमिो तो कदखाई पड़ते थे। िे किन जि यह वर्ग खोता
चिा र्या, ति यह िात मुक्तिि हो र्ई कि वृ क्ष अिेिा क्ोूं हो, नीचे िुद्ध होने चाकहए। किर पाूं च स साि िाद
उनिी प्रकतमा िनाई र्ई।

यह िहुत मजेदार िात है ! कजन्ोूंने जीसस िो भी र् र से दे खा उनिो जीसस नही ूं कदखाई पड़े ; कजन्ोूंने
महावीर िो र् र से दे खा उनिो महावीर कदखाई नही ूं पड़े ; कजन्ोूंने िृष्ण िो र् र से दे खा उनिो िृष्ण कदखाई
नही ूं पड़े । अर्र पूरी अटें शन से इस तरह िे िोर् दे खे जाएूं तो वहाूं कसिग कवदि् युत िी ऊजाग ही कदखाई
पड़े र्ी; वहाूं िोई व्यक्तक्त कदखाई नही ूं पड़े र्ा।

यह......तु म्हारे प्रत्येि दो शरीर िे िाद यह ऊजाग िड़ी होती जाएर्ी। और च थे शरीर िे िाद यह ऊजाग
पूणग हो जाएर्ी। पाूं चवें शरीर पर ऊजाग ही रह जाएर्ी। छठवें शरीर पर यह ऊजाग अिर् कदखाई नही ूं पड़े र्ी, यह
ऊजाग चाूं द—तारोूं से , आिाश से ,सिसे जुड़ जाएर्ी। सातवें शरीर पर ऊजाग भी कदखाई नही ूं पड़े र्ी, पहिे मैटर
खो जाएर्ा, किर एनजी भी खो जाएर्ी; पहिे पदाथग खो जाएर्ा, किर शक्तक्त भी खो जाएर्ी।

तो इस किहाज से वह सोचने जैसी िात है ।

जनजिओचार की पूरी उपिब्धि पाां चिें शरीर में:

प्रश्न: ओशो जनजिओचार की स्थायी उपिब्धि साधक को जकस शरीर में होती है ? क्ा चेतना और
जिषय के तादात्म्य के जबना भी जिचार आ सकते हैं या जिचार के जिए तादात्म्य आिश्यक है ?
कनकवगचार िी पूरी उपिक्ति पाूंचवें शरीर में होती है, िेकिन अधूरी झििें च थे शरीर से शुरू हो
जाती हैं । च थे शरीर में कवचार चिते हैं , िेकिन िीच में दो कवचारोूं िे जो खािी जर्ह होती है वह कदखाई पड़ने
िर्ती है । च थे शरीर िे पहिे वह कदखाई नही ूं पड़ती। च थे शरीर िे पहिे हमें िर्ता है कि कवचार ही कवचार
हैं , और कवचारोूं िे िीच में जो र्ैप है , वह हमें कदखाई नही ूं पड़ता। च थे शरीर में र्ैप कदखाई पड़ने िर्ता है और
एस्फेकसस एिदम िदि जाती है । अर्र तु मने िभी र्ेस्टाल्ट िे िोई कचत्र दे खे हैं तो यह खयाि में आ सिेर्ा।

समझ िें कि एि सीकढ़योूं िा कचत्र िनाया जा सिता है । वह कचत्र ऐसा िनाया जा सिता है कि उसे
अर्र आप र् र से दे खते रहें तो एि िार ऐसा िर्े कि सीकढ़याूं नीचे िी तरि आ रही हैं और एि िार ऐसा िर्े
कि सीकढ़याूं ऊपर िी तरि जा रही हैं । िेकिन यह िड़े मजे िी िात है कि दोनोूं चीजें एि साथ नही ूं दे खी जा
सिती ूं, इसमें एि िो ही तु म दे ख सिते हो। दोिारा जि तु म्हें दू सरी चीज कदखाई पड़ने िर्े र्ी, तो पहिी
नदारद हो जाएर्ी।

एि ऐसा कचत्र िनाया जा सिता है कि दो आदकमयोूं िे चेहरे आमने —सामने कदखाई पड़ें —उनिी
नाि, उनिी आूं ख , उनिी दाढ़ी, वह सि कदखाई पड़े । एि दिा ऐसा कदखाई पड़े कि दो आदमी आमने —
सामने चेहरे िरिे िै ठे हैं । इनिो िािा पोत कदया है चेह रोूं िो; िीच में जो जर्ह खािी है वह सिेद है । और
एि दिा ऐसा कदखाई पड़े कि िीच में एि र्मिा रखा हुआ है । तो र्मिे िी िर्ारे कदखाई पड़े — वह नाि
और मुूंह, वे र्मिे िी िर्ारे हो जाएूं । िेकिन ये दोनोूं िातें एि साथ कदखाई नही ूं पड़ सिती हैं । जि तु म्हें दो
चेहरे कदखाई पड़ें र्े तो र्मिा नही ूं कदखाई पड़े र्ा, और जि तु म्हें र्मिा कदखाई पड़े र्ा तो तु म पाओर्े कि वे दो
चेहरे िहाूं र्ए! वे दो चेहरे नही ूं कदखाई पड़ें र्े। इसिी तु म िाख िोकशश िरो, तो भी र्ेस्टाल्ट में एस्फेकसस
िदि जाएर्ी,ति तु म दोनोूं न दे ख पाओर्े। जि तु म्हारी एस्फेकसस चेहरे पर जाएर्ी तो र्मिा नदारद हो
जाएर्ा, जि तु म्हारी एस्फेकसस र्मिे पर जाएर्ी तो चेहरे नदारद हो जाएूं र्े।

तीसरे शरीर ति हमारा जो माइूं ड िा र्ेस्टाल्ट है , उसिी एस्फेकसस कवचार िे ऊपर है । 'राम
आया'…...तो राम कदखाई पड़ता है , आया कदखाई पड़ता है । राम और आया िे िीच में जो खािी जर्ह है , और
राम िे पहिे जो खािी जर्ह है , और आया िे िाद में जो खािी जर्ह है , वह नही ूं कदखाई पड़ती।
एस्फेकसस ' राम आया ' पर है । तो कवचार कदखाई पड़ता है , िीच िा अूंतराि नही ूं कदखाई पडता।

च थे शरीर में ििग होना शु रू होता है । अचानि तु म्हें ऐसा िर्ता है कि राम आया, यह महत्वपूणग नही ूं
है । जि राम नही ूं आया था, ति खािी जर्ह थी, और जि राम आया, ति खािी जर्ह थी; और जि राम चिा
र्या, ति खािी जर्ह थी। वह खािी जर्ह तु म्हें कदखाई पड़नी शु रू हो जाती है । चेहरे कवदा होते हैं और र्मिा
कदखाई पड़ने िर्ता है । और जि तु म्हें खािी जर्ह कदखाई पड़ती है , ति तु म कवचार नही ूं िर सिते । दो में से
एि ही िर सिते हो जि ति तु म कवचार दे खोर्े तो कवचार िर सिते हो, जि तु म खािी जर्ह दे खोर्े तो खािी
हो जाओर्े। िे किन यह िदिता रहे र्ा च थे शरीर में िभी र्मिा कदखाई पड़ने िर्े र्ा, िभी दो चेहरे कदखाई
पड़ने िर्ेंर्े। यह चिता रहे र्ा— िभी कवचार कदखाई पड़ें र्े, िभी खािी जर्ह कदखाई पड़े र्ी। तो म न भी
आएर्ा और कवचार भी चिेंर्े।

मौन और शू न्य में िकओ:


म न में और शू न्य में ििग यही है । म न िा मतिि यह है कि अभी कवचार समाप्त नही ूं हो र्ए, िेकिन
एस्फेकसस िदि र्ई है । अि वाणी से कचि हट र्या है और चुप होने िो रसपूणग पा रहा है ; िेकिन अभी वाणी
नही ूं हट र्ई है । वाणी से कचि हट र्या है , वाणी से ध्यान हट र्या है , वाणी से अटें शन हट र्ई है , अटें शन चिी
र्ई है म न पर, िेकिन वाणी अभी आती है ; और िभी—िभी जि पिड़ िेती है ध्यान िो तो म न खो जाता है
और वाणी चिने िर्ती है । तो च थे शरीर िी आक्तखरी घकड़योूं में इन दोनोूं पर कचि िदिता रहे र्ा।

पाूं चवें शरीर पर कवचार एिदम खो जाएूं र्े और शू न्य रह जाएर्ा। इसिो म न नही ूं िह सिते ; क्ोूंकि
म न जो है वह मुखरता िी ही अपे क्षा में है , िोिने िी ही अपेक्षा में है । म न िा मतिि है —न िोिना। शू न्य िा
मतिि है —न िोिना और न न—िोिना, दोनोूं नही ूं हैं वहाूं । वहाूं न र्मिा रहा, न दो चेहरे रहे , िार्ज खािी हो
र्या। अि अर्र िोई पूछे कि चेहरा है कि र्मिा? तो तु म िहोर्े , दोनोूं नही ूं हैं । पाूं चवें शरीर पर तो कनकवग चार
पूरी तरह घकटत होर्ा। च थे शरीर पर उसिी झिि आनी शु रू हो जाएर्ी—िभी कदखाई पड़े र्ा। िे किन
कनकवग चार भी सदा दो कवचार िे िीच में ही कदखाई पड़े र्ा। पाूं चवें शरीर पर कनकवग चार कदखाई पड़े र्ा, कवचार नही ूं
कदखाई पड़े र्ा।

तीसरे शरीर में जिचारोां के साथ पू रा तादात्म्य:

अि दू सरा सवाि तु म्हारा जो है कि क्ा कवचार िे साथ आइडें कटटी, तादात्म्य होना जरूरी है तभी
कवचार आते हैं ? या ऐसा भी हो सिता है कि िोई कवचार से तादात्म्य न हो और कवचार आएूं ?

तीसरे शरीर ति तो आइडें कटटी और कवचार िा आना सदा साथ होता है । तु म्हारा तादात्म्य होता है और
कवचार आते हैं । इनमें िभी िासिे िा पता ही नही ूं चिे र्ा। तु म्हारा कवचार और तु म एि ही चीज हो, दो नही ूं
हो। जि तु म क्रोध िरते हो तो यह िहना र्ित है कि तु म क्रोध िरते हो, यही िहना उकचत है कि तु म क्रोध हो
जाते हो; क्ोूंकि 'क्रोध िरते हो ' यह तभी िहा जा सिता है जि तु म न भी िर सिो; क्ोूंकि िरने िा मतिि
ही यह होता है

अर्र मैं िहूं कि मैं हाथ कहिाता हूं और किर तु म मुझसे िहो कि अच्छा, जरा रोििर कदखाइए। मैं
िहूं वह तो नही ूं हो सिता; हाथ तो कहिता ही रहे र्ा। तो किर तु म िहोर्े कि किर आप कहिाते हैं , इसिा क्ा
मतिि रहा? िकहए, हाथ कहिता है । अर्र आप कहिाते हैं , तो रोििर कदखाइए, किर कहिािर कदखाइए। तो
अर्र मैं रोि न सिूूं तो कहिाने िी मािकियत िे िार है ;उसिा िोई मतिि नही ूं है ।

चूूंकि तु म कवचार िो रोि नही ूं सिते तीसरे शरीर ति, इसकिए तु म्हारी आइडें कटटी पूरी है , तु म ही
कवचार हो। इसकिए तीसरे शरीर ति आदमी िे कवचार पर अर्र चोट िरो तो उस पर ही चोट हो जाती है ।
अर्र िह दो कि आपिी िात र्ित है तो उसिो ऐसा नही ूं िर्ता कि मेरी िात र्ित है ; उसिो िर्ता है , मैं
र्ित हूं । झर्ड़ा जो शु रू होता है , वह िात िे किए नही ूं होता, किर वह मैं िे किए झर्ड़ा शु रू होता है ; क्ोूंकि
आइडें कटटी पूरी है ; तु म्हारे कवचार िो चोट पहुूं चाना, मतिि तु म्हें चोट पहुूं चाना हो जाता है । भिा तु म िहो कि
िोई िात नही ूं है , आप मेरे कवचार िे क्तखिाि हैं । िेकिन भीतर तु म जानते हो कि आपिी क्तखिाित हो र्ई है ।

और िई िार तो ऐसा होता है कि कवचार से िोई मतिि नही ूं होता, चूूंकि वह आपिा है , इसकिए
झर्ड़ा िरना पड़ता है ;और िोई मतिि नही ूं होता उससे । क्ोूंकि आप िह चुिे कि मेरी इससे आइडें कटटी
है —यह मेरा मत है , यह मेरी किताि है , यह मेरा शास्त्र है , यह मेरा कसद्धात है , यह मेरा वाद है , तो अि झर्ड़ा
शु रू होर्ा।
तीसरे शरीर ति तुम्हारे और कवचार िे िीच िोई िासिा नही ूं होता, तु म ही कवचार होते हो। च थे
शरीर में डर्मर्ाहट शु रू होती है , तु म्हें ऐसी झििें कमिने िर्ती हैं कि मैं अिर् हूं और कवचार अिर् है ।
िेकिन, किर भी तु म अपने िो असमथग पाते हो कि कवचार िो रोि सिो। क्ोूंकि िहुत र्हरी जड़ोूं में सूं िूंध रह
जाता है , ऊपर से सूं िूंध अिर् मािूम होने िर्ता है ;शाखाओूं पर अिर् हो जाता है , एि शाखा पर तु म िैठ जाते
हो, दू सरे पर कवचार िै ठ जाता है । तु म्हें कदखाई तो पड़ता है अिर् है , िेकिन नीचे जड़ में तु म और कवचार एि
होते हो। इसकिए िर्ता भी है कि अिर् है , िर्ता भी है कि अर्र मेरा सूं िूंध टू ट जाए, तो िूंद हो जाएर्ा; िेकिन
िूंद भी नही ूं होता, सूं िूंध भी किसी र्हरे ति पर िना चिा जाता है ।

च थे शरीर पर ििग पड़ना शु रू होता है । तु म्हें यह झिि कमिने िर्ती है कि कवचार िुछ अिर्, मैं
िुछ अिर्; कवचार िुछ अिर्, मैं िुछ अिर्। िे किन अभी भी तु म इसिी घोषणा नही ूं िर सिते । और अभी
भी कवचार िा आना याूं कत्रि होता है — न तो तु म रोि सिते हो, न तु म िा सिते हो।

जैसे मैंने यह िात िही कि क्रोध िो रोिो, तो पता चिेर्ा कि तु म माकिि हो। इससे उिटा भी िहा
जा सिता है कि अभी क्रोध िो िािर िताओ, ति समझेंर्े कि माकिि हो। तो िा भी नही ूं सिते । िहोर्े कि
िैसे िे आएूं ! िाएूं िैसे ? और अर्र तु म िे आओ, तो िस उसी कदन से तु म माकिि हो जाओर्े , उसी कदन से तु म
रोि भी सिते हो—किसी भी क्षण। मािकियत जो है वह िाने , िे जाने में अिर्—अिर् नही ूं है , अर्र तु म िे
आए तो तु म रोि भी सिते हो।

और यह िड़े मजे िी िात है कि रोिना जरा िकठन है , िाना जरा सरि है । इसकिए अर्र मािकियत
िानी हो तो िाने से शु रू िरना सदा आसान है , िजाय रोिने िे। क्ोूंकि िाती हाित में तु म शाूं त होते हो न!
रोिती हाित में तु म क्रोध में होते ही हो, तो इसकिए तु म अपने होश में भी नही ूं होते , रोिोर्े उसे िैसे ? इसकिए
िाने िे प्रयास से शु रुआत िरना सदा आसान पड़ता है , िजाय रोिने िे प्रयास िे।

जैसे तु म्हें हूं सी आ रही है और तु म नही ूं रोि पा रहे , यह जरा िकठन है ; िेकिन नही ूं आ रही है और
हूं सना शु रू िरो, तो तु म दोूं—चार कमनट में हूं सी िे आओर्े। और जि वह आ जाएर्ी ति तु म्हें सीक्रेट भी पता
चि जाएर्ा कि आ सिती है —िहा से आती? िैसे आती? ति तु म रोिने िा भी रहस्य जान सिते हो किसी
कदन, रोिा भी जा सिता है ।

जनजिओचार की झिक से तादात्म्य का टू टना:

च थे शरीर में तु म्हें ििग तो कदखाई पड़ने िर्ेर्ा कि मैं अिर् हूं और कवचार िही ूं से आते हैं , मैं ही नही ूं
हूं । इसकिए च थे शरीर में जहाूं —जहाूं कनकवगचार होर्ा, जो मैंने पहिे िहा, वही—
ूं वही ूं तु म्हारा साक्षी भी आ
जाएर्ा; और जहाूं —जहाूं कवचार होर्ा, वहाूं —वहाूं साक्षी खो जाएर्ा। वे जो कनकवगचार िे र्ैप्स हैं , अूंतराि
हैं , वहाूं —वहाूं तु म पाओर्े कि ये कवचार तो अिर् हैं , मैं अिर् हूं तादात्म्य नही ूं है । िेकिन अभी भी तु म अवश
इसिो जानोर्े भर, अभी िहुत िुछ िर न पाओर्े। िेकिन िरने िी सारी चेष्टा च थे शरीर में ही िरनी पडती
है ।

इसकिए च थे शरीर िी मैंने दो सूं भावनाएूं िही ूं एि जो सहज है वह, और एि जो साधना से उपिि
होर्ी। उन दोनोूं िे िीच तु म डोिते रहोर्े। और कजस कदन साधना से तु म कववेि िो, च थे शरीर िी दू सरी
सूं भावना िो—पहिी सूं भावना कवचार,दू सरी सूं भावना कववेि—दू सरी सूं भावना िो उपिि हो जाओर्े , उसी
कदन च था शरीर भी छूटे र्ा और तादात्म्य भी छूटे र्ा। पाूं चवें शरीर में एि साथ ही.. .जि तु म पाूं चवें शरीर में
जाओर्े तो दो िातें छूटे र्ी. च था शरीर छूटे र्ा और तादात्म्य छूटे र्ा।

पाां चिें शरीर में जचत्त—िृजत्तयोां पर पूणओ मािजकयत:

पाूं चवें शरीर में तु म कवचार िो चाहोर्े तो िाओर्े , नही ूं चाहोर्े तो नही ूं िाओर्े। कवचार पहिी दिा
साधन िनेर्ा और आइडें कटटी पर कनभगर नही ूं रह जाएर्ा। तु म चाहोर्े कि क्रोध िाना है तो तु म क्रोध िा
सिोर्े , और तु म चाहोर्े कि प्रेम िाना है तो तु म प्रेम िा सिोर्े , और तु म चाहोर्े कि िुछ नही ूं िाना है तो तु म
िुछ नही ूं िा सिोर्े , और तु म चाहो कि आधे क्रोध िो वही ूं िह दो रुिो, तो वह वही ूं रुि जाएर्ा। और तु म
कजस कवचार िो िाना चाहोर्े वह आएर्ा और कजसिो नही ूं िाना चाहोर्े उसिी िोई सामर्थ्ग नही ूं रह जाएर्ी।

र्ुरकजएि िी कजूं दर्ी में इस तरह िी िहुत घटनाएूं हैं , इसकिए िोर्ोूं ने तो उसिो समझा कि वह
आदमी िैसा आदमी है ! अक्सर तो वह ऐसा िरता कि अर्र उसिे आसपास दो आदमी िैठे हैं , तो एि िी
तरि इस तरह से दे खता कि भारी क्रोध में है और दू सरे िी तरि इस तरह से दे खता कि भारी प्रेम में है — इतने
जल्दी िदि िेता! और वे दो आदमी दो ररपोटग िे िर जाते । दोनोूं साथ कमिने आए थे और एि आदमी िहता
कि िड़ा खतरनाि अजीि आदमी है ; दू सरा िहता, कितना प्रेमी आदमी है !

