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शासन तनर्णय मांक अ यास-२११६ (प्र 4 १६) एस ी-4 तदनांक २5 4 २ १६ के अनुसार सम वय सतमति का ग न
तकया गया । तद २ १२ २ १७ को ई इस सतमति की ब क म यह पा ्यपुस्िक तनधा्ण रि करने हेिु मा यिा प्रदान की गई ।
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मुिप मयरा फ
तच ांकन ी राजेश लि ेकर
( सुतनि मगर)
संचािक
महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि
अ यास म संशोधन मं , पुणे- 4
ाषा तवषयक मिा
यह अपे ा ह तक दसव क ा के अंि िक तवद्यातर्णयों म ाषा संबंधी तनम्नतिखिि मिाएँ तवकतसि हों ।
दूसरी इकाई
पा का नाम तवधा रचनाकार पष्
१. बरषभहं जलद महाका य अंश गोस्िामी तुलसीदास 5१-5३
२. दो ल ुक ा ँ (परक प न) ल ुक ा नरें छाबड़ा 54-5
३. म साधना िैचा रक भनबंध ीक णदास जाज 58- 4
4. छापा हास्य- यं य कभिता मप्रकाश ‘ भद्य’ 5-
5. ईमानदारी की प्रभतमभत संस्मरण सुनील शास्ती 8- ३
. हम इस धरती की संतभत हैं (परक प न) क िाली उमाकांत मालिीय 4- 5
. मभहला म पत काका कालेलकर -
8. अपनी गंध नहीं बेचँगा गीत बालकभि बैरागी 8 -8१
. जब तक भजंदा र ँ, भल ता र ँ सा ा्कार भि िना प्रसाद भतिारी 8२-88
१ . ब ी काकी (परक प न) िणना्मक कहानी प्रेमचंद 8 -
११. समता की र नई कभिता मुकुटधर पां ेय - 8
याकरण िं रचना भिभाग त ा भािा -१ 4
पहिी इकाई
१ ारि मतहमा
- जयशंकर प्रसाद
प रचय
भहमालय के ँगन मंे उसे, भकरण का दे उपहार
उषा ने हँस अभभनंदन भकया, र पहनाया हीरक हार । ि म ः १8 , िाराणसी (उ.प्र.)
म यु ः १ ३ , िाराणसी (उ.प्र.)
जगे हम, लगे जगाने भि ि, लोक में फला भफर लोक प रचय ः जयशंकर प्रसाद जी
छायािादी युग के चार स्तंभ में से क
योमतम पुंज तब न ट, अ ल संसभत हो उ ी अशोक । हैं । प ब मु ी प्रभतभा के धनी हैं ।
कभि, नाटककार, क ाकार,
भिमल िाणी ने िीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत उपनयासकार त ा भनबंधकार के प में
सप्तस्िर सप्तभसंधु में उ े, भछड़ा तब मधुर साम संगीत । ...... प प्रभसदध हैं । पकी रचना में
सित भारत के गौरिशाली अतीत,
भतहाभसक भिरासत के दशन होते हैं ।
भिजय केिल लोहे की नहीं, धम की रही धरा पर धम प्रमुि कृतियाँ ः झरना , ँस ,
भभ ु होकर रहते स ाट, दया भद लाते र- र म । लहर (का य), कामायनी
(महाका य), स्कदगुप्त , चं गुप्त ,
गोरी को भदया दया का दान, चीन को भमली धम की भ ट ुिस्िाभमनी ( भतहाभसक नाटक),
प्रभत िभन , काशदीप , इं जाल
भमला ा स्िण भभम को र्न, शील की भसंहल को भी सभ ट । (कहानी सं ह), ककाल , भततली ,
इरािती (उपनयास) भद ।
भकसी का हमने छीना नहीं, प्रकभत का रहा पालना यहीं
हमारी जनमभभम ी यहीं, कहीं से हम े नहीं ।......
पद्य संबंधी
च रत े पत, भुजा में शभ्त, न ता रही सदा संप
दय के गौरि में ा गि, भकसी को दे न सके भिप । प्रस्तुत कभिता में कभि ने अपने
देश के गौरिशाली अतीत का सजीि
िणन भकया है । कभि का कहना है भक
हमारे संचय में ा दान, अभतभ े सदा हमारे देि हमें अपने देश पर गि करते उसके
िचन में स्य, दय में तेज, प्रभतज्ा में रहती ी टेि । प्रभत अपना सिस्ि भनछािर करने के
भल हमेशा त्पर रहना चाभह ।
िही है र्त, िही है देश, िही साहस है, िैसा ज्ान
िही है शांभत, िही है शभ्त, िही हम भद य य संतान ।
1
शब्द संसार
पहार पुं. सं.(सं.) = भेंट तवप भि.(सं.) = भनधन
हीरक हार पुं. सं.(सं.) = हीर का हार टेव स्ती.सं.(भहं.) = दत
आिोक पुं.सं.(सं.) = प्रकाश
योम पुं. सं.(सं.)= काश मुहावरा
िम पुं.सं.(सं.) = अँधेरा तन ावर करना = अपण करना, समभपत करना
संसति स्ती.सं.(सं.) = संसार
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) तनम्नतिखिि पंत्ियांे का िा पय्ण तिखिए ः
१. कहीं से हम े नहीं ....................................
२. िही हम भद य य संतान ....................................
(२) तचि िोत याँ तमिाइए ः
अ
संचय
स्य १ ------------ ------------
अभतभ
र्न २ ------------ ------------
िचन
दान ३ ------------ ------------
दय
तेज 4 ------------ ------------
देि
( ) तिखिए ः
१. कभिता मंे प्रयु्त दो धातु के नाम २. भारतीय संस्कभत की दो भिशेषता ँ
2
२ ि मी
-गुरुबचन ससंह
3
गली के कुछ र में चला जाता । दध बेचना ज्ान भसंह का धंधा नहीं ा । प र ेद पर आधा रि कृतियाँ -
केिल गाय को चारा र दरा भद देने के भल कुछ पैसे जुटा लेता ा । प र छेद
नौकरी से अिकाश के बाद ज्ान भसंह को कपनी का िह मकान ाली ज्ान भसंह को मिेशी ---------
करना ा । समस्या ी तो ल मी की । िह ल मी को भकसी भी हालत में स्िीकार करोगे -----
बेच नहीं सकता ा । उसे अपने सा ले जाना भी संभि नहीं ा । जब सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः
अिकाश में दस-पं ह भदन ही रह ग तो करामत अली से कहा- भमयाँ (१) संिाि पूर्ण कीतिए ः
अगर ल मी को तु हें स प दं तो ्या तुम उसे स्िीकार करोगे ...
भमयाँ करामत अली ने कहा ा- नेकी र पछ-पछ । भला इससे
बड़ी ुशनसीबी मेरे भल र ्या हो सकती है प र छेद से
करामत अली भपछले क िष से उस गाय की सेिा करता चला प्राप्त ज्ान भसंह
रहा ा । गाय की दे भाल में कोई कसर नहीं छोड़ र ी ी । संबंधी जानकारी
करामत अली को ल मी की पी पर रोगन लगाने के बाद भी इ्मीनान
नहीं । िह उसके भसर पर हा फेरता रहा । ल मी भस् र ड़ी उसकी
(२) िर तिखिए ः
र भजज्ासापण भ ट से दे ती रही । करामत अली को लगा जैसे ल मी
कहना चाहती हो- यभद मैं तु हारे काम की नहीं ँ तो मुझे जाद कर दो । १. ज्ान भसंह की समस्या ँ
मैं यह र छोड़कर कहीं चली जा गी ।
ज्ान भसंह के दध
करामत अली यटी पर जाने की तैयारी में ा । तभी रमजानी बोली- २.
बेचने का उददे य
रहमान के अ बा, अगर ल मी दध नहीं देगी तो हम इसका ्या करेंगे
्या ँटे से बाँधकर हम इसे लाते-भपलाते रहेंगे ... ( ) च िट म दी सूचना के अनुसार
जानिर है । बँधा है तो इसे लाना-भपलाना तो पड़ेगा ही । कृतियाँ कीतिए ः
जानते हो, इस महँगाई के जमाने में भसफ सादा चारा देने में ही
पयायिाची
तीन-सा े तीन सौ महीने का चा है ।
सो तो है । कहते करामत अली गे कुछ नहीं बोला । र से िचन भलंग
सेिक
भनकलकर कार ाने की तरफ हो भलया । रास्ते में िह रमजानी की बात पर प रितन प रितन
भिचार कर रहा ा, ल मी अगर दध नहीं देगी तो इसका ्या करेंगे । यह
भिलोम
याल तो उसके मन में या ही नहीं ा भक क समय सा भी सकता
है भक गाय को र के सामने ँटे सें बाँधकर मु त में लाना भी पड़ सकता (4) पाििू िानवरों के सार तकए िाने
है । वािे स हाद्णपूर्ण यवहार के बारे म
उसके सा ी नईम ने उसे कुछ परेशान दे ा तो पछा- करामत भमयाँ, अपने तवचार तिखिए ।
्या बात है, बड़े परेशान नजर ते हो ै रयत तो है
सी कोई भिशेष बात नहीं है ।
कुछ तो होगा ।
्या बता । गाय ने दध देना बंद कर भदया है, ब ी हो गई है ।
बै ाकर लाना पड़ेगा र इस जमाने में गाय-भैंस पालने का चा...।
इसमें परेशान होने की ्या ज रत है गाय बेच दो ।
4
करामत अली ने हौका भरते कहा, हाँ, परेशानी से छटकारा
पाया जा सकता है । ब त सान तरीका है । ल मी को बेच भदया जा ।
िह नईम के पास से हटकर अपने काम में जुट गया ।
करामत अली रात का गया सिेरे कार ाने से र लौटा । रात की
यटी से र लौटने पर ही िह ल मी को दहता ा । र में ुसते ही उसने
रमजानी से पछा- ्या ल मी को अभी तक चारा नहीं भदया वरीय
रमजानी बोली- रहमान से कहा तो ा ।
तुम दाेन की मज होती तो गाय काे अब तक चारा भमल चुका
पयािरण च को बना
होता । अगर िह दध नहीं दे रही है तो ्या उसे भ ा र ोगे कहते र ने में प्राभणय की भभमका
करामत कटा पु ल, ली र दरा भद ले जाकर ल मी के भल के बारे मंे य टयब/रेभ यो/
सानी तैयार करने लगा । दरदशन से जानकारी सुभन ।
ल मी उतािली-सी तैयार हो रही सानी में मुँह मारने लगी ।
गाय को सानी देकर करामत अली उसकी पी दे ने लगा । रोगन ने
अ छा काम भकया ा । दाग कुछ ह के पड़ ग े ।
दस-पं ह भदन से य ही चल रहा ा । क भदन जब करामत अली
ने पु ल लाने के भल रमजानी से पैसे माँगे तो िह बोली, मैं कहाँ से पैसे
दँ पहले तो दध की भब ी के पैसे मेरे पास जमा रहते े । उनमें से दे देती
ी । अब कहाँ से दँ
लो, यह राशन के भल कुछ रुपये र े े । कहते रमजानी ने
संदकची मेें से बीस का क नोट भनकालकर उसे माते कहा, इससे
ल मी का राशन ले ।
ीक है । इससे ल मी के दो-चार भदन भनकल जा ँगे ।
र इस तरह कब तक चलेगा रमजानी द ी स्िर में बोली । प नीय
तुम इसे ुला छोड़कर, जमाकर तो दे ो ।
कहते हो तो सा करके दे लेंगे । भारत सरकार दिारा पशु
दसरे भदन रहमान सिेरे -नौ बजे के करीब ल मी को इलाके से संर ण पर चलाई जाने
बाहर जहाँ नाला बहता है, जहाँ झाड़-झं ाड़ र कहीं दब के कारण िाली योजना की
जमीन हरी नजर ती है, छोड़ या ताभक िह ास इ्याभद ाकर अपना जानकारी पभ र
कुछ पेट भर ले । लेभकन माँ-बेटे को यह दे कर चय भक ल मी ोषिा्य बनाकर प्रस्तुत
क- े ंटे बाद ही र के सामने ड़ी ी । उसके गले में रस्सी ी । क कीभज ।
यभ्त उसी रस्सी को हा में ामे कह रहा ा- यह गाय ्या प लोग
की है
रमजानी ने कहा, हाँ ।
यह हमारी गाय का सब चारा ा गई है । इसे प लोग बाँधकर
र ें नहीं तो काँजी हाउस में प ँचा देंगे ।
रमजानी चुप ड़ी गंतुक की बातें सुनती रही ।
5
दोपहर बाद जब करामत अली यटी से लौटा र नहा-धाेकर कुछ
ना ते के भल बै ा तो रमजानी उससे बोली- मेरी मानो तो इसे बेच दो ।
भफर बेचने की बात करती हो... कौन रीदेगा इस बुभ या को ।
रहमान कुछ कह तो रहा ा, उसे कुछ लोग रीद लेंगे । उसने
भकसी से कहा भी है । शाम को िह तुमसे भमलने भी गा ।
करामत अली सुनकर ामोश रह गया । उसे लग रहा ा, सब कुछ
उसकी इ छा के भिरुदध जा रहा है, शायद भजसपर उसका कोई िश नहीं ा ।
करामत अली यह अनुभि करते भक ल मी की भचंता अब भकसी
को नहीं है, ामोश रहा । उ ा र र में जो स ा चारा पड़ा ा, उसके
सामने ाल भदया ।
ल मी ने चारे को सँ ा र भफर उसकी तरफ भनराशापण ँ से
दे ने लगी । जैसे कहना चाहती हो, माभलक यह ्या ज ्या मेरे
सं ाषरीय
फाँकने को यह स ा चारा ही है । दरा- ली कुछ नहीं ।
करामत अली उसके पास से उ कर मँुह-हा धोने के भल गली के
नु्कड़ पर नल की र चला गया । भिलुप्त हो रहे जानिर पर सं ेप
सात- बजे के करीब रहमान क यभ्त को अपने सा लाया । में अपने भिचार य्त कीभज ।
करामत अली उसे पहचानता ा ।
इसके पहले भक उससे कुछ पचा रक बातें ह , करामत अली ने
पछा, ्या तुम गाय रीदने हो
उसने जिाब में कहा- हाँ
ब ी गाय है, दध- ध नहीं देती ।
तो ्या ...
तुम इसे लेकर ्या करोगे ...
मैं कहीं र बेच दंगा ।
यह तु हारा पुराना धंधा है । मैं जानता ँ । मुझे तु हें गाय नहीं
बेचनी । करामत भमयाँ ने उसे कोरा जिाब दे भदया ।
रमजानी करामत के चेहरे के भाि भाँपती ई बोली- ्या यह भी
कोई तरीका है, ने िाले को ड़े- ड़े द्कारकर भगा दो ।
तुम जानती हो िह कौन है... करामत अली ने कट स्िर में
कहा ।
िह ल मी को ले जाकर िहाँ बेच गा जहाँ यह टकड़े-टकड़े
होकर भबक जा गी । मेरे दोस्त ज्ान भसंह को इसका पता चल गया तो िह
मेरे बारे में ्या सोचेगा ।
उस भदन करामत अली भबना कुछ ा -भप रात को भबना भबस्तर की
चारपाई पर पड़ा रहा । नींद उसकी ँ से कोस दर ी ।
6
रात काफी भनकल चुकी ी । सिेरे देर तक िह लेटा ही रह गया । कुछ
देर बाद करामत अली ने चारपाई छोड़ी । मुँह-हा धो, र से बाहर भनकल
पड़ा । ल मी के गले से बँधी ई रस्सी ँटे से ोली र उसे गली से बाहर
ले जाने लगा । रमजानी, जो दरिाजे पर ड़ी यह सब दे रही ी, बोली-
इसे कहाँ ले चले
करामत अली ने कहा- जहाँ इसकी भकस्मत में भल ा है ।
िेिनीय
िह ल मी को सड़क पर ले या । ल मी भबना भकसी रुकािट या
जत के उसके पीछे-पीछे चली जा रही ी । िह उसकी रस्सी पकड़े सड़क
पर गे की र चलता चला गया । चलते-चलते कुछ ण रुककर िह पेटा ( ) संस् ा के
बोला- ल मी चल, अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है । तुझे बारे में जानकारी प्राप्त
ग शाला में भरती करा दंगा । िहाँ इ्मीनान से रहना । िहाँ त हमारे र की कीभज र इसके प्रमु
तुलना में मजे से रहेगी । भले ही मैं िहाँ न र ँ पर जो लोग भी ह गे, मेरे याल मुददे भिदयालय के भभभ्त
में तु हारे भल अ छे ही ह गे । मैं कभी-कभी तु हें दे या क ँगा । तब फलक पर भल ।
त मुझे पहचानेगी भी या नहीं, ुदा जाने, कहते करामत अली का
गला भर या । उसकी ँ में ँस उतर ।
चल, ल मी चल । ज दी-ज दी पैर ब ा र िह ुद भकसी
के-मांदे ब े बैल की तरह भारी कदम से गे ब ने लगा ।
शब्द संसार
बरान पुं.सं.(भहं.) = पालत गाय-बैल के रहने का स् ान काँिी हा स पंु.सं.(अं.) = सरकारी मिेशी ाना
मवेशी पुं. सं. (अ.) = कभषकाय में उपयु्त त ा (भजसमें लािा रस पशु
दधा पशु बंद करके र े जाते
दरा्ण पुं. सं. (भहं.दे.) = अनाज के अंश हैं । )
ह का पुं. सं. (भहं.) = दी भन िास
पुआि पुं. सं. (भहं.दे.) = धान के स े ं ल, भजनमें
मुहावरे
से दाने भनकाल भद ग ह मुँह मारना = ज दी-ज दी ाना
ििी स्ती. सं. (भहं.दे.) = तेल भनकल जाने के बाद गिा र आना = भाि भिहिल होना, िाज
भतलहन का बचा भर ना
भहस्सा जो मिेशी ाते हैं कोरा िबाब देना = साफ मना करना
िश म आना = िेश में ना
7
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) तचि टना म िगाकर वा्य त र से तिखिए ः
१. उसके गले में रस्सी ी ।
२. रहमान बड़ा म है ।
३. िह ल मी को सड़क पर ले या ।
मार के कारण 4. उसने तु हें बड़ी बेदद से पीटा है ।
ल मी के यिहार में
या प रितन (4) गिि वा्य, सही करके तिखिए ः
१. करामत अली भपछले चार साल से गाय की सेिा
करता चला रहा ा ।
२. करामत अली को ल मी की पी पर रोगन लगाने के
( ) िर तिखिए ः बाद इ्मीनान ।
१. नाम -
करामत अली २. उ -
की गाय ३. नस्ल -
4. भस् भत -
8
ाषा तबंद
;
,
Í Í Í
.......
( )
-/
9
वाह रे हमदद्ण
-घनशयाम अग्रवाल
10
प रभचतो, र तेदारो, भमतो , जब जी चाहे , चाहे भजतनी देर
रुको, समय का कोई बंधन नहीं । अपने सारे बदले लेने का यही ि है ।
बदले का बदला र हमदद की हमदद । भमलने िाल का याल ते
ही मुझे लगा मेरी दसरी टाँग भी टट गई ।
मुझसे भमलने के भल सबसे पहले िे लोग भजनकी टाँग या कुछ
र टटने पर मैं कभी उनसे भमलने गया ा, मानो िे इसी भदन का इंतजार
कर रहे े भक कब मेरी टाँग टटे र कब िे अपना हसान चुका ँ । इनकी
हमदद में यह बात ास भछपी रहती है भक दे बेटा, ि सब पर ता वरीय
है ।
दद के मारे क तो मरीज को िैसे ही नींद नहीं ती, यभद ोड़ी-ब त
सािजभनक अस्पताल में जाकर
भी जा तो भमलने िाले जगा देते हैं- ास कर िे लोग जो भसफ भकसी मरीज से उसके अनुभि
पचा रकता भनभाने ते हैं । इनहें मरीज से हमदद नहीं होती, ये भसफ सुभन र अपने श द में
सरत भद ाने ते हैं। से में क भदन मैंने तय भकया भक ज कोई भी , सुनाइ ।
मैं ँ नहीं ोलँगा । चुपचाप पड़ा रहँगा । भफस के बड़े बाब र
मुझे सोया जानकर िापस जाने के बजाय िे सोचने लगे भक यभद मैंने उनहें नहीं
दे ा तो कसे पता चलेगा भक िे भमलने े । अत उनह ने मुझे धीरे-धीरे
भहलाना शु भकया । भफर भी जब ँ ें नहीं ुलीं तो उनह ने मेरी टाँग के
टटे भहस्से को जाेर से दबाया । मैंने दद के मारे कुछ ची ते जब ँ
ोली तो िे मुस्कराते बोले- कभह , अब दद कसा है
मुह ेिाले अपनी फुरसत से ते हैं । उस भदन जब सोनाबाई अपने
चार ब के सा ई तो मुुझे लगा भक ज भफर कोई द टना होगी ।
ते ही उनह ने मेरी र इशारा करते ब से कहा- ये दे ो चाचा
जी उनका अंदाज कुछ सा ा जैसे भचभड़या र भद ाते ब से
कहा जाता है- ये दे ो बंदर । प नीय
ब े ल े ने लगे । क कुस पर च ा तो दसरा मेज पर । सोनाबाई की
छोटी लड़की दिा की शीशी लेकर क कली ांस करने लगी । अस्पताल में लगे सचना फलक/
रप-रप की िाज ने मेरा यान बँटाया । ्या दे ता हँ भक सोनाबाई का क भिज्ापन को पभ त ा क ा में
लड़का मेरी टाँग के सा लटक रही रेती की ल ै ी पर बा ्संग की प्रै ्टस चचा कीभज ।
कर रहा है । मैं इसके पहले भक उसे मना करता, सोनाबाई की लड़की ने दिा
की शीशी पटक दी । सोनाबाई ने क पल लड़की को रा, भफर हँसते
बोली- भैया, पेड़े ला , दिा भगरना शुभ होता है । दिा गई समझो
बीमारी गई । इसके दो टं बाद सोनाबाई गई, यह कहकर भक भफर
गी । मैं भीतर तक काँप गया ।
कुछ लोग तो पचा रकता भनभाने की हद कर देते हैं, भिशेष कर िे
11
र तेदार जो दसरे गाँि से भमलने ते हैं । से में क भदन क टै्सी कमरे
के सामने कर रुकी । उसमें से भनकलकर क दमी ते ही मेरी छाती
पर भसर र कर धा पड़ रोने लगा र कहने लगा- हाय, तु हें ्या हो
गया कारिाल का स्यानाश हो मैंने भदल में कहा भक मुझे जो
सो , पर त ्य रोता है, तुझे ्या िह ोड़ी देर मेरी छाती में
मुंह गड़ा रोता रहा । भफर रोना कुछ कम । उसने मेरी छाती से गरदन
हटाई र जब मुझसे ँ भमलाई, तो कदम चुप हो गया । भफर धीरे-से
हँसते बोला- माफ करना, मंै गलत कमरे में गया ा । जकल
लोग ीक से बताते भी ताे नहीं। गुप्ता जी का कमरा शायद बगल मंे है । िेिनीय
हें-हें-हें अ छा भाई, माफ करना । कहकर िह चला गया । अब िही
रोने की िाज मुझे पड़ोस के कमरे से सुनाई पड़ी । मुझे उस दमी से
अभधक गुस्सा अपनी प्नी पर या ्य भक इस प्रकार रोता दे प्नी ने र्त बैंक के काय त ा
उसे मेरा र तेदार या करीबी भमत समझकर टै्सीिाले को पैसे दे भद े । र्तदान काय म के बारे में
हमदद जताने िाल में िे लोग ज र ँगे, भजनकी हम सरत भी जानकारी इकट ा करके अपनी
क पी में भल ।
नहीं दे ना चाहते। हमारे शहर में क कभि हैं, ी लपकानंद । उनकी
बेतुकी कभिता से सारा शहर परेशान है । मैं अकसर उनहें दर से दे ते ही
भाग ड़ा होता हँ । जानता हँ जब भी भमलेेंगे दस-बीस कभिता ँ भपला
भबना नहीं छोड़ेंगे । क भदन बगल में झोला दबा पहँुचे । ते ही कहनेे
लगे- मैं तो भपछले चार-पाँच भदन से कभि स मेलन में अभत यस्त ा ।
सच कहता हँ कसम से, मैं पके बारे मंे ही सोचता रहा । रात भर मुझे नींद
नहीं ई र हाँ, रात को इसी संदभ में यह कभिता बनाई...। यह कह
झोले में से ायरी भनकाली र लगे सुनाने-
असम की राजधानी है भशलाँग
मेरे दोस्त की टट गई है टाँग
मोटरिाले, तेरी ही साइ ी राँग । सं ाषरीय
कभिता सुनाकर िे मुझे से दे रहे े, मानो उनकी क ँ पछ
रही हो- कहो, कभिता कसी रही र दसरी ँ पछ रही हो- बोल, भकसी सािजभनक या ाम
बेटा अब भी मुझसे भागेगा मैंने ज दी से चाय भपलाई र भफर पंचायत की सभा में अंगदान
कभिता ँ सुनने का िादा कर बड़ी मु कल से भिदा भकया । के बारे में अपने भिचार प्रस्तुत
अब मैं रोज ई िर से प्रा ना करता हँ भक हे ई िर अगर तुझे मेरी कीभज ।
दसरी टाँग भी तोड़नी हो तो ज र तोड़ मगर कपा कर उस जगह तोड़ना जहाँ
मेरा कोई भी प रभचत न हो, ्य भक बड़े बेदद होते हैं ये हमदद जताने
िाले ।
( हँसी र के ईने से)
12
शब्द संसार
त स्ती.सं.(अ.) = भचंता मुहावरे
हमदद स्ती.सं.(फा.) = सहानुभभत टाँग अ ाना = बाधा ालना
एहसान पुं.सं.(अ.) = कतज्ता काँप ना = भयभीत होना
धा भि.(भहं.) = उ टा
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः
(२) अंिर स्पष्ट कीतिए ः
प्राइिेट अस्पताल सािजभनक अस्पताल
मरीज से भमलने के १. ------- १. -------
भल ने िाले प्राइिेट िा जनरल िा
लोग की
भिशेषता ँ १. ------- १. -------
( ) आकृति म तिखिए ः
अस्पताल में सोनाबाई के ब की शरारतें
अत यख मरीि से तमिने िािे समय क न-क न-सी सावधातनयाँ बरिनी चातहए, तिखिए ।
13
ाषा तबंद
१4
14
4 मन
(पूरक प न)
-सवकास पररहार
ना अँधेरा
चमकता प्रकाश
ैर अभधक ।
प रचय
ि म ः १ 8३, गुना (म.प्र.)
