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शासन तनर्णय मांक अ यास-२११६ (प्र 4 १६) एस ी-4 तदनांक २5 4 २ १६ के अनुसार सम वय सतमति का ग न
तकया गया । तद २ १२ २ १७ को ई इस सतमति की ब क म यह पा ्यपुस्िक तनधा्ण रि करने हेिु मा यिा प्रदान की गई ।

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मेरा नाम ह&


महारा रा य पा यपु
् स्िक तनतम्णिी व अ यास म संशोधन मं , पुरे

पके स्माटफोन में दिारा, पुस्तक के प्र म प पर . . के


मा यम से भ भजटल पा यपुस्तक िं प्र्‍येक पा में अंतभनभहत . . मंे अ ययन-
अ यापन के भल पा से संबंभधत उपयु्‍त क- ा य साम ी उपल ध कराई जा गी ।
प्ररमावख ि २ १8 © महारा रा य पा ्यपुस्िक तनतम्णिी व अ यास म संशोधन मं , पुरे - 4११ 4
इस पुस्तक का सिाभधकार महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि अ यास म संशोधन मं के
अधीन सुरभ त है। इस पुस्तक का कोई भी भाग महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि अ यास म
संशोधन मं के संचालक की भल त अनुमभत के भबना प्रकाभशत नहीं भकया जा सकता ।

तहंदी ाषा अ यासग‍ट


तहंदी ाषा सतमति
सौ. िंदा कुलकण . शा िी. भम ा
.हेमचं िैदय - अ य ीमती मीना स. अ िाल
सौ. रंजना भपंग े
.छाया पाटील - सदस्य . िषा पुनिटकर ीमती भारती ीिास्ति
प्रा.मैनोददीन मु ा - सदस्य ीमती पभणमा पां ेय . शोभा बेल ो े
.दयानंद भतिारी - सदस्य ीमती शारदा भबयाणी . बं ोपंत पाटील
ी रामभहत यादि - सदस्य ीमती माया को ीकर ी रामदास काटे
ी संतोष धो‍ते - सदस्य . प्रमोद शु्‍ल ी सुधाकर गािं े
.सुभनल कुलकण - सदस्य ी धनयकुमार भबराजदार ीमती गीता जोशी
ीमती अचना भुस्कुटे
ीमती सीमा कांब े - सदस्य ी संजय भारदिाज
. रीता भसंह
.अलका पोतदार - सदस्य - सभचि . शुभदा मो े
. शैला ललिाणी
. र्‍ना चौधरी
प्रकाशक सौ. शभशकला सरगर
ी सुमंत द िी ी न. र. जेिे
ी तववेक िम गोसावी ीमती रजनी हैसा कर ीमती भनशा बाहेकर
भनयं‍तक
पा यपुस्तक भनभमती मं तनमंत ि सदस्य
प्रभादेिी, मुंबई-२5 ी ता.का. सयिंशी ीमती उमा ेरे
संयोिन
.अलका पोतदार, भिशेषाभधकारी-भहंदी भाषा, पा यपुस्तक मं , पुणे
सौ. सं या भिनय उपासनी, भिषय सहायक-भहंदी भाषा, पा यपुस्तक मं , पुणे

मुिप मयरा फ
तच ांकन ी राजेश लि ेकर

तनतम्णति अ रांकन भाषा भिभाग,पा यपुस्तक मं , पुणे


ी स तानंद फ े, मु य भनभमभत अभधकारी कागि जी स म, ीमिोि
ी राजें भचंदरकर, भनभमभत अभधकारी मु रादेश
ी राजें पां लोसकर,सहायक भनभमभत अभधकारी मु क
प्रस्िावना
तप्रय तवद्यातर्णयो,
आपकी सुकिा एवं अत रुतच को धयान म रििे ए नवतनतम्णि िोक ारिी दसव क ा की
पुस्िक को रंगीन, आकष्णक एवं वतवधयपूर्ण स्व प प्रदान तकया गया ह । रंग-तबरंगी, मनमोहक,
ानवध्णक एवं कृतिप्रधान यह पुस्िक आपके हारों मंे स पिे ए हम अ यतधक हष्ण हो रहा ह ।
हम ाि ह तक आपको गाना सुनना-प ना, गुनगुनाना तप्रय ह । करा-कहातनयों की दतनया म
तवचरर करना मनोरंिक िगिा ह । आपकी इन मनाेनुकि ावना को ख गि रििे ए इस
पुस्िक म कतविा, गीि, गिि, नई कतविा, पद, ब रंगी कहातनयाँ, तनबंध, हास्य- यं य, संस्मरर,
सा ा कार, एकांकी आतद सातहख यक तवधा का समावेश तकया गया ह । यही नह , तहंदी की
अ याधुतनक तवधा ‘हाइक’ को ी प्ररमिः इस पुस्िक म स्रान तदया गया ह । ये तवधाएँ केवि
मनोरंिक ही नह अतपिु ानाि्णन, ाषाई क शिों- मिा के तवकास के सार-सार च र
तनमा्णर, रा ीय ावना को स करने िरा स म बनाने के तिए ी आवशयक प से दी गई ह । इन
रचना के चयन का आधार आयु, रुतच, मनोतव ान, सामातिक स्िर आतद को बनाया गया ह ।
बदििी दतनया की नई सोच, व ातनक ख िरा अ यास को सहि एवं सरि बनाने के तिए
इ हंे संिाि, प्रवाह िातिका, तवशिेषर आतद तवतवध कृतियों, पयोतिि िेिन, ाषातबंद आतद के
माधयम से पा यपु ् स्िक म समातहि तकया गया ह । आपकी सि्णना र पहि को धयान म रििे ए
मिाधा रि वरीय, सं ाषरीय, प नीय, िेिनीय द्वारा अधययन-अधयापन को अतधक यापक
र रोचक बनाया गया ह । आपके ान म अत वद्तध के तिए ‘ प’ के माधयम से ‘्‍यू आर को ,’
म अति र्‍ि क- ा य साम ी पिब्ध कराई िाएगी । अधययन अनु व हेिु इसका तनखशचि ही
पयोग हो सकेगा ।
माग्णदश्णक के तबना ि य की प्राख नह हो सकिी । अिः आवशयक द्देशयों की पूति्ण हेिु
अत ावकों, तश कों का सहयोग िरा माग्णदश्णन आपके तव याि्णन को सुकर एवं स ि बनाने म
सहायक तस ध होगा । तवशवास ह तक आप सब पा यपु ् स्िक का कशििापूव्णक पयोग करिे ए
तहंदी तवषय के प्रति तवशेष अत रुतच, आ मीयिा एवं साह प्रदतश्णि करगे ।
हातद्णक शु कामनाएँ

( सुतनि मगर)
संचािक
महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि
अ यास म संशोधन मं , पुणे- 4
ाषा तवषयक मिा
यह अपे ा ह तक दसव क ा के अंि िक तवद्यातर्णयों म ाषा संबंधी तनम्नतिखिि मिाएँ तवकतसि हों ।

अ मिा मिा तवस्िार


१ वर १. गदय-पदय की रसानुभभत िं कलन करते सुनना/सुनाना ।
२. भिभिध मा यम के काय म का कलन करते सुनना त ा भि लेषण करना ।
३. प्राप्त िै िक जानकारी सुनकर तकसभहत सुनाना ।
२ ाषर १. भिभिध काय म में सहभागी होकर संबंभधत भिषय पर अपने भिचार प्रकट करना ।
-सं ाषर २. भिभभ भिषय पर ्‍मभि िासपिक, भनभ कता के सा मंत य प्रकट करना ।
३. अंतररा टीय भिषय पर भिचार-भिमश, चचा करना ।
4. दैभनक यिहार में शुदध र मानक िभनय के सा स्िमत य करना ।
वाचन १. रोह-अिरोहयु्‍त भिरामभचहन के सही प्रयोग के सा प्रभािो्‍पादक प्रकट िाचन करना ।
२. गदय-पदय साभह ्‍यक भिधा का भि लेषण करते अ पण िाचन करना ।
३. भहंदीतर रचनाकार की भहंदी रचना का भाि िं अ पण िाचन करना ।
4. देश-भिदेश के अनभदत लोकसाभह्‍य के संदभ में तुलना्‍मक िाचन करना ।
5. कलन सभहत गभत के सा मौन िाचन करना । अनुिाचन, मु रिाचन, मौन िाचन का अ यास ।
4. िेिन १. स्ियंप्रेरणा से भिरामभचहन सभहत शुदध ले न करना । स्ियंप्रेरणा से भिभिध प्रकार का
सु ौल, सुपा य, शुदध ले न करना ।
२. अनुले न सुिा य ले न, सुले न, शुदध ले न, स्ियंस्फूत ले न का मश अ यास करना ।
३. स्ियंस्फूत भाि से परे ा िं श द संकेत के धार पर कहानी, भनबंंध, प‍त, भिज्ापन
भद का स्ितं‍त ले न करना ।
4. अपभ त गदयांश , पदयांश पर धा रत प्र न भनभमभत करना ।
5. ाषा छ ी से दसिीं क ा के भिदयाभ य के भल भाषा अ ययन के मु य टक नीचे भद ग हैं
अधययन प्र्‍येक क ा के पा यांश पर धा रत चुने टक को प्रसंगानुसार ेणीब प में समाभि
( याकरर) भकया है । टक का चयन करते समय भिदयाभ य की युसीमा, रुभच र पुनराितन का अ यास
भद मु को यान में र ा गया है । प्र्‍येक क ा के भल समाभि भक ग टक की सची
संबंभधत क ा की पा यपुस्तक में समाभि की गई है । अपे ा है भक भिदयाभ य में दसिीं क ा के
अंत तक सभी टक की सिसामानय समझ भनमाण होगी ।
समाना , भिरु ा श द, भलंग, िचन, श दयु म, उपसग, प्र्‍यय, भहंदी-मरा ी समो ा रत
भभ ा क श द, संज्ा भेद, सिनाम भेद, भिशेषण भेद, भ या भेद, अ यय भेद, काल भेद, कारक,
कारक भचहन, उ े य-भिधेय र िा्‍य प रितन, भिराम भचहन, मुहािरे, कहाितें, िण भि छेद,
िणमेल, संभध भेद, श द, िा्‍य शुदधीकरण, रचना के अनुसार त ा अ के अनुसार िा्‍य के भेद,
कदंत, तदभधत, श द समह के भल क श द ।
६ अधययन १. सुिचन, उदधरण, सुभाभषत, मुहािरे, कहाितें अाभद का संकलन करते प्रयोग ।
क शि २. भिभभ ोत से जानकारी का संकलन, भट पणी तैयार करना ।
३. कभत, ले , भच‍त का स्प ीकरण करने हेतु मुदद का ले न, प्र न भनभमभत करना ।
4. भिभभ भिषय पर स्फूतभाि से भल त-मौ क अभभ यभ्‍त ।
तश कों के तिए माग्णदश्णक बाि
अधययन अनु व देने से पहिे मिा तवधान, प्रस्िावना, प रतश , आवशयक रचनाएँ एवं सम प से
पा ्यपुस्िक का अधययन आवशयक ह । तकसी ी गद्य-पद्य के प्रारं के सार ही कतव िेिक प रचय, नकी
प्रमुि कृतियों र गद्य पद्य के संद ्ण म तवद्यातर्णयों से चचा्ण करना आवशयक ह । प्र येक पा की प्रस्िुति के
परांि सके आशय ाव के ीकरर हेिु प्र येक पा म ‘शब्द संसार’, तवतवध ‘कृतियाँ’, ‘ पयोतिि िेिन’
अत यत्‍ि, ‘ ाषा तबंद’, ‘ वरीय’, ‘सं ाषरीय’, ‘प नीय’, ‘िेिनीय’ आतद कृतियाँ ी दी गई ह । इनका
सिि अ यास कराएँ ।
सूचनानुसार कृतियाें म संिाि, कृति पूर्ण करना, ाव अर्ण क ीय ाव िेिन, पद्य तवशिेषर, कारर
िेिन, प्रवाह िातिका, तचि ‍टना म िगाना, सूची ियार करना, पसग्ण प्र यय, समो ा रि-त ार शब्दों
के अर्ण तििना आतद तवतवध कृतियाँ दी गई ह । ये स ी कृतियाँ संबंतधि पा पर ही आधा रि ह । इनका सिि
अ यास करवाने का िरदातय व आपके ही सबि कधों पर ह ।
पा ों म ‘ वरीय’, ‘सं ाषरीय’, ‘प नीय’, ‘िेिनीय’ के अंिग्णि दी गई अधययन साम ी ी मिा तवधान
पर ही आधा रि ह । ये स ी कृतियाँ पा के आशय को आधार बनाकर तवद्यातर्णयों को पा र पुस्िक के सार
बाहरी दतनया म तवचरर करने का अवसर प्रदान करिी ह । अिः तश क अत ावक अपने तनरी र म इन कृतियों
का अ यास अवशय कराएँ । परी ा म इनपर प्रशन पू ना आवशयक नह ह । तवद्यातर्णयों के क पना प वन,
म तिक सिन एवं स्वयंस् ि्ण िेिन हेिु ‘ पयोतिि िेिन’ तदया गया ह । इसके अंिग्णि प्रसंग तवषय तदए गए
ह । इनके द्वारा तवद्यातर्णयों को रचना मक तवकास का अवसर प्रदान करना आवशयक ह ।
तवद्यातर्णयों की ाव ूतम को धयान म रिकर पुस्िक म मधयकािीन कतवयों के पद, दोहे, च पाई, महाका य
का अंश सार ही कतविा, नई कतविा, गीि, गिि, ब तवध कहातनयाँ, हास्य- यं य, तनबंध, संस्मरर, सा ा कार,
एकांकी, या ावर्णन आतद सातहख यक तवधा का तवचारपूव्णक समावेश तकया गया ह । इिना ही नह अ याधुतनक
तवधा ‘हाइक’ काे ी प्ररमिः पुस्िक म स्रान तदया गया ह । इसके सार-सार याकरर एवं रचना तव ाग िरा
मधयकािीन का य के ावार्ण पा ्यपुस्िक के अंि म तदए गए ह, तिससे अधययन-अधयापन म सरििा होगी ।
पा ों म तदए गए ‘ ाषा तबंद’ याकरर से संबंतधि ह । यहाँ पा , पा यपु
् स्िक एवं पा ्यपुस्िकेिर ी प्रशन
पू े गए ह । याकरर पारंप रक प से न प ाकर कृतियों र दाहररों द्वारा याकरतरक संक पना िक
तवद्यातर्णयों को प ँचाया िाए । ‘प नार्ण’ साम ी कह न कह पा को ही पोतषि करिी ह । यह तवद्यातर्णयों की
रुतच एवं नम प न संस्कृति को ब ावा देिी ह । अिः इसका वाचन अवशय करवाएँ । परो स ी अ यास
करवािे समय ‘प रतश ’ म तदए गए स ी तवषयों को धयान म रिना अपेत ि ह । पा के अंि म तदए गए संद से
तवद्यातर्णयों काे स्वयं अधययन हेिु प्रे रि कर ।
आवशयकिानुसार पा ्येिर कृतियों, ाषाई िेिों, संद ्ण-प्रसंगों का ी समावेश अपेत ि ह । आप सब
पा ्यपुस्िक के माधयम से नतिक मू यों, िीवन क शिों, क ीय ि वों, संवधातनक मू यों के तवकास के अवसर
तवद्यातर्णयों को अवशय प्रदान कर । पा ्यपुस्िक म अंितन्णतहि प्र येक संद ्ण का सिि मू यमापन अपेत ि ह ।
आशा ही नह पूर्ण तवशवास ह तक आप स ी तश क इस पुस्िक का सहष्ण स्वागि करगे ।
* अनु मतरका *
पहिी इकाई
पा का नाम तवधा रचनाकार पष्
१. भारत मभहमा कभिता जयशंकर प्रसाद १-२
२. ल मी संिादा्‍मक कहानी गुरुबचन भसंह ३-
३. िाह रे हमदद हास्य- यं य भनबंध न याम अ िाल १ -१4
4. मन (परक प न) हाइकु भिकास प रहार १5-१
5. गोिा जैसा मैंने दे ा या‍ता िणन भिनय शमा १8-२३
. भग रधर नागर पद मीराबाई २4-२
. ुला काश (परक प न) ायरी अंश कुिर नारायण २ -३२
8. गजल गजल माभणक िमा ३३-३4
. री की ह ी कांकी जगदीशचं मा ुर ३5-4१
१ . ेस (परक प न) ंचभलक कहानी फणी िरना रेणु 4२-48
११. कषक का गान गीत भदनेश भारदिाज 4 -5

दूसरी इकाई
पा का नाम तवधा रचनाकार पष्
१. बरषभहं जलद महाका य अंश गोस्िामी तुलसीदास 5१-5३
२. दो ल ुक ा ँ (परक प न) ल ुक ा नरें छाबड़ा 54-5
३. म साधना िैचा रक भनबंध ीक णदास जाज 58- 4
4. छापा हास्य- यं य कभिता मप्रकाश ‘ भद्‍य’ 5-
5. ईमानदारी की प्रभतमभत संस्मरण सुनील शास्‍ती 8- ३
. हम इस धरती की संतभत हैं (परक प न) क िाली उमाकांत मालिीय 4- 5
. मभहला म प‍त काका कालेलकर -
8. अपनी गंध नहीं बेचँगा गीत बालकभि बैरागी 8 -8१
. जब तक भजंदा र ँ, भल ता र ँ सा ा्‍कार भि िना प्रसाद भतिारी 8२-88
१ . ब ी काकी (परक प न) िणना्‍मक कहानी प्रेमचंद 8 -
११. समता की र नई कभिता मुकुटधर पां ेय - 8
याकरण िं रचना भिभाग त ा भािा -१ 4
पहिी इकाई
१ ारि मतहमा
- जयशंकर प्रसाद

प रचय
भहमालय के ँगन मंे उसे, भकरण का दे उपहार
उषा ने हँस अभभनंदन भकया, र पहनाया हीरक हार । ि म ः १8 , िाराणसी (उ.प्र.)
म यु ः १ ३ , िाराणसी (उ.प्र.)
जगे हम, लगे जगाने भि ि, लोक में फला भफर लोक प रचय ः जयशंकर प्रसाद जी
छायािादी युग के चार स्तंभ में से क
योमतम पुंज तब न ट, अ ल संसभत हो उ ी अशोक । हैं । प ब मु ी प्रभतभा के धनी हैं ।
कभि, नाटककार, क ाकार,
भिमल िाणी ने िीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत उपनयासकार त ा भनबंधकार के प में
सप्तस्िर सप्तभसंधु में उ े, भछड़ा तब मधुर साम संगीत । ...... प प्रभसदध हैं । पकी रचना में
सि‍त भारत के गौरिशाली अतीत,
भतहाभसक भिरासत के दशन होते हैं ।
भिजय केिल लोहे की नहीं, धम की रही धरा पर धम प्रमुि कृतियाँ ः झरना , ँस ,
भभ ु होकर रहते स ाट, दया भद लाते र- र म । लहर (का य), कामायनी
(महाका य), स्कदगुप्त , चं गुप्त ,
गोरी को भदया दया का दान, चीन को भमली धम की भ ट ुिस्िाभमनी ( भतहाभसक नाटक),
प्रभत िभन , काशदीप , इं जाल
भमला ा स्िण भभम को र्‍न, शील की भसंहल को भी सभ ट । (कहानी सं ह), ककाल , भततली ,
इरािती (उपनयास) भद ।
भकसी का हमने छीना नहीं, प्रकभत का रहा पालना यहीं
हमारी जनमभभम ी यहीं, कहीं से हम े नहीं ।......
पद्य संबंधी
च रत े पत, भुजा में शभ्‍त, न ता रही सदा संप
दय के गौरि में ा गि, भकसी को दे न सके भिप । प्रस्तुत कभिता में कभि ने अपने
देश के गौरिशाली अतीत का सजीि
िणन भकया है । कभि का कहना है भक
हमारे संचय में ा दान, अभतभ े सदा हमारे देि हमें अपने देश पर गि करते उसके
िचन में स्‍य, दय में तेज, प्रभतज्ा में रहती ी टेि । प्रभत अपना सिस्ि भनछािर करने के
भल हमेशा त्‍पर रहना चाभह ।
िही है र्‍त, िही है देश, िही साहस है, िैसा ज्ान
िही है शांभत, िही है शभ्‍त, िही हम भद य य संतान ।

भज ँ तो सदा इसी के भल , यही अभभमान रहे यह हष


भनछािर कर दें हम सिस्ि, हमारा यारा भारतिष ।

1
शब्द संसार
पहार पुं. सं.(सं.) = भेंट तवप भि.(सं.) = भनधन
हीरक हार पुं. सं.(सं.) = हीर का हार ‍टेव स्‍ती.सं.(भहं.) = दत
आिोक पुं.सं.(सं.) = प्रकाश
योम पुं. सं.(सं.)= काश मुहावरा
िम पुं.सं.(सं.) = अँधेरा तन ावर करना = अपण करना, समभपत करना
संसति स्‍ती.सं.(सं.) = संसार

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) तनम्नतिखिि पंत्‍ियांे का िा पय्ण तिखिए ः
१. कहीं से हम े नहीं ....................................
२. िही हम भद य य संतान ....................................
(२) तचि िोत याँ तमिाइए ः

संचय
स्‍य १ ------------ ------------
अभतभ
र्‍न २ ------------ ------------
िचन
दान ३ ------------ ------------
दय
तेज 4 ------------ ------------
देि
( ) तिखिए ः
१. कभिता मंे प्रयु्‍त दो धातु के नाम २. भारतीय संस्कभत की दो भिशेषता ँ

( ) प्रस्िुि कतविा की अपनी पसंदीदा तक ह दो पंत्‍ियों का ावार्ण तिखिए ।

(5) तनम्नतिखिि मुद्दों के आधार पर पद्य तवशिेषर कीतिए ः


१. रचनाकार का नाम
२. रचना का प्रकार
३. पसंदीदा पंभ्‍त
4. पसंदीदा होने का कारण
5. रचना से प्राप्त संदेश

2
२ ि मी
-गुरुबचन ससंह

उस भदन लड़के ने तैश में कर ल मी की पी पर चार ं े बरसा


भद े । िह बड़ी भयभीत र बराई ी । जो भी उसके पास जाता, भसर
भहला उसे मारने की कोभशश करती या भफर उछलती-कूदती, गले की
रस्सी तोड़कर ँटे से जाद होने का प्रयास करती । प रचय
करामत अली इधर दो-चार भदन से अस्िस् ा । लेभकन जब उसने
यह सुना भक रहमान ने गाय की पी पर ं े बरसा हैं तो उससे रहा नहीं सुप्रभसदध कहानीकार गुरुबचन
भसंह जी ने साभह्‍य के अनेक े‍त में
गया । िह भकसी प्रकार चारपाई से उ कर धीरे-धीरे चलकर ब ान में मु्‍त ले न भकया है । पकी भाषा
या । गे ब कर उसके मा े पर हा फेरा, पुचकारा र हौले-से सरल र प्रिाही है । इसी िजह से
उसकी पी पर हा फेरा । ल मी के शरीर में क भसहरन-सी दौड़ गई । पका साभह्‍य रोचक बन पड़ा है ।
ह कब त ने भकतनी बेदद से पीटा है ।
उसकी बीबी रमजानी बोली- लो, चोट की जगह पर यह रोगन लगा
दो । बेचारी को राम भमलेगा ।
करामत अली गुस्से में बोला- ्‍या अ छा हो अगर इसी ला ी से
तु हारे रहमान के दोन हा तोड़ भद जा ँ । कहीं इस तरह पीटा जाता है
रमजानी बाेली- ल मी ने ज भी दध नहीं भदया ।
तो उसकी सजा इसे लाभ य से दी गई
गद्य संबंधी
रहमान से गलती हो गई, इसे िह भी कबलता है ।
प्रस्तुत संिादा्‍मक कहानी में
रमजानी कुछ ण ड़ी रही भफर िहाँ से हटती ई बोली- दे ो, कहानीकार ने भद ग िचन के प्रभत
अपना याल र ो । पाँि इधर-उधर गया तो कमर भसंकिाते रहोगे । भज मेदारी र प्राभणमा‍त के प्रभत दया
करामत अली ने भफर यार से ल मी की पी सहलाई । मुँह-ही-मुँह की भािना य करते पशुप्रेम
में बड़बड़ाया- माफ कर ल मी, रहमान बड़ा म है । उ के सा त भी दशाया है । ले क का कहना है भक
अनुपयोगी हो जाने पर भी प्राभणय का
बु ा गई है । ेयरीफाम के ्‍टर ने तो भपछली बार ही कह भदया ा, यह पालन-पोषण करना ही मानिता है ।
तेरा री बरस है ।
ल मी शांत ड़ी अपने ज म पर तेल लगिाती रही । िह करामत
अली के भम‍त ज्ान भसंह की भनशानी ी । ज्ान भसंह र करामत अली
क-दसरे के पड़ोसी तो े ही, िे कार ाने में भी क ही भिभाग में काम
करते े । प्राय क सा यटी पर जाते र क सा ही र लौटते ।
ज्ान भसंह को मिेशी पालने का ब त शौक ा । प्राय उसके र के
दरिाजे पर भैंस या गाय बँधी रहती । तीन बरस पहले उसने क जस गाय
रीदी ी । उसका नाम उसने ल मी र ा ा । अधेड़ उ की ल मी इतना
दध दे देती ी भक उससे र की ज रत परी हो जाने के बाद बाकी दध

3
गली के कुछ र में चला जाता । दध बेचना ज्ान भसंह का धंधा नहीं ा । प र ेद पर आधा रि कृतियाँ -
केिल गाय को चारा र दरा भद देने के भल कुछ पैसे जुटा लेता ा । प र छेद
नौकरी से अिकाश के बाद ज्ान भसंह को कपनी का िह मकान ाली – ज्ान भसंह को मिेशी ---------
करना ा । समस्या ी तो ल मी की । िह ल मी को भकसी भी हालत में स्िीकार करोगे -----
बेच नहीं सकता ा । उसे अपने सा ले जाना भी संभि नहीं ा । जब सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः
अिकाश में दस-पं ह भदन ही रह ग तो करामत अली से कहा- भमयाँ (१) संिाि पूर्ण कीतिए ः
अगर ल मी को तु हें स प दं तो ्‍या तुम उसे स्िीकार करोगे ...
भमयाँ करामत अली ने कहा ा- नेकी र पछ-पछ । भला इससे
बड़ी ुशनसीबी मेरे भल र ्‍या हो सकती है प र छेद से
करामत अली भपछले क िष से उस गाय की सेिा करता चला प्राप्त ज्ान भसंह
रहा ा । गाय की दे भाल में कोई कसर नहीं छोड़ र ी ी । संबंधी जानकारी
करामत अली को ल मी की पी पर रोगन लगाने के बाद भी इ्‍मीनान
नहीं । िह उसके भसर पर हा फेरता रहा । ल मी भस् र ड़ी उसकी
(२) िर तिखिए ः
र भजज्ासापण भ ट से दे ती रही । करामत अली को लगा जैसे ल मी
कहना चाहती हो- यभद मैं तु हारे काम की नहीं ँ तो मुझे जाद कर दो । १. ज्ान भसंह की समस्या ँ
मैं यह र छोड़कर कहीं चली जा गी ।
ज्ान भसंह के दध
करामत अली यटी पर जाने की तैयारी में ा । तभी रमजानी बोली- २.
बेचने का उददे य
रहमान के अ बा, अगर ल मी दध नहीं देगी तो हम इसका ्‍या करेंगे
्‍या ँटे से बाँधकर हम इसे लाते-भपलाते रहेंगे ... ( ) च ि‍ट म दी सूचना के अनुसार
जानिर है । बँधा है तो इसे लाना-भपलाना तो पड़ेगा ही । कृतियाँ कीतिए ः
जानते हो, इस महँगाई के जमाने में भसफ सादा चारा देने में ही
पयायिाची
तीन-सा े तीन सौ महीने का चा है ।
सो तो है । कहते करामत अली गे कुछ नहीं बोला । र से िचन भलंग
सेिक
भनकलकर कार ाने की तरफ हो भलया । रास्ते में िह रमजानी की बात पर प रितन प रितन
भिचार कर रहा ा, ल मी अगर दध नहीं देगी तो इसका ्‍या करेंगे । यह
भिलोम
याल तो उसके मन में या ही नहीं ा भक क समय सा भी सकता
है भक गाय को र के सामने ँटे सें बाँधकर मु त में लाना भी पड़ सकता (4) पाििू िानवरों के सार तकए िाने
है । वािे स हाद्णपूर्ण यवहार के बारे म
उसके सा ी नईम ने उसे कुछ परेशान दे ा तो पछा- करामत भमयाँ, अपने तवचार तिखिए ।
्‍या बात है, बड़े परेशान नजर ते हो ै रयत तो है
सी कोई भिशेष बात नहीं है ।
कुछ तो होगा ।
्‍या बता । गाय ने दध देना बंद कर भदया है, ब ी हो गई है ।
बै ाकर लाना पड़ेगा र इस जमाने में गाय-भैंस पालने का चा...।
इसमें परेशान होने की ्‍या ज रत है गाय बेच दो ।

4
करामत अली ने हौका भरते कहा, हाँ, परेशानी से छटकारा
पाया जा सकता है । ब त सान तरीका है । ल मी को बेच भदया जा ।
िह नईम के पास से हटकर अपने काम में जुट गया ।
करामत अली रात का गया सिेरे कार ाने से र लौटा । रात की
यटी से र लौटने पर ही िह ल मी को दहता ा । र में ुसते ही उसने
रमजानी से पछा- ्‍या ल मी को अभी तक चारा नहीं भदया वरीय
रमजानी बोली- रहमान से कहा तो ा ।
तुम दाेन की मज होती तो गाय काे अब तक चारा भमल चुका
पयािरण च को बना
होता । अगर िह दध नहीं दे रही है तो ्‍या उसे भ ा र ोगे कहते र ने में प्राभणय की भभमका
करामत कटा पु ल, ली र दरा भद ले जाकर ल मी के भल के बारे मंे य टयब/रेभ यो/
सानी तैयार करने लगा । दरदशन से जानकारी सुभन ।
ल मी उतािली-सी तैयार हो रही सानी में मुँह मारने लगी ।
गाय को सानी देकर करामत अली उसकी पी दे ने लगा । रोगन ने
अ छा काम भकया ा । दाग कुछ ह के पड़ ग े ।
दस-पं ह भदन से य ही चल रहा ा । क भदन जब करामत अली
ने पु ल लाने के भल रमजानी से पैसे माँगे तो िह बोली, मैं कहाँ से पैसे
दँ पहले तो दध की भब ी के पैसे मेरे पास जमा रहते े । उनमें से दे देती
ी । अब कहाँ से दँ
लो, यह राशन के भल कुछ रुपये र े े । कहते रमजानी ने
संदकची मेें से बीस का क नोट भनकालकर उसे माते कहा, इससे
ल मी का राशन ले ।
ीक है । इससे ल मी के दो-चार भदन भनकल जा ँगे ।
र इस तरह कब तक चलेगा रमजानी द ी स्िर में बोली । प नीय
तुम इसे ुला छोड़कर, जमाकर तो दे ो ।
कहते हो तो सा करके दे लेंगे । भारत सरकार दिारा पशु
दसरे भदन रहमान सिेरे -नौ बजे के करीब ल मी को इलाके से संर ण पर चलाई जाने
बाहर जहाँ नाला बहता है, जहाँ झाड़-झं ाड़ र कहीं दब के कारण िाली योजना की
जमीन हरी नजर ती है, छोड़ या ताभक िह ास इ्‍याभद ाकर अपना जानकारी पभ र
कुछ पेट भर ले । लेभकन माँ-बेटे को यह दे कर चय भक ल मी ोषिा्‍य बनाकर प्रस्तुत
क- े ंटे बाद ही र के सामने ड़ी ी । उसके गले में रस्सी ी । क कीभज ।
यभ्‍त उसी रस्सी को हा में ामे कह रहा ा- यह गाय ्‍या प लोग
की है
रमजानी ने कहा, हाँ ।
यह हमारी गाय का सब चारा ा गई है । इसे प लोग बाँधकर
र ें नहीं तो काँजी हाउस में प ँचा देंगे ।
रमजानी चुप ड़ी गंतुक की बातें सुनती रही ।

5
दोपहर बाद जब करामत अली यटी से लौटा र नहा-धाेकर कुछ
ना ते के भल बै ा तो रमजानी उससे बोली- मेरी मानो तो इसे बेच दो ।
भफर बेचने की बात करती हो... कौन रीदेगा इस बुभ या को ।
रहमान कुछ कह तो रहा ा, उसे कुछ लोग रीद लेंगे । उसने
भकसी से कहा भी है । शाम को िह तुमसे भमलने भी गा ।
करामत अली सुनकर ामोश रह गया । उसे लग रहा ा, सब कुछ
उसकी इ छा के भिरुदध जा रहा है, शायद भजसपर उसका कोई िश नहीं ा ।
करामत अली यह अनुभि करते भक ल मी की भचंता अब भकसी
को नहीं है, ामोश रहा । उ ा र र में जो स ा चारा पड़ा ा, उसके
सामने ाल भदया ।
ल मी ने चारे को सँ ा र भफर उसकी तरफ भनराशापण ँ से
दे ने लगी । जैसे कहना चाहती हो, माभलक यह ्‍या ज ्‍या मेरे
सं ाषरीय
फाँकने को यह स ा चारा ही है । दरा- ली कुछ नहीं ।
करामत अली उसके पास से उ कर मँुह-हा धोने के भल गली के
नु्‍कड़ पर नल की र चला गया । भिलुप्त हो रहे जानिर पर सं ेप
सात- बजे के करीब रहमान क यभ्‍त को अपने सा लाया । में अपने भिचार य्‍त कीभज ।
करामत अली उसे पहचानता ा ।
इसके पहले भक उससे कुछ पचा रक बातें ह , करामत अली ने
पछा, ्‍या तुम गाय रीदने हो
उसने जिाब में कहा- हाँ
ब ी गाय है, दध- ध नहीं देती ।
तो ्‍या ...
तुम इसे लेकर ्‍या करोगे ...
मैं कहीं र बेच दंगा ।
यह तु हारा पुराना धंधा है । मैं जानता ँ । मुझे तु हें गाय नहीं
बेचनी । करामत भमयाँ ने उसे कोरा जिाब दे भदया ।
रमजानी करामत के चेहरे के भाि भाँपती ई बोली- ्‍या यह भी
कोई तरीका है, ने िाले को ड़े- ड़े द्‍कारकर भगा दो ।
तुम जानती हो िह कौन है... करामत अली ने कट स्िर में
कहा ।
िह ल मी को ले जाकर िहाँ बेच गा जहाँ यह टकड़े-टकड़े
होकर भबक जा गी । मेरे दोस्त ज्ान भसंह को इसका पता चल गया तो िह
मेरे बारे में ्‍या सोचेगा ।
उस भदन करामत अली भबना कुछ ा -भप रात को भबना भबस्तर की
चारपाई पर पड़ा रहा । नींद उसकी ँ से कोस दर ी ।