यह किििुि सूं भव है , पाूं चवें शरीर पर किििुि आसान है । इसकिए र्ुरकजएि किििुि समझ िे
िाहर हो र्या िोर्ोूं िो कि वह क्ा िर रहा है ! वह चेहरे पर हजार तरह िे भाव तत्काि िा सिता था। उसमें
िोई िकठनाई न थी उसिो। और िाने िा िुि िारण इतना था कि पाूं चवें शरीर में तु म पहिी दिा माकिि
होते हो, तु म जो चाहो! ति क्रोध और प्रेम और घृ णा और क्षमा... और सि... और तु म्हारे सारे कवचार तु म्हारा खे ि
हो जाते हैं । इसिे पहिे तु म्हारी कजूंदर्ी थे , इसिे िाद तु म्हारा खे ि हैं । और इसकिए तु म जि चाहो ति कवश्राम
पा सिते हो।

खे ि से कवश्राम आसान है , कजूंदर्ी से कवश्राम िहुत मुक्तिि है । अर्र मैं खे ि में ही क्रोध िर रहा हूं तो
तु म्हारे चिे जाने िे िाद इस िमरे में क्रोध में नही ूं िैठा रहूं र्ा। और अर्र मैं खे ि में ही िोि रहा हूं तो तु म्हारे
चिे जाने िे िाद इस िमरे में िोिता नही ूं रहूं र्ा। िेकिन अर्र िोिना मेरी कजूंदर्ी है , तो तु म चिे जाओर्े तो मैं
िोिता रहूं र्ा। िोई नही ूं सु नेर्ा तो मैं ही सु नूूंर्ा, मैं ही िोिूूं र्ा; क्ोूंकि वह मेरी कजूंदर्ी है ; वह िोई खे ि नही ूं है
कजससे कवश्राम हो जाए, वह मेरी कजूं दर्ी है जो च िीस घूंटे मुझे पिड़े हुए है । तो वह आदमी रात में भी
िोिेर्ा, सपने में भी िोिेर्ा, सपने में भी सभा इिट्ठी िर िेर्ा, वहाूं भी िोिता रहे र्ा। सपने में भी
िड़े र्ा, झर्ड़े र्ा; वही िरे र्ा जो कदन में किया है ; वह च िीस घूंटे िरे र्ा; क्ोूंकि वह कजूंदर्ी है , वह उसिा प्राण
है ।

जिचार : अपने या पराए?:

पाूं चवें शरीर पर तु म्हारी आइडें कटटी टू ट जाती है । इसकिए पाूं चवें शरीर पर पहिी दिा तु म अपने वश
से म न होते हो शू न्य होते हो, और जि जरूरत होती है तो तु म कवचार िरते हो। तो पाूं चवें शरीर से कवचार िा
पहिी दिा उपयोर् शु रू होता है । अर्र हम इसिो ऐसा िहें तो ज्यादा ठीि होर्ा कि पाूं चवें शरीर िे पहिे
कवचार तु म्हें िरता है और पाूं चवें शरीर से तु म कवचार िो िरते हो। उसिे पहिे तो तु म्हें िहना ठीि नही ूं है कि
हम कवचार िरते हैं ।

और पाूं चवें शरीर पर एि िात और पता चिती है कि कवचार िेवि हमारा ही होता है , ऐसा भी नही ूं
है , दू सरे िे कवचार भी हममें प्रवेश िरते रहते हैं । ऐसा नही ूं है कि हमारा कवचार हमारा ही है , उसमें िहुत चारोूं
तरि िे कवचार हममें प्रवेश िरते रहते हैं । और हम अक्सर खयाि में नही ूं होते कि हम किस कवचार िो अपना
िह रहे हैं ! वह किसी और िा हो सिता है ।

शब्धिशािी जिचारोां की उम्र िांबी:

एि कहटिर पैदा होता है , तो पूरे जमगनी िो अपना कवचार दे दे ता है , और पूरे जमगनी िा आदमी
समझता है कि ये मेरे कवचार हैं । ये उसिे कवचार नही ूं हैं । एि िहुत डाइनेकमि आदमी अपने कवचारोूं िो कविीणग
िर रहा है और िोर्ोूं में डाि रहा है और िोर् उसिे कवचारोूं िी कसिग प्रकतध्वकनया हैं । और यह डाइनाकमज्म
इतना र्ूं भीर और इतना र्हरा है , कि मोहिद िो मरे हजार साि हो र्ए, जीसस िो मरे दो हजार साि हो
र्ए, कक्रकश्चयन सोचता है कि मैं अपने कवचार िर रहा हूं । वह दो हजार साि पहिे जो आदमी छोड़ र्या है
तरूं र्ें, वे अि ति पिड़ रही हैं । महावीर या िु द्ध या िृष्ण या क्राइस्ट— अच्छे या िुरे िोई भी तरह िे
डाइनेकमि िोर्—जो छोड़ र्ए हैं वह तु म्हें पिड़ िेता है । तै मूरिूंर् ने अभी भी पीछा नही ूं छोड़ कदया है मनुष्यता
िा और न चूंर्ीजखा ने छोड़ा है , न िृष्ण ने छोड़ा है , न राम ने छोड़ा है । पीछा वे नही ूं छोड़ते । उनिी तरूं र्ें पू रे
वक्त डोि रही हैं । तु म कजस तरूं र् िो पिड़ने िी हाित में होते हो, उसिो पिड़ िेते हो।

जिचारोां के सागर से जघरा व्यब्धि:

इसकिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि सु िह एि आदमी िहुत भिा था और दोपहर होते —होते िुरा हो
र्या। सु िह वे राम िी तरूं र्ोूं में रहे होूं, दोपहर चूंर्ीजखा िी तरूं र्ोूं में हैं ! ररसे किकवटी है , और समय से ििग पड़
जाता है । सु िह कभखमूंर्ा तु म्हारे दरवाजे पर भीख माूं र्ने आता है , क्ोूंकि सु िह सू रज िे उर्ने िे साथ िुरी
तरूं र्ोूं िा प्रभाव सवाग कधि िम होता है पृथ्वी पर। सू रज िे थिते — थिते प्रभाव िढ़ना शु रू हो जाता है । साूं झ
िो कभखारी भीख माूं र्ने नही ूं आता, क्ोूंकि साूं झ िो आशा नही ूं है दया िी किसी से भी। सु िह थोड़ी आशा
है , कि अर्र सु िह उठे आदमी से हम िहें र्े कि दो पैसा दे दे , तो वह एिदम से इनिार न िर पाएर्ा; साूं झ िो
हाूं भरना जरा मुक्तिि हो जाएर्ा। कदन भर में उसिा सि हाूं थि र्या है िुरी तरह से , अि वह इनिार िरने
िी हाित में है । अि उसिी सारी कचि—कदशा और है , सारी पृथ्वी िा वातावरण भी और है ।

तो जो कवचार हमें िर्ते हैं हमारे हैं , वे भी हमारे नही ूं हैं । यह तु म्हें पाूं चवें शरीर में ही पता चिेर्ा जािर
कि क्ा आश्चयगजनि है — कवचार भी िाहर से आता और जाता है ! तु म पर कवचार भी आता और जाता है ; और
तु म्हें पिड़ता है और छोड़ता है । और हजारोूं तरह िे कवचार, और िहुत िटर ाकडक्ङरी, आपस में कवरोधी कवचार
आदमी िो पिड़े हुए हैं । इतने कवरोधी कवचार पिड़े हुए हैं , इसीकिए इतना िनफ्यूजन है , एि—एि आदमी
इतना िनफ्यूर्जड है । अर्र तु म्हारे ही कवचार होूं, तो िनफ्यूजन िी िोई जरूरत नही ूं है । िे किन एि हाथ
चूंर्ीजखा पिड़े हुए हैं , दू सरा हाथ िृष्ण पिड़े हुए हैं , अि िनफ्यूजन होनेवािा है , क्ोूंकि दोनोूं िे कवचार
प्रतीक्षा िर रहे हैं कि तु म िि तै यारी कदखाओ, वे तु म्हारे भीतर प्रवेश िर जाएूं । वे सि म जूद हैं चारोूं तरि।

पाां चिें शरीर में जिचार—मब्धि:

यह पाूं चवें शरीर में तु म्हें पता चिे र्ा, तु म्हारी आइडें कटटी पूरी टू ट जाएर्ी। िेकिन ति, जैसा मैंने िहा
कि जो िड़ा भारी ििग होर्ा वह यह होर्ा कि इसिे पहिे तु म्हारे पास थॉटि् स थे, कवचार थे, इसिे िाद तु म्हारे
पास कथूंकिूंर् होर्ी, कवचारणा होर्ी। और इनमें भी ििग है ।

कवचार आणकवि, एटाकमि चीजें हैं । तु म पर आते हैं , पराए होते हैं सदा। ऐसा अर्र हम िहें कि कवचार
सदा पराए होते हैं , तो हजाग नही ूं है । कवचारणा अपनी होती है , कवचार सदा पराए होते हैं ; कथूंकिूंर् अपनी होती
है , थॉट हमेशा पराया होता है ।

तो पाूं चवें शरीर से तु म में कथूंकिूंर् पैदा होर्ी, तु म कवचार िर सिोर्े। तु म कसिग कवचारोूं िो पिड़िर
सूं र्ृहीत किए हुए नही ूं िैठे रहोर्े। और इसकिए पाूं चवें शरीर िी जो कवचारणा है , उसिा िोई िोझ तु म पर नही ूं
होर्ा, वह तु म्हारी अपनी है । और पाूं चवें शरीर पर चूूंकि कवचारणा िा जन्म हो जाएर्ा, उसिो प्रज्ञा िहो—जो भी
नाम दे ना चाहें , हम दें —पाूं चवें शरीर पर चूूंकि तु म्हारी अपनी इनटचूशन, अपनी प्रज्ञा, अपनी िुक्तद्ध, अपनी मेधा
जर् जाएर्ी, इस पाूं चवें शरीर िे िाद तु म पर दू सरोूं िे कवचारोूं िा समस्त प्रभाव क्षीण हो जाएर्ा। इस अथों में
भी तु म आत्मवान िनोर्े , इस अथग में भी तु म आत्मा िो उपिि हो जाओर्े ,तु म स्वयूं हो जाओर्े ; क्ोूंकि तु म्हारे
पास अि अपनी कवचारणा है , अपनी कवचार—शक्तक्त है, और तु म्हारे पास दे खने िी अपनी आूं ख है , अपना दशग न
है । इसिे िाद तु म जो चाहोर्े , वह आ जाएर्ा; तु म जो चाहोर्े , वह नही ूं आएर्ा; तु म जो सोचोर्े , सोच
सिोर्े , तु म जो नही ूं सोचोर्े , नही ूं सोच सिोर्े। तु म माकिि हो। और यहाूं से आइडें कटटी िा िोई सवाि नही ूं
रह जाता है ।

छठिें शरीर में जिचारणा भी अनािश्यक:

प्रश्न : और छठिें शरीर में ?

छठवें शरीर में कवचारणा िी भी िोई जरूरत नही ूं रह जाती है। च थे शरीर ति कवचार िी जरूरत
है ; पाूं चवें शरीर पर कवचारणा, कथूंकिूंर्, प्रज्ञा; छठवें शरीर पर वह भी समाप्त हो जाती है । क्ोूंकि छठवें शरीर पर
तु म वहाूं होते हो जहाूं िोई जरूरत ही नही ूं होती, तु म िाक्तस्भि हो जाते हो; तु म ब्रह्म िे साथ एि हो जाते
हो, अि िोई दू सरा िचता नही ूं।

असि में, सि कवचार दू सरे िे साथ सूं िूंध है । च थे शरीर िे पहिे िा जो कवचार है , वह मूक्त्छग त सूं िूंध
है —अरे िे साथ। पाूं चवें शरीर पर जो कवचार है वह अमूक्त्छग त सूं िूंध है , िेकिन दू सरे िे ही साथ। आक्तखर कवचार
िी जरूरत क्ा है ? कवचार िी जरूरत है क्ोूंकि दू सरे से सूं िूंकधत होना है । च थे ति मूक्तच्छगत सूं िूंध है , पाूं चवें
पर जाग्रत सूं िूंध है , छठवें पर सूं िूंध िे किए िोई नही ूं िचता—ररिेटेड नही ूं िचते , िाक्तस्भि हो र्ए, तु म और मैं
एि ही हो र्ए। तो अि तो िोई सवाि नही ूं िचता, कवचार िी अि िोई जर्ह नही ूं िचती जहाूं कवचार खडा हो।

छठिें शरीर में केिि ज्ञान शे ष:

इसकिए ब्रह्म शरीर है छठवाूं , वहाूं िोई कवचार नही ूं है । ब्रह्म में कवचार नही ूं है । इसकिए अर्र ठीि से
िहें तो हम इसिो ऐसा िह सिते हैं कि ब्रह्म में जान है । असि में , कवचार जो है —च थे शरीर ति मूक्तच्छगत
कवचार— र्हन अज्ञान है , क्ोूंकि वह इस िात िी खिर है कि हमें कवचार िी जरूरत है अज्ञान से िड़ने िे
किए। पाूं चवें शरीर में भीतर तो ज्ञान है , िेकिन िाहर जो हमसे अन्य है , उसिे िाित अि भी अज्ञान है , अभी भी
वह अन्य कदखाई पड़ रहा है । इसकिए पाूं चवें शरीर में कवचार िरने िी जरूरत है । छठवें शरीर में िाहर और
भीतर िोई भी नही ूं रहा—िाहर— भीतर न रहा, मैं—तू न रहा, यह—वह न रहा— अि िोई िासिा न रहा
जहाूं कवचार िी जरूरत है , अि तो जो है सो है । इसकिए छठवें शरीर में ज्ञान है , कवचार नही ूं है ।

सातिाां शरीर ज्ञानातीत है :

सातवें में ज्ञान भी नही ूं है , क्ोूंकि जो जानता था, अि वह भी नही ूं है , जो जाना जा सिता था, वह भी
नही ूं है । इसकिए सातवें में ज्ञान भी नही ूं है । अज्ञान नही ,ूं ज्ञानातीत है सातवी ूं अवस्था— कियाूं ड नािेज है । िोई
चाहे तो उसिो अज्ञान भी िह सिता है । इसकिए अक्सर ऐसा होता है कि परम ज्ञानी और परम अज्ञानी
िभी—िभी किििुि एि से मािूम पड़ते हैं । जो परम ज्ञानी है उसमें और परम अज्ञानी में िई िार िड़ा एि
सा व्यवहार होर्ा। इसकिए छोटे िच्चे में और ज्ञान िो उपिि िू ढ़े में िड़ी समानता हो जाएर्ी; वस्तु त:
नही,ूं िेकिन िड़ा ऊपर से एि सा कदखाई पड़ने िर्ेर्ा। िभी—िभी परम सूं त िा व्यवहार किििुि िच्चे
जैसा हो जाएर्ा; िभी—िभी िच्चे िे व्यवहार में परम सूं तता िी झिि कदखाई पड़े र्ी। और िभी—िभी
परम ज्ञानी जो है वह परम अज्ञानी हो जाएर्ा, किििुि जड़भरत हो जाएर्ा। वह ऐसा मािूम पड़ने िर्े र्ा कि
इससे अज्ञानी और ि न होर्ा! क्ोूंकि वह भी कियाूं ड नािेज है और यह कििो नािे ज है । एि ज्ञान िे आर्े चिा
र्या, एि ज्ञान िे अभी पीछे खड़ा है ;इन दोनोूं में एि समानता है कि ज्ञान िे िाहर हैं , दोनोूं ज्ञान िे िाहर
हैं , इतनी समानता है ।

समाजध के तीन प्रकार:

प्रश्न: ओशो जजसे आप समाजध कहते है ? िह जकस शरीर की उपिब्धि है ?


असि में, िहुत तरह िी समाकध हैं। इसकिए एि समाकध तो च थे शरीर और पाूंचवें शरीर िे िीच
में घटे र्ी। और यह भी ध्यान रहे कि समाकध जो है , वह सदा दो शरीरोूं िे िीच में घटती है ; वह सूं ध्यािाि है ।
समाकध जो है वह किसी एि शरीर िी घटना नही ूं है , दो शरीरोूं िे िीच िी घटना है ; वह सूं ध्यािाि है । जैसे
अर्र िोई पूछे कि सूं ध्या, साूं झ कदन िी घटना है कि रात िी? तो हम िहें र्े कि साूं झ न कदन िी घटना है , न
रात िी; रात और कदन िे िीच िी घटना है ।

ऐसे ही समाकध जो है , एि समाकध, पहिी समाकध च थे और पाूं चवें शरीर िे िीच में घटती है । च थे —
पाूं चवें शरीर िे िीच में जो समाकध घटती है , उसी से आत्मज्ञान उपिि होता है । एि समाकध पाूं चवें और छठवें
शरीर िे िीच में घटती है । पाूं चवें और छठवें शरीर िे िीच में जो समाकध घटती है , उससे ब्रह्मज्ञान उपिि होता
है । एि समाकध छठवें और सातवें िे िीच में घटती है । छठवें और सातवें िे िीच में जो घटती है , उससे कनवाग ण
उपिि होता है । तो तीन समाकधयाूं हैं साधारणत:। तो ये तीन समाकधयाूं तीन शरीरोूं िे िीच में घटती हैं ।

चौथे शरीर में समाजध की मानजसक झिक:

और एि िाल्स समाकध िो भी समझ िेना चाकहए, जो समाकध नही ूं है , िेकिन च थे शरीर में घटती
है ; िेकिन समाकध जैसी प्रतीत होती है । कजसिो जापान में झे न सतोरी िहते हैं , वह सतोरी इसी तरह िी समाकध
है । वह वस्तु त: समाकध नही ूं है ।

जैसे एि कचत्रिार िो घट जाता है िभी, एि मूकतग िार िो घटता है , एि सूं र्ीतज्ञ िो घटता है —कि
िभी वह िीन हो जाता है पूरी तरह और िड़े आनूं द िा अनु भव िरता है । िेकिन वह च थे , साइकिि शरीर िी
घटनाएूं हैं । अर्र च थे शरीर में कचि किििुि समाकहत और िीन हो जाए किसी भी िात िो िेिर—सु िह सू रज
िो उर्ता दे खिर, एि सूं र्ीत िी धु न सु निर,एि नृत्य िो दे खिर, एि िूि िो क्तखिते दे खिर— अर्र कचि
किििुि िीन हो जाए, तो एि िाल्स समाकध, एि कमर्थ्ा समाकध घकटत होती है । ऐसी कमर्थ्ा समाकध कहिोकसस
से पैदा हो सिती है । ऐसी कमर्थ्ा समाकध कमर्थ्ा शक्तक्तपात से घकटत हो सिती है । ऐसी कमर्थ्ा समाकध शराि
से , र्ाूं जे से , चरस से, मेस्किीन से , माररजुआना से , एि एस डी से पैदा हो सिती है ।

तो चार तरह िी समाकधयाूं हुईूं, अर्र ऐसा समझें तो। तीन समाकधयाूं जो आथेंकटि, प्रामाकणि समाकधयाूं
हैं , उनमें भी तारतम्यता है । और एि च थी झूठी समाकध, जो किििुि समाकध जैसी मािूम पड़ती है , िेकिन कसिग
समाकध िा खयाि होती है ,घटना नही ूं होती। और धोखे में डाि सिती है । और अने ि िोर्ोूं िो धोखे में डािा
हुआ है ।

और किस शरीर में घटती है ? कसिग िाल्स समाकध च थे शिर में घटती है । कसिग झूठी समाकध जो है , वह
सूं ध्या नही ूं है ;वह किसी शरीर में घटती है ; वह च थे शरीर में घटती है । िािी तीनोूं समाकधयाूं शरीरोूं िे िाहर
घटती हैं , सूं क्रमण िाि में , जि एि शरीर से तु म दू सरे में जा रहे होते हो—ति। समाकध एि द्वार है , पैसेज है ।

च थे से पाूं चवें िे िीच में एि समाकध है , कजससे आत्मज्ञान उपिि होता है । पहिी समाकध पर आदमी
रुि सिता है । पहिी तो िहुत िड़ी िात है , आमत र से तो च थे िी िाल्स समा।सृ पर रुि जाता है । क्ोूंकि
वह सरि है िहुत; खचग िम पड़ता, मेहनत नही ूं होती; और ऐसे ही पैदा हो सिती है । उसमें रुुँि जाता है ।
पहिी समाकध िहुत िकठन िात हो जाती है —च थे से पाूं चवें िी यात्रा। दू सरी समाकध और िकठन हो जाती है —
आत्मा से परमात्मा िी यात्रा। और तीसरी तो सवाग कधि िकठन हो जाती है । तो उसिे किए जो शब्द खोजे र्ए, वे
सि िकठन है — वज्र— भेद! वह सवाग कधि िकठन है —होने से न होने िी यात्रा,जीवन से मृत्यु में छिाूं र्, अक्तस्तत्व
से अनक्तस्तत्व में डूि जाना। श वे तीन समाकधयाूं हैं ।

प्रश्न: उनके कोई नाम हैं ?

पहिी िो आत्म समाकध िहो, दू सरी िो ब्रह्म समाकध िहो, तीसरी िो कनवागण समाकध िहो; और
पहिी िो...... और भी पहिी िो, कमर्थ्ा समाकध िहो। और उससे सिसे ज्यादा िचने िी जरूरत है , क्ोूंकि वह
जल्दी से उपिि हो सिती है ,च थे शरीर में घटती है । और इसिो भी एि शतग और िस टी समझ िे ना कि
अर्र किसी शरीर में घटे तो िाल्स होर्ी। दो शरीरोूं िे िीच में ही घटनी चाकहए। वह द्वार है । उसिो िीच िमरे
में होने िी िोई जरूरत नही ूं है । उसिो िमरे िे िाहर होना चाकहए और दू सरे िमरे िे जोड़ पर होना चाकहए।
वह पैसेज है , मार्ग है ।

कां डजिनी शब्धि और सपओ में समानताएां :

प्रश्न: ओशो कां डजिनी शब्धि का प्रतीक साां प को क्ोां माना गया है ? कृपया उसके सभी कारणोां
का उल्लेख करें । जथयोसािी के एां बिम, प्रतीक में एक िृत्ताकार साां प हे जजसकी पूांछ मांह के अांदर है ।
रामकृष्ण जमशन के प्रतीक में साां प के िन को स्पशओ करती हुई उसकी पू छ है । कृपया इनका अथओ भी
स्पि करें ।

िुूंडकिनी िे किए सपग िा प्रतीि िड़ा म जूूं है। शायद उससे अच्छा िोई प्रतीि नही ूं है। इसकिए
िुूंडकिनी में ही नही,ूं सपग ने िहुत—िहुत यात्राएूं िी हैं , उसिे प्रतीि ने। और दु कनया िे किसी िोने में भी ऐसा
नही ूं है कि सपग िभी न िभी उस िोने िे धमग में प्रवेश न िर र्या हो। क्ोूंकि सपग में िई खु कियाूं हैं जो
िुूंडकिनी से तािमेि खाती हैं ।

पहिी तो िात यह कि सपग िा खयाि िरते ही सरिने िा खयाि आता है । और िुूंडकिनी िा पहिा
अनुभव किसी चीज िे सरिने िा अनु भव है , िोई चीज जैसे सरि र्ई—जैसे सपग सरि र्या।

सपग िा खयाि िरते ही एि दू सरी चीज खयाि में आती है कि सपग िे िोई पैर नही ूं हैं , िेकिन र्कत
िरता है , र्कत िा िोई साधन नही ूं है उसिे पास, िोई पैर नही ूं हैं , िेकिन र्कत िरता है । िुूंडकिनी िे पास भी
िोई पैर नही ूं हैं , िोई साधन नही ूं है , कनपट ऊजाग है , किर भी यात्रा िरती है ।

तीसरी िात जो खयाि में आती है कि सपग जि िैठा हो, कवश्राम िर रहा हो, तो िुूंडि मारिर िैठ
जाता है । जि िुूंडकिनी िै ठी हाित में होती है , हमारे शरीर िी ऊजाग जि जर्ी नही ूं है , तो वह भी िुूंडि मारे ही
िैठी रहती है । असि में, एि ही जर्ह पर िहुत िूंिी चीज िो िैठना हो तो िुूंडि मारिर ही िैठ सिती
है , और तो िोई उपाय भी नही ूं है उसिे िैठने िा।

वह िुूंडि िर्ािर िैठ जाए तो िहुत िूंिी चीज भी िहुत छोटी जर्ह में िन जाए। और िहुत िड़ी
शक्तक्त िहुत छोटे से किूंदु पर िैठी है , तो िुूंडि मारिर ही िैठ सिती है । किर सपग जि उठता है , तो एि—एि
िुूंडि टू टते हैं उसिे—जैसे—जैसे वह उठता है उसिे िुूंडि टू टते हैं । ऐसा ही एि—एि िुूंडि िुूंडकिनी िा
भी टू टता हुआ मािूम पड़ता है , जि िुूंडकिनी िा सपग उठना शु रू होता है ।

सपग िभी क्तखिवाड़ में अपनी पूूंछ भी पिड़ िेता है । सपग िा पूूंछ पिड़ने िा प्रतीि भी िीमती है ।
और अनेि िोर्ोूं िो वह खयाि में आया कि वह पिड़ने िा, पूूंछ िो पिड़ िेने िा प्रतीि िड़ा िीमती है ।
वह िीमती इसकिए है कि जि िुूंडकिनी पूरी जार्ेर्ी, तो वह वतुग िािार हो जाएर्ी और भीतर उसिा वतुग ि
िनना शु रू हो जाएर्ा—उसिा िन अपनी ही पूूं छ पिड़ िेर्ा;साूं प एि वतुग ि िन जाता।

अि िोई प्रतीि ऐसा हो सिता है कि साूं प िे मुूं ह ने उसिी पूूंछ िो पिड़ा। अर्र पुरुष साधना िी
दृकष्ट से प्रतीि िनाया र्या होर्ा तो मुूंह पूूंछ िो पिड़े र्ा— आक्रामि होर्ा। और अर्र स्त्री साधना िे ध्यान से
प्रतीि िनाया र्या होर्ा तो पूूंछ मुूंह िो छूती हुई मािूम पड़े र्ी—समकपगत पूूंछ है वह, मुूंह ने पिड़ी नही ूं है । यह
ििग पड़े र्ा प्रतीि में , और िोई ििग पडने वािा नही ूं है ।

सहस्रार में कां डजिनी का पूरा जिस्तार:

यह जो सपग िा जो िन है , यह भी साथगि मािूम पड़ा। क्ोूंकि पूूंछ तो उसिी पतिी होती है , िेकिन
उसिा िन िड़ा होता है । और जि िुूंडकिनी पूरी िी पूरी जार्ती है , तो सहस्रार में जािर िन िी भाूं कत िैि
जाती है । उसमें िहुत िूि क्तखिते हैं , वह िहुत कवस्तार िे िेती है ; पूूंछ ति उसिी िहुत छोटी रह जाती है ।

सपग जि िभी खड़ा होता है तो िड़ा आश्चयगजनि है . वह पूूंछ िे िि पूरा खड़ा हो जाता है । वह भी एि
कमरे िि है , एि चमत्कार है । सपग में हड्डी नही ूं होती, वह किना हड्डी िा जानवर है , िेकिन वह पूूंछ िे िि खड़ा
हो सिता है । और जि किना हड्डी िा जानवर, िोई रें र्ता हुआ पशु —सपग जैसा—किना हकड्डयोूं िे, पूूंछ िे िि
पूरा खड़ा हो जाता है , तो वह कनपट ऊजाग िे सहारे खड़ा है । और िोई उपाय नही ;ूं उसिे पास और ठोस साधन
नही ूं हैं खड़े होने िें—कसिग शक्तक्त िे िि, कसिग सूं िल्प िे िि खड़ा है । खड़ा होने में िोई िहुत मैटीररयि
ताित नही ूं है उसिे पास। समझ रहे हैं मेरा मतिि?