करते जा प रचय ः भिकास प रहार ने २
पाने की मत सोचो से २ तक भारतीय िायुसेना को
जीिन सारा । अपनी सेिा ँ दीं भफर पतका रता के
ेत मंे उतरने के बाद रेभ यो से जुड़े ।
साभह्य में भिशेष रुभच होने के कारण
जीिन नैया
प नाटय गभतभिभधय से भी जुड़े
मँझधार में ोले, हैं ।
सँभाले कौन
ारे जल से
धुल ग भिषाद
मन पािन ।
म्यु को जीना
जीिन भिष पीना
है भजजीभिषा ।
15
१5
मन की पीड़ा
छाई बन बादल
बरसीं ँ ें ।
चलतीं सा
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
पट रयाँ रेल की
(१) तचि िोत याँ तमिाइए ः
भफर भी मौन ।
अ आ
भसतारे भछपे मछली ------- मौन
बादल की ट में गीत के स्िर ------- सुना
रेल की पट रयाँ ------- यासी
सना काश ।
काश ------- अमर
पीड़ा
तुमने भद
भजन गीत को स्िर (२) प रराम तिखिए ः
अमर । १. भसतार का भछपना -
२. तु हारा गीत को स्िर देना -
सागर में भी ( ) सरि अर्ण तिखिए ः
रहकर मछली मन की ------ बरसीं ँ ें ।
यासी ही रही ।
शब्द संसार
मँ धार स्ती.सं.(भहं.) = नदी के प्रिाह का म यभाग
क ा स्ती.सं.(सं.) = ोर भनराशा
तवषाद पुं.सं.(सं.) = अभभलाषा परी न होने पर मन में होने िाला ेद या द
तििीतवषा स्ती.सं.(सं.) = जीिन के प्रभत सभ्त/जीने की इ छा
ट स्ती.सं.(सं.) = ड़
16
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) तिखिए ः
तनम्नतिखिि हाइक द्वारा तमिने वािा संदेश
करते जा पाने की मत सोचो जीिन सारा । भीतरी कु ा नयन के दिार से ई बाहर ।
----------------------- ------------------------
----------------------- ------------------------
----------------------- ------------------------
तदनांक ः
संबोधन ः
अत वादन ः
प्रारं ः
तवषय तववेचन ः
---------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
िुम्हारा िुम्हारी,
नाम ः
पिा ः
ई-मेि आई ी ः
17
5 गोवा ः िसा मने देिा
- सवनय शमामा
१8
18
के भल बेनाभलयम बीच की र चलें । प भी चलें ्य भक ब त ही
बसरत त ा शांत जगह है बेनाभलयम । भदन भर की कान त ा उमस
भरी गरमी के बाद शाम को बीच पर जाना बड़ा अ छा लग रहा ा । रस ट
से बीच की दरी कोई क भकमी ही ी लेभकन ज दी-ज दी चलने के बाद
भी यह दरी तय हो ही नहीं पा रही ी । अरब सागर दे ने का उ्साह ब ता
ही जा रहा ा । तभी अचानक लहर की िाज सुनाई दी जो भकसी
रणभेदी की तरह ी । हम सभी दौड़ पड़े । सड़क पीछे छट गई ी इसभल
रेत पर तेजी से दौड़ना मु कल हो रहा ा, भफर भी धँसे पैर को परी
ताकत से उ ा-उ ाकर भाग रहे े । बसरत समुंदर दे ते ही मैं उससे
जाकर भलपट गया । इधर ब े रेत का र बनाने में जुट ग । लहरें उनका
र भगरा देतीं तो िे दसरी लहर ने के पहले भफर नया र बनाने में जुट
जाते । यही म चलता रहा । मैंने इन ब से सी ा भक जीिन में
शािाद हो तो कोई काम असंभि नहीं है । शाम गहराने पर हम भकनारे
प नीय
पर बै ग । मानो हर लहर कह रही हो भक बनने के बाद भमटना ही भनयभत
है । यही जीिन का स्य भी है । गोिा की भतहाभसक प भभम की
यहाँ क मजेदार य भी दे ने को भमला । लहर की िाज के जानकारी पभ र कालानु म
बीच पभ य की टीं-टीं-टीं की िाज भी पका यान अपनी र के अनुसार प्रमु टना की
ींच लेती है । दरअसल, ये प ी लहर के सा बहकर ई मछभलय का ताभलका बनाइ ।
भशकार करने के भल भकनारे पर ही मँड़राते रहते हैं लेभकन जब तेज हिा के
कारण क ही भदशा में सीधे नहीं उड़ पाते हैं तो सुस्ताने के भल भकनारे पर
बै जाते हैं । यहाँ बै े कु्त को इसी बात का इंतजार रहता है । मौका
भमलते ही िे इनपर झपट पड़ते हैं लेभकन बेचारे कु्त काे सफलता कम
ही भमल पाती है । पभ य का बै ना, कु्त का दौड़ना र पभ याें का
टीं-टीं-टीं कर उड़ जाना, यह य सैलाभनय का अ छा मनोरंजन करता
है । इधर जैसे ही सय देिता ने भिदा ली िैसे ही चं मा की चाँदनी में नहाकर
समु का नया ही चेहरा नजर ने लगा । अब समु स्याह र भयािह
भद ने लगा ।
अगले भदन हमने बस से गाेिा मने की योजना बनाई । िैसे
मने-भफरने के भल यहाँ बाइक भद भकरा पर भमल जाती है र उनपर
ही मने का मजा भी ता है लेभकन ब के कारण हमने बस से जाना
मुनाभसब समझा । यहाँ सी फू की अभधकता होने के कारण शाकाहारी
पयटक को सुस्िाद भोजन की समस्या से भी दो-चार होना पड़ता है ।
काफी भटकने के बाद अ छा भोजन भमल गया तो समझो भकस्मत र
जेब तो ीली हो ही गई । यह समस्या हमें पहले से पता ी । इसभल हम
19
अपने रस ट के स्यट में उपल ध भकचन में ही भोजन करते े ।
सबसे पहले हम अंजुना बीच प ँचे । गोिा में छोटे-बड़े करीब 4
बीच हैं लेभकन प्रमु सात या ही हैं । अंजुना बीच नीले पानीिाला,
प रीला ब त ही बसरत है । इसके क र लंंबी-सी पहाड़ी है, जहाँ
से बीच का मनोरम य दे ा जा सकता है । समु तक जाने के भल ोड़ा
नीचे उतरना पड़ता है । नीला पानी काले प् र पर पछाड़ ाता रहता वरीय
है । पानी ने काट-काटकर इन प् र में कई छेद कर भद हैं भजससे ये
प् र कमजोर भी हो ग हैं । सा ही समु के काफी पीछे हट जाने से कई
य टयब पर गोिा का संगीत
प् र के बीच में पानी भर गया है । इससे िहाँ काई ने अपना र बना सुभन र लोकसंगीत के
भलया है । भफसलने का र हमेशा लगा रहता है लेभकन सं षाे में ही जीिन काय म में प्रस्तुत कीभज ।
है, इसभल यहाँ मने का भी अपना अलग नंद है । यहाँ युिा का
दल तो अपनी मस्ती में बा रहता है, लेभकन प रिार के सा पयटक
का यान अपने ब को तर से सािधान रहने के भदशाभनदश देने में ही
लगा रहता है । मैंने दे ा भक समु भकनारा होते भी बेनाभलया बीच त ा
अंजुना बीच का अपना-अपना स दय है । बेनाभलयम बीच रेतीला त ा
उ ला है । यह मछ र की पहली पसंद है । यहाँ सुबह-सुबह बड़ी माता
में मछभलयाँ पकड़ी जाती हैं लेभकन मजे की बात यह है भक इतनी सारी
मछभलयाँ स् ानीय बाजार में ही बेची जाती हैं । इनका भनयात भबलकुल भी
नहीं होता है । इसके भिपरीत अंजुना बीच गहरा र नीले पानीिाला है ।
यह ब लीिु की पहली पसंद है । यहाँ कई भहट भफ म की शभटंग ई है ।
दोन बीच यािसाभयक हैं पर मल अंतर यिसाय की प्रकभत का है । इसके
बाद हम लोग भदन भर पणजी शहर दे ते रहे ।
म-भफरकर शाम को हम कभलंगिु बीच पर प ँचे । यह काफी
रेतीला त ा गोिा का सबसे लंबा बीच है जो ३ से 4 भकमी तक फला है । िेिनीय
यहाँ पयटक बड़ी सं या मंे ते हैं । यही कारण है भक यह स् ानीय लोग
के यिसाय का क भी है । यहाँ कई प्रकार के िाटर स्पोटस होते हैं भजनमें गोिा की तरह अनय समु ित
कुछ तो हैरतअंगेज हैं, भजनहें दे ने में ही नंद ता है । प भी अपनी दशनीय स् ल की जानकारी
रुभच के अनुसार हा जमा सकते हैं । मैंने कई ेल में भहस्सा भलया, अंतरजाल की सहायता से
लेभकन सबसे अभधक रोमांच पैरा लाइभ ंग में ही या । काफी चाई से प्राप्त कीभज त ा भल कर
सचना फलक पर लगाइ ।
अ ाह जलराभश को दे ना भजतना भिस्मयकारी है, उतना ही भयािह
भी । दर-दर तक पानी-ही-पानी, तेज हिा र रभस्सय से हिा में लटके
हम । हम यानी मैं र मेरी प्नी । दोन र भी रहे े र ुश भी हो रहे
े । र इस बात का भक छट ग तो समझो ग र ुशी इस बात की भक
सा रोमांचक य पहली बार दे ा । सचमुच अदभुत
20
हम यहाँ चार-छह भदन रहे लेभकन हमारी क ही भदनचया रही । सुबह
ज दी उ ना, फटाफट ना ता करना र भदन भर म-भफरकर, ककर
शाम को रस ट कर कान भमटाने के भल पल में तैरना क भदन
कोलिा बीच पर हमने बोभटंग का भी नंद भलया । यहाँ हमने भ फन
मछभलयाँ दे ीं । हालाँभक ये छोटी ीं पर ब ने अ छा नंद भलया ।
इस दौरान यहाँ निराभत त ा दशहरा पि मनाने का सौभा य भी प्राप्त
। उ्तर भारत में भजस तरह हर र त ा गली-मोह ले में मां दगा की
ट स् ापना कर त ा लड़भकय दिारा गरबा कर पि मनाया जाता है, सा
ही यहाँ भी होता है । रािण का पुतला कहीं भी नहीं जलाया जाता है । सुबह सं ाषरीय
से लोग अपने िाहन की सफाई कर उनकी पजा करते हैं र शाम को
भगिान की क पालकी मंभदर ले जाई जाती है । इसके बाद क पेड़ भिशेष गोिा की प्राकभतक संुदरता पर
की पभ्तयाँ तोड़कर लोग क-दसरे को देकर बधाई देते हैं । सबकी संिाद प्रस्तुत कीभज ।
अपनी-अपनी सांस्कभतक परंपरा है ।
इतने कम भदन में मैं गोिा को परा दे -समझ तो नहीं पाया पर इतना
ज र समझ गया भक प चमी फशन र स यता में रचा-बसा होने के
बािजद यह भारतीय संस्कभत को परी तरह से ्मसात भक हैं ।
पयटक फशन के रंग में कुछ देर के भल भले ही स्ियं को रँगकर चले जाते
ह लेभकन स् ानीय लोग अपनी सांस्कभतक परंपरा की उँगली अब भी
पकड़े हैं ।
शब्द संसार
आबोहवा स्ती.सं.(अ.फा.) = जल-िायु मुहावरे
िानापूति्ण स्ती.सं.(फा.) = पचा रकता परी करना मन िरंगातयि होना = मन उमंग से भरना
हरीतिमा स्ती.सं.(सं) = ह रयाली तनिाि पाना = मुभ्त पाना
सिानी भि.(भहं.) = सैर-सपाटा करने िाले, पयटक दो-चार होना = जझना
सुस्वाद भि.(भहं.) = स्िाभद ट िेब ीिी होना = जेब ाली होना, ब त
अभधक च होना
21
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
याता के दौरान ले क की भदनचया गोिा की र कभषत करने िाले टक
( ) तिखिए ः
१. नीले पानीिाला प रीला -
२. रेतीला त ा उ ला -
३. सबसे लंबा -
4. मछ र की पहली पसंद -
(4) सूची बनाइए ः
गोवा का प्राकृतिक स दय्ण दशा्णने वािे वा्य (5) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. निराभत त ा दशहरा पि में
२. गोिा की अलग परंपरा ँ
३. -------
4. -------
-------
-------
(६) ‘बेनातिया’, ‘अंिुना’ िरा ‘कतिंगवु ’ बीच की तवशेषिाएँ ः
१ ---------- १ ---------- १ ----------
२ ---------- २ ---------- २ ----------
---------- ---------- ----------
भिलोमा
उपसग शय प्र्यय
यु्त यु्त
पयायिाची
अत यख ‘प्रकृति को सुंदर बनाए रिने म मेरा योगदान’ तवषय पर अपने तवचार तिखिए ।
22
ाषा तबंद
(१) कोष् क म दी गई सं ा से तवशेषर संि न ह । नीचे दी गई सा ररी म सं ा िरा तवशेषरों को दे ों सतहि तिखिए ः
य ीि गाय, नीिा पानी, दस िीटर दध, चािीस ा , क िोग, दो गि िमीन, वही पानी, यह ि का
सं ा ेद तवशेषर ेद
(२) पयु्ण्ि सं ा-तवशेषरों की िोत यों का स्विं वा्यों मंे प्रयोग कीतिए ।
( ) पा मंे प्रयु्ि तवशेषरों को ँ कर नकी सूची बनाइए ।
(4) तनम्नतिखिि वा्यों म आई सहायक त या को अधोरेिांतकि कीतिए िरा नका अर्णपरू ्ण वा्यों म प्रयोग कीतिएः
१. टै्सी क पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी ।
िा्य =
२. शरीर को कुछ समय के भल भि ाम भमल जाता है ।
िा्य =
३. हम राम करने के इरादे से अपने-अपने स्यट चले ग ।
िा्य =
4. भफर भी धप ती ी ही होती जाती है ।
िा्य =
5. सबके बािजद यह अपने में क सांस्कभतक भिरासत भी समेटे हैं ।
िा्य =
. इधर ब े रेत का र बनाने लगे ।
िा्य =
. अब समु स्याह र भयािह भद ने लगा ।
िा्य =
8. यहाँ सुबह-सुबह बड़ी माता में मछभलयाँ पकड़ी जाती हैं ।
िा्य =
(5) पा म प्रयु्ि दस सहायक त याएँ ाँटकर तिखिए ।
(१)
मेरे तो भगरधर गोपाल, दसरो न कोई
जाके भसर माेर मुकट, मेरो पभत सोई प रचय
छाँभड़ दई कुल की काभन, कहा क रहै कोई
संतन भ ग बैभ -बैभ , लोक लाज ोई । ि म ः १5१ , जोधपुर (राजस् ान)
अँसुिन जल सींभच-सींभच प्रेम बेभल बोई । म युः १54 , दिा रका (गुजरात)
अब तो बेल फल गई णँद फल होई ।। प रचय ः संत मीराबाई बचपन से
ही क णभभ्त में लीन रहा करती
दध की म भनयाँ बड़े प्रेम से भबलोई ।
ीं । बाद में गह्याग करके प
मा न जब काभ भलयो छाछ भपये कोई ।। म- मकर मंभदर में अपने भजन
भगत दे राजी ई जगत दे रोई । सुनाया करती ीं । मीराबाई के
दासी मीरा लाल भग रधर तारो अब मोही ।। भजन र उपासना माधुयभाि से
ेत-प्रोत हैं । पके पद मंे प्रेम
(२) की त लीनता समान प से पाई
ह र भबन कूण गती मेरी ।। जाती है ।
तुम मेरे प्रभतपाल कभहये मैं रािरी चेरी ।। प्रमुि कृतियाँ ः नरसी जी का
भद-अंत भनज नाँि तेरो हीमायें फेरी । मायरा, गीत गोभिंद , राग
गोभिंद, राग सोर के पद भद ।
बेर-बेर पुकार क ँ प्रभु रभत है तेरी ।।
यौ संसार भबकार सागर बीच में ेरी ।
नाि फाटी प्रभु पाल बाँधो बड़त है बेरी ।।
भबरहभण भपिकी बाट जौिै रा यो नेरी ।
दासी मीरा राम रटत है मैं सरण ँ तेरी ।। पद्य संबंधी
( )
फागुन के भदन चार होरी ेल मना रे । मीराबाई के सभी पद उनके
रा य के प्रभत ही समभपत हैं ।
भबन करताल प ािज बाजै, अणहद की झनकार रे । पके पद का मु य स्िर भगित
भबन सुर राग छतीसँ गािै, रोम-रोम रणकार रे ।। प्रेम ही है । प्रस्तुत पद मंे पकी
सील संतो की केसर ोली, प्रेम-प्रीत भपचकार रे । उ्सुकता, भमलन, शा, प्रती ा
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे ।। के भाि सभी अनुपम हैं ।
ट के पट सब ोल भद हैं, लोकलाज सब ार रे ।
मीरा के प्रभु भग रधर नागर, चरण किल बभलहार रे ।।
२4
24
शब्द संसार
कि पुं.सं.(सं.) = िंश, राना नेरी स्ती.भि.(दे.) = पास, भनकट
त ग भ .भि.(भहं.) = पास, भनकट िीसूँ भि.(दे.) = े
मरतनयाँ स्ती.सं.(भहं.) = म नी, दही म ने का साधन कवि पुं.सं.(दे.) = कमल
रावरी सि.(दे.) = पकी बतिहारना भ .(दे.) = भनछािर करना
चेरी स्ती.सं.(भहं.) = चेली, दासी
स्वाधयाय
* सूचनानुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
कनहैया की भिशेषता ँ
25
२5
अपत ि पद्यांश
(भिानी प्रसाद भम )
(१) िर तिखिए ः
१. भकसी से काम करिाने के भल उपयु्त -
२. हर समय अ छी लगने िाली बात -
(२) िर तिखिए ः
१. अ छा प्रय्न यही है -
२. यही अधोगभत है -
ाषा तबंद
कोष् क म तदए गए प्र येक कारक तचह्न से अिग-अिग वा्य बनाइए र नके कारक तिखिए ः
ने, को, से, का, की, के, म, पर, हे, अरे, के तिए
26
७ िुिा आकाश
(पूरक प न) - कुँवर नारायण
अंदर की दतनया
हमारे अंदर की दभनया बाहर की दभनया से कहीं यादा बड़ी है । हम
उसका भिस्तार नहीं करते । बाहर की अपे ा उसे छोटा करते चले जाते हैं प रचय
र उसे भबलकुल भनज ि कर लेते हैं । जादी, परी जादी, अगर कहीं
ि म ः १ २ , फजाबाद (उ.प्र.)
संभि है तो इसी भीतरी दभनया में ही, भजसे हम भबलकुल अपनी तरह म यु ः २ १ , ल न (उ.प्र.)