6
रात काफी भनकल चुकी ी । सिेरे देर तक िह लेटा ही रह गया । कुछ
देर बाद करामत अली ने चारपाई छोड़ी । मुँह-हा धो, र से बाहर भनकल
पड़ा । ल मी के गले से बँधी ई रस्सी ँटे से ोली र उसे गली से बाहर
ले जाने लगा । रमजानी, जो दरिाजे पर ड़ी यह सब दे रही ी, बोली-
इसे कहाँ ले चले
करामत अली ने कहा- जहाँ इसकी भकस्मत में भल ा है ।
िेिनीय
िह ल मी को सड़क पर ले या । ल मी भबना भकसी रुकािट या
जत के उसके पीछे-पीछे चली जा रही ी । िह उसकी रस्सी पकड़े सड़क
पर गे की र चलता चला गया । चलते-चलते कुछ ण रुककर िह पेटा ( ) संस् ा के
बोला- ल मी चल, अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है । तुझे बारे में जानकारी प्राप्त
ग शाला में भरती करा दंगा । िहाँ इ्‍मीनान से रहना । िहाँ त हमारे र की कीभज र इसके प्रमु
तुलना में मजे से रहेगी । भले ही मैं िहाँ न र ँ पर जो लोग भी ह गे, मेरे याल मुददे भिदयालय के भभभ्‍त
में तु हारे भल अ छे ही ह गे । मैं कभी-कभी तु हें दे या क ँगा । तब फलक पर भल ।
त मुझे पहचानेगी भी या नहीं, ुदा जाने, कहते करामत अली का
गला भर या । उसकी ँ में ँस उतर ।
चल, ल मी चल । ज दी-ज दी पैर ब ा र िह ुद भकसी
के-मांदे ब े बैल की तरह भारी कदम से गे ब ने लगा ।

शब्द संसार
बरान पुं.सं.(भहं.) = पालत गाय-बैल के रहने का स् ान काँिी हा स पंु.सं.(अं.) = सरकारी मिेशी ाना
मवेशी पुं. सं. (अ.) = कभषकाय में उपयु्‍त त ा (भजसमें लािा रस पशु
दधा पशु बंद करके र े जाते
दरा्ण पुं. सं. (भहं.दे.) = अनाज के अंश हैं । )
ह का पुं. सं. (भहं.) = दी भन िास
पुआि पुं. सं. (भहं.दे.) = धान के स े ं ल, भजनमें
मुहावरे
से दाने भनकाल भद ग ह मुँह मारना = ज दी-ज दी ाना
ििी स्‍ती. सं. (भहं.दे.) = तेल भनकल जाने के बाद गिा र आना = भाि भिहिल होना, िाज
भतलहन का बचा भर ना
भहस्सा जो मिेशी ाते हैं कोरा िबाब देना = साफ मना करना
िश म आना = िेश में ना

7
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) तचि ‍टना म िगाकर वा्‍य त र से तिखिए ः
१. उसके गले में रस्सी ी ।
२. रहमान बड़ा म है ।
३. िह ल मी को सड़क पर ले या ।
मार के कारण 4. उसने तु हें बड़ी बेदद से पीटा है ।
ल मी के यिहार में
या प रितन (4) गिि वा्‍य, सही करके तिखिए ः
१. करामत अली भपछले चार साल से गाय की सेिा
करता चला रहा ा ।
२. करामत अली को ल मी की पी पर रोगन लगाने के
( ) िर तिखिए ः बाद इ्‍मीनान ।

ज्ान भसंह का पशुप्रेम दशाने िाली बातें

(5) तनम्नतिखिि मुद्दों के आधार पर वर्णन कीतिए ः

१. नाम -
करामत अली २. उ -
की गाय ३. नस्ल -
4. भस् भत -

(६) कारर तिखिए ः


१. करामत अली ल मी के भल सानी तैयार करने लगा ।
२. रमजानी ने करामत अली को रोगन भदया ।
३. रहमान ने ल मी को इलाके से बाहर छाेड़ भदया ।
4. करामत अली ने ल मी को ग शाला में भरती भकया ।
(७) तहंदी-मरा ी म समो ा रि शब्दों के त अर्ण तिखिए ः
-------- िसेः --------
पी प‍त (भहंदी)
-------- त चारा
-------- ाद (मरा ी) --------
--------
ाना कल
-------- --------
अत यख ‘यतद आप करामि अिी की िगह पर होिे िो’ इस संद ्ण म अपने तवचार तिखिए ।

8
ाषा तबंद

(१) तनम्नतिखिि वा्‍यों म तचि तवरामतचह्नों का प्रयोग कर वा्‍य पुनः तिखिए ः


१. ह कब त ने भकतनी बेदद से पीटा है
२. मैंने कराहते पछा मैं कहाँ ँ
३. मँझली भाभी मुट ी भर बुँभदयाँ सप में फककर चली गई
4. बड़ी बेटी ने ससुराल से संिाद भेजा है उसकी ननद ी ई है मो ी की शीतलपाटी के भल
5. केिल टीका न ुनी र भबभछया र भल े
. हरो मैं माँ से जाकर कहती ँ इतनी बड़ी बात
. टाँग का टटना यानी सािजभनक अस्पताल में कुछ भदन रहना
8. ज दी-ज दी पैर ब ा
. ल मी चल अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है
१ . मानो उनकी क ँ पछ रही हो कहो कभिता कसी रही
(२) तनम्नतिखिि तवरामतचह्नों का पयोग करिे ए बारह-पं ह वा्‍यों का प र ेद तिखिए ः
तवरामतचह्न वा्‍य

-

;
,

Í Í Í

.......
( )

-/

पयोतिि िेिन तकसी पाििू प्रारी की आ मकरा तिखिए ।

9
वाह रे हमदद्ण
-घनशयाम अग्रवाल

उस भदन जब मैं पँजीिादी र समाजिादी अ यिस् ा पर भाषण


सुनकर रहा ा तो सामने से क कार रही ी । भाषण के प्रभाि से
मेरी साइभकल को अभधक जोश या या कार को गुस्सा अभधक या, प रचय
यह मैं भन चत प से नहीं कह सकता भकतु मेरी साइभकल र िह कार
जब करीब तो भिरोभधय की तरह क-दसरे को णा की नजर से ि म ः १ 4२, अकोला (महारा ट)
दे ते पस में जा भभड़े । मैंने ाम ाह पँजीिाद र समाजिाद के प रचय ः न याम अ िाल जी की
रुभच अ ययनकाल से ही ले न में
झगड़े में टाँग अड़ाई । फलस्ि प मेरी टाँग टट गई । द टना के बाद ज भिकभसत ई । अपने स-पास की
भी इनसाभनयत कायम है, यह भसदध करने के भल कुछ लोग मेरी तरफ प्र्‍येक भस् भत या टना में हास्य
दौड़े । ँ कर उसे धारदार यं य में ालना
पके ले न की भिशेषता है । प
ँ ुली तो मैंने अपने- पको क भबस्तर पर पाया । इद-भगद अ ल भारतीय मंच पर हास्य- यं य
कुछ प रभचत-अप रभचत चेहरे ड़े े । ँ ुलते ही उनके चेहर पर कभि के प में लोकभप्रय हैं ।
उ्‍सुकता की लहर दौड़ गई । मैंने कराहते पछा- मैं कहाँ हँ प्रमुि कृतियाँ ः हँसी र के ईने
प सािजभनक अस्पताल के प्राइिेट िा में हैं । पका (हास्य- यं य), जादी की दम,
ई म स री (हास्य कभिता सं ह)
्‍स ेंट हो गया ा । भसफ पैर का ्‍चर है । अब बराने की कोई अपने-अपने सपने (ल ुक ा सं ह)
बात नहीं । क चेहरा इतनी तेजी से जिाब देता है, लगता है मेरे होश भद ।
ने तक िह इसीभल रुका रहा । अब मैं अपनी टाँग की र दे ता ँ ।
मेरी क टाँग अपनी जगह पर सही-सलामत ी र दसरी टाँग रेत की
ैली के सहारे क स्टैं पर लटक रही ी । मेरे भदमाग में क नये मुहािरे
का जनम । टाँग का टटना यानी सािजभनक अस्पताल में कुछ भदन
गद्य संबंधी
रहना । सािजभनक अस्पताल का याल ते ही मैं काँप उ ा । अस्पताल
िैसे ही क तरनाक श द होता है, भफर यभद उसके सा सािजभनक श द
प्रस्तुत हास्य- यं य भनबंध में
भचपका हो तो समझो ्‍मा से परमा्‍मा के भमलन होने का समय ले क ने द टना के मा यम से भिनोद
गया । अब मुझे यँ लगा भक मेरी टाँग टटना मा‍त क टना है र को बड़े ही रोचक ंग से य भकया
सािजभनक अस्पताल मंे भरती होना द टना । है । हमदद भी कभी-कभी भकस तरह
टाँग से यादा भफ मुझे उन लोग की ई जो हमदद जताने मुझसे पीड़ादायी बन जाती है, यह ब त ही
सुंदर तरीके से दशाया है ।
भमलने ँगे । ये भमलने-जुलने िाले कई बार इतने अभधक ते हैं र
कभी-कभी इतना परेशान करते हैं भक मरीज का राम हराम हो जाता है,
भजसकी मरीज को ास ज रत होती है । जनरल िा का तो क भनयम
होता है भक प मरीज को क भन चत समय पर कर ही तकलीफ दे
सकते हैं भकतु प्राइिेट िा , यह तो क ुला भनमं‍तण है भक हे मेरे

10
प रभचतो, र तेदारो, भम‍तो , जब जी चाहे , चाहे भजतनी देर
रुको, समय का कोई बंधन नहीं । अपने सारे बदले लेने का यही ि है ।
बदले का बदला र हमदद की हमदद । भमलने िाल का याल ते
ही मुझे लगा मेरी दसरी टाँग भी टट गई ।
मुझसे भमलने के भल सबसे पहले िे लोग भजनकी टाँग या कुछ
र टटने पर मैं कभी उनसे भमलने गया ा, मानो िे इसी भदन का इंतजार
कर रहे े भक कब मेरी टाँग टटे र कब िे अपना हसान चुका ँ । इनकी
हमदद में यह बात ास भछपी रहती है भक दे बेटा, ि सब पर ता वरीय
है ।
दद के मारे क तो मरीज को िैसे ही नींद नहीं ती, यभद ोड़ी-ब त
सािजभनक अस्पताल में जाकर
भी जा तो भमलने िाले जगा देते हैं- ास कर िे लोग जो भसफ भकसी मरीज से उसके अनुभि
पचा रकता भनभाने ते हैं । इनहें मरीज से हमदद नहीं होती, ये भसफ सुभन र अपने श द में
सरत भद ाने ते हैं। से में क भदन मैंने तय भकया भक ज कोई भी , सुनाइ ।
मैं ँ नहीं ोलँगा । चुपचाप पड़ा रहँगा । भफस के बड़े बाब र
मुझे सोया जानकर िापस जाने के बजाय िे सोचने लगे भक यभद मैंने उनहें नहीं
दे ा तो कसे पता चलेगा भक िे भमलने े । अत उनह ने मुझे धीरे-धीरे
भहलाना शु भकया । भफर भी जब ँ ें नहीं ुलीं तो उनह ने मेरी टाँग के
टटे भहस्से को जाेर से दबाया । मैंने दद के मारे कुछ ची ते जब ँ
ोली तो िे मुस्कराते बोले- कभह , अब दद कसा है
मुह ेिाले अपनी फुरसत से ते हैं । उस भदन जब सोनाबाई अपने
चार ब के सा ई तो मुुझे लगा भक ज भफर कोई द टना होगी ।
ते ही उनह ने मेरी र इशारा करते ब से कहा- ये दे ो चाचा
जी उनका अंदाज कुछ सा ा जैसे भचभड़या र भद ाते ब से
कहा जाता है- ये दे ो बंदर । प नीय
ब े ल े ने लगे । क कुस पर च ा तो दसरा मेज पर । सोनाबाई की
छोटी लड़की दिा की शीशी लेकर क कली ांस करने लगी । अस्पताल में लगे सचना फलक/
रप-रप की िाज ने मेरा यान बँटाया । ्‍या दे ता हँ भक सोनाबाई का क भिज्ापन को पभ त ा क ा में
लड़का मेरी टाँग के सा लटक रही रेती की ल ै ी पर बा ्‍संग की प्रै ्‍टस चचा कीभज ।
कर रहा है । मैं इसके पहले भक उसे मना करता, सोनाबाई की लड़की ने दिा
की शीशी पटक दी । सोनाबाई ने क पल लड़की को रा, भफर हँसते
बोली- भैया, पेड़े ला , दिा भगरना शुभ होता है । दिा गई समझो
बीमारी गई । इसके दो टं बाद सोनाबाई गई, यह कहकर भक भफर
गी । मैं भीतर तक काँप गया ।
कुछ लोग तो पचा रकता भनभाने की हद कर देते हैं, भिशेष कर िे

11
र तेदार जो दसरे गाँि से भमलने ते हैं । से में क भदन क टै्‍सी कमरे
के सामने कर रुकी । उसमें से भनकलकर क दमी ते ही मेरी छाती
पर भसर र कर धा पड़ रोने लगा र कहने लगा- हाय, तु हें ्‍या हो
गया कारिाल का स्‍यानाश हो मैंने भदल में कहा भक मुझे जो
सो , पर त ्‍य रोता है, तुझे ्‍या िह ोड़ी देर मेरी छाती में
मुंह गड़ा रोता रहा । भफर रोना कुछ कम । उसने मेरी छाती से गरदन
हटाई र जब मुझसे ँ भमलाई, तो कदम चुप हो गया । भफर धीरे-से
हँसते बोला- माफ करना, मंै गलत कमरे में गया ा । जकल
लोग ीक से बताते भी ताे नहीं। गुप्ता जी का कमरा शायद बगल मंे है । िेिनीय
हें-हें-हें अ छा भाई, माफ करना । कहकर िह चला गया । अब िही
रोने की िाज मुझे पड़ोस के कमरे से सुनाई पड़ी । मुझे उस दमी से
अभधक गुस्सा अपनी प्‍नी पर या ्‍य भक इस प्रकार रोता दे प्‍नी ने र्‍त बैंक के काय त ा
उसे मेरा र तेदार या करीबी भम‍त समझकर टै्‍सीिाले को पैसे दे भद े । र्‍तदान काय म के बारे में
हमदद जताने िाल में िे लोग ज र ँगे, भजनकी हम सरत भी जानकारी इकट ा करके अपनी
क पी में भल ।
नहीं दे ना चाहते। हमारे शहर में क कभि हैं, ी लपकानंद । उनकी
बेतुकी कभिता से सारा शहर परेशान है । मैं अकसर उनहें दर से दे ते ही
भाग ड़ा होता हँ । जानता हँ जब भी भमलेेंगे दस-बीस कभिता ँ भपला
भबना नहीं छोड़ेंगे । क भदन बगल में झोला दबा पहँुचे । ते ही कहनेे
लगे- मैं तो भपछले चार-पाँच भदन से कभि स मेलन में अभत यस्त ा ।
सच कहता हँ कसम से, मैं पके बारे मंे ही सोचता रहा । रात भर मुझे नींद
नहीं ई र हाँ, रात को इसी संदभ में यह कभिता बनाई...। यह कह
झोले में से ायरी भनकाली र लगे सुनाने-
असम की राजधानी है भशलाँग
मेरे दोस्त की टट गई है टाँग
मोटरिाले, तेरी ही साइ ी राँग । सं ाषरीय
कभिता सुनाकर िे मुझे से दे रहे े, मानो उनकी क ँ पछ
रही हो- कहो, कभिता कसी रही र दसरी ँ पछ रही हो- बोल, भकसी सािजभनक या ाम
बेटा अब भी मुझसे भागेगा मैंने ज दी से चाय भपलाई र भफर पंचायत की सभा में अंगदान
कभिता ँ सुनने का िादा कर बड़ी मु कल से भिदा भकया । के बारे में अपने भिचार प्रस्तुत
अब मैं रोज ई िर से प्रा ना करता हँ भक हे ई िर अगर तुझे मेरी कीभज ।
दसरी टाँग भी तोड़नी हो तो ज र तोड़ मगर कपा कर उस जगह तोड़ना जहाँ
मेरा कोई भी प रभचत न हो, ्‍य भक बड़े बेदद होते हैं ये हमदद जताने
िाले ।
( हँसी र के ईने से)

12
शब्द संसार
त स्‍ती.सं.(अ.) = भचंता मुहावरे
हमदद स्‍ती.सं.(फा.) = सहानुभभत ‍टाँग अ ाना = बाधा ालना
एहसान पुं.सं.(अ.) = कतज्ता काँप ना = भयभीत होना
धा भि.(भहं.) = उ टा

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः
(२) अंिर स्पष्‍ट कीतिए ः
प्राइिेट अस्पताल सािजभनक अस्पताल
मरीज से भमलने के १. ------- १. -------
भल ने िाले प्राइिेट िा जनरल िा
लोग की
भिशेषता ँ १. ------- १. -------

( ) आकृति म तिखिए ः
अस्पताल में सोनाबाई के ब की शरारतें

(4) कारर तिखिए ः


१. ले क को अभधक गुस्सा अपनी प्‍नी पर या ------------------
२. ले क कहते हैं भक मेरी दसरी टाँग उस जगह तोड़ना जहाँ कोई प रभचत न हो ------------------
(5) शब्दसमूह के तिए एक शब्द तिखिए ः
१. िह स् ान जहाँ अनेक प्रकार के पशु-प ी र े जाते हैं - ------------------
२. जहाँ मु त में भोजन भमलता है - ------------------

(६) शब्द बनाइए ः


उपसग प्र्‍यय उपसग प्र्‍यय
------ यु्‍त दद यु्‍त ------ ------ यु्‍त भन चत यु्‍त ------
शद शद शद शद

अत यख मरीि से तमिने िािे समय क न-क न-सी सावधातनयाँ बरिनी चातहए, तिखिए ।

13
ाषा तबंद

(१) तनम्नतिखिि वा्‍यों म आए ए सं ा शब्दों को रेिांतकि करके नके ेद तिखिए ः


१. सोनाबाई अपने चार ब के सा ई। ......................., .......................
२. गाय ब त दध देती है । ......................., .......................
३. मैं रोज ई िर से प्रा ना करता ँ । ......................., .......................
4. सैभनक की टकड़ी गे ब ी । ......................., .......................
5. सोना-चाँदी र भी महँगे होते जा रहे हैं । ......................., .......................
. गोिा दे मैं तरंगाभयत हो उ ा । ......................., .......................
. युिक का दल बचाि काय में लगा ा । ................,................,..............
8. पने भिदेश में मण तो कर भलया है । ......................., .......................
. इस कहानी में भारतीय समाज का भच‍तण भमलता है । ......................., .......................
१ . सागर का जल ारा होता है । ................,................,..............

(२) पा म प्रयु्‍ि तक ह पाँच सं ा को ँ कर नका वा्‍यों म प्रयोग कीतिए ।

( ) तनम्नतिखिि वा्‍यों के र्‍ि स्रानों म तचि सव्णनामों का प्रयोग कीतिए ः


१. ------- सािजभनक अस्पताल के प्राइिेट िा में हैं ।
२. ------- बाजार जा ।
३. ------- कार ाने में क ही भिभाग में काम करते े ।
4. इसे लेकर ------- ्‍या करोगे
5. दय ------- है ------- उदार हो ।
. लोग ------- कमरा स्ि छ कर रहे हैं ।
. ------- रस ट हमने पहले से बुक कर भलया है ।
8. इसके बाद ------- लोग भदन भर पणजी दे ते रहे ।
. ------- इसके पहले उसे मना करता ।
१ . काम करने के भल कहा है ------- करो ।

(4) पा म प्रयु्‍ि सव्णनाम ँ कर नका स्विं वा्‍यों म प्रयोग कीतिए ।

तनम्नतिखिि मुद्दांे के आधार पर तकसी समारोह का व िांि िेिन कीतिए ः


पयोतिि िेिन स् ान * भतभ र समय * प्रमु अभतभ
समारोह * अभतभ संदेश * समापन

१4
14
4 मन
(पूरक प न)
-सवकास पररहार
ना अँधेरा
चमकता प्रकाश
ैर अभधक ।
प रचय
ि म ः १ 8३, गुना (म.प्र.)
करते जा प रचय ः भिकास प रहार ने २
पाने की मत सोचो से २ तक भारतीय िायुसेना को
जीिन सारा । अपनी सेिा ँ दीं भफर प‍तका रता के
े‍त मंे उतरने के बाद रेभ यो से जुड़े ।
साभह्‍य में भिशेष रुभच होने के कारण
जीिन नैया
प नाटय गभतभिभधय से भी जुड़े
मँझधार में ोले, हैं ।
सँभाले कौन

रंग-भबरंगे पद्य संबंधी


रंग-संग लेकर हाइक यह जापान की लोकभप्रय का य
या फागुन । भिधा है । हाइकु भि ि की सबसे छोटी
कभिता कही जाती है । पाँचिें दशक से
भहंदी साभह्‍य ने हाइकु को ुले मन से
काँटांे के बीच स्िीकार भकया है । हाइकु कभिता
ल लाता फूल 5 5=१ िण के ाँचे में भल ी
देता प्रेरणा । जाती है ।
प्रस्तुत हाइकु में कभि ने अपने
अनुभि र छोटी-छोटी भिभभ
भीतरी कु ा
टना को अ िाही सीभमत श द मंे
ँ के दिार से प्रस्तुत भकया है ।
ई बाहर ।

ारे जल से
धुल ग भिषाद
मन पािन ।

म्‍यु को जीना
जीिन भिष पीना
है भजजीभिषा ।

15
१5
मन की पीड़ा
छाई बन बादल
बरसीं ँ ें ।

चलतीं सा
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
पट रयाँ रेल की
(१) तचि िोत याँ तमिाइए ः
भफर भी मौन ।
अ आ
भसतारे भछपे मछली ------- मौन
बादल की ट में गीत के स्िर ------- सुना
रेल की पट रयाँ ------- यासी
सना काश ।
काश ------- अमर
पीड़ा
तुमने भद
भजन गीत को स्िर (२) प रराम तिखिए ः
अमर । १. भसतार का भछपना -
२. तु हारा गीत को स्िर देना -
सागर में भी ( ) सरि अर्ण तिखिए ः
रहकर मछली मन की ------ बरसीं ँ ें ।
यासी ही रही ।

शब्द संसार
मँ धार स्‍ती.सं.(भहं.) = नदी के प्रिाह का म यभाग
क ा स्‍ती.सं.(सं.) = ोर भनराशा
तवषाद पुं.सं.(सं.) = अभभलाषा परी न होने पर मन में होने िाला ेद या द
तििीतवषा स्‍ती.सं.(सं.) = जीिन के प्रभत सभ्‍त/जीने की इ छा
‍ट स्‍ती.सं.(सं.) = ड़

16
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) तिखिए ः
तनम्नतिखिि हाइक द्वारा तमिने वािा संदेश
करते जा पाने की मत सोचो जीिन सारा । भीतरी कु ा नयन के दिार से ई बाहर ।
----------------------- ------------------------
----------------------- ------------------------
----------------------- ------------------------

(२) कृति पूर्ण कीतिए ः ( ) िर तिखिए ः


हाइकु में प्रयु्‍त महीना र उसकी तु १. मँझधार में ोले -------
२. भछपे -------
३. धुल ग -------
4 अमर -------
(4) तनम्नतिखिि का य पंत्‍ियों का क ीय ाव स्पष्‍ट कीतिए ः
१. चलतीं सा २. काँट के बीच
पट रयाँ रेल की ल लाता फूल
भफर भी मौन । देता प्रेरणा ।

व्‍ि व प्रतियोतगिा म प्ररम स्रान पाने के पि य म अापके तम सहेिी ने


पयोतिि िेिन आपको बधाई प ेिा ह, से ध यवाद देिे ए तनम्न प्रा प म प तिखिए ः

तदनांक ः
संबोधन ः
अत वादन ः
प्रारं ः
तवषय तववेचन ः
---------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
िुम्हारा िुम्हारी,

नाम ः
पिा ः
ई-मेि आई ी ः

17
5 गोवा ः िसा मने देिा
- सवनय शमामा

गोिा यह नाम सुनते ही सभी का मन तरंगाभयत हो उ ता है र हो


भी ्‍य न, यहाँ की प्रकभत, बोहिा र जीिनशैली का कषण ही
सा है भक पयटक ुद-ब- ुद यहाँ ंचे चले ते हैं । देश के क काेने प रचय
में भस् त होने के बािजद यह छोटा-सा रा य प्र्‍येक पयटक के भदल की
ि म ः १ ३, उ जैन (म.प्र.)
धड़कन है । यही कारण है भक मैं भी अपने प रिार के सा इंदौर से गोिा
प रचय ः भिनय शमा का अभधकांश
जा प ँचा । ं िा से मेरे सा साहब भी सप रिार हमारे सा शाभमल हो ले न उनके अनुभि पर
ग । धा रत रहा है । पकी रचना ँ
२३ निंबर को जब गाेिा ्‍सप्रेस मड़गाँि रुकी तो सुबह का उजास प‍त-पभ‍तका में भनयभमत छपती
रहती हैं । या‍ता ि्‍तांत पकी
हो गया ा । क टै्‍सी के ह न ने मेरा यान उसकी र ींचा र हम पसंदीदा भिधा है । सा ही पने
फटाफट उसमें बै ग । टै्‍सी क पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी । यं य र लभलत भनबंध भी भल े हैं ।
शीतल हिा के झ क से मन प्रस हो गया र या‍ता की सारी कान भमट कृतियाँ ः नंद का उदगम
अमरकटक (लभलत भनबंध), भच‍त
गई । मैं सोचने लगा भक पयटन का भी अपना ही नंद है । जब हम जीिन की परी ा ( यं य), अमरना
की कई सारी समस्या से जझ रहे ह तो उनसे भनजात पाने का सबसे या‍ता प्रकभत के बीच कोइंबतर में
अ छा तरीका पयटन ही है । बदले िातािरण के कारण मन तरोताजा कुछ भदन (या‍ता ि्‍तांत) भद ।
हो जाता है त ा शरीर को कुछ समय के भल भि ाम भमल जाता है ।
कुछ देर बाद हमारी टै्‍सी म गाँि से पाँच भकमी दर दभ ण में भस् त
कस्बा बेनाभलयम के क रस ट में कर रुक गई । यह रस ट हमने पहले
से बुक कर भलया ा । इसभल पचा रक ानापभत कर हम राम
गद्य संबंधी
करने के इरादे से अपने-अपने स्यट मंे चले ग । इससे पहले भक हम कमर
से बाहर भनकलें, मैं पको गाेिा की कुछ ास बातें बता दँ । दरअसल,
प्रस्तुत या‍ता िणन के मा यम
गोिा रा य दो भाग में बँटा है । दभ ण गोिा भजला त ा उ्‍तर गोिा से ले क ने गोिा के सुंदर समु ी
भजला । इसकी राजधानी पणजी मां िी नदी के भकनारे भस् त है । यह नदी भकनार , िहाँ की जीिनशैली,
काफी बड़ी है त ा िष भर पानी से भरी रहती है । भफर भी समु ी इलाका ्‍योहार भद का बड़ा ही मनोरम
होने के कारण यहाँ मौसम में प्राय उमस त ा हिा में नमी बनी रहती है । िणन भकया है ।
शरीर भचपभचपाता रहता है लेभकन मुंबई भजतना नहीं, ्‍य भक यहाँ का े‍त
हरीभतमा से भरपर है भफर भी धप तो ती ी ही होती है ।
यांे तो गोिा अपने बसरत सफेद रेतीले तट , महँगे होटल त ा
ास जीिन शैली के भल जाना जाता है लेभकन इन सबके बािजद यह
अपने में क सांस्कभतक भिरासत भी समेटे हैं ।
यहाँ की शाम बड़ी अ छी होती है तो चलो, इस शाम का नंद लेने

१8
18
के भल बेनाभलयम बीच की र चलें । प भी चलें ्‍य भक ब त ही
बसरत त ा शांत जगह है बेनाभलयम । भदन भर की कान त ा उमस
भरी गरमी के बाद शाम को बीच पर जाना बड़ा अ छा लग रहा ा । रस ट
से बीच की दरी कोई क भकमी ही ी लेभकन ज दी-ज दी चलने के बाद
भी यह दरी तय हो ही नहीं पा रही ी । अरब सागर दे ने का उ्‍साह ब ता
ही जा रहा ा । तभी अचानक लहर की िाज सुनाई दी जो भकसी
रणभेदी की तरह ी । हम सभी दौड़ पड़े । सड़क पीछे छट गई ी इसभल
रेत पर तेजी से दौड़ना मु कल हो रहा ा, भफर भी धँसे पैर को परी
ताकत से उ ा-उ ाकर भाग रहे े । बसरत समुंदर दे ते ही मैं उससे
जाकर भलपट गया । इधर ब े रेत का र बनाने में जुट ग । लहरें उनका
र भगरा देतीं तो िे दसरी लहर ने के पहले भफर नया र बनाने में जुट
जाते । यही म चलता रहा । मैंने इन ब से सी ा भक जीिन में
शािाद हो तो कोई काम असंभि नहीं है । शाम गहराने पर हम भकनारे
प नीय
पर बै ग । मानो हर लहर कह रही हो भक बनने के बाद भमटना ही भनयभत
है । यही जीिन का स्‍य भी है । गोिा की भतहाभसक प भभम की
यहाँ क मजेदार य भी दे ने को भमला । लहर की िाज के जानकारी पभ र कालानु म
बीच पभ य की टीं-टीं-टीं की िाज भी पका यान अपनी र के अनुसार प्रमु टना की
ींच लेती है । दरअसल, ये प ी लहर के सा बहकर ई मछभलय का ताभलका बनाइ ।
भशकार करने के भल भकनारे पर ही मँड़राते रहते हैं लेभकन जब तेज हिा के
कारण क ही भदशा में सीधे नहीं उड़ पाते हैं तो सुस्ताने के भल भकनारे पर
बै जाते हैं । यहाँ बै े कु्‍त को इसी बात का इंतजार रहता है । मौका
भमलते ही िे इनपर झपट पड़ते हैं लेभकन बेचारे कु्‍त काे सफलता कम
ही भमल पाती है । पभ य का बै ना, कु्‍त का दौड़ना र पभ याें का
टीं-टीं-टीं कर उड़ जाना, यह य सैलाभनय का अ छा मनोरंजन करता
है । इधर जैसे ही सय देिता ने भिदा ली िैसे ही चं मा की चाँदनी में नहाकर
समु का नया ही चेहरा नजर ने लगा । अब समु स्याह र भयािह
भद ने लगा ।
अगले भदन हमने बस से गाेिा मने की योजना बनाई । िैसे
मने-भफरने के भल यहाँ बाइक भद भकरा पर भमल जाती है र उनपर
ही मने का मजा भी ता है लेभकन ब के कारण हमने बस से जाना
मुनाभसब समझा । यहाँ सी फू की अभधकता होने के कारण शाकाहारी
पयटक को सुस्िाद भोजन की समस्या से भी दो-चार होना पड़ता है ।
काफी भटकने के बाद अ छा भोजन भमल गया तो समझो भकस्मत र
जेब तो ीली हो ही गई । यह समस्या हमें पहले से पता ी । इसभल हम

19
अपने रस ट के स्यट में उपल ध भकचन में ही भोजन करते े ।
सबसे पहले हम अंजुना बीच प ँचे । गोिा में छोटे-बड़े करीब 4
बीच हैं लेभकन प्रमु सात या ही हैं । अंजुना बीच नीले पानीिाला,
प रीला ब त ही बसरत है । इसके क र लंंबी-सी पहाड़ी है, जहाँ
से बीच का मनोरम य दे ा जा सकता है । समु तक जाने के भल ोड़ा
नीचे उतरना पड़ता है । नीला पानी काले प्‍ र पर पछाड़ ाता रहता वरीय
है । पानी ने काट-काटकर इन प्‍ र में कई छेद कर भद हैं भजससे ये
प्‍ र कमजोर भी हो ग हैं । सा ही समु के काफी पीछे हट जाने से कई
य टयब पर गोिा का संगीत
प्‍ र के बीच में पानी भर गया है । इससे िहाँ काई ने अपना र बना सुभन र लोकसंगीत के
भलया है । भफसलने का र हमेशा लगा रहता है लेभकन सं षाे में ही जीिन काय म में प्रस्तुत कीभज ।
है, इसभल यहाँ मने का भी अपना अलग नंद है । यहाँ युिा का
दल तो अपनी मस्ती में बा रहता है, लेभकन प रिार के सा पयटक
का यान अपने ब को तर से सािधान रहने के भदशाभनदश देने में ही
लगा रहता है । मैंने दे ा भक समु भकनारा होते भी बेनाभलया बीच त ा
अंजुना बीच का अपना-अपना स दय है । बेनाभलयम बीच रेतीला त ा
उ ला है । यह मछ र की पहली पसंद है । यहाँ सुबह-सुबह बड़ी मा‍ता
में मछभलयाँ पकड़ी जाती हैं लेभकन मजे की बात यह है भक इतनी सारी
मछभलयाँ स् ानीय बाजार में ही बेची जाती हैं । इनका भनयात भबलकुल भी
नहीं होता है । इसके भिपरीत अंजुना बीच गहरा र नीले पानीिाला है ।
यह ब लीिु की पहली पसंद है । यहाँ कई भहट भफ म की शभटंग ई है ।
दोन बीच यािसाभयक हैं पर मल अंतर यिसाय की प्रकभत का है । इसके
बाद हम लोग भदन भर पणजी शहर दे ते रहे ।
म-भफरकर शाम को हम कभलंगिु बीच पर प ँचे । यह काफी
रेतीला त ा गोिा का सबसे लंबा बीच है जो ३ से 4 भकमी तक फला है । िेिनीय
यहाँ पयटक बड़ी सं या मंे ते हैं । यही कारण है भक यह स् ानीय लोग
के यिसाय का क भी है । यहाँ कई प्रकार के िाटर स्पोटस होते हैं भजनमें गोिा की तरह अनय समु ित
कुछ तो हैरतअंगेज हैं, भजनहें दे ने में ही नंद ता है । प भी अपनी दशनीय स् ल की जानकारी
रुभच के अनुसार हा जमा सकते हैं । मैंने कई ेल में भहस्सा भलया, अंतरजाल की सहायता से
लेभकन सबसे अभधक रोमांच पैरा लाइभ ंग में ही या । काफी चाई से प्राप्त कीभज त ा भल कर
सचना फलक पर लगाइ ।
अ ाह जलराभश को दे ना भजतना भिस्मयकारी है, उतना ही भयािह
भी । दर-दर तक पानी-ही-पानी, तेज हिा र रभस्सय से हिा में लटके
हम । हम यानी मैं र मेरी प्‍नी । दोन र भी रहे े र ुश भी हो रहे
े । र इस बात का भक छट ग तो समझो ग र ुशी इस बात की भक
सा रोमांचक य पहली बार दे ा । सचमुच अदभुत

20
हम यहाँ चार-छह भदन रहे लेभकन हमारी क ही भदनचया रही । सुबह
ज दी उ ना, फटाफट ना ता करना र भदन भर म-भफरकर, ककर
शाम को रस ट कर कान भमटाने के भल पल में तैरना क भदन
कोलिा बीच पर हमने बोभटंग का भी नंद भलया । यहाँ हमने भ फन
मछभलयाँ दे ीं । हालाँभक ये छोटी ीं पर ब ने अ छा नंद भलया ।
इस दौरान यहाँ निराभ‍त त ा दशहरा पि मनाने का सौभा य भी प्राप्त
। उ्‍तर भारत में भजस तरह हर र त ा गली-मोह ले में मां दगा की
ट स् ापना कर त ा लड़भकय दिारा गरबा कर पि मनाया जाता है, सा
ही यहाँ भी होता है । रािण का पुतला कहीं भी नहीं जलाया जाता है । सुबह सं ाषरीय
से लोग अपने िाहन की सफाई कर उनकी पजा करते हैं र शाम को
भगिान की क पालकी मंभदर ले जाई जाती है । इसके बाद क पेड़ भिशेष गोिा की प्राकभतक संुदरता पर
की पभ्‍तयाँ तोड़कर लोग क-दसरे को देकर बधाई देते हैं । सबकी संिाद प्रस्तुत कीभज ।
अपनी-अपनी सांस्कभतक परंपरा है ।
इतने कम भदन में मैं गोिा को परा दे -समझ तो नहीं पाया पर इतना
ज र समझ गया भक प चमी फशन र स यता में रचा-बसा होने के
बािजद यह भारतीय संस्कभत को परी तरह से ्‍मसात भक हैं ।
पयटक फशन के रंग में कुछ देर के भल भले ही स्ियं को रँगकर चले जाते
ह लेभकन स् ानीय लोग अपनी सांस्कभतक परंपरा की उँगली अब भी
पकड़े हैं ।