तो जि हमारी िुूंडकिनी पूरी जार्िर खड़ी होती है तो उसिे पास िोई मैटीररयि सहारा नही ूं
होता, एिदम इिैटीररयि िोसग ...... .इसकिए सपग प्रतीि िी तरह िर्ा।

और भी िई िारण थे जो सपग में िर्े साथगि। जैसे , एि अथग में सपग िहुत इनोसें ट है , िड़ा भोिा है ।
इसकिए भोिेशूंिर उसिो कसर पर रखे हुए हैं । वह िहुत भोिा है , एिदम भोिा है । ऐसे अपनी तरि से किसी
िो सताने नही ूं जाता। िेकिन अर्र िोई छे ड़ दे तो खतरनाि कसद्ध हो सिता है । तो यह खयाि भी िुूंडकिनी
में है कि िुूंडकिनी ऐसे िहुत इनोसें ट शक्तक्त है , अपनी तरि से तु म्हें परे शान नही ूं िरती। िेकिन अर्र तु म र्ित
ढूं र् से छे ड़ दो तो खतरे में पड़ सिते हो, भारी खतरा हो सिता है । इसकिए र्ित ढूं र् से छे ड़ना खतरनाि
है , वह िोध भी खयाि में है ।
ये सारी िातोूं िो ध्यान में रखिर वह प्रतीि.. .उससे िेहतर िोई प्रतीि कदखाई नही ूं पड़ा—सपग से
िेहतर। और सारी दु कनया में सपग जो है वह कवजडम िा प्रतीि भी है , प्रज्ञा िा प्रतीि भी है । जीसस िा वचन है
सपग जैसे िुक्तद्धमान, चािाि और ििूतर जैसे भोिे —ऐसे िनो। सपग िहुत ही िुक्तद्धमान प्राणी है —िहुत
सजर्, िहुत जार्रूि, िहुत ते ज, िहुत र्कतमान, वे सि उसिी खू कियाूं हैं । िुूंडकिनी भी वै सी चीज है ।
िुक्तद्धमिा िा चरम कशखर उससे छु आ जाएर्ा। उतनी ही चपि और र्कतमान भी है । उतनी ही शक्तक्तशािी भी
है ।

कां डजिनी का आधजनक प्रतीक—जिद् यत ि राकेट:

तो पुराने कदनोूं में जि यह प्रतीि खोजा र्या िुूंडकिनी िे किए, ति शायद सपग से िेहतर िोई प्रतीि
नही ूं था। अि भी नही ूं है ; िेकिन शायद भकवष्य में और प्रतीि हो जाएूं — रािेट िी तरह। िभी भकवष्य िा िोई
खयाि रािेट िी तरह िुूंडकिनी िो पिड़ सिता है ; वैसी उसिी यात्रा है — एि अूंतररक्ष से दू सरे
अूंतररक्ष, एि ग्रह से दू सरे ग्रह में , िीच में शू न्य िी पतग है । वह िभी प्रतीि िन सिता है । प्रतीि तो युर्
खोजता है । यह प्रतीि तो उस कदन खोजा र्या जि आदमी और पशु िड़े कनिट थे। उस वक्त सारे प्रतीि हमने
पशु ओूं से खोजे, क्ोूंकि हमारे पास वही तो जानिारी थी, उन्ी ूं से हम खोजते थे। सपग उस समय हमारी नजर में
सिसे कनिटतम प्रतीि था।

जैसे कवदि् युत — उस कदन हम नही ूं िह सिते थे । आज जि मैं िात िरता हूं तो िुूंडकिनी िे साथ
इिेक्तक्ङरकसटी िी िात िर सिता हूं । आज से पाूं च हजार साि पहिे िुूंडकिनी िे साथ कवदि् युत िी िात नही ूं िी
जा सिती थी, क्ोूंकि कवदि् युत िा िोई प्रतीि नही ूं था। िेकिन सपग में कवदि् युत जैसी क्ाकिटी भी है । हमें अि
िकठन मािूम होता है , क्ोूंकि हममें से िहुतोूं िे जीवन में सपग िा िोई अनुभव ही नही ूं है । हमारी िड़ी
िकठनाई है , क्ोूंकि हमारे किए सपग िा िोई अनुभव नही ूं है । िुूंडकिनी िा तो है ही नही ,ूं सपग िा भी िहुत
अनुभव नही ूं है । सपग हमारे किए जैसे एि कमथ है ।

आधजनक यग में सपओ से अपररचय और कां डजिनी से भी:

अभी कपछिी दिा िूंदन में िच्चोूं िा एि सवे किया र्या, तो िूंदन में सात िाख ऐसे िच्चे हैं कजन्ोूंने
र्ाय नही ूं दे खी। तो कजन िच्चोूं ने र्ाय न दे खी हो, उन्ोूंने सपग दे खा हो, यह जरा मुक्तिि मामिा है । अि कजन
िच्चोूं ने र्ाय नही ूं दे खी है , अि इनिा कचूंतन, इनिा सोचना, इनिे प्रतीि िहुत कभन्न हो जाएूं र्े।

सपग िाहर हो र्या दु कनया से , वह हमारी दु कनया िा अि कहस्सा नही ूं है िहुत। िभी वह हमारा िहुत
कनिट पड़ोसी था;च िीस घूंटे साथ था, सत्सूं र् था। और ति आदमी ने उसिी सि चपिताएूं दे खी हैं , उसिी
िुक्तद्धमानी दे खी है , उसिी र्कत दे खी है ; उसिी सरिता भी दे खी है , उसिा खतरा भी दे खा है, वह सि दे खा है ।
ऐसी घटनाएूं हैं जि कि िोई सपग एि िच्चे िो िचा िे। एि कनरीह िच्चा पड़ा है , और सपग उस पर िन मारिर
िैठ जाए और उसिो िचा िे। वह इतना भोिा भी है । और ऐसी भी घटनाएूं हैं कि वह खतरनाि से खतरनाि
आदमी िो एि दूं श मार दे और समाप्त िर दे । वे दोनोूं उसिी सूं भावनाएूं हैं ।
तो जि आदमी सपग िे िहुत कनिट रहा होर्ा, ति उसिो पहचाना था वह। उसी वक्त िुूंडकिनी िी
िात भी चिी थी, वे दोनोूं तािमेि खा र्ए। वह िहुत पुराना प्रतीि िन र्या। िेकिन सि प्रतीि अथगपूणग हैं ।
क्ोूंकि जि िनाए र्ए हैं हजारोूं साि में , तो उनिे पीछे िोई तािमे ि है । िे किन अि टू ट जाएर्ा, िहुत कदन सपग
िा प्रतीि नही ूं चिेर्ा। अि िहुत कदन ति हम िुूंडकिनी िो सरपेंट पावर नही ूं िह सिेंर्े। क्ोूंकि सपग िेचारा
अि िहाूं है ! अि उसमें उतनी शक्तक्त भी िहाूं है ! अि वह कजूंदर्ी िे रास्ते पर िही ूं कदखाई नही ूं पड़ता। वह
िही ूं हमारा पड़ोसी भी नही ूं रहा, हमारे पास भी नही ूं रहता। उससे हमारे िोई सूं िूंध नही ूं रह र्ए हैं । इसकिए
यह सवाि उठता है , नही ूं तो पहिे यह िभी सवाि नही ूं उठ सिता था, क्ोूंकि सपग एिमात्र प्रतीि था।

शारीररक सां रचना में रूपाां तरण:

प्रश्न : ओशो ोसा कहा गया है जक कां डजिनी जब जागती है तो िह खू न पी जाती है माां स खा
जाती है । इसका क्ा अथओ है ?

हाूं , इसिा अथग होता है, इसिा अथग होता है। इसिा अथग...... और किििुि वैसा ही होता है, जैसा
िहा र्या है ; प्रतीि अथग नही ूं होता। असि में , िुूंडकिनी जार्े तो शरीर में िड़े रूपाूं तरण होते हैं ; िड़े रूपाूं तरण
होते हैं । िोई भी ऊजाग शरीर में जार्ेर्ी नई, तो शरीर िा पुराना पूरा िा पूरा िपोजीशन िदिता है । िदिेर्ा
ही। जैसे, हमारा शरीर िई तरह िे व्यवहार िर रहा है कजनिा हमें पता नही ूं है , जो अनजाने और अनिाूं शस
हैं । जैसे िूंजूस आदमी है । अि िूंजूसी तो मन िी िात है , िेकिन शरीर भी उसिा िूंजूस हो जाएर्ा। और
शरीर उन तत्वोूं िो कडपॉकजट िरने िर्ेर्ा कजनिी भकवष्य में जरूरत है । अिारण इिट्ठे िर िेर्ा, इतने इिट्ठे
िर िेर्ा कि उनिे इिट्ठे होने से परे शानी में पड़ जाएर्ा। वे िोकझि हो जाएूं र्े।

अि एि आदमी िहुत भयभीत है । तो शरीर उन तत्वोूं िो िहुत इिट्ठे िरिे रखे र्ा कजनसे भय पै दा
किया जा सिता है । नही ूं तो िभी भय िा तत्व न रहे पास, और तु म्हें भयभीत होना है , तो शरीर क्ा
िरे र्ा? तु म उससे माूं र् िरोर्े —मुझे भयभीत होना है ! और शरीर िे पास भय िी ग्रूं कथयाूं नही ूं हैं , भय िा रस
नही ूं है , तो क्ा िरे र्ा? तो वह इिट्ठा िरता है । भयभीत आदमी िा शरीर भय िी ग्रूंकथयाूं इिट्ठी िर िेता
है , भय इिट्ठा िर िेता है । अि कजस आदमी िो भय में पसीना छूटता है , उसिे शरीर में पसीने िी ग्रूंकथयाूं
िहुत मजिूत हो जाती हैं और िहुत पसीना वह इिट्ठा िरिे रखता है । िभी भी,रोज कदन में दस दिे जरूरत
पड़ जाती है ।

तो हमारा शरीर जो है , वह हमारे कचि िे अनुिूि िहुत िुछ इिट्ठा िरता रहता है । जि हमारा कचि
िदिेर्ा तो शरीर िदिेर्ा। और जि हमारा कचि िदिेर्ा और िुूंडकिनी जार्े र्ी तो पूरा रूपाूं तरण होर्ा। उस
रूपाूं तरण में िहुत िुछ िदिाहट होर्ी। उसमें तु म्हारा माूं स िम हो सिता है , तु म्हारा खू न िम हो सिता
है , िेकिन उतना ही िम हो सिता है कजतने िी तु म्हारे किए जरूरत रह जाए। शरीर एिदम रूपाूं तररत होर्ा।
शरीर िे किए कजतना कनपट आवश्यि है , वह रह जाएर्ा, शे ष सि जििर खाि हो जाएर्ा—तभी तु म हििे
हो पाओर्े , तभी उड़ने योग्य हो पाओर्े। वह होर्ा ििग।
इसकिए वह ठीि है खयाि उनिा। इसकिए साधि िो एि कवशे ष प्रिार िा भोजन, एि कवशे ष
प्रिार िी जीवन व्यवस्था, वह सि जरूरी है । अन्यथा वह िहुत मुक्तिि में पड़ सिता है ।

कां डजिनी की आग में सब कचरा भस्म:

किर िुूंडकिनी जि जार्ेर्ी, तु म्हारे भीतर िहुत र्मी पैदा होर्ी; क्ोूंकि वह तो इिेक्तक्ङरि िोसग है ; वह
तो िहुत तापग्रस्त ऊजाग है । जैसा कि मैं ने तु मसे िहा कि सपग एि प्रतीि है , िुछ जर्ह िुूंडकिनी िो अकग्न ही
प्रतीि समझा र्या है । वह भी अच्छा प्रतीि था। तो वह आर् िी तरह ही जिे र्ी तु म्हारे भीतर और िपटोूं िी
तरह ऊपर उठे र्ी। उसमें तु म्हारा िहुत िुछ जिे र्ा। तो अत्यूंत रूखापन भीतर पैदा हो सिता है िुूंडकिनी िे
जर्ने से । इसकिए व्यक्तक्तत्व कस्नग्ध चाकहए और व्यक्तक्तत्व में थोड़े रस—स्रोत चाकहए।

अि जैसे क्रोधी आदमी है । अर्र क्रोधी आदमी िी िुूंडकिनी जर् जाए तो वह मु क्तिि में
पड़े र्ा; क्ोूंकि वह वैसे ही रूखा आदमी है , और एि आर् जर् जाए उसिे भीतर तो िकठनाई हो जाएर्ी। प्रेमी
आदमी है , वह कस्नग्ध है , उसिे भीतर रस िी कस्नग्धता है । िुूंडकिनी जर्ेर्ी तो िकठनाई नही ूं होर्ी।

इन सि िातोूं िो ध्यान में रखिर वह िात िही र्ई है । िेकिन वह िहुत क्रूड ढूं र् से िही र्ई है । और
पुराना ढूं र् सभी िूड था। वह िहुत कविकसत नही ूं है िहने िा ढूं र्। पर ठीि िहा है कि माूं स जिेर्ा, खू न
जिेर्ा, मज्जा जिेर्ी। क्ोूंकि तु म िदिोर्े पूरे िे पूरे ; तु म दू सरे आदमी होनेवािे हो, तु म्हारी सारी िी सारी
व्यवस्था, सारी िपोजीशन िदिने िो है । इसकिए साधि िी तै यारी में वह भी ध्यान में रखना अत्यूंत जरूरी है ।

अब जिर कि बात करें गे ।

प्रिचन 19 - अज्ञात अपररजचत गहराइयोां में

ते रहिी ां प्रश्नोत्तर चचाओ :

शरीर : मन का अनगामी:

प्रश्न: ओशो नारगोि जशजिर में आपने कहा जक योग के आसन प्राणायाम मद्रा और बांध का
आजिष्कार ध्यान की अिस्थाओां में हुआ तथा ध्यान की जिजभन्न अिस्थाओां में जिजभत्र आसन ि मद्राएां बन
जाती हैं जजन्ें दे खकर साधक की ब्धस्थजत बताई जा सकती है । इसके उिटे यजद िे आसन ि मद्राएां सीधे
की जाएां तो ध्यान की िही भािदशा बन सकती है । तब क्ा आसन प्राणायाम मद्रा और बां धोां के अभ्यास
से ध्यान उपिि हो सकता है ? ध्यान साधना में उनका क्ा महत्व और उपयोग है ?

प्रारूं कभि रूप से ध्यान ही उपिि हुआ। िेकिन ध्यान िे अनुभव से शात हुआ कि शरीर िहुत सी
आिृकतयाूं िेना शु रू िरता है । असि में , जि भी मन िी एि दशा होती है तो उसिे अनुिूि शरीर भी एि
आिृकत िेता है । जैसे जि आप प्रेम में होते हैं तो आपिा चेहरा और ढूं र् िा हो जाता है , जि क्रोध में होते हैं तो
और ढूं र् िा हो जाता है । जि आप क्रोध में होते हैं ति आपिे दाूं त कभूंच जाते हैं , मुकट्ठयाूं िूंध जाती हैं ,

शरीर िड़ने िो या भार्ने िो तै यार हो जाता है । ऐसे ही, जि आप क्षमा में होते हैं ति मुट्ठी िभी नही ूं
िूंधती, हाथ खु िा हुआ हो जाता है । क्षमा िा भाव अर्र िोई आदमी में हो तो वह क्रोध िी भाूं कत मु ट्ठी िाूं धिर
नही ूं रह सिता। जैसे मुट्ठी िाूं धना हमिा िरने िी तै यारी है , ऐसा मुट्ठी खोििर खु िा हाथ िर दे ना हमिे से
मुक्त िरने िी सू चना है —वह दू सरे िो अभय दे ना है ; मुट्ठी िाूं धना दू सरे िो भय दे ना है ।

शरीर एि क्तस्थकत िेता है , क्ोूंकि शरीर िा उपयोर् ही यही है कि मन कजस अवस्था में हो, शरीर
तत्काि उस अवस्था िे योग्य तै यार हो जाए। शरीर जो है , अनुर्ामी है ; वह पीछे अनुर्मन िरता है ।

तो साधारण क्तस्थकत में...... यह तो हमें पता है कि एि आदमी क्रोध में क्ा िरे र्ा; यह भी पता है कि प्रेम
में क्ा िरे र्ा; यह भी पता है कि श्रद्धा में क्ा िरे र्ा। िेकिन और र्हरी क्तस्थकतयोूं िा हमें िोई पता नही ूं है ।

जि भीतरी कचि में वे र्हरी क्तस्थकतयाूं पैदा होती हैं , ति भी शरीर में िहुत िुछ होता है । मुद्राएूं िनती
हैं , जो कि िड़ी सू चि हैं ; जो भीतर िी खिर िाती हैं । आसन भी िनते हैं ; जो कि पररवतग न िे सू चि हैं ।

असि में, भीतर िी क्तस्थकतयोूं िी तै यारी िे समय तो िनते हैं आसन और भीतर िी क्तस्थकतयोूं िी खिर
दे ने िे समय िनती हैं मुद्राएूं । भीतर जि एि पररवतग न चिता है तो शरीर िो भी उस नये पररवतग न िे योग्य
एडजस्टमेंट खोजना पड़ता है । अि भीतर यकद िुूंडकिनी जार् रही है तो उस िुूंडकिनी िे किए मार्ग दे ने िे किए
शरीर आड़ा—कतरछा, न मािूम कितने रूप िेर्ा। वह मार्ग िुूंडकिनी िो भीतर कमि सिे , इसकिए शरीर िी
रीढ़ िहुत तरह िे तोड़ िरे र्ी। जि िुूंडकिनी जार् रही है तो कसर भी कवशे ष क्तस्थकतयाूं िे र्ा। जि िुूंडकिनी जार्
रही है तो शरीर िो िुछ ऐसी क्तस्थकतयाूं िे नी पड़े र्ी जो उसने िभी नही ूं िी।

अि जैसे, जि हम जार्ते हैं तो शरीर खड़ा होता है या िै ठता है ; जि हम सोते हैं ति खड़ा और िै ठा
नही ूं रह जाता, उसे िेटना पड़ता है । समझ िें एि आदमी ऐसा पैदा हो जो सोना न जानता हो जन्म िे साथ, तो
वह िभी िेटेर्ा नही ूं। तीस वषग िी उम्र में उसिो पहिी दिे नी ूंद आए, तो वह पहिी दिे िे टेर्ा, क्ोूंकि
उसिे भीतर िी कचि—दशा िदि रही है और वह नीद
ूं में जा रहा है । तो उसिो िड़ी है रानी होर्ी कि यह
िेटना अि ति तो िभी घकटत नही ूं हुआ, आज वह पहिी दिा िेट क्ोूं रहा है ! अि ति वह िै ठता था, चिता
था, उठता था, सि िरता था, िेटता भर नही ूं था।

अि नी ूंद िी क्तस्थकत िन सिे भीतर, इसिे किए िेटना िड़ा सहयोर्ी है । क्ोूंकि िेटने िे साथ ही मन
िो एि व्यवस्था में जाने में सरिता हो जाती है । िेटने में भी अिर्—अिर् व्यक्तक्तयोूं िी अिर्—अिर्
क्तस्थकतयाूं होती हैं , एि सी नही ूं होती;ूं क्ोूंकि अिर्—अिर् व्यक्तक्तयोूं िे कचि कभन्न होते हैं । जैसे जूंर्िी आदमी
तकिया नही ूं रखता है , िेकिन सभ्य आदमी किना तकिए िे नही ूं सो सिता। जूंर्िी आदमी इतना िम सोचता है
कि उसिे कसर िी तरि खू न िा प्रवाह िहुत िम होता है । और नी ूंद िे किए जरूरी है कि कसर िी तरि खू न
िा प्रवाह िम हो जाए। अर्र प्रवाह ज्यादा है तो नी ूंद नही ूं आएर्ी, क्ोूंकि कसर िे स्नायु कशकथि नही ूं हो
पाएूं र्े , कवश्राम में नही ूं जा पाएूं र्े , उनमें खू न द ड़ता रहे र्ा। इसकिए आप तकिए पर तकिए रखते चिे जाते हैं ।
जैसे आदमी कशकक्षत होता है , सु सूंस्कृत, तकिए ज्यादा होते जाते हैं , क्ोूंकि र्दग न इतनी ऊूंची होनी चाकहए कि
खू न भीतर न चिा जाए कसर िे। जूंर्िी आदमी किना इसिे सो सिता है ।