समदध बना सकते हैं- स्िा अ में भसफ अपने भल ही नहीं, भन स्िा प रचय ः नई कभिता ंदोलन के
अ में दसर के भल भी मह््ि र ता है र स्ियं अपने भल तो भिशेष सश्त हस्ता र कुिर नारायण की
मह््ि र ता ही है । मल भिधा कभिता रही है । इसके
अलािा पने कहानी, ले ,
- १ माच १ 8 समी ा, भसनेमा, रंगमंच भद
मकान पर मकान कला पर भी ले नी चलाई है ।
भजस गली में जकल रहता ँ-िहाँ क समान भी है लेभकन पकी कभिता-कहाभनयांे का कई
भद ाई नहीं देता । उस गली में पेड़ भी नहीं हैं, न ही पेड़ लगाने की गुंजाइश भारतीय भाषा र भिदेशी
भाषा में अनुिाद है ।
ही है । मकान ही मकान हैं । इतने मकान भक लगता है मकान पर मकान पको भारतीय साभह्य जगत का
लदे हैं । लंद-फद मकान की क ब त बड़ी भीड़, जो क संकरी गली में सि स मान ज्ानपी भी प्राप्त
फस गई र बाहर भनकलने का कोई रास्ता नहीं है । भजस मकान में रहता है ।
ँ, उसके बाहर झाँकने से बाहर नहीं भसफ दसरे मकान र क गंदी ि प्रमुि कृतियाँ ः च यह , तीसरा
सप्तक , प रिेश , हम-तुम ,
तंग गली भद ाई देती है । भचभड़याँ भद ती हैं, लेभकन पेड़ पर बै ीं या ्मजयी , कोई दसरा नहीं ,
समान में उड़तीं ई नहीं । भबजली या टेलीफोन के तार पर बै ी, मगर इन भदन भद ।
बातचीत करतीं या र के अंदर यहाँ-िहाँ सले बनाती नहीं भद तीं ।
उनहें दे कर लगता मानो िे प्राकभतक नहीं, रबड़ या ाभस्टक के बने
लौने हैं, जो शायद ही इधर-उधर फुदक सकते ह या चँ-चँ की िाजें
भनकाल सकते ह । गद्य संबंधी
मैं सी संकरी र तंग गली में, मकान की क ब त बड़ी भीड़ से
प्रस्तुत ायरी भिधा में कुिर
भबजली या टेलीफोन के तार से उलझे समान से िं ह रयाली के अभाि नारायण जी ने जीिन के सं ष,
से जझते अपने मुह ले से बाहर भनकलने की भारी कोभशश में ँ । साभह्य, ्मभचंतन, जीिन म
- १ माच १ 8 भद पर अपने भिचार स्प ट भक हैं ।
सही सातह य इस पा में पका मानना है भक हमें
दसर से िाद-भििाद न करके स्ियं
सही र संपण साभह्य िह है, भजसे हम दोन ँ से दे ते से संिाद करना चाभह ।
हैं-भसफ बा या भसफ दा ँ से नहीं ।
- 8 अगस्त, १ 8
27
िान िुद को
भबलकुल चुपचाप बै कर भसफ अपने बारे में सोचें । कोभशश करें भक
दसरे या सब कहीं भी उस ्मभचंतन के बीच में ना ँ । इससे दो
फायदे ह गे । क तो हम अपने को जान सकगे भक हम स्ियं ्या हैं, जो दसर
के बारे में सब कुछ जानने का दंभ र ते हैं । दसरे, हमारे उस हस्त ेप से दसर सं ाषरीय
की र ा होगी, भजसके प्रभत ण मौजद रहते िे अपने बारे में न तो संतुभलत ंग
से सोच पाते हैं, न सभ य हो पाते हैं । दसर की सोच-समझ में भी उतना ही ‘क यटर ज्ान का महासागर
भरोसा र ें, भजनमें हमें अपनी सोच-समझ में है । भिषय पर तकपण चचा
हर क के प्रभत हमारे मन में सहज सकारा्मक स्िीकभत का भाि होना कीभज ।
चाभह । दसरा अनय नहीं, अंतमय है, हमारे ही प्रभत प, हमसे अलग या भभ
नहीं ।
- १२ निंबर १ 8
तस मनुष्य होिे
कुछ लोग सोचते ह गे भक र यह ्य होता है, कसे होता है भक
दभमय में ही कुछ दमी बा , भेभड़ये, लकड़ब े, सांप, तेंद , भब छ,
गोजर िगैरह की तरह होते हैं र कुछ दमी गायें, बकरी, भेड़ भततली
िगैरह की तरह सा ्य नहीं होता भक भजस तरह सारे बा केिल बा होते
हैं र कुछ नहीं, या जैसे सारी गायें केिल गायें होती हैं र कुछ नहीं, उसी
तरह सारे मनु य केिल मनु य होते र कुछ नहीं... ।
- अगस्त १
िुका-त पाकर िीना िेिनीय
मुझे जीिन को सहज र ुले ंग से जीना पसंद है । चीज को
लुका-भछपाकर, बात र यिहार को रचा बसाकर जीना स त नापसंद है ।
िह चा रभतक बेईमानी है, भजसे हम यिहार कुशलता का नाम देते हैं । इसके महानगरीय/ ामीण भदनचया
पीछे ्मभि िास की कमी झलकती है भक कहीं लोग हमारी असभलयत को के लाभ त ा हाभन के बारे मंे
अपने अनुभि के धार पर
न जान जा ँ । भल ।
र िह असभलयत इतनी गंदी र धत ्य हो भक उसे भछपाना
ज री लगे ।
- 4 जनिरी २ १
िीने का अर्ण
बु ापे का केिल यही अ नहीं भक जीिन के कुछ कम िष बचे हैं यह
त य तो जीिन के भकसी ं पर भी लाग हो सकता है- बचपन, यौिन
बु ापा... । ास बात है, जो भी िष बचे हैं, जब तक जीभित र चैतनय ँ,
भजंदगी को ्या अ दे पाता ँ, या अपने भल उससे ्या पाता ँ, ेसा कुछ
भजसका सबके भल कोई मह््ि है । लगभग इसी अ में मैं साभहभ्यक चे टा
र जीिन चे टा को अपने भल अभिभा य पाता ँ ।
२8
28
5 का हो रहा ँ-यानी, जीने के भल अब कुछ ही िष बचे हैं लेभकन
प नीय
जीना बंद नहीं हो गया है । यह अहसास भक म्यु ब त दर नहीं है, उ के भकसी
भी मोड़ पर हो सकती है । सा भी है मेरे सा । तब हो या अब, यह शरद जोशी भल त अभतभ
सिाल अपनी जगह बना रहता है भक जीिन को भकस तरह भजया जा -सा कता तुम कब जा गे, हास्य
से अपने भल या दसर के भल ... । यं य कहानी पभ त ा
सुनाइ ।
- २३ जनिरी २ २
तद िी म रहना
भद ली शहर में र ँ रहा ँ । शहर, जैसे क ब त बड़ी बस सिा रय
से लंद-फद, हर ि्त चलायमान । भद ली में रहने का मतलब कहीं पायदान
बराबर दो कमर में दो पाँि भटकाकर भकसी तरह लटक जा र लटके रहो
उ भर । भजंदगी का मतलब बस इतना ही भक जब तक बन पड़े लटके रहो,
भफर धीरे-से कहीं भीड़-भाड़ में भगर जा ... ।
- १२ जन २ ३
बहाने तनकािना
जो हम शौक से करना चाहते हैं, उसके भल रास्ते भनकाल लेते हैं । जो
नहीं करना चाहते, उसके भल बहाने भनकाल लेते हैं... ।
- जनिरी २
अपने से बहस
बहस दसर से नहीं, अपने से करनी चाभह उससे स ाई हा लगती है ।
वरीय
दसर को भसफ सुनना चाभह दसर से बहस से केिल झगड़ा हा लगता है ।
चीिों की गुिामी र की बालकनी/ ँगन मंे
कुछ भदन पहले क क यटर ने मुझे चालीस हजार रुपय में रीदा है सेंभ य पदधभत से पौधे कसे
उगा जाते हैं , इसके बारे में
ज-कल उसकी गुलामी में ँ । उसके न र को भसर झुकाकर झेलने मंे ही काशिाणी/दरदशन पर
अपना क याण दे रहा ँ । उसका िादा है भक क भदन िह मुझे भल ने-प ने सुभन र सुनाइ ।
की परी जादी देगा । भफलहाल उसकी कभन सेिा में ही मेरा उ िल
भभि य है ।
इसके पहले क मोटर मुझे भारी दाम में रीद चुकी है । उसकी सेिा में
भी ँ । दरअसल, चीज का क परा प रिार है भजसकी सेिा में ँ । दमी का
स्िभाि नहीं बदलता या ब त कम बदलता है । गुलामी करना-करिाना उसके
स्िभाि में है । भसफ तरीके बदले हैं, गुलामी की प्रिभ्त नहीं । हजार साल
पहले क दमी माभलक होता ा र उसके दरजन गुलाम होते े । अब
हर चीज के दरजन गुलाम होते हैं ।
- ३ भसतंबर २ १
( भदशा का ुला काश से)
29
शब्द संसार
सँकरी स्ती. भि.(भहं.) = पतली, कम चौड़ी, िक ब ा पुं.सं.(भहं.) = भेभड़ये की जाभत का
तंग क पशु
गोिर पुं.सं.(भहं.) = कन जरा चिायमान भि.(सं.) = चलता , चंचल
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः ---------
गली की भिशेषता ँ १. गली से यह नहीं भद ता -
---------
२. ले क सी भजंदगी भबताना ---------
नहीं चाहता -
---------
( ) आकृति म तिखिए ः
(4) मनु य जीिन की भस् भतयाँ
कुछ मनु य में भद ाई देने िाले पशु
(5) तिखिए ः
१. र से बाहर झाँकने पर यह भद ाई देता है २. ले क इनकी सेिा में लगे हैं
अत यख ‘िो हम श क से करना चाहिे ह, सके तिए रास्िे तनकाि िेिे ह,’ इसका सोदाहरर अर्ण तिखिए ।
30
ाषा तबंद
तव ेद ेद
+ ( )
भद गज
+ ( )
सप्ताह
+ ( )
भन चल
+ ( )
भानदय + ( )
भनस्संदेह + ( )
सयास्त + ( )
+ ( )
31
अपत ि गद्यांश
हर भकसी को ्मर ा करनी होगी, हर भकसी को अपना कत य करना होगा । मैं भकसी की
सहायता की प्र्याशा नहीं करता । मैं भकसी का भी प्र्याह नहीं करता । इस दभनया से मदद की प्रा ना
करने का मुझे कोई अभधकार नहीं है । अतीत में भजन लोग ने मेरी मदद की है या भभि य में भी जो लोग
मेरी मदद करेंगे, मेरे प्रभत उन सबकी करुणा मौजद है, इसका दािा कभी नहीं भकया जा सकता । इसीभल
मैं सभी लोग के प्रभत भचर कतज् ँ । तु हारी प रभस् भत इतनी बुरी दे कर मैं बेहद भचंभतत ँ । लेभकन
यह जान लो भक- तुमसे भी यादा द ी लोग इस संसार में हैं । मैं तुमसे भी यादा बुरी प रभस् भत में ँ ।
इं लैं में सब कुछ के भल मुझे अपनी ही जेब से च करना पड़ता है । मदनी कुछ भी नहीं है । लंदन
में क कमरे का भकराया हर सप्ताह के भल तीन पाउं होता है । पर से अनय कई च हैं । अपनी
तकलीफ के भल मैं भकससे भशकायत क ँ यह मेरा अपना कमफल है, मुझे ही भुगतना होगा ।
(२) िर तिखिए ः
१. प र छेद में उ त देश -
२. हर भकसी को करना होगा -
३. ले क की तकलीफ -
4. हर भकसी को करनी होगी -
( ) तनदशानुसार हि कीतिए ः
(अ) तनम्नतिखिि अर्ण से मेि िाने वािा शब्द पयु्ण्ि प र ेद से ँ कर तिखिए ः
१. स्ियं की र ा करना - ...............
२. दसर के उपकार को मानने िाला -...............
(ब) तिंग पहचानकर तिखिए ः
१. जेब ३. साभह्य
२. दािा 4. सेिा
32
8 गिि
-मासणक वमामा
33
शब्द संसार
स्वतर्णम पुं.भि.(सं.) = सोने के रंग का/सुनहला श्ि स्ती.सं.(अ.) = चेहरा
गद्ण स्ती.सं.(फा.) = धल धुंध स्ती.सं.(सं.) = धु ँ, कोहरा
स्वाधयाय
( ) तिनके िर तनम्न शब्द हों, से प्रशन ियार कीतिए ः (4) तनम्नतिखिि पंत्ियों से प्रा िीवनमू य तिखिए
१. भीड़ १. पको महसस -------
२. जुगन ------- भीतर भद ो ।
३. भततली २. कोई सी श्ल -------
4. समान ------- मुझे अ्सर भद ो ।
34
३4
री की ह ी
- जगदीशचंद्र माथुर
पा
मा-सुभशभ त युिती, रामस्व प-उमा के भपता, प्रेमा-उमा
की माँ, शंकर-युिक, गोपाि प्रसाद-शंकर के भपता
रिन-रामस्ि प का नौकर प रचय
एक कमरा । अंदर के दरवािे से आिे ए तिन महाशय की
पी निर आ रही ह, वह अधे के ह । एक ि ि को
ि म ः १ १ , बुलंदशहर (उ.प्र.)
पक े ए कमरे म आिे ह । ि ि का दसरा तसरा नके न कर म यु ः १ 8
ने पक रिा ह । प रचय ः जगदीशचं मा ुर जी क
रामस्व प अबे धीरे-धीरे चल ।.... अब त त को उधर मोड़ दे... ि र साभह्यकार र संस्कभत
उधर । (ि ि के रिे िाने की आवाि आिी ह ।) पुरुष े । पने काशिाणी में
काम करते भहंदी को लोकभप्रय
रिन भबछा दें साहब बनाने में मह िपण योगदान भदया ।
रामस्व प (िरा िेि आवाि म) र ्या करेगा परमा्मा के यहाँ प प्रभसदध नाटककार के प में
अ बँट रही ी तो त देर से पहँुचा ा ्या ... भबछा दँ प्रभत त हैं ।
प्रमुि कृतियाँ ः कोणाक , पहला
साहब ... र यह पसीना भकसभल बहाया है राजा , भोर का तारा , शारदीया
रिन (ि ि तब ािा ह) हीं-हीं-हीं । भद ।
रामस्व प (दरी ािे ए) र बीबी जी के कमरे में से हारमोभनयम
उ ा ला र भसतार भी ।... ज दी जा (रिन िािा ह ।
पति-प नी ि ि पर दरी तब ािे ह ।)
प्रेमा लेभकन िह तु हारी लाड़ली बेटी उमा तो मुँह फुला पड़ी गद्य संबंधी
है ।
रामस्व प ्या प्रस्तुत कांकी में जगदीशचं
प्रेमा तु हीं ने तो कहा ा भक उसे ीक- ाक करके नीचे लाना । मा रु ने स्ती भश ा के मह ि को
भद ाया है । समाज के दभकयानसी
रामस्व प अरे हाँ, दे ो, उमा से कह देना भक जरा करीने से । भिचार पर प्रहार करते ले क ने
ये लोग जरा से ही हैं। ुद प े-भल े हैं, िकील हैं, नारी स मान को मह््ि प्रदान भकया
सभा-सोसायभटय में जाते हैं मगर चाहते हैं भक लड़की है ।
यादा प ी-भल ी न हो ।
प्रेमा र लड़का
रामस्व प बाप सेर है तो लड़का सिा सेर । बी. स्सी. के बाद ल न
में ही तो प ता है मेभ कल कालेज में । कहता है भक शादी
का सिाल दसरा है, प ाई का दसरा । ्या क ँ, मजबरी
है ।
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३5
रिन बाब जी, बाब जी (धीमी आवाि म)
रामस्व प (दरवािे से बाहर ाँककर) अरे प्रेमा, िे भी ग । ... तुम
उमा को समझा देना, ोड़ा-सा गा देगी । (मेहमानों से)
हँ-हँ-हँ । इ , इ बाबू गोपाि प्रसाद ब िे ह ।
हँ-हँ ... मकान ँ ने में कुछ तकलीफ तो नहीं ई
गो प्रसाद (िँिारकर) नहीं । ताँगेिाला जानता ा । रास्ता भमलता कसे
िेिनीय
नहीं
रामस्व प हँ-हँ-हँ (ि के की िर मुिातिब होकर) र कभह
शंकर बाब, भकतने भदन की छटभटयाँ हैं पके र की भकसी परंपरा
शंकर जी, कालेज की तो छटभटयाँ नहीं हैं । िीक ं में चला के बारे में र के बुजुग से
या ा । जानकारी प्राप्त कीभज ।
रामस्व प तो पके कोस ्म होने में ताे अब साल भर रहा होगा िह परंपरा उभचत है या
शंकर जी, यही कोई साल-दो साल । अनुभचत, इसपर अपना मत
श दांभकत कीभज ।
रामस्व प साल, दो साल
शंकर हँ-हँ-हँ ... जी काध साल का माभजन र ता हँ ।
गो प्रसाद (अपनी आवाि र िरीका बदििे ए) अ छा तो साहब,
भफर भबजनेस की बातचीत हो जा ।
रामस्व प (च ककर) ‘भबजनेस - (सम कर) ह ... अ छा,
अ छा । लेभकन जरा ना ता तो कर लीभज ।
गो प्रसाद यह सब प ्या तक ुफ करते हैंं
रामस्व प हँ-हँ-हँ तक ुफ भकस बात का। यह तो मेरी बड़ी तकदीर
है भक प मेरे यहाँ तशरीफ ला । (अंदर िािे ह ।)
गो प्रसाद (अपने ि के से) ्य , ्या
शंकर कुछ नहीं ।
गो प्रसाद झुककर ्य बै ते हो याह तय करने हो, कमर सीधी
करके बै ो । तु हारे दोस्त ीक कहते हैं भक शंकर की
बैकबोन - इिने म बाबू रामस्व प चाय की ‘टे’ िाकर मेि
पर रि देिे ह ।
गो प्रसाद र प माने नहीं
रामस्व प (चाय यािे म ाििे ए) हँ-हँ-हँ पको भिलायती चाय
पसंद है या भहंदस्तानी
गो प्रसाद नहीं-नहीं साहब, मुझे धा दध र धी चाय दीभज
र जरा चीनी भी यादा ाभल गा ।
शंकर (िँिारकर) सुना है, सरकार अब यादा चीनी लेने िाल पर
टै्स लगा गी ।
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गो प्रसाद (चाय पीिे ए) सरकार जो चाहे सो कर ले पर अगर मदनी
करनी है तो सरकार को बस क ही टै्स लगाना चाभह ।
रामस्व प (शंकर को यािा पक ािे ए) िह ्या
गो प्रसाद बसरती पर टै्स (रामस्व प र शंकर हंस प िे ह ।)
मजाक नहीं साहब, यह सा टै्स है जनाब भक देने िाले चँ
भी न करेंगे ।
रामस्व प (िोर से हँसिे ए) िाह-िाह ब सोचा पने िाकई
जकल बसरती का सिाल भी बे ब हो गया है । हम सं ाषरीय
लोग के जमाने में तो यह कभी उ ता भी न ा । (िशिरी
गोपाि की िर ब ािे ह ।) लीभज । दहेज क अभभशाप
गो प्रसाद (समोसा ािे ए) कभी नहीं साहब, कभी नहीं । भिषय पर चचा कीभज ।
रामस्व प (शंकर की िर मुिातिब होकर) पका ्या याल है
शंकर बाब
शंकर भकस मामले में
रामस्व प यही भक शादी तय करने में बसरती का भहस्सा भकतना होना
चाभह
गो प्रसाद (बीच म ही) यह बात दसरी है बाब रामस्ि प, मैंने पसे
पहले भी कहा ा, लड़की का बसरत होना भनहायत ज री
है र जायचा (ि म प ) तो भमल ही गया होगा ।
रामस्व प जी, जायचे का भमलना ्या मु कल बात है । ाकुर जी के
चरण में र भदया । बस, ुद-ब- ुद भमला समभझ ।
शंकर ी हँसिा ह, मगर गोपाि प्रसाद गं ीर हो िािे ह ।
गो प्रसाद लड़भकय को अभधक प ने की ज रत नहीं है ।
भसलाई-पुराई कर लें बस ।
रामस्व प हँ-हँ (मेि को एक िर सरका देिे ह। त र अंदर के दरवािे
की िर मुँह कर िरा िोर से) अरे, जरा पान भभजिा देना...
मा पान की िशिरी अपने तपिा को देिी ह । स समय सका
चेहरा पर को िािा ह र नाक पर रिा आ सुनहरी
रमवािा चशमा दीििा ह। बाप-बेटे च क िे ह ।
गो प्रसाद
र शंकर (एक सार) च मा
रामस्व प (िरा सकपकाकर) जी, िह तो... िह... भपछले महीने में
इसकी ँ ें द ने लग गई ीं, सो कुछ भदन के भल च मा
लगाना पड़ रहा है ।
गो प्रसाद प ाई-ि ाई की िजह से तो नहीं है कुछ
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रामस्व प नहीं साहब, िह तो मैंने अज भकया न ।
गो प्रसाद हँ । (संिु होकर क कोमि स्वर म) बै ो बेटी ।
रामस्व प िहाँ बै जा उमा, उस त त पर, अपने बाजे-िाजे के
पास । ( मा ब िी ह ।)
गो प्रसाद चाल में तो कुछ राबी है नहीं । चेहरे पर भी छभि है ।... हाँ,
कुछ गाना-बजाना सी ा है
रामस्व प जी हाँ भसतार भी र बाजा भी । सुना तो उमा काध गीत
भसतार के सा । मा तसिार पर मीरा का मश र िन ‘मेरे िो
तग रधर गोपाि’ गाना शु कर देिी ह । सकी आँि शंकर की
वरीय
पिी-सी आँिों से तमि िािी ह र वह गािे-गािे एक सार
रुक िािी ह ।
रामस्व प ्य , ्या गाने को परा करो उमा । भििाह में गा जाने िाले
गो प्रसाद नहीं-नहीं साहब, काफी है। पकी लड़की अ छा गाती है । पारंप रक मंगल गीत
सुभन त ा सुनाइ ।
( मा तसिार रिकर अंदर िाने को ब िी ह ।)
गो प्रसाद अभी हरो, बेटी
रामस्व प ोड़ा र बै ी रहो उमा ( मा ब िी ह ।)
गो प्रसाद ( मा से) तो तुमने पेंभटग-िेभटंग भी सी ी है ( मा चुप)
रामस्व प हाँ, िह तो मैं पको बताना भल ही गया । यह जो तस्िीर
टँगी ई है, कु्तेिाली, इसी ने बनाई है र िह उस दीिार
पर भी ।
गो प्रसाद हँ । यह तो ब त अ छा है । र भसलाई िगैरह
रामस्व प भसलाई तो सारे र की इसी के भज मे रहती है, यहाँ तक भक
मेरी कमीजें भी । हँ-हँ-हँ
गो प्रसाद ीक ।... लेभकन, हाँ बेटी, तुमने कुछ इनाम-भबनाम भी जीते
े मा चुप । रामस्व प इशारे के तिए िाँसिे ह िेतकन मा
चुप ह, सी िरह गरदन ुकाए । गोपाि प्रसाद अधीर हो िे
ह र रामस्व प सकपकािे ह ।
रामस्व प जिाब दो, उमा । (गोपाि से) हँ-हँ, जरा शरमाती है। इनाम
तो इसने-
गो प्रसाद (िरा िी आवाि म) जरा इसे भी तो मुँह ोलना चाभह ।
रामस्व प उमा, दे ो, प ्या कह रहे हैं । जिाब दो न ।
मा (ह की िेतकन मिबूि आवाि म) ्या जिाब दँ बाब जी
जब कुस -मेज भबकती है तब दकानदार कुस -मेज से कुछ
नहीं पछता भसफ रीददार को भद ला देता है । पसंद गई
तो अ छा है, िरना-
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38
रामस्व प (च ककर ि े हो िािे ह ।) उमा, उमा
मा अब मुझे कह लेने दीभज बाब जी ।
गो प्रसाद (िाव म आकर) बाब रामस्ि प, पने मेरी इ जत उतारने
के भल मुझे यहाँ बुलाया ा
मा (िेि आवाि म) जी हाँ, र हमारी बेइ जती नहीं होती जो
प इतनी देर से नाप-तौल कर रहे हैं
शंकर बाब जी, चभल । प नीय
गो प्रसाद ्या तुम कालेज में प ी हो (रामस्व प चुप)
मा जी हाँ, मैं कालेज में प ी हँ । मैंने बी. . पास भकया है । कोई पा में अं ेजी श द पभ
पाप नहीं भकया, कोई चोरी नहीं की र न पके पुत की र श दकोश की सहायता से
तरह लड़भकय के होस्टल में ताक-झाँककर कायरता भद ाई उनका भहंदी में अनुिाद कीभज ।
है । मुझे अपनी इ जत, अपने मान का याल तो है लेभकन
इनसे पभछ भक ये भकस तरह नौकरानी के पैर में पड़कर
अपना मुँह भछपाकर भागे े ।
रामस्व प उमा, उमा
गो प्रसाद (ि े होकर गुस्से म) बस हो चुका । बाब रामस्ि प पने
मेरे सा दगा भकया । पकी लड़की बी. . पास है र
पने मुझसे कहा ा भक भसफ मैभटक तक प ी है । (दरवािे
की र ब िे ह ।)
मा जी हाँ, जाइ , ज र चले जाइ लेभकन र जाकर जरा यह
पता लगाइ गा भक पके लाड़ले बेटे के री की ह ी भी
है या नहीं- याने बैकबोन, बैकबोन- बाबू गोपाि प्रसाद के
चेहरे पर बेबसी का गुस्सा ह र नके ि के के रुिासापन ।
दोनों बाहर चिे िािे ह । मा सहसा चुप हो िािी ह ।
शब्द संसार
ि ि पुं.सं.(फा.) = लकड़ी की बनी ई िँिारना भ .(दे.) = ाँसना, गला साफ करना
बड़ी चौकी िक िु पुं.सं.(अ.) = भश टाचार
िशिरी स्ती.सं.(फा.) = छोटी ाली
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स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः
----- पभत-प्नी
-----
रामस्ि प-उमा -----
-----
र ते
----- शंकर-गोपाल
----- प्रसाद
नौकर-माभलक -----
-----
40
4
ाषा तबंद
(१) तनम्नतिखिि वा्यों म आए ए अ ययों को रेिांतकि कीतिए र नके ेद तदए गए स्रान पर तिखिए ः
वा्य अ यय ेद
® गाय को र के सामने ँटे से बांधा । --------------------
® िह उ ा र र चला गया । --------------------
® अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है । --------------------
® िह भारी कदम से गे ब ने लगा । --------------------
® उनह ने मुझे धीरे-धीरे भहलाना शु भकया । --------------------
® मुझे लगा भक ज भफर कोई द टना होगी । --------------------
® िाह-िाह ब सोचा पने --------------------
® चाची, माँ के पास चली गई । --------------------
® संबंधसचक अ यय
१. ---------- २. ---------- िा्य =
® समु यबोधक अ यय
१. ---------- २. ---------- िा्य =
® भिस्मयाभदबोधक अ यय
१. ---------- २. ----------िा्य =
( ) नीचे आकृति मंे तदए ए अ ययों के ेद पहचानकर नका अर्णपूर्ण स्विं वा्यों मंे प्रयोग कीतिए ः
हाय
काश प्राय
बाद र
बभ क के पास
यभद ...तो अ यय इसभल
िाह की तरफ
के अलािा कारण
के भल अ छा
्य भक नहीं .... तो
42
4२
भसरचन जाभत का कारीगर है । मैंने ंट बै कर उसके काम करने के
ंग को दे ा है । क- क मो ी र पटेर को हा में लेकर बड़े जतन से
उसकी कु ी बनाता । भफर कु य को रँगने से लेकर सुतली सुलझाने
मंे परा भदन समाप्त ।... काम करते समय उसकी तनमयता में जरा भी बाधा
पड़ी भक गे ँअन साँप की तरह फुफकार उ ता- भफर भकसी दसरे से
करिा लीभज काम भसरचन मँुहजोर है, कामचोर नहीं ।
भबना मजदरी के पेट भर भात पर काम करने िाला कारीगर दध में
कोई भम ाई न भमले तो कोई बात नहीं भकतु बात में जरा भी झाला िह नहीं
बरदा त कर सकता । िेिनीय
भसरचन को लोग चटोर भी समझते हैं । तली ब ारी ई तरकारी, दही
की क ी, मलाईिाला दध, इन सबका प्रबंध पहले कर लो, तब भसरचन
को बुला दम भहलाता हाभजर हो जा गा । ाने-पीने में भचकनाई लोक कला के नाम की
सची तैयार कीभज ।
की कमी ई भक काम की सारी भचकनाई ्म काम अधरा र कर उ
ड़ा होगा- ज तो अब अधकपाली दद से मा ा टनटना रहा है ।
ोड़ा-सा रह गया है, भकसी भदन कर परा कर दँगा । भकसी भदन माने
कभी नहीं
मो ी ास र पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीभलय की
भझलभमलाती भचक, सतरंगे ोर के मो े, भसी-चु ी र ने के भल मँज
की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलिाह के भल ताल के स े प्त की
छतरी-टोपी त ा इसी तरह के ब त-से काम हैं भजनहें भसरचन के भसिा
गाँि में र कोई नहीं जानता । यह दसरी बात है भक अब गाँि में से काम
को बेकाम का काम समझते हैं लोग । बेकाम का काम भजसकी मजदरी में
अनाज या पैसे देने की कोई ज रत नहीं । पेट भर ला दो, काम परा होने
पर काध पुराना-धुराना कपड़ा देकर भिदा करो । िह कुछ भी नहीं
बोलेगा ।...