शब्द संसार
आबोहवा स्‍ती.सं.(अ.फा.) = जल-िायु मुहावरे
िानापूति्ण स्‍ती.सं.(फा.) = पचा रकता परी करना मन िरंगातयि होना = मन उमंग से भरना
हरीतिमा स्‍ती.सं.(सं) = ह रयाली तनिाि पाना = मुभ्‍त पाना
सिानी भि.(भहं.) = सैर-सपाटा करने िाले, पयटक दो-चार होना = जझना
सुस्वाद भि.(भहं.) = स्िाभद ट िेब ीिी होना = जेब ाली होना, ब त
अभधक च होना

21
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
या‍ता के दौरान ले क की भदनचया गोिा की र कभषत करने िाले टक

( ) तिखिए ः
१. नीले पानीिाला प रीला -
२. रेतीला त ा उ ला -
३. सबसे लंबा -
4. मछ र की पहली पसंद -
(4) सूची बनाइए ः
गोवा का प्राकृतिक स दय्ण दशा्णने वािे वा्‍य (5) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. निराभ‍त त ा दशहरा पि में
२. गोिा की अलग परंपरा ँ
३. -------
4. -------
-------
-------
(६) ‘बेनातिया’, ‘अंिुना’ िरा ‘कतिंगवु ’ बीच की तवशेषिाएँ ः
१ ---------- १ ---------- १ ----------
२ ---------- २ ---------- २ ----------
---------- ---------- ----------

(७) सोतचए र तिखिए ः

भिलोमा

उपसग शय प्र्‍यय
यु्‍त यु्‍त

पयायिाची

अत यख ‘प्रकृति को सुंदर बनाए रिने म मेरा योगदान’ तवषय पर अपने तवचार तिखिए ।

22
ाषा तबंद

(१) कोष् क म दी गई सं ा से तवशेषर संि न ह । नीचे दी गई सा ररी म सं ा िरा तवशेषरों को दे ों सतहि तिखिए ः
य ीि गाय, नीिा पानी, दस िी‍टर दध, चािीस ा , क िोग, दो गि िमीन, वही पानी, यह ि का
सं ा ेद तवशेषर ेद

(२) पयु्ण्‍ि सं ा-तवशेषरों की िोत यों का स्विं वा्‍यों मंे प्रयोग कीतिए ।
( ) पा मंे प्रयु्‍ि तवशेषरों को ँ कर नकी सूची बनाइए ।
(4) तनम्नतिखिि वा्‍यों म आई सहायक त या को अधोरेिांतकि कीतिए िरा नका अर्णपरू ्ण वा्‍यों म प्रयोग कीतिएः
१. टै्‍सी क पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी ।
िा्‍य =
२. शरीर को कुछ समय के भल भि ाम भमल जाता है ।
िा्‍य =
३. हम राम करने के इरादे से अपने-अपने स्यट चले ग ।
िा्‍य =
4. भफर भी धप ती ी ही होती जाती है ।
िा्‍य =
5. सबके बािजद यह अपने में क सांस्कभतक भिरासत भी समेटे हैं ।
िा्‍य =
. इधर ब े रेत का र बनाने लगे ।
िा्‍य =
. अब समु स्याह र भयािह भद ने लगा ।
िा्‍य =
8. यहाँ सुबह-सुबह बड़ी मा‍ता में मछभलयाँ पकड़ी जाती हैं ।
िा्‍य =
(5) पा म प्रयु्‍ि दस सहायक त याएँ ाँ‍टकर तिखिए ।

तविय तविया मोतहिे, वरदा सोसाय‍टी, तवियनगर, को हापुर से


पयोतिि िेिन यवस्रापक, षतध ं ार, नागपुर को प तििकर आयुवतदक षतधयों
की माँग करिा करिी ह ।
23
६ तग रधर नागर
-संत मीराबाई

(१)
मेरे तो भगरधर गोपाल, दसरो न कोई
जाके भसर माेर मुकट, मेरो पभत सोई प रचय
छाँभड़ दई कुल की काभन, कहा क रहै कोई
संतन भ ग बैभ -बैभ , लोक लाज ोई । ि म ः १5१ , जोधपुर (राजस् ान)
अँसुिन जल सींभच-सींभच प्रेम बेभल बोई । म युः १54 , दिा रका (गुजरात)
अब तो बेल फल गई णँद फल होई ।। प रचय ः संत मीराबाई बचपन से
ही क णभभ्‍त में लीन रहा करती
दध की म भनयाँ बड़े प्रेम से भबलोई ।
ीं । बाद में गह्‍याग करके प
मा न जब काभ भलयो छाछ भपये कोई ।। म- मकर मंभदर में अपने भजन
भगत दे राजी ई जगत दे रोई । सुनाया करती ीं । मीराबाई के
दासी मीरा लाल भग रधर तारो अब मोही ।। भजन र उपासना माधुयभाि से
ेत-प्रोत हैं । पके पद मंे प्रेम
(२) की त लीनता समान प से पाई
ह र भबन कूण गती मेरी ।। जाती है ।
तुम मेरे प्रभतपाल कभहये मैं रािरी चेरी ।। प्रमुि कृतियाँ ः नरसी जी का
भद-अंत भनज नाँि तेरो हीमायें फेरी । मायरा, गीत गोभिंद , राग
गोभिंद, राग सोर के पद भद ।
बेर-बेर पुकार क ँ प्रभु रभत है तेरी ।।
यौ संसार भबकार सागर बीच में ेरी ।
नाि फाटी प्रभु पाल बाँधो बड़त है बेरी ।।
भबरहभण भपिकी बाट जौिै रा यो नेरी ।
दासी मीरा राम रटत है मैं सरण ँ तेरी ।। पद्य संबंधी
( )
फागुन के भदन चार होरी ेल मना रे । मीराबाई के सभी पद उनके
रा य के प्रभत ही समभपत हैं ।
भबन करताल प ािज बाजै, अणहद की झनकार रे । पके पद का मु य स्िर भगित
भबन सुर राग छतीसँ गािै, रोम-रोम रणकार रे ।। प्रेम ही है । प्रस्तुत पद मंे पकी
सील संतो की केसर ोली, प्रेम-प्रीत भपचकार रे । उ्‍सुकता, भमलन, शा, प्रती ा
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे ।। के भाि सभी अनुपम हैं ।
ट के पट सब ोल भद हैं, लोकलाज सब ार रे ।
मीरा के प्रभु भग रधर नागर, चरण किल बभलहार रे ।।

२4
24
शब्द संसार
कि पुं.सं.(सं.) = िंश, राना नेरी स्‍ती.भि.(दे.) = पास, भनकट
त ग भ .भि.(भहं.) = पास, भनकट िीसूँ भि.(दे.) = े
मरतनयाँ स्‍ती.सं.(भहं.) = म नी, दही म ने का साधन कवि पुं.सं.(दे.) = कमल
रावरी सि.(दे.) = पकी बतिहारना भ .(दे.) = भनछािर करना
चेरी स्‍ती.सं.(भहं.) = चेली, दासी

स्वाधयाय
* सूचनानुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
कनहैया की भिशेषता ँ

होली के समय नंद


भनभमत करने िाले
टक

( ) इस अर्ण म आए शब्द तिखिए ः


अ शद
(१) दासी --------- (4) क हया के नाम
(२) साजन ---------
(३) बार-बार ---------
(4) काश ---------

(5) दसरे पद का सरि अर्ण तिखिए ।

तनम्नतिखिि शब्दों के आधार पर कहानी िेिन कीतिए


पयोतिि िेिन िरा तचि शीष्णक दीतिए ः
अलमारी, भगलहरी, चािल के पापड़, छोटा ब ा

25
२5
अपत ि पद्यांश

सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-


काम जरा लेकर दे ो, स त बात से नहीं स्नेह से
अपने अंतर का नेह अरे, तुम उसे जरा देकर दे ो ।
भकतने भी गहरे रहें गत, हर जगह यार जा सकता है,
भकतना भी ट जमाना हो, हर समय यार भा सकता है ।
जो भगरे को उ ा सके, इससे यारा कुछ जतन नहीं,
दे यार उ ा पा न भजसे, इतना गहरा कुछ पतन नहीं ।।

(भिानी प्रसाद भम )
(१) िर तिखिए ः
१. भकसी से काम करिाने के भल उपयु्‍त -
२. हर समय अ छी लगने िाली बात -

(२) िर तिखिए ः
१. अ छा प्रय्‍न यही है -

२. यही अधोगभत है -

( ) पद्यांश की िीसरी र च री पंत्‍ि का संदेश तिखिए ।

ाषा तबंद

कोष् क म तदए गए प्र येक कारक तचह्न से अिग-अिग वा्‍य बनाइए र नके कारक तिखिए ः
ने, को, से, का, की, के, म, पर, हे, अरे, के तिए

26
७ िुिा आकाश
(पूरक प न) - कुँवर नारायण

अंदर की दतनया
हमारे अंदर की दभनया बाहर की दभनया से कहीं यादा बड़ी है । हम
उसका भिस्तार नहीं करते । बाहर की अपे ा उसे छोटा करते चले जाते हैं प रचय
र उसे भबलकुल भनज ि कर लेते हैं । जादी, परी जादी, अगर कहीं
ि म ः १ २ , फजाबाद (उ.प्र.)
संभि है तो इसी भीतरी दभनया में ही, भजसे हम भबलकुल अपनी तरह म यु ः २ १ , ल न (उ.प्र.)
समदध बना सकते हैं- स्िा अ में भसफ अपने भल ही नहीं, भन स्िा प रचय ः नई कभिता ंदोलन के
अ में दसर के भल भी मह्‍्‍ि र ता है र स्ियं अपने भल तो भिशेष सश्‍त हस्ता र कुिर नारायण की
मह्‍्‍ि र ता ही है । मल भिधा कभिता रही है । इसके
अलािा पने कहानी, ले ,
- १ माच १ 8 समी ा, भसनेमा, रंगमंच भद
मकान पर मकान कला पर भी ले नी चलाई है ।
भजस गली में जकल रहता ँ-िहाँ क समान भी है लेभकन पकी कभिता-कहाभनयांे का कई
भद ाई नहीं देता । उस गली में पेड़ भी नहीं हैं, न ही पेड़ लगाने की गुंजाइश भारतीय भाषा र भिदेशी
भाषा में अनुिाद है ।
ही है । मकान ही मकान हैं । इतने मकान भक लगता है मकान पर मकान पको भारतीय साभह्‍य जगत का
लदे हैं । लंद-फद मकान की क ब त बड़ी भीड़, जो क संकरी गली में सि स मान ज्ानपी भी प्राप्त
फस गई र बाहर भनकलने का कोई रास्ता नहीं है । भजस मकान में रहता है ।
ँ, उसके बाहर झाँकने से बाहर नहीं भसफ दसरे मकान र क गंदी ि प्रमुि कृतियाँ ः च यह , तीसरा
सप्तक , प रिेश , हम-तुम ,
तंग गली भद ाई देती है । भचभड़याँ भद ती हैं, लेभकन पेड़ पर बै ीं या ्‍मजयी , कोई दसरा नहीं ,
समान में उड़तीं ई नहीं । भबजली या टेलीफोन के तार पर बै ी, मगर इन भदन भद ।
बातचीत करतीं या र के अंदर यहाँ-िहाँ सले बनाती नहीं भद तीं ।
उनहें दे कर लगता मानो िे प्राकभतक नहीं, रबड़ या ाभस्टक के बने
लौने हैं, जो शायद ही इधर-उधर फुदक सकते ह या चँ-चँ की िाजें
भनकाल सकते ह । गद्य संबंधी
मैं सी संकरी र तंग गली में, मकान की क ब त बड़ी भीड़ से
प्रस्तुत ायरी भिधा में कुिर
भबजली या टेलीफोन के तार से उलझे समान से िं ह रयाली के अभाि नारायण जी ने जीिन के सं ष,
से जझते अपने मुह ले से बाहर भनकलने की भारी कोभशश में ँ । साभह्‍य, ्‍मभचंतन, जीिन म
- १ माच १ 8 भद पर अपने भिचार स्प ट भक हैं ।
सही सातह य इस पा में पका मानना है भक हमें
दसर से िाद-भििाद न करके स्ियं
सही र संपण साभह्‍य िह है, भजसे हम दोन ँ से दे ते से संिाद करना चाभह ।
हैं-भसफ बा या भसफ दा ँ से नहीं ।
- 8 अगस्त, १ 8

27
िान िुद को
भबलकुल चुपचाप बै कर भसफ अपने बारे में सोचें । कोभशश करें भक
दसरे या सब कहीं भी उस ्‍मभचंतन के बीच में ना ँ । इससे दो
फायदे ह गे । क तो हम अपने को जान सकगे भक हम स्ियं ्‍या हैं, जो दसर
के बारे में सब कुछ जानने का दंभ र ते हैं । दसरे, हमारे उस हस्त ेप से दसर सं ाषरीय
की र ा होगी, भजसके प्रभत ण मौजद रहते िे अपने बारे में न तो संतुभलत ंग
से सोच पाते हैं, न सभ य हो पाते हैं । दसर की सोच-समझ में भी उतना ही ‘क यटर ज्ान का महासागर
भरोसा र ें, भजनमें हमें अपनी सोच-समझ में है । भिषय पर तकपण चचा
हर क के प्रभत हमारे मन में सहज सकारा्‍मक स्िीकभत का भाि होना कीभज ।
चाभह । दसरा अनय नहीं, अंतमय है, हमारे ही प्रभत प, हमसे अलग या भभ
नहीं ।
- १२ निंबर १ 8
तस मनुष्य होिे
कुछ लोग सोचते ह गे भक र यह ्‍य होता है, कसे होता है भक
दभमय में ही कुछ दमी बा , भेभड़ये, लकड़ब े, सांप, तेंद , भब छ,
गोजर िगैरह की तरह होते हैं र कुछ दमी गायें, बकरी, भेड़ भततली
िगैरह की तरह सा ्‍य नहीं होता भक भजस तरह सारे बा केिल बा होते
हैं र कुछ नहीं, या जैसे सारी गायें केिल गायें होती हैं र कुछ नहीं, उसी
तरह सारे मनु य केिल मनु य होते र कुछ नहीं... ।
- अगस्त १
िुका-त पाकर िीना िेिनीय
मुझे जीिन को सहज र ुले ंग से जीना पसंद है । चीज को
लुका-भछपाकर, बात र यिहार को रचा बसाकर जीना स त नापसंद है ।
िह चा रभ‍तक बेईमानी है, भजसे हम यिहार कुशलता का नाम देते हैं । इसके महानगरीय/ ामीण भदनचया
पीछे ्‍मभि िास की कमी झलकती है भक कहीं लोग हमारी असभलयत को के लाभ त ा हाभन के बारे मंे
अपने अनुभि के धार पर
न जान जा ँ । भल ।
र िह असभलयत इतनी गंदी र धत ्‍य हो भक उसे भछपाना
ज री लगे ।
- 4 जनिरी २ १
िीने का अर्ण
बु ापे का केिल यही अ नहीं भक जीिन के कुछ कम िष बचे हैं यह
त य तो जीिन के भकसी ं पर भी लाग हो सकता है- बचपन, यौिन
बु ापा... । ास बात है, जो भी िष बचे हैं, जब तक जीभित र चैतनय ँ,
भजंदगी को ्‍या अ दे पाता ँ, या अपने भल उससे ्‍या पाता ँ, ेसा कुछ
भजसका सबके भल कोई मह्‍्‍ि है । लगभग इसी अ में मैं साभहभ्‍यक चे टा
र जीिन चे टा को अपने भल अभिभा य पाता ँ ।

२8
28
5 का हो रहा ँ-यानी, जीने के भल अब कुछ ही िष बचे हैं लेभकन
प नीय
जीना बंद नहीं हो गया है । यह अहसास भक म्‍यु ब त दर नहीं है, उ के भकसी
भी मोड़ पर हो सकती है । सा भी है मेरे सा । तब हो या अब, यह शरद जोशी भल त अभतभ
सिाल अपनी जगह बना रहता है भक जीिन को भकस तरह भजया जा -सा कता तुम कब जा गे, हास्य
से अपने भल या दसर के भल ... । यं य कहानी पभ त ा
सुनाइ ।
- २३ जनिरी २ २
तद िी म रहना
भद ली शहर में र ँ रहा ँ । शहर, जैसे क ब त बड़ी बस सिा रय
से लंद-फद, हर ि्‍त चलायमान । भद ली में रहने का मतलब कहीं पायदान
बराबर दो कमर में दो पाँि भटकाकर भकसी तरह लटक जा र लटके रहो
उ भर । भजंदगी का मतलब बस इतना ही भक जब तक बन पड़े लटके रहो,
भफर धीरे-से कहीं भीड़-भाड़ में भगर जा ... ।
- १२ जन २ ३
बहाने तनकािना
जो हम शौक से करना चाहते हैं, उसके भल रास्ते भनकाल लेते हैं । जो
नहीं करना चाहते, उसके भल बहाने भनकाल लेते हैं... ।
- जनिरी २
अपने से बहस
बहस दसर से नहीं, अपने से करनी चाभह उससे स ाई हा लगती है ।
वरीय
दसर को भसफ सुनना चाभह दसर से बहस से केिल झगड़ा हा लगता है ।
चीिों की गुिामी र की बालकनी/ ँगन मंे
कुछ भदन पहले क क यटर ने मुझे चालीस हजार रुपय में रीदा है सेंभ य पदधभत से पौधे कसे
उगा जाते हैं , इसके बारे में
ज-कल उसकी गुलामी में ँ । उसके न र को भसर झुकाकर झेलने मंे ही काशिाणी/दरदशन पर
अपना क याण दे रहा ँ । उसका िादा है भक क भदन िह मुझे भल ने-प ने सुभन र सुनाइ ।
की परी जादी देगा । भफलहाल उसकी कभन सेिा में ही मेरा उ िल
भभि य है ।
इसके पहले क मोटर मुझे भारी दाम में रीद चुकी है । उसकी सेिा में
भी ँ । दरअसल, चीज का क परा प रिार है भजसकी सेिा में ँ । दमी का
स्िभाि नहीं बदलता या ब त कम बदलता है । गुलामी करना-करिाना उसके
स्िभाि में है । भसफ तरीके बदले हैं, गुलामी की प्रिभ्‍त नहीं । हजार साल
पहले क दमी माभलक होता ा र उसके दरजन गुलाम होते े । अब
हर चीज के दरजन गुलाम होते हैं ।
- ३ भसतंबर २ १
( भदशा का ुला काश से)

29
शब्द संसार
सँकरी स्‍ती. भि.(भहं.) = पतली, कम चौड़ी, िक ब ा पुं.सं.(भहं.) = भेभड़ये की जाभत का
तंग क पशु
गोिर पुं.सं.(भहं.) = कन जरा चिायमान भि.(सं.) = चलता , चंचल

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः ---------
गली की भिशेषता ँ १. गली से यह नहीं भद ता -
---------
२. ले क सी भजंदगी भबताना ---------
नहीं चाहता -
---------

( ) आकृति म तिखिए ः
(4) मनु य जीिन की भस् भतयाँ
कुछ मनु य में भद ाई देने िाले पशु

(5) तिखिए ः
१. र से बाहर झाँकने पर यह भद ाई देता है २. ले क इनकी सेिा में लगे हैं

अत यख ‘िो हम श क से करना चाहिे ह, सके तिए रास्िे तनकाि िेिे ह,’ इसका सोदाहरर अर्ण तिखिए ।

30
ाषा तबंद

(१) तनम्नतिखिि संतध तव ेद की संतध कीतिए र ेद तिखिए ः


अनु संतध तव ेद संतध शब्द संतध ेद
१ दः ि
२ महा आ मा
अन् आस्‍ि
4 अंिः चेिना
5 सम् िोष
६ सदा एव

(२) तनम्नतिखिि शब्दों का संतध तव ेद कीतिए र ेद तिखिए ः


अनु शब्द संतध तव ेद संतध ेद
१ स िन
२ नमस्िे
स्वागि
4 तद दश्णक
5 यद्यतप
६ दस्साहस

( ) तनम्नतिखिि आकृति म तदए गए शब्दों का तव ेद कीतिए र संतध का ेद तिखिए ः

तव ेद ेद
+ ( )
भद गज
+ ( )
सप्ताह
+ ( )
भन चल
+ ( )
भानदय + ( )
भनस्संदेह + ( )
सयास्त + ( )
+ ( )

(4) पा ों म आए संतध शब्द ाँ‍टकर नका तव ेद कीतिए र संतध का ेद तिखिए ।

31
अपत ि गद्यांश

तनम्नतिखिि प र ेद प कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-

हर भकसी को ्‍मर ा करनी होगी, हर भकसी को अपना कत य करना होगा । मैं भकसी की
सहायता की प्र्‍याशा नहीं करता । मैं भकसी का भी प्र्‍याह नहीं करता । इस दभनया से मदद की प्रा ना
करने का मुझे कोई अभधकार नहीं है । अतीत में भजन लोग ने मेरी मदद की है या भभि य में भी जो लोग
मेरी मदद करेंगे, मेरे प्रभत उन सबकी करुणा मौजद है, इसका दािा कभी नहीं भकया जा सकता । इसीभल
मैं सभी लोग के प्रभत भचर कतज् ँ । तु हारी प रभस् भत इतनी बुरी दे कर मैं बेहद भचंभतत ँ । लेभकन
यह जान लो भक- तुमसे भी यादा द ी लोग इस संसार में हैं । मैं तुमसे भी यादा बुरी प रभस् भत में ँ ।
इं लैं में सब कुछ के भल मुझे अपनी ही जेब से च करना पड़ता है । मदनी कुछ भी नहीं है । लंदन
में क कमरे का भकराया हर सप्ताह के भल तीन पाउं होता है । पर से अनय कई च हैं । अपनी
तकलीफ के भल मैं भकससे भशकायत क ँ यह मेरा अपना कमफल है, मुझे ही भुगतना होगा ।

(भििेकानंद की ्‍मक ा से)

(१) कृति पूर्ण कीतिए ः


१. कमरे का भकराया २. ले क इनके प्रभत कतज् है

(२) िर तिखिए ः
१. प र छेद में उ त देश -
२. हर भकसी को करना होगा -
३. ले क की तकलीफ -
4. हर भकसी को करनी होगी -
( ) तनदशानुसार हि कीतिए ः
(अ) तनम्नतिखिि अर्ण से मेि िाने वािा शब्द पयु्ण्‍ि प र ेद से ँ कर तिखिए ः
१. स्ियं की र ा करना - ...............
२. दसर के उपकार को मानने िाला -...............
(ब) तिंग पहचानकर तिखिए ः
१. जेब ३. साभह्‍य
२. दािा 4. सेिा

(4) ‘कृि िा’ के संबंध म अपने तवचार तिखिए ।

32
8 गिि
-मासणक वमामा

पसे भकसने कहा स्िभणम भश र बनकर भद ो, प रचय


शौक भद ने का है तो भफर नींि के अंदर भद ाे ।
ि म ः १ ३8, उ जैन (म.प्र.)
चल पड़ी तो गद बनकर स्मान पर भल ो, प रचय ः हास्य- यं य के सश
र अगर बै ो कहीं ताे मील का प्‍ र भद ाे । हस्ता र माभणक िमा जी िाभचक
परंपरा में प्रमु स् ान र ते हैं ।
पके यं य बड़े ही धारदार होते हैं ।
भसफ दे ने के भल भद ना कोई भद ना नहीं,
पकी गजलें ब त ही प्रेरणादायी
दमी हो तुम अगर तो दमी बनकर भद ाे । होती हैं ।
प्रमुि कृतियाँ ः गजल मेरी इबादत
भजंदगी की श्‍ल भजसमें टटकर भब रे नहीं, है , ‘ री प्‍ता (गजल सं ह),
प्‍ र के शहर में िो ईना बनकर भद ो । दमी र भबजली का ंभा ,
महाभारत अभी जारी है , मु क के
माभलक जिाब दो भद ।
पको महसस होगी तब हरइक भदल की जलन,
जब भकसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर भद ाे ।
पद्य संबंधी
क जुगन ने कहा मैं भी तु हारे सा ँ,
प्रस्तुत गजल के अभधकांश
ि्‍त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर भद ो । शेर में िमा जी ने हम सबको जीिन
में भनरंतर अ छे कम करते गे
क मयादा बनी है हम सभी के िास्ते, ब ने के भल प्रे रत भकया है ।
गजलकार ने संदेश देते कहा है भक
गर तु हें बनना है मोती सीप के अंदर भद ो । अपने प-रंग से सुंदर भद ने के
बजाय अपने कम से सुंदर भद ना
र जा फूल बनने से कोई नाजुक कली, ि यक है ।
तुम ना लते फूल पर भततली के टटे पर भद ो ।

कोई सी श्‍ ा तो मुझको भद े इस भीड़ में,


मैं भजसे दे ँ उसी में तुम मुझे अ्‍सर भद ो ।

( गजल मेरी इबादत है से)

33
शब्द संसार
स्वतर्णम पुं.भि.(सं.) = सोने के रंग का/सुनहला श्‍ि स्‍ती.सं.(अ.) = चेहरा
गद्ण स्‍ती.सं.(फा.) = धल धुंध स्‍ती.सं.(सं.) = धु ँ, कोहरा

स्वाधयाय

* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-


(१) गिि की पंत्‍ियों का िा पय्ण ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. नींि के अंदर भद ाे ------------ मनु य से अपे ा ँ
२. ईना बनकर भद ो ------------

( ) तिनके िर तनम्न शब्द हों, से प्रशन ियार कीतिए ः (4) तनम्नतिखिि पंत्‍ियों से प्रा िीवनमू य तिखिए
१. भीड़ १. पको महसस -------
२. जुगन ------- भीतर भद ो ।
३. भततली २. कोई सी श्‍ल -------
4. समान ------- मुझे अ्‍सर भद ो ।

(5) कृति पूर्ण कीतिए ः


गजल में प्रयु्‍त प्राकभतक टक
(६) कतव के अनुसार से तदिो ः

अत यख प्रस्िुि गिि की अपनी पसंदीदा तक ह चार पंत्‍ियों का क ीय ाव स्पष्‍ट कीतिए ।

‘यतद मेरा र अंि र म होिा,’ तवषय पर अस्सी से स शब्दों म


पयोतिि िेिन तनबंध िेिन कीतिए ।

34
३4
री की ह ी
- जगदीशचंद्र माथुर

पा
मा-सुभशभ त युिती, रामस्व प-उमा के भपता, प्रेमा-उमा
की माँ, शंकर-युिक, गोपाि प्रसाद-शंकर के भपता
रिन-रामस्ि प का नौकर प रचय
एक कमरा । अंदर के दरवािे से आिे ए तिन महाशय की
पी निर आ रही ह, वह अधे के ह । एक ि ि को
ि म ः १ १ , बुलंदशहर (उ.प्र.)
पक े ए कमरे म आिे ह । ि ि का दसरा तसरा नके न कर म यु ः १ 8
ने पक रिा ह । प रचय ः जगदीशचं मा ुर जी क
रामस्व प अबे धीरे-धीरे चल ।.... अब त त को उधर मोड़ दे... ि र साभह्‍यकार र संस्कभत
उधर । (ि ि के रिे िाने की आवाि आिी ह ।) पुरुष े । पने काशिाणी में
काम करते भहंदी को लोकभप्रय
रिन भबछा दें साहब बनाने में मह िपण योगदान भदया ।
रामस्व प (िरा िेि आवाि म) र ्‍या करेगा परमा्‍मा के यहाँ प प्रभसदध नाटककार के प में
अ बँट रही ी तो त देर से पहँुचा ा ्‍या ... भबछा दँ प्रभत त हैं ।
प्रमुि कृतियाँ ः कोणाक , पहला
साहब ... र यह पसीना भकसभल बहाया है राजा , भोर का तारा , शारदीया
रिन (ि ि तब ािा ह) हीं-हीं-हीं । भद ।
रामस्व प (दरी ािे ए) र बीबी जी के कमरे में से हारमोभनयम
उ ा ला र भसतार भी ।... ज दी जा (रिन िािा ह ।
पति-प नी ि ि पर दरी तब ािे ह ।)
प्रेमा लेभकन िह तु हारी लाड़ली बेटी उमा तो मुँह फुला पड़ी गद्य संबंधी
है ।
रामस्व प ्‍या प्रस्तुत कांकी में जगदीशचं
प्रेमा तु हीं ने तो कहा ा भक उसे ीक- ाक करके नीचे लाना । मा रु ने स्‍ती भश ा के मह ि को
भद ाया है । समाज के दभकयानसी
रामस्व प अरे हाँ, दे ो, उमा से कह देना भक जरा करीने से । भिचार पर प्रहार करते ले क ने
ये लोग जरा से ही हैं। ुद प े-भल े हैं, िकील हैं, नारी स मान को मह्‍्‍ि प्रदान भकया
सभा-सोसायभटय में जाते हैं मगर चाहते हैं भक लड़की है ।
यादा प ी-भल ी न हो ।
प्रेमा र लड़का
रामस्व प बाप सेर है तो लड़का सिा सेर । बी. स्सी. के बाद ल न
में ही तो प ता है मेभ कल कालेज में । कहता है भक शादी
का सिाल दसरा है, प ाई का दसरा । ्‍या क ँ, मजबरी
है ।

35
३5
रिन बाब जी, बाब जी (धीमी आवाि म)
रामस्व प (दरवािे से बाहर ाँककर) अरे प्रेमा, िे भी ग । ... तुम
उमा को समझा देना, ोड़ा-सा गा देगी । (मेहमानों से)
हँ-हँ-हँ । इ , इ बाबू गोपाि प्रसाद ब िे ह ।
हँ-हँ ... मकान ँ ने में कुछ तकलीफ तो नहीं ई
गो प्रसाद (िँिारकर) नहीं । ताँगेिाला जानता ा । रास्ता भमलता कसे
िेिनीय
नहीं
रामस्व प हँ-हँ-हँ (ि के की िर मुिातिब होकर) र कभह
शंकर बाब, भकतने भदन की छटभटयाँ हैं पके र की भकसी परंपरा
शंकर जी, कालेज की तो छटभटयाँ नहीं हैं । िीक ं में चला के बारे में र के बुजुग से
या ा । जानकारी प्राप्त कीभज ।
रामस्व प तो पके कोस ्‍म होने में ताे अब साल भर रहा होगा िह परंपरा उभचत है या
शंकर जी, यही कोई साल-दो साल । अनुभचत, इसपर अपना मत
श दांभकत कीभज ।
रामस्व प साल, दो साल
शंकर हँ-हँ-हँ ... जी काध साल का माभजन र ता हँ ।
गो प्रसाद (अपनी आवाि र िरीका बदििे ए) अ छा तो साहब,
भफर भबजनेस की बातचीत हो जा ।
रामस्व प (च ककर) ‘भबजनेस - (सम कर) ह ... अ छा,
अ छा । लेभकन जरा ना ता तो कर लीभज ।
गो प्रसाद यह सब प ्‍या तक ुफ करते हैंं
रामस्व प हँ-हँ-हँ तक ुफ भकस बात का। यह तो मेरी बड़ी तकदीर
है भक प मेरे यहाँ तशरीफ ला । (अंदर िािे ह ।)
गो प्रसाद (अपने ि के से) ्‍य , ्‍या
शंकर कुछ नहीं ।
गो प्रसाद झुककर ्‍य बै ते हो याह तय करने हो, कमर सीधी
करके बै ो । तु हारे दोस्त ीक कहते हैं भक शंकर की
बैकबोन - इिने म बाबू रामस्व प चाय की ‘‍टे’ िाकर मेि
पर रि देिे ह ।
गो प्रसाद र प माने नहीं
रामस्व प (चाय यािे म ाििे ए) हँ-हँ-हँ पको भिलायती चाय
पसंद है या भहंदस्तानी
गो प्रसाद नहीं-नहीं साहब, मुझे धा दध र धी चाय दीभज
र जरा चीनी भी यादा ाभल गा ।
शंकर (िँिारकर) सुना है, सरकार अब यादा चीनी लेने िाल पर
टै्‍स लगा गी ।

36
गो प्रसाद (चाय पीिे ए) सरकार जो चाहे सो कर ले पर अगर मदनी
करनी है तो सरकार को बस क ही टै्‍स लगाना चाभह ।
रामस्व प (शंकर को यािा पक ािे ए) िह ्‍या
गो प्रसाद बसरती पर टै्‍स (रामस्व प र शंकर हंस प िे ह ।)
मजाक नहीं साहब, यह सा टै्‍स है जनाब भक देने िाले चँ
भी न करेंगे ।
रामस्व प (िोर से हँसिे ए) िाह-िाह ब सोचा पने िाकई
जकल बसरती का सिाल भी बे ब हो गया है । हम सं ाषरीय
लोग के जमाने में तो यह कभी उ ता भी न ा । (िशिरी
गोपाि की िर ब ािे ह ।) लीभज । दहेज क अभभशाप
गो प्रसाद (समोसा ािे ए) कभी नहीं साहब, कभी नहीं । भिषय पर चचा कीभज ।
रामस्व प (शंकर की िर मुिातिब होकर) पका ्‍या याल है
शंकर बाब
शंकर भकस मामले में
रामस्व प यही भक शादी तय करने में बसरती का भहस्सा भकतना होना
चाभह
गो प्रसाद (बीच म ही) यह बात दसरी है बाब रामस्ि प, मैंने पसे
पहले भी कहा ा, लड़की का बसरत होना भनहायत ज री
है र जायचा (ि म प ) तो भमल ही गया होगा ।
रामस्व प जी, जायचे का भमलना ्‍या मु कल बात है । ाकुर जी के
चरण में र भदया । बस, ुद-ब- ुद भमला समभझ ।
शंकर ी हँसिा ह, मगर गोपाि प्रसाद गं ीर हो िािे ह ।
गो प्रसाद लड़भकय को अभधक प ने की ज रत नहीं है ।
भसलाई-पुराई कर लें बस ।
रामस्व प हँ-हँ (मेि को एक िर सरका देिे ह। त र अंदर के दरवािे
की िर मुँह कर िरा िोर से) अरे, जरा पान भभजिा देना...
मा पान की िशिरी अपने तपिा को देिी ह । स समय सका
चेहरा पर को िािा ह र नाक पर रिा आ सुनहरी
रमवािा चशमा दीििा ह। बाप-बे‍टे च क िे ह ।
गो प्रसाद
र शंकर (एक सार) च मा
रामस्व प (िरा सकपकाकर) जी, िह तो... िह... भपछले महीने में
इसकी ँ ें द ने लग गई ीं, सो कुछ भदन के भल च मा
लगाना पड़ रहा है ।
गो प्रसाद प ाई-ि ाई की िजह से तो नहीं है कुछ