ये हमारे शरीर िी क्तस्थकतयाूं हमारे भीतर िी क्तस्थकतयोूं िे अनु िूि खड़ी होती हैं । तो आसन िनने शु रू
होते हैं तु म्हारे भीतर िी ऊजाग िे जार्रण और कवकभन्न रूपोूं में र्कत िरने से । कवकभन्न चक्र भी शरीर िो कवकभन्न
आसनोूं में िे जाते हैं । और मुद्राएूं पै दा होती हैं जि तु म्हारे भीतर एि क्तस्थकत िनने िर्ती है —ति भी तु म्हारे
हाथ, तु म्हारे चेहरे , तु म्हारे आूं ख िी पििें,सििी मुद्राएूं िदि जाती हैं ।

यह ध्यान में होता है । िेकिन इससे उिटी िात भी स्वाभाकवि खयाि में आई कि यकद हम इन कक्रयाओूं
िो िरें तो क्ा ध्यान हो जाएर्ा? इसे थोड़ा समझना जरूरी है ।

आसनोां से जचत्त में पररितओ न अजनिायओ नही ां:

ध्यान में ये कक्रयाएूं होती हैं , िेकिन किर भी अकनवायग नही ूं हैं । यानी ऐसा नही ूं है कि सभी साधिोूं िो
एि सी कक्रया हो। एि िूंडीशन खयाि में रखनी जरूरी है , क्ोूंकि प्रत्ये ि साधि िी क्तस्थकत अिर् है , और
प्रत्येि साधि िी कचि िी और शरीर िी क्तस्थकत भी कभन्न है । तो सभी साधिोूं िो ऐसा होर्ा, ऐसा नही ूं है ।

अि जैसे किसी साधि िे कचि में , मक्तस्तष्क में अर्र खू न िी र्कत िहुत िम है और िुूंडकिनी जार्रण
िे किए कसर में खू न िी र्कत िी ज्यादा जरूरत है उसिे शरीर िो, तो वह तत्काि शीषाग सन में चिा जाएर्ा—
अनजाने। िेकिन सभी नही ूं चिे जाएूं र्े ; क्ोूंकि सभी िे कसर में खू न िी क्तस्थकत और अनुपात अिर्—अिर्
है , सििी अपनी जरूरत अिर्—अिर् है । तो प्रत्येि साधि िी क्तस्थकत िे अनु िूि िनना शु रू होर्ा। और
सििी क्तस्थकत एि जैसी नही ूं है ।

तो एि तो यह ििग पड़े र्ा कि जि ऊपर से िोई आसन िरे र्ा तो हमें िुछ भी पता नही ूं है कि वह
उसिी जरूरत है या नही ूं है । िभी सहायता भी पहुूं चा सिता है , िभी नु िसान भी पहुूं चा सिता है । अर्र वह
उसिी जरूरत नही ूं है तो नुिसान पड़े र्ा, अर्र उसिी जरूरत है तो िायदा पड जाएर्ा। िे किन वह अूंधेरे में
रास्ता होर्ा—एि िकठनाई। दू सरी िकठनाई और है और वह यह है कि हमें जो भीतर होता है , उसिे साथ जि
िाहर िुछ होता है , ति—ति भीतर से ऊजाग िाहर िी तरि सकक्रय होती है ; जि हम िाहर िुछ िरते हैं ति
वह िेवि अकभनय होिर भी रह जा सिता है ।

जैसे कि मैंने िहा कि जि हम क्रोध में होते हैं तो मुकट्ठयाूं िूंध जाती हैं । िे किन मुकट्ठयाूं िूंध जाने से क्रोध
नही ूं आ जाता। हम मु कट्ठयाूं िाूं धिर किििुि अकभनय िर सिते हैं और भीतर क्रोध किििुि न आए। किर
भी, अर्र भीतर क्रोध िाना हो तो मु कट्ठयाूं िाूं धना सहयोर्ी कसद्ध हो सिता है । अकनवायगत: भीतर क्रोध पैदा
होर्ा, यह नही ूं िहा जा सिता। िे किन मुट्ठी न िाूं धने और िाूं धने में अर्र चुनाव िरना हो तो िाूं धने में क्रोध िे
पैदा होने िी सूं भावना िढ़ जाएर्ी िजाय मुट्ठी खु िी होने िे। तो इतनी थोड़ी सी सहायता कमि सिती है ।

अि जैसे एि आदमी शाूं त क्तस्थकत में आ र्या तो उसिे हाथ िी शाूं त मुद्राएूं िनेंर्ी, िेकिन एि आदमी
हाथ िी शाूं त मुद्राएूं िनाता रहे , तो कचि अकनवायग रूप से शाूं त होर्ा, यह नही ूं है । हाूं , किर भी कचि िो शाूं त होने
में सहायता कमिे र्ी, क्ोूंकि शरीर तो अपनी अनुिूिता जाकहर िर दे र्ा कि हम तै यार हैं , अर्र कचि िो िदिना
हो तो वह िदि जाए। िेकिन किर भी कसिग शरीर िी अनुिूिता से कचि नही ूं िदि जाएर्ा। और उसिा
िारण यह है कि कचि तो आर्े है , शरीर सदा अनुर्ामी है । इसकिए कचि िदिता है , ति तो शरीर िदिता ही
है ; िेकिन शरीर िे िदिने से कसिग कचि िे िदिने िी सूं भावना भर पैदा होती है िदिाहट नही ूं हो जाती।

भीतर से यात्रा शरू करो:

तो इसकिए भ्ाूं कत िा डर है कि िोई आदमी आसन ही िरता रहे , मुद्राएूं ही सीखता रहे और समझ िे
कि िात पूरी हो र्ई। ऐसा हुआ है , हजारोूं वषों ति ऐसा हुआ है कि िुछ िोर् आसन—मुद्राएूं ही िरते रहे हैं
और समझते हैं कि योर् साध रहे हैं । धीरे — धीरे योर् से ध्यान तो खयाि से उतर र्या। अर्र िही ूं तु म किसी से
िहो कि वहाूं योर् िी साधना होती है , तो जो खयाि आता है वह यह है कि आसन, प्राणायाम इत्याकद होता
होर्ा।

तो इसकिए मैं जरूर यह िहता हूं कि अर्र साधि िी जरूरत समझी जाए तो उसिे शरीर िी िुछ
क्तस्थकतयाूं उसिे किए सहयोर्ी िनाई जा सिती हैं , िेकिन इनिा िोई अकनवायग पररणाम नही ूं है । और इसकिए
िाम सदा भीतर से ही शु रू िरने िे मैं पक्ष में हूं िाहर से शु रू िरने िे पक्ष में नही ूं हूं । भीतर से शु रू होना
चाकहए।

किर अर्र भीतर से शु रू होता हो तो समझा जा सिता है । अि जैसे कि मु झे िर्ता है .. .एि साधि
ध्यान में िै ठा है और मुझे िर्ता है कि उसिा रोना िूटना चाहता है , िेकिन वह रोि रहा है । अि यह मु झे
कदखाई पड़ रहा है कि अर्र वह रो िे दस कमनट तो उसिी र्कत हो जाए— एि िैथाकसग स हो जाए, एि रे चन हो
जाए उसिा। िेकिन वह रोि रहा है , वह सम्हाि रहा है अपने िो कि िही ूं रोना न कनिि जाए। इस साधि
िो अर्र हम िहें कि अि तु म रोिो मत, तु म अपनी तरि से ही रो िो—तु म रोओ! तो यह दो कमनट ति तो
अकभनय िी तरह रोएर्ा, तीसरे कमनट से इसिा रोना सही और ठीि हो जाएर्ा आथेंकटि हो जाएर्ा; क्ोूंकि
रोना तो भीतर से िूटना ही चाह रहा था, यह रोि रहा था। इसिे रोने िी प्रकक्रया रोने िो नही ूं िे आएर्ी, इसिे
रोने िी प्रकक्रया रोिने िो तोड़ दे र्ी और जो भीतर से िह रहा था वह िह जाएर्ा।

अि जैसे एि साधि नाचने िी क्तस्थकत में है , िेकिन अपने िो अिड़िर खड़ा किए हुए है । अर्र हम
उससे िह दें कि नाचो! तो प्राथकमि चरण में तो वह अकभनय ही शु रू िरे र्ा, क्ोूंकि अभी वह नाच कनििा
नही ूं है । वह नाचना शु रू िरे र्ा,िेकिन भीतर से नाच िूटने िी तै यारी िर रहा है , और इसने नाचना शु रू िर
कदया—इन दोनोूं िा तत्काि मेि हो जाएर्ा। िेकिन कजसिे भीतर नाचने िी िोई िात ही नही ूं उसिो हम
िहें — नाचो! तो वह नाचता रहे र्ा, िेकिन भीतर िुछ भी नही ूं होर्ा।

इसकिए हजार िातें ध्यान में रखनी जरूरी हैं । तो जो भी मैं िहता हूं उसमें िहुत सी शतें हैं । उन सारी
शतों िो खयाि में रखोर्े तो िात खयाि में आ सिती है । और अर्र इनिो खयाि में न रखनी होूं तो सिसे
सरि यह है कि भीतर से यात्रा शु रू िरो, और िाहर से जो भी होता हो उसे रोिो मत। िस इतना पयाग प्त है —
भीतर से िाम शु रू िरो; िाहर जो होता हो उसिो रोिो मत, उससे िड़ोूं मत, तो सि अपने से हो जाएर्ा।

खड़े होकर ध्यान करने से होश रखना सदा आसान:


प्रश्न: ओशो, आजकि आप जजस प्रयोग की बात कर रहे हैं उसमें बैठकर प्रयोग करने में और
खड़े होकर प्रयोग करने में क्ा जिजजकि और साइजकक अांतर पड़ता है ?

िहुत अूंतर पड़ता है। जो मैंने अभी िहा कि हमारे शरीर िी प्रत्येि क्तस्थकत हमारे मन िी प्रत्येि
क्तस्थकत से िही ूं र्हरे में जु ड़ी है और िही ूं समानाूं तर, पैरेिि है । अर्र हम किसी आदमी िो किटािर िहें कि
होश रखो, तो रखना मुक्तिि हो जाएर्ा; अर्र खड़े होिर िहें कि होश रखो, तो आसान हो जाएर्ा। अर्र खड़े
होिर हम िहें कि सो जाओ, तो मुक्तिि हो जाएर्ा; अर्र िेटिर हम िहें कि सो जाओ, तो आसान हो
जाएर्ा।

तो इस प्रयोर् में दोहरी प्रकक्रयाएूं हैं । प्रयोर् िा आधा कहस्सा सिोहन िा है , कजसमें कि कनद्रा िा डर
है । प्रयोर् िी प्रकक्रया कहिोकसस िी है । सिोहन िा प्रयोर् कसिग कनद्रा और िेहोशी िे किए किया जाता है ।
इसकिए डर है कि साधि सो न जाए, तूं द्रा में न चिा जाए। खड़ा रहे तो इस डर िो थोड़ा सा तोडि् ने में सहायता
कमिती है । सूं भावना िम हो र्ई उसिे सोने िी। इस प्रयोर् िा दू सरा कहस्सा साक्षी— भाव िा है —जार्रण
िा, अवेयरनेस िा है । िेटने में अवेयरनेस प्राथकमि रूप से रखनी िकठन है , अूंकतम रूप से रखनी आसान है ।
खड़े होिर होश रखना सदा आसान है ।

तो होश रह सिेर्ा खड़े होिर, साक्षी— भाव रह सिेर्ा, और दू सरी िात सिोहन िी जो प्रकक्रया है
प्राथकमि, वह कनद्रा में िे जाए, इसिी सूं भावना िम हो जाएर्ी।

प्रजतजक्याओां में तीव्रता:

और दो—तीन िातें हैं । जैसे, जि तु म खड़े हो, ति शरीर में जो मूवमेंट होने हैं , वे मुक्त भाव से हो
सिेंर्े। िेटिर उतने मुक्त भाव से न हो सिेंर्े ; िै ठिर भी आधा शरीर तो िर ही न पाएर्ा। समझ िो, पैरोूं िो
नाचना है और तु म िैठे हो, ति पैर नाच न पाएूं र्े। और तु म्हें पता भी नही ूं चिेर्ा, क्ोूंकि पैरोूं िे पास भाषा नही ूं
है साि कि तु मसे िह दें कि अि हमें नाचना है । िहुत सू क्ष्म इशारे हैं , कजनिो हम पिड़ नही ूं पाते । अर्र तु म
खड़े हो तो पैर उठने िर्ेंर्े और तु म्हें सू चना कमि जाएर्ी कि पैर नाचना चाहते हैं । िे किन अर्र तु म िैठे हो तो
यह सू चना नही ूं कमिे र्ी।

असि में, िैठी हुई हाित में ध्यान िरने िा प्रयोर् ही शरीर में होने वािी इन र्कतयोूं िो रोिने िे किए
था। इसकिए ध्यान िे पहिे कसद्धासन या पद्यासन या सु खासन, ऐसे आसन िा अभ्यास िरना पड़ता था कजसमें
शरीर डोि न सिे। तो शरीर में जो ऊजाग जर्ेर्ी उसिी सूं भावना िहुत पहिे से है कि उसमें िहुत िुछ होर्ा—
नाचोर्े , र्ाओर्े , रोओर्े , िूदोर्े द ड़ोर्े। तो ये क्तस्थकतयाूं सदा से पार्ि िी समझी जाती रही हैं । िोई द ड़ रहा
है , नाच रहा है , रो रहा है , कचल्रा रहा है — ये क्तस्थकतयाूं पार्ि िी समझी जाती रही हैं । साधि भी यह िरे र्ा तो
पार्ि मािूम पड़े र्ा। तो समाज िे सामने वह पार्ि न मािूम पड़े इसकिए पहिे वह सु खासन, कसद्धासन या
पद्यासन िा िठोर अभ्यास िरे र्ा, कजसमें कि शरीर िे रूं च मात्र कहिने िा डर न रह जाए। और जो िैठि है
पद्यासन िी या कसद्धासन िी, वह ऐसी है कि उसमें तु म्हारे पैर जिड़ जाते हैं , जमीन पर तु म्हारा आयतन ज्यादा
हो जाता है , ऊपर तु म्हारा आयतन िम होता जाता है । तु म एि मूंकदर िी भाूं कत हो जाते हो, जो नीचे च ड़ा है —
एि कपराकमड िी भाूं कत— और ऊपर सूं िरा है । मूवमेंट िी सूं भावना सिसे िम हो जाती है ।

मूवमेंट िी सवाग कधि सूं भावना तु म्हारे खड़े होने में है , जि कि नीचे िोई जड़ िनािर चीज नही ूं िै ठ र्ई
है । तो तु म्हारी जो पािथी है , वह नीचे जड़ िनाने िा िाम िरती है । जमीन िे ग्रे कवटे शन पर तु म्हारा िहुत िड़ा
कहस्सा शरीर िा हो जाता है ,वह उसे पिड़ िेता है । किर हाथ भी तु म इस भाूं कत से रखते हो कि उनमें डोिने िी
सूं भावना िम रह जाती है । किर रीढ़ िो भी सीधा और कथर रखना है । और पहिे इस आसन िा अभ्यास िरना
है िािी, जि इसिा अभ्यास हो जाए ति ध्यान में जाना है ।

स्थूि शरीर से रे चन करना सरि:

मेरी दृकष्ट में इससे उिटी िात है । और मेरी दृकष्ट में िात यह है कि पार्ि और हममें िोई िुकनयादी ििग
नही ूं है । हम सि दिे हुए पार्ि हैं ; सप्रेस्ट इनसे कनटी है हमारी। या िहना चाकहए हम जरा नामगि ढूं र् िे पार्ि
हैं । या िहना चाकहए कि हम औसत पार्ि हैं ; एवरे ज पार्ि हैं । हमारा सि पार्िोूं से तािमेि खाता है । हमारे
भीतर जो पार्ि थोड़े आर्े कनिि जाते हैं वे जरा कदक्कत में पड़ जाते हैं । िेकिन हम सििे भीतर पार्िपन है ।
और हम सििा पार्िपन भी अपना कनिास खोजता है ।

जि तु म क्रोध में होते हो ति एि अथग में तु म मोमेंटरी मैडनेस में होते हो। उस वक्त तु म वे िाम िरते
हो जो तु मने होश में िभी न किए होते । तु म र्ाकियाूं ििते हो, पत्थर िेंिते हो, सामान तोड़ सिते हो, छत से
िूद सिते हो, िुछ भी िर सिते हो। यह पार्ि िरता तो हम समझ िेते। िेकिन क्रोध में भी एि आदमी
िरता है तो हम िहते हैं, वह क्रोध में था। िेकिन था तो वही। ये चीजें उसिे भीतर अर्र नही ूं थी ूं तो आ नही ूं
सिती ूं; ये उसिे भीतर हैं । िेकिन हम इन सििो सम्हािे हुए हैं ।

मेरी अपनी समझ यह है कि ध्यान िे पहिे इन सििा कनिास हो जाना जरूरी है । कजतना इनिा
कनिास हो जाएर्ा,उतना तु म्हारा कचि हििा हो जाएर्ा। और इसकिए पुरानी जो साधना िी प्रकक्रया थी, कजसमें
तु म कसद्धासन िर्ािर िै ठते ,उसमें कजस िाम में वषों िर् जाते , वह इस प्रकक्रया में महीनोूं में पूरी हो जाएर्ी।
उसमें कजसमें जन्मोूं िर् जाते , इसमें कदनोूं में हो सिती है । क्ोूंकि इसिा कनष्कासन तो उस प्रकक्रया में भी िरना
पड़ता था, िेकिन उस प्रकक्रया में जो मूवमेंट थे , वे किकजिि िॉडी िे िूंद िरिे और ईथररि िॉडी िे िरने
पड़ते थे।

अि वह जरा दू सरी िात है । िरने तो पड़ते ही थे , रोना तो पड़ता ही था, क्ोूंकि अर्र रोना भीतर है तो
उसिा कनिािना जरूरी है ; और अर्र हूं सना भीतर है तो उसिा भी कनिािना जरूरी है ; और अर्र नाचना
भीतर है तो उसिा भी कनिािना जरूरी है ; और अर्र कचल्राने िी इच्छा है तो वह भी कनििनी चाकहए। िे किन
अर्र किकजिि िॉडी िा तु मने र्हरा अभ्यास किया है और तु म उसे कथर रख सिते हो, घूंटोूं िे किए, तो किर
इन सििा कनिास तु म ईथररि िॉडी से िर सिते हो; वह तु म्हारे दू सरे शरीर से इनिा कनिास हो सिता है ।
ति किसी िो कदखाई नही ूं पड़े र्ा, कसिग तु मिो कदखाई पड़े र्ा। ति तु मने समाज से एि सु रक्षा िर िी। अि
किसी िो पता नही ूं चि रहा है कि तु म नाच रहे हो, और भीतर तु म नाच रहे हो। यह नाच वैसा ही होर्ा जैसा तु म
स्वप्न में नाचते हो; यह नाच वैसा ही होर्ा। भीतर तु म नाचोर्े , भीतर तु म रोओर्े , भीतर तु म हूं सोर्े , िेकिन तु म्हारा
भ कति शरीर इसिी िोई खिर िाहर नही ूं दे र्ा; वह जड़वत िैठा रहे र्ा; उस पर इसिे िोई िूंपन नही ूं
आएूं र्े।
भौजतक शरीर के दमन से पागिपन की सां भािना:

मेरी अपनी मान्यता है कि इतनी परे शानी इतनी सी िात िे किए उठानी िेमानी है । और वषों किसी
आदमी िो आसनोूं िा अभ्यास िरािर किर ध्यान में िे जाने िा िोई प्रयोजन नही ूं है । इसमें दू सरी और भी
सूं भावनाएूं हैं । इसमें िहुत सूं भावना यह है कि किकजिि िॉडी िा अर्र िहुत र्हरा सें टर हो, तो वह आदमी
अर्र अपने भ कति शरीर िो दमन िर दे , तो हो सिता है ईथररि शरीर में भी िूंपन न हो सिें और वह कसिग
जड़ िी भाूं कत िै ठा रहे । और उस हाित में भीतर तो र्हरी प्रकक्रया न हो, िस िाहर से िै ठने िा अभ्यास हो
जाए। और यह भी डर है कि उस हाित में चूूं कि ये सारी र्कतयाूं न हो पाएूं , ये सि सप्रेस्त इिट्ठी रहें , तो वह
िभी भी पार्ि हो सिता है ।

पुराना साधि अने ि िार पार्ि होता दे खा र्या है ; उसमें उन्माद आता था। कजस प्रकक्रया िो मैं िह
रहा हूं इसिो अर्र पार्ि भी िरे र्ा, तो महीने , दो महीने िे भीतर पार्िपन िे िाहर हो जाएर्ा। साधारण
आदमी इस प्रकक्रया में िभी भी पार्ि नही ूं हो सिता, क्ोूंकि हम पार्िपन िो दिाने िी िोकशश ही नही ूं िर
रहे हैं , हम उसिो कनिािने िी िोकशश िर रहे हैं । पुरानी साधना ने हजारोूं िोर्ोूं िो पार्ि किया है । हम
उसिो नाम अच्छे दे ते थे —िभी िहते थे उन्माद, िभी हषोन्माद, िभी एक्सटे सी। हम नाम िुछ भी दे ते थे ; हम
िहते थे आदमी मस्त हो र्या, औकिया हो र्या, यह हो र्या, वह हो र्या। िे किन वह हो र्या पार्ि; उसने
किसी चीज िो इस िुरी तरह से दिाया कि अि वह उसिे वश िे िाहर हो र्ई।

इस प्रजक्या में पहिा काम रे चन का:

इस प्रकक्रया में दोहरा िाम है । इसमें पहिा िाम िैथाकसग स िा है , इसमें पहिा िाम कनिास िा
है ; तु म्हारे भीतर जो दिा हुआ िचरा है , वह िाहर किूंि जाए; पहिे तु म हििे हो जाओ, तु म इतने हििे हो
जाओ कि तु म्हारे भीतर पार्िपन िी सारी सूं भावना क्षीण हो जाए, किर तु म भीतर यात्रा िरो।

तो इस प्रकक्रया में , कजसमें प्रिट पार्िपन कदखाई पड़ता है , यह िड़े र्हरे में पार्िपन से मुक्तक्त िी
प्रकक्रया है । और मैं पसूं द िरता हूं कि जो है हमारे भीतर वह कनिि जाए। उसिा िोझ, उसिा तनाव, उसिी
कचूंता छूट जानी चाकहए।

और यह िड़े मजे िी िात है कि अर्र पार्िपन तु म पर आए, ति तु म उसिे माकिि नही ूं


होते , िेकिन कजस पार्िपन िो तु म िाए हो, तु म उसिे सदा माकिि हो। और एि िार तु म्हें पार्िपन िी
मािकियत िा पता चि जाए, तो तु म पर वह पार्िपन िभी नही ूं आ सिता जो तु म्हारा माकिि हो जाए।

अि एि आदमी अपनी म ज से नाच रहा है , र्ा रहा है , कचल्रा रहा है , रो रहा है , हूं स रहा है—वह सि
िर रहा है जो पार्ि िरता है , िेकिन कसिग एि ििग है कि पार्ि पर ये घटनाएूं होती हैं , वह िर रहा
है ; उसिे िोआपरे शन िे किना ये नही ूं हो रही हैं । वह एि से िेंड में चाहे कि िस, तो वह सि िूंद हो जाता है ।
इस पर अि पार्िपन िभी उतर नही ूं सिता, क्ोूंकि पार्िपन िो इसने जीया है , दे खा है, पररकचत हुआ है ।
यह उसिी वािेंटरी, स्वे च्छा िी चीज हो र्ई; पार्ि होना भी उसिी स्वे च्छा िे अूंतर्गत आ र्या। हमारी सभ्यता
ने हमें जो भी कसखाया है , उसमें पार्िपन हमारी स्वे च्छा िे िाहर हो र्या है ; वह नॉन—वािेंटरी हो र्या है । तो
जि आता है ति हम िुछ भी नही ूं िर सिते ।
आनेिािी सभ्यता के पागिपन का ध्यान द्वारा जनकास जरूरी:

तो इस प्रकक्रया िो आने वािी सभ्यता िे किए मैं िहुत िीमती मानता हूं क्ोूंकि आनेवािी पूरी सभ्यता
रोज पार्िपन िी तरि िढती चिी जाती है । और प्रत्येि व्यक्तक्त िो पार्िपन िे कनिास िी जरूरत है । और
िोई उपाय भी नही ूं है । अर्र वह एि घूंटा ध्यान में इसिो कनिािता है तो िोर् उसिे किए धीरे — धीरे राजी हो
जाते हैं , वे जानते हैं कि वह ध्यान िर रहा है । अर्र इसिो वह सड़ि पर कनिािता है तो पुकिस उसिो
पिड़िर िे जाएर्ी। अर्र इसिो क्रोध में कनिािता है तो सूं िूंध किर्ड़ते हैं और िुरूप होते हैं । इसे किसी से
झर्ड़े में कनिािता है ......कनिािता तो है ही, कनिािेर्ा नही ूं तो मुक्तिि में पड़ जाएर्ा। कनिािता
रहे र्ा, तरिीिें खोजता रहे र्ा—िभी शराि पीिर कनिाि िेर्ा, िभी जािर कट्वस्ट िरिे कनिाि िे र्ा। िेकिन
उतना उपद्रव क्ोूं िे ना? उतना उपद्रव क्ोूं िे ना?