कुछ भी नहीं बोलेगा सी बात नहीं, भसरचन को बुलाने िाले जानते
हैं, भसरचन बात करने में भी कारगर है ।... महाजन टोले के भ ज महाजन
की बेटी भसरचन की बात सुनकर भतलभमला उ ी ी- हरो मैं माँ से
जाकर कहती ँ । इतनी बड़ी बात
बड़ी बात ही है भबभटया बड़े लोग की बस बात ही बड़ी होती
है । नहीं तो दो-तीन पटेर की पाभटय का काम भसफ ेसारी का स्त
लाकर कोई करिा भला यह तु हारी माँ ही कर सकती है बबुनी
भसरचन ने मुस्कराकर जिाब भदया ा ।
इस बार मेरी सबसे छोटी बहन पहली बार ससुराल जा रही ी । मान
के द हे ने पहले ही बड़ी भाभी को भल कर चेतािनी दे दी है- मान के
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सा भम ाई की पतीली न , कोई बात नहीं । तीन जोड़ी फशनेबल
भचक र पटेर की दो शीतलपाभटय के भबना गी मान तो ... भाभी
ने हँसकर कहा, बैरंग िापस इसभल , क सप्ताह पहले से ही भसरचन
को बुलाकर काम पर तैनात करिा भदया ा माँ ने- दे ाे भसरचन इस
बार नई धोती दँगी असली मोहर छापिाली धोती । मन लगाकर सा काम
करो भक दे ने िाले दे ते ही रह जा ँ ।
पान-जैसी पतली छरी से बाँस की तीभलयाँ र कमाभनय को
भचकनाता भसरचन अपने काम में लग गया । रंगीन सुतभलय में झ बे
ालकर िह भचक बुनने बै ा । े हा की भबनाई दे कर ही लोग समझ
ग भक इस बार कदम नये फशन की चीज बन रही है ।
मँझली भाभी से नहीं रहा गया । परदे की ड़ से बोली, पहले सा
जानती भक मोहर छापिाली धोती देने से ही अ छी चीज बनती है तो भैया प नीय
को बर भेज देती ।
देश की ्मा गाँिांे में
काम में यस्त भसरचन के कान मंे बात पड़ गई । बोला, मोहर बसती है, गांधीजी के इस
छापिाली धोती के सा रेशमी कुरता देेने पर भी सी चीज नहीं बनती भिचार से संबंभधत कोई ले
ब रया । मान दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है... मान दीदी का द हा पभ त ा इसपर स्िमत
अफसर दमी है प्रस्तुत कीभज ।
मँझली भाभी का मुँह लटक गया । मेरी चाची ने फुस-फुसाकर कहा,
भकससे बात करती है ब मोहर छापिाली धोती नहीं, मुँभगया ल ।
बेटी की भिदाई के समय रोज भम ाई जो ाने को भमलेगी । दे ती है न
दसरे भदन भचक की पहली पाँभत में सात तारे जगमगा उ े, सात रंग
के । सतभैया तारा अपने काम में मगन भसरचन को ाने-पीने की सुध
नहीं रहती । भचक में सुतली के फदे ालकर उसने पास पड़े सप पर भनगाह
ाली-भचउरा र गुड़ का क स ा ेला । मैंने ल य भकया, भसरचन की
नाक के पास दो रे ा ँ उभर । मैं दौड़कर माँ के पास गया । माँ,
ज भसरचन को कलेिा भकसने भदया है, भसफ भचउरा र गुड़
माँ रसोई र के अंदर पकिान भद बनाने में यस्त ी । बोली,
अरी मँझली, भसरचन को बुँभदया ्य नहीं देती
बुँभदया मैं नहीं ाता, काकी भसरचन के मुँह में भचउरा भरा
अा ा । गुड़ का ेला सप में क भकनारे पर पड़ा रहा, अछता ।
माँ की बोली सुनते ही मँझली भाभी की भ हें तन ग । मुट ी भर
बुँभदया सप में फककर चली गई ।
भसरचन ने पानी पीकर कहा, मँझली ब रानी अपने मैके से ई
भम ाई भी इसी तरह हा ोलकर बाँटती हैं ्या बस, मँझली भाभी
अपने कमरे में बै कर रोने लगी । चाची ने माँ के पास जाकर कहा- मुंह
44
लगाने से भसर पर च ेगा ही ।... भकसी के नैहर-ससुराल की बात ्य
करेगा िह
मँझली भाभी माँ की दलारी ब है । माँ तमककर बाहर
ई- भसरचन, तुम काम करने हो, अपना काम करो । ब से
बतकुटटी करने की ्या ज रत भजस चीज की ज रत हो, मुझसे कहो ।
भसरचन का मुँह लाल हो गया । उसने कोई जिाब नहीं भदया । बाँस
में टँगे अधरे भचक में फदे ालने लगा ।
मान पान सजाकर बाहर बै क ाने में भेज रही ी । चुपके से पान का
क बीड़ा भसरचन को देती ई इधर-उधर दे कर बोली भसरचन दादा,
काम-काज का र पाँच तरह के लोग पाँच भकस्म की बात करेंगे । तुम
भकसी की बात पर कान मत दो । सं ाषरीय
भसरचन ने मुस्कराकर पान का बीड़ा मुँह में ले भलया । चाची अपने
कमरे से भनकल रही ी । भसरचन को पान ाते दे कर अिाक हो गई । पकी त ा प रिार के भकसी
भसरचन ने चाची को अपनी र अचरज से रते दे कर कहा, छोटी बड़े सदस्य की भदनचया की तुलना
चाची, जरा अपनी भ भबया का गमकौ जदा लाना । ब त भदन कीभज त ा समानता िं अंतर
... । बताइ ।
चाची कई कारण से जली-भुनी रहती ी भसरचन से । गुस्सा उतारने
का सा मौका भफर नहीं भमल सकता । झनकती ई बोली, तु हारी ब ी
ई जीभ में ग लगे । र में भी पान र गमकौ जदा ाते हो ...
चटोर कहीं के मेरा कलेजा धड़क उ ा... हो गया स्यानाश
बस, भसरचन की उँगभलय में सुतली के फदे पड़ ग । मानो, कुछ देर
तक िह चुपचाप बै ा पान को मुँह में ुलाता रहा भफर अचानक उ कर
भपछिाड़े पीक क या । अपनी छरी, हँभसया िगैरह समेट-सँभालकर
झोले में र े । टँगी ई अधरी भचक पर क भनगाह ाली र हनहनाता
ँगन से बाहर भनकल गया ।
मान कुछ नहीं बोली । चुपचाप अधरी भचक को दे ती रही ।...
सात तारे मंद पड़ ग ।
माँ बोलीं, जाने दे बेटी जी छोटा मत कर मान मेले से रीदकर
भेज दँगी ।
मैं भसरचन को मनाने गया । दे ा, क फटी ई शीतलपाटी पर
लेटकर िह कुछ सोच रहा है । मुझे दे ते ही बोला, बबु जी अब
नहीं । कान पकड़ता ँ, अब नहीं ।... मोहर छापिाली धोती लेकर ्या
क ँगा । कौन पहनेगा ... ससुरी ुद मरी, बेटे-बेभटयाें को ले गई अपने
सा । बबु जी, मेरी रिाली भजंदा रहती तो मैं सी ददशा भोगता
यह शीतलपाटी उसी की बुनी ई है । इस शीतलपाटी को छकर कहता ँ,
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अब यह काम नहीं क ंगा ।... गाँि भर में तु हारी हिेली में मेरी कदर होती
ी । अब ्या मैं चुपचाप िापस लौट या । समझ गया, कलाकार
के भदल में ेस लगी है । िह नहीं सकता ।
बड़ी भाभी अधरी भचक में रंगीन छींट का झालर लगाने लगी- यह
भी बेजा नहीं भद लाई पड़ता, ्य मान
मान कुछ नहीं बोली ।... बेचारी भकतु मैं चुप नहीं रह वरीय
सका- चाची र मँझली भाभी की नजर न लग जा इसमें भी
मान काे ससुराल प ँचाने मैं ही जा रहा ा ।
स्टेशन पर सामान भमलाते समय दे ा, मान बड़े जतन से अधरी भचक महारा ट में चला जाने िाले ल ु
उदयोग की जानकारी रेभ यो/
को मोड़कर भल जा रही है अपने सा । मन-ही-मन भसरचन पर गुस्सा
दरदशन पर सुभन र इसके
हो या । चाची के सुर-में-सुर भमलाकर कोसने को जी - कामचोर, मु य मुदद को भल ।
चटोर
गाड़ी ई । सामान च ाकर मैं दरिाजा बंद कर रहा ा भक
ेटफाम पर दौड़ते भसरचन पर नजर पड़ी- बबु जी उसने
दरिाजे के पास कर पुकारा ।
्या है मैंने ड़की से गरदन भनकालकर भझड़की के स्िर में
कहा । भसरचन ने पी पर लदे बोझ को उतारकर मेरी र
दे ा- दौड़ता या ँ ... दरिाजा ोभल मान दीदी कहाँ हैं क
बार दे ँ ।
मैंने दरिाजा ोल भदया ।
भसरचन दादा मान इतना ही बोल सकी ।
ड़की के पास ड़े होकर भसरचन ने हकलाते कहा, यह मेरी
र से है । सब चीजें हैं दीदी शीतलपाटी, भचक र क जोड़ी सनी
कुश की । गाड़ी चल पड़ी ।
मान मोहर छापिाली धोती का दाम भनकालकर देने लगी । भसरचन
ने जीभ को दाँत से काटकर, दोन हा जोड़ भद ।
मान फूट-फूटकर रो रही ी । मैं बं ल को ोलकर दे ने लगा-
सी कारीगरी, सी बारीकी, रंगीन सुतभलय के फद का सा काम,
पहली बार दे रहा ा ।
( फणी िरना रेणु की संपण कहाभनयाँ से)
46
4
शब्द संपदा
बेगार स्ती.सं.(फा.) = भबना मजदरी भद जबरदस्ती मुहावरे
भलया गया काम मुँह िाि होना = ोभधत होना
म या स्ती.सं.(दे.) = झ पड़ी ेस िगना = द ी होना, बुरा अनुभि
तचक पुं.सं.(दे.) = बाँस की तीभलय का बना परदा होना
मोरी स्ती.सं.(दे.) = क प्रकार की ास ट- टकर रोना = जोर-जोर से रोना
शीििपाटी स्ती.सं.(दे.) = चटाई मुँह िटकाना = भनराश होना
मूँि स्ती.सं.(भहं.दे.) = क प्रकार का तण/ ास
किेवा पुं.सं.(भहं.दे.) = ना ता
स्वाधयाय
भसरचन को
ने िाले
काम
२. मान को उपहार में भमला
‘किा आर किाकार का सम्मान करना हमारा दातय व ह’, इस करन पर अपने तवचारों काे शब्दबद्ध
अत यख कीतिए ।
47
4
ाषा तबंद
48
48
११ कृषक गान
- सदनेश भारद्वाज
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4
शब्द संसार
मधुमास पुं. सं.(सं.) = िसंत तु सर भि.(सं.) = बंजर, अनुपजा
सिक पुं.सं.(सं.) = रचना करने िाला, सजक व्णरा स्ती. सं.(सं.) = उपजा भभम
मनुििा स्ती. सं.(सं.) = मनु यता नी पुं. सं.(सं.) = सला
पातिि भि.(सं.) = पाला , भ त
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) कृतियाँ पूर्ण कीतिए ः
१. कषक इन भस् भतय
में अभिचल रहता है
कभि की चाह
(4) तनम्नतिखिि पंत्ियों मंे कतव के मन म कृषक के प्रति (5) कतविा म आए इन शब्दों के तिए प्रयु्ि
िागि होने वािे ाव तिखिए ः शब्द ह ः
पंत्ि ाव १. भनमाता -
१. आज उसपर मान कर लूँ २. शरीर -
३. रा स -
२. आह्वान उसका आज कर लूँ
4. मानि -
३. नव सृष्टि का षनमामाण कर लूँ
4. आज उसका ध्ान कर लूँ ।
(६) कतविा की प्ररम चार पंत्ियों का ावार्ण तिखिए ।
(७) तनम्न मुद्दों के आधार पर पद्य तवशिेषर कीतिए ः
रचनाकार कभि का नाम
रचना का प्रकार
पसंदीदा पंभ्त
पसंदीदा होने का कारण
रचना से प्राप्त प्रेरणा
5
50
दूसरी इकाई
१ बरषतहं ििद
- गोसवामी तुलसीदास
च पाई
न मं नभ गरजत ोरा । भप्रया हीन रपत मन मोरा ।।
दाभमभन दमक रहभहं न माहीं । ल क प्रीभत ज ा भ र नाहीं ।।
बरषभहं जलद भभम भनअरा ँ । ज ा निभहं बुध भिदया पा ँ ।। प रचय
बँद अ ात सहभहं भग र कसे । ल के बचन संत सह जैसे ।।
छ नदी भ र चली तोराई । जस ोरे ँ धन ल इतराई ।। ि म ः १5११, बाँदा (उ.प्र.)
म यु ः १ २३, िाराणसी (उ. प्र.)
भभम परत भा ाबर पानी । जनु जीिभहं माया लपटानी ।। प रचय ः गोस्िामी तुलसीदास ने
सभमभट-सभमभट जल भरभहं तलािा । भजभम सदगुन स जन पभहं िा ।। अिधी भाषा में अनेक कालजयी
ं भल े हैं । प प्रभस ध संत,
स रता जल जलभनभध म ँ जाई । होई अचल भजभम भजि ह र पाई ।। कभि, भि िान र भचंतक े ।
गोस्िामी जी संस्कत के
भि ान े । पने जनभाषा
दोहा अिधी में रचना ँ भल ीं । ज
से पाँच सौ िष पि जब प्रकाशन,
ह रत भभम तन संकुल, समुभझ परभह नभहं पं । दरदशन, रेभ यो जैसी सुभिधा ँ
भजभम पा ं भबबाद तें, लुप्त होभहं सद ं ।। नहीं ीं, से दौर में भी पका
ं रामच रतमानस जन-जन
को क स् ा । पके िारा
च पाई रभचत महाका य रामच रतमानस
को भि ि के लोकभप्रय प्र म सौ
दादर धुभन च ँ भदसा सुहाई । बेद प भहं जनु बट समुदाई ।। महाका य में मह््िपण स् ान
प्राप्त है ।
नि प लि भ भबटप अनेका । साधक मन जस भमले भबबेका ।।
प्रमुि कृतियाँ ः रामच रतमानस
अक-जिास पात भबनु भयउ । जस सुराज ल उदयम गय ।। (महाका य), कभितािली ,
ोजत कत ं भमलइ नभहं धरी । करइ ोध भजभम धरमभहं दरी ।। भिनय पभतका , गीतािली ,
दोहािली , हनुमान बा क ,
सभस संप सोह मभह कसी । उपकारी क संपभत जैसी ।। बरिै रामायण , जानकी मंगल
भनभस तम न दयोत भबराजा । जनु दंभभनह कर भमला समाजा ।। भद ।
कषी भनरािभहं चतुर भकसाना । भजभम बुध तजभहं मोह-मद-माना ।।
दे अत च बाक ग नाहीं । कभलभहं पाइ भजभम धम पराहीं ।।
भिभिध जंतु संकुल मभह ाजा । प्रजा बा भजभम पाई सुराजा ।।
जहँ-तहँ रहे पभ क भक नाना । भजभम इंभ य गन उपजे याना ।।
5१
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दोहा
पद्य संबंधी
कब ँ प्रबल बह मारुत, जहँ-तहँ मे भबलाभहं । प्रस्तुत पदयांश गोस्िामी तुलसीदास
भजभम कपत के उपजे, कुल सदधम नसाभहं ।। रभचत रामच रतमानस महाका य के
भकभ कधा कां से भलया गया है । यह
कब ँ भदिस महँ भनभबड़ तम, कब ँक प्रगट पतंग । पदयांश चौपाई िं दोहा छंद मंे है । यहाँ
भबनसइ-उपजइ यान भजभम, पाइ कुसंग-सुसंग ।। गोस्िामी जी ने िषा तु मंे होने िाले
प रितन का सुंदर िणन भकया है । उनह ने
( रामच रतमानस के भकभ कधा कां से) िषा के सा -ही-सा समाज की भस् भत,
भिभिध गुण -दगुण काे भी दशाया है ।
उपरो्त प्रसंग सीताहरण के बाद का
है । ी राम-ल मण, सीता जी की ोज में
भटक रहे हैं । सीता जी के भबना ीराम
याकुल हैं । रामचं जी कहते हैं, समान
में बादल ोर गजना कर रहे हैं । प्नी सीता
के न होने से मेरा मन र रहा है । काश में
भबजली से चमक रही है जैसे द ट यभ्त
की भमतता भस् र नहीं रहती... ।
शब्द संसार
ोरा भि.(भहं.अिधी) = भयंकर अक पुं.सं.(सं.) = मदार (मंदार) का ि
रपि भ .(भहं.अिधी) = रना द्यम पुं.सं.(सं.) = उदयोग
िि भि.(सं.) = द ट कि ँ-अ यय.(भहं.अिधी) = कहीं
िरा भ .भि. (भहं.अिधी) = य ा, जैसे सोह भ .(भहं.अिधी) = सुशोभभत होना
तरर भि. (भहं.अिधी) = भस् र दंत ह भि.(भहं.अिधी) = मं ी
तनयराई भ . (भहं.अिधी) = नजदीक ना तनरावतहं भ .(भहं.अिधी) = भनराना ( ेती की प्रभ या)
नवतहं भ .(भहं.अिधी) = झुकना िितहं भ . (भहं.अिधी) = ्यागना
बुध पुं.(सं.) = भिदिान मद पुं.सं.(सं.) = मं
िोराई भ . (भहं.अिधी) = तोड़कर च बाक पुं.सं.(भहं.अिधी) = च िाक प ी
ाबर भि. (भहं.अिधी) = मटमैला ािा भ .(सं.) = शोभायमान होना
िपटानी भ . (भहं.अिधी) = भलपटना मारुि पुं.सं.(सं.) = हिा
तितम भ .भि.(भहं.भि.) = जैसे नसातहं भ .(भहं.अिधी) = न ट होना
बट पुं.सं.(सं.) = बालक तनतब भि.(भहं.अिधी) = ोर, ना
तवटप पुं.सं.(सं.) = पेड़, ि तबनसइ भ .(भहं.अिधी) = न ट होना
5२
52
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः (२) तनम्न अर्ण को स्पष्ट करने वािी पंत्ियाँ तिखिए ः
पदयांश में १. संत की सहनशीलता -------
प्राकभतक जल ोत २. कपत के कारण कुल की हाभन -------
( ) िातिका पूर्ण कीतिए ः
इनहें यह कहा है
(१) ------ बट समुदाय
(२) स जन के ------
सदगुण
(4) िोत याँ तमिाइए ः
अ समह उ्तर ब समह
१. दमकती भबजली अ द ट की भमतता
२. नि प लि से भरा ि ब साधक के मन का भििेक
३. उपकारी की संपभ्त क सभस संप प िी
4. भभम की माया से भलपटा जीि
ह पौधा
उप ह प्ते
(६) प्रस्िुि पद्यांश से अपनी पसंद से की तक ह चार पंत्ियों का सरि अर्ण तिखिए ।
कहानी िेिन ः
पयोतिि िेिन ‘परतहि स रस धम्ण नतहं ाई’ इस सुवचन पर आधा रि
कहानी िेिन कीतिए ।
5३
53
२ दो ि ुकराएँ
-नरेंद्र छाबड़ा
(पूरक प न)
कगाि
इस िष बड़ी भीषण गरमी पड़ रही ी । भदन तो अंगारे
से तपे रहते ही े, रात में भी ल र उमस से चैन नहीं प रचय
भमलता ा । सोचा इस भलजभलजे र ुटनभरे मौसम से
राहत पाने के भल कुछ भदन पहाड़ पर भबता ँ । प रचय ः नरें छाबड़ा जाने-माने
अगले सप्ताह ही पितीय स् ल की याता पर भनकल क ाकार हैं । कहाभनयाें के सा -
सा पने ब त-सी ल ुक ा ँ भी
पड़े । दो-तीन भदन में ही मन में सुकून-सा महसस होने भल ी हैं । पकी ल ुक ा ँ
लगा ा । िहाँ का प्राकभतक स दय, हरे-भरे पहाड़ गि से भिभभ पत-पभतका में भनयभमत
सीना ताने ड़े, दी ता भसदध करते ि , पहाड़ की प से स् ान पाती रही हैं ।
नीरिता मंे ह का-सा शोर कर अपना अभस्त्ि भसदध करते प्रमुि कृतियाँ ः मेरी चुभनंदा
झरने, मन बदलाि के भल पयाप्त े । ल ुक ा ँ भद ।
उस भदन शाम के ि्त झील भकनारे टहल रहे े ।
क भुटटेिाला या र बोला- साब, भुटटा लेंगे ।
गरम-गरम भनकर मसाला लगाकर दंगा । सहज ही पछ
गद्य संबंधी
भलया- भकतने का है
पाँच रुपये का । यहाँ दो ल ुक ा ँ दी गई हैं ।
्या पाँच रुपये में क भुटटा । हमारे शहर मंे तो प्र म ल ुक ा में ले क ने यह
दो रुपये में क भमलता है, तुम तीन ले लो । दशाया है भक जब हम बड़ी दकान ,
माल, होटल में जाते हैं तो कोई
नहीं साब, पाँच से कम में तो नहीं भमलेगा ... मोल-भाि नहीं करते, चुपचाप पैसे
तो रहने दो... हम गे ब ग । दे, सामान ले, चले ते हैं । इसके
का क पैर भ क ग र मन में भिचार उ ा भक उलट जब हम रेहड़ीिाल , फेरीिाल
हमारे जैसे लोग पहाड़ पर मने का शौक र ते हैं हजार से सामान रीदते हैं तो मोल-भाि
करते हैं, हमें इस सोच से बचना
रुपये च करते हैं, अ छे होटल में रुकते हैं जो बड़ी चाभह ।
दकान में भबना दाम पछे च करते हैं पर गरीब से दो रुपये दसरी ल ुक ा में ले क ने
के भल भझक-भझक करते हैं, भकतने कगाल हैं हम उ टे र ित ोरी, टाचार पर करारा
कदम लौटा र बीस रुपये में चार भुटटे रीदकर चल पड़ा यं य भकया है । यहाँ ले क ने दशाया
है भक स्य का पालन ही ल य तक
अपनी राह । मन अब सुकून अनुभि कर रहा ा । प ँचने में सहायक होता है ।
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वरीय
सही िर
बालक/बाभलका से संबंभधत
अब तक िह भकतने ही स् ान पर नौकरी के भल िेदन कर चुका
कोई भतहाभसक कहानी सुनकर
ा । सा ा्कार दे चुका ा । उसके प्रमाणपत की फाइल भी उसे सफलता उसका पांतरण संिाद में करके
भदलाने में नाकामयाब रही ी । हर जगह टाचार, र ित का बोलबाला क ा में सुनाइ ।
हाेने के कारण, यो यता के बािजद उसका चयन नहीं हो पाता ा । हर र
से अब िह भनराश हो चुका ा । ट सामाभजक यिस् ा को कोसने के
अलािा उसके िश में र कुछ तो ा नहीं ।
ज भफर उसे सा ा्कार के भल जाना है । अब तक देशप्रेम, नैभतकता,
िेिनीय
भश टाचार, ईमानदारी पर अपने तकपण भिचार बड़े भि िास से र ता या
ा लेभकन इसके बािजद उसके भहस्से में भसफ असफलता ही ई ी ।
पहाड़ पर रहने िाले लोग की
सा ा्कार के भल उपभस् त प्रभतभनभध मं ल में से क अभधकारी ने
जीिन शैली की जानकारी प्राप्त
पछा- टाचार के बारे में पकी ्या राय है करके अपनी जीिन शैली से उसकी
टाचार क सा कीड़ा है जो देश को ुन की तरह ा रहा है । इसने तुलना करते भल ।
सारी सामाभजक यिस् ा को भचंताजनक भस् भत में प ँचा भदया है । सच कहा
जा तो यह देश के भल कलंक है... । अभधका रय के चेहरे पर
हलकी-सी मुसकान र उ्सुकता छा गई । उसके तक में उनहें रुभच महसस
होने लगी । दसरे अभधकारी ने प्र न भकया- र ित को प ्या मानते
हैं प नीय
यह टाचार की बहन है जैसे भिशेष अिसर पर हम अपने भप्रयजन ,
अपनी पसंद की कोई सामाभजक
प रभचत , भमत को उपहार देते हैं । इसका स्ि प भी कुछ-कुछ िैसा ही है ई-बुक पभ ।
लेभकन उपहार देकर हम केिल ुभशय या कत य का दान-प्रदान करते
हैं । इससे अभधक कुछ नहीं जबभक र ित देने से रुके काय, दबी ई
फाइलें, टलती ई पदो भत, रोकी गई नौकरी अाभद में इसके कारण सफलता
हाभसल की जा सकती है । तब भी यह समाज के मा े पर कलंक है, इसका
सम न कतई नहीं भकया जा सकता, सी मेरी धारणा है । कहकर िह तेजी
से बाहर भनकल या । जानता ा भक यह ं भी चयन नहीं होगा । सं ाषरीय
पर भीतर बै े अभधका रय ने... गंभीरता से भिचार-भिमश करने के बाद
युिक के सही उ्तर की दाद देते उसका चयन कर भलया । ज िह शहर र महानगर का यांभतक
जीिन भिषय पर बातचीत
समझा भक स्य कुछ समय के भल भनराश हो सकता है, परास्त नहीं ।
कीभज ।
( मेरी चुभनंदा ल ुक ा ँ से)
55
शब्द संसार
ीषर भि.(सं.) = भयानक रशवि स्ती.सं.(अ.) = स
तिितििे भि.पुं.(अ.) = सीलनभरा मुहावरे
नीरविा स्ती.सं.(सं.) = कांत, कदम शांत सीना िानकर ि े रहना = भनभय होकर ड़े रहना
कगाि भि.(भहं.) = गरीब, भनधन बोिबािा होना = प्रभाि होना
सा ा कार पुं.सं.(सं.) = मुलाकात दाद देना = प्रशंसा करना
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) िर तिखिए ः
मौसम सा ा
गरमी की
भिशेषता ँ
( ) कारर तिखिए ः
१. युिक को पहले नौकरी न भमल सकी .............