37
रामस्व प नहीं साहब, िह तो मैंने अज भकया न ।
गो प्रसाद हँ । (संिु होकर क कोमि स्वर म) बै ो बेटी ।
रामस्व प िहाँ बै जा उमा, उस त त पर, अपने बाजे-िाजे के
पास । ( मा ब िी ह ।)
गो प्रसाद चाल में तो कुछ राबी है नहीं । चेहरे पर भी छभि है ।... हाँ,
कुछ गाना-बजाना सी ा है
रामस्व प जी हाँ भसतार भी र बाजा भी । सुना तो उमा काध गीत
भसतार के सा । मा तसिार पर मीरा का मश र िन ‘मेरे िो
तग रधर गोपाि’ गाना शु कर देिी ह । सकी आँि शंकर की
वरीय
पिी-सी आँिों से तमि िािी ह र वह गािे-गािे एक सार
रुक िािी ह ।
रामस्व प ्‍य , ्‍या गाने को परा करो उमा । भििाह में गा जाने िाले
गो प्रसाद नहीं-नहीं साहब, काफी है। पकी लड़की अ छा गाती है । पारंप रक मंगल गीत
सुभन त ा सुनाइ ।
( मा तसिार रिकर अंदर िाने को ब िी ह ।)
गो प्रसाद अभी हरो, बेटी
रामस्व प ोड़ा र बै ी रहो उमा ( मा ब िी ह ।)
गो प्रसाद ( मा से) तो तुमने पेंभटग-िेभटंग भी सी ी है ( मा चुप)
रामस्व प हाँ, िह तो मैं पको बताना भल ही गया । यह जो तस्िीर
टँगी ई है, कु्‍तेिाली, इसी ने बनाई है र िह उस दीिार
पर भी ।
गो प्रसाद हँ । यह तो ब त अ छा है । र भसलाई िगैरह
रामस्व प भसलाई तो सारे र की इसी के भज मे रहती है, यहाँ तक भक
मेरी कमीजें भी । हँ-हँ-हँ
गो प्रसाद ीक ।... लेभकन, हाँ बेटी, तुमने कुछ इनाम-भबनाम भी जीते
े मा चुप । रामस्व प इशारे के तिए िाँसिे ह िेतकन मा
चुप ह, सी िरह गरदन ुकाए । गोपाि प्रसाद अधीर हो िे
ह र रामस्व प सकपकािे ह ।
रामस्व प जिाब दो, उमा । (गोपाि से) हँ-हँ, जरा शरमाती है। इनाम
तो इसने-
गो प्रसाद (िरा िी आवाि म) जरा इसे भी तो मुँह ोलना चाभह ।
रामस्व प उमा, दे ो, प ्‍या कह रहे हैं । जिाब दो न ।
मा (ह की िेतकन मिबूि आवाि म) ्‍या जिाब दँ बाब जी
जब कुस -मेज भबकती है तब दकानदार कुस -मेज से कुछ
नहीं पछता भसफ रीददार को भद ला देता है । पसंद गई
तो अ छा है, िरना-

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38
रामस्व प (च ककर ि े हो िािे ह ।) उमा, उमा
मा अब मुझे कह लेने दीभज बाब जी ।
गो प्रसाद (िाव म आकर) बाब रामस्ि प, पने मेरी इ जत उतारने
के भल मुझे यहाँ बुलाया ा
मा (िेि आवाि म) जी हाँ, र हमारी बेइ जती नहीं होती जो
प इतनी देर से नाप-तौल कर रहे हैं
शंकर बाब जी, चभल । प नीय
गो प्रसाद ्‍या तुम कालेज में प ी हो (रामस्व प चुप)
मा जी हाँ, मैं कालेज में प ी हँ । मैंने बी. . पास भकया है । कोई पा में अं ेजी श द पभ
पाप नहीं भकया, कोई चोरी नहीं की र न पके पु‍त की र श दकोश की सहायता से
तरह लड़भकय के होस्टल में ताक-झाँककर कायरता भद ाई उनका भहंदी में अनुिाद कीभज ।
है । मुझे अपनी इ जत, अपने मान का याल तो है लेभकन
इनसे पभछ भक ये भकस तरह नौकरानी के पैर में पड़कर
अपना मुँह भछपाकर भागे े ।
रामस्व प उमा, उमा
गो प्रसाद (ि े होकर गुस्से म) बस हो चुका । बाब रामस्ि प पने
मेरे सा दगा भकया । पकी लड़की बी. . पास है र
पने मुझसे कहा ा भक भसफ मैभटक तक प ी है । (दरवािे
की र ब िे ह ।)
मा जी हाँ, जाइ , ज र चले जाइ लेभकन र जाकर जरा यह
पता लगाइ गा भक पके लाड़ले बेटे के री की ह ी भी
है या नहीं- याने बैकबोन, बैकबोन- बाबू गोपाि प्रसाद के
चेहरे पर बेबसी का गुस्सा ह र नके ि के के रुिासापन ।
दोनों बाहर चिे िािे ह । मा सहसा चुप हो िािी ह ।

( भोर का तारा कांकी सं ह से)

शब्द संसार
ि ि पुं.सं.(फा.) = लकड़ी की बनी ई िँिारना भ .(दे.) = ाँसना, गला साफ करना
बड़ी चौकी िक िु पुं.सं.(अ.) = भश टाचार
िशिरी स्‍ती.सं.(फा.) = छोटी ाली

39
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः
----- पभत-प्‍नी
-----
रामस्ि प-उमा -----
-----
र ते
----- शंकर-गोपाल
----- प्रसाद
नौकर-माभलक -----
-----

(२) कृति पूर्ण कीतिए ः

१. यािसाभयक भश ा के नाम २. शास्‍तीय संगीत में प्रयु्‍त िादय के नाम

( ) गोपाि प्रसाद की तष्‍ट म ब सी हो ः

(5) सूचनानुसार तिखिए ः


(4) कारर तिखिए ः
१. कदंत बनाइ
१. बाप-बेटे च क उ े - प ना समझना
२. उमा को च मा लगा -
सीना चाहना
३. रामस्ि प ने हारमोभनयम उ ाकर लाने को कहा -
4. उमा को गुस्सा या - २ शब्दयु म पूर्ण कीतिए ः
प े- .........., सभा- ..........,
पेंभटंग- .........., सीधा- ..........,

सुनी-प ी अंधतवशवास की तकसी ‍टना मंे तनतहि आधारहीनिा र अव ातनकिा का तवशिेषर


अत यख करके तिखिए ।

40
4
ाषा तबंद
(१) तनम्नतिखिि वा्‍यों म आए ए अ ययों को रेिांतकि कीतिए र नके ेद तदए गए स्रान पर तिखिए ः
वा्‍य अ यय ेद
® गाय को र के सामने ँटे से बांधा । --------------------
® िह उ ा र र चला गया । --------------------
® अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है । --------------------
® िह भारी कदम से गे ब ने लगा । --------------------
® उनह ने मुझे धीरे-धीरे भहलाना शु भकया । --------------------
® मुझे लगा भक ज भफर कोई द टना होगी । --------------------
® िाह-िाह ब सोचा पने --------------------
® चाची, माँ के पास चली गई । --------------------

(२) पा म प्रयु्‍ि अ यय ाँत‍टए र नसे वा्‍य बनाकर तिखिए ः


® भ याभिशेषण अ यय
१. ---------- २. ---------- िा्‍य =

® संबंधसचक अ यय
१. ---------- २. ---------- िा्‍य =

® समु यबोधक अ यय
१. ---------- २. ---------- िा्‍य =
® भिस्मयाभदबोधक अ यय
१. ---------- २. ----------िा्‍य =

( ) नीचे आकृति मंे तदए ए अ ययों के ेद पहचानकर नका अर्णपूर्ण स्विं वा्‍यों मंे प्रयोग कीतिए ः

हाय
काश प्राय
बाद र
बभ क के पास
यभद ...तो अ यय इसभल
िाह की तरफ
के अलािा कारण
के भल अ छा
्‍य भक नहीं .... तो

अपने प रसर म तवद्यातर्णयों के तिए ‘योगसाधना तशतवर’ का


पयोतिि िेिन आयोिन करने हेिु आयोिक के नािे तव ापन ियार कीतिए ।
4१
41
१ ेस
(पूरक प न) -फणीशवरनाथ रेणु

ते ी-बारी के समय, गाँि के भकसान भसरचन की भगनती नहीं करते । प रचय


लोग उसको बेकार ही नहीं, बेगार समझते हैं । इसभल ेत- भलहान
की मजदरी के भल कोई नहीं बुलाने जाता है भसरचन को । ्‍या होगा,
ि म ः १ २१, पभणया (भबहार)
उसको बुलाकर दसरे मजदर ेत प ँचकर क-भतहाई काम कर चुकगे, म यु ः १
तब कहीं भसरचन राय हा में ुरपी लाता भद ाई पड़ेगा पग ं ी प रचय ः भहंदी क ाधारा का रु
पर तौल-तौलकर पाँि र ता , धीरे-धीरे । मु त में मजदरी देनी हो बदलने िाले फणी िरना रेणु जी को
तो र बात है । जादी के बाद के प्रेमचंद की संज्ा
दी जाती है । पकी कहाभनय र
ज भसरचन को मु त ोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई । क उपनयास में ँचभलक जीिन की
समय ा, जब उसकी मड़ैया के पास बाब लोग की सिा रयाँ बँधी रहती धुन, गंध, लय-ताल, सुर-सुंदरता,
ीं । उसे लोग पछते ही नहीं े,उसकी ुशामद भी करते े । अरे, कु पता स्प ट प से भद ाई पड़ती
है । पकी भाषा-शैली में क जादई
भसरचन भाई अब तो तु हारे ही हा में यह कारीगरी रह गई है सारे इलाके
असर भमलता है ।
में । क भदन का समय भनकालकर चलो । बड़े भैया की भचट ी ई है प्रमुि कृतियाँ ः मैला च ँ ल,
शहर से-भसरचन से क जोड़ा भचक बनाकर भेज दो । परती प रक ा , जुलस (उपनयास),
मुझे याद है.. मेरी माँ जब कभी भसरचन को बुलाने के भल कहती, क भदम राभ‍त की महक , मरी ,
अ छे दमी (क ा सं ह), ण-
मैं पहले ही पछ लेता, भोग ्‍या-्‍या लगेगा जल-धनजल , नेपाली ांभतक ा
माँ हँसकर कहतीं, जा-जा बेचारा मेरे काम में पजा-भोग की बात ( रपोताज) भद ।
नहीं उ ाता कभी । पड़ोसी गाँि के पंचानंद चौधरी के छोटे लड़के को
क बार मेरे सामने ही बेपानी कर भदया ा भसरचन ने - तु हारी भाभी
ना न से ाँटकर तरकारी परोसती है र इमली का रस ालकर क ी तो
हम मामली लोग की रिाभलयाँ बनाती हैं । तु हारी भाभी ने कहाँ से गद्य संबंधी
बनाना सी ी हैं
इसभल भसरचन को बुलाने के पहले मैं माँ से पछ लेता ...। भसरचन प्रस्तुत ंचभलक कहानी
भबहार के ामीण जीिन पर धा रत
को दे ते ही माँ लसकर कहती, भसरचन ज नेन म रही
है । इस कहानी के मा यम से क ाकार
ी तो तु हारी याद ई । ी की ोरन के सा चड़ा तुमको ब त पसंद ने ामीण जीिन, सामाभजक संबंध,
है न... र बड़ी बेटी ने ससुराल से संिाद भेजा है, उसकी ननद ी कारीगरी, कारीगर के स्िाभभमान
ई है, मो ी की शीतलपाटी के भल । भद को बड़े ही सुंदर ंग से भचभ‍तत
भकया है ।
भसरचन अपनी पभनयायी जीभ को सँभालकर हँसता- ी की स धी
सुगंध सँ कर ही रहा ँ, काकी नहीं तो इस शादी- याह के मौसम में
दम मारने की भी छटटी कहाँ भमलती है

42
4२
भसरचन जाभत का कारीगर है । मैंने ंट बै कर उसके काम करने के
ंग को दे ा है । क- क मो ी र पटेर को हा में लेकर बड़े जतन से
उसकी कु ी बनाता । भफर कु य को रँगने से लेकर सुतली सुलझाने
मंे परा भदन समाप्त ।... काम करते समय उसकी तनमयता में जरा भी बाधा
पड़ी भक गे ँअन साँप की तरह फुफकार उ ता- भफर भकसी दसरे से
करिा लीभज काम भसरचन मँुहजोर है, कामचोर नहीं ।
भबना मजदरी के पेट भर भात पर काम करने िाला कारीगर दध में
कोई भम ाई न भमले तो कोई बात नहीं भकतु बात में जरा भी झाला िह नहीं
बरदा त कर सकता । िेिनीय
भसरचन को लोग चटोर भी समझते हैं । तली ब ारी ई तरकारी, दही
की क ी, मलाईिाला दध, इन सबका प्रबंध पहले कर लो, तब भसरचन
को बुला दम भहलाता हाभजर हो जा गा । ाने-पीने में भचकनाई लोक कला के नाम की
सची तैयार कीभज ।
की कमी ई भक काम की सारी भचकनाई ्‍म काम अधरा र कर उ
ड़ा होगा- ज तो अब अधकपाली दद से मा ा टनटना रहा है ।
ोड़ा-सा रह गया है, भकसी भदन कर परा कर दँगा । भकसी भदन माने
कभी नहीं
मो ी ास र पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीभलय की
भझलभमलाती भचक, सतरंगे ोर के मो े, भसी-चु ी र ने के भल मँज
की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलिाह के भल ताल के स े प्‍त की
छतरी-टोपी त ा इसी तरह के ब त-से काम हैं भजनहें भसरचन के भसिा
गाँि में र कोई नहीं जानता । यह दसरी बात है भक अब गाँि में से काम
को बेकाम का काम समझते हैं लोग । बेकाम का काम भजसकी मजदरी में
अनाज या पैसे देने की कोई ज रत नहीं । पेट भर ला दो, काम परा होने
पर काध पुराना-धुराना कपड़ा देकर भिदा करो । िह कुछ भी नहीं
बोलेगा ।...
कुछ भी नहीं बोलेगा सी बात नहीं, भसरचन को बुलाने िाले जानते
हैं, भसरचन बात करने में भी कारगर है ।... महाजन टोले के भ ज महाजन
की बेटी भसरचन की बात सुनकर भतलभमला उ ी ी- हरो मैं माँ से
जाकर कहती ँ । इतनी बड़ी बात
बड़ी बात ही है भबभटया बड़े लोग की बस बात ही बड़ी होती
है । नहीं तो दो-तीन पटेर की पाभटय का काम भसफ ेसारी का स्‍त
लाकर कोई करिा भला यह तु हारी माँ ही कर सकती है बबुनी
भसरचन ने मुस्कराकर जिाब भदया ा ।
इस बार मेरी सबसे छोटी बहन पहली बार ससुराल जा रही ी । मान
के द हे ने पहले ही बड़ी भाभी को भल कर चेतािनी दे दी है- मान के

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4३
सा भम ाई की पतीली न , कोई बात नहीं । तीन जोड़ी फशनेबल
भचक र पटेर की दो शीतलपाभटय के भबना गी मान तो ... भाभी
ने हँसकर कहा, बैरंग िापस इसभल , क सप्ताह पहले से ही भसरचन
को बुलाकर काम पर तैनात करिा भदया ा माँ ने- दे ाे भसरचन इस
बार नई धोती दँगी असली मोहर छापिाली धोती । मन लगाकर सा काम
करो भक दे ने िाले दे ते ही रह जा ँ ।
पान-जैसी पतली छरी से बाँस की तीभलयाँ र कमाभनय को
भचकनाता भसरचन अपने काम में लग गया । रंगीन सुतभलय में झ बे
ालकर िह भचक बुनने बै ा । े हा की भबनाई दे कर ही लोग समझ
ग भक इस बार कदम नये फशन की चीज बन रही है ।
मँझली भाभी से नहीं रहा गया । परदे की ड़ से बोली, पहले सा
जानती भक मोहर छापिाली धोती देने से ही अ छी चीज बनती है तो भैया प नीय
को बर भेज देती ।
देश की ्‍मा गाँिांे में
काम में यस्त भसरचन के कान मंे बात पड़ गई । बोला, मोहर बसती है, गांधीजी के इस
छापिाली धोती के सा रेशमी कुरता देेने पर भी सी चीज नहीं बनती भिचार से संबंभधत कोई ले
ब रया । मान दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है... मान दीदी का द हा पभ त ा इसपर स्िमत
अफसर दमी है प्रस्तुत कीभज ।
मँझली भाभी का मुँह लटक गया । मेरी चाची ने फुस-फुसाकर कहा,
भकससे बात करती है ब मोहर छापिाली धोती नहीं, मुँभगया ल ।
बेटी की भिदाई के समय रोज भम ाई जो ाने को भमलेगी । दे ती है न
दसरे भदन भचक की पहली पाँभत में सात तारे जगमगा उ े, सात रंग
के । सतभैया तारा अपने काम में मगन भसरचन को ाने-पीने की सुध
नहीं रहती । भचक में सुतली के फदे ालकर उसने पास पड़े सप पर भनगाह
ाली-भचउरा र गुड़ का क स ा ेला । मैंने ल य भकया, भसरचन की
नाक के पास दो रे ा ँ उभर । मैं दौड़कर माँ के पास गया । माँ,
ज भसरचन को कलेिा भकसने भदया है, भसफ भचउरा र गुड़
माँ रसोई र के अंदर पकिान भद बनाने में यस्त ी । बोली,
अरी मँझली, भसरचन को बुँभदया ्‍य नहीं देती
बुँभदया मैं नहीं ाता, काकी भसरचन के मुँह में भचउरा भरा
अा ा । गुड़ का ेला सप में क भकनारे पर पड़ा रहा, अछता ।
माँ की बोली सुनते ही मँझली भाभी की भ हें तन ग । मुट ी भर
बुँभदया सप में फककर चली गई ।
भसरचन ने पानी पीकर कहा, मँझली ब रानी अपने मैके से ई
भम ाई भी इसी तरह हा ोलकर बाँटती हैं ्‍या बस, मँझली भाभी
अपने कमरे में बै कर रोने लगी । चाची ने माँ के पास जाकर कहा- मुंह

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लगाने से भसर पर च ेगा ही ।... भकसी के नैहर-ससुराल की बात ्‍य
करेगा िह
मँझली भाभी माँ की दलारी ब है । माँ तमककर बाहर
ई- भसरचन, तुम काम करने हो, अपना काम करो । ब से
बतकुटटी करने की ्‍या ज रत भजस चीज की ज रत हो, मुझसे कहो ।
भसरचन का मुँह लाल हो गया । उसने कोई जिाब नहीं भदया । बाँस
में टँगे अधरे भचक में फदे ालने लगा ।
मान पान सजाकर बाहर बै क ाने में भेज रही ी । चुपके से पान का
क बीड़ा भसरचन को देती ई इधर-उधर दे कर बोली भसरचन दादा,
काम-काज का र पाँच तरह के लोग पाँच भकस्म की बात करेंगे । तुम
भकसी की बात पर कान मत दो । सं ाषरीय
भसरचन ने मुस्कराकर पान का बीड़ा मुँह में ले भलया । चाची अपने
कमरे से भनकल रही ी । भसरचन को पान ाते दे कर अिाक हो गई । पकी त ा प रिार के भकसी
भसरचन ने चाची को अपनी र अचरज से रते दे कर कहा, छोटी बड़े सदस्य की भदनचया की तुलना
चाची, जरा अपनी भ भबया का गमकौ जदा लाना । ब त भदन कीभज त ा समानता िं अंतर
... । बताइ ।
चाची कई कारण से जली-भुनी रहती ी भसरचन से । गुस्सा उतारने
का सा मौका भफर नहीं भमल सकता । झनकती ई बोली, तु हारी ब ी
ई जीभ में ग लगे । र में भी पान र गमकौ जदा ाते हो ...
चटोर कहीं के मेरा कलेजा धड़क उ ा... हो गया स्‍यानाश
बस, भसरचन की उँगभलय में सुतली के फदे पड़ ग । मानो, कुछ देर
तक िह चुपचाप बै ा पान को मुँह में ुलाता रहा भफर अचानक उ कर
भपछिाड़े पीक क या । अपनी छरी, हँभसया िगैरह समेट-सँभालकर
झोले में र े । टँगी ई अधरी भचक पर क भनगाह ाली र हनहनाता
ँगन से बाहर भनकल गया ।
मान कुछ नहीं बोली । चुपचाप अधरी भचक को दे ती रही ।...
सात तारे मंद पड़ ग ।
माँ बोलीं, जाने दे बेटी जी छोटा मत कर मान मेले से रीदकर
भेज दँगी ।
मैं भसरचन को मनाने गया । दे ा, क फटी ई शीतलपाटी पर
लेटकर िह कुछ सोच रहा है । मुझे दे ते ही बोला, बबु जी अब
नहीं । कान पकड़ता ँ, अब नहीं ।... मोहर छापिाली धोती लेकर ्‍या
क ँगा । कौन पहनेगा ... ससुरी ुद मरी, बेटे-बेभटयाें को ले गई अपने
सा । बबु जी, मेरी रिाली भजंदा रहती तो मैं सी ददशा भोगता
यह शीतलपाटी उसी की बुनी ई है । इस शीतलपाटी को छकर कहता ँ,

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अब यह काम नहीं क ंगा ।... गाँि भर में तु हारी हिेली में मेरी कदर होती
ी । अब ्‍या मैं चुपचाप िापस लौट या । समझ गया, कलाकार
के भदल में ेस लगी है । िह नहीं सकता ।
बड़ी भाभी अधरी भचक में रंगीन छींट का झालर लगाने लगी- यह
भी बेजा नहीं भद लाई पड़ता, ्‍य मान
मान कुछ नहीं बोली ।... बेचारी भकतु मैं चुप नहीं रह वरीय
सका- चाची र मँझली भाभी की नजर न लग जा इसमें भी
मान काे ससुराल प ँचाने मैं ही जा रहा ा ।
स्टेशन पर सामान भमलाते समय दे ा, मान बड़े जतन से अधरी भचक महारा ट में चला जाने िाले ल ु
उदयोग की जानकारी रेभ यो/
को मोड़कर भल जा रही है अपने सा । मन-ही-मन भसरचन पर गुस्सा
दरदशन पर सुभन र इसके
हो या । चाची के सुर-में-सुर भमलाकर कोसने को जी - कामचोर, मु य मुदद को भल ।
चटोर
गाड़ी ई । सामान च ाकर मैं दरिाजा बंद कर रहा ा भक
ेटफाम पर दौड़ते भसरचन पर नजर पड़ी- बबु जी उसने
दरिाजे के पास कर पुकारा ।
्‍या है मैंने ड़की से गरदन भनकालकर भझड़की के स्िर में
कहा । भसरचन ने पी पर लदे बोझ को उतारकर मेरी र
दे ा- दौड़ता या ँ ... दरिाजा ोभल मान दीदी कहाँ हैं क
बार दे ँ ।
मैंने दरिाजा ोल भदया ।
भसरचन दादा मान इतना ही बोल सकी ।
ड़की के पास ड़े होकर भसरचन ने हकलाते कहा, यह मेरी
र से है । सब चीजें हैं दीदी शीतलपाटी, भचक र क जोड़ी सनी
कुश की । गाड़ी चल पड़ी ।
मान मोहर छापिाली धोती का दाम भनकालकर देने लगी । भसरचन
ने जीभ को दाँत से काटकर, दोन हा जोड़ भद ।
मान फूट-फूटकर रो रही ी । मैं बं ल को ोलकर दे ने लगा-
सी कारीगरी, सी बारीकी, रंगीन सुतभलय के फद का सा काम,
पहली बार दे रहा ा ।
( फणी िरना रेणु की संपण कहाभनयाँ से)

46
4
शब्द संपदा
बेगार स्‍ती.सं.(फा.) = भबना मजदरी भद जबरदस्ती मुहावरे
भलया गया काम मुँह िाि होना = ोभधत होना
म या स्‍ती.सं.(दे.) = झ पड़ी ेस िगना = द ी होना, बुरा अनुभि
तचक पुं.सं.(दे.) = बाँस की तीभलय का बना परदा होना
मोरी स्‍ती.सं.(दे.) = क प्रकार की ास ‍ट- ‍टकर रोना = जोर-जोर से रोना
शीििपा‍टी स्‍ती.सं.(दे.) = चटाई मुँह ि‍टकाना = भनराश होना
मूँि स्‍ती.सं.(भहं.दे.) = क प्रकार का तण/ ास
किेवा पुं.सं.(भहं.दे.) = ना ता

स्वाधयाय

* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-


(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. भसरचन का मेहनताना

भसरचन को
ने िाले
काम
२. मान को उपहार में भमला

( ) वा्‍यों का तचि म िगाकर तिखिए ः ३. भसरचन को लोग कहते


१. सात तारे मंद पड़ ग ।
२. ये मेरी र से हैं । सब चीजें हैं दीदी ।
३. लोग उसको बेकार ही नहीं, बेगार समझते हैं ।
4. मान दीदी काकी की सबसे छोटी बेटी है ।

‘किा आर किाकार का सम्मान करना हमारा दातय व ह’, इस करन पर अपने तवचारों काे शब्दबद्ध
अत यख कीतिए ।

47
4
ाषा तबंद

(१) कोष् क की सूचना के अनुसार तनम्न वा्‍यों का काि प रवि्णन कीतिए ः


® अली र से बाहर चला जाता है । (सामानय भतकाल)
----------------------------------------
® राम हराम हो जाता है । (पण ितमानकाल िं पि भभि यकाल
----------------------------------------
® सरकार क ही टै्‍स लगाती है । (सामानय भभि यकाल)
----------------------------------------
® प इतनी देर से नाप-तौल करते हैं । (अपण ितमानकाल)
----------------------------------------
® िे बाजार से नई पुस्तक रीदते हैं । (पण भतकाल िं अपि भभि यकाल)
----------------------------------------
® िे पुस्तक शांभत से प ते हैं । (अपण भतकाल)
----------------------------------------
® सात तारे मंद पड़ ग । (अपण ितमानकाल)
----------------------------------------
® मैंने ड़की से गरदन भनकालकर भझड़की के स्िर में कहा । (अपण भतकाल)
----------------------------------------
(२) नीचे तदए गए वा्‍य का काि पहचानकर तनदशानुसार काि प रवि्णन कीतिए ः

मान को ससुराल प ँचाने मैं ही जा रहा ा । ---- काल

सामानय ितमानकाल -----------------------

सामानय भभि यकाल -----------------------


अपण भभि यकाल -----------------------
पण ितमानकाल -----------------------
सामानय भतकाल -----------------------
अपण ितमानकाल -----------------------
पण भतकाल -----------------------
पण भभि यकाल -----------------------

‘पुस्िक प्रदश्णनी म एक ं‍टा’ तवषय पर अस्सी से स शब्दों म


पयोतिि िेिन तनबंध िेिन कीतिए ।

48
48
११ कृषक गान
- सदनेश भारद्वाज

हा में संतोष की तलिार ले जो उड़ रहा है,


जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है, प रचय
दीनता अभभमान भजसका, ज उसपर मान कर लँ ।
उस कषक का गान कर लँ ।। ि म ः १ 4३, मुरैना (म.प्र.)
प रचय ः भदनेश भारदिाज जी की
रचना ँ जमीन से जुड़ी रहती हैं ।
चसकर म र्‍त भजसका, जगत में मधुरस बनाया, पकी रचना में अपने देश की
भमटटी की सुगंध ती है । पकी
क-सी भजसको बनाई, सजक ने भी धप-छाया, कहाभनयाँ, कभिता ँ, प‍त-पभ‍तका
मनुजता के िज तले, हिान उसका ज कर लँ । की शोभा ब ाती रहती हैं ।
उस कषक का गान कर लँ ।। कृतियाँ ः जनम र भजंदगी त णा
से त प्त तक (कभिता सं ह),
का्‍म (दोहा सं ह) भद ।
भि ि का पालक बन जो, अमर उसको कर रहा है,
भकतु अपने पाभलत के, पद दभलत हो मर रहा है,
ज उससे कर भमला, नि सभ ट का भनमाण कर लँ । पद्य संबंधी
उस कषक का गान कर लँ ।।
प्रस्तुत गीत कषक के जीिन पर
धा रत है । अ दाता कषक की
ीण भनज बलहीन तन को, पभ्‍तय से पालता जो, ददशा का िणन करते कभि
उसका मह्‍्‍ि ैर स मान पुन
सर को न से भनज, उिरा कर ालता जो,
स् ाभपत करना चाहता है ।
छोड़ सारे सुर-असुर, मैं ज उसका यान कर लँ ।
उस कषक का गान कर लँ ।।

यं‍तित जीभित बना है, माँगते अभधकार सारे,


रो रही पीभड़त मनुजता, ज अपनी जीत हारे,
जोड़कर कण-कण उसी के, नीड़ का भनमाण कर लँ ।
उस कषक का गान कर लँ ।।
( गीत का अितार गीत सं ह से)

49
4
शब्द संसार
मधुमास पुं. सं.(सं.) = िसंत तु सर भि.(सं.) = बंजर, अनुपजा
सिक पुं.सं.(सं.) = रचना करने िाला, सजक व्णरा स्‍ती. सं.(सं.) = उपजा भभम
मनुििा स्‍ती. सं.(सं.) = मनु यता नी पुं. सं.(सं.) = सला
पातिि भि.(सं.) = पाला , भ त

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) कृतियाँ पूर्ण कीतिए ः
१. कषक इन भस् भतय
में अभिचल रहता है
कभि की चाह

२. कभिता में प्रयु्‍त


( ) वा्‍य पूर्ण कीतिए ः तु के नाम
१. कषक कमजोर शरीर को ------
२. कषक बंजर जमीन को ------

(4) तनम्नतिखिि पंत्‍ियों मंे कतव के मन म कृषक के प्रति (5) कतविा म आए इन शब्दों के तिए प्रयु्‍ि
िागि होने वािे ाव तिखिए ः शब्द ह ः
पंत्‍ि ाव १. भनमाता -
१. आज उसपर मान कर लूँ २. शरीर -
३. रा स -
२. आह्वान उसका आज कर लूँ
4. मानि -
३. नव सृष्‍टि का षनमामाण कर लूँ
4. आज उसका ध्ान कर लूँ ।
(६) कतविा की प्ररम चार पंत्‍ियों का ावार्ण तिखिए ।
(७) तनम्न मुद्दों के आधार पर पद्य तवशिेषर कीतिए ः
रचनाकार कभि का नाम
रचना का प्रकार
पसंदीदा पंभ्‍त
पसंदीदा होने का कारण
रचना से प्राप्त प्रेरणा

5
50
दूसरी इकाई
१ बरषतहं ििद
- गोसवामी तुलसीदास

च पाई
न मं नभ गरजत ोरा । भप्रया हीन रपत मन मोरा ।।
दाभमभन दमक रहभहं न माहीं । ल क प्रीभत ज ा भ र नाहीं ।।
बरषभहं जलद भभम भनअरा ँ । ज ा निभहं बुध भिदया पा ँ ।। प रचय
बँद अ ात सहभहं भग र कसे । ल के बचन संत सह जैसे ।।
छ नदी भ र चली तोराई । जस ोरे ँ धन ल इतराई ।। ि म ः १5११, बाँदा (उ.प्र.)
म यु ः १ २३, िाराणसी (उ. प्र.)
भभम परत भा ाबर पानी । जनु जीिभहं माया लपटानी ।। प रचय ः गोस्िामी तुलसीदास ने
सभमभट-सभमभट जल भरभहं तलािा । भजभम सदगुन स जन पभहं िा ।। अिधी भाषा में अनेक कालजयी
ं भल े हैं । प प्रभस ध संत,
स रता जल जलभनभध म ँ जाई । होई अचल भजभम भजि ह र पाई ।। कभि, भि िान र भचंतक े ।
गोस्िामी जी संस्कत के
भि ान े । पने जनभाषा
दोहा अिधी में रचना ँ भल ीं । ज
से पाँच सौ िष पि जब प्रकाशन,
ह रत भभम तन संकुल, समुभझ परभह नभहं पं । दरदशन, रेभ यो जैसी सुभिधा ँ
भजभम पा ं भबबाद तें, लुप्त होभहं सद ं ।। नहीं ीं, से दौर में भी पका
ं रामच रतमानस जन-जन
को क स् ा । पके िारा
च पाई रभचत महाका य रामच रतमानस
को भि ि के लोकभप्रय प्र म सौ
दादर धुभन च ँ भदसा सुहाई । बेद प भहं जनु बट समुदाई ।। महाका य में मह्‍्‍िपण स् ान
प्राप्त है ।
नि प लि भ भबटप अनेका । साधक मन जस भमले भबबेका ।।
प्रमुि कृतियाँ ः रामच रतमानस
अक-जिास पात भबनु भयउ । जस सुराज ल उदयम गय ।। (महाका य), कभितािली ,
ोजत कत ं भमलइ नभहं धरी । करइ ोध भजभम धरमभहं दरी ।। भिनय पभ‍तका , गीतािली ,
दोहािली , हनुमान बा क ,
सभस संप सोह मभह कसी । उपकारी क संपभत जैसी ।। बरिै रामायण , जानकी मंगल
भनभस तम न दयोत भबराजा । जनु दंभभनह कर भमला समाजा ।। भद ।
कषी भनरािभहं चतुर भकसाना । भजभम बुध तजभहं मोह-मद-माना ।।
दे अत च बाक ग नाहीं । कभलभहं पाइ भजभम धम पराहीं ।।
भिभिध जंतु संकुल मभह ाजा । प्रजा बा भजभम पाई सुराजा ।।
जहँ-तहँ रहे पभ क भक नाना । भजभम इंभ य गन उपजे याना ।।

5१
51
दोहा
पद्य संबंधी
कब ँ प्रबल बह मारुत, जहँ-तहँ मे भबलाभहं । प्रस्तुत पदयांश गोस्िामी तुलसीदास
भजभम कपत के उपजे, कुल सदधम नसाभहं ।। रभचत रामच रतमानस महाका य के
भकभ कधा कां से भलया गया है । यह
कब ँ भदिस महँ भनभबड़ तम, कब ँक प्रगट पतंग । पदयांश चौपाई िं दोहा छंद मंे है । यहाँ
भबनसइ-उपजइ यान भजभम, पाइ कुसंग-सुसंग ।। गोस्िामी जी ने िषा तु मंे होने िाले
प रितन का सुंदर िणन भकया है । उनह ने
( रामच रतमानस के भकभ कधा कां से) िषा के सा -ही-सा समाज की भस् भत,
भिभिध गुण -दगुण काे भी दशाया है ।
उपरो्‍त प्रसंग सीताहरण के बाद का
है । ी राम-ल मण, सीता जी की ोज में
भटक रहे हैं । सीता जी के भबना ीराम
याकुल हैं । रामचं जी कहते हैं, समान
में बादल ोर गजना कर रहे हैं । प्‍नी सीता
के न होने से मेरा मन र रहा है । काश में
भबजली से चमक रही है जैसे द ट यभ्‍त
की भम‍तता भस् र नहीं रहती... ।