अि कट्वस्ट है या और तरह िे नाच हैं , वे सि आिक्तस्भि नही ूं हैं । मनुष्य िा शरीर भीतर से मूव िरना
चाहता है हमारे पास मूवमेंट िी िोई जर्ह नही ूं रह र्ई। तो वह इूं तजाम िरता है । किर इूं तजाम में और जाि
िनते हैं । किना इूं तजाम िे कनिाि िे। तो ध्यान जो है वह किना इूं तजाम िे कनिािना है । हम िोई इूं तजाम नही ूं
िर रहे हैं , उसिो हम कसिग कनिाि रहे हैं । और हम मानते हैं कि वह भीतर है और कनिि जाना चाकहए।

अर्र हम एि—एि िच्चे िो कशक्षा िे साथ इस िैथाकसग स िो भी कसखा सिें, तो दु कनया में पार्िोूं िी
सूं ख्या एिदम कर्राई जा सिती है ; पार्ि होने िी िात ही खत्म िी जा सिती है । िेकिन वह रोज िढ़ती जा
रही है । और कजतनी सभ्यता िढ़े र्ी, उतनी िढ़े र्ी; क्ोूंकि सभ्यता उतना ही कसखाएर्ी—रोिो! सभ्यता न तो जोर
से हूं सने दे ती, न जोर से रोने दे ती, न नाचने दे ती, न कचल्राने दे ती; सभ्यता सि तरि से दिा डािती है । और
तु म्हारे भीतर जो—जो होना चाकहए वह रुिता जाता है , रुिता जाता है —किर िूटता है ; और जि वह िूटता
है , ति तु म्हारे वश िे िाहर हो जाता है ।

तो िैथाकसग स इसिा पहिा कहस्सा है , कजसमें इसिो कनिािना है । इसकिए मैं शरीर िे खड़े होने िे पक्ष
में हूं क्ोूंकि ति शरीर िी जरा सी भी र्कत तु म्हें पता चिेर्ी और तु म र्कत िर पाओर्े , तु म पूरे मुक्त हो
जाओर्े। इसकिए मैं साधि िे पक्ष में हूं कि जि वह अपने िमरे में प्रयोर् िरता हो तो िमरा िूंद रखे —न
िेवि खड़ा हो, िक्तम्ऻ नग्न भी हो, क्ोूंकि वस्त्र भी उसिो न रोिने वािे िनें ; वह सि तरह से स्वतूं त्र हो र्कत
िरने िो। जरा सी र्कत, और उसिे सारे व्यक्तक्तत्व में िही ूं िोई अवरोध न हो जो उसे रोि रहा है । तो िहुत
शीघ्रता से ध्यान में र्कत हो जाएर्ी। और जो हठयोर् और दू सरे योर्ोूं ने जन्मोूं में किया था,वषों में किया था, वह
इस ध्यान िे प्रयोर् से कदनोूं में हो सिता है ।

तीव्र साधना की जरूरत:

और अि दु कनया में वषों और जन्मोूं वािे योर् नही ूं कटि सिते । अि िोर्ोूं िे पास कदन और घूंटे भी
नही ूं हैं । और अि ऐसी प्रकक्रया चाकहए जो तत्काि ििदायी मािूम होने िर्े कि एि आदमी अर्र सात कदन िा
सूं िल्प िर िे तो किर सात कदन में ही उसे पता चि जाए कि हुआ है िहुत िुछ, वह आदमी दू सरा हो र्या है ।
अर्र सात जन्मोूं में पता चिे , तो अि िोई प्रयोर् नही ूं िरे र्ा। पुराने दावे जन्मोूं िे थे। वे िहते थे इस जन्म में
िरो, अर्िे जन्म में िि कमिें र्े। वे िड़े प्रतीक्षावािे धै यगवान िोर् थे। वे अर्िे जन्म िी प्रतीक्षा में इस जन्म में
भी साधना िरते थे। अि िोई नही ूं कमिेर्ा। िि आज न कमिता हो तो िि ति िे किए प्रतीक्षा िरने िी
तै यारी नही ूं है ।

िि िा िोई भरोसा भी नही ूं है । कजस कदन से कहरोकशमा और नार्ासािी पर एटम िम कर्रा है , उस


कदन से िि खत्म हो र्या है । अमे ररिा िे हजारोूं—िाखोूं िड़िे और िड़कियाूं िािेज में पढ़ने जाने िो तै यार
नही ूं हैं । वे िहते हैं हम पढ़— किखिर कनििेंर्े ति ति दु कनया िचे र्ी? िि िा िोई भरोसा नही ूं है ! तो वे
िहते हैं हमारा समय जाया मत िरो। कजतने कदन हमारे पास हैं , हम जी िें।

हाईस्कूि से िड़िे और िड़कियाूं स्कूि छोडि् िर भार्े जा रहे हैं । वे िहते हैं युकनवकसग टी भी नही ूं
जाएूं र्े। क्ोूंकि छह साि में युकनवकसग टी से कनििना.. .छह साि में दु कनया िचेर्ी? अि िेटा िाप से पूछ रहा है
कि छह साि दु कनया िा आश्वासन है ?तो हम ये छह साि जो थोड़े —िहुत हमारी कजूंदर्ी में हैं , हम क्ोूं न उनिा
उपयोर् िर िें।

जहाूं िि इतना सूं कदग्ध हो र्या है वहाूं तु म जन्मोूं िी िातें िरोर्े , िेमानी है ; िोई सु नने िो राजी
नही;ूं न िोई सु न रहा है । इसकिए मैं िह रहा हूं आज प्रयोर् हो और आज पररणाम होना चाकहए। और अर्र
एि घूंटा िोई मुझे आज दे ने िो राजी है , तो आज ही, उसी घूंटे िे िाद ही उसिो पररणाम िा िोध होना
चाकहए, तभी वह िि घूंटा दे सिेर्ा। नही ूं तो िि िे घूंटे िा िोई भरोसा नही ूं है । तो युर् िी जरूरत िदि र्ई
है । िैिर्ाड़ी िी दु कनया थी, उस वक्त सि धीरे — धीरे चि रहा था,साधना भी धीरे — धीरे चि रही थी। जेट िी
दु कनया है , साधना भी धीरे — धीरे नही ूं चि सिती; उसे भी तीव्र, र्कतमान, स्पीडी होना पड़े र्ा।

प्रश्न : साधना करते समय मन में बहुत से जिचार आएां तो उनको क्ा करना चाजहए?

आप सुिह आ जाएूं साधना िे वक्त, ति िात िरें र्े।

ऊजाओ के प्रिाह को ग्रहण करने के जिए झकना जरूरी:

प्रश्न: ओशो सािाां ग दां डित प्रणाम करना जदव्य परुषोां के चरणोां पर माथा रखना या हाथोां से
चरण— स्पशओ करना पजित्र स्थानोां में माथा टे कना जदव्य परुषोां का अपने हाथ से साधक के जसर अथिा
पीठ को छूकर आशीिाओ द दे ना जसक्कोां ि मसिमानोां का जसर ढाां ककर गरुद्वारे ि मब्धिद जाना इन सब
प्रथाओां का कां डजिनी ऊजाओ के सां दभओ में आकल्ट ि ब्धस्त्रचअि अथओ ि महत्व समझाने की कृपा करें ।

अथग तो है, अथग िहुत है। जैसा मैंने िहा, जि हम क्रोध से भरते हैं तो किसी िो मारने िा मन होता
है । जि हम िहुत क्रोध से भरते हैं तो ऐसा मन होता है कि उसिे कसर पर पैर रख दें । चूूंकि पैर रखना िहुत
अड़चन िी िात होर्ी, इसकिए िोर् जूता मार दे ते हैं । पैर रखना, एि पाूं च—छह िीट िे आदमी िे कसर पर
पैर रखना िहुत मुक्तिि िी िात है , इसकिए कसूं िाकिि, उतारिर जूता उसिे कसर पर मार दे ते हैं । िेकिन िोई
नही ूं पूछता दु कनया में कि दू सरे िे कसर में जूता मारने िा क्ा अथग है ? सारी दु कनया में! ऐसा नही ूं है कि िोई एि
ि म, िोई एि दे श..... .यह िड़ा युकनवसग ि तर्थ् है कि क्रोध में दू सरे िे कसर पर पैर रखने िा मन होता है । और
िभी जि आदमी कनपट जूंर्िी रहा होर्ा, तो जूता तो नही ूं था उसिे पास, वह कसर पर पैर रखिर ही मानता
था।

ठीि इससे उिटी क्तस्थकतयाूं भी हैं कचि िी। जैसे क्रोध िी क्तस्थकत है , ति किसी िे कसर पर पैर रखने िा
मन होता है ;और श्रद्धा िी क्तस्थकत है , ति किसी िे पैर में कसर रखने िा मन होता है । उसिे अथग हैं उतने
ही, कजतने पहिे िे। िोई क्षण है जि तु म किसी िे सामने पूरी तरह झुि जाना चाहते हो; और झुिने िे क्षण
वही हैं , जि तु म्हें दू सरे िे पास से अपनी तरि ऊजाग िा प्रवाह मािूम पड़ता है । असि में , जि भी िोई प्रवाह
िेना हो ति झुि जाना पड़ता है । नदी से भी पानी भरना हो तो झुिना पड़ता है । झुिना जो है , वह किसी भी
प्रवाह िो िेने िे किए अकनवायग है । असि में , सि प्रवाह नीचे िी तरि िहते हैं । तो ऐसे किसी व्यक्तक्त िे पास
अर्र िर्े किसी िो कि िुछ िह रहा है उसिे भीतर— और िभी िर्ता है —तो उस क्षण में उसिा कसर
कजतना झुिा हो उतना साथग ि है ।

शरीर के नकीिे जहस्सोां से ऊजाओ का प्रिाह:

किर शरीर से जो ऊजाग िहती है वह उसिे उन अूंर्ोूं से िहती है जो प्याइूं टेड हैं —जैसे हाथ िी
अूंर्ुकियाूं या पैर िी अूं र्ुकियाूं । सि जर्ह से ऊजाग नही ूं िहती। शरीर िी जो कवदि् युत —ऊजाग है , या शरीर से जो
शक्तक्तपात है , या शरीर से जो भी शक्तक्तयोूं िा प्रवाह है , वह हाथ िी अूंर्ुकियोूं या पैर िी अूंर्ुकियोूं से होता
है , पूरे शरीर से नही ूं होता। असि में , वही ूं से होता है जहाूं नुिीिे कहस्से हैं ; वहाूं से शक्तक्त और ऊजाग िहती है । तो
कजसे िेना है ऊजाग , वह तो पैर िी अूंर्ुकियोूं पर कसर रख दे र्ा, और कजसे दे ना है ऊजाग , वह हाथ िी अूंर्ुकियोूं
िो दू सरे िे कसर पर रख दे र्ा।

ये िड़ी आिल्ट और िड़ी र्हरी कवज्ञान िी िातें थी ूं।

स्वभावत:, िहुत से िोर् निि में उन्ें िरें र्े। हजारोूं िोर् कसर पर पैर रखें र्े कजन्ें िोई प्रयोजन नही ूं
है , हजारोूं िोर् किसी िे कसर पर हाथ रख दें र्े कजन्ें िोई प्रयोजन नही ूं है । और ति जो एि िहुत र्हरा सू त्र
था, धीरे — धीरे औपचाररि िन जाएर्ा। और जि िूंिे अरसे ति वह औपचाररि और िामगि होर्ा तो उसिी
िर्ावत भी शु रू होर्ी। िोई िहे र्ा कि यह सि क्ा ििवास है ! पैर पर रखने से कसर क्ा होर्ा? कसर पर हाथ
रखने से क्ा होर्ा?

स में कनन्यानिे म िे पर ििवास है । हो र्ई है ििवास। क्ोूंकि.... .स में एि म िे पर अि भी


साथगि है । और िभी तो स में स म िे पर ही साथगि थी; क्ोूंकि िभी वह स्पाूं टेकनअस एक्ङ था। ऐसा नही ूं था
कि तु म्हें औपचाररि रूप से िर्े तो किसी िे पैर छु ओ। नही,ूं किसी क्षण में तु म न रुि पाओ और पैर में कर्रना
पड़े तो रुिना मत, कर्र जाना। और ऐसा नही ूं था कि किसी िो आशीवाग द दे ना है तो उसिे कसर पर हाथ रखो
ही। यह उसी क्षण रखना था, जि तु म्हारा हाथ िोकझि हो जाए और िरसने िो तै यार हो जाए और उससे िुछ
िहने िो राजी हो, और दू सरा िेने िो तै यार हो, तभी रखने िी िात थी।
मर्र सभी चीजें धीरे — धीरे प्रतीि हो जाती हैं । और जि प्रतीि हो जाती हैं तो िेमानी हो जाती हैं ।
और जि िेमानी हो जाती हैं तो उनिे क्तखिाि िातें चिने िर्ती हैं । और वे िातें िड़ी अपीि िरती हैं । क्ोूंकि
जो िातें िेमानी हो र्ई हैं उनिे पीछे िा कवज्ञान तो खो र्या होता है । है तो िहुत साथगि।

ऊजाओ पाने के जिए खािी और खिा हुआ होना जरूरी:

और किर, जैसा मैंने पीछे तु म्हें िहा, यह तो कजूंदा आदमी िी िात हुई। यह कजूंदा आदमी िी िात हुई।
एि महावीर,एि िुद्ध, एि जीसस िे चरणोूं में िोई कसर रखिर पड र्या है और उसने अपूवग आनूंद िा
अनुभव किया है , उसने एि वषाग अनुभव िी है जो उसिे भीतर हो र्ई है । इसे िोई िाहर नही ूं दे ख पाएर्ा, यह
घटना किििुि आूं तररि है । उसने जो जाना है वह उसिी िात है । और दू सरे अर्र उससे प्रमाण भी माूं र्ेंर्े तो
उसिे पास प्रमाण भी नही ूं है ।

असि में , सभी आिल्ट किनाकमनन िे साथ यह िकठनाई है कि व्यक्तक्त िे पास अनुभव होता
है , िेकिन समूह िो दे ने िे किए प्रमाण नही ूं होता। और इसकिए वह ऐसा मािूम पड़ने िर्ता है कि अूंधकवश्वास
ही होर्ा। क्ोूंकि वह आदमी िहता है कि भई, िता नही ूं सिते कि क्ा होता है , िेकिन िुछ होता है । कजसिो
नही ूं हुआ है , वह िहता है कि हम िैसे मान सिते हैं ! हमें नही ूं हुआ है । तु म किसी भ्म में पड़ र्ए हो, किसी
भूि में पड़ र्ए हो। और किर हो सिता है , कजसिो खयाि है कि नही ूं होता है , वह भी जािर जीसस िे चरणोूं
में कसर रखे। उसे नही ूं होर्ा। तो वह ि टिर िहे र्ा कि र्ित िहते हो! मैंने भी उन चरणोूं पर कसर रखिर दे ख
किया। वह ऐसा ही है कि एि घड़ा कजसिा मुूंह खु िा है वह पानी में झुिे और ि टिर घड़ोूं से िहे कि मैं झुिा
और भर र्या। और एि िूं द मुूंह िा घड़ा िहे कि मैं भी जािर प्रयोर् िरता हूं । और वह िूंद मुूंह िा घड़ा भी
पानी में झुिे, और िहुत र्हरी डु ििी िर्ाए, िेकिन खािी वापस ि ट आए। और वह िहे कि झुिा भी, डु ििी
भी िर्ाई, िुछ नही ूं भरता है , र्ित िहते हो!

घटना दोहरी है । किसी व्यक्तक्त से शक्तक्त िा िहना ही िािी नही ूं है , तु म्हारी ओपकनूंर्, तु म्हारा खु िा
होना भी उतना ही जरूरी है । और िई िार तो ऐसा मामिा है कि दू सरे व्यक्तक्त से ऊजाग िा िहना उतना जरूरी
नही ूं है , कजतना तु म्हारा खु िा होना जरूरी है । अर्र तु म िहुत खु िे हो तो दू सरे व्यक्तक्त में जो शक्तक्त नही ूं है , वह
भी उसिे ऊपर िी, और ऊपर िी शक्तक्तयोूं से प्रवाकहत होिर तु म्हें कमि जाएर्ी। इसकिए िड़े मजे िी िात है
कि कजनिे पास नही ूं है शक्तक्त , अर्र उनिे पास भी िोई पूरे खु िे हृदय से अपने िो छोड़ दे , तो उनसे भी उसे
शक्तक्त कमि जाती है । उनसे नही ूं आती वह शक्तक्त , वे कसिग माध्यम िी तरह प्रयोर् में हो जाते हैं ; उनिो भी पता
नही ूं चिता, िेकिन यह घटना भी घट सिती है ।

जसर पर कपड़ा बाां धने का रहस्य:

दू सरी जो िात है कसर में िुछ िाूं धिर र्ु रुद्वारा या किसी मूंकदर या किसी पकवत्र जर्ह में प्रवेश िी िात
है । ध्यान में भी िहुत ििीरोूं ने कसर में िुछ िाूं धिर ही प्रयोर् िरने िी िोकशश िी है । उसिा उपयोर् है ।
क्ोूंकि जि तु म्हारे भीतर ऊजाग जर्ती है तो तु म्हारे कसर पर िहुत भारी िोझ िी सूं भावना हो जाती है । और
अर्र तु मने िुछ िाूं धा है तो उस ऊजाग िे कविीणग होने िी सूं भावना नही ूं होती, उस ऊजाग िे वापस आत्मसात
हो जाने िी सूं भावना होती है ।

तो िाूं धना उपयोर्ी कसद्ध हुआ है , िहुत उपयोर्ी कसद्ध हुआ है । अर्र तु म ध्यान, िपड़ा िाूं धिर कसर
पर िरोर्े , तो तु म ििग अनुभव िरोर्े ि रन; क्ोूंकि कजस िाम में तु म्हें पूंद्रह कदन िर्ते , उसमें पाूं च कदन
िर्ेंर्े। क्ोूंकि तु म्हारी ऊजाग जि कसर में पहुूं चती है तो उसिे कविीणग होने िी सूं भावना है , उसिे किखर जाने
िी सूं भावना है । अर्र वह िूंध सिे और एि वतुग ि िन सिे तो उसिा अनुभव प्रर्ाढ़ और र्हरा हो जाएर्ा।

िेकिन अि तो वह औपचाररि है , मूंकदर में किसी िा जाना या र्ु रुद्वारे में किसी िा कसर पर िपड़ा
िाूं धिर जाना किििुि औपचाररि है । उसिा अि िोई अथग नही ूं रह र्या है । िेकिन िही ूं उसमें अथग है ।

और व्यक्तक्त िे चरणोूं में कसर रखिर तो िोई ऊजाग पाई जा सिे, व्यक्तक्त िे हाथ से भी िोई ऊजाग
आशीवाग द में कमि सिती है , िेकिन एि आदमी एि मूंकदर में , एि वेदी पर, एि समाकध पर, एि मूकतग िे
सामने कसर झुिाता है , इसमें क्ा हो सिता है? तो इसमें भी िहुत सी िातें हैं ; एि दो—तीन िातें समझ िेने
जैसी हैं ।

मांजदर, कब्रें— अशरीरी आत्माओां से सां बांजधत होने के उपाय:

पहिी िात तो यह है कि ये सारी िी सारी मूकतग याूं एि िहुत ही वै ज्ञाकनि व्यवस्था से िभी कनकमगत िी
र्ई थी ूं। जैसे समझें कि मैं मरने िर् और दस आदमी मुझे प्रेम िरनेवािे हैं , कजन्ोूंने मेरे भीतर िुछ पाया और
खोजा और दे खा था, और मरते वक्त वे मुझसे पूछते हैं कि पीछे भी हम आपिो याद िरना चाहें तो िैसे िरें ?