२. रकार अभधका रय दिारा युिक का
चयन कर भलया गया .............
(4) कृति पूर्ण कीतिए ः
(5) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
ले क के मन प रितन के
लोग र ित देकर ये लाभ
कारण
उ ाते हैं
56
5
ाषा तबंद
(२) कोष् क की सूचना के अनुसार तनम्न वा्यों म अर्ण के आधार पर प रवि्णन कीतिए ः
१. ोड़ी बातें । (भनषेधा क िा्य)
२. मान इतना ही बोल सकी । (प्र ना क िा्य)
३. मैं ज रात का ाना नहीं ा गा । (भिधाना क िा्य)
4. गाय ने दध देना बंद कर भदया । (भिस्मया क िा्य)
5. तु हें अपना याल र ना चाभह । ( ज्ा क िा्य)
( ) प्ररम इकाई के पा ों म से अर्ण के आधार पर तवत प्रकार के पाँच वा्य ँ कर तिखिए ।
(4) रचना के आधार पर वा्यों के ेद पहचानकर कोष् क म तिखिए ः
१. अभधका रय के चेहरे पर हलकी-सी मुस्कान र उ्सुकता छा गई । -------
२. हर र से अब िह भनराश हो गया ा । -------
३. उसे दे -दे बड़ा जी करता भक मौका भमलते ही उसे चला । -------
4. िह ब ी काकी पर झपटी र उनहंे दोन हा से झटककर बोली । -------
5. मोटे तौर पर दो िग भक जा सकते हैं । -------
. अभी समाज में यह चल रहा है ्य भक लोग अपनी जीभिका शरीर म से चलाते हैं -------
(5) रचना के आधार पर तवत प्रकार के िीन-िीन वा्य पा ों से ँ कर तिखिए ।
5
57
म साधना
- श्ीकृष्णदास जाजू
58
58
प्र्य या अप्र्य शरीर म की ि यकता होती है । केिल
बौदभधक म से कोई उपयोग की चीज नहीं बन सकती अ ात भबना शरीर
म के संपभ्त का भनमाण नहीं हो सकता ।
संपभ्त के स्िाभम्ि में शरीर म करने िाल का स् ान ्या है जो
प्र्य शरीर म के काम करते हैं उनहें तो गरीबी या क ट में ही अपना
जीिन भबताना पड़ता है र उनहीं के दिारा उ्पाभदत संपभ्त दसरे ोड़े से
हा में ही इकट ी होती रहती है । मजीभिय की बनाई ई चीजें
यापा रय या दसर के हा में जाकर उनके लेन-देन से कुछ लोग मालदार
बन जाते हैं । िष भर मेहनत कर भकसान अ पैदा करता है लेभकन ब त
दफा तो उसकी ुद की ि यकता ँ भी परी नहीं होतीं पर िही अनाज
यापा रय के पास जाकर उनको धनिान बनाता है । संपभ्त बनाते हैं
मजदर र धन इकट ा होता है उनके पास जो केिल यिस् ा करते हैं,
मजदरी नहीं करते ।
जीिन भनिाह या धन कमाने के भल अनेक यिसाय चल रहे हैं । प नीय
इनके मोटे तौर पर दो िग भक जा सकते हैं । कुछ यिसाय ेसे हैं, भजनमें
शरीर म ि यक है र कुछ से हैं जो बुदभध के बल पर चला जाते महा्मा गांधी के मप्रभत ा
हैं । पहले प्रकार के यिसाय को हम मजीभिय के यिसाय कहें र र अभहंसा संबंधी भिचार
प कर चचा कीभज ।
दसर को बुदभधजीभिय के । राज-काज चलाने िाले मंती अाभद त ा
राज के कमचारी चे- चे पद से लेकर नीचे के ्लक तक, नयायाधीश,
िकील, ा्टर, अ यापक, यापारी भद से हैं जो अपना
भरण-पोषण बौदभधक काम से करते हैं । शरीर म से अपना भनिाह करने
िाले हैं- भकसान, मजदर, ब ई, राज, लुहार भद । समाज के यिहार
के भल इन बुदभधजीभिय र मजीभिय , दोन प्रकार के लोग की
ज रत है पर सामाभजक भ ट से इन दोन के यिसाय के म य में ब त
फक है ।
बुदभधजीभियांे का जीिन मजीभिय पर धा रत है । सा होते
भी दभा य यह है भक मजीभिय की मजदरी िं मदनी कम है, समाज
में उनकी प्रभत ा नहीं र उनको अपना जीिन प्राय क ट में ही भबताना
पड़ता है ।
यापारी र उदयोगपभतय के भल अ शास्त ने यह भनयम बताया
है भक रीद सस्ती-से-सस्ती हो र भब ी महँगी-से-महँगी । मुनाफे
की कोई मयादा नहीं । जो कार ाना मजदर के शरीर म के भबना चल ही
नहीं सकता, उसके मजदर को हजार-पाँच सौ माभसक से अभधक भले ही
न भमले, पर यिस् ापक र पँजी लगाने िाल को हजार -ला का
भमलना गलत नहीं माना जाता ।
5
59
मनु य समाज में रहने से अ ात समाज की कपा से ही यिहार चलाने
लायक बनता है । बालक प्रा भमक शाला से लेकर देश-भिदेश के
चे-से- चे महाभिदयालय में सी कर जो यो यता प्राप्त करता है, िे
भश ालय या तो सरकार दिारा चला जाते हैं, भजनका च म जनता
से टै्स के प में िसल भक पैसे से चलता है या दानी लोग की कपा
से । जो कुछ प ने की फीस दी जाती है, िह तो च के भहसाब से नग य
है । उसको समाज का अभधक कतज् रहना चाभह भक उस पैसे के बल पर
िह भिदया प कर यो यता प्राप्त कर सका । इस सारी भश ा में जो कुछ
ज्ान भमलता है, िह भी हजार िष तक अनेक तपभस्िय ने मेहनत करके
जो कण-कण सं हीत कर र ा है, उसी के बल पर भमलता है । यापारी
र उदयोगपभत भी यापार की कला भिदयालय से, अपने साभ य से िं
समाज से प्राप्त करते हैं ।
जब अपनी यो यता प्राप्त करने में हमारा ुद का भहस्सा अ पतम है वरीय
र समाज की कपा का अंश अ्यभधक तो हमें जो यो यता प्राप्त ई है
उसका उपयोग समाज को अभधक-से-अभधक देना र उसके बदले में
भ क भिषमता को दर करने
समाज से कम-से-कम लेना, यही नयाय त ा हमारा कत य माना जा िाले उपाय के बारे में सुनकर
सकता है । चल रहा है कुछ उ टा ही । यभ्त समाज को कम-से-कम क ा में सुनाइ ।
देने की इ छा र ता है, समाज से अभधक-से-अभधक लेने का प्रय्न
करता है, कुछ भी न देना पड़े तो उसे रंज नहीं होता ।
यह गंभीर बुभनयादी सिाल है भक ्या बुदभध का उपयोग भिषम
यिस् ा को कायम र कर पैसे कमाने के भल करना उभचत है यह तो
साफ दी ता है भक अाभ क भिषमता का क मु य कारण बुदभध का सा
उपयोग ही है । शोषण भी प्राय उसी से होता है । समाज में जो अाभ क
र सामाभजक भिषमता ँ चल रही हैं र भजससे शोषण, अशांभत होती
है, उसे भमटाने के भल जगत में अनेक योजना ँ अब तक सामने र
इनमें कुछ पर अमल भी हो रहा है । अभहंसा दिारा यह जभटल प्र न हल
करना हो तो गांधीजी ने इस शय का सत बताया, पेट भरने के भल
हा -पैर र ज्ान प्राप्त करने र ज्ान देने के भल बुदभध । सी यिस् ा
हो भक हर क को चार ंटे शरीर म करना पड़े र चार ंटे बौदभधक
काम करने का मौका भमले र चार ंट के शरीर म से इतना भमल जा
भक उसका भनिाह चल सके ।
अभी समाज में यह चल रहा है भक ब त से लोग अपनी जीभिका
शरीर म से चलाते हैं र ोड़े बौदभधक म से । भजनके पास संपभ्त
अभधक है, िे राम में रहते हैं । अनेक लोग में म करने की दत भी
नहीं है । इस दशा में उ्त भनयम का अमल होना दर की बात है भफर भी
60
उसके पीछे जो त य है, िह हमें स्िीकार करना चाभह भले ही हमारी
दबलता के कारण हम उसे ीक तरह से न भनभा सक ्य भक जीभिका
की साधन-साम ी भकसी-न-भकसी के म भबना हो ही नहीं सकती ।
इसभल भबना शरीर म भक उस साम ी का उपयोग करने का नयायोभचत
अभधकार हमें नहीं भमलता । अगर पैसे के बल पर हम साम ी रीदते हैं तो
उस पैसे की जड़ भी अंत में म ही है ।
धभनक लोग अपनी यादा संपभ्त का उपयोग समाज के भहत में टस्टी
के तौर पर करें । संपभ्त दान यज् र भदान यज् का भी र शय
्या है अपने पास ि यकता से जो कुछ अभधक है, उसपर हम अपना
अभधकार न समझकर उसका उपयोग दसर के भल करें ।
यह भी बहस चलती है भक धभनक के दान से सामाभजक उपयोग के
अनेक बड़े-बड़े काय होते हैं जैसे भक अस्पताल, भिदयालय भद । अगर सं ाषरीय
यभ्तय के पास संपभ्त इकट ी न हो तो समाज को ये लाभ कसे
भमलंेगे
िास्ति में जब संपभ्त ोड़े-से हा में बँधी न रहकर समाज में फली ितमान युग में सभी ब के
भल ेल-कूद र भश ा के
रहेगी तो सहकार पदधभत से बड़े पैमाने पर से काम सानी से चलने समान अिसर प्राप्त हैं, भिषय
लगेंगे र उनका लाभ लेने िाले, याचक या दीन की तरह नहीं, स मानपिक पर चचा करते अपना मत
लाभ उ ा ँगे । प्रस्तुत कीभज ।
अ शास्ती कहते हैं भक उ्पादन की प्रेरणा के भल यभ्त को स्िा
के भल अिसर देने ह गे िरना देश में उ्पादन र संपभ्त नहीं ब
सकेगी, बचत भी नहीं होगी । अनुभि बताता है भक पँजी, गरीबी या बेकारी
की समस्या हल नहीं कर सकी है । नैभतक भ ट से भी स्िा िभ्त का
पोषण करना यो य नहीं है । ब त करके स्िा का अ होता है परा की
हाभन । उसी में से स्पधा ब ती है, भजसके फलस्ि प कुछ ोड़े से लोग
ही लाभ उ ा सकते हैं, ब सं यक को तो हाभन ही प ँचती है । मानिोभचत
सहयोग की जगह जंगल का कानन या म्स्य नयाय चलता है । र यह
दे ना है भक समाज का क याण भकस िभ्त से होगा अगर समाज में
स्िा िभ्त के लोग अभधक ह , तो ्या क याण की शा र ी जा
सकती है समाज तो परोपकार िभ्त के बल पर ही चा उ सकता है ।
संपभ्त ब ाने के भल स्िा का धार दोषपण है ।
इस संबंध में कुछ भाई अमे रका का उदाहरण पेश करते हैं । कहते हैं
भक भजनके पास संपभ्त इकट ी ई है, उनपर कर लगाकर क याणकारी
रा य की स् ापना की जा । उसी धार पर भारत को क याणकारी
(िे फेयर) रा य बनाने की बात चली है । क याणकारी रा य का अ यह
समझा जाता है भक सब तरह के दबल को रा यस्ता दिारा मदद भमले
61
अ ात बड़े पैमाने पर कर िसल करके उससे गरीब को सहारा भदया
जा । भारत जैसे देश में ्या इस बात का बन पाना संभि है प्रा भमक
ि यकता ंे के बारे में मनु य अपने पैर पर ड़े रहने लायक भबना
स्ितंत नहीं रह सकता, भकसी-न-भकसी प्रकार उसे पराधीन रहना होगा ।
हमारी सामाभजक भिचारधारा में क बड़ा भारी दोष है । हम
शरीर म करना नहीं चाहते िरन उसे हीन भ ट से दे ते हैं र भजनको
शरीर म करना पड़ता है, उनहें समाज में हीन दज का मानते हैं । अमीर
या गरीब, कोई भी म करना नहीं चाहता । धभनक अपने पैसे के बल से
नौकर दिारा अपना काम चला लेता है । गरीब भ की लाचारी से म
करता है । हमें यह िभ्त बदलनी चाभह । शरीर म की केिल प्रभत ा िेिनीय
स् ाभपत कर संतोष नहीं मानना है । उसके भल हमारे भदल में प्रीभत होनी
चाभह । ज भमक भी कत यपरायण नहीं रहा है । म की प्रभत ा
ब ाना उसी के हा है । भजस म में समाज को भजंदा र ने की मता है, मेिे फलते म की ाल
भिषय पर अपनी भल त
उस म का सही म य अगर भमक जान लेगा तो देश में भ क ांभत अभभ यभ्त दीभज ।
होने में देर नहीं लगेगी ।
गांधीजी ने म र भमक की प्रभत ा स् ाभपत करने के भल ही
रचना्मक कायाे को लोक चेतना का मा यम बनाया । उनकी मानयता के
अनुसार हरेक को भन्य उ्पादक म करना ही चाभह । यह उनह ेने म
र भमक की प्रभत ा कायम करने के भल भकया ।
अब कुछ समय से जगत के सामने दया की जगह समता का भिचार
या है । यह भिषमता कसे दर हो कहीं-कहीं लोग ने भहंसा का माग
हण भकया उसमें अनेक बुराइयाँ भनकलीं जो अब तक दर नहीं हो सकी
हैं । भिषमता दर करने में कानन भी कुछ मदद देता है परंतु कानन से
मानिोभचत गुण का, सदभािना का भिकास नहीं हो सकता । महा्मा जी
ने हमें जो अभहंसा की भिचारधारा दी है, उसके प्रभाि का कुछ अनुभि
भी हम कर चुके हैं । भारत की परंपरा का याल करते यह संभि
दी ता है भक भिषमता का प्र न ब त कुछ हद तक अभहंसा के इस माग
से हल हो सकना संभि है । इसमें धभनक से परा सहयोग भमलना चाभह ।
जैसे राजनीभतक स्िरा य का प्र न काफी हद तक अभहंसा के माग से
सुलझा िैसे ही भ क र सामाभजक समता का प्र न भी भारत मंे
अभहंसा के माग से सुलझेगा, सी हम दधा र ें ।
( राजनीभत का भिक प से)
62
शब्द संसार
ि ववे िा पुं.भि.(सं.) =त््िज् मुहावरा
कमि स्ती.सं.(अ.) = शासन गुिर-बसर हाेना = जीभिका चलना
द ा स्ती.सं.(अ.) = बार, मरतबा
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) िर तिखिए ः
१. यापारी र उदयोगपभतय के भल अ शास्त दिारा बना ग नये भनयम -
२. संपभ्त के दो मु य साधन -
३. समाप्त दो प्र ा ँ -
4. क याणकारी रा य का अ -
(२) कृति पूर्ण कीतिए ः
( ) िुिना कीतिए ः
बुद्तधिीवी मिीवी
१. ---------------- ----------------
२. ---------------- ----------------
(4) तिखिए ः
दान से ये काय बनते हैं- यापार की कला इनसे प्राप्त होती है -
(5) पा म प्रयु्ि ‘इक’ प्र यययु्ि शब्दों को ँ कर तिखिए िरा नम से तक ह चार का स्विं वा्यों म प्रयोग
कीतिए ।
(६) पा म क से शब्द ह, तिनके तविोम शब्द ी पा म ही प्रयु्ि ए ह, से शब्द ँ कर तिखिए ।
‘समाि परोपकार वत ि के बि पर ही चा सकिा ह’, इस करन से संबंतधि
अत यख अपने तवचार तिखिए ।
63
ाषा तबंद
(१) तनम्न वा्यों म अधोरेिांतकि शब्द समूह के तिए कोष् क म तदए गए मुहावरों म से तचि मुहावरे का चयन कर
वा्य त र से तिखिए ः
इ जत उतारना, हा फेरना, काँप उ ना, भतलभमला जाना, दम भहलाना, बोलबाला होना
१. करामत अली हौले-से ल मी से स्नेह करने लगा ।
िा्य = ---------------------------------------------------
२. सािजभनक अस्पताल का याल ते ही मैं भयभीत हो गया ।
िा्य = ---------------------------------------------------
३. ्या पने मुझे अपमाभनत करने के भल यहाँ बुलाया ा
िा्य = ---------------------------------------------------
4. भसरचन को बुला , चापलसी करता हाभजर हो जा गा ।
िा्य = ---------------------------------------------------
5. पंभ त बुदभधराम काकी को दे ते ही ोध में ग ।
िा्य = ---------------------------------------------------
(२) तनम्नतिखिि मुहावरों का अर्ण तििकर नका अर्णपूर्ण वा्यों म प्रयोग कीतिए ः
१. गुजर-बसर करना
२. गला फाड़ना
३. कलेजे में क उ ना
4. सीना तानकर ड़े रहना
5. टाँग अड़ाना
. जेब ीली होना
. भनजात पाना
8. फूट-फूटकर रोना
. मन तरंगाभयत होना
१ . मुँह लटकाना
644
4 ापा
- ओमप्रकाश ‘आसदत्य’
655
र उनके बीस सची दय में
रौ की जगह करुण रस समा गया,
िे बोले, मा कीभज , हमें भकसी ने गलत सचना दे दी
अपनी असफलता पर िे मन ही मन पछताने लगे
भसर झुकाकर िाभपस जाने लगे
मैंने उनहें रोककर कहा, ह र सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
भसर मत धुभन मेरी क बात सुभन (१) कृति पूर्ण कीतिए ः
मेरे र में अभधक धन होता तो प ले जाते १. कभि ने छापामार से माँगा
अब जब मेरे र में भब कुल धन नहीं है
तो प मुझे कुछ देकर ्य नहीं जाते
भजनके र में सोने-चाँदी के पलंग र सोफे हैं २. र की भस् भत दशाने िाली पंभ्तयाँ
उनहंंे प भनकलिा लेते हैं
ब त अ छी बात है, भनकलिा लीभज समदध अभाि स्त
पर भजनके र में बै ने को कुछ भी नहीं ---------- ----------
उनके यहाँ कम-से-कम ३. अंभतम चार पंभ्तय का भािा भल ।
क त त तो लिा दीभज ।
( गोरी बै ी छत पर से)
शब्द संसार
रोष पुं.सं.(सं.) = गुस्सा
अति्णि भि.(सं.) = कमाया
अर्ण पुं.सं.(सं.) = पैसा/धन
कनस्िर पुं.सं(अं.) = टीन का पीपा
ि ि पुं.सं.(फा.) = लकड़ी की बड़ी चौकी
66
स्वाधयाय
( ) कतविा के आधार पर िोत याँ तमिाइए ः (4) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
(६) सोना, चाँदी, अर्ण र मु ा इन शब्दों के तवत अर्ण बिािे ए कतविा के अाधार पर इनके अर्ण तिखिए ।
(७) ‘कर िमा करना, देश के तवकास को गति देना ह’ तवषय पर अपने तवचार तिखिए ।
पयोतिि िेिन
पुस्तक के प्रकार
भतभ भिशेषता
पुस्तक प्रदशनी र भब ी
समय
स् ल
67
5 ईमानदारी की प्रतिमूति्ण
- सुनील शासत्ी
६8
68
रात देर हो गई । सुबह देर तक सोना होगा ।
सुबह सा े पाँच-पौने छह बजे भकसी ने दरिाजा ट टाया । नींद
टटी । मैंने बड़ी तेज िाज में कहा- देर रात को या हँ, सोना चाहता
हँ, सोने दो ।
यह सोचकर भक कोई नौकर चाय लेकर या होगा जगाने ।
लेभकन दरिाजे पर दस्तक भफर पड़ी । झुंझलाता जोर से भबगड़ने के
म में दरिाजे की तरफ ब ा बड़ाबड़ाता । दरिाजा ोला । पाया,
बाब जी ड़े हैं । हमें कुछ न सझा । माफी माँगी । बे यानी में बात कह गया
हँ । िे बोले- कोई बात नहीं, - । हम लोग सा -सा
चाय पीते हैं । िेिनीय
हमने कहा- ीक है
बस ज दी-ज दी हा -मुँह धो चाय के भल टेबल पर जा पहँुचा ।
ज के उपभो्तािादी युग में
लगा, उनहें सारी रामकहानी मालम है पर उनह ने कोई तक नहीं भकया । न
पनप रही भद ािे की संस्कभत
कुछ जाभहर होने भदया ।
पर अपने भिचार भल ।
कुछ देर बाद चाय पीते-पीते बोले- अ मा ने कहा, तुम लोग
ग हो पर तुम कहते हो रात बड़ी देर से । कहाँ चले ग
े
जिाब भदया- हाँ, बाब जी क जगह ाने पर चले ग े ।
उनह ने गे प्र न भकया- लेभकन ाने पर ग तो कसे जब मैं
या तो भफ ट गाड़ी गेट पर ड़ी ी । ग कसे
कहना पड़ा- हम इंपाला शेिरलेट लेकर ग े ।
बोले- ह हो, तो प लोग को बड़ी गाड़ी चलाने का शौक
है ।
बाब जी ुद इंपाला का प्रयोग न के बराबर करते े र िह भकसी
स्टेट गेस्ट के ने पर ही भनकलती ी । उनकी बात सुन मैंने अभनल भैया
की तरफ दे ँ से इशारा भकया । मैं समझ गया ा भक यह इशारा