शब्द संसार
ोरा भि.(भहं.अिधी) = भयंकर अक पुं.सं.(सं.) = मदार (मंदार) का ि
रपि भ .(भहं.अिधी) = रना द्यम पुं.सं.(सं.) = उदयोग
िि भि.(सं.) = द ट कि ँ-अ यय.(भहं.अिधी) = कहीं
िरा भ .भि. (भहं.अिधी) = य ा, जैसे सोह भ .(भहं.अिधी) = सुशोभभत होना
तरर भि. (भहं.अिधी) = भस् र दंत ह भि.(भहं.अिधी) = मं ी
तनयराई भ . (भहं.अिधी) = नजदीक ना तनरावतहं भ .(भहं.अिधी) = भनराना ( ेती की प्रभ या)
नवतहं भ .(भहं.अिधी) = झुकना िितहं भ . (भहं.अिधी) = ्‍यागना
बुध पुं.(सं.) = भिदिान मद पुं.सं.(सं.) = मं
िोराई भ . (भहं.अिधी) = तोड़कर च बाक पुं.सं.(भहं.अिधी) = च िाक प ी
ाबर भि. (भहं.अिधी) = मटमैला ािा भ .(सं.) = शोभायमान होना
िप‍टानी भ . (भहं.अिधी) = भलपटना मारुि पुं.सं.(सं.) = हिा
तितम भ .भि.(भहं.भि.) = जैसे नसातहं भ .(भहं.अिधी) = न ट होना
ब‍ट पुं.सं.(सं.) = बालक तनतब भि.(भहं.अिधी) = ोर, ना
तव‍टप पुं.सं.(सं.) = पेड़, ि तबनसइ भ .(भहं.अिधी) = न ट होना

5२
52
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः (२) तनम्न अर्ण को स्पष्‍ट करने वािी पंत्‍ियाँ तिखिए ः
पदयांश में १. संत की सहनशीलता -------
प्राकभतक जल ोत २. कपत के कारण कुल की हाभन -------
( ) िातिका पूर्ण कीतिए ः
इनहें यह कहा है
(१) ------ बट समुदाय
(२) स जन के ------
सदगुण
(4) िोत याँ तमिाइए ः
अ समह उ्‍तर ब समह
१. दमकती भबजली अ द ट की भम‍तता
२. नि प लि से भरा ि ब साधक के मन का भििेक
३. उपकारी की संपभ्‍त क सभस संप प िी
4. भभम की माया से भलपटा जीि

(5) इनके तिए पद्यांश म प्रयु्‍ि शब्द


बादल पेड़

ह पौधा

उप ह प्‍ते

(६) प्रस्िुि पद्यांश से अपनी पसंद से की तक ह चार पंत्‍ियों का सरि अर्ण तिखिए ।

कहानी िेिन ः
पयोतिि िेिन ‘परतहि स रस धम्ण नतहं ाई’ इस सुवचन पर आधा रि
कहानी िेिन कीतिए ।
5३
53
२ दो ि ुकराएँ
-नरेंद्र छाबड़ा
(पूरक प न)

कगाि
इस िष बड़ी भीषण गरमी पड़ रही ी । भदन तो अंगारे
से तपे रहते ही े, रात में भी ल र उमस से चैन नहीं प रचय
भमलता ा । सोचा इस भलजभलजे र ुटनभरे मौसम से
राहत पाने के भल कुछ भदन पहाड़ पर भबता ँ । प रचय ः नरें छाबड़ा जाने-माने
अगले सप्ताह ही पितीय स् ल की या‍ता पर भनकल क ाकार हैं । कहाभनयाें के सा -
सा पने ब त-सी ल ुक ा ँ भी
पड़े । दो-तीन भदन में ही मन में सुकून-सा महसस होने भल ी हैं । पकी ल ुक ा ँ
लगा ा । िहाँ का प्राकभतक स दय, हरे-भरे पहाड़ गि से भिभभ प‍त-पभ‍तका में भनयभमत
सीना ताने ड़े, दी ता भसदध करते ि , पहाड़ की प से स् ान पाती रही हैं ।
नीरिता मंे ह का-सा शोर कर अपना अभस्त्‍ि भसदध करते प्रमुि कृतियाँ ः मेरी चुभनंदा
झरने, मन बदलाि के भल पयाप्त े । ल ुक ा ँ भद ।
उस भदन शाम के ि्‍त झील भकनारे टहल रहे े ।
क भुटटेिाला या र बोला- साब, भुटटा लेंगे ।
गरम-गरम भनकर मसाला लगाकर दंगा । सहज ही पछ
गद्य संबंधी
भलया- भकतने का है
पाँच रुपये का । यहाँ दो ल ुक ा ँ दी गई हैं ।
्‍या पाँच रुपये में क भुटटा । हमारे शहर मंे तो प्र म ल ुक ा में ले क ने यह
दो रुपये में क भमलता है, तुम तीन ले लो । दशाया है भक जब हम बड़ी दकान ,
माल, होटल में जाते हैं तो कोई
नहीं साब, पाँच से कम में तो नहीं भमलेगा ... मोल-भाि नहीं करते, चुपचाप पैसे
तो रहने दो... हम गे ब ग । दे, सामान ले, चले ते हैं । इसके
का क पैर भ क ग र मन में भिचार उ ा भक उलट जब हम रेहड़ीिाल , फेरीिाल
हमारे जैसे लोग पहाड़ पर मने का शौक र ते हैं हजार से सामान रीदते हैं तो मोल-भाि
करते हैं, हमें इस सोच से बचना
रुपये च करते हैं, अ छे होटल में रुकते हैं जो बड़ी चाभह ।
दकान में भबना दाम पछे च करते हैं पर गरीब से दो रुपये दसरी ल ुक ा में ले क ने
के भल भझक-भझक करते हैं, भकतने कगाल हैं हम उ टे र ित ोरी, टाचार पर करारा
कदम लौटा र बीस रुपये में चार भुटटे रीदकर चल पड़ा यं य भकया है । यहाँ ले क ने दशाया
है भक स्‍य का पालन ही ल य तक
अपनी राह । मन अब सुकून अनुभि कर रहा ा । प ँचने में सहायक होता है ।

54
वरीय
सही िर
बालक/बाभलका से संबंभधत
अब तक िह भकतने ही स् ान पर नौकरी के भल िेदन कर चुका
कोई भतहाभसक कहानी सुनकर
ा । सा ा्‍कार दे चुका ा । उसके प्रमाणप‍त की फाइल भी उसे सफलता उसका पांतरण संिाद में करके
भदलाने में नाकामयाब रही ी । हर जगह टाचार, र ित का बोलबाला क ा में सुनाइ ।
हाेने के कारण, यो यता के बािजद उसका चयन नहीं हो पाता ा । हर र
से अब िह भनराश हो चुका ा । ट सामाभजक यिस् ा को कोसने के
अलािा उसके िश में र कुछ तो ा नहीं ।
ज भफर उसे सा ा्‍कार के भल जाना है । अब तक देशप्रेम, नैभतकता,
िेिनीय
भश टाचार, ईमानदारी पर अपने तकपण भिचार बड़े भि िास से र ता या
ा लेभकन इसके बािजद उसके भहस्से में भसफ असफलता ही ई ी ।
पहाड़ पर रहने िाले लोग की
सा ा्‍कार के भल उपभस् त प्रभतभनभध मं ल में से क अभधकारी ने
जीिन शैली की जानकारी प्राप्त
पछा- टाचार के बारे में पकी ्‍या राय है करके अपनी जीिन शैली से उसकी
टाचार क सा कीड़ा है जो देश को ुन की तरह ा रहा है । इसने तुलना करते भल ।
सारी सामाभजक यिस् ा को भचंताजनक भस् भत में प ँचा भदया है । सच कहा
जा तो यह देश के भल कलंक है... । अभधका रय के चेहरे पर
हलकी-सी मुसकान र उ्‍सुकता छा गई । उसके तक में उनहें रुभच महसस
होने लगी । दसरे अभधकारी ने प्र न भकया- र ित को प ्‍या मानते
हैं प नीय
यह टाचार की बहन है जैसे भिशेष अिसर पर हम अपने भप्रयजन ,
अपनी पसंद की कोई सामाभजक
प रभचत , भम‍त को उपहार देते हैं । इसका स्ि प भी कुछ-कुछ िैसा ही है ई-बुक पभ ।
लेभकन उपहार देकर हम केिल ुभशय या कत य का दान-प्रदान करते
हैं । इससे अभधक कुछ नहीं जबभक र ित देने से रुके काय, दबी ई
फाइलें, टलती ई पदो भत, रोकी गई नौकरी अाभद में इसके कारण सफलता
हाभसल की जा सकती है । तब भी यह समाज के मा े पर कलंक है, इसका
सम न कतई नहीं भकया जा सकता, सी मेरी धारणा है । कहकर िह तेजी
से बाहर भनकल या । जानता ा भक यह ं भी चयन नहीं होगा । सं ाषरीय
पर भीतर बै े अभधका रय ने... गंभीरता से भिचार-भिमश करने के बाद
युिक के सही उ्‍तर की दाद देते उसका चयन कर भलया । ज िह शहर र महानगर का यांभ‍तक
जीिन भिषय पर बातचीत
समझा भक स्‍य कुछ समय के भल भनराश हो सकता है, परास्त नहीं ।
कीभज ।
( मेरी चुभनंदा ल ुक ा ँ से)

55
शब्द संसार
ीषर भि.(सं.) = भयानक रशवि स्‍ती.सं.(अ.) = स
तिितििे भि.पुं.(अ.) = सीलनभरा मुहावरे
नीरविा स्‍ती.सं.(सं.) = कांत, कदम शांत सीना िानकर ि े रहना = भनभय होकर ड़े रहना
कगाि भि.(भहं.) = गरीब, भनधन बोिबािा होना = प्रभाि होना
सा ा कार पुं.सं.(सं.) = मुलाकात दाद देना = प्रशंसा करना

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) िर तिखिए ः

मौसम सा ा
गरमी की
भिशेषता ँ
( ) कारर तिखिए ः
१. युिक को पहले नौकरी न भमल सकी .............
२. रकार अभधका रय दिारा युिक का
चयन कर भलया गया .............
(4) कृति पूर्ण कीतिए ः
(5) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
ले क के मन प रितन के
लोग र ित देकर ये लाभ
कारण
उ ाते हैं

अत यख ‘ ष्‍टाचार एक किंक’ तवषय पर अपने तवचार तिखिए ।

56
5
ाषा तबंद

(१) अर्ण के आधार पर तनम्न वा्‍यों के ेद तिखिए ः


१. ्‍या पैसा कमाने के भल गलत रास्ता चुनना उभचत है
२. इस िष भीषण गरमी पड़ रही ी ।
३. प उन गहन की भचंता न करें ।
4. सुनील, जरा ाइिर को बुला ।
5. अपने समय के ले क में प भकनहें पसंद करते हैं
. सैकड़ मनु य ने भोजन भकया ।
. हाय भकतनी भनदयी ँ मैं ।
8. काकी उ ो, भोजन कर लो ।
. िाह कसी सुगंध है ।
१ . तु हारी बात मुझे अ छी नहीं लगी ।

(२) कोष् क की सूचना के अनुसार तनम्न वा्‍यों म अर्ण के आधार पर प रवि्णन कीतिए ः
१. ोड़ी बातें । (भनषेधा क िा्‍य)
२. मान इतना ही बोल सकी । (प्र ना क िा्‍य)
३. मैं ज रात का ाना नहीं ा गा । (भिधाना क िा्‍य)
4. गाय ने दध देना बंद कर भदया । (भिस्मया क िा्‍य)
5. तु हें अपना याल र ना चाभह । ( ज्ा क िा्‍य)
( ) प्ररम इकाई के पा ों म से अर्ण के आधार पर तवत प्रकार के पाँच वा्‍य ँ कर तिखिए ।
(4) रचना के आधार पर वा्‍यों के ेद पहचानकर कोष् क म तिखिए ः
१. अभधका रय के चेहरे पर हलकी-सी मुस्कान र उ्‍सुकता छा गई । -------
२. हर र से अब िह भनराश हो गया ा । -------
३. उसे दे -दे बड़ा जी करता भक मौका भमलते ही उसे चला । -------
4. िह ब ी काकी पर झपटी र उनहंे दोन हा से झटककर बोली । -------
5. मोटे तौर पर दो िग भक जा सकते हैं । -------
. अभी समाज में यह चल रहा है ्‍य भक लोग अपनी जीभिका शरीर म से चलाते हैं -------
(5) रचना के आधार पर तवत प्रकार के िीन-िीन वा्‍य पा ों से ँ कर तिखिए ।

पयोतिि िेिन ‘िि ह िो कि ह’ तवषय पर अस्सी से स शब्दों म तनबंध तिखिए ।

5
57
म साधना
- श्ीकृष्णदास जाजू

गुलामी की प्र ा संसार भर में हजार िष तक चलती रही । उस लंबे


अरसे में भिदिान त्‍्‍ििे्‍ता र साधु-संत के रहते भी िह चलती
रही । गुलाम लोग ुद भी मानते े भक िह प्र ा उनके भहत में है भफर मनु य प रचय
का भििेक जागत । अपने जैसे ही हाड़-मांस र द की भािना
र ने िालाें को क दसरा बलिान मनु य गुलामी में जकड़ र े, ्‍या यह ि म ः १88२, अकासर (राजस् ान)
म यु ः १ 5, जयपुर (राजस् ान)
बात नयायोभचत है, यह प्र न सामने या । इसको हल करने के भल
प रचय ः ीक णदास जी १ २ में
पस में युदध भी । अंत में गुलामी की प्र ा भमटकर रही । इसी प्रकार महा्‍मा गांधीजी के संपक में
राजा की संस् ा की बात है । जगत भर में हजार िष तक यभ्‍तय र देशसेिा के काय में जुट ग ।
का, बादशाह का रा य चला पर अंत मंे ्‍या भकसी क यभ्‍त को पको लोग स मान स्ि प
तपोधन कहते े ।
हजार दभमय को अपनी कूमत में र ने का अभधकार है, यह प्र न प्रमुि कृतियाँ ः स्िरा य प्रा प्त मंे,
ड़ा । उसे हल करने के भल अनेक न ोर युदध र सभदय सुधारक मीराबाई , जीिन का
तक कहीं-न-कहीं झगड़ा चलता रहा । असं य लोग को यातना ँ सहन ताभ्‍िक अभध ान भद । इसके
करनी पड़ीं । अंत मंे राजप्र ा भमटकर रही र राजस्‍ता प्रजा के हा में अभत र्‍त अनेक पुस्तक के संपादन
में पका सराहनीय योगदान रहा है ।
ई । हजार िष तक चलती ई मानयता ँ छोड़ देनी पड़ीं । सी ही कुछ
बातें संपभ्‍त के स्िाभम्‍ि के बारे में भी हैं ।
संपभ्‍त के स्िाभम्‍ि र उसके अभधकार की बात जानने के भल
यह समझना ज री है भक संपभ्‍त भकसे कहते हैं र िह बनती कसे है
म तौर से माना जाता है भक रुपया, नोट या सोना-चाँदी का गद्य संबंधी
भस्‍का ही संपभ्‍त है, लेभकन यह याल गलत है ्‍य भक ये तो संपभ्‍त के
माप-तौल के साधन मा‍त हैं । संपभ्‍त तो िे ही चीजें हो सकती हैं जो यह पा क िैचा रक भनबंध
भकसी-न-भकसी प में मनु य के उपयोग में ती हैं । उनमें से कुछ सी है । इस भनबंध में ले क ने मानिीय
जीिन, संपभ्‍त के स्िाभम्‍ि, मनु य
हैं भजनके भबना मनु य भजंदा नहीं रह सकता िं कुछ, सु -सुभिधा र
की प्रा भमक ि यकता ँ,
राम के भल होती हैं । अ , िस्‍त र मकान मनु य की प्रा भमक शारी रक िं बौदभधक म भद
ि यकता ँ हैं, भजनके भबना उसकी गुजर-बसर नहीं हो सकती । इनके का भिशद भििेचन भकया है ।
अलािा दसरी अनेक चीजें हैं भजनके भबना मनु य रह सकता है । ले क ने यहाँ म की प्रभत ा
स् ाभपत करते भ क-
प्र न उ ता है भक संपभ्‍त पी ये सब चीजें बनती कसे हैं सभ ट में सामाभजक समानता पर भिशेष बल
जो नानाभिध य त ा प्राकभतक साधन हैं, उनको लेकर मनु य शरीर म भदया है ।
करता है, तब यह काम की चीजें बनती हैं । अत संपभ्‍त के मु य साधन
दो हैं सभ ट के य र मनु य का शरीर म । यं‍त से कुछ चीजें बनती
भद ती हैं पर िे यं‍त भी शरीर म से बनते हैं र उनको चलाने में भी

58
58
प्र्‍य या अप्र्‍य शरीर म की ि यकता होती है । केिल
बौदभधक म से कोई उपयोग की चीज नहीं बन सकती अ ात भबना शरीर
म के संपभ्‍त का भनमाण नहीं हो सकता ।
संपभ्‍त के स्िाभम्‍ि में शरीर म करने िाल का स् ान ्‍या है जो
प्र्‍य शरीर म के काम करते हैं उनहें तो गरीबी या क ट में ही अपना
जीिन भबताना पड़ता है र उनहीं के दिारा उ्‍पाभदत संपभ्‍त दसरे ोड़े से
हा में ही इकट ी होती रहती है । मजीभिय की बनाई ई चीजें
यापा रय या दसर के हा में जाकर उनके लेन-देन से कुछ लोग मालदार
बन जाते हैं । िष भर मेहनत कर भकसान अ पैदा करता है लेभकन ब त
दफा तो उसकी ुद की ि यकता ँ भी परी नहीं होतीं पर िही अनाज
यापा रय के पास जाकर उनको धनिान बनाता है । संपभ्‍त बनाते हैं
मजदर र धन इकट ा होता है उनके पास जो केिल यिस् ा करते हैं,
मजदरी नहीं करते ।
जीिन भनिाह या धन कमाने के भल अनेक यिसाय चल रहे हैं । प नीय
इनके मोटे तौर पर दो िग भक जा सकते हैं । कुछ यिसाय ेसे हैं, भजनमें
शरीर म ि यक है र कुछ से हैं जो बुदभध के बल पर चला जाते महा्‍मा गांधी के मप्रभत ा
हैं । पहले प्रकार के यिसाय को हम मजीभिय के यिसाय कहें र र अभहंसा संबंधी भिचार
प कर चचा कीभज ।
दसर को बुदभधजीभिय के । राज-काज चलाने िाले मं‍ती अाभद त ा
राज के कमचारी चे- चे पद से लेकर नीचे के ्‍लक तक, नयायाधीश,
िकील, ा्‍टर, अ यापक, यापारी भद से हैं जो अपना
भरण-पोषण बौदभधक काम से करते हैं । शरीर म से अपना भनिाह करने
िाले हैं- भकसान, मजदर, ब ई, राज, लुहार भद । समाज के यिहार
के भल इन बुदभधजीभिय र मजीभिय , दोन प्रकार के लोग की
ज रत है पर सामाभजक भ ट से इन दोन के यिसाय के म य में ब त
फक है ।
बुदभधजीभियांे का जीिन मजीभिय पर धा रत है । सा होते
भी दभा य यह है भक मजीभिय की मजदरी िं मदनी कम है, समाज
में उनकी प्रभत ा नहीं र उनको अपना जीिन प्राय क ट में ही भबताना
पड़ता है ।
यापारी र उदयोगपभतय के भल अ शास्‍त ने यह भनयम बताया
है भक रीद सस्ती-से-सस्ती हो र भब ी महँगी-से-महँगी । मुनाफे
की कोई मयादा नहीं । जो कार ाना मजदर के शरीर म के भबना चल ही
नहीं सकता, उसके मजदर को हजार-पाँच सौ माभसक से अभधक भले ही
न भमले, पर यिस् ापक र पँजी लगाने िाल को हजार -ला का
भमलना गलत नहीं माना जाता ।

5
59
मनु य समाज में रहने से अ ात समाज की कपा से ही यिहार चलाने
लायक बनता है । बालक प्रा भमक शाला से लेकर देश-भिदेश के
चे-से- चे महाभिदयालय में सी कर जो यो यता प्राप्त करता है, िे
भश ालय या तो सरकार दिारा चला जाते हैं, भजनका च म जनता
से टै्‍स के प में िसल भक पैसे से चलता है या दानी लोग की कपा
से । जो कुछ प ने की फीस दी जाती है, िह तो च के भहसाब से नग य
है । उसको समाज का अभधक कतज् रहना चाभह भक उस पैसे के बल पर
िह भिदया प कर यो यता प्राप्त कर सका । इस सारी भश ा में जो कुछ
ज्ान भमलता है, िह भी हजार िष तक अनेक तपभस्िय ने मेहनत करके
जो कण-कण सं हीत कर र ा है, उसी के बल पर भमलता है । यापारी
र उदयोगपभत भी यापार की कला भिदयालय से, अपने साभ य से िं
समाज से प्राप्त करते हैं ।
जब अपनी यो यता प्राप्त करने में हमारा ुद का भहस्सा अ पतम है वरीय
र समाज की कपा का अंश अ्‍यभधक तो हमें जो यो यता प्राप्त ई है
उसका उपयोग समाज को अभधक-से-अभधक देना र उसके बदले में
भ क भिषमता को दर करने
समाज से कम-से-कम लेना, यही नयाय त ा हमारा कत य माना जा िाले उपाय के बारे में सुनकर
सकता है । चल रहा है कुछ उ टा ही । यभ्‍त समाज को कम-से-कम क ा में सुनाइ ।
देने की इ छा र ता है, समाज से अभधक-से-अभधक लेने का प्रय्‍न
करता है, कुछ भी न देना पड़े तो उसे रंज नहीं होता ।
यह गंभीर बुभनयादी सिाल है भक ्‍या बुदभध का उपयोग भिषम
यिस् ा को कायम र कर पैसे कमाने के भल करना उभचत है यह तो
साफ दी ता है भक अाभ क भिषमता का क मु य कारण बुदभध का सा
उपयोग ही है । शोषण भी प्राय उसी से होता है । समाज में जो अाभ क
र सामाभजक भिषमता ँ चल रही हैं र भजससे शोषण, अशांभत होती
है, उसे भमटाने के भल जगत में अनेक योजना ँ अब तक सामने र
इनमें कुछ पर अमल भी हो रहा है । अभहंसा दिारा यह जभटल प्र न हल
करना हो तो गांधीजी ने इस शय का स‍त बताया, पेट भरने के भल
हा -पैर र ज्ान प्राप्त करने र ज्ान देने के भल बुदभध । सी यिस् ा
हो भक हर क को चार ंटे शरीर म करना पड़े र चार ंटे बौदभधक
काम करने का मौका भमले र चार ंट के शरीर म से इतना भमल जा
भक उसका भनिाह चल सके ।
अभी समाज में यह चल रहा है भक ब त से लोग अपनी जीभिका
शरीर म से चलाते हैं र ोड़े बौदभधक म से । भजनके पास संपभ्‍त
अभधक है, िे राम में रहते हैं । अनेक लोग में म करने की दत भी
नहीं है । इस दशा में उ्‍त भनयम का अमल होना दर की बात है भफर भी

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उसके पीछे जो त य है, िह हमें स्िीकार करना चाभह भले ही हमारी
दबलता के कारण हम उसे ीक तरह से न भनभा सक ्‍य भक जीभिका
की साधन-साम ी भकसी-न-भकसी के म भबना हो ही नहीं सकती ।
इसभल भबना शरीर म भक उस साम ी का उपयोग करने का नयायोभचत
अभधकार हमें नहीं भमलता । अगर पैसे के बल पर हम साम ी रीदते हैं तो
उस पैसे की जड़ भी अंत में म ही है ।
धभनक लोग अपनी यादा संपभ्‍त का उपयोग समाज के भहत में टस्टी
के तौर पर करें । संपभ्‍त दान यज् र भदान यज् का भी र शय
्‍या है अपने पास ि यकता से जो कुछ अभधक है, उसपर हम अपना
अभधकार न समझकर उसका उपयोग दसर के भल करें ।
यह भी बहस चलती है भक धभनक के दान से सामाभजक उपयोग के
अनेक बड़े-बड़े काय होते हैं जैसे भक अस्पताल, भिदयालय भद । अगर सं ाषरीय
यभ्‍तय के पास संपभ्‍त इकट ी न हो तो समाज को ये लाभ कसे
भमलंेगे
िास्ति में जब संपभ्‍त ोड़े-से हा में बँधी न रहकर समाज में फली ितमान युग में सभी ब के
भल ेल-कूद र भश ा के
रहेगी तो सहकार पदधभत से बड़े पैमाने पर से काम सानी से चलने समान अिसर प्राप्त हैं, भिषय
लगेंगे र उनका लाभ लेने िाले, याचक या दीन की तरह नहीं, स मानपिक पर चचा करते अपना मत
लाभ उ ा ँगे । प्रस्तुत कीभज ।
अ शास्‍ती कहते हैं भक उ्‍पादन की प्रेरणा के भल यभ्‍त को स्िा
के भल अिसर देने ह गे िरना देश में उ्‍पादन र संपभ्‍त नहीं ब
सकेगी, बचत भी नहीं होगी । अनुभि बताता है भक पँजी, गरीबी या बेकारी
की समस्या हल नहीं कर सकी है । नैभतक भ ट से भी स्िा िभ्‍त का
पोषण करना यो य नहीं है । ब त करके स्िा का अ होता है परा की
हाभन । उसी में से स्पधा ब ती है, भजसके फलस्ि प कुछ ोड़े से लोग
ही लाभ उ ा सकते हैं, ब सं यक को तो हाभन ही प ँचती है । मानिोभचत
सहयोग की जगह जंगल का कानन या म्‍स्य नयाय चलता है । र यह
दे ना है भक समाज का क याण भकस िभ्‍त से होगा अगर समाज में
स्िा िभ्‍त के लोग अभधक ह , तो ्‍या क याण की शा र ी जा
सकती है समाज तो परोपकार िभ्‍त के बल पर ही चा उ सकता है ।
संपभ्‍त ब ाने के भल स्िा का धार दोषपण है ।
इस संबंध में कुछ भाई अमे रका का उदाहरण पेश करते हैं । कहते हैं
भक भजनके पास संपभ्‍त इकट ी ई है, उनपर कर लगाकर क याणकारी
रा य की स् ापना की जा । उसी धार पर भारत को क याणकारी
(िे फेयर) रा य बनाने की बात चली है । क याणकारी रा य का अ यह
समझा जाता है भक सब तरह के दबल को रा यस्‍ता दिारा मदद भमले

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अ ात बड़े पैमाने पर कर िसल करके उससे गरीब को सहारा भदया
जा । भारत जैसे देश में ्‍या इस बात का बन पाना संभि है प्रा भमक
ि यकता ंे के बारे में मनु य अपने पैर पर ड़े रहने लायक भबना
स्ितं‍त नहीं रह सकता, भकसी-न-भकसी प्रकार उसे पराधीन रहना होगा ।
हमारी सामाभजक भिचारधारा में क बड़ा भारी दोष है । हम
शरीर म करना नहीं चाहते िरन उसे हीन भ ट से दे ते हैं र भजनको
शरीर म करना पड़ता है, उनहें समाज में हीन दज का मानते हैं । अमीर
या गरीब, कोई भी म करना नहीं चाहता । धभनक अपने पैसे के बल से
नौकर दिारा अपना काम चला लेता है । गरीब भ की लाचारी से म
करता है । हमें यह िभ्‍त बदलनी चाभह । शरीर म की केिल प्रभत ा िेिनीय
स् ाभपत कर संतोष नहीं मानना है । उसके भल हमारे भदल में प्रीभत होनी
चाभह । ज भमक भी कत यपरायण नहीं रहा है । म की प्रभत ा
ब ाना उसी के हा है । भजस म में समाज को भजंदा र ने की मता है, मेिे फलते म की ाल
भिषय पर अपनी भल त
उस म का सही म य अगर भमक जान लेगा तो देश में भ क ांभत अभभ यभ्‍त दीभज ।
होने में देर नहीं लगेगी ।
गांधीजी ने म र भमक की प्रभत ा स् ाभपत करने के भल ही
रचना्‍मक कायाे को लोक चेतना का मा यम बनाया । उनकी मानयता के
अनुसार हरेक को भन्‍य उ्‍पादक म करना ही चाभह । यह उनह ेने म
र भमक की प्रभत ा कायम करने के भल भकया ।
अब कुछ समय से जगत के सामने दया की जगह समता का भिचार
या है । यह भिषमता कसे दर हो कहीं-कहीं लोग ने भहंसा का माग
हण भकया उसमें अनेक बुराइयाँ भनकलीं जो अब तक दर नहीं हो सकी
हैं । भिषमता दर करने में कानन भी कुछ मदद देता है परंतु कानन से
मानिोभचत गुण का, सदभािना का भिकास नहीं हो सकता । महा्‍मा जी
ने हमें जो अभहंसा की भिचारधारा दी है, उसके प्रभाि का कुछ अनुभि
भी हम कर चुके हैं । भारत की परंपरा का याल करते यह संभि
दी ता है भक भिषमता का प्र न ब त कुछ हद तक अभहंसा के इस माग
से हल हो सकना संभि है । इसमें धभनक से परा सहयोग भमलना चाभह ।
जैसे राजनीभतक स्िरा य का प्र न काफी हद तक अभहंसा के माग से
सुलझा िैसे ही भ क र सामाभजक समता का प्र न भी भारत मंे
अभहंसा के माग से सुलझेगा, सी हम दधा र ें ।
( राजनीभत का भिक प से)

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शब्द संसार
ि ववे िा पुं.भि.(सं.) =त्‍्‍िज् मुहावरा
कमि स्‍ती.सं.(अ.) = शासन गुिर-बसर हाेना = जीभिका चलना
द ा स्‍ती.सं.(अ.) = बार, मरतबा

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) िर तिखिए ः
१. यापारी र उदयोगपभतय के भल अ शास्‍त दिारा बना ग नये भनयम -
२. संपभ्‍त के दो मु य साधन -
३. समाप्त दो प्र ा ँ -
4. क याणकारी रा य का अ -
(२) कृति पूर्ण कीतिए ः

गांधीजी दिारा शोषण त ा अशांभत भमटाने के भल बता ग स‍त

( ) िुिना कीतिए ः
बुद्तधिीवी मिीवी
१. ---------------- ----------------
२. ---------------- ----------------
(4) तिखिए ः
दान से ये काय बनते हैं- यापार की कला इनसे प्राप्त होती है -

(5) पा म प्रयु्‍ि ‘इक’ प्र यययु्‍ि शब्दों को ँ कर तिखिए िरा नम से तक ह चार का स्विं वा्‍यों म प्रयोग
कीतिए ।
(६) पा म क से शब्द ह, तिनके तविोम शब्द ी पा म ही प्रयु्‍ि ए ह, से शब्द ँ कर तिखिए ।
‘समाि परोपकार वत ि के बि पर ही चा सकिा ह’, इस करन से संबंतधि
अत यख अपने तवचार तिखिए ।

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ाषा तबंद

(१) तनम्न वा्‍यों म अधोरेिांतकि शब्द समूह के तिए कोष् क म तदए गए मुहावरों म से तचि मुहावरे का चयन कर
वा्‍य त र से तिखिए ः
इ जत उतारना, हा फेरना, काँप उ ना, भतलभमला जाना, दम भहलाना, बोलबाला होना
१. करामत अली हौले-से ल मी से स्नेह करने लगा ।
िा्‍य = ---------------------------------------------------
२. सािजभनक अस्पताल का याल ते ही मैं भयभीत हो गया ।
िा्‍य = ---------------------------------------------------
३. ्‍या पने मुझे अपमाभनत करने के भल यहाँ बुलाया ा
िा्‍य = ---------------------------------------------------
4. भसरचन को बुला , चापलसी करता हाभजर हो जा गा ।
िा्‍य = ---------------------------------------------------
5. पंभ त बुदभधराम काकी को दे ते ही ोध में ग ।
िा्‍य = ---------------------------------------------------

(२) तनम्नतिखिि मुहावरों का अर्ण तििकर नका अर्णपूर्ण वा्‍यों म प्रयोग कीतिए ः
१. गुजर-बसर करना
२. गला फाड़ना
३. कलेजे में क उ ना
4. सीना तानकर ड़े रहना
5. टाँग अड़ाना
. जेब ीली होना
. भनजात पाना
8. फूट-फूटकर रोना
. मन तरंगाभयत होना
१ . मुँह लटकाना

( ) पा ्यपुस्िक म आए मुहावरों का अपने वा्‍यों म प्रयोग कीतिए ।

पयोतिि िेिन तनम्न शब्दों के आधार पर कहानी िेिन कीतिए ः


भमटटी, चाँद, रगोश, कागज

644
4 ापा
- ओमप्रकाश ‘आसदत्य’

मेरे र छापा पड़ा, छोटा नहीं ब त बड़ा


िे , र में ुसे, र बोले-सोना कहाँ है प रचय
मैंने कहा-मेरी ँ में है, कई रात से नहीं सोया ँ
िे रोष मंे कर बोले-स्िण दो स्िण ि म ः १ ३ , गुरु ाम (ह रयाणा)
मैंने जोश में कर कहा-सुिण मैंने अपने का य में भब ेरे हैं म यु ः २ , भोपाल (म.प्र.)
उनहें कसे दे दँ । प रचय ः मप्रकाश भद्‍य
भहंदी की िाभचक परंपरा में
िे झुँझलाकर बोले, तुम समझे नहीं हास्य- यं य के भश र पुरुष होने के
हमें तु हारा अनभधकत प से अभजत अ चाभह सा -सा छंद शास्‍त त ा का य
मैं मुसकाकर बोला, अ मेरी नई कभिता में है की गहनतम संिेदना के पार ी े ।
तु हें भमल जा तो ँ लो प भहंदी कभि स मेलन में
हास्य- यं य के पुरोधा े ।
िे कड़ककर बोले, चाँदी कहाँ है प्रमुि कृतियाँ ः इधर भी गधे हैं-
मैं भड़ककर बोला-मेरे बाल में रही है धीरे-धीरे उधर भी गधे हैं , म न शादी ,
िे उद ांत होकर बोले, गोरी बै ी छत पर (का यसं ह)
यह बता तु हारे नोट कहाँ हैं भद ।
परी ा से क महीने पहले क ँगा तैयार
िे गरजकर बोले, हमारा मतलब पकी मु ा से है
मैं लरजकर बोला, पद्य संबंधी
मु ा ँ प मेरे मु पर दे लीभज ,
प्रस्तुत हास्य- यं य कभिता
िे ड़े होकर कुछ सोचने लगे में कभि ने यकर भिभाग के छापे
भफर शयन क में ुस ग के मा यम से म दमी की
र फटे तभकये की ई नोचने लगे भ क भस् भत, छापा मारने िाल
की काय प्रणाली को दशाया
उनह ने टटी अलमारी को ोला है । कभि दिारा भकया गया छापे का
रसोई की ाली पीभपय को टटोला िणन यं या्‍मक हास्य उ्‍प
करता है ।
ब की गु लक तक दे ाली
पर सब में भमला क ही त्‍्‍ि ाली...
कनस्तर को, मटक को ं ा सब में भमला शनय- हमां
दे कर मेरे र में सा अर यकां
उनका ला चेहरा मुरझा गया

655
र उनके बीस सची दय में
रौ की जगह करुण रस समा गया,
िे बोले, मा कीभज , हमें भकसी ने गलत सचना दे दी
अपनी असफलता पर िे मन ही मन पछताने लगे
भसर झुकाकर िाभपस जाने लगे
मैंने उनहें रोककर कहा, ह र सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
भसर मत धुभन मेरी क बात सुभन (१) कृति पूर्ण कीतिए ः
मेरे र में अभधक धन होता तो प ले जाते १. कभि ने छापामार से माँगा
अब जब मेरे र में भब कुल धन नहीं है
तो प मुझे कुछ देकर ्‍य नहीं जाते
भजनके र में सोने-चाँदी के पलंग र सोफे हैं २. र की भस् भत दशाने िाली पंभ्‍तयाँ
उनहंंे प भनकलिा लेते हैं
ब त अ छी बात है, भनकलिा लीभज समदध अभाि स्त
पर भजनके र में बै ने को कुछ भी नहीं ---------- ----------
उनके यहाँ कम-से-कम ३. अंभतम चार पंभ्‍तय का भािा भल ।
क त त तो लिा दीभज ।
( गोरी बै ी छत पर से)