तो एि प्रतीि तय किया जा सिता है मेरे और उनिे िीच, जो मेरे शरीर िे कर्र जाने िे िाद उनिे
िाम आ सिे; एि प्रतीि तय किया जा सिता है । वह िोई भी प्रतीि हो सिता है —वह एि मूकतग हो सिती
है , एि पत्थर हो सिता है , एि वृक्ष हो सिता है , एि चिूतरा हो सिता है ; मेरी समाकध हो सिती है , िब्र हो
सिती है , मेरा िपड़ा हो सिता है , मेरी खड़ाऊूं हो सिती है —िुछ भी हो सिता है । िेकिन वह मेरे और
उनिे, दोनोूं िे िीच तय होना चाकहए। वह एि समझ ता है । वह उनिे अिेिे से तय नही ूं होर्ा; उसमें मेरी
र्वाही और मेरी स्वीिृकत और मेरे हस्ताक्षर होने चाकहए—कि मैं उनसे िहूं कि अर्र तु म इस चीज िो सामने
रखिर स्भरण िरोर्े , तो मैं अभ कति क्तस्थकत में भी म जूद हो जाऊूंर्ा। यह मेरा वायदा होना चाकहए। तो इस
वायदे िे अनु िूि िाम होता है , किििुि होता है ।

इसकिए ऐसे मूं कदर हैं जो जीकवत हैं , और ऐसे मूंकदर हैं जो मृत हैं । मृत मूं कदर वे हैं जो इितरिा िनाए
र्ए हैं , कजनमें दू सरी तरि िा िोई आश्वासन नही ूं है । हमारा कदि है , हम एि िुद्ध िा मूंकदर िना िें। वह मृ त
मूंकदर होर्ा; क्ोूंकि दू सरी तरि से िोई आश्वासन नही ूं है । जीकवत मूंकदर भी हैं , कजनमें दू सरी तरि से आश्वासन
भी है ; और उस आश्वासन िे आधार पर उस आदमी िा वचन है ।

बि—परुषोां का मरने के बाद िायदोां को पूरा करना:


कतब्त में एि... अि तो जर्ह मुक्तिि में पड़ र्ई, िेकिन कतब्त में एि जर्ह थी जहाूं िुद्ध िा
आश्वासन कपछिे पच्चीस स वषग से कनरूं तर पूरा हो रहा है । पाूं च स आदकमयोूं िी, पाूं च स िामाओूं िी एि
छोटी सकमकत है । उन पाूं च स िामाओूं में से जि एि िामा मरता है ति िामुक्तिि से दू सरे िो प्रवेश कमिता
है । उसिी पाूं च स से ज्यादा सूं ख्या नही ूं हो सिती, िम नही ूं हो सिती। जि एि मरे र्ा तभी एि जर्ह खािी
होर्ी। और जि एि मरे र्ा और एि िो प्रवेश कमिेर्ा, तो शे ष सििी सवगसिकत से ही प्रवेश कमि सिता है ।
यानी एि आदमी भी इनिार िरने वािा हो तो प्रवे श नही ूं कमि सिेर्ा। वह जो पाूं च स िोर्ोूं िी सकमकत है , वह
िुद्ध—पूकणग मा िे कदन एि कवशे ष पवगत पर इिट्ठी होती है । और ठीि समय पर, कनकश्चत समय पर—जो समझ ते
िा कहस्सा है —कनकश्चत समय पर िुद्ध िी वाणी सु नाई पड़नी शु रू हो जाती है ।

पर यह हर किसी पहाड़ पर नही ूं होर्ा और हर किसी िे सामने नही ूं होर्ा; एि कनकश्चत समझ ते िे
कहसाि से यह िात होर्ी। यह वैसा ही है , जैसे कि तु म साूं झ िो सोओ और तु म सूं िल्प िरिे सोओ कि मैं सु िह
ठीि पाूं च िजे उठ आऊूं! ति तु म्हें घड़ी िी और अिामग िी िोई जरूरत नही ूं होर्ी—तु म अचानि पाूं च िजे
पाओर्े कि नीद
ूं टू ट र्ई है । और यह मामिा इतना अदभुत है कि इस वक्त तु म घड़ी कमिा सिते हो अपने
उठने से । इस वक्त घड़ी र्ित हो सिती है , तु म र्ित नही ूं हो सिते । तु म्हारे सूं िल्प िा जो पक्का कनणग य हो
तो तु म पाूं च िजे उठ जाओर्े।

अर्र तु मने सूं िल्प पक्का िर किया कि मु झे ििाूं वषग में ििाूं कदन मर जाना है , तो दु कनया िी िोई
ताित तु म्हें नही ूं रोि सिेर्ी, तु म उस क्षण चिे जाओर्े। मरने िे िाद भी, अर्र तु म्हारे सूं िल्प िी दु कनया
िहुत प्रर्ाढ़ है , तो तु म मरने िे िाद भी अपने वायदे पूरे िर सिते हो।

जैसे जीसस िा मरने िे िाद कदखाई पड़ना। वह वायदे िी िात थी जो पूरी िी र्ई। और इसकिए
ईसाइयत िड़ी मुक्तिि में है उसिे पीछे — कि किर क्ा हुआ, क्ा नही ूं हुआ? जीसस कदखाई पड़े या नही ूं
पड़े ? ररसरे क्ङ हुए कि नही ूं? वह एि वायदा था जो पूरा किया र्या और कजनिे किए था उनिे किए पूरा िर
कदया र्या।

तो ऐसे स्थान हैं ... असि में, ऐसे स्थान िा नाम ही धीरे — धीरे तीथग िन र्या जहाूं िोई जीकवत वायदा
हजारोूं साि से पूरा किया जा रहा था। किर िोर् वायदे िो भी भूि र्ए और जीकवत िात िो भी भू ि
र्ए, समझ ते िो भी भूि र्ए, एि िात खयाि रही कि वहाूं आना—जाना है , और वे आते —जाते रहे , और अि
भी आ—जा रहे हैं !

मोहिद िे भी वायदे हैं , और शूं िर िे भी वायदे हैं , और िृ्ण िे भी वायदे हैं , िुद्ध—महावीर िे भी
वायदे हैं । वे सि वायदे हैं खास जर्होूं से िूंधे हुए; खास समय, खास घड़ी और खास मुहतग में उनसे सूं िूंध किर
भी जोड़ा जा सिता है । तो उन स्थानोूं पर किर कसर टे ि दे ना पड़े र्ा, और उन स्थानोूं पर किर तु म्हें अपने िो
पूरा समकपगत िर दे ना होर्ा, तभी तु म सूं िूंकधत हो पाओर्े।

तो उनिा भी उपयोर् तो है । िेकिन सभी उपयोर्ी िातें अूंततः औपचाररि हो जाती हैं और सभी
उपयोर्ी िातें अूंतत: परूं परा िन जाती हैं , और मृ त हो जाती हैं , और व्यथग हो जाती हैं । ति सििो तोड़ डािना
पड़ता है , ताकि किर से नये वायदे किए जा सिें और किर से नये तीथग िन सिें और नई मू कतग और नया मूंकदर
िन सिे। वह सि तोड़ना पड़ता है , क्ोूंकि अि वह सि मृत हो जाता है , उसिा हमें िुछ पता नही ूं होता कि
उसिे पीछे ि न सी िूं िी प्रकक्रया िाम िर रही है ।

एि योर्ी था दकक्षण में। एि अूं ग्रेज यात्री उसिे पास आया। और उस अूंग्रेज यात्री ने िहा कि मैं तो
ि ट रहा हूं और अि दु िारा कहूं दुस्तान नही ूं आऊूंर्ा, िेकिन आपिे अर्र दशग न िरना चाहूं तो क्ा िरू
ूं ? तो
उस योर्ी ने अपना एि कचत्र उसे दे कदया और िहा, जि भी तु म द्वार िूंद िरिे अूंधेरे में इस कचत्र पर पाूं च
कमनट एिटि आूं ख िी पिि झपे किना दे खोर्े , तो मैं म जूद हो जाऊूंर्ा।

वह तो िेचारा मुक्तिि से अपने घर ति पहुूं चा। एि ही िाम था उसिे मन में कि िैसे घर जािर... भरोसा भी
नही ूं था कि यह सूं भव हो सिता है । िेकिन यह सूं भव हुआ। और जो आदमी था, वह एि वैज्ञाकनि डाक्ङर
था, वह िड़ी मुक्तिि में पड़ र्या। यह सूं भव हो र्या। एि वायदा था जो एस्टर िी पूरा किया जा सिता है , जो
सू क्ष्म शरीर से पूरा हो सिता है । इसमें िोई िकठनाई नही ूं है । कजूंदा आदमी भी पूरा िर सिता है , मरा हुआ
आदमी भी पूरा िर सिता है ।

मूजतओ ि मकबरोां का गह्य रहस्य:

इसकिए कचत्र भी महत्वपूणग हो र्ए, मूकतग याूं भी महत्वपूणग हो र्ईूं। उनिे महत्वपूणग होने िा िारण था
कि उन्ोूंने िुछ वायदे पूरे किए। मूकतग योूं ने भी वायदे पूरे किए। इसकिए मू कतग िनाने िी पूरी एि साइूं स थी। हर
किसी तरह िी मू कतग नही ूं िनाई जा सिती। मूकतग िनाने िी एि पूरी व्यवस्था थी कि वह िैसी होनी चाकहए।

अि जैसे अर्र तु म जैन तीथंिरोूं िी, च िीस तीथं िरोूं िी मूकतग याूं दे खो, तु म मुक्तिि में पड़ जाओर्े।
उनमें िोई ििग नही ूं है , वे किििुि एि जैसी हैं । कसिग उनिे कचह्न अिर्—अिर् हैं , महावीर िा एि कचह्न
है , पाश्वगनाथ िा एि कचह्न है नेमीनाथ िा एि कचह्न है । िेकिन मूकतग योूं िे अर्र कचह्न कमटा कदए जाएूं नीचे से तो वे
किििुि एि जैसी हैं । तु म उनमें िोई पता नही ूं िर्ा सिते कि यह महावीर िी है , कि पाश्वग िी है , कि नेमी िी
है , कि किसिी है — पता नही ूं िर्ा सिते ।

कनकश्चत ही, ये सारे िोर् तो एि सी शक्ल—सू रत िे नही ूं रहे होूंर्े। यह तो असूं भव है । ये च िीस आदमी
एि ही शक्ल—सू रत िे नही ूं हैं । िे किन जो पहिी तीथं िर िी मू कतग थी, उसी मूकतग िो सिने अपनी मू कतग िी
तरह, प्रतीि िी तरह समझ ता किया। अिर् मूकतग िनाने िी क्ा जरूरत थी? एि मूकतग चिती थी, वह मूकतग
िाम िरती थी, उसी मूकतग िे माध्यम से हम भी िाम िर िेंर्े , एि सीि—मुहर थी, वह िाम िरती थी।
उसिा मैंने भी उपयोर् किया, तु मने भी उपयोर् किया, तीसरे ने भी उपयोर् किया। िे किन किर भी भक्तोूं िा
मन! जो महावीर िो प्रेम िरते थे , उन्ोूंने िहा, िोई एि कचह्न तो अिर् हो। तो कसिग कचह्न भर अिर् िर किए
र्ए। किसी िा कसूं ह कचह्न है , किसी िा िुछ है , किसी िा िुछ है , वह अिर् िर किया र्या िे किन मूकतग एि
रही। और वे च िीसोूं मूकतग याूं किििुि एि सी मूकतग याूं हैं ; उनमें िोई ििग नही ूं है , कसिग कचह्न िा ििग है । िेकिन
वह कचह्न भी समझ ते िा अूंर् है ; उस कचह्न िी मूकतग से उस कचह्न से सूं िूंकधत व्यक्तक्त िा ही उिर उपिि होर्ा।
वह कचह्न एि समझ ता है जो अपना िाम िरे र्ा।

मोहम्मद ने कोई स्थूि प्रतीक नही ां छोड़ा:

जैसे जीसस िा कचह्न क्रास है , वह िाम िरे र्ा। जैसे मोहिद ने इनिार किया कि मेरी मूकतग मत
िनाना। मेरी मूकतग मत िनाना! असि में , मोहिद िे वक्त ति इतनी मूकतग याूं िन र्ई थी ूं कि मोहिद एि
किििुि ही दू सरा प्रतीि दे िर जा रहे थे अपने कमत्रोूं िो कि मेरी मूकतग मत िनाना, मैं किना ही मू कतग िे, अमूकतग में
तु मसे सूं िूंध िना िूूं र्ा। तु म मेरी मू कतग िनाना ही मत; तु म मेरा कचत्र ही मत िनाना; मैं तु मसे किना कचत्र, किना मूकतग
िे सूं िूंकधत हो जाऊूंर्ा। यह भी एि र्हरा प्रयोर् था,और िड़ा कहितवर प्रयोर् था, िहुत कहितवर प्रयोर् था।
िेकिन साधारणजन िो िड़ी िकठनाई पड़ी मोहिद से सूं िूंध िनाने में।

इसकिए मोहिद िे िाद हजारोूं ििीरोूं िी िब्रें और मििरे और समाकधयाूं उन्ोूंने िना िी। क्ोूंकि
मोहिद से सूं िूंध िनाने िा तो उनिी समझ में नही ूं आया कि िैसे िनाएूं । ति किर उन्ोूंने िोई और आदमी
िी िब्र िनािर उससे सूं िूंध िनाया किर मििरे िनाए। और कजतनी मििरोूं और िब्रोूं िी पूजा मु सिमानोूं में
चिी, उतनी दु कनया में किसी में नही ूं चिी। उसिा िुि िारण इतना था कि मोहिद िी िोई पिड़ नही ूं थी
उनिे पास कजससे वे सीधे सूं िूंकधत हो जाते , िोई रूप नही ूं िना पाते थे। तो उनिो दू सरा रूप तत्काि िनाना
पड़ा। और उस दू सरे रूप से उन्ोूंने सूं िूंध जोडि् ने शु रू किए।

यह सारी िी सारी एि वै ज्ञाकनि प्रकक्रया है । अर्र कवज्ञान िी तरह उसे समझा जाए तो उसिे अदभुत
िायदे हैं ; और अूंधकवश्वास िी तरह उसे समझा जाए तो िहुत आत्मघाती है ।

मूजतओ की प्राण—प्रजतष्ठा का रहस्य:

प्रश्न: ओशो प्राण—प्रजतष्ठा का क्ा महत्व है ?

हाूं , िहुत महत्व है। असि में, प्राण—प्रकतष्ठा िा मतिि ही यह है। उसिा मतिि ही यह है कि
हम एि नई मूकतग तो िना रहे हैं , िेकिन पुराने समझ ते िे अनुसार िना रहे हैं । और पुराना समझ ता पूरा हुआ
कि नही,ूं इसिे इूं कर्त कमिने चाकहए। हम अपनी तरि से जो पुरानी व्यवस्था थी, वह पूरी दोहराएूं र्े। हम उस
मूकतग िो अि मृत न मानेंर्े, अि से हम उसे जीकवत मानेंर्े। हम अपनी तरि से पूरी व्यवस्था िर दें र्े जो जीकवत
मूकतग िे किए िी जानी थी। और अि कसूं िाकिि प्रतीि कमिने चाकहए कि वह प्राण—प्रकतष्ठा स्वीिार हुई कि
नही ूं। वह दू सरा कहस्सा है , जो कि हमारे खयाि में नही ूं रह र्या। अर्र वह न कमिे , तो प्राण—प्रकतष्ठा हमने तो
िी, िेकिन हुई नही ूं। उसिे सिूत कमिने चाकहए। तो उसिे सिूत िे किए कचह्न खोजे र्ए थे कि वे सिूत कमि
जाएूं तो ही समझा जाए कि वह मूकतग सकक्रय हो र्ई।

मूजतओ एक ररसीजिांग प्िाइां ट:

ऐसा ही समझ िें कि आप घर में एि नया रे कडयो इूं स्टाि िरते हैं । तो पहिे तो वह रे कडयो ठीि होना
चाकहए, उसिी सारी यूंत्र व्यवस्था ठीि होनी चाकहए। उसिो आप घर िािर रखते हैं , किजिी से उसिा सूं िूंध
जोड़ते हैं । किर भी आप पाते हैं कि वह स्टे शन नही ूं पिड़ता, तो प्राण—प्रकतष्ठा नही ूं हुई, वह कजूंदा नही ूं है , अभी
मुदाग ही है । अभी उसिो किर जाूं च—पड़ताि िरवानी पड़े ; दू सरा रे कडयो िाना पड़े या उसे ठीि िरवाना पड़े ।
मूकतग भी एि तरह िा ररसीकवूंर् प्याइूं ट है , कजसिे साथ, मरे हुए आदमी ने िुछ वायदा किया है वह पूरा
िरता है । िेकिन आपने मूकतग रख िी, वह पूरा िरता है कि नही ूं िरता है , यह अर्र आपिो पता नही ूं है और
आपिे पास िोई उपाय नही ूं है इसिो जानने िा, तो मूकतग है भी कजूं दा कि मुदाग है , आप पता नही ूं िर्ा पाते ।

तो प्राण—प्रकतष्ठा िे दो कहस्से हैं । एि कहस्सा तो पुरोकहत पूरा िर दे ता है —कि कितना मूंत्र पढ़ना
है , कितने धार्े िाूं धने हैं , कितना क्ा िरना है , कितना सामान चढ़ाना है , कितना यज्ञ—हवन, कितनी आर्—सि
िर दे ता है । यह अधू रा है और पहिा कहस्सा है । दू सरा कहस्सा—जो कि पाूं चवें शरीर िो उपिि व्यक्तक्त ही िर
सिता है , उसिे पहिे नही ूं िर सिता—दू सरा कहस्सा है कि वह िह सिे कि हाूं , मूकतग जीकवत हो र्ई। वह नही ूं
हो पाता। इसकिए हमारे अकधि मूंकदर मरे हुए मूंकदर हैं , कजूंदा मूं कदर नही ूं हैं । और नये मूंकदर तो सि मरे हुए ही
िनते हैं ; नया मूंकदर तो कजूं दा होता ही नही ूं।

सोमनाथ का मांजदर मृत था:

अर्र एि जीकवत मूंकदर है तो उसिा नष्ट होना किसी भी तरह सूं भव नही ूं है , क्ोूंकि वह साधारण
घटना नही ूं है । वह साधारण घटना नही ूं है । और अर्र वह नष्ट होता है , तो उसिा िुि मतिि इतना है कि कजसे
आपने जीकवत समझा था, वह जीकवत नही ूं था। जैसे सोमनाथ िा मूंकदर नष्ट हुआ। सोमनाथ िे मूंकदर िे नष्ट होने
िी िहानी िड़ी अदभुत है और सारे मूंकदर िे कवज्ञान िे किए िहुत सू चि है । मूंकदर िे पाूं च स पुजारी थे।
पुजाररयोूं िो भरोसा था कि मूं कदर जीकवत है । इसकिए मूकतग नष्ट नही ूं िी जा सिती। पुजाररयोूं ने अपना िाम
सदा पूरा किया था। एितरिा था वह िाम, क्ोूंकि िोई नही ूं था जो खिर दे ता कि कजूं दा मू कतग है कि मृत। तो
जि िड़े —िड़े राजाओूं और राजपूत सरदारोूं ने उन्ें खिर भेजी कि हम रक्षा िे किए आ जाएूं ,र्जनवी आता
है , तो उन्ोूंने स्वभावत: उिर कदया कि तु म्हारे आने िी िोई जरूरत नही ूं है , क्ोूंकि जो मूकतग सििी रक्षा िरती
है , उसिी रक्षा तु म िैसे िरोर्े ? उन्ोूंने क्षमा माूं र्ी, सरदारोूं ने।

िेकिन वह भूि हो र्ई। भूि यह हो र्ई कि वह शतइr कजूंदा न थी। पुजारी इस आशा में रहे कि मूकतग
कजूंदा है और कजूंदा मूकतग िी रक्षा िी िात ही सोचनी र्ित है । उसिे पीछे हमसे ज्यादा कवराट शक्तक्त िा सूं िूंध
है , उसिो िचाने िा हम क्ा सोचेंर्े! िेकिन र्जनवी आया और उसने एि र्दा मारी और वह चार टु िड़े हो
र्ई मूकतग । किर भी अि ति यह खयाि नही ूं आया कि वह मूकतग मुदाग थी। किर भी अि ति... अि ति यह
खयाि नही ूं आया कि वह मूकतग मुदाग थी, इसकिए टू ट सिी।

नही,ूं मूंकदर िी ईूंट नही ूं कर्र सिती है , अर्र वह जीकवत है । वह जीकवत है तो उसिा िुछ किर्ड़ नही ूं
सिता।

मांजदर के जीजित होने का गहन जिज्ञान:

िेकिन अक्सर मूंकदर जीकवत नही ूं हैं । और उसिे जीकवत होने िी िड़ी िकठनाइयाूं हैं । मूंकदर िा जीकवत
होना िड़ा भारी चमत्कार है और एि िहुत र्हरे कवज्ञान िा कहस्सा है । कजस कवज्ञान िो जाननेवािे िोर् भी नही ूं
हैं , पूरा िरनेवािे िोर् भी नही ूं हैं , और कजसमें इतनी िकठनाइयाूं हो र्ई हैं खड़ी; क्ोूंकि पुरोकहतोूं और
दु िानदारोूं िा इतना िड़ा वर्ग मूं कदरोूं िे पीछे है कि अर्र िोई जाननेवािा हो तो उसिो मूंकदर में प्रवेश नही ूं हो
सिता। उसिी िहुत िकठनाई हो र्ई है । और वह एि धूं धा िन र्या है कजसमें कि पुरोकहत िे किए कहतिर है
कि मूंकदर मुदाग हो। कजूंदा मूं कदर पुरोकहत िे किए कहतिर नही ूं है । वह चाहता है कि एि मरा हुआ भर्वान भीतर
हो, कजसिो वह तािा—चािी में िूंद रखे और िाम चिा िे। अर्र उस मूंकदर से िुछ और कवराट शक्तक्तयोूं िा
सूं िूंध है तो पुरोकहत िा कटिना वहाूं मु क्तिि हो जाएर्ा; उसिा जीना वहाूं मुक्तिि हो जाएर्ा। इसकिए पुरोकहत
ने िहुत मुदाग मूंकदर िना किए हैं और वह रोज िनाए चिा जा रहा है । मूंकदर तो रोज िन जाते हैं , उनिी िोई
िकठनाई नही ूं है । िेकिन वस्तु त: जो जीकवत मूंकदर हैं वे िहुत िम होते जाते हैं ।

जीकवत मूंकदरोूं िो िचाने िी इतनी चेष्टा िी र्ई, िेकिन पुरोकहतोूं िा जाि इतना िड़ा है हर मूं कदर िे
साथ, हर धमग िे साथ कि िहुत मुक्तिि है उसिो िचाना। और इसकिए सदा किर आक्तख र में यही होता है ..
.इसकिए इतने मूं कदर िने , नही ूं तो इतने मूं कदर िनने िी िोई जरूरत न पड़ती। अर्र महावीर िे वक्त में
उपकनषदोूं िे समय में िनाए र्ए मूंकदर जीकवत होते और तीथग जीकवत होते , तो महावीर िो अिर् िनाने िी िोई
जरूरत न पड़ती। िेकिन वे मर र्ए थे। और उन मरे मूंकदरोूं और पुरोकहतोूं िा एि जाि था, कजसिो तोड़िर
प्रवेश िरना असूं भव था। इसकिए नये िनाने िे कसवाय िोई उपाय नही ूं था। आज महावीर िा मूंकदर भी मर
र्या है ; उसिे पास भी उसी तरह िा जाि है ।

शतें पूरी न करने पर िायदे का टू ट जाना:

दु कनया में इतने धमग न िनते , अर्र जो जीवूंत तत्व है वह िच सिे। िेकिन वह िच नही ूं पाता। उसिे
आसपास सि उपद्रव इिट्ठा हो जाता है । और वह जो उपद्रव है , वह धीरे — धीरे , धीरे — धीरे सारी सूं भावनाएूं
तोड दे ता है । और जि एि तरि से सूं भावना टू ट जाती है तो दू सरी तरि से समझ ता भी टू ट जाता है । वह
समझ ता किया र्या समझ ता है । उसे हमें कनभाना है । अर्र हम कनभाते हैं तो दू सरी तरि से कनभता है , नही ूं तो
कवदा हो जाता है , िात खत्म हो जाती है ।

जैसे कि मैं िहिर जाऊूं कि िभी आप मुझे याद िरना तो मैं म जूद हो जाऊूंर्ा। िेकिन आप िभी
याद ही िरना िूंद िर दो या मेरे कचत्र िो एि िचरे घर में डाि दो और किर उसिा खयाि ही भू ि जाओ, तो
यह समझ ता िि ति चिेर्ा! यह समझ ता टू ट र्या आपिी तरि से , इसे मेरी तरि से भी रखने िी अि
िोई जरूरत नही ूं रह जाती। ऐसे समझ ते टू टते र्ए हैं ।

िेकिन प्राण—प्रकतष्ठा िा अथग है । और प्राण—प्रकतष्ठा िा दू सरा कहस्सा ही महत्वपूणग है कि प्राण—


प्रकतष्ठा हुई या नही,ूं उसिी िस टी और परख है । वह परख भी पूरी होती है ।

प्रश्न : ओशो कछ मांजदरोां में मूजतओ के ऊपर पानी आप ही आप झरता रहता है । क्ा यह उस
मांजदर के जीजित होने का सू चक है ?