इजाजत का है । अब हम उसका भदन प्रयोग कर सकगे ।
चाय ्म कर उनह ने कहा- सुनील, जरा ाइिर को बुला
दीभज ।
मैं ाइिर को बुला लाया । उससे उनह ने पछा- तुम ल ग बुक र ते
हो न
उसने हाँ में उ्तर भदया । उनह ने गे कहा- ंटी करते हो
कल भकतनी गाड़ी इन लोग ने चलाई
िह बोला- चौदह भकलोमीटर ।
उनह ने भहदायत दी- उसमें भल दो, चौदह भकलोमीटर भनजी
उपयोग ।
तब भी उनकी बात हमारी समझ में नहीं ई भफर उनह ने अ मा को
69
बुलाने के भल कहा । अ मा जी के ने पर बोले- सहाय साहब से
कहना, सा पैसे प्रभत भकलोमीटर के भहसाब से पैसे जमा करिा दें ।
इतना जो उनका कहना ा भक हम र अभनल भैया िह ं रुक नहीं
सके । जो रुलाई छटी तो िह कमरे में भागकर पहुंचने के बाद भी काफी देर
तक बंद नहीं ई । दोन ही जन देर तक फूट-फूटकर रोते रहे ।
पसे यह बात शान के तहत नहीं कर रहा पर इसभल भक ये बातें
अब हमारे भल दश बन गई हैं । सभ य राजनीभत में ने पर, सरकारी
पद पाने के बाद ्या उसका दरुपयोग करने की भह मत मुझमें हो सकती है
प ही सोचें, मेरे ब े कहते हैं भक पापा, प हमें साइभकल से भेजते
हैं । पानी बरसने पर र्शे से स्कूल भेजते हैं पर भकतने ही दसरे लोग के
लड़के सरकारी गाड़ी से ते हैं । िे छोटे हैं उनहें कलेजा चीरकर नहीं बता प नीय
सकता । समझाने की कोभशश करता हँ । जानता हँ, मेरा यह समझाना
भकतना कभ न है भफर भी समय होने पर कभी-कभी अपनी गाड़ी से छोड़
पुभलस दिारा नागरी सुर ा के
देता हँ । अपना सरकारी हदा छोड़कर या हँ र पके सा यह भल भक जाने िाले काय की
सब भफर भज कर तभनक ताजा र नया महसस करना चाहता हँ । जानकारी पभ िं उनकी
कोभशश करता हँ, नींि को पुन सँजोना-सँिारना भक मेरे मन का महल सची बनाइ ।
ज के इस तफानी झंझाित में ड़ा रह सके ।
याद ते हैं बचपन के िे हसीन भदन, िे पल, जो मैंने बाब जी के
सा भबता । िे अपना य गत काम मुझे स प देते े र मैं कसा गि
अनुभि करता ा । क होड़ ी, जो हम भाइय में लगी रहती ी । भकसे
भकतना काम भदया जाता है र कौन उसे भकतनी सफाई से करता है ।
क भदन बोले- सुनील, मेरी अलमारी काफी बेतरतीब हो रही है,
तुम उसे ीक कर दो र कमरा भी ीक कर देना ।
मैंने स्कूल से लौटकर िह सब कर ाला। दसरे भदन मैं स्कूल जाने के
भल तैयार हो रहा ा भक बाब जी ने मुझे बुलाया । पछा- तुमने सब कुछ
ब त ीक कर भदया, मैं ब त ुश हँ पर िे मेरे कुरते कहाँ हैं
मैं बोला- िे कुरते भला कोई यहाँ से फट रहा ा, कोई िहाँ से ।
िे सब मैंने अ मा को दे भद हैं ।
उनह ने पछा- यह कौन-सा महीना चल रहा है
मैंने जिाब भदया- अ बर का अंभतम सप्ताह ।
उनह ने गे जोड़ा- अब निंबर गा । जाड़े के भदन ह गे, तब
ये सब काम ँगे । पर से कोट पहन लँगा न
मैं दे ता रह गया । ्या कह रहे हैं बाब जी िे कहते जा रहे े- ये
सब ादी के कपड़े हैं । बड़ी मेहनत से बना हैं बीनने िाल ने । इसका
क- क सत काम ना चाभह ।
यही नहीं, मुझे याद है, मैंने बाब जी के कपड़ की तरफ यान देना
शु भकया ा । ्या पहनते हैं, भकस भकफायत से रहते हैं। मैंने दे ा ा,
70
क बार उनह ने अ मा को फटा कुरता देते कहा ा- इनके माल
बना दो ।
बाब जी का क तरीका ा, जो अपने प कभषत करता
ा । िे अगर सीधे से कहते-सुनील, तु हें ादी से यार करना चाभह ,
तो शायद िह बात कभी भी मेरे मन में र नहीं करती पर बात कहने के
सा -सा उनके अपने य ्ि का कषण ा, जो अपने में सामने
िाले को बाँध लेता ा । िह स्ित उनपर अपना सब कुछ भनछािर करने
पर उता हो जाता ा ।
अ मा बताती हैं- हमारी शादी में च ािे के नाम पर भसफ पाँच ाम
सोने के गहने े, लेभकन जब हम भिदा होकर रामनगर तो िहाँ
उनहें मुँह भद ाई में गहने भमले । सभी नाते- र तेिाल ने कुछ-न-कुछ सं ाषरीय
भदया ा । भजन भदन हम लोग बहादरगंज के मकान में , उनहीं भदनांे
तु हारे बाब जी के चाचा जी को कोई ाटा लगा ा । भकसी तरह से बाकी अनुशासन जीिन का क अंग
का रुपया देने की भज मेदारी हमपर पड़ी-बात ्या ी, उसकी ीक से है, इसके भिभभ प पको
जानकारी लेने की ज रत हमने नहीं सोची र न ही इसके बारे में कभी कहाँ-कहाँ दे ने को भमलते
कुछ पछताछ की । हैं, बताइ ।
क भदन तु हारे बाब जी ने दभनया की मुसीबत र मनु य की
मजब रय को समझाते जब हमसे गहन की माँग की तो ण भर के भल
हमें कुछ िैसा लगा र गहना देने में तभनक भहचभकचाहट महसस ई पर
यह सोचा भक उनकी प्रस ता में हमारी ुशी है, हमने गहने दे भद । केिल
टीका, न ुनी, भबभछया र भल े। िे हमारे सुहागिाले गहने े । उस भदन
तो उनह ने कुछ नहीं कहा, पर दसरे भदन िे अपनी पीड़ा न रोक सके । कहने
लगे- तुम जब भमरजापुर जा गी र लोग गहन के संबंध में पछेंगे तो
्या कहोगी
हम मुसकरा र कहा- उसके भल प भचंता न करें । हमने
बहाना सोच भलया है । हम कह देंगी भक गांधीजी के कहने के अनुसार हमने
गहने पहनने छोड़ भद हैं । इसपर कोई भी शंका नहीं करेगा । तु हारे बाब
जी तभनक देर चुप रहे, भफर बोले- तु हंे यहाँ ब त तकलीफ है, इसे मैं
अ छी तरह समझता हँ । तु हारा भििाह ब त अ छे, सु ी प रिार में हो
सकता ा, लेभकन अब जैसा है िैसा है । तु हें राम देना तो दर रहा,
तु हारे बदन के भी सारे गहने उतरिा भल ।
हम बोलीं- पर जो असल गहना है िह तो है । हमें बस िही चाभह ।
प उन गहन की भचंता न करें । समय जाने पर भफर बन जा ँगे । सदा
से ही भदन ोड़े रहेंगे । द -सु तो सदा ही लगा रहता है ।
( लाल बहादर शास्ती मेरे बाबजी से)
71
शब्द संसार
तहदायि स्ती.सं.(अ.) = सचना, भनदश मुहावरे
दस्िक स्ती.सं.(फा.) = दरिाजे पर िाज करने की भ या ट- टकर रोना = जोर-जोर से रोना
इिािि स्ती.सं(अ.) = ज्ा, स्िीकभत देििे रह िाना = चयचभकत होना
बेिरिीब भि.(फा.) = अस्त- यस्त, भब रा
तक ायि स्ती.सं.(अ.) = भमत यय
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) प रराम तिखिए ः
१. सुबह सा े पाँच-पौने छह बजे दरिाजा ट टाने का -
२. सा पैसे प्रभत भकलोमीटर के भहसाब से पैसे जमा करिाने
शास्ती जी की का -
स्िभािगत
भिशेषता ँ
( ) पा मंे प्रयु्ि गहनों के नाम ः (4) वर्ण पहेिी से तविोम शब्दों की िोत याँ ँ कर तिखिए ः
द अ ग प ------- Í------
सु बु स रा ------- Í------
रु Í ला ------- Í------
प्र भ यो ------- Í------
(8) ‘पर’ शब्द के दो अर्ण तििकर नका स्विं वा्य म प्रयोग कीतिए । १ २
72
ाषा तबंद
पयोतिि िेिन तनम्नतिखिि मुद्दों के आधार पर कहानी तिखिए । से तचि शीष्णक दीतिए ।
73
६ हम स धरिी की संिति ह
(पूरक प न) -उमाकांत मालवीय
प रचय
हम उस धरती के लड़के हैं, भजस धरती की बातें
्या कभह अजी ्या कभह हाँ ्या कभह । ि म ः १ ३१, मुबं ई (महारा ट)
म यु ः १ 8२, इलाहाबाद (उ.प्र.)
यह िह भमटटी, भजस भमटटी में ेले े यहाँ ुि-से ब े ।
प रचय ः भाि की ती ता र
यह भमटटी, प्रहलाद जहाँ, जो अपनी लगन के े स े । जन सरोकार को रे ांभकत करने
िाले रचनाकार में उमाकांत
शेर के जबड़े ुलिाकर, े जहाँ भरत दतुली भगनते,
मालिीय का स् ान अ णी रहा ।
जयमल-प्ता अपने गे, े नहीं भकसी को कुछ भगनते भहंदी साभह्य में पको निगीत
का भगीर कहा जाता है । पने
इस कारण हम तुमसे ब कर, हम सबके गे चुप रभह । कभिता के अभत र ं का य,
अजी चुप रभह , हाँ चुप रभह । हम उस धरती के लड़के हैं ... भनबंध त ा बालोपयोगी पुस्तक भी
भल ीं ।
बात का जनाब, श र नहीं, शे ी न ब ारें, हाँ चुप रभह । प्रमुि कृतियाँ ः मेंहदी र
हम उस धरती की लड़की हैं, भजस धरती की बातें ्या कभह । महािर , देिकी , र प ,
सुबह र पलाश की (कभिता
अजी ्या कभह , हाँ ्या कभह । सं ह) अाभद ।
भजस भमटटी में ल मीबाई जी, जनमी ीं झाँसी की रानी ।
रभजया सुलताना, दगािती, जो ब लड़ी ीं मदानी । पद्य संबंधी
जनमी ी बीबी चाँद जहाँ, पदभमनी के जौहर की िाला ।
क वािी ः क िाली का इभतहास
सीता, साभिती की धरती, जनमी सी- सी बाला । सात सौ िष पुराना है । क िाली
गर ींग जनाब उड़ा ँगे, तो मजबरन ताने सभह , ताने सभह , ताने सभह । क लोकभप्रय का य भिधा है ।
हम उस धरती की लड़की हैं... यह तारीफ या शान में गाया जाने
िाला गीत या कभिता है ।
य प फा ्य होती हैं, टंटा काहे का पस में । प्रस्तुत क िाली में कभि ने
दो दल की नोक-झ क पेश करते
हमसे तुम या तुमसे हम ब -च कर ्या र् ा इसमें । शरिीर भतहाभसक स्ती-पुरुष
झगड़े से न कुछ हाभसल होगा, र देंगे बातें उलझा के । पात का िणन भकया है । यहाँ
बस बात पते की इतनी है, ुि या रभजया भारत माँ के । स्ती-पुरुष को भारतमाता के र
के दो पभहये बताया गया है । यहाँ
भारत माता के र के हैं हम दोन ही दो-दो पभहये, अजी दो पभहये, हाँ दो पभहये । गाते समय पहला पद लड़क का
हम उस धरती की संतभत हैं .... समह दसरा पद लड़भकयांे का
समह र अंभतम पद दोन समह
भमलकर प्रस्तुत करते हैं ।
744
शब्द संसार
दिुिी स्ती.सं.(दे.) = दाँत
श र पुं.सं.(अ.) = अ छी तरह काम करने की यो यता या ंग, बुदभध
ि हर पुं.सं.(भहं.) = राजस् ान में प्राचीन समय मंे प्रचभलत प्र ा । इसमें भस्तयाँ भिदेशी
मणका रय से अपने स्िाभभमान की र ा के भल अभ न
में प्रिेश कर प्राण की भत दे देती ीं ।
ि ा भि.(अ.) = अप्रस , नाराज, रु ट, ुदध
टंटा पंु.सं(दे.) = य का झंझट, टराग, उप ि, उ्पात, झगड़ा, लड़ाई
मुहावरे
शेिी ब ारना = स्ियं अपनी प्रशंसा करना
ग मारना = बड़ी-बड़ी बातें करना
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः
(१) वग करर कीतिए ः
पदयांश में उ त च रत- ुि, प्रहलाद, भरत, ल मीबाई, रभजया सुलताना, दगािती, पदभमनी, सीता, चाँदबीबी,
साभिती, जयमल
तिहातसक प रातरक
755
७ मतहिा आ म
- काका कालेलकर
भप्रय सरोज,
भजस म की क पना की है उसके बारे में कुछ यादा भल ँ तो प रचय
बहन को सोचने में मदद होगी, म यानी होम ( र) उसकी यिस् ा में
या संचालन में भकसी पुरुष का संबंध न हो । उस म का भिज्ापन ि म ः १885, सातारा (महारा ट)
अ बार में नहीं भदया जा । उसके भल पैसे तो सहज भमलेंगे, लेभकन कहीं म यु ः १ 8१, नई भद ली
माँगने नहीं जाना है । जो मभहला गी िह अपने ाने-पीने की त ा प रचय ः काका कालेलकर के नाम से
कपड़ेल्ते की यिस् ा करके ही । िह यभद गरीब है तो उसकी भि यात दतातेय बालक ण कालेलकर
भसफा रश करने िाले लोग को च की प्की यिस् ा करनी चाभह । जी ने भहंदी, गुजराती, मरा ी र
परी पहचान र प रचय के भबना भकसी को दा ल नहीं करना चाभह । अं ज े ी भाषा में समान प से
दा ल ई कोई भी मभहला जब चाहे तब म छोड़ सकती है । म ले नकाय भकया । रा टभाषा के प्रचार
को रा टीय काय म मानने िाले काका
को ीक न लगे तो क या तीन महीने का नोभटस देकर भकसी को म
कालेलकर उ कोभट के िैचा रक
से हटा सकता है लेभकन सा कदम सोचकर लेना होगा ।
भनबंधकार हैं । भिभभ भिषय की
म भकसी क धम से भचपका नहीं होगा । सभी धम म को तकपण या या पकी ले नशैली
मानय ह गे, अत सामानय सदाचार, भभ्त त ा सेिा का ही िातािरण के भिशेष गुण हैं ।
रहेगा । म में स्िािलंबन हो सके उतना ही र ना चाभह । सादगी का प्रमुि कृतियाँ ः
ह होना चाभह । रंभ में प ाई या उदयोग की यिस् ा भले न हो तहंदी ः रा टीय भश ा के दश
सके लेभकन गे चलकर उपयोगी उदयोग भस ा जा ँ । प ाई भी सान का भिकास , जीिन-संस्कभत की
हो । म भश ासंस् ा नहीं होगी लेभकन कलह र कु न से मु्त बुभनयाद , न तमाला स्मरणयाता ,
धम दय ( ्मच रत) भद ।
स्ितंत िातािरण जहाँ हो सा मानितापण यस् ान होगा, जहाँ परेशान
मभहला ँ बे टके अपने च से रह सक र अपने जीिन का सदपयोग
पभित सेिा में कर सक । सा सान दश र ा हो र यिस् ा पर
सभमभत का झंझट न हो तो बहन सुंदर तरीके से चला सके सा क बड़ा
काम होगा । उनके पर सा बोझ नहीं गा भजससे भक उनहें परेशानी गद्य संबंधी
हो ।
संस् ा चलाने का भार तो ने िाली बहनें ही उ ा सकगी ्य भक प्रस्तुत पत में कालेलकर जी ने
उनमें कई तो कुशल ह गी । बहन उनको संगीत की, भभ्त की त ा प्रेमयु्त मभहला म की स् ापना, उसकी
यिस् ा, िातािरण, भनयम भद के
सलाह की ुराक दें । गे चलकर संस् ा की जमीन पर छोटे-छोटे मकान बारे में भिस्तत भनदश भद हैं । इस पत
बना जा ँगे र उसमें संस् ा के भनयम के अधीन रहकर ने िाली दिारा मभहला संबंधी पके भिचार,
मभहला ँ दो-दो, चार-चार का प रिार चला ँगी, सी संस् ा ँ मैंने दे ी प्रकभत, प्रेम सामाभजक लगाि का पता
हैं । इसभल जो भबलकुल संभि है, ब त ही उपयोगी है । सा ही काम मैंने चलता है ।
सभचत भकया है, इतने िष के बहन के प रचय के बाद उनकी शभ्त,
कुशलता र उनकी मयादा का याल मुझे है । प्र्य कोई भहस्सा भल
76
भबना मेरी सलाह र सहारा तो रहेगा ही । गे जाकर बहन को लगेगा वरीय
भक उनको तो मात भनभम्तमात होना ा । संस् ा अपने प चलेगी ।
समाज में सी संस् ा की अ्यंत ि यकता है । उस ि यकता में से
मानितािाद पर भिचार
ही उसका जनम होगा । मुझे इतना भि िास न होता तो बहन के भल सा
सुभन ।
कुछ मैं सभचत ही नहीं करता । तुम दोन इस सचना का प्रा नापिक भिचार
करना लेभकन ज दी में कुछ तय न करके य ासमय मुझे उ्तर देना । बहन
यभद हाँ कहे तो अभी से गे का भिचार करने लगँगा ।
यहाँ सरदी अ छी है । फूल में गुलदाउदी, भ जेन ीमम फूल बहार
में हैं । उसकी कभलयाँ महीन तक ुलती ही नहीं मानो भारी रहस्य की बात
पेट में भर दी हो र हो को सीकर बै गई ह । जब लती हैं तब भी
क- क पं ुड़ी करके लती हैं । िे भटकते हैं ब त । गुलाब भी लने प नीय
लगे हैं । कोस्मोस के भदन ग । उनह ने ब त नंद भदया । भजभनया का
क पौधा, रास्ते के भकनारे पर ा जो सो उसकी कली तोड़े । भफर
अंत र भिज्ान में याभत
मैंने इस बड़े पौधे को िहाँ से भनकालकर अपने भसरहाने के पास लगा भदया, प्राप्त दो मभहला की
भफर इसने इतने संुदर फूल भद । इसकी ँ ें मानो उ्कटता से बोलती ह , जानकारी पभ ।
सी लगतीं । दो- क महीने फूल देकर अंत में िह स गया । परस ही
मैंने उसे भबदा दी ।
- काका का दोन को सप्रेम शुभाशीष
गुरु, २१.१२.44
Í Í Í Í
भप्रय सरोज,
तु हारा १ से १8 तक भल ा पत ज अभी भमला । इस सं ाषरीय
महीने में मैंने इन तारी को पत भल े हैं-तारी १, ,१5 र चौ ा
ज भल रहा ँ । अब तुमको हर सप्ताह मैं भल ँगा ही । तु हारी तबीयत अनुशासन स्ियं भिकास का
कमजोर है तब तक भचरंजीि रैहाना मुझे पत भल ेगी तो चलेगा । मुझे हर प्र म चरण है , क न पर चचा
सप्ताह क पत भमलना ही चाभह । कीभज ।
प य बाप जी चाहते हैं तो भहंद-मुभस्लम कता के भल मुझे अपनी
सारी शभ्त उद सी ने के पीछे च करनी चाभह । तुमको मैंने क संदेश
भेजा ा भक तुम उद भल ना सी ो । लेभकन अब तो मेरा क ही संदेश
है-परा राम लेकर परी तरह ीक हो जा ।
तार के न्शे बनाने के भल कपास बा्स भी मँगाकर र ा है । िेिनीय
लेभकन अब तक कुछ हो नहीं पाया है ।
मैंने अपने फूल के गमले अपने पास से भनकाल भद हैं । सादे ोटन
को ही रहने भदया है । भकसी सामाभजक संस् ा की
सबको काका का सप्रेम शुभाशीष जानकारी भल ।
( काका कालेलकर ं ािली से)
77
शब्द संसार
किह पुं.सं(सं.) = भििाद, झगड़ा
क न स्ती.सं.(सं.) = ीझ
बेिटके (भ .भि.) = भबना भकसी संकोच के, भनसंकोच
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) कारर तिखिए ः
१. काका जी ने कपास ब ्स मँगाकर र ा -
२. ले क ने फूल के गमले अपने पास से भनकाल भद -
गुलदाउदी की
भिशेषता ँ
( ) तिखिए ः
१. भजनहें ता प्र्यय लगा हो से श द पा से ँ कर
उन प्र्ययसाभधत श द की सची बनाइ ।
शद ता प्र्यय साभधत
शद
(4) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
म के भनयम
788
ाषा तबंद
तनम्न शब्दों से बने दो मुहावरों के अर्ण तििकर नका स्विं वा्यों म प्रयोग कीतिए ः
१. ँ २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्य --------------------- िा्य ---------------------
१. मुँह २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्य --------------------- िा्य ---------------------
१. दाँत २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्य --------------------- िा्य ---------------------
१. हा २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्य --------------------- िा्य ---------------------
१. २.