शब्द संसार
रोष पुं.सं.(सं.) = गुस्सा
अति्णि भि.(सं.) = कमाया
अर्ण पुं.सं.(सं.) = पैसा/धन
कनस्िर पुं.सं(अं.) = टीन का पीपा
ि ि पुं.सं.(फा.) = लकड़ी की बड़ी चौकी

66
स्वाधयाय

* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-


(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. कभि दिारा छापामार को भद ग सुझाि
ये िस्तु ँ ाली ीं
२. शयनक में पाई गई चीजें

( ) कतविा के आधार पर िोत याँ तमिाइए ः (4) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः

अ अा छापा मारने िाल में या प रितन


अ बाल में
सुिण चेहरे पर
चाँदी नई कभिता में
मु ा का य कभतय में

(5) से प्रशन बनाइए तिनके िर तनम्न शब्द हों ः


१. अर यकां २. त त ३. असफलता 4. अनभधकत

(६) सोना, चाँदी, अर्ण र मु ा इन शब्दों के तवत अर्ण बिािे ए कतविा के अाधार पर इनके अर्ण तिखिए ।

(७) ‘कर िमा करना, देश के तवकास को गति देना ह’ तवषय पर अपने तवचार तिखिए ।

पयोतिि िेिन

तनम्न मुद्दों के आधार पर तव ापन ियार कीतिए ः

पुस्तक के प्रकार

भतभ भिशेषता
पुस्तक प्रदशनी र भब ी
समय

स् ल

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5 ईमानदारी की प्रतिमूति्ण
- सुनील शासत्ी

हमने अपने जीिन में बाब जी के रहते अभाि नहीं दे ा । उनके न


रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, िह क दसरी तरह का अभाि ा भक
मुझे बैंक की नौकरी करनी पड़ी । लेभकन उससे पि बाब जी के रहते मैं जब प रचय
जनमा ा तब िे उ्‍तर प्रदेश में पुभलस मं‍ती े । उस समय गहमं‍ती को
पुभलस मं‍ती कहा जाता ा । इसभल मैं हमेशा क पना भकया करता ा भक िमः१ 5
प रचय ः सुनील शास्‍ती भारत के
हमारे पास ये छोटी गाड़ी नहीं, बड़ी लीशान गाड़ी होनी चाभह । बाब दभितीय प्रधानमं‍ती लाल बहादर
जी प्रधानमं‍ती तो िहाँ जो गाड़ी ी िह ी, इंपाला शेिरलेट । उसे शास्‍ती के पु‍त हैं । प क राजनेता
दे -दे बड़ा जी करता भक मौका भमले र उसे चला । प्रधानमं‍ती का के अलािा कभि र ले क
लड़का ा । कोई मामली बात नहीं ी । सोचते-भिचारते, क पना की भी हैं । पको कभिता, संगीत
उड़ान भरते क भदन मौका भमल गया । धीरे-धीरे भह मत भी ुल गई ी र सामाभजक काय में भिशेष
लगाि है । सामाभजक, भ क
र देने की । हमने बाब जी के भनजी सभचि से कहा- सहाय साहब, बदलाि पर अपने भिचार को प
जरा ाइिर से कभह , इंपाला लेकर रेभज ेंस की तरफ जा ँ । प‍त-पभ‍तका में य्‍त करते रहते
दो भमनट में गाड़ी कर दरिाजे पर लग गई । अभनल भैया ने हैं ।
कहा- मैं तो इसे चला गा नहीं । तु हीं चला । प्रमुि कृतियाँ ः लाल बहादर
मैं गे ब ा । ाइिर से चाभी माँगी । बोला- तुम बै ो, राम शास्‍ती मेरे बाब जी । इस पुस्तक
का अं ेजी अनुिाद भी है ।
करो, हम लोग िापस ते हैं अभी ।
गाड़ी ले हम चल पड़े । ्‍या शान की सिारी ी । याद कर बदन में
झुरझुरी ने लगी है । भजसके यहाँ ाना ा, िहाँ पहँुचा । बातचीत में
समय का यान नहीं रहा । देर हो गई ।
याद या बाब जी ग ह गे ।
गद्य संबंधी
िापस र फाटक से पहले ही गाड़ी रोक दी । उतरकर गेट तक
या । संतरी को भहदायत दी । यह सैलट-िैलट नहीं, बस धीरे से गेट प्रस्तुत संस्मरण में ले क ने
स्ि. लालबहादर शास्‍ती जी की
ोल दो । िह िाज करे तो उसे बंद मत करो, ुला छोड़ दो ।
ईमानदारी, सादगी, सरलता,
बाब जी का र । िह ट-पट सैलट मारेगा तो िाज होगी र स ाई, परद कातरता भद गुण
भफर गेट की िाज से बाब जी को हम लोग के लौटने का अंदाजा हो को बड़े अ छे ंग से उजागर भकया
जा गा । िे बेकार में पछताछ करेंगे । अभी बात ताजा है । सुबह तक बात है ।
में पानी पड़ चुका होगा । संतरी से जैसा कहा गया, उसने भकया । दबे पैर
पीछे भकचन के दरिाजे से अंदर ुसा । जाते ही अ मा भमलीं ।
पछा - बाब जी ग कुछ पछा तो नहीं
बोली - हाँ, ग । पछा ा । मैंने बता भदया ।
गे कुछ कहने की भह मत नहीं पड़ी, यह जानने-सुनने की भक बाब
जी ने ्‍या कहा भफर भहदायत दी-सुबह भकसी को कमरे में मत भेभज गा ।

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68
रात देर हो गई । सुबह देर तक सोना होगा ।
सुबह सा े पाँच-पौने छह बजे भकसी ने दरिाजा ट टाया । नींद
टटी । मैंने बड़ी तेज िाज में कहा- देर रात को या हँ, सोना चाहता
हँ, सोने दो ।
यह सोचकर भक कोई नौकर चाय लेकर या होगा जगाने ।
लेभकन दरिाजे पर दस्तक भफर पड़ी । झुंझलाता जोर से भबगड़ने के
म में दरिाजे की तरफ ब ा बड़ाबड़ाता । दरिाजा ोला । पाया,
बाब जी ड़े हैं । हमें कुछ न सझा । माफी माँगी । बे यानी में बात कह गया
हँ । िे बोले- कोई बात नहीं, - । हम लोग सा -सा
चाय पीते हैं । िेिनीय
हमने कहा- ीक है
बस ज दी-ज दी हा -मुँह धो चाय के भल टेबल पर जा पहँुचा ।
ज के उपभो्‍तािादी युग में
लगा, उनहें सारी रामकहानी मालम है पर उनह ने कोई तक नहीं भकया । न
पनप रही भद ािे की संस्कभत
कुछ जाभहर होने भदया ।
पर अपने भिचार भल ।
कुछ देर बाद चाय पीते-पीते बोले- अ मा ने कहा, तुम लोग
ग हो पर तुम कहते हो रात बड़ी देर से । कहाँ चले ग

जिाब भदया- हाँ, बाब जी क जगह ाने पर चले ग े ।
उनह ने गे प्र न भकया- लेभकन ाने पर ग तो कसे जब मैं
या तो भफ ट गाड़ी गेट पर ड़ी ी । ग कसे
कहना पड़ा- हम इंपाला शेिरलेट लेकर ग े ।
बोले- ह हो, तो प लोग को बड़ी गाड़ी चलाने का शौक
है ।
बाब जी ुद इंपाला का प्रयोग न के बराबर करते े र िह भकसी
स्टेट गेस्ट के ने पर ही भनकलती ी । उनकी बात सुन मैंने अभनल भैया
की तरफ दे ँ से इशारा भकया । मैं समझ गया ा भक यह इशारा
इजाजत का है । अब हम उसका भदन प्रयोग कर सकगे ।
चाय ्‍म कर उनह ने कहा- सुनील, जरा ाइिर को बुला
दीभज ।
मैं ाइिर को बुला लाया । उससे उनह ने पछा- तुम ल ग बुक र ते
हो न
उसने हाँ में उ्‍तर भदया । उनह ने गे कहा- ंटी करते हो
कल भकतनी गाड़ी इन लोग ने चलाई
िह बोला- चौदह भकलोमीटर ।
उनह ने भहदायत दी- उसमें भल दो, चौदह भकलोमीटर भनजी
उपयोग ।
तब भी उनकी बात हमारी समझ में नहीं ई भफर उनह ने अ मा को

69
बुलाने के भल कहा । अ मा जी के ने पर बोले- सहाय साहब से
कहना, सा पैसे प्रभत भकलोमीटर के भहसाब से पैसे जमा करिा दें ।
इतना जो उनका कहना ा भक हम र अभनल भैया िह ं रुक नहीं
सके । जो रुलाई छटी तो िह कमरे में भागकर पहुंचने के बाद भी काफी देर
तक बंद नहीं ई । दोन ही जन देर तक फूट-फूटकर रोते रहे ।
पसे यह बात शान के तहत नहीं कर रहा पर इसभल भक ये बातें
अब हमारे भल दश बन गई हैं । सभ य राजनीभत में ने पर, सरकारी
पद पाने के बाद ्‍या उसका दरुपयोग करने की भह मत मुझमें हो सकती है
प ही सोचें, मेरे ब े कहते हैं भक पापा, प हमें साइभकल से भेजते
हैं । पानी बरसने पर र्‍शे से स्कूल भेजते हैं पर भकतने ही दसरे लोग के
लड़के सरकारी गाड़ी से ते हैं । िे छोटे हैं उनहें कलेजा चीरकर नहीं बता प नीय
सकता । समझाने की कोभशश करता हँ । जानता हँ, मेरा यह समझाना
भकतना कभ न है भफर भी समय होने पर कभी-कभी अपनी गाड़ी से छोड़
पुभलस दिारा नागरी सुर ा के
देता हँ । अपना सरकारी हदा छोड़कर या हँ र पके सा यह भल भक जाने िाले काय की
सब भफर भज कर तभनक ताजा र नया महसस करना चाहता हँ । जानकारी पभ िं उनकी
कोभशश करता हँ, नींि को पुन सँजोना-सँिारना भक मेरे मन का महल सची बनाइ ।
ज के इस तफानी झंझाित में ड़ा रह सके ।
याद ते हैं बचपन के िे हसीन भदन, िे पल, जो मैंने बाब जी के
सा भबता । िे अपना य गत काम मुझे स प देते े र मैं कसा गि
अनुभि करता ा । क होड़ ी, जो हम भाइय में लगी रहती ी । भकसे
भकतना काम भदया जाता है र कौन उसे भकतनी सफाई से करता है ।
क भदन बोले- सुनील, मेरी अलमारी काफी बेतरतीब हो रही है,
तुम उसे ीक कर दो र कमरा भी ीक कर देना ।
मैंने स्कूल से लौटकर िह सब कर ाला। दसरे भदन मैं स्कूल जाने के
भल तैयार हो रहा ा भक बाब जी ने मुझे बुलाया । पछा- तुमने सब कुछ
ब त ीक कर भदया, मैं ब त ुश हँ पर िे मेरे कुरते कहाँ हैं
मैं बोला- िे कुरते भला कोई यहाँ से फट रहा ा, कोई िहाँ से ।
िे सब मैंने अ मा को दे भद हैं ।
उनह ने पछा- यह कौन-सा महीना चल रहा है
मैंने जिाब भदया- अ बर का अंभतम सप्ताह ।
उनह ने गे जोड़ा- अब निंबर गा । जाड़े के भदन ह गे, तब
ये सब काम ँगे । पर से कोट पहन लँगा न
मैं दे ता रह गया । ्‍या कह रहे हैं बाब जी िे कहते जा रहे े- ये
सब ादी के कपड़े हैं । बड़ी मेहनत से बना हैं बीनने िाल ने । इसका
क- क सत काम ना चाभह ।
यही नहीं, मुझे याद है, मैंने बाब जी के कपड़ की तरफ यान देना
शु भकया ा । ्‍या पहनते हैं, भकस भकफायत से रहते हैं। मैंने दे ा ा,

70
क बार उनह ने अ मा को फटा कुरता देते कहा ा- इनके माल
बना दो ।
बाब जी का क तरीका ा, जो अपने प कभषत करता
ा । िे अगर सीधे से कहते-सुनील, तु हें ादी से यार करना चाभह ,
तो शायद िह बात कभी भी मेरे मन में र नहीं करती पर बात कहने के
सा -सा उनके अपने य ्‍ि का कषण ा, जो अपने में सामने
िाले को बाँध लेता ा । िह स्ित उनपर अपना सब कुछ भनछािर करने
पर उता हो जाता ा ।
अ मा बताती हैं- हमारी शादी में च ािे के नाम पर भसफ पाँच ाम
सोने के गहने े, लेभकन जब हम भिदा होकर रामनगर तो िहाँ
उनहें मुँह भद ाई में गहने भमले । सभी नाते- र तेिाल ने कुछ-न-कुछ सं ाषरीय
भदया ा । भजन भदन हम लोग बहादरगंज के मकान में , उनहीं भदनांे
तु हारे बाब जी के चाचा जी को कोई ाटा लगा ा । भकसी तरह से बाकी अनुशासन जीिन का क अंग
का रुपया देने की भज मेदारी हमपर पड़ी-बात ्‍या ी, उसकी ीक से है, इसके भिभभ प पको
जानकारी लेने की ज रत हमने नहीं सोची र न ही इसके बारे में कभी कहाँ-कहाँ दे ने को भमलते
कुछ पछताछ की । हैं, बताइ ।
क भदन तु हारे बाब जी ने दभनया की मुसीबत र मनु य की
मजब रय को समझाते जब हमसे गहन की माँग की तो ण भर के भल
हमें कुछ िैसा लगा र गहना देने में तभनक भहचभकचाहट महसस ई पर
यह सोचा भक उनकी प्रस ता में हमारी ुशी है, हमने गहने दे भद । केिल
टीका, न ुनी, भबभछया र भल े। िे हमारे सुहागिाले गहने े । उस भदन
तो उनह ने कुछ नहीं कहा, पर दसरे भदन िे अपनी पीड़ा न रोक सके । कहने
लगे- तुम जब भमरजापुर जा गी र लोग गहन के संबंध में पछेंगे तो
्‍या कहोगी
हम मुसकरा र कहा- उसके भल प भचंता न करें । हमने
बहाना सोच भलया है । हम कह देंगी भक गांधीजी के कहने के अनुसार हमने
गहने पहनने छोड़ भद हैं । इसपर कोई भी शंका नहीं करेगा । तु हारे बाब
जी तभनक देर चुप रहे, भफर बोले- तु हंे यहाँ ब त तकलीफ है, इसे मैं
अ छी तरह समझता हँ । तु हारा भििाह ब त अ छे, सु ी प रिार में हो
सकता ा, लेभकन अब जैसा है िैसा है । तु हें राम देना तो दर रहा,
तु हारे बदन के भी सारे गहने उतरिा भल ।
हम बोलीं- पर जो असल गहना है िह तो है । हमें बस िही चाभह ।
प उन गहन की भचंता न करें । समय जाने पर भफर बन जा ँगे । सदा
से ही भदन ोड़े रहेंगे । द -सु तो सदा ही लगा रहता है ।
( लाल बहादर शास्‍ती मेरे बाबजी से)

71
शब्द संसार
तहदायि स्‍ती.सं.(अ.) = सचना, भनदश मुहावरे
दस्िक स्‍ती.सं.(फा.) = दरिाजे पर िाज करने की भ या ‍ट- ‍टकर रोना = जोर-जोर से रोना
इिािि स्‍ती.सं(अ.) = ज्ा, स्िीकभत देििे रह िाना = चयचभकत होना
बेिरिीब भि.(फा.) = अस्त- यस्त, भब रा
तक ायि स्‍ती.सं.(अ.) = भमत यय

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) प रराम तिखिए ः
१. सुबह सा े पाँच-पौने छह बजे दरिाजा ट टाने का -
२. सा पैसे प्रभत भकलोमीटर के भहसाब से पैसे जमा करिाने
शास्‍ती जी की का -
स्िभािगत
भिशेषता ँ

( ) पा मंे प्रयु्‍ि गहनों के नाम ः (4) वर्ण पहेिी से तविोम शब्दों की िोत याँ ँ कर तिखिए ः
द अ ग प ------- Í------
सु बु स रा ------- Í------
रु Í ला ------- Í------
प्र भ यो ------- Í------

(5) ‘पर िो असि गहना ह वह िो ह’ इस वा्‍य से अत प्रेि ाव तिखिए ।

(६) करिे के प्रसंग से शास् ी िी के इन गुरों (स्व ाव) का पिा चििा ह ः १ २

(७) पा म प्रयु्‍ि प रमारों की सूची ियार कीतिए ः १ २

(8) ‘पर’ शब्द के दो अर्ण तििकर नका स्विं वा्‍य म प्रयोग कीतिए । १ २

अत यख ‘सादा िीवन, तवचार’ तवषय पर अपने तवचार तिखिए ।

72
ाषा तबंद

(१) तनम्नतिखिि वा्‍यों को याकरर तनयमांे के अनुसार शुद्ध करके त र से तिखिए ः


प्र येक वा्‍य म कम-से-कम दो अशुदतधयाँ
् ह
१. करामत अली गाय अपनी र लाई ।
२. उसने गाय की पी पर ं े बरसाने नहीं चाभह ी ।
३. करामत अली ने रमजानी पर गाय के दे भाल का भज मेदारी स पी ।
4. चाय अपनी भश य को भमलना चाहते े ।
5. र में त ते के र े जाने का िाज ता है ।
. लड़के के तरफ मु ाभतब होकर रामस्ि प ने कोई कहना चाहा ।
. भसरचन को कोई लड़का-बाला नहीं े ।
8. ल मी की क झ बेदार पँछ ा ।
. कनहैयालाल भम जी भबड़ला के पुस्तक को प ने लगे ।
१ . . महादेि साहा ने बाजार से न पुस्तक को रीदा ।
११. ले क गोिा को ग उनकी सा सा साहब भी े ।
१२. भट क जी ने क स जन के सा की ई यिहार बराबर ी ।
१३. रंगीन फूल की माला बहोत सुंदर लग रही ी ।
१4. ब े लोग लड़के र कुछ भस्‍तयाँ कु ँ पर पानी भर रहे े ।
१5. लड़का, भपता जी र माँ बाजार को गई ।
१ . बरस बाद पंभ त जी को भम‍त का दशन ।
१ . गोिा के बीच पर मने में बड़ी मजा ई ।
१8. सामने शेर दे कर या‍ती का प्राण मानो मुरझा गया ।
१ . करामत अली के ँ में ँस उतर ई ।
२ . मैं मेरे देश को प्रेम करता ँ ।

पयोतिि िेिन तनम्नतिखिि मुद्दों के आधार पर कहानी तिखिए । से तचि शीष्णक दीतिए ।

गाँि में लड़भकयाँ-सभी प ने में होभशयार-गाँि में पानी का अभाि-लड़भकय का र


के काम में सहायता करना-ब त दर से पानी लाना-प ाई के भल कम समय भमलना-
लड़भकय का समस्या पर चचा करना-समस्या सुलझाने का उपाय ोजना-गाँििालाें की
सहायता से प्रयोग करना-सफलता पाना-शीषक ।

73
६ हम स धरिी की संिति ह
(पूरक प न) -उमाकांत मालवीय

प रचय
हम उस धरती के लड़के हैं, भजस धरती की बातें
्‍या कभह अजी ्‍या कभह हाँ ्‍या कभह । ि म ः १ ३१, मुबं ई (महारा ट)
म यु ः १ 8२, इलाहाबाद (उ.प्र.)
यह िह भमटटी, भजस भमटटी में ेले े यहाँ ुि-से ब े ।
प रचय ः भाि की ती ता र
यह भमटटी, प्रहलाद जहाँ, जो अपनी लगन के े स े । जन सरोकार को रे ांभकत करने
िाले रचनाकार में उमाकांत
शेर के जबड़े ुलिाकर, े जहाँ भरत दतुली भगनते,
मालिीय का स् ान अ णी रहा ।
जयमल-प्‍ता अपने गे, े नहीं भकसी को कुछ भगनते भहंदी साभह्‍य में पको निगीत
का भगीर कहा जाता है । पने
इस कारण हम तुमसे ब कर, हम सबके गे चुप रभह । कभिता के अभत र ं का य,
अजी चुप रभह , हाँ चुप रभह । हम उस धरती के लड़के हैं ... भनबंध त ा बालोपयोगी पुस्तक भी
भल ीं ।
बात का जनाब, श र नहीं, शे ी न ब ारें, हाँ चुप रभह । प्रमुि कृतियाँ ः मेंहदी र
हम उस धरती की लड़की हैं, भजस धरती की बातें ्‍या कभह । महािर , देिकी , र प ,
सुबह र पलाश की (कभिता
अजी ्‍या कभह , हाँ ्‍या कभह । सं ह) अाभद ।
भजस भमटटी में ल मीबाई जी, जनमी ीं झाँसी की रानी ।
रभजया सुलताना, दगािती, जो ब लड़ी ीं मदानी । पद्य संबंधी
जनमी ी बीबी चाँद जहाँ, पदभमनी के जौहर की िाला ।
क वािी ः क िाली का इभतहास
सीता, साभि‍ती की धरती, जनमी सी- सी बाला । सात सौ िष पुराना है । क िाली
गर ींग जनाब उड़ा ँगे, तो मजबरन ताने सभह , ताने सभह , ताने सभह । क लोकभप्रय का य भिधा है ।
हम उस धरती की लड़की हैं... यह तारीफ या शान में गाया जाने
िाला गीत या कभिता है ।
य प फा ्‍य होती हैं, टंटा काहे का पस में । प्रस्तुत क िाली में कभि ने
दो दल की नोक-झ क पेश करते
हमसे तुम या तुमसे हम ब -च कर ्‍या र्‍ ा इसमें । शरिीर भतहाभसक स्‍ती-पुरुष
झगड़े से न कुछ हाभसल होगा, र देंगे बातें उलझा के । पा‍त का िणन भकया है । यहाँ
बस बात पते की इतनी है, ुि या रभजया भारत माँ के । स्‍ती-पुरुष को भारतमाता के र
के दो पभहये बताया गया है । यहाँ
भारत माता के र के हैं हम दोन ही दो-दो पभहये, अजी दो पभहये, हाँ दो पभहये । गाते समय पहला पद लड़क का
हम उस धरती की संतभत हैं .... समह दसरा पद लड़भकयांे का
समह र अंभतम पद दोन समह
भमलकर प्रस्तुत करते हैं ।

744
शब्द संसार
दिुिी स्‍ती.सं.(दे.) = दाँत
श र पुं.सं.(अ.) = अ छी तरह काम करने की यो यता या ंग, बुदभध
ि हर पुं.सं.(भहं.) = राजस् ान में प्राचीन समय मंे प्रचभलत प्र ा । इसमें भस्‍तयाँ भिदेशी
मणका रय से अपने स्िाभभमान की र ा के भल अभ न
में प्रिेश कर प्राण की भत दे देती ीं ।
ि ा भि.(अ.) = अप्रस , नाराज, रु ट, ुदध
‍टं‍टा पंु.सं(दे.) = य का झंझट, टराग, उप ि, उ्‍पात, झगड़ा, लड़ाई
मुहावरे
शेिी ब ारना = स्ियं अपनी प्रशंसा करना
ग मारना = बड़ी-बड़ी बातें करना

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः
(१) वग करर कीतिए ः
पदयांश में उ त च र‍त- ुि, प्रहलाद, भरत, ल मीबाई, रभजया सुलताना, दगािती, पदभमनी, सीता, चाँदबीबी,
साभि‍ती, जयमल

तिहातसक प रातरक

(२) तवशेषिा के आधार पर पहचातनए ः


१. भारत माता के र के दो पभहये - ...............
२. ब लड़ने िाली मदानी - ...............
३. अपनी लगन का स ा - ...............
4. भकसी को कुछ न भगनने िाले - ...............
( ) सही गिि पहचानकर गिि वा्‍य को सही करके वा्‍य पुनः तिखिए ः
१. रानी कमिती ने अकबर को रा ी भेजी ी ।
२. भरत शेर के दाँत भगनते े ।
३. झगड़ने से सब कुछ प्राप्त होता है ।
4. ुि काश मंे ेले े ।
(4) कतविा से प्रा संदेश तिखिए ।

755
७ मतहिा आ म
- काका कालेलकर

भप्रय सरोज,
भजस म की क पना की है उसके बारे में कुछ यादा भल ँ तो प रचय
बहन को सोचने में मदद होगी, म यानी होम ( र) उसकी यिस् ा में
या संचालन में भकसी पुरुष का संबंध न हो । उस म का भिज्ापन ि म ः १885, सातारा (महारा ट)
अ बार में नहीं भदया जा । उसके भल पैसे तो सहज भमलेंगे, लेभकन कहीं म यु ः १ 8१, नई भद ली
माँगने नहीं जाना है । जो मभहला गी िह अपने ाने-पीने की त ा प रचय ः काका कालेलकर के नाम से
कपड़ेल्‍ते की यिस् ा करके ही । िह यभद गरीब है तो उसकी भि यात दता‍तेय बालक ण कालेलकर
भसफा रश करने िाले लोग को च की प्‍की यिस् ा करनी चाभह । जी ने भहंदी, गुजराती, मरा ी र
परी पहचान र प रचय के भबना भकसी को दा ल नहीं करना चाभह । अं ज े ी भाषा में समान प से
दा ल ई कोई भी मभहला जब चाहे तब म छोड़ सकती है । म ले नकाय भकया । रा टभाषा के प्रचार
को रा टीय काय म मानने िाले काका
को ीक न लगे तो क या तीन महीने का नोभटस देकर भकसी को म
कालेलकर उ कोभट के िैचा रक
से हटा सकता है लेभकन सा कदम सोचकर लेना होगा ।
भनबंधकार हैं । भिभभ भिषय की
म भकसी क धम से भचपका नहीं होगा । सभी धम म को तकपण या या पकी ले नशैली
मानय ह गे, अत सामानय सदाचार, भभ्‍त त ा सेिा का ही िातािरण के भिशेष गुण हैं ।
रहेगा । म में स्िािलंबन हो सके उतना ही र ना चाभह । सादगी का प्रमुि कृतियाँ ः
ह होना चाभह । रंभ में प ाई या उदयोग की यिस् ा भले न हो तहंदी ः रा टीय भश ा के दश
सके लेभकन गे चलकर उपयोगी उदयोग भस ा जा ँ । प ाई भी सान का भिकास , जीिन-संस्कभत की
हो । म भश ासंस् ा नहीं होगी लेभकन कलह र कु न से मु्‍त बुभनयाद , न ‍तमाला स्मरणया‍ता ,
धम दय ( ्‍मच र‍त) भद ।
स्ितं‍त िातािरण जहाँ हो सा मानितापण यस् ान होगा, जहाँ परेशान
मभहला ँ बे टके अपने च से रह सक र अपने जीिन का सदपयोग
पभि‍त सेिा में कर सक । सा सान दश र ा हो र यिस् ा पर
सभमभत का झंझट न हो तो बहन सुंदर तरीके से चला सके सा क बड़ा
काम होगा । उनके पर सा बोझ नहीं गा भजससे भक उनहें परेशानी गद्य संबंधी
हो ।
संस् ा चलाने का भार तो ने िाली बहनें ही उ ा सकगी ्‍य भक प्रस्तुत प‍त में कालेलकर जी ने
उनमें कई तो कुशल ह गी । बहन उनको संगीत की, भभ्‍त की त ा प्रेमयु्‍त मभहला म की स् ापना, उसकी
यिस् ा, िातािरण, भनयम भद के
सलाह की ुराक दें । गे चलकर संस् ा की जमीन पर छोटे-छोटे मकान बारे में भिस्तत भनदश भद हैं । इस प‍त
बना जा ँगे र उसमें संस् ा के भनयम के अधीन रहकर ने िाली दिारा मभहला संबंधी पके भिचार,
मभहला ँ दो-दो, चार-चार का प रिार चला ँगी, सी संस् ा ँ मैंने दे ी प्रकभत, प्रेम सामाभजक लगाि का पता
हैं । इसभल जो भबलकुल संभि है, ब त ही उपयोगी है । सा ही काम मैंने चलता है ।
सभचत भकया है, इतने िष के बहन के प रचय के बाद उनकी शभ्‍त,
कुशलता र उनकी मयादा का याल मुझे है । प्र्‍य कोई भहस्सा भल

76
भबना मेरी सलाह र सहारा तो रहेगा ही । गे जाकर बहन को लगेगा वरीय
भक उनको तो मा‍त भनभम्‍तमा‍त होना ा । संस् ा अपने प चलेगी ।
समाज में सी संस् ा की अ्‍यंत ि यकता है । उस ि यकता में से
मानितािाद पर भिचार
ही उसका जनम होगा । मुझे इतना भि िास न होता तो बहन के भल सा
सुभन ।
कुछ मैं सभचत ही नहीं करता । तुम दोन इस सचना का प्रा नापिक भिचार
करना लेभकन ज दी में कुछ तय न करके य ासमय मुझे उ्‍तर देना । बहन
यभद हाँ कहे तो अभी से गे का भिचार करने लगँगा ।
यहाँ सरदी अ छी है । फूल में गुलदाउदी, भ जेन ीमम फूल बहार
में हैं । उसकी कभलयाँ महीन तक ुलती ही नहीं मानो भारी रहस्य की बात
पेट में भर दी हो र हो को सीकर बै गई ह । जब लती हैं तब भी
क- क पं ुड़ी करके लती हैं । िे भटकते हैं ब त । गुलाब भी लने प नीय
लगे हैं । कोस्मोस के भदन ग । उनह ने ब त नंद भदया । भजभनया का
क पौधा, रास्ते के भकनारे पर ा जो सो उसकी कली तोड़े । भफर
अंत र भिज्ान में याभत
मैंने इस बड़े पौधे को िहाँ से भनकालकर अपने भसरहाने के पास लगा भदया, प्राप्त दो मभहला की
भफर इसने इतने संुदर फूल भद । इसकी ँ ें मानो उ्‍कटता से बोलती ह , जानकारी पभ ।
सी लगतीं । दो- क महीने फूल देकर अंत में िह स गया । परस ही
मैंने उसे भबदा दी ।
- काका का दोन को सप्रेम शुभाशीष
गुरु, २१.१२.44
Í Í Í Í
भप्रय सरोज,
तु हारा १ से १8 तक भल ा प‍त ज अभी भमला । इस सं ाषरीय
महीने में मैंने इन तारी को प‍त भल े हैं-तारी १, ,१5 र चौ ा
ज भल रहा ँ । अब तुमको हर सप्ताह मैं भल ँगा ही । तु हारी तबीयत अनुशासन स्ियं भिकास का
कमजोर है तब तक भचरंजीि रैहाना मुझे प‍त भल ेगी तो चलेगा । मुझे हर प्र म चरण है , क न पर चचा
सप्ताह क प‍त भमलना ही चाभह । कीभज ।
प य बाप जी चाहते हैं तो भहंद-मुभस्लम कता के भल मुझे अपनी
सारी शभ्‍त उद सी ने के पीछे च करनी चाभह । तुमको मैंने क संदेश
भेजा ा भक तुम उद भल ना सी ो । लेभकन अब तो मेरा क ही संदेश
है-परा राम लेकर परी तरह ीक हो जा ।
तार के न्‍शे बनाने के भल कपास बा्‍स भी मँगाकर र ा है । िेिनीय
लेभकन अब तक कुछ हो नहीं पाया है ।
मैंने अपने फूल के गमले अपने पास से भनकाल भद हैं । सादे ोटन
को ही रहने भदया है । भकसी सामाभजक संस् ा की
सबको काका का सप्रेम शुभाशीष जानकारी भल ।
( काका कालेलकर ं ािली से)

77
शब्द संसार
किह पुं.सं(सं.) = भििाद, झगड़ा
क न स्‍ती.सं.(सं.) = ीझ
बेि‍टके (भ .भि.) = भबना भकसी संकोच के, भनसंकोच

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः
(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) कारर तिखिए ः
१. काका जी ने कपास ब ्‍स मँगाकर र ा -
२. ले क ने फूल के गमले अपने पास से भनकाल भद -
गुलदाउदी की
भिशेषता ँ
( ) तिखिए ः
१. भजनहें ता प्र्‍यय लगा हो से श द पा से ँ कर
उन प्र्‍ययसाभधत श द की सची बनाइ ।
शद ता प्र्‍यय साभधत
शद
(4) प्रवाह िातिका पूर्ण कीतिए ः
म के भनयम

२. पा में प्रयु्‍त पयायिाची श द भल कर उनका


स्ितं‍त िा्‍य में प्रयोग कीभज ।

अत यख ‘प तििने का तसितसिा सदव िारी रहना चातहए’ इस संद ्ण म


अपने तवचार तिखिए ।

‘संदेश वहन के आधुतनक साधनों से िा -हातन’ तवषय पर अस्सी से


पयोतिि िेिन स शब्दों िक तनबंध तिखिए ।

788
ाषा तबंद

तनम्न शब्दों से बने दो मुहावरों के अर्ण तििकर नका स्विं वा्‍यों म प्रयोग कीतिए ः

१. ँ २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्‍य --------------------- िा्‍य ---------------------
१. मुँह २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्‍य --------------------- िा्‍य ---------------------
१. दाँत २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्‍य --------------------- िा्‍य ---------------------
१. हा २.
अ --------------------- अ ---------------------
िा्‍य --------------------- िा्‍य ---------------------
१. २.
अ --------------------- दय
अ ---------------------
िा्‍य --------------------- िा्‍य ---------------------

पयोतिि िेिन
अपने तम सहेिी को तििा तव ान प्रदश्णनी म प्ररम पुरस्कार प्रा होने के पि य म बधाई देिे ए तनम्न प्रा प म
प तिखिए ।
तदनांक ः
संबाेधन ः
अत वादन ः
प्रारं ः -------------
तवषय तववेचन ः -----------------------
----------------------------- ---
समापन ः ------------

हस्िा र ः -----------------
नाम ः ------------------
पिा ः ---------
---------
---------
ई-मेि आई ी ः -------

79
8 अपनी गंध नह बेचूँगा
- बालकसव बैरागी

चाहे सभी सुमन भबक जा ँ चाहे ये उपिन भबक जा ँ


प रचय
चाहे सौ फागुन भबक जा ँ पर मैं गंध नहीं बेचँगा
अपनी गंध नहीं बेचँगा ।। ि म ः १ ३१, मंदसौर (म.प्र.)
प रचय ः जीिन के रंभभक भदन से
भजस ाली ने गोद लाया भजस क पल ने दी अरुणाई ही सं ष को सा ी बना, उनहीं हालात
से प्रेरणा लेकर नंदरामदास बैरागी
लछमन जैसी चौकी देकर भजन काँट ने जान बचाई
कभिता के े‍त में बालकभि बैरागी के
इनको पभहला हक ता है चाहे मुझको नोचें-तोड़ें प में प्रभत त ।
चाहे भजस माभलन से मेरी पँ ु रय के र ते जोड़ें प साभह्‍य के सा -सा
मुझपर मँड़राने िालो मेरा मोल लगाने िालो राजनीभत में भी सभ य हैं । पकी
रचना ँ जगुण संप हैं । पके
जो मेरा संस्कार बन गई िो सौगंध नहीं बेचँगा ।
जीिन का सं ष जोश, ज, हौसला
अपनी गंध नहीं बेचँगा ।। र प्रेरणा श द प में कभिता में
ल ग । पने ब के भल भी
मौसम से ्‍या लेना मुझको ये तो गा-जा गा ब त सारे गीत भल े हैं ।
प्रमुि कृतियाँ ः ‘गौरि-गीत , दरद
दाता होगा तो दे देगा ाता होगा तो ा गा ।
दीिानी (का यसं ह) भद ।
कोमल भँिर के सुर सरगम पतझार का रोना-धोना
मुझपर ्‍या अंतर ला गा भपचकारी का जाद-टोना
पद्य संबंधी
नीलाम लगाने िालो पल-पल दाम ब ाने िालो
मैंने जो कर भलया स्ियं से िो अनुबंध नहीं बेचँगा । प्रस्तुत गीत में गीतकार ने फूल के
स्िभाि की भिशेषता ँ बताते कहा
अपनी गंध नहीं बेचँगा ।। है भक भकसी भी प र स् भत में फूल
अपनी गंध नहीं बेचता । फूल के इस
मुझको मेरा अंत पता है पँ ुरी-पँ ुरी झर जा गा स्िाभभमान को मनु य को भी अपनाना
चाभह ।
लेभकन पभहले पिन परी संग क- क के र जा गा
भल-चक की माफी लेगी सबसे मेरी गंध कुमारी
उस भदन ये मं ी समझेगी भकसको कहते हैं ुददारी
भबकने से बेहतर मर जा अपनी माटी में झर जा
मन ने तन पर लगा भदया जो िो प्रभतबंध नहीं बेचँगा ।
( अपनी गंध नहीं बेचँगा से)