नही ूं, पानी वर्ैरह से तो िुछ िेना—दे ना नही ूं है। पानी तो किना मूकतग िी प्रकतष्ठा किए भी झरता रहता
है ; मूकतग भी रखें तो भी झर सिता है । उसिी िोई िड़ी िकठनाई नही ूं है ; वह िोई िड़ा सवाि नही ूं है । ये सि
झूठे प्रमाण हैं कजनिे आधार पर हम सोच िेते हैं कि प्रकतष्ठा हो र्ई। ये सि झूठे प्रमाण हैं कजनिे आधार पर हम
सोच िेते हैं कि प्रकतष्ठा हो र्ई। पानी—वानी झरने से िोई िेना—दे ना नही ूं है । जहाूं किििुि पानी नही ूं
कर्रता, वहाूं भी जीकवत मूंकदर हैं ; वहाूं भी हो सिते हैं ।

दीक्षा दी नही ां जाती—घजटत होती है :

प्रश्न: ओशो आध्याब्धत्मक साधना में दीक्षा का कत ही महत्वपूणओ स्थान है । उसकी जिशे ष जिजधयाां
जिशे ष ब्धस्थजतयोां में होती हैं । बि और महािीर भी दीक्षा दे ते थे। अत: कृपया बताएां जक दीक्षा का क्ा
सू क्ष्म अथओ है ? दीक्षा जकतने प्रकार की सां भि है ?उसका महत्व और उसकी उपयोजगता क्ा है ? और
उसकी आिश्यकता क्ोां है ?

दीक्षा िे सूंिूंध में थोड़ी सी िात उपयोर्ी है। एि तो यह कि दीक्षा दी नही ूं जाती; दीक्षा दी भी नही ूं
जा सिती। दीक्षा घकटत होती है ; वह एि है पकनूंर् है । िोई व्यक्तक्त महावीर िे पास है । िभी—िभी वषों िर्
जाते हैं दीक्षा होने में। क्ोूंकि महावीर िहते हैं —रुिो, साथ रहो, चिो, उठो, िैठो, इस तरह जीओ, इस तरह
ध्यान में प्रवेश िरो, इस तरह उठो, इस तरह िैठो, ऐसा जीओ। एि घड़ी है ऐसी जि वह व्यक्तक्त तै यार हो जाता
है , और ति महावीर कसिग माध्यम रह जाते हैं । िक्तम्ऻ माध्यम िहना भी शायद ठीि नही ,ूं िहुत र्हरे में कसिग
साक्षी, एि कवटनेस रह जाते हैं , एि र्वाह रह जाते हैं —उनिे सामने दीक्षा घकटत होती है ।

दीक्षा सदा परमात्मा से घजटत होती है :

दीक्षा सदा परमात्मा से है । महावीर िे समक्ष घकटत होती है । िेकिन कनकश्चत ही, कजस पर घकटत होती
है , उसिो तो महावीर कदखाई पड़ते हैं , परमात्मा कदखाई नही ूं पड़ता। उसे तो सामने महावीर कदखाई पड़ते
हैं , और महावीर िे साथ में ही उस पर घकटत होती है । स्वभावत: वह महावीर िे प्रकत अनुर्ृहीत होता है । यह
उकचत है । िेकिन महावीर उसिे अनु ग्रह िो स्वीिार नही ूं िरते । क्ोूंकि वे तो तभी स्वीिार िर सिते हैं जि
कि वे मानते होूं कि मैंने दीक्षा दी है ।

इसकिए दो तरह िी दीक्षाएूं हैं । एि दीक्षा तो वह जो घकटत होती है —कजसे मैं दीक्षा िहता हूं —वह
इनीकशएशन है , कजसमें तु म परमात्मा से सूं िूंकधत हुए, तु म्हारी जीवन—यात्रा िदिी। तु म और हो र्ए। तु म अि
वही नही ूं हो जो थे। तु म्हारा सि रूपाूं तररत हो र्या, तु म्हें िुछ नया कदखा, तु ममें िुछ नया घकटत हुआ, तु ममें
िुछ नई किरण आई, तु म्हारा सि िुछ और हो र्या है । एि तो यह दीक्षा है , कजसमें कजसिो हम र्ुरु िहते
हैं , वह कसिग कवटनेस िी तरह, र्वाह िी तरह खडा होता है । और वह कसिग इतना ही िता सिेर्ा कि हाूं , दीक्षा
हो र्ई; क्ोूंकि वह पूरा दे ख रहा है , तु म आधा ही दे ख रहे हो। तु म्हें , तु म पर जो हो रहा है , वह कदखाई पड़ रहा
है । उसे वह भी कदखाई पड़ रहा है , कजससे हो रहा है । इसकिए तु म पक्के र्वाह नही ूं हो सिते कि हुई घटना कि
नही ूं हुई; तु म इतना ही िह सिते हो कि िहुत िुछ रूपाूं तरण हुआ।
िेकिन दीक्षा हुई कि नही?ूं मैं स्वीिृत हुआ या नही?ूं दीक्षा िा मतिि है है व आई िीन एक्से िेड? क्ा
मैं चुन किया र्या? क्ा मैं स्वीिृत हो र्या उस परमात्मा िो? क्ा अि मैं मानूूं कि मैं उसिा हो र्या? अपनी
तरि से तो मैंने छोड़ा,उसिी तरि से भी मैं िे किया र्या हूं या नही?ूं

िेकिन इसिा तु म्हें एिदम से पता नही ूं चि सिता। तु म्हें थोड़े अूंत र तो पता चिेंर्े, िेकिन पता नही ूं ये
अूंतर िािी हैं या नही?ूं तो वह जो दू सरा आदमी है , कजसिो हम र्ु रु िहते रहे हैं , वह इतना जान सिता
है , उसे दोनोूं घटनाएूं कदखाई पड़ रही हैं ।

गरु—मात्र गिाह:

सम्यि दीक्षा दी नही ूं जाती, िी भी नही ूं जाती, परमात्मा से घकटत होती है , तु म कसिग ग्राहि होते हो।
और कजसे तु म र्ुरु िहते हो, वह कसिग साक्षी और र्वाह होता है ।

दू सरी दीक्षा, कजसिो हम िाल्स इनीकशएशन िहें , झूठी दीक्षा िहें , वह दी जाती है और िी जाती है ।
उसमें ईश्वर किििुि नही ूं होता, उसमें र्ुरु और कशष्य ही होते हैं —र्ुरु दे ता है और कशष्य िेता है —िेकिन
तीसरा और असिी म जूद नही ूं होता। जहाूं दो म जूद हैं कसिग —र्ुरु और कशष्य—वहाूं दीक्षा झूठी होर्ी, जहाूं
तीन म जूद हैं —र्ुरु, कशष्य और वह भी, कजससे दीक्षा घकटत होर्ी, वहाूं सि िात िदि जाएर्ी।

तो यह जो दीक्षा दे ने िा उपक्रम है , यह अनुकचत है । अनुकचत ही नही,ूं खतरनाि है , घाति है ; क्ोूंकि


इस दीक्षा िे भ्म में वह दीक्षा िभी घकटत न हो पाएर्ी अि। अि तु म तो इस भ्म में जीओर्े कि दीक्षा हो र्ई।

अि एि साधु मेरे पास आए। अि वे दीकक्षत हैं किसी िे , िहते हैं , ििाूं र्ुरु िा दीकक्षत हूं और ध्यान
सीखने आपिे पास आया हूं । तो मैंने िहा, दीक्षा किसकिए िी? और जि दीक्षा में ध्यान भी नही ूं आया, तो और
क्ा कमिा है दीक्षा में ? वस्त्र कमि र्ए हैं ! नाम कमि र्या है ! और जि ध्यान अभी खोजना पड़ रहा है , तो दीक्षा
िैसे हो र्ई? क्ोूंकि सच तो यह है कि ध्यान िे िाद ही दीक्षा हो सिती है , दीक्षा िे िाद ध्यान िा िोई मतिि
नही ूं है । एि आदमी िहता है , मैं स्वस्थ हो र्या हूं ;और डाक्ङरोूं िे दरवाजोूं पर घूम रहा है और िहता है कि
मुझे दवा चाकहए। दीक्षा तो ध्यान िे िाद कमिी हुई स्वीिृकत है ; वह सैं क्शान है कि तु म स्वीिृत िर किए
र्ए, अूंर्ीिार िर किए र्ए, परमात्मा ति तु म्हारी खिर पहुूं च र्ई, उस दु कनया में भी तु म्हारा प्रवेश हो र्या
है , इस िात िी स्वीिृकत भर दीक्षा है ।

सम्यक दीक्षा को पनजाजिओत करना पड़े गा:

िेकिन ऐसी दीक्षा खो र्ई है । और मैं चाहता हूं कि ऐसी दीक्षा पुनरुज्जीकवत हो, कजसमें र्ुरु दे नेवािा न
हो, कजसमें कशष्य िे नेवािा न हो, कजसमें र्ुरु र्वाह हो, कशष्य ग्राहि हो, और दे नेवािा परमात्मा हो।

और यह हो सिता है । और यह होना चाकहए। उस कदन तु म्हारा मेरे प्रकत..... अर्र मैं किसी िा र्वाह हूं
दीक्षा में , तो मैं उसिा र्ुरु नही ूं हो जाता, र्ुरु तो उसिा परमात्मा ही हुआ किर। और वह अर्र अनु र्ृहीत है , तो
यह उसिी िात है । िेकिन अनुग्रह माूं र्ना िेमानी है , स्वीिार िरने िा भी िोई अथग नही ूं है ।
र्ुरुडम पैदा हुई दीक्षा िो एि नई शक्ल दे ने से । िान िूूंिे जा रहे हैं ! मूंत्र कदए जा रहे हैं ! िोई भी
आदमी किसी िो भी दीकक्षत िर रहा है । वह खु द भी दीकक्षत है , यह भी पक्का नही ूं है । परमात्मा ति वह भी
स्वीिृत हुआ है , इसिा भी िोई पक्का नही ूं है । वह भी इसी तरह दीकक्षत है । किसी ने उसिे िान िूूंिे हैं , वह
किसी दू सरे िे िूूंि रहा है ! वह दू सरा िि किसी और िे िूूंिने िर्ेर्ा!

झठ
ू ी दीक्षा आध्याब्धत्मक अपराध:

आदमी हर चीज में झूठ और कडसे प्शन पैदा िर िेता है । और कजतनी रहस्यपूणग िातें हैं , वहाूं तो
प्रवूंचना िहुत सूं भव है ,क्ोूंकि वहाूं तो िोई पिड़िर हाथ में कदखानेवािी चीज नही ूं है । अि मैं चाहता हूं इस
प्रयोर् िो भी िरना चाहता हूं इस प्रयोर् िो भी िरना चाहता हूं दस—िीस िोर् तै यार हो रहे हैं , वे दीक्षा िें
परमात्मा से । िािी िोर् जो म जूद होूं, वे र्वाह होूं। िस वे इतना िह सिें , इतना भर िता सिें कि ऊपर ति
स्वीिृत िात हो र्ई कि नही ूं हो र्ई। उतना िाम है । अनुभव तो तु म्हें भी होर्ा, िेकिन तु म एिदम से पहचान न
पाओर्े। इतना अपररकचत जर्त है वह, तु म ररिग्नाइज िैसे िरोर्े कि हो र्या? िस उतनी िात िा मूल्य है ।
इसकिए परम र्ुरु तो परमात्मा ही है । अर्र िीच िे र्ुरु हट जाएूं तो आसानी हो जाती है ।

िेकिन िीच िे र्ुरु िहुत पैर जमािर खड़े होते हैं ; क्ोूंकि खु द िो परमात्मा िनाने और कदखिाने िा
मजा अहूं िार िे किए िहुत है । इस अहूं िार िे आसपास िहुत तरह िी दीक्षाएूं दी जाती हैं । उनिा िोई भी
मूल्य नही ूं है । और आध्याक्तत्मि अथों में वह सि कक्रकमनि एक्ङ है । और किसी कदन अर्र हम आध्याक्तत्मि
अपराकधयोूं िो सजा दें तो उनिो सजा कमिनी चाकहए। क्ोूंकि वह एि आदमी िो इस धोखे में रखना है कि
उसिी दीक्षा हो र्ई। और वह आदमी अिडिर चिने िर्ता है कि मैं दीकक्षत हूं —मुझे दीक्षा कमि र्ई, मूंत्र
कमि र्या, यह हो र्या, वह हो र्या—वह यह सि मानिर चिता है । और इसकिए वह जो उसिा होने वािा
था, कजसिी वह खोज िरता, वह खोज िूंद िर दे ता है ।

बौि धमओ के जत्रशरणोां का िास्तजिक अथओ:

िुद्ध िे पास िोई भी आता, तो िभी एिदम से दीक्षा नही ूं होती थी, वषों िभी िर् जाते । उस आदमी
िो िहते कि रुिो, अभी ठहरो, अभी इतना िरो, अभी इतना िरो, इतना िरो, किर किसी कदन, किर किसी
कदन—उसिो टािते चिे जाते । कजस कदन वह घड़ी आ जाती, उस कदन वे खु द िह दे ते कि अि तु म खड़े हो
जाओ और दीकक्षत हो जाओ।

िेकिन वह जो दीक्षा थी, उसिे तीन कहस्से थे। कजस कदन वह दीक्षा होती—िुद्ध िी जो दीक्षा थी उसिे
तीन कहस्से थे। वह जो दीकक्षत होता, वह तीन तरह िी शरण जाता; थ्री टाइम्स ऑि सरें डर थे वे। वह तीन तरह
िी शरण िरता।

बिां शरणां गर्च्ाजम:


वह िहता, िुद्ध िी शरण जाता हूं । और ध्यान रहे , िुद्ध िी शरण जाने िा मतिि र् तम िु द्ध िी
शरण जाना नही ूं था; िुद्ध िी शरण जाने िा मतिि है —जार्े हुए िी शरण जाता हूं । इसिा मतिि र् तम िुद्ध
िी शरण िभी भी नही ूं था।

इसकिए िुद्ध से एि दिा किसी ने पूछा कि आप सामने िैठे हैं और एि आदमी आिर िहता है —
िुद्ध शरणूं र्च्छाकम। और आप सु न रहे हैं !

तो िुद्ध ने िहा कि वह मेरी शरण नही ूं जा रहा, वह जार्े हुए िी शरण जा रहा है । मैं तो महज िहाना
हूं । मेरी जर्ह और िुद्ध होते रहें र्े, मेरी जर्ह और िुद्ध हुए हैं ; मैं तो कसिग एि िहाना हूं एि खूूं टी हूं । वह जार्े
हुए िी शरण जा रहा है , मैं ि न हूं जो िाधा दू ूं ? वह मेरी शरण जाए तो मैं रोि दू ूं वह िहता है , िुद्ध िी शरण।

तो तीन िार वह जार्े हुए िी शरण जा रहा है । वह जार्े हुए िे सामने अपने िो समकपगत िर रहा है ।

सां घ शरणां गर्च्ाजम:

किर दू सरी शरण और अदभुत है ! वह है . सूं घ शरणूं र्च्छाकम। वह तीन िार सूं घ िी शरण जा रहा है ।
सूं घ िा मतिि?आमत र से िुद्ध िो माननेवािे भी समझते हैं सूं घ िा मतिि िुद्ध िा सूं घ। नही ,ूं वह सूं घ िा
मतिि नही ूं है । सूं घ िा मतिि है जार्े हुओूं िा सूं घ। एि ही िुद्ध थोड़े ही है जार्ा हुआ! िहुत िु द्ध हो चुिे हैं
जो जार् र्ए, िहुत िुद्ध होूंर्े जो जार्ेंर्े—उन सििा सूं घ है एि, उन सििी एि िम्यु कनटी है , एि
ििेक्तक्ङकवटी है । तो िोई िुद्ध िे सूं घ िी शरण जा रहा हूं वह तो ि द्धोूं िी समझ है कि वह िह रहा है कि अि
िुद्ध िा जो यह सूं प्रदाय है . इसिी मैं शरण जा रहा हूं ।

नही,ूं जि पहिे सू त्र से ही साि हो जाता है , जि िुद्ध िहते हैं , वह मेरी शरण नही ूं जा रहा है , जार्े हुए
िी शरण जाता है , तो दू सरा सू त्र और भी साि हो जाता है कि वह जार्े हुओूं िे सूं घ िी शरण जाता है । पहिे
वह एि व्यक्तक्त िो जो सामने म जू द है , उस पर अपने िो समकपगत िर रहा है । क्ोूंकि यह प्रत्यक्ष है ; आसान है
इससे िात िरनी। किर वह उस िड़ी ब्रदरहुड,उस िड़े सूं घ िे किए समपगण िर रहा है , जो जार्े हैं
िभी, कजनिा उसे पता नही;ूं जो िभी जार्ेंर्े भकवष्य में, उनिा भी उसे िोई पता नही;ूं जो अभी भी जार्े हुए
होूंर्े िही,ूं उनिा भी उसे िोई पता नही;ूं वह उनिो भी समपगण िर रहा है कि मैं तु म्हारी भी शरण जाता हूं ।
वह एि िदम आर्े िढ़ा सू क्ष्म िी तरि।

धम्म शरणां गर्च्ाजम:

तीसरी शरण है धि शरणूं र्च्छाकम। तीसरी िार वह िह रहा है : मैं धमग िी शरण जाता हूं । पहिा, जो
जार्े हुए िु द्ध हैं उनिी। दू सरा, जो िुद्धोूं िा जार्ा हुआ सूं घ है , उनिी। और तीसरा, जो जार्रण िी परम
अवस्था है — धमग, स्वभाव, जहाूं न व्यक्तक्त रह जाता है , जहाूं न सूं घ रह जाता है , जहाूं कसिग कनयम, कद िी, कसिग
धमग रह जाता है —मैं उस धमग िी शरण जाता हूं । ये तीन शरण जि वह पूरी िर दे — और यह कसिग िहने िी
िात न थी— यह जि पूरी हो जाए और िुद्ध िो कदखाई पड़े कि ये तीन शरण इसिी पूरी हो र्ई हैं , ति दीकक्षत
होता वह आदमी; और िुद्ध कसिग र्वाह होते । इसकिए िु द्ध उसिो दीक्षा िे िाद भी िहते कि मैं जो िहूं तू उसे
इसकिए मत मान िेना कि मैं िुद्ध—पुरुष हूं मैं जो िहूं उसे इसकिए मत मान िेना कि एि महान व्यक्तक्त ने
िहा; मैं जो िहूं उसे इसकिए मत मान िेना कि कजसने िहा उसे िहुत िोर् मानते हैं ; मैं जो िहूं उसे इसकिए
मत मान िेना कि शास्त्रोूं में वही किखा है । नही,ूं तेरी िुक्तद्ध जो िहे , अि तू उसी िो मानना।

वे र्ुरु िन नही ूं रहे हैं । इसकिए मरते वक्त जो आक्तखरी सूं देश है िुद्ध िा, वह है . अप्प दीपो भव!
आक्तखरी वक्त जि उनसे िहा है कि िुछ और सूं देश दें ! तो वे आक्तखरी सूं देश दे ते हैं कि तु म अपने दीपि खु द
ही िनना, तु म किसी िे पीछे मत जाना, अनुसरण मत िरना। िी ए िाइट अनटू योरसे ल्फ! अप्प दीपो भव!
अपने दीये खु द िन जाना, िस यह मेरा आक्तखरी..... .यह आक्तखरी सूं देश है ।

दीक्षा दे कर बाां धनेिािे गस्थ्योां से सािधान:

तो ऐसा व्यक्तक्त र्ुरु नही ूं िनता; ऐसा व्यक्तक्त साक्षी है , र्वाह है । जीसस ने िहुत जर्ह यह िात िही है
कि कजस कदन कनणग य होर्ा, मैं तु म्हारी र्वाही रहूं र्ा। जीसस िहुत जर्ह यह िात िहे हैं कि कजस कदन अूंकतम
कनणग य होर्ा, मैं तु म्हारी र्वाही रहूं र्ा। अूंकतम कनणग य िे वक्त मैं िहूं र्ा कि हाूं , यह आदमी जार्ने िी आिाूं क्षा
किया था; यह आदमी परमात्मा िे किए समपगण िी आिाूं क्षा किया था। यह तो प्रतीि में िहना है , िेकिन
क्राइस्ट यह िह रहे हैं कि मैं र्वाही हूं मैं तु म्हारा र्ु रु नही ूं हूं ।

र्ुरु िोई भी नही ूं है । इसकिए कजस दीक्षा में िोई आदमी र्ु रु िन जाता हो, उस दीक्षा से सावधान होना
जरूरी है । और कजस दीक्षा में परमात्मा ही सीधा, इमीकजएट और डायरे क्ङ सूं िूंध में आता हो, वह दीक्षा िड़ी
अनूठी है ।

और ध्यान रहे कि इस दू सरी दीक्षा में न तो किसी िो घर छोडि् िर भार्ने िी जरूरत है ; न इस दू सरी
दीक्षा में किसी िो कहूं दू मुसिमान, ईसाई होने िी जरूरत है ; न इस दू सरी दीक्षा में किसी से िूंधने िी िोई
जरूरत है । इसमें तु म अपनी पररपूणग स्वतूंत्रता में जैसे हो, जहाूं हो, वैसे ही रह सिते हो, कसिग भीतर तु म्हारी
िदिाहट शु रू हो जाएर्ी। िेकिन वह जो पहिी झूठी दीक्षा है , उसमें तु म किसी धमग से िूंधोर्े —कहूं दू
िनोर्े , मुसिमान िनोर्े , ईसाई िनोर्े ; किसी सूं प्रदाय िे कहस्से िनोर्े , िोई पूंथ,िोई मान्यता, िोई डाग्मे कटज्म
तु म्हें पिड़े र्ा; िोई आदमी, िोई र्ुरु, वे सि तु म्हें पिड़ िेंर्े, वे तु म्हारी स्वतूं त्रता िी हत्या िर दें र्े। जो दीक्षा
स्वतूं त्रता न िाती हो, वह दीक्षा नही ूं है ; जो दीक्षा परम स्वतूं त्रता िाती हो, वही दीक्षा है ।

बि के पनजओन्म का रहस्य:

प्रश्न: ओशो आपने कहा जक बि सातिें शरीर में महापररजनिाओ ण को उपिि हुए िेजकन अन्यत्र
एक प्रिचन में आपने कहा है जक बि का एक और जन्म मनष्य शरीर में मैत्रेय के नाम से होनेिािा है ।
तो जनिाओ ण काया में चिे जाने के बाद पन: मनष्य शरीर िेना कैसे सां भि होगा इसे सांक्षेप में स्पि करने
की कृपा करें ।
हाूं , यह जरा िकठन िात है, इसकिए मैंने िि छोड़ दी थी, क्ोूंकि इसिी िूंिी ही िात िरनी पड़े।
िेकिन किर भी थोड़े में समझ िें।

सातवें शरीर िे िाद वापस ि टना सूं भव नही ूं है । सातवें शरीर िी उपिक्ति िे िाद पु नरार्मन नही ूं
है ; वह प्वाइूं ट ऑि नो ररटनग है । वहाूं से वापस नही ूं आया जा सिता। िेकिन दू सरी िात सही है जो मैं ने िही है
कि िु द्ध िहते हैं कि मैं एि िार और आऊूंर्ा, मैत्रेय िे शरीर में , मैत्रेय नाम से एि िार और वापस ि टू ूं र्ा।
अि ये दोनोूं ही िातें तु म्हें कवरोधी कदखाई पड़े र्ी। क्ोूंकि मैं िहता हूं सातवें शरीर िे िाद िोई वापस नही ूं ि ट
सिता; और िुद्ध िा यह वचन है कि वे वापस ि टें र्े और िुद्ध सातवें शरीर िो उपिि होिर महाकनवाग ण में
समाकहत हो र्ए हैं । ति यह िैसे सूं भव होर्ा?