अ --------------------- दय
अ ---------------------
िा्य --------------------- िा्य ---------------------
पयोतिि िेिन
अपने तम सहेिी को तििा तव ान प्रदश्णनी म प्ररम पुरस्कार प्रा होने के पि य म बधाई देिे ए तनम्न प्रा प म
प तिखिए ।
तदनांक ः
संबाेधन ः
अत वादन ः
प्रारं ः -------------
तवषय तववेचन ः -----------------------
----------------------------- ---
समापन ः ------------
हस्िा र ः -----------------
नाम ः ------------------
पिा ः ---------
---------
---------
ई-मेि आई ी ः -------
79
8 अपनी गंध नह बेचूँगा
- बालकसव बैरागी
8
80
शब्द संसार
गंध स्ती.सं.(सं.) = महक, बास अनुबंध पुं.सं.(सं.) = समझौता, प्रभतज्ा पत
कोंपि स्ती.सं.(सं.) = नई कोमल पभ्तयाँ प्रतिबंध पुं.सं.(सं.) = रुकािट, भिघ्न
अरुराई स्ती.भि.(सं.) = लाभलमा, लाली
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः (२) तिखिए ः
१. फूल को भबक जाने से भी बेहतर लगता
फूल बेचना नहीं चाहता
है ।
२. फूल के अनुसार उसे तोड़ने का पहला अभधकार
१. इनहें हैं ।
२.
३.
4. (4) सूची बनाइए ः
इनका फूल से संबंध है -
(3) कृति पूर्ण कीतिए ः
8१
81
िब िक तिंदा र ँ, तिििा र ँ
-सवशवनाथ प्रसाद सतवारी
तवशवनार प्रसाद तिवारी -(तिवारी िी) की अमििाि नागर (नागर िी) से बािचीि
8२
82
तिवारी िी ः ्या उन भदन पपर गांधीजी के यभ्त्ि का भी कुछ
प्रभाि पड़ा
नागर िी ः हाँ, भन चत प से पड़ा । भपता जी ने ंदोलन में भाग
लेने से रोका । िह रोकना ही मेरे ले न के भल अ छा
।
तिवारी िी ः पके ले न में गरीब के प्रभत जो करुणा है िह भकससे
प्रभाभित है
नागर िी ः िह तो अपने समाज से ही उभरी ी । मेरी पहली कहानी
प्राय चत इसका प्रमाण है । हमारे पा रिा रक संस्कार
भी े । मेरे भपता जी में क अदभुत गुण ा । िे भकसी के
द -दद में तुरंत प ँचते े । इसने मुझे ब त प्रभाभित
भकया । वरीय
तिवारी िी ः उस समय तो ांभतकारी ंदोलन भी हो रहे े । ्या
उनका भी पपर कुछ प्रभाि पड़ा
भकसी बुजुग से स्ितंततापि
नागर िी ः उसी से तो भपता जी ने ाँटा र रोका । काकोरी बमकां
भारत की भिस्तत जानकारी
हो चुका ा । १ २१ से ंदाेलन तेज हो ग े । सुभन र भमत को सुनाइ ।
तिवारी िी ः ्या सामाभजक ंदोलन , जैसे य समाज का भी
पपर कुछ प्रभाि पड़ा
नागर िी ः रंभभक असर है ोड़ा ज र । मेरे भपता जी में क
अ छी बात ी भक उनह ने मुझे सामाभजक ंदोलन में
जाने से कभी नहीं रोका । जिाहरलाल नेह से मेरी भेंट
१ ३३ में ई । उनकी माँ मेभ कल क लेज मंे दा ल ीं
र उसी समय मेरा छोटा भाई भी िहाँ दा ल ा ।
नेह जी जेल में े । उनकी माँ के पास कुछ क मीरी
लोग को छोड़कर कोई ता-जाता नहीं ा । मैं उनकी
माता जी के पास रोज जाता ा । पंभ त जी जब जेल से
छटे तो मेरी उनसे िहीं भेंट ई जो प्राय होती रहती ी ।
उनसे ब बातें होती ीं- हर तरह की ।
तिवारी िी ः पका पहला उपनयास कौन-सा है
नागर िी ः पहला उपनयास भल ा १ 44 में महाकाल , जो छपा
१ 4 में । बंगाल से लौटकर इसे भल ा ा ।
तिवारी िी ः ्या यही बाद में भ नाम से प्रकाभशत ।
नागर िी ः हाँ ।
तिवारी िी ः नागर जी, प अपने समय के र कौन-कौन से
ले क के संपक-प्रभाि में रहे
8३
83
नागर िी ः जग ा दास र्नाकर, गोपाल राय गहमरी, प्रेमचंद,
भकशोरी लाल गोस्िामी, ल मीधर िाजपेयी भद के
नाम याद ते हैं । माधि शु्ल हमारे यहाँ ते े । िे
जानुबा े, ीला कुरता पहनते े र कुरते की जेब
में जभलयाँिाला बाग की न सनी भमटटी हमेशा र े रहते
े । १ ३१ से ३ तक मैं प्रभतिष कोलकाता जाकर
शरतचं से भमलता रहा, उनके गाँि भी गया ।
तिवारी िी ः पुराने साभह्यकार में प भकसको अपना दश मानते
िेिनीय
हैं
नागर िी ः तुलसीदास को तो मुझे ुटटी में भपलाया गया है । बाबा,
शाम को भन्य प्रभत रामच रतमानस मुझसे प िाकर भकसी लाड़ी का सा ा्कार
सुनते े । लोक जबरदस्ती याद करिाते े । लेने हेतु प्र न की सची बनाइ ।
तिवारी िी ः नागर जी, पने ंजन नयन में सरदास के चम्कार
का ब त भिस्तार से िणन भकया है । ्या इनपर पका
भि िास है
नागर िी ः नेतहीन के चम्कार हमने ब त दे े हैं । उनकी
भभि यिाभणयाँ कभी-कभी ब त सच होती हैं । सरपंचशती
के अिसर पर काफी भििाद चला ा भक सर जनमांध े
या नहीं । सिाल यह है भक दे ता कौन है ँ या
मन ँ मा यम है, दे ने िाला मन है ।
तिवारी िी ः पने ्या कभी अपने भल ने की सा कता की पर
की है
नागर िी ः हाँ, मेरे पास ब त से पत ते हैं । मेरे उपनयास के बारे
में, ास तौर से भजनसे पा कीय प्रभतभ या का पता
चलता है । प नीय
तिवारी िी ः नागर जी, पने मण तो काफी भकया है...
नागर िी ः हाँ, परे अ ं भारतिष का । पेशािर से कनयाकुमारी प्रभसदध यभ्तय के भाषण
तक । बंगाल से क मीर तक । इन याता का यह लाभ पभ र चचा कीभज ।
भक मैंने करे्टर (च रत) ब त दे े र उनके
मनोभिज्ान को भी समझने का मौका भमला ।
तिवारी िी ः अपने समय के ले क में प भकनहें पसंद करते हैं
नागर िी ः अगर भदल से पछो तो क ही दमी । उसे ब त यार
करता ँ । िह है रामभिलास शमा । प्रभातकुमार
मु ोपा याय का सं ह देशी र भिलायती अगर भमल
जा तो भफर प ना चा ँगा । बदलते भारतीय समाज
84
84
के सुंदर भचत हैं उसकी कहाभनय में । ट स्ट य र
चे ि की रचना ँ भी मुझे भप्रय हैं ।
तिवारी िी ः पने तो पत का भी ब त संकलन भकया है
नागर िी ः हाँ, ब त । पत का सं ह भी काफी है, लेभकन िह
यिभस् त नहीं है । मैंने प्र्येक जाभत के रीभत- रिाज भी
इकट े भक हैं । इसके भल मना ब त पड़ा है ।
बड़े-ब से सुनकर भी ब त कुछ प्राप्त भकया है । गदर
के फूल के भल मुझे ब त लोग से भमलना-जुलना पड़ा ।
तिवारी िी ः पने अपने उपनयास के भल फी िक ब त भकया है ।
नागर िी ः हाँ, ब त करना पड़ा है । ना यो ब त गोपाल के भल
सफाई कभमय की बभस्तय में जाना पड़ा । उनके
सं ाषरीय
रीभत- रिाज का अ ययन करना पड़ा ।
तिवारी िी ः नागर जी, ्या प मन र प्राण को अलग-अलग
मानते हैं अाज के समय में पत ले न की
सा कता पर अपने भिचार य्त
नागर िी ः हाँ, प्राण को मन से अलग करना पड़ेगा । मन की गभत
कीभज ।
गे तक है । प्राण को िहाँ तक ींचना पड़ता है । मन
क सा भनमल जल है भजससे जीिन के संस्कार रँगते
हैं । मन, प्राण से ही सधता है ।
तिवारी िी ः सर में पने मन को ही पकड़ा है ।
नागर िी ः हाँ, सर ने क जगह भल ा है- मैं दस भदशा में दे
लेता ँ । जब परी प्राणशभ्त क जगह कभ त होगी तो
इंटयभटि ई बना गी ।
तिवारी िी ः नागर जी, हम लोग ने पका ब त समय भलया, बभ क
पकी उ र स्िास् य का भी भलहाज नहीं भकया ।
नागर िी ः स्िास् य ीक है मेरा । प्नी की म्यु के बाद क टटन
गई ी, लेभकन भफर मैंने सोचा भक भल ने के भसिा
र चारा ्या है । तुम लोग यह मना भक जब तक
भजंदा र ँ, भल ता र ँ ।
( क नाि के याती से)
शब्द संसार
बतहष्कार करना भ .(सं.) = ्याग करना, भनकाल देना मर पुं.सं.(सं.) = मना, भफरना
शिी स्ती.सं.(सं.) = प्रणाली, रीभत, तरीका संकिन पुं.सं.(सं.) = सं ह
85
85
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः
अमतलाल नागर ले क १. २.
जी के साभह्य
पभतका ँ १. २.
सजन में सहायक
(२) िर तिखिए ः-
१. नागर जी की पहली कभिता को प्रस्फुभटत करने िाला अनुभि
२. नागर जी अपने भपता जी के इस गुण से प्रभाभित े
( ) कोष् क म दी गई नागर िी की सातह य कृतियों का वग करर कीतिए ः
कब ल कह ला ी ाय, ंजन नयन, अपशकुन, ना यो ब त गोपाल, महाकाल, प्राय चत, गदर के फूल
कहानी प यास कतविा अय
नागर जी के भप्रय
भिदेशी ले क
मु य त या सहायक त या
® उनके रीभत- रिाज का अ ययन करना पड़ा ।
१. --------- ---------
® माता-भपता का यह रंग दे कर तो िे ब ी काकी को र सताने लगे । २. --------- ---------
® उसकी ननद गई । ३. --------- ---------
® िे हड़बड़ा उ े । 4. --------- ---------
® िे पुस्तक पकड़े न र सके । 5. --------- ---------
® उनह ने पुस्तक लौटा दी । . --------- ---------
® समु स्याह र भयािह दी ने लगा । . --------- ---------
® मैं गोिा को परी तरह नहीं समझ पाया । 8. --------- ---------
® काकी टनास् ल पर प ँची । . --------- ---------
® अि य ही लोग ा-पीकर चले ग । १ . --------- ---------
( ) तनम्नतिखिि वा्यों के र्ि स्रानों की पूति्ण तचि कारक तचह्नों से कीतिए िरा संबंतधि कारक र कारक
तचह्न िातिका म वा्य के सामने तिखिए ः
अ वा्य कारक कारक तचह्न
१. चाची अपने कमरे ---- भनकल रही ी ।
२. मैं बं ल ---- ोलकर दे ने लगा ।
३. िाज ---- मेरा यान बँटाया ।
4. हमारे शहर ---- क कभि हैं ।
5. भकतने भदन ---- छटभटयाँ हैं
. मान रेल ---- ससुराल चली गई ।
. उनहें पुस्तक ले ने ---- कहा ।
8. पयटन ---- ब त ही नंद भमला ।
. शरीर को कुछ समय ---- भि ाम भमल जाता है ।
१ . बस ---- गोिा मने की योजना बनाई ।
११. बुदभधराम स्िभाि ---- स जन े ।
१२. पा टना स् ल ---- प ँची ।
१३. ---- यह बुभ या कौन है
(4) पा म प्रयु्ि तवत कारकों का एक-एक वा्य ाँटकर नसे कारक र कारक तचह्न चुनकर तिखिए ।
8
87
(१) तनम्नतिखिि प र दे प कर इसपर आधा रि से पाँच प्रशन ियार
पयोतिि िेिन कीतिए, तिनके िर एक-एक वा्य म हों ः
भि यात गभणतज् सी.िी. रमण ने छातािस् ा में ही भिज्ान के ेत में अपनी प्रभतभा
का भस्का देश में ही नहीं भिदेश मंे भी जमा भलया ा ।
रमन का क सा ी छात िभन के संबंध में कुछ प्रयोग कर रहा ा । उसे कुछ
कभ नाइयाँ प्रतीत , संदेह । िह अपने अ यापक जोनस साहब के पास गया परंतु िह
भी उसका संदेह भनिारण न कर सके । रमण को पता चला तो उनह ने उस समस्या का
अ ययन-मनन भकया र इस संबंध में उस समय के प्रभसदध ल रेले के भनबंध प े र
उस समस्या का क नया ही हल ोज भनकाला । यह हल पहले हल से सरल र अ छा
ा । ला रेले को इस बात का पता चला तो उनह ने रमण की प्रभतभा की भ र-भ र प्रशंसा
की । अ यापक जोनस भी प्रस र उनह ने रमण से इस प्रयोग के संबंध में ले
भल ने को कहा । रमण ने ले भल कर ी जोनस को भदया, पर जोनस उसे ज दी लौटा
न सके । कारण संभित यह ा भक िह उसे परी तरह ्मसात न कर सके ।
प्रशन ः १
२
4
5
(२) ‘अंिरिाि’ से ‘मेक इन इंत या’ योिना संबंधी िानकारी प्रा करके इसे ब ावा देने हेिु तव ापन ियार कीतिए ः-
मुद्दे ः
ेत
लाभ
88
१ बू ी काकी
(पूरक प न)
- प्रेमचंद
8
89
की छोटी लड़की लाड़ली ी । लाड़ली अपने दोन भाइय के भय से अपने
भहस्से की भम ाई-चबैना ब ी काकी के पास बै कर ाया करती
ी । यही उसका र ागार ा ।
रात का समय ा । बुदभधराम के दिार पर शहनाई बज रही ी र
गाँि के ब का झुं भिस्मयपण नेत से गाने का रसास्िादन कर रहा
ा । चारपाइय पर मेहमान भि ाम कर रहे े । दो- क अं ेजी प े
नियुिक इन यिहार से उदासीन े । िे इस गँिार मं ली में बोलना
अ िा सभ मभलत होना अपनी प्रभत ा के प्रभतकूल समझते े ।
ज बुदभधराम के बड़े लड़के मु राम का भतलक या ा । यह
उसी का उ्सि ा । र के भीतर भस्तयाँ गा रही ीं र पा मेहमान के
वरीय
भल भोजन के प्रबंध में यस्त ी । भटभ य पर कड़ाह च रहे े । क में
पभड़याँ-कचौभड़याँ भनकल रही ीं, दसरे में अनय पकिान बन रहे े । क
बड़े हं े में मसालेदार तरकारी पक रही ी । ी र मसाले की बड़ से कोई सी कहानी सुभन
भजसके री भहस्से में
ुधािधक सुगंध चार र फली ई ी । कभ न प रभस् भतय से जीतने
ब ी काकी अपनी को री में शोकमय भिचार की भाँभत बै ी ई का संदेश भमल रहा हो ।
ीं । यह स्िाद भमभ तसुगंध उनहें बेचैन कर रही ी ।
ह कसी सुगंध है अब मुझे कौन पछता है जब रोभटय ही के
लाले पड़े हैं तब से भा य कहाँ भक भरपर पभड़याँ भमलें यह भिचार कर
उनहें रोना या, कलेजे में क-सी उ ने लगी परंतु पा के भय से उनह ने
भफर मौन धारण कर भलया ।
फूल हम र मंे भी सँ सकते हैं परंतु िाभटका में कुछ र बात होती
है । इस प्रकार भनणय करके ब ी काकी हा के बल सरकती ई बड़ी
कभ नाई में चौ ट से उतरीं र धीर-धीरे रेंगती ई कड़ाह के पास
बै ीं ।
पा उस समय काय भार से उदभि न हो रही ी । कभी इस को े में
जाती, कभी उस को े में, कभी कड़ाह के पास ती, कभी भं ार में जाती ।
भकसी ने बाहर से कर कहा- महाराज ं ाई माँग रहे हैं । ं ाई देने
लगी । दमी ने कर पछा- अभी भोजन तैयार होने मंे भकतना भिलंब
है जरा ोल-मंजीरा उतार दो । बेचारी अकेली स्ती दौड़ते-दौड़ते
याकुल हो रही ी, झुँझलाती ी, कु ती ी, परंतु ोध प्रकट करने का
अिसर न पाती ी । भय होता, कहीं पड़ोभसनें यह न कहने लगें भक इतने में
उबल पड़ीं । यास से स्ियं क स रहा ा । गरमी के मारे फुकी जाती ी
परंतु इतना अिकाश भी नहीं ा भक जरा पानी पी ले अ िा पं ा लेकर
झले । यह भी टका ा भक जरा ँ हटी र चीज की लट मची । इस
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अिस् ा में उसने ब ी काकी को कड़ाह के पास बै ा दे ा तो जल गई ।
ोध न रुक सका । िह ब ीे काकी पर झपटी र उनहें दोन हा से
झटककर बोली- से पेट में ग लगे, पेट है या भाड़ को री में बै ते
्या दम ुटता ा अभी मेहमान ने नहीं ाया, भगिान को भोग
नहीं लगा, तब तक धैय न हो सका कर छाती पर सिार हो गई । इतना
ँसती है न जाने कहाँ भस्म हो जाता है । भला चाहती हो तो जाकर को री
में बै ो, जब र के लोग ाने लगेंगे तब तु हें भी भमलेगा । तुम कोई देिी
नहीं हो भक चाहे भकसी के मुँह में पानी न जा , परंतु तु हारी पजा पहले ही
हो जा ।
ब ी काकी अपनी को री में जाकर प चा्ताप कर रही ीं भक मैं
कहाँ से कहाँ प ँच गई । उनहें पा पर ोध नहीं ा । अपनी ज दबाजी
पर द ा । सच ही तो है जब तक मेहमान लोग भोजन कर न चुकगे,
रिाले कसे ा ँगे मुझसे इतनी देर भी न रहा गया । सबके सामने पानी
उतर गया । अब, जब तक कोई बुलाने न गा, नहीं जा गी । सं ाषरीय
मन-ही-मन इसी प्रकार का भिचार कर िह बुलाने की प्रती ा करने
लगीं । उनहें क- क पल, क- क युग के समान मालम होता ा । िदधा म के बारे में जानकारी
धीरे-धीरे क गीत गुनगुनाने लगीं । उनहें मालम भक मुझे गाते देर हो इकट ा करके चचा कीभज ।
गई । ्या इतनी देर तक लोग भोजन कर ही रहे ह गे । भकसी की िाज
नहीं सुनाई देती । अि य ही लोग ा-पीकर चले ग । मुझे कोई बुलाने
नहीं या । पा भच गई है, ्या जाने न बुला । सोचती हो भक प
ही ँगी, िह कोई मेहमान तो नहीं जो उनहें बुला । ब ी काकी चलने
के भल तैयार । यह भि िास भक क भमनट में पभड़याँ र मसालेदार
तरका रयाँ सामने ँगी, उनकी स्िादेभ ंय को गुदगुदाने लगा । उनह ने
मन में तरह-तरह के मनसबे बाँधे, पहले तरकारी से पभड़याँ ा गी, भफर
दही र श्कर से, कचौभड़याँ रायते के सा मजेदार मालम ह गी । चाहे
कोई बुरा माने चाहे भला, मैं तो माँग-माँगकर ा गी, लोग यही न कहेंगे
भक इनहें भिचार नहीं कहा करें, इतने भदन के बाद पभड़याँ भमल रही हैं तो
मुँह ज ा करके ोड़े ही उ जा गी
मेहमान मं ली अभी बै ी ई ी । कोई ाकर उँगभलयाँ चाटता ा,
कोई भतरछे नेत से दे ता ा भक र लोग अभी ा रहे हैं या नहीं । कोई
इस भचंता में ा भक प्तल पर पभड़याँ छटी जाती हैं, भकसी तरह इनहें भीतर
र लेता । कोई दही ाकर जीभ चटकारता ा परंतु दसरा दोना माँगते
संकोच करता ा भक इतने में ब ी काकी रेंगती ई उनके बीच में जा
प ँची । कई दमी च ककर उ ड़े । पुकारने लगे- अरे यह बुभ या
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कौन है यह कहाँ से गई दे ाे भकसी को छ न दे ।
पंभ त बुदभधराम काकी काे दे ते ही ोध से भतलभमला ग ।
पभड़य का ाल भल ड़े े । ाल को जमीन पर पटक भदया र भजस
प्रकार भनदयी महाजन अपने भकसी बेईमान र भगोड़े कजदार को दे ते
ही झपटकर उसका टेंट पकड़ लेता है उसी तरह लपक उनहें अँधेरी
को री में धम से पटक भदया । शा पी िाभटका ल के क झ के में
न ट-भिन ट हो गई ।
मेहमान ने भोजन भकया । रिाल ने भोजन भकया परंतु ब ी काकी
को भकसी ने न पछा । बुदभधराम र पा दाेन ही ब ी काकी को उनकी
भनल जता के भल दं देने का भन चय कर चुके े । उनके बु ापे पर,
दीनता पर, हतज्ान पर भकसी को करुणा न ई ी, अकेली लाड़ली
उनके भल कु रही ी ।
िेिनीय
लाड़ली को काकी से अ्यंत प्रेम ा । बेचारी भोली लड़की ी ।
बालभिनोद र चंचलता की उसमें गंध तक न ी । दाेन बार जब उसके
माता-भपता ने काकी को भनदयता से सीटा तो लाड़ली का दय कर भारतीय कुटंब यिस् ा पर
भाषण के मुददे भल ।
रह गया । िह झँुझला रही ी भक यह लोग काकी को ्य ब त-सी
पभड़याँ नहीं दे देते । उसने अपने भहस्से की पभड़याँ भबलकुल न ाई ीं ।
अपनी गुभड़य की भपटारी में बंद कर र ी ीं । उन पभड़य को काकी के
पास ले जाना चाहती ी । उसका दय अधीर हो रहा ा । ब ी काकी मेरी
बात सुनते ही उ बै ेंगी, पभड़याँ दे कर कसी प्रस ह गी मुझे ब यार
करेंगी ।
रात के यारह बज ग े । पा ँगन में पड़ी सो रही ी । लाड़ली
की ँ में नींद न ती ी । काकी को पभड़याँ लाने की ुशी उसे