8
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शब्द संसार
गंध स्‍ती.सं.(सं.) = महक, बास अनुबंध पुं.सं.(सं.) = समझौता, प्रभतज्ा प‍त
कोंपि स्‍ती.सं.(सं.) = नई कोमल पभ्‍तयाँ प्रतिबंध पुं.सं.(सं.) = रुकािट, भिघ्न
अरुराई स्‍ती.भि.(सं.) = लाभलमा, लाली

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः (२) तिखिए ः
१. फूल को भबक जाने से भी बेहतर लगता
फूल बेचना नहीं चाहता
है ।
२. फूल के अनुसार उसे तोड़ने का पहला अभधकार
१. इनहें हैं ।
२.
३.
4. (4) सूची बनाइए ः
इनका फूल से संबंध है -
(3) कृति पूर्ण कीतिए ः

अंत पता होने पर भी


फूल की अभभलाषा

(5) कारर तिखिए ः


१. फूल अपनी सौगंध नहीं बेचेगा
२. फूल को मौसम से कुछ लेना नहीं है
(६) ‘दािा होगा िो दे देगा, िािा होगा िो िाएगा’ इस पंत्‍ि से स्पष्‍ट होने वािा अर्ण तिखिए ।
(७) तनम्नतिखिि मुद्दों के आधार पर पद्य तवशिेषर कीतिए ः
१. रचनाकार का नाम
२. रचना का प्रकार
३. पसंदीदा पंभ्‍त
4. पसंदीदा होने का कारण
5. रचना से प्राप्त संदेश/प्रेरणा

8१
81
िब िक तिंदा र ँ, तिििा र ँ
-सवशवनाथ प्रसाद सतवारी
तवशवनार प्रसाद तिवारी -(तिवारी िी) की अमििाि नागर (नागर िी) से बािचीि

तिवारी िी ः नागर जी, मैं पको पके ले न के रंभ काल की


र ले चलना चाहता ँ । भजस समय पने भल ना
शु भकया उस समय का साभहभ्‍यक माहौल ्‍या ा
प रचय
भकन लोग से प्रे रत होकर पने भल ना शु भकया ि म ः १ 4१, देि रया (उ.प्र.)
र ्‍या दश े पके सामने प रचय ः भि िना प्रसाद भतिारी जी
नागर िी ः भल ने से पहले तो मैंने प ना शु भकया ा । रंभ में भहंदी जगत के जाने-माने कभि,
कभिय को ही अभधक प ता ा । सनेही जी, अयो याभसंह ले क, लोचक िं संपादक हैं ।
प देश, काल र िातािरण के
उपा याय की कभिता ँ यादा प ीं । छापे का अ र मेरा प्रभत सजग र संिेदनशील रचनाकार
पहला भम‍त ा । र में दो पभ‍तका ँ मँगाते े मेरे भपतामह । हैं ।
क सरस्िती र दसरी गहल मी । उस समय हमारे प्रमुि कृतियाँ ः भफर भी कुछ रह
सामने प्रेमचंद का साभह्‍य ा, कौभशक का ा । रंभ जा गा (कभिता सं ह), अज्ेय
प‍तािली (भनबंध), अंतहीन
में बंभकम के उपनयास प े । शरतचं को बाद में । काश (या‍ता), अमे रका र
प्रभातकुमार मु ोपा याय का कहानी सं ह देशी र युरोप में क भारतीय बन
भिलायती १ ३ के सपास प ा । उपनयास में (या‍ता संस्मरण), अ स्त र
भिभत ( ्‍मक ा), बातचीत
बंभकम के उपनयास १ ३ में ही प ाले । नंदम ,
(सा ा्‍कार सं ह) भद ।
देिी चौधरानी र क राजस् ानी ीम पर भल ा
उपनयास, उसी समय प ा ा ।
तिवारी िी ः ्‍या यही ले क पके ले न के दश रहे गद्य संबंधी
नागर िी ः नहीं, कोई दश नहीं । केिल नंद ा प ने का ।
सबसे पहले कभिता फूटी साइमन कमीशन के बभह कार प्रस्तुत सा ा्‍कार में भि िना
के समय १ २8-१ २ में । ला ीचाज ा । इस प्रसाद भतिारी जी ने नागर जी से
अनुभि से ही पहली कभिता फूटी- कब ल कह ला ी त्‍कालीन राजनीभतक, सामाभजक
प रभस् भतय , ले क भद के बारे में
ाय इसे ही ले न का रंभ माभन । अनेक प्र न पछे हैं । इन सभी का
तिवारी िी ः इस टना के बाद प राजनीभत की र ्‍य नहीं ग जीिन िं ले न पर भकतना र
नागर िी ः नहीं गया ्‍य भक भपता जी सरकारी कमचारी े । १ २ भकस तरह का प्रभाि पड़ा, इसे
के बाद मेरी रुभच ब ी-प ने में भी र सामाभजक काय सा ा्‍कार के मा यम से जानने का
प्रयास भकया गया है ।
मंे भी । लेभकन मेरी पहली कहानी छपी १ ३३ में
अपशकुन । तु हारे गोर पुर के म न दभििेदी भल रहे
े उन भदन । चं ीप्रसाद दयेश े भजनकी ले न शैली
ने मुझे ब त प्रभाभित भकया ।

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तिवारी िी ः ्‍या उन भदन पपर गांधीजी के यभ्‍त्‍ि का भी कुछ
प्रभाि पड़ा
नागर िी ः हाँ, भन चत प से पड़ा । भपता जी ने ंदोलन में भाग
लेने से रोका । िह रोकना ही मेरे ले न के भल अ छा

तिवारी िी ः पके ले न में गरीब के प्रभत जो करुणा है िह भकससे
प्रभाभित है
नागर िी ः िह तो अपने समाज से ही उभरी ी । मेरी पहली कहानी
प्राय चत इसका प्रमाण है । हमारे पा रिा रक संस्कार
भी े । मेरे भपता जी में क अदभुत गुण ा । िे भकसी के
द -दद में तुरंत प ँचते े । इसने मुझे ब त प्रभाभित
भकया । वरीय
तिवारी िी ः उस समय तो ांभतकारी ंदोलन भी हो रहे े । ्‍या
उनका भी पपर कुछ प्रभाि पड़ा
भकसी बुजुग से स्ितं‍ततापि
नागर िी ः उसी से तो भपता जी ने ाँटा र रोका । काकोरी बमकां
भारत की भिस्तत जानकारी
हो चुका ा । १ २१ से ंदाेलन तेज हो ग े । सुभन र भम‍त को सुनाइ ।
तिवारी िी ः ्‍या सामाभजक ंदोलन , जैसे य समाज का भी
पपर कुछ प्रभाि पड़ा
नागर िी ः रंभभक असर है ोड़ा ज र । मेरे भपता जी में क
अ छी बात ी भक उनह ने मुझे सामाभजक ंदोलन में
जाने से कभी नहीं रोका । जिाहरलाल नेह से मेरी भेंट
१ ३३ में ई । उनकी माँ मेभ कल क लेज मंे दा ल ीं
र उसी समय मेरा छोटा भाई भी िहाँ दा ल ा ।
नेह जी जेल में े । उनकी माँ के पास कुछ क मीरी
लोग को छोड़कर कोई ता-जाता नहीं ा । मैं उनकी
माता जी के पास रोज जाता ा । पंभ त जी जब जेल से
छटे तो मेरी उनसे िहीं भेंट ई जो प्राय होती रहती ी ।
उनसे ब बातें होती ीं- हर तरह की ।
तिवारी िी ः पका पहला उपनयास कौन-सा है
नागर िी ः पहला उपनयास भल ा १ 44 में महाकाल , जो छपा
१ 4 में । बंगाल से लौटकर इसे भल ा ा ।
तिवारी िी ः ्‍या यही बाद में भ नाम से प्रकाभशत ।
नागर िी ः हाँ ।
तिवारी िी ः नागर जी, प अपने समय के र कौन-कौन से
ले क के संपक-प्रभाि में रहे

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नागर िी ः जग ा दास र्‍नाकर, गोपाल राय गहमरी, प्रेमचंद,
भकशोरी लाल गोस्िामी, ल मीधर िाजपेयी भद के
नाम याद ते हैं । माधि शु्‍ल हमारे यहाँ ते े । िे
जानुबा े, ीला कुरता पहनते े र कुरते की जेब
में जभलयाँिाला बाग की न सनी भमटटी हमेशा र े रहते
े । १ ३१ से ३ तक मैं प्रभतिष कोलकाता जाकर
शरतचं से भमलता रहा, उनके गाँि भी गया ।
तिवारी िी ः पुराने साभह्‍यकार में प भकसको अपना दश मानते
िेिनीय
हैं
नागर िी ः तुलसीदास को तो मुझे ुटटी में भपलाया गया है । बाबा,
शाम को भन्‍य प्रभत रामच रतमानस मुझसे प िाकर भकसी लाड़ी का सा ा्‍कार
सुनते े । लोक जबरदस्ती याद करिाते े । लेने हेतु प्र न की सची बनाइ ।
तिवारी िी ः नागर जी, पने ंजन नयन में सरदास के चम्‍कार
का ब त भिस्तार से िणन भकया है । ्‍या इनपर पका
भि िास है
नागर िी ः ने‍तहीन के चम्‍कार हमने ब त दे े हैं । उनकी
भभि यिाभणयाँ कभी-कभी ब त सच होती हैं । सरपंचशती
के अिसर पर काफी भििाद चला ा भक सर जनमांध े
या नहीं । सिाल यह है भक दे ता कौन है ँ या
मन ँ मा यम है, दे ने िाला मन है ।
तिवारी िी ः पने ्‍या कभी अपने भल ने की सा कता की पर
की है
नागर िी ः हाँ, मेरे पास ब त से प‍त ते हैं । मेरे उपनयास के बारे
में, ास तौर से भजनसे पा कीय प्रभतभ या का पता
चलता है । प नीय
तिवारी िी ः नागर जी, पने मण तो काफी भकया है...
नागर िी ः हाँ, परे अ ं भारतिष का । पेशािर से कनयाकुमारी प्रभसदध यभ्‍तय के भाषण
तक । बंगाल से क मीर तक । इन या‍ता का यह लाभ पभ र चचा कीभज ।
भक मैंने करे्‍टर (च र‍त) ब त दे े र उनके
मनोभिज्ान को भी समझने का मौका भमला ।
तिवारी िी ः अपने समय के ले क में प भकनहें पसंद करते हैं
नागर िी ः अगर भदल से पछो तो क ही दमी । उसे ब त यार
करता ँ । िह है रामभिलास शमा । प्रभातकुमार
मु ोपा याय का सं ह देशी र भिलायती अगर भमल
जा तो भफर प ना चा ँगा । बदलते भारतीय समाज

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के सुंदर भच‍त हैं उसकी कहाभनय में । ट स्ट य र
चे ि की रचना ँ भी मुझे भप्रय हैं ।
तिवारी िी ः पने तो प‍त का भी ब त संकलन भकया है
नागर िी ः हाँ, ब त । प‍त का सं ह भी काफी है, लेभकन िह
यिभस् त नहीं है । मैंने प्र्‍येक जाभत के रीभत- रिाज भी
इकट े भक हैं । इसके भल मना ब त पड़ा है ।
बड़े-ब से सुनकर भी ब त कुछ प्राप्त भकया है । गदर
के फूल के भल मुझे ब त लोग से भमलना-जुलना पड़ा ।
तिवारी िी ः पने अपने उपनयास के भल फी िक ब त भकया है ।
नागर िी ः हाँ, ब त करना पड़ा है । ना यो ब त गोपाल के भल
सफाई कभमय की बभस्तय में जाना पड़ा । उनके
सं ाषरीय
रीभत- रिाज का अ ययन करना पड़ा ।
तिवारी िी ः नागर जी, ्‍या प मन र प्राण को अलग-अलग
मानते हैं अाज के समय में प‍त ले न की
सा कता पर अपने भिचार य्‍त
नागर िी ः हाँ, प्राण को मन से अलग करना पड़ेगा । मन की गभत
कीभज ।
गे तक है । प्राण को िहाँ तक ींचना पड़ता है । मन
क सा भनमल जल है भजससे जीिन के संस्कार रँगते
हैं । मन, प्राण से ही सधता है ।
तिवारी िी ः सर में पने मन को ही पकड़ा है ।
नागर िी ः हाँ, सर ने क जगह भल ा है- मैं दस भदशा में दे
लेता ँ । जब परी प्राणशभ्‍त क जगह कभ त होगी तो
इंटयभटि ई बना गी ।
तिवारी िी ः नागर जी, हम लोग ने पका ब त समय भलया, बभ क
पकी उ र स्िास् य का भी भलहाज नहीं भकया ।
नागर िी ः स्िास् य ीक है मेरा । प्‍नी की म्‍यु के बाद क टटन
गई ी, लेभकन भफर मैंने सोचा भक भल ने के भसिा
र चारा ्‍या है । तुम लोग यह मना भक जब तक
भजंदा र ँ, भल ता र ँ ।
( क नाि के या‍ती से)

शब्द संसार
बतहष्कार करना भ .(सं.) = ्‍याग करना, भनकाल देना मर पुं.सं.(सं.) = मना, भफरना
शिी स्‍ती.सं.(सं.) = प्रणाली, रीभत, तरीका संकिन पुं.सं.(सं.) = सं ह

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85
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः
अमतलाल नागर ले क १. २.
जी के साभह्‍य
पभ‍तका ँ १. २.
सजन में सहायक
(२) िर तिखिए ः-
१. नागर जी की पहली कभिता को प्रस्फुभटत करने िाला अनुभि
२. नागर जी अपने भपता जी के इस गुण से प्रभाभित े
( ) कोष् क म दी गई नागर िी की सातह य कृतियों का वग करर कीतिए ः
कब ल कह ला ी ाय, ंजन नयन, अपशकुन, ना यो ब त गोपाल, महाकाल, प्राय चत, गदर के फूल
कहानी प यास कतविा अय

(4) कृति पूर्ण कीतिए ः (5) तिखिए ः


काय

नागर जी के समकालीन लोचक रचनाकार


साभह्‍यकार

नागर जी के भप्रय
भिदेशी ले क

(६) एक शब्द म िर तिखिए ः (७) तिखिए


१. नागर जी के भप्रय ले क - (अ) िद्तधि शब्दों का मूि शब्द ः
२. नागर जी के भप्रय लोचक - १. साभहभ्‍यक =
३. अपनी इस रचना के भल नागर जी को ब त लोगांे २. भिलायती =
से भमलना पड़ा - (ब) कृदंि शब्दों का मूि शब्द ः
4. नागर जी का पहला उपनयास - १. ंचाि =
(8) तचि िोत याँ तमिाइए ः २. भल ािट =
‘अ’ रचना िर ‘ब’रचनाकार
१. देसी र भिलायती १ अमतलाल नागर अत यख
२. अपशकुन २ तुलसीदास
३. नंद म ३ प्रभात कुमार मु ोपा याय ‘ ान िरा आनंद प्राख का साधन ः
4. रामच रतमानस 4 बंभकमचं चटज वाचन’ पर अपने तवचार तिखिए ।
सरदास
8
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ाषा तबंद

(१) तनम्न वा्‍यों म आई मु य र सहायक त या को रेिांतकि करके दी ई िातिका म तिखिए ः

मु य त या सहायक त या
® उनके रीभत- रिाज का अ ययन करना पड़ा ।
१. --------- ---------
® माता-भपता का यह रंग दे कर तो िे ब ी काकी को र सताने लगे । २. --------- ---------
® उसकी ननद गई । ३. --------- ---------
® िे हड़बड़ा उ े । 4. --------- ---------
® िे पुस्तक पकड़े न र सके । 5. --------- ---------
® उनह ने पुस्तक लौटा दी । . --------- ---------
® समु स्याह र भयािह दी ने लगा । . --------- ---------
® मैं गोिा को परी तरह नहीं समझ पाया । 8. --------- ---------
® काकी टनास् ल पर प ँची । . --------- ---------
® अि य ही लोग ा-पीकर चले ग । १ . --------- ---------

(२) पा ों म प्रयु्‍ि सहायक त या वािे दस वा्‍य ँ कर मु य र सहायक त याएँ चुनकर तिखिए ।

( ) तनम्नतिखिि वा्‍यों के र्‍ि स्रानों की पूति्ण तचि कारक तचह्नों से कीतिए िरा संबंतधि कारक र कारक
तचह्न िातिका म वा्‍य के सामने तिखिए ः
अ वा्‍य कारक कारक तचह्न
१. चाची अपने कमरे ---- भनकल रही ी ।
२. मैं बं ल ---- ोलकर दे ने लगा ।
३. िाज ---- मेरा यान बँटाया ।
4. हमारे शहर ---- क कभि हैं ।
5. भकतने भदन ---- छटभटयाँ हैं
. मान रेल ---- ससुराल चली गई ।
. उनहें पुस्तक ले ने ---- कहा ।
8. पयटन ---- ब त ही नंद भमला ।
. शरीर को कुछ समय ---- भि ाम भमल जाता है ।
१ . बस ---- गोिा मने की योजना बनाई ।
११. बुदभधराम स्िभाि ---- स जन े ।
१२. पा टना स् ल ---- प ँची ।
१३. ---- यह बुभ या कौन है

(4) पा म प्रयु्‍ि तवत कारकों का एक-एक वा्‍य ाँ‍टकर नसे कारक र कारक तचह्न चुनकर तिखिए ।

8
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(१) तनम्नतिखिि प र दे प कर इसपर आधा रि से पाँच प्रशन ियार
पयोतिि िेिन कीतिए, तिनके िर एक-एक वा्‍य म हों ः

भि यात गभणतज् सी.िी. रमण ने छा‍तािस् ा में ही भिज्ान के े‍त में अपनी प्रभतभा
का भस्‍का देश में ही नहीं भिदेश मंे भी जमा भलया ा ।
रमन का क सा ी छा‍त िभन के संबंध में कुछ प्रयोग कर रहा ा । उसे कुछ
कभ नाइयाँ प्रतीत , संदेह । िह अपने अ यापक जोनस साहब के पास गया परंतु िह
भी उसका संदेह भनिारण न कर सके । रमण को पता चला तो उनह ने उस समस्या का
अ ययन-मनन भकया र इस संबंध में उस समय के प्रभसदध ल रेले के भनबंध प े र
उस समस्या का क नया ही हल ोज भनकाला । यह हल पहले हल से सरल र अ छा
ा । ला रेले को इस बात का पता चला तो उनह ने रमण की प्रभतभा की भ र-भ र प्रशंसा
की । अ यापक जोनस भी प्रस र उनह ने रमण से इस प्रयोग के संबंध में ले
भल ने को कहा । रमण ने ले भल कर ी जोनस को भदया, पर जोनस उसे ज दी लौटा
न सके । कारण संभित यह ा भक िह उसे परी तरह ्‍मसात न कर सके ।

प्रशन ः १

4
5
(२) ‘अंिरिाि’ से ‘मेक इन इंत या’ योिना संबंधी िानकारी प्रा करके इसे ब ावा देने हेिु तव ापन ियार कीतिए ः-
मुद्दे ः

े‍त

रा य/स् ान मेक इन इंभ या उदयोग-धंधे

लाभ

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१ बू ी काकी

(पूरक प न)
- प्रेमचंद

बु ापा ब धा बचपन का पुनरागमन करता है । ब ी काकी में प रचय


भजहिा स्िाद के भसिा र कोई चे टा शेष न ी र न अपने क ट की
र कभषत करने के भल रोने के अभत र्‍त कोई दसरा सहारा ही । ि म ः १88 , लमही (उ.प्र.)
समस्त इंभ याँ, ने‍त-हा र पैर जिाब दे चुके े । प िी पर पड़ी रहतीं म यु ः १ ३ , िाराणसी (उ.प्र.)
प रचय ः अप्रभतम कहानीकार िं
र रिाले कोई बात उनकी इ छा के प्रभतकूल करते, भोजन का समय उपनयासकार प्रेमचंद का मल नाम
टल जाता या उसका प रमाण पण न होता अ िा बाजार से कोई िस्तु धनपत राय ा । बा यकाल से ही
ती र न भमलती तो ये रोने लगती ीं । उनका रोना-भससकना साधारण पने ले न काय प्रारंभ कर भदया
ा । धुभनक भहंदी गदय साभह्‍य में
रोना न ा, िे गला फाड़-फाड़ कर रोती ीं । प कहानी के भपतामह कहे जाते
उनके पभतदेि को स्िग भसधारे कालांतर हो चुका ा । बेटे तरुण हैं । पकी कहाभनय , उपनयास में
हो-होकर चल बसे े । अब क भतीजे के भसिाय र कोई न शोभषत भकसान, मजदर, भस्‍तयांे भद
ा । उसी भतीजे के नाम उनह ने अपनी सारी संपभ्‍त भल दी । भल ाते की समस्या का भिस्तत भच‍तण
भमलता है ।
समय भतीजे ने ब लंबे-चौड़े िादे भक भकतु िे सब िादे केिल कुली प्रमुि कृतियाँ ः मानसरोिर भाग-१
भ पो के दलाल के भद ा स जबाग े । यदयभप उस संपभ्‍त की से 8 , जंगल की कहाभनयाँ (कहानी
िाभषक य े -दो सौ रुपये से कम न ी त ाभप ब ी काकी को पेट भर सं ह), गोदान , गबन ,
सेिासदन , कमभभम , कायाक प
भोजन भी कभ नाई से भमलता ा । इसमें उनके भतीजे पंभ त बुदभधराम का (उपनयास), प्रेम की िेदी , कबला ,
अपराध ा अ िा उनकी अदधाभगनी ीमती पा का, इसका भनणय सं ाम (नाटक), ट स्ट य की
करना सहज नहीं । बुदभधराम स्िभाि के स जन े भकतु उसी समय तक कहाभनयाँ, जाद क ा , गा सिद
के तीन नाटक- हड़ताल , नयाय ,
जबभक उनके कोष पर कोई ँच न । पा स्िभाि से ती ी सही, चाँदी की भ भबया (अनुिाद) ।
पर ई िर से रती ी । अत ि ब ी काकी को उसकी ती ता उतनी न
लती ी भजतनी बुदभधराम की भलमनसाहत ।
बुदभधराम को कभी-कभी अपने अ्‍याचार का ेद होता ा । गद्य संबंधी
भिचारते भक इसी संपभ्‍त के कारण मैं इस समय भलामानुष बना बै ा ँ ।
लड़काें को बु से स्िाभाभिक भिदिेष होता ही है र भफर जब प्रस्तुत कहानी के मा यम से
प्रेमचंद जी ने समाज में याप्त
माता- भपता का यह रंग दे ते तो िे ब ी काकी काे र सताया करते । िादा लाफी, िदध के प्रभत
कोई चुटकी काटकर भागता, कोई उनपर पानी की कु ली कर देता भतरस्कार की भािना पर जाेरदार प्रहार
काकी ची मारकर रोतीं । हाँ, काकी ोधातुर होकर ब को गाभलयाँ भकया है । यहाँ कहानीकार ने
बुजुगजन के मन का मनोिैज्ाभनक
देने लगतीं तो पा टनास् ल पर प ँचती । इस भय से काकी अपनी भि लेषण करते उनके प्रभत
भजहिा कपाण का कदाभचत ही प्रयोग करती ीं । दरभाि र ने हेतु प्रे रत भकया है ।
संपण प रिार में यभद काकी से भकसी को अनुराग ा तो िह बुदभधराम

8
89
की छोटी लड़की लाड़ली ी । लाड़ली अपने दोन भाइय के भय से अपने
भहस्से की भम ाई-चबैना ब ी काकी के पास बै कर ाया करती
ी । यही उसका र ागार ा ।
रात का समय ा । बुदभधराम के दिार पर शहनाई बज रही ी र
गाँि के ब का झुं भिस्मयपण ने‍त से गाने का रसास्िादन कर रहा
ा । चारपाइय पर मेहमान भि ाम कर रहे े । दो- क अं ेजी प े
नियुिक इन यिहार से उदासीन े । िे इस गँिार मं ली में बोलना
अ िा सभ मभलत होना अपनी प्रभत ा के प्रभतकूल समझते े ।
ज बुदभधराम के बड़े लड़के मु राम का भतलक या ा । यह
उसी का उ्‍सि ा । र के भीतर भस्‍तयाँ गा रही ीं र पा मेहमान के
वरीय
भल भोजन के प्रबंध में यस्त ी । भटभ य पर कड़ाह च रहे े । क में
पभड़याँ-कचौभड़याँ भनकल रही ीं, दसरे में अनय पकिान बन रहे े । क
बड़े हं े में मसालेदार तरकारी पक रही ी । ी र मसाले की बड़ से कोई सी कहानी सुभन
भजसके री भहस्से में
ुधािधक सुगंध चार र फली ई ी । कभ न प रभस् भतय से जीतने
ब ी काकी अपनी को री में शोकमय भिचार की भाँभत बै ी ई का संदेश भमल रहा हो ।
ीं । यह स्िाद भमभ तसुगंध उनहें बेचैन कर रही ी ।
ह कसी सुगंध है अब मुझे कौन पछता है जब रोभटय ही के
लाले पड़े हैं तब से भा य कहाँ भक भरपर पभड़याँ भमलें यह भिचार कर
उनहें रोना या, कलेजे में क-सी उ ने लगी परंतु पा के भय से उनह ने
भफर मौन धारण कर भलया ।
फूल हम र मंे भी सँ सकते हैं परंतु िाभटका में कुछ र बात होती
है । इस प्रकार भनणय करके ब ी काकी हा के बल सरकती ई बड़ी
कभ नाई में चौ ट से उतरीं र धीर-धीरे रेंगती ई कड़ाह के पास
बै ीं ।
पा उस समय काय भार से उदभि न हो रही ी । कभी इस को े में
जाती, कभी उस को े में, कभी कड़ाह के पास ती, कभी भं ार में जाती ।
भकसी ने बाहर से कर कहा- महाराज ं ाई माँग रहे हैं । ं ाई देने
लगी । दमी ने कर पछा- अभी भोजन तैयार होने मंे भकतना भिलंब
है जरा ोल-मंजीरा उतार दो । बेचारी अकेली स्‍ती दौड़ते-दौड़ते
याकुल हो रही ी, झुँझलाती ी, कु ती ी, परंतु ोध प्रकट करने का
अिसर न पाती ी । भय होता, कहीं पड़ोभसनें यह न कहने लगें भक इतने में
उबल पड़ीं । यास से स्ियं क स रहा ा । गरमी के मारे फुकी जाती ी
परंतु इतना अिकाश भी नहीं ा भक जरा पानी पी ले अ िा पं ा लेकर
झले । यह भी टका ा भक जरा ँ हटी र चीज की लट मची । इस

90
अिस् ा में उसने ब ी काकी को कड़ाह के पास बै ा दे ा तो जल गई ।
ोध न रुक सका । िह ब ीे काकी पर झपटी र उनहें दोन हा से
झटककर बोली- से पेट में ग लगे, पेट है या भाड़ को री में बै ते
्‍या दम ुटता ा अभी मेहमान ने नहीं ाया, भगिान को भोग
नहीं लगा, तब तक धैय न हो सका कर छाती पर सिार हो गई । इतना
ँसती है न जाने कहाँ भस्म हो जाता है । भला चाहती हो तो जाकर को री
में बै ो, जब र के लोग ाने लगेंगे तब तु हें भी भमलेगा । तुम कोई देिी
नहीं हो भक चाहे भकसी के मुँह में पानी न जा , परंतु तु हारी पजा पहले ही
हो जा ।
ब ी काकी अपनी को री में जाकर प चा्‍ताप कर रही ीं भक मैं
कहाँ से कहाँ प ँच गई । उनहें पा पर ोध नहीं ा । अपनी ज दबाजी
पर द ा । सच ही तो है जब तक मेहमान लोग भोजन कर न चुकगे,
रिाले कसे ा ँगे मुझसे इतनी देर भी न रहा गया । सबके सामने पानी
उतर गया । अब, जब तक कोई बुलाने न गा, नहीं जा गी । सं ाषरीय
मन-ही-मन इसी प्रकार का भिचार कर िह बुलाने की प्रती ा करने
लगीं । उनहें क- क पल, क- क युग के समान मालम होता ा । िदधा म के बारे में जानकारी
धीरे-धीरे क गीत गुनगुनाने लगीं । उनहें मालम भक मुझे गाते देर हो इकट ा करके चचा कीभज ।
गई । ्‍या इतनी देर तक लोग भोजन कर ही रहे ह गे । भकसी की िाज
नहीं सुनाई देती । अि य ही लोग ा-पीकर चले ग । मुझे कोई बुलाने
नहीं या । पा भच गई है, ्‍या जाने न बुला । सोचती हो भक प
ही ँगी, िह कोई मेहमान तो नहीं जो उनहें बुला । ब ी काकी चलने
के भल तैयार । यह भि िास भक क भमनट में पभड़याँ र मसालेदार
तरका रयाँ सामने ँगी, उनकी स्िादेभ ंय को गुदगुदाने लगा । उनह ने
मन में तरह-तरह के मनसबे बाँधे, पहले तरकारी से पभड़याँ ा गी, भफर
दही र श्‍कर से, कचौभड़याँ रायते के सा मजेदार मालम ह गी । चाहे
कोई बुरा माने चाहे भला, मैं तो माँग-माँगकर ा गी, लोग यही न कहेंगे
भक इनहें भिचार नहीं कहा करें, इतने भदन के बाद पभड़याँ भमल रही हैं तो
मुँह ज ा करके ोड़े ही उ जा गी
मेहमान मं ली अभी बै ी ई ी । कोई ाकर उँगभलयाँ चाटता ा,
कोई भतरछे ने‍त से दे ता ा भक र लोग अभी ा रहे हैं या नहीं । कोई
इस भचंता में ा भक प्‍तल पर पभड़याँ छटी जाती हैं, भकसी तरह इनहें भीतर
र लेता । कोई दही ाकर जीभ चटकारता ा परंतु दसरा दोना माँगते
संकोच करता ा भक इतने में ब ी काकी रेंगती ई उनके बीच में जा
प ँची । कई दमी च ककर उ ड़े । पुकारने लगे- अरे यह बुभ या

91
कौन है यह कहाँ से गई दे ाे भकसी को छ न दे ।
पंभ त बुदभधराम काकी काे दे ते ही ोध से भतलभमला ग ।
पभड़य का ाल भल ड़े े । ाल को जमीन पर पटक भदया र भजस
प्रकार भनदयी महाजन अपने भकसी बेईमान र भगोड़े कजदार को दे ते
ही झपटकर उसका टेंट पकड़ लेता है उसी तरह लपक उनहें अँधेरी
को री में धम से पटक भदया । शा पी िाभटका ल के क झ के में
न ट-भिन ट हो गई ।
मेहमान ने भोजन भकया । रिाल ने भोजन भकया परंतु ब ी काकी
को भकसी ने न पछा । बुदभधराम र पा दाेन ही ब ी काकी को उनकी
भनल जता के भल दं देने का भन चय कर चुके े । उनके बु ापे पर,
दीनता पर, हतज्ान पर भकसी को करुणा न ई ी, अकेली लाड़ली
उनके भल कु रही ी ।
िेिनीय
लाड़ली को काकी से अ्‍यंत प्रेम ा । बेचारी भोली लड़की ी ।
बालभिनोद र चंचलता की उसमें गंध तक न ी । दाेन बार जब उसके
माता-भपता ने काकी को भनदयता से सीटा तो लाड़ली का दय कर भारतीय कुटंब यिस् ा पर
भाषण के मुददे भल ।
रह गया । िह झँुझला रही ी भक यह लोग काकी को ्‍य ब त-सी
पभड़याँ नहीं दे देते । उसने अपने भहस्से की पभड़याँ भबलकुल न ाई ीं ।
अपनी गुभड़य की भपटारी में बंद कर र ी ीं । उन पभड़य को काकी के
पास ले जाना चाहती ी । उसका दय अधीर हो रहा ा । ब ी काकी मेरी
बात सुनते ही उ बै ेंगी, पभड़याँ दे कर कसी प्रस ह गी मुझे ब यार
करेंगी ।
रात के यारह बज ग े । पा ँगन में पड़ी सो रही ी । लाड़ली
की ँ में नींद न ती ी । काकी को पभड़याँ लाने की ुशी उसे
सोने न देती ी । उसने पभड़य की भपटारी सामने ही र ी ी । जब भि िास
हो गया भक अ मा सो रही हैं, तो अपनी भपटारी उ ाई र ब ी काकी की
को री की र चली ।
सहसा कान में िाज ई- काकी, उ ो मैं पभड़याँ लाई ँ ।
काकी ने लाड़ली की बोली पहचानी । चटपट उ बै ीं । दोन हा से
लाड़ली को टटोला र उसे गाेद में बै ा भलया । लाड़ली ने पभड़याँ
भनकालकर दीं ।
काकी ने पछा- ्‍या तु हारी अ मा ने दी हैं
लाड़ली ने कहा- नहीं, यह मेरे भहस्से की हैं ।
काकी पभड़य पर टट पड़ीं । पाँच भमनट में भपटारी ाली हो गई ।
लाड़ली ने पछा- काकी, पेट भर गया ।

92
जैसे ोड़ी-सी िषा, ं क के स् ान पर र भी गरमी पैदा कर देती
है, उसी भाँभत इन ोड़ी पभड़य ने काकी की ुधा र इ छा को र
उ्‍तेभजत कर भदया ा । बोली- नहीं बेटी, जाकर अ मा से र माँग
ला ।
लाड़ली ने कहा- अ मा सोती हैं, जगा गी तो मारेंगी ।
काकी ने भपटारी को भफर टटोला । उसमें कुछ ुरचन भगरे े । उनहें
भनकालकर िे ा ग । बार-बार ह चाटती ीं, चट ारें भरती ीं ।
दय मसोस रहा ा भक र पभड़याँ कसे पा । संतोष सेतु जब टट
जाता है तब इ छा का बहाि अप रभमत हो जाता है । मतिाल को मद का
स्मरण करना उनहें मदांध बनाता है । काकी का अधीर मन इ छा के प्रबल
प्रिाह में बह गया । उभचत र अनुभचत का भिचार जाता रहा । िे कुछ देर
तक उस इ छा को रोकती रहीं सहसा लाड़ली से बोलीं- मेरा हा
पकड़कर िहाँ ले चलो जहाँ मेहमान ने बै कर भोजन भकया है ।
प नीय
लाड़ली उनका अभभप्राय समझ न सकी । उसने काकी का हा
पकड़ा र ले जाकर ज े प्‍तल के पास बै ा भदया । दीन, ुधातुर, चलती-भफरती पा शाला
हतज्ान बुभ या प्‍तल से पभड़य के टकड़े चुन-चुनकर भ ण करने लगी । उप म के बारे में जानकारी
ह दही भकतना स्िाभद ट ा, कचौभड़याँ भकतनी सलोनी, स्ता भकतना इक ा करके पभ र
सुनाइ ।
सुकोमल काकी बुदभधहीन होते भी इतना जानती ीं भक मैं िह काम
कर रही ँ जो मुझे कदाभप न करना चाभह । मैं दसर की ज ी प्‍तल चाट
रही ँ । परंतु बु ापा त णा रोग का अंभतम समय है जब संपण इ छा ँ क
ही क पर लगती हैं । ब ी काकी में यह क उनकी स्िादेंभ याँ ीं ।
ीक उसी समय पा की ँ ें ुलीं । उसे मालम भक लाड़ली
मेरे पास नहीं है । िह च की, चारपाई के इधर-उधर ताकने लगी भक कहीं
नीचे तो नहीं भगर पड़ी । उसे िहाँ न पाकर िह उ ी तो ्‍या दे ती है भक
लाड़ली ज े प्‍तल के पास चुपचाप ड़ी है र ब ी काकी प्‍तल पर
से पभड़य के टकड़े उ ा-उ ाकर ा रही हैं । पा का दय स हो गया ।
प रिार का क बुजुग दसर की ज ी प्‍तल टटोले, इससे अभधक शोकमय
य असंभि ा । पभड़य के कुछ ास के भल उसकी चचेरी सास सा
पभतत र भनक ट कम कर रही है । सा प्रतीत होता मानो जमीन रुक गई,
समान च्‍कर ा रहा है । संसार पर कोई पभ्‍त ने िाली है । पा
को ोध न या । शोक के स मु ोध कहाँ करुणा र भय से
उसकी ँ ें भर इस अधम के पाप का भागी कौन है उसने स े
दय से गगन मं ल की र हा उ ाकर कहा, परमा्‍मा, मेरे ब पर
दया करो । इस अधम का दं मुझे मत दो, नहीं तो मेरा स्‍यानाश हो

93
जा गा ।
पा को अपनी स्िा परता र अनयाय इस प्रकार प्र्‍य प में
कभी न दी पड़े े । िह सोचने लगी- हाय भकतनी भनदयी ँ । भजसकी
संपभ्‍त से मुझे दो सौ रुपया िाभषक य हो रही है, उसकी यह दगभत
र मेरे कारण हे दयामय भगिान मुझसे बड़ी भारी चक ई है, मुझे
मा करो ज मेरे बेटे का भतलक ा । सैकड़ मनु य ने भोजन भकया ।
मैं उनके इशार की दासी बनी रही । अपने नाम के भल सैकड़ रुपये यय
कर भद परंतु भजसकी बदौलत हजार रुपये ा , उसे इस उ्‍सि में भी
भरपेट भोजन न दे सकी । केिल इसी कारण भक, िह िदधा असहाय है ।
पा ने दीया जलाया, अपने भं ार का दिार ोला र क ाली
में संपण सामभ याँ सजाकर ब ी काकी की र चली ।
पा ने क ािरुदध स्िर में कहा- काकी उ ो, भोजन कर लो ।
मुझसे ज बड़ी भल ई, उसका बुरा न मानना । परमा्‍मा से प्रा ना कर
दो भक िह मेरा अपराध मा कर दें ।
भोले-भोले ब की भाँभत, जो भम ाइयाँ पाकर मार र
भतरस्कार सब भल जाता है, ब ी काकी िैसे ही सब भलकर बै ी ई ाना
ा रही ीं । उनके क- क रो ँ से स ी सभद छा ँ भनकल रही ीं र
पा बै ी इस स्िग य य का नंद लेने में भनम न ी ।

( इ्‍कीस े कहाभनयाँ से)

शब्द संसार
तससकना भ .(भह.) = भससकी भरकर रोना
क िी स्‍ती.सं.(भहं.) = मुँह साफ करने के भल उसमें पानी लेकर फकने की भ या
अनुराग पुं.सं.(सं.) = प्रेम, प्रीभत
गो ा पुं.भि.(भहं.) = भागा
मुहावरे
गिा ा ना = शोर करना, भच लाना
किेिे म क ना = मन में िेदना उ्‍प होना

944
स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) स्व ाव के आधार पर पा का नाम (२) कृति पूर्ण कीतिए ः
१. ोधी- ब ी काकी को ललचाने िाले यंजन
२. लालची -
३. शरारती -
4. स्नेभहल -

( ) बुद्तधराम का काकी के प्रति द य्णवहार दशा्णने वािी चार बाि ः


१) २)
३) 4)

(4) कारर तिखिए ः


१. ब ी काकी ने भतीजे के नाम सारी संपभ्‍त भल दी
२. लाड़ली ने पभड़याँ भछपाकर र ीं
३. बुदभधराम ने काकी को अँधेरी को री में धम से पटक भदया
4. अं ेजी प े नियुिक उदासीन े

(5) सूचना के अनुसार शब्द म प रवि्णन कीतिए ः

भिलोम
............