इसिा दू सरा ही रास्ता है । असि में , सातवें शरीर में प्रवेश िे पहिे... अि तु म्हें थोड़ी सी िात समझनी
पड़े । जि हमारी मृत्यु होती है तो भ कति शरीर कर्र जाता है , िेकिन िािी िोई शरीर नही ूं कर्रता। मृत्यु जि
हमारी होती है तो भ कति शरीर कर्रता है , िािी छह शरीर हमारे हमारे साथ रहते हैं । जि िोई पाूं चवें शरीर िो
उपिि होता है , तो शे ष चार शरीर कर्र जाते हैं और तीन शरीर शे ष रह जाते हैं —पाूं चवाूं , छठवाूं और सातवाूं ।
पाूं चवें शरीर िी हाित में , यकद िोई चाहे ..... .यकद िोई चाहे पाूं चवें शरीर िी हाित में , तो ऐसा सूं िल्प िर
सिता है कि उसिे िािी दू सरे और तीसरे और च थे , तीन शरीर शे ष रह जाएूं । और अर्र यह सूंिल्प र्हरा
किया जाए— और िुद्ध जैसे आदमी िो यह सूं िल्प र्हरा िरने में िोई िकठनाई नही ूं है — तो वह अपने
दू सरे , तीसरे और च थे शरीर िो सदा िे किए छोड़ जा सिता है । ये शरीर शक्तक्तपुूंज िी तरह अूंतररक्ष में भ्मण
िरते रहें र्े।

दू सरा ईथररि, जो भाव शरीर है , तो िुद्ध िी भावनाएूं , िुद्ध ने अपने अनूंत जन्मोूं में जो भावनाएूं अकजगत
िी हैं , वे इस शरीर िी सूं पकि हैं । उसिी सि सूक्ष्म तरूं र् इस शरीर में समाकहत हैं । किर एस्टर ि िॉडी, सू क्ष्म
शरीर है । इस सू क्ष्म शरीर में िुद्ध िे जीवन िी कजतनी सू क्ष्मतम िमों िी उपिक्तियाूं हैं , उन सििे सूं स्कार
इसमें शे ष हैं । और च था मनस शरीर, मेंटि िॉडी है । िुद्ध िे मनस िी सारी उपिक्तियाूं ! और िुद्ध ने जो मनस
िे िाहर उपिक्तियाूं िी हैं , वे भी िही तो मन से ही हैं , उनिो अकभव्यक्तक्त तो मन से ही दे नी पड़ती है । िोई
आदमी पाूं चवें शरीर से भी िुछ पाए, सातवें शरीर से भी िुछ पाए, जि भी िहे र्ा तो उसिो च थे शरीर िा ही
उपयोर् िरना पड़े र्ा, िहने िा वाहन तो च था शरीर ही होर्ा।

तो िुद्ध िी कजतनी वाणी दू सरे िोर्ोूं ने सु नी है , वह तो िहुत िम है , सिसे ज्यादा वाणी तो िु द्ध िी िु द्ध
िे ही च थे शरीर ने सु नी है । जो िु द्ध ने सोचा भी है , जीया भी है , दे खा भी है , समझा भी है , वह सि च थे शरीर में
सूं र्ृहीत है ।

ये तीनोूं शरीर सहज तो नष्ट हो जाते हैं —पाूं चवें शरीर में प्रकवष्ट हुए व्यक्तक्त िे तीनोूं शरीर नष्ट हो जाते
हैं ; सातवें शरीर में प्रकवष्ट हुए व्यक्तक्त िे िािी छह शरीर नष्ट हो जाते हैं , सभी िुछ नष्ट हो जाता है —िेकिन
पाूं चवें शरीर वािा व्यक्तक्त यकद चाहे तो इन तीन शरीरोूं िे सूं घट िो, सूं घात िो अूंतररक्ष में छोड़ सिता है । ये
ऐसे ही अूंतररक्ष में छूट जाएूं र्े जैसे अि हम अूंतररक्ष में िुछ स्टे शूंस िना रहे हैं , वे अूंतररक्ष में यात्रा िरते रहें र्े।
और मैत्रेय नाम िे व्यक्तक्त में वे प्रिट होूंर्े।

सू क्ष्म शरीरोां का परकाया प्रिेश:


तो िभी जो मैत्रेय नाम िी क्तस्थकत िा िोई व्यक्तक्त पैदा होर्ा, उस क्तस्थकत िा कजसमें िुद्ध िे ये तीन
शरीर प्रवेश िर सिें, तो ये तीन शरीर ति ति प्रतीक्षा िरें र्े और उस व्यक्तक्त में प्रवेश िर जाएूं र्े। और उस
व्यक्तक्त में प्रवेश िरते ही उस व्यक्तक्त िी है कसयत ठीि वैसी हो जाएर्ी जैसी िुद्ध िी; क्ोूंकि िुद्ध िे सारे
अनुभव, िुद्ध िे सारे भाव, िुद्ध िी सारी िमग —व्यवस्था िा यह पूरा इूं तजाम है ।

ऐसा समझ िो कि मेरे शरीर िो मैं छोड़ जा सिूूं इस घर में , सु रकक्षत िर जा सिूूं...

जैसे अभी अमेररिा में एि आदमी मरा, िोई तीन साि पहिे , चार साि पहिे , तो वह िोई िरोड़ोूं
डािर िा टर स्ट िर र्या है , और िह र्या है कि मेरे शरीर िो ति ति िचाया जाए जि ति साइूं स इस हाित
में न आ जाए कि उसिो पुनरुज्जीकवत िर सिे। तो उसिे शरीर पर िाखोूं रुपया खचग हो रहा है । उसिो
किििुि वैसे ही सु रकक्षत रखना है । उसमें जरा भी खरािी न हो जाए। उस समय ति... आशा है कि इस सदी िे
पूरे होते —होते ति शरीर िो पु नरुज्जीकवत िरने िी सूं भावना प्रिट हो जाएर्ी। तो इधर तीस—चािीस साि
उसिो, उसिे शरीर िो ऐसा सु रकक्षत रखना है जैसा कि वह मरते वक्त था। उसमें जरा भी कडटोररएशन न हो
जाए। तो यह शरीर िचाया जा रहा है । यह वैज्ञाकनि प्रकक्रया है । और अर्र इस सदी िे पूरे होते —होते ति हम
शरीर िो पुनरुज्जीकवत िर सिें, तो वह शरीर पुनरुज्जीकवत हो जाएर्ा।

कनकश्चत ही, उस शरीर िो दू सरी आत्मा उपिि होर्ी, वही आत्मा उपिि नही ूं हो सिती है । िे किन
शरीर यह रहे र्ा,उसिी आूं खें ये रहें र्ी, उसिे चिने िा ढूं र् यह रहे र्ा, उसिा रूं र् यह रहे र्ा, उसिा नाि—
नक्शा यह रहे र्ा, इस शरीर िी आदतें उसिे साथ रहें र्ी। एि अथग में वह उस आदमी िो ररप्रेजेंट िरे र्ा, इस
शरीर से ।

और अर्र वह आदमी कसिग भ कति शरीर पर ही िेंकद्रत था—जैसा कि होना चाकहए, नही ूं तो भ कति
शरीर िो िचाने िी इतनी आिाूं क्षा नही ूं हो सिती—तो अर्र वह कसिग भ कति शरीर ही था, िािी शरीरोूं िा
उसे िुछ पता भी नही ूं था, तो िोई भी दू सरी आत्मा किििुि एक्ङ िर पाएर्ी। वह किििुि वही हो जाएर्ी।
और वैज्ञाकनि दावा भी िरें र्े कि यह वही आदमी हो र्या है , इसमें िोई ििग नही ूं है । उस आदमी िी सारी
स्भृकतयाूं , जो इसिे भ कति ब्रेन में सूं रकक्षत होती हैं , वे सि जर् जाएूं र्ी। वह िोटो पहचान िर िता सिेर्ा कि
यह मेरी माूं िी िोटो है , वह िता सिेर्ा कि यह मेरे िेटे िी िोटो है । ये सि मर चुिे हैं ति ति, िेकिन वह
िोटो पहचान िेर्ा। वह अपना र्ाूं व पहचान िर िता सिेर्ा कि यह रहा मेरा र्ाूं व जहाूं मैं पैदा हुआ था, और
यह रहा मेरा र्ाूं व जहाूं मैं मरा था। और ये —ये िोर् थे जि मैं मरा था तो कजूंदा थे। िेकिन यह आत्मा दू सरी है ।
िेकिन ब्रेन िे पास जो मेमोरी िूंटें ट है वह दू सरा है ।

स्मृ जत का पनरारोपण:

अभी वैज्ञाकनि िहते हैं कि हम िहुत जल्दी स्भृ कत िो टर ाूं सप्लाूं ट िर पाएूं र्े। यह सूं भव हो जाएर्ा।
इसमें िकठनाई नही ूं मािूम होती। अर्र मैं मरू
ूं , तो मेरी अपनी एि स्भृकत है । और िड़ी सूं पकि खोती है दु कनया
िी; क्ोूंकि मैं मरता हूं तो मेरी सारी स्भृकत खो जाती है । अर्र मेरी सारी स्भृकत िी पूरी िी पूरी टे प , पूरा मेरा यूंत्र
मेरे मरने िे साथ िचा किया जाए.. .जैसे हम आूं ख िचा िेते हैं अि, िि ति आूं ख टर ाूं सप्लाूं ट नही ूं होती थी, अि
हो जाती है । तो िि मेरी आूं ख से िोई दे ख सिेर्ा; सदा मैं ही दे खूूं अि यह िात र्ित है ; अि मे री आूं ख से
िि िोई दू सरा भी दे ख सिेर्ा। और सदा मेरे हृदय से मैं ही प्रेम िरू
ूं , यह भी र्ित है , िि मेरे हृदय से िोई
दू सरा भी प्रेम िर सिेर्ा। अि हृदय िे सूं िूंध में िहुत वायदा नही ूं किया जा सिता कि मेरा हृदय सदा तु म्हारा
रहे र्ा। वैसा वायदा िरना िहुत मुक्तिि है । क्ोूंकि यह हृदय किसी और िे भीतर से किसी और िो वायदा
िर सिेर्ा। इसमें अि िोई िकठनाई नही ूं रह र्ई।

ठीि ऐसे ही, िि स्भृकत भी टर ाूं सप्लाूं ट हो जाएर्ी। वह सू क्ष्म है , िहुत डे कििेट है , इसकिए दे र िर् रही
है , और दे र िर्ेर्ी। िेकिन िि मैं मरू
ूं , तो जैसे मैं आज अपनी आूं ख दे जाता हूं आई िैं ि िो, ऐसे मैं मेमोरी
िैंि िो अपनी स्भृकत दे जाऊूं, और िहूं कि मरने िे पहिे मेरी सारी स्भृकत िचा िी जाए और किसी छोटे िच्चे
पर टर ाूं सप्लाूं ट िर दी जाए। तो कजस छोटे िच्चे िो मेरी स्भृकत दे दी जाएर्ी, मुझे जो िहुत िुछ जानना पडा, वह
उस िच्चे िो जानना नही ूं पड़े र्ा, वह जानता हुआ िड़ा होर्ा; वह उसिी स्भृकत िा कहस्सा हो जाएर्ा; वह उसिो
एज्जािग िर जाएर्ा। इतनी िातें वह जानेर्ा ही। और ति िड़ी मुक्तिि हो जाएर्ी, क्ोूंकि मेरी स्भृ कतयाूं उसिी
स्भृकतयाूं हो जाएूं र्ी। और वह िई मामिोूं में ठीि मेरे जैसे उिर दे र्ा और िई मामिोूं में ठीि वह मेरी जैसी
पहचान कदखिाएर्ा; क्ोूंकि उसिे पास, ब्रेन िे पास मेरा ब्रेन है ।

मेरा मतिि समझ रहे हो न तु म?

तो िुद्ध ने एि दू सरी कदशा में प्रयोर् किया है — और भी िोर्ोूं ने प्रयोर् किए हैं , और वे वैज्ञाकनि नही ूं
हैं , वे आिल्ट हैं —उसमें दू सरे , तीसरे और च थे शरीर िो सूं रकक्षत िरने िी िोकशश िी र्ई है । िु द्ध तो कविीन
हो र्ए; वह जो आत्मा थी, वह जो चेतना थी, जो इन शरीरोूं िे भीतर जीती थी, वह तो खो र्ई सातवें शरीर
से , िेकिन खोने िे पहिे वह यह इूं तजाम िर र्ई है कि ये तीन शरीर न मरे , वह इनिो सूं िल्प िी एि र्कत दे
र्ई है ।

समझ िो कि मैं एि पत्थर िेंिूूं जोर से ; इतने जोर से िेंिूूं कि वह पत्थर पचास मीि जा सिे। मैं मर
जाऊूं, िेकिन इससे पत्थर नही ूं कर्र जाएर्ा। जो ताित मैंने उसिो दी है , वह पचास मीि ति चिेर्ी। पत्थर यह
नही ूं िह सिता कि वह आदमी मर र्या कजसने मुझे ताित दी थी, तो अि मैं िैसे चिूूं! पत्थर िो जो ताित दी
र्ई थी पचास मीि चिने िी, वह पचास मीि चिे र्ा। अि मेरे मरने —जीने से िोई सूं िूंध नही,ूं मेरी ताित उस
पत्थर िो िर् र्ई, वह अि िाम िरे र्ा।

मेरा मतिि समझे न?

कृष्णमूजतओ में बि के अितरण का असिि प्रयोग:

िुद्ध जो ताित दे र्ए हैं उन तीन शरीरोूं िो जीकवत रहने िी, वे तीन शरीर जीएूं र्े। और, वे समय भी
िता र्ए हैं कि वे कितनी दे र ति.....यानी वह वक्त िरीि है जि मैत्रेय िो जन्म िेना चाकहए। िृष्णमू कतग पर वही
प्रयोर् किया र्या था कि इनिी तै यारी िी जाए, वे तीन शरीर इनिो कमि जाएूं । िृष्णमूकतग िे एि छोटे भाई
थे, कनत्यानूंद। पहिे उन पर भी वह प्रयोर् किया र्या, िेकिन कनत्यानूंद िी मृत्यु हो र्ई। वह मृ त्यु इसी में हुई।
क्ोूंकि यह िहुत अनूठा प्रयोर् था और इस प्रयोर् िो आत्मसात िरना एिदम आसान िात नही ूं थी। िोकशश
यह िी र्ई कि कनत्यानूंद िे तीन शरीर खु द िे तो अिर् हो जाएूं और मैत्रेय िे तीन शरीर उनमें प्रवेश िर
जाएूं । कनत्यानूंद तो मर र्या। किर िृष्णमूकतग पर भी वही िोकशश चिी। वह भी िोकशश यही थी कि इनिे तीन
शरीर हटा कदए जाएूं और ररप्ले स िर कदए जाएूं । वह भी नही ूं हो सिा। किर और एि—दो िोर्ोूं पर—जाजग
अरूं डे ि पर भी वही िोकशश िी र्ई। क्ोूंकि िुछ िोर्ोूं िो इस िात िा.. .जैसे ब्लावटस्की इस सदी में आिल्ट
िे सूं िूंध में जानने वािी शायद सिसे र्हरी समझदार औरत थी। उसिे िाद एनीिीसें ट िे पास िहुत समझ
थी, और िीडिीटर िे पास िहुत समझ थी। इन िोर्ोूं िे पास िुछ समझ थी जो इस सदी में िहुत िम िोर्ोूं िे
पास है ।

इनिी िड़ी चेष्टा यह थी कि वह तीन शरीरोूं िो जो शक्तक्त दी र्ई थी उसिे क्षीण होने िा समय आ रहा
है । अर्र मैत्रेय जन्म नही ूं िेता, तो वे शरीर किखर सिते हैं अि। उनिो कजतने जोर से िेंिा र्या था, वह पूरा
हो जाएर्ा, और किसी िो अि तै यार होना चाकहए कि वह उन तीन शरीरोूं िो आत्मसात िर िे। जो व्यक्तक्त भी
उनिो तीनोूं िो आत्मसात िर िे र्ा, वह ठीि एि अथग में िु द्ध िा पु नजगन्म होर्ा—एि अथग में! मेरा मतिि
समझे? िुद्ध िी आत्मा नही ूं ि टे र्ी, इस व्यक्तक्त िी आत्मा िुद्ध िे शरीर ग्रहण िरिे िुद्ध िा िाम िरने
िर्ेर्ी, एिदम िुद्ध िे िाम में सूं िग्न...

इसकिए हर िोई व्यक्तक्त नही ूं हो सिता इस क्तस्थकत में। जो होर्ा भी, वह भी िरीि—िरीि िु द्ध िे
पास पहुूं चनेवािी चेतना होनी चाकहए, तभी उन तीन शरीरोूं िो आत्मसात िर पाएर्ी, नही ूं तो मर जाएर्ी। तो जो
असिि हुआ सारा िा सारा मामिा, वह इसीकिए असिि हुआ कि उसमें िहुत िकठनाई है । िेकिन किर
भी, अभी भी चेष्टा चिती है । अभी भी िुछ छोटे से इसोटे ररि सकिगि इसिी िोकशश में िर्े हुए हैं कि किसी
िच्चे िो वे तीन शरीर कमि जाएूं । िे किन अि उतना व्यापि प्रचार नही ूं चिता, प्रचार से नुिसान हुआ।

िृष्णमूकतग िे साथ सूं भावना थी कि शायद वे तीन शरीर िृष्णमूकतग में प्रवेश िर जाते । उनिे पास उतनी
पात्रता थी। िेकिन इतना व्यापि प्रचार किया र्या। प्रचार शु भ दृकष्ट से ही किया र्या था कि जि िुद्ध िा
आर्मन हो तो वे किर से ररिग्नाइज हो सिें। और यह प्रचार इसकिए भी किया र्या था कि िहुत से िोर् हैं जो
िुद्ध िे वक्त में जीकवत थे , उनिी स्भृकत जर्ाई जा सिे तो वे पहचान सिें कि यह आदमी वही है कि नही ूं है ।
इस ध्यान से प्रचार किया र्या। िेकिन वह प्रचार घाति कसद्ध हुआ। और उस प्रचार ने िृष्णमू कतग िे मन में एि
ररएक्शन और प्रकतकक्रया िो जन्म दे कदया। वे सूं िोची और छु ई—मुई व्यक्तक्तत्व हैं । ऐसा सामने मूंच पर होने में
उनिो िकठनाई पड़ र्ई। अर्र वह चुपचाप और किसी एिाूं त स्थान में यह प्रयोर् किया र्या होता और किसी
िो न िताया र्या होता जि ति कि घटना न घट जाती, तो शायद सूं भव था कि यह घटना घट जाती। वह नही ूं
घट पाई। वह िात चूि र्ई। िृष्णमूकतग ने अपने शरीर छोड़ने से इनिार िर कदया और इसकिए दू सरे िे शरीरोूं
िे किए जर्ह नही ूं िन सिी। इसकिए वह घटना नही ूं हो सिी। और इसकिए एि िड़ी भारी असििता इस
सदी में आिल्ट साइूं स िो कमिी। इतना िड़ा एक्सपेररमेंट भी िभी नही ूं किया र्या था— कतब्त िो छोडि् िर
िही ूं भी नही ूं किया र्या था। कतब्त में िहुत कदनोूं से उस प्रयोर् िो िरते रहे हैं , और िहुत सी आत्माएूं वापस
दू सरे शरीरोूं से िाम िरती रही हैं ।

तो मेरी िात तु म्हारे खयाि में आ र्ई? उसमें कवरोध नही ूं है । और मेरी िात में िही ूं भी कवरोध कदखे तो
समझना कि कवरोध होर्ा नही ूं। हाूं , िुछ और रास्ते से िात होर्ी, इसकिए कवरोध कदखाई पड़ सिता है ।

आज इतना ही।

समाप्त

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