सोने न देती ी । उसने पभड़य की भपटारी सामने ही र ी ी । जब भि िास
हो गया भक अ मा सो रही हैं, तो अपनी भपटारी उ ाई र ब ी काकी की
को री की र चली ।
सहसा कान में िाज ई- काकी, उ ो मैं पभड़याँ लाई ँ ।
काकी ने लाड़ली की बोली पहचानी । चटपट उ बै ीं । दोन हा से
लाड़ली को टटोला र उसे गाेद में बै ा भलया । लाड़ली ने पभड़याँ
भनकालकर दीं ।
काकी ने पछा- ्या तु हारी अ मा ने दी हैं
लाड़ली ने कहा- नहीं, यह मेरे भहस्से की हैं ।
काकी पभड़य पर टट पड़ीं । पाँच भमनट में भपटारी ाली हो गई ।
लाड़ली ने पछा- काकी, पेट भर गया ।
92
जैसे ोड़ी-सी िषा, ं क के स् ान पर र भी गरमी पैदा कर देती
है, उसी भाँभत इन ोड़ी पभड़य ने काकी की ुधा र इ छा को र
उ्तेभजत कर भदया ा । बोली- नहीं बेटी, जाकर अ मा से र माँग
ला ।
लाड़ली ने कहा- अ मा सोती हैं, जगा गी तो मारेंगी ।
काकी ने भपटारी को भफर टटोला । उसमें कुछ ुरचन भगरे े । उनहें
भनकालकर िे ा ग । बार-बार ह चाटती ीं, चट ारें भरती ीं ।
दय मसोस रहा ा भक र पभड़याँ कसे पा । संतोष सेतु जब टट
जाता है तब इ छा का बहाि अप रभमत हो जाता है । मतिाल को मद का
स्मरण करना उनहें मदांध बनाता है । काकी का अधीर मन इ छा के प्रबल
प्रिाह में बह गया । उभचत र अनुभचत का भिचार जाता रहा । िे कुछ देर
तक उस इ छा को रोकती रहीं सहसा लाड़ली से बोलीं- मेरा हा
पकड़कर िहाँ ले चलो जहाँ मेहमान ने बै कर भोजन भकया है ।
प नीय
लाड़ली उनका अभभप्राय समझ न सकी । उसने काकी का हा
पकड़ा र ले जाकर ज े प्तल के पास बै ा भदया । दीन, ुधातुर, चलती-भफरती पा शाला
हतज्ान बुभ या प्तल से पभड़य के टकड़े चुन-चुनकर भ ण करने लगी । उप म के बारे में जानकारी
ह दही भकतना स्िाभद ट ा, कचौभड़याँ भकतनी सलोनी, स्ता भकतना इक ा करके पभ र
सुनाइ ।
सुकोमल काकी बुदभधहीन होते भी इतना जानती ीं भक मैं िह काम
कर रही ँ जो मुझे कदाभप न करना चाभह । मैं दसर की ज ी प्तल चाट
रही ँ । परंतु बु ापा त णा रोग का अंभतम समय है जब संपण इ छा ँ क
ही क पर लगती हैं । ब ी काकी में यह क उनकी स्िादेंभ याँ ीं ।
ीक उसी समय पा की ँ ें ुलीं । उसे मालम भक लाड़ली
मेरे पास नहीं है । िह च की, चारपाई के इधर-उधर ताकने लगी भक कहीं
नीचे तो नहीं भगर पड़ी । उसे िहाँ न पाकर िह उ ी तो ्या दे ती है भक
लाड़ली ज े प्तल के पास चुपचाप ड़ी है र ब ी काकी प्तल पर
से पभड़य के टकड़े उ ा-उ ाकर ा रही हैं । पा का दय स हो गया ।
प रिार का क बुजुग दसर की ज ी प्तल टटोले, इससे अभधक शोकमय
य असंभि ा । पभड़य के कुछ ास के भल उसकी चचेरी सास सा
पभतत र भनक ट कम कर रही है । सा प्रतीत होता मानो जमीन रुक गई,
समान च्कर ा रहा है । संसार पर कोई पभ्त ने िाली है । पा
को ोध न या । शोक के स मु ोध कहाँ करुणा र भय से
उसकी ँ ें भर इस अधम के पाप का भागी कौन है उसने स े
दय से गगन मं ल की र हा उ ाकर कहा, परमा्मा, मेरे ब पर
दया करो । इस अधम का दं मुझे मत दो, नहीं तो मेरा स्यानाश हो
93
जा गा ।
पा को अपनी स्िा परता र अनयाय इस प्रकार प्र्य प में
कभी न दी पड़े े । िह सोचने लगी- हाय भकतनी भनदयी ँ । भजसकी
संपभ्त से मुझे दो सौ रुपया िाभषक य हो रही है, उसकी यह दगभत
र मेरे कारण हे दयामय भगिान मुझसे बड़ी भारी चक ई है, मुझे
मा करो ज मेरे बेटे का भतलक ा । सैकड़ मनु य ने भोजन भकया ।
मैं उनके इशार की दासी बनी रही । अपने नाम के भल सैकड़ रुपये यय
कर भद परंतु भजसकी बदौलत हजार रुपये ा , उसे इस उ्सि में भी
भरपेट भोजन न दे सकी । केिल इसी कारण भक, िह िदधा असहाय है ।
पा ने दीया जलाया, अपने भं ार का दिार ोला र क ाली
में संपण सामभ याँ सजाकर ब ी काकी की र चली ।
पा ने क ािरुदध स्िर में कहा- काकी उ ो, भोजन कर लो ।
मुझसे ज बड़ी भल ई, उसका बुरा न मानना । परमा्मा से प्रा ना कर
दो भक िह मेरा अपराध मा कर दें ।
भोले-भोले ब की भाँभत, जो भम ाइयाँ पाकर मार र
भतरस्कार सब भल जाता है, ब ी काकी िैसे ही सब भलकर बै ी ई ाना
ा रही ीं । उनके क- क रो ँ से स ी सभद छा ँ भनकल रही ीं र
पा बै ी इस स्िग य य का नंद लेने में भनम न ी ।
शब्द संसार
तससकना भ .(भह.) = भससकी भरकर रोना
क िी स्ती.सं.(भहं.) = मुँह साफ करने के भल उसमें पानी लेकर फकने की भ या
अनुराग पुं.सं.(सं.) = प्रेम, प्रीभत
गो ा पुं.भि.(भहं.) = भागा
मुहावरे
गिा ा ना = शोर करना, भच लाना
किेिे म क ना = मन में िेदना उ्प होना
944
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) स्व ाव के आधार पर पा का नाम (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. ोधी- ब ी काकी को ललचाने िाले यंजन
२. लालची -
३. शरारती -
4. स्नेभहल -
भिलोम
............
ब िचन भलंग
............ ब ा ............
पयायिाची
............
955
ाषा तबंद
96
११ समिा की र
- मुकुटधर पांडेय
97
शब्द संसार
द्युतिहीन भि.(सं.) = तेजहीन पां वर्ण पुं.सं.(सं.) = पीला रंग
स्यार पुं.सं.(भहं.) = गीदड़, भसयार पािा पुं.सं.(भहं.) = बफ, भहम
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः (२) िीवन शिी म अंिर स्पष्ट कीतिए ः
भशभशर तु में प रितन धनी दीन-द र
( ) िातिका पूर्ण कीतिए ः (4) तनम्न मुद्दों के आधार पर पद्य तवशिेषर कीतिए ः
१. रचनाकार
िुएँ अं ेिी माह तहंदी माह
२. रचना का प्रकार
१. िसंत माच, अप्रैल चैत, बैसा ३. पसंदीदा पंभ्त
२. ी म --------- ----------
4. पसंदीदा होने का कारण
३. िषा --------- ----------
5. रचना से प्राप्त संदेश
4. शरद --------- ----------
5. हेमंत --------- ----------
. भशभशर --------- ----------
988
याकरर तव ाग
श द भेद
सं ा सव्णनाम तवशेषर त या
जाभतिाचक पुरुषिाचक गुणिाचक सकमक भ याभिशेषण अ यय
यभ्तिाचक भन चयिाचक प रमाणिाचक अकमक संबंधसचक अ यय
अभन चयिाचक १.भन चत २.अभन चत समु यबोधक अ यय
भाििाचक भनजिाचक सं यािाचक संयु्त भिस्मयाभदबोधक अ यय
१. भन चत २. अभन चत
यिाचक प्र निाचक सािनाभमक प्रेरणा क
समहिाचक संबंधिाचक - सहायक
सामानय
(4) संतध ेद
ितमान काल अपण
पण
( )
स्िर संभध यंजन संभध भिसग संभध
सामानय
भ या के काल (5) वा्य के ेद
भतकाल अपण
पण रचना की तष्ट से अर्ण की तष्ट से
१. साधारण १. भिधाना क
भभि य काल सामानय २. भनषेधा क
अपण २. भम ३. प्र ना क
३. संयु्त 4. ज्ा क
(६) मुहावरे पण 5. भिस्मया क
. संदेशसचक
(७) वा्य शु धीकरर
(8) सहायक त या पहचानना ( ) प्रेररार्णक त या
(१ ) कारक-कारक तचह्न (११) तवरामतचह्न
99
पयोतिि िेिन (रचना तव ाग)
प िेिन
अपने भिचार , भाि को श द के िारा भल त प में अपेभ त य तक पहँुचा देने िाला साधन है पत हम सभी
पतले न से प रभचत हैं ही । ज-कल हम नई तकनीक को अपना रहे हैं । संगणक, मण िभन, अंतरजाल, ई-मेल,
िीभ यो क भलंग जैसी तकनीक को अपने दैभनक जीिन से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं । दर िभन, मण िभन के भि कार के
बाद पत भल ने की ि यकता कम महसस होने लगी है भफर भी अपने र तेदार, ्मीय य , भमत/सहेली तक अपनी
भािना ँ प्रभािी ंग से पहुंचाने के भल पत क सश मा यम है । पतले न की कला को ्मसात करने के भल अ यास की
ि यकता होती है । अपना कहना (माँग/भशकायत/अनुमभत/भिनती/ िेदन) उभचत त ा कम-से-कम श द में संबंभधत
य तक पहँुचाना, अनु प भाषा का प्रयोग करना क कौशल है । अब तक हम भजस प धभत से पतले न करते हैं, उसमें
नई तकनीक के अनुसार अपेभ त प रितन करना ि यक हो गया है । ।
पतले न में भी धुभनक तंतज्ान/तकनीक का उपयोग करना समय की माँग है । ने िाले समय में पको ई-मेल भेजने
के तरीके से भी अिगत होना है । अत इस िष से ई-मेल के प्रा प के अनु प पतले न की प धभत अपनाना अपेभ त है ।
प िेिन के मु य दो प्रकार ह, पचा रक र अन पचा रक । (पष् १७, ७ )
पचा रक प अन पचा रक प
प्रभत भल ने के बाद पत प्राप्तकता का पद र पता भल ना संबोधन त ा अभभिादन र त के अनुसार दर के सा
ि यक है । पत के भिषय त ा संदभ का उ ले करना करना चाभह । प्रारंभ में भजसको पत भल रहे हैं उसका
ि यक है । इसमें महोदय/महोदया श द दिारा अादर कुशल ेम पछना चाभह । ले न स्नेह/स मान सभहत
प्रकट भकया जाता है । भन चत त ा सही श द में शय प्रभािी श द र भिषय भििेचन के सा होना चाभह ।
की प्रस्तुभत करना अपेभ त है । पत का समापन करते समय र ते के अनुसार भिषय भििेचन में प रितन अपेभ त है । इस
बायीं र पत भेजने िाले का नाम, पता भल ना चाभह । पत में भिषय उ े ि यक नहीं है । पत का समापन
ई-मेल में ई ी देना ि यक है । करते समय बायीं र पत भेजने िाले के हस्ता र, नाम त ा
पता भल ना है ।
तट परी पतले न में अब तक भलफाफे पर पत भेजने िाले (प्रेषक) का पता भल ने की प्र ा है । ई-मेल में भलफाफा नहीं होता
है । अब पत में ही पता भल ना अपेभ त है ।
प का प्रा प
( पचा रक प )
तदनांक ः
प्रति,
तवषय ः
संद ्ण ः
महोदय,
तवषय तववेचन
वदीय वदीया,
हस्िा र ः
नाम ः
पिा ः
ई-मेि आई ी ः
100
ग य आकिन (प्रशन तनतम्णति)
भाषा सी कर प्र न की भनभमभत करना क मह िपण भाषाई कौशल है । पा य म में भाषा कौशल को प्राप्त करने के भल
प्र नभनभमभत टक का समािेश भकया गया है । भद ग प र छेद (गदयांश) को प कर उसी के धार पर पाँच प्र न की
भनभमभत करनी है । प्र न के उ्तर क िा्य में ह , से ही प्र न बना जा ँ ।
प्रशन से हों ः तैयार प्र न सा क िं प्र न के प्रा प मंे ह । प्र न के उ्तर भद ग ग यांश में ह । रभचत प्र न के
अंत में प्र नभचहन लगाना ि यक है । प्र न रचना का कौशल प्राप्त करने के भल अभधकाभधक अ यास की ि यकता
है । प्र न का उ्तर नहीं भल ना है । प्र न रचना परे ग यांश पर होनी ि यक है ।
* प्रशन तनतम्णति के तिए आवशयक प्रशनवाचक शब्द तनम्नानुसार ह ः
भकतना
कौन भकसका
कहाँ कसे
्या ्य
व िांि िेिन
ि्तांत का अ है- टी ई टना का भििरण/रपट/अहिाल ले न । यह रचना की क भिधा है । इसे भिषय के अनुसार
भल ना पड़ता है। ि्तांत ले न क कला है, भजसमें भाषा का कुशलतापिक प्रयोग करना होता है । यह भकसी टना, समारोह का
भिस्तत िणन है जो भकसी को जानकारी देने हेतु भल ा होता है । इसे रपोताज, इभति्त, अहिाल भद नाम से भी जाना जाता है ।
व िांि िेिन के तिए धयान रिने यो य बाि ः ि्तांत में भटत टना का ही िणन करना है । टना, काल, स् ल का
उ े अपेभ त होता है । सा -ही-सा टना जैसी भटत ई हो उसी म से प्रभािी र प्रिाही भाषा में िभणत हो । ि्तांत
ले न लगभग अस्सी श द में हो । समारोह में अ य /उ ाटक/ या याता/ि ा भद के जो मौभलक भिचार/संदेश य
हैं उनका सं ेप में उ ले हो भाषण में कहे ग िा्य को दहरा अितरण ........... भचहन लगाकर भल ना चाभह ।
शयपण, उभचत त ा ि यक बात को ही ि्तांत में शाभमल करें । ि्तांत का समापन उभचत प धभत से हो ।
व िांि िेिन के तवषय भश क भदिस, भहंदी भदिस, िाचन प्रेरणा भदिस, शहीद भदिस, रा ीय भिज्ान भदिस, िै िक मभहला
भदिस, बाभलका भदिस, बाल भदिस, भद यांग भदिस, ीड़ा महो्सि, िाभषक पुरस्कार भितरण, िन महो्सि भद ।
िसे ः १ नीचे तदए गए तवषय पर व िांि िेिन कीतिए ः
मु य काय म
२ अपने प रवेश म मनाए गए ‘अंिरराष्टीय तद यांग तदवस’ का व िांि िग ग अस्सी शब्दों म तिखिए ।
(व िांि म स्रान, समय, टना का िेि आवशयक ह ।)
101
कहानी िेिन
कहानी सुनना-सुनाना बाल ि ध के भल रुभच र नंद का भिषय होता है । कहानी ले न भि याभ य की
क पनाश , निभनभमभत ि सजनशीलता को प्रेरणा देता है । इसके पि की क ा में पने कहानी ले न का अ यास भकया
है । कहानी अपनी क पना र सजनशीलता से रची जाती है । कहानी का मलक य (क ाबीज) उसका प्राण होता है । मल क य
के भिस्तार के भल भिषय को पात, टना, तकसंगत भिचार से प रपोभषत करना ले न कौशल है । इसी ले न कौशल का भिकास
करना कहानी ले न का उ दे य है ।
कहानी िेिन म तनम्न बािों की र तवशेष धयान द ः शीषक, कहानी के मु द का भिस्तार र कहानी से प्राप्त सी , प्रेरणा,
संदेश ये कहानी ले न के अंग हैं । कोई भी कहानी टना टने के बाद भल ी जाती है, अत कहानी भतकाल में भल ी जा ।
कहानी के संिाद प्रसंगानुकूल ितमान या भभि यकाल में हो सकते हैं । संिाद अितरण भचहन में भल ना अपेभ त है । कहानी
ले न की श दसीमा सौ श द तक हो । कहानी के रंभ में शीषक भल ना ि यक होता है । शीषक छोटा, कषक,
अ पण र सारगभभत होना चाभह । कहानी में कालानु म, टना म र प्रिाह होना ि यक है । प्र्येक मुददे या श द
का अपेभ त भिस्तार ि यक है । टना ँ धाराप्रिाह अ ात क दसरे से ं लाब ध होनी चाभह । कहानी के प्रसंगानुसार
िातािरण भनभमभत होनी चाभह । उदा. यभद जंगल में कहानी टती है तो जंगल का रोचक, कषक त ा सही िणन अपेभ त है ।
कहानी के मलक य/भिषय (क ाबीज) के अनुसार पात ि उनके संिाद, भाषा पातानुसार प्रसंगानुकूल होने चाभह । प्र्येक
प रसर/ ेत की भाषा िं भाषा शैली में भभ ता/भिभिधता होती है । इसकी जानकारी होनी चाभह । अनय भाषा के उदधरण,
सुिचन भद के प्रयोग से य ासंभि बचे । कहानी ले न में ि यक भिरामभचहन का प्रयोग करना न भलें । कहानी ले न
करते समय अनु छेद बना ँ । जहाँ भिचार, क टना समाप्त हो, िहाँ प र छेद समाप्त करें । कहानी का भिस्तार करने के भल
उभचत मुहािरे, कहाितें, सुिचन, पयायिाची श द भद का प्रयोग करें ।
कहानी िेिन- शब्द सीमा अस्सी से स िक
कहानी िेिन के प्रकार
तव ापन
ितमान युग स्पधा का है र भिज्ापन इस युग का मह िपण अंग है । उ्क भिज्ापन पर उ्पाद की भब ी का क ँ ड़ा
भनभर करता है । ज संगणक त ा सचना प्रौ योभगकी के युग में, अंतरजाल (इंटरनेट) िं मण िभन (मोबाइल) ांभत के काल में
भिज्ापन का ते भिस्तत होता जा रहा है । भिज्ापन के कारण भकसी िस्तु, समारोह, भशभिर भद के बारे में परी जानकारी सानी
से समाज तक पहँच ु जाती है । लोग के मन में रुभच भनमाण करना, यान कभषत करना भिज्ापन का मु य उददे य होता है ।
तव ापन िेिन करिे समय तनम्न मु ों की र धयान द ः कम-से-कम श द में अभधकाभधक शय य हो ।
भिज्ापन की र सभी का यान कभषत हो, अत श दरचना, भाषा शुदध हो । भजसका भिज्ापन करना है उसका नाम
स्प र कषक ंग से अंभकत हो । भिषय के अनु प रोचक शैली हो । लंका रक, का यमय, प्रभािी श द का उपयोग
करते भिज्ापन अभधक कषक बना ँ । ाहक की बदलती रुभच, पसंद, दत, फशन िं ि यकता का प्रभतभबंब
भिज्ापन में प रलभ त होना चाभह । भिज्ापन में उ्पाद की गुणि्ता मह िपण होती है, अत छट का उ े करना हर समय
ि यक नहीं है । भिज्ापन में संपक स् ल का पता, संपक ( दर िभन, मण िभन, ई-मेल ई ी) का स्प उ े करना
ि यक है । भिज्ापन केिल पेन से भल ें । पे नसल, स्केच पेन का उपयोग न करें । भचत, भ जाइन बनाने की ि यकता
नहीं है । भिज्ापन की श द मयादा पचास से सा श द तक अपेभ त है । भिज्ापन में ि यक सभी मु द का समािेश हो ।
तनम्नतिखिि िानकारी के आधार पर आकष्णक तव ापन ियार कीतिए ः
कालािभध
शैभ क यो यता के भल सुर ा र क की ि यकता यु सीमा
संपक
102
तनबंध िेिन
103
ावार्ण - पा ्यपुस्िक पष् २5 ः पहिी इकाई, पा ६ तग रधर नागर- संि मीराबाई
(१) मीराबाई अपने भग रधर गोपाल ी क ण की उपासना में त ीन होकर कहती हैं भक भजनह ने मा े पर मोरपं का मुकुट
धारण कर र ा है मेरे तो स्िामी िहीं हैं । लोग कहते हैं मैंने कुल की मयादा छोड़ दी है, लोक लाज छोड़ दी है र साधु-
संत के बीच गई हँ । मैं तो अपने स्िामी की भ में बकर नंद की अनुभभत कर रही हँ । भजस तरह दध को भबलोकर
म् न भनकाल भलया जाता है उसी तरह स्िामी की भ में मन को भबलोकर उनकी छभि का म् न मैंने पा भलया है । मैं
ताे अपने भग रधर की ही दासी हँ उनही के मोह में रंग गई हँ ।
(२) हे प्रभु, तु हारे भबना मेरा उ धार कहाँ तुम ही तो मेरे पालनहार हो, तुम ही तो मेरे र क हो । मैं तु हारी दासी हँ । मेरा
जनम-मरण तु हारे नाम के चार र रती की तरह मता रहता है । मैं तु हें बार-बार पुकारकर उ धार के भल भिनय
करती रहती हँ । भिकार से भरा यह संसार भिसागर में भ र गया है । मेरी नाि के पाल फट ग हैं । नाि बने में समय नहीं
लगेगा । हे प्रभु, नाि के पाल बाँध दो । यह तु हारी भिरभहणी भप्रय तु हारी ही राह दे रही है । यह दासी मीरा तु हारे ही
नाम की रट लगा है, तु हारी शरण में है । इसे बचाकर इसकी लाज र लो ।
(३) फागुन के चार भदन होली ेलकर मना । करताल र प ािज जैसे िादय के भबना केिल अनहद नाद की झनकार के
सा भबना भकसी राग-राभगनी के अपने रोम-रोम से े गीत गा । शील र संतोष की सीमा में भपचका रय से स्नेह
का रंग उड़ा । चार र उड़ते गुलाल से परा काश लाल हो गया है, रंग ही रंग बरस रहा है । लोक लाज को ्यागकर
ँ ट के पट ुल ग हैं । हे प्रभु भग रधर नागर पके चरण कमल पर पकी यह दासी मीरा बभलहारी जाती है ।
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