ब िचन भलंग
............ ब ा ............

पयायिाची
............

अत यख ‘बुिुग्ण आदर-सम्मान के पा होिे ह, दया के नह ’ इस सुवचन पर अपने तवचार तिखिए ।

955
ाषा तबंद

(१) तनम्नतिखिि त या के प्ररम िरा द्तविीय प्रेररार्णक प तिखिए ः


अ मूि त या प्ररम प्रेररार्णक प द्तविीय प्रेररार्णक प
१. भलना ----------- -----------
२. पीसना ----------- -----------
३. माँगना ----------- -----------
4. तोड़ना ----------- -----------
5. बेचना ----------- -----------
. कहना ----------- -----------
. नहाना ----------- -----------
8. ेलना ----------- -----------
. ाना ----------- -----------
१ . फलना ----------- -----------
११. बै ना ----------- -----------
१२. भल ना ----------- -----------
१३. जुटना ----------- -----------
१4. दौड़ना ----------- -----------
१5. दे ना ----------- -----------
१ . जीना ----------- -----------

(२) पत ि पा ों से तक ह दस मूि त या का चयन करके नके प्ररम िरा द्तविीय


प्रेररार्णक प तनम्न िातिका म तिखिए ः
अ मूि त या प्ररम प्रेररार्णक प द्तविीय प्रेररार्णक प
१. ----------- ----------- -----------
२. ----------- ----------- -----------
३. ----------- ----------- -----------
4. ----------- ----------- -----------
5. ----------- ----------- -----------
. ----------- ----------- -----------
. ----------- ----------- -----------
8. ----------- ----------- -----------
. ----------- ----------- -----------
१ . ----------- ----------- -----------

‘मेरा तप्रय व ातनक’ तवषय पर तनबंध िेिन कीतिए ।


पयोतिि िेिन

96
११ समिा की र
- मुकुटधर पांडेय

बीत गया हेमंत ात, भशभशर तु ई


प्रकभत ई दयुभतहीन, अिभन में कुझभटका है छाई । प रचय
पड़ता ब तुषार पदमदल ताल में भबल ाते, ि म ः १8 5, भबलासपुर (छ्‍तीसग )
अनयायी नप के दं से य ा लोग द पाते । म यु ः १ 8
प रचय ः छायािाद के प्रभतभ त कभि
भनशा काल में लोग र में भनज-भनज जा सोते हैं, मुकुटधर पां ेय जी ने १२ िष की
अ पायु से ही भल ना शु कर भदया
बाहर िान, स्यार भच लाकर बार-बार रोते हैं । ा । पकी का य रचना में मानि
प्रेम, प्रकभत स दय, मानिीकरण,
अदधराभ‍त को र से कोई जो ँगन को ता, याभ्‍मकता र गीता्‍मकता के
शनय गगन मं ल को ल यह मन में है भय पाता । त्‍्‍ि प्रमु ता से प रलभ त होते हैं ।
पने पदय के सा -सा गदय में भी
तारे भनपट मलीन चंद ने पां िण है पाया, परे अभधकार के सा भल ा है । पने
मानो भकसी रा य पर है, रा टीय क ट कुछ या । भनबंध र लोचना ं भी भल े
हैं ।
धभनय को है मौज रात-भदन हैं उनके पौ-बारे, प्रमुि कृतियाँ ः पजाफूल शैलबाला
(कभिता सं ह), ल छमा (अनभदत
दीन द र के म्‍ े ही पड़े भशभशर द सारे । उपनयास), पर म (भनबंध)
दयदान , मामा , स्मभतपंजु भद ।
िे ाते हैं हलुिा-पड़ी, दध-मलाई ताजी,
इनहें नहीं भमलती पर स ी रोटी र न भाजी ।
िे सु से रंगीन कीमती ें शाल-दशाले, पद्य संबंधी
पर इनके कभपत बदन पर भगरते हैं भनत पाले ।
प्रस्तुत कभिता में कभि ने भशभशर
िे हैं सु साधन से प रत सु र र के िासी, तु में पड़ने िाली अ्‍यभधक ं क से
इनके टटे-फूटे र में छाई सदा उदासी । परेशान प्राभणय , साधन संप िं
अभाि स्त यभ्‍तय के जीिनयापन
पहले हमें उदर की भचंता ी न कदाभप सताती, का सजीि िणन भकया है । कभि का
कहना है भक धनिान र भनधन दोन
माता सम ी प्रकभत हमारी पालन करती जाती ।। भाई-भाई हैं । समाज में अमीर को
गरीब भाइय की भलाई के बारे में
हमको भाई का करना उपकार नहीं ्‍या होगा, अि य भिचार करना चाभह ।
भाई पर भाई का कुछ अभधकार नहीं ्‍या होगा ।

97
शब्द संसार
द्युतिहीन भि.(सं.) = तेजहीन पां वर्ण पुं.सं.(सं.) = पीला रंग
स्यार पुं.सं.(भहं.) = गीदड़, भसयार पािा पुं.सं.(भहं.) = बफ, भहम

स्वाधयाय
* सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-
(१) कृति पूर्ण कीतिए ः (२) िीवन शिी म अंिर स्पष्‍ट कीतिए ः
भशभशर तु में प रितन धनी दीन-द र

प्रकभत मंे धरती पर

( ) िातिका पूर्ण कीतिए ः (4) तनम्न मुद्दों के आधार पर पद्य तवशिेषर कीतिए ः
१. रचनाकार
िुएँ अं ेिी माह तहंदी माह
२. रचना का प्रकार
१. िसंत माच, अप्रैल चै‍त, बैसा ३. पसंदीदा पंभ्‍त
२. ी म --------- ----------
4. पसंदीदा होने का कारण
३. िषा --------- ----------
5. रचना से प्राप्त संदेश
4. शरद --------- ----------
5. हेमंत --------- ----------
. भशभशर --------- ----------

(5) अंतिम दो पंत्‍ियों से तमिने वािा संदेश तिखिए ।

‘तवशवबंधुिा वि्णमान युग की माँग’ तवषय पर अस्सी से स


पयोतिि िेिन शब्दों म तनबंध तिखिए ।

988
याकरर तव ाग
श द भेद

(१) तवकारी शब्द र नके ेद (२) अतवकारी शब्द(अ यय)

सं ा सव्णनाम तवशेषर त या
जाभतिाचक पुरुषिाचक गुणिाचक सकमक भ याभिशेषण अ यय
यभ्‍तिाचक भन चयिाचक प रमाणिाचक अकमक संबंधसचक अ यय
अभन चयिाचक १.भन चत २.अभन चत समु यबोधक अ यय
भाििाचक भनजिाचक सं यािाचक संयु्‍त भिस्मयाभदबोधक अ यय
१. भन चत २. अभन चत
यिाचक प्र निाचक सािनाभमक प्रेरणा क
समहिाचक संबंधिाचक - सहायक
सामानय
(4) संतध ेद
ितमान काल अपण
पण
( )
स्िर संभध यंजन संभध भिसग संभध
सामानय
भ या के काल (5) वा्‍य के ेद
भतकाल अपण
पण रचना की तष्‍ट से अर्ण की तष्‍ट से
१. साधारण १. भिधाना क
भभि य काल सामानय २. भनषेधा क
अपण २. भम ३. प्र ना क
३. संयु्‍त 4. ज्ा क
(६) मुहावरे पण 5. भिस्मया क
. संदेशसचक
(७) वा्‍य शु धीकरर
(8) सहायक त या पहचानना ( ) प्रेररार्णक त या
(१ ) कारक-कारक तचह्न (११) तवरामतचह्न

शब्द संपदा - (पाँचिीं से नौिीं तक)


श द के भलंग, िचन, भिलोम, पयायिाची, श दयु म, अनेक श द के भल क श द, समो ा रत मरा ी-
भहंदी श द, भभ ा क श द, कभ न श द के अ , उपसग-प्र्‍यय पहचानना/अलग करना, कदंत-तदभधत
बनाना, मल श द अलग करना ।

99
पयोतिि िेिन (रचना तव ाग)
प िेिन
अपने भिचार , भाि को श द के िारा भल त प में अपेभ त य तक पहँुचा देने िाला साधन है प‍त हम सभी
प‍तले न से प रभचत हैं ही । ज-कल हम नई तकनीक को अपना रहे हैं । संगणक, मण िभन, अंतरजाल, ई-मेल,
िीभ यो क भलंग जैसी तकनीक को अपने दैभनक जीिन से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं । दर िभन, मण िभन के भि कार के
बाद प‍त भल ने की ि यकता कम महसस होने लगी है भफर भी अपने र तेदार, ्‍मीय य , भम‍त/सहेली तक अपनी
भािना ँ प्रभािी ंग से पहुंचाने के भल प‍त क सश मा यम है । प‍तले न की कला को ्‍मसात करने के भल अ यास की
ि यकता होती है । अपना कहना (माँग/भशकायत/अनुमभत/भिनती/ िेदन) उभचत त ा कम-से-कम श द में संबंभधत
य तक पहँुचाना, अनु प भाषा का प्रयोग करना क कौशल है । अब तक हम भजस प धभत से प‍तले न करते हैं, उसमें
नई तकनीक के अनुसार अपेभ त प रितन करना ि यक हो गया है । ।
प‍तले न में भी धुभनक तं‍तज्ान/तकनीक का उपयोग करना समय की माँग है । ने िाले समय में पको ई-मेल भेजने
के तरीके से भी अिगत होना है । अत इस िष से ई-मेल के प्रा प के अनु प प‍तले न की प धभत अपनाना अपेभ त है ।
प िेिन के मु य दो प्रकार ह, पचा रक र अन पचा रक । (पष् १७, ७ )
पचा रक प अन पचा रक प
— प्रभत भल ने के बाद प‍त प्राप्तकता का पद र पता भल ना — संबोधन त ा अभभिादन र त के अनुसार दर के सा
ि यक है । — प‍त के भिषय त ा संदभ का उ ले करना करना चाभह । — प्रारंभ में भजसको प‍त भल रहे हैं उसका
ि यक है । — इसमें महोदय/महोदया श द दिारा अादर कुशल ेम पछना चाभह । — ले न स्नेह/स मान सभहत
प्रकट भकया जाता है । — भन चत त ा सही श द में शय प्रभािी श द र भिषय भििेचन के सा होना चाभह । —
की प्रस्तुभत करना अपेभ त है । — प‍त का समापन करते समय र ते के अनुसार भिषय भििेचन में प रितन अपेभ त है । — इस
बायीं र प‍त भेजने िाले का नाम, पता भल ना चाभह । प‍त में भिषय उ े ि यक नहीं है । — प‍त का समापन
— ई-मेल में ई ी देना ि यक है । करते समय बायीं र प‍त भेजने िाले के हस्ता र, नाम त ा
पता भल ना है ।
त‍ट परी प‍तले न में अब तक भलफाफे पर प‍त भेजने िाले (प्रेषक) का पता भल ने की प्र ा है । ई-मेल में भलफाफा नहीं होता
है । अब प‍त में ही पता भल ना अपेभ त है ।
प का प्रा प
( पचा रक प )
तदनांक ः
प्रति,

तवषय ः
संद ्ण ः
महोदय,
तवषय तववेचन

वदीय वदीया,
हस्िा र ः
नाम ः
पिा ः

ई-मेि आई ी ः

100
ग य आकिन (प्रशन तनतम्णति)

— भाषा सी कर प्र न की भनभमभत करना क मह िपण भाषाई कौशल है । पा य म में भाषा कौशल को प्राप्त करने के भल
प्र नभनभमभत टक का समािेश भकया गया है । — भद ग प र छेद (गदयांश) को प कर उसी के धार पर पाँच प्र न की
भनभमभत करनी है । प्र न के उ्‍तर क िा्‍य में ह , से ही प्र न बना जा ँ ।
प्रशन से हों ः — तैयार प्र न सा क िं प्र न के प्रा प मंे ह । — प्र न के उ्‍तर भद ग ग यांश में ह । — रभचत प्र न के
अंत में प्र नभचहन लगाना ि यक है । — प्र न रचना का कौशल प्राप्त करने के भल अभधकाभधक अ यास की ि यकता
है । — प्र न का उ्‍तर नहीं भल ना है । — प्र न रचना परे ग यांश पर होनी ि यक है ।
* प्रशन तनतम्णति के तिए आवशयक प्रशनवाचक शब्द तनम्नानुसार ह ः
भकतना
कौन भकसका

कब उपयु प्र निाचक श द कौन-सा/से/सी

कहाँ कसे
्‍या ्‍य

व िांि िेिन
ि्‍तांत का अ है- टी ई टना का भििरण/रपट/अहिाल ले न । यह रचना की क भिधा है । इसे भिषय के अनुसार
भल ना पड़ता है। ि्‍तांत ले न क कला है, भजसमें भाषा का कुशलतापिक प्रयोग करना होता है । यह भकसी टना, समारोह का
भिस्तत िणन है जो भकसी को जानकारी देने हेतु भल ा होता है । इसे रपोताज, इभति्‍त, अहिाल भद नाम से भी जाना जाता है ।
व िांि िेिन के तिए धयान रिने यो य बाि ः — ि्‍तांत में भटत टना का ही िणन करना है । — टना, काल, स् ल का
उ े अपेभ त होता है । सा -ही-सा टना जैसी भटत ई हो उसी म से प्रभािी र प्रिाही भाषा में िभणत हो । — ि्‍तांत
ले न लगभग अस्सी श द में हो । समारोह में अ य /उ ाटक/ या याता/ि ा भद के जो मौभलक भिचार/संदेश य
हैं उनका सं ेप में उ ले हो — भाषण में कहे ग िा्‍य को दहरा अितरण ........... भचहन लगाकर भल ना चाभह ।
— शयपण, उभचत त ा ि यक बात को ही ि्‍तांत में शाभमल करें । — ि्‍तांत का समापन उभचत प धभत से हो ।
व िांि िेिन के तवषय भश क भदिस, भहंदी भदिस, िाचन प्रेरणा भदिस, शहीद भदिस, रा ीय भिज्ान भदिस, िै िक मभहला
भदिस, बाभलका भदिस, बाल भदिस, भद यांग भदिस, ीड़ा महो्‍सि, िाभषक पुरस्कार भितरण, िन महो्‍सि भद ।
िसे ः १ नीचे तदए गए तवषय पर व िांि िेिन कीतिए ः

स् ान, समय, भदनांक

समापन बाभलका भदिस प्रमु अभतभ

मु य काय म
२ अपने प रवेश म मनाए गए ‘अंिरराष्‍टीय तद यांग तदवस’ का व िांि िग ग अस्सी शब्दों म तिखिए ।
(व िांि म स्रान, समय, ‍टना का िेि आवशयक ह ।)
101
कहानी िेिन
कहानी सुनना-सुनाना बाल ि ध के भल रुभच र नंद का भिषय होता है । कहानी ले न भि याभ य की
क पनाश , निभनभमभत ि सजनशीलता को प्रेरणा देता है । इसके पि की क ा में पने कहानी ले न का अ यास भकया
है । कहानी अपनी क पना र सजनशीलता से रची जाती है । कहानी का मलक य (क ाबीज) उसका प्राण होता है । मल क य
के भिस्तार के भल भिषय को पा‍त, टना, तकसंगत भिचार से प रपोभषत करना ले न कौशल है । इसी ले न कौशल का भिकास
करना कहानी ले न का उ दे य है ।
कहानी िेिन म तनम्न बािों की र तवशेष धयान द ः — शीषक, कहानी के मु द का भिस्तार र कहानी से प्राप्त सी , प्रेरणा,
संदेश ये कहानी ले न के अंग हैं । — कोई भी कहानी टना टने के बाद भल ी जाती है, अत कहानी भतकाल में भल ी जा ।
कहानी के संिाद प्रसंगानुकूल ितमान या भभि यकाल में हो सकते हैं । संिाद अितरण भचहन में भल ना अपेभ त है । — कहानी
ले न की श दसीमा सौ श द तक हो । — कहानी के रंभ में शीषक भल ना ि यक होता है । शीषक छोटा, कषक,
अ पण र सारगभभत होना चाभह । — कहानी में कालानु म, टना म र प्रिाह होना ि यक है । प्र्‍येक मुददे या श द
का अपेभ त भिस्तार ि यक है । — टना ँ धाराप्रिाह अ ात क दसरे से ं लाब ध होनी चाभह । — कहानी के प्रसंगानुसार
िातािरण भनभमभत होनी चाभह । उदा. यभद जंगल में कहानी टती है तो जंगल का रोचक, कषक त ा सही िणन अपेभ त है ।
— कहानी के मलक य/भिषय (क ाबीज) के अनुसार पा‍त ि उनके संिाद, भाषा पा‍तानुसार प्रसंगानुकूल होने चाभह । — प्र्‍येक
प रसर/ े‍त की भाषा िं भाषा शैली में भभ ता/भिभिधता होती है । इसकी जानकारी होनी चाभह । — अनय भाषा के उदधरण,
सुिचन भद के प्रयोग से य ासंभि बचे । — कहानी ले न में ि यक भिरामभचहन का प्रयोग करना न भलें । — कहानी ले न
करते समय अनु छेद बना ँ । जहाँ भिचार, क टना समाप्त हो, िहाँ प र छेद समाप्त करें । — कहानी का भिस्तार करने के भल
उभचत मुहािरे, कहाितें, सुिचन, पयायिाची श द भद का प्रयोग करें ।
कहानी िेिन- शब्द सीमा अस्सी से स िक
कहानी िेिन के प्रकार

(१)असंबदध श द के धार पर (२) मुदद के धार पर (३) सुिचन/कहाित के धार पर

तव ापन
ितमान युग स्पधा का है र भिज्ापन इस युग का मह िपण अंग है । उ्‍क भिज्ापन पर उ्‍पाद की भब ी का क ँ ड़ा
भनभर करता है । ज संगणक त ा सचना प्रौ योभगकी के युग में, अंतरजाल (इंटरनेट) िं मण िभन (मोबाइल) ांभत के काल में
भिज्ापन का ‍ते भिस्तत होता जा रहा है । भिज्ापन के कारण भकसी िस्तु, समारोह, भशभिर भद के बारे में परी जानकारी सानी
से समाज तक पहँच ु जाती है । लोग के मन में रुभच भनमाण करना, यान कभषत करना भिज्ापन का मु य उददे य होता है ।
तव ापन िेिन करिे समय तनम्न मु ों की र धयान द ः — कम-से-कम श द में अभधकाभधक शय य हो ।
— भिज्ापन की र सभी का यान कभषत हो, अत श दरचना, भाषा शुदध हो । — भजसका भिज्ापन करना है उसका नाम
स्प र कषक ंग से अंभकत हो । — भिषय के अनु प रोचक शैली हो । लंका रक, का यमय, प्रभािी श द का उपयोग
करते भिज्ापन अभधक कषक बना ँ । — ाहक की बदलती रुभच, पसंद, दत, फशन िं ि यकता का प्रभतभबंब
भिज्ापन में प रलभ त होना चाभह । — भिज्ापन में उ्‍पाद की गुणि्‍ता मह िपण होती है, अत छट का उ े करना हर समय
ि यक नहीं है । — भिज्ापन में संपक स् ल का पता, संपक ( दर िभन, मण िभन, ई-मेल ई ी) का स्प उ े करना
ि यक है । — भिज्ापन केिल पेन से भल ें । — पे नसल, स्केच पेन का उपयोग न करें । — भच‍त, भ जाइन बनाने की ि यकता
नहीं है । — भिज्ापन की श द मयादा पचास से सा श द तक अपेभ त है । भिज्ापन में ि यक सभी मु द का समािेश हो ।
तनम्नतिखिि िानकारी के आधार पर आकष्णक तव ापन ियार कीतिए ः
कालािभध
शैभ क यो यता के भल सुर ा र क की ि यकता यु सीमा

संपक
102
तनबंध िेिन

भनबंध ले न क कला है । भनबंध का शा दक अ होता है सुगभ त अ िा सु यि स् त प में बँधा । साधारण


गदय रचना की अपे ा भनबंध में रोचकता र सजीिता पाई जाती है । भनबंध गदय में भल ी ई रचना होती है, भजसका कार
सीभमत होता है । उसमें भकसी भिषय का प्रभतपादन अभधक स्ितं‍ततापिक र भिशेष अपनेपन र सजीिता के सा भकया
जाता है । कस‍तता, य ्‍ि का प्रभतभबंब, ्‍मीयता, कला्‍मकता भनबंध के त ि माने जाते हैं । इन त ि के धार पर
भनबंध की रचना की जाती है ।
तनबंध तिििे समय तनम्नतिखिि बािों की र धयान द ः
— प्रारंभ, भिषय भिस्तार, समापन इस म से भनबंध ले न करें । — भिषयानु प भाषा का प्रयोग करें । — भाषा प्रिाही, रोचक र
मुहािरेदार हो । — कहाित , सुिचन का य ास् ान प्रयोग करें । — शु , सुिा य र मानक ितनी के अनुसार भनबंध ले न
ि यक है । — सहज, स्िाभाभिक र स्ितं‍त शैली में भनबंध की रचना हो । — भिचार स्प त ा मबदध होने ि यक हैं ।
— भनबंध की रचना करते समय श द चयन, िा्‍य-भिनयास की र यान ि यक देना है । — भनबंध ले न में भिषय को प्रभतपाभदत
करने की पदधभत के सा ही कम-से-कम चार अनु छेद की रचना हो । — भनबंध का प्रारंभ कषक र भजज्ासािधक हो ।
— भनबंध के म यभाग में भिषय का प्रभतपादन हो । भनबंध का म यभाग मह िपण होता है इसभल उसमें नीरसता न हो ।
— भनबंध का समापन भिषय से संबंभधत, सुसंगत, उभचत, सा क भिचार तक ले जाने िाला हो ।
आ मकरना मक तनबंध तिििे समय आवशयक मह वपूर्ण बाि
— ्‍मक न अ ात क तरह का परकाया प्रिेश है । — भकसी िस्तु, प्राणी, प ी, य की जगह पर स्ियं को स् ाभपत/
रोभपत करना होता है । — ्‍मक ना्‍मक ले न की भाषा प्र मपुरुष, किचन में हो । जैसे - मैं .... बोल रहा/रही हँ ।
— प्रारंभ में भिषय से संबंभधत उभचत प्रस्तािना, सुिचन, टना, प्रसंग सं ेप में भल सकते हैं सीधे मैं... हँ से भी प्रारंभ भकया
जा सकता है ।
वचा रक तनबंध तिििे समय आवशयक बाि
— िैचा रक भनबंध ले न में भिषय से संबंभधत भिचार को प्रधानता दी जाती है । — िणन, क न,
क पना से ब कर भिचार मह िपण होते हैं । — भिचार के प -भिप में भल ना ि यक होता है ।
— भिषय के संबंध में भिचार, मुददे, मत की ताभकक प्रस्तुभत मह िपण होती है । — परक प न, श दसंपदा, भिचार की संप ता
भजतनी अभधक होती है उतना ही िैचा रक भनबंध भल ना हमारे भल सहज होता है ।

तनबंध िेिन प्रकार

्‍मक ना्‍मक िैचा रक िणना्‍मक च र‍ता्‍मक क पनाप्रधान

१.फटी पुस्तक १. यभद मोबाइल न


१. समाचार प‍त १. मेरा भप्रय गायक होता तो...
की ्‍मक ा २. भिज्ान के १. भतहाभसक २. मेरा भप्रय लाड़ी २. यभद नक न
२. मैं भहमालय चम्‍कार स् ल की सैर
बोल रहा ँ... २. नदी भकनारे दो होती तो ...
ंटे

103
ावार्ण - पा ्यपुस्िक पष् २5 ः पहिी इकाई, पा ६ तग रधर नागर- संि मीराबाई
(१) मीराबाई अपने भग रधर गोपाल ी क ण की उपासना में त ीन होकर कहती हैं भक भजनह ने मा े पर मोरपं का मुकुट
धारण कर र ा है मेरे तो स्िामी िहीं हैं । लोग कहते हैं मैंने कुल की मयादा छोड़ दी है, लोक लाज छोड़ दी है र साधु-
संत के बीच गई हँ । मैं तो अपने स्िामी की भ में बकर नंद की अनुभभत कर रही हँ । भजस तरह दध को भबलोकर
म्‍ न भनकाल भलया जाता है उसी तरह स्िामी की भ में मन को भबलोकर उनकी छभि का म्‍ न मैंने पा भलया है । मैं
ताे अपने भग रधर की ही दासी हँ उनही के मोह में रंग गई हँ ।
(२) हे प्रभु, तु हारे भबना मेरा उ धार कहाँ तुम ही तो मेरे पालनहार हो, तुम ही तो मेरे र क हो । मैं तु हारी दासी हँ । मेरा
जनम-मरण तु हारे नाम के चार र रती की तरह मता रहता है । मैं तु हें बार-बार पुकारकर उ धार के भल भिनय
करती रहती हँ । भिकार से भरा यह संसार भिसागर में भ र गया है । मेरी नाि के पाल फट ग हैं । नाि बने में समय नहीं
लगेगा । हे प्रभु, नाि के पाल बाँध दो । यह तु हारी भिरभहणी भप्रय तु हारी ही राह दे रही है । यह दासी मीरा तु हारे ही
नाम की रट लगा है, तु हारी शरण में है । इसे बचाकर इसकी लाज र लो ।
(३) फागुन के चार भदन होली ेलकर मना । करताल र प ािज जैसे िादय के भबना केिल अनहद नाद की झनकार के
सा भबना भकसी राग-राभगनी के अपने रोम-रोम से े गीत गा । शील र संतोष की सीमा में भपचका रय से स्नेह
का रंग उड़ा । चार र उड़ते गुलाल से परा काश लाल हो गया है, रंग ही रंग बरस रहा है । लोक लाज को ्‍यागकर
ँ ट के पट ुल ग हैं । हे प्रभु भग रधर नागर पके चरण कमल पर पकी यह दासी मीरा बभलहारी जाती है ।

पा ्यपुस्िक पष् 5१-5२ ः दसरी इकाई, पा १ बरषतहं ििद - गोस्वामी िुिसीदास


च पाई - रािण िारा सीता जी के हरण के बाद भगिान ीराम, सीता जी की ोज कर रहे हैं । गोस्िामी तुलसीदास िषा तु
के मनोहारी िातािरण का भच‍तण करते हैं । ीराम ल मण से कह रहे हैं भक हे भाई ल मण, काश में बादल मं से ुमड़-
ुमड़कर ोर गजना कर रहे हैं भकतु भप्रया अ ात सीता के भबना मेरा मन र रहा है, भबजली (दाभमनी) की चमक बादल में
रह-रहकर हो रही है अ ात भबजली की चमक में उसी तरह हराि नहीं है जैसे द य की प्रीभत (प्रेम) स् र नहीं रहती ।
बादल प िी के समीप कर सी िषा कर रहे हैं जैसे कोई भि िान य भि या का ज्ान हो जाने पर न होकर झुक जाता
है । पर से िषा की बँदें पहाड़ पर भगरती हैं र पहाड़ बँद के ात को िैसे ही सह लेता है जैसे संत द की बात को सह
लेते हैं । छोटी-छोटी नभदयाँ अभधक िषा के कारण भर गई हैं, उनह ने अपने भकनार को अपने जल से िैसे ही तोड़ भदया है, जैसे
द जन धनी हो जाने पर अभभमानी हो जाते हैं । यह ं बा रश का जल मभलन स् ल पर भगरने से गंदा हो जाता है जैसे भक ु जीि
माया(लालच)के फदे में पड़कर मभलनता को धारण कर लेता है । जल क‍त होकर तालाब में उसी तरह भर रहा है, जैसे स गुण
क- क कर अपने प स जन य के पास चले ते हैं । नदी का जल समु में जाकर िैसे ही स् र हो जाता है, जैसे जीि
ह र (ई िर) को पाकर अचल ( िागमन से मु ) हो जाता है ।
दोहा - प िी ास से भर गई है अ ात ास से प रपण होकर हरी हो गई है । अब सि‍त हरी ास के कारण रास्ते भी उसी तरह
समझ में नहीं रहे हैं, जैसे पा ं ी के पा ं भरे मत के प्रचार से सद ं लुप्त हो जाते हैं ।
च पाई - चार भदशा में में क की िभन सी सुहािनी लग रही है जैसे भि या समह में िेद का प न कर रहे हैं । अनेक ि
में नये प्‍ते ग हैं । िे से हरे-भरे िं सुशोभभत हो ग हैं जैसे साधक का मन भििेक (अ ात ज्ान) प्राप्त होने पर हो जाता है
। मदार र जिास भबना प्‍ते के हो ग हैं (अ ात प्‍ते झड़ ग ) जैसे े रा य में द का उ यम जाता रहा, िषा के कारण
धल कहीं ोजने पर भी नहीं भमलती, जैसे ोध धम को दर कर देता है । अ ात ोध मंे मनु य अज्ानी बन जाता है िह धम को
भल जाता है । चं मा से यु प िी सेे सुशोभभत हो रही है जैसे भक उपकारी पुुरुष की संप ्‍त सुशोभभत होती है । रात के न ोर
अँ रे में जुगन को दे कर से लग रहा है जैसे दंभभय का समाज जुटा हो । चतुुर भकसान ेत को भनरा रहे हैं (भनराई- ास
भद को ेत से भनकालना) जैसे भिदिजन मोह, मद, र मान का ्‍याग कर देते हैं । च िाक प ी भद ाई नहीं दे रहे हैं जैसे
कभलयुग में धम भाग जाता है । सर में िषा होती है, पर िहाँ ास तक नहीं उगती । प िी अनेक तरह के जीि से भरी ई है, उसी
तरह शोभायमान है । सुरा य पाकर मानो प्रजा मंे बा -सी गई है । यहाँ-िहाँ ककर पभ क भि ाम करने के भल हरे
हैं । उसी तरह ज्ान उ्‍प होने पर इंभ याँ भशभ ल होकर भिषय की र जाना छोड़ देती हैं ।
दोहा -कभी-कभी िायु जोर से चलने लगती है, भजससे बादल िैसे गायब हो जाते हैं जैसे कुपु‍त के उ्‍प होने से कुल के उ्‍तम
धम न हो जाते हैं । जैसे कभी भदन में ोर अंधकार छा जाता है कभी सय प्रकट हो जाता हैं िैसे ही कुसंग पाकर ज्ान न हो
जाता है र सुसंग पाकर ज्ान उ्‍प हो जाता है ।

१1044